"अनिशा शर्मा, एक 19 साल की मासूम छात्रा… और उसके सामने खड़ा था प्रोफ़ेसर माहिर सिंह चौधरी – जो बाहर से एक सख़्त प्रोफ़ेसर और बड़ा बिज़नेसमैन था, पर असल में माफ़िया किंग और एक बेरहम सीरियल किलर। कक्षा में वो उसका शिक्षक था… पर अंधेरे में उसका ज... "अनिशा शर्मा, एक 19 साल की मासूम छात्रा… और उसके सामने खड़ा था प्रोफ़ेसर माहिर सिंह चौधरी – जो बाहर से एक सख़्त प्रोफ़ेसर और बड़ा बिज़नेसमैन था, पर असल में माफ़िया किंग और एक बेरहम सीरियल किलर। कक्षा में वो उसका शिक्षक था… पर अंधेरे में उसका जुनून। अनिशा जितना उससे दूर भागती, उतना ही माहिर उसे अपने ख़तरनाक शिकंजे में खींच लेता। ये कहानी है मासूमियत और अंधेरे के टकराव की… जहाँ प्यार, डर और पागलपन की कोई सीमा नहीं।" . . . . . . . . . . . . . . . . . .
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मुंबई की रात हमेशा चमक-दमक से भरी होती है, पर यूनिवर्सिटी का माहौल कुछ और ही होता है। बड़े से ऑडिटोरियम की रोशनी इस समय और भी तेज़ लग रही थी। नया सेशन शुरू होने वाला था, और सैकड़ों छात्रों की हलचल से पूरा हॉल गूंज रहा था।
19 साल की अनिशा शर्मा, पहली बार इस माहौल में बैठी थी। भोली-सी शक्ल, चेहरे पर मासूमियत और आँखों में हल्की घबराहट। वह अपने हाथों में किताबों का ढेर दबाए, कोने की सीट पर चुपचाप बैठ गई। दिल बार-बार धड़क रहा था — नई जगह, नए लोग, नए प्रोफेसर… सब कुछ उसे अजनबी लग रहा था।
उसकी सहेली नैना धीरे से उसके कान में फुसफुसाई —
“Relax यार, इतना टेंशन मत ले। बस class शुरू होने वाली है।”
अनिशा हल्का-सा मुस्कुराई, पर उसका मन और बेचैन था।
अचानक ऑडिटोरियम का दरवाज़ा खुला।
और जैसे ही उसने देखा — पूरा हॉल खामोश हो गया।
कदमों की ठंडी आहट के साथ अंदर आए प्रोफेसर माहिर सिंह चौधरी।
लंबा कद, चौड़े कंधे, perfectly tailored ब्लैक सूट, और चेहरे पर बर्फ़ जैसी ठंडी नज़रें। उनकी आँखों में अजीब-सी गहराई थी, जैसे कोई काला समंदर हो जिसमें कोई झाँकने की हिम्मत न करे।
क्लास में बैठा हर छात्र अनायास सीधा बैठ गया। किसी ने फुसफुसाने की हिम्मत तक नहीं की। माहिर की मौजूदगी में माहौल खुद-ब-खुद भारी हो गया।
उन्होंने बिना मुस्कराए, बिना कोई औपचारिकता निभाए सीधे अपनी गहरी आवाज़ में कहा —
“Welcome to my class. I don’t tolerate mistakes… और याद रखो, यहाँ सिर्फ वही टिकेगा जो मेहनत करेगा। बाकी… बाहर का दरवाज़ा हमेशा खुला है।”
उनकी आवाज़ ठंडी थी, पर हर शब्द में ऐसा असर था कि मानो किसी की नसों में बर्फ दौड़ गई हो।
अनिशा ने अनजाने में अपनी उँगलियाँ कसकर किताबों पर भींच लीं। उसे नहीं पता क्यों, लेकिन उस आदमी की मौजूदगी उसे भीतर तक हिला रही थी।
माहिर की नज़रें पूरे हॉल पर घूम रही थीं। एक-एक छात्र पर ठहरतीं और फिर आगे बढ़ जातीं।
पर जब उनकी आँखें अनिशा पर टिकीं… वो कुछ सेकंड के लिए रुक गईं।
अनिशा ने नज़रें झुका लीं, पर उसे साफ़ महसूस हुआ — प्रोफेसर की निगाहें उसके चेहरे को पढ़ रही थीं।
उसका मासूम, डरा हुआ सा चेहरा जैसे माहिर के दिल के किसी कोने को छू गया।
लेकिन उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं बदला।
उन्होंने तुरंत नज़रें मोड़ लीं और lecture शुरू कर दिया।
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क्लास खत्म होने के बाद हर कोई बाहर निकलने की जल्दी में था। अनिशा भी जल्दी-जल्दी अपनी किताबें समेटने लगी। तभी नैना बोली —
“Professor Mahir… uff! कितना smart है न? लेकिन कितना strict भी लगता है।”
अनिशा ने कोई जवाब नहीं दिया। उसका मन अभी भी बेचैन था।
उसकी साँसें थोड़ी तेज़ थीं, जैसे उसने किसी तूफ़ान का सामना किया हो।
बाहर निकलते हुए उसने एक बार पलटकर देखा।
माहिर अब भी हॉल के मंच पर खड़े थे। आँखों में वही रहस्यमयी ठंडापन, और हाथों में किताब।
उनकी नज़रें क्षणभर के लिए फिर से अनिशा पर टिक गईं।
इस बार अनिशा ने नज़रें नहीं चुराईं… बस एक पल के लिए आँखें मिलीं।
और उसी पल उसके दिल में अजीब-सी हलचल हुई।
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उस रात, अनिशा अपने कमरे में देर तक सो नहीं पाई।
उसे बार-बार वही ठंडी आँखें याद आ रही थीं।
“ये आदमी इतना अजीब क्यों लगा मुझे?” उसने खुद से पूछा।
“क्या सच में ये सिर्फ़ एक प्रोफेसर है… या इसके पीछे कुछ और है?”
वहीं दूसरी तरफ़, महिर अपने आलीशान बंगले के study room में बैठा था।
उसके सामने whiskey का गिलास रखा था, और हाथ में वही file जिसमें उस दिन की students list थी।
उसकी आँखें एक ही नाम पर ठहर गईं —
“Anisha Sharma”
एक हल्की-सी, almost न दिखने वाली मुस्कान उसके होंठों पर आई।
उसकी आँखों की ठंडक अब किसी अजीब से जुनून में बदल रही थी।
"तुम… मेरी नज़र से बच नहीं सकती, Anisha."
अगले दिन यूनिवर्सिटी का कैंपस हलचल से भरा हुआ था।
लंबे-लंबे पेड़ों की छाँव में छात्र-छात्राएँ अपने-अपने ग्रुप में बातें कर रहे थे। कैफ़ेटेरिया से आती कॉफ़ी की महक और पास के गार्डन से आती फूलों की खुशबू माहौल को हल्का बनाती थी।
पर अनिशा शर्मा के लिए यह हल्कापन कहीं खो गया था।
पिछली रात वह सो ही नहीं पाई थी। उसकी आँखों के सामने बार-बार वही ठंडी, नीली निगाहें घूम रही थीं।
"क्यों देख रहे थे वो मुझे इस तरह?"
यह सवाल उसके मन को खाए जा रहा था।
नैना ने उसके कंधे पर हल्की सी चपत मारी।
“क्या हुआ यार? फिर से खोई हुई लग रही हो।”
अनिशा ने मुस्कुराने की कोशिश की, “कुछ नहीं… बस नींद पूरी नहीं हुई।”
दोनों लाइब्रेरी की तरफ़ बढ़ रही थीं। अचानक पीछे से गहरी और ठंडी आवाज़ आई —
“Miss Sharma.”
अनिशा का दिल एक पल को थम गया।
धीरे-धीरे उसने पीछे मुड़कर देखा।
वहाँ प्रोफ़ेसर माहिर सिंह चौधरी खड़े थे।
ब्लैक शर्ट, स्लिम फिट पैंट, और वही ठंडी नज़रें। उनके हाथ में files थीं, और चेहरे पर हल्की छाया जैसे हमेशा रहती हो।
“जी… प्रोफ़ेसर,” अनिशा ने धीरे से कहा।
माहिर ने सीधी उसकी आँखों में देखा।
“Library के records में तुम्हारा नाम missing था। लगता है तुमने अपना ID card submit नहीं किया।”
अनिशा घबराकर बोली, “म… मैं आज ही कर दूँगी सर, भूल गई थी।”
माहिर कुछ पल चुप रहे। उनकी नज़रें जैसे उसकी आत्मा में उतर रही थीं।
फिर ठंडे स्वर में बोले, “Mistakes… I don’t tolerate them. अगली बार अगर तुम भूल गई, तो तुम्हें मेरी class से बाहर होना पड़ेगा।”
अनिशा ने जल्दी-जल्दी सिर हिला दिया।
“जी सर।”
माहिर ने फाइल्स उठाईं और आगे बढ़ गए।
लेकिन जाते-जाते उन्होंने पलटकर फिर एक बार उसकी तरफ़ देखा।
वो नज़र अजीब थी।
न सख़्त… न नरम।
बल्कि ऐसी, जैसे किसी ने अपने शिकार पर दावा कर दिया हो।
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लाइब्रेरी में बैठी अनिशा बार-बार उस encounter को याद कर रही थी।
नैना ने हँसते हुए कहा, “तू इतना क्यों डर रही है? हाँ, strict है… पर देख तो सही, कितना smart है। पूरी यूनिवर्सिटी की लड़कियाँ उन पर crush मारती हैं।”
अनिशा ने धीरे से कहा, “पता नहीं… उनकी आँखों में कुछ अजीब है। जैसे… जैसे वो इंसान नहीं, कोई और ही है।”
नैना ने मज़ाक उड़ाया, “ओह प्लीज़! तू भी न, overthinker!”
पर अनिशा जानती थी, उसका डर झूठा नहीं था।
---
शाम को, जब क्लास खत्म हो गई थी, कैंपस खाली होने लगा।
अनिशा अकेली ही अपनी कॉपी लेकर लाइब्रेरी से निकल रही थी। आसमान पर हल्की धुंध छाई थी, और हवा में अजीब सी ठंडक थी।
वह सीढ़ियों से उतर रही थी कि अचानक उसे महसूस हुआ — कोई पीछे-पीछे आ रहा है।
उसका दिल धड़क उठा। उसने पलटकर देखा…
वहाँ कोई नहीं था।
सिर्फ खाली रास्ता और झिलमिलाती स्ट्रीट लाइट्स।
अनिशा ने साँस छोड़ी और तेज़ कदमों से बाहर निकली।
लेकिन उसे पता नहीं था कि कैंपस की ऊँची इमारत की खिड़की से कोई उसकी हर हरकत देख रहा था।
वो थे प्रोफ़ेसर माहिर सिंह चौधरी।
हाथ में whiskey का गिलास, आँखों में वही ठंडापन।
उनके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, जो डरावनी भी थी और रहस्यमयी भी।
"तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है, Anisha… अब तुम मेरी निगाहों से नहीं बच सकतीं।"
---
उस रात फिर अनिशा बेचैन रही।
बार-बार उसे ऐसा लगा कि कोई उसकी खिड़की के बाहर खड़ा है, जैसे कोई उसे देख रहा हो।
उसने परदा खींच दिया, लेकिन मन का डर खत्म नहीं हुआ।
वो नहीं जानती थी कि उसकी मासूम ज़िंदगी अब किस अंधेरे की तरफ़ बढ़ रही है।
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❄️ यही था दूसरा दिन, जहाँ डर और खिंचाव दोनों ने अनिशा का पीछा करना शुरू कर दिया।
और माहिर का जुनून अब और गहरा होने वाला था।
सुबह की धूप खिड़की से छनकर कमरे में आई, लेकिन अनिशा शर्मा का चेहरा अब भी थका हुआ लग रहा था।
रात उसने बार-बार करवटें बदली थीं। हर बार उसे ऐसा लगता जैसे कोई उसकी खिड़की के बाहर खड़ा हो।
वो खिड़की बंद कर देती, लेकिन दिल की धड़कन तेज़ ही रहती।
क्लास जाने की जल्दी में उसने आईने में खुद को देखा।
उसकी आँखों के नीचे हल्के काले घेरे बन गए थे।
“ये मुझे क्या हो रहा है…” उसने बुदबुदाया।
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कैंपस में कदम रखते ही उसे माहौल और भारी लगा।
बाहर सैकड़ों छात्र हँसी-ठिठोली कर रहे थे, लेकिन उसे सब कुछ धीमा और अजीब लग रहा था।
नैना भागती हुई आई —
“Good morning, sleeping beauty! आज क्लास bunk मत कर देना, सुना है प्रोफ़ेसर माहिर नया topic पढ़ाने वाले हैं।”
अनिशा का चेहरा फीका पड़ गया।
उसे फिर वही ठंडी निगाहें याद आईं।
लेकिन उसने खुद को सँभालते हुए मुस्कुराने की कोशिश की —
“चलो, देखते हैं।”
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क्लासरूम में सबकी नज़रें दरवाज़े पर टिक गईं जब प्रोफ़ेसर माहिर सिंह चौधरी अंदर आए।
ब्लैक coat, सफ़ेद शर्ट, और एक ठंडी आभा।
उनकी चाल में एक राजसी ठहराव था, जैसे हर कदम से ज़मीन झुक रही हो।
उन्होंने बोर्ड पर कुछ equations लिखीं।
फिर अचानक अपनी नीली आँखें उठा कर सीधा अनिशा की तरफ़ देखा।
वो पल जैसे थम गया।
सारी क्लास गुनगुन कर रही थी, लेकिन अनिशा को सिर्फ उनकी आँखें दिख रही थीं।
“Miss Sharma.”
उनकी ठंडी आवाज़ गूँजी।
अनिशा घबरा गई। “जी… सर?”
“आप खड़ी हों। Equation number 3 solve कीजिए।”
उसका हाथ काँप रहा था। वो धीरे से खड़ी हुई और बोर्ड की तरफ़ बढ़ी।
सारी क्लास हँसी दबा रही थी, क्योंकि सब जानते थे कि अनिशा पढ़ाई में अच्छी है, लेकिन आज उसकी हालत अजीब थी।
उसने equation लिखने की कोशिश की, पर बार-बार marker उसके हाथ से फिसल रहा था।
माहिर उसके बिल्कुल पास आ गए।
इतने पास कि उसे उनकी साँसों की ठंडक तक महसूस हो रही थी।
उन्होंने marker उसके हाथ से लिया और धीमे से बोले —
“Concentration, Miss Sharma. अगर डरोगी, तो हार जाओगी।”
उनकी आवाज़ में कोई अजीब सा जादू था।
अनिशा ने हिम्मत जुटाई और equation पूरी की।
क्लास तालियों से गूंज उठी।
लेकिन माहिर बस ठंडी नज़रों से उसे देखते रहे, जैसे ये जीत उनकी थी, उसकी नहीं।
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लंच ब्रेक में नैना हँसते हुए बोली,
“देखा? तूने कर दिखाया। लेकिन मानना पड़ेगा, प्रोफ़ेसर माहिर की vibe ही अलग है। जैसे… खतरनाक और अट्रैक्टिव साथ-साथ।”
अनिशा ने गहरी साँस ली।
“खतरनाक? ये शब्द सही है। उनकी आँखों में… कुछ और ही है, नैना। जैसे वो हमें इंसान नहीं, शिकार की तरह देखते हैं।”
नैना ने हँसते हुए कहा,
“ओह प्लीज़! तू फिर डर की बातें करने लगी। Relax कर, वह बस strict हैं।”
पर अनिशा जानती थी, ये सिर्फ strictness नहीं थी।
ये कुछ और था।
---
शाम को, क्लास ख़त्म होने के बाद, जब सभी अपने-अपने रास्ते निकल गए, अनिशा अकेली कैंपस के गार्डन से गुज़र रही थी।
हवा में हल्की ठंडक थी।
उसके कदम धीमे पड़ गए जब उसने महसूस किया कि कोई पीछे है।
उसने पलटकर देखा…
कोई नहीं।
वो तेज़ी से चलने लगी।
लेकिन तभी पेड़ की छाया से एक गहरी आवाज़ आई —
“Good evening, Miss Sharma.”
अनिशा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
वो मुड़ी और देखा — प्रोफ़ेसर माहिर अंधेरे से बाहर आ रहे थे।
उनकी आँखों में वही ठंडी चमक थी।
हाथ में हल्की-सी किताब, लेकिन चाल में शिकारी का साया।
“इतनी जल्दी क्यों जा रही थीं? डरती हैं… अंधेरे से?”
अनिशा ने काँपती आवाज़ में कहा,
“न…नहीं सर, मुझे घर देर हो रही थी।”
माहिर उसके क़रीब आए।
इतने क़रीब कि उसे लगा साँसें रुक जाएँगी।
उनके होंठ उसके कान के पास झुके, और उन्होंने बहुत धीमे कहा —
“डरना मत सीखिए, Anisha. डर तो बस एक illusion है… लेकिन मैं नहीं।”
अनिशा के रोंगटे खड़े हो गए।
उसने बिना कुछ कहे तेज़ी से वहाँ से निकलने की कोशिश की।
लेकिन पीछे से माहिर की आवाज़ आई —
“कल की क्लास… मत भूलना। और हाँ… रात में खिड़की बंद कर लेना।”
अनिशा ठिठक गई।
उसकी साँसें अटक गईं।
"उन्हें कैसे पता… कि मैं खिड़की खुली छोड़ती हूँ?"
वो काँपती हुई तेज़ी से भाग गई।
पर अब उसके दिल को यक़ीन हो गया था —
माहिर सिंह चौधरी सिर्फ प्रोफ़ेसर नहीं, बल्कि उसकी ज़िंदगी की सबसे खतरनाक परछाई बनने वाले हैं।
रात गहरी हो चुकी थी।
मुंबई की सड़कों पर गाड़ियों की रफ़्तार कम हो गई थी, पर हवाओं में अजीब-सी बेचैनी घुली थी।
अपने कमरे में अनिशा शर्मा खिड़की के पास बैठी किताब खोलने की कोशिश कर रही थी, पर शब्द धुंधले हो रहे थे।
उसके कानों में अब भी वही आवाज़ गूँज रही थी —
"रात में खिड़की बंद कर लेना।"
उसका दिल तेजी से धड़क उठा।
“वो… मुझे इतना कैसे जानते हैं?”
उसने तुरंत परदा गिराया और खिड़की बंद कर दी।
लेकिन दिल की धड़कन पर ताला नहीं लगा।
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उधर, शहर के एक अंधेरे कोने में, आलीशान हवेली जैसी हवेली के अंदर…
प्रोफ़ेसर माहिर सिंह चौधरी अपने स्टडी रूम में बैठे whiskey का गिलास घुमा रहे थे।
कमरे में चारों तरफ किताबें थीं, लेकिन हवा में ख़ून और डर की गंध थी।
शेरों की खाल से ढकी कुर्सी पर बैठे, उनके सामने लैपटॉप खुला था।
स्क्रीन पर CCTV फुटेज चल रहा था — यूनिवर्सिटी का।
हर कोने, हर गलियारे का live feed।
और उनमें से एक स्क्रीन पर अनिशा थी।
किताब पकड़े, घबराई हुई, बार-बार खिड़की की तरफ़ देखती हुई।
माहिर की नीली आँखों में ठंडी मुस्कान चमक उठी।
“Anisha Sharma… तुम जितना डरोगी, उतना ही मेरे क़रीब आओगी।”
उन्होंने whiskey का आख़िरी घूँट लिया और धीरे से कहा —
“और डर मेरा सबसे बड़ा हथियार है।”
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अगले दिन यूनिवर्सिटी का माहौल सामान्य था।
कैंपस में हँसी-ठिठोली, खेल-कूद, गॉसिप सब चल रहा था।
पर अनिशा को लग रहा था जैसे हर कोई उसे घूर रहा हो।
नैना उसके पास आई।
“क्या बात है? आज भी चेहरा उतरा हुआ क्यों है? कल से तू बहुत अजीब behave कर रही है।”
अनिशा ने धीरे से कहा,
“नैना… तुझे नहीं लगता, प्रोफ़ेसर माहिर बहुत अलग हैं? मतलब… वो बस strict नहीं, कुछ और हैं। जैसे…”
नैना ने बीच में ही काटा,
“जैसे क्या? Serial killer?” और हँसने लगी।
अनिशा का चेहरा पीला पड़ गया।
उसने मन ही मन कहा, “अगर नैना जानती कि उसके मज़ाक में कितनी सच्चाई छिपी है…”
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दोपहर की क्लास में माहौल अजीब था।
माहिर बोर्ड पर equation लिख रहे थे, लेकिन उनकी नज़रें बार-बार अनिशा पर ठहरती थीं।
सिर्फ नज़रें ही नहीं… कभी marker उठाते हुए उनकी उंगलियाँ जानबूझकर उसके पास तक आ जातीं,
कभी किताब देने के बहाने उनके हाथ उसकी मेज़ को छूते हुए निकल जाते।
अनिशा को लग रहा था जैसे उसकी साँसें तेज़ हो रही हैं।
डर और अजीब-सा खिंचाव एक साथ।
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क्लास के बाद, जब सब बाहर निकल गए, माहिर ने धीमी आवाज़ में कहा —
“Miss Sharma, रुकिए।”
अनिशा के कदम वहीं रुक गए।
उसका गला सूख गया।
वो धीरे-धीरे पलटी।
माहिर उसकी तरफ़ बढ़े।
इतने क़रीब कि अब उनके चेहरे पर हल्की दाढ़ी और आँखों की ठंडी चमक साफ़ दिख रही थी।
“क्या आपको भी… मेरी तरह नींद नहीं आती?” माहिर ने अचानक पूछा।
अनिशा ने काँपते हुए कहा,
“जी… सर… मतलब, आप…”
माहिर हल्का-सा मुस्कुराए।
“कभी-कभी रातें बहुत लंबी हो जाती हैं। और उन रातों में, इंसान को अपनी सच्चाई नज़र आती है।”
अनिशा कुछ समझ नहीं पाई, बस घबराकर सिर झुका लिया।
माहिर ने उसकी ठोड़ी अपनी उँगलियों से ऊपर उठाई और धीरे से बोला —
“एक बात याद रखो, Anisha… डर और चाहत दोनों इंसान को क़ैद कर लेते हैं। और तुम अब मेरी क़ैद में हो।”
उसके रोंगटे खड़े हो गए।
उसने जल्दी से अपना सामान उठाया और क्लास से बाहर निकल गई।
लेकिन जैसे ही बाहर कदम रखा, उसे लगा कोई पीछे खड़ा है।
उसने पलटकर देखा…
वहाँ सिर्फ़ खाली गलियारा था।
पर अनजाने में उसकी गर्दन पर किसी की ठंडी नज़रें अब भी चुभ रही थीं।
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उस रात जब अनिशा सोने गई, खिड़की पर हल्की दस्तक सुनाई दी।
वो डर से काँप गई।
धीरे-धीरे जाकर उसने परदा हटाया।
बाहर कोई नहीं था।
सिर्फ़ अंधेरा।
लेकिन जाते-जाते एक ठंडी हवा आई और उसके कानों में फुसफुसा गई —
“Good night, Miss Sharma.”
अगले दिन यूनिवर्सिटी का कैंपस हलचल से भरा हुआ था।
लंबे-लंबे पेड़ों की छाँव में छात्र-छात्राएँ अपने-अपने ग्रुप में बातें कर रहे थे। कैफ़ेटेरिया से आती कॉफ़ी की महक और पास के गार्डन से आती फूलों की खुशबू माहौल को हल्का बनाती थी।
पर अनिशा शर्मा के लिए यह हल्कापन कहीं खो गया था।
पिछली रात वह सो ही नहीं पाई थी। उसकी आँखों के सामने बार-बार वही ठंडी, नीली निगाहें घूम रही थीं।
"क्यों देख रहे थे वो मुझे इस तरह?"
यह सवाल उसके मन को खाए जा रहा था।
नैना ने उसके कंधे पर हल्की सी चपत मारी।
“क्या हुआ यार? फिर से खोई हुई लग रही हो।”
अनिशा ने मुस्कुराने की कोशिश की, “कुछ नहीं… बस नींद पूरी नहीं हुई।”
दोनों लाइब्रेरी की तरफ़ बढ़ रही थीं। अचानक पीछे से गहरी और ठंडी आवाज़ आई —
“Miss Sharma.”
अनिशा का दिल एक पल को थम गया।
धीरे-धीरे उसने पीछे मुड़कर देखा।
वहाँ प्रोफ़ेसर माहिर सिंह चौधरी खड़े थे।
ब्लैक शर्ट, स्लिम फिट पैंट, और वही ठंडी नज़रें। उनके हाथ में files थीं, और चेहरे पर हल्की छाया जैसे हमेशा रहती हो।
“जी… प्रोफ़ेसर,” अनिशा ने धीरे से कहा।
माहिर ने सीधी उसकी आँखों में देखा।
“Library के records में तुम्हारा नाम missing था। लगता है तुमने अपना ID card submit नहीं किया।”
अनिशा घबराकर बोली, “म… मैं आज ही कर दूँगी सर, भूल गई थी।”
माहिर कुछ पल चुप रहे। उनकी नज़रें जैसे उसकी आत्मा में उतर रही थीं।
फिर ठंडे स्वर में बोले, “Mistakes… I don’t tolerate them. अगली बार अगर तुम भूल गई, तो तुम्हें मेरी class से बाहर होना पड़ेगा।”
अनिशा ने जल्दी-जल्दी सिर हिला दिया।
“जी सर।”
माहिर ने फाइल्स उठाईं और आगे बढ़ गए।
लेकिन जाते-जाते उन्होंने पलटकर फिर एक बार उसकी तरफ़ देखा।
वो नज़र अजीब थी।
न सख़्त… न नरम।
बल्कि ऐसी, जैसे किसी ने अपने शिकार पर दावा कर दिया हो।
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लाइब्रेरी में बैठी अनिशा बार-बार उस encounter को याद कर रही थी।
नैना ने हँसते हुए कहा, “तू इतना क्यों डर रही है? हाँ, strict है… पर देख तो सही, कितना smart है। पूरी यूनिवर्सिटी की लड़कियाँ उन पर crush मारती हैं।”
अनिशा ने धीरे से कहा, “पता नहीं… उनकी आँखों में कुछ अजीब है। जैसे… जैसे वो इंसान नहीं, कोई और ही है।”
नैना ने मज़ाक उड़ाया, “ओह प्लीज़! तू भी न, overthinker!”
पर अनिशा जानती थी, उसका डर झूठा नहीं था।
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शाम को, जब क्लास खत्म हो गई थी, कैंपस खाली होने लगा।
अनिशा अकेली ही अपनी कॉपी लेकर लाइब्रेरी से निकल रही थी। आसमान पर हल्की धुंध छाई थी, और हवा में अजीब सी ठंडक थी।
वह सीढ़ियों से उतर रही थी कि अचानक उसे महसूस हुआ — कोई पीछे-पीछे आ रहा है।
उसका दिल धड़क उठा। उसने पलटकर देखा…
वहाँ कोई नहीं था।
सिर्फ खाली रास्ता और झिलमिलाती स्ट्रीट लाइट्स।
अनिशा ने साँस छोड़ी और तेज़ कदमों से बाहर निकली।
लेकिन उसे पता नहीं था कि कैंपस की ऊँची इमारत की खिड़की से कोई उसकी हर हरकत देख रहा था।
वो थे प्रोफ़ेसर माहिर सिंह चौधरी।
हाथ में whiskey का गिलास, आँखों में वही ठंडापन।
उनके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, जो डरावनी भी थी और रहस्यमयी भी।
"तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है, Anisha… अब तुम मेरी निगाहों से नहीं बच सकतीं।"
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उस रात फिर अनिशा बेचैन रही।
बार-बार उसे ऐसा लगा कि कोई उसकी खिड़की के बाहर खड़ा है, जैसे कोई उसे देख रहा हो।
उसने परदा खींच दिया, लेकिन मन का डर खत्म नहीं हुआ।
वो नहीं जानती थी कि उसकी मासूम ज़िंदगी अब किस अंधेरे की तरफ़ बढ़ रही है।
रात आधी से ज़्यादा बीत चुकी थी।
Hostel की बिल्डिंग पर सन्नाटा पसरा था, सिर्फ़ दीवारों पर टंगी पुरानी घड़ी की टक-टक सुनाई दे रही थी।
बाकी सब सो रहे थे—पर अनिशा की आँखों से नींद गायब थी।
वो अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी, पर बेचैनी उसके दिल पर पंजे गाड़ रही थी।
बार-बार ऐसा लग रहा था जैसे खिड़की के उस पार कोई है… कोई जो अंधेरे से झाँक रहा है।
उसने खुद को समझाया—
“शायद वहम है। क्लास, assignments, सब कुछ दिमाग पर हावी हो गया है।”
लेकिन अचानक उसका मोबाइल vibrate हुआ।
स्क्रीन पर एक Unknown Number से message आया—
> “सो नहीं पा रही?”
अनिशा का दिल जोर से धड़क उठा।
उसने काँपते हाथों से reply किया—
> “आप कौन?”
थोड़ी देर बाद दूसरा message आया—
> “वो… जिसे तुम महसूस कर सकती हो, पर देख नहीं सकती।”
उसके हाथ सुन्न हो गए।
वो तुरंत mobile बंद करके तकिए में छुपा दी।
लेकिन उस एक line ने उसकी रूह तक जमा दी थी।
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अगली सुबह…
क्लास में माहिर हमेशा की तरह black shirt और सख़्त चेहरे में मौजूद थे।
उनकी नज़र पूरी class पर घूमी, और फिर अनिशा पर ठहर गई।
वो नज़र किसी professor की नहीं, किसी शिकारी की थी।
कड़ी, ठंडी और गहरी।
“Miss Anisha,”
उनकी आवाज़ classroom में गूँजी,
“आज का topic आप explain करेंगी।”
अनिशा के पैर काँपने लगे।
वो धीरे से खड़ी हुई, हाथ में किताब खोली, पर शब्द धुंधले लगने लगे।
आवाज़ काँपती रही, गला सूख गया।
माहिर ने मुस्कुराकर कहा—
“Relax… कोई आपको नहीं देख रहा। बस मैं देख रहा हूँ।”
क्लास में हँसी गूँज गई।
लेकिन अनिशा का चेहरा सफेद पड़ गया।
बाकियों के लिए ये मज़ाक था, उसके लिए धमकी।
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Lecture ख़त्म होने के बाद वो जल्दी से hallway की ओर बढ़ी।
पर अचानक उसके कदम जम गए।
सामने दीवार पर लाल रंग से लिखा था—
“तुम मेरी हो।”
वो घबराकर पीछे हटी।
आसपास किसी की आहट तक नहीं थी।
लेकिन ये शब्द जैसे खून में उतरकर उसकी साँस रोक रहे थे।
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शाम को…
Hostel लौटते समय उसका दिल फिर बेचैन था।
सड़क अंधेरी थी, और पीछे से आती black कार उसके हर कदम के साथ चल रही थी।
इस बार उसने हिम्मत करके सीधा देखने की कोशिश की।
काँच धीरे से नीचे हुआ—और वहाँ बैठे माहिर की नीली, ठंडी आँखें उसे घूर रही थीं।
“घर तक छोड़ दूँ?”
उनकी आवाज़ गहरी और शांत थी, पर उसके अंदर छिपी धमकी साफ़ थी।
अनिशा ने सिर झटकते हुए तेज़ कदम बढ़ा दिए।
लेकिन कार उसके बिल्कुल साथ-साथ चलती रही।
“डर मत… डर तो बस पहला step है।”
ये कहते हुए माहिर ने गाड़ी धीमी की।
अनिशा भागते-भागते hostel gate में घुसी और दरवाज़ा बंद कर लिया।
साँसें तेज़ हो रही थीं, दिल धड़क रहा था।
लेकिन जब उसने पलटकर देखा—तो कार गायब थी।
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दूसरी तरफ़, अंधेरे कमरे में माहिर whiskey का गिलास उठाए बैठे थे।
टेबल पर उनकी उँगलियाँ rhythm बना रही थीं, जैसे किसी शिकार का इंतज़ार हो।
उनकी आँखों में नशा नहीं, जुनून जल रहा था।
“डर addiction है… और addiction से कोई नहीं बच सकता।”
उन्होंने खुद से कहा।
टेबल पर एक फाइल खुली थी—
जिसमें सिर्फ़ एक नाम बार-बार लिखा था—
Anisha
उनकी नज़र उस नाम पर टिकी रही।
वो मुस्कुराए… और धीरे से बोला—
“अब भागने की कोई जगह नहीं, little dove।”
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उस रात, hostel के कमरे में सोती हुई अनिशा अचानक चौंककर उठी।
उसे लगा जैसे कोई उसके कमरे में खड़ा है।
वो काँपते हाथों से light on करने लगी।
पर switch दबाते ही पता चला—
बल्ब fuse हो चुका था।
अंधेरे में उसे बस अपने दिल की धड़कन और बाहर से आती हवा की सिसकी सुनाई दे रही थी।
उसने चादर कसकर पकड़ ली, और आँखें बंद कर लीं।
पर उसे अहसास हो रहा था…
कि कोई वहाँ है।
कोई जो उसकी साँसें गिन रहा है
मुंबई की रात हमेशा शोर से भरी रहती थी।
लेकिन उस रात, शहर के एक कोने में खामोशी का क़ब्र जैसा सन्नाटा था।
एक सुनसान गोदाम में पीली रोशनी टिमटिमा रही थी।
दीवारों पर जंग लगे लोहे की गंध और खून की हल्की सी परछाई फैली थी।
कुर्सी से बंधा एक आदमी दया की भीख माँग रहा था।
“प्लीज़… प्लीज़ मुझे जाने दो… मैंने कुछ गलत नहीं किया।”
उसके सामने माहिर सिंह चौधरी खड़े थे।
काले दस्ताने पहने, हाथ में धारदार चाकू चमक रहा था।
उनकी आँखों में ग़ुस्सा नहीं था, डर भी नहीं—बस ठंडी शांति।
“गलत?” माहिर की आवाज़ बर्फ जैसी थी।
“गलती तो तब होती, जब इंसान से उम्मीद हो कि वो सुधर जाएगा।
लेकिन तुम्हारे जैसे लोग सुधरते नहीं… मिटाए जाते हैं।”
आदमी चीखने लगा, लेकिन वहाँ उसकी चीख सुनने वाला कोई नहीं था।
माहिर ने एक पल आँखें बंद कीं, और फिर चाकू उसके सीने में उतार दिया।
आवाज़ आई—चीख, फिर खामोशी।
माहिर ने गहरी साँस ली।
उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
बस हल्की मुस्कान—जैसे उसने कोई जरूरी काम पूरा कर दिया हो।
उसके पीछे शेरा खड़ा था, हमेशा की तरह वफ़ादार।
“Boss, body का क्या करें?”
माहिर ने whiskey का एक घूँट लिया और बोला—
“समुंदर सब निगल लेता है… जैसे डर इंसान की आत्मा।”
---
अगली सुबह, अनिशा अपनी क्लास के लिए तैयार हो रही थी।
उसकी आँखें लाल थीं, नींद पूरी नहीं हुई थी।
रात का डर अब भी उसके साथ था।
वो किताब लेकर classroom में बैठी, पर ध्यान कहीं और था।
हर बार लगता—जैसे कोई उसे देख रहा हो।
उसकी गर्दन काँपती, आँखें अचानक पीछे घूम जातीं।
Lecture शुरू हुआ।
माहिर क्लास में दाखिल हुए, सफ़ेद shirt और काले coat में।
उनकी चाल में वही authority थी—जैसे दुनिया उनके पैरों तले हो।
लेकिन जब उनकी नज़र अनिशा पर पड़ी, तो समय ठहर गया।
उसकी आँखों में डर साफ़ था।
और यही डर, माहिर के लिए सबसे खूबसूरत नशा था।
उन्होंने lecture के बीच अचानक कहा—
“Miss Anisha, ज़रा यहाँ आइए।”
वो घबराते हुए उठी और उनके पास पहुँची।
माहिर ने धीमी आवाज़ में कहा—
“तुम्हारी नींद ठीक नहीं हो रही, है ना?”
अनिशा चौंक गई।
“उन्हें कैसे पता?”
उसने कुछ बोलने की कोशिश की, पर शब्द गले में अटक गए।
माहिर हल्के से मुस्कुराए।
“मैं देख सकता हूँ। और हाँ… डर इंसान को सबसे ज़्यादा खूबसूरत बना देता है।”
वो सन्न रह गई।
बाक़ी क्लास समझ ही नहीं पाई कि उनके बीच क्या बात हुई।
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शाम को, अनिशा hostel लौट रही थी।
सड़क खाली थी, आसमान पर काले बादल छाए थे।
अचानक, उसे वही black कार फिर दिखाई दी।
इस बार उसने तेज़ी से कदम बढ़ाए।
लेकिन कार उसके साथ-साथ चलती रही।
खिड़की का शीशा नीचे हुआ।
माहिर की आँखें, वही नीली ठंडी नज़र।
“बारिश आने वाली है। भीगना नहीं चाहोगी, है ना?”
अनिशा का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
वो भागी और hostel के अंदर घुस गई।
पर जब उसने ऊपर से बाहर देखा—कार गायब थी।
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उस रात…
अनिशा नींद में करवटें बदल रही थी।
अचानक, खिड़की के बाहर किसी परछाई का आभास हुआ।
उसने धीरे से आँखें खोलीं।
काँच पर किसी ने उँगली से लिखा था—
“I’m watching you.”
वो चीख पड़ी और दौड़कर light on की।
लेकिन जब तक उसने दोबारा देखा—लिखावट गायब थी।
जैसे कभी कुछ लिखा ही नहीं गया।
उसकी साँसें तेज़ थीं, हाथ काँप रहे थे।
“ये सब मेरे साथ क्यों हो रहा है?”
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उधर, माहिर अपने study room में बैठे थे।
टेबल पर फाइल खुली थी, और उसमें तस्वीरें—
अनिशा की क्लास की, library की, hostel की।
वो तस्वीरों को देखते हुए बुदबुदाए—
“तुम्हें लगता है कि तुम मुझे avoid कर रही हो…
लेकिन तुम पहले ही मेरे जाल में फँस चुकी हो।”
उनकी उँगलियाँ तस्वीरों पर फिर रही थीं, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को छू रहा हो।
“अब वक्त आ गया है, little dove… तुम्हें डर की असली गहराई दिखाने का।”
उनकी आँखों में वो अंधेरा चमक रहा था,
जो किसी serial killer की पहचान होती है।
क्लास ख़त्म हो चुकी थी।
स्टूडेंट्स अपनी-अपनी किताबें समेटकर बाहर निकल रहे थे।
लेकिन अनिशा हमेशा की तरह जल्दी-जल्दी अपनी चीज़ें समेटकर जाने लगी।
वो जानती थी—किसी की नज़र उस पर टिकी हुई है।
और वही नज़र उसके पैरों को काँपने पर मजबूर कर रही थी।
जैसे ही वो दरवाज़े तक पहुँची, एक ठंडी आवाज़ गूँजी—
“Miss Anisha… रुकिए।”
उसके कदम जम गए।
धीरे-धीरे उसने पीछे मुड़कर देखा।
वहाँ खड़े थे माहिर सिंह चौधरी।
काले सूट में, हाथ जेब में, और आँखें—गहरी, नीली, जमी हुई।
वो धीरे-धीरे उसकी तरफ़ बढ़े।
कमरे में अब कोई और नहीं था।
सिर्फ़ उनकी साँसों की आवाज़ और दीवार पर टिकती हुई अनिशा की परछाई।
माहिर उसके सामने आकर रुके।
इतना क़रीब कि उसकी धड़कनें साफ़ सुनाई देने लगीं।
“इतनी जल्दी भाग क्यों रही हो?”
उनकी आवाज़ धीमी, मगर दिल में उतरने वाली थी।
अनिशा ने हिम्मत जुटाई—
“मुझे… जाना है।”
माहिर मुस्कुराए।
वो मुस्कान डराने वाली थी, जैसे शिकारी अपने शिकार को देखता है।
उन्होंने झुककर उसके कान के पास कहा—
“डर से भागा नहीं जाता, Little Dove… उसे महसूस किया जाता है।”
अनिशा का दिल थम-सा गया।
उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वो ये नाम ज़ुबान से कहेंगे।
वो पीछे हटना चाहती थी, मगर उनकी नज़र ने उसे वहीं बाँध लिया।
एक पल के लिए उसे लगा—जैसे उसके आसपास की हवा भी भारी हो गई हो।
“तुम सोचती हो कि मैं तुम्हें देखता नहीं…”
माहिर की आँखें उसके चेहरे पर जमी थीं,
“लेकिन सच ये है कि तुम्हारा हर पल मेरी नज़रों में कैद है।”
अनिशा काँपते हुए बोली—
“ये सब… गलत है, सर।”
माहिर ने हल्की हँसी छोड़ी।
“गलत और सही… ये कमजोर लोगों के शब्द हैं।
मेरे लिए बस एक सच है—तुम मेरी हो।”
वो आगे झुके, और उनकी ठंडी उँगलियाँ उसके हाथ को छू गईं।
अनिशा का पूरा शरीर सिहर उठा।
“और हाँ…” उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा,
“अब भागने की कोशिश मत करना। क्योंकि शिकारी हमेशा अपनी ‘Little Dove’ तक पहुँच ही जाता है।”
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aaj etna hi guys baki bad me
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क्लास ख़त्म हो चुकी थी।
बाहर बारिश हो रही थी, hostel का रास्ता भीग चुका था।
ज़्यादातर स्टूडेंट्स भागते हुए निकल गए, लेकिन अनिशा किताब समेटते हुए सबसे आखिर में कमरे से निकली।
जैसे ही उसने corridor पार किया, अचानक किसी ने उसका रास्ता रोक लिया।
वो चौंककर देखी—सामने माहिर खड़े थे।
काले coat में, भीगे बालों से पानी टपक रहा था।
“इतनी जल्दी भाग क्यों रही हो?”
उनकी आवाज़ गहरी थी, जिसमें ठंडी मुस्कान छिपी थी।
अनिशा ने घबराकर कहा—
“मुझे hostel जाना है, सर।”
माहिर एक कदम और करीब आए।
“Hostel…” उन्होंने धीरे से दोहराया,
“लेकिन रास्ता तो यहाँ से होकर नहीं जाता।”
अनिशा का गला सूख गया।
“प..प्लीज़ मुझे जाने दीजिए।”
माहिर झुककर उसकी आँखों में देखने लगे।
“तुम्हें लगता है भाग सकती हो, Little Dove?”
उसने पीछे हटने की कोशिश की, मगर दीवार से टकरा गई।
अब उसके और माहिर के बीच सिर्फ़ सांसों का फासला था।
“तुम्हें डर लगता है मुझसे?” माहिर ने फुसफुसाकर पूछा।
अनिशा ने काँपते हुए सिर हिलाया।
“हाँ… लगता है।”
माहिर मुस्कुराए।
“डर ही तो सबसे खूबसूरत एहसास है। और मैं तुम्हारे डर को कभी खत्म नहीं होने दूँगा।”
उन्होंने अचानक उसका चेहरा पकड़ लिया, और बिना कुछ कहे अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए।
अनिशा की आँखें चौड़ी हो गईं।
वो छूटने की कोशिश करती रही, लेकिन माहिर की पकड़ बहुत मज़बूत थी।
उनकी cold intensity और obsession उसकी पूरी रूह में उतर रही थी।
कुछ सेकंड बाद जब माहिर पीछे हटे, तो उनकी आँखों में गहरी चमक थी।
“अब तुम कभी भूल नहीं पाओगी कि तुम मेरी हो।
याद रखना, तुम जितनी लड़ोगी… मैं उतना तुम्हें क़रीब खींचूँगा।”
अनिशा ने काँपते हुए कहा—
“ये… ये सब गलत है, सर।”
माहिर की मुस्कान और गहरी हो गई।
“गलत और सही का खेल किताबों में अच्छा लगता है।
असल ज़िंदगी में… सिर्फ़ शिकारी और शिकार होता है।
और तुम… मेरी Little Dove, अब सिर्फ़ मेरी हो।”
उसके चेहरे पर हल्की सी लकीर खींचते हुए उन्होंने कहा—
“भागने की कोशिश मत करना… वरना अगली बार मैं तुम्हें जाने भी नहीं दूँगा।”
अनिशा वहीं खड़ी रह गई, दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
उसकी साँसें भारी थीं, और उसके होंठ अब भी उस स्पर्श की गिरफ्त में थे।
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बारिश थम चुकी थी, लेकिन अनिशा के दिल की धड़कन अब भी तेज़ थी।
उसके होंठ काँप रहे थे, जैसे वो अब भी उस अजनबी-सा, मगर खौफ़नाक चुंबन महसूस कर रही हो।
उसके दिमाग में सिर्फ़ एक नाम गूंज रहा था—सर… माहिर…
वो hostel तक पहुँची तो खुद को कमरे में बंद कर लिया।
आईने के सामने खड़ी होकर अपने चेहरे को छूती रही।
आँखों में सवाल थे—उसने ऐसा क्यों किया?
ये सब कब खत्म होगा?
लेकिन अंदर कहीं गहराई में एक और सच्चाई थी—
वो उसकी नज़रों से बच ही नहीं पा रही थी।
उन आँखों में अजीब-सा नशा था, जो डराने के साथ बाँध भी लेता था।
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अगले दिन क्लास में सब कुछ सामान्य था।
स्टूडेंट्स हँसते-बोलते नोट्स बना रहे थे।
लेकिन अनिशा की आँखें बार-बार दरवाज़े की ओर उठ जातीं।
जैसे ही दरवाज़ा खुला, प्रोफेसर माहिर सिंह चौधरी अंदर आए।
काले सूट में, हमेशा की तरह perfection का नमूना।
लेकिन उसकी नज़रें सीधे अनिशा पर जा टिकीं।
उसका दिल थम गया।
बाकी सबके लिए वो सिर्फ़ प्रोफेसर थे,
लेकिन उसके लिए वो अब क़ैद करने वाला शिकारी बन चुके थे।
“Good morning, class,” माहिर की आवाज़ गूँजी।
फिर उनकी नज़रें ठहरीं,
“Miss Anisha… my Little Dove… stand up.”
पूरी क्लास चौंकी।
अनिशा काँपते हुए खड़ी हो गई।
“क्या हुआ, सर?” उसने हिम्मत जुटाकर पूछा।
माहिर ने गहरी साँस ली, और धीमे-धीमे बोले—
“पढ़ाई में ध्यान लगाइए… वरना सज़ा मिल सकती है।”
बाहर से ये सामान्य-सा वाक्य था।
लेकिन उसकी आँखों में जो चेतावनी छिपी थी, वो सिर्फ़ अनिशा समझ रही थी।
वो नज़र कह रही थी—भागने की कोशिश मत करना।
क्लास ख़त्म हुई।
बाकी सब निकल गए, लेकिन माहिर ने हाथ उठाकर कहा—
“Miss Anisha, you stay.”
कमरा खाली हो गया।
अब फिर वही खामोशी, वही डर।
“बैठिए,” उन्होंने आदेश दिया।
अनिशा धीरे-धीरे बैठ गई, लेकिन उसकी नज़रें झुकी रहीं।
माहिर उसके पास आए, टेबल पर झुक गए।
“तुमने कल रात बहुत सोचा होगा…”
उनकी आवाज़ में खतरनाक नरमी थी।
“…लेकिन याद रखना, तुम्हारे पास कोई रास्ता नहीं है।”
अनिशा की साँस अटक गई।
“प्लीज़, सर… मुझे अकेला छोड़ दीजिए।”
माहिर ने उसका ठोड़ी उठाकर मजबूर किया कि वो उनकी आँखों में देखे।
“अकेला? Little Dove, अब तुम्हें कभी अकेला रहने नहीं दूँगा।”
अनिशा की आँखों में आँसू आ गए।
“ये सब गलत है।”
माहिर मुस्कुराए।
“गलत… सही… ये कमजोर लोगों के शब्द हैं।
मैं सिर्फ़ एक सच मानता हूँ—तुम मेरी हो। और मैं वो सब करूँगा जिससे तुम कभी मुझे भूल न सको।”
उन्होंने धीरे से उसकी कलाई पकड़ ली।
उसकी नाज़ुक हथेली उनकी मज़बूत उँगलियों में गुम हो गई।
“कल शाम सात बजे… मेरे cabin में आओ। अकेली।”
अनिशा हिल गई।
“नहीं… मैं—”
माहिर ने तुरंत उसकी आँखों में देखते हुए कहा—
“ना मत कहना। तुम आओगी।
क्योंकि अगर तुम नहीं आई, तो मैं खुद तुम्हें लेने आऊँगा… और तब तुम्हारे hostel का दरवाज़ा भी तुम्हें बचा नहीं पाएगा।”
उसके शब्दों ने अनिशा के दिल को चीर दिया।
वो चाहकर भी इंकार नहीं कर सकी।
माहिर ने उसकी हथेली छोड़ दी और सीधे खड़े हो गए।
“अब जाओ। क्लास खत्म हो चुकी है।”
अनिशा काँपते हुए बाहर निकल गई।
लेकिन उसके कानों में अब भी उनकी आखिरी लाइन गूँज रही थी—
“तुम मेरी हो।”
---
रात को hostel में वो सो नहीं सकी।
बार-बार खिड़की से बाहर देखती रही, मानो अंधेरे में भी उसकी परछाई उसे देख रही हो।
उसका दिल कह रहा था—वो सचमुच सब कुछ कर सकता है।
वो प्रोफेसर है, businessman है, और mafia भी…
और शायद… serial killer भी।
उसने खुद से वादा किया—
कल मैं नहीं जाऊँगी। चाहे कुछ भी हो जाए।
लेकिन उसके अंदर का डर उसे बार-बार तोड़ रहा था।
क्योंकि वो जानती थी—माहिर जैसा आदमी अपनी बात से कभी पीछे नहीं हटता।
---
अगली शाम सात बजे…
अनिशा ने खुद को कमरे में बंद कर लिया।
लेकिन तभी उसका फोन वाइब्रेट हुआ।
एक unknown number से message आया—
📩 “तुम्हारे hostel gate पर खड़ा हूँ।
ना भागना, Little Dove… वरना मैं अंदर आ जाऊँगा।”
अनिशा के हाथ से फोन गिरते-गिरते बचा।
उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
वो समझ चुकी थी—माहिर ने उसे सच में choice ही नहीं दी।
घड़ी की सुइयाँ जैसे रुक गई थीं।
अनिशा hostel के कमरे में बैठी कांप रही थी।
फोन पर आया वो मैसेज उसके दिल में खंजर की तरह गड़ गया था—
“तुम्हारे hostel gate पर खड़ा हूँ… अगर ना आई, तो मैं अंदर आ जाऊँगा।”
उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े।
वो नहीं चाहती थी कि कोई देखे, सुने या उसकी बदनामी हो।
माहिर वही कर रहा था जिससे वो सबसे ज़्यादा डरती थी—उसकी आज़ादी छीन लेना।
आख़िरकार काँपते कदमों से वो नीचे उतरी।
गेट से बाहर देखा तो,
वहाँ वही खड़ा था।
प्रोफेसर माहिर सिंह चौधरी।
काले coat में, आँखों में वही नीली ठंडी चमक।
लोगों की नज़र में एक successful businessman और respected teacher…
लेकिन अनिशा के लिए अब वो उसकी क़ैद का मालिक था।
माहिर की आँखें सीधे उसकी आँखों में धँस गईं।
“Good girl,” उसने धीमे स्वर में कहा।
“मुझे पता था, तुम आओगी। चलो।”
अनिशा ने डरते-डरते कदम बढ़ाए।
उसके अंदर चीखने की हिम्मत नहीं थी।
ना ही भागने की ताकत।
---
कुछ ही देर में वो उसकी black car में बैठी थी।
गाड़ी शहर की भीड़ से निकलकर सीधी यूनिवर्सिटी कैंपस के पीछे वाले हिस्से की ओर जा रही थी।
वो रास्ता सुनसान था।
“सर… ये सब ज़रूरी है?” अनिशा ने धीमे से कहा।
उसकी आवाज़ काँप रही थी।
माहिर ने steering पर हाथ कसकर पकड़ा।
“जब मैंने कहा था कि सात बजे मेरे cabin में आना… तो क्या तुम्हें लगा मैं मज़ाक कर रहा हूँ?”
अनिशा चुप हो गई।
उसकी आँखों से आँसू गिर पड़े, जिन्हें उसने छुपाने की कोशिश की।
माहिर ने एक नज़र उसकी तरफ डाली और होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
“मत रो, Little Dove… तुम्हें आँसू बहुत अच्छे लगते हैं। लेकिन याद रखना, मैं चाहता हूँ तुम सिर्फ़ मेरे सामने ही ऐसे टूटो।”
---
गाड़ी सीधा यूनिवर्सिटी का पुराना ब्लॉक पार करते हुए पीछे बनी faculty building में रुकी।
यहाँ अंधेरा था, सुनसान था।
सिर्फ़ एक कमरे में हल्की रोशनी जल रही थी—माहिर का cabin।
वो दरवाज़ा खोलकर अंदर गया और हाथ से इशारा किया।
“आओ।”
अनिशा ने डरते हुए कदम रखे।
कमरा ठंडा, सजा हुआ और बेहद सन्नाटा लिए हुए था।
टेबल पर whiskey की bottle रखी थी।
दीवारों पर किताबों की अलमारियाँ और एक बड़ी खिड़की, जिसके बाहर अंधेरा ही अंधेरा था।
माहिर ने दरवाज़ा बंद किया।
क्लिक की आवाज़ ने अनिशा के दिल की धड़कन और तेज़ कर दी।
“बैठो,” उसने command किया।
अनिशा chair पर बैठ गई।
उसकी उंगलियाँ कसकर आपस में जकड़ी हुई थीं।
माहिर धीरे-धीरे उसके चारों ओर घूमता रहा, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को परख रहा हो।
फिर उसकी कुर्सी के पीछे आकर झुक गया।
उसकी साँसें उसके कान से टकराईं।
“तुम जानती हो न, तुमसे बचना असंभव है?”
उसकी आवाज़ फुसफुसाहट थी, मगर ज़हर से भरी हुई।
अनिशा ने काँपते हुए कहा,
“प्लीज़… मुझे जाने दीजिए… मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगी…”
माहिर हँसा।
“बताओगी? किसे बताओगी? इस शहर में कोई भी मेरे ख़िलाफ़ खड़ा नहीं हो सकता, Little Dove। और अगर तुम कोशिश भी करोगी… तो याद रखना, मैं सिर्फ़ तुम्हें नहीं… तुम्हारे पूरे छोटे से family को भी बर्बाद कर दूँगा।”
ये सुनकर अनिशा की आँखें फैल गईं।
उसके होंठ काँप उठे।
“नहीं… मेरे परिवार को मत छूना।”
माहिर उसकी आँखों में झुककर देखता रहा।
“तो फिर समझदारी से रहो।”
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वो धीरे से उसके सामने आया, उसकी कुर्सी के पास घुटनों के बल बैठ गया।
उसकी हथेली ने अनिशा का हाथ थाम लिया।
“तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है… मैं तुम्हें कभी छोड़ूँगा नहीं। चाहे तुम चाहो या ना चाहो, तुम मेरी हो।”
अनिशा ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन माहिर ने कसकर पकड़े रखा।
“सर… ये सब गलत है।”
माहिर की आँखें और गहरी हो गईं।
“गलत? शायद। लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता।
जो चीज़ मैं चाहता हूँ, उसे पाकर ही दम लेता हूँ। और तुम्हें मैंने चुन लिया है।”
उसने अचानक उसकी उँगलियाँ अपने होंठों पर रख दीं।
अनिशा हिल गई।
उसका दिल सीने से बाहर आने लगा।
“तुम्हारे हाथ काँप रहे हैं… तुम्हारी साँसें तेज़ हैं… और ये डर मुझे पागल बना रहा है।”
माहिर ने धीरे से उसकी हथेली पर किस किया।
अनिशा ने चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।
“कृपया… मत कीजिए…”
लेकिन माहिर ने उसकी ठोड़ी पकड़कर मजबूर किया कि वो उसकी आँखों में देखे।
“मेरे बिना अब तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है, Little Dove। तुम भाग सकती हो… छुप सकती हो… लेकिन अंत में तुम्हें मेरे पास ही लौटना पड़ेगा।”
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कमरे की घड़ी ने आठ बजाए।
सन्नाटे में सिर्फ़ उनकी साँसें गूँज रही थीं।
माहिर ने उसकी ओर झुककर कहा—
“आज तो मैं सिर्फ़ तुम्हें चेतावनी देने आया हूँ। लेकिन याद रखना… शादी से पहले भी मैं तुम्हें पूरी तरह अपना बना सकता हूँ। मत भूलना, मैं सिर्फ़ प्रोफेसर नहीं हूँ… मैं वो Devil हूँ जिससे पूरी दुनिया काँपती है।”
उसकी आँखों में पागलपन था।
अनिशा की आँखों में डर।
उसने कुर्सी का हैंडल कसकर पकड़ा, मानो वहीं से ताक़त मिल रही हो।
लेकिन अंदर से वो जानती थी—अब उसके पास कोई बचाव नहीं है।
रात लंबी थी, लेकिन अनिशा के लिए वो जैसे ज़िंदगी का सबसे भारी बोझ बन गई थी।
क्लास, hostel, दोस्तों की हँसी—सब चीज़ें उससे धीरे-धीरे छिनती जा रही थीं।
अब उसकी हर सोच, हर साँस के पीछे सिर्फ़ एक नाम था—प्रोफेसर माहिर सिंह चौधरी।
वो आदमी, जो सबकी नज़रों में इज़्ज़त और ताक़त की मिसाल था,
लेकिन उसके लिए वो एक कैद का दरवाज़ा बन चुका था।
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अगली शाम।
क्लास के बाद अनिशा जल्दी-जल्दी बाहर निकल रही थी।
उसने ठान लिया था कि आज वो hostel सीधा जाएगी, किसी से बात नहीं करेगी।
लेकिन जैसे ही उसने कॉलेज गेट पार किया,
सामने एक black luxury car आकर रुकी।
खिड़की नीचे हुई—और वही आँखें।
माहिर।
“Inside,” उसकी आवाज़ आई।
ना आदेश था, ना सवाल—बस हुक्म।
अनिशा एक पल को जमी रह गई।
“सर… प्लीज़… मुझे जाने दीजिए…” उसकी आवाज़ काँप रही थी।
माहिर ने हल्की मुस्कान दी।
“तुम्हें अभी भी लगता है कि तुम ‘ना’ कह सकती हो, Little Dove?”
उसने car का दरवाज़ा खोला।
सड़क पर लोगों की आवाजाही थी, और अनिशा जानती थी—अगर उसने मना किया तो वो सच में सबके सामने कुछ भी कर सकता है।
डर के मारे उसने कदम बढ़ाए और car में बैठ गई।
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गाड़ी चल पड़ी।
शहर की चमक-दमक से निकलकर सड़क सुनसान होती गई।
अनिशा बार-बार बाहर देख रही थी, जैसे रास्ते याद रखने की कोशिश कर रही हो।
“इतना मत सोचो,” माहिर ने steering घुमाते हुए कहा।
“तुम्हें वहाँ ले जा रहा हूँ, जहाँ तुम सिर्फ़ मेरी रहोगी।”
“कहाँ… कहाँ ले जा रहे हैं आप मुझे?” अनिशा ने डरते हुए पूछा।
माहिर की आँखें सख़्त हो गईं।
“जगह का नाम क्यों चाहिए?
बस इतना समझ लो—वो तुम्हारी दुनिया होगी, और उसके बाहर तुम्हें जीने की इजाज़त नहीं।”
अनिशा का दिल धड़क उठा।
उसके होंठ काँप रहे थे।
“ये सब गलत है, सर… आप मुझे मजबूर क्यों कर रहे हैं?”
माहिर ने उसकी ओर देखा, आँखों में अजीब-सा नशा था।
“क्योंकि मैं कर सकता हूँ। और क्योंकि मैं चाहता हूँ।”
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करीब एक घंटे बाद गाड़ी शहर से दूर, घने जंगलों के बीच बने एक पुराने रास्ते पर मुड़ गई।
चारों तरफ अंधेरा और सन्नाटा।
अंत में एक विशाल farmhouse सामने आया—ऊँची दीवारों से घिरा, गेट पर armed guards खड़े थे।
गाड़ी अंदर गई।
माहिर ने उसे उतरने का इशारा किया।
अनिशा काँपते हुए बाहर आई।
Farmhouse अंदर से बेहद luxurious था।
लेकिन उस शांति में एक डर छिपा था, जैसे ये जगह दुनिया से अलग हो।
माहिर ने दरवाज़ा बंद किया और चाबी जेब में डाल ली।
“Welcome home, Little Dove,” उसकी cold voice गूँजी।
अनिशा ने डरकर पीछे हटना चाहा।
“नहीं… ये मेरा घर नहीं है… मुझे hostel वापस जाना है।”
माहिर ने पलटकर उसे देखा, आँखों में शिकारी जैसी चमक।
“Hostel? वो पिंजरा है, और ये किला।
अब तुम मेरी दुनिया में हो… और यहाँ से बाहर जाने का हक़ सिर्फ़ मेरे पास है।”
उसने उसके हाथ पकड़कर दीवार के पास दबा दिया।
अनिशा की साँसें तेज़ हो गईं।
“प्लीज़… मुझे छोड़ दीजिए…”
उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
माहिर ने उसकी नज़रों में झाँकते हुए फुसफुसाया—
“तुम्हें लगता है मैं तुम्हें चोट पहुँचाना चाहता हूँ? नहीं… मैं तुम्हें अपने क़रीब रखना चाहता हूँ।
तुम्हारे डर में, तुम्हारे आँसुओं में… मुझे सुकून मिलता है।
और यही obsession मुझे ज़िंदा रखता है।”
---
उसने धीरे-धीरे उसका चेहरा अपनी हथेली से छुआ।
“तुम्हारी ये आँखें… तुम्हारे ये काँपते होंठ… सब मेरे हैं।
तुम चाहे कितना भी इंकार करो, अनिशा, तुम अब कभी आज़ाद नहीं हो सकती।”
अनिशा ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की।
“क्यों… क्यों कर रहे हैं आप ये सब?”
माहिर झुका, उसके कान के पास फुसफुसाया—
“क्योंकि मैं Devil हूँ। और तुम मेरी चुनी हुई शिकार हो।
तुम्हारी मासूमियत ही मेरी सबसे बड़ी addiction है।”
उसके शब्दों से अनिशा का पूरा शरीर काँप उठा।
उसने हाथ जोड़ने की कोशिश की, लेकिन माहिर ने उसके हाथ पकड़कर पीछे कर दिए।
“आज से तुम्हारी ज़िंदगी मेरे नाम है, Little Dove।
तुम्हारे हर कदम, हर साँस… सब मेरी इजाज़त से होंगे।”
---
फिर उसने अचानक उसकी कलाई पर अपने होंठ रख दिए।
अनिशा का दिल धक् से रुक गया।
वो पीछे हटना चाहती थी, लेकिन माहिर ने उसे और पास खींच लिया।
“ये पहला निशान है…” उसने उसकी कलाई पर हल्की bite छोड़ते हुए कहा।
“…ताकि तुम्हें याद रहे, तुम किसकी हो।”
अनिशा की आँखों में आँसू भर आए।
“कृपया… मुझे जाने दीजिए… मैं मर जाऊँगी इस कैद में।”
माहिर मुस्कुराया।
“मरने की इजाज़त भी मैं ही दूँगा।”
उसके शब्दों ने अनिशा की रूह तक कंपा दी।
---
रात गहरी हो चुकी थी।
Farmhouse का गेट बंद हो चुका था।
और अनिशा को समझ आ गया था—वो सच में एक कैद में आ चुकी है।
अब उसकी दुनिया वही दीवारें थीं…
और उसका मालिक सिर्फ़ एक आदमी—
प्रोफेसर माहिर सिंह चौधरी, The Devil.
रात गहरी थी।
Farmhouse के बड़े हॉल में सिर्फ़ एक chandelier जल रहा था, जिसकी सुनहरी रोशनी अनिशा की डरी हुई आँखों पर पड़ रही थी।
वो corner में बैठी थी, knees सीने से लगाकर।
माहिर कमरे की दूसरी तरफ whiskey के glass के साथ बैठा था।
उसकी नीली आँखें उसी पर टिकी हुई थीं।
मानो हर साँस, हर हलचल को पढ़ रहा हो।
“इतना डरी हुई क्यों हो, Little Dove?” उसने cold आवाज़ में पूछा।
“तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि अब तुम्हें हमेशा मेरे पास रहने का मौका मिला है।”
अनिशा चुप रही।
उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
माहिर ने धीरे-धीरे glass रखा और उठ खड़ा हुआ।
वो उसके पास आया, उसके चेहरे से आँसू पोंछे।
“मत रो… तुम्हारे आँसू सिर्फ़ मेरे लिए हैं। लेकिन अगर तुम ऐसे रोती रही, तो शायद मैं अपना control खो दूँ।”
ये कहकर वो उसके बालों को सहलाने लगा।
अनिशा काँप उठी।
उसने डरते-डरते कहा—
“सर… मुझे बस घर जाने दीजिए।”
माहिर की आँखों में चमक आई।
“घर? ये ही तुम्हारा घर है। और अगर तुमने इसे न माना… तो मैं इसे सचमुच कैदखाना बना दूँगा।”
---
उस रात, जब माहिर अपने private room में चला गया,
अनिशा को पहली बार मौका मिला।
वो धीरे-धीरे उठी।
दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि मानो ज़रा-सी आवाज़ में पकड़ी जाएगी।
उसने दरवाज़ा खोला और hallway में कदम रखा।
Farmhouse विशाल था, लेकिन guards कम थे।
वो दबे पाँव चलती हुई पीछे के दरवाज़े तक पहुँची।
हाथ काँपते हुए उसने handle पकड़ा—
Locked.
उसकी साँस अटक गई।
वो दूसरी तरफ़ मुड़ी और खिड़कियों पर हाथ आज़माने लगी।
लेकिन सबकी latch अंदर से बंद थी।
अचानक पीछे से आवाज़ आई।
“भाग कहाँ रही हो, Little Dove?”
उसका खून जम गया।
वो पलटी तो देखा—
माहिर दरवाज़े के पास खड़ा था।
उसकी आँखों में पागलपन था, लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान।
“सोचा था मैं नहीं जानूँगा?”
वो धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा।
अनिशा पीछे हटने लगी।
“प्लीज़… मुझे जाने दीजिए… मैं किसी को कुछ नहीं कहूँगी…”
माहिर ने उसका हाथ पकड़ लिया और दीवार से जोर से टकरा दिया।
उसकी cold voice उसके कान में गूँजी—
“मैंने तुम्हें पहले ही कहा था… भागने की कोशिश मत करना।”
अनिशा की आँखों में आँसू भर गए।
“मैं… मैं डर रही हूँ…”
माहिर ने उसकी ठोड़ी पकड़कर मजबूर किया कि वो उसकी आँखों में देखे।
“डरना ही तो है तुम्हें। यही डर तुम्हें मेरे पास बाँधकर रखेगा।”
---
वो अचानक झुककर उसके होंठों के बेहद करीब आ गया।
लेकिन छुआ नहीं।
सिर्फ़ उसकी साँसें उसके होंठों से टकरा रही थीं।
“ये punishment है तुम्हारे लिए।”
उसने उसकी कलाई को कसकर पकड़ते हुए वहाँ हल्की bite छोड़ी।
अनिशा चीख पड़ी।
माहिर मुस्कुराया।
“अब ये निशान तुम्हें याद दिलाएगा कि तुम सिर्फ़ मेरी हो।”
अनिशा काँपते हुए बोली—
“आप devil हैं…”
माहिर ने उसके कान में फुसफुसाया—
“और तुम मेरी छोटी सी dove… मेरी कैद में फड़फड़ाने वाली चिड़िया।”
उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
“प्लीज़… ऐसा मत कीजिए…”
माहिर ने अचानक उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लिया।
उसकी आँखें गहरी और पागलपन से भरी हुई थीं।
“मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकता, अनिशा।
चाहे तुम मुझे कितनी भी नफ़रत दो… मैं तुम्हें अपनी addiction से कभी आज़ाद नहीं करूँगा।”
---
फिर उसने उसे अपनी बाहों में खींच लिया।
अनिशा ने छूटने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वो हिल भी नहीं सकी।
“याद रखो,” माहिर ने उसके कान के पास सर्द आवाज़ में कहा,
“आज सिर्फ़ तुम्हें warning दी है।
अगर फिर से भागने की कोशिश की… तो मैं सचमुच तुम्हें बाँध दूँगा।”
उसके शब्दों ने अनिशा के दिल को चीर दिया।
वो टूट गई थी।
---
कुछ देर बाद माहिर ने उसे छोड़ा और पीछे हट गया।
“अब जाओ, अपने कमरे में। और मत भूलना… तुम्हारी साँसें भी मेरी इजाज़त से चलती हैं।”
अनिशा काँपते हुए सीढ़ियों पर चढ़ गई।
उसकी आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे।
वो समझ चुकी थी—
ये कैद अब सिर्फ़ शुरुआत है।
और माहिर का जुनून अब उसे और गहराई तक खींच ले जाएगा।
अनिशा अपने कमरे में चुपचाप बैठी थी।
पिछली रात की घटना उसके दिल-दिमाग़ पर अब भी भारी थी।
उसकी कलाई पर माहिर के दाँतों का निशान जल रहा था, जैसे हर धड़कन उसे याद दिला रही हो कि वो किसके कैद में है।
दरवाज़ा अचानक खुला।
एक guard अंदर आया और ठंडी आवाज़ में बोला—
“सर ने बुलाया है। नीचे dining hall में।”
अनिशा का दिल धड़क उठा।
वो समझ गई कि “ना” कहना यहाँ option नहीं है।
धीरे-धीरे उसने कदम बढ़ाए और नीचे उतरी।
---
Dining hall में लंबी टेबल सजी हुई थी।
टेबल पर सुनहरी कैंडल स्टैंड, expensive cutlery और wine glasses रखे हुए थे।
सामने माहिर बैठा था, काली शर्ट के बटन हल्के खुले हुए, आँखों में वही सर्दी और पागलपन।
जैसे ही अनिशा अंदर आई, उसकी नज़र उस पर टिक गई।
वो मुस्कुराया—
“Welcome, Little Dove.
आख़िरकार मेरी table पर बैठने का वक़्त आ ही गया।”
अनिशा ने डरते-डरते कुर्सी खींची और बैठ गई।
उसकी नज़र नीचे झुकी हुई थी।
माहिर ने हाथ से इशारा किया।
“ऊपर देखो।
मैंने तुम्हें इसीलिए यहाँ बुलाया है ताकि तुम्हें याद रहे—
तुम अब मेरी दुनिया का हिस्सा हो।”
---
Dinner serve हुआ।
Guard ने plates रखीं और बाहर चला गया।
अब hall में सिर्फ़ वो दोनों थे।
माहिर ने wine glass उठाया और धीरे-धीरे swirl किया।
“क्या सोचती हो, Little Dove?
ये dinner कोई punishment है या gift?”
अनिशा काँपते हुए बोली—
“प्लीज़… मुझे ये सब मत कीजिए… मैं बस normal life चाहती हूँ।”
माहिर अचानक हँसा।
उसकी हँसी गहरी और ठंडी थी।
“Normal life?
तुम्हें लगता है कि तुम जैसे किसी ordinary इंसान की तरह जी सकती हो?
तुम अब मेरी wife बनने वाली हो, Anisha.
और मेरी wife को normal life नहीं, royal life मिलती है… भले ही उस पर ताले क्यों न लगे हों।”
उसके शब्दों ने अनिशा को भीतर तक डरा दिया।
---
वो काँपते हाथों से खाना खाने लगी।
लेकिन उसका हर निवाला गले में अटक रहा था।
माहिर उसे ध्यान से देख रहा था।
अचानक उसने हाथ बढ़ाया और उसका fork पकड़ लिया।
“इतनी जल्दी क्यों?
Slow down, Little Dove.
Dinner मेरे साथ है… इसे यादगार होना चाहिए।”
अनिशा ने fork छोड़ दिया।
उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं।
माहिर ने उसका हाथ थाम लिया और उसे अपनी ओर खींचा।
उसकी cold fingers उसकी उँगलियों पर कस गईं।
“ये हाथ अब सिर्फ़ मेरी service करेंगे।
तुम्हारी हर साँस, हर हरकत… सब मेरी इजाज़त से होगी।”
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अनिशा की आँखों से आँसू निकलने लगे।
उसने फुसफुसाकर कहा—
“आप devil हैं…”
माहिर झुककर उसके कान के पास बोला—
“और तुम… मेरी Little Dove।
अगर तुमने फिर से devil कहा… तो मैं सचमुच तुम्हें दिखा दूँगा कि devil किसे कहते हैं।”
उसकी आवाज़ इतनी खतरनाक थी कि अनिशा का दिल रुक-सा गया।
---
Dinner के बीच माहिर अचानक उसकी chair के पास आया।
उसके करीब झुककर बोला—
“देखो… इस table पर कितनी luxury है।
लेकिन इसकी असली queen सिर्फ़ तुम हो।
फर्क बस इतना है कि ये luxury तुम्हारे लिए ताज नहीं… बेड़ियाँ बन गई हैं।”
उसने धीरे से उसकी ठोड़ी उठाई।
“अब भागने के बारे में सोचना भी मत।
अगर तुमने फिर कोशिश की… तो मैं सिर्फ़ तुम्हें बाँधूँगा नहीं… तुम्हें अपना नाम भी दे दूँगा।
Forced marriage, Little Dove.
तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं कि मैं कितनी दूर तक जा सकता हूँ।”
अनिशा की साँसें रुक गईं।
शब्द उसके गले में अटक गए।
---
माहिर ने wine का sip लिया और उसे देखा।
“Dinner खत्म।
अब ऊपर जाओ… और याद रखो—ये house तुम्हारा prison नहीं, तुम्हारा throne है।
लेकिन queen वही कहलाती है… जो king की बात माने।”
अनिशा काँपते हुए उठी और सीढ़ियों की ओर बढ़ गई।
उसकी पीठ पर माहिर की नज़रें जलती रही,
जैसे invisible chains उसे बाँध रही हों।
---
उस रात, अपने कमरे में बैठी अनिशा ने तय किया—
अब उसे या तो इस devil की दुनिया स्वीकार करनी होगी…
या फिर ऐसी जंग लड़नी होगी जिससे वो खुद को खो भी सकती है।
और माहिर?
वो पहले ही सोच चुका था—
“Little Dove अब कभी उड़ नहीं पाएगी।”
सुबह की धूप खिड़की से अंदर आ रही थी, मगर अनिशा के कमरे में अंधेरा छाया हुआ था।
वो अभी भी पिछले रात की dinner table वाली घटना से कांप रही थी।
उसकी आँखें लाल थीं, रातभर नींद नहीं आई थी।
दरवाज़ा अचानक खुला।
माहिर अंदर आया—काला three-piece suit, perfect tie और हाथ में कार की keys।
उसकी नीली आँखें ठंडी और खतरनाक लग रही थीं।
वो मुस्कुराया—
“Good morning, Little Dove.
आज तुम मेरे साथ चलोगी… यूनिवर्सिटी।”
अनिशा की साँसें अटक गईं।
“क्या? मैं वहाँ कैसे…? सब लोग…”
माहिर ने उसे बीच में ही रोक दिया।
“सब लोग जानेंगे कि अब तुम सिर्फ़ मेरी हो।
तुम्हारी पहचान अब Student की नहीं… बल्कि Professor Mahir Singh Chaudhary की possession की होगी।”
उसके शब्द जैसे लोहे की जंजीरों की तरह अनिशा पर कस गए।
---
कुछ देर बाद, black luxury car यूनिवर्सिटी के गेट पर रुकी।
गाड़ी से उतरते ही सबकी नज़रें उनकी ओर उठ गईं।
माहिर के साथ चलते हुए अनिशा का दिल तेज़ धड़क रहा था।
वो चाहती थी कि ज़मीन फट जाए और वो उसमें समा जाए।
Classmates फुसफुसाने लगे—
“ये अनिशा है ना?”
“Sir के साथ क्यों आई है?”
“लगता है कोई special relation है…”
उनकी बातें सुनकर अनिशा का चेहरा शर्म और डर से लाल हो गया।
लेकिन माहिर?
उसके चेहरे पर सिर्फ़ एक cold satisfaction था।
---
Lecture hall में माहिर ने सभी students को देखा।
उसकी आवाज़ गहरी और authority से भरी थी।
“आज का lecture short होगा… क्योंकि मुझे एक announcement करनी है।”
पूरे hall में silence छा गया।
माहिर ने अनिशा की ओर इशारा किया।
“तुम सब इसे जानते हो—Anisha.
From today… she is not just your classmate.
She belongs to me.”
सभी students shock में एक-दूसरे को देखने लगे।
अनिशा का चेहरा उतर गया।
उसके लिए ये humiliation था।
माहिर ने आगे कहा—
“याद रखो… जो मेरी चीज़ पर नज़र डालेगा, उसका अंजाम वही होगा जो मैं तय करूँगा।
So stay away.”
उसकी नीली आँखें इतनी ठंडी थीं कि किसी में हिम्मत नहीं थी सवाल करने की।
---
Lecture खत्म होने के बाद भी सबके बीच फुसफुसाहट जारी रही।
नैना, जो अनिशा की दोस्त थी, उसके पास आई।
“अनिशा… ये सब क्या है? सर ने ये क्यों कहा? तुम ठीक हो ना?”
अनिशा की आँखों में आँसू थे, मगर उसने बस सिर झुका लिया।
कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी।
पीछे से माहिर की आवाज़ आई—
“Anisha, let’s go.”
उस tone में ऐसा command था कि अनिशा चाहकर भी मना नहीं कर सकी।
---
गाड़ी में बैठते ही माहिर ने उसकी ओर देखा।
“तुम्हें पता है, Little Dove, मैंने आज ये सब क्यों किया?”
अनिशा काँपते हुए बोली—
“आपने… मुझे सबके सामने शर्मिंदा कर दिया…”
माहिर अचानक झुक गया, उसकी ठोड़ी पकड़कर ऊपर किया।
“नहीं। मैंने तुम्हें सबके सामने protected किया।
अब कोई भी लड़का तुम्हारी तरफ़ देखेगा भी तो हज़ार बार सोचेगा।
तुम मेरी हो… और मैंने ये सच पूरी दुनिया को बता दिया है।”
उसकी cold breath अनिशा के चेहरे से टकरा रही थी।
उसके words में एक अजीब-सी possessiveness थी, जो डर और पागलपन दोनों थी।
---
उस रात, mansion में अनिशा अकेले अपने कमरे में बैठी थी।
उसका दिमाग़ सवालों से भरा था—
क्या उसकी ज़िंदगी हमेशा ऐसी ही रहेगी?
क्या उसे सचमुच अब devil की cage में जीना होगा?
वहीं, study room में माहिर wine का glass घुमा रहा था।
उसकी नीली आँखों में जीत की चमक थी।
उसने खुद से कहा—
“अब कोई भी Anisha को मुझसे छीन नहीं सकता।
वो मेरी Little Dove है… और अब पूरी दुनिया ये जानती है।”
कमरे का माहौल भारी था।
अनिशा खिड़की के पास खड़ी थी, बाहर देखते हुए।
उसके हाथ काँप रहे थे, लेकिन उसके दिल में पहली बार हिम्मत जागी थी।
पीछे से दरवाज़ा खुला।
माहिर अंदर आया।
काली शर्ट के बटन खुले हुए थे, बाल हल्के बिखरे और आँखों में वही नीला तूफ़ान।
वो सीधे उसके पास आया।
“Little Dove… आज बहुत चुप हो। मेरे बारे में सोच रही हो, है ना?”
अनिशा ने धीरे-धीरे उसकी ओर देखा।
उसकी आँखों में डर भी था और गुस्सा भी।
“हाँ… आपके बारे में ही सोच रही थी।
लेकिन एक बात साफ़ कह दूँ, आप मुझे कभी अपना नहीं बना सकते।
कभी नहीं।”
---
माहिर के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आई।
वो इतना करीब आया कि उसकी cold breath अनिशा के चेहरे से टकराने लगी।
“कभी नहीं?”
उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी जैसे ज़हर घुल रहा हो।
वो उसके कान के पास झुककर बोला—
“तुम्हें लगता है कि तुम devil से लड़ सकती हो, Little Dove?
याद रखो… cages तोड़ने के लिए नहीं, क़ैदियों को याद दिलाने के लिए होती हैं कि उनकी आज़ादी खत्म हो चुकी है।”
---
अनिशा ने अपने डर को दबाकर कहा—
“आप चाहे जितना control कर लें… मेरे दिल पर कभी हक़ नहीं पा सकते।”
माहिर की नीली आँखें और गहरी हो गईं।
उसने उसका हाथ पकड़कर अपने सीने पर रखा।
उसकी धड़कनें तेज़ थीं, लेकिन stable।
“Feel this… ये दिल सिर्फ़ तुम्हारे लिए धड़कता है।
और तुम कहती हो कि मैं तुम्हारे दिल पर हक़ नहीं पा सकता?”
उसने अचानक उसका हाथ कसकर पकड़ा और फुसफुसाया—
“मैं तुम्हें इतना अपना बना दूँगा कि तुम्हारी साँसें भी मेरी इजाज़त माँगेंगी।”
---
अनिशा ने गुस्से में कहा—
“आप सिर्फ़ मेरे शरीर को बाँध सकते हैं, लेकिन मेरी रूह… मेरी रूह कभी आपकी नहीं होगी।”
माहिर का चेहरा और सख़्त हो गया।
उसने दरवाज़ा ज़ोर से बंद किया और lock कर दिया।
कमरे में सिर्फ़ उनका heavy breathing गूंजने लगा।
वो धीरे-धीरे उसकी तरफ़ बढ़ा।
“तुम्हारी रूह?
Little Dove, जब devil किसी पर हक़ जताता है तो उसकी रूह भी cage में आ जाती है।
और अगर तुम्हें लगता है कि तुम बच सकती हो… तो याद रखो, मैं serial killer भी हूँ।
मैं वो हूँ जो अपनी possession से खेलना जानता है… और उसे खोना नहीं।”
---
अनिशा काँप रही थी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं छोड़ी।
“आप मुझे जितना डराना चाहें, डराइए… पर मैं आपको अपना दिल कभी नहीं दूँगी।”
माहिर ने अचानक उसका चेहरा अपनी उँगलियों से पकड़ लिया।
उसकी पकड़ इतनी tight थी कि अनिशा को दर्द हुआ।
उसने धीमे लेकिन खतरनाक लहजे में कहा—
“दिल?
तुम्हें लगता है कि मुझे तुम्हारा दिल चाहिए?
नहीं, Little Dove… मुझे तुम्हारा डर चाहिए, तुम्हारी आँखों की ये आँसू चाहिए, तुम्हारी वो हर साँस चाहिए जो मेरे नाम पर अटके।”
उसने और करीब झुककर whispered किया—
“और चाहो या न चाहो… तुम्हारा दिल भी एक दिन मेरी धड़कनों के साथ चलना सीखेगा।”
---
अनिशा की आँखों से आँसू बहने लगे।
उसने फुसफुसाकर कहा—
“आप सचमुच devil हैं।”
माहिर की मुस्कान और गहरी हो गई।
“Finally… तुमने मान लिया।”
वो उसके होंठों के बेहद करीब आकर रुका।
“अब तुम devil के cage में हो… और यहाँ से निकलने का कोई रास्ता नहीं।”
---
उस रात अनिशा बिस्तर पर जागती रही,
लेकिन उसके दिल में कहीं एक अजीब-सा अहसास भी था।
डर और नफ़रत के बीच… माहिर की नीली आँखों का अक्स बार-बार उसकी सोच में उतर रहा था।
और study room में बैठा माहिर खुद से बुदबुदा रहा था—
“तुम चाहे जितनी लड़ाई करो, Little Dove…
आख़िरकार तुम मेरी ही बनोगी।
तुम्हारा challenge ही तुम्हें और interesting बना देता है।”
रात का सन्नाटा गहरा था।
महल जैसे mansion की हर दीवार ठंडी लग रही थी।
अनिशा अपने कमरे के कोने में बैठी थी, दिल अब भी तेज़ धड़क रहा था।
आज उसने पहली बार माहिर को चुनौती दी थी—“आप मुझे कभी अपना नहीं बना सकते।”
उसके शब्द अब भी हवा में गूंज रहे थे।
अचानक दरवाज़ा ज़ोर से खुला।
माहिर अंदर आया।
काली शर्ट के ऊपर ब्लैक कोट, नीली आँखें जलती हुईं।
उसकी चाल से ही कमरे में डर समा गया।
“Little Dove…” उसकी आवाज़ ठंडी थी।
“तुम्हें लगता है कि devil को challenge करना आसान है?”
अनिशा खड़ी हुई, डर से काँप रही थी।
“मैं… मैंने बस सच कहा।”
माहिर धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा।
“सच? तुम्हारा सच मुझे insult करता है।
और मेरी दुनिया में insult का सिर्फ़ एक जवाब है—punishment।”
---
वो अचानक उसके करीब आया, उसकी कलाई पकड़कर उसे बीच कमरे में खींच लाया।
उसकी पकड़ इतनी सख़्त थी कि अनिशा चीख पड़ी।
“छोड़िए… प्लीज़…”
माहिर झुककर उसके कान के पास बोला—
“तुम्हें लगता है कि मैं छोड़ दूँगा?
नहीं, Little Dove… मैं तुम्हें छोड़ने के लिए नहीं, हमेशा अपने पास रखने के लिए पैदा हुआ हूँ।”
उसने उसकी दोनों कलाई पकड़कर दीवार से टिका दीं।
“तुमने मुझे challenge किया था, है ना?
अब तुम्हारी punishment शुरू होती है।”
---
उसने उसकी आँखों पर काली पट्टी बाँध दी।
कमरा और अंधेरा हो गया।
अनिशा का डर और बढ़ गया।
“अब तुम देख नहीं सकती… सिर्फ़ महसूस कर सकती हो,” माहिर ने फुसफुसाया।
“यही तुम्हारी सज़ा है—control खो देना।”
अनिशा ने काँपते हुए कहा—
“आप ये सब क्यों कर रहे हैं? मुझे जाने दीजिए…”
माहिर की ठंडी हँसी गूँजी।
“क्योंकि तुमने devil को ललकारा है।
और devil की दुनिया में freedom नाम की कोई चीज़ नहीं होती।”
---
वो धीरे-धीरे उसके चारों ओर घूमने लगा।
उसकी breath उसकी गर्दन से टकराई।
“सुनो… जब तुमने कहा कि मैं तुम्हारे दिल पर हक़ नहीं पा सकता… तब से मैं सिर्फ़ यही सोच रहा हूँ कि तुम्हें तोड़ूँ कैसे।”
उसने उसकी उँगलियों को कसकर पकड़ा।
“तुम्हारी punishment ये है कि अब तुम्हारी हर heartbeat मेरी permission से होगी।”
अनिशा ने गुस्से में कहा—
“आप मुझे कभी पूरी तरह तोड़ नहीं पाएँगे।”
माहिर का चेहरा और सख़्त हो गया।
उसने उसके कान में फुसफुसाया—
“मैं serial killer हूँ, Anisha।
तोड़ना मेरा काम है… और तुम मेरी favorite obsession हो।”
---
कुछ पल बाद उसने पट्टी हटाई।
अनिशा की आँखों में आँसू थे।
वो उसकी ओर देख भी नहीं पा रही थी।
माहिर ने उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लिया।
“देखो मुझे… ये punishment सिर्फ़ शुरुआत है।
अगली बार जब तुम devil को challenge करोगी… तो याद रखना, सज़ा इतनी आसान नहीं होगी।”
उसने उसकी ठोड़ी पकड़कर उसे और करीब खींचा।
“अब तुम जानती हो, Little Dove… मेरी दुनिया में तुम्हारी ज़ुबान से ‘ना’ निकलना सबसे बड़ा गुनाह है।”
---
उस रात अनिशा बिस्तर पर लेटी रही, आँखों में आँसू और दिल में डर।
उसने खुद से वादा किया—
“मैं हार नहीं मानूँगी। चाहे devil मुझे जितना भी तोड़े, मैं अपनी रूह बचाकर रखूँगी।”
लेकिन study room में बैठा माहिर wine का glass घुमा रहा था।
उसकी नीली आँखों में अजीब चमक थी।
वो खुद से बोला—
“Anisha… तुम जितना मुझे challenge करोगी, उतना ही मैं तुम्हें अपने और करीब बाँधूँगा।
तुम्हें तोड़ना ही मेरी सबसे बड़ी जीत होगी।”
---
सुबह की ठंडी हवा खिड़की से अंदर आ रही थी,
लेकिन अनिशा के कमरे का माहौल अब भी भारी था।
उसकी आँखें लाल थीं, रातभर रोते-रोते थक चुकी थी।
पिछली रात माहिर की “punishment” ने उसके मन को झकझोर दिया था।
अचानक दरवाज़ा खुला।
माहिर अंदर आया, ब्लैक suit में, चेहरे पर वही खतरनाक ठंडी मुस्कान।
“Good morning, Little Dove,” उसने धीमे स्वर में कहा।
“आज तुम्हें मेरी असली दुनिया दिखाऊँगा।”
अनिशा का दिल धड़क उठा।
“न-नहीं… मुझे कहीं नहीं जाना…”
माहिर ने उसकी ठोड़ी पकड़कर ऊपर किया।
“Devil को challenge करने की कीमत चुकानी होगी।
अब तुम वही देखोगी, जो मैं चाहूँगा।”
---
कुछ देर बाद black SUV mansion से निकली।
गाड़ी में अनिशा खिड़की से बाहर देख रही थी, आँखों में डर साफ़ झलक रहा था।
माहिर आराम से wine sip कर रहा था, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
करीब आधे घंटे बाद गाड़ी एक पुराने warehouse के सामने रुकी।
गेट पर भारी security थी।
गाड़ी अंदर गई।
---
अनिशा की साँसें अटक गईं।
अंदर लंबा हॉल था।
टेबल पर हथियार सजे थे, नक्शे पड़े थे, और दर्जनों लोग black outfits में खड़े थे।
वो सब माहिर को झुककर “Boss” कह रहे थे।
माहिर ने हाथ से इशारा किया।
“आज dinner यहाँ होगा। और मेरी Little Dove भी इसका हिस्सा बनेगी।”
सभी की नज़रें अनिशा पर पड़ीं।
उसका चेहरा शर्म और डर से लाल हो गया।
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Dinner table पर बैठते हुए माहिर ने उसकी ओर देखा।
“याद रखो, Anisha… तुम अब सिर्फ़ मेरी student या मेरी wife-to-be नहीं हो।
तुम devil की दुनिया की queen हो।
लेकिन queen बनना कोई fairytale नहीं… ये cage है।”
अनिशा ने काँपते हुए कहा—
“मुझे ये सब नहीं चाहिए।
मैं बस normal life चाहती हूँ।”
माहिर ने ठंडी हँसी हँसी।
“Normal?
तुम्हें लगता है कि अब तुम्हारे लिए normal बचा है?
तुम devil की cage में हो, और यहाँ से निकलने का कोई दरवाज़ा नहीं।”
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उसने सबके सामने उसकी plate में खाना serve किया।
फिर उसके हाथ पर अपनी cold fingers रख दीं।
“Eat, Little Dove.
ये तुम्हारी दूसरी punishment है—मेरी दुनिया को निगलना।
अगर तुम ये खाना नहीं खाओगी… तो मैं अपने तरीके से खिलाऊँगा।”
सभी की निगाहें उस पर थीं।
अनिशा के लिए ये humiliation था।
वो काँपते हाथों से खाने लगी, आँसू उसकी आँखों से गिरते रहे।
माहिर उसकी ओर झुककर फुसफुसाया—
“यही है तुम्हारा cage।
अब चाहे तुम कितना भी रोओ, कितना भी लड़ो…
तुम्हें इस devil की दुनिया को accept करना ही होगा।”
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Dinner के बाद सब लोग उठ गए।
लेकिन माहिर वहीं बैठा रहा, अपनी नीली आँखों से उसे घूरते हुए।
“आज तुमने सबके सामने अपनी दूसरी punishment भुगती।
याद रखो, Little Dove… अगर फिर से मुझे challenge किया,
तो मैं तुम्हें इस cage का permanent हिस्सा बना दूँगा।”
अनिशा की आँखें आँसुओं से भर गईं।
वो खुद से सोच रही थी—
“क्या मेरी ज़िंदगी हमेशा ऐसी ही रहेगी?
क्या मैं सचमुच कभी इस devil की गिरफ्त से निकल पाऊँगी?”
लेकिन माहिर के दिल में सिर्फ़ एक ही ख्याल था—
“Anisha अब मेरी दुनिया का हिस्सा है।
और devil से निकलना नामुमकिन है।”
रात गहरी थी।
Warehouse से लौटने के बाद अनिशा को उसी पुराने कमरे में बंद कर दिया गया था।
कमरे की खिड़की पर मोटे लोहे के जाल लगे थे और दरवाज़े पर दो गार्ड खड़े थे।
लेकिन अनिशा के मन में एक ही ख्याल था—
“मुझे भागना है।
किसी भी तरह, इस devil की गिरफ्त से बाहर निकलना है।”
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उसने कमरे का हर कोना टटोला।
टेबल के पास एक छोटा सा rusted rod पड़ा था।
उसने उसे उठाया और दरवाज़े के ताले में लगाने लगी।
उसके हाथ काँप रहे थे, आँखों से आँसू गिर रहे थे।
“भगवान… मुझे बस एक मौका दे दो।”
करीब दस मिनट की मशक्कत के बाद…
क्लिक!
ताला खुल गया।
अनिशा की साँसें तेज़ हो गईं।
उसने दरवाज़ा धीरे से खोला और hallway में कदम रखा।
गार्ड्स दूर थे—शायद थकान से उनींदे हो गए थे।
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धीरे-धीरे चलते हुए वो सीढ़ियों से नीचे उतरी।
माहिर का mansion बहुत बड़ा था।
सफेद संगमरमर की दीवारें, ऊँची छतें, हर कोने में कैमरे।
वो छिपते-छिपाते main door तक पहुँची।
उसने handle पकड़ा और ज़ोर से दबाया—
दरवाज़ा खुल गया।
ठंडी रात की हवा उसके चेहरे से टकराई।
उसने पहली बार राहत की साँस ली।
“बस थोड़ा और… और मैं आज़ाद हो जाऊँगी।”
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लेकिन तभी…
पीछे से भारी कदमों की आहट गूँजी।
उसकी रीढ़ की हड्डी जैसे जम गई।
“Little Dove…”
वही ठंडी, गहरी आवाज़।
अनिशा धीरे-धीरे पीछे मुड़ी।
सीढ़ियों के ऊपर माहिर खड़ा था, पूरी काली शर्ट में, हाथ में wine glass, और चेहरे पर खतरनाक मुस्कान।
“भागने की कोशिश?” उसने धीरे से कहा।
अनिशा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
उसने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन तभी तेज़ अलार्म बज उठा।
पूरे mansion की लाइट्स चमक उठीं।
गार्ड्स दौड़कर आ गए और उसे पकड़ लिया।
वो चीखती रही—
“मुझे जाने दो! प्लीज़ मुझे छोड़ दो!”
लेकिन माहिर ने हाथ उठाकर उन्हें रुकने का इशारा किया।
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वो सीढ़ियों से उतरकर सीधे उसकी ओर आया।
उसकी आँखों में खून जैसा गुस्सा था, पर होंठों पर अजीब calmness।
उसने उसकी कलाई पकड़कर कसकर खींचा।
“तुम्हें लगा तुम devil को धोखा देकर भाग जाओगी?”
अनिशा चीख पड़ी—
“मुझे कैद करके नहीं रख सकते!
तुम्हारा हक़ नहीं है मेरी ज़िंदगी पर!”
माहिर ने उसके होंठों के बहुत करीब आकर फुसफुसाया—
“हक़?
मैं devil हूँ, Anisha।
और devil हक़ नहीं माँगता… वो ले लेता है।”
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उसने उसे सबके सामने अपनी बाँहों में जकड़ लिया।
गार्ड्स एक तरफ खड़े थे, कोई हिम्मत नहीं कर रहा था बीच में आने की।
माहिर ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—
“आज तुम्हारी तीसरी punishment होगी।
क्योंकि तुमने मेरी cage को तोड़ने की कोशिश की।”
अनिशा काँप रही थी।
उसकी साँसें तेज़ थीं।
माहिर ने उसे सीढ़ियों पर धकेलते हुए ऊपर खींचा और उसके कमरे में ले गया।
दरवाज़ा जोर से बंद किया।
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कमरे के अंदर अंधेरा था।
माहिर ने उसे दीवार के खिलाफ़ धकेल दिया।
“तुम्हें लगता है भागकर आज़ादी मिल जाएगी?
नहीं, Little Dove…
अब हर साँस, हर धड़कन सिर्फ़ मेरी है।
और अगर फिर भागने की कोशिश की…
तो मैं तुम्हें ऐसी punishment दूँगा कि खुद मौत भी तुम्हें छुड़ाना चाहेगी।”
उसकी cold fingers ने अनिशा की ठोड़ी उठाई।
आँसू उसकी गालों पर बह रहे थे।
“देखो, तुम डर में कितनी खूबसूरत लगती हो।
याद रखो, Anisha… अब से तुम्हारी दुनिया सिर्फ़ ये devil है।”
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वो उसके चेहरे के बहुत करीब झुक आया।
अनिशा ने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं, दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
माहिर के होंठ उसके कान के पास आए।
“अब कभी भागने की कोशिश मत करना।
क्योंकि devil से भागना नामुमकिन है।”
उसने उसे अपनी बाँहों से छोड़ा और बाहर निकल गया।
दरवाज़े पर फिर से दो गार्ड खड़े कर दिए।
अनिशा जमीन पर बैठी रही, टूट चुकी थी।
लेकिन उसके मन में अब भी एक सवाल था—
“क्या सचमुच devil की गिरफ्त से निकलना नामुमकिन है?
या फिर मुझे और ताक़त चाहिए…”
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रात की खामोशी और भी भारी लग रही थी।
कमरे की खिड़की से आती चाँदनी ने हल्की रोशनी फैलाई हुई थी।
अनिशा बिस्तर पर बैठी थी, आँसू उसके चेहरे पर सूख चुके थे।
उसका दिल अब भी धड़क रहा था, याद करते हुए कि कैसे कुछ देर पहले वो भागने में नाकाम हुई थी।
“क्यों मैं बार-बार हार जाती हूँ?
क्यों इस devil की पकड़ इतनी मज़बूत है…”
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दरवाज़े पर अचानक क्लिक की आवाज़ आई।
अनिशा का दिल उछल पड़ा।
वो खड़ी हो गई, घबराते हुए पीछे हट गई।
दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला…
और अँधेरे में काले सूट में माहिर अंदर आया।
उसकी आँखें चमक रही थीं, जैसे शिकारी अपने शिकार को देखता है।
“मैंने कहा था न, Little Dove…
तुम devil से भाग नहीं सकती।”
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अनिशा ने काँपते हुए कहा,
“क्यों कर रहे हो ये सब?
मैं बस आज़ाद होना चाहती हूँ।”
माहिर धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा।
उसके कदमों की आहट कमरे में गूँज रही थी।
वो उसके सामने आकर रुका और उसकी ठोड़ी पकड़ ली।
“आज़ादी?”
उसकी आवाज़ में गहराई और खतरा दोनों थे।
“तुम्हें लगता है तुम मेरी cage से निकलकर साँस ले पाओगी?
तुम्हारी साँसें भी अब मेरी हैं, Anisha।”
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अनिशा ने उसकी पकड़ छुड़ाने की कोशिश की।
“तुम्हारा हक़ नहीं है मुझ पर!”
माहिर की आँखें और गहरी हो गईं।
उसने उसे ज़ोर से अपनी ओर खींचा और दीवार के साथ टिका दिया।
“हक़?”
वो उसके कान के पास झुककर फुसफुसाया—
“Devil हक़ नहीं माँगता… वो claim करता है।”
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उसके होंठ अब अनिशा के बहुत पास थे।
अनिशा की साँसें तेज़ हो गईं।
वो आँखें बंद कर चुकी थी, दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
और अगले ही पल…
माहिर ने उसके होंठों को अपने होंठों से कैद कर लिया।
वो kiss अचानक, ज़बरदस्त और बेहद intense था।
अनिशा ने छटपटाने की कोशिश की, लेकिन माहिर की बाँहों का शिकंजा और कस गया।
उसके हाथ अनिशा की कमर पर थे, उसे और करीब खींचते हुए।
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अनिशा ने उसके सीने पर हाथ रखकर उसे दूर धकेलने की कोशिश की,
लेकिन उसका body पूरी तरह weak हो चुका था।
उसका दिल कह रहा था “रुको”, लेकिन उसकी धड़कनें और तेज़ होती जा रही थीं।
माहिर ने उसके होंठों से अलग होते हुए गहरी आवाज़ में कहा—
“देखा, Little Dove… तुम devil से लड़ नहीं सकती।
तुम्हारा डर, तुम्हारा गुस्सा, तुम्हारी साँसें—सब मेरे सामने झुक जाते हैं।”
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अनिशा ने आँसू भरी आँखों से उसे देखा।
“तुम… तुम पागल हो।
ये प्यार नहीं, ये कैद है।”
माहिर हल्का सा मुस्कुराया।
उसने उसके गाल पर हाथ फेरते हुए कहा—
“शायद तुम सही हो।
ये प्यार नहीं… ये obsession है।
लेकिन याद रखो, इस obsession में तुम अब पूरी तरह डूब चुकी हो।”
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वो फिर से उसके करीब झुका।
इस बार उसके होंठ अनिशा के गालों पर टिके।
उसकी साँसों की गर्मी से अनिशा की आँखें बंद हो गईं।
माहिर ने फुसफुसाया—
“तुम्हारा पहला kiss मैंने claim कर लिया है।
अब चाहे तुम रोओ, चिल्लाओ या भागने की कोशिश करो…
तुम कभी आज़ाद नहीं होगी।
क्योंकि अब तुम्हारी हर धड़कन इस devil की है।”
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वो अचानक पीछे हटा और कमरे का दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया।
अनिशा बिस्तर पर गिर पड़ी, उसके होंठ अब भी काँप रहे थे।
उसका मन चिल्ला रहा था—
“नहीं! ये गलत है… ये पाप है…”
लेकिन उसके दिल की गहराई में कहीं एक अजीब सी हलचल थी।
उसने अपने होंठों को छुआ।
अब भी वहाँ माहिर का असर बाकी था।
“मैं नफ़रत करती हूँ उससे…
लेकिन क्यों मेरा दिल इस devil की तरफ खिंचता है?”