अभिमान और अधीर 😊 शुरुआत सिर्फ़ नज़रों का खेल थी। लेकिन वक्त ने धीरे-धीरे दोनों को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया जहाँ जज़्बात काबू में नहीं रहे। एक शाम, जब हल्की बारिश की बूंदें हवा में घुल रही थीं, अभिमान ने अचानक अधीर का हाथ पकड़ा और उसे खींचते... अभिमान और अधीर 😊 शुरुआत सिर्फ़ नज़रों का खेल थी। लेकिन वक्त ने धीरे-धीरे दोनों को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया जहाँ जज़्बात काबू में नहीं रहे। एक शाम, जब हल्की बारिश की बूंदें हवा में घुल रही थीं, अभिमान ने अचानक अधीर का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए कॉलेज की पुरानी दीवार के पास ले गया। अधीर की धड़कनें तेज़ थीं, और उसकी आँखों में सवाल। अभिमान ने झुककर उसकी नज़रों में झाँका… और उस पल सब कुछ थम गया। क्या वो अधीर के होंठों तक पहुँच पाएगा, या किस्मत उनकी इस अधूरी ख्वाहिश को फिर टाल देगी?
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रात का सन्नाटा था। घड़ी की सुइयाँ 11 बजा चुकी थीं। कमरे की खिड़की से आती हल्की चाँदनी में अभिमान गहरी नींद में डूबा हुआ था। तभी अचानक उसका फ़ोन बज उठा— ट्रिंग… ट्रिंग…
पहले तो उसने करवट बदल ली, लेकिन कॉल कटने के बाद तुरंत ही दोबारा फोन बजा। इस बार पूरी तरह से लगातार रिंगटोन गूँज रही थी।
अभिमान (नींद में चिढ़कर):
"कौन है यार रात के ग्यारह बजे… सोने भी नहीं देते…"
वह गुस्से में फोन उठाता है।
अभिमान (तेज़ आवाज़ में):
"हैलो! क्या है? कौन बोल रहा है?"
फोन के दूसरी तरफ से एक गहरी, घबराई हुई आवाज़ आई।
फोन पे :
"प्लीज़… मेरी मदद करो। सिर्फ तुम ही बचा सकते हो उसे…"
यह सुनते ही अभिमान नींद से एकदम चौकन्ना हो बैठ गया।
अभिमान (चकित होकर):
"क्या? कौन? साफ-साफ बोलो… किसकी बात कर रहे हो?"
आवाज़ थोड़ी काँपते हुए बोली—
"वो… लड़की… उसे जबरन शादी के लिए बाँध दिया गया है। अगर तुम नहीं गए तो देर हो जाएगी। तुम ही मेरे लिए आख़िरी उम्मीद हो… मैं ही बचा लेता उस को पर मैं लन्दन हुँ पता नहीं था की मैं इधर आऊंगा ओर वो लोग उस के साथ plz अभी i only trust only you.... olz help me..,.."
अभिमान का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
अभिमान:
"देखो, यार तुम फिक्र मत करो । मैं उसे बचा लूँगा। बस एड्रेस भेज दो। ओर परेशान मत हो।"
तभी फ़ोन पर टिंग की आवाज़ आई और एक मैसेज स्क्रीन पर चमका— एक होटल का नाम और उसका ऐड्रेस।
अभिमान तेज़ी से बाथरूम की तरफ भागा। चेहरे पर पानी के छींटे मारे, और कुछ ही मिनटों में ब्लैक जीन्स- वाइट टीशर्ट पहनकर बाहर आ गया।फ़ोन उठा के आपमें दोस्तों को लगा रहा था अगर किसे की हेल्प लगी तो जूते बाँधते हुए वह बड़बड़ाया—
"सालों… सबके सब दोस्त आज ही के दिन सो गए… फोन भी नहीं उठा रहे। पता हैं आज के जीत की पार्टी कर के सब के सब टल्ली होकर सोए होंगे। चलो कोई नहीं… अगर सब काम अपने दम पर ही करना है तो सही। जीतने के लिए आज ये बाज़ी मैं अकेला खेलूँगा।"
ब्लु मून होटल का दृश्य
रात का सन्नाटा, पर होटल चमचमाती रोशनी से जगमगा रहा था। गाड़ियाँ बाहर खड़ी थीं। शहनाई और ढोल-ताशों की आवाज़ें गूँज रही थीं।
अभिमान (हैरान होकर खुद से):
"ये क्या… यहाँ तो शादी हो रही है। लेकिन… वो लड़की कहाँ है?"
वह भीड़ में घुसा, लेकिन चारों तरफ सिर्फ कुछ रिश्तेदार, मेहमान और सिक्योरिटी थी। उस को दुल्हन के कमरे तक नहीं पता था।तभी किसी के आवाज सुनी
एक नौकर: ये शेरवानी दूल्हे के कमरे में ले जाऊं।
दूसरा नौकर: " हां ठीक है बढ़िया इतनी सिक्योरिटी क्यों बड़ी हुई है तुम्हें कुछ मालूम है क्या?"
पहले नौकर: " पता नहीं बड़े लोग बड़ी बातें छोड़ो हमें क्या करना है सेकंड फ्लोर पर ये लेकर जाओ "
अभिमान (गुस्से से होंठ भींचते हुए):
"यार… दुल्हन को तो ढूँढना है… पर रास्ता ही नहीं मिल रहा। लगता है अब दूल्हे से जाकर बात करनी पड़ेगी। तो शायद बात बन जाए।"
अचानक उसकी नज़र दूल्हे के कमरे की ओर पड़ी। दरवाज़ा थोड़ा-सा खुला था।
दूल्हे का कमरा
कमरे में दूल्हा तैयार हो रहा था। ओर शराब के नशे में भी था। लेकिन मौका देखते ही अभिमान अंदर घुसा उससे बात करना चाह पर उसने देखा कि यह तो बात करने की स्थिति में नहीं है तो उस ने झट से उसे बेहोश कर दिया।
अभिमान (साँस फूलते हुए):
"सॉरी भाई… ये करना ज़रूरी था।"
उसने जल्दबाज़ी में दूल्हे का शेरवानी पहन ली। शीशे में खुद को देखकर उसके चेहरे पर तनाव और डर दोनों झलक रहे थे। साथ मैं सहारा भी बधा।
अभिमान (धीरे से):
"अब सिर्फ एक काम रह गया है… उसे किसी भी तरह यहाँ से ले जाना। हाल में तो दुल्हन दिखेगी वहीं से उसे भगा के ले जाऊंगा।"
तभी अचानक दो लोग अंदर आए।
चल राज तुझे निचे बुला राहे हैं:
"अरे दूल्हे राजा! पंडित जी बुला रहे हैं। सब नीचे इंतज़ार कर रहे हैं। तुम्हें आज भी शराबी रखी है ना जब इतना हिल ढुल रहा है चल से पकड़ो ले चलो। नहीं तो अंकल नाराज हो जायेगे"
अभिमान सकपकाकर खड़ा हो गया। कुछ बोल पाता, उससे पहले ही उसे पकड़कर नीचे ले जाया गया।
मंडप में सब सजी-धजी भीड़ थी। पंडित मंत्र पढ़ रहे थे। दुल्हन भारी घूँघट में बैठी थी। अभिमान ने उसकी ओर देखने की कोशिश भी नहीं की, लेकिन चेहरा पूरी तरह ढका हुआ था।
दुल्हन मन ही मन, दुल्हन की जगह बैठी हुई):
"हे भगवान… अगर ये शादी हुई तो मेरी ज़िंदगी खत्म हो जाएगी। plz हमको हमारी मदद के लिए जल्दी से जल्दी भेजो "
अभिमान बगल में बैठ गया। उसकी धड़कनें तेज़ थीं। वह बार-बार घूँघट के नीचे झाँकने की कोशिश करता, लेकिन कुछ साफ दिखाई नहीं देता। आसपास देखा कि बहुत सारे बॉडीगार्ड नजर आ रहे थे कोई दरवाजा ही नहीं दिख रहा था की यहां से दुल्हन को लेकर भाग जाए
अभिमान के सीने में दर्द-सा उठा।
"क्या सच में… ये मेरी आँखों के सामने… मैं किसी और का..... मेरा इश्क आ.... अधूरा रहा गया......?"
उसकी आँखों में हल्की-सी नमी आ गई। मगर तुरंत उसने पलकें झुका लीं।
"नहीं… लड़के आँसू नहीं दिखाते। वादा निभाना है… चाहे जैसे भी हो।"
पंडित जी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया। आग जल रही थी। लोग तालियाँ बजा रहे थे।
पंडित जी:
"अब आप दोनों सात फेरे लीजिए।"
अभिमान काँपते हुए खड़ा हुआ। उसके कदम भारी लग रहे थे। लेकिन वह जानता था कि अब पीछे हटना नामुमकिन है।
हर फेरे के साथ उसका दिल और टूट रहा था। "ये शादी मेरी नहीं… एक बोझ है। पर दोस्त से किया वादा पूरा करना है।"
दुल्हन उसके साथ चुपचाप चल रही थी। चेहरा अब भी घूँघट में था।
पंडित जी:
"विवाह संपन्न हुआ। अब दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद दें।"
भीड़ ताली बजाती है। अभिमान बस नज़रें झुकाए बैठा रहा।
उसका दिल चिल्ला रहा था— "ये शादी नहीं… एक कैद है।"
पर उसके होंठ बंद थे।
अंत में उसने सिर्फ एक बात मन ही मन दोहराई —
"जिसे बचाने आया हूँ… अब उसी से बंध चुका हूँ ।"
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