ये कहानी है दो बहनों वृष्टि और वर्षा की जो मुंबई की सड़कों पर अपने ख़्वाब पूरा करना चाहती हैं लेकिन अनजाने में ही वृष्टि वहां के गैंगस्टर सीईओ मेघ राणावत के नजरों में आ जाती है और उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है,मेघ को वृष्टि से पहली नज़र में प्... ये कहानी है दो बहनों वृष्टि और वर्षा की जो मुंबई की सड़कों पर अपने ख़्वाब पूरा करना चाहती हैं लेकिन अनजाने में ही वृष्टि वहां के गैंगस्टर सीईओ मेघ राणावत के नजरों में आ जाती है और उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है,मेघ को वृष्टि से पहली नज़र में प्यार हो जाता है मगर वो दोनों इस बात से अनजान होते हैं कि उनकी डोर एक दूसरे के अतीत से जुड़ी हुई है क्या है वो राज और क्या वृष्टि अपनाएगी मेघ के प्यार को या चुन लेगी कोई और रास्ता जानने के लिए पढ़िए IKRAAR "WHEN LOVE BURNS"
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ख़्वाबों की महानगरी मुंबई,जहां रोज न जाने कितने हज़ारों लोग कुछ बड़ा करने के जज़्बे से वहां क़दम रखते हैं, उनमें से कुछ लोग ही अपने ख़्वाबों को पूरा कर कामयाबी की सूरत देख पाते हैं बाकी मुंबई के सड़कों की धूल नापते नज़र आते हैं...लोगों की इस भीड़ में और भागमभाग में दो चेहरे ऐसे भी शामिल थें जिनके ख्वाब जिनके विचार जिनकी क्लास यहां तक कि रहन सहन भी बिल्कुल थें...
बोरीवली
मुंबई
रात के दस बज रहे थें गाड़ियां सड़कों पर तेज गति से दौड़ रही थीं,किसी को कहीं पहुंचने की जल्दी थी तो किसी को वापस लौटने की जल्दी...
सड़कें गाड़ियों और इंसान की भीड़ से खचाखच भरी हुईं थीं... जहां दुनिया रात के इस वक्त भी भाग रही थी वहीं
वर्ली मुंबई के पॉश इलाके में एक बड़े से बंगलो में पूरी तरह सन्नाटा था...
घर के सारे सदस्य अपने अपने कमरे में सो रहे थें,मगर एक कमरे की लाइट जली हुई थी, कमरे की बालकनी पर खड़ा कोई खड़ा था...उसकी पीठ दरवाज़े की तरफ़ थी मगर पीछे से भी उसका मजबूत शरीर और उसकी गांठें किसी का भी ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित कर लें...
मोबाइल को कान पर लगाए वो किसी से रौबदार आवाज़ में बात कर रहा था...
"आज अगर उसकी लाश मेरे सामने नहीं आई तो कल तुम्हारे घरवाले तुम्हारी मौत का मातम मनाएंगे!"...एक तीस साल का लड़का किसी को फोन पर अपनी भारी आवाज़ में धमकी दे रहा था...
"सॉरी सर आज आपका काम हो जायेगा!"...किसी ने डरते हुए कहा और कॉल कट गया...
उस लड़के ने अपने कमरे के बाहर विंडो से देखते हुए कहा,"मुझसे टकराने की गलती करोगे तो टकराने के लिए बचोगे नहीं मैं वो हर वजह ही खत्म कर दूंगा जिसकी वजह से तुम मुझसे टकराओगे अब अपनी मौत का मजा चखो मेघ राणावत नाम है मेरा मुझसे टकराने वाला टूट सकता है मैं नहीं"...उसने मोबाइल अपने पॉकेट में डाला और मुड़ कर अपने बेड पर रखे शर्ट को अपने ऊपर डाला और नीचे आ गया...
उसने शर्ट के आधे बटन लगाए जिससे ऊपर सीने का हिस्सा अभी भी उजागर हो रहा था...
वो तेज़ कदमों से चल कर बाहर आया और अपनी कार में बैठ कर न जाने कहाँ चला गया...
उसने कार को बीच की तरफ मोड़ दी,वो आधे रास्ते में ही पहुंचा था कि मौसम बिगड़ने लगा, मगर उसने जरा भी परवाह नहीं की...देखते ही देखते तेज़ बारिश शुरू हो गई...
वो आगे बढ़ता की उससे पहले ही उसका मोबाइल बज उठा,उसने बिना देखे मोबाइल कान पर लगा लिया और अपनी रौबदार आवाज़ में बोला,"हैलो...!"...
उधर से कुछ कहा गया,"ठीक है कल सुबह तक मुझे काम पूरा चाहिए...वो आदमी जहां भी है उसे मारो वरना मैं तुम सबको मार दूंगा"... और कॉल काट कर उसने मोबाइल किनारे फेंक दिया... उसने आगे बढ़ने से पहले अनायास ही अपनी बाईं तरफ़ के सड़क पर डाली जैसे ही उसकी नज़र सड़क पर गई उसने गाड़ी का ब्रेक दबा दिया...
उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा...उसने अपनी कार का शीशा डाउन किया और बाहर का दृश्य देखने लगा...
एक लड़की सड़क किनारे रात के इस वक्त बारिश में गोलगप्पे खा रही थी... दूरी थी इसलिए चेहरा साफ नहीं दिख रहा था मगर जितना नज़र आ रहा था वो मेघ को नजरों को रोकने के लिए काफी था...वो खाते हुए बातें भी कर रही थी...उसके होंठों पर शायद एक मुस्कुराहट थी और वो खाते हुए एक हाथ से बार बार अपने बालों को पीछे कर रही थी...
मेघ उस पर से नज़र नहीं हटा पा रहा था,ऐसा नहीं था उसने कभी उसके जैसी लड़की देखी नहीं थी,लेकिन उस लड़की में न जाने ऐसा क्या था कि वो अपनी पलकें झपकाना भूल गया था...कुछ अलग था उस लड़की में जिसने मेघ राणावत के कदम रोक दिए थें जिसकी खबर खुद मेघ राणावत को भी नहीं थी...
वो ये भी भूल गया था कि वो इस वक्त सी बीच पर जाने के लिए निकला था...
कुछ ही देर में उसने गोलगप्पा खत्म किया और पैसे दे कर जाने के लिए मुड़ी लेकिन न जाने क्या हुआ कि वो रुक कर बारिश होते आसमान को देखने लगी...उसके साथ खड़ी लड़की ने उसे देखा तो ज़बरन उसका हाथ पकड़ कर बोली,"ए पागल लड़की अब चल जल्दी,अगर वक़्त पर नहीं पहुंचे तो बहुत डांट पड़ेगी"...
"तो पड़ने दो"...उसने बेपरवाही से कहा और भाग कर खुले आसमान के नीचे खड़ी हो गई...उसके साथ वाली लड़की ने उसे रोकना चाहा तो उसने जबरदस्ती उसे भी अपने साथ खींच लिया और उसके ऊपर पानी फेंकने लगी...
उसे बारिश के भीगते देख कर मेघ की सांसे तेज़ हो गईं,उसके अल्हड़पन में वो खुद के ऊपर नियंत्रण न रख सका और गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर नीचे उतर गया... वहीं कहीं दूर से गाने की आवाज़ ने मेघ की हँसी गहरी कर दी
एक लड़की भीगी भागी सी
सोती रातों में जागी सी
मिली एक अजनबी से
कोई आगे न पीछे
तुम ही कहो ये कोई बात है
मेघ मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था और अब उसके क़दम धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ रहे थें...उसने आने से बेखबर वो लड़की बारिश में दिल खोल कर भीग रही थी,उसके बाल उसके गोरे चेहरे पर चिपक कर अठखेलियां कर रहे थें... लम्बी सुराही दार गर्दन पर बारिश की बूंदे मोती की तरह चमक रही थीं और हाथों की चूड़ियां रात के सन्नाटे में खनक कर मेघ के दिल में शोर कर रहे थें...
वो भीगने और मस्ती करने में इतनी मगन थी कि उसे मेघ के आने का पता ही नहीं चला...उसकी पीठ मेघ की तरफ़ थी इसलिए वो उसका चेहरा नहीं देख पा रह था...
मेघ का जैसे खुद पर कंट्रोल ही नहीं था वृष्टि जब तक उसकी मौजूदगी भांप पाती मेघ ने आगे बढ़ कर उसकी कलाई थाम ली, मेघ के अचानक सामने आ जाने से वो सकपका गई और उसके बगल वाली लड़की घबरा कर बोली,"वृष्टि घर चल प्लीज"...
वो लड़की जिसका नाम वृष्टि था वो झटके से मुड़ी और जैसे ही वो मुड़ी उसी वक्त स्ट्रीट लाइट्स ऑफ हो गईं जिस वजह से मेघ एक बार फिर उसका चेहरा देख पाने में असमर्थ हो गया...अंधेरे में ही वृष्टि ने मेघ को नाराज़गी से देखते हुए और झटके से अपना हाथ छुड़ा कर बोली,"ओ मिस्टर ये क्या हरकत है...अभी दो थप्पड़ जड़ूंगी तो धूल चाटते नज़र आओगे"...
वृष्टि की बात पर मेघ अंधेरे में मुस्कुराते हुए उसके क़मर पर हाथ रख कर अपने नज़दीक खींच लिया, वृष्टि को ऐसा लगा जैसे उसे साँप सूंघ गया उसने हकलाते हुए कहा,"य.. य...ये आप क्या कर रहे हैं... छोड़िए मुझे"...
मेघ तो बस वृष्टि को देख रहा था उसे न तो उसका कुछ बोलना सुनाई दे रहा था न ही आस पास का कुछ होश था...
ये सब देख कर उसके साथ वाली लड़की ने खीझ कर मेघ को धक्का और वृष्टि का हाथ पकड़ कर भागते हुए बोली,"वृष्टि दौड़ लगा वरना आज कुछ अनर्थ हो जाएगा"...
जब तक वृष्टि कुछ समझ पाती उसके साथ वाली लड़की उसे मेघ से दूर ले जा चुकी थी मेघ ने उन्हें भागते देखा तो वो धीरे से हँस दिया...उसने सिर उठा कर आसमान में देखा और बारिश की फुहारों को खुद के चेहरे पर महसूस करते हुए धीरे से बुदबुदाया,"वृष्टि.."...वो पूरी तरह से भीग चुका था बारिश की ठंडी ठंडी बूंदे उसके सीने की जलन को सर्द कर रही थी...उसने आँखें बंद कर लीं और वृष्टि की मासूमियत उसकी बेपरवाही को याद कर हँस पड़ा...कुछ देर में लाइट आ गई और स्ट्रीट लाइट्स भी जल उठीं मगर वृष्टि अब वहां नहीं थी...
वृष्टि भागते हुए कुछ दूर आगे पहुंच गई उसने मुड़ कर पीछे देखा जब कोई आता हुआ नज़र नहीं आया तो वो रुक कर लंबी लंबी साँसे है लेने लगी...
"तू बिल्कुल पागल वर्षा ऐसे क्यूँ भगा लाई मैं उसे अच्छा सबक सिखाने वाली थी"... वृष्टि ने हांफते हुए कहा...
उसकी बात सुन कर वर्षा ने नाराज़गी से अपना मोबाइल उसके सामने कर दिया,"तु होश में रहती कहाँ है बारिश और गोलगप्पे देख कर तो तू पागल हो जाती है ये देख कौन था वो"...
"कौन था...!"... वृष्टि बेपरवाह अंदाज़ में बोली... मगर जब मोबाइल की तरफ देखा तो आँखें हैरत से बड़ी हो गईं,"मेघ राणावत!"...
"हाँ वृष्टि...फेमस मेघ राणावत "... वर्षा ने मोबाइल छीनते हुए उसकी बात पर मोहर लगाई जिसे सुन कर वृष्टि पहले तो घबरा गई फिर अचानक ही सामान्य हो कर बोली,"हाँ तो मैं क्या करूं, मैं डरती हूं क्या किसी से...अरे डॉन होगा वो अपने घर में मैं तो उसे अच्छा सबक सिखाऊंगी हुंह पागल कहीं का बिना कहे मेरा हाथ पकड़ लिया"...
वर्षा में बेचारगी से उसे देखा फिर बात का रुख बदल कर बोली,"वो सब छोड़... जल्दी चल ताई बहुत गुस्सा करेगी हम पहले ही बहुत देर हो चुके हैं"...
वृष्टि ने उसे झिड़की देते हुए कहा,"ताई के डर से मैं जीना नहीं छोड़ सकती, और वैसे भी उसकी ग़ुलाम नहीं हूं मैं कमा कर देती हूं उसे तब वो मुझे खिलाती है मुफ़्त का नहीं खाती मैं"...
"ठीक है बाबा लेकिन मेरी खातिर घर चल ले मुझे तो डांट पड़ेगी न!"... वर्षा परेशान हो कर बोली...
"क्या तू मेरे लिए इतनी सी डांट नहीं खा सकती है वर्ष"... वृष्टि इतना बोल कर बारिश में हाथ फैला कर भीगने लगी जिससे परेशान हो कर अंत में वर्षा उसे खींचते हुए घर की तरफ़ ले कर चल पड़ी…
क्रमशः...
वृष्टि से मिलने के बाद मेघ बीच पर जाने की जगह वापस अपने घर की तरफ़ मुड़ गया, वृष्टि का प्यारा चेहरा उसका अल्हड़पन पूरे रास्ते उसके दिमाग पर छाया रहा…
गाड़ी पार्किंग में रोकने के बाद वो नीचे उतरा और उसी वक्त किसी को कॉल लगाया…
थोड़ी देर बाद कॉल रिसीव हुई और मेघ सामने वाले की बात सुने बगैर अपनी रौबदार आवाज़ में बोला, “हर्ष मुझे एक लड़की की डिटेल्स चाहिए”...
दूसरी तरफ हर्ष ने ये सुना तो उसकी पूरी नींद उड़ गई,उसने जल्दी से मोबाइल स्क्रीन पर नंबर चेक किया कि वो मेघ से ही बात कर रहा है न या कोई उसके साथ इस वक्त प्रैंक कर रहा है नंबर देखने के बाद भी उसने डपटते हुए कहा, “ओ फ्रॉड वाले भाई तुम्हें पता भी है तुम किस का नाम ले कर प्रैंक कर रहे हो अगर मेघ सर को पता चला न तो तुम्हारे साथ प्रैंक करवा देंगे, चलते फिरते गुमनाम हो जाओगे बाबू”...
उसकी बात पूरी होते ही मेघ भड़क उठा, “ओ नींद के देवता,कोई प्रैंक नहीं कर रहा है और न ही कोई फ्रॉड कर रहा है नंबर चेक करो समझे”...
इस बार हर्ष को यकीन हो गया कि ये मेघ ही है उसमें हड़बड़ा कर कहा, “सॉरी सर,मुझे लगा कोई रात के इस वक्त मेरे साथ प्रैंक कर रहा है,वो क्या है न पहली बार आपके मुँह से किसी लड़की का नाम सुना है”...
मेघ थोड़ी देर के लिए खामोश हो गया,कुछ देर बाद उसने गहरी आवाज़ में कहा,“लड़की का नाम वृष्टि है उसकी डिटेल्स निकलवाओ”...
हर्ष ने मन ही मन खुद को कोसते हुए सामने से कहा,“लेकिन सर सिर्फ नाम से कैसे पता करूं इतने बड़े शहर में इस नाम की हजारों लड़कियाँ होंगी”...
उसकी बात सुन कर मेघ भी थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गया लेकिन फिर उसने वृष्टि का हँसता खिलखिलाता चेहरा याद किया और बेखुदी के आलम में बोला,“दूर से देखा था वो बहुत खूबसूरत है उसकी बड़ी बड़ी आँखें हैं उस पर घनी पलकें हैं गोल चेहरा खूबसूरत होंठ और जब वो हँसती है तो उसके सफ़ेद दांत मोतियों की तरह चमकते हैं”...
हर्ष मुँह फाड़े ये सब कुछ सुन रहा था,उसका दिल किया कि अपने सिर के बाल नोच लें उसके सर द डॉन द ग्रेट मेघ राणावत ने पहली बार किसी लड़की का ज़िक्र किया और वो भी दूर से देख कर अब वो उसकी खूबसूरती के कसीदे पढ़ रहे हैं अगर पास से देखा होता तो मुजस्समा ही बनवा देते…
वो न जाने क्या क्या सोच रहा था कि तभी मेघ की गरजती आवाज़ उसके कानों में पड़ी और उसकी सारी तंद्रा टूट गई,“तुम सुन रहे हो हर्ष मुझे इस लड़की डिटेल्स चाहिए जितना बताया है उसका एक स्केच बनवाओ और उसे खोजो”...
मरता क्या न करता उसने हामी भर दी, मेघ ने कॉल रख दिया उसके कॉल रखते ही हर्ष सच में अपने सिर के बाल नोचते हुए बोला, “हे प्रभु, बचा लो मुझे या तो धरती पर अवतार ले लो क्यूँ की मेघ सर को प्यार हो गया है और उस प्यार को खोजने की जिम्मेदारी मुझे मिली है वो बस नाम के साथ”...
हर्ष ने रोनी सूरत बना कर अपने मोबाइल को देखा फिर उसे फेंक कर सोने की कोशिश करने लगा…
मेघ हर्ष से बात कर के घर के अंदर आया उसने जैसे ही हॉल में कदम रखा एक साथ हॉल की सारी लाइट्स ऑन हो गईं, मेघ जहाँ था वहीं रुक गया…
सामने उसकी बड़ी माँ खड़ी थीं मेघ उन्हें रात के इस वक्त हॉल में देख कर थोड़ा हैरान रह गया वो उनकी तरफ़ बढ़ते हुए बोला, “बड़ी माँ आप इस वक्त तक जाग रही हैं?”...
“जब बेटे को सुकून नहीं तो माँ कैसे सोएगी”... मेघ की बड़ी माँ श्वेता राणावत ने उसके चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा…
मेघ ने उनका हाथ पकड़ लिया और उनका मान रखते हुए बोला, “मैं ठीक हूं बड़ी माँ मेरे लिए चिंता करने की जरूरत नहीं है”...
श्वेता जी फीका मुस्कुरा दीं और आ कर हॉल के सोफे पर बैठ गईं,उनके बैठते ही मेघ भी उनके बराबर में आ कर बैठ गया…
श्वेता जी ने धीरे से उसका सिर अपनी गोद में रख लिया जैसे वो हमेशा करती हो,वो धीरे धीरे मेघ के सिर को सहलाने लगी मेघ की आँखें बंद हो गईं श्वेता जी ने उसे ममतामयी नजरों से देखते हुए कहा, “कहाँ गया था?”...
“वहीं जहाँ रोज जाता हूं!”...
“मगर आज तू जल्दी घर आ गया है!”...
“हा ठीक आज नहीं जा सका..!”... मेघ ने धीरे से कहा श्वेता जी को हैरानी हुई क्यूँ की मेघ कभी भी रात के इस वक्त पर बीच जाना नहीं छोड़ता था चाहे कुछ भी हो जाए…
“क्यूँ नहीं जा सके?”.. श्वेता जी के पूछने पर उसकी आँखों के सामने वृष्टि का चेहरा उभर आया और साथ ही उसके लब हल्के से मुस्कुरा उठें,श्वेता जी गौर से उसके चेहरे को देख रही थीं हँसने वाली बातों पर भी कंजूसी करने वाला मेघ आज बिना बात के ही हँस रहा था…उन्हें हैरान करने के लिए बहुत बड़ी वजह से गया था…
मेघ खामोश रहा तो श्वेता जी ने धीरे से उसके सिर पर चपत मारते हुए कहा,“बताएगा क्यूँ नहीं गया?”...
मेघ फुर्ती से उठ कर बैठ गया,“वक्त आने पर बता दूंगा!”... और तेज़ी से सीढियां फलांगते हुए अपने कमरे में भाग गया…मेघ ने भले ही कुछ न कहा हो लेकिन श्वेता जी को अनुमान हो गया था कि मेघ के मुस्कुराने की वजह क्या हो सकती है उन्होंने उस तरफ देखा जिस तरफ़ मेघ गया था और स्नेह से बोलीं,“जिस वज़ह से तेरे होंठ बेवजह हँस पड़े हैं भगवान करे कि वो वज़ह तेरी ज़िंदगी में हमेशा के लिए शामिल हो जाए”...
वृष्टि और वर्षा घर पहुंची तो दरवाज़ा बंद था, बंद दरवाज़े को देख कर वर्षा ने वृष्टि को आँखें दिखाई वृष्टि ने ऐसे रिएक्ट किया जैसे उसे कुछ पता ही नहीं हो…
वर्षा दरवाज़ा पीटती उससे पहले ही दरवाज़ा खुल गया जिसे देख कर दोनों ने सुकून की साँस ली…
दरवाज़े पर एक अधेड़ उम्र की मोटी औरत खा जाने वाली नजरों से उन्हें देख रही थी ये देख कर वृष्टि ने अपने बैग से पैसे निकाल कर उसकी तरफ़ बढ़ा दिए और तेवर दिखाते हुए बोली, “आइंदा से गाड़ी भेज देना हम तेरे ग़ुलाम नहीं है ताई जो ऐसे सड़कों पर घूमते फिरेंगे”...
सरोज ताई ने पैसे गिनते हुए कहा,“तू कहीं की राजकुमारी भी नहीं है समझी”...
वृष्टि को ये बात बहुत बुरी लगी वो ताई के सामने कमर पर हाथ रख कर खड़ी हो गई और आँखें दिखाते हुए बोली,“सुन ताई मैं सब जानती हूं कि तू किस बात का ताना दे रही है मुझे,मेरे सपनों के बारे में कुछ न बोला कर क्यूँ की मैं जानती हूं मेरा सपना ज़रूर पूरा होगा”...
ताई ने अजीब सी नजरों से उसे ऊपर से नीचे तक देखा और वहां से जाते हुए बोली, “औकात देख अपनी फिर बात करना सपने पूरे होने की”...
वृष्टि खून का घूंट पी कर रह गई मगर मन ही मन ताई को कोसते हुए बोली,“बोल ले ताई जिस दिन मेरा ख़्वाब पूरा हुआ न सबसे पहले तेरी जगह तुझे बताऊंगी फिर देखूंगी कि तु क्या बोलती है”...कुछ देर बाद वर्षा और वृष्टि ने खाना खाया और अपने अपने कमरे में चली गईं…
क्रमशः...
वृष्टि खून का घूंट पी कर रह गई मगर मन ही मन ताई को कोसते हुए बोली,“बोल ले ताई जिस दिन मेरा ख़्वाब पूरा हुआ न सबसे पहले तेरी जगह तुझे बताऊंगी फिर देखूंगी कि तु क्या बोलती है”...कुछ देर बाद वर्षा और वृष्टि ने खाना खाया और अपने अपने कमरे में चली गईं…
वृष्टि ने कमरे में आ कर अपने कपड़े बदले और बिस्तर पर लेट गई,पूरा बदन दर्द कर रहा था ये दर्द सिर्फ बाहरी था जो नज़र आ रहा था मगर जो दर्द उसके अंदर था उसे तो वो किसी को बता भी नहीं सकती थी,उसने खुद को शांत करने के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं मगर आँखें बंद करते ही मेघ का चेहरा उसकी आँखों के सामने घूम गया उसने घबरा कर आँखें खोल दीं और उठ कर बैठ गई…
वो अपने कमरे की खिड़की से बाहर आसमान को देखने लगी टिमटिमाते तारे को देखते हुए उसकी आँखें पनीली हो गईं उसने नम आँखों के साथ मुस्कुराते हुए कहा,“सब मेरे सपने का मज़ाक उड़ाते हैं मातारानी क्या मेरा सपना इतना बुरा है,क्या मेरे लिए सपने नहीं बने इतनी सी तो ख्वाहिश है मेरी की मैं दुनिया घूमूं वो भी अपना नाम कमा कर क्या ये इतना बुरा सपना है”...
वृष्टि की आवाज़ रूंध गई उसने जल्दी से अपनी आँखें साफ की और वापस बिस्तर पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगी…
करवट बदलते ही मेघ को नशीली आँखें उसके दिमाग़ में कौंध गईं वृष्टि का दिल जोर से धड़क उठा वो अब सोना भूल कर मेघ के बारे में सोचने लगी,“कैसे उसने हाथ पकड़ लिया था मेरा, कहीं वो मुझे कुछ करेगा तो नहीं है भी तो यहां का डॉन…सब डरते हैं उससे अगर उसने मुझे कुछ किया तो मेरा सपना…वो कैसे पूरा होगा वो…वो तो अधूरा रह जाएगा…नहीं नहीं कुछ नहीं करेगा…वैसे था तो स्मार्ट…कितना हसीन दिखता है डॉन न होता तो कोई बुराई नहीं थी उसमें”... ऐसी ही न जाने कितनी बातें सोचते हुए वृष्टि कि आँखें बोझिल हो गईं और कुछ देर में वो नींद को गोद में समा गई…
मेघ श्वेता जी के पास हो कर आया तो अपने कमरे के अंदर बने कमरे में चला गया,पूरा रूम अंधेरे में डूबा हुआ था उसने दरवाज़े के बगल की दीवार पर हाथ रख कर स्विच ऑन किया…
कमरे में सिर्फ कागज भरे पड़े थें वो आगे बढ़ा और एक कोने में जा कर खड़ा हो गया,वहां एक छोटी सी अलमारी थी जिस पर न जाने कितने अरसे की धूल जमी हुई थी और उसमें एक चाभी भी लटक रही थी उसने चाभी को घुमा कर उस अलमारी को खोला…
अलमारी खुलते ही एक अनजाना दर्द उसकी आँखों में उतर आया अंदर अनगिनत रंग उसके साथ पेंटिंग ब्रश और कैनवास रखे हुए थें…उसने हल्के और कांपते हाथों से सारे सामान को बाहर निकाला…
न जाने कितने सालों के बाद उसने इन रंगों को छुआ था…
वो सारा सामान ले कर अपने कमरे में आ गया,अपना शर्ट उतार कर बनियान और सिर्फ फॉर्मल पैंट में आ गया…कैनवास स्टैंड को एक जगह सेट किया उस पर कैनवास बोर्ड रखा और ब्रश को रंगों में डूबा कर अपना हाथ चलाने लगा…
आज सालों बाद उसे पेंटिंग करने की वजह मिली थी और वो थी वृष्टि,वो वृष्टि को अपने कैनवास पर उतार देना चाहता था जैसे उसने उसे देखा खुले आसमान में बारिश में भीगती सारे ज़माने से बेपरवाह उसकी वो हँसी उसका वो नादानी में झूमना वो सब कुछ अब वो कैनवास पर रंगों में बदल रहा था…
वो वृष्टि को कैनवास पर उतारने में इतना गुम हो गया कि उसे वक्त का पता नहीं चला…
पेंटिंग ख़त्म होते हुए सुबह हो गई,जब पेंटिंग पूरी हो गई तो वो एक जगह बैठ गया और आँखों में खुमारी लिए उस पेंटिंग को देखने लगा…
पहली नज़र में उसके दिल में उतर गई थी और अब वो जब चाहे इस कैनवास के जरिए उसे देख सकता था फ़र्क बस इतना था कि उस पेंटिंग में वृष्टि का चेहरा स्पष्ट नहीं था उसका आधा चेहरा ही नजर आ रहा था जो मेघ से दूर से देखा था……
आँखों में उसे एक बार और देखने की ख्वाहिश लिए उसने कैनवास को सूखने के लिए रख दिया और खुद बिस्तर पर लेट गया…
रात भर न सोने की वजह से उसकी आँखें बंद हो गईं और वो गहरी नींद में चला गया…
वृष्टि सो कर जगी तो दिन चढ़ आया था वो घबरा कर बैठ गई,समय देखा तो दस बज रहे थें,वो हड़बड़ा कर बिस्तर से नीचे उतरी और फ़टाफ़ट से स्नान किया और मातारानी की पूजा कर के रूम से बाहर निकल गई…
वर्षा अभी तक नहीं जगी थी ताई बाहर बैठी मोहल्ले की औरतों से बातें कर रही थी…
वृष्टि की आहट पर उसने मुड़ कर देखा फिर बिना कुछ बोले वापस औरतों से बात करने लगी…
वृष्टि उसकी तरफ़ ध्यान दिए बग़ैर किचेन में घुस गई,ज्यादा बड़ा किचेन नहीं था उसका दरवाज़े से अंदर आते ही एक छोटा सा हॉल उसके बगल में दो कमरे और सबसे कोने में एक छोटा सा किचेन जिसमें सामान भी सिर्फ़ जरूरत के ही थें…
वृष्टि ने अपने लिए चाय बनाई और बिस्किट के साथ खाने बैठ गई…
कुछ देर बाद ताई भी आ कर बैठ गई और उसे ऊपर से नीचे तक घूरते हुए बोली,“इतनी तैयार हो कर सुबह सुबह कहाँ जा रही है तु?”...
“कहीं भी जाऊं तुझ से मतलब!”... वृष्टि ने चिढ़ते हुए कहा ताई ने गुस्से में उसके हाथ से बिस्किट का पैकेट छीन लिया और तिलमिला कर बोली, “हाँ है मतलब क्यूँ की ये घर भी मेरा है और नियम भी मेरे ही चलेंगे”...
वृष्टि का खून खौल गया उसने जलती नजरों से ताई को देखा और चाय का कप जोर से ज़मीन पर पटक दिया, ताई गुस्से में दो क़दम पीछे हट गई…
वृष्टि उसे उंगली दिखाते हुए बोली,“देख ताई तूने मुझे घर में पनाह दी उसका शुक्रिया करती हूं मैं लेकिन याद रख मेरी ज़िंदगी में दख़ल करने की कोशिश की तो पैसे पैसे को तरसा दूंगी तू अच्छे से जानती है ये घर सिर्फ मेरी कमाई से चलता है”...
ताई के होंठों पर व्यंग भरी हँसी उभर आई वो हीन नजरों से वृष्टि को देखते हुए बोली,“वही कमाई जो मेरी वजह से हो रही है अरे तुझे क्या लगता है कि सिर्फ तू ही दे सकती है ये कमाई याद रखा मैं जब चाहूं वर्षा को इस काम के लिए मजबूर कर सकती हूं”...
उसके इतना कहते ही वृष्टि ने ताई का गला पकड़ लिया और गुर्राते हुए बोली,“मेरी बहन की तरफ़ नजर भी उठाई तो आँखें नोच लूंगी मैं तेरी,याद रख ये काम मैं ये काम सिर्फ इसलिए कर रही हूं क्यूँ की तूने मुझे अपने घर में पनाह दी है,जिस दिन यहां से निकल गई उस रोज खाने खाने को तरसेगी तू”...
वृष्टि की पकड़ इतनी मजबूत थी कि ताई की साँसे अटकने लगीं उसकी बिगड़ती हालत देख कर वृष्टि ने उसका गला छोड़ दिया छूटते ही ताई अपने गले पर हाथ रख कर खांसने लगी कुछ देर बाद जब वो संभली तो गुस्से में बोली,“तू एक काम कर निकल मेरे घर से”...
वृष्टि ने हैरानी से उसे देखा ताई उसके कमरे में गई और उसका सामान बाहर फेंकते हुए बोली, “तु निकल यहाँ से देखती हूं मुंबई जैसे शहर में तुझे फ्री में कौन घर में रहने को देता है तुझे क्या लगता है तू काम नहीं करेगी तो मैं भूखे मरेगी याद रख मुंबई की गलियों में तुझ जैसी हज़ारों लड़कियां मिल जाएंगी मुझे तो कोई भी मिल जाएगी लेकिन मैं भी देखती हूं कि एक नाचने वाली की बेटी को कौन जगह देता है”...
“ताई…!”... वृष्टि गुस्से में जोर से चिल्लाई मगर ताई एकटक उसे घूरती रही तब तक वर्षा भी वहां आ गई थी दोनों को गुस्से में देख वो काफ़ी डर गई…उसे देखते ही वृष्टि ने अपना बैग उठा लिया और सपाट भाव से बोली,“अपना सामान ले कर आ वर्षु अब हम यहाँ नहीं रहेंगे”...
“मगर वृष्टि…!”...वर्षा ने कुछ कहना चाहा तो वृष्टि ने उसे हाथ दिखा कर रोक दिया वर्षा समझ गई कि वृष्टि के ऊपर अब जुनून चढ़ चुका है वो किसी को नहीं सुनेगी उसने मुँह हाथ धोएं और अपने जो थोड़े से सामान थें उसे एक बैग में डाला अपने सारे जरूरी डॉक्यूमेंट्स लिए और वृष्टि के बगल में आ कर खड़ी हो गई…
ताई को लगा था कि वृष्टि उसके सामने गिड़गिड़ाएगी मगर खेल उल्टा पड़ गया ताई ने फिर भी वृष्टि को नहीं रोक क्यूँ की उसे यक़ीन था कि वृष्टि को कहीं जगह नहीं मिलेगी और वो लौट कर उसी के पास आएगी…