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कैद-ए-मोहब्बत

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mani kharwar

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"वो एक मासूम लड़की थी… और वो, अंधेरे का बादशाह।" Siya ने कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी ज़िन्दगी में ऐसा तूफ़ान आएगा। Step-mom और step-sister की साज़िशों के बीच जीती हुई Siya को तब सबसे बड़ा झटका लगता है जब उसकी नज़रें टकराती हैं Rudra Singhania स...

Total Chapters (41)

Page 1 of 3

  • 1. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 1

    Words: 673

    Estimated Reading Time: 5 min

    शहर की रातें कभी भी शांत नहीं होती थीं। चारों तरफ़ बस ख़ौफ़ का साया था। लोग अंधेरे में चलते वक्त भी धीरे बोलते, क्योंकि इस शहर में हर जुबान पर सिर्फ़ एक नाम था—रुद्र सिंघानिया।
    कहते थे, अगर रुद्र की नज़र किसी पर ठहर जाए तो वो इंसान दो ही हाल में जी सकता है—या तो उसकी पनाह में, या उसकी कब्र में।

    रुद्र सिंघानिया—एक नाम जो डर और ताक़त का प्रतीक बन चुका था।
    लंबा-चौड़ा कद, आँखों में ठंडी चमक और आवाज़ में ऐसा दबदबा कि अच्छे-अच्छे लोग काँप जाते। उसके लिए मौत और ज़िन्दगी का फैसला करना महज़ एक खेल था। पुलिस से लेकर मंत्री तक उसकी जेब में थे, और उसका नाम सुनते ही लोग दरवाज़े बंद कर लेते।

    लेकिन इस निर्दयी इंसान के दिल में भी एक खालीपन था।
    उसने कभी किसी को अपनी दुनिया में जगह नहीं दी थी। उसके लिए औरतें बस एक रात का खेल थीं। प्यार, मासूमियत और रिश्ते जैसी चीज़ें उसके लिए मज़ाक थीं।
    पर किस्मत को एक अलग ही खेल खेलना था।


    ---

    सुबह की हल्की धूप शहर के कॉलेज कैंपस पर पड़ रही थी। लड़कियाँ हँसती-खिलखिलाती अंदर जा रही थीं, लड़के ग्रुप में बातें कर रहे थे। उसी भीड़ में धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई चल रही थी सिया।
    उसने सफ़ेद सूट पहना था, बाल हवा में लहरा रहे थे, और हाथों में किताबें थीं। उसकी मुस्कान इतनी मासूम थी कि किसी को भी ठहरने पर मजबूर कर दे।

    सिया के लिए ज़िन्दगी बहुत साधारण थी। उसे बड़े सपने नहीं चाहिए थे, बस अपने कॉलेज को अच्छे से ख़त्म करना, एक सामान्य नौकरी और शांति से भरी ज़िन्दगी। लेकिन वो नहीं जानती थी कि उसकी मासूमियत किसी और के लिए पागलपन का कारण बनने वाली है।

    उसी समय, कॉलेज गेट के सामने एक काली SUV आकर रुकी।
    SUV का दरवाज़ा खुला और बाहर उतरा रुद्र सिंघानिया।

    उसका काला कोट, आँखों पर काला चश्मा और धीमी चाल सबको चुप कर गए। उसके पीछे उसके बॉडीगार्ड्स थे, मगर भीड़ की निगाहें सिर्फ़ उसी पर टिकी थीं।
    लोग फुसफुसाने लगे—
    “वो देखो… रुद्र सिंघानिया।”
    “किसे ढूँढ रहा है यहाँ?”

    सिक्योरिटी गार्ड ने भी नज़रें झुका लीं। माहौल में डर घुल गया था।

    रुद्र ने चश्मा उतारा और अपनी ठंडी नज़रों से भीड़ को देखा। उसकी आँखें कुछ ढूँढ रही थीं। और फिर… उसकी नज़र एक चेहरे पर आकर रुक गई।

    सिया।

    वो अपने दोस्तों से हँसते-बोलते अंदर जा रही थी। उसे अंदाज़ा तक नहीं था कि उसकी मासूम हँसी किसी के दिल में तूफ़ान पैदा कर चुकी है।
    रुद्र ने सिगरेट का कश लिया, फिर उसे धीरे से ज़मीन पर गिराकर पैर से कुचल दिया। उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आई—ख़तरनाक, डरावनी और जुनून भरी।

    वो मन ही मन बुदबुदाया—
    “अब ये मेरी है। चाहे इस दुनिया को जला देना पड़े।”


    ---

    सिया अपनी ही दुनिया में मग्न थी। उसके कदम कैंपस की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे, मगर पीछे से कोई निगाहें उसे चीर रही थीं, ये उसे महसूस तक नहीं हुआ।

    रुद्र ने एक कदम आगे बढ़ाया। उसके आदमियों ने रास्ता खाली कर दिया।
    भीड़ खामोश थी, सबकी साँसें थम गईं। किसी में हिम्मत नहीं थी कि उससे कुछ पूछ सके।

    रुद्र ने धीरे से हाथ बढ़ाया और अपनी जेब से एक काली डायरी निकाली। उसमें उसने बस एक नाम लिखा—Siya।
    उसके आदमी ने झुककर पूछा—
    “बॉस, कुछ ऑर्डर?”
    रुद्र ने ठंडी आवाज़ में कहा—
    “नज़र रखना… ये लड़की अब सिर्फ़ मेरी दुनिया में जिएगी।”


    ---

    सिया ने अचानक पीछे मुड़कर देखा। उसे लगा कोई उसे घूर रहा है, लेकिन पीछे भीड़ में उसे कुछ समझ नहीं आया। वो हल्का-सा घबराई, फिर अपने दोस्तों के साथ क्लासरूम की तरफ़ बढ़ गई।

    रुद्र की आँखें उसके हर कदम का पीछा कर रही थीं।
    उसने अपने आदमी से कहा—
    “उसका नाम, घर, सब कुछ पता करो। और हाँ… ध्यान रहे, कोई और उसकी तरफ़ देखे भी तो ज़िंदा न बचे।”

    उसके होंठों पर फिर वही मुस्कान आई—प्यार और पागलपन की बीच की सीमा पर खड़ी।
    और उसी पल से, सिया की ज़िन्दगी बदल चुकी थी।

    hello guys meri pahli story hai please support kriye ga 🙏

  • 2. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 2

    Words: 578

    Estimated Reading Time: 4 min

    सिया की ज़िन्दगी ऊपर से शांत और सुकून भरी लगती थी, लेकिन असलियत में वो तूफ़ान के बीच जी रही थी।
    उसके पिता का देहांत हो चुका था और अब उसकी सारी दुनिया उसकी stepmom माया और stepsister रिद्धिमा के इर्द-गिर्द थी।

    माया एक ऐसी औरत थी जिसकी आँखों में हमेशा लालच झलकता। वो कभी सिया को अपनी बेटी मान ही नहीं पाई। उसके लिए सिया बस एक बोझ थी—एक ऐसा बोझ जिसके पास ढेर सारी संपत्ति थी।
    रिद्धिमा, जो दिखने में मासूम और प्यारी लगती, अंदर से अपनी माँ की ही तरह चालाक थी।

    “माँ, हमें सिया की ये सारी प्रॉपर्टी कब तक देखनी पड़ेगी? सब उसके नाम पर क्यों है?” रिद्धिमा ने आईने में लिपस्टिक लगाते हुए कहा।

    माया ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा,
    “चिंता मत कर बेटा। बस थोड़ा और सब्र। सही वक़्त आने दो। ये सब हमारा होगा।”

    उन दोनों की निगाहों में बस एक ही सपना था—सिया की संपत्ति हड़प लेना।
    लेकिन उन्हें ये अंदाज़ा भी नहीं था कि जल्द ही उनकी ज़िन्दगी में एक नया तूफ़ान आने वाला है—रुद्र सिंघानिया।


    ---

    उधर, रुद्र सिंघानिया का जुनून अब दिन-ब-दिन बढ़ रहा था।
    उसके आदमी ने उसे सारी जानकारी दी—
    “बॉस, लड़की का नाम सिया है। कॉलेज की टॉपर है। माँ नहीं है, पिता की मौत हो चुकी है। अभी वो अपनी सौतेली माँ और बहन के साथ रहती है।”

    रुद्र ने धीरे-धीरे आँखें बंद कीं और सिगरेट का लंबा कश लिया।
    फिर मुस्कुराते हुए बोला—
    “सौतेली माँ और बहन… अच्छा है। ज़िन्दगी आसान हो जाएगी।”

    उसके आदमियों ने चौंककर पूछा—
    “मतलब, बॉस?”

    रुद्र की आवाज़ में वो ख़ौफ़नाक ठंडक थी—
    “मतलब… अब उस लड़की की पूरी दुनिया मेरी होगी। उसके घर के रिश्ते, उसकी साँसें, सब कुछ।”


    ---

    सिया उस वक़्त अपने कमरे में बैठी किताब पढ़ रही थी। उसे नहीं पता था कि उसकी मासूम सी दुनिया पर एक काली परछाई छा चुकी है।
    रात के सन्नाटे में उसे अक्सर लगता जैसे कोई उसकी खिड़की के बाहर खड़ा उसे देख रहा हो। वो खिड़की बंद कर देती और खुद को समझा लेती कि ये बस उसका भ्रम है।

    मगर सच ये था कि वो भ्रम नहीं था।
    रुद्र सचमुच उसकी खिड़की के बाहर कई बार खड़ा रहता। अंधेरे में छिपकर उसकी झलक देखना ही अब उसकी नई आदत बन चुकी थी।

    उसकी आँखों में अजीब सा पागलपन था।
    “सिया… तुम्हें अब पता भी नहीं है कि तुम मेरी हो चुकी हो।”


    ---

    इधर, माया और रिद्धिमा की साज़िशें तेज़ हो रही थीं।
    रिद्धिमा की निगाहें अब रुद्र पर भी टिक गई थीं। उसने कॉलेज में उसके नाम की चर्चा सुनी थी और पहली ही बार उसे देखने का ख्वाब पाल लिया था।

    “माँ, सोचो अगर मैं रुद्र सिंघानिया की पत्नी बन जाऊँ तो? फिर हमें किसी चीज़ की कमी नहीं होगी।” रिद्धिमा ने सपने देखते हुए कहा।

    माया की आँखों में भी चमक आई।
    “अगर ऐसा हो जाए तो हमारे लिए सबसे बड़ी जीत होगी। लेकिन ध्यान रहे, रुद्र को सिया जैसी मासूमियत पसंद आ सकती है। हमें कुछ ऐसा करना होगा कि वो सिया से दूर रहे।”


    ---

    लेकिन किस्मत का खेल कुछ और ही था।
    क्योंकि रुद्र का जुनून अब उस मुक़ाम पर पहुँच चुका था जहाँ उसे रोकना नामुमकिन था।

    उसने अपने आदमी को आदेश दिया—
    “कल से सिया की हर हरकत, हर कदम पर नज़र रखो। और हाँ… अगर किसी और ने उसकी तरफ़ आँख उठाई तो उसका अंजाम मैं खुद तय करूँगा।”

    उसकी आँखों में वो आग थी जो पूरे शहर को राख कर सकती थी।

  • 3. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 3

    Words: 524

    Estimated Reading Time: 4 min

    कॉलेज की लाइब्रेरी हमेशा सिया की पनाहगाह थी। किताबों के बीच उसे सुकून मिलता, और वहाँ की खामोशी उसे दुनिया की सारी परेशानियों से दूर ले जाती।
    उस दिन भी वो लाइब्रेरी के कोने में बैठकर किताब पढ़ रही थी। उसकी आँखें शब्दों पर टिकी थीं, मगर मन बेचैन था।

    पिछले कुछ दिनों से उसे अजीब-सा एहसास हो रहा था—जैसे कोई उसकी हर हरकत पर नज़र रख रहा हो। जब भी वो आईने में देखती, उसे लगता पीछे कोई खड़ा है। जब भी खिड़की से झाँकती, अंधेरे में उसे किसी की परछाई दिखती। मगर हर बार वो खुद को समझा लेती—
    "नहीं सिया, ये बस तेरी सोच है।"

    लेकिन हक़ीक़त ये थी कि उसका डर सही था।


    ---

    लाइब्रेरी का दरवाज़ा धीरे से खुला।
    भारी कदमों की आहट ने सन्नाटा तोड़ दिया।

    सिया ने सिर उठाया और उसकी साँसें थम गईं।
    दरवाज़े पर खड़ा था रुद्र सिंघानिया।

    काली शर्ट, गहरी आँखें और चेहरे पर वही ठंडी मुस्कान। उसका आना जैसे किसी तूफ़ान की दस्तक थी।
    लाइब्रेरी में बैठे सारे स्टूडेंट्स सहम गए। कुछ ने किताबें बंद कीं, कुछ उठकर बाहर निकल गए। कुछ तो बिना पीछे देखे भाग ही गए।

    लेकिन रुद्र की नज़र सिर्फ़ एक जगह टिकी थी—सिया पर।


    ---

    धीरे-धीरे वो उसकी तरफ़ बढ़ा। उसके हर कदम की गूंज लाइब्रेरी में सुनाई दे रही थी।
    सिया का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने किताब बंद की और खड़े होने की कोशिश की, मगर पैर जैसे जकड़ गए हों।

    रुद्र उसके सामने आकर रुक गया। उसकी नज़रें सीधे उसकी आँखों में घुस गईं।
    कुछ पल दोनों खामोश रहे।

    फिर रुद्र ने धीमी, मगर गहरी आवाज़ में कहा—
    “तुम्हें पता भी है… तुम्हें देखे बिना अब चैन नहीं आता।”

    सिया ने काँपते हुए कहा—
    “क्या… क्या मतलब है आपका? आप यहाँ क्यों आए हैं?”

    रुद्र ने हल्की हँसी के साथ कहा—
    “मतलब बहुत साफ़ है, सिया। तुम अब मेरी हो। चाहे तुम्हें पसंद हो या न हो।”


    ---

    सिया पीछे हटने लगी।
    “ये… ये मज़ाक नहीं है। मुझे अकेला छोड़ दीजिए।”

    रुद्र ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि सिया ने छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन वो असफल रही।
    उसकी आँखों में अजीब-सा जुनून था।

    “तुम्हें लगता है मैं मज़ाक कर रहा हूँ? सिया, मैंने कभी किसी चीज़ को पाने की ठानी है और वो मेरी नहीं हुई, ऐसा कभी हुआ ही नहीं। और तुम… तुम तो मेरे दिल में घर कर चुकी हो।”

    सिया की आँखों में आँसू आ गए।
    “कृपया… मुझे जाने दीजिए।”

    रुद्र ने धीरे से उसका हाथ छोड़ा, मगर उसकी आँखों में वही पागलपन था।
    “जाने दूँगा… लेकिन याद रखना, सिया। ये पहली और आख़िरी बार है जब तुम मुझसे दूर जा रही हो। अगली बार, मैं तुम्हें खुद अपनी दुनिया में ले जाऊँगा… और फिर कोई तुम्हें मुझसे छीन नहीं पाएगा।”


    ---

    सिया डर के मारे जल्दी से लाइब्रेरी से बाहर भाग गई। उसका दिल धड़क रहा था, उसकी साँसें तेज़ थीं। वो समझ ही नहीं पा रही थी कि उसके साथ क्या हो रहा है।

    उधर, रुद्र ने उसे जाते हुए देखा और होंठों पर मुस्कुराया।
    उसने खुद से फुसफुसाया—
    “भाग लो जितना भाग सकती हो, सिया। लेकिन मंज़िल हमेशा मेरे पास ही होगी।”

  • 4. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 4

    Words: 548

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात गहरी हो चुकी थी। सिया अपने कमरे में किताबों के बीच सोने की कोशिश कर रही थी, मगर उसका मन बेचैन था।
    दिन में लाइब्रेरी में हुआ वाक़या उसकी आँखों के सामने बार-बार घूम रहा था।

    रुद्र की ठंडी आवाज़ उसके कानों में गूंज रही थी—
    "तुम अब मेरी हो।"

    उसकी साँसें तेज़ हो जातीं और आँखों में डर साफ़ झलकता। वो खुद से कहती—
    "नहीं सिया… तू इसे नज़रअंदाज़ कर। वो आदमी खतरनाक है। उससे दूर रहना ही बेहतर है।"

    लेकिन किस्मत उसे ये मोहलत देने वाली नहीं थी।


    ---

    इधर, सिया की stepmom माया और stepsister रिद्धिमा ने भी खबर सुनी थी। कॉलेज में जिस दिन रुद्र आया था, उसकी चर्चा पूरे शहर में फैल गई थी।
    रिद्धिमा ने आईने में खुद को निहारा और मुस्कुराई।

    “माँ, अगर रुद्र सिंघानिया को मैं हासिल कर लूँ, तो सोचो… पूरी दुनिया हमारे कदमों में होगी।”

    माया ने धीरे से सिर हिलाया,
    “सही सोच रही हो। लेकिन सिया… वो बीच में आ सकती है। रुद्र की नज़र अगर उस पर पड़ी तो सब गड़बड़ हो जाएगा।”

    रिद्धिमा की आँखों में जलन भड़क उठी।
    “सिया हमेशा सबका ध्यान खींच लेती है। अब बारी मेरी है।”


    ---

    अगले ही दिन, माया और रिद्धिमा ने एक प्लान बनाया।
    उन्होंने रुद्र के एक आदमी को पैसे देकर मिलने का इंतज़ाम किया।

    शाम को एक आलीशान होटल के प्राइवेट हॉल में रुद्र बैठा था। उसके चारों ओर उसके बॉडीगार्ड्स खड़े थे।
    कमरे में सन्नाटा था जब दरवाज़ा खुला और अंदर आई माया और रिद्धिमा।

    रिद्धिमा ने साड़ी पहनी थी, चेहरा सज़ा-धजा हुआ और मुस्कान नकली आत्मविश्वास से भरी।
    “Mr. Rudra Singhania,” उसने मधुर आवाज़ में कहा, “आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई।”

    रुद्र ने बिना भाव बदले उन दोनों की तरफ़ देखा।
    उसकी आँखों में ठंडापन था, जैसे किसी इंसान को देख ही नहीं रहा हो बल्कि उसके आर-पार झाँक रहा हो।

    “बोलो।” उसकी आवाज़ भारी और खामोश कमरे में गूंज गई।

    माया ने तुरंत बात संभाली।
    “असल में… हम चाहते हैं कि हमारा रिश्ता आपसे और गहरा हो। रिद्धिमा मेरी बेटी है। सुंदर है, पढ़ी-लिखी है। आपके जैसी शख़्सियत के लिए परफेक्ट।”

    रिद्धिमा ने शर्मीली मुस्कान दी, जैसे किसी दुल्हन का सपना देख रही हो।


    ---

    लेकिन रुद्र का चेहरा अचानक कठोर हो गया।
    उसने धीमे कदमों से उठकर दोनों के पास आना शुरू किया।

    रिद्धिमा का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
    “शायद… ये मान गया।” उसने सोचा।

    मगर जैसे ही रुद्र उनके सामने पहुँचा, उसकी आँखें लाल-सी चमक उठीं।
    उसने ठंडी आवाज़ में कहा—
    “गलतफहमी में मत रहो। मेरी आँखें किसी और को देखती ही नहीं हैं… सिवाय सिया के।”

    कमरे में खामोशी छा गई।
    माया और रिद्धिमा के चेहरों पर झटका साफ़ दिखा।

    रिद्धिमा हकलाते हुए बोली—
    “पर… वो तो… वो तो आपसे बात भी नहीं करना चाहती।”

    रुद्र ने हल्की हँसी के साथ कहा—
    “यही तो उसकी मासूमियत है… और यही मुझे पागल बना रही है। तुम्हारी ये चालें… मुझ पर नहीं चलेंगी।”

    उसने पास खड़े बॉडीगार्ड की तरफ़ इशारा किया।
    “इन दोनों को बाहर छोड़ आओ। और दोबारा मेरे सामने इस तरह की बात करने की हिम्मत मत करना।”


    ---

    हॉल से बाहर निकलते वक्त रिद्धिमा के होंठों पर गुस्से से खून उतर आया।
    उसने मन ही मन कसम खाई—
    “सिया… तू हमेशा सब कुछ मुझसे छीन लेती है। लेकिन इस बार नहीं। इस बार मैं तुझे मिटा दूँगी।”

  • 5. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 5

    Words: 504

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात का सन्नाटा पूरे घर में छाया हुआ था। बाहर हवाएँ तेज़ चल रही थीं, और खिड़की से टकराकर अजीब-सी आवाज़ कर रही थीं।
    सिया अपने कमरे में बैठी, घुटनों को सीने से लगाए, खामोश थी।

    उसके कानों में बार-बार वही आवाज़ गूंज रही थी—
    "तुम अब मेरी हो। चाहे तुम्हें पसंद हो या न हो।"

    उसके दिल की धड़कनें अभी भी तेज़ थीं। उसे लगा जैसे दीवारों पर भी किसी की परछाईं नाच रही हो। उसने खिड़की बंद कर दी और खुद को कंबल में लपेट लिया।
    लेकिन उसकी आँखों से आँसू बहते रहे।

    "ये आदमी कौन है? क्यों मेरा पीछा कर रहा है? और क्यों उसकी आँखों में वो पागलपन है… जो मुझे डराता भी है और अजीब तरह से खींचता भी?"


    ---

    इधर, रुद्र अपने कमरे की छत से बाहर देख रहा था।
    उसके सामने शराब का गिलास रखा था, लेकिन उसकी नज़र उसमें नहीं थी। उसकी आँखों में सिर्फ़ एक चेहरा था—सिया का।

    उसने धीरे से फुसफुसाया—
    “सिया… तुम नहीं जानती, मैं तुम्हारे बिना जी ही नहीं सकता। तुम मेरी हो, हमेशा से मेरी। और अब इस दुनिया की कोई ताक़त तुम्हें मुझसे छीन नहीं सकती।”

    उसने अपने आदमी से कहा—
    “कल कॉलेज के बाहर गाड़ी तैयार रखना। वो अकेली बाहर निकले… और मैं उसे अपने पास ले आऊँगा।”

    उसके चेहरे पर हल्की, मगर ख़तरनाक मुस्कान उभरी।


    ---

    सुबह, सिया कॉलेज जाने के लिए तैयार हुई।
    लेकिन बाहर दरवाज़े पर stepmom माया और stepsister रिद्धिमा खड़ी थीं।

    “इतनी जल्दी कहाँ जा रही हो?” माया ने ताने भरे लहज़े में कहा।
    सिया ने नज़र झुकाकर कहा—“कॉलेज…”

    रिद्धिमा ने हल्की हँसी उड़ाई—
    “कॉलेज? या फिर Rudra Singhania से मिलने?”

    सिया चौंक गई।
    “क…क्या कह रही हो तुम? मैं उससे क्यों मिलूँगी?”

    रिद्धिमा की आँखों में जलन साफ़ थी।
    “क्योंकि अब उसकी नज़र तुझ पर है। लेकिन याद रख, Rudra जैसा आदमी मेरे लायक है, तेरे नहीं।”

    सिया का चेहरा उतर गया।
    उसे समझ आ गया कि अब रिद्धिमा और माया उसकी जिंदगी और मुश्किल बनाने वाली हैं।


    ---

    उसी वक्त, कॉलेज के गेट पर वही काली SUV खड़ी थी।
    रुद्र गाड़ी से बाहर निकला और ठंडी निगाहों से चारों तरफ़ देखा।
    लोगों की भीड़ फिर से थम गई। सब जानते थे, शहर का सबसे ख़तरनाक आदमी यहाँ खड़ा है।

    सिया जैसे ही कॉलेज गेट तक पहुँची, उसकी नज़र अचानक रुद्र से टकराई।
    उसके कदम वहीं रुक गए। दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।

    रुद्र धीरे-धीरे उसकी तरफ़ बढ़ा।
    भीड़ ने रास्ता खाली कर दिया।

    वो उसके बिल्कुल पास आकर रुका।
    उसकी आँखें गहरी और ठंडी थीं, लेकिन उनमें एक अजीब सा जुनून जल रहा था।

    “कहा था न…” रुद्र ने फुसफुसाया, “अगली बार तुम्हें खुद अपनी दुनिया में ले जाऊँगा।”

    सिया ने काँपते हुए कहा—
    “कृपया… मुझे अकेला छोड़ दीजिए।”

    रुद्र हल्के से मुस्कुराया और उसके चेहरे के करीब झुककर धीमे से बोला—
    “अब देर हो चुकी है, सिया। तुम अब मेरी कैद में हो। चाहे तुम्हें अच्छा लगे या न लगे।”

    kahani pasand aye to please commente krna aap sb ke ak commente se hame dil se khusi milti hai 😊

  • 6. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 6

    Words: 507

    Estimated Reading Time: 4 min

    कॉलेज के गेट पर खड़ी सिया को लगा जैसे पूरी दुनिया उसकी साँसें रोककर खड़ी है। सामने Rudra Singhania था — शहर का सबसे ख़तरनाक नाम। उसके कदम भारी थे, लेकिन उनमें वो ठहराव था जो किसी बादशाह का होता है। उसकी आँखें, ठंडी और गहरी, सीधे सिया के चेहरे में धँस रही थीं।

    भीड़ दोनों ओर हट चुकी थी। किसी की हिम्मत नहीं थी कि Rudra के रास्ते में आए।
    सिया काँप रही थी। उसके होंठ सूख गए, दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
    “क…कृपया… मुझे अकेला छोड़ दीजिए,” उसने बमुश्किल शब्द निकाले।

    लेकिन Rudra की आँखों में हल्की मुस्कान खेली। वो झुककर उसके कानों के पास बोला—
    “अब देर हो चुकी है, सिया। तुम मेरे हो चुकी हो।”

    इतना कहकर उसने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। सिया ने छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ लोहे जैसी मज़बूत थी।

    “छोड़ो मुझे! लोग देख रहे हैं!”
    “तो देखने दो,” Rudra ने ठंडी आवाज़ में कहा, “आज सबको पता चल जाना चाहिए कि तुम पर सिर्फ़ मेरा हक़ है।”

    सिया की आँखों में आँसू उमड़ आए।
    “मैं तुमसे नफ़रत करती हूँ…”
    Rudra ने उसकी तरफ़ देखा, और उसकी आँखों में पागलपन की लकीरें और गहरी हो गईं।
    “नफ़रत?” वो हँसा, “प्यार और नफ़रत… दोनों एक ही धागे से बंधे हैं, सिया। तुम जल्द ही समझ जाओगी।”

    वो उसे घसीटते हुए काली SUV तक ले गया। भीड़ ने सिर्फ़ देखा, कोई आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पाया। गार्ड्स ने दरवाज़ा खोला और Rudra ने सिया को गाड़ी में धकेल दिया।

    गाड़ी तेज़ी से आगे बढ़ी। सिया खिड़की से बाहर देखती रही, आँखों से आँसू बहते रहे।
    “तुम ये सब क्यों कर रहे हो?” उसने चीखकर कहा।
    Rudra शांत था, उसकी नज़रें सिर्फ़ उस पर टिकी थीं।
    “क्योंकि तुम मेरी हो। और मैं जो चाहता हूँ, उसे किसी भी हालत में पाता हूँ।”


    ---

    करीब आधे घंटे बाद गाड़ी एक विशाल हवेली के सामने रुकी। काले पत्थरों से बनी उस इमारत को देखकर ही डर लग रहा था। ऊँची दीवारें, हथियारबंद गार्ड्स, और दरवाज़े पर खड़ा शेर के पंजे का निशान।

    सिया काँप गई।
    “ये… ये जगह क्या है?”
    Rudra ने गाड़ी से उतरते हुए कहा—
    “ये मेरी दुनिया है। और अब तुम्हारा घर भी।”

    उसने सिया का हाथ पकड़कर अंदर खींचा।
    हॉल में झूमर लटक रहे थे, लेकिन माहौल में खून और बारूद की गंध थी। गार्ड्स झुककर Rudra को सलाम कर रहे थे।
    “Boss,” सबने एक साथ कहा।

    सिया को महसूस हुआ जैसे किसी अंधेरी कैद में डाल दिया गया हो।


    ---

    Rudra ने उसे अपने कमरे में धकेला।
    “याद रखो, सिया… यहाँ से बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं है। तुम चाहो या न चाहो, अब मेरी ज़िंदगी का हिस्सा हो।”

    सिया ने उसकी आँखों में देखते हुए धीमे से कहा—
    “तुम मुझे क़ैद कर सकते हो, लेकिन मेरा दिल कभी तुम्हारा नहीं होगा।”

    Rudra उसकी तरफ़ बढ़ा।
    उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, मगर आँखों में जुनून का तूफ़ान।
    “दिल?” वो फुसफुसाया, “तुम सोचती हो तुम्हारा दिल तुम्हारा है? नहीं, सिया… तुम्हारा दिल भी अब मेरा है। और मैं तुम्हें ये साबित करके दिखाऊँगा।”

  • 7. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 7

    Words: 676

    Estimated Reading Time: 5 min

    सिया के पैरों में ज़ंजीरें भले न थीं, लेकिन उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो कैद हो चुकी है। हवेली का हर कोना डरावना और अजनबी लग रहा था। ऊँची-ऊँची दीवारें, हथियारबंद गार्ड्स, और अंदर आते-जाते लोग जिनकी आँखों में सिर्फ़ खौफ़ और आज्ञाकारिता थी।

    उसने धीमे से कहा—“मुझे घर जाना है… प्लीज़।”
    रुद्र, जो पास खड़ा था, ठंडी निगाहों से उसे देखने लगा।
    “घर?” उसने हल्की हँसी उड़ाई। “वो घर, जहाँ तुम्हारी सौतेली माँ और बहन तुम्हें खिलौने की तरह इस्तेमाल करती हैं? जहाँ तुम हर रोज़ अपमान सहती हो? नहीं, सिया। अब तुम्हारा घर यही है।”

    सिया ने नज़रें फेर लीं। उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे।
    “ये कैद है, घर नहीं।”
    रुद्र ने पास आकर उसके आँसू पोंछने की कोशिश की, लेकिन सिया ने झटक दिया।
    उसकी नज़रें सख़्त हो गईं।
    “एक दिन तुम खुद मेरी बाहों में आओगी… और उस दिन आँसू नहीं, सिर्फ़ मेरा नाम लोगी।”


    ---

    कुछ देर बाद, रुद्र ने अपने लोगों को बुलाया।
    “उसे मेरी हवेली का हर कोना दिखाओ,” उसने आदेश दिया।
    गार्ड्स ने हामी भरी।

    सिया को हवेली के गलियारों से गुज़ारा गया। दीवारों पर पुराने युद्धों की तस्वीरें टंगी थीं। एक कमरे के दरवाज़े से उसने झाँका—अंदर हथियार रखे थे: बंदूकें, चाकू, और गोलियों के बक्से।
    उसका दिल काँप उठा।
    “ये कैसी दुनिया है…” उसने खुद से कहा।

    अचानक उसने किसी को कराहते सुना। नज़र घुमाई तो देखा—एक आदमी को गार्ड्स घसीटते हुए लाए। उसके चेहरे पर चोटें थीं, खून बह रहा था।
    “Boss के खिलाफ़ गया था,” गार्ड ने कहा।
    उसे Rudra के सामने पटक दिया गया।

    सिया ने डर से आँखें बड़ी कर लीं।
    Rudra ने बिना पलक झपकाए उस आदमी की तरफ़ देखा।
    “गलती की?”
    आदमी काँपते हुए बोला—“म…मुझसे भूल हो गई, Boss। द
    सिया कमरे के बीचोंबीच खड़ी थी। दरवाज़ा उसके पीछे बंद हो चुका था। सामने Rudra, जिसकी निगाहें उससे हटती ही नहीं थीं।
    उसका डर अब गुस्से में बदलने लगा था।
    “तुम्हें क्या लगता है, इस तरह मुझे कैद कर लोगे तो मैं तुम्हें मान लूँगी? कभी नहीं!”

    Rudra ने उसकी ओर कदम बढ़ाया।
    “सिया… तुम नहीं समझती। ये दुनिया बहुत गंदी है। अगर मैं तुम्हें अपनी छाया में नहीं रखूँगा तो ये दुनिया तुम्हें नोंच-खसोट कर खा जाएगी।”

    सिया ने तिक्त स्वर में कहा—
    “और तुम? तुम क्या हो Rudra? दुनिया के लिए एक माफ़िया, और मेरे लिए… एक सज़ा।”

    उसके शब्दों से एक पल को Rudra की आँखों में चुभन सी उभरी। मगर अगले ही पल उसके होंठों पर हल्की, मगर खतरनाक मुस्कान लौट आई।
    “सज़ा हो या इनाम… फर्क नहीं पड़ता। तुम्हें मेरी होना ही है।”


    ---

    कुछ देर बाद Rudra ने अपने आदमी को बुलाया।
    “Siya को बाहर ले चलो। उसे दिखाओ कि ये मेरी दुनिया है।”

    सिया चौंकी। “मुझे कहीं नहीं जाना!”
    Rudra ने ठंडी नज़रों से उसकी ओर देखा।
    “अगर तुम्हें यहाँ रहना है, तो तुम्हें सच्चाई देखनी होगी। मेरी दुनिया की सच्चाई।”

    गार्ड्स ने उसे जबरदस्ती बाहर ले गया।


    ---

    हवेली का पिछला हिस्सा… वहाँ छोटे-छोटे कमरे थे, जिनमें लोग बंद थे। कुछ घायल, कुछ डरे हुए।
    सिया ने डर से अपने होंठ काट लिए।
    “ये… ये लोग कौन हैं?” उसने हकलाते हुए पूछा।

    Rudra उसके पीछे आया और बोला—
    “ये वो लोग हैं जिन्होंने मुझसे धोखा किया। जो मेरे खिलाफ गए। मेरी दुनिया में ग़द्दारी की सिर्फ़ एक सज़ा है — मौत।”

    सिया की आँखें चौड़ी हो गईं।
    “ये… ये सब गलत है! इंसान की जान तुम्हारे लिए इतनी सस्ती है?”

    Rudra ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया।
    “सस्ती? नहीं, सिया। जान सबसे कीमती है। इसलिए मैं सबकी जान पर हक़ रखता हूँ। और तुम्हारी जान… तुम्हारा हर साँस… अब सिर्फ़ मेरा है।”

    सिया ने छुड़ाने की कोशिश की, मगर Rudra की पकड़ और कसी।
    उसने फुसफुसाकर कहा—
    “तुम जितना भागोगी, उतना ही मेरे करीब आओगी। याद रखो, सिया… तुम्हारे लिए ये पिंजरा नहीं है। ये मेरी बाँहों की सुरक्षा है।”


    ---

    उसी वक्त, हवेली के एक कोने में खड़ी रिद्धिमा ने सब देखा।
    उसकी आँखों में आग जल रही थी।
    “सिया… तुम्हें सब कुछ आसानी से मिल जाता है। अब देखना, Rudra को भी मैं तुमसे छीनकर रहूँगी।”

  • 8. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 8

    Words: 503

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात गहराई थी। हवेली में सन्नाटा पसरा हुआ था, मगर सिया की आँखों में नींद नहीं थी। कमरे की खिड़की से चाँदनी अंदर आ रही थी, और वो उसी में बैठी अपने आँसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

    उसके दिल में बस एक ही सवाल गूंज रहा था—
    “क्यों मुझे इस कैद में रखा है? क्यों मेरी ज़िन्दगी छीन ली गई?”

    उसी वक्त दरवाज़ा खुला। Rudra अंदर आया। उसकी चाल धीमी थी, लेकिन उसकी मौजूदगी से ही हवा भारी हो गई।
    सिया उठ खड़ी हुई।
    “अब और क्या चाहते हो? सब कुछ ले लिया तुमने। मेरी आज़ादी, मेरा सुकून… और अब शायद मेरी साँसें भी।”

    Rudra ने गहरी साँस ली और पास आकर खड़ा हो गया।
    “नहीं, सिया। तुम्हारी साँसें नहीं… तुम्हारी धड़कनें चाहिए मुझे। क्योंकि वो सिर्फ़ मेरे नाम पर धड़कनी चाहिए।”

    सिया ने गुस्से से कहा—
    “ये प्यार नहीं है, ये ज़बरदस्ती है!”

    Rudra झुककर उसकी आँखों में देखता रहा।
    “प्यार और ज़बरदस्ती में फर्क कौन तय करेगा, सिया? तुम? या ये दुनिया, जो तुम्हें सिर्फ़ इस्तेमाल करना जानती है? कम से कम मैं तुम्हें चाहता हूँ… पूरे जुनून से।”


    ---

    सिया ने एक पल को उसकी आँखों में देखा। वहाँ नफ़रत नहीं थी, वहाँ एक अजीब सा पागलपन था। डर और आकर्षण, दोनों साथ। उसने नज़रें फेर लीं।

    Rudra ने उसका हाथ थामा।
    “आओ, तुम्हें कुछ दिखाता हूँ।”

    वो उसे हवेली के एक गुप्त हिस्से में ले गया। वहाँ बड़े-बड़े नक्शे, हथियार और लैपटॉप्स थे। दर्जनों आदमी काम में लगे थे।
    “ये… ये सब क्या है?” सिया ने धीरे से पूछा।
    Rudra ने गर्व से कहा—
    “ये है मेरी ताक़त। हर सौदा, हर चाल… इसी कमरे से तय होती है। पुलिस से लेकर मंत्री तक… सब मेरी पकड़ में हैं।”

    सिया काँप उठी।
    “ये सब ग़लत है… इंसानियत के खिलाफ़ है।”

    Rudra ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी ठुड्डी ऊपर उठाई।
    “ग़लत और सही… ये दुनिया का बनाया झूठ है। मेरी दुनिया में सिर्फ़ एक सच है—मैं जो चाहता हूँ, वही क़ानून है।”


    ---

    इसी बीच, रिद्धिमा अपने कमरे में खड़ी आईने में खुद को देख रही थी। उसकी आँखों में अजीब सी जलन थी।
    “सिया… तू समझती क्या है खुद को? Rudra को पाना सिर्फ़ मेरा हक़ है। मैं तुझे कभी जीतने नहीं दूँगी।”

    उसने एक ख़तरनाक मुस्कान दी और बुदबुदाई—
    “अब खेल शुरू होगा।”


    ---

    वापस Rudra और सिया।
    Rudra ने उसकी हथेली पर हाथ रखते हुए कहा—
    “डरो मत, सिया। इस दुनिया में सब तुम्हारा दुश्मन हो सकता है… मगर मैं तुम्हारा सबसे बड़ा रक्षक हूँ। चाहे तुम्हें यक़ीन हो या न हो।”

    सिया की आँखों से आँसू बह निकले।
    उसका दिल कह रहा था कि ये आदमी ख़तरनाक है, मगर कहीं गहराई में एक सवाल भी उठ रहा था—
    “क्या सच में… ये मुझे बचा सकता है?”


    इसमें Siya का डर और Rudra का जुनून और गहराया, और stepsister Riddhima की जलन अब साज़िश की ओर बढ़ने लगी है।


    please gusy soppot krna ok
    😍🥰
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    .......................
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  • 9. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 9

    Words: 500

    Estimated Reading Time: 3 min

    हवेली की ठंडी दीवारों में कैद होकर भी सिया का दिल आज़ादी की तड़प में धड़क रहा था। हर पल उसे लगता, जैसे उसके चारों ओर कोई अदृश्य बेड़ियाँ हैं।
    लेकिन जितना वो भागना चाहती, उतना ही Rudra की आँखें उसे रोक लेतीं।

    उसी रात, रिद्धिमा ने हवेली में क़दम रखा। किसी को शक न हो, इसलिए उसने Rudra के एक पुराने आदमी को पैसे देकर अंदर घुसने का रास्ता बनाया।
    उसकी आँखों में जलन और चेहरे पर चालाक मुस्कान थी।
    “अब खेल शुरू होगा, सिया। Rudra मुझे देखेगा… और बस मुझे ही चाहेगा।”


    ---

    सुबह, हवेली में गहमागहमी थी। Rudra के आदमी एक बड़ी डील की तैयारी में थे।
    सिया अपने कमरे में बैठी थी, तभी दरवाज़ा खुला। रिद्धिमा अंदर आई।
    सिया चौंक गई।
    “तुम… यहाँ कैसे?”

    रिद्धिमा ने नकली मुस्कान के साथ कहा—
    “बहन हूँ तुम्हारी, मिलने नहीं आ सकती क्या?”

    सिया ने ठंडी निगाहों से देखा।
    “मुझे पता है, तुम क्यों आई हो। हमेशा की तरह मेरी ज़िन्दगी में ज़हर घोलने।”

    रिद्धिमा ने पास आकर फुसफुसाया—
    “शायद तुझे पता नहीं, Rudra तुझसे नहीं, मुझसे मोहब्बत करता है।”

    सिया तिलमिला उठी।
    “झूठ! वो…” उसकी आवाज़ रुक गई। वो खुद भी समझ नहीं पा रही थी कि Rudra की चाहत प्यार है या कैद।

    रिद्धिमा ने हँसते हुए कहा—
    “देखना, Rudra बहुत जल्द मुझे चुनेगा। और तब तेरा ये घमंड चकनाचूर होगा।”


    ---

    इसी बीच, Rudra कमरे में दाख़िल हुआ। उसकी आँखें सीधे सिया पर पड़ीं।
    “सब ठीक है?” उसने ठंडी आवाज़ में पूछा।

    रिद्धिमा तुरंत उसकी तरफ़ बढ़ी।
    “Rudra… मैं तुम्हें मिलने आई हूँ।”

    Rudra ने उसकी ओर देखा, लेकिन उसकी नज़र में कोई गर्मजोशी नहीं थी।
    “तुम्हें यहाँ आने की इजाज़त किसने दी?”

    रिद्धिमा का चेहरा उतर गया।
    “मैं… मैं तो बस सिया की चिंता में…”

    Rudra ने बीच में ही काट दिया।
    “सिया अब मेरी दुनिया में है। उसकी चिंता करने की ज़रूरत तुम्हें नहीं।”

    उसके शब्दों में इतनी ठंडक थी कि रिद्धिमा की सांस अटक गई। पर उसकी आँखों में जलन और तेज़ हो गई।


    ---

    रात को, रिद्धिमा ने अपने मन में कसम खाई।
    “Rudra मुझे नज़रअंदाज़ करे… ये मैं बर्दाश्त नहीं करूँगी। मैं उसे पाने के लिए कुछ भी करूँगी। सिया… तू देखती जा।”

    उसने एक छोटा शीशी निकाली जिसमें सफ़ेद पाउडर भरा था।
    “पहली चाल… कल सुबह चलेगी।”


    ---

    उधर, सिया बिस्तर पर लेटी थी। उसकी आँखों में नींद नहीं थी।
    Rudra के शब्द बार-बार गूंज रहे थे—
    "तुम अब मेरी हो।"

    उसका दिल अब भी कह रहा था कि उसे इससे डरना चाहिए। लेकिन कहीं गहराई में एक फुसफुसाहट थी—
    “क्या होगा अगर ये सच में मुझे दुनिया से बचा सकता है?”

    सिया ने आँखे बंद कर लीं। मगर उसे पता नहीं था कि सुबह होते ही उसकी ज़िन्दगी और उलझने वाली है।
    😇😊
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    .
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    ..... meri pahli story hai ye koi bhi galti ho to please don't mind
    🥲
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    ....
    .....
    ..
    ..
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    ..
    ... bye

  • 10. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 10

    Words: 834

    Estimated Reading Time: 6 min

    सुबह की पहली किरण हवेली की खिड़कियों से छनकर अंदर आई। लेकिन इस हवेली में सूरज की रोशनी भी जैसे अंधेरे में गुम हो जाती थी।
    सिया देर रात तक सो नहीं पाई थी। Rudra की कठोर बातें, उसकी गिरफ्त, और रिद्धिमा की झूठी मुस्कान उसके ज़हन में बार-बार घूम रही थीं।

    “आख़िर मैं किस चक्रव्यूह में फँस गई हूँ?” उसने खुद से बुदबुदाया।


    ---

    हवेली के डाइनिंग हॉल में नाश्ते की तैयारी थी। लम्बी मेज़ पर चाँदी के बर्तनों में गरमागर्म खाना रखा जा रहा था। Rudra के आदमी खड़े थे, लेकिन सबकी निगाहें चुपचाप झुकी हुईं। इस घर में सिर्फ़ Rudra का हुक्म चलता था।

    सिया मेज़ पर बैठी। सामने Rudra आया — उसकी चाल में वही बेख़ौफ़ रुतबा, वही आँखों में ठंडी आग।
    सिया ने एक पल को उसकी ओर देखा और फिर निगाहें झुका लीं।
    Rudra ने ध्यान से उसे देखा। “तुमने कुछ खाया?”
    “भूख नहीं है।” सिया ने धीरे से जवाब दिया।

    Rudra ने बिना कुछ कहे उसकी प्लेट में खाना परोसा और ठंडी आवाज़ में बोला —
    “यहाँ भूख–न–भूख जैसी कोई बात नहीं है। तुम्हें खाना होगा।”

    सिया के दिल में गुस्सा और लाचारी दोनों उमड़े। वो उसकी कैद से नफ़रत करती थी, पर उसके खयाल रखने के अंदाज़ से इनकार भी नहीं कर पा रही थी।


    ---

    उसी वक्त रिद्धिमा अंदर आई।
    उसने आज और भी खूबसूरत कपड़े पहने थे, ताकि Rudra का ध्यान अपनी ओर खींच सके।
    “सुप्रभात Rudra,” उसने मीठे स्वर में कहा और सीधे उसके पास बैठ गई।

    Rudra ने एक पल उसकी ओर देखा, फिर फिर से सिया पर ध्यान दिया। यह रिद्धिमा के लिए किसी तमाचे से कम नहीं था।
    लेकिन उसके होंठों पर हल्की मुस्कान खेल गई। “कोई बात नहीं… अब मेरी चाल चलेगी।”

    रिद्धिमा ने छिपे हाथ से अपनी अंगूठी के अंदर छुपा पाउडर निकालकर सिया की प्लेट में धीरे से मिला दिया।
    सफ़ेद पाउडर चुपचाप खाने में घुल गया।


    ---

    सिया ने Rudra की नज़रों से बचते हुए दो कौर खाए। अचानक उसके सिर में हल्की चक्कर सी आने लगी।
    उसका गला सूख गया, साँसें तेज़ हो गईं।

    “पानी…” सिया ने कांपते हुए कहा।

    Rudra तुरंत खड़ा हुआ और गिलास उसके होंठों से लगाते हुए बोला —
    “सिया! क्या हुआ तुम्हें?”

    सिया का शरीर बेक़ाबू होने लगा। उसकी नब्ज़ तेज़ धड़क रही थी, आँखों में धुंध छाने लगी।
    Rudra ने तुरंत अपने आदमी को आदेश दिया —
    “डॉक्टर को बुलाओ, अभी!”

    हॉल में अफ़रा-तफ़री मच गई।


    ---

    रिद्धिमा ने नकली चिंता दिखाते हुए Rudra से कहा —
    “ओह गॉड, Rudra! सिया ठीक तो है ना? शायद इसे रात भर नींद नहीं आई होगी।”

    लेकिन Rudra ने उसकी तरफ़ देखा तक नहीं। उसकी बाहों में सिया बेसुध थी और वो घबराहट में पहली बार बेनक़ाब हो रहा था।
    उसके कठोर चेहरे पर दर्द और डर साफ़ झलक रहा था।

    डॉक्टर तुरंत आया। उसने सिया की जाँच की और कहा —
    “किसी तरह का नशीला पदार्थ इसके शरीर में गया है। पर चिंता मत कीजिए, मैंने इंजेक्शन दे दिया है। कुछ ही देर में असर कम हो जाएगा।”

    Rudra की आँखों में आग जल उठी।
    “कौन था जिसने मेरी हवेली में ज़हर पहुँचाया?!” उसकी गरज से पूरा हॉल काँप उठा।


    ---

    रिद्धिमा के होंठों पर छुपी मुस्कान आई और गई। उसने डर का नाटक किया —
    “Rudra… हो सकता है बाहर से आया कोई आदमी…”

    Rudra ने गहरी नज़र से उसकी तरफ़ देखा। उसकी आँखें जैसे रिद्धिमा की आत्मा में झाँक रही थीं।
    “अगर इस सबके पीछे तुम्हारा हाथ हुआ…” उसकी आवाज़ बर्फ़ सी ठंडी थी, “…तो अंजाम ऐसा होगा जिसे तुम सोच भी नहीं सकती।”

    रिद्धिमा ने झूठी मासूमियत से सिर झुका लिया।
    “मैं? Rudra, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो?”

    लेकिन भीतर ही भीतर उसका दिल धड़क रहा था। उसने उम्मीद नहीं की थी कि Rudra इतनी जल्दी शक कर लेगा।


    ---

    उस रात, सिया अपने कमरे में लेटी थी। दवा का असर कम हो गया था, पर उसके दिल में सवालों का तूफ़ान था।
    “किसने मुझे मारने की कोशिश की?”
    उसकी आँखों में Rudra का चेहरा उभरा, जो घबराहट में उसे बाहों में थामे था।

    वो सोचने लगी—
    “ये आदमी खतरनाक है, निर्दयी है… लेकिन क्या ये सच में मेरी परवाह करता है?”

    उसी पल दरवाज़ा खुला। Rudra अंदर आया। उसके हाथ में दवा और पानी था।
    “समय पर दवा लेनी होगी।” उसकी आवाज़ अब पहले जैसी ठंडी नहीं, बल्कि थोड़ी मुलायम थी।

    सिया ने धीरे से दवा ली।
    “तुमने… आज मुझे बचाया।” उसकी आँखों में नमी थी।

    Rudra उसके पास बैठा और गहरी आवाज़ में बोला —
    “सिया, तुम समझ क्यों नहीं रही? तुम मेरी हो। और जब तक मैं ज़िंदा हूँ, कोई तुम्हें छू भी नहीं सकता।”

    सिया का दिल ज़ोरों से धड़क उठा। वो चाहकर भी उसकी आँखों से बच न पाई।
    उसे एहसास हुआ — वो इस आदमी से नफ़रत भी करती है और उसके बिना जी भी नहीं सकती।


    ---

    कमरे से बाहर, रिद्धिमा खड़ी थी। उसकी आँखों में नफ़रत की आग भड़क रही थी।
    “नहीं सिया… मैं तुम्हें Rudra का दिल नहीं जीतने दूँगी। ये खेल अब और भी खतरनाक होगा।”

  • 11. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 11

    Words: 825

    Estimated Reading Time: 5 min

    रात गहरी थी। हवेली की ऊँची दीवारें ठंडी हवा में रहस्यमयी लग रही थीं। कमरे में सन्नाटा पसरा था, पर सिया की आँखों में नींद नहीं थी। उसके मन में अब भी वही सवाल घूम रहे थे—
    “कौन मुझे मारना चाहता है? क्या Rudra सच में मेरी परवाह करता है या ये सिर्फ़ उसका पागलपन है?”

    उसकी सोच टूट गई जब अचानक दरवाज़ा खुला। Rudra अंदर आया।
    उसकी आँखों के नीचे हल्की थकान थी, जैसे वो सारी रात पहरा देता रहा हो।
    “तुम जाग रही हो?” उसने धीमे स्वर में पूछा।

    सिया ने चौंकते हुए कहा, “तुम… यहाँ इतनी रात को?”

    Rudra ने उसकी तरफ़ गहरी नज़र डालते हुए कहा —
    “क्योंकि अब तुम्हारी हर सांस मेरी जिम्मेदारी है। जब तक तुम्हें नुकसान पहुँचाने वाला सामने नहीं आता, तुम अकेली नहीं रहोगी।”

    सिया ने गुस्से और बेबसी से कहा —
    “तुम मुझे क़ैद करके मेरी हिफ़ाज़त नहीं कर सकते। ये ज़िन्दगी नहीं है।”

    Rudra धीरे-धीरे उसके करीब आया। उसकी आवाज़ में खुरदुरापन था, पर दिल से निकली थी—
    “तुम समझ क्यों नहीं रही, सिया? मेरे बिना तुम इस दुनिया में एक पल भी सुरक्षित नहीं हो। और सच कहूँ तो… मैं भी तुम्हारे बिना एक पल नहीं जी सकता।”

    सिया का दिल ज़ोर से धड़का। वो कुछ कहना चाहती थी, पर शब्द गले में अटक गए।


    ---

    अगली सुबह, Rudra ने हवेली के सभी दरवाज़ों और खिड़कियों पर पहरा बढ़ा दिया।
    उसने अपने सबसे वफ़ादार आदमी अयान को बुलाकर कहा —
    “सिया की सुरक्षा अब तुम्हारे हाथ में है। अगर उसकी एक भी सांस खतरे में पड़ी… तो तुम्हारी सांस चली जाएगी।”

    अयान ने सिर झुका लिया।
    “जी, मालिक।”

    सिया ने गुस्से में Rudra की तरफ़ देखा।
    “तुमने मुझे कैदखाने में बदल दिया है। मैं कोई चीज़ नहीं हूँ जिसे तुम ताले और पहरे में रखो।”

    Rudra ने ठंडी नज़र से कहा —
    “तुम चीज़ नहीं हो, सिया। तुम मेरी हो। और जो मेरी है, उसे खोने का सवाल ही नहीं।”

    उसके शब्द सिया के दिल पर हथौड़े की तरह गिरे। वो डर और खींचाव के बीच उलझती जा रही थी।


    ---

    इसी बीच, हवेली के एक कोने में रिद्धिमा गुस्से से अपने होंठ काट रही थी।
    उसकी चाल असफल हो गई थी, बल्कि Rudra और सिया के बीच का रिश्ता और गहरा हो गया था।

    उसने आईने में खुद को देखा और फुसफुसाई—
    “नहीं… Rudra सिर्फ़ मेरा होगा। सिया, तू चाहे जितना भी भाग ले, इस बार मैं तुझे ऐसी सज़ा दूँगी कि Rudra खुद तुझसे नफ़रत करने लगेगा।”

    रिद्धिमा ने अपनी जेब से एक छोटा मोबाइल निकाला और किसी नंबर पर कॉल मिलाई।
    “योजना बदल गई है,” उसने ठंडी आवाज़ में कहा।
    “अब सिया को मारना नहीं, बल्कि बदनाम करना है।”

    फोन के दूसरी तरफ़ से किसी ने हँसते हुए जवाब दिया—
    “जैसा आप कहें, मैडम।”


    ---

    रात को, Rudra सिया के कमरे में आया। उसके हाथ में एक खूबसूरत नेकलेस था — हीरों से सजा हुआ, पर भारी और ठंडा।
    उसने सिया की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा—
    “ये मेरे नाम का निशान है। इसे पहन लो।”

    सिया ने चौंककर देखा।
    “मैं… ये क्यों पहनूँ?”

    Rudra ने गहरी आवाज़ में कहा —
    “क्योंकि दुनिया को पता चलना चाहिए कि तुम Rudra Singhania की हो। कोई भी तुम्हारी तरफ़ देखने से पहले सौ बार सोचे।”

    सिया ने धीरे से कहा—
    “ये प्यार नहीं है… ये तो कैद है।”

    Rudra उसके बिल्कुल पास आया, उसकी आँखों में जलती आग साफ़ थी।
    “अगर कैद ही तुम्हें ज़िन्दा रख सकती है, तो हाँ… मैं तुम्हें कैद ही करूँगा। लेकिन याद रखना सिया, इस कैद में सिर्फ़ दीवारें नहीं हैं… इसमें मेरा दिल भी तुम्हारे लिए धड़कता है।”

    सिया की आँखें भर आईं। वो समझ नहीं पा रही थी कि ये आदमी उसकी बर्बादी है या उसकी पनाह।


    ---

    इसी वक्त, अचानक बाहर शोर मचा।
    एक आदमी दौड़ता हुआ आया और Rudra से बोला —
    “मालिक! हवेली की सुरक्षा में सेंध लगी है… कोई अंदर घुस आया है।”

    Rudra ने तुरंत बंदूक निकाली। उसकी आँखों में तूफ़ान उमड़ आया।
    “सिया, तुम कमरे से बाहर मत निकलना। मैं लौटकर आता हूँ।”

    वो बिजली की तरह बाहर निकल गया।

    सिया की सांसें तेज़ हो गईं। उसे एहसास था कि ये रिद्धिमा की ही चाल होगी।
    उसने खिड़की से झाँककर देखा— हवेली के बाहर कुछ नकाबपोश लोग थे। Rudra और उसके आदमी उनसे भिड़ चुके थे।

    Rudra की हर गोली सटीक चल रही थी। उसकी आँखों में जुनून और ग़ुस्सा था, जैसे जो भी सिया को छूने आया हो, वो ज़िंदा नहीं लौटेगा।


    ---

    लड़ाई खत्म होने के बाद Rudra खून से सना, पर अब भी खड़ा था।
    वो सिया के कमरे में लौटा और उसकी आँखों में देखकर बोला—
    “देखा? यही है वो दुनिया जिसमें तुम हो। यही है वो वजह कि मैं तुम्हें अपनी बाहों में क़ैद रखता हूँ। क्योंकि अगर मैं ढाल न बनूँ… तो तुम पल भर में टूट जाओगी।”

    सिया के दिल में आँधियाँ चल रही थीं। वो समझ चुकी थी कि Rudra का जुनून उसकी सबसे बड़ी कैद भी है और सबसे बड़ी हिफ़ाज़त भी।

  • 12. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 12

    Words: 540

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात का सन्नाटा हवेली के हर कोने में गहराता जा रहा था।
    सिया अपने कमरे की खिड़की के पास बैठी थी, बाहर चाँदनी फैली हुई थी। हवा ठंडी थी, लेकिन उसके भीतर अतीत की आग फिर से भड़क रही थी।

    उसकी आँखें बंद हुईं और यादें लौट आईं—


    ---

    पहला जन्म

    वो वही हवेली थी, पर उसके लिए नरक जैसी।
    उसकी माँ कब की मर चुकी थी और सौतेली माँ ने अपने चेहरे पर नकली मुस्कान चिपका रखी थी।

    “सिया, तू हम पर बोझ है,” उसकी stepmom की आवाज़ गूँजी थी।
    “तेरी ज़मीन, तेरी दौलत अब इस घर का हक़ है। तू बस एक हस्ताक्षर दूर है मौत से।”

    रिद्धिमा ने भी पास आकर फुसफुसाया था—
    “सोच ले, Rudra तुझे कभी नहीं चुनेगा। तू कुछ भी नहीं है। अगर तू हमें सब कुछ दे दे, तो शायद तुझे ज़िन्दा छोड़ दें।”

    लेकिन सिया ने हस्ताक्षर से इंकार कर दिया।
    उसके बाद… वो खाई।

    हाँ, वही अँधेरा कुआँ जैसा गड्ढा, जिसमें उसे धक्का दे दिया गया था।
    ठंडी हवा, ज़मीन पर चोट, और आँखों के सामने अँधेरा।

    उसका आख़िरी ख़याल था—
    “काश मैंने Rudra को समझा होता… शायद वो मुझे बचा सकता था।”

    और फिर सब ख़त्म।


    ---

    पुनर्जन्म

    अचानक उसकी आँखें खुलीं और उसने खुद को वहीँ पाया — लेकिन दो साल पहले।
    उसका दिल धक-धक कर रहा था।
    “ये… क्या हुआ? मैं तो मर गई थी!”

    धीरे-धीरे उसे समझ आया — ये ईश्वर का वरदान है, दूसरा मौका है।
    इस बार वो अपनी मौत का बदला लेगी। इस बार रिद्धिमा और उसकी माँ को जीतने नहीं देगी। और सबसे बड़ी बात — इस बार वो Rudra को खोने नहीं देगी।


    ---

    वापस वर्तमान में

    खिड़की से आती चाँदनी में सिया की आँखें चमक रही थीं।
    उसने खुद से वादा किया—
    “इस बार मैं कमजोर नहीं पड़ूँगी। रिद्धिमा ने मेरी ज़िन्दगी छीनी थी, लेकिन अब मैं उसकी साँसें छीन लूँगी। और Rudra… इस बार मैं तुझे दूर नहीं करूँगी। तेरा जुनून अब मेरी ताक़त बनेगा।”

    उसकी मुट्ठियाँ कस गईं।


    ---

    इसी वक्त दरवाज़ा खुला और Rudra अंदर आया।
    उसने देखा, सिया की आँखों में अजीब सा जोश और गुस्सा है।

    “किसी बात ने तुम्हें परेशान किया है?” उसने पूछा।

    सिया ने उसकी तरफ़ देखा।
    “हाँ… लेकिन अब मैं डरूँगी नहीं। जो लोग मुझे नुकसान पहुँचाना चाहते हैं, उन्हें मैं खत्म कर दूँगी।”

    Rudra चौंक गया।
    उसकी नज़रें गहरी हो गईं।
    “आख़िरकार, तुम्हारी आँखों में वही आग दिख रही है… जो मुझमें है।”

    सिया ने धीमे स्वर में कहा—
    “शायद इसलिए हमारी किस्मत हमें बार-बार एक-दूसरे से बाँध देती है।”

    कुछ पल दोनों चुप रहे। हवा में अजीब सा खिंचाव था।
    Rudra धीरे-धीरे उसके पास आया, और पहली बार उसकी आँखों में नर्मी झलकी।
    “तुम सोच भी नहीं सकती, सिया… मैं तुम्हें खोने से कितना डरता हूँ।”

    सिया का दिल तेज़ धड़क रहा था। उसने सोचा—
    “हाँ Rudra… इस बार मैं तुम्हें खोने नहीं दूँगी। चाहे मुझे दुनिया से लड़ना पड़े।”


    ---

    बाहर, हवेली के अंधेरे गलियारे में रिद्धिमा खड़ी थी।
    उसने दोनों को साथ देखा और उसकी आँखों में नफ़रत की लपटें भड़क उठीं।

    “तो तूने पिछली ज़िन्दगी से भी कुछ सीखा है, सिया?” उसने धीरे से बुदबुदाया।
    “कोई बात नहीं… तेरे इस नए जन्म को भी मैं खत्म कर दूँगी। और इस बार Rudra तुझे बचा भी नहीं पाएगा।”

  • 13. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 13

    Words: 651

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की हल्की रोशनी हवेली के संगमरमर के फर्श पर फैल रही थी।
    सिया बालकनी में खड़ी थी, लेकिन उसका मन बेचैन था। पिछली रात उसने खुद से कसम खाई थी—इस जन्म में वो किसी के हाथ की कठपुतली नहीं बनेगी।
    पर सवाल ये था कि क्या Rudra सच में उसकी ढाल है… या सबसे बड़ा खतरा?


    ---

    कुछ देर बाद Rudra उसके पास आया। उसकी चाल हमेशा की तरह भारी और दबंग थी।
    “आज तुम मेरे साथ चलोगी,” उसने आदेश दिया।

    सिया ने चौंककर पूछा—
    “कहाँ?”

    “मेरी दुनिया देखने।” उसकी आँखों में हल्की चमक थी।

    सिया का दिल धक-धक करने लगा।
    क्या वो सच में उसके अंधेरे में कदम रखने वाली थी?


    ---

    अंडरवर्ल्ड की झलक

    काली गाड़ी हवेली से निकली और शहर के सबसे सुनसान हिस्से में पहुँची।
    वो जगह पुरानी फैक्ट्री जैसी थी, पर अंदर की हलचल किसी युद्धभूमि से कम नहीं।
    हथियारों से लैस आदमी, गाड़ियों पर भरे बक्से, और पैसों की गड्डियाँ मेज़ पर रखी हुईं।

    सिया ने ये सब पहली बार देखा। उसकी सांसें तेज़ हो गईं।
    “ये… ये सब क्या है?” उसने फुसफुसाकर कहा।

    Rudra ने ठंडी नज़र से उसकी तरफ़ देखा।
    “ये है मेरी दुनिया। गोलियों और खून की दुनिया। यहाँ वफ़ादारी बिकती है और गद्दारी मौत पाती है।”

    सिया काँप गई।
    “और तुम… इस सबके राजा हो?”

    Rudra ने बिना पलक झपकाए कहा—
    “नहीं, मैं राजा नहीं। मैं वो तूफ़ान हूँ जिससे सब डरते हैं। Rudra Singhania नाम सुनते ही लोग अपने हथियार नीचे कर देते हैं।”


    ---

    अचानक, कुछ आदमियों को घसीटकर लाया गया। उनके हाथ बँधे थे।
    Rudra का एक आदमी बोला—
    “मालिक, ये लोग हमारे खिलाफ़ काम कर रहे थे। दुश्मनों को जानकारी बेचते हुए पकड़े गए।”

    सिया का दिल धक से रह गया।
    वो देख रही थी कि Rudra की आँखों में ठंडी आग भड़क रही है।

    Rudra ने एक बंदूक उठाई और सीधा उनमें से एक के माथे पर रख दी।
    “गद्दारी की सज़ा सिर्फ़ मौत है।”

    सिया चिल्ला पड़ी—
    “Rudra, नहीं!”

    लेकिन गोली चल चुकी थी।
    हॉल में धमाका गूँज गया। आदमी ज़मीन पर ढेर हो गया।

    सिया की साँस अटक गई। उसकी आँखों से आँसू निकल आए।
    “तुम… तुमने इंसान की जान ले ली!”

    Rudra ने उसकी तरफ़ देखा, उसकी आवाज़ बर्फ़ जैसी थी।
    “ये इंसान नहीं था। ये मेरे घर के खिलाफ़ ज़हर था। और मैं कभी ज़हर को ज़िन्दा नहीं छोड़ता।”


    ---

    सिया काँपते हुए पीछे हट गई।
    “तुम… दरिंदे हो। तुम्हारे साथ रहकर मैं भी उसी अंधेरे में डूब जाऊँगी।”

    Rudra ने पास आकर उसका चेहरा थाम लिया।
    “हाँ, मैं दरिंदा हूँ। लेकिन याद रखना, ये दरिंदा सिर्फ़ तुम्हारे लिए ढाल बनेगा। तुम्हारे लिए कोई भी खून बहाना पड़े… मैं बहाऊँगा।”

    सिया की आँखें उसकी आँखों से मिलीं। डर, नफ़रत और अजीब सा खिंचाव सब एक साथ उमड़ आया।


    ---

    रिद्धिमा की नई चाल

    उधर हवेली में, रिद्धिमा सब खबरें जान रही थी।
    उसने अपने आदमी से सुना कि सिया आज Rudra के साथ उसकी “काली दुनिया” देखने गई है।

    रिद्धिमा के होंठों पर मुस्कान फैल गई।
    “बस यही तो चाहिए था। जब सिया उसकी असली शक्ल देख लेगी, वो उससे डरकर भागेगी। और जब वो टूटेगी… तब Rudra मेरा होगा।”

    उसने शीशे में खुद को देखा और धीरे से कहा—
    “इस खेल की गोटियाँ मैं चलाऊँगी, और सिया को पता भी नहीं चलेगा।”


    ---

    वापस Rudra और सिया

    गाड़ी में लौटते वक्त सिया खामोश थी।
    उसके दिमाग़ में बार-बार वो गोली चलने का दृश्य घूम रहा था।

    Rudra ने उसकी ओर देखा।
    “डर गई?”

    सिया ने धीरे से कहा—
    “हाँ। लेकिन… तुम्हारे बिना भी डर लगता है।”

    Rudra की आँखों में एक पल को नरमी आई।
    उसने उसका हाथ पकड़कर कहा—
    “तुम डर सकती हो, नफ़रत कर सकती हो, लेकिन मुझसे दूर नहीं जा सकती। सिया, तुम मेरी सांस बन चुकी हो।”

    सिया की पलकों पर आँसू लटक गए।
    वो समझ रही थी कि ये आदमी उसे अंधेरे में कैद कर रहा है, पर उसी अंधेरे में उसकी रोशनी भी है।

  • 14. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 14

    Words: 638

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात गहरी थी। हवेली के बड़े-बड़े झूमर बुझ चुके थे, पर Siya की आँखों में नींद नहीं थी।
    बिस्तर पर लेटकर भी उसका मन बेचैन था। बार-बार Rudra का चेहरा सामने आ रहा था—वो ठंडी आँखें, गोली चलाने का दृश्य और फिर उसका हाथ थामकर कहना “तुम मेरी सांस हो।”

    Siya ने आँखें बंद कर लीं।
    “क्यों मेरा दिल इस आदमी की तरफ़ खिंच रहा है? ये तो खून से खेलता है… पर जब ये पास होता है, मुझे खुद को सुरक्षित क्यों महसूस होता है?”


    ---

    Rudra का जुनून

    दूसरी ओर Rudra अपने कमरे में खड़ा खिड़की से बाहर देख रहा था। उसके हाथ में आधी जली सिगार थी।
    वो खुद से बुदबुदाया—
    “Siya… तुम डरती हो मुझसे, पर मेरे बिना रह भी नहीं सकती। ये डर ही तुम्हें मेरी तरफ़ खींचेगा। और उस दिन तक मैं चैन से नहीं बैठूँगा जब तक तुम मेरी नहीं हो जाती।”

    उसकी आँखों में वही खतरनाक चमक थी, पर दिल में कहीं नर्मी भी थी।


    ---

    रिद्धिमा की नई चाल

    अगली सुबह Siya बगीचे में बैठी थी। तभी रिद्धिमा वहाँ आई, चेहरे पर नकली मुस्कान के साथ।
    “दीदी, कैसी हो? कल रात सुना कि आप Rudra जी के साथ गई थीं… कैसी लगी उनकी असली दुनिया?”

    Siya चौंकी।
    “तुम्हें कैसे पता?”

    रिद्धिमा हँसी।
    “दीदी, इस घर में कौन-सी बात छुपती है? सब जानते हैं कि Rudra जी… बहुत खतरनाक हैं। लोग कहते हैं उनके हाथ सैकड़ों जानों से रंगे हैं। क्या आप सच में ऐसे आदमी पर भरोसा कर सकती हैं?”

    Siya ने होंठ भींच लिए। उसके दिल में पहले से ही डर था और अब रिद्धिमा उसे हवा दे रही थी।

    रिद्धिमा ने धीरे से Siya के हाथ पर हाथ रखा।
    “दीदी, मैं चाहती हूँ आप सुरक्षित रहें। अगर चाहो तो मैं Rudra जी से दूरी बनाने में आपकी मदद कर सकती हूँ…”

    Siya ने उसकी तरफ़ देखा।
    “तुम इतनी फिकर क्यों कर रही हो मेरी?”

    रिद्धिमा के चेहरे पर हल्की झलक आई, पर उसने तुरंत मासूमियत का नकाब पहन लिया।
    “क्योंकि आप मेरी बहन हो।”


    ---

    Siya का उलझन

    उस रात Siya बालकनी में खड़ी चाँद देख रही थी।
    उसके दिल में दो आवाज़ें थीं—
    एक कहती, “Rudra से दूर रहो। वो खतरनाक है।”
    दूसरी कहती, “वो ही है जो तुम्हें सब बुराईयों से बचा सकता है।”

    अचानक पीछे से किसी ने उसका हाथ थाम लिया।
    वो चौंकी—Rudra था।

    “फिर से सोच रही हो मुझसे दूर जाने का?” उसकी आवाज़ भारी थी।

    Siya ने आँखें चुराईं।
    “तुम्हें देखकर डर लगता है Rudra।”

    Rudra उसके और करीब आ गया।
    “डर… लेकिन फिर भी तुम भागती क्यों नहीं? क्यों मेरे पास खड़ी रहती हो?”

    Siya का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसने धीरे से कहा—
    “शायद… क्योंकि तुम्हारे बिना मैं और ज्यादा डरती हूँ।”

    Rudra की आँखों में चमक आई। उसने Siya को बाँहों में खींच लिया।
    “यही तो है, Siya। तुम मेरी तक़दीर हो। चाहे तुम मुझसे नफ़रत करो या प्यार, आखिर में रहोगी तो सिर्फ़ मेरी।”


    ---

    खतरे की आहट

    उसी वक्त हवेली के बाहर कुछ परछाइयाँ हलचल कर रही थीं।
    Rudra के दुश्मनों को खबर मिल चुकी थी कि Siya अब उसके करीब है।
    और उनके लिए Siya, Rudra को तोड़ने का सबसे आसान हथियार बन सकती थी।

    एक काला SUV धीरे से सड़क पर रुका। उसमें बैठा आदमी बोला—
    “Siya को निशाना बनाओ। Rudra Singhania को हराने का यही एक रास्ता है।”


    ---

    Siya का एहसास

    कमरे में लौटते वक्त Siya ने Rudra की पकड़ अपने हाथों में महसूस की।
    वो समझ रही थी कि उसका डर हकीकत है, पर इस डर के पीछे एक अजीब-सा सुकून भी है।

    “शायद यही प्यार का दूसरा रूप है… डर और खिंचाव का मेल। पर अगर मैं उसकी दुनिया का हिस्सा बन गई… क्या मैं भी वैसी ही हो जाऊँगी?”

    उसने खुद से सवाल किया, लेकिन जवाब कहीं गहराई में था—
    वो जवाब शायद सिर्फ़ Rudra के पास था।

  • 15. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 15

    Words: 730

    Estimated Reading Time: 5 min

    सुबह की हवा ठंडी थी। हवेली के बगीचे में फूलों की खुशबू फैली थी, पर Siya का मन अब भी बेचैन था।
    कल रात Rudra के करीब आने के बाद उसका दिल और उलझ गया था। डर और खिंचाव—दोनों ने उसे जकड़ रखा था।

    वो गुलाब तोड़ रही थी तभी अचानक उसे लगा कि कोई नज़र रख रहा है। उसने पीछे देखा—झाड़ियों में कोई परछाई तेजी से सरकी।

    “कौन है वहाँ?” Siya ने काँपती आवाज़ में पूछा।
    पर कोई जवाब नहीं आया।


    ---

    दुश्मनों की योजना

    उसी वक्त हवेली से थोड़ी दूरी पर SUV में बैठे तीन आदमी Siya को दूरबीन से देख रहे थे।
    “वो लड़की अकेली है। अगर उसे पकड़ लिया तो Rudra हमारे पैरों में गिर जाएगा,” उनमें से एक बोला।

    दूसरे ने ठंडी मुस्कान दी—
    “नहीं… अभी नहीं। पहले उसे डराओ। उसकी दुनिया हिला दो। तभी Rudra का ध्यान भटकेगा और हम वार करेंगे।”

    उनकी नज़रें अब Siya पर जमी थीं।


    ---

    Riddhima की चाल

    हवेली के भीतर Riddhima ने Siya को अकेला देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई।
    “यही मौका है। Rudra जब तक उससे दूर रहेगा, मैं आग लगाती रहूँगी।”

    वो Siya के पास आई और बोली—
    “दीदी, आपको अजीब नहीं लगता कि Rudra जी आपको अपनी हवेली में कैद कर रहे हैं? आपने देखा ना, बाहर लोग आपको कैसे घूरते हैं… सब डरते हैं उनसे। अगर कल को उन्होंने आपका भी गला घोंट दिया तो?”

    Siya के चेहरे का रंग उड़ गया।
    “ऐसा क्यों कह रही हो, Riddhima?”

    Riddhima ने मासूम चेहरा बनाते हुए कहा—
    “मैं तो बस आपकी फिक्र करती हूँ। मैं चाहती हूँ आप Rudra जी के अंधेरे से बाहर आ जाओ… वरना ये अंधेरा आपको भी निगल जाएगा।”

    Siya के दिल में डर और गहरा गया।


    ---

    Rudra की वापसी

    शाम को Rudra हवेली लौटा। Siya को बगीचे में चुपचाप बैठे देखा तो सीधा उसके पास आया।
    “क्यों चेहरा पीला है तुम्हारा?” उसने सख्त लहजे में पूछा।

    Siya ने उसकी तरफ़ देखा, आँखों में आँसू थे।
    “क्या सच में तुम्हारी दुनिया इतनी खतरनाक है कि कोई भी पल मुझे तुमसे छीन सकता है?”

    Rudra का चेहरा बदल गया। उसने Siya की ठुड्डी पकड़कर उसे अपनी ओर घुमाया।
    “Siya… ये दुनिया चाहे आग उगल दे, पर जब तक मैं जिंदा हूँ, कोई तुम्हें छू भी नहीं सकता। तुम मेरी हो, और मेरी रहोगी।”

    Siya की साँसें तेज़ हो गईं।
    उसने धीमे से कहा—
    “पर डर तो लगता है…”

    Rudra उसके और करीब आया।
    “डरना तुम्हारा हक़ है। लेकिन याद रखो—ये दरिंदा सिर्फ़ तुम्हारे लिए लड़ता है।”


    ---

    पहला हमला

    उसी रात, जब Siya अपने कमरे में अकेली थी, खिड़की से पत्थर आकर गिरा।
    उसने चौंककर देखा—पत्थर पर कागज़ बँधा था। काँपते हाथों से उसने कागज़ खोला।

    उस पर लिखा था—
    “Rudra से दूर रहो, वरना अगला निशाना तुम होगी।”

    Siya का दिल जोर से धड़कने लगा। उसके हाथ काँपने लगे।

    वो भागकर नीचे आई और Rudra को ढूँढा।
    “Rudra… ये देखो!” उसने काँपते हुए कागज़ उसके हाथ में दिया।

    Rudra की आँखें खून से भर गईं। उसने कागज़ मरोड़कर फेंक दिया।
    “कौन है जो मेरी Siya को डराने की हिम्मत करता है?” उसकी आवाज़ गरजी।

    Siya पीछे हट गई।
    “Rudra… ये लोग मुझे नुकसान पहुँचा सकते हैं…”

    Rudra ने उसे बाँहों में खींच लिया।
    “Siya, अगर किसी ने तुम्हें छूने की कोशिश की, तो उसकी साँसें मैं खुद खींच लूँगा। पूरी दुनिया दुश्मन बन जाए, मैं तुम्हें अपने सीने से दूर नहीं होने दूँगा।”

    उसकी पकड़ इतनी कस गई कि Siya को लगा जैसे वो उसकी कैद में है, पर उसी कैद में उसे सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस हो रहा था।


    ---

    खेल की शुरुआत

    SUV में बैठे दुश्मन ने दूर से Rudra को Siya को गले लगाते हुए देखा।
    उसने ठंडी हँसी हँसी।
    “ठीक है, Rudra… खेल की शुरुआत हो चुकी है। तुम्हारी कमजोरी अब हमारे हाथ में है। Siya को डराते-डराते हम तुम्हें तोड़ देंगे।”


    ---

    Siya का द्वंद्व

    रात को Siya खिड़की से बाहर चाँद देख रही थी।
    उसका दिल अब और उलझ चुका था।
    “मैं Rudra के साथ रहकर शायद खाई में गिर रही हूँ… पर उसके बिना जीना भी असंभव लगता है। अगर मेरा डर ही मुझे उसकी तरफ़ खींच रहा है, तो क्या ये प्यार है… या पागलपन?”

    उसके होंठों से हल्की फुसफुसाहट निकली—
    “शायद किस्मत चाहती है कि मैं इस दरिंदे की हो जाऊँ…”

    और कहीं दूर से Rudra की ठंडी निगाहें उस पर टिकी थीं, मानो उसने सब सुन लिया हो।

  • 16. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 16

    Words: 640

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात गहरी थी। हवेली पर सन्नाटा पसरा था, पर Siya की आँखों में नींद नहीं थी।
    कल मिले उस खत ने उसकी रूह तक हिला दी थी—“Rudra से दूर रहो, वरना अगला निशाना तुम होगी।”
    उसके हाथ अब भी काँप रहे थे।

    वो बालकनी में खड़ी चाँद देख रही थी, तभी अचानक पीछे से दरवाज़े की हल्की चरमराहट हुई। Siya ने सोचा कोई नौकर होगा, पर उसके कदम जैसे ही मुड़े, उसने देखा—काले मास्क पहने तीन आदमी कमरे में घुस चुके थे।

    उसका दिल मानो रुक गया।
    “कौन… कौन हो तुम लोग?” Siya की आवाज़ काँप रही थी।

    एक ने ठंडी आवाज़ में कहा—
    “हम वो हैं जिन्हें Rudra Singhania से हिसाब चुकाना है। और तू… उसकी कमजोरी।”

    Siya चीखने ही वाली थी कि एक ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया।
    “आवाज़ मत निकालना, वरना…” उसने चमकती चाकू उसके गले पर रख दी।


    ---

    Rudra का तूफ़ान

    उसी पल बाहर से Rudra की भारी आवाज़ गूँजी—
    “Siyaaa!”

    तीनों नकाबपोश चौंके। Siya ने मौका पाकर मुँह छुड़ाया और चिल्ला पड़ी—
    “Rudra!”

    दरवाज़ा धड़ाम से टूटा और Rudra अंदर आया। उसकी आँखें जल रही थीं, हाथ में पिस्तौल थी।
    “जिसने Siya को छुआ… उसकी सांसें अब आखिरी हैं।”

    गोली की आवाज़ गूँजी।
    एक नकाबपोश वहीं ढेर हो गया।

    बाकी दो Siya को ढाल बनाकर पीछे हटने लगे।
    “हटो Rudra, वरना लड़की मर जाएगी!” उनमें से एक चीखा।

    Rudra की आँखों में खून उतर आया। उसने ठंडी आवाज़ में कहा—
    “Siya की साँस लेने से पहले ही तुम्हारी जान मैं ले लूँगा।”

    उसने गोली चलाई। इतनी तेज़ी से कि दुश्मन संभल भी नहीं पाए।
    एक और ज़मीन पर गिर पड़ा, खून फैल गया।

    आखिरी नकाबपोश Siya को पकड़कर भागने लगा।
    Siya चीख उठी—
    “Rudra!”

    Rudra ने बिना पलक झपकाए ट्रिगर दबाया।
    गोली नकाबपोश के कंधे में लगी और Siya उसकी पकड़ से छूट गई।

    Rudra ने दौड़कर Siya को अपनी बाँहों में समेट लिया।
    “Siya… अब कोई तुम्हें छू भी नहीं पाएगा।”


    ---

    Siya का डर और सुकून

    Siya का चेहरा Rudra की छाती से लगा था। उसके आँसू बह रहे थे।
    “मैं… मैं मर जाती Rudra… अगर तुम देर कर देते…”

    Rudra ने उसकी ठुड्डी उठाई। उसकी आवाज़ धीमी लेकिन जुनूनी थी।
    “Siya, याद रखना… जब तक Rudra Singhania जिंदा है, तुम्हें मौत छू भी नहीं सकती। मैं तुम्हें अपने सीने में छुपाकर रखूँगा… पूरी दुनिया से।”

    Siya काँप रही थी, पर उसी डर के बीच उसे ऐसा लगा मानो ये आदमी उसकी किस्मत है।


    ---

    रिद्धिमा का क्रोध

    नीचे गलियारे में खड़ी रिद्धिमा ने ये सब देखा।
    उसके हाथ गुस्से से काँप रहे थे।
    “नहीं! ये नहीं हो सकता… Siya को मरना चाहिए था, लेकिन Rudra ने फिर से उसे बचा लिया। क्यों किस्मत हर बार उसकी मदद करती है?”

    उसकी आँखों में जलन थी।
    “पर अब मैं देख रही हूँ… Rudra उसे और भी ज्यादा चाहने लगा है। इसका मतलब… Siya को गिराना और ज़रूरी हो गया है।”


    ---

    Rudra का फैसला

    कमरे में Rudra ने अपने आदमियों को बुलाया।
    “हवेली की दीवारें और ऊँची करो। हर कोने पर पहरा बैठाओ। Siya अब मेरी दुनिया की रानी है। अगर किसी ने उस पर नज़र भी डाली, उसकी लाश सड़क पर गिरेगी।”

    उसकी आवाज़ ऐसी थी कि पूरा स्टाफ काँप उठा।

    Siya ने ये सुना तो उसका दिल धड़क उठा।
    “रानी…?” उसने खुद से फुसफुसाकर कहा।

    Rudra ने उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान दी।
    “हाँ Siya। अब तुम सिर्फ मेरी हो। और पूरी दुनिया को ये मानना ही होगा।”


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    Siya का द्वंद्व

    रात को अकेली बैठी Siya सोच रही थी—
    “ये आदमी खतरनाक है, खूनी है… लेकिन जब उसकी बाँहों में होती हूँ, तो दुनिया का कोई डर नहीं रहता। क्या यही प्यार है? या मैं पागल हो रही हूँ?”

    उसकी आँखों में आँसू आ गए, पर होंठों पर हल्की मुस्कान भी थी।
    शायद ये दोनों ही सही थे। प्यार और पागलपन… एक ही सिक्के के दो पहलू।

  • 17. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 17

    Words: 591

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की धूप हवेली की खिड़कियों से झाँक रही थी। पर Siya का दिल अब भी पिछली रात की हलचल से काँप रहा था।
    वो अपने कमरे में आईने के सामने खड़ी थी। आँखों में नींद नहीं, बस Rudra का चेहरा तैर रहा था—उसकी आँखों का जुनून, उसके शब्द, “तुम मेरी हो, और मेरी रहोगी।”

    Siya ने खुद से फुसफुसाकर कहा—
    “मैं क्यों मान रही हूँ उसकी बातों को? क्यों लग रहा है कि… सच में मैं उसी की हूँ?”


    ---

    Rudra का साया

    Siya नीचे आकर बगीचे में बैठी थी। तभी Rudra वहाँ आया। उसका काला शर्ट और गहरी आँखें जैसे हमेशा Siya की सांसें रोक देती थीं।

    “कैसी हो?” Rudra ने धीमे स्वर में पूछा।
    Siya ने उसकी तरफ़ देखा।
    “डरी हुई हूँ… लेकिन तुम्हारे साथ हूँ तो डर कम हो जाता है।”

    Rudra पास आया, उसकी कुर्सी के पास झुका और उसके हाथ पकड़ लिए।
    “Siya, ये डर ही तो हमारा रिश्ता है। तुम डर से भागती हो, और मैं तुम्हें अपनी तरफ़ खींचता हूँ। आखिर में तुम मेरे बिना जी ही नहीं पाओगी।”

    Siya की आँखें नम हो गईं।
    “और अगर मैं कहूँ… कि मैं तुम्हारे बिना जीना चाहती ही नहीं?”

    Rudra ठिठक गया। उसकी साँसें थम सी गईं।
    “Siya… तुम क्या कह रही हो?”

    Siya उठ खड़ी हुई, उसकी आँखों में आँसू और चमक दोनों थे।
    “हाँ, मैं मानती हूँ। मुझे तुमसे डर लगता है, लेकिन उसी डर में सुकून भी है। Rudra, मैं मान चुकी हूँ… मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। मैं…”
    उसकी आवाज़ काँप गई।
    “…मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ।”


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    Rudra का जुनून

    Rudra की आँखों में आग भड़क उठी। उसने Siya को बाँहों में खींच लिया और उसके कानों में फुसफुसाया—
    “Siya… तुमने आज मेरी रूह को ज़िंदा कर दिया। तुम जानती नहीं कि तुम्हारे ये शब्द मेरे लिए क्या हैं। मैं अब तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा। चाहे ये दुनिया जलकर राख हो जाए, तुम मेरी रहोगी।”

    उसने Siya की पलकों पर होंठ रख दिए। Siya काँप उठी, पर उसकी साँसों में राहत थी।
    वो पहली बार खुलकर Rudra की बाँहों में मुस्कुराई।


    ---

    Riddhima का गुस्सा

    ऊपर से खिड़की से झाँकती Riddhima ने ये सब देखा। उसके चेहरे पर हैरानी और गुस्से की आँधी थी।
    “नहीं! ये नहीं हो सकता। Siya ने Rudra को अपना लिया? ये तो सब खत्म कर देगा। मुझे Rudra चाहिए था… लेकिन अब वो पूरी तरह Siya का हो गया है।”

    उसने अपने कमरे में जाकर शीशा तोड़ दिया।
    “अगर Siya मेरे रास्ते में आई… तो इस बार मैं सिर्फ़ खेल नहीं खेलूँगी। मैं उसकी ज़िन्दगी ही छीन लूँगी।”

    उसकी आँखों में पागलपन की चमक थी।


    ---

    Siya का नया विश्वास

    रात को Rudra ने Siya को हवेली की सबसे ऊँची बालकनी पर ले जाकर कहा—
    “देखो Siya… ये शहर, ये दुनिया… सब मेरे पैरों तले है। पर आज मुझे लगता है कि ये सब बेकार है अगर तुम मेरे पास न हो।”

    Siya ने उसकी तरफ़ देखा।
    “और मुझे लगता है कि चाहे पूरी दुनिया तुम्हारे खिलाफ़ क्यों न हो, जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ… तुम अजेय हो।”

    Rudra की आँखों में पहली बार नरमी आई।
    “तुमने मुझे वो दिया है जो कोई नहीं दे सका—यकीन।”


    ---

    खतरे की दस्तक

    पर हवेली के बाहर अंधेरे में SUV खड़ी थी। उसमें बैठे दुश्मन Siya और Rudra को ऊपर बालकनी में साथ देखते हुए गरजे।
    “अब Rudra और खतरनाक हो गया है। Siya उसकी कमजोरी ही नहीं, उसकी ताकत भी बन गई है। अगर हमने Siya को तोड़ा… तो Rudra टूट जाएगा।”

    SUV का इंजन गरजा।
    खेल का नया दौर शुरू होने वाला था।

  • 18. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 18

    Words: 502

    Estimated Reading Time: 4 min

    हवेली के माहौल में अब एक अजीब सी गर्माहट थी। Rudra का जुनून Siya पर और Siya का भरोसा Rudra पर, दोनों दिन-ब-दिन बढ़ रहे थे। Siya जब भी आईने में खुद को देखती, उसे याद आता कि यही वो चेहरा है जिसे उसकी stepmom और Riddhima ने मिटाने की कोशिश की थी। लेकिन अब किस्मत ने उसे दोबारा मौका दिया था।

    Rudra अक्सर Siya को हवेली के उस हिस्से में ले जाता जहाँ कोई और कदम रखने की हिम्मत नहीं करता। वहाँ हथियारों का जखीरा, नक्शे और उसके दुश्मनों की फ़ाइलें रखी थीं। Siya डरती भी थी, लेकिन हर बार जब Rudra उसे अपनी बाहों में लेकर कहता —
    "अगर तुझ पर किसी ने उंगली भी उठाई, तो पूरी दुनिया राख कर दूँगा..."
    तो Siya के भीतर एक अजीब सा सुकून उतर जाता।

    लेकिन Riddhima ये सब देख-देखकर जल रही थी। उसके दिल में सिर्फ दो ख्वाहिशें थीं — Siya को मिटाना और Rudra को पाना।

    उस रात, हवेली में एक बड़ी पार्टी रखी गई थी। बाहर से कारोबारी और राजनेता आए थे, लेकिन असली मकसद Rudra की ताक़त दिखाना था। Siya, लाल रंग की ड्रेस में सबकी नज़रों का केंद्र बनी हुई थी। Rudra की आँखें भी बस उसी पर टिकी थीं।

    Riddhima ने इस मौके का फायदा उठाया। उसने Siya के ग्लास में ज़हर मिलाने की प्लानिंग की। वो जानती थी Rudra Siya पर से नज़रें हटा ही नहीं सकता, और अगर Siya के साथ कुछ होता है तो Rudra का पूरा साम्राज्य हिल जाएगा।

    पार्टी के बीच Siya ने जैसे ही ग्लास उठाया, Rudra की नज़र उस पर पड़ गई। उसकी तेज़ नज़रों ने देखा कि Siya के हाथ का ग्लास किसी और से बदला हुआ है।
    "रुको..." Rudra ने Siya का हाथ पकड़ लिया।

    सबकी नज़रें उनकी तरफ़ घूम गईं। Rudra ने बिना कुछ कहे Siya का ग्लास अपने हाथ से लिया और एक ही साँस में पी गया। Siya की धड़कन थम सी गई।

    कुछ पल बाद Rudra ने ज़हर का असर महसूस किया — उसके माथे पर पसीना और होंठों पर हल्की सिहरन। Siya चीख पड़ी,
    "Rudra...!!! ये क्या किया तुमने?"

    पूरी पार्टी में सनसनी फैल गई। Rudra के गार्ड्स इधर-उधर दौड़ पड़े। Siya की आँखों में आँसू भर गए, जबकि Rudra ने उसे सीने से लगाते हुए फुसफुसाया —
    "Siya... तुझसे वादा किया था, तुझे तकलीफ़ देने से पहले मौत मुझे छूएगी..."

    वो गिरने ही वाला था कि उसके खास आदमी ने दवा इंजेक्ट की और Rudra किसी तरह संभला। Siya काँपते हाथों से उसका चेहरा थामे रही।

    Riddhima दूर खड़ी सब देख रही थी। उसका पहला वार नाकाम हो चुका था, लेकिन उसके होंठों पर खतरनाक मुस्कान थी।
    "खेल तो अभी शुरू हुआ है, Siya..." उसने मन ही मन कहा।

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  • 19. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 19

    Words: 693

    Estimated Reading Time: 5 min

    रात बहुत भारी थी। Siya का दिल अब भी Rudra के उस पागलपन भरे कदम से काँप रहा था। उसकी आँखों के सामने बार-बार वही दृश्य लौट आता — Rudra ने बिना झिझक उसके हाथ से ग्लास छीनकर उसमें भरा ज़हर खुद पी लिया। अगर डॉक्टर सही समय पर दवा न देता तो... Siya ने खुद को वहीं रोक लिया। वो सोच भी नहीं सकती थी कि अगर Rudra को कुछ हो जाता तो उसका क्या होता।

    कमरे की खिड़की से हल्की चाँदनी अंदर आ रही थी। Siya पलंग पर बैठी थी, उसकी आँखें नींद से कोसों दूर। वो खुद से सवाल कर रही थी — “आख़िर मेरे पीछे इतना जुनून किसका है? कौन मुझे मिटाना चाहता है? क्या ये वही लोग हैं जिन्होंने पिछले जन्म में मुझे खत्म किया था?” उसका दिल धीरे-धीरे एक ही नाम की तरफ़ इशारा कर रहा था — Riddhima…

    सुबह हवेली में हलचल थी। Rudra की तबियत संभल चुकी थी, लेकिन उसके चेहरे पर थकान और गुस्से की गहरी लकीरें थीं। Siya जब लॉन में पहुँची तो Rudra वहाँ खड़ा था, हाथ में जलती हुई सिगार, और आँखें दूर किसी गहरी सोच में गुम।

    Siya उसके पास गई, आवाज़ भर्रा रही थी।
    "तुम्हें होश भी है Rudra? अपनी जान दाँव पर लगा दी थी तुमने... अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो... मैं..."

    Rudra ने धीरे से सिगार जमीन पर फेंक दिया और उस पर पैर रख दिया। फिर उसने Siya की ठोड़ी थामकर उसकी आँखों में देखा।
    "Siya, पागल तो मैं हूँ ही... लेकिन तुझ पर पागल हूँ। तुझे तकलीफ़ हो और मैं ज़िंदा रहूँ — ये हो ही नहीं सकता।"

    Siya की आँखें भर आईं। उसने नजरें झुका लीं, लेकिन उसके दिल में एक अजीब सा खिंचाव और गहराता चला गया।

    इतना ही नहीं, तभी एक दासी हाँफती हुई आई।
    "Baisa... ये हमें मेज़ के नीचे से मिला है..." उसने काँपते हाथों से Siya की हथेली पर एक छोटी-सी खाली शीशी रखी।

    Siya ने शीशी उठाई। उसमें अब भी ज़हर की हल्की बू बाकी थी। Siya का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने ढक्कन पर नज़र डाली — वहाँ लिपस्टिक का हल्का सा दाग़ था। और वो लिपस्टिक Siya ने कई बार देखी थी... Riddhima के होंठों पर।

    उसके होंठ बुदबुदाए,
    "तो ये काम उसी का है..."

    Rudra, जो अब तक Siya को घूर रहा था, उसकी आँखों से सब समझ गया। उसका जबड़ा कस गया, उसकी आवाज़ ठंडी थी लेकिन हर शब्द खंजर की तरह था।
    "Riddhima..."

    Siya घबराकर बोली,
    "नहीं Rudra, अभी कुछ मत करना। अगर तुमने अभी उस पर वार किया तो वो खुद को मासूम साबित कर लेगी। मुझे भी अपने दुश्मनों का असली चेहरा सबके सामने लाना है। ये मेरा बदला है..."

    Rudra ने Siya का हाथ कसकर पकड़ा। उसकी आँखों में खून की प्यास थी।
    "Siya, मैं तुझे इजाज़त दे रहा हूँ... पर याद रख, अगर तुझे फिर किसी ने ज़रा भी चोट पहुँचाई, तो मैं इस हवेली को कब्रिस्तान बना दूँगा।"

    Siya काँप गई, लेकिन उसके भीतर एक नई हिम्मत जगी। वो जानती थी कि अब उसे अपने खेल की शुरुआत करनी होगी।

    उस रात Siya अपने कमरे में अकेली बैठी थी। दर्पण के सामने, जहाँ उसका चेहरा धुंधली रोशनी में चमक रहा था। उसने आईने में खुद को देखा और खुद से कहा —
    "पिछली बार मैं शिकार बनी थी। इस बार मैं शिकारी बनूँगी। Riddhima, तूने मुझे मिटाने की कोशिश की थी... लेकिन इस बार मैं तेरे चेहरे से नकाब खुद उतारूँगी।"

    दूसरी तरफ़, हवेली के दूसरे कोने में Riddhima भी आईने में खुद को निहार रही थी। उसकी आँखों में पागलपन और होंठों पर खतरनाक मुस्कान थी।
    "Siya... तुझे बचा लिया आज Rudra ने। लेकिन कब तक? Rudra तेरा सहारा नहीं रहेगा... एक दिन वो मेरा होगा, और तेरा सब कुछ मेरा। तू देखती जा..."

    उस पल हवेली की हवाओं में जैसे जंग की गंध घुल गई थी। प्यार, जुनून, नफ़रत और बदले की आग — सब मिलकर अब एक नए तूफ़ान को जन्म दे रहे थे।

    Siya जानती थी कि उसका रास्ता आसान नहीं होगा, लेकिन अब वो डरी नहीं थी। Rudra का पागलपन उसके साथ था और उसके अपने इरादे उसकी ढाल।

    आसमान में काले बादल उमड़ने लगे थे... तूफ़ान शुरू हो चुका था।

  • 20. कैद-ए-मोहब्बत - Chapter 20

    Words: 630

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की ठंडी हवा हवेली के गलियारों में गूंज रही थी। लेकिन Siya के दिल में एक अजीब बेचैनी थी। रातभर उसने वही कसम दोहराई थी — इस बार वो शिकार नहीं, शिकारी बनेगी। और उसके सामने पहला नाम था: Riddhima।

    उसने सबसे पहले वही शीशी अपने पास रखी। ये उसकी जीत की शुरुआत का पहला सबूत था। मगर इतना ही काफी नहीं था। Siya को और सबूत चाहिए थे — ताकि जब वो Riddhima को बेनकाब करे तो सबके सामने कोई शक की गुंजाइश ही न रहे।

    वो धीरे-धीरे Riddhima के कमरे की तरफ़ बढ़ी। दरवाज़ा आधा खुला था। Siya ने धड़कते दिल से अंदर झाँका। कमरा साफ़-सुथरा था, पर मेज़ पर बिखरी कॉस्मेटिक्स की चीज़ों में वही लिपस्टिक रखी थी, जो शीशी के ढक्कन पर लगी थी। Siya ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया ही था कि पीछे से आवाज़ आई।

    "Siya? यहाँ क्या कर रही हो?"

    Siya ने पलटकर देखा, Rudra दरवाज़े पर खड़ा था। उसकी आँखें गहरी और शक से भरी थीं। Siya घबराई नहीं, बल्कि उसकी ओर बढ़कर धीमे स्वर में बोली,
    "मैं सबूत ढूँढ रही हूँ Rudra। मैं चाहती हूँ कि Riddhima का चेहरा सबके सामने उतरे।"

    Rudra ने उसके हाथ थाम लिए।
    "Siya, मैं तुझ पर गर्व करता हूँ... लेकिन याद रख, ये खेल आसान नहीं है। मैं तुझे खो नहीं सकता।"

    Siya की आँखें भर आईं। उसने बस सिर झुका दिया।


    ---

    उसी शाम Rudra ने हवेली के तहखाने में अपने आदमियों को बुलाया। Siya पहली बार उस जगह गई थी। पत्थरों की दीवारें, लोहे के दरवाज़े और हवा में खून व धुएँ की गंध। Siya काँप गई, लेकिन Rudra ने उसका हाथ कसकर थाम लिया।

    वहाँ पहले से ही एक आदमी बँधा हुआ था — वो हवेली का एक नौकर था, जिसे Rudra ने शक के आधार पर पकड़ा था। Rudra की आँखों में खून उतर आया। उसने ठंडी आवाज़ में पूछा,
    "किसने कहा था Siya को ज़हर देने को? बोल, वरना ये ज़ुबान हमेशा के लिए काट दूँगा।"

    Siya काँप उठी। Rudra का ये रूप उसने पहले भी देखा था, लेकिन आज ये और खतरनाक था। नौकर पहले तो चुप रहा, लेकिन जब Rudra ने उसके हाथ में चाकू घुसा दिया तो वो चीख पड़ा।
    "न... नहीं साहब! मैं तो बस... Riddhima मैडम के कहने पर... मैं तो सिर्फ़ गिलास बदलने गया था!"

    Siya का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने वही सुना, जिसका शक उसे था।

    Rudra ने ठंडी मुस्कान दी और उस नौकर को अपने आदमियों के हवाले कर दिया।
    "ले जाओ इसे। अब ये ज़िंदा रहेगा, लेकिन तब तक जब तक Siya चाहती है।"

    Siya ने Rudra का हाथ पकड़ लिया। उसकी आँखों में आँसू थे।
    "Rudra... ये रास्ता बहुत खून से भरा है।"

    Rudra ने उसकी ओर झुककर फुसफुसाया,
    "Siya... तेरा दर्द ही मेरी दुनिया है। अगर तुझे कोई चोट पहुँचेगी तो मैं पूरी दुनिया को जला दूँगा।"

    Siya ने उसकी आँखों में देखा। वहाँ डरावनी हिंसा भी थी और पागलपन भरा प्यार भी। और उसी पल Siya ने तय कर लिया कि उसे Rudra को बदलना नहीं है, बल्कि उसके इसी जुनून को अपने बदले की ताक़त बनाना है।


    ---

    रात को Siya अपने कमरे में बैठी थी। उसके सामने शीशी, लिपस्टिक और नौकर की गवाही तीनों बातें घूम रही थीं।
    "अब मुझे और सबूत चाहिए। ऐसा सबूत जो Rudra को भी बेक़सूर रखे और Riddhima को खत्म कर दे।"

    वहीं, हवेली के दूसरे हिस्से में Riddhima आईने के सामने खड़ी थी। उसके चेहरे पर गुस्सा और पागलपन दोनों थे।
    "Siya... तू सोचती है तू जीत जाएगी? Rudra को मैं तुझसे छीनकर रहूँगी। तू बार-बार मरेगी... और हर बार मेरे हाथों।"

    उसकी हँसी हवेली के अंधेरों में गूँज उठी।

    Siya ने खिड़की से वही हँसी सुनी और उसकी आँखें ठंडी हो गईं।
    "अबकी बार मैं शिकार नहीं... शिकारी हूँ, Riddhima। खेल अब मेरे हाथ में है।"