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मोहिनी ( प्यास डायन की )

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Shalini Chaudhary

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शक्ति और साधना की ओर आकृषित हुई तीन दोस्त निकलेंगी इस ज्ञान को गहराई से समझने के लिए, लेकिन इस सफर के शुरू होने से पहले ही उनका सामना होगा एक ऐसी डायन से जिसे तलब है शक्ति की खूबसूरती की, जिसे प्यास है खून की.... और एक धोखा ले लेगी तीनों दोस्तों की ज...

Total Chapters (115)

Page 1 of 6

  • 1. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 1

    Words: 1269

    Estimated Reading Time: 8 min

    जय श्री कृष्णा 🙏 ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! प्रताप गढ़ ( राजस्थान) एक आलीशान कमरे में तीन लड़की बिस्तर पर बैठी थी। तीनों ने राजस्थानी कपड़े पहने थे और तीनो बहुत ही खूबसूरत और प्यारी थी तीनो लड़कियां बीस से बाईस के बीच की थी, उनके आगे में बहोत सारी किताबें खुली हुई थी जो देखने से गुप्त और रहस्यमई पुस्तकें लग रही थी, वो पुस्तक काफी पुराने थे लेकिन अच्छे रख रखाव की वजह से उनके सारे पन्ने एक सूत्र में बंध कर अपने शान और ज्ञान दोनो को बरकरार रखे थे। उनमें से कुछ पुस्तक ग्रीक भाषा के थे तो कुछ तिब्बती भाषा के और कुछ दुनिया के सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत में लिखे हुए थे। वो तीनो उन पुस्तकों में खोई हुई थी की तभी उनमें से एक लड़की जिसका नाम वैशाली था वो बोलती है, "चंद्रा ऐसे कैसे चलेगा हम सब खुद से इस मोटी मोटी किताबों में कितना ही माथा फोड़ लें, लेकिन कुछ समझ नहीं आने वाला।" तारा बोली, "हां पहली बार ये मंदबुद्धि सही बोल रही है, हमे एक गुरु की आवश्यकता है, वरना इतना मेहनत करने पर भी कुछ हाथ नहीं आने वाला।" चंद्रा बोली, "मैं भी जानती हूं पर क्या करु? पूरे सात साल बाद बॉम्बे से आए है हम सब, अब फिर कोई कही नहीं जाने देने वाला।" तारा बोली, "ये भी है, पर हमें आए छै महीने से ज्यादा समय हो गया अब, बात करके देखते है शायद आज्ञा मिल जाए।"  वैशाली बोली, "हां तारा सही कह रही है, तुम राजा सा से बात करके देखो पहले।"  चंद्रा बोली, "ठीक है।" तभी तारा वैशाली को कुछ इशारा करती है जिसे वैशाली समझ नही पाती और अजीब अजीब मूंह बनाने लगती है, तब तारा एक लात खींच कर वैशाली के पीठ पर मारती है और फिर इशारा करती है, मार खाने के बाद वैशाली के दिमाग का घोड़ा दौड़ने लगता है। और वो हां में अपना सर हिलाती है। वैशाली बोली, "चंद्रा हमने सुना है राजा सा तुम्हारा ब्याह करवाने वाले है, लड़के वाले से शायद बात भी हुई है।"  चंद्रा चीखते हुए बोली, "क्या, कब, कहां, कैसे, किसके साथ?" तारा कान बंद करते हुए बोली, "पहले चिल्लाना बंद करो, और शांत हो जा बहन, वरना अगर रानी सा आ गई न तो हम तीनो को धमाचौकड़ी करने के अपराध में घर से बाहर निकल देंगी। पिछले सप्ताह जब राजा सा माधवगढ़ गए थे तब, वहीं के राजा जयमाल ठाकुर के इकलौते बेटे रुद्र ठाकुर से, सुना है बड़ा वीर है।" चंद्रा चिढ़ते हुए बोली, "वीर है तो रहे, मैं अभी ब्याह नही करने वाली।" वैशाली थोड़ा पास खिसकते हुए बोली, "करना भी मत वरना इतनी मेहनत पर पानी फिर जाएगा सारी पढ़ाई चूल्हे में चली जायेगी, अरे कम से कम इतना तो पता चले की वो मणि कैसी है जो राजा सा ने पुस्तकालय में छिपाई है और पहरा भी इतना ज्यादा लगा रखा है।" तारा बोली, "हां और उसके साथ वो किताब भी उस किताब मैं पुरानी भाषाओं में कुछ जानकारी भी दी गई है।" चंद्रा खोए हुए बोली, "हम्म यही तो मुझे भी जानना है और उस किताब में भी उस मणि के बारे मैं बताया गया है और भी बहोत कुछ हो सकता है।" फिर तीनो अतीत की गहराइयों में चले जाते है सिंह भवन के पिछले हिस्से के तरफ भी एक दरवाजा खुलता है पीछे की तरफ एक बहुत सुंदर सा बगीचा बना था। तीनो दोस्त वहां खेल रहे थे तभी उनकी नजर देवराज सिंह पर जाती है जो एक फकीर जैसे दिखने वाले व्यक्ति के साथ कुछ बात कर रहे थे। वो फकीर देवराज सिंह को अपने झोले से एक अजीब सी किताब निकाल कर देता है फिर एक मणि निकालता है। जो देखने में बहोत खूबसूरत थी उस मणि को देख तीनो लड़कियां थोड़ा और नजदीक जा कर एक पेड़ के पीछे छिप जाती है वो ज्यादा तो नहीं सुन पाई बस इतना ही सुना वो फकीर देवराज जी से केह रहा था। फकीर बोला, "बेटा इस मणि में बहोत शक्ति है ये कुछ भी कर सकती है अगर ये किसी बुरे व्यक्तित्व के हाथ लग गई तो अनर्थ हो जायेगा और इस पुस्तक में इस मणि की शक्तियों को जागृत और नियंत्रित कैसे किया जाता है इसके विषय में लिखा है।" देवराज बोला, "बाबा जब ये खुद ही इतनी शक्तिशाली है तो इसे सुरक्षा की क्या आवश्यकता है ? " फकीर बोला, "कोई यंत्र कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो जब तक जागृत न रहे वो किसी की सुरक्षा नही कर सकता और ऐसे शक्तियों को हमेशा जागृत रख कर छोड़ने से प्रकृति को नुकसान पहुंच सकता है, और तुम ही एक मात्र ऐसे हो जो इस वक्त इसकी रक्षा कर सकते हो।" देवराज बोला, "संतो की आज्ञा सिर माथे, आप आशीर्वाद दीजिए की में इसकी रक्षा अपने प्राण दे भी कर पाऊं, लेकिन बाबा मुझे कब तक इसकी रक्षा करनी है।" फकीर बोला, "जब तक इसकी स्वामिनी आ कर ये तुमसे ना मांगे। वो आयेगी तो तुम्हे मेरे विषय में बताएगी मेरा पूरा परिचय देगी जो बहोत कम लोगों को पता है उसमे से एक तुम भी हो उसे दे देना समझे ईश्वर कल्याण करे।" ये कह कर फकीर वहा से चला जाता है और देवराज जी उस किताब और मणि को लेकर भीतर चले जाते है तीनो लड़कियां भी उनके पीछे पीछे जाने लगती है देवराज जी उस मणि और किताब को लेकर अपने पुस्तकालय में चले जाते है और दरवाजा बंद कर लेते है तभी वो तीनो खिड़की से कूद कर अंदर आ जाती है पुस्तकालय बहोत बड़ा और खूबसूरत था वो देखती है की देवराज जी एक तस्वीर को दीवाल से हटाते है और पीछे एक छेद था बस एक ईंट इतना बड़ा देवराज जी उसमे हाथ डाल कर ताला खोलते है तो पूरी दीवार खुल कर दो भागों में बंट जाती है, अब सामने कोई दीवार नही थी बल्कि एक बड़ा सा कमरा था देवराज जी अंदर चले जाते है। तारा आंखे बड़ी किए हुए बोली, "हे प्रभु ये दीवाल नही बल्कि एक कक्ष है।"  वैशाली उसका मूंह दबाते हुए बोली, "शू..शू... चुप अगर राजा सा को पता चला की हम तीनो यहां आए है उनके पीछे तो बहुत मार पड़ेगी चुप रह।"  चंद्रा बोली, "चलो वहा से देखते है, पिता जी उस पत्थर को और उस अजीब सी किताब को कहा रखते है।"  फिर वो तीनो थोड़ा आगे जा कर देखती है तो देवराज जी उस किताब और मणि को एक बक्से में बंद कर देते है और पलट कर बाहर आने लगते है देवराज जी को बाहर आता देख तीनो वही टेबल के नीचे छुप जाती है और देवराज जी बाहर चले जाते है तब वो तीनो भी वापस खिड़की से बाहर आ जाते है, अतीत के पन्नो से बाहर आ कर वो तीनो एक दूसरे का मूंह ताक रही थी उनके बीच सिर्फ खामोशी थी इस खामोशी को तोड़ते हुए, तारा कहती है, "हो न हो, उस किताब में ही उस मणि का रहस्य है पर ऐसा क्या है जो इतनी सुरक्षा दी जा रही है उस बाबा की आधी बात ही सुनी हमने, कैसी मणि है किसकी है ?कुछ भी नही पता हमे।" चंद्रा दृढ़ता से बोली, "इस मणि की पहेली को तो हम सहेली ही सुलझाएंगे।"  तीनों एक साथ अपना सर हां में हिलाती है और एक दूसरे के हाथ पर हाथ रख कर साथ होने का इशारा करती है। तारा बोली, "हम करेंगे क्या?" वैशाली आंखो में चमक लिए बोलती है, "मेरे पास एक रास्ता है।" क्या होगा इस कहानी में आगे ? क्या रास्ता है वैशाली के पास ? और क्या रहस्य है इस मणि का ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। ✍️ शालिनी चौधरी

  • 2. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 2

    Words: 2065

    Estimated Reading Time: 13 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! चंद्रा का कमरा , वैशाली की बात सुन दोनो उसका मूंह ताकने लगती है ,तभी चंद्रा कहती है ! चंद्रा "देखो विशु कुछ उल्टा तरीका है , तो उसे अपने पास ही रखो ,वैसे भी तुम्हारा दिमाग कुछ ज्यादा ही उल्टा चलता है ! " चंद्रा की बात पर तारा भी सहमति में अपना सर हिलाती है , जिसे देख कर वैशाली का तो मूंह ही बन जाता है , वैशाली थोड़ी देर तक उन दोनो का मूंह देखती है फिर एक दम से झल्ला कर कहती है । वैशाली (झल्लाते हुए) " बिना सुने ही तुम दोनो परिणाम पर पहुंच गई यही आदत मुझे बिल्कुल पसंद नही , अरे एक बार सुन तो लो पर नही इन्हे तो बिना सुने ही परिणाम घोषित करना है " उसके इतना गुस्से में भड़कने की वजह से एक पल को तो चंद्रा और तारा की हालत ही खराब हो गई , क्योंकि वैशाली का स्वभाव ऐसे चिल्लाने वाला नही था, उसे जल्दी गुस्सा नही आता था उसके इस तरह गुस्सा करने का मतलब था की जरूर उसके पास कोई अच्छी योजना थी तभी तारा उसे शांत करते हुए बोली । तारा " विष ऐ.. देख तू ऐसे गुस्सा ना हो हमारा मतलब ऐसा कुछ नही था जैसा तू सोच रही है " तारा और चंद्रा एक दूसरे का मूंह देख रही थी तभी चंद्रा बोली  चंद्रा ( प्यार से ) " विशु देख मेरा मतलब तुझे चोट पहुंचाने से नही था पर अगर फिर भी मेरी बातों का बुरा लगा हो तो हमे क्षमा कर दो " तारा " ये सब छोड़ और ये बता की तू क्या बता रही थी? कोनसा रास्ता है तेरे पास ? " तारा की बात पर चंद्रा भी अपना सर हां में हिलाती है वो दोनो बिल्कुल शांत और गंभीर बन कर बैठे थे, उन दोनों को ऐसे देख कर वैशाली अपना माथा पीट लेती है । वैशाली " तुम दोनो तो ऐसे बैठी हो जैसे हम अभी ही तुम दोनो को कोई सजा सुनाएंगे, अरे बात बड़ी साधारण सी है की हम सब पुस्तकालय जाए और उस किताब को पढ़े उस किताब में ही मणि की सारी जानकारी है और उस फकीर बाबा के अनुसार और भी कई  शक्तियों की जानकारी है " तारा " बोल तो सही रही हो पर पुस्तकालय जा कर उस गुप्त कमरे में जा कर उस किताब को पढ़ना कोई रसगुल्ला खाने इतना आसान काम नही है,समझी "  चंद्रा " एक बार  करके देखने में क्या जाता है अगर सफलता मिल गई तो काम बन जायेगा "  वैशाली " हां , तो तय रहा थोड़ी देर के बाद सब आराम करने जायेंगे तब हम लोग उस किताब को लेने जाएंगे , और अगर किसी ने देखा या कुछ पूछा तो कैह देंगे की हम सब बगीचा में जा रहे है "  उन के बीच सब तय हो चुका था ,बस इंतजार था तो सब कुछ शांत होने का , अभी वो सब बात कर ही रही थी की तारा की नजर खिड़की से बाहर पड़ती है, जहां एक लड़की हाथ में दूध का ग्लास पकड़े जरूरत से ज्यादा श्रृंगार किए कमरे के अंदर जा रही थी, उसे देख कर तारा का मूंह बन जाता है और वो उन दोनों को इशारा करते हुए उधर देखने को कहती है । तारा " चंद्रा ये मालती हमेशा वीरेंद्र भाई सा के आस पास ही प्रेतात्मा की तरह क्यों भटकती रहती है " वैशाली " सामान्य दिनों में इतना अधिक श्रृंगार कौन करता है ? इतने गहने इससे संभलते कैसे है ? " तारा " मुझे इसका चरित्र भी ठीक नही लग रहा , ऐसा लगता भी है की इसी वर्ष इसके माता पिता की मृत्यु हुई है " उनकी बात सुनकर चंद्र एकदम से बिस्तर से उतर जाती है और कमरे से बाहर जाने लगती है । चंद्रा " इन सारे किताबों को संदूक में रख दो कोई देख न ले "  ये कहती हुई  वो कमरे से बाहर निकल कर उसी कमरे की तरफ जाने लगती है जिसमें अभी अभी मालती गई थी।         चंद्रा प्रताप गढ़ के राजा देवराज सिंह की पहली संतान थीं और अपनी मां गायत्री सिंह की लाडली , इससे दो छोटे भाई थे वीरेंद्र और अमरेंद्र जिन्हे ये बहोत प्यार करती थी। दूसरी तरफ   वीरेंद्र का कमरा, वीरेंद्र बिस्तर के किनारे बैठा , अपने एक हाथ में एक पत्र पकड़े और दूसरे हाथ में दूध पकड़े हुए था , उसके ठीक सामने मालती बड़ी ही अदा से खड़ी थी उसने हरे रंग का घाघरा चोली पहन रखा था उसके चोली के आगे और पीछे दोनो तरफ का गला थोड़ा बड़ा था, उसने जान बूझ कर अपने पल्लू को ऐसे ही ढलका रखा था, जिससे उसका आकर्षक बदन ऐसे ही दिख रहा था और वो किसी बात पर हस रही थी वीरेंद्र भी हस रहा था, लेकिन उसकी नजर नीचे धरती को घूरे जा रही थी उसने एक बार भी मालती के तरफ नही देखा था , तभी चंद्रा कमरे में आती है , उन दोनो को ऐसे हसता देख उसका खून खौल उठता है वो दरवाजे के पास से ही बोलती है  चंद्रा " अरे मालती तुम यहां क्या कर रही हो ? " चंद्रा की आवाज सुनते ही मालती बड़ी ही चालाकी से अपने आगे के पल्लू को ठीक कर लेती है अब आगे से उसका बदन पूरी तरह ढका था और उसके लंबे बाल के खुले होने के कारण उसका पीठ भी ढका था , उसे देखने से ऐसा बिल्कुल भी नही लग रहा था की ये इतनी अभद्रता से खड़ी थी । मालती मुस्कुराते हुए पलटती है। मालती(मन ही मन कुढ़ते हुए)   " जीजी वो मैं कुंवर सा को दूध देने आई थी " चंद्रा (शांत लहजे में ) " दे दिया न तो अब जाओ , मुझे कुंवर सा से कुछ बात करनी है " मालती कमरे से बाहर आ जाती है, और दूसरी तरफ के खिड़की के पास खड़ी हो कर उनकी बात सुनने लगती है। मालती के जाने के बाद वीरेंद्र चंद्रा से कहता है। वीरेंद्र " जीजी आपको क्या बात करनी है ? " चंद्रा ( समझाने के अंदाज में ) " देखो वीर तुम अब बच्चे नही हो, एक पूर्णपुरुष हो और प्रताप गढ़ के भावी राजा, तो अपने व्यक्तित्व में गंभीरता को विकसित करो" वीरेंद्र सर झुकाए हुए ही चंद्रा से कहता है। वीरेंद्र " जीजी कुछ गलती हुई है क्या मुझसे ? " चंद्रा ( सर हां में हिलाते हुए ) " हां हुई है गलती तुमसे, देखो वीर तुम वर्तमान में कुंवर हो और भविष्य के राजा तो तुम्हे नही लगता की तुम्हारे कमरे में कोई भी ऐसे ही नही घुस सकता , कल को तुम्हारे पास बहोत सी गुप्त जानकारियां होंगी, तुम्हारी जिम्मेदारी बढ़ेगी न की कम होगी, अगर तुम गंभीर नही होगे तो कैसे चलेगा ? " वीरेंद्र " जी , जीजी आगे से ध्यान रखेंगे " वीरेंद्र को समझाने के क्रम में चंद्रा के आवाज में थोड़ा भारीपन आ गया था, वो हल्के हल्के गुस्से में आ गई थी, उसने अपने उसी तीखे अंदाज में ही अपनी बात आगे बढ़ाई। चंद्रा " और एक बात अपने अंतर आत्मा में बैठा लो की अपने परिवार के स्त्रियों के अलावा, किस भी पराई स्त्री के साथ इस तरह हस हस कर बात नही कर सकते तुम समझे, क्योंकि तुम्हारा ये व्यवहार तुम्हारे व्यक्तित्व और चरित्र दोनो पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है, (उंगली दिखाते हुए ) बात समझ में आई ? " वीरेंद्र " जी आगे से ध्यान रखूंगा "  चंद्रा मुस्कुराते हुए उसके हाथ से दूध ले कर चली जाती है, और बाहर आ कर पूरे भरे ग्लास के दूध को पास के ही गमले में उड़ेल देती है। चंद्रा को दूध फेंकते हुए मालती देख लेती है, उसका चेहरा एक दम से लाल हो जाता है, और वो गुस्से से कांपने लगती है।  दोपहर का समय    सिंह भवन, सभी खाना खा चुके थे और सबका का काम लगभग समाप्त हो चुका था, इक्का दुक्का ही कोई था जो जगा था क्योंकि यहां का नियम था की सारा काम खतम होने के बाद सारे नौकर दोपहर में आराम करेंगे सभी अपने कमरे में आराम कर रहे थे और देवराज सिंह अपने कमरे में बैठें कोई हिसाब किताब मिला रहे थे। वैशाली घूम घूम कर सब कुछ देख रही थी जब उसे विश्वास हो गया की सब चले गए तब वो दौड़ती हुई सीढ़ियों से ऊपर जाते हुए तारा के कमरे में घुस जाती है जहां तारा और चंद्रा पहले से ही बैठे थे । वैशाली ( हाँफते हुए ) " चलो सब गए रास्ता साफ है हम पुस्तकालय चलते है "  तीनो पुस्तकालय की तरफ चोरी चुपके जाने लगते है, क्यूंकि उस तरफ जाना मना था वो पुस्तकालय देवराज सिंह का निजी पुस्तकालय था, बांकी सबके लिए दूसरा पुस्तकालय बनवाया गया था , वो सब जा ही रहे थे की सामने से देवेंद्र जी आते हुए दिखाई देते है तीनो जल्दी से दीवार के पीछे छिप जाती है देवेंद्र जी उन्हें नही देखते और चले जाते है,फिर वो तीनो पुस्तकालय तक पहुंच जाते है और खिड़की से कूद कर अंदर घुस जाते है फिर बिना आवाज किए वो इस दीवार तक पहुंच कर उस तस्वीर को हटा देते है । तारा " चंद्रा जल्दी से दरवाजा खोलो अगर राजा सा ने हमे पाकर लिया तो हमारी हालत खराब कर देंगे " चंद्रा उस छेद में हाथ डाल कर ताला को घुमाती है तभी वो दीवार दो हिस्सो में बंट जाता है और वो तीनो अंदर चली जाती है अंदर जाने पर देखती है की वो कमरा बहुत बड़ा था वहां बहुत सारी किताबे रखी थी जो गुप्त ज्ञान का भंडार थी तभी उनकी नजर कमरे के एक कोने में जाता है उस कोने में एक लकड़ी के पट्टे पर एक संदूक रखा था, संदूक देखते ही तीनो पहचान लेती है की ये वही संदूक है जिसमे देवराज जी ने उस रहस्यमयी मणि और किताब  को रखा था, वैशाली दौड़ कर जाती है और उस संदूक को उठा कर लाने लगती है पर संदूक भारी था जिस वजह से वो संभाल नही पा रही थी। वैशाली " एक किताब और एक छोटा सा मणि रखा है इसमें  तो ये इतना भरी क्यों है ? "  तारा संदूक संभालते हुए । तारा " अरे वो सिर्फ मणि नही शक्तियों  का भंडार है भारी तो होगा ही " फिर वो दोनो उस संदूक को वही पास के मेज पर रख देती है और जैसे ही संदूक खोलने को होती है तो देखती है की उस संदूक पर ताला लगा है और उसे लाल धागे से बांध रखा है ताले के छेद में एक लोहे की कील ठूकी है ये देख कर चंद्रा अपना सर पकड़ लेती है। चंद्रा (मायूस होते हुए ) " इस संदूक को किलित कर रखा है पिता जी ने, इसे हम नही खोल सकते " तारा " अब क्या करे ? "  चंद्रा " अब क्या ? कुछ नही क्योंकि इसे सिर्फ उत्कीलन विधि के द्वारा ही खोला जा सकता है और हमे वो आता नही, अब हमारे लिए गुरु की आवश्यकता और अधिक हो गई है " वैशाली " इतनी मेहनत पानी में गई, अब पहले हमे यहां से निकलना चाहिए " फिर तीनो वहा से निकल कर छुपते छुपाते उसी तरह ही अपने कमरे में वापस आ जाती है। वहीं दूसरी तरफ, मालती अपने कमरे में इधर उधर चक्कर काट रही थी, क्योंकि जब से चंद्रा ने वीरेंद्र को डांट लगाई थी तब से मालती के कई कोशिशों के बाद भी वीरेंद्र ने उससे कोई बात नही की थी, इसी बात से वो गुस्से से उबल रही थी । मालती ( गुस्से से ) " इस चंद्रा को तो मैं देख लूंगी सारा हिसाब बराबर करूंगी,(फिर खुद को आईने में देखते हुए)  वीर जी आपको तो मैं पा कर रहूंगी आप सिर्फ मेरे है, इस चंद्रा की वजह से आप मुझसे बात नहीं कर रहे,   ( फिर गुस्से से दांत पीसते हुए ) चंद्रा मैं तुझे नही छोडूंगी तूने मेरे और मेरे वीर जी के बीच आ कर सही नही किया, मैं तुझे नही छोडूंगी बिल्कुल नही "  वो इस समय बिल्कुल पागल लग रही थी। क्या होगा इस कहानी में आगे ? क्या सुलझा पाएंगी ये तीनो दोस्त इस मणि का रहस्य ? और कौन है ये मालती और क्या करेगी वो ? सब जानने के लिए बने रहे  मोहिनी ( प्यास डायन की)। ✍️ शालिनी चौधरी मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं ! 

  • 3. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 3

    Words: 1346

    Estimated Reading Time: 9 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! तारा का कमरा  तीनों उदास हो कर बैठे थे।तीनो को देख कर ही समझा जा सकता था की वो सब कितनी उदास है। तारा( मायूसी से ) " इसे कहते है, निवाला मूंह तक तो आया पर पेट में नही गया, सारी मेहनत बरबाद हो गई " वैशाली " अब  क्या करे ? ऐसे तो नही बैठ सकते कुछ तो सोचो क्या करे " चंद्रा "अब करना क्या है, अब हमे पहले वो सारी चीजें सीखनी होगी जो उस मणि के रहस्य को खोलने में सहायक हो, इसके लिए पहले हमे एक गुरु की तलाश करनी पड़ेगी वही हमे सही निर्देश दे कर हमे हमारे लक्ष्यों तक पहुंचाएंगे " तारा " वो सब तो ठीक है पर पहले तुम राजा सा से बात करो और कहो की तुम अभी ब्याह नही करोगी,क्योंकि अगर एक बार ब्याह हो गया तो फिर तुम रिश्तों और मर्यादाओं में बंध जाओगी " वैशाली " हां, और फिर अब तक की सारी मेहनत खराब हो जायेगी हमने जितनी भी पढ़ाई की है इन साधनाओं के बारे में सब बर्बाद हो जाएगा " तारा कुछ सोचते हुए चंद्रा से पूछती है। तारा, चंद्रा से " चंद्रा एक बात बताओ तुमने हमे तिब्बती सीखने को क्यों कहा और साथ में ग्रीक और लैटिन जैसे पुरानी भाषाओं को भी ? जबकि इन सब में बस संस्कृत भाषा की आवश्यकता पड़ती है। " चंद्रा " वो मैने एक बार पिता जी को और हमारे कुल पुरोहित को बात करते सुना था "  वैशाली " क्या सुना था ? " चंद्रा  वैशाली का सवाल सुन कर अतीत के पन्नो में खोने लगती है, अतीत के समुंद्र में डूबते हुए उसे याद आता है की नवरात्री का समय था, सब ओर माता की पूजा अर्चना हो रही थी,  चारो तरफ मंगल वातावरण था , एक सोलह साल की लड़की हाथ में  एक बक्सा पकड़े जा रही थी उस बक्से में कई तरह की के गहने थे। वो एक कमरे के बाहर रुकती है, उस कमरे का दरवाजा बंद था वो लड़की धीरे से हल्का सा दरवाजा खोलती है तो देखती है की उसके पिता देवराज जी और उनके कुल पुरोहित खिड़की के पास खड़े हो कर कुछ बाते कर रहे थे, माहौल थोड़ा गंभीर लग रहा था ,वो लड़की खुद से ही कहती है  लड़की ( खुद से ) " चंद्रा कोई समस्या है जो पिता जी और पुरोहित जी इतने गंभीर है, कही कोई संकट तो नही आ गया, कैसे पता करे ? हां उस खिड़की ने पास खड़ी हो जाती हूं ताकि उनकी बात सुन सकूं " ऐसा कह कर वो खिड़की के पास जा कर छुप जाती है उसे अब उनकी बात सुनाई देने लगती है, उन्ही बातो को याद करके वो वैशाली से कहती है। चंद्रा " पिता जी ने पुरोहित जी से पूछा था की इन साधनाओं का अभ्यास करने के लिए और संसार की अदृश्य और रहस्यमई शक्तियों को समझने के लिए क्या करना चाहिए? ( तब पुरोहित जी ने कहा ) इन साधनाओं को सीखने और शक्तियों के विषय में जानकारी इक्कठा करने के लिए सबसे पहला कार्य तो ये करना होगा की संसार की सबसे पुरानी भाषाओं का गहन अध्यन किया जाए। इन भाषाओं में संस्कृत पहले सीखो फिर दूसरी भाषाओं को भी सीखो, जिनका जन्म भी संस्कृत के ही गर्भ से हुआ है। (फिर पिता जी ने पूछा की ) कौन कौन सी  दूसरी भाषा सीखे ? "  चंद्रा ने आगे कहा की पिता जी के प्रश्न पर पुरोहित जी ने कहा । पुरोहित " तिब्बती, ग्रीक और लैटिन जैसी पुरानी भाषाओं को सीखो " तब पिता जी ने दूसरा प्रश्न किया  देवराज जी " संस्कृत में तो सम्पूर्ण ज्ञान है तो फिर इन विदेशी भाषाओं की क्या आवश्यकता ? " पुरोहित जी " साधना आज का नही बल्कि बहुत पुराना अभ्यास है, लोग बहुत पहले से ही अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए साधना का अभ्यास करते थे, अधिकांश ज्ञान तो संस्कृत में ही है परंतु समय के साथ कुछ चीजों को इन भाषाओं में लिखा गया और समय के साथ संस्कृत की वो प्रतियां नष्ट हो गई, और इन भाषाओं  में और भी  साधना की नई पद्धतियां मिलेंगी जिससे तुम्हे और भी ज्ञान होगा इन शक्तियों के विषय में।" वर्तमान समय  चंद्रा की बातों को वो सभी बड़ी गंभीरता से सुन रही थी । चंद्रा " इसीलिए मैंने पहले से ही सभी भाषाओं का अध्यन शुरू कर दिया ताकि हमे चीजों को सीखने में ज्यादा दिक्कत न आए " वैशाली " ओह तो ये बात है "  दूसरे तरफ  महल के पिछले दरवाजे से एक साया पूरी तरह से काले कपड़ों में लिपटा हुआ छुपते छुपाते बाहर की तरफ जा रहा था वो महल से निकल कर चौराहे को पार कर प्रताप गढ़ की सीमा के बाहर विस्तृत क्षेत्र में फैले गहन जंगलों के साम्राज्य में कही गुम हो जाता है। रात का समय  सब लोग खाना खाने के लिए इक्कठा हुए थे,  चंद्रा देवराज जी से बड़े ही बेखौफ अंदाज में पूछती है। चंद्रा " पिता जी, वैशाली बता रही थी की आप माधव गढ़ गए थे हमारा रिश्ता तय करने,(तल्खी अंदाज में)क्या मैं पूछ सकती हूं, क्यों ? मेरा ब्याह और मुझ ही से नही पूछा गया ऐसा आखिर क्यों ? " चंद्रा का अंदाज देखते ही सब सन्न रह जाते है, सबका डर से हालत खराब हो जाता है, क्योंकि देवराज जी से इस अंदाज में कोई बात नही कर  सकता था, जहां सब डरे थे वही देवेंद्र जी मुस्कुरा रहे थे, वो चंद्रा के निडर स्वभाव को पहले से ही जानते थे, और उन्हें अंदाजा भी था की जब चंद्रा को इस विषय में पता चलेगा तो कुछ ऐसा ही होगा।यहां अगर कोई सबसे ज्यादा डरा हुआ था तो वो मदन जी थे, उन्हें अपनी बेटी के लिए डर लग रहा था । वैशाली और तारा के तो गले में ही निवाला अटक गया था । देवराज जी मुस्कुराने लगते है। देवराज जी ( मुस्कुराते हुए ) " तो वैशाली बिटिया से रहा नही गया, (थोड़ा रुक कर ) मेरी लाडो ब्याह तो सबको करना पड़ता है "  चंद्रा " पर हम अभी तैयार नही है, हमे अभी ब्याह नही करना है पिता जी "  गायत्री जी कुछ बोलने को होती है, पर देवराज जी उन्हें आंखों से शांत रहने का इशारा करते है तो वो चुप ही रह जाती है। देवराज जी " ठीक है, जब आप तीनो की इच्छा होगी तभी आप सब का ब्याह होगा। अब खुश, तो जरा मुस्कुराए आप सब " देवराज जी के बात पर तीनो मुस्कुरा देती है। वैशाली और तारा चंद्रा की सहेली थी, वैशाली मदन जी की बेटी थी जो यहां काम करते थे और तारा देवेंद्र जी की बेटी थी।पर ये दोनो ही सिंह भवन में चंद्रा के साथ रहती थी क्योंकि ये देवराज जी का आदेश था।देवराज जी इन्हे भी अपनी बेटी की तरह ही प्यार करते, और इनके जरूरतों का ख्याल रखते ये तीनो गायत्री जी की सबसे कीमती चीज थी वो भी इनसे बहुत प्यार करती थी। दूसरी तरफ जंगल में वही साया एक पेड़ के झुरमुट में किसी पूजा की तैयारी कर रही थी उसने अपने ऊपर से काले चादर को हटा दिया था लेकिन उसका चेहरा अभी भी ढका था । वो एक लड़की थी । तभी दो हट्टे कट्टे मर्द वहां आते है और उस लड़की के सामने सर झुका कर खड़े हो जाते है । लड़की " आज रात में यहां हवन करूंगी माता काली को आज बलि दूंगी इसलिए तुम सब मेरे आने से पहले पूजा की तैयारी करके रखो और बलि भी तैयार रखना, अगर एक भी चूक हुई तो तुम्हारी बलि चढ़ा दूंगी, समझे, अब मैं जाती हूं नहीं तो महल में किसी को संदेह हो जायेगा "  फिर वो अपने काले चादर से खुद को ढंक कर महल वापस आ जाती है। तो क्या होगा इस कहानी में आगे ? कौन है ये लड़की और कैसी पूजा की उसने ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। ✍️ शालिनी चौधरी मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं ! 

  • 4. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 4

    Words: 1484

    Estimated Reading Time: 9 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! चंद्रा का कमरा, चंद्रा, वैशाली, और तारा तीनो फर्श पर ही बैठे थे।और उनके सामने तीन चार किताबे रखी थी, तीनो उसे पढ़ने में लगी हुई थी। वातावरण बिल्कुल शांत था, कमरे की घड़ी दस बजा रही थी, घड़ी से सुईयों के चलने की आवाज साफ तौर पर सुनाई पर रही थी, तीनो ही अपने पुस्तकों में गुम किसी और ही दुनिया की सैर कर रही थी, एक ऐसी दुनिया जहां शक्तियों और साधनाओं का जहान है, जहां भक्ति और परिश्रम की बात थी,जहां सांसारिक द्वेष के परे आध्यात्मिकता की बात थी, अभी तीनो गुम ही थी की तभी दरवाजा खट खटाने की आवाज आती है। " ठक ठक, ठक ठक......" आवाज सुन तीनो हड़बड़ा जाती है। चंद्रा ( किताबों को समेटते हुए ) " तारा जा जाकर दरवाजा खोल, देख तो कौन है ? "  वैशाली " पहले किताब छिपाओ, अगर इस तरह  की किताब किसी ने देख ली हमारे पास तो कहर बरपेगा " तारा " शायद रानी सा हो " तभी फिर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है। ठक ठक, ठक ठक... तीनों मिलकर सारी किताबो को संदूक में बंद कर देते है, तारा दौड़ कर दरवाजा खोल देती है, दरवाजे पर गायत्री जी हाथ में एक थाल पकड़े हुए थी, जिसमे चार रसगुल्लों से भरी कटोरियां थी। तारा " अरे रानी सा आप कुछ काम था ? "  गायत्री जी ( अंदर आते हुए ) "कुछ काम तो नही था, मैं यहां से गुजर रही थी तो बत्ती जलती देखी तो बस समझ गई की मेरी गुड़िया रानी सब सोई नही है,तभी मुझे याद आया की मैने आज ही महा लक्ष्मी मिष्ठान भंडार से मिठाइयां मंगाई थी सोचा खा भी लेंगे और ढेर सारी बातें भी कर लेंगे " वैशाली (खुश होते हुए ) " अरे वाह रानी सा आप बोहोत अच्छी है " फिर सब मिठाई खाते खाते बाते करने लगते है, उधर मालती दुबारा से वीरेंद्र से बात करने की कोशिश करती है पर कोई फायदा नही होता, वीरेंद्र उसकी तरफ ध्यान तक नही देता, जिस वजह से उसका गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। मालती ( दांत पीसते हुए ) " चंद्रा ये तूने बहुत गलत किया तुझे मैं नही छोडूंगी, बिल्कुल नही "  वो इस वक्त पागल लग रही थी। वहीं चंद्रा के कमरे में सब अभी भी बाते कर रहे थे हस रहे थे वहा का माहौल बिल्कुल खुशनुमा था। तभी गायत्री जी की नजर घड़ी पर जाती है। गायत्री जी " अरे बच्चियों देखो ग्यारह बज गए सो जाओ अब सब हम्म..,मैं भी जाती हूं सोने, सब हां में सर हिला देते है ।"  गायत्री जी चली जाती है गायत्री जी के जाने के बाद भी वो तीनो थोरी देर तक बात करती है मस्ती करती है । तारा " कितने समय के बाद हम सब ने इतनी बाते की न, वरना हमेशा ज्ञान की ही बाते होती है।"  वैशाली " पता है ये सारी चीजे न  स्मृतियां बन जाती है, फिर जिंदगी के किसी मोड़ पर हमें याद आती है और एक मुस्कुराहट दे जाती है, दुख में भी मुस्कुराने की वजह बन जाती है "  चंद्रा " हां बिल्कुल सही कहा, पता है मुझे ऐसा लग रहा है जैसे ये मेरी आखिरी स्मृति हो "  उसकी इस बात पर तारा भड़क जाती है।  तारा ( गुस्से से ) " ये कैसी बाते कर रही हो, समझ है इन बातों का क्या मतलब निकल सकता है, ऐसा कह कर तुम हमे चोट पहुंचा रही हो चंद्रा "  वैशाली " हां, तारा बिल्कुल सही कह रही है, तुम्हे ऐसा नही कहना चाहिए था " चंद्रा " अच्छा ठीक है नही बोलती अब क्षमा कर दो हो गई गलती, तुम सब भी क्या लेकर बैठ गई चलो सोने जाओ बहुत रात हो गई है "  चंद्रा की बात पर दोनो मुस्कुराते हुए चली जाती है चंद्रा भी अपने कमरे का दरवाजा बंद करके खिड़की के पास खड़ी हो कर खुद से ही कहती है। चंद्रा ( खुद से ) " मैने तो वही कहा जो मुझे लगा, आज बहुत बैचेनी हो रही है, ऐसा लग रहा है जैसे आज की रात मेरे जीवन का आखिरी हो, जैसे कुछ गलत होने वाला हो "  वो सोने की कोशिश करती है पर नींद नही आ रही थी जिस वजह से वो फिर से संदूक खोल उसमे से एक किताब निकाल कर पढ़ने लगती है । चंद्रा ( किताब पढ़ते हुए ) " साधना का अर्थ है लक्ष्य प्राप्ति के लिए किया जाने वाला कार्य, साधना एक आध्यात्मिक क्रिया है, इस दृष्टिकोण से पूजा, योग, ध्यान, जप, उपवास, तपस्या के करने को साधना कहते है! साधना शब्द मूलतः संस्कृत के साधु शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है, सीधा लक्ष्य पर जाना। अभी वो पढ़ ही रही थी की उसे लगा जैसे कोई बाहर चहल कदमी कर रहा है, वो दरवाजा खोल कर बाहर देखती है पर उसे कोई नजर नही आता तो वो फिर से कमरे के भीतर चली जाती है, और फिर से किताब पढ़ने लगती है। चंद्रा " साधना मुख्य रूप से चार प्रकार के होते है ! पहला, तंत्र साधना ,दूसरा, मंत्र साधना , तीसरा, यंत्र साधना और चौथा, योग साधना । तंत्र साधना का अर्थ तन से होता ..... अभी वो पढ़ ही रही थी की बाहर से इस बार कुछ गिरने की आवाज आती है। आवाज सुनते ही चंद्रा कमरे से बाहर आती है तो देखती है की एक गमला गिरा हुआ है,जो टूट चुका था, उसके ठीक बगल वाले कमरे से तारा बाहर आती है। वो चंद्रा को देख कर इशारे से पूछती है की क्या हुआ ? पर चंद्रा कहीं और देख रही होती है तो तारा उसके नजदीक जा कर पूछती है। तारा " चंद्रा कैसी आवाज थी ? "  चंद्रा " शू शू... चुप वो देख कोई नीचे जा रहा है " दोनो की नजर सीढ़ियों पर थी कोई ऊपर से नीचे तक काले कपड़ों में लिपटा नीचे उतर रहा था चंद्रा भी उसका पीछा करने लगती है और तारा वापस कमरे में चली जाती है। चंद्रा देखती है की वो इंसान पीछे के दरवाजे के तरफ जा रहा है जिसे देख वो खुद से कहती है। चंद्रा (खुद से ) " ये है कौन ?  और इसे महल के बारे में इतनी जानकारी कैसे है ? हो न हो ये यही का है। तभी तारा हांफते हुए चंद्रा के पास पहुंचती है उसके हाथो में दो कटारे थी। तारा " बिना हथियार के जाना ठीक नही होगा, न जाने कौन हो और क्या उद्देश्य हो इसका ? "  चंद्रा हां में सर हिलाती है और उसके हाथों से कटार ले कर अपने कमर पर बांध लेती है तारा भी अपनी कटार को अपने कमर से बांध लेती है। तभी वो देखते है की वो साया पीछे के रास्ते से महल से बाहर निकल आता है, चंद्रा और तारा भी उसके पीछे पीछे महल के बाहर आ जाते है, वो साया सीधा चौराहे के तरफ जाने लगता है अब उसकी चाल बहुत तेज थी ऐसा लग रहा था जैसे वो चल नही दौड़ रहा हो, वो दोनो भी उसका पीछा करते करते महल से बहुत दूर आ गई थी, जिसका अंदाजा उन्हे भी नही था। तारा " चंद्रा ये हमे कोई जासूस लग रहा है, ये कोई गुप्त जानकारी प्राप्त कर अब किसी को बताने जा रहा होगा" चंद्रा ( गुस्से में ) " अगर तुम्हारी बात सही हुई ना, तो देखना इसे हम अपने हाथों से मारेंगे "  तभी वो देखती है की उस साए ने अपने ऊपर से वो काला चादर हटा लिया है जिससे उसके लंबे बाल अब उसकी कमर तक लहरा रहे है वो एक लड़की थी जिसे देख कर चंद्रा और तारा स्तब्ध रह जाती है वो उसे ध्यान से देखने की कोशिश करती है पर अंधेरा होने की वजह से कुछ साफ नही दिखाई पड़ रहा था और ऊपर से उस लड़की ने अभी भी अपने चेहरे को ढंक रखा था।  तारा " चंद्रा ये तो लड़की है, क्या ये जासूस हो सकती है?"  चंद्रा " क्यों नही हो सकती ? भूलो मत एक लड़की कुछ भी हो सकती है, वो सोच से परे भी हो सकती है। पर मुझे नही लगता की ये हमारी गुप्त जानकारी  किसी को देने आई है। तारा " क्यों तुम्हे ऐसा क्यों नही लगता है ? सब कुछ तो सामने है ! "  चंद्रा " हां, सब सामने है और वो भी जो उसके हाथ में है ! "  ये कह कर वो उसके बाएं हाथ के तरफ इशारा करती है, जिसे देख कर तारा की आंखे हैरानी और डर से बड़ी हो जाती है। आगे क्या होगा इस कहानी में ? क्या है उस लड़की के हाथ में ? चंद्रा और तारा का उसके पीछे जाने से क्या होगा अंजाम ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। ✍️ शालिनी चौधरी मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं ! 

  • 5. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 5

    Words: 1526

    Estimated Reading Time: 10 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! सुनसान से सड़क पर, तारा उसके हाथ में रखी किताब को देख कर हैरान रह जाती है।तभी उसकी नजर उस लड़की के कमर से लटक रहे एक कटार पे जाती है । तारा " चंद्रा मुझे ये ठीक नही लग रही, ये जरूर कोई तंत्र, मंत्र करने जा रही है वरना ऐसे किताब कोई क्यों रखेगा ! "  चंद्रा " कुछ भी हो हमे देखना तो पड़ेगा ना ! "  वो लोग बात करते हुए ही उसका पीछा भी कर रही थी, और कब वो लोग जंगल में पहुंच गई उन्हे भी पता नही चला, वो घने जंगल में प्रवेश कर चुकी थी, चारो तरफ बड़े बड़े पेड़ थे, रात के अंधकार का चादर लपेटे वो जंगल भी काफी डरावना लग रहा था, अब जंगली जानवर की आवाजे भी आने लगी थी, लेकिन वो लड़की बिना डरे और भी अंदर जा रही थी। उस जंगल को देख कर तारा के तो होश ही उड़ गए, डर तो चंद्रा को भी लग रहा था, पर वो डर के भाव को चेहरे पर आने नही दे रही थी, क्योंकि उसे पता था अगर वो डरेगी तो तारा और भी ज्यादा डरेगी इसलिए वो शांत थी। तारा ( डरते हुए ) " चंद्रा ये तो हम प्रताप गढ़ के सीमा पर आ गए , हम महल से काफी दूर आ गए है, ये जंगल तो हमारे सीमा में है पर जंगल के बाद हमारा क्षेत्र खतम हो जायेगा ! "  चंद्रा " यही तो मैं देखना चाहती हू की ये कौन है जो महल से यहां आई है क्या ये हमारे क्षेत्र को पार करती है या इसी जंगल में कुछ करेगी ! "  तारा " वो सब तो ठीक है, पर हमे ऐसे अकेले नहीं जाना चाहिए, अगर ये जासूस है तो ये राज्य का मामला है इसे राजा सा को बताना चाहिए हम सबको लेकर आते है चलो वापस चले "  तारा डरते हुए कहती है जिसे सुन कर चंद्रा का तो दिमाग ही खराब हो जाता है, उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर वो शांत हो कर तारा से कहती है। चंद्रा ( समझाते हुए ) " तारा मैं जानती हूं कि तुम्हे डर लग रहा है, पर बात को समझो अगर वापस जायेंगे पिता जी को बुलाने और तब तक ये हाथ से निकल गई तो,हम इसे ऐसे ही नही जाने दे सकते , क्योंकि ये हमारे राज्य, हमारे प्रताप गढ़ का मामला है, हम संकट नही ले सकते है " तारा " हां ये भी है ये हमारे राज्य का मामला है,पर चंद्रा मेरा मन बहुत घबरा रहा है ऐसा लग रहा है जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है ! "  चंद्रा " पर हम इसे ऐसे ही नही छोड़ सकते "  चंद्रा और तारा अभी भी उसके पीछे ही थे, वो जंगल के और भी गहराई में जा रही थी, अब तो सामने कुछ देख पाना भी   मुश्किल हो रहा था,तभी वो देखते है की वो लड़की एक पेड़ के झुरमुटों को चीरते हुए आगे बढ़ जाती है।तारा और चंद्रा अपनी कटार निकल कर उन झुरमूटों को काटने लगते है चंद्रा की नजर अभी उस लड़की को ही ढूंढ रही थी जो इस वक्त उनके नजरों से ओझल हो गई थी, झुरमुटों को काटने के क्रम में ही तारा का हाथ एक लता में उलझ जाता है और उसकी कटार नीचे गिर जाती है। तारा वहीं अपनी कटार को ढूंढने लगती है। तारा ( कटार ढूंढते हुए ) " अरे कहां गई ? तू ऐसे बीच सफर में मेरा साथ नही छोड़ सकती, अरे तेरी जरूरत है अभी कहा गई ? मिल जा री मिल जा "  तारा खुद में ही बड़बड़ाते हुए कटार ढूंढने में लगी थी, पर अंधेरा ज्यादा होने के वजह से वो नही मिल रही थी इधर चंद्रा ने उस लड़की को खो दिया था जिस वजह से उसे गुस्सा आ रहा था और ऊपर से तारा वहा से चलने का नाम नही ले रही थी। चंद्रा ( गुस्से से ) " तारा चलो जल्दी क्या कर रही हो, हमने उसे खो दिया है, उसे जल्द ढूंढना होगा ! "  तारा ( रुआंसी आवाज में ) " अरे मेरी रक्त पिपासिनी नही मिल रही है ! "  चंद्रा " कौन नही मिल रही है ? "  तारा ( चिढ़ते हुए ) " मेरी कटार नही मिल रही है मैने अपनी कटार का नाम रक्त पिपासिनी रखा है ! " तारा की बात सुन कर चंद्रा का तो दिमाग पूरी तरह से खराब हो जाता है।वो मुंह बनाते हुए खुद से कहती है " रक्त पिपासिनी " फिर तारा से कहती है। चंद्रा  " एक काम करो तुम यहां बैठ कर तब तक अपनी रक्त पिपासिनी को खोजो, मैं तब तक उस लड़की को ढूंढती हूं "  इतना कह कर चंद्रा तारा को वही छोड़ आगे निकल जाती है, तारा फिर से खुद में ही बड़बड़ाते हुए। तारा " अरे मिल जा, चंद्रा अकेले ही चली गई अगर राजा सा को पता चला तो बहुत डांट पड़ेगी," नीचे जमीन पर हाथ फेर कर वो कटार ढूंढने में लगी थी। तारा " जब ढूंढो न तुझे रक्त पिपासिनी तब तू मिलती नही और जब न ढूंढो तो सामने में लटकती रहती है।" तारा के लाख ढूंढने पर भी जब उसे कटार नही मिलती तो वो हार कर चंद्रा के पीछे जाती है तो देखती है की चंद्रा एक पेड़ के पीछे छिपी है और सामने की तरफ हैरानी से देखे जा रही है तारा भी उसके पास पहुंचती है तो देखती है की सामने एक पेड़ के झुरमुटों के बीच वही लड़की बैठी कोई हवन कर रही है। वहां की भावभंगिमा देखकर ही डर लग रहा था। वो देखती है की वो लड़की वहां पर बैठी थी उसके ठीक सामने यज्ञ वेदी बना था जिसमे इस वक्त आग जल रही थी, उस यज्ञ वेदी के आस पास कई सारी नर मुंड रखे थे, और वो कोई मंत्र को का जाप कर रही थी।तभी वो देखती है की उस लड़की ने अपने हथेली को हल्का सा काट लिया जिससे खून टपकने लगता है, वो उस खून को यज्ञ कुंड में डाल देती है और फिर से किसी मंत्र का जाप करने लगती है तभी यज्ञ की अग्नि से एक चमकता हुआ खंजर निकलता है जिसे देख चंद्रा और तारा हैरान हो जाती है। चंद्रा  " ये कौन है ? जो हमारे ही महल में रहती और इस तरह की तंत्र साधना करती है और किसी को आज तक कुछ पता भी नही चला "  तारा " चंद्रा ये इस खंजर का क्या करेगी ? "  चंद्रा कुछ कहती उसे पहले ही वो लड़की दो बार ताली बजाती है तभी वहां पर दो हट्टे कट्टे मर्द एक बड़ी सी बकरी को पकड़े ले कर आते है और उस लड़की के आगे सर झुका कर खड़े हो जाते है, इधर चंद्रा और तारा का डर से बुरा हाल था वो पसीने से भीग चुकी थी, तभी वो लड़की उठती है और उस खंजर को लेकर उस बकरी के तरफ जाने लगती है , तारा " चंद्रा क्या ये इसे मार देगी ? "  अभी उसका सवाल खतम भी नही हुआ था की, दोनो देखती है की उस लड़की ने उस बकरी के पीठ पर खंजर घोप देती है, बकरी दर्द से तड़पने लगती है और वो उसके कलेजे को निकाल लेती है इस दर्दनाक दृश्य को देख तारा चीखने ही वाली थी की चंद्रा उसका मुंह दबा देती है, तभी वो लड़की उस बकरी के कलेजे को निकाल कर यज्ञ के अग्नि में डाल कर कहती है। लड़की ( हाथ जोड़ते हुए ) " हे शैतान मेरी बलि स्वीकार कर और मुझे और अधिक शक्तियां दे ! " इतना कह कर वो पलटती है और उस खून को अपने पूरे शरीर पर लगाने लगती है इस भयानक दृश्य को देख कर तारा एक दम से चिल्ला पड़ती है। उसके चिल्लाने से उस लड़की की नजर उन दोनो पर पड़ती है तभी वो उठती है और अपने हाथ में कटार पकड़े उनके तरफ आने लगती है उस लड़की के आदमी भी इनके तरफ बढ़ने लगते है  अपने आदमियों को उनके पीछे देख वो वही रुक जाती है,चंद्रा और तारा एक दूसरे को इशारे से भागने को कहते है, वो जैसे ही भागने को होते है तभी वो दोनो आदमी इन्हे पकड़ लेते है चंद्रा और तारा उनसे काफी देर तक लड़ती है फिर चंद्रा अपनी कटार निकाल कर उस आदमी का गला काट देती है वो जैसे ही मुड़ती है तो देखती है की तारा अभी उस आदमी से उलझी है तो वो उसके पीछे से जा कर उसका भी गला काट देती है अपने आदमियों मरा देख कर वो लड़की गुस्से से उनके पीछे आने लगती है चंद्रा और तारा भागने लगते है पर वो रास्ता भूल जाने के वजह से जंगल के और भीतर चले जाते है । तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? कौन है ये लड़की क्या मकसद है इस यज्ञ का ? और क्या चंद्रा और तारा निकल पाएंगी इस मुसीबत से बाहर ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। ✍️ शालिनी चौधरी मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं ! 

  • 6. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 6

    Words: 1735

    Estimated Reading Time: 11 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! जंगल में, रात के अंधेरे में चंद्रा और तारा भागे जा रही थी पर अंधेरे की वजह से और कुछ रास्ता भूल जाने के वजह से वो दोनो जंगल के भीतर ही जा रही थी, उन दोनो को जंगल के गहराइयों में जाता देख उस साए की आंखे मुस्कुरा उठती है, और वो भी उनके पीछे जाने लगती है। इधर चंद्रा और तारा उन जंगलों में खोई जा रही थी, वो लोग आगे और वो लड़की पीछे पीछे थी, जब बहुत देर भागने के बाद भी उन्हें बाहर निकलने का रास्ता नजर नही आ रहा था।वो दोनो बुरे तरीके से हांफ रही थी, तभी तारा हाफतें हुए वही बैठ जाती है। तारा " चंद्रा अब मुझसे भागा नही जायेगा मैं अब और नही भाग सकती, बहुत ज्यादा थक गई और अब तो पैर भी नही उठाए जा रहे ! " चंद्रा " तारा ये बैठने का समय नही है एक बार बस जंगल से बाहर निकल जायेंगे तो हम उस लड़की का सामना कर सकते है क्योंकि हम इस जंगल के बारे में कुछ भी पता नही है,और वो लड़की इस जंगल के चप्पे चप्पे से वाकिफ है इसलिए अगर यहां हम उससे लड़े भी तो युद्ध उसके पक्ष में ही होगा ! " फिर तारा को उठाते हुए " इसलिए बैठो मत भागों और यहां से निकलने का रास्ता खोजो," जैसे ही तारा उठती है तो दोनो देखते है की वो लड़की सामने से ही आ रही थी,उसके लंबे बाल हवा में नागिन की तरह लहरा रहे थे उसके आंखों में इस वक्त नफरत की आग लपटों का रूप ले रही थी , उसके बाएं हाथ में वही खंजर था जिससे उसने उस बकरी को मारा था जो इस वक्त पूरी तरह से खून में सनी हुई थी , वो लड़की साक्षात मृत्यु का रूप लग रही थी।उसे इस तरह से अपने सामने से आता देख चंद्रा और तारा काफी डर जाती है,तभी तारा चंद्रा के हाथ पकड़ कर धीरे से उसे पीछे भागने का इशारा करती है तारा का इशारा समझ कर दोनो फिर से पीछे की तरफ अपने कदम बढ़ाने लगती है, तब तक वो लड़की एक दम पास आ गई थी,उसने जैसे ही चंद्रा का हाथ पकड़ना चाहा अचानक से तारा ने उसे कस कर धक्का दे दिया जिस वजह से वो वही पर गिर जाती है। तारा " चंद्रा भागो .... " इतना कह कर वो चंद्रा का हाथ पकड़ कर वापस उसी रास्ते पर भागने लगती है जिस रास्ते से वो यहां तक आई थी इधर तारा के धक्का देने के वजह से वो लड़की गिर जाती है उसके हाथ में चोटे भी आ जाती है जिसे देख कर उसका गुस्सा सातों आसमान के पार चला जाता है, वो अपने चोटों को घूर कर देखती है की तभी उसकी चोटें भरने लगती है, और बस कुछ ही क्षणों में पूरे तरीके से भर जाती है, जैसे उसे कभी वो चोट लगी ही न हो,वो लड़की गुस्से में उठती है वापस से खंजर को पकड़ते हुए गुस्से से चिल्लाती है। लड़की ( चिल्लाते हुए ) " आह......... छोडूंगी नही मैं तुम दोनों को नही छोडूंगी, ( अपने खंजर पर हाथ फेरते हुए )  अभी तो इसकी प्यास भी नही बुझी है तुम दोनो को देख कर तो मेरे और मेरे खंजर दोनो की प्यास बढ़ गई है। ( फिर एक बार गुस्से से चीखती हुए ) आह...... " उसकी चीख पूरे जंगल में गूंज उठती है चंद्रा और तारा उसकी चीख को सुन कर अपने कान बंद कर लेती है, उसकी चीख अभी पूरे जंगल में गूंज रही थी पेड़ पर जो पक्षी इस वक्त आराम से नींद के आगोश में थे इस चीख की वजह से अपने अपने घर को छोड़ आकाश में उड़ जाते है। उन चीख के शांत होते ही पूरा जंगल खामोश हो जाता है यहां तक कि जंगलों में रात को बोलने वाले झींगुरों ने भी खामोशी की चादर ओढ़ ली थी चारों तरफ सन्नाटा था इस सन्नाटे में बस  चंद्रा और तारा के सांसों और धड़कनों की अवाज ही सुनाई पर रही थी, तभी पीछे से कदमों की आहट सुनाई देने लगती है, उस आहट को सुन चंद्रा और तारा वापस से भागने लगते है। वो दोनो भागते भागते जंगल वापस उसी जगह पहुंच गईं थीं जहां वो लड़की तंत्र पूजन कर रही थी, उस जगह को देख कर तारा बहुत खुश होती है, और खुशी से चंद्रा से कहती है। तारा ( खुश होते हुए ) " चंद्रा ये देखो ये तो वही जगह है। अगर हम इस रास्ते से जाए तो हम इस जंगल से बाहर हो जायेंगे "  चंद्रा ( हां में सर हिलाते हुए ) " हां, तारा तुम सही कह रही हो चलो जल्दी "  वो दोनो उस रास्ते पर फिर से भागने लगती है, लगातार भागने के वजह से उनकी हालत खराब हो चुकी थी और वो काफी थक चुकी थी उनके शरीर की सारी शक्तियां खतम हो चुकी थी, उन्हे कई जगह चोटे भी आई थी और उनका पैर काफी ज्यादा सूज गया था उनमें कांटे भी चुभे थे जिनसे खून रीस रहा था, लेकिन फिर भी वो दोनो भागे जा रही थी। अब वो दोनो जंगल के छोड़ पर पहुंच चुकी थी वो दोनो काफी खुश हो जाती है उनके सामने महल जाने का रास्ता था, तारा खुशी से चंद्रा का हाथ पकड़ कर कहती है । तारा ( चंद्रा का हाथ पकड़ते हुए ) " चंद्रा वो रहा महल जाने का रास्ता अब हम महल जा सकते है और इस मुसीबत से पीछा छुड़ा सकते है।"  वो दोनो जाने के लिए जैसे ही आगे बढ़ती है, वो लड़की उनके एक दम सामने आ कर खड़ी हो जाती है, उसकी आंखे गुस्से से लाल थी और वो बहोत ज्यादा खतरनाक लग रही थी। लड़की ( गुस्से से ) " इतनी भी क्या जल्दी है, जरा मुझसे तो मिल लो ! "  इतना कह कर वो जोर जोर से हंसने लगती है । " हा हा .... हा... हा  हा ...... " उसके इस तरह हंसने के वजह से तारा को बोहोत ज्यादा डर लगने लगता है, तभी वो लड़की अपने हाथ में पकड़े उस नंगे, खून से सने खंजर को लेकर चंद्रा के तरफ बढ़ने लगती है वो जैसे ही अपने खंजर से चंद्रा को मारने वाली होती है की तभी तारा उसका हाथ पकड़ कर झटक देती है, तारा के इस तरह झटकने से उसके हाथ का खंजर वही पर गिर जाता है वो गुस्से से तारा के तरफ देखती है और वो तारा को मारने के मंशा से उसके तरफ बढ़ने लगती है तभी पीछे से चंद्रा अपनी कटार से उसके हाथ पर वार करती है , उस लड़की के हाथ पर एक गहरी चोट बन जाती है और उससे खून निकलने लगता है पर तभी वो चोट अपने आप भरने लगती है जिसे देख चंद्रा हैरान हो जाती है वो लड़की चंद्रा के तरफ पलटती है और उसको जैसे ही मारने को होती है , चंद्रा एक बार फिर अपनी कटार से  उसको मारने की कोशिश करती है तभी वो लड़की अचानक से हल्का पीछे हो कर चंद्रा की कटार उससे छीन कर उसे तोड़ देती है, अपनी कटार को टूटा हुआ देख चंद्रा काफी घबरा जाती है वो लड़की जैसे ही चंद्रा के तरफ बढ़ती है , तभी बीच में तारा आ जाती है वो उस लड़की का रास्ता रोक कर खड़ी थी जिस वजह से उसका गुस्सा बढ़ रहा था। तारा " चंद्रा तुम जाओ यहां से, मैं इसे रोकती हूं तब तक तुम राजा सा और बांकि सबको सूचना पहुंचा दो " चंद्रा " नही मैं तुम्हे यहां अकेले छोड़ कर कहीं नहीं जा रही हूं।"  तारा उससे लड़ते हुए बोलती है। तारा " मूर्खता मत करो जाओ यहां से "  वो लड़की तारा पर हावी होने लगती है, चंद्रा भी उससे लडने  लगती है पर तभी तारा को धक्का लग जाता है और वो गिर जाती है उसका सर एक पत्थर से टकरा जाता है और वो बेहोश हो जाती है, तारा को बेहोश देख कर चंद्रा उसके पास आ कर बैठ जाती है और वो उसे उठाने लगती है। चंद्रा ( रोते हुए ) " तारा उठो, उठो न तारा .. क्या हो गया तुम्हे ? तारा ... ? "  अभी वो बोल ही रही थी की तभी उसके आंखों से आसूं आने लगते है उसकी सांसे अटकने लगती है वो अपना सिर नीचे करके देखती है तो उसके पेट में खंजर घुपा था, वो सिर उठा कर देखती है तो वो लड़की उसके ठीक सामने बैठी थी और उसकी आंखे मुस्कुरा रही थी, तभी चंद्रा की सांसे उखरने लगती है। लड़की ( हस्ते हुए ) " अरे इतनी जल्दी क्यों मर रही हो, मारने वाले का चेहरा नही देखोगी? "  इतना कह कर वो अपने चेहरे से कपड़ा हटा देती है उसका चेहरा देख कर चंद्रा हैरान रह जाती है। चंद्रा ( अटकते हुए ) " क्यों ? क्यों किया तुमने ऐसा , क्या बिगाड़ा था मैंने, क्या चाहिए तुम्हे ? " लड़की ( हल्की हसी हस्ते हुए )  " चाहिए तो बहुत कुछ, बहुत कीमती चीजें है प्रताप गढ़ में और सबसे कीमती चीज तो सिंह भवन में है ! "  इतना कह कर वो हंसने लगती है। " हा हा... हा.. हा हा..... "  उसे ऐसे हसता देख  चंद्रा गुस्से से भर जाती है। चंद्रा ( गुस्से से ) " आज भले ही तूने मुझे हराया हो पर याद रखना मैं आऊंगी, मैं वापस आऊंगी तेरी मौत बनकर , मैं वापस आऊंगी ! "  इतना कह कर चंद्रा की सांसे उसका साथ छोड़ देती है और वो इस संसार को छोड़ कर जा चुकी थी। चंद्रा को मरा देख उस लड़की के लब मुस्कुरा उठते है और वो फिर से अपना चेहरा ढंक लेती है। और खड़ी हो कर चंद्रा की लाश को अपने बाहों में उठा लेती है और तारा को वहीं छोड़ चंद्रा को लेकर महल वापस आ जाती है, उसे उसी के कमरे में उसी के बिस्तर पर लिटा देती है, फिर बगल के मेज पर रखे ग्लास को उठा लेती है और उसमे चंद्रा के हाथ से टपक रहे खून को भर कर अपने पास रख लेती है और उसे चादर ओढ़ा कर उस ग्लास को लेकर कमरे से बाहर आ जाती है, जिसमे उसने चंद्रा का खून लिया था !  तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? कौन थी वो लड़की ? क्या चाहिए उसे सिंह परिवार से ? सब जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। ✍️ शालिनी चौधरी

  • 7. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 7

    Words: 1210

    Estimated Reading Time: 8 min

    जय श्री कृष्णा 🙏 ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! सिंह भवन, गायत्री जी नींद में ही छटपटा रही थी ऐसा लग रहा था जैसे कोई बुरा सपना देख रही हो, अचानक से उनकी नींद खुल जाती है और वो झटके से उठ कर बैठ जाती है, वो पूरे तरीके से पसीने से नहा चुकी थी लंबी लंबी सांसे खीच रही थी, उनके चेहरे पर आ रहे बाल पसीने के वजह से उनके चेहरे से चिपक गया था वो बार बार अपने हाथ से अपने चेहरे पर आ रहे पसीने को साफ कर रही थी, वो काफी डरी हुई लग रही थी। वो अपने बगल में देखती है तो देवराज जी गहरी नींद में सो रहे थे वो उन्हें उठाना ठीक नही समझती वो ऐसे ही बैठी रहती है पर उनका डर कम ही नही हो रहा था,बिस्तर के बगल में ही एक छोटी सी मेज लगी थी जिस पर एक टेबल लैंप और पानी का जग ,और एक खाली ग्लास रखा था, गायत्री जी बिस्तर से उतर कर जग से ग्लास में पानी भर कर पीती हुई ही अपने सपने को याद करती है। सपने में , गायत्री जी (हैरान होते हुए ) " ये मैं कहा आ गई, ये तो बड़ा वीरान  और सुनसान इलाका है मैने इससे पहले तो ऐसी जगह नही देखी "  तभी गायत्री जी को तीन चार लोगों के कदमों के आहट सुनाई देने लगते है,वो धीरे धीरे उनके तरफ ही बढ़ रहे थे वो घबरा जाती है और वही एक पेड़ के पीछे छिप जाती है, वो अपने आस पास ध्यान से देखने लगती है तो पाती है की वो एक सुनसान से सड़क पर है उनके ठीक सामने जंगल है,गायत्री जी का ध्यान अभी तक उस जंगल पर नही गया था,अपने सामने इतने बड़े जंगल को देख कर हैरान रह जाती है,तभी उनके कानों में फिर से लोगों के कदमों की आहट सुनाई पड़ती है, वो इधर उधर देखने लगती है तभी वो देखती है की उस जंगल से एक औरत अपने दो छोटे छोटे बच्चों के साथ जंगल से बाहर की तरफ भाग रही है उसकी हालत काफी खराब है उन दोनो बच्चों ने राजस्थानी लहंगा चोली पहन रखा था, और उस औरत ने ही राजस्थानी लिबास ही पहना था वो अपने दोनो बच्चियों की उंगली पकड़े भाग रही थी, ठीक उन दोनो के पीछे एक दूसरी औरत अपने हाथ में खून से सना, खंजर लिए उनके पीछे आ रही थी उस औरत ने अपना चेहरा ढंक रखा था, अंधेरा होने की वजह से किसी का भी चेहरा साफ दिखाई नही पर रहा था। औरत अपने बच्चों से बार बार कह रही थी। औरत (हाफतें हुए ) " भागों जल्दी जल्दी भाग मेरी बच्ची"  वो लोग भागते हुए सड़क पर आ जाती है तभी उनमें से एक बच्ची गिर जाती है वो औरत उसे उठाती है वो सब जैसे ही भागने को होते है, वो औरत जिसके हाथ में खंजर था, अचानक से उनके सामने आ जाती है, वो तीनो डर जाते है वो औरत उसमे से एक बच्ची  जिसने हरे रंग कपड़ा पहना था उसका हाथ पकड़ने को जैसे ही आगे बढ़ती है, दूसरी बच्ची जिसने लाल कपड़ा पहना था, उस औरत को पकड़ने के लिए उसके कपड़ों को अपने छोटे छोटे हाथो से पकड़ने लगती है तभी वो औरत उस बच्ची का हाथ पकड़ कर झटक देती है जिससे वो बच्ची गिर जाती है और उसका सर एक पत्थर से टकरा जाता है और वो वहीं दम तोड़ देती है , फिर वो औरत उस दूसरी बच्ची के तरफ फिर से बढ़ती है तभी उस बच्ची की मां उसे अपने तरफ खींचते हुए बोलती है। औरत ( रोते हुए ) " जाने दो क्यों कर रही हो ? मेरे बच्चों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? "  वो औरत काफी रो रही थी गिरगिरा रही थी पर उस दूसरी औरत के ऊपर कोई असर नहीं हो रहा था तभी वो औरत उस बच्ची को पकड़ कर अपने तरफ खीच लेती है उस बच्ची की मां उससे लडने को जैसे ही उठती है, उसे जोर से धक्का दे देती है, धक्के की वजह से वो गिर जाती है और उसका सर उसी पत्थर से टकरा जाता है और वो वहीं दम तोड़ देती है, फिर वो औरत अपने खंजर को उस छोटी सी बच्ची के पेट में घोंप देती है पूरा वातावरण उस बच्ची के चीख से गूंज जाता है और वहां पर खून का फव्वार फूट पड़ता है, वहां की जमीन उन तीन मां बेटी के खून से सन चुका था , सबके दम तोड़ने के बाद वो औरत उन्हे वही छोड़ वापस चली जाती है। उस औरत के जाने के बाद गायत्री जी पेड़ के पीछे निकल कर उनके पास जाती है वो जैसे उनके नजदीक जा कर देखती है तो उनके होश उड़ जाते है उनके सामने उनकी ही लाश थी वो पलट कर दूसरी तरफ देखती है तो एक बच्ची ने हरे रंग के कपड़ा पहना था उस कपड़े को देख कर उन्हे चंद्रा की याद आती है वो इससे पहले उसका चेहरा देख पाती तभी उनकी नींद खुल जाती है,उनके हाथ से पानी का ग्लास छूट जाता  है वो दौड़ती हुई चंद्रा के कमरे के तरफ जाती है चंद्रा के कमरे के बाहर पहुंच कर हल्का सा दरवाजा खोल कर देखती है तो पाती है की चंद्रा सो रही रही है। गायत्री जी ( खुद से ही ) " नही अभी अगर मैं कमरे में गई तो चंद्रा की नींद खुल जायेगी फिर एक बार नींद खुल जाने पर वो सो नही पाती है।"  ऐसा सोच कर वो वापस अपने कमरे के तरफ चल पड़ती है।इधर ग्लास गिरने के आवाज से देवराज जी नींद से जाग जाते है वो जब गायत्री जी को कमरे से बाहर जाता देखते है तो वो भी उनके पीछे आते है तो देखते है की गायत्री जी वापस आ रही है, उन्हे खोया हुआ देख कर देवराज जी उनके पास जा कर कहते है ! देवराज जी ( गायत्री जी का हाथ पकड़ते हुए ) " क्या हुआ रानी सा ? आप इतनी जल्दी में बाहर क्यों आई ? "  अपने सामने देवराज जी को देख कर गायत्री जी उनके सीने से लग जाती है, गायत्री जी को इतना डरा हुआ देख कर देवराज जी उन्हे कमरे में ले जाते है उन्हे पानी पिला कर वापस से लिटा देते है और उन्हें अपने बाहों में भर कर बड़े प्यार से पूछते है। देवराज जी ( प्यार से ) " कोई बुरा सपना देखा क्या आपने ? "  गायत्री जी ( अपना सिर हां में हिलाते हुए ) " बहुत बुरा सपना देखा "  देवराज जी ( उनके सिर पर हाथ फेरते हुए ) " सपना तो सपना होता है, कुछ नही होगा, आप सो जाइए मैं हूं ना आपके साथ "  गायत्री जी अपना सिर हां में हिलाते हुए धीरे धीरे नींद के आगोश मे चली जाती है, उन्हे सुलाने के बाद देवराज जी भी सो जाते है, इस बात से अनजान की आज की रात ने उनसे क्या छीन लिया है ?  धीरे धीरे सुबह होने लगती है इधर उस सड़क पर बेहोश तारा को धीरे धीरे होश आने लगता है। तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? क्या अपने सपने का इशारा समझ पाएंगी गायत्री जी ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। ✍️ शालिनी चौधरी

  • 8. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 8

    Words: 1304

    Estimated Reading Time: 8 min

    जय श्री कृष्णा 🙏 ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! प्रताप गढ़, धीरे धीरे समय बीतने लगता है और भोर की नन्ही सी किरण रात के अंधकार को चीरने की तैयारी में जुट जाती है, और फिर सूरज धीरे से चुपके चुपके धरती पर अपनी लालिमा फैलाने लगता है।इधर उस सड़क पर बेहोश तारा को धीरे धीरे होश आने लगता है। उसके स्थिर शरीर में धीरे धीरे हलचल होने लगती है और वो कुछ क्षणों में अपनी आंख खोल देती है, वो हौले से उठती है उसके सिर में बहुत तेज दर्द होने लगता है, पहले तो उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था, पर फिर उसे रात की घटना याद आने लगती है, रात की बात जैसे ही उसके दिमाग में आती है वो अपने आस पास चंद्रा को खोजने लगती है, उसे चंद्रा तो नही दिखती पर आस पास खून ही खून दिखता है उसके कपड़ों पर भी खून लगा था, और वहां की जमीन खून से सनी हुई थी।इतना खून देख कर उसे अनहोनी के हो जाने का शक होने लगता है उसे चंद्रा के लिए काफी डर लग रहा था पर, वो काफी ज्यादा घबरा जाती है। तारा ( घबराए हुए ) " चंद्रा, चंद्रा ....... चंद्रा कहां हो ? चंद्रा....... "  सिंह भवन में,  अब अंबर पर पूरी तरह से सूरज का साम्राज्य स्थापित हो चुका था, पूरी दुनिया अपने अपने काम में लग चुकी थी।गायत्री जी नहा कर पूरी तरह से तैयार थी उनके हाथ में इस वक्त पूजा की थाल थी और वो मंदिर की तरफ जा रही थी। गायत्री जी मंदिर में पहुंच कर मां भवानी की पूजा शुरू करती है, तभी देवराज जी मंदिर में आते है, फिर अमरेंद्र और वीरेंद्र और वैशाली और मालती भी पूजा में शामिल होती है।  सब मिल कर आरती करते है फिर पूजा खतम कर गायत्री जी सबको प्रसाद देती है तभी उनका ध्यान चंद्रा और तारा पर जाता है जो वहां नहीं होती है। उन्हे बड़ा आश्चर्य होता है क्योंकि इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था गायत्री जी तभी एक नौकरानी से कहती है। गायत्री जी  " गीता जा, जा कर देख तो ये चंद्रा और तारा अभी तक उठी नही क्या ऐसा पहली बार हुआ है की दोनो ने पूजा छोड़ी हो "  गीता( सर झुकाते हुए )  " जी रानी सा "  गीता चंद्रा के कमरे के तरफ जाने लगती है।उधर तारा उठती है वो बुरी तरह से रो रही होती है, उसे डर लग रहा था। तारा ( रोते हुए )  " चंद्रा, चंद्रा ...... चंद्रा कहां हो तुम ? चंद्रा मुझे डर लग रहा है, चंद्रा आओ ना मुझे बहुत डर लग रहा है ! "( खुद से ही ) " है भगवान रक्षा करना मेरी चंद्रा की, चंद्रा, चंद्रा ........ "  इधर गीता पहले तारा के कमरे में जाती है पर वहां कोई नही मिलता तो वो चंद्रा के कमरे में जाती है तो देखती है चंद्रा अपने बिस्तर पर सोई हुई थी। गीता को बड़ा आश्चर्य होता क्योंकि चंद्रा अपने नियमों की बिल्कुल पक्की थी उसका नियम था सूरज के निकलने से पहले जागना और वो आज  अभी तक सो रही थी। गीता ( खुद से ही ) " ऐसा तो आज तक कभी नही हुआ की चंद्रा जीजी अब तक सो रही हो जरूर इनकी तबियत बिगड़ी हुई है ! " फिर उसके बिस्तर से थोड़ी दूर खड़ी हो कर चंद्रा को उठाने लगती है। गीता ( आवाज लगाते हुए ) " जीजी, जीजी...... उठो जीजी भोर हो गई सूरज सर पर चढ़ चुका है, जीजी उठ जाओ ! "  आवाज लगाते हुए ही वो उसके नजदीक जा कर उठाने लगती है दो तीन बार हिलाती हुई बोलती है। " जीजी उठ जाओ वैसे तो आप हमे कहते हो सबेरे उठो और आज खुद इतना सो रहे हो, जीजी .... " वो जैसे ही उसके ऊपर रखे चादर को हटा कर कहती है " जीज... " उसकी आवाज उसके गले में ही अटक जाती है, उसकी आंखे हैरानी से बड़ी हो जाती है वो देखती है की पूरा बिस्तर खून से सना हुआ हुआ है, चंद्रा का पूरा जिस्म भी खून से लथपथ है, खून हल्का हल्का सुख चुका था वो हाथ उसके नाक के पास ले जा कर देखती है तो उसकी सांसे नही चल रही थी,गीता एक दम से चीख पड़ती है " आ...... आ... " वो चीखते हुए नीचे की तरफ भागती है गीता बहुत घबरा गई थी उसका पूरा बदन पसीने से तर बत्तर हो चुका था वो चिल्लाते हुए नीचे आती है।उसके इस तरह चिल्लाने की वजह से सब इक्कठा हो गए थे, देवराज जी और गायत्री जी भी नीचे होल में आ जाते है। गायत्री जी ( परेशान होते हुए ) " क्या हुआ ? क्या हुआ गीता तू ऐसे क्यों चिल्ला रही है ? मैने तो तुम्हें चंद्रा को उठाने भेजा था न तो क्या हो गया ? "  चंद्रा का नाम सुनते ही गीता जोर जोर से रोने लगती है।उसे इस तरह से रोता देख कर सब डरने लगते है। जब वीरेंद्र से बर्दास्त नही होता तो वो गीता से पूछता है। वीरेंद्र ( हल्के गुस्से से ) " गीता इस तरह से रोना बंद करो और क्या हुआ है ये बोलो ? "  गीता ( फूट फूट कर रोते हुए ) " कुंवर सा, वो.. वो.. चंद्रा जीजी वो खून, कुंवर सा वो चंद्रा जीज..... "  इतना कह कर वो बेहोश हो जाती है उसके ऐसे बेहोश होने से सब डर जाते है जाते है।देवराज जी के  दिमाग में तभी कुछ आता है और वो अपने पास खड़ी दूसरी नौकरानी को गीता को संभालने का इशारा करते है , और वो तेज कदम लेकर चंद्रा के कमरे के तरफ जाने लगते है, देवराज जी को चंद्रा के कमरे के तरफ जाता देख कर सभी उनके पीछे पीछे जाने लगते है।उधर तारा चंद्रा को खोज खोज कर परेशान हो चुकी थी। तारा ( खुद से ही ) " इस तरह  अकेले भटकने से कुछ हाथ नही आयेगा मुझे महल वापस जा कर राजा सा को बताना होगा फिर सब मिल कर चंद्रा को खोजेंगे, पता नही उस लड़की ने चंद्रा के साथ क्या किया होगा ? "     ( फिर खुद को चपत लगाते हुए ) " ऐसा भी तो हो सकता है की चंद्रा उस लड़की से बच कर महल पहुंच गई हो, या फिर उसने उस लड़की को मार दिया हो , हां, यही होगा वो खून उस लड़की का ही होगा ! " चंद्रा खुद को ही सांत्वना दे रही थी। इधर सभी एक साथ चंद्रा के कमरे में पहुंचते है,सबसे पहले देवराज जी की नजर चंद्रा पर पड़ती है वो एक दम हैरान रह जाते है तभी पीछे से सब आते है और जैसे उनकी नजर खून से सनी चंद्रा पर पड़ती है सब दौड़ कर उसके पास जाते है।वैशाली और गायत्री जी रोने लगती है, तभी वीरेंद्र चिल्लाते हुए सब से कहता है। वीरेंद्र " शांत हो जाइए आप सब, अमर जीजी की नब्ज की जांच कर पहले हो सकता है की जीजी ठीक हो "  वीरेंद्र की बात सुन कर सब को थोड़ी सी आशा दिखाई देती है अमरेंद्र चंद्रा की नब्ज की जांच करता है पर कुछ बोल नही पाता, उसको कुछ न बोलते हुए देख कर सब की सांसे अटकने लगती है तभी वीरेंद्र गुस्से से बोलता है। वीरेंद्र ( गुस्से से चीखते हुए ) " अमर तू चुप क्यों है कुछ बोल अमर तू चुप क्यों है ? "  वीरेंद्र की बात सुनकर अचानक ही अमरेंद्र चंद्रा से लिपट कर जोर जोर से रोने लगता है उसे इस तरह से रोते देख सब रोने लगते है, वैशाली और गायत्री जी बेहोश हो कर गिर जाते है।इधर तारा महल के मुख्य दरवाजे तक दौड़ती हुई पहुंचती है वो बुरी तरह से हाँफ रही थी। आगे क्या हुआ जानने के लिए बने रहें मोहिनी ( प्यास डायन की ) मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ ! ✍️ शालिनी चौधरी

  • 9. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 9

    Words: 1122

    Estimated Reading Time: 7 min

    जय श्री कृष्णा 🙏 ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! प्रताप गढ़, सिंह भवन, तारा सिंह भवन के मुख्य दरवाजे तक पहुंच चुकी थी, वो बुरी तरह से हाँफ रही थी। उसकी हालत काफी खराब थी उसका पूरा बदन पसीने से नहाया हुआ था, बाल बुरी तरह बिखरे हुए थे, जगह जगह चोटे लगी थी,उसका पैर बुरी तरह से जख्मी था जिसमे सूजन आ गई थी, उसके पैर में काफी चोटे आई थी जिससे खून रिस रहा था, वो महल के प्रांगण में प्रवेश करती है महल के अंदर जाने के लिए बगीचे को पार कर के जाना पड़ता था, बगीचे का नजारा काफी लुभावना था पर इन सब से बेखबर वो लंगड़ाते हुए महल के अंदर जा रही थी।वो जैसे ही महल के बड़े से दरवाजे तक पहुंचती है उसे काफी बैचनी होने लगती है किसी के खोने का डर लगने लगता है, उसका मन कर रहा था कही दूर भाग जाए पर फिर भी वो हिम्मत करके दरवाजे को खोलती है,वो जैसे ही अंदर आती है उसकी नजर वहां हॉल के फर्श पर सफेद चादर में लिपटी चंद्रा पर जाता है,उसके आस पास पूरा परिवार इक्कठा था और सब बहुत रो रहे थे,चंद्रा को इस हालत में देख कर तारा की बची कूची हिम्मत जवाब दे जाती है उसके पैर कांपने लगते है और वो वहीं धम से बैठ जाती है उसके आंखों से बेहिसाब आसूं निकल रहे थे, पर मूंह से उफ्फ भी नही कह पा रही थी,तभी देवेंद्र जी की नजर तारा पर पड़ती है,वो उसकी हालत देख कर घबरा जाते है। देवेंद्र जी (तारा के तरफ जाते हुए ) " तारा बिटिया ये क्या हुआ तुम्हे ? ये इतनी चोटे कैसे आई? हां ! "  तारा ( रोते हुए ) " बाबा ये क्या हो गया चंद्रा को ? बाबा क्या हुआ है चंद्रा को ? "  वो बहुत रो रही थी, देवेंद्र जी उसे उठाते है और चंद्रा के लाश के पास ले जा कर बैठा देते है।चंद्रा को अपने सामने ऐसे कफन में लिपटे देख कर वो उससे लिपट जाती है और जोर जोर से रोने लगती है। तारा ( रोते हुए ) " चंद्रा ... चंद्रा, चंद्रा उठो न देखो ना मुझे चंद्रा ... चंद्रा " वो उसे जोर जोर से हिलाने लगती है पर उसके लाख कोशिशों के बाद भी जब चंद्रा नही उठती तो एक दम से हताश हो जाती है और फूट फूट कर रोने लगती है, उसको इस तरह से रोता देख कर सब के आंसू निकल रहे थे। देवराज जी आगे आ कर उसे संभालते है। देवराज जी ( तारा को गले लगात हुए ) " न मेरी बच्ची चुप हो जा ऐसे मत रो, चुप हो जा ! " देवराज जी की आंखे आंसुओ से भरी थी और वो खुद भी रो रहे थे पर घर में सब से बड़े होने के नाते वो रो नही सकते थे। तारा ( रोते हुए ) " ये क्या हो गया राजा सा चंद्रा हमे छोड़ कर कहां चली गई ? राजा सा आप चंद्रा से कहो ना की उठे मुझे बहुत डर लग रहा है, वो आपकी बात जरूर मानेगी, राजा सा कहो ना आप " तारा की बात सुन कर देवराज जी एक दम से रो पड़े वो फूट फूट कर रो रहे थे।  देवराज जी ( रोते हुए ) " बिटिया वो अब मेरी बात नही सुनेगी वो हम सबको छोड़ कर जा चुकी है बहुत दूर जा चुकी है ! "  देवराज जी की बात सुन कर तारा रोने लगती है लगातार रोने से और सिर पर चोट होने की वजह से उसका सिर दर्द होने लगता है और वो बेहोश हो जाती है।तारा को बेहोश होता देख सब घबरा जाते है क्योंकि गायत्री जी और वैशाली की हालत पहले से ही काफी खराब थी और अब तारा का बेहोश होना सबके अंदर एक डर पैदा कर रहा था, अमरेंद्र आगे आ कर तारा को अपने गोद में उठा कर कमरे के तरफ जाने लगता है जब वो उसके पास पहुंच कर उसे उठाने जाता है तो उसकी नजर तारा के चोट पर जाती है। पर माहौल सही न देख कर बिना किसी को कुछ बताए उसे उठा कर कमरे में ले जाता है इलाज के लिए जहां पहले से ही गायत्री जी और वैशाली का इलाज चल रहा था। इधर देवेंद्र जी देवराज जी से कहते है। देवेंद्र जी ( रुंधे गले से ) " राजा सा अब हमे चंद्रा बिटिया को विदा कर देना चाहिए, उनके शव को ज्यादा देर रखने से सबकी हालत और खराब होगी ! "  ये बात कहने में देवेंद्र जी ने कितनी हिम्मत जुटाई थी ये सिर्फ वो जानते थे क्योंकि चंद्रा उन्हे बहुत प्यारी थी। चंद्रा को इस तरह कफन में लिपटा देख उनके सामने चंद्रा की बचपन से लेकर अब तक की सारी यादें फिल्म की तरह चल रही थी। देवेंद्र जी की बात सुन कर देवराज जी उनके गले लग कर रोते हुए कहते है। देवराज जी ( रोते हुए ) " ऐसी विदाई किसी बाप को न करनी पड़े, देवेंद्र मैंने अपनी चंद्रा के लिए ऐसी विदाई तो बिलकुल नही सोची थी, ये क्या हो गया ? "  देवराज जी को इस तरह से रोता हुआ देख कर देवेंद्र जी भी रोने लगते है, इधर चंद्रा के शव के पास बैठे वीरेंद्र को किसी भी चीज का कोई होश ही नही था वो एक टक चंद्रा के चेहरे को देखे जा रहा था उसके आंखों से आसूं के नदियां बह रही थी, अमरेंद्र भी तारा को कमरे में पहुंचा कर वापस आ कर वीरेंद्र के पास बैठ जाता है और चंद्रा के पैरो से लिपट जाता है उसे बहुत रोना आ रहा था वो रोते हुए ही कहता है। अमरेंद्र ( वीरेंद्र से ) " भैया देखो ना जिस चंद्रा जीजी के होठों से मुस्कुराहट कभी जाती नही थी आज कैसे उसका चेहरा पीला पड़ा है, "  अमरेंद्र के बात पर वीरेंद्र उसी तरह खोए अंदाज में कहता है। वीरेंद्र (खोए हुए ) " हां, सबको खुश रखने वाली चंद्रा जीजी, आज खुद ही सबको रुला रही है।"  माहौल गमगीन था, देवराज जी भी उनकी बाते सुन रहे थे, उनकी नजरें भी अपनी लाडली पर टिकी थी वो भी बहुत दुखी थे वो भरे मन से ही देवेंद्र जी से कहते है। देवराज जी ( भारी आवाज में ) " देवेंद्र शव यात्रा की तैयारी करो राज्य के लोग भी अपनी राज कुमारी के अंतिम दर्शन कर ले "  देवेंद्र जी ( सर हिलाते हुए ) " जी राजा सा "  इतना कह कर वो शव यात्रा की तैयारी करने चले जाते है। तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? क्या खत्म हो जाएगा चंद्रा का ये सफर या शुरू होगी कोई नई दास्तां ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। ✍️ शालिनी चौधरी

  • 10. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 10

    Words: 1531

    Estimated Reading Time: 10 min

    जय श्री कृष्णा 🙏 ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! प्रताप गढ़, चारों तरफ ये खबर आग की तरह फैल रही थी, की चंद्रा की मौत हो गई, जो भी ये सुन रहा था, ठगा सा खड़ा रह जाता, कुछ देर तक तो किसी के समझ में ही कुछ नही आ रहा था। प्रताप गढ़ के चौराहे पर महा लक्ष्मी मिष्ठान भंडार के सामने तकरीबन दस बारह लोग बैठे थे कोई सफाई कर रहा था कोई दूध रख रहा था तो कोई मिठाई खरीदने आया था,कुछ लोग तो बस बातें करने आए थे, एक बुजुर्ग दुकानदार से जिसका नाम लालमोहन था, उससे कहता है। बुजुर्ग ( दुकानदार से ) " बेटा लाल मोहन, एक किलो रसगुल्ला दे दो ! "  लाल मोहन ( बुजुर्ग से ) " हां, काका अभी देता हूं ! " लाल मोहन वहीं से अपने बेटे को आवाज लगाता है। लाल मोहन ( अपने बेटे को आवाज लगाते हुए ) " रे मदन.. मदन ... " मदन अंदर से ही जवाब देता है। मदन " जी बाबा सा, आप कुछ बोल रहे थे ? "  लाल मोहन ( दूध को चूल्हे पर चढ़ाते हुए) " हां वो लक्षण काका को एक किलो रसगुल्ला दे, ताजे में से देना ... " मदन एक किलो रसगुल्ला ले कर बाहर आता है,और उसे पन्नी में डाल कर लक्षण काका को दे देता है। तभी पीछे से एक लड़का आता है जिसकी उम्र लगभग बीस बरस की होगी, वो बोलता है। लड़का ( हांफते हुए ) " अरे कुछ सुना आप सब ने,क्या हुआ है ? "  उसे देख कर लग रहा था की वो बहुत दूर से दौड़ता हुआ आया है, उसे ऐसे देख कर सब बहुत हैरान थे। तभी मदन कहता है। मदन ( उस लड़के से ) " क्यों ऐसा क्या हो गया जो ? और दूसरों के पास बहुत काम है, सब तेरी तरह खाली नहीं है न "  लड़का  मदन की बात सुन कर गुस्से से तम तमा जाता है। तभी लाल मोहन अपने बेटे को डांटते हुए कहते है। लाल मोहन ( हल्के गुस्से से ) " मदन ये कौन सा तरीका है बात करने का ? " ( फिर उस लड़के से कहते है) " क्या बात है लखन ऐसा क्या हुआ है ? जो हमे नही पता  " लखन " अरे मै अभी महल के तरफ गया था, अपनी जमीन देखने वहां गया तो पता चला की राजकुमारी चंद्रा की मृत्यु हो गई है ! "  लखन की बात सुन कर सब बड़े हैरान होते है,तभी वो बूढ़ा आदमी जिसका नाम लक्षण था वो बोलता है। लक्षण " तुझे पता भी है क्या बोल रहा है ? इस बात के लिए तुझे सजा भी हो सकती है।"  लखन " काका मैं सच बोल रहा हूं, मैं राजकुमारी के लिए ऐसी अफवाह क्यों फैलाऊंगा ? "  मदन " फिर तूने जरूर कुछ गलत सुना होगा, किस ने कहा तुझे ये ? "  लखन " नही मैने कुछ गलत नही सुना है खुद देवेंद्र जी लकड़ियां कटवा रहे थे और उन्होंने ही मुझे कहा की सब को बता दू, एक घंटे में राजकुमारी की शव यात्रा निकलेगी जिन्हे भी उन्हें अंतिम विदाई देनी हो वो शव यात्रा में शामिल हो जाए ! "  लखन की बात सुन कर वहां का माहौल ही बदल गया सब ऐसे खड़े एक दूसरे का मूंह ताक रहे थे जैसे की उनके लिए पूरी पृथ्वी ही पलट गई हो। तभी वही बैठे मनोहर बोल पड़ा। मनोहर ( रुंधे गले से ) " ये क्या किया विधाता ने, अरे क्या बिगाड़ा था हमारी राजकुमारी ने ,उसकी जगह मुझे ले जाता ! " लाल मोहन तुरंत अपनी दुकान बंद कर अपने घर की तरफ जाता है अपनी पत्नी को बताने ताकि वो सबके साथ शव यात्रा में जा सके।सबकी आंखे नम थी, सब अपनी राजकुमारी के लिए दुखी थे, और हो भी क्यूं ना चंद्रा ने खुद उनकी कई समस्याओं का समाधान किया था, वो एक काबिल राजकुमारी थी जिसके अंदर बुद्धि थी जो युद्ध कला में निपुण थी और साथ ही जिसका दिल करुणा से भरा था। वो हर रविवार को प्रताप गढ़ के भ्रमण पर निकलती लोगों की समस्या सुनती और उसे राजदरबार में ले जाती, जिस वजह से उन समस्याओं पर तत्काल काम किया जाता था जिससे जनता को काफी फायदा होता था । सब तरफ ये खबर जंगल के आग के  तरह फैल रही थी और जिसे भी पता चल रहा था वो अपना सब कुछ छोड़ कर शव यात्रा के लिए निकल रहे थे, आज पूरा प्रताप गढ़ दुख के अंधकार में डूबा था, पूरा प्रताप गढ़ बंद पड़ गया था और किसी भी घर में चूल्हा नही जला था। सिंह भवन में, गायत्री जी को होश आ गया था वो बहुत रो रही थी देवराज जी उन्हे शांत करने की कोशिश कर रहे थे, पर उनसे भी अपनी बेटी से बिछड़ने का दुख सहा नही जा रहा था।वैशाली बिल्कुल शांत बैठी थी इधर तारा को धीरे धीरे होश आ रहा था । तारा ( चीखते हुए उठती है ) " चंद्रा ....... चंद्रा ...... हमे छोड़ कर मत जाओ हम कैसे रहेंगे तुम्हारे बगैर चंद्रा ...... "  सब उसे संभाल रहे थे, तारा फिर से बेहोश हो जाती है। सबकी आंखें रो रो कर सूज गई थी, देवराज जी वही जमीन पर बैठे थे और उनके आंखो से आसूं बहे जा रहा था और वो एक टक अपनी लाडो के चेहरे को देखे जा रहे थे। तभी देवेंद्र जी उनके पास आ कर बैठ जाते है, उनकी भी आंखे नम थी वो कुछ कहना चाह रहे थे पर उनकी जुबान उनका साथ नही दे रही थी,फिर भी बड़ी हिम्मत जुटा कर बोलते है। देवेंद्र जी ( रुंधे गले से ) " राजा सा शव यात्रा की तैयारी हो चुकी है, अब बिटिया को अंतिम विदाई देने का समय आ गया है ! "  देवेंद्र जी की बाते सुनकर देवराज जी एक दम से बिफर कर रो पड़ते है।उन्हे इस तरह से रोता देख कर एक बार फिर सिंह भवन में रोने की आवाजे गूंजने लगती है।इधर सिंह भवन के बाहर पूरा प्रताप गढ़ सफेद कपड़े पहने खड़ा अपनी राजकुमारी के अंतिम दर्शन के लिए अधीर था, क्या बूढ़ा?, क्या बच्चा? सब अपनी राजकुमारी के इंतजार में खड़ा था ! उसी में से एक औरत दूसरी औरत से कहती है। पहली औरत " भगवान ने ये क्या दिन दिखाया है प्रताप गढ़ को प्रताप गढ़ के प्राण को ही छीन लिया " दूसरी औरत " भगवान की लेखनी बड़ी कठोर होती है कुछ नही समझती " तभी तीसरी औरत उनके बीच बोल पड़ती है । तीसरी औरत " अच्छे लोगों को भगवान अपने पास ऐसे ही बुला लेता है ! "  इधर पंडित जी के कहने पर चंद्रा को नहला कर उसके पसंद की सारी चीजों से उसे सजाया जाता है वो बहुत प्यारी लग रही थी अपनी बेटी को ऐसे देख कर देवराज जी अपने सर को आसमान की ओर करके रोते हुए बोलते है। देवराज जी ( रोते हुए ) " हे विधाता ये क्या कर दिया ? मैने अपनी लाडो के लिए ऐसी विदाई तो नही मांगी थी"  तभी सब चंद्रा को उठा कर महल के बाहर रख देते है जहां प्रताप गढ़ के वासी आ आ कर अपनी प्यारी राजकुमारी के दर्शन करते उसे फूल चढ़ाते, सब बहुत रो रहे थे।एक बुजुर्ग महिला चंद्रा को फूल चढ़ाते हुए बोलती है। बुजुर्ग महिला ( रोते हुए ) " ये क्या कर दिया प्रभु ? इनकी जगह मुझे ले चलता मेरी जिंदगी इन्हे दे देता, ये कर दिया ? "  कुछ लोगों के देखने बाद चंद्रा के शव को एक खुले रथ पर रखा गया और उसे पूरे राज्य में घुमाया जाने लगा ताकि सब एक आखिरी बार चंद्रा को देख पाए फिर सब लोग शमशान पहुंचते है गायत्री जी, वैशाली और तारा के जिद्द पर उन्हे भी शमशान आने दिया जाता है।चंद्रा के शव को अर्थी पर लिटा कर उस पर लकड़ियों को लाद दिया जाता है वीरेंद्र सारे कर्म काण्ड कर खड़ा होता है तभी पंडित जी उसके पास एक जलती हुई मशाल ले कर आते है और वो वीरेंद्र को दे कर बोलते है। पंडित जी " बेटा अपनी जीजी को मुखाग्नि दो और उसे इस योनी से मुक्त कर दो।"  वीरेंद्र के सामने उसकी ओर चंद्रा की यादें किसी फिल्म की तरह चल रही थी वो धीरे से मशाल ले कर चंद्रा के तरफ बढ़ता है और उसे मुखाग्नि देता है।चंद्रा की लाश धू धू करके जलने लगती है एक बार फिर सबकी आंखे नम हो जाती है।गायत्री जी और वैशाली जोर जोर से रोने लगती है। तारा के सामने रात की बाते याद आने लगती है और वो फिर से एक बार बेहोश हो कर वही पर गिर जाती है। अमरेंद्र उसे संभालता है, सब गुम शूम चंद्रा को खाक होते देख रहे थे पर वही एक चेहरा ऐसा भी था जिसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी उसके कमर में वही खंजर लटक रहा था। तो आगे क्या होगा इस कहानी ? क्या चंद्रा के साथ ही दफन हो जायेंगे सारे राज या होगी एक नई शुरुआत ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। ✍️ शालिनी चौधरी मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं ! 

  • 11. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 11

    Words: 1410

    Estimated Reading Time: 9 min

    जय श्री कृष्णा 🙏 ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! लंदन में, एक बड़ा सा बंगला, जो देखने में बहुत खूबसूरत था, सफेद मार्बल से बना वो बंगला देखने से ऐसा लगता था जैसे की किसी ने उसे सफेद बर्फ की चादर से ढंक दिया हो, उसकी खूबसूरती किसी को भी अपने तरफ आकर्षित करने के लिए काफी था, उस विला के बाहर की दीवार पर लगे नेम प्लेट पर बड़ी ही खूबसूरती से A.S लिखा हुआ था और उस पर हीरे जड़े थे जो वहां की रईसी को दिखा रहा था।तभी एक रॉल्स रॉयस कार आ कर रुकती है, वॉचमैन विला का मुख्य दरवाजा खोलता है, तभी वो कार धर धराती हुई अंदर आ  जाती है। तभी कार का दरवाज खुलता है, और एक लड़का जिसकी उम्र लगभग 28- 29 की होगी, लंबा चौड़ा शरीर, गौरा रंग,चेहरे पर हल्के हल्के बियर्ड, बाल भी एक दम सेट थे, ब्लैक पैंट, व्हाइट शर्ट,और ब्लैक कोट, आंखो पर चश्मा लगाए बाहर आता है,ये है वेदांश भार्गव ( V B fashion hub ) का मालिक। इसी के साथ एक और लड़का कार से बाहर आता है जो वेदांश के ही उम्र का था, जिम वाली बॉडी, क्लीन सेव, रंग सांवला इसने भी ब्लैक पैंट, व्हाइट शर्ट पहना था इसके शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले थे जिससे इसका चौड़ा सीना दिखाई पड़ रहा था।इसने अपने कोट को कंधे पर टांग रखा था और बाएं हाथ में चश्मा पकड़ा हुआ था।ये है देव मल्होत्रा, मल्होत्रा ग्रुप का मालिक।दोनो कार से निकल कर विला के तरफ जाने लगते है। वेदांश ( थोड़ी परेशानी में ) " यार देव क्या लगता है तुझे हमारे कहने से ऐश मानेगी ? कभी नही वो वही करेगी जो उसके खुद के दिमाग में आएगा । "  देव ( गहरी सांस लेते हुए ) " देख वो क्या करेगी सो वो जाने पर हमने वीरेंद्र अंकल से कहा है की हम उससे बात करेंगे, तो वो हमे करना है। "  वेदांश ( खीजते हुए ) " बात करके भी क्या फायदा जब हमे पता है की उसका जवाब क्या होगा ? "  देव ( गहरी सांस लेते हुए ) " वेदांश अगर हम ऐश की नजरों से देखे तो वो बिल्कुल सही है, जो गलती वीरेंद्र अंकल ने किया है और जो ऐश ने खोया है उसके बाद उसका ऐसा बिहेव नेचुरल है ! "  देव की बात पर वेदांश अपना सिर सहमती में हिला देता है। वही दूसरी तरफ प्रताप गढ़,  काफी बदल गया था पहले के सिंह भवन को बंद करवा दिया गया था, उस पूरे स्थान को ही बंद कर दिया गया था।सब अपनी जगह जमीन छोड़ प्रताप गढ़ के दूसरे हिस्से में बसने लगे थे।सब कुछ बदल गया था अब यहां इस क्षेत्र में भी राजा वाला शासन हट कर लोकतांत्रिक व्यवस्था आ गई थी हालांकि ये पहले से था लेकिन सब देवराज जी को राजा ही मानते थे।पर स्थिति बदल गई थी अब सिंह परिवार बिजनेस की दुनिया में अपना पैर जमा चुकी थी। वही सिंह भवन के एक आलीशान कमरे में एक आदमी सूट पहने एक बड़ी सी तस्वीर के सामने खड़ा था, उसकी आंखे आंसुओ से भरी थी,कमरे से सारे खिड़की दरवाजे बंद थे।और वो शख्स उस तस्वीर पर अपना हाथ फेरते हुए कहते है। आदमी ( तस्वीर पर हाथ फेरते हुए ) " पारुल देख रही हो ना तुमसे बेवफाई करने की क्या सजा दे रही है हमारी बेटी, ( तस्वीर के थोड़ा और करीब आते हुए ) पर सच बोल रहा हूं वो मेरी एक गलती थी मैने कभी उसे तुम्हारी जगह नही दी, पर देखो ना सब खत्म हो गया, तुम्हारे जाने के बाद मां के कहने पर मैंने हमारी बच्ची को लंदन भेज दिया पर वो तो अब इतनी बड़ी हो गई की मुझसे बात ही नही करती,उसे देखे दस साल हो गए और उसने मुझे आज भी माफ नही किया और शायद कर भी नही पाएगी।"  उसके आंखों से आसूं बह कर उसके गालों पर आ रहे थे जिसे पोछते हुए, वो हल्की हंसी हंस कर दुबारा उस तस्वीर से बोलते है, " पर कुछ भी हो जाए रहेगी वो मेरी ही बेटी वीरेंद्र और पारुल की बेटी ऐश्वर्या सिंह ! "  लंदन में, वेदांश और देव विला की तरफ जा रहे थे, विला तक पहुंचने के लिए उन्हें  गार्डन को पार करके जाना था, विला के चारो तरफ बड़े बड़े दीवार से घेरा बना था जिससे बाहर से विला के अंदर देख पाना भी इंपॉसिबल था।अंदर उस गार्डन को बड़ी ही खूबसूरती से सजाया गया था वहां दुनियां के अलग अलग हिस्से से लाया गए फूलों को लगाया गया था, विला के बाहरी भाग को अपराजिता के फूलों से सजाया गया था, सफेद मार्बल पर नीले नीले अपराजिता के फूल ऐसा लग रहा था जैसे सफेद चादर पर नीली मोतियां बिखरी हो जिससे विला की खूबसूरती और भी बढ़ गई थी। देव और वेदांश विला के दरवाजे तक पहुंच कर बेल बजाते है तभी अंदर से एक मेड जो की पूरी तरह से ड्रेसअप थी, दरवाजा खोलती है, और सर झुका कर बड़ी ही इज्जत से बोलती है। मेड ( सर झुकाते हुए ) " वेलकम सर, हाउ आर यू ? " वेदांश (शांत लहजे में ) " थैंक्यू, वी आर फाइन, एंड व्हाट्स अबाउट यू मिस ? " मेड ( रास्ता छोड़ते हुए ) " एवरी थिंग फाइन सर, प्लीज कम ! " वो दोनो अंदर आ जाते है। विला के अंदर को खूबसूरती भी देखते ही बनती थी विला को अंदर से सफेद और गहरे नीले रंग से सजाया गया था जिससे वो विला परी लोक की तरह लग रहा था वहां की इंटीरियर बेमिसाल थी,सामने एक बहुत बड़ा हॉल था जिसके बीचों बीच सोफा सेट लगा था जिसका रंग नीला था उसके ठीक सामने सफेद रंग का छोटा सा टी टेबल रखा था। देव और वेदांश सोफे पर जा कर बैठ जाते है। तभी एक दूसरी मेड उन्हे पानी ला कर देती है।  देव ( मेड से ) " ऐश्वर्या कहां है ? "  मेड " सर, मैडम जिम में है ! "  इतना कह कर वो वहां से चली जाती है। देव और वेदांश एक दूसरे का मूंह देखने लगते है, फिर एक साथ बोल पड़ती है। दोनों एक साथ " इसका कुछ भी नही हो सकता है ! " फिर वेदांश थोड़ा सीरियस हो कर बोलता है। वेदांश ( सीरियस टोन में ) " यार देव ये जो वीरेंद्र अंकल है ये लोग तो पहले सिंह भवन में रहते थे, वो भी इतना। बड़ा है तो फिर उस घर को बंद करवा कर नया महल क्यों बनवाया और वही नही पूरा इलाका ही बंद करवा दिया गया है। "  देव ( सोचते हुए ) " ज्यादा तो नही पता पर वीरेंद्र अंकल की एक बड़ी बहन थी, उनके मौत  के बाद से ही वहां कुछ अजीब होने लगा था फिर भी वो लोग बहुत दिनों तक वहां रहे पर फिर क्या हुआ की वो पूरा इलाका ही बंद करवा दिया गया ये मुझे नही पता पर इतना पता है, की उस महल में कुछ तो है। वही पुराने सिंह भवन में, वो पूरा महल ही नही बल्कि पूरा इलाका ही वीरान हो चुका था, जिस महल में पहले हंसी गूंजती थी वहा आज एक खामोशी थी एक लंबी खामोशी उसी महल के अंदर जहां जीवन का बसेरा था वही आज सब कुछ वीरान था वही महल के बीचों बीच हॉल में एक साया बैठी थी उसने हरे रंग का राजस्थानी लिबास पहना था उसके बाल बिखरे थे और वो सर झुकाए बैठी थी उसके बाल उसके चेहरे को ढके थे जिस वजह से उसका चेहरा नजर नही आ रहा था उस लड़की के आंखो से आसूं टपक कर जमीन पर गिर रहे थे, और वो सिसक रही थी उसके सिसकने की आवाज पूरे महल में गूंज रही थी, तभी उपर के एक बंद कमरे से जिसमे ताला लगा था और उस ताले पर लाल धागा बंधा था उस कमरे से किसी लड़की के जोर जोर से हंसने की आवाजे आने लगी " हा हा..... हा.." और कोई उस दरवाजे को जोर जोर से पीट रहा था।और तभी उस कमरे से आवाज आई " खोलो, मुझे खोलो, दरवाजा खोलो आह.... " तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? कौन है ये नए किरदार ? और कौन है वो साया ? क्या रहस्य है उस बंद कमरे का ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। ✍️ शालिनी चौधरी मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं ! 

  • 12. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 12

    Words: 1497

    Estimated Reading Time: 9 min

    जय श्री कृष्णा 🙏 ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! प्रताप गढ़( पुराना सिंह भवन ),  ऊपर के उस बंद कमरे से लगातार आ रही आवाजों को सुन कर वो साया उठ कर सीढ़ी से होते हुए उस कमरे के बाहर आ कर खड़ी हो जाती है।उस कमरे के अंदर जो लड़की थी उसे जब ये एहसास होता है को कोई बाहर खड़ा है तो वो जोर जोर से दरवाजा पीटते हुए बोलती है । " खोलो, दरवाजा खोलो, खोलो मुझे आह ......" कमरे के बाहर खड़ी वो लड़की हल्का मुस्कुराते हुए बोलती है। लड़की ( कमरे वाली लड़की से ) " क्यों मोहिनी कैसा लग रहा है यहां बंद हो कर, तूने मेरे पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया सब कुछ तबाह कर दिया बता ना कैसा लग रहा है! "  मोहिनी ( उस बाहर खड़ी लड़की से ) " हाह.... मुझे, मुझे ज्यादा फर्क पड़ नही रहा क्योंकि उन लोगों ने जिस काम को बंद करने के लिए मुझे इस कमरे में बांधा था, वो काम तो मैं यहां बंद हो कर भी कर रही हूं, ( अपनी बातों पर थोड़ा जोर देते हुए ) तुम्हारे जरिए क्यों है ना वैशाली। "  मोहिनी की बात सुन कर वो लड़की अपना सर उठाती है तब उसका चेहरा साफ दिखाई देने लगता है वो वैशाली थी। मोहिनी की बात सुन कर वैशाली की आंखे आंसुओ से भर जाती है और वो गुस्से से बोलती है। वैशाली ( गुस्से से ) " एक बात याद रखो मोहिनी पाप की उम्र बहुत कम होती है, ( उंगली दिखाते हुए ) और तुम मुझे ज्यादा दिनों तक कैद नही कर सकती हो ये जो तुम मुझ से जबरदस्ती करवा रही हो इस सबका अंत होगा। वैशाली की बात पर कमरे के अंदर से मोहिनी की व्यंग भरी आवाज आती है। मोहिनी ( हल्की हंसी हंसते हुए ) " ह्ह, मुझे परवाह नहीं, और तुम जो ये बक रही हो ना की पाप की उम्र कम होती है और तुम्हारा भगवान इंसाफ करेगा,तो याद करो मेरे पाप की सांसे पंद्रह साल पुरानी है। ( गुस्से से ) और तुम, तुम कभी भी मुझसे आजाद नही हो पाओगी।" वैशाली ( तल्खी आवाज में ) " होऊंगी मैं आजाद होऊंगी और देखना मोहिनी तुम्हारा अंत कितना भयानक होगा,कोई तो होगा जो तुम्हारा अंत करेगा और वो जल्द ही आयेगा ! "  वैशाली की बात को नजरंदाज करते हुए मोहिनी बड़ी अदा से बोलती है। मोहिनी " अच्छा जब होगा तब देख लेंगे अभी मेरे साधना के लिए सारी चीजों का बंदोबस्त करो जाओ,    ( उसकी बात सुनकर वैशाली जाने लगती है ) और हां, वो आज अमावस्या है तो आज की पूजा विशेष है इसके लिए एक कुंवारी लड़की का खून भी लेके आना। "  मोहिनी की बात का वैशाली कुछ जवाब नही देती पर उसकी आंखे आंसू से भर जाती है वो सीढ़ियों से नीचे की तरफ जाने लगती है, उसके आंसू बह कर उसके गालो को भिगाने लगते है।  लंदन में ( A.S villa ),  एक मेड हाथ में ट्रे पकड़े हुए ऊपर के तरफ जा रही थी,उस ट्रे में एक कप चाय थी,और कुछ स्नैक्स थे।उस मेड को देख कर देव, वेदांश से बोलता है। देव ( वेदांश से ) " यार प्रिया आई हुई है यहां पर, क्योंकि ऐश चाय नही पीती ( फिर हल्के गुस्से से ) देख रहा है ये लड़की बिन बताए आई है इसको तो एक रत्ती भर दिमाग नही है, बिना प्रोटेक्शन कही भी निकल पड़ती है।" वेदांश ( उसे शांत करते हुए ) " शांत हो जा बच्ची है वो उसका मन भी नॉर्मल लाइफ जीने का करता होगा ना, शांत रह, हम समझाएंगे तो वो समझ जायेगी।" देव ( परेशानी से ) " पर वो अब कोई बच्ची नही है पूरे 23 साल की है,और इतनी लापरवाही अच्छी नही है, ऐश भी तो उसी की उम्र की है वो कितनी मैच्योर है, सब कुछ खुद ही संभाल लेती है।" वेदांश कुछ बोल पाता उससे पहले ही एक लड़की की सर्द आवाज उनके कानो में सुनाई पड़ती है। लड़की ( सर्द आवाज में ) " इंसान को खुद के अंदर के बच्चे को कभी भी मारना नही चाहिए, और रही बात मैच्योर होने की तो उम्र से ज्यादा मैच्योर नेस कभी कभी तकलीफ का सबब बन जाती है।"  वो दोनो पीछे पलट कर देखते है तो एक लड़की ब्लैक लोअर, ब्लैक टी शर्ट पहने थी वो पूरी तरह से पसीने से नहाई हुई सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी,उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे,उसकी उम्र 23 साल की होगी देखने में काफी सुंदर थी उसकी लंबाई चौड़ाई बिल्कुल परफेक्ट थी,उसकी हिरण की तरह बड़ी बड़ी आंखे और उन आंखों पर लंबी लंबी घनी पलकों का पहरा था, वो जब भी अपनी पलके झपकाती तो ऐसा लगता जैसे कोई तितली अपने पंख फैला रही हो, उसकी तनी हुई भौंहे उसके आंखों को और भी खूबसूरत बना रहे थे, उसकी पतली नाक जिसमे एक छोटा सा नथनी पहनी हुई थी,उसके पतले लाल गुलाब जैसे होठ जो इस वक्त हल्के खुले थे और वो सांस खींच रही थी। उसके त्वचा का रंग ऐसा था जैसे किसी ने दूध में हल्का सिंदूर मिला दिया हो, उसने अपने बालों का जुड़ा बनाया था।जिसमे वो और भी खूबसूरत लग रही थी। उसकी बात सुनकर देव खामोश हो जाता है तभी वेदांश बोलता है। वेदांश ( खड़े होते हुए ) " अरे ऐश कैसी हो तुम ? "  उसकी बात पर ऐश्वर्या बोलती है। ऐश्वर्या ( तीखे अंदाज में ) " जैसा मुझे होना चाहिए।" देव( मन में ) " ये ऐसे क्यों बात कर रही है ? कही इसे पता तो नही चल गया की हम सब वीरेंद्र अंकल के कॉन्टैक्ट में है, अगर ऐसा हुआ तो ये हमारी बात सुनेगी भी नही, मानना तो दूर की बात है।" अभी वो अपने ख्यालों में गुम था की तभी ऐश्वर्या की आवाज से उसका ध्यान टूटता है। ऐश्वर्या ( टॉवेल से पसीना साफ करते हुए ) " मैं शावर ले कर आई, फिर बात करेंगे। " वही दूसरी तरफ प्रताप गढ़ के सीमा के बाहर, एक बस आ कर रुकती है उसमे से एक बीस साल की लड़की उतरती है।वो बहुत खूबसूरत थी,उसने येलो क्रॉप टॉप और ब्लैक जींस पहना था पैरो में स्पॉट शूज डाले थे, उसके लंबे बाल उसके कमर तक लहरा रहे थे, उसका गौरा रंग हीरे की तरह चमक रहा था, उसने अपने बाएं कंधे पर एक छोटा सा पर्स टांगा था,तभी उसका फोन बजता है।(फोन रिंग ) आई एम सो लॉनली ब्रोकन एंजल..…... वो लड़की फोन उठा कर कान से लगाती है वो कुछ बोल पाती उससे पहले ही फोन के दूसरे तरफ से आवाज आती है।  एक औरत (फोन के दूसरे तरफ से )  " कहां पहुंची तू ? इतनी देर कैसे हुई, सुरभी तू है कहां बेटा! " सुरभी " मां आप शांत हो जाइए मैं लगभग पहुंच गई हूं, मैं प्रताप गढ़ के बाहर ही हूं, बस वाले ने यही पर छोड़ दिया है यहां से टैक्सी ले कर आ रही हूं।"  औरत " अच्छा ठीक है जल्दी आ जा ! " सुरभी फोन काट देती है वो टैक्सी लेने के लिए जा ही रही थी की तभी उसकी नज़र एक लड़के पर पड़ती है। जिसे देख वो खुद से ही बोलती है। सुरभी ( खुद से ) " ये तो रोहन है, फिजिक्स डिपाटमेंट का स्टूडेंट है, ये यहां क्या कर रहा है इसका घर तो मुंबई में ही है,(तभी वो देखती है की रोहन दूसरी तरफ जा रहा है) ये उधर कहा जा रहा है।" इतना कह कर वो उसके पीछे जाने लगती है वो उसके पीछे जाती है तो देखती है की, थोड़ी ही दूरी पर एक सुनसान से सड़क पर कुछ लड़के आपस में ड्रग्स बांट रहे थे रोहन भी उसमे ही था वो देखती है, की उन लडको ने एक लड़की को भी ड्रग्स दिया था और इसके साथ जबरदस्ती कर रहे थे ये सब देख कर वो वहां से भागने लगती है पर तभी रोहन की नजर उस पर पड़ जाती है और वो उसके पीछे उसे पकड़ने के लिए भागता है धीरे धीरे शाम होने लगी थी सूरज अपने किरणों को समेटने लगा था, सुरभी खुद को बचाने के लिए प्रताप गढ़ के सीमा में बने उसी जंगल में घुस जाती है और रोहन भी उसके पीछे पीछे होता है। वो दोनो जैसे ही जंगल में घुसते है चारो तरफ सन्नाटा छा जाता है और वहां पुराने सिंह भवन के उसी बंद कमरे के अंदर से मोहिनी के हसने की आवाज आने लगती है। और वो बोलती है  मोहिनी ( हस्ते हुए ) " नया शिकार, जय शैतान। " तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? कौन है मोहिनी और कैसे बंधी वो इस कमरे में ? कैसे वैशाली बनी इसकी बंदी ? क्या तकलीफ है ऐश्वर्या को ? और क्या होने वाला है सुरभी और रोहन के साथ ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )  मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं !  ✍️ शालिनी चौधरी

  • 13. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 13

    Words: 1491

    Estimated Reading Time: 9 min

    जय श्री कृष्णा 🙏 ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! लंदन ( A S  villa ), ऐश्वर्या शावर लेने चली जाती है, इधर देव और वेदांश और भी ज्यादा परेशान हो जाते है।  वेदांश ( परेशानी से ) " देव, यार ये ऐसे क्यों बोल कर गई ?, भाई , यार तुझे नही लगता की ये दिन ब दिन पहले से ज्यादा सख्त होती जा रही है।" देव ( बैचेनी से ) " मुझे तो लगता है की कही इसे शक तो नही हो गया ना की हम सब सिंह परिवार के कॉन्टैक्ट में है। (फिर थोड़ा और परेशान होते हुए ) अगर ऐसा हुआ तो ये हम से भी कॉन्टैक्ट तोड़ देगी। "  वेदांश ( देव को शांत करते हुए ) " भाई, भाई उसे कैसे पता चलेगा ?, कौन बताएगा ?की हमारी बात होती है उन लोगो से ! " देव " चल प्रिया से मिलकर आते है। " वेदांश सर हिलाते हुए हामी भरता है। वही दूसरी तरफ  प्रताप गढ़ में, पुराना सिंह भवन, मोहिनी के कमरे से तेज तेज हसने की आवाजे आ रही थी। वो आवाजे बहुत भयानक थी। इधर वैशाली आज रात की पूजा की तैयारी कर रही थी। सिंह भवन के हॉल के बीचों बीच एक यज्ञ वेदी बना था उसके आस पास कुछ नर मुंड रखे थे वहा घी, और पूजा की अन्य सामग्री रखा था।वही उस वेदी के पास बैठ कर वैशाली कुछ काली शक्ति की चिन्ह बना रही थी।सारे काम खतम होने के बाद वो खड़ी होती है और फिर चारो तरफ देखते हुए खुद से ही कहती है। वैशाली ( खुद से ) "  ओह.. यहां तो सब निपट गया अब एक कुंवारी लड़की का खून कहा से लाऊं, ( फिर थोड़ा रुक कर ) मै तो प्रताप गढ़ के इस हिस्से से बाहर नही जा सकती, और ना इस कलमूही का जादू ही काम करेगा और इस क्षेत्र में कोई आता जाता भी नही कहा से लाऊं कुंवारी लड़की का खून।"  फिर उसके दिमाग में कुछ आता है और वो एक दम से चौक जाती है फिर अचानक से उसकी आंखे चमक उठती है और वो खुश होते हुए खुद से ही कहती है। वैशाली ( खुश होते हुए ) " अरे मैं क्यों परेशान हो रही हूं ? ना मिलें खून, ना खून मिलेगा ना, ये पूजा होगी, और ना ही इस कलमूही की शक्ति बढ़ेगी।"  अभी वो ये सब खुद से बोल ही रही थी की मोहिनी के कमरे से उसकी आवाज आती है। मोहिनी ( व्यंग से ) " ओ कुत्तिया, ज्यादा खुश मत हो क्योंकि मेरी पूजा जरूर होगी और वो भी तेरे ही हाथ से जैसे हमेशा होती है।"  वैशाली ( गुस्से से दांत पीसते हुए ) " ओ कुत्तिया किसे बोल रही है, तू होगी चंठ चालाक लोमड़ी ,और रही बात पूजा की तो वो तो होने से रही क्योंकि यहां इस क्षेत्र में कुंवारी लड़की तो आने से रही।" मोहिनी ( दांत पीसते हुए) " ज्यादा जुबान मत चला और जा, क्योंकि उस जंगल में दो लोगो का प्रवेश हुआ है, उसमे एक लड़की है उसका खून लेकर आ। "  वैशाली ( ना में सर हिलाते हुए ) " मै ऐसा कुछ नही करूंगी " मोहिनी ( व्यंग से हस्ते हुए ) " करेगी तो तू ही, भूल मत तू मेरी कैद में है तो करना तो तुझे ही है, या मर्जी से या जबरदस्ती से। "  वही दूसरी तरफ प्रताप गढ़ के जंगलों में, उस जंगल के बीच से एक रास्ता गुजरता था जो प्रताप गढ़ को बाहर की दुनिया से जोड़ता था पर कई सालों से वो रास्ता बिल्कुल बंद पड़ा था, उस रास्ते पर सूखे पत्तों की ढेर लग गई थी जो सबूत थी, इस जगह के वीरान होने की, कई साल हो गए थे पर उस रास्ते  पर किसी के कदम नही गए,शायद वो सड़क भी इंसानो को भूलने लगा था, वो गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था,धीरे धीरे सूरज भी ढलने लगा था, जिससे चारो तरफ अंधेरा छाने लगा था,और वहां जंगल होने की वजह से वहां कुछ ज्यादा ही अंधेरा था, चारो तरफ गहरी खामोशी थी, उसी सड़क के दोनो तरफ बड़े बड़े पेड़ लगे थे।और उसी सड़क पर दो लोगों के दौड़ने के आहट ने उस जंगल की खामोशी तोड़ दी थी, उस सड़क पर सुरभी अपने पर्स को कस कर पकड़े सरपट भागे जा रही थी, उसके बाल हवा में लहरा रहे थे, और चेहरे पर बारह बज रहे थे, उसके ठीक पीछे रोहन था, जो बार बार उसे रुकने को बोल रहा था। रोहन ( गुस्से से ) " ए लड़की रुक, रुक जा ,मैं आखिरी बार कह रहा हूं रुक जा। "  उसकी बात सुन कर सुरभी काफी डर जाती है। वो भागते हुए ही पीछे पलट कर देखती है,उसके पीछे पलटने से रोहन को अब उसका चेहरा दिख जाता है। रोहन ( खुद से ही ) " ये तो सुरभी है, हिस्ट्री डिपार्टमेंट से ये यहां कैसे ? पर इसने मुझे देख लिया है,अब क्या करू? ( तभी उसके दिमाग में कुछ आता है, और उसके चेहरे पर शैतानियत छलकने लगती है वो खुद से ही ) अरे यार रोहन करना क्या है ? लड़की ही तो है वो भी इतनी नाजुक सी, वो साले उसी के साथ मस्ती करे ये तो उससे भी ज्यादा खूब सूरत है, इसके साथ आज वो सब करूंगा और वीडियो भी बनाऊंगा फिर ये कभी भी मेरे खिलाफ नही जायेगी और हमेशा, जब भी मैं चाहूंगा मेरे साथ मेरे बिस्तर पर होगी।"  इतना सोच कर वो शैतानो की तरह हंसने लगता है। सुरभी को बहुत डर लग रहा था, वो काफी थक गई थी,पर फिर भी वो भागे जा रही थी तभी उसके पैर आपस में ही उलझ जाते है और वो गिर जाती है, उसके हाथ छिल जाते है, वो उठती हुई खुद से ही बोलती है। सुरभी ( खुद से ही ) " उठ सुरभी तुझे भागना है, तू ऐसे हार नही सकती, बस एक बार इस जंगल के पार हो जाऊं फिर ये मेरा कुछ नही कर सकता( फिर हाथ जोड़ते हुए ) हे काली मां आज बचा ले प्लीज मां।"  इतना कह कर वो जोर लगा कर उठती है और जैसे ही भागने को होती है कोई उसे हाथ से पकड़ कर अपनी तरफ खींच लेता है , सुरभी जब देखती है तो वो रोहन ही था, रोहन को देख कर वो डर से कांप जाती है उसका पूरा शरीर कांपने लगता है, उसके आंखों से आसूं टपकने लगते है,उसके होठ कांप रहे होते है, वो रोती हुई रोहन से बोलती है। सुरभी ( रोते हुए ) " रोहन मुझे छोड़ दो, मम्म.. मैं किसी को कुछ नही बताऊंगी सच्ची कुछ नही बोलूंगी मुझे जाने दो। "  वो हाथ जोड़ते हुए बोलती है पर उसके रोने से रोहन को कोई फर्क नही पड़ रहा था वो एक हाथ से उसके कमर को पकड़ता है और दूसरे हाथ से उसके कांप रहे होठों को सहलाने लगता है , रोहन के ऐसे छूने से सुरभी को घिन आने लगती है वो उसके हाथ पर दांत काट लेती है जिससे रोहन की पकड़ ढीली हो जाती है और सुरभी उससे छूटते ही भागने लगती है, सुरभी की इस हरकत से रोहन आपे से बाहर हो जाता है और वो अपने जेब से एक छुरी निकल कर सुरभी के पीछे भागता है और दौड़ते हुए उसे पकड़ लेता है और उसे पीछे के पेड़ से लगा देता है। रोहन ( दांत पीसते हुए ) " पहले सोचा था तेरे साथ खेल कर तेरी वीडियो बना कर तुझे छोड़ दूंगा पर अब पहले खेलूंगा फिर मारूंगा ! "  इन सारी घटनाओं को वही एक पेड़ से एक जोड़ी आंखे देख रही थी, रोहन ने जैसे ही सुरभी के कपड़े को फाड़ना चाहा, तभी वो साया एक दम से रोहन के सामने आ कर उसे धक्का दे देती है, वो धक्का इतना जोर का था की रोहन नीचे गिर जाता है वो जैसे ही अपना सिर उठा कर देखता है तो वो एक लड़की थी जिसने सफेद लहंगा चोली पहना था वो काफी खूब सूरत थी, इससे  पहले की रोहन कुछ बोलता उस लड़की ने उससे छुरी छीन कर रोहन के पेट में घोंप दिया, जिससे एक जोरदार चीख के साथ पूरा जंगल गूंज जाता है, बिजलियां चमकने लगती है,पूरा जंगल रोशनी से भर जाता है जिसमें सुरभी की परछाई तक दिखने लगती है।पर ये क्या उस लड़की की तो कोई परछाई ही नही थी, उनके ठीक सामने रोहन खून से लथपथ सड़क पर पड़ा हुआ था,और फिर कुछ देर तड़पने के बाद वो दम तोड़ देता है, उसकी सांसे थम चुकी थी और एक बार फिर चारो तरफ खामोशी छा जाती है जहां सुरभी की सांसों की तेज आवाज ही सुनाई दे रही थी। तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? क्यों है ऐश्वर्या इतनी सख्त ? और किसने मारा रोहन को ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं !  ✍️ शालिनी चौधरी

  • 14. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 14

    Words: 1492

    Estimated Reading Time: 9 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! प्रताप गढ़ ( जंगल में ), रोहन की मौत हो चुकी थी, सड़क पर रोहन की लाश पड़ी थी, उसके आस पास खून ही खून फैला था, सुरभी ये सब देख कर सदमे में जा चुकी थी वो ना तो कुछ बोल पा रही थी, ना ही कुछ समझ पा रही थी। वो पसीने से लथपथ थी, अचानक ही वो रोहन के पास जा कर उसकी सांसे चेक करने लगती है पर रोहन तो कब का दुनिया छोड़ चुका था।उसकी सांसे नही चल रही थी ये देख कर सुरभी बहुत घबरा जाती है, वो झटके से उठती है और कपकपाते आवाज में बोलती है। सुरभी ( घबराते हुए ) " ये...ये... ये तो मर गया ओह गॉड ये तो मर गया।" सुरभी पलट कर उस लड़की का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहती है। सुरभी ( घबराए आवाज में ) " चलो जल्दी, हमे निकलना होगा, किसी ने देख लिया तो गड़बड़ हो जायेगी हमारे लिए मुसीबत आ सकती है। " सुरभी के बार बार खींचने पर भी जब उस लड़की ने कोई हरकत नही की तो सुरभी पलटकर उसे देखने लगी, वो लड़की बड़ी सुंदर थी उसने सफेद लहंगा चोली पहना था, उसके काले घने बाल जो उसके कमर से भी नीचे लटक रहा था खुले हुए थे, दूध सा रंग बेदाग चेहरा पतले गुलाब के पंखुरी से होठ, तीखी आंखे, खींची हुई भौंहे, पतली नाक, कुल मिला कर बहुत ही खूबसूरत थी। तभी जोर से बिजली चमकने लगी, हवाओं ने अपना रुख बदल लिया हवाएं तेज होने लगी जिसमे उस लड़की के बाल हवा में उड़ने लगे जो उसे और भी ज्यादा खूबसूरत बना रहे थे, वो कोई और नही बल्कि वैशाली ही थी।जो जंगल अब तक शांत था वहां प्रकृति ने अपना तांडव शुरू कर दिया था, अब वो जंगल काफी भयानक लग रहा था,लेकिन अजीब बात ये थी की अब तक जंगली जानवरों का कोई नामो निशान नहीं था, ऐसा लग रहा था जैसे वहां कोई जानवर हो ही ना, जंगल था पर जानवरों का अस्तित्व का कोई अता पता ही नही था। सुरभी को अब बहुत डर लग रहा था। वही दूसरी तरफ ( A S villa ), देव और वेदांश बात कर रहे थे, तभी वो मेड जो प्रिया के लिए स्नैक्स ले कर गई थी वो वापस आ रही थी उसे देख कर देव ने उससे पूछा देव ( मेड से ) " व्हेयर इस प्रिया ? " देव का सवाल सुन कर वो मेड एक शब्द में जवाब देती है " टैरेस " मेड का जवाब सुनकर दोनो टैरेस के तरफ चले जाते है। टैरेस बहुत ही बड़ा था और उसका नजारा किसी की भी आंखों को बांध सकता था, एक हिस्से मे सोफा सेट, टी टेबल, के अरेंजमेंट्स थे ,उसी के बगल में एक झूला भी था, पूरे टैरेस पर छोटे छोटे प्लांट्स लगे थे जो चारो तरफ ग्रीनरी लुक दे रहा था, जिसे देखने से बड़ा ही सुकून मिलता था, टैरेस  के चारो तरफ ग्लास रेलिंस बना था जो उसे एक कंप्लीट मॉडर्न लुक दे रहा था, वही सोफे पर एक लड़की रेड कलर का जंपसूट डाले बैठी थी, उसकी उम्र लगभग 22-23 की थी उसका चेहरा बहुत ही मासूम लग रहा था वो उस सोफे पर किसी रानी की तरह बैठी थी, उसके एक हाथ मे चाय का कप था और दूसरे हाथ में एक फाइल थी, और वो अपनी दोनो आंखे गड़ाए उसे बड़े ध्यान से पढ़ रही थी।ये है प्रिया मल्होत्रा देव मल्होत्रा की छोटी बहन और (PM makeup brand ) की ऑनर देव और वेदांश उसके सामने जा कर बैठ जाते है। देव ( घूरते हुए ) " बिना बताए तुम यहां कैसे आ गई ? "  प्रिया ( बेध्यानी में ) " गाड़ी से " उसके जवाब से देव उसे घूरने लगता है और वेदांश के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट छा जाती है। वेदांश ( प्यार से ) " छोटी बिना प्रोटेक्शन के ऐसे बाहर निकलना डेंजर है, बच्चा ऐसे नही करते।" प्रिया ( मासूमियत से ) " पर मै तो प्रोटेक्शन में ही आई हूं, ऐश ने अपने बॉडीगार्ड भेजे थे। " उधर जंगल में, सुरभी ( वैशाली से ) " क्या हुआ ? भागो यहां से ये जगह अब ठीक नही किसी ने देखा तो हम फस जायेंगे।" सुरभी की बात सुनकर वैशाली हसने लगी और बोली। वैशाली ( हस्ते हुए ) " तुम्हे अब भी लगता है की मैं फस जाऊंगी या मुझे भागना चाहिए ? मैं भाग कर जाऊं कहां ये तो मेरा घर है, अब भला कोई अपने घर से भाग कर कहां जाए।"  उसकी बात सुनकर सुरभी घबरा जाती है, और उसका हाथ छोड़ कर उससे थोड़ा दूर होते हुए कहती है। सुरभी ( डरते हुए ) " कौन हो तुम ? और तुम्हे मुझसे क्या चाहिए ? " वैशाली " बहुत भोली हो तुम और प्यारी भी, पता है मै न शुरू से ही तुम दोनो को देख रही थी, ( उसका गाल छूते हुए ) तुम्हे पता है तुम कितनी खूबसूरत हो ? ( थोड़ी सर्द आवाज में ) बहुत ज्यादा।" उसकी बात सुनकर सुरभी बहुत ज्यादा घबरा जाती है,वो भागने के लिए जैसे ही पलटती है, तभी वैशाली अचानक से उसके सामने आ जाती है सुरभी डर जाती है वो पीछे की तरफ खिसकने लगती है तभी उसका पर्स उसके कंधे से गिर जाता है और उसका सारा सामान बिखर जाता उसका फोन भी वही पर्स से बाहर निकल जाता है।  सुरभी ( रोते हुए ) " जाने दो छोड़ दो मुझे मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? " वैशाली ( हल्के गुस्से से ) " जाने दूं , कभी नही,तुम मेरा शिकार हो, तुम्हे पता है मैने इस लड़के को क्यों मारा ताकि मै तुझे मार सकूं। "  फिर वैशाली सड़क पर पड़ा वही छुरी उठाती है जिससे कुछ ही समय पहले रोहन को मारा था, हाथ में उस छुरी भी पकड़े वैशाली सुरभी की तरफ आने लगी, सुरभी डर से कांप रही थी और पीछे हो रही थी सुरभी का चेहरा आंसुओ से भीगा था, रोने की वजह से उसका गाल, नाक, कान, होठ सब लाल हो चुके थे वो और भी ज्यादा खुबसूरत लग रही थी। सुरभी ( रोते हुए ) " प्लीज छोड़ दो जाने दो मुझे मैंने क्या किया है ? क्यों मारना चाहती हो मुझे ? वजह तो बताओ। " वैशाली " वजह, वजह जानना है तो सुनो, पहली वजह की तुम इस जंगल में आई और दूसरी वजह है तुम्हारी खूबसूरती और कुंवारी होना यही वजह है तुम्हारी मौत की।" सुरभी ( अटकते हुए ) " ये .. ये  त.. तो कोई वजह नहीं हुई किसी को मारने के लिए।"  पर वैशाली उसके बातों का कोई जवाब नही देती उसे कोई फर्क नही पड़ रहा था,अब सुरभी को वैशाली की आंखों में अपनी मौत दिखाई दे रही थी वो समझ चुकी थी की अब उसे कोई नही बचा सकता। वैशाली ने झटके से सुरभी की कोमल कलाई पर छुरी चला दी अगले ही पल वहां खून की धार फूट पड़ी, सुरभी दर्द से चीख उठी, वैशाली ने सुरभी के खून को एक कलश में भर लिया और वो रोहन के लाश के पास बैठ गई हालांकि रोहन के शरीर का काफी खून बह चुका था फिर भी जो कुछ भी  बचा था ,उसे वैशाली ने पीना शुरू कर दिया, सुरभी इधर दर्द से तड़प रही थी और जब उसने वैशाली को रोहन का खून पीते देखा तो डर से और शरीर के कतरे कतरे खून के निकल जाने से, उसने मौत को गले लिया, सुरभी की आंखे खुली थी जो वैशाली पर टिकी थी उसने रोहन के शरीर से सारा खून पी लिया, उसके गोरे चेहरे पर और सफेद कपड़े पर खून के छींटे थे उसके होठ के किनारे पर खून लगा था उसने सुरभी के खून से भरा कलश उठाया और जाने लगी तभी वातावरण में एक आवाज गूंजने लगी आई एम सो लॉनली ब्रोकेन एंजल..... ये आवाज सुरभी के फोन से आ रही थी ,वैशाली पलट कर देखती है तो उसके कॉलर आईडी पर मां लिखा हुआ आ रहा था जिसे देख कर वैशाली की आंखो से आसूं निकल रहे थे तभी वैशाली वो कलश ले कर गायब हो गई उसके गायब होते ही सुरभी और रोहन के लाश गायब हो गए और वहां बारिश होने लगी जिससे सड़क पर बिखरा खून साफ हो गया, बारिश का पानी जैसे ही सुरभी के फोन पर गिरा उसके फोन ने भी खामोशी साध ली, बारिश की वजह से सारा खून साफ हो चुका था, इस जंगल ने इस घटना को खुद में ही समेट लिया और उस सड़क ने, उस जंगल ने, इस दर्दनाक मौत को देख कर भी चुप्पी साध रखी थी। तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? क्या सच में वैशाली इतनी क्रूर है या बस कर रही है, मोहिनी का काम ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं !  ✍️ शालिनी चौधरी

  • 15. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 15

    Words: 1192

    Estimated Reading Time: 8 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! लंदन ( A S villa ), वेदांश और देव जब प्रिया की बात सुनते है की वो बिना प्रोटेक्शन के नही आई है तो उन्हें सुकून सा मिलता है।प्रिया ने अभी भी उन दोनो के तरफ नही देखा था, वो अपने फाइल में ही आंखे गड़ाए बैठी थी। इधर देव और वेदांश परेशान से बैठे थे थोड़ी देर तक वहा खामोशी छाई थी, प्रिया का ध्यान जब उन दोनो पर गया तो उसने खामोशी तोड़ते हुए कहा। प्रिया ( देव की तरफ देखते हुए ) " क्या बात है ? बिग ब्रो आप सब इतने परेशान क्यों है।" देव ( सामने से पानी का ग्लास उठाते हुए ) " इंडिया से वीरेंद्र अंकल का कॉल आया था वो चाहते है की ऐश इंडिया जाए उन सब से मिले और अब वही रहे।" देव की बात सुनकर प्रिया एक दम से खिल खिला कर हस पड़ती है और धीरे धीरे उसकी हंसी तेज ही होती जा रही थी,वो पेट पकड़ कर जोर जोर से हस रही थी। प्रिया ( हस्ते हुए ) " और उन्हे ये भ्रम क्यों है की ऐश इंडिया जायेगी, उनके साथ रहेगी, इंडिया जाना तो छोड़ो वो उनसे बात करना भी पसंद नही करती, ओहो बात करना तो दूर की बात है वो तो उनका नाम लेना भी पसंद नही करती।" प्रिया की बात पर वेदांश का चेहरा काला पड़ चुका था वही देव भी अब और परेशान हो गया था, प्रिया आगे कहती है। प्रिया ( समझाने के लहजे में ) " देखो भाई इन लोगो के चक्कर में मत पड़ो और एक बात अगर ऐश को पता चला की आप लोग वहा से कनेक्ट हो तो वो आप से भी रिश्ता तोड़ देगी।"  प्रिया की बात सुन कर उन दोनो का चेहरा काला पड़ जाता है, तभी खुद को संभालते हुए  वेदांश बोलता है। वेदांश ( पानी पीते हुए ) " पर प्रियु एक बार ऐश को उन सब से मिलना चाहिए, आफ्टर ऑल वो उसकी फैमिली है, और गलती इंसानों से ही होती है उन्हे पछतावा है इस बात का, और एक और बात, कुछ भी हो जाए वीरेंद्र अंकल ही उसके पापा रहेंगे।" वेदांश की बात सुनकर प्रिया उसके मूंह पर हाथ रख कर उसे चुप करवाती है। प्रिया ( चुप कराते हुए ) " शू.. शू.. शू, यहां तो बोल दिया पर उसके सामने मत बोलना की वीरेंद्र अंकल उसके पापा है, वरना जान ले लेगी वो दुनिया में अगर किसी से सबसे ज्यादा नफरत करती है तो, वो वीरेंद्र अंकल ही है, और उन्होंने जो किया है वो गलती नही पाप है। फिर थोड़ा रुक कर, उन दोनो के शक्ल को देखने लगती है जिस पर कई सारे भाव आ रहे थे, जा रहे थे, जिसे देख कर प्रिया अपने हाथ में पकड़े फाइल को टेबल पर रख देती है और पैर पर पैर चढ़ा कर बैठ जाती है, और शक भरी नजरों से देखते हुए बोलती है। प्रिया ( शक करते हुए ) " वैसे आप दोनो ने कुछ गड़बड़ किया है क्या ? "  प्रिया का सवाल सुन कर दोनो हड़बड़ा जाते है, फिर वेदांश खुद को संभालते हुए बोलता है। वेदांश ( मासूमियत से ) " मेरी कोई गलती नही है, जो गलती है इस देव की है, इसी ने वीरेंद्र अंकल से प्रोमिस किया है की ऐश को इंडिया भेजेगा।" वेदांश की बात पर प्रिया का मूंह खुला रह जाता है। वही दूसरी तरफ प्रताप गढ़ में, वैशाली सुरभी का खून ले कर पुराने सिंह भवन पहुंच चुकी थी। उसके आंखों से  आंसू किसी झरने की तरह बहे जा रहे थे, जिस हाथ से उसने खून का कलश पकड़ा था वो कांप रहे थे, उसके सामने अभी भी वही सब कुछ चल रहा था, वो धीरे धीरे चल कर महल के दरवाजे तक पहुंचती है और हल्के हाथों से दरवाजे को धक्का देती है दरवाजा चर्र..... की आवाज के साथ खुल जाता है। वो उस कलश को वही पूजा के लिए जो जगह थी वहा रख देती है।तभी मोहिनी के कमरे से उसके जोर जोर से हसने की आवाज आती है। मोहिनी ( हस्ते हुए ) " हा... हा ... हा .. , शाबाश वैशाली शाबास, मुझे तुम पर गर्व है, आखिर तुम भी अब मेरी तरह निर्दय बनती जा रही हो, सही है, हा.... हा.... वैसे भी दया, या भावनाएं दुख ही पहुंचाती है।"  मोहिनी के बात पर वैशाली को बहुत गुस्सा आता है वो एक दम से चीखते हुए बोलती है। वैशाली ( गुस्से से चीखते हुए ) " चुप एक दम चुप, ये जो तुम मृत्यु का तांडव कर रही हो ना , इसका अंत होगा जरूर होगा, देखना तुम और तुम्हारा ये साम्राज्य बहुत जल्द खत्म होगा। " वैशाली की बात पर मोहिनी एक दम से चीख पड़ी। मोहिनी ( चीखते हुए ) " वो दिन कभी भी नही आयेगा, मेरा साम्राज्य और मेरा अंत कभी नही होगा, मुझे रोकने के लिए इस कमरे में बंद किया पर क्या वो लोग मुझे पूरी तरह से बांध पाए, नही ना तो बस मेरा अंत कभी भी नही होगा। " वैशाली ( गुस्से से ) " मुर्ख है तू, पाप की सांसे बहुत ज्यादा लंबी नही होती है, देखना तू की कैसे तेरा और तेरे इस पाप की नगरी का सर्वनाश होगा, जब वो आयेगी। " वैशाली की बात पर मोहिनी व्यंग से । मोहिनी ( व्यंग से ) " तब की तब देखेंगे अभी तू बस पूजा की तैयारी कर तीन बजे स्नान करके काले कपड़े पहन कर वहा बैठ जाना मैं यहां से मंत्र पढूंगी और बताऊंगी वैसा ही करना है।"  मोहिनी के बात पर वैशाली कुछ नही कहती है, वो चुप चाप वहा से चली जाती है। वही महल के अंदर बने मंदिर के तरफ जाती है उस मंदिर को देख कर पुरानी यादें ताजा होने लगती है, उसे याद आता है की कैसे पहले सब यहां पूजा करते थे , गायत्री जी का पूजा करना ,चंद्रा की आरती उसका और तारा का प्रसाद के लिए लड़ना , देवराज जी का प्रसाद बाटना, वीरेंद्र और अमरेंद्र की लड़ाई उसे सब याद आ रहा था और दिल में टीस सी उठ रही थी, वो वही मंदिर के बाहर बैठ जाती है वो मंदिर भी काफी गंदा हो चुका था वहां के फर्श पर और भगवान के मूर्ति पर धूल बैठ गए थे, वो वही बैठ कर रोने लगती है। वैशाली ( रोते हुए ) " क्यों भगवान क्यों ? हमारे साथ ही क्यों ? कितना हसता खेलता परिवार था सब तबाह हो गया, और देखो ना मै अब आपके मंदिर में आ भी नही सकती क्योंकि इतना खून जो किया है, मोहिनी ने मुझे बंदी बना कर सब काम करवाती है, मुझे कब मुक्ति मिलेगी भगवान कब मुक्ति मिलेगी इस नर्क से, कब ? "  वैशाली के आंखो से आंसू बहे जा रहे थे और वो फूट फूट कर रो रही थी। तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? क्या रिएक्शन होगा प्रिया का ? क्या हुआ था वैशाली के साथ ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )। मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं !  ✍️ शालिनी चौधरी

  • 16. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 16

    Words: 1490

    Estimated Reading Time: 9 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! प्रताप गढ़( पुराना सिंह भवन ), वैशाली फूट फूट कर रो रही थी, उसका दर्द उसके आंसू के जरिए बह रहा था, वो मुरारी की मूर्ति की तरफ देखे जा रही थी, उसके दर्द से ऐसा लग रहा था जैसे भगवान भी रो पड़ेंगे, वैशाली रोते हुए ही बोलती है। वैशाली ( रोते हुए ) " हे केशव, ये क्या हो गया मेरे साथ ?, मैं ना मरी हुई हूं, ना जी रही हूं, जब मेरे शरीर को मार दिया तो आत्मा को मुक्त क्यो नही किया ? क्यों मुझे इस डायन के पल्ले बांध दिया ? मैं जो नही करना चाहती वो भी करवाती है, मेरे ही हाथो से किसी न किसी का खून करवा कर अपने सारे अवैदिक पूजा को संपन्न करती है और अपनी शक्ति को बढ़ा रही है। " अपने हाथो को देखते हुए उसे याद आता है की कैसे उसने सुरभी का खून किया था, उसका रोना, उसका आंसुओं से भीगा चेहरा, किस तरह से वो अपने जिंदगी के लिए गिड़गिड़ा रही थी, वही सब याद कर वैशाली का दिल फट रहा था, वो और जोर जोर से रोना चाहती थी। वैशाली ( अपने हाथों को देखते हुए ) " केशव आज मैंने इन्ही हाथों से दो खून किया है, आज फिर मैंने किसी मां से उसके बच्चे को छीना है, उस लड़के की मौत का दुख नहीं है मुझे, क्योंकि वो ऐसे भी पृथ्वी पर बोझ ही था, पर उस लड़की की क्या गलती थी, क्यों मेरे हाथो से उसका खून हुआ ? हे प्रभु कब मुझे इस पाप के दलदल से निकलोगे ? कब इस पाप के साम्राज्य का अंत होगा ? कब मैं इस मोहिनी को तड़पता हुआ देखूंगी ? कब ? " उसके आवाज में गुस्सा छलकने लगा था, वो लगभग चीख रही थी। वही दूसरी तरफ, लंदन ( A S villa ),  वेदांश की बात पर जहां प्रिया का मूंह खुला रह जाता है, वही देव अपना सर झुका लेता है, प्रिया देव के इस रिएक्शन से फट पड़ती है। प्रिया ( गुस्से से ) " आर यू आउट ऑफ यॉर माइंड ? सीरियसली, आपको पता भी है की आपने क्या किया है ? और ये बताइए क्यों किया है ? आपको क्या लगता है इस काम के बारे में जब ऐश को पता चलेगा तो वो आपके पीठ को ठोक कर शाबाशी देगी। ( अपना सिर ना में हिलाते हुए ) नो बिग ब्रो नेवर, बल्कि वो  गुस्से से पता नही क्या करेगी, मे बी हम सब से भी कनेक्शन तोड़ ले।" देव प्रिया को समझते हुए बोलता है। देव ( शांत पर गहरे आवाज में ) " आई नॉ प्रिया, मैने क्या किया है इसके बारे में पता है मुझे, और तेरा और ऐश गुस्सा भी सही है,पर बात को समझ वो लोग ऐश से मिलना चाहते है, प्रियू, ( प्रिया के चेहरे को अपने हथेलियों में भरते हुए प्यार से ) बच्चा वो लोग ऐश का परिवार है, कभी ना कभी तो उसे उन लोगों का सामना करना पड़ेगा ना।" वेदांश ( प्यार से समझते हुए ) " मिनी शैतान, ये बता ना गलती किससे नही होती है, और जिससे नही होती वो भगवान हो जाता है, वीरेंद्र अंकल भी इंसान ही है,  तुझे नही लगता की उन्हे एक मौका मिलना चाहिए। " प्रिया ( गुस्से से ) " नही, मुझे ऐसी वाहियात बात बिलकुल नही लगती, मुझे नहीं लगता की वो इंसान मौका देने लायक है, और आप दोनो जिसे गलती बोल रहे हो ना, तो जानकारी के लिए बता दूं की वो कोई गलती नही बल्कि सोच समझ कर दिया गया धोका था, जिसने मेरी प्यारी पारुल आंटी की जान ले ली, ऐश को उम्र से पहले बड़ा कर दिया। "  बोलते बोलते प्रिया की आंखे नम हो गई, उसका गला रूंध सा गया, प्रिया को इमोशनल होता देख वेदांश ने इशारे से देव को बात छोड़ने का इशारा किया,  देव ने भी बात को वही ड्रॉप कर दिया।  देव ( बात टालते हुए ) " अच्छा ये सब छोड़, ये बता की तू यहां क्यों आई आज ? तुझे ऑफिस नही जाना क्या ? " प्रिया ( शांत होते हुए ) " नही आज नही गई तो यहां आ गई आज मेरा चिल करने का प्लान है।"  अब वहां का माहौल हल्का हो गया था।वही दूसरी तरफ , प्रताप गढ़ ( पुराने सिंह भवन में ), उसके रोने धोने से मोहिनी परेशान हो कर एक दम से चीखते हुए बोलती है। मोहिनी ( गुस्से से ) " अगर तुम्हारा हो गया तो अब जा कर स्नान करके आओ और काले कपड़ों को धारण करो, जाओ हमारे पास अब ज्यादा वक्त नहीं है, जाओ जल्दी जाओ। "  वैशाली को मोहिनी की बात पर गुस्सा तो बहुत आता है, पर वो मन मसोस कर स्नान करने चली जाती है। इधर मोहिनी के कमरे से पायल की आवाजे आ रही थी, जैसे वो कमरे में चहल कदमी कर रही हो, इधर वैशाली धीरे धीरे स्नान कर रही थी वो देर करना चाहती थी पर अफसोस वो चाह कर भी ऐसा नही कर सकती थी, क्योंकि उसकी डोर तो मोहिनी के हाथों में था, वो तो बस कठपुतली थी जिसे मोहिनी जैसे चाहती वैसे नचाती थी, ये जानते हुए भी वो धीरे धीरे काम कर रही थी, तभी मोहिनी की कड़कती आवाज आती है। मोहिनी ( गुस्से से चिल्लाते हुए ) " तुम्हे क्या लगता है ? की को तुम कर रही हो वो मेरे समझ में नहीं आएगा, तुम कितना भी इस पूजा को रोकने की कोशिश करो लेकिन ये पूजा फिर भी होगा ही, तो अपना नाटक बंद करो और जल्दी से तैयार हो कर आओ।" उसकी बात सुन कर वैशाली समझ जाती है की इस पूजा को रोकना उसके समर्थ से बाहर है। वैशाली नहा कर आती है उसने काले रंग का लहंगा चोली पहना था उसके लंबे बाल खुले थे जो उसके कमर तक लटक रहे थे, वो उस कपड़ों में भी बेहद खूबसूरत लग रही थी।  मोहिनी ( गुस्से से ) " अब बैठ जा, और जैसा जैसा मैं कहती ही करती जा। " कमरे से मोहिनी की आवाज आती है जो बोल रही थी की। मोहिनी " हे शैतान के देवता मुझे माफ करे मै खुद ये पूजा नही दे पा रही हूं पर इस लड़की से पूजा दिलवाऊंगी इसे स्वीकार कर आप मुझे शक्ति बढ़ाए जिससे मैं मुक्त हो सकू और आपकी पूजा पहले जैसे ही कर सकू। इतना बोल कर वो अपनी अवैदिक पूजा को शुरू करती है वो अंदर से जैसा जैसा बोल रही थी हॉल में बैठी वैशाली वैसा ही कर रही थी, वहां का माहौल बिल्कुल नकारात्मकता से भर गया था अब वहां का मौसम भी बदलने लगा था, बाहर तूफान चलने लगा था, बिजली कड़कने लगा थी,जैसे प्रकृति भी इस महाविनाश को रोकना चाहती हो पर विवश हो इसलिए अपना आक्रोश दिखा रही थी, सालों पहले जिस महल में सकारात्मक ऊर्जा की पूजा की जाती थी वही अब नकारात्मक ऊर्जा की उपासना की जा रही थी, वैशाली अपने दिल पर पत्थर रख वही कर रही थी जैसा उसे बोला जा रहा था, उसके आंखों में आसूं भरे थे, तभी पूजा खतम हुआ और मोहिनी की आवाज आई। मोहिनी ( बड़े शांत लहजे में ) " अब उस कलश को सामने रखो। " जैसा मोहिनी कहती है वैशाली वैसा ही करती है। मोहिनी " शैतान की जय हो, मेरी ये भेंट स्वीकार करे। "  उसके इतना कहते ही उस कलश से खून आधा हो जाता है, और तभी एक काला धुआं उठता है और मोहिनी के कमरे में चला जाता है, और अगले ही पल मोहिनी के हसने की आवाज आती है जो बता रहा था की उसकी साधना सफल रही। मोहिनी ( खुशी से )  " सफल हुई मेरी साधना सफल हुई, ( फिर वैशाली से ) जाओ इस बचे हुए खून को उसी कुंड में डाल आओ।"  उसके कहने पर वैशाली उठती है और उस कलश को लेकर महल के पीछे के तरफ बने बगीचे में जाती है वहां एक बहुत बड़ा कुंड बना था जो खून से भरा था उसमे से गंध आ रही थी, वैशाली अपना नाक बंद करते हुए उस कुंड में उस खून को डाल देती है, उस कुंड को देख कर ये बताना भी मुश्किल था की कितने निर्दोष लड़कियों का खून था।  इधर प्रताप गढ़ के दूसरे हिस्से के काली मंदिर में एक बूढ़ी महिला मां के सामने बैठ कर रोते हुए बोलती है। बूढ़ी महिला ( गहरी सांस लेते हुए ) " कब तक ये मौत का तांडव चलेगा मां ? " इधर वैशाली खुद को हारी हुई महसूस कर रही थी ! तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? क्यों करती है ऐश्वर्या अपने ही पिता से नफरत ? कैसी पूजा थी जो मोहिनी ने करवाई ? और कौन है ये बूढ़ी महिला ? जानने के लिए पढ़ते रहिए, मोहिनी ( प्यास डायन की ) मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं !  ✍️ शालिनी चौधरी

  • 17. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 17

    Words: 1381

    Estimated Reading Time: 9 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! प्रताप गढ़ ( काली मंदिर), एक बूढ़ी महिला मां काली के प्रतिमा के समक्ष बैठी हुई थी, उनके आंखे अश्रु पूरित थे, वो माता के प्रतिमा को निहारे जा रही थी। बूढ़ी महिला ( भरी आंखों से ) " हे माता ये क्या अनर्थ हो रहा है, प्रताप गढ़ क्या पहले कम क्षतिग्रस्त था जो इस मोहिनी की शक्तियां बढ़ा कर और सर्वनाश होगा, क्या खुशहाल था ये राज्य, यहां की समृद्धि और शांत वातावरण की प्रशंशा फैली हुई थी, परंतु जब से इस मोहिनी की नजर पड़ी है सब खतम हो गया है। " तभी मंदिर के भीतर एक लड़के का प्रवेश होता है, जिसकी उम्र 29-30 की होगी, चेहरे पर सूर्य जैसा दमकता तेज, आंखो में अंगारे भरे हुए, गठीला बदन, आकर्षक व्यक्तित्व, सौम्य मुस्कान जो उसके व्यक्तित्व को पूर्ण बना रही थी। उसने जैसे ही मंदिर में प्रवेश लिया उसकी नजर उस महिला की आंखो पर गया जो अश्रु पूर्ण थे, जिसे देखते ही उस लड़के की मुस्कान गायब हो गई और उसके चेहरे पर चिंताओं के रेखा उपजने लगी वो भीतर आ कर उस महिला के पास बैठ जाता है और उनसे बोलता है। लड़का ( बूढ़ी महिला के पास बैठते हुए ) " गुरु मां, क्या हुआ ? आपकी आंखों में अश्रु, कोई चिंता का विषय है क्या ? सब कुशल तो है ना? " गुरु मां ने जब उस लड़के को देखा तो वो आश्चर्य से बोली। गुरु मां ( हैरानी से ) " कुंवर सा आप यहां इतनी रात्रि में क्या कर रहे है ? " लड़का ( नाराजगी से ) " पहले भी हमने आपको कहा है की आप हमे हमारे नाम से बुलाए, इतना अच्छा नाम है हमारा रुद्र  पर आप हमे हमेशा कुंवर सा ही बोलती है, और ये रात्रि कहां है भोर हो गया है।" रुद्र की नाराजगी देख कर गुरु मां मुस्करा उठती है फिर बड़े ही प्यार से उनके सर पर हाथ फेरते हुए बोलती है। गुरु मां " अब कुंवर सा को तो कुंवर सा ही बोलना चाहिए, पर अगर आप को नही भाया तो हम आपको अब से रुद्र  ही कहेंगे ठीक है ( थोड़ा गंभीर हो कर ) रुद्र आपके यहां आने का कारण मतलब सब कुशल तो है ना ? "  गुरु मां के बात पर रुद्र अब गंभीर हो गया, उसके मुख पर चिंताओं ने अपना घर बना लिया, वो एक दम से बैचेन होते हुए बोला । रुद्र ( बैचेनी से ) " नही गुरु मां सब कुशल है, बस कुछ निजी समस्या है।"  गुरु मां " निजी समस्या, क्या हुआ है रुद्र आप इतने बैचेन क्यों है ? " गुरु मां की बात सुनकर रुद्र पहले खुद को शांत करता है। रुद्र ( खुद को शांत करते हुए ) " निजी समस्या भी कोई गंभीर नही है बस आज कल मन बड़ा व्यग्र रहता है, और आज तो ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई ऐसी बात हुई है जिसे नही होना चाहिए था। "  गुरु मां ( शांत लहजे में ) " हां, उस मोहिनी ने फिर से शैतान को पूजा दी है और उसकी शक्तियां बढ़ी है, जिस वजह से आज प्रकृति भी व्याकुल है।" रुद्र ( परेशान होते हुए ) " ये सिलसिला कब तक चलेगा, कब खतम होगा ये सब ? " गुरु मां ( शून्य में देखते हुए ) " सबके जुबान पर यही तो सवाल है की कब खतम होगा ये सब ? पर इसका उत्तर एक ही है जब वो तीनो आयेगी तब।" रुद्र ( हैरानी से ) " कौन तीनो ? " गुरु मां " अभी ये जानना इतना आवश्यक नहीं है आपके लिए, और वैसे भी भविष्य ने अपने गर्भ में क्या छिपा रखा है, इसका ज्ञान तो केवल और केवल विधाता के पास है।"  रुद्र ( थोड़ा सकुचाते हुए ) " गुरु मां आप दादी सा से कहे ना की वो ऐश्वर्या को घर पर बुला ले, हम सब उससे मिलना चाहते है पर दादी सा उन्हे घर पर नहीं आने देना चाहती है।"  गुरु मां " रुद्र हमने अभी ही आपसे कहा है ना, कि भविष्य ने अपने गर्भ में क्या छुपा रखा है ये कोई नही जानता और किसी के भी भीतर किसी को रोकने का सामर्थ्य नही है।"  गुरु मां की बात पर रुद्र उनसे कुछ नही कह पाता है और फिर वहां से उठ कर विदा लेकर चला जाता है। वही दूसरी तरफ, लंदन ( A S villa ), देव ने बातों का रुख मोड़ कर वहां के माहौल को बदल दिया था, वो तीनो अब बस इधर उधर की बाते कर रहे थे। तभी ऐश्वर्या भी वही आती हुई दिखती है उन सबकी नजर उस पर टिक जाती है, गोरा रंग उस पर डार्क ब्लू रंग का सलवार कुर्ता, कमर से नीचे तक लटक रही चोटी, कानो में डायमंड के टॉप्स, गले में एक लॉकेट जिस पर कृष्ण लिखा था, तुरंत शॉवर लेने के वजह से उसका बदन गुलाबी हो रहा था, जो उसे निखारने का काम कर रहा था वो बिल्कुल खिली हुई गुलाब की तरह लग रही थी, सब कुछ परफेक्ट था बस कमी थी तो चेहरे पर मुस्कान की, वो बिल्कुल नीरस भाव लिए थी जो उसके तेज को कम करने का कार्य बड़ी ही निष्ठा से कर रहा था, वो चलती हुई उन सबके पास आती है, और बैठ जाती है, वहां खामोशी पसर चुकी थी थोड़ी देर के बाद ऐश्वर्या ही चुप्पी तोड़ते हुए बोलती है। ऐश्वर्या ( गंभीरता से ) " क्या बात है सब ऐसे शांत क्यों हो गए ? " ऐश की बात पर किसी को समझ ही नही आ रहा था की क्या जवाब दे तभी प्रिया तपाक से बोल पड़ी। प्रिया ( शरारत से ) " कोई क्या ही बोलेगा तुमने कुछ बोलने लायक छोड़ा है ? " प्रिया की बात पर ऐश्वर्या एक दम से हैरान रह जाती है। ऐश्वर्या ( हैरान होते हुए ) " मतलब, मैंने क्या किया ? " प्रिया( चुहल करते हुए) " मतलब जिस भाई  की बहन इतनी खूबसूरत दिखे उसका भाई तो शांत ही रहेगा ना और बेचारा यही सोचेगा की इतनी खूबसूरत बहन के लिए कहां से सुंदर सा राजकुंवर कहां से लाए। "  प्रिया अपनी बात खतम करके हसने लगती है वही देव और वेदांश के चहरे पर भी मुस्कान खेल जाती है।  ऐश्वर्या ( देव और वेदांश को देखते हुए ) " वैसे आप दोनो के यहां आने की वजह क्योंकि बिना वजह तो आप सब कंपनी छोड़ कर आने वाले नही है। " वेदांश कुछ बोलने को हुआ पर देव ने उससे पहले ही बीच में बोल पड़ा। देव " वो बस तुम्हे देखने की इच्छा हुई इसलिए आ गए।" ऐश्वर्या ( त्योरियां चढ़ाते हुए ) " मुझे देखने के लिए कहीं सिंह परिवार की तरफ से तो नही आए है ना ? " ऐश्वर्या की बात पर तीनो के होश उड़ गए तभी वेदांश बात संभालते हुए बोलता है। वेदांश " नही तो बिलकुल भी नहीं, पर तुम ऐसे क्यों बोल रही हो ? " ऐश्वर्या " नही मुझे बस ऐसे ही लगा ! "  प्रताप गढ़ ( सिंह विला में ), एक बड़े ही आलीशान कमरे में रुद्र एक तस्वीर के सामने खड़ा था वहां पर दो तस्वीरे थी एक औरत की और दूसरी तस्वीर में एक दस साल की बच्ची मुस्कुरा रही थी उसने हाथ में एक तलवार पकड़े तन कर बिलकुल एक योद्धा की भांति खड़ी थी रुद्र उस तस्वीर पर हाथ फेरते हुए एक टक देखे जा रहा था उसके आंखे आंसू से भरे थे। रुद्र ( रोते हुए ) " हमे क्षमा कर दो मेरी लाडो मै उस वक्त तुम्हारे लिए खड़ा नही हो पाया जब तुम्हे हम सबसे दूर किया जा रहा था,( फिर थोड़ा रुक कर ) पहले ही तुम इतनी समझदार थी अब तो और भी हो गई होगी और सुंदर भी, भाई होने के नाते मेरा फर्ज है की मै तुम्हारे लिए एक अच्छा सा जीवन साथी चुनूं जो मेरी ऐश्वर्या को खुश रखे। "  इतना कह कर वो फफक कर रो पड़ा वही दरवाजे के पास खड़े वीरेंद्र जी की भी आंखे छलक पड़ी वो वही से लौट गए। तो आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ें मोहिनी ( प्यास डायन की ) मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं !  ✍️ शालिनी चौधरी

  • 18. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 18

    Words: 1249

    Estimated Reading Time: 8 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! प्रताप गढ़ ( सिंह विला ), रुद्र अपने कमरे में ऐश्वर्या के तस्वीर के सामने रो रहा था, वो कितना विवश है, ये सोच कर ही उसके आंसू रुक नही रहे थे। वही दरवाजे के पास खड़े वीरेंद्र जी की आंखे भी नम थी कहीं न कहीं इस सब के लिए वो ही जिम्मेदार थे, वो अपने आंसू साफ करते हुए अपने कमरे के तरफ चले जाते है।उनके पीछे ही अमरेंद्र भी खड़ा होता है, वो उनकी आंसू को देख लेता है और सिवाए दुखी होने के कुछ नही कर सकता। वही दूसरी तरफ लंदन ( A S villa ), प्रिया, वेदांश, देव और ऐश्वर्या चारो बैठे होते है, उनके सामने रखे टी - टेबल पर फिर से चाय और स्नैक्स सज गए थे, केवल ऐश्वर्या के लिए कॉफी रखी थी। सब वहां बात कर रहे थे पर ऐश्वर्या बिल्कुल खामोश उन सबकी बातों को सिर्फ सुन रही थी, उसके चेहरे पर गहन उदासी छाई थी। प्रिया ऐश्वर्या को देखते हुए बोलती है। प्रिया ( ऐश्वर्या को देखते हुए ) " ऐश मै क्या सोच रही थी की क्यों ना इस बार हम सब इंडिया घूमने चले ? " प्रिया की बात पर जहां देव और वेदांश के चेहरे पर हैरानी के भाव आ जाते है वही ऐश्वर्या की आंखे सर्द हो जाती है, उसका चेहरा पहले से ज्यादा उदासीन दिखने लगता है। सब की नजरे ऐश्वर्या के चेहरे पर टिकी थी, सब उसके चेहरे पर आते जाते भावों को देख पा रहे थे, और उसके जवाब का इंतजार कर रहे थे। तभी ऐश्वर्या के लब हिलते है और सिर्फ एक शब्द में ही उसका जवाब आता है। ऐश्वर्या ( कठोर आवाज में ) " नही ! " सबको पहले से ही इसी जवाब की उम्मीद थी, उसका व्यवहार पहले से ज्यादा कठोर दिखने लगा था, किसीको कुछ भी पूछने की हिम्मत नही हो रही थी फिर भी सारे हिम्मत को बटोर कर प्रिया अपना थूक निगलते हुए फिर से बोलती है। प्रिया ( थूक गटकते हुए ) " ऐश इस तरह से तो हम सब अपनी ही संस्कृति से दूर हो रहे है, तुम्हे नही लगता की हमे एक बार इंडिया के ट्रिप पर जाना चाहिए, तुम उन लोगो के सामने मत जाना,( फिर थोड़ा रुक कर ) वैसे भी गलती उन लोगो की है ना की पूरे भारत की जो हम वहां जा नही सकते। " प्रिया की बात खतम होते ही सबकी निगाहें एक बार फिर ऐश्वर्या पर टिक जाती है, इस बार देव और वेदांश को थोड़ी सी आशा की किरण नजर आती है।पर तभी ऐश्वर्या की सर्द आवाज उनके कानो से टकराती है। ऐश्वर्या ( शून्य में देखते हुए ) " तुम लोगो को जाना है तो जाओ, घूमो, देखो और समझो अपनी संस्कृति को पर मैं नहीं जा रही वहां जिस जगह ने मेरा सब कुछ छीन लिया मै वहा नही जा रही।"  ऐश्वर्या के बात पर देव ने इस बार खुद को मजबूत करते हुए कहा। देव ( खुद को संयत करते हुए ) " ऐश पुरानी चीजों को लेकर हम कब तक जी सकते है, वो बाते बीत चुकी है अब तुम या फिर कोई और कुछ नही कर सकता, इसलिए आगे बढ़ो।" देव की बात पर ऐश्वर्या की आंखे एक दम से सुर्ख लाल हो जाती है, वो एक दम से बोल पड़ती है। ऐश्वर्या ( थोड़े कड़े लहजे में ) " मै माफी चाहूंगी। लेकिन जरा ये तो बताए की मुझे वापस बुलाने के लिए सिंह परिवार ने ऐसा भी क्या दिया जो आपको मै नही दिख रही। " इतना बोलते हुए वो वहां से चली जाती है। वही सब हैरान रह जाते है। वेदांश ( हैरानी से ) " ये ऐसे कैसे बोल सकती है, की हम सबने उन लोगों से कोई डील किया है।" प्रिया ( खुद को संभालते हुए ) " नही भाई, वो ऐसा कुछ सोचती नही बल्कि सिंह परिवार के नाम पर ही उसकी बुरी यादें ताजा हो जाती है और ये एक क्विक रिएक्शन था इस से ज्यादा कुछ भी नही।" दोनो अपना सर हिला कर रह जाते है। वेदांश ( देव से ) " वीरेंद्र अंकल से क्या बोलेंगे अब ? " प्रिया ( थोड़ा सीरियस टोन में ) " जो सच्चाई है वो की ऐश नही आना चाहती है वापस।"  प्रिया की बात पर देव कुछ बोलने को होता है की तभी वेदांश उसे रोक देता है। इधर ऐश्वर्या के कमरे में,  ऐश्वर्या ने दुबारा से जिम वियर पहन लिया था और वो चलते हुए जिम में जाती है, हाथों में ग्लव्स पहन कर पंचिंग बैग पर पंचेस बरसाने लगती है, उसका पूरा चेहरा गुस्से से लाल था, वो इतने गुस्से में पंचेस बरसा रही थी की बिचारा पंचिंग बैग की हालत पस्त हो चुकी थी, उसकी आंखों से अंगार बरस रहे थे, तभी उसके सामने कुछ धुंधली सी तस्वीर आने लगती है, जिसमे एक औरत के हाथो में जहर की शीशी थी और वो उसे खोलने की कोशिश कर रही थी पर उसके जल्दबाजी की वजह से वो खुल नही रही थी, उस औरत के ठीक सामने उसके पैरो से एक दस साल की बच्ची लिपटी थी और वो रो रो कर उस औरत को रोक रही थी। लड़की ( रोते हुए ) " मां, ये आप क्या कर रही हो ? ऐसा मत करो मां मै कैसे रहूंगी आपके बिना ? मां रुक जाओ मां !" औरत ( उस लड़की को गले लगाते हुए ) " ऐश्वर्या मेरी बेटी रोते नही आपके पास तो पूरी फैमिली है,आप क्यों रो रहे हो ? " ऐश्वर्या ( रोते हुए ) " मां मुझे आप चाहिए, मां आप ही तो कहती हो ना की सुसाइड गलत है फिर आप क्यों ये जहर पी रही हो।" औरत ( रोते हुए ) " बेटा जिसकी पूरी दुनिया ही खतम हो जाए, जिनके रास्ते ही बंद हो जाए उनके लिए गलत नही है सुसाइड ! " इतना कह कर वो औरत जहर की पूरी शीशी को अपने मूंह में उड़ेल लेती है, जहर इतना असरदार था की तुरंत ही उसकी सांसे उखड़ने लगती है, उसकी आंखों से आंसू गिर रहे होते है। औरत ( रोते हुए ) " मुझे माफ करदो बिटिया, अपना ख्याल रखना मै जा रही हूं हमेशा के लिए, मैं अच्छी मां नही हूं हो सके तो माफ करदो अपनी मां को।"  इतना कह कर वो औरत इस दुनिया को छोड़ देती है। ऐश्वर्या ( रोते हुए ) " नही मां आप बहुत अच्छे हो, मां उठो न मां।" ऐश्वर्या के बार बार हिलाने पर भी जब वो औरत नही उठती है तो ऐश्वर्या एक दम से चीख पड़ती है। ऐश्वर्या ( चीखते हुए) " मां ...... " इसी चीख के साथ ही वो अतीत के पन्नो से बाहर आती है, अपने आस पास देखती है तो वो इस वक्त अपने जिम में थी और फर्श पर बैठी थी, उसके आंखो से आंसू बह रहे थे, फिर वो अपने आंखो को साफ करके एक दम से उठती है,और खुद से ही बोलती है। ऐश्वर्या ( खुद से ही ) " नही मैं किसी को माफ नही करूंगी उन सबकी वजह से मेरी मां मुझसे अलग हुई मै किसी को माफ नही करूंगी, ये मेरा प्रण है।" इतना कह कर वो फिर से अपने गुस्से को पंचिंग बैग पर उतारने लगती है, उसके आंखो से अंगार बरस रहे थे। आगे क्या होगा जानने के लिए बने रहें मोहिनी ( डायन की ) मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं !  ✍️ शालिनी चौधरी

  • 19. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 19

    Words: 1319

    Estimated Reading Time: 8 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! प्रताप गढ़( सिंह विला ), वीरेंद्र जी अपने कमरे में बैठे एक पुरानी एल्बम को पलट कर देख रहे थे वो उनकी शादी का एल्बम था। उन सारी पुरानी फोटो को देख कर उनकी पुरानी यादें ताजा हो रही थी, वो पन्ना पलटते है तभी उनके सामने एक तस्वीर आती है जिसमे वो और उनकी पत्नी होती है, वीरेंद्र जी उनके गले में हाथ डालकर पीछे से खड़े होते है और उनकी पत्नी कुर्सी पर बैठी होती है। उस तस्वीर को देख कर उनके आंखो से आंसू गिरने लगते है जो उनके गालों को भीगा रहे होते है। वीरेंद्र जी ( अटकते हुए ) " पारुल कहां चली गई तुम ,सब खतम हो गया, तुम्हारे होने से मेरी जिंदगी जितनी खुशहाल थी, जितनी शांत थी, तुम्हारे जाने के बाद उतना ही अधूरा है, तुम्हारे जाने के बाद रुद्र और वारिधि ने तो बात करना बंद कर ही दिया और ऐश्वर्या वो तो हम सबकी सूरत भी नही देखना चाहती, सब खतम हो गया पारुल, सब खतम हो गया ! " वो अभी उन तस्वीरों से बात कर ही रहे थे की नीचे से एक लड़के के चिल्लाने की आवाज आती है जो चिल्ला कर सबको बुला रहा था। लड़का ( चिल्लाते हुए ) " मां,  दादी, पापा , बड़े पापा वारिधी, काव्या, भाई, कहां है सब जल्दी आइए। इस लड़के के ऐसे चिल्लाने पर सब दौड़ते हुए आते है। गायत्री जी ( घबड़ाते हुए ) " क्या बात है शौर्यम ? आप ऐसे क्यों चिल्ला रहे है ? " शौर्यम ( हल्के परेशानी से ) " दादी वो लखन दादा है ना उनकी पोती जो है सुरभी उसकी लाश मिली है चौराहे पर, कल वो शाम के बस से शहर से आ रही थी।सब कह रहे है की वो हमारे महल के तरफ गई थी क्योंकि उसका भी खून ही निचोड़ा हुआ है।" शौर्यम के बात पर सबके चेहरे पर चिंता की लकीरें खींचने लगती है तभी अमरेंद्र जी की पत्नी जिनका नाम पलक था, वो बोलती है। पलक ( घबराते हुए ) " पर बहुत दिन से तो वो शांत थी ना, फिर अचानक से कैसे उसने फिर से लड़कियों को मारना शुरू कर दिया। "  उसकी बात पर गायत्री जी कुछ नही बोलती है वही चबूतरे पर बैठ जाती है, अमरेंद्र पलक को समझाते हुए बोलता है। अमरेंद्र ( पलक से ) " वो किसी को तब तक नहीं मार सकती जब तक कोई उसके क्षेत्र में न जाए पर जो उसके क्षेत्र में जाता है वो लाश बनकर ही बाहर आता है।" रुद्र ( सोचते हुए ) " पर वो रास्ता तो बंद है फिर वो लड़की वहां गई कैसे ? "  रुद्र की बात पर सब परेशान से हो जाते है, तभी वीरेंद्र जी बोलते है। वीरेंद्र जी ( रुद्र की तरफ देखते हुए ) " ये सब बाद में सोचेंगे पहले लखन काका के घर चल कर देखो क्या हुआ, उनकी पोती का अंत्येष्टि भी करना होगा वहां तो कोई भी इस हाल में नही होगा।" वीरेंद्र जी की बात पर रुद्र कोई जवाब नही देता है ना ही उनकी तरफ देखता है वो सीधा बाहर की तरफ चला जाता है उसके पीछे शौर्यम भी निकल पड़ता है, वीरेंद्र जी भी बाहर जाने लगते है तभी काव्या की आवाज उनके कान में पड़ती है जो डरते हुए वारिधि से बोल रही थी। काव्या ( डरते हुए ) " वारिधि क्या वो चुरैल हमे भी मार देगी ? " वारिधि ( परेशान होते हुए ) " पता नही क्या होगा ? कब ये सब खतम होगा ? "  वारिधि की बात पर पलक जी तुनक कर बोलती है। पलक जी ( तुनकते हुए ) " जब भाई सा चाहेंगे, वो एक बार जा कर मिल ले उससे इन्हे देखते ही वो सब कुछ बंद कर देगी।" पलक की बात पर वीरेंद्र जी की आंखो में एक बार फिर से आंसू आ जाते है, वो अपने आंसू को छिपाते हुए अपना चेहरा घुमा लेते है पर अमरेंद्र जी नजर पड़ ही जाती है। अमरेंद्र जी ( गुस्से से पलक जी से ) " पलक हर बात में अपनी जलती जुबान चलाना आवशक नही है कहीं चुप भी हो जाया करे बच्चे खड़े है, होश है जरा सा भी।" वीरेंद्र जी उन्हे चुप कराते हुए अपने साथ ले जाते है, पलक जी मूंह ऐंठते हुए रसोई में चली जाती है, गायत्री जी अपने कमरे के तरफ चली जाती है, वही वारिधि और काव्या, वारिधि के कमरे में चले जाते है। वही दुसरी तरफ  लंदन ( A S villa ), ऐश्वर्या पूरी तरह से पसीने से तर बत्तर थी, वो बुरी तरीके से थक चुकी थी लेकिन फिर भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी, उसका गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था, उसके सामने अभी भी वही सारे मंजर घूम रहे थे, जिसे याद कर उसके तन बदन में आग लग रही थी जो उसके गुस्से को भड़काने का काम रही थी। ऐश्वर्या रुकती है और अपने हाथ से ग्लव्स खोल कर पास के ही टेबल पर बेतरिकी से फेक देती है, और वही लगे सोफे पर बैठ कर टॉवेल से अपने चेहरे पर आए पसीने को पोछने लगती है, पसीने को साफ करके वो वही सोफे पर पीछे की ओर टिककर आंख मूंद लेती है उसकी सांसे तेजी से चल रहे होते है जो उसके थकने का सबूत दे रहे थे, वो वैसे ही आंख मूंदे मूंदे ही फिर से अपने अतीत की गहराइयों में चली जाती है, जहां एक बड़े ही आलीशान कमरे में एक मर्द और एक औरत बिस्तर पर लेटे थे और कपड़ों के नाम पर उनके तन पर बस एक पतली सी चादर थी और वो दोनो एक दूसरे के बदन से ऐसे चिपके थे जैसे एक ही शरीर हो, कमरे का माहौल बड़ा ही रूमानी था। उस सीन को याद करके ऐश्वर्या की मुट्ठी कस चुकी थी वो एक दम से आंखे खोलती है और सामने रखे बॉटल का एनर्जी ड्रिंक एक ही सांस में पी जाती है और फिर से पंचिंग बैग पर अपना गुस्सा उतारने लगती है। वही देव और वेदांश भी थोड़ी देर बैठ कर चले जाते है बाहर कार में देव वेदांश से बोलता है । देव ( परेशान होते हुए ) " अब क्या करेंगे ? " वेदांश( सोचते हुए ) " अब हम कुछ भी नही करेंगे अब जो करेंगे वो वीरेंद्र अंकल खुद ही करेंगे। " देव ( परेशानी से ) " पर ऐश तो उनकी बात सुनेगी ही नही वो तो अलग ही ज्वाला मुखी बनी बैठी है।"  वेदांश ( थोड़ा खुश होते हुए ) " हम लोग एक बार माहिर से बात करते है शायद वो कोई रास्ता बता दे।" देव अपना सर हां में हिला देता है और फिर वो दोनो वहां से चले जाते है। इधर प्रताप गढ़ में, सूरज की लालिमा चारो तरफ फैल रही थी, चारो तरफ वातावरण शांत था या कह ले की दुखों के चादर में लिपटा हुआ खामोश था क्योंकि उसी शांत वातावरण में प्रताप गढ़ का एक घर ऐसा भी था जिसने अपनी जवान बेटी खोई थी, लखन काका के घर के बाहर लोगों की भीड़ लगी थी, सामने सफेद कपड़े में लिपटी सुरभी सबके दुख का कारण थी, सुरभी की मां की हालत काफी खराब थी वो बार बार बेहोश हो रही थी वही लखन काका दरवाजे पर बैठे थे उन्हें किसी चीज का होश ही नही था, तभी रुद्र और शौर्यम  वहां पहुंचते है हर चीज संभालते हुए वो लोग सुरभी को लेकर शमशान की ओर जाने लगते है। सबकी आंखे नम थी।वहां पहुंच कर शौर्यम ने ही अग्नि दान किया क्योंकि सुरभी घर की अकेली बच्ची थी और उसके पिता भी नही थे, जहां सबकी आंखे नम थी वही रुद्र के दिमाग में कुछ तो खटक रहा था,  वीरेंद्र जी अलग ही अपने दुखों में गड़ते जा रहे थे। मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं !  ✍️ शालिनी चौधरी

  • 20. मोहिनी ( प्यास डायन की ) - Chapter 20

    Words: 1237

    Estimated Reading Time: 8 min

    जय श्री कृष्णा, ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः ! लंदन ( Bhargav's House ), देव और वेदांश A S villa से निकल चुके थे दोनो में से किसी का दिमाग काम नहीं कर रहा था, रास्ते में वेदांश ने ही सजेस्ट किया के उसके घर चले इसलिए दोनो वेदांश के घर आ चुके थे, ये घर न तो बहुत बड़ा था और ना ही छोटा था, मिडियम साइज का ये घर काफी खूबसूरत था, घर के बाहर  सफेद संगमरमर का काम किया गया था। बाहर एक छोटा सा गार्डन एरिया भी बना था और चारो तरफ बाउंड्री दी हुई थी जिससे कोई भी अंदर नही देख सकता था, गार्डन में रंग बिरंगे अलग अलग किस्म के फूलों की क्यारियां बनी थी, जिसमे अलग अलग फूल खिले थे और उन पर तितलियां मंडरा रही थी, जिससे उस गार्डन की खूबसूरती में चार चांद लगा दिया था, वही गार्डन के बीचों बीच एक फाउन्टेन भी था जो नीचे से कमल के आकार का था और उसके बीच में एक मोर बना हुआ था जिसने अपने पंखों को पूरी तरह से फैलाया था, मोर के पंखों से ही पानी गिर रहा था जो नीचे फाउन्टेन के कमल वाले हिस्से में पहुंच कर धीरे धीरे नीचे गिर रहा था और वही पानी गार्डन के प्लांट्स तक पहुंच रहा था। गार्डन के ही दूसरे हिस्से में पार्किंग एरिया भी बना हुआ था जिसे छोटे छोटे प्लांट से ही सजाया गया था, अंदर अच्छा खासा कार कलेक्शन किया गया था। तभी वेदांश की कार धरधराते हुए अंदर आ जाती है जिससे दोनो बाहर आ जाते है, दोनो के चेहरे पर चिंता की रेखा खींची हुई थी, दोनो खामोशी से ही घर के अंदर जाते है, घर के अंदर का हिस्सा और भी खूबसूरत था जिसे व्हाइट ब्लू के कॉम्बिनेशन से डेकोरेट किया गया था इंटीरियर से लेकर परदे तक या तो व्हाइट या तो ब्लू था जो घर को बड़ा ही शांत वातावरण दे रहा था। दोनो अंदर आ कर बैठ आ जाते है, तभी एक मेड आ कर उन्हे पानी देती है, देव जैसे ही पानी पीने के लिए होता है की उसका फोन रिंग करने लगता है। विल यू एवर एस्क मि हाउ आई एम फीलिंग ........ देव अपना फोन देखता है तो वीरेंद्र जी का कॉल आ रहा होता है, वेदांश उसे इशारे से  फोन उठाने को कहता है। देव के कॉल रिसीव करते ही उधर से आवाज आती है। वीरेंद्र जी ( गंभीरता से ) " कैसे हो देव, और बाकी सब कैसे है ? "  देव ( शांत लहजे में ) " मै ठीक हूं अंकल और बांकि सब भी ठीक है। आप सब कैसे है ? "  वीरेंद्र जी ( गहरी सांस लेते हुए ) " वो इंसान कैसा हो सकता है ? जिसके बच्चे उससे बात ही ना करे जो उससे नफरत करते हो। " वीरेंद्र जी के आवाज में दर्द साफ झलक रहा था उनकी बात का जवाब देव के पास नही था इसलिए वो खामोश ही रहता है। वीरेंद्र जी ( थोड़ा उत्सुक होते हुए ) " बच्चा तुमने बात की ऐश्वर्या से क्या वो मान गई वापस आने के लिए ? " वीरेंद्र जी का सवाल सुन देव के कुछ समझ में नही आ रहा होता है की क्या जवाब दे ? तभी वेदांश बोल पड़ता है। वेदांश ( शांत लहजे में ) " अंकल प्रणाम में वेदांश बोल रहा हु। "  वीरेंद्र जी " अरे खुश रहो बेटा तुम भी वही हो।"  वेदांश ( ठंडे लहजे में ) " जी "  वीरेंद्र जी ( थोड़े बैचेनी से ) " बेटा तुम सब ने मेरे सवाल का जवाब नही दिया, क्या ऐश्वर्या वापस आ रही है ? "  उनके सवाल से देव परेशान होने लगता है की क्या जवाब दे। तभी वेदांश उसे शांत करते हुए बोलता है। वेदांश ( दुखी आवाज में ) " अंकल वो वहा आना तो दूर वहां का नाम सुनना भी पसंद नही करती, हम उससे बात कर ही नही पाए वो आप लोगों के नाम पर ही भड़की हुई ज्वालामुखी बन जाती है।"  वेदांश की बात सुनकर वीरेंद्र जी अपना सर नीचे कर लेते है। फिर गहरी सांस लेकर सामने पारुल जी के तस्वीर को देखने लगते है उनके आंखो से आंसू निकल रहे होते है। वीरेंद्र जी ( दुखी आवाज में ) " किसी के साथ धोका किया था मैने ये सब उसी का परिणाम है की मेरी बच्ची मुझसे ही बात नही करना चाहती।" वीरेंद्र जी के बात पर  वेदांश कुछ नही कहता है,  देव ( दुखी स्वर में ) " अंकल आप चिंता मत कीजिए हम कोशिश करते रहेंगे देखते है क्या होता है ? " इतना कह कर देव फोन काट देता है, वेदांश अपने में ही खोया हुआ कुछ सोच रहा होता है, वेदांश को ऐसे खुद में ही खोया देख देव उसे हिलाते हुए पूछता है । देव ( वेदांश को हिलाते हुए ) " क्या हुआ ? तू कहां गुम हो गया ? "  वेदांश ( सोचते हुए ) " यार ऐश ने हमे बताया की उसके परिवार वालों ने उसे यहां भेज दिया इसलिए वो उन सब से नफरत करती है, पर सिर्फ यहां भेज देने के वजह से ही वो इतना नफरत नही करेगी ? बात जरूर कुछ और ही है।"  देव ( सर हिलाते हुए ) " हां, तू बोल तो सही रहा है कुछ अलग बात है जो हमे नही पता ऐश की नफरत इतनी खोखली नही हो सकती और प्रिया भी उनसे उतना ही नफरत करती है शायद उसे भी पता है। " वेदांश ( सोचते हुए ) " क्यों ना हम प्रिया से ही पूछे की आखिर बात क्या है ? " वेदांश की बात पर देव भी राजी हो जाता है। इधर  प्रताप गढ़ ( सिंह विला ), काव्या और वारिधि, वारिधि के कमरे में बैठे थे दोनो एक दूसरे के सामने बैठे होते है और दोनो के दिमाग में पलक जी की कही बात चल रही होती है। काव्या ( कन्फ्यूज होते हुए ) " यार वारु ये मां ने ऐसा क्यों कहा बड़े पापा को, की वो उस चुरैल से मिलेंगे तो सब ठीक हो जायेगा।"  वारिधि ( मूंह बिचकाते हुए ) " पता नही क्यों पर ऐसा लगता है जैसे छोटी मां पापा से नाराज हो मैं हमेशा ही ये नोटिस करती हु।"  दोनों के समझ में कुछ नही आ रहा था। इधर पुराने सिंह भवन में, मोहिनी अपने कमरे में नीचे फर्श पर बैठी होती है उसका सिर्फ पीठ दिख रहा होता है, उसके लंबे बाल खुले होते है जो नीचे फर्श को छू रहे होते है, उसके हाथ में वीरेंद्र जी की तस्वीर होती है, और वो पागलों की तरह उसे चूमे जा रही होती है। मोहिनी ( लंबी सांसे लेते हुए ) " कुंवर सा मै कितना भी आपको भुला देने का प्रयास करू पर नही भुला सकती आपका वो प्रेम जिस पर केवल मेरा हक है, वो केवल मेरा है, केवल और केवल मेरा। (फिर थोड़ा रुकती है और तस्वीर पर हाथ फेरते हुए बोलती है) " मेरे तन में लगी है अगन जो तेरे नाम की, ये तब ही मिटेंगे अब, जब बरसेगा तेरा प्रेम  मेरे तन बदन पर तेरे ही अधरों के मार्ग से  और होगा जब तू मेरे नाम पर, और मै तेरे नाम की ! " आगे क्या होगा ? जानने के लिए पढ़ें मोहिनी ( प्यास डायन की ) मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे इंस्टा हैंडल, shalini_chaudhary20  पर जुड़िए और मुझसे बात कर सकते हैं अपनी बाते पूछ सकते हैं !  ✍️ शालिनी चौधरी