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बंदिशें

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mani kharwar

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"वो सीधी-सादी रिया, जो सिर्फ़ मोहब्बत चाहती थी… और वो रायन ओबेरॉय, जिसके लिए प्यार एक जुनून और जुनून एक सज़ा था। दोनों के हाथों पर लिखा ‘R’ उनका राज़ भी है और उनकी तक़दीर भी।" . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ....

Total Chapters (18)

Page 1 of 1

  • 1. बंदिशें - Chapter 1

    Words: 875

    Estimated Reading Time: 6 min

    उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में सुबह का सूरज ढलते ही हर ओर चहल–पहल होने लगती थी। मिट्टी की खुशबू, पेड़ों पर बैठे पंछियों की चहचहाहट और गाँव की गलियों में बच्चों की आवाज़ें – सब मिलकर उस जगह को ज़िंदा कर देते थे।

    इसी गाँव में रहती थी Riya Singh। 19 साल की मासूम, खूबसूरत, लेकिन उतनी ही संकोची लड़की। Riya का जीवन सीधा–सादा था, पर उसके मन में हमेशा एक ख्वाहिश छुपी रहती थी – कोई ऐसा आए जो उसे सच्चा प्यार दे, जो उसे वैसे अपनाए जैसे वो है।

    Riya का परिवार बड़ा था और रिश्तों से भरा हुआ।

    उसके बड़े पापा – राजीव सिंह, गाँव में इज़्ज़तदार इंसान माने जाते थे।
    उनकी पत्नी सुनीता सिंह, घर की बड़ी बहू थीं, जिनका व्यवहार सबके लिए मां जैसा था।

    उनके पाँच बच्चे थे –

    Priyanka – जिनकी शादी हो चुकी थी और वो अपने ससुराल में खुश थीं।

    Priya – चंचल, हंसमुख और हर किसी को अपनी बातों में बांध लेने वाली।

    Preet – शांत, गंभीर और अपने ख्यालों की दुनिया में खोई रहने वाली।

    Piyush और Priyanshu – दोनों शरारती, पर घर के लिए हमेशा खड़े रहने वाले।


    Riya के अपने पिता का नाम था Nakul Singh। Nakul की ज़िंदगी में कई मोड़ आए थे। उनकी पहली पत्नी यानी Riya की असली माँ का देहांत तब हो गया जब Riya महज़ दो साल की थी। Nakul ने दूसरी शादी की Maya Singh से।

    Maya से उन्हें एक बेटा हुआ – Rahul, जो छोटा था और घर का सबसे दुलारा भी। लेकिन Maya, Riya से उतना प्यार नहीं कर पाती थी। अकसर छोटी–छोटी बातों पर उसे डाँट देतीं। Riya इस सबकी आदी हो चुकी थी।

    Riya की एक बड़ी बहन भी थी – Nishu, जिनकी शादी हो चुकी थी और वे अपने नए घर में खुशहाल जीवन बिता रही थीं।

    Riya की दुनिया बस इतनी थी – गाँव की गलियाँ, अपनी किताबें, और वो छोटे–छोटे सपने जो वो दिल में पाले रहती थी।


    ---

    दूसरी ओर – ओबेरॉय परिवार

    हज़ारों किलोमीटर दूर, अमेरिका के आलीशान शहर में खड़ा था Oberoi Mansion। ऊँची दीवारें, विदेशी कारों की लाइन और अंदर की शाही सजावट – ये सब उस घर की शान थे।

    इस घर का मालिक था – Vir Oberoi, यानी Ryan के दादा।
    उनकी पत्नी Meera Oberoi दादी थीं, जिनकी गोदी पूरे घर के लिए सुकून का ठिकाना थी।

    Vikram Oberoi – Ryan के पिता, एक सफल businessman, जिन्होंने Empire को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
    उनकी पत्नी Vaishali Oberoi, परिवार की backbone मानी जाती थीं।

    Ryan की एक बहन थी – Lisa Oberoi।
    Lisa दिल से बहुत साफ़ और खुशमिजाज लड़की थी। उसकी online दोस्ती Riya से हुई थी और ये दोस्ती धीरे–धीरे गहरी होती चली गई थी। Lisa, Riya को बहन जैसा मानने लगी थी।

    Ryan के दो छोटे भाई थे – Aryan और Ivan।
    Aryan गंभीर और calm nature का था, जबकि Ivan playful और funny था। दोनों भाइयों के बीच हमेशा नोंक–झोंक चलती रहती, पर दिल से दोनों एक-दूसरे के बहुत करीब थे।

    और फिर घर का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य – Ryan Oberoi।

    27 साल का, personality में ऐसा रौब कि सामने वाला डरकर झुक जाए। बाहरी दुनिया उसे सिर्फ़ एक business tycoon मानती थी – smart, sharp और ruthless businessman। लेकिन उसके भीतर एक और चेहरा छुपा था – वो चेहरा जिसे कोई नहीं जानता था।

    Ryan को लड़कियों से नफ़रत थी। उसके लिए कोई भी लड़की उसके करीब आती, तो वो उसका आखिरी दिन बन जाता। उसकी coldness और गुस्सा, दोनों ही उसके आसपास खड़े लोगों को कंपकंपा देते थे।


    ---

    छुपा हुआ सच

    Ryan और Riya का रिश्ता उतना अजनबी नहीं था जितना दिखता था।
    सालों पहले, जब Riya सिर्फ़ दो साल की थी और Ryan नौ साल का – दोनों की शादी गाँव में कर दी गई थी। उस समय ये एक मज़ाक या खेल जैसा था, लेकिन दोनों परिवारों ने इसे seriously लिया था।

    Ryan बड़ा होते–होते इस घटना को भूल गया। पर उनके दादा Vir Oberoi ने कभी ये बात नहीं भूली। वो जानते थे कि Ryan और Riya का रिश्ता सिर्फ़ नाम का नहीं है, बल्कि तक़दीर का लिखा हुआ है।

    Ryan के दाएँ हाथ पर ‘R’ अक्षर गुदा हुआ था, जिसे लोग उसका नाम समझते थे। लेकिन असलियत ये थी कि वो ‘R’ Riya का पहला अक्षर था। उसी तरह Riya के हाथ पर ‘R’ अक्षर था – जिसे उसने कभी किसी को नहीं दिखाया।

    Ryan की बुआ Kamini Oberoi, इस सच से अनजान नहीं थीं। लेकिन उनका मन कुछ और ही चाहता था। वो Ryan की शादी अपनी बेटी Mona से करवाना चाहती थीं। Kamini को हमेशा से Riya से चिढ़ रही थी – आखिर वो एक छोटे गाँव की लड़की थी, और Oberoi परिवार में आने के काबिल नहीं।


    ---

    दोनों दुनिया का टकराव

    एक ओर थी Riya – जो सादगी और मासूमियत से भरी हुई थी।
    दूसरी ओर था Ryan – जो गुस्से, रौब और अपनी जटिलता में खोया हुआ था।

    इन दोनों के बीच कोई पुल नहीं था, लेकिन शायद किस्मत ने उनके लिए रास्ता पहले ही बना रखा था।

    कहानी की शुरुआत वहीं से होती है, जब Vir Oberoi तय करते हैं कि अब समय आ गया है – Riya को Oberoi Mansion लाने का।
    क्योंकि वो जानते थे, असली कहानी अब शुरू होने वाली है।

  • 2. बंदिशें - Chapter 2

    Words: 860

    Estimated Reading Time: 6 min

    शाम का समय था। ओबेरॉय हवेली की ऊँची दीवारों और बड़े-बड़े झूमरों के बीच हल्की-हल्की हवा बह रही थी। हवेली के सबसे पुराने और सम्मानित शख़्स, वीर ओबेरॉय, अपने कमरे में बैठे हुए थे। उनके हाथों में पुराना एलबम था। तस्वीरों को देखते-देखते उनकी आँखें नम हो गईं।

    उस एलबम में एक तस्वीर थी—नन्हा-सा रायन और छोटी-सी रिया, दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे हंस रहे थे। उस तस्वीर में उनकी हथेलियों पर एक जैसा अक्षर उभर रहा था—“R”। वीर ओबेरॉय को अच्छे से याद था कि यह सिर्फ़ खेल नहीं था, बल्कि किस्मत का लिखा हुआ सच था।

    उन्होंने गहरी सांस ली और मन ही मन कहा—
    “अब वक़्त आ गया है सबको याद दिलाने का। रायन की ज़िंदगी को बचाना होगा।”

    वीर ओबेरॉय ने टेबल से फ़ोन उठाया और एक पुराना नंबर मिलाया। यह नंबर सिर्फ़ उन्हें याद था—नकुल सिंह, यानी रिया के पिता का।


    ---

    सिंह परिवार की ओर

    उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे में, सिंह हवेली के आँगन में नकुल सिंह बैठे थे। उम्र ढल चुकी थी, लेकिन चेहरा अब भी रौबदार था। पास ही उनकी दूसरी पत्नी माया सिंह बर्तनों की खनक के साथ काम में लगी थीं। छोटा बेटा राहुल खेलते हुए शोर मचा रहा था।

    अचानक फ़ोन की घंटी बजी। नकुल सिंह ने रिसीवर उठाया—

    “हैलो?”

    दूसरी ओर से गहरी और भारी आवाज़ गूंजी—
    “नमस्ते, नकुल जी। मैं वीर ओबेरॉय बोल रहा हूँ।”

    नकुल सिंह तुरंत खड़े हो गए।
    “अरे! वीर जी! प्रणाम… आप? कितने बरसों बाद आवाज़ सुनाई दी आपकी!”

    माया ने उत्सुक नज़रों से पूछा—
    “कौन है?”

    नकुल ने हाथ से इशारा किया—“चुप रहो”—और पूरी तन्मयता से सुनने लगे।


    ---

    वीर ओबेरॉय की बात

    वीर की आवाज़ धीमी, लेकिन आदेश जैसी थी।
    “नकुल जी, वक़्त बहुत बदल गया है। रिया अब बड़ी हो चुकी है। याद है न, जब वह बस दो साल की थी और रायन नौ साल का? उसी वक़्त हमने उनका रिश्ता तय किया था। तब यह खेल-खेल में लगा होगा, लेकिन यह खेल नहीं… किस्मत का बंधन था।”

    नकुल की आँखों में पुरानी यादें उभर आईं।
    “जी वीर जी… मुझे सब याद है। पर हालात… आप जानते हैं। रिया की सौतेली माँ—माया—उसे कभी अपना मान ही नहीं पाईं। और मैं…”

    वीर ने उनकी बात बीच में ही काट दी।
    “मुझे सब मालूम है। इसी लिए तो मैं चाहता हूँ, रिया यहाँ आए। रायन के आसपास बहुत लोग हैं जो उसके नाम और दौलत के पीछे हैं। सबसे बड़ी चाल उसकी बुआ कamini की है। वह रायन की शादी अपनी बेटी मोना से कराना चाहती है। लेकिन रायन की ज़िंदगी तबाह हो जाएगी अगर ऐसा हुआ। और मैं अपने पोते को बर्बाद नहीं देख सकता।”

    नकुल चौंक गए।
    “क्या? कमिनी जी ऐसा सोच रही हैं?”

    वीर की आवाज़ और भी गंभीर हो गई।
    “हाँ। इसीलिए ज़रूरी है कि रिया यहीं आए। अकेली नहीं, बल्कि अपनी बहनों प्रिया और प्रीत के साथ। तीनों लड़कियाँ अमरीका आएंगी। वहीं रिया को उसकी असली पहचान और उसका भविष्य मिलेगा। यह उसी की माँ की आख़िरी इच्छा थी।”


    ---

    नकुल का निर्णय

    नकुल की आँखें भर आईं। उन्हें अपनी पहली पत्नी की याद आ गई—वही, जिनकी मौत के बाद रिया की दुनिया बदल गई थी।

    धीरे से बोले—
    “ठीक है वीर जी… मैं तैयार हूँ। अगर यही मेरी बेटी की तक़दीर है, तो मैं उसका रास्ता नहीं रोकूँगा। रिया अमरीका जाएगी।”


    ---

    माया की नाराज़गी

    जैसे ही नकुल ने फ़ोन रखा, माया पास आ गईं।
    “कौन था? इतनी देर से किससे बातें हो रही थीं?”

    नकुल ने सीधे शब्दों में कहा—
    “वीर ओबेरॉय का फ़ोन था। उन्होंने कहा है, रिया अमरीका जाएगी। उसके भविष्य के लिए।”

    माया का चेहरा तमतमा गया।
    “क्या? वो लड़की अमरीका जाएगी? और आपके अपने बेटे राहुल के लिए आपने क्या सोचा? हर बार उसी की चिंता रहती है आपको!”

    नकुल ने गुस्से से कहा—
    “माया! वो मेरी बेटी है। और उसके भी हक़ हैं। तुम अपनी ज़िद छोड़ दो। रिया अमरीका जाएगी—बस, यही मेरा फ़ैसला है।”

    माया का चेहरा लाल हो गया, पर इस बार वह चुप रह गईं।


    ---

    रिया तक खबर पहुँचना

    रात का वक़्त था। आँगन में रिया, प्रिया और प्रीत बैठी बातें कर रही थीं। प्रिया हंसते हुए प्रीत को छेड़ रही थी, लेकिन रिया चुपचाप आसमान के तारों को देख रही थी।

    तभी नकुल बाहर आए और तीनों को पास बुलाया।

    “बेटा रिया, प्रिया, प्रीत… एक ज़रूरी बात है। तुम तीनों को अमरीका जाना होगा। वीर ओबेरॉय ने खुद फ़ोन किया था। वहाँ तुम्हारी नई ज़िंदगी शुरू होगी।”

    रिया ने हैरानी से पूछा—
    “अमरीका? पापा… मैं? लेकिन मैंने तो कभी घर से बाहर कदम ही नहीं रखा… मैं कैसे जाऊँगी?”

    प्रिया उत्साहित होकर बोली—
    “वाह! अमरीका! रिया, ये तो कमाल है। हमें डरने की क्या ज़रूरत है? हम सब साथ होंगे। यह तो एक नया रोमांच होगा।”

    प्रीत ने धीरे से कहा—
    “लेकिन पापा… माँ जी को तो यह बिल्कुल पसंद नहीं आएगा।”

    नकुल की आवाज़ कठोर हो गई।
    “तुम सब बस तैयारी करो। बाकी बातें मैं देख लूंगा। रिया… ये तेरी किस्मत है, और अब तुझे इसे अपनाना होगा।”

    रिया का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। डर और उत्सुकता दोनों मिलकर उसके मन में हलचल मचाने लगे। उसे नहीं पता था कि यह सफ़र उसकी ज़िंदगी को किस राह पर ले जाएगा।

  • 3. बंदिशें - Chapter 3

    Words: 716

    Estimated Reading Time: 5 min

    सुबह का समय था। उत्तर प्रदेश की मिट्टी की खुशबू, हवेली के आँगन में खड़े नीम के पेड़ की छाँव, और दूर मंदिर से आती हुई घंटियों की आवाज़… सब मिलकर एक अलग ही माहौल बना रहे थे। लेकिन आज हवेली का वातावरण कुछ बदला-बदला था।

    आज रिया, प्रिया और प्रीत को अमरीका के लिए निकलना था।


    ---

    रिया की बेचैनी

    रिया अपने कमरे में बैठी थी। उसकी आँखों में उत्सुकता भी थी और डर भी। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह अपने गाँव, अपने घर, अपनी जानी-पहचानी गलियों को छोड़कर इतनी दूर जाएगी। उसके हाथ कांप रहे थे, जब वह अपना छोटा-सा बैग पैक कर रही थी।

    उसकी बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी और वह अपने ससुराल में खुश थी। लेकिन रिया का मन बार-बार माँ (माया) के ताने याद कर रहा था—
    “तेरे बस का कुछ नहीं है… न पढ़ाई हुई, न हुनर। तेरी ज़िंदगी बेकार है।”

    पर आज हालात कुछ और थे। आज उसके पापा ने खुद कहा था—“रिया, यह तेरी किस्मत है।”


    ---

    प्रिया और प्रीत की उत्सुकता

    दूसरी ओर प्रिया और प्रीत दोनों खुश थीं। वे लगातार बातें कर रही थीं।

    “सोचो रिया, हम अमरीका जाएंगे! वहाँ की सड़कें, वहाँ के लोग, सब कुछ अलग होगा।” प्रिया ने उत्साह से कहा।

    प्रीत ने भी हंसते हुए जोड़ा—
    “और अगर वहाँ किसी गोरे से हमारी शादी हो गई तो?”

    दोनों खिलखिलाकर हंसने लगीं। रिया हल्की सी मुस्कुराई, लेकिन उसके मन में अभी भी डर था।


    ---

    माया की नाराज़गी

    जब सब लोग आँगन में इकट्ठे हुए, माया का चेहरा साफ़ बता रहा था कि उन्हें यह सब पसंद नहीं है। उन्होंने नकुल से धीमी लेकिन तीखी आवाज़ में कहा—
    “आप पागल हो गए हैं क्या? लड़कियों को अकेले अमरीका भेज रहे हैं। पता भी है, कितना बड़ा ख़तरा हो सकता है? और उस लड़की को… जिसे मैंने कभी अपना माना ही नहीं।”

    नकुल ने गुस्से में जवाब दिया—
    “बस, माया! अब और कुछ मत कहो। यह फ़ैसला मैंने सोचा-समझकर लिया है। वीर ओबेरॉय ने कहा है, और मैं जानता हूँ वह कभी ग़लत नहीं हो सकते।”

    रिया सब सुन रही थी। उसके दिल को चोट लगी, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।


    ---

    विदाई का समय

    शाम को कारें हवेली के गेट पर आकर खड़ी हुईं। पूरा परिवार इकट्ठा हो गया।

    प्रीत और प्रिया उत्साह से सूटकेस उठाकर बाहर निकलीं। रिया धीरे-धीरे चली। उसके कदम भारी थे। उसने हवेली की दीवारों को देखा, आँगन को देखा, जहाँ उसने खेला था, वह नीम का पेड़… उसकी आँखें नम हो गईं।

    नकुल ने रिया के सिर पर हाथ रखा।
    “बेटा, यह सफ़र तेरी ज़िंदगी बदल देगा। मैं जानता हूँ तू डर रही है, लेकिन याद रख—तेरा बाप हमेशा तेरे साथ है।”

    रिया ने आँसू पोंछते हुए धीरे से सिर हिलाया।
    “जी, पापा।”


    ---

    हवाई अड्डे तक का सफ़र

    कार तेज़ी से भाग रही थी। खिड़की से बाहर देखते हुए रिया ने खेतों, तालाबों, और गाँव की गलियों को आख़िरी बार देखा। उसे लगा जैसे उसकी आत्मा का एक हिस्सा यहीं रह जाएगा।

    प्रिया और प्रीत बातें करती रहीं—
    “रिया, वहाँ जाकर हमें नए कपड़े खरीदने होंगे।”
    “और नई जगह घूमना… वाह, कितना मज़ा आएगा।”

    लेकिन रिया चुप थी। उसके मन में सवाल थे—
    “आख़िर क्यों मुझे बुलाया गया है? क्यों दादाजी ने अचानक इतना बड़ा फ़ैसला लिया? क्या मेरी ज़िंदगी वाकई बदलने वाली है?”


    ---

    हवाई अड्डा

    जब वे हवाई अड्डे पहुँचे, तो वहाँ का शोरगुल, रोशनी और भीड़ देखकर रिया हक्का-बक्का रह गई। उसके लिए यह सब नया था। प्रिया और प्रीत उत्साहित होकर हर चीज़ देख रही थीं, लेकिन रिया को सिर्फ़ डर और बेचैनी महसूस हो रही थी।

    चेक-इन के बाद जब वे विमान में बैठीं, तो रिया ने खिड़की वाली सीट चुनी। जैसे ही जहाज़ ने उड़ान भरी, उसने नीचे झांककर अपने देश को देखा।

    आँखों से आँसू बह निकले—
    “क्या मैं कभी लौट पाऊँगी?”


    ---

    नई मंज़िल

    कई घंटों की लंबी उड़ान के बाद, आखिरकार विमान अमेरिका की ज़मीन पर उतरा। बाहर निकलते ही ठंडी हवा ने उनका स्वागत किया। चारों ओर ऊँची-ऊँची इमारतें, तेज़ रफ़्तार कारें और अलग ही माहौल था।

    प्रिया और प्रीत उत्साह से चारों ओर देख रही थीं—
    “वाह! ये जगह तो किसी फिल्म जैसी लग रही है।”

    रिया का दिल अब भी धड़क रहा था। लेकिन उसे पता था, अब पीछे मुड़ना नामुमकिन है। यही उसकी नई ज़िंदगी की शुरुआत थी।

  • 4. बंदिशें - Chapter 4

    Words: 600

    Estimated Reading Time: 4 min

    अमरीका की धरती पर कदम रखते ही रिया, प्रिया और प्रीत को हर चीज़ नई और अजनबी लग रही थी। हवाई अड्डे की चमचमाती रोशनी, चारों तरफ़ की भीड़ और अलग ही अंदाज़ में बोलते लोग… सब कुछ इतना अलग था कि रिया एक पल को घबरा गई।

    लेकिन तभी एक बड़ी काली कार उनके सामने आकर रुकी। कार से एक उम्रदराज़ इंसान उतरे—सफेद बाल, चेहरे पर गरिमा और आँखों में गहराई। ये थे वीर ओबेरॉय।

    “रिया… मेरी बच्ची,” वीर ओबेरॉय ने आगे बढ़कर रिया को गले से लगाया।

    रिया के आँसू छलक पड़े। उसे ऐसा लगा जैसे बरसों बाद किसी ने उसे अपनापन दिया हो। प्रिया और प्रीत भी भावुक हो गईं।


    ---

    ओबेरॉय हवेली का पहला नज़ारा

    कार सीधे ओबेरॉय हवेली की ओर चली। जैसे ही गेट खुले, तीनों बहनों की आँखें फटी की फटी रह गईं।

    सामने एक विशाल हवेली थी—संगमरमर की सीढ़ियाँ, ऊँचे स्तंभ, बगीचे में लगी रंग-बिरंगी लाइट्स और चारों ओर सुरक्षा गार्ड्स।

    प्रिया ने फुसफुसाते हुए कहा—
    “वाह… ये तो सच में किसी फिल्म का सेट लगता है।”

    प्रीत मुस्कुराई—
    “रिया, तूने सोचा भी था हम ऐसे घर में आएँगे?”

    रिया चुप रही। उसका दिल अब भी घबराया हुआ था।


    ---

    परिवार से मिलना

    हवेली के अंदर सब इकट्ठा थे। सबसे पहले आईं—मीरा ओबेरॉय (दादी)। सफेद साड़ी और चेहरे पर स्नेह की रेखाएँ। उन्होंने रिया के सिर पर हाथ रखा।
    “तू बिलकुल अपनी माँ जैसी लगती है… मेरी बहू जैसी।”

    फिर सामने आए विक्रम ओबेरॉय (पापा) और उनकी पत्नी वैशाली ओबेरॉय (माँ)।
    वैशाली ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
    “स्वागत है बेटा, अब यह घर तुम्हारा भी है।”

    रिया ने झुककर पैर छुए।

    तभी पीछे से एक चंचल सी हंसी गूंजी—
    “तो ये है मेरी ऑनलाइन बेस्टफ्रेंड?”

    रिया पलटी तो देखा, वही थी—लीसा ओबेरॉय। दोनों ने बिना सोचे-समझे गले लगा लिया।
    “ओ माय गॉड, रिया! अब हम सिर्फ़ ऑनलाइन नहीं, एक ही घर में साथ रहेंगे!”

    प्रिया और प्रीत भी हंसते हुए लीसा से मिलीं। माहौल कुछ हल्का हुआ।


    ---

    कमिनी और मोना का ताना

    लेकिन हर कोई खुश नहीं था।
    भीड़ में खड़ी थीं—कमिनी ओबेरॉय (रायन की बुआ) और उनकी बेटी मोना।

    कमिनी ने तिरछी मुस्कान के साथ कहा—
    “वाह… इतनी साधारण सी लड़कियाँ… और इन्हें यहाँ लाया भी गया है?”

    मोना ने नकली मुस्कान के साथ जोड़ा—
    “हाँ मम्मी, देखो न, बिल्कुल गाँव से आई हैं। इनका क्या काम बड़े शहर में?”

    रिया ने यह सब सुना, लेकिन चुप रही। उसके दिल को चोट ज़रूर लगी, मगर उसने अपनी नज़रें झुका लीं।

    वीर ओबेरॉय ने गहरी आवाज़ में कहा—
    “कमिनी! मेहमान हैं ये, और मेरे लिए परिवार से बढ़कर। ध्यान रखो अपनी ज़ुबान का।”

    कमिनी और मोना चुप हो गईं, लेकिन उनकी आँखों में जलन साफ़ दिख रही थी।


    ---

    नई शुरुआत

    रात का खाना बड़े हॉल में सजाया गया। लंबी टेबल पर तरह-तरह के व्यंजन थे। प्रिया और प्रीत उत्साह से सब देख रही थीं।

    मीरा दादी ने रिया को पास बैठा लिया और प्यार से कहा—
    “अब तू मेरी पोती है। यहां तुझे कोई तंग नहीं करेगा।”

    रिया की आँखों से आँसू निकल आए। बरसों बाद उसे किसी ने इतनी आत्मीयता दी थी।


    ---

    रायन का नाम सुनते ही सन्नाटा

    भोजन के दौरान अचानक प्रिया ने पूछा—
    “दादी जी, रायन भाई कहाँ हैं? हमने तो बहुत सुना है उनके बारे में।”

    सवाल सुनते ही हॉल में हल्का सा सन्नाटा छा गया।
    वैशाली ने धीमी आवाज़ में कहा—
    “वो बिज़नेस के सिलसिले में बाहर गए हैं… जल्द ही लौटेंगे।”

    वीर ओबेरॉय की आँखों में एक चमक आई।
    “जल्द ही… और तब सबकी तक़दीर बदल जाएगी।”

    रिया ने ये देखा, पर समझ नहीं पाई कि उनके शब्दों में इतनी गहराई क्यों थी।

  • 5. बंदिशें - Chapter 5

    Words: 522

    Estimated Reading Time: 4 min

    ओबेरॉय हवेली की सुबह हमेशा हलचल से भरी रहती थी। नौकर-चाकर काम में लगे रहते, दादी पूजा करवातीं, और लीसा मस्ती में पूरे घर में घूमती। लेकिन आज हवेली में एक अलग ही सन्नाटा था।

    सबको पता था कि आज… रायन ओबेरॉय वापस लौट रहा है।


    ---

    हवेली में इंतज़ार

    मीरा दादी सुबह से ही मंद मुस्कान के साथ पूजा घर में बैठी थीं।
    “आज मेरा पोता आ रहा है… पूरा घर रोशन हो जाएगा,” उन्होंने धीरे से कहा।

    प्रिया और प्रीत उत्साह से बातें कर रही थीं।
    “रिया, तूने सुना? रायन भाई कितने बड़े बिज़नेसमैन हैं।”
    “हाँ दी, और सब कहते हैं कि उनकी पर्सनालिटी से कोई नज़र नहीं हटा पाता।”

    रिया ने बस हल्की सी मुस्कान दी। उसके मन में थोड़ी घबराहट थी। पता नहीं क्यों, उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो रही थीं।


    ---

    वो पल

    दोपहर के करीब हवेली के गेट पर काली-सी कार आकर रुकी। गार्ड्स सतर्क हो गए। घर के सभी सदस्य लॉन में खड़े हो गए।

    कार का दरवाज़ा खुला। पहले सिक्योरिटी टीम उतरी, फिर एक लंबा-सा साया सामने आया।

    रायन ओबेरॉय।

    काले सूट में, आँखों पर काला चश्मा, चेहरे पर ठंडी लेकिन खतरनाक सख़्ती। उसके कदम धीमे लेकिन शेर जैसे मज़बूत थे।

    सारा घर उसे देखता रह गया।

    मीरा दादी की आँखें चमक उठीं।
    “मेरा पोता आ गया…”

    विक्रम और वैशाली ने गले लगाया, लेकिन रायन की आँखों में न कोई नरमी थी, न कोई मुस्कान।


    ---

    रिया और रायन – पहली झलक

    रिया थोड़ी दूर खड़ी थी। उसके पैरों में जैसे जान नहीं थी। जब रायन की नज़र उस पर पड़ी, उसे लगा जैसे कोई तेज़ रोशनी सीधी उसके दिल तक उतर गई हो।

    उनकी आँखें कुछ सेकंड के लिए मिलीं।
    रायन की निगाहें ठंडी और गहरी थीं, लेकिन उनमें अजीब-सी बेचैनी भी थी।
    रिया ने घबराकर नज़रें झुका लीं।

    लीसा दौड़कर बोली—
    “भाई! ये मेरी दोस्त रिया है… और ये प्रिया, प्रीत।”

    रायन ने बस हल्का-सा सिर हिलाया।
    “हूँ।”

    उसकी आवाज़ गहरी और ठंडी थी। रिया का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा।


    ---

    कमिनी और मोना की चाल

    कमिनी और मोना भी आगे आईं।
    कमिनी ने मुस्कुराकर कहा—
    “रायन बेटा, देखो तो… कैसी-कैसी लड़कियाँ घर में लाई गई हैं। तुम्हारी लाइफ में किसी की ज़रूरत ही नहीं, लेकिन…”

    मोना ने धीरे से जोड़ दिया—
    “मम्मी, भाई को तो वैसे भी… सादा लड़कियाँ पसंद नहीं।”

    रायन ने बस एक ठंडी नज़र डाली। इतना काफी था कि मोना चुप हो गई।


    ---

    सन्नाटा और डर

    रायन ने धीरे से चश्मा उतारा और सबको देखने लगा। उसकी नज़रें जब-जब रिया पर जातीं, रिया का दिल बैठ जाता।

    दादी ने पास बुलाकर कहा—
    “रायन, ये बच्चियाँ अब यहीं रहेंगी। इन्हें अपनाओ।”

    रायन ने गहरी आवाज़ में कहा—
    “ठीक है।”

    इतना कहकर वो सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर चला गया।


    ---

    रिया की बेचैनी

    रिया अब भी वहीं खड़ी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था क्यों रायन की नज़रें इतनी डरावनी और रहस्यमयी लगीं।
    उसका दिल कह रहा था कि इस मुलाक़ात के पीछे बहुत कुछ छिपा है।

    प्रिया और प्रीत हंसी-मज़ाक में व्यस्त थीं, लेकिन रिया चुपचाप अपने कमरे की ओर चली गई।

    उसकी हथेलियाँ पसीने से भीगी थीं… और दिल में अनजाना डर समा गया था।

  • 6. बंदिशें - Chapter 6

    Words: 506

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात का समय था। ओबेरॉय हवेली रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा रही थी। रायन की वापसी की ख़ुशी में परिवार ने शानदार पार्टी रखी थी। हर तरफ़ मेहमान, हंसी और शोर-गुल था, मगर फिर भी हवेली के बीचोबीच खड़ा रायन एकदम अलग-थलग लग रहा था।

    उसकी आँखें ठंडी, चेहरा सख़्त और हाथ में आधा भरा गिलास। सब उससे दूरी बनाए खड़े थे।


    ---

    रिया की नज़रें

    रिया अपने कमरे से पार्टी हॉल में उतरी। हल्के गुलाबी रंग के सूट में, खुले बाल और मासूम चेहरे के साथ वो भीड़ में सबसे अलग लग रही थी।
    उसकी नज़र जैसे ही रायन पर पड़ी, दिल धक्-धक करने लगा।

    लीसा ने मुस्कुराकर हाथ हिलाया,
    “रिया! इधर आ।”

    रिया झिझकते कदमों से आगे बढ़ी।


    ---

    पहली टकराहट

    जैसे ही रिया रायन के पास पहुँची, उसके हाथ से ट्रे टकरा गई। गिलास का पानी गिरा और कुछ बूंदें रायन के सूट पर पड़ गईं।

    सन्नाटा छा गया।

    रायन ने धीमी लेकिन डरावनी आवाज़ में कहा—
    “तुम्हें… देख कर चलना नहीं आता?”

    रिया डर के मारे काँप गई। उसकी आँखों में पानी आ गया।
    “सॉरी… वो गलती से…”

    रायन की नज़रें उसकी आँखों में गड़ीं।
    कुछ पल के लिए उसे लगा कि उसके सामने खड़ा ये आदमी सिर्फ़ गुस्से से भरा नहीं… बल्कि कुछ खोज रहा है।


    ---

    दादी का हस्तक्षेप

    मीरा दादी पास आईं और बोलीं—
    “रायन, ये बच्ची अभी नई है। डाँटने की ज़रूरत नहीं।”

    रायन ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बस गिलास टेबल पर रखा और सीधे रिया के और करीब झुकते हुए कहा—
    “सॉरी मत कहना। अगली बार… ध्यान रखना।”

    रिया का दिल जैसे जोर से धड़क उठा।


    ---

    अजीब अहसास

    रिया वहाँ से हटने लगी, लेकिन तभी उसकी चुन्नी रायन की घड़ी में अटक गई।
    वो पीछे मुड़ी तो पाया कि रायन की उँगलियाँ उसकी चुन्नी को धीरे से छु रही थीं।

    दोनों की नज़रें मिलीं।
    रायन की आँखों में इस बार गुस्से से ज़्यादा कोई और चीज़ थी… एक अजीब-सी बेचैनी।
    रिया ने झटके से चुन्नी छुड़ाई और तेज़ी से भीड़ में गुम हो गई।


    ---

    रायन का सन्नाटा

    रायन वहीं खड़ा रह गया। उसकी उँगलियाँ अब भी उसी कपड़े की छुअन को महसूस कर रही थीं।
    उसका गुस्सा धीरे-धीरे खुद से लड़ने लगा।

    “ये लड़की क्यों… अलग लग रही है?”
    उसने मन ही मन सोचा।
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  • 7. बंदिशें - Chapter 7

    Words: 618

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात गहराती जा रही थी। ओबेरॉय हवेली की पार्टी अपने शबाब पर थी। हर कोई रायन की वापसी को लेकर बातें कर रहा था, लेकिन रायन के दिमाग़ में अब भी वही पल घूम रहा था—रिया का गलती से गिलास गिरा देना और फिर चुन्नी का उसकी घड़ी में उलझ जाना।

    उसके लिए ये मामूली नहीं था। उसकी दुनिया में किसी को इतनी आसानी से उसके करीब आने की इजाज़त नहीं थी।


    ---

    रायन की बेचैनी

    पार्टी से निकलकर रायन अपने कमरे में गया। जैसे ही उसने दरवाज़ा बंद किया, उसका गुस्सा फूट पड़ा।
    उसने अपनी कोट उतारकर फर्श पर फेंकी और गिलास उठाकर दीवार पर दे मारा।

    आईने में अपनी परछाई को देखते हुए वो गरजा—
    “मुझे क्यों… उस लड़की को देखकर दिमाग़ काबू में नहीं रहता?”

    उसकी आँखें खून की तरह लाल हो गईं।


    ---

    कमिनी और मोना की चाल

    नीचे हॉल में कमिनी ने सब नोटिस किया। उसने मोना की तरफ देखा और धीमे से बोली—
    “देखा? एक गाँव की लड़की ने रायन को परेशान कर दिया। यही मौका है।”

    मोना ने होंठों पर हल्की मुस्कान बिखेरी।
    “उसे मैं सँभाल लूँगी मासी… रायन को बस यह एहसास होना चाहिए कि उसके लिए सबसे सही मैं ही हूँ।”

    उसकी आँखों में चाहत और जलन दोनों साफ झलक रही थीं।


    ---

    रिया का डर

    दूसरी तरफ़ रिया अपने कमरे में थी। उसका दिल अब भी जोर-जोर से धड़क रहा था।
    “इतना गुस्सैल आदमी… अगर सच में मुझे डाँट देता तो?”
    उसने आँसू पोंछते हुए सोचा।

    प्रिया और प्रीत दोनों उसकी हिम्मत बढ़ा रही थीं, लेकिन रिया के मन से वो बेचैनी जा नहीं रही थी।


    ---

    सुबह का नाश्ता

    अगली सुबह नाश्ते की मेज़ पर पूरा परिवार मौजूद था। रायन भी वहाँ आया, मगर उसका चेहरा अब भी बेहद सख़्त था।

    दादी ने कहा—
    “रायन बेटा, बैठो। तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद का खाना बनवाया है।”

    रायन चुपचाप बैठ गया।

    तभी रिया ने हिम्मत करके उसके प्लेट में ब्रेड सर्व करने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ से प्लेट थोड़ी फिसल गई और एक स्लाइस रायन के सूट पर गिर गया।

    सन्नाटा छा गया।


    ---

    रायन का ग़ुस्सा

    रायन ने धीरे-धीरे ब्रेड उठाया और टेबल पर दे मारा।
    उसकी आवाज़ नीची लेकिन खतरनाक थी—
    “क्या तुम बार-बार मेरे पास ग़लतियाँ करने का शौक़ रखती हो?”

    रिया घबरा गई। उसकी आँखों में पानी भर आया।
    “न-नहीं… मैं तो बस…”

    रायन ने गहरी साँस लेकर कहा—
    “Stay. Away. From. Me.”

    उसकी आवाज़ की सख़्ती से पूरा हॉल काँप गया।


    ---

    दादी का हस्तक्षेप

    मीरा दादी तुरंत बोलीं—
    “रायन! ये बच्ची तुम्हें परेशान करने नहीं आई। ये हमारे घर की मेहमान है।”

    रायन ने दादी की तरफ़ देखा, फिर बिना कुछ कहे कुर्सी धकेलकर उठ गया और कमरे से बाहर चला गया।


    ---

    मोना की नज़र

    मोना चुपचाप ये सब देख रही थी। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान फैल गई।
    वो मन ही मन सोच रही थी—
    “रिया, जितना रायन तुम पर गुस्सा करेगा… उतना ही तुम्हारे और उसके बीच दूरी बढ़ेगी। और उस खाली जगह को भरने का काम मैं करूँगी।”


    ---

    रिया का टूटना

    रिया का दिल रोने लगा। उसने अपनी नज़रें झुका लीं ताकि कोई उसकी हालत न देख पाए।
    प्रिया ने उसका हाथ थामा—
    “दीदी, परेशान मत हो। रायन भाई वैसे ही हैं।”

    प्रीत भी बोली—
    “हाँ, तू मत डर। सब ठीक हो जाएगा।”

    लेकिन रिया जानती थी, सब ठीक होना इतना आसान नहीं है। रायन की आँखों का गुस्सा उसे बार-बार डरा रहा था।


    ---

    रायन की तन्हाई

    उधर रायन अपने कमरे में अकेला खड़ा खिड़की से बाहर देख रहा था।
    वो खुद को समझा रहा था—
    “मुझे फर्क नहीं पड़ता। लड़कियाँ बस मुसीबत हैं। मुझे किसी की ज़रूरत नहीं।”

    लेकिन उसके दिल की गहराई में, बार-बार वही मासूम चेहरा घूम रहा था… रिया का चेहरा।

  • 8. बंदिशें - Chapter 8

    Words: 541

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह का सूरज हवेली के बड़े-बड़े शीशों से छनकर अंदर आ रहा था। बाहर चिड़ियों की चहचहाहट थी, लेकिन ओबेरॉय हवेली के भीतर माहौल भारी था।

    रिया अपने कमरे में चुपचाप बैठी थी। उसके हाथ अब भी काँप रहे थे। कल रात और आज सुबह की घटनाएँ उसके दिल में बार-बार घूम रही थीं।


    ---

    डर का साया

    रायन की आँखों का गुस्सा, उसकी ठंडी आवाज़—
    “Stay away from me.”

    वो शब्द जैसे बार-बार रिया के कानों में गूंज रहे थे। उसका दिल धक्-धक कर रहा था।

    “कहीं मैंने सच में कोई गलती कर दी? अगर वो मुझसे नफ़रत करने लगे तो?”

    उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं। वो अकेले कमरे में बैठी आँसू पोंछ रही थी।


    ---

    प्रिया और प्रीत की तसल्ली

    तभी दरवाज़ा खुला। प्रिया और प्रीत कमरे में आईं।
    “रिया दी, तुम यहाँ अकेली क्यों बैठी हो?”

    रिया ने कमजोर मुस्कान दी।
    “कुछ नहीं… बस थोड़ा थक गई थी।”

    प्रीत ने उसकी हथेली पकड़ ली।
    “हमें सब समझ में आ रहा है। तू रायन भाई के गुस्से से डर गई है, है न?”

    रिया की आँखें भर आईं। उसने चुपचाप सिर झुका लिया।

    प्रिया बोली—
    “तू पागल है क्या? रायन भाई का गुस्सा सब पर होता है। तू अकेली नहीं है।”

    प्रीत हँसकर बोली—
    “हाँ, और वैसे भी तू डरती बहुत है। लेकिन सच बोलूँ, तू जितना डर रही है, उतना ही भाई की नज़रें तुझ पर टिक रही थीं।”

    रिया ने चौंककर उनकी तरफ देखा।
    “न-नहीं… ऐसा कुछ नहीं है।”

    लेकिन उसके दिल की धड़कन ने उसकी झूठी बात का भेद खोल दिया।


    ---

    दादी की समझदारी

    मीरा दादी भी कमरे में आ गईं। उन्होंने रिया के सिर पर हाथ फेरा।
    “बच्ची, तू क्यों डर रही है? रायन को गुस्से में रहना आदत है। लेकिन उसका दिल बुरा नहीं है। थोड़ा वक़्त दे उसे।”

    रिया की आँखें झुक गईं।
    “दादी, मैंने सच में कुछ ग़लत नहीं किया… बस गलती से…”

    दादी ने मुस्कुराकर कहा—
    “जानती हूँ, तू ग़लत नहीं है। ग़लत तो हालात हैं। तू बस खुद पर भरोसा रख।”

    रिया की आँखों से आँसू टपक पड़े। दादी ने उसे गले से लगा लिया।


    ---

    रायन की नज़रें

    उसी समय रायन अपने कमरे की बालकनी से ये सब देख रहा था।
    रिया को रोते हुए देखकर उसके दिल में अजीब-सी टीस उठी।

    “मुझे क्यों फर्क पड़ रहा है?” उसने सोचा।
    लेकिन तुरंत उसका दूसरा ख्याल आया—
    “नहीं। ये लड़की मेरे लिए सिर्फ़ मुसीबत है।”

    उसने अपनी मुट्ठियाँ कस लीं, लेकिन उसकी आँखें बार-बार रिया की तरफ खिंच रही थीं।


    ---

    मोना का जाल

    मोना ने भी ये सब नोटिस किया। वो मन ही मन मुस्कुराई।
    “रिया, जितना तू डरेगी, उतना रायन तुझसे दूर होगा। और मैं… उसके पास पहुँच जाऊँगी।”

    उसने आईने में खुद को देखते हुए बुदबुदाया—
    “रायन ओबेरॉय सिर्फ़ मेरा होगा।”


    ---

    रिया का अकेलापन

    रात को जब सब सो गए, रिया अपने कमरे में अकेली बैठी थी। बाहर हवाओं की सरसराहट थी, लेकिन उसके दिल में डर का तूफ़ान था।

    वो खिड़की से आसमान देख रही थी।
    “काश… कोई हो जो मुझे समझे। जो मुझसे सच में प्यार करे।”

    उसकी आँखों से आँसू बह निकले।

    और उसी समय हवेली की छत से खड़ा कोई उसकी खिड़की की तरफ देख रहा था।
    वो रायन था।

    उसकी निगाहों में गुस्से के साथ-साथ एक अनजानी बेचैनी थी।

  • 9. बंदिशें - Chapter 9

    Words: 503

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की हल्की धूप हवेली के बगीचे में बिखरी हुई थी। फूलों की खुशबू और ताज़ी हवा ने माहौल को खुशनुमा बना दिया था। सब लोग नाश्ते के लिए डाइनिंग हॉल में जमा थे।

    रिया हमेशा की तरह चुपचाप, सिर झुकाकर बैठी थी। प्रिया और प्रीत उसके दोनों तरफ थीं ताकि वो अकेलापन महसूस न करे। दादी और दादा भी पास ही बैठे थे। रायन सामने वाली कुर्सी पर बैठा था, लेकिन उसकी नज़रें बार-बार रिया की तरफ जा रही थीं, जैसे वो खुद पर काबू नहीं रख पा रहा हो।


    ---

    एक छोटी सी गलती

    नाश्ते के दौरान, गिलास पकड़ते समय रिया का दुपट्टा फँस गया और उसके हाथ की चूड़ी टूटकर नीचे गिर गई।

    “ट्रिनnn…” आवाज़ गूँजी और सबकी नज़र उस पर चली गई।

    रिया झेंप गई और झुककर टूटी चूड़ी उठाने लगी। तभी उसका दुपट्टा थोड़ा खिसक गया और उसकी कलाई साफ़ दिखने लगी।

    उसकी पतली-सी कलाई पर हल्का-सा गुदा हुआ “R” चमक रहा था।


    ---

    रायन की नज़रें थम गईं

    रायन का दिल जैसे एक पल के लिए रुक गया। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।
    “ये… ये ‘R’? ये यहाँ कैसे?”

    उसकी साँसें तेज़ हो गईं। उसने अपने ही हाथ को देखा जहाँ बचपन से वही अक्षर मौजूद था।

    उसके दिमाग में बचपन की हल्की-हल्की झलकियाँ तैर गईं—
    एक नन्ही-सी बच्ची, शादी के लाल कपड़े, और दोनों के हाथों पर लिखी गई वही निशानी।

    लेकिन अगले ही पल उसने खुद को संभाल लिया। उसने अपने गिलास को कसकर पकड़ लिया और नज़रें फेर लीं।


    ---

    रिया की घबराहट

    रिया को महसूस हुआ कि कोई उसकी कलाई को घूर रहा है। उसने झट से दुपट्टा ठीक कर लिया और घबराकर नज़रें नीचे कर लीं।
    उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।

    “कहीं रायन ने देख तो नहीं लिया? नहीं-नहीं… अगर उसने पहचान लिया तो?”


    ---

    मोना की जलन

    मोना ने भी वो दृश्य देख लिया था। उसकी आँखों में जलन की आग भड़क उठी।
    “तो ये राज़ है? यही वजह है कि रायन इस लड़की पर ध्यान देता है? नहीं रिया… मैं ये कभी होने नहीं दूँगी।”

    वो मन ही मन कसम खा चुकी थी कि रिया की जिंदगी को नर्क बना देगी।


    ---

    रायन की बेचैनी

    खाना खत्म होते ही रायन ने बिना कुछ कहे अपनी कुर्सी पीछे खिसकाई और बाहर चला गया।
    उसकी चाल तेज़ थी, साँसें बेकाबू।

    वो अपने कमरे में जाकर दीवार से टिक गया। उसकी मुट्ठियाँ काँप रही थीं।
    “नहीं… ये कैसे हो सकता है? वही अक्षर… वही निशान… लेकिन ये लड़की…”

    उसकी आँखों में गुस्से और दर्द का तूफ़ान था।


    ---

    रिया की दुविधा

    रिया अपने कमरे में वापस आई तो उसका दिल अब भी तेज़ धड़क रहा था।
    वो आईने में अपने हाथ को देखने लगी।
    “क्यों हर बार ये ‘R’ मेरी मुसीबत बन जाता है? क्या हो अगर रायन ने सच में देख लिया हो?”

    उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े। वो नहीं जानती थी कि किस्मत धीरे-धीरे दोनों को आमने-सामने ला रही है।

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  • 10. बंदिशें - Chapter 10

    Words: 541

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह का सूरज पूरी तरह उग चुका था, लेकिन हवेली के गलियारे में अजीब-सी खामोशी थी। कल डाइनिंग टेबल पर जो हुआ था, उसके बाद रिया का मन बहुत भारी हो गया था। उसे बार-बार लगता, रायन ने उसके हाथ पर लिखा ‘R’ देख लिया होगा।

    उसका दिल मानो किसी बोझ तले दब गया था। उसने ठान लिया—
    "अब मैं उससे दूर ही रहूँगी। न उसकी आँखों में देखूँगी, न उससे बात करूँगी।"


    ---

    रायन की बेचैनी

    उधर रायन के लिए रात बहुत लंबी रही। नींद आँखों से कोसों दूर थी। हर बार जब उसने आँखें बंद कीं, तो वही कलाई, वही ‘R’, और वही बचपन की धुंधली तस्वीर सामने आ जाती।

    सुबह उठते ही उसने खुद से कहा,
    "मुझे जानना होगा… ये लड़की कौन है। क्यों इसकी कलाई पर वही निशान है जो मेरे हाथ पर है।"

    लेकिन जैसे ही वो नीचे आया, उसने देखा रिया अपने बहनों के साथ बैठी है। वो हँस रही थी, लेकिन उसकी नज़रें रायन की तरफ़ नहीं गईं। मानो उसके सामने रायन की मौजूदगी की कोई अहमियत ही नहीं हो।


    ---

    नज़रअंदाज़ करना

    रायन जब भी उसकी तरफ देखता, रिया तुरंत दूसरी तरफ मुँह फेर लेती।
    वो उसकी आँखों से आँखें मिलाने से बच रही थी।
    यहाँ तक कि जब प्रिया और प्रीत बातचीत कर रही थीं और रायन पास आया, रिया ने उठकर वहाँ से जाने का बहाना बना लिया।

    उसके इस रवैये ने रायन को और बेचैन कर दिया।
    "कल तक तो चुपचाप मेरे सामने बैठती थी… अब अचानक नज़रें क्यों चुरा रही है? क्या सचमुच उसे लगता है कि मैंने सब देख लिया है?"


    ---

    मोना का खेल

    मोना ने ये सब गौर से देखा। उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी।
    "वाह, बहुत अच्छा… ये लड़की खुद ही रायन से दूर भाग रही है। अब मेरे लिए और आसान हो जाएगा उसे हासिल करना।"

    वो जानती थी कि रायन का गुस्सा कब विस्फोट करेगा और रिया का डर उसी गुस्से से बढ़ता जाएगा।


    ---

    दादी-दादा की नज़रें

    मगर इस घर में एक जोड़ी आँखें ऐसी भी थीं, जो सब देख रही थीं—दादा और दादी।
    दादा जी ने हल्की आवाज़ में दादी से कहा,
    “देख रही हो मीरा, दोनों में कैसी हलचल है…? किस्मत अपना रास्ता खुद बना रही है।”

    दादी ने सिर हिलाया,
    “हाँ, पर ये रास्ता आसान नहीं होगा। रिया डरी हुई है और रायन अपने ही एहसासों से जूझ रहा है।”


    ---

    रिया का डर

    अपने कमरे में लौटकर रिया आईने के सामने खड़ी हो गई।
    उसने कलाई पर दुपट्टा कसकर बाँध लिया, जैसे उस निशान को छिपाना चाहती हो।

    “नहीं… मुझे उससे दूरी बनाए रखनी होगी। अगर वो जान गया कि मैं वही हूँ… तो शायद मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। और अगर उसने गुस्से में कुछ कर दिया तो…?”

    उसकी आँखों से आँसू बह निकले। वो नहीं जानती थी कि ये दूरी रायन को और पास खींचेगी।


    ---

    रायन की तड़प

    उधर रायन अपने कमरे में खिड़की से बाहर देख रहा था।
    हवा तेज़ बह रही थी, लेकिन उसके दिल की बेचैनी उससे भी ज़्यादा थी।

    “क्यों ये लड़की मुझे नज़रअंदाज़ कर रही है? क्यों इसकी खामोशी मुझे बेचैन कर रही है?
    और ये ‘R’… क्या सचमुच किस्मत का कोई इशारा है? या मैं पागल हो रहा हूँ…?”

    उसकी आँखों में गुस्से और जिज्ञासा का तूफ़ान था।

  • 11. बंदिशें - Chapter 11

    Words: 854

    Estimated Reading Time: 6 min

    ओबेरॉय हवेली में आज का दिन बहुत ख़ास था। हवेली के हर कोने में हलचल थी—नौकर-चाकर दौड़भाग कर रहे थे, शेफ किचन में नई-नई डिशेज़ बना रहे थे और हवेली के बड़े हॉल को सजाया जा रहा था। वजह साफ़ थी, आज रायन के दोनों छोटे भाई—आर्यन और इवान—कई साल बाद घर लौट रहे थे।

    मीरा दादी और वीर दादा जी सुबह से ही बेसब्र होकर इंतज़ार कर रहे थे।
    “आज हमारे पोते घर आ रहे हैं, हवेली पूरी हो जाएगी,” दादी ने मुस्कुराते हुए कहा।
    दादा जी ने हामी भरी, “हाँ मीरा, जब सब बच्चे एक छत के नीचे हों, तभी परिवार पूरा लगता है।”


    ---

    भाइयों का आगमन

    शाम के ठीक पाँच बजे, हवेली के गेट के बाहर काले रंग की लंबी कार आकर रुकी। सबकी नज़रें उसी तरफ़ टिक गईं।

    सबसे पहले दरवाज़ा खुला और बाहर निकले आर्यन ओबेरॉय।
    27 साल का, लंबा और सजीला नौजवान। चेहरे पर आत्मविश्वास, और मुस्कान में वो अपनापन था जो दिल को खींच ले। वो रायन से बस दो साल छोटा था, लेकिन स्वभाव में ज़मीन-आसमान का अंतर था।

    उसके पीछे से उतरा इवान ओबेरॉय।
    24 साल का, सबसे छोटा भाई। उसकी आँखों में शरारत और मासूमियत एक साथ थी। वो थोड़ा बेफ़िक्र, थोड़ा नटखट और हर चीज़ को हल्के-फुल्के अंदाज़ में लेने वाला लड़का था।

    दादी दौड़कर दोनों को गले लगा लेती हैं।
    “अरे मेरे बच्चों! अब तो घर पूरा लग रहा है।”
    आर्यन हँसते हुए बोले, “दादी, आपको बहुत मिस किया।”
    इवान ने मस्ती में कहा, “और दादी, आपके हाथ का खाना खाने को तरस गए थे हम।”

    हवेली में खुशियों की लहर दौड़ गई।


    ---

    रिया और उसकी बहनें

    उसी समय सीढ़ियों से नीचे आती थीं रिया, प्रिया और प्रीत।
    रिया हमेशा की तरह सादगी भरे कपड़ों में, हल्के गुलाबी सूट में थी। उसकी मासूमियत साफ़ झलक रही थी, लेकिन चेहरे पर झिझक थी।
    वहीं प्रिया और प्रीत अपने ही मज़ाक में खिलखिला रही थीं।

    जैसे ही उन्होंने दोनों भाइयों को देखा, उनकी हँसी अचानक थम गई।
    नज़रें जैसे वहीं ठहर गईं।

    आर्यन की आँखें सीधी प्रिया पर जाकर अटक गईं।
    उसके चेहरे की मासूम मुस्कान ने जैसे आर्यन का दिल धड़का दिया।
    इवान ने पहली ही नज़र में प्रीत की ओर देखा और उसके शरमाए चेहरे पर नज़रें जम गईं।


    ---

    पहली नज़र का असर

    आर्यन सीधे प्रिया की ओर बढ़ा और हाथ बढ़ाते हुए बोला,
    “Hi, I’m Aryan Oberoi.”

    प्रिया हल्के से मुस्कुराई, आँखें झुकाकर बोली,
    “I’m Priya Singh.”

    उनके बीच कुछ सेकंड का सन्नाटा रहा। दोनों ने हाथ तो छोड़ दिया, मगर आँखें छोड़ने को तैयार नहीं थीं।

    उधर इवान ने शरारती अंदाज़ में प्रीत को देखते हुए कहा,
    “और मैं हूँ Ivan Oberoi… और आप?”
    प्रीत ने शर्माते हुए जवाब दिया, “Preet Singh.”
    इवान ने हँसकर कहा,
    “Nice… प्रीत। नाम भी प्यारा और आप भी।”

    प्रीत ने झटके से चेहरा दूसरी ओर कर लिया, लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान आ ही गई।


    ---

    रिया और रायन

    रिया पूरे समय चुपचाप खड़ी थी। वो अपने बहनों को देख रही थी कि कैसे उनकी मुलाक़ातें कुछ अलग ही मोड़ ले रही थीं। लेकिन उसके मन में डर था—कहीं रायन कुछ गलत रिएक्ट न कर दे।

    रायन दूर खड़ा था, हाथों में वाइन का गिलास थामे। उसकी आँखें बार-बार रिया की ओर जा रही थीं।
    वो देख रहा था कि कैसे उसके भाई प्रिया और प्रीत से बातें कर रहे हैं।

    उसके दिल में एक बेचैनी उठ रही थी।
    “अगर ये लड़कियाँ मेरे भाइयों के करीब आ गईं… तो सबकुछ बदल जाएगा। और ये रिया… क्यों बार-बार नज़रें चुरा रही है? कल रात से ये मुझे इग्नोर क्यों कर रही है?”


    ---

    दादी-दादा की नज़रें

    दादी और दादा जी सब कुछ गौर से देख रहे थे।
    दादा जी ने मुस्कुराते हुए कहा,
    “देखा मीरा? किस्मत कैसे बच्चों को अपने-अपने रास्तों पर ले जाती है।”
    दादी ने चिंता भरे स्वर में कहा,
    “हाँ, लेकिन ये रास्ता आसान नहीं होगा। रायन के गुस्से और रिया के डर के बीच ये रिश्ता टिकेगा कैसे?”


    ---

    मोना का खेल

    हवेली के कोने में खड़ी मोना यह सब देख रही थी।
    उसकी आँखें ईर्ष्या और जलन से भरी हुई थीं।
    वो समझ गई थी कि रायन की नज़रें सिर्फ़ रिया पर हैं, जबकि आर्यन और इवान की नज़रें प्रिया और प्रीत पर।

    उसने मन ही मन सोचा,
    “बहुत अच्छा। अब मुझे पता चल गया कि किसे हटाना है मेरे रास्ते से। रायन को पाने के लिए मुझे रिया को इस घर से निकालना ही होगा।”


    ---

    रिया की खामोशी

    रिया अपने कमरे में लौट आई। उसने आईने में खुद को देखा। उसके चेहरे पर बेचैनी थी।
    “नहीं… मुझे रायन से दूर रहना होगा। अगर उसने सच जान लिया तो शायद कभी माफ़ नहीं करेगा। और अगर गुस्से में कुछ कर दिया तो…?”

    उसने कलाई पर दुपट्टा कसकर बाँध लिया और आँसू पोंछ लिए।


    ---

    रायन का मन

    रायन अपने कमरे की खिड़की से बाहर देख रहा था।
    उसका चेहरा गुस्से और उलझन से भरा हुआ था।
    “रिया मुझे नज़रअंदाज़ क्यों कर रही है? क्यों उसकी खामोशी मुझे चैन नहीं लेने दे रही? और ये ‘R’… कहीं वही तो नहीं…”

    उसकी मुट्ठियाँ कस गईं।
    वो जानता था, ये कहानी अब उसके क़ाबू से बाहर जाने लगी है।

  • 12. बंदिशें - Chapter 12

    Words: 858

    Estimated Reading Time: 6 min

    हवेली में सब लोग रात के खाने के बाद अपने-अपने कमरों में जा चुके थे। लंबा दिन रहा था—आर्यन और इवान की वापसी, दादी-दादा की खुशी और प्रिया–प्रीत की मासूम हँसी। लेकिन एक शख़्स की नींद हराम थी—मोना।

    उसके कमरे की बत्तियाँ अभी भी जल रही थीं। आईने के सामने खड़ी होकर उसने अपने होंठों पर लाल लिपस्टिक लगाई और कंधों से फिसलती स्लीवलेस ड्रेस को ठीक किया। उसकी आँखों में सिर्फ़ एक ख्याल था—रायन को हर हाल में अपना बनाना है।

    “रिया को मैं कभी इस हवेली में टिकने नहीं दूँगी। रायन सिर्फ़ मेरा है,” उसने आईने में खुद से कहा और गहरी मुस्कान दी।


    ---

    रायन की हालत

    दूसरी तरफ़ रायन अपने स्टडी रूम में बैठा था।
    टेबल पर रखे वाइन के गिलास को वो बार-बार घुमा रहा था।
    उसकी आँखों में बेचैनी थी, गुस्सा था और उलझन भी।

    “रिया मुझे इग्नोर क्यों कर रही है? कल तक तो डरती थी, आज अचानक क्यों दूरी बना ली? और ये ‘R’… जो उसके हाथ पर है… मुझे क्यों बेचैन कर रहा है?”

    रायन ने गहरी साँस ली और गिलास को ज़ोर से मेज़ पर रख दिया।


    ---

    मोना का आगमन

    ठीक उसी समय दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई।
    “Come in,” रायन ने बिना देखे कहा।

    दरवाज़ा खुला और मोना कमरे में दाख़िल हुई।
    उसने जानबूझकर धीरे-धीरे क़दम रखे, ताकि उसकी ख़ुशबू और अदा का असर रायन पर पड़े।

    “Ryan…” उसकी आवाज़ धीमी और मीठी थी।
    रायन ने हैरानी से उसकी ओर देखा।
    “मोन? तुम इस वक़्त?”

    मोना मुस्कुराई और बोली,
    “नींद नहीं आ रही थी। सोचा… तुमसे बात कर लूँ।”


    ---

    नज़दीकियाँ

    वो धीरे-धीरे रायन के करीब आई।
    उसने टेबल से वाइन का गिलास उठाया और कहा,
    “इतनी रात को अकेले क्यों पी रहे हो? मुझे बुला लेते।”

    रायन ने गिलास वापस खींच लिया और ठंडी आवाज़ में कहा,
    “तुम्हें क्या ज़रूरत थी यहाँ आने की?”

    मोना उसकी कुर्सी के पास झुक गई और मुस्कराकर बोली,
    “ज़रूरत नहीं थी… दिल चाह रहा था। तुमसे दूर रह नहीं पाती।”

    उसके हाथ ने रायन के कंधे को छूने की कोशिश की।


    ---

    रायन का गुस्सा

    रायन ने झटके से उसकी कलाई पकड़ ली।
    उसकी आँखों में खतरनाक चमक थी।
    “Enough, Mona! मैं जानता हूँ तुम क्या चाहती हो… लेकिन मेरी ज़िंदगी में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।”

    मोना ने झूठी उदासी जताते हुए कहा,
    “Ryan… मैं तुमसे प्यार करती हूँ। बचपन से तुम ही मेरे ख्वाबों में थे। तुम मेरी हर चाहत, मेरा सबकुछ हो। और अब जब तुम्हें पा सकती हूँ, तो पीछे कैसे हट जाऊँ?”

    रायन ने उसकी पकड़ और कस दी।
    “प्यार? तुम सिर्फ़ पाना जानती हो, खोना नहीं। और सुन लो… मैं सिर्फ़ एक लड़की को देखता हूँ।”

    मोना की आँखें चौड़ी हो गईं।
    “रिया?” उसने दाँत भींचते हुए कहा।


    ---

    मोना की चाल

    वो अचानक रायन की बाँहों में झुक गई और उसके करीब आकर बोली,
    “तुम्हें लगता है वो मासूम सी लड़की तुम्हें समझ पाएगी? Ryan, वो तुम्हारे लायक नहीं है। तुम्हारी दुनिया अलग है… उसकी दुनिया अलग। वो तुम्हें कभी अपना नहीं पाएगी।”

    उसकी साँसें रायन के चेहरे को छू रही थीं।
    उसने धीरे से रायन का हाथ पकड़ा और अपने दिल पर रख दिया।
    “महसूस करो, Ryan… ये धड़कन सिर्फ़ तुम्हारे लिए है।”


    ---

    रायन का टूटा सब्र

    रायन की नसें तन गईं।
    उसने झटके से मोना को अपने से दूर धकेला।
    मोना ज़मीन पर गिरते-गिरते बची।

    “Stay in your limits, Mona!” रायन की आवाज़ कमरे में गूँज उठी।
    “अगर अगली बार तुमने ऐसी हरकत की, तो याद रखना… मैं ओबेरॉय हूँ। और मेरी नफ़रत भी उतनी ही गहरी है जितना मेरा प्यार।”

    मोना की आँखों से आँसू बहने लगे, मगर वो नकली थे।
    वो जमीन से उठी और रोते हुए बोली,
    “तुम्हें इसका पछतावा होगा, Ryan। तुमने मुझे ठुकराया है… मैं रिया को कभी चैन से जीने नहीं दूँगी।”


    ---

    रायन की उलझन

    मोना कमरे से निकल गई, लेकिन उसके शब्द रायन के कानों में गूंजते रहे।
    उसने सिर पकड़ लिया।

    “क्यों हर कोई रिया को बीच में ला देता है? मैं क्यों खुद को रोक नहीं पाता उसके सामने? क्यों मोना जैसी लड़कियाँ मुझे परेशान करती हैं… और क्यों उस मासूम सी रिया की खामोशी मुझे अंदर से तोड़ देती है?”

    उसकी आँखों में गुस्सा और दर्द एक साथ था।


    ---

    रिया की बेचैनी

    उसी समय रिया अपने कमरे में बेचैन घूम रही थी।
    वो खिड़की से बाहर देख रही थी। हवेली के ऊपर चाँदनी फैली थी, लेकिन उसके दिल में अंधेरा था।

    “Ryan बहुत गुस्से में रहते हैं… अगर उन्हें कुछ पता चल गया तो? और ये मोना… वो तो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं करती। कहीं उसने कुछ गलत कर दिया तो?”

    उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।
    उसने अपने हाथ पर बंधा दुपट्टा खोला और उस ‘R’ लेटर को देखा।
    “क्या वो कभी समझ पाएंगे कि ये ‘R’… सिर्फ़ उन्हीं के लिए है?”


    ---

    मोना की कसम

    मोना अपने कमरे में वापस आ चुकी थी।
    आईने के सामने खड़े होकर उसने अपनी आँखों से बहते आँसू पोंछ दिए।
    उसकी मुस्कान अब खतरनाक थी।

    “रिया… तूने मेरा सब छीन लिया। अब देख, मैं तेरा क्या हाल करती हूँ। रायन तुझे कभी अपना नहीं बना पाएगा। वो चाहे जितना भी तुझे बचाए… मैं तुझे बर्बाद कर दूँगी।”

  • 13. बंदिशें - Chapter 13

    Words: 956

    Estimated Reading Time: 6 min

    रात गहरी थी और हवेली के कोने-कोने में सन्नाटा पसरा हुआ था। बाहर चंद्रमा की ठंडी रोशनी छत पर पड़ रही थी, पर रायन ओबेरॉय के कमरे में आग जल रही थी—एक ऐसी आग जो सामने दिखती नहीं, पर अंदर से जला रही थी।

    मोना के तीखे शब्द, उसकी छेड़खानी और रिया की अनजानी सी मासूमियत—इन सबका गूढ़ मिश्रण उस रात रायन के दिमाग़ में भयंकर भटकन खड़ी कर गया था। उसने खुद से कहा था कि वह किसी के लिए नहीं गिरेगा, किसी से नहीं बदलेगा। पर भीतर कुछ टूट चुका था।

    उसने गिलास उठाया और दीवार पर पटक दिया; कांच हवा में टूटकर बिखर गया। कुछ सेकंड के लिए उसे लगा, टूटे हुए टुकड़ों की तरह उसके अंदर भी कुछ बिखर रहा है। “Damn it!” वह गरजा, पर आवाज़ कहीं खो गई।


    ---

    अन्दरूनी उलझन

    वो खिड़की की ओर गया और बाहर की चाँदनी में अपना चेहरा देखा—ठंडा, कठोर, पर आँखों में बेचैनी।
    “क्यों तुम मेरे दिमाग़ से हटती नहीं, Riya?” उसने खुद से कहा। बचपन की धुंधली यादों ने उसे घेर लिया—बचपन की एक शादी की रस्में, दोनों हाथों पर उकेरा ‘R’ और बेख़बर हँसते हुए छोटे चेहरे।

    मोना की बातों का जहर भी अभी दिल में था—“तुम्हें मिलते ही मैं तुम्हें पाना चाहती हूँ” जैसी अफ़हाने। उसने महसूस किया कि उसे सिर्फ़ पाना नहीं चाहिए था, बल्कि उसे पाने का अधिकार वह माँग रही थी। यह सोचकर क्रोध और बेबसी दोनों एक साथ उभरे।


    ---

    गुस्से का विस्फोट

    रायन कमरे में इधर-उधर चलने लगा। किताबें, कागज़, बर्तनों को एक-एक करके उसने पेश करने का काम छोड़ दिया। जिस तरह रोशनी टूटती हुई शीशों पर पड़ती थी, वैसा ही कुछ उसकी सोच के टुकड़े बिखरने लगे।

    वो अचानक एक क्रिस्टल बोतल उठा कर फेंक आया; बोतल चकनाचूर हुई और नुकीले टुकड़े फर्श पर बिखर गए। वह इन्हीं टुकड़ों में से एक उठा कर बिना सोचे अपनी हथेली पर दबा बैठा—खून की एक पतली रेखा फिसल कर नीचे गिर पड़ी।

    खून से फर्श पर छन-छन की आवाज़ आई और उसी क्षण उसे अजीब-सा सुकून मिला। वह दर्द को महसूस कर रहा था, पर साथ ही उस दर्द से कुछ हल्का भी हो रहा था—जैसे भीतर जमा जलन किसी चैन की तलाश में हो।


    ---

    रिया का अन्दर का डर

    ऊपर वाले कमरे में रिया नींद नहीं ले पा रही थी। कल की घटनाएँ, रायन की सख़्त आवाज़ और आज मोना की मौजूदगी—सब कुछ उसके दिमाग़ में बार-बार आ रहा था। उसने खिड़की से बाहर देखा और दूर अँधेरे में छोटी-सी रोशनी देखी—यही वो जगह थी जहाँ रायन का कमरा था।

    कुछ टूटी-फूट सी आवाज़ों ने उसे खौफ से भर दिया। उसका दिल जोर से धड़क उठा—“कहीं रायन ने खुद को चोट तो नहीं पहुँचाई?” वह धीरे-धीरे कमरे से बाहर निकली। हर कदम पर सोच रही थी कि क्या करना चाहिए।


    ---

    हिम्मत और दस्तक

    दरवाज़े तक पहुँच कर उसने हल्के से खटखटाया—“Ryan sir…?” कोई जवाब नहीं आया। भीतरी आवाज़ उसे कह रही थी कि लौट जाओ, पर उस आवाज़ से भी तेज़ एक और आवाज़ थी—“अगर कुछ हुआ है तो मैं चुप नहीं बैठूंगी।”

    दरवाज़ा खोला तो सामने जो नज़ारा था, उसने रिया की आँखे खोल दीं—रायन जमीन पर झुका हुआ था, हथेली से खून बह रहा था और चारों ओर काँच के टुकड़े बिखरे थे। उसकी साँसें तेज़ थीं और चेहरा थका हुआ लग रहा था।

    “Ryan!” रिया चीखी और दौड़ कर उसके पास आ बैठी।


    ---

    इलाज का पहला कदम

    रायन ने आँख उठाकर उसे देखा—आँखों में कुछ बेबस अहसास और गहरी पीड़ा। उसने धीमी आवाज़ में कहा, “तुम यहाँ क्यों?” पर आवाज़ में एक तरह की टूटी हुई नर्मई थी।

    रिया ने कांपती उँगलियों से अपने दुपट्टे का एक टुकड़ा फाड़ा और सावधानी से उसकी हथेली पर बांधने लगी। उसने अपने हाथों से खून पोछा, हल्के-से दबाव से पट्टी बाँधी। उसकी आवाज़ में घबराहट थी—“क्यों ऐसा कर रहे हैं आप? खुद को चोट पहुँचाना बंद कीजिए।”

    रायन चुप रहा; उसकी सांसें थम-सी गईं। किसी ने उसे कभी इतनी नज़दीक से सहानुभूति नहीं दी थी।


    ---

    नज़दीकियाँ और टूटन

    जैसे-जैसे रिया ने पट्टी बाँधी, दोनों के बीच एक अजीब-सा खामोश आलोक फैल गया। रायन उसकी आँखों में देखने लगा—नरम, डरती और सच्ची। उसके होंठ काँप उठे।

    “तुम किस तरह…” वह बोलना चाहता था पर आवाज़ का रंग बदल गया—“तुम क्यों मेरी परवाह कर रही हो?”

    रिया ने धीरे-धीरे कहा, “क्योंकि किसी का दर्द देखकर खामोश नहीं रहा जा सकता। आप चाहे कितने भी बड़े हों, इंसानियत बेशकीमती है।” उसकी बातें सरल थीं, पर उन सरल बातों ने रायन के भीतर किसी दरवाज़े को खोल दिया।


    ---

    टूटता हुआ मुखड़ा

    रायन अचानक चिल्लाया—“Why, Riya? Why do you care? तुम कौन हो मेरी?” उसकी आवाज़ में कटुता और बेबसपन दोनों थे। रिया के गले से नाकाम-सी आवाज आई—“शायद मैं कुछ नहीं… पर मैं इंसान हूँ।”

    उस शब्द ने उसकी स्थिति बदल दी। आँखों में जलन, मुट्ठियाँ सिकुड़ीं, और वह खिड़की की तरफ़ मुड़ा। कुछ पल बाद उसने दीवार को पीटते हुए कहा, “तुम मुझे कमजोर बना रही हो, Riya।” और फिर खुद से लड़ते हुए कमरे से बाहर निकल गया—लगे हाथ वह अपना मन ठीक करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन भीतर का तूफ़ान शांत नहीं हुआ था।


    ---

    निशानी और सवाल

    रात की ठंडी हवा में रिया खड़ी रही, उसकी साँसें थमी हुई थीं। उसने अपने हाथों पर बंद पट्टी और खून देखा—उस खून का निशान और उस दर्द ने उसके भीतर कुछ टूटते हुए महसूस कराया। वह सोच रही थी—क्या वह रायन को समझ पाएगी? क्या वह उस बेबसी को मिटा पाएगी जो उसके भीतर दिनों-दिन बढ़ती जा रही है?

    और दूसरी ओर, रायन—जो ज़माने भर की ताकत का प्रतीक था—उसने उस रात जाना कि किसी के लिए टूटना भी इंसानियत है। पर वह यह नहीं जान पाया कि वह टूटकर किसको क्या दे रहा है—प्यार, दर्द, या सिर्फ एक खालीपन।

  • 14. बंदिशें - Chapter 14

    Words: 793

    Estimated Reading Time: 5 min

    रात की ठंडी हवा पूरे महल को अपने आगोश में ले चुकी थी। हवेली के हर कोने में सन्नाटा था, पर रिया का दिल शोर मचा रहा था। उसके हाथ अब भी कांप रहे थे, क्योंकि कुछ देर पहले उसने रायन को अपने ही खून में लथपथ देखा था।

    उसके कदम अनजाने में ही रायन के पीछे चल पड़े। रायन गुस्से से सीढ़ियाँ उतर रहा था, आँखों में एक अजीब-सी ज्वाला थी। मगर रिया जानती थी—ये गुस्सा दुनिया से ज्यादा खुद से था।


    ---

    रायन की हालत

    हॉल में आकर रायन ने सोफे पर बैठते ही अपनी हथेली की पट्टी खोल फेंकी। खून बहता देख रिया को झटका लगा।

    “आप ये क्या कर रहे हैं?” रिया लगभग चिल्लाई।

    रायन ने ठंडी आँखों से उसकी ओर देखा, मानो उसमें कोई जान न हो।
    “मुझे ऐसे ही रहना चाहिए, Riya। दर्द ही मेरी पहचान है। यह मरहम मुझे कमजोर बना देगा।”

    रिया ने उसकी बात काट दी, “कमजोर वो नहीं होता जो दर्द से भागे, कमजोर वो है जो खुद को जान-बूझकर तकलीफ़ दे। और आप… आप ऐसे क्यों बन रहे हैं?”


    ---

    पहली बार की मुलायमियत

    रायन ने पलट कर कहा, “क्योंकि मुझे और किसी पर भरोसा नहीं है। जिस भी औरत ने मेरी ज़िन्दगी में कदम रखा, उसने मुझे इस्तेमाल किया। प्यार का नाम लेकर… सबने धोखा दिया।”

    उसकी आवाज़ धीमी पर काँपती हुई थी।

    रिया कुछ पल उसे देखती रही। वो आदमी, जिसे पूरी दुनिया एक लोहे की दीवार समझती थी, अंदर से कितना टूटा हुआ है—ये बात उसे अब समझ आई।

    वह उसके पास बैठ गई और धीरे से बोली—“तो क्या आप हर इंसान को उसी नजर से देखेंगे? क्या सबके लिए आपके दिल में बस नफ़रत होगी?”

    रायन चुप रहा, आँखें झुका लीं।


    ---

    मरहम का असर

    रिया ने पास रखी फर्स्ट-एड बॉक्स उठाई। वह धीरे-धीरे उसकी हथेली को अपने हाथों में लेकर दवा लगाने लगी।
    “दर्द होगा, पर सह लीजिए।”

    रायन ने उसकी तरफ़ देखा—आँखों में पहली बार सवाल नहीं बल्कि हैरानी थी।
    “तुम… मुझे छूकर भी डर नहीं रही?”

    रिया ने हल्की मुस्कान दी, “डर किससे? चोट से? या आपसे? मैं जानती हूँ आप उतने कठोर नहीं, जितना दिखाते हैं।”

    उसकी नरम आवाज़ और स्पर्श ने रायन को भीतर से झकझोर दिया। मरहम की ठंडक और उसके हाथों की गर्माहट ने उसे बेचैन कर दिया।


    ---

    दिल का द्वंद्व

    रायन ने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ मज़बूत थी, पर आँखों में उलझन।
    “तुम क्यों कर रही हो ये सब, Riya? तुम जानती भी नहीं मैं कौन हूँ… मैं कैसा हूँ। फिर भी मेरी परवाह क्यों?”

    रिया ने बिना झिझके कहा, “क्योंकि इंसानियत नाम की भी चीज़ होती है। और शायद… आप उतने बुरे नहीं हैं जितना खुद को मान बैठे हैं।”

    रायन की साँसें तेज़ हो गईं। उसने अपने सीने पर अजीब सा दबाव महसूस किया—गुस्सा, दर्द, और कहीं गहरे में छुपा हुआ खिंचाव।


    ---

    रिया की सच्चाई

    रिया ने उसकी हथेली पर पट्टी बाँधते हुए कहा,
    “देखिए, मैं आपको बदलना नहीं चाहती। लेकिन इतना ज़रूर चाहती हूँ कि आप खुद को और ज्यादा चोट न पहुँचाएँ। जो दर्द आपके दिल में है, वो किसी और की गलती का नतीजा है। उसका बोझ खुद पर मत डालिए।”

    रायन उसकी आँखों में झाँकता रहा। वहाँ कोई डर नहीं था, बस सच्चाई थी।

    “तुम्हें लगता है मैं बदल सकता हूँ?” उसने बुदबुदाया।

    रिया ने धीरे-धीरे सिर हिलाया, “हर इंसान बदल सकता है… अगर वो चाहे तो।”


    ---

    रायन की खामोशी

    कमरे में कुछ देर के लिए सिर्फ घड़ी की टिक-टिक सुनाई दी। रायन चुपचाप बैठा रहा, जैसे उसके पास जवाब ही न हो। उसके लिए यह सब नया था—कोई लड़की उसके सामने बैठी है, उसकी चोट बाँध रही है, और बिना किसी उम्मीद के उसकी परवाह कर रही है।

    उसके होंठ हिले, पर आवाज़ नहीं निकली। आँखों में एक हल्की चमक आई, जैसे बरसों बाद किसी ने उसके अंधेरे में दीया जलाया हो।


    ---

    रिया का डर और उम्मीद

    रिया ने पट्टी बाँधकर उसकी हथेली को थाम लिया। “अब खून बंद हो जाएगा,” उसने धीमे स्वर में कहा।

    फिर उठने लगी, पर रायन ने उसका हाथ पकड़ लिया।
    “Riya… तुम अलग हो।”

    उसके शब्दों में गहराई थी, लेकिन वो खुद भी समझ नहीं पा रहा था कि कहना क्या चाहता है।

    रिया का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने धीरे से कहा, “शायद मैं अलग नहीं… बस सच्ची हूँ।” और हाथ छुड़ाकर बाहर निकल गई।


    ---

    रायन की तन्हाई

    रिया के जाते ही रायन पीछे की ओर टिक गया। उसका दिल बेचैन था, पर चेहरे पर हल्की-सी राहत।
    “Why do you do this to me, Riya? तुम मुझे तोड़ भी रही हो और जोड़ भी रही हो…”

    उस रात रायन ने पहली बार महसूस किया कि उसके भीतर का अंधेरा अब पूरी तरह अकेला नहीं है। किसी ने उस अंधेरे में रोशनी की हल्की-सी किरण डाल दी थी।

  • 15. बंदिशें - Chapter 15

    Words: 775

    Estimated Reading Time: 5 min

    सुबह की पहली किरण हवेली की खिड़कियों से झाँक रही थी। पर रायन की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। रात भर वो बस करवटें बदलता रहा, बार-बार उसका ध्यान उसी पल पर जाकर अटक जाता—जब रिया ने उसकी चोट पर मरहम लगाया था।

    उसके दिल में एक अजीब-सा तूफ़ान चल रहा था। गुस्सा भी था, बेचैनी भी… और कहीं गहरे में एक खिंचाव, जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा था।


    ---

    रायन का आईना

    वो उठकर आईने के सामने खड़ा हो गया।
    “तुम कमजोर हो रहे हो, Ryan,” उसने खुद से कहा।
    “एक लड़की के कुछ शब्द और एक स्पर्श ने तुम्हें तोड़कर रख दिया है। तुम वो इंसान नहीं रहे, जिसे कोई छू भी नहीं सकता था।”

    पर उसके अंदर की आवाज़ दूसरी बात कह रही थी—
    “या शायद… तुम वो इंसान बनने लगे हो, जो हमेशा से बनना चाहते थे। वो इंसान, जिसके दिल में सुकून हो, सिर्फ़ दर्द नहीं।”

    उसने सिर झटक दिया, मानो इस ख्याल को मिटा देना चाहता हो।


    ---

    रिया की बेचैनी

    दूसरी तरफ़, रिया के लिए भी रात आसान नहीं थी। उसे बार-बार रायन की आँखें याद आ रही थीं—वो आँखें जिनमें पहली बार सख़्ती नहीं, बल्कि टूटन झलक रही थी।

    वो अपने कमरे की खिड़की पर बैठी थी। हवेली का बगीचा उसकी आँखों के सामने था।
    “कितना अजीब है,” उसने सोचा, “ये आदमी सबको डराता है, सब उससे दूर भागते हैं। पर मुझे उसमें डर नहीं दिखता… बस एक अकेलापन दिखता है।”

    उसने अपने सीने पर हाथ रखा। दिल की धड़कन तेज़ हो चुकी थी।
    “क्या मैं उसे समझ रही हूँ? या… मैं खुद ही किसी खाई में गिर रही हूँ?”


    ---

    अप्रत्याशित मुलाकात

    सुबह का नाश्ता सभी लोग हॉल में कर रहे थे। रायन हमेशा की तरह चुपचाप कोने वाली कुर्सी पर बैठा था। जैसे ही रिया वहाँ पहुँची, उसका दिल धड़क उठा।

    रिया ने हिम्मत जुटाकर धीरे से कहा,
    “कैसी है आपकी चोट?”

    पूरा हॉल सन्न रह गया। किसी लड़की ने अब तक रायन से ऐसे सीधे सवाल करने की हिम्मत नहीं की थी।

    रायन ने उसकी ओर देखा, उसकी नज़रें ठंडी पर उलझी हुई थीं।
    “ठीक है,” बस इतना ही कहा।

    पर रिया ने नोटिस किया—उसकी आवाज़ कल जितनी कठोर नहीं थी।


    ---

    रायन का अंदरूनी संघर्ष

    नाश्ते के बाद रायन अपने कमरे की ओर बढ़ा। पर उसके कदम अचानक रुक गए जब उसने सुना कि रिया प्रीति और प्रिया से बातें कर रही है।

    “Ryan बहुत अलग है, है ना?” प्रीति ने हँसते हुए कहा।
    रिया ने धीमे स्वर में जवाब दिया—“अलग नहीं… बस अकेला है।”

    रायन का दिल धड़क उठा।
    “ये लड़की मुझे समझने लगी है… पर क्यों? वो भी तो मुझसे डर सकती थी। तो फिर… उसके मन में क्या है?”

    वो गुस्से से वापस अपने कमरे में चला गया। उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं।
    “नहीं, मैं उसे अपने करीब नहीं आने दूँगा। ये उलझन मुझे खत्म कर देगी।”


    ---

    रिया का साहस

    शाम को रिया बगीचे में फूल तोड़ रही थी। रायन वहीं से गुज़रा। उसने देखा कि उसकी हथेली फिर से हल्की-सी लाल हो गई थी—कल की चोट शायद ठीक से भरी नहीं थी।

    रिया ने तुरंत कहा,
    “फिर से चोट खुल गई है। आइए, मैं दवा लगा दूँ।”

    रायन ने भौंहें चढ़ाईं, “क्यों बार-बार वही बात? मैंने कहा ना, मैं ठीक हूँ।”

    रिया ने उसकी ओर सीधे देखा, उसकी आवाज़ नर्म पर दृढ़ थी—
    “आप चाहे जितना इनकार कर लें, लेकिन सच्चाई ये है कि आप खुद की परवाह नहीं करते। अगर आप खुद का ख्याल नहीं रखेंगे, तो फिर कौन रखेगा?”

    रायन उसके चेहरे की ओर देखने लगा। पहली बार किसी लड़की ने उससे इस तरह बात की थी—न डर, न झिझक, बस सच्चाई।


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    नज़दीकियों का असर

    रिया ने उसका हाथ पकड़कर पट्टी बांधना शुरू किया। उसकी उंगलियाँ हल्के-हल्के रायन की हथेली पर घूम रही थीं। रायन की साँसें तेज़ होने लगीं।

    उसने अचानक उसका हाथ रोक लिया।
    “Riya… तुम्हें डर नहीं लगता मुझसे?”

    रिया ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,
    “नहीं। क्योंकि मैं जानती हूँ आप उतने निर्दयी नहीं, जितना दिखाते हैं।”

    रायन की आँखों में कुछ पल के लिए जंग छिड़ गई—गुस्से और सुकून के बीच।


    ---

    रायन की उलझन

    उस रात रायन अपने कमरे में अकेला बैठा रहा। उसकी हथेली पर बंधी पट्टी को देखते हुए उसने सोचा—
    “ये लड़की मुझे धीरे-धीरे तोड़ रही है। पर क्यों मुझे ये टूटना अच्छा लग रहा है?”

    वो खिड़की पर खड़ा होकर बाहर देख रहा था। हवाओं में रिया की हँसी गूँज रही थी।

    “अगर मैं उससे दूर रहूँ तो चैन नहीं… और करीब रहूँ तो ये जुनून मुझे कहीं पागल न कर दे।”

    उसकी आँखें लाल हो गईं।
    “ये उलझन मुझे खत्म कर रही है… Riya, तुम मेरे लिए आखिर हो क्या?”

  • 16. बंदिशें - Chapter 16

    Words: 870

    Estimated Reading Time: 6 min

    रात का सन्नाटा हवेली पर गहरा चुका था। सब लोग अपने-अपने कमरों में जा चुके थे। बस एक कमरा ऐसा था जहाँ नींद का नामोनिशान नहीं था—रायन का।

    वो अपने कमरे की खिड़की पर खड़ा था, बाहर चाँदनी बिखरी हुई थी। लेकिन उसके अंदर का अंधेरा और गहरा हो रहा था।


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    उलझे हुए ख्याल

    रायन ने आँखें बंद कीं तो बार-बार रिया का चेहरा सामने आ जाता। उसके हाथों की नरमी, उसकी आँखों की सच्चाई… और वो निडर अंदाज़।

    उसने खुद से बुदबुदाया,
    “क्यों मैं उसके बारे में इतना सोच रहा हूँ? वो तो बस एक साधारण लड़की है। लेकिन… क्यों मुझे लगता है कि उसके बिना सब अधूरा है?”

    उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं।
    “नहीं Ryan, ये कमजोरी है। तुम किसी लड़की के लिए अपने आप को खो नहीं सकते। तुम्हें याद है, तुम्हारे साथ पहले क्या हुआ था। फिर वही गलती दोहराओगे?”

    पर उसका दिल तर्क नहीं मान रहा था।


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    रिया की बेचैनी

    दूसरी ओर, रिया भी अपने कमरे में सो नहीं पा रही थी। प्रीति और प्रिया गहरी नींद में थीं, पर रिया खिड़की पर बैठी चाँद देख रही थी।

    उसके दिल में अजीब-सी हलचल थी।
    “क्यों मुझे उसकी परवाह इतनी होने लगी है? वो तो बस मेरी दोस्त की भाई है… पर जब उसकी आँखों में दर्द देखती हूँ तो खुद टूट जाती हूँ। क्या ये… सिर्फ़ दया है? या कुछ और?”

    उसने अपनी हथेली पर उँगली फिराई। वहाँ उकेरा हुआ ‘R’ उसे जैसे लगातार रायन की याद दिला रहा था।


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    अचानक मुलाक़ात

    आधी रात बीत चुकी थी। रिया को नींद नहीं आई तो वो चुपचाप बगीचे में चली गई। ठंडी हवा उसके बालों को सहला रही थी। उसने सोचा अकेले बैठकर मन को हल्का कर ले।

    पर जैसे ही वो बेंच पर बैठी, पीछे से कदमों की आहट सुनाई दी।

    वो पलटकर देखती है—रायन।

    उसकी आँखें लाल थीं, मानो रात भर सोया न हो। उसने रिया को देख मुस्कुराने की कोशिश भी नहीं की, बस चुपचाप उसके सामने आ खड़ा हुआ।

    “तुम यहाँ क्या कर रही हो?” उसकी आवाज़ गहरी थी।

    रिया थोड़ी चौंकी, पर बोली—“नींद नहीं आ रही थी… तो सोचा बाहर आ जाऊँ। और आप?”

    रायन कुछ पल चुप रहा। फिर धीरे से बोला—“नींद… मुझे भी नहीं आ रही।”


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    खामोश नज़दीकियाँ

    दोनों कुछ देर चुपचाप चाँद की ओर देखते रहे। माहौल अजीब था—ना दूरी थी, ना नज़दीकी।

    रिया ने हिम्मत करके कहा—“आपके अंदर बहुत दर्द है। लेकिन आप उसे किसी से बाँटना ही नहीं चाहते। क्यों?”

    रायन ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में हल्की नमी थी, पर आवाज़ सख्त।
    “क्योंकि लोग दर्द को समझते नहीं, उसका मज़ाक बनाते हैं। और मैं किसी का मज़ाक नहीं बन सकता।”

    रिया ने नरमी से कहा, “सब लोग वैसे नहीं होते। कुछ लोग… सच में परवाह करते हैं।”

    उसके इन शब्दों ने रायन के दिल को छू लिया।


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    रायन का कन्फ्यूजन

    उसने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ मज़बूत थी, लेकिन काँपती हुई।
    “Riya… मुझे समझ नहीं आ रहा। मैं तुम्हारे करीब क्यों खिंच रहा हूँ? मुझे किसी लड़की की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। लेकिन तुम्हें देखता हूँ तो…”

    उसकी बात अधूरी रह गई।

    रिया की साँसें तेज़ हो गईं। उसने धीरे से कहा—“शायद क्योंकि आपके अंदर इंसानियत बाकी है। और दिल चाहे जितना कठोर हो… उसे किसी की ज़रूरत होती है।”

    रायन उसकी आँखों में खो गया। वहाँ डर नहीं था, बस सच्चाई।


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    दिल की हार

    उसने रिया का हाथ और कसकर थाम लिया।
    “तुम मुझे पागल कर दोगी, Riya। मैं तुम्हें दूर करना चाहता हूँ, पर जितना कोशिश करता हूँ… उतना ही तुम्हारे और करीब खिंचता जाता हूँ।”

    रिया की धड़कन तेज़ हो गई। उसने हाथ छुड़ाने की कोशिश की, पर रायन ने उसे जाने नहीं दिया।

    “नहीं… अब भागना मत। तुमने मेरे अंदर जो हलचल मचाई है, उसका जवाब तुम्हें ही देना होगा।”

    रिया ने काँपते हुए कहा, “आप मुझे डराते हैं… फिर भी… न जाने क्यों, मैं आपके दर्द को अपना मान लेती हूँ।”


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    रायन की बेख़ुदी

    रायन ने अचानक उसे अपनी ओर खींच लिया। उनकी आँखें आमने-सामने थीं, साँसें एक-दूसरे से टकरा रही थीं।

    “तुम नहीं जानती, Riya… तुम्हारे बिना अब मैं जी भी नहीं सकता। ये जुनून है या पागलपन, मुझे नहीं पता। पर इतना जानता हूँ कि तुम मेरी हो… सिर्फ़ मेरी।”

    रिया हकबका गई। उसके होंठों से कोई शब्द नहीं निकले। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, पर आँखों में एक अनकही चमक थी।


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    दूरी और खिंचाव

    अचानक रिया ने उसे पीछे धकेला।
    “नहीं Ryan… ये सही नहीं है। मुझे डर लग रहा है।”

    रायन की आँखों में एक पल के लिए पागलपन चमका। फिर उसने गहरी साँस ली और पीछे हट गया।
    “ठीक है। जाओ… लेकिन याद रखना, तुम चाहे जितनी दूर भागो, ये धड़कन तुम्हें हमेशा मेरी ओर खींचेगी।”

    रिया बिना कुछ कहे वहाँ से चली गई। उसकी आँखों में आँसू थे—डर के भी और किसी अनजाने खिंचाव के भी।


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    रायन की तन्हाई

    रिया के जाते ही रायन ने मुट्ठियाँ भींच लीं।
    “ये लड़की मुझे तोड़ भी रही है और जोड़ भी रही है। मैं उससे दूर नहीं रह सकता। चाहे कुछ भी हो जाए… वो मेरी होगी। सिर्फ़ मेरी।”

    उसकी आँखों में जुनून जलने लगा। अब वो खुद भी समझ नहीं पा रहा था कि ये प्यार है, पागलपन है, या दोनों का मिलाजुला रंग।

  • 17. बंदिशें - Chapter 17

    Words: 613

    Estimated Reading Time: 4 min

    हवेली का माहौल

    ओबेरॉय हवेली में पिछले कुछ दिनों से रौनक बढ़ गई थी। रिया के आने के बाद से सबके बीच अपनापन लौट आया था। पर अब हवेली में एक और हलचल थी—आर्यन और इवान की मौजूदगी। दोनों ही अपनी-अपनी शख़्सियत से सबको आकर्षित कर रहे थे।

    आर्यन हमेशा शांत और समझदार दिखता, पर उसकी नज़रें अक्सर किसी को ढूँढ रही होतीं। वहीँ इवान तो पूरा शरारती और मस्तीख़ोर था, हर वक्त किसी न किसी को छेड़ने में लगा रहता।


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    आर्यन और प्रिया

    एक शाम हवेली के गार्डन में प्रिया अकेली बैठी किताब पढ़ रही थी। हल्की हवा बह रही थी और फूलों की खुशबू फैली हुई थी।

    आर्यन वहीं आया और सामने की कुर्सी पर बैठ गया।
    “किताबों में इतना क्या छुपा होता है, जो तुम्हें दुनिया से दूर कर देता है?”

    प्रिया ने किताब बंद की और हल्की मुस्कान दी।
    “किताबें झूठ नहीं बोलतीं… और न ही धोखा देती हैं।”

    आर्यन उसकी आँखों में देखता रहा। क्या ये लड़की हमेशा इतनी सच्चाई से बोलती है?

    “और अगर कोई इंसान किताब की तरह सच्चा हो तो?” उसने धीरे से पूछा।

    प्रिया चौंकी, फिर मुस्कुराई—“तो शायद… वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त बन सकता है।”

    आर्यन के दिल में कुछ धड़कने लगा। पहली बार उसने महसूस किया कि वो प्रिया की बातों से खिंचता जा रहा है।


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    इवान और प्रीत

    दूसरी तरफ, प्रीत किचन में फल काट रही थी। इवान चुपचाप अंदर आया और एक सेब उठाकर काट लिया।

    “अरे! ये मेरा सेब था,” प्रीत ने नाराज़ होकर कहा।

    इवान ने मस्ती भरे अंदाज़ में कहा—“अब ये मेरा है। शेयर करना सीखो।”

    प्रीत ने आँखें तरेरी—“तुम बहुत बदतमीज़ हो।”

    इवान हँस पड़ा—“और तुम बहुत प्यारी हो जब गुस्सा करती हो।”

    प्रीत का चेहरा लाल हो गया। उसने नज़रें चुराईं, लेकिन दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।


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    परिवार की नज़रें

    लिविंग रूम से दादा जी और दादी दोनों ये नज़ारे देख रहे थे।
    दादी मुस्कुराईं—“लगता है हवेली में फिर से बहार आ रही है।”

    दादा जी ने गंभीरता से कहा—“हाँ… पर ये सब आसान नहीं होगा। प्यार कभी आसान नहीं होता।”


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    रायन की बेचैनी

    ऊपर अपनी स्टडी से रायन सब देख रहा था। उसकी आँखों में गुस्सा और बेचैनी दोनों थे।
    “पहले ही मुझे रिया चैन से जीने नहीं देती… अब मेरे भाई भी इन लड़कियों में उलझ रहे हैं। अगर ये रिश्ते गहरे हो गए तो…”

    उसने टेबल पर हाथ मारा।
    “नहीं! मैं अपने भाइयों को इस जाल में फँसने नहीं दूँगा।”

    पर दिल के किसी कोने में उसे ये भी खल रहा था कि सबके पास कोई न कोई है, सिर्फ़ वो अकेला रह गया है।


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    दिल का इज़हार (पहली आहट)

    रात को हवेली की छत पर प्रिया टहल रही थी। अचानक आर्यन वहाँ आ गया।

    “नींद नहीं आ रही?” उसने पूछा।

    प्रिया ने सिर हिलाया—“हाँ, शायद बहुत सोच रही हूँ।”

    आर्यन ने गहरी साँस ली—“अगर मैं कहूँ कि तुम्हारे बारे में सोच रहा हूँ… तो?”

    प्रिया चौंक गई, उसके पास कोई जवाब नहीं था। बस उसकी आँखें सब कह गईं।

    उसी समय नीचे गार्डन में प्रीत फूल तोड़ रही थी। इवान पीछे से आया और धीरे से कहा—
    “अगर ये फूल मैं तुम्हें दूँ… तो क्या तुम हाँ कहोगी?”

    प्रीत ने हँसते हुए कहा—“हाँ? किस बात की हाँ?”

    इवान ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—“उस हाँ की… जो दिल से निकलती है।”

    प्रीत का चेहरा लाल हो गया और उसने भागते हुए नज़रें चुरा लीं।


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    रायन का साया

    दोनों भाई अपने-अपने ख्यालों में डूब रहे थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि ऊपर बालकनी से रायन सब देख रहा था। उसकी आँखें ठंडी थीं, जैसे बर्फ़।

    “ये सब बर्बाद हो जाएगा… अगर मैंने चाहा तो।”

    उसके होंठों पर हल्की-सी खतरनाक मुस्कान उभर आई।


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  • 18. बंदिशें - Chapter 18

    Words: 709

    Estimated Reading Time: 5 min

    सुबह की शुरुआत

    ओबेरॉय हवेली की सुबह हमेशा शाही अंदाज़ में होती थी। नौकर-चाकर चाय और नाश्ते की तैयारी में लगे रहते, पर उस दिन का सीन अलग था।

    रिया नींद से उठते ही सोच रही थी—
    “क्या मैं यहाँ सच में इस घर का हिस्सा हूँ? सब मुझे वैसे ही देख रहे हैं जैसे कोई मेहमान… शायद मुझे कुछ करना चाहिए जिससे सबके दिल में जगह बना सकूँ।”

    उसने हिम्मत जुटाई और रसोई में चली गई।


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    रसोई का पहला कदम

    रसोई में वैशाली (रायन की माँ) पहले से खड़ी थी। उन्होंने रिया को देख आश्चर्य से कहा—
    “अरे रिया बेटा, तुम यहाँ? सुबह-सुबह?”

    रिया ने संकोच से कहा—
    “बड़ी मम्मी, अगर आप इजाज़त दें… तो आज नाश्ता मैं बना लूँ। मैं चाहती हूँ कि सबको मेरे हाथ का कुछ अच्छा लगे।”

    वैशाली के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई।
    “ठीक है, बेटा। पर याद रहे, ओबेरॉय परिवार की मेज़ पर सबका स्वाद बहुत नखरीला है।”

    रिया ने गहरी साँस ली और काम में लग गई।


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    मेहनत और लगन

    उसने आटा गूँथा, आलू और पनीर काटे। हाथ थोड़े काँप रहे थे, लेकिन दिल में आत्मविश्वास था। प्रिया और प्रीत भी मदद के लिए आ गईं।

    “दीदी, आप तो कमाल कर रही हैं,” प्रीत बोली।
    रिया मुस्कुराई—“बस कोशिश कर रही हूँ। दुआ करो सबको पसंद आ जाए।”

    धीरे-धीरे रसोई में पराठों की खुशबू फैल गई। हलवे में घी की महक घुलने लगी। पूरी हवेली में एक अलग ही सुगंध तैर गई।


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    खुशबू का जादू

    नीचे गार्डन में कबीर अखबार पढ़ रहा था। उसने नाक से महक सूंघी और चौक उठा—
    “ये खुशबू? इतनी शानदार तो हमारे होटल के शेफ भी नहीं बना पाते।”

    अर्जुन ने भी महक महसूस की और मुस्कुराया—
    “लगता है आज खाने की टेबल पर कुछ स्पेशल मिलने वाला है।”

    ऊपर स्टडी रूम में रायन बैठा फाइल देख रहा था। लेकिन उसका ध्यान बार-बार महक की ओर चला जाता। उसने गहरी साँस ली और खिड़की की तरफ देखा।
    “क्यों ये खुशबू मुझे परेशान कर रही है…?”


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    नाश्ते की टेबल

    जल्दी ही टेबल पर खाना सजा दिया गया। सब चुपचाप देख रहे थे। गरमागरम आलू-पनीर पराठे, सब्ज़ियाँ और हलवा देखकर दादा जी ने पहला कौर लिया।

    उनके चेहरे पर तुरंत मुस्कान आई।
    “वाह! ये किसने बनाया है?”

    वैशाली ने गर्व से कहा—“हमारी रिया ने।”

    सबकी नज़रें रिया पर टिक गईं। वो शरमा कर सिर झुका गई।


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    तारीफ़ों की बरसात

    कबीर ने जल्दी से पराठा खाया और उत्साहित होकर बोला—
    “रिया, मैं मानता हूँ… तुम तो मास्टरशेफ हो! अब से मैं सिर्फ़ तुम्हारे हाथ का खाना खाऊँगा।”

    सब हँस पड़े।

    अर्जुन ने गंभीरता से कहा—
    “रिया, तुम्हारे हाथों में सच में जादू है। ये स्वाद सिर्फ़ खाने का नहीं… इसमें घर का अपनापन भी है।”

    प्रीति ने ख़ुशी से कहा—“दीदी, आपने तो सबका दिल जीत लिया।”


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    रायन की प्रतिक्रिया

    अब सबकी नज़रें रायन पर थीं। वो चुपचाप बैठा था। आखिर उसने एक निवाला लिया। उसका चेहरा स्थिर था, लेकिन आँखों में हल्की चमक थी।

    दादा जी ने छेड़ते हुए कहा—
    “रायन, कुछ तो बोलो। खाना कैसा है?”

    रायन ने बस इतना कहा—
    “ठीक है।”

    उसके ये दो शब्द रिया के दिल में तीर की तरह लगे। उसने सोचा—“शायद उसे पसंद नहीं आया…”

    लेकिन सच ये था कि रायन का दिल अंदर से मान चुका था कि ये स्वाद उसके लिए नया और खास है। पर उसकी ज़ुबान पर कभी इज़हार नहीं आ सकता था।


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    दादा जी का आशीर्वाद

    खाने के बाद दादा जी ने रिया की ओर देखकर कहा—
    “बेटा, तुमने सिर्फ़ खाना नहीं बनाया। तुमने इस घर में रिश्तों की मिठास घोल दी है। आज मुझे अपने पुराने दिनों की याद आ गई।”

    रिया की आँखें भर आईं। उसने सिर झुका लिया।


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    रात की खामोशी

    उस रात रिया बालकनी में बैठी चाँद देख रही थी। ठंडी हवा उसके बालों को छू रही थी। तभी पीछे से धीमी आवाज़ आई—
    “तुम्हारे हाथों का खाना… अच्छा था।”

    रिया ने पलटकर देखा—रायन खड़ा था।

    उसके लहजे में अकड़ तो थी, लेकिन आँखों में सच्चाई थी।
    रिया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
    “धन्यवाद।”

    रायन कुछ और कहना चाहता था, लेकिन खुद को रोक लिया और चला गया।

    रिया ने आसमान की ओर देखा और सोचा—
    “वो चाहे जितना गुस्सैल हो… पर उसके दिल में नरमी है। शायद एक दिन वो इसे स्वीकार कर पाए।”