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केपस के उस पार

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priyanka bagani

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अभिमान और अधीर 😊 शुरुआत सिर्फ़ नज़रों का खेल थी। लेकिन वक्त ने धीरे-धीरे दोनों को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया जहाँ जज़्बात काबू में नहीं रहे। एक शाम, जब हल्की बारिश की बूंदें हवा में घुल रही थीं, अभिमान ने अचानक अधीर का हाथ पकड़ा और उसे खींचते...

Total Chapters (8)

Page 1 of 1

  • 1. प्रोमो Chapter 1

    Words: 1030

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात का सन्नाटा था। घड़ी की सुइयाँ 11 बजा चुकी थीं। कमरे की खिड़की से आती हल्की चाँदनी में अभिमान गहरी नींद में डूबा हुआ था। तभी अचानक उसका फ़ोन बज उठा— ट्रिंग… ट्रिंग…

    पहले तो उसने करवट बदल ली, लेकिन कॉल कटने के बाद तुरंत ही दोबारा फोन बजा। इस बार पूरी तरह से लगातार रिंगटोन गूँज रही थी।

    अभिमान (नींद में चिढ़कर):

    "कौन है यार रात के ग्यारह बजे… सोने भी नहीं देते…"

    वह गुस्से में फोन उठाता है।

    अभिमान (तेज़ आवाज़ में):

    "हैलो! क्या है? कौन बोल रहा है?"

    फोन के दूसरी तरफ से एक गहरी, घबराई हुई आवाज़ आई।

    फोन पे :

    "प्लीज़… मेरी मदद करो। सिर्फ तुम ही बचा सकते हो उसे…"

    यह सुनते ही अभिमान नींद से एकदम चौकन्ना हो बैठ गया।

    अभिमान (चकित होकर):

    "क्या? कौन? साफ-साफ बोलो… किसकी बात कर रहे हो?"

    आवाज़ थोड़ी काँपते हुए बोली—

    "वो…… उसे जबरन शादी के लिए बाँध दिया गया है। अगर तुम नहीं गए तो देर हो जाएगी। तुम ही मेरे लिए आख़िरी उम्मीद हो… मैं ही बचा लेता उस को पर मैं लन्दन हुँ पता नहीं था की मैं इधर आऊंगा ओर वो लोग उस के साथ plz अभी i only trust only you.... plz help me..,.."

    अभिमान का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

    अभिमान:

    "देखो, यार आप फिक्र मत करो । मैं उसे बचा लूँगा। बस एड्रेस भेज दो। ओर परेशान मत हो।"

    तभी फ़ोन पर टिंग की आवाज़ आई और एक मैसेज स्क्रीन पर चमका— एक होटल का नाम और उसका ऐड्रेस।

    अभिमान तेज़ी से बाथरूम की तरफ भागा। चेहरे पर पानी के छींटे मारे, और कुछ ही मिनटों में ब्लैक जीन्स- वाइट टीशर्ट पहनकर बाहर आ गया।फ़ोन उठा के आपमें दोस्तों को लगा रहा था अगर किसे की हेल्प लगी तो जूते बाँधते हुए वह बड़बड़ाया—

    "सालों… सबके सब दोस्त आज ही के दिन सो गए… फोन भी नहीं उठा रहे। पता हैं आज के जीत की पार्टी कर के सब के सब टल्ली होकर सोए होंगे। चलो कोई नहीं… अगर सब काम अपने दम पर ही करना है तो सही। जीतने के लिए आज ये बाज़ी मैं अकेला खेलूँगा।"

    ब्लु मून होटल का दृश्य

    रात का सन्नाटा, पर होटल चमचमाती रोशनी से जगमगा रहा था। गाड़ियाँ बाहर खड़ी थीं। शहनाई और ढोल-ताशों की आवाज़ें गूँज रही थीं।

    अभिमान (हैरान होकर खुद से):

    "ये क्या… यहाँ तो शादी हो रही है। लेकिन… वो लड़की कहाँ है?"

    वह भीड़ में घुसा, लेकिन चारों तरफ सिर्फ कुछ रिश्तेदार, मेहमान और सिक्योरिटी थी। उस को दुल्हन के कमरे तक नहीं पता था।तभी किसी के आवाज सुनी

    एक नौकर: ये शेरवानी दूल्हे के कमरे में ले जाऊं।

    दूसरा नौकर: " हां ठीक है बढ़िया इतनी सिक्योरिटी क्यों बड़ी हुई है तुम्हें कुछ मालूम है क्या?"

    पहले नौकर: " पता नहीं बड़े लोग बड़ी बातें छोड़ो हमें क्या करना है सेकंड फ्लोर पर ये लेकर जाओ "

    अभिमान (गुस्से से होंठ भींचते हुए):

    "यार… दुल्हन को तो ढूँढना है… पर रास्ता ही नहीं मिल रहा। लगता है अब दूल्हे से जाकर बात करनी पड़ेगी। तो शायद बात बन जाए।"

    अचानक उसकी नज़र दूल्हे के कमरे की ओर पड़ी। दरवाज़ा थोड़ा-सा खुला था।

    दूल्हे का कमरा

    कमरे में दूल्हा तैयार हो रहा था। ओर शराब के नशे में भी था। लेकिन मौका देखते ही अभिमान अंदर घुसा उससे बात करना चाह पर उसने देखा कि यह तो बात करने की स्थिति में नहीं है तो उस ने झट से उसे बेहोश कर दिया।

    अभिमान (साँस फूलते हुए):

    "सॉरी भाई… ये करना ज़रूरी था।"

    उसने जल्दबाज़ी में दूल्हे का शेरवानी पहन ली। शीशे में खुद को देखकर उसके चेहरे पर तनाव और डर दोनों झलक रहे थे। साथ मैं सहारा भी बधा।

    अभिमान (धीरे से):

    "अब सिर्फ एक काम रह गया है… उसे किसी भी तरह यहाँ से ले जाना। हाल में तो दुल्हन दिखेगी वहीं से उसे भगा के ले जाऊंगा।"

    तभी अचानक दो लोग अंदर आए।

    चल राज तुझे निचे बुला राहे हैं:

    "अरे दूल्हे राजा! पंडित जी बुला रहे हैं। सब नीचे इंतज़ार कर रहे हैं। तुम्हें आज भी शराबी रखी है ना जब इतना हिल ढुल रहा है चल से पकड़ो ले चलो। नहीं तो अंकल नाराज हो जायेगे"

    अभिमान सकपकाकर खड़ा हो गया। कुछ बोल पाता, उससे पहले ही उसे पकड़कर नीचे ले जाया गया।

    मंडप में सब सजी-धजी भीड़ थी। पंडित मंत्र पढ़ रहे थे। दुल्हन भारी घूँघट में बैठी थी। अभिमान ने उसकी ओर देखने की कोशिश भी नहीं की, लेकिन चेहरा पूरी तरह ढका हुआ था।

    दुल्हन मन ही मन, दुल्हन की जगह बैठी हुई):

    "हे भगवान… अगर ये शादी हुई तो मेरी ज़िंदगी खत्म हो जाएगी। plz हमको हमारी मदद के लिए जल्दी से जल्दी भेजो "

    अभिमान बगल में बैठ गया। उसकी धड़कनें तेज़ थीं। वह बार-बार घूँघट के नीचे झाँकने की कोशिश करता, लेकिन कुछ साफ दिखाई नहीं देता। आसपास देखा कि बहुत सारे बॉडीगार्ड नजर आ रहे थे कोई दरवाजा ही नहीं दिख रहा था की यहां से दुल्हन को लेकर भाग जाए

    अभिमान के सीने में दर्द-सा उठा।

    "क्या सच में… ये मेरी आँखों के सामने… मैं किसी और का..... मेरा इश्क आ.... अधूरा रहा गया......?"

    उसकी आँखों में हल्की-सी नमी आ गई। मगर तुरंत उसने पलकें झुका लीं।

    "नहीं… लड़के आँसू नहीं दिखाते। वादा निभाना है… चाहे जैसे भी हो।"

    पंडित जी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया। आग जल रही थी। लोग तालियाँ बजा रहे थे।

    पंडित जी:

    "अब आप दोनों सात फेरे लीजिए।"

    अभिमान काँपते हुए खड़ा हुआ। उसके कदम भारी लग रहे थे। लेकिन वह जानता था कि अब पीछे हटना नामुमकिन है।

    हर फेरे के साथ उसका दिल और टूट रहा था। "ये शादी मेरी नहीं… एक बोझ है। पर दोस्त से किया वादा पूरा करना है।"

    दुल्हन उसके साथ चुपचाप चल रही थी। चेहरा अब भी घूँघट में था।

    पंडित जी:

    "विवाह संपन्न हुआ। अब दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद दें।"

    भीड़ ताली बजाती है। अभिमान बस नज़रें झुकाए बैठा रहा।

    उसका दिल चिल्ला रहा था— "ये शादी नहीं… एक कैद है।"

    पर उसके होंठ बंद थे।

    अंत में उसने सिर्फ एक बात मन ही मन दोहराई —

    "जिसे बचाने आया हूँ… अब उसी से बंध चुका हूँ ।"
    क्या हमारे हीरो का प्यार अधूरा रह जाएगा?
    कौन है वह लड़की जो ना चाहते हुए भी उसे शादी गई?

    plz follow me

  • 2. आखिरी गोल - Chapter 2

    Words: 1008

    Estimated Reading Time: 7 min

    आख़िरी पाँच सेकंड

    इम्पीरियल बिज़नेस कॉलेज, दिल्ली —यहाँ का हर स्टूडेंट जानता था कि जब भी खेल के मैदान पर सफ़ेद जर्सी वाला लड़का नंबर 11 दौड़ता है, तो जीत लगभग तय होती है।

    वही लड़का था—अभिमान।

    सूरज धीरे-धीरे डूब रहा था, शाम की सुनहरी किरणें बास्केटबॉल कोर्ट पर पड़ रही थीं। चारों ओर दर्शकों का हुजूम उमड़ा हुआ था। लड़कियों की चीख़ें और लड़कों की सीटी मिलकर एक शोर मचा रही थीं। मैदान के एक तरफ़ काले टी-शर्ट पहने रॉयल स्पोर्ट्स कॉलेज की टीम खड़ी थी और दूसरी ओर सफ़ेद जर्सी में इम्पीरियल बिज़नेस कॉलेज की टीम।

    स्कोर बराबर था।

    बस दो मिनट बचे थे।

    “अबे नील, डिफ़ेन्स टाइट रखना!” रणविजय ने चिल्लाकर कहा।

    “कबीर, बॉल इधर!”

    कबीर ने गेंद पकड़ी और बिजली-सी फुर्ती से नील की तरफ़ पास की। नील ने कोशिश की कि बॉल अभिमान तक पहुँचाए, लेकिन सामने से दो खिलाड़ी दीवार बनकर खड़े थे।

    स्टैंड्स से आवाज़ें गूंज रही थीं—

    “अभी-अभी-अभी-अभी!”

    यह कॉलेज की पहचान बन चुका था।

    लोग उसे अभी कहकर पुकारते थे।

    अभिमान ने नीले रंग की गहरी आँखों से मैदान को देखा। पसीना उसके माथे से बहकर गालों पर आ रहा था।

    उसने दाँत भींचे और सोचा—अगर ये गोल मिस हुआ तो पूरी टीम हार जाएगी… और मैं हार नहीं मानता।

    नील ने अचानक एक नकली मूव किया और बॉल उसके पैरों से घूमती हुई अभिमान तक पहुँची।

    पूरा मैदान गूँज उठा।

    अभिमान ने बॉल पकड़ी।

    सामने तीन खिलाड़ी खड़े थे।

    उसने तेज़ी से पहला डॉज किया, फिर दूसरा… और तीसरे को छलाँग लगाकर पार किया।

    घड़ी पर 5 सेकंड बचे थे।

    “फेंक दे! शॉट मार अभी!” रणविजय चिल्ला रहा था।

    कबीर और नील भी साँस रोककर खड़े थे।

    4 सेकंड…

    3 सेकंड…

    अभिमान ने छलांग लगाई।

    पूरा शरीर हवा में तैर गया।

    बॉल उसके हाथों से छूटी और सीधे नेट की तरफ़ बढ़ी।

    2 सेकंड…

    1 सेकंड…

    धड़ाम!

    बॉल ने नेट को चीरते हुए गोल कर दिया।

    पूरा मैदान फट पड़ा—

    “अभी… अभी… अभी…!!!”

    लड़कियाँ झूम रही थीं, लड़के कूद रहे थे, और कबीर, नील और रणविजय भागकर आए और अभिमान को अपने कंधों पर उठा लिया।

    टीम के बाकी खिलाड़ी भी उछल पड़े।

    “यू आर अ फायर, भाई!” कबीर ने हँसते हुए चिल्लाया।

    “मैंने कहा था ना, नंबर 11 कभी मिस नहीं करता।” नील ने मुस्कुराते हुए कहा।

    रणविजय ने जोश से बोला—“आज फिर साबित कर दिया तूने, तू ही है किंग!”

    अभिमान मुस्कुराया, पर वह मुस्कान घमंड से भरी थी।

    उसने भीड़ की ओर देखा—सैकड़ों लड़कियाँ उसे देख रही थीं। कुछ ने उसके नाम के पोस्टर उठा रखे थे, कुछ मोबाइल से वीडियो बना रही थीं।

    वह चुपचाप बोला—

    “मैं हूँ अभिमान। जीत मेरी आदत है।”

    टीम ड्रेसिंग रूम में लौटी।

    हवा अब भी चीख़ों और तालियों से गूंज रही थी।

    सब लोग ख़ुश थे। लेकिन तभी—

    ठक-ठक!

    दरवाज़ा खुला और अंदर आई टीना।

    लाल कलर की शॉर्ट ड्रेस, हाई हील्स, और चेहरा इतना मेकअप से ढका कि पहचानना मुश्किल।

    वह सीधी भागकर आई और अभिमान को पीछे से कसकर पकड़ लिया।

    “ओ माय गॉड, अभी! यू आर द बेस्ट! आई लव यू!” उसने चीख़कर कहा।

    अभिमान का चेहरा सख़्त हो गया।

    उसने उसका हाथ पकड़कर सामने किया और आँखों में देखकर बोला—

    “कितनी बार कहा है टीना, मुझसे दूर रहा करो। मुझे ये सब पसंद नहीं।”

    “पर… पर मैं तो तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूँ ना!” टीना ने होंठ काटते हुए कहा।

    “गर्लफ्रेंड?” अभिमान ने ठंडी हँसी हँसी।

    “तुमने अपने दिमाग से मान लिया है। मैंने कभी हाँ नहीं कहा। सुन लो टीना—तुम मेरी गर्लफ्रेंड नहीं हो और कभी बन भी नहीं सकती।”

    कमरे में सन्नाटा छा गया।

    कबीर ने सीटी बजाकर माहौल हल्का करने की कोशिश की—“अरे बाबा, आज जीत का दिन है, लड़ाई कल कर लेना।”

    पर टीना की आँखें लाल हो चुकी थीं।

    वह दीवानगी से बोली—“देखना अभी, तुम्हें मेरी ज़रूरत पड़ेगी… और उस दिन तुम खुद कहोगे कि टीना, आई नीड यू।”

    अभिमान ने बस सिर घुमा लिया।

    उसे पता था—यह लड़की मासूम नहीं है, बल्कि खतरनाक हद तक पज़ेसिव है।

    मैच खत्म हो चुका था, पर पूरे कैंपस में अभी भी जोश का तूफ़ान मचा हुआ था। इम्पीरियल बिज़नेस कॉलेज के छात्र झूम-झूमकर नारे लगा रहे थे—

    “इम्पीरियल! इम्पीरियल!… अभी! अभी! अभी!”

    अभिमान अपनी टीम के साथ मैदान से बाहर निकला। उसके दोनों हाथों में ट्रॉफी थी और पीछे-पीछे कबीर, नील और रणविजय हँसते-खिलखिलाते चल रहे थे।

    कैंपस के मेन गेट पर पहुंचते ही भीड़ और तेज़ हो गई। कुछ लड़कियाँ उसके पास दौड़ीं, ऑटोग्राफ माँगा, तो कुछ ने उसके हाथ छूने की कोशिश की। अभिमान ने आधी-अधूरी मुस्कान देकर सबको इग्नोर कर दिया।

    कबीर ने कान में कहा—

    “भाई, तेरी पॉपुलैरिटी तो किसी फिल्म स्टार से कम नहीं। मैं तो तेरा मैनेजर बनने वाला हूँ।”

    रणविजय ने हँसते हुए जवाब दिया—

    “मैनेजर बनेगा? पहले खुद की गर्लफ्रेंड तो बना ले।”

    नील ने सिर हिलाकर कहा—

    “अभी इन सब चीज़ों से ऊपर है। इसके लिए जीत ही सबसे बड़ी गर्लफ्रेंड है। आती जाती रहती है”

    सब हँस पड़े।

    🎉 पार्टी की शुरुआत

    रात करीब दस बजे चारों दोस्त कॉलेज कैंपस के अंदर बने स्टूडेंट्स क्लबहाउस में मिले।

    लाइट्स डिम थीं, म्यूज़िक बज रहा था और हर तरफ़ बीयर की बोतलें खुल रही थीं।

    “टुडे इज़ आवर नाइट!” रणविजय ने बोतल उठाकर टोस्ट किया।

    “हमारी जीत और हमारे भाई—अभिमान—के नाम!”

    सबने बोतलें टकराईं।

    गिलासों की खनक के साथ हँसी-ठहाके गूँज उठे।

    कबीर बोला—“भाई, सच कहूँ तो तू नहीं होता तो आज हमारी हालत खराब हो जाती।”

    अभिमान ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—“टीम जीतती है, अकेला इंसान नहीं।”

    नील ने मुँह बनाकर कहा—“हाँ, ये लाइन तो तूने अच्छी मार दी। लेकिन सबको पता है कि हीरो तू ही है।”

    कबीर:- रंजीत अपने आप को बहुत अच्छा समझता है कितनी चीटिंग करी उसने।

    नील:- छोड़ना उसको भी देख लेंगे एक न एक दिन वैसे भी कौन सा दूर है हमारे सामने वाले कॉलेज में ही तो है।

    अभिमान:- रंजीत कितनी ही चीटिंग करने पर जीत तो हमारी हुई ना उसका नाम छोड़ो और अपनी जीत का जश्न मानो।

    रणविजय:- बात तो सही है लेट'एस पार्टी टुनाइट पर ज्यादा लेट मत करना मैं घर पर भूल कर आया हूं कि मैं 12:00 तक घर आ जाऊंगा।

  • 3. जीत की रात और घर का सुकून - Chapter 3

    Words: 1002

    Estimated Reading Time: 7 min

    करीब 12 बजे पार्टी खत्म हुई। सब अपने-अपने होस्टल से निकले और फिर एक-एक करके घर चले गए।

    🏠 कबीर का घर

    कबीर का घर शहर के बीचोंबीच था—एक साफ-सुथरा दो मंज़िला मकान।
    दरवाज़ा खोलते ही सामने उसकी माँ अनिता सिंह दिखीं।
    “कबीर, इतना लेट? फिर वही पार्टी?”

    कबीर हँसकर बोला—“अरे मम्मा, आज जीत हुई है, जश्न तो बनता है।”

    पापा राजीव सिंह, जो शहर के नामी वकील थे, अख़बार पढ़ते हुए बोले—
    “जितना वक्त खेल में देता है, आधा पढ़ाई को दे, तो ज़िंदगी बन जाएगी।”
    माँ :- " बोलते रहते हैं बेटा आज"
    कबीर:- " जानता हूं मैं तभी तो लड़की करने रात को 12:00 बजे भी पेपर पढ़ रहे हैं पापा वकील हैं तो क्या हुआ मैं भी अली का बेटा हूं और जोर से हंसाता है।"
    अपनी छोटी बहन सान्या की तरफ़ बढ़ा।
    सान्या स्कूल में दसवीं क्लास में थी और भाई को देखते ही बोली—
    “भैया, फिर से स्टार बनकर आए हो? सब तुम्हारा नाम ले रहे थे।”

    कबीर ने हँसते हुए उसके बाल खींच दिए—“तू भी बड़ी स्टार बनेगी, देख लेना।”

    थोड़ी देर परिवार के साथ बैठकर कबीर अपने कमरे में गया और बिस्तर पर गिरते ही गहरी नींद में चला गया।

    🏠 नील का घर

    नील का घर थोड़ा बाहर कॉलोनी में था।
    उसकी माँ वंदना मिश्रा दरवाज़े पर खड़ी थीं।
    “नील, बेटा! इतनी रात हो गई… खाना भी नहीं खाया?”

    नील ने माँ को गले लगाया और कहा—“माँ, मैच जीत गए! कॉलेज का नाम रोशन कर दिया।”

    पापा संजय मिश्रा, जो बैंक मैनेजर थे, सोफ़े पर बैठे गर्व से बोले—
    “शाबाश बेटे, लेकिन याद रखो—खेल के साथ पढ़ाई भी ज़रूरी है।”

    नील ने हाँ में सिर हिलाया।
    तभी उसका छोटा भाई आरव भागता हुआ आया।
    “भैया! भैया! सब कह रहे थे कि तुम हीरो हो!”

    नील ने मुस्कुराकर कहा—“सिर्फ हीरो नहीं, तुम्हारा बड़ा भाई भी हूँ।”
    दोनों भाइयों ने हँसते हुए गले लगाया।

    🏠 रणविजय का घर

    रणविजय का घर अपेक्षाकृत शांत और बड़ा था।
    दरवाज़ा खोला तो सामने उसकी मम्मी गीता चौहान खड़ी थीं।
    “कहाँ थे बेटा? इतना लेट क्यों?”

    रणविजय ने हँसते हुए कहा—“माँ, जीत के बाद पार्टी थी।”

    पापा अमर सिंह चौहान, जो एक बिज़नेस्मैन थे, गंभीर स्वर में बोले—
    “बेटा, मैं तुमसे यही चाहता हूँ कि तुम अपनी बहन की तरह नाम रोशन करो।”

    उसकी बड़ी बहन श्रुति, जो अमेरिका में सेटल थी, वीडियो कॉल पर आ गई।
    “कितना मिस करती हूँ मैं तुम्हें… मैच जीत गए ना?”

    रणविजय ने मुस्कुराकर कहा—“हाँ दीदी, तुम्हारे छोटे भाई ने कमाल कर दिया।”


    🏠 अभिमान का घर – कृष्ण कुंज हवेली

    रात के करीब साढ़े बारह बजे, सफेद SUV हवेली के बड़े गेट से अंदर घुसी।
    ये हवेली पूरे उदयपुर में मशहूर थी—कृष्ण कुंज हवेली।
    चमचमाते संगमरमर की सीढ़ियाँ, बड़े-बड़े झूमर और आँगन के बीच फव्वारा।

    गाड़ी रुकी और उससे उतरा—हमारा हीरो, अभिमान।
    पसीने से भीगा हुआ, लेकिन चेहरे पर वही जीत का घमंड और नीली आँखों में वही चमक।

    दरवाज़ा खोलते ही सामने उसका पापा खड़े थे—माधव सिंह राठौड़।
    उदयपुर के सबसे बड़े टेक्सटाइल कारोबारी।
    उनकी शर्ट हमेशा किसी नामी ब्रांड की होती, आवाज़ थोड़ी भारी और बातें हमेशा नाटकीय।

    “आ गया मेरा शेर!”
    उन्होंने हाथ फैलाकर चिल्लाया और फिर ड्रामेटिक अंदाज़ में बोले—
    “उदयपुर का नाम रौशन कर दिया, बेटा! आज से तेरी फोटो मैं टेक्सटाइल के कैटलॉग के कवर पर लगवाऊँगा!”

    अभिमान ने मुस्कुराकर कहा—“डैड, ये बास्केटबॉल मैच था, कोई टेक्सटाइल की डील नहीं।”

    पीछे से मम्मी सविता राठौड़ आईं।
    रेड साड़ी में, चेहरे पर कोमलता और आँखों में अपने बेटे के लिए प्यार।
    उन्होंने अभिमान का सिर सहलाया—
    “जितना खेल में जीत रहा है, उतना पढ़ाई में भी मेहनत कर। असली पहचान डिग्री से होती है।”

    तभी दादी कावेरी देवी आ गईं।
    सफेद बाल, माथे पर बड़ी बिंदी और हाथ में रुद्राक्ष की माला।
    उन्होंने अभिमान को गले लगाया—
    “भगवान तुझे हमेशा जीत दिलाए, लेकिन घमंड तेरे पास न टिके।”

    अभिमान ने झेंपकर कहा—“दादी, मेरा नाम ही अभिमान है, घमंड तो नेचर में है।”

    पूरा हॉल ठहाकों से गूंज उठा।

    दादा वीरेंद्र सिंह राठौड़, जो रिटायर्ड आर्मी अफ़सर थे, गंभीर आवाज़ में बोले—
    “जश्न ठीक है, लेकिन याद रख बेटा—जीत की असली परीक्षा मैदान में नहीं, ज़िंदगी में होती है।”

    पापा तुरंत बोले—
    “ओहो! फिर से अपने आर्मी वाले लेक्चर मत दो, प्लीज़। ये मैच जीतकर आया है, कोई बॉर्डर से नहीं।”

    सब लोग हँसने लगे।


    ---

    पूरा परिवार हॉल में बैठा था। बड़े झूमर के नीचे डाइनिंग टेबल पर नाश्ता सज चुका था।
    अभिमान ने पानी पिया और चेयर पर ढेर हो गया।

    मम्मी ने कहा—“इतनी रात को खाना मत खा, हैवी हो जाएगा। हल्का-फुल्का दूध पी ले।”

    पापा बीच में बोल पड़े—
    “नहीं-नहीं, जूस निकालो, प्रोटीन शेक दो! मेरा बेटा चैंपियन है, उसको एनर्जी चाहिए।”

    दादी ने माला घुमाते हुए कहा—
    “गर्म दूध ही सही है, नींद अच्छी आएगी।”

    दादा ने भौंहें चढ़ाकर कहा—
    “अरे, जो चाहे उसको दो, पर इतना मत बिगाड़ो। कल को ये बिगड़ जाएगा तो संभाल नहीं पाओगे।”

    अभिमान ने हाथ उठाकर सबको रोका—
    “ओके… ओके! बस! आप लोग लड़ाई मत करो। मैं सिर्फ ठंडा पानी पियूँगा और सो जाऊँगा।”

    पापा ने नाटकीय अंदाज़ में माथा पकड़ लिया—
    “हे भगवान! मेरा चैंपियन सिर्फ पानी पीकर सोएगा!”

    सब फिर हँस पड़े।


    ---


    अभिमान अपने कमरे में आया।
    कमरा किसी राजकुमार की तरह सजा हुआ था—बड़ा सा किंग-साइज़ बेड, दीवार पर उसकी ट्रॉफियों की अलमारियाँ, और खिड़की से दिखता उदयपुर का नज़ारा।

    वह बिस्तर पर गिरा और खुद से बुदबुदाया—
    “सब लोग कहते हैं मैं घमंडी हूँ… शायद हूँ भी। लेकिन ये घमंड मेरी ताक़त है। और हाँ, दोस्ती… दोस्ती के लिए मैं सबकुछ कर सकता हूँ।”

    उसकी आँखें धीरे-धीरे बंद हो गईं।
    बाहर हवेली के आँगन में हवा का झोंका आया और पत्तों की सरसराहट के बीच, जैसे समय ने भी कह दिया हो—
    कहानी अभी शुरू हुई है…


    ---

    👉 भाई, यहाँ तक लगभग 1500 शब्द हो गए।

    क्या चाहोगे कि मैं इस हिस्से को और विस्तार से लिखूँ—

    फैमिली में थोड़ा और कॉमिक और इमोशनल सीन,

    पापा और दादा के बीच मज़ेदार नोकझोंक,

    दादी और मम्मी का अपने तरीक़े से अभिमान को समझाना,

    और अंत में उसका खुद से किया गया प्रॉमिस—

  • 4. अधीरा का पहला कदम- Chapter 4

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    दिल्ली की सुबह हमेशा की तरह सुनहरी थी। हल्की सुनहरी किरणें पूरे शहर पर अपना जादू बिखेर रही थीं। सड़कों पर धीरे-धीरे चहल-पहल शुरू हो रही थी। लेकिन शहर के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से एक राजपुरोहित हवेली में आज का माहौल कुछ अलग था।

    राजपुरोहित परिवार राजनीति में कई दशकों से दबदबा रखता आया था। घर के मुखिया विधान राजपुरोहित, राजस्थान के बड़े नेता और वर्तमान में विधायक थे। उनकी सोच पुरानी थी—“लड़कियों की पढ़ाई ज़रूरी नहीं, 18 की होते ही शादी कर दो और परिवार का मान बढ़ाओ। उनका मानना था की लड़कियां सिर्फ घर के कामों तक ही सीमित रहती है उन्हें पढ़ना मतलब घर की बर्बादी काफी पुराने ख्यालों की है उनका मानना है बेटी पढ़कर क्या करेगी करना तो उसको चूल्हा चौका ही है ”

    आज उनकी बेटी अधीरा के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन था—क्योंकि आज उसका कॉलेज का पहला दिन था। महीनों की जिद, आँसू और अपने बड़े भाई की पैरवी के बाद उसे यह मौका मिला था।

    अधीरा कोई फिल्मी नायिका जैसी नहीं थी, लेकिन उसकी सादगी में एक अलग ही आकर्षण था। चॉकलेट ब्राउन आँखें, जिनमें मासूमियत और आत्मविश्वास दोनों झलकते थे। छोटे-छोटे कानों में साधारण झुमके, हल्की-सी मुस्कान और कंधे तक आते खुले बाल।

    आज उसने अपना पहला कॉलेज डे होने की वजह वह आज जल्दी उठ गई थी या यह बोला जाए कि वह सारी रात सो ही नहीं पाई थी फटाफट नहाके हल्का गुलाबी रंग का सूट पहना था। दुपट्टा बड़ी सलीके से गले में डाला हुआ था। पैरों में साधारण जूती और चाँदी की पायल की मीठी छनक उसके हर कदम के साथ चल रही थी। हाथों में कुछ हरी चूड़ियाँ उसकी सादगी को और बढ़ा रही थीं। अधीर हमारी बहुत सिंपल है वह ज्यादा लोगों के सामने हड़बड़ा जाती है बोल नहीं पाती है क्योंकि उसको शुरू से ही ऐसा माहौल दिया गया और लड़कों के सामने तो उसकी आवाज भी नहीं निकलती। बड़ी मुश्किल से उसको गर्ल्स कॉलेज में B. A की पढ़ाई के लिए उसके पेरेंट्स माने थे

    🏠

    जब वह घबराते हुए सीढ़ियाँ उतरकर डाइनिंग हॉल पहुँची, तो पूरा परिवार पहले से ही नाश्ते पर बैठा था।

    विधान राजपुरोहित (पिता): सख़्त चेहरे वाले, गहरी मूँछों के साथ, हाथ में अख़बार लिए गुस्से में बैठे थे।

    सावित्री देवी (माँ): सीधी-सादी लेकिन पति के डर से कभी अपनी राय न रखने वाली।

    चंद्रकांत (दादा): 70 साल के, परंपरावादी सोच वाले, जो हमेशा परिवार की इज़्ज़त और समाज की नज़रों की बात करते थे।

    गोमती देवी (दादी): तीखी ज़ुबान वाली औरत, जिनकी राय परिवार में अक्सर अंतिम मानी जाती थी।

    वीर राजपुरोहित (बड़ा भाई): अधीरा का सबसे बड़ा सहारा, पढ़ाई में अच्छा और दिल्ली से MBA कर चुका था।

    विवेक (चचेरा भाई): अधीरा से दो साल बड़ा, लेकिन पिता की तरह लड़कियों की पढ़ाई के खिलाफ़।

    🍽️

    अधीरा धीरे से टेबल पर बैठी। सबकी निगाहें एक पल को उसी पर टिक गईं।

    गोमती देवी (दादी):

    “देख बेटी, घर की इज़्ज़त तेरे हाथ में है। बाहर जाकर कोई ऐसा वैसा काम मत कर देना। लड़कियों का ज्यादा पढ़-लिख लेना अच्छा नहीं होता।”

    चंद्रकांत (दादा):

    “पढ़ाई-लिखाई छोड़ो, शादी की सोचो। यही असली धर्म है लड़की का।”

    विवेक (चचेरा भाई):

    “और हाँ, कॉलेज में लड़कों से दूर रहना। कोई हमारी नाक न कटवा देना।”

    विधान (पिता) गुस्से से:

    “मुझे अब भी ये सब पसंद नहीं। लड़कियाँ घर का काम करें, पढ़ाई-लिखाई का दिखावा क्या ज़रूरी है?”

    अधीरा के होंठ कांप रहे थे। उसकी आँखों में आँसू छलकने लगे, पर उसने हिम्मत करके सिर झुका लिया।

    तभी उसका भाई वीर बोला—

    वीर (सख़्ती से):

    “बस भी कीजिए सब लोग। मैंने वादा किया है पापा से कि अधीरा कॉलेज जाकर परिवार का नाम रोशन करेगी। वह सिर्फ पढ़ने जा रही है, कोई गलत काम नहीं करने। आप सब उसे डराइए मत। और वैसे भी वह गर्ल्स कॉलेज जा रही है तो वहां पर कोई लड़का नहीं होगा यह बात उसने विधान को देखते हुए शक्ति से कही थी।”

    सावित्री देवी (धीरे से):

    “हां, जाने दीजिए इसे। शायद यह पढ़कर कुछ अच्छा कर सके।”

    अधीरा ने आँसू पोंछे और मुश्किल से मुस्कराई। उसके भाई की बातें सुनकर उसके अंदर हिम्मत लौटी।

    🚗

    नाश्ते के बाद वीर अपनी बहन को कॉलेज छोड़ने के लिए कार निकालता है। अधीरा का बैग पीछे की सीट पर रखा हुआ था। वीर अधीर के सामने खड़ा होकर उसके घर पर हाथ रखे उसके बालों को हल्का से सफलिंग करता है और कहता है :- लोडो मेरी बहन सबसे अच्छी है बिल्कुल चिंता मत करिए तेरा भाई हर एक कदम पर तेरे साथ है। फिर उसको एक बड़ी सी देरी में निकाल कर देता है जिसको देखकर उसके आंखों में चमक आ जाती है और वह अपने भाई के गले लग जाती है

    फिर उसका भाई बोलता है:-बस बस चल कॉलेज के लिए लेट हो रहा है।वह धीरे से बैठ गई।

    रास्ते में वीर ने उसकी तरफ देखकर कहा—

    “डर मत। मैं हूँ न। बस ध्यान पढ़ाई पर रखना और किसी की परवाह मत करना।”

    अधीरा ने सिर हिलाया, उसकी आँखों में कृतज्ञता थी।

    👭

    रास्ते में वे अधीरा की बेस्ट फ्रेंड मीरा शर्मा को लेने उसके घर पहुँचे।

    मीरा थोड़ी अलग थी—चुलबुली, खुली सोच वाली और हमेशा अधीरा को हिम्मत देती।

    मीरा (हँसते हुए):

    “तो मैडम आज आखिरकार कॉलेज का पहला दिन! देखना, हमारी जिंदगी बदल जाएगी।”

    अधीरा ने हल्की मुस्कान दी, “काश सब इतना आसान होता, मीरा।”

    वीर ने दोनों को कॉलेज गेट तक छोड़ते हुए कहा—

    “याद रखना अधीरा, मैं तुम पर भरोसा करता हूँ। मुझे गर्व करना मत भूलना। तुम दोनों मेरे लिए मेरी छोटी बहनें हो कभी भी जरूरत पड़ेगी कोई भी तकलीफ आएगी तो सबसे पहले मुझे फोन लगाना बिल्कुल परेशान मत होना तुम्हारा भाई हमेशा तुम्हारे साथ है चलो बेस्ट ऑफ लक......”

    🎓

    गाड़ी से उतरते ही अधीरा और मीरा ने सामने देखा—विशाल कॉलेज कैंपस।

    भीड़-भाड़, छात्र-छात्राओं की चहल-पहल, इधर-उधर हंसी-मज़ाक की गूंज।

    और सामने, बिलकुल पास ही… वही कैंपस था जिसमें अभिमान पढ़ता था।

    बिज़नेस कॉलेज और आर्ट्स कॉलेज आमने-सामने खड़े थे।

    अधीरा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।

    वह जानती नहीं थी कि उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सफर यहीं से शुरू होने वाला है।

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  • 5. : नई शुरुआत और रफ्तार का जुनून - Chapter 5

    Words: 1017

    Estimated Reading Time: 7 min

    गेट के भीतर कदम रखते ही अधीरा के पैरों में हल्की-सी थरथराहट थी। मीरा ने उसके कंधे पर हाथ रखा और मुस्कराते हुए बोली—

    मीरा (हँसते हुए):

    “ऐ मैडम, डर क्यों रही हो? यहाँ सब पढ़ने ही आए हैं, किसी की जान थोड़े ही ले लेंगे।”

    अधीरा ने हल्की मुस्कान दी लेकिन अंदर से घबराहट साफ झलक रही थी। कैंपस में हर तरफ चहल-पहल थी। पुरानी स्टूडेंट्स एक-दूसरे को गले मिल रही थीं, कोई ग्रुप में हँसते हुए गप्पे मार रहा था, कोई क्लास के नोट्स पर चर्चा कर रहा था।

    लेकिन बीच-बीच में लड़कियों का एक ही नाम गूंज रहा था—“अभिमान… अभिमान… अभी sooooo handsum yar !”

    एक लड़की (खुश होकर):

    “अरे कल का मैच देखा था न? आख़िरी सेकंड में क्या गोल डाला! पूरे मैदान में आग लगा दी।”

    दूसरी लड़की (आँखें चमकाते हुए):

    “हाँ, और उसका स्माइल… ओह माय गॉड! पूरा कॉलेज पागल है उस पर।”

    क्लासरूम साफ-सुथरा और बड़ा था। लकड़ी की लंबी डेस्क, सामने ग्रीन बोर्ड और खिड़की से आती धूप।

    उनकी प्रोफेसर डॉ. कविता मेहता आईं—मध्यम आयु की, बेहद शालीन और सख्त स्वभाव वाली।

    डॉ. कविता (क्लास से):

    “गर्ल्स, वेलकम टू B.A. फर्स्ट ईयर। ये सफर आसान नहीं होगा, लेकिन अगर आप मेहनत करेंगी तो ज़िंदगी बदल सकती है।”

    क्लास तालियों से गूंज उठी।

    मीरा ने अधीरा को कोहनी से ठेला और बोली—

    “देखा, अब तो पक्के से कॉलेज वाली फिलिंग आ रही है।”

    अधीरा मुस्कराई। धीरे-धीरे उसकी झिझक कम होने लगी।

    दिन के अंत तक उसकी दो और सहेलियाँ बन गईं—साक्षी और रिया।
    साक्षी और रिया दोनों ही कल के मैच की बातें कर रही थी
    रिया:- ( बहुत एक्साइटेड होकर ) ' अधीर और मीरा क्या तुम लोगों ने कल का मैच देखा था '
    मीरा:- " कल!!! पर हमारा तो कॉलेज आज से चालू हुआ ना"
    साक्षी:- " मराठा कॉलेज आज से चालू हुआ पर सामने वाला जो कॉलेज है ना बिजनेस कॉलेज वहां पर कल मैच थी फुटबॉल मैच ऑल ओवर दिल्ली फुटबॉल मैच
    मीरा :- " नहीं हमें इस बारे में कुछ नहीं मालूम"
    प्रिया:- कल का क्या मैच है यार मेरा भाई बता रहा था अभियान में क्या लास्ट में जीत यार वह तो मेरा हीरो है।
    वीरा ने जैसे ही अभिमान का नाम सुना उसके दिमाग में एक शब्द है क्या मान और यह शब्द बोलते ही उसकी दिल की धड़कन एक बार तार पकड़ने लगी उसने अपना हाथ दिल पर रखा और बोलने लगी यह क्या हो रहा है रिलैक्स रिलैक्स खुद को रिलैक्स किया बाग में से पानी की बोतल निकाली और पानी पिया उसके बाद में मीरा और अधीर को लेने उसका भाई आ गया और वह चले गए

    अधीरा ने यह सुनते ही अनजाने में हंस दिया। फिर अचानक खुद को संभाल लिया और सिर झुका लिया। “मुझे दिल की धड़कने क्यों इतने तेज हो गई?” उसने मन ही मन सोचा।


    ---
    दूसरी तरफ, दिल्ली यूनिवर्सिटी के लड़कों का हीरो अभियान राठौड़ अपने कमरे में बैठा था। पिछली रात वो और उसके तीनों जिगरी दोस्त—कबीर, नील और रणविजय—फुटबॉल मैच जीतकर दिल्ली में छा गए थे।

    फोन पर सबसे पहले रणविजय की कॉल आई—
    “भाई, आज कॉलेज भूल जाओ। आज पार्टी होगी। दिल्ली जान जाएगी कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के चैंपियन कौन हैं।”

    नील हँसते हुए बोला—
    “हाँ यार, कल तो मैदान में तेरा खेल देखकर लग रहा था जैसे तू ही इंडिया का कैप्टन है। आज मस्त जश्न करते हैं।”

    कबीर ने भी जोड़ दिया—
    “भाई, कॉलेज तो रोज़ होगा… पर ये जीत रोज़ नहीं मिलती।”

    अभियान ने फोन कान से हटाकर जोर से चिल्लाया—
    “ओके बॉयज़! आज पार्टी… और पार्टी भी धमाकेदार!”


    ---

    🍻 दिल्ली की गलियों से पार्टी तक

    चारों दोस्त अपनी-अपनी बाइक पर निकले। अभियान की स्पोर्ट्स बाइक सबसे अलग चमक रही थी। दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक था, लेकिन जब ये चारों साथ निकलते थे तो हर किसी की नज़र इन पर टिक जाती थी।

    सबसे पहले ये लोग कनॉट प्लेस पहुँचे। वहाँ का माहौल ही अलग था—लाइट्स, कैफ़े, म्यूज़िक। वहाँ बैठकर बीयर पार्टी शुरू हुई। हर किसी के चेहरे पर खुशी थी।

    कबीर बोला—
    “भाई, कल जब तूने वो गोल मारा ना, तो पूरा ग्राउंड ‘अभियान-अभियान’ चिल्ला रहा था।”

    रणविजय हँसते हुए बोला—
    “तेरा नाम अब दिल्ली यूनिवर्सिटी की हर लड़की के दिल में है।”

    नील ने बीयर का घूंट लिया और बोला—
    “अब तो तू कैंपस का हीरो है। पर हीरो को हीरोइन भी चाहिए।”

    सभी हँस पड़े।


    ---

    🌆 रात का जश्न और बाइक रेस

    शाम ढलते ही चारों इंडिया गेट के पास पहुँचे। वहाँ भीड़ थी, पर इन चारों का swag अलग ही था। सेल्फ़ी लेते लोग, गाड़ियों की रोशनी और हवा में हल्का-सा संगीत।

    नील ने अचानक कहा—
    “भाई, पार्टी तो हो गई। अब कुछ धमाल चाहिए। चलो रेस लगाते हैं।”

    अभियान की आँखों में चमक आई—
    “रेस… रात की दिल्ली की सड़कों पर… बस यही चाहिए था।”

    दिल्ली की चौड़ी सड़कें, स्ट्रीट लाइट्स की रोशनी और दूर तक फैली नीयॉन चमक। चारों बाइक्स स्टार्ट हुईं—
    गड़गड़ गड़गड़…

    लोग साइड होकर खड़े होने लगे। बाइक्स ने स्पीड पकड़ी। हवा चेहरे को चीरती जा रही थी। चारों दोस्त चीखते-चिल्लाते, हँसते-खेलते अपनी बाइक्स पर ऐसे भाग रहे थे जैसे दिल्ली उन्हीं की हो।

    अभियान सबसे आगे था। उसकी स्पोर्ट्स बाइक हवा को चीरती हुई निकली। पीछे-पीछे कबीर, रणविजय और नील।

    अचानक नील ने चिल्लाकर कहा—
    “भाई, जो हारेगा वो ट्रीट देगा!”

    अभियान मुस्कुराया—
    “और जो जीतेगा… वो दिल्ली का असली बादशाह कहलाएगा।”

    स्पीडोमीटर 120… 150… 170…
    दिल्ली की सड़कें आज इन चार दोस्तों की गवाही दे रही थीं।


    ---

    🌙 रात का अंत

    रेस खत्म हुई। अभियान सबसे आगे रहा। सब दोस्त बाइक रोककर हँसते हुए गले मिले।

    रणविजय ने कहा—
    “भाई, तू हीरो है… और हमेशा रहेगा।”

    अभियान ने आसमान की तरफ देखा। चमकते तारों के बीच उसके दिल में अजीब-सी खुशी थी।

    उधर, उसी वक्त अपनी कमरे की खिड़की से अधीर रात के आसमान को देख रही थी।
    उसने धीरे से खुद से कहा—
    “दिल्ली… सच में नई कहानियाँ लिखती है। और यह मेरा दिल की धड़कन इतनी तेज क्यों धड़की सिर्फ नाम सुनने से ही क्या हो गया है कहीं मुझे दिल की बीमारी तो नहीं हो गई ”

    और कहानी यहीं से दोनों की किस्मतों को धीरे-धीरे जोड़ने लगी।


    ---

  • 6. आवाज सुनकर ही बढ़ गई दिल की धड़कन- Chapter 6

    Words: 1030

    Estimated Reading Time: 7 min

    दिल्ली यूनिवर्सिटी का वो सुबह का नज़ारा हर दिन की तरह रौनक भरा था। कैंपस के गेट पर गाड़ियों की भीड़ लगी हुई थी, बाइक की आवाज़ें हवा को चीर रही थीं। सफ़ेद शर्ट और ब्लैक जीन्स में, लेदर जैकेट पहने अभिमान राठौड़ अपनी रॉयल इंफिनिटी ब्लू बाइक से उतरकर बड़े स्टाइल से हेलमेट उतारता है। उसकी नीली आँखों की चमक और चेहरे की एटीट्यूड भरी स्माइल देखकर कैंपस में खड़ी लड़कियाँ ठहर-सी जाती हैं।

    आज का दिन उसके लिए अलग था। अभी उसने बाइक स्टैंड में गाड़ी लगाई ही थी कि उसके मोबाइल पर पापा का कॉल आया।

    पापा (फ़ोन पर) –
    “अभिमान, याद है ना बेटा, आज मीटिंग है? दोपहर में तुम्हें मेरे साथ ऑफिस से सीधे जाना है। बाइक से मत आना, मैं कार भेज रहा हूँ तुम्हें लेने।”

    अभिमान हल्की झुंझलाहट के साथ हँस पड़ा।
    अभिमान –
    “डैड, आप हमेशा मेरी राइड खराब कर देते हो। लेकिन ठीक है, मीटिंग मिस नहीं करूंगा। तीन लेक्चरर रिटर्न कर लूंगा उसके बाद में आप गाड़ी भेज देना वैसे भी मीटिंग 3:00 बजे है ना तो 2:00 बजे गाड़ी भेज देना।”
    पाप:- done....
    अभिमान अपनी कॉलेज में चल जाता है उसके बाद अधीर और मीरा को उसका भाई कॉलेज छोड़कर चले जाता है दोनों मिल ही नहीं पाए आगे मिलेंगे क्या......
    दोपहर के 2:00 जब अधीरा ओर मीरा की छुट्टी का टाइम होता है।
    अभियान अपने कॉलेज के
    गेट के पास खड़ा होकर अपनी लग्ज़री कार का इंतज़ार करने लगा। तभी कैंपस के उस पार से एक आवाज़ आई—

    आरव की (जोर से आवाज आई ) –
    “धीरा… इधर आ जल्दी! चल आज मुझे एक मीटिंग के लिए जाना है ”

    वो नाम जैसे हवा में तैरता हुआ सीधा अभिमान के कानों में गिरा।
    “धीरा…”

    अभिमान का दिल अचानक धड़कने लगा। उसने भौंहें चढ़ाकर इधर-उधर देखा। सामने कॉलेज से एक लड़की एक लड़के के साथ गेट की तरफ बढ़ रही थी। ( मीरा थोड़े से पीछे थी वह प्रिया और साक्षी से बात करते हुए आ रही थी) लड़की ने नीला सूट पहना हुआ था, दुपट्टा सँभालते हुए तेज़ी से चल रही थी। उसके पैरों की पायल और हाथों की चूड़ियाँ छन-छन की मीठी आवाज़ पैदा कर रही थीं।

    अभिमान बस दूर से खड़ा रह गया। चेहरा साफ़ नहीं देख पाया, बस उसके बालों की लट हवा में उड़ती हुई दिखाई दी और उसकी चाल में एक अजीब-सी मासूमियत थी।

    आरव गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोला –
    “चलो धीरा, देर हो रही है।”

    लड़की ने मुस्कुराकर हामी भरी –
    “आ रही हूँ।”

    और पलक झपकते ही कार में बैठकर चली गई।

    अभिमान वहीं ठिठक कर खड़ा रह गया।
    उसके कानों में वही नाम गूंज रहा था –
    “धीरा… धीरा…”

    उसने खुद से बुदबुदाया –
    “धीरा… कौन हो तुम? और क्यों ये नाम सुनते ही दिल इतनी जोर से धड़कने लगा? अपना हाथ ले जाकर अपने दिल के ऊपर रख लेता है।”

    तभी उसके ड्राइवर ने आकर कहा –
    “छोटे साहब, कार आ गई है। चलिए, मीटिंग के लिए लेट हो जाएगी।”

    अभिमान झटके से होश में आया और कार में बैठ गया। लेकिन रास्ते भर उसका ध्यान कहीं और ही था। सड़कों के ट्रैफिक, हॉर्न, भीड़… सब गायब। बस दिमाग में वो नाम गूंज रहा था और पायल की छनक उसके कानों में जैसे अटक गई थी।



    राठौड़ ग्रुप ऑफ टेक्सटाइल्स का ऑफिस दिल्ली के सबसे पॉश एरिया में था। बड़ी-बड़ी इमारतें, सिक्योरिटी गार्ड्स, और अंदर एकदम मॉडर्न इंटीरियर।

    मीटिंग रूम में अभिमान अपने पापा विजय राठौड़ के साथ बैठा था। विजय जी हल्के-फुल्के कॉमिक नेचर के थे, लेकिन बिज़नेस टेबल पर आते ही उनका रौब अलग ही दिखता था।

    सामने पार्टी वालों ने अपना प्रपोज़ल रखा। थोड़ी देर तक सब गंभीरता से बातें करते रहे, फिर अचानक विजय जी ने हंसते हुए कहा –

    विजय राठौड़ –
    “भाईसाहब, इतना छोटा प्रॉफिट मार्जिन लेकर क्या करेंगे आप? हम तो सोच रहे हैं कि बच्चों की गुल्लक भरवा देंगे इस डील से।”

    पूरा रूम एक पल को हंस पड़ा, लेकिन उसी पल अभिमान ने गंभीरता से कहा –

    अभिमान –
    “देखिए, अगर आपको हमारे साथ जुड़ना है तो हमारी कंडीशन क्लियर है। हम क्वालिटी से समझौता नहीं करेंगे, और अगर आपको सिर्फ प्रॉफिट चाहिए तो शायद हम सही पार्टनर नहीं हैं।”

    सामने वाले चुप हो गए। माहौल थोड़ा तनावपूर्ण हो गया। लेकिन विजय जी ने मुस्कराते हुए बात समेट ली –

    विजय राठौड़ –
    “डरिए मत, हम बिज़नेस तोड़ने नहीं आए। बस ये दिखाना था कि राठौड़ ग्रुप कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं करता।”

    आखिरकार डील साइन हो गई। बाहर निकलते ही विजय जी ने अभिमान के कंधे पर हाथ रखा –

    “बेटा, आज तूने दिल खुश कर दिया। बिज़नेस में सिर्फ दिमाग नहीं, दिल भी चाहिए।”

    अभिमान ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन मन अब भी उलझा हुआ था। मीटिंग खत्म हो चुकी थी, मगर उसका दिल अब भी गेट पर सुनी उस आवाज़ में अटका हुआ था।



    उधर, राजपुरोहित हवेली में अधीरा अपने कमरे से बाहर निकली ही थी कि दादी ने आवाज़ लगाई –

    दादी –
    “लड़की, कहाँ जा रही है? दिनभर पढ़ाई-पढ़ाई… घर का काम कौन करेगा? शादी के बाद ये किताबें तेरे काम नहीं आएंगी।”

    चाचा भी जोड़ बैठे –
    “हाँ, तेरा भाई तो तुझे सिर पर चढ़ा रखा है। काम सीख ले, वरना ससुराल में नाक कट जाएगी।”

    अधीरा ने होंठ भींच लिए। आँखों में आंसू थे, मगर उसने झुका लिया सिर।

    माँ चुपचाप खड़ी थी। दादी के आगे बोलने की हिम्मत किसी की नहीं थी।

    दादी –
    “चल, किचन में आ। देख, आटा कैसे गूंथा जाता है। अगर लड़की को रसोई नहीं आती तो वो घर नहीं संभाल सकती।”

    अधीरा धीरे-धीरे किचन की ओर बढ़ी। उसकी चूड़ियाँ खनकीं, पायल की आवाज़ गूंजी। लेकिन इस बार उस आवाज़ में डर और मजबूरी थी, मासूम खुशी नहीं।

    उसका मन अब भी कॉलेज की सुबह में अटका था—जब उसने अनजाने में उस लड़के का नाम सुना था जिसे बाकी सब “मान” कहते थे 2 दिन से कॉलेज में बस अभिमान के नाम की चर्चा थी।

    और इस तरह उस दिन का सूरज ढल गया।
    एक ओर अभिमान अपनी लग्ज़री कार में बैठा उस अनसुनी-सी लड़की की आवाज़ याद कर रहा था।
    दूसरी ओर अधीरा घर के कामों में डूबी......

    दोनों की दुनिया अलग-अलग थीं, मगर किस्मत अब धीरे-धीरे उनकी राहों को एक-दूसरे से जोड़ रही थी।
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  • 7. एक झलक मिलने की आस - Chapter 7

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    दिल्ली यूनिवर्सिटी का विशाल कैंपस अपनी रौनक के लिए जाना जाता था। सुबह की क्लासेज़ ख़त्म होते-होते दोपहर तक माहौल और भी हल्का हो जाता। लड़के-लड़कियाँ कैंटीन में, गार्डन में या फिर लॉबी में ग्रुप बनाकर बैठे दिखाई देते।

    क्लासरूम में चार दोस्त हमेशा की तरह अपनी आख़िरी बेंच पर बैठे थे – अभिमान, कबीर, नील और रणविजय। ये चारों कॉलेज के सबसे चर्चित ग्रुप में से थे। सबमें लीडरशिप और शरारत का अजब-सा मिक्स था, लेकिन सबसे अलग और आकर्षक था अभिमान राठौड़।

    आज का माहौल थोड़ा अलग था। क्लास के बीच में ही अचानक प्रिंसिपल सर के असिस्टेंट अंदर आए और सीधा अभिमान के पास जाकर बोले –

    असिस्टेंट –
    “अभिमान, प्रिंसिपल सर ने तुम्हें और तुम्हारे तीनों दोस्तों को अभी बुलाया है। स्टूडेंट यूनियन के प्रेज़िडेंट होने के नाते तुम्हें मीटिंग में आना ज़रूरी है।”

    सारी क्लास की निगाहें उनकी तरफ उठ गईं। कबीर हल्की मुस्कान के साथ कुहनी मारते हुए बोला –
    “अबे लीडर जी, बुलावा आ गया है। उठिए… कॉलेज की गद्दी आपकी राह देख रही है।”

    नील भी मज़ाक में जोड़ बैठा –
    “हाँ भाई, वैसे भी हर साल फ्रेशर्स पार्टी का मैनेजमेंट हमीं करते हैं। इस बार भी वही बुलावा है।”

    रणविजय ने चश्मा उतारते हुए कहा –
    “चलो, चलकर सुन ही लेते हैं। वैसे भी क्लास तो अब बोर हो रही है।”

    अभिमान ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा –
    “तुम लोग जाओ। मुझे नहीं जाना। हर बार वही पुरानी बातें, वही लड़कियों के झुंड। मुझे मुझे नहीं जाना ।”

    तीनों दोस्त एक-दूसरे को देखने लगे। कबीर ने फिर चिढ़ाते हुए कहा –
    “अरे वाह! मैं तो मालूम था तेरा तो हर बार कही है तुझे इंटरेस्ट ही नहीं आता है , पर हमको तो जाना पड़ेगा भाई तेरा काम भी हम नहीं देखेंगे?”

    अभिमान ने हल्के-से गुस्से में कहा –
    “मज़ाक मत करो। सच में मन नहीं है।”

    नील ने मुस्कुराकर कहा –
    “चल छोड़ भी दे। अगर तू नहीं आएगा तो बाकी सब कैसे होगा? सर ने बुलाया है, मना करने का सवाल ही नहीं है।”

    रणविजय बोला –
    “और वैसे भी… सुना है इस बार प्रिंसिपल मैम भी होंगी। उनका गर्ल्स कॉलेज की तरफ से बुलावा है। फ्रेशर्स पार्टी वहाँ रखी जाएगी।”

    ये सुनते ही अभिमान जैसे थोड़ा ठिठका। गर्ल्स कॉलेज… और उसके दिमाग में वही नाम घूम गया – धीरा…
    एक अजीब-सी बेचैनी उसके दिल में उतर गई।

    उसने दोस्ती में हवा बनाते हुए, नज़रें झुकाकर कहा –
    “ठीक है… चलते हैं। देख ही लेंगे।”



    कॉलेज का प्रिंसिपल ऑफिस शानदार और अनुशासित माहौल के लिए मशहूर था। बड़े-बड़े बोर्ड, ट्रॉफियाँ और कॉपरेटिव स्टाफ।

    कमरे में पहले से प्रिंसिपल सर – अजय शुक्ला और उनकी पत्नी प्रिंसिपल मैम – संगीता शुक्ला बैठे थे। दोनों ही शिक्षा जगत की बड़ी पहचान थे।

    जैसे ही अभिमान और उसके दोस्त अंदर दाखिल हुए, सर ने मुस्कुराकर कहा –
    “आ गए हमारे चारों सितारे! बैठो बेटा, बैठो।”

    मैम ने गंभीर लेकिन मीठे स्वर में कहा –
    “देखो बच्चों, इस बार हमारे गर्ल्स कॉलेज में फ्रेशर्स पार्टी का आयोजन है। हर साल की तरह इस बार भी मैनेजमेंट की जिम्मेदारी तुम लोगों पर है। हमें भरोसा है कि तुम चारों इसे शानदार तरीके से संभालोगे।”

    कबीर ने मुस्कान के साथ कहा –
    “मैम, ये तो हमारा पुराना काम है। चिंता मत कीजिए।”

    नील और रणविजय भी उत्साह से सिर हिलाते रहे।

    पर अभिमान कुछ देर चुप रहा। अंदर से मन तो कर रहा था साफ़ मना कर दे, लेकिन न जाने क्यों उसके दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं।

    उसने धीरे से कहा –
    “ठीक है मैम… हम लोग सब संभाल लेंगे। कल से ही प्रिपरेशन शुरू कर देंगे।”

    मैम ने संतोष भरी मुस्कान दी और कहा –
    “गुड। thank you.....

    मीटिंग खत्म होते-होते दो बज गए। चारों दोस्त बाहर निकले। कबीर ने हंसते हुए कहा –
    “अबे, ये प्रिंसिपल सर-मैम की जोड़ी न, सच में डेंजर है। हर बार हमें ही पकड़ लेते हैं।”

    नील बोला –
    “हाँ यार। और देखो, अभि भी मान गया। वरना तो या गर्ल्स कॉलेज जाने के नाम से ही चढ़ता है ।”

    रणविजय ने चुटकी ली –
    “कभी-कभी तो लगता है हमारे अभी को पता नहीं कौन लड़की मिलेगी इसकी कभी गर्लफ्रेंड बनेगी की भी नहीं ।”

    अभिमान बस हल्की मुस्कान दे पाया। उसका मन कहीं और ही भटक रहा था।

    अचानक उसने कहा –
    “यार, मुझे थोड़ी जल्दी है। मैं निकल रहा हूँ।”

    कबीर ने तंज कसते हुए कहा –
    “अरे वाह! अब तो जल्दी निकलना भी तुम्हारा नया शौक हो गया है। चल भाग”

    अभिमान ने हाँ में सिर हिलाया और जल्दी-जल्दी गेट की ओर बढ़ गया।


    दिल फिर से तेजी से धड़कने लगा। वो सोच रहा था –
    “आज शायद… शायद मैं उसे देख पाऊँ। पता नहीं क्यों मैं उसे देखने जा रहा हूं”

    गेट पर भीड़-भाड़ थी। तभी सामने से एक लड़का आया और ज़ोर से बोला –
    “लाडो! धीरे चल, जल्दी क्या है?”

    सामने वही लड़की दिखी… जिसने उसके दिल की धड़कनें पहली बार से भी तेज़ की थीं। आज भी वही, हल्की-सी मुस्कान लिए चल रही थी। उसके साथ उसकी सहेलियाँ थीं।

    अभिमान ने पूरी कोशिश की उसका चेहरा साफ़ देख ले… लेकिन भीड़ और तेज़ी में बस उसकी पीछे की झलक ही देख पाया आज गुलाबी सूट मैं भी कमर तक लहराती गूथ का की हुई चोटी ।

    वो कार में बैठ गई और पलक झपकते ही निकल गई। आज भी उसके साथ एक नया लड़का था आज के कारण भाई आए थे।

    अभिमान वहीं खड़ा रह गया।
    उसके भीतर बेचैनी और गुस्सा दोनों उठ रहे थे।

    “ये क्या हो रहा है मुझे? मुझे तो कभी लड़कियों में दिलचस्पी नहीं रही… फिर क्यों ये नाम, ये आवाज़, ये पायल की छनक दिमाग से निकलती ही नहीं? लड़की अपने आप को समझती क्या है कितना एटीट्यूड है आपका चेहरा भी नहीं दिख रही डिस्कशन रोज ने लड़कों के साथ दिखती है पता नहीं कितने बॉयफ्रेंड होंगे फिर कुछ बोला नहीं बॉयफ्रेंड ना....”
    ( खुद ही नहीं पता था उसे क्या हो रहा है गुस्सा आ रहा है खुद पर आ रहा है की लड़की पे आ रहा हैं)
    पता नहीं हमारे अभियान और अधीर कब फेस टू फेस मिलेगी......
    plz follow me......

  • 8. भाई बहन का बॉन्ड Chapter 8

    Words: 1051

    Estimated Reading Time: 7 min

    राजपुरोहित हवेली की शाम हमेशा शोरगुल और रौनक से भरी रहती थी। नीचे दादी-चाचा-चाची अपनी-अपनी बातें कर रहे थे, पापा अख़बार पढ़ते-पढ़ते बीच-बीच में खाँसते और किसी ना किसी पर नाराज़ हो जाते। माँ रसोई में थीं, लेकिन बीच-बीच में आवाज़ लगाना नहीं भूलतीं –

    माँ –

    “अधीरा! ज़रा देखना नमक तो ज़्यादा नहीं हो गया सब्ज़ी में?”

    अधीरा चुपचाप रसोई से थाली उठाकर सबकी टेबल पर रख आई। चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन आँखों में हल्की थकान साफ़ झलक रही थी। मन तो पढ़ाई में था, लेकिन घर का काम उससे पहले आता था।

    खाना परोसने के बाद जैसे ही उसने सोचा कि अब अपने कमरे में जाकर पढ़ाई कर लेगी, दादी फिर बोलीं –

    दादी –

    “लड़की, ध्यान रखना कल टेस्ट है तो क्या हुआ? घर का नाम खराब मत कर देना। हमें तो पढ़ाई-लिखाई में विश्वास ही नहीं… लेकिन तेरा भाई कहता है कि तू संभाल लेगी।”

    अधीरा ने बस ‘जी दादी’ कहकर सिर हिला दिया।

    ---

    🏠 अधीरा का कमरा

    रात का समय था। हवेली के बड़े हाल में हल्की-हल्की रोशनी जल रही थी। नीचे दादी और चाचा-चाची की आवाज़ें अब भी गूंज रही थीं। लेकिन ऊपर के कमरे में, अधीरा अपने नोट्स में डूबी हुई थी। टेबल पर फैली किताबें, पेन, हाइलाइटर और एक आधा खुला डायर—उसके सपनों की गवाह थे।

    कमरे का दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला। सबसे पहले आरव अंदर आया। सूट-पैंट में था, बाल सलीके से सेट, हाथ में मोबाइल। बिज़नेस कॉल करके अभी-अभी फ्री हुआ था। चेहरे पर वही सीरियस एक्सप्रेशन—जैसे किसी बड़े प्रोजेक्ट पर चर्चा करने आया हो।

    आरव (गंभीर अंदाज़ में):

    “मैडम जी, इतनी किताबें फैलाई हैं… लग रहा है कोई पूरा मॉल ही खोल डाला है।”

    अधीरा ने सिर उठाया और मुस्कुराई –

    “भाई, टेस्ट है कल… तुम्हें मज़ाक ही सूझ रहा है।”

    आरव उसके पास आकर किताब बंद कर देता है –

    “टेस्ट-फेस्ट तो चलता रहेगा, लेकिन पहले ये बताओ कि मेरी छोटी बहन उदास क्यों लग रही है?”

    अधीरा हँस पड़ी –

    “उदास नहीं हूँ… बस पढ़ाई ज़्यादा है।”

    इतने में पीछे से करण भी आ गया। हाथ में चॉकलेट का पैकेट था।

    करण –

    “लाडो , देखो! तुम्हारी फेवरेट चॉकलेट लाया हूँ। अब तो मुस्कुरा दो।”

    उसने चॉकलेट उसके सामने लाकर लहराई। अधीरा हँसते हुए बोली –

    “आप दोनों न, हमेशा मुझे बिगाड़ते हो।”

    आरव कुर्सी पर बैठ गया और बोला –

    “अरे, हम बिगाड़ नहीं रहे। हम तो तुम्हें खुश कर रहे हैं। वैसे भी तू पूरे दिन घरवालों के ताने सुनती है… कम से कम हम तो तेरा मूड अच्छा कर सकते हैं।”

    अधीरा ने करण को गले लगा लिया और बोली –

    “तुम दोनों ही तो हो जो मेरे साथ खड़े रहते हो। वरना इस घर में तो किसी को मेरी पढ़ाई की फिक्र नहीं है।”

    आरव ने गंभीर होकर कहा –

    “सुन लाडो… तेरे भाई है ना। पापा से मैंने ही प्रॉमिस लिया है कि तू घर की इज़्ज़त रखेगी। मुझे पूरा यक़ीन है कि तू उन्हें कभी निराश नहीं करेगी। और अगर कोई तुझे रोकने की कोशिश करेगा तो सबसे पहले मैं उनके सामने खड़ा रहूँगा।”

    अधीरा की आँखें भर आईं। उसने तुरंत हँसी में टालने की कोशिश की –

    “बस-बस, इतनी इमोशनल बातें मत करो। चलो अब ये चॉकलेट बाँटो और मुझे पढ़ाई करने दो।”

    करण ने मस्ती में कहा –

    “पढ़ाई-पढ़ाई… ये लड़की न, बड़ी होकर प्रोफेसर बन जाएगी।”

    अधीरा ने तकिया उठाकर दोनों पर फेंका –

    “बस करो आप दोनों! मुझे बहुत पढ़ना है।”

    कमरे में हँसी गूँजने लगी। तीनों भाई-बहन उसी हँसी-मज़ाक में देर रात तक बातें करते रहे।

    आरव उसके पास बैठ गया, लेकिन तुरंत उसका पेन उठाकर बोला –

    “ये सब तो चलता रहेगा। पहले ये बता, खुश है ना तू? कोई टेंशन तो नहीं?”

    अधीरा –

    “खुश हूँ भाई। बस घर की बातें सुनकर कभी-कभी दिल भारी हो जाता है।”

    आरव ने उसके सिर पर हाथ रखा। उसकी टोन बदल गई—अब वह सीरियस बिज़नेसमैन नहीं, बल्कि बहन का सबसे बड़ा शेल्टर था।

    “देख लाडो… चाहे पूरा घर कुछ भी बोले, तू मेरी जिम्मेदारी है। और तेरे लिए मैं किसी से भी लड़ सकता हूँ। समझी?”

    अधीरा की आँखें भर आईं। लेकिन इससे पहले कि माहौल इमोशनल हो जाए, दरवाज़ा फिर खुला।

    कारण माहौल को हल्का करने के लिए–

    “और हाँ, तेरी शादी के बाद भी तुझे रोज़ चॉकलेट मिलेगा। तेरे होने वाले पति को मैं कॉन्ट्रैक्ट पर साइन कराऊँगा।”

    तीनों ज़ोर से हँस पड़े।

    अधीरा हँसते-हँसते बोली –

    “याद है… जब मैं स्कूल में पहली बार डांस करने गई थी, और मैंने घबराकर स्टेज से भाग लिया था? तब आप दोनों ने ही मुझे चॉकलेट खिलाकर कहा था कि ‘हमारी बहन सबसे बेस्ट है।’”

    करण बोला –

    “अरे याद है क्यों नहीं! और तू भूल गई जब तूने मेरी कॉपी में फुल झाड़ू की ड्रॉइंग बना दी थी और मैडम ने मुझे खड़ा कर दिया था?”

    आरव हँस पड़ा –

    “हाँ… और जब तूने मेरी किताबें छुपा दी थीं ताकि मैं पढ़ न पाऊँ। फिर रात भर मैंने तुझे तंग किया था। तू रोने लगी थी और फिर भी कह रही थी—‘मुझे मज़ा आया!’”

    अधीरा हँसते-हँसते लोटपोट हो गई।

    अधीरा –

    “आप दोनों दुनिया के बेस्ट भाई हो। सच कह रही हूँ, अगर तुम दोनों न होते तो शायद मैं कभी कॉलेज भी नहीं जा पाती।”

    आरव ने गंभीर होकर कहा –

    “कॉलेज जाना तेरी मेहनत थी, लाडो। हम तो बस तेरा साथ दे रहे हैं। और ये मत सोचना कि तू अकेली है। जब तक आरव और करण हैं, कोई तुझे कुछ नहीं कह सकता।”

    करण ने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा –

    “और तू अगर टॉपर नहीं बनी, तो मैं तेरी जगह क्लास में जाकर एग्ज़ाम दूँगा।”

    अधीरा हँसते हुए बोली –

    “पागल! आप को तो हिस्ट्री का H तक नहीं पता।”

    आरव और करण दोनों हँस पड़े।

    कमरे में देर रात तक तीनों की हँसी गूंजती रही। कभी मज़ाक, कभी पुरानी यादें, कभी प्यार भरी नोकझोंक।

    आख़िर में अधीरा ने कहा –

    “अब सच में मुझे पढ़ाई करनी है। वरना कल टेस्ट बिगड़ जाएगा।”

    आरव और करण ने एक-दूसरे को देखा और बोले –

    “ठीक है, मैडम। पढ़ लो… लेकिन याद रखना, तू अकेली नहीं है। हम दोनों हमेशा तेरे साथ हैं।”

    दोनों भाई कमरे से बाहर चले गए। अधीरा ने चॉकलेट का एक टुकड़ा मुँह में रखा, किताब खोली, और मुस्कुराकर पढ़ने लगी।

    उसकी आँखों में अब सपनों के साथ-साथ अपने भाइयों का अटूट भरोसा भी चमक रहा था।

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