ग्रंथ खुराना, जिसे एक नजर में कुछ भी पसंद आने पर वो उसे अपना बना लेता है। लड़कियों को खिलौना और टाइम पास समझने वाले ग्रंथ को, जब सच्चा प्यार होगा तब क्या होगा? सबको अपने लुक से इंप्रेस करने की कोशिश करने वाले ग्रंथ को जब मासूम पार्थवी से पहली नजर मे... ग्रंथ खुराना, जिसे एक नजर में कुछ भी पसंद आने पर वो उसे अपना बना लेता है। लड़कियों को खिलौना और टाइम पास समझने वाले ग्रंथ को, जब सच्चा प्यार होगा तब क्या होगा? सबको अपने लुक से इंप्रेस करने की कोशिश करने वाले ग्रंथ को जब मासूम पार्थवी से पहली नजर में प्यार होगा, और ये पता चलेगा कि वो तो उसे देख ही सकती तो क्या वो पार्थवी को एक्सेप्ट करेगा? क्या होगा जब पार्थवी को पता चलेगा, उसकी आंखों की रोशनी जाने का कारण कोई ओर नहीं ग्रन्थ ही है। क्या प्यार को खेल समझने वाला ग्रंथ कभी पार्थवी के साथ वफ़ा का वादा निभा पाएगा? जानने के लिए पढ़िए, "अहद ए वफ़ा"
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चंडीगढ़ शहर मे रहने वाले मिस्टर सिद्धार्थ शर्मा के घर सुबह-सुबह सबके चिल्लाने की आवाजे आ रही थी। अगर आप ये समझ रहे हो, कि वो आवाजे किसी के आपस मे झगड़ने की थी... तो आप बिल्कुल सही हो।
वहाँ झगडा तो चल रहा था, लेकिन उस झगड़े में एक पिता का प्यार, माँ की फिक्र और बहन का स्नेह था, जो घर की सबसे छोटी और लाडली सदस्य ईशान्वी पर बरस रहा था।
"ईशि... बेटा देखो तुम अपनी मम्मा की बिल्कुल मत सुनना। इसके हिसाब से ड्रेसिंग अप किया, तो कॉलेज में सब तुम्हें आदिमानव के जमाने का समझेंगे" सिद्धार्थ जी ने मुंह बनाते हुए कहा। उनकी बातों से ही पता चल रहा था कि उनकी सोच काफी मॉडर्न थी। और उन्हीं की सोच का नतीजा था कि उन्होंने अपनी बेटियों को कभी भी पढ़ने और आगे बढ़ने से नहीं रोका। आज ईशान्वी का मेडिकल कॉलेज में पहला दिन था।
सिद्धार्थ जी लगभग 45 साल के थे और अपनी पत्नी रश्मि जी के साथ पिछले 5 सालों से चंडीगढ़ मे रह रहे थे। सिद्धार्थ जी पेशे से खुद एक डॉक्टर थे, तो उनकी पत्नी रश्मि कॉलेज में प्रोफ़ेसर थी।
"ईशु..! तू अपने पापा जी की बात बिल्कुल मत सुनना। वो एक मेडिकल कॉलेज है और तू वहां पढ़ने जा रही है....ना कि लड़के इंप्रेस करने।" रश्मि ने सिद्धार्थ को आँखे दिखाते हुए कहा।
सिद्धार्थ ने गर्व के साथ कहा, "हाँ और फिर डॉक्टर सिद्धार्थ की बेटी के नाम के आगे भी डॉक्टर लगेगा। बोलने मे ही कितना अच्छा लगता है ना, डॉक्टर ईशान्वी। बेटा आई एम प्राउड ऑफ यू।"
सिद्धार्थ जी की चेहरे की खुशी उनकी बातों से झलक रही थी। उनकी बातों से साफ नजर आ रहा था ईशान्वी के मेडिकल कॉलेज में एडमिशन होने की वजह से वो कितने खुश थे। उन्होंने बहुत बार पूरी- पूरी रात जाकर ईशान्वी को मेडिकल के इंटरेंस टेस्ट के लिए तैयार किया था। ईशान्वी ने भी अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दी थी। तो वही रश्मि के चेहरे पर खुशी के साथ-साथ परेशानी की भी झलक थी।
वो सिद्धार्थ जी की बात का जवाब देती, उस से पहले ही ईशान्वी बोल पड़ी, "पापा मुझे भी बहुत खुशी है, कि मैंने आपके सपने को पूरा किया। एंड ऑफ कोर्स आपको मुझ पर प्राउड होना चाहिए। जो काम दीदू नही कर पाई, वो मैने कर दिखाया।"
ईशान्वी के बोलते ही सिद्धार्थ और रश्मि के चेहरे की खुशी हवा की तरह उड़ गयी। तो वही कमरे के बाहर खड़ी पार्थवी की आँखो मे आँसू छलक उठे। उसने जैसे तैसे अपने आंसुओं को बहने से रोका क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि ईशान्वी को ऐसा लगे कि वो उसकी खुशी में खुश नहीं थी।
सिद्धार्थ जी के 2 बेटियां थी.... जिनमें बड़ी बेटी पार्थवी, तो छोटी बेटी ईशान्वी थी।
ईशान्वी लगभग 18 साल की थी, जिसे हमेशा से दुसरो से ज्यादा खुद की परवाह थी। वो बचपन से ही स्वभाव मे थोड़ी जिद्दी थी। घर मे छोटी होने के कारण अपनी हर जिद मनवाना उसे अच्छे से आता था।
ईशान्वी हमेशा से ही पार्थवी को थोड़ा कम पसंद करती थी। और उसकी सबसे बड़ी वजह थी, लोगों का उन दोनों की तुलना करना। जहाँ पार्थवी स्वभाव से किसी बच्चे की तरह मासूम थी, तो ईशान्वी अपनी जिद और आगे बढ़ने की होड़ में सही-गलत का भेद कभी नही समझा।
ईशान्वी तैयार होकर बाहर आई। उसने ब्लैक कलर का एक फ्रॉक पहना था, जो घुटनों से काफी उपर था। उसके बाल कंधे से थोड़े ही बड़े थे, जिसे उसने बिल्कुल स्ट्रेट कर रहा था।
बाहर आकर उसने देखा पार्थवी बाहर डाइनिंग टेबल पर बैठी सोच रही थी, "तो इशि ने पापा का सपना पूरा कर ही दिखाया। लेकिन मैं नहीं कर पाई.... और शायद ना ही कभी कर पाऊंगी।"
पार्थवी उस से 3 साल बड़ी थी। उसे हमेशा से दिखावे से ज्यादा सादगी पसंद थी। पार्थवी डाइनिंग टेबल पर बैठी खुद की उदासी को झूठी मुस्कान के जरिये छुपाने की कोशिश कर रही थी।
ईशान्वी उसके पास आकर बोली, "बाय पार्थवी दीदू! मैं आने के बाद आपको सारी बाते बताऊंगी कि मेरा कॉलेज में पहला दिन कैसे गया? ओ माय गॉड आई एम सो एक्साइटेड...."
पार्थवी ने बैठे बैठे ही उसे गले लगाकर कहा, "ऑल द बेस्ट फॉर योर फ्यूचर.... और मुझे भी तुम्हारे कॉलेज के फर्स्ट डे के बारे में सारी बातें जाननी है।"
सिद्धार्थ और रश्मि दूर खड़े उन दोनों को देख रहे थे।
सिद्धार्थ ने मायूसी से कहा, " लगता है इशु की खुशी ने उसके मन की कड़वाहट को दूर कर दिया है।"
रश्मि ने जवाब मे कहा, " क्या आपको अभी भी दिखाई नहीं दे रहा कि वो ये सब पार्थवी को जलाने के लिए बोल रही है? पता नहीं इशु कब समझदार होगी और उसे ये एहसास होगा की पहले की बात अलग थी, जब वो पार्थवी को परेशान करने के लिए कुछ भी बोल देती थी। लेकिन अब हालात बिल्कुल बदल गए हैं। पार्थवी की लाचारी को...!"
सिद्धार्थ जी ने थोड़ा नाराज होकर उसकी बात काटकर बोला, "क्या तुम्हें भी सब की तरह पार्थवी एक बोझ के अलावा और कुछ नहीं लगती, जो तुम उस पर ऐसे तरस दिखा रही हो?"
रश्मि बोली, "एक मां के लिए उसके बच्चे कभी बोझ नहीं हो सकते सिद्धार्थ। एक माँ तो जन्म से पहले ही 9 महीने उन्हें अपने पेट में लेकर घूमती है। छोड़िए.... कुछ बातें आपके और ईशान्वी की समझ से परे है। अब हमें चलना चाहिए। हमें देर हो रही है।"
पार्थवी दिखने में ईशान्वी से खूबसूरत और पढाई मे हमेशा अव्वल रहती थी। यही वजह से दो बहनो में वो प्यार कभी नही पनप पाया, जो अक्सर बहनो के बीच होता था।
सिद्धार्थ और रश्मि से दोनो के बीच की खींचतान छुपी नहीं थी। वो ईशान्वी को समझाने की कोशिश भी करते थे, लेकिन हर बार वो खुद को सही और पार्थवी को गलत साबित कर देती थी। आज ईशान्वी को मेडिकल कॉलेज में सिलेक्शन होने की खुशी से ज्यादा इस बात से ज्यादा सुकून था कि पार्थवी मेडिकल की स्टडी नहीं कर पाई थी और वो उनके पिता के सपने को पूरा करने मे नाकाम रही।
ईशान्वी अभी भी पार्थवी के पास खड़ी थी। रश्मि उनके पास आकर बोली, " ईशु अब हमें चलना चाहिए। और पार्थवी..! थोड़ी देर बाद करिश्मा आ जाएगी। मैंने पूरे दिन उसे यहां रुकने का बोल दिया है। तुम्हें किसी चीज की जरूरत हो तो प्लीज कॉल कर देना।"
पार्थवी ने मुस्कुराते हुए हां मे सिर हिलाया। वहाँ से रश्मि अपने कॉलेज के लिए.. तो ईशान्वी अपने पापा के साथ मेडिकल कॉलेज के लिए निकल चुकी थी।
सेंट ज़ेवियर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (कल्पनिक नाम)
चंडीगढ़
ईशान्वी सिद्धार्थ जी के साथ कॉलेज पहुँच चुकी थी। पूरे रास्ते वो उनसे बाते कॉलेज के बारे मे बाते कर रही थी। उसकी बातों से ही उसका उत्साह झलक रहा था।
सिद्धार्थ जी गाड़ी से बाहर निकलते बोले, "ओके मिस ईशान्वी शर्मा... अब से हम दोनो एक दूसरे के लिए अनजान हैं। और तुम यहां मेरी बेटी बनकर नहीं, एक ब्राइट स्टूडेंट बन कर स्टडी करोगी।"
ईशान्वी ने सधे लहजे मे कहा, "श्योर् डॉक्टर शर्मा....!"
सिद्धार्थ वहाँ से आगे बढ़ गए, तो कुछ देर बाद ईशान्वी ने भी मुस्कुराते हुए कैंपस मे कदम रखा। तभी उसकी नज़र सामने खड़ी एक कार पर गयी, जिसके बोनट पर 21-22 साल के करीब का एक लड़का बैठा था। लड़के ने अपने कानों मे हेडफोन्स लगा रहे थे और म्युजिक सुनते हुए वो उसे गुनगुना भी रहा था। उसे अपने आसपास खड़े लोगो की कोई परवाह नही थी।
उस लड़के को देखकर ईशान्वी ने खोये हुए से स्वर मे कहा, "मेरा फ्यूचर मेरे ठीक सामने है। ऑल दी वेरी बेस्ट ईशान्वी शर्मा...!"
ईशान्वी सेंट जेवियर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के कैंपस मे खड़ी मुस्कुरा रही थी। उसे अकेले में मुस्कुराते देख एक लड़की उसके पास आई। लड़की देखने मे उसी की हमउम्र लग रही थी। उसने भी उसी की तरह छोटे कपड़े पहन रहे थे।
"क्या बात है... आते ही अपने टार्गेट की तरफ फोकस... बहुत आगे तक जाओगी" लड़की ने हँसते हुए कहा।
ईशान्वी ने उसे टोकते हुए बोला, "स्टॉप लाफिंग रीत... वो कोई टारगेट नहीं, मेरा फ्यूचर है। और किसी महान इंसान ने कहा है कि अपने भविष्य का यूँ मजाक नही उड़ाना चाहिए।चल इसे छोड़.... और पहले ये बता कैसी लग रही हूं मैं?"
वहाँ आई लड़की उसकी दोस्त रीतिका थी, जिसे वो प्यार से रीति बुलाती थी। उसने ईशान्वी को गौर से देखा, जो कि कॉलेज के पहले दिन ही अच्छा खासा तैयार होकर आई थी। ईशान्वी ने ब्लैक ड्रेस को मैच करते हुए ब्लैक कलर की हाई हील्स पहनी हुई थी। और हाथ में एक ब्रांडेड बैग ले रखा था। उसे देखकर ऐसा लग रहा था....... मानो वो किसी लड़के के साथ डेट पर आई हो।
रीतिका ने मुस्कुराते हुए उस की बात का जवाब दिया, " नोट बेड.... किसी महान इंसान ने कहा है कि फर्स्ट इंप्रेशन इज लास्ट इंप्रेशन.... बट उस महान इंसान की बात थोड़ी अधूरी थी। वो फर्स्ट इंप्रेशन किसी के बिहेवियर का नहीं बल्कि उसके अपीरियंस का होता है। और तू सच में बहुत खूबसूरत लग रही है। लगता है यहां कई लड़कों को दीवाना बनाने का इरादा है।"
रीत की बात ईशान्वी को पसंद नहीं आई और उसने थोड़ा नाराज होकर कहा, " मुझे और लड़कों से कोई मतलब नहीं है। जो है... बस वही है। उसके पीछे शायद सारे कैंपस की लड़कियां पागल होगी।
ईशान्वी की आँखे अभी उसी लड़के की तरफ थी।
वो जिस लड़के की बात कर रही थी, वो सेंट जेवियर कॉलेज के थर्ड ईयर का स्टूडेंट था.... जिसे सिर्फ ईशान्वी ही नहीं बल्कि कैंपस के काफी लड़कियां अपने पीछे दीवाना बनाना चाहती थी।
"ग्रंथ.... ग्रंथ...!" किसी ने उस लड़के को आवाज दी, तो ईशान्वी के मुँह से निकला,"ग्रंथ खुराना...!'
कानों में हेडफोंस लगे होने की वजह से ग्रंथ का ध्यान अभी भी उस आवाज की तरफ नहीं गया था और वो वहीं पर बैठा अपनी धुन में खोया था।
ग्रंथ देखने में हैंडसम होने के साथ और कॉलेज में काफी पॉपुलर भी था। उसके पॉपुलर होने के कई वजह थी। जिसमे सबसे पहली वजह ये थी, कि चंडीगढ़ के सबसे फेमस सेवन स्टार होटल और कई क्लब के ऑनर श्रेयांश खुराना का छोटा भाई होना।
ग्रंथ के फैमिली मे उसके बड़े भाई श्रेयांश खुराना के अलावा और कोई नही था। अपने माता-पिता की मौत के बाद श्रेयांश ने उनकी कमी पूरी करने के लिए ग्रंथ को किसी भी चीज के लिए मना नहीं किया। ग्रंथ जो चाहता था, वो उसे आसानी से मिल जाता था। यही वजह थी कि ग्रंथ के लिए कोई भी चीज मायने नहीं रखती थी। भले ही कॉलेज में लड़कियां उसके पीछे पागल हो.... लेकिन उसे ज्यादा लोगो से बात करना पसंद नही था। वैसे तो वो बहुत टॉकेटिव था लेकिन सिर्फ उन्हीं लोगों से बात करना पसंद करता था, जो उसके दिल के करीब थे।
ग्रंथ के लिए अपने भाई श्रेयांश के अलावा अगर कोई मायने रखता था.... तो वो था, 'उसका म्यूजिक।'
ईशान्वी एक टक ग्रंथ को देखे जा रही थी। ग्रंथ को जिन लोगो ने आवाज दी थी, वो उसके दोस्त थे। उनकी आवाज ना सुनने की वजह से वो उसके पास आ चुके थे।
ग्रंथ ने बोनेट से उतरते हुए कहा, "बहुत टाइम वेस्ट हो गया। कम ऑन गायज.... अब हम क्लास में चलना चाहिए।"
ग्रंथ की बात सुनकर उसकी दोस्त हिमांशी हंसते हुए बोली, "कौन कह सकता है कि ये एटीट्यूड प्रिंस दी ग्रंथ खुराना अपनी पढ़ाई को लेकर इतना सीरियस हैं। चिल करो यार.... क्या जरूरत है डॉक्टर बनने की। तुम्हारे पास तो ऑलरेडी वो सब कुछ है.... जिसके बारे में लोग अक्सर सपने देख कर रह जाते हैं।"
ग्रंथ वहाँ से जाते हुए हुए बोला "ग्रंथ खुराना लोगों की सोच और समझ से परे है। तो अपने इस छोटे से दिमाग पर इतना जोर मत दो। और हाँ.... ये मेडिकल कॉलेज है, ना कि मॉडलिंग स्कूल। कपड़े देखो अपने...!"
ग्रंथ के कहते ही हिमांशी में अपने कपड़ों की तरफ देखा जो कि कुछ ज्यादा ही छोटे थे। ग्रंथ की बात से उसका मूड ऑफ हो गया तो उसका चेहरा उतर गया।
ग्रंथ ने अपनी बात को कवर करने के लिए कहा, "कैंपस मे ये अच्छा नही लगता हिमांशी... लेकिन मेरे क्लब मे सब अलाउ है। तो आज रात मिलते है हम, मेरे क्लब में।"
ग्रंथ की बात पर हिमांशी का चेहरा खिल गया। मानो वो जिस बात का इंतजार कर रही थी, वो उसे मिल गया हो। वही पास खड़ी ईशान्वी को भी ग्रंथ की बात सुनाई दी।
" ओ यस.... इसका मतलब मैं आज रात ग्रंथ को उसके क्लब में मिल सकती हूं। ज्यादा नहीं तो जान पहचान तो हो ही सकती है" ईशान्वी खुश होकर बोली।
ईशान्वी की बात सुनकर उसके पास खड़ी रीत ने कहा, " मैं तुझे पिछले 3 सालों से जानती हूं। और तू कौन सा ग्रंथ खुराना के क्लब पहली बार जा रही है? जब से तूने उसे शॉपिंग मॉल में देखा है, तब से पागलों की तरह उसके पीछे पड़ी है। कितनी बार तू उसके क्लब में जा चुकी होगी और वहां उसे सामने देख कर भी तुझ में इतनी हिम्मत भी नहीं हुई कि तू जाकर उससे बात कर सके। तो ये ख्याली पुलाव बनाना बंद कर।"
ईशान्वी ने बाल झटकते हुए पूरे एटीट्यूड से कहा, "लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब मैं ग्रंथ खुराना के पीछे नहीं, वो मेरे पीछे आएगा। जस्ट वेट एंड सी कि आज रात क्या होने वाला है। चल अब क्लास में चलते हैं। मैं नहीं चाहती कि पहले दिन ही मै लेट हो जाऊं।"
ईशान्वी ने लगभग 1 साल पहले ग्रंथ को किसी शॉपिंग मॉल में देखा था। वैसे तो पहले भी उसने ग्रंथ की फोटो कई बार मैग्जींस और सोशल मीडिया पर देखी थी। लेकिन उसे अपने सामने देख कर वो मन ही मन उसे चाहने लगी थी। भले ही ईशान्वी और ग्रंथ एक दूसरे के लिए अजनबी थे। लेकिन दोनों स्वभाव में एक समानता देखी जा सकती थी। जहां ईशान्वी किसी चीज को पाने के लिए उसके पीछे पागल हो जाती थी.... तो वही ग्रंथ ने कभी किसी चीज के लिए कभी ना नहीं सुनी थी। उसे जो चाहिए था, वो उसे हर हाल में पाकर ही रहता था।
उधर पार्थवी घर पर अकेली बैठी बोर हो रही थी। करिश्मा अभी तक घर पर आई नही थी। वो उसका इंतेजार कर रही थी कि तभी एक कॉल आया।
"सॉरी यार पार्थवी... मै आज नही आ पाऊँगी। प्लीज तू जैसे- तैसे अडजस्ट कर लेना ना।" दूसरी तरफ से करिश्मा बोल रही थी।
"ओके... कोई बात नही।" पार्थवी ने बुझे स्वर मे कहकर फोन काट दिया। और इसी के साथ उसकी आँखो से आँसू बह गए। आज एक और दिन उसे घर पर अकेले बिताना पड़ेगा।
पार्थवी के लिए ये सब नया नही था। पिछले दो साल में उसे इन सबकी आदत हो चुकी थी।
बोरियत मिटाने के लिए पार्थवी ने म्युज़िक सुनने के लिए अपने कानों मे हेडफोन्स डाले। इस से पहले कि वो म्युज़िक प्ले करती... घर की डोरबेल बजी। और उसी के साथ उसकी दिल की धड़कने तेज हो गयी।
"क... कौ... न... " पार्थवी डरते हुए बोला। जवाब में डोरबेल एक बार फिर बजी। अब उसके पास दरवाजा खोलने के अलावा और कोई चारा नही था।
पार्थवी उठकर दरवाजा खोलने गयी।
"ओह तो आप थी। मै तो घबरा ही गयी थी" दरवाजा खोलकर पार्थवी ने मुस्कुराते हुए कहा।
दरवाजा खोलते ही पार्थवी का सारा डर हवा हो गया। अब उसको अच्छा भी लग रहा था क्योंकि आज का दिन उसे अकेले नही बिताना पड़ेगा।
"आप इस वक़्त घर पर कैसे मम्मा? सब ठीक तो है ना" पार्थवी ने पूछा।
रश्मि मुस्कुराते हुए अंदर आई और बोली,"हाँ सब ठीक है परी। और तुझे कितनी बार बोला है अगर करिश्मा नही आए, तो कॉल करके बता दिया कर। वो तो मैंने उसे कॉलेज के बाहर वाले कैफेटेरिया में जाते हुए देखा और सब समझ गयी। तुझे मना किया है ना, अकेले घर पर रहने से"
पार्थवी को बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था, कि उसकी मम्मा को उसकी वजह से अपना काम छोड़ कर घर आना पड़ा।
पार्थवी ने उदास होकर कहा, "मम्मा मै बोझ गयी हूँ ना आप सब पर? मेरा भी दम घुटता है, यहाँ बन्द घर में। अगर दो साल पहले वो सब नही हुआ होता, तो मै भी आज ईशि के साथ उसी कॉलेज में होती।"
पार्थवी के चेहरे की उदासी रश्मि से देखी नही गयी। उसने पार्थवी का हाथ पकड़कर कहा, "ऐसा कुछ नही है बच्चे..! तू घर मे अकेले बैठी बोर हो जाती होगी। चल आज मै तुझे एक छोटी सी ट्रिप पर लेकर चलती हूँ। और हाँ.... भले ही तू मेडिकल कॉलेज मे नही पढ़ पाई हो, लेकिन तेरी काबिलियत किसी से छुपी नही है। चल आज तुझे तेरी फेवरेट जगह लेकर चलती हूँ।"
पार्थवी खुश होकर बोली, "मेडिकल कॉलेज में? क्या सच में? लेकिन रहने देते है मम्मा.... ईशु हमे वहाँ देखेगी, तो बेवजह गुस्सा करेगी"
रश्मि ने बताया, "और ईशु से मिलने ही कौन जा रहा है... हम तो डॉक्टर शर्मा से मिलने जाएंगे। और कैंपस मे नही... हॉस्पिटल सेक्शन में चलेंगे। अच्छा बताओ कौन सी ड्रेस पहनोगी।"
"जो पहना है, वही सही है मम्मा। मै पापा से मिलने जा रही हूँ, मॉडलिंग करने नही" पार्थवी ने सादगी से जवाब दिया।
पार्थवी ने सफेद सूट पहना था, जिस पर लाल रंग का लहरिये का दुपट्टा डाल रखा था। पार्थवी के कपड़ो से उसकी सादगी झलक रही थी। उसके बाल कमर तक लम्बे थे, जिसे उसने खोल रखा था।
"बाल बांध लूँ?" उसने पूछा, तो रश्मि ने जवाब मे कहा, "नही..! ऐसे ही अच्छे लग रहे है।"
रश्मि पार्थवी की उदासी दूर करने के लिए उसे अपने साथ सेंट जेवियर हॉस्पिटल लेकर गयी। पार्थवी भी डॉक्टर बनना चाहती थी.... तो हॉस्पिटल पहुँचते ही उसका चेहरा खिल उठा।
रश्मि जी पार्थवी को लेकर उसके पापा के कैबिन मे गयी, जहां वो अपने दोस्त डॉक्टर सिंह के साथ बैठे थे।
"आज तो हॉस्पिटल के भाग ही खुल गए, जो हमारी पार्थवी बिटिया यहाँ आई है" पार्थवी को देख मिस्टर सिंह खुश होकर बोले।
जहाँ एक तरफ मिस्टर सिंह पार्थवी को देख कर खुश हो रहे थे, तो वही सिद्धार्थ जी अच्छे से जानते थे कि पार्थवी जरूर आज फिर उदास थी। तभी रश्मि उसका दिल बहलाने के लिए उसे यहाँ लाई थीं।
सिद्धार्थ ने उसे बैठाते हुए पूछा, "परी..! बेटा तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना?"
सिद्धार्थ की बात सुनकर पार्थवी कुछ नही बोली, तो रश्मि ने उन्हे चुप रहने का इशारा किया।
"अच्छा तो फिर मै चलता हूँ। फैमिली टाइम में नो इंट्रप्शन...." कहकर डॉक्टर सिंह बाहर जाने लगे। वो डॉक्टर शर्मा के कैबिन से निकल कर कुछ दूर चले ही होंगे कि उन्हें सामने से ग्रंथ आता दिखाई दिया।
"पता नहीं ये रईसजादा और कितने दिनों तक हॉस्पिटल में सबको अपनी उंगलियों पर नचाएगा। कितनी बार मना किया है कि कोई काम हो तो क्लासेज टाइम में ही पूछ लिया करो। लेकिन जानबूझकर यहां हॉस्पिटल के डॉक्टर्स के कैबिन सेक्शन में आएगा।" डॉक्टर सिंह ग्रंथ को देखकर अपना रास्ता बदलने लगे। लेकिन ग्रंथ उन्हें परेशान करने के लिए उनके पीछे दौड़ कर गया।
ग्रंथ ने बालों में घुमाकर कहा, "गुड आफ्टरनून डॉक्टर सिंह! मैं आपके पास ही आ रहा था। मुझे थिअरी में आपकी हेल्प चाहिए।"
डॉक्टर सिंह ग्रंथ को टालने के लिए बोले, " लेकिन मैं इस वक्त बिजी हूं। थोड़ा बाद में आना।"
ग्रंथ ने भौहें चढ़ाकर कहा, " ओ रियली? अब आपके लिए ग्रंथ खुराना बार-बार इस लॉबी के चक्कर लगाएगा। खुद को इतनी भी इंपोटेंस मत दीजिए डॉक्टर.... फॉरगेट अबाउट इट.... मैं किसी और से पूछ लूंगा। यहां मुझसे खुद का एटीट्यूड नहीं संभल रहा और चले है मुझे एट्टीट्यूड दिखाने।"
ग्रंथ की बात से डॉक्टर सिंह गुस्सा हो गए। उन्होंने उसे कहा, "तो ग्रंथ खुराना अपना खुद का मेडिकल कॉलेज क्यों नही खोल लेता। अपनी ये पैसे की अकड़ कही और जाकर दिखाना। और हाँ मेरी बेटी से दूर रहो। तुम्हारी वजह से वो पूरी-पूरी रात बाहर रहती है। नशे मे धुत होकर घर आने लगी है।"
ग्रंथ हँसते हुए बोला, "मैने कभी हिमांशी को ड्रिंक के लिए फोर्स नही किया। और आपको तो खुश होना चाहिए। मैने आपकी बेटी को लाइफ को कैसे एंजॉय किया जाता है, ये अच्छे से सिखा दिया। बट शी इज डेम हॉट....!"
ग्रंथ के बात का डॉक्टर सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया और वो वहां से चले गए। उधर डॉक्टर सिद्धार्थ को एक इमरजेंसी कॉल आने की वजह से किसी पेशेंट को देखने जाना पड़ रहा था।
"ओ माय गॉड! ये ज्ञान की दुकान फिर सामने आ गया। एक बार के लिए तो मैं डॉक्टर सिंह की बातों को झेल सकता हूं। लेकिन इनके प्रवचन झेलने की हिम्मत तो मुझे दो पेग चढ़ाने के बाद भी नहीं आएगी।" ग्रंथ ने डॉ सिद्धार्थ को देख कर कहा।
ग्रंथ डॉ सिद्धार्थ को देखकर वहाँ से जाने लगा कि तभी उन्होंने पीछे से उसे आवाज लगाई, "ग्रंथ खुराना! नेक्स्ट टाइम बिना परमिशन के हॉस्पिटल के इस सेक्शन में दिखे, तो एक हफ्ते के लिए रस्टिकेट हो जाओगे"
ग्रंथ उनके पास आकर बोला, "प्लीज डॉ शर्मा! मेरे अच्छे खासे मूड का कचरा मत कीजिए। मुझे आपकी बोरिंग बातें सुनने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। और मैं यहां बिना वजह नहीं आया था।"
डॉक्टर सिद्धार्थ ने बिना किसी भाव के कहा, "और मेरा भी कोई मूड नहीं है, तुम जैसे बदतमीज इंसान को कुछ कहने का...."
ग्रंथ पर उनके गुस्से और बेरुखी का कोई असर नहीं हुआ, वो तिरछा मुस्कुराते हुए बोला, "डॉक्टर सिद्धार्थ! इतनी तारीफ के लिए थैंक यू सो मच .... सुनकर अच्छा लगा।"
डॉक्टर सिद्धार्थ और ग्रंथ के बीच ये बहस आज कोई नई बात नहीं थी। जहाँ ग्रंथ को डॉ सिद्धार्थ का रूल्स को लेकर स्ट्रिक्ट होना इरिटेट करता था, तो वही डॉ सिद्धार्थ को ग्रंथ की बदतमीजीयां और बार- बार रूल्स तोड़ने की वजह से चिड़ होती थी।
ग्रंथ डॉ शर्मा को इरिटेट करने के लिए जानबूझकर वही लॉबी में चक्कर लगाने लगा। उसने अपने बैग से हेडफोन निकाले और म्युज़िक सुन ने लगा। वो कैंपस के हॉस्पिटल एरिया में इधर -उधर घूम रहा था। जबकि रश्मि और पार्थवी अभी भी डॉक्टर सिद्धार्थ के केबिन में बैठे थे।
" अच्छा बताओ पार्थवी क्या खाओगी? या किसी रेस्टोरेंट में चले?" रश्मि ने पूछा।
पार्थवी ने ना में सिर हिलाया, "नहीं मम्मा ....आप यही से कुछ ले आइए।"
" ठीक है। तो फिर तुम यही बैठी रहना। मैं अभी आती हूं" कहकर रश्मि बाहर चली गई। लगभग 5-10 मिनट होने के बाद भी वो वापस नहीं आई, तो पार्थवी वहां अकेली बैठी बोर होने लगी।
" कहीं भी चले जाओ.... होना तो मुझे अकेले बैठकर बोर ही है ना। और कहीं नहीं तो कम से कम केबिन के बाहर तो जा ही सकती हूं। यहां बंद कमरे में मुझे घुटन सी हो रही है।" कहकर पार्थवी कैबिन से बाहर आई।
उधर ग्रंथ कानों मे हेडफोन्स डाले चलते हुए म्युज़िक के साथ डांस कर रहा था।
"काश डॉ सिद्धार्थ यहाँ आ जाए। फिर मुझे यहाँ ऐसे देखकर उनका जो खून जलेगा ना... बाय गॉड मजा आ जाना है" ग्रंथ खुद से बातें करता हुआ चल रहा था। जबकि उसकी इस हरकत की वजह से लॉबी मे मौजूद कुछ हॉस्पिटल स्टाफ का ध्यान उसकी तरफ गया। लेकिन कोई उसे कुछ कहने के बजाय वापस अपने काम में लग गए।
ग्रंथ अपनी धुन में आगे बढ़ रहा था कि वो पार्थवी से जोर से जाकर टकराया। उस से टकराने की वजह से पार्थवी को धक्का लगा और वो नीचे गिर गई। तो उधर ग्रंथ के सिर पर भी चोट लगी, तो वो गुस्सा हो गया।
"देख कर नही चल सकती क्या? अंधी हो क्या, जो इतना लम्बा चौड़ा इंसान तुम्हे सामने से आता दिखाई नही दिया" ग्रंथ बिना उसकी तरफ देखे गुस्से मे बड़बड़ा रहा था।
ग्रंथ से टकराने की वजह से पार्थवी नीचे गिरी हुई थी। जबकि ग्रंथ अभी भी गुस्से में उस पर चिल्ला रहा था। पार्थवी खुद को सम्भालते हुए खड़ी हुई, तो ग्रंथ की नज़र उस पर पड़ी।
"ब्यूटिफुल.... हाँ तो मै कहाँ था? तुम... तुम्हे कही चोट तो नही लगी। अ... आई... डोन्ट नो... मै इतना नर्वस क्यों हो रहा हूँ? युजवलि मै होता तो नही हूँ। आर यू फाइन?" ग्रंथ बोलते हुए हकलाने लगा।
"कितना बदतमीज इंसान है यह। पहले तो भला बुरा बोल रहा था और बाद में शक्ल देखते ही मिजाज बदल गए। तुम कितनी भी लाइन मार लो। मैं तुमसे नहीं पटने वाली मिस्टर अजीब...." पार्थवी ने सोचा।
पार्थवी को चुप देखकर ग्रंथ ने सोचा, "कंट्रोल ग्रंथ खुराना.... कब से बस इसे ही देखे जा रहा है। बट क्या करूं यार मेरी नजरें ही नहीं हट रही। मुझे नहीं लगता कि ये लड़की यहां पढ़ती होगी.... लेकिन हो भी सकता है। आज फर्स्ट ईयर स्टूडेंट्स का फर्स्ट डे है। तो हो सकता है कि ये लड़की यहां फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट हो। बाकी कुछ भी कहो... कुड़ी पहली ही नजर मे दिल ले गयी। दिल कर रहा है कि बस इसे ऐसे ही देखता रहूं।"
पार्थवी और ग्रंथ चुपचाप वहां खड़े थे कि डॉक्टर सिंह वहां से गुजरे। पार्थवी को ग्रंथ के साथ खड़ा देखकर वो चौक गए।
डॉक्टर सिंह ने उसने साथ देखकर सोचा, "ग्रंथ पार्थवी के साथ क्या कर रहा है? अगर सिद्धार्थ ने देख लिया, तो बेवजह हंगामा हो जाएगा। और वैसे भी पार्थवी बहुत अच्छी बच्ची है। उसे ग्रंथ के पास बिल्कुल नहीं होना चाहिए। इससे पहले कि सिद्धार्थ इन दोनों को साथ में देखे, मुझे पार्थवी को यहां से जाना होगा।।"
डॉक्टर सिंह जल्दी से उन दोनों की तरफ बढ़ने लगे। ग्रंथ एक टक पार्थवी को ही देखे जा रहा था।
ग्रंथ ने उसे देखकर खोये हुए अंदाज मे पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है? पहले तो तुम्हें कभी यहां नहीं देखा। फर्स्ट ईयर स्टूडेंट हो क्या? चलो जल्दी से अपना नाम और एड्रेस बताओ। ये तुम्हारे सीनियर का ऑर्डर है।"
पार्थवी कुछ बोलती, उस से डॉक्टर सिंह वहाँ आ गए।
"पार्थवी...! बेटा तुम यहां क्या कर रही हो? तुम मेरे साथ आओ और कोई जरूरत नहीं है इससे बात करने की।"
डॉक्टर सिंह के मुंह से पार्थवी का नाम सुनकर ग्रंथ चौंक गया। वो कुछ बोल पाता उस से पहले, डॉ सिंह पार्थवी को वहाँ से ले गए। जबकि ग्रंथ अभी भी उन दोनो को जाते हुए देख रहा था।
ग्रंथ वही खड़ा उन दोनो को पीछे से देख रहा था।
"ये लड़की डॉ सिंह की रिश्तेदार है क्या? हिमांशी ने तो कभी नही बताया.... लेकिन वो क्यों बतायेगी। जो भी हो यार.... बस पहली ही बार में कुड़ी दिल के तार खड़का गई।"
ग्रंथ वहाँ से पार्थवी के पीछे जाने लगा। तभी हिमांशी एक लड़के के साथ आई, जो कि उसका फ्रेंड और क्लासमेट युवराज था। वो दोनो उसे बुलाने आए थे।
युवराज ने उसके पास आकर जोर से बोला,"हे ड्यूड! वेयर वर यू? याद कितने दिनों बाद तो मजा लेने का मौका मिला है। आज तो फर्स्ट ईयर स्टूडेंट्स को अच्छे से टास्क देंगे।
युवराज की बात सुनकर हिमांशी हंसते हुए बोली, " वैसे रैगिंग नाम को अच्छे से काफी अच्छे से कवर किया है।" हिमांशी की बात पर युवराज हँसते हुए बोला, "ये सब हमारे दी ग्रेट ग्रंथ खुराना का कमाल है, जो रैगिंग को भी..... "
ग्रंथ ने उन्हे चुप कराया, "शश्श्ह.... धीरे बोलो! कोई सुन लेगा तो हंगामा हो जाएगा। स्पेशली डॉ शर्मा.... उन्होंने सुन लिया, तो समझ लो कि पूरी मीटिंग बैठवा देंगे। समझ नहीं आता उस आदमी को मुझसे प्रॉब्लम क्या है? जब देखो पीछे पड़ा रहता है।"
ग्रंथ, युवराज और हिमांशी लॉबी मे चलते हुए बाते कर रहे थे। वो तीनों कैंपस के पिछले ग्राउंड में पहुंचे, जहां पर फर्स्ट ईयर के लगभग से ज्यादा स्टूडेंट्स एक लम्बी लाइन मे खड़े थे। वहां पर और भी सीनियर्स मौजूद थे, लेकिन ग्रंथ को आता देखकर सब पीछे हट गए। उन स्टूडेंट्स में ईशान्वी और रीत भी मौजूद थी।
"क्या कहा था ना तूने कि तुझ में तो इतनी भी हिम्मत नहीं कि तू ग्रंथ से जाकर सामने से बात कर सके। अब देख ग्रंथ खुराना खुद मेरे पास आ रहा है" कहते हुए ईशान्वी रीत का हाथ पकड़कर लाइन में सबसे आगे आकर खड़ी हो गई।
उस इस हरकत पर रीत को बहुत गुस्सा आया, "खुद तो डूबेंगे सनम... तुम्हे भी साथ ले डूबेंगे। मुझे भी मरवाने के लिए आगे ले आई। वो कोई यहाँ तुझसे मिलने नही आ रहा। अपनी बटन जैसी आँखे खोल और देख... रैगिंग करने आ रहे है।"
ग्रंथ ईशान्वी को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, "ओके....फर्स्ट ईयर स्टूडेंट.... इंप्रेसिव हां.... लुक तो काफी अच्छा पिक किया है। चलो तुम्हारे लुक को मै पूरे नंबर देता हूं। इसी खुशी में मैं तुम्हें कोई टास्क नहीं देने वाला। लकी यू आर...."
ग्रंथ की बात सुनकर ईशान्वी ने मुँह बनाते हुए कहा, "अनलकी आई एम.... "
उसकी बात सुनकर सब उसकी तरफ देखने लगे।
ग्रंथ उसकी तरफ धीरे से मुस्कुराया, तो वो भी जवाब मे मुस्कुराते हुए वहां से जाने लगी। तभी हिमांशी ने उसका हाथ पकड़ कर बोली, " ओ हेलो! कहां चली? ग्रंथ तुम्हें कोई टास्क नहीं देने वाला इसका मतलब ये नहीं कि हम लोग तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे। सो बी रेडी...."
ईशान्वी ने भी उसे तेवर दिखाते हुए बोला" ग्रंथ खुराना अगर कोई टास्क देता, तो मैं वो खुशी से करती। लेकिन लड़कियों से मैं टास्क लेना पसंद नहीं करती। सो एक्सक्यूज मी प्लीज...."
ग्रह ईशान्वी के एटीट्यूड से बहुत प्रभावित हुआ। उसने ईशान्वी के बालों को कान के पीछे करते हुए कहा, " आई लाइक दिस एटीट्यूड.... आई मस्ट से एक ही दिन में दो लड़कियों ने मुझे पहली बार में इंप्रेस कर लिया।"
ग्रंथ की बात सुनकर हिमांशी चौक गई। वो ग्रंथ से कुछ पूछती उससे पहले ग्रंथ जोर से चिल्लाते हुए बोला, " आज ग्रंथ खुराना का मूड बहुत अच्छा है। सो नो रैगिंग एट ऑल.... आप सब लोग अपनी-अपनी क्लासेस में जा सकते हो।"
"चलो अच्छा हुआ बच गए। वरना इस ईशान्वी के चक्कर मे आज तो मेरी जान निकल जानी थी।" रीत जल्दी से वहाँ से क्लास की तरफ जाने लगी।
बाकी स्टूडेंट्स भी वहां से जा चुके थे। तो वही युवराज और हिमांशी हैरानी से अभी भी ग्रंथ की तरफ देख रहे थे। दो सालों में ऐसा पहली बार हुआ था, जब ग्रंथ बिना किसी को टास्क दिए ऐसे ही भेज रहा था। जबकि हर बार वो न्यू एडमिशन का वेट करता था....ताकि उन्हें परेशान कर सके।
युवराज ने ग्रंथ से पूछा, " हे ड्यूड तू ठीक तो है ना? आई मीन तू क्या कर रहा है? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। "
ग्रंथ ने जवाब में कहा, " और कभी आएगा भी नहीं। कहा ना ग्रंथ खुराना लोगों की सोच और समझ से परे हैं।"
ग्रंथ की बातों पर हिमांशी को बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने ग्रंथ को पकड़कर कहा, "अभी-अभी कुछ देर पहले तुमने उस लड़की को कहा उसका मतलब क्या था? कौनसी दो लड़कियों ने तुम्हे इंप्रेस किया?"
ग्रंथ ने उसे परेशान करते हुए कहा, "जेलिस? पहली लड़की से तो तुम मिल ही चुकी हो। दूसरी वाली तो तुम्हारी ही सिस्टर है।"
ग्रंथ की बात सुनकर हिमांशी ने चौंककर कहा, "तुम क्या दिन मे भी पीकर आए हो? मेरी कोई बहन-वहन नही है।"
"मुझे नही पता यार .... अभी थोड़ी देर पहले मै हॉस्पिटल की लॉबी में एक लड़की से टकराया। उस लड़की को तुम्हारे डैड जानते थे। उन्होंने कुछ तो नाम लिया था उसका.... पार्वती... नही कुछ यूनिक सा... परिजा..नही..... हाँ पार्थवी। पार्थवी नाम था उसका। एक अलग ही जादू था उसके चेहरे पर। उसकी गहरी भूरी आँखे.... बस दिल किया देखता जाऊँ" ग्रंथ की आँखो के सामने से पार्थवी का चेहरा हट हो नही रहा था।
युवराज ने कहा, " ब्रो दुनिया मे 55 से 79 परसेंट लोगो की आँखें ब्राउन होती है। नथिंग न्यू...."
युवराज की बात को आगे बढ़ाते हुए हिमांशी बोली, "क्या उसकी ड्रेस मेरे से भी छोटी थी? फिगर.... और फिगर मेरे से ज्यादा अच्छा था।"
"उसने सफेद सूट पहना था.... जिस पर लाल दुप्पटा हवा मे संगीत की तरह लहराहा रहा था। उसके चेहरे से मेरी नजरे हटती, तो मेरा ध्यान बाकी और तरफ जाता ना..." बात करते समय फिर ग्रंथ की आँखो के सामने पार्थवी का चेहरा घुमने लगा।
जबकि उसकी बाते सुनकर हिमांशी को जलन महसूस हो रही थी। उसने मुँह बनाते हुए कहा,"ओह तो इस बार तुम्हे कोई बहन जी पसन्द आ गयी। शादी टाइप मैट्रियल... बट लेट मी क्लीयर वन थिंग, मेरे पार्थवी नाम की कोई बहन नही है। और ऐसी बहन जी टाइप की बहन तो बिल्कुल नही...."
"तो भाई को सच्चा वाला प्यार हो ही गया" युवराज ने खुशी ने ग्रंथ को गले लगा लिया।
उसकी बात सुनकर ग्रंथ जोर-जोर से हंसने लगा और उसे खुद से दूर धकेलते हुए कहा, "व्हाट द फ....! सच्चा प्यार? और मुझे.... मुझे वो लड़की खूबसूरत लगी। एंड आई वांट हर... मीन्स मुझे कोई उस से शादी करके घर नही बैठाना, बस कुछ दिनों या महीनों का टाइम पास.... देट्स ऑल..!"
ग्रंथ की बात सुनकर हिमांशी ने चैन की सांस ली। लेकिन अभी भी उसके मन मे ग्रंथ की कही बाते घूम रही थी। वो अपनी ही सोच मे गुम थी।
"ग्रंथ ने ऐसा क्यों कहा कि वो बहन जी मेरी बहन है। मतलब वो लड़की जो कोई भी है, उसे डैड जानते है। मुझे कैसे भी करके उस लड़की के बारे मे पता लगाकर उसे अपने रास्ते से हटाना होगा।"
ग्रंथ के दिमाग से पार्थवी का ख्याल जा ही नही रहे था। वो युवराज और हिमांशी के साथ क्लास मे आ तो गया था, लेकिन आँखों के सामने बस उसी का चेहरा ही घूम रहा था।
"ये बार -बार मेरी आँखों के सामने पार्थवी का चेहरा क्यों आ रहा है? हिमांशी ने बताया था, उसके कोई बहन नही है... जिसका नाम पार्थवी हो। थैंक गॉड वो लड़की डॉक्टर सिंह की बेटी या कोई रिलेटिव नहीं है। आधा मूड तो तभी खराब हो गया था.... जब डॉ सिंह ने उसे उसके नाम से बुलाया था। लेकिन उसने मेरी बात का कोई जवाब क्यों नहीं दिया?" ग्रंथ खुद से ही बातें किए जा रहा था।
तो वही हिमांशी का ध्यान भी क्लास में ना होकर ग्रंथ पर था। भले ही उसे ग्रंथ की बातें सुनाई नहीं दे रही थी। लेकिन वो अच्छे से जानती थी कि एक बार ग्रंथ को कोई पसंद आ जाए, तो वो तब तक उसका पीछा नहीं छोड़ता.... जब तक वो उसे मिल ना जाए।
हिमांशी ने ग्रंथ की तरफ देखकर बोला, " ग्रंथ का ध्यान अभी भी उस लड़की में ही लगा होगा। वरना क्लास में प्रोफ़ेसर कुछ पढ़ा रही हो और ग्रंथ खुद से बातें करता रहे.... ऐसा बहुत कम होता है। अथॉरिटी का बस चलता तो ग्रंथ की हरकतों की वजह से कब का उसे यहां से एस्पेल कर चुके होते। लेकिन एक सच्चाई ये भी तो है कि ग्रंथ एक ब्रिलिएन्ट स्टूडेंट है।"
खुद से बातें करते हुए अचानक से ग्रंथ को कुछ सूझा और वो अपनी सीट से खड़ा होकर बोला, " एक्सयूज मी डॉक्टर! कैन आई लीव...? बाय द वे मै क्यों पूछ रहा हूं? मैं यहाँ से जा रहा हूं। मुझे क्लास अटेंड नहीं करनी। इससे पहले कि आप मुझे क्लास से आउट करें। मैं खुद ही चला जाता हूं"
ग्रंथ क्लास से निकलकर जाने लगा। उसकी बदतमीजियों की वजह से उसे कोई भी प्रोफेसर पसंद नहीं करता था। डॉक्टर शिवानी उस वक्त क्लास में थी। उन्होंने भी ग्रंथ को नजरअंदाज करते हुए अपनी क्लास को जारी रखा।
हिमांशी ने धीरे से कहा, "युवी! ग्रंथ कहां गया होगा?"
युवराज उसके पास ही बैठा था। उसने हिमांशी की बात का जवाब देते हुए धीरे से बोला, " तुम ग्रंथ को अच्छे से जानती तो हो ही.... और कहां जा सकता है? जरूर उस लड़की को ढूंढते हुए कैंपस में घूम रहा होगा। तुम क्लास पर ध्यान दो ना.... वरना तुम्हारे डैडी को तो जानती ही हो।"
ग्रंथ का यूँ अचानक से क्लास से जाकर उस लड़की को ढूंढना हिमांशी को बिल्कुल रास नहीं आया। ऊपर से युवराज ने उसके पापा का भी नाम लिया, तो वो और ज्यादा गुस्सा हो गई।
हिमांशी ने उसे गुस्से से कहा, "डोंट टीच मी.... कि मुझे क्या करना है या क्या नहीं। पता नहीं है कौन वो लड़की.... जिसके पीछे ग्रंथ दीवाना हुआ घूम रहा है।"
हिमांशी का क्लास में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था लेकिन वो ग्रंथ की तरह क्लास छोड़कर जा नहीं सकती थी। और इसकी वजह थी उसका डॉक्टर सिंह की बेटी होना। अगर क्लास में वो थोड़ा भी मिसबिहेव करती, तो शिकायत सीधा उनके पास पहुंच जाती।
वहीं दूसरी तरफ डॉक्टर सिंह पार्थवी को फिर से डॉक्टर सिद्धार्थ के केबिन में छोड़कर जा चुके थे। वो रश्मि के साथ बैठकर वहां पर कुछ स्नेकस खा रही थी। उनके काफी देर इंतजार करने के बावजूद भी डॉक्टर सिद्धार्थ वापिस नहीं आए थे।
रश्मि ने घडी मे समय देखा, तो कहा, "पार्थवी आई थिंक हमें वापस चलना चाहिए। जरूर तुम्हारे पापा किसी एमरजेंसी में फंस गए होंगे। काफी वक्त हो गया उन्हे गए होंगे।"
पार्थवी ने मुस्कुराते हुए हां में जवाब दिया। रश्मि उसे लेकर वापस घर की तरफ जा रही थी, तो उधर ग्रंथ भी पार्थवी के इंतेजार में पार्किंग एरिया मे बैठा था।
"अगर वो लड़की स्टूडेंट है, तो शाम तक रुकेगी। और अगर किसी की रिलेटिव हैं, तो इससे ज्यादा टाइम तक उसे यहां पर नहीं रुकना चाहिए। कहां हो यार तुम? बस मुझे तुमसे एक बार बात करके नंबर एक्सचेंज करने थे। बाकी का काम मैं खुद कर लेता। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि वो मुझे देखकर एक बार भी इम्प्रेस नहीं हुई। आई मीन मेरा लुक कितना अच्छा है यार। कॉलेज की लड़कियाँ मेरे पीछे पागल है। और उसने एक बार देखा तक नही"
पार्किंग लोट में चक्कर लगाते हुए ग्रंथ खुद से ही बातें कर रहा था। तभी उसकी नजर रश्मि के साथ आती हुई पार्थवी पर पड़ी।
" ओ तेरी.... ये तो वही लड़की है। लेकिन इसके साथ ये आंटी कौन है? मुझे क्या.... कोई भी हो? मुझे तो बस इस लड़की के नंबर चाहिए और वो तो मैं लेकर रहूंगा।"
ग्रंथ पार्थवी से बात करने के लिए उसकी तरफ तेजी से चलकर गया। लेकिन तब तक रश्मि उसे वहां से लेकर जा चुकी थी। वही ग्रंथ वहां हैरान सा खड़ा था।
" ऐसा कैसे हो सकता है कि ये मुझे देखकर भी इंग्नोर कर दे? उस टाइम भी मुझ से टकराकर इसने सॉरी तक नहीं बोला और अब इसके सामने से दौड़कर आ रहा था उसके बावजूद भी कोई रिस्पांस नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये बोल ही नहीं सकती.... नहीं यार ऐसा थोड़ी ना हो सकता है। हो सकता है, ये सुन ना सके? या हो सकता है इसे दिखाई ना दे? ओ माय गॉड! ये लड़की मुझे पागल कर देंगी। मै भी क्या फालतू की बातें करने लगा। इसके अंदर कोई फीलिंग वगैरह है भी.... या नहीं, जो एक स्माइल तक नहीं दी। वो भी ग्रंथ खुराना को...."
ग्रंथ को पार्थवी के बिहेवियर पर गुस्सा आ रहा था तो वहीं गाड़ी में बैठी पार्थवी उसी के बारे में सोच रही थी।
"कितना बदतमीज लड़का था। पहले तो खुद मुझे धक्का देकर गिराया.... उसके बाद सॉरी बोलना तो दूर मुझे ही भला बुरा बोले जा रहा था। और जब मेरी शक्ल देखी तो उसे मेरे एड्रेस और फोन नंबर चाहिए थे। अजीब पागल लड़का था। अच्छा हुआ मम्मा-पापा ने नही देखा। पता नहीं ईशी यहां पर कैसे पढ़ेगी? कितने पागल और अजीब लोग पढ़ते हैं यहां पर"
गाड़ी रोकने के साथ ही पार्थवी का ध्यान टूटा।
" कहां खोई थी मैडम? घर आ गया है। अब अपनी हॉस्पिटल की यादों से बाहर निकलिए।" रश्मि पार्थवी को घर ले आई थी।
वहाँ दूसरी तरफ हॉस्पिटल में डॉक्टर सिंह अभी भी परेशान थे। वो ग्रंथ को अच्छे से जानते थे कि एक बार उसने किसी खूबसूरत लड़की को देख लिया, तो जब तक वो उससे बात नहीं कर लेता था.... तब तक उसका पीछा नहीं छोड़ता था। डॉक्टर सिद्धार्थ फ्री हो चुके थे। वो रश्मि और पार्थवी के बारे में पूछने के लिए डॉ सिंह के पास आए.... तो उन्हें परेशान देखा।
" क्या हुआ सिंह? तुम्हारी परेशानी का कारण जान सकता हूं? क्या फिर से तुम्हारी बेटी ने ग्रंथ खुराना के साथ मिलकर कैंपस मे कुछ नया हंगामा मचा दिया?" सिद्धार्थ ने पूछा।
डॉक्टर सिंह- " तुम भी अच्छे से जानते हो कि इस हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज में सभी डॉक्टर्स की परेशानी का कारण एक ही है। और वो है....'ग्रंथ खुराना' लेकिन आज मेरी परेशानी का कारण मेरी बेटी नहीं तुम्हारी बेटी है...."
डॉ सिंह की बात पर सिद्धार्थ ने चौकते हुए कहा, " मेरी बेटी? लेकिन मैंने ईशान्वी को मना किया था कि वो किसी को ना बताएं कि हमारा क्या रिलेशन है? तो ऐसे में ग्रंथ को कैसे पता चल सकता है कि ईशु मेरी बेटी है।"
डॉक्टर सिंह- "सिद्धार्थ मै यहां ईशान्वी की नहीं पार्थवी की बात कर रहा हूं। ईशान्वी तो अच्छे से ग्रंथ को खुद से ही संभाल लेगी.... क्योंकि कहीं ना कहीं वो भी ग्रंथ की तरह जिद्दी है। लेकिन पार्थवी....? "
सिद्धार्थ को डॉक्टर सिंह के मुंह से पार्थवी का नाम सुनने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी।
डॉ सिद्धार्थ ने कहा, " नहीं.... ये नहीं हो सकता। ग्रंथ पार्थवी को देख भी कैसे सकता है? मैं उसके साये को भी अपनी पार्थवी के करीब आने नहीं दे सकता। उसका दिल बिल्कुल किसी मासूम बच्चे की तरह है और ग्रंथ पुराना जैसे लड़कों के लिए लड़कियां सिर्फ एक खिलौने के अलावा और कुछ नहीं होती। ऐसे में अगर ग्रंथ पार्थवी के पीछे पड़ गया.... ऐसा तो नहीं हो सकता। वो उसके पीछे कैसे पड़ सकता है? वो तो यहां पढ़ती भी नहीं।"
सिद्धार्थ की बातों से उनकी बेचैनी साफ नजर आ रही थी। उन्हें पार्थवी की बहुत चिंता हो रही थी। डॉ सिंह ने उनकी पीठ पर हाथ रख कर कहा, "काम डाउन सिद्धार्थ! हो सकता है दोनों गलती से टकरा गए होंगे? लेकिन अच्छी बात ये है ना कि पार्थवी यहां नहीं पढती। और ग्रंथ उससे वापस कभी नहीं मिल पाएगा।"
डॉ सिंह की बातों से सिद्धार्थ को थोड़ी राहत मिली। लेकिन फिर भी वो उन की बातों को पूरी तरह इग्नोर भी नहीं कर सकते थे। सिद्धार्थ अपने केबिन में आए और उन्होंने रश्मि को उसी वक्त कॉल किया, "हेलो रश्मि! आज के बाद आप कभी भी पार्थवी को हॉस्पिटल नहीं लेकर आएगी।"
रश्मि ने हैरानी से पूछा, " क्या हुआ सिद्धार्थ? आप बहुत परेशान लग रहे हैं। सब ठीक तो है ना?"
सिद्धार्थ ने गहरी सांस ली, और जवाब में बोला, "हां रश्मि सब ठीक है। बस मैं नहीं चाहता कि पार्थवी बार-बार हॉस्पिटल में आए और उसके मन में ये ख्याल भी आए कि वो डॉक्टर बनना चाहती थी और नहीं बन पाई। तो प्लीज आगे से इस बात का ख्याल रखिएगा कि मेरी बेटी को बिल्कुल भी हर्ट ना हो।"
सिद्धार्थ ने कॉल कट कर दिया था। रश्मि उनसे बात करके परेशान हो गई थी। उसे सिद्धार्थ के इस ओवर पजेसिव बिहेवियर का मतलब नहीं समझ आया।
वहीं दूसरी तरफ से ईशान्वी ने पहली बार ग्रंथ से बात की थी। वो फिर से उससे मिलने और बात करने का एक भी मौका मिस नहीं करना चाहती थी। क्लास में प्रोफेसर सबका इंट्रो ले रहे थे। उन सब्के बीच ईशान्वी ने धीरे से रीत से कहा, "रीत! याद है ना ग्रंथ ने उस लड़की से ये कहा था कि आज शाम को उसके क्लब में मिलते हैं। तो हम भी आज रात को उसके क्लब में जाएंगे और फिर से ग्रंथ से मिलेंगे।"
रीत ने उसे डांटते हुए कहा, "पागल हो गई है क्या? कही पी तो नही रखी ना? वो ग्रंथ खुराना है। और इतना तो अच्छे से जानती होगी कि उसके पास कोई एक क्लब नही है है, जो उसने आने को कहा और तु जाकर उससे मिल लेगी। अपने डैड को जानती नहीं है क्या? वो तुझे पूरी रात क्लब में रुकने की इजाजत कभी नहीं देंगे।"
ईशान्वी ने मुस्कुराकर कहा, "उसकी फ़िक्र तू मत कर! मुझे अच्छे से पता है कि उन्हें कैसे मनाना है। बस आज रात को तू रेडी रहना। एंड यू टू मिस्टर ग्रंथ खुराना...."
जब से ईशान्वी ने ग्रंथ के मुंह से रात को क्लब जाने की बात सुनी थी, तब से उसने रीत से एक ही जिद पकड़ रखी थी कि वो उसके साथ रात को क्लब चले। रीत उसकी बेस्ट फ्रेंड थी इसलिए उसे ना चाहते हुए भी हां बोलना पड़ा। वो बहुत अच्छे से जानती थी कि चाहे वो कितना भी मना कर ले, लेकिन ईशान्वी उसे अपने साथ ले जाकर रहेगी।
ईशान्वी ने काफी कांफिडेंस से कहा, "तो फाइनल रहा.... आज रात हम दोनों ग्रंथ खुराना के क्लब चलेंगे। तू रात को अच्छा सा रेडी होकर मुझे पिक करने आ जाना। यार तुझे तो पता है ना कि मॉम- डैड मुझे अपनी कार की चाबी कभी नहीं देंगे।"
रीत ने मुँह बनाते हुए कहा, "तुमने मुझसे हर बार की तरह इस बार भी हां तो बुलवा ली। लेकिन ये तो बता कि चलना कौन से क्लब है? तू क्या आधी रात को मुझे ग्रंथ खुराना के सारे क्लब्स में चक्कर लगाएगी?"
"ऐसे मुंह तो मत बना यार। मैं जैसे तैसे करके पता कर लूंगी। चल अब.... बची हुई क्लासेज अटेंड करके ये डिसाइड करते हैं कि आज रात को क्या पहनेंगे। ईशान्वी की बातों से उसकी एक्साइटमेंट साफ नजर आ रही थी।
वही ईशान्वी के इग्नोर करने की वजह से ग्रंथ भी थोड़ा अपसेट था। युवराज और हिमांशी की क्लास खत्म होते ही वो दोनों उसके पास गए।
हिमांशी ने ग्रंथ टोंट मारा, "तो मिल आए अपने न्यू क्रश से? अब तक तो वो तुम्हें अपने नंबर भी दे चुकी होगी।"
ग्रंथ ने उतरे हुए चेहरे के साथ कहा, "अब क्या बताऊँ? बात करना और नंबर देना तो दूर की बात है, उसने तो मुझे ऐसे इग्नोर किया जैसे क्लास में बाकी के प्रोफेसर्स करते हैं। डिसगस्टिंग.... "
युवराज ग्रंथ की बात सुनकर हंसते हुए बोला, "ड्यूड मुझे तेरी यही आदत सबसे अच्छी लगती है कि तू कभी झूठ नहीं बोलता। तेरी जगह कोई और होता, तो शॉ ऑफ करने के लिए हां भी बोल देता।"
ग्रंथ ने कहा, "ना मुझे झूठ बोलना पसंद है... ना हीं झूठ बोलने वाले। तो जो बात दिल में है, वो साफ-साफ बोल दो। इस से बस एक ही बार दिल दुखेगा।"
हिमांशी अच्छे से जानती थी कि ग्रंथ को झूठ बोलना नहीं पसंद था। इसलिए वो कुछ छुपाना नहीं चाहती थी और उसने अपने दिल में जो भी था.. वो उसे बताया, "तुम्हें झूठ सुनना पसंद नहीं है, तो सुनो ग्रंथ! मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है जब तुम दूसरी लड़कियों के पीछे जाते हो। बाकी लड़कियों को तो छोड़ो, मुझे ये तुम्हारी सीक्रेट क्रश तो बिल्कुल भी नहीं पसंद आई। मतलब उसकी हिम्मत कैसे हुई तुम्हें इग्नोर करने की। वो जानबूझकर ऐसा कर रही है... ताकि तुम उसके पीछे आओ। तो इन लड़कियों को जानते नहीं हों। ये इनके ट्रिक्स होते हैं, अटेंशन ग्रैब करने के।"
हिमांशी बिना रुके जल्दी-जल्दी बोले जा रही थी, तो ग्रंथ ने उसे रोकते हुए कहा, इजी हो जाओ गर्ल। वो बाकी लड़कियों जैसी बिल्कुल नहीं है। और तुम्हें किसने बोल दिया कि मैं सभी लड़कियों के पीछे जाता हूं। मै बस इसी लड़की के पीछे गया हूं। बाकी लड़कियां खुद ही मेरे पीछे आ जाती है। तो माइंड योर वर्ड्स... "
हिमांशी ने गुस्से मे कहा, "अच्छा तो तुम मेरे पीछे नही आए?"
"बिल्कुल नही आया। तुम खुद आई थी मेरे पास.... और तुम मेरे करेक्टर को असिसनेट कर रही हो। मैने कभी किसी लड़की का फायदा नही उठाया। मत भूलो कि बहुत बार मैने तुम्हे भी नशे की हालत मे तुम्हारे घर छोड़ा था। अगर मेरी जगह कोई और होता तो.... आगे मुझे कुछ बोलने की जरूरत नही है।" ग्रंथ हल्के गुस्से बोला।
युवराज से देखा कि हिमांशी और ग्रंथ की नॉर्मल बातें एक बहस का रूप लेने लगी। ग्रंथ को अपने खिलाफ कुछ बुरा भी सुनना बिल्कुल पसंद नहीं था, जबकि यहां तो हिमांशी बात उसके करैक्टर पर ले आई थी।
युवराज ने अपनी तरफ से बात सम्भालने की कोशिश की, "अब तुम दोनों झगड़ा करना बंद करोगे? शाम को क्लब में मिले? जैसा कि डिसाइड हुआ था। और हां आज हम फिर से हमारे ग्रंथ का गाना सुनेंगे। है ना ग्रंथ?"
म्यूजिक की बात सुनकर ग्रंथ के चेहरे पर चमक आ गई। वो किसी बच्चे की तरह वहाँ चली बहस को भूल खुश हो गया।
"एक म्यूजिक ही तो है, जो सब कुछ भुला कर मुझे जीने पर मजबूर करता है।" ग्रंथ ने जवाब दिया।
कुछ पल सोचने के बाद ग्रन्थ आगे बोला, "ओके.... मैं आगे की क्लासेस नहीं अटेंड करने वाला। तुम दोनों रात को आ जाना। मैं भाई के पास जा रहा हूं।" ग्रंथ उन दोनों को वहीं छोड़कर अपनी कार की तरफ बढ़ा। हिमांशी भी उसके साथ जाना चाहती थी, लेकिन वो क्लासेज बंक नहीं कर सकती थी। इसलिए वो युवराज के साथ वापस क्लास अटेंड करने चली गई।
ग्रंथ अच्छे से जानता था कि इस वक्त उसका भाई श्रेयांश कहां पर होगा। वो वहां से चंडीगढ़ से थोड़ी दूरी पर बने अपने फॉर्म हाउस में गया। ग्रंथ ने फार्महाउस के आगे अपनी गाड़ी रोकी और बाहर निकल कर उस घर को देखने लगा।
चारों तरफ बस हरियाली छाई हुई थी और बीचो बीच एक सफेद रंग का बड़ा सा बंगला बना हुआ था। देखने मे वो घर बहुत खूबसूरत नजर आ रहा था... और उसकी भव्यता देखकर कोई भी कह सकता था कि यहाँ रहने वाला व्यक्ति कोई आम इंसान नही होगा।
ग्रंथ के कदम वही बाहर जम गए और आँखे नम हो गयी। उसकी आँखो के सामने उसका बचपन किसी फिल्म के सीन की तरह दौड़ने लगा। बाहर लगा झूला... जिस पर बैठकर उसकी माँ तरुणा उसे और उसके भाई को खाना खिला रही थी, तो वही पास बैठे उसके पापा उत्कर्ष जी श्रेयांश का रिपोर्ट कार्ड पढ़ रहे थे।
भले ही उत्कर्ष खुराना चंडीगढ़ के जाने माने होटल्स के मालिक थे, लेकिन उन्हे नेचर से बहुत प्यार था। यही वजह थी कि वो शहर के शोर गुल से दूर यहाँ अपने परिवार के साथ रहते थे। ग्रंथ के माता-पिता के जाने के बाद श्रेयांश ने कम उम्र मे ही सारा बिज़नेस सम्भाल लिया था। तो वही ग्रंथ को लगता था कि इस बिजनेस की वजह से उसने अपने मम्मी-पापा को खो दिया। क्योंकि उनकी मौत की वजह बिजनेस रायवली थी, तो उसने इनसे अलग मेडिकल फील्ड को चुना।
हर बार की तरह अपने घर के आगे आते ही, ग्रंथ के मन पर लगे जख्म फिर से हरे हो गए। श्रेयांश की वजह से उसे यहाँ रहना पड़ रहा था। फिर भी वो जितना हो सके, उतना ही कम घर आता था।
"अंदर आ जा छोटे... इसके अलावा तेरे पास और कोई ऑप्शन नही है।" श्रेयांश की आवाज सुनकर ग्रंथ का ध्यान टूटा।
सामने श्रेयांश खड़ा था, जो कि उम्र मे ग्रंथ से सात साल बड़ा था। ग्रंथ सारांश को देख कर मुस्कुराया.... तो वही श्रेयांश उसकी मुस्कुराहट के पीछे छिपे दर्द को अच्छे से समझता था। अच्छे से जानता था कि ग्रंथ अभी तक अपने मम्मी पापा की डेथ को भुला नहीं पाया था और आज भी अतीत की यादें उसके वर्तमान पर हावी थी।
"ऑप्शन तो है बिग ब्रो.... बट आप बड़े लोग इस मासूम बच्चे की सुनते कब हो... " श्रेयांश की बात का जवाब देते हुए ग्रंथ अंदर की तरफ बढ़ा।
"इस वक़्त यहाँ कैसे आना हुआ? कॉलेज में सब ठीक तो है ना इस वक्त तुम्हें वहां होना चाहिए ग्रंथ।” श्रेयांश बोला।
" मुझे तो लगा था कि मैं पिछले 3 दिनों से घर नहीं आया था और आप मुझे देख कर गुस्सा करोगे। और आपने मैसेज भी तो यही किया था कि घर कब आओगे? अब आप बुलाओ और मै ना आऊँ? इंपोसिबल... बस यही सोचकर सब कुछ छोड़-छाड़ कर मिलने चला आया। लेकिन आप हो कि मुझसे नाराज हो रहे हो..." ग्रंथ ने झूठी नाराजगी जताई।
"हाँ नाराज तो था। और मैने तुझे कॉलेज बीच मे छोड़कर आने को भी नही कहा था।" श्रेयांश ने गंभीर आवाज में कहा।
ग्रंथ और श्रेयांश अंदर चले गए और हमेशा की तरह दोनों एक दूसरे से अपनी नाराजगी जताने लगे। जहां श्रेयांश हर वक्त ग्रंथ को अपने आसपास चाहता था.... तो वही ग्रंथ फार्महाउस में कदम रखने से भी घबराता था। उसे बस यही डर लगा रहता था कि अगर वो घर में आया, तो उसके मन में उसके पैरेंट से जुड़ी यादें ताजा हो जाएगी।
यहाँ उनकी याद तो आएगी... लेकिन वो कभी नही।
वही दूसरी तरफ ईशान्वी अपनी क्लासेस अटेंड करके घर के लिए निकल गयी। डॉक्टर सिद्धार्थ पहले ही जा चुके थे। वो घर पहुंची, तो घर के हॉल मे कोई नही था। तभी अंदर से आवाज आई।
"परी बेटा! कितनी बार बोला है कि तुम्हें बाहर का खाना डाइजेस्ट नहीं होता है। बच्चे फिर तुम खाती ही क्यों हो? और रश्मि आप.... इसका ख्याल नहीं रख सकती? क्या जरूरत थी, हॉस्पिटल के कॉलेज कैंटीन से खाना लाकर इसे खिलाने की।" अंदर से आ रही आवाज डॉक्टर सिद्धार्थ की थी।
उनकी बातों सुनकर ईशान्वी को पता चल चुका था कि आज पार्थवी और उसकी माँ रश्मि कॉलेज आई थी।
"इसे भी चैन नही है मेरी खुशियों में दखल दिए बिना.... क्या जरूरत थी आज कॉलेज आने की। लेकिन नहीं.... बस हर जगह विक्टिम कार्ड खेलकर मम्मा पापा का अटेंशन ग्रेब करना होता है। कंट्रोल ईशान्वी... अभी गुस्सा करने का सही टाइम नहीं है। मैंने अभी कोई ड्रामा किया, तो मम्मी पापा मुझे कभी भी क्लब नहीं जाने देंगे।" ईशान्वी खुद से बड़बड़ाकर बोली। वो अपना बैग वहीं छोड़कर अंदर की तरफ गयी।
"क्या हुआ परी दीदी को? मम्मा... आप करिश्मा को बोलिए कि दिदु का सही से ख्याल रखे।" ईशान्वी सब कुछ जानते हुए भी अंजान बनने का दिखावा कर रही थी।
"कुछ नही ईशू इसे.... तेरा आज कॉलेज में फर्स्ट डे था ना। तू थक गई होगी। चल जा कर आराम कर ले।" रश्मि ने ईशान्वी को टालते हुए कहा।
ईशान्वी ने ना में सिर हिला कर कहा, "नो मम्मा! मैं बिल्कुल ठीक हूं और मैं यहां आराम करने के लिए नहीं बल्कि आपको ये बताने के लिए आई थी कि मैं रात को अपने फ्रेंडस के साथ क्लब में पार्टी करने जा रही हूं। यू नो फर्स्ट डे एंड ऑल...."
"तुम्हें ये सब बातें अभी करनी है क्या? ईशान्वी तुम्हे दिख नहीं रहा के पार्थवी की तबीयत खराब है?" सिद्धार्थ ने गुस्से में कहा।
ईशान्वी अच्छे से जानती थी कि यही होने वाला था। लेकिन वो किसी भी कीमत पर इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी।
डॉक्टर सिद्धार्थ की बात सुनकर उसे भी गुस्सा आ गया और वो चिल्लाते हुए बोली, "तो इसमें मैं क्या करूं? क्या इसमें भी मेरी गलती है कि इसकी तबीयत खराब हो गई। आपको इसके अलावा कुछ और दिखाई देता है भी.... या नहीं? जब से इसके साथ वो हादसा हुआ है, आप लोग मुझे भूल से गए हो। मैं भी हूं....इस दुनिया में। आप क्यों भूल जाते हैं इस बात को? अगर आप दोनों का सारा अटेंशन इसे ही मिलना था, तो आई विश उस दिन इसकी जगह मैं वहां पर होती।"
ईशान्वी को कुछ होश नहीं था कि वो क्या बोल रही थी।
"ईशान्वी मेरी नजरों के सामने से दूर हो जाओ। इससे पहले कि मैं कुछ ऐसा कर दूं, जो मुझे नहीं करना चाहिए।" ईशान्वी की बात सुनकर डॉक्टर सिद्धार्थ गुस्से में चिल्लाए।
वही उनकी बात सुनकर ईशान्वी रोती हुई अपने कमरे में चली गई।
सिद्धार्थ जी के गुस्सा करने पर ईशान्वी रोती हुई अपने कमरे मे चली गयी थी। तो वही पार्थवी और रश्मि दोनो ही हैरान थी क्योंकि इस से पहले उन्होंने कभी किसी पर इस तरह गुस्सा नही किया।
"सिद्धार्थ! सब ठीक है ना? आप बहुत परेशान लग रहे हो। परी बेटा! तुम रेस्ट करो। मुझे तुम्हारे पापा से कुछ जरूरी बात करनी है।" कहकर रश्मि सिद्धार्थ का हाथ पकड़कर उन्हे दूसरे कमरे में ले गयी।
रश्मि के इस तरह खींचकर वहाँ से लाने की वजह से सिद्धार्थ थोड़ा झुंझला गया।
"रश्मि! पार्थवी वहाँ अकेली है। और तुम मुझे खींचकर यहाँ ले आई। उसे हमारी जरूरत है।" सिद्धार्थ चिढ़कर बोले।
"और ईशान्वी का क्या सिद्धार्थ? आप अच्छे से जानते हो उसकी जिद, पार्थवी से इस तरह झगड़ा करना, उसकी इंसिक्योरिटि की वजह कही न कही हम है। जिस टीन एज मे एक बच्चे को अपने पैरेंट की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब हम उसके साथ नही थे।" रश्मि ने उसे समझाने की कोशिश की।
सिद्धार्थ बोले, "उस वक़्त पार्थवी की प्रॉब्लम ईशू की टीन एज से ज्यादा बड़ी थी। और वो क्यों नही समझना चाहती परी को?"
रश्मि ने हल्की सख्ती से कहा, "क्योंकि वो सिर्फ अठारह साल की है सिद्धार्थ। अब बहस करना छोड़िये और ईशू को क्लब छोड़कर आइए। मै परी को सम्भाल लुंगी। और हाँ.... आपके आने के बाद मुझे आपके इस बेवजह के गुस्से की वजह जाननी है।"
"तुम ईशू को बिगाड़ रही हो रश्मि। क्या जरूरत है अभी इस उम्र मे क्लब जाने की....?" सिद्धार्थ ने झुंझलाकर कहा।
"और आप उसे लेकर कुछ ज्यादा ही प्रोटेक्टिव हो रहे हैं। आज उसके कॉलेज का फर्स्ट डे था.... तो बन गए होंगे नये फ्रेंडस और सबने मिलकर क्लब जाने का प्लान कर लिया होगा। अब आप ज्यादा मत सोचिए और आपको उसकी इतनी ही फिक्र हो रही है, तो आप भी उसके साथ में ही रुक जाईएगा।" रश्मि ने बहस को वही खत्म करने की कोशिश की।
"और मैं वहां पर रुका, तो उसके उन्ही नये बने दोस्तो को पता चल जाएगा कि वो मेरी बेटी है। ठीक है! अब तुम बोल रही हो, तो मैं उसे छोड़ आता हूं। लेकिन इसके बाद में मैं उसकी जिद बिल्कुल नहीं मानने वाला।" सिद्धार्थ ने भी उनकी जिद के आगे अपने हाथ खड़े कर दिए थे।
रश्मि के समझाने पर सिद्धार्थ ईशान्वी के कमरे में आए, तो वो क्लब जाने के लिए तैयार हो रही थी। उसे तैयार होता देख सिद्धार्थ के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसे देखकर उनका गुस्सा पल में काफ़ूर हो गया।
सिद्धार्थ ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा, "तो तुम पहले से जानती थी कि तुम्हारी मम्मा मुझे मना लेगी?"
"हां क्योंकि वो हर बात मना लेती है। पापा मुझे भी थोड़ा फ्री स्पेस चाहिए। दीदू को 24 घंटे प्रोटेक्शन की जरूरत होती है.... मुझे नहीं। तो आप मुझे अकेले छोड़ोगे? प्लीज...." इस बार ईशान्वी काफी नरमी से बात कर रही थी।
"अब इसमें पार्थवी कहां से बीच में आ गई? देखो बेटा! वो तुम्हारी बड़ी बहन है और तुम्हें उसकी प्रॉब्लम्स को समझना होगा। तुम भी जानती हो उसे 24 घंटे देखरेख की जरूरत क्यों पड़ती है? आई विश कि 2 साल पहले वो हादसा नहीं हुआ होता, तो आज परी भी तुम्हारी तरह कहीं भी आ जा सकती थी।" सिद्धार्थ ने उदास चेहरे के साथ कहा।
ईशान्वी ने खुद के इमोशंस को कंट्रोल करते हुए कहा, "ठीक है पापा! अब आप मुझे इमोशनल मत कीजिए। मुझे पता है मैं कई बार बहुत ज्यादा चाइल्डिश बिहेव करती हूं। आप और मम्मा दिदु के साथ रुक सकते हो। मुझे लेने के लिए रीत आ जाएगी।"
सिद्धार्थ ने ईशान्वी को परेशान करने के लिए कहा, "हाँ बेचारी रीतिका भी तुम्हारे चक्करो मे जल्दी ही आ जाती है। लेकिन तुम लोग जा कहां रहे हो?"
"कहीं भी चले जाएगे पापा। लाइक ऐसे ही किसी रेस्टोरेंट में जाकर अच्छा सा खाना खाएंगे.... अगर मल्टीप्लेक्स में कोई अच्छी मूवी लगी हुई होगी, तो उसे देख लेंगे। बस थोड़ा चिल करेंगे और आ जाएंगे।" ईशान्वी ने झूठ बोला। वो नही चाहती थी कि क्लब का नाम सुनकर सिद्धार्थ उसके साथ चलने का बोले।
"ईशू... पहले तो तुम क्लब जाने की बात कर रही थी। अब अचानक से तुम्हारा प्लान बदल कैसे गया?" सिद्धार्थ ने हैरानी से पूछा।
"हां अब हम क्लब नहीं जा रहे।" ईशान्वी जबरदस्ती मुस्कुराते हुए बोली।
ईशान्वी सिद्धार्थ से बात कर रही थी कि तभी बाहर कार के हॉर्न की आवाज सुनाई दी। वो आवाज सुनकर उसने सोचा, "थैंक गॉड! रीत आ गई। वरना पापा को तो एक-एक डिटेल देनी पड़ती। फिर क्लब का नाम सुनकर तो वो पक्का मेरे साथ जाते।"
"कहां खो गई? लगता है तुम्हारी फ्रेंड रीतिका आ गई है। चलो तुम जाओ। लेकिन जल्दी आ जाना। और वो तुम्हे वापिस ड्रॉप करने ना आ सके, तो मुझे कॉल कर देना। मैं लेने आ जाऊंगा।" सिद्धार्थ बोले।
सिद्धार्थ की बात पर ईशान्वी ने मुस्कुराते हुए हां कहा और उन्हे बाय बोलकर वहाँ से रीतिका के साथ चली गयी।
ईशान्वी के जाने के बाद सिद्धार्थ रश्मि के पास आया।
"अब कैसी है पार्थवी?" उन्होंने पूछा।
"ठीक है! बस थोड़ा आराम कर रही है। अब तो दोनों बच्चियाँ भी पास नहीं है। आप मुझे बता सकते हो कि आपके इस गुस्से और इतनी फिक्र की वजह क्या है?" रश्मि ने पूछा।
"ग्रंथ खुराना को तो तुम जानती ही होगी? मैने तुम्हे पहले भी बताया था कि वो किस तरह का इंसान है। पूरा हॉस्पिटल उसकी हरकतो से परेशान है। बदतमीज और पैसे का घमण्ड तो उसे है ही... बाकी लड़कियो को भी वो किसी खिलौने के अलावा और कुछ नही समझता। जो चीज उसे एक बार पसन्द आ गयी। वो उसे चाहिए ही होती है। पता है आज मुझे सिंह ने हॉस्पिटल में बताया कि पार्थवी और ग्रंथ साथ में खड़े थे।" सिद्धार्थ ने अपनी फिक्र की वजह रश्मि को बताई।
"तो क्या हो गया जो ग्रंथ पार्थवी के पास में खड़ा था? हो सकता है दोनों गलती से टकरा गए होंगे.... या ग्रंथ को कुछ जानना होगा, तो वो उस तरफ आया होगा और पार्थवी से उसकी थोड़ी बहुत बातचीत हो गई होगी। अब आप ओवर रीएक्ट कर रहे हैं सिद्धार्थ।" रश्मि ने जवाब दिया।
सिद्धार्थ ने गंभीर आवाज में कहा, "मैं ओवर रीएक्ट नहीं कर रहा रश्मि। सिंह ने मुझे बताया था कि उनके दूर जाने के बावजूद भी ग्रंथ काफी देर तक वही खड़ा पार्थवी को जाते हुए देख रहा था। मैं नहीं चाहता मेरी बेटियों पर उसकी नजर भी पड़े। मै ईशू से डायरेक्ट नहीं बोल सकता। लेकिन अच्छा है ना वो दोनों अलग-अलग क्लास में है, तो ज्यादा मिलना जुलना हो भी नहीं पाएगा। लेकिन पार्थवी से तो उसका दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। प्लीज अब तुम कभी भी पार्थवी को हॉस्पिटल लेकर मत आना। अगर कोई काम हो तो मुझे बता देना।"
सिद्धार्थ ने एक सांस में अपने दिल में चल रही सारी बातों को रश्मि के सामने रख लिया था। वहीं रश्मि को भी अब समझ आ गया था कि उनके गुस्से और इंसियोरिटि की वजह क्या थी।
रश्मि ने सिद्धार्थ का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, "देखिए सिद्धार्थ! अगर ग्रंथ एक बार पार्थवी से मिल भी लिया तो क्या हो गया? इसके बाद वो उसे कभी नहीं देख पाएगा.... ये बात आप अच्छे से जानते हैं। तो बेवजह फिक्र मत कीजिए। चलिए अब मिलकर साथ में डिनर बनाते हैं। ताकि आपका भी मूड फ्रेश हो जाए और बाद में मुझे ये भी ना सुनना पड़े कि मैने पार्थवी के लिए कुछ हेल्दी नहीं बनाया।"
"ओके मैडम...." मुस्कुराते हुए डॉ सिद्धार्थ अपनी पत्नी रश्मि के साथ किचन में गए।
वहीं दूसरी तरफ ईशान्वी और रीतिका अभी भी बाहर घूम रही थी। ईशान्वी अच्छे से जानती थी कि अगर ग्रंथ क्लब आएगा भी, तो वो इतनी जल्दी नहीं आने वाला था। दोनों को बाहर घूमते -घूमते रात के लगभग 11:00 बज चुके थे।
रीतिका ने इरिटेट होकर कहा, "यार ईशि....तू कब तक मुझे ऐसे ही बाहर घूमाती रहेगी? तुझे पूरी रात बाहर भटकना है, तो अच्छे से भटक। लेकिन मुझे अब घर जाने दे।"
ईशान्वी बोली, "प्लीज यार अब ऐसे तो मत बोल। अभी तो ग्रंथ क्लब जाने का टाइम हुआ होगा। मुझे अच्छे से पता है वो इस वक्त कहां होगा।"
उसकी बात सुनकर रीतिका ने हैरान होकर पूछा, "और तुझे कैसे पता कि वो कहां होगा? आई मीन वो तो अपने किसी भी क्लब में हो सकता है? तू भी जानती है कि उसके भाई के चंडीगढ़ में 5-6 क्लब्स हैं।"
ईशान्वी ने रीतिका को अपने मोबाइल में फोटो दिखाते हुए कहा, ये देख! मैं ग्रंथ को सोशल मीडिया पर अच्छे से फॉलो करती हूँ... "
"इसे फॉलो करना नही मैडम, स्टॉक करना बोलते है।" रीतिका ने ईशान्वी को बात काटकर बोला।
ईशान्वी ने आईज रोल करके कहा, "व्हाटएवर.... अच्छा आगे तो सुन। मैंने अक्सर उसके फोटोज रोक ऑन क्लब के बाहर ही देखी है। आज भी वो वही गया होगा। चल बहुत टाइम वेस्ट कर लिया, अब हम भी वही चलते हैं।"
ईशान्वी रीतिका को रॉक ऑन क्लब लेकर गई और उसका अंदाजा बिल्कुल सही निकला। ग्रंथ अपने दोस्त युवराज और हिमांशी के साथ वहीं पर मौजूद था। वो दोनो क्लब के अंदर गई, तो वहां पर लाउड म्यूजिक बजने के बजाय सामने कोई गिटार पर गाना गा रहा था।"
ईशान्वी ने एक्साइटेड होकर कहा, ओ माय गॉड! मुझे नही पता था कि यहाँ आकर इतना अच्छा लाइव कॉन्सर्ट सुनने को मिल जाएगा। आफ्टर ओल ग्रंथ खुराना का क्लब है, तो कुछ तो स्पेशल होगा ही...."
रीतिका बोली, "हाँ यार... पहले तो मुझे भी लगा था कि यहां लाउड म्युज़िक से सर दर्द होगा। लेकिन अब लग रहा है कि मैंने यहां तेरे साथ आकर गलती नहीं की। अब अपना मुंह बंद रख और मुझे इंजॉय करने दे।
ईशान्वी ने कहा, "लेकिन पता तो चले इतना अच्छा गा कौन रहा है? लगता है कि मैं तो इसकी आवाज की दीवानी ही हो जाऊंगी।" वो लोगों की भीड़ में उसका चेहरा देखने की कोशिश करने लगी।
ईशान्वी रीतिका को लेकर आगे गयी, तो उसने देखा सामने एक चेयर पर ग्रंथ बैठा था, जो गिटार लेकर गा रहा था।
"है अपना दिल तो आवारा,
न जाने किस पे आयेगा।"
"है अपना दिल तो आवारा,
न जाने किस पे आयेगा।"
हसीनों ने बुलाया, गले से भी लगाया
बहुत समझाया, यही न समझा
बहुत भोला है बेचारा,
न जाने किस पे आयेगा
है अपना दिल तो आवारा
अजब है दीवाना, न घर ना ठिकाना
ज़मीं से बेगाना, फलक से जुदा
ये एक टूटा हुआ तारा, न जाने किस पे आयेगा
है अपना दिल तो आवारा
ग्रंथ के गाना खत्म करते ही सब ताली बजाने लगे और फिर से लाउड म्यूजिक शुरू हो गया, जिस पर वहां आए लोग थिरकने लगे। वो भीड़ में से बाहर निकल कर आया, तो उसकी नजर ईशान्वी पर पड़ी।
ग्रंथ ईशान्वी के पास आकर बोला, " मैंने तुम्हें कहीं देखा है?"
ईशान्वी ने जवाब दिया, "मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम मुझे इतना जल्दी भूल जाओगे? आज सुबह ही तो मिले थे, हम मेडिकल कॉलेज में.... तब मुझे नही पता था कि तुम इतना अच्छा गाते... "
ईशान्वी अपनी बात पूरी करती.. उस से पहले हिमांशी उनके पास आ गई। वो उसे देखकर पहचान चुकी थी।
हिमांशी ने उसे घूरते हुए कहा, "तुम हमें स्टॉक कर रही हो? पहले कॉलेज... अब क्लब। ग्रंथ... बे... बी तुम इस से दूर रहो।"
हिमांशी की आवाज से साफ समझ आ रहा था कि उसने बहुत ड्रिंक कर रखी थी। हिमांशी के कदम लड़खड़ा रहे थे और वो ग्रंथ पर गिरने ही वाली थी कि युवराज ने उसे पकड़कर उससे दूर किया, "कम ऑन बेब! खुद को संभालो। क्या जरूरत थी इतना पीने की?"
ग्रंथ ने आईज रोल की, "ये यहां पर नशे में टल्ली होकर बैठी है, जबकि इसका बाप वहां मुझे कॉलेज में सुनाता रहता है कि मैंने उसकी बेटी को बिगाड़ दिया। यार मैं तो अभी आधे घंटे पहले आया था और पता नहीं ये कब से यहां पर बैठकर पी रही होगी। अब मैं नहीं जाने वाला इसे घर छोड़ने...."
ग्रंथ मुंह बनाता हुआ गुस्से में वहां से चला गया। युवराज हिमांशी को संभाल रहा था कि तभी मौका देखकर ईशान्वी उसके पीछे- पीछे गई।
ईशान्वी जल्दी से बोली, "हे रुको! ड्रिंक उसने कर रखी है। मैंने तो नहीं? क्या हम थोड़ी देर बात कर सकते हैं?"
"मेरा मूड नहीं है। तुम्हें बात करनी है, तो क्लब में इस वक्त 200 लोग मौजूद होंगे। किसी से भी जाकर बात कर लो।” बोलते हुए ग्रंथ ईशान्वी के चेहरे के बिल्कुल पास आ गया।
ईशान्वी उसकी बात का कुछ जवाब देती, इससे पहले वो वहां से चला गया।
"यार इतना भाव भी कौन खाता है। लगता है मुझे इसके पीछे जाना होगा।" ईशान्वी चिढ़कर बोली।
ईशान्वी दौड़ते हुए ग्रंथ के पीछे गई। लेकिन तब तक वो अपनी गाड़ी लेकर वहां से जा चुका था। ग्रंथ वहाँ से अपने घर की तरफ निकल रहा था।
"पता नहीं क्यों उस लड़की का ख्याल दिल से निकल ही नहीं रहा। शायद उसने मुझे इग्नोर किया... इस वजह से मैं बार-बार उसी के बारे में सोच रहा हूं।" ग्रंथ गाड़ी चलाते हुए खुद से बात कर रहा था। वो पार्थवी के बारे में सोच रहा था।
तो वही ग्रंथ से बात ना हो पाने की वजह से ईशान्वी भी रीतिका के साथ वापस घर आ चुकी थी।
रितिका ईशान्वी को घर ड्रॉप कर चुकी थी। ग्रंथ से बात ना हो पाने की वजह से पूरे रास्ते उसका मूड खराब था। ईशान्वी घर पहुंची, तब रात के 11:30 बज रहे थे। तब तक सिद्धार्थ और रश्मि सोने जा चुके थे।
पार्थवी और ईशान्वी दोनो साथ मे एक ही रूम में रहते थे। ईशान्वी अपने कमरे में गई तो उसने देखा कि पार्थवी अभी तक जाग रही थी।
"अभी तक सोई नहीं तुम? आई थिंक मॉम- डैड सो चुके होंगे?" ईशान्वी बोली।
"हाँ....! मै तुम्हारा वेट कर रही थी। मैंने उनसे कहा था कि वो दोनो जाकर सो जाए। मुझे नींद नहीं आ रही... तो ईशू का वेट मै कर लुंगी। वैसे भी सुबह उन्हें काम होता है। मेरा क्या है? मैं तो पूरे दिन घर में ही होती हूं।" पार्थवी ने जवाब दिया।
"या यूं कहो कि जब तक मैं नहीं आ जाती तुम्हें नींद नहीं आने वाली थी। तुम्हें मेरे बिहेवियर पर गुस्सा नहीं आता क्या?" ईशान्वी अपना नाइट सूट लेकर बाथरूम मे घुसी।
पार्थवी ने मुस्कुराते हुए कहा, "हां कई बार तो इरिटेट हो जाती हूँ। लेकिन फिर लगता है कि तुम भी गलत नहीं हो। जिस एज में तुम्हें मम्मा -पापा की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उस समय उनका सारा ध्यान मेरी तरफ बंट गया।"
"चलो कोई तो है, जो मुझे समझता है। ट्रस्ट मी दीदू मैं तुमसे नफरत नहीं करती हूँ। लेकिन मुझे भी मम्मा- पापा की जरूरत होती है। और वो दोनो इस बात को समझना ही नहीं चाहते हैं। वो बड़े है, तो मै उन्हे नही कह सकती। और अक्सर उनका गुस्सा मैं तुम पर निकाल देती हूं। एम सो सॉरी फॉर दैट।" ईशान्वी ने तेज आवाज में चिल्लाकर कहा। वो अभी भी बाथरूम में ही थी।
ईशान्वी की बात सुनकर पार्थवी को अपना बचपन याद आने लगा, जब वो उसे परेशान करने के लिए अक्सर कहा करती कि मम्मा- पापा उससे ज्यादा प्यार पार्थवी को करते है। उनका सारा ध्यान और केयर उसी के लिए है।
कौन कह सकता है कि भविष्य में क्या होगा? मस्ती - मजाक में कही बातें भी कई बार सच हो जाती है। आज सिद्धार्थ और रश्मि का सारा ध्यान और परवाह सिर्फ पार्थवी के लिए थी। लेकिन इन सब से उसे खुशी मिलने के बजाय घुटन होती थी और ये उसने कभी नही चाहा था।
ईशान्वी बाथरूम से बाहर आई तो उसने देखा कि पार्थवी अपने ख्यालों में खोई हुई थी। उस के चेहरे पर मायूसी थी। ईशान्वी भले ही अपने बचपने में उसे कुछ भी कह देती थी, लेकिन वो उसे बहुत प्यार भी करती थी। पार्थवी के साथ हुए हादसे ने उसे भी बहुत प्रभावित किया था।
उसका मूड सही करने के लिए ईशान्वी ने उसे आकर गले लगाकर कहा, "आई लव यू दीदू....!"
"लव यू मोर मेरी नकचढ़ी...! और मुझे एक्सप्लैनेशन मत कर दिया कर। मैं अच्छे से जानती हूं कि मेरी छोटी सी इशि मुझसे नफरत कर ही नहीं सकती। अच्छा बता ना तेरे कॉलेज का पहला दिन कैसा गया.... और क्लब की पार्टी? वो कैसी थी? तूने मुझे प्रॉमिस किया था कि एक एक चीज डिटेल में बताएंगी।" पार्थवी ने उसका मूड सही करने के लिए कहा।
ईशान्वी ने एक्साइटेड होकर कहा, "हां... क्यों नही। कॉलेज का फर्स्ट डे कुछ खास नहीं रहा और क्लब की पार्टी का तो क्या कहूं। वो तो नेक्स्ट लेवल बोरिंग थी। तुझे पता है दीदू हमारे कॉलेज में एक लड़का पढ़ता है। जो....."
पार्थवी जल्दी से ईशान्वी की बात काटकर बीच में बोली, "जो कि तुम्हें बहुत पसंद है।"
"और ये तुम्हें कैसे पता?" ईशान्वी हैरानी से बोली।
"क्योंकि मैं तुझे बचपन से जानती हूं। तू क्लब जाने की जिद भी उसी की वजह से कर रही थी ना? इसका मतलब उस मे जरूर कुछ ऐसा होगा, जिसकी वजह से तू उसके लिए क्लब जाना चाहती थी। अच्छा चल बता उस लड़के से क्या बात हुई और नाम क्या है उसका?" पार्थवी ने मुस्कुरा कर पूछा।
पार्थवी की एक्साइटमेंट देखकर ईशान्वी उसे सब कुछ डिटेल में बताने लगी, "तुझे नही पता है दीदू वो लड़का बहुत अच्छा गाता है और दिखने में तो और भी ज्यादा हैंडसम है। पूरे कॉलेज की लड़कियां उस पर मरती है। पता है चंडीगढ़ में जितने भी फेमस क्लब्स और यहाँ का सबसे बड़ा फाइव स्टार होटल है, वो ग्रंथ के डैड का था। उनकी डेथ के बाद उसका भाई ही सब कुछ संभालता है।"
"तो ग्रंथ नाम है उसका। तुझे पता है आज जब मैं मम्मा के साथ में तुम्हारे कॉलेज गई थी। तो हम लोग कॉलेज वाले एरिया में तो नहीं गए क्योंकि हमें डैड से मिलना था। लेकिन वहां पर भी तुम्हारे कॉलेज का ही कोई स्टूडेंट आया था।” पार्थवी ने बताया।
ईशान्वी बोली," हाँ डैड से मिलने आया होगा। वैसे नाम क्या था उसका? तेरी बात हुई उससे?"
"अरे कहां यार? अब मै क्या बताऊँ उसके बारे मे... वो एक नंबर का बदतमीज और बिगड़ा हुआ इंसान था। पता है हम दोनों गलती से टकरा गए थे, तो सॉरी बोलना तो दूर उल्टा मुझे ये भला- बुरा सुनाने लगा। जब मैं नीचे गिर गई थी तो मेरे बाल मेरे मुंह पर आ गए थे, तो उसे मेरा चेहरा दिखाई नहीं दिया। लेकिन जब मैं उठी और उसने मेरा चेहरा देखा... तो मिस्टर के भाव ही बदल गए। इतनी देर तक जो मुझसे बदतमीजी से बात कर रहा था। मेरी शक्ल देखकर अचानक से उसे इन सारे मैनर्स याद आ गए।" पार्थवी ने मुंह बनाकर कहा।
पार्थवी की बात सुनकर ईशान्वी जोर जोर से हंसने लगी।
"हां तुम बहुत खूबसूरत हो ना इसलिए सामने वाले को मैनर्स अपने आप याद आ जाते हैं। जरूर उसने भी सब की तरह तुमसे तुम्हारे नंबर मांगे होंगे" ईशान्वी बोली।
पार्थवी ने तुरंत हां में सिर हिला दिया। वो बोली, "हां....! मुझे उसका नाम नहीं पता वरना तुझे बता देती कि तू उससे दूर ही रहे।"
ईशान्वी ने पूरे एटीट्यूड से कहा, "कम ऑन यार... वो कोई भी हो, मुझे फर्क नही पड़ता। मुझे पटाना इतना आसान नहीं है। बाकी उस जैसे छिछोरे वहां पर बहुत मिलेंगे।"
ईशान्वी और पार्थवी देर रात तक एक दूसरे से बातें कर रही थी। जहां ईशान्वी अपने क्लब और कॉलेज के बारे में सारी बातें उसे बता रही थी, तो पार्थवी उसे इन सबसे डील करने की एडवाईज दे रही थी। देर रात तक बातें करने के बाद दोनों सो चली गयी।
उधर ग्रंथ हमेशा की तरह अपने घर जाने के बजाय होटल रूम में ही ठहरा था।
अगले दिन.....
सेंट जेवियर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल
ईशान्वी ग्रंथ से मिलने की एक्साइटमेंट में जल्दी ही कॉलेज आ चुकी थी। ग्रंथ अपनी ही धुन में कालेज के ग्राउंड में चक्कर लगा रहा था। जबकि हिमांशी युवराज के साथ उसे दूर से देख रही थी।
"क्या सच में मैंने कल रात को इतनी ड्रिंक की थी कि ग्रंथ मुझसे गुस्सा हो गया?" हिमांशी ने युवराज से पूछा।
"हां तुम तो लगभग उसके ऊपर गिरने ही वाली थी। ये तो शुक्र मनाओ तुमने उसके ऊपर उल्टियां नहीं की वरना ग्रंथ तुम्हारी शक्ल नहीं देखता।" युवराज ने बताया।
"लेकिन इग्नोर तो वो मुझे अभी भी कर रहा है ना? ये सब तो चलता रहता है यार। ग्रंथ पहले तो इन सब से इरिटेट नहीं होता था। एक ही दिन में उसे एक संस्कारी टाइप लड़की क्या मिल गई, वो तो कूल ड्यूड से टिपिकल डेली सोप का संस्कारी बेटा बन गया।" हिमांशी ने आईज रोल करके कहा।
"ऐसा भी कुछ नहीं है। इन सब को छोड़ो क्लास का टाइम हो रहा है। हमें चलना चाहिए। कहीं और का तो पता नहीं, लेकिन वहां तुम्हें ग्रंथ जरूर मिल जाएगा। उसके पास जाकर बैठ जाना, फिर बात भी हो ही जाएगी।" युवराज हंसकर बोला।
हिमांशी को युवराज का सुझाव अच्छा लगा।
"हां अच्छा याद दिलाया। इसी बहाने ग्रंथ को बुला लेती हूं। तीनों साथ ही क्लास में चलेंगे।" हिमांशी बोली।
हिमांशी युवराज को छोड़कर ग्रंथ की तरफ बढ़ने लगी। युवराज भी बड़बड़ाते हुए उसके पीछे चलने लगा।
"जब ग्रंथ इसे कोई इंपोर्टेंस ही नहीं देता, तो क्या जरूरत है बार-बार उसके पीछे जाकर खुद की इंसल्ट करवाने की। आई डोंट अंडरस्टैंड ऐसा क्या है उसमें, जो लड़कियां बस उसी के नाम की रट लगाए रहती है।" युवराज ने मन ही मन कहा।
हिमांशी ने ग्रंथ के पास पहुंचने से पहले ही उसे आवाज लगानी शुरू कर दी, " हे ग्रंथ! लेट्स गो...! क्लास का टाइम हो गया है।"
ग्रंथ ने चिल्लाते हुए जवाब दिया, "हाँ हिमांशी! मुझे तो घड़ी देखनी आती ही नहीं है, जो मुझे पता चलेगा कि क्लास का टाइम हो रहा है। या शायद मै इतने नशे में हूं कि मुझे कुछ होश नही है कि मेरे आसपास क्या चल रहा है।"
हिमांशी ग्रंथ के बोलने के अंदाज से समझ गयी कि वो अभी तक उससे नाराज है।
"आई एम सो सॉरी यार! पहले तो तुमने कभी ऐसे रीएक्ट नहीं किया। अचानक से तुम्हें क्या हो गया.... जो तुम्हें मेरे ड्रिंक करने से इतनी प्रॉब्लम होने लगी?" हिमांशी ने उसके पास आकर कहा।
"क्योंकि इससे पहले तुम्हारे प्यारे पिता श्री ने मुझे ये नहीं कहा था ना कि मैंने तुम्हें बिगाड़ दिया। वो तो ऐसे बोल रहे थे जैसे मैंने तुम्हें पकड़ कर अपने हाथों से शराब पिलाई हो" ग्रंथ अपनी बात कहकर वहां से जाने लगा।
"जरूर डॉ सिंह ने पार्थवी से भी कुछ ऐसा ही कहा होगा कि मैंने उसकी बेटी को बिगाड़ दिया। तभी कल उसने मुझे मुड़कर देखा तक नहीं। और तो और जब मैं उसके सामने गया, तो मुझे इग्नोर कर दिया। यार एक तो क्या खाक इमेज बने... लोग बनने से पहले ही बिगाड़ देते हैं।" ग्रंथ हाथ में कॉफी लिए खुद से बातें करता हुआ क्लास की तरफ बढ़ रहा था।
हमेशा की तरह ग्रंथ का ध्यान सिर्फ खुद में लगा हुआ था कि वो डॉक्टर सिद्धार्थ शर्मा से टकरा गया और उसकी कॉफी उनके कपड़ों पर गिर गई।
"मेरा सारा कॉफी पीने का मजा खराब कर दिया" ग्रंथ उपर देखे बिना ही चिल्लाया।
"और मेरे कपड़े खराब हुए, वो तुम्हें दिखाई ही नहीं दे रहा। कितनी बार कहा है कि तुम हम सब से दूर रहो।" डॉक्टर सिद्धार्थ पार्थवी के बारे में सोचकर ग्रंथ को डांटने लगे।
"हम सब से आपका क्या मतलब है? आप क्या ग्रुप में आ रहे थे? अभी तो मुझे सिर्फ आप अकेले ही दिखाई दे रहे हो। फिर क्या आप अपने साथ भूतों की टोली लेकर घूमते हो डॉ शर्मा।" ग्रंथ फिर से बदतमीजी से बात करने लगा।
"अपने काम से मतलब रखो। यहां पढ़ने आते हो, तो पढ़ाई करो और रही बात अय्याशियों करने की, तो वो कॉलेज से बाहर रहकर करो।" कहकर डॉ सिद्धार्थ गुस्से में वहां से जाने लगे।
"हद हो गई यार!! अब मैंने क्या कर दिया? जिसे देखो लेक्चर सुनाए जा रहा है। अब इन्हे क्या हो गया, जो बेवजह ही डांट दिया.... क्या हुआ जो मेरा ध्यान सामने की तरफ नहीं था। ये तो देख सकते थे ना? कोई भी दो इंसान टकराते है, तो उसमे दोनों की ही गलती होती है। ना कि सिर्फ एक की.... 1 मिनट.... टकराने से याद आया कि कल मैं पार्थवी से टकराया था। मेरा ध्यान तो म्यूजिक और डॉक्टर सिद्धार्थ को इरिटेट करने में था। लेकिन वो कहां खोई हुई थी, जो मुझ से टकरा गई? कहीं वो मुझे देख कर पहली बार में ही मुझसे इंप्रेस तो नहीं हो गई, जो एक्साइटमेंट के मारे मुझ से टकरा गई? काश ऐसा ही हो यार। वो मुझसे इंप्रेस हो जाए। और.... और... मै उस से ढेर सारी बातें करूँ।" ग्रंथ खुश होकर क्लास के अंदर चला गया।
तो वहीं दूसरी तरफ ग्रंथ और डॉक्टर सिद्धार्थ के बीच कुछ देर पहले हुई बहस को रितिका और ईशान्वी दूर से देख रही थी।
"यार मेरे डैड तो इसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करते। थैंक गॉड कल रात मैंने नहीं बताया कि वो ग्रंथ के क्लब जा रही हूं। वरना तो वो मेरी अच्छी खासी क्लास लगा देते। यार रीत! कल को अगर मैंने ग्रंथ ने शादी करने का सोचा, तो डैड मान तो जाएंगे ना? " ईशान्वी ने लाचारी से कहा।
ईशान्वी की बात सुनकर रितिका को हंसते हुए बोली, "बस कर यार अब इससे ज्यादा मजाक मुझसे सहन नहीं होगा। मै और नही हंस सकती।” कुछ पल रुककर वो इरीटेट होकर बोली, “क्या बकवास कर रही है तू? उसे तुमसे मिले हुए 1 दिन नहीं हुआ ठीक से... और वो तेरा नाम तक नहीं जानता और तू है कि उसके साथ शादी के सपने देख रही है।"
ईशान्वी ने ख्याली पुलाव बुनने शुरू कर दिए, "मैंने तो हम दोनों के बच्चों के नाम भी सोच लिए हैं। हाय मेरे बच्चे कितने क्यूट होंगे ना.. बिल्कुल उनके पापा की तरह.....।"
रितिका ने उसका मजाक बनाते हुए कहा, "पापा से याद आया... आज तेरे पापा हमारी क्लास लेंगे। तो अब अपनी ये बकवास बंद कर और मेरे साथ क्लास में चल। ग्रंथ के बारे में सोचना बंद कर और स्टडी पर फोकस कर।"
रितिका ईशान्वी को खींचकर क्लास में ले गई। उधर डॉक्टर सिद्धार्थ अपने केबिन में चेंज कर रहे थे कि तभी उनके साथी डॉक्टर का कॉल आया।
"गुड मॉर्निंग डॉक्टर मित्तल! आज इतनी सुबह कॉल कैसे किया। सब ठीक तो है ना? " सिद्धार्थ ने संजीदगी से कहा।
"हां सब ठीक है डॉक्टर शर्मा.... वो मैंने आपको ये याद दिलाने के लिए कॉल किया था कि आज पार्थवी के रूटीन चेकअप की डेट है, तो आप उसे हॉस्पिटल बुलवा लीजिए...." दूसरी तरफ से डॉक्टर मित्तल की आवाज आई।
डॉक्टर सिद्धार्थ ने हां बोल कर कॉल कट कर दिया। वो नहीं चाहते थे कि पार्थवी फिर से हॉस्पिटल आए और गलती से भी ग्रंथ उसे देखे। लेकिन पार्थवी का यहाँ आना भी टाला नही जा सकता था।"
डॉक्टर सिद्धार्थ ने धीमी निराश आवाज में कहा, " मैं पार्थवी को हॉस्पिटल आने से नहीं रोक सकता, लेकिन ग्रंथ को तो बिजी रख सकता हूं ना। जब तक पार्थवी यहां पर होगी। मैं ग्रंथ को अपनी नजरों से बिल्कुल भी दूर नहीं होने दूंगा।"
डॉक्टर सिद्धार्थ कुछ देर तक बैठकर सोचते रहे कि उन्हें ग्रंथ को किस तरह बिजी रखना है कि वो पार्थवी से ना मिल पाए। उसके बाद उन्होंने पार्थवी को हॉस्पिटल लाने के लिए रश्मि को कॉल किया।
सिद्धार्थ ने रश्मि को कॉल करके कहा,"हेलो रश्मि! तुम कॉलेज पहुंच चुकी हो क्या?"
"हां सिद्धार्थ! मुझे यहां आए हुए लगभग 1 घंटे हो गए। आज आप ये क्यों पूछ रहे हैं? आप तो अच्छे से जानते हैं कि मैं हमेशा टाइम से ही निकलती हूं।" रश्मि ने कहा।
"लगता है मेरी तरह आप भी भूल गई कि आज पार्थवी का रूटीन चेकअप करवाना था। आई नो डॉक्टर के ट्रीटमेंट का उस पर कोई असर नहीं हो रहा। लेकिन फिर भी कुछ तो प्रोग्रेस हुई ही होगी ना। हम ऐसे उम्मीद तो नहीं छोड़ सकते। और वैसे भी जब से मैने डॉक्टर मित्तल को परी की केस फाइल दिखाई है... दिल मे एक नई उम्मीद सी जग गई।" डॉ सिद्धार्थ ने मायूसी से कहा।
रश्मि ने नम आंखों से कहा, "हाँ... काश सब कुछ पहले की तरह ठीक हो जाए। सॉरी सिद्धार्थ! मैं सच में आज की डेट भूल गई थी। बट डोन्ट वरी मै करिश्मा को बोल दूंगी। वो परी को हॉस्पिटल लेकर चली जाएगी। वैसे भी आप तो होंगे ही।"
"नहीं रश्मि! मैं चाहता हूं कि पार्थवी को हॉस्पिटल लेकर तुम ही आओ और मैं यहां पर नहीं रहूंगा। मुझे कुछ जरूरी काम है। ऐसे में पार्थवी को तुम ज्यादा अच्छे से संभाल सकती हो। मैं जानता हूं कि करिश्मा की वजह से कल भी तुम्हें कॉलेज से वापिस आना पड़ा था। लेकिन प्लीज एडजस्ट कर लेना।" सिद्धार्थ बोले।
"इटस ओके सिद्धार्थ! पार्थवी से बढ़कर हमारे लिए कुछ नहीं है। मैं अपनी क्लासेज का टाइम पोस्टपोनड करके थोड़ी देर में परी को लेकर पहुंचती हूं।" कहकर रश्मि ने फोन कट कर दिया।
तो वही रश्मि के आने की वजह से डॉक्टर सिद्धार्थ को भी थोड़ी राहत मिली कि उनकी ऐब्सेंस में वो पार्थवी के साथ होगी।
रश्मि अपने क्लासेस का शेड्यूल चेंज करके घर पर पहुंची तो उसे वहां कोई नहीं मिला।
रश्मि ने गहरी सांस ली और झुंझलाकर बोली, "मैंने कितनी बार करिश्मा को समझाया है कि परी को लेकर बाहर मत जाए। अब अगर सिद्धार्थ को पता चला तो वो बेवजह गुस्सा करेंगे।"
रश्मि को करिश्मा पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि वो बिना बताए पार्थवी को बाहर कैसे ले जा सकती थी। उस ने गुस्से में करिश्मा को कॉल किया।
"करिश्मा मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है कि बिना मुझे बताएं तुम परी को कहीं नहीं लेकर जाओगी। उसे हॉस्पिटल लेकर जाना था और पता नहीं तुम उसे लेकर कहां चली गई? अगर हॉस्पिटल पहुंचने में थोड़ा सा भी लेट हो गया.... तो सिद्धार्थ मुझ पर गुस्सा करेंगे।" फोन उठाते ही रश्मि करिश्मा पर बिफर पड़ी।
"काम डाउन आंटी! आप इतना गुस्सा क्यों हो रही है? ये कोई पहली बार तो है नहीं, जब मैं पार्थवी को लेकर बाहर आई हूं। और वैसे भी हम लोग घूमने नहीं हॉस्पिटल आए हैं। आप लोग भूल गए होंगे लेकिन मुझे अच्छे से याद है कि आज पार्थवी का चेकअप करवाना था। तो अब हमेशा की तरह पार्थवी की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़कर आप अपने कॉलेज वापिस जा सकती हैं।” करिश्मा ने जवाब दिया।
रश्मि और सिद्धार्थ एनी टाइम पार्थवी के साथ नहीं रह सकते थे इसलिए उन्होंने उसका ख्याल रखने के लिए एक केयरटेकर को हायर कर रखा था, जिसका नाम करिश्मा था। करिश्मा लगभग 30 साल की एक लड़की थी, जिसका कुछ साल पहले डिवोर्स हो चुका था। भले ही करिश्मा पार्थवी से उम्र में बड़ी थी। लेकिन दोनों की अच्छी बनती थी।
पार्थवी के साथ रहते हुए करिश्मा उसका अपनी छोटी बहन की तरह ख्याल रखती थी। जितनी फिक्र रश्मि और सिद्धार्थ को पार्थवी की होती थी, उससे कहीं ज्यादा उसकी हर एक चीज का ख्याल करिश्मा रखती थी। यही वजह थी कि रश्मि और सिद्धार्थ करिश्मा के भरोसे बेफिक्र होकर अपनी नौकरी पर जा सकते थे।
करिश्मा के मुंह से हॉस्पिटल आने की बात सुनकर रश्मि को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या प्रतिक्रिया दें। वो इस बात पर खुश हो कि उन्हें ना सही लेकिन करिश्मा को पार्थवी के रुटीन चेकअप की डेट याद थी ....या इस बात की फिक्र करें कि सिद्धार्थ से हॉस्पिटल में उसे ना देखकर कहीं करिश्मा को कुछ कह ना दे।
रश्मि ने शांत लहजे में कहा, "एम सो सॉरी करिश्मा! मुझे तुम पर ऐसे नहीं चिल्लाना चाहिए था। लेकिन अभी- अभी सिद्धार्थ का कॉल आया था और उन्होंने मुझे कहा था कि पार्थवी को हॉस्पिटल लेकर मैं खुद आऊं। मैं घर पर आई तो मुझे यहां कोई नहीं मिला। बस तभी मै थोड़ा परेशान हो गई और इसी चक्कर में तुम पर चिल्ला दिया।"
करिश्मा ने शांत होकर जवाब दिया, " कोई बात नहीं आंटी! आप तो अच्छे से जानती हैं कि परी मेरे लिए मेरी छोटी बहन की तरह है। तो इससे जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात मुझे खुशी देती है। वैसे भी आप लोगों के अलावा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है, तो मुझ पर चिल्लाने का हक भी है आपको। आप फिक्र मत करिए। सिद्धार्थ अंकल को मैं संभाल लूंगी.... एंड डोंट वरी मैं पार्थवी का अच्छे से चेकअप करवा कर उसे वापस घर ले आऊंगी।"
करिश्मा की बात सुनकर रश्मि ने चैन की सांस ली और सिद्धार्थ को मैसेज करके बता दिया कि करिश्मा पहले ही पार्थवी को लेकर हॉस्पिटल पहुंच चुकी है।
डॉक्टर सिद्धार्थ हड़बड़ाहट में गलती से अपना फोन केबिन में ही भूल गए थे। उनके मन में बस एक ही बात चल रही थी कि ग्रंथ को किस तरह बिजी रखा जाए। इसी के चलते वो उसी के पास गए। जबकि दूसरी तरफ करिश्मा पार्थवी को लेकर हॉस्पिटल में दाखिल हो चुकी थी।
"ग्रंथ खुराना! मुझे तुमसे कुछ जरूरी चैप्टर्स डिस्कस करने हैं। कैन यू कम इन लाइब्रेरी...." डॉ सिद्धार्थ ने ग्रंथ से कहा।
ग्रंथ को तो विश्वास नहीं हो रहा था कि डॉक्टर सिद्धार्थ खुद उसके सामने चलकर आए हैं और उसे पढ़ाने की बात कर रहे थे।
"ओके! इट विल बी माय प्लेजर....। मुझे तो लगा कि सुबह कॉफी गिराने के बाद आप मुझ पर गुस्सा होंगे लेकिन आप.... चलिए जो हुआ उसे जाने दे। डॉक्टर सिद्धार्थ आप एक बहुत अच्छे डॉक्टर हैं। लेकिन आपका एटीट्यूड मेरे एटीट्यूड से मैच नहीं करता। बस यही कर के हम दोनों में झगड़े होते रहते हैं। ट्रस्ट मी अगर हम दोनों मिल जाए, तो पूरे हॉस्पिटल का नक्शा ही बदल सकते हैं। हॉस्पिटल का सबसे बेस्ट डॉक्टर और मेडिकल कॉलेज का सबसे ब्रिलिएंट स्टूडेंट.... वाह क्या बात होगी।" ग्रंथ डॉक्टर सिद्धार्थ के साथ चलते हुए बातें कर रहा था।
"ये लड़का 1 मिनट के लिए भी चुप क्यों नहीं रह सकता। इसे तो बस एनीटाइम बातें करनी होती है। पता नहीं कितनी देर तक इसे झेलना पड़ेगा।" डॉक्टर सिद्धार्थ ग्रंथ की बात का जवाब ना देते हुए अपने मन में सोच रहे थे। जबकि दूसरी तरफ ग्रंथ नॉनस्टॉप बोले जा रहा था।
डॉक्टर सिद्धार्थ लगभग आधे घंटे से ग्रंथ को लाइब्रेरी में बैठकर चैप्टर समझा रहे थे। जबकि ग्रंथ बहुत ध्यान से हर एक चीज को समझ रहा था।
"क्या होता जो ये लड़का बदतमीज होने के बजाय थोड़ा डिसिप्लिनड होता। इतना अच्छे से हर एक चीज को पढता- समझता है। पता नहीं इसके बाद इसकी सारी समझ कहां चली जाती है, जो ये सबसे बदतमीजियां करता रहता है।" सिद्धार्थ ने सोचा।
"ओएमजी! डॉक्टर शर्मा मैं तो भूल ही गया था कि मुझे डॉक्टर मित्तल के पास में भी जाना था। अरे वही जो अपने हॉस्पिटल में नए आए हैं। आपको पता है वो मेरे रिलेटिव है। एक बार मिलना तो बनता है। अगर आप बुरा नहीं मानो तो मैं बस 15 मिनट में आता हूं। थोड़ा गैप भी हो जाएगा और मिलना भी..." ग्रंथ वहाँ से उठकर जाने लगा कि डॉक्टर सिद्धार्थ ने उसका हाथ पकड़ कर उसे वहीं रोक दिया।
"डॉक्टर मित्तल अभी बिजी है ग्रंथ! यहां आने से पहले मैंने खुद देखा था कि वो किसी पेशेंट के साथ जा रहे थे, तो तुम बाद में चले जाना। अभी ये बस आधे घंटे का हो रहा होगा।" सिद्धार्थ ने जवाब दिया।
ग्रंथ को उनके बर्ताव पर हैरानी तो हुई, पर वो ज्यादा कुछ बोला नहीं। उसने हां में सिर हिला कर कहा, " ओके....! "
"अब तक तो पार्थवी का आधा चेकअप हो भी चुका होगा। कैसे भी करके मैं इसे आधे घंटे के लिए और रोक कर रखता हूं। तब तक रश्मि उसे यहां से लेकर चली जाएंगी।" डॉक्टर सिद्धार्थ ने सोचा।
वहीं डॉ मित्तल बिजी होने के कारण पार्थवी का चेक अप नहीं कर पा रहे थे। पार्थवी और करिश्मा को वहाँ आए काफी समय हो चुका था। वो दोनो मीटिंग एरिया में बैठकर अभी तक उनका इंतजार कर रही थी।
"ऐसे ही मुझे पहले से घबराहट हो रही थी कि मैं पहली बार इन से मिल रही हूं। ऊपर से ये है कि आ ही नही रहे।" पार्थवी को इंतजार करते हुए झुंझलाहट होने लगी।
"डोंट वरी... डॉक्टर आ जाएंगे। मैंने पहली बार तुम्हें हॉस्पिटल में इतना इरिटेट होते हुए देखा है। जब तक डॉक्टर नही आ जाते, हम ईशु से मिलने चले? करिश्मा ने पूछा।
"नहीं, उसे हमारा इस तरह जाना अच्छा नहीं लगेगा। हम चेकअप करवा कर सीधा घर जाएंगे। मै थक गयी हूँ।" पार्थवी करिश्मा से बात कर रही थी। उधर डॉ मित्तल फ्री हो चुके थे, तो उन्होंने किसी के द्वारा पार्थवी को अंदर बुलवाया।
अंदर पार्थवी का चेकअप चल रहा था, तो उधर डॉक्टर सिद्धार्थ को भी ग्रंथ के साथ बैठे हुए 1 घंटे से भी ज्यादा का वक्त हो गया था। ग्रंथ की लग्न देखकर उन्हें पता भी नहीं चला कि कब समय बीत गया।
"वैसे मै किसी को बोलता तो नही हूँ। लेकिन फिर भी थैंक यू सो मच डॉक्टर! आपने मुझे सिलेबस के वो खास हिस्से पढ़ाएं, जो अभी तक शुरू भी नहीं हुए है। क्या मै कल फिर आ सकता हूँ?" ग्रंथ ने पूछा।
"हां तुम आ सकते हो लेकिन ये मेरे ऊपर डिपेंड करता है कि मैं फ्री रहूंगा या नहीं....! अच्छा अब तुम जा सकते हो। और हाँ... ये नोट्स ले जाओ। काम आयेंगे।" सिद्धार्थ ने जवाब दिया।
डॉ सिद्धार्थ के कहने पर ग्रंथ नोटस लेकर वहाँ से जाने लगा। सिद्धार्थ ने सामने लगी घडी में टाइम देखते हुए सोचा, "अब तक तो रश्मि पार्थवी को लेकर घर पहुंच भी चुकी होगी। मै भी बेफिक्र होकर अपनी क्लास ले लेता हूं। उसके बाद ही डॉक्टर मित्तल से पूछूंगा कि पार्थवी के केस में कितनी उम्मीद बची है।"
डॉक्टर सिद्धार्थ अपनी क्लास की तरफ बढे, तो वहीं ग्रंथ की कोई क्लास नहीं होने की वजह से वो बाहर अपनी गाड़ी में बैठकर म्यूजिक सुन रहा था।
दूसरी तरफ चेकअप पूरा होने के बाद करिश्मा पार्थवी को लेकर वापस घर जाने लगी। दोनों पार्किंग एरिया की ओर चलते हुए बातें कर रही थी।
"हॉस्पिटल और कॉलेज दोनों का पार्किंग एरिया एक ही है। यहां एनी टाइम कितनी भीड़ लगी रहती होगी ना पार्थवी।" करिश्मा चलते हुए बोली।
"हां वो तो रहती ही होगी। कुछ आवारा स्टूडेंट्स की, तो कुछ पढ़ने वालों की। वैसे कल तुम कहां गायब थी करिश्मा?" पार्थवी ने पूछा।
करिश्मा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "अच्छा तो मैडम के सवाल-जवाब शुरू हो गए। थैंक गॉड सुबह मुझे रश्मि आंटी नहीं मिली थी, वरना अभी जो गुस्सा फोन पर निकला था... वो आमने- सामने निकलता। यार कल एक जॉब के सिलसिले में किसी आदमी के साथ कैफे में मीटिंग के लिए गई थी। शायद रश्मि आंटी ने मुझे कैफे के बाहर देख लिया होगा... क्योंकि वो कैफे उनके कॉलेज के सामने ही था।"
"हां तभी मम्मा घर आ गई थी और तुमसे थोड़ा गुस्सा भी थी। प्लीज तुम उनकी बातों का बुरा मत मानना।" पार्थवी बोली।
"पागल है क्या? मैं उनकी बातों का बुरा क्यों मानूंगी? उनकी तो डांट मे भी प्यार छुपा होता है। सुन ना पार्थवी... ईशान्वी के पास चलें क्या?" करिश्मा एक्साइटेड होकर बोली। वो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, तो उसे भीड़ और कॉलेज काफी अट्रैक्ट कर रहे थे।
"नहीं करिश्मा! सोचना भी मत। चलो अब वापस घर चलते हैं। वैसे भी मुझे बहुत अजीब फील हो रहा है यहां पर...." पार्थवी ने बेचैनी से कहा।
करिश्मा और पार्थवी कार के पास पहुंची, तो करिश्मा को याद आया कि वो अपना बैग अंदर ही भूल चुकी थी। जिसके अंदर कार की चाबियां भी थी।
"हे भगवान! मै इतनी केयरलेस कैसे हो सकती हूँ। परी वो गलती से मैंने अपना बैग अंदर ही छोड़ दिया। तू यहीं रुक.... मैं बस अभी 5 मिनट में आई।" करिश्मा हड़बड़ाकर बोली।
"ओके, लेकिन जल्दी आना।" पार्थवी ने कहा और वही गाड़ी के पास रुककर उसके आने का इंतजार करने लगी।
करिश्मा दौड़कर अंदर की तरफ गई तो वही पार्थवी कार के पास खड़ी होकर उसके आने का इंतजार कर रही थी।
उनकी कार के सामने थोड़ी ही दूरी पर ग्रंथ अपनी गाड़ी में बैठकर म्यूजिक सुन रहा था। उसकी नजर पार्थवी पर नहीं पड़ी थी, लेकिन उस तरफ आती ईशान्वी ने पार्थवी और ग्रंथ को आमने- सामने देख लिया था। वो जल्दी से दौड़कर पार्थवी के पास गई।
"दीदु तुम यहां क्या कर रही हो? और वो भी अकेले....? तुम जल्दी से गाड़ी में बैठो।" बोलते हुए ईशान्वी पार्थवी का हाथ पकड़कर उसे गाड़ी की तरफ खींचने लगी।
पार्थवी ने घबराकर कहा, "क्या कर रही है ईशु? हाथ छोड़ मेरा। मैं यहां करिश्मा के साथ चेकअप के लिए आई थी। वो कार की चाबी अंदर ही भूल गई थी। इसी वजह से मैं यहां खड़ी हूं। अच्छा बता ना... तेरा वो हीरो कहां है? मुझे भी उसे देखना है।"
ईशान्वी को ये डर सताया जा रहा था कि कही ग्रंथ की नजर पार्थवी पर ना पड़ जाए। वो नही चाहती थी कि ग्रंथ को पता चले कि उसका पार्थवी या डॉक्टर सिद्धार्थ से कोई भी रिश्ता है।
"ओह रीयली दीदू! तुम्हे ग्रंथ को देखना है? लेकिन कैसे ....! दिदु तुम क्यों भूल जाती हैं कि तुम देख नहीं सकती।" गुस्से और झुंझलाहट में ईशान्वी ने ग्रंथ की कार की तरफ देखकर कहा।
पीछे से करिश्मा वहां पर आ चुकी थी। ईशान्वी की बात सुनकर तो उसे बहुत गुस्सा आया। वही पार्थवी तो जैसे वही पर सुन्न हो गई थी। उसकी आंखों से आंसू का कतरा बह गया था।
"हां ये तो नहीं देख सकती, लेकिन तुम्हारे पास तो आंखें हो कर भी तुम्हें चीजें दिखाई नही देती। साइड हो जाओ वरना गुस्से में मैं कुछ ऐसा वैसा बोल दूँगी।" करिश्मा ने ईशान्वी को धकेलते हुए दूर किया और पार्थवी को गाड़ी में बिठा कर वहां से चली गई।
ग्रंथ गाड़ी में बैठा था कि तभी उसकी नजर ईशान्वी और पार्थवी पर पड़ी। वो जल्दी से गाड़ी से निकलकर बाहर भी आया लेकिन तब तक पार्थवी वहां से जा चुकी थी।
"ओएमजी.... मतलब ये लड़की मुझे पार्थवी तक पहुंचा सकती है।" ईशान्वी को पार्थवी के साथ देख ग्रंथ की आंखों में एक अलग ही चमक आ गई थी। उसे कुछ भी करके पार्थवी तक पहुंचना था।
पार्थवी और करिश्मा हॉस्पिटल से जा चुकी थी। पार्थवी के वहाँ से ईशान्वी ने चैन की सांस ली। उनके जाने के बाद ईशान्वी वहाँ से जाने के लिए मूड़ी, तो उसने देखा कि ग्रंथ दौड़ते हुए उसी की तरफ बढ़ रहा था।
"आई थिंक ये अपने कल रात के बिहेवियर के लिए सॉरी बोलने आ रहा है। ओएमजी! मै ठीक तो लग रही हूं ना....?" ईशान्वी ने जल्दी-जल्दी में अपने बाल सही किए।
"व....वो लड़....की कौन थी? " ग्रंथ भाग कर आने की वजह से हांफ रहा था।
"कौन लड़की?" ईशान्वी ने हैरानी से पूछा।
"वही लड़की, जिससे थोड़ी देर पहले तुम बात कर रही थी। क्या नाम है उसका... हां पार्थवी। पार्थवी वापिस गई क्या?" ग्रंथ ने जल्दी से पूछा।
ग्रंथ के मुंह से पार्थवी का नाम सुनकर ईशान्वी हक्की बक्की रह गई। उसने हैरान होकर पूछा, "और तुम पार्थवी को कैसे जानते हो?"
ग्रंथ ने सिर हिलाकर कहा, " मेरा छोड़ो... पहले मैंने पूछा था। इसलिए पहले तुम मेरे सवाल का जवाब दो। तुम पार्थवी को कैसे जानती हो?"
अचानक से ग्रंथ ने पार्थवी के बारे में पूछा, तो ईशान्वी थोड़ा हड़बड़ा गई। वो उसे जवाब देने के बजाय अपनी ही उलझनों में खोई हुई थी।
"ग्रंथ पार्थवी को कैसे जानता है? हम लोग तो अभी 4 साल पहले ही चंडीगढ़ में शिफ्ट हुए थे। और जहां तक मुझे पता है स्कूल टाइम मे दीदू का कोई भी ग्रंथ नाम का फ्रेंड नहीं था।" ईशान्वी ने मन ही मन कहा।
"अरे तुम कहां खो गई? अगर जानती हो, तो जल्दी बताओ। वरना मेरा टाइम वेस्ट मत करो।" ईशान्वी के जवाब ना देने की वजह से ग्रंथ थोड़ा इरिटेट हो गया।
ग्रंथ के बोलने से ईशान्वी का ध्यान टूटा।
"वो प...." जैसे ही ईशान्वी ने ग्रंथ की बात का जवाब देने के लिए मुंह खोला, तो उसकी नजर सामने खड़े डॉक्टर सिंह पर पड़ी। वो काफी देर से उन्हीं की तरफ देख रहे थे।
"ओएमजी! एक तो ये डैड के दोस्त बिल्कुल सीसीटीवी की तरह एनी टाइम नजर रखते हैं। अगर मैंने ग्रंथ से पार्थवी के बारे मे कोई बात की और उन्होंने डैड को जाकर बता दिया.... तो घर जाकर फिर से लेक्चर सुनने को मिलेंगे। वैसे भी ग्रंथ जो जानना चाहता है, अभी मै उसका जवाब नहीं दे सकती। अभी तो कैसे भी करके इन दोनों से ही पीछा छुड़ाना पड़ेगा।" ईशान्वी ने सोचा।
"देखो तुम्हें बताना है तो बताओ। ऐसे चुप रह कर मुझे इरिटेट मत करो। मुझे कम बोलने वाले लोग बिल्कुल नहीं पसंद....!" ग्रंथ ने हल्के गुस्से में कहा।
"मेरी क्लास का टाइम हो रहा है।" ईशान्वी ग्रंथ को टालकर वहां से निकल गई।
उसके इस तरह इग्नोर करने से ग्रंथ को बहुत गुस्सा आया।
"हाउ डेयर शी? पहले तो खुद मेरे पीछे-पीछे आ रही थी और अब जब मैं कुछ पूछ रहा हूं, तो बिना जवाब दिए यहां से भाग गई। अब सामने आने दो। इसे तो मैं अच्छे से मजा चखाऊंगा। सारा मूड खराब कर दिया।" ग्रंथ ने गुस्से में पास खड़ी गाड़ी पर जोर से पंच किया।
वहीं दूसरी तरफ करिश्मा पार्थवी को लेकर घर पहुंच चुकी थी। पूरे रास्ते पार्थवी ने एक शब्द भी नही बोला। उसे बार-बार ईशान्वी की कही हुई बातें याद आ रही थी। करिश्मा उसे अच्छे से समझती थी। अंदर ही अंदर उसे भी बहुत दुख हो रहा था वो अच्छे से जानती थी कि अगर उसने पार्थवी से इसके बारे में बात की, तो वो और दुखी हो जाएगी। ये सोचकर वो भी चुपचाप गाड़ी चला रही थी।
"पार्थवी घर आ गया...." करिश्मा ने गाड़ी रोकी, तो पार्थवी का ध्यान टूटा। पार्थवी बिना कुछ बोले करिश्मा का हाथ पकड़ कर उसके साथ अंदर गई।
"कब तक यूं ही अंदर ही अंदर अकेले घुटती रहेगी? ईशु को समझना होगा। माना कि जिस वक्त तेरा एक्सीडेंट हुआ था, तब वो सिर्फ 16 साल की थी। लेकिन अब वो बड़ी हो गयी है। थोड़ा तो मैच्योरलि बिहेव करे।" करिश्मा ने गुस्से में कहा।
"मुझे अब किसी से कोई उम्मीद नहीं है करिश्मा कि कोई मुझे समझेगा। और ना ही मुझ में इतनी हिम्मत कि मैं सबको समझा सकूं। एक हादसे ने मेरी जिंदगी में इस कदर अंधेरा कर दिया कि अब तो कोई प्यार से बात भी करता है, तो ऐसे लगता है कि शायद उन्हें मुझ पर तरस आ रहा होगा कि मैं देख नहीं सकती। प्लीज मुझे थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ दो।" कहकर पार्थवी अपने कमरे की ओर चल दी।
वैसे तो पार्थवी देख नहीं सकती थी, लेकिन वो अपने घर के हर एक कोने से अच्छी तरह से वाकिफ थी। उसे घर मे कहीं भी जाने के लिए किसी की भी जरूरत नहीं पड़ती थी।
वो अपने घर वालों को भी उनके कदमों की आहट से ही पहचान लेती थी।
पार्थवी अपने कमरे में जाकर बेड पर लेट गई। उसे ईशान्वी के व्यवहार से बहुत दुख हो रहा था और साथ ही अपने ना देख पाने की वजह से लाचारगी भी....! उसके मन-मस्तिष्क में उस हादसे की यादें एक मूवी की सीन की तरह चलने लगी।
लगभग 2 साल पहले....
रात के लगभग दस बज रहे थे। पार्थवी अपने दोस्तो के साथ बाहर घूमने गयी थी। वो लोग होटल के बाहर निकले ही थे कि तभी पार्थवी के पास सिद्धार्थ जी का कॉल आया।
"हेलो पार्थवी बेटा! तुम्हें घर आने में और कितना टाइम लगेगा?" सिद्धार्थ ने पूछा।
"बस पापा हम लोग अभी यहाँ से निकल ही रहे थे। क्या हुआ घर पर सब ठीक तो है ना? जैनुअनली आप मुझे बुलाने के लिए कॉल करते नहीं है। लेकिन आज ऐसे कॉल...." पार्थवी अपने दोस्तों से दूर जाकर बात करने लगी।
" हां सब ठीक है बेटा... लेकिन बात ही ऐसी थी कि कॉल किए बिना रहा नहीं गया। सच मे कभी-कभी अपनी एक्साइटमेंट कंट्रोल करना बहुत मुश्किल होता है।" सिद्धार्थ जी की आवाज से ही उनकी खुशी साफ झलक रही थी।
उन्हें खुश देखकर पार्थवी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
"अच्छा ऐसा क्या हो गया पापा, जो आपसे आपकी खुशी कंट्रोल नहीं हो रही?" पार्थवी ने पूछा।
"वो मैं तुम्हें अभी नहीं बताऊंगा। इसके लिए तुम्हें घर आना पड़ेगा। अब जल्दी बताओ कि घर वापिस कब आ रही हो?" सिद्धांत बोले।
"बस एक घण्टे मे पहुँच जाऊंगी पापा। प्लीज बता दीजिए ना कि आप इतने खुश क्यों है? आपको पता है ना जब तक आप मुझे नही बताओगे.... तब तक मेरे पेट में दर्द होता रहेगा। तो प्लीज प्लीज प्लीज प्लीज...." पार्थवी सिद्धार्थ से उनकी खुशी का राज जानने की जिद करने लगी। वो बार-बार प्लीज कॉल कर उनसे रिक्वेस्ट करने लगी।
"अच्छा ठीक है। अब मै बता ही रहा हूं, तो आते वक्त एक केक लेकर आना। आई एम सो हैप्पी फॉर यू पार्थवी.... बेटा रियली.. आई एम प्राउड ऑफ यू। अभी-अभी तुम्हारा मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट का रिजल्ट आया है और तुमने वो क्लियर कर लिया है। और वो भी अच्छे मार्क्स से....। अब मेरी तरह मेरी बेटी भी डॉक्टर बनेगी।" सिद्धार्थ ने खुश होकर बताया
जैसे ही सिद्धार्थ जी ने पार्थवी के पास होने का बताया, तो वो वहीं रोड पर खुशी के मारे डांस करने लगी।
"येएएए...! ओके पापा मैं अभी आ रही हूं। अब तो सोच रही हूं काश मेरे पास पंख होते, तो मैं आपके पास उड़कर चली आती।" पार्थवी बोली।
अपनी खुशी और एक्साइटमेंट में पार्थवी चलते हुए कब रोड के बीच आ गई, उसे पता भी नहीं चला। उसने जैसे ही सिद्धार्थ जी से बात करके कॉल कट किया, तो उसके आंखों के सामने किसी गाड़ी की फ्लैशलाइट पड़ी। आंखों में अचानक से रोशनी आने की वजह से उसकी आंखें चौंधियाँ गई और इससे पहले कि वो कुछ समझ पाती, सामने आ रही गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी।
पार्थवी उस कार से लगी टक्कर से संभल पाती उससे पहले ही दूसरी तरफ से आ रही गाड़ी का बैलेंस बिगड़ने की वजह से वो पार्थवी से जा टकराई। अचानक से 2 गाड़ियों के भिड़ने और पार्थवी के बुरी तरह जख्मी होने कि वजह से आसपास के लोग वहां पर इकट्ठा हो गए। पार्थवी की दोस्तों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो इस सिचुएशन से कैसे डील करे। वो सभी बुरी तरह घबरा गयी। उन्होंने जैसे- तैसे करके लोगों की सहायता से उसे हॉस्पिटल पहुंचाया।
जहां थोड़ी देर पहले डॉक्टर सिद्धार्थ पार्थवी के मेडिकल कॉलेज में सिलेक्शन की खुशियां मना रहे थे। लगभग 1 घंटे बाद वो हॉस्पिटल में बेतहाशा हालत में दौड़ते हुए आ रहे थे। रश्मि भी उन्हीं के साथ थी, जबकि ईशान्वी को वो घर पर पड़ोसियों की देख रेख मे छोड़ कर आए थे।
"परी.... परी! मुझे तुम्हें फोन करना ही नहीं चाहिए था। आज मेरी वजह से तुम इस हालत में पहुंच गई।" सिद्धार्थ जी रोते हुए पार्थवी की फ्रेंड के पास पहुंचे।
"अंकल सब कुछ इतना अचानक से हुआ कि किसी को संभलने का मौका ही नहीं मिला। आप फिक्र मत कीजिए पार्थवी जल्दी ही ठीक हो जाएगी। अंदर डॉक्टर इसका इलाज कर रहे हैं।" पार्थवी की एक दोस्त ने उदास स्वर मे कहा।
अंदर ऑपरेशन थिएटर में डॉक्टर पार्थवी का इलाज कर रही थी। जबकि बाहर सिद्धार्थ और रश्मि उनके बाहर आने का इंतजार कर रहे थे... ताकि वो पार्थवी के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके।
लगभग 3- 4 घंटे के बाद पार्थवी का ऑपरेशन करने के बाद डॉक्टर बाहर आए। उन्हें बाहर आते देख डॉक्टर सिद्धार्थ और रश्मि जल्दी से उनके पास गए।
"डॉक्टर व....वो मेरी बेटी है। वो ठ....ठीक तो है ना? होश आ गया ना उसे?" सिद्धार्थ ने परेशान स्वर में कहा।
"हम अभी कुछ नहीं कह सकते। बहुत मेजर एक्सीडेंट हुआ था। दो गाड़ियों ने एक के बाद टक्कर मारी है। कुछ भी हो सकता है। अभी भी ब्लीडिंग रुक नहीं रही है। बच्ची की जान बच जाए, वही काफी होगा।" डॉक्टर ने धीमी आवाज में कहा।
डॉक्टर की बात सुनकर रश्मि वही गिर गई। सिद्धार्थ उसे चाह कर भी नहीं संभाल पा रहे थे क्योंकि उनकी खुद की हालत ठीक नहीं थी।
डॉक्टर उन्हें पार्थवी से मिलने नहीं दे रहे थे। लगभग 2 दिन तक उसे होश नहीं आया था। तब तक वो दोनों वही हॉस्पिटल में उसी हालत में रहे। जब पार्थवी को होश आया, तो डॉक्टर ने बताया कि उसकी आंखों की रोशनी जा चुकी है। धीरे धीरे शरीर पर लगे घाव तो ठीक हो गए, लेकिन ना देख पाने की वजह से पार्थवी के मन पर लगे जख्म अभी भी ठीक नहीं हो पा रहे थे।
ना देख पाने की वजह से मानो उसकी जिंदगी वही रुक गयी हो। ना तो वो कहीं बाहर जा सकती थी और ना ही अपनी पढ़ाई कंटिन्यू कर सकती थी। बहुत बार सिद्धार्थ ने उसे ब्रेल सिखाने की क्लासेस भेजने की जिद की.... लेकिन पार्थवी अभी भी अपने साथ हुए हादसे को भुला नहीं पा रही थी। इस वजह से वो कभी भी आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं हो पाई। उसकी जिंदगी 2 साल पीछे ही रुक गई थी। एक हादसे ने सबकी जिंदगी बदल के रख दी। जहां सिद्धार्थ और रश्मि का सारा ध्यान पार्थवी की तरफ बंट गया, तो इन हालातों मे ईशान्वी अपने मम्मी- पापा और बहन से दूर होने लगी थी।
कमरे में बैठी पार्थवी उन सब बातों को याद करके आंसू बहा रही थी।
"क्या इसमें भी मेरी गलती है कि मैं देख नहीं सकती हूं? फिर क्यों ईशु बार- बार मुझे मेरी इस कमी का एहसास दिलाती रहती है। अगर मेरा उस दिन एक्सीडेंट नहीं हुआ होता, तो शायद आज मैं उसी मेडिकल मेडिकल कॉलेज में थर्ड ईयर स्टूडेंट होती। सही कहते हैं डैड....! मुझे अपनी इस कमी को अपनी ताकत बनाना चाहिए। मैं कल ही उनको बोलती हूं कि मुझे ब्रेल सीखने जाना है। सीखने की कभी कोई उम्र नहीं होती। जरूरत होती है तो बस एक इंसान की सच्ची लगन और जज्बे की...." दो सालों मे पहली बार पार्थवी ने अपनी ना देख पाने की कमी को बुलाकर आगे बढ़ने की सोची थी।
उधर ईशान्वी का क्लास में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था। वो क्लास में हो कर भी उसका ध्यान ग्रंथ और पार्थवी में लगा था। सामने प्रोफेसर पढ़ा रहे थे। जबकि वो कुछ और ही सोच रही थी।
"मुझे दीदू से इस तरह बात बिल्कुल नहीं करनी चाहिए थी। पता नहीं क्यों मैं हमेशा इंपल्सिव बिहेव करती हूं और सामने वाले का दिल दुखा देती हूं। मेरे लिए ग्रंथ से ज्यादा इंपॉर्टेंट दीदू है। ग्रंथ उन्हें कैसे जानता है? मुझे इस बारे में उनसे घर पहुंच कर बात करनी होगी। लेकिन वो मुझसे बात करेगी क्या? जाने अनजाने में मैंने आज फिर उन्हें हर्ट कर दिया।" ईशान्वी ने मन में कहा।
ईशान्वी को अपने ख्यालों में गुम देखकर रितिका ने सोचा, "पता नहीं इस लड़की का क्या होगा, जो उस ग्रंथ खुराना के पीछे दीवानी बनी घूम रही है। जबकि ये उस के बारे मे अच्छे से जानती है कि वो कैसा इंसान है।"
क्लास खत्म होते ही ईशान्वी और रितिका क्लास के बाहर आ गई। जबकि ग्रंथ उनकी क्लास के बाहर खड़े होकर ईशान्वी के बाहर आने का वेट कर रहा था।
"मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया था ना तुमने... और मुझे इग्नोर करके भाग गयी ना वहाँ से...! अब मैं तुम्हें बताऊंगा कि ग्रंथ खुराना क्या चीज है। मुझ से पीछा छुड़ा कर दिखाओ.... फिर मान जाऊंगा तुम्हारे एटीट्यूड को।" ग्रंथ ने जिद भरे लहज़े में कहा।
जैसे ही ईशान्वी की क्लास खत्म हुई, वो रितिका के साथ जल्दी से बाहर आ गई। बाहर आते उन दोनों ने देखा कि उनकी क्लास के सामने ग्रंथ खड़ा था और उसकी शक्ल से उसका गुस्सा साफ नजर आ रहा था।
"क्या हुआ बेबी डॉल! तुम तो शादी से लेकर बच्चों तक की प्लानिंग कर रही थी और इधर इसकी शक्ल कुछ और ही बता रही है। " रितिका ने ईशान्वी से पूछा।
ईशान्वी ने उसे जवाब देते हुए कहा, "सुबह मैने ग्रंथ की बातों का जवाब नहीं दिया था, शायद उस वजह से वो मुझसे गुस्सा है। मुझे उसे इस तरह इग्नोर नहीं करना चाहिए था। रीत! ग्रंथ बहुत सेल्फ ओब्बेसेड है और उसे इग्नोर होना बिल्कुल पसंद नहीं है। मुझे उससे बात करके उसकी नाराजगी दूर करनी होगी, तुम जाओ। मैं बाद में आ जाऊंगी।"
रितिका ने ईशान्वी की तरफ घूरकर देखा और कहा, "सिर्फ मै ही नही.... तुम भी मेरे साथ चल रही हो। इसका एटीट्यूड देखकर तो मैं तुम्हें यही एडवाइज दूंगी कि एक बार फिर से अपने इस हीरो को इग्नोर मार और निकल यहां से। इस के हाव भाव से साफ नजर आ रहा है कि इसके दिमाग में कुछ अच्छा नहीं चल रहा। देख, कैसे घूर-घूर कर देखे जा रहा है।"
ईशान्वी फिर से ग्रंथ को इग्नोर नहीं करना चाहती थी। लेकिन उसे रितिका की बात भी सही लगी। वो ग्रंथ के सवालों का जवाब बिल्कुल नहीं दे सकती थी। इसलिए उसने उसे इग्नोर करना ही सही समझा। वो रितिका का हाथ पकड़ कर वहां से जाने लगी कि तभी ग्रंथ ने उन दोनों के सामने आकर उनका रास्ता काटा।
ग्रंथ ने भौहें सिकुड़कर कहा, "आ....आं! ग्रंथ खुराना को इग्नोर? लाइफ सीरियसली....! गर्ल्स तुम दोनों अपने आप को समझती क्या हो? दी सेकंड वन.... तुम जो भी हो, मैं तुम्हें नहीं जानता और ना ही मेरा तुमसे कोई लेना-देना है।” फिर ईशान्वी की तरफ इशारा करते हुए कहा, “मुझे सिर्फ इससे प्रॉब्लम है। तो तुम चाहो तो अपना बोरिया -बिस्तर उठा कर यहां से भाग सकती हो। एंड ट्रस्ट मी इसी में तुम्हारी भलाई है।" ग्रंथ की बातों से उसका गुस्सा और एटीट्यूड झलक रहा था।
ईशान्वी ने रितिका को वहां से जाने का इशारा किया। पहले तो उसने मना किया, लेकिन ईशान्वी के कहने पर उसे वहां से जाना पड़ा।
ईशान्वी ने मन में सोचा, "अगर डैड ने मुझे इसके साथ यहां देख लिया तो दोनों के लिए ही प्रॉब्लम हो सकती है। इसे भी पता चल जाएगा कि मैं डॉक्टर सिद्धार्थ की बेटी हूं, तो वही डैड ग्रंथ को बिल्कुल पसन्द नही करते। अगर ग्रंथ को मेरे और डैड के रिश्ता पता चला तो ये तो मुझे बिल्कुल भाव नहीं देगा।"
"कहां गुम हो गई?" ग्रंथ ईशान्वी के सामने चुटकी बजाई, जिससे उसका ध्यान टूटा।
"कहीं नहीं! हम कहीं और चल कर बात करें प्लीज?” ईशान्वी ने धीमी आवाज में कहा।
"ओके....! वैसे भी मुझे तुम्हे कही लेकर ही जाना था। फॉलो मी।" कहकर ग्रंथ वहां से एक अनजाने रास्ते की तरफ बढ़ने लगा। ईशान्वी इधर-उधर देखते हुए उसके पीछे- पीछे चल रही थी।
उसे कोई अंदाजा नहीं था कि ग्रंथ उसे कहां लेकर जा रहा था।
कुछ दूर चलने के बाद ग्रंथ और ईशान्वी कैंपस के पिछले हिस्से में पुरानी लाइब्रेरी के सामने खड़े थे। वो लाइब्रेरी कम एक स्टोर रूम ज्यादा लग रहा था। जिसका उपयोग पुरानी किताबे या अनुपयोगी फाइल्स रखने के लिए किया जाता था।
ग्रंथ ने उस कमरे का ताला खोला और ईशान्वी के साथ अंदर गया। अंदर बहुत सी किताबें और अन्य सामान रखा हुआ था। उस कमरे को देखकर लग रहा था कि वहां सालों से सफाई नहीं हुई होगी। ईशान्वी ऐसी जगह पर ग्रंथ के साथ खुद को अकेला पाकर थोड़ा घबरा गई।
"डर लग रहा है? लगना भी चाहिए। ये जगह कैंपस से बहुत दूर है। अगर कोई तुम्हें यहां से मारकर चला भी जाए तो, तुम्हारी आवाज बाहर नहीं जाएगी।" ग्रंथ ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा। वो जानबूझकर उसे डरा रहा था।
ग्रंथ की बात सुनकर ईशान्वी की घबराहट और बढ़ गई। वो ग्रंथ से कुछ कदम पीछे हटी। उसकी घबराहट देखकर ग्रंथ जोर- जोर से हंसने लगा।
"ओह हेलो! अपने दिमाग के घोड़ो को ज्यादा मत दौड़ाओ। ग्रंथ खुराना कभी किसी से जबरदस्ती नहीं करता। और एक मर्डरर, वो तो बिल्कुल नहीं हो सकता। अब तुम ये सोच रही होगी कि मैं तुम्हें यहां क्यों लेकर आया हूं। एक्चुअली मुझे यहां से कुछ बुक्स चाहिए थी, जो डॉक्टर सिद्धार्थ ने बताई थी। लेकिन देखो ना यहाँ कितनी गंदगी है। और मुझे अकेले आने में डर भी लग रहा था। मैं अपने फ्रेंड से कहता, तो पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचते? यू नो कूल ड्यूड वाली पर्सनैलिटी? मुझे वैसे कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई मेरे बारे में कुछ भी सोचे। लेकिन मैं अभी उनसे थोड़ा नाराज हूं, इसलिए उन्हें लेकर नहीं आ सकता था। क्या तुम मेरी हेल्प करोगी?” ग्रन्थ ने सामान्य लहज़े में कहा।
ग्रंथ की बात सुनकर ईशान्वी को थोड़ी राहत महसूस हुई। धूल मिट्टी के कारण ग्रंथ को छींके आने लगी थी और जिस वजह से उसका चेहरा लाल हो गया था। उस वक्त वो बिलकुल किसी मासूम बच्चे की तरह लग रहा था।
"ओके आई विल हेल्प यू! अच्छा बताओ तुम्हे कौन कौन सी बुक्स चाहिए?" ईशान्वी बोली।
ग्रंथ ईशान्वी को एक लिस्ट पकड़ा कर कहा, "मैं तुमसे अच्छे से बात कर रहा हूं। इसका मतलब ये नही है कि सुबह तुमने जो किया, उसके लिए मैं तुम्हें माफ कर दूंगा। तुम्हें मुझे बताना होगा कि तुम पार्थवी को कैसे जानती हो?"
ईशान्वी किताबों के ढेर में लिस्ट में लिखी किताबें ढूंढने की कोशिश कर रही थी। उसने अपने मुंह पर हाथ लगाते हुए कहा, "आप किसकी बात कर रहे हैं, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। मैं किसी पार्थवी को नहीं जानती।"
“तुम पार्थवी को नही जानती, तो फिर मेरे किसी काम की नही हो। मैं जा रहा हूँ यहाँ से.... एंड वन मोर थिंग कल तक मुझे इस लिस्ट में लिखी कम से कम चार किताबे तो मिल ही जानी चाहिए।" अपनी बात कह कर ग्रंथ वहां से जाने लगा।
उसके जाने के बाद ईशान्वी ने किताबें ढूंढने बंद कर दी।
इस लिस्ट में लिखी किताबे तो आराम से मेरे घर पर मिल जाएगी। लेकिन मैं इसे भी तो नहीं बता सकती थी। वरना ये सौ सवाल पूछता। थैंक गॉड! इसे मेरी बात पर विश्वास हो गया। अब घर जाकर दीदू से माफी मांग कर उससे भी पूछूंगी कि वो ग्रंथ को कैसे जानती है।" ईशान्वी ने राहत की सांस ली।
ग्रंथ के जाने के कुछ देर बाद ईशान्वी भी वहां से निकल आई। तो वही कॉलेज खत्म होने के बाद ग्रंथ अपने घर की तरफ चल दिया।
ग्रंथ फार्महाउस पहुंचा, तो उसका बड़ा भाई श्रेयांश वहाँ मौजूद नहीं था। उसने अपना बैग वहीं लिविंग रूम में पटका और ऊपर अपने कमरे की और बढ गया।
ग्रंथ का कमरा उसका बेडरूम कम और एक म्यूजिक रूम ज्यादा लग रहा था। उसके कमरे में चारों तरफ अलग-अलग तरह के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट रखे हुए थे। कमरे के एक कोने में कपड़ों की अलमारी के बजाय किताबों की अलमारी बनाई हुई थी। उस कमरे में उसके मम्मी -पापा या किसी और की कोई भी तस्वीर लगी हुई नहीं थी। इससे साफ समझ आ रहा था कि वो अपनी पुरानी यादों को फिर से नहीं जीना चाहता था।
ग्रंथ ने कमरे मे आते ही अलमारी के उपर से एक बोर्ड उतारा, जिस पर अक्सर वो अपने नोट्स बनाया करता था। आज वो उन पर नोटस बनाने के बजाय कुछ और ही लिख रहा था।
ग्रंथ के चेहरे पर हल्की सुकून भरी मुस्कुराहट थी। उसने लिखा, "मैं पहले भी और लड़कियों से मिल चुका हूँ। लेकिन किसी ने मुझे इस तरह डिस्ट्रैक्ट कभी नही किया। अकॉर्डिंग टू साइंस ऑपोजिट अट्रैक्ट्स....! तुम मुझसे बिल्कुल अलग हो इसलिए हम यहां पर साइंस का रुल अपनाते हुए चलते हैं। और शायद इसी वजह से मैं तुम्हारे तरफ खींचा चला जा रहा हूं। मुझे तुम्हारे नाम के अलावा और कुछ नहीं पता पार्थवी। नाम से याद आया.... क्यों ना मैं तुम्हें सोशल मीडिया पर ढूँढू।
ग्रंथ ने जल्दी से अपना लैपटॉप निकाला और उस पर सभी सोशल नेटवर्किंग साइट पर पार्थवी को ढूंढना शुरू कर दिया। कई देर मशक्कत करने के बाद भी उसे किसी भी साइट पर पार्थवी नहीं मिली, तो उसने गुस्से में लैपटॉप को बंद करते हुए कहा, "क्या तुम सच में एक्जिस्ट भी करती हो या सिर्फ मेरे ख्यालों में ही हो? ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी में कोई सोशल मीडिया यूज ना करें, ये तो थोड़ा इंपॉसिबल सा साउंड करता है। फिर कौन हो तुम पार्थवी ? एक सच....या महज मेरी कल्पना।"
ग्रंथ लैपटॉप बंद करके फिर से बोर्ड पर कुछ लिखने लगा।
दूसरी तरफ पार्थवी ने ब्रेल क्लासेस जॉइन करने का निर्णय लिया था, जिसे वो शाम को सिद्धार्थ जी को बताने वाली थी। ईशान्वी और रश्मि भी घर आ चुकी थी। ईशान्वी के आते ही करिश्मा उसे गुस्से से देख रही थी, जबकि उसे देखकर ईशान्वी ने अपनी नीचे नीचे कर ली। रश्मि घर आते ही हमेशा की तरह अपने कामों में व्यस्त हो गई। उसका इस तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं गया कि उसके आने के बाद एक बार भी पार्थवी कमरे से बाहर नहीं आई थी। उन दोनों के आने के बाद करिश्मा वहां से जा चुकी थी।
रात को खाने के समय सिद्धार्थ, रश्मि, ईशान्वी और पार्थवी डाइनिंग टेबल पर चुपचाप बैठकर खाना खा रहे थे। सिद्धार्थ हमेशा के मुकाबले आज थोड़ा एक्साइटेड नजर आ रहे थे, तो वही ईशान्वी और पार्थवी दोनों ही एक दूसरे से बात नहीं कर रही थी।
डाइनिंग टेबल पर मौजूद चुप्पी तोड़ने के लिए सिद्धार्थ ने कहा, "वैसे आज मेरे पास आप लोगों के लिए एक गुड न्यूज़ है। लेकिन लग नहीं रहा कि कोई कुछ बोलेगा।"
उनकी बात सुनकर पार्थवी ने जवाब दिया, "नहीं पापा! ऐसी कोई बात नहीं है। मुझे भी आपसे कुछ जरूरी बात करनी थी। क्या खाना खाने के बाद हम लोग अकेले में बात करें।"
"हां क्यों नहीं बेटा! लेकिन मैं जो गुड न्यूज़ बताने वाला हूं, वो मै अकेले में नहीं, सबके सामने बताऊंगा।" सिद्धार्थ ने एक्साइटेड होकर कहा।
पार्थवी की बात सुनकर ईशान्वी थोड़ा घबरा गई। पार्थवी सिद्धार्थ जी से अकेले में क्या बात करना चाहती थी? उसे लेकर उसके मन में कई सवाल चल रहे थे।
ईशान्वी अपने नाखून चबा रही थी। उसने मन ही मन कहा, "कहीं पार्थवी पापा को कॉलेज में हुई उस बहस के बारे में तो नहीं बताना चाहती। लेकिन मैंने जानबूझकर नहीं कहा था। मेरे मुंह से निकल गया था। अब क्या दीदू छोटी-छोटी बातों को लेकर कंप्लेंट करेंगी? पापा तो सच में गुस्सा हो जाएंगे। ऊपर से उस ग्रंथ ने भी किताबों की लंबी चौड़ी लिस्ट पकड़ा दी। मुझे पापा से छुपकर वो बुक्स यहां से ले जाकर उसे देनी होगी। ओ माय गॉड! सारी मुसीबतें मेरे ही सिर आनी है क्या?"
ईशान्वी जहां अपने ख्यालों में खोई थी, वही अब सिद्धार्थ की बात का इंतजार कर रही थी।
रश्मि ने सिर हिलाकर कहा, “सिद्धार्थ आपकी सस्पेंस क्रिएट करने की आदत अभी गई नहीं ना। प्लीज जल्दी बताइए ना आप कौन सी गुड न्यूज़ देना चाहते हैं। लेकिन मेरे पेट में तो बटरफ्लाइज उड़ना शुरू हो गई।"
रश्मि की बात सुनकर सिद्धार्थ ने मुस्कुराते हुए कहा, "हां मेरी गुड न्यूज़ है ही ऐसी कि सस्पेंस क्रिएट करना तो बनता है। पता है आज डॉक्टर मित्तल ने पार्थवी के चेकअप के बाद क्या कहा? तुम बिलिव नहीं करोगी रश्मि! उनकी बातों से मुझे कितनी उम्मीद मिली है। उन्होंने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति पार्थवी को अपनी आईज डोनेट करें, तो उसके बाद वो फिर से देख सकती है।"
सिद्धार्थ की बात सुनकर वो तीनों चौक गई।
रश्मि ने हैरानी से पूछा "लेकिन सिद्धार्थ हम पार्थवी का चेकअप पहले भी कई जगह करवा चुके हैं। और सब जगह पर उन्होंने साफ मना कर दिया था। एक्सीडेंट के बाद पार्थवी की कुछ वेन्स डैमेज हो चुकी है। उसके बाद चाहकर भी पार्थवी की आइज ट्रांसप्लांट सर्जरी सक्सेसफुल नहीं हो पाएगी। फिर अब कैसे?”
सिद्धार्थ ने पार्थवी की तरफ देखा और कहा, “अभी इसे ऊपर वाले की मेहरबानी समझो या मेडिकल साइंस की तरक्की! उन्होंने आईज ट्रांसप्लांट सर्जरी से पहले एक छोटी सी सर्जरी का और बताया है। अगर वो सर्जरी सक्सेसफुल हो गई और किसी ने हमारी पार्थवी को अपनी आँखें दान की, तो वो फिर से देख पाएगी। लेकिन उस सर्जरी से पहले थोड़े दिन ट्रीटमेंट और चलेगा। लगभग 2 महीने तक... उसके लिए हर 2 दिन बाद पार्थवी को हॉस्पिटल आना होगा।
सिद्धार्थ के बात सुनकर पार्थवी को बहुत खुशी मिली। तो वही ईशान्वी पार्थवी के हर 2 दिन बाद रोज हॉस्पिटल आने की बात सुनकर परेशान हो गई। वो जानती थी, अगर पार्थवी रोज हॉस्पिटल आई, तो कभी ना कभी उसका ग्रंथ से सामना हो ही जाएगा।
"मैं ग्रन्थ को कब तक दीदू से दूर रखूंगी। कभी ना कभी तो बो इन्हे कैंपस में देख ही लेगा।" ईशान्वी ने सोचा।
सिद्धार्थ की खुशी तो संभाले नहीं संभल रही थी। मानो पार्थवी को डॉक्टर बनते देखने का उनका जो सपना अधूरा रह गया था। वो अब जल्द ही पूरा हो सकता है। उन्होंने पार्थवी को दिलासा देते हुए कहा, " देखना पार्थवी! अगले साल ईशु की तरह तुम भी उसके साथ उसी मेडिकल कॉलेज में जाओगी।"
उनकी बात सुनकर ईशान्वी को झटका सा लगा। ऐसा नहीं था, वो नहीं चाहती थी कि पार्थवी फिर से देखने लगे, पर आज उसे पार्थवी के फिर से आंखों की रोशनी आने की बात सुनकर खुशी नहीं हुई, उल्टा वो बैचेन हो गई थी।
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डॉक्टर मित्तल द्वारा पार्थवी के केस में कुछ उम्मीद होने की बात सुनकर पार्थवी का दिल हजारों सपने बुनने लगा। उसकी कल्पनाओं को तो जैसे पंख लग गए हो... मानो कल ही उसकी आंखों की रोशनी वापस आ जाएगी और फिर से वो अपने सामान्य जिंदगी में लौट पाएगी।
उसके चेहरे की खुशी देखकर सिद्धार्थ और रश्मि को बहुत अच्छा लगा। ईशान्वी भी खुश थी। लेकिन कहीं ना कहीं उसके दिल में ये भी डर था कि अगर डॉक्टर सिद्धार्थ ने पार्थवी का भी एडमिशन उसी कॉलेज में करवा दिया, तो ग्रंथ उसका ना होकर पार्थवी का हो जाएगा।
डॉक्टर सिद्धार्थ ने पार्थवी का हाथ सहलाते हुए कहा, "अच्छा बताओ परी बेटा! तुम क्या कहना चाहती थी? देखो बेटा जो बताना है, यही बता दो। हम सब तुम्हारे अपने ही तो हैं। हॉस्पिटल में कुछ हुआ था क्या, जो इतना परेशान लग रही हो?"
डॉक्टर सिद्धार्थ के पूछने पर पार्थवी ने जवाब दिया, "नहीं पापा! कुछ नहीं हुआ था। अब सब ठीक है।"
पार्थवी का जवाब सुनकर ईशान्वी ने चैन की सांस ली।
ईशान्वी ने अपनी तरफ से नॉर्मल दिखने की कोशिश की। वो जल्दी से बोली, "देखना दीदू, जब आपके आंखों की रोशनी वापस आ जाएगी तब हम दोनों मिलकर डैड का सपना जरूर पूरा करेंगे।"
"हां शायद फिर तुम्हें अपने दोस्तों को मुझ से मिलवाने में शर्म भी महसूस नहीं होगी।" पार्थवी ने तंज कसा।
सिद्धार्थ और रश्मि अपनी बातों में लगे थे। उनका ध्यान पार्थवी की बात पर नहीं गया। लेकिन ईशान्वी समझ चुकी थी कि पार्थवी अभी तक उससे नाराज है।
"कमरे में चल कर बात करें दीदू। प्लीज...." ईशान्वी धीरे से बोलीं
पार्थवी देख नहीं सकती थी, पर ईशान्वी के चेहरे पर क्या भाव हो सकते है, वो ये बिना देखे उसकी आवाज में छुपी घबराहट से समझ सकती थी।
"डोंट वरी ईशु! मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी। मैं तुम्हारी तरह नहीं हूं, जो तमाशा करने का एक भी मौका ना छोड़े। और हां, मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी। तुम्हें अपना बॉयफ्रेंड मुबारक हो। मुझे तुम दोनों से कोई लेना- देना नहीं है।" पार्थवी ने रुखे लहजे में कहा।
उसकी बात सुनकर ईशान्वी ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप खाना खाने लगी। लेकिन अंदर ही अंदर पार्थवी की नाराजगी उसे चोट पहुंचा रही थी।
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रात के बारह बज रहे थे। श्रेयांश काम से अपने घर पर आया, तो उसने ग्रंथ की कार घर के बाहर खड़ी देखी।
"लगता है ग्रंथ घर आया हुआ है। एक बार बता देता, तो मैं भी जल्दी घर आ जाता। ये लड़का भी ना.... पता नहीं कब बड़ा होगा।" कहकर श्रेयांश घर के अंदर गया तो उसने देखा कि ग्रंथ के कमरे की लाइट जल रही थी।
"ओह तो साहबजादे अभी तक जाग रहे हैं। मम्मा-पापा आप तो चले गए, लेकिन ग्रंथ अभी मैं आपके जाने को गम को भुला नहीं पाया है। एक तो ये लड़का मुझे कुछ बताता भी तो नहीं है।" खुद से बातें करते हुए श्रेयांश ग्रंथ के कमरे की तरफ बढ़ा।
कमरे के अंदर ग्रंथ बोर्ड पर अभी भी कुछ लिख रहा था। वो उसमें इतना व्यस्त था कि उसे पता भी नहीं चला कि श्रेयांश उसके पीछे खड़ा था।
"नाम.... पार्थवी। सरनेम पता नहीं। रंग गोरा....हाइट 5 फुट 5 इंच। जब पहली बार देखा था, तो व्हाइट सूट पर रेड दुपट्टा लगाया था। बाल बिल्कुल सीधे.... मानो हवा में संगीत की तरह लहरा रहे हो। उसकी डार्क ब्राउन आइज.... और गुस्से में मुझे यूँ देखना। ये प्यार है या सिर्फ एक अट्रैक्शन। तुम हकीकत हो या मेरी कल्पना.... बस एक बार आकर मुझे छु देना...मै उस पल में सौ जन्म जी लूंगा।" ग्रंथ ने बोर्ड पर जो भी लिखा था, श्रेयांश उसे जोर- जोर से पढ़ रहा था।
श्रेयांश की आवाज सुनकर ग्रंथ का ध्यान टूटा और वो शरमाते हुए अपने बालो में हाथ फ़िराने लगा।
उसे ऐसे शरमाते देख श्रेयांश ने धीरे से उसका नाक पकड़कर कहा, "ओह तो हमारे जिद्दी लड़के को प्यार हो गया है। वैसे तुम्हारी चॉइस काफी अच्छी और डिफरेंट है इस बार.... एट लिस्ट उन लड़कियों से तो 100 गुना अच्छी है,जो हमारे क्लब में नशे में धुत होकर पड़ी रहती है।"
श्रेयांश की बात सुनकर ग्रंथ ने मुंह बनाकर कहा, "कम ऑन बड़े भैया! अब आप लड़कियों को जज कर रहे हैं। सारी गलती आपकी है। आपको क्लब्स बनवाने ही नहीं चाहिए थे। फिर ना तो कोई ड्रिंक करता और ना ही वहां पड़ा रहता। वैसे मै आपका इशारा समझ गया, कि आप किसकी बात कर रहे हो।"
"हां हां सारी गलती मेरी ही है, जो मैने तुझे इतनी छूट दे रखी है। तेरी वजह से मै उस लड़की को कुछ नही कहता। लेकिन समझा देना उसे... अगली बार अपने स्टाफ के साथ मै उसकी बदतमिजियां बर्दास्त नही करूँगा। चल छोड़ उसे.... और ये बता कि आज के दिन में क्या-क्या किया।" श्रेयांश ने ग्रंथ को अपने साथ बेड पर बैठाकर पूछा।
"बस भी कीजिए भाई! जैसे मैं कुछ जानता ही नहीं। दिन के 24 घंटे मै आप की निगरानी में रहता हूं। आपके वो सो कॉल्ड बॉडीगार्ड्स एनीटाइम मुझ पर नजर रखते हैं.. जैसे मैं कोई 2 साल का बच्चा हूं। भाई मैं अब बड़ा हो गया हूं और मुझे इस बेबीसिटिंग की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है।" ग्रंथ ने आईज रोल करके कहा।
श्रेयांश ने उसे घूरते हुए कहा, "ग्रंथ ये बेबीसिटिंग नही... मेरी तुम्हारे लिए फिक्र है। मॉम डैड के जाने...."
श्रेयांश ने अपनी बात खत्म भी नहीं थी कि उससे पहले ग्रंथ ने अपने दोनों कान बंद करते हुए कहा, "आप जानते हो ना मैं उन दोनों के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता। आप बार-बार उन्हीं की बातें क्यों करते हो? बस यही वजह है कि मैं यहां नहीं आना चाहता। अगर आप चाहते हो कि मैं आपके साथ रहूं, तो प्लीज उनकी बातें मत किया करो।"
बोलते हुए ग्रंथ का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और आंखें में पानी छलकने लगा। श्रेयांश ने उसके आगे कुछ कहना जरूरी नहीं समझा। उसकी भी आंखें भीग चुकी थी।
श्रेयांश की आंखों में पानी देखकर ग्रंथ ने उसे कसकर गले लगा कर कहा, "मुझे पता है कि आपको बुरा लगता है, जब मैं उन लोगों की बात नहीं करना चाहता। लेकिन आप को भी समझना होगा कि मेरे लिए चीजें कितनी मुश्किल होती है। भाई मैं उन्हें भुलाना चाहता हूं। लेकिन हर वक़्त उनका चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है। अगर सब कुछ भुला कर सोना भी चाहूं, तो मेरे सपनों में भी बस उन्हीं का चेहरा आता है।"
श्रेयांश ने ग्रंथ का ध्यान भटकाने के लिए बात बदलते हुए कहा, "छोटे! अब तू सरासर झूठ बोल रहा है। आजकल तेरी आंखों में किसी और का ही चेहरा घूम रहा है। चल बता मुझे.... कौन है ये पार्थवी?"
पार्थवी का नाम सुनकर ग्रंथ किसी बच्चे की तरह सब कुछ भूलकर मुस्कुराने लगा।
"भाई मैं खुद नहीं जानता कि वो कौन है। मैं उससे 2 दिन पहले हॉस्पिटल मे मिला था, जब वो गलती से मुझ से टकरा गई थी। पता है भाई....वो सबसे अलग है। उसने हिमांशी की तरह छोटे कपड़े नहीं पहने थे। लेकिन फिर भी मेरा ध्यान उसी पर था उसने मुझे एक शब्द नहीं कहा.... लेकिन जैसे मेरे कान उसकी आवाज सुनने को बेकरार हो रहे हो। उसका मुझे उस तरह गुस्से में देखना, जैसे वो मुझे डांटना चाहती हो। लेकिन कुछ कह नहीं पाई हो। वो दिखने में बहुत मासूम लगती है। उसका नाम पार्थवी है.... भाई वो मेरी पार्थवी....।" श्रेयांश उसकी बाते सुनकर हँसने लगा, तो ग्रंथ बीच मे ही रुक गया।
"अच्छा तो जिस लड़की को तुम ठीक से जानते भी नही, वो तुम्हारी हो गई। पहले उसके बारे में अच्छी तरह पता लगाओ। बात- वात करो। उसका दिल जीतो। और हाँ....उसे ग्रंथ से मिलवाना.... ना कि ग्रंथ खुराना से, जो सबके सामने एटीट्यूड किंग बना घूमता है।" श्रेयांश ने उसे प्यार से समझाया। दुनिया चाहे ग्रन्थ के बारे में जो भी सोचे, उसका दिल कितना सीधा था, ये श्रेयांश अच्छे से जानती थी।
"भाई उसके सामने एटीट्यूड दिखाना तो दूर की बात है। मै कुछ बोलना भी चाहूं, तो जुबान साथ नहीं देती। मैंने अभी उसे सिर्फ दो ही बार देखा है। लेकिन मेरे दिल की धड़कन.... मानो बेकाबू होकर बस उसी का साथ चाहती हो। भाई वो बिल्कुल संगीत की तरह है, जिसे मैं हर पल एक सुर में पिरोना चाहता हूं।" ग्रंथ बोला।
ग्रंथ की बातें सुनकर श्रेयांश ने मुस्कुराते हुए कहा, "अब तो भाई हमें भी पार्थवी से मिलना ही पड़ेगा....जिसने हमारे कूल ड्यूड को गालिब बना कर छोड़ दिया है।"
ग्रंथ अक्सर श्रेयांश से ज्यादा बातें नहीं करता था। लेकिन आज दोनों भाई बैठकर बस पार्थवी की ही बातें किए जा रहे थे। श्रेयांश को ग्रंथ के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता था और पार्थवी आज उन दोनों भाइयों को जोड़ने की वजह बन रही थी।
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अगले दिन ....
सुबह कॉलेज जाने से पहले ईशान्वी ने वो लिस्ट निकाली, जो ग्रंथ ने उसे दी थी। वो चुपके से सिद्धार्थ जी की लाइब्रेरी में गई, जहां मेडिकल साइंस से जुड़ी हुई काफी सारी किताबें मौजूद थी। उस ने चारों तरफ देखा, तो वहां कोई नहीं था। उसने जल्दी-जल्दी लिस्ट में लिखी किताबें ढूंढने शुरू कर दी।
"ईशु....! तू पापा की लाइब्रेरी में क्या कर रही हो? तुम्हें तो ये जगह बिल्कुल भी पसंद नहीं है।" पार्थवी बोली
पार्थवी की बात सुनकर ईशान्वी के हाथों से कुछ किताबें नीचे गिर गई। वो उसकी तरफ मुड़ी और बोली, "दीदू वो कल प्रोफेसर ने कुछ अच्छी किताबें रेकमेंड की थी। बस उन्ही को यहाँ ढूंढ रही थी।"
पार्थवी ने हैरानी से कहा,"लेकिन इसमें छुपाने जैसा कुछ नहीं था। तुम पापा की भी हेल्प ले सकती थी? आर यू श्योर् कि तुम कुछ गलत नहीं कर रही?"
ईशान्वी ने ग्रंथ की लिस्ट में से 5-6 किताबों को ढूंढ लिया था।वो उन्हें अपने बैग में रखते हुए बोली, "मुझे लेट हो रही है दीदू। मम्मा जा चुकी है क्या?"
"हां मम्मा भी जा चुकी है और पापा भी। थोड़ी देर में करिश्मा भी आती होगी। मुझे भी उसके साथ हॉस्पिटल ही जाना है। तुम ऑटो करके चली जाओ।" पार्थवी ने कहा।
ईशान्वी ने कुछ पल रुककर पूछा, "दीदू क्या मैं भी आप दोनों के साथ कॉलेज जा सकती हूं? प्लीज अब मना मत कीजिएगा। आप अच्छे से जानती है मैंने कैंपस में जो भी कहा वो इंटेंशनली नहीं बोला था। आई एम सॉरी फॉर दैट।"
"नहीं, फिर भी तुम ऑटो करके ही चली जाओ। बाकी कल तुमने जो भी कहा, वो मेरे लिए नहीं नया नहीं था। वैसे भी तुम्हारी आदत हो गई है, मुझे हर्ट करने की.... तो ऐसा समझ लो कि मुझे भी ये सब सहने की आदत हो चुकी है। शायद मुझे भी बार-बार तेरे पास नहीं आना चाहिए। मुझे भी समझना होगा कि तेरी भी अपनी लाइफ है, जहां मैं बेवजह एक बोझ की तरह तुम्हारे ऊपर आ रही हूं।" पार्थवी ने मायूसी से कहा। आंखों की रोशनी जाने के बाद से उसका बर्ताव काफी रुखा हो गया था।
अपनी बात कह कर पार्थवी वहां से जाने लगी, तो ईशान्वी दौड़ कर गई और उसे गले से लगा लिया।
"दीदू रूड होने का काम मेरा है.... आपका नहीं। आप अपनी वही स्वीट वाली बाते करो ना प्लीज। इसके बाद मै का ऐसी बेवकूफी करूं, तो कस कर गाल पर चांटा लगाइएगा। लेकिन प्लीज कभी ये मत कहना आप हम पर बोझ हैं।" ईशान्वी बोली।
पार्थवी अच्छे से जानती थी कि ईशान्वी भले ही गुस्से में कुछ भी बोल देती होगी। लेकिन उसके दिल में पार्थवी के लिए कुछ भी बुरा नहीं था। ऐसे में उसने भी हमेशा की तरह उसके बातों को अवॉइड करना जरूरी समझा।
"ओके! लेकिन इस बार ये तुम्हारी लास्ट मिस्टेक होगी। आगे से सोच समझ कर बात करना और कुछ भी ऐसा मत करना जिसकी वजह से मुझे हर्ट हो। क्योंकि उसके बाद एक ही गलती के लिए बार-बार मैं तुम्हें माफ नहीं कर पाऊंगी।" पार्थवी बोली।
"थैंक यू सो मच दीदू.... एंड आई प्रॉमिस कि मैं आपको कभी हर्ट नहीं करूंगी। अगर करूं भी, तो उसी वक्त दो चांटे लगा दीजिएगा। आई प्रोमिस मैं आपको कुछ नहीं कहूंगी।" ईशान्वी तुरंत खुश हो गई थी।
पार्थवी ने हंसते हुए कहा, "बस अब रहने भी दे। अगर मैंने सबके सामने तुझे चांटा लगाया, तो तू पूरी दुनिया के सामने तमाशा खड़ा कर देगी।"
"मै बस कह रही हूँ। आप सच में मुझे चांटा लगा मत देना। अरे मेरी भी तो थोड़ी बहुत रेस्पेक्ट है। प्लीज अब तो मुझे अपने साथ ले चलो।" ईशान्वी हंसकर बोली।
"अच्छा ठीक है। चलते हैं। करिश्मा को तो आने दे।" पार्थवी ने जवाब दिया।
पार्थवी का मूड अभी भी अपसेट लग रहा था। ईशान्वी ने कुछ पल सोचा, और पार्थवी का हाथ पकड़कर उसे खींचते हुए बोली, "चलिए आज मैं आपको रेडी करती हूं। अब प्लीज़ मना मत कीजिएगा।"
ईशान्वी जबरदस्ती पार्थवी को अपने कमरे में ले गई और उसके लिए एक अच्छा सा ड्रेस निकाला। करिश्मा के अंदर से पहले वो दोनों तैयार हो चुकी थी। करिश्मा को पहले ही रश्मि ने इन्फॉर्म कर दिया था कि उसे पार्थवी को हॉस्पिटल लेकर जाना था। आते ही उसने गाड़ी निकाली और हॉर्न बजाया, तो पार्थवी और ईशान्वी बाहर की तरफ आई।
पार्थवी को देखकर करिश्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, "ओहो आज तो हमारी बटरफ्लाई ने काफी कलरफुल ड्रेस पहनी है। तुम दोनों को साथ देख कर लग रहा है कि दोनों में सुलह हो गई। वैसे ड्रेस काफी अच्छा है।"
"थैंक यू सो मच....! कहते हुए ईशान्वी और पार्थवी दोनों गाड़ी में बैठ गई। पार्थवी ने पिंक कलर का फ्लोरल फ्रॉक पहना था, जो उसके घुटनों तक आ रहा था।
थोड़ी ही देर में वो तीनों हॉस्पिटल पहुंच चुकी थी।
"करिश्मा तुम्हारी वजह से मुझे लेट हो गई। अब तक तो मेरी क्लासेस शुरू भी हो चुकी होगी। प्लीज थोड़ा जल्दी ड्राइव करो।" ईशान्वी ने कहा।
उसके कहते ही करिश्मा ने गाड़ी तेजी से चलानी शुरू कर दी।
"अच्छा हुआ जो हम लेट हो गए। अब तक तो क्लास शुरु हो चुकी होगी और ग्रंथ भी अपनी क्लास में जा चुका होगा। अब वो मुझे और दीदू को साथ नहीं देख पाएगा। थैंक गॉड दीदू ने भी मुझे माफ कर दिया। वरना मैंने तो हद ही कर दी थी। आगे से मुझे ध्यान रखना होगा। उन्होंने मुझे वॉर्निंग दी है कि आगे से वो मेरी बदतमीजी बिल्कुल नहीं सहन करेगी।" ईशान्वी अपने ख्यालों में खोई थी कि तभी कॉलेज आ गया।
करिश्मा ने पार्थवी को गाड़ी से बाहर निकाला। पार्थवी के निकलते ही ईशान्वी ने उसे गले लगा कर कहा, "ऑल द बेस्ट दीदू! सब अच्छा ही होगा।"
ईशान्वी उन्हें बाय बोलकर वहां से अपनी क्लास की तरफ चली गई। वही ग्रंथ ने उन दोनों को एक कार से निकलकर गले मिलता देख लिया था।
"मुझे पहले ही लगा था कि तुम मुझे झूठ बोल रही हो। तुम पार्थवी को जानती हो और मैं उस तक पहुंच कर रहूंगा। पार्थवी तुम मेरा जिद या जुनून नहीं इश्क़ बन गई हो.... और मुझे हमारे इश्क की एक मुक्कमल दास्तान लिखनी है।" ग्रंथ ने उनकी तरफ देखते हुए कहा, उसे ईशान्वी पर शक था, तो वो उस पर नजर रख रहा था।
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