चारों शैतान भाइयों के लिए शादी बस एक सौदा थी… पर जिस कागज़ पर उन्होंने दस्तख़त कराए, उसी पर लिख गई उनकी तक़दीर। निशा, एक मासूम लड़की, अनजाने में बन गई उनकी अंधेरी चाहत का केंद्र। अब यह रिश्ता नकली है या सच्चा—फैसला दिल और जुनून करेंगे। .... चारों शैतान भाइयों के लिए शादी बस एक सौदा थी… पर जिस कागज़ पर उन्होंने दस्तख़त कराए, उसी पर लिख गई उनकी तक़दीर। निशा, एक मासूम लड़की, अनजाने में बन गई उनकी अंधेरी चाहत का केंद्र। अब यह रिश्ता नकली है या सच्चा—फैसला दिल और जुनून करेंगे। .. . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. .. .. . . . . . . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . .. . . .. . . . . . . . .
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उत्तर प्रदेश की मिट्टी में एक अलग ही बात थी। सुबह-सुबह जब खेतों से ओस की खुशबू आती, गाँव की गलियों में बैलों की घंटियाँ और मंदिर की घंटियाँ एक साथ बजतीं, तो ऐसा लगता जैसे पूरा माहौल जीवित हो उठा हो। इसी गाँव के एक पुराने, बड़े से घर में रहते थे कमलेश शर्मा और रमेश शर्मा। दोनों भाई खेती-बाड़ी और थोड़े बहुत बिज़नेस से अपना घर चलाते थे।
कमलेश जी की पत्नी सुमन थीं, जिनका स्वभाव बेहद सधा हुआ था। सुमन जी के दो बेटियाँ थीं—श्रेयांशी (Shreya) और सिद्धि (Siddi)। दोनों ही पढ़ाई में तेज और आधुनिक सोच वाली थीं।
वहीं रमेश जी की पत्नी निधि थीं, जिनकी दो बेटियाँ—निया और नैना—हमेशा हँसी-खुशी घर का माहौल रौनक कर देतीं।
इन दोनों परिवारों के बीच रिश्ता बहुत अच्छा था, लेकिन हर बार जब बात छोटी बहन के परिवार की होती—यानी राज शर्मा के—तो उनके चेहरों पर चिंता आ जाती।
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मुंबई का हिस्सा – Raj Sharma ka Ghar
राज जी असल में मुंबई में रहते थे। साधारण नौकरी, कम सैलरी, और ऊपर से कर्ज़ का पहाड़।
उनकी दूसरी पत्नी प्रेमलता घर सँभालती थीं। स्वभाव से थोड़ी कड़वी ज़रूर थीं, पर मन से बुरी नहीं। वो अक्सर अपनी सौतेली बेटी निशा को ताने देतीं—
“तू लड़की होकर भी बस गाना गाने के सपने देखती रहती है। पढ़ाई में मन नहीं लगाती, तो आगे जाकर करेगी क्या?”
पर जब वही निशा रात को उदास होकर खिड़की के पास बैठ जाती, तो प्रेमलता उसके सिर पर हाथ फेरकर कहतीं—
“चल, रो मत। तू चाहे गाना गा या कुछ भी कर, मैं तुझे हमेशा प्यार करूँगी।”
निशा शर्मा, उम्र 19 साल, का सपना था एक बड़ी गायिका बनने का। पर उसकी पढ़ाई बस 10वीं तक ही हो पाई थी। अंग्रेज़ी की समझ ना के बराबर थी। इस वजह से कई बार लोग उसका मज़ाक भी उड़ाते। फिर भी उसकी आवाज़ और मासूमियत ने उसे सबके दिल में जगह दिला दी थी।
घर में उसका सबसे बड़ा सहारा था उसका सौतेला भाई देव (15 साल)।
देव अक्सर हँसते-हँसते माहौल हल्का कर देता और कहता—
“Didi, tu star बनेगी। फिर मैं तेरा manager बनूँगा।”
और निशा हँसकर उसे गले लगा लेती।
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Oberoi Khandan – The Devils
मुंबई के सबसे आलीशान और ताक़तवर घरों में से एक था ओबेरॉय मैंशन।
इस घर के मुखिया थे अशोक ओबेरॉय और उनकी पत्नी अनीता।
उनका बेटा वीर ओबेरॉय और बहू शिखा इस घर को सँभालते थे।
पर असली चर्चा का विषय हमेशा उनके चारों बेटे थे। लोग उन्हें “The Devil Brothers” कहते थे। वजह ये थी कि चारों का स्वभाव बेहद सख्त, ठंडा और डरावना था।
1. Kiyan Oberoi – 28 साल। सबसे बड़ा, कम बोलने वाला, पर उसकी एक नज़र किसी को भी डराने के लिए काफी थी।
2. Rehan Oberoi – 26 साल। उसकी आँखें जैसे सामने वाले का सच चीरकर देख लेतीं।
3. Aarav Oberoi – 24 साल। बाहर से हँसमुख, पर अंदर सबसे ज्यादा टूटा और गुस्सैल।
4. Adhir Oberoi – 22 साल। सबसे छोटा, सबसे बेखौफ और सबसे खतरनाक।
उनकी एक बहन भी थी—अन्वी (Anvi), जो चारों की जान थी।
इन भाइयों की एक आदत सबको खटकती थी—उन्हें लड़कियों से नफरत थी। उनके लिए रिश्ते, प्यार और शादी जैसे शब्द मायने ही नहीं रखते थे।
पर अब हालात बदलने वाले थे।
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दादा की शर्त
एक दिन अशोक ओबेरॉय ने पूरे परिवार को ड्रॉइंग रूम में बुलाया।
उनकी भारी आवाज़ गूँजी—
“Sun lo tum sab. Ek mahine ke andar tum chaaron ki shaadi hogi. Varna tum sab mere business aur property se hamesha ke liye alag ho jaoge।”
चारों भाई सन्न रह गए।
शादी? वो भी एक महीने में?
कियान ने ठंडी आवाज़ में कहा—
“Dadaji, hume shaadi mein koi interest nahi.”
अशोक जी की नज़रें सख्त थीं।
“Interest ho ya na ho, tumhe karni hogi.”
चारों भाइयों ने एक-दूसरे की तरफ देखा। उन्हें शादी में दिलचस्पी नहीं थी, पर बिज़नेस और पावर… वो कभी नहीं छोड़ सकते थे।
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योजना – एक नकली बीवी
अब सवाल ये था—शादी किससे?
उनकी चाची चाहती थीं कि ये सब उनकी बहन की बेटी मायरा से शादी कर लें।
पर भाइयों ने साफ़ मना कर दिया।
तभी उनके असिस्टेंट ने एक नया रास्ता सुझाया।
“Sir, Raj Sharma naam ka ek aadmi hai jo aapki company mein kaam karta hai. Uske ghar par karz ka pahaad hai. Uski ek beti bhi hai—Nisha. Agar aap chaho to…”
चारों की नज़रें चमक उठीं।
उनके लिए शादी सिर्फ एक काग़ज़ का खेल थी।
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धोखा – Papers par Sign
राज शर्मा को अगले दिन कंपनी में बुलाया गया।
उन्हें कहा गया—
“Ye loan maafi ka agreement hai. Bas apni beti se sign kara dijiye. Karz maaf ho jayega।”
राज जी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। सालों से कर्ज़ का बोझ था। अब मौका मिला था छुटकारा पाने का।
उन्होंने बिना ज़्यादा सोचे वो papers घर ले आए।
रात को, जब सब सो रहे थे, उन्होंने निशा को बुलाया।
“Bitiya, bas sign kar do. Ye loan ke papers hain. Isse hamara bojh halka ho jayega।”
निशा ने कागज़ देखा। सब अंग्रेज़ी में लिखा था। वो समझ नहीं पाई।
लेकिन पिता की उम्मीद भरी आँखें देखकर उसने बिना सवाल किए sign कर दिए।
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सच्चाई
अगले ही दिन चारों भाई अपने दादा के सामने पहुँचे।
“Dadaji, dekhiye… hamne shaadi kar li.”
अशोक ओबेरॉय ने फाइल खोली और गुस्से से उबल पड़े।
“Ek hi ladki? Tum sab ne ek hi ladki se shaadi ki hai?”
चारों ने एक साथ कहा—
“Ji. Kyunki hume wahi pasand hai।”
दादी अनीता की आँखों में हैरानी थी।
“Woh ladki kaha hai?”
रेहान ने झूठ बोला—
“Abhi apne maa-baap ke saath rehna chahti hai. Jaldi lekar aayenge.”
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यही थी Nisha Sharma की जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़।
वो सोच भी नहीं सकती थी कि जिस कागज़ पर उसने बेक़सूर कलम चलाई थी… उसी ने उसे चार शैतानों की ज़िंदगी से बाँध दिया था।
मुंबई की चमक-दमक के बीच, भीड़-भाड़ वाली सड़कों पर एक कोना था जहाँ लोगों की थकान मिट जाती थी।
एक छोटा-सा लेकिन मशहूर रेस्टोरेंट, जिसकी सबसे बड़ी पहचान थी—लाइव म्यूज़िक नाइट्स।
आज की रात भी वही थी। रोशनी, भीड़ और शोरगुल के बीच स्टेज पर बैठी थी निशा शर्मा।
उसने हल्के नीले रंग का सलवार-कुर्ता पहना था, बालों को साधारण चोटी में बाँध रखा था।
लेकिन जब उसने गाना शुरू किया, तो पूरा माहौल थम-सा गया।
उसकी आवाज़ में ऐसी मिठास थी कि लोग खाना भूलकर बस उसे सुनते रहे।
हर सुर उसके दिल की गहराई से निकल रहा था, जैसे उसकी जिंदगी की सारी तकलीफें उसी आवाज़ में ढल गई हों।
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😈 Devils Ka Aana
ठीक उसी वक्त रेस्टोरेंट के दरवाजे से चार परछाइयाँ अंदर आईं।
काले कपड़े, चेहरे पर mask, और आँखों में अजीब-सी ठंडक।
हाँ—ओबेरॉय ब्रदर्स।
उनके साथ उनका assistant भी था।
किसी को अंदाज़ा नहीं हुआ कि शहर के सबसे बड़े बिज़नेस टायकून यहाँ मौजूद हैं।
वो चारों चुपचाप एक कोने की टेबल पर जाकर बैठ गए।
पर जैसे ही उनकी नज़रें स्टेज की ओर उठीं…
वो सब सन्न रह गए।
कियान की आँखें गहरी हो गईं।
रेहान के होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान आई।
आरव की उँगलियाँ टेबल पर रुक गईं।
और अधिर की साँसें एक पल के लिए थम गईं।
वो लड़की… वही थी।
Nisha Sharma.
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💓 Nisha ki Pehchaan
गाना खत्म होते ही तालियों की गड़गड़ाहट गूँजी।
निशा ने सिर झुकाकर नम्रता से सबका शुक्रिया किया।
लेकिन उसकी नज़रें बार-बार उस कोने की तरफ जा रही थीं जहाँ चारों बैठे थे।
उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
वो उनकी आँखों को पहचान चुकी थी।
भले ही mask ने चेहरा छुपा रखा था… पर निशा उनके इतने करीब सोशल मीडिया के ज़रिए रह चुकी थी कि उसने आँखों से ही उन्हें पहचान लिया।
उसके पैर खुद-ब-खुद उनकी तरफ बढ़ने लगे।
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⚡ Pehli Baat
वो उनके टेबल तक पहुँची।
घबराहट से उसकी आवाज़ काँप रही थी—
“Excuse me… main… main aap sabki bahut badi fan hoon. Kya main aap logon ka autograph le sakti hoon?”
चारों भाइयों ने एक-दूसरे की तरफ देखा।
उनकी आँखों में हैरानी भी थी और गहरी दिलचस्पी भी।
आरव धीरे से बुदबुदाया—
“Mask ke peeche bhi pehchaan gayi… interesting.”
उनके साथ खड़ा assistant मुस्कुराया और बोला—
“Sir, ye wahi ladki hai… jinke papers pe sign hue the. Nisha Sharma.”
एक पल को सब खामोश हो गए।
फिर उनके होंठों पर धीरे-धीरे वही खतरनाक devil smile उभरी।
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🔥 Nazron ka Jadoo
रेहान ने अपनी गहरी आवाज़ में पूछा—
“Tumhe kaise pata hum kaun hain?”
निशा की आँखें चमक रही थीं।
“Main aapki fan hoon. Aapki aankhon se pehchaana. Social media pe har post dekhti hoon… har interview dekha hai.”
कियान उसकी मासूमियत देखता रहा।
फिर उसने जेब से एक कार्ड निकाला और उसकी तरफ बढ़ाया।
“Ye mera number hai. Jab chaaho… call karna.”
निशा की आँखें चमक उठीं।
उसका चेहरा खिल गया।
उसके लिए ये पल किसी सपने से कम नहीं था।
बिना सोचे-समझे उसने कार्ड लिया और खुशी में झूमते हुए बोल पड़ी—
“Thank you! Thank you so much!”
खुशी इतनी थी कि उसने अचानक कियान को गले लगा लिया।
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😳 Chaaro Bhai Sann
चारों भाई पत्थर की तरह जम गए।
किसी लड़की ने उन्हें इस तरह छुआ था… सालों में पहली बार।
उन्हें हमेशा से लड़कियों से नफरत थी।
लेकिन आज… उन्हें नफरत नहीं हुई।
बल्कि दिल के अंदर अजीब-सी गर्मी, अजीब-सा खिंचाव महसूस हुआ।
अधिर ने आँखें बंद कीं और दबी आवाज़ में कहा—
“Yeh ladki… alag hai.”
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🌙 Us Raat
उस रात चारों भाई घर लौटे तो बेचैनी उनके साथ थी।
रेहान खिड़की से बाहर शहर की रोशनी देख रहा था।
उसने धीमे से कहा—
“Usne mask ke peeche bhi pehchaan liya… jaane kaisi aankhen hain uski.”
आरव ने मेज़ पर हाथ मारा—
“Main uss jhappi ko bhool hi nahi pa raha.”
कियान बस खामोश बैठा रहा। उसकी आँखों में अब भी वही मासूम मुस्कान घूम रही थी।
और अधिर ने अँधेरे में धीरे से कहा—
“Humne sahi ladki chuni hai… ab woh sirf hamari hai.”
निशा के लिए पिछली रात किसी सपने से कम नहीं थी।
वो बार-बार अपने कमरे में बैठकर कियान का दिया हुआ number देख रही थी।
दिल धड़क रहा था, आँखों में चमक थी।
उसके खयालों में बस वही चार चेहरे थे—जिन्हें वो सालों से स्क्रीन पर देखती आई थी।
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📜 Papers Ka Sach
दूसरी तरफ, राज शर्मा—निशा के पापा—बेचैनी से फाइलें देख रहे थे।
उनके हाथ काँप रहे थे।
उन्होंने assistant के कहने पर जो कागज़ात साइन कराए थे, आज सुबह एक पुराने दोस्त ने देख लिए थे।
और सच सामने आया।
वो loan papers नहीं थे।
वो तो marriage contract था।
उनकी बेटी… एक नहीं, बल्कि चारों ओबेरॉय भाइयों की पत्नी बन चुकी थी।
राज जी के हाथ से पेन छूट गया।
उनकी आँखें लाल हो गईं।
“हे भगवान… मैंने क्या कर दिया!”
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😨 Nisha ke Papa ka Dar
उन्हें अपने ऊपर गुस्सा भी था और डर भी।
ओबेरॉय परिवार का नाम सुनते ही पूरा बिज़नेस वर्ल्ड काँप उठता था।
अगर उन्होंने सच मानने से इंकार किया… तो उनका करज़ा कभी माफ नहीं होगा।
बल्कि उनकी ज़िंदगी नरक बन जाएगी।
उन्होंने माथा पकड़ लिया।
“निशा… तुझे इस आग में धकेल दिया मैंने।”
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💔 Nisha ka Khwab Tootna
शाम को जब निशा घर लौटी तो उसने खुश होकर पापा से कहा—
“पापा, आप जानतें हैं? मैं उनसे मिली थी… मेरे heroes से! उन्होंने मुझे अपना number भी दिया…”
उसकी आँखों में मासूमियत थी, सपने थे।
लेकिन राज जी का दिल टूट रहा था।
उन्होंने गुस्से में कागज़ उसके सामने फेंक दिए।
“यही हैं तेरे heroes? ये देख… तूने क्या साइन किया है!”
निशा ने काँपते हाथों से papers उठाए।
धीरे-धीरे उसकी आँखें फैलती चली गईं।
उसका चेहरा सफेद पड़ गया।
“Yeh… yeh shaadi ke papers hain…?” उसकी आवाज़ टूट गई।
राज जी चिल्लाए—
“हाँ! और तूने… तूने apna sab kuchh unke hawale kar diya!”
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🌪️ Tufaan
निशा की आँखों से आँसू बहने लगे।
वो समझ ही नहीं पा रही थी कि ये मज़ाक है या हकीकत।
“Papa… maine toh socha loan ke papers hain… main toh…”
राज जी ने उसका हाथ पकड़कर कहा—
“Bas! Ab tu un logon se दूर रहेगी. Main tujhe kal hi gaon bhej raha hoon. Samjhi tu? Bas wahi teri suraksha hai.”
निशा के दिल के टुकड़े-टुकड़े हो गए।
उसने मन ही मन सोचा—
“Wahi toh meri zindagi hain… main unse kaise door jaaun…”
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👿 Oberoi Brothers Ka Gussa
दूसरी तरफ, ओबेरॉय मेंशन में चारों भाई अपने assistant से खबर सुन रहे थे।
उसने बताया कि राज शर्मा papers ka sach jaan gaye हैं और निशा को गाँव भेजने की तैयारी कर रहे हैं।
एक पल को चुप्पी छा गई।
फिर अधिर ने टेबल पर जोर से हाथ मारा।
“Kaise jurrat hui kisi ki… hamari wife ko humse door karne ki?”
आरव की आँखें आग जैसी जलने लगीं।
“Uske father ko lagta hai wo use bacha lenge? Usse toh humse koi nahi bacha sakta.”
रेहान ने धीमी, खतरनाक आवाज़ में कहा—
“Hum uske ghar jaayenge. Aur usse lekar hi wapas aayenge.”
कियान अब तक चुप था, लेकिन उसकी आँखों में गहरी चमक थी।
उसने बस इतना कहा—
“Woh humse door nahi jaayegi. Usne khud apne haathon se sign kiya hai… ab woh sirf hamari hai.”
रात का सन्नाटा और हवाओं की सरसराहट पूरे शर्मा हाउस को और भी डरावना बना रही थी।
दरवाज़े पर दस्तक नहीं, बल्कि धमाका हुआ था।
राज जी काँपते हुए बाहर निकले… और देखा—
सामने खड़े थे चारों ओबेरॉय भाई।
काले कपड़ों में, आँखों में खून जैसा लाल गुस्सा।
पीछे उनकी SUVs खड़ी थीं और चारों assistants अंधेरे में चुपचाप खड़े थे।
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😨 Raj Sharma Ka Dar
“Tum… tum log?”
राज जी की आवाज़ फट गई।
अधिर ने बिना कुछ बोले दरवाज़ा धक्का देकर खोल दिया और अंदर आ गया।
उसके पीछे आरव, रेहान और कियान भी।
घर के छोटे-छोटे सामान उनके जूतों के नीचे दबकर टूट रहे थे।
राज जी ने हाथ जोड़कर कहा—
“Dekhiye, maine galti ki… mujhe maaf kar dijiye. Main apni beti ko aapse door bhej dunga…”
कियान की गहरी आवाज़ गूँजी—
“Door bhej doge? Tumhe lagta hai… koi bhi humein hamari cheez se door kar sakta hai?”
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👁️ Nisha Ka Samna
शोर सुनकर निशा दौड़ती हुई बाहर आई।
उसकी आँखें रोने से लाल थीं।
जैसे ही उसकी नज़र उन चारों पर पड़ी, वो जम-सी गई।
आरव ने ठंडी मुस्कान दी—
“Dekha, hum keh rahe the na… woh apne aap saamne aa hi jaayegi.”
निशा का दिल ज़ोर से धड़क रहा था।
“Tum… tum yahan kya kar rahe ho?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।
रेहान आगे बढ़ा और धीरे से बोला—
“Apni biwi se milne aaye hain.”
उसके शब्दों ने निश्चा की रूह तक हिला दी।
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🔥 Gussa Aur Pagalpan
राज जी बीच में आ गए—
“Woh meri beti है! Tum logon ने धोखे से papers sign कराए। Yeh shaadi jhooth hai!”
अधिर ने गुस्से से उनकी collar पकड़ ली।
“Shaadi jhooth nahi hoti, Mr. Sharma. Tumhari beti ne apne haathon se sign kiya hai. Ab woh hamari hai… sirf hamari.”
राज जी का चेहरा पसीने से भीग गया।
निशा डर के मारे चीख पड़ी—
“Papa… chhodiye unhe!”
कियान ने हाथ उठाकर अधिर को रोका।
फिर उसने नज़रें निशा पर टिका दीं।
उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन उसमें ऐसी ताकत थी कि कमरा सन्नाटा हो गया।
“Tum humse door jaane ki koshish kar rahi thi, Nisha? Tumhe lagta hai hum tumhe jaane denge?”
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💔 Nisha Ka Dil
निशा की आँखों से आँसू बह निकले।
उसने काँपते हुए कहा—
“Main… main tumse door nahi jana chahti thi. Par papa… unhone kaha—”
आरव ने उसकी बात काट दी।
“Papa tumhe bachaenge? Galat socha tumne. Tum ab sirf hamari ho. Jo bhi tumhe humse door karega… usse mita denge.”
उनकी आँखों की intensity से निशा का दिल थम-सा गया।
वो समझ चुकी थी कि ये खेल अब उसके बस का नहीं रहा।
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🥀 Raj Sharma Ki Haar
राज जी ने रोते हुए कहा—
“Please, meri beti ko chhod do… woh abhi bachchi है।”
रेहान ने ठंडी नज़र डाली।
“Bachchi? Jo apne khud ke sign se apni taqdeer likh de… woh bachchi nahi hoti.”
फिर चारों भाइयों ने एक-दूसरे की तरफ देखा।
उनके होंठों पर वही खतरनाक devil smile थी।
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🚘 Faisla
अधिर ने धीरे-धीरे कहा—
“Kal subah tak, Nisha hamare saath hogi. Chahe tumhe manzoor ho ya na ho.”
फिर चारों भाई मुड़े, लेकिन जाते-जाते कियान ने नज़रें निश्चा पर टिका दीं।
उसने धीमे स्वर में कहा—
“Hum tumhe ek din bhi akela nahi chhodenge, Nisha. Tumhari zindagi… tumhari saansein… sab hamare hain.”
निशा वहीं खड़ी काँप रही थी।
उसका दिल कह रहा था भागो… पर उसकी आत्मा मान चुकी थी कि वो चारों की गिरफ्त से कभी नहीं निकल पाएगी।
रात अभी पूरी तरह काली भी नहीं हुई थी कि शर्मा के घर में एक अजीब-सी घबराहट छा गई थी।
राज की आँखों में थकान के साथ डर की परत थी, और प्रेमलता का चेहरा सख़्त-सा नजर आ रहा था। देव चुपचाप अपनी किताबों के बीच बसा हुआ था, पर उसकी छोटी उँगलियाँ काँप रही थीं—किसी बड़े तूफान का आभास था।
निशा कमरे में बैठी थी, हाथ में कियान का दिया हुआ card कसकर पकड़े। दिल की धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि उसे लगा अगर कोई कान लगाए तो सुन लेगा। बीते कुछ दिनों की हल्की-सी खुशी, कार्ड की चमक और उस जादुई जैज़ रात की मुस्कान—सब एक साथ उसके सामने खेल रहे थे।
तभी नीचे से पापा की आवाज़ आई—“बेटी, नीचे आओ।”
निशा धीरे-धीरे उठी—उसने सोचा कोई नई बात बताने आएंगे, कोई खुशखबरी होगी। पर नीचे आते ही उसका पेट भारी-सा उतर गया।
राज ने काग़ज़ मेज़ पर रखा हुआ था—वो वही फ़ाइल जिसे उसने साईंन करवाया था। उसने आवाज़ में कांपते हुए कहा—
“निशा… mujhe maaf kar de. Kuchh ghalat ho gaya hai. Tumhe abhi turant hamare gaon, tumhare chacha ke yahan bhejna padega.”
निशा की आँखों में आशा की एक छोटी किरण चमकी—“Papa, gaon? Par main to—”
पर प्रेमलता ने बीच में आकर कटा सा कहा—“Abhi gaon hi bhejenge. Yahi hamari suraksha ka rasta hai. Tum yahan rahi to... hum kuch bhi khona nahi chahte.”
राज की हँसी नहीं थी, उसकी आवाज़ में मजबूरी थी। “Woh log… bade powerful hain, Nish. Unhone kaha kal tak tum unke saath rahogi. Agar hum kuchh bole to... humara sara karz wapis aa jayega, hamari naukri khatam ho jayegi. Bachchon ka bhavishya… sab khatre mein. Main tumhe isliye bhej raha hoon.”
उस वक़्त निशा का दिल टूटकर दो टुकड़े हो गया—उसके भीतर जो आवाज़ थी, उसने भी खामोशी से कुछ कहा नहीं। उस रात उसने अपने छोटे-छोटे कपड़ों का बैग बाँधा; माँ की पुरानी गिरह वाली साड़ी, दो-तीन सूट, देव की छोटी-सी तौलिए जैसी चीज़ें। उसने अपनी diary और वो काला card भी अपने पास रखा। पर जब पापा ने उसकी मम्मी से कहा कि फोन साथ न जाये, तो प्रेमलता ने धीरे से फोन उसकी टेबल से उठा लिया—“Abhi contact safe nahi hai.”—और फोन अपनी अलमारी में रख दिया।
गाँव जाने का प्लान चुपके से किया गया। सबका दिल भारी था। देव ने आँसू छुपाने की कोशिश की, पर उसकी आँखें बेबस थीं। “Didi, wapis aa jao jaldi,” उसने फुसफुसाया। निशा ने उसे गले लगाकर कहा—“Main aaungi, Dev. Main aalekh hi…” पर शब्द बीच में ही सूख गए।
रात के तीन बजे की ठंडी हवा में टैक्सी ने शर्मा हाउस से चुपचाप निकलना शुरू किया। शहर की लाइट्स धीरे-धीरे पीछे छूट रही थीं और सामने अँधेरे में बस सन्नाटा और दूरी बढ़ती जा रही थी। निशा की साँसें ठहर-ठहर कर थीं—उसे लगा मानो दिल में कोई समंदर उबाल रहा हो। टैक्सी की खिड़की से बाहर पेड़ों की परछाइयाँ आतीं और चली जातीं—हर एक परछाई उसके लिए एक सवाल छोड़कर जाती।
सुबह का अँधेरा गाँव के किनारे से फूटता दिखा। नीची पहाड़ियों के पीछे सूरज सर उठा रहा था और खेतों में ठंडी ओस की खुशबू थी—वो खुशबू जो शहर की धुंध में खो चुकी लगती है, पर गाँव में फिर से जी उठती है। टैक्सी एक संकरी मिट्टी की पगडंडी पर मुड़ी और एक छोटे से आंगन के सामने रुकी—निशा के चाचा का घर।
दरवाज़ा खुला तो माँसी की झुर्रियों भरी मुस्कान और गर्म चावल की खुशबू ने उसे कुछ पल के लिए सुला दिया। पर यह राहत अस्थायी थी; दिल में जो खालीपन था वह दूर नहीं हुआ। माँसी ने उसे गले से लगाया—“आ गई बच्ची… अब तू यहाँ रहेगी, सब ठीक रहेगा।” उसकी आवाज़ में सच्ची चिंता भी थी और ढेर सारा सहारा भी।
गाँव की सुबह ज्यादा करीब थी—बच्चे बेसुमार दौड़ रहे थे, बकरियाँ चर रही थीं, और कच्ची सड़कों पर स्थानीय दूकानदार चाय बना रहा था। निशा ने देखा कि यहाँ के दिन बड़े धीमे और ठहराव के साथ चलते हैं—लोग चेहरा देखकर चहकते, मीठा नमक सा व्यवहार करते। पर निशा के भीतर उथल-पुथल रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
माँसी ने उसे अपने कमरे में रखा—एक छोटा सा कमरा जिसमें मिट्टी की दीवारें थीं, पर साफ़ कंबल और सिलाई-का काम नज़र आता था। उन्होंने उसे खीर खिलाई, और रात के हल्का-सा खौलता चूल्हा उसके माथे की ठंडी-सी चिंता को कुछ पल के लिए मिटा गया। निशा ने खिड़की से बाहर देखा—सेम-सीढ़ियों पर बैठे बूढ़े बुजुर्ग, बच्चे और हल्की धूप—एक अलग ही ताल थी गाँव की।
पर शहर की हल्की चमक अब उसके दिल से नहीं उतर रही थी। हर पल वह कियान का नंबर, उनकी आँखों की ठंडी चमक और असिस्टेंट की बात को याद कर रही थी — “Wahi ladki… jiske papers sign hue the.” वह सोचती—क्या ये लोग सच में उसे गाँव तक आने देंगे? या फिर उनकी निगाहें उसे यहीं ढूँढ ही लेंगी?
रात के कुछ दिनों के बाद—जैसे-जैसे गाँव की रूटीन में वह ढलने लगी—निशा कई बार कोशिश करती कि दिल की तेज़ धड़कन को शांत करे। वो सुबह खेतों के किनारे जाके बैठती, गाना गुनगुनाती। उसकी आवाज़ गाँव के बाकी लोगों के दिल में जाकर बैठती—कुछ नयी तरह की पीड़ा और मिठास के साथ। लोगों ने उसे धीरे-धीरे अपनाना शुरू कर दिया; माँसी की सहेली उसे दाल-रोटी बनाकर खिला देती, बच्चे उसे घेरकर गाने के बोल पूछते।
पर हर शाम वो वही खिड़की खोलकर आसमान की ओर देखती—कहीं दूर शहर की तरफ़ से एक काली SUV ना दिख जाए। उसकी आँखें हर रोड से आती गाड़ियों को टटोलतीं। वह कई बार अपना हाथ उस काले कार्ड पर रखकर कहती—“अगर तुम सच में हो तो… ek baar phone kar do.” पर फोन तो माँसी ने रख लिया था।
उधर शहर में—ओबेरॉय भाईयों के घर में—बातें धीमी पर चल रही थीं। असिस्टेंट ने बता दिया था कि निशा गाँव भेज दी गयी है। चारों भाई हँसे नहीं थे; उनकी आँखों में अब और तेज़ी थी—निश्चय की आग। “Gaon mein to woh hamse door nahi jayegi,” अधिर ने कहा। “Ham usi gaon mein apna haq jama denge.”
निशा ने गाँव में पहली रात रो कर गुज़ारी, पर उसकी आँखों में अब भी एक अजीब सी ठोस ठान थी—कि चाहे कुछ भी हो, वो अपने भीतर की आवाज़ को नहीं मिटने देगी। और इसी ठहराव में, गाँव की मिट्टी ने उसके जिजीविषा के बीज उगाने के काम शुरु किए।
गाँव में सुबह के सूरज की रौशनी ने खेतों पर सुनहरी चादर बिछा दी थी।
मिट्टी की खुशबू, बैलों की घंटियाँ, और औरतों के गीत… सब कुछ मानो किसी पुराने लोकगीत जैसा था।
निशा खिड़की के पास बैठी थी। हाथ में एक पुरानी कॉपी और कलम थी।
वो धीरे-धीरे गा रही थी, पर उसका मन चैन में नहीं था।
उसके दिल में हर पल वही खटका था—
“क्या वो सच में मुझे यहाँ तक ढूँढने आएँगे?”
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🚘 गाँव में SUVs की दहाड़
दोपहर का वक्त था। गाँव के लोग अपनी-अपनी दूकानों पर बैठे थे, बच्चे गलियों में खेल रहे थे।
अचानक मिट्टी की सड़क पर भारी टायरों की आवाज़ गूँजी।
चार काली SUVs गाँव की तरफ़ बढ़ती नज़र आईं।
गाँव के लोग पहले तो हैरान हुए—“इतनी बड़ी गाड़ियाँ? हमारे गाँव में?”
बच्चे भागकर किनारे हो गए, औरतों ने पल्लू से मुँह ढँक लिया।
SUVs आकर सीधी रुकीं शर्मा चाचा के आँगन के सामने।
दरवाज़े खुले और चारों ओबेरॉय भाई उतरे—काले कपड़ों में, धूप के चश्मे लगाए, ऊँचे क़द, और आँखों में वही खतरनाक सन्नाटा।
पूरा गाँव जैसे थम-सा गया।
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👀 पहली झलक
निशा उस वक़्त आँगन में कपड़े सुखाने आई थी।
जैसे ही उसने SUVs देखीं, उसका हाथ काँप गया और कपड़े ज़मीन पर गिर गए।
चारों भाइयों की नज़रें एक साथ उसी पर टिक गईं।
कियान ने धीरे-धीरे चश्मा उतारा।
उसकी गहरी आँखें सीधी निशा के चेहरे में उतर गईं।
“Mil gayi…” उसकी धीमी आवाज़ में ऐसा पागलपन था कि निशा का दिल रुक गया।
आरव ने हल्की हँसी के साथ कहा—
“Lagta hai gaon bhi humein rok nahi paaya.”
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🏚️ गाँव वालों की घबराहट
गाँव के बुजुर्ग शर्मा चाचा के आँगन में आकर खड़े हो गए।
उन्होंने हाथ जोड़कर कहा—
“Bete, yeh chhoti si bachchi hai… isse pareshaan mat karo.”
पर अधिर ने ठंडी आँखों से कहा—
“Hamari patni hai yeh. Aur patni ko lene ke liye hum kisi se ijazat nahi maangte.”
गाँव वालों की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई।
सभी को पहली बार एहसास हुआ कि ये लोग सिर्फ शहर के बड़े बिज़नेसमैन नहीं, बल्कि सच में शिकारी हैं।
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💔 निशा का डर और विरोध
निशा की आँखों से आँसू छलक पड़े।
वो काँपती हुई बोली—
“Tumhe samajh क्यों नहीं आता? Main tumhari patni nahi hoon! Maine jo sign kiya tha… mujhe pata hi nahi tha usmein kya tha!”
रेहान धीरे-धीरे आगे बढ़ा और उसके बेहद पास आ गया।
उसने फुसफुसाकर कहा—
“Ladkiyan jhoot bol sakti hain… par aankhen nahi. Tumhari aankhen keh rahi hain tum hamari ho.”
निशा ने डरते-डरते पीछे हटने की कोशिश की, पर अधिर ने उसका रास्ता रोक लिया।
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🔥 Devil Smile
चारों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और उनके होंठों पर वही खतरनाक devil smile आ गई।
कियान ने ठंडी, धीमी आवाज़ में कहा—
“Gaon mein hum apna haq chhodne nahi आए hain, Nisha. Tum chaahe jitna bhaago… ab tum hamari zindagi ka hissa ho.”
उसकी बातें सुनकर गाँव का सन्नाटा और गहरा हो गया।
निशा का दिल जोर से धड़क रहा था। उसे लग रहा था जैसे गाँव की पनाह भी अब उसके लिए कैद बनने वाली है।
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गाँव की संकरी गलियों से निकलकर चारों SUVs एक बड़ी सी हवेली के सामने रुकीं।
वो हवेली पुराने ज़माने की थी, जिसे ओबेरॉय परिवार ने सालों पहले गाँव में खरीदा था।
उसे मरम्मत कराकर अब वो एक मैनशन में बदल चुकी थी—ऊँची दीवारें, लोहे के बड़े गेट, और अंदर बाग़-बगीचे।
गाँव वालों ने कभी इतनी आलीशान इमारत पास से नहीं देखी थी।
हर कोई दरवाज़ों के पीछे से झाँक रहा था।
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🏰 हवेली में कदम
जैसे ही चारों भाई अंदर दाख़िल हुए, उनके नौकर और गार्ड्स पहले से मौजूद थे।
सूट-बूट पहने हुए, हाथों में वॉकी-टॉकी…
पूरा माहौल ऐसा था जैसे गाँव में नहीं, किसी अंडरवर्ल्ड साम्राज्य में कदम रख दिया हो।
कियान ने चारों तरफ़ नज़र डाली और मुस्कुराया—
“Perfect. Shikar karne ke liye gaon sahi jagah hai.”
रेहान ने सोफ़े पर बैठते हुए कहा—
“Ab dekhna… Nisha khud chalke hamare paas aayegi.”
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🌾 उधर निशा का घर
निशा उस वक़्त अपने दादा-दादी के आँगन में बैठी थी।
वो रोते-रोते थक चुकी थी।
उसकी दादी ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा—
“बिटिया, डर मत। गाँव में सब लोग तेरे साथ हैं।”
पर निशा के मन में सिर्फ़ उनकी आँखें घूम रही थीं।
वो चारों… जिनकी मौजूदगी से ही साँस रुक जाती थी।
उसने धीरे से सोचा—
“अगर वो लोग यहीं ठहर गए… तो मैं कहाँ जाऊँगी?”
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🔥 पहली मुलाक़ात हवेली में
रात को गाँव में बिजली गई हुई थी।
अँधेरे में सिर्फ़ लालटेनें जल रही थीं।
निशा पानी भरने बाहर निकली तो रास्ते में एक काली कार उसके सामने आकर रुकी।
दरवाज़ा खुला और आरव बाहर आया।
उसके चेहरे पर वही शिकारी वाली मुस्कान थी।
“Gaon ki raat… aur tum akeli? Kya tumhe darr nahi lagta, Nisha?”
निशा ने घबराकर घड़ा कसकर पकड़ लिया।
“Tum yahan kya kar rahe ho?”
आरव उसके और करीब आया।
“Tumhe lene aaya hoon. Bhool gayi? Tum ab hamari ho.”
निशा ने काँपते हुए कहा—
“Main tumhari kabhi nahi ho sakti…”
तभी पीछे से कियान, अधिर और रेहान भी आ गए।
चारों तरफ़ से उसे घेर लिया।
कियान ने धीरे से उसके कान में फुसफुसाया—
“Gaon mein ho ya sheher mein… tum hamse bach nahi sakti.”
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💔 गाँव वालों का डर
दूसरे दिन गाँव में अफ़वाह फैल गई—
“ओबेरॉय भाई रात को नisha से मिलने गए थे।”
लोग सहमे-सहमे बातें कर रहे थे, पर कोई सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
गाँव में पहली बार ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने वहाँ की आज़ादी छीन ली हो।
निशा के लिए हर दिन अब और मुश्किल होने वाला था…
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दावत खत्म हो चुकी थी।
गाँव वाले सहमे-सहमे घर लौट गए थे।
लेकिन निशा का दिल अब भी धड़क रहा था।
दादा-दादी ने कहा—
“बिटिया, तू यहीं बाहर खड़ी रह, हम लोग गाड़ी का इंतज़ाम देखते हैं।”
इतना कहकर वो दोनों बाहर निकले।
निशा ने चैन की साँस ली, लेकिन तभी उसके पीछे से किसी ने धीमे स्वर में कहा—
“Chalo, hume tumse baat karni hai…”
निशा ने मुड़कर देखा—चारों भाई खड़े थे।
उनकी नज़रों में वही जुनून था।
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🕶️ हवेली का रास्ता
रेहान ने इशारा किया और दो गार्ड्स आगे बढ़े।
निशा ने डरते हुए कहा—
“मुझे घर जाना है… दादी मेरा इंतज़ार कर रही होंगी।”
कियान ने उसके बेहद करीब आकर फुसफुसाया—
“Ab tumhara ghar yahi hai, sweetheart.”
उसने उसकी कलाई पकड़ ली और चारों भाई उसे हवेली के भीतर, ऊपरी मंज़िल की ओर ले जाने लगे।
निशा की साँसें अटक रही थीं, लेकिन उसकी मज़बूरी थी… वो उनके सामने कुछ कर नहीं पा रही थी।
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🏰 शेरों का कमरा
कमरा बहुत बड़ा था, दीवारों पर पुरानी पेंटिंग्स और बीच में एक विशाल काला सोफ़ा।
चारों भाई उसके चारों ओर घूम रहे थे।
उनकी नज़रें उसे ऐसे देख रही थीं मानो कोई कीमती चीज़ हाथ लग गई हो।
आरव ने मुस्कुराते हुए कहा—
“Tum samajhti kya ho, Nisha? Ki hum tumhe yunhi jaane denge?”
निशा काँपते हुए बोली—
“मैं… मैं आप सबकी फैन हूँ। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि…”
उसकी बात अधूरी रह गई क्योंकि अधिर ने टेबल पर हाथ पटका और कहा—
“Bas! Tumhari himmat kaafi hai. Do din se humse baat kar rahi ho phone par… aur tumhe lagta hai humhe kuchh samajh nahi aata?”
निशा के चेहरे का रंग उड़ गया।
उसे एहसास हुआ कि वो नंबर जो उन्होंने मज़ाक में दिया था, अब उसके लिए एक जाल बन चुका है।
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🔥 इज़हार
रेहान उसकी ठुड्डी उठाकर बोला—
“Tum humari ho… ek nahi, chaaron ki. Aur jitni jaldi tum ise maan logi, utna hi kam takleef hogi.”
निशा की आँखों में आँसू आ गए।
उसने रुआंसी आवाज़ में कहा—
“आप लोग गलत कर रहे हैं… मैं आपकी सिर्फ फैन हूँ, आपकी बीवी नहीं।”
कियान ने ठंडी हँसी हँसकर कहा—
“Paper sign karne wali ladki fan nahi… Oberoy family ki bahu hoti hai.”
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🌑 रात का फैसला
चारों भाई धीरे-धीरे उससे और करीब आ गए।
कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था।
निशा का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
आरव ने दरवाज़ा बंद किया और बोला—
“आज से tum hamari duniya ka hissa ho. Chahe tum maan lo… chahe na maan lo.”
निशा ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं।
उसके भीतर डर और गुस्से का तूफ़ान था।
वो समझ चुकी थी—यह कोई साधारण खेल नहीं है, बल्कि एक पागलपन है जिससे बचना आसान नहीं होगा।
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गाँव में अगले ही दिन हलचल मच गई।
लोग आपस में धीमे स्वर में बातें कर रहे थे।
“सुना तुमने? वो ओबेरॉय भाई… हवेली में उस राज जी की बेटी को बुलाए थे।”
“हाँ, और सबके सामने कहा भी था कि वो सिर्फ उनकी है।”
गाँव की औरतें कुएँ पर पानी भरते हुए चर्चा कर रही थीं।
मर्द चौपाल में सिर हिलाते हुए कह रहे थे—
“ये शहर के लोग हैं, इनके सामने कौन बोलेगा?”
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👭 चार बहनों की एंट्री
उसी शाम, निशा की चारों बड़ी बहनें अपने-अपने परिवार के साथ गाँव पहुँचीं।
श्रेया और सिद्धि (सुमन जी की बेटियाँ) — दोनों बहुत शालीन और परिपक्व।
निया और नैना (निधि जी की बेटियाँ) — दोनों थोड़ी मॉडर्न सोच वाली और चंचल।
सबने निशा को घेर लिया।
“निशा, ये सब क्या सुन रहे हैं हम? तू किसी बड़े झमेले में तो नहीं फँस गई?” श्रेया ने चिंता से पूछा।
निशा ने नज़रें झुका लीं।
उसके होंठ काँपे, मगर वो कुछ बोल न सकी।
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🕶️ असिस्टेंट्स की मौजूदगी
इसी बीच हवेली के चारों असिस्टेंट्स गाँव में घूम रहे थे।
रिद्धिमान, युवराज, आहान और विवान—ये सिर्फ असिस्टेंट नहीं, बल्कि भाइयों के सबसे भरोसेमंद दोस्त थे।
गाँव वाले उन्हें भी अजीब नज़रों से देख रहे थे, लेकिन उनके ठाठ-बाट देखकर दबे हुए।
संजोग देखो—श्रेया का रास्ता अचानक रिद्धिमान से टकरा गया।
उसकी किताबें गिर गईं और रिद्धिमान ने उन्हें उठाकर मुस्कुराते हुए कहा—
“आप गिराएँ, और मैं उठाऊँ… ये तो आदत बन जाएगी।”
श्रेया का चेहरा लाल हो गया।
सिद्धि ने उसे खींच लिया—“दीदी, चलो।”
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🌸 निया और नैना
निया और नैना दोनों को हवेली का बड़ा गार्डन देखने का शौक हुआ।
वहीं आहान और विवान फूलों के पौधे देख रहे थे।
नैना ने मज़ाक किया—
“बड़े सख़्त दिखते हो, पर फूलों को देखकर मुस्कुरा भी सकते हो?”
आहान ने उसकी आँखों में झाँका और कहा—
“जो काँटे संभाल सकता है, वो फूलों की कद्र करना भी जानता है।”
नैना चुप रह गई।
उसका दिल पहली बार किसी अजनबी के लिए धड़क उठा।
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⚡ निशा का डर और भाइयों का जुनून
उधर हवेली में चारों भाई दिन-रात निशा पर नज़र रख रहे थे।
कभी कोई उसे खेतों में देख लेता, तो कभी मंदिर जाते समय रास्ता रोक लेता।
निशा ने अपने मन में ठान लिया था—
“अगर मैंने इनके सामने झुक गई… तो ये मुझे कभी आज़ाद नहीं करेंगे।”
लेकिन उसके लिए सबसे बड़ा डर यही था कि अब उसकी बहनें भी इस खेल में शामिल हो चुकी थीं।
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गाँव में चर्चा और अफवाहें इतनी बढ़ गईं कि ओबेरॉय परिवार ने सबको शांत करने का नया तरीका निकाला।
दादी अनिता जी ने ऐलान किया—
“कल हवेली में एक बड़ी पूजा रखी जाएगी। गाँव के सब लोग आएँगे। और हमारी बहुएँ भी।”
यह खबर सुनते ही गाँव में हड़कंप मच गया।
सबको समझ आ गया कि ये इशारा किसकी तरफ है—निशा।
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🌸 बहनों की तैयारी
अगले दिन सुबह, श्रेया, सिद्धि, निया और नैना ने मिलकर निशा को तैयार किया।
निशा ने गुलाबी रंग का साधारण सूट पहना था, बालों में फूल लगाए थे।
उसका चेहरा उतरा हुआ था, पर आँखों में अब भी थोड़ी जिद थी।
सिद्धि ने धीरे से कहा—
“डर मत, हम सब तेरे साथ हैं।”
निशा ने उनकी ओर देखकर हल्की मुस्कान दी, लेकिन भीतर से वो टूट रही थी।
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🕶️ हवेली का नज़ारा
हवेली आज पूरे गाँव के लिए खुली थी।
बाहर लाल कालीन बिछे थे, गार्ड्स कतार में खड़े थे।
भीतर झूमरों की रोशनी और फूलों की महक फैली थी।
चारों भाई—रेहान, कियान, आरव और अधिर—पूरी शान से बैठे थे।
काले कुर्ते, गले में रुद्राक्ष, चेहरे पर वही शेरों वाली सख़्त नज़र।
जैसे ही निशा भीतर दाख़िल हुई, उनकी आँखें उसी पर टिक गईं।
कमरे का माहौल अचानक भारी हो गया।
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🔥 सबके सामने इशारा
पूजा शुरू हुई। पंडित मंत्र पढ़ रहे थे।
निशा और उसकी बहनों को आगे बैठाया गया।
तभी अचानक कियान ने सबके सामने कहा—
“पंडित जी, आशीर्वाद देना कि हमारी एक ही दुल्हन हमेशा हमारे साथ रहे।”
पूरा हॉल सन्न रह गया।
लोग आपस में कानाफूसी करने लगे।
निशा का चेहरा लाल पड़ गया, वो झटके से खड़ी हो गई।
“आप लोगों का दिमाग खराब है? सबके सामने ये…!”
लेकिन अधिर ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया और धीरे से बोला—
“Shhh… jitna zyada tum cheekhogi, utna hi sab samajh jayenge ki tum hamari ho.”
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👀 बहनों और असिस्टेंट्स की पहली नज़र
इस हंगामे में बहनों की नज़रें चारों असिस्टेंट्स पर पड़ीं।
रिद्धिमान की नज़रें बार-बार श्रेया पर टिक रही थीं।
आहान ने नैना की ओर मुस्कुराकर देखा।
निया और विवान के बीच हल्की-सी नोकझोंक हो रही थी।
और सिद्धि चुपचाप युवराज को देख रही थी, जो हर पल निशा की हालत पर परेशान हो रहा था।
गाँव वालों ने सब देख लिया—अब न सिर्फ ओबेरॉय भाई बल्कि उनके असिस्टेंट्स भी शर्मा परिवार की लड़कियों की तरफ खिंचने लगे थे।
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🌑 पूजा का अंत
पूजा खत्म हुई, पर माहौल पहले से भी ज़्यादा भारी था।
चारों भाइयों ने साफ़ कर दिया कि अब निशा उनके साये से भी दूर नहीं जा सकती।
जब सब लोग लौटने लगे, रेहान ने निशा के कान में झुककर कहा—
“Ye toh sirf shuruaat thi, jaan. Ab gaon wale bhi samajh gaye hain ki tum sirf Oberoy brothers ki ho.”
निशा ने अपने आँसू रोक लिए, लेकिन मन ही मन उसने कसम खाई—
“चाहे कुछ भी हो जाए… मैं इनकी इस पागलपन को ऐसे ही नहीं स्वीकार करूँगी।”
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पूरे गाँव में आज हलचल थी।
हवेली में पहली बार इतनी बड़ी पूजा रखी गई थी।
लोग कह रहे थे—
“आज ओबेरॉय भाइयों की असली मंशा सबके सामने आ जाएगी।”
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🌸 लाल साड़ी में निशा
सुबह से ही उसकी बहनों ने उसे तैयार करना शुरू कर दिया।
निशा ने जब लाल साड़ी पहनी, तो पूरा कमरा जैसे थम गया।
उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में काजल, माथे पर बिंदी और होंठों पर हल्की लाली।
बालों को लंबी चोटी में गूँथा गया था और उसके सिर पर लाल पल्लू डाला गया।
श्रेया ने आह भरते हुए कहा—
“निशा, तू सच में दुल्हन लग रही है…”
निशा ने आईने में खुद को देखा और उसका दिल डूब गया।
“मैं ये सब नहीं चाहती… मैं किसी की दुल्हन नहीं हूँ,” उसने मन ही मन कहा।
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🏰 हवेली की चमक
हवेली आज फूलों और दीपों से सजी थी।
लाल कालीन बिछा था, और गार्ड्स कतार में खड़े थे।
गाँव के लोग सहमे-सहमे भीतर जा रहे थे।
चारों भाई—रेहान, कियान, आरव और अधिर—सुनहरे बॉर्डर वाले काले कुर्तों में बैठे थे।
उनकी आँखें बेचैनी से दरवाज़े पर टिकी थीं, जैसे किसी का इंतज़ार हो।
और तभी…
निशा भीतर दाख़िल हुई।
लाल साड़ी में उसकी एंट्री ने जैसे हवेली की रौनक को भी मात दे दी।
चारों भाई एक पल के लिए ठिठक गए।
उनकी आँखों में वही जुनून, वही पागलपन चमक उठा।
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🔥 सबके सामने इज़हार
पूजा शुरू हुई। मंत्रों की गूँज, दीपों की लौ…
लेकिन चारों भाई बार-बार निशा को ही देख रहे थे।
अचानक आरव खड़ा हो गया और सबके सामने बोला—
“पंडित जी, ये लाल साड़ी वाली लड़की हमारी दुल्हन है। आशीर्वाद दीजिए कि ये चारों के साथ हमेशा रहे।”
पूरा हॉल सन्न रह गया।
गाँव वाले हक्के-बक्के रह गए।
निशा का चेहरा लाल पड़ गया—शर्म से नहीं, गुस्से और डर से।
उसने धीमे स्वर में कहा—
“आप लोग पागल हैं! ये सब झूठ है।”
लेकिन कियान आगे बढ़ा और उसके कान के पास फुसफुसाया—
“झूठ?… तो ये लाल साड़ी किसकी दुल्हन जैसी लग रही है, jaan?”
निशा काँप गई।
उसकी आँखों में आँसू भर आए।
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👀 बहनों और असिस्टेंट्स की नज़र
इस हंगामे में बहनों की नज़रें असिस्टेंट्स से टकराईं।
रिद्धिमान, युवराज, आहान और विवान—चारों चुपचाप खड़े सब देख रहे थे।
लेकिन उनकी नज़रें अलग-अलग चारों बहनों पर टिक गई थीं।
श्रेया ने महसूस किया कि रिद्धिमान उसे गहरी नज़रों से देख रहा है।
नैना और आहान के बीच हल्की मुस्कान का आदान-प्रदान हुआ।
निया और विवान की नोकझोंक शुरू हो गई।
और सिद्धि चुपचाप युवराज की गंभीर आँखों में डूबती चली गई।
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🌑 पूजा का अंत
जैसे ही पूजा समाप्त हुई, रेहान ने निशा का हाथ कसकर थाम लिया।
उसने धीमे स्वर में कहा—
“अब तुम officially सबकी नज़रों में हमारी हो गई हो।
Samajh lo, Nisha… iss laal saree ne tumhe humari muhrbant bana diya hai.”
निशा ने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं।
वो जान चुकी थी—अब उसके लिए रास्ता और भी मुश्किल हो चुका है।
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पूजा ख़त्म होने के बाद हवेली रोशनी से जगमगा रही थी।
आँगन में लंबी-लंबी मेज़ें सजाई गईं।
सैकड़ों पकवान, मिठाइयाँ और चमचमाती चाँदी की थालियाँ हर तरफ़ रखी थीं।
गाँव वाले हैरत से देख रहे थे—इतना भव्य भोज उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था।
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🌹 लाल साड़ी वाली मेहमान
निशा अब भी लाल साड़ी में थी।
उसकी आँखें भारी थीं, जैसे रोते-रोते थम गई हों।
वो भीड़ से बचकर एक कोने में खड़ी थी, लेकिन चारों भाइयों की नज़रें लगातार उसी पर थीं।
रेहान ने धीरे से अपने भाइयों से कहा—
“Dekha tumne? Laal saree mein aur bhi khoobsurat lag rahi hai… lagta hai aaj humari raat adhuri nahi rehne wali.”
कियान ने हल्की हँसी दबाई और बोला—
“Bas zara patience rakho… aaj se iski duniya sirf hum honge.”
निशा उनकी बातें सुन तो नहीं पा रही थी, लेकिन उनकी नज़रें उसे सिहरन दे रही थीं।
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🍽️ भोज की शुरुआत
दादा–दादी सबसे आगे बैठे थे।
लोगों की निगाहें बार-बार निशा पर जातीं, और कानाफूसी होने लगती।
“कौन है ये लड़की? चारों भाई क्यों ऐसे देख रहे हैं इसे?”
“क्या सच में ये सबकी दुल्हन है?”
निशा को हर फुसफुसाहट जैसे काँटे की तरह चुभ रही थी।
उसने पल्लू चेहरे पर और कसकर खींच लिया।
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🔥 पास आने की कोशिश
खाना शुरू हुआ तो चारों भाइयों ने चालाकी से अलग-अलग मौक़े निकाले।
आरव उसके पास आया और धीरे से थाली बढ़ाते हुए बोला—
“Tumhe bhookh lagi hogi… khao.”
निशा ने थाली छूने से इनकार किया।
उसने कहा—“मुझे भूख नहीं।”
अधिर ने वहीं खड़े होकर फुसफुसाया—
“Jhooth mat bolo, aankhen sab keh deti hain… tumhari thakan aur bhookh main dekh sakta hoon.”
निशा गुस्से से पीछे हट गई, लेकिन उसका हाथ काँप रहा था।
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🌸 बहनों और असिस्टेंट्स की chemistry
इसी बीच बहनें भी अलग-अलग जगह बैठी थीं।
असिस्टेंट्स लगातार उनकी ओर देख रहे थे।
श्रेया और रिद्धिमान की नज़रें कई बार टकराईं। श्रेया ने गिलास उठाया तो रिद्धिमान ने तुरंत पानी भर दिया। दोनों के बीच हल्की मुस्कान बँटी।
नैना और आहान की सीट पास थी। नैना ने कहा—“आप बार-बार मेरी प्लेट क्यों खिसकाते हैं?” आहान ने हँसते हुए जवाब दिया—“ताकि तुम गुस्से में और प्यारी लगो।”
निया और विवान हमेशा की तरह बहस में उलझ गए। निया बोली—“तुम्हें तो काम ही नहीं आता।” विवान हँसकर बोला—“Aur tumhe sirf shikayat karna aata hai.”
सिद्धि और युवराज सबसे चुप थे। लेकिन जब सिद्धि की चुन्नी कुर्सी में फँस गई, तो युवराज ने चुपचाप उसे छुड़ा दिया। उनकी आँखें कुछ पल के लिए टकराईं और सिद्धि शरमा गई।
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🌑 हवेली का माहौल
गाँव के लोग धीरे-धीरे खाने में व्यस्त हो गए।
लेकिन हवेली की हवा में एक अजीब-सी बेचैनी थी।
चारों भाई बार-बार नज़रों से इशारा करते, जैसे निशा को जाल में फँसा रहे हों।
निशा ने मन ही मन सोचा—
“ये सब मुझे एक खिलौना समझ रहे हैं… लेकिन मैं इन्हें आसानी से जीतने नहीं दूँगी।”
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🕯️ रात का अंत
भोज ख़त्म हुआ।
दादी ने सबको आशीर्वाद दिया और मेहमान लौटने लगे।
लेकिन जैसे ही लोग गए, रेहान ने धीरे से निशा का हाथ थाम लिया।
“अब tum hamare mehmaan nahi… hamari dulhan ho.
Aur dulhan apne pati ke ghar mein hi rehti hai.”
निशा का चेहरा उतर गया।
वो समझ गई—अब हवेली ही उसकी क़ैदख़ाना बनने वाली है।
रात गहरी हो चुकी थी। हवेली की दीवारें पीली रोशनी से चमक रही थीं, लेकिन उसके अंदर अजीब-सी ठंडक थी।
निशा धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ रही थी। उसका हर कदम जैसे काँप रहा था।
लाल साड़ी अब भी उसके तन पर थी, पर वो साड़ी अब उसे गहनों की तरह नहीं बल्कि बोझ जैसी लग रही थी।
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🕯️ हवेली का अंधेरा
जैसे ही वो कमरे में दाख़िल हुई, बड़ा-सा कमरा सामने था।
दीवारों पर पुराने चित्र, भारी परदे और बीच में एक विशाल पलंग।
कमरे के कोनों में जलते दीए अजीब-सी परछाइयाँ बना रहे थे।
निशा ने खिड़की के पास जाकर गहरी साँस ली—
“हे भगवान, ये कहाँ फँस गई मैं…”
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🔥 भाइयों की एंट्री
उसके सोचते ही दरवाज़ा अचानक खुला।
चारों भाई—आरव, रेहान, अधिर और कियान—अंदर आ गए।
उनकी आँखों में वही चमक थी, वही पागलपन।
रेहान ने मुस्कुराते हुए कहा—
“तो आखिरकार हमारी दुल्हन अपने कमरे में आ ही गई।”
निशा तुरंत पीछे हट गई।
“ये मेरा कमरा नहीं… मैं यहाँ नहीं रहूँगी!”
अधिर ने कदम बढ़ाते हुए उसकी तरफ़ झुककर कहा—
“गलत… अब ये हवेली तुम्हारा घर है और ये कमरा तुम्हारा ही है। और हाँ… हम सबके साथ।”
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🌹 डर और विरोध
निशा ने गुस्से में कहा—
“मैं आप लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती!
मैं तो बस… गलती से साइन कर बैठी थी।”
आरव ने उसके चेहरे के पास आकर धीरे से फुसफुसाया—
“तुम्हारी गलती नहीं थी… किस्मत थी। किस्मत ने तुम्हें हमारी बनाया है।”
उसकी आवाज़ इतनी ठंडी थी कि निशा का दिल काँप उठा।
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🍷 कियान की चालाकी
कियान ने पास रखी ट्रे से पानी का गिलास उठाकर उसकी तरफ़ बढ़ाया—
“तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है। हम तुम्हें तकलीफ़ नहीं देंगे… बस तुम्हें हमारी बात माननी होगी।”
निशा ने गिलास धक्का दे दिया।
“मैं किसी की बात नहीं मानूँगी!”
चारों भाई एक-दूसरे की तरफ़ देखकर हँस पड़े।
रेहान बोला—
“Dekha? Kitni ziddi hai… lekin hume ziddi ladkiyan pasand hain.”
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🌑 अकेलेपन की रात
भाई कमरे से जाने लगे, लेकिन जाते-जाते अधिर ठहर गया।
उसने खिड़की के पास खड़ी निशा की ओर देखा और धीमे से कहा—
“Raat lambi hai, dulhan…
Hum sab tumhe samjhane ke liye yahin hain. Jitni jald samajhogi, utni hi kam takleef hogi.”
ये कहकर वो भी चला गया।
दरवाज़ा बंद होते ही निशा पलंग पर बैठ गई और आँखों से आँसू बह निकले।
“क्या सच में अब मेरी ज़िंदगी इन चारों के बीच क़ैद हो गई है…?”
उसके दिल की धड़कनें तेज़ थीं।
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सुबह की ठंडी हवा हवेली के आँगन में बह रही थी।
चारों ओर फूलों की क्यारियाँ महक रही थीं, लेकिन हवेली का वातावरण वैसा ही भारी और डरावना था।
निशा ने लाल साड़ी में धीरे-धीरे आँगन में कदम रखा। उसकी आँखें नींद से भरी थीं, चेहरा थका हुआ और मन डर से काँप रहा था।
उसकी नज़रें बार-बार दरवाज़े की ओर जातीं, मानो किसी को ढूँढ़ रही हों जो उसे यहाँ से बाहर निकाल ले।
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🏚️ बुज़ुर्गों की नज़र
आँगन में पहले से ही दादा अशोक जी और दादी अनीता जी बैठे थे।
दादा अख़बार पढ़ रहे थे, जबकि दादी पूजा की थाली लिए बैठी थीं।
जैसे ही निशा आँगन में पहुँची, दादी की नज़र उस पर पड़ी।
उन्होंने हैरानी से आँखें बड़ी कर लीं।
“ये… ये लड़की कौन है?”
निशा घबराकर ठिठक गई।
वो कुछ बोलती, उससे पहले ही चारों भाई पीछे से आ गए।
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🔥 सच का सामना
आरव आगे बढ़ा और धीमी, लेकिन सख़्त आवाज़ में बोला—
“दादी… ये हमारी दुल्हन है।”
अख़बार पढ़ते-पढ़ते दादा का हाथ रुक गया।
उन्होंने चश्मा उतारकर गुस्से से देखा—
“क्या कहा तुमने, आरव? दुल्हन?”
रेहान ने हँसी दबाते हुए कहा—
“जी दादाजी। ये वही है जिससे हमने शादी की है।”
दादा गुस्से से खड़े हो गए।
“तुम सब पागल हो गए हो क्या? एक ही लड़की से चार-चार की शादी? ये कैसा मज़ाक है?”
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🌹 निशा की चुप्पी
निशा काँपते हुए बोली—
“मैंने… मैंने कोई शादी नहीं की। मैंने तो बस…”
उसके शब्द गले में अटक गए।
कियान ने उसकी बात काटते हुए मुस्कुराकर कहा—
“शादी की है, निशा। और अब तुम हमारी पत्नी हो। ये सच है।”
निशा की आँखें भर आईं।
उसने दादी की तरफ़ देखा मानो उनसे मदद माँग रही हो।
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⚡ टकराव
दादी ने गुस्से में चारों भाइयों से कहा—
“क्या तमाशा बना रखा है तुमने? ये लड़की मासूम लगती है… और तुम लोग इसे खींचकर ले आए?”
अधिर आगे बढ़ा, दादी के पैरों के पास झुककर बोला—
“दादी, हम पाप नहीं कर रहे। हमने जो किया… दिल से किया।
निशा अब हमारी ज़िम्मेदारी है। चाहे दुनिया माने या ना माने।”
दादा का चेहरा लाल हो गया।
“लेकिन ये हवेली मेरी है! और मेरी मरज़ी के बिना कोई भी यहाँ नहीं रह सकता!”
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🖤 भाइयों का पागलपन
चारों भाई एक साथ खड़े हो गए, उनकी आँखों में वही आग थी।
आरव ने सख़्ती से कहा—
“दादा, आप हमें रोक नहीं सकते। अगर इस हवेली में हम रहेंगे, तो निशा भी रहेगी। ये हमारी बीवी है, और अब कोई इसे यहाँ से निकाल नहीं पाएगा।”
निशा रोते हुए चुप खड़ी रही।
उसके दिल में सवाल था—
“क्या सच में अब मेरी ज़िंदगी हमेशा के लिए इन चारों की क़ैद में रह जाएगी?”
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सुबह का माहौल अभी थमा ही था कि हवेली के अंदर शोर सुनाई देने लगा।
निशा दादी के साथ बैठी थी, तभी दरवाज़े से भारी गहनों और चमकते कपड़ों में दो औरतें अंदर आईं।
शिखा जी (चाची) — तीखे नैन-नक्श और घमंडी चाल।
उनके साथ उनकी बहन की बेटी मायरा थी — लंबी, गोरी और आधुनिक कपड़ों में सजी-धजी।
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🌹 पहली नज़र
शिखा जी ने जैसे ही निशा को लाल साड़ी में देखा, उनकी भौंहें सिकुड़ गईं।
“ये कौन है? और हमारी हवेली में इस तरह बैठी क्यों है?”
निशा ने डरते-डरते हाथ जोड़ दिए—
“न… नमस्ते…”
मायरा ने हल्की हँसी उड़ाई।
“वाह, किस कोने से उठा लाए हो इस देहाती को? साड़ी पहनने तक की समझ नहीं… और इसे हमारी हवेली की दुल्हन बना दिया?”
निशा का चेहरा शर्म और आँसुओं से लाल हो गया।
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⚡ अपमान की बारिश
शिखा जी आगे बढ़ीं, और गुस्से में बोलीं—
“मुझे सब पता है। तुम चारों भाई पागल हो चुके हो।
ये लड़की तुम्हारे क़ाबिल नहीं। इसका कोई खानदान नहीं, कोई तमीज़ नहीं। और तुम लोग कहते हो ये तुम्हारी बीवी है?”
निशा की आँखों से आँसू छलक पड़े।
वो बोलने की कोशिश करती, लेकिन शब्द गले में अटक जाते।
मायरा फिर ताना मारते हुए बोली—
“भाई, आपको अगर बीवी चाहिए थी तो मुझे देख लेते।
कम से कम हवेली की शान तो बनी रहती। अब लोग क्या कहेंगे कि चारों शहज़ादों ने गाँव की गँवार से शादी कर ली?”
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🔥 भाइयों का बचाव
तभी पीछे से भारी कदमों की आवाज़ आई।
आरव, रेहान, अधिर और कियान आँगन में दाख़िल हुए।
उनकी नज़र जैसे ही निशा पर पड़ी, उनका ख़ून खौल उठा।
रेहान ने ताली बजाई और ठंडी हँसी के साथ बोला—
“वाह, चाची… मायरा… बड़ी जल्दी फैसला सुना दिया आपने।”
कियान ने मायरा की तरफ़ देखकर सख़्त आवाज़ में कहा—
“ज़ुबान संभालकर बात करो।
निशा हमारी बीवी है, और इस हवेली की असली बहू।”
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🌑 पागलपन की घोषणा
शिखा जी चीख उठीं—
“तुम सब पागल हो गए हो! एक ही लड़की से चार-चार की शादी?
ये न तो क़ानून मानता है और न ही समाज!”
अधिर गुस्से से आगे बढ़ा और ज़मीन पर लाठी पटक दी।
“हमें परवाह नहीं कि समाज क्या कहता है।
निशा हमारी है। और अगर किसी ने इसे छूने या नीचा दिखाने की कोशिश की… तो हम उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
आरव ने ठंडी, लेकिन गहरी आवाज़ में कहा—
“याद रखिए चाची… अब ये हवेली हमारी है, और हमारी हवेली में हमारी पत्नी का अपमान कोई नहीं कर सकता।”
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🖤 निशा की नज़र
निशा आँसू पोंछते हुए खामोश खड़ी रही।
उसका दिल काँप रहा था—
“ये लोग मुझे अपना क्यों कह रहे हैं?
मैं तो इनसे बचना चाहती थी… और ये मेरे लिए लड़ने तक को तैयार हैं…”
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सुबह का सूरज गाँव की गलियों में चमक रहा था।
हवेली से बाहर की मिट्टी की सड़कों पर बच्चे खेल रहे थे, और औरतें कुएँ से पानी भर रही थीं।
निशा को पहली बार हवेली से बाहर निकाला गया।
उसने लाल रंग की साधारण साड़ी पहन रखी थी। उसके चेहरे पर हल्का-सा घूँघट था, लेकिन उसकी आँखों में डर साफ़ झलक रहा था।
चारों भाई उसके साथ थे—आरव आगे, रेहान और अधिर उसके दोनों तरफ़ और कियान पीछे चलता हुआ।
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🌑 गाँव की नज़रें
जैसे ही गाँववालों ने निशा को हवेली से निकलते देखा, कानाफूसी शुरू हो गई।
“अरे ये वही लड़की है न… जिससे चारों भाइयों ने शादी कर ली?”
“हाय राम! एक ही लड़की से चार-चार की शादी? ये कैसा पाप है?”
“गाँव की इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी है इन लोगों ने…”
औरतें मुँह पर पल्लू रखकर हँसने लगीं।
कुछ नौजवान लड़के सीटी बजाते हुए ताना मारने लगे।
निशा का चेहरा शर्म और डर से झुक गया। उसका दिल तेज़-तेज़ धड़क रहा था।
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⚡ ताने और आँसू
एक बुज़ुर्ग औरत ने ज़ोर से कहा—
“बिटिया, तूने क्यों किया ये? तुझे तो लानत आनी चाहिए… चार-चार मर्दों की बीवी?”
निशा की आँखों से आँसू छलक पड़े।
उसने घूँघट और नीचे कर लिया।
वो चाहकर भी जवाब नहीं दे पा रही थी।
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🔥 भाइयों का जुनून
तभी रेहान ने गुस्से में ज़मीन पर पैर पटका।
उसकी आँखें खून जैसी लाल हो गईं।
“चुप्प! एक शब्द और नहीं! जो भी हमारी पत्नी के बारे में बुरा बोलेगा… उसकी ज़ुबान काट दूँगा।”
गाँववाले सन्न रह गए।
कियान आगे बढ़ा और सीधा गाँववालों की तरफ़ देखकर बोला—
“सुन लो सब लोग! निशा सिर्फ़ हमारी है।
हमारी दुल्हन। हमारी इज़्ज़त।
अब जो इसका मज़ाक उड़ाएगा… वो हमारा दुश्मन होगा।”
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🌹 आरव का ऐलान
आरव ने निशा का हाथ पकड़कर सबके सामने ऊँचा उठा दिया।
“ये लड़की हमारी रानी है।
आज से पूरा गाँव इसे हमारी बहू की तरह इज़्ज़त देगा।
अगर किसी ने इस पर उँगली उठाई… तो हम चारों उसका नामो-निशान मिटा देंगे।”
गाँववालों की साँसें अटक गईं।
किसी की हिम्मत नहीं हुई आगे बोलने की।
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🖤 अधिर का वादा
अधिर ने निशा के करीब आकर धीमे स्वर में कहा, लेकिन उसकी आवाज़ इतनी गहरी थी कि पूरा गाँव सुन सके—
“डरो मत, निशा। अब कोई तुझे कुछ नहीं कहेगा।
हम हैं ना… चारों।”
निशा की आँखें आँसुओं से भीग गईं।
उसका दिल काँप रहा था, लेकिन एक कोने में अजीब-सा एहसास भी हुआ—
“ये मुझे अपना कहते हैं… मेरी रक्षा करते हैं…
क्या सच में मैं अब इनकी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हूँ?”
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गाँव के पुराने शिव मंदिर की घंटियाँ पूरे आसमान में गूंज रही थीं।
सुबह का वक़्त था, हवा में अगरबत्ती की महक और शंख की आवाज़ ने माहौल को और भी गंभीर बना दिया।
चारों भाई हवेली से निकलकर मंदिर की ओर बढ़े।
उनके बीच चल रही थी निशा—
आज उसने हल्के सुनहरे बॉर्डर वाली पीली साड़ी पहनी थी।
उसकी सादगी और मासूमियत उसे पूरे गाँव से अलग दिखा रही थी।
उसके चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी, दिल की धड़कन इतनी तेज़ कि जैसे सब सुन सकते हों।
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🌑 मंदिर का मंजर
मंदिर के बाहर गाँववाले पहले से खड़े थे।
कई औरतें फुसफुसा रही थीं—
“वही है हवेली वालों की बहू…”
“कितनी जल्दी मंदिर ले आए… पर क्या ये पवित्र है?”
पंडित जी ने पूजा की थाली रखते हुए चारों भाइयों को रोक दिया।
“ये लड़की मंदिर की दहलीज़ पार नहीं कर सकती।
अपवित्र आत्मा को शिवजी के सामने लाना पाप है।”
निशा का चेहरा झुक गया।
उसकी आँखें भर आईं, होंठ काँपने लगे।
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🔥 भाइयों का प्रतिकार
रेहान ने गुस्से में पंडित की ओर देखा और बोला—
“अपवित्र?
हमारी पत्नी अपवित्र कैसे हो सकती है?
ये अब हमारी इज़्ज़त है, हमारी सांस है।”
कियान ने आगे कदम बढ़ाकर कहा—
“आज से निशा सिर्फ़ हमारी नहीं, बल्कि इस घर की देवी है।
अगर इसे अपवित्र कहोगे, तो समझ लो हमें अपवित्र कह रहे हो।”
गाँववाले चुप हो गए।
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🌹 आरव का साहस
आरव ने निशा का हाथ मजबूती से थामा।
उसकी आँखों में साफ़ आग थी—
“आज ये हमारे साथ पूजा करेगी।
और जो इसे रोकना चाहता है… आगे आए।”
लोग एक-दूसरे को देखने लगे, पर कोई बोलने की हिम्मत न कर सका।
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🖤 अधिर का साया
अधिर पीछे खड़ा सब देख रहा था।
उसकी आवाज़ धीमी थी, पर डर पैदा करने वाली—
“जिस दिन किसी ने हमारी पत्नी की इज़्ज़त को हाथ लगाया…
उस दिन इस गाँव से उसका नाम तक मिट जाएगा।”
उसकी आँखों की चमक देख सबके दिल काँप उठे।
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🌙 पूजा का क्षण
निशा काँपते हुए शिवलिंग के सामने बैठी।
उसकी पीली साड़ी की पल्लू हल्की हवा में उड़ रही थी।
उसके हाथ थरथरा रहे थे, पर चारों भाई उसके चारों ओर खड़े थे, जैसे कोई अदृश्य कवच हों।
आरती शुरू हुई।
चारों भाइयों ने निशा का हाथ पकड़कर दीपक उठाया।
जैसे ही आरती की लौ शिवलिंग के सामने घुमी, माहौल बदल गया—
भीड़ जो अब तक फुसफुसा रही थी, अब सन्न खड़ी थी।
निशा की आँखों से आँसू ढलके, लेकिन इस बार डर के नहीं, विश्वास के थे।
उसे पहली बार लगा कि वो अकेली नहीं है।
चारों भाई उसकी ढाल बन चुके हैं।
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गाँव की सुबह हमेशा हल्की ठंडी हवा के साथ शुरू होती थी। खेतों में हरे-भरे पौधे लहलहा रहे थे और पगडंडी पर चलते लोगों की आवाज़ों में एक अलग ही रौनक थी। लेकिन उस दिन का सूरज कुछ अलग था। गाँव की औरतों की आँखों में जिज्ञासा थी, कानों में कानाफूसी और होंठों पर सवाल।
निशा ने पीली साड़ी पहन रखी थी। उसकी साड़ी की किनारी सुनहरी धागे से कढ़ी हुई थी और माथे पर छोटी सी बिंदी उसकी मासूमियत को और निखार रही थी। लेकिन उसके चेहरे पर हल्की-सी घबराहट साफ़ झलक रही थी।
आज गाँव की बड़ी-बूढ़ी औरतों ने उसे अपने बीच बुलाया था।
"देखें तो ज़रा, ये शहर की लड़की है भी हमारे खानदान के लायक या नहीं," — ये शब्द निशा के कानों में बार-बार गूँज रहे थे।
निशा के पाँव काँप रहे थे। उसे अपने पापा की बात याद आई —
"बेटी, तू मज़बूत रहना… किसी भी हाल में सिर झुकाना मत।"
वो अंदर से घबराई थी, पर चेहरे पर मुस्कान ओढ़े बैठी रही।
गाँव की एक बुज़ुर्ग औरत, जिनका नाम रामदुलारी काकी था, आगे बढ़ीं।
"तो बहू, हमारे यहाँ की रस्में निभा पाएगी? गाँव की मिट्टी बड़ी पवित्र है, इसमें रहना हर किसी के बस की बात नहीं।"
निशा ने हल्के स्वर में जवाब दिया —
"मैं कोशिश करूँगी काकी… और सीख भी लूँगी।"
औरतें आपस में फुसफुसाने लगीं।
"देखा, कितनी सीधी है।"
"पर सीधी-सादी होने से क्या होता है, हमारी रिवाज़ों में ढल पाएगी?"
फिर उन्होंने निशा से और सवाल किए। कभी उसके खानदान के बारे में, कभी उसके हुनर के बारे में।
"खाना बनाना आता है?"
"सिलाई-बुनाई कर सकती है?"
"घर की इज़्ज़त बचाना आएगा?"
निशा हर सवाल का जवाब नम्रता से देती रही। उसकी आँखों में मासूम सच्चाई थी।
लेकिन तभी एक और औरत ने ताना मार दिया —
"हमारे पतोहुएँ तो घूँघट में रहती हैं, और ये देखो, साड़ी तो पहन रखी है पर आँखों में बेशर्मी झलक रही है।"
ये सुनकर निशा का दिल टूटने लगा। उसकी आँखों में आँसू भर आए। उसने धीमे स्वर में कहा —
"मैं किसी की बेइज़्ज़ती नहीं करना चाहती… मैं सिर्फ़ अपनापन चाहती हूँ।"
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ठीक उसी समय चारों भाई वहाँ पहुँचे।
उनके कदमों की आहट सुनते ही पूरा आँगन सन्नाटे में डूब गया।
आरव सबसे पहले बोला, उसकी आवाज़ में ग़ुस्सा और जुनून दोनों थे —
"जिसे तुम बेशर्मी कह रही हो, वो हमारी बीवी की मासूमियत है।"
कियान ने ठंडी नज़रों से चारों औरतों को देखा और कहा —
"अगर किसी ने फिर से हमारे नाम पर या हमारी पत्नी पर उँगली उठाई… तो याद रखना, हम चुप नहीं बैठेंगे।"
अयान निशा के पास आया, उसके काँपते हाथों को थाम लिया।
"डरो मत, हम हैं तुम्हारे साथ।"
और अभिर ने सीधे सबको चेतावनी दी —
"ये हमारी इज़्ज़त है। और जो हमारी इज़्ज़त को चोट पहुँचाएगा… उसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।"
चारों भाइयों की आँखों में जलती हुई आग देखकर गाँव की औरतें चुप हो गईं। किसी की हिम्मत नहीं हुई और कुछ कहने की।
निशा की आँखों से आँसू गिर गए, पर इस बार डर से नहीं… राहत से।
वो धीरे-धीरे मुस्कुराई। उसके दिल में ये अहसास और गहरा हो गया कि चाहे पूरी दुनिया उसके ख़िलाफ़ क्यों न हो, ये चारों उसके लिए हमेशा खड़े रहेंगे।
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अंदर ही अंदर चारों भाई सोच रहे थे —
"अब ये सिर्फ़ हमारी नक़ली बीवी नहीं रही। ये हमारी जान है। और इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता।"
गाँव में वो रात थोड़ी भारी थी। दिनभर की कसौटी, औरतों के ताने और चारों भाइयों का ग़ुस्सा — सब कुछ निशा के मन में गूंज रहा था। पर जब उसने देखा कि चारों भाइयों ने सबके सामने उसे अपना सम्मान बताया, उसके दिल में एक अजीब-सी गर्माहट घुल गई।
कमरे में अकेली बैठी वो अपनी पीली साड़ी की पल्लू को उँगलियों में मरोड़ रही थी।
"क्या मैं सच में इन सबकी ज़िंदगी में कोई मायने रखती हूँ?" उसने सोचा।
खिड़की से आती ठंडी हवा उसके बालों को उड़ा रही थी। तभी दरवाज़ा खटखटाया गया।
आरव अंदर आया। उसके चेहरे पर हमेशा की तरह सख़्ती थी, पर आँखों में softness झलक रही थी।
"खाना खाया?" उसने सीधा सवाल किया।
निशा ने सिर हिला दिया, "नहीं… भूख नहीं थी।"
आरव ने मेज़ पर रखा थाल उसकी तरफ़ बढ़ाया।
"जब तक खाओगी नहीं, तब तक हिम्मत कैसे आएगी? तुम अब अकेली नहीं हो। हम चारों हैं तुम्हारे साथ।"
निशा की आँखें उसकी बात सुनकर भर आईं। उसने थाल उठाया और धीरे-धीरे खाना शुरू किया। आरव चुपचाप खड़ा उसे देखता रहा। उस चुप्पी में भी एक अपनापन था।
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थोड़ी देर बाद, बाहर बरामदे में अयान और कियान बैठे थे। जब निशा बाहर आई तो कियान ने तुरंत उसकी तरफ़ देखा।
"तुम्हारे आँसू हमें बर्दाश्त नहीं। अगली बार अगर किसी ने तुम्हें रुलाया, तो अंजाम बुरा होगा।"
निशा ने पहली बार उनकी आँखों में झाँका। वो डरावनी नहीं लगीं… बल्कि जैसे वहाँ एक छुपा हुआ साया था, जो हर वक़्त उसे बचाने को तैयार था।
अयान ने हँसकर माहौल हल्का कर दिया, "वैसे, तुम गाती अच्छा हो। गाँव की औरतें अगर तुम्हारी आवाज़ सुन लें तो शायद तुम्हें परखने की बजाय तुम्हारी तारीफ़ करने लगें।"
निशा शरमा गई। उसके होंठों पर हल्की मुस्कान आ गई।
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रात गहराती गई। निशा अपने कमरे में लौट आई, पर नींद नहीं आई।
उसने मोबाइल उठाया और उस नंबर पर मैसेज भेजा, जो चारों भाइयों ने उसे दिया था।
"थैंक्यू… आज आपने मेरी इज़्ज़त रखी।"
थोड़ी ही देर में रिप्लाई आया —
"हमारी इज़्ज़त हमारी बीवी है। याद रखना, तुम्हें कोई हाथ भी नहीं लगा सकता जब तक हम ज़िंदा हैं।"
निशा का दिल धड़कने लगा।
वो सोच में पड़ गई —
"शादी तो मैंने समझकर की ही नहीं थी… पर क्या ये रिश्ता अब सच बन रहा है?"
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उस रात पहली बार, निशा ने डर से ज़्यादा सुरक्षित महसूस किया।
और चारों भाई… पहली बार उसकी मुस्कान के लिए बेचैन हुए।
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गाँव का चौपाल शाम को रोशनी से जगमगा रहा था। लोग इकट्ठा थे, क्योंकि उस दिन गाँव में तीज का छोटा-सा उत्सव रखा गया था। औरतें गहनों से सजी थीं, बच्चे इधर-उधर खेल रहे थे और मर्द गपशप में लगे थे।
निशा थोड़ी दूरी पर खड़ी थी, पीली साड़ी में, उसकी आँखों में वही झिझक। गाँव की औरतों ने उसे फिर से घूरना शुरू किया।
"देखो, ये शहर वाली बहू आई है। देखते हैं क्या कर पाती है।"
चारों भाई थोड़ी दूरी से ये सब देख रहे थे।
आरव की आँखें हमेशा की तरह ठंडी थीं, पर दिल में ख्याल सिर्फ़ यही था — “अगर किसी ने इसे नीचा दिखाने की कोशिश की, तो मैं फाड़ डालूँगा सबको।”
कियान चुप था, पर उसकी उँगलियाँ मुट्ठी में बँधी थीं।
अयान हल्की मुस्कान में छुपा रहा, पर आँखें निशा से हट नहीं रही थीं।
और अभिर ने सिर्फ़ एक बात सोची — “आज सबको पता चल जाएगा, ये हमारी नफ़रत की नहीं, हमारी मोहब्बत की हक़दार है।”
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तभी गाँव की बुज़ुर्ग औरत, रामदुलारी काकी ने कहा,
"बहू, तूने शहर में काम किया है न? सुना है गाती भी है। आज सुना दे… ताकि हम भी जानें, हमारे खानदान की बहू में कितनी कला है।"
सभी औरतें हँस पड़ीं। उन्हें लगा ये लड़की झेंप जाएगी।
निशा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसकी हथेलियाँ पसीने से भीग गईं।
"अगर मैं गा न पाई तो… सब फिर हँसेंगे।"
पर उसे अयान की कही बात याद आई — “तुम गाती अच्छा हो। लोग तुम्हारी आवाज़ सुनेंगे तो तुम्हारी तारीफ़ करेंगे।”
उसने गहरी साँस ली, आँखें बंद कीं… और गाना शुरू किया।
उसकी आवाज़ धीमी थी, पर इतनी मधुर कि धीरे-धीरे पूरा चौपाल चुप हो गया। उसकी सुरों में एक दर्द था, पर उसी दर्द में मिठास भी थी। जैसे हर कोई अपने दिल का बोझ भूलने लगा। बच्चे चुप होकर सुनने लगे, औरतों के चेहरे पर हैरानी थी और मर्द भी ठहर गए।
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चारों भाई उसे देखते रह गए।
कियान की मुट्ठी धीरे-धीरे ढीली पड़ गई।
आरव की आँखों की कठोरता पिघल गई।
अयान के होंठों पर गर्व की मुस्कान फैल गई।
और अभिर की आँखों में कुछ नया चमक उठा — उसकी अपनी बीवी इतनी ख़ास है।
जब निशा ने गाना पूरा किया, पूरा चौपाल तालियों से गूंज उठा।
रामदुलारी काकी तक खड़ी हो गईं और बोलीं,
"वाह बहू, तूने तो आज दिल जीत लिया। ये आवाज़ भगवान का वरदान है।"
निशा की आँखें चमक उठीं। पहली बार गाँव की औरतों ने उसकी तारीफ़ की थी।
वो चारों भाईयों की तरफ़ देखने लगी।
चारों एक साथ उसे देख रहे थे, आँखों में वही पागलपन… पर इस बार वो पागलपन डर का नहीं, बल्कि गर्व और मोहब्बत का था।
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रात को जब सब लोग लौट गए, तो निशा चौपाल से बाहर निकली।
अभिर उसके करीब आया और धीमे स्वर में कहा,
"अब समझी? तुम सिर्फ़ हमारी नहीं, इस गाँव की भी शान हो।"
निशा के होंठों पर हल्की मुस्कान आ गई। उसके दिल में पहली बार ये अहसास जागा कि शायद… ये रिश्ता सचमुच उसका अपना है।