Novel Cover Image

तुम अब भी हो

User Avatar

Deepak Kumar

Comments

0

Views

5

Ratings

0

Read Now

Description

एक लड़का था, जिसकी ज़िंदगी में अचानक एक लड़की आई। पहले तो दोनों के बीच एक साल तक न कोई मुलाक़ात हुई, न कोई बातचीत। लेकिन किस्मत ने करवट ली और फिर धीरे-धीरे उनकी राहें मिलने लगीं। जनमाष्टमी के दिन, जब दोनों ने व्रत रखा, तो मानो कृष्ण का आशीर्वाद था कि...

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. तुम अब भी हो - Chapter 1

    Words: 1341

    Estimated Reading Time: 9 min

    एक लड़का था, बड़ा ही मस्तमौला। ना तो खेलने में उसका मन रमता, ना ही पढ़ने में।
    सपने देखना किसे अच्छा नहीं लगता? मेरे ख्याल से शायद ही कोई होगा जिन्हे रात्री में में वेफ्रिक सोए हुए, सपने की दुनिया में जगना अच्छा न लगता हो।
    उस लड़के को भी सपने देखना बहुत अच्छा लगता था।
    एक दिन वह सपने में एक लड़की को देखता है। हालाँकि चेहरा स्पष्ट नहीं था। और यह बात सच है आप जो सपने में देखते हैं उसका मात्र कुछ ही अंश  स्मरण रख पाते हो।
    उसे लगता है कि उस लड़की का सपने में आना, अकारण नहीं है। शायद इश्वर उसे उससे मिलाना चाहते हो। यह अवधारणा अपने मन में बसाकर उस लड़की की तलाश में निकल पड़ता है।
    उसे मुलाकात होती है कुछ लड़कियों से, लेकिन उसमें एक तो सिर्फ क्षणिक आकर्षण मात्र थी तो दुसरी से उसे प्यार हो गया। प्यार कहना उचित नहीं होगा क्योंकि यदि यह सच में प्यार होता तो "आज उसकी दुर्दशा नहीं होती ।" उसे लड़की से बात करना नहीं आता था , और आज भी नहीं आता है। वह समाज की अवधारणाओं से भली-भाँति परीचित था। आज भी गाँवों में लड़का और लड़की मित्रता नहीं कर सकते - ऐसी समाज की मान्यता है । उस समय वह यदि उस लड़की से दोस्ती कर लिया होता तो उसकी तलाश समाप्त हो जाती। परंतु नियति कुछ और हीं चाहती थी। समय बितता गया, दिन,माह सब बीते और कुछ समय बाद उसके जीवन में एक दुसरी कन्या का आगमन होता है। वह बहुत असमंजस में पड़ जाता है।
    कुछ समय बाद उसे यह एहसास हो जाता है कि उसे अपनी छान-बिन यहीं समाप्त कर देना चाहिए और वह कर भी देता है। वह इस लड़की के प्यार  में पड़ जाता है और धीरे-धीरे इसके हृदय में प्रेम, काफी पक्का घर बनाता जा रहा था। लेकिन पगला इस लड़की से भी अपनी दिल की बात नहीं बता पाया। बस उसे देखने से हीं इसे सुकुन मिलता था। " किसी ने क्या खुब कहा है - जिससे प्रेम होता है न, उससे बातें करने से ज्यादा उसे देखने में सुकुन मिलता है।"
    वह लड़का उसकी एक झलक के लिए तड़प उठता था। हर रोज हर समय बस उसे हीं देखने की चाहत रहती थी। और फिर उसके साथ ऐसा हुआ " जिसे प्रत्येक लव स्टोरी फिल्मों में दो प्रेम करने वालों के बीच एक परम्परा-सा दिखाया जाता है।" उस वर्ष आई वैश्विक महामारी को कोई कैसे भूल सकता है, जिसने न जाने कितने मासूमों की जान ले ली। जिसनें कितनों के रोजगार छीन लिया। हाँ, मैं उसी कोरोना नामक महामारी की बात कर रहा हूँ ।
    इस महामारी ने उन दोनों को पृथ्वी की एक-एक ध्रुवों पर खड़ा कर दिया। उन दोनों के बीच जुदाई की एक लम्बी दीवार खड़ी हो गई । इसके बावजूद भी वह अपनी उसी पुरानी दुनिया में प्रत्येक रात मिला करता था। प्रत्यक्ष न मिलने का दुख उसे अंदर ही अंदर खाता जा रहा था ।
    लगभग आठ-नौ महिने बीत गए, तब उन दोनों की मुलाकात होती है। उसे देखते हीं उसका हृदय खुशी से भर आया।  जुदाई ने उसके दिल में प्रेम को और गहरा बना दिया था। अब उसकी एक मात्र इच्छा रहती थी "किसी भी तरह अपनी दोस्ती का प्रस्ताव उसके समक्ष रखे। उससे बातें करे।" परंतु अपने संकोची तथा डरपोक स्वभाव के चलते वह ऐसा नहीं कर पाता। कुछ समय बाद उसनें जीवन में पहली बार जन्माष्ठमी का व्रत रखा, वो भी निजिला व्रत । आश्चर्य की बात तो यह है कि उसने भी (लड़की ने) व्रत रखा था। लड़की के मकसद का तो मुझे मालूम नहीं परंतु उस लड़के के मन में क्या था, ये मैं भलिभाँति जानता था। भगवान श्री कृष्ण ने उसकी मनोकामना उसी दिन पूरी कर दी थी। उस दिन ऐसा हुआ जिसकी चाहत उस लड़‌के को वर्षों से थी। उन दोनों के बीच बात-चित होना शुरू हो गया। मुझे इस बात का संदेह होता है कि शायद उस लड़की की भी यहीं इच्छा रही होगी जिसके कारण इश्वर ने भी दोनों की प्रार्थना उसी दिन सुन ली होगी ।  श्री कृष्ण ने दोनों के बीच बातें ही प्रारंभ नहीं करवाई थी, बल्कि उसी दिन से उन दोनों के बीच अपनापन बढ़ने लगा था।
                                   वह लड़‌का अपने जीवन का सबसे सुनहला समय जी रहा था।
    उन दोनों के बीच काफी हद तक  अपनापन हो गया था। वे कभी साथ एक ही थाली में खाते, कभी वो अपने हाथों से उसे खिलाती तो कभी येे। कभी साथ खेलते, तो कभी साथ फिल्म देखते। अपने कोचिंग के शिक्षक के एक फोन में।  मैं एक बात बताना चाहूँगा कि "वे दोनों एक हीं स्कूल में पढ़ते थे, लेकिन स्कूल में वे दोनों एक-दूसरे को जानते भी नहीं थे, वहीं कोचिंग में दोनों के बीच खुब बातचित होती थी । यहाँ पर फिर संदेह की चिंगारी दिल में उठती है कि उस लड़की के दिल में भी लड़के के प्रति कुछ-न-कुछ जरूर था। हो सकता है उन दोनों का कारण भी एक ही हो, एक-दूसरे से इजहार न करने का।

    थोड़ी चर्चा उस लड़‌की का भी करना चाहूँगा मैं।  उसका नाम सौंदर्य और समृद्धि की देवी के एक रूप पर ठहरा है,
    उसका दूसरा नाम ही वह चाबी है, जिससे मेरी दूसरी दुनिया (सपनों की दुनिया )के महल का द्वार खुलता है।
    पिता का नाम उस सम्राट का नाम है, जिसने कलिंग को बदल दिया, और माता का नाम तो जो मेरे बचपन के दोनों दोस्तों के माताओं के नाम हैं,वो ही है । उसका भाई सारे मौसम का राजा है और बहनों के नाम में सिर्फ "सु" उपसर्ग का अंतर हैं।
    उसकी खूबसूरती का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता । उसका स्वभाव कभी कभी चिड़चिड़ा हो जाता था। वह कइयों से तो गुस्से में बात करती थी, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि कितना भी गुस्सा में क्यों न हो ,उस लड़के से हमेशा शांत स्वभाव से बाते करती थी ।
      वह उस लड़के के जीवन में पहली और आखिरी लड़‌की थी, जिससे उसने इतना बात किया हो। जिसके साथ समय बिताया हो ।
    वह बहुत खुश था। लेकिन यह खुशी ज्यादा समय तक नहीं टिक पायी। एक वर्ष बाद जब अगला जनमाष्ठमी का दिन आया, तो उस लड़के ने अबकी बार व्रत नहीं रखा। यह उसकी सबसे बड़ी भूल थी। आश्चर्य की बात तो यह है कि उसने भी अबकी बार व्रत नहीं रखा था। कुछ दिन तक सबकुछ समान्य रहा और फिर उनके बीच दुरीयाँ बढ़ने लगी। धीरे-धीरे उनके बीच बात-चित बंद हो गयी। वह बहुत दुखी रहने लगा था क्योकि वह उस लड़की  के अस्तित्व के गुरुत्वाकर्षण में यूँ बँध चुका था, जैसे कोई तारा अपनी ही कक्षा में सदियों तक भटकता रहे, चाहे आकाशगंगा उसे देखे या अनदेखा कर दे।"

    वह अपने दिल को यह कहकर मना लेता, कि कम-से-कम वह उसे देख तो लेता हीं है। साल भर ऐसे हीं चला। और फिर उस लड़के कि मैट्रिक परीक्षा आ गयी। इसके बाद वह उससे वो हमेशा-हमेशा के लिए बिछड़ गया। उसकी सारी खुशियाँ छीन गयी। उसके दुखों को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं है।
    अबकी बार की दूरी धरती के ध्रुवों जैसी नहीं बल्कि इस प्रकार की थी कि मानो दोनों को ब्रहमांड (UNIVERSE) के एक-एक छोर पर खड़ा कर दिया हो जो लगातार बढ़ता जा रहा है। पहली बार की दूरी के बाद भी उससे मिलने का आशा थी इसलिए मिल भी गया था। परन्तु इस बार अब उसकी सारी उम्मीदें टूटती हीं जा रही है।
           वह जानता है कि पुनः मिलन संभव नहीं है लेकिन फिर भी इश्वर से इसकी प्रार्थना करता है । कल ( 16-08-2025)  चौथी या पांचवी जन्माष्टमी बीत गई ।
    शायद पह भूल गई होगी, लेकिन वह आज भी, अभी भी उसके हृदय में है, तथा हमेशा रहेगी, उसकी धड़कन बनकर। उसके शरीर के रक्त के एक-एक बूँद में वह हमेशा रहेगी । वो आज भी है, वो अब भी है।।

     मेरे दिल की दीवार बनकर,
    मेरी सोच की याद बनकर,
    तुम कल भी थी…
    तुम अब भी हो।
    मेरे पल-पल की साँसों में घुलकर,
    मेरी नसों में रक्त-सी बहती हुई
    तुम तब भी थी…
    तुम अब भी हो।



                                तुम अब भी हो

    Written by - Deepak Choudhary