जब प्रेम ही भाग्य का सबसे बड़ा शाप बन जाए, और रोशनी अंधकार से बंध जाए… अर्णव, एक शापित आत्मा, जिसे देवताओं ने दानव सम्राट बनने के लिए ठुकरा दिया। अनायरा, एक साध्वी, जिसका जन्म ही उसकी आत्मा को बचाने के लिए हुआ था।... जब प्रेम ही भाग्य का सबसे बड़ा शाप बन जाए, और रोशनी अंधकार से बंध जाए… अर्णव, एक शापित आत्मा, जिसे देवताओं ने दानव सम्राट बनने के लिए ठुकरा दिया। अनायरा, एक साध्वी, जिसका जन्म ही उसकी आत्मा को बचाने के लिए हुआ था। पर जब देवताओं की चाल प्रेम को बलिदान में बदल देती है, तो क्या उनका रिश्ता अगले जन्म तक टिक पाएगा? या फिर प्रेम की जगह सिर्फ़ विनाश और आँसू रह जाएँगे…?” . .. . . . . . . . . . .. . . . . . . . . .. .. . .. . .. . . . . . . . . . .
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आकाश गहरे लाल रंग में रंगा हुआ था। चाँद पूर्णिमा की रात पर भी शांति नहीं दे रहा था, बल्कि उसकी रोशनी मानो खून से सनी हुई प्रतीत हो रही थी। देव-लोक और नश्वर लोक के बीच फैली गहरी खाई में आज एक भयावह भविष्यवाणी गूंज रही थी।
“तीन सौ वर्षों बाद, अंधकार का राजा जन्म लेगा…
वह सम्पूर्ण संसार को अपने अधीन कर लेगा…
और देवताओं तक को झुकने पर मजबूर करेगा।”
ये शब्द जब दिव्य दर्पण में प्रकट हुए, तो साधु, देवता और योद्धा सभी सन्न रह गए।
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अर्णव का जन्म
उसी रात नश्वर लोक के एक छोटे से नगर में बिजली गिरी। तूफ़ान ने सबकुछ हिला दिया। उसी अराजकता के बीच, एक स्त्री ने पुत्र को जन्म दिया। शिशु के रोते ही पूरी हवेली की दीवारें दरक गईं, दीपक बुझ गए और लोग डर से काँप उठे।
उसके पिता ने कांपते स्वर में कहा,
“यह बच्चा… यह साधारण नहीं। इसकी आँखें देखो!”
बच्चे की आँखें गहरी काली थीं, जिनमें हल्की-सी लाल चमक कौंध रही थी। मानो भविष्य का अंधकार उसी पल उनमें जीवित हो उठा हो।
लोगों ने कहना शुरू किया—
“यह वही है… अंधकार का राजा… विनाश का वाहक।”
मगर उसकी माँ ने उसे अपने सीने से चिपकाकर कहा—
“नहीं! यह मेरा अर्णव है। चाहे संसार जो कहे, मेरे लिए यह श्रापित नहीं, मेरा वरदान है।”
लेकिन लोगों के दिलों में डर गहराई तक बैठ गया।
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अन्वी की साधना
सैकड़ों मील दूर, दिव्य लोक में एक साध्वी कन्या कठोर तप में लीन थी। उसका नाम था अन्वी।
वह बचपन से ही असाधारण थी—उसके स्पर्श से फूल खिल उठते, उसकी प्रार्थना से आकाश निर्मल हो जाता।
गुरुदेव अक्सर कहते,
“अन्वी, तेरा जीवन साधारण नहीं है। तुझे समय आने पर एक ऐसे कार्य के लिए चुना जाएगा, जो पूरी सृष्टि की दिशा बदल देगा।”
अन्वी मुस्कुरा देती, लेकिन भीतर से वह अक्सर सोचती—
“क्या सचमुच मेरा जीवन किसी और के भाग्य से जुड़ा है?”
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भाग्य का उद्घोष
सत्रहवीं वसंत पर, देवताओं की सभा बुलाई गई। वहां आकाशीय दर्पण ने एक दृश्य दिखाया—
एक युवक, जिसकी आँखों में लाल ज्वाला थी, और जिसके कदमों से धरती राख बन रही थी।
गुरुदेव ने गंभीर स्वर में कहा,
“यह वही है—अर्णव। भविष्य का दैत्यराज। यह संसार को निगल जाएगा।”
अन्वी के सामने वही भविष्यवाणी दोहराई गई—
“अन्वी, तुझे समय में पीछे भेजा जाएगा। तेरा कर्तव्य है अर्णव को रोकना। यदि वह दैत्यराज बना, तो सबकुछ नष्ट हो जाएगा। केवल तू ही उसके भाग्य को बदल सकती है।”
अन्वी स्तब्ध रह गई।
“क्या किसी का भाग्य बदलना संभव है? और यदि… यदि उसके भीतर भी इंसानियत हुई तो?”
गुरुदेव ने बस इतना कहा—
“याद रख, दया तेरा हथियार है, पर यदि ज़रूरत पड़े तो बलिदान भी देना होगा।”
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अर्णव का अकेलापन
इधर नश्वर लोक में अर्णव बड़ा हो रहा था।
लोग उससे डरते थे, बच्चे उसका नाम सुनकर छिप जाते थे। उसके आसपास हवाएँ अजीब तरह से गूंजतीं, और कभी-कभी उसके गुस्से से पेड़ खुद-ब-खुद गिर जाते।
एक रात उसने अपनी माँ से पूछा,
“माँ, मैं बाकी सब जैसा क्यों नहीं हूँ? सब मुझे दैत्य क्यों कहते हैं?”
माँ ने आँसू पोंछते हुए कहा,
“बेटा, लोग उस चीज़ से डरते हैं जिसे वे समझ नहीं पाते। शायद तेरे भीतर अंधकार है… पर याद रखना, सबसे गहरे अंधकार में भी रोशनी छुपी होती है।”
अर्णव ने माँ को देखा, लेकिन उसके दिल में कहीं न कहीं डर घर कर गया था—
क्या सचमुच वही वह दैत्य है, जिससे लोग कांपते हैं?
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किस्मत की डोर
समय बीता। अर्णव की शक्तियाँ बढ़ती गईं, और उसके चारों ओर भय और अकेलापन गहराता गया।
वहीं दूसरी ओर, अन्वी साधना में प्रखर होती गई और उसका हृदय और भी निर्मल।
और फिर… एक विशेष रात आई।
आकाश में वही लाल चाँद चमका, जो जन्म के समय चमका था।
देवताओं ने अन्वी को समय के पार भेजने की तैयारी की।
उसने अंतिम बार आकाश की ओर देखा और मन ही मन प्रार्थना की—
“हे विधाता, यदि यह युवक सचमुच दैत्य है तो मुझे शक्ति देना उसे रोकने की। और यदि उसके भीतर रोशनी है… तो मुझे साहस देना उस रोशनी को थामने का।”
आँखें बंद करते ही उसका शरीर प्रकाश में लिपट गया और वह समय की धारा में बह गई।
उधर, उसी रात अर्णव अकेला पहाड़ी की चोटी पर खड़ा आकाश देख रहा था।
लाल चाँद उसकी आँखों में चमक रहा था…
और नियति चुपचाप दो आत्माओं को एक-दूसरे की ओर खींच रही थी।
समय की धारा टूटती है तो हर चीज़ थर्रा उठती है।
अन्वी ने आँखें खोलीं तो खुद को धूल और अंधकार से भरे जंगल में पाया। पेड़ सूखे और काले, हवा में राख की गंध, और आसमान पर वही लाल चाँद।
वह संभलकर खड़ी हुई।
“तो यह है नश्वर लोक…” उसने मन ही मन कहा।
उसके हाथ में गुरु द्वारा दिया गया दिव्य ताबीज़ चमक रहा था—उसे यही मार्गदर्शन देगा।
उसने महसूस किया कि पास ही कहीं भयावह ऊर्जा धड़क रही है। दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
“क्या यह वही है… अर्णव?”
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अर्णव की तन्हाई
उधर, अर्णव पहाड़ी की ढलान पर बैठा आकाश देख रहा था।
उसकी आँखें और गहरी होती जा रही थीं।
गाँववालों ने आज फिर उसे धिक्कारा था—एक गाय अचानक मर गई थी और दोष उसी पर डाल दिया गया।
“मैंने कुछ नहीं किया…” वह बुदबुदाया, पर उसके भीतर गुस्से की लहर उठी।
जैसे ही उसने मुट्ठी भींची, ज़मीन की मिट्टी दरक गई।
वह डर गया।
“क्या सच में… मैं अभिशाप हूँ?”
तभी उसे एक धीमी आहट सुनाई दी। उसने मुड़कर देखा—पेड़ों की परछाईयों में से कोई धीरे-धीरे उसकी ओर आ रहा था।
अन्वी ने आख़िरी बार स्वर्ण द्वार की ओर देखा। उसके चारों ओर साधना लोक की हवाएँ तेज़ी से घूम रही थीं। मंत्रों की गूंज, देववृक्षों की छाया, और साधकों का आशीर्वाद—सब उसकी आत्मा में उतर रहा था। पर दिल में सिर्फ़ एक ही नाम था—अर्णव।
“याद रखना अन्वी,” गुरु की वाणी उसके कानों में गूँजी, “यह यात्रा तुम्हें अतीत में ले जाएगी। वहाँ वह अर्णव मिलेगा, जो अभी मासूम है… पर भविष्य का अंधकार उस पर हावी होगा। तुम्हारा काम है, उसे उस रास्ते से रोकना। अगर तुम असफल हुई, तो सम्पूर्ण जगत विनाश में डूब जाएगा।”
अन्वी ने आँखें बंद कर लीं।
“पर… अगर मेरे दिल ने कुछ और चाहा तो?” उसकी धीमी फुसफुसाहट वायु में खो गई।
अगले ही क्षण प्रकाश का भंवर खुला और उसका अस्तित्व समय के पार चला गया।
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जब उसने आँखें खोलीं, तो सामने एक अलग ही दुनिया थी। नीला आसमान, काले बादल, और युद्ध की गंध। यह अतीत था—वही युग जहाँ अर्णव अपने जीवन की पहली लड़ाइयाँ लड़ रहा था।
दूर से वह देख सकती थी—एक किशोर योद्धा, तलवार थामे, अकेला पचास राक्षसों से भिड़ा हुआ था। उसकी आँखों में ग़ुस्सा नहीं, बल्कि कोई छुपा दर्द था। तलवार की हर चोट मानो किसी अदृश्य घाव का जवाब हो।
अन्वी का दिल धड़क उठा।
“यह… वही है?”
अर्णव ने अचानक हवा में किसी अनदेखी उपस्थिति को महसूस किया। वह रुका, उसकी तलवार ज़मीन में गड़ गई, और उसकी दृष्टि सीधी अन्वी की आँखों से टकराई।
वह क्षण—
जैसे समय थम गया हो।
अन्वी को याद आया गुरु का आदेश: “उसे दूर से देखो, समझो, पर अपने भावनाओं को कभी मत आने देना।”
पर उसकी नज़र में, अर्णव किसी शत्रु जैसा नहीं, बल्कि टूटा हुआ इंसान लगा… ऐसा इंसान जो बस किसी का सहारा चाहता हो।
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“तुम कौन हो?” अर्णव ने गंभीर आवाज़ में पूछा।
उसकी तलवार पर खून टपक रहा था, और चेहरे पर युद्ध की थकान।
अन्वी चौंकी। वह तो छुपकर देख रही थी, पर क्या उसकी साधना शक्ति इतनी कमज़ोर थी कि अर्णव ने उसे देख लिया?
“मैं… मैं यहाँ से गुज़र रही थी,” उसने झूठ कहा।
अर्णव ने तलवार पीछे खींच ली, पर उसकी आँखें अभी भी अन्वी पर टिकी थीं।
“तुम साध्वी हो न? तुम्हारे वस्त्र बता रहे हैं… साध्वी यहाँ क्यों?”
अन्वी चुप रही। उसका मन आदेश और दिल के बीच बँटा हुआ था।
अर्णव ने हल्की हँसी भरी—
“खैर… साध्वी हो या नहीं, इतना तय है कि तुम दुश्मन नहीं लगती। मेरे जीवन में वैसे भी दोस्त नहीं हैं। अगर तुम चाहो… तो थोड़ी देर मेरे साथ रह सकती हो।”
अन्वी का दिल काँप गया। यही तो सबसे बड़ा खतरा था—करीब जाना।
पर न जाने क्यों, उसके कदम खुद-ब-खुद अर्णव की ओर बढ़ गए।
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उस रात, अर्णव आग के पास बैठा हुआ था और आकाश की ओर देख रहा था।
“सब कहते हैं, मैं शापित हूँ,” उसने धीरे से कहा।
“कभी-कभी सोचता हूँ… अगर मैं सचमुच अंधकार बनूँगा तो क्यों न अभी से वैसा जी लूँ? कम से कम दर्द का बोझ तो खत्म होगा।”
अन्वी ने उसकी ओर देखा।
उसे गुरु की बातें याद आईं—“अगर वह अंधकार को स्वीकार करेगा, तो यही अंत की शुरुआत होगी।”
उसने धीमे स्वर में कहा,
“कभी-कभी, अंधकार से लड़ने का मतलब है… किसी को ढूँढना, जो तुम्हारे लिए रोशनी बने।”
अर्णव ने उसकी ओर देखा। उनकी नज़रें मिलीं।
उस पल अन्वी को एहसास हुआ—वह उसकी मंज़िल भी है और विनाश भी।
अगली सुबह जब सूरज की पहली किरणें धरती पर गिरीं, तो अन्वी ने आँखें खोलीं। वह अब भी उसी जगह थी जहाँ रात अर्णव के साथ बिताई थी। आग बुझ चुकी थी, लेकिन अर्णव अब भी जाग रहा था। उसकी आँखें लाल थीं—नींद से नहीं, बल्कि भीतर के उस दर्द से जो किसी को नज़र नहीं आता।
“तुम पूरी रात जागते रहे?” अन्वी ने धीमे स्वर में पूछा।
अर्णव ने उसकी ओर देखा और हल्की हँसी दी।
“नींद… मेरे हिस्से में कम ही आई है। सपनों में अक्सर वही चीज़ें दिखती हैं, जिन्हें मैं भूलना चाहता हूँ।”
अन्वी चुप रही। उसके मन में सवाल उमड़ने लगे—क्या ये वही संकेत है जो उसे अंधकार की ओर धकेलेगा? क्या यह अकेलापन ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है?
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अचानक, पास के जंगल से शोर उठा। तलवारों की टकराहट और चीखों की गूँज। अर्णव तुरंत खड़ा हुआ।
“राक्षस…” उसने तलवार थाम ली।
अन्वी भी पीछे-पीछे चल दी।
जैसे ही वे दोनों जंगल में पहुँचे, तीन राक्षस वहाँ गाँव वालों पर हमला कर रहे थे। बच्चे चीख रहे थे, और औरतें भाग रही थीं।
अर्णव की आँखों में आग जल उठी।
“मैं इन्हें छोड़ूँगा नहीं!”
वह एक ही झटके में आगे बढ़ा और तलवार से दो राक्षसों को काट डाला। तीसरा राक्षस अन्वी की ओर झपटा। अन्वी ने मंत्र पढ़ा और अपनी साधना शक्ति से उसे पीछे धकेल दिया।
गाँव वाले बच गए, लेकिन अन्वी ने गौर किया—अर्णव की तलवार पर खून लगते ही उसकी आँखें और गहरी लाल हो गईं। उसके चेहरे पर एक अजीब सी क्रूरता उभर आई।
अन्वी का दिल काँप गया।
यही है वो अंधकार… धीरे-धीरे उसकी आत्मा पर कब्ज़ा कर रहा है।
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लड़ाई ख़त्म होने के बाद, अर्णव वहीं खड़ा रहा। उसकी साँसें भारी थीं, और आँखें अभी भी लाल चमक रही थीं।
अन्वी ने सावधानी से उसके पास जाकर कहा,
“तुम ठीक हो?”
अर्णव ने तलवार ज़मीन में गाड़ दी और गहरी साँस ली।
“हर बार जब मैं खून देखता हूँ… मेरे भीतर कुछ जाग उठता है। जैसे कोई दूसरा मुझसे लड़ रहा हो। मैं डरता हूँ कि एक दिन… वो मुझे पूरी तरह निगल लेगा।”
अन्वी ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया।
“नहीं, ऐसा मत सोचो। तुम जैसे हो… वैसे ही रह सकते हो। तुम्हारे पास चुनाव है।”
अर्णव ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में पहली बार कोई नरमी आई।
“अगर कभी वो अंधकार मुझ पर हावी हो भी गया… क्या तुम तब भी मेरे साथ रहोगी?”
अन्वी का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
उसने गुरु की बातें याद कीं—“याद रखना, तुम्हारा काम उसे रोकना है। भावनाओं में मत बहना।”
लेकिन उसके होंठों से निकल गया—
“हाँ… मैं रहूँगी।”
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वह रात दोनों के लिए अलग थी। अर्णव को पहली बार किसी पर भरोसा करने का एहसास हुआ, और अन्वी को… अपने दिल का डर।
क्योंकि वह जानती थी—यही रिश्ता भविष्य में सबसे बड़ा इम्तिहान बनेगा।
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रात का सन्नाटा गहरा था। चाँदनी ज़मीन पर फैल चुकी थी और दूर कहीं झींगुरों की आवाज़ गूँज रही थी। अर्णव आग के पास बैठा था, तलवार की धार साफ़ करते हुए। उसकी आँखें आग की लपटों में चमक रही थीं—मानो भीतर का अंधकार धीरे-धीरे जाग रहा हो।
अन्वी उसके सामने बैठी थी। उसकी उंगलियाँ प्रार्थना-माला पर चल रही थीं, पर मन बेचैन था।
क्या मैं बहुत करीब आ गई हूँ? अगर उसने मेरी असली पहचान जान ली, तो क्या होगा?
अचानक अर्णव बोला,
“अन्वी… तुम साध्वी हो, पर तुम्हारी शक्ति दूसरों से अलग है। जैसे तुम किसी और जगह से आई हो।”
अन्वी का दिल धक् से रह गया।
“क…क्यों कह रहे हो ऐसा?”
अर्णव ने तलवार को रख दिया और उसकी ओर गहराई से देखा।
“क्योंकि मैंने कई साध्वियों को देखा है। पर तुम्हारी आँखों में… समय का भार है। ऐसा लगता है कि तुम वर्तमान से नहीं, किसी और युग से हो।”
अन्वी काँप गई। वह अपने रहस्य को ज़ाहिर नहीं कर सकती थी।
उसने जल्दी से कहा,
“तुम्हारे भ्रम हैं। मैं साध्वी हूँ, बस इतना ही।”
अर्णव मुस्कुराया, पर उसकी मुस्कान में दर्द छुपा था।
“भ्रम… शायद। लेकिन अगर तुम चाहो तो मुझसे सच कह सकती हो। मैं वैसे भी अकेला हूँ, किसी पर भरोसा नहीं करता। लेकिन… तुम पर करता हूँ।”
अन्वी की आँखें भर आईं।
वह जानती थी, अर्णव सच कह रहा है। उसके भरोसे को तोड़ना उसके दिल को तोड़ने जैसा होगा।
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अचानक, पास ही किसी के चिल्लाने की आवाज़ आई। दोनों तुरंत उठ खड़े हुए।
गाँव के बाहर, साधकों का एक समूह अर्णव को ढूँढ रहा था।
“वह शापित है! उसे मार दो!”
“अगर यही बड़ा हुआ, तो पूरा संसार विनाश हो जाएगा!”
अन्वी ने अर्णव की ओर देखा। उसका चेहरा कठोर हो गया था।
“देखा? यही है मेरा सच। दुनिया मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगी। चाहे मैं कितनी भी कोशिश करूँ… अंत में सब मुझे राक्षस ही मानेंगे।”
गाँव वाले पत्थर उठाकर उसकी ओर दौड़े। साधक अपनी मंत्रशक्ति से वार करने लगे।
अन्वी ने बीच में खड़े होकर चिल्लाया,
“रुको! वह निर्दोष है!”
पर किसी ने नहीं सुना। मंत्रों की बिजली अर्णव की ओर बढ़ी।
तभी अर्णव ने तलवार उठाई और पलटकर वार किया। उसकी आँखें लाल चमक रही थीं।
उस पल, अन्वी ने देखा—अर्णव के भीतर छुपा अंधकार पूरी ताक़त से जाग रहा था।
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लड़ाई के बाद ज़मीन खून से लाल हो चुकी थी। साधक और गाँव वाले बिखरे पड़े थे।
अर्णव की साँसें तेज़ थीं, उसके चेहरे पर गुस्सा और दर्द दोनों थे।
अन्वी उसकी ओर भागी और उसका हाथ थाम लिया।
“बस करो! अगर तुम इसी राह पर चले तो… तुम वही बन जाओगे जिससे तुम डरते हो।”
अर्णव की आँखों में आँसू चमके।
“तो बताओ, अन्वी… मैं और क्या करूँ? जब पूरी दुनिया मुझे मारना चाहती है, तो मैं जीने के लिए और किस रास्ते पर जाऊँ?”
अन्वी का दिल टूट गया।
वह जानती थी—यह वही मोड़ है जहाँ उसे फैसला करना है।
या तो वह अर्णव को संभाले… या फिर अपनी ड्यूटी निभाकर उसे रोक दे।
पर उसके होंठों से निकला—
“मैं तुम्हारे साथ हूँ… चाहे पूरी दुनिया क्यों न खिलाफ हो।”
अर्णव ने उसकी ओर देखा, और पहली बार उसके चेहरे पर सच्ची राहत आई।
पर अन्वी जानती थी—यह राहत ही कल के तूफ़ान का कारण बनेगी।
सुबह की धुंध गाँव पर छाई हुई थी। पर रात की लड़ाई के निशान मिटे नहीं थे। टूटी हुई झोपड़ियाँ, जली हुई ज़मीन और खून की गंध अब भी हवा में थी।
अर्णव नदी किनारे बैठा था, उसकी तलवार खून से सनी हुई थी। उसने तलवार को पानी में डुबोया, पर धब्बे जैसे मिटने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसकी आँखें खाली थीं—मानो भीतर से सब कुछ खत्म हो गया हो।
अन्वी चुपचाप उसके पास आई।
“तुम्हें अपना दोषी नहीं मानना चाहिए,” उसने धीमी आवाज़ में कहा।
“तुमने ये सब अपनी रक्षा में किया।”
अर्णव ने उसकी ओर देखा।
“रक्षा? क्या तुम सच कहती हो, अन्वी? जब मेरी तलवार निर्दोषों का खून पी रही थी… तब भी यह रक्षा थी?”
अन्वी चुप हो गई। उसके पास जवाब नहीं था।
वह जानती थी—अर्णव के भीतर अंधकार की जड़ें और गहरी हो रही हैं।
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अचानक अर्णव ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ कड़ी थी, जैसे उसे डर हो कि वह खो जाएगी।
“मुझसे वादा करो, अन्वी। चाहे मैं कैसा भी बन जाऊँ… तुम मुझे छोड़कर नहीं जाओगी।”
अन्वी की सांसें थम गईं। गुरु का आदेश उसके कानों में गूँजा—
“याद रखना, जब वह अंधकार में डूबे, तुम्हारा कर्तव्य होगा उसे नष्ट करना।”
उसकी आँखें भर आईं। पर अर्णव की आँखों में इतनी बेबसी थी कि वह झूठ भी नहीं बोल पाई।
उसने सिर हिलाकर कहा,
“मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगी।”
अर्णव ने गहरी सांस ली, और पहली बार उसके चेहरे पर शांति आई।
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लेकिन उसी रात, जब अर्णव सो रहा था, अन्वी अकेली मंदिर के खंडहरों में गई। उसने प्रार्थना की मूर्ति के सामने घुटने टेके।
“हे देवताओं,” उसने धीमे स्वर में कहा, “मुझे शक्ति दो कि मैं अपने दिल पर काबू पा सकूँ। मेरा कर्तव्य है उसे रोकना… पर मेरा दिल हर बार मुझे उसकी ओर खींच लेता है। अगर यही पाप है… तो इसका दंड मुझे दे देना, पर अर्णव को नहीं।”
उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
चाँदनी में उसके आँसू ऐसे चमक रहे थे जैसे किसी श्राप की मोहर हों।
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अगली सुबह अर्णव ने अचानक एक सवाल पूछा।
“अन्वी… अगर एक दिन पूरी दुनिया हमारे खिलाफ हो जाए, तो क्या तुम मेरे साथ खड़ी रहोगी?”
अन्वी का दिल काँप गया।
वह जानती थी, यह दिन ज़रूर आएगा।
उसने उसकी ओर देखा, और सिर्फ़ इतना कहा—
“हाँ।”
अर्णव ने मुस्कुराकर उसका हाथ थाम लिया।
पर उसी क्षण, आकाश में काले बादल छा गए। दूर पहाड़ों से मंत्रोच्चार की आवाज़ आने लगी। साधकों का बड़ा समूह उनकी ओर बढ़ रहा था।
अन्वी समझ गई—भाग्य का खेल शुरू हो चुका है।
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आकाश में काले बादल मंडरा रहे थे। मंत्रोच्चार की गूँज जैसे धरती को हिला रही थी। पहाड़ों से उतरते हुए साधकों का विशाल समूह, अपने-अपने दिव्य अस्त्र लिए अर्णव की ओर बढ़ रहा था।
उनके नेता ने ऊँची आवाज़ में कहा—
“अर्णव! तू शापित है। तेरा जन्म ही विनाश का प्रतीक है। आज तेरा अंत होगा!”
अर्णव ने तलवार कसकर थामी। उसकी आँखें लाल हो उठीं।
“तो यही है दुनिया की सच्चाई… मेरे जीने का कोई अधिकार नहीं।”
अन्वी उसके सामने आ खड़ी हुई।
“नहीं! वह निर्दोष है। अभी उसका दिल अंधकार में पूरी तरह नहीं डूबा। उसे एक मौका मिलना चाहिए!”
साधकों ने उसका मज़ाक उड़ाया।
“अन्वी, तुम साध्वी हो और फिर भी इस दानव का साथ दे रही हो? क्या तुम्हें अपने वचन याद नहीं?”
अन्वी की सांसें भारी हो गईं। गुरु की बातें उसके मन में गूँज उठीं—
“जब समय आएगा, तुम्हारा कर्तव्य होगा कि उसे रोक दो। चाहे दिल को बलिदान करना पड़े।”
पर उसने तलवार उठाकर साधकों की ओर तान दी।
“अगर तुमने उसे छुआ भी, तो पहले तुम्हें मुझसे लड़ना होगा।”
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साधकों ने मंत्र चलाए। बिजली जैसी शक्ति आसमान से गिरी और अर्णव की ओर बढ़ी।
अन्वी ने अपनी साधना शक्ति का घेरा बनाकर उसे बचा लिया।
चिंगारियाँ उसके शरीर पर पड़ीं, पर उसने हार नहीं मानी।
अर्णव ने उसका हाथ थाम लिया।
“तुम पागल हो गई हो, अन्वी! क्यों मुझे बचा रही हो? मैं वही हूँ जिसे दुनिया नष्ट करना चाहती है।”
अन्वी की आँखों से आँसू गिर पड़े।
“क्योंकि मैंने तुम्हें देखा है, अर्णव… तुम्हारे दर्द को, तुम्हारी सच्चाई को। तुम सिर्फ़ शापित नहीं हो… तुम इंसान भी हो। और जब तक मैं जिंदा हूँ, तुम्हें अंधकार में नहीं गिरने दूँगी।”
अर्णव की तलवार काँप उठी।
पहली बार उसके दिल में आशा की एक किरण जगी।
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पर साधक रुकने वाले नहीं थे। उन्होंने चारों ओर से मंत्र बुन दिए।
एक विशाल अग्नि-वृत्त ने अर्णव और अन्वी को घेर लिया।
अर्णव की आँखें जलने लगीं। उसके भीतर का अंधकार उसे बाहर निकलने के लिए उकसा रहा था।
उसके कानों में फुसफुसाहट गूँजी—
“उन्हें मार दो… सबको खत्म कर दो… यही तेरी नियति है।”
अर्णव ने सिर पकड़ लिया।
“नहीं… मैं ये नहीं करना चाहता…”
अन्वी ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया।
“मेरी ओर देखो, अर्णव! तुम अकेले नहीं हो। मैं यहाँ हूँ। अगर तुम गिरोगे, तो मैं तुम्हें संभाल लूँगी।”
उसकी आँखों में देखते ही अर्णव का दिल कांप उठा।
पर उसी पल साधकों ने अंतिम वार किया—एक दिव्य तीर सीधा अर्णव की ओर बढ़ा।
अन्वी ने बिना सोचे-समझे उसके सामने आकर अपने शरीर से उस तीर को रोक लिया।
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अर्णव ने चीख मार दी।
“अन्वी!!!”
वह उसके हाथों में गिर पड़ी। उसका लहू धरती पर टपक रहा था।
“मैंने कहा था… जब तक मैं हूँ, तुम अंधकार में नहीं गिरोगे…” उसकी आवाज़ धीमी होती चली गई।
अर्णव की आँखें पूरी तरह लाल हो गईं। उसका ग़ुस्सा, उसका दर्द, सब मिलकर एक तूफ़ान बन गया।
उसने तलवार उठाई और गगनभेदी गर्जना के साथ साधकों पर टूट पड़ा।
उस पल, अंधकार ने अर्णव की आत्मा पर अपना अधिकार जमा लिया।
धरती पर खून की नदियाँ बह रही थीं। साधकों की चीखें आसमान को चीर रही थीं, और बीच में खड़ा अर्णव—उसकी आँखें पूरी तरह लाल, तलवार से निकलती अंधेरी ज्वाला, और उसके चारों ओर फैला विनाश।
पर उसकी बाँहों में अब भी अन्वी थी। उसका लहू अर्णव के वस्त्रों को भिगो चुका था।
“अन्वी… जागो… तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती।”
अर्णव की आवाज़ गुस्से और दर्द से काँप रही थी।
अन्वी ने मुश्किल से आँखें खोलीं। उसकी साँसें धीमी हो चुकी थीं।
“अर्णव… याद रखना… चाहे अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो… तुम्हारे भीतर अब भी रोशनी है।”
उसके होंठ काँपे।
“वादा करो… तुम उस रोशनी को कभी नहीं छोड़ोगे…”
अर्णव के दिल में आग लग गई।
“मैं वादा करता हूँ… पर तुम… तुम मुझे अकेला मत छोड़ो।”
अन्वी की आँखों से आँसू बह निकले।
“अगर मेरा भाग्य यही है… तो मैं चाहकर भी तुम्हारे साथ नहीं रह पाऊँगी… लेकिन… अगर अगले जन्म में भी मैं जन्म लूँ… तो तुम्हें ढूँढ लूँगी।”
उसके शब्द खत्म हो गए। उसकी साँस थम गई।
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अर्णव ने चीख मार दी।
उसकी चीख ने आकाश को चीर दिया।
“नहींऽऽऽऽ!!!”
उसके भीतर का अंधकार पूरी तरह जाग उठा। उसकी तलवार से निकली काली ऊर्जा ने चारों ओर खड़े साधकों को राख बना दिया। गाँव, पेड़, पहाड़—सब कुछ काँप उठा।
दुनिया ने उसी पल देखा—अंधकार का सम्राट जन्म ले चुका है।
---
पर अर्णव की आँखों से आँसू थम नहीं रहे थे।
वह अन्वी के निस्तेज शरीर को अपनी बाँहों में कसकर बैठा रहा।
“तुमने मुझे वादा कराया… अब देखो, तुम्हारे बिना मैं कैसे उस वादे को निभाऊँगा?”
उसकी तलवार पर बनी रक्त-ज्वाला पूरे आकाश को लाल कर चुकी थी।
दुनिया डर से काँप उठी।
---
उस रात से एक कहानी शुरू हुई—
लोग कहने लगे, “एक साध्वी ने शापित को बचाने की कोशिश की, पर उसका बलिदान ही अंधकार का कारण बन गया।”
पर सच्चाई सिर्फ़ अर्णव जानता था।
कि अन्वी का प्यार ही उसकी एकमात्र रोशनी था।
और उसने कसम खाई—
“अगर वह अगले जन्म में लौटेगी… तो मैं चाहे अंधकार का राजा ही क्यों न बन जाऊँ… मैं उसे हर हाल में अपना बना लूँगा।”
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आकाश पर काली घटाएँ छाई थीं।
चाँद पूरी तरह लाल हो चुका था, मानो उसने भी अन्वी की मौत पर शोक मना लिया हो।
अर्णव अकेला खड़ा था, उसके चारों ओर सिर्फ़ खून, राख और खामोशी। उसकी बाँहों से अन्वी का शव कब का फिसल चुका था। उसने उसे एक ऊँचे पर्वत की चोटी पर रख दिया था, जैसे कि वह किसी देवी का रूप हो।
“तुम्हें सोने दो… जब तक मैं सांस ले रहा हूँ, कोई तुम्हें छू भी नहीं पाएगा।”
उसकी आवाज़ भारी थी, लेकिन उसमें टूटन साफ़ झलक रही थी।
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धीरे-धीरे उसके कदम बदल गए। उसके शरीर से काली धुंध निकलने लगी। उसकी आँखों में सिर्फ़ लाल चमक थी।
हर कदम के साथ धरती काँप रही थी।
लोग उसे अब ‘अंधकार का सम्राट’ कहने लगे।
राज्य के राजा, साधक, देव—सब उसकी शक्ति देखकर काँप उठे।
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एक सभा बुलाई गई।
स्वर्गलोक से लेकर नरक तक के योद्धा जमा हुए।
“उसे रोकना होगा।”
“वह दुनिया का संतुलन बिगाड़ देगा।”
“अगर वह यूँ ही बढ़ता गया तो कोई अस्तित्व में नहीं रहेगा।”
पर कोई उसके सामने खड़ा नहीं हो पाया।
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अर्णव का पहला आदेश था—
“जिस किसी ने अन्वी की मौत में हाथ था… मैं उसे ज़िंदा जला दूँगा।”
उसकी तलवार से निकली काली ज्वाला ने दुश्मनों की सेनाओं को भस्म कर दिया।
लाखों साधक खड़े हुए, लेकिन एक ही वार में सब राख बन गए।
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रात के अंधेरे में, जब युद्ध खत्म हुआ—
अर्णव पर्वत की चोटी पर लौटा।
वहाँ, अन्वी का शरीर शांति से रखा था।
वह उसके पास बैठ गया, उसके बालों को सहलाया।
“देख रही हो, अन्वी? अब कोई तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाएगा।”
उसकी आँखों से आँसू गिरे, लेकिन उसी आँसू के साथ उसके चारों ओर अंधकार और गहरा हो गया।
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पर उसी पल…
चाँदनी में एक चमक दिखाई दी।
मानो अन्वी की आत्मा थोड़ी देर के लिए जाग उठी हो।
उसकी मृदुल आवाज़ हवा में गूँजी—
“अर्णव… अंधकार में मत खो जाना…”
अर्णव की आँखें चौड़ी हो गईं।
“अन्वी! तुम सच में हो?”
लेकिन जैसे ही वह उसे छूना चाहता, आवाज़ लुप्त हो गई।
सिर्फ़ हवा का झोंका बचा।
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अर्णव ज़मीन पर घुटनों के बल गिर गया।
“अगर तुम्हें पाना है… तो मैं मृत्यु से भी लड़ूँगा।”
उसने अपनी तलवार उठाई और कसम खाई—
“अगले जन्म तक इंतज़ार करूँगा… चाहे हज़ारों साल क्यों न लग जाएँ।”
उसके शब्दों ने किस्मत को बाँध दिया।
और उसी दिन से, अर्णव—अमर अंधकार का सम्राट बन गया।
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सदियाँ बीत गईं।
राज्य बदल गए, राजवंश मिट गए, धरती पर नई सभ्यताएँ खड़ी हुईं।
परंतु एक चीज़ कभी नहीं बदली—अर्णव का इंतज़ार।
वह अंधकार का सम्राट बन चुका था। उसकी आँखें समय के पार देख सकती थीं। उसका शरीर अब वृद्ध नहीं होता था। दुनिया के लिए वह भय का प्रतीक था, पर उसके भीतर अब भी वही टूटन थी—अन्वी की याद, उसकी अंतिम मुस्कान, और उसका अधूरा वादा।
हर पूर्णिमा की रात वह उसी पर्वत पर जाता जहाँ उसने अन्वी का शव रखा था। वहाँ अब केवल एक पवित्र फूल खिला था, जो कभी मुरझाता नहीं था। लोग उसे अन्वी का फूल कहकर पूजते थे।
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और फिर…
एक दिन, राजमहल में खबर फैली—
“नए राज्य की राजकुमारी का जन्म हुआ है। उसकी आँखें चाँद जैसी हैं, और उसके माथे पर जन्म के साथ ही एक अनोखा निशान है।”
वह निशान… वही था जो कभी अन्वी के माथे पर चमकता था।
अर्णव की बंद पलकों ने अचानक काँपकर खुलना स्वीकार किया।
उसका दिल सदियों बाद पहली बार धड़क उठा।
“वह… लौट आई है।”
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समय बीता।
वह राजकुमारी बड़ी हुई। उसका नाम रखा गया अनायरा।
वह मासूम, हँसमुख और सबके लिए दयालु थी।
पर उसे अक्सर सपनों में एक अजीब छवि दिखाई देती—
लाल आँखों वाला एक योद्धा, जो रो रहा है और उसका नाम पुकार रहा है।
अनायरा हर सुबह डर और उलझन में उठती।
“ये कौन है? क्यों लगता है कि मेरा दिल उसे पहचानता है?”
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अर्णव दूर से सब देखता रहा।
वह अनायरा के महल के पास प्रकट नहीं हुआ, पर उसकी नज़रें हमेशा उस पर रहतीं।
जब अनायरा घायल होती, तो रहस्यमयी तरह से हवा उसे बचा लेती।
जब वह गहरी नदी में गिरने लगी, तो अज्ञात शक्ति ने उसे किनारे पहुँचा दिया।
अनायरा हैरान थी।
“हर बार कोई मुझे बचा लेता है… क्या सचमुच कोई अदृश्य छाया मेरे आसपास है?”
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परंतु सब शांत नहीं था।
स्वर्गलोक और साधक जगत को खबर मिल चुकी थी—
“अन्वी का पुनर्जन्म हो चुका है।”
वे डरने लगे कि कहीं अर्णव और वह फिर से मिलकर दुनिया का संतुलन न बिगाड़ दें।
इसलिए, साधकों ने योजना बनाई—
“अनायरा को हमें अपने पास रखना होगा।
अर्णव तक उसका पहुँचना खतरनाक है।”
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उसी रात, जब साधक उसे महल से चुराने आए—
महल की दीवारों पर अंधकार उतर आया।
बिजली गिरी।
आकाश लाल हो गया।
अर्णव स्वयं प्रकट हुआ।
उसकी लाल आँखें और तलवार की काली ज्वाला देखकर सब भयभीत हो गए।
वह सीधे अनायरा के सामने आया।
अनायरा ने पहली बार उसे देखा—
और जैसे ही उसकी आँखें उसकी आँखों से मिलीं, उसका दिल जोर से धड़क उठा।
“तुम… वही हो… मेरे सपनों वाले?”
अर्णव की आँखें भीग गईं।
उसने फुसफुसाया—
“हाँ… और मैं वही हूँ… जो सदियों से सिर्फ़ तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था।”
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🌙 अगला अध्याय:
क्या अनायरा सचमुच अन्वी का पुनर्जन्म है?
क्या वह अर्णव की आत्मा को पहचान पाएगी?
और साधकों का हमला उनके मिलन को रोक पाएगा?
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महल में फैली अफरा-तफरी थम चुकी थी।
साधकों की सेना अर्णव के सामने टिक नहीं पाई।
हर एक साधक उसकी काली तलवार की ज्वाला में राख बन चुका था।
अनायरा अचंभित खड़ी थी।
उसके सामने खड़ा यह व्यक्ति भयानक भी था… और अजीब तरह से अपनेपन से भरा भी।
उसकी आँखों में एक गहरा दर्द छुपा था, जो अनायरा का दिल हिला रहा था।
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“तुम… कौन हो?” अनायरा ने काँपती आवाज़ में पूछा।
अर्णव ने उसे देखने भर से साँस रोक ली।
“मैं वो हूँ… जो सदियों से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।”
अनायरा के कानों में यह आवाज़ गूँजी तो उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
अचानक उसके मन में अजीब से दृश्य चमकने लगे—
वह खुद सफेद वस्त्रों में है, हाथों में माला लिए खड़ी है।
उसके सामने वही लाल आँखों वाला योद्धा रो रहा है, और उसका नाम पुकार रहा है—
“अन्वी… मुझे छोड़कर मत जाओ…”
अनायरा का सिर दर्द से भर गया।
उसने अपने कान पकड़े और चीख मारी—
“ये… ये क्या है?”
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अर्णव तुरंत उसकी ओर बढ़ा।
उसने उसके कंधे थामे।
“मत डरना… ये तुम्हारी आत्मा की यादें हैं।”
अनायरा की आँखें डरी हुई थीं।
“तो क्या… सचमुच… मेरा कोई और जन्म था?”
अर्णव की आँखों से आँसू बह निकले।
“हाँ… तुम अन्वी हो। वो साध्वी… जिसने मुझे रोशनी दिखाने की कोशिश की थी।
और मैं वही हूँ… जिसे तुमने अपने प्यार और बलिदान से बचाने की कोशिश की थी।”
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अनायरा चुप हो गई।
उसका दिल मानो कह रहा था—हाँ, यही सच है।
लेकिन उसकी समझ कह रही थी—नहीं, ये असंभव है।
“अगर मैं सच में वही हूँ… तो मुझे सब क्यों याद नहीं?”
अर्णव ने उसकी ओर गहरी नज़रों से देखा।
“क्योंकि किस्मत ने तुम्हारी यादों को बाँध दिया है।
पर मैं वादा करता हूँ… मैं तुम्हें वो सब याद दिलाऊँगा।
ताकि तुम मुझे फिर से पहचान सको।”
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लेकिन तभी आसमान से प्रकाश बरसा।
साधक-गुरु स्वयं उतर आए।
उनकी आवाज़ गर्जना सी थी—
“अनायरा को हम अपने साथ ले जाएंगे।
उसका इस अंधकार-सम्राट से मिलना इस दुनिया का अंत होगा!”
अनायरा डर गई।
उसने अर्णव की ओर देखा।
“क्या सच में… हमारे मिलने से सब खत्म हो जाएगा?”
अर्णव ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया।
“अगर दुनिया खत्म भी हो जाए… तो मुझे परवाह नहीं।
तुम मेरे पास रहो, बस यही काफी है।”
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अनायरा ने काँपते हुए उसका हाथ थाम लिया।
और उसी पल उसकी आँखों में फिर से एक और दृश्य चमका—
पिछले जन्म में उसने भी अपने आखिरी पल में उसका हाथ ऐसे ही थामा था।
उसके होंठ काँपे।
“अर्णव… मुझे… तुम्हारा नाम याद है…”
अर्णव का दिल तेज़ी से धड़क उठा।
वह झुककर फुसफुसाया—
“कहो… अन्वी।”
अनायरा की आँखें नम हो गईं।
“हाँ… अन्वी…”
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🌙 अगला अध्याय:
अनायरा धीरे-धीरे अपनी यादें वापस पाने लगती है।
पर स्वर्ग और साधक-लोक उसे अर्णव से अलग करने के लिए युद्ध छेड़ देते हैं।
क्या उनका प्यार किस्मत से लड़ पाएगा?
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आकाश से उतरते प्रकाश ने पूरे महल को रोशन कर दिया।
साधक-गुरु, जिनकी शक्ति को देव भी मानते थे, अपने शिष्यों के साथ खड़े थे।
उनके हाथ में दिव्य-त्रिशूल था, और आँखों में कठोर निर्णय।
“अर्णव!” उनकी आवाज़ गूँजी,
“तुम्हें अनायरा से दूर रहना होगा।
उसका पुनर्जन्म किसी कारण हुआ है।
अगर तुम दोनों एक हुए, तो ये संसार जलकर राख हो जाएगा।”
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अर्णव ने तलवार थाम ली।
उसकी आँखें खून जैसी लाल थीं, पर भीतर दर्द का सागर छिपा था।
“मैंने सदियों तक इंतज़ार किया है।
अब कोई मुझे रोक नहीं सकता।”
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साधक-गुरु गरजे—
“तो हमें युद्ध करना ही होगा!”
उनकी सेना आगे बढ़ी।
दिव्य मंत्रों की रोशनी ने महल को चमका दिया।
जप, शंख और बिजली की गर्जना—सब कुछ युद्ध की तैयारी का संकेत था।
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अनायरा घबराई हुई थी।
उसके सामने एक ओर साधक-गुरु थे, जिन्होंने हमेशा उसके राज्य की रक्षा की थी।
और दूसरी ओर अर्णव था—वह अंधकार का सम्राट, जिसे देखकर पूरी दुनिया काँपती थी।
उसके दिल में सवाल उठा—
“क्या सचमुच मैं उसका साथ दूँ तो दुनिया खत्म हो जाएगी?
या फिर किस्मत हमें सिर्फ़ डराने की कोशिश कर रही है?”
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अर्णव ने तलवार उठाई और साधकों की ओर कदम बढ़ाए।
“अगर किसी ने अनायरा को छूने की कोशिश की… तो उसकी राख भी नहीं बचेगी।”
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तभी अनायरा आगे बढ़ गई।
उसने अर्णव का हाथ पकड़ लिया—सबके सामने।
पूरी सभा स्तब्ध रह गई।
साधक-गुरु की आँखें चौड़ी हो गईं।
“अनायरा! तुम्हें समझ नहीं आ रहा? यह वही शापित आत्मा है जिसने अंधकार में दुनिया को झोंक दिया था!”
अनायरा की साँसें तेज़ थीं, पर उसकी आवाज़ दृढ़।
“नहीं… वह शापित नहीं है।
वह सिर्फ़ टूटा हुआ है… और मैं उसकी टूटी हुई रूह को जोड़ने आई हूँ।”
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अर्णव उसकी ओर देखने लगा।
उसकी आँखों में पहली बार लाल चमक की जगह नमी दिखी।
“अन्वी…” उसने फुसफुसाया।
अनायरा की आँखें भर आईं।
“मुझे सब याद नहीं… लेकिन इतना ज़रूर महसूस हो रहा है… कि तुम्हारा दर्द मेरा ही है।”
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साधक-गुरु का चेहरा कठोर हो गया।
उन्होंने त्रिशूल उठाया।
“अगर तुम उसकी ढाल बनोगी, तो तुम्हें भी मिटाना होगा।”
अनायरा ने सीना तानकर कहा—
“तो मुझे मिटाना पड़ेगा… पर मैं उसका साथ कभी नहीं छोड़ूँगी।”
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अर्णव गरजा, उसकी तलवार से काली ज्वाला निकली और आकाश चीर गई।
“जिसे सदियों से मैं नहीं बचा पाया था… आज अगर कोई उसे छूने की कोशिश करेगा… तो पूरी दुनिया को जलाकर भी रोक दूँगा!”
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🌙 अगला अध्याय:
युद्ध शुरू हो चुका है।
अर्णव और साधक-गुरु आमने-सामने हैं।
और पहली बार, अनायरा भी सबके सामने अर्णव की ढाल बन गई है।
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आकाश युद्धभूमि में बदल चुका था।
बिजली कड़क रही थी, हवाएँ तलवार जैसी धारदार हो गई थीं।
साधक-गुरु ने अपना त्रिशूल उठाया, और उस पर चमकीली अग्नि जल उठी।
“आज इस अधम अंधकार का अंत होगा!”
अर्णव गरजा, उसकी काली तलवार से आग का तूफ़ान उठा।
धरती काँप उठी।
“अगर किसी ने अनायरा को छूने की कोशिश की… तो मैं उसका नामो-निशान मिटा दूँगा!”
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युद्ध शुरू हुआ।
साधकों ने मंत्रों का वर्षा किया।
आकाश से हजारों बिजली की धाराएँ अर्णव की ओर बरसीं।
पर उसकी तलवार ने हर आघात को निगल लिया।
जहाँ उसका वार पड़ता, वहाँ केवल राख बचती।
अनायरा भयभीत थी, पर उसके दिल में अजीब-सी ताकत जग रही थी।
उसके सामने दृश्य धुंधला होने लगे।
वह खुद को सफेद वस्त्रों में देख रही थी, हाथों में वही माला, और उसके चारों ओर प्रकाश का आभामंडल।
वह अर्णव की ढाल बनकर खड़ी थी—जैसे पिछली जन्म की अन्वी।
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अचानक साधक-गुरु ने सबसे शक्तिशाली मंत्र का उच्चारण किया।
उनके त्रिशूल से एक तेज़ सुनहरी किरण निकली और सीधे अर्णव की ओर बढ़ी।
अर्णव ने तलवार उठाई, पर किरण उसकी तलवार को चीरती हुई उसके सीने तक पहुँच गई।
अर्णव की चीख गूँजी।
वह घुटनों पर गिर पड़ा, उसकी आँखों से खून बहने लगा।
“नहींऽऽऽ!” अनायरा चीखी।
उसने दौड़कर अर्णव को थाम लिया।
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उसी पल, उसके माथे का जन्मचिह्न चमक उठा।
उससे निकलती सफेद रोशनी ने पूरे आकाश को भर दिया।
साधक-गुरु और उनकी सेना चौंक गए।
“ये… ये तो वही शक्ति है… जो कभी अन्वी के पास थी!”
अनायरा की आँखों में आँसू थे, पर उसकी आवाज़ दृढ़।
“अगर मेरी आत्मा सचमुच अन्वी की है… तो मैं उसी की तरह उसकी ढाल बनूँगी!”
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उसकी हथेलियों से प्रकाश की किरण निकली और अर्णव के चारों ओर ढाल बन गई।
साधक-गुरु के वार अब उस ढाल को चीर नहीं पा रहे थे।
हर मंत्र उसी रोशनी में विलीन हो रहा था।
अर्णव ने हैरान होकर उसकी ओर देखा।
“अन्वी… तुम…”
अनायरा ने उसकी ओर देखा और फुसफुसाई—
“मुझे अब भी सब याद नहीं… पर इतना जानती हूँ… कि मेरा जीवन तुम्हारे बिना अधूरा है।”
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युद्ध थम सा गया।
साधक-गुरु पीछे हटे।
उनकी आँखों में पहली बार भय था।
“अगर ये दोनों साथ आ गए… तो सचमुच किस्मत बदल जाएगी।”
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अर्णव खड़ा हुआ।
उसकी आँखों में आँसू चमक रहे थे, पर चेहरा दृढ़ था।
उसने अनायरा का हाथ कसकर थामा।
“अब चाहे देव हो या साधक… कोई हमें अलग नहीं कर पाएगा।”
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🌙 अगला अध्याय:
अनायरा की शक्ति जाग चुकी है, लेकिन स्वर्ग और साधक-लोक अब और भी बड़े युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।
क्या अर्णव और अनायरा सच में किस्मत को बदल पाएँगे?
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युद्ध के बाद रात गहरी खामोशी से भरी थी।
आसमान में चाँद आधा छुपा हुआ था, पर उसकी रोशनी अब भी दोनों पर पड़ रही थी।
अर्णव और अनायरा महल की छत पर खड़े थे।
दूर तक युद्ध की राख फैली थी, साधक-गुरु पीछे हट चुके थे, लेकिन उनकी चेतावनी अब भी गूँज रही थी—
“अगर ये दोनों साथ आए, तो इस संसार का अंत निश्चित है।”
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अनायरा अर्णव की ओर मुड़ी।
उसकी आँखों में अजीब-सा संघर्ष था।
“अर्णव… जब मैंने उस ढाल को बनाया, तब मेरे मन में कुछ दृश्य आए।
मैं खुद को देख रही थी… लेकिन मैं ये ‘अनायरा’ नहीं थी।”
अर्णव का दिल धड़क उठा।
वह धीरे से उसकी ओर बढ़ा।
“तुम्हें क्या दिखा?”
अनायरा ने आँसू पोंछे।
“मैं… सफेद वस्त्रों में थी। मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी थी।
तुम्हारा चेहरा… आँसुओं से भरा था।
तुम मुझसे कह रहे थे—‘मत जाओ, मुझे मत छोड़ो।’
और मैं… मैं तुम्हारा हाथ छोड़ रही थी।”
उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
“अर्णव… क्या ये वही क्षण था… जब मैं मर गई थी?”
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अर्णव की आँखों में दर्द झलक गया।
उसने धीरे से सिर झुका लिया।
“हाँ… वही क्षण।
तुम्हारे जाते ही मेरा संसार अंधकार में बदल गया था।”
उसकी आवाज़ भारी हो गई।
“और उसी अंधकार ने मुझे अंधकार का सम्राट बना दिया।”
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अनायरा चुप रही।
उसके दिल में तूफ़ान चल रहा था।
वह सब याद करना चाहती थी, पर किस्मत की कोई अदृश्य दीवार उसके सामने खड़ी थी।
उसने अर्णव का हाथ थाम लिया।
“अगर मैं वही अन्वी हूँ… तो इस बार मैं तुम्हारा हाथ कभी नहीं छोड़ूँगी।
चाहे पूरी दुनिया हमारे खिलाफ क्यों न खड़ी हो।”
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अर्णव ने उसे देखा, उसकी आँखें भीग गईं।
“अनायरा…” उसने फुसफुसाया,
“क्या तुम सचमुच मेरे साथ पूरी दुनिया से लड़ सकती हो?”
अनायरा की आँखों में दृढ़ता थी।
“हाँ। क्योंकि तुम्हारे बिना मैं अधूरी हूँ।
अगर मेरा भाग्य तुम्हें छोड़ना ही है… तो मैं भाग्य को ही बदल दूँगी।”
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तभी हवा में हलचल हुई।
दूर स्वर्गलोक से बिगुल बजा।
साधकों की अगली सेना युद्धभूमि की ओर बढ़ रही थी।
अर्णव ने तलवार थाम ली।
पर इस बार अनायरा भी उसके साथ कदम से कदम मिलाकर खड़ी हुई।
उसकी हथेलियों से फिर वही सफेद रोशनी निकल रही थी।
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“अब हम अकेले नहीं लड़ेंगे, अर्णव।”
अनायरा ने उसकी ओर मुस्कुराकर कहा।
“इस बार… हम दोनों मिलकर लड़ेंगे।”
अर्णव का दिल काँप गया।
सदियों का इंतज़ार, सदियों का दर्द—
अब उसे पहली बार सुकून मिला।
उसने तलवार आकाश की ओर उठाई।
“तो आओ… देख लें किसकी किस्मत ज़्यादा मज़बूत है—हमारी मोहब्बत, या तुम्हारे स्वर्ग का नियम।”
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🌙 अगला अध्याय:
साधक-गुरु की विशाल सेना अर्णव और अनायरा को घेर लेती है।
पर इस बार अनायरा खुलकर अपनी शक्ति का इस्तेमाल करती है।
क्या उनका साथ सचमुच किस्मत को बदल पाएगा?
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रात का आसमान लाल हो चुका था।
स्वर्गलोक का बिगुल बज चुका था, और साधकों की विशाल सेना धरती पर उतर आई।
हज़ारों योद्धा, उनके हाथों में दिव्य शस्त्र, और मंत्रोच्चार की गूँज ने हवा को भारी कर दिया।
राज्य के लोग अपने घरों से बाहर झाँक रहे थे।
सबकी नज़रें सिर्फ़ उस छत पर थीं जहाँ अर्णव और अनायरा साथ खड़े थे।
एक तरफ़ अंधकार का सम्राट… और दूसरी तरफ़ उसका पुनर्जन्मित प्रेम।
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साधक-गुरु आगे बढ़े।
उनकी आवाज़ गूँजी—
“अनायरा! तुम अन्वी का पुनर्जन्म हो, तुम्हारा कर्तव्य है कि इस संसार की रक्षा करो।
अगर तुम इस अंधकार के साथ खड़ी हुई, तो तुम स्वयं पापिनी बन जाओगी।”
अनायरा ने सीना तानकर जवाब दिया—
“अगर किसी को पापिनी कहना है… तो मुझे कहो।
क्योंकि मैं उसके बिना जी ही नहीं सकती।”
उसने अर्णव का हाथ कसकर थाम लिया।
“मैंने पिछले जन्म में उसे खो दिया था…
पर इस जन्म में मैं उसे किसी भी हाल में नहीं खोऊँगी।”
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भीड़ में सन्नाटा छा गया।
हर साधक ने देखा—रोशनी और अंधकार एक-दूसरे का हाथ थामे खड़े थे।
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युद्ध शुरू हुआ।
हज़ारों दिव्य बाण आकाश से बरसे।
अनायरा ने आँखें बंद कीं, उसके माथे का जन्मचिह्न चमका और उसकी हथेलियों से सफेद ऊर्जा की ढाल निकली।
हर बाण ढाल पर आकर राख बन गया।
उसी समय अर्णव ने तलवार घुमाई।
काली ज्वाला का तूफ़ान उठा और साधकों की पहली पंक्ति राख में बदल गई।
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साधक-गुरु ने त्रिशूल उठाया और आकाश से बिजली का सागर बुलाया।
धरती कांप उठी।
पर अनायरा ने अपने हाथ जोड़कर मंत्र बोला,
“प्रकाश, मेरी आत्मा की रक्षा कर…”
और उसी पल आकाश से सफेद किरण उतरी जिसने उस बिजली को निगल लिया।
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अर्णव ने उसकी ओर देखा।
उसकी आँखों में पहली बार गर्व था।
“तुम अब सचमुच मेरी ढाल बन चुकी हो।”
अनायरा मुस्कुराई।
“और तुम… मेरी ताकत।”
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दोनों ने साथ मिलकर हमला किया।
अर्णव की तलवार से निकली काली ज्वाला और अनायरा के हाथों से निकली सफेद रोशनी जब आपस में मिलीं, तो आकाश फट गया।
एक विस्फोट हुआ जिसने साधकों की आधी सेना को भस्म कर दिया।
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लोग हैरान रह गए।
“ये कैसे संभव है?
अंधकार और प्रकाश… कभी एक नहीं हो सकते थे!”
पर आज किस्मत खुद हिल चुकी थी।
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साधक-गुरु घुटनों पर गिर पड़े।
उनके माथे से पसीना बह रहा था।
“अगर ये दोनों मिल गए… तो सचमुच भाग्य बदल जाएगा।”
अर्णव आगे बढ़ा और तलवार उनकी ओर तानी।
“हाँ, भाग्य बदलेगा।
और इस बार… कोई हमें अलग नहीं कर पाएगा।”
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🌙 अगला अध्याय:
युद्ध जीतने के बाद अर्णव और अनायरा पहली बार सुकून का पल बिताते हैं।
पर स्वर्गलोक और नरक दोनों उन्हें मिटाने की साजिश रचते हैं।
क्या उनका प्यार इस दोहरी दुनिया से भी बच पाएगा?
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युद्ध समाप्त हो चुका था।
धरती पर पड़ी राख और टूटे हुए शस्त्र इस बात के गवाह थे कि कैसी भीषण लड़ाई हुई थी।
गाँव के लोग सुरक्षित थे, पर उनकी आँखों में अभी भी भय और आश्चर्य था।
वे देख चुके थे कि कैसे अंधकार और प्रकाश ने मिलकर उनकी रक्षा की थी।
लेकिन अब…
सन्नाटा था।
केवल टूटी हवाओं और जलते अंगारों की गंध।
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अनायरा थककर एक चट्टान पर बैठ गई।
उसकी हथेलियाँ कांप रही थीं।
इतना शक्तिशाली मंत्र उसने पहले कभी नहीं चलाया था।
उसका चेहरा पसीने से भीग चुका था।
अर्णव धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा।
उसकी आँखों में न जाने कैसी कशिश थी— न अंधकार, न क्रोध… सिर्फ़ चिंता।
“तुम ठीक हो?” उसने झुककर पूछा।
अनायरा ने हाँ में सिर हिलाया, पर उसकी आँखें भर आईं।
“अर्णव… मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं तुम्हारे साथ खड़े होकर दुनिया का सामना करूँगी।
पर आज जब हम साथ लड़े… ऐसा लगा जैसे किस्मत को भी हमें अलग करने की हिम्मत नहीं रही।”
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अर्णव उसके पास बैठ गया।
उसने अपने हाथ से उसकी हथेली थामी।
वो हथेली, जो काँप रही थी, उसके स्पर्श से शांत हो गई।
“अनायरा,” उसकी आवाज़ गहरी थी,
“तुम जानती हो कि मैं कौन हूँ।
भविष्य कहता है मैं दैत्य सम्राट बनूँगा, सबकुछ नष्ट कर दूँगा।
पर जब तुम मेरे साथ होती हो…
तो लगता है कि मैं भी इंसान हूँ, जिसके पास दिल है, जिसकी साँसें सिर्फ़ तुम्हारे लिए हैं।”
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अनायरा ने आँसू पोंछते हुए मुस्कुराकर कहा,
“तो वादा करो अर्णव… चाहे भाग्य तुम्हें अंधकार की ओर धकेले, तुम खुद को कभी मुझसे अलग नहीं करोगे।”
अर्णव ने उसकी ठोड़ी उठाई और उसकी आँखों में गहराई से देखा।
“ये वादा मैं अपने जीवन से भी बड़ा मानता हूँ।
अगर अंधकार मुझे निगलने की कोशिश करेगा… तो मैं उसके खिलाफ खड़ा हो जाऊँगा।
पर तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा।”
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हवा में खामोशी थी।
दोनों के बीच न दूरी बची, न शब्दों की ज़रूरत।
अर्णव ने धीरे से उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लिया।
अनायरा की धड़कन तेज़ हो गई।
और फिर…
उनके होंठ पहली बार मिले।
वो चुंबन किसी वचन से कम न था।
जैसे दो आत्माएँ, जो सदियों से भटक रही थीं, आखिरकार अपना घर पा गईं हों।
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दूर आसमान में चाँद अपनी पूरी चमक बिखेर रहा था।
पर दोनों जानते थे— ये शांति ज़्यादा देर की नहीं।
स्वर्गलोक और नरक… दोनों उनकी इस नयी दुनिया को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
फिर भी उस पल में…
बस वही थे— अर्णव और अनायरा।
प्रेम और वचन में बंधे हुए।
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🌙 अगला अध्याय (16):
स्वर्गलोक में परिषद बुलायी जाती है।
देवताओं का मानना है कि अनायरा ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है।
उन्हें आदेश दिया जाता है— या तो अर्णव को छोड़ दो, या खुद देवलोक से निर्वासित हो जाओ।
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स्वर्गलोक का महल चाँदी और सोने की आभा से जगमगा रहा था।
देवताओं की विशाल सभा हॉल में सभी देवगुरु, साधक और परिषद के सदस्य इकट्ठा हुए थे।
आकाश की घंटियाँ बज रही थीं— संकेत कि आज का दिन सामान्य नहीं है।
सभा के मध्य में, एक विशाल क्रिस्टल रखा था।
उस क्रिस्टल में धरती पर हुए युद्ध का दृश्य जीवंत हो रहा था—
अर्णव और अनायरा का साथ, उनका मिलकर साधकों को हराना, और वो क्षण जब अंधकार और प्रकाश ने एक हो कर सारी शक्ति प्रकट की।
देवताओं की आँखों में आक्रोश था।
“ये तो नियमों का उल्लंघन है!” एक देवगुरु गरजे।
“अनायरा, जो हमारी अन्वी का पुनर्जन्म है, उसने अपनी पवित्र शक्ति अंधकार के साथ मिलाई।
ये तो पूरे लोक के लिए खतरे की घंटी है।”
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स्वर्गलोक के प्रधान देवता ने गंभीर स्वर में कहा,
“अनायरा की शक्ति का उद्देश्य था अंधकार को नष्ट करना,
पर उसने अंधकार को ही अपनी ढाल बना लिया।
ऐसी साधिका अब हमारी परिषद का हिस्सा नहीं रह सकती।”
सभा में सन्नाटा छा गया।
फिर आदेश सुनाया गया—
“अनायरा को अंतिम अवसर दिया जाता है।
वह या तो अर्णव का साथ छोड़ दे और अपनी पवित्रता सिद्ध करे…
या फिर सदा के लिए स्वर्गलोक से निर्वासित कर दी जाएगी।”
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इस आदेश की गूंज स्वर्गलोक से धरती तक पहुँची।
अनायरा उस समय अर्णव के साथ एक टूटे मंदिर में बैठी थी।
अचानक उसके माथे पर प्रकाश का चिन्ह जल उठा—देवलोक का संदेश।
उसकी आँखें भर आईं।
अर्णव ने चिंतित होकर उसका हाथ थामा।
“क्या हुआ?”
अनायरा की आवाज़ काँप रही थी।
“देवलोक ने मुझे आदेश दिया है… या तो मैं तुम्हारा साथ छोड़ दूँ…
या सदा के लिए निर्वासित हो जाऊँ।”
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अर्णव की आँखों में हल्की मुस्कान आई, पर वह उदासी से भरी थी।
“तो जाओ।
अगर मेरे साथ रहने का मतलब है कि तुम्हें अपनी दुनिया खोनी पड़ेगी… तो मत रुको।
तुम्हारी जगह रोशनी में है, मेरे अंधकार में नहीं।”
अनायरा अचानक उठ खड़ी हुई।
उसकी आँखों में आँसू थे, पर उनमें दृढ़ता भी थी।
“अर्णव! मैंने तुमसे वादा किया है।
अगर मुझे सबकुछ खोना पड़े…
तो भी मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगी।”
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उसने आसमान की ओर देखकर दृढ़ स्वर में कहा—
“मैं निर्वासन स्वीकार करती हूँ।
लेकिन अर्णव को नहीं छोड़ूँगी।”
उसी क्षण स्वर्गलोक की घंटियाँ फिर बजीं।
देवलोक का प्रकाश उसकी देह से अलग होकर विलीन हो गया।
अब वो न साधिका थी, न देवताओं की दूत…
बस एक इंसान—जो अपने अंधकारमय प्रेम के साथ खड़ी थी।
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अर्णव ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में पहली बार नमी थी।
उसने फुसफुसाकर कहा,
“तुम सचमुच मेरी रोशनी हो… जो मेरे अंधकार में उतर आई।”
अनायरा उसके सीने से लग गई।
पर दोनों जानते थे—अब उनका सफर और भी कठिन होने वाला है।
क्योंकि अब न तो स्वर्गलोक उनका था, और न ही नरक।
अब बस एक-दूसरे का सहारा ही उनकी दुनिया थी।
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🌙 अगला अध्याय (17):
नरकलोक के दानवगुरु को पता चलता है कि अर्णव और अनायरा साथ हैं।
वे डरते हैं कि अगर इन दोनों की शक्ति सचमुच मिल गई, तो पूरी सृष्टि का संतुलन बदल जाएगा।
इसलिए वे अर्णव को अपने पास बुलाते हैं—और एक खतरनाक सौदा पेश करते हैं।
धरती के अंधेरे कोनों में अचानक हलचल मच गई।
आकाश लाल होने लगा, हवाएँ ज़हरीली हो गईं और ज़मीन से काली ज्वालाएँ उठने लगीं।
ये संकेत था— नरकलोक के द्वार खुल रहे हैं।
अर्णव और अनायरा जंगल में आगे बढ़ रहे थे, जब अचानक धरती फट गई और उसके बीच से एक विशाल छाया निकली।
वो नरकलोक का दानवगुरु था—जिसकी आँखों से अंगार झर रहे थे और जिसकी आवाज़ गड़गड़ाहट की तरह गूँज रही थी।
“अर्णव…” उसने दहाड़ते हुए कहा,
“तुम मेरे उत्तराधिकारी हो।
तुम्हारा खून दैत्य सम्राट का है।
तुम्हारी ताक़त इस संसार को जलाकर राख कर सकती है।
पर तुमने क्या चुना?
एक साधिका का हाथ पकड़कर नरमदिल इंसानों की तरह जीना?”
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अनायरा आगे बढ़ी और उसने दृढ़ आवाज़ में कहा,
“वो अब तुम्हारा उत्तराधिकारी नहीं है।
वो सिर्फ़ मेरा है।
उसकी शक्ति मेरे साथ है, और हम दोनों मिलकर तुम्हारे नरक को भी रोक सकते हैं।”
दानवगुरु हँस पड़ा।
उसकी हँसी में इतनी दहाड़ थी कि पेड़ धराशायी हो गए।
“साधिका! तुम क्या समझती हो कि तुम्हारा प्रेम उसे बचा लेगा?
अर्णव के भीतर का दानव धीरे-धीरे जाग रहा है।
और जिस दिन ये पूर्ण रूप से जाग जाएगा,
वो सबसे पहले तुम्हें ही निगलेगा।”
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अर्णव की आँखों में क्षणभर के लिए अंधकार की चमक दिखी।
उसकी साँसें भारी हो गईं।
मानो दानवगुरु के शब्द उसकी रगों में दौड़ते खून को जगा रहे हों।
दानवगुरु ने आगे कहा,
“आओ अर्णव!
मेरे साथ चलो।
मैं तुम्हें वो शक्ति दूँगा जिसे कोई देवता भी नहीं रोक सकेगा।
तुम अनायरा को भी बचा पाओगे,
पर शर्त ये है… तुम्हें अपनी आत्मा मुझे सौंपनी होगी।”
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अनायरा ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया।
“नहीं अर्णव! ये धोखा है।
अगर तुमने अपनी आत्मा दी… तो तुम वही दैत्य बन जाओगे जिससे दुनिया डरती है।
मैंने तुम्हें तुम्हारे लिए चुना है,
न कि किसी असीम शक्ति के लिए।”
अर्णव का दिल तेज़ धड़क रहा था।
एक तरफ़ अनायरा का विश्वास…
दूसरी तरफ़ वो लालच जो उसकी रगों में जलती आग को और तेज़ कर रहा था।
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अचानक उसकी तलवार अपने आप जल उठी।
आधी काली ज्वाला… और आधी सफेद रोशनी।
मानो उसकी आत्मा खुद दो हिस्सों में बँट रही हो।
वो ज़ोर से चिल्लाया—
“बस!!”
पूरी धरती काँप गई।
दानवगुरु के कदम पीछे हट गए।
अर्णव की आँखें जल रही थीं, पर उनमें दृढ़ता थी।
“मैं अपनी आत्मा कभी नहीं दूँगा।
ना तुम्हें, ना किसी और को।
मेरी आत्मा सिर्फ़ मेरी है…
और मेरी रोशनी सिर्फ़ अनायरा है।”
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अनायरा की आँखें भर आईं।
उसने अर्णव का चेहरा अपने हाथों में लिया और फुसफुसाई—
“यही तुम्हारी सबसे बड़ी जीत है।”
दानवगुरु गरजा,
“तो ठीक है… तुमने नरकलोक को अपना दुश्मन चुन लिया।
अब ये युद्ध कभी नहीं रुकेगा।”
वो छाया में विलीन हो गया।
पर उसकी हँसी अभी भी आसमान में गूँज रही थी।
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अर्णव ने अनायरा को अपनी बाँहों में लिया।
“अब चाहे स्वर्ग हो या नरक…
सब हमारे खिलाफ़ हैं।
पर जब तक तुम हो… मैं कभी हार नहीं मानूँगा।”
अनायरा उसके सीने से लग गई।
उसके होठों से सिर्फ़ यही शब्द निकले—
“तो चलो… साथ मिलकर किस्मत से लड़ते हैं।”
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🌙 अगला अध्याय (18):
अनायरा का निर्वासन अब पूरा हो चुका है।
देवलोक उसे पकड़ने के लिए शिकारी भेजता है।
दूसरी ओर, अर्णव के भीतर की दैत्य शक्ति हर दिन और प्रबल होती जा रही है…
क्या अनायरा उसे उस अंधकार में डूबने से रोक पाएगी?
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रात गहरी थी।
जंगल की ठंडी हवाओं में अजीब-सी बेचैनी थी।
अर्णव और अनायरा नदी किनारे बैठे थे।
अनायरा ने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर धीरे से कहा—
“आज तुमने खुद को बचा लिया, अर्णव।
पर मैं देख रही हूँ… तुम्हारे भीतर की आग और भड़क रही है।”
अर्णव ने उसकी आँखों में देखा।
“हाँ, वो आग मुझे हर दिन निगल रही है।
पर जब भी मैं तुम्हें देखता हूँ… वो आग शांत हो जाती है।
शायद तुम ही मेरी आखिरी साँस हो, अनायरा।”
अनायरा मुस्कुराई, पर उसकी आँखों में डर था।
क्योंकि उसे पता था—देवलोक इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं।
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उसी समय अचानक हवा काँप उठी।
आकाश से सुनहरी रोशनी की लकीरें नीचे गिरीं।
तीन आकृतियाँ धरती पर उतरीं—देवताओं के शिकारी।
उनकी आँखें कठोर थीं, हाथों में चमकते धनुष और मंत्रों से बंधी तलवारें थीं।
उनके शरीर पर देवलोक के चिन्ह चमक रहे थे।
उनमें से एक ने गहरी आवाज़ में कहा,
“अनायरा! तुमने आदेश का उल्लंघन किया है।
तुम्हें पकड़कर स्वर्गलोक ले जाना हमारा कर्तव्य है।
और अर्णव… तुम्हें नष्ट करना हमारी प्रतिज्ञा।”
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अनायरा तुरंत अर्णव के सामने खड़ी हो गई।
“नहीं! अगर किसी को मुझसे छीनने की कोशिश की,
तो मैं तुम्हारे खिलाफ़ खड़ी हो जाऊँगी—
भले ही तुम देवताओं के सैनिक क्यों न हो।”
शिकारी ने व्यंग्य से हँसते हुए कहा,
“तो अब रोशनी खुद अंधकार की ढाल बन रही है?
ये तो प्रकृति के विरुद्ध है।”
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अर्णव का धैर्य टूट चुका था।
उसने तलवार उठाई, जिसकी धार पर काली और सफेद दोनों लपटें नृत्य कर रही थीं।
“तुम सब सुन लो।
अनायरा अब सिर्फ़ साधिका या देवताओं की दूत नहीं है—
वो मेरी आत्मा है।
और मेरी आत्मा को छूने का मतलब है मौत को दावत देना।”
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युद्ध शुरू हो गया।
शिकारी देवताओं के मंत्रोच्चार से बिजली की वर्षा करने लगे।
धरती जलने लगी।
अनायरा ने अपनी हथेली से सफेद ढाल बनाई,
पर शिकारी बहुत शक्तिशाली थे।
अचानक एक बाण उसकी ढाल चीरकर उसके कंधे में धँस गया।
अनायरा दर्द से चीख पड़ी।
अर्णव की आँखें लाल हो गईं।
उसके भीतर का अंधकार पूरी तरह जागने लगा।
उसने तलवार आकाश की ओर उठाई—
और काले तूफ़ान का विस्फोट हुआ।
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तीनों शिकारी पीछे फेंके गए।
उनकी कवच पर दरारें पड़ गईं।
उन्होंने पहली बार डर की झलक महसूस की।
एक शिकारी बुदबुदाया,
“ये शक्ति… ये तो दैत्य सम्राट से भी आगे की है।”
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अनायरा लहूलुहान थी।
वो अर्णव की बाँहों में गिरी और धीमे स्वर में बोली—
“अर्णव… खुद पर काबू रखो।
अगर तुम पूरी तरह अंधकार में डूब गए… तो मैं तुम्हें खो दूँगी।”
अर्णव काँपते हुए उसकी ओर देख रहा था।
उसकी आँखों में आँसू थे।
“नहीं… मैं तुम्हें खोने नहीं दूँगा।
भले ही इसके लिए मुझे अपने ही अंधकार से लड़ना पड़े।”
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शिकारी घायल होकर पीछे हट गए।
उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा और कहा,
“ये दोनों अब अकेले नहीं छोड़े जा सकते।
हमें परिषद को बताना होगा… कि असली खतरा शुरू हो चुका है।”
वे रोशनी में विलीन हो गए।
पर जाते-जाते उन्होंने चेतावनी दी—
“अगली बार, हम और भी बड़ी सेना लेकर आएँगे।”
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अर्णव ने अनायरा को अपने सीने से लगाया।
उसके घाव से खून बह रहा था।
वो काँपती आवाज़ में बोली,
“अर्णव… हमें कहीं और छुपना होगा।
क्योंकि अब ये लड़ाई सिर्फ़ स्वर्ग और नरक से नहीं…
हमारे अपने भाग्य से भी है।”
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🌙 अगला अध्याय (19):
अर्णव अनायरा के घाव को भरने के लिए उसे एक प्राचीन साधु के पास ले जाता है।
पर वहाँ उन्हें पता चलता है कि अर्णव की आत्मा धीरे-धीरे विभाजित हो रही है—
एक हिस्सा जो अनायरा के साथ जीना चाहता है, और दूसरा जो दैत्य सम्राट बनने को आतुर है।
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रात का आसमान नीला नहीं था, बल्कि धुँधली धुंध से ढका हुआ था।
अर्णव अपनी बाँहों में घायल अनायरा को उठाए, पहाड़ों के बीच बसे एक पुराने आश्रम तक पहुँचा।
ये आश्रम सदियों से वीरान था, पर कहते हैं कि यहाँ एक ऐसा साधु रहता है जो भाग्य की डोरें देख सकता है।
अर्णव ने दरवाज़ा खटखटाया।
अंदर से एक धीमी पर गहरी आवाज़ आई—
“मैं जानता था… तुम दोनों एक दिन यहाँ आओगे।”
दरवाज़ा खुला।
एक वृद्ध साधु, जिसकी दाढ़ी घुटनों तक थी और आँखें अंधकार में भी चमक रही थीं, सामने खड़ा था।
उसकी नज़र सीधे अर्णव पर ठहर गई।
“आओ… दैत्य सम्राट के उत्तराधिकारी।”
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अर्णव के दिल में बेचैनी थी।
“मुझे ये नाम मत दो।
मैं बस अपनी प्रियतमा को बचाना चाहता हूँ।”
साधु ने अनायरा की ओर देखा और उसके घाव पर हाथ रखा।
उसकी हथेली से निकली सुनहरी रोशनी ने घाव को भरना शुरू कर दिया।
अनायरा ने गहरी साँस ली और उसकी पीड़ा कुछ कम हुई।
“उसका घाव तो मैंने भर दिया,” साधु बोला,
“पर असली घाव तुम्हारे भीतर है, अर्णव।”
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अर्णव ने भौंहें चढ़ाईं।
“तुम क्या कहना चाहते हो?”
साधु ने चुपचाप पास रखे क्रिस्टल पर हाथ रखा।
क्रिस्टल चमका और उसमें अर्णव की परछाईं दिखने लगी।
पर वह परछाईं दो हिस्सों में बँट गई—
एक तरफ उसका चेहरा मानवीय, प्रेम से भरा हुआ…
और दूसरी तरफ लाल आँखों वाला दैत्य, जिसकी आभा से सबकुछ जल रहा था।
अनायरा स्तब्ध रह गई।
“ये… क्या है?”
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साधु ने गंभीर स्वर में कहा,
“अर्णव की आत्मा दो हिस्सों में बँट चुकी है।
एक हिस्सा जो अनायरा के प्रेम से जुड़ा है—जो इंसान बनना चाहता है।
और दूसरा हिस्सा, जो उसके रक्त और नियति से जुड़ा है—जो दैत्य सम्राट बनकर सृष्टि को निगलना चाहता है।”
अर्णव की मुट्ठियाँ कस गईं।
“तो क्या इसका मतलब है… मैं चाहे जो करूँ, एक दिन मैं वही बनूँगा जिससे मैं नफरत करता हूँ?”
साधु ने सिर हिलाया।
“भाग्य की डोर कभी इतनी सरल नहीं होती।
अगर तुम अंधकार में पूरी तरह डूब गए, तो तुम्हारा प्रेम तुम्हें रोक नहीं पाएगा।
और अगर तुमने प्रेम चुना… तो दैत्य शक्ति तुम्हें नष्ट कर सकती है।”
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अनायरा आगे बढ़ी।
उसकी आँखों में आँसू थे, पर आवाज़ दृढ़ थी।
“तो मैं उसे डूबने नहीं दूँगी।
अगर अर्णव की आत्मा दो हिस्सों में बँट गई है…
तो मैं उसका दूसरा हिस्सा बन जाऊँगी।
उसकी रोशनी हमेशा उसके अंधकार से लड़ेगी।”
साधु ने पहली बार हल्की मुस्कान दी।
“शायद यही तुम्हारी परीक्षा है, कन्या।
तुम्हारा प्रेम ही उस संतुलन की आखिरी आशा है।”
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अर्णव ने अनायरा का हाथ थाम लिया।
उसकी आवाज़ काँप रही थी।
“अगर मेरे भीतर का दैत्य कभी जीत गया…
तो तुम क्या करोगी?”
अनायरा ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—
“तो मैं तुम्हें रोकूँगी।
भले ही इसके लिए मुझे अपना जीवन क्यों न देना पड़े।”
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सन्नाटा छा गया।
सिर्फ़ क्रिस्टल की रोशनी अंधेरे में चमक रही थी।
और उसमें अर्णव के दो चेहरे बार-बार टकरा रहे थे—
एक प्रेमी… और एक दैत्य।
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🌙 अगला अध्याय (20):
देवलोक को पता चलता है कि अर्णव की आत्मा दो हिस्सों में बँटी है।
वे इस मौके का फायदा उठाने के लिए एक घातक योजना बनाते हैं—
अनायरा को बंधक बनाकर अर्णव के दैत्य पक्ष को पूरी तरह जगाने की कोशिश।
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देवलोक में सुनहरी सभा कक्ष की घंटियाँ बज रही थीं।
स्वर्गीय सैनिकों की कतारें लगी थीं और बीच में देवताओं की परिषद् बैठी थी।
उनके मुख पर चिंता नहीं, बल्कि एक ठंडी चालाकी थी।
मुख्य देवता ने कहा,
“अब हमें अर्णव की कमजोरी मिल चुकी है।
उसकी आत्मा दो हिस्सों में बँटी है।
अगर हम उसके प्रेम को उसके विरुद्ध इस्तेमाल करें…
तो दैत्य सम्राट को हम स्वयं जागृत कर सकते हैं।”
सभा में हलचल मच गई।
एक और देव बोला—
“पर वह लड़की, अनायरा… उसकी उपस्थिति अर्णव को इंसान बनाए रखती है।
जब तक वह उसके पास है, अर्णव पूरी तरह अंधकार में नहीं डूबेगा।”
मुख्य देव ने ठंडी हँसी हँसी।
“तो फिर समाधान सरल है।
उस लड़की को छीन लो।
जब प्रेम उसकी पकड़ से फिसलेगा,
तो उसका अंधकार स्वयं उसे निगल लेगा।”
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🌑 उसी समय, अंधेरी रात में अर्णव और अनायरा अब भी साधु के आश्रम में थे।
अनायरा शांत नींद में थी, जबकि अर्णव बाहर खड़ा आकाश को देख रहा था।
उसकी आँखों में बेचैनी थी।
“अगर मैं उसे खो दूँ… तो मैं खुद को नहीं बचा पाऊँगा।”
उसने अपने आप से फुसफुसाया।
लेकिन दूर से सुनहरी चमकते तीर जैसे आसमान में उभर रहे थे।
देवदूतों की सेना उनकी ओर बढ़ रही थी—
सिर्फ़ एक मक़सद लेकर:
अनायरा को पकड़ना।
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साधु ने भीतर से अर्णव को पुकारा।
“समय आ गया है।
तुम्हें अपनी सबसे बड़ी परीक्षा देनी होगी।
प्रेम और विनाश की डोर अब एक साथ खिंच रही है।”
अर्णव की आँखें लाल चमक उठीं।
उसने अपनी मुट्ठी भींच ली।
“जो भी उसे छुएगा… मैं उसका विनाश कर दूँगा।”
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🌙 अगला अध्याय (21):
देवताओं की सेना आश्रम पर हमला करती है।
अर्णव पहली बार अपनी दैत्य शक्ति पूरी तरह इस्तेमाल करता है—
पर क्या वह खुद पर काबू रख पाएगा, या उसका अंधकार उस पर हावी हो जाएगा?
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