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पहली नज़र का पहला इश्क़

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Sangita

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पहला नजर का इश्क़ पहला असर कुछ यु कर गया एहसास कुछ यु भर गया नक्श कुछ यु तेरा दिल पे दे गया धड़कनों पे नाम तेरा बेबजह ही दे गया ना लफ़्ज़ों से हुइ थी बात ना किया था बादा कोइ फिर भी ठहर गया था वक्त ठहर गइ थी नजर बन गया वो अजन...

Total Chapters (25)

Page 1 of 2

  • 1. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 1

    Words: 1064

    Estimated Reading Time: 7 min

    सुबह के आठ बजे,,,
    एक खुबसूरत घर जो ज्यादा बढा़ है ना ज्यादा छोटा, उसके चारों तरफ से घिरा प्यारा सा गार्डन जहाँ हरियाली बिछी है नीचे घास की हरी चादर रात को हुइ बारिश की वजह से घास अभी भी भीगी है दूसरी तरफ दो बड़े पेड़ है, बारिश के बाद बहती हल्की हल्की ठंडी हवाये पेड़ो के पत्तों को छेड़ रही थी जिस्से पत्तों पर ठहरी बूंदे सहम कर इस तरह खिसक कर मिट्टी पर झड़ रही थी मानो फिर से बारिश की बूंदे झड़ रही हो ,,बादलो के पीछे छुपे सुरज की किरणें जब उन बूंदो पे पर रही है ऐसे लग रहा है जैसे मोती चमक रही हो,,,


    खिलखिलाती सूरज की किरणें खुले खिड़की से होते हुए वेड पर फैल कर सो रही एक लड़की के चहरे पे पर रही है तेज धूप उस के चहरे और आखों पे परते ही वो उठी नही बल्कि दूसरी तरफ पलट चहरा तकिये में छुपा लिया तभी दरवाजा खुला और एक लड़का अंदर आया उसे इस तरह सोते देख उसने घड़ी की ओर देखा तो पाया आठ बजकर पन्द्रह मिनट हो चुके थे अब वो कहने लगा "एक घंटे पहले जब आया था तब भी यही नजारा देखा था पन्द्रह मिनट बाद आया तब भी यही नजारा देखा था अब भी यही सेम नजारा देख रहा हु ये लड़की भी न " खुद से ये बोल वो लड़का यानी युवान उसे बुलाने लगा "तीशी उठ जा अब, साढे़ आठ बजने को आये " उसके बुलाने पर भी तीशी ने कोई जबाब नही दिया ये देख कुछ सोच वो उसके पास बैठ प्यार से बुलाने लगा

    युवान - तीशु मेरी प्यारी बहना मेरी छोटी सी बहना उठजा देख सूरज का पत्तों का सब का कहना है मेरी बहना को अब नींद से जागना है ,,
    तीशी उसकी बाते साफ सुन पारही थी उसकी नींद भी खुल चुकी थी मगर फिर भी वो ना उठी ना ही कोई जबाब दिया ये बात युवान को समझते देर नही लगी, वो आगे कहने लगा "इतने प्यार से गाना गाया मेने अब तो उठ जा या फिर से कुछ गाऊ? " ये सुन अब तीशी रह‌ नही पाइ वो आखें खोले कहने लगी ,
    तीशी - अपने फटे गले में शहद लगाकर मेरे कान फोड़ने की जरूरत नहीं उठ रही हु उठ रही हु भाइ,,

    कहते हुए वो अलसाई आखों से युवान को देखने लगी, वो मुस्कुराकर उसे ही देखे जारहा था वो अब कहने लगा
    युवान - बहना तु पहले से ही उठी हुइ है अब कहाँ उठेगी अरे पहले खुद को एक नजर देख तो ले,, (ये सुन तीशी को एहसास हुआ वो अब लेटी नही बल्कि बैठी है इसका मतलब युवान ने उसे बिठा दिया वो तो अपनी बात कहने में इतना मग्न थी के उसने खुद को देखा ही नहीं जब देखा  तो पाया बैठी हुइ है ये देख वो दात किटपिटाते हुए बोली "भाइ आप.... " वो बात पुरा करने से पहले वो बोल परा) हाँ मैं,, मेरी बातों में शहद है या नहीं ये तो पता नहीं पर मम्मी को पता चला ना के तु ढंग से नींद से जागी नही तो वो पक्का बेलन में शहद लगाकर तुझे पिटेगी और अगर उन्हें ये भी पता चल गया के रात को ढाई बजे भटकती आत्माओं की तरह भटकते हुए बाहर जाकर तेज बारिश में भीग रही थी तब तो पक्का पिटेगी ,,,

    ये सुनते ही तीशी की आखें फैल गई वो हैरानी से पुछने लगी "आपको कैसे पता ये सब? " ये सबाल सुन युवान उसके गाल खीच बोला "बड़ा भाइ हु तेरा कैसे ना पता होता " ये सुन और उसके इस तरह गाल खीचने के बाद तीशी गाल पर हाथ रख बोली "काश आपके एक साल बाद के बजाय मैं एक साल पहले पैदा हुइ होती " ये सुन युवान ने दोनों गाल खीचे और फिर गाल से हाथ हटाकर पुछने लगा " वैसे इतनी रात को तु भीग रही थी? "
    तीशी - आपको तो पता है ना भाइ जब भी बारिश होती है चाहें रात के ढाई बजे हो या दोपहर के तीन बजे मैं भीगती जरूर हु,, बारिश देखके ना मेरे कदम घर में ठहरते ना मैं खुद बैठ पाती हु ,, बारिश की बूंदो से मेरा कोई  अलग ही  रिश्ता है,,बरसात मेरा पहला प्यार है कभी ऐसा भी तो होसकता है के बरसात नाम के पहले प्यार में ही मुझे मेरा सच्ची का पहला प्यार मिल जाये किसी से सच्ची मे रिशता जुड़ जाये,,

    वो ख्यावों में खोकर बोली बही युवान उस की बात सुनने के बाद बोला," कौन पागल होगा जो तुझ जैसी झल्ली से प्यार करेगा ? " कहते हुए वो हंस परा , उसकी बात सुन और ऐसे हंसते देख तीशी ने उसे घूर कर देखा और उसकी बात दोहराकर कहने लगी "ऐसी कौन सी झल्ली होगी जो आप  जैसे पागल से प्यार करेगी? " अपना सबाल पलटकर उसे पुछते देख अपने बालो में हाथ फैर बोला "कोई भी करेगी " इसबार भी तीशी उसका जबाब उसे ही सुनाते हुए बाल झटकाकर बोली "हां, तो मुझ से भी कोई भी प्यार करेगा " ये बोल उसने जीभ निकाल उसे उसे चिढ़ाया इसबार युवान कुछ बोला नहीं बस मुस्कुराकर उसके बालो को सहलाकर उठ गया पर जाने से पहले उसे कुछ याद आया तो वो उसकी तरफ देख कहने लगा ,,
    युवान - ओ हां दो घंटे बाद हमे निकलना है? (उसके इस तरह अचानक कहने का मतलब तीशी समझी नहीं वो असमझता से पुछने लगी "है? कहाँ जाना है हमें? " तो युवान उसे याद दिलाते हुए बोला) अरे हमे गाँव जाना है ना बुआ के घर तु भी क्या सो सो के भुल गई क्या?
    ये सुन तीशी को याद आया वो कहने लगी,,

    तीशी - ओ .. हाँ हाँ याद आया बुआ के घर मतलब गाँव ओ वाओ,, बड़ा मजा आयेगा,,,
    ये सुन युवान बोल परा "सच में गाँव जाकर तु गाँव की छोरी बन जाती है" तीशी कहने लगी "हाँ तो क्या " तो युवान बोला "कुछ नहीं तु तय्यार होजा और सामान पैक करले" इसबार उसने हाँ में सर हिलाया तो‌ वो भी उसे देख चला गया,,, तीशी अब उठकर जल्दी से कपड़े लिए फ्रेश होने बाथरूम की तरफ चली गई ,,,

    कुछ देर बाद,, वो बाहर आइ और भीगे बालो को पोछते हुए शीशे के सामने जाकर खड़ी होगई ,, कुछ सोच उसने अपने फोन उठाया और किसी को कॉल किया,,,

    क्रमश.....


    हैलो हैलो रीडर्स प्लीज पढ़कर कमेन्ट रेटिंग दें सपोर्ट जरूर करे और फॉलो भी जरूर करे

  • 2. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 2

    Words: 1043

    Estimated Reading Time: 7 min

    तीशी ने अपना फोन लिया और किसी को कॉल करने लगी दो चार रिंग के बाद कॉल रिसीव हो गया, रिसीव होते ही वो सामने बाले के कुछ कहने के पहले ही वो बोलने लगी "लाव्या मैं आरही हु तेरे वहाँ " अचानक उसकी बात सुन सामने लव्या हैरानी से बोली "ओये क्या कब आरही है तु?" तीशी जबाब देते हुए बोली "आज ही आरही हु" लाव्या "यार तीशु तु आयेगी तो बहत मजा आयेगा ",,
    तीशी -मजा तो मुझे भी बहत आता है तेरे वहा वैसे हाँ पंडित जी से कहके रखना मैं आरही हु और मेरा स्वागत अच्छे से करने को,,

    लाव्या उसकी ये वात सुन हैरानी से पुछने लगी
    लाव्या - पागल दिखती हु न मैं जो पंडित से कहुंगी,और  स्वागत तो दूर की बात उसे मालूम चल गया ना तो भगा देगा तुझे ,,
    उसकी बात सुन तीशी का मुंह बन गया वो बोली "बड़ा आया मुझे भगाने बाला खैर छोड़, मैं आजाऊ फिर बताऊंगी उसे भी और तुझे भी के कौन किसे भगाता है किसके पीछे " लाव्या उसकी बात सुन कहने लगी "देखा जायेगा और  मैडम अभी से ज्यादा ना उड़ नीचे आजा मैं रख रही हु तु आजा फिर बात करेंगे " इसबार तीशी ने बस" हाँ हाँ ठीक है "कहा और फिर दोनों फोन रख दिया उसके बाल भी बात करते हुए सुख चुके थे , उसने एक नजर शीशे में खुद को देखा फिर कुछ सोच मुस्कुराने लगी अपना सर झटका के उसने अपने बालो को जुड़ा बनाया और कबर्ड की ओर गई कबर्ड खोल अपने कपड़े देखने लगी,

    अपने ढेड़ सारे कपड़ो को देखते हुए उसकी नजर एक तरफ जाकर ठहर गई जो बस एक सिंपल सी जिन्स और लाइट ब्लू कलर की खुबसूरत सी कुर्ती है ये कपडे़ सब के बीच होने के बाबजूद इस्से जुरी यादे सबसे अलग है, उसकी पलके अपने आप कुछ पलो के लिए बंद होगई साथ ही उसके लवो पे एक गहरी सी मुस्कुराहट खील गई उसके आखों के आगे से एक चहरा घुम गया जो देखते ही उसकी आखें खुल गई, उसने अपने दिल पर हाथ रख अपने धड़कनो को महसूस किया उसकी धड़कने भी सामान्य से ज्यादा बढ़ चुकी थी ये महसूस कर वो खुद से कहने लगी "पंडित जी इसबार खुद को पहली बार से ज्यादा तय्यार रखना " इतना बोल वो मुस्कुराकर अपने कपड़े निकालने लगी जल्दी से कपड़े पैक कर वो ब्रेकफास्ट के लिए नीचे चली गई,,

    नीचे आते हुए उसे डाइनिंग टेबल पर बैठे नितीश जी ने दिखे उन्हें देख तीशी बोला "गुड मॉर्निंग पापा " ये सुन नितीश बोले "गुड मॉर्निंग तीशी, सब सामान पैक कर लिया?" ये सबाल सुन तीशी बोली बस
    तीशी - हाँ पापा सब सामान पैक होगया बस मेरा पैक होना मतलब तय्यार होना थोड़ा बाकी है ,,
    उसकी बात सुनने के बाद नितीश बोले "ठीक है और हम नहीं जारहे इसीलिए जाकर सारा दिन वहाँ उधम मचाती मत रहना थोड़ा शांत रहना " पहले तो उनकी बात मानते हुए तीशी ने सर हिलाया पर जैसे ही उसने उनके बात पर गौर किया तो पुछने लगी "आप नहीं जायेगें मतलब?" उनके कुछ कहने के पहले आते हुए युवान बोला "नहीं जायेगें मतलब नहीं जायेगें पापा को इसबार कुछ काम है" उसका जबाब सुन तीशी कुछ बोली नहीं बल्कि उठकर किचन की तरफ चली गई उसे इस तरह अचानक उठते देख दोनों ने ना मे सर हिलाया,,

    तीशी किचन में जाते ही काम कर रही अपनी मम्मी यानी गरिमा से पुछने लगी "मम्मी आप दोनों हमारे साथ नहीं चलोगे? " उसके सबाल पर गरिमा बोली "नहीं तेरे पापा को  काम है इसीलिए हम बाद में जायेगें पहले तुम दोनों चले जायो " उनकी बाते सुन तीशी ने एक सबाल किया "आप दोनों सच्ची मे नही जारहे? " तो उन्होने दो शब्द में कहा "नहीं जारहे " ये सुन तीशी बोल परि "अच्छा ही है"
    ये सुन गरिमा ने उसे देखा तो उसने जूबान काट कहा "उप्स!" इसके बाद वो प्लेट लिऐ उनके कुछ कहने के पहले चली गई , प्लेट टेबल पर रख वो भी बैठ गई है गरिमा भी बाकी प्लेट लिए आई और रख के बैठ गई,, तीशी को देख गरिमा कहने लगी "शादी में कोई उधम मत मचाना " ये सुन तीशी समझ नहीं पाइ किसकी शादी वो असमझता से पुछने लगी "किस की शादी? कौन कर रहाहै शादी? " उसका सबाल सुन तीनों उसे हैरानी से देखा बही युवान सर पीट बोला "ये लड़की गजनी बनती जारही है, कल ही बताया था हम बुआ के घर जारहे है और अश्विन अंकल ने हमे उनकी बेटी की शादी में इनवाइट किया है पर सोते सोते सब भुल गई सुबह उठ कर पुछती है कहाँ जारहे है? " तीशी अपना पक्ष लेते हुए बोली "नींद में थी तब मैं इसीलिए समझ नहीं पाइ " ,, उसकी बात सुन युवान ने ना मे सर हिलाया और इसबार नितीश बोले "बेटा मेरे दोस्त अश्विन की बेटी की शादी हैं न याद आया अब " उन्होंने याद दिलाते हुए कहा जो सुन अब जाकर तीशी को याद आया वो बोली "ओ हाँ हाँ याद आया, वैसे शादी तक तो आ जायेंगे न आप दोनों ? " उसके सबाल पर नितीश बोले ‍"हाँ शायद" उनकी बात सुन तीशी और युवान दोनों ने समझये हुए सर हिलाया,,

    कुछ ही देर बाद,,चारो का ब्रेकफास्ट होगया , नितीश उठते हुए बोले "बच्चों सम्हल कर जाना और ठीक से रहना " दोनो ने उनकी बात मानते हुए कहा "जी पापा" और फिर उनके पाओ छुये उन्होंने उनके सर पर प्यार से हाथ फैरा और कुछ मिनट बाद वो  नितीश अपने काम के लिये निकल गए,,
    दो घंटे बाद गरिमा जी को अलविदा बोल युवान और तीशी निकल गये,,

    कुछ घंटे के सफर के बाद दोनों अपने मंजिल तक पहच गए,, सुहासनगढ़ , प्राकृतिक की गोद में खिले इस गाँव की खुबसूरती अद्वितीय है चारों तरफ हरियाली बिछी हुइ है दूर दूर तक विस्तृत खेत , ताजी ठंडी हवाये जो मष्तिक और मन दोनों को शांत कर जाये एक सुकून सी पहचाये , आढी टेरी चलती पानी से भरी गहरी नदीया ये सब अलग ही जाहा में ले जारहे हो,,  ट्रेन से उतरने बाद,, गाँव में पहला कदम रखते ही तीशी बाहै फैलाये इन एहसासों को अपने अंदर समेटने लगी उसने अपना बैग युवान को दे दिया,, तभी तीशी के कानों से एक आवाज टकराइ

    क्रमश......
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  • 3. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 3

    Words: 1470

    Estimated Reading Time: 9 min

    तीशी अपने वैग युवान को दिये और गाँव के खुसवू को महसुस करने लगी , तभी उसके कानों से युवान की आवाज टकराई जो कह रहा था "ओये तेरा हो गया हो तो अव हम चले ?", ये सुन वो  उसकी तरफ घुमी तो वो आगे वोला " सौनक का कॉल आया था, वो हमें लेने आया है " ये सुनते ही तीशी आखों के उपर हाथ रख ढुँढते हुये पुछने लगी,,"आया हैं तो मुझे क्यों नहीं दिख रहा? "उसे ईस तरह ढ़ुढ़ते देख युवान ने उसका हाथ नीचे कर काहा,,

    "मेंने कब कहाँ वोँ यही खाड़ा है थोड़ा आगे चलके वाहार कि तरफ देखेगी तव ना वो दिखेगा ",तो वो समझते हुये वोली " ओ आच्छा तो चलों अब "इतना बोल उसके कुछ कहने से पहले ही वो आगे चल परि, उसे देख युवान उसके पीछे चल परा पांच मिनट तक चलने के बाद उसे एक लड़का बाइक लिए खड़ा दिखा जो की  उसके बुआ का बेटा है उसे देख लगभग चीख़ते हुए वो बुलाने लगी" सौनक भैया " उसके बुलाने से सौनक जो की उन्हें ही ढुंढ रहा था उसका ध्यान उस पर चला गया उसने उसे देख हाथ हिलाया तीशी उसके पास चली गई ,, तीशी ने अपने डाय हाथ से उसके वाय में हायफाइ देकर कहा "कैसे हो भैया?"उसका सबाल सुन सौनक बोलने लगा,,

    सौनक - मैं तो बढ़िया हु तु बोल? (तीशी -मैं भी एकदम अच्छी हु) युव कहाँ है? (उसके सबाल पर तीशी कुछ कहती उसके युवान आते हुए बोला " यहाँ हु" कहते हुए वो सामने आया और सौनक से पुछा "और कैसा है? ") मै भी बहत अच्छा हु तु भी अच्छा ही होगा अब चल बाकी बाते घर चलकर करना,,

    सौनक ने पलट कर उसे ये नहीं पुछा वो कैसा है बल्कि बिना पुछे खुद ही जबाब दे दिया जो सुन और देख युवान ने अजीब सा मुंह बनाया और फिर सौनक बाइक पे बैठा उसके पीछे वो दोनों बैठे उसके बाद फिर उसने बाइक स्टार्ट कर दिया,, गाँव के आढ़ी टेरी रस्तों से चलते हुए वो अपनी मंजिल की ओढ़ बढ़ने लगे गाँव के अंदर तक पहचती सड़क के आसपास कोई घर नहीं बस हरियाली है, सड़क के दोनों किनारे पे बड़े बड़े पेड़ घनी पत्तीया लिए खड़े है, सुनहरी धुप उनपे पर रही है धीमे से बहती हवाये उन पत्तों को छुकर एक मधुर सी धुन छेड़ रही है जो सुनते हुए तीशी बिल्कुल खो सी गई,,

    कुछ मिनट के बाद, सौनक ने बाइक रोक दिया जिस्से दोनों ने साथ में पुछा "क्या हुआ? " तो सौनक बोला "दिखाता हु क्या हुआ पहले उतरो दोनों " उसके कहने पर दोनों उतरे फिर सौनक उतर चल परा और उसके पीछे चलने लगा धीरे धीरे चलते हुए तीनों नदी किनारे पहच गये जहाँ कदम रखते ही , जाहा तीशी बोली "वाओ " बही युवान के होंठो से एका एक निकल गया,
    युवान -ये तो बही जगह है जहाँ...... ( वो बात खत्म करता उसके पहले वो‌ खुद ही चुप होगया तीशी उसकी अधूरी बात सुन उसकी तरफ देख पुछने लगी "जहाँ क्या? " तो युवान बात बदलते हुए बोला) जहाँ... जहाँ हम एक साल पहले भी आये थे ,,

    ये सुन भावे उठाते हुए उसी की बात को दोहराते हुए पुछने लगा"एक साल पहले बस आये थे? "उसके सबाल पर युवान ने आखें छोटी कर देखा तो सौनक दांत दिखा कर चुप होगया ,दोनों की बाते तीशी को समझ नहीं आरही वो पलके झपकाये देखने और पुछने लगी " क्या कह रहे हो दोनों? "सौनक कुछ कहता उसके पहले युवान बोला " इसकी बात मत ये तो है ही पागल "उसकी बात सुन सौनक सामने देखते हुए बोला " हां तेरे हिसाब से तो सब पागल है "उनकी बात पर ध्यान ना देकर तीशी नदी की तरफ देखने लगी सीधी बहते इस नदी का स्रोत धीमे धीमे अपनी धुन मे मग्न बहता चला जारहा है, पानी की धारा जितनी गहरी है पानी उतना ही साफ है दोपहर से सांझ आने लगी दिन का थका सुरज अब सबसे अलविदा लेने को है, ढलते सुरज की सुर्खी से सारा आसमान सुर्ख हो उठा, किरणे पानी में ऐसे घुल रही है मानों जैसे पिघलता सोना घोल दिया हो,,


    तीशी धीरे धीरे कदम बढ़ाने लगी नदी के सामने जाके झुककर बैठ गई और हाथ पानी में डाल खेलने लगी, ठंडे पानी को छुते ही उसके होंठो पर अपने आप लकीरें आई युवान उसे देख बोलने लगा "तीशु तेरा पानी से खेलना होगया हो तो हम चल अब" उसकी बात पर  तीशी तो कुछ नहीं बोली पर सौनक तुंरत पुछने लगा "क्यों थक गया? " तो उसने बस एक शब्द में कहा "हाँ! " इसबार उसने कुछ कहा नहीं, युवान ने तीशी से जो कुछ कहा शायद ही उसने सुना होगा वो तो गहरे पानी की गहराइयों में कही खो गई तभी उसका फोन सोड़ करने लगा ये सुन उसने फोन मे झाक नम्बर देख तुंरत कॉल रिसीव कर फोन कान से लगाया वो कुछ कहती उसके पहले सामने से सबाल आया "पहच गई? " ये सबाल सुन तीशी ने जबाब देने साथ पुछा "मैं तो पहच गई पर तु कहाँ है? "

    इस सबाल का जबाब तो आया पर फोन से नहीं "मैं यहाँ  हु तेरे पीछे" ये आवाज बहत तेज थी जो सुन तीशी इसबार झटसे खड़ी होगई उसने मुंड़ कर देखा तो पाया एक लड़की खड़ी है जो उसकी सबसे अच्छी दोस्त है और वो उसके बुआ के पडोस में रहती है उसे देख तीशी एकदम से उसके गले लग गई युवान जो की अपलक होके लाव्या को देखे जा रहा था अब भी बस देखता ही रहा,, दोनों अलग हुइ फिर लाव्या बोली,,
    लाव्या- पुरे एक साल बाद देख रही हु तुझे,

    उसकी बात सुन युवान के होंठो से एका एक निकल गया "और मैं भी " उसकी होंठो से ये तीन शब्द लाव्या को देखते हुए निकले तो गये पर सौनक के अलावा किसी ने सुना नहीं इसबार सौनक कुछ बोला नहीं, बही लाव्या की बात पर तीशी उसकी बात दोहराकर अपना सबाल जोड़ते हुए बोली
    तीशी -'एक साल बाद देख रही है तु मुझे' कह तो ऐसे रही है जैसे मै तुझे रोज देखती हु मैं भी तो तुझे एक साल बाद ही देख रही हु,,

    वो आगे कुछ कहने बाली थी पर उसके पहले सौनक उनकी बात सुन बोला "पर बिडियो कॉल पे तो बात होती थी न तो कैसे कह सकते दोनों की.... "वो सबाल पुरा भी नहीं कर पाया उसके पहले तीशी और लाव्या दोनों साथ में बोली " बिडियो कॉल की बात अलग है और सामने देखने की बात अलग है "उनकी बात समझते हुए सौनक ने सर हिलाया तो तीशी ने पुछा " वैसे कब और कैसे आइ तु? ",,

    लाव्या- कैसे क्या कैसे पैरों से चलके (बोल उसने कंधे उचकाये और हंस परि, उसे हंसते देख और जबाब सुन तीशी ने उसे घुरके देखा तो हंसी रोक बोली) मुझे सौनक भाइ ने बताया को सब यहाँ हो तो मैं आगई स्वागत करने जब मेने तुझे फोन किया तभी आइ मैं,,

    तीशी को जब लाव्या का फोन आया उसके कुछ मिनट पहले युवान ने फोन मे टाइम देखा जैसे ही नजरे दूसरी तरफ घुमाइ उसकी तभी उसकी नजरें बिल्कुल थम गई, दिल की धड़कन एकदम से तेज होगई वो सब भुल गया उसके साथ कौन है पास कौन है उसे सिर्फ उस्से कुछ कदम की दूरी पर खड़ी वो लड़की दिख रही है जिस को नदी किनारे इसी जगह एक साल पहली भी देख उसकी धड़कने इसी तरह तेज हुइ थी जिसकी आखों में देखते ही जिस्से पहली बार नजरे मिलते ही उसे प्यार होगया था जो लड़की लाव्या है,,
    युवान को अपनी तरफ देखता पाकर

    लाव्या मुस्कुराइ और अपने होंठो पर ऊंइली रख चुप रहने का इशारा किया उसे मुस्कुराते देख युवान उसकी मुस्कुराहट में ही कही खो गया लाव्या के होंठो पर जो लकीरें आइ बही लकीरें उसके होंठो पर भी बिना किसी रोक टोक के उभर आइ वो कुछ भी कह नही पारहा या शायद एक साल बाद उसकी नजरो जैसे लाव्या को देखा तो बस देखते ही रह गये और उसकी जुवान होंठो पर आये बात को शब्द देना भुल गये इसीलिए उसके इशारे पर उसने बस सर हिलाया इसके बाद ही लाव्या ने तीशी को कॉल किया था,,,

    तीशी और लाव्या कुछ बाते कर रही थी युवान जो की अब भी उसे ही देखे जारहा था, उसे इसतरह देखते देख अब सौनक बोला "तु तो थक गया था न तुझे तो जल्दी जाना था ना अब क्यों नहीं चल रहा? " ये सबाल युवान ने पहले तो सुना नहीं पर जब सुना तो आखें छोटी कर उसे घुरने लगा तो सौनक ने कुछ कहे बिना दांत दिखा दिये,, बही तीशी ने लाव्या से पुछा "तु तो आगई स्वागत करने पर वो कहाँ है? " उसके इस सबाल पर लाव्या मुस्कुराकर जबाब देते हुए बोली "स्वागत तो होगा तेरा लेकिन अपना स्वागत करवाने के लिए तुझे खुद ही उसके पास जाना होगा "

    क्रमशः......
    (क‍ृपया कमेंट और रेटिंग देकर जाये 🙏)

  • 4. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 4

    Words: 1006

    Estimated Reading Time: 7 min

    तीशी ने लाव्या से पुछा"तु तो आगई स्वागत करने पर वो कहाँ है? "लाव्या ने भी मुस्कुराकर कहा " स्वागत तो होगा तेरा लेकिन अपना स्वागत करवाने के लिए तुझे खुद उसके पास जाना होगा " तो तीशी बोली "वो तो जाऊंगी ही " इतना बोल आई विंक कर मुस्कुरा दि, दोनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले युवान बोल परा "बाकी बातें बाद में करना चलो अब दोनों "

    ये सुन दोनों ने साथ में कहा "हाँ" और साथ में चले आने लगे, जहाँ दोनों ने हाँ कहा वही उसे ये कहते देख सौनक ने पहले तो उसे देखा फिर बोला "मुझे तो लगा तु कुछ कहेगा ही नहीं बस उसे
    देखता रहेगा " युवान ने आखें घुमाये उसे देखा और बोला "चुप कर जा वरना बहत पिटेगा" इतना बोल उसे कुछ कहने का मौका दिये बगैर ही वो आगे बढ़ गया सौनक ने मुड़कर दोनों की तरफ देखा जो की आ ही रहे थे उन्हें देख सौनक आगे बढ़ने लगा,,

    उन दोनों के पास जाने से पहले लाव्या तीशी से बोली "अच्छा तुम तीनों जाओ मैं बाद में आऊंगी" उसके बात पर सबाल जबाब किये बगैर ही तीशी बोली "ठीक है " इतना बोल वो भी बाइक की तरफ चली जाने लगी, लाव्या जोर से बोली "सम्हल कर जाना" तीशी ने भी चीख़कर कहा "हाँ" इतना बोल वो चली गई बाइक के सामने युवान बैठा था उसके पीछे बैठे सौनक ने तीशी को अकेले देख पुछने बाला ही था पर उसके पहले युवान ने पुछ लिया "लाव्या कहाँ गई? " ये सबाल सुन तीशी ने जबाब देते हुए कहा "उसने कहा वो बाद में आयेगी "


    ये सुन युवान ने बस हल्का सा सर हिलाया फिर तीशी के बैठने के बाद उसने बाइक स्टार्ट कर दिया लाव्या चलकर कुछ कदम बढ़ाकर आगे सड़क की तरफ देखा, वो दूर जा रहे है देखतें, लाव्या के होंठो पर अलग ही लकीर खीची हुई है कुछ देर पहले जो मुस्कुराहट थी ये वो नहीं बल्कि उसकी मुस्कान में बहत कुछ छुपी है एक अलग ही चमक है आखों में कुछ अनकहे बात है, उसने अपने दिल पर हाथ रक अपने धड़कनों को महसूस किया जो की सामन्य से काफी ज्यादा बढ़ चुकी है ,अपनी धड़कनों को महसूस कर उसकी मुस्कान गहरी हो गई , वो खुद से कहने लगी "कहना तो बहत कुछ चाहती थी पर क्या करूँ शब्द ही उलझने लगे ऐसे में क्या ही कहती इसीलिए होंठो पर ऊंगली रख अपने उलझे शब्दों को रोक लिया " इतना बोल वो खामोश होगई,,,


    कुछ मिनट बाद,,,,
    तीनो अपने मंजिल तक पहच गए, एक खुबसूरत सा घर जो काफी बड़ा है चारों तरफ ढेर सारे बड़े पेड़, छोटे पौधे है, कुछ झाड़िया भी,, युवान ने बाईक रोकी फिर वो उतर गये वो अंदर की तरफ बढ़ने लगे अंदर कदम रखते ही उन्हें सत्तर से पचहत्तर साल की एक बजुर्ग औरत बैठी दिखी , उन्होंने उन तीनों को नहीं देखा तो युवान और तीशी चुपके से उनके पास गये और अचानक दोनों साथ में बोले "दादी ! सरप्राइज हम आगये! " अचानक उनकी आवाज सुन वो चौक गई वो दोनों झूककर उनके पांव छुते हुए पुछने लगे "दादी कैसी हो आप? " उनका सबाल सुन
    उन्हें देख उनकी दादी यानी वसुंधरा जी बोली "ठीक तो हु पर अभी बेठीक हो जाती ऐसे अचानक आके कोई किसी को चौकाते है? " ये सुन दोनों फिर से साथ में बोले "हम और हमारी आदत तो ऐसे ही है "


    तो वंसुधरा जी बोली "हाँ हाँ जानती हु दोनों को अच्छे से"
    उनकी बात पर दोनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले सुष्मिका जी यानी उनकी बुआ आते हुए बोली ‍"आगये तुम तीनो बोलो कैसे हो दोनों? "उन्हें देख उनके पास आये और झुककर पांव छुते हुए बोले " हम तो बहत बढ़िया है आप सब कैसे हैं? "

    सुष्मिका -हम सब अच्छे है तुम दोनों के आने से और अच्छे होगये (उन्हें देख वंसुधरा जी पुछने लगी "तुम दोनों के मम्मी पापा नहीं आये? " उनके सबाल पर युवान बोला "नहीं उन्हें कुछ काम है " इसके आगे उनके वो बोल परि) माँ आप भुल गई भईया ने बताया था न के उन्हें कुछ काम है तो वो और भाभि शादी के दिन ही आयेंगे,,

    उनकी बात समझ और याद करते हुए वसुंधरा जी ने सर हिलाया इसके बाद दोनों को देख वो बोली
    वंसुधरा जी - तुम दोनों थोड़ा आराम कर लो.....
    वो आगे कुछ कहती उसके पहले जहा युवान बोला "हाँ मैं थक गया हु" वही तीशी बोली ‍"ठीक है भाइ आप जाओ आराम करो मैं तो बातें करूँगी ढेर सारी" ये बोल वो जाकर बैठ गई वही युवान ने पुछा "मै जाउ बुआ" तो वो बोली "हाँ हाँ" तो वो चला गया उसके जाने के बाद कुछ कहने के लिए सौनक की तरफ मुड़ी"सौनक भइया..... "
    पर वो इतना ही बोल पाई जब उसने सौनक को वहा से गैरमौजूद पाया तीशी पलके झपकाये देखा  और पुछने लगी ‍"अरे अभी तो यही थे कहाँ गये "इस सबाल पर वसुंधरा जी ने कहा" ये ऐसा ही है कभी भी कही भी चला जाता है "

    उनकी बात समझते हुए तीशी ने सर हिलाया इसके बाद तीनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले एक आवाज आइ "हल्लो लेडीज क्या बातें चल रही है? मुझे भी बताओ"
    वसुंधरा जी -बातें चाहे कुछ भी हो पर तेरे बगैर अधूरी है लाव्या ,,
    उनकी बात पर सहमति जताते हुए सुष्मिका जी बोली"ये तो सही है "ये सुनतें हुए लाव्या उनके पास गई और तीशी के साथ बैठ गई और दादी को देख कहनें लगी,
    लाव्या - आज दादी ने तीसरी बार मेरा पुरा नाम लिया (तीशी -पुरा नाम लिया? उसने उसकी बात दोहराकर सबाल करते हुए पुछा जो सुन वसुंधरा जी बोली " मैं अटक जाती हु न" ) इसलिए ये सिर्फ यही मुझे लवी बुलाती है जो मुझे इनके मुंह से सुनने में लवी डवी सा लगता है,,
    उसकी बात सुन तीशी बोली,,,,
    तीशी- वाओ सो क्यूट (फिर कुछ याद कर पुछने लगी) वैसे अश्विन अंकल की बेटी की शादी है कब? मुझे पता है शादी है पर किस दिन है वो नहीं पता,,

    क्रमश......
    (कमेंट और रेटिंग प्लीज)

  • 5. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 5

    Words: 1201

    Estimated Reading Time: 8 min

    लाव्या कि बात पर तीशी बोली
    तीशी- वाओ सो क्यूट (फिर कुछ याद कर पुछने लगी) वैसे अश्विन अंकल की बेटी की शादी है कब? मुझे पता है शादी है पर किस दिन है वो नहीं पता,,
    उसकी बात सुन लाव्या बोली "तु भी न मतलब कुछ भी जिस वजह से आई है वो ही नहीं पता " तो अब सुष्मिका जी तीशी के कुछ कहने के पहले बोल परि "अच्छा अच्छा सुनों परसों मेहंदी है उसके दूसरे दिन संगीत, उसके बाद बाले दिन हल्दी उसके बाद यानी आज से छे दिन बाद शादी है" उनकी बात समझते हुए तीशी ने सर हिलाया इसके बाद लाव्या ने कोई और बात छेड़ दिया वो अपनी बातों में उलझ गये,,,

    कुछ देर बाद,,,,
    दूसरे कमरे में युवान बैठे हुए कुछ सोचे जारहा था खुद से कुछ सबाल करता खुद ही जबाब देता फिर अपने जबाब को मना कर देता ऐसा करते हुए वो अपने हाथ के नाखून चबाने लगा कुछ सोच इतने देर बाद जैसे ही अपने किसी जबाब और बात पर अमल करते हुए कुछ कहता खुद से उसके पहले ही उसके कानों से सौनक की आवाज टकराइ जो कह रहा था,,,

    सौनक -तेरे नाखूनों की जगह क्या बादाम है जो इन्हें चबाने से तेरा दिमाग खुलेगा?(उसकी आवाज सुन जैसे ही युवान मुड़ने को हुआ उसके पहले सौनक उसके कंधे पर जोर से हाथ रख आगे बोला‍) अब नाखून ,बादाम, ऊंगलिया चबाना बंद कर और उठ ,जा, और.....

    इसके आगे कहने से पहले ही युवान उसे टोकते हुए कहने लगा "ज्ञान मत दे.... तु तो कही गया था न तो अचानक कहाँ से आ टपका? " उसने उसे घुरते हुए कहा और ये सबाल पुछा जो सुन वो बैठकर कहने लगा
    सौनक - मैं तो थोड़ी देर पहले आया हु,,और, ज्ञान? नाह! ज्ञान नहीं दे रहा भाइ बोल रहा हु के बोल दे सब कुछ साइड रख ज्यादा मत उलझ और कह दे,,

    सौनक के बातों को ध्यान से सुनने के बाद जब वो चुप हुआ तब युवान कुछ नहीं बोला वो समझ तो गया "लेकिन... " ये लेकिन शब्द रह ही जाता है उसके मन में,
    यही सोचते हुए कुछ सेकंड तक एकतरफ को घुरता रहा फिर कुछ सोचे या सौनक से कुछ कहे बगैर उठ गया और दरवाजे की तरफ जाने लगा उसे जाते देख सौनक अचानक बोल परा "बाहर जारहा है?जा देख वो आई थी देख अभी भी होगी शायद " उसकी ये बात सुन भी युवान ने कुछ खास ध्यान नही दिया क्योंकि उसे लगा वो ऐसे ही बोल रहा इसीलिए वो कुछ बोला नहीं और चलने लगा ये समझ "अरे ऐसे ही नहीं बोल रहा " उसके ये कहते हुए ही युवान दरवाजा खोल बाहर आगया, बाहर आकर किसी भी तरफ जाने से पहले अपने सामने देख वो बिल्कुल रूक गया क्योंकि उसके ठीक सामने लाव्या खड़ी थी,,,

    वो वहाँ खड़ी नहीं थी बल्कि वो भी तीशी के पीछे तीशी के कमरे में ही जा रही थी तीशी तो अपनी बात कहते हुए अंदर चली गई पर युवान को देख लाव्या के कदम भी अपनी जगह ठहर गये, दोनों ही एक दूसरे को देखे जारहे थे अचानक युवान चुप्पी तोड़ते हुए पुछने लगा "कैसी हो? " ये सबाल सुन लाव्या मानों होश में आई वो जबाब देने के साथ पुछने लगी "ठीक तो हु पर आपको नही लगता ये सबाल पहले पुछना चाहिए था? " इसपर युवान को समझ नहीं आया के क्या कहे पर कुछ सोच कहने लगा,,


    युवान -हाँ? हाँ कहना तो चाहिए था मैं कहता भी पर तुमने तो तब चुप करा दिया और तुम्हारी खुबसुरती ने तो मुझे शब्द ही भुला दिए,,
    उसकी ये बात सुन लाव्या कुछ पल के लिए उसे हैरानी से देखा फिर मुस्कुराकर एक बार चहरा फैर लिया फिर उसे देख बोली "फ्लर्ट कर रहे हैं या तारीफ? " उसके सबाल पर युवान ने एक शब्द में कहा "दोनों"ये सुन वो मुस्कुराकर बोली " काफी बदल गये हैं " उसके इस बात पर युवान कुछ बोलने के बजाय मुस्कुरा दिया, इसके आगे दोनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले दोनों के कानों से तीशी की आवाज़ टकराइ जो लाव्या से ये कहते हुए आरही थी के,,

    तीशी - तु यहाँ है और वहाँ मैं दो मिनट से खिड़की से देखते हुए चपर चपर किये जारही थी जब मेरे बात का कोई जबाब नही मिला तब मेने झल्ला कर पीछे देखा तो पाया मैं अकेले अकेले ही बक बक किये जारही थी तेरे सुनने के लिए कहा पर तुने तो कुछ सुना ही नहीं मतलब मुझे सब कुछ फिर से कहना होगा,,
    इसके आगे वो और भी कुछ कहना चाहती थी पर उसने बस मुंह ही खोला कुछ कह नही पाइ उसके पहले लाव्या बोली "हाँ हाँ कह लेना मैं सुनुंगी सब, उसके पहले अभी शांत होजा " ये सुन तीशी कुछ कहती उसके पहले युवान बोला


    युवान -तुझे देख तो लेना चाहिए था न तेरे पीछे कोई है के नहीं साथ जो आया था वो आया है भी या नहीं पर नहीं तुझे तो बस बोल ने की जल्दी है,
    इतना वोल जैसे ही वो चुप हुआ तभी तीशी दोनों को देख वोली
    तीशी - होगया दोनों का या ओर कुछ और भी कहना हैं? ( अपना सवाल कर दोनों को जवाब देने का मौका दिये वैगर ही, खुद ही कहने लगी) नहीं ! तो चले, लवी,, इतना वोल वो उसे ले जा ने लगी,, चलते हुये वो मुड़ कर देखती उसके पहले तीशी उसे लेकर चली गई,, युवान अभी भी उसी तरफ देखे जारहा था आज लाव्या  बिल्कुल उसी दिन की तरह खुबसुरत लग रही थी जिस दिन उसने उसे पहली वार देखा था,, हरे रंग के सलवार के साथ दुपट्टा लिया हैं, चहरे पर कोई साज सजावट नहीं, एक साधारण सा चेहरा वड़ी वड़ी आखें, तीखा सा नाक, हलके गुलावी होठों के उस खिलखिलाती मुस्कान में युवान आज भी खो गया,,

    उसे यादकर एकबार फिर उसके होंठो पर एक मुस्कान लेहरा गई कुछ सेंकड वही रूक वो बापस चला गया,दरवाजा खोल जैसे ही अंदर गया सौनक बोल परा "युवान कहाँ चला गया था? " तो वो पहले तो कुछ बोला नहीं फिर बोला "यही था" तो ये सुन वो फिर से कहने लगा,,
    सौनक- बाहर कोई नहीं मिला न? किसी से बात भी नहीं हुइ न? (कुछ देर पहले उसने कहा था वो आइ है पर तब युवान ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया था मगर उसने सच कहा था इसीलिए अब वो ऐसे पुछ रहा ये समझते युवान को देर नही लगी वो उसे देख कहने लगा) यकीन आया अब?

    युवान -शौतेली सांसु जैसे ताने मारना बंद कर और याद कर मेने कुछ नहीं कहा था तु ही कह रहा था "ऐसे ही नहीं  कह रहा " बगैरा बगैरा (उसके मुंह से अपनी बात सुन सौनक बोला "हाँ हाँ समझ गया, मेने ही सब कहा था तुने कुछ नहीं कहा था, अब ये बोल मिला था या नही?") हाँ मिला भी , देखा भी, बात भी किया (ये सुन सौनक ने एक बार उत्सुकता से पुछा " क्या बाते किया? "ये सुन युवान चुप होगया तो सौनक अपने कान के पास हाथ रख सुनने की कोशिश करने लगा जब उसने कुछ नहीं कहा तो वो कहने लगा " बोल अब") मेने कहा तुने सुना नहीं इसमें मेरी गलती नही तेरे ही कान खराब है,,



    क्रमश...

    हैलो प्रिय रीडर्स रेटिंग कमेंट के साथ जरूर बताये

  • 6. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 6

    Words: 1305

    Estimated Reading Time: 8 min

    ये सुन सौनक हैरानी से बोला "कब कहा? " तो उसने तुंरत एक शब्द में जबाब दिया "अभी " फिर से वो पुछने लगा "तो मेने कैसे ना सुना? " इस बार भी युवान ने तुरंत कहा "क्योंकि तेरे कान खराब है‍"
    सौनक -नही! तुने मन में कहा इसीलिए, कुलमिलाकर मेने सुना नही तो फिर से बोल.... मतलब अब ढंग से बोल ....
    उसके इतना कहने के बाद उसने युवान को देखा तो उसने बस इतना कहा "मुझे नहीं बोलना " इतना सब कुछ कहने और सुनने के बाद भी उसे सिर्फ इतना कहते देख सौनक का मुंह हैरानी से खुल गया , , ,
    ___________________
    तीशी ढेर सारी बाते किये जारही थी और लाव्या सुन रही थी पर कहते हुए अचानक वो चुप होगई,
    तीशी ढेर सारी बाते किये जारही थी और लाव्या सुन रही थी कहते हुए वो अचानक चुप हो गई उसके इस तरह चुप होने से लाव्या पुछने लगी "क्या हुआ? " उसके सबाल पर उसने कोई जबाब नही दिया वो जैसे ही फिर से कुछ और कहने या पुछने को हुइ तभी वो अचानक उसके सबाल का जबाब देने के बजाये तीशी कहने लगी "मुझे उस्से मिलना है " उसके अचानक ये कहने से लाव्या एक पल कों चौक गई, पलके झपकाये उसे देखने लगी फिर पुछा "और आप उस्से मिलेंगी कैसे? " उसके इस सबाल ने तीशी को सोच में डाल दिया वो लाव्या को देखने लगी उसे अपनी तरफ देखते देख लाव्या बोल परि,,

    लाव्या -तुझे मिलना तो है पर कैसे मिलना है कब मिलना है ये नहीं सोचा न? (उसके सबाल पर तीशी ने हाँ में सर हिलाया वो आगे बोली) पता था मुझे, ठीक है हम कल चले.....( वो बात पुरा करती उसके पहले तीशी उसे टोकते हुए सीधे शब्दों में बोली "नहीं! मुझे आज ही मिलना ही " ये वो चौकते हुए बोली) क्या ?आज!! ‍(इसबार वो बोली "हाँ तो इसमें इतना चौकने बाली क्या बात है उसके सबाल पर वो कहने लगी‌) हंह! ठीक है चलेंगे पर अभी नहीं बाद में,,


    तीशी -अच्छा रात को चले,? मजा आयेगा न? मेरा फर्स्ट एक्सपिरियन्स होगा ये चलेगी न?
    वो बिना रूके सब बोल गई उसके आखरी के सबाल को सुन जबाब देते हुए वो बोली " म्म सोच के बताऊंगी" जबाब सुन तीशी ने बुरा सा मुंह बनाये देखा उसे देख लाव्या मुस्कुरा दि कुछ सोच वो पुछने लगी,,


    लाव्या -अच्छा तुने सोचा क्या बात करेगी या कैसे बात करेगी जब मिलेगी? क्योंकि एक साल पहले जब तुम दोनों पहली बार तब तु तो उसे ताड़ रही थी पर वो तो झगड़ने को तय्यार था फिर तुने कुछ कहा था ऐसे हुई थी दोनों की बात, तो अब बोल,,,
    उसकी बातों को ध्यान से सुनकर भी उसकी ढेर सारी बातों के बीच तीशी का सारा ध्यान उसके कुछ शब्दों में चला गया वो दोहराते हुए बोली "जब हम पहली बार मिले थे" बस ये दोहराते सुन लाव्या ने सर पीटकर कहा "मेरी इतनी सारी बातों के बीच तुने बस ये सुना" इसबार उसके इसबात पर तीशी कोई ध्यान नही दिया बल्कि वो कहने लगी,,
    तीशी -वो दिन वो पल था कमाल का साथ ही मौसम भी गजब का था जब वियांश द्विवेदी को पहली बार देखा था,,
    कहते हुए उसके होंठो पर एक मुस्कान लेहरा गई साथ ही वो अपनी यादों के साहारे एक पहले बिल्कुल उसी वक्त में पहच गई जब दोनों की मुलाकात हुई थी,,,
    एक साल पहले,,,
    जूलाई की तपती गर्मी में जब सुरज की तेजी अपने चरम पर पेड़, सुखी मिट्टी, खेत की फसलों के साथ इंसान भी बारिश को तरस गए थे तब काले घने बादल को साथ लिए बरसात के रूप में छुपी राहत और सुकून की बूंदे लिए सावन आया,,
    बारिश के बाद कुछ बूंदें अभी तक पेड़ों के पत्तों पर ठहरी हुई थी बादलों के बीच छुपा सुरज हल्की किरणें बिखेर रहा था,,


    लाव्या तीशी को गाँव घुमा रही थी घुमने के बाद उन्होंने देखा कुछ बच्चे गिल्ली डंडा खेल रहे थे,, उन्हें देख लाव्या ने एक नजर तीशी को जो की बच्चों को ही देखे जारही थी उसे देख वो पुछने लगी "तुझे खेलना है? " ये सबाल सुन तीशी का ध्यान उसपर चली गई उसने उसे पलके झपकाये देखा तो लाव्या उसे साथ लिए उन बच्चों के साथ गिल्ली डंडा खेलने के बाद वो लुकाछिपी खेलने लगे,सब जगह ढुंढ छुपगये इसबार सबको ढुंढने की बारी लाव्या की थी उसकी गनती भी खत्म होने को आइ थी पर   तीशी और साथ बाले बच्चे को छुपने की जगह नहीं मिली, तीशी आसपास देखते हुए बोली "ऐसे तो सबसे पहले ही हमारा गेम ओवर होजायेगा" 


    ये सुन उस बच्चे ने अपने ठीक पीछे देखा फिर तीशी से पुछने लगी "दिदि आपको पेड़ पे चड़ना आता है? " ये सुन तीशी ने भी पीछे देखा जहाँ एक बड़ा सा आम का पेड़ है उसके एक डाल की तरफ ढेर सारे पत्ते है वो अगर वहाँ छुपे तो शायद पकड़े जाने से बच सकते हैं ये सोच और देखते हुए वो बोली "हाँ आता तो है" वो बच्चा इसपर बोला "तो चलो" इसके बाद दोनों पेड़ पर चड़ गये, वो उसी डाली पर थे जहाँ ढेर सारे पत्ते थे वो डाल काफी ऊपर था , उचाई से बहत कुछ दिख रहा था गाँव के घर, लोग, पेड़ ये सब देखते हुए तीशी बोल परि "सब कुछ ऊचाई से कितना खुबसूरत लग रहा है " उसे कुछ बच्चे भी दिख गये जो की आसपास ही छुपे थे उन्हें देख वो बोली ‍"ये तो पहले ही पकड़े जायेंगे " तो वो बच्चा भी बोल परा "इनमें हमारे जैसे अक्ल थोड़ी है के किसी पेड़ पर चड़कर छुप जाये " ये सुन तीशी ने हाइफाइ देते हुए कहा "ये तो सही है"

    दो - तीन मिनट बीत गये दोनों वैसे ही बैठे है, तीशी आसपास देख रही थी तभी उसे दूर एक लड़का आते हुए दिखा जो की काफी दूर था और चल कर शायद उसी तरफ आरहा था पता नहीं दूर से आते उस लड़के से तीशी नजर रूक गई ,,वहाँ दो रास्ते थे एक पेड़ के पास से गुजरती और एक उल्टी दिशा में जाती उस लड़के को देखते हुए नाजाने क्यों तीशी के मन में इच्छा जागी के काश दूसरे रस्ते से जाने के बजाय उस तरफ से जाये ये सोचते हुए एकाएक उसने उस बच्चे से पुछ लिया,,,


    तीशी - ओये रिक्कु ये लड़का कौन है? (रिक्कु ने तो देखा ही नहीं था "कहाँ?कौन सा लड़का ? कहाँ है? " उसका सबाल सुन वो चिढ़ कर बोली)' कहाँ कौन सा लड़का? ' मतलब? वो जो चलकर आरहा है वो लड़का,, तेरी आँखिया कमजोर है या ये कोई लड़की है जो मुझे लड़का दिख रहा है और मेरी आखें खराब है है? (उसकी बाते सुन वो बोल परा "अरे अरे दिदि इतना क्यों चिढ़ती हो? " इतना बोल वो हंसा तो तीशी ने उसे घुरकर देखा और बोली) अब बोल बच्चे (तो वो अच्छे से सामने देख बोलने लगा "आ! ये तो पंडित चाचा का बेटा है ") किसका बेटा है? (उसके सबाल को सुन वो तीशी को देख कहने लगा " अरे हमारे गाँव के पंडित राघव द्विवेदी चाचा का बेटा वियांश द्विवेदी "इसबार भी इतना सुन वो फिर से उसे टोकते हुए बोली) ये कब से रहता है यहाँ ? मेने इसे कैसे नहीं देखा? (उसके टोकने से और सबाल करते सुन वो बोल परा " दिदि आप न एक तो बीच में बोलकर लिंक ना तोड़ो और भईया पच्चीस साल के है और पच्चीस साल से ही यही रहते हैं "इतना बोल वो थोड़ा चुप हुआ यही सोच के वो कुछ कहेगी वो कुछ नहीं बोली तो वो आगे बोला " हाँ तो आपने पुछा तो सब बताता हु, इनकी एक ही छोटी बहन है श्रीना दिदि बहत प्यारी, भईया नौकरी करते हैं और बहत अच्छे है ")(उसकी बात सुन समझते हुए हर हिलाया फिर उसके मन में एक सबाल आया जो उसने पुछ ही लिया) अच्छा एक सबाल सीधे सीधे पुछती हु इसकी कोई गर्लफ्रेंड है?



    क्रमश....

  • 7. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 7

    Words: 1007

    Estimated Reading Time: 7 min

    ये सबाल सुन वो बच्चा उझलते हुए बोला " दिदि आपको शर्म नहीं आती बच्चे से ऐसी सबाल पुछती हो, " जबाब के बजाये ये सबाल सुन तीशी फिर से चिढ़ गई वो कहने लगी,,,
    तीशी- बड़ा आया शर्म बाला तेरी शर्म के हड्डी तोड़ु मैं ढु़ंढके देखू तो तेरी भी कोई गर्लफ्रेंड होगी चल चल नखरे मत दिखा और जल्दी बोल,,,
    इतना कहते हुए उसने हाथ बढ़ाकर एक कच्चा आम तोड़ा उसकी बात सुन वो अब बोला "हाँ हाँ बताता हु जहाँ तक मुझे पता है नहीं है कोई" इतना सुनते हुए उसने एक नजर नीचे देखा वियांश काफी करीब आचुका था पर वो दूसरे रस्ते से ही जाने बाला है ये देख तीशी ने वो आम उसकी तरफ फेंका उसका निशाना सीधा जालगा,,


    अचानक आकर इसतरह कुछ लगने से वियांश रूक गया,,,,
    अचानक आकर इसतरह कुछ लगने से वियांश रूक गया, नीचे की तरफ देखा तो पाया नीचे आम परा है झुककर उसने आम उठाया और आसपास देखने लगा उसे आस पास कोई नहीं दिखा तो वो कहने लगा "ये किसने फेंका  मुझपर!? "उसे इसतरह पुछते देख उस बच्चे ने हैरानी से आखें बड़ी कर तीशी को देखा तो तीशी ने होंठो पर ऊंगली रख चुप रहने का इशारा किया दोनों के चुप रहने पर कुछ नहीं हुआ क्योंकि कोई जबाब ना पाकर पेड़  की तरफ ध्यान से देख कहने लगा " पेड़ पर जो भी है नीचे आओ" उसने जब ध्यान से पेड़ को देखा तो पाया पेड़ के एक डाल पर कोई है इसीलिए उसने ऐसा कहा,

    हालांकि वो जहाँ थे वो डाल पत्तेदार था छुपने के लिए अच्छा हे कोई अगर वहत गौर से नहीं देखेगा तो नज़रों में नहीं
    आयेगा, यही सोचते हुये तीशी हैरान होगई, उसने रिक्कु से कहा "इसके चश्मे में कोई सुपर नैचरल पावर है क्या?"
    उसका अजीब सा सबाल सुन वो भी पुछने लगा "क्या कहती हो दिदि ऐसा भी भला.... " वो आगे कहता उसके  पहले उसने सुना फिर से वियांश कुछ कह रहा है वो अपने आप चुप होगया और तीशी को देखा तो पाया वो उसकी बात सुन रही है वो कह रहा था,,

    वियांश- चुप रहने से कुछ नहीं होगा मुझे पता है ऊपर कोई एक नहीं दो लोग है और चाहें जो कोई भी हो सीधे सीधे नीचे आकर माफी मागों वरना अगर मैं ऊपर गया तो ठीक नहीं होगा,,

    उसकी ये बात सुन रिक्कु बोल परा "मर गये "इसके आगे कुछ कहने से पहले ही तीशी ने उसे चुप करा दिया, वही, बादलो के बीच छुपे सुरज को धीरे धीरे बादलों ने पुरी तरह अपने आगोश में छुपा लिया, सफेद बादलों को काले घने बादलों ने अपने अंदर समेट लिया किसी भी वक्त बारिश की बूंदे झड़ सकती है ये अच्छे से जानने के बाबजूद ना नीचे खड़ा वियांश अपनी जगह से हिला ना तीशी नीचे आई, रिक्कु उतर जाना चाहता था पर वो उसे उतरने नहीं देरही वो उस्से कहती है "देख बच्चे अगर पहले तु नीचे उतरा तो इसे लगेगा के तुने ही इस पर आम फेंका अब तु सोच ले तुझे क्या करना है? " जितनी बार रिक्कु ने उतरना चाहा तभी वो ये कहती,,

    देखते ही देखते आसमान में ठहरे बादलों से कुछ बूंदे बारिश की छन छन करते हुए झड़ने लगी वियांश वही खड़ा है अब रिक्कु से राहा नहीं गया वो तीशी से बोला "सॉरी दिदि में जा रहा हु नीचे " ये सुन उसने इतना कहा "ठीक है " थो वो नीचे उतर गया  वियांश ने उसे अकेले उतरते देखा, वो आकर उसके सामने खड़ा हुआ उसे देख वियांश ने पुछा "तेरे साथ जो था वो कहाँ है? " उसके इस सबाल पर जबाब देने के बजाय वो कहने लगा "सॉरी भईया और मेने नहीं उन्होंने फेंका था आप पर " ये सुन वियांश फिर से पुछने लगा"और कौन है वो?"


    इसपर भी जबाब देने के बजाय वो बोला "अब मैं चलता हु " इतना कहते हुए वो वियांश के कुछ कहने के पहले वो भाग गया उसने उसे रोका नहीं, बारिश की रफ्तार अभी भी धीमे है इसबार वो कुछ कहता उसके पहले उसने पेड़ की तरफ देखा तो पाया एक लड़की उतर कर नीचे आरही है , ठीक से खड़े होकर वो अपने कपड़े झाड़ने लगी उसे देख वियांश की नजर उसपर रूक गई वही तीशी कपड़े साफ कर सीधे खड़ी हुइ उसे ऐसे अपनी तरफ देखते देख वो मुस्कुराकर बोली "हाय" ये सुन वो उसे आखें छोटी कर देखने लगा उसे अब भी देखते देख तीशी की मुस्कुराहट गहरी होगई उसे देखते हुए वियांश ने पुछा "अगर मैं गलत नहीं हु तो आपने ही मुझपर ये फेंका था? " उसके सबाल पर तीशी का जबाब तय्यार ही था वो कहने लगी,,

    तीशी- जी, आप गलत नहीं आप ही सही है मेने ही ये आप पर ये फेंका था (अपनी गलती इसतरह मानते देख वियांश को अजीब लगा वो पुछने लगा "और ऐसा करने की क्या वजह है? ") वजह? हम्म्म, वजह बस इतनी सी थी के मुझे हमारी पहली मुलाकात ऐसी करनी थी के आप भुले ना भुला सके और कुछ नहीं, अगर इतनी आसानी से, सीधे से अगर नीचे आजाती तो  मुझे ही अच्छा नहीं लगता, शायद कुदरत ने भी हमारी मुलाकात अनोखे तरीके से करना चाहता है तभी तो कुछ पलो में ही मौसम ने भी अनोखा सा मोड़ लिया,, (कहते हुए उसने हाथ बढ़ाकर बारिश के पानी को छुया फिर उसे देखा जो की उसे ही देख जारहा था तो वो बोली) अब आप चाहें तो कुछ कह सकते हैं ,,
    बारिश अभी भी हल्की हल्की होरही थी पेड़ के नीचे खड़ी तीशी थोड़ा भीग चुक थी और वियांश भी बारिश की बूंदें उसके चश्मे पे पर रही थी इसीलिए उसने आखों के आगे से चश्मा हटा दिया और बोलने लगा,,
    वियांश-तुम यहाँ की नहीं हो (ये सुन तीशी ने तुंरत कहा "हाँ मैं यहा की नहीं हु बस घुमने आइ हु) मैं समझ गया और ये भी के किस ओढ़ जारही हो बातो के साहारे खैर जो हुआ उसके लिए माफी मांगों और बात को ज्यादा मत खीचो,,
    ये सुन तीशी ने नजरे उसपर टिकाये कुछ सेकंड तक देखा फिर बोली,,


    क्रमश....

    रेटिंग और कमेंट प्लीज प्लीज

  • 8. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 8

    Words: 1015

    Estimated Reading Time: 7 min

    तीशी ने नजरे उसपर टिकाये कुछ सेकंड तक देखा फिर बोली,,

    तीशी - मेने तो पहले ही बता दिया के मेने ऐसा क्यों किया तो मुझे नहीं लगता मुझे माफी मांगना चाहिए और वैसे भी आप पर आम फेंक के एक आम मुलाकात को खास बनाके उस आम बात को लेकर आम बात पर झगड़ना बेमतलब है,,

    जैसे वो कह रही थी वैसे वैसे उसकी बात वियांश के समझके बाहर होती जारही थी जैसे ही वो जरा चुप हुई तो वो हैरानी से बोल परा "क्या? " तो वो बोली "अरे..."वो आगे कुछ कहती उसके पहले वियांश फिर से बोला "सुनों" इसबार वो उसे टोकते हुए बोली "जरूर सुनुंगी पर उसके पहले मैं आपको सुना दु मेरा नाम तीशी है तीशी बंसल " इसके आगे दोनों में से कुछ कहता उसके पहले दोनों के कानों से एक आवाज टकराइ "क्या हुआ ऐसे बारिश में क्यों खड़ें हो दोनों? "ये सबाल सुन दोनों ने देख तो लाव्या को खड़ा पाया उसने एकनजर वियांश को देखा फिर तीशी को देख पुछने लगी

    "अब क्या किया तुने?"उसके सबाल पर तीशी पलके झपकाये सबाल करते हुए बोली " मेने? " ये सुन वियांश ने हैरानी से उसे देख कहने लगा "नहीं आपने कहाँ कुछ किया मेरे हाथ में एक आम था वो मेरे हाथ से छटक के मुझ पर ही आगिड़ा है ना " उसकी ये बात सुन लाव्या की तरफ देख वो बोली "अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है " ये सुन लाव्या ने सर पीट लिया वही वियांश ने अजीब सा मुंह बनाया फिर बोला "जो किया उसके लिए माफी .... " वो बात आगे बढ़ाता उसके पहले तीशी ने जुवान निकाल उसे चिढ़ाया और जाने लगी उसे जाते देख लाव्या ने वियांश की तरफ देख कहा "उसने जो भी किया उसकी तरफ से मैं सॉरी कहती हु " ये सुन वो बोला "तुम्हे नहीं उसे ही कहना.... " वो बात पुरा करता उसके पहले तीशी बापस आइ लाव्या का हाथ पकड़ते हुए बोली "ये तो होने से रहा द्विवेदी जी मेने पहले ही कहा आपसे तो वाय फिर मिलेंगे"

    बिना रूके ये बोल बात खत्म करते हुए ही वो उसे लेकर चल परि ना वियांश कुछ बोल पाया ना हि लाव्या ,,उनके जाने के बाद बारिश तेज होगई वियांश कुछ पलों तक वही  ठहर गया,,

    ये सब याद करते हुए तीशी की मुस्कुराहट गहरी होगई वो इसी के साथ बर्तमान में बापस लौटी पर एक बार फिर उसके आखों के आगे वियांश का चहरा घुम गया हल्का गौरा रंग, काले बाल, लम्बा नाक, हल्की बियर्ड ,पतले होंठ ब्राउन आखें आखों के आगे चश्मा, लम्बा कद, स्काइ ब्लु कलर शर्ट जो भीग चुका था वो मानों फिर से उस पल में पहच गई जब उसने उसे देखा था फिर जब पानी के बूदं की वजह से उसने अपना चश्मा उतार दिया था वो उसकी आखों में बिल्कुल खो चुकी थी अब भी वही हुआ मगर अचानक उसके कानों से लाव्या की आवाज टकराइ जो सुन तीशी अपने ख्यालों से बाहर आइ और पुछने लगी "हाँ? तुने कुछ कहा क्या " उसके सबाल सुन लाव्या ने ना में सर हिलाया फिर बोलने लगी


    "दोनों की मुलाकात थी तो आइकॉनिक बारिश में झगड़के "तीशी बाल झटकते हुए बोलीं " वो तो है " इसके बाद वो फिर से पुछने लगी "वैसे कब जाने बाले है हम ? " उसके सबाल पर लाव्या उठते हुए बोली "अभी जाऊंगी मैं घर "वो जाने बाली थी मगर उसके पहले तीशी उसका हाथ पकड़ बापस बैठाते हुए बोली " नहीं अभी नहीं बाद में जाना " वो बापस उठते हुए तीशी की बात दोहराते हुए बोली "नही अभी जाना है बाद में आऊंगी तो वो मुंह बना कर बोली " ठीक है जा जा लाव्या " तो वो जाने के लिए कदम बढ़ाये बोली "नौटंकी" इतना बोल वो चली गई उसके जाते ही वो बाहें फैलाये धराम से लैट गई और मुस्कुरा कर आखें बंद कर खुद से बोली "ना जाने क्या होगा आगे? "

    धीरे धीरे शाम से रात होने लगी,,
    सौनक के सामने खड़े तीशी और युवान उसे देखे जा रहे थे उन्हें ऐसे देखते देख वो पुछने लगा "क्या हुआ ऐसे क्यों देख रहे हो दोनों? " उसका सबाल सुन युवान बोला "यही देख रहे हैं के तु उसकी बाते करता रहता है हमसे और उस्से बात भी कराता है पर... " इसके आगे तीशी बोली "उस्से मिलाओगे कब? "उनके बाते और सबाल सुन सौनक अंजान बनते हुए बोला " किस्से? "एक शब्द का उसका ये सबाल सुन दोनों ने साथ में कहा "श्रीना भाभी से कब मिला रहे हो? " अब सौनक ने जबाब देते हुए पुछा "तुम दोनों बोलो कब मिलना चाहोगे? " इस सबाल पर जहाँ युवान ने कहाँ "कल "

    वही तीशी ने कहा "अभी " उसकी बातपर इसबार दोनों में से कोई कुछ कह पाता उसके पहले कुछ सोच वो बोली "नहीं नहीं अभी नहीं कल ही मिलते हैं " पहले कुछ और बोल किसी के कुछ कहने से पहले अपने आप ही अपनी बात बदलते देख दोनों ने ना में सर हिलाया उन्हें देख वो बैठ गई और बोलने लगी "आखरी बार हम उस्से पीछले साल मिले " तो सौनक बोला "हाँ तो मुझे पता है तो दोनों कल तय्यार रहना.... " वो बात आगे कहता उसके पहले युवान उसे टोकते हुए बोला "कब?... सुबह सुबह? " उसके पुछते ही तीशी तुंरत बोली "नहीं.सुबह सुबह नहीं शाम शाम चलेगें" तीशी बात सुन सौनक सहमती जताते हुए बोला "ठीक है शाम को ही चलेगें " उसकी इसबात पर दोनों ने सर हिलाया कुछ सोच सौनक बोला,,

    सौनक- अच्छा युव तुने कहा था तुझे उस्से कुछ कहना है
    उसकी बात सुन युवान उसे देखने लगा वही तीशी दोनों को दे ख पुछने लगी "कया? भाइ किसको क्या कहना है?" उसके सबाल पर सौनक ने कंधे उचका दिये ये उसके सबाल सुन युवान ने पहले तो सौनक को देखा फिर तीशी के सबाल पर कहने लगा"पता नहीं क्या कहता रहता है ये लड़का "इसके आगे तीनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले सुष्मिका जी ने तीशी को बुलाया उनकी आवाज सुन वो उठते हुए बोली " मैं आकर सुनुंगी सब "इतना बोल वो चली गई उसके जाने के बाद युवान सौनक से पुछने लगा ,,





    क्रमश...

  • 9. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 9

    Words: 1160

    Estimated Reading Time: 7 min

    युवान - क्या कह रहा था तु किसे क्या कहना है मुझे?
    सौनक -मेने तुझे दोनों को ही कहने को कहा लाव्या से अपने प्यार का इजहार तो करेगा ही मगर तीशी को भी बताना ना के उसकी बेस्टी ही उसकी होने बाली भाभी है क्योंकि एक साल पहले से ही हो चुके हैं अगर इसके बाद भी तुने कुछ नहीं बताया तो तुझे तो पता ही है हमारी प्यारी बहना कैसी है इसीलिए मेने कहा
    उसकी बात ध्यान से सुन कर युवान कुछ बोला नहीं उसकी बाते उसे भी सही लगी वो कुछ सोचना लगा उसे देख सौनक कुछ बोला नहीं और उसके कंधे पर हाथ रखा फिर चला गया, सोचते हुए युवान उसने आखें बंद कर लिया,,

    कुछ वक्त बीत गये,,,
    महेन्द्र जी यानी सौनक के पापा भी आचुके थे सबके साथ बातें करते हुए रात का खाना खाया कुछ देर बाद लाव्या बापस आगई तीशी ने तब फिर से आने को कहा था इसीलिए वो आगई धीरे धीरे सोने का वक्त होगया सब चले गये तीशी लाव्या को साथ लिए अपने कमरे में चली गई लाव्या उस्से कुछ कह रही थी पर उसे टोकते हुए वो बोली "मेरी छोड़ तु अपनी बता " ये सुन लाव्या पुछने लगी "मैं क्या बताऊ? " इस सबाल पर वो बोल "तुझे कोई पंसद है क्या है? " उसका सबाल सुन एक पलको समझ नहीं पाइ क्या जबाब दे फिर जबाब देने के बजाय उसका सबाल दोहराते हुए बोलने लगी,,

    लाव्या - मुझे कोई पंसद है? (तीशी -हां तुझे,, अरे बोल दे बोल दे होसके तो में ही सब कर दुंगी सीधी भाषा में कहु तो मैं ही सेटिंग करा दु दोनों की बोल भी दे अब "उसकी बातें सुन वो मुस्कुराने लगी फिर बोली) शुक्रिया पर उसकी जरूरत नहीं (ये सुन वो उछलते हुए बोली " इसका मतलब तुझे कोई सच्ची में पसंद है ? ") म्मम...हाँ हैं और...(आगे वो कुछ कहने बाली थी पर उसए बजाय इतना ही बोली) हाँ है(तीशी अपने गालों पर हाथ रख बोली " वाओ, कितना पंसद है? " ) क्या मतलब कितना पंसद है?
    उसे अपना सबाल असमझता से उसे दोहराते सुन तीशी मुस्कुराकर पुछने लगी ,
    तीशी -मतलब तुझे मेरा भाइ कितना ज्यादा पंसद है ?
    उसका सबाल सुन लाव्या कुछ पलो के लिए हैरान होगई एकबार फिर उसे समझ नहीं आया क्या जबाब दे अब वो चुप होगई और तीशी कहने लगी

    तीशी -मुझे पता है सब काफी दिनों से बस इंतजार कर रही थी दोनों में से कोई कब बतायेगा पर ना तुने कुछ बताया ना भाइ ने कुछ कहा और ना ही मेरा बुद्धु भाइ तुझसे कह रहा है इसीलिए मेने खुद ही तुझसे कह दिया,
    (उसकी बात सुन लाव्या अब भी कुछ बोल नही पाइ कुछ बोल नही पारही तो उसे देख वो बोली ) शर्माने की जरूरत नहीं जो है बोल दे... (इसका जबाब देने के बजाय वो बोलने लगी "मुझे लगा तु नाराज होगी जब... "इसके आगे वो बात पुरा करती उसके पहले तीशी उसे टोकते हुए बोली) देख यार नाराज तो मैं हु दोनों से ही एक तो एक साल से मेरी बेस्टी मेरे भाइ को और मेरा भाइ मेरी बेस्टी को देखे जारहे है और दोनों में से किसी ने सी मुझे कुछ नहीं बताया, मेरे भाइ को छोड़ो वो सब को पागल कहता रहता है जबकी वो खुद ही सबसे बड़ा पागल है पर तु तो कुछ बता ही सकती थी न?

    कहते हुए उसने नौटंकी करते हुए बोली तो उसे देख और सुन वो बोलने लगी "सॉरी ना यार मैं सच्ची में तुझे बताने बाली थी " तो वो मुंह बनाकर बोली "चल अब रहने दे " इतना बोल लैट और आखें बंद कर लिया उसकी कही बाते याद करते हुए लाव्या मुस्कुरा उठी थोड़ी देर बाद दोनों सो गये घड़ी की सुइया टकटक करते हुए आगे बढ़ रही थी धीरे धीरे घड़ी रात के डेढ़ बजने का इशारा करने लगी तीशी की नींद खुल चुकी थी वो उठकर बैठ गई उसने सोती हुई लाव्या को देखा फिर घड़ी की तरफ देख धीरे से बुलाने लगी "लाव्या उठ ना हमे जाना है "

    उसकी आवाज सुन वो उठने के बजाय दूसरी तरफ पलट गई तो उसे देख तीशी ने उसे फिर से बुलाया नहीं बल्कि जैसा युवान उसके साथ करता है वैसे किया यानी सोती हुइ लाव्या को पकड़ बिठा दिया और अब बोली "अब तो आखें खोल दे " इसबार लाव्या ने किसी तरह नींद से भरी अपनी पलके खोल पुछा "क्या है? " उसके सबाल पर उसने कोई जबाब नही दिया लाव्या ने अपनी तरफ गौर किया तो पाया वो बैठी है तीशी के कुछ कहने से पहले वो अलसाई आवाज में झल्लाकर पुछने लगी "मुझे उठाके बिठा क्यों दिया?" उसका ये सबाल सुन तीशी इसबार कहने लगी

    तीशी- क्योंकि मेने तुझे बुलाया था उठने के लिए पर तु उठी नहीं इसीलिए मेने ऐसा किया और तुने ही तब कहा था न हम रात को चलेंगे (बहत मशक्कत के बाद आखें खोलते हुए वो बोली "सुबह चलते हैं न ") बिल्कुल नहीं! शाम को भी मेने कहा था जाने के लिए तब तुने कहा बाद में सोचके बतायेगी तुने कुछ नहीं सोचा होगा तु बस सो रही थी पर मेने सोच लिया के मुझे जाना है (उसकी बात सुनते हुए लाव्या की पलके एकबार फिर बंद होने लगी " सुबह ... चली ... जाना" उसके बात पे वो बस एक शब्द में बोली) नहीं!!

    इतना बोल वो उसे उठाने की कोशिश करने लगी ये महसूस कर लाव्या की नींद खुल गई वो कहने लगी "क्या? कहाँ क्या? कहाँ ले जारही है? " वो हैरानी से घबड़ाकर पुछने लगी इसबार लाव्या कुछ बोलने के बजाय उसे घुरने लगी तो वो कहने लगी "बाद में निहार लियो मुझे अभी चलना है , चल न प्लीज " ये बोल उसे कुछ कहने का मौका दिये बगैर वो उसे ले जाने लगी,, कमरे से बाहर आकर उसने धीरे धीरे से दरवाजा बंद कर चलने लगी चुपचाप बिना कोई आवाज़ किये दोनों घर से बाहर आगई आसपास देखते हुए कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद तीशी पुछने लगी "किस तरफ जाना है अब?"

    ये सबाल सुन लाव्या रास्ता दिखाते हुए उसे लिए चलने लगी
    कुछ मिनट बाद वो अपने मंजिल तक पहच गये देख तीशी फिर से पुछने लगी "अब कहाँ? " तो सोचते हुए वो बोलने लगी "शायद उस तरफ " इसके बाद दोनों वाइ तरफ बढ़ गये कुछ कदम चलने के बाद वो एक खिड़की के पास आकर रूक गये रूकते ही लाव्या उस्से पुछने लगी "आ तो गई अब क्या करेगी? " तीशी जो की कुछ सोच रही थी उसका सबाल सुन उसने तुंरत कुछ बोली नहीं बल्कि कुछ सोच बोली "सोच लिया "

    ये सुन वो पुछने लगी "क्या क्या सोच लिया? " मगर इस बार वो कुछ बोली नहीं बल्कि खिड़की के करीब चली गई पर उसने देखा खिड़की बंद है ये देख वो कुछ सेकंड के लिए रूक गई मगर फिर भी उसने हाथ बढ़ाकर खिड़की को खोलने की कोशिश किया शायद खिड़की खुलीही थी इसीलिए हल्का सा छुने से ही खुल गई ये सोच वो मुस्कुरा कर बोली




    क्रमश....

  • 10. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 10

    Words: 1115

    Estimated Reading Time: 7 min

    तीशी मुस्कुरा कर बोली "अच्छा ही हुआ " वो अंदर झाकके देखने की कोशिश करने लगी पर हबा से उड़ते पर्दों की वजह से वो ठीक से देख नहीं पारही वो जिस तरफ झुकती अंदर देखने के लिए पर्दे उसी तरफ उड़ने लगते इस्से अब  तीशी चिढ़ने लगी इसीलिए हाथ बढ़ाकर उसने पर्दा हटाया पर कुछ ही पल के अंदर उसके हाथ से पर्दा छुट गया ,,

    वही अंदर सो रहा वियांश अचानक आवाज से उठ गया नींद खुलते ही उसने देखा खिड़की की खुली है उसे लगा हबा से खुली होगी वो उठकर खिड़की बंद करने जाने लगा मगर तभी उड़ते पर्दो के साथ उसे लगा उसने किसी को देखा वो उठकर खिड़की के पास बढ़ने लगा तीशी ने जब पर्दा हटाया तभी उसने वियांश को देखा तब नाजाने क्यों उसके हाथ से पर्दा छुट गया, वो जल्दी से लाव्या को साथ लिए वहा से दूसरी तरफ चली गई उसके इस हरकत पर लाव्या पुछने लगी "क्या हुआ ? " पुछते हुए तीशी को देखने लगी तो वो हाथ से थोड़ा रूकने का इशारा करने लगी खुद को सम्हाल अपने दिल पर हाथ रख वो कहने लगी


    तीशी -अचानक द्विवेदी जी को देख धड़कने तेजी से भागने लगी बहत ज्यादा तेजी से और... और....
    वो आगे भी कहना चाहती थी मगर अपना हाल वया करने के लिए उसे शब्द नहीं मिल रहे इसीलिए आगे की बात के बजाय उसके होंठो पर एक मुस्कुराहट लहरा गई
    लाव्या की उसके बातों को और उसके अंदर चल रहे हलचल को अच्छे से समझ भी पारही है और महसूस भी कर पारही है जिस्से वो भी मुस्कुरा दि पर दोनों में से आगे कोई कुछ कहता उसके पहले उन्हें किसी की आहट महसूस हुइ दिवार के पास खड़ी तीशी ने सर जरा सा निकाल देखा वियांश को आते देखा,,

    (थोड़ी ही देर पहले वियांश उठकर खिड़की की तरफ गया  तो उसे लगा कोई दूसरी तरफ गया इसीलिए खिड़की बंद करने के बजाय दरवाजे की तरफ चला गया कमरे बाहर आकर वो सीधे बाहर चला गया) तीशी ने उसे देखते ही सर पीछे खींच लिया उसके चहरे के भाव देख लाव्या धीमे से पुछने लगी "क्या हुआ क्या देख लिया तूने? " इस सबाल पर जबाब देने के बजाय होंठो पर ऊंगली रख चुप रहने का इशारा किया तो लाव्या चुप होगई तीशी ने एक बार फिर झाकके देखा तो पाया वो खिड़की के पास दिवार के सामने वियांश खड़ा था इसबार तीशी के साथ लाव्या भी झाकके देख रही थी जैसे ही दोनों ने उसे देखा तो दोनों ने साथ में सर पीछे खींच लिया,,

    वियांश आसपास देखने लगा उसे कोई नहीं दिखा वहा किसी को नापाकर वो दूसरी तरफ जाने बाला था यानि जिस तरफ तीशी लाव्या थी उस तरफ ये समझ लाव्या कहने लगी "ये तो यही आने लगा यार " उसने जिब तरह बिल्कुल धीमे से कहा तो उसने भी जल्दी से कुछ सोच धीमी आवाज में बोली "तु मेरा बाहर इंतजार कर मैं आती हु अभी " उसके बात पर वो कुछ भी कहती उसके पहले उसे कहने का मौका दिये बगैर तीशी ने जाने का इशारा किया इसबार वो कुछ बोली नहीं बल्कि सच में चली गई पीछे के तरफ जैसे हई लाव्या गई उसके बाद तीशी सामने की तरफ कदम बढाने बाली थी ,,,


    पर कदम आगे बढ़ने के बजाय उसके कदम रूक गऐ वही वियांश भी उसी ओर बढ़ रहा था मगर अचानक उसके कदम आगे बढ़ने के बजाय ठहर गये क्योंकि उसके ठीक सामने वही लड़की खड़ी थी जिसे उसने एक साल पहले देखा था,

    जिसने उनकी मुलाकात को खास बनाने के लिए आम फेका था अपने सामने तीशी को देख उसे किसी ख्याब कि तरह लग रहा है अपनी तरफ इस तरह देखते देख उसके होंठो पर मुस्कान लेहरा गई वियांश को देख बेचैन धड़कन बिल्कुल शांत पर चुकी थी कुछ पलों के लिए वो सब भुल गई उसे सिर्फ वियांश दिख रहा था इस वक्त वो बेहद आकर्षक लग रहा है बिखरे बाल, हल्की घनी बियर्ड, तीखा सा नाक , पतले होंठ, गहरी ब्राउन अलसाई आखें के आगे अभी चश्मा नहीं है, इस चहरे पे वो बिल्कुल वैसे ही खो गई जिस तरह वो पहली बार खोइ थी, अंधेरे आसमान में हौले हौले उड़ रहे बादलों के बीच ठहरा बर्फ सा सफेद पुरा चांद अपनी धीमी रोशनी से हर ओढ़ को रोशन करने लगा आहिस्ता से चलती हवायें जो दिल को छु जाये ये माहौल बेहद रूमानी सा लग रहा है,,

    वियांश को अपनी तरफ देखते देख तीशी मुस्कुराकर बोली ,,

    तीशी - क्या हुआ यकीन नहीं होरहा अपने आखों पर? द्विवेदी जी मैं कोई ख्याब नहीं हकिकत हु (उसकी बाते सुनकर भी वियांश उसी तरह उसे देखता रहा ना उसकी पलके झपकी ना ही होंठो से कोई शब्द निकले तो उसे देख वो आगे बोली) देखा हमारी दूसरी मुलाकात भी कितनी खास हुइ जबकी इसबार मेने कुछ नहीं किया (इसबार भी उस्से कुछ कहा नहीं गया वो बस सुनता रहा वो फिर से बोलने लगी) हमारा मिलना ही अपने आप में बहत खास है तो मुलाकते तो खास होनी ही है जब भी हम मिलते हैं कुदरत भी एक अलग ही मोड़ ले लता है आप ये सोच रहे होंगे के मैं यहाँ क्यों आइ हु तो मैं बता दु क्योंकि मैं आज ही आइ हु ना आप स्वाइत के लिए आये ना ही इतने घंटों में आपसे मिलि, इसीलिए मेने सोचा मै खुद ही चली जाती हु, अपना स्वागत कराने और इसी बाहाने आपसे बात भी करुंगी देख भी लुंगी,,,

    इतना बोल वो कुछ पलो के लिए खामोश होगई वियांश अब भी कुछ भी बोला नहीं पर उसकी आखों में देख उसकी बात सुन कही चिढ़न के भाव नहीं उसकी आखों में देख वो आगे बोली,,,


    तीशी - सॉरी इतने रात को आपको नींद से जगाने के लिए पर मुझे मेरा सॉरी बापस ले लेना चाहिए क्योंकि मेने तो बस एक रात बस आज की रात ही नींद से जगाया है पर आपने तो मेरी कई रातो की नींद छिनी है आप को पता है कितना वक्त होगया आपको देखे.... अब आप कहेंगे एक साल पर ये तो आप के लिए होगा पर मेरे लिए 370 दिन,12 महिने, 8880 घंटे, 532800 मिनट, इतने वक्त बाद आप को देख रही हु आपके आखों में देख रही हु मुझे और भी बहत कुछ कहना है मगर अभी नहीं कल जब मिलेंगे तब कहुंगी और हाँ अभी तो मैं ही बोलती जारही हु आप सुनते जारहे है पर कल ऐसे बस सुनते ही मत रहियेगा कुछ कहना भी ठीक है, अब मुझे जाना होगा आप चाहे तो मेरे बातों में उलझकर सारी रात जाग भी सकते हैं या चाहें तो मेरे ख्यालों में खोकर मेरे ख्याब में भी जासकते है (ये बोलते हुए वो दांत दिखाये मुस्कुराकर उसके बाद आगे बोली) तो कल मिलेंगे चलती हु गुड नाईट,,



    क्रमश...

  • 11. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 11

    Words: 1273

    Estimated Reading Time: 8 min

    इतना बोल वो चुप होगई आगे कुछ बोलने के बजाय वो कदम बढ़ाय जरा उसके करीब गई तीशी ने हाथ बढ़ाये हथेली उसके आखों पर रख दिया जरा और उसके चहरे के करीब जाकर कुछ बोले बगैर उसके गाल पर होंठ रख चुम लिया इसके बाद उसके कान के पास जाकर बोली "अब सो जाइये" इतना बोलने के बाद उसने अपनी हथेली खीच लिया ये महसूस करके भी वियांश ने आखें नहीं खोला या शायद वो चाहकर भी नजरे उठाकर देख नहीं पाया कुछ ही सेकंड में पलके खोलते हुए उसके होंठो से एकाएक निकल गया "तीशी "

    पर उसने अपने आप को अकेला पाया उसके हाथ अनायासै अपने गाल पर चला गया जैसे ही तीशी के होंठो का स्पर्श महसूस हुआ उसकी आखें हैरानी से खुलने को थी मगर आखों के आगे उसकी हथेली होने की वजह से वियांश की पलके स्थित रही,, इतने रात को अचानक तीशी का इस तरह यहा उस्से मिलने आना, उसकी कही हर एक वाते अचानक उसके गाल के चुम लेना, उसके इस तरह दिलकश से हवाके झेके की तरह आके वियांश को सहला जाना ये याद कर और महसूस कर उसके होठों पर एकाएक दिलकश सी मुस्कान लोहरा गई वो कहने लगा "ये लड़की आम नही खास हैं सच में  वहत खास"
    अपनी वात वोल उसकी मुस्कान  गहरी हो गई उसने गाल पर से हाथ हटाया और वाले मे हाथ फेरा वो चाहता तो आगे वढ़ तीशी के पीछे जा सकता था मगर उसने ऐसा नहीं किया वल्कि घर के अंदर जाने के लिये कदम वढ़ा दिये,,

    वहीं, तीशी भाग के घर के वाहर इन्तजार कर रहीं लाव्या के पास पहच उसने अपने पैरों के रोका उसे देख लाव्या पुछने लगी
    लाव्या-कया हुया ठीक है ना सव ऐसे भाग के क्यों  आई? कुछ कहा कया उसने?

    उसके सवाल पर तीशी ने ना में सर हिलाया तो ये देख वो पुछने लगी" तो फिर क्या? " उसके सवाल पर " उनके वियर्ड चुभे मेरे होठों पर" उसकी इस तरह  कहने से लाव्या पहले समझ नही पाई ओर अव वो चिड गई थी इसीलिए चिड़कर आसमझता से वो पुछने  लगी " कया कह "पर वो वात करती उसके पहले वो खुद ही  उसके वात का मतलब समझ गई  जो समझ वो हैरानी से लगभग चीख़ते हुये बोली" कया? "

    उसकी आवाज सुन और उसका रिएक्शन देख तीशी ने तुंरत उसके मुंह पर हाथ रख दिया और बोली "धीरे बोल माते पुरे मोहल्ले को जगायेगी क्या? " उसकी ये बात सुन लाव्या उसे आखें बड़ी कर देखने लगी वो कुछ कहने की कोशिश कर रही थी पर तीशी को कुछ समझ नहीं आया तो उसने उसके मुंह पर से हाथ लिया तो वो कहने "क्या मैं जो समझी वो सही है? " उसके सबाल पर तीशी ने पलके झपका, इस्से लाव्या को समझ नहीं आया वो क्या करे खुश हो  या हैरानी से सदमे में चली जाये,उसके चहरे कए मिले झूले भाव देख तीशी कहने लगी,,,,,

    तीशी - अगर खुशी से हंसना हो तो भी बाद में हंसना अगर सदमे में भी जाना हो तो भी बाद में जाना कही वो आगया तो पता नहीं क्या कहेगा तभी तो कुछ नहीं कहा कही अब ना आजाये कुछ कहने,,,,,

    उसकी बात सुन उसने बस इतना कहा  "ठीक है ठीक है चल " थो दोनों अब सच में जाने लगी जाते हुए बीच बीच में तीशी के कदम धीमे हो जाते टर लाव्या उसे खीच के ले जाते हुए कहती
    लाव्या - मुझे आधी नींद से पुरा जगाके लाइ है अब मुझे जाकर सीधा सोना है और सुबह के पहले या फिर मेरे खुद उठने से पहले मुझे तुने अगर जगाया तो देखना तेरे द्विवेदी जी के चश्मे का काच फोड़ दुंगी,


    वो उसे लिए बहत तेजी से चलने लगी जल्दी चलते और उसकी ये बात सुन तीशी कहने लगी "यार मुझे पता है तुझे सोना बहत ज्यादा पसंद है और घर चलके जी भर के सो लियो पर लावी अभी तो थोड़ा धीरे चल मॅरेथॉन में भाग रही है क्या? " उसके बात पर वो जबाब देते हुए बोली "हाँ " जो सुन तीशी का मुंह बन गया वो आगे कुछ बोली नहीं जल्दी ही कुछ मिनट के अंदर वो बापस घर पहच गयें फिर थोड़ा रूक वो मेन गेट से होते हुए चुपचाप धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी अचानक लाव्या का हाथ पकड़ उसे रूकाते हुए तीशी बोली "तेरे साथ मॅरेथॉन में भाग के मुझे प्यास लग गई तु जा मैं पानी पीके आइ " प्यास तो उसे भी लगी है तो वो बोली "पानी तो मुझे भी पीना है" तीशी ने समझते हुए सर हिलाया और दोनों और दोनों रसोई की तरफ चली गई,,,

    ________________

    पानी की बोतल से पानी पीते हुए लाव्या तीशी को देखे जारही थी तो उसे अपनी तरफ देखते देख वो पुछने लगी "क्या हुआ ऐसे क्यों देख रहीं हैं ? " उसके सबाल पर इसबार बोतल होंठो से हटाकर बोलने लगी,,
    लाव्या - देख रही हु के तेरा भाइ ठीक ही कहता है तु सच में पागल ही है ,,

    उसके बात पर तीशी बाल झटकाये बोली "वो तो मैं हु पर उनका क्या, उनके हिसाब से तो सभी पागल है क्योंकि....  (कहते हुए रसोई के दरवाजे की तरफ जैसे ही गई तो बाहर देख उसके बात अधूरी रह गई इसके बदले अंदर झाक लाव्या से कहने लगी) क्योंकि.... भाइ आ रहे है मै जारही हु तु आजाना " जल्दी से एक सांस में ये बोल वो बटल रख उसे कुछ कहने का या समझने का मौका दिये बगैर ही चली गई युवान दूसरी तरफ से आरहा था तीशी को उल्टी तरफ जाना यानी अपने कमरे में जाना है वो चुपके से चली गई शायद युवान ने देखा ही नहीं वो भी रसोई की तरफ आरहा था पानी पीने के लिए पर शायद ही तीशी पर ध्यान गया उसका, वही लाव्या अभी भी वैसे ही खड़ी है वो क्या करे उसे समझ नहीं आरहा,

    उसने दरवाजे की तरफ देखा वो जाती उसके पहले युवान ने अंदर कदम रख दिया उसे देख पता नहीं क्यों लाव्या तुंरत फर्श पर बैठ गई युवान आया उसने एक बोतल उठाइ और पानी पीने लगा, पानी पीने के बाद बटल रख जाने के लिए मुड़ा पर जाने के बजाय उसके कदम रूक गये बिना कुछ सोचे ही उसने नजरे घुमाये देखा, देखने के साथ वो कोने की तरफ चला गया जाकर देखा तो पाया सेल्फ के आखरी कोने में फर्श पर बैठी लाव्या दिखी वो जहा बैठी थी वहाँ अचानक से देखा नहीं जा सकता लाव्या ने भी यही सोचा था फिर भी उसने नाजाने कैसे देख लिया ,,

    वो झुकके लाव्या को देखने लगा जिसकी पलकें बंद है और उसने अपने हाथ में बटल पकड़ रखा है उसे देख युवान बस देखता ही रहा वो मन में सबाल करने लगा "क्या ये सो रही है या बेहोश है? अगर सो रही है तो यहा ऐसे क्यों सो रही है? अगर बेहोश है तो भी कैसे...?"
    लाव्या को देख उसे अजीब भी लगा और हैरानी भी हुइ वो झुककर उसके पास बैठ गया उसे देख हाथ बढ़ाये उसने उसके पलकों को छुया और मुस्कुरा दिया वहीँ उसके इस तरह छुने से लाव्या की पलके खुलने बाली थी मगर किसी तरह उसने खुद को रोक लिया और हाथ से बटल अलग कर खुद उठकर हौले से उसे बाहों में उठा लिया लाव्या की पलके फिर से खुलने को थी पर इसबार भी उसने ऐसा करने से खुद को रोक लिया वो उसे बाहों मे लिये उसके कमरे की तरफ बढ़ने लगा चलते हुए युवान इस बार मन में नहीं बल्कि धीमी आवाज में बोला "सुबह मैं ये तुमसे जरूर सुनुंगा के वहा परे रहने की वजह क्या है " उसकी बात सुन लाव्या भी अचानक से सोच में पर गई ,, 

    क्रमश....
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  • 12. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 12

    Words: 1104

    Estimated Reading Time: 7 min

    युवान को देख वो अचानक फर्श पर कयों बैठ गई ओर कोने मे कयों छुप गई? ये तो वो खुद भी समझ नहीं पारही, वो तो सच बोल सकती थी के वो पानी पीने आई थी , मगर उसके होठों से कई शव्द निकलने के बजाय वो झुक गई,, उसका दिल तेजी से धड़कने लगा वो खुद को शांत नही कर पारही थी वो युवान की धड़कने भी महसुस कर पारही थी जो शांत तो हैं मगर कहीं ना कही एक अजीब सी हलचल भी हे, जो महसूस कर लव्या उसकी नजरों से बचके चुपके से जरा अपने बन्द पलकों को खोल देखा देखने के साथ उसके लवों पर एक लकीरों खीचने बाली थी पर उसने रोक लिया और तुंरत आखें बंद कर लिया युवान ने देखा दरवाजा थोड़ा सा खुला है तो धीरे से दरवाजा खोल वो उसे बाहों में लिए अंदर आगया,

    आते ही उसने देखा तीशी दूसरी तरफ घुम के सो रही है हौले से कदम बढ़ायें उसने उसे आहिस्ता से वेड पर लेटा दिया लेटा कर वो जाने बाला था पर जाने से पहले उसने नजर झुकाये लाव्या के चहरे की ओर गौर से देखा तो पाया उसके बाल उसके चहरे पर आरहे है ये देख उसके हाथ ने किया आगे बढ़ उसके जूल्फों को चहरे से हटा लिया और फिर उसके बालों को सेहलाकर वो चला गया धीरे से दरवाजा बंद करने की आवाज आइ जो सुन लाव्या ने तुंरत आखें खोल दिया और नजरें घुमाये दरवाजे की तरफ देखा,,

    देखते ही वो एकदम से उठकर बैठ गई और अपने दिल पर हाथ रख दिया और उसने अपने दातों तले नीचला होंठ को दबा लिया लेटे हुए तीशी ने जरा मुड़कर देखा तो लाव्या को बैठे हुए पाया उसे देख वो भी उठकर बैठ गई उसे देख तीशी ने ना मे सर हिलाया कुछ पुछा ना ही कुछ कहा बल्कि मुस्कुराकर लाव्या के गाल खीचे, अब मानों वो होश में आइ उसे देख तीशी उसे छेड़ते हुए बोली "आय हाय ब्लश कर रही है " ये सुन लाव्या का ध्यान उस पर चला गया कुछ सेकंड तक तो वो कुछ बोली नहीं फिर अचानक बोल परि

    लाव्या -बड़ी आइ ब्लश बाली तब मुझे छोड़के भाग क्यों गई थी हाँ? जब तु उस्से मिलने गई थी तब मैं तुझे छोड़ भाग गई थी क्या? नहीं न?तुने  कहा जाने को तभी गई तो...

    वो एक सांस में बोले जारही थी पर वो आगे कहती उस के पहले उसे टोकते हुए और उसके शब्दों को रोकते हुए बोली,,

    तीशी -अरे अरे... बता रही हु यार के ऐसे क्यों किया पहले जरा खुद भी सांस ले ले मुझे भी कहने का मौका दे ‍(ये सुन वो बोली "ठीक है बोल ") हाँ तो सुन जब तुने नहीं हम निकले ना तब मेने भाइ को देखा था मुझे भी तब पौने दो बज रहे थे , तुझे याद है तब मैं जाते वक्त यहा से टहलते हुए चल रही थी और एक बार चलकर बापस भी आइ थी (ये सुन लाव्या को आया तो वो समझते सर हिलाया तो वो आगे बोली) ऐसा मेने उन्हें दिखाने के लिए किया जब उन्हें लगा मैं तेरे साथ में टेहल रही हु तो वो खिड़की के सामने से हट गये उसके बाद जब बहा से आकर हम पानी पीने गये तब अगर वो हमें हजारों सबाल पुछते तुझे तो शायद छोड़ भी देते मुझे कोई डिस्काउंट नहीं मिलता मुझे डाट ने मे कोई कमी नहीं आने देते,

    पुछते इतनी रात को भटक क्यों रही थी उल्लु की तरह ऐसे ही कहते और भी ढेर सारा कुूछ कहते और तब मेने तो कहा ही था के आजा तु ही तो रूक गई ये कहके भी तो तु आसकती न के पानी पीने गई थी, मेने कहा ना तु कहती तो शायद कुछ नही कहते देखा ना तेरे पास था तो ना आने का पर तु नही आइ इसमें मेरी गलती तो अब तु बोल तु कुछ बोली क्यों नहीं और जब सुबह भाइ पुछेंगें तु वहा क्यो सो रही थी क्या कहेगी तब? मैं मेरे भाइ को अच्छे से जानती हु वो ये सबाल जरूर करेगा तो बोल तु क्या कहना है तुझे?

    उसकी इतनी सारी बाते सुनने के बाद लाव्या उसे पलके झपकाये देखने लगी जैसे ही तीशी की बात खत्म हुई वो उसे देखने लगी जबाब जानने के लिए पर लाव्या अभी भी सोच रही थी उसे देख तीशी जैसे भी कुछ कहने को हुइ तभी लाव्या बोली "रूक कहती हु " वो चुप होकर सुनने की कोशिश करने लगी तो लाव्या बोली "हाँ तो... मुझे नींद आरही है मैं सो रही हु और मुझे अब फिर से जगाना मत " इतना बोल तीशी को कुछ कहने का मौका दिये बगैर वो ब्लेंकट ओढ़ सो गई वो उसका जबाब सुन और उसकी ये हरकत देख तीशी का मुंह हैरानी से एकबार खुला रह गया फिर मुंह बंद कर ना मे सर हिलाया और वो भी लैट गई पर शायद ही उसके आखों पर नींद दस्तक देगी क्योंकि उसके नजरों के आगे तो उसके द्विवेदी जी का चहरे का पहरा है अपनी हरकत और बातों को याद कर खूद ही उसने शर्माके अपना चहरे पर दोनों हथेली से ढक दिया,, जहा तीशी की आखों पर नींद नहीं वियांश है और वही लाव्या भी अभी तक उसी पल में खोइ है जब युवान ने उसे बाहों में उठाया था उसके बालो को छुया था वही युवान भी यही सोचे जा रहा है वो बहा क्यों बैठी थी तो वही वियांश भी अभी भी तक सो नही पाया उसके जहन में तीशी की हरकतें, बाते घुमे जारही थी, चारो के ही पलको पर नींद के बजाय कइ ख्याल है,,,

    ऐसे ही किसी तरह आज की ये अनोखी रात सब से बिदा लिए सब के जहन में कुछ यादें छोड़के चली गई  , इसीके साथ सुरज आया और संग अपने एक नया सवेरा, एक नया दिन और नया किस्सा लाया, तीशी की नींद खुलते ही उसने अलसाई आखों से देखा लाव्या पहले से ही उठ कर बैठी है उसे देख वो पूछने लगी "क्या हुआ ऐसे क्यों बैठी है? " (उसके सबाल पर वो कुछ कहती उसके पहले वो उठके बैठ अंगराई लेते हुए बोली) अगर तु ध्यान लगा रही है तो मैं बता दु के ऐसे आखें खोल के ध्यान नही लगाते "

    उसकी बात सुन लाव्या बस इतना ही बोली "मैं कोई ध्यान -व्यान नहीं लगा रही बस ऐसे हि बैठी थी "

    तीशी -वही तो ऐसे ही क्यों बैठी थी?तुझे तो सोना बहत पंसद है और तुने ही तो कहा था के जब तक तु खुद ना उठे तब तक तुझे ना उठाऊ वरना तु....

    वो लाव्या की कही कल बाली बात दोहराती उसके पहले वो

    टोकते हुए बोली ...

    क्रमश...

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  • 13. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 13

    Words: 1002

    Estimated Reading Time: 7 min

    वो लाव्या की कही कल बाली बात दोहराती उसके पहले वो टोकते हुए बोली "कुछ नहीं यार बस ऐसे ही " उसकी ये बात सुन तीशी कुछ बोली नहीं पर मुस्कुराने लगी और उसकी मुस्कान ऐसी थी मानो उसे छेड़ रही हो इस्से लाव्या चिढ़ गई और बोलने लगी "तुझे कुछ कहना है या ऐसे ही स्माइल करती रहेगी ? " उसके सबाल पर तीशी ने एक शब्द कहा "नहीं " तो वो बोली?
    लाव्या - अभी मैं घर जारही हु बाद मैं आऊंगी (इतना बोलते हुए वो उठ गई और तीशी को देख बोली) तु भी उठ जा अब,,

    तीशी उसकी बात पर एक बार फिर अंगराई लेते हुए बोली "हाँ हाँ उठ रही हु " ये सुन लाव्या सर हिलाकर दरवाजे की तरफ बढ़ गई बाहर आकर वो जैसे ही आगे बढ़ने बाली थी तभी उसे युवान दिखा जो की उसी ओर आरहा है लाव्या को देख युवान रुकके पुछने लगा "कहाँ जारही हो? " उसका सबाल सुन लाव्या भी रूक गई और उसे देख एक शब्द में बोली "घर " ये सुन युवान ने फिर से सबाल किया "तीशी उठ गई? " इसबार भी उसने बस ईतना ही कहा "हाँ उठ गई " तो उसने सर हिलाया और  आगे कुछ कहा नहीं बोला  और कमरें की तरफ बढ़ने लगा,,,

    लाव्या को थोड़ा अजीब लगा के उसने कल के बारे में कुछ कैसे नहीं कहा या कुछ पुछा नहीं, वैसे अच्छा ही हुआ उसे जबाब देना नहीं परेगा क्योंकि उसके पास शायद युवान के कल रात पुछे गये सबाल का जबाब है नहीं वो ये सोचते हुए जैसे ही आगे कदम बढ़ाने को हुइ तभी उसके कानों से युवान की आवाज टकराइ जो सुन वो ठहर गई उसने उसे बुलाया "लाव्या " ये सुन वो कुछ पलों के लिए रूकी फिर तुंरत उसकी तरफ यानी पीछे मुड़ी वो जैसे ही मुड़ी तभी युवान भी उसके चहरे के करीब आकर दोनों हाथ पकेट में रख झूका उसे इसतरह अपने चहरे के करीब देख एक पल के लिए लाव्या की मानों सांसें थम गई वो ना पीछे जारही थी ना उसके होंठ कुछ कह पा रहे थे लाव्या चाहकर भी वही युवान उसे देखे जारहा है कुछ कहे बगैर उसे देखे जारहा था,,,

    उसे अपनी तरफ देखतें देख लाव्या की नजर भी उस पर ठहर चुकी थी क्लिन सेफ चहरा  हल्का गौरा रंग, बिखरें बाल, काली आखें जो बेहद आकर्षक है, पतले हल्के गुलाबी होंठ इस साधारण चहरे को सबसे ज्यादा आकर्षक बनाता है उसके चीन के ऊपर होंठो के नीचे का तिल, उसे देखते हुए लाव्या ने पुछा "कुछ कहना है? " उसका सबाल सुन वो मुस्कुराया और जबाब देते हुए बोला "कहना नहीं पुछना है " उसके होंठो की मुस्कान के साथ गाल पर डिंपल आते है उसकी ये दिलकश सी मुस्कान मजबूर कर रही लाव्या के नजरों को उसपर ठहरने के लिए ,, वो पलके झपकाये बस इतना बोली "क्या ? "
    युवान - रात को किचन में सेल्फ के पास क्यों बैठी थी?
    अब उसके सबाल पर उसने कुछ कहना ही होगा उसने जल्दी से कुछ सोचा और बोली

    लाव्या- वो मैं पानी पीने गई थी तब मेरा पैर किसी चीज़ से टकराया इसीलिए मैं नीचे बैठ गई पैर मैं लगा भी थी और नींद..... ( वो बिना कुछ कहे सुने जारहा था पर बोलते हुए अचानक चुप होगई और जो कह रही थी वो बात छोड़   बोलने लगी) आ... ऐसा नहीं है बस ऐसे ही बेठी थी,,,


    वो जानती थी के उसका बेतुका बाहाना युवान अच्छे से समझ गया इसीलिए उसे अपनी बात छोड़ दिया ये बोल दिया और युवान को कुछ कहने का मौका दिये बगैर ही चली गई इसबार उसने उसे  रोका नहीं,और अपने बालों में हाथ फेरा और तीशी के कमरे ओर चला गया जैसे की उसने सोचा वो अभी भी सो रही थी उसे देख उसने जगा दिया फिर जैसे की तीशी ने कहा था उसने पुछा भी वो रात को टहल क्यों रही थी तो तीशी ने भी अपना जबाब दिया के नींद नहीं आरही थी इसीलिए, जो सुन युवान पुछने लगा "कही और तो नहीं गई थी न? " ये सुन जबाब देने के बजाय तीशी हाथ बांधे पुछने लगी "शक कर रहे हो आप मुझपर? "

    युवान -शक नहीं कर रहा पुछ रहा हु क्योंकि मुझे पता है तेरी आदत है ऐसी (तीशी -आदत है तो क्या हमेशा थोड़ी दोहराती हु "कहते हुए उसने मुंह बनाया तो ये देख वो आगे बोला) चल कहती है तो मान लेता हु पर ऐसे रोज़ आधी रात को उल्लू की तरह जागके, चमगादड़ की तरह उड़के भुतो की तरह भटकना मत,,,

    इतने सारे उदाहरण सुन तीशी का बुरी तरह मुंह बन गया वो बोली " शर्म नहीं आती आपको अपनी छोटी बहन को इतना कुछ कहते हुए " उसने उसे घुरके देखा तो वो रूकके बोला "आती...नहीं है " ये सुनते ही तीशी बुदबुदाने लगी जो सुन वो बोला "मेरी बुराई बंद कर और उठ जा " ये सुन वो कुछ सोच तुंरत उठ गई और बोली "भाइ कही घुमने चलते हैं " जो सुन वो मुड़कर बोला "ना कहुंगा तो मनेगी?" तो वो एक शब्द में बोली "नहीं! "
    युवान -ठीक है तो तय्यार रहना,,,
    ___________________

    कुछ देर बाद,,,,
    सबसे बात करते हुए नाश्ता करने साथ तीशी ने बताया  वो घुमने जारहे है लाव्या भी उनके साथ आरही है,
    धीरे धीरे सुबह बढ़ने लगी,, तीशी ने लाव्या को फोन कर कहा के वो घुमने जाने बाले है तो तय्यार रहने को कहा,बस इतना बोल उसने फोन रख दिया ,सौनक बाद में आने बाला था ,,,

    कुछ देर बाद ,,,
    तीशी युवान तय्यार थे उन्हें लाव्या का इंतजार था दोनों घर के  बाहर खड़े थे, तीशी उसे फोन करने बाली थी पर उसके पहले वो आगई उसे जहा वो बोली "ओ मैडम कितना इंतजार कराने का इरादा था?"उसका सबाल युवान मन मे बोला " हा नाजाने कितना "वही लाव्या जबाब देते हुए बोली " क्या यार बस इत्तु सा ही तो इतंजार कराया" कहते हुए उसने मुंह बनाया, उसका बना हुआ चहरा देख युवान नजर हटाते हुए बोला "चले अब" तो दोनों ने ही सर हिलाया और उसके बाद तीनों चल दिए,,


    क्रमश...

  • 14. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 14

    Words: 1175

    Estimated Reading Time: 8 min

    सबसे पहले वो खेत के पगडंडी से होते हुए वो गाँव के सबसे पुराने महाकाल के मंदिर पहच गये, बहा दो मंदिर थे दोनों ही बेहद प्राचीन तो है ही पर उतना ही खुबसूरत भी है ,दोनों सब देख रहे थे लाव्या उन्हें सबके बारे में बता रही थी उसके बाद थोड़ा घूमने के बाद प्रणाम करने मंदिर के अंदर की तरफ जाने लगे,,तीशी और लाव्या ने सर दुपट्टा ओर रखा था,,भगवान के सामने आखें बंद कर हाथ जोड़कर अपनी अपनी मन्नत मांगने लगे जहा तीशी ने  भगवान से वियांश को मांगा , वही लाव्या ने अपने साथ खड़े युवान का साथ हमैशा के लिए मांगा,,,

    प्रणाम कर युवान ने जैसे ही आखें खोला तो सब से पहले उसकी नजर लाव्या पर गई जिसे देख उसकी नजरें ठहर गई इसी के साथ अचानक एक हवा का झोका आया जिसे लाव्या का दुपट्टा सर से सरक गया उसकी आखें अभी भी बंद थी ये देख युवान ने हाथ बढाये उसके सर पर बापस दुपट्टा ओर दिया जो महसूस करते ही   लाव्या की पलके खुल गई उसने नजर घुमाये जैसे ही देखा तो उसकी नजर युवान के नजरों से जा मिली ,उसके हाथ अभी भी उसके दुपट्टे पर ही थे ,उसे अपनी तरफ देखते देख युवान मुस्कुरा दिया, तो वो भी मुस्कारा दि,, इसके बाद उसने अपने हाथ हटा लिये,, और बापस उसके पास खड़ा होगया,,

    इसके बाद ,,अपनी ख्वाइश भगवान से कहकर तीशी ने मुस्कुराकर आखें खोल लिया,,दोनों को देखा तो पाया दोनों पीछे खड़ें है,, वो दुपट्टा सम्हाले उनके पास चली गई, वो दोनों के पास पहची उसे देख लाव्या बोलने लगी "यहा कहा जाता है के दीये जलाने से और उस तरफ बाले पुराने पेड़ पर धागा बांधने से दिल की मुरादे पुरी होती है " ये सुन तीशी बोली "वाओ मुझे भी दीये मे धागे बांधने है "
    उसने दोनों बातों मिला ही दिया जो सून लाव्या ने उसे देख हैरानी से पुछा "क्या?" तो युवान बोला
    युवान - इसने कहा अलग से दीया जलना है और अलग से उस तरफ बाले पेड़ पर धागा बांधना है , ,

    तीशी ने हाथ हिलाकर कहा "हाँ हाँ समझ गई अच्छा मैं जारही हु "इतना बोल दोनों के कुछ कहने के पहले दूसरी तरफ चली ,, उसे देख युवान बोला "इसे हमेशा हर बात की जल्दी मची रहती है " लाव्या भी उसकी बात पर सहमती जाताते हुए बोली "ये तो ऐसी ही है" कुछ सोच वो बोला "वैसे यही रूकने बाली हो? (उसके सबाल पर जबाब देती उसके पहले वो खुद ही पुछने लगा) तुम्हे दीये नहीं जलाने? " उसके सबाल पर वो हा कहने बाली थी पर कुछ सोच वो पुछने लगी "अगर मैं ना कहु तो?" अपने सबाल के जबाब के बजाय सबाल सुन उसने कुछ पलों के लिए उसे देखा उसे पता था वो ऐसा उसका जबाब जानने के लिए पुछ रहीं हैं तो उसने उसका हाथ पकड़ कहा "तो चले अब " इतना बोल वो उसे लिए जाने लगा ,,,
    वही ,,बहा से थोड़े दूर खड़ा है सालों पुराना बड़ा सा पेड़ जिस्से लिपटे कई लोगो के बंधे धागे जिनसे जुड़ी हैं उनकी मन्नते, मुरादे ,, तीशी भी उस्से धागा बांधते हुए पेड़ के चारों तरफ घुमते हुए अपनी बात मन मे खह रही थी,, धागा पुरा बांधने के बाद वो प्रणाम कर दूसरी तरफ घुमी, दूसरे मंदिर की ओर जैसे ही उसकी नजर गई , तो उसकी नजर भी ठहर गई और कदम भी क्योंकि.......

    लाव्या के हाथ में दीया था जो लिए वो युवान को बताने लगी "इस दीये को जलाकर मंदिर का सात बार परिक्रमा करते हुए धीरे धीरे अपनी मनोकामनाए बतानी है फिर परिक्रमा पुरा करने के बाद इस दीये को मंदिर में रखना है " युवान ने उसकी बात समझते हुए सर हिलाया फिर बोला "साथ में चलते हैं " उसकी बात पर वो असमझता से पुछा "हाँ?"

    तो वो हामी भरते हुए बोला "हाँ "इतना बोला वो उसके हाथ में पकड़ा दीया जलाने लगा, वो उसे देखे जारही थी उसे अपनी ओर देख बोला " चलो " ये सुन उसने उसपर से नजर हटाइ और चलने लगी वो भी उसके साथ कदम बढ़ाने लगा,,
    वही,,,तीसरा और आखरी गाठ बांधने के साथ तीशी ने पेड़ पे धागा लपेट दिया, और फिर से प्रणाम कर वो जाने के लिए  पीछे मुड़ी वो जैसे ही कदम बढ़ा रही थी तभी एकतरफ देख उसकी नजर और कदम ठहर गये क्योंकि दूसरे तरफ के मंदिर की ओर वियांश था जो की पुजा करने आया था,,उसे देख तीशी के चहरे पर कुछ सेकंड के लिए कोई भाव समझ नहीं आये उसे अचानक इस जगह देख वो खुश हो या हैरान उसे एक पल के लिए लगा वो कोई ख्वाब देख रही है या शायद उसकी नजरें इस वक्त देखना चाहती है इसीलिए मन ये उसे दिखा रहा है पर उसकी ये सोच गलत थी वियांश सच में वही था जब उसने पंडित जी से उसे बात करते देखा तब उसे यकीन आया के वो वही है ये सब कुछ सोचते हुए उसने उस ओर कब  कदम बढ़ा दिये ये वो खुद भी नहीं जानती ,,

    आखें बंद कर भगवान को नमन करते वियांश को देख वो उस्से थोड़ी दूरी पर खड़ी हो गई,, कुछ पलों के बाद जब वियांश ने आखें खोला ‌, तभी उसके कानों से एक आवाज टकराइ "तो क्या मांगा द्विवेदी जी आपने ?" ,, ये आवाज सुन वियांश ने आवाज की दिशा में देखा तो तीशी को खड़ा पाया उसे देख वो पुछने लगा "तुम यहा? "ये सबाल सुन वो बोली
    तीशी - हाँ समझ लिजिए के  दिलने किया आपको याद, नजरों ने करना चाहा आपका दीदार, तो बस कदमों ने रस्ता दिखाया, तो हम भी चल परे आप की ओढ़,,
    उसने मुस्कुराकर कहा जो सुन वियांश बोला,
    वियांश -वैसे बोलती बहत हो तुम देखा जाये तो जब से हम मिले है तब से ज्यादा तर तुम ही बोले जारही हो चाहे बात कल रात की हो या उसके पहले की (तो इसपर वो मुंह बनाकर बोली "क्योंकि आप तो चुप ही रहते हैं ")  क्योंकि आप मुझे कुछ कहने का मौका हि कहा देती है,

    तीशी -तो ठीक है कही ये आप मैं सुनुंगी वैसे भी कल ही तो कहा के आज तो आपने सिर्फ सुना पर कल कुछ कहियेगा तो कही अब" ये बोल थोड़ा चुप हुइ अब भी वो ही बोले जारही है ये देख वियांश बोला पर वो बोलता उसके पहले ही तीशी ने उसे रोकते हुए कहा "पर एक मिनट " वो ये सुन वो रूक गया उसे समझ नहीं आया वो क्या करने बाली है,, वही तीशी उसे चुप कराकर देखने लगी उसे देखा तो देखती रह गई,, सफेद कुर्ता के साथ उसने जिंस पहना है , हमेशा की तरह हल्के बिखरे बाल, इस वक्त आखों के आगे चश्मा लगाया है, एक  हाथ में वॉच वो हमेशा की तरह सिंपल में ही आकर्षक लग रहा है
    कुछ पलों तक वो उसे देखती रही फिर देखते उसकी मुस्कुराहट गायब हो गई वो पूछने लगी "इतना सज सवर के क्यों आये है? हम्म कही किसी और की नजर लगने से पहले मेरी ही नजर लग जाये आपको " बात खत्म कर वो फिर से मुस्कुराई और उसकी बलाये लेते हुए बोली......


    क्रमश....

  • 15. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 15

    Words: 1032

    Estimated Reading Time: 7 min

    बात खत्म कर वो फिर से मुस्कुराई और उसकी बलाये लेते हुए बोली......

    "हय....हाँ तो अब बोलीये क्या बोलना है "

    ये सुन कर भी वो कुछ पल ठहरा कही वो फिर से उसे टोकते हुए कुछ बोलेगी ये सोच पर जब उसने कुछ कहा नहीं तो वो बोला "पहले ये बतायो यहा घुमने आइ हो? " तीशी ने मुंह बनाये कहा "मैं अकेले थोड़ी न शादी करूंगी क्योंकि आपतो यहा अकेले आये थे वो भी पुजा के लिए मेने तो देखा भी नहीं आप कब आये, तो घुमने ही आइ हु भाइ और लाव्या के साथ "

    ये सुन वियांश एक पल को शब्द भी भुल गया के क्या कहे,फिर बोला "कल रात तुम मुझे जगाने आइ थी? " तीशी ने इसबार भी जबाब के बजाय सबाल पुछा "क्यों मेरे जाने के बाद सोए नहीं थे आप?" सबाल के जबाब बदले सबाल सुन वो बोला

    वियांश ‍- सबाल पर जबाब देते हैं नाकी पलट कर सबाल पुछते है, (तीशी -मैं तो ऐसी ही हु," ये सुन वो भी उसी की तरह बोला ‍) तो मैं भी ऐसा ही हु(तीशी -तभी तो अच्छी जमेगी हमारी और वैसे भी...", ये सुन वियांश मुस्कुराकर बोला‍)सम्हाल पायोगी न मुझे ,(पर शायद ही तीशी ने ये सुना होगा क्योंकी वो तो अपनी बात में मग्न थी जब तीशी को लगा उसने कुछ कहा तो पुछने लगी "कुछ कहा आपने?") कुछ सुना आपने? (तीशी ने ना मे सर हिलाया तो वो कुछ पल के लिए फिर से चुप हो गया तो पुछने लगी "मेने जो सबाल किया वो आप मुझसे नहीं पुछेंगें के मेने क्या मांगा? " इसपर उसने एक शब्द में कहा ) नहीं!

    ये सुन कर भी उसने कहा "आपको मांगा देंगे?" इसपर वियांश ने जबाब दिया वो तीशी ने नही सोचा था "ले सको तो ले लो" इसपर तीशी जरा हैरान हुइ मगर जल्द ही खुद को हैरानी से निकाल बोली.....

    _______________________

    युवान लाव्या दोनों ने एक दूसरे के कदम से कदम मिलाते हुए छटा परिक्रमा पुरा कर लिया था युवान ने उसका हाथ पकड़ रखा था पर इसबार लाव्या की धड़कने शांत थी,और वो खुद भी उसे अच्छा लग रहा था उसका यु हाथ पकड़ना ,साथ चलना, पहले परिक्रमा के वक्त उसने जो उसका हाथ थामा अभी तक नहीं छोड़ा, आखरी एक बचा था ये सोच युवान बोला "इसबार ये दीया मुझे दे दो " ये सुन लाव्या रुक कर उसे देखने लगी तो वो बोला "सोचो मत कुछ नहीं होगा, गिड़ाऊंगा नही दीये को, नाही इसे बुझने दुंगा, ना ये हाथ छुटने दुंगा " उसकी बाते सुन वो अचानक मुस्कुरा उठी और बोली "बाते काफी बदल गई है आपकी" ये कहते हुए उसने धीरे से दीया दे दिया, तो वो भी बोला

    युवान - क्या करू मोहतरमा बदलना तो था ही क्योंकि एक नया रंग जो चढ़ गया है ,,

    उसकी बात सुन इसबार लाव्या से कुछ कहते नही बना तो चूप होगई तो युवान ने भी उसे चुप देख आगे कुछ कहा नहीं और दीया सम्हाल कर पकड़े चलने लगा,,पर अभी भी उसने उसका हाथ नहीं छोड़ा ,एक बार युवान के हाथ से उसे देख वो पुछने लगी "आपकी कोई वीश है भी या ऐसे ही चल रहे हैं ? " उसका सबाल सून वो बिना मुड़े बोला"इसका जबाब देना मुश्किल है भी और नहीं भी क्योंकि मेरी ख्याइश पुरी हुइ भी है पूरी तरह पुरी नही हुई" उसके जबाब पर इसबार भी वो कुछ पलो के लिए खामोश होगई फिर पुछने लगी "अच्छा अगर मैं हाथ छोड़ दु तो? " वो ईसके आगे बात जोड़ते हुए "तो बापस थाम लुंगा " ,, वो ये जबाब सुन फिर पुछने लगी "अगर मैं चली गई तो? " इसपर भी उसने तुंरत जबाब दिया " मैं बापस ले आऊंगा "

    वो दोवारा पुछने लगी "अगर मैं ना आइ तो?" इसका जबाब भी उसके पास तय्यार ही था वो बोला " सबसे बड़ी बात मैं जाने दु और तुम खुद जायो तब न ", उसका जबाब सुन फिर से कुछ पुछने को हुइ ,,काफी देर से वो सबाल पुछे जारही है पर इस बार उसके पहले उसने अचानक एक सबाल किया

    युवान -अगर मैं कहु के मुझे तुमसे प्यार हो गया है तो तुम क्या कहोगी?

    वो अचानक ये सबाल पुछ लेगा इसबात का जरा सा भी अंदाजा नहीं लगाया उसने , इसीलिए ये सुन लाव्या के साथ उसके कदम रूक गये साथ ही शब्द भी रूक गये वो उसे एकटक देखने लगी ,वो कुछ पलो के लिए सांस लेना ही भुल गई,

    _________________

    वियांश का जबाब सुन तीशी बोली "कही ना कही मैं बगैर इजाजत के ही आपको आप से ले लिया और आपने.... " इस बात को पुरा करने के बजाय वो चुप होगई आगे के बात के बदले उसने अपने होंठो पर एक मुस्कान सजा लिया तो उसकी अधुरी बात सुन वो उसकी बात दोहराते हुए पुछने लगा  "और मैं...? "

    तीशी - म्म अभी नहीं बाद में बताऊंगी, वैसे भी आज बाद में तो हम फिर से मिलने बाले है तभी बताऊंगी,,,

    आगे की बात के बजाय ये सुन एक पल को वियांश ने सवालिया नजरों से उसे देखा ,, इतना बोल वो उसे देखने लगी, उसे अपनी ओर देखते देख वियांश की नजर उसपर ठहर गई इसबार तीशी उसकी नजर अपने ऊपर महसूस कर बोली "ऐसे ना देखिए द्विवेदी जी हमे शर्म भी  आती है,,"

    उसने शर्माकर कहा तो उसकी हरकते देख और बात सुन इसबार वियांश ने उसे देखा फिर उस पर नजर टिकाये ही बोला,,

    वियांश -सबकी नजर तुम पर ही टिकी हुई है तुम्हारी हरकतों की वजह से ,

    उसकी ये बात सुन तीशी उसपर नजरे टिकाये बोली

    तीशी - सबकी नजर मुझ पे है या नहीं मुझे इसकी कोई परवाह नहीं मुझे सिर्फ आपकी नजर चाहिये अपने ऊपर,

    उसका जबाब सुन वियांश कुछ बोला नही, कुछ पलो के खामोशी के बाद पुछने लगा "तो और कुछ कहना है आपको?" तीशी ने सोचकर कहा "म्म नहीं" तो कुर्ते के स्लिब्स ठीक करते हुए बोला "तो मैं चलता हु ",

    तीशी -इतनी जल्दी, (उसने मुंह फुलाया फिर बोली) ठीक है जाइये पर एक बात घर जाकर ना ये कुर्ता चेंज कर लिजिएगा क्योंकि कुछ ज्यादा ही हैंडसम लग रहे हो,

    ये सुन उसने कुछ कहा नहीं शायद उसके पास कहने के लिए शब्द नहीं है

    क्रमश....

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  • 16. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 16

    Words: 1131

    Estimated Reading Time: 7 min

    ये सुन उसने कुछ कहा नहीं शायद उसके पास कहने के लिए शब्द नहीं है,इसके बजाय उसकी नजर तीशी पर ठहर गई लग वो कमाल की लग रही थी ग्रीन सलवार कमीज़ में,दुपट्टा अभी सर पर ओर रखा है और बालों को पोनी टेल बांधा है कुछ जुल्फों के खुला छोड़ा है जो उसके चहरे पर आ रहे है , चहरे पर कोई मेकअप नहीँ बस होंठो पर हल्के गुलाबी रंग का लिप्सटिक लगाया है,, उसे देख वियांश की नजर कुछ पलों के लिए ठहर गई, उसकी नजर निहारती नजरों में बदल गइ उसे इस तरह अपनी तरफ देखतें देख तीशी कुछ बोली बल्कि वो पीछे हाथ बांधे  उसकी तरफ झुकते उसे देखा उसके होंठों से भले ही कोई शब्द नहीं निकला पर उसकी आखें बहत कुछ कह गई,

    शायद उसकी आखो को वियांश ने पढ़ लिया तो उसकी नजरे भी स्थिर होगई ,, पर आज पहली बार वियांश की गहरी  निगाहों में देख तीशी की नजर अस्थिर होंने लगी,,
    वो पलके झपकाने लगी जब उसे कोई बात नहीं सुझा तो वो बोलने लगी" आप को तो जाना है न ‍" इसपर वियांश बोला "हा जाना है " इतना सुन तीशी सीधे खड़ी हुइ तो वो उसपर से नजर हटाये जाने लगा, वो एक कदम ही बढ़ा था उसके आगे उसके पहले वो रुक गया साथ ही पीछे मुड़के देखा तो पाया तीशी ने उसका हाथ पकड़ रखा है , अपने और उसके हाथ को देख वियांश ने उसे देखा तो वो बोली

    ___________________
    युवान की बात पर लाव्या क्या कहे उसे समझ नहीं आया शायद उसके होंठ भी शब्द भुल गये वो चाहकर भी कुछ कह नही पारही, लाव्या के रूकने से युवान भी रूक गया उसे खामोश देख वो बोला "तुमने जबाब नही दिया?"  लाव्या इसपर कुछ कहने की कोशिश करते हुए बोली "वो मैं... " पर इसके कुछ कह नही पाइ तो ये अधूरी बात सुन उसका हाल और उसके अंदर चल रही हलचल को समझ उसकी तरफ मु़डा और जरा पास जाकर बोला . . ....

    युवान -अगर अभी तुम जबाब ना देना चाहो तो बाद में दे सकती हो , वक्त चाहिए तो ले सकती हो पर जबाब जरूर देना, और हाँ वक्त दिया है भुल जाने का या टाल देने का मौका नहीं,,
    ये सुन जबाब देने के बजाय लाव्या पलके झपका दिया तो  उसे देख मुस्कुराया और उसके पर से सरकता दुपट्टा सर पर रखने के साथ बोला "ऐसी प्यारी लग रही हो " और फिर से हाथ पकड़ ने साथ बोला "सातवा फेरा मतलब सातवा परिक्रमा पुरा करते हैं " लाव्या उसकी पर एक शब्द में पुछा "हाँ? " तो वो इसबार वो कुछ कहे बगैर उसे लिए चलने लगा ,लाव्या के कदम भी उसके संग चल परे,वो एकटक युवान को देखने लगी, उसे थोडा़ अजीब भी लग रहा है, खुशी तो हो ही रही है पर ये एहसास उसके दिल को गुदगुदा रहे हैं, वो चाहकर भी अपने धड़कनों को काबू नहीं कर पारही थी ना ही अपने लवो की मुस्कुराहट को छुपा पारही थी,वो इस पल का इंतजार कर रही थी पर जब आज ये पल ये वक्त सच में आया जब उसने इजहार करते हुए उस्से वो सबाल तब ये उसे ख्याब सा लगने लगा,उसे कहना तो था ढेर सारी बाते पर  नाजाने क्यों उसके होंठ तब सब शब्द भुल गये वो बस युवान की बाते सुनती रही अब भी उसने युवान को देख कुछ कहना चाहा पर कहे क्या,, ये सोच उसने अपने दातों तले होंठ दबा लिया और मन में खुद से पुछने लगी "क्या मैं अभी बता दु?" पर कुछ सोचते हुए ही बोली "नहीं अभी नहीं "

    ___________________

    तीशी ने वियांश का हाथ पकड़ उसे रोक लिया,जिस्से वो रूककर तीशी को देखने लगा तो वो बोली "मेरा दुपट्टा तो उड़के आपके बॉच में जाकर फसेंगा नहीं इसीलिए मेने खुद ही रोक लिया" उसकी बात सुन वो पुछने लगा "अब क्या कहना है आपको?"
    तीशी -कहना तो सिर्फ इतना है के खुद को सम्हाल ने का मौका देकर देखिए मुझे,,
    वियांश को लगा शायद तीशी नहीं सुना होगा तब उसने जो कहा पर शायद उसका सोचना गलत था वो किस बात पर क्या कह रही है ये समझ कर भी वो पुछने लगा "क्या? "
    तीशी -आप अच्छी  तरह जानते हैं मैं ऐसा क्यों कह रही हु,
    इतना कहते हुए उसने उसका हाथ धीरे से छोड़ दिया,,वो कुछ बोला नहीं बल्कि बस इतना बोला "तो ठीक है " इतना वो उसे पर से नजर हटाते हुए होंठो पर मुस्कान सजाकर वो सामने की तरफ मुड़ा और आगे कि ओर कदम बढ़ा दिए,,पर अपने उसके तीन शब्दों से तीशी को सोच में डाल गया क्योंकि वो उसके इस ठीक है का मतलब नहीं समझी क्या वो उसके बातो पर बोला या कुछ और,,, कुछ पलो तक वही खड़ी वो उसे जाये हुए देखती रही और सोचती रही जब उसकी आखों से ओझल होगया तब वो सर झपकाये फिर से वियांश की यादो मे और उसके बातो में खोये उसने भी कदम बढ़ा दिये,,
    _____________________

    आखरी परिक्रमा यानि सातवा परिक्रमा पुरा करने के बाद वो उस दीये को मंदिर में रखने लगे हैं , दीया रखते हुए लाव्वा सोचने लगी ख्याइश जल्द ही पुरी होगई,, ये सोचते और भगवान को शुक्रिया अदा करते हुए उसने आखें बंद कर हाथ जोड़ लिया,, युवान ने भी साथ में भगवान को नमन करते हुए हाथ जोड़ लिया,,
    तभी कुछ कदम चलने के बाद तीशी भी उस तरफ पहच गई आते ही उसने देखा आते ही उसने युवान और लाव्या को साथ देखा उन्हें देख वो गाल पर हाथ रख मन में बोली "हय दोनों कितने प्यारे लग रहे हैं साथ में " इतना बोलते हुए वो उनकी ओर चली गई,,
    ________________
    वियांश के जहन में तीशी की कुछ अजीब सी कुछ मन की बात जो उसने तब कहा वो सभी बाते , उसकी हरकते उसका हाथ पकड़ ना, उसका सादगी बाला खुबसूरत चहरा घुमे जारहा था,, तीशी की एक बात याद कर वो मन में बोलने लगा "ये लड़की सच में मजबूर कर देती है उसपर नजर टिकाने के लिए ",, कहते हुए वो अपने आप में ही मुस्कुरा उठा , उसने अपने हाथ को देखा जिसे कुछ ही देर पहले तीशी ने पकड़ा था, उस हाथ को देख उसी हाथ से उसने अपने बालो में हाथ फेरा,, पर उसे ये समझ नहीं आरहा तभी तीशी ने इतने यकीन से कैसे कहा के वो आज फिर से मिलने बाले है उसने कुछ पलो के लिए सोचा तो सही फिर खुद से मन में कहा "फिर से कुछ करने बाली है शायद",, ये सब कहते और सोचते हुए वो आगे चलने लगा,,,
    ____________________
    पंडित जी ने उन्हें आशिर्वाद दिया फिर प्रसाद दिया, इसके बाद,,,
    तीशी ने लाव्या से पुछा " अब कहा चलना है?"इसपर युवान बोला" कही भी चलते हैं (दोनों ने उसके बात पर साथ में पुछा"कहा?" ) जहा कदम चले " इतना बोलने के बाद उसने चलने का इशारा किया




    क्रमश....

  • 17. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 17

    Words: 1037

    Estimated Reading Time: 7 min

    वक्त बीतने लगा, उन्होने सब जगह घुम लिया था,,
    सुबह से दोपहर और दोपहर से धीरे धीरे सांझ होना लगा , सुरज पश्चिम की ओर ढलने लगा उसकी तेज रोशनी काफी हद तक खम होचुकी थी, एक तरफ जहाँ आसमान में रोशनी अभी भी बरकरार है तो वही एक तरफ सुर्खी छाइ हुई है ,उड़ते हुए बादलो के बीच ठहरे सुरज की सुर्ख रोशनी से आसमान भी सुर्ख रंग में इसकदर रंग गया मानो इश्क़ की सुर्खी उसपर भी छागई ,
    खेत के बीच बैठ ये नजारा बेहद रूमानी और मनमोहक लग रही है,,,

    सरसो के खेत में पीले फुलों का लबादा ओढ़े वो सब बेहद खुबसूरत लग रहे हैं, और हौले हौले से उड़ते हवायो के झोके जो , उन फुलो को सहलाकर जाते,,,
    एक बड़े के नीचे परे पथ्थर पर तीशी और लाव्या बैठी ये सब देख रहे थे , ये सब देख तीशी आखें बंद कर इस एहसास को अपने अंदर समेटने लगी, ये हवाये शरीर को छुकर दिल तक पहच रही है, जैसे जैसे हवाये उसके जुल्फों को छेड़ रही थी, चहरे को छु रही थी उसे ऐसा लग रहा है मानो ये वियांश की छुयन है, ये महसूस कर अचानक उसके आखों के आगे वियांश की गहरी आखों का नजारा घुम गया,, जो याद कर उसकी पलके एकाएक खुल गई,,,

    आखें खोल पलके झपकाये उसने लाव्या को देखा जो की उसे ही देखे जारही थी, तीशी ने जैसे ही उसे देखा तो वो आखों के इशारे से पुछने लगी "क्या हुआ? "तो उसने भी इशारे से कहा बाद में बतायेगी, इसके बाद वो कुछ कहती उसके पहले उसने मुड़कर युवान बोला " तुम दोनों बैठो मैं सौनक को कॉल करके आता हु " ये सुन तीशी ने सर हिलाया , तो वो दूसरी तरफ चला गया , उसे जाते देखतें हुए वो लाव्या से कहने लगी "तुझे पता है क्या हुआ ,मैं किस्से मिली?" उसके चहरे की चमक देख वो समझ गई तो उसने पुछा "वियांश से? " तो उसने जोर से सर हिला दिया ,

    तीशी -मैं तब गई पेड़ के पास तब उन्हें दूसरे मंदिर में देखा तो ..(कहते हुए उसने लाव्या को देखा, उसके चहरे से तो उतना कुछ समझ नहीं आरहा पर फिर भी वो समझके पुछने लगी) तो.क्या हुआ, भाइ ने कुछ कहा क्या तुझसे?, ‍(इस सबाल पर वो कहने लगी "हाँ कहा है वो..", उसकी ये बात सुन तीशी उसे देखने लगी क्योंकि पहले वो समझी नहीं थी इसीलिए पुछ रही थी) क्या? (पर ये पुछने के बाद वो खुद ही समझ गई तो हैरानी से पुछने लगी) क्या?क्या मैं जो समझ रही हु वही कहा क्या उन्होंने?(इसपर लाव्या ने जोर से  हाँ में सर हिलाया  तो वो आगे उसका हाथ पकड़ बोली) हय मैं बहत खुश हु, फाइनली कह ही दिया (ये सुन वो बोली "पर मेने अभी तक कुछ कहा नहीं "तो वो सबाल करते हुए बोली) पर क्यों? (उसके सबाल पर लाव्या ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला पर कहने के बजाय बोली " अभी नहीं बाद में बोलुंगी " इसपर पहले तीशी थोड़ा मु़ंह बनाया फिर बोली) चल़ो ठीक है,,

    इतना बोलते हुए तीशी ने अपने हाथ में पकड़ा सरसो का पीला फुल उसके कान लगा दिया में कहा "कुछ भी हो खुश तो मैं बहत हु " और उसके गाल खीचे ,,
    इसके बाद, युवान आगया उसे देख तीशी मन में मुस्कुराये जा रही थी कुछ बोली नहीं वो बल्कि उनकी फोटो लेने को बोल वो लाव्या को साथ लिए खेत के बीच चली गई,युवान ने दोनों की फोटो लेने लगा,,जब वो दोनों एक जगह खड़े हुए कुछ कह रहे थे तो युवान ने लाव्या की फोटो ले लि और कुछ पलों के लिए फिर से उसकी नजर उस पर ठहर गई,,,

    वो देखता रहा इसी बीच तीशी उसे लिए बापस आगई, उसके बाद वो तीनों थोड़ी देर वहाँ रूककर वो निकल गये,,
    कुछ देर बाद,,
    एक खुबसूरत सा घर जिसके चारों तरफ हरियाली थी, यहा कदम रखते ही तीशी के दिल में एक अजीब सी हर चल होने लगी आगे बढ़ते हुए उसने घर के दूसरी तरफ झाकके देखा ये वही जगह है जहाँ कल रात को दो बजे आइ थी, जहा उसने वियांश से बात किया था यानि ये वियांश का घर है,आगे कदम बढ़ाते हुए उसका मन मुस्कुराने लगा,,

    कुछ कदम चलने के वो दरवाजे की तरफ जाने लगे वओ पहचते उसके पहले , तभी तीनों के कानों से कोई आवाज़ टकराइ जो सुन तीनों ने साथ में उस तरफ देखा वहा कुछ नहीं था ये देख वो सामने की तरफ जाने बाले थे पर जाने से पहले ही तीनो चौक गये क्योंकि उनसे कुछ कदम दूर सौनक खड़ा था ,, अपनी ओर तीनों को इसतरह देखते देख सौनक पुछने लगा "क्या है ऐसे क्यों देख रहे हो तीनों मुझे?"उसके सबाल पर युवान पुछने लगा " तु अचानक कहा से प्रकट हुआ? "इसपर सौनक ने जबाब देते हुए "अरे बहा से होकर सीधा आय वाये तरफ आकर फिर सीधे आकर आया ऐसे प्रकट हुआ " उसका जबाब सुन तीनों ने सर पिट लिया,,,



    फिर वो कुछ कहते उसके पहले दरवाजा खुला सामने एक लड़की खड़ी थी ,उसे देख सौनक बोला "मैं आगया,,और ये सब भी तूमसे मिलने आये है श्रीना ‍" उसकी बात पर श्रीना ने भी नजर उन्हें देखा फिर बोली "मुझसे मिलने, अंदर आइये न " तो अंदर आगये,
    अंदर आते हुए ही तीशी पुछने लगी "तो कहिये श्रीना जी कैसी  आप? " उसके सबाल पर श्रीना के पहले सौनक बोल परा "ये तो बहत अच्छी है " ये सुन श्रीना ने उसे देखा तो उसने दांत दिखा दिये अब वो बोली "मैं बढ़िया हु आप सब बताइये "


    इसपर तीशी युवान दोनों ने कहा "हम तो वैसे ही है सेम है जैसे एक साल पहले थे " और लाव्या बोली "और मैं भी रोज जैसी ही हु" तीनों की बाते सुन श्रीना हंस परि,, फिर बैठ गये,, इधर उधर देख सौनक पुछने लगा "वंश नहीं दिख रहा ? "
    श्रीना- हा वो कही गये हैं आजायेंगे,और पापा भी काम पर गये हैं ,,
    उसने समझते हुए सय हिलाया, वही तीशी ने  पुछा "वंश कौन? " तो सौनक बोला "वंश मतलब वियांश वो मेरी उसके साथ बहत अच्छी जमती है इसीलिए मैं ही उसे वंश बुलाता हू " ये सुन कुछ सोचते हुए वो नजर घुमाये युवान को देखने लगी और सर झटका दिया,,




    क्रमश....

  • 18. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 18

    Words: 1098

    Estimated Reading Time: 7 min

    कुछ देर बाते करते रहे फिर श्रीना पुछा "अच्छा आपसब को चाय चाहिए या कॉफी ? " उसके सबाल पर लाव्या , युवान, सौनक ने कहा चाय कहा तो वही तीशी ने कॉफी कहा जो सुन तीनों ने साथ में उसे देखा तो उसने भी कहा "अच्छा चाय ही पीला दो अच्छी सी मसाला डालके " मसाले बाली बात सुन कोई कुछ कहता उसके पहले सौनक बोल परा "क्या मतलब मसाला डाल के तुझे क्या तरके बाली चाय पीनी है? " उसके अजीब से सबाल पर तीशी ने भी जबाब देतें हुए कहा


    तीशी - वैसे कभी ट्राय तो नहीं किया पर आप पीलोगी तो पी लुंगी और यूनिक चीजे ट्राय करनी चाहीए ,,
    उसकी बात जहा तीनो हैरानी से सुनते हुए उसे देख रहे थे वही श्रीना उठते हुए बोली "तो ठीक है , आपकी चाय स्पेशल बनाऊंगी " तीशी ने सर हिलाया तो वो रसोई की तरफ चली गई,,,

    उसे जाते देखते हुए सौनक उनसे पुछने लगा "तो मेरे बिना कहा कहा घुमे तीनों ?" तो तीशी सब बताने लगी बताने के बाद उसने आखीर में कहा " आज बहत मजा आया घुमके क्योंकि आप नहीं थे और आपकी पकाऊ बाते भी नहीं थी "उसकी बात पर सहमती जाते हुए युवान बोला "हाँ ये तो सही है " सौनक ने आखें छोटी कर बोला "हंह कुछ भी ‍",,,

    कुछ देर ऐसे ही बातों बातों में बीत गया श्रीना चाय लिये आइ सबके लिए,, और फिर सब बातो में लग गये काफी दिनों बाद तीशी, युवान श्रीना से मिले तीशी उस्से ढेर सारी बाते कर रही थी,, तभी

    तीशी ने सौनक को देखा जो की एक तरफ बैठा गाल से हाथ लगाये श्रीना को निहारें जारहा था पर श्रीना तो अपनी बातो में खोइ है उसे देख, तीशी ने फोन में गाना चला दिया,

    धानी सी धानी सी
    सरवति पानी सी
    धीरे धीरे से तेरी चाहत चढती है

    ये गाना सुन जाहा तीनो ने उसे देखा तो वही गाने के बोल सुन श्रीना पर नजर टिकाये सौनक के लव मुस्कुरा उठे, तो तीशी बोली "बस ऐसे ही "

    थोड़ी नादानी सी
    थोड़ी सैतानी सी
    धीमे-धीमे से तेरी आदत बढती है
    तू है तो मेरे रूबरू पर क्या करूँ यकीं ही नहीं आता,,

    (तीशी के आखों के आगे वियांश का चहरा घुम गया जिस्से वो मुस्कुराने लगी)

    शाम से सुबह करूँ देखा करूँ
    रहा भी नहीं जाता,

    (युवान जो की अपलक सा होकर लाव्या को देखे जारहा)

    अफ़ीमी अफ़ीमी अफ़ीमी है
    ये प्यार अफ़ीमी है तेरा मेरा प्यार हो अफ़ीमी अफ़ीमी अफ़ीमी है ये प्यार अफ़ीमी है तेरा मेरा प्यार

    (लाव्या ने भी इसबार पलट कर देखा,,)
    ( सौनक उठा और श्रीना के सामने अपना हाथ रखा उसके हाथ की तरफ देख उसने उसका हाथ पकड़ खड़ी होगई‍‍)

    थोड़ी पिघलती हूँ
    थोड़ी फिसलती हूँ

    (दोनों एक दूसरे में ढलते हुए गाने के बोल में ताल से ताल मिलाकर नाचने लगे, उनके अचानक इसतरह करने से तीशी और लाव्वा हुटिंग करने लगे)

    लास्खाके तेरी ही बाँहों में गिरती हूँ
    थोड़ी सरकती है थोड़ी खिसकती है नीयत बिगड़ के ये तुझसे ये सभालती है,

    (ये बोल सुन लाव्या की नजर एकाएक युवान की ओर चली गई)
    (सौनक ने उसे घुमाया और उसकी पीठ अपने सीने से लगाये कंधे पे चहरा रखा दोनों साथ में बहत प्यारे लग रहे हैं, )

    तेरे मेरे फासले
    बस आज से

    (उसने युवान के फोन मे गाना चलाया, तीशी का फोन बजा उसने देखा फिर उठ कर दूसरी तरफ चली )

    साँसों ही साँसों में गुमने लगे
    तेरे मेरे रास्ते

    (वो फोन को देखते हुए चल रही थी वो रिसीव करती उसके पहले किसी आहट महसूस हुई उसने नजरे उठाये देखा तो पाया उसके ठीक सामने वियांश खड़ा था, वही तीशी को यहा देख वियांश की नजर ठहर गई,, गाने की आवाज दोनों के कानों से टकराईं)

    बस आज से
    हो आँखों ही आँखों में मिलने लगे

    (वियांश ने उसे देख पुछा "तुम यहा?",, ये सबाल सुन तीशी उसके करीब कदम बढ़ाते हुए कहा " मेने कहा था हम फिर मिलेंगे "‍)

    अफ़ीमी अफ़ीमी अफ़ीमी
    है ये प्यार अफ़ीमी है

    (तीशी उसके करीब आकर ठहर गई उसे देख वियांश कुछ  कहने को हुआ उसके पहले तीशी ने उसके होंठों पर ऊंगली रख कहा " मुझे कुछ कहना है आपसे ")

    तेरा मेरा प्यार खुमारी खुमारी
    ना आये रे क़रार अफ़ीमी है तेरा मेरा प्यार

    इसी के साथ गाना खत्म हुआ, एक हवा सा आया दोनों के बीच खामोशी ले आया, उसके इसतरह होंठो पर ऊंगली रखने से वियांश बिल्कुल शांत होगया, वो कुछ पलो के लिए ठहरी फिर,अपने दिल में छूपाये रखे बात को और जज्बात को आज उसके होंठो ने शब्द दे दिया,,
    तीशी - आइ लव यू द्विवेदी जी,,

    उसके इन कुछ ही शब्दों ने वियांश को अपनी जगह बिल्कुल रोक दिया , उसकी आखें तीशी की आखों में एकटक देखे जारहा था उसके होंठो पर ऊंगली रखा हुआ है उसने, तीशी उसके कुछ कहने के पहले बोलने लगी,,

    तीशी- मेने तब कहा था न, मेने कही ना कही बगैर इजाजत के ही आपसे आप को ले लिया और आपने भी तो पहली नजर में मुझे मुझसे ले लिया, आपको पता है आप मेरे इश्क़ हो, पहली नजर का पहला इश्क़ , पहली बार आपको देखते ही धड़कने बढ़ गई थी, सांसें बेचैन होगई , दिल में हलचल सी होने लगी मैं ठहर गई, वो एहसास मेरे लिए बिल्कुल नया था समझ नही आया मुझे हो क्या रहा है?कहने को हम एक बार ही मिले थे पर उस पहली एक मुलाकात ने मेरे दिल में एक ऐसा नक्श छोड़ा जो ना मैं तब भुली ना अब , उस एक मुलाकात में ही आप ने  एक जादू सा चला दिया मुझ पर,हम दोनों जब मिले उसके दूसरे दिन हम बापस चले गए पर उसके बाद से कोई ऐसी रात नहीं जब आपका ख्याल ना आया, एक ऐसा लम्हा ना आया जब आपका चहरा नजरों के सामने ना आया इन एहसासों से बिल्कुल अंजान थी , समझना मुश्किल था मेरे लिए ये सब पर वक्त के साथ धीरे धीरे मेरे दिल ने इसे प्यार का नाम दिया ,जब समझ गई तो मेरे लिए अपनी दिल की बात छुपाये रहना मुश्किल लगने लगा, अपने दिल का हाल आपको सुनना चाहती  थी, अपने जज्बात को आपको बताना चाहती थी कल रात भी वही हुआ मैं कल अपने प्यार का इजहार करना चाहती थी, आप कहते है न मैं कुछ ज्यादा ही बोलती हु हा,यु तो मैं बहत बाते करती हु पर ये तीन शब्द कहने के लिए ना मेरी जुबां मेरा साथ देती ना मेरे होंठ शब्द दे पाते मुझे पर आज,नाजाने आज के दिन में क्या बात है आज आपने कौन सा जादू चलाया मुझ पर आज मेरे दिल कि बात आपके सामने रख दि,,




    क्रमश....

  • 19. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 19

    Words: 1029

    Estimated Reading Time: 7 min

    वो कहती जारही थी वियांश खामोशी से सुनता जारहा था
    शायद उस्से कहने को शब्द नहीं मिल रहे वही अपनी बात खत्म कर धीरे उसके होंठो से ऊंगली सरकाये अपनी जगह खड़ी रहकर ही तीशी ने उसके सीने पर सर टिका लिया , और आगे बोली "मैं प्यार करती हु आप से बहत ज्यादा प्यार वियांश " ये बोलते हुए उसने चहरा ऊपर किया और उसे देखते हुए अपनी बात खत्म कर उसने अपनी पैर की एरिया ऊपर कर वियांश के चहरे के करीब गई और उसके होंठो के बिल्कुल नजदीक अपने होंठ रख दिया ,
    और फिर उस्से अलग होकर बस इतना बोली "मुझे आपके जबाब का इंतजार रहेगा " इतना बोल वो उसे कुछ कहने का मौका दिए बगैर ही चली गई , फिर से वही हुआ तीशी किसी मधुर सी हवा की तरह आइ और उसके दिल को छुकर उसे सहलाकर चली गइ ,,



    उसे जाते हुए देख वियांश के मन में तीशी की बाते घुमने लगी, उसके घर पर तीशी से फिर से मिलना,उसका अचानक इजहार करना, इतना कुछ कहना सब कहना, सब कुछ हसीन ख्याब की तरह लग रहा है, सच मे आज कोई तो जादू सा चला है जो वियांश भी महसूस कर पारहा था उसके हाथ अनायासै अपने होंठो के नजदीक चले गये जहा तीशी ने अपने होंठो से छुया था, उसकी छुयन याद करते ही वियांश के होंठो पर लकीरें खीच गई
    वो खुद से बोल परा "फिर से ये  लड़की कुछ कहने का मौका दिए बगैर ही अपनी सुनाकर चली गई "


    इतना बोल वो कुछ पल को वही ठहर अंदर चला गया , अंदर के कमरे में आते ही उसने सबको देखा ,उसे देख सौनक बोला "ओये वंश कहा थे अब तक ? " उसका सबाल सुन वियांश बोला ,"घुमने गया था ,तुम बोलो कब  आये ?" उसके सबाल पर लाव्या बोली "हमे आये आधा घंटा होगया , (फिर उसे देख वो पुछने लगी) पुछोगे नहीं ये दोनों कौन....." उसका सबाल पुरा करने से पहले वियांश बोला "क्योंकि मैं दोनों से ही मिल चुका हु युवान से भी और तीशी से भी "उसके बात पर युवान ने सहमति जताते हुए सर हिलाया तो वही तीशी युवान को देख पुछा "कब?" तो वो बोला "पहले " ये जबाब सुन तीशी ने नजर घुमाय लाव्या को देखा उसने भी उसे देखा कुछ बोली नहीं,वियांश उन्हें देख बोला "मैं थोड़ी देर बाद आता हु " ये बोल वो चला गया,,,
    कुछ मिनट बाद ,,
    वो बापस लौटा कुछ देर तक यु ही चलती रही पर वियांश के आने के बाद तीशी कुछ चुप सी हो गई जिस पर शायद किसी ने ध्यान नही दिया पर लाव्या ने देख लिया,, वो समझ गई के कुछ तो हुआ है या कुछ तो किया है तीशी ने,पर अभी वो पुछ नहीं सकती,,,

    __________________
    कुछ देर बीत गयें ,, चारों चले गए ,,
    वियांश बैठे एक तरफ को देखे जारहा था , श्रीना उसे देख
    पुछने लगी "भाई क्या हुआ?" वियांश उसके सबाल पर बोला "हुआ तो बहत कुछ है" उसका जबाब सुन श्रीना
    उसके पास बैठते हुए बोली "वैसे तीशी हैं तो बहत अच्छी हैं न?, ऐसी मुझे भाभी मिल जाए तो मुझे तो बहत अच्छा लगेगा " ,, उसकी बात सुन वियांश ने उसे देखा फिर पुछा "तुझे पंसद है वो " तो तुंरत बोली "हाँ बिल्कुल पसंद है आपको नही है क्या? " वियांश ने इस सबाल पर तीशी को जबाब दिया था वही जबाब फिर से कहा "तो ठीक है" पर श्रीना उसके इस तीन शब्द का मतलब नहीं समझी वो असमझता से उसकी बात दोहराते हुए पुछने लगी "क्या मतलब तो ठीक है? " इसका जबाब देने के बजाय वियांश ने उसके गाल खींच कहा "खुद ही सोच ले,(इतना बोल वो उठा और आगे बोला) अच्छा रात का खाना मैं बनाऊंगा तु थोड़ा मदद कर दे " श्रीना ने बस सर हिलाया कुछ बोली नहीं वियांश चला गया वो उसे जातें देखते हुए उसके तीन शब्द का मतलब ढुंढते हुए खुद से बोली "शायद जल्द ही मुझे भाभी ..आ.. तीशी भाभी मिलने बाली है" इतना बोल मुस्कुराने लगी, इसके बाद वो वियांश की मदद करने रसोई चली गई,,
    _________________
    शाम की धीमी रौशनी धीरे धीरे रात के स्याह रंग बदल गई,
    युवान ने सौनक बता दिया के उसने लाव्या से अपने प्यार का इजहार कर दिया,,उसे देख चौकते हुए उसने पुछा ,
    सौनक -सच में? कब? कैसे ? (उसे इस तरह चौकते हुए पुछते देख युवान ने भी जबाब देते हुए पुछा " इसमें इतना चौकने बाली क्या बात है ") इतना कुछ हो गया और मैं जरा सा चौकू भी न अब सही से बोल तुने क्या कहा और उसने क्या कहा?
    इसबार बस इतना कहा "उसने तब जबाब नही दिया बाद में देगी " ये सुन समझतें हुए उसने सर हिलाया इसके आगे दोनों में से कोई कुछ कहता उसके पहले दरवाजे पर दस्तक हुइ और दरवाजा खोले तीशी आइ,आते ही दोनों को देख पुछने लगी "क्या बातें चल रही है? " तो सौनक बोला "बहत ही सिरियस बाते चल रही है जो तेरा जानना बहत जरूरी है " तीशी पलके झपकाये बोली "अच्छा?" ये बोलते हुए वो बैठ गई,,उसे बैठते देख सौनक उठकर बोला"हा तो युवान बंसल को.... कुछ कहना है " तीशी कहने लगी "क्या भाइ?" तो सौनक युवान को देख बोला "बोलो अब " तो युवान ने बालों में हाथ रखा फिर बोला

    युवान - तीशी चीखना मत ठीक है ‍(तीशी - चीखने बाली बात होगई तो जरूर चीखुंगी) अच्छा सुन मैं किसी से प्यार करता हु ,‍(सब जानने के बाद भी तीशी ये सुन अंजान बनते हुए पुछने लगी " किस्से? और कब से ") कब से, ज्यादा नहीं बस कुछ महीने हुए हैं (तीशी -कुछ महीने?" ये बोल वो मन में तुंरत बोली "झूठा कही का " फिर आगे बोली " खैर आगे" इसका आगे सौनक बोला "आगे आज इन्होंने अपने प्यार का इजहार कर दिया उस्से " ईसबार भी उसने पुछा "तो उसने इकरार किया या इंकार? ") उसने फिल्हाल तो इकरार किया ना इंकार उसे  थोड़ा वक्त चाहिए,(तीशी ने समझतें हुए सर हिलाया फिर पुछने लगी "ठीक है पर वो है कौन", इसपर सीधे जबाब देने के बजाय युवान ने कहा ) जो भी है तेरे पंसद की ही है,,






    क्रमशः..
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  • 20. पहली नज़र का पहला इश्क़ - Chapter 20

    Words: 1032

    Estimated Reading Time: 7 min

    यु्वान के जबाब के बदले ये सुन तीशी ने हैरानी से मुंह बनाकर देखा , तो सौनक युवान की बात सुन एकदम से बोल परा " बाह! भाइ क्या कहा है तुने "तीशी उसकी बात दोहराकर बोली " वही तो क्या कहा है? नाम पुछा मेने और..... " वो सबाल पुरा करती उसके पहले युवान बोला "अभी उसका नाम मैं तो बता नहीं सकता सिर्फ इतना बताऊंगा मै तुझे पंसद आयेगी " इसबार भी उसका सबाल तय्यार था "अगर नही आइ तो ?" तो वो मुस्कुराकर बोला "इस सबाल का कोई सबाल ही नहीं "
    उसे इतना यकीन से कहते देख तीशी ने इसबार कुछ कहा नहीं बस सर हिलाया,,,,


    रात के खाने बाद, बातों बातो में सोने का वक्त हो गया ,,
    तीशी ने आज भी लाव्या को‌ बुला लिया,,शाम से लाव्या जो बात पुछना चाहती थी उसने अब पुछ ही लिया,
    लाव्या - शाम को तब जब से वियांश से मिली है तब से थोड़ी बदली बदली सी लग रही है अब क्या किया तुने?

    तीशी - मेने? ना मेने कुछ नहीं किया मेने बस उनसे इतना कहा के मैं उतना बहत प्यार करती हु,पर तेरी तरह उन्होंने तभी कोई जबाब नही दिया बाद में देंगे,,(लाव्या- तुनी सच में कह दिया? ) अरे हाँ यार सच में कह दिया जैसे भाइ ने तुझे कहा वैसे ही मेने भी द्विवेदी जी से अपने प्यार का इजहार किया,(उसकी बाते सुन उसने उसे देखा फिर पुछने लगी "उसका जबाब क्या होगा?") जो भी जबाब होगा मुझे मंजूर होगा क्योंकि सच कहु तो उनके आखें तो बहत कुछ कहती है पर होंठ कुछ नहीं कहते और... .. (थोड़ा चुप होकर वो बोली) वो जो कहेंगे मुझे मंजुर होगा,


    उसके बात पर वो कुछ कह नही पाइ बस उसके कंधे पर  हाथ रखा,, इसबार तीशी उसे देख पुछा,,
    तीशी- अच्छा मेरी छोड़ तु बता तु कब हाँ बोलने बाली है? या घुमाने का इरादा है मेरे भाइ को?
    लाव्या उसके सबाल पर बोली "सोच के बताऊंगी" तो वो उसका सबाल दोहाराते हुए पुछने लगी "सोचके बतायेगी?" ,,
    उसके सबाल पर वो बोलने लगी "हाँ, अब सो जा,अगर तुझे नही सोना और खुली आखों से उसके ख्याब देखने है तो जरूर देख, पर मुझे सोने दे ",, इतना बोल वो आखें बंद कर लैट गई  तीशी उसे देखती रही,,वियांश से कही  अपनी ही बाते उसे याद आरही थी आखीरकार उसने अपने दिल की बात उसके सामने रख ही दि अब इंतजार है तो उसके जबाब का सब सोचते हुए उसके दिल में गुदगुदी सी होने लगी ,वो लैट तो गई सब सोचते हुए पर शायद ही उसे नींद आयेगी, बारबार कभी उसे वियांश का चहरा याद आ जाता कभी उसकी बाते कभी अपनी कही बाते उसके कानों में गुंजने लगती ,,

    कुछ देर बीत गये पर नींद उसके आखों से दूर चली गई वो लाव्या को जगाकर कहने लगी "लावी उठ ना यार मुझे नींद आरही " उसकी आवाज सुन लाव्या जो की सो गई थी वो आखें खोल पुछने लगी "क्या? " तो वो दोवारा बोली "मुझे नींद नहीं आरही " इसबार उसने कुछ कहा या पुछा नहीं बल्कि उसकी पीठ थपथपा कर उसे सुलाने लगी,, उसकी इस हरकत से वो उसे देखने लगी
    कुछ देर के कोशिश के बाद वो सो गई,,,

    धीरे धीरे ये रात ढल गई और एक नई सुबह दे गई एक नया किस्सा दे गई,,
    आज नितीश जी के करीबी दोस्त अश्विन ‍जी की बेटी आकाशा की मेहंदी है और मेहंदी के साथ आज से शादी के रस्मों शुभारंभ होती है ,,
    तीशी की नींद खुली, वो उठकर बैठ गई, उसने लाव्या को सोते हुए देखा तो बिना उसे जगाये वो उठ गई,,
    कुछ ही देर में लाव्या भी जाग गई,, उसने नजर घुमाय देखा तो तीशी को गैरमौजूद पाया तो वो भी उठ गई दरवाजा खोले वो‌ बाहर चली गई,, उसे सौनक दिखा तो उसने तीशी के बारे में पुछा तो उसने कहा "वो माँ के कमरे में हैं " ये सुन लाव्या ने सर हिलाया और उस कमरे की तरफ चली गई वो भी चला गया,,


    दरवाजा खोले वो अंदर गई, अंदर आकर ही उसने देखा तीशी सुष्मिका जी के सारी बिछाकर बैठी है,उसे देख वो पुछने लगी "ओये तुझे क्या सारी की दूकान लगानी है?"
    उसका सबाल सुन सुष्मिका जी बोली ,, "नहीं इसे दुकान नहीं लगानी ये सोच रही है ये किसी दुकान में आइ है तभी तो एक के बाद एक सारी निकाल देखे जारही है और इसे कुछ पंसद नहीं आरहा हैं न बेटा " उनकी बात सुन तीशी मुंह बंनाये बोली "क्या बुआ मैं क्या आपको परेशान कर रही हु ? ",,वो बोली "नहीं, पर कुछ तो पंसद कर ले "



    उनकी बात पर सहमति जताते हुए लाव्या ने कहा "हाँ हाँ" तो वो बोली तीशी "क्या हाँ हाँ आप दोनों को किस ने कहा के मुझे कोई पंसद नहीं आया? देखो ये सारी पंसद आई न" कहते हुए उसने एक खुबसूरत सी सारी उठाइ ग्रीन रंग की, जो दोनों ने कहा "हा अच्छा है " तीशी इतराकर बोली ‍" हा पता, तो ये सारी हैं लावी के लिए " ये
    सुष्मिका जी ने लाव्या पर सारी रखकर देखा और बोली "बिल्कुल जचेगी तुझ पर" दोनों की बात सुन लाव्या बोली "क्या? पर मैं तो.... " वो बात आगे बढ़ाती उसके पहले तीशी उसे टोकते हुए बोली "मुझे कुछ नहीं सुनना मैं सारी पहन रही हु तो तुझे भी पहनना होगा, तु कुछ नहीं कहेगी " तो वो अब बोली "अच्छा अच्छा ठीक है पहनुंगी पर तु? "


    तीशी -तेरे पास कोई सारी होगी? (लाव्या ने सोचके कहा "हाँ ") ठीक है तो चले तेरे घर,
    इतना कहते हुए वो उठी तो सुष्मिका जी बोली " मतलब यहाँ से और कुछ नहीं चाहिए? " तीशी ने ना में सर हिलाया,, फिर दोनों सारी रखने में सुष्मिका जी कि मदद करने लगी,,
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    सुष्मिका जी के घर के पास में लाव्या का घर था, लाव्या
    तीशी को लिए अपने घर चली गई,,आकर ही उसने स्वाती जी यानी लाव्या की माँ से मिली हाल चाल पुछ कर वो लाव्या के कमरे में चली गई,
    तीशी कहने लगी "ऐसी सारी दिखाना जिसमें मुझे देखके द्विवेदी जी को..... " वो बात पुरा करती उसके पहले लाव्या उसके बात टोक अपनी बात जोरते हुए बोली "हार्ट अटैक आजाये " उसके इस बात को सुन तीशी कहने लगी..




    क्रमश...