पहला नजर का इश्क़ पहला असर कुछ यु कर गया एहसास कुछ यु भर गया नक्श कुछ यु तेरा दिल पे दे गया धड़कनों पे नाम तेरा बेबजह ही दे गया ना लफ़्ज़ों से हुइ थी बात ना किया था बादा कोइ फिर भी ठहर गया था वक्त ठहर गइ थी नजर बन गया वो अजनबी हिस्सा दिल... पहला नजर का इश्क़ पहला असर कुछ यु कर गया एहसास कुछ यु भर गया नक्श कुछ यु तेरा दिल पे दे गया धड़कनों पे नाम तेरा बेबजह ही दे गया ना लफ़्ज़ों से हुइ थी बात ना किया था बादा कोइ फिर भी ठहर गया था वक्त ठहर गइ थी नजर बन गया वो अजनबी हिस्सा दिल का पहली नजर का पहला इश्क़ कुछ यु असर कर गया , __ ये काहानी है पहले नजर के पहले इश्क़ की एक हसीन किस्सा, ,, साल भर पहले एक रोज़ मुलाकात हुइ थी तीशी और वियांश की , बात नहीं हुइ बस नजरें मिली थी और ठहर गइ थी नजरें तीशी की , मुकद्दर मिली गइ दोनों की,वक्त गुजर गया मगर याद रह गया तीशी की यादो मे,दोनों एक दुजे से अलग है एक गाव एक शहर, एक खिलखिलाती धुप सी है एक गहरा शांत सांझ सा, एक की नटखट है बोली एक की बोली है शांत , फासले भी दरमियाँ दोनों के बहत है, कैसे मिलेंगे दोनों, क्या था वो इश्क़ एक तरफा या धड़का था दुसरी तरफ भी उसीतरह उसका दिल, क्या वो हसीन एहसास फक़त तीशी को सहलाकर गइ या वो एहसास वियांश को भी छुकर गुजरी थी,कैसे बन गइ तीशी द्विवेदी जी की दीवानी ,मुकद्दर के खेल से कैसे मिले नजरें दोनों की , कैसे एक आम से शुरू हुई आम सी खास मुलाकात बन गइ, क्या तीशी कह पायेगी अपने दिल की बात, क्या वो जान पायेगी वियांश के दिल की बात, कैसे होगी दोनों की ये काहानी जानने के लिए पढ़े ये हसीन कहानी,,
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सुबह के आठ बजे,,,
एक खुबसूरत घर जो ज्यादा बढा़ है ना ज्यादा छोटा, उसके चारों तरफ से घिरा प्यारा सा गार्डन जहाँ हरियाली बिछी है नीचे घास की हरी चादर रात को हुइ बारिश की वजह से घास अभी भी भीगी है दूसरी तरफ दो बड़े पेड़ है, बारिश के बाद बहती हल्की हल्की ठंडी हवाये पेड़ो के पत्तों को छेड़ रही थी जिस्से पत्तों पर ठहरी बूंदे सहम कर इस तरह खिसक कर मिट्टी पर झड़ रही थी मानो फिर से बारिश की बूंदे झड़ रही हो ,,बादलो के पीछे छुपे सुरज की किरणें जब उन बूंदो पे पर रही है ऐसे लग रहा है जैसे मोती चमक रही हो,,,
खिलखिलाती सूरज की किरणें खुले खिड़की से होते हुए वेड पर फैल कर सो रही एक लड़की के चहरे पे पर रही है तेज धूप उस के चहरे और आखों पे परते ही वो उठी नही बल्कि दूसरी तरफ पलट चहरा तकिये में छुपा लिया तभी दरवाजा खुला और एक लड़का अंदर आया उसे इस तरह सोते देख उसने घड़ी की ओर देखा तो पाया आठ बजकर पन्द्रह मिनट हो चुके थे अब वो कहने लगा "एक घंटे पहले जब आया था तब भी यही नजारा देखा था पन्द्रह मिनट बाद आया तब भी यही नजारा देखा था अब भी यही सेम नजारा देख रहा हु ये लड़की भी न " खुद से ये बोल वो लड़का यानी युवान उसे बुलाने लगा "तीशी उठ जा अब, साढे़ आठ बजने को आये " उसके बुलाने पर भी तीशी ने कोई जबाब नही दिया ये देख कुछ सोच वो उसके पास बैठ प्यार से बुलाने लगा
युवान - तीशु मेरी प्यारी बहना मेरी छोटी सी बहना उठजा देख सूरज का पत्तों का सब का कहना है मेरी बहना को अब नींद से जागना है ,,
तीशी उसकी बाते साफ सुन पारही थी उसकी नींद भी खुल चुकी थी मगर फिर भी वो ना उठी ना ही कोई जबाब दिया ये बात युवान को समझते देर नही लगी, वो आगे कहने लगा "इतने प्यार से गाना गाया मेने अब तो उठ जा या फिर से कुछ गाऊ? " ये सुन अब तीशी रह नही पाइ वो आखें खोले कहने लगी ,
तीशी - अपने फटे गले में शहद लगाकर मेरे कान फोड़ने की जरूरत नहीं उठ रही हु उठ रही हु भाइ,,
कहते हुए वो अलसाई आखों से युवान को देखने लगी, वो मुस्कुराकर उसे ही देखे जारहा था वो अब कहने लगा
युवान - बहना तु पहले से ही उठी हुइ है अब कहाँ उठेगी अरे पहले खुद को एक नजर देख तो ले,, (ये सुन तीशी को एहसास हुआ वो अब लेटी नही बल्कि बैठी है इसका मतलब युवान ने उसे बिठा दिया वो तो अपनी बात कहने में इतना मग्न थी के उसने खुद को देखा ही नहीं जब देखा तो पाया बैठी हुइ है ये देख वो दात किटपिटाते हुए बोली "भाइ आप.... " वो बात पुरा करने से पहले वो बोल परा) हाँ मैं,, मेरी बातों में शहद है या नहीं ये तो पता नहीं पर मम्मी को पता चला ना के तु ढंग से नींद से जागी नही तो वो पक्का बेलन में शहद लगाकर तुझे पिटेगी और अगर उन्हें ये भी पता चल गया के रात को ढाई बजे भटकती आत्माओं की तरह भटकते हुए बाहर जाकर तेज बारिश में भीग रही थी तब तो पक्का पिटेगी ,,,
ये सुनते ही तीशी की आखें फैल गई वो हैरानी से पुछने लगी "आपको कैसे पता ये सब? " ये सबाल सुन युवान उसके गाल खीच बोला "बड़ा भाइ हु तेरा कैसे ना पता होता " ये सुन और उसके इस तरह गाल खीचने के बाद तीशी गाल पर हाथ रख बोली "काश आपके एक साल बाद के बजाय मैं एक साल पहले पैदा हुइ होती " ये सुन युवान ने दोनों गाल खीचे और फिर गाल से हाथ हटाकर पुछने लगा " वैसे इतनी रात को तु भीग रही थी? "
तीशी - आपको तो पता है ना भाइ जब भी बारिश होती है चाहें रात के ढाई बजे हो या दोपहर के तीन बजे मैं भीगती जरूर हु,, बारिश देखके ना मेरे कदम घर में ठहरते ना मैं खुद बैठ पाती हु ,, बारिश की बूंदो से मेरा कोई अलग ही रिश्ता है,,बरसात मेरा पहला प्यार है कभी ऐसा भी तो होसकता है के बरसात नाम के पहले प्यार में ही मुझे मेरा सच्ची का पहला प्यार मिल जाये किसी से सच्ची मे रिशता जुड़ जाये,,
वो ख्यावों में खोकर बोली बही युवान उस की बात सुनने के बाद बोला," कौन पागल होगा जो तुझ जैसी झल्ली से प्यार करेगा ? " कहते हुए वो हंस परा , उसकी बात सुन और ऐसे हंसते देख तीशी ने उसे घूर कर देखा और उसकी बात दोहराकर कहने लगी "ऐसी कौन सी झल्ली होगी जो आप जैसे पागल से प्यार करेगी? " अपना सबाल पलटकर उसे पुछते देख अपने बालो में हाथ फैर बोला "कोई भी करेगी " इसबार भी तीशी उसका जबाब उसे ही सुनाते हुए बाल झटकाकर बोली "हां, तो मुझ से भी कोई भी प्यार करेगा " ये बोल उसने जीभ निकाल उसे उसे चिढ़ाया इसबार युवान कुछ बोला नहीं बस मुस्कुराकर उसके बालो को सहलाकर उठ गया पर जाने से पहले उसे कुछ याद आया तो वो उसकी तरफ देख कहने लगा ,,
युवान - ओ हां दो घंटे बाद हमे निकलना है? (उसके इस तरह अचानक कहने का मतलब तीशी समझी नहीं वो असमझता से पुछने लगी "है? कहाँ जाना है हमें? " तो युवान उसे याद दिलाते हुए बोला) अरे हमे गाँव जाना है ना बुआ के घर तु भी क्या सो सो के भुल गई क्या?
ये सुन तीशी को याद आया वो कहने लगी,,
तीशी - ओ .. हाँ हाँ याद आया बुआ के घर मतलब गाँव ओ वाओ,, बड़ा मजा आयेगा,,,
ये सुन युवान बोल परा "सच में गाँव जाकर तु गाँव की छोरी बन जाती है" तीशी कहने लगी "हाँ तो क्या " तो युवान बोला "कुछ नहीं तु तय्यार होजा और सामान पैक करले" इसबार उसने हाँ में सर हिलाया तो वो भी उसे देख चला गया,,, तीशी अब उठकर जल्दी से कपड़े लिए फ्रेश होने बाथरूम की तरफ चली गई ,,,
कुछ देर बाद,, वो बाहर आइ और भीगे बालो को पोछते हुए शीशे के सामने जाकर खड़ी होगई ,, कुछ सोच उसने अपने फोन उठाया और किसी को कॉल किया,,,
क्रमश.....
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तीशी ने अपना फोन लिया और किसी को कॉल करने लगी दो चार रिंग के बाद कॉल रिसीव हो गया, रिसीव होते ही वो सामने बाले के कुछ कहने के पहले ही वो बोलने लगी "लाव्या मैं आरही हु तेरे वहाँ " अचानक उसकी बात सुन सामने लव्या हैरानी से बोली "ओये क्या कब आरही है तु?" तीशी जबाब देते हुए बोली "आज ही आरही हु" लाव्या "यार तीशु तु आयेगी तो बहत मजा आयेगा ",,
तीशी -मजा तो मुझे भी बहत आता है तेरे वहा वैसे हाँ पंडित जी से कहके रखना मैं आरही हु और मेरा स्वागत अच्छे से करने को,,
लाव्या उसकी ये वात सुन हैरानी से पुछने लगी
लाव्या - पागल दिखती हु न मैं जो पंडित से कहुंगी,और स्वागत तो दूर की बात उसे मालूम चल गया ना तो भगा देगा तुझे ,,
उसकी बात सुन तीशी का मुंह बन गया वो बोली "बड़ा आया मुझे भगाने बाला खैर छोड़, मैं आजाऊ फिर बताऊंगी उसे भी और तुझे भी के कौन किसे भगाता है किसके पीछे " लाव्या उसकी बात सुन कहने लगी "देखा जायेगा और मैडम अभी से ज्यादा ना उड़ नीचे आजा मैं रख रही हु तु आजा फिर बात करेंगे " इसबार तीशी ने बस" हाँ हाँ ठीक है "कहा और फिर दोनों फोन रख दिया उसके बाल भी बात करते हुए सुख चुके थे , उसने एक नजर शीशे में खुद को देखा फिर कुछ सोच मुस्कुराने लगी अपना सर झटका के उसने अपने बालो को जुड़ा बनाया और कबर्ड की ओर गई कबर्ड खोल अपने कपड़े देखने लगी,
अपने ढेड़ सारे कपड़ो को देखते हुए उसकी नजर एक तरफ जाकर ठहर गई जो बस एक सिंपल सी जिन्स और लाइट ब्लू कलर की खुबसूरत सी कुर्ती है ये कपडे़ सब के बीच होने के बाबजूद इस्से जुरी यादे सबसे अलग है, उसकी पलके अपने आप कुछ पलो के लिए बंद होगई साथ ही उसके लवो पे एक गहरी सी मुस्कुराहट खील गई उसके आखों के आगे से एक चहरा घुम गया जो देखते ही उसकी आखें खुल गई, उसने अपने दिल पर हाथ रख अपने धड़कनो को महसूस किया उसकी धड़कने भी सामान्य से ज्यादा बढ़ चुकी थी ये महसूस कर वो खुद से कहने लगी "पंडित जी इसबार खुद को पहली बार से ज्यादा तय्यार रखना " इतना बोल वो मुस्कुराकर अपने कपड़े निकालने लगी जल्दी से कपड़े पैक कर वो ब्रेकफास्ट के लिए नीचे चली गई,,
नीचे आते हुए उसे डाइनिंग टेबल पर बैठे नितीश जी ने दिखे उन्हें देख तीशी बोला "गुड मॉर्निंग पापा " ये सुन नितीश बोले "गुड मॉर्निंग तीशी, सब सामान पैक कर लिया?" ये सबाल सुन तीशी बोली बस
तीशी - हाँ पापा सब सामान पैक होगया बस मेरा पैक होना मतलब तय्यार होना थोड़ा बाकी है ,,
उसकी बात सुनने के बाद नितीश बोले "ठीक है और हम नहीं जारहे इसीलिए जाकर सारा दिन वहाँ उधम मचाती मत रहना थोड़ा शांत रहना " पहले तो उनकी बात मानते हुए तीशी ने सर हिलाया पर जैसे ही उसने उनके बात पर गौर किया तो पुछने लगी "आप नहीं जायेगें मतलब?" उनके कुछ कहने के पहले आते हुए युवान बोला "नहीं जायेगें मतलब नहीं जायेगें पापा को इसबार कुछ काम है" उसका जबाब सुन तीशी कुछ बोली नहीं बल्कि उठकर किचन की तरफ चली गई उसे इस तरह अचानक उठते देख दोनों ने ना मे सर हिलाया,,
तीशी किचन में जाते ही काम कर रही अपनी मम्मी यानी गरिमा से पुछने लगी "मम्मी आप दोनों हमारे साथ नहीं चलोगे? " उसके सबाल पर गरिमा बोली "नहीं तेरे पापा को काम है इसीलिए हम बाद में जायेगें पहले तुम दोनों चले जायो " उनकी बाते सुन तीशी ने एक सबाल किया "आप दोनों सच्ची मे नही जारहे? " तो उन्होने दो शब्द में कहा "नहीं जारहे " ये सुन तीशी बोल परि "अच्छा ही है"
ये सुन गरिमा ने उसे देखा तो उसने जूबान काट कहा "उप्स!" इसके बाद वो प्लेट लिऐ उनके कुछ कहने के पहले चली गई , प्लेट टेबल पर रख वो भी बैठ गई है गरिमा भी बाकी प्लेट लिए आई और रख के बैठ गई,, तीशी को देख गरिमा कहने लगी "शादी में कोई उधम मत मचाना " ये सुन तीशी समझ नहीं पाइ किसकी शादी वो असमझता से पुछने लगी "किस की शादी? कौन कर रहाहै शादी? " उसका सबाल सुन तीनों उसे हैरानी से देखा बही युवान सर पीट बोला "ये लड़की गजनी बनती जारही है, कल ही बताया था हम बुआ के घर जारहे है और अश्विन अंकल ने हमे उनकी बेटी की शादी में इनवाइट किया है पर सोते सोते सब भुल गई सुबह उठ कर पुछती है कहाँ जारहे है? " तीशी अपना पक्ष लेते हुए बोली "नींद में थी तब मैं इसीलिए समझ नहीं पाइ " ,, उसकी बात सुन युवान ने ना मे सर हिलाया और इसबार नितीश बोले "बेटा मेरे दोस्त अश्विन की बेटी की शादी हैं न याद आया अब " उन्होंने याद दिलाते हुए कहा जो सुन अब जाकर तीशी को याद आया वो बोली "ओ हाँ हाँ याद आया, वैसे शादी तक तो आ जायेंगे न आप दोनों ? " उसके सबाल पर नितीश बोले "हाँ शायद" उनकी बात सुन तीशी और युवान दोनों ने समझये हुए सर हिलाया,,
कुछ ही देर बाद,,चारो का ब्रेकफास्ट होगया , नितीश उठते हुए बोले "बच्चों सम्हल कर जाना और ठीक से रहना " दोनो ने उनकी बात मानते हुए कहा "जी पापा" और फिर उनके पाओ छुये उन्होंने उनके सर पर प्यार से हाथ फैरा और कुछ मिनट बाद वो नितीश अपने काम के लिये निकल गए,,
दो घंटे बाद गरिमा जी को अलविदा बोल युवान और तीशी निकल गये,,
कुछ घंटे के सफर के बाद दोनों अपने मंजिल तक पहच गए,, सुहासनगढ़ , प्राकृतिक की गोद में खिले इस गाँव की खुबसूरती अद्वितीय है चारों तरफ हरियाली बिछी हुइ है दूर दूर तक विस्तृत खेत , ताजी ठंडी हवाये जो मष्तिक और मन दोनों को शांत कर जाये एक सुकून सी पहचाये , आढी टेरी चलती पानी से भरी गहरी नदीया ये सब अलग ही जाहा में ले जारहे हो,, ट्रेन से उतरने बाद,, गाँव में पहला कदम रखते ही तीशी बाहै फैलाये इन एहसासों को अपने अंदर समेटने लगी उसने अपना बैग युवान को दे दिया,, तभी तीशी के कानों से एक आवाज टकराइ
क्रमश......
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तीशी अपने वैग युवान को दिये और गाँव के खुसवू को महसुस करने लगी , तभी उसके कानों से युवान की आवाज टकराई जो कह रहा था "ओये तेरा हो गया हो तो अव हम चले ?", ये सुन वो उसकी तरफ घुमी तो वो आगे वोला " सौनक का कॉल आया था, वो हमें लेने आया है " ये सुनते ही तीशी आखों के उपर हाथ रख ढुँढते हुये पुछने लगी,,"आया हैं तो मुझे क्यों नहीं दिख रहा? "उसे ईस तरह ढ़ुढ़ते देख युवान ने उसका हाथ नीचे कर काहा,,
"मेंने कब कहाँ वोँ यही खाड़ा है थोड़ा आगे चलके वाहार कि तरफ देखेगी तव ना वो दिखेगा ",तो वो समझते हुये वोली " ओ आच्छा तो चलों अब "इतना बोल उसके कुछ कहने से पहले ही वो आगे चल परि, उसे देख युवान उसके पीछे चल परा पांच मिनट तक चलने के बाद उसे एक लड़का बाइक लिए खड़ा दिखा जो की उसके बुआ का बेटा है उसे देख लगभग चीख़ते हुए वो बुलाने लगी" सौनक भैया " उसके बुलाने से सौनक जो की उन्हें ही ढुंढ रहा था उसका ध्यान उस पर चला गया उसने उसे देख हाथ हिलाया तीशी उसके पास चली गई ,, तीशी ने अपने डाय हाथ से उसके वाय में हायफाइ देकर कहा "कैसे हो भैया?"उसका सबाल सुन सौनक बोलने लगा,,
सौनक - मैं तो बढ़िया हु तु बोल? (तीशी -मैं भी एकदम अच्छी हु) युव कहाँ है? (उसके सबाल पर तीशी कुछ कहती उसके युवान आते हुए बोला " यहाँ हु" कहते हुए वो सामने आया और सौनक से पुछा "और कैसा है? ") मै भी बहत अच्छा हु तु भी अच्छा ही होगा अब चल बाकी बाते घर चलकर करना,,
सौनक ने पलट कर उसे ये नहीं पुछा वो कैसा है बल्कि बिना पुछे खुद ही जबाब दे दिया जो सुन और देख युवान ने अजीब सा मुंह बनाया और फिर सौनक बाइक पे बैठा उसके पीछे वो दोनों बैठे उसके बाद फिर उसने बाइक स्टार्ट कर दिया,, गाँव के आढ़ी टेरी रस्तों से चलते हुए वो अपनी मंजिल की ओढ़ बढ़ने लगे गाँव के अंदर तक पहचती सड़क के आसपास कोई घर नहीं बस हरियाली है, सड़क के दोनों किनारे पे बड़े बड़े पेड़ घनी पत्तीया लिए खड़े है, सुनहरी धुप उनपे पर रही है धीमे से बहती हवाये उन पत्तों को छुकर एक मधुर सी धुन छेड़ रही है जो सुनते हुए तीशी बिल्कुल खो सी गई,,
कुछ मिनट के बाद, सौनक ने बाइक रोक दिया जिस्से दोनों ने साथ में पुछा "क्या हुआ? " तो सौनक बोला "दिखाता हु क्या हुआ पहले उतरो दोनों " उसके कहने पर दोनों उतरे फिर सौनक उतर चल परा और उसके पीछे चलने लगा धीरे धीरे चलते हुए तीनों नदी किनारे पहच गये जहाँ कदम रखते ही , जाहा तीशी बोली "वाओ " बही युवान के होंठो से एका एक निकल गया,
युवान -ये तो बही जगह है जहाँ...... ( वो बात खत्म करता उसके पहले वो खुद ही चुप होगया तीशी उसकी अधूरी बात सुन उसकी तरफ देख पुछने लगी "जहाँ क्या? " तो युवान बात बदलते हुए बोला) जहाँ... जहाँ हम एक साल पहले भी आये थे ,,
ये सुन भावे उठाते हुए उसी की बात को दोहराते हुए पुछने लगा"एक साल पहले बस आये थे? "उसके सबाल पर युवान ने आखें छोटी कर देखा तो सौनक दांत दिखा कर चुप होगया ,दोनों की बाते तीशी को समझ नहीं आरही वो पलके झपकाये देखने और पुछने लगी " क्या कह रहे हो दोनों? "सौनक कुछ कहता उसके पहले युवान बोला " इसकी बात मत ये तो है ही पागल "उसकी बात सुन सौनक सामने देखते हुए बोला " हां तेरे हिसाब से तो सब पागल है "उनकी बात पर ध्यान ना देकर तीशी नदी की तरफ देखने लगी सीधी बहते इस नदी का स्रोत धीमे धीमे अपनी धुन मे मग्न बहता चला जारहा है, पानी की धारा जितनी गहरी है पानी उतना ही साफ है दोपहर से सांझ आने लगी दिन का थका सुरज अब सबसे अलविदा लेने को है, ढलते सुरज की सुर्खी से सारा आसमान सुर्ख हो उठा, किरणे पानी में ऐसे घुल रही है मानों जैसे पिघलता सोना घोल दिया हो,,
तीशी धीरे धीरे कदम बढ़ाने लगी नदी के सामने जाके झुककर बैठ गई और हाथ पानी में डाल खेलने लगी, ठंडे पानी को छुते ही उसके होंठो पर अपने आप लकीरें आई युवान उसे देख बोलने लगा "तीशु तेरा पानी से खेलना होगया हो तो हम चल अब" उसकी बात पर तीशी तो कुछ नहीं बोली पर सौनक तुंरत पुछने लगा "क्यों थक गया? " तो उसने बस एक शब्द में कहा "हाँ! " इसबार उसने कुछ कहा नहीं, युवान ने तीशी से जो कुछ कहा शायद ही उसने सुना होगा वो तो गहरे पानी की गहराइयों में कही खो गई तभी उसका फोन सोड़ करने लगा ये सुन उसने फोन मे झाक नम्बर देख तुंरत कॉल रिसीव कर फोन कान से लगाया वो कुछ कहती उसके पहले सामने से सबाल आया "पहच गई? " ये सबाल सुन तीशी ने जबाब देने साथ पुछा "मैं तो पहच गई पर तु कहाँ है? "
इस सबाल का जबाब तो आया पर फोन से नहीं "मैं यहाँ हु तेरे पीछे" ये आवाज बहत तेज थी जो सुन तीशी इसबार झटसे खड़ी होगई उसने मुंड़ कर देखा तो पाया एक लड़की खड़ी है जो उसकी सबसे अच्छी दोस्त है और वो उसके बुआ के पडोस में रहती है उसे देख तीशी एकदम से उसके गले लग गई युवान जो की अपलक होके लाव्या को देखे जा रहा था अब भी बस देखता ही रहा,, दोनों अलग हुइ फिर लाव्या बोली,,
लाव्या- पुरे एक साल बाद देख रही हु तुझे,
उसकी बात सुन युवान के होंठो से एका एक निकल गया "और मैं भी " उसकी होंठो से ये तीन शब्द लाव्या को देखते हुए निकले तो गये पर सौनक के अलावा किसी ने सुना नहीं इसबार सौनक कुछ बोला नहीं, बही लाव्या की बात पर तीशी उसकी बात दोहराकर अपना सबाल जोड़ते हुए बोली
तीशी -'एक साल बाद देख रही है तु मुझे' कह तो ऐसे रही है जैसे मै तुझे रोज देखती हु मैं भी तो तुझे एक साल बाद ही देख रही हु,,
वो आगे कुछ कहने बाली थी पर उसके पहले सौनक उनकी बात सुन बोला "पर बिडियो कॉल पे तो बात होती थी न तो कैसे कह सकते दोनों की.... "वो सबाल पुरा भी नहीं कर पाया उसके पहले तीशी और लाव्या दोनों साथ में बोली " बिडियो कॉल की बात अलग है और सामने देखने की बात अलग है "उनकी बात समझते हुए सौनक ने सर हिलाया तो तीशी ने पुछा " वैसे कब और कैसे आइ तु? ",,
लाव्या- कैसे क्या कैसे पैरों से चलके (बोल उसने कंधे उचकाये और हंस परि, उसे हंसते देख और जबाब सुन तीशी ने उसे घुरके देखा तो हंसी रोक बोली) मुझे सौनक भाइ ने बताया को सब यहाँ हो तो मैं आगई स्वागत करने जब मेने तुझे फोन किया तभी आइ मैं,,
तीशी को जब लाव्या का फोन आया उसके कुछ मिनट पहले युवान ने फोन मे टाइम देखा जैसे ही नजरे दूसरी तरफ घुमाइ उसकी तभी उसकी नजरें बिल्कुल थम गई, दिल की धड़कन एकदम से तेज होगई वो सब भुल गया उसके साथ कौन है पास कौन है उसे सिर्फ उस्से कुछ कदम की दूरी पर खड़ी वो लड़की दिख रही है जिस को नदी किनारे इसी जगह एक साल पहली भी देख उसकी धड़कने इसी तरह तेज हुइ थी जिसकी आखों में देखते ही जिस्से पहली बार नजरे मिलते ही उसे प्यार होगया था जो लड़की लाव्या है,,
युवान को अपनी तरफ देखता पाकर
लाव्या मुस्कुराइ और अपने होंठो पर ऊंइली रख चुप रहने का इशारा किया उसे मुस्कुराते देख युवान उसकी मुस्कुराहट में ही कही खो गया लाव्या के होंठो पर जो लकीरें आइ बही लकीरें उसके होंठो पर भी बिना किसी रोक टोक के उभर आइ वो कुछ भी कह नही पारहा या शायद एक साल बाद उसकी नजरो जैसे लाव्या को देखा तो बस देखते ही रह गये और उसकी जुवान होंठो पर आये बात को शब्द देना भुल गये इसीलिए उसके इशारे पर उसने बस सर हिलाया इसके बाद ही लाव्या ने तीशी को कॉल किया था,,,
तीशी और लाव्या कुछ बाते कर रही थी युवान जो की अब भी उसे ही देखे जारहा था, उसे इसतरह देखते देख अब सौनक बोला "तु तो थक गया था न तुझे तो जल्दी जाना था ना अब क्यों नहीं चल रहा? " ये सबाल युवान ने पहले तो सुना नहीं पर जब सुना तो आखें छोटी कर उसे घुरने लगा तो सौनक ने कुछ कहे बिना दांत दिखा दिये,, बही तीशी ने लाव्या से पुछा "तु तो आगई स्वागत करने पर वो कहाँ है? " उसके इस सबाल पर लाव्या मुस्कुराकर जबाब देते हुए बोली "स्वागत तो होगा तेरा लेकिन अपना स्वागत करवाने के लिए तुझे खुद ही उसके पास जाना होगा "
क्रमशः......
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तीशी ने लाव्या से पुछा"तु तो आगई स्वागत करने पर वो कहाँ है? "लाव्या ने भी मुस्कुराकर कहा " स्वागत तो होगा तेरा लेकिन अपना स्वागत करवाने के लिए तुझे खुद उसके पास जाना होगा " तो तीशी बोली "वो तो जाऊंगी ही " इतना बोल आई विंक कर मुस्कुरा दि, दोनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले युवान बोल परा "बाकी बातें बाद में करना चलो अब दोनों "
ये सुन दोनों ने साथ में कहा "हाँ" और साथ में चले आने लगे, जहाँ दोनों ने हाँ कहा वही उसे ये कहते देख सौनक ने पहले तो उसे देखा फिर बोला "मुझे तो लगा तु कुछ कहेगा ही नहीं बस उसे
देखता रहेगा " युवान ने आखें घुमाये उसे देखा और बोला "चुप कर जा वरना बहत पिटेगा" इतना बोल उसे कुछ कहने का मौका दिये बगैर ही वो आगे बढ़ गया सौनक ने मुड़कर दोनों की तरफ देखा जो की आ ही रहे थे उन्हें देख सौनक आगे बढ़ने लगा,,
उन दोनों के पास जाने से पहले लाव्या तीशी से बोली "अच्छा तुम तीनों जाओ मैं बाद में आऊंगी" उसके बात पर सबाल जबाब किये बगैर ही तीशी बोली "ठीक है " इतना बोल वो भी बाइक की तरफ चली जाने लगी, लाव्या जोर से बोली "सम्हल कर जाना" तीशी ने भी चीख़कर कहा "हाँ" इतना बोल वो चली गई बाइक के सामने युवान बैठा था उसके पीछे बैठे सौनक ने तीशी को अकेले देख पुछने बाला ही था पर उसके पहले युवान ने पुछ लिया "लाव्या कहाँ गई? " ये सबाल सुन तीशी ने जबाब देते हुए कहा "उसने कहा वो बाद में आयेगी "
ये सुन युवान ने बस हल्का सा सर हिलाया फिर तीशी के बैठने के बाद उसने बाइक स्टार्ट कर दिया लाव्या चलकर कुछ कदम बढ़ाकर आगे सड़क की तरफ देखा, वो दूर जा रहे है देखतें, लाव्या के होंठो पर अलग ही लकीर खीची हुई है कुछ देर पहले जो मुस्कुराहट थी ये वो नहीं बल्कि उसकी मुस्कान में बहत कुछ छुपी है एक अलग ही चमक है आखों में कुछ अनकहे बात है, उसने अपने दिल पर हाथ रक अपने धड़कनों को महसूस किया जो की सामन्य से काफी ज्यादा बढ़ चुकी है ,अपनी धड़कनों को महसूस कर उसकी मुस्कान गहरी हो गई , वो खुद से कहने लगी "कहना तो बहत कुछ चाहती थी पर क्या करूँ शब्द ही उलझने लगे ऐसे में क्या ही कहती इसीलिए होंठो पर ऊंगली रख अपने उलझे शब्दों को रोक लिया " इतना बोल वो खामोश होगई,,,
कुछ मिनट बाद,,,,
तीनो अपने मंजिल तक पहच गए, एक खुबसूरत सा घर जो काफी बड़ा है चारों तरफ ढेर सारे बड़े पेड़, छोटे पौधे है, कुछ झाड़िया भी,, युवान ने बाईक रोकी फिर वो उतर गये वो अंदर की तरफ बढ़ने लगे अंदर कदम रखते ही उन्हें सत्तर से पचहत्तर साल की एक बजुर्ग औरत बैठी दिखी , उन्होंने उन तीनों को नहीं देखा तो युवान और तीशी चुपके से उनके पास गये और अचानक दोनों साथ में बोले "दादी ! सरप्राइज हम आगये! " अचानक उनकी आवाज सुन वो चौक गई वो दोनों झूककर उनके पांव छुते हुए पुछने लगे "दादी कैसी हो आप? " उनका सबाल सुन
उन्हें देख उनकी दादी यानी वसुंधरा जी बोली "ठीक तो हु पर अभी बेठीक हो जाती ऐसे अचानक आके कोई किसी को चौकाते है? " ये सुन दोनों फिर से साथ में बोले "हम और हमारी आदत तो ऐसे ही है "
तो वंसुधरा जी बोली "हाँ हाँ जानती हु दोनों को अच्छे से"
उनकी बात पर दोनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले सुष्मिका जी यानी उनकी बुआ आते हुए बोली "आगये तुम तीनो बोलो कैसे हो दोनों? "उन्हें देख उनके पास आये और झुककर पांव छुते हुए बोले " हम तो बहत बढ़िया है आप सब कैसे हैं? "
सुष्मिका -हम सब अच्छे है तुम दोनों के आने से और अच्छे होगये (उन्हें देख वंसुधरा जी पुछने लगी "तुम दोनों के मम्मी पापा नहीं आये? " उनके सबाल पर युवान बोला "नहीं उन्हें कुछ काम है " इसके आगे उनके वो बोल परि) माँ आप भुल गई भईया ने बताया था न के उन्हें कुछ काम है तो वो और भाभि शादी के दिन ही आयेंगे,,
उनकी बात समझ और याद करते हुए वसुंधरा जी ने सर हिलाया इसके बाद दोनों को देख वो बोली
वंसुधरा जी - तुम दोनों थोड़ा आराम कर लो.....
वो आगे कुछ कहती उसके पहले जहा युवान बोला "हाँ मैं थक गया हु" वही तीशी बोली "ठीक है भाइ आप जाओ आराम करो मैं तो बातें करूँगी ढेर सारी" ये बोल वो जाकर बैठ गई वही युवान ने पुछा "मै जाउ बुआ" तो वो बोली "हाँ हाँ" तो वो चला गया उसके जाने के बाद कुछ कहने के लिए सौनक की तरफ मुड़ी"सौनक भइया..... "
पर वो इतना ही बोल पाई जब उसने सौनक को वहा से गैरमौजूद पाया तीशी पलके झपकाये देखा और पुछने लगी "अरे अभी तो यही थे कहाँ गये "इस सबाल पर वसुंधरा जी ने कहा" ये ऐसा ही है कभी भी कही भी चला जाता है "
उनकी बात समझते हुए तीशी ने सर हिलाया इसके बाद तीनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले एक आवाज आइ "हल्लो लेडीज क्या बातें चल रही है? मुझे भी बताओ"
वसुंधरा जी -बातें चाहे कुछ भी हो पर तेरे बगैर अधूरी है लाव्या ,,
उनकी बात पर सहमति जताते हुए सुष्मिका जी बोली"ये तो सही है "ये सुनतें हुए लाव्या उनके पास गई और तीशी के साथ बैठ गई और दादी को देख कहनें लगी,
लाव्या - आज दादी ने तीसरी बार मेरा पुरा नाम लिया (तीशी -पुरा नाम लिया? उसने उसकी बात दोहराकर सबाल करते हुए पुछा जो सुन वसुंधरा जी बोली " मैं अटक जाती हु न" ) इसलिए ये सिर्फ यही मुझे लवी बुलाती है जो मुझे इनके मुंह से सुनने में लवी डवी सा लगता है,,
उसकी बात सुन तीशी बोली,,,,
तीशी- वाओ सो क्यूट (फिर कुछ याद कर पुछने लगी) वैसे अश्विन अंकल की बेटी की शादी है कब? मुझे पता है शादी है पर किस दिन है वो नहीं पता,,
क्रमश......
(कमेंट और रेटिंग प्लीज)
लाव्या कि बात पर तीशी बोली
तीशी- वाओ सो क्यूट (फिर कुछ याद कर पुछने लगी) वैसे अश्विन अंकल की बेटी की शादी है कब? मुझे पता है शादी है पर किस दिन है वो नहीं पता,,
उसकी बात सुन लाव्या बोली "तु भी न मतलब कुछ भी जिस वजह से आई है वो ही नहीं पता " तो अब सुष्मिका जी तीशी के कुछ कहने के पहले बोल परि "अच्छा अच्छा सुनों परसों मेहंदी है उसके दूसरे दिन संगीत, उसके बाद बाले दिन हल्दी उसके बाद यानी आज से छे दिन बाद शादी है" उनकी बात समझते हुए तीशी ने सर हिलाया इसके बाद लाव्या ने कोई और बात छेड़ दिया वो अपनी बातों में उलझ गये,,,
कुछ देर बाद,,,,
दूसरे कमरे में युवान बैठे हुए कुछ सोचे जारहा था खुद से कुछ सबाल करता खुद ही जबाब देता फिर अपने जबाब को मना कर देता ऐसा करते हुए वो अपने हाथ के नाखून चबाने लगा कुछ सोच इतने देर बाद जैसे ही अपने किसी जबाब और बात पर अमल करते हुए कुछ कहता खुद से उसके पहले ही उसके कानों से सौनक की आवाज टकराइ जो कह रहा था,,,
सौनक -तेरे नाखूनों की जगह क्या बादाम है जो इन्हें चबाने से तेरा दिमाग खुलेगा?(उसकी आवाज सुन जैसे ही युवान मुड़ने को हुआ उसके पहले सौनक उसके कंधे पर जोर से हाथ रख आगे बोला) अब नाखून ,बादाम, ऊंगलिया चबाना बंद कर और उठ ,जा, और.....
इसके आगे कहने से पहले ही युवान उसे टोकते हुए कहने लगा "ज्ञान मत दे.... तु तो कही गया था न तो अचानक कहाँ से आ टपका? " उसने उसे घुरते हुए कहा और ये सबाल पुछा जो सुन वो बैठकर कहने लगा
सौनक - मैं तो थोड़ी देर पहले आया हु,,और, ज्ञान? नाह! ज्ञान नहीं दे रहा भाइ बोल रहा हु के बोल दे सब कुछ साइड रख ज्यादा मत उलझ और कह दे,,
सौनक के बातों को ध्यान से सुनने के बाद जब वो चुप हुआ तब युवान कुछ नहीं बोला वो समझ तो गया "लेकिन... " ये लेकिन शब्द रह ही जाता है उसके मन में,
यही सोचते हुए कुछ सेकंड तक एकतरफ को घुरता रहा फिर कुछ सोचे या सौनक से कुछ कहे बगैर उठ गया और दरवाजे की तरफ जाने लगा उसे जाते देख सौनक अचानक बोल परा "बाहर जारहा है?जा देख वो आई थी देख अभी भी होगी शायद " उसकी ये बात सुन भी युवान ने कुछ खास ध्यान नही दिया क्योंकि उसे लगा वो ऐसे ही बोल रहा इसीलिए वो कुछ बोला नहीं और चलने लगा ये समझ "अरे ऐसे ही नहीं बोल रहा " उसके ये कहते हुए ही युवान दरवाजा खोल बाहर आगया, बाहर आकर किसी भी तरफ जाने से पहले अपने सामने देख वो बिल्कुल रूक गया क्योंकि उसके ठीक सामने लाव्या खड़ी थी,,,
वो वहाँ खड़ी नहीं थी बल्कि वो भी तीशी के पीछे तीशी के कमरे में ही जा रही थी तीशी तो अपनी बात कहते हुए अंदर चली गई पर युवान को देख लाव्या के कदम भी अपनी जगह ठहर गये, दोनों ही एक दूसरे को देखे जारहे थे अचानक युवान चुप्पी तोड़ते हुए पुछने लगा "कैसी हो? " ये सबाल सुन लाव्या मानों होश में आई वो जबाब देने के साथ पुछने लगी "ठीक तो हु पर आपको नही लगता ये सबाल पहले पुछना चाहिए था? " इसपर युवान को समझ नहीं आया के क्या कहे पर कुछ सोच कहने लगा,,
युवान -हाँ? हाँ कहना तो चाहिए था मैं कहता भी पर तुमने तो तब चुप करा दिया और तुम्हारी खुबसुरती ने तो मुझे शब्द ही भुला दिए,,
उसकी ये बात सुन लाव्या कुछ पल के लिए उसे हैरानी से देखा फिर मुस्कुराकर एक बार चहरा फैर लिया फिर उसे देख बोली "फ्लर्ट कर रहे हैं या तारीफ? " उसके सबाल पर युवान ने एक शब्द में कहा "दोनों"ये सुन वो मुस्कुराकर बोली " काफी बदल गये हैं " उसके इस बात पर युवान कुछ बोलने के बजाय मुस्कुरा दिया, इसके आगे दोनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले दोनों के कानों से तीशी की आवाज़ टकराइ जो लाव्या से ये कहते हुए आरही थी के,,
तीशी - तु यहाँ है और वहाँ मैं दो मिनट से खिड़की से देखते हुए चपर चपर किये जारही थी जब मेरे बात का कोई जबाब नही मिला तब मेने झल्ला कर पीछे देखा तो पाया मैं अकेले अकेले ही बक बक किये जारही थी तेरे सुनने के लिए कहा पर तुने तो कुछ सुना ही नहीं मतलब मुझे सब कुछ फिर से कहना होगा,,
इसके आगे वो और भी कुछ कहना चाहती थी पर उसने बस मुंह ही खोला कुछ कह नही पाइ उसके पहले लाव्या बोली "हाँ हाँ कह लेना मैं सुनुंगी सब, उसके पहले अभी शांत होजा " ये सुन तीशी कुछ कहती उसके पहले युवान बोला
युवान -तुझे देख तो लेना चाहिए था न तेरे पीछे कोई है के नहीं साथ जो आया था वो आया है भी या नहीं पर नहीं तुझे तो बस बोल ने की जल्दी है,
इतना वोल जैसे ही वो चुप हुआ तभी तीशी दोनों को देख वोली
तीशी - होगया दोनों का या ओर कुछ और भी कहना हैं? ( अपना सवाल कर दोनों को जवाब देने का मौका दिये वैगर ही, खुद ही कहने लगी) नहीं ! तो चले, लवी,, इतना वोल वो उसे ले जा ने लगी,, चलते हुये वो मुड़ कर देखती उसके पहले तीशी उसे लेकर चली गई,, युवान अभी भी उसी तरफ देखे जारहा था आज लाव्या बिल्कुल उसी दिन की तरह खुबसुरत लग रही थी जिस दिन उसने उसे पहली वार देखा था,, हरे रंग के सलवार के साथ दुपट्टा लिया हैं, चहरे पर कोई साज सजावट नहीं, एक साधारण सा चेहरा वड़ी वड़ी आखें, तीखा सा नाक, हलके गुलावी होठों के उस खिलखिलाती मुस्कान में युवान आज भी खो गया,,
उसे यादकर एकबार फिर उसके होंठो पर एक मुस्कान लेहरा गई कुछ सेंकड वही रूक वो बापस चला गया,दरवाजा खोल जैसे ही अंदर गया सौनक बोल परा "युवान कहाँ चला गया था? " तो वो पहले तो कुछ बोला नहीं फिर बोला "यही था" तो ये सुन वो फिर से कहने लगा,,
सौनक- बाहर कोई नहीं मिला न? किसी से बात भी नहीं हुइ न? (कुछ देर पहले उसने कहा था वो आइ है पर तब युवान ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया था मगर उसने सच कहा था इसीलिए अब वो ऐसे पुछ रहा ये समझते युवान को देर नही लगी वो उसे देख कहने लगा) यकीन आया अब?
युवान -शौतेली सांसु जैसे ताने मारना बंद कर और याद कर मेने कुछ नहीं कहा था तु ही कह रहा था "ऐसे ही नहीं कह रहा " बगैरा बगैरा (उसके मुंह से अपनी बात सुन सौनक बोला "हाँ हाँ समझ गया, मेने ही सब कहा था तुने कुछ नहीं कहा था, अब ये बोल मिला था या नही?") हाँ मिला भी , देखा भी, बात भी किया (ये सुन सौनक ने एक बार उत्सुकता से पुछा " क्या बाते किया? "ये सुन युवान चुप होगया तो सौनक अपने कान के पास हाथ रख सुनने की कोशिश करने लगा जब उसने कुछ नहीं कहा तो वो कहने लगा " बोल अब") मेने कहा तुने सुना नहीं इसमें मेरी गलती नही तेरे ही कान खराब है,,
क्रमश...
हैलो प्रिय रीडर्स रेटिंग कमेंट के साथ जरूर बताये
ये सुन सौनक हैरानी से बोला "कब कहा? " तो उसने तुंरत एक शब्द में जबाब दिया "अभी " फिर से वो पुछने लगा "तो मेने कैसे ना सुना? " इस बार भी युवान ने तुरंत कहा "क्योंकि तेरे कान खराब है"
सौनक -नही! तुने मन में कहा इसीलिए, कुलमिलाकर मेने सुना नही तो फिर से बोल.... मतलब अब ढंग से बोल ....
उसके इतना कहने के बाद उसने युवान को देखा तो उसने बस इतना कहा "मुझे नहीं बोलना " इतना सब कुछ कहने और सुनने के बाद भी उसे सिर्फ इतना कहते देख सौनक का मुंह हैरानी से खुल गया , , ,
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तीशी ढेर सारी बाते किये जारही थी और लाव्या सुन रही थी पर कहते हुए अचानक वो चुप होगई,
तीशी ढेर सारी बाते किये जारही थी और लाव्या सुन रही थी कहते हुए वो अचानक चुप हो गई उसके इस तरह चुप होने से लाव्या पुछने लगी "क्या हुआ? " उसके सबाल पर उसने कोई जबाब नही दिया वो जैसे ही फिर से कुछ और कहने या पुछने को हुइ तभी वो अचानक उसके सबाल का जबाब देने के बजाये तीशी कहने लगी "मुझे उस्से मिलना है " उसके अचानक ये कहने से लाव्या एक पल कों चौक गई, पलके झपकाये उसे देखने लगी फिर पुछा "और आप उस्से मिलेंगी कैसे? " उसके इस सबाल ने तीशी को सोच में डाल दिया वो लाव्या को देखने लगी उसे अपनी तरफ देखते देख लाव्या बोल परि,,
लाव्या -तुझे मिलना तो है पर कैसे मिलना है कब मिलना है ये नहीं सोचा न? (उसके सबाल पर तीशी ने हाँ में सर हिलाया वो आगे बोली) पता था मुझे, ठीक है हम कल चले.....( वो बात पुरा करती उसके पहले तीशी उसे टोकते हुए सीधे शब्दों में बोली "नहीं! मुझे आज ही मिलना ही " ये वो चौकते हुए बोली) क्या ?आज!! (इसबार वो बोली "हाँ तो इसमें इतना चौकने बाली क्या बात है उसके सबाल पर वो कहने लगी) हंह! ठीक है चलेंगे पर अभी नहीं बाद में,,
तीशी -अच्छा रात को चले,? मजा आयेगा न? मेरा फर्स्ट एक्सपिरियन्स होगा ये चलेगी न?
वो बिना रूके सब बोल गई उसके आखरी के सबाल को सुन जबाब देते हुए वो बोली " म्म सोच के बताऊंगी" जबाब सुन तीशी ने बुरा सा मुंह बनाये देखा उसे देख लाव्या मुस्कुरा दि कुछ सोच वो पुछने लगी,,
लाव्या -अच्छा तुने सोचा क्या बात करेगी या कैसे बात करेगी जब मिलेगी? क्योंकि एक साल पहले जब तुम दोनों पहली बार तब तु तो उसे ताड़ रही थी पर वो तो झगड़ने को तय्यार था फिर तुने कुछ कहा था ऐसे हुई थी दोनों की बात, तो अब बोल,,,
उसकी बातों को ध्यान से सुनकर भी उसकी ढेर सारी बातों के बीच तीशी का सारा ध्यान उसके कुछ शब्दों में चला गया वो दोहराते हुए बोली "जब हम पहली बार मिले थे" बस ये दोहराते सुन लाव्या ने सर पीटकर कहा "मेरी इतनी सारी बातों के बीच तुने बस ये सुना" इसबार उसके इसबात पर तीशी कोई ध्यान नही दिया बल्कि वो कहने लगी,,
तीशी -वो दिन वो पल था कमाल का साथ ही मौसम भी गजब का था जब वियांश द्विवेदी को पहली बार देखा था,,
कहते हुए उसके होंठो पर एक मुस्कान लेहरा गई साथ ही वो अपनी यादों के साहारे एक पहले बिल्कुल उसी वक्त में पहच गई जब दोनों की मुलाकात हुई थी,,,
एक साल पहले,,,
जूलाई की तपती गर्मी में जब सुरज की तेजी अपने चरम पर पेड़, सुखी मिट्टी, खेत की फसलों के साथ इंसान भी बारिश को तरस गए थे तब काले घने बादल को साथ लिए बरसात के रूप में छुपी राहत और सुकून की बूंदे लिए सावन आया,,
बारिश के बाद कुछ बूंदें अभी तक पेड़ों के पत्तों पर ठहरी हुई थी बादलों के बीच छुपा सुरज हल्की किरणें बिखेर रहा था,,
लाव्या तीशी को गाँव घुमा रही थी घुमने के बाद उन्होंने देखा कुछ बच्चे गिल्ली डंडा खेल रहे थे,, उन्हें देख लाव्या ने एक नजर तीशी को जो की बच्चों को ही देखे जारही थी उसे देख वो पुछने लगी "तुझे खेलना है? " ये सबाल सुन तीशी का ध्यान उसपर चली गई उसने उसे पलके झपकाये देखा तो लाव्या उसे साथ लिए उन बच्चों के साथ गिल्ली डंडा खेलने के बाद वो लुकाछिपी खेलने लगे,सब जगह ढुंढ छुपगये इसबार सबको ढुंढने की बारी लाव्या की थी उसकी गनती भी खत्म होने को आइ थी पर तीशी और साथ बाले बच्चे को छुपने की जगह नहीं मिली, तीशी आसपास देखते हुए बोली "ऐसे तो सबसे पहले ही हमारा गेम ओवर होजायेगा"
ये सुन उस बच्चे ने अपने ठीक पीछे देखा फिर तीशी से पुछने लगी "दिदि आपको पेड़ पे चड़ना आता है? " ये सुन तीशी ने भी पीछे देखा जहाँ एक बड़ा सा आम का पेड़ है उसके एक डाल की तरफ ढेर सारे पत्ते है वो अगर वहाँ छुपे तो शायद पकड़े जाने से बच सकते हैं ये सोच और देखते हुए वो बोली "हाँ आता तो है" वो बच्चा इसपर बोला "तो चलो" इसके बाद दोनों पेड़ पर चड़ गये, वो उसी डाली पर थे जहाँ ढेर सारे पत्ते थे वो डाल काफी ऊपर था , उचाई से बहत कुछ दिख रहा था गाँव के घर, लोग, पेड़ ये सब देखते हुए तीशी बोल परि "सब कुछ ऊचाई से कितना खुबसूरत लग रहा है " उसे कुछ बच्चे भी दिख गये जो की आसपास ही छुपे थे उन्हें देख वो बोली "ये तो पहले ही पकड़े जायेंगे " तो वो बच्चा भी बोल परा "इनमें हमारे जैसे अक्ल थोड़ी है के किसी पेड़ पर चड़कर छुप जाये " ये सुन तीशी ने हाइफाइ देते हुए कहा "ये तो सही है"
दो - तीन मिनट बीत गये दोनों वैसे ही बैठे है, तीशी आसपास देख रही थी तभी उसे दूर एक लड़का आते हुए दिखा जो की काफी दूर था और चल कर शायद उसी तरफ आरहा था पता नहीं दूर से आते उस लड़के से तीशी नजर रूक गई ,,वहाँ दो रास्ते थे एक पेड़ के पास से गुजरती और एक उल्टी दिशा में जाती उस लड़के को देखते हुए नाजाने क्यों तीशी के मन में इच्छा जागी के काश दूसरे रस्ते से जाने के बजाय उस तरफ से जाये ये सोचते हुए एकाएक उसने उस बच्चे से पुछ लिया,,,
तीशी - ओये रिक्कु ये लड़का कौन है? (रिक्कु ने तो देखा ही नहीं था "कहाँ?कौन सा लड़का ? कहाँ है? " उसका सबाल सुन वो चिढ़ कर बोली)' कहाँ कौन सा लड़का? ' मतलब? वो जो चलकर आरहा है वो लड़का,, तेरी आँखिया कमजोर है या ये कोई लड़की है जो मुझे लड़का दिख रहा है और मेरी आखें खराब है है? (उसकी बाते सुन वो बोल परा "अरे अरे दिदि इतना क्यों चिढ़ती हो? " इतना बोल वो हंसा तो तीशी ने उसे घुरकर देखा और बोली) अब बोल बच्चे (तो वो अच्छे से सामने देख बोलने लगा "आ! ये तो पंडित चाचा का बेटा है ") किसका बेटा है? (उसके सबाल को सुन वो तीशी को देख कहने लगा " अरे हमारे गाँव के पंडित राघव द्विवेदी चाचा का बेटा वियांश द्विवेदी "इसबार भी इतना सुन वो फिर से उसे टोकते हुए बोली) ये कब से रहता है यहाँ ? मेने इसे कैसे नहीं देखा? (उसके टोकने से और सबाल करते सुन वो बोल परा " दिदि आप न एक तो बीच में बोलकर लिंक ना तोड़ो और भईया पच्चीस साल के है और पच्चीस साल से ही यही रहते हैं "इतना बोल वो थोड़ा चुप हुआ यही सोच के वो कुछ कहेगी वो कुछ नहीं बोली तो वो आगे बोला " हाँ तो आपने पुछा तो सब बताता हु, इनकी एक ही छोटी बहन है श्रीना दिदि बहत प्यारी, भईया नौकरी करते हैं और बहत अच्छे है ")(उसकी बात सुन समझते हुए हर हिलाया फिर उसके मन में एक सबाल आया जो उसने पुछ ही लिया) अच्छा एक सबाल सीधे सीधे पुछती हु इसकी कोई गर्लफ्रेंड है?
क्रमश....
ये सबाल सुन वो बच्चा उझलते हुए बोला " दिदि आपको शर्म नहीं आती बच्चे से ऐसी सबाल पुछती हो, " जबाब के बजाये ये सबाल सुन तीशी फिर से चिढ़ गई वो कहने लगी,,,
तीशी- बड़ा आया शर्म बाला तेरी शर्म के हड्डी तोड़ु मैं ढु़ंढके देखू तो तेरी भी कोई गर्लफ्रेंड होगी चल चल नखरे मत दिखा और जल्दी बोल,,,
इतना कहते हुए उसने हाथ बढ़ाकर एक कच्चा आम तोड़ा उसकी बात सुन वो अब बोला "हाँ हाँ बताता हु जहाँ तक मुझे पता है नहीं है कोई" इतना सुनते हुए उसने एक नजर नीचे देखा वियांश काफी करीब आचुका था पर वो दूसरे रस्ते से ही जाने बाला है ये देख तीशी ने वो आम उसकी तरफ फेंका उसका निशाना सीधा जालगा,,
अचानक आकर इसतरह कुछ लगने से वियांश रूक गया,,,,
अचानक आकर इसतरह कुछ लगने से वियांश रूक गया, नीचे की तरफ देखा तो पाया नीचे आम परा है झुककर उसने आम उठाया और आसपास देखने लगा उसे आस पास कोई नहीं दिखा तो वो कहने लगा "ये किसने फेंका मुझपर!? "उसे इसतरह पुछते देख उस बच्चे ने हैरानी से आखें बड़ी कर तीशी को देखा तो तीशी ने होंठो पर ऊंगली रख चुप रहने का इशारा किया दोनों के चुप रहने पर कुछ नहीं हुआ क्योंकि कोई जबाब ना पाकर पेड़ की तरफ ध्यान से देख कहने लगा " पेड़ पर जो भी है नीचे आओ" उसने जब ध्यान से पेड़ को देखा तो पाया पेड़ के एक डाल पर कोई है इसीलिए उसने ऐसा कहा,
हालांकि वो जहाँ थे वो डाल पत्तेदार था छुपने के लिए अच्छा हे कोई अगर वहत गौर से नहीं देखेगा तो नज़रों में नहीं
आयेगा, यही सोचते हुये तीशी हैरान होगई, उसने रिक्कु से कहा "इसके चश्मे में कोई सुपर नैचरल पावर है क्या?"
उसका अजीब सा सबाल सुन वो भी पुछने लगा "क्या कहती हो दिदि ऐसा भी भला.... " वो आगे कहता उसके पहले उसने सुना फिर से वियांश कुछ कह रहा है वो अपने आप चुप होगया और तीशी को देखा तो पाया वो उसकी बात सुन रही है वो कह रहा था,,
वियांश- चुप रहने से कुछ नहीं होगा मुझे पता है ऊपर कोई एक नहीं दो लोग है और चाहें जो कोई भी हो सीधे सीधे नीचे आकर माफी मागों वरना अगर मैं ऊपर गया तो ठीक नहीं होगा,,
उसकी ये बात सुन रिक्कु बोल परा "मर गये "इसके आगे कुछ कहने से पहले ही तीशी ने उसे चुप करा दिया, वही, बादलो के बीच छुपे सुरज को धीरे धीरे बादलों ने पुरी तरह अपने आगोश में छुपा लिया, सफेद बादलों को काले घने बादलों ने अपने अंदर समेट लिया किसी भी वक्त बारिश की बूंदे झड़ सकती है ये अच्छे से जानने के बाबजूद ना नीचे खड़ा वियांश अपनी जगह से हिला ना तीशी नीचे आई, रिक्कु उतर जाना चाहता था पर वो उसे उतरने नहीं देरही वो उस्से कहती है "देख बच्चे अगर पहले तु नीचे उतरा तो इसे लगेगा के तुने ही इस पर आम फेंका अब तु सोच ले तुझे क्या करना है? " जितनी बार रिक्कु ने उतरना चाहा तभी वो ये कहती,,
देखते ही देखते आसमान में ठहरे बादलों से कुछ बूंदे बारिश की छन छन करते हुए झड़ने लगी वियांश वही खड़ा है अब रिक्कु से राहा नहीं गया वो तीशी से बोला "सॉरी दिदि में जा रहा हु नीचे " ये सुन उसने इतना कहा "ठीक है " थो वो नीचे उतर गया वियांश ने उसे अकेले उतरते देखा, वो आकर उसके सामने खड़ा हुआ उसे देख वियांश ने पुछा "तेरे साथ जो था वो कहाँ है? " उसके इस सबाल पर जबाब देने के बजाय वो कहने लगा "सॉरी भईया और मेने नहीं उन्होंने फेंका था आप पर " ये सुन वियांश फिर से पुछने लगा"और कौन है वो?"
इसपर भी जबाब देने के बजाय वो बोला "अब मैं चलता हु " इतना कहते हुए वो वियांश के कुछ कहने के पहले वो भाग गया उसने उसे रोका नहीं, बारिश की रफ्तार अभी भी धीमे है इसबार वो कुछ कहता उसके पहले उसने पेड़ की तरफ देखा तो पाया एक लड़की उतर कर नीचे आरही है , ठीक से खड़े होकर वो अपने कपड़े झाड़ने लगी उसे देख वियांश की नजर उसपर रूक गई वही तीशी कपड़े साफ कर सीधे खड़ी हुइ उसे ऐसे अपनी तरफ देखते देख वो मुस्कुराकर बोली "हाय" ये सुन वो उसे आखें छोटी कर देखने लगा उसे अब भी देखते देख तीशी की मुस्कुराहट गहरी होगई उसे देखते हुए वियांश ने पुछा "अगर मैं गलत नहीं हु तो आपने ही मुझपर ये फेंका था? " उसके सबाल पर तीशी का जबाब तय्यार ही था वो कहने लगी,,
तीशी- जी, आप गलत नहीं आप ही सही है मेने ही ये आप पर ये फेंका था (अपनी गलती इसतरह मानते देख वियांश को अजीब लगा वो पुछने लगा "और ऐसा करने की क्या वजह है? ") वजह? हम्म्म, वजह बस इतनी सी थी के मुझे हमारी पहली मुलाकात ऐसी करनी थी के आप भुले ना भुला सके और कुछ नहीं, अगर इतनी आसानी से, सीधे से अगर नीचे आजाती तो मुझे ही अच्छा नहीं लगता, शायद कुदरत ने भी हमारी मुलाकात अनोखे तरीके से करना चाहता है तभी तो कुछ पलो में ही मौसम ने भी अनोखा सा मोड़ लिया,, (कहते हुए उसने हाथ बढ़ाकर बारिश के पानी को छुया फिर उसे देखा जो की उसे ही देख जारहा था तो वो बोली) अब आप चाहें तो कुछ कह सकते हैं ,,
बारिश अभी भी हल्की हल्की होरही थी पेड़ के नीचे खड़ी तीशी थोड़ा भीग चुक थी और वियांश भी बारिश की बूंदें उसके चश्मे पे पर रही थी इसीलिए उसने आखों के आगे से चश्मा हटा दिया और बोलने लगा,,
वियांश-तुम यहाँ की नहीं हो (ये सुन तीशी ने तुंरत कहा "हाँ मैं यहा की नहीं हु बस घुमने आइ हु) मैं समझ गया और ये भी के किस ओढ़ जारही हो बातो के साहारे खैर जो हुआ उसके लिए माफी मांगों और बात को ज्यादा मत खीचो,,
ये सुन तीशी ने नजरे उसपर टिकाये कुछ सेकंड तक देखा फिर बोली,,
क्रमश....
रेटिंग और कमेंट प्लीज प्लीज
तीशी ने नजरे उसपर टिकाये कुछ सेकंड तक देखा फिर बोली,,
तीशी - मेने तो पहले ही बता दिया के मेने ऐसा क्यों किया तो मुझे नहीं लगता मुझे माफी मांगना चाहिए और वैसे भी आप पर आम फेंक के एक आम मुलाकात को खास बनाके उस आम बात को लेकर आम बात पर झगड़ना बेमतलब है,,
जैसे वो कह रही थी वैसे वैसे उसकी बात वियांश के समझके बाहर होती जारही थी जैसे ही वो जरा चुप हुई तो वो हैरानी से बोल परा "क्या? " तो वो बोली "अरे..."वो आगे कुछ कहती उसके पहले वियांश फिर से बोला "सुनों" इसबार वो उसे टोकते हुए बोली "जरूर सुनुंगी पर उसके पहले मैं आपको सुना दु मेरा नाम तीशी है तीशी बंसल " इसके आगे दोनों में से कुछ कहता उसके पहले दोनों के कानों से एक आवाज टकराइ "क्या हुआ ऐसे बारिश में क्यों खड़ें हो दोनों? "ये सबाल सुन दोनों ने देख तो लाव्या को खड़ा पाया उसने एकनजर वियांश को देखा फिर तीशी को देख पुछने लगी
"अब क्या किया तुने?"उसके सबाल पर तीशी पलके झपकाये सबाल करते हुए बोली " मेने? " ये सुन वियांश ने हैरानी से उसे देख कहने लगा "नहीं आपने कहाँ कुछ किया मेरे हाथ में एक आम था वो मेरे हाथ से छटक के मुझ पर ही आगिड़ा है ना " उसकी ये बात सुन लाव्या की तरफ देख वो बोली "अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है " ये सुन लाव्या ने सर पीट लिया वही वियांश ने अजीब सा मुंह बनाया फिर बोला "जो किया उसके लिए माफी .... " वो बात आगे बढ़ाता उसके पहले तीशी ने जुवान निकाल उसे चिढ़ाया और जाने लगी उसे जाते देख लाव्या ने वियांश की तरफ देख कहा "उसने जो भी किया उसकी तरफ से मैं सॉरी कहती हु " ये सुन वो बोला "तुम्हे नहीं उसे ही कहना.... " वो बात पुरा करता उसके पहले तीशी बापस आइ लाव्या का हाथ पकड़ते हुए बोली "ये तो होने से रहा द्विवेदी जी मेने पहले ही कहा आपसे तो वाय फिर मिलेंगे"
बिना रूके ये बोल बात खत्म करते हुए ही वो उसे लेकर चल परि ना वियांश कुछ बोल पाया ना हि लाव्या ,,उनके जाने के बाद बारिश तेज होगई वियांश कुछ पलों तक वही ठहर गया,,
ये सब याद करते हुए तीशी की मुस्कुराहट गहरी होगई वो इसी के साथ बर्तमान में बापस लौटी पर एक बार फिर उसके आखों के आगे वियांश का चहरा घुम गया हल्का गौरा रंग, काले बाल, लम्बा नाक, हल्की बियर्ड ,पतले होंठ ब्राउन आखें आखों के आगे चश्मा, लम्बा कद, स्काइ ब्लु कलर शर्ट जो भीग चुका था वो मानों फिर से उस पल में पहच गई जब उसने उसे देखा था फिर जब पानी के बूदं की वजह से उसने अपना चश्मा उतार दिया था वो उसकी आखों में बिल्कुल खो चुकी थी अब भी वही हुआ मगर अचानक उसके कानों से लाव्या की आवाज टकराइ जो सुन तीशी अपने ख्यालों से बाहर आइ और पुछने लगी "हाँ? तुने कुछ कहा क्या " उसके सबाल सुन लाव्या ने ना में सर हिलाया फिर बोलने लगी
"दोनों की मुलाकात थी तो आइकॉनिक बारिश में झगड़के "तीशी बाल झटकते हुए बोलीं " वो तो है " इसके बाद वो फिर से पुछने लगी "वैसे कब जाने बाले है हम ? " उसके सबाल पर लाव्या उठते हुए बोली "अभी जाऊंगी मैं घर "वो जाने बाली थी मगर उसके पहले तीशी उसका हाथ पकड़ बापस बैठाते हुए बोली " नहीं अभी नहीं बाद में जाना " वो बापस उठते हुए तीशी की बात दोहराते हुए बोली "नही अभी जाना है बाद में आऊंगी तो वो मुंह बना कर बोली " ठीक है जा जा लाव्या " तो वो जाने के लिए कदम बढ़ाये बोली "नौटंकी" इतना बोल वो चली गई उसके जाते ही वो बाहें फैलाये धराम से लैट गई और मुस्कुरा कर आखें बंद कर खुद से बोली "ना जाने क्या होगा आगे? "
धीरे धीरे शाम से रात होने लगी,,
सौनक के सामने खड़े तीशी और युवान उसे देखे जा रहे थे उन्हें ऐसे देखते देख वो पुछने लगा "क्या हुआ ऐसे क्यों देख रहे हो दोनों? " उसका सबाल सुन युवान बोला "यही देख रहे हैं के तु उसकी बाते करता रहता है हमसे और उस्से बात भी कराता है पर... " इसके आगे तीशी बोली "उस्से मिलाओगे कब? "उनके बाते और सबाल सुन सौनक अंजान बनते हुए बोला " किस्से? "एक शब्द का उसका ये सबाल सुन दोनों ने साथ में कहा "श्रीना भाभी से कब मिला रहे हो? " अब सौनक ने जबाब देते हुए पुछा "तुम दोनों बोलो कब मिलना चाहोगे? " इस सबाल पर जहाँ युवान ने कहाँ "कल "
वही तीशी ने कहा "अभी " उसकी बातपर इसबार दोनों में से कोई कुछ कह पाता उसके पहले कुछ सोच वो बोली "नहीं नहीं अभी नहीं कल ही मिलते हैं " पहले कुछ और बोल किसी के कुछ कहने से पहले अपने आप ही अपनी बात बदलते देख दोनों ने ना में सर हिलाया उन्हें देख वो बैठ गई और बोलने लगी "आखरी बार हम उस्से पीछले साल मिले " तो सौनक बोला "हाँ तो मुझे पता है तो दोनों कल तय्यार रहना.... " वो बात आगे कहता उसके पहले युवान उसे टोकते हुए बोला "कब?... सुबह सुबह? " उसके पुछते ही तीशी तुंरत बोली "नहीं.सुबह सुबह नहीं शाम शाम चलेगें" तीशी बात सुन सौनक सहमती जताते हुए बोला "ठीक है शाम को ही चलेगें " उसकी इसबात पर दोनों ने सर हिलाया कुछ सोच सौनक बोला,,
सौनक- अच्छा युव तुने कहा था तुझे उस्से कुछ कहना है
उसकी बात सुन युवान उसे देखने लगा वही तीशी दोनों को दे ख पुछने लगी "कया? भाइ किसको क्या कहना है?" उसके सबाल पर सौनक ने कंधे उचका दिये ये उसके सबाल सुन युवान ने पहले तो सौनक को देखा फिर तीशी के सबाल पर कहने लगा"पता नहीं क्या कहता रहता है ये लड़का "इसके आगे तीनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले सुष्मिका जी ने तीशी को बुलाया उनकी आवाज सुन वो उठते हुए बोली " मैं आकर सुनुंगी सब "इतना बोल वो चली गई उसके जाने के बाद युवान सौनक से पुछने लगा ,,
क्रमश...
युवान - क्या कह रहा था तु किसे क्या कहना है मुझे?
सौनक -मेने तुझे दोनों को ही कहने को कहा लाव्या से अपने प्यार का इजहार तो करेगा ही मगर तीशी को भी बताना ना के उसकी बेस्टी ही उसकी होने बाली भाभी है क्योंकि एक साल पहले से ही हो चुके हैं अगर इसके बाद भी तुने कुछ नहीं बताया तो तुझे तो पता ही है हमारी प्यारी बहना कैसी है इसीलिए मेने कहा
उसकी बात ध्यान से सुन कर युवान कुछ बोला नहीं उसकी बाते उसे भी सही लगी वो कुछ सोचना लगा उसे देख सौनक कुछ बोला नहीं और उसके कंधे पर हाथ रखा फिर चला गया, सोचते हुए युवान उसने आखें बंद कर लिया,,
कुछ वक्त बीत गये,,,
महेन्द्र जी यानी सौनक के पापा भी आचुके थे सबके साथ बातें करते हुए रात का खाना खाया कुछ देर बाद लाव्या बापस आगई तीशी ने तब फिर से आने को कहा था इसीलिए वो आगई धीरे धीरे सोने का वक्त होगया सब चले गये तीशी लाव्या को साथ लिए अपने कमरे में चली गई लाव्या उस्से कुछ कह रही थी पर उसे टोकते हुए वो बोली "मेरी छोड़ तु अपनी बता " ये सुन लाव्या पुछने लगी "मैं क्या बताऊ? " इस सबाल पर वो बोल "तुझे कोई पंसद है क्या है? " उसका सबाल सुन एक पलको समझ नहीं पाइ क्या जबाब दे फिर जबाब देने के बजाय उसका सबाल दोहराते हुए बोलने लगी,,
लाव्या - मुझे कोई पंसद है? (तीशी -हां तुझे,, अरे बोल दे बोल दे होसके तो में ही सब कर दुंगी सीधी भाषा में कहु तो मैं ही सेटिंग करा दु दोनों की बोल भी दे अब "उसकी बातें सुन वो मुस्कुराने लगी फिर बोली) शुक्रिया पर उसकी जरूरत नहीं (ये सुन वो उछलते हुए बोली " इसका मतलब तुझे कोई सच्ची में पसंद है ? ") म्मम...हाँ हैं और...(आगे वो कुछ कहने बाली थी पर उसए बजाय इतना ही बोली) हाँ है(तीशी अपने गालों पर हाथ रख बोली " वाओ, कितना पंसद है? " ) क्या मतलब कितना पंसद है?
उसे अपना सबाल असमझता से उसे दोहराते सुन तीशी मुस्कुराकर पुछने लगी ,
तीशी -मतलब तुझे मेरा भाइ कितना ज्यादा पंसद है ?
उसका सबाल सुन लाव्या कुछ पलो के लिए हैरान होगई एकबार फिर उसे समझ नहीं आया क्या जबाब दे अब वो चुप होगई और तीशी कहने लगी
तीशी -मुझे पता है सब काफी दिनों से बस इंतजार कर रही थी दोनों में से कोई कब बतायेगा पर ना तुने कुछ बताया ना भाइ ने कुछ कहा और ना ही मेरा बुद्धु भाइ तुझसे कह रहा है इसीलिए मेने खुद ही तुझसे कह दिया,
(उसकी बात सुन लाव्या अब भी कुछ बोल नही पाइ कुछ बोल नही पारही तो उसे देख वो बोली ) शर्माने की जरूरत नहीं जो है बोल दे... (इसका जबाब देने के बजाय वो बोलने लगी "मुझे लगा तु नाराज होगी जब... "इसके आगे वो बात पुरा करती उसके पहले तीशी उसे टोकते हुए बोली) देख यार नाराज तो मैं हु दोनों से ही एक तो एक साल से मेरी बेस्टी मेरे भाइ को और मेरा भाइ मेरी बेस्टी को देखे जारहे है और दोनों में से किसी ने सी मुझे कुछ नहीं बताया, मेरे भाइ को छोड़ो वो सब को पागल कहता रहता है जबकी वो खुद ही सबसे बड़ा पागल है पर तु तो कुछ बता ही सकती थी न?
कहते हुए उसने नौटंकी करते हुए बोली तो उसे देख और सुन वो बोलने लगी "सॉरी ना यार मैं सच्ची में तुझे बताने बाली थी " तो वो मुंह बनाकर बोली "चल अब रहने दे " इतना बोल लैट और आखें बंद कर लिया उसकी कही बाते याद करते हुए लाव्या मुस्कुरा उठी थोड़ी देर बाद दोनों सो गये घड़ी की सुइया टकटक करते हुए आगे बढ़ रही थी धीरे धीरे घड़ी रात के डेढ़ बजने का इशारा करने लगी तीशी की नींद खुल चुकी थी वो उठकर बैठ गई उसने सोती हुई लाव्या को देखा फिर घड़ी की तरफ देख धीरे से बुलाने लगी "लाव्या उठ ना हमे जाना है "
उसकी आवाज सुन वो उठने के बजाय दूसरी तरफ पलट गई तो उसे देख तीशी ने उसे फिर से बुलाया नहीं बल्कि जैसा युवान उसके साथ करता है वैसे किया यानी सोती हुइ लाव्या को पकड़ बिठा दिया और अब बोली "अब तो आखें खोल दे " इसबार लाव्या ने किसी तरह नींद से भरी अपनी पलके खोल पुछा "क्या है? " उसके सबाल पर उसने कोई जबाब नही दिया लाव्या ने अपनी तरफ गौर किया तो पाया वो बैठी है तीशी के कुछ कहने से पहले वो अलसाई आवाज में झल्लाकर पुछने लगी "मुझे उठाके बिठा क्यों दिया?" उसका ये सबाल सुन तीशी इसबार कहने लगी
तीशी- क्योंकि मेने तुझे बुलाया था उठने के लिए पर तु उठी नहीं इसीलिए मेने ऐसा किया और तुने ही तब कहा था न हम रात को चलेंगे (बहत मशक्कत के बाद आखें खोलते हुए वो बोली "सुबह चलते हैं न ") बिल्कुल नहीं! शाम को भी मेने कहा था जाने के लिए तब तुने कहा बाद में सोचके बतायेगी तुने कुछ नहीं सोचा होगा तु बस सो रही थी पर मेने सोच लिया के मुझे जाना है (उसकी बात सुनते हुए लाव्या की पलके एकबार फिर बंद होने लगी " सुबह ... चली ... जाना" उसके बात पे वो बस एक शब्द में बोली) नहीं!!
इतना बोल वो उसे उठाने की कोशिश करने लगी ये महसूस कर लाव्या की नींद खुल गई वो कहने लगी "क्या? कहाँ क्या? कहाँ ले जारही है? " वो हैरानी से घबड़ाकर पुछने लगी इसबार लाव्या कुछ बोलने के बजाय उसे घुरने लगी तो वो कहने लगी "बाद में निहार लियो मुझे अभी चलना है , चल न प्लीज " ये बोल उसे कुछ कहने का मौका दिये बगैर वो उसे ले जाने लगी,, कमरे से बाहर आकर उसने धीरे धीरे से दरवाजा बंद कर चलने लगी चुपचाप बिना कोई आवाज़ किये दोनों घर से बाहर आगई आसपास देखते हुए कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद तीशी पुछने लगी "किस तरफ जाना है अब?"
ये सबाल सुन लाव्या रास्ता दिखाते हुए उसे लिए चलने लगी
कुछ मिनट बाद वो अपने मंजिल तक पहच गये देख तीशी फिर से पुछने लगी "अब कहाँ? " तो सोचते हुए वो बोलने लगी "शायद उस तरफ " इसके बाद दोनों वाइ तरफ बढ़ गये कुछ कदम चलने के बाद वो एक खिड़की के पास आकर रूक गये रूकते ही लाव्या उस्से पुछने लगी "आ तो गई अब क्या करेगी? " तीशी जो की कुछ सोच रही थी उसका सबाल सुन उसने तुंरत कुछ बोली नहीं बल्कि कुछ सोच बोली "सोच लिया "
ये सुन वो पुछने लगी "क्या क्या सोच लिया? " मगर इस बार वो कुछ बोली नहीं बल्कि खिड़की के करीब चली गई पर उसने देखा खिड़की बंद है ये देख वो कुछ सेकंड के लिए रूक गई मगर फिर भी उसने हाथ बढ़ाकर खिड़की को खोलने की कोशिश किया शायद खिड़की खुलीही थी इसीलिए हल्का सा छुने से ही खुल गई ये सोच वो मुस्कुरा कर बोली
क्रमश....
तीशी मुस्कुरा कर बोली "अच्छा ही हुआ " वो अंदर झाकके देखने की कोशिश करने लगी पर हबा से उड़ते पर्दों की वजह से वो ठीक से देख नहीं पारही वो जिस तरफ झुकती अंदर देखने के लिए पर्दे उसी तरफ उड़ने लगते इस्से अब तीशी चिढ़ने लगी इसीलिए हाथ बढ़ाकर उसने पर्दा हटाया पर कुछ ही पल के अंदर उसके हाथ से पर्दा छुट गया ,,
वही अंदर सो रहा वियांश अचानक आवाज से उठ गया नींद खुलते ही उसने देखा खिड़की की खुली है उसे लगा हबा से खुली होगी वो उठकर खिड़की बंद करने जाने लगा मगर तभी उड़ते पर्दो के साथ उसे लगा उसने किसी को देखा वो उठकर खिड़की के पास बढ़ने लगा तीशी ने जब पर्दा हटाया तभी उसने वियांश को देखा तब नाजाने क्यों उसके हाथ से पर्दा छुट गया, वो जल्दी से लाव्या को साथ लिए वहा से दूसरी तरफ चली गई उसके इस हरकत पर लाव्या पुछने लगी "क्या हुआ ? " पुछते हुए तीशी को देखने लगी तो वो हाथ से थोड़ा रूकने का इशारा करने लगी खुद को सम्हाल अपने दिल पर हाथ रख वो कहने लगी
तीशी -अचानक द्विवेदी जी को देख धड़कने तेजी से भागने लगी बहत ज्यादा तेजी से और... और....
वो आगे भी कहना चाहती थी मगर अपना हाल वया करने के लिए उसे शब्द नहीं मिल रहे इसीलिए आगे की बात के बजाय उसके होंठो पर एक मुस्कुराहट लहरा गई
लाव्या की उसके बातों को और उसके अंदर चल रहे हलचल को अच्छे से समझ भी पारही है और महसूस भी कर पारही है जिस्से वो भी मुस्कुरा दि पर दोनों में से आगे कोई कुछ कहता उसके पहले उन्हें किसी की आहट महसूस हुइ दिवार के पास खड़ी तीशी ने सर जरा सा निकाल देखा वियांश को आते देखा,,
(थोड़ी ही देर पहले वियांश उठकर खिड़की की तरफ गया तो उसे लगा कोई दूसरी तरफ गया इसीलिए खिड़की बंद करने के बजाय दरवाजे की तरफ चला गया कमरे बाहर आकर वो सीधे बाहर चला गया) तीशी ने उसे देखते ही सर पीछे खींच लिया उसके चहरे के भाव देख लाव्या धीमे से पुछने लगी "क्या हुआ क्या देख लिया तूने? " इस सबाल पर जबाब देने के बजाय होंठो पर ऊंगली रख चुप रहने का इशारा किया तो लाव्या चुप होगई तीशी ने एक बार फिर झाकके देखा तो पाया वो खिड़की के पास दिवार के सामने वियांश खड़ा था इसबार तीशी के साथ लाव्या भी झाकके देख रही थी जैसे ही दोनों ने उसे देखा तो दोनों ने साथ में सर पीछे खींच लिया,,
वियांश आसपास देखने लगा उसे कोई नहीं दिखा वहा किसी को नापाकर वो दूसरी तरफ जाने बाला था यानि जिस तरफ तीशी लाव्या थी उस तरफ ये समझ लाव्या कहने लगी "ये तो यही आने लगा यार " उसने जिब तरह बिल्कुल धीमे से कहा तो उसने भी जल्दी से कुछ सोच धीमी आवाज में बोली "तु मेरा बाहर इंतजार कर मैं आती हु अभी " उसके बात पर वो कुछ भी कहती उसके पहले उसे कहने का मौका दिये बगैर तीशी ने जाने का इशारा किया इसबार वो कुछ बोली नहीं बल्कि सच में चली गई पीछे के तरफ जैसे हई लाव्या गई उसके बाद तीशी सामने की तरफ कदम बढाने बाली थी ,,,
पर कदम आगे बढ़ने के बजाय उसके कदम रूक गऐ वही वियांश भी उसी ओर बढ़ रहा था मगर अचानक उसके कदम आगे बढ़ने के बजाय ठहर गये क्योंकि उसके ठीक सामने वही लड़की खड़ी थी जिसे उसने एक साल पहले देखा था,
जिसने उनकी मुलाकात को खास बनाने के लिए आम फेका था अपने सामने तीशी को देख उसे किसी ख्याब कि तरह लग रहा है अपनी तरफ इस तरह देखते देख उसके होंठो पर मुस्कान लेहरा गई वियांश को देख बेचैन धड़कन बिल्कुल शांत पर चुकी थी कुछ पलों के लिए वो सब भुल गई उसे सिर्फ वियांश दिख रहा था इस वक्त वो बेहद आकर्षक लग रहा है बिखरे बाल, हल्की घनी बियर्ड, तीखा सा नाक , पतले होंठ, गहरी ब्राउन अलसाई आखें के आगे अभी चश्मा नहीं है, इस चहरे पे वो बिल्कुल वैसे ही खो गई जिस तरह वो पहली बार खोइ थी, अंधेरे आसमान में हौले हौले उड़ रहे बादलों के बीच ठहरा बर्फ सा सफेद पुरा चांद अपनी धीमी रोशनी से हर ओढ़ को रोशन करने लगा आहिस्ता से चलती हवायें जो दिल को छु जाये ये माहौल बेहद रूमानी सा लग रहा है,,
वियांश को अपनी तरफ देखते देख तीशी मुस्कुराकर बोली ,,
तीशी - क्या हुआ यकीन नहीं होरहा अपने आखों पर? द्विवेदी जी मैं कोई ख्याब नहीं हकिकत हु (उसकी बाते सुनकर भी वियांश उसी तरह उसे देखता रहा ना उसकी पलके झपकी ना ही होंठो से कोई शब्द निकले तो उसे देख वो आगे बोली) देखा हमारी दूसरी मुलाकात भी कितनी खास हुइ जबकी इसबार मेने कुछ नहीं किया (इसबार भी उस्से कुछ कहा नहीं गया वो बस सुनता रहा वो फिर से बोलने लगी) हमारा मिलना ही अपने आप में बहत खास है तो मुलाकते तो खास होनी ही है जब भी हम मिलते हैं कुदरत भी एक अलग ही मोड़ ले लता है आप ये सोच रहे होंगे के मैं यहाँ क्यों आइ हु तो मैं बता दु क्योंकि मैं आज ही आइ हु ना आप स्वाइत के लिए आये ना ही इतने घंटों में आपसे मिलि, इसीलिए मेने सोचा मै खुद ही चली जाती हु, अपना स्वागत कराने और इसी बाहाने आपसे बात भी करुंगी देख भी लुंगी,,,
इतना बोल वो कुछ पलो के लिए खामोश होगई वियांश अब भी कुछ भी बोला नहीं पर उसकी आखों में देख उसकी बात सुन कही चिढ़न के भाव नहीं उसकी आखों में देख वो आगे बोली,,,
तीशी - सॉरी इतने रात को आपको नींद से जगाने के लिए पर मुझे मेरा सॉरी बापस ले लेना चाहिए क्योंकि मेने तो बस एक रात बस आज की रात ही नींद से जगाया है पर आपने तो मेरी कई रातो की नींद छिनी है आप को पता है कितना वक्त होगया आपको देखे.... अब आप कहेंगे एक साल पर ये तो आप के लिए होगा पर मेरे लिए 370 दिन,12 महिने, 8880 घंटे, 532800 मिनट, इतने वक्त बाद आप को देख रही हु आपके आखों में देख रही हु मुझे और भी बहत कुछ कहना है मगर अभी नहीं कल जब मिलेंगे तब कहुंगी और हाँ अभी तो मैं ही बोलती जारही हु आप सुनते जारहे है पर कल ऐसे बस सुनते ही मत रहियेगा कुछ कहना भी ठीक है, अब मुझे जाना होगा आप चाहे तो मेरे बातों में उलझकर सारी रात जाग भी सकते हैं या चाहें तो मेरे ख्यालों में खोकर मेरे ख्याब में भी जासकते है (ये बोलते हुए वो दांत दिखाये मुस्कुराकर उसके बाद आगे बोली) तो कल मिलेंगे चलती हु गुड नाईट,,
क्रमश...