Novel Cover Image

Wires of the Heart

User Avatar

mani kharwar

Comments

0

Views

145

Ratings

0

Read Now

Description

वो जन्मी नहीं थी, उसे बनाया गया था। वो इंसानों से दूर, अकेलेपन की सज़ा जी रहा था। जब किस्मत ने दोनों को मिलाया, तो उनके दिल एक ही धड़कन पर आ गए — एक धड़कन असली, दूसरी कृत्रिम। लेकिन एक ऐसी दुनिया में जहाँ हर सच आग की तरह सबकुछ जला सकता ह...

Total Chapters (50)

Page 1 of 3

  • 1. मेरा रहस्यमयी हमसफ़र - Chapter 1

    Words: 775

    Estimated Reading Time: 5 min

    सियोल की ठंडी रात। बाहर आसमान में हल्की-हल्की बर्फ़ की फुहारें गिर रही थीं। शहर की चमकदार लाइटें दूर से किसी तारे की तरह टिमटिमा रही थीं। लेकिन एक आलीशान बंगले के भीतर, सब कुछ चुप और स्थिर था।

    उस बंगले का मालिक, आदित्य रेहान खिड़की के पास खड़ा था। उसकी नज़रें बाहर की दुनिया पर थीं, लेकिन मन अंदर की गहरी खामोशी में खोया हुआ था।

    वह किसी साधारण बीमारी का शिकार नहीं था। उसे इंसानों से एलर्जी थी।

    अगर किसी ने उसे छू लिया, तो उसकी साँसें थम सकती थीं, उसका शरीर सूज जाता, और हालत बिगड़ जाती। यही वजह थी कि वह सालों से लोगों से दूर, अकेला रह रहा था।

    उसने धीरे से अपने हाथों की ओर देखा। हाथों पर दस्ताने थे, लेकिन उसके दिल पर जो परत चढ़ी थी, उसे कोई नहीं हटा सकता था।

    "ज़िंदगी भर अकेलापन ही मेरा साथी है…" उसने सोचा।

    ---

    इसी समय, दूसरी ओर शहर के एक छोटे से कोने में, एक लड़की अपनी जिद्दी ज़िंदगी से जूझ रही थी। उसका नाम था सान्या मेहरा

    सान्या एक जोशीली, सपनों से भरी लड़की थी। उसके पास कई अनोखे आइडियाज थे, छोटी-छोटी खोजें और आविष्कार, लेकिन किसी ने उसकी कद्र नहीं की। जब भी वह किसी को अपनी चीज़ें बेचने जाती, लोग उसका मज़ाक उड़ाते।

    “ये लड़की पागल है।”

    “इसकी मशीनें काम की नहीं।”

    लेकिन सान्या कभी हार नहीं मानती।

    आज भी वह अपने छोटे से कमरे में बैठकर एक नया प्रयोग कर रही थी — एक छोटा सा गैजेट जो लोगों की ज़िंदगी आसान बना सकता था। लेकिन अचानक मशीन से चिंगारी निकली और पूरा कमरा धुएँ से भर गया।

    सान्या ने खाँसते हुए कहा,

    “ओह, फिर से फेल हो गया… लेकिन कोई बात नहीं, अगली बार सही होगा।”

    वह हमेशा यही सोचती — एक दिन लोग मुझे ज़रूर पहचानेंगे।

    ---

    इधर आदित्य रेहान के जीवन में एक और कहानी चल रही थी।

    उसका एक करीबी वैज्ञानिक मित्र, प्रोफेसर बैक, ने हाल ही में एक क्रांतिकारी आविष्कार किया था — एक इंसान जैसे दिखने वाला रोबोट, जिसका नाम था ए.जे.आई-3।

    यह रोबोट बिल्कुल इंसान की तरह हँस सकता था, बात कर सकता था, यहाँ तक कि भावनाएँ भी दिखा सकता था। प्रोफेसर बैक ने सोचा था कि अगर यह रोबोट सफल हुआ तो वह दुनिया बदल देगा।

    लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। जब उन्होंने आदित्य को रोबोट दिखाया, तो किसी तकनीकी दिक़्क़त की वजह से मशीन अचानक बंद हो गई।

    “अरे नहीं… ये खराब हो गया!” प्रोफेसर परेशान हो गए।

    अब उन्हें तुरंत किसी इंसान की ज़रूरत थी जो थोड़े दिन उस रोबोट की जगह ले सके, ताकि आदित्य को लगे कि मशीन पूरी तरह काम कर रही है। वरना उनका प्रोजेक्ट बर्बाद हो जाता।

    तभी उन्हें याद आई सान्या मेहरा की।

    ---

    सान्या और रोबोट की शक्ल एक जैसी थी।

    प्रोफेसर ने तुरंत उसे बुलाया।

    “सान्या, मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। तुम कुछ दिन हमारे रोबोट की जगह इंसान बनकर अभिनय करोगी। बदले में तुम्हें पैसे मिलेंगे।”

    सान्या हैरान रह गई।

    “क्या? मैं… रोबोट बनने का नाटक करूँ? ये मज़ाक है?”

    “नहीं,” प्रोफेसर ने गंभीर स्वर में कहा। “ये हमारे प्रोजेक्ट का सवाल है। और तुम्हारे लिए भी अच्छा मौका। अगर तुमने हाँ कहा तो तुम्हें मोटी रकम मिलेगी।”

    सान्या सोच में पड़ गई। उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी। परिवार हमेशा उसे बेकार समझता था, और अब शायद यही मौका था खुद को साबित करने का।

    आखिरकार उसने हामी भर दी।

    “ठीक है। मैं तैयार हूँ। लेकिन याद रखना, अगर किसी ने पकड़ लिया तो इसकी ज़िम्मेदारी तुम्हारी होगी।”

    ---

    उधर आदित्य रेहान अपने कमरे में अकेला बैठा था।

    उसका सहायक बोला,

    “सर, आज प्रोफेसर आपको एक नया रोबोट दिखाने वाले हैं। शायद यह आपकी ज़िंदगी बदल दे।”

    आदित्य ने ठंडी मुस्कान दी।

    “ज़िंदगी बदलना? इंसानों पर भरोसा करने से ही तो यह हालत हुई है। अगर मशीन सचमुच इंसान जैसी है, तो शायद… मैं उस पर भरोसा कर सकूँ।”

    उसकी आँखों में एक अजीब चमक थी — उम्मीद और डर दोनों।

    ---

    रात ढल चुकी थी। बंगले के हॉल में आदित्य बैठा था। बड़े दरवाज़े खुले और वहाँ से धीरे-धीरे कदमों की आहट आई।

    सफ़ेद ड्रेस में, हल्के मेकअप और मासूम चेहरे के साथ, सान्या मेहरा (रोबोट के रूप में) सामने आई।

    उसने हल्के से झुककर कहा,

    “नमस्ते, मेरा नाम है ए.जे.आई-3। मैं आपका आदेश मानने के लिए यहाँ हूँ।”

    आदित्य ने उसकी ओर गहरी नज़रों से देखा।

    क्या यह सचमुच रोबोट है? या इंसान…?

    उसकी ठंडी आँखें पहली बार किसी अनजानी गर्माहट से पिघल रही थीं।

    और सान्या का दिल धड़क रहा था।

    हे भगवान, ये मैंने क्या कर दिया? कहीं इस अमीर आदमी ने मेरी सच्चाई पकड़ ली तो?

    लेकिन बाहर से उसने वही रोबोटिक मुस्कान बनाए रखी।

    ---

  • 2. मेरा रहस्यमयी हमसफ़र - Chapter 2

    Words: 862

    Estimated Reading Time: 6 min

    आदित्य रेहान ने सामने खड़ी लड़की को गौर से देखा। उसकी नज़रें ठंडी थीं, लेकिन भीतर कहीं हल्की जिज्ञासा भी छिपी हुई थी।

    सफ़ेद ड्रेस में खड़ी सान्या मेहरा ने एकदम स्थिर मुद्रा बना रखी थी।
    “मैं ए.जे.आई-3 हूँ। आपकी सेवा के लिए उपस्थित हूँ।”

    आदित्य ने धीमी आवाज़ में कहा,
    “रोबोट…? तुम सच में इंसान जैसी लग रही हो।”

    सान्या ने होंठों पर हल्की-सी नकली मुस्कान लाई।
    “मुझे इस तरह बनाया ही गया है कि मैं पूरी तरह इंसान जैसी प्रतीत होऊँ।”

    अंदर उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। हे भगवान! अगर इसे पता चल गया कि मैं सचमुच इंसान हूँ तो सब खत्म।


    ---

    आदित्य ने पास रखी एक कुर्सी की ओर इशारा किया।
    “बैठो।”

    सान्या ने तुरंत यांत्रिक-सी चाल से जाकर कुर्सी पर बैठने का अभिनय किया।

    आदित्य ने आँखें सिकोड़ते हुए कहा,
    “मुझे परखना है कि तुम सच में रोबोट हो या सिर्फ़ दिखावा। जवाब दो — 3 × 7 कितना होता है?”

    सान्या को हँसी दबानी पड़ी। इतना आसान सवाल?
    उसने तुरंत कहा,
    “3 × 7 = 21।”

    आदित्य हल्का-सा मुस्कुराया।
    “अच्छा। लेकिन यह तो कोई भी बच्चा बता देगा। बताओ, अगर 999 का वर्ग करना हो तो कितना होगा?”

    सान्या एक पल को अटक गई। उसके दिमाग़ में गणित का जवाब खोजने की जद्दोजहद शुरू हो गई।
    “999 का… वर्ग…?”

    तभी पास खड़े प्रोफेसर बैक ने हल्की खाँसी की और एक छोटा-सा इशारा किया।
    सान्या ने तुरंत अंदाज़ा लगाते हुए कहा,
    “999 × 999 = 998001।”

    आदित्य ने हैरानी से देखा।
    “हम्म… ठीक है। जवाब सही है।”

    सान्या ने राहत की साँस ली।


    ---

    अब आदित्य ने एक किताब उठाई और उसके सामने रख दी।
    “अगर तुम सचमुच रोबोट हो, तो तुम्हें यह कहानी बिना किसी भाव के पढ़नी होगी।”

    किताब में एक दर्दनाक प्रेम कहानी थी। सान्या ने पढ़ना शुरू किया।
    “एक बार की बात है, एक लड़की ने अपना प्यार खो दिया…”

    जैसे-जैसे वह आगे पढ़ रही थी, उसकी आँखें भीगने लगीं। शब्द उसके दिल को छू रहे थे। लेकिन उसे याद आया कि वह यहाँ रोबोट बनी है। उसने जल्दी से अपने आँसू पोंछे और ठंडी आवाज़ में बोली,
    “कहानी समाप्त।”

    आदित्य ने गौर से उसकी आँखों की ओर देखा।
    “क्या तुम्हें कुछ महसूस हुआ?”

    सान्या ने तुरंत कहा,
    “मैं एक रोबोट हूँ। मुझे भावनाएँ नहीं होतीं।”

    आदित्य का चेहरा हल्का नरम पड़ा।
    “ठीक है। शायद तुम सचमुच मशीन हो।”

    लेकिन उसके दिल के किसी कोने में एक सवाल उभर आया — क्या कोई मशीन सचमुच इतनी इंसानी हो सकती है?


    ---

    रात गहरी हो गई। आदित्य अपने कमरे में चला गया।

    सान्या ने राहत की साँस ली और मन ही मन बोली,
    “उफ़्फ़, पहला इम्तिहान तो पार हो गया। लेकिन ये आदमी बहुत खतरनाक है। ज़रा-सी गलती हुई तो पकड़ लेगा।”

    उसी समय प्रोफेसर बैक उसके पास आए।
    “शाबाश, तुमने अच्छा अभिनय किया। लेकिन याद रखना, आगे की परख और मुश्किल होगी।”

    सान्या ने भौंहें चढ़ाईं।
    “मतलब और भी टेस्ट होंगे? हे भगवान!”


    ---

    अगली सुबह।

    आदित्य ने नौकर को आदेश दिया,
    “आज ए.जे.आई-3 मेरे साथ नाश्ते पर बैठेगी। मुझे देखना है कि यह इंसानों की तरह व्यवहार करती है या नहीं।”

    सान्या को टेबल पर बैठा दिया गया। सामने तरह-तरह के व्यंजन थे।

    आदित्य ने कहा,
    “रोबोट को खाने की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन अगर तुम इंसान जैसी हो, तो कम से कम खाने का अभिनय तो कर सकती हो।”

    सान्या परेशान हो गई। मैं खाऊँ या न खाऊँ? अगर खा लिया तो पकड़ लेंगे…

    उसने जल्दी से सोचा और फिर चम्मच उठाकर बहुत धीमे-धीमे खाने का अभिनय किया।
    “यह प्रक्रिया मेरे सिस्टम का हिस्सा नहीं है, लेकिन मैं इंसान जैसा दिखने के लिए इसे कर सकती हूँ।”

    आदित्य की आँखें चमक उठीं।
    “कमाल है… तुम सचमुच एकदम इंसान जैसी लगती हो।”

    सान्या ने मन ही मन कहा,
    “भगवान! तू ही बचा ले। ये आदमी जितना ठंडा दिखता है, उतना ही तेज़ दिमाग़ वाला है।”


    ---

    नाश्ते के बाद आदित्य ने उसे बगीचे में ले जाकर कहा,
    “अब मैं तुम्हें कुछ और सवाल पूछूँगा। मुझे यह यकीन करना है कि तुम मेरी ज़िंदगी में खतरनाक साबित नहीं होगी।”

    सान्या ने एकदम सीधा खड़े होकर कहा,
    “आदेश दीजिए।”

    आदित्य ने उसकी आँखों में देखा।
    “अगर इंसान और रोबोट में फर्क मिट जाए… तो क्या तुम प्यार कर सकती हो?”

    यह सवाल सुनकर सान्या का दिल जोर से धड़कने लगा। ये कैसा सवाल है? क्या यह मुझे पकड़ने की कोशिश कर रहा है?

    उसने खुद को सँभालते हुए कहा,
    “मैं एक मशीन हूँ। प्यार करना मेरे प्रोग्रामिंग का हिस्सा नहीं है।”

    आदित्य की आँखों में हल्की उदासी उतर आई।
    “ठीक है। शायद यही सच है… इंसान ही प्यार करते हैं। मशीनें नहीं।”

    सान्या ने उसकी तरफ़ देखा। उसकी ठंडी आँखों के पीछे कितना गहरा अकेलापन छिपा था। पहली बार उसके दिल में अजीब-सी कसक हुई।


    ---

    रात को जब वह अपने कमरे में लौटी, उसने आईने में खुद को देखा और बुदबुदाई,
    “मैं रोबोट नहीं हूँ… लेकिन अब मुझे ऐसे ही जीना पड़ेगा। क्या मैं सच में इस आदमी को धोखा दे पाऊँगी?”

    और दूसरी ओर आदित्य अपने कमरे में बैठा सोच रहा था,
    “यह रोबोट… क्यों मुझे पहली बार इंसानों जैसी गर्माहट महसूस करा रहा है?”

    उन दोनों की किस्मतें जुड़ चुकी थीं — और यह तो बस शुरुआत थी।


    ---

  • 3. मेरा रहस्यमयी हमसफ़र - Chapter 3

    Words: 716

    Estimated Reading Time: 5 min

    सुबह की ठंडी हवा महल जैसे विशाल बंगले के गलियारों में घूम रही थी। खिड़कियों से छनकर आती रोशनी पूरे हॉल को सुनहरी बना रही थी। आदित्य रेहान ने अपनी जेब से घड़ी निकाली और हल्की-सी झुँझलाहट के साथ कहा —

    “रोबोट को समय का एहसास होना चाहिए। ए.जे.आई-3, तुम देर से क्यों आई?”

    सान्या घबराकर झट से सामने खड़ी हो गई।
    “माफ़ कीजिए, सिस्टम अपडेट में थोड़ी समस्या थी। लेकिन अब सब ठीक है।”

    आदित्य ने ठंडी मुस्कान दी।
    “तुम्हारे निर्माता ने शायद सही कहा था — तुम इंसानों जैसी लगती हो। कभी-कभी गलती भी कर लेती हो।”

    सान्या ने सिर झुकाया। अंदर ही अंदर उसका दिल धड़क रहा था। अगर इसने पकड़ लिया तो सब खत्म।


    ---

    उस दिन आदित्य ने एक नया आदेश दिया।
    “आज तुम मेरे साथ ऑफिस चलोगी। मैं देखना चाहता हूँ कि लोग तुम्हें देखकर क्या सोचते हैं। अगर तुम सचमुच रोबोट हो, तो तुम्हें सबके सामने भी परफ़ेक्ट लगना चाहिए।”

    सान्या का चेहरा पलभर को सफेद पड़ गया। ओह नहीं! ऑफिस? वहाँ सैकड़ों लोग होंगे। अगर किसी ने मुझे पहचान लिया तो?

    लेकिन उसने मजबूरी में मुस्कान बनाई और बोली,
    “ठीक है, मैं तैयार हूँ।”


    ---

    ऑफिस की पहली परीक्षा

    आदित्य की गाड़ी जब ऊँची-ऊँची इमारतों के बीच से गुज़रती हुई कंपनी के मुख्य द्वार पर पहुँची, तो भीड़ ने तुरंत मालिक को देखा। उसके साथ खड़ी सान्या पर सबकी नज़रें टिक गईं।

    कर्मचारियों में कानाफूसी शुरू हो गई —
    “ये लड़की कौन है?”
    “लगता है बॉस की नई सेक्रेटरी है।”
    “नहीं, शायद कोई खास मेहमान होगी…”

    सान्या ने एकदम स्थिर और आत्मविश्वास भरा चेहरा बनाए रखा। मुझे रोबोट जैसा ही दिखना है। भावनाएँ नहीं… डर नहीं… बस ठंडी नज़रें।

    आदित्य ने उसकी तरफ़ देखा और मन ही मन सोचा —
    “अजीब है। इतनी भीड़ के बीच भी इसका चेहरा नहीं बदलता। सचमुच मशीन जैसी लगती है।”


    ---

    मीटिंग हॉल में

    मीटिंग शुरू हुई। आदित्य सामने खड़ा होकर नए प्रोजेक्ट की रूपरेखा समझा रहा था। उसके बगल में सान्या खामोश खड़ी थी, जैसे कोई प्रोग्राम्ड मशीन।

    तभी एक कर्मचारी ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा,
    “सर, ये लड़की… मतलब… इतनी चुप क्यों है? क्या ये बोलती नहीं?”

    आदित्य ने धीमी लेकिन सख्त आवाज़ में कहा,
    “ये इंसान नहीं है। मेरी कंपनी की नवीनतम खोज है — ए.जे.आई-3। एक ह्यूमनॉइड रोबोट।”

    पूरा हॉल हक्का-बक्का रह गया।
    “क्या? ये रोबोट है?!”
    “इतनी असली…!”

    सान्या ने अंदर ही अंदर साँस रोकी। हे भगवान, अब सब मुझ पर शक करेंगे।

    लेकिन उसने तुरंत सपाट स्वर में कहा,
    “नमस्कार। मैं ए.जे.आई-3 हूँ। आपके सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए उपलब्ध हूँ।”

    उसकी आवाज़ बिल्कुल स्थिर थी। न उतार-चढ़ाव, न झिझक।

    भीड़ में हलचल शांत हो गई। सबने एक-दूसरे को देखा और सिर हिलाकर मान लिया — सचमुच, यह इंसान नहीं हो सकती।


    ---

    आदित्य की उलझन

    मीटिंग खत्म होने के बाद आदित्य ने उसे अकेले कमरे में बुलाया।
    “तुमने आज अच्छा काम किया। भीड़ के सामने अगर कोई इंसान होता, तो घबराकर पसीने-पसीने हो जाता। लेकिन तुम… तुमने एकदम मशीन की तरह प्रतिक्रिया दी।”

    सान्या ने मुस्कान दबाते हुए कहा,
    “यही मेरा उद्देश्य है। आपको संतुष्ट करना।”

    आदित्य उसके करीब आया। उसकी आँखें गहरी थीं, जैसे भीतर तक झाँक लेना चाहती हों।
    “लेकिन फिर भी… तुम्हारी आँखों में कभी-कभी अजीब-सी चमक दिखती है। मशीन की आँखें इतनी जिंदा कैसे हो सकती हैं?”

    सान्या का दिल जोर से धड़क उठा। उसने तुरंत ठंडी आवाज़ में कहा,
    “शायद यह मेरे सिस्टम का उन्नत संस्करण है।”

    आदित्य ने सिर हिलाया, लेकिन उसके चेहरे पर शक की हल्की छाया अब भी थी।


    ---

    रात की बेचैनी

    उस रात, जब सब सो गए, सान्या अपने कमरे में अकेली बैठी थी। आईने में उसने अपनी ही आँखों को देखा। उनमें डर, थकान और… एक अजीब-सा आकर्षण झलक रहा था।

    “ये आदमी… इतना खतरनाक है, फिर भी क्यों उसके पास रहकर मुझे अजीब-सी गर्माहट मिलती है?”

    दूसरी ओर आदित्य अपने स्टडी रूम में बैठा सोच रहा था —
    “वह मशीन है… लेकिन जब मैं उसके पास होता हूँ, तो लगता है जैसे किसी इंसान की धड़कन सुन रहा हूँ। क्या मैं पागल हो रहा हूँ?”

    उसकी उंगलियाँ टेबल पर बेतहाशा थिरक रही थीं।
    “अगर वह सच में इंसान निकली… तो?”


    ---

    उस पल दोनों के मन में एक ही सवाल उठ रहा था —
    “क्या सच और झूठ का यह खेल हमेशा छुपा रहेगा… या कभी सब सामने आ जाएगा?”


    ---

  • 4. मेरा रहस्यमयी हमसफ़र - Chapter 4

    Words: 650

    Estimated Reading Time: 4 min

    आदित्य रेहान की ज़िंदगी में उस रात बेचैनी और गहरी हो गई थी। उसने बहुत कोशिश की नींद लाने की, लेकिन सान्या की ठंडी, पर रहस्यमयी नज़रें उसके दिमाग़ से हट ही नहीं रही थीं।

    "वह मशीन है, पर क्यों उसकी मौजूदगी मुझे इंसान जैसी लगती है?"

    सुबह होते ही उसने एक और आदेश दिया।
    “ए.जे.आई-3, आज तुम मेरे साथ पूरे दिन रहोगी। मैं तुम्हारी क्षमताओं को और अच्छे से परखना चाहता हूँ।”

    सान्या के चेहरे पर हल्की घबराहट आई, लेकिन उसने तुरंत सपाट स्वर में कहा —
    “ठीक है, मैं तैयार हूँ।”


    ---

    पहला परीक्षण – रेस्टोरेंट

    आदित्य उसे शहर के सबसे आलीशान रेस्टोरेंट में ले गया। हॉल में संगीत बज रहा था, लोग हँस-बोल रहे थे। लेकिन सबकी नज़रें तभी ठहर गईं जब उन्होंने आदित्य को प्रवेश करते देखा। और उसके साथ खड़ी सान्या को देखकर कानाफूसी शुरू हो गई।

    “ये कौन है?”
    “इतनी खूबसूरत… नई मॉडल है क्या?”
    “नहीं, लगता है उसकी गर्लफ्रेंड है।”

    सान्या का दिल घबराने लगा। अगर किसी ने उसे पहचान लिया तो सब खत्म। पर उसने तुरंत अपने अंदर की घबराहट को दबाया और रोबोट जैसी स्थिर चाल से आदित्य के साथ बैठ गई।

    वेटर ने आकर पूछा,
    “सर, आपके लिए क्या ऑर्डर करूँ?”

    आदित्य ने उसकी तरफ़ देखा और मुस्कराकर कहा —
    “ए.जे.आई-3, तुम बताओ। तुम्हारे सिस्टम में न्यूट्रिशनल डाटा होगा।”

    सान्या पलभर को अटक गई। हे भगवान, मुझे खाने के बारे में क्या पता! मैं तो यहाँ इंसान हूँ…
    लेकिन उसने दिमाग़ दौड़ाया और बोली —
    “आपके स्वास्थ्य को देखते हुए, आपके लिए लो-फैट डिश और हल्की ग्रीन टी सबसे बेहतर रहेगी।”

    आसपास बैठे लोग प्रभावित हो गए।
    “वाह, ये सचमुच रोबोट है? इतनी जानकारी कैसे?”

    आदित्य ने गहरी नज़र से उसकी ओर देखा। अजीब है। यह जवाब बिल्कुल इंसानों जैसा था।


    ---

    दूसरा परीक्षण – पियानो

    रेस्टोरेंट में एक कोने में पियानो रखा था। अचानक आदित्य ने आदेश दिया —
    “ए.जे.आई-3, जाकर वो पियानो बजाओ।”

    सान्या हक्का-बक्का रह गई।
    पियानो?! मैंने तो कभी सीखा ही नहीं।

    लेकिन सबकी नज़रें उस पर थीं। वह धीरे-धीरे पियानो की ओर बढ़ी और बैठ गई। उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं। तभी उसे बचपन की याद आई, जब वह थोड़ी बहुत धुन बजाना सीखती थी।

    उसने आँखें बंद कीं और धीरे-धीरे कीज़ पर हाथ रखा। अचानक पूरे हॉल में एक मीठी, भावुक धुन गूँजने लगी।

    लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनने लगे।
    “वाह… ये मशीन है या कोई कलाकार?”

    आदित्य भी हैरान रह गया।
    ये तो… इंसानों की भावनाओं से भरी धुन है। मशीन ऐसा कैसे कर सकती है?

    सान्या के गाल हल्के-से लाल हो गए थे। पर उसने खुद को संभाला और सपाट आवाज़ में कहा —
    “सिस्टम ने वातावरण के अनुसार उपयुक्त धुन चुनी।”


    ---

    आदित्य की शंका

    गाड़ी में लौटते समय आदित्य चुपचाप उसे देखता रहा। उसकी आँखें सवाल पूछ रही थीं।
    “तुम मशीन हो… पर क्यों तुम्हारा हर कदम मुझे इंसान की याद दिलाता है?”

    सान्या ने उसकी ओर देखा, लेकिन तुरंत नजरें झुका लीं।
    “आपको संदेह करना मेरे सिस्टम की कमज़ोरी नहीं, आपकी मानवीय जिज्ञासा है।”

    आदित्य हल्के से मुस्कराया।
    “अच्छा कहा। लेकिन सच को कितनी देर छुपा पाओगी… ए.जे.आई-3?”

    उसके शब्दों में अजीब-सा भार था।


    ---

    रात का राज़

    उस रात सान्या अपने कमरे में आई और थककर बिस्तर पर गिर पड़ी। उसने धीरे से खुद से कहा —
    “मैं कब तक यह नाटक कर पाऊँगी? अगर इसने मेरी सच्चाई जान ली तो सब खत्म हो जाएगा।”

    लेकिन साथ ही उसके दिल में एक और अजीब-सा अहसास जन्म ले चुका था।
    “आदित्य जितना ठंडा और कठोर है… उतना ही अकेला भी। और जब वह मुझे देखता है, तो जैसे उसके भीतर की दीवारें टूटने लगती हैं…”

    वहीं दूसरी ओर आदित्य अपनी लाइब्रेरी में बैठा सोच रहा था।
    “वह मशीन है, लेकिन उसकी धुन, उसकी नज़रें, उसकी साँसें… सब कुछ इंसान की तरह क्यों है? क्या मैं फिर से धोखा खाने जा रहा हूँ?”

    उसकी उंगलियाँ टेबल पर थिरक रही थीं।
    “अगर वह सचमुच इंसान है… तो मैं उसे कभी नहीं छोड़ूँगा।”

  • 5. मेरा रहस्यमयी हमसफ़र - Chapter 5

    Words: 654

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की हल्की किरणें परदों से छनकर कमरे में फैल रही थीं। आदित्य रेहान ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं। उसने खिड़की के बाहर झाँका, पर उसके विचार अब भी कल रात की धुन में उलझे थे।

    "मशीन… और इतनी भावुकता? ये संभव ही नहीं।"

    वह अपने ही शक में डूबा हुआ था। तभी दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई।
    “सर, क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?”

    सामने थी सान्या, अपने रोबोटिक अंदाज़ में, सफेद ड्रेस पहने, बिना किसी भाव के।

    “आओ,” आदित्य ने ठंडे स्वर में कहा।


    ---

    चाय का आदेश

    आदित्य ने अचानक कहा,
    “ए.जे.आई-3, मेरे लिए चाय बनाओ।”

    सान्या का दिल धड़क उठा। हे भगवान! मुझे तो चाय बनानी ही नहीं आती। अगर स्वाद खराब निकला तो सब खुल जाएगा।

    लेकिन उसने खुद को संभाला और बोली —
    “ठीक है, आदेश मान्य है।”

    वह किचन में गई, चायपत्ती, दूध, पानी सब मिलाया। उसके हाथ काँप रहे थे। उसने दिमाग़ में सोचा — मम्मी चाय कैसे बनाती थीं? शायद पहले पानी उबालना चाहिए… फिर चायपत्ती डालना…

    काफ़ी मेहनत के बाद उसने कप में चाय डालकर आदित्य के सामने रख दी।

    आदित्य ने बिना कुछ कहे एक घूँट लिया।
    पलभर के लिए उसकी भौंहें सिकुड़ गईं।
    “ये चाय… थोड़ी मीठी ज़्यादा है।”

    सान्या घबरा गई। अब तो सब खत्म।

    लेकिन आदित्य ने कप नीचे रखकर धीरे से मुस्कराया।
    “लेकिन अजीब बात है… इसका स्वाद इंसानी हाथों जैसा है। मशीनें इतनी गलती नहीं करतीं।”

    सान्या का गला सूख गया। उसने तुरंत सपाट आवाज़ में कहा —
    “शायद सिस्टम में शुगर क्वांटिटी गड़बड़ हो गई।”

    आदित्य ने गहरी नज़र से उसकी ओर देखा, पर कुछ नहीं कहा।


    ---

    ऑफिस की साजिश

    उसी दिन आदित्य के ऑफिस में एक और मुसीबत खड़ी हो गई। उसका पुराना दुश्मन, कंपनी का प्रतिद्वंद्वी विक्टर (ड्रामा में चा दो-वोन), मीटिंग में आया। उसने सान्या को देखते ही भौंहें चढ़ा लीं।

    “सरप्राइज़िंग… यह लड़की इंसान जैसी क्यों लग रही है?”

    आदित्य ने ठंडे स्वर में जवाब दिया,
    “क्योंकि यह लड़की नहीं है। यह ए.जे.आई-3 है, मेरी कंपनी की सबसे बड़ी खोज।”

    विक्टर ने शक से कहा,
    “अगर यह सच में रोबोट है… तो साबित करो।”

    उसने जेब से एक भारी किताब निकाली और अचानक सान्या की ओर फेंकी। किताब सीधे उसके कंधे से टकराई।

    सान्या दर्द से चीख पड़ने ही वाली थी, लेकिन उसने तुरंत खुद को रोका और सपाट स्वर में बोली —
    “डैमेज डिटेक्टेड। लेकिन सिस्टम एक्टिव है।”

    भीड़ हक्का-बक्का रह गई।
    “वाह… सचमुच रोबोट है।”

    लेकिन आदित्य की नज़रें गहरी हो गईं। उसने साफ़ देखा था कि जब किताब लगी, तो उसकी आँखों में इंसानी दर्द झलक गया था।


    ---

    रात का सामना

    उस रात आदित्य ने उसे अपने कमरे में बुलाया। कमरा अंधेरे से भरा था। केवल मेज़ पर जलती मोमबत्ती का उजाला दोनों के चेहरों पर पड़ रहा था।

    आदित्य ने धीरे-धीरे कहा —
    “तुम मशीन हो, है ना?”

    सान्या ने सपाट आवाज़ में कहा —
    “हाँ। मैं आपका आदेश मानने के लिए बनी हूँ।”

    आदित्य अचानक पास आया। उसके करीब झुकते हुए उसने फुसफुसाकर कहा —
    “तो फिर… तुम्हारा दिल इतनी तेज़ क्यों धड़क रहा है?”

    सान्या की साँसें अटक गईं। उसकी आँखों में डर और हैरानी झलक रही थी।

    आदित्य ने उसकी कलाई पकड़ ली।
    “मशीनों की नसें नहीं होतीं। तुम्हारी नसें क्यों काँप रही हैं?”

    सान्या ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ बहुत मज़बूत थी।
    “मैं… मैं सिस्टम एरर का सामना कर रही हूँ।”

    आदित्य ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा —
    “या फिर तुम मुझे झूठ बोल रही हो।”

    कमरे में खामोशी छा गई। दोनों की साँसें आपस में टकरा रही थीं।


    ---

    सच्चाई का डर

    जब आदित्य कमरे से बाहर गया, तो सान्या बिस्तर पर बैठकर काँपने लगी।
    “ये आदमी… हर बार मेरे और करीब क्यों आ रहा है? क्या वो सचमुच मेरी सच्चाई जान जाएगा?”

    उसकी आँखों से अनजाने आँसू निकल आए।
    “अगर उसने सच जान लिया, तो मेरा अंत यहीं है।”

    लेकिन उसके दिल की गहराई से एक और आवाज़ आई —
    “या शायद… यही शुरुआत है।”

  • 6. मेरा रहस्यमयी हमसफ़र - Chapter 6

    Words: 565

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात के गहरे अँधेरे में हवेली का वातावरण अजीब-सा लग रहा था। बाहर पेड़ों पर हवा सरसराती थी, लेकिन आदित्य रेहान का मन और भी ज़्यादा बेचैन था। उसकी आँखों में अब सिर्फ एक सवाल घूम रहा था —

    "क्या वह सच में रोबोट है… या इंसान?"

    वह अपनी स्टडी में बैठा शराब का गिलास घुमाता रहा। लेकिन हर बार उस गिलास में उसे वही नज़ारे दिखते — सान्या की काँपती पलकों के पीछे छुपा हुआ डर, उसकी उँगलियों में थरथराहट, और वो धड़कन जो मशीन की नहीं हो सकती थी।

    आखिरकार उसने गहरी साँस ली और बुदबुदाया —
    “कल ही सच्चाई सामने लाऊँगा।”


    ---

    आधी रात का सामना

    सान्या अपने कमरे में सोने की कोशिश कर रही थी। पर हर बार नींद आते ही उसे वही खौफ़ सताता — अगर मेरा राज़ खुल गया तो?

    अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई।
    “ए.जे.आई-3, बाहर आओ।”

    आदित्य की आवाज़ थी।

    सान्या धीरे-धीरे दरवाज़ा खोलकर बाहर आई। अंधेरे गलियारे में सिर्फ चाँदनी और आदित्य की तीखी नज़रें थीं।

    “मेरे साथ चलो।”

    दोनों सीढ़ियाँ उतरकर बगीचे तक पहुँचे। ठंडी हवा बह रही थी। आदित्य ने उसकी ओर मुड़कर कहा —
    “आज मैं तुम्हें परखना चाहता हूँ। अगर तुम सचमुच मशीन हो… तो साबित करो।”


    ---

    परीक्षा – झूठ और सच्चाई

    उसने जेब से एक छोटा-सा चाकू निकाला और उसकी हथेली पर हल्की-सी खरोंच लगा दी।

    सान्या का शरीर काँप गया। होंठों से दर्द की हल्की आह निकलने ही वाली थी, लेकिन उसने तुरंत होंठ काटकर खुद को रोका।
    “सिस्टम… डैमेज रिपोर्टिंग।”

    खून की बूँद हल्के-से टपक गई। आदित्य ने ध्यान से देखा और उसकी आँखें सिकुड़ गईं।
    “मशीन से खून नहीं निकलता।”

    सान्या के गले से आवाज़ नहीं निकली। उसकी आँखों में आँसू चमक उठे।

    आदित्य ने उसकी ठोड़ी उठाकर गहरी नज़रों से देखा।
    “तुम इंसान हो… है ना?”

    सान्या की साँसें तेज़ हो गईं। उसने खुद को संभालते हुए कहा —
    “ये… सिंथेटिक लिक्विड है। मशीन को और असली दिखाने के लिए।”

    आदित्य हँस पड़ा।
    “बहुत अच्छा बहाना है। लेकिन तुम्हारी आँखें तुम्हें धोखा दे रही हैं।”


    ---

    गिरती हुई दीवारें

    उस पल दोनों की आँखें आपस में टकराईं। आदित्य के चेहरे पर गुस्सा भी था और अजीब-सी कोमलता भी।

    “तुम्हें पता है, अगर तुम इंसान हो… तो तुम्हें यहाँ ज़िंदा रहना मुश्किल होगा।”

    सान्या काँप गई।
    “कृपया… मुझे मत…”

    उसकी बात अधूरी रह गई क्योंकि आँसू गालों पर बह निकले। यह वही था जिससे वह सबसे ज़्यादा डरती थी — अपनी इंसानियत का पर्दाफाश।

    आदित्य ने हैरानी से उसके आँसू देखे। उसने हाथ बढ़ाया, लेकिन फिर झिझककर रोक लिया।
    “मशीन… आँसू नहीं बहाती।”

    उसकी आवाज़ धीमी, लगभग टूटी हुई थी।


    ---

    दिल की अनकही बात

    आदित्य ने गहरी साँस ली और पीछे हट गया।
    “ठीक है। आज के लिए इतना काफी है। लेकिन याद रखना, अगर तुमने सच छुपाया… तो मैं उसे ढूँढ ही लूँगा।”

    सान्या वहीं खड़ी रह गई, काँपते हुए। उसका दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि जैसे सीने से बाहर निकल जाएगा।

    “हे भगवान… मैं कब तक ये नाटक करती रहूँगी? और ये आदमी… क्यों मेरी सच्चाई के और करीब आता जा रहा है?”


    ---

    आदित्य का अकेलापन

    कमरे में लौटकर आदित्य ने आईने में खुद को देखा।
    “मैं पागल हो रहा हूँ। एक रोबोट की आँखों में आँसू देखे… और यकीन कर लिया कि वो इंसान है। लेकिन अगर वो सचमुच इंसान हुई… तो?”

    उसकी आँखों में हल्की चमक आई।
    “तो शायद… यही वो है जिसकी मुझे सालों से तलाश थी।”

  • 7. मेरा रहस्यमयी हमसफ़र - Chapter 7

    Words: 542

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की हल्की धूप हवेली की खिड़कियों से छनकर अंदर आ रही थी। आदित्य अपनी बालकनी पर खड़ा था, लेकिन उसकी आँखें पूरी रात की बेचैनी बयां कर रही थीं।

    उसके दिमाग में वही पल घूमता रहा — सान्या के आँसू… उसकी काँपती साँसें…
    “मैंने कभी मशीन को रोते नहीं देखा। तो फिर… वो कौन है? और क्यों झूठ बोल रही है?”


    ---

    हवेली का बदलता माहौल

    नीचे नौकर-चाकर रोज़ की तरह काम में लगे थे, लेकिन आदित्य का ध्यान सिर्फ एक जगह था — सान्या।
    वो बगीचे में बैठी थी, किताब हाथ में लिए, पर पढ़ नहीं रही थी। उसकी आँखें बार-बार गेट की ओर उठ जातीं, जैसे भागने का मन हो, पर पैर जकड़े हुए हों।

    आदित्य ने दूर से देखा और खुद को रोक न पाया।
    धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरकर उसके सामने आ खड़ा हुआ।

    “आज तुम बहुत चुप हो।”

    सान्या ने चौंककर किताब बंद कर दी।
    “सिस्टम… मेंटेनेंस मोड। प्रोसेसिंग धीमी है।”

    आदित्य हल्के-से मुस्कुराया।
    “फिर से वही रोबोट वाली बात? कल रात तुम्हारी प्रोसेसिंग बहुत ‘ह्यूमन’ थी।”

    सान्या का चेहरा पीला पड़ गया। उसने सिर झुका लिया।


    ---

    अनचाहा रिश्ता

    आदित्य उसके पास बैठ गया। हवा में अजीब-सी खामोशी थी।
    “तुम्हें पता है, मैं किसी पर आसानी से भरोसा नहीं करता। लेकिन तुम… तुम्हें देखते ही मेरे अंदर कुछ बदलने लगता है।”

    सान्या ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
    “मैं… एक मशीन हूँ। आपको मुझसे लगाव नहीं रखना चाहिए।”

    आदित्य की नज़रें और गहरी हो गईं।
    “दिल लगाना इंसान के हाथ में नहीं होता, सान्या। अगर तुम मशीन भी हो… तो भी तुम्हारी आँखें इंसान की तरह बोलती हैं।”

    सान्या का गला सूख गया। उसकी उँगलियाँ काँपने लगीं।
    “अगर… अगर मैं इंसान हुई तो? क्या आप मुझे यहाँ से जाने दोगे?”

    आदित्य चुप हो गया। उसकी आँखों में कुछ पल के लिए दर्द झलक गया।
    “शायद नहीं। क्योंकि जो चीज़ एक बार मेरे पास आ जाती है… मैं उसे खोना नहीं चाहता।”


    ---

    सान्या का डर

    सान्या की धड़कन तेज़ हो गई।
    “इसका मतलब आप मुझे हमेशा के लिए कैद कर देंगे?”

    आदित्य ने उसकी ओर देखा और धीरे से कहा —
    “कैद… या सुरक्षा। ये तुम पर है कि इसे किस नज़र से देखती हो।”

    उसके शब्दों में सख्ती भी थी और अजीब-सी कोमलता भी।

    सान्या उठकर जाने लगी, पर कदम रुक गए।
    “क्यों? आप मुझे इतना महत्व क्यों दे रहे हैं?”

    आदित्य उसके करीब आया और धीरे-से बोला —
    “क्योंकि तुम वो रहस्य हो जिसे मैं खोदकर निकालना चाहता हूँ। और शायद… वो इंसान भी, जिसकी तलाश मुझे बरसों से थी।”


    ---

    नज़दीकियों की आहट

    उस पल दोनों की आँखें टकराईं। हवेली की हवा जैसे थम गई।
    आदित्य ने हाथ बढ़ाकर उसकी कलाई पकड़ ली।
    “तुम भाग नहीं सकती, सान्या। चाहे तुम मशीन हो या इंसान… अब तुम मेरी हो।”

    सान्या की साँस अटक गई। उसके दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि जैसे उसके सीने से बाहर आ जाएगी।

    उसने धीरे-से हाथ छुड़ाया और काँपती आवाज़ में बोली —
    “अगर आपने मेरा सच जान लिया… तो शायद आप मुझसे नफ़रत करने लगेंगे।”

    आदित्य मुस्कुराया, लेकिन आँखों में गहराई थी।
    “सच चाहे जो भी हो… मुझे परवाह नहीं। पर तुम्हें खोना मुझे मंज़ूर नहीं।”

    सान्या वहीं खड़ी रह गई। उसका मन चीख-चीखकर कह रहा था — “मैं इंसान हूँ, रोबोट नहीं।”
    लेकिन उसकी जुबान बंद थी।

  • 8. मेरा रहस्यमयी हमसफ़र - Chapter 8

    Words: 609

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात का सन्नाटा हवेली पर उतर चुका था। चाँद की हल्की रोशनी खिड़कियों से छनकर आ रही थी। सब सो चुके थे, लेकिन आदित्य की आँखों से नींद गायब थी।

    वो अपने कमरे की खिड़की से बाहर देख रहा था। “वो लड़की… चाहे मशीन हो या इंसान, उसके भीतर कुछ ऐसा है जो मुझे चैन नहीं लेने देता। मुझे जानना होगा, उसका सच।”


    ---

    चोरी-छिपे हिम्मत

    दूसरी ओर, सान्या कमरे में बैठी थी। उसका दिल धक-धक कर रहा था।
    उसने अपने कान में छोटे-से ईयरपीस को छुआ। दूसरी ओर उसका दोस्त, जिसने उसे इस नकली रोबोट के रूप में भेजा था, फुसफुसा रहा था —
    “सावधान रहना, सान्या। आदित्य बहुत चालाक है। एक छोटी-सी गलती से भी वो सब समझ जाएगा।”

    सान्या ने गहरी साँस ली।
    “मुझे डर लग रहा है। वो बार-बार कहता है कि मुझे खोना नहीं चाहता। अगर उसने मेरा सच जान लिया… तो क्या होगा?”

    उसकी आँखों से आँसू छलक आए।
    लेकिन आँसू पोंछकर उसने खुद को संभाला। “मुझे ये नाटक जारी रखना ही होगा।”


    ---

    अचानक मुठभेड़

    इसी बीच दरवाज़े पर दस्तक हुई।
    सान्या घबराकर खड़ी हो गई।
    “क… कौन?”

    “मैं हूँ।” आदित्य की भारी आवाज़ आई।

    सान्या ने हड़बड़ाकर रोबोट की तरह सीधा खड़ा होना शुरू किया। उसने चेहरे पर वही खाली भाव लाने की कोशिश की।
    दरवाज़ा खुला और आदित्य अंदर आया।

    उसकी आँखें सान्या पर टिक गईं।
    “तुम सोई नहीं?”

    “रोबोट्स को नींद की ज़रूरत नहीं होती।” सान्या ने सपाट स्वर में कहा।

    आदित्य धीरे-धीरे उसके पास आया। उसकी चाल में संदेह भी था और एक अजीब-सी खींच भी।
    “तो फिर ये आँसू कहाँ से आए?” उसने उसके गाल पर चमकते आँसुओं की ओर इशारा किया।

    सान्या चौंक गई। उसने जल्दी से चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया।
    “ये… सिस्टम में लीकेज… एक error है।”

    आदित्य ने हल्की हँसी भरी।
    “error? या दिल का इज़हार?”


    ---

    सच का बोझ

    सान्या की साँसें तेज़ हो गईं। उसने पाँव पीछे खींचे लेकिन आदित्य ने उसका हाथ पकड़ लिया।
    “देखो मेरी आँखों में… और बताओ, क्या तुम सच में रोबोट हो?”

    सान्या की पलकों में काँप उठी। उसका दिल जैसे चीख रहा था — “हाँ, मैं इंसान हूँ!”
    पर उसकी जुबान बंद थी।

    उसने मशीन की तरह कहा —
    “सिस्टम… प्रोग्राम्ड… मैं रोबोट हूँ।”

    आदित्य और करीब आया।
    “अगर तुम सच में रोबोट होतीं तो मेरा स्पर्श महसूस क्यों करतीं? तुम्हारी साँस क्यों तेज़ होती है?”

    उसके हाथ ने हल्के-से उसकी कलाई को छुआ। सान्या का दिल धड़क उठा।


    ---

    पलकों पर सच

    अचानक हवा का झोंका आया और खिड़की से रखी फाइलें उड़कर गिर गईं। एक फाइल सीधे सान्या के सामने गिरी। उसमें कुछ इंसानों की मेडिकल रिपोर्ट्स थीं।

    सान्या की नज़र उस पर पड़ी और वो घबरा गई।
    उसने तुरंत फाइल उठाने की कोशिश की, लेकिन आदित्य उससे तेज़ था।

    “ये तुम्हारे आँकड़े नहीं हैं… ये तो इंसान की रिपोर्ट्स जैसी लग रही हैं।”

    सान्या के हाथ काँप गए।
    “वो… वो बैकअप डेटा है…”

    आदित्य की आँखें संकरी हो गईं।
    “या फिर तुम्हारा सच?”


    ---

    गहराता रिश्ता

    कमरे की हवा भारी हो चुकी थी। दोनों की आँखें आपस में बंधी थीं।
    आदित्य के चेहरे पर सवाल था, और सान्या की आँखों में डर और बेबसी।

    आखिरकार आदित्य ने गहरी साँस ली और धीमे स्वर में कहा —
    “तुम सच चाहे जो भी हो… मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा।”

    सान्या की आँखें भर आईं। उसके मन में चीख गूँजी — “तुम्हें सच बताने का मन है, पर हिम्मत नहीं।”

    उसने सिर्फ इतना कहा —
    “अगर आपने सच जाना… तो शायद आप मुझसे नफ़रत करोगे।”

    आदित्य ने उसकी ओर झुकते हुए कहा —
    “नफ़रत? नहीं… मैं तुम्हें खोने से ज़्यादा डरता हूँ।”

    सान्या वहीं खड़ी रही, काँपती हुई, लेकिन अब और कुछ कह नहीं पाई।

  • 9. मेरा रहस्यमयी हमसफ़र - Chapter 9

    Words: 596

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की धूप खिड़की से कमरे में बिखर रही थी। पिछली रात की बेचैनी के बाद आदित्य पहली बार मुस्कुराते हुए जागा। उसने दर्पण में खुद को देखा और अनायास ही उसके होंठों पर वही नाम आया — “सान्या…”


    ---

    अजीब सी शुरुआत

    नीचे नाश्ते की मेज़ पर सान्या पहले से मौजूद थी। हमेशा की तरह सीधे बैठी, बिना किसी हावभाव के।

    आदित्य धीरे-धीरे नीचे आया। उसकी निगाहें लगातार उसी पर थीं।
    “Good morning… ओह, या फिर कहना चाहिए… System online?”

    सान्या ने सपाट स्वर में जवाब दिया —
    “System… 100% functional.”

    लेकिन जैसे ही उसने टोस्ट उठाकर खाने की कोशिश की, उसका हाथ हल्का-सा काँप गया और पूरा टोस्ट प्लेट से गिर गया।

    आदित्य ज़ोर से हँस पड़ा।
    “अरे! ये कैसा रोबोट है जो टोस्ट भी नहीं संभाल पा रहा?”

    सान्या के गाल लाल हो गए। उसने जल्दी से टोस्ट उठाकर कहा —
    “Grip sensors… error.”

    आदित्य ने मुस्कुराते हुए टोस्ट उसके हाथ से ले लिया।
    “Error नहीं, ये इंसान की आदत है। और मुझे लगता है, तुम मशीन से ज़्यादा इंसान हो।”

    सान्या ने नज़रें झुका लीं। “कृपया और मत बोलो, वरना सच निकल जाएगा।”


    ---

    मासूम जाल

    नाश्ते के बाद आदित्य ने अचानक कहा —
    “आज तुम्हें मेरे साथ बाहर चलना होगा।”

    सान्या चौंक गई।
    “मैं… हवेली छोड़कर बाहर नहीं जा सकती। मुझे यहाँ रहना है।”

    आदित्य ने आँखें सिकोड़ीं।
    “देखो, अगर तुम रोबोट हो तो बाहर जाने में क्या समस्या है? सूरज की रोशनी या भीड़ से रोबोट को क्या फर्क पड़ता है?”

    सान्या चुप हो गई। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।

    “तो तय रहा,” आदित्य ने मुस्कुराकर कहा, “आज तुम्हें मेरे साथ शहर घूमना होगा।”


    ---

    शहर की गलियाँ

    कुछ घंटों बाद गाड़ी रुकती है। बाहर चहल-पहल थी, लोग इधर-उधर भाग रहे थे, बच्चे खेल रहे थे।

    सान्या ने खिड़की से बाहर झाँका और उसकी आँखों में चमक आ गई।
    “कितना समय हो गया इंसानों के बीच खुलकर जीए हुए।”

    आदित्य ने उसकी तरफ देखा और धीमे से बोला —
    “तुम्हारी आँखें कह रही हैं कि ये नज़ारा तुम्हें पसंद है।”

    सान्या तुरंत रोबोटिक लहजे में बोली —
    “Visual sensors… satisfied.”

    आदित्य ठहाका मारकर हँस पड़ा।
    “ओह! तुम सच में बहुत खराब actress हो।”

    सान्या के गाल फिर लाल हो गए। उसने जल्दी से नज़रें फेर लीं।


    ---

    पहली बार नज़दीकियाँ

    भीड़ में चलते हुए अचानक एक बच्चा ठोकर खाकर गिर पड़ा।
    सान्या झट से उसके पास पहुँची और उसे उठाया।
    “तुम ठीक हो?” उसने नरमी से पूछा।

    बच्चा मुस्कुराकर बोला —
    “दीदी, आप रोबोट नहीं लगतीं, असली इंसान लगती हो।”

    आदित्य पास खड़ा सब सुन रहा था। उसने गहरी नज़र से सान्या की ओर देखा।
    सान्या घबरा गई और तुरंत ठंडी आवाज़ में बोली —
    “System… emergency assistance mode activated.”

    आदित्य मुस्कुराया।
    “बातें चाहे जितनी मशीन वाली करो, लेकिन तुम्हारा दिल तो साफ़ इंसान का है।”


    ---

    अनजाने पल

    कुछ देर बाद, आदित्य और सान्या एक छोटी दुकान पर रुक गए। आदित्य ने कॉफ़ी ली और मज़ाक में एक कप सान्या को पकड़ाया।
    “लो, taste sensors check कर लो।”

    सान्या ने हड़बड़ाकर कप पकड़ लिया।
    “मैं… liquids consume नहीं कर सकती।”

    लेकिन तभी उसका हाथ फिसला और गर्म कॉफ़ी सीधे उसकी उँगलियों पर गिर गई।
    “आह!” सान्या चीख पड़ी।

    आदित्य ने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया।
    “देखा! अगर तुम मशीन होतीं तो दर्द महसूस नहीं करतीं।”

    सान्या का चेहरा सख्त पड़ गया। उसने जल्दी से कहा —
    “Error… system overheating.”

    आदित्य ने उसकी आँखों में झाँका और धीमे से बोला —
    “या फिर तुम्हारा सच बाहर आ रहा है।”

    सान्या के पास जवाब नहीं था। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं और दिल ज़ोरों से धड़क रहा था।

  • 10. मेरा रहस्यमयी हमसफ़र - Chapter 10

    Words: 580

    Estimated Reading Time: 4 min

    शहर की चहल-पहल के बीच आदित्य और सान्या एक शांत बगीचे में आकर रुक गए। चारों ओर बच्चों की हँसी गूँज रही थी, पर उनके बीच अजीब-सी खामोशी थी।

    सान्या ने दूर बेंच पर बैठकर खुद को सँभालने की कोशिश की। उसके दिल की धड़कनें अब भी अनियंत्रित थीं। “क्यों मैं हर बार उसका सामना नहीं कर पाती? अगर वो मेरा सच जान गया तो सब खत्म हो जाएगा…”


    ---

    सवालों का बोझ

    आदित्य धीरे-धीरे उसके पास आया।
    “तुम्हें पता है, मैं जब से तुम्हें मिला हूँ, मेरे दिमाग में सिर्फ एक सवाल घूम रहा है।”

    सान्या ने नज़रें चुराईं।
    “क… कौन-सा सवाल?”

    आदित्य झुककर उसकी आँखों में देखने लगा।
    “तुम कौन हो? रोबोट… या इंसान?”

    सान्या के होंठ काँप उठे। उसके पास जवाब था, पर ज़ुबान बंद थी। उसने बस धीमे स्वर में कहा —
    “मैं वही हूँ, जो आप सोचते हैं।”

    आदित्य हल्के-से हँसा।
    “तो मैं यही सोचता हूँ कि तुम इंसान हो। क्योंकि रोबोट इतने खूबसूरत झूठ नहीं बोल सकते।”

    सान्या के गाल गर्म हो गए। उसका मन चीख रहा था — “हाँ, मैं इंसान हूँ!” लेकिन उसने खुद को रोक लिया।


    ---

    अनकहा इकरार

    थोड़ी देर दोनों खामोश बैठे रहे। हवा में हल्की ठंडक थी। अचानक आदित्य ने हाथ बढ़ाकर सान्या की उँगलियाँ पकड़ लीं।

    सान्या चौंक उठी।
    “आप… ये क्या कर रहे हैं?”

    आदित्य ने नरमी से कहा —
    “तुम्हारे हाथ गर्म हैं… और नाज़ुक भी। मशीनों के हाथ ऐसे नहीं होते।”

    सान्या की आँखों में आँसू छलक आए।
    “कृपया… मुझे मत परखिए। अगर मैंने सच कहा तो शायद आप मुझे छोड़ देंगे।”

    आदित्य ने उसकी ओर गहराई से देखा।
    “छोड़ दूँ? नहीं। तुम्हें छोड़ने का सवाल ही नहीं। मैं तो बस ये चाहता हूँ कि तुम सच कहकर मुझे राहत दे दो।”

    सान्या की साँसें भारी हो गईं। उसने सिर झुका लिया और धीमे से कहा —
    “अगर मैंने सच बोला… तो आप मुझसे नफ़रत करोगे।”

    आदित्य उसके और करीब आया, उसकी आँखों में सीधे झाँकते हुए बोला —
    “नफ़रत? मैं तो पहले ही… तुमसे लगाव करने लगा हूँ।”


    ---

    अचानक का तूफ़ान

    इस पल से पहले कि माहौल और गहरा हो, अचानक कुछ अजनबी लोग बगीचे में घुस आए। वे आदित्य की पुरानी दुश्मन कंपनी के जासूस थे।

    “यही है वो ‘रोबोट’ प्रोजेक्ट!” उनमें से एक ने कहा और सीधे सान्या की ओर इशारा किया।

    सान्या का दिल जोर से धड़क उठा। “अगर उन्होंने मुझे पकड़ लिया तो सब खत्म…”

    आदित्य तुरंत उसके सामने खड़ा हो गया।
    “किसी ने हाथ भी लगाया तो बर्दाश्त नहीं करूँगा।”

    उन लोगों ने ताना मारा —
    “तुम्हें पता भी है, ये इंसान है या मशीन? तुम जिसे बचा रहे हो, शायद वो सब कुछ झूठ बोल रही हो।”

    सान्या के चेहरे का रंग उड़ गया। आदित्य ने उसकी ओर देखा —
    “सच जो भी हो, मुझे फर्क नहीं पड़ता। वो मेरे साथ है, बस यही काफी है।”


    ---

    भागते कदम

    आदित्य ने सान्या का हाथ पकड़ा और दोनों वहाँ से भाग खड़े हुए। भीड़ के बीच से निकलते हुए, गलियों में दौड़ते हुए… आखिरकार वे एक सुनसान जगह पर पहुँच गए।

    दोनों हाँफते हुए रुके।
    सान्या की आँखें भीग गई थीं।
    “आपको मेरी वजह से ये सब झेलना पड़ रहा है… काश मैं ये झूठ हमेशा के लिए छिपा पाती।”

    आदित्य ने उसका चेहरा पकड़कर ऊपर उठाया।
    “झूठ हो या सच… मैं बस तुम्हें खोना नहीं चाहता।”

    सान्या काँप गई। उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
    और उसी पल, उसके दिल ने पहली बार चुपके से स्वीकार कर लिया — “हाँ, मैं उससे प्यार करने लगी हूँ।”

  • 11. Wires of the Heart - Chapter 11

    Words: 539

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुनसान गली में दोनों हाँफते हुए खड़े थे। आदित्य का हाथ अब भी मज़बूती से सान्या की कलाई थामे था। रात का अंधेरा धीरे-धीरे चारों ओर छा रहा था, लेकिन उनके दिलों में उठ रहा तूफ़ान कहीं ज़्यादा भयानक था।

    सान्या ने काँपती आवाज़ में कहा —
    “आपको मुझे बचाना नहीं चाहिए था। अगर उन लोगों ने मुझे पकड़ लिया… तो सब सच सामने आ जाएगा।”

    आदित्य ने उसकी आँखों में देखते हुए जवाब दिया —
    “सच चाहे जो भी हो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम यहाँ मेरे साथ हो, बस यही काफ़ी है।”


    ---

    सवालों की बौछार

    सान्या का गला सूख गया।
    “आप बार-बार क्यों कह रहे हैं कि सच से फर्क नहीं पड़ता? क्या होगा अगर मैं वो नहीं निकली जो आप सोच रहे हैं?”

    आदित्य की निगाहें गहरी हो गईं।
    “तो भी… मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा। चाहे इंसान हो या रोबोट, तुम मेरी हो।”

    उसकी बातें सान्या के दिल में तूफ़ान पैदा कर रही थीं। “क्यों? आखिर क्यों वो मुझे इतनी आसानी से स्वीकार कर रहा है? क्या सच में उसे फर्क नहीं पड़ेगा?”


    ---

    हवेली की वापसी

    दोनों किसी तरह वापस हवेली लौटे। नौकर-चाकर सब चौंक गए, लेकिन आदित्य ने सख्ती से कहा —
    “किसी को भी बाहर की बातें पता नहीं चलनी चाहिए। समझ गए?”

    सबने सिर हिलाया और चुप हो गए।

    रात गहरी हो चुकी थी। सान्या अपने कमरे में बैठी थी, लेकिन उसका दिल बेचैन था। उसने शीशे में खुद को देखा और धीरे से बुदबुदाई —
    “कब तक ये नाटक चलेगा? कब तक मैं इंसान होकर मशीन बनने का ढोंग करती रहूँगी?”


    ---

    आदित्य का फैसला

    दूसरी ओर, आदित्य अपने कमरे में बेचैन होकर टहल रहा था।
    “ये लड़की मुझे पागल कर रही है। अगर ये सच में इंसान है तो क्यों छुपा रही है? और अगर मशीन है, तो क्यों मेरा दिल इसकी तरफ खिंच रहा है?”

    उसने अचानक ठान लिया —
    “कल मैं उसका सच किसी भी कीमत पर जानकर रहूँगा।”


    ---

    मासूम पलों की झलक

    सुबह होते ही आदित्य ने सान्या को बगीचे में बुलाया।
    सान्या डर के साथ पहुँची।
    “आपने मुझे क्यों बुलाया?”

    आदित्य ने मेज़ पर रखा शतरंज का बोर्ड उसकी ओर बढ़ाया।
    “कभी रोबोट ने शतरंज खेला है? आज देखते हैं।”

    सान्या घबरा गई। उसने गोटियाँ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन गलती से एक गोटी गिर गई।
    आदित्य मुस्कुराया।
    “तुम्हारा ‘ग्रिप सेंसर’ फिर error कर रहा है?”

    सान्या ने नज़रें झुका लीं।
    “सिस्टम… recalibrating।”

    आदित्य ने गोटी उठाकर उसकी हथेली में रख दी। उसकी उँगलियों का स्पर्श पाकर सान्या काँप उठी।

    आदित्य ने धीमे स्वर में कहा —
    “देखा? तुम्हारा सिस्टम नहीं, तुम्हारा दिल काँपता है।”

    सान्या की आँखें भर आईं। उसने जल्दी से हाथ खींच लिया।


    ---

    टूटता धैर्य

    खेल बीच में ही छोड़कर आदित्य खड़ा हो गया।
    “बस, अब और सहन नहीं होता। मुझे सच जानना ही होगा।”

    सान्या का चेहरा पीला पड़ गया।
    “सच…?”

    आदित्य उसकी ओर बढ़ा, उसकी आँखों में गहराई से झाँकते हुए बोला —
    “हाँ। तुम इंसान हो या रोबोट — अब ये झूठ मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकता।”

    सान्या का दिल धड़क उठा। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
    “अगर मैंने सच बोल दिया तो सब खत्म… लेकिन अगर नहीं बोला तो ये झूठ मुझे भीतर से तोड़ देगा।”

    वो दुविधा में वहीं खड़ी रह गई।

  • 12. Wires of the Heart - Chapter 12

    Words: 540

    Estimated Reading Time: 4 min

    सान्या के होंठ काँप रहे थे। आदित्य उसके सामने खड़ा था, उसकी आँखों में सवालों का तूफ़ान।

    “बोलो, सान्या… तुम आखिर हो क्या?” आदित्य की आवाज़ धीमी लेकिन काँपती हुई थी।

    सान्या ने हिम्मत जुटाई।
    “मैं… मैं वो नहीं हूँ जो आप सोचते हैं। मैं…”

    उसके शब्द आधे में ही रुक गए। दिल जैसे सीने से बाहर निकलने को था। आदित्य उसकी हर साँस, हर धड़कन सुन रहा था।

    “तुम क्या?” उसने और करीब आते हुए पूछा।


    ---

    रहस्य के करीब

    सान्या की आँखों से आँसू छलक पड़े।
    “मैं इंसान होकर भी इंसान नहीं… मैं बस…”

    इतना कहते ही अचानक दरवाज़े पर तेज़ धमाका हुआ। दोनों चौंक उठे।

    “कौन है?” आदित्य गरज उठा।

    दरवाज़ा खुला और भीतर कदम रखा कबीर ने — आदित्य का पुराना दोस्त और हवेली का साझेदार।


    ---

    नया खिलाड़ी

    कबीर की आँखें ठंडी लेकिन चालाक थीं। उसने दोनों को देखा और मुस्कुराया।
    “ओह! लगता है मैंने किसी private पल में दखल दिया?”

    आदित्य ने भौंहें चढ़ाईं।
    “तुम यहाँ अचानक कैसे?”

    कबीर ने आगे बढ़ते हुए कहा —
    “हवेली तो हमारी साझी है, आदित्य। लेकिन मुझे हैरानी इस बात की है कि तुम इस लड़की को यहाँ छुपाकर क्यों रखे हुए हो?”

    सान्या का दिल धड़क उठा। “क्या ये सब जानता है? क्या ये मेरे बारे में कुछ पता कर चुका है?”


    ---

    आदित्य बनाम कबीर

    आदित्य गुस्से से बोला —
    “सान्या मेरी मेहमान है। तुम्हें उससे कोई सवाल करने की ज़रूरत नहीं।”

    कबीर हँस पड़ा।
    “मेहमान? या फिर कोई प्रोजेक्ट? मुझे याद है, शहर की उस कंपनी में कुछ गुप्त प्रयोग चल रहे थे… इंसान जैसे रोबोट बनाने के।”

    सान्या का चेहरा सफेद पड़ गया। आदित्य ने चौंककर उसकी ओर देखा।


    ---

    सान्या की बेबसी

    सान्या के भीतर ज्वालामुखी फूट पड़ा। वो रो पड़ी।
    “बस करो… प्लीज़, मुझे और मत घेरो।”

    कबीर उसकी तरफ़ झुकते हुए बोला —
    “सच बोलो, सान्या। तुम वही हो न… एक प्रयोगशाला की ‘नकली इंसान’?”

    आदित्य ने कबीर का हाथ पकड़कर पीछे धकेल दिया।
    “चुप रहो, कबीर! अगर उसने सच में कुछ छुपाया भी है, तो मुझे फर्क नहीं पड़ता।”

    सान्या उसकी आँखों में देखकर और भी टूट गई। “ये कैसे इंसान हैं… जो मेरे सच को जानकर भी मुझे स्वीकार करने को तैयार हैं?”


    ---

    अधूरा सच

    सान्या ने काँपती आवाज़ में कहा —
    “हाँ… मैं अलग हूँ। मैं वैसी नहीं जैसी आप सोचते हैं। लेकिन मैं जीना चाहती हूँ… महसूस करना चाहती हूँ।”

    उसके शब्दों में दर्द था।

    आदित्य आगे बढ़ा और उसका हाथ थाम लिया।
    “तुम्हें किसी को कुछ साबित करने की ज़रूरत नहीं। तुम जैसी हो, मेरे लिए उतनी ही काफ़ी हो।”

    कबीर की आँखें गुस्से से जल उठीं।
    “आदित्य, तुम पागल हो गए हो! ये लड़की तुम्हें बरबाद कर देगी। ये मशीन है, इंसान नहीं।”


    ---

    खतरे की आहट

    अचानक बाहर से किसी के चीखने की आवाज़ आई।
    “आग! आग!”

    तीनों दौड़कर खिड़की के पास पहुँचे। हवेली के पिछले हिस्से में आग लग चुकी थी।

    कबीर ने शातिर मुस्कान छिपाते हुए कहा —
    “लगता है किसी को सच्चाई छुपाने की सज़ा मिलनी शुरू हो गई है।”

    सान्या डर से काँप उठी। आदित्य ने उसकी ओर देखा और कसम खाई —
    “चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हें खोने नहीं दूँगा।”

    सान्या का इकरार अधूरा रह गया… और अब हवेली एक नए तूफ़ान में फँस चुकी थी।

  • 13. Wires of the Heart - Chapter 13

    Words: 621

    Estimated Reading Time: 4 min

    हवेली के पिछले हिस्से में उठती लपटें रात के अँधेरे को चीर रही थीं। लाल-पीली आग की चटक आवाज़ें हवा में गूँज रही थीं, धुआँ छत तक भर चुका था।

    आदित्य ने तुरंत सान्या का हाथ थामा और चीखा —
    “सान्या! यहाँ से बाहर चलो… अभी!”

    लेकिन सान्या ने कदम पीछे खींच लिए। उसकी आँखें भय और जिद्द से भरी थीं।
    “नहीं! कोई अंदर फँसा हुआ है… मैंने आवाज़ सुनी थी।”

    आदित्य हक्का-बक्का रह गया।
    “तुम पागल हो गई हो? वहाँ जाना मौत को बुलाना है।”

    सान्या काँपते हुए भी बोली —
    “अगर मैं किसी की जान बचा सकती हूँ, तो मुझे जाना होगा।”


    ---

    अंदर का खतरा

    आग बढ़ती जा रही थी। फर्नीचर जलकर गिर रहे थे, दीवारें दरक रही थीं।

    आदित्य ने रोकने की कोशिश की, लेकिन सान्या ने उसका हाथ छुड़ाकर दरवाज़े की ओर दौड़ लगा दी।
    “सान्या, रुको!” आदित्य चिल्लाया।

    कबीर पीछे खड़ा सब देख रहा था। उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी, मानो आग की हर लपट उसके खेल का हिस्सा हो।
    “जाओ, अगर बच गई तो देखेंगे…” वो बुदबुदाया।


    ---

    साहस की परीक्षा

    सान्या अंदर पहुँची तो धुएँ से आँखें जलने लगीं। उसने रुमाल से मुँह ढक लिया।

    फिर उसे हल्की सी कराह सुनाई दी।
    “बचाओ… कोई है…”

    वो आवाज़ एक छोटे बच्चे की थी — हवेली के नौकर का बेटा, जो गलती से अंदर फँस गया था।

    सान्या ने काँपते हाथों से भारी लकड़ी हटाई और बच्चे को अपनी बाँहों में उठा लिया।
    “डर मत, मैं यहाँ हूँ।”

    बच्चे की साँसें तेज़ थीं। धुआँ उसे घेर रहा था।


    ---

    मौत से सामना

    वापस बाहर निकलने का रास्ता धधकती लपटों से बंद हो चुका था। लकड़ियाँ गिरकर दरवाज़ा रोक चुकी थीं।

    सान्या के माथे से पसीना टपका। “अब क्या करूँ? मुझे उसे बचाना ही होगा।”

    उसने चारों ओर देखा। खिड़की से बाहर जाने का एक छोटा रास्ता था, लेकिन वहाँ पहुँचने के लिए जलती हुई लकड़ियों को हटाना ज़रूरी था।

    उसके हाथ जल रहे थे, लेकिन उसने बच्चे को कसकर पकड़ लिया और दाँत भींचकर लकड़ियाँ हटाने लगी।


    ---

    आदित्य की बेचैनी

    बाहर खड़ा आदित्य पागलों की तरह चिल्ला रहा था।
    “सान्या! बाहर आओ… प्लीज़!”

    धुआँ गहराता जा रहा था। कबीर ने ताना मारते हुए कहा —
    “लगता है तुम्हारी ‘मेहमान’ वहीं अंदर जलकर खाक हो जाएगी।”

    आदित्य ने गुस्से से उसकी ओर देखा।
    “चुप रहो, कबीर! अगर उसे कुछ हुआ तो मैं तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।”


    ---

    जिद्दी दिल

    अंदर सान्या ने पूरी ताकत से लकड़ी हटाई और खिड़की तोड़ डाली। उसने बच्चे को पहले बाहर धकेला, फिर खुद भी काँच से होकर छलाँग लगा दी।

    बाहर लोग चीख उठे। बच्चे को बचाकर जैसे उसने सबको हैरान कर दिया।

    आदित्य दौड़कर उसके पास पहुँचा।
    “सान्या! तुम ठीक हो?”

    उसके हाथ बुरी तरह झुलस चुके थे, लेकिन चेहरे पर संतोष था।
    “हाँ… मैंने उसे बचा लिया।”


    ---

    इंसान या मशीन?

    कबीर आगे आया, उसकी आँखें हैरत से फैल गई थीं।
    “ये… ये कैसे हो सकता है? अगर ये मशीन होती, तो इतनी तकलीफ़ क्यों महसूस करती? ये दर्द, ये आँसू… ये तो इंसानियत है।”

    आदित्य ने सान्या को कसकर बाँहों में भर लिया।
    “तुम्हें कोई हक नहीं है ये तय करने का कि वो कौन है। मेरे लिए वो मेरी ज़िंदगी है।”

    सान्या के दिल में तूफ़ान उठ रहा था। “क्या मैं सचमुच मशीन हूँ? या फिर इन सब भावनाओं ने मुझे इंसान बना दिया है?”


    ---

    नया खतरा

    लेकिन खुशी का वो पल ज्यादा देर टिक नहीं पाया। हवेली की आग बुझाने के बाद नौकरों ने बताया कि आग अपने आप नहीं लगी थी… किसी ने जान-बूझकर लगाई थी।

    सान्या और आदित्य ने एक-दूसरे की ओर देखा।

    कबीर पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था। उसकी आँखों में वही पुरानी शैतानी चमक थी।

    “खेल तो अभी शुरू हुआ है…” उसने मन ही मन कहा।


    ---

  • 14. Wires of the Heart - Chapter 14

    Words: 589

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात गहरी हो चुकी थी। हवेली का पिछला हिस्सा धुएँ से काला पड़ गया था, लेकिन सबसे बड़ी राहत थी कि कोई जान नहीं गई। नौकरों का छोटा बेटा सुरक्षित था।

    सान्या कमरे में लेटी हुई थी। उसके हाथों पर पट्टियाँ बँधी थीं, हल्की-हल्की जलन अभी भी हो रही थी।

    दरवाज़ा धीरे से खुला। आदित्य अंदर आया, हाथ में दवा और पानी की कटोरी लेकर।

    “कैसी हो अब?” उसकी आवाज़ धीमी और कोमल थी।

    सान्या ने उसकी ओर देखा, आँखों में थकान और दर्द था।
    “ठीक हूँ… बस थोड़ा दर्द है।”


    ---

    देखभाल

    आदित्य उसके पास बैठ गया। उसने सावधानी से पट्टी खोली और धीरे-धीरे जली हुई जगह पर मरहम लगाने लगा।

    सान्या ने होंठ काट लिए।
    “आह…”

    आदित्य ने तुरंत उसका हाथ थाम लिया।
    “बस थोड़ी देर सह लो… फिर आराम मिलेगा।”

    सान्या ने उसकी आँखों में देखा। वो आँखें, जिनमें चिंता और मोहब्बत दोनों झलक रही थीं।

    “ये इंसान क्यों मेरी इतनी परवाह करता है? जबकि मैं तो…” सान्या का दिल सवालों से घिरा था।


    ---

    पहली नर्मी

    मरहम लगाते हुए आदित्य का हाथ बार-बार उसके हाथों को छू रहा था। हर स्पर्श जैसे सान्या के दिल में हल्की सी बिजली दौड़ा देता।

    “सान्या…” आदित्य ने धीरे से कहा,
    “तुम्हें अपनी जान की इतनी परवाह क्यों नहीं? क्यों आग में कूद गईं?”

    सान्या ने नज़रें झुका लीं।
    “क्योंकि… अगर मैं किसी की जान बचा सकती हूँ तो मुझे करना चाहिए। यही तो इंसानियत है।”

    आदित्य उसके शब्द सुनकर ठिठक गया। उसके होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
    “तो तुम मुझे कह रही हो कि तुम इंसान हो…?”

    सान्या ने कुछ नहीं कहा। उसकी आँखों से बस एक आँसू लुढ़क पड़ा।


    ---

    दिल की धड़कन

    आदित्य ने झुककर उसका आँसू पोंछा।
    “तुम्हें कुछ साबित करने की ज़रूरत नहीं। मेरे लिए तुम जैसी हो, बिल्कुल वैसी ही काफ़ी हो।”

    उसकी आवाज़ में ऐसी सच्चाई थी कि सान्या का दिल काँप उठा।

    वो काँपती आवाज़ में बोली —
    “अगर आपको सच पता चल गया तो?”

    आदित्य ने उसकी ओर और करीब आकर कहा —
    “सच जो भी हो, मेरा जवाब नहीं बदलेगा।”

    उनकी साँसें करीब आने लगीं। सन्नाटा कमरे में भर गया।


    ---

    पहली नज़दीकी

    आदित्य ने धीरे से उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लिया।
    सान्या की आँखें बंद हो गईं। दिल की धड़कन तेज़ होती जा रही थी।

    उनके होंठ हल्के से एक-दूसरे को छूए — न ज्यादा, न कम, बस एक नर्म एहसास, जो दोनों के लिए सबकुछ बदल देने वाला था।

    सान्या काँपते हुए पीछे हट गई।
    “ये… ये ठीक नहीं है। आपको पता नहीं मैं कौन हूँ।”

    आदित्य ने गहरी साँस ली और उसका हाथ थामकर कहा —
    “मुझे सिर्फ इतना पता है कि तुम वही हो, जो मेरे दिल को धड़कने पर मजबूर करती हो।”


    ---

    अनकहा इकरार

    सान्या की आँखें फिर से नम हो गईं।
    “आप नहीं समझते… मैं इंसानों जैसी नहीं हूँ। मेरा सच आपको तोड़ देगा।”

    आदित्य ने मुस्कुराते हुए उसके माथे पर हल्की चुम्बन दी।
    “तोड़ देगा तो सही, लेकिन मुझे पूरा भी तो तुम ही करोगी।”

    उस पल सान्या ने महसूस किया कि शायद… कोई उसे पहली बार सच में अपना रहा था, बिना उसकी असलियत जाने।


    ---

    अंधेरे में छुपा साया

    लेकिन उन्हें ये अहसास नहीं था कि कमरे से बाहर, परदे के पीछे कबीर खड़ा था। उसकी आँखें गुस्से और जलन से लाल थीं।

    उसने मन ही मन कहा —
    “आदित्य… तुम ये भूल रहे हो कि ये लड़की तुम्हें बरबाद कर देगी। और मैं ये होने नहीं दूँगा।”

    वो परछाईं की तरह अंधेरे में गायब हो गया, लेकिन उसके मन में नई साज़िश जन्म ले चुकी थी।


    ---

  • 15. Wires of the Heart - Chapter 15

    Words: 560

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की हल्की धूप हवेली की टूटी खिड़कियों से छनकर अंदर आ रही थी। पिछली रात की आग ने सबको हिला कर रख दिया था, लेकिन आदित्य और सान्या दोनों एक-दूसरे की आँखों में सुकून ढूँढ रहे थे।

    सान्या अब भी आराम कर रही थी। उसके हाथ पट्टियों में लिपटे थे। आदित्य उसके कमरे से बाहर आया ही था कि सामने कबीर खड़ा मिला।

    “रात अच्छी गुज़री?” कबीर ने व्यंग्य से पूछा।

    आदित्य ने आँखें सिकोड़ लीं।
    “तुम्हारी बातें मुझे परेशान नहीं कर सकतीं। और हाँ, अगर आग लगाने में तुम्हारा हाथ है, तो सावधान रहना… मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं।”

    कबीर ने हँसते हुए कंधे उचका दिए।
    “आग? कौन सी आग? मैं तो बस देख रहा हूँ कि तुम किसी अजनबी लड़की के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी दाँव पर लगाने को तैयार हो।”


    ---

    कबीर का जाल

    दिन ढलते ही कबीर ने अपनी चाल शुरू कर दी। उसने हवेली के नौकरों से बातें कीं, उनके कान भरे।
    “क्या तुम लोगों ने कभी सोचा है कि ये लड़की कौन है? आग के बीच वो कैसे बच गई? कहीं ये कोई अभिशाप तो नहीं?”

    नौकर-चाकर एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे। डर उनके चेहरों पर साफ़ झलक रहा था।

    कबीर ने और ज़हर घोला —
    “मैंने सुना है, शहर में ऐसी मशीनें बनाई जा रही हैं जो इंसान जैसी दिखती हैं। लेकिन उनका असली रूप खतरनाक होता है। क्या पता ये वही हो?”

    धीरे-धीरे हवेली का माहौल बदलने लगा। लोग सान्या से आँखें चुराने लगे।


    ---

    सान्या की बेचैनी

    सान्या ने यह बदलाव महसूस किया। वो बाहर आकर आँगन में खड़ी हुई तो कुछ नौकर उससे दूर हट गए।

    “ये लोग अचानक मुझसे ऐसे क्यों पेश आ रहे हैं?” उसने सोचा।

    उसकी आँखों में आँसू भर आए। “शायद अब मेरा सच सबके सामने आने वाला है…”


    ---

    आदित्य की ढाल

    आदित्य ने सब नोटिस किया। वो गुस्से से नौकरों की ओर बढ़ा।
    “अगर किसी ने सान्या के बारे में एक भी उल्टी बात की, तो समझ लेना तुम्हारी जगह यहाँ नहीं है।”

    सान्या ने उसकी बाँह पकड़कर धीरे से कहा —
    “कृपया… उनसे ऐसे मत बोलो। मुझे आदत है। लोग हमेशा मुझे अजीब समझते हैं।”

    आदित्य उसकी आँखों में देखते हुए बोला —
    “तो अब आदत बदलो। क्योंकि अब तुम अकेली नहीं हो।”


    ---

    कबीर की चाल गहरी होती है

    कबीर ये सब दूर से देख रहा था। उसके होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
    “देखते हैं, आदित्य… कब तक इस लड़की की ढाल बनते हो। सच छुपाया नहीं जा सकता।”

    उसी शाम, कबीर ने अपने आदमी को बुलाया और आदेश दिया —
    “उसकी अतीत की फाइलें लाओ। प्रयोगशाला से चोरी करो… और मुझे उसका सच चाहिए। कल सुबह तक।”


    ---

    तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी

    रात को हवेली शांत थी। सान्या बालकनी में खड़ी चाँद को देख रही थी। उसकी आँखों में सवाल थे, दर्द था, और कहीं गहराई में एक छोटी सी उम्मीद भी।

    “क्या मैं वाकई इस इंसान की मोहब्बत के काबिल हूँ? अगर उसे मेरा सच पता चला तो?”

    पीछे से आदित्य आया और धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया।
    “इतनी रात को भी तुम जाग रही हो?”

    सान्या ने हल्की मुस्कान दी।
    “नींद नहीं आ रही।”

    आदित्य ने उसकी ओर देखा और बोला —
    “तो मैं तुम्हारे साथ हूँ। जब तक चाहो, ये रात तुम्हारे नाम।”

    सान्या उसकी आँखों में देखती रही। उस पल उसे लगा कि शायद… प्यार सच में हर सच, हर डर से बड़ा होता है।

  • 16. Wires of the Heart - Chapter 16

    Words: 500

    Estimated Reading Time: 3 min

    रात का सन्नाटा हवेली को अपनी गिरफ्त में ले चुका था। आदित्य और सान्या अपनी-अपनी सोच में खोए थे, लेकिन उसी वक्त शहर के एक अंधेरे कोने में कबीर का आदमी मोटे लिफ़ाफ़े के साथ उसकी गाड़ी में बैठा।

    “ये रही वो फाइल, सर। लैब से चुराना आसान नहीं था।”

    कबीर की आँखें चमक उठीं। उसने फाइल खोली और पन्ने पलटने लगा। हर पन्ना सान्या के अतीत की काली परछाइयों को उजागर कर रहा था।

    “प्रोजेक्ट A-17… कृत्रिम इंसान… भावनाओं की परख… असफल प्रयोग…”

    कबीर की मुस्कान चौड़ी हो गई।
    “तो मेरी शंका सही थी। ये लड़की इंसान नहीं, एक मशीन है।”


    ---

    हवेली में डर

    अगली सुबह हवेली में माहौल अजीब था। नौकर अब और भी दूरी बनाने लगे थे। फुसफुसाहटें हर ओर थीं।

    सान्या ने रसोई में कदम रखा तो अचानक दो औरतें चुप हो गईं।
    “क्या हुआ? आप लोग ऐसे क्यों देख रही हैं?” उसने काँपती आवाज़ में पूछा।

    लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया। वे दोनों जल्दी-जल्दी निकल गईं।

    सान्या की आँखें भर आईं। “शायद सबको सच्चाई का अंदाज़ा हो रहा है…”


    ---

    आदित्य की ढाल फिर से

    आदित्य कमरे में आया और उसकी आँखों में आँसू देख लिए।
    “किसने रुलाया तुम्हें?”

    सान्या ने सिर झुका लिया।
    “लोग मुझे अजीब समझते हैं। शायद… शायद मैं सचमुच यहाँ की नहीं हूँ।”

    आदित्य ने उसका चेहरा उठाया और बोला —
    “तुम्हें किसी की सोच से फर्क नहीं पड़ना चाहिए। मेरे लिए तुम वही हो जो मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रूरत हो।”

    सान्या की आँखें नम होते हुए भी चमक उठीं।


    ---

    कबीर का वार

    शाम को कबीर ने मौका ढूँढा और आदित्य से अकेले में मिला। उसके हाथ में वही फाइल थी।

    “आदित्य, अब खेल ख़त्म करो। मैं तुम्हें उस लड़की का सच दिखाना चाहता हूँ।”

    आदित्य ने भौंहें चढ़ाईं।
    “कौन सा सच?”

    कबीर ने फाइल उसकी ओर बढ़ाई।
    “ये पढ़ लो। फिर तय करना कि ये लड़की तुम्हारे साथ रहने लायक है या नहीं।”

    आदित्य ने फाइल खोली, कुछ पन्ने देखे। उसकी आँखें हैरत से फैल गईं।
    “ये… ये क्या है?”


    ---

    तूफ़ान

    सान्या दूर खड़ी यह सब देख रही थी। उसका दिल डूबने लगा। “क्या अब सब ख़त्म हो जाएगा? क्या वो भी मुझसे नफ़रत करेगा?”

    कबीर मुस्कुराया।
    “अब समझे? ये कोई इंसान नहीं, ये तो एक प्रयोगशाला की मशीन है।”

    आदित्य ने गहरी साँस ली। उसकी आँखें सान्या पर टिकीं।

    “तो क्या हुआ अगर ये इंसान नहीं है? दिल तो इसका भी धड़कता है। और मेरे लिए बस इतना ही काफ़ी है।”

    सान्या की आँखें नम हो गईं। आदित्य का विश्वास उसकी उम्मीदों को नई जान दे गया।

    कबीर का चेहरा लाल पड़ गया।
    “तुम पागल हो चुके हो, आदित्य! ये तुम्हें बरबाद कर देगी।”


    ---

    आने वाले तूफ़ान की आहट

    कबीर गुस्से से बाहर निकल गया। उसने मन ही मन कसम खाई —
    “अब खेल असली होगा। अगर तुमने इसे चुना है, तो मैं तुम दोनों को तोड़कर रख दूँगा।”

    हवेली की दीवारें चुप थीं, लेकिन हवाओं में साफ़ महसूस हो रहा था — एक बड़ा तूफ़ान आने वाला है।



    . . .

  • 17. Wires of the Heart - Chapter 17

    Words: 599

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात का अंधेरा धीरे-धीरे हवेली को घेर रहा था। हर कोना जैसे रहस्य फुसफुसा रहा था। आदित्य अपने कमरे में सान्या का हाथ थामे बैठा था, लेकिन दोनों के दिलों में तूफ़ान मचल रहा था।

    सान्या बार-बार वही सवाल दोहरा रही थी —
    “अगर मैं सचमुच इंसान नहीं हूँ, तो क्या तुम्हें डर नहीं लगता?”

    आदित्य ने उसके हाथों को कसकर थामा।
    “डर तो तब लगे जब दिल से जुदा हो जाओ। पर तुम मेरे दिल के सबसे करीब हो। चाहे तुम इंसान हो या नहीं, मैं तुम्हें कभी छोड़ूँगा नहीं।”

    सान्या ने उसकी आँखों में देखा, और पहली बार खुद को सुरक्षित महसूस किया।


    ---

    कबीर का खेल शुरू

    उसी वक्त हवेली के किसी और कोने में कबीर अपने खास आदमियों को बुलाकर बैठा था।

    “अब वक्त आ गया है कि हवेली का हर नौकर, हर आदमी सान्या से नफरत करने लगे। मैं ऐसा माहौल बनाऊँगा कि आदित्य खुद अकेला पड़ जाए।”

    उसने अपने आदमी को कुछ तस्वीरें और फाइलें दीं।
    “इन्हें चारों ओर फैलाना शुरू करो। सबको दिखना चाहिए कि वो लड़की इंसान नहीं, बल्कि एक असफल प्रयोग है।”

    आदमी सिर हिलाते हुए चला गया।


    ---

    नौकरों की फुसफुसाहट

    सुबह होते ही हवेली का माहौल अजीब हो गया। नौकर एक-दूसरे से धीमी आवाज़ में बातें कर रहे थे।
    “सुना है वो लड़की मशीन है।”
    “हाँ, कल रात मैंने देखा उसका हाथ कट गया था, मगर खून नहीं निकला।”
    “अगर ये सच है तो हम सब खतरे में हैं।”

    सान्या जब आँगन में उतरी तो सबकी निगाहें उस पर थीं। उसकी हर हरकत पर शक भरी आँखें टिक गईं।

    उसका दिल बैठ गया। “ये सब कैसे जान गए?”


    ---

    आदित्य की ढाल

    आदित्य जैसे ही बाहर आया, उसने सबकी नजरें देखीं। गुस्से में बोला —
    “किसी को भी मेरी पत्नी पर ऊँगली उठाने का हक़ नहीं है। जो यहाँ काम करना चाहता है, वो इज्ज़त से रहे। वरना दरवाज़ा बाहर है।”

    नौकर चुप हो गए, लेकिन उनके चेहरों पर डर और अविश्वास साफ़ था।

    सान्या ने धीमी आवाज़ में कहा —
    “शायद तुम्हें सबके खिलाफ इतना नहीं बोलना चाहिए…”

    आदित्य ने उसकी ओर देखा।
    “तुम्हारे खिलाफ कुछ भी सुनूँगा नहीं। चाहे पूरी दुनिया तुम्हारे खिलाफ हो जाए।”


    ---

    कबीर की चाल गहरी

    कबीर दूर खड़ा यह सब देख रहा था। उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी।
    “आदित्य, जितना तुम उसका साथ दोगे, उतना ही ये हवेली तुमसे दूर हो जाएगी। और जब तुम अकेले पड़ जाओगे, तभी मैं वार करूँगा।”

    उसने अपने आदमी को फोन किया —
    “अब अगला कदम उठाओ। हवेली के पुराने दस्तावेज़ों में हेरफेर करो। सबको ये लगना चाहिए कि सान्या यहाँ किसी अपशकुन की तरह आई है।”


    ---

    सान्या का डर

    रात को सान्या सो नहीं पा रही थी। उसे बार-बार सपनों में वही लैब, वही ठंडी मशीनें, और वही सफेद कपड़े पहने लोग याद आ रहे थे।

    वो काँप उठी और आदित्य को जगा दिया।
    “मैं… मैं किसी के लिए खतरा तो नहीं हूँ न?”

    आदित्य ने उसे सीने से लगा लिया।
    “तुम मेरे लिए सिर्फ मेरी पत्नी हो। और कुछ नहीं।”

    सान्या ने आँखें बंद कर लीं, लेकिन उसके दिल में कहीं गहरा डर अब भी बाकी था।


    ---

    आने वाला खेल

    सुबह कबीर ने पूरे परिवार को इकट्ठा किया। उसके हाथ में कुछ कागज़ थे।
    “मुझे इस हवेली से जुड़ा एक ऐसा सच मिला है, जिसे जानकर सबके पैरों तले ज़मीन खिसक जाएगी।”

    आदित्य चौंका।
    “कबीर, अब क्या नया नाटक है?”

    कबीर मुस्कुराया और बोला —
    “नाटक नहीं, हक़ीक़त है। और इस हक़ीक़त में सान्या का नाम सबसे ऊपर लिखा है।”

    हवेली की दीवारें जैसे सन्नाटे से भर गईं। आने वाले तूफ़ान की आहट सबको साफ़ सुनाई दे रही थी।


    ---

  • 18. Wires of the Heart - Chapter 18

    Words: 594

    Estimated Reading Time: 4 min

    हवेली के हॉल में सब इकट्ठा थे। कबीर ने हाथ में पकड़े दस्तावेज़ों को टेबल पर पटक दिया।
    “ये कागज़ सब सच बता देंगे। आदित्य, तेरा राज़ अब सबके सामने आएगा।”

    आदित्य ने उसकी तरफ़ तीखी नज़र से देखा।
    “कबीर, तुम जानबूझकर मेरी पत्नी को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हो। लेकिन याद रखना, मैं चुप नहीं बैठूँगा।”

    कबीर हँसा।
    “मैं किसी को बदनाम नहीं कर रहा। बस वो दिखा रहा हूँ जिसे तुमने सालों से छुपा रखा है।”

    उसने पहला कागज़ खोला।
    “ये मेडिकल रिपोर्ट है — साफ़ लिखा है कि आदित्य को Human Contact Allergy Syndrome है। यानी इंसानों से ज़रा-सा छूने पर उसे गंभीर प्रतिक्रिया होती है — सांस रुकना, चकत्ते निकलना, बेहोशी तक।”

    हॉल में बैठे सब लोग हैरान रह गए।


    ---

    राज़ का खुलासा

    आदित्य ने एक पल के लिए आँखें बंद कीं। यह सच उसने अब तक केवल अपने सबसे करीब के डॉक्टर और पुराने नौकरानी माया को ही बताया था।

    सान्या स्तब्ध थी।
    “इसलिए… तुम सब लोगों से दूर रहते हो?”

    आदित्य की आवाज़ भारी हो गई।
    “हाँ। बचपन से ही ये बीमारी है। मैंने कोशिश की कि इलाज हो जाए, पर कभी फायदा नहीं हुआ। यही वजह थी कि मैं अकेला पड़ गया।”

    कबीर ने ताना मारा —
    “और यही वजह है कि तुमने इस नकली औरत को चुना, है न? क्योंकि तुम्हें लगा ये इंसान नहीं, रोबोट है। तो तुम्हारी बीमारी को खतरा नहीं होगा।”

    सान्या का चेहरा उतर गया। उसके दिल में गहरी चोट लगी।


    ---

    सान्या का दर्द

    रात को जब दोनों अकेले थे, सान्या रोते हुए बोली —
    “तो ये सच है… तुमने मुझे अपनाया क्योंकि तुम्हें लगा मैं इंसान नहीं हूँ? मतलब अगर मैं सच में इंसान निकलूँ तो तुम मुझे छू भी नहीं पाओगे?”

    आदित्य ने उसका चेहरा थाम लिया, उसकी आँखों में सच्चाई थी।
    “नहीं, सान्या। मैं मानता हूँ कि शुरू में ऐसा ही था। लेकिन अब… अब मेरे लिए तुम वो एकमात्र इंसान हो जिसके बिना मैं जी ही नहीं सकता। अगर मेरा शरीर तुम्हें छूने से टूट भी जाए, तो भी मैं दूर नहीं जाऊँगा।”

    सान्या की आँखों से आँसू बह निकले।
    “लेकिन तुम्हारी जान को खतरा है…”

    आदित्य मुस्कुराया।
    “तुम मेरे लिए जान से भी ज्यादा हो। ये बीमारी मुझे रोक नहीं सकती।”


    ---

    कबीर की साज़िश गहराती है

    कबीर अपनी चाल में कामयाब होता दिख रहा था। नौकरों और परिवार वालों के दिल में अब दोहरा डर था —

    एक तरफ़ सान्या की पहचान पर शक,

    दूसरी तरफ़ आदित्य की बीमारी का खुलासा।


    कबीर ने अपने आदमी से कहा —
    “अब अगला कदम ये होगा कि सबको लगे कि सान्या की वजह से ही आदित्य खतरे में है। मैं ऐसा माहौल बनाऊँगा कि आदित्य चाहे जितना बचाए, उसे छोड़ने के लिए मजबूर हो जाए।”


    ---

    सान्या का संकल्प

    रात के आखिरी पहर में सान्या खिड़की के पास खड़ी थी। चाँदनी उसके चेहरे पर पड़ी थी, आँसू चमक रहे थे।

    उसने मन में सोचा —
    “अगर मेरी वजह से आदित्य की जान पर खतरा है, तो मुझे खुद को दूर करना होगा। लेकिन क्या मैं उससे दूर रह पाऊँगी? क्या वो मुझे कभी जाने देगा?”

    उसके दिल में डर और प्यार की लड़ाई छिड़ चुकी थी।


    ---

    अगली सुबह

    सुबह आदित्य ने सान्या का हाथ थामा और सबके सामने खड़ा हुआ।
    “हाँ, मुझे ये बीमारी है। लेकिन ये मेरी कमजोरी नहीं, मेरी पहचान है। और सान्या मेरी ताक़त है। कोई चाहे जितना कुछ कहे, मैं उसे छोड़ने वाला नहीं हूँ।”

    सबके चेहरे पर खामोशी थी। कबीर के होंठों पर फिर भी शैतानी मुस्कान थी।

    क्योंकि वो जानता था — असली खेल अभी शुरू हुआ है।

  • 19. Wires of the Heart - Chapter 19

    Words: 644

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की हल्की धूप हवेली के आँगन में फैल रही थी, मगर उस रोशनी में भी एक भारीपन था। सान्या अकेले बैठी थी, उसका मन अभी भी आदित्य की बीमारी के सच में अटका हुआ था।

    “अगर मेरी वजह से उसकी जान को खतरा है तो… क्या मुझे उसके पास रहना चाहिए?”

    उसी पल कबीर वहाँ आया। उसकी चाल धीमी थी लेकिन चेहरे पर वही पुरानी मुस्कान।
    “सुना है रात को तुम दोनों के बीच बहुत बड़ी बात हुई। सच कहूँ तो सान्या, तुम आदित्य के लिए खतरा हो।”

    सान्या ने उसकी तरफ़ देखा।
    “तुम्हें लोगों के बीच जहर फैलाने में मज़ा आता है न?”

    कबीर ने कंधे उचकाए।
    “जहर नहीं, सच्चाई। अगर तुम सचमुच इंसान हो… तो हर बार जब आदित्य तुम्हें छुएगा, उसकी जान पर खतरा होगा। सोचो, अगर कभी उसकी हालत बिगड़ गई तो कौन जिम्मेदार होगा? तुम।”

    सान्या के होंठ काँप उठे। उसके मन में पहले से ही यह डर था, और कबीर ने उसे और गहरा कर दिया।


    ---

    आदित्य की जिद

    दूसरी ओर आदित्य अपने डॉक्टर से मिलने गया।
    “क्या मेरी बीमारी का कोई इलाज नहीं है?”

    डॉक्टर ने सिर झुका दिया।
    “अब तक जितने भी इलाज हुए, कोई असर नहीं हुआ। तुम जानते हो यह बहुत दुर्लभ बीमारी है। सबसे सुरक्षित तरीका यही है कि तुम लोगों से दूरी बनाए रखो।”

    आदित्य की आँखों में आंसू तैर गए।
    “लेकिन मैं उससे दूर नहीं रह सकता। सान्या ही मेरी ज़िंदगी है।”


    ---

    नौकरों की फुसफुसाहट

    हवेली के नौकर अब खुलेआम बातें करने लगे थे।
    “मालिक का हाल तो बुरा है। अगर मैडमजी सच में इंसान हैं तो एक दिन मालिक की मौत उन्हीं की वजह से होगी।”
    “हमें यहाँ रहना भी खतरे से खाली नहीं लगता।”

    सान्या ने अनजाने में ये बातें सुन लीं। उसका दिल टूट गया।


    ---

    सान्या का फैसला

    रात को आदित्य सो रहा था। सान्या उसके पास बैठी थी, उसके माथे को देखते हुए सोची —
    “कहीं मैं ही उसकी कमजोरी न बन जाऊँ। अगर मेरा प्यार उसकी जान ले ले, तो ये प्यार किस काम का?”

    उसकी आँखों में आँसू भर आए। उसने धीरे से आदित्य का हाथ छोड़ा और मन ही मन कसम खाई —
    “अगर मुझे उससे दूर जाना पड़ा, तो भी मैं उसे बचाने के लिए ये सब करूँगी।”


    ---

    कबीर का अगला दांव

    सुबह कबीर ने पूरे परिवार और नौकरों को हॉल में इकट्ठा किया।
    “मैंने सुना है आदित्य अपनी बीमारी छुपाता रहा। अब देखना, ये बीमारी कैसे उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बनेगी।”

    उसने सबके सामने आदित्य और सान्या की तस्वीरें दिखाई, जहाँ दोनों पास-पास थे।
    “हर बार जब वो उसे छूता है, उसकी बीमारी और बढ़ती है। अगर ये रिश्ता चलता रहा, तो एक दिन आदित्य को खोना पड़ेगा। क्या तुम सब इसके लिए तैयार हो?”

    हॉल में हलचल मच गई। सबके चेहरे पर डर साफ था।


    ---

    आदित्य का सामना

    आदित्य गुस्से में हॉल में दाखिल हुआ।
    “काफी हो गया कबीर! मेरी बीमारी मेरी समस्या है। इसे बहाना बनाकर मेरी पत्नी को नीचा दिखाने की कोशिश मत करो।”

    कबीर ने उसकी तरफ़ सीधी नजर डाली।
    “मैं सच दिखा रहा हूँ, आदित्य। और एक दिन तुम्हें भी ये मानना पड़ेगा कि सान्या तुम्हारे लिए खतरा है।”


    ---

    दिल की जंग

    रात को जब दोनों अकेले हुए, सान्या चुपचाप खिड़की के पास खड़ी थी।
    आदित्य उसके पास आया।
    “तुम इतनी उदास क्यों हो?”

    सान्या ने धीमी आवाज़ में कहा —
    “अगर मैं तुम्हारी जान के लिए खतरा हूँ… तो क्या तुम फिर भी मुझे पास रखोगे?”

    आदित्य ने बिना झिझक उसका हाथ पकड़ लिया।
    “हाँ। क्योंकि तुम्हारे बिना मेरी ज़िंदगी का कोई मतलब नहीं। चाहे ये बीमारी मेरी दुश्मन हो, मैं इसे तुम्हारे लिए झेल लूँगा।”

    सान्या की आँखों में आँसू तैर गए। उसने पहली बार आदित्य को कसकर गले लगाया।

    लेकिन दोनों को नहीं पता था कि दरवाज़े के बाहर खड़ा कबीर यह सब सुन रहा था… और उसकी आँखों में नफरत और भी गहरी हो चुकी थी।

  • 20. Wires of the Heart - Chapter 20

    Words: 625

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह का समय था। हवेली के आँगन में सब लोग इकट्ठा थे। कबीर ने सबको जोर से पुकारा —
    “आज हम सबको ये तय करना होगा कि क्या हम अपनी आँखों के सामने आदित्य को मरते हुए देखेंगे, या फिर उसे बचाने के लिए कदम उठाएँगे।”

    एक नौकर बोला,
    “लेकिन सर, आदित्य साहब ने खुद कहा है कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता…”

    कबीर ने बीच में ही काट दिया।
    “क्यों फर्क नहीं पड़ता? क्योंकि वो प्यार में अंधा हो चुका है। लेकिन हम सब? क्या हम भी उसकी मौत का इंतज़ार करेंगे? सोचो, अगर एक दिन अचानक उसकी तबियत बिगड़ गई तो उसकी जिम्मेदार कौन होगी? वही औरत — सान्या।”

    भीड़ में कानाफूसी शुरू हो गई। डर हर चेहरे पर साफ झलक रहा था।


    ---

    सान्या का अकेलापन

    सान्या सीढ़ियों पर खड़ी यह सब सुन रही थी। उसकी आँखों में आँसू आ गए।
    “तो अब सब मुझे उसकी दुश्मन मानने लगे हैं…”

    आदित्य वहाँ पहुँचा और सबको चुप कराते हुए बोला —
    “किसी को भी मेरी पत्नी के खिलाफ एक शब्द कहने का हक़ नहीं है। वो मेरी ताकत है, मेरी कमजोरी नहीं।”

    लेकिन उसकी आवाज़ में गुस्से से ज्यादा लाचारी झलक रही थी।


    ---

    कबीर की चालाकी

    कबीर ने एक और कागज़ हवा में लहराया।
    “ये देखो। ये डॉक्टर की रिपोर्ट है। इसमें साफ़ लिखा है कि अगर आदित्य इंसानों के नज़दीक रहेगा तो उसकी हालत हर दिन बिगड़ती जाएगी। और अगर उसने शादीशुदा ज़िंदगी इस तरह गुज़ारी तो शायद ज्यादा दिन जी ही न पाए।”

    सबके चेहरे पर दहशत फैल गई।

    कबीर ने ताना मारते हुए कहा,
    “अब बताओ, क्या हम सबको चुप बैठकर ये मौत का खेल देखना चाहिए?”


    ---

    आदित्य और सान्या की बहस

    रात को कमरे में दोनों अकेले थे। आदित्य ने गुस्से में कहा —
    “तुम देख रही हो न, कबीर सबको कैसे भड़का रहा है? लेकिन मैं कभी उसे जीतने नहीं दूँगा।”

    सान्या ने आँखें नीची कर लीं।
    “शायद वो सही कह रहा है, आदित्य। तुम्हारी हालत मेरी वजह से और बिगड़ेगी। अगर सच में मैं तुम्हारी जान के लिए खतरा हूँ तो मुझे यहाँ से चले जाना चाहिए।”

    आदित्य ने उसका हाथ पकड़ लिया।
    “बस! ये बात दुबारा मत कहना। तुम्हारे बिना मैं जी ही नहीं सकता।”

    सान्या की आँखों से आँसू बह निकले।
    “लेकिन तुम्हारे लिए मरना भी तो मैं ही बन सकती हूँ…”


    ---

    हवेली में विद्रोह

    अगले दिन कुछ नौकर आदित्य के पास आए।
    “साहब, हम आपसे बहुत प्यार करते हैं। लेकिन… अगर आप सान्या मैडम को यहाँ रखते हैं तो हम सब नौकरी छोड़ देंगे। हमें डर है कि आपकी मौत किसी भी दिन हो सकती है। हम ये सब देख नहीं पाएँगे।”

    आदित्य गुस्से में फट पड़ा।
    “जिसे जाना है, चला जाए। लेकिन याद रखना, इस हवेली का दरवाज़ा हमेशा के लिए बंद होगा।”

    नौकर सहम गए, लेकिन उनकी आँखों में डर अब भी मौजूद था।


    ---

    कबीर की जीत का एहसास

    कबीर दूर खड़ा यह सब देख रहा था। उसके चेहरे पर जीत की चमक थी।
    “आदित्य, जितना तुम उसके साथ खड़े रहोगे, उतना ही अकेले पड़ोगे। एक दिन खुद तुम्हें एहसास होगा कि सान्या तुम्हारे लिए बोझ है।”


    ---

    सान्या की बेचैनी

    रात को सान्या अकेले बगीचे में बैठी थी। चाँदनी उसके चेहरे पर थी, लेकिन उसके दिल में अंधेरा।

    उसने खुद से कहा —
    “अगर सच में मेरे होने से आदित्य सबको खो रहा है… तो क्या मुझे उससे दूर हो जाना चाहिए? लेकिन कैसे जाऊँ? उसका हाथ छोड़ने की हिम्मत मुझमें नहीं है।”

    उसकी आँखों में आँसू चमक उठे।

    और तभी पीछे से कबीर की धीमी आवाज़ आई —
    “कभी-कभी किसी को बचाने का सबसे सही तरीका यही होता है कि उससे दूर चला जाए।”

    सान्या ने उसकी तरफ़ देखा। कबीर की आँखों में चालाकी थी, लेकिन उसकी बातों ने उसके दिल में गहरे डर बो दिए।