"Lost in Your Eyes" एक खूबसूरत और रोमांटिक गीत है जो प्रेम की गहराई और भावनाओं को व्यक्त करता है। यह गीत उस पल की कहानी बताता है जब कोई अपने प्रिय की आँखों में खो जाता है और दुनिया की सारी फिक्रें पीछे छूट जाती हैं। हर शब्द और धुन प्यार की मासूमियत,... "Lost in Your Eyes" एक खूबसूरत और रोमांटिक गीत है जो प्रेम की गहराई और भावनाओं को व्यक्त करता है। यह गीत उस पल की कहानी बताता है जब कोई अपने प्रिय की आँखों में खो जाता है और दुनिया की सारी फिक्रें पीछे छूट जाती हैं। हर शब्द और धुन प्यार की मासूमियत, सुकून और आत्मीयता को बयां करती है। यह गीत सुनने वाले को एक शांत और रोमांटिक माहौल में ले जाता है, जहाँ केवल प्यार और भावनाओं की मिठास मौजूद होती है। तेरी आँखों में खो जाने का मन करता है, हर पल सिर्फ तुझमें ही रहने का मन करता है। तेरी नजरों का जादू कुछ ऐसा है, हर दर्द भूल जाने का मन करता है। जब तू सामने होती है, दुनिया रुक सी जाती है, तेरी आँखों में बस खो जाने का मन करता है। तेरी हँसी, तेरी बातें, तेरी हर एक अदा, मेरे दिल को बस तुझसे मिलने का मन करता है।
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✦ वीरनगर ✦
वीरनगर अपने नाम की तरह ही जीवंत, आत्मविश्वासी और प्रगतिशील शहर था। यह न पूरी तरह ग्रामीण सादगी में ढला था, न ही महानगर की भागदौड़ में गुम हुआ था। बल्कि यह दोनों के बीच संतुलन साधे हुए था जो अपनी ही गति और रंग में जीता था।
शहर के मध्य भाग में चौड़ी सड़कों पर दिनभर रौनक छाई रहती थी। सड़कों के दोनों ओर ऊँची-ऊँची इमारतें थीं जिनके नीचे फैली दुकानों की कतारें, चमकते साइनबोर्ड, भीड़भाड़ वाले रेस्तराँ, और व्यस्त दफ्तर, सब मिलकर शहर को एक शहर का रूप दे रहे थे। दोपहर की धूप जब काँच की इमारतों पर पड़ती, तो पूरा इलाका सुनहरी चमक से भर उठता था।
वीरनगर का आवासीय इलाका इसके विपरीत था शांत, सधा हुआ और साथ में अपनापन लिए हुए। यहाँ छोटे-छोटे घरों के बीच हरियाली झिलमिलाती थी, और पार्कों में शाम ढलते ही बच्चों की हँसी गूंज उठती थी। गलियों में बुज़ुर्ग धीरे-धीरे टहलते हुए बातें करते, मानो हर रोज़ शहर के बदलते रंगों को अपने भीतर उतार रहे हों। वहाँ हवा में एक अनकही आत्मीयता बसती थी। शहर के किनारे फैला औद्योगिक क्षेत्र वीरनगर की जीवनधारा था। वहाँ फैक्ट्रियों और कार्यशालाओं से दिन-रात आती मशीनों की आवाज़ें इस बात की गवाही देती थीं कि यह शहर सिर्फ सपनों से नहीं, मेहनत से भी जिया जाता है। दक्षिण दिशा में, उन्हीं आवाज़ों से दूर, एक शांत झील थी जिसकी सतह पर शाम का आसमान उतर आता था। पास ही बना बगीचा लोगों का प्रिय ठिकाना था; जहाँ प्रेम, अकेलापन और सुकून, तीनों एक साथ टहलते दिखाई देते थे। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी वीरनगर ने अपनी पहचान बनाई थी। यहाँ विद्यालयों की घंटियाँ और अस्पतालों के सायरन, दोनों शहर की जीवंतता के प्रतीक थे। हर वर्ष आयोजित होने वाले संस्कृतिक मेले, नाट्य समारोह और खेल प्रतियोगिताएँ इस शहर की आत्मा में ऊर्जा भर देते थे और जब रात होती जब सड़कों की बत्तियाँ जल उठतीं और हवा में ठंडक घुल जाती तो वीरनगर कुछ पल के लिए ठहर जाता। वह शोर और भागदौड़ से अलग, एक गहरी साँस लेकर मानो खुद से कहता, “आज का दिन अच्छा था। उस समय यह शहर सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि एक जीवित अस्तित्व लगता था जो सांस लेता है, सपने देखता है, और हर सुबह फिर से उठ खड़ा होता है।
इसी शहर में, एक खूबसूरत शाम को जब सूरज धीरे-धीरे पश्चिम के पहाड़ों के पीछे उतर रहा था वीरनगर का बाहरी इलाका अपनी सबसे मनोहर छवि में दिखाई दे रहा था। सड़कें दिनभर की भीड़ से कुछ खाली हो चली थीं, और हवा में धूल और धूप का सुनहरा मिश्रण फैला हुआ था। दूर क्षितिज पर हल्का नारंगी रंग, झील के पानी में घुलकर उसे पिघले सोने जैसा बना रहा था। बाहरी इलाके की सड़कों के दोनों ओर छोटे-छोटे मकान, पेड़ और खेतों के टुकड़े थे। कहीं दूर किसी घर की छत पर कपड़े हौले-हौले लहरा रहे थे, और कहीं कोई बच्चा दौड़ते हुए अपनी पतंग समेट रहा था। हवा में मिट्टी की महक थी ऐसी जो शाम ढलते ही मन को एक अजीब सी शांति देती है। पास ही सड़क किनारे कुछ चाय की दुकानें और ढाबे थे। वहाँ हल्की रौशनी में चूल्हे पर उबलती केतली की आवाज़, और उसके साथ उठती भाप, आसमान के रंगों में घुल जाती थी। कुछ मजदूर दिनभर का काम खत्म कर चाय की प्यालियाँ हाथों में लिए बातें कर रहे थे। उनकी थकान के बावजूद चेहरों पर संतोष था जैसे हर शाम उन्हें खुद से मिलवा देती हो।
इसी सड़क के किनारे, एक मध्यम आकार का घर था। देखने में साधारण, पर उसमें एक सादगीभरी गर्माहट थी जैसे उसके भीतर ज़िंदगी की छोटी-छोटी खुशियाँ सांस ले रही हों। घर की बाहरी दीवारें हल्के पीले रंग से पुती थीं, जिन पर शाम की धूप पड़ते ही नारंगी चमक फैल जाती थी। लोहे के छोटे गेट के ऊपर से बोगनवेलिया की बेल लटक रही थी, जिसकी गुलाबी कलियाँ हवा के झोंके के साथ हिलतीं तो लगता, जैसे घर मुस्कुरा उठा हो। अंदर जाते ही एक छोटा-सा आँगन था, जिसमें मिट्टी की खुशबू और दो-तीन गमलों में लगे पौधे वातावरण में अपनापन भर देते थे। आँगन के एक कोने में एक पुरानी लकड़ी की बेंच रखी थी शायद वहीं लोग बैठकर शाम की चाय पीते थे। घर का मुख्य दरवाज़ा लकड़ी का था, जिस पर पुराना लेकिन मजबूत ताला लटकता था, हालांकि आज वह खुला हुआ था। भीतर से आती दोस्तों की हँसी और बातचीत की आवाज़ें हवा में घुली थीं। भीतर का कमरा बड़ा नहीं था, लेकिन दीवारों पर हल्के रंग की पुताई और दीये जैसी पीली रोशनी उसे गर्म और सुकूनभरा माहौल देती थी।
दीवार पर एक कोने में कुछ पुरानी तस्वीरें, और दूसरे कोने में एक छोटा-सा रेडियो रखा था, जिसमें धीमी आवाज़ में कोई पुराना गाना बज रहा था। कमरे के बीच में मध्य आकार की गोल टेबल थी, जिस पर बिखरे पड़े थे चाय के कप, आधे खाए बिस्कुट, और शायद कुछ अधूरे किस्से। खिड़की से आती ठंडी हवा पर्दों को हल्के से हिलाती जा रही थी। बाहर से झील के किनारे झींगुरों की आवाज़ें आ रही थीं, और भीतर उन सबके बीच हँसी की गूंज जैसे उस घर की दीवारें भी आज थोड़ा हल्का महसूस कर रही हों।
घर के छोटे-से आँगन में चारों दोस्त बैठे थे। चारों की उम्र लगभग चौबीस-पच्चीस के आसपास रही होगी वही उम्र जब सपने अभी पूरे भी नहीं हुए होते, और यकीन अब तक टूटा भी नहीं होता। सूरज की आख़िरी किरणें आँगन की दीवार पर झिलमिला रही थीं, और हवा में चाय की हल्की खुशबू थी।
पहला था आरव वही जो इस कहानी का केंद्र था, इस शाम का भी। उसके चेहरे पर एक अजीब शांति थी, लेकिन आँखों में गहराई थी जैसे उनमें अनकहे सवालों की लकीरें तैरती हों। उसकी मुस्कान कम दिखती थी, मगर जब भी आती, सामने वाला कुछ देर के लिए ठहर जाता। पढ़ाई में समझदार, बातों में संयमी और भीतर से कहीं बहुत संवेदनशील। आरव वह था जो हर बात सोचकर करता था और बहुत सी बातें, कहे बिना छोड़ देता था।
दूसरा था कबीर इसके बिल्कुल उलट। तेज़तर्रार, आत्मविश्वासी, और थोड़ी-सी उग्रता उसके स्वभाव की पहचान थी। बाल हल्के बिखरे हुए, टी-शर्ट की बाँहें चढ़ी हुईं, और आँखों में चमक जैसे ज़िंदगी से कोई समझौता नहीं। कबीर वह था जो हर काम में आगे रहता, बहस में जीतता, और हार भी पूरी शिद्दत से स्वीकार करता। उसके भीतर जोश था, लेकिन साथ ही एक गहरी बेचैनी भी, जो उसे कभी चैन से नहीं बैठने देती थी।
तीसरा था निशांत जिसकी उपस्थिति पूरे माहौल में नरमी घोल देती थी। वह सबसे शांत और समझदार था। उसकी आँखों में भरोसा झलकता था, और उसके बोलने से पहले ही अक्सर उसकी मुस्कान बहुत कुछ कह देती थी। लोगों को जोड़ना, तनाव कम करना और हर मुश्किल को आसान बना देना यही उसकी फितरत थी। वह कम बोलता था, लेकिन जब बोलता, तो सब सुनते और चौथा था रवि इस टोली की जान, शरारत और हँसी का कारण। उसके बिना कोई भी मुलाक़ात अधूरी लगती। उसकी आँखों में चमक थी, और हँसी में वो हल्कापन जो किसी भी गंभीर माहौल को तोड़ दे। उसकी जेब में हमेशा कुछ अजीब चीज़ें रहतीं एक सिक्का, टूटा पेन, या अधखाई टॉफी। रवि वह था जो हर पल को मज़ेदार बना देता, भले ही वह पल उदासी का ही क्यों न हो।
चारों एक ही उम्र के थे, पर चार दिशाओं जैसे अलग सोच, अलग रंग, और अलग सपने। आँगन के बीच रखी छोटी-सी मेज़ पर रखे थे चार कप, जिनसे भाप अब भी उठ रही थी। हवा में हँसी और खामोशी दोनों थे जैसे वक्त कुछ पल के लिए रुक गया हो, और वीरनगर की शाम चार चेहरों के इर्द-गिर्द धीरे-धीरे साँस ले रही हो।
“चल ना आरव, बाहर चलते हैं!” रवि ने कहा, आवाज़ में वही पुरानी शरारत थी जो हमेशा किसी न किसी को मानने पर मजबूर कर देती थी। वह कुर्सी पर आधा झुका हुआ था, दोनों हाथों में चाय का गिलास लिए, जैसे किसी योजना की शुरुआत करने वाला सेनापति हो।
आरव मुस्कराया, फिर सिर हिलाते हुए बोला, “नहीं यार, बहुत दिन बाद घर आया हूँ... बस यहीं ठीक है।” उसकी आवाज़ में थकान भी थी और हल्का-सा अपनापन भी। वीरनगर की इस शाम में उसे घर की मिट्टी, हवा और शांति सब अपने-अपने तरीके से खींच रही थी।
“ठीक है, पर अकेले रहकर भी क्या करना। भाई हमें तो खुली हवा में सांस लेनी है ,” कबीर बोला वही तेज़ लहजा, वही बेचैन ऊर्जा। “और तू तो सोचने में ही टाइम पास करता है। चल सड़क किनारे चलते हैं, ठंडी हवा मिलेगी।” निशांत धीरे से हँसा। “कबीर, तू हवा लेने जाता नहीं, तू वहाँ बहस करने जाता है। पिछली बार पान वाले से आधा घंटा लड़ रहा था।”
रवि हँसते-हँसते कुर्सी से झुक गया, “सही कहा! भाई, तेरे साथ बाहर जाना मतलब हवा से ज़्यादा तकरार लेना।” फिर उसने नज़र आरव की ओर मोड़ी, “लेकिन आज नहीं टालेगा तू। पूरे दो महीने बाद आया है, और हमें घर में बिठाकर चाय पिला रहा है! बाहर की ठंडी हवा पीना ज़्यादा जरूरी है।”
आरव ने एक पल सबकी ओर देखा। तीनों के चेहरों पर वही बचपन वाली जिद थी वही, जो उसे कभी भी ‘ना’ कहने नहीं देती थी। वह कुर्सी से पीछे झुका, फिर गहरी साँस लेते हुए बोला, “ठीक है… चलते हैं।”
“बस! यही बात चाहिए थी!” रवि ने उछलते हुए कहा और चाय का आखिरी घूँट गले में उतारा। कबीर ने हँसते हुए अपने स्लिपर ठोके, “लो भाई, आज आरव बाहर निकला है। इतिहास लिखो कोई।”
निशांत ने मुस्कराते हुए दरवाज़ा खोला। शाम की हवा अंदर आई, थोड़ी ठंडी, थोड़ी नमी लिए जैसे पूरे घर ने राहत की साँस ली हो। चारों बाहर निकले। आँगन की बत्तियाँ पीछे छूट गईं और वीरनगर की सड़कें उनके सामने फैल गईं चुप, पर ज़िंदा।दूर किसी चाय की दुकान से आती इलायची की खुशबू, और पास के पेड़ पर बैठे झींगुरों की आवाज़, उस शाम को और गाढ़ा बना रही थीं। रवि सबसे आगे था, वही पुरानी ऊर्जा लेकर। कबीर उसके बराबर, हमेशा चर्चा के लिए तैयार। निशांत पीछे से मुस्कराता हुआ, और बीच में आरव जो बहुत दिनों बाद अपने शहर की सड़कों पर, अपने दोस्तों के बीच, खुद से फिर से मिलने जा रहा था।
चारों बाहर आकर सड़क किनारे कुर्सियाँ डालकर बैठ गए।सामने से आती ठंडी हवा और शाम का हल्का नीला उजाला, दोनों मिलकर एक सुहावना सन्नाटा बना रहे थे। सड़क के दूसरी तरफ पुराने पीपल के नीचे एक छोटा-सा चाय का ठेला था, जहाँ से कभी-कभी केतली की सीटी और चाय की खुशबू हवा में घुल जाती थी।
रवि ने कुर्सी पर झूलते हुए कहा “भाई, इस टाइम बस में यूनिवर्सिटी की लड़कियाँ आती हैं… किसी को पसंद कर लेना, वरना ज़िंदगी ऐसे ही नोटबुक लिखते बीत जाएगी।” उसकी आवाज़ में वही पुरानी छेड़छाड़ थी, जो हर बार हँसी का कारण बनती थी।
आरव मुस्कुराया, बिना उनकी ओर देखे बोला, “तुम्हें पसंद करने का काम छोड़ दूँ क्या? वैसे भी तुम्हारी फेवरेट लिस्ट हर हफ्ते बदल जाती है।” कबीर ने ज़ोर से हँसते हुए कहा, “सही पकड़ा! पिछले महीने तो इसे लायब्रेरियन पसंद आई थी।” निशांत ने सिर हिलाया, “और उसके बाद मिठाई वाले की बहन।”
“अबे चुप रहो तुम दोनों!” रवि हँसते हुए बोला, “कम से कम मैं ट्राय तो करता हूँ, ये आरव तो ऐसे बैठा है जैसे दुनिया का बोझ उठा रखा हो। लड़कियाँ सामने से गुजरती हैं, और जनाब मोबाइल में नोट्स टाइप करते रहते हैं!”
आरव ने सिर उठाया, बस एक नज़र सड़क की ओर डाली जहाँ सच में अब बस रुक रही थी, और कुछ लड़कियाँ हँसते हुए उतर रही थीं। तीनों दोस्त उत्सुकता से उधर देखने लगे, जैसे किसी फिल्म का नया सीन शुरू हो गया हो।
कबीर धीरे से बोला, “देख ना, नीले बैग वाली कितनी प्यारी है।”
“और उसके साथ वाली... वो तो जैसे किसी ऐड से उतरी हो,” रवि ने जोड़ दिया।
आरव ने एक हल्की साँस ली, और मुस्कराते हुए कहा, “तुम तीनों बस देखने में एक्सपर्ट हो, जीने में नहीं।”
यह कहते हुए उसने जेब से एक छोटी-सी डायरी निकाली, और कुछ लिखने लगा। कभी शब्द, कभी अधूरी पंक्तियाँ शायद वही, जो उसके मन में अब तक कहे नहीं गए थे। तीनों अब भी आते-जाते वाहनों, लोगों और आवाज़ों में उलझे थे। कभी हँसी, कभी धीमी फुसफुसाहट उनकी शाम ऐसे बह रही थी जैसे वीरनगर की सड़कों पर हवा: हल्की, बेफिक्र और थोड़ी सी शरारती। आरव उन सबके बीच बैठा था, पर उसकी दुनिया थोड़ी अलग थी। उसके लिए ये सड़कें, ये शाम, और ये आवाज़ें बस किसी अधूरी कहानी के दृश्य थे, जो शायद एक दिन उसकी डायरी में जगह पा जाएँगी।
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जारी रहेगी!
इन पिछले अध्याय में आपने देखा कि वीरनगर एक जीवंत और प्रगतिशील शहर था जो ग्रामीण सादगी और महानगरीय जीवन के बीच संतुलन बनाए हुए था। शहर के केंद्र में चहल-पहल थी, जबकि आवासीय क्षेत्र शांत थे। औद्योगिक क्षेत्र शहर की जीवनधारा था, और शहर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी अपनी पहचान रखता था।
फिर, कहानी वीरनगर के बाहरी इलाके की एक शाम में प्रवेश करती है, जहां आरव अपने तीन दोस्तों के साथ एक घर में मिलता है। वे दोस्त अलग-अलग व्यक्तित्वों के हैं, फिर भी एक मजबूत बंधन साझा करते हैं।
अब अगला
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तीनों अपनी-अपनी बातचीत में मशगूल थे कबीर बात बात पर बहस कर रहा था, रवि किसी किस्से में ठहाके जोड़ रहा था, और निशांत बीच-बीच में मुस्कराते हुए उनकी बातों में हाँ भर देता था। उनकी हँसी, उनकी आवाज़ें, हवा में घुलकर सड़क तक फैल रही थीं। पर उसी शोर के बीच आरव जैसे कहीं और था। वह कुर्सी पर हल्का झुककर बैठा था, नज़रें कहीं दूर टिकाए शायद उन यादों के बीच जिन्हें सिर्फ वही देख सकता था। उसके चेहरे पर एक अजीब-सी शांति थी, लेकिन उस शांति के पीछे कुछ अनकहा, कुछ अनसुलझा था। हवा उसके बालों से गुजरती रही, पर उसने कोई हरकत नहीं की जैसे वह हवा नहीं, कोई बीती बात उसके पास से गुज़र गई हो। चाय का कप उसके पास रखा ठंडा हो चुका था। उसने बस उंगलियों से उसकी किनारी छुई, और फिर डायरी की तरह अपने मन में कुछ पंक्तियाँ लिख दीं बिना शब्दों के, बस एहसासों में।
तीनों अब भी बातें कर रहे थे, कभी किसी कॉलेज की, कभी आने वाले त्योहार की, पर आरव की खामोशी में गहराई थी जैसे वह उन सबके बीच होकर भी उनसे दूर हो। उसकी आँखों में वीरनगर की रोशनी झिलमिला रही थी, पर भीतर, जैसे कोई और शहर बसता था एक ऐसा शहर, जहाँ सिर्फ़ उसकी सोच, उसकी यादें और कुछ अधूरे सवाल रहते थे।
अगले ही पल ना जाने आरव को क्या हुआ उसका ध्यान अचानक अपनी डायरी, दोस्तों की हँसी और शाम की हलचल से हटकर सड़क पर आती एक बस की ओर चला गया। पहले तो उसने बस यूँ ही देखा, जैसे हर दिन दर्जनों लोग गुजरते हैं, पर इस बार कुछ अलग था। बस की हेडलाइट्स की चमक उसके चेहरे पर पड़ी, और उस पल उसकी आँखों में एक हल्की सी चौंक उठी मानो किसी भूले हुए एहसास ने अचानक दस्तक दी हो। बस धीरे-धीरे पास आती रही। उसकी खिड़कियों से झाँकते चेहरे, हँसी, बातें हर आवाज़ आरव तक पहुँचती रही, पर वह सबको अनसुना करता गया।
उसका ध्यान जाकर एक खिड़की पर ठहर गया था। बस के भीतर की हलचल, लोगों की आवाज़ें, सब जैसे पृष्ठभूमि में धुंधले पड़ गए थे क्योंकि उस खिड़की में वह थी। एक युवती, शायद उसकी ही उम्र की। चेहरे पर हल्की थकान थी, पर आँखों में एक अजीब-सी शांति जैसे किसी लंबे सफ़र के बाद वह कुछ खोजने नहीं, बस खुद को ढूँढने निकली हो। उसकी आँखें काँच के पार सीधी आरव की आँखों से मिलीं। वो एक पल बहुत ही असाधारण था बस की खिड़की, सड़क का किनारा, और ढलती शाम पर उस एक नज़र ने समय को थाम लिया। आरव को लगा, जैसे उसकी साँस कुछ देर के लिए थम गई हो। उसके कानों में दोस्तों की हँसी अब बस गूँज बनकर रह गई थी, और पूरा संसार बस उन आँखों की रोशनी में सिमट गया था।
वह उन आँखों में कुछ पहचानने लगा जैसे कोई अनकही कहानी, कोई अधूरी बात, कोई गहरी उदासी, जो उसकी अपनी ही भीतर की खामोशी से मेल खा रही थी। वो आँखें शांत थीं, पर उनमें एक अनकहा सवाल था, एक ऐसा भाव जो सीधे उसके दिल तक उतर गया। इतना डूबा हुआ था वह उस नज़र में, कि उसे यह तक ध्यान नहीं रहा कि उन आँखों के ऊपर एक नाज़ुक-सा चश्मा भी था, जो रोशनी में हल्का-सा चमक रहा था। वह चमक उस पल के जादू का हिस्सा बन गई, जैसे किसी सपने की हल्की परछाईं हो।
आरव को महसूस हुआ कि उसके भीतर कुछ बदल गया है एक अजीब-सी बेचैनी, जैसे किसी ने उसके दिल के बंद कमरे की खिड़की खोल दी हो। वो खुद को समझा नहीं पा रहा था क्या यह पहचान थी, हैरानी थी, या बस एक क्षणिक आकर्षण? पर जो भी था, उसने उसके भीतर हलचल मचा दी थी। बस धीरे-धीरे आगे बढ़ी, और वह चेहरा, वो नज़र, उसकी पहुँच से बाहर चली गई। पर आरव वहीं बैठा रह गया उसकी आँखों में अब भी वही प्रतिबिंब झिलमिला रहा था, जैसे वो पल किसी तस्वीर की तरह उसके भीतर ठहर गया हो। उसने गहरी साँस ली, पर भीतर कुछ खाली-सा लग रहा था, मानो किसी अनजाने जुड़ाव ने छूकर जाते ही उसे अधूरा कर दिया हो। वो अब अपने दोस्तों के बीच था, लेकिन उसके मन में अब एक नई खामोशी उतर चुकी थी जो न ज़्यादा बोली जाती है, न आसानी से भुलाई जाती है।
वह उन आँखों की गहराई में इतना खो चुका था कि उसके शरीर का हर हिस्सा उस एहसास से भर उठा था। मानो उसकी रगों में खून नहीं, बल्कि कोई अनजानी गर्माहट बह रही हो धीमी, मधुर, और पूरी तरह से नई। उसकी साँसें अनायास तेज़ हो गई थीं, दिल की धड़कन जैसे अचानक किसी अनसुनी ताल पर नाच उठी हो। वो न धड़कन थी, न डर बल्कि एक ऐसी हलचल, जो भीतर से उसे जगाने लगी थी। आरव ने पहले कभी ऐसा महसूस नहीं किया था। वह खुद से अनजान-सा हो गया था जैसे कोई बहुत गहरी नींद से उठकर पहली बार दुनिया को सचमुच देख रहा हो। उसके आसपास सब कुछ बदल गया था शाम का रंग और गहरा लगने लगा, हवा और मुलायम, और आवाज़ें जैसे किसी दूर के कोहरे में खो गईं। बस वही आँखें रह गई थीं जो हर पल उसके दिल की धड़कनों में उतरती जा रही थीं। उसे लगा, जैसे किसी ने उसके भीतर एक नई खिड़की खोल दी हो, जहाँ से रोशनी सीधी उसकी आत्मा तक पहुँच रही थी। वो रोशनी तेज़ नहीं थी, पर गहरी थी वो सब कुछ दिखा रही थी, जो अब तक वह खुद से भी छिपाता आया था। आरव को समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या था किसी अजनबी के प्रति यह खिंचाव, यह हल्का कंपन, या बस उस एक पल में ठहर जाने की इच्छा। पर जो भी था, उसने उसके भीतर किसी कोमल भावना का जन्म दे दिया था। उसकी उंगलियाँ अनायास काँप गईं, गले में एक अजीब-सी रुकावट महसूस हुई, और आँखों में… एक नमी-सी चमक उठी। न दुख की, न खुशी की बस उस एहसास की, जो शब्दों में नहीं उतर सकता था। बस अब दूर जा चुकी थी, पर आरव को लगा जैसे उसका एक हिस्सा वहीं रह गया हो, उस खिड़की के उस पार उन आँखों की गहराई में, जहाँ से उसने पहली बार खुद को सचमुच महसूस किया था।
कुछ पल तक आरव की आँखें उसी दिशा में टिकी रहीं जहाँ अभी कुछ देर पहले वह खिड़की थी, जिसने उसकी ज़िंदगी के सबसे अनकहे पल को जन्म दिया था। पर अब वहाँ कुछ नहीं था न वो खिड़की, न वो चेहरा, बस सन्नाटा… और उसके भीतर चलती एक अजीब-सी हलचल। उसे महसूस हुआ जैसे हवा में अब भी उसकी मौजूदगी है वो निगाहें, वो हल्की-सी झिलमिलाहट, जो उसके भीतर उतर गई थीं, अब भी उसके सीने में कहीं गहराई तक धड़क रही थीं। आरव की उंगलियाँ मेज़ पर रखे ठंडे चाय के कप के पास पहुँचकर रुक गईं। वो कुछ कहना चाहता था, पर शब्द जैसे उसके होंठों तक आते-आते खो गए। उसके मन में कुछ बदल रहा था बहुत धीरे, बहुत शांत, पर इतना गहराई से कि वह खुद को भी पहचान नहीं पा रहा था। तीनों दोस्त अब भी वहीं बैठे थे कबीर ने कोई मज़ाक सुनाया, रवि हँसा, निशांत ने सिर हिलाया, लेकिन बीच-बीच में वे आरव को देखने लगे। वो वैसे नहीं था जैसे हमेशा रहता था आज उसकी खामोशी में एक अजीब चमक थी, एक ऐसा सुकून, जो भीतर किसी अनकही बात को छुपा रहा था।
“क्या हुआ बे?” रवि ने आखिर पूछ ही लिया, “इतना चुप क्यों है तू?” आरव ने धीरे से सिर उठाया, होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी वो मुस्कान, जो किसी के जवाब की नहीं, बल्कि किसी एहसास की होती है।
“कुछ नहीं…” उसने धीरे से कहा, “बस… कुछ याद आ गया था।” उसकी आवाज़ में नर्मी थी, पर उन शब्दों के पीछे एक गहराई थी जो सिर्फ़ वही महसूस कर सकता था। तीनों ने एक-दूसरे को देखा थोड़ी देर तक किसी ने कुछ नहीं कहा। हवा में अब भी वही ठहराव था, जैसे समय कुछ पलों के लिए थम गया हो। दूर कहीं मंदिर की घंटी बजी, शहर की लाइटें टिमटिमाईं, और आरव ने आखिरी बार सड़क की ओर देखा मानो उम्मीद कर रहा हो कि शायद बस फिर लौट आए…
रात धीरे-धीरे वीरनगर पर उतर आई थी। शहर की हलचल अब सिमट चुकी थी दूर कहीं कुत्ते के भौंकने की आवाज़ और बीच-बीच में हवा का हल्का झोंका बस इतना ही याद दिला रहा था कि दुनिया अब भी चल रही थीं। आरव अपने कमरे की खिड़की के पास बैठा था। सामने टेबल पर किताबें खुली पड़ी थीं, पर उसकी नज़रें पन्नों पर नहीं खिड़की के पार, उस अँधेरे में खोई हुई थीं जहाँ बस के जाते वक्त की आख़िरी झलक अब भी सांस ले रही थी। हवा के साथ पर्दे हिल रहे थे, कमरे में पीली रोशनी का एक कोना उसकी आँखों तक आकर ठहर गया था। वो बार-बार उसी खिड़की की ओर देखता, जहाँ से उसने पहली बार वो निगाहें देखी थीं।
वो चेहरा, वो आँखें, वो पल…जैसे उसके भीतर किसी दीवार पर उभर आए हों हर बार जब वह उन्हें भुलाने की कोशिश करता, वे और साफ़, और करीब हो जाते।
“कौन थी वो…?” उसने खुद से बुदबुदाया। आवाज़ इतनी धीमी थी कि शायद हवा ने भी सुनने की कोशिश की होगी। उसका दिल अब भी वैसे ही धड़क रहा था तेज़ नहीं, लेकिन गहराई में कहीं तक। एक अजीब-सा खालीपन और एक मीठी-सी बेचैनी साथ-साथ थी। वो जानता था कि उसने उसे कभी देखा नहीं था, पर न जाने क्यों लगता था जैसे वो अजनबी नहीं जैसे कहीं पहले मिल चुका हो, किसी और जन्म में, किसी और समय में उसने अपनी उंगलियाँ कप की गरमाहट पर रखीं, पर चाय कब की ठंडी हो चुकी थी ठीक वैसे ही जैसे बाहर की हवा, पर भीतर जो चल रहा था, वो किसी तूफ़ान से कम नहीं था। आरव की आँखें हल्की-सी नम थीं। न किसी दुख से, न खुशी से बस उस एहसास से, जो नया भी था, और अपना भी। वो मुस्कराया बहुत हल्का, जैसे किसी अधूरे जवाब पर खुद को दिलासा दे रहा हो और उसी मुस्कान में कहीं, उसने पहली बार प्यार का नाम महसूस किया बिना बोले, बिना छुए, सिर्फ़ एक नज़र से शुरू हुआ एक अनकहा सफ़र। खिड़की के बाहर आसमान में आधा चाँद टंगा था, और उसके फीके उजाले में आरव की आँखों में चमक थी वही चमक, जो किसी कहानी की शुरुआत में होती थीं।
आरव ने एक लंबी साँस ली और खिड़की से नज़र हटाई। बाहर रात अब पूरी तरह उतर चुकी थी सड़क की बत्तियाँ बुझते-बुझते बस हल्का पीला धुंधलका छोड़ गई थीं। शहर के शोर की जगह अब सन्नाटे की धीमी साँसें थीं, जो कमरे की खामोशी से मिलकर एक अजीब सुकून बना रही थीं। वह बिस्तर पर आकर लेट गया। छत की तरफ़ देखता रहा पर उसकी आँखों के आगे वही खिड़की घूम रही थी, वही लड़की, वही आँखें…जिन्होंने उसकी दुनिया के सारे रंग एक पल में बदल दिए थे।
हर बार जब वह आँखें बंद करता, वो आँखें और साफ़ दिखने लगता, उसने सिर्फ आँखें ही तो देखी थी उसकी! बस के उस छोटे से पल में जमी हुई मुस्कान, खिड़की के शीशे पर पड़ती शाम की हल्की रोशनी और वो गहराई… जो उसकी रूह तक उतर गई थी। उसे लगा जैसे वो बस वहीं खड़ी हो ठीक उसके सामने, जैसे वह कुछ कहना चाहती हो…पर हवा के साथ उसकी आवाज़ कहीं खो जाती हो। आरव करवट बदलकर लेटा, तकिए के पास हाथ रख दिया मानो किसी अदृश्य स्पर्श को महसूस कर रहा हो। दिल की धड़कनें अब भी थोड़ी तेज़ थीं, पर उनमें एक अजीब-सी मिठास थी, जैसे कोई पुरानी धुन धीरे-धीरे बज रही हो।
उसने खुद से कहा, “पता नहीं कौन थी वो… पर अजीब है, ऐसा लग रहा जैसे उसे बरसों से जानता हूँ।”
उसके होंठों पर मुस्कान आई वो मुस्कान जो थकान मिटा देती है, जो भीतर के तूफ़ान को धीरे से शांत कर देती है। आँखें अपने आप भारी होने लगीं, विचार सपनों में घुलते चले गए।धीरे-धीरे सब धुंधला पड़ गया बस वही आँखें रह गईं, वही चेहरा, वही खिड़की…और आरव उनींदी साँसों में उसके ख्यालों में खोया हुआ नींद की गोद में समा गया एक ऐसी नींद, जिसके हर सपने में वही अनजानी लड़की थी, जिसकी नज़रों में शायद अब उसकी कहानी की शुरुआत छिपी थी।
★★★
जारी रहेगी!
इन पिछले अध्याय में आपने देखा कि वीरनगर एक जीवंत और प्रगतिशील शहर था जो ग्रामीण सादगी और महानगरीय जीवन के बीच संतुलन बनाए हुए था। शहर के केंद्र में चहल-पहल थी, जबकि आवासीय क्षेत्र शांत थे। औद्योगिक क्षेत्र शहर की जीवनधारा था, और शहर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी अपनी पहचान रखता था।
फिर, आरव अपने दोस्तों के साथ एक घर में मिलता है। आरव की खामोशी में एक गहराई थी। सड़क पर आती एक बस में आरव की नज़र एक युवती पर जाती है। उस पल दोनों की आँखें मिलती हैं, आरव उस युवती में कुछ पहचानने लगता है। बस के जाने के बाद, आरव के भीतर कुछ बदल जाता है। आरव के दोस्त उसकी खामोशी को नोटिस करते हैं। आरव उन्हें कुछ याद आने की बात कहता है। आरव की खिड़की से उस युवती का चेहरा, उसकी आँखें, उस पल का प्रभाव बहुत गहरा होता है। आरव रात को उस लड़की के बारे में सोचता है।
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★★★
बारिश का मौसम था। आसमान में गहरे बादल ऐसे घिरे थे मानो शहर पर कोई अधूरी कहानी उतर आई हो। हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू घुली हुई थी, और स्टेशन की छत से लगातार टपकती पानी की बूँदें एक अनवरत संगीत बना रही थीं। आरव प्लेटफ़ॉर्म के किनारे खड़ा था हाथ जेब में डाले, सिर थोड़ा झुकाए, और आँखें ट्रैक की ओर टिकाए हुए। बारिश की हल्की फुहारें उसके बालों से होती हुई चेहरे पर गिर रही थीं, पर उसे जैसे कुछ महसूस ही नहीं हो रहा था। चारों ओर भीड़ थी किसी के हाथ में सूटकेस, किसी के पास छतरी, कोई जल्दी में भाग रहा था, कोई विदा ले रहा था। लोगों की आवाज़ें, सीटी की गूँज और ट्रेनों की गड़गड़ाहट मिलकर एक ऐसा शोर बना रही थीं जिसमें हर किसी की कहानी खो जाती थी। पर उस भीड़ के बीच आरव अकेला था अपने ख्यालों में, किसी के इंतज़ार में।
उसका दिल न जाने क्यों बेसब्र था। हर बार जब कोई ट्रेन स्टेशन पर रुकती, वो हल्का-सा आगे झुककर खिड़कियों की ओर देखता, मानो उम्मीद करता हो कि शायद…शायद वही चेहरा दोबारा दिख जाए। पर हर बार वही निराशा भीड़ उतरती, चेहरों की बाढ़ आती, पर वो चेहरा नहीं। उसने अपने गीले बालों से पानी झटकने की कोशिश की, पर उसके भीतर की बेचैनी किसी बारिश से भी नहीं धुल सकती थी। वो बेचैनी जो उस दिन बस की खिड़की से शुरू हुई थी, अब हर आती-जाती ट्रेन की आवाज़ में गूँजने लगी थी। उसकी आँखें बार-बार दूर तक जाती पटरियों को देखतीं जहाँ तक बारिश धुंधला न कर दे। हर गुजरती गाड़ी के साथ उसे लगता जैसे कोई अधूरा पल उससे फिर दूर जा रहा हो। हवा थोड़ी ठंडी हो चली थी। उसने शर्ट की कॉलर ऊपर की और गहरी साँस ली बारिश की नमी उसके फेफड़ों तक उतर गई, और दिल में वही पुराना एहसास फिर से जाग उठा।
“क्या मैं पागल हो रहा हूँ?” उसने खुद से बुदबुदाया। पर अगले ही पल मुस्करा दिया वो मुस्कान, जिसमें स्वीकार था, कि शायद प्यार का पहला लक्षण ही यही होता है बिना वजह बेचैन रहना। ट्रेन की सीटी बजी, भीड़ फिर हरकत में आई। आरव वहीं खड़ा रहा बारिश की बूँदें उसके चेहरे पर गिरती रहीं, और उसकी आँखें अब भी उसी दिशा में देख रही थीं जहाँ उसे उम्मीद थी कि कभी न कभी, वो फिर दिखेगी।
आरव धीरे-धीरे मुड़ने ही वाला था पर बारिश अब पहले से ही तेज़ हो चुकी थी प्लेटफ़ॉर्म पर पानी की धाराएँ छोटे-छोटे तालाबों में बदल रही थीं, और हर कदम के साथ छपाक की आवाज़ें उठ रही थीं। उसने एक आख़िरी नज़र उन पटरियों पर डाली जहाँ से अभी-अभी एक ट्रेन धुएँ और शोर के बीच ओझल हुई थी। उसकी साँसों में थकावट थी और आँखों में खालीपन था। शायद उसने तय कर लिया था कि अब लौट जाना चाहिए कि कुछ चीज़ें सिर्फ़ याद बनकर ही रह जाती हैं लेकिन तभी…..हवा के शोर के बीच उसे एक और सीटी सुनाई दी तीखी, साफ़, और उम्मीद जैसी।
आरव ठिठक गया। वो आवाज़ मानो उसके दिल की धड़कन से टकराई हो। कुछ सोचे बिना, कुछ समझे बिना, उसके कदम अपने आप ही दौड़ पड़े भीगते हुए प्लेटफ़ॉर्म पर, उन पटरियों की ओर जहाँ से नई ट्रेन स्टेशन में दाख़िल हो रही थी। बारिश अब उसके चेहरे पर गिर नहीं रही थी, वो बस एक पागलपन में दौड़ रहा था कभी लोगों के बीच से निकलता, कभी फिसलते हुए खुद को संभालता। उसके दिल में बस एक ही ख्याल था “शायद… शायद वो आई हो।”
भाप के बादल और धुएँ के बीच से ट्रेन धीरे-धीरे रुक रही थी।दरवाज़े खुलते गए, यात्री उतरने लगे। छतरियाँ खुलीं, आवाज़ें उठीं, स्टेशन एक बार फिर जीवित हो उठा। आरव की नज़रें हर चेहरे पर घूम रहीं थीं एक बेचैन खोज में, एक नामहीन उम्मीद में। हर बार जब कोई लड़की उतरती, उसका दिल एक पल को रुक जाता, पर अगले ही पल निराशा फिर उसके कदमों में लौट आती। फिर भी, वो रुका नहीं। उसके भीतर जैसे किसी ने आवाज़ दी हो “रुक मत… वो यहीं है…”
वह पटरियों के उस हिस्से तक पहुँच गया जहाँ बारिश की बूंदें प्लेटफ़ॉर्म की छत से फिसलकर सीधी नीचे गिर रहीं थीं। उसके कपड़े पूरी तरह भीग चुके थे, पर उसकी आँखों में अब भी एक अजीब-सी चमक थी वही, जो किसी अंतहीन इंतज़ार में भी विश्वास रखती थीं। ट्रेन की आवाज़ अब धीरे-धीरे थम रही थी, पर आरव के भीतर का शोर बढ़ता जा रहा था। उसे लगा, इस बार…....कुछ होने वाला था।
आरव भागते-भागते आखिर थम गया। बारिश अब और तेज़ हो चुकी थी उसके कपड़े पूरी तरह भीग गए थे, बाल माथे से चिपक चुके थे, और चेहरा पानी से भीगा हुआ किसी अधूरी बेचैनी का आईना बन गया था। वह प्लेटफ़ॉर्म के किनारे आकर झुक गया, अपने घुटनों पर हाथ टिकाए, और लंबी, गहरी साँसें भरने लगा। हर सांस जैसे उसके सीने के भीतर कहीं अटकी हुई थी भारी, भरी हुई और बेकाबू। बारिश की बूंदें उसके कंधों से फिसलती हुई नीचे गिर रही थीं, पर उसे उस ठंडक से भी राहत नहीं मिल रही थी। दिल अब भी किसी अनजाने डर और उम्मीद की धड़कनों से भरा था। उसे लग रहा था जैसे उसने खुद को कहीं खो दिया है उस दौड़ में, उस भीड़ में, उस तलाश में जिसका नाम तक उसे पता नहीं था। स्टेशन की सीटी, यात्रियों की आवाज़ें, ट्रेन के लोहे के पहियों की गड़गड़ाहट सब कुछ मिलकर एक धुंधला-सा कोलाहल बना रहे थे। पर उस शोर के बीच आरव की सांसों की आवाज़ उसे अपने ही कानों में गूंज रही थी। उसने ऊपर देखा ट्रेन के धुएँ में सब कुछ आधा छिपा हुआ था। लोगों की परछाइयाँ धुंध में घुली हुई थीं। उसे लगा जैसे दुनिया किसी स्लो मोशन में चल रही हो, और वह अकेला, इस सीन का हिस्सा होकर भी कहीं और खड़ा हो।उसकी उंगलियाँ काँप रहीं थीं, पर आँखें अब भी कुछ तलाश रही थीं। उसके मन में बार-बार वही सवाल घूम रहा था “मैं किसे ढूंढ रहा हूँ?”
पर जवाब हवा की तरह उसके पास से गुजर गया। सिर्फ़ बारिश रह गई, सिर्फ़ धड़कनें, और एक एहसास कि शायद वो अब भी कहीं आसपास थी। वह सीधा हुआ, उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया, और बारिश की बूंदों को आँखों पर गिरने दिया जैसे उन्हें बहने देना ही उस बेचैनी से राहत का एकमात्र तरीका हो।उसके भीतर अब एक अजीब-सी शांति थी, जैसे उसने स्वीकार कर लिया हो कि हर तलाश का मतलब मिलना नहीं होता, कभी-कभी वह सिर्फ़ महसूस करना ही होता हैं।
वह सिर झुकाए गहरी साँस ले ही रहा था कि अचानक उसके कानों में एक परिचित-सी आवाज़ गूंजी। “आरव!” वो एक शब्द, पर जैसे किसी ने उसके भीतर की हर रग में बिजली दौड़ा दी हो। वह पल भर को ठिठक गया, फिर धीरे से सिर उठाया और पलटते ही उसकी साँसें मानो वहीं थम गईं। बारिश के बीच, प्लेटफ़ॉर्म की भीड़ को चीरती हुई एक लड़की उसकी ओर भागती चली आ रही थी। उसकी चाल में एक अधीरता थी, और आँखों में एक पहचान की चमक। वो करीब आई लगभग पाँच फीट चार इंच लंबी, उसके कंधों तक आते काले, घने बाल बारिश से गीले होकर गालों से चिपक रहे थे। उसने हल्के आसमानी रंग की ड्रेस पहन रखी थी, जो हवा और बारिश के साथ लहरा रही थी। आरव का दिल जैसे अपनी जगह से निकल कर उसके पास भाग गया। उसकी नज़रें सीधी उस लड़की की आँखों पर टिक गईं वो वही आँखें थीं…वो ही गहराई, वही नमी, वही अजीब-सी खामोशी। उसे एक पल में समझ आ गया ये वही लड़की थी, वही, जिसे उसने बस की खिड़की से देखा था। बारिश के बीच वो दोनों एक पल के लिए ठहर गए समय जैसे थम गया था। शोर, भीड़, आवाज़ें सब पीछे छूट गईं। सिर्फ़ उनकी नज़रें बोल रही थीं धीरे, गहराई से, बिना किसी शब्द के। आरव का ध्यान उसकी आँखों से होते हुए धीरे-धीरे उसके चेहरे पर गया गोल, उजला चेहरा, लम्बी पलकें जो बारिश की बूँदों से चमक रही थीं, और होंठों पर हल्की-सी मुस्कान, जो कहे बिना सब कुछ कह रही थी।
उसे लगा, जैसे दुनिया घूमना बंद हो गई हो। दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि उसकी आवाज़ तक सुनाई दे रही थी। उसके चेहरे का रंग एकदम लाल पड़ गया, हथेलियाँ गीली हो गईं, और वह बस वहीं खड़ा रह गया जैसे किसी सपने के बीच जाग गया हो। लड़की उसके सामने आकर रुक गई, बालों से पानी झटकते हुए मुस्कराई एक हल्की, पर सच्ची मुस्कान के साथ और आरव…वह सिर्फ़ उसे देखता रहा। बिना कुछ कहे, बिना कुछ सोचे क्योंकि कभी-कभी, कुछ मुलाक़ातें शब्दों से नहीं, बस नज़रों के कंपन से पूरी हो जाती हैं।
बारिश अब भी गिर रही थी छोटे-छोटे मोतियों की तरह आसमान से उतरती बूंदें दोनों के बीच हवा में ठहर सी गईं थीं।लड़की उसके सामने आकर कुछ पल तक हाँफती रही, फिर अचानक, बिना कुछ कहे, वो आगे बढ़ी और उसे कसकर गले से लगा लिया। आरव एक पल को बिल्कुल जड़ हो गया। उसने बस अपनी आँखें खोलकर हवा में ठहरती उस अनुभूति को महसूस किया उसकी देह सिहर उठी, साँसें अटक गईं। बारिश की ठंड अब कहीं गायब थी, उसकी जगह एक अनकही गर्माहट ने ले ली थी जो सीधी उसके सीने के भीतर उतर गई। वो समझ नहीं पा रहा था कि ये सपना था या हक़ीक़त। पर जो भी था बड़ा ही खूबसूरत था। उसकी उंगलियाँ हल्के से काँपीं, दिल की धड़कनें इतनी तेज़ हो गईं कि उसे लगा वो आवाज़ बारिश के शोर में भी सुनाई दे रही होगी। उसके भीतर बरसों से बसा एक सूनापन टूट गया था जैसे कोई बंद दरवाज़ा अचानक खुल गया हो, और भीतर से रोशनी की बाढ़ उमड़ पड़ी हो। हर एक पल उस आलिंगन में जैसे हज़ारों अनकहे शब्द समा गए थे। आरव की आँखें अपने आप बंद हो गईं उसने कोई जवाब नहीं दिया, बस धीरे से अपनी साँसें उसके कंधे के पास छोड़ दीं। उसके भीतर जो कंपन था, वो अब दिल की गहराइयों में उतर चुका था।
उसका मन कह रहा था “बस, यही पल… यहीं ठहर जाए।” बारिश अब उनके चारों ओर परदा बन चुकी थी, भीड़ पीछे कहीं धुंधली पड़ गई थी, और स्टेशन की सारी आवाज़ें जैसे थम गई थीं। समय भी रुककर उस दृश्य को निहार रहा था दो लोग, दो धड़कनें, और एक अनकहा मिलन। जब लड़की धीरे-धीरे पीछे हटी तो आरव अब भी वहीं जड़ बना हुआ खड़ा था चेहरे पर पानी और आँसुओं की बूँदें एक साथ बह रही थीं,और उसकी आँखों में वो चमक थी जो किसी की ज़िंदगी बदल देने वाले पल के बाद आती थीं। पर इस पल वो कुछ बोल नहीं पाया क्योंकि जब दिल पहली बार सच में किसी को महसूस करता है, तो शब्द अपनी जगह खो देते हैं। आज उसने इस बात को गहराई से महसूस किया था। आरव अभी-अभी अपनी धड़कनों को थाम ही पाया था लेकिन फिर…लड़की ने अचानक उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में ले लिया। उसकी हथेलियाँ ठंडी और भीग हुई थीं, फिर भी धीरे-धीरे उस गर्माहट का एहसास दे रही थीं। आरव का मन थरथराया एक अजीब बेचैनी और मीठा सिहरन उसके पूरे शरीर में फैल गया। उसने उसे देखा। उसकी आँखें बड़ी, गोल, और कुछ कह रही थीं पर इस बार शब्दों की जरूरत नहीं थी। उनकी नज़रें मिलीं, और जैसे दुनिया अचानक धीमी पड़ गई। बारिश की आवाज़, स्टेशन की हलचल, सब कुछ गायब हो गया। सिर्फ़ उनके आँखों का मिलन था, एक गहरा संवाद जो शब्दों के बिना पूरी तरह बोल रहा था। फिर…वो धीरे-धीरे उसके पास आई और इतने पास की अगले ही पल दोनों के होठ एक दूसरे के होठों को छुने लगे।आरव की साँसें रुक गईं। उस पल में हर चीज़ स्थिर हो गई हवा, बारिश, समय, धड़कनें सब जैसे उस क्षण के लिए थम गए थे। हाथों का स्पर्श, होठों का हल्का दबाव, और आँखों का मिलना सब मिलकर एक ऐसी अनुभूति बना रहे थे, जिसे आरव ने अपने जीवन में कभी महसूस नहीं किया था। उसकी आँखें खुली रहीं, और उसने देखा कि लड़की की आँखें भी उसकी आँखों में थीं। एक अजीब गर्माहट, रोमांच और नर्मी ने उसके पूरे अस्तित्व को छू लिया। दिल की धड़कनें इतनी तेज़ हो गईं कि उसे लगा जैसे कानों में सिर्फ़ उनकी धड़कनें ही सुनाई दे रही हों। वो पल लंबा खिंच गया, हर सेंटीमीटर, हर सांस, हर नज़र एक अनकहे संवाद की तरह था। आरव को ऐसा लगा मानो जैसे उसकी आत्मा पहली बार किसी और की आत्मा को महसूस कर रही हो। सारी बेचैनी, सारी उम्मीद, सारी जिज्ञासा सब एक पल में घुलकर बस उस एहसास में बदल गई, जो पहली बार सच में प्रेम के रूप में प्रकट हो रहा था।
उसके भीतर जिस एहसास ने जन्म लिया था, वह इतना प्रबल था कि आरव के हाथ अनायास ही उठे और उसने उसे अपने करीब खींच लिया। लड़की के कदम खुद-ब-खुद उसके सीने की ओर बढ़े, और अगले ही पल उसका सिर आरव के सीने पर ठहर गया। बारिश की बूँदें अब भी उन पर गिर रही थीं पर उस पल दोनों के बीच सिर्फ़ धड़कनों की आवाज़ रह गई थी। आरव का हृदय जैसे किसी नए ताल में धड़कने लगा था, हर एक धड़कन मानो उस अनकहे भाव को बोल रही थी जो शब्दों में कभी नहीं कहा जा सकता। लड़की की साँसें धीमी हो गईं, वो उस स्पर्श में कोई सुरक्षा, कोई अपनापन ढूँढ रही थी। उसका दिल भी उसी लय में चल पड़ा धीरे-धीरे, उस आवाज़ के साथ जो उसके कानों के बहुत पास थी। उसे लगा जैसे उसके भीतर की हर बेचैनी पिघल रही हो। उसने आँखें बंद कर लीं, और एक अजीब-सी शांति उसके चेहरे पर उतर आई। वो अब कुछ नहीं सोच रही थी न अतीत, न भविष्य सिर्फ़ वही क्षण था, जहाँ दुनिया की सारी आवाज़ें थम चुकी थीं और सिर्फ़ दो दिलों का संगीत गूँज रहा था। बारिश अब धीमी पड़ चुकी थी, हवा में मिट्टी की गंध और धड़कनों का संगम था। लड़की के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी वो मुस्कान जो किसी प्रश्न का उत्तर नहीं, बल्कि एक सच्चे एहसास की स्वीकृति थी।
★★★
जारी रहेगी!
पिछले अध्याय में आपने देखा कि वीरनगर एक जीवंत शहर था। आरव अपने दोस्तों से मिलता है और एक लड़की को देखता है, जिससे वह प्रभावित होता है।
बारिश के मौसम में, आरव स्टेशन पर उस लड़की का इंतज़ार कर रहा था, जिसे उसने पहले देखा था। एक ट्रेन के आने पर, वह उम्मीद से खिड़कियों की ओर देखता है, लेकिन उसे वह चेहरा नहीं दिखता। निराशा के बावजूद, वह रुकता है, एक और ट्रेन का इंतज़ार करता है। अंततः, वह लड़की आती है, और वे मिलते हैं। वे गले मिलते हैं, अंततः एक गहरा और अनकहा मिलन होता है।
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बारिश की बूँदें अब धुंधली पड़ने लगी थीं। हवा का शोर धीरे-धीरे किसी दूर जाती हुई आवाज़ में बदल रहा था। आरव को महसूस हुआ जैसे उसके आसपास का दृश्य धुएँ की तरह फीका पड़ने लगा हो स्टेशन, भीड़, लड़की की आँखें, उसका चेहरा, सब कुछ किसी अनदेखी रोशनी में घुलता जा रहा था।वो अब भी उसे अपने पास महसूस कर रहा था उसके बालों की खुशबू, उसके सीने से लगी उस धड़कन की गूँज सब कुछ अब भी वहीं था, बस धीरे-धीरे किसी और दुनिया में पीछे छूटता जा रहा था और फिर...एक झटके के साथ उसने आँखें खोलीं। कमरे में हल्की धूप थी, पंखे की धीमी आवाज़ चल रही थी। वो बिस्तर पर था लेकिन दिल की धड़कन अब भी तेज़ थी, जैसे वह अभी-अभी किसी गहरी दौड़ से लौटा हो। उसने गहरी साँस ली। कुछ पल तक वह छत को देखता रहा चेहरे पर वही उलझन, वही अधूरा एहसास। उसकी उंगलियाँ अब भी मानो किसी अदृश्य स्पर्श को महसूस कर रही थीं, और उसके होंठों पर वही गुमनाम मुस्कान थी जो सपने से बाहर निकलने के बाद भी मिट नहीं रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था क्या वह सच था या बस सपना? पर फर्क अब मायने नहीं रखता था, क्योंकि जो महसूस हुआ था, वह इतना सजीव था कि वह उसे पूरी तरह जागते हुए भी महसूस कर रहा था। कमरे में रोशनी बढ़ रही थी, पर आरव की आँखों में अब भी वो सपना झिलमिला रहा था मानो उसकी कोई अदृश्य परछाईं अब भी उसके दिल के किसी कोने में बैठी हो।
आरव ने आँखें खोलीं… या शायद आधी ही खोली थीं। कमरे में हल्की धूप थी, पर उसे अब भी लग रहा था जैसे बारिश की बूँदें खिड़की पर गिर रही हों। वह पूरी तरह जागा नहीं था उसका मन अब भी उस अधूरे स्वप्न में अटका हुआ था, जहाँ किसी ने उसे पुकारा था, जहाँ किसी ने उसके सीने पर सिर रखा था, और जहाँ उसकी धड़कनों की आवाज़ किसी और ने सुनी थी।वो पल अब बीत चुका था पर उसका असर अब भी उसके भीतर बह रहा था। उसके सीने में वही गर्माहट थी, साँसों में वही भारीपन, और आँखों के पीछे अब भी वही चेहरा वो चेहरा जो उसने सिर्फ़ एक बार देखा था, पर जिसने उसकी पूरी चेतना को छू लिया था। वो आधी नींद में पड़ा था, पर उसका मन अब भी उसी क्षण को दोहरा रहा था। कभी वो महसूस करता कि किसी की उंगलियाँ अब भी उसकी त्वचा पर फिसल रही हैं, कभी लगता कि हवा में वही खुशबू घुली हुई है वो जो उस लड़की के बालों से आई थी। आरव ने करवट बदली। दिल की धड़कन अब भी उतनी ही तेज़ थी जैसे उसका शरीर किसी गहरी घटना से होकर आया हो। वो जानता था कि यह सपना था, पर जो एहसास उसके भीतर जगा था, वो सपने से कहीं ज़्यादा वास्तविक था। वो धीरे से आँखें बंद कर लेता है शायद फिर से उस पल में लौट आने के लिए, या शायद यह परखने के लिए कि कहीं वह अब भी सपना देख तो नहीं रहा। कमरे की हवा स्थिर थी, पर उसके भीतर भावनाओं का तूफ़ान चल रहा था। उसकी सांसों में अब भी वही नमी थी, जो किसी अनकही मुलाक़ात के बाद रह जाती है। उसे लगा मानो उसका दिल और दिमाग दो अलग दुनियाओं में खड़े हों एक, जहाँ वो जाग चुका है; और दूसरी, जहाँ वो अब भी उसकी आँखों में खोया हुआ है। वो मुस्कुराया नहीं, कुछ बोला भी नहीं बस धीरे-धीरे उस एहसास को अपने भीतर उतरने दिया क्योंकि शायद पहली बार उसने महसूस किया था कि कभी-कभी सपने भी सच से ज़्यादा सजीव होते हैं।
आरव ने करवट बदली। आँखें खुली तो थीं, पर उनमें अब भी वही धुंध थी सपने की धुंध, जो हकीकत की रोशनी में भी नहीं छँट रही थी। कमरे की हवा में एक अजीब-सी शांति थी, मानो समय भी ठहर गया हो ताकि वह उस एहसास से बाहर न निकले। उसका बिस्तर से उठने का मन नहीं था। जैसे भीतर कोई अदृश्य ताक़त उसे वहीं थामे हुए थी। वह धीरे से फिर तकिए पर सिर रख देता है आँखें आधी खुली, आधी बंद।
सपना अब टूट चुका था, पर उसका असर अब भी उसकी नसों में बह रहा था। दिल की धड़कनें सामान्य होनी चाहिए थीं, पर वे अब भी उसी लय में चल रही थीं जिस लय में उसने उस स्पर्श, उस नज़दीकी को महसूस किया था। वो अपने सीने पर हाथ रखता है जैसे यह परखना चाहता हो कि वो सब जो उसने महसूस किया, सच में बीत चुका है या अब भी वहीं है। उसके भीतर एक अजीब-सी बेचैनी थी, पर उसमें मिठास थी जैसे किसी अनकहे प्रेम का पहला स्वाद। वह गहरी साँस लेकर आँखें बंद कर लेता है, मानो फिर से उस दुनिया में लौटना चाहता हो, जहाँ सब कुछ अधूरा होकर भी पूरा था। जहाँ वो था, और वो थी बारिश, स्टेशन, और वो अनकहा मिलन।
आरव जानता था कि वह सपना था, पर उसका मन अब भी उसी किनारे पर खड़ा था, जहाँ नींद और हकीकत आपस में मिलते थे। वह फिर से लेट गया शायद कुछ देर और उस एहसास को महसूस करने के लिए, या शायद इसलिए कि वह अब तक अपने भीतर उस लड़की की उपस्थिति से पूरी तरह बाहर नहीं आया था। उसकी पलकों के नीचे अब भी वही दृश्य तैर रहा था वो बारिश, वो आँखें, और वो पल जो अब उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था…भले ही वह केवल एक सपना था।
काफी देर तक वह वैसे ही लेटा रहा आँखें छत पर टिकीं थीं, लेकिन मन अब भी उस सपने की लहरों में भटक रहा था। फिर जैसे भीतर से किसी ने धीरे से आवाज़ दी “उठ जा, दिन शुरू हो गया है…” आरव ने गहरी साँस ली, हाथों से चेहरे पर पानी जैसा एहसास पोंछा, और धीरे-धीरे बिस्तर पर बैठ गया। कमरे में हल्की धूप खिड़की से अंदर झाँक रही थी, उसकी परछाईं दीवार पर फैल रही थी। वो कुछ देर तक खाली नज़रों से सामने देखता रहा। फिर जैसे अनमने मन से उठ खड़ा हुआ। पैर ज़मीन पर रखे ठंडे फर्श की नमी ने उसे फिर हकीकत का एहसास दिलाया। वो वॉशरूम की तरफ बढ़ा। आईने के सामने पहुँचा तो कुछ पल अपने ही चेहरे को देखता रहा थोड़ी सूजी हुई आँखें, होंठों पर वही हल्की मुस्कान और चेहरा जैसे अब भी किसी मधुर धड़कन में डूबा हुआ हो। उसने नल खोला। ठंडे पानी की बूँदें जब उसके चेहरे से टकराईं, तो जैसे सपने की परतें धीरे-धीरे धुलने लगीं पर भीतर का असर अब भी बचा था। वो देर तक चेहरा धोता रहा, फिर नहाने चला गया। पानी उसके बालों, गर्दन, कंधों से बहता हुआ नीचे गिरता रहा, और हर बूँद मानो उस अधूरे एहसास की एक-एक परत अपने साथ ले जाती रही। पर जितना वह खुद को साफ़ करने की कोशिश करता, उतना ही मन उस पल की गर्माहट में लौट जाता। उसने आँखें बंद कीं और फिर से वही चेहरा तैर उठा: वो आँखें, वो मुस्कान, वो आलिंगन। आरव ने खुद को संभाला, गहरी साँस ली, और नल बंद कर दिया। जब वह बाहर आया, तो शरीर तरोताज़ा था पर मन अब भी उसी अधूरी शांति में डूबा था, जिसे वह “सपना” कहकर भुला नहीं पा रहा था। उसने कपड़े पहने, बालों को तौलिये से सुखाया, और कुछ देर खिड़की के पास खड़ा होकर बाहर देखा। सड़क पर हल्की धूप थी, हवा में मिट्टी की खुशबू। उसे लगा कहीं न कहीं, उस सपने की लड़की अब भी इस दुनिया में ज़रूर होगी।
आरव रसोई में खड़ा था, नाश्ता बना रहा था टोस्ट पर घी फैलाते हुए और चाय के लिए पानी उबालते हुए। पर हर चीज़ उसके हाथों से धीरे-धीरे गुजर रही थी, क्योंकि उसका मन कहीं और था। चाय के कटोरे की भाप उसकी नाक तक पहुँचते ही उसे उस सपने की गूँज याद आई लड़की की आँखें, मुस्कान, और बारिश में वह पल। हाथ जैसे अपने आप रुक गए, और चाय का चम्मच आधा भरा ही रह गया। वह खिड़की के पास खड़ा हो गया, सड़क पर चलती हुई हल्की हल्की धूप और हवा को निहारते हुए। हर गुजरती छाया में उसे लगा कहीं उसका सपना फिर से ज़िंदा हो उठा हो। पड़ोस के बच्चे खेल रहे थे, लेकिन उसकी नज़रें बार-बार वो छोटी, तेज़ चलती मुस्कान ढूँढ रही थीं। आरव ने खुद से मुस्कुराया जैसे अपनी ही बेचैनी को समझा रहा हो। सपने का असर अब भी उसके ऊपर था, उसके भीतर जो हलचल थी, वो हकीकत की दुनिया में भी महसूस हो रही थी। टोस्ट तैयार हुआ। वह प्लेट उठाकर खिड़की के पास खड़ा हो गया, सुरज की हल्की धूप में उसे अपने हाथों की गर्माहट महसूस हुई। पर मन अब भी वहीं खड़ा था जहाँ बारिश में खिड़की के पीछे वह पल अभी भी जी रहा था। आरव ने चाय का घूँट लिया। वो जानता था कि अब भी वो पल कहीं उसके भीतर जिंदा है, और शायद दिन भर उसके साथ रहेगा।
आरव ने नाश्ता खत्म किया और खिड़की से बाहर देखा। सड़क पर हल्की हल्की धूप और हवा चल रही थी। हर छोटी चीज़ उसकी नज़र में किसी खास संकेत की तरह उभर रही थी सड़क पर चलती लड़की की मुस्कान, किसी के हाथ में छतरी का रंग, हर चीज़ उसे उस सपने की याद दिला रही थी। वह मुस्कराया खुद से, और अपने भीतर चल रही हलचल के साथ।सपने का असर अभी भी उसके भीतर था। लेकिन अब उसे समझ में आ रहा था कि उसे हकीकत में भी जीवन जीना है। वो धीरे-धीरे तैयार हुआ, सारे कपड़े बदले, बाल संवार लिए, और जूते पहनकर घर से बाहर निकल गया। सड़क पर कदम रखते ही उसे हल्की ठंडी हवा लगी। हर साँस के साथ उसके भीतर की बेचैनी धीरे-धीरे संतुलित होती गई। वह अपनी पुरानी आदत के अनुसार जिम की तरफ बढ़ा। रास्ते में हर आवाज़, हर हलचल, उसे याद दिला रही थी कि सपने का असर अभी भी जीवित है, लेकिन अब उसे उसे ऊर्जा में बदलना होगा। जिम पहुंचते ही वह पूरे दिन की थकान और सपनों की गर्माहट को व्यायाम के जोर में डालने लगा। डम्बल उठाना, ट्रेडमिल पर दौड़ना, स्ट्रेचिंग करना हर क्रिया उसकी बेचैनी और भावनाओं को नियंत्रित कर रही थी। पर भीतर कहीं, उसके मन में वही मुस्कान, वही आँखें, जैसे हर दौड़ के साथ उसके दिल की धड़कन में गूंज रही हों। आरव ने महसूस किया सपने ने उसे अंदर से हिला दिया था, लेकिन अब वह दिन की शुरुआत कर सकता है, अपने मन और शरीर दोनों को संतुलित करते हुए।
आरव घर लौट रहा था। सड़क पर गुजरते लोग, ट्रैफिक की हलचल, दूर खड़ी बसें सब कुछ वही था, पर अब उसके भीतर की दुनिया बदल चुकी थी। पहले वह बस जिंदगी काट रहा था दिन गुजरते, समय निकलता, काम, पढ़ाई, रोज़मर्रा की हलचल…सब कुछ जैसे खाली और बेवजह होता। पर आज कुछ अलग था। हर कदम, हर साँस, हर धड़कन उसे अपने अंदर महसूस हो रही थी। सपने का असर अभी भी उसके भीतर गूंज रहा था। वह महसूस कर रहा था कि मनुष्य केवल जीता नहीं, महसूस भी करता है। वो हवा, हल्की धूप, लोगों की आवाज़, सड़क पर बहती हल्की ठंडी हवा सभी चीज़ों में उसे अब जीवन का स्पर्श महसूस हो रहा था।
आरव ने गहरी साँस ली। दिल की धड़कनें तेज़ थीं, पर शांत भी।उसने महसूस किया कि वह अब केवल दिन नहीं काट रहा था। वह जी रहा था हर पल को, हर एहसास को। वो मुस्कराया। पहले के खालीपन की जगह अब उत्साह, हल्की बेचैनी, और उम्मीद की हल्की-सी लहर थी। आज से, वह जान गया था अब वह सिर्फ जिंदगी नहीं काटेगा। अब वह हर पल को जीएगा, हर एहसास को महसूस करेगा, और शायद… हर सपना, हर याद उसे आगे की राह दिखाएगी।
★★★
जारी रहेगी!
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पिछले अध्याय में आपने देखा कि आरव एक लड़की से मिलता है और एक गहरे पल का अनुभव करता है।
आरव एक सपने से जागता है, जो वास्तविक से भी अधिक सजीव लगता है। वह सपने को महसूस करता रहता है, भले ही वह जागा हुआ हो, और इसका प्रभाव उसके दैनिक जीवन पर पड़ता है, जिससे वह अपने आसपास की दुनिया को एक नए तरीके से अनुभव करता है। वह जिम में व्यायाम करता है, और आखिरकार, वह समझता है कि वह अब "सिर्फ दिन नहीं काटेगा" बल्कि हर पल को जीएगा।
Now Next
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★★★
सुबह की हल्की सुनहरी रोशनी परदे से छनकर कमरे में फैल रही थी। बिस्तर पर 24 साल की एक लड़की गहरी नींद में थी उसकी लंबाई करीब पाँच फीट चार इंच, चेहरा नर्म और शांत। मोटी, घनी पलकें उसकी बंद आँखों पर साया किए थीं, जैसे किसी चित्रकार ने बड़ी कोमलता से उन्हें सजाया हो। उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी, मानो कोई मीठा सपना अब भी उसके मन में चल रहा हो। बाहर से आती हवा उसके बालों की कुछ लटों को धीरे से छूकर गुज़र जाती, और कमरा उसकी साँसों की धीमी लय से भरा था।
घड़ी की सुइयाँ साढ़े सात पर ठहर चुकी थीं। पाँच और छह बजे के अलार्म तो कब के बजकर थक चुके थे, लेकिन बिस्तर पर वह अब भी उनींदी पड़ी थी। सिरहाने रखा मोबाइल हल्की कंपन के बाद भी अनदेखा रह गया था।
उसके बाल तकिए पर बिखरे थे, जैसे नींद ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले रखा हो। बाहर से आती धूप अब तेज़ हो चली थी उसकी पलकों पर पड़कर सुनहरी झिलमिलाहट बना रही थी। कमरे में बस पंखे की धीमी गूँज और उसकी नींद भरी साँसों की लय थी।
उसकी आँखें धीरे-धीरे खुलीं। कुछ पल तक उसने छत को खाली निगाहों से देखा, जैसे नींद और जागने के बीच कोई धुंध बाकी हो। फिर अचानक बाहर से आती ऊँची आवाज़ों ने उस सन्नाटे को तोड़ दिया। नीचे से परिवार के लोगों की बहस की आवाज़ें साफ़ सुनाई दे रही थीं किसी की झुंझलाहट, किसी की शिकायत, और बीच-बीच में दरवाज़े के ज़ोर से बंद होने की आवाज़। वह कुछ देर तक चुपचाप लेटी रही, मन में एक भारीपन लिए। नींद पूरी नहीं हुई थी, पर शांति का वो छोटा-सा कोना अब पूरी तरह टूट चुका था। धीरे से उसने तकिए के पास रखा फोन उठाया साढ़े सात बजकर बारह मिनट हो चुके थे।उसने सिरहाने से उठकर बैठने की कोशिश की, पर भीतर एक अजीब-सी थकान थी सिर्फ शरीर में नहीं, आत्मा तक में। सात साल... सात सालों से वह इस घर की आवाज़ों, झगड़ों और टूटे हुए रिश्तों के बीच खुद को जोड़ने की कोशिश करती रही थी। कभी बेटी की तरह, कभी समझदार इंसान की तरह, लेकिन हर बार वही ताने, आरोप, और अकेलापन।
कई बार उसने खुद से पूछा था “क्या मैं ही गलत हूँ?” पर अब उसे पता था, जवाब उसके भीतर नहीं, उस माहौल में था जिसने उसे तोड़-तोड़कर थका दिया था। उसका शरीर बीमार हो चुका था, पर असली बीमारी तो वो दर्द था जो हर दिन उसकी आत्मा में पलता था। वो यादें, वो रातें जब उसने आँसू निगले थे और किसी को भनक तक नहीं लगी। अब उसमें कुछटी भी सहने की ताकत नहीं बची थी। बस एक खामोशी थी इतनी गहरी कि अंदर ही अंदर सब कुछ चिल्ला रहा था।
आईने में अपनी परछाई को देखते हुए अद्विका के होंठ हिले, पर आवाज़ फुसफुसाहट-सी थी जैसे किसी टूटे मन ने खुद को समझाने की आख़िरी कोशिश की हो। "अद्विका! तू जानती है, ना कि तेरी ज़िंदगी को तेरे अलावा कोई नहीं सुधार सकता… मतलब कोई भी नहीं।" उसने खुद से कहा, आँखों में ठहरी हुई थकान और दृढ़ता दोनों झलक रहे थे।
"तू उन लोगों से उम्मीद कर रही है जिन्हें सही और गलत का फर्क तक नहीं पता… उनका हाल उस छोटे बच्चे जैसा है जो अपने ही बाल पकड़कर खुद को भी दुख देता है और दूसरों को भी।" वो एक पल के लिए चुप हो गई, जैसे अपनी ही बातों का असर खुद महसूस कर रही हो। उसके भीतर कोई पुराना दर्द हिलोरें ले रहा था, लेकिन उसके नीचे कहीं एक नई जागृति भी थी धीमी, मगर सच्ची। आईने में उसकी आँखों में अब सिर्फ़ आँसू नहीं थे… वहाँ एक हल्की-सी आग थी जीने की, खुद को फिर से पाने की।
वह धीरे-धीरे बिस्तर से उठी, पैर ज़मीन पर टिकाए, और बिना किसी भाव के सीधा वॉशरूम की ओर चल दी। ठंडे फर्श पर उसके कदमों की आवाज़ कमरे की चुप्पी में गूंज रही थी। उसने दरवाज़ा बंद किया, और जैसे ही नल खोला, बाहर की आवाज़ें फिर कानों में गूंज उठीं तेज़, कर्कश, टूटे हुए रिश्तों की चीखें।माँ, पापा और दादी तीनों की आवाज़ें एक-दूसरे में उलझी हुई थीं। कोई भी किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था। सब अपनी-अपनी कहानी, अपने-अपने दर्द को ज़ोर से साबित करना चाहते थे। अद्विका ने आईने में खुद को देखा चेहरा थका हुआ, आँखें सूजी हुईं, और होंठों पर एक कड़वी मुस्कान।
वह खुद से बुदबुदाई, “इन सभी से तो मैं परेशान हो चुकी हूँ... कैसे लड़ लेते हैं ये इतनी बुरी तरह से?” उसके शब्द जैसे दीवारों से टकराकर लौट आए। “इनकी वजह से... किसी का भी दिमाग खराब हो जाए। अच्छे-खासे इंसान की मेंटल हेल्थ चूर चूर हो जाए।” उसने नल से ठंडा पानी लिया और चेहरा धो लिया जैसे मन की गर्मी को भी धोने की कोशिश कर रही हो। पर सच्चाई ये थी कि पानी सिर्फ चेहरा ठंडा कर सकता था, दिल नहीं।
वे आवाज़ें अब अद्विका के लिए नई नहीं थीं वही पुराने ताने, वही अधूरी बातें, वही चोटिल शब्द जो सालों से घर की दीवारों से टकराते रहते थे। हर दिन यही होता था सुबह की चाय से पहले झगड़ा, दोपहर में किसी बात पर नाराज़गी, और रात तक शिकायतों का सिलसिला। पहले वह कोशिश करती थी सबको समझाने की, बातों को थमाने की लेकिन अब नहीं। अब वो बस सुनती थी, चुपचाप। उसके भीतर का शोर बाहर के शोर से कहीं ज़्यादा बड़ा हो चुका था। अब वह थक चुकी थी....हर दिन की लड़ाई से, हर रात की बेचैनी से, उस उम्मीद से भी जो बार-बार टूट जाती थी। उसके मन में बस एक ख्वाहिश रह गई थी सुकून। एक ऐसी ज़िंदगी जहाँ आवाज़ें हों तो सिर्फ़ पक्षियों की, बातें हों तो प्यार की, और ख़ामोशी किसी सज़ा की नहीं, बल्कि राहत की तरह लगे। उसने आईने में अपनी आँखों में झाँका वहाँ दर्द था, पर साथ ही कहीं बहुत गहराई में एक छोटी सी लौ भी…जीने की, बदलने की, और खुद को उस सुकून तक पहुँचाने की। अद्विका ने गहरी साँस ली और नल बंद किया। वॉशरूम का सन्नाटा, बाहर की लड़ाई की आवाज़ों से कहीं बेहतर लग रहा था। उसने आईने में अपनी परछाई को देखा वही थकी हुई आँखें, वही सूजी पलके, पर साथ में एक नई दृढ़ता की झलक भी। उसने ठान लिया कि अब वह बस सहती नहीं रहेगी। आज से, अपने लिए जीएगी। कमरे में हल्की धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी, जैसे कोई संकेत दे रही हो कि बदलाव संभव है। वह बिस्तर पर लौटने की बजाय अपने बैग की ओर बढ़ी। छोटे-छोटे कदमों में उसने उन किताबों और डायरी को उठाया, जिन्हें सालों से उसने “कभी पढ़ूंगी, कभी लिखूंगी” कहकर टाल दिया था। एक-एक किताब खोलकर उसने अपने मन की बातें लिखना शुरू किया डर, उम्मीद, शिकायतें, और सबसे ज़रूरी वो ख्वाहिशें जो सिर्फ़ उसकी थीं।बाहर से झगड़ों की आवाज़ें आती रहीं, पर अद्विका के लिए अब उनका असर कम हो चुका था। उसने महसूस किया कि सुकून बाहर नहीं, भीतर है। और आज, उसने तय किया कि वो इसे खोजेगी, चाहे रास्ता लंबा ही क्यों न हो। उसने बैग में डायरी और कुछ किताबें रखीं, एक पानी की बोतल ली, और खिड़की के पास जाकर बाहर की ओर देखा। सूरज की सुनहरी रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। "आज मैं अपने लिए शुरुआत कर रही हूँ," उसने धीरे से कहा। फिर अद्विका ने धीरे-धीरे घर से निकलने का रास्ता पकड़ा पहला कदम उस नई ज़िंदगी की ओर।
अद्विका ने नहाने के बाद ताज़गी महसूस की। उसके बाल अब भी हल्की नमी लिए थे, पर उसने उन्हें संभाल लिया और आरामदायक कपड़े पहने। उसने जल्दी-जल्दी नाश्ता तैयार किया कुछ हेल्दी और ऊर्जा देने वाला, ताकि दिनभर उसे ताकत मिले। उसके हाथ में बैग था, और हल्की सी धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी। उसने गहरी साँस ली और घर से बाहर निकल गई। पैदल चलना उसे पसंद था तीन-चार किलोमीटर का रास्ता उसने अपने कदमों के साथ-साथ अपने विचारों को भी साथ ले लिया। रास्ते में हर कदम उसे लगता कि वो अपनी जिंदगी की ओर धीरे-धीरे बढ़ रही है। छोटे-छोटे रास्ते, हल्की हवा, लोगों की हलचल सब उसे एक अलग ही ताजगी दे रहे थे।अंत में, वह यूनिवर्सिटी जाने के लिए बस स्टॉप पर पहुँच गई। बस आ रही थी, और अद्विका ने खुद को तैयार पाया दिन की चुनौतियों और नए अनुभवों का सामना करने के लिए।
बस में बैठे हुए अद्विका की आँखें बाहर की हल्की-हल्की धूप और सड़क की हलचल पर टिक गई थीं। लेकिन उसका मन बाहर की दुनिया में नहीं, भीतर की दुनिया में था सात सालों का बोझ, घर की झगड़ियाँ, और खुद को सहने की थकान। आज का सफर कुछ अलग था। यह सिर्फ़ एक बस की यात्रा नहीं थी; यह उसकी खुद की जिंदगी की दिशा बदलने वाला कदम था। हर मुसाफ़िर, हर आवाज़, हर हल्की-हल्की हंसी उसे ये याद दिला रही थी कि दुनिया में जीवन का मतलब सिर्फ़ संघर्ष नहीं होता। उसके हाथ में डायरी थी, और वह कभी-कभी अपने विचारों को उसमें लिखती। “आज मैं खुद के लिए जीऊँगी, अपनी खुशियों के लिए, अपने सपनों के लिए।” यह सिर्फ़ शब्द नहीं थे, बल्कि उसके भीतर उठ रही नई उम्मीद की झलक थी।
बस के हर मोड़ के साथ, अद्विका का मन हल्का होता गया। वह खुद को महसूस कर रही थी अपनी ताकत, अपनी कमजोरियाँ, और सबसे अहम अपनी क्षमता खुद को सुधारने और अपनी जिंदगी को नए रंग देने की। इस सफर में बस की खिड़की से आती हवा उसके लिए नए अनुभवों का प्रतीक बन गई। हर पैसेंजर, हर गाड़ी, हर आवाज़ जैसे उसे बता रही हो कि अब समय है अपनी कहानी खुद लिखने का।
बस स्टॉप पर उतरते ही अद्विका ने अपने बैग को ठीक किया और बस के गहरे सन्नाटे से निकलकर हल्की हलचल वाले ऑटो स्टैंड की ओर बढ़ी। वहां कई ऑटो खड़े थे, उनकी हॉर्न और इंजन की आवाज़ों का शोर अलग ही था।
अद्विका ने एक ऑटो को रोका और चालक से बोली, “भाईसाहब, यूनिवर्सिटी तक ले चलो।”
ऑटो चालक ने मुस्कुराते हुए कहा, “कौन सी यूनिवर्सिटी? जल्दी जाना है?”
अद्विका ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “हाँ, थोड़ी जल्दी है। कॉलेज के लिए।”
चलाते हुए ऑटो में उसने अपने आसपास देखा। सड़कों पर हल्की धूल, लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त, और कहीं-कहीं दुकानों से आती खुशबू। वह सोच रही थी बस की यात्रा ने उसे भीतर की दुनिया से बाहर निकाला, और अब ऑटो की यह छोटी सी सफर उसे बाहर की दुनिया में ढाल रही थी।
चालक ने हल्की बातचीत शुरू की, “आज मौसम बड़ा अच्छा है, है ना?”
अद्विका ने सिर हिलाते हुए कहा, “हाँ, बहुत अच्छा है।”
“अरे, फिर तो आप दिन को सही तरीके से शुरू कर रही हो। ये जल्दी उठना और सफर करना भी तो कुछ अलग ही अनुभव देता है,” चालक ने हल्की हँसी के साथ कहा।
अद्विका ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “हाँ, सच में… अब मैं बस अपनी जिंदगी के लिए जीना चाहती हूँ, खुद के लिए।” ऑटो धीरे-धीरे यूनिवर्सिटी की ओर बढ़ रही थी, और अद्विका के मन में भी हल्की-हल्की ऊर्जा और नई उम्मीद जाग रही थी।
ऑटो यूनिवर्सिटी के मुख्य गेट पर रुकी। गेट पर बड़ा सा बोर्ड लगा था: “शांति निकेतन यूनिवर्सिटी”। नाम से ही एक अलग ही शांति और गंभीरता का एहसास होता था। गेट पर सुरक्षा गार्ड और कुछ छात्र-छात्राएँ बाहर-भीतर आ-जा रहे थे।अद्विका ने गहरी साँस ली। उसके सामने विशाल परिसर था चौड़ी सड़कें, दोनों ओर हरियाली और पेड़, जिनकी छाँव में बेंच रखी थीं। कहीं-कहीं छात्र अपनी किताबों के साथ चलते हुए, किसी को फोन पर बातें करते हुए दिखाई दे रहे थे। वातावरण में हल्की हल्की चहल-पहल थी, लेकिन इसमें भी एक अनुशासन और शांति का तत्त्व महसूस होता था। कॉलेज की इमारत सफेद रंग की, दो मंज़िला और बड़े-बड़े खिड़कियों वाली थी। इसके बाहर छोटे-छोटे गार्डन थे, जहां लोग बैठकर बातें कर रहे थे या किताबें पढ़ रहे थे। हर जगह एक सकारात्मक ऊर्जा महसूस हो रही थी, जो अद्विका को भीतर तक प्रेरित कर रही थी।
अद्विका सेकेंड ईयर योग कोर्स में थी। यह कोर्स उसे खुद के साथ जुड़ने, मानसिक और शारीरिक संतुलन बनाने का मौका देता था। योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं था, बल्कि ध्यान, प्राणायाम और आत्म-सुधार की गहराई तक जाने वाला रास्ता था। सेकेंड ईयर में अब वह आसान आसनों से आगे बढ़कर थोड़े चुनौतीपूर्ण आसनों और ध्यान तकनीकों की तरफ बढ़ रही थी। इस कोर्स में सिर्फ़ शारीरिक फिटनेस नहीं, बल्कि मानसिक संतुलन और आत्म-अनुभूति पर भी ज़ोर दिया जाता था।
क्लासरूम के अंदर हल्की रोशनी, सफेद बोर्ड, और आरामदायक मैट्स रखे हुए थे। कुछ छात्र पहले से ही ध्यान में बैठे थे। कमरे की दीवारों पर प्रेरक वाक्य लिखे थे “सांस की गहराई में, मन की शांति।”, “आज के प्रयास, कल की सफलता।”
अद्विका ने अपने मैट पर बैठते हुए अपने बैग से डायरी निकाली। उसे अब समझ में आ रहा था कि यह जगह सिर्फ़ शिक्षा का नहीं, बल्कि खुद को खोजने और खुद से जुड़ने की जगह है। वह धीरे-धीरे आँखें बंद करके गहरी साँस लेने लगी। उसके भीतर की हल्की बेचैनी अब कम हो रही थी, और एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा था। यह जगह उसे सिखा रही थी कि खुद के लिए समय निकालना, खुद को सुधारना और खुद के साथ शांत रहना कितना जरूरी है।
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जारी रहेगी!