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Rebirth love revenge and madness

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Kushbu Thakur

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ये कहानी एक ऐसे लड़के की है जिसका rebirth उसी के शरीर में होता है जहां वह अपने जन्म के काफी साल पीछे आ जाता है। क्या वह इस बार अपने साथ हुए अन्याय का हिसाब ले पाएगा और जब अन्याय करने वाली कोई और नहीं बल्कि उसकी सगी मां हो जिसने उसे जन्म दिया हो क्या...

Total Chapters (5)

Page 1 of 1

  • 1. Rebirth love revenge and madness - Chapter 1

    Words: 1327

    Estimated Reading Time: 8 min

    एक बड़े से विला के तहखाने में चारों तरफ अंधेरा था वही एक सख्श उस कमरे में चेयर से बंधा हुआ था। उसके दोनों हाथ पीछे की तरफ बंधे हुए थे। उसके कपड़े फट चुके थे एक वक्त था जब वह सख्श हीरे जड़े हुए कपड़े पहनता था और सोने की थाली में खाना खाता था।  लेकिन उस सख्श को इससे कोई मतलब नहीं था उसे अपनी हालातों की कोई फिक्र नहीं थी मानो उसने ये सब स्वीकार कर लिया हो और उसकी सारी भावनाएं मर गई हो।


    लेकिन उसकी आंखों में एक तड़प थी किसी अपने को देखने की जिसकी वजह से उसकी सांस चल रही थी वरना उसकी हालत तो इतनी खराब थी कि वह कब का मर जाता लेकिन उस एक इंसान की चाहत ने उसकी सांसों की डोर को बांधे रखा था।


    वह सख्श जिस कमरे में था वह कमरा कमरा कम कबाड़ खाना ज्यादा लग रहा था। वहां जगह जगह पर मकड़ी के जाले थे हर तरफ धूल मिट्टी थी।




    वह शख्स दरवाजे पर देख रहा था जिसे उसे किसी का इंतजार था लेकिन उसके यह आस धीरे-धीरे टूटती हुई नजर आ रही थी उसे तो इतना भी नहीं पता कि उसका अपहरण किसने किया ।


    उसकी जिंदगी में दुखों की कोई कमी नहीं थी फिर भी वह मस्त मौला इंसान था हमेशा खुश रहता है और दूसरों को खुश रखना जानता था।

    उसे किडनैप हुए काफी दिन हो चुके थे लेकिन उसके परिवार वालों के उसकी कोई खबर नहीं थी यहां तक की उन्होंने यह जानना जरूरी नहीं समझा कि उनका एक और बेटा है वह कैसा है ।वह  अपनी पिछली बीती हुई जिंदगी के बारे में सोच रहा था जो उसने इतने सालों में बिताई थी की कैसे उसके पैदा होने के एक महीने बाद ही उसके सगी मां ने उसे उसके नाना नानी के पास छोड़ दिया और कभी उसे पलट कर देखा तक नहीं फिर भी उसके नाना नानी ने उसके मां-बाप और परिवार के बारे में सब कुछ बताया जिससे वह अपने परिवार से बहुत प्यार करता था और अपने मां पापा सभी को पूजता  था ।



    खास करके अपने बड़े भाइयों को लेकिन किसी ने भी उसकी इज्जत नहीं की उसे शख्स का नाम ऋषभ रंधावा था वह रंधावा फैमिली का सबसे छोटा बेटा था जो की इंडिया के टॉप 10 अमीरों की लिस्ट में आती थी लेकिन उसकी जिंदगी में कुछ भी सुख सुविधा नहीं थी उसके नाना नानी किसान थे वह अपना ज्यादातर समय गांव में खेती करते वक्त बिताते हैं और उसने भी अपने नाना नानी से ही खेती सीखी थी।


    ऋषभ की मां कहना कि तो उसकी सगी मां थी लेकिन उनका व्यवहार सौतेली से काम नहीं था क्योंकि उन्हें अपने सौतेले बच्चों से कुछ ज्यादा ही प्यार था क्योंकि उनके पति यानी ऋषभ के पापा की शादी पहले ऋषभ की मां की बड़ी बहन से हुई थी ।

    लेकिन कुछ सालों बाद ही उनकी मौत हो गई जिस कारण ऋषभ के पापा के बच्चे बहुत छोटे-छोटे थे जिस कारण दोनों परिवार की सहमति से ऋषभ की मां और ऋषभ के पापा ने आपस में शादी कर ली क्योंकि बच्चों के लिए सौतेली मां लाने से अच्छा है कि वह उनकी मौसी से शादी कर ले जो कि उन्हें मां जैसा प्यार देगी और हुआ भी ऐसा ही ऋषभ  की मां ने हमेशा ही उन्हें अपने सगे बच्चों से बढ़कर प्यार दिया ।


    इस चक्कर में उन्होंने ऋषभ को भुला दिया दुनिया उन्हें अपना सौतेला व्यवहार करने वाली औरत ना कहे इसलिए उन्होंने अपने एक महीने जन्मे हुए बच्चे को खुद से दूर कर दिया एक बार उसे तरफ मुड़कर नहीं देखा लेकिन ऋषभ जब 10 साल का हुआ तब उसके नाना नानी की डेथ हो गई जिसके चलते ना चाहते हुए भी उसे रंधावा फैमिली में लाना पड़ा ।


    वह अपनी फैमिली में आकर बहुत खुश था लेकिन कोई उसकी रिस्पेक्ट नहीं करता था सभी उसे हीन भरी नजरों से देखते थे वह दिन रात अपने बड़े भाइयों के पीछे भागता ताकि वह उनसे कुछ मैनर्स सीख सके लेकिन सभी उसे मैनर्सलेस कहते थे । क्योंकि वह हाथ से खाना खाता न की कांटे चम्मच से वह दूसरों की तरह दूसरे देश की संस्कृति को महत्व देने की अपेक्षा अपने देश की संस्कृति को महत्व देता

    ऋषभ की मां भी उसे पर ज्यादा ध्यान नहीं देती थी ऋषभ के पापा और ऋषभ की आंखें बिल्कुल एक जैसी थी उन दोनों की आंखें यूनिक थी एकदम इंडिगो ओसियन ब्लू आईज ऋषभ के फैसियल फीचर्स अपने पापा से मिलते थे ।


    लेकिन किसी का भी ध्यान इस बात पर नहीं था ऋषभ को बचपन से ही कोई लग्जरी लाइफ नहीं मिली लेकिन उसने कभी भी इसकी कोई शिकायत नहीं कि उसे जो मिला उसने उसे खुशी-खुशी एक्सेप्ट किया और उससे जो बन पाता वह चीज करता लेकिन किसी को भी उसकी इस बलिदान से कोई फर्क नहीं पड़ा हद तो तब हो गई जब ऋषभ एक लड़की से प्यार करता था पर उसके बड़े भाई को वह लड़की पसंद आ गई ।


    ऋषभ ने अपने  मां से कहा था कि वह उसे लड़की से बेहद बेइंतहा मोहब्बत करता है लेकिन उसकी मां ने उसकी एक नहीं सुनी क्योंकि उन्हें अपने बड़ी बेटे के दिल टूटने की चिंता थी जो बहुत ही इंट्रोवर्ट किस्म का इंसान था जल्दी किसी से दिल नहीं लगता था और उसे वह लड़की पसंद आई थी ।


    वह उनसे उनकी शादी करना चाहते थे कि ऋषभ ने बहुत कोशिश  कि वह उसकी शादी ना कारण उसने हर कोशिश की लेकिन उसकी मां नहीं मानी उसने अपने मां के सामने आखिरी में अपनी घुटने का बल बैठ के अभी नाक भी रगड़ ली लेकिन उन्होंने अपनी बात नहीं मानी बल्कि उल्टा उसे अपनी कसम दे दी कि अगर वह अपने बड़े भाई की शादी में बाधा नहीं बनता है तो वह उसे उसकी सारी खुशी देगी यानी कि उसे वह सारा प्यार देखी जो डिजर्व करता है पर अगर उसने उनकी बात नहीं मानी तो वह उसका मरा हुआ मुंह देखेगा ।



    जिस कारण उससे उनकी बात माननी पड़ी और अपने आंखों के सामने ही अपने प्यार को उसे मंडप पर अपने बड़े भाई के साथ फेरे लेते हुए देखना पड़ा जिससे उसके दिल में हजार सुइयां चुभ रही थी और वह जीते जी हजार मौत मर रहा था।



    वह उसे लड़की से दिलो जान से प्यार करता था और वह लड़की ऐसी पहली शख्स थी जो उसकी केयर करती थी उसकी चिंता करती थी कहना गलत नहीं होगा की लड़की को उसे लगाव हो गया था लेकिन अपनी फैमिली प्रेशर में उसने ऋषभ के बड़े भाई से शादी की क्योंकि उसके फाइनेंसियल कंडीशन कुछ अच्छी नहीं थी ।



    लेकिन उस दिन के बाद से ऋषभ सबसे दूर होता चला गया और उसकी कंडीशन दिन पर दिन खराब होती चली गई क्योंकि अपने ही प्यार को अपने बड़े भाई के साथ देखना उसके लिए बहुत मुश्किल था।


    धीरे धीरे वह समझ गया था कि उसकी कोई वैल्यू नहीं है फिर भी उसके मन में एक कशक उसकी मां ना सही लेकिन उसके पापा उसे समझेंगे और ऐसे ही एक दिन सड़क पर चलते-चलते ऋषभ बेहोश हो गया जब उसकी आंख खुले तो वह इस तहखाना पर था।


    उसे इतना भी नहीं पता था कि आखिर क्यों उसका अपहरण किया गया और क्यों उसे मौत दी जा रही है ऋषभ यही सब सोच रहा था कि उसने यह नोटिस किया कि उसके चारों तरफ धीरे-धीरे आग लग रही है यह सब देखकर ऋषभ को जरा भी डर नहीं लगा।


    शायद वह अपनी जिंदगी से हार मान चुका था और इसी के साथ ऋषभ जिस चेयर बैठा था उस तरफ आग की लपटे पहुंचने लगी़।


    इसी के साथ ऋषभ कुर्सी में बैठा बैठा ही जलने लगा लेकिन उसकी मुंह से एक आह तक  नहीं निकली पर उसके आंखों से आंसू बह रहे थे क्योंकि वह अपने परिवार को बहुत याद कर रहा था एक बात उन्हें उसकी खबर लेनी चाहिए लेकिन उन्होंने उसकी खबर नहीं ली उनकी नजरों में यह सब निकम्मा लड़का था इसी के साथ सब की मौत हो गई

  • 2. Rebirth love revenge and madness - Chapter 2

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    एक कमरे में एक औरत यही उसकी उम्र कुछ 75 साल होगी एक इंसान के माथे पर बार-बार ठंडी पट्टियां कर रही थी और उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे वह हर बार अपने सामने दीवार पर टंगे शिवजी की तस्वीर को देखकर कहती,"क्यों भगवान क्यों आपने ऐसा किया इस नन्ही सी जान के साथ इतना अन्याय क्यों क्यों इसके नसीब में कोई खुशी नहीं है अगर ऐसा ही था तो इससे आप जन्म देने से पहले ही मार देते हैं,"


    इतना कहकर वह फिर से रोने लगी और उस इंसान के माथे पर ठंडी पट्टियां करने लगे वही पलंग पर लेटा हुआ वह इंसान उसे थोड़ा-थोड़ा होश आने लगा उसने अपनी आंखें खोली तो पहले सब कुछ थोड़ा सा  ब्लर दिखाई दिया थोड़ी देर बाद उसके आंखों का नजारा साफ हो गया  वह इंडिगो ओसियन ब्लू आईज से  सीलिंग को एक टक घूरने लगा लगा जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो कि वह है कहां फिर उसे अपने माथे पर किसी के हाथ महसूस है उसने अपने सर को घुमा कर देखा तो उसे पूरी तरह से शौक लगा उसने अपने आप सोचा," यह यह कैसा हो सकता है दादी दादी यहां पर क्या मैंने जो देखा वह एक सपना था ,"


    वह यही सब सोच जा रहा था फिर उसके माथे पर ठंड का एहसास हुआ वही जो बेड पर लेटा हुआ इंसान कोई नहीं ऋषभ रंधावा था उसके माथे पर पट्टियां करें इंसान उसकी दादी थी ।


    जैसे ही उसने देखा कि उनके छोटे पोते होश आ गया है उन्होंने उसे अपने सीने में भर लिया उसके सर को प्यार से सहलाने लगी और उसी तरह रोते हुए कहा ,"कैसे जालिम लोग हैं अपने बेटे पर जरा भी तरस नहीं आया और तुम तू ही तो बेवकूफ है मैंने तुझे कितनी बार कहा है कि मत जा उनके पास लेकिन तु मेरी सुनता कहां है ,"


    ऋषभ अपने आप को इस तरह से देखकर पूरी तरह से शोक में था उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था अपनी दादी की बातों को सुनकर और शोक लगाकर जहां तक उसे याद था वह एक तहखाना में था और वहां पर आग लगी और वह बैठे-बैठे ही जल चुका था तो यह सब क्या है और वह इस समय यहां कैसे आया और उसने महसूस किया कि उसका शरीर पहले के मुकाबले काफी छोटा था उसने इधर-उधर अपनी नजरे घुमाई तो आज की तारीख देखकर को शौक हो गया ।


    क्योंकि यह तारीख ठीक उसके 12 साल पहले की थी जब उसकी सगी मां स्मिता ने उसे एक अंधेरे कमरे में बंद कर दिया था दो दिनों तक वह इस अंधेरे कमरे में बंद था किसी ने उसके बारे में कोई खबर नहीं ले ऋषभ अंधेरे से बहुत डरता था उसकी गलती बस इतनी सी थी कि उसने बिना पूछे अपने दोनों बड़े भाई यो की चीज यूस कर ली थीं।
    क्योंकि वह बच्चा था और उसके मन में भी यह लालसा आए थे कि वह भी बाकियों की तरह चीज को यूस करें और वह एक ऑटोमेटिक कार थी जिसे ऋषभ को चलाना नहीं आता था ।

    जिस वजह से वह खराब हो गई वह  यही वह सब देखकर उसका बड़ा भाई रोने लगा जैसे देखकर उसकी मां स्मिता जी ने उसे सजा के तौर पर अंधेरे कमरे में बंद कर दिया था उसे समय ऋषभ मात्र 13 साल का था वह 10 साल की उम्र में अपने घर आया था ।


    तब मुश्किल से वह एक साल ही इस घर में रहा उसके बाद उस सभी ने हॉस्टल में डाल दिया था लेकिन वह हॉस्टल की छुट्टियों में अपने घर आ जाया करता था यहां तक की वहां उस घर में किसी को ऋषभ का नाम भी नहीं पता था सभी उसे ए लड़के को कुपोषण का शिकार इसी नाम से चिढ़ाते थे । क्योंकि ऋषभ कुछ ज्यादा ही दुबला पतला था यहां तक कि स्मिता जी और उसके पापा को भी ऋषभ का नाम नहीं पता था ।

    क्योंकि उन्होंने ऋषभ के जन्म के 1 महीने बाद ही उसे उसके नाना नानी के घर छोड़ दिया था उसका नामकरण भी नहीं किया था ।नाना नानी नहीं ऋषभ का नामकरण किया था।


    ऋषभ जी से इतना तो समझ में आ चुका था कि इसका rebirth हो चुका है और वह अपने जन्म के 12 साल पीछे आ चुका है जब वह 13 साल का था और अंधेरे कमरे में बंद  कर दिया गया था।

    तो उसे जोरो का का बुखार आ गया था उसके फैमिली वालों ने उसे केयर नहीं की बल्कि उसकी मां  उसके पापा अपनी छोटी बेटी का बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए होटल गया हुए थे।


    वहीं ऋषभ बुखार से तड़प रहा था ऋषभ की दादी अपने पति को देखने अस्पताल गई थी जो की पैरालाइज्ड थे उन्हें यह फरेलिज्म ऋषभ के जन्म से पहले ही आया था। उस समय ऋषभ स्मिता जी की पेट में था लेकिन कुछ अंधविश्वासियों ने उसे ही इसका दोष दिया उसे मनहूस कहा गया इस तरह से जनम से पहले से ही लोगों की आंखों में खटकने लगा था।

    ऋषभ जो सोच रहा था कि अगर वह इसका पुनर्जन्म हुआ है तो इसका मतलब उसके पास मौका है अपने आप को ऐसा एक मजबूत शख्स बनाने का जिसके आगे दुनिया घुटने टेकती हो वह शख्स बनाने का जिससे लोग मिलने के लिए लाइन में खड़े होते हैं आपकी मौत का बदला लेने का अपने साथ हुए हर अन्याय नाइंसाफी का बदला लेने का और अपने प्यार को बचाने का यह सब सोचते हुए ऋषभ के छोटे-छोटे हाथों की मुट्ठी बंद हो चुकी थी।



    तभी उसे अपने पीठ पर अपने दादी के गरम गरम आंसू महसूस है उसने अपना सर उठाकर अपनी कमजोर आवाज में अपनी दादी से कहा दादी  रो मत आप रोते हो तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता और आप रोते वक़्त बिल्कुल  बदसूरत दिखती हो," ऋषभ की दादी बहुत ही रोते रोते मुस्कुरा दी और ऋषभ के माथे को प्यार से चूम लिया कुछ देर बाद ऋषभ ने अपनी दादी से कहा ,"दादी मैं यहां से जाना चाहता हूं," उसकी बातों को सुन कर दादी जी की आंखें बड़ी बड़ी हो गई

  • 3. Rebirth love revenge and madness - Chapter 3

    Words: 1228

    Estimated Reading Time: 8 min

    पिछले अध्याय में आपने देखा कि एक महिला, जिसकी उम्र लगभग 75 साल की होगी, एक व्यक्ति के माथे पर बार-बार ठंडी पट्टियां कर रही थी और रो रही थी। वह बार-बार दीवार पर टंगी शिवजी की तस्वीर को देखकर रोते हुए सवाल करती है कि भगवान ने उसके साथ अन्याय क्यों किया। वह व्यक्ति ऋषभ रंधावा था, जो पलंग पर लेटा हुआ था, उसे होश आ रहा था। उसने अपनी आँखें खोलीं और देखा कि उसकी दादी उसके माथे पर पट्टी कर रही थी। उसने महसूस किया कि उसका शरीर पहले से छोटा था। उसे तारीख देखकर झटका लगा क्योंकि ये 12 साल पहले की थी जब उसकी माँ ने उसे एक अंधेरे कमरे में बंद कर दिया था। उसे एहसास हुआ कि उसका पुनर्जन्म हुआ है। ऋषभ ने तय किया कि वह एक मजबूत व्यक्ति बनेगा और अपनी मौत का बदला लेगा।

    अब आगे

    ऋषभ ने जैसे ही कहा कि वह यहां से जाना चाहता है ये सुन कर उसकी दादी का चेहरा पीला पड़ गया

    पर ऋषभ बैठा हुआ क्या है दादी ने सवाल किया

    दादी आप मुझे मेरे नाम से बुलाएं ये नाम अब मुझे पसंद नहीं," ऋषभ ने कहा

    वही दादी को हैरानी हो रही थी पहले ऋषभ के जाने की बात बोल रहा था अब वह उन्हें अपने असली नाम से बुलाने को कह रहा था जो वह कभी न कहता

    दादी ने एक गहरी सांस ली और ऋषभ को देखते हुए कहा ,"अग्नि ,"

    हाँ ऋषभ का असली नाम अग्नि था ऋषभ जब 9 साल का था तब उसने अपनी मां यानी स्मिता रंधावा की डायरी में पढ़ा था कि जहाँ उसकी मां ने अपनी इच्छा लिखी थी कि वह अपनी पहली औलाद का नाम ऋषभ रखना चाहती है। इसलिए अग्नि ने अपना नाम यहाँ ऋषभ बताया ताकि वह अपनी मां को खुश कर सके कितनी अजीब बात थी न एक तरफ एक मां अपनी औलाद का नाम भी नहीं जानती थी और दूसरी तरफ उसी औलाद ने अपनी मां को खुश करने के लिए अपना नाम ही बदल दिया।

    दादी ने अग्नि से कहा,"कब जाना है आपको,"

    "आज रात इनफैक्ट अभी ही," अग्नि ने कहा

    दादी ने ज्यादा सवाल नहीं किया वह समझ चुकी थीं कि अग्नि के साथ जो हुआ वह नहीं होना चाहिए था। अग्नि भी बच्चा ही तो था बाकी बच्चों की तरह वह भी खेलना चाहता था चोट लगने पर अपनी मां के आँचल में आना चाहता था लेकिन उसे कुछ भी नसीब नहीं हुआ। वह शोक में थी उन्हें लगा था कि अग्नि इतनी जल्दी जाएगा

    अग्नि ने अपनी पलकें उठा कर अपनी दादी को देखा और कहा,"दादी मैं वापस आऊँगा आपके पास पर अभी मुझे जाना होगा,"

    दादी भी यही सोच रही थी कि अग्नि कभी वापस आएगा या नहीं लेकिन अग्नि की बात सुन कर उन्हें चैन आया

    दादी ने कहा,"तू कब से इतना बड़ा हो गया हा जो मेरे मन की बात समझ गया,"

    "क्योंकि आप मेरी दादी हो और मैं आपका पोता," अग्नि ने कहा

    अब अग्नि ये तो नहीं बता सकता था न कि वह एक जनम जी के आया है भले ही उसका शरीर कद में छोटा हो लेकिन उसकी आत्मा एक बड़े आदमी की थी

    "मैं अपने साथ हुए हर एक अन्याय का बदला लूँगा साथ में उस इंसान का भी पता लगाऊँगा जिसने मुझे मारा जो मेरा दुश्मन है," अग्नि ने अपने आप में कहा

    ठीक है मैं तेरा सामान पैक करती हूँ," दादी ने कहा

    अग्नि ने दादी को रोकते हुए कहा,"नहीं दादी मुझे मिसेज स्मिता रंधावा के पैसे या उनके पति के पैसों से कुछ नहीं चाहिए न ही उनके पैसे से आया समान मैं अपने वही सामान ले जाऊँगा जो मैं ले कर आया था,"

    अग्नि ने कभी भी अपने पापा या मां के पैसों से कुछ भी नहीं लिया था वह हमेशा से वही चीजें यूज करता जो वह अपने साथ ले कर आया था और जो उसकी दादी उसे ला के देती

    "मैं तुझे उनके पैसों का कुछ दे भी नहीं रही ये जो है मेरे पैसों का है," दादी ने अग्नि के गाल पर हाथ रखते हुए कहा

    ऋषभ ने जैसे ही कहा कि वह यहां से जाना चाहता है ये सुन कर उसकी दादी का चेहरा पीला पड़ गया

    पर ऋषभ बैठा हुआ क्या है दादी ने सवाल किया

    दादी आप मुझे मेरे नाम से बुलाएं ये नाम अब मुझे पसंद नहीं," ऋषभ ने कहा

    वही दादी को हैरानी हो रही थी पहले ऋषभ के जाने की बात बोल रहा था अब वह उन्हें अपने असली नाम से बुलाने को कह रहा था जो वह कभी न कहता

    दादी ने एक गहरी सांस ली और ऋषभ को देखते हुए कहा ,"अग्नि ,"

    हाँ ऋषभ का असली नाम अग्नि था ऋषभ जब 9 साल का था तब उसने अपनी मां यानी स्मिता रंधावा की डायरी में पढ़ा था कि जहाँ उसकी मां ने अपनी इच्छा लिखी थी कि वह अपनी पहली औलाद का नाम ऋषभ रखना चाहती है। इसलिए अग्नि ने अपना नाम यहाँ ऋषभ बताया ताकि वह अपनी मां को खुश कर सके कितनी अजीब बात थी न एक तरफ एक मां अपनी औलाद का नाम भी नहीं जानती थी और दूसरी तरफ उसी औलाद ने अपनी मां को खुश करने के लिए अपना नाम ही बदल दिया।

    दादी ने अग्नि से कहा,"कब जाना है आपको,"

    "आज रात इनफैक्ट अभी ही," अग्नि ने कहा

    दादी ने ज्यादा सवाल नहीं किया वह समझ चुकी थीं कि अग्नि के साथ जो हुआ वह नहीं होना चाहिए था। अग्नि भी बच्चा ही तो था बाकी बच्चों की तरह वह भी खेलना चाहता था चोट लगने पर अपनी मां के आँचल में आना चाहता था लेकिन उसे कुछ भी नसीब नहीं हुआ। वह शोक में थी उन्हें लगा था कि अग्नि इतनी जल्दी जाएगा

    अग्नि ने अपनी पलकें उठा कर अपनी दादी को देखा और कहा,"दादी मैं वापस आऊँगा आपके पास पर अभी मुझे जाना होगा,"

    दादी भी यही सोच रही थी कि अग्नि कभी वापस आएगा या नहीं लेकिन अग्नि की बात सुन कर उन्हें चैन आया

    दादी ने कहा,"तू कब से इतना बड़ा हो गया हा जो मेरे मन की बात समझ गया,"

    "क्योंकि आप मेरी दादी हो और मैं आपका पोता," अग्नि ने कहा

    अब अग्नि ये तो नहीं बता सकता था न कि वह एक जनम जी के आया है भले ही उसका शरीर कद में छोटा हो लेकिन उसकी आत्मा एक बड़े आदमी की थी

    "मैं अपने साथ हुए हर एक अन्याय का बदला लूँगा साथ में उस इंसान का भी पता लगाऊँगा जिसने मुझे मारा जो मेरा दुश्मन है," अग्नि ने अपने आप में कहा

    ठीक है मैं तेरा सामान पैक करती हूँ," दादी ने कहा

    अग्नि ने दादी को रोकते हुए कहा,"नहीं दादी मुझे मिसेज स्मिता रंधावा के पैसे या उनके पति के पैसों से कुछ नहीं चाहिए न ही उनके पैसे से आया समान मैं अपने वही सामान ले जाऊँगा जो मैं ले कर आया था,"

    अग्नि ने कभी भी अपने पापा या मां के पैसों से कुछ भी नहीं लिया था वह हमेशा से वही चीजें यूज करता जो वह अपने साथ ले कर आया था और जो उसकी दादी उसे ला के देती

    "मैं तुझे उनके पैसों का कुछ दे भी नहीं रही ये जो है मेरे पैसों का है," दादी ने अग्नि के गाल पर हाथ रखते हुए कहा

    मेरी तबियत ठीक नहीं है इसलिए पार्ट छोटे रहेंगे

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  • 4. Rebirth love revenge and madness - Chapter 4

    Words: 2115

    Estimated Reading Time: 13 min

    पिछले अध्याय में आपने देखा कि ऋषभ रंधावा का पुनर्जन्म हुआ है और उसने अपनी मौत का बदला लेने का फैसला किया।

    अगले अध्याय में, अग्नि, जो कि ऋषभ का असली नाम है, अपनी दादी को बताता है कि वह तुरंत जाना चाहता है। दादी हैरान होती हैं कि ऋषभ ने उन्हें उनके असली नाम से बुलाया। अग्नि अपनी दादी को बताता है कि वह वापस आएगा और वह अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेगा। वह स्मिता रंधावा और उनके पति के पैसे इस्तेमाल करने से इनकार करता है और अपनी दादी के पैसे से बनी चीजों को लेने का फैसला करता है।

    अब आगे

    --------

    अग्नि जाने के लिए तैयार था हालांकि अग्नि की दादी का मन नहीं था उन्हें अग्नि से बहुत मोह था। वे ये भी जानती थीं कि अगर अग्नि यहां से नहीं गया तो पूरी जिंदगी वह घुट-घुट कर जीएगा।

    अग्नि की तबीयत ठीक नहीं थी क्योंकि वह दो दिनों से स्टोर रूम में बंद था वह बहुत ही धीरे-धीरे चल रहा था लेकिन उसकी आंखों में आत्मविश्वास था कुछ कर गुजरने का जज्बा था।

    अग्नि बेड पर बैठा अपनी दादी को ही देख रहा था इस घर में बस एक वही थी जो अग्नि को दिल से प्यार करती थी लेकिन उसके दादा जी बीमार थे जिसके कारण उसकी दादी डिप्रेशन में जाने लगी क्योंकि उनके ठीक होने के चांसेस न के बराबर थे जब अग्नि 20 साल का हुआ तो एक रोज उसे खबर मिली कि उसके दादा जी की डेथ हो चुकी है और उसी शाम उसकी दादी की भी मौत हो गई क्योंकि वह अपने पति यानी अग्नि के दादा जी से बहुत प्यार करती थीं उनकी मौत का उन्हें गहरा सदमा लगा था इसलिए उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।

    अग्नि को एक बार भी उसके दादा जी और दादी के मृत शरीर के दर्शन भी नसीब नहीं हुए थे क्योंकि जिस रोज अग्नि के दादा जी की मौत हुई उस रोज की पिछली रात को अग्नि अपने दादा जी के साथ रात में था और इसी कारण उस पर यह इल्जाम लगा कि उसी ने अपने दादा जी की जान ली है और उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया ।

    अग्नि के दोस्त यशवीर जिसके पापा एक लॉयर थे उन्होंने ये बात साबित की थी कि अग्नि ने कुछ नहीं किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी उसके दादा के साथ उसकी दादी की भी मौत की खबर उसे मिली थी अपनी जिंदगी के दो प्यार करने वाले इंसान को अग्नि ने खो दिया फिर अग्नि की जिंदगी में वह आई जिसने अग्नि को समझा जिसके साथ अग्नि कंफर्टेबल महसूस करने लगा और वह उसकी तरफ अट्रैक्ट हो गया और उसी अट्रैक्शन को अग्नि ने प्यार का नाम दे दिया क्योंकि अग्नि सिर्फ 20 साल का था और उसे अपनी फीलिंग्स की समझ नहीं थी (अब ये तो भविष्य ही बताएगा अग्नि को वह मिलती है या कोई और)

    अग्नि ने सोच लिया था कि वह 20 साल में ही वापस आ जाएगा अगर नहीं आ पाया तो वह कुछ न कुछ जरूर इंतेज़ाम कर देगा जिससे उसके दादाजी के दुश्मन उसके दादाजी तक न पहुंच पाए क्योंकि अग्नि के दादा जी के दुश्मनों ने उन्हें स्लो पॉयजन दिया था जिस कारण उनके सारे ऑर्गेंस धीरे धीरे खत्म हो रहे थे और उनकी सारी इंद्रियां मर चुकी थीं ये सब अग्नि को अपनी मौत के समय पता चला जिसमे से दो लोग आपस में बात कर रहे थे कि कैसे उन्होंने अपने प्लान को अंजाम दिया उनमें से एक सख्श के कलाई पर बहुत ही अजीब सा टैटू बना हुआ था जिसे अग्नि देख तो नहीं पाया क्योंकि वह बहुत दूर थे और तब तक अग्नि की मौत हो चुकी थी।

    अग्नि अपने ख्यालों में इतना गुम था कि उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा कि वह कब दरवाजे तक पहुंच चुका था अग्नि अपनी दादी की आवाज से अपनी ख्यालों की दुनिया से बाहर आया उसने सिर उठा कर देखा तो सामने एक आदमी खड़ा था जिसने ब्लैक सूट ब्लैक पैंट पहना हुआ था वही उसके बगल में एक थार खड़ी थी उस आदमी ने जैसे ही दादी को देखा उसने झुक कर ग्रीट किया।

    क्योंकि अग्नि की दादी एक माफिया फैमिली से बिलॉन्ग करती थी वहां पर जितने भी लोग थे सभी माफिया थे यह बात अग्नि को पता थी लेकिन उसके घर में किसी को भी पता नहीं शिवाय अग्नि के दादाजी के अग्नि की दादी को अग्नि के दादाजी से प्यार हो गया जिस कारण उन्होंने अपना सब कुछ छोड़ दिया और अपना पूरा का पूरा माफिया अंपायर अपने छोटे भाई के सौंप दिया।

    वही जो लड़का खड़ा था वह उन्हीं के बॉडीगार्ड में से एक था अग्नि की दादी माफिया फैमिली से बिलॉन्ग करती है यह बात कोई नहीं जानता था उनके बच्चे भी नहीं उन्हें वह बहुत ही नॉर्मल लेडी लगती थी जो अपने फैमिली से बहुत प्यार करती है लेकिन अग्नि जानता था ये कौन है और कौन नहीं

    इसी के साथ अग्नि ने अपनी दादी के सर को प्यार से चूमा और अपने हाथ में हवा में हिला कर चला गया वह अपनी दादी को भाई कह रहा था अग्नि के दादी की आंखों में आंसू आ गए लेकिन अग्नि जा चुका था अपनी एक नई दास्तान लिखने अपनी जिंदगी फिर से शुरू करने जहां पर सिर्फ उसका राज चलेगा वहां का राजा वही होगा बादशाह भी वही होगा।

    अगला दिन,

    रंधावा आशियाना

    अग्नि जा चुका था सबसे दूर जिसकी खबर किसी को नहीं थी और होती भी कैसे किसी ने अग्नि पर ध्यान जो नहीं दिया था वह कब आता है कब खाता है कब जाता है क्या करता है किसी को भी अग्नि के बारे में कुछ भी नहीं पता था सभी इस समय अपने डेली रूटीन में लगे हुए थे ।

    अग्नि के पापा मिस्टर रंधावा हाथों में चाय पर कप लेकर दुनियादारी की खबरें ले रहे थे आने की न्यूज़ पेपर पढ़ रहे थे अग्नि की मां सीता रंधावा किचन में ब्रेकफास्ट प्रिपेयर कर रही थी वही अग्नि के सबसे बड़े भाई शौर्य रंधावा जो हॉस्टल में रहता था वह घर पर आया हुआ था छुट्टियों में जिससे उसकी खूब सेवा की जा रही थी अग्नि का एक और बड़ा भाई जीत रंधावा जिसकी कार डैमेज होने के कारण अग्नि को दो दिन स्टोर रूम में रहना पड़ा था वह अपने भाई के साथ बेटा गेम खेल रहा था अग्नि की बहन सोनल रंधावा जिसका पिछली रात बर्थडे था वह अपने भाइयों की बातें इंटरेस्ट लेकर सुन रही थी सभी अपने-अपने कामों में बिजी थे।

    स्मिता जी की आवाज सुन कर जो सभी अपने अपने कामों में बिजी थे वह सभी डाइनिंग टेबल की तरफ ब्रेकफास्ट करने आ गए और अपनी अपनी जगहों पर बैठ गए

    शौर्य ने जब खाने को देखा तो उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई उसने उसी तरह मुस्कुराते हुए स्मिता जी को देखते हुए कहा थैंक यू सो मच मां आपने मेरे लिए मेरे पसंद का सारा खाना बनाया आपने एक बार फिर से प्रूफ कर दिया कि आप इन दोनों में से सबसे ज्यादा प्यार मुझसे करती है यह कहते वक्त शौर्य का इशारा अपने दोनों छोटे भाई बहनों यानी जीत और सोनाली पर था

    स्मिता जी ने शौर्य के सिर को प्यार से सहलाते हुए कहा,"मैं अपने सभी बच्चों से बराबर प्यार करती हूं किसी से कम ज्यादा नहीं और मां को कोई थैंक यू नहीं बोलता किसी भी काम के लिए मा जो कुछ भी अपने बच्चों के लिए करती हैं वह दिल से प्यार से करती है समझे,"

    स्मिता जी की बात सुन कर सभी ने अपना सिर हिला दिया और इस वक्त सभी के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कुराहट थी वह सभी एक परफेक्ट फैमिली लग रहे थे।

    "क्या सच में स्मिता तुम अपने सारे बच्चों से बराबर प्यार करती हो तुमने कभी भी अपने बच्चों में कोई फर्क नहीं किया,"ये आवाज सुनते ही सभी के चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गई और सभी ने उस आवाज की दिशा में देखा तो वहां अग्नि की दादी खड़ी थी उन्होंने सीधे पले की सफेद साड़ी पहनी हुई थीं जिसके बॉर्डर पर सोने के तारो की कारीगरी की गई थी जो उन्हें एक रॉयल लुक दे रही थी ।

    वह कल से ही उदास थी क्योंकि अग्नि जो चला गया वह अग्नि से बहुत ज्यादा प्यार करती है और आज सुबह वह अपने पति के पास हॉस्पिटल जा रही थी तभी उन्हें स्मिता जी की आवाज आई जिससे उनकी उदासी ने गुस्से का रूप ले लिया और उन्होंने स्मिता जी को पहली बार इस तरह से बातें कहीं थी।

    वह चलते हुए स्मिता जी के बिल्कुल सामने खड़ी हो गईं और अपने दोनों हाथों को बांधते हुए पूछा,"हमने आप से कुछ पूछा है स्मिता जवाब दीजिए क्या आप सभी बच्चों से बराबर प्यार करती हैं क्या आपने कभी भी बच्चों में कोई फर्क नहीं किया है,"


    अपनी सास के मुंह से ऐसी बातों को सुनकर स्मिता जी की आंखों में पानी आ गया उन्होंने अपने भरे गले से कहा,"आप ऐसा क्यों कह रही हैं मां जी क्या मुझसे कोई गलती हो गई जो आप मेरी ममता और प्यार पर इस तरह सवाल खड़े कर रही है,"

    सभी लोग भी दादी के मुंह से ऐसी बातों को सुन कर हैरान थे शौर्य ने कहा,"दादी आप मां से ऐसा क्यों कह रही हैं मां हमारा बहुत ख्याल रखती हैं वह कभी भी हमें डांटती भी नहीं,"सोनल ने कहा,"हमारी मां बहुत अच्छी है,"जीत ने कहा,"आप उन्हें बिना किसी वजह के नहीं डाट सकती,"

    मिस्टर रंधावा ने अपनी मां को देखते हुए कहा,"मां आप साफ साफ कहिए आप कहना क्या चाहती हैऔर आपने ये क्यों कहा कि स्मिता बच्चों में फर्क करती हैं जबकि सच्चाई से हम सभी वाकिफ है स्मिता ने कभी भी बच्चों में कोई फर्क नहीं किया,"

    दादी ने बहुत ही सर्कास्टिक तरीके से कहा,"हा तुम्हे कहा से फर्क दिखेगा क्योंकि स्मिता ने कभी भी तीनों बच्चों में कोई फर्क नहीं किया," फ़िर अपनी आवाज में गुस्सा लाते हुए कहा,"इन्होंने तो बस अपने पेट से जन्मे हुए बच्चे के साथ फर्क किया है इतना फर्क किया कि वह बच्चा पिछले दो दिनों स्टोर रूम में बंद कर रखा था आपके मन में इतना भी खयाल नहीं आया कि वह एक बच्चा है जो सबसे छोटा है सभी का प्यार चाहता है थोड़ा सा समय चाहता है ,"

    दादी जी की बातों को सुनकर स्मिता जी को दो दिन पहले की घटना याद आ गई कैसे उन्होंने अग्नि को घसीट कर स्टोर रूम में बंद कर दिया था उन्होंने दादी जी को देखते हुए कहा ,"पर मां जी मैंने मेड से कह दिया था कि वह उसे  2 घंटे के भीतर ही निकाल दे और उसने गलती की थी इसलिए उसे सजा मिली ,"


    दादी ने स्मिता जी की  बातों को सुनकर कहा ,"जरा हमें भी तो बताइए क्या गलती करती थी उसने और जिसकी सजा अपने उसे स्टोर रूम में बंद करके दी और वह मेड कहां है जिससे अपने 2 घंटे के भीतर दरवाजा खोलने को कहा था और उसे दरवाजा क्यों नहीं खोला हमारा पोता उसे 2 दिन तक कमरे में क्यों रहा बिना पीना खाए पिए हमें इस बात का जवाब चाहिए ,"

    दादी जी की बातों में गुस्सा था जिसे महसूस करके एक पल को सभी डर गए यहां तक मिस्टर रंधावा भी

    दादी जी की बातों को सुन कर स्मिता जी के मुंह से कोई शब्द  नहीं निकल पाए थे उन्होंने जैसे तैसे करके उसे मेड को आवाज़ लगाई जिसने अग्नि को दरवाजा खोलने का काम बोला गया था वह मेड दादी जी के सामने आई


    दादी जी ने उस  को देखते हुए कहा ,"तो आप हमें बताइए क्या स्मिता रंधावा ने आपको स्टोर रूम को दरवाजा खोलने को कहा था,"
    इसके जवाब में  मेड ने डरते-डरते अपना सर ना में हिला दिया जिसे देखते हुए स्मिता जी ने कहा," तुम झूठ क्यों बोल रही हो मैं तुम्हें कॉल पर नहीं कहा था कि तुम 2 घंटे में दरवाजा खोल ना ,"

    तो मेड ने बातों को याद करते हुए कहा ,"मैडम आपने मुझे कॉल किया था लेकिन आपने मुझे एक बार भी दरवाजा के बारे में नहीं कहा नहीं उसे खोलने के बारे में कहा आपने बस मुझे घर पर ध्यान रखने के लिए कॉल किया था,"

    स्मिता जी ने मेड की बातों को सुनते उन्हें भी याद आए कि उन्होंने उसे कॉल किया था लेकिन सोनल के बुलाने के कारण वह अपनी बातें पूरी नहीं कर पाई और बस उसे घर का ख्याल रखने के लिए कहकर कॉल कट कर दी थी

    दादी जी ने स्मिता जी पर हंसते हुए कहा ,", वाह स्मिता कितने अच्छे से फिक्र कर लेते हैं आप अपने बच्चों की आप जैसी मां भगवान किसी को भी ना दे ,"दादी जी की बातों में ताना था जिसे सुनकर सभी का सिर झुक गया ।

  • 5. Rebirth love revenge and madness - Chapter 5

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