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ये तूने क्या किया..

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Shalini Chaudhary

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इश्क़ ये शब्द ही इतना मीठा है कि कहते ही हो जाए... ये कहानी है इश्क़ और जुनून की जहां एक को इश्क़ है और चाहत है उसे पा लेने की अपने रूह में बसा लेने की, तो दूसरे को जुनून है अपने नाम और पहचान की ! एक की जंग है इश्क़ हासिल करना और एक को दुनियां मुट्ठी मे...

Total Chapters (22)

Page 1 of 2

  • 1. ये तूने क्या किया.. - Chapter 1

    Words: 1363

    Estimated Reading Time: 9 min

    मंज़र इश्क़ का बड़ा दर्दनाक सा है,
    ये नज़रों के रास्ते दिलों पर वार करता है!

    इश्क़, मोहब्बत महज़ लफ़्ज़ों का खेल है,
    आख़िर ये ही तो सौदा-ए-रूह हज़ार करता है!

    अंधेरे कमरे में बस मोबाइल स्क्रीन की हल्की रोशनी थी, जो एक प्यारे से चेहरे पर पड़ रही थी। वह लड़की एकटक स्क्रीन को देख रही थी, उसके होंठ बुदबुदा रहे थे और आँखें आँसुओं से भरी थीं। जब शायरी के बोल खत्म हुए, तो वह लड़की उठकर बैठ गई और टेबल लैंप ऑन कर दिया, जिससे कमरे में हल्की रोशनी फैल गई। ब्लैक नाइट सूट में उसका गोरा बदन बेहद खूबसूरत लग रहा था, लेकिन उसकी आँखें लाल थीं, जैसे वह बहुत देर से रो रही हो।

    उसने एक तरफ अपना फोन रखा और आँसुओं को पोंछते हुए दोबारा मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली। "shalini_chaudhary20" नाम का एक इंस्टाग्राम पेज खुला हुआ था, जिस पर पोस्ट की गई यह शायरी उसे फिर से भावुक कर गई थी। तभी मोबाइल की रिंगटोन गूँजी, स्क्रीन पर "दीक्षा" का नाम फ्लैश हो रहा था। उसने तुरंत कॉल रिसीव कर लिया।

    "हैलो! हाँ दीक्षु, बोल..."

    दूसरी तरफ से दीक्षा फुल एक्साइटमेंट में बोली,
    "Hey आरु, कल तू सबा की बर्थडे पार्टी में चलेगी ना? बता न, क्या पहन रही है? वैसे तो उसने ड्रेस ही बोला है, व्हाइट थीम है... तू कौन सा ड्रेस पहनेगी? मतलब कैसी है?"

    दीक्षा के सवालों की झड़ी लगने से पहले ही आरु, जिसका पूरा नाम आरुषि था, बोल पड़ी,
    "मैं नहीं आ रही पार्टी में, इसलिए मैंने कोई तैयारी नहीं की!"

    अभी आरुषि की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि दूसरी तरफ से दीक्षा चिल्ला उठी,
    "You बेवफा, चुड़ैल, कामचोर, आलसी की सरताज! तूने इन्विटेशन एक्सेप्ट किया था, और तेरी इसी बात पर मैं मॉल आई हूँ शॉपिंग के लिए... मेरे पास कपड़े नहीं थे!"

    "तू अभी मॉल में ही है क्या?" आरुषि ने तुरंत पूछा।

    "हाँ, यहीं हूँ!"

    "तो कपड़े वापस कर दे, मत ले!"

    इतना सुनते ही दीक्षा भड़क गई,
    "हाँ, ये मॉल तो मेरी खरीदी हुई है न, जब मन करे कपड़े ले लूँ और जब मन करे वापस कर दूँ? अब वापस करने में कितनी बेइज्जती होगी, ये भी सोच!"

    आरुषि ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया,
    "तेरे पास कौन-सी इज्जत है जो बेइज्जती होगी? कर दे वापस!"

    इतना सुनते ही दीक्षा ने गुस्से में कॉल काट दिया।

    कमरे में एक बार फिर ख़ामोशी छा गई, जैसे कोई वीरान रात हो। हालाँकि, अभी रात के सिर्फ 8 बजे थे, लेकिन इस कमरे का सन्नाटा और आरुषि की आँखें किसी अनकही दास्तान को समेटे हुए थीं। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, खटखट... खटखट...

    दो बार दरवाजा खटखटाने के बाद दूसरी तरफ से एक औरत की आवाज़ आई—
    "आरुषि बेटा, खाना बन गया है... आकर खा ले, फिर पढ़ाई करना!"

    यह आवाज़ उसकी नई चाची की थी, जिनकी शादी को डेढ़ साल ही हुए थे। उनकी आवाज़ में हमेशा प्यार झलकता था। उनकी बात सुनकर आरुषि ने खुद को संभाला और बेड से उतरकर दरवाजा खोल दिया। फिर वह वॉशरूम की तरफ बढ़ गई।

    इसी दौरान उसकी चाची, कोमल, कमरे में आ गईं। लाल शिफॉन की साड़ी और हल्के मेकअप में वह बेहद प्यारी लग रही थीं। उन्होंने देखा कि आरुषि वॉशरूम की ओर जा रही थी, इसलिए वह बिस्तर पर बैठ गईं। तभी उनकी नजर आरुषि के फोन स्क्रीन पर गई, जहाँ "शालिनी चौधरी" का इंस्टाग्राम पेज खुला था।

    उन्होंने दो-तीन पोस्ट स्क्रॉल किए, तभी आरुषि वापस आ गई।

    कोमल चाची ने मुस्कुराते हुए पूछा,
    "अच्छा! तुम भी इन्हें फॉलो करती हो?"

    आरुषि ने एक नजर मोबाइल स्क्रीन पर डाली और लापरवाही से बोली—
    "नहीं चाची, आज ही किया... रैंडमली एक पोस्ट दिखा, अच्छा लगा तो फॉलो कर लिया!"

    कोमल चाची उत्साहित होकर बोलीं,
    "अरे, ये राइटर हैं! नॉवेल लिखती हैं... मैं पढ़ती हूँ इनकी स्टोरी बंधन (एक मर्यादा) और मोहिनी (प्यास डायन की)... मुझे दोनों बहुत पसंद आईं। तुम भी पढ़ो, जब पढ़ाई से मूड ऑफ हो जाए तो फ्रेशनर के तौर पर!"

    आरुषि ने हल्का सा सिर हिलाते हुए कहा,
    "ठीक है चाची, आप लिंक दे देना!"

    इसके बाद दोनों साथ में नीचे चली गईं। आरुषि ने रास्ते में अपनी चाची से फोन ले लिया।

    दूसरी तरफ:

    छत पर एक अधेड़ उम्र का आदमी रेलिंग से टिककर खड़ा था। वह एकटक नीचे दौड़ती-भागती गाड़ियों को देख रहा था। उसकी शख्सियत बेहद मजबूत लग रही थी, मानो वह इस इलाके का राजा हो... और सच में वह कुछ ऐसा ही था। वह अधिराज चौधरी थे— पार्लियामेंट में एक नामी चेहरा, राजनीति में एक दमदार पहचान!

    उनका व्यक्तित्व जितना कड़क था, उतनी ही गहरी उनकी सोच भी। साम, दाम, दंड, भेद— वह किसी भी नीति को अपनाने से पीछे नहीं हटते थे। मगर, गरीबों का हक़ कभी नहीं मारते थे।

    हालाँकि, इस वक्त वह शांत खड़े थे, लेकिन उनकी आँखें बेचैन थीं। मानो कोई अज़ीज़ सी बात उनके जहन में चल रही हो। तभी पीछे से एक हल्की आवाज़ आई,
    "पापा, आपने बुलाया?"

    अधिराज चौधरी ने तुरंत पलटकर देखा। उनके सामने बीस साल का एक लड़का खड़ा था। ब्लैक लोअर और ऑलिव ग्रीन टी-शर्ट में वह बेहद आकर्षक लग रहा था। उसका श्यामल रंग और गहरी आँखें उसके व्यक्तित्व को और गंभीर बना रही थीं।

    अधिराज जी ने हल्की मुस्कान के साथ उसे देखा और पूछा,
    "और, पढ़ाई कैसी चल रही है सात्विक?"

    "ठीक चल रही है पापा!" सात्विक ने सीधा जवाब दिया।

    अधिराज जी ने कुछ देर रुककर पूछा,
    "अब आगे क्या करना है?"

    सात्विक ने बिना समय गँवाए कहा,
    "ट्वेल्थ के बाद इंग्लिश से ग्रेजुएशन और फिर CAT की तैयारी!"

    अधिराज जी की आँखों में एक गंभीरता थी। उन्होंने धीमे से पूछा,
    " तो बिज़नेस लाइन में जाने की सोच रहे हो !"

    उनकी बात ख़त्म होते ही सात्विक ने हल्के से सर हां में हिला दिया लेकिन उसकी नजरें अभी भी नीचे फ्लोर को घूर रही थी ! सात्विक के इस हरकत पर अब अधिराज जी हल्के गुस्से में दिखने लगें उन्होंने अपनी आवाज़ सख़्त करते हुए कहा,
    " फिर इस कुर्सी, इस विरासत का क्या होगा ?"

    अधिराज जी की बात पर सात्विक उन्हें देखता है, उसकी आंखों में एक उलझन थी जो ज्यादा देर तक रही भी नहीं क्योंकि उसने तुरंत ही पूछा,
    " कौन सी कुर्सी ? कैसी विरासत ?"

    अपने बेटे को इस तरह बेपरवाह होते देख अधिराज जी को एक ठेस पहुंचा उनकी आंखों में कुछ था लेकिन वो दर्द से ज्यादा गुस्सा था, वो अपनी एक आइब्रो ऊपर करते हुए बोले,
    " बिज़नेस पैसा दे सकता है... लेकिन कुर्सी पावर देती है, और मेरे बाद इस विरासत को तुम्हें ही संभालना है !"

    अधिराज जी चुप हुए ही थे कि सात्विक की आवाज उनके कानों से टकराई,
    " विधायक की कुर्सी किसी भी खानदान का विरासत नहीं हो सकता है, ये जनता का फैसला होता है, और वैसे भी इस खेल में आप अभी भी लंबी इनिंग खेल सकते हैं, इसके बाद चाचा जी रहेंगे आपकी जिम्मेदारी संभालने के लिए, लेकिन मुझे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है !"

    सात्विक ने अपनी बात कही लेकिन उसकी नजरें एक बार भी ऊपर नहीं हुई, अधिराज जी कुछ बोल पाते उससे पहले ही सात्विक वहां से चल जाता है, अधिराज जी की आँखें गुस्से से लाल हो चुकी थी वो उसी दिशा में देख रहे थे जिधर सात्विक गया था, इसी के साथ एक ख़ामोशी छा चुकी थी, लेकिन तभी एक गाड़ी चौधरी निवास के सामने आ कर खड़ा ही जाता है, जिसकी आवाज़ से अधिराज जी ऊपर से ही नीचे झांकते हैं जहां उनके ही पार्टी के दो कार्यकर्ता गार्ड से अंदर आने देने के लिए बोल रहे थे,

    चौधरी निवास के अंदर किसी को ऐसे ही आने की इजाज़त नहीं थी जिस वजह से उस गार्ड ने ऊपर देखा और तभी अधिराज जी ने इशारे से आने देने की परमिशन दी ! जिससे वो दोनों कार्यकर्ता अंदर आने लगें !

  • 2. ये तूने क्या किया.. - Chapter 2

    Words: 1328

    Estimated Reading Time: 8 min

    अधिराज की नज़र अभी भी उसी दिशा में थी जहाँ से सात्विक गया था, लेकिन तभी उनके कानों में गाड़ी की आवाज़ आई और उन्होंने नीचे झाँका। एक गाड़ी से 2 लोग निकलते हुए दिखे। वो दोनों ही उन्हीं के पार्टी के कार्यकर्ता थे और पार्टी के प्रमुख चेहरे थे। हालाँकि उनका ओहदा अधिराज जी से नीचे ही था, लेकिन उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था! उनमें से एक का नाम राजेंद्र पंचौड़िया था और दूसरे व्यक्ति का नाम दिग्विजय देशमुख! दोनों ही चौधरी निवास के अंदर आ रहे थे जिसे देखते हुए अधिराज जी नीचे उतर कर हॉल के तरफ बढ़ चले। अभी वो हॉल के सीढ़ियों के पास ही थे तभी उनकी नज़र सामने पड़ी जहाँ वो दोनों आदमी मेन डोर से अंदर आते हुए दिखे... और उनकी सीधी नज़र अधिराज पर पड़ी!

    दिग्विजय जी हल्के से मुस्कुराते हुए हाथ जोड़ कर बोले, "प्रणाम चौधरी साहब, कैसे हैं आप? सुना है तबियत ज़रा नासाज़ चल रही है आजकल!"

    दिग्विजय जी के सवाल पर अधिराज जी हल्के से हँस पड़े और नीचे आते हुए बोले, "अरे.. अब उमर बढ़ने लगी है तो तबियत तो नाटक करेगी ही, लेकिन ज्यादा चिंता की बात नहीं है, बस अभी इलेक्शन के चलते थोड़ा खाने पीने में कमी हुई है!"

    राजेंद्र जी जो अभी तक चुप थे वो अधिराज जी को देखते हुए बोले, "और आपको तो अभी बिल्कुल भी बीमार पड़ने की इजाज़त नहीं है, आखिर आने वाले समय में आप मुख्यमंत्री जो बनेंगे, अभी बड़ी जिम्मेदारी है आपके ऊपर ऐसे कैसे बीमार पड़ सकते हैं!"

    अधिराज जी जो अब तक हॉल में पहुँच चुके थे वो सामने लगे सोफे के तरफ बढ़ते हुए एक नज़र दोनों को देख कर बोले, "अब कौन क्या बनेगा और क्या जिम्मेदारी आएगी ये तो परमात्मा जाने, लेकिन फिलहाल आप दोनों तो बैठिए!"

    उनके इतना कहते ही वो दोनों सामने सोफे पर बैठ चुके थे। इससे पहले वो बात शुरू करते कि उनकी नज़र फर्स्ट फ्लोर पर गई जहाँ एक औरत रैलिंग पकड़े हुए नीचे देख रही थी। अचानक अधिराज जी की नज़र खुद पर पा कर वो घबरा गई, और पलट कर सीधे कमरे में चली गई। इसके बाद अधिराज जी ने उन दोनों का रुख किया।

    अधिराज जी मुस्कुराते हुए, "वैसे ऐसी क्या बात है कि आप दोनों को आना पड़ा!"

    उनकी बात पर वो दोनों कुछ पल ख़ामोश रहे फिर राजेंद्र जी ही बोले,

    राजेंद्र जी लंबी सांस लेते हुए बोले, "बात कुछ ऐसी है कि पार्टी में इस बार शायद मधुबनी विधान सभा से किसी और को उम्मीदवार बनाने की बात हो रही है!"

    राजेंद्र जी अपनी बात कह कर चुप हो चुके थे। उन दोनों की नज़र अधिराज जी के चेहरे पर ही टिकी थी लेकिन उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं आए, वो ऐसा ही दृढ़ बन कर बैठे रहे मानो उन्हें इन सब से कोई लेना देना नहीं, वहीं उनका ये बर्ताव उन दोनों को अलग ही टेंशन में ले जा रहा था!

    दूसरी तरफ़.......

    चौधरी निवास के फर्स्ट फ्लोर पर एक तरफ़ से कतार में कमरे बनाए गए थे, और आगे में पूरा जगह खाली था। लकड़ी की रैलिंग एक अलग ही अंदाज़ दे रही थी! सारे कमरे बंद थे लेकिन उस फ्लोर का तीसरा कमरा हल्का खुला हुआ था!

    अंदर एक औरत बिस्तर पर बैठी थी जिनकी पीठ नज़र आ रही थी, पीछे से भी साफ़ पता चल रह था कि वो लंबी - लंबी सांस खींच रही थी! अचानक... उन्हें सांस लेने में और दिक्कत होने लगी!

    वो घबड़ाहट में अपने बेड के साइड टेबल के ड्रॉअर खोल कर उसमें से सारे सामान को निकाल कर इधर उधर फेंकने लगी, उनके हाथ कांप रहे थें और चेहरा पसीने से भींग चुका था! ये वही औरत थी जो रैलिंग के पास खड़ी थी!

    तभी उनके हाथ की उंगली एक छोटी सी डिब्बी से लगी, हल्के नीले रंग के उस डब्बे को खोलते हुए उन्होंने मुंह में डाला और 4-5 लंबी सांस खींची। इन्हेलर के ज़रिए ली गई सांसों से उनकी धड़कन सामान्य होने लगी, उनकी बेचैनी कम हो गई, लेकिन कमजोरी अब उन पर हावी हो गई थी, वो वहीं बेड से नीचे खिसक कर ज़मीन पर बैठ गईं और सर पीछे टिका दिया! उनकी आंखों के सामने अभी भी अधिराज की वो गहरी नज़र ही घूम रही थी!

    उस औरत ने एक और बार गहरी साँस खींचते हुए कहा, "का भगवान जी हमसे कौनो दुश्मनी था जो पति के नाम पर इस इंसान को गले में बांध दिए!"

    भले ही उन्होंने ये बात बिना किसी भाव के कहा था लेकिन उनकी आंखों में उठता वो लाचारी का भाव साफ देखा जा सकता था!

    वहीं इन सब से दूर... मिश्रा हाउस में,

    आरुषि नीचे आ चुकी थी, उसकी नज़र सामने हॉल में गई जहाँ टीवी चल रहा था। एक आदमी लोअर और टी शर्ट में सोफे पर बैठे थें, उनके ठीक सामने एक औरत उन्हें खाना परोस रही थी!

    तभी उनकी नज़र आरुषि पर गई, और उन्होंने दूसरे प्लेट में सब्जी रखते हुए कहा, "आ, जल्दी बैठ, खा ले.... खाली पेट से पढ़ाई न होगा, भर पेट खाने के बाद ही ताक़त और दिमाग दोनों लगेगा!"

    आरुषि हॉल में लगे सिंक में हाथ धो कर वहीं बगल वाले सोफे पर बैठ गई।

    उसकी मां जो सबको खाना दे रही थी, जल्दी से 2 रोटी में घी लगा कर आरुषि के थाली में रखते हुए उन्होंने कोमल से कहा, "छोटकी, तुम भी बउआ जी का खाना उनके कमरे में ही दे दो, नहीं तो खाना ठंडा हो जाएगा!"

    वहीं सोफे पर बैठा आदमी जो आरुषि के पिता जी हैं संतोष मिश्रा एक दम से बोले, "क्यों वो बाहर नहीं आएगा? कनिया कब से बन गया?"

    संतोष जी की बात पर सबको हँसी आने लगी, लेकिन कोमल अपनी हँसी दबाए हुए किचेन के तरफ चली गई! तभी आरुषि की मां शांति मिश्रा संतोष को देखते हुए बोली,

    "अरे का जी कुछो बोलने लगते हैं... छोटकी यही खड़ी थी... मतलब का? कब समझ आएगा कि भईसुर (जेठ) बन गए हैं अब!"

    शांति के बात पर संतोष का मुंह बन गया और वो वैसे ही बोले, "भईसुर का मतलब का हुआ की हम अब कुछो बोले ही न... अरे देवी, बात कहना है तो उ छोटका को कहिए!"

    शांति आगे कुछ नहीं बोली और वहां से किचेन के तरफ चली गई। इन सब में आरुषि मुस्कुरा तो रही थी, लेकिन उसकी आँखें अभी भी नम थी।

    उसने अपना फ़ोन ऑन किया, इंस्टा खोलते ही उसके स्क्रीन पर पोस्ट दिखा, वो एक शेर था!

    "बाज़ी इश्क़ का था, दांव पर जान लगी थी,
    एक तरफ़ हम परेशान, और वो नाराज़ खड़े थें!"

    ✍️ शालिनी चौधरी

    इस शेर ने एक बार फिर आरुषि के मुस्कान पर पर्दा डाल दिया!

  • 3. ये तूने क्या किया.. - Chapter 3

    Words: 1394

    Estimated Reading Time: 9 min

    आरुषि एक नजर सबको देखते हुए वहां से उठी और अपना फोन सलवार के पॉकेट में रखते हुए, सिंक की तरफ बढ़ चली।

    तभी पीछे से शांति की आवाज आई, "आरुषि... एक रोटी और ले, पढ़ाई में खाया पिया ही काम आएगा, ताकत रहने पर ही पढ़ेगी न।"

    लेकिन आरुषि बिना कोई जवाब दिए हाथ धोकर अपने कमरे में चली गई, उसके ऐसा करने से शांति हैरानी से उस तरफ देख रही थी।

    तभी संतोष ने उनके कंधे को थपथपाते हुए कहा, "जितना पेट में आएगा उतना ही खाएगी न... छोटी बच्ची थोड़ी है जो तुम ऐसे पीछे पड़ी रहती हो!"

    शांति ने हल्के गुस्से में संतोष को देखते हुए तल्खी से बोली, "पीछे पड़ी रहती हूं... अरे बोर्ड होने वाला है, खाएगी नहीं तो बीमार हो जाएगी, पेपर पर असर आएगा।"

    संतोष ने बेबसी से अपना सर हिलाया और अपने कमरे की तरफ जाते हुए, उसने लाचारी से कहा, "हां! तो वो जानती है, छोटी बच्ची न है देख लेगी अपना, तुम भी अपना खाना खाओ, सारा दिन सबके पीछे भागते भागते दम्मा हो जाएगा।"

    शांति कोई जवाब देती उससे पहले ही संतोष कमरे में जा चुका था, इस कारण से वो मन मसोस कर किचन की तरफ चली गई।

    आरुषि का कमरा__________

    नाइट बल्ब की पीली रौशनी कमरे में फैली थी, खिड़की के दरवाजे पूरी तरह से खुले थे, वहीं कुर्सी लगाकर आरुषि बैठी एक टक अंधेरे में देखे जा रही थी, उसके गोद में रखा उसका फोन रिंग करके बंद हो चुका था, लेकिन आरुषि इससे बेखबर अपनी सोच में गुम थी, तभी उसका फोन एक बार और पॉप अप हुआ और फिर से स्क्रीन बंद हो गया।

    वहीं दूसरी तरफ_______

    एक छोटा सा घर, दरवाजे पर एक बाइक लगी थी और एक लड़का उस पर बैठा हुआ बाइक के मिरर में देखकर अपने बाल ठीक कर रहा था, और बीच बीच में हॉर्न भी बजा देता, तभी अंदर से एक लड़की चिढ़ते हुए बाहर आई।

    लड़की ने भड़कते हुए उस लड़के से कहा, "कुत्ते... दो मिनट रुक नहीं सकता.. बजाए जा रहा है, बजाए जा रहा है.... तू बाइक वाला है या बैंड वाला।"

    लड़के ने एक नजर उसे देखा और आईज रॉल करते हुए हल्के से हंस कर कहा, "वैसे बाइक पर इतना बड़ा बैग लेकर जाएगी कैसे... एक काम कर बैग को सीट पर रख दे और तू चक्के पर बैठ जा, हाहाहाह....।"

    इतना बोल कर वो हंसने लगा, तभी अंदर से एक कड़क आवाज आई, "हा हा - ही ही खत्म हो गया तो जल्दी पहुंचा दे इसे फिर हमें भी निकलना है।"

    बस उस आवाज के कान में जाते ही अगले ही पल वो लड़की बाइक पर बैठी मिली और लड़का बाइक स्टार्ट कर तुरंत ही निकल गया।

    चौधरी निवास_______

    राजेंद्र और दिग्विजय जा चुके थे, लेकिन अधिराज अभी भी वहीं बैठे थे किसी गहरी सोच में डूबे हुए, उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, फिर अचानक से ही वो उठ कर अपने कमरे के तरफ चल दिए। अंदर फर्श पर बैठी उस औरत की आंखें बंद थी लेकिन कानों में पड़ रही कदमों की आहट ने उसे एक दम से घबरा दिया, वो हड़बड़ाते हुए उठ कर खड़ी हो गई तभी कमरे में अधिराज आया, राजनीति का नामी चेहरा और व्यक्तित्व भी रौबदार, किसी को भी डरने के लिए मजबूर कर दे, वो औरत जो इसी शख्सियत की पत्नी थीं, वो घबराई हुई थी उनकी नजरें लगातार फर्श को घूर रही थी मानो छेद करके ही मानेंगे।

    अधिराज कमरे में लगे सोफे पर बैठते हुए एक गहरी नजर सामने खड़ी अपनी पत्नी पर डाली और एक लंबी सांस लेकर धीमे से मगर सर्द आवाज में कहा, "जब पार्टी के कार्यकर्ता आएं हुए थे तब आप बाहर क्या करने गईं थीं।"

    उस औरत की नजर अभी भी नीचे थी और लब खामोश थे, जिससे अधिराज के गुस्से को हवा मिल रही थी, कुछ पल के इंतजार के बाद एक बार और अधिराज की आवाज आई लेकिन इस बार पहले की तुलना में आवाज तेज थी।

    अधिराज ने मुट्ठी कसते हुए कहा, "सुभद्रा... सवाल आपसे ही पूछ रहें हैं हम, क्या करने गई थीं बाहर।"

    इस बार सुभद्रा ने नजरें उठा कर सामने देखा, तो उसकी नजर अधिराज के नज़रों से जा मिली, तुरंत ही नजर दूसरी तरफ करते हुए सुभद्रा ने कहा, "हमको का पता था जी कि वो सब आ गए हैं.... हम तो किचेन में जाने के लिए निकले थे, लेकिन पार्टी के लोगों को देख कर नीचे नहीं आएं।"

    अधिराज ने तुरंत कहा, "एहसान कर दिया आपने नीचे न आ कर.. है न... इतना एहसान किया ही तो वहां रुक कर क्या शासन करने का भी सोच रही थीं।"

    सुभद्रा ना में सर हिलाते हुए कुछ बोलना चाह रही थी लेकिन अधिराज जी के गुस्से को देख कर चुप हो गई।

    सात्विक का कमरा_________

    माहौल एक दम शांत था... घड़ी की टिक टिक पूरे कमरे में गूंज रही थी, वहीं सोफे पर लेटा हुआ सात्विक सीलिंग को एक टक देख रहा था, तभी उसके कमरे का दरवाजा कोई जोर जोर से पीटने लगा, लंबी सांस ले कर सात्विक उठा और उसने दरवाजा खोल दिया।

    सामने एक लड़का खड़ा था, जो उसकी ही उम्र का था। वो लंबी सांसें खींच रहा था, उसकी हालत देख कर सात्विक ने अपनी भौहें सिकोड़ ली, लेकिन वो अभी भी शांत था। लड़का अंदर आ कर सोफे पर बैठ गया सामने रखे टेबल पर पानी से भरा जग रखा था उसने सीधा जग में ही मुंह लगा लिया, पानी का एक धार उसके होठों के किनारे से उसके शरीर पर भी गिर रहा था, पानी पीने के बाद जग टेबल पर रखते हुए उसने सात्विक को एक नजर देखा।

    लड़के ने शर्ट के बाजू से मुंह साफ करते हुए कहा, "सात्विक... तेरे घर अभी वो पंचौड़िया और देशमुख आया था, दोनों काफी खुश लग रहे थे यहां से निकलते वक्त, भाई कुछ गड़बड़ लग रहा है मुझे।"

    सात्विक जो अब तक उसकी हरकत पर हैरान था अब उसकी बात सुन कर उसकी दाईं भौहें चढ़ गई।

    अगले ही पल भौहें सिकोड़ते हुए सर्द आवाज़ में कहा, "वो सब कुछ भी करे, मैं पॉलिटिक्स ज्वॉइन नहीं करूंगा...धैर्य।"

    धैर्य ने सोचते हुए धीमी आवाज में कहा, "लेकिन हमें यहां गड़बड़ घोटाला लग रहा है...पता नहीं क्यों बात तुम्हारे राजनीति में आने की नहीं है, बात कुछ और ही है।"

    सात्विक जो अब तक खड़ा था वो सामने वाले सोफे पर बैठ गया उसका ध्यान धैर्य के तरफ था, धैर्य समझ चुका था कि सात्विक पूरी बात जानने के लिए ही ऐसे बैठ गया।

    इसलिए उसने एक गहरी सांस ले कर आगे कहा, "देख भाई मुझे पूरी बात पता नहीं है, लेकिन फिलहाल तो तू इलेक्शन में खड़ा ही नहीं हो सकता है.... एज नहीं है अभी, लेकिन फिर भी वो दोनों खुश थे, तो मुझे ऐसा लग रहा की अंकल के दिमाग में कुछ तो डाल कर गए हैं वो।"

    धैर्य की बात पर सात्विक कुछ बोला नहीं लेकिन अब वहां का माहौल बिल्कुल शांत था, दोनो ही अपनी अपनी सोच में थे, तभी धैर्य के फोन पर मैसेज आया उसने ओपन करके देखा, सात्विक भी उसे देख रहा था।

    धैर्य फोन जेब में रखते हुए बोला, "स्कूल में फेयरवेल हो रहा है, अनिल सर बोल रहे हैं कि सात्विक को बोलो स्पीच और डांस में पार्ट ले, मुझे डिबेट के लिए बोल रहें।"

    सात्विक ने मुंह बनाते हुए कहा, "क्या यार... घर में क्या कम टंटे हैं जो ये भी करना है।"

    धैर्य ने हल्के से हंसते हुए कहा, "चल न इन टंटे से कुछ घंटों की छुट्टी तो मिल ही जाएगी, और स्कूल लाइफ का एंड है ये इसलिए चल ले।"

    सात्विक ने हल्के से सर हिलाते हुए कहा, "ह्म्म्म.... अब सर को मना करना भी मुश्किल है, ठीक है चल लेते हैं।"

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में ? क्या धैर्य का शक सही है ? अधिराज का बर्ताव सुभद्रा के लिए ऐसा क्यों है ? और क्या है आरुषि के अंदर छिपा जानने के लिए पढ़ें..... ये तूने क्या किया... मेरे यानी शालिनी चौधरी के कलम से...

  • 4. ये तूने क्या किया.. - Chapter 4

    Words: 1021

    Estimated Reading Time: 7 min

    देरी के लिए l am sorry दोस्तों एग्जाम की वजह से chapter regular नहीं हो पा रहे हैं, अब एग्जाम खत्म हो गए हैं, अब से चैप्टर रेगुलर आयेंगे🥰🤗
    चलिए बिना बकवास के सीधा कहानी के ओर चलते हैं।

    आरुषि का कमरा____________

    आरुषि अपने कमरे की खिड़की के पास बैठी थी, वही पुरानी उदासी लिए। फिर वह अचानक उठी और स्टडी टेबल की ओर बढ़ गई। कमरे में नाइट बल्ब की हल्की पीली रौशनी फैली हुई थी। आरुषि ने चेयर खींचकर बैठने के बाद टेबल लैंप ऑन किया। टेबल पर सफेद रौशनी पड़ते ही सामने रखी लेदर की डायरी हल्की चमकने लगी। वुडन कलर की वो डायरी, जिस पर खूबसूरती से लिखा था 'मेरे हसीन ख़्वाब', लैंप की रोशनी के फोकस में आ गई।

    आरुषि ने पेन होल्डर से पेन उठाया और डायरी खोलकर लिखने लगी—

    "जिंदगी बेहद खूबसूरत है, और जिंदगी से भी ज्यादा खूबसूरत होते हैं... ख़्वाब! अच्छे ख़्वाब, बड़े ख़्वाब और बुरे ख़्वाब। हां, पहले ऐसा ही लगता था मुझे, पर अब लगता है कि सबसे बड़ी चीज़ है — विश्वास। और सबसे खूबसूरत चीज़ — अच्छी किस्मत।
    और मेरे पास दोनों में से कुछ भी नहीं...
    उसे अपने दिल की बात बताऊं, इतनी हिम्मत नहीं। और न खुद पर इतना विश्वास है। और बिना कहे, बिना मांगे वो मिल जाए... इतनी अच्छी किस्मत भी नहीं है।"

    इतना कहते ही उसकी आँखों से एक आँसू उसी उंगली पर गिरा जिसमें उसने पेन पकड़ा हुआ था। इसके बाद उसने डायरी बंद कर दी और ड्रॉअर खोलकर एक छोटा सा एल्बम निकाला। उसमें छोटे-छोटे फोटोज थे—पासपोर्ट साइज से थोड़े बड़े—जिनमें उसकी स्कूल लाइफ की यादें कैद थीं। वो धीरे-धीरे पन्ने पलट रही थी, और ग्रुप फोटो में उसकी नज़र एक चेहरे पर जाकर रुक गई।

    तभी उसके फोन पर कॉल आया, जिससे उसका ध्यान फोन की तरफ गया। स्क्रीन पर Dikshu फ्लैश हो रहा था। कॉल रिसीव करते ही, उससे पहले दिक्षा की आवाज़ आई—

    "मुझे लगा था समय के साथ तेरा दिमाग ठीक हो जाएगा, लेकिन अब लग रहा है तुझे मैकेनिक की ज़रूरत है। कल ही नासिर गैराज चलेंगे—उनसे कहेंगे कि ट्रक का जो पहिया कसते हैं उसी औजार से तेरा दिमाग कस दें!"

    दिक्षा की बात पर आरुषि की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं और चेहरा तुरंत फूल गया। उसने हल्की नाराज़गी में कहा—

    "अच्छा! अब ऐसा तो मैंने कुछ भी नहीं किया... सिर्फ पार्टी में आने से मना किया तो तुम ऐसे बोलोगी? अपनी दोस्त से बढ़कर बहन के बारे में?"

    बोलते-बोलते उसकी आवाज़ रोने जैसी हो गई थी, लेकिन असल में वो अपनी हँसी रोक नहीं पा रही थी। बड़ी मुश्किल से खुद को कंट्रोल कर रही थी। उधर से दिक्षा ने तुरंत गिल्ट फील करते हुए कहा—

    "नहीं यार! मेरा ऐसा मतलब नहीं था कि तू हर्ट हो जाए। मैंने तुझे पाँच बार कॉल किया लेकिन तूने उठाया नहीं, इसलिए गुस्से में बोल गई।"

    इसके आगे दिक्षा कुछ कहती, उससे पहले ही उसे आरुषि के ठहाकों की आवाज़ सुनाई दी। आरुषि हँसते-हँसते पेट पकड़कर कह रही थी—

    "मैं मज़ाक कर रही थी, हाहाहा... तुझे क्या लगा, मैं तेरी बात का बुरा मानूंगी? बहन बुरा उसकी बात का मानती है, जिसके पास दिमाग हो। अब मूर्खों की बात का क्या ही बुरा मानना, हाहाहा..."

    आरुषि को अपना मज़ाक उड़ाते देख दिक्षा पूरी तरह चिढ़ गई। उसने गुस्से से कहा—

    "तू अपने कमरे का दरवाज़ा खोल, फिर बताती हूँ कि बत्तीसी असल में बाहर कैसे निकालते हैं!"

    आरुषि हैरानी से दरवाज़े की तरफ़ देखते हुए बोली—

    "हैं? तू यहाँ है?"

    दिक्षा हल्के गुस्से में बोली—

    "नहीं! तेरे घर के आसमान पर उड़ रही हूँ!"

    आरुषि दरवाज़े की ओर जाते हुए बोली—

    "ओफ्फो! आसमान में उड़ना होता है, पर नहीं! पढ़ाई-लिखाई भी बर्बाद गई।"

    कहते हुए उसने दरवाज़ा खोल दिया। सामने एक लड़की खड़ी थी—मोबाइल कान से चिपकाए, हाथ में ट्रॉली बैग पकड़े—जो गुस्से से आरुषि को घूर रही थी।


    ---

    चौधरी निवास
    अधिराज का कमरा...

    अधिराज वैसे ही सोफे पर बैठा था। उसकी आँखें सामने दीवार को घूर रही थीं। वहीं उसके फोन में एक तस्वीर खुली थी—जिसमें सात्विक और एक लड़की थी। लड़की सात्विक को केक खिला रही थी और सात्विक मुस्कुरा रहा था। तस्वीर में सात्विक का चेहरा साफ़ दिख रहा था लेकिन लड़की का चेहरा उसके खुले बालों से ढंका हुआ था—क्योंकि कैमरा एंगल की तरफ़ उसका पीठ और आधा चेहरा था।

    तभी कमरे में सुभद्रा आई। उसके हाथ में चाय की ट्रे थी, जिसमें केतली और एक कप रखा था। किसी के आने की आहट ने अधिराज का ध्यान भंग किया। जैसे ही उसने सुभद्रा को देखा, पाया कि वह उसकी तरफ़ देखे बिना ही ट्रे टेबल पर रख रही थी। केतली से चाय निकालकर वहीं रख दी, और जैसे ही वह मुड़ने लगी, अधिराज की आवाज़ उसके कानों में गूंज गई—

    "अपने बेटे को समझाओ कि लड़की से ज्यादा दोस्ती यारी न निभाए... राजनीति का चोगा सफ़ेद होता है, एक कालिख भी क़ीमत घटा सकती है।"

    सुभद्रा चुप रही। उसने बस सिर हिलाया और कमरे से बाहर चली गई।


    ---

    Rooster Café...

    पीछे, कॉर्नर वाली सीट पर दो लड़कियाँ आमने-सामने बैठी थीं। उनके सामने टेबल पर पिज़्ज़ा बॉक्स खुला था, जिसमें से दो स्लाइस निकले हुए थे। एक लड़की, जिसने जींस और क्रॉप टॉप के ऊपर डेनिम जैकेट पहनी थी, कॉफी का सिप लेते हुए बोली—

    "सियारा, तेरे कहने पर मैंने अपनी बर्थडे पार्टी में सात्विक को भी इनवाइट किया है... लेकिन I don't think कि वो आएगा। You know न, उसे पार्टीज इतनी पसंद नहीं हैं।"

    दूसरी लड़की, जिसका नाम सियारा था, ने एक नज़र सामने बैठी लड़की को देखा, फिर पिज़्ज़ा का बाइट लेते हुए बोली,

    "सबा... सिर्फ इनवाइट नहीं करना है, बल्कि ये भी कहना है कि अब तो स्कूल लाइफ खत्म हो गई है। It's the last moment जब हम सब शायद साथ होंगे... एक memory बनेगी अपनी।"

    सबा आँखें छोटी करके सियारा को घूरने लगी, फिर लंबी साँस भरते हुए बोली—

    "कहने का मतलब फुल ऑन मेलोड्रामा करूँ?"

    सियारा ने दाँत दिखाते हुए सर हिला दिया। लेकिन तभी उनके कानों में किसी लड़की की आवाज़ आई।
    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

    एग्ज़ाम की वजह से देरी हुई थी, लेकिन अब एग्ज़ाम खत्म है तो पार्ट्स टाइम से आएँगे।🤗
    आज के लिए इतना ही — Stay tuned!

    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 5. ये तूने क्या किया.. - Chapter 5

    Words: 1147

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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    Rooster Cafe__________

    सियारा और सबा आपस में बात कर ही रही थीं कि उन्हें पीछे से किसी लड़की की आवाज़ आई,
    "लेकिन तुम दोनों को ऐसा नहीं लगता कि सात्विक को पार्टी में बुलाना सबा के हैसियत के बाहर की बात है?"

    आवाज़ सुनते ही सियारा ने पलट कर देखा और सबा ने नज़र उठाई। अपने सामने खड़ी लड़की को देख कर सियारा का मुंह बन गया, वहीं सबा हल्के से मुस्कुरा कर बोली,
    "अरे, मुझे पता है सात्विक काफी अच्छे परिवार से है और उसे पार्टियां पसंद नहीं हैं। लेकिन सियारा ने बार-बार कहा तो मैंने कर दिया।"

    वो लड़की वहीं बैठते हुए एक स्लाइस हाथ में उठाते हुए बोली,
    "कोई कुछ भी कहेगा और तुम करने क्यों लगती हो? कभी अपना दिमाग इस्तेमाल भी कर लिया करो।"

    उसकी बात पर सियारा को गुस्सा आ गया और वो चिढ़ते हुए बोली,
    "अगर सात्विक तुम्हारे घर तुम्हारी बर्थडे पार्टी में आ सकता है, तो वो सबा की पार्टी में क्यों नहीं आ सकता तनिष्का? आख़िर सबा भी तो क्लासमेट ही है।"

    इस पर तनिष्का बड़े ही अजीब ढंग से मुस्कुराते हुए बोली,
    "वो मेरे बर्थडे पार्टी में आ सकता है क्योंकि मैं तनिष्का देशमुख हूं — पार्टी के नामचीन राजेन्द्र देशमुख की बेटी। लेकिन सबा के साथ ऐसा कुछ नहीं है न... सियारा पंचौड़िया।"

    तनिष्का की बात पर सबा का चेहरा उतर गया। वो धीमे स्वर में बोली,
    "लेकिन हम क्लासमेट तो हैं न... तो अगर मैंने इनवाइट किया तो कौन-सी बड़ी बात हो गई?"

    कुछ सेकंड ख़ामोशी के बाद तनिष्का बोली,
    "उम्म... देखा जाए तो बुलाया जा सकता है, लेकिन बात बुलाने की नहीं बल्कि खातिरदारी की है, सबा। वो कोई नॉर्मल क्लासमेट नहीं है — वो अधिराज चौधरी का बेटा है। उसका अपना रुतबा, अपना रसूख है। खैर... तुम्हें ये बात समझ नहीं आएगी, इस लेवल का फैमिली बैकग्राउंड नहीं है न तुम्हारा।"

    तनिष्का ने ये बात बिना सोचे-समझे कह दी, लेकिन उसकी ये बात सबा को चुभ गई। सबा उठी, अपना पर्स उठाया और बिना कुछ कहे बाहर निकल गई। उसे जाते देख सियारा ने एक नज़र तनिष्का को घूरा और फिर वो भी उठकर सबा के पीछे बाहर चली गई।
    वहीं तनिष्का बड़े आराम से पिज़्ज़ा के आखिरी स्लाइस का मज़ा ले रही थी, और उसके चेहरे पर एक जंग जीतने जैसी मुस्कान थी।


    ---

    सात्विक का कमरा

    सात्विक और धैर्य आमने-सामने बैठे थे। सात्विक फर्श को घूर रहा था और धैर्य के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। वो एक नज़र सात्विक को देखते हुए मन में बोला,
    "अब तो स्कूल लाइफ ख़त्म ही है, इसके बाद कौन कहां होगा क्या पता... लेकिन एक चीज़ तो रह ही गई — मेरा डाउट... क्या आरुषि मिश्रा इससे प्यार करती है?"

    धैर्य अपनी सोच में इतना गुम था कि उसे ध्यान ही नहीं रहा कि सात्विक उसे दो बार आवाज़ दे चुका था। सात्विक ने उसे हलका सा हिलाते हुए कहा,
    "भाई, दिन में खुली आंखों से क्या सपने देखने लगा? वैसे बताना ये था कि आज सबा का बर्थडे है, उसके घर पार्टी है। इनवाइट किया है — चलना है शाम को।"

    धैर्य ने आँखें बड़ी करते हुए कहा,
    "पार्टी का इनविटेशन आया और तूने एक्सेप्ट भी किया... ये परिवर्तन कब हुआ तेरे भीतर?"

    सात्विक चिढ़ते हुए बोला,
    "क्या यार, खुद ही तो बोलता है कि ये स्कूल लाइफ का एंड है, इसलिए कर लिया एक्सेप्ट। अब मिले या न मिले।"

    धैर्य ने कुछ नहीं कहा, बस 'हां' में सिर हिला दिया। तभी उनके कमरे के दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी। दो बार खटखटाने के बाद तीसरी बार पिटता, उससे पहले ही सात्विक ने कहा,
    "Hmm... आ रहा हूं।"

    सात्विक उठा और जल्दी से दरवाज़ा खोला। सामने उसकी मां सुभद्रा खड़ी थीं। उन्हें देखकर सात्विक ने कहा,
    "अरे मां, आप? कोई काम था? आइए न।"

    सुभद्रा अंदर आकर बैठ गईं। सात्विक ने दरवाज़ा बंद किया और फिर अपनी जगह पर बैठ गया। सुभद्रा कुछ सोच रही थीं। सात्विक और धैर्य बड़े ध्यान से उन्हें देख रहे थे।

    सात्विक ने गंभीरता से पूछा,
    "मां... कोई बात है? दिक्कत है क्या? या किसी ने कुछ कहा है? बताओ।"

    सुभद्रा एकदम से बोलीं,
    "न रे बउआ... कुछो नहीं हुआ है। कौन हमको का कहेगा। हम तो ई पूछने आए थे कि अब तो स्कूल खत्म हो गया है तुम्हारा, तो अब कॉलेज जाओगे, तो बस ई कहने आए थे कि..."

    बोलते-बोलते वो रुक गईं और एक नज़र धैर्य और सात्विक को देखा। सात्विक ने पलकें झपका दीं जैसे कह रहा हो — बोलो, मैं सुन रहा हूं।

    सुभद्रा आगे बोलीं,
    "उ तुम दोनों तो बउआ ही हुए न... कॉलेज जाना है तो इ लड़कीबाज़ी में मत उलझना। तुम्हारे पापा का समाज में नाम है, प्रतिष्ठा है — समझे न? तनिक इज़्ज़त का ख्याल रखना। धैर्य, तुम समझ रहे हो न बउआ? ई सब चीज़ अच्छा नहीं होता है।"

    इतना कह कर वो चुप हो गईं। अब सात्विक के चेहरे पर मुस्कान थी और धैर्य भी हँस रहा था। सात्विक ने सुभद्रा का हाथ पकड़ते हुए कहा,
    "मां, इस बात के लिए इतना परेशान थीं? ई कौन-सी बात हुई, खैर छोड़ो, आपकी बात को पूरा ध्यान में रखेंगे।"

    धैर्य ने भी सिर हिला दिया, जिस पर सुभद्रा मुस्कुरा दीं और बोलीं,
    "अब करो तुम दोनों बात, मैं जाती हूं।"

    वो चली गईं, और सात्विक व धैर्य की नज़रें आपस में टकराईं। दोनों एकदम से हँसने लगे।
    धैर्य हँसते हुए बोला,
    "Hahaha... So cute and innocent... hahaha..."


    ---

    मिश्रा हाउस

    आरुषि का कमरा

    आरुषि ने दरवाज़ा खोला तो सामने दीक्षा खड़ी थी — एक हाथ में फोन कान से लगाए और दूसरे हाथ में ट्रॉली बैग पकड़े हुए। वो गुस्से से आरुषि को घूर रही थी।
    आरुषि हल्के से हँसते हुए बोली,
    "अच्छा sorry, मज़ाक था। वैसे ये बोरिया-बिस्तर के साथ आई है?"

    दीक्षा कमरे में जाते हुए बोली,
    "हां, मम्मी, पापा, भाई — आज रायपुर गए हैं। तो घर पर अकेले मुझे डर लगता है, इसलिए यहां आई। चाची को पहले ही बता दिया था। तू तो महारानी है, कॉल क्यों रिसीव करेगी?"

    दीक्षा बैग खींचते हुए बेड तक आई और धम्म से बैठ गई। आरुषि ने चुटकी ली,
    "पत्थर भरा है क्या?"

    दीक्षा उसकी बात इग्नोर करते हुए बोली,
    "सुन, सबा के बर्थडे पार्टी में तू चल रही है — ये फाइनल है। क्लास के सब आएंगे, और ये हमारी लास्ट पार्टी होगी। इसके बाद फेयरवेल... और फिर सब अपने-अपने रास्ते।"

    आरुषि मना करने वाली थी, लेकिन उसके ज़ेहन में दीक्षा की बात गूंजने लगी —
    "सब आएंगे, सब..."
    और फिर क्या था, आरुषि की आंखें एकदम से ऐसे चमकी जैसे किसी गरीब के हाथ खज़ाना लग गया हो।

    ✍️ शालिनी चौधरी

    आज के लिए इतना ही। अब मिलेंगे कल।
    रेटिंग और कमेंट ज़रूर दें, क्योंकि बहुत मेहनत लगती है।
    Love you family 💖 ❤️
    Stay tuned...

  • 6. ये तूने क्या किया.. - Chapter 6

    Words: 1100

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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    मिश्रा हाउस...
    आरुषि का कमरा...

    आरुषि एकदम से खो गई थी, वहीं दीक्षा उठकर वॉशरूम की तरफ जा चुकी थी। तभी आरुषि ने अचानक कहा, "कल सुबह मॉल चलेंगे, मुझे भी थीम के अकॉर्डिंग ड्रेस लेनी है।"

    आरुषि के इतना कहते ही, दीक्षा जो वॉशरूम के अंदर जा चुकी थी, झटके से दरवाज़ा खोलकर बाहर आई और सिर निकालकर आरुषि को देखने लगी। उसकी आँखें हैरानी से बड़ी थीं और होठों पर एक मज़ाक उड़ाने वाली मुस्कान थी। दीक्षा ने शक जताते हुए कहा, "और अचानक ये हृदय परिवर्तन क्यों हुआ? जब इस बारे में बात हुई थी तो तूने साफ इनकार कर दिया था, और तेरे कहने पर मैंने ड्रेस भी वापस कर दी, इतनी बेइज्जती झेलते हुए।"

    दीक्षा के चेहरे पर चिढ़ साफ़ नज़र आने लगी। आख़िर वो ड्रेस उसे पसंद आई थी, जिसे वह वापस कर आई थी। आरुषि ने दाँत दिखाते हुए दीक्षा को देखा और बोली, "हाँ तो क्या हो गया? ड्रेस वापस ही तो किया है, चल मॉल फिर से ले लेना।"

    दीक्षा ने गुस्से में वॉशरूम का दरवाज़ा जोर से बंद किया — धम्म! आरुषि ने अपने कान पर हाथ रख लिया क्योंकि आवाज़ बहुत तेज़ थी। इसके साथ ही अंदर से दीक्षा की गुस्से भरी आवाज़ आई, "वो लास्ट पीस था, जो अब वापस मिले इसकी गारंटी नहीं है।"

    आरुषि ने धीमे से कहा, "इतना पसंद था तो ले लेना चाहिए था न, छोड़... बेकार दिया।"

    हालाँकि आरुषि ने धीमे ही कहा था, लेकिन दीक्षा ने सुन लिया — या फिर अंदाज़ा लगा लिया — और उसकी आवाज़ फिर आई, "ह्म्म, वेस्टर्न ड्रेस है... इस पार्टी के अलावा कहाँ पहनती उसे? घर पर पहन नहीं सकती, पापा डायरेक्ट ऊपर पहुंचा देंगे। रही बात इस पार्टी की, तो तेरे घर से तैयार होकर जाने वाले थे।"

    आरुषि ने इसके आगे कुछ नहीं कहा। उसने दीक्षा के बैग को अलमारी के पास रख दिया और वापस आकर बेड पर बैठ गई। उसके चेहरे पर एक अलग सी खुशी थी और आँखें मानो चमक रही थीं। उसके मन में कुछ बहुत बड़ा चल रहा था, जिसका अंजाम तो सिर्फ समय जानता था।


    ---

    चौधरी निवास...
    छत...

    अधिराज झूले पर बैठा था। उसका ध्यान आम के बग़ीचे में कूकती कोयल की आवाज़ पर था, लेकिन दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था। तभी किसी के कदमों की आहट से उसका ध्यान टूटा और उसने पलट कर देखा।

    एक लंबा चौड़ा आदमी, जिसकी पर्सनालिटी अधिराज से मिलती-जुलती थी, सामने की चेयर पर आकर बैठ गया। शक्ल से साफ़ लग रहा था कि वो अधिराज से चार–पाँच साल छोटा है, लेकिन चेहरे पर वही रौब।

    कुछ पल की ख़ामोशी के बाद वह बोला, "भइया जी! पंचौड़िया और देशमुख सही कह रहे थे, इस बार पार्टी ने विधायक की कुर्सी के लिए शिवपूजन सहाय का नाम आगे करने का सोचा है, क्योंकि आला कमान को ये डर सता रहा है कि अगर अब आपको खड़ा किया तो आप जीतेंगे। साथ ही, आपकी पकड़ इस क्षेत्र पर और मज़बूत हो जाएगी, जिससे आप मंत्रालय में आने का प्रयास करेंगे।"

    उस आदमी की बात खत्म होते ही अधिराज के गंभीर चेहरे पर पहले एक तिरछी मुस्कुराहट आई और फिर वह मुस्कुराहट धीरे-धीरे ठहाकों में बदल गई। उसकी आँखें सामने वाले आदमी पर टिकी थीं और हँसी थम ही नहीं रही थी। वह आदमी बिना कुछ बोले बस अधिराज का चेहरा देखता रहा।

    जैसे-तैसे हँसी रोकते हुए अधिराज बोले, "अरे छोटे, इसमें परेशान होने वाली क्या बात है? ये तो जश्न की बात है कि अधिराज चौधरी का दबदबा इतना है कि आला कमान अब अपना रास्ता बदल रहा।"

    अधिराज के चेहरे पर गर्व का भाव था, वहीं उनकी इस बात से सामने वाला हल्की परेशानी से बोला, "पर पार्टी आपको हटाने के प्रयास में है, और अगर एक बार पिछड़े तो दुबारा उठने नहीं देंगे।"

    अधिराज का चेहरा अचानक गंभीर हो गया। आँखें सख्त हो चुकी थीं। वह दृढ़ता से बोले, "महेश, तुम अधिराज के भाई हो, तो तुम्हें ये तो पता होना चाहिए न कि अधिराज को मिटाना इतना भी आसान नहीं है।"

    महेश ने हाँ में गर्दन हिलाई, लेकिन उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें अब भी थीं। कुछ देर तक वो बिल्कुल ख़ामोश रहा, जैसे कुछ सोच रहा हो। फिर अधिराज को देखते हुए बोला, "भइया जी! वो... सात्विक अगर MBA करना चाहता है तो करने दीजिए, कुसुम बता रही थी कि उसका बड़ा मन है। ऊपर से अगर हमारे घर के बच्चों को ही सुविधा नहीं मिलेगी, तो क्या फ़ायदा इतना कमाने का?"

    महेश की बात पर अधिराज बिल्कुल शांत रहे। उन्हें देखकर साफ़ कहा जा सकता था कि वो इस मामले पर बात नहीं करना चाहते थे।


    ---

    पंचौड़िया हाउस...

    एक बड़े से बंगले के मेन गेट पर ‘पंचौड़िया हाउस’ लिखा हुआ था। गेट खुला था। लगभग तीन मिनट के अंदर ही एक काली रंग की कार धड़धड़ाते हुए बंगले के अंदर गई और एंट्रेंस गेट पर आकर रुकी। गाड़ी का गेट खुला और ड्राइविंग सीट से सियारा बाहर आई। दूसरी तरफ से सबा उतरी। उसने एक नज़र पंचौड़िया हाउस पर डाली और मन ही मन सोचा, "वैसे इन नेता लोगों का सही है, हमारे पैसे से बंगला खड़ा करके हम पर ही धौंस जमाते हैं।"

    सबा के चेहरे पर एक कड़वी मुस्कुराहट तैर गई। लेकिन अगले ही पल उसकी नज़र सियारा पर गई, जो अपना पर्स गाड़ी से निकाल रही थी। उसे देखते हुए सबा ने अपनी कड़वाहट खुद में ही दबा ली। सियारा ने मुस्कुराते हुए उसे देखा और आगे बढ़ते हुए बोली, "सबा, क्या देख रही हो? चलो अंदर चलो। और हाँ, उसकी बात को इतना दिमाग़ में मत रखो, वो थोड़ी खिसकी हुई है।"

    सबा ने कुछ नहीं कहा। हल्के से मुस्कुरा कर आगे बढ़ी, लेकिन उसे देखकर साफ़ पता चल रहा था कि तनिष्का की बात उसे बहुत बुरी लगी थी। उसने सियारा को देखा, जो अंदर जा रही थी। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ती, गार्ड झुककर उसे ग्रीट कर रहे थे। ये नज़ारा देखकर सबा के होठ फिर से ऊपर की ओर मुड़े और एक व्यंग्य भरी मुस्कान उभर आई। उसने खुद से कहा, "हमारे वोट से ही इन्हें इतनी इज़्जत मिलती है, और बाद में यही लोग हमें हमारी औकात दिखाते हैं।"

    सबा के दिल पर तनिष्का की बातों का गहरा असर हुआ था। उसके मन में एक कड़वाहट जन्म ले चुकी थी।
    ----------

    आज के लिए इतना ही...
    आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़िए "ये तूने क्या किया" मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।

    Stay tuned... my lovelies❤️🫂❤️🧿

    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 7. ये तूने क्या किया.. - Chapter 7

    Words: 1063

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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    पंचौड़िया हाउस

    सियारा बंगले के अंदर जा रही थी, वहीं सबा अभी भी गाड़ी के पास खड़ी थी — किसी गहरी सोच में गुम। अपने पीछे सबा के न आने का एहसास होते ही सियारा ने पलट कर देखा। सबा को वहीं खड़ा देख सियारा ने हल्के मज़ाकिया अंदाज़ में कहा,
    "सबा... मेरे घर में एक बड़ा-सा दरवाज़ा भी है जिससे अंदर जाया जाता है, आओ न, देखो कैसे हम सब अंदर जाते हैं।"

    इतना कह कर सियारा हँसने लगी। गार्ड्स को भी उसकी बात पर हँसी आ गई। सियारा के इस अंदाज़ पर सबा भी खुद को मुस्कुराने से रोक नहीं पाई और हँसते हुए वह भी अंदर बढ़ गई।

    बंगला अंदर और बाहर दोनों से बेहद सुंदर था। घर के इंटीरियर को देखकर साफ़ लग रहा था कि ये काम हाल ही में करवाया गया है, क्योंकि Cozy Classy (C2) कंपनी ने अपने नए प्रोजेक्ट्स में इसी डिज़ाइन को दिखाया था। सबा की आँखें मानो बाहर निकलने को थीं। वह हैरानी से सब कुछ देख रही थी — मानो धरती के स्वर्ग में पहली बार आई हो, वरना वह तो हमेशा कैफे में ही मिलते थे।

    सबा की नज़र पूरे घर पर घूम रही थी। वह एंट्रेंस और गैलरी के इंटीरियर में ही खोई हुई थी, तभी उसकी नज़र सामने गई। सोफे पर कुर्ता-पायजामा पहने एक आदमी बैठे थे — राजेंद्र पंचौड़िया। वहीं दूसरा आदमी, जो उनका सेक्रेटरी था अमन गुप्ता! एक फाइल में कुछ दिखाकर उनसे बात कर रहा था। हॉल में सिर्फ उन्हीं की आवाज़ गूंज रही थी।

    अमन बोला,
    "कॉलेज में नई बिल्डिंग बनवाने का जो टेंडर था, वो धर्मा कंस्ट्रक्शन को मिला है। और उसके लिए सरकार की तरफ़ से दो सौ करोड़ का बजट अलॉट हुआ है, जिसमें पाँच कॉलेज के पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर को तोड़कर नए सिरे से काम करना है।"

    राजेंद्र कुछ कहते उससे पहले ही उनकी नज़र सियारा और सबा पर पड़ी। उन्होंने हल्की मुस्कुराहट के साथ अपनी बेटी को देखा और बोले,
    "सिया बिटिया, आज स्कूल नहीं गई? और ये तुम्हारी दोस्त है?"

    सियारा ने हाँ में सिर हिलाते हुए जवाब दिया,
    "हाँ पापा, ये मेरी दोस्त है सबा। और आज हमारी क्लासेज़ नहीं थीं। अब लास्ट मंथ ही बचा है एग्ज़ाम का, तो क्लासेज़ की जगह टेस्ट ही चल रहे हैं।"

    राजेंद्र ने सिर हिलाया और नरमी से बोले,
    "अच्छा, कोई बात नहीं — आज छोड़ दिया, लेकिन कल से दोनों स्कूल जाना। टेस्ट देना फ़ायदे का रहेगा। अब जाओ, अपनी फ्रेंड के साथ अपने कमरे में।"

    राजेंद्र जी के कहने पर सियारा ने सबा को इशारा किया और दोनों ऊपर जाने लगीं।

    इधर राजेंद्र ने अमन की ओर देखकर कहा,
    “हम्म… धर्मा कंस्ट्रक्शन तो अपना ही आदमी चलाता है। वहां मोलभाव का झंझट नहीं होगा। चलो, ये काम जल्दी शुरू करवाओ ताकि सरकार को प्रूफ़ भेज सकूं।”

    सबा सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उनकी बातें सुन रही थी। राजेंद्र की बात सुनते ही उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। लेकिन उसने खुद को सामान्य करते हुए मन में कहा,
    "मतलब ये घोटाले की प्लानिंग कर रहे हैं? कैसे प्रजाति होते हैं ये नेता लोग..."

    उसका मूड बिगड़ गया था। दोनों ऊपर की ओर चली गईं।


    ---

    चौधरी निवास

    अधिराज को खामोश देखकर महेश कुछ और बोल ही न सका। वहीं उनसे थोड़ी दूरी पर एक महिला खड़ी थी — महेश से तीन-चार साल छोटी। काला ब्लाउज़, लाल साड़ी, माँग में सिंदूर और हाथों में चूड़ियाँ — बस इतना ही श्रृंगार था। वह चुपचाप उनकी बात सुन रही थी।

    कुछ पल की ख़ामोशी के बाद महेश नीचे जाने के लिए मुड़ा। जैसे ही वह सीढ़ियों तक पहुँचा, वहां खड़ी उस महिला को देखकर उसकी आँखें पहले छोटी हुईं, फिर वह गहरे स्वर में बोला,
    "कुसुम, तुम यहाँ क्या कर रही हो?"

    कुसुम — महेश की पत्नी — मुँह बनाते हुए बोली,
    "अगर वो MBA कर लेगा तो उसमें समस्या क्या है, ये मुझे समझ नहीं आ रहा। अब सबको राजनीति पसंद नहीं आती।"

    जैसे-जैसे कुसुम बोल रही थी, उसकी आवाज़ में तल्ख़ी आने लगी थी। इससे पहले कि वह और तेज बोलती, महेश ने उसका बाजू पकड़ा और नीचे की ओर ले जाते हुए कहा,
    "पहले नीचे चलो। और भैया जी मना कर रहे हैं, तो कुछ सोचकर ही कर रहे होंगे। वो सात्विक के दुश्मन थोड़ी है।"

    महेश कुसुम को खींचते हुए कमरे में ले आया। वहां पहुँचते ही कुसुम ने हाथ छुड़ाया और बोली,
    "भैया जी को बस अपनी सत्ता और कुर्सी ही दिखती है। उनका मन था तो उन्होंने राजनीति की, आपका मन था तो आप भी गए। लेकिन अब ये सब चीज़ें घर के बच्चे पर थोपना बिल्कुल सही नहीं है। मैं खुद भैया जी से बात करूंगी।"

    कुसुम की इस बात पर महेश ने सख़्ती से कहा,
    "खबरदार जो तुम भैया जी से सवाल-जवाब करने गई। और वैसे भी, अभी सात्विक का एग्ज़ाम हुआ नहीं है। पहले परीक्षा होगी, फिर परिणाम आएगा, तब जाकर आगे का निर्णय लेगा वो। तब तक तुम भी चुप रहो।"

    हिदायत देते हुए महेश बाहर चला गया। लेकिन कुसुम के चेहरे पर शिकायतें अब भी थीं। उसे बिल्कुल पसंद नहीं आया जब अधिराज ने सात्विक की बात को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया।


    ---

    सात्विक का कमरा

    धैर्य अभी भी हँस रहा था, जबकि सात्विक चुपचाप था। उसने चिढ़ते हुए कहा,
    "चुप हो जा धैर्य, कितना हँसेगा? मम्मी अपने काम में लग गई होंगी, और तू अब तक उनकी बात पर हँस रहा है।"

    धैर्य ने जैसे-तैसे खुद को रोकते हुए कहा,
    "तो क्या करूँ, चाची ने कहा ही ऐसा है। उन्हें लगता है उनका बेटा बिगड़ जाएगा। अरे कोई तो उन्हें बताए कि ये उन्हीं बेटों में से है जो शादी से भागते हैं और माँ-बाप पीछे पड़े रहते हैं।"

    इतना कहते ही धैर्य फिर से हँसने लगा। उसकी बात पर सात्विक पूरी तरह चिढ़ गया। उसने कहा,
    "कल ही सबा के घर जाना है, चल कुछ पहनने के लिए ले आते हैं — मेरे पास पार्टी लायक कपड़े नहीं हैं।"

    धैर्य मज़ाकिया अंदाज़ में बोला,
    "हाँ, तो उसके लिए पार्टी में जाना भी ज़रूरी होता है।"

    सात्विक गुस्से से धैर्य को देखने लगा।


    ---

    आज के लिए इतना ही... आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़ें — "ये तूने क्या किया..."
    मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।

    Stay tuned, my lovelies❤️🫂🌹
    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 8. ये तूने क्या किया.. - Chapter 8

    Words: 1052

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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    सात्विक का कमरा...

    सात्विक गुस्से से धैर्य को घूर रहा था, क्योंकि वो हर बात पर उसका मज़ाक बना रहा था। सात्विक की गुस्सैल नज़र को देखकर धैर्य ने अपनी हँसी कंट्रोल करते हुए कहा,
    "हां चल न, शाम को ही मॉल चलेंगे, वहाँ से ले लेना कुछ अच्छा सा।"

    सात्विक ने कुछ नहीं कहा, बस सिर हिला दिया।
    अचानक धैर्य का फोन बजा। उसने स्क्रीन देखी, Papa फ्लैश हो रहा था। देखते ही वो हड़बड़ा गया और उठते हुए बोला,
    "भाई, शाम में चलेंगे... अभी मेरे पापा का कॉल है, बाद में आता हूं।"

    इतना कहकर वो स्पीड से निकल गया।
    अब कमरे में सात्विक अकेला था।
    उसने दरवाज़ा बंद किया और खिड़की के पास गया—वो खिड़की जो सीधे उसके घर के गार्डन में खुलती थी।

    रात के आठ बज रहे थे। बाहर अंधेरा छा चुका था।
    खिड़की खोलते ही आसमान में चमकता चाँद दिखा, जिसके आस-पास मोतियों की तरह तारे बिखरे थे।
    ठंडी हवा का एक झोंका सात्विक को छूकर गुजर गया, जिससे उसका बदन सिहर उठा। लेकिन उन हवाओं में एक अजीब सा सुकून था।
    सात्विक खिड़की से टिक कर बाहर कहीं दूर देख रहा था, मानो उसकी नज़र किसी को ढूंढ रही हो—
    लेकिन वो, जिससे वो नज़र टकरानी चाहिए थी... कहीं नहीं थी।


    ---

    महेश का कमरा...

    महेश के जाने के बाद कुसुम चुपचाप बेड पर बैठ गई,
    लेकिन उसके दिमाग़ में अब भी अधिराज द्वारा सात्विक की बात को इग्नोर करना घूम रहा था।
    उसका मन कर रहा था कि तुरंत जाकर अधिराज से बात करे,
    पर महेश की सख़्त मनाही के कारण वो चुप थी।

    वो चिढ़ते हुए बोली,
    "क्या ही फ़ायदा है इतना पैसा होने का, जब बच्चा अपने मन से कोई काम कर ही नहीं सकता।
    अरे नहीं जाना है उसे राजनीति में, तो क्या जबरदस्ती है?
    मुझे तो भैया जी की ये बात बिल्कुल भी समझ नहीं आती।"

    तभी फोन बजा।
    स्क्रीन पर Maahi फ्लैश हो रहा था।
    कुसुम ने फोन उठाते हुए कहा,
    "हम्म... कैसी है? हो गया शाम वाला क्लास ख़त्म? और कुछ खाई की नहीं?"

    उधर से एक प्यारी सी आवाज़ आई,
    "प्रणाम मां... हां, अभी आधा घंटा हुआ क्लास ख़त्म हुए। खाना बनाकर खा लिया है, अब आपसे बात कर रही हूं। आप कैसी हैं? पापा और बड़े पापा कैसे हैं?"

    कुसुम मुस्कुराते हुए बोली,
    "सब ठीक हैं। बस तू अपना ख्याल रख और जल्दी से एग्ज़ाम देकर यहां आ जा, कुछ दिन तो रह सके हमारे साथ।"

    माही की आवाज़ थोड़ी भावुक हो गई,
    "ह्म्म... मेरा भी बहुत मन करता है वहां आने का।
    नो डाउट, मामी बहुत अच्छी हैं...
    पर आपकी, पापा की, बड़ी मां और भाई की बहुत याद आती है।"

    कुसुम थोड़ा चिंतित होकर बोली,
    "तू इतना उदास क्यों हो रही है? कुछ हुआ है? किसी ने कुछ कहा क्या?"

    माही ने तुरंत जवाब दिया,
    "अरे नहीं मां, किसी ने कुछ नहीं कहा। बस यूं ही आपका मन कर रहा था। वैसे भाई कैसे हैं? उनके एग्ज़ाम तो पास में ही हैं ना?"

    कुसुम ने गहरी सांस लेते हुए कहा,
    "हां, दो हफ्ते बाद हैं।"

    माही बोली,
    "ह्म्म, मैं कल भाई से बात करूंगी। अभी तो पढ़ रहे होंगे।"

    कुसुम ने कहा,
    "हां, कल करना। अभी सो जाओ, सुबह जल्दी उठना भी है।"

    माही ने प्यारे अंदाज़ में कहा,
    "हां मां, जा रही हूं सोने। गुड नाइट!"

    कुसुम ने भी उसी अंदाज़ में कहा,
    "गुड नाइट, स्वीट ड्रीम्स!"

    फोन कट गया।
    लेकिन कुसुम के मन में एक गहरी सोच बैठ गई थी।


    ---

    सबा की छत...

    एक छोटा सा घर—चार-पाँच कमरे, एक किचन और कॉमन वॉशरूम।
    मिडिल क्लास के हिसाब से अच्छा कहा जा सकता है,
    लेकिन आज सबा को उसका घर बहुत छोटा लग रहा था।

    वो छत की रेलिंग से लगी अपने घर को नज़रों से माप रही थी।

    उसने खुद से कहा,
    "बात तो तनिष्का की सही थी...
    इन लोगों की हैसियत हमसे कहीं ज़्यादा है। और सात्विक तो...
    उसकी फैमिली तो इन सबसे भी बड़ी है।
    तो क्या उसे बुलाना सही फैसला था?
    अगर तनिष्का मेरी बेइज्ज़ती कर सकती है, तो क्या वो भी...?"

    एक डर सा उसके मन में बैठ गया था।
    कहीं सात्विक उसके घर आकर उसे नीचा न दिखा दे।
    आखिर उसकी हैसियत तनिष्का से भी कहीं ऊपर थी।


    ---

    मिश्रा हाउस...

    आरुषि और दीक्षा पलंग पर बैठी ज़ोर-ज़ोर से हँस रही थीं।
    सामने तीन-चार शॉपिंग बैग्स रखे थे।
    तभी कोमल कमरे में आई।
    उन्हें हँसता देख कर दरवाज़ा बंद करते हुए बोली,
    "तुम दोनों की हँसी नीचे तक जा रही है! क्या सुनकर इतना हँस रही हो? और हां, प्रसाद चाहिए क्या?"

    दीक्षा हँसी रोकते हुए बोली,
    "चाची, मेरी गलती नहीं है। ये... इसने ही कहा कि चल अभी मॉल चलते हैं, वरना मेरा तो सुबह का प्लान था।"

    आरुषि ने मुंह बनाते हुए कहा,
    "हां तो, सुबह-सुबह कौन जाता? फिर दो-तीन घंटे शॉपिंग में जाते और तैयार होने का टाइम नहीं मिलता!"

    कोमल ने पूछा,
    "वैसे जा कहां रही हो तुम दोनों? कुछ है क्या?"

    दीक्षा ने बताया,
    "हमारी क्लासमेट का बर्थडे है, उसी की पार्टी है।"

    कोमल उत्साहित हो गई,
    "फिर क्या! सब दिखाओ, क्या-क्या लिया?"

    आरुषि ने बैग से ड्रेस निकालते हुए कहा,
    "व्हाइट थीम है, तो व्हाइट ही लिया है।"

    पहली ड्रेस व्हाइट नी-लेंथ बॉडीकॉन थी, स्लीवलेस और एंब्रॉयडरी वर्क वाला—बहुत सटल और स्लीक डिज़ाइन। जिसे दिखाते हुए आरुषि ने कहा,"ये दीक्षा ने लिया है।"

    फिर आरुषि ने अपनी ड्रेस निकाली—व्हाइट फ्रॉक जिसमें हल्के ब्लू फ्लोरल पैटर्न थे, नीचे पतला कैनकैन लगा था जिससे वो डॉल ड्रेस लग रही थी।

    कोमल ने खुश होकर कहा,
    "वाह! कल एक क्यूट डॉल बनेगी और एक हॉटी!
    लड़कों के तो होश ही उड़ जाएंगे!"
    फिर तुरंत गंभीर होकर पूछा,
    "लड़के भी होंगे क्या?"

    दीक्षा बोली,"May be or may be not!"

    कोमल समझाते हुए बोली,
    "देखो, अगर पीने-पिलाने वाला सीन हो तो मत करना। बाद में रिस्क हो जाता है।"

    आरुषि ने कहा,
    "वो भी मिडिल क्लास ही है, और घर पर पार्टी है।
    नहीं होगा कुछ ऐसा, और हुआ भी तो हम नहीं करेंगे।"

    तीनों मुस्कुरा पड़ीं।


    ---

    आज के लिए इतना ही...
    आगे क्या हुआ, जानने के लिए पढ़ते रहिए "ये तूने क्या किया"
    मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।

    Stay tuned, my lovelies. ❣️🌹🫂

    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 9. ये तूने क्या किया.. - Chapter 9

    Words: 1185

    Estimated Reading Time: 8 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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    अगली सुबह…

    आरुषि का कमरा…

    सुबह की हल्की रोशनी खिड़की से कमरे में आ रही थी। सुनहरी किरणें पलंग पर सोई आरुषि और दीक्षा के चेहरे पर पड़ रही थीं, हालांकि इससे दोनों में से किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। वे दोनों ही अपने सपनों की दुनिया में खोई हुई थीं और बेहद प्यारी लग रही थीं। साइड टेबल पर रखी घड़ी की छोटी सुई छह पर थी और बड़ी बारह पर। सेकंड की सुई खिसकते हुए बारह पर पहुँची और इसी के साथ अलार्म बजने लगा। तेज़ आवाज़ की वजह से दीक्षा इधर-उधर पलट गई और तकिए से कान ढंक लिया, लेकिन आरुषि के कान के पास ही अलार्म बज रहा था, जिस वजह से उसकी आँख खुल गई।

    उसने हाथ बढ़ा कर पहले अलार्म को बंद किया और फिर शरीर को जबरदस्ती खींचते हुए उठाया। खिसक कर बेड क्राउन पर सिर टिका दिया। लगभग आठ-दस सेकंड तक वैसे ही बैठी रही, फिर आरुषि ने हल्के से आँखें खोलीं। कमरे में अभी भी पूरी रोशनी नहीं आ रही थी क्योंकि खिड़की और दरवाज़े बंद थे। सिर्फ़ एक खिड़की खुली थी, जिसमें पर्दे लगे हुए थे, जिससे छनकर ही सुनहरी धूप बिस्तर पर पड़ रही थी।

    खुद को पुश करते हुए आरुषि ने अलसाई आवाज़ में कहा, "उठ जा आरुषि... ऑलरेडी एक घंटा लेट है तू।"

    वो उठी और वॉशरूम चली गई, वहीं दीक्षा अभी भी सोई हुई थी।

    किचन…

    शांति किचन में खड़ी थी। गैस पर चाय का बर्तन चढ़ा था जिसमें पानी, चायपत्ती और चीनी उबल रही थी। शांति ने फ्रिज से दूध का बर्तन निकाला और नाप कर चाय में डाल दिया। कुछ सेकंड में ही काले हो चुके चाय का रंग सुर्ख लाल हो गया। खुशबू पूरे किचन में फैल गई। तभी वहाँ कोमल हड़बड़ाते हुए आई। जैसे ही वो अंदर आई, उसने देखा कि शांति वहाँ पहले से खड़ी थी।

    कोमल ने हिचकिचाते हुए कहा, "वो भाभी, पता नहीं कैसे आज फिर लेट हो गया।"

    उसके चेहरे पर उदासी और अफ़सोस साफ़ दिखाई दे रहे थे। कोमल को ऐसे देखकर शांति ने कहा, "देखो, मैं समझती हूँ, तुम्हें सुबह-सुबह उठा नहीं जाता, तो कोई दिक्कत नहीं है। सुबह का चाय-नाश्ता मैं देख लूँगी, तुम दिन का खाना और रात का खाना देख लो। ऐसे में तुम्हें बुरा भी नहीं लगेगा और एक इंसान ही थका नहीं रहेगा।"

    कोमल झट से अपना सिर हाँ में हिला दी। उसके तुरंत रिएक्ट करने से शांति जी को हँसी आ गई। वो चाय छानते हुए बोलीं, "लो बउआ का चाय और अपना चाय ले जाओ। और ये भी ले लो, अपने कमरे में जाते हुए आरुषि के कमरे में भी दे देना, उठ गई होगी।"

    कोमल ने ट्रे में चार कप चाय रखे और चली गई। शांति ने अपना और संतोष का चाय लिया और अपने कमरे की तरफ़ चली गई।


    ---

    चौधरी निवास…

    अधिराज का कमरा…

    अधिराज बिस्तर पर बैठा था। उसे देखकर साफ़ पता चल रहा था कि बस कुछ सेकंड पहले ही जगा है। उसकी नज़र आईने के सामने बैठी सुभद्रा पर गई, जो नहा कर बैठी अपना श्रृंगार कर रही थी। अधिराज ने कुछ पल उसे देखा और फिर बिस्तर से उतर कर वॉशरूम की तरफ़ चला गया।

    सात्विक का कमरा…

    कमरा बिल्कुल साफ़ था। यहाँ तक कि बिस्तर भी लग चुका था। वहीं सात्विक के हाथ में एक कपड़ा था जिससे वो अपनी स्टडी टेबल की सफ़ाई कर रहा था। ये उसका रोज़ का काम था; वह अपने कमरे की सफ़ाई खुद ही करता था। तभी उसका फोन बजा। उसने पलट कर देखा—बेड की साइड टेबल पर उसका फोन चार्जिंग पर लगा था। वह गया, स्क्रीन पर “My little doll” फ्लैश हो रहा था। जिसे पढ़ते ही उसके चेहरे पर एक दिलकश मुस्कान आ गई। उसने फोन रिसीव करते ही कहा,

    "Hmm... क्या बात है, आज सुबह-सुबह भाई की याद कैसे आ गई, कोई काम है क्या?"

    सात्विक की इस बात पर फ़ोन के दूसरी तरफ़ से माही की आवाज़ आई, जो चिढ़ी हुई थी,
    "भाई! मैं क्या हमेशा काम होने पर ही आपको फोन करती हूँ जो आप ऐसा बोल रहे हो!"

    उसने बड़ी प्यारी आवाज़ में कहा, जिससे सुनते ही सात्विक मुस्कुरा उठा। उसने शरारती अंदाज़ में कहा,
    "Oh my little doll, बताओ तो बिना काम के फोन कब किया था?"

    उधर से झट से माही की आवाज़ आई,
    "पिछले वीक।"

    सात्विक मुस्कुराते हुए,
    "अबे ओ मेमोरी वीक... याद दिला दूं, तुम्हें कोई ड्रेस पसंद आई थी, उसके पैसे चाहिए थे, उसके लिए किया था।"

    कुछ पल की ख़ामोशी के बाद आवाज़ आई,
    "अ.. आ.. वो, हाँ तो उसके पहले जब असाइनमेंट क्वेश्चन समझ नहीं आ रहा था तब किया था न।"

    सात्विक ने हँसते हुए कहा,
    "हाँ वही, तभी जब तुझे क्वेश्चन का काम था।"

    सात्विक की इस बात पर माही को एहसास हुआ कि उसने खुद को बचाने के चक्कर में फँसा लिया है, इसलिए उसने तुरंत बात बदलते हुए कहा,
    "हाँ तो कौनसा आपने ही मुझे फोन कर लिया? छोटी बहन हूँ, आप भी तो कर सकते थे।"

    सात्विक की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। कुछ पल बाद उसके होंठ मुस्कुरा उठे लेकिन उसने माही को छेड़ने के अंदाज़ में कहा,
    "वाह! मतलब मानती है कि मैं तेरा बड़ा भाई हूँ, तो अब से मेरी सारी बात मानेगी क्योंकि तूने एक्सेप्ट किया कि तू छोटी है।"

    माही ने तुरंत कहा,
    "हाँ, हूँ छोटी लेकिन उम्र से, अक्ल से तो आज भी बड़ी हूँ और हमेशा रहूँगी।"

    सात्विक ने हँसते हुए कहा,
    "अच्छा! तुझे लगता है तेरे अंदर बड़ी अक्ल है? देख, ऐसा है कि तेरे ऐसे बोलने से अब 'अक्ल' शब्द को शर्मिंदगी हो रही है।"

    जैसे ही सात्विक ने कहा, वैसे ही माही ने फोन काट दिया। यह देखकर सात्विक का मुँह बन गया। तभी उसके फोन में धैर्य का मैसेज आया जिसमें लिखा था,
    "भाई, बारह बजे के क़रीब चलेंगे मॉल। मस्त वहीं से तैयार होकर चल लेंगे, तो गाड़ी ले आना।"

    अब सात्विक को याद आया कि उसे मॉल भी जाना था। उसने तुरंत Ok रिप्लाई किया और वापस स्टडी टेबल को अरेंज करने लगा।


    ---

    आज के लिए इतना ही।
    आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़िए — ये तूने क्या किया, मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।

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    Next story Recomendation 😁🙃

    शादी एक ऐसा रिश्ता जहां दो जिस्मों में बसे रूह एक हो जाते हैं, जहां जिंदगी के सफ़र के हमसफ़र बन जाते हैं, लेकिन जब यही हम सफ़र बीच सफ़र में धोखा दे, और इससे भी आगे बढ़ कर मौत दे तो इंसान कितना टूटेगा? ये कहानी भी ऐसी ही है जहां अपने पति रिवाज को सब कुछ मानने वाली खनक को उसके ही पति से मिलेगा धोखा, और फिर एक भयानक मौत! लेकिन मौत को मात दे कर बच जाएगी खनक और शुरुआत होगी एक नए दास्तान की! क्या खनक खुद को इंसाफ दिल पाएगी? क्या उसके जिंदगी में खुशियां आएंगी? जानने के लिए पढ़ें "तू भी सताया जाएगा" मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ Only on storymania

    Stay tuned my lovelies ❣️🌹🫂

    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 10. ये तूने क्या किया.. - Chapter 10

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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    चौधरी निवास
    अधिराज का कमरा

    अधिराज बाथरूम से निकलकर आया। उसने बाथरॉब लपेट रखा था और कमरे में ही बने क्लोजेट की तरफ जा रहा था। लेकिन उससे पहले उसकी नज़र ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी, जो अब खाली थी। कुछ देर पहले तक सुभद्रा वहीं अपना श्रृंगार कर रही थी। अधिराज ने कुछ पल ड्रेसिंग टेबल की ओर देखा और फिर क्लोजेट में चला गया।
    करीब दस मिनट बाद क्लोजेट का दरवाज़ा खुला और अधिराज बाहर आया। वह जैसे ही ड्रेसिंग की ओर बढ़ा, तभी उसका फोन रिंग हुआ। वह पलटा, बेड के साइड टेबल से फोन उठाया और बिना स्क्रीन देखे ही रिसीव कर लिया। उधर से आवाज़ आई—

    "भैया जी! पंचौड़िया आया है, बोल रहा है एक बार भैया जी से बात करनी है।"

    यह सुनते ही अधिराज की नज़र कमरे में टंगी घड़ी पर गई, जो अभी पौने नौ बजा रही थी। इतनी सुबह पंचौड़िया का घर आना सुनते ही उसकी भौहें सिकुड़ गईं। उसने कुछ नहीं कहा, बस फोन काट दिया। फोन को कुर्ते के पॉकेट में डालते हुए वह ड्रेसिंग के पास आया, बालों में कंघी की और कमरे से बाहर निकल गया।

    वह सीढ़ियों से हॉल में उतर रहा था। उसकी नज़र हॉल में बैठे पंचौड़िया और उसके असिस्टेंट पर थी। हॉल खाली था, लेकिन पंचौड़िया एक दिशा में लगातार देख रहा था। अधिराज ने हल्के से उस दिशा में नज़र डाली — सुभद्रा सर पर पल्लू डाले मंदिर में पूजा कर रही थी। ओपन मंदिर होने के कारण हॉल में बैठे लोग भी उसे देख सकते थे।
    अधिराज के चेहरे के भाव हल्के से बदले लेकिन उसने तुरंत खुद को संयत कर लिया। उनके पास पहुंचते हुए वह बोला,
    "क्यों पंचौड़िया जी, इतनी सुबह-सुबह आने का कोई बड़ा कारण होगा?"

    भाषा उसकी सामान्य थी लेकिन टोन सर्द। अधिराज की आवाज़ सुन पंचौड़िया की नज़र सुभद्रा से हटकर उस पर आ गई और वह हड़बड़ाते हुए खड़ा हो गया,
    "हां... हां चौधरी साहब, बात ही कुछ ऐसी थी। सरकार की तरफ से कॉलेज रिनोवेशन के लिए फंड आया है। अगर आप साइन कर दें तो काम जल्द शुरू करवा देंगे।"

    हालांकि बात अधिराज से हो रही थी, पर पंचौड़िया की तिरछी नज़र बार-बार सुभद्रा की ओर चली जाती थी। लाल बनारसी साड़ी में, गीले बाल खोले बैठी सुभद्रा पूजा कर रही थी। उसके होंठ बुदबुदा रहे थे, जिससे साफ था कि पूजा शुरू हो चुकी थी।
    अधिराज ने गुस्से को दबाते हुए जल्दी से फाइल पर साइन कर दिया और खड़ा होते हुए बोला,
    "चलिए, खेत देखने जाना है आज गांव की ओर, आप भी चलिए।"

    अधिराज के इस कहने से पंचौड़िया समझ गया कि अब निकलना ही बेहतर है। उसने बिना समय गवाएं वहां से विदा ली। मेन गेट तक पहुँचते हुए उसने एक बार फिर सुभद्रा को देखा और फिर चला गया।
    उसके जाने के बाद अधिराज उसी जगह बैठ गया जहां पहले पंचौड़िया बैठा था। उसकी नज़र मंदिर में पूजा करती सुभद्रा पर टिक गई।


    ---

    महेश का कमरा

    कुसुम जल्दी-जल्दी तैयार हो रही थी। उसने मांग में सिंदूर भरा, सिर पर पल्लू किया और हॉल की ओर आई। हॉल में अधिराज को बैठे देख उसकी चाल धीमी हो गई। उसका ध्यान गया कि अधिराज अपलक सुभद्रा को देख रहा था। यह देखकर कुसुम के होठों पर हल्की मुस्कान आ गई, जो हर बीतते पल के साथ गहराती जा रही थी।
    वह अपनी हंसी दबाते हुए मंदिर में चली गई। लेकिन तभी सुभद्रा जल और अगरबत्ती लिए उठी और मुड़ते ही कुसुम से उसकी नज़र मिली। कुसुम ने शरारत से अपनी आँखों से इशारा किया अधिराज की तरफ देखने के लिए।
    सुभद्रा ने अधिराज की ओर देखा, लेकिन कुछ समझ नहीं पाई और आंगन की ओर बढ़ गई।
    अधिराज, कुसुम की शरारत देख चुका था। उसे खुद अजीब लगा तो वह उठकर बाहर चला गया।


    ---

    मिश्रा हाउस
    आरुषि का कमरा

    आरुषि और दीक्षा बेड पर बैठे चाय की चुस्की ले रही थीं। दीक्षा ने अचानक कहा,
    "वैसे तेरा अचानक जाने का मूड कैसे बन गया? पहले तो पढ़ाई की दुहाई दे रही थी।"

    दीक्षा के सवाल पर आरुषि एकदम चौंकी। उसे समझ नहीं आ रहा था क्या जवाब दे। वहीं दीक्षा संकुचित आँखों से शक भरी नज़रों से उसे घूर रही थी।
    आरुषि ने कहा,
    "क्या यार... ऐसे घूर रही है जैसे पार्टी में नहीं, क्लब में जाने के लिए हां कर दिया हो।"

    आरुषि की बात पर दीक्षा ने मुंह बनाया और फिर आँखें घुमाते हुए बोली,
    "आरु, हमें न क्लब तो छोड़, उसके डायरेक्शन में देखने तक की परमिशन नहीं है। इसलिए बात मत घुमा, सीधे जवाब दे।"

    कुछ पल ख़ामोशी के बाद आरुषि ने कहा,
    "तूने ही तो कहा था कि लास्ट स्कूल वाला मीटअप होगा सबके साथ। इसके बाद एग्जाम शुरू, फिर कहाँ मिलेंगे? तो मैंने भी सोचा चलो मिल लेते हैं।"

    दीक्षा को अभी भी पूरी तरह से भरोसा नहीं हुआ, लेकिन उसने बात वही छोड़ दी।
    आरुषि थोड़ी देर सोचती रही और फिर बोली,
    "एक बात बता, तू पक्का श्योर है सब आयेंगे?"

    दीक्षा का शक और गहरा गया लेकिन उसने बस हां में सिर हिला दिया।
    आरुषि कुछ पल सोचती रही फिर बोली,
    "लेकिन यार, सब आयेंगे क्यों? लाइक सियारा और तनिष्का तो बहुत हाई-प्रोफाइल हैं।"

    दीक्षा ने चाय का आखिरी घूंट लेते हुए कहा,
    "ये सबा के बर्थडे पार्टी से ज्यादा स्कूल लास्ट मीटअप पार्टी है बेब, सो चिल। सब आयेंगे, सियारा भी और तनिष्का भी। क्योंकि ये आइडिया सियारा का ही था।"

    आरुषि ख़ामोश हो गई। उसने मन में सोचा,
    "जब सियारा और तनिष्का आ रही हैं तो चांस है कि वो भी आये।"

    जैसे ही ये ख़याल आया उसकी आँखें चमक उठीं। वह जल्दी से उठी और वॉशरूम चली गई।

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    आज के लिए इतना ही आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ते रहें, ये तूने क्या किया मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ। और आप मेरी दूसरी कहानियां भी प्रोफ़ाइल से पढ़ सकते हैं।

    Stay tuned my lovelies ❣️ 🫂 🌹

    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 11. ये तूने क्या किया.. - Chapter 11

    Words: 1236

    Estimated Reading Time: 8 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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    चौधरी निवास...
    सात्विक का कमरा...

    सात्विक आईने के सामने खड़ा था। उसने पीच कलर का पुलओवर और नीचे ब्लैक पैंट पहनी थी। बाएं हाथ में स्मार्ट वॉच और पैरों में वाइट शूज़ पहने, वो खुद को आईने में देख रहा था। एक नज़र खुद पर डालने के बाद उसने ब्लैक गॉगल्स पहने और मोबाइल पैंट की जेब में रखते हुए बाहर निकल आया। सीढ़ियों से उतरते हुए हॉल में उसकी नज़र कुसुम और सुभद्रा पर पड़ी। दोनों सोफे पर बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रही थीं। उन्हें यूँ देखकर सात्विक के चेहरे पर हल्की मुस्कान खिल उठी। नीचे उतरते हुए वो बोला,
    “और लेडीज़, क्या बात है! आज दोनों एकदम टिप-टॉप बनकर बैठी हो, कुछ ख़ास है क्या?”

    कुसुम, जिसकी चाय लगभग खत्म हो चुकी थी, उसने आख़िरी घूंट लेते हुए सात्विक को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर मुस्कुराते हुए बोली,
    “हमें छोड़ो, अपना बताओ! ख़ुद तो ऐसे सज-धज कर निकले हो जैसे बारात निकालनी हो।”

    सात्विक हँसते हुए बोला,
    “अरे छोटी माँ... पुलओवर और पैंट में कौन बारात निकालता है!”

    कुसुम उसी अंदाज़ में बोली,
    “क्या भरोसा सात्विक चौधरी का! वो तो कुछ भी कर सकता है।”

    सुभद्रा खिलखिला कर हँस पड़ी। सात्विक ने आँखें छोटी करते हुए कहा,
    “क्या माँ, आप तो मज़ाक मत बनाइए। अच्छा नहीं लग रहा क्या?”

    सुभद्रा वहीं से बलाएँ लेते हुए बोली,
    “मेरे बेटे के सामने तो सारे हीरो फेल हैं।”

    सात्विक ने अपनी बत्तीसी चमका दी, वहीं कुसुम को चिढ़ाते हुए जाने लगा। कुसुम भी मुँह आड़े-टेढ़े बना रही थी।

    सुभद्रा हँसते हुए बोली,
    “क्या कुसुम, वो बच्चा है, तुम भी बड़ी नहीं हो क्या?”

    कुसुम हँसने लगी। उधर सात्विक बाहर आया तो धैर्य पहले से ही बाइक लिए खड़ा था। सात्विक पीछे जाकर बैठ गया। धैर्य ने बाइक घुमा ली।


    ---

    सबा का घर...

    सबा सुबह से अपने घर में इधर-उधर घूम रही थी। उसने लगभग सारे घर का सामान हॉल में फेंक रखा था और दुपट्टे से नकाब बना रखा था, ताकि गंदगी उसके बाल और नाक में न जाए। वो आराम से झाड़ू लिए जाले साफ़ कर रही थी और बुदबुदा रही थी,
    “आह... ग़लती कर दी घर पर पार्टी रखकर। इससे अच्छा तो किसी होटल का हॉल बुक कर लेते... पैसे लगते, पर ये तो न करना पड़ता। ऊपर से अम्मी को भी आज ही जाना था, शैफाली को भी ले गईं।”

    वो खुद में बुदबुदा रही थी, लेकिन उसके पास बुदबुदाने का भी वक़्त नहीं था।

    जाले हटाने और दीवार की सफाई हो चुकी थी, लेकिन अब सारा सामान साफ़ करके वापस अपनी जगह रखना था। झाड़ू-पोंछा लगाने के बाद उसे घर में फ्रेशनर भी लगाना था ताकि पूरी तरह सफाई की गंध न आए। वो जल्दी-जल्दी हाथ चला रही थी क्योंकि शाम तक उसकी दो सहेलियाँ डेकोरेशन के लिए आने वाली थीं।


    ---

    Zudio Mall...

    सात्विक और धैर्य मॉल पहुँच चुके थे। बाइक पार्क करने के बाद दोनों अंदर गए और मेंस सेक्शन में पहुँचे। वहाँ कुछ नए कलेक्शन आए हुए थे। सात्विक टी-शर्ट देखने लगा, तभी धैर्य पीछे से आया और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला,
    “भाई, लास्ट पार्टी है। सारी लड़कियाँ होंगी। आज फुल मैन वाले टशन में जाएँगे — शर्ट, पैंट, बेल्ट — फुल फॉर्मल लुक। जैसे ही लड़कियाँ देखेंगी, उनकी आँखें फटी की फटी रह जाएँगी।”

    धैर्य फुल टू एक्साइटेड हो कर ये सब बोल रहा था। सात्विक ने एक तीखी नज़र उस पर डाली जिससे वो शांत हो गया, और सात्विक उसे घूरते हुए शर्ट वाले सेक्शन में चला गया। जब धैर्य ने देखा कि सात्विक शर्ट लेने ही जा रहा है, तो उसका मुँह बन गया और वो बुदबुदाया,
    “जब वही करना था तो ये घूरने का क्या मतलब हुआ? जब देखो घूर कर डराता रहता है।”

    धैर्य भी उधर ही चला गया, जहाँ सात्विक था। तब तक सात्विक ने तीन शर्ट निकाल भी ली थीं — डार्क ब्लू, ब्लैक और पीच कलर। लेकिन तभी धैर्य ने कहा,
    “व्हाइट और बेबी पिंक थीम है।”

    सात्विक ने मुँह बनाते हुए देखा और बोला,
    “इन लड़कियों को कोई और कलर पसंद नहीं आता क्या? दुनिया में सिर्फ़ दो ही रंग बच गए हैं?”

    धैर्य ने कंधे उचकाते हुए कहा,
    “जिसकी पार्टी, उसकी मर्ज़ी।”

    इसके बाद सात्विक फिर से कपड़े ढूँढ़ने में लग गया।


    ---

    पंचौड़िया हाउस...

    सियारा अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी थी और अपने बाल सुलझा रही थी। लेकिन उसका ध्यान कहीं और ही था। उसकी आँखें लगातार आईने को देख रही थीं और हाथ धीरे-धीरे चल रहे थे। उसने एक नज़र पलट कर देखा — पीछे बेड पर स्ट्रैप वाली नी-लेंथ टाइट बॉडीकॉन ड्रेस रखी थी। उसकी नज़र उस ड्रेस पर गई और चेहरे पर एक मुस्कुराहट उभर आई। तभी उसका फोन रिंग करने लगा। स्क्रीन पर Tanishka नाम फ्लैश हो रहा था। एक पल को सियारा का मुँह बन गया, लेकिन फिर उसने कॉल रिसीव कर लिया।

    दूसरी तरफ़ से तनिष्का की आवाज़ आई,
    “Hello Siya, क्या कर रही हो?”

    सियारा ने आँखें रोल करते हुए कहा,
    “कुछ नहीं, बस कॉम्ब कर रही थी! क्यों, कुछ काम था?”

    “Ummm... कुछ खास नहीं, बस ये पूछने के लिए कॉल किया था कि तुमने पार्टी के लिए कैसा ड्रेस लिया है? I mean, थीम क्या है?”

    सियारा की आँखें एक पल को सिकुड़ीं, लेकिन फिर उसके होठ मुस्कुराने लगे और वो बोली,
    “तो तुम भी आ रही हो! लेकिन तुम्हारे अकॉर्डिंग सबा ने ग़लती कर दी बड़े लोगों को इन्वाइट करके — तो तुम कैसे आओगी?”

    “वो तो मुझे अभी भी लग रहा है... क्योंकि सात्विक चौधरी को बुलाना कोई आम बात तो नहीं है,” तनिष्का ने फिर उसी लहज़े में कहा।
    ये सुनकर सियारा ने बेबसी से एक साँस ली और फिर कहा,
    “व्हाइट और बेबी पिंक थीम है।”

    तनिष्का ने इतना सुना और कॉल काट दिया, जिसके बाद सियारा और चिढ़ गई।


    ---

    सबा का घर...
    1:30 PM

    सारा सामान अपनी जगह पर लग चुका था और सबा अब झाड़ू लगा रही थी। उसने ऊपर देखते हुए थकी हुई आवाज़ में कहा,
    “या अल्लाह... जब मैं बेवकूफों वाले डिसीजन ले रही थी तो रोकना चाहिए था ना! अब देखो आपकी प्यारी सी बेटी सबा की हालत — हाथ लाल हो रहे, स्किन की बैंड बज गई, और तो और, बर्थडे गर्ल होते हुए भी अभी तक एक निवाला नसीब नहीं हुआ।”

    वो बोल ही रही थी कि दो लड़कियों की आवाज़ एक साथ आई,
    “क्या! बर्थडे गर्ल को एक निवाला नसीब नहीं हुआ... या खुदा, ये तो ज़्यादती है।”

    सबा ने सामने देखा — दो लड़कियाँ खड़ी थीं: नूर और कायनात। दोनों ने छोटा-सा बैग लिया हुआ था, क्योंकि डेकोरेशन के साथ-साथ वो भी यहीं तैयार होने वाली थीं।
    नूर आगे आते हुए बोली,
    “अच्छा सबा, तू अब ये सब छोड़ — ये हम करते हैं। तू पहले नहा ले, फिर नमाज़ अदा कर। इसके बाद कुछ खा ले, क्योंकि फिर सब आने लगेंगे — तब कहाँ ही खाया जाएगा!”

    कायनात ने बैग हॉल के टेबल पर रखते हुए कहा,
    “हाँ, नूर सही कह रही है। वरना पता चले कि जिसका बर्थडे है, वही बेहोश हो गई।”

    तीनों हँसने लगीं और सबा ने झाड़ू छोड़कर बाथरूम की तरफ़ रुख कर लिया।


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    आज के लिए इतना ही आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़िए ये तूने क्या किया मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।

    Stay tuned my lovelies ❣️ 🫂 🌹

    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 12. ये तूने क्या किया.. - Chapter 12

    Words: 1043

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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    मिश्रा हाउस...
    6:30 PM...

    आरुषि किचन में अपनी मम्मी के आगे-पीछे घूम रही थी, वहीं शांति आगे-आगे अपना काम करते हुए बड़बड़ा रही थी,

    "देख आरु, मैं आख़िरी बार बोल रही हूं — मैं नहीं करूंगी तेरे पापा से बात। अरे रात में देरी हुई तो वो मुझे सुनाएंगे। तू ख़ुद कर ले।"

    दीक्षा का भी मुंह बना हुआ था। वह उदास होते हुए बोली,
    "चाची, क्या फ़ायदा फिर शॉपिंग का? हमारे कपड़े..!"

    शांति ने गैस बंद की और दूध को पतीले से कमंडल में पलट दिया। फिर उसे फ्रिज में रखते हुए बोली,
    "मुझसे पहले पूछा था? अब तुम सब बड़ी हो गई हो — खुद अपने मन से सारे काम करने हैं। हां, अब मां-बाप क्या जाने, हम सब तो कुछ हैं नहीं। सारी समझदारी तो तुम्हारे अंदर ही है।"

    दीक्षा और आरुषि ने बिचारी नज़र से कोमल को देखा, जिस पर कोमल ने एक बार शांति को देखा और फिर धीरे से बोली,
    "भाभी, जाने भी दीजिए न। ये स्कूल का लास्ट होगा इनका। इसके बाद कौन, कहां, किस कॉलेज में जाएगा, क्या पता। और फिर ज़िंदगी इतनी व्यस्त होगी कि मिल भी नहीं पाएंगे।"

    शांति सब्जी काट रही थी। उसका हाथ कुछ पल के लिए रुका, फिर उसने कहा,
    "हां, तो मैंने कौन सा इन्हें मना किया है? बस मैं नहीं करूंगी तेरे भैया से बात — ये ख़ुद कर लें। वो बोलते हैं तो चली जाएं, लेकिन जल्दी आना है।"

    कोमल ने मुस्कुराते हुए कहा,
    "मतलब आपके तरफ़ से मना नहीं है?"

    शांति ने कुछ नहीं कहा, बस 'हां' में सिर हिला दिया। कोमल किचन से निकल कर हॉल में आई। वहां संतोष बैठे मोबाइल चला रहे थे। कोमल ने माथे पर पल्लू किया और थोड़ी दूरी पर खड़ी होकर बोली,
    "भैया... वो आपसे कुछ कहना था।"

    कोमल की आवाज़ पर संतोष का ध्यान उस पर गया। वह ठीक से बैठते हुए बोले,
    "हां-हां, बोलिए न — क्या कहना है आपको? बोलिए, संकोच मत कीजिए।"

    संतोष के स्वर में एक सम्मान था, जिसे महसूस करते ही कोमल को हिम्मत मिली। उसने धीमे से कहा,
    "वो भैया, आरुषि और दीक्षा की दोस्त है सबा, उसका आज बर्थडे है। उसकी पार्टी है। दोनों उसमें जाना चाहती हैं। ये इनका लास्ट स्कूल फंक्शन होगा और सारे लोग मिलेंगे। बाकी इसके बाद तो मिलना भी मुश्किल होगा।"

    संतोष ने पहले बड़े ध्यान से सारी बात सुनी, फिर कुछ पल की ख़ामोशी के बाद बोले,
    "बिटिया, आप बोल रही हैं इसलिए जाने देते हैं। लेकिन दोनों को कहिए कि समय से घर आ जाएं। देर रात तक रुकना नहीं है। मैं लेने आऊंगा।"

    कोमल मुस्कुरा दी और उनके ठीक पीछे खड़ी आरुषि और दीक्षा भी चहक उठीं।


    ---

    सबा का घर...

    सबा ने खाना खा लिया था, और अब वह बिल्कुल फ्रेश लग रही थी। नूर और कायनात ने डेकोरेशन का काम पूरा कर लिया था और बैठी ही थीं। तभी सबा ने कहा,
    "रुको, पहले मैं तुम दोनों के लिए चाय लेकर आती हूं, फिर तैयार होंगे।"

    नूर थकी हुई आवाज़ में बोली,
    "हां बहन, चाय पिला दे।"

    लेकिन तभी कायनात की नज़र घड़ी पर गई। उसकी आंखें बड़ी हो गईं। वह उठते हुए बोली,
    "सबा, तू तैयार होने जा। चाय मैं बना देती हूं। समय देख — पूरा हो गया है। आधे घंटे में सब आने लगेंगे और बर्थडे गर्ल ऐसे फटेहाल रहेगी तो अच्छा नहीं लगेगा।"

    नूर भी बैठते हुए बोली,
    "हां, काया सही बोल रही है। चल, मैं तुझे तैयार कर देती हूं। इधर ये चाय बना लेगी।"

    कायनात ने भी सिर हिला दिया। वहीं, सबा और नूर कमरे में चले गए।
    सबा ने बहुत खूबसूरत पिंक कलर का पाकिस्तानी सूट लिया था। उसके गोरे बदन पर वो रंग खिलकर आ रहा था।
    नूर ने उसके बाल खोले, आगे से ब्रेड बनाते हुए पीछे जाकर हल्के बालों को लेकर कल्चर लगा दी और ब्रेड के बीच व्हाइट कलर की मोती वाली हेयर पिन लगाई।
    हल्की रेड लिपस्टिक, कानों में ऑक्सीडाइज़्ड मिडिल साइज झुमके, हाथों में घड़ी और आंखों में काजल — और बस...
    सबा बेहद खूबसूरत लग रही थी।
    नूर ने उसे पूरा तैयार करने के बाद उसकी नज़र उतारते हुए कहा,
    "वाह-वाह! क्या लग रही है — देखना आज तो बस तू ही चमकेगी। सारे लड़के आज फ्लैट हो जाएंगे।"

    सबा मुस्कुरा कर रह गई।


    ---

    चौधरी निवास...

    धैर्य ने पिंक और वाइट मिक्स शर्ट पहनी थी और नीचे ब्लैक पैंट। वहीं सात्विक कैजुअल में ही अपने बेड पर बैठा फोन चला रहा था।
    उसे देखकर धैर्य ने कहा,
    "भाई, तैयार हो जा वरना लेट हो जाएंगे। और वैसे भी बर्थडे पार्टी है — लेट नाइट थोड़ी चलेगी।"

    सात्विक ने मुंह बनाते हुए कहा,
    "वैसे सबा को ये गिफ्ट सही तो लगेगा न? मतलब..."

    धैर्य ने फुल कॉन्फिडेंस में कहा,
    "हां भाई, लड़कियों को ऐसे गिफ्ट्स ही पसंद आते हैं। और तू टेंशन मत ले — तुझे ये नहीं पता, पर तेरे भाई को सब पता है। Chill."

    सात्विक ने आंखें रोल कीं और धीरे से बुदबुदाया,
    "तूने ये खरीदा है — इसी बात का तो डर है।"

    धैर्य ने सुना तो नहीं, लेकिन उसकी आंखें ज़रूर छोटी हो गईं सात्विक के ऐसे खुद में बड़बड़ाने से।


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    तो आज के लिए इतना ही — आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़िए "ये तूने क्या किया" मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।
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    मेरी इस नई कहानी को इतना प्यार देने के लिए बहुत बहुत सारा Thankyou 😊 और हां आप सब app के new version को update कर लो जिससे आपका रीडिंग एक्सपीरियंस और अच्छा हो जाए, और नए फीचर्स भी इस्तेमाल कर पाओ 🤩 बाकी कहानी के साथ बने रहें और कमेंट भी करें।
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    मेरी प्रोफ़ाइल पर आपको और भी अलग अलग genre की स्टोरी मिलेंगी, लाइक फैमिली ड्रामा, हॉरर लव, और रिवेंज लव आप भी एंजॉय कीजिए पढ़िए और कमेंट कीजिए आपके कमेंट से हम भी आपसे जुड़ते हैं।

    वो कमेंट नहीं होता बल्कि राइटर और रीडर बात करने एक मीडियम होता है, इसलिए कमेंट जरूर करें और प्रोफ़ाइल विजिट करके follow भी करें।
    कल से बिना बकवास के पूरे पार्ट्स आयेंगे आज के लिए byy ❣️💖🥰

    Stay tuned my lovelies ❣️ 🫂 🌹

    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 13. ये तूने क्या किया.. - Chapter 13

    Words: 1098

    Estimated Reading Time: 7 min

    Hehehe 😁😁 मतलब फिर से गैप हो गया यार मैं ट्राई कर रही थी लेकिन खुद को मोटिवेट करने में हर बार फेल हो जाती थी, वैसे आप सबको फिर रिमाइंडर दे रही हूं app update कर लो अच्छे रीडिंग एक्सपीरियंस के लिए app के इंटरफेस में भी चेंजेस आएं हैं। और मुझे फॉलो भी कर लो यार... मतलब फॉलो करना भी कोई कहने की बात होती है खैर आप समझदार हो कर लोगे... है न?
    अब कहानी के तरफ चलते हैं.....
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    चौधरी निवास...

    धैर्य ने सात्विक की बात सुनी नहीं थी, लेकिन उसे खुद से बड़बड़ाते देख चिढ़ जरूर गया था। उसने मुंह बनाते हुए कहा,
    "मुझ पर भुनभुनाने से अच्छा है, तैयार हो जा। और गिफ्ट की चिंता मत कर, वो फर्स्ट क्लास चूज़ किया है तेरे भाई ने।"

    धैर्य ने अपने शर्ट के कॉलर को स्टाइल से उठाया, जिसे देखकर सात्विक ने एक आइब्रो उठाया, जैसे कह रहा हो— “रहने दे!”

    सात्विक की नज़र अपने फोन स्क्रीन के ऊपर बाएं कोने की ओर गई, जहां शाम के 7:50 बजे थे। सात्विक ने फोन बंद किया और वॉशरूम की ओर बढ़ गया। कुछ पल बाद ही अंदर से शॉवर की आवाज़ आने लगी, जिसे सुनकर धैर्य ने हैरानी से वॉशरूम के बंद दरवाज़े को देखा और खुद से बोला,
    "मतलब ये महाराजाधिराज अब नहाएंगे, तब तैयार होंगे!"

    वो उठा और वॉशरूम के दरवाज़े के पास जाकर खड़ा हो गया। उसने आँखें बंद कीं और एक गहरी सांस लेते हुए पूरे ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाने लगा,
    "ओए! बर्थडे पार्टी है, बारात में नहीं जा रहे! और जब तुझे नहाना था तो पहले क्यों नहीं नहाया, अब दस मिनट बचने पर गया है!"

    धैर्य को अब सच में गुस्सा आ रहा था, लेकिन वो कर भी क्या सकता था, क्योंकि सात्विक कुछ बोल नहीं रहा था और अंदर से शॉवर की आवाज़ आ रही थी— मतलब साफ़ था कि वो अब भी नहा ही रहा है।


    ---

    उधर चौधरी निवास से लगभग तीस मिनट की दूरी पर मिश्रा हाउस में,

    आरुषि और दीक्षा पूरी तरह से तैयार थीं। व्हाइट कलर की स्ट्रैपलेस बॉडीकॉन ड्रेस, खुले वेवी बाल, लाइट पिंक लिपस्टिक, पर्ल ईयरिंग्स, गले में ‘DA’ नाम का पेंडेंट, पैरों में लाइट पिंक हील्स और ऊपर से पिंक कलर का लॉन्ग शिफॉन श्रग पहने दीक्षा एकदम टिप-टॉप लग रही थी।
    लेकिन वो रूम के बाहर खड़ी गुस्से में दरवाज़े को घूर रही थी, मानो नज़रों से ही तोड़ देगी। उसने गुस्से से कहा,
    "आरू! अगर अब एक मिनट और लेट हुई तो मैं अपना जाना कैंसल कर दूंगी। यार जल्दी आ, मृणा भी आ गई है अपनी कार लेकर!"

    अंदर से बड़े इत्मीनान भरी आवाज़ आई,
    "आई... बस दो मिनट!"

    बस आरुषि के इस "दो मिनट" पर दीक्षा फटने वाली थी, तभी एक लड़की की आवाज़ उसके कानों में पड़ी—
    "दीक्षा यार, तैयार है तो खड़ी क्यों है? चल न, हम लेट हो जाएंगे। जल्दी निपटा लेंगे इसे, फिर घर जाकर स्टडी रूटीन पर भी लौटना है।"

    दीक्षा ने पलटकर देखा— मिड-लेंथ व्हाइट-पिंक मिक्स फ्रॉक पहने, पैरों में पिंक हील्स और बालों को सिंपल ब्रेड के साथ ओपन स्टाइल में सजाए वो लड़की सुंदर लग रही थी। दीक्षा ने उसे देखकर मुंह बनाते हुए कहा,
    "कैसे चलूं? इस महारानी का मेकअप ही खत्म नहीं हो रहा!"

    वो लड़की, मृणा — जिसका पूरा नाम मृणालिनी शर्मा था — बैच की न्यू टॉपर थी, मगर टिपिकल टॉपर जैसी नहीं लगती थी। हल्की मुस्कान के साथ वो बोली,
    "आरुषि बेब! आज ही सारा तैयार हो जाओगी तो फेयरवेल के लिए क्या बचेगा? उस दिन भी तो लड़कों को शॉक देना है!"

    मृणालिनी की बात पर दीक्षा और मृणा ने हाय-फाइव किया और दोनों खिलखिलाकर हँसने लगीं।


    ---

    वहीं सबा के घर पर दोस्तों का आना शुरू हो चुका था।
    सब सबा को बर्थडे विश करते हुए गिफ्ट्स दे रहे थे। वहीं नूर और कायनात उसके साथ ही बैठी थीं। इनवाइटेड लोगों में से लगभग सब आ ही चुके थे, बस कुछ को छोड़कर।
    जैसे ही सबा थोड़ी फ्री हुई, नूर ने धीमे से उससे पूछा,
    "तुमने सात्विक को भी इनवाइट किया था क्या?"

    कायनात की नज़र भी सामने की ओर थी, जहां दो लड़के आपस में बात कर रहे थे। पार्टी छत पर थी और वो रेलिंग के पास खड़े थे। उन्हें देखते हुए कायनात बोली,
    "हाँ, तभी तो उसकी टीम से ये दोनों भी आए हैं।"

    नूर सबा को देख रही थी, तब सबा ने कहा,
    "यार, इन्हें मैं नहीं बुलाना चाहती थी और पार्टी भी सिंपल ही करनी थी। लेकिन सियारा ने कहा और उसने ही ये सब खर्च किया। मैंने मना किया तो बोली, ‘बर्थडे गिफ्ट है!’ तो मैं कुछ कह ही नहीं पाई।"

    सबा की बातें सुनकर नूर और कायनात ने एक-दूसरे को हैरानी से देखा। फिर सबा को देखते हुए कायनात बोली,
    "सियारा पंचौड़िया?! उसने कहा और तूने उसका ये गिफ्ट एक्सेप्ट कर लिया? और सात्विक को भी इनवाइट कर लिया? Are you stupid, सबा?"

    "एक इनविटेशन ही तो है। क्या ये बहुत बड़ी बात है? जैसे सबको किया, उसे भी किया। And after all, ये हमारा लास्ट मीटअप होगा न," सबा ने बेफिक्र अंदाज़ में कहा।

    जिस पर नूर ने गुस्से से आँखें मीच लीं। उसे गुस्सा आ रहा था, लेकिन वो सबके सामने चिल्लाना नहीं चाहती थी। और आज तो सबा का बर्थडे था, स्पेशल डे — वो उसका मूड ख़राब नहीं करना चाहती थी।

    उसने खुद को कंट्रोल करते हुए कहा,
    "सबा... बुलाना इज नॉट अ बिग डील, लेकिन सियारा या तनिष्का के कहने पर बुलाना इज डेंजर। You know न, वो तीनों ही पॉलिटिकल बैकग्राउंड से हैं। और सियारा, तनिष्का — दोनों ही सात्विक के पीछे पागल हैं। सियारा के कहने पर तुमने ये सब किया है, और अगर सात्विक आया और उन्होंने कुछ उल्टा किया तो ब्लेम तुम पर आएगा — क्योंकि पार्टी तुम्हारी है!"

    नूर की बात पर कायनात ने भी जोड़ा,
    "Yeah, she is right! और अगर इमेज पर बात आई तो फिर सात्विक के अब्बू — जो अब नेशनल लेवल लीडर हैं — उनकी नज़र में आ सकती हो!"

    नूर और कायनात की बातों पर सबा की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। उनमें एक डर साफ़ दिखने लगा। उसका दिल अब बेचैन हो रहा था।

    तभी एंट्रेंस पर उन तीनों की नज़र गई — और उनकी आँखें हैरानी से फैल गईं।

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    तो आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ते रहिए ये तूने क्या किया मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ और मेरे प्रोफ़ाइल पेज को फॉलो भी करो कमेंट भी करो। अच्छा आप बताओ क्या देखा तीनों ने?
    और आप मेरे प्रोफ़ाइल के दूसरी स्टोरी भी पढ़ कर देखो कैसा लगता है कमेंट में बताओ।

    Stay tuned my lovelies ❣️ 🫂 🌹 🧿

    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 14. ये तूने क्या किया.. - Chapter 14

    Words: 1141

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩 फॉलो भी करना होता है🤭
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
    सबा का घर

    उनकी नज़र छत के एंट्रेंस पर गई, जहाँ की सजावट बेहद खूबसूरत तरीके से की गई थी। वहीं सियारा और तनिष्का खड़ी थीं। दोनों ने बॉडीकॉन ड्रेस पहन रखी थी, डिज़ाइन बस थोड़ा अलग था। दोनों बेहद हॉट लग रही थीं और छत पर मौजूद लगभग सभी लड़कों की नज़रें उन्हीं पर टिकी थीं। दोनों ने ऐसे आत्मविश्वास के साथ इधर-उधर देखा जैसे ये सब रोज़ की बात हो। फिर उनकी नज़र सामने खड़ी सबा पर गई, जो उन्हें ही देख रही थी।

    सियारा ने एक नज़र सबा पर डाली और प्यारी सी मुस्कान दे दी, मगर उसकी आँखों की चमक जैसे कोई और ही दास्तां कहने को बेचैन थी। नूर और कायनात ने उस चमक को महसूस तो किया, लेकिन उसका सही मतलब समझ नहीं पाईं।

    उन दोनों को अपनी ओर आता देख नूर की आँखें संकुचित हुईं, माथे पर हल्का बल पड़ा और वह लगातार सियारा का चेहरा देखती रही। उसने मन में सोचा, "क्या सच में जो मैं सोच रही हूँ, सियारा वही करने वाली है? लेकिन अगर ऐसा हुआ, तो सबा का क्या होगा?"

    "मुझे ये चुड़ैल गड़बड़ लग रही है, ऐसा क्यों लग रहा है कि सात्विक के आते ही ये कोई हंगामा करेगी?" कायनात ने धीमे से कहा, जिसे सिर्फ़ सबा और नूर ही सुन पाईं।

    कायनात की बात पर नूर की नज़र और पैनी हो गई, वहीं सबा का दिल और तेज़ धड़कने लगा। उसकी उंगलियाँ आपस में उलझने लगीं और साँसें डर से तेज़ हो गईं। जैसे-जैसे सियारा और तनिष्का उनके करीब आ रही थीं, वैसे-वैसे सबा की घबराहट बढ़ रही थी। उसकी आँखें नम हो गईं और वो बुदबुदाई, "क्या मैंने सियारा की बात मान कर सच में गलती कर दी? क्या मुझे सात्विक को इनवाइट नहीं करना चाहिए था?"
    सबा का दिल सवालों से भर गया, लेकिन अब शायद किसी भी जवाब का कोई मतलब नहीं था।

    "Happy Birthday dear सबा!" सियारा ने गिफ्ट बॉक्स थमाते हुए कहा। सबा हिचकिचा गई। उसने आँखों ही आँखों में सियारा से गिफ्ट के लिए पूछा, तो सियारा ने उसे गले लगा लिया और धीरे से उसके कान में बोली,
    "अरे बुद्धू, अगर किसी को पता चल गया कि इस पार्टी का सारा खर्च मैंने उठाया है, तो क्लास में तेरा मज़ाक उड़ाएंगे। इसलिए किसी से मत कहना। और ये गिफ्ट भी तेरा ही है, बेबी।"

    सियारा मुस्कुरा कर अलग हुई ही थी कि तनिष्का ने भी अपना गिफ्ट बॉक्स आगे बढ़ाते हुए कहा,
    "Happy Birthday, Birthday Girl! आख़िरकार तुमने कर ही लिया, मतलब बड़े लोगों को बुला ही लिया।"

    तनिष्का की बातों में तंज था, जिसे वहाँ खड़ी चारों लड़कियों ने साफ़ महसूस किया। सियारा के चेहरे पर तनिष्का की बातों से हल्की सी मुस्कान उभरी, लेकिन उसने उसे तुरंत छुपा लिया—हालाँकि कायनात की पैनी नज़र से वो नहीं छुप सकी।

    तनिष्का की बातों से कायनात को गुस्सा आया और सियारा की मुस्कान ने उसमें और आग लगा दी। वह व्यंग्य में बोली,
    "ख़्वाब ऐसे देखो जो ऊपर उठाएं, ऐसे ख़्वाब अच्छे होते हैं। लेकिन जो ख़्वाब नीचे धकेल दें, ऐसे ख़्वाबों पर तो बस अफ़सोस किया जा सकता है।"

    कायनात की बातों ने सियारा और तनिष्का के चेहरे पर गुस्से की लहर दौड़ा दी। वहीं नूर की आँखों में अब गुस्से के साथ एक व्यंग्य भी था और होठों पर एक तीखी मुस्कुराहट।

    सबा अब भी तनिष्का का दिया हुआ गिफ्ट हाथ में थामे खुद में ही उलझी हुई थी। इससे पहले कि सियारा या तनिष्का कुछ कहतीं, तभी एक लड़के की आवाज़ गूंजी—

    "Woah! क्या बात है, आज पहली बार सात्विक चौधरी को किसी पार्टी में देखा है!"

    ‘सात्विक चौधरी’—ये नाम पूरे टेरेस पर गूंज गया। सब एक पल में पलट कर देखने लगे। यह पहली बार था जब सात्विक किसी पार्टी में शामिल हुआ था। सब हैरानी से देख रहे थे, और सियारा व तनिष्का के चेहरे पर जीत की खुशी साफ़ झलक रही थी।

    नूर और कायनात स्तब्ध थीं—उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

    लेकिन सबा… सबा के लिए तो जैसे सब थम गया था।
    जैसे ही सात्विक का नाम उसके कानों में पड़ा, उसके वक़्त की रफ्तार थम गई। उसने घबराई हुई नज़रों से सामने देखा—व्हाइट शर्ट जिस पर पिंक रंग की हाफ बटरफ्लाइज़ बनी थीं, नीचे ब्लैक पैंट और ब्लैक कोट, जेल से सलीके से सेट बाल, पैरों में ब्लैक शूज़, और उसके शरीर से उठती माइल्ड लिली की ख़ुशबू…
    बस, सब कुछ थमा हुआ सा लग रहा था।


    ---

    मिश्रा हाउस

    मृणा और दीक्षा बाहर थीं, वहीं आरुषि गाड़ी में बैठ चुकी थी। वह कार से अपना सिर निकाल कर कोमल चाची की हिदायतें सुन रही थी। अभी तक उसकी ड्रेस नजर नहीं आई थी। उसका पूरा ध्यान चाची की बातों पर था।

    "कोई कितना भी फोर्स करे, एल्कोहोल बिल्कुल मत लेना। इट्स नॉट सेफ, ओके? हाँ, लेकिन बहनजी भी मत लगना, बस एक ग्लास पकड़ लेना जिससे कोई बार-बार पूछे नहीं। और जल्दी आने की कोशिश करना क्योंकि आगे भी पार्टीज़ के लिए परमिशन चाहिए, समझी?"

    तीनों ने सहमति में सिर हिलाया। तभी मृणा बोली,
    "चाची माई डियर! पहले जाएंगे तभी तो लौटेंगे। ऑलरेडी लेट हैं। साढ़े सात की टाइमिंग थी केक कट की और हम अभी सवा सात पर भी यहीं हैं। इसलिए पहले चलें?"

    मृणालिनी के बोलने के अंदाज़ पर कोमल हँस पड़ी और इशारे से जाने को कहा। फिर दोनों गाड़ी में बैठीं। मृणालिनी ने थोड़ी तेज़ गाड़ी निकाली, जिसे देखकर कोमल ने पीछे से हल्की ऊँची आवाज़ में कहा—

    "अरे गाड़ी ज़्यादा फास्ट मत चलाना! आहिस्ते चलाओ और देख कर।"

    लेकिन गाड़ी तब तक निकल चुकी थी। कोमल मुस्कुराते हुए अंदर चली गई।

    जैसे ही वो हॉल में पहुँची, वहाँ की शांति देखकर वह कमरे की ओर बढ़ते हुए बोली,
    "तुम्हारी बात पर ही परमिशन मिली है, लेकिन हर ज़िद में इतना साथ मत दिया करो। समाज में रहते हैं।"

    "कौन सा जब हम अपने बच्चे को खुशी मार देंगे तब ये समाज खुश होगा? ये तो तब भी कमी निकालेगा ही। इसलिए बच्चों को सही-ग़लत बताओ, लेकिन बांधो मत। और लड़की को तो और खुला आसमान दो।" कोमल ने मुस्कुराते हुए कहा।

    "अच्छा! तो फिर कल जाकर तुम भी अपना नेट का फार्म भर आओ, वही करना था न?"
    शांति ने कहा और बिना पलटे ही कमरे में चली गई।

    शांति की बात सुन कर कोमल ने अविश्वास से उसकी ओर देखा, फिर अगले ही पल उसकी आँखों से मोती जैसे आँसू झरने लगे और होंठों पर मुस्कान तैर गई।

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    तो आगे क्या होगा इस कहानी में जानने के लिए पढ़ते रहिए ये तूने क्या किया मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।
    कैसा लगा कमेंट में बताइए और फॉलो भी कीजिए फैमिली।

    Stay tuned my lovelies ❣️ 🫂 🌹 🧿
    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 15. ये तूने क्या किया.. - Chapter 15

    Words: 1048

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩 फॉलो भी करना होता है🤭
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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    सबा का घर...

    सात्विक चलते हुए सबा की तरफ़ ही बढ़ रहा था। तभी दो लड़के उसके और धैर्य के सामने आ गए और मुस्कुराते हुए बोले, “मतलब रिकॉर्ड टूट ही गया।”

    “तो नहीं टूटना था क्या? वैसे ही कोई नहीं आता था, भीष्म प्रतिज्ञा थोड़ी थी।” सात्विक ने गहरी सांस लेते हुए कहा। उसकी आवाज़ शांत थी, लेकिन चेहरे पर झुंझलाहट साफ़ झलक रही थी। यह देख कर धैर्य और वे दोनों लड़के ज़ोर से हँस पड़े। सात्विक साइड से मुंह बनाते हुए सबा की ओर बढ़ गया।

    सबा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसकी साँसे भारी हो रही थीं और आँखें नम, मानो वह अभी रो दे। यह देखकर नूर ने उसके कान में फुसफुसाया, “सबा… सात्विक आ रहा है, तू रोने जैसा मुँह मत बना वरना वो पूछेगा और सब देखने लगेंगे।”

    नूर की बात पर सबा ने तनिष्का के गिफ्ट बॉक्स को रखने के बहाने खुद को पलट लिया और अपनी आँखों की नमी को चुपचाप पोंछ लिया। जब वह वापस मुड़ी, सामने सात्विक मुस्कुरा रहा था। सबा भी हल्के से मुस्कुरा दी।

    “Happy Birthday सबा… राम जी ब्लेस यू,” कहते हुए सात्विक ने गिफ्ट बॉक्स आगे कर दिया।

    सबा ने मुस्कराते हुए गिफ्ट लेते हुए कहा, “Thank you… मुझे लगा नहीं था कि तुम आओगे।”

    “अरे आया कौन? इसे तो जबरदस्ती लाया हूँ, इसलिए थैंक्यू मैं डिज़र्व करता हूँ, ये नहीं!” धैर्य ने सात्विक के बगल में आते हुए कहा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र सियारा और तनिष्का पर पड़ी, उसका मुँह बिगड़ गया।

    उसने सबा की ओर देखते हुए कहा, “तुम्हें जानवरों से इतना प्यार है कि उन्हें भी इनवाइट कर लिया? वाह! You are a great nature lover.”
    धैर्य की बात सीधे सियारा और तनिष्का की तरफ़ थी। ये सुनकर कायनात और नूर की हँसी छूट गई, वहीं सबा असहज हो गई। उसने एक-एक कर सभी को देखा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

    “Hey जल्दी केक कट करो! हम फ्री नहीं हैं… है न सात्विक?” तनिष्का ने चिढ़े हुए अंदाज़ में कहा और सात्विक की ओर देखने लगी।

    लेकिन इससे पहले कि सात्विक कुछ कहे, धैर्य ने हँसते हुए सबा की तरफ़ देखा और बोला, “Don't worry, हम दोनों के पास पूरा वक़्त है, एन्जॉय करके ही जाएंगे। है न, सात्विक?”
    उसने अंतिम पंक्ति बिल्कुल उसी लहजे में कही जैसे तनिष्का ने बोला था। तनिष्का चिढ़ गई और धैर्य को घूरने लगी। उसकी नज़रें इतनी तीखी थीं कि जैसे नज़रों से ही छेद कर देंगी।

    “तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है, धैर्य? हर बार बीच में टांग क्यों अड़ाते हो? वैसे भी हम तुमसे बात नहीं कर रहे,” सियारा ने दाँत पीसते हुए गुस्से में कहा।

    “दाँतों पर इतना ज़ोर मत दो वरना जवानी में ही बुढ़ापा आ जाएगा, फिर कटोरे में दाँत लेकर घूमना पड़ेगा।”
    धैर्य ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा और नूर व कायनात ठहाका मारकर हँस पड़ीं। सबा को भी हँसी आ रही थी, लेकिन सियारा की तरफ़ देखकर वो चुप हो गई।

    जब सबा ने देखा कि माहौल थोड़ा गरम हो गया है, तो वो तुरंत बोली, “वो… अभी मृणालिन, आरुषि और दीक्षा नहीं आई हैं, तीनों रास्ते में हैं। एक बार आ जाएं, तब केक कट करेंगे। तब तक एन्जॉय करो।”

    सियारा के चेहरे पर चिढ़ साफ़ झलक रही थी, लेकिन सात्विक वहीं मौजूद था इसलिए वो चुप रही। सात्विक अब भी शांत था, वो धीरे-धीरे रेलिंग की ओर चला गया, धैर्य भी उसके साथ हो लिया।

    “क्या ज़रूरत थी ऐसे बात करने की?” सात्विक ने सीधे, संयमित लहजे में पूछा। वो सामने देखते हुए चल रहा था, एक हाथ में फ़ोन पकड़ा था, जिस पर कुछ मैसेज आ रहे थे। उसकी नज़रें स्क्रीन पर थीं और दूसरा हाथ पैंट की जेब में डाला हुआ था।

    उसकी पर्सनेलिटी बेहद आकर्षक थी। वहाँ खड़ी सारी लड़कियाँ उसी को देख रही थीं — कोई उसे अपना बॉयफ्रेंड बनाने की ख्वाहिश से देख रही थी, तो कोई सिर्फ़ निहार रही थी।

    “Hey, ये कितना गुड लुकिंग है यार! ऊपर से इतना रफ-टफ पर्सनेलिटी… Really a rare combo,”
    एक लड़की ने हाथ में पकड़े जूस के ग्लास को घुमाते हुए बगल वाली से कहा।

    वो भी सात्विक को ही देख रही थी। उसकी आँखों में भी लालच झलक रही थी। बिना पलकें झपकाए बोली, “बिलकुल सही कहा! ऊपर से पैसा और फेम भी है। कल को ये पार्टी का लीडर बन सकता है।”

    इस पर पहली लड़की के होंठ हल्के ऊपर की ओर मुड़े और उसने बस एक छोटी सी मुस्कान दी। मन ही मन बोली,
    “एक मौका मिल जाए तो मैं इसकी हो जाऊँ। फिर लाइफ सेट है। वैसे भी क्या फ़र्क पड़ता है अगर लीडर हुआ और दिल्ली छोड़ बिहार जाना पड़े? After all, पैसा और पावर दोनों होगा। ऊपर से पुश्तैनी रईस है, वो शान अलग होती है।”

    उसकी आँखें सात्विक को ऊपर से नीचे तक स्कैन कर रही थीं। वहीं, थोड़ी दूरी पर खड़ी आरुषि ने जब उसे यूँ घूरते देखा तो वो अजीब नज़रों से उसे देखने लगी।

    तभी दीक्षा उसके पास आई और बोली, “क्या यार, पहले आकर क्या फ़ायदा जब तू अभी भी यहीं खड़ी है? सबा से मिली नहीं?”

    “तुम दोनों का ही इंतज़ार कर रही थी। एक साथ चलेंगे न।”
    आरुषि ने कहा। मृणालिन भी उनके पास आ चुकी थी।

    उधर धैर्य की नज़र दीक्षा पर पड़ी और वह एकदम से शॉक्ड रह गया। वो उसे देखता ही रह गया।

    वहीं सात्विक अपने फोन की स्क्रीन पर फ्लैश हो रहे मैसेज बार-बार देख रहा था।
    तभी धैर्य ने खोए हुए अंदाज़ में बुदबुदाया,
    “क्या यार… चोमू दिखने वाली लड़कियाँ भी इतनी हॉट निकलेगी? ये तो ग़ज़ब हो गया।”

    हालांकि वह खुद से कह रहा था, लेकिन सात्विक ने सब सुन लिया। उसकी आँखें संकुचित हुईं और उसने धैर्य की नज़रों का पीछा किया।

    सामने का नज़ारा देखकर जैसे उसकी आँखें बंध सी गईं...

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    तो आगे क्या होगा इस कहानी में जानने के लिए पढ़िए ये तूने क्या किया मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ। प्रोफ़ाइल को फॉलो कर लो कमेंट और रेटिंग तो देना ही है कहने की बात नहीं है ये 😁😜

    Stay tuned my lovelies ❣️ 🫂 🌹 🧿
    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 16. ये तूने क्या किया.. - Chapter 16

    Words: 1037

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩 फॉलो भी करना होता है🤭
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    सबा का घर (टेरेस)...

    धैर्य के भुनभुनाने पर सात्विक ने उसकी ओर देखा और उसकी नज़रों का पीछा करते हुए आरुषि पर नज़र पड़ी—जो इस वक्त सबा को एक गिफ्ट दे रही थी। आज वो सच में कुछ अलग ही लग रही थी। सफेद नी-लेंथ फ्रॉक पर हल्के गुलाबी रंग की हॉफ बटरफ्लाई डिज़ाइन थी। उसने अपने लंबे बाल खुले छोड़े थे, जिनके फ्रंट में दो ब्रेड बनी थीं, जिनसे दो फ्लिक्स निकलकर उसके गालों को छू रहे थे। नीचे से बाल हल्के कर्ल किए हुए थे और ब्रेड्स में छोटी-छोटी बटरफ्लाई क्लिप्स लगी थीं। गले में बटरफ्लाई वाला पेंडेंट और उससे मैच करता हुआ ब्रेसलेट पहना था। उसके हिल्स पर भी बटरफ्लाई पैटर्न बना था। हल्का काजल, लाइट पिंक लिपस्टिक और बटरफ्लाई शेप के ईयररिंग्स उसके लुक को और भी खास बना रहे थे। वो मुस्कुराते हुए सबा से बात कर रही थी।

    सच में, आज वो बहुत अलग दिख रही थी। सात्विक की नज़र बस उसी पर टिकी थी। उसने खोए से अंदाज़ में कहा,
    "धैर्य, ये लड़की कौन है? सबा की कज़िन है क्या?"

    धैर्य ने एक पल के लिए आंखें संकरी कीं और सात्विक की ओर देखा, लेकिन उसे समझ नहीं आया कि आखिर वो किसकी बात कर रहा है। इससे पहले कि वह कुछ पूछता, सात्विक उस दिशा में बढ़ गया और धैर्य भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।

    इधर मृणालिनी मुस्कुराते हुए बोली,
    "वैसे सबा, बहुत अच्छा डेकोरेशन है यार। It's my dream decoration for my birthday... but you know ना, we are middle class babe!"
    उसने चारों तरफ़ नज़र घुमाते हुए कहा, लेकिन उसके अंतिम वाक्य में एक हल्का अफ़सोस भी था—या शायद एक अधूरा सपना।

    मृणालिनी की बात पर सबा का चेहरा अचानक बुझ-सा गया। उसने दूर खड़ी सियारा की ओर देखा, जो किसी लड़की से बात कर रही थी। सबा ख़ुद में ही उलझ गई। उसने नज़रें झुका लीं, उसकी आंखें नम होने लगीं। अब ये डर था या कुछ और—कह पाना मुश्किल था। उसने अपनी कुर्ती की मुट्ठी भींच ली और मन ही मन कहा:
    "ये सपना तो मेरा था... जिसे मैंने नहीं, सियारा ने पूरा किया। और अब वो क्या करने वाली है, ये मुझे नहीं पता। मैं फंसने वाली हूं या बचने वाली, इसका भी नहीं।"

    सबा की पकड़ अपनी कुर्ती पर कसती जा रही थी। तभी उसके कानों में आवाज़ गूंजी,
    "Hey hi, कैसे हो सब?"
    सबा ने चौंककर पलटकर देखा—सात्विक था। उसे देखकर सबा और बाकी तीनों लड़कियां मुस्कुरा दीं। वहीं आरुषि ने जब सात्विक को देखा, तो जैसे वक्त थम-सा गया। वो बिना पलक झपकाए उसे देखे जा रही थी, मानो उसे किसी और चीज़ का होश ही नहीं रहा।

    "तो दीक्षा, मृणालिनी कैसी हो दोनों? और अब आगे क्या प्लान है?" सात्विक ने पूछा।

    मृणालिनी हँसते हुए बोली,
    "एग्ज़ाम के बाद एक हफ्ता सिर्फ सोना है और बस सोना!"

    उसके जवाब पर सब हँसने लगे। धैर्य ने भी हँसते हुए कहा,
    "कैसी टॉपर है? अरे टॉपर को तो नींद आती ही नहीं!"

    "हाहा... वेरी फनी! क्यों नहीं आएगी नींद टॉपर को? क्या वो एलियन है?" मृणालिनी चिढ़ते हुए बोली।

    "नहीं, वो तो चुड़ैल है। पीपल पर रहने वाली चुड़ैल!"
    धैर्य ने फिर उसे चिढ़ाया। इसके पहले कि मृणालिनी कुछ कहती, सात्विक ने सबा की ओर मुड़कर पूछा,
    "सबा, ये कौन है? तुम्हारी कज़िन?"
    उसका इशारा आरुषि की ओर था।

    बाकी सब लोग हैरान रह गए। वहीं धैर्य, जो काफी देर से आरुषि को नोटिस कर रहा था, अब सात्विक की ओर से उसके प्रति आरुषि के इमोशन्स को और गहराई से देखने लगा।

    आरुषि की आंखों में जो अब तक एक खामोश मगर सच्ची चमक थी, वो अब फीकी पड़ने लगी थी। उसकी जगह हल्की सी नमी ने ले ली। उसने धीरे से सिर झुका लिया, जिससे उसके बाल चेहरे पर आ गिरे और चेहरा सात्विक की नज़रों से छिप गया।

    सबा ने हँसते हुए कहा,
    "अरे इसे नहीं पहचाना? ये आरुषि मिश्रा है— हमारी ही क्लासमेट। हाँ, आज थोड़ी प्यारी लग रही है इसलिए धोखा खाना तो बनता है।"
    सबा की बात पर सब हँसने लगे, मगर धैर्य अब भी चुप था। उसकी नज़र अब भी आरुषि पर ही थी, जिसने अब तक सिर ऊपर नहीं उठाया था। सबके बार-बार हँसने से आरुषि का दिल भर आया था। वो तेज़ी से दूसरी दिशा में बढ़ने लगी।

    "ओए, कहां जा रही है?" दीक्षा ने पूछा।

    आरुषि ने बिना पलटे अपना फोन पीछे से दिखाया और आगे बढ़ गई। दीक्षा उसके पीछे जाने लगी तो मृणालिनी ने उसका हाथ पकड़कर कहा,
    "अब तू कहां भाग रही है? किसी का फोन होगा, अटेंड करके आ जाएगी।"

    वहीं सात्विक अब भी हैरान था।
    "इसे क्लास में तो कभी नहीं देखा।"
    उसने थोड़ा हटकर धैर्य से कहा।

    धैर्य ने हल्के चिढ़ते हुए जवाब दिया,
    "हाँ, क्योंकि हमारी सेक्शन में पांच सौ बच्चे हैं न!"

    फिर थोड़ा रुक कर एक लंबी सांस ले कर बोला,"अरे वो तेरे ही ब्रेंच के साथ वाली ब्रेंच पर ही बैठती है। सोच, उसे कितना अजीब लगा होगा!"

    "लेकिन सच में, मैंने इसे कभी नहीं देखा..." सात्विक ने सोचते हुए कहा।

    उधर, टेरेस की रेलिंग से सटी आरुषि नीचे झांक रही थी। उसकी आंखों से आंसू टपक रहे थे। उसके अंदर कुछ टूटने सा लगा था, सांसें फंसी-फंसी लग रही थीं। उसने एक गहरी सांस ली, लेकिन आंसू फिर भी बह निकले।

    उसकी उंगलियों की पकड़ फोन पर कस गई। होंठ खामोश थे लेकिन भीतर जैसे कोई तूफ़ान मचा था।
    "वो... वो मुझे पहचानता तक नहीं... उसने मुझे कभी नोटिस तक नहीं किया... और मैं? मैं उसके लिए इतनी पागल हूं कि उसके बाद कुछ दिखता ही नहीं। मैं उसके लिए क्लासमेट भी नहीं हूं!"
    उसकी आईब्रो सिकुड़ गईं और वो ख़ुद को जोर से रोने से रोकने लगी।

    वहीं दूर खड़ा धैर्य बस उसे देख रहा था। वो कुछ समझने की कोशिश कर रहा था, उसी दिशा में सियारा भी बढ़ती चली जा रही थी ..

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    आज के लिए इतना ही क्या होगा आगे जानने के लिए पढ़ें ये तूने क्या किया मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।

    Stay tuned my lovelies ❣️ 🫂 🌹 🧿
    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 17. ये तूने क्या किया.. - Chapter 17

    Words: 1084

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩 फॉलो भी करना होता है🤭
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    सबा का घर... टेरेस...

    सियारा के कदम आरुषि की तरफ़ बढ़ रहे थे। उसकी आंखों में कुछ अलग ही भाव थे और होठों पर एक मुस्कान थी जो कोई अलग ही दास्तान बयां कर रही थी। आरुषि को जब एहसास हुआ कि कोई उसके पीछे है, तो उसने जल्दी से अपने आंसू पोंछे और पीछे पलटी, जहां सियारा मुस्कुरा रही थी। उसे वहां देख कर आरुषि थोड़ी भ्रमित हो गई। उसने कुछ कहा नहीं, लेकिन उसकी नज़रों में सवाल थे—जैसे वह समझने की कोशिश कर रही हो कि सियारा वहां क्यों आई है।

    "खुद को ट्रांसफॉर्म कर लेने से सात्विक की नज़रों में आ जाओगी? या फिर तुम्हें लगता है कि सात्विक तुममें इंट्रेस्टेड हो जाएगा? अगर ऐसा कुछ सोच रही हो, तो मैं तुम्हारी मदद कर देती हूं और साफ-साफ बता देती हूं—ऐसा कुछ नहीं होने वाला।" सियारा की आवाज़ बहुत शांत और मीठी थी, लेकिन उसकी बातें वैसी थीं जैसे कोई प्यारा सा सांप ज़हर उगल रहा हो।

    "मैं कुछ समझी नहीं! कहना क्या चाहती हो?" खुद में उलझी आरुषि ने कहा और जाने के लिए मुड़ी।

    लेकिन सियारा ने उसका रास्ता रोकते हुए कहा, "ऐसा तो है नहीं कि तुम बिल्कुल नहीं समझती, क्योंकि दिमाग़ तो खूब है तुम्हारे पास। तभी तो पिछले पाँच सालों से टॉपर रही हो। लेकिन इस बार नज़र और नज़रिया बदलने से मार्क्स बदल गए, ये बात अलग है!" उसकी बात में एक मज़ाकिया तंज था, जिसे आरुषि न केवल समझ रही थी बल्कि महसूस भी कर रही थी।

    "मेरे मार्क्स कम हुए हैं, लेकिन इतने भी नहीं कि तुम मुझे पढ़ाई पर लेक्चर दो। क्लासमेट हो तो वही रहो, ज़्यादा टीचर मत बनो।" आरुषि ने सख्ती से कहा और आगे बढ़ने लगी।

    "उससे दूर रहो! न शक्ल-सूरत से उसके लायक हो, न हैसियत से। इसके पहले कि तुम्हारे कदम और बढ़ें, और बाद में वो मेरा हो जाए—तो तुम्हारा दिल टूट सकता है।" आरुषि ने इग्नोर करने की कोशिश की, लेकिन अगले ही पल फिर सियारा की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, "और ऐसा दिल टूटेगा, जिसमें तुम बिखरोगी और जिसके लिए बिखरोगी, वही तुमसे अंजान रहेगा। डेमो तो अभी देख ही लिया तुमने।"

    आरुषि ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप अपने दोस्तों की ओर बढ़ गई, लेकिन उसका चेहरा जो कुछ पल पहले चमक रहा था, अब मुरझा गया था।

    वहीं दूर खड़ा धैर्य उन दोनों को ही देख रहा था। सियारा की वो स्माइल जिसमें उसकी जीत झलक रही थी, और आरुषि का फीका चेहरा, उसे पूरा माजरा समझा चुका था। उसने एक नज़र दोनों पर डाली और फिर उसकी नज़र अनायास ही सात्विक की तरफ़ मुड़ी, जो अपने फोन में मशगूल था।

    एक गहरी सांस छोड़ते हुए वह पलटा। सामने अंधेरे में डूबा आसमान था। हालांकि टेरेस के डेकोरेशन की वजह से पूरी तरह अंधेरा नहीं था, लेकिन जहां तक नज़र जाती, वहां तक आसमान धुंधला और गहरा दिख रहा था।

    "मतलब मैं जो सोच रहा था, वही है... उसे सच में अजीब लगा होगा। लेकिन क्या किया जा सकता है?" धैर्य ने मन ही मन सोचा और आसमान की ओर देखता रहा। तभी कायनात की आवाज़ आई, "It's cake cutting time, guys! Come on!"

    करीब पाँच मिनट के भीतर सब टेबल के पास खड़े थे, जहां सबा हाथ में चाकू लिए अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बनी हुई थी।

    उसने हल्के से हाथ फैलाए, आँखें बंद कीं और दुआ मांगी, "या अल्लाह! मेरे मौला! अगर मुझसे कोई ग़लती हुई है, मैंने कोई भी ग़ैर-जिम्मेदाराना हरकत की है तो आप रहम बख्शें... अगर सियारा और तनिष्का ने किसी साज़िश के तहत मुझसे ये सब करवाया है, तो मुझे इससे निकलने की ताक़त बख्शें। मुझे सच के रास्ते पर चलने की समझ और हिम्मत दें। आमीन।"

    उसने हाथों को चेहरे पर फिराया, आँखें खोलीं और देखा कि सब बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहे थे।

    उसने केक काटा। "Happy birthday to you, Happy birthday dear Saba..." सबने एक साथ गाया।

    आरुषि की नज़र सात्विक पर थी, जो माहौल का लुत्फ़ ले रहा था। उसके बगल में खड़ी सियारा ने उसकी बांह पकड़ रखी थी और तनिष्का उसके कान में कुछ कह रही थी। आरुषि की नज़र बार-बार सात्विक की बाँह पर जा रही थी। सियारा ने उसे अजीब नज़रों से देखा और फिर दूसरी ओर देखने लगी।

    "आरू... क्या हुआ? तू अचानक चुप क्यों हो गई? कहां खो गई? कोई परेशानी है?" दीक्षा, जो उसे गौर से देख रही थी, ने पूछा।

    आरुषि ने बस 'ना' में सिर हिलाया लेकिन दीक्षा अब भी उसे घूरे जा रही थी। आखिरकार आरुषि ने गहरी सांस लेते हुए धीमे से कहा, "मुझे बहुत ज़ोर की सुसु आई है।"

    आरुषि की बात पर दीक्षा ने मुंह बनाते हुए उसे देखा।


    ---

    चौधरी निवास...

    अधिराज अपने कमरे में इधर-उधर घूम रहे थे। उनके ज़हन में सात्विक की बातें गूंज रही थीं:

    "विधायक की कुर्सी किसी भी खानदान की विरासत नहीं हो सकती। वो जनता का चुनाव है... और मुझे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है।"

    ये बातें भले ही सात्विक कह गया हो, लेकिन अधिराज का दिल कहीं न कहीं दुखी था। उन्हें ठेस पहुंची थी। वे भले ही मज़बूत शख्सियत थे, लेकिन बेटे के आगे खुद को असहाय महसूस कर रहे थे। तभी दरवाज़े पर खटखटाहट हुई—खट खट... खट खट...

    अधिराज की नज़र उठी तो सामने महेश खड़ा था। उसे देखकर अधिराज बोले, "अरे महेश! तुम काहे खटखटा रहे हो? तुम्हें तो धड़ल्ले से आना चाहिए। अरे, बड़े भाई हो, कोई पड़ोसी थोड़े ही!"

    "जी भैया! ये तो है, लेकिन भाभी होंगी ये सोचकर थम जाता हूं।" महेश ने अंदर आते हुए हँसते हुए कहा और फिर गंभीर होते हुए बोला, "भैया! आप परेशान लग रहे हैं। क्या बात है? हमारी कसम है, बात टालिएगा नहीं—बताइएगा।"

    महेश जानता था कि अधिराज यूँ ही नहीं बोलेंगे, इसलिए उसने सीधा कसम दे दी। वह अधिराज को एकटक देखता रहा।

    "जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, और अपने फैसले खुद लेने लगते हैं, तो उन्हें अपनी नई-नई काबिलियत पर बहुत फ़क्र होता है। लेकिन अक्सर वही चीज़ उन्हें डुबो देती है।" अधिराज की आंखों में चिंता भी थी और निराशा भी।

    वहीं, बाहर दरवाज़े के पास खड़ी सुभद्रा सब सुन रही थी।

    ००००००००००००००००००००००००००००००००तो आगे क्या होगा इस कहानी में जानने के लिए पढ़ते रहिए 'ये तूने क्या किया' मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।

    Stay tuned my lovelies ❣️ 🫂 🌹 🧿
    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 18. ये तूने क्या किया.. - Chapter 18

    Words: 1089

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩 फॉलो भी करना होता है🤭
    चलिए बिना देर किए कहानी की ओर चलें।
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    चौधरी निवास...

    सुभद्रा कमरे के बाहर ही खड़ी थी। उसने भी अधिराज की बात सुनी थी। उसकी आंखों में कुछ भाव उभरे, लेकिन वो क्या थे—यह समझ पाना मुश्किल था। उसकी आंखें जितना बोलती थीं, उसकी जुबान उतनी ही खामोश रहती थी। उसकी पलकों ने कुछ पल के लिए आसमान की ओर रुख किया। भले ही नजरों के सामने सिर्फ़ छत थी, पर दिल से वो अपने इष्ट—अपने राम को ही याद कर रही थी।


    ---

    सबा का घर...
    टेरेस एरिया...

    सबा सबके बीच खड़ी मुस्कुरा रही थी। वहां हर कोई खुश था—सिर्फ़ एक आरुषि को छोड़कर। उसका दिल पूरी तरह टूट चुका था। आंखें बार-बार नम हो रही थीं। वह भीड़ में सिर्फ़ खुद को रोने से रोकने की कोशिश कर रही थी। उसकी नजरें लगातार सियारा और सात्विक के हाथों पर टिकी थीं। वह नज़ारा मानो उसकी सांसें खींच रहा था।
    आज वह समझ चुकी थी—वह कभी भी सात्विक की नजर में थी ही नहीं। और यही बात उसे भीतर तक चुभ रही थी—मानो दिल में कोई कांटा चुभ गया हो।

    खुद को संभालने के लिए वह भीड़ से थोड़ा दूर हुई और आसमान की ओर देखा, ताकि आंसू गिरते वक्त किसी को यह न लगे कि वह रो रही है। वो चाहती थी कि किसी को न लगे—"हां, ग़म बढ़ चुका है, और अब आंखों से ढलकने लगा है।"
    खुद को संयत करते हुए उसने मन में कहा—
    "चुप हो जा आरुषि, चुप हो जा! अगर किसी की नज़र पड़ गई तो एक अलग ही कहानी बनानी पड़ेगी। वैसे भी—‘आंख में कुछ चला गया है’—यह डायलॉग अब बहुत पुराना हो चुका है!"

    अपनी ही कही बात पर हल्की सी हंसी उसके होंठों पर तैर गई। वह फिर से छत की रेलिंग के पास आकर खड़ी हो गई। उसकी नजरें दूर अंधेरे में डूबते शहर को देख रही थीं।
    दिल्ली जैसे शहरों में भले ही अंधेरा न होता हो, लेकिन आसमान तो स्याह हो ही जाता है।

    वह खड़ी ही थी कि उसे एहसास हुआ—कोई उसके बगल में आ खड़ा हुआ है। उसने नजर उठाई—वो धैर्य था। वह भी उसी की तरह सामने दूर अंधेरे में देख रहा था।

    "तुम परेशान हो? या किसी सवाल ने तुम्हें भी उलझा रखा है?" आरुषि ने एक नजर उसकी तरफ देखा और फिर सामने देखने लगी।

    "नहीं! मैं तो नहीं उलझा। वैसे, जब उलझन होती है तो मैं सोना पसंद करता हूं। लेकिन तुम उलझी हुई लग रही हो।"
    धैर्य ने बिना बात को ज्यादा खींचे सीधा सवाल किया और आरुषि के चेहरे के बदलते भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगा।

    जब लंबे समय तक दोनों के बीच खामोशी बनी रही और आरुषि के अंदर एक जंग सी चलती रही, तो आखिर में धैर्य ने हल्की बेबसी से सिर हिलाया और पूछा—

    "प्यार करती हो उससे?"

    धैर्य के सीधे सवाल से आरुषि कुछ पल को चौंक गई। चेहरे पर हैरानी तैर गई, लेकिन अगले ही पल खुद को संभालते हुए उसने कहा,
    "क्या मतलब है तुम्हारा?"

    "मतलब तो तुम अच्छे से समझ गई हो। बस बताना नहीं चाहती।"
    धैर्य ने हल्के से मुस्कराते हुए जवाब दिया।

    आरुषि ने कुछ नहीं कहा और मुड़ने लगी, तभी धैर्य की आवाज़ फिर उसके कानों में गूंजी—
    "मुझे नहीं बताना मत बताओ, लेकिन उसे ज़रूर बता देना। क्योंकि ऐसे मामलों में जितनी देर होती है, क़िस्मत उतनी ही पीछे चली जाती है।"

    आरुषि मुड़ी। धैर्य ने उसे मुड़ते देखा और धीरे-धीरे उसके पास आकर कुछ दूरी पर रुकते हुए कहा—
    "याद रखना, अब ज़्यादा वक़्त नहीं है हमारे पास। जानती हो न—फेयरवेल और एग्ज़ाम के बाद कौन कहां होगा, कौन जाने?"

    धैर्य बोलकर सात्विक की ओर बढ़ गया। वहीं आरुषि के भीतर फिर से एक हलचल मचने लगी।
    यह शोर बाहर से कितना खामोश था कि सुई की टिक-टिक भी सुनाई दे जाए, लेकिन अंदर ही अंदर उसकी दुनिया में तूफान मच चुका था। बाहर भले ही शांति हो, पर उसके अंदर यह शोर सबसे ज़्यादा आवाज़ कर रहा था।


    ---

    पंचौड़िया हाउस...

    राजेंद्र हॉल में बैठे हुए थे। सामने टेबल पर ड्राई फ्रूट्स रखे थे और उनकी नजरें टीवी स्क्रीन पर टिकी थीं। उन्होंने हाथ बढ़ाकर एक साथ चार-पांच काजू उठाए और मुंह में डाल लिए। टीवी पर एंकर स्टूडियो से लाइव बोल रही थी—

    "नमस्कार दर्शकों! स्वागत है आपका News Hub चैनल में। मैं मालनी भट्टाचार्य आज के न्यूज़ अनालिसिस प्रोग्राम में चर्चा करूंगी बिहार की राजनीतिक हलचल पर।"

    "मधुबनी विधानसभा से लगातार पांच सालों से विधायक रहे अधिराज चौधरी को इस बार टिकट नहीं मिली है। सूत्रों के अनुसार, उनकी जगह किसी नए चेहरे को मैदान में उतारने की योजना है। लेकिन अभी तक उस नाम की पुष्टि नहीं की गई है। इस विषय पर हमारे साथ जुड़े हैं वरिष्ठ पत्रकार श्री हरिओम प्रसाद।"

    कैमरा एंगल अब सिर्फ़ मालिनी से घूमकर हरिओम प्रसाद की ओर मुड़ चुका था।

    "बिहार में ये जो बदलाव हो रहा है, उससे राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? आपकी क्या राय है, प्रसाद जी?" मालिनी ने सवाल किया।

    राजेंद्र की आंखें स्क्रीन पर जमी हुई थीं। अचानक उनके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं। उन्होंने तेज़ आवाज़ में कहा—
    "पार्टी के आलाकमान को हो क्या गया है? ऐसे कैसे किसी और को टिकट दे सकते हैं?"

    उनकी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि बबीता जी कमरे से बाहर आ गईं। उनके पास आकर बोलीं—
    "अगर इन्हें टिकट नहीं मिल रहा है तो आप क्यों परेशान हो रहे हैं? ये नहीं रहेंगे तो किसी और को तो मौका मिलेगा ही! मैं तो कहती हूं, आप खुद के लिए बात कीजिए।"

    राजेंद्र ने एक नजर उन्हें देखा और फिर टीवी की ओर देखने लगे।

    "देखिए, राजनीति में फेरबदल होते रहते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हां, यह ज़रूर दिलचस्प होगा कि अधिराज जी की जगह कौन आता है। अगर पिछले पांच सालों को देखें तो अधिराज चौधरी का व्यवहार और कार्य जनता के बीच सराहनीय रहे हैं। ऐसे में पार्टी के लिए उन्हें टिकट न देना घाटे का सौदा हो सकता है।"

    हरिओम प्रसाद की बात सुनकर बबीता जी फिर से बोलीं—
    "पार्टी में खुद के लिए बात करो, कब तक उनके पीछे-पीछे घूमते रहोगे?"

    इस बार राजेंद्र ने कुछ ऐसा कहा कि बबीता की आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं...
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    तो आगे क्या होगा इस कहानी में जानने के लिए पढ़ें ये तूने क्या किया मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।

    Stay tuned my lovelies ❣️ 🫂 🌹 🧿
    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 19. ये तूने क्या किया.. - Chapter 19

    Words: 1089

    Estimated Reading Time: 7 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩 फॉलो भी करना होता है🤭
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    पंचौड़िया हाउस...

    बबीता ने एक बार फिर कहा, "आप अपने बारे में पार्टी में बात करिए न।" राजेंद्र ने अपनी नज़र घुमाई। उसकी नज़र बबीता की चमकती आंखों पर गई, जिसमें पदोन्नति की चाह साफ़ झलक रही थी, लेकिन राजेंद्र की भौहें सिकुड़ गईं, मानो वो इस बात से खुद को अलग करता हो। उसने गहरी सांस ली, टीवी का रिमोट उठाया और उसे बंद कर दिया। अब उसका रुख बबीता की ओर था।

    "राजनीति के मैदान में मैं हूं, तो क्या मेरा दिमाग़ इस तरफ़ नहीं गया होगा? जब तुम्हारा इतना दिमाग़ चल सकता है, जो पूरे दिन इस घर में ही पड़ी रहती हो, तो मैं जो बाहर-भीतर आना-जाना करता हूं, बड़े लोगों के साथ उठता-बैठता हूं, उसके पास ये दिमाग़ नहीं होगा?"

    राजेंद्र की बातों में तंज था। उसने बबीता को ऐसे देखा जैसे किसी नासमझ को देख रहा हो। राजेंद्र के इस तरीके से बात करने पर बबीता घबरा गई। उसने नज़र झुकाते हुए कहा, "जी, मेरा वो मतलब नहीं था! मैं तो बस आपको तरक्की करते देखना चाहती हूं।" मुश्किल से बस इतना ही बोल पाई और फिर उसके लब खामोश हो गए।

    राजेंद्र ने आंखें बंद कीं और कुछ सेकंड बाद खोलीं। उसने एक नज़र बबीता को देखा, जो सिर झुकाए चुपचाप बैठी थी। खुद को संयत करते हुए उसने बबीता का हाथ पकड़ा। ऐसा करते ही बबीता ने एक नज़र राजेंद्र को देखा और फिर नज़रें झुका लीं।

    "अगर मैं पार्टी में खुद के लिए बोलूं भी, तो मुझे ये कह कर मना कर देंगे कि अभी मेरी पकड़ बड़े क्षेत्र में नहीं है। इसलिए मेरे मुंह खोलने से भी कुछ नहीं होगा। लेकिन अगर एक बार और चौधरी साहब विधायक बने, तो पार्लियामेंट में उनकी पकड़ और मजबूत होगी। फिर वो अपने बेटे को भी राजनीति में ला सकते हैं।"

    राजेंद्र की आवाज़ अब नर्म थी, और वो बड़े आराम से अपनी बातें बबीता को समझा रहा था।

    "लेकिन इससे हमें क्या फ़ायदा होगा?" बबीता ने मासूमियत से पूछा और राजेंद्र को देखने लगी।

    "अगर उनकी पकड़ मज़बूत हुई, तो हम अपनी सिया की शादी उनके घर में कर सकते हैं।" राजेंद्र की आंखों में चमक थी और चेहरे पर एक मुस्कान, मानो कोई योजना हो जो सिर्फ उसे ही पता हो।

    "क्या... क्या कहा आपने? अपनी सिया की शादी वो भी चौधरी साहब के इकलौते बेटे से? अरे, ये तो मां भवानी की साक्षात कृपा होगी!" बबीता लगभग चिल्ला ही पड़ी। उसकी आंखें हैरानी से बड़ी थीं और खुशी जैसे आसमान छू रही थी। चौधरी परिवार जैसा खानदानी रईस और नाम-रसूख वाला परिवार, सात्विक जैसा सुलझा और अच्छी शक्ल-सूरत वाला लड़का! एक मां-बाप को और क्या चाहिए अपनी बेटी के लिए?

    "अभी तुम ये बात कहीं और नहीं बोलोगी... एकदम चुप! अगर मेरा काम बिगड़ा, वो भी तुम्हारी वजह से, तो बहुत बुरा हो जाएगा तुम्हारे लिए।" राजेंद्र की आवाज़ में सख़्ती थी, जिसने बबीता को अंदर तक डरा दिया।


    ---

    सबा का घर, टेरेस

    सभी लोग राउंड बनाकर बैठे थे। सात्विक के एक ओर सियारा और दूसरी ओर धैर्य बैठा था। धैर्य के बगल में तनिष्का थी और सात्विक के सामने आरुषि, दीक्षा और मृणालिनी थीं। उनके बीच टेबल पर एक बॉटल रखी थी। तभी सबा ने बॉटल घुमाया। बॉटल सीधी जाकर नूर पर रुकी और वो हड़बड़ा गई।

    तभी कायनात ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "ट्रुथ या डेयर?"

    "डेयर!" नूर ने गला साफ करते हुए कहा। कायनात तो जैसे इसी पल का इंतज़ार कर रही थी। उसने टेढ़ी मुस्कान दी। सबा को सब समझ आ गया और वो अपने डर को एक तरफ रख, नूर के मज़े लेने के लिए तैयार हो गई। उसके होठों पर भी एक तिरछी मुस्कान थी। उसने मन में सोचा, "अब फंसी न बुलबुल जाल में।"

    कायनात ने सबा की आंखों में देखा और मन में कहा, "अब देखते हैं ये बुलबुल कैसे पंख फैलाती है।" उनके चेहरे के बदलते भाव देखकर बाकी सब थोड़े कन्फ्यूज थे, जबकि नूर की हालत पतली हो रही थी। उसने घबराई नजर से दोनों को देखा और उंगलियां क्रॉस करते हुए मन में कहा, "या ख़ुदा, आज बचा लो! हे मेरी माता जी के फ्रेंड के भोले शंकर, मेरी राह के इन दो बड़े कंकड़ों का कुछ करो प्रभु!"

    "तू अभी अपने बॉयफ्रेंड को कॉल कर और उससे कह कि वो टॉक्सिक है और अब तू उससे ब्रेकअप कर रही है... स्पीकर पर।" कायनात ने नूर को घूरते हुए कहा। बाकी सब शॉक्ड रह गए।

    "अरे नहीं! गेम के लिए किसी के रिलेशनशिप को बीच में नहीं लाना चाहिए! मज़ाक एक तरफ और रिश्ते दूसरी तरफ।" आरुषि ने चौंकते हुए कहा।

    "अरे बहन! तुझे समझ नहीं आ रहा, ये सच में टॉक्सिक रिलेशन में है यार! ये खुद भी ब्रेकअप चाहती है, बस हिम्मत नहीं हो रही थी कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए। लेकिन अब हम सबके सामने करेगी तो कुछ भी हुआ तो हम संभाल लेंगे।" सबा ने स्पष्टता से कहा।

    नूर नज़रें नीचे किए बैठी थी। उसे बहुत अजीब लग रहा था, मानो सब उसे ही घूर रहे हों। घबराहट सी हो रही थी।

    "हे नूर! डरने की जरूरत नहीं है और न ही शर्मिंदा होने की। तुम बस उसे फोन करो और इस टॉक्सिसिटी से निकलो, एग्जाम नज़दीक है डूड।" सात्विक ने नूर को समझाया।

    नूर ने आंखें मूंदी जैसे खुद में हिम्मत बटोर रही हो। फिर उसने फोन उठाया और कॉल स्पीकर पर लगाई। एक रिंग के बाद कॉल कट गया। नूर ने सबको देखा।

    "एक बार और ट्राई करो।" धैर्य की आवाज़ आई।

    नूर की उंगलियां स्क्रीन पर दो बार मूव हुईं और कॉल फिर से ट्रांसफर होने लगी... ट्रिंग ट्रिंग... ट्रिंग ट्रिंग...


    ---

    चौधरी निवास...

    "हां, हो सकता है जो आप कह रहे हैं वो सही हो! लेकिन एक और बात है भैया जी, अगर बच्चे बड़े हो रहे हों और समझदारी आ रही हो, तो उन्हें उनके काम में ज़्यादा रोक-टोक पसंद नहीं आती। और फिर उनके रास्ते बदल जाने का भी डर होता है।" महेश ने अधिराज को देखते हुए कहा।

    महेश की बात पर अधिराज के कदम रुक गए। उसके माथे पर शिकन की रेखा उभरने लगी और उसकी आंखों में, जो हमेशा सख़्त रहती थीं, एक बेचैनी झलकने लगी।

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    तो आगे क्या होगा इस कहानी में जानने के लिए पढ़ते रहिए ये तूने क्या किया मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ!
    Stay tuned my lovelies ❣️ 🫂 🌹 🧿
    ✍️ शालिनी चौधरी

  • 20. ये तूने क्या किया.. - Chapter 20

    Words: 1300

    Estimated Reading Time: 8 min

    हरे कृष्णा 🌹❤️ उम्मीद है आपको कहानी अच्छी लग रही होगी, कहानी लिखने में बहुत मेहनत लगती है तो प्लीज रेटिंग दें और कमेंट जरूर करें 😍🤩 फॉलो भी करना होता है🤭
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    चौधरी निवास......
    महेश की बात पर अधिराज ख़ामोश हो गया उसकी नज़रें खिड़की के बाहर देखने लगी मानो किसी गहरे उथल पुथल में लगी हो, अपने भाई को ऐसे उलझा देख कर महेश चुप चाप बाहर निकल गया, बाहर उसकी नज़र दरवाज़े पर खड़ी सुभद्रा पर गया जो ख़ामोश नज़रों से महेश को देख रही थीं।

    "अरे भाभी आप... ऐसे क्यों बाहर में खड़ी है अंदर आ जाना चाहिए था।" महेश ने दूसरी तरफ़ देखते हुए कहा।

    "आपके भैया जी हमेशा से ऐसे ही है का? मतलब सब पर शासन ही चाहिए उनका.... अभी उसका उमर ही कितना हुआ है जो इस लफड़ेबाजी में डाल रहे, हम सबको तो रखते दबा कर उसको तो जीने दे न चाही कि ना।" सुभद्रा ने आक्रोश से भरे हुए कहा आवाज़ धीमी थी लेकिन गुस्सा साफ पता चल रहा था।

    "भैया जी जो करेंगे उसके भलाई के लिए करेंगे... आप अधीर न हों।" महेश ने शांति से कहा क्योंकि वो इसके सिवा कर ही क्या सकता था।

    सुभद्रा की आँखें ये साफ बता रही थी कि महेश की बातों ने उसे सुकून नहीं दिया, महेश ने आगे कुछ नहीं कहा और दूसरी तरफ बढ़ गया। सुभद्रा आंखों में नमी लिए कमरे के तरफ़ एक बार देखी और फिर वापस पलट कर नीचे चली गई।

    सबा का घर....

    धैर्य के कहने पर नूर ने एक बार फिर कॉल लगाया और इस बार कॉल रिसीव भी हुआ सबकी नज़र फोन पर ही थी इसके पहले की नूर कुछ कहती उधर से ही आवाज़ आई,"अगर सामने वाला फोन नहीं उठा रहा तो वो बिजी है, अरे क्या अजीब सी हो फोन किए ही जाना है.... देखो तुम होगी फ्री पर मेरे पास बहुत काम होता है और अभी बिजी हूं।"

    दूसरी तरफ़ से लगभग चीखते हुए एक लड़के ने कहा, नूर की आँखें हल्की नम हो गईं और नज़रें झुक गईं वो काफी शर्मिंदा महसूस कर रही थी।
    धैर्य के दूसरे साइड बैठा लड़का थोड़े तेज आवाज़ में बोला,"ओय लड़की से बात करने की तमीज़ नहीं है क्या... और इत्ते से उमर में तू कौनसा मल्टीनेशनल कंपनी चला रहा की कॉल उठाने का भी समय नहीं है।" उस लड़के की आइब्रो चढ़ी हुई थीं और चेहरा कठोर हो चुका था।

    "मुराद... पहले नूर को बात करने दे, अभी शांत रह।" धैर्य ने हल्के दबे आवाज़ में कहा जिस पर मुराद ने सर हिला दिया और ख़ामोश हो गया।

    "ये कौन था? कौन था वो... ओ.. मतलब मैंने कॉल नहीं उठाया तो मैडम ने आशिकी शुरू कर ली... बोल धोखा दे रही है न तू मुझे.. बोल।" आवाज़ में एक अलग ही गुस्सा और डोमिनेंस था, बेहद रुखे तरीके से कहा गया एक एक शब्द नूर के दिल को चीर रहें थे और उसका दर्द अब आंसू बन कर बाहर निकलने को ही थें।

    "तुम.. तुम कैसी बात कर रहे हो आगाज़! तुम अच्छे से जानते हो मैं ऐसी नहीं हूं... तुम फिर भी शक कर रहे हो।" नूर ने कहा उसकी आवाज़ रोने जैसे हो गई थी, आँखें जो अब तक आंसू संभाले थीं वो भी बगावत पर उतर आईं किनारे का लिहाज़ छोड़ नूर के गालों पर ऐसे बरसने लगीं जैसे आसमान से बारिश हो रही हो।

    "हां... हां... तुम ऐसी नहीं हो जैसा मैंने सोचा था! मैंने सोचा था मेरी नूर बेहद तमीज़ याफ़्ता, कुरानपरस्ति है, लेकिन तुम... तुम तो इतनी बदजात हो कि अब मुझे शर्म सी महसूस हो रही है।"
    आगाज़ ने बेहद ही बेशर्मी से अपनी बात कही।

    नूर की आँखें जो अब तक आँसू थामे थीं, वो किनारे का लिहाज़ भूल उसके गालों पर ऐसे बरसने लगीं जैसे आसमान से बारिश हो रही हो।

    "कुरानपरस्ति होती क्या है ये तुम्हें पता है बेहया? औरतों को इज़्ज़त देना ही असलियत में अल्लाह को नमाज़ अदा करना है!
    नूर को ऐसे ज़लील करने से ही तुम्हारी हक़ीक़त सामने आ चुकी है... और किस तमीज़ याफ़्ता की बात करते हो... औरतों को दबा देना, उनके हक़-हुकूक़ मार देना... क्या ये मर्द की तमीज़-तहज़ीब है! एक लड़की को इस कदर रुला दिया और बात करता है तमीज़ की, हंह.."

    मुराद ने चिल्लाते हुए गुस्से से कहा।
    नूर का रोना और शर्मिंदा होना उसे गुस्सा दिला चुका था। आरुषि की नज़र मुराद पर टिकी थी वो उसे देखते हुए खुद में बुदबुदाई-

    "क्या मुराद, नूर को पसंद करता है? क्योंकि लग तो ऐसा हो रहा है... ये इतना क्यों भड़क गया?" आरुषि की नज़र कभी गुस्से से कांपते मुराद पर जाती तो कभी सर झुकाए सुबकती नूर पर।

    "तू है कौन बे साले? देख जो भी है ये मेरे और मेरी नूर के बीच के मामलात हैं इसलिए बीच में ना ही पड़ तो ठीक है... वैसे भी तुझ जैसे को बहुत अच्छे से जानता हूं मैं... लड़की देखी नहीं की हवस.." इसके आगे आग़ाज़ कुछ कह सकता उससे पहले ही नूर ने गुस्से में कहा।

    "बस भी करो आग़ाज़! तुमने हद पार कर दी... आख़िर कोई इंसान इतना बत्तमीज कैसे हो सकता है? पहले तुमने मेरे किरदार पर सवाल उठाया और अब उसके किरदार पर उंगली उठा रहे हो?" नूर ने भले ही बेहद शांत हो कर कहा था लेकिन उसकी आवाज़ में दर्द और गुस्सा साफ़ था आँखें अभी भी नम थीं लेकिन अब आंसू निकल नहीं रहें थे बस धार सी बनी हुई थी।

    "अच्छा.. तो मैं बिल्कुल सही था.. ये तुम्हारा सच में ही नया यार है! तभी तो मेरी बात से उससे पहले तुम्हें मिर्ची लगी! वैसे कुछ भी करो नूर.. किसी से भी आशिकी करो तुम्हारा निकाह तो मेरे साथ ही होगा ये तो तय है! तुम्हारे अब्बू को इस बर्ताव का जवाब तो देना होगा।" आगाज़ ने धमकी देते हुए कहा वहीं मुराद गुस्से से उबल रहा था। उसकी नज़र फोन को ऐसे देख रही थी जैसे वो फोन में ही हाथ घुसा कर उसका गला दबा देगा।

    "तुम्हें जो करना है करो! और अब मैं तुमसे रिश्ता ही खत्म करती हूं... तुम्हें अब्बू को बताना है न बताओ लेकिन अब ये तय रहा कि मेरा निकाह तुमसे तो नहीं होगा... और अब्बू ही तुमसे ये कहेंगे! और हां जिससे बात हुई उसका नाम मुराद खान है! ये बताना अब्बू को! नाउ ओवर!" नूर ने गुस्से से कहा।

    "कैसी... कैसी बात कर रही हो नूर... तुम रिश्ता कैसे खतम कर सकती हो... मोहब्बत करती उप मुझसे और मैं तुम्हारा शौहर बनने वाला हूं! ऐसे ही किसी के बात में आ कर रिश्ता खत्म नहीं करते! नूर मेरी जान..." आगाज़ ने तुरंत ही दाँव पलटते हुए कहा वहां बैठे सब हैरान रह गए कि कैसा इंसान था वो इतनी जल्दी गिरगिट को भी रंग बदलते नहीं देखा किसी ने जितनी जल्दी इसने अपनी बात पलटी थी।

    "नहीं! अब नहीं आगाज़! अब बस! तुमने मेरे किरदार पर सवाल खड़ा किया.. मुझे गालियां दीं मुझे इतना ज़लील किया.... तुम्हारे हर बार के ऐसे बर्ताव को मैं रो कर भूला देती थी लेकिन अब नहीं होगा मुझसे बाय!" कहते हुए नूर ने कॉल काट दिया। वो गुस्से में थी।

    "शाबाश! अब चल जल्दी से ब्लॉक मार इस कमीने, बेग़ैरत इंसान को! धोखेबाज साला टॉक्सिसिटी का नाना।" मृणालिनी ने गुस्से से कहा और कॉल रिकॉर्डिंग को सेव करते हुए खुद ही उस नंबर को ब्लॉक कर दिया।

    वहीं इन सबके बीच एक लड़की तनिष्का और सात्विक के साथ वाला अलग अलग एंगल से फोटो ले रही थी, जैसे ही उसकी और तनिष्का की नज़र मिलती दोनो मुस्कुरा देती... एक साज़िश से भरी मुस्कुराहट।

    तो आगे क्या होगा इस कहानी में? जानने के लिए पढ़ते रहिए "ये तूने क्या किया" मेरे यानी शालिनी चौधरी के साथ।

    और हां कमेंट फॉलो भी करना होता है यारों। कर दिया करो मोटिवेट होती रहूंगी! कर दिया करो यारों!

    Stay tuned my lovelies ❣️🫂🌹🧿
    ✍️ शालिनी चौधरी