वैश्विक ऑबेराय, इंडिया का नंबर वन बिजनेसमैन , उसे क्यो करना पडा दो लडको से शादी
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मुंबई
एक आलीशान बिल्डिंग के पास एक BMW की लेटेस्ट एडिशन कार आकर रुकी। उसमें से लगभग पैंतालीस वर्षीय एक व्यक्ति उतरा। उसने काले रंग का बिज़नेस सूट पहन रखा था। साथ ही, उसके हाथ में लेटेस्ट एडिशन की रोलेक्स घड़ी थी।
वह आदमी विदर्भ ओबेराय था। वह ओबेराय इंडस्ट्रीज़ का मालिक था। उसकी कंपनी इंडिया की टॉप कंपनी मानी जाती थी। यह बिल्डिंग ओबेराय इंडस्ट्रीज़ का ऑफिस थी, जो बहुत बड़ा और लग्ज़ीरियस था। इसके इंटीरियर में काफी महँगी चीजों का उपयोग किया गया था।
वह ऑफिस में जाकर अपना काम करने लगा।
रात के समय वह अपने घर गया। उसका घर एक बहुत ही बड़ा विला था, जो एक महल जैसा था। वह अपने आप में बहुत सुंदर और लग्ज़ीरियस था। उसके इंटीरियर्स में सारी महँगी चीजों का इस्तेमाल हुआ था। वह विला अपने आप में वहाँ रहने वाले लोगों की संपन्नता को बताने के लिए काफी था।
विदर्भ तेज़ी से घर के अंदर आया। जैसे ही वह अंदर आया, उसने देखा कि उसका पूरा परिवार हाल में जमा था।
वह भी फ्रेश होकर उन सब के बीच बैठ गया। उसके बगल में उसकी पत्नी शालिनी थी। वह एक सोशल वर्कर और फैशन हाउस की ओनर थी। उनका सिर्फ़ एक ही बेटा था। उसका नाम वैश्विक था। वह अभी तक ऑफिस से नहीं आया था।
विदर्भ के साथ उसका छोटा भाई वरद था, जो अभी तैंतालीस वर्ष का था। उसकी पत्नी का नाम कशिश था। कशिश एक हाउसवाइफ़ थी। उसने पूरे घर को बहुत अच्छे से संभाला था। वह घर के काम में परफेक्ट थी। उन दोनों का एक बेटा कौशल था, जो अठारह वर्ष का ही था। उसकी बेटी सत्रह वर्ष की थी, उसका नाम कृतिका था।
उनके साथ ही उसके पिता वैदिक भी थे, जिनकी उम्र लगभग पैंसठ वर्ष थी। वे अभी भी हेड ऑफ़ फैमिली थे। इस फैमिली के सारे फैसले लेने का अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ इनके पास ही था।
इनकी पत्नी का नाम विदिशा था। इनकी आयु लगभग साठ वर्ष होगी। इस उम्र में भी ये बहुत सुंदर थीं। ये एक सोशल वर्कर थीं।
वे सब मिलकर शाम का नाश्ता कर रहे थे। तभी विदिशा ने कहा, "शालू, विशू आया है?"
"मम्मी जी, उसका फ़ोन आया था कि उसकी दो मीटिंग हैं, वह आज घर नहीं आएगा।" शालिनी ने कहा।
विदिशा ने अपने सिर को हिलाकर उसे मान लिया और बातें करनी लगीं।
सनशाइन होटल
मुंबई (काल्पनिक नाम)
यह मुंबई के सबसे बड़े होटलों में से एक था। यह एक लग्ज़ीरियस होटल था। यह बहुत महँगा होटल था, जिसमें केवल अमीर लोग ही आते थे।
मुंबई की सड़कों पर एक काले रंग की बहुत ही खूबसूरत कार दौड़ रही थी। यह कार लेटेस्ट एडिशन स्पोर्ट्स कार थी, जो अपनी तरह की दो ही थीं। दोनों कारों का ओनर इस कार में बैठा शख्स ही था।
कुछ देर बाद वह कार आकर सनशाइन होटल के सामने रुकी।
उसमें से एक लड़का उतरा। उसका पूरा चेहरा मास्क से ढका हुआ था। उसकी केवल कत्थई आँखें ही दिखाई दे रही थीं। वह पूरे एटीट्यूड के साथ अपनी कार की चाबी गार्ड को देकर खुद अंदर चला गया।
उस लड़के की हाइट लगभग छह फ़ीट थी। वह एक मस्कुलर बॉडी का मालिक था। उसने जिम में अपना पसीना बहा-बहाकर एक खूबसूरत बदन बनाया था। वह एक फेयर स्किन का मालिक था।
वह वहाँ से सीधे उस होटल के रूम नंबर तीन सौ दो में गया। वह जाते ही पूरे एटीट्यूड के साथ वहाँ मौजूद आदमी के सामने बैठ गया।
वह लड़का अपने सामने बैठे शख्स से कहता है, जिसकी उम्र लगभग तीस वर्ष थी। वह भी एक मस्कुलर बॉडी का मालिक था। उसकी हाइट लगभग सात फ़ीट थी। उसका नाम रजीत दीवान था। वह एशिया के टॉप फ़ाइव बिज़नेस मैन में से एक था। इसके साथ ही वह एक माफ़िया किंग भी था।
वह लड़का वैश्विक ओबेराय था। वह विदर्भ ओबेराय का बेटा था। वह इतनी छोटी सी उम्र में ही इंडिया का टॉप बिज़नेस मैन होने के साथ-साथ, वर्ल्ड के टॉप फ़ाइव बिज़नेस मैन की गिनती में आता था।
"मि. रजीत दीवान, आपने मुझे क्यों बुलाया? आपका मुझसे मिलने का क्या प्रयोजन है?" वैश्विक ने कहा।
"वैश्विक, उस दिन जब मैंने आपको देखा था, तब से ही पसंद करता हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे बॉयफ़्रेंड बन जाओ।" रजीत ने कहा।
"तो इस बात के लिए आपने मुझे बुलाया है? आई एम नॉट बिलीव इन लव एंड ऑल दिस बुलशीट। मेरे लिए यह सब सिर्फ़ फ़ालतू का टाइम पास है। इसलिए इस बात को यहीं खत्म करो।" वैश्विक ने कहा।
"क्या तुम किसी और को पसंद करते हो?" रजीत ने पूछा।
"मैं इन प्यार-मोहब्बत में यकीन नहीं करता।" वैश्विक ने कहा।
"मुझे इस बात से मतलब नहीं है कि तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हें चाहता हूँ तो तुम्हें मेरा बनना होगा, तेरी मर्ज़ी हो या ना हो। जो चीज रजीत दीवान को पसंद आती है, वह मेरी होती है।" रजीत ने कहा।
यह कहकर वह उसे उसी सोफ़े पर पुश करके उसके ऊपर आकर उसे किस करने की कोशिश करने लगा।
वह उसे किस कर पाता, उसके पहले ही एक जोरदार लात उसके दोनों पैरों के बीच में पड़ी। वह लात इतना जबरदस्त था कि वह घुटनों पर आ गया। उसने अपने हाथों से उस जगह को कवर कर लिया था। यह लात उसे और किसी ने नहीं, बल्कि वैश्विक ने मारी थी।
वैश्विक पूरी एटीट्यूड के साथ उठकर उसके पास आकर अपने घुटनों पर बैठते हुए कहता है, "एक और लात फिर से अगर मैंने मार दी तो कभी भी बच्चे पैदा करने लायक नहीं बचेगा। तू होगा बहुत बड़ा माफ़िया, पर मेरे साथ बदतमीज़ी करने की कोशिश ना करना बच्चे, मैं किसी को नहीं छोड़ता। जा किसी और के पास जाकर उसे अपने माफ़िया होने का रौब दिखा। अगली बार मुझसे उलझा ना तो ऐसा हाल करूँगा कि बिस्तर से उठ नहीं पाएगा। वैश्विक विदर्भ ओबेराय कोई खिलौना या चीज नहीं है कि तुझे पसंद आ गया तो वह तेरा हो जाएगा। तूने क्या मुझे एक कमज़ोर लड़का समझ लिया था? मैं एक आग हूँ, मुझे हाथों में लेने की कोशिश करोगे तो जलाकर रख दूँगा। मुझसे दूर रहना, अगर मैं अपने पर आ गया तो ना तेरा यह बिज़नेस बचेगा और ना तू माफ़िया बचेगा। साले ने पूरा दिमाग खराब कर दिया। अब घर जाकर माँ के हाथ की चाय पीनी होगी।" यह कहकर वह वहाँ से निकल गया।
वहीँ रजीत अभी भी अपने घुटनों पर बैठा था। "मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगा।" वह कहता है।
उसके मुँह से यह सुनते ही वैश्विक एक लात उसके पेट पर मारता है, जिससे रजीत के मुँह से खून निकल जाता है।
"धमकी नहीं देते बच्चा, मेरे कानों को बहुत चुभता है, इसलिए अपने को तकलीफ देने वाले को सज़ा ज़रूर देता हूँ। जैसे अभी तुझे दिया। ओके बाय, मीट यू सून। टेक केयर।" वैश्विक ने कहा।
यह कहकर वह अपने कोट को झाड़ते हुए निकल गया और कहता है, "कमबख्त की वजह से मेरे कोट पर सिलवटें पड़ गईं।"
अगले भाग में जारी.......
उस होटल से निकलकर वह अपनी कार में बैठ गया और सीधे अपने ऑफिस चला गया। जैसे ही वह ऑफिस पहुँचा, उसने देखा कि उसके कर्मचारी आपस में गॉसिप कर रहे थे।
एक कर्मचारी दूसरे से बोला, "ये वैश्विक सर मास्क में क्यों घूमते हैं?"
दूसरा बोला, "मुझे तो लगता है कि वह दिखने में बहुत खराब हैं। इसलिए अपने को छिपाकर घूमते हैं। आज तक उनकी एक भी फोटो पब्लिश नहीं हुई। और तो और सर ना ही किसी पब्लिक फंक्शन में बिना मास्क के रहते हैं और ना ही किसी प्राइवेट पार्टी में। इसलिए इतना बड़ा बिजनेस मैन होने के बाद भी इनका कोई अफेयर नहीं है।"
अपने कर्मचारियों की बातें सुनकर उसे बहुत हँसी आ रही थी। फिर वह अपने बॉस वाले अंदाज में कहता है, "आप सब यहाँ बैठकर क्या कर रहे हैं? GO to your work. I gave salary for work, not for gossip. आप लोगों के पास लगता है, फ़ालतू की बात करने के लिए बहुत समय है तो आज से एक घंटा ओवरटाइम कर लेना।" यह कहकर वह अपने पर्सनल लिफ्ट की तरफ़ बढ़ गया।
वह अपने केबिन में जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। फिर उसने अपना मास्क हटाकर अपने चेहरे को वाइप किया। तब तक उसका असिस्टेंट अमर उसके पास आ गया।
"गुड आफ्टरनून सर। यह क्या किए हुए हो, आपका यह ब्यूटीफुल चेहरा देखकर बहुत सारे लोग बेहोश हो जाने वाले हैं। आखिर इंडियाज मोस्ट हैंडसम मैन जो हो।" अमर ने कहा।
वैश्विक उसकी बात से चिढ़ते हुए बोला, "तू तो आज तक बेहोश नहीं हुआ।"
"मैं बेहोश होकर क्या करूँगा? तू तो मेरा भाई है।" अमर ने कहा।
"अमू यार एक कप अच्छी सी मसाला चाय बना दे, उस कमीने ने मूड खराब कर दिया। तू जानता है ना मुझे अपने कपड़े पर सिलवटें पसंद नहीं हैं।" वैश्विक ने कहा।
"खुद जाने की ज़रूरत ही क्या थी, अपने गार्ड्स में से किसी एक को भेज देता, दो मिनट में संभाल लेते।" अमर ने कहा।
"मैंने तीस सेकेंड में ही संभाल दिया साले को।" वैश्विक ने कहा।
"अभी की तेरी लैंग्वेज अगर तेरे घर वाले सुन लें तो सदमे से बेहोश हो जाएँगे कि उनके संस्कारी बेटे को ये क्या हो गया।" अमर ने कहा।
"अमू जाने दे यार, ये जो तेरे सामने है वही असली वैश्विक है। मैं लोगों को उनकी भाषा में जवाब देना पसंद करता हूँ। अगर वह टपोरी है तो मैं उससे बड़ा टपोरी हूँ।" वैश्विक ने कहा।
तभी उसके फ़ोन पर उसकी माँ का फ़ोन आया।
"हैलो माम, आप ठीक तो हैं? आज आपने ऑफिस में हमें कॉल किया, क्या हम इस बात का प्रयोजन जान सकते हैं? आप चिंता मत कीजिए, मैं ठीक सात बजे तक आ जाऊँगा। माम आप बुरा ना माने तो हमारे लिए खीर बना सकती हैं। आज हमें खीर खाने का मन है। साथ ही दाल भरी पूरी भी हो तो और भी अच्छा रहेगा। अगर आपको कोई कष्ट ना हो तो, आप कृपा करके मेरे लिए यह बना देंगी।" वैश्विक ने कहा।
कुछ देर तक बात कर वह फ़ोन रख देता है। जैसे ही वह फ़ोन रखता है, अमर जोर-जोर से हँसने लगा। फिर वह कहता है, "तुम तो अपनी माँ से भी ऐसे फ़ॉर्मल होकर बात करते हो। अच्छा है कि मैं वैश्विक ओबेराय नहीं हूँ।"
"मेरे घर में लोग ऐसे ही बात करते हैं। सबके बीच में एक आदर का भाव रहता है।" वैश्विक ने कहा।
"मैं तो यह सोच रहा हूँ कि अगर तेरी शादी एक नॉर्मल लड़की से हो गई, तब क्या होगा?" अमर ने पूछा।
"तुझे सच में लगता है कि कोई नॉर्मल लड़की को मेरे घर वाले अपनी घर की बहू बनाएँगे? उनकी बहू भी उनकी ही तरह की खोज कर लाएँगे।" वैश्विक ने कहा।
"भगवान करे कि तेरी शादी एक गरीब इंसान से हो जाए, जो पाँच रुपए खर्च करने के पहले उसका जोड़-घटाव करे। वैसा इंसान जब तेरे साथ तेरे उस विला में रहने आएगा तो क्या होगा?" अमर ने कहा।
"ऐसा अगर हो गया तो कमाल हो जाएगा। मैं तो सोच भी नहीं सकता कि मेरे घरवालों का क्या रिएक्शन होगा। वह तो शो ऑफ में यकीन रखते हैं।" वैश्विक ने कहा।
"ये ले, बात करते-करते तेरी मसाला चाय तैयार हो गई। ले पी। दो दिन से विदर्भ सर ऑफिस आ रहे थे। आपके बारे में पूछने पर मैंने कहा कि आप मीटिंग के सिलसिले में बाहर गए हैं।" अमर ने कहा।
"अच्छा किया, कुछ देर शांति से रहने के लिए ही क्लब गया था। अब यह सब छोड़ो, मुझे ज़्यादा बात नहीं करनी। मेरा शेड्यूल बताओ। और अभी ही सारे हेड ऑफ डिपार्टमेंट के साथ मेरी मीटिंग फ़िक्स करो। मुझे अपनी कंपनी के ग्रोथ रेट में आई कमी के बारे में कुछ प्लान बनाना है। भले ही यह गिरावट 0.006% है, पर फिर भी मुझे यह बात मंज़ूर नहीं है। मैं ऊपर चढ़ने में विश्वास रखता हूँ, नीचे आने में नहीं। I always wanted to be on top. अभी भी मुझे वर्ल्ड टॉप फ़ाइव बिजनेस मैन की सूची से टॉप बिजनेस मैन बनना है।" वैश्विक ने कहा।
"अभी थोड़ी देर पहले तेरा कुछ और मूड था। अभी तू बहुत ही डिफ़रेंट लग रहा है। मैं तेरे साथ बचपन से हूँ फिर भी तुझे समझना मेरे लिए मुश्किल है।" अमर ने कहा।
"ये भी मैं हूँ और वो भी मैं ही था। बस ये मेरे पर्सनालिटी के अलग-अलग पहलू हैं। जैसे मैं लड़ने में बहुत अच्छा हूँ। मैं एक अच्छा बिजनेस मैन हूँ। पर मैं बहुत खराब कुक हूँ। उसके भी खराब सिंगर और डांसर हूँ। मैं किसी के साथ भी रोमांटिक बातें नहीं कर सकता हूँ। मुझे किसी के साथ एडजस्टमेंट करने में बहुत दिक्कत होती है। मैं अपने कम्फ़र्ट में रहना पसंद करता हूँ।" वैश्विक ने कहा।
"अब जो बोला हूँ, वो करो। उनसे कहो कि उनके पास सिर्फ़ दस मिनट हैं। और मि. खन्ना वाले प्रोजेक्ट का क्या हुआ?" वैश्विक ने पूछा।
"वह प्रोजेक्ट पूरा हो गया है और उसकी क्लोज़र रिपोर्ट आपके डेस्क पर रखी है। उसके साथ ही मेहरा इंडस्ट्रीज़ के साथ के प्रोजेक्ट का भी करंट स्टेटस रिपोर्ट भी है। बाकी के सारे प्रोजेक्ट रिपोर्ट इस पेन ड्राइव में हैं। यह दो घंटे बाद में होने वाली मीटिंग की इनीशियल रिपोर्ट भी है।" अमर ने कहा।
"ओके, सबको मीटिंग रूम में आने को कहो, मुझे देरी पसंद नहीं है। उनसे कह देना कि जो लोग टाइम पर नहीं पहुँचेंगे, उनका आज आखिरी दिन होगा।" वैश्विक ने कहा।
उसकी बात मानकर अमर मीटिंग की तैयारी करने चला गया और वही वैश्विक अपने को फ़्रेश करने वाशरूम चला गया।
अगले भाग में जारी........
वैश्विक अपने हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट के साथ मीटिंग कर रहा था। उसने उस दिन अपने सभी हेड्स की मुश्किल बढ़ा दी थी। उसने अगले दस दिनों में उन सभी को क्या-क्या अचीवमेंट हासिल करना है, इसकी पूरी प्लानिंग बताई। करीब दो घंटे की मीटिंग के बाद वे लोग बाहर आए।
दूसरी ओर, मुंबई के एक छोटे से चॉल के एक घर में एक लड़का सोया हुआ था। वह बहुत ही बेतरतीब ढंग से सोया हुआ था। जैसे ही वह करवट बदला, बेड का पाया टूट गया। वह लड़का धड़ाम से नीचे गिर गया।
वह लड़का: "ऐ देवा, माझ्या बाबतीत असे घडल्याने मी कोणाचे काय नुकसान केले आहे? (मैंने क्या बिगाड़ा है किसी का जो मेरे साथ ऐसा होता है?) (मुझे मराठी नहीं आती, गूगल ट्रांसलेशन की मदद ली है। अगर कुछ भी गलती हो तो माफ़ करना)।"
वह धीरे से उठकर अपना फ़ोन देखा तो देखा कि सुबह के पाँच बज रहे थे। यह देखते ही वह तेज़ी से बाथरूम में घुसा, तो पानी बंद था। उसने बाल्टी में भरे पानी की मदद से फ्रेश होकर अपने ऑफिस के लिए कपड़े आयरन किए। फिर वह किचन में जाकर चाय और ब्रेकफास्ट में पोहे बनाकर रखे।
चलिए, इनसे मिलवा देती हूँ। यह हमारी कहानी के दूसरे मेन लीड, सर्वम रहाणे हैं। इनकी उम्र लगभग पच्चीस साल है। ये लगभग सात फीट की हाइट वाले, नॉर्मल फ़िज़िक के मालिक हैं। इनका रंग-रूप साधारण ही है, पर ये बहुत क्यूट लगते हैं। ये दिखने में अपनी उम्र से कम लगते हैं।
ये एक कंपनी में मामूली से क्लर्क हैं। ये पिछले चार सालों से इसी कंपनी में काम कर रहे हैं। इनकी स्टार्टिंग सैलरी सोलह हजार थी, जो अब बढ़कर बीस हजार रुपए हुई है।
चलिए, अब इनके बारे में थोड़ा और जान लेते हैं।
इनके घर में इनके साथ इनके पिता, महेश रहाणे भी रहते हैं। इनकी उम्र लगभग पैंतालीस साल है। वे अभी फ़िलहाल इधर-उधर घूमने के अलावा कुछ भी नहीं करते हैं। उनका यह मानना है कि उनके जैसे लोगों के लिए यह नौ से पाँच की नौकरी नहीं बनी। उनका जन्म एक बहुत बड़े मकसद के लिए हुआ है। उनके हाथ में राजयोग लिखा है। वे उसी योग का इंतज़ार कर रहे हैं।
ये जब सत्रह साल के थे, तभी उनकी शादी सुहाषी से हुई। वह उस समय सोलह साल की थी। वह अभी कितनी साल की है, यह बात किसी को नहीं बताती, क्योंकि उनका मानना था कि खूबसूरत औरतों को अपनी उम्र नहीं बतानी चाहिए, इससे उनकी खूबसूरती कम होती है।
जबकि ये दिखने में साधारण ही हैं, पर अपने को किसी अप्सरा से कम नहीं समझतीं। अगर कोई इनकी तारीफ़ ना करे, तो बहुत जल्द बुरा मान जाती हैं।
इनके कुल मिलाकर पाँच बच्चे हैं। सबसे बड़े बेटे सर्वम से तो आप मिल ही चुके। अब बाकियों से आपको इंट्रोड्यूस करा देती हूँ।
सर्वम के बाद शिवानी का नंबर आता है। यह अभी अठारह साल की है। यह बहुत समझदार है। यह दिखने में भी बहुत सुंदर है। यह अभी एक गवर्नमेंट कॉलेज में पढ़ती है। कॉलेज के बाद वह एक हास्पिटल में एज ए रिसेप्शनिस्ट काम करती है और अपना खर्च चला लेती है।
उसके बाद शिवेंद्र का नंबर आता है। यह एक नंबर का आलसी और कामचोर है। यह सरेआम गुंडागर्दी करते रहते हैं। इनकी लाइफ़ का एक ही लक्ष्य है कि वे आगे जाकर माफ़िया बनना चाहते थे। उसका कहना है कि यह दुनिया का सबसे इंटरेस्टिंग जॉब है, जिसमें जाने के बाद लोगों को पावर और पैसा दोनों मिलता है और पढ़ने की ज़रूरत भी नहीं होती। "(सीरियसली यार, माफ़िया बनना भी किसी का ड्रीम हो सकता है, अब इस बेवकूफ़ लड़के का है तो मैं क्या कर सकती हूँ। शायद ये यह नहीं जानता कि यह कितना रिस्की होता है।)" यह अभी सोलह साल के हैं। इन्हें सबसे ज़्यादा प्रॉब्लम पढ़ाई-लिखाई से है। पढ़ाई और इनके बीच वैसा ही नाता है जैसा नाता सास-बहू का होता है। वे हमेशा स्कूल के नाम पर अपने आवारा दोस्तों के साथ मटरगस्ती करने निकल जाते हैं। फिर भी ये अपने परिवार वालों की नज़र में एक आदर्श बेटे हैं क्योंकि इनके किसी भी कांड का रिपोर्ट उसके घर तक नहीं पहुँचता है।
अगला नंबर मालविका और मिराज का आता है। ये दोनों अभी सिर्फ़ बारह साल के हैं। ये दोनों दिखने में बहुत क्यूट हैं, पर असल में बहुत शरारती हैं। ये दोनों पूरा दिन भर खूब मस्ती करते हैं। इनके होने से ही पूरे घर में रौनक रहती है। ये दोनों भी अभी स्कूल में जाते हैं। ये दोनों ही जुड़वाँ हैं।
सर्वम: "आई आई! तू कुठे आहेस? मला उशीर झाला (तुम कहाँ हो? मुझे देर हो रही है)।"
सुहाषी: "काय झालं एवढा आवाज करतोयस? किती वेळा सांगितलंस बाहेरुन दार बंद करुन निघून जा। (क्या हुआ जो इतना शोर मचा रहा है? कितनी बार कहा है कि बाहर से दरवाज़ा बंद करके चला जा।)"
सर्वम: "पण नाही, सकाळी लवकर उठणे आवश्यक आहे, मला झोपूही देत नाही। (पर नहीं, सुबह-सुबह उठना ज़रूरी है, सोने भी नहीं देता।)"
उसकी बात सुनकर सर्वम उसके गले लग जाता है। फिर वह उसके पैर छूकर प्रणाम करता है और कहता है: "मी जाऊ शकतो, पण तुझा सुंदर चेहरा कसा पाणहार? आणि जर मी तुमचा आशीर्वाद घेतला नाही तर माझा दिवस खराब होईल. माझे नशीब किती वाईट आहे रे तुला माहीत आहे। (जा सकता हूँ, पर तुम्हारा यह सुंदर चेहरा कैसे देखूँगा? और अगर मैं तुम्हारा आशीर्वाद नहीं लूँगा तो मेरा दिन खराब हो जाएगा। मेरी किस्मत कितनी खराब है, यह तो आप जानती ही हो।)"
यह कहकर वह वहाँ से निकल गया। तभी उसके पीछे दौड़ती हुई उसकी बहन शिवानी आई। वह दौड़ते हुए सर्वम के कंधे पर हाथ रखती है तो सर्वम अपनी आँखें बंद किए हुए ही चिल्ला पड़ा: "हे देवा, मला माफ कर, मी आता काय केले (हे भगवान, मुझे माफ़ करो, मैंने अब क्या कर दिया)!"
उसका रिएक्शन देखकर शिवानी अपना सिर झटक दी। वह जानती थी कि उसका भाई इस दुनिया का सबसे डरपोक इंसान ना भी हो, फिर भी टॉप टेन डरपोक की श्रेणी में ज़रूर आएगा।
वह बोली: "भाऊ घाबरू नकोस, मी शिवानी आहे. मी तुझी बॅग द्यायला आलो. ये थे हे धरा। (भाई डरो मत, मैं शिवानी हूँ। मैं आपका बैग देने आई थी। ये लो इसे पकड़ो।)"
जब वह अपना बैग देखता है तो उसे याद आता है कि उसने अपना ऑफिस बैग छोड़ दिया था, जिसमें ज़रूरी कागज़ के साथ उसका लंच भी था। वह कहता है: "धन्यवाद. इथेच सोडले असते तर मला खूप त्रास झाला असता. त्यात महत्वाच्या फाइल्स होत्या। (शुक्रिया, अगर यह यहाँ छूट जाता तो मुसीबत में फँस जाता। इसमें बहुत ज़रूरी फाइलें थीं।)"
यह कहकर वह अपनी बहन के माथे पर किस कर उसे कुछ पैसे देते हुए, मलाड स्टेशन की तरफ चला जाता है।
अगले भाग में जारी...
सर्वम जल्दी से लोकल पकड़ने गया। उसका आफिस जुहू में था। वह तेज़ी से लोकल की लाइन में लग गया। तभी उसकी बदकिस्मती से वहाँ पर दो अलग-अलग लोकल के लिए लाइन लगी थी। उसे एक धक्का लगा और वह जुहू की जगह दादर जाने वाले लोकल की लाइन में आ गया, जिसका उसने ध्यान नहीं दिया था।
वह किसी तरह धक्का खा-खाकर लोकल में चढ़ गया और भगवान को धन्यवाद देते हुए कहा- "अरे देवा धन्यवाद! मी आज पहिल्यादांच वेळेवर आफिसला पोहोचेन।"
"हे भगवान आपका धन्यवाद, आज पहली बार टाइम पर आफिस पहुँच जाऊँगा।"
तभी उसने अपने बगल में खड़े एक बुज़ुर्ग आदमी से पूछा- "काका, जुहू स्टेशनला कधी पोहोणचार?"
"काका, जुहू स्टेशन कब तक पहुँचेंगे?"
उसकी बात सुनकर वह आदमी आश्चर्य से उसे आँखें फाड़कर देखने लगा। फिर वह बोला- "ही ट्रेन जुहू नव्हे तर दादरला जाणार आहे।"
"यह ट्रेन जुहू नहीं दादर जा रही है।"
यह सुनते ही सर्वम आश्चर्य से पीछे खिसक गया और एक औरत से टकरा गया। और उसका हाथ उस औरत की कमर को टच कर गया। जिस कारण उस औरत ने अपनी चप्पल उठाई और उसे मारने लगी-
"मुलीला छेडतो, शाना बनतो, आज मी तुझी सर्व बुद्धी हिरावून घेइन।"
"लड़की छेड़ता है, शाना बनता है, आज तेरी सारी अकलमंदी निकाल दूँगी।"
उसकी बात सुनकर सर्वम बोला- "काकी, तुम्ही माझा गैरसमज करत आहात, मी सभ्य आहे।"
"काकी, तुम मुझे गलत समझ रही हो, मैं शरीफ़ हू।"
उसकी बात का उस पर कोई असर नहीं हुआ और वह जमकर कूटा गया। थोड़ी देर बाद वह ट्रेन से नीचे उतर गया और जुहू के लोकल का वेट करने लगा। उसे बहुत चोट आई थी। वह छुट्टी लेने का सोचता है पर उसे ध्यान आता है कि उसका इमेज उसके आफिस में इतना अच्छा है कि कोई भी उसका विश्वास नहीं करेगा।
वह स्टेशन की बेंच पर बैठकर बोला- "हे देवा! माझा नशिबात असं लिहिलयं हे तुला काय अडचन आहे। जेव्हा मी आनंदी असतो तेव्हा मला पूर्वीपेक्षा जास्त वाईट वाटते।"
"हे भगवान, तुझे मुझसे ऐसी क्या दिक्कत है जो मेरी किस्मत ऐसी लिखी है। जब भी खुश होता हूँ, पहले से ज़्यादा दुःख मिलता है।"
ऐसे ही अपनी किस्मत को कोसता हुआ वह किसी तरह अपने आफिस पहुँचा। उसे आफिस पहुँचने में देर हो गया था। वह जैसे ही अंदर आता है, उसके पास एक प्यून आकर कहता है- "सरांनी तुम्हाला बोलावले आहे।"
"सर ने तुम्हें बुलाया है।"
सर्वम- "काका, सरांचा मूड काय आहे, ते रागावले नाहीत का?"
"सर का मूड कैसा है, वह गुस्से में तो नहीं है ना?"
वह आदमी कुछ ना बोलकर हँसकर चला जाता है। सर्वम उसकी बात मानकर अपने बॉस के केबिन में जाता है।
"अरे रे रे..... मैं यह बताना तो भूल ही गई कि मैं सर्वम जिस कंपनी में काम करते हैं, वो उस कंपनी के एमडी, मैं सार्वत्रिक बजाज के पीए हूँ।"
सार्वत्रिक बजाज एक लगभग सत्ताईस साल के उम्र के इंसान हैं। ये इंडिया के टॉप टेन बिज़नेस मैन में आते हैं, तो ऐसी बात बिलकुल नहीं है। यह एक छोटी सी कंपनी के मालिक हैं। यह दिखने में बहुत क्यूट लगते हैं। इनकी हाइट भी लगभग सात फीट ही होगी। इन्हें शो-ऑफ करना बहुत पसंद है।
यह अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा पैसे सिर्फ़ और सिर्फ़ लोगों को दिखाने में खर्च करते हैं। इसलिए इसने अपना आफिस जुहू में खोला है।
सर्वम- "May I come in sir....."
सार्वत्रिक- "अरे रे राणे, मेरे अहो भाग्य की आज आख़िरकार तुम्हारे दर्शन हो ही गए। मुझे तो लगा था कि स्पेशल कार्ड छपवाने पड़ेंगे आपके लिए।"
"यह दुनिया का पहला आफिस होगा, जिसमें बॉस अपने पीए से पहले आफिस में आया रहता है। मुझसे यही गलती हो गई कि कल मैंने तुझे अपना पीए बनाने का सोचा।"
सर्वम- "प्लीज़ सर माफ़ कर दीजिए। आप चिंता मत कीजिए, मैं कल से टाइम पर ही आऊँगा।" यह कहकर वह उसके लिए शेड्यूल बनाने लगा।
सर्वम करीब दस मिनट में ही सारा शेड्यूल बनाकर आया और सार्वत्रिक को बताने लगा। वह सारा शेड्यूल बताकर कहता है- "सर, आपको मेरा काम कैसा लगा? क्या मेरी सैलरी बढ़ सकती है? आपने कल कहा था कि आप आज ये बताएँगे।"
सार्वत्रिक- "O my my तुम सपने बहुत अच्छा देखते हो। तुम्हें अपनी परफ़ॉर्मेंस देखकर भी सैलरी हाइक की बात करते हो, you are soooooooooo awesome...."
"मैं तो तेरी सैलरी काटने के बारे में सोच रहा था। जानते हो, मैं बहुत दानवीर हूँ कि यह नहीं कर रहा। तुम ही बताओ कि पिछले चार साल में तुम कभी भी टाइम पर आफिस पहुँचे हो?"
सर्वम- "आगे से मैं ख्याल रखूँगा।"
सार्वत्रिक- "ये जो यहाँ फाइल रखी है, जाकर उसे कंप्लीट करो।"
सर्वम चुपचाप वह सारी फाइल लेकर उसे कंप्लीट करने लगा।
उसी समय सार्वत्रिक के डैड भी उसके केबिन में आते हैं। वह जैसे ही सर्वम को देखते हैं, अपना मुँह घुमा लेते हैं।
सार्वत्रिक के डैड- "सर्व, तू इसे नौकरी से क्यों नहीं निकाल देता? कितना बेकार है, कोई काम ढंग से नहीं करता है।"
सार्वत्रिक- "डैड, वह बहुत कामचोर नहीं है। बचपन से देखा है उसे, वह बहुत मेहनत करता है पर सच में उसकी किस्मत बहुत खराब है, वो जो भी करता है उसमें कुछ ना कुछ गड़बड़ हो जाता है और वह बेचारा मज़ाक का पात्र बनता है।"
"मैं लोगों की मेहनत की बहुत कद्र करता हूँ। उसे अपने सामने इसलिए रखा हूँ कि मैं यह याद रखूँ कि किस्मत बहुत बलवान होता है। अगर वह साथ ना दे तो आदमी की हालत खराब हो जाती है।"
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शाम के समय सर्वम वापस अपने घर लौट रहा था। वह जैसे ही सड़क पार कर रहा था, उसकी नज़र एक गरीब आदमी पर जाती है जो अंधा था और रोड क्रॉस कर रहा था। उसे वैसे देखकर अच्छा नहीं लगा और वह उसका हाथ पकड़कर सड़क के दूसरे ओर पहुँचा देता है।
यह करके वह बहुत खुश था कि चलो, वह आज किसी के काम आया। लेकिन उसकी यह खुशी ज़्यादा देर तक नहीं रही। उस गरीब ने उससे कहा- "तुम्हें मुझे इस तरफ़ पहुँचाने किसने कहा था? कितनी मुश्किल से उस तरफ़ पहुँचने की कोशिश कर रहा था, पर तेरी वजह से वापस वहीं आ गया, जहाँ से शुरुआत की थी। तुझ्यामुळे माझी सगळी मेहनत वाया गली।"
"तेरी वजह से सारी मेहनत बर्बाद हो गई।"
सर्वम को उसकी बात सुनकर अपनी गलती का एहसास होता है और वह उस आदमी को दुबारा रोड क्रॉस कराता है और माफ़ी माँगता है।
अगले भाग में जारी......
वैश्विक की मीटिंग एक लग्ज़ीरियस होटल के कमरे में चल रही थी। उसके साथ अमर भी था। आज उसके पास एक फ़ॉरेनर क्लाइंट आए थे।
उस क्लाइंट का नाम रिचर्ड था। वे लोग आधा घंटे डिस्कशन कर डील फ़ाइनल करते हैं। वैश्विक वहाँ से अमर के साथ निकला। तभी उसका ध्यान सामने स्टेज पर पड़ा। वहाँ लोग सब कुछ भूलकर खुद के लिए लाइफ जी रहे थे। वह सामने लगे टेबल पर बैठकर कहता है- "क्या कमाल की लाइफ है। ये लोग कितने खुश हैं। अपने लिए जीना जानते हैं। खुलकर अपनी लाइफ अपनी तरह जी रहे हैं। कोई पाबंदी नहीं है।"
तभी उसका ध्यान एक कपल पर जाता है। वे दोनों एक-दूसरे में खोये हुए थे। उन्हें दुनिया में किसी और की परवाह नहीं थी। वे दोनों एक-दूसरे के गले में अपनी बाहें डालकर डांस कर रहे थे।
फिर वे लोग गाना चेंज कराकर उस पर डांस करने लगे।
"We're just dancing
Hey honey we're just dancing
We're dancing the night away
We're just dancing
Hey honey we're just dancing
We're dancing the night away
दिल है मेरा दीवाना क्या
कहता है अब घबराना क्या
ताल पे जब झूमे बदन
हिचकिचाना शरमाना क्या
खुल के झूमो खुल के गाओ
आओ आओ यह खुल के कहो
It's the time to disco
It's the time to disco
कौन मिले है देखो किसको
It's the time to disco"
उन्हें डांस करते देखकर वैश्विक भी उनके साथ डांस करने लगा। आज वह भी सब कुछ भूलकर अपनी लाइफ इन्जॉय करना चाहता था।
"दिल है मेरा दीवाना क्या
कहता है अब घबराना क्या
ताल पे जब झूमे बदन
हिचकिचाना शरमाना क्या
खुल के झूमो खुल के गाओ
आओ आओ यह खुल के कहो
It's the time to disco
It's the time to disco
कौन मिले है देखो किसको
It's the time to disco
नो नो नो हे हे हे वो हो वो हो Come on come on come on come on come on
बलखाता है बदन ऐसी जो ताल है
सांसो मे चलती है आँधिया
बहकता है यह मन अब तो यह हाल है
मस्ती मे खोए है हम यहा
तुम भी खोके मस्त होके
कोई टोके तो खुल के कहो
It's the time to disco
It's the time to disco
कह दो मिलो जिस जिसको
It's the time to disco
We're just dancing(हो हो हो हो)
Hey honey we're just dancing(हो हो हो हो)
We're dancing the night away(हो हो हो हो)
We're just dancing
Hey honey we're just dancing
We're dancing the night away
वो हो वो हो
जोश मे नाचती रंगीन शाम है
बिन पिए झूमता है समा
होश का अब यहा बोलो क्या काम है
तेज़ है धड़कने दिल जवान
यूही रहना ठीक है ना
और है कहना तो खुल के कहो
It's the time to disco
It's the time to disco
समझो ज़रा तुम इसको
It's the time to disco
दिल है मेरा दीवाना क्या
कहता है अब घबराना क्या
ताल पे जब झूमे बदन
हिचकिचाना शरमाना क्या
खुल के झूमो खुल के गाओ
आओ आओ यह खुल के कहो
It's the time to disco
It's the time to disco
कौन मिले है देखो किसको
It's the time to disco
It's the time to disco
It's the time to disco
कौन मिले है देखो किसको
It's the time to disco"
डांस परफॉर्मेंस खत्म होने पर वैश्विक फिर से आकर अमर के पास बैठ गया। अमर लगातार उसे देखकर हँस रहा था।
उसे लगातार हँसता देखकर वैश्विक चिढ़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इतना हँस क्यों रहा है।
वैश्विक- "यार आज लाइफ में पहली बार डांस कर बहुत मज़ा आया। काश इस तरह बेफ़िक्र होकर मैं भी अपनी लाइफ जी पाता। मुझे भी इसी तरह अपनी लाइफ इन्जॉय करनी है।"
अमर- "देख यार, सब कुछ करना, पर दुबारा डांस मत करना। इससे ख़राब डांस आज तक मैंने किसी का नहीं देखा। यार तेरा डांस परफॉर्मेंस देखकर मुझे इस बात की बहुत खुशी हुई कि तू डांस नहीं करता।"
"अगर तुझे मेरी बात पर यकीन नहीं है तो यह देखो," कहकर वह अपना फ़ोन उसके सामने रख दिया। उसने वैश्विक के डांस परफॉर्मेंस की वीडियो बनाई थी जिसमें वैश्विक अपना हाथ-पैर आड़ा-तिरछा जैसे-तैसे चला रहा था। वह डांस परफॉर्मेंस से ज़्यादा ऐसा लग रहा था कि वह पागल है।
अपनी डांस वीडियो देखकर उसे भी बहुत हँसी आ रही थी। अमर के साथ-साथ अब वह भी जोर-जोर से हँस रहा था। थोड़ी देर बाद वे दोनों शांत हो जाते हैं।
वैश्विक- "सच में यार, आज बहुत मज़ा आ गया। आज पहली बार लाइफ में खुलकर इतना हँसा हूँ। वरना मेरे घर में जरा सी तेज आवाज़ सुनकर लोग कहने लगेंगे- वैश्विक यह किसी शरीफ़ आदमी के रहने का सलीका नहीं है। आपको अपनी हैसियत याद रखनी चाहिए। शोर मचाना शरीफ़ घर के लोगों पर नहीं जचता है।"
"बिना बात का हँसना, पागलपन होता है।"
अमर- "यार, मुझे एक बात समझ नहीं आती कि तुम अपनी लाइफ से खुश क्यों नहीं हो। तेरे पास हर चीज मौजूद है। जो नहीं है, वह खरीदने की ताकत रखते हो।"
वैश्विक- "मैं दुनिया की सारी आइटम खरीद सकता हूँ। आज मैं एक सक्सेसफ़ुल बिज़नेस मैन हूँ। पर मेरे घर में किसी के पास एक-दूसरे के लिए टाइम ही नहीं है। मेरे अचीवमेंट पर खुश होने के लिए टाइम नहीं है।"
"किसी के पास दूसरे से बात करने का वक़्त ही नहीं है। जब मैं बीमार पड़ता था, तो मैं माँ को खोजता था, तो उनकी जगह पर नौकर आते थे।"
"जब मैं माँ को बुलाने कहता तो मुझे जवाब मिलता कि मैं एक मिडिल क्लास इंसान की तरह बिहेव ना करूँ।"
"हास्टल मुझे नहीं जाना था। पर परंपरा अनुसार मुझे वहाँ भेज दिया गया। मेरे घर में किसी को किसी के इमोशन से मतलब नहीं है। वे लोग शो ऑफ़ करना पसंद करते हैं।"
"मुझे क्लास में ढेर सारे मार्क्स लाने चाहिए थे। इसलिए ताकि लोगों को दिखाया जा सके कि वैश्विक विदर्भ ओबेराय ने उनके बच्चों से ज़्यादा मार्क्स लाए हैं।"
"कभी अगर मुझे अपनी माँ के हाथ का खाना खाना रहता था तो मैं एक आम इंसान की तरह यह नहीं बोल सकता कि माँ आज आप आलू पूरी बना दीजिए। मुझे यह बोलना पड़ता- माँ अगर आप फ़्री हो और आप बनाना चाहें तो मेरे लिए यह बना सकती हैं।"
"इसलिए जहाँ पर भी मैं सिर्फ़ वैश्विक बन सकता हूँ, वह बनकर रहता हूँ। जैसे आज की तरह हर पल इन्जॉय करना चाहता हूँ।" तभी उसकी फ़ोन पर अगली मीटिंग का नोटिफ़िकेशन आया और वह वहाँ से उठकर बाहर निकल गया।
अगले भाग में जारी...
सार्वत्रिक अपने घर आया। उसके घर में माम और डैड ही रहते थे। वह अपने माम और डैड की इकलौती औलाद था। उसके माम और डैड उस पर जान छिड़कते थे।
उसकी माम का नाम झलक था। वह लगभग पचास साल की होगी। उसके डैड का नाम शुभम था। वह एक बिजनेस मैन थे।
"मेरा बेटा आ गया। कितनी देर बाद तुझे देखा हूँ। चलो शाम का नाश्ता कर लो।" यह कहकर उसने उसका हाथ पकड़कर डायनिंग टेबल पर बिठाया। फिर उसने उसका फेवरेट नाश्ता, पोहे और लस्सी, उसे दिया। धीरे-धीरे उसने अपने हाथों से उसे खिलाना शुरू किया।
उसकी माम के लिए वह अभी भी छोटा बच्चा ही था। उसने उसे खिलाकर उसकी नज़र उतारी। जिससे सार्वत्रिक चिढ़ गया।
"माम, दुनिया चाँद पर चली गई है, पर आप अभी भी यह नज़र उतारना करती हो। मैं इन सब पर विश्वास नहीं करता।"
"ये एक माँ का प्यार है जो उसे इस बात के लिए मजबूर करता है। तेरे पैदा होते समय ही ज्योतिष ने कहा था कि तेरे वाइफ को तेरे अलावा एक और हसबैंड होगा। चाहे जो भी हो, तुम तीनों एक साथ रहोगे।"
"क्या माम, आप भी कैसी बात कर रही हैं? मैं ऐसी लड़की से शादी क्यों करूँगा जो शादीशुदा रहेगी? फिर हँसते हुए कहता है कि चलिए, एक पल के लिए यह मान लेता हूँ कि किसी मैरिड इंसान से शादी करूँगा तो पहले उसका डायवोर्स होगा, तब ही ना करूँगा।"
"तू मेरा कितना भी मज़ाक बना ले, पर किस्मत का लिखा नहीं बदल सकता।"
"ठीक है। मैं इसे बदलकर रहूँगा।"
"अच्छा बाबा, सब ठीक है, बस तू गुस्सा मत रहा कर। समझा, मुझे अच्छा नहीं लगता।"
"माम, आपसे तो मैं सपने में भी नाराज़ नहीं हो सकता। अगर आपसे नाराज़ हो जाऊँगा तो मुझे लोरी कौन सुनाएगा? माम, बहुत नींद आ रही है, लोरी सुना दो ना।"
"इतना बड़ा हो गया है, पर लोरी के बिना नींद नहीं आती।"
"माम, इसमें मेरी गलती नहीं है। आज तक आपने बड़ा होने ही नहीं दिया।"
"आपकी बहू भी ना आकर ताने मारेगी कि अब तो बड़े हो जाइए। कब तक अपनी माम की पल्लू में पड़े रहोगे।"
"इसमें भी गलती मेरी है। तू तो खुद बड़ा होने का नाम नहीं लेता। सुबह जब तक उठाऊँ ना तो महाराज बारह बजे दिन तक भी ना उठेगा।"
"अगर कपड़े में ठीक से ना रखूँ तो कुछ भी ना मिले, बड़ा आया है मुझे बोलने वाला… हूह्ह्ह्ह्ह्ह"
सार्वत्रिक अपने कान पकड़कर उठक-बैठक लगाते हुए कहता है- "मुझे माफ़ कर दो, वरना ऐसा ही करता रहूँगा। फिर मेरा हाथ-पैर दर्द होगा।"
"नौटंकी कहीं का, चल आ मेरे पास, लोरी गा देती हूँ। सो जा, वरना नौटंकी करता रहेगा।"
वहीं दूसरी ओर, सर्वम अपने घर पहुँचा तो आठ बज गए थे। उसका सामना मिराज और मालविका से हुआ जो पूरे हाल में एक-दूसरे पर कुशन फेंककर खेल रहे थे। उन दोनों की वजह से कुशन फट चुका था और उसकी पूरी रुई हाल में उड़ रही थी। पूरा हाल का सारा सामान इधर-उधर हो चुका था।
सर्वम यह देखकर हैरान रह गया। फिर वह हँस पड़ा। फिर वह जोर से कहता है- "तुम्ही काय करत आहात? संपूर्ण घर उद्धवस्त झाले आहे. आता इथून निघून जा।"
(तुम लोग क्या कर रहे हो? पूरा घर का सत्यानाश कर दिया। अब जाओ यहाँ से।)
उसकी बात सुनकर वह दोनों ऐसे भागे जैसे उनके पीछे पागल कुत्ते पड़े हों।
सर्वम जल्दी से पूरा हाल सही से व्यवस्थित करता है। फिर उसका ध्यान आता है कि उसकी आई और बाबा उसे नहीं दिखे। शिवेंद्र भी नहीं है।
यह याद आते ही वह मिराज और मालविका को आवाज देते हुए कहता है- "मिराज, आई कुठे आहे?"
(मिराज, आई कहाँ है?)
"आई शेजारच्या आंटीकडे सिनेमा बघायला गेली आहे।"
(माँ पड़ोस की आंटी के पास मूवी देखने गई है।)
सर्वम यह सुनकर अपना सिर झटककर किचन में चला जाता है और वहीं से चिल्लाकर पूछता है- "तू नाश्ता केलास का?"
(तुमने नाश्ता किया?)
इस पर उसके भाई-बहन ने नहीं कहा। वह अपने और अपने भाई-बहनों के लिए नाश्ता बनाकर लाता है।
"भाऊ, तुला चहा हवा आहे का?"
(भाई, चाय पियोगे, बना दूँ?)
"तू तूझा नाश्ता शांतपणे कर, मला काही प्यायचे नाही।"
(तू चुपचाप अपना नाश्ता खा, मुझे कुछ नहीं पीना।)
यह कहकर वह उन्हें डाँटते हुए नाश्ता कराते हुए कहता है- "खा आणि तुमचा गृहपाठ करा. नाहीतर आयुष्य माझ्यासारखे होईल।"
(खाकर अपना होमवर्क कर लेना, वरना लाइफ मेरी तरह हो जाएगी।)
उसकी बात सुनकर शिवानी जो वहाँ आ गई थी, वह बोल पड़ती है- "भाऊ, काय झालं? तू तुझ्याबद्दल असं का म्हणत आहेस? आपण या जगातील सर्वोत्तम व्यक्ती आहात. तुझ्यासारखं ह्रदय कोणाला नसेल।"
(भाई, ये क्या बात हुई? आप अपने बारे में ऐसा क्यों बोल रहे हो? आप इस दुनिया के सबसे अच्छे इंसान हो। आपके जैसा दिल किसी के पास नहीं होगा।)
"चांगल्या मनाने मी काय करू? नशीब स्वतःच पूर्णपणे उद्धवस्त आहे. हे संगळं सोडा, मी रडत राहते. तुमचा दिवस कसा होता?"
(अच्छे दिल लेकर क्या करूँगा? किस्मत तो पूरी बर्बाद है। ये सब छोड़ो, मेरा तो रोना चलता रहता है। तुम्हारा दिन कैसा रहा?)
उसके बाद दोनों भाई-बहन एक-दूसरे से बात करने लगे। थोड़ी देर बाद सुहाषी और महेश आते हैं। महेश आते ही कुर्सी पर बैठता है और कहता है- "मी अतिशय थकलोय. मला एक ग्लास पाणी दे।"
(मैं बहुत थक गया हूँ, एक ग्लास पानी दो।)
सर्वम उन्हें पानी का ग्लास पकड़ा देता है। फिर वह उनके पास बैठकर कहता है- "बाबा, तुम्हाला काय खायला आवडेल?"
(बाबा, आप क्या खाना पसंद करिएगा?)
फिर वह किचन में आता है। उसके साथ शिवानी भी थी। वह दोनों जल्दी-जल्दी डिनर बनाते हैं और उसे खाकर सोने जाते हैं।
सर्वम सोने की जगह बालकनी में बैठा था। तभी शिवानी उसके पास आई। उसके हाथ में चाय का कप था, वह कप उसकी ओर बढ़ाते हुए कहती है- "भाऊ, आता मला सांगा तुमचा मूड खराब आहे।"
(भाई, ये बताओ कि तुम्हारा मूड खराब क्यों है।)
जिस पर वह सुबह से हुई सारी घटना बता देता है। फिर वह कहता है- "आता ही तुम्ही म्हणाल माझे नशीब वाईट नाही।"
(अब भी तुम यही कहोगी कि मेरी किस्मत बुरी नहीं है।)
"होय, माझा अजूनही यावर विश्वास आहे. एक दिवस तुमच्या आयुष्यात कोणीतरी येईल जो तुमच्यावर खूप प्रेम करेल।"
(हाँ, मेरा अब भी यही मानना है। एक दिन तेरी ज़िंदगी में कोई आएगा जो तुझे बहुत प्यार करेगा।)
अगले भाग में जारी.......
सर्वम शाम के समय अपने माता-पिता के साथ बैठा था। वह उनके पास बैठकर शाम का नाश्ता कर रहा था।
सर्वम- "आई, तुम्हें मुझसे क्या बात करनी है?" (मां, आपको मुझसे क्या बात करनी है)
सुहाषी- "मुझे तुम्हारी शादी करवानी है।"
सर्वम- "पण क्यों?" (लेकिन क्यों?)
सुहाषी- "मैं तुम्हारी शादी करके लाखों रुपये दहेज लूँगी।"
सर्वम कुछ और नहीं बोला। उसे पता था कि उसके बोलने या न बोलने का कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। उसे वही करना होगा जो उसकी माँ चाहेगी। वह चुपचाप शादी के लिए तैयार हो गया।
उसी समय शिवानी सर्वम के पास आई। सर्वम किचन में जाकर अपने लिए चाय बना रहा था। शिवानी आकर उसे गले लगा लिया।
सर्वम ने भी उसे कसकर गले लगा लिया। वह जानती थी कि उसका भाई दहेज की बात सुनकर परेशान है, पर वह हमेशा की तरह माँ की खुशी के लिए कुछ नहीं कहेगा।
वहीं सर्वम की माँ उसके लिए ऐसी लड़की ढूँढने लगी जो उसे लाखों रुपये दहेज दे सके।
कुछ दिन बाद, सर्वम ऑफिस से आकर बैठा था, तभी उसकी नज़र हाल में बैठे लोगों पर गई। वह हाल में बैठे लोगों को पहचानने की कोशिश करने लगा, पर पहचान नहीं पाया।
तभी उसके कानों में उसकी माँ की आवाज आई-"सर्वम, यहाँ आकर बैठो। यह प्रीति है, जिससे तुम्हारी शादी होने वाली है।"
सर्वम अपनी माँ की बात मानकर चुपचाप वहाँ आकर बैठ गया। वहाँ प्रीति के अलावा उसके माता-पिता भी थे। वे लोग इधर-उधर की बातें करते हुए पाँच लाख रुपये दहेज देने की बात कर रहे थे।
लगभग दस दिन बाद उसकी सगाई की बात हुई। उसकी शादी तीन महीने बाद होने वाली थी। यह सुनकर सर्वम सामान्य ही रहा, पर प्रीति बहुत खुश थी।
कुछ देर बाद, जब शिवानी आई तो उसे सब बात पता लग गई। वह सीधे सर्वम के पास आकर बैठ गई जो खिड़की से बाहर चाँद-तारे देख रहा था।
शिवानी- "क्या हुआ? यहाँ ऐसे क्यों बैठा है?"
सर्वम- "कुछ नहीं हुआ, ऐसे ही यहाँ बैठा हूँ।"
शिवानी जानती थी कि उसका भाई कभी भी अपने आप को एक्सप्रेस नहीं कर पाता। उसके पिता ने तभी अपनी नौकरी छोड़ दी थी, जब उसका भाई मैट्रिक में था। उतनी छोटी सी उम्र से ही वह माँ के साथ छोटे-मोटे काम करके घर के खर्च में हाथ बटाने लगा था।
वैसे ही उसने अपनी कॉलेज तक की पढ़ाई की थी। उसके घर में उसके भाई की खुशी से किसी को कोई मतलब नहीं था क्योंकि वह किसी भी बात के लिए कुछ नहीं बोलता था।
पूरे परिवार की चिंता ने उसके भाई को एक कॉम्प्लेक्स कैरेक्टर बना दिया था। उससे कोई न कोई गलती हो ही जाती थी।
शिवानी थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करके वहाँ से चली गई। वहीं सर्वम वैसे ही बैठा रहा। वह बोल पड़ा-"मुझे यह शादी नहीं करनी है, पर यह बात बता नहीं पा रहा हूँ। मुझे एक और ज़िम्मेदारी नहीं चाहिए।"
तभी वह गाने लगा। वह बहुत ही अच्छा गाना गाता था। वह बचपन से ही सिंगर बनना चाहता था, पर परिवार के कारण उसने अपने सपनों को काफी पीछे छोड़ दिया था। अब वह शायद ही कभी गाता था। उसके गाने की आवाज सुनकर शिवानी सर्वम के पास आने लगी। उसे अपने भाई का गाना बहुत पसंद था। पर जब वह गाने की लाइनें सुनती है तो उसे अपने भाई के लिए बहुत बुरा लग रहा था।
सर्वम गाने लगा-
रास्ते का पत्थर
किस्मत ने मुझे बना दिया
जो रास्ते से गुज़रा
एक ठोकर लगा गया
रास्ते का पत्थर
कितने घाव लगे हैं
ये मत पूछो मेरे दिल पे
कितने घाव लगे हैं
ये मत पूछो मेरे दिल पे
कितनी ठोकर खाई
ना पहुँचा फिर भी मंज़िल पे
कोई आगे फेंक गया तो
कोई पीछे हटा गया
रास्ते का पत्थर
किस्मत ने मुझे बना दिया
जो रास्ते से गुज़रा
एक ठोकर लगा गया
रास्ते का पत्थर
पहले क्या कर पाया
क्या इसके बाद करूँगा मैं
पहले क्या कर पाया
क्या इसके बाद करूँगा मैं
जा री जा ऐ दुनिया क्या
तुझको याद करूँगा मैं
दो दिन तेरी महफ़िल में
क्या आया क्या गया
रास्ते का पत्थर
किस्मत ने मुझे बना दिया
जो रास्ते से गुज़रा
एक ठोकर लगा गया
रास्ते का पत्थर
हीरा बनके चमका हर
एक मुसाफ़िर को रोका
हीरा बनके चमका हर
एक मुसाफ़िर को रोका
ये उम्मीद भी टूटी
लोगों ने खाया धोखा
हर एक उठा कर मुझको
फिर यहीं गिर गया
रास्ते का पत्थर किस्मत ने
मुझे बना दिया
जो रास्ते से गुज़रा
एक ठोकर लगा गया
रास्ते का पत्थर किस्मत ने
मुझे बना दिया
जो रास्ते से गुज़रा
एक ठोकर लगा गया
रास्ते का पत्थर
यह सुनकर शिवानी हाथ जोड़कर कहती है-"अरे देवा, मेरे भाई को बहुत कष्ट हुआ है। अब उसके जीवन में कोई ऐसा इंसान भेजो जो मेरे भाई से निस्वार्थ प्रेम करे।"
वहीं दूसरी ओर सर्वम की माँ बहुत खुश थी। वह बार-बार यही सोच रही थी कि कब तीन महीने बीतें और वह लखपति बन जाए।
उसने सोच लिया था कि वह इन पैसों को कहाँ-कहाँ खर्च करेगी। उसी समय उसका पति महेश कहता है-"उस पैसे में से पचास हज़ार रुपये मुझे भी दे देना। इससे बिज़नेस करके मैं भी राजा बनूँगा। धीरे-धीरे मेरा बिज़नेस इतना बड़ा हो जाएगा कि मैं दस कंपनियाँ और खोल लूँगा।" वे लोग अपना ख्याली पुलाव पका रहे थे।
उन दोनों को अपनी सुख-सुविधा के आगे सर्वम की खुशी या चाहत का कोई मोल नहीं था। वे लोग इस बात को समझ ही नहीं पाते थे कि सर्वम के दिल में क्या है। वह क्या चाहता है। वह कभी भी कुछ नहीं बोलता था तो सबको ऐसा ही लगता था कि वह बहुत खुश है। सिर्फ़ शिवानी यह समझती थी कि उसका भाई खुश नहीं है। वह जब भी इस बारे में अपने माता-पिता से बात करना चाहती थी तो सर्वम उसे रोक देता था।
अगले भाग में जारी........
आज वैश्विक की एक फॉरेन क्लाइंट के साथ मीटिंग थी। उसकी शर्त थी कि वैश्विक उसके साथ अकेले ही मीटिंग करने आए।
अमर को यह शर्त बहुत अटपटी लग रही थी।
"यार, ये क्या बात हुई। मुझे लगता है कि इसके पीछे बहुत बड़ी साज़िश है," वह वैश्विक से कहता है।
वैश्विक उसकी बात सुनकर स्माइल करते हुए अपने टेबल पर रखा पेपर वेट घुमाने लगता है। फिर अचानक ही उसे रोक देता है।
अमर उसकी हरकत देखकर ही समझ जाता है कि वैश्विक के दिमाग में कुछ योजना बन गई है। वह देखता है कि वैश्विक के हाथ में रखा spinner नच रहा है।
अमर अपने मन में सोचता है- "आज इसके अंदर का डेविल जाग चुका है और अब मुझे इससे ज़्यादा इसके सामने मौजूद शख्स की चिंता होने लगी।"
कुछ देर बाद वैश्विक आराम से कार से अपनी मीटिंग के लिए निकल गया। कुछ देर बाद उसकी कार एक सुनसान सड़क पर चल रही थी। जैसे ही वह कुछ दूर पहुँचता है, वह देखता है कि कुछ कारें उसकी कार का पीछा कर रही थीं।
वैश्विक यह देखकर कहता है- "यार, कुछ तो नया ट्राय करते। यह सब हथकंडे अब पुराने हो गए।" वो कारें वैश्विक तक पहुँच पातीं, उससे पहले ही वैश्विक ने अपनी कार इतनी स्पीड में चलाई कि कुछ ही मिनट में उसकी कार हवा से बात कर रही थी। कुछ ही मिनट में उसने उन कारों को काफी पीछे छोड़ दिया।
करीब बीस मिनट बाद वह उस जगह पहुँच जाता है जहाँ उसकी मीटिंग होने वाली थी। यह एक पुरानी हवेली थी जो देखकर सुनसान लग रही थी। यह देखकर वैश्विक कहता है- "Impressive मानना पड़ेगा कि थोड़ा बहुत ही सही, कुछ तो प्लान तैयार किया है।"
फिर वह पूरे एटीट्यूड के साथ उस हवेली के अंदर जाता है। वह हवेली अंदर से बहुत ही खूबसूरत थी। वहाँ लगभग पच्चीस गार्ड्स तैनात थे।
वैश्विक भी पूरे हवेली पर ध्यान देते हुए उस कमरे में जाता है। वह पूरे एटीट्यूड के साथ सामने रखी किंग चेयर पर बैठ जाता है। यह देखकर वहाँ मौजूद आठ लोगों के हाथ गुस्से से बँध गए।
फिर वैश्विक अपने पैरों को सामने रखे टेबल पर पसार देता है। वह अपने हाथ में पकड़े spinner को घुमाने लगा।
यह देखकर उसके सामने मौजूद शख्स, जिसने उसे मीटिंग के लिए बुलाया था, कहता है- "मि. वैश्विक ओबेराय, यह क्या तरीका है? आपको इतनी भी बेसिक सेंस नहीं है कि जब आप किसी के पास मीटिंग के लिए जाते हैं तो होस्ट की बात मानी जाती है।"
वैश्विक वहाँ टेबल पर रखा सिगरेट लेकर उस शख्स के मुँह में रखकर लाइटर से ऑन करके कहता है- "यार, मैनर्स गया तेल लेने, ये वैश्विक ओबेराय वही करता है जो वह चाहता है।"
"तुम लोग सच में इतने बेवकूफ हो, तुमने क्या सोचा था कि तुम लोग वैश्विक ओबेराय को अकेले बुलाकर मार दोगे?"
"वैश्विक ओबेराय खुद में ही एक आर्मी है। जिस चीज़ के लिए बुलाया है, वो करने की हिम्मत तो करो।"
उसके इतना बोलने की देर थी, उसके सामने बैठा शख्स सिगरेट कश लेकर कहता है- "मानना पड़ेगा कि तुम सही में बहुत इंटेलिजेंट हो। यह जानते हुए भी कि हमने यहाँ तुम्हें तुम्हारी जान लेने के लिए बुलाया, फिर भी यहाँ आ गए। सच में कोई इंसान इतना बेवकूफ कैसे हो सकता है?"
"अब जब तुम यहाँ आ ही गए हो तो हम अपना काम पूरा कर लेते हैं।" यह कहकर वे लोग अपने हथियार निकाल लेते हैं। उन सब के हाथ में चाकू था।
यह देखकर वैश्विक जोर-जोर से हँसने लगा। फिर अचानक ही शांत होकर कहता है- "इन मामूली हथियारों से मुझे डराना चाहते हो? जो करना चाहते हो कर लो, मैंने तुम्हें पाँच मिनट दिए। अगर इतनी देर में मुझे मार पाए तो ठीक, नहीं तो अगले पाँच मिनट में तुम सब जमीन फाँकते नज़र आओगे।"
उसका इतना ही बोलना था कि वे आठों एक साथ उसके ऊपर हमला कर देते हैं। वे लोग वैश्विक को कुछ नहीं कर पाते क्योंकि उन सब के चाकू टेबल में धँस जाते हैं। क्योंकि वैश्विक ने टेबल को उठाकर अपने सामने ले आया था, जिससे सारे चाकू उस लकड़ी की टेबल में धँस जाते हैं।
अब वे लोग टेबल से अपनी चाकू निकालकर एक के बाद एक चाकू से वैश्विक पर हमला करने लगे। वैश्विक भी वहाँ मौजूद चीज़ों को अपने सेफ्टी टूल की तरह इस्तेमाल कर रहा था।
तभी वहाँ मौजूद एक शख्स बोल पड़ा- "तुमने तो हमें पाँच मिनट दिए थे कि हम तुम्हें मार पाएँ, तो फिर अपने को डिफेंड क्यों कर रहे हो?"
वैश्विक उसकी बात सुनकर कुछ कहता, उसके पहले ही एक आदमी उसके पेट पर चाकू से हमला कर देता है। वह उस आदमी का हाथ पकड़, उसके हाथ को मरोड़ देता है जिससे उसके हाथ में पकड़ा हुआ चाकू नीचे गिर गया। फिर वह उस शख्स से कहता है- "मैंने अपने आप को मारने का चैलेंज किया था, मैंने यह नहीं कहा कि मैं बलि का बकरा की तरह बलिदान हो जाऊँगा। साला हल्कट, एक फाइट भी करना नहीं आता। मेरा लड़ने का पूरा मूड खराब हो गया।"
"मैंने सोचा था कि कमिने तुम लोग अपनी जान लेने के लिए कुछ तो धांसू प्लान किया होगा, पर तुम लोग तो टोटल वेस्टेज निकल गए। खाली फोकट अपना टाइम खराब हो गया। साला इतने कम टाइम में तो माँडवली भी नहीं करते। अब बहुत हो गया। अब मैं अपना टाइम और खोटी करने से रहा।"
"आइला, अपना बहुत ही तेज़ ये लैंग्वेज सीख डाला। इसी बात पर अब मेरा मन तुम सब को पीटने का कर रहा है।"
यह कहकर वह एक आदमी के पेट पर एक जोरदार लात मार देता है जिसके कारण वह आदमी जमीन पर गिर गया। तभी उसके ऊपर दूसरे आदमी ने रॉड से हमला करना चाहा पर उसने एक हाथ से उस रॉड को पकड़कर दूसरे हाथ से एक जोरदार पंच उसके मुँह पर मार देता है जिससे उस शख्स के मुँह से खून का फव्वारा बह निकला।
उसने तीन मिनट के अंदर ही बिना किसी हथियार के ही उन सब को जमीन पर पहुँचा दिया था। वह पूरे एटीट्यूड के साथ चलकर खुद उस आदमी के पास जाकर बैठ जाता है और कहता है- "अपन तेरे को मार सकता था, पर मैं ऐसा करेगा नहीं। तेरे को एक मौका देता हूँ कि सुधर जा, अगली बार ऐसा कुछ करने का सोचा भी तो कुछ करने लायक नहीं छोड़ूँगा।"
यह कहकर वह उस कमरे से निकलकर बाहर जाने लगा तो गार्ड्स ने रास्ता रोका। वह सबको पीटकर आराम से वहाँ से निकल गया। फिर वह अपनी कार में आकर अपने कपड़े चेंज कर वहाँ से निकल जाता है।
अगले भाग में जारी.......
कुछ दिन बाद, आज सर्वम की इंगेजमेंट थी। वह बिल्कुल भी नहीं चाहता था कि वह ऐसा करे, पर अपने आई-बाबा की खुशी के लिए वह यह सगाई कर रहा था।
पूरे घर को सजाया जा रहा था। घर के मुख्य द्वार पर तोरण लगाया गया था।
सर्वम ने आज छुट्टी ली थी। वह भी घर के काम में हाथ बटा रहा था। वह जानता था कि अगर उसने खुद से सारे काम ना किए तो कुछ भी ढंग से नहीं होगा।
"आई, इतना खर्च आवश्जजयक आहे क्या? पावसाळ्यात घराचे छत गळते, तेही दुरुस्त करावे लागेल।"
(आई, इतना खर्च करना जरुरी है क्या? बारिश में घर की छत टपकती है, उसे भी सही कराना होगा।)
सर्वम की बात को ना मानकर, वैसी ही बड़े जोर-शोर की तैयारी हो रही थी।
शाम का समय हो गया था। अब तक सगाई की सारी तैयारी हो चुकी थी। अब सब लोग घर में तैयार हो रहे थे।
सर्वम भी सगाई के लिए तैयार हो गया था। आज उसने traditional maharashtrian dress पहनी थी, जिसमें वह बहुत सुंदर लग रहा था।
शाम को सगाई का कार्यक्रम शुरू हुआ। प्रीति ने भी traditional maharashtrian साड़ी पहनी थी। वह भी इस लुक में बहुत अच्छी लग रही थी।
इस सगाई में बस कुछ अड़ोस-पड़ोस के घर-परिवार के लोग, कुछ रिश्तेदार और दोस्त लोग शामिल हुए थे।
सुहाषी, प्रीति के आई-बाबा से सगाई शुरू करने कहती है।
"बहन जी, मैं अपने सबसे बड़े गेस्ट का वेट कर रही हूँ। बस उन्हें आ जाने दीजिए, फिर सगाई शुरू करते हैं।"
उसकी बात मानकर सुहाषी भी आगे कुछ और नहीं कहती है।
वहीं दूसरी ओर, प्रीति लगातार चोर नज़रों से सर्वम को देख रही थी, वहीं सर्वम का ध्यान अपने छोटे भाई-बहन पर था कि शैतानी ना करें।
प्रीति के साथ उसकी सहेलिया भी थी, जो लगातार प्रीति के साथ मज़ाक कर रही थी। प्रीति को सर्वम बहुत पसंद आया था।
कुछ देर बाद, एक बड़ी सी गाड़ी सर्वम के घर के पास आकर रुकती है। उसमें से एक बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व उतरता है। वह बहुत प्रभावशाली था। उसे आया देखकर प्रीति और उसके घर वाले स्वागत के लिए आते हैं।
उस व्यक्ति का नाम आचार्य रघुवीर था। वह एक बहुत ही पहुँचे हुए सिद्ध महात्म्य थे। उनका लोहा पूरा मुंबई मानता था। उनकी बोली हुई हर बात सही होती थी।
उन्हें वहाँ आया देखकर वहाँ मौजूद सारे लोग आश्चर्य में थे, क्योंकि रघुवीर जी कहीं आते-जाते नहीं थे।
प्रीति और सर्वम के घरवाले पूरे आदर के साथ उन्हें अंदर लेकर आते हैं। उन्हें अपने घर आया देखकर महेश और सुहाषी अपने घर आए मेहमान को यह जताने में आगे थे कि उन्होंने अपने बेटे के लिए कितना बड़ा घर ढूँढा है।
सार्वत्रिक भी सर्वम के बुलाने पर उसकी सगाई में आया हुआ था। वह और सर्वम स्कूल के दिनों से एक साथ थे।
प्रीति की माँ, डैड, सुहाषी और महेश, प्रीति और सर्वम को आचार्य जी का आशीर्वाद लेने के लिए कहते हैं।
वह दोनों एक साथ आकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। सुहाषी सार्वत्रिक को भी आशीर्वाद लेने कहती है। वह भी रघुवीर का आशीर्वाद लेता है।
प्रीति की माँ आचार्य जी को बताते हुए कहती है- "गुरुदेव, यह सर्वम रहाणे है। इसके साथ ही हमने अपनी बच्ची प्रीति की शादी तय की है। आज उन दोनों की सगाई है। आप दोनों बच्चों को अपना आशीर्वाद देकर अनुग्रहीत करें।"
रघुवीर उसकी बात सुनकर हल्के से मुस्कुराने लगा और एक नज़र सर्वम और प्रीति पर डालते हुए कहता है- "असंभव, यह कार्य तो हो ही नहीं सकता। तू किस्मत का लिखा नहीं बदल सकती। इस लड़के के नसीब में एक लड़के का साथ लिखा है। इसकी यह किस्मत आज से नहीं, सैकड़ों साल पहले लिखी जा चुकी है। तुम लोग कुछ भी यत्न कर लो, आज यह सगाई नहीं होगी।"
उसकी बात सुनकर सर्वम, प्रीति, सार्वत्रिक और सारे लोग शॉक में रह गए। यह बात उन पर एक बम की तरह गिरी थी।
वह सारे लोग स्तब्ध होकर खड़े थे। तभी वहाँ पर प्रीति की चाची आती है और कहती है- "भाभी आप इतना क्यों सोच रही है? ये भी तो हो ही सकता है ना कि गुरुदेव से गणना करने में गलती हुई हो। जब सारे लोग यहाँ मौजूद ही हैं तो फिर सगाई आखिर कैसे नहीं होगी? मेरी बात मानकर जल्द से जल्द सगाई करा दो।"
उसकी बात वहाँ मौजूद सारे लोगों को सही लगी। वह लोग रघुवीर से आज्ञा लेने लगते हैं।
"अगर तुम लोग कोशिश करना चाहते हो, तो करके देख लो, पर सच्चाई यही है कि यह कार्य पूर्ण नहीं होगा।"
सुहाषी और महेश जल्दी से सर्वम को लाकर प्रीति के पास खड़ा कर देते हैं। प्रीति की माँ प्रीति के हाथ में सगाई की अंगूठी देती है।
प्रीति सर्वम का हाथ पकड़कर जैसे ही उसे अंगूठी पहनाने जाती है, ऊपर लगा पंखा अपने आप खुलकर नीचे गिर जाता है और सर्वम का हाथ प्रीति के हाथ से छूट जाता है।
यह देखकर वहाँ मौजूद सारे शख्स आश्चर्य से भर गए। तभी अचानक ही उस जगह का वातावरण बदल गया। वहाँ बहुत तेज हवाएँ चलने लगीं, साथ ही अभी तक जो मौसम सही था, वह बहुत ही ज्यादा खतरनाक हो गया था। वहाँ पर बहुत तेज बिजली और पानी पड़ने लगा।
हवा इतनी तेज थी कि लोगों का सही से खड़ा होना भी मुश्किल था। लोग मौसम में आए इस अचानक बदलाव पर हैरान रह गए।
सर्वम सबसे पहले उसी हवा का सामना करते हुए अपने भाई-बहन को एक सेफ जगह पर रखता है। उसी समय बिजली इतनी तेज कड़कती है कि डर से प्रीति के हाथ से इंगेजमेंट रिंग गिरकर खो जाता है। यह जैसे ही होता है, अचानक ही सारा वातावरण शांत हो गया। अब ऐसा लग रहा था कि जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
यह देखकर सार्वत्रिक सर्वम के ऊपर हँसते हुए कहता है- "यार सर्वम, तू सच में यूनिक पीस है। जैसा किसी के साथ नहीं होता है, वो तेरे साथ होता है। सच कहूँ, अगर मैंने अपनी आँखों से यह सब नहीं देखा होता, तो सच कहता हूँ, इन बातों पर कभी यकीन नहीं करता।"
सिर्फ़ सार्वत्रिक ही नहीं, उसके दोस्त और रिश्तेदार भी मुँह छिपाकर उस पर हँस रहे थे। सर्वम की सगाई टूट गई थी। सारे लोग वापस लौट गए।
अगले भाग में जारी......
सर्वम को भी समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है। आखिर ऐसी कौन सी शक्ति है जो यह नहीं चाहती कि उसकी सगाई हो? कहीं उसके ऊपर किसी चुड़ैल का साया तो नहीं आ गया? यह सोचकर ही उसके रोंगटे खड़े हो गए। वह ऐसे ही इन सब पर ज़रूरत से ज़्यादा विश्वास करता था। वह डरकर हनुमान चालीसा का मन ही मन में जाप करने लगा। फिर वह प्रार्थना करते हुए कहता है- "हे भगवान, मुझे बचा लो। अब से हर मंगलवार आपके मंदिर आकर 250gm लड्डू चढ़ाऊँगा।"
सर्वम की सगाई टूट गई। जो कुछ भी हुआ, वह देखकर प्रीति के घरवाले बहुत डर गए थे। वे लोग सगाई तोड़ देते हैं। वे लोग तेज़ी से वहाँ से निकल गए। यह देखकर सबको बहुत मज़ा आ रहा था।
सार्वत्रिक उसका मज़ाक बनाकर वहाँ से चला जाता है। सर्वम उसके किसी भी मज़ाक का कोई जवाब नहीं देता है। वह उससे बहस कर अपनी मुसीबत नहीं बढ़ाना चाहता था। अब वहाँ पर सिर्फ़ सर्वम के रिश्तेदार और पड़ोसी थे।
सर्वम के पड़ोसी उसके माँ-बाप का मज़ाक बना रहे थे। वे लोग सर्वम पर हँस रहे थे। तभी उसके ठीक बगल में रहने वाली आंटी कहती है- "सुहाषी, तू ना अपने बेटे को अजायबघर में रख दो, इसके रहते कुछ सही नहीं होता। जो किसी के साथ नहीं होता, वही तेरे बेटे के साथ होता है। वह एक दुर्भाग्यशाली है।"
सर्वम को बहुत बुरा लग रहा था कि आज उसकी वजह से उसके माँ-बाप मज़ाक के पात्र बन गए हैं। वह यही सोच रहा था कि उसकी किस्मत ऐसी क्यों है कि वह हर बार अपने माँ-बाप के दुख का कारण बन गया है।
वह सबसे हाथ जोड़कर माफ़ी माँगता है और उन सब को भोजन ग्रहण कर जाने के लिए कहता है। इतना कहकर वह अपने कमरे में चला गया। उसे बहुत रोना आ रहा था।
वह जैसे ही अपने कमरे में आता है, तो देखता है कि उसका बेड पूरा भीग गया था। उसके बेड के बगल में रखा टेबल लैंप टूट गया था। वहीं उसके स्टडी टेबल पर रखी प्रोजेक्ट रिपोर्ट फ़र्श पर फैल गई थी और पूरा भीगकर बर्बाद हो गई थी। यह देखकर उसे हँसी आती है और फिर वह रोने लगा। फिर वह अपने रूम की खिड़की को देखने लगता है जिसका पल्ला टूट गया था। वह अपने घुटनों पर आ जाता है।
वैसे ही उसके होठों से गाना निकलने लगा-
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
कभी इस पग में कभी उस पग में बँधता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह , बजता ही रहा हूँ मैं
कभी इस पग में कभी उस पग में बँधता ही रहा हूँ मैं
कभी टूट गया कभी तोड़ा गया
कभी टूट गया कभी तोड़ा गया
सौ बार मुझे फिर जोड़ा गया
सौ बार मुझे फिर जोड़ा गया
यूँ ही टूट-टूट के, फिर जुट-जुट के
यूँ ही टूट-टूट के, फिर जुट-जुट के
बजता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
कभी इस पग में कभी उस पग में सजता ही रहा हूँ मैं
मैं करता रहा औरों की कही
मैं करता रहा औरों की कही
मेरे मन की ये बात मन ही में रही
मेरे मन की ये बात मन ही में रही
है ये कैसा गिला जिसने जो कहा
है ये कैसा गिला जिसने जो कहा
करता ही रहा हूँ मैं
करता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
कभी इस पग में कभी उस पग में सजता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
अपनों में रहे या ग़ैरों में
घुँघरू की जगह तो है पैरों में
कभी मंदिर में कभी महफ़िल में
सजता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह ...
उसकी बहन उसके पास आकर उसे गले लगा लेती है। सर्वम को सच में ऐसा कोई चाहिए था जो उसके जज़्बात को समझ सके, यह शिवानी के अलावा कोई और नहीं हो सकता था।
शिवानी के गले लगकर वह रो रहा था। शिवानी भी उसे रोने देती है। वह जानती थी कि उसका भाई अंदर ही अंदर घुटता रहता है, पर वह कभी अपने को एक्सप्रेस नहीं कर पाता है।
थोड़ी देर बाद जब वह शांत होता है तो शिवानी बोल पड़ती है- "भाऊ, तुला पूर आणावे लागला, इतके दिवस रडत होतास।"
उसकी बात सुनकर सर्वम स्क्रास्टिक स्माइल के साथ कहता है- "माझ्या आयुष्यात त्सुनामी आली आहे। आणि तुम्ही पूराबद्दल बोलत आहात।"
सर्वम- "मैं हमेशा ही माँ-बाप के लिए शर्म का कारण बन जाता हूँ। मुझे जो नहीं चाहिए, वही होता है। मैं यह सगाई भी सिर्फ माँ की खुशी के लिए कर रहा था।"
शिवानी- "तू ये सब सोचना छोड़ दे और जाकर खाना खा लो।"
शिवानी उसका हाथ पकड़कर डाइनिंग टेबल पर ले जाती है। फिर वह उसके सामने प्लेट में खाना सर्व करती है। सर्वम उसे अपने पास बिठाकर खिलाने लगा और खुद भी खाने लगा।
तभी उन दोनों के पास आकर सुहाषी और महेश बैठ गए। बैठते ही साथ उन दोनों ने अपना माथा पकड़ लिया। फिर वे दोनों कहने लगे।
सुहाषी- "हमारा तो किस्मत ही खराब है। इतना खर्चा भी हो गया और सगाई भी टूट गई। नसीब में कोई खुशी नहीं है।"
उन दोनों की बात सुनकर सर्वम का मूड और खराब हो गया। वह किसी तरह खाना खत्म करता है। उसे खाया नहीं जा रहा था, फिर भी वह खाना पूरा खाता है क्योंकि सर्वम अन्न का कभी अपमान नहीं करता था।
सर्वम चुपचाप वहाँ से चला जाता है। शिवानी को अपने माँ-बाप पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वह भी गुस्से से उन दोनों को देखते हुए वहाँ से अपने कमरे में चली जाती है।
वैश्विक दो दिन बाद आफिस आया था। वह दो दिन लंदन में था। वहाँ उसकी कंपनी का बहुत जरूरी प्रोजेक्ट चल रहा था। वह प्रोजेक्ट उसे करोड़ों रुपयों का प्रॉफिट करवाने वाला था। इसलिए वह पर्सनली उस प्रोजेक्ट को मॉनिटरिंग कर रहा था।
वह पूरे एटिट्यूड से चलता हुआ आफिस के अंदर इंटर किया। उसने देखा कि उसकी कंपनी के इम्प्लॉई आपस में हँसी-मज़ाक कर रहे थे। उन्हें इस तरह देखकर वह बहुत खुश हुआ।
वैश्विक- "इन लोगों की लाइफ कितनी अच्छी है। आराम से दोस्ती कर सकते हैं, एक-दूसरे के साथ हँसी-मज़ाक कर अपना और दूसरों का स्ट्रेस लेवल भी कम कर देते हैं।"
कुछ देर उन्हें देखने के बाद, वह एक बासी अवतार लेते हुए जोर से बोला-
"यहाँ क्या हो रहा है? आप लोगों को काम करने के लिए सैलरी मिलती है, ना कि यहाँ खड़े होकर गॉसिप करने के लिए। दो मिनट के अंदर सब लोग अपने-अपने जगह पर जाकर अपना-अपना काम शुरू करो।"
"मिस लिली, HR डिपार्टमेंट के हेड, मि. वचन को मेरे केबिन में भेजो। तुम अकाउंट डिपार्टमेंट के हेड के पास जाकर कंपनी के ऑडिट से संबंधित सारे रिपोर्ट लाकर मेरे टेबल पर रखोगी।"
"दो घंटे के बाद बोर्ड मीटिंग है, तो तुम सभी बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर को इन्फॉर्म कर दो। उनसे कहना कि सीईओ सर को उन लोगों के साथ कुछ जरूरी बात करनी है।"
"अमर आ गया है, तो उसे एक कप कॉफ़ी के साथ मेरे पास भेजो।" यह कहकर वह वहाँ से चला गया।
वह अपने केबिन में जाकर सबसे पहले अपना ब्लेज़र खोलकर अपनी चेयर पर फेंक दिया। फिर उसने अपने शू खोल दिए। फिर वह वाशरूम में जाकर शावर लेने लगा। फिर वह फ्रेश होकर अपने चेयर पर बैठ गया।
तभी अमर कॉफ़ी लेकर वहाँ आया। उसने उसे कॉफ़ी पकड़ाई। फिर वह बोल पड़ा- "तू अपने आप को क्या समझता है? तू इंसान है, कोई चलती-फिरती मशीन नहीं है कि तुझे दुःख-दर्द ना हो।"
वैश्विक- "मैंने इस कंपनी को यहाँ तक पहुँचाने में बहुत मेहनत की है। तू तो जानता है ना, जब यह कंपनी मुझे मिली थी, उस समय मैं केवल पन्द्रह साल का था। मुझे अपने भाई-बहनों के आगे बेकार साबित करने के लिए ही चाचा जी ने यह कंपनी मुझे दी थी।"
"उनका यही मानना था कि मैं फ़ेल हो जाऊँगा और मुझे सबसे कम शेयर मिलेगा। मुझे कंपनी की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं ऐसी दौलत पर लात मारता हूँ। पर मुझे उन लोगों को साबित करना था कि वहाँ मौजूद सारे लोगों से कहीं अधिक टैलेंट मेरे अंदर है। मैं इस खटारा कंपनी को भी इंडिया की टॉप कंपनी में बदल सकता हूँ। दिन-रात मेहनत कर मैंने यह मुकाम बनाया है।"
"अब मैं इसकी पोजीशन ज़रा भी नीचे आने नहीं दे सकता हूँ। जब मेरी कंपनी को मेरी ज़रूरत होगी, मैं मौजूद रहूँगा।"
अमर- "तू और तेरी सोच आज तक मुझे समझ आई है जो आज आएगी। यह सब सुनकर तू मुझे एलियन लगता है, 'कहो ना प्यार है' फ़िल्म के जादू की तरह।"
वैश्विक- "कभी तो सही मिसाल दिया कर यार, 'जादू कहो ना प्यार है' में नहीं, बल्कि 'कोई मिल गया' में था।"
अमर- "तू समझ गया ना, बस मेरा काम हो गया। मैं तेरे तरह मोस्ट IQ वाला इंसान नहीं हूँ। तू तो इतना कमाल है कि अगर किसी मैप को देख भी ले तो तेरे दिमाग में वो छप जाता है।"
"इतना ही नहीं, किसी भी चीज़ को तू एक बार देख भी ले तो ज़िन्दगी भर के लिए तेरे मेमोरी कार्ड में जमा हो जाता है। ऐसे ही तूने कंप्यूटर को नहीं हराया है।"
वैश्विक- "हाँ, ये सब सही है, पर मैं तेरी तरह इतनी टेस्टी कॉफ़ी या सैंडविच नहीं बना सकता। मैं कभी भी तेरे तरह का गाना नहीं गा सकता। ना मैं तेरी तरह गिटार बजा सकता हूँ। मैं तेरी तरह बेफ़िक्र होकर अपनी लाइफ़ नहीं जी सकता। मैं तेरे जैसा दोस्त भी नहीं हूँ।"
"तू ऐसे डरपोक है, पर मेरे लिए तू फ़ॉरेस्ट आउटिंग पर एक भालू से भी निहत्था लड़ गया था। आखिर तूने उसे भगाकर ही दम लिया था।"
"कालेज में अपनी फ़्रेंड कृति को डाँट से बचाने के लिए अपना होमवर्क दे दिया था। इसलिए मैं हमेशा कहता हूँ कि कोई इंसान बेकार नहीं होता, सब में कोई ना कोई गुण ऐसा ज़रूर होता है जो उसे दूसरों से अलग और अपने आप में अनूठा बनाता है। बस उसे वह गुण पहचानना चाहिए।"
अमर- "एलियन, मुँह बंद कर अपना, इसलिए कोई तुझे अठारह साल का नहीं मानता।"
वैश्विक- "किसी के मानने या ना मानने से मेरे अस्तित्व को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। मैं जो हूँ, वही रहूँगा। भले मेरा नाम वैश्विक ओबेराय की जगह कुछ और हो।"
अमर- "वैश्विक, तू सच में एलियन ही है।"
वैश्विक- "ये सब छोड़कर ये बता कि पनवेल में जो रिज़ॉर्ट बनाने का सोचा था, उसमें काम कितना आगे बढ़ा?"
अमर- "अभी इस बारे में कुछ भी नहीं हुआ है। हम वहाँ ज़मीन खोज रहे हैं। जैसे ही ज़मीन मिल जाएगा, उसके बाद आगे का प्रोसेस पूरा होगा।"
उसकी बात सुनकर वैश्विक अपना सिर हिला देता है। फिर वह अपना पूरा ध्यान अपने सामने पड़े फ़ाइल पर लगा देता है। जैसे-जैसे वह फ़ाइल पढ़ रहा था, वैसे-वैसे ही उसका चेहरा डार्क पड़ रहा था। वह सीधे अपने अकाउंट डिपार्टमेंट के हेड, मि. शीत सोनी को बुलाता है।
शीत उसके पास आकर उसके सामने खड़ा हो गया।
शीत- "गुड मॉर्निंग सर, आपने मुझे किस लिए बुलाया है?"
वैश्विक अपने सामने रखे फ़ाइल को उसके हाथ में दे देता है।
शीत- "सर, आपने मुझे यह फ़ाइल क्यों दिया है?"
वैश्विक- "इस फ़ाइल को ध्यान से पढ़ो, तुम्हें कुछ पता लगेगा।"
शीत खामोशी से खड़ा रहा। यह देखकर वैश्विक बोल पड़ा।
वैश्विक- "मैं जो दिखाना चाहता था, वो तुमने पढ़ लिया। ये बताओ कि कंपनी के अकाउंट से सौ करोड़ रुपये तीन दिन पहले क्यों और किसके कहने पर निकाले गए? किसके कहने पर तुम लोगों ने मुझे इतना बड़ा धोखा दिया?"
शीत- "यह ऑर्डर मुझे आपके डैड, विदर्भ सर ने दिया। उन्होंने मुझे इमीडिएटली सौ करोड़ रुपये निकालकर उन्हें देने को कहा। कंपनी के एमडी होने के कारण उनकी बात मैं नहीं टाल सकता था।"
यह सुनकर वह आगे कुछ नहीं कर सका और शीत को भेज दिया। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था, पर वह अपने को शांत कर अपना मुक्का पंचिंग बैग पर मार देता है जो उसके केबिन में लगा था।
अगले भाग में जारी.........
वैश्विक ने अपना सारा काम खत्म कर अपने घर आया। उसने देखा कि उसके पूरे घरवाले हाल में ही जमा थे। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ।
वह अपने कमरे में जाकर चेंज करता है और आकर हाल में उन लोगों के बीच बैठ जाता है। उसने वहाँ मौजूद हर शख्स पर एक सरसरी नज़र डाली और कहा- "मुझे आप लोगों से कुछ जानने की आवश्यकता है।"
"डैड, आप बता सकते हैं कि आपने कंपनी से सौ करोड़ क्यों लिए? डैड, मैं जानता हूँ कि वह आपकी भी कंपनी है, पर इतना बड़ा अमाउंट निकालने के लिए आपको एक बार मुझे विश्वास में लेना चाहिए था।"
"विशु, यह कंपनी मेरी है और तुम सिर्फ़ इस कंपनी के सीईओ हो। इसलिए हर बात तुम्हें बताना ज़रूरी नहीं है।" विदर्भ ने कहा।
"आप सब डिनर टेबल पर आ जाइए, हमें आप लोगों के साथ बहुत ज़रूरी बात करनी है।" वैदिक ने कहा।
उसकी बात मानकर सारे लोग चुपचाप आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गए।
"वैदिक, अब आपको वह बात कर ही लेनी चाहिए। ऐसे भी अब वैश्विक इस लायक हो गए हैं कि वह यह एग्ज़ाम दे।" विदिशा ने कहा।
"दादी, आप पहेलियाँ क्यों बुझा रही हैं? जो कहना है, वो खुलकर कहिए।" वैश्विक ने कहा।
"अब समय आ गया है कि तुम भी अपनी परीक्षा के लिए तैयार हो जाओ।" वैदिक ने कहा।
"जी दादा जी, हमें बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा कि आप क्या कहना चाह रहे हैं।" वैश्विक ने कहा।
"हमारे परिवार की एक परंपरा है, जिसके अनुसार आपको पूरे एक साल गरीब बनकर लोगों के बीच रहना पड़ेगा, जिससे आप अपने आस-पास के लोगों को जांचना-परखना अच्छे से सीख जाओ। गरीबी अच्छा और बुरा पहचानना अच्छे से सिखा देती है।" वैदिक ने समझाया।
"दादा जी, आप यह क्या कह रहे हैं? हम ऐसे कैसे रह पाएँगे?" वैश्विक ने पूछा।
"वैश्विक, आपके दादा जी सही कह रहे हैं। आपसे पहले आपके पिता और चाचा भी इस परंपरा का निर्वहन कर चुके हैं। उसके पहले आपके दादा, दादा के पहले उनके पिता और चाचा, सबने इसे पूरा किया है। आज ही रात आप इसके लिए प्रस्थान करेंगे।" विदिशा ने कहा।
"पर दादी, मैं कैसे ऐसा कर सकता हूँ? मेरी कंपनी का क्या होगा?" वैश्विक ने चिंता से पूछा।
"उसकी चिंता मत कीजिए और अपना पूरा फ़ोकस इस बात पर लगाइए कि आप अब से अपने सरवाइवल के लिए क्या करेंगे। अब आप जाने से पहले अपने सारे कार्ड्स और कार की चाबी हमें सौंपते हुए जाएँगे। अगर आपने ऐसा नहीं किया तो आप हमेशा के लिए जायदाद से बेदखल हो जाएँगे।" विदिशा ने सख्ती से कहा।
वैश्विक के पास उनकी बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। उसने अपने सारे कार्ड्स दे दिए। फिर वह एक मामूली सा कपड़ा पहनकर निकल गया। उसने खाना भी नहीं खाया था। जब उससे उसके माँ-डैड ने खाने के लिए कहा, तो उसका जवाब था- "जब अब मुझे गरीब ही रहना है, तो भूखा रहने की आदत डालनी ही होगी।"
"मैं इस तरह इन लोगों को अपनी मेहनत पर पानी फिराने नहीं दे सकता। अब यह वैश्विक ओबेराय एक साथ दोनों काम करेगा।" वैश्विक ने मन ही मन सोचा।
"अमर मेरी जान, अब से तू मेरा तुरुप का इक्का बनेगा।" यह कहकर उसने अमर को कॉल कर दिया।
एक-दो रिंग के बाद अमर ने फ़ोन उठा लिया। वैश्विक ने उसे सब कुछ समझाकर कहा- "अगर कोई गलती हुई तो मैं तेरी आँतें निकाल कर रख दूँगा।"
"एक तो इतना ख़तरनाक काम करने को कह रहा है, ऊपर से मुझे धमकी भी दे रहा है। यह सही बात नहीं है।" अमर ने कहा।
"देख, तेरे अलावा किसी और पर भरोसा नहीं करता हूँ। इसलिए तुझे यह करने को कहा है। मैं तुझे एक सीक्रेट नंबर दे दूँगा जिससे तू मुझसे बात कर सकेगा। यह बात याद रखना कि किसी को यह पता ही ना चले कि मैं कहाँ हूँ।" वैश्विक ने कहा।
"ठीक है यार। अपना ख्याल रखना। आई मिस यू।" अमर ने कहा।
"आई आल्सो मिस यू, बाय।" वैश्विक ने कहा।
यह कहकर उसने फ़ोन रख दिया। फिर वह बोला- "वैश्विक ओबेराय एक नई उड़ान भरने के लिए तैयार हो जाओ, क्योंकि अब तू वैश्विक ओबेराय नहीं, बल्कि एक अनाथ और गरीब इंसान समर है।"
अब अपना यह नया रूप अपना को देखते ही कहाँ ले कर जाता है? यह सब सोचकर वह मुंबई की सड़कों पर चलने लगा। उसे इस तरह खुलकर साँस लेना बहुत अच्छा लग रहा था।
वैश्विक को मैं अब से समर ही लिखूँगी, तो कंफ़्यूज़ मत होना, क्योंकि अब उसकी वही पहचान है। समर का पूरा लुक एक टपोरी वाला था।
जैसे समर ने अपने माथे पर एक पतली पट्टी पहन रखी थी। उसके हाथ में एक मामूली सा घिसा हुआ ब्रेसलेट था। उसका जीन्स घुटनों के पास से फटा था। उसका शर्ट एक तरफ़ से टक किया और दूसरी तरफ़ से निकला हुआ था। उसके शर्ट का ऊपर का दो बटन टूटा हुआ था, जिससे उसके गले का चैन दिखाई पड़ रहा था। वह इस लुक में बहुत क्यूट और हैंडसम लग रहा था।
वह पिछले पाँच दिनों से अपने लिए कोई काम ढूँढ रहा था। उसने घर से दो हज़ार रुपए लिए थे, वो भी अब ख़त्म हो गए थे।
वह अपनी रात कहीं भी पार्क के बेंच पर या मंदिर के बरामदे पर सो जाता था। वह कहता है- "चल समर बेटे, जाकर कोई पार्क या मंदिर खोजो।"
यह सोचकर वह सड़क पर चलने लगा। वह अपनी रात बिताने के लिए जगह खोजता जा रहा था। वह ऐसे ही चल रहा था, तभी उसकी नज़र एक छोटे से मंदिर पर पड़ती है। जिसे देखकर वह खुश हो जाता है। वह जल्दी से उस मंदिर के पास आकर देखता है कि मंदिर में इतनी जगह ज़रूर है कि वह अपनी रात वहाँ बिता सकता है।
वह आराम से मंदिर के फ़र्श पर आकर लेट जाता है। वह सो पाता, उसके पहले ही उसके कानों में एक छोटे से बच्चे की आवाज़ सुनाई दी- "कोई तो मेरे को बचा लो, मैं इतनी सी उम्र में ऊपर जाने को नहीं चाहता।"
समर उस बच्चे को ख़तरे में जानकर उस आवाज़ का पीछा करने लगा। कुछ ही देर में वह वहाँ पहुँच गया था।
वह देखता है कि चार लोग एक बच्चे को पकड़े हुए हैं। वह बच्चा उनसे अपना छोटा सा बैग बचाने की कोशिश कर रहा था।
अगले भाग में जारी.....
समर उस आवाज़ को सुनकर वहाँ पहुँचा तो देखा कि चार लोग उस छोटे से बच्चे को घेर कर खड़े थे।
समर: "तुम लोग इस बच्चे को तंग क्यों कर रहे हो? पन की बात मान लो और छोड़ दो।"
उसकी बात सुनकर वे चारों हँसने लगे। उनमें से जो उनका लीडर था, वह बोला, "साले हल्के, तू अकेला है और हम चार हैं। फिर भी हमें धमकी दे रहा है? बहुत बहादुर हो।"
समर: "नहीं नहीं मेरे बच्चे, पन तो सिर्फ़ बात ही कर रहा था। धमकी नहीं। पन एक्शन करता है। खाली-खाली पन का दिमाग कई को ख़राब करता है। अच्छे बच्चे की तरह बात मानो और छोड़ दो।"
उन बदमाशों का नाम मुन्ना, राकी, विकी और दीपू था। दीपू उनका लीडर था। वह बहुत ही हट्टा-कट्टा, पहलवान जैसा था। वे तीनों भी बस दिखने में थोड़ा-सा दीपू से कम थे।
मुन्ना दौड़ते हुए समर के पास आकर उसके मुँह पर मुक्का मारने की कोशिश करता है, पर वह इसमें कामयाब नहीं हो पाया क्योंकि समर पहले ही अपने हाथों के बल पीछे की ओर झुककर अपने शरीर को अपने हाथों के पंजों पर बैलेंस बनाकर, अपने को बेंड करते हुए एक जोरदार किक मुन्ना को मारता है। जिससे मुन्ना वहीं पर गिर गया और बेहोश हो गया।
यह देखकर सभी लोग हैरान थे। समर उछल कर खड़ा हो गया और अपने बॉडी को स्ट्रेच करने लगा।
समर: "अबे साले, ऐसे लड़ते हैं? दो मिनट भी खड़ा नहीं रह पाया। खाक गुंडा बनेगा।"
वे तीनों अपना-अपना चाकू लेकर एक साथ उसके ऊपर हमला कर देते हैं। समर जमीन पर लेटकर तेज़ी से गोल-गोल घूम जाता है जिससे वे तीनों ही गिर पड़े। वे लोग उठ पाते, उसके पहले ही समर उठकर उन सबको अपनी लातों से इतना मारता है कि वे लोग बुरी तरह घायल हो गए।
समर उन सबको उसी हालत में छोड़कर उस बच्चे के पास पहुँचा जो उसे हैरानी के साथ देख रहा था।
समर: "अपन समर है, तू कौन है?"
वह बच्चा लगभग आठ साल का था। उसका नाम रामू था। वह दुबला-पतला बच्चा था। उसकी शक्ल-सूरत एकदम साधारण थी। उसके कपड़े भी फटे हुए थे, जिसे रफ़ू किया गया था।
रामू: "अपन का नाम रामू है। अपन पास वाले खदान में काम करता है। अपन काम से घर लौट रहा था तो ये सब अपन के पीछे पड़ गए। वे लोग अपन से अपन की सारी कमाई लूटना चाहते थे, जिससे बचने के लिए अपन भागते-भागते यहाँ पहुँच गया।"
समर: "कोई बात नहीं, तू पन के साथ ही चल, पन तेरे को तेरी खोली तक छोड़ देता है। तू बस पन को अपने घर ले चल।"
रामू: "ठीक है।"
वहीं समर यह सोच रहा था कि इस बच्चे की ऐसी क्या मजबूरी है जो यह खदान में काम करता है। वह यही सोच रहा था कि विकी उसके ऊपर चाकू से हमला कर देता है। समर का ध्यान उन पर नहीं था, इसलिए वह चाकू उसके कंधे पर हल्का-सा खरोंच लगा देता है।
समर गुस्से से पलटता है और विकी का हाथ पकड़कर मरोड़ते हुए कहता है, "मर्द की तरह सामने से वार कर, पीठ पीछे क्या वार करता है?" यह कहकर वह उसका हाथ और ज़ोर से मरोड़ देता है जिससे उसकी कलाई टूटकर झूल गई और विकी दर्द से चीख पड़ता है। उसकी चीख सुनकर समर एक मुक्का उसके चेहरे पर मारता है, जिससे उसके सारे दांत टूटकर बाहर आ गए। समर आगे कुछ करता, उसके पहले ही वे तीनों अपना सिर उसके आगे झुकाकर माफ़ी मांगने लगे।
समर रामू को साथ लेकर उसके घर की तरफ़ निकल जाता है। कुछ पल की खामोशी के बाद रामू पूछता है, "तेरे को उन गुंडों से डर नहीं लगा, जो अपन को बचाया?"
समर: "पन तेरे को अकेला नहीं छोड़ सकता था।"
रामू: "शुक्रिया भाऊ।"
समर उसके 'भाऊ' कहने से बहुत खुश था। वह उसका बाल सहला देता है। कुछ देर चलने के बाद रामू का घर आ जाता है।
रामू: "यह रहा अपन की खोली।"
समर सामने देखता है तो पाता है कि एक आठ गुणा दस का छोटा-सा कमरा था, जिसकी हालत बहुत खराब थी।
समर: "रामू, तू यहाँ रहता है? जाकर अपने माँ या बाबा को बुला दे, पन को उनसे ज़रूरी काम था।"
रामू: "तू शायद अपन के माँ-बाप से मिलकर यह जानना चाहता है कि अपन इतना छोटा में काम क्यों करता है। बात यही है कि अपन का कोई नहीं है। अपन अकेले रहता है।"
यह सुनकर पता नहीं क्यों समर की आँख से आँसू बह निकले। वह अपने घुटनों के बल बैठकर रामू को गले लगा लिया। कुछ देर रोने के बाद वह शांत होता है।
समर: "पन को माफ़ कर दे, तेरे को दर्द नहीं देना चाहता था। तुम अपना ख्याल रखना।"
रामू: "भाऊ तुम कहाँ रहते हो?"
समर: "पन का कोई ठिकाना नहीं है। अपन कहीं भी रह लेता है। पन दिन भर काम खोजता है और रात में कहीं भी सो जाता है। अपना तो लाइफ़ यही है।"
रामू: "तुझे काम चाहिए, भाऊ। तू चाहे तो अपन मैनेजर से कहकर तेरी मज़दूरी खदान में लगवा सकता है।"
समर: "पन तैयार है। तू जाकर सो जा, अपन वापस जा रहा है। कल तेरे से मिलता है।"
रामू: "भाऊ, जब तेरा कोई ठिकाना नहीं है तो तू क्यों नहीं अपन के साथ ही रह जाता है? अपन दोनों इसमें एडजस्ट कर जाएगा।" यह कहकर वह बहुत आशा के साथ समर को देखने लगा। वह समर का जवाब जानना चाहता था।
समर को भी एक ही मुलाक़ात में उससे बहुत ज़्यादा लगाव हो गया था। वह उसकी ओर देखते हुए कहता है, "पन को कोई पाब्लम नहीं है, पर तेरे को डर नहीं लगता कि पन अजनबी है?"
रामू: "तू कोई अनजाना नहीं, इस रामू का भाऊ है। अपन को आज तक कोई ऐसा नहीं मिला जिसको साथ रहने का मन करे। तू मेरे साथ रहेगा ना, मेरे को छोड़कर नहीं ना जाएगा? भाउ तेरे साथ नाता जुड़ गया सा लग रहा है।"
समर उसे अपनी गोद में उठाकर खोली में चला गया। उस खोली में एक कोने में एक चादर बिछी थी, वे दोनों उस पर लेट जाते हैं। कुछ ही देर में रामू सो गया। वह समर में लिपटकर सो गया था। उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी। वह अभी बहुत प्यारा लग रहा था। समर उसके बालों में हाथ फेरने लगा, जिससे उसकी मुस्कान और गहरी हो गई और वह समर से लिपट गया। समर भी उसे देखते-देखते सो गया।
अगले भाग में जारी......
समर रामू के साथ सोया रहा। सुबह होते ही समर उठ गया। उसने देखा कि रामू अभी भी उससे लिपटकर सोया हुआ था।
वह उठकर कमरे की हालत देखकर उसे साफ करने लगा। करीब पाँच मिनट में उसने पूरा कमरा साफ कर लिया था।
फिर वह बाहर से बाल्टी में पानी भरकर लाया। वह नहाकर तैयार हुआ। फिर उसने रामू को उठाया।
"रामू- सुप्रभात भाऊ।"
"समर- सुप्रभात, रामू। तू उठ जाओ, हमें काम की तलाश में जाना है।"
"रामू- भाऊ, तू मेरे साथ चल, अपने मैनेजर से बात कर, तेरे लिए मजदूरी की बात करता हूँ।"
"समर- हम तेरे साथ चलेंगे, तू पहले कुछ खा ले। रामू, अगर हमें मजदूरी मिल गई तो तू फिर काम नहीं करेगा। तेरा यह भाऊ अब से तेरा ख्याल रखेगा।"
"रामू- ठीक है भाऊ, पर एक वादा मुझसे करो।"
"समर- कैसा वादा छुटकू?"
"रामू- तू कभी अपने को छोड़कर तो नहीं ना जाएगा।"
"समर- मैं कभी भी तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा।"
"रामू- भाऊ जल्दी कर, मैनेजर अब आ जाएगा।" यह कहकर वह बाहर जाने लगा।
समर जल्दी से आगे बढ़कर उसे अपनी गोद में उठा लेता है। वह उसके साथ बातचीत करते हुए उसे बड़ा पाव खिला रहा था।
कुछ देर बाद वे लोग खदान में पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही समर ने देखा कि इस खदान पर उसकी ही कंपनी का लोगो था।
"समर- दुनिया गोल है। हमें इस खदान में काम नहीं करना है। कहीं किसी ने पहचान लिया तो मुश्किल हो जाएगी।"
उसकी सोच को विराम तब लगा जब उसे रामू की आवाज सुनाई दी। "भाऊ, उधर क्या देख रहा है? कहाँ खो गया था, कब से आवाज़ दे रहा हूँ।"
"समर- माफ़ी कर दे, मेरा ध्यान ही नहीं रहा था। तू ये बता, तू मुझे आवाज़ क्यों दे रहा था?"
"रामू- तेरे को मैनेजर बुलाता है।"
समर मैनेजर के पास गया। उसे वहाँ कोयला निकालना था। उसे एक दिन का दो सौ रुपये मिलने थे। वह इसके लिए तैयार हो गया क्योंकि अब उसके पास एक रुपया भी नहीं बचा था।
वहीं दूसरी ओर, आज ऑबेराय इंडस्ट्रीज़ में बहुत ज़्यादा हलचल बढ़ी हुई थी। क्योंकि अब वहाँ वैश्विक मौजूद नहीं थे, तो कंपनी के नए CEO का चुनाव होने वाला था।
आज की मीटिंग के लिए वैदिक, विदर्भ और वरद भी आए थे। उनके साथ-साथ सारे बोर्ड ऑफ़ डाइरेक्टर भी थे।
बोर्ड मीटिंग को आज खुद वैदिक ऑबेराय लीड कर रहा था। सुबह के दस बज चुके थे। सारे बोर्ड मेंबर्स वहाँ आ चुके थे।
वैदिक मीटिंग शुरू करने की घोषणा करता है।
"वैदिक- यहाँ मौजूद सारे शख्स का मैं वैदिक ऑबेराय स्वागत करता हूँ। आज हमारी कंपनी के पच्चीस साल भी पूरे हो गए हैं। इन पच्चीस सालों में हमारी कंपनी जीरो से शुरू होकर आज इंडिया की टॉप कंपनी है। हमें इस बात का गर्व करना चाहिए कि हम इतने कम समय में इतनी बड़ी अचीवमेंट प्राप्त कर ली है।
हमारे करेंट CEO, मि. वैश्विक ऑबेराय, अपनी higher studies के लिए एक साल के लिए न्यूयॉर्क गए हैं। उनकी गैर-हाज़िरी होने के कारण यह ज़रूरी है कि हम सब मिलकर इस कंपनी के नए CEO को चुनें। इसके लिए मैं दो लोगों के नाम का प्रस्ताव करता हूँ। वो दोनों शख्स से आप भली-भांति परिचित हैं।
पहले नंबर पर मेरे बड़े बेटे, विदर्भ वैदिक ऑबेराय हैं।
और
दूसरे नंबर पर मेरे छोटे बेटे, वरद हैं।
आप लोगों को इन दोनों में से एक को चुनने के लिए वोट करना है।"
यह सुनकर सारे लोग एक पर्ची पर अपने पसंद के कैंडिडेट का नाम लिख रहे थे।
वहीं वरद और उसका बेटा बहुत खुश हुए। उन्हें लग रहा था कि अब यह कंपनी उनकी होगी।
"वरद- फाइनली, अब यह कंपनी मेरी हो जाएगी। अब इस कंपनी को मैं अपने मुताबिक चला पाऊँगा। इस कंपनी के रिसोर्सेज़ इस्तेमाल कर मैं एक और कंपनी बना लूँगा। एक साल के अंदर पूरी ऑबेराय इंडस्ट्रीज़ ही हमारी होगी।"
"कौशल- डैड, यू आर ऑसम। ऐसे भी यह पोस्ट आप ही डिजर्व करते हो।"
वहीं विदर्भ अपने पास बैठे असिस्टेंट से कहता है- "यह कंपनी अब मेरी होगी। अब मैं इसे अपने तरह चलाऊँगा।"
कुछ देर बाद वोटिंग पूरी हो जाती है। वैदिक अलग-अलग बॉल में रखे चीट की काउंटिंग करने लगा।
वैदिक सारी काउंटिंग करने के बाद कहता है- "आज आपने जो निर्णय किया है, उस हिसाब से आज से इस कंपनी के नए CEO हैं...."
यह कहकर वह थोड़ी देर चुप हो जाता है। वहीं दूसरी ओर विदर्भ और वरद की टेंशन बढ़ गई थी। दोनों में से कोई भी इस मौके को खोना नहीं चाहता था।
तभी वैदिक अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि हमारे नए CEO मि. वरद चुने गए। यह सुनकर विदर्भ गुस्से से अपना हाथ टेबल पर मार देता है।
वरद सामने आकर एक CEO के तौर पर ज्वाइन करने के लिए आगे आकर पेपर साइन करने जाता है, उसी समय वहाँ पर एक आवाज़ आती है-
"अरे मि. वरद ऑबेराय, पेपर साइन करने की इतनी जल्दी भी क्या है? पहले मुझसे तो मिल लीजिए।"
वरद उसकी बात सुनकर गुस्से से कहता है- "तुम्हारी बात सुनकर क्या होने वाला है? तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे भतीजे के पर्सनल असिस्टेंट हो। इससे ज़्यादा तुम्हारी कोई औकात नहीं है।"
उसकी बात सुनकर अमर हँसने लगा। आज वह ब्लैक कलर के बिज़नेस सूट में आया था। आज उसकी पूरी पर्सनैलिटी अलग लग रही थी।
वह पूरे एटीट्यूड के साथ आगे बढ़ते हुए वरद के सामने जाकर खड़ा हो गया। यह देखकर वैदिक, वरद और विदर्भ की आँखें बड़ी हो गईं। वहीं वहाँ बैठे लोग बोल पड़े- "यह क्या हो रहा है?"
अमर सीधे जाकर CEO के चेयर पर जाकर बैठ गया। फिर वह वहाँ रखे पेपर पर साइन कर देता है।
"वैदिक- तुम दो कौड़ी के असिस्टेंट, तेरी हिम्मत कैसे हुई कि तू जाकर सीधे CEO के चेयर पर बैठ गया? लगता है कि तू अपना दिमागी संतुलन खो चुका है। यह चेयर इस कंपनी के CEO के लिए है, ना कि तेरे जैसे असिस्टेंट के लिए है।"
"अमर- मुझे पता है कि मैं कौन हूँ। मैं इस कंपनी का नया CEO हूँ। यह चेयर मेरी ही है।" यह कहकर उसने एक धमाका कर दिया।
अगले भाग में जारी....
अमर आराम से जाकर CEO के चेयर पर बैठकर कहता है—
"लेडीज़ एंड जेंटलमेन, आई एम योर न्यू CEO अमर गोयल। आज से इस कंपनी के सारे डिसीज़न मैं लूँगा।"
वरद बोला, "तुम कुछ भी बकवास करोगे और हम मान लेंगे। ऐसे भी इस कंपनी के नियम के मुताबिक तुम्हें CEO बनने के लिए सबसे पहले इस कंपनी का शेयर होल्डर होना ज़रूरी है।"
अमर ने कहा, "ये रही पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी के पेपर। वैश्विक सर के सारे अधिकार स्वतः ही मेरे अंदर आ गए। जिस भी चीज पर वैश्विक का अधिकार था, वह सब मेरा है।"
उस पेपर के बाद किसी के पास भी बहस करने का कोई स्कोप नहीं था। वरद, वैदिक और विदर्भ अपने पैर पटकते हुए गुस्से से वहाँ से निकल गए।
तभी मीटिंग में बैठा एक शख्स कहता है—
"इसलिए तो मैं हमेशा कहता हूँ कि वैश्विक ओबेराय एक अलग हस्ती है। वह प्रेजेंट और फ्यूचर दोनों साथ ही देखते हैं। जैसे वह कोई नज़ूमी हो।"
धीरे-धीरे सारे लोग अपने घर चले गए। अमर अपने काम पर लग गया। उसे पता था कि अभी इस कंपनी को संभालने में उसे बहुत पापड़ बेलने होंगे।
वही दूसरी ओर, समर खदान में सामान की ढुलाई का काम कर रहा था। उसने आज रामू को बिल्कुल काम करने नहीं दिया था।
शाम को दोनों घर लौटने लगे। वे दोनों ही चुपचाप थे। तभी समर को एक बड़ा पाव का ठेला नज़र आया। वह रामू को लेकर वहाँ खड़ा होकर उसके लिए एक बड़ा पाव खरीद देता है।
रामू उसे खाते हुए ही समर के साथ निकल गया। रामू बहुत प्यार से बड़ा पाव खा रहा था। तभी उसने समर को देते हुए कहा—
"भाऊ, तू भी खा ना, अपने लिए तो कुछ भी नहीं खरीदा।"
समर ने कहा, "पन को तेरे को खाते हुए देखने को मन करता था। तू जब खुश होता है ना, पन को बहुत ही अच्छा लगता है।"
"छोटू, तू पन की एक बात मानेगा, तू ना कल से पढ़ने जा। पन चाहता है कि तू बहुत बड़ा आदमी बने, इतना बड़ा कि पन भी उसको सलामी दे।"
रामू ने पूछा, "उसके लिए अपने को क्या करना पड़ेगा?"
समर ने कहा, "तू ना स्कूल जा, वहाँ ना खूब मन लगाकर पढ़ाई कर, फिर घर आकर आराम करना। अब तेरा यह भाऊ सब कुछ ठीक कर देगा।"
रामू ने कहा, "भाऊ, अपने को पढ़ना बरना नहीं है, अपन कभी ये सब नहीं किया है।"
समर ने कहा, "जो कभी नहीं किया, वह अब मेरा छोटू ज़रूर करेगा। वह पढ़कर बहुत बड़ा आदमी बनेगा, अपने इस भाऊ की तरह आवारा नहीं रहेगा।"
रामू ने कहा, "तू चाहता है कि अपन पढ़े तो तेरे लिए अपन ज़रूर पढ़ेगा।"
यह सुनकर समर खुशी से उसे अपनी गोद में उठा लिया और एक चाय की टफ़री के पास आकर खड़ा हो गया।
समर ने कहा, "काका, पन के लिए दो कटिंग चाय दे दे, पन को बहुत ही तलब हो रही है। साथ एक पैकेट ब्रेड भी देना। रामू आ, तू भी बैठ, पन दोनों साथ ही खाता है।" रामू और समर सब कुछ खा लेते हैं। अब उनका पेट भर गया था।
समर ने पूछा, "तेरे हिच पास दूध रखने के लिए बर्तन है?"
रामू ने कहा, "हाँ, पर भाऊ ये क्यों पूछा?"
समर ने कहा, "कल से पन का भाई दूध पीकर मज़बूत बनेगा। फिर वह एक पंच में ही पन को गिरा डालेगा।"
समर ने रामू से आग चलाना सीख लिया था। वह अब थोड़ा-बहुत खाना बनाने लगा था। वह सुबह रामू के लिए दूध और रोटी बनाकर रखता था। सुबह रोटी खाकर वह भी अपने काम पर चला जाता था। रात को अपने लिए चावल सब्जी बनाता था।
एक दिन रामू कहता है—
"भाऊ, तू अपन को कोई काम करने क्यों नहीं देता, चाहे कुछ भी हो सारा काम खुद ही करता है।"
समर ने कहा, "पन का भाई राजा के जैसे ही बैठकर रहने के लिए है। पन के होते हुए पन का भाई बस आराम से पढ़ाई करेगा और खाना खाएगा।"
"पन के लाइफ़ का तू ना एक सितारा है। जब से तेरे से मिला पन को यह दुनिया अच्छा लगने लगा। पन बहुत अकेला था। पन के पास तू है तो सब कुछ है।"
समर अपने मन में सोच रहा था— "रामू से मिलने के बाद ही मुझे पता चला कि प्यार क्या होता है। वह मेरी सच में बहुत चिंता करता है। उसे फर्क नहीं पड़ता कि उसका भाऊ गरीब है। मेरे घर में तो सबको बस पैसों से ही मतलब है। रिश्तों का आडंबर ही करना रहता है।"
वही दूसरी ओर, सगाई टूटने के बाद से सर्वम और ज़्यादा शांत हो गया था। अब पूरे मोहल्ले में जो भी उसे देखता था, सब या तो उसे ताना मारते थे या तो उसे देखकर हँस पड़ते थे।
सर्वम रविवार की सुबह बाहर नल पर पानी भरने आया था। उसके घर में आज पानी नहीं आया था। वह जाकर पानी की लाइन में खड़ा हो गया।
तभी वहाँ पर एक औरत आकर कहती है—
"सर्वम, यावेळी तुम्ही थेट लग्न केले तर कदाचित तुमचे लग्न होईल।"
वह कोई जवाब ना देकर चुपचाप वहाँ खड़ा रहा। तभी दूसरी औरत बोल पड़ी—
"नक्कीच त्याने काहीतरी केले असावे की अशी आपत्ती आली।"
सर्वम का मन कर रहा था कि वह कुछ जवाब दे, पर वह हमेशा की तरह जवाब नहीं दे पाया। वह चुपचाप लोगों की बात सुनता रहा।
वही उसे खोजते हुए शिवानी वहाँ आ गई। सुबह उठने के बाद जब उसने देखा कि घर में पानी नहीं आ रहा है तो वह समझ गई कि ज़रूर उसका बड़ा भाई पानी भरने गया होगा। उस घर के सारे काम या तो सर्वम करता था या फिर शिवानी ही करती थी।
उन औरतों की बात सुनकर उसे बहुत गुस्सा आ गया। वह देखती थी कि वे सारे लोग हमेशा ही उसके भाई को सताते थे, पर वह कुछ नहीं बोलता था।
वह कहती है—
"तुम्हा सर्वाना काही काम नाही आणि माइया भावला त्रास देत राहा।"
"भाऊ, तुम्ही घरी जा, मी पाणी घेऊन येईन।"
सर्वम उसकी बात मानकर घर लौट गया। वह किचन में जाकर अपने और शिवानी के लिए चाय बनाता है। साथ ही मूंगफली फ्राय कर पोहा बनाने के लिए रख देता है।
अगले भाग में जारी.......
समर और रामू के साथ एक महीना बीत गया था। वे दोनों आज घर का राशन लेने निकले थे।
थोड़ा सा आटा, दाल और चावल, साथ ही नमक, चीनी और तेल खरीदा। समर के कुल सात सौ रुपये खर्च हो गए। तभी उसने देखा कि उसका भाई एक जूते को बहुत ध्यान से देख रहा था। वह स्कूल जाने के लिए वाइट कलर का शू था। साथ ही उसकी नज़र ब्लैक स्कूल शू पर भी जा रही थी।
रामू कुछ देर उसे देखकर आगे बढ़ गया। समर उसे पुकारते हुए उसके पीछे आया।
"रामू! पन तेरे को कितनी देर से आवाज दे रैला हूँ, तू सुन कायको नहीं रहला है?"
"सॉरी भाऊ, अपना ध्यान नहीं था।"
"वाह! मेरा भाई तो अब बड़ा आदमी के जैसे ही सॉरी और थैंक्यू बोलना सीख रैला है!"
रामू उसकी बात सुनकर मुस्कुराया और कहा, "भाऊ तो अपना टांग खिंचाई कर रहा है। अपन कोई बड़ा आदमी नहीं बना है।"
"कोई बात नहीं रे, आज नहीं कल ज़रूर बन जाएगा और पन तेरे को सलाम बजाएगा। अब ये सब छोड़कर तू मेरे साथ चल।" यह कहकर वह रामू को लेकर उसी जूते की दुकान के पास आया। वे दोनों अंदर गए।
समर ने दो-तीन जूते नापे और फिर दो जूते पसंद कर खरीद लिए। दोनों जूतों का दाम एक हज़ार रुपये पड़ा। फिर वह एक कपड़े की दुकान में जाकर रामू के लिए एक टीशर्ट खरीद ली। सब मिलाकर उसे दो हज़ार रुपये लगे। अब उसके पास सिर्फ़ एक हज़ार रुपये बचे थे, जो उसने इमरजेंसी के लिए रखे थे।
रामू जूते और टीशर्ट के लिए बहुत खुश था। तभी उसकी नज़र समर के घिसे हुए जूते पर गई। वह जल्दी से जाकर उसका जूता देखा और फिर रोने लगा।
समर उसे रोता देखकर घबरा गया। समर जो सामान को डब्बे में डाल रहा था, वह वह काम करना छोड़कर तेज़ी से रामू के पास आकर उसे गले लगा लिया।
समर उसके आँसू पोछते हुए कहता है, "पन का भाई रो क्यों रहला है? तेरे को कहीं दर्द हो रैला है?"
"हाँ, अपना के दिल में दर्द हो रहा है। अपना की वजह से अपना का भाऊ ऐसी हालत में है। उसने अपना का बहुत ख्याल रखा पर अपना को अपने भाऊ का ख्याल ही नहीं है। अपना के भाई का जूता घिसा है, पर अपना ने दो-दो जूते ले लिए। एक से भी तो काम चला सकता था अपना।"
"इत्तू सी बात पर तू रो रैला है? पन सोचा कि पता नहीं तेरे को क्या हो रैला है। पन की तो जान हीच जाते हुए बची, पन तेरे को खोना बर्दाश्त नहीं कर सकता।"
रामू आकर उसके गले लग गया। समर ने भी उसे कसकर गले लगा लिया था। कुछ देर बाद समर अलग होकर कहता है, "तू रुक, पन कुछ खाने को बनाता है। पन को बहुत ही भूख लगी है। तू अपनी पढ़ाई कर, आज सुबह से बिल्कुल भी नहीं पढ़ा।"
"तू तो अपना को पढ़ाने ऐसे बैठता है जैसे खुद पढ़ा-लिखा हो। अपना कुछ भी पढ़ेगा तो तुझे पता कैसे चलेगा?" यह कहकर वह हँसने लगा।
"पन तेरे पास इसलिए नहीं बैठता कि यह देखा करे कि तू पढ़ता है या नहीं, पन तेरे पास इसलिए बैठता है कि तुझे अकेला ना लगे। अब पन जा रहला है, तू यहीं पर बैठकर पढ़ाई कर। तेरे को भी भूख लग गईच है।" यह कहकर वह उधर चला गया जहाँ पर वह खाना बनाता था।
कुछ देर बाद वे लोग खाकर बाहर निकले। वे लोग जहाँ रहते थे, वहाँ वैसे ही आठ-दस घर और थे। वे लोग भी उनके तरह ही उस खदान में काम करते थे। कुल मिलाकर वे लोग बीस आदमी होंगे।
तभी कुछ लोग समर और रामू को भी अपने साथ ले आते हैं। उन लोगों ने मिलकर एक छोटा सा पार्टी का इंतज़ाम किया था। वे लोग वहाँ पर नाच-गाना सब कर रहे थे।
तभी एक आदमी रामू को अपने साथ लेकर डांस करने जाता है तो रामू समर का हाथ पकड़कर उसे भी अपने साथ खींचकर लोगों के बीच ले आता है।
रामू को जो आदमी लेकर गया था, वह बोल पड़ता है, "तेरे को क्या हुआ जो अभी तक नाचना-गाना शुरू नहीं किया?"
"अपना तब नाचेगा और गाएगा जब अपना का भाऊ भी अपना के साथ गाएगा। वर्ना अपना का गाना भूल जा।"
सारे लोग मिलकर समर को गाने के लिए कहते हैं तो वह कहता है कि उसे गाना नहीं आता। पर उन लोगों के बार-बार बोलने से वह गाने को तैयार हो गया।
समर गाना गाता है। वह बहुत अच्छा नहीं, बल्कि बहुत ही साधारण गाना गा सकता था।
"फटेला जेब सील जाएगा
जो चाहेगा मिल जाएगा
तेरे भी दिन आएँगे छोटे
अच्छा ख़ासा हिल जाएगा
रुकने का नहीं थकने का नहीं
लाइफ में चलते रहने का
अरे भेजा क्यों सरका ने का
सही बोलता सही बोलता"
उसका साथ देते हुए गाते हैं
"टेन्शन कायको लेने का
सही बोलता सही बोलता
फटेला जब सील जाएगा
जो चाहेगा मिल जाएगा
तेरे भी दिन आएँगे छोटे
अच्छा ख़ासा हिल जाएगा
रुकने का नहीं थकने का नहीं
लाइफ में चलते रहने का
अरे भेजा क्यों सरका ने का
सही बोलता सही बोलता"
समर रामू का हाथ पकड़कर आगे गाता है और वे लोग जैसा डांस कर रहे थे, करने लगा।
"टेन्शन कायको लेने का
सही बोलता सही बोलता
कहने का है चिकन करी
उसको माँगता है पति हरी
जेब में तेरे डूस रूपिया
पीले कटिंग ख़ाले भाजिया
कहने का है चिकन करी"
सारे लोग उसके साथ नाचते हुए गा रहे थे।
"उसको माँगता है पति हरी
जेब में तेरे डूस रूपिया
पीले कटिंग ख़ाले भाजिया
किस्मत पे रोने का नहीं
कैलेंडर बदलते रहने का
अरे भेजा क्यों सरका ने
का सही बोलता सही बोलता"
समर सबके बीच बैठकर आराम से बैठकर आगे गाना कहता है। उसकी बात मानकर वे लोग भी आगे का गाना गाने लगे। उन सब ने समर को भी अपने साथ मिला लिया था।
"टेन्शन कायको लेने का
सही बोलता सही बोलता
आज तो है अंधेरा कल होगा उजाला
अरे अपनी दीवाली होगी
किसी और का होगा दीवाला
कल देख ले गा पैसा
हो गा गोनी बाहर कर
इनकम टैक्स ऑफीसर
तो हाथ धोके ही
बीचे पद जाए गा
फटेला जब सील जाएगा
जो चाहेगा मिल जाएगा
तेरे भी दिन आएँगे छोटे
अच्छा ख़ासा हिल जाएगा
रुकने का नहीं थकने का नहीं
लाइफ में चलते रहने का
अरे भेजा क्यों सरका ने का
सही बोलता सही बोलता
टेन्शन कायको लेने का
सही बोलता सही बोलता"
समर और रामू भी सबके साथ मिलकर आगे का गाना पूरे जोश और नाचने के साथ समाप्त करते हैं।
"फटेला जब सील जाएगा
जो चाहेगा मिल जाएगा
अरे भलता ही पकड़ा बाप
लाइन में आ लाइन में आ
तेरे भी दिन आएँगे छोटे
अच्छा ख़ासा हिल जाएगा
रुकने का नहीं थकने का नहीं
लाइफ में चलते रहने का
लाइफ में चलते रहने का
अरे भेजा क्यों सरका ने का
सही बोलता सही बोलता
टेन्शन कायको लेने का
सही बोलता सही बोलता
सही बोलता सही बोलता
सही बोलता सही बोलता"
वे दोनों भी पूरी मस्ती से नाचते हुए अपना शाम बिताते हैं। उसके बाद सबके घर से कुछ ना कुछ आकर खाने का इंतज़ाम होता है। सब लोग मिलकर पूरे मस्ती के साथ खाते हैं। फिर सब मिलकर साफ़-सुथरा कर देते हैं।
"मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इतना खुलेपन से अपनी लाइफ इन्जॉय कर सकता हूँ। मैं तो हमेशा के लिए इन्हीं लोगों के साथ बस जाने के लिए भी तैयार हूँ।"
अगले भाग में जारी.....
एक दिन समर किराना स्टोर में जाकर आटा और घर का कुछ सामान ले रहा था। उसी समय उसका सीक्रेट फोन वाइब्रेट होने लगा।
वह जल्दी से अपना सामान लेकर वहाँ से निकल गया। एक गली, जो सुनसान रहती थी, उसमें चला गया और जब देखा कि उसके आस-पास कोई नहीं है, तो उसने अपना फोन निकाला।
"समर- अमर, क्या हुआ? ऐसी क्या इमरजेंसी आ गई जो तुम मुझे कॉल कर रहे हो?"
"अमर- तेरे कहने पर मैं CEO तो बन गया, पर बिग बॉस और वरद सर लगातार कुछ न कुछ प्रॉब्लम क्रिएट कर रहे हैं। उन्होंने थाईवान वाले क्लाइंट को बुला लिया। उस क्लाइंट से रिलेटेड कोई इन्फॉर्मेशन है ही नहीं, तो मैं अब क्या करूँ?"
"समर- इडियट, अपना लैपटॉप ऑन कर, फिर अपना फ़ोल्डर ओपेन कर, उसमें तुझे सब इन्फॉर्मेशन मिल जाएगी। उसी में एक PDF फ़ाइल होगी, उसे ओपेन करोगे तो तुम्हें उस प्रोजेक्ट की डिटेल मिल जाएगा। अब मैं फ़ोन रखता हूँ। मुझे खाना बनाना है, इसलिए मैं जा रहा हूँ। मुझे देर हो रहा है।"
समर, अमर की बात सुने बिना, फ़ोन रख दिया। वहीं अमर उसकी बात मानकर अपना लैपटॉप निकाल कर सारी इन्फॉर्मेशन कलेक्ट करने लगा। उसने उन इन्फॉर्मेशन्स के आधार पर अपना प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर ली।
कुछ देर बाद मीटिंग शुरू हुई। उस मीटिंग में वरद, विदर्भ, अमर और वह क्लाइंट केविन भी थे। विदर्भ और वरद ने अमर को नीचा दिखाने के लिए उस क्लाइंट के साथ हाथ मिला लिया था।
"केविन- गुड मार्निग, अमर। माय नेम इज केविन। मुझे मि. वैश्विक ऑबेराय से मिलना है।"
"अमर- मि. केविन, अभी यह कंपनी मेरी है। इसका सारा डिसीजन लेने का सारा हक सिर्फ और सिर्फ मेरा है। अगर आप मुझसे बात करना चाहें तो हम आगे की प्रोसेस कर सकते हैं। नहीं तो सामने ही दरवाजा है जहाँ से आप आए थे। यह कंपनी अभी मेरे कंट्रोल में है। यहाँ से जाने के बाद सबको बता देना कि अमर गोयल ऐसे इंसान से कोई बिज़नेस नहीं करता जो अपने बदले किसी और के दिमाग से काम लेता है। जो खुद का दिमाग इस्तेमाल नहीं कर सकते, वह मेरे कंपनी के लिए ट्रूथफुल नहीं साबित होंगे। ऐसे भी मैं अक्ल के अंधों के साथ काम नहीं करता। मैं एक ऐसे इंसान के साथ बिल्कुल भी काम नहीं करूँगा जो दूसरों की पॉलिटिक्स का शिकार बनकर अपना 100 करोड़ का नुकसान कर दे।"
"Meeting is over, everyone should go..."
यह सब कहकर वह पूरे एटीट्यूड के साथ उस मीटिंग हाल से निकल गया और अपने पीछे हैरान-परेशान लोगों को छोड़ गया। वहाँ मौजूद किसी के सपने में भी यह बात नहीं आई थी। उसने सबको बिना कुछ बोले ही औकात दिखा दी थी। वह लोग भी गुस्से से वहाँ से निकल गए। उनका प्लान हर बार अमर फेल कर रहा था।
वहीं दूसरी ओर, खदान में समर कोयला ढो रहा था। आज उसे पैरेंट्स-टीचर मीटिंग के लिए भी जाना था। उसके अच्छे व्यवहार के कारण मैनेजर उसे पसंद करने लगा था। समर बिना कामचोरी किए अपना सारा काम करता था। वह हर काम, जो भी उसे करने को कहा जाता था, वो कर देता था।
समर मैनेजर के पास आकर खड़ा हो गया। उसे अपने करीब खड़ा देखकर मैनेजर कहता है- "क्या हुआ बचवा, काम छोड़कर यहाँ क्या कर रहा है?"
मैनेजर एक एज्ड आदमी था, इसलिए वह अपने खदान में काम करने वाले यंग लोगों को बचवा बोलता था।
"समर- पन को आपसे कुछ कहना है, पन को एक घंटे की छुट्टी मांग रही है। पन को अपन के भाई के स्कूल जाना है। वो पन का वेट कर रही है। बहुत ही जरूरत है।"
"मैनेजर- ठीक है जाओ, पर दो घंटे में आ जाना। उससे ज्यादा समय लगेगा, तो मुझे मजदूरी काटनी पड़ेगी।"
"समर- आप पन पर भरोसा रखो, पन दो घंटे के अंदर आ जा रही है। पन अभी ही जा रही है।" यह कहकर वह तेजी से खदान से निकल गया।
वह तेजी से दौड़ते हुए स्कूल पहुँचता है। वहाँ वह जाकर वहाँ बैठ जाता है जहाँ पर पैरेंट्स के बैठने की व्यवस्था की गई थी।
तभी रामू की क्लास टीचर उसे बुलाती है। वह उसके पास चला जाता है।
"क्लास टीचर- मि. समर, आपको यह बताते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है कि राम का क्लास परफॉर्मेंस बहुत अच्छा है। इसलिए हमारे स्कूल ने उसे सम्मान देने का निर्णय लिया है।"
फिर सबके सामने राम को फ्लावर बुके दिया गया। उसे यह लेते देखकर वह जोर-जोर से ताली बजाने लगा जिस पर सारे लोग उसे घूर कर देख रहे थे, पर वह बेफिक्र होकर ताली बजा रहा था।
कुछ देर बाद वह रामू के साथ प्रिंसिपल के केबिन में था।
"प्रिंसिपल- देखिए मि. समर, आप इस फार्म को भर दीजिए। हम सब बच्चों को कैंप पर भेज रहे हैं। यह नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट है, इस पर आपके साइन चाहिए। यह कंपलसरी है।"
"समर- मैं साइन कर रही हूँ। बस पन को कहाँ साइन करना है, ये छोटू तू पन को बता दे।"
रामू के बताने पर वह साइन कर देता है। प्रिंसिपल उससे फार्म को रख लेता है।
करीब दो दिन बाद रामू कैंप के लिए चला गया था। यह कैंप लगभग एक महीने का था। एक दिन समर को अकेले मन नहीं लग रहा था। इसलिए वह घर बंद कर घूमने निकल गया।
अचानक ही मौसम खराब होने लगा। बहुत जोर-शोर से बादल गरज रहा था। हवा भी काफी तेज बहने लगी।
समर अपने आप को बचाने के लिए जगह खोजने लगा। तभी उसकी नज़र सामने गई जहाँ पर एक बहुत सुंदर और पुराना माता रानी का मंदिर था। वह तेजी से आकर उस मंदिर के अंदर आकर एक कोने में हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
वहीं दूसरी ओर सर्वम हनुमान मंदिर खोज रहा था। आज मंगलवार का दिन था। उसे सुबह लड्डू चढ़ाने का समय नहीं मिला था, इसलिए वह रात में ही मंदिर में लड्डू चढ़ाने का सोचकर निकल गया था।
वह अभी रास्ते में ही था जब मौसम खराब होने लगा। तभी उसकी नज़र भी इस मंदिर पर ही पड़ी। वह तेजी से मंदिर की ओर जाने लगा। जब तक वह मंदिर पहुँचता, बारिश भी बहुत तेज हो गई थी।
मंदिर में आज बहुत भीड़ थी। आज वहाँ दस जोड़ों का सार्वजनिक विवाह का कार्यक्रम था। इस मंदिर की ऐसी मान्यता थी कि इस मंदिर में हुए विवाह को सीधे माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जो यहाँ बंधे रिश्ते को तोड़ने की कोशिश करेगा, उसका सर्वनाश हो जाएगा।
सर्वम तेजी से दौड़ते हुए मंदिर के अंदर आता है। वह जैसे ही अंदर आता है, उसका पैर गलती से केले के छिलके पर पड़ जाता है जिसके कारण वह फिसलने लगता है। वह अपने को बचाने की कोशिश कर रहा होता है, तभी गलती से उसका हाथ में एक मंगलसूत्र आ जाता है।
वहीं दूसरी ओर मंदिर में ऊँचे स्वर में पूरे विधि-विधान के साथ विवाह के मंत्रों का उच्चारण हो रहा था। अब वर अपने वधू के गले में मंगलसूत्र पहना रहे थे। उसी समय एक औरत गलती से सर्वम से टकरा जाती है और सर्वम के हाथ में पकड़ा मंगलसूत्र उसे धक्का लगने के कारण उछलकर समर के गले में चला गया।
यह देखकर सर्वम और समर दोनों ही हैरान रह गए। उनके साथ-साथ वहाँ मौजूद सारे लोग इस अनहोनी को देख रहे थे।
मंदिर के पंडित सर्वम और समर के पास आते हैं। उनके साथ मंदिर में मौजूद और लोग भी आ गए।
"पंडित सर्वम से- बेटा, आज से यह लड़का तुम्हारा पत्नी है और तुम उसके पति हो।"
"सर्वम- पर पंडित जी, ये सब जो भी हुआ गलती से। हम दोनों तो एक-दूसरे को जानते तक नहीं, तो फिर हम दोनों पति-पत्नी कैसे हो सकते हैं?"
"समर- ये क्या बकवास कर रही है। पन ये सब नहीं मानता।"
अगले भाग में जारी.....
समर ने इस शादी को नहीं माना; वह बस यूँ ही आ गया था। अब वह जा रहा था।
"तुम इस शादी से इंकार नहीं कर सकते। अगर तुमने ऐसा किया तो तुम दोनों की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी," पंडित ने कहा।
"वह एक लड़का है," समर ने कहा।
वहाँ मौजूद सभी लोग बोल उठे, "अगर तुम दोनों ने यह शादी तोड़ी तो माता रानी रुष्ट होकर हम सबको भी सज़ा देंगी। तुम्हें अब पूरे विधि-विधान के साथ इस विवाह को करना ही होगा।"
वहाँ मौजूद लोगों का गुस्सा देखकर समर सोच में पड़ गया। पर वह फालतू का पीटना नहीं चाहता था, तो वह बेमन से यह शादी करने के लिए तैयार हो गया।
सर्वम बोला, "सारी यार, मेरी वजह से तुम भी मुसीबत में पड़ गए। मेरी किस्मत ने आज तक सिर्फ़ मुझे तकलीफ़ दी थी, आज पहली बार उसका असर किसी और पर भी हो गया।"
"देख, मैं इस सब मामले में बहुत डरपोक हूँ। अब जब तुम मेरे वाइफ हो तो प्लीज मुझे अपनाने की कोशिश कर लेना।"
समर के चेहरे पर उसकी बात सुनकर स्माइल आ गई। सर्वम की तरफ़ देखते हुए वह बोला, "पन तेरे को नहीं छोड़ेगा, अब तू पन को कितना दिन झेल सकता है, ये देखने को माँगता है।"
उसके बाद उन दोनों के विवाह की सारी रस्में हो जाती हैं। सर्वम पंडित जी का आशीर्वाद लेता है। फिर दोनों माता रानी का आशीर्वाद लेते हैं।
तभी पंडित जी दोनों के पास जाते हैं। फिर वह दोनों को लड्डू देते हैं।
"तुम दोनों इसे यहीं खा लो। यह खाना ज़रूरी है," पंडित ने कहा।
सर्वम और समर उस लड्डू को खा लेते हैं। फिर सर्वम समर को लेकर अपने घर की तरफ़ जाने लगा। फिर वह एक टैक्सी रोकता है।
"अहो, पन कहाँ जा रहे हैं?" समर ने पूछा।
"हम अपने घर जा रहे हैं," सर्वम ने उत्तर दिया।
"अहो, घर बहुत दूर है?" समर ने पूछा।
"नहीं, कुछ ही दूर है," सर्वम ने कहा।
"अहो, पन टैक्सी ले रहे हैं," समर ने कहा।
"शादी के बाद पहली बार तुम्हें ससुराल लेकर जा रहा हूँ। मानता हूँ कि अमीर नहीं हूँ। पर एक दिन टैक्सी कर सकता हूँ," सर्वम ने कहा।
उसके बाद वह दोनों टैक्सी में बैठ गए। करीब पाँच मिनट बाद सर्वम अपने घर के आगे खड़ा था। उसने टैक्सी का किराया देकर समर को अपने साथ लेकर अपने घर का दरवाज़ा नॉक करता है।
उसकी छोटी बहन शिवानी गेट खोलती है। वह सर्वम को देखकर खुश हो गई। बाहर का मौसम देखकर उसे बहुत घबराहट हो रही थी।
"भाऊ, तुम्ही कुठे होता? मी खूप घाबरलो होतो।" (तुम कहाँ थे? मुझे बहुत घबराहट हो रही थी।)
सर्वम उसे शांत रहने कहता है। फिर वह बोलता है,
"मी ठीक आहे, मला सकाळी मंदिरात जाता येत नव्हते म्हणून मी आता मंदिरात गेलो।" (मैं ठीक हूँ। सुबह मंदिर नहीं जा पाया था तो अभी मंदिर गया था।)
तभी उसका ध्यान सर्वम के बगल में खड़े शख्स पर पड़ा। समर ने अभी भी एक फटा जींस और एक शर्ट पहन रखा था जिसका ऊपर से तीन बटन खुला था। वही नीचे की तरफ़ से उस शर्ट में गाँठ लगी थी। उसके खुले शर्ट से उसका सीना दिख रहा था। साथ ही उसमें पहने चैन विज़िबल हो रहे थे।
शिवानी उसे देखकर एक टपोरी समझ लेती है। फिर वह ध्यान से सर्वम को ऊपर से नीचे तक देखती है।
"तुम्ही कर्ज घेण्यास कधी सुरवात केली? कर्ज घ्यायचे असते तर एखाद्या प्रतिष्ठित व्यक्तीकडून घेतले असते, अशा बदमाशाकडून का घेतले?" (तुम कब से उधार लेने लगे हो? उधार लेना ही था तो किसी शरीफ़ इंसान से लेते, इस जैसे टपोरी से क्यों लिया?)
उसकी बात सुनकर समर का दिमाग खराब हो रहा था। वह उसे कुछ बोलने जाता है। तभी सर्वम उसका हाथ पकड़कर रोकते हुए कहता है, "अहो, तुम शांत रहो। उसे गलतफ़हमी हो रही है। मैं सारी बात क्लियर कर देता हूँ।"
"शिवानी, ही टपोरी नाही, माझी बाइको आहे। काही काळापूर्वी आमचे लग्न मंदिरात झाले। ही तुझी वहिनी आहे।" (ये कोई टपोरी नहीं, मेरी वाइफ है। कुछ देर पहले ही मंदिर में हमारी शादी हुई है। यह तुम्हारी भाभी है।)
यह कहकर वह उसे सब कुछ बता देता है। यह सब सुनकर शिवानी हैरानी से जोर से चिल्ला देती है। उसकी इतने जोर से चिल्लाने से समर बोल पड़ा, "अहो, दी को क्या हो गया है? ये ऐसे क्यों चिल्ला रही है?"
शिवानी समर की भाषा सुनकर अपना सिर पकड़कर बैठ गई। फिर वह कहती है, "वहिनी टपोरी सारखी बोलतात।" (भाभी तो टपोरी की तरह बोलते हैं।)
"पन तो ऐसे ही बात करता है। अहो, पन टपोरी है?"
यह बात वह बहुत प्यार से सर्वम से पूछता है।
सर्वम उसकी बात सुनकर हल्का स्माइल करने लगा। फिर वह उसके बालों को बिखरा कर कहता है, "तुम जैसे बोलते हो, बोलो, मुझे कोई दिक्कत नहीं है।"
उन लोगों की आवाज़ सुनकर सर्वम के आई-बाबा भी वहाँ आ गए। जब वह लोग इतनी रात सर्वम को घर से बाहर देखते हैं तो उसकी आई उसे डाँटते हुए कहती है, "रात्र झाली, आत यायचं नाही का?" (रात हो गई, अंदर आना नहीं है?)
"आई, माझं लग्न झालं। हि माझी बाइको आहे।" (आई, मेरी शादी हो गई। यह मेरा वाइफ है।)
यह कहकर वह उन सब को सब कुछ बता देता है। उसकी बात सुनकर उसकी आई एक नज़र ऊपर से नीचे तक समर को देखती है। उसकी हालत देखकर ही वह समझ जाती है कि यह बहुत गरीब है। उसे अपने बेटे के बगल में देखकर बहुत गुस्सा आ रहा था।
तभी वह बोल पड़ी, "तू खरच नालायक आहेस। आज तुझ्यामुळे माझी सर्व स्वप्ने तुटली। एका गरीब मुलाशी लग्न केले। आता सगळे माझी चेष्टा करतील।" (तुम नालायक हो। तुम्हारी वजह से आज मेरे सारे सपने टूट गए। तुमने एक गरीब लड़के से शादी कर ली। अब सब मेरा मज़ाक बनाएँगे।)
यह कहकर वह सर्वम पर हाथ उठा देती है। थप्पड़ के डर से सर्वम अपनी आँख बंद कर लेता है। पर उसे थप्पड़ नहीं लगता क्योंकि समर ने पहले ही उसकी सासू माँ का हाथ पकड़ लिया था। फिर वह एक झटके के साथ उसका हाथ छोड़ता है और कहता है, "सासू माँ, पन के सामने कोई भी अहो को मार नहीं सकता। पन को अपना आशीर्वाद दे दो। पन इससे ज़्यादा इज़्ज़त देने को नहीं माँगता।" यह कहकर वह उसके पैरों पर हाथ लगाता है, फिर उसका हाथ पकड़कर अपने सिर पर आशीर्वाद की मुद्रा में रख देता है। फिर वह उसका हाथ सर्वम के सिर पर रख देता है।
उसका यह स्वैग देखकर सारे लोग शॉक रह गए थे।
अगले भाग में जारी......
समर ने कहा, "सासू माँ, पन को यहीं रखने की माँग क्या है? जाकर बहुप्रवेश की तैयारी कर ना। पन बहुत थक गया है, पन को सोने की माँग है।"
सुहाषी कुछ बोलती, इससे पहले ही शिवानी एक लोटे में चावल भरकर लाई और गेट पर रख दिया।
"वहिनी, इसे अपने पैर से गिराकर अंदर आ जाओ," शिवानी ने कहा।
समर उसकी बात मानकर चुपचाप वैसा ही किया जैसा उसने कहा था।
जैसे ही वह अंदर आया, लाल परात में उसका पैर पड़ा। उसमें से निकलकर वे दोनों उस जगह पर गए जहाँ पूजा होती थी।
"दी, पन को बहुत भूख लग रही है। आज बारिश के कारण पन कुछ खा ही नहीं पाया," समर ने कहा।
"शिवानी, त्याच्यासाठी स्वयंपाकघरातून काहीतरी आणा," सर्वम ने कहा।
(शिवानी, उसके खाने के लिए किचेन से कुछ ले आओ।)
"होय, द्या, मला माहित नाही की तुम्ही कधी अन्न पाहिले आहे की नाही," सुहाषी ने कहा।
(हाँ, दे दो। पता नहीं कभी खाना देखा भी है या नहीं।)
"आई, काय बोलताय?" सर्वम ने पूछा।
(आई, ये कैसी बात कर रही हो?)
"सासू माँ, पन ने खाना देखा या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पन को भूख लग रही है और पन को खाना मांगता है। पन फर्नीचर लाख सही पर अब जैसा भी है, पन तेरे बेटे का बाइको है," समर ने कहा।
यह बात सुनकर सुहाषी नाराज़ होकर अपने कमरे में जाने लगी। सर्वम भी अपनी माँ के पीछे जा रहा था। तब समर ने उसका हाथ पकड़कर रोका और कहा, "अहो, पन को छोड़कर कहाँ जा रही है? पन यहाँ पर अकेला रह जाएगा।"
शिवानी को समर का यह स्टाइल बहुत अच्छा लगा। उसे यह जानकर खुशी हुई कि अब उसके भाई के लाइफ में ऐसा कोई है जो उसके भाई के सपोर्ट में खड़ा होने की हिम्मत रखता है।
शिवानी उसके लिए खाना लेकर आई। आज खाने में पूरी, सब्जी और खीर बना था। शिवानी ने अपने भाई के लिए निकालकर रखा था, वही लाकर समर को दे दिया।
"वहिनी, इसे खा लो। अभी मेरे पास यही है। आपको अगर कुछ भी ज़रूरत हो तो मुझे बताना," शिवानी ने कहा।
"दी, पन को प्यास लग रही है। अगर पानी मिल जाए, तो बहुत अच्छा लगेगा," समर ने कहा।
"वहिनी, तुम रुको, मैं दो मिनट में आई।" यह कहकर वह किचेन में चली गई। किचेन से वह एक गिलास पानी लेकर आ रही थी। तभी उसकी नज़र अपने भाई और बहिनी पर पड़ी।
समर अपने हाथ से उसे खिलाकर खुद भी खा रहा था। यह देखकर वह उसके पास नहीं जाकर अलग खड़ी हो गई। कुछ देर में वे दोनों खाना खा लेते हैं।
शिवानी दोनों के सामने पानी रख देती है। फिर वह सर्वम के कान में कहती है, "भाऊ, वहिनी खूप छान आहे। मी तुझ्यासाठी खूप आनंदी आहे। वहिनी थकली असेल, तिला तुझ्या खोलीत घेरुन जा।"
(भाई, भाभी बहुत अच्छी है। मैं आपके लिए बहुत खुश हूँ। भाभी थक गई होगी, उसे अपने कमरे में ले जाओ।)
सर्वम समर का हाथ पकड़कर अपने साथ ले जा रहा था, तो शिवानी बोल पड़ी, "किती कंटाळवाणा माणूस। चित्रपटाप्रमाणे त्याला आपल्या मांडीवर घेरुन।"
(कितने बोरिंग इंसान हो! फिल्म की तरह उसे गोद में उठाकर ले जाओ।)
शिवानी की बात सुनकर सर्वम के चेहरे पर स्माइल आ गई। वह समर को अपनी गोद में उठा लेता है। गिरने के डर से समर ने उसके गले में अपनी बाहें डाल दीं। जिस कारण वे दोनों एक-दूसरे के बहुत करीब आ गए थे।
सर्वम उसे लेकर जैसे ही रूम में जाता है, उसका पैर फिसल गया क्योंकि उसका पैर पानी पर पड़ गया था। सर्वम उसे अपनी गोद में लिए हुए ही बेड पर गिर गया। अब समर नीचे था और सर्वम उसके ऊपर था। उन दोनों के होंठ आपस में सट गए, जिससे उन्हें अपने अंदर अजीब सा एहसास हो रहा था। दोनों की ही यह पहली किस थी। सर्वम को समर के होंठ बहुत जूसी लग रहे थे। धीरे-धीरे वह समर के होंठों को चूसने लगा, इस पर समर भी किस करने लगा। समर को भी अपना शरीर गरम लग रहा था और सर्वम की करीबी उसे राहत पहुँचा रही थी। वही हाल सर्वम का भी था। उसे भी गर्मी लग रही थी और समर को छूना उसे बहुत अच्छा लग रहा था।
सर्वम समर की आँखों में देखते हुए कहता है, "बाइको, आज हमारी ज़िंदगी की नई शुरुआत है। आज हमारी सुहागरात है। मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि आज तक मैं कभी भी किसी के साथ रिलेशनशिप में नहीं आया। तुम मेरी लाइफ में आने वाले पहले इंसान हो।"
"पन के लाइफ में भी कोई नहीं है। पन ने आज पहली बार तेरे को किस किया है," समर ने कहा।
"क्या हम अपने रिश्ते में आगे बढ़ सकते हैं?" सर्वम ने पूछा।
"पन तैयार है। पन को बहुत अलग लग रहा है। पन को तेरा छूना अच्छा लग रहा था," समर ने कहा।
सर्वम फिर से उसके होंठ पर अपने होंठ रखकर किस करने लगा। धीरे-धीरे उसका किस पैशनेट होने लगा, जिस कारण समर को साँस लेने में दिक्कत हो रही थी। वह लगातार अपने हाथों से सर्वम के चेस्ट पर मारने लगा, पर सर्वम उसके किस करने में खो गया था। करीब पाँच मिनट बाद वह अलग हुआ।
"तेरे को पन की जान लेने की माँग क्या थी? पन की जान ही जाने वाली थी," समर ने सर्वम के सीने पर मारते हुए कहा।
सर्वम बहुत प्यार से उसे देख रहा था। वह उसे शिकायत करता हुआ बहुत प्यारा लग रहा था।
"मैं क्या करता? तेरे होंठों का टेस्ट बिल्कुल स्ट्राबेरी जैसा है। मुझे कभी-कभी ही स्ट्राबेरी खाने को मिला है, इसलिए मैं तेरे होंठों को खा रहा था," सर्वम ने कहा।
उसकी बात सुनकर समर की नज़र शर्म से झुक गई। सर्वम ने अपने होंठ उसके गर्दन पर रख दिए और धीरे-धीरे वह नीचे की तरफ़ बढ़ने लगा। फिर वह समर के कोलर बोन को किस करने लगा। साथ ही वह हल्के से वहाँ पर बाइट भी कर रहा था।
सर्वम समर की शर्ट खोलकर हटा देता है, जिससे उसकी मिल्की वाइट स्किन सर्वम की नज़र के सामने थी। वह बहुत ही सेन्सअस ढंग से उसके ऊपर हाथ फिराते हुए कहता है, "तुम्हारी स्किन बहुत सोफ्ट है। मुझे इसे खाने का मन कर रहा है।" यह कहकर वह अपने होंठों को उसके पूरे बदन पर चलाने लगा। थोड़ी ही देर में वह कमरा समर की मोनिंग की आवाज़ से भर गया।
सर्वम समर से अलग होकर अपने कपड़े उतारता है। समर एकटक उसे देख रहा था, क्योंकि पसीने से भींगा उसका शरीर उसे बहुत सेक्सी लग रहा था। सर्वम समर के बगल में लेटकर उसका जीन्स और इनरवियर उतार देता है। यह देखकर समर अपनी आँखें बंद कर लेता है। सर्वम उसके पैरों को अलग कर एक झटके से उसके अंदर समा गया। समर की आँखों में दर्द से आँसू आ गए, पर वह चीख नहीं पाया, क्योंकि सर्वम ने उसके होंठों को पहले ही कब्ज़ा कर रखा था।
धीरे-धीरे उन दोनों की मोनिंग की आवाज़ आने लगी। करीब दो घंटे बाद सर्वम अपने को रिलीज़ कर देता है और समर को पकड़कर सो जाता है। समर भी उसे कडल कर लेता है। सोने से पहले सर्वम ने समर और अपने आप को चादर से ढक दिया था।
अगले भाग में जारी.....
अगली सुबह सर्वम की नींद टूटी। उसे अपने शरीर पर भार महसूस हुआ। उसने देखा कि उसकी बाइको उसे लिपट कर सोई हुई थी।
"बाइको, उठो। सुबह हो गई। फ्रेश होकर आओ।" सर्वम ने कहा।
"अहो, बहुत थक गई हूँ। ऐसा लग रहा है कि जान ही निकल गई है। बहुत दर्द हो रहा है।" समर ने कहा।
सर्वम ने उसके माथे पर किस किया। फिर उसने उसे गोद में उठाकर नहलाया।
"अहो, मैं क्या पहनूँगी?" समर ने पूछा।
सर्वम ने उसे अपने कपड़े दिए जो उसे थोड़े बड़े हो रहे थे। पर उसे पहनकर वह बहुत क्यूट लग रही थी। सर्वम ने उसे झटके से अपनी गोद में बिठा लिया।
"अहो, ये क्या कर रहे हो? छोड़ो ना।" समर ने कहा।
"तू मेरी बाइको ही है। मैं तुझे प्यार कर रहा हूँ।" यह कहकर सर्वम ने अपने होंठ उसके होंठों पर रखकर पैशनेट किस करना शुरू कर दिया। करीब एक मिनट बाद उसने उसे छोड़कर अलग हो गया। समर जैसे ही सर्वम की ओर देखती है, उसकी आँखें शर्म से झुक गईं।
सर्वम उसे लेकर बेड पर रख देता है और कहता है- "तुम आराम करो, मैं थोड़ी देर में आता हूँ।"
समर ने अपना सिर हिलाया और बेड पर लेट गई। सर्वम ने उसे चादर ओढ़ाकर कमरे से निकल गया।
अभी सिर्फ़ सुबह के छह बज रहे थे। वह किचन में जाकर ब्रेकफ़ास्ट तैयार कर रख देता है। आज उसके चेहरे पर स्माइल थी जिसे किचन के गेट पर खड़ी होकर शिवानी देख रही थी। उसे अपने भाई को खुश देखकर बहुत अच्छा लग रहा था।
"आज तू खूप आनंदी दिसत आहेस।" शिवानी ने कहा। (आज तुम बहुत खुश लग रहे हो।)
सर्वम ने उसे जवाब देने की जगह स्माइल पास कर दिया। फिर वह कहता है- "मी थोडावेळ मंदिरात जात आहे। तू तुझ्या वहिनी का ख्याल रखना। तो थकला आहे म्हणून तो झोपला आहे।" (मैं थोड़ी देर के लिए मंदिर जा रहा हूँ। तुम अपनी भाभी का ख्याल रखना। वह थक गई है इसलिए सो रही है।)
"याचा अर्थ माझ्या भावाची रात खूप छान होती।" शिवानी ने कहा। (इसका मतलब मेरे भाई की रात बहुत अच्छी गुज़री है।)
सर्वम उसकी बात का मतलब समझकर कहता है- "ज्यादा मत बोल, नहीं तो मारूँगा।"
वह तेज़ी से मंदिर के लिए निकल गया। थोड़ी देर बाद वह उसी मंदिर में पहुँचा। वह तेज़ी से मंदिर के प्रांगण के अंदर आ गया। फिर वह मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर रोने लगा। कुछ देर बाद वह शांत हो जाता है। अभी वह गुमसुम और शांत था। फिर वह मंदिर के अंदर जाकर माता रानी की मूर्ति के आगे हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
कुछ देर तक ऐसे ही रहने के बाद वह कहता है- "हे माता रानी, आपको मुझ पर तरस नहीं आता। कभी तो मुझे जॉब में तरक्की दे दीजिए। पिछले छह महीने से जॉब में तरक्की की कोशिश कर रहा हूँ पर कोई तरक्की नहीं मिली है। बीस हज़ार रुपए की सैलरी में ही अपना घर किसी तरह चला रहा था, पर आपकी कृपा से कल रात इस मंदिर में हुए सार्वजनिक विवाह समारोह में मेरी शादी गलती से एक लड़के से हो गई है। अब उसकी ज़िम्मेदारी भी मेरे ऊपर आ गई है। मेरी फ़ूटी किस्मत! अब ना चाहते हुए भी मैं शादीशुदा हूँ।"
"हे माता रानी, तू कुछ तो ऐसा चमत्कार कर जिससे मुझे मेरी जॉब में तरक्की मिल जाए। मेरी सैलरी बढ़ जाए जिससे मेरी कुछ मदद हो जाए।"
"साथ ही माता रानी, मेरी आई को वह बिल्कुल पसंद नहीं आया। उन दोनों के बीच एक तनाव मैंने कल रात ही देखा है। हे माता रानी, तू कुछ ऐसा चमत्कार कर कि मेरी आई और मेरे बाइको के बीच सब सही हो जाए। वह दोनों एक दूसरे के साथ सही से रहें। वो दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगें। उनके बीच झगड़ा ना हो। वह दोनों एक दूसरे के साथ एडजस्ट कर लें। कल रात जो कुछ हुआ, दुबारा ना हो। घर के लोग एक साथ प्यार से रहें, यही सही है।"
पंडित जी उसकी प्रार्थना सुनकर स्माइल करने लगे। वह उसे प्रसाद देते हैं। सर्वम पूरी श्रद्धापूर्वक प्रसाद लेते हुए कहता है- "पंडित जी, थोड़ा और प्रसाद मिल सकता है? मैं अपने घर में सबको देना चाहता हूँ।"
पंडित जी उसे और प्रसाद दे देते हैं जिसे लेकर वह वहाँ से चला गया। तभी पंडित जी के पास दूसरा पंडित आकर कहता है- "गुरुदेव, लगता है बच्चों ने अपने रिश्ते को अपना लिया है। आज इस बच्चे के चेहरे पर कल की तरह का टेंशन नहीं था।"
पहला पंडित जी- "यह सब भोलेनाथ की कृपा है। आखिर उनके फेवरेट प्रसाद ने अपना असर दिखा दिया है। भांग के लड्डू का असर इन बच्चों पर पॉज़िटिव हुआ है। ऐसे भी हम सब की भलाई के लिए भी इन दोनों का मिलन ज़रूरी था। माता रानी ऐसा खुद चाहती थी।"
दूसरा पंडित जी- "जी गुरुदेव। अगर माता रानी की ऐसी इच्छा है तो अब सब सही होगा।" यह कहकर वह पंडित वहाँ से चला गया।
पहला पंडित मंदिर के अंदर आकर माता रानी की मूरत के आगे हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। फिर उसे सर्वम की प्रार्थना याद आई। उसे याद कर वह कहने लगा-
"बेटा, माता रानी की कृपा से तुझे तेरी जॉब में तरक्की मिल जाए। तेरी सैलरी भी बढ़ जाए। पर तूने जो दूसरा वर माँगा है, उसे पूरा करना तो खुद माता रानी के लिए भी असंभव सा है। इस संसार में सूरज दो दिन ना निकले हो सकता है, पर एक सास-बहू एक साथ रहते हुए एक दूसरे के साथ तनाव ना करें, यह तो शायद सपने में ही संभव है।"
"उन दोनों के बीच बाद में हो सकता है कि बहुत प्यार पैदा हो जाए, पर फिर भी वह दोनों एक दूसरे को ताने मारे बिना नहीं रह सकते हैं।"
"अब यह तुम पर है कि तुम अपने वाइफ़ और आई के बीच में अच्छा संबंध कैसे बनाकर रखते हो।"
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थोड़ी देर बाद सर्वम मंदिर से घर लौट आया। उसने देखा कि उसकी आई सोफ़े पर अपना पैर चढ़ाकर मुँह फूलाकर बैठी है। साथ में उसके बाबा भी थे।
"आई, मला माफ कर, राग थूंकून हा प्रसाद खा।" सर्वम ने कहा। (आई मुझे माफ़ कर दो। यह गुस्सा थूको और प्रसाद खा लो।)
सुहाषी ने उसके हाथ से प्रसाद ले लिया और उसे खा लिया। जिसे देखकर सर्वम के चेहरे पर स्माइल आ गई।
.......................
अगले भाग में जारी...