प्रिया... एक चुलबुली, आत्मविश्वासी, और खुले विचारों वाली लड़की, जिसने हमेशा जिंदगी को अपनी शर्तों पर जिया। प्रिया हंसते हुए अपनी दोस्त सलोनी के साथ बात कर रही है। उसके चेहरे पर मासूमियत और आत्मविश्वास दोनों झलकते हैं। अनिरुद्ध... एक शांत, जिम्मेदार,... प्रिया... एक चुलबुली, आत्मविश्वासी, और खुले विचारों वाली लड़की, जिसने हमेशा जिंदगी को अपनी शर्तों पर जिया। प्रिया हंसते हुए अपनी दोस्त सलोनी के साथ बात कर रही है। उसके चेहरे पर मासूमियत और आत्मविश्वास दोनों झलकते हैं। अनिरुद्ध... एक शांत, जिम्मेदार, और परिवार के प्रति समर्पित युवक। अनिरुद्ध शादी की तैयारी में व्यस्त है, लेकिन उसकी आंखें अचानक प्रिया पर टिक जाती हैं। दोनों की पहली नजर एक-दूसरे से मिलती है, जैसे वक्त ठहर सा जाता है। "कभी-कभी किसी अजनबी से यूं टकराना, दिल की धड़कनें बढ़ा देता है।" "धीरे-धीरे, वो एक-दूसरे के करीब आने लगे। हर रसम के साथ उनका रिश्ता और गहरा होता गया।" दोनों एक-दूसरे के लिए अपनी फीलिंग्स को समझने की कोशिश करते हैं। अनिरुद्ध की बहन, सलोनी, जो प्रिया और अनिरुद्ध को देखती है। उसके चेहरे पर चिंता और गुस्सा साफ नजर आता है। "लेकिन जहां प्यार होता है, वहां मुश्किलें भी होती हैं। और इस बार मुश्किल थी, अनिरुद्ध की अपनी बहन।" सलोनी अनिरुद्ध को समझाते हुए कहती है,"ये रिश्ता गलत है, प्रिया तुमसे प्यार नहीं करती है। और हमारे घर में मैं ऐसा नहीं हैं दूंगी कि कोई तुम्हारा फीलिंग्स के साथ खेले।" सलोनी कुछ तस्वीरें दिखाती है, जिनमें प्रिया और उसका मेल बेस्ट फ्रेंड है, और अनिरुद्ध को गलतफहमी हो जाती है। "अनिरुद्ध के दिल में शक और दूरियां बढ़ने लगीं।" अनिरुद्ध प्रिया से दूरी बनाता है, लेकिन उसका दिल दुखी है। प्रिया को समझ नहीं आता कि अचानक ऐसा क्यों हो रहा है। "क्या प्यार की ये कहानी अधूरी रह जाएगी? क्या सच्चाई कभी सामने आ पाएगी?" शादी का विदाई सीन, जहां प्रिया अपने दोस्तों को बिना बताए चली जाती है। अनिरुद्ध दुखी होकर खड़ा है, प्रिया की तलाश करता हुआ। तीन साल गुजरते हैं। प्रिया अब अलग शहर में रह रही है, सबसे दूर। "तीन साल बाद, एक शादी... एक मुलाकात... और कुछ अधूरे सवाल।" "क्या उनका मिलन कभी होगा? या यह कहानी सदा के लिए अधूरी रह जाएगी?" बस एक उम्मीद थी दोनों को की "फिर मिलेंगे, किसी मोड़ पर"। यह कहानी है उस प्यार की, जो वक्त और फासलों से भी बड़ा था.......
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कमरा आधा खुला था, हल्की धूप खिड़की से छनकर कमरे में फैल रही थी। बाहर हल्की बारिश हो रही थी, और उसकी बूंदें खिड़की पर थपथपा रही थीं। कमरे की दीवारों पर हल्के गुलाबी रंग की पेंटिंग और कुछ तस्वीरें टंगी हुई थीं। एक बड़ी लकड़ी की अलमारी एक तरफ रखी थी, जिसमें कई किताबें और सजावट का सामान था। एक किनारे पर बेज रंग का सूटकेस खुला पड़ा था, जिसमें कपड़े और सामान फैला हुआ था।
प्रिया, एक खूबसूरत और सादगी भरी लड़की, अपने बेड पर बैठी थी। उसकी आंखें बड़ी और गहरी थीं, जिनमें कुछ अनकहा दर्द छिपा हुआ था। उसने हल्का काले रंग का कुर्ता और सफेद पलाज़ो पहना हुआ था, जो उसकी सादगी को दर्शा रहा था। उसके खुले बाल, जो उसकी कमर तक आते थे, अब थोड़ा बेतरतीब ढंग से उसके कंधों पर बिखरे हुए थे। उसकी गोरी त्वचा और हल्की गुलाबी लिपस्टिक उसके व्यक्तित्व को और भी आकर्षक बना रही थी, लेकिन उसकी आंखों में छिपा अकेलापन साफ देखा जा सकता था।
प्रिया ने धीरे-धीरे अपनी अलमारी से कपड़े निकालने शुरू किए, और ध्यान से हर एक कपड़ा सूटकेस में रख रही थी। सामान पैक करते वक्त उसकी नजर एक पुरानी डायरी और कुछ तस्वीरों पर पड़ी, लेकिन उसने बिना सोचे उन्हें सूटकेस में डाल दिया। फिर, एक कोने से उसे एक पुराना एलबम दिखाई दिया, जिसका कवर हल्का फटा हुआ था और धूल से ढका हुआ था।
प्रिया ने एलबम को उठा लिया, उसकी धूल झाड़ी, और फिर धीरे-धीरे उसके पन्नों को पलटना शुरू किया। एलबम के पहले कुछ पन्नों पर उसकी सहेली की शादी की तस्वीरें थीं। वो मुस्कुराई, लेकिन उसकी मुस्कान में गहरी उदासी छिपी हुई थी। हर तस्वीर में उसकी सहेली बेहद खुश नजर आ रही थी, और प्रिया भी उसे देखकर कुछ पुरानी यादों में खो गई।
जैसे-जैसे प्रिया एलबम के पन्ने पलटती गई, उसकी नजर एक तस्वीर पर ठहर गई। इस तस्वीर में उसकी सबसे प्रिय सहेली अपने दुल्हन के जोड़े में थी, और उसके साथ खड़ा था एक लड़का। लड़का नीले रंग का शेरवानी पहने हुए था, चेहरे पर हल्की मुस्कान और आंखों में एक खास चमक थी।
इस तस्वीर को देखकर प्रिया का दिल धड़कने लगा। उसकी आंखों में अचानक आंसू आ गए, और उसने तस्वीर को ध्यान से देखा। उसके हाथ कांपने लगे, और उसकी आंखें उस लड़के पर जाकर रुक गईं। वो लड़का सिर्फ एक तस्वीर में कैद नहीं था, बल्कि प्रिया के दिल और दिमाग में भी बसा हुआ था।
प्रिया की आंखों से आंसू गिरते रहे, और उसकी धीमी आवाज कमरे की खामोशी को तोड़ने लगी। "तीन साल हो गए... लेकिन आज भी मैं तुमसे उतना ही प्यार करती हूं जितना तीन साल पहले करती थी," उसने बुदबुदाया, उसकी आवाज में गहरा दर्द था।
तस्वीर को देखकर उसका मन भारी हो गया, और वो एलबम को अपने सीने से लगाकर रोने लगी। उसकी आंखों से आंसू ऐसे बह रहे थे जैसे कोई टूटे हुए दिल की नदियां हों। उसकी सांसें तेज हो गईं, और उसके शब्द खुद-ब-खुद निकलने लगे, "तुम मेरे नसीब में नहीं हो सकते... कभी नही थे।"
कमरे में अब सन्नाटा छा गया था, सिवाय प्रिया की सिसकियों के। वो तस्वीर को देखती रही, मानो वो लड़का उसकी आंखों के सामने खड़ा हो। उसकी आंखों में आज भी वही प्यार दिख रहा था, लेकिन उस प्यार में अब बिछड़ने का दर्द भी शामिल था।
"क्यों?" उसने खुद से पूछा, "क्यों तुम्हारे बिना मुझे जीना पड़ रहा है?" उसकी आवाज अब सिर्फ सिसकियों में बदल गई थी, और वो अपने बिस्तर पर बैठकर सोचने लगी। उसकी आंखें लाल हो चुकी थीं, लेकिन वो तस्वीर से अपनी नजरें नहीं हटा पाई।
प्रिया ने एलबम को धीरे से बंद किया और बिस्तर के पास रख दिया। उसकी आंखें अभी भी आंसुओं से भरी हुई थीं, लेकिन वो अब भी उस लड़के की यादों में खोई हुई थी। उसकी सांसें थोड़ी शांत हो चुकी थीं, लेकिन दिल में उठ रहे तूफान की हलचल अब भी कायम थी। वो दीवार की ओर देखने लगी, जैसे उसे अपने अतीत की हर एक घटना फिर से याद आ रही हो।
उसने हल्की सी आवाज में खुद से कहा, "तुम्हें भूलना नामुमकिन है। हर दिन, हर पल तुम्हारी याद आती है। लेकिन तुम मेरे नसीब में नहीं हो... और शायद कभी थे ही नहीं।" उसकी आवाज अब धीमी हो चुकी थी, और उसकी आंखें बंद हो गईं।
प्रिया ने एक गहरी सांस ली और अपने आंसू पोंछे। वो उठकर खिड़की के पास चली गई, जहां से बारिश की बूंदें धीमी हो चुकी थीं। बाहर का मौसम उसकी दिल की हालत जैसा ही था — ठहरा हुआ, शांत लेकिन अंदर ही अंदर घुमड़ता हुआ।
"शायद अब वक्त आ गया है आगे बढ़ने का," उसने खुद से कहा, लेकिन उसकी आंखों में एक अनकही आशा भी थी। वो जानती थी कि आगे बढ़ना आसान नहीं होगा, खासकर जब दिल अब भी किसी और के प्यार में बसा हुआ हो।
प्रिया ने अलमारी का आखिरी दरवाजा बंद किया, उसके भीतर अब केवल वही सामान बचा था जो उसे यादों से जोड़ता था। उसके हाथों में बैग था और आँखों में बीते हुए सालों की छवियाँ। कमरे की दीवारों पर उसकी निगाहें टिक गईं, जैसे वे उसकी कहानी का हिस्सा हों। हर कोने से एक अलग याद जुड़ी थी।
"क्या मैं इस घर को छोड़ पाऊंगी?" उसने खुद से सवाल किया। ये वही घर था जहां उसने पिछले तीन सालों में खुद को समेटा था, दिल के ज़ख्मों को संभाला था।
फिर भी, उसने अपना सामान उठाया और एक गहरी सांस लेते हुए दरवाजे की ओर बढ़ी। दरवाजे से बाहर कदम रखते ही उसे एहसास हुआ कि ये सिर्फ घर छोड़ना नहीं था, बल्कि बीते हुए पलों से दूर जाने की भी शुरुआत थी।
टैक्सी के अंदर बैठते ही, उसने खिड़की से बाहर झाँका। दिल्ली की सड़कों पर भीड़-भाड़ थी, लेकिन उसकी आँखें जैसे उस भीड़ के पार कहीं और देख रही थीं। उसकी सोचें उसे वापस नेहा की शादी की तैयारी और वहां जाने की भावनाओं की ओर खींच रही थीं। वो बस यही सोच रही थी कि नेहा की शादी में सब लोग होंगे—नेहा, सलोनी, और अनिरुद्ध... अनिरुद्ध का नाम आते ही उसके दिल में एक टीस सी उठी।
उसकी और अनिरुद्ध की कहानी भी किसी अनकही दास्तान की तरह थी। एक ऐसी कहानी जो पूरी नहीं हुई थी, अधूरी रह गई थी। तीन साल से उसने उसे देखा नहीं था। अनिरुद्ध को लेकर उसके दिल में हज़ारों सवाल उमड़ने लगे। क्या अनिरुद्ध उसे याद करता होगा? क्या वो अब भी उसे महसूस करता होगा? या क्या उसके लिए वो बस बीते हुए कल की बात थी?
"क्या मैं उससे सामना कर पाऊंगी?" उसने खुद से बुदबुदाया। उसके दिल में एक घबराहट थी, जिसे उसने कहीं गहराई में दबाने की कोशिश की, लेकिन अनिरुद्ध का ख्याल उसे फिर उसी दिशा में खींच रहा था।
जैसे ही ट्रेन स्टेशन आया, प्रिया ने अपनी घड़ी देखी। ट्रेन आने में अभी वक़्त था। उसने अपने बैग को ज़मीन पर रखकर इधर-उधर देखा। हर तरफ भीड़ थी, लेकिन उसकी आँखों के सामने सिर्फ एक चेहरा उभर रहा था—अनिरुद्ध।
बैग से अपना पुराना नोटबुक निकालकर उसने उसके पन्ने पलटे। इस नोटबुक में उसने अपने दिल की हर बात लिखी थी। कुछ पन्नों पर अनिरुद्ध से जुड़ी पुरानी यादें थीं—उनके साथ बिताए लम्हों का ज़िक्र, अनकही बातें, अधूरी कसमें।
उसकी उंगलियाँ एक पन्ने पर आकर रुक गईं, जहां उसने लिखा था, "अनिरुद्ध, मैं तुमसे तब भी उतना ही प्यार करती हूँ, जितना तीन साल पहले करती थी।" उसकी आँखों में आँसू उमड़ आए। तीन साल का वक़्त बीत गया था, लेकिन उसकी भावनाएँ वैसी की वैसी थीं।
ट्रेन के हॉर्न की आवाज़ से उसकी सोचें टूट गईं। उसने अपना बैग उठाया और ट्रेन में चढ़ गई। सीट पर बैठते ही उसकी नज़रें खिड़की से बाहर चली गईं। ट्रेन धीरे-धीरे स्टेशन से बाहर निकलने लगी, और उसके साथ ही प्रिया की पुरानी यादें भी जैसे स्टेशन पर पीछे छूटने लगीं।
लेकिन क्या सच में वो उन यादों से दूर जा पाई थी? हर गुजरते स्टेशन के साथ, उसकी धड़कनें और तेज़ हो रही थीं। शादी में जाने की खुशी और अनिरुद्ध से मिलने का डर, दोनों भावनाएँ एक-दूसरे से टकरा रही थीं।
"मैंने क्या सही किया?" उसने खुद से सवाल किया। "क्या मुझे वहाँ जाना चाहिए? क्या मैं सच में अनिरुद्ध का सामना कर पाऊंगी?"
ट्रेन के हर मोड़ के साथ उसका दिल और भी भारी होता गया। वो जानती थी कि इस सफर में उसके लिए सिर्फ नेहा की शादी का जश्न नहीं था, बल्कि एक पुराने रिश्ते की अनकही बातें भी थीं, जो उसे फिर से वहीं खींच लाएंगी, जहां से वो कभी दूर नहीं जा पाई थी।
प्रिया ने अपनी आँखें बंद कीं और एक गहरी सांस ली। उसने तय किया था कि अब वो अपने दिल को मजबूत करेगी, और उन सभी सवालों का सामना करेगी, जो तीन साल से उसके दिल में दफन थे। ये सिर्फ नेहा की शादी नहीं थी, ये उसकी जिंदगी के उस हिस्से से भी एक मुलाकात थी, जिसे वो छोड़ चुकी थी, लेकिन भूल नहीं पाई थी।
"शायद इस बार मैं खुद को साबित कर पाऊंगी," उसने खुद से कहा। "शायद इस बार मैं उसे देख पाऊंगी, बिना कुछ महसूस किए।"
ट्रेन अपनी गति में आगे बढ़ रही थी, और प्रिया का दिल भी उस सफर के साथ एक नई दिशा में जाने को तैयार हो रहा था।
कहानी जारी है।।।
प्रिया की ट्रेन धीरे-धीरे जयपुर स्टेशन पर आकर रुकी। जैसे ही उसने खिड़की से बाहर देखा, स्टेशन की हलचल और शोर ने उसे अचानक अतीत की यादों में खींच लिया। ट्रेन से उतरते ही एक गहरी सांस लेकर उसने जयपुर की हवा को अपने अंदर समेट लिया। यह वही शहर था, जिसने कभी उसकी खुशियों और दर्द को अपने आंचल में समेटा था।
स्टेशन पर प्रिया की निगाहें चारों तरफ घूमने लगीं। हड़बड़ाती भीड़, खोखों पर चाय की आवाज़ें, ट्रेनों के हॉर्न की गूंज—सब कुछ वही था। लेकिन कुछ तो था जो बदला हुआ था। उसकी नज़रें अनजाने में उन रास्तों को खोज रही थीं, जहाँ कभी उसकी ज़िन्दगी के सबसे खूबसूरत और दर्दनाक लम्हे गुज़रे थे।
प्रिया ने अपना सामान अपने कंधे पर टिका लिया और धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म की सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगी। उसने अपनी घड़ी पर नज़र डाली, ट्रेन से उतरने का सही समय था, लेकिन उसका दिल कहीं और ही दौड़ रहा था।
तीन साल पहले इस शहर में उसने जो कुछ भी जिया था, वो अब उसकी आंखों के सामने से झांक रहा था।
तीन साल पहले की प्रिया और आज की प्रिया में जमीन-आसमान का फर्क था। पहले की प्रिया मासूम, चंचल और बेफिक्र थी, लेकिन अब वो एकदम शांत, गंभीर और खुद को संभालने वाली हो चुकी थी। वो हंसना तो जानती थी, पर अब उसकी हंसी में वो पहले वाली बेपरवाही नहीं थी। उसकी आंखों में पुरानी चोटों का दर्द छुपा था, जिसे उसने अपने दिल की गहराइयों में कहीं दफन कर दिया था।
“वो तीन साल पहले की शादी...,” उसने धीरे से खुद से कहा, “...ने मेरी पूरी ज़िन्दगी बदल दी।” उसकी आवाज़ में एक गहरी उदासी थी, जिसे शायद अब कोई समझ नहीं सकता था।
प्रिया के कदम स्टेशन के एक कोने की ओर बढ़ते गए, जहां उसे अपने साथ ही अपनी पुरानी यादें भी चलती महसूस हो रही थीं। उस दिन की वो शादी... सलोनी की शादी, जहां उसकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी चोट मिली थी। और अनिरुद्ध—उसकी सबसे प्यारी और दर्दनाक याद।
उसके कदम रुक गए। स्टेशन की ठंडी सीमेंट की बेंच पर बैठते हुए उसने अपना सिर दोनों हाथों में थाम लिया। उस दिन से लेकर आज तक उसने कितनी कोशिश की थी कि वो अपने ज़ख्मों को भर सके, लेकिन जयपुर की हवाओं में अब भी वही दर्द बिखरा हुआ था।
प्रिया ने अपनी आंखें बंद कीं और जयपुर की हवा को फिर से महसूस किया। ये हवा तीन साल पहले भी ऐसी ही थी, जब उसकी ज़िन्दगी सबसे हसीन और सबसे दर्दनाक मोड़ पर थी। लेकिन अब वो हवा सिर्फ उसे उसकी पुरानी गलतियों का एहसास दिलाने आ रही थी।
"क्या लोग भी वैसे ही होंगे, जैसे तीन साल पहले थे?" उसने खुद से सवाल किया। उसका दिल डर और सवालों से घिरा हुआ था। उसने अपने आस-पास देखा, यहां कुछ बदला नहीं था। लेकिन वो खुद पूरी तरह से बदल चुकी थी।
अब वो प्रिया नहीं थी जो अपनी भावनाओं को खुला छोड़ देती थी। अब उसने अपने दिल के दरवाज़े बंद कर लिए थे। उसने खुद को इस तरह से मजबूत बना लिया था कि उसे कोई भी अब आसानी से नहीं तोड़ सकता था।
प्रिया ने नेहा की शादी का निमंत्रण याद किया। वो शादी जहां उसे जाना था, वो शादी जिसके कारण उसे फिर से उन सभी लोगों का सामना करना पड़ेगा, जिनसे उसने पिछले तीन साल में दूरियां बना ली थीं। उसे उन लोगों के बीच जाना था, जो कभी उसके सबसे करीबी थे, लेकिन अब उनसे मिलना उसके लिए सबसे मुश्किल काम था।
वो बस के इंतज़ार में खड़ी थी, और सोच रही थी, "क्या मैं उन सभी लोगों से सामना कर पाऊंगी? क्या मैं खुद को संभाल पाऊंगी?"
तभी एक तेज़ हवा का झोंका आया, जिसने उसके बालों को बिखेर दिया। प्रिया ने अपनी आंखें बंद कर लीं और अपने बालों को पीछे किया। ये वही हवा थी जो उसे उसके पुराने दिनों की याद दिला रही थी। लेकिन अब उसने खुद से एक वादा किया था, कि इस बार वो जयपुर में कमजोर नहीं पड़ेगी। इस बार वो खुद को नहीं टूटने देगी।
प्रिया ने अपने कदम बढ़ाए और अपने अतीत को पीछे छोड़ने की कोशिश करते हुए अपनी नई शुरुआत की तरफ़ कदम बढ़ा दिए।
लेकिन उसके मन में अब भी सवाल थे। क्या जयपुर उसे इस बार फिर से चोट देगा, या वो इस बार अपने अतीत को पूरी तरह से पीछे छोड़कर आगे बढ़ पाएगी?
वो एक नई प्रिया बन चुकी थी, लेकिन जयपुर अब भी वही पुरानी यादें समेटे खड़ा था।
प्रिया ने स्टेशन से बाहर कदम रखा और एक टैक्सी पकड़ी। टैक्सी के भीतर बैठते ही उसे अंदर से कुछ अजीब सा महसूस हुआ, मानो उसका दिल कई सालों बाद फिर से अपनी जगह पर लौट रहा हो। जयपुर की सड़कों को देखते हुए, वो अतीत की गहराइयों में खोने लगी थी। शहर का हर कोना उसे याद दिला रहा था उन दिनों की, जब उसने यहाँ हर एक लम्हे को जिया था—कुछ खूबसूरत तो कुछ बेहद दर्दनाक।
जैसे ही टैक्सी एक मोड़ पर पहुंची, उसकी नज़र सलोनी के घर की ओर गई। वही पुरानी गली, वही रास्ते, जो कभी उसे अनगिनत खुशियों की ओर ले जाते थे। सलोनी, जो उसकी सबसे खास दोस्त थी, उसके मन में छिपी हर बात को जानती थी। उस घर को देखकर उसकी आंखों में अचानक से पुरानी यादें तैरने लगीं। वो उन दिनों को याद करने लगी, जब सब कुछ सहज था, और उसकी ज़िन्दगी में हर चीज़ का एक सही अर्थ हुआ करता था।
लेकिन अब, हालात बदल चुके थे। प्रिया ने एक गहरी सांस ली और अपने विचारों को झटक दिया। उसने खुद से कहा, "अब मुझे इन सब बातों में नहीं उलझना।" वो नेहा की शादी में शरीक होने आई थी, और यह समय था पुरानी यादों को पीछे छोड़ने का।
जब टैक्सी ने नेहा के घर के सामने जाकर ब्रेक लगाया, प्रिया की धड़कनें तेज हो गईं। नेहा की शादी का माहौल चारों तरफ था—घर के बाहर लाइटें लगी थीं, फूलों की सजावट, मेहमानों का आना-जाना, और अंदर से आती हंसी-मज़ाक की आवाज़ें।
जैसे ही प्रिया ने दरवाज़ा खटखटाया, एक लड़की ने दरवाज़ा खोला और प्रिया को देखकर हक्की-बक्की रह गई। "अरे प्रिया!" उसकी आवाज़ में हैरानी और खुशी दोनों झलक रही थीं।
अंदर से नेहा की आवाज़ आई, "कौन है?" और तभी उसकी नज़र प्रिया पर पड़ी। नेहा की आंखें एक पल के लिए चौड़ी हो गईं, और फिर वो खुशी के मारे दौड़ते हुए प्रिया के गले लग गई। "प्रिया! मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तू यहां है।" नेहा की आंखों में खुशी के आंसू थे। वो उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी, जो प्रिया के बिना पिछले तीन सालों में कई बार टूटी थी, लेकिन आज उसकी दोस्त उसके सामने थी, बिल्कुल असली।
घर के अंदर घुसते ही प्रिया को पुरानी यादों का सामना करना पड़ा। नेहा के साथ उसके बाकी दोस्त भी वहां थे—कृति, जो हमेशा से ही मज़ाकिया थी, और अक्षय, जो सबकी खिंचाई करने में सबसे आगे रहता था। निखिल और उसकी पत्नी साक्षी भी वहां थे, जो हाल ही में शादीशुदा थे, और उनके बीच अब भी वही क्यूटनेस थी जो कॉलेज के दिनों में थी।
प्रिया उन सभी से एक-एक कर मिलती रही। कृति ने उससे कहा, "अरे प्रिया, तू आज भी वैसी की वैसी है! पर तू कहां गायब हो गई थी यार? तीन साल से तेरा कोई अता-पता नहीं था।"
निखिल ने हल्का-सा हंसते हुए कहा, "हां, सच में। हम तो सोचने लगे थे कि तू कहीं विदेश चली गई है!"
प्रिया के चेहरे पर हंसी थी, लेकिन दिल के किसी कोने में सलोनी की कमी उसे लगातार चुभ रही थी। वो वहां नहीं थी। और अनिरुद्ध... उसकी गैरमौजूदगी प्रिया के दिल में हलचल मचा रही थी। वो जानती थी कि अनिरुद्ध का सामना करना शायद उसके लिए सबसे मुश्किल काम होगा, लेकिन वो इस वक्त बस अपनी पुरानी दोस्ती के पल जीने की कोशिश कर रही थी।
नेहा ने प्रिया की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोली, "हमें यकीन नहीं हो रहा कि तू सच में वापस आ गई है। तीन साल हो गए और ना सोशल मीडिया पर, ना व्हाट्सएप, ना फेसबुक, कुछ भी नहीं। सब कहां गायब हो गया था?"
प्रिया ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "मेरा मोबाइल टूट गया था। सारे अकाउंट्स एक्सेस नहीं कर पाई, इसलिए मैंने कुछ नया शुरू ही नहीं किया। बस, सब कुछ पीछे छूट गया।" उसकी आवाज़ में एक दर्द छुपा हुआ था, जिसे शायद नेहा ने महसूस किया, लेकिन उसने ज़्यादा कुछ नहीं पूछा।
अंदर शादी की तैयारियों का माहौल जोरों पर था। हर कोने में हलचल थी—डेकोरेशन वाले लोग सजावट कर रहे थे, नेहा की मां मिठाई बांटने में व्यस्त थीं, और रिश्तेदार इधर-उधर गप्पे मारते नजर आ रहे थे।
लेकिन प्रिया का ध्यान इन सब पर नहीं था। उसके मन में अब भी सलोनी और अनिरुद्ध का ख्याल था। वो दोनों कहां थे? क्या उन्हें पता था कि प्रिया यहाँ है? क्या उनसे मिलना होगा? या क्या अनिरुद्ध अब तक उसे भूला चुका होगा?
नेहा ने प्रिया को खींचते हुए एक कोने में ले जाकर कहा, "तीन साल तक तू कहां थी? तेरे बिना तो कुछ भी पूरा नहीं लगता था। ना ही तेरा कोई मैसेज, ना कॉल। अचानक से गायब हो गई थी। तुझसे बात किए बिना मेरी कितनी रातें कटी हैं, यार।"
प्रिया ने हल्के से सिर झुकाया और कहा, "नेहा, सच में उस वक्त मैं खुद को ही खो चुकी थी। फोन भी टूटा था, और फिर लाइफ भी बिखर गई थी। मैंने बस सोचा कि सब कुछ पीछे छोड़ दूं।"
नेहा ने प्रिया के चेहरे को ध्यान से देखा और कहा, "तू ठीक है ना? कुछ तो है जो तू मुझसे छिपा रही है।"
प्रिया ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "अब मैं ठीक हूं, नेहा। बस, वो पुरानी बातें भूल गई हूं।"
लेकिन अंदर ही अंदर प्रिया जानती थी कि ये इतना आसान नहीं होगा। अनिरुद्ध और सलोनी के बिना ये शादी अधूरी थी, और शायद उसका दिल अब भी उन अधूरे पलों को जीने के लिए तैयार नहीं था।
कहानी जारी है।।।।
प्रिया ने जैसे ही नेहा के घर के अंदर कदम रखा, वहाँ का माहौल उसे कुछ अलग सा महसूस हुआ। नेहा के घरवालों ने उसे गर्मजोशी से गले लगाया और खुशी से उसका स्वागत किया। सबके चेहरों पर खुशी झलक रही थी, मानो कोई बहुत पुराने सदस्य की वापसी हो रही हो।
नेहा की मां ने कहा, "प्रिया बेटा, कितने दिन बाद तुझे देख रहे हैं। तू बिल्कुल बदल गई है। पहले जैसी नहीं रही।"
प्रिया हल्के से मुस्कुराई और खुद को सामान्य बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन उसके मन में अब भी बहुत सारे सवाल चल रहे थे। उसने जल्दी से अपने चेहरे पर मुस्कान ला दी और अंदर चली गई। घर के अंदर हर कोने में शादी की तैयारियाँ जोरों पर थीं। हलचल थी, रिश्तेदारों की आवाजें, और नेहा के भाई-बहन इधर-उधर भाग रहे थे।
नेहा के कमरे में पहुंचकर दोनों दोस्त एक पल के लिए शांत बैठ गईं। नेहा ने उसे अपने पास बिठाया और उत्सुकता से पूछने लगी, "तू हम सबको सलोनी की शादी में अकेला छोड़कर कहाँ चली गई थी? बिना कुछ कहे-सुने, बिना एक अलविदा बोले।"
प्रिया जानती थी कि यह सवाल उससे पूछे ही जाएंगे। उसने एक सांस ली और झूठ बोलने के लिए खुद को तैयार किया। "मुझे कुछ अर्जेंट काम आ गया था, इसलिए बताने का समय ही नहीं मिला," प्रिया ने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ कहा। "रास्ते में मेरा फोन भी टूट गया और तुम्हारे नंबर मुझे याद नहीं थे।"
नेहा उसे ध्यान से देख रही थी। उसके चेहरे पर हल्की सी संदेह की झलक थी, पर उसने फिलहाल कुछ नहीं कहा। उसने सिर्फ एक लंबी सांस ली और बोली, "हमने तुझे कितना ढूंढा, तेरे घर भी गए, लेकिन तू वहाँ भी नहीं थी। घर भी खाली कर दिया था तूने। अचानक सब कुछ छोड़कर चली गई थी, क्यों?"
प्रिया का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने फिर से एक झूठ तैयार किया, "मुझे वो जगह छोड़नी पड़ी थी। अचानक कुछ ऐसी स्थितियां आ गईं कि मुझे तुरंत निकलना पड़ा।"
नेहा ने प्रिया की आंखों में झांकते हुए कहा, "हमने तुझे कितने लेटर्स लिखे थे, तुझे वो भी नहीं मिले?"
प्रिया ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, "मुझे उन लेटर्स के बारे में कुछ पता नहीं, लेकिन तुम्हारी शादी का लेटर जरूर मिला था। उसमें तुमने मुझे इमोशनल ब्लैकमेल किया था। हमारी पुरानी यादों के बारे में बताया था, और ये भी लिखा था कि तेरी सबसे अच्छी सखी की शादी में कैसे नहीं आ सकती। बस वही लेटर मिला था।"
नेहा मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ, वो लेटर तो मैंने तेरे लिए खास लिखा था। लेकिन बाकी लेटर्स का क्या? हमने कई बार तुझसे संपर्क करने की कोशिश की। तुझे लगता है, सिर्फ एक लेटर से हम संतुष्ट हो जाएंगे?"
तभी पीछे से निखिल की आवाज आई, "अरे, इसका मतलब तू सिर्फ नेहा के लेटर का जवाब देती है? हम बाकी लोगों की कोई अहमियत नहीं थी क्या? इसलिए हमारे लेटर्स का कोई जवाब नहीं दिया और हमारी शादियों में भी नहीं आई?"
प्रिया ने उसकी तरफ देखा और थोड़ी असहज हो गई। निखिल की बात में हल्का-सा मज़ाक था, लेकिन वो प्रिया को तंग करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था।
अचानक से अक्षय भी वहां आ गया, "सही कहा निखिल ने। प्रिया, तू हमारी शादियों में भी नहीं आई! ये तो गलत बात है।"
सब दोस्त उसके आसपास खड़े हो गए और सवालों की बौछार करने लगे। प्रिया के लिए यह सब कुछ सहना अब मुश्किल हो रहा था। उसके अंदर का दबा हुआ गुस्सा और परेशानियाँ अब उभरने लगी थीं।
वो अचानक जोर से बोली, "शांति!"
उसकी यह बात सुनकर सारे दोस्त चौंक गए। सब एक पल के लिए खामोश हो गए। उन सबने प्रिया को कभी इस तरह से गुस्से में नहीं देखा था। पहले वाली प्रिया इन चीजों पर हंसती थी, मज़ाक करती थी, लेकिन अब यह प्रिया कुछ और ही लग रही थी—थोड़ी कड़ी, थोड़ी दूर, और अपने आप में सीमित।
निखिल और अक्षय ने एक-दूसरे की तरफ देखा और फिर वापस प्रिया की तरफ। नेहा भी प्रिया को ध्यान से देख रही थी, उसकी आँखों में कुछ सवाल थे, लेकिन उसने फिलहाल चुप रहना ही बेहतर समझा।
प्रिया ने एक गहरी सांस ली और अपनी नज़रें नीचे कर लीं। उसे समझ आ रहा था कि उसकी पुरानी ज़िन्दगी को इतने लंबे समय बाद फिर से जीना इतना आसान नहीं होगा। इन दोस्तों के बीच अब वो पहले वाली प्रिया नहीं रही थी। तीन सालों में उसके अंदर बहुत कुछ बदल गया था, लेकिन वो यह सब कैसे बताए?
नेहा ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा और प्यार से कहा, "सब ठीक है, प्रिया। हम सब तुझसे नाराज़ नहीं हैं, बस तेरी कमी बहुत महसूस की है।"
प्रिया ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसके चेहरे पर अब भी एक अजीब-सी बेचैनी थी।
प्रिया थोड़ी देर बाद सबसे दूर चली गई। वहाँ एक कोने में खड़े होकर उसने गहरी सांस ली और मन ही मन खुद को शांत करने की कोशिश की। वह जानती थी कि इन सवालों से उसे फिर से सामना करना पड़ेगा, पर वो अभी इसके लिए तैयार नहीं थी। उसने खुद को संभालते हुए ठंडे स्वर में कहा, "मैं यहाँ सिर्फ शादी में शामिल होने आई हूँ। प्लीज, कोई मुझसे इन तीन सालों के बारे में मत पूछो।" उसकी आवाज़ में दर्द साफ झलक रहा था, जो उसने इतने समय से अंदर दबा रखा था। "बहुत मुश्किलों का सामना किया है मैंने, तब जाकर आज यहाँ खड़ी हूँ।"
सब दोस्त उसकी आँखों में छुपे हुए दुःख और उसकी आवाज़ में भरे हुए दर्द को महसूस कर सकते थे। वो सब उसकी तरफ देख रहे थे, और इस बार कोई उसे चिढ़ाने या सवाल करने के लिए आगे नहीं आया।
नेहा ने सबसे पहले चुप्पी तोड़ी, "सॉरी यार, हमें नहीं पता था कि तूने इतना सब झेला है। हमें लगा तू बस हमसे दूर चली गई थी, बिना कोई वजह बताए। हम सच में नहीं जानते थे कि..."
प्रिया ने उसकी बात काटते हुए कहा, "कोई बात नहीं। मैं समझती हूँ। लेकिन अब मैं यहाँ हूँ, इस पल को जीने आई हूँ। बस बीते दिनों के बारे में बात नहीं करना चाहती।"
उसके बाद माहौल में थोड़ा सुकून सा आ गया। सभी दोस्तों ने माहौल को हल्का बनाने की कोशिश की। निखिल ने एक हल्का मजाक किया, "अरे प्रिया, हम भी सोच रहे थे कि तू हमें भूल गई होगी। पर अब तुझे यहाँ देखकर अच्छा लग रहा है।"
अक्षय ने भी मज़ाक में कहा, "और तुझे यहां से जाने की क्या जल्दी है? अभी तो तुझसे अच्छे से मिले भी नहीं हैं।"
प्रिया मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों में एक गहरा खालीपन था, जिसे सबने महसूस किया। उसने कहा, "शादी के बाद मैं यू.एस. जा रही हूँ अपने मम्मी-पापा के पास। शायद अब वहीं बस जाऊँ।"
उसकी ये बात सुनकर सभी दोस्त हैरान हो गए। सब एक-दूसरे की तरफ देखने लगे, जैसे उन्हें यकीन न हो कि प्रिया इतनी जल्दी उनसे फिर दूर चली जाएगी।
नेहा ने तुरंत पूछा, "अरे, यू.एस. क्यों? इतनी जल्दी जा रही है तू?"
अक्षय ने कहा, "अभी तो तुझे देखे बस कुछ ही घंटे हुए हैं। और तू फिर से जा रही है?"
प्रिया ने शांत स्वर में जवाब दिया, "हाँ, मम्मी-पापा के पास जाना जरूरी है। वो अब अकेले नहीं रह सकते, और मुझे भी उनके साथ रहना होगा।" उसकी आवाज़ में ठहराव था, लेकिन उसकी बातों के पीछे छुपा गहरा दुःख साफ झलक रहा था।
तभी नेहा का छोटा भाई अंदर भागता हुआ आया और बोला, "दीदी, सलोनी दीदी आई हैं। वो आपके बारे में पूछ रही हैं।"
यह सुनकर सबके चेहरे पर एक नई रौनक आ गई। निखिल और अक्षय के चेहरे खिल उठे। "सलोनी आ गई?" अक्षय ने उत्साहित होकर कहा।
लेकिन इसी दौरान, प्रिया के चेहरे के भाव अचानक बदल गए। वह पहले से ही शांत थी, लेकिन अब उसका चेहरा एकदम सख्त हो गया, जैसे वह किसी अनचाही बात का सामना कर रही हो। उसके होंठ हल्के से भींच गए, और उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक आ गई थी।
नेहा ने प्रिया के चेहरे की यह बदलाव देखा और चिंतित होकर पूछा, "क्या हुआ प्रिया? तू ठीक है?"
प्रिया ने थोड़ा रुखाई से जवाब दिया, "कुछ नहीं। तुम लोग जाओ, मिलो उससे। वो तुम लोगों की दोस्त है।"
सभी ने प्रिया की तरफ सवालिया नजरों से देखा। वह इस तरह से क्यों रिएक्ट कर रही थी? ऐसा क्या हुआ था जो सलोनी का नाम सुनते ही उसका मूड बदल गया? लेकिन किसी ने फिलहाल उसे और परेशान करना सही नहीं समझा।
नेहा ने धीरे से कहा, "लेकिन सलोनी तेरी भी तो दोस्त थी। तू क्यों नहीं मिलना चाहती उससे?"
प्रिया ने एक गहरी सांस ली और धीरे-धीरे, ठंडे स्वर में बोली, "वो मेरी दोस्त थी, अब नहीं। मैं नहीं मिलूंगी उससे। तुम लोग जाओ, तुम्हें उससे मिलना है तो जाओ।"
उसके शब्दों में कड़वाहट और दर्द दोनों थे, और सबने यह बात महसूस की। वहाँ खड़े सभी दोस्तों ने महसूस किया कि प्रिया और सलोनी के बीच कुछ ऐसा हुआ था, जो किसी ने सोचा भी नहीं था।
निखिल ने समझने की कोशिश की, "प्रिया, हम सब तुम्हारे दोस्त हैं, और अगर कुछ गलत हुआ है तो..."
प्रिया ने उसकी बात बीच में ही काट दी, "मुझे कुछ नहीं समझना है, न ही समझाना है। बस... जो बीत गया, वो बीत गया। अब आगे बढ़ने का वक्त है।"
सभी ने प्रिया की बात सुनकर चुप्पी साध ली। सबके दिल में सवाल थे, पर कोई कुछ कह नहीं पा रहा था। प्रिया के पास उनके सवालों का कोई जवाब नहीं था, और उनके पास उसे और ज्यादा परेशान करने का कोई इरादा नहीं था।
नेहा ने धीरे से कहा, "ठीक है, प्रिया। जैसे तू चाहे।"
फिर सभी दोस्त धीरे-धीरे नेहा के साथ बाहर की तरफ बढ़ने लगे, लेकिन हर एक की नजरें एक बार फिर से प्रिया पर थीं। सबको लगा कि शायद ये प्रिया अब वो नहीं रही, जो तीन साल पहले उनकी हर बात पर हंसती और मजाक करती थी।
प्रिया वहाँ अकेली खड़ी रही, और उसने एक बार फिर से गहरी सांस ली। उसके मन में एक पुराना जख्म फिर से खुलने लगा था, जो उसने इतने सालों से दबा रखा था। सलोनी का नाम सुनते ही वो सारे दर्द, सारी तकलीफें फिर से उभर आई थीं, जिन्हें वो भूलना चाहती थी।
लेकिन क्या वो सच में उन जख्मों को भुला पाएगी?
कहानी जारी है।।।।
प्रिया अब भी कमरे में अकेली खिड़की के पास खड़ी थी। बाहर की हल्की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी, लेकिन उसकी आँखों में एक गहरी उदासी थी। तीन साल पहले की हर बात उसके जेहन में वापस आ रही थी, जैसे कोई पुरानी फिल्म चल रही हो। वो खुद से लड़ रही थी, बार-बार उस अतीत से भागने की कोशिश कर रही थी, जो हर बार उसकी सोच पर हावी हो रहा था। कमरे में सन्नाटा था, बस उसके दिल की धड़कनें और उसके टूटे हुए दिल की धड़कनों की आवाज़ ही सुनाई दे रही थी।
नीचे हॉल में नेहा और बाकी दोस्त सलोनी से मिलकर हँसी-खुशी की बातों में लगे हुए थे। सलोनी को देखकर सबकी आँखों में चमक आ गई थी। वो अब भी वैसी ही थी—चंचल, हंसमुख और प्यारी। जैसे ही सलोनी नेहा से गले मिलकर हंसी, उसकी आँखों में वही पुरानी दोस्ती की झलक थी।
"सलोनी, क्या यकीन कर सकती हो? तीन साल हो गए!" नेहा ने खुशी के साथ कहा, "और देखो, हम सब फिर से यहाँ मिल गए हैं। प्रिया भी आई है।"
सलोनी की आँखें अचानक चमक उठीं। "प्रिया यहाँ है?" उसने उत्साहित होकर पूछा। उसकी आवाज़ में जोश और उम्मीद साफ झलक रही थी। इतने सालों से जिसे वो ढूंढ रही थी, वो आखिरकार उसके सामने आने वाला था।
"हाँ, प्रिया ऊपर कमरे में है," नेहा ने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ थोड़ी धीमी पड़ गई।
सलोनी ने बिना कोई देर किए, तेजी से ऊपर जाने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही उसने सीढ़ियाँ चढ़ने की कोशिश की, नेहा ने उसे हल्के से रोकते हुए कहा, "सलोनी, रुक जाओ।"
सलोनी ने चौंककर नेहा की ओर देखा। उसकी आँखों में सवाल था।
"प्रिया... अभी भी नाराज है तुमसे। वो तुमसे मिलना नहीं चाहती," नेहा ने धीरे-धीरे कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी गंभीरता थी, जैसे वो सलोनी को बहुत बड़ा सच बता रही हो।
यह सुनकर सलोनी के कदम वहीं ठिठक गए। उसकी मुस्कान अचानक फीकी पड़ गई। उसकी आँखों में जो खुशी की चमक थी, वो धुंधली होने लगी।
"प्रिया... अभी भी नाराज है?" उसने धीरे से पूछा, जैसे उसे इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा हो। उसकी आवाज़ में हल्की सी टूटन थी, जो किसी ने भी पहले नहीं सुनी थी।
नेहा ने सिर हिलाया। "हाँ, वो तुमसे मिलने से मना कर रही है।"
सलोनी की नजरें नीचे झुक गईं। उसके दिल में एक अजीब सा दर्द उठने लगा। तीन साल से वो हर दिन इस पल का इंतजार कर रही थी। हर रात, हर सुबह उसने यही सोचा था कि जब वो प्रिया से मिलेगी, तो सबकुछ फिर से ठीक हो जाएगा। वो फिर से वही पुरानी हंसी-मजाक, वही दोस्ती और प्यार वापस आ जाएगा। लेकिन अब, इस एक वाक्य ने उसकी सारी उम्मीदें धुंधली कर दी थीं।
कुछ पल की खामोशी के बाद, सलोनी ने गहरी सांस ली और अपनी नजरें नेहा से मिलाईं। उसकी आवाज़ में अब एक दृढ़ संकल्प था। "नेहा," उसने शांत लेकिन पक्की आवाज़ में कहा, "तुम लोग प्रिया को ये मत बताना कि मैं इन तीन सालों से उसे पागलों की तरह ढूंढ रही हूँ। और जो लेटर्स तुम लोगों ने उसे लिखे थे, वो मेरे कहने पर लिखे गए थे।"
सभी दोस्त एकदम से चौंक गए। निखिल, जो अब तक कुछ नहीं बोल रहा था, ने पूछा, "तुमने ऐसा क्यों किया, सलोनी?"
सलोनी की आँखों में अब आंसू आ गए थे, लेकिन वो मुस्कान देने की कोशिश कर रही थी। "क्योंकि मैं चाहती थी कि वो वापस आए। लेकिन अब मैं ये भी चाहती हूँ कि प्रिया जितना हो सके, खुश रहे। उसने बहुत दुख सहा है। अब और नहीं। अब मैं उसे वो पुरानी हंसी और खुशी वापस दिलाना चाहती हूँ।"
नेहा ने सलोनी की बात सुनकर उसकी आँखों में देखा। उसे सलोनी का इरादा साफ समझ में आ गया था। सलोनी ने बहुत गहरा दुख सहा था, लेकिन अब वो सिर्फ प्रिया की खुशी के बारे में सोच रही थी।
"तुम बिल्कुल सही कह रही हो, सलोनी," नेहा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा। "हम सब मिलकर कोशिश करेंगे कि प्रिया फिर से वही पुरानी प्रिया बने। लेकिन ये इतना आसान नहीं होगा।"
सलोनी ने सिर हिलाया। उसकी आँखों में अब भी आंसू थे, लेकिन वो जानती थी कि उसने सही फैसला किया है।
कमरे में, प्रिया अब भी खिड़की के पास खड़ी थी। उसने नीचे जाते हुए दोस्तों को देखा था, लेकिन उसका मन अब किसी से बात करने का नहीं था। उसकी सोच अब भी अतीत में उलझी हुई थी। वो जानती थी कि सलोनी नीचे है, लेकिन उसने खुद को सलोनी से दूर रखने का फैसला कर लिया था। उसे अपनी भावनाओं पर काबू रखना आता था, लेकिन आज कुछ अलग था।
प्रिया के मन में सवाल उठ रहा था—क्या वो सही कर रही है? क्या सलोनी से दूर रहना ही सही है, या उसे एक बार बात करनी चाहिए? लेकिन फिर उसे अनिरुद्ध का चेहरा याद आ गया। और उसकी सारी हिम्मत टूट गई।
"नहीं," प्रिया ने खुद से कहा, "मैं अब इन पुरानी बातों को फिर से नहीं जी सकती। मैं सलोनी से नहीं मिलूंगी।"
लेकिन उसके दिल के किसी कोने में अब भी एक हल्की सी उम्मीद थी, कि शायद कभी वो इन सवालों के जवाब ढूंढ पाएगी। लेकिन आज वो दिन नहीं था। आज वो इनसे भाग रही थी, और शायद यही उसके लिए सही था।
नीचे हंसी-मजाक और दोस्तों के बीच चल रही बातचीत की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं, लेकिन प्रिया के मन में अब एक गहरी खामोशी थी।
संगीत की रसम की तैयारियां अपने चरम पर थीं। नेहा के घर में चारों ओर रंग-बिरंगी रोशनी, फूलों की महक और संगीत की हल्की-हल्की धुन गूंज रही थी। हर कोई अपनी तैयारियों में मशगूल था। नेहा की मम्मी, जो कि इस पूरे आयोजन की देखरेख कर रही थीं, सबको जल्दी-जल्दी तैयार होने के लिए कह रही थीं।
प्रिया ने अपने कमरे में बैठकर आईने के सामने खुद को देखा। उसने पीले रंग का अनारकली सूट पहना था, जिसमें चांदी की कढ़ाई और छोटे-छोटे सितारे जड़े थे। उसके बाल खुले हुए थे, जो उसकी हल्की सी वेवी लहरों में गिर रहे थे। कानों में छोटे-छोटे झुमके, हाथों में हल्की सी चूड़ियाँ और चेहरे पर एक सादगी भरी मुस्कान—लेकिन उसकी आंखों में कुछ खोया हुआ सा दिख रहा था।
प्रिया ने खुद को एक आखिरी बार आईने में देखा और फिर अपने मन की सारी उलझनों को दबाते हुए नीचे जाने के लिए तैयार हो गई। जब वो सीढ़ियों से नीचे आई, तो चारों ओर की चमक-दमक, संगीत और हंसी-ठिठोली से उसे कुछ पल के लिए राहत मिली।
नीचे उतरते ही उसकी नजर सामने खड़ी सलोनी पर पड़ी। सलोनी ने लाल और गोल्डन रंग का भारी लहंगा पहन रखा था। उसके माथे पर सिंदूर और गले में एक सुंदर सा मंगलसूत्र, हाथों में चूड़ा—हर चीज में सलोनी की खूबसूरती और गरिमा झलक रही थी। वह बिल्कुल तीन साल पहले की सलोनी जैसी ही दिख रही थी, बस फर्क यह था कि अब वो एक शादीशुदा महिला की तरह दिख रही थी।
प्रिया ने उसे कुछ पल तक देखा, फिर अपने विचारों में खो गई। उसे वो पुराने दिन याद आए, जब सलोनी और वो एक-दूसरे की सबसे करीबी दोस्त हुआ करती थीं। लेकिन अब वो वक्त बहुत पीछे छूट चुका था। प्रिया के मन में हल्की टीस उठी—क्या सलोनी अब भी वैसी ही है जैसी पहले हुआ करती थी, या इन तीन सालों में सब कुछ बदल चुका है?
प्रिया ने देखा कि उसके सारे दोस्त भी नीचे मौजूद थे। कृति ने एक गहरे नीले रंग का लहंगा पहना हुआ था, जिसमें सिल्वर कढ़ाई थी। उसकी सजीली मुस्कान और आत्मविश्वास उसे भीड़ में अलग बना रहे थे। वो हमेशा की तरह चहक रही थी, “चलो जल्दी से डांस प्रैक्टिस करते हैं, आज तो हमें सबको हरा देना है!”
अक्षय, जो कि नेहा का कजिन था, ने हल्के पीले रंग का कुर्ता और सफेद पायजामा पहन रखा था। वो भी आज के जश्न में पूरी तरह डूबा हुआ था। उसकी आंखों में शरारत थी और उसके चेहरे पर एक मासूम सी मुस्कान। वह दोस्तों से कह रहा था, “तुम लोग देख लेना, इस बार मैं सबसे अच्छा डांस करूंगा!”
निखिल, जिसने काले रंग का कुर्ता और चूड़ीदार पहना हुआ था, हमेशा की तरह थोड़ा गंभीर था, लेकिन उसकी आंखों में भी आज की खुशी साफ झलक रही थी। उसने हल्के से मजाक करते हुए कहा, “अच्छा, पहले ये बताओ कि इस बार नाचने से पहले हमे कितनी प्रैक्टिस करनी पड़ेगी?”
साक्षी ने हल्के हरे रंग का लहंगा पहना था, जिसमें गोल्डन जरी की कढ़ाई थी। उसकी खुली लहराते बाल और हल्का मेकअप उसकी सादगी में चार चांद लगा रहे थे। वह भी बाकी सबके साथ डांस की तैयारी में जुट गई थी, “इस बार तो मैं तुम सबसे जीतने वाली हूं!”
नेहा, जो कि आज की सबसे खास थी, ने गुलाबी रंग का लहंगा पहना हुआ था। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें और चेहरे की मासूमियत ने उसे सबसे खास बना दिया था। वो प्रिया के पास आई और उसे एक प्यारी सी मुस्कान दी। “चलो प्रिया, थोड़ा डांस तो कर लो हमारे साथ। आखिर आज की रात हमारी है!”
लेकिन प्रिया ने सिर हिलाते हुए मना कर दिया। “तुम लोग करो, मैं यहीं से देख लूंगी।”
नेहा की मम्मी भी वहां आकर सबकी तारीफ करने लगीं। “वाह बेटा, सब बहुत अच्छे लग रहे हो! लेकिन अब डांस प्रैक्टिस कर लो, लड़कों के सामने नाक नहीं कटनी चाहिए!” उन्होंने हंसते हुए सबको प्रोत्साहित किया।
सब दोस्तों ने अपनी-अपनी जगह ले ली और डांस प्रैक्टिस शुरू कर दी। गाने की धुनों पर सबके कदम थिरकने लगे। माहौल में हंसी, मस्ती और खुशी छाई हुई थी। लेकिन प्रिया अब भी एक कोने में चुपचाप खड़ी थी। उसने देखा कि उसके दोस्त अब भी वैसे ही खुशमिजाज और मस्तमौला हैं जैसे तीन साल पहले थे।
सलोनी भी डांस प्रैक्टिस में शामिल थी। उसके कदम सधे हुए थे, लेकिन उसकी आंखों में कहीं न कहीं एक चिंता थी—क्या वो और प्रिया फिर से वैसे ही दोस्त बन सकते हैं, जैसे तीन साल पहले थे?
प्रिया के मन में एक युद्ध चल रहा था। वह वहां खड़ी होकर अपने अंदर के उन सवालों से लड़ रही थी, जिनका जवाब उसे खुद नहीं पता था। सलोनी और उसके बाकी दोस्तों को देखकर उसके अंदर पुरानी यादें ताजा हो गईं। लेकिन उसके मन में एक डर भी था—क्या वो फिर से उन सबकी दोस्त बन पाएगी? क्या सब कुछ फिर से पहले जैसा हो सकता है?
वो चाहती थी कि वह इस खुशी का हिस्सा बने, लेकिन उसे लगता था कि अब वह वो पुरानी प्रिया नहीं रही। उसने अपने दिल में कई सारी बातें दबा रखी थीं, और वो उन्हें बाहर नहीं आने देना चाहती थी।
संगीत की धुन और दोस्तों की हंसी-ठिठोली के बीच, प्रिया अकेले ही खड़ी थी—एक ऐसी जिद्द जो उसे बाकी सब से दूर रख रही थी। लेकिन क्या यह दूरी कभी मिट पाएगी? यही सवाल उसके मन में गूंज रहा था।
जैसे-जैसे संगीत की धुनें थमीं और सब लोग हंसते हुए बैठने लगे, प्रिया ने महसूस किया कि ये शाम सिर्फ नेहा और उसकी शादी की नहीं थी, बल्कि यह उसकी पुरानी जिंदगी और आज के बीच एक पुल की तरह थी। वो जानती थी कि आज के बाद बहुत कुछ बदल सकता है, लेकिन क्या वो इस बदलाव को स्वीकार कर पाएगी?
उधर सलोनी ने भी प्रिया की ओर देखा, लेकिन दोनों के बीच अब भी एक अनकहा दर्द और एक अनबोला रिश्ता था।
कहानी जारी है।।।
नेहा की संगीत की रसम शुरू हो चुकी थी, और माहौल पूरी तरह से उत्साह और उमंग से भर गया था। लड़के वालों की एंट्री हो चुकी थी, और दोनों परिवार एक-दूसरे को हंसी-ठिठोली के साथ गले लगाकर स्वागत कर रहे थे। स्टेज के सामने नेहा अपने होने वाले पति, मोहित के साथ बैठी थी। मोहित ने हल्के गुलाबी रंग की शेरवानी पहन रखी थी, जो उसकी सादगी और गरिमा को उभार रही थी। नेहा भी अपनी सफेद और गोल्डन रंग की लहंगे में बिल्कुल एक दुल्हन की तरह चमक रही थी। दोनों की जोड़ी हर किसी की नजरों का केंद्र बनी हुई थी।
स्टेज पर पहले लड़के वाले अपनी डांस परफॉर्मेंस के लिए आए। लड़कों ने बॉलीवुड के हिट गानों पर जमकर डांस किया। उनका एनर्जी भरा परफॉर्मेंस देखकर लड़कियों वालों की टीम और भी ज्यादा उत्साहित हो गई।
अब बारी थी लड़कियों की टीम की। नेहा की सहेलियों और कजिन्स ने स्टेज पर जाकर रंगीन कपड़ों में शानदार परफॉर्मेंस दी। उनकी डांसिंग में वो चुलबुलापन और उत्साह था, जो हमेशा से शादी के माहौल में खुशियों का पिटारा खोल देता है।
इन सब हंसी-ठिठोली और जश्न के बीच, प्रिया एक कोने में शांति से बैठी हुई थी। उसके चेहरे पर एक ठहराव था। हालांकि उसके पास उसके सारे दोस्त थे, लेकिन वह खुद को इस संगीत के शोर से थोड़ा अलग महसूस कर रही थी। उसका मन कहीं और ही उलझा हुआ था।
उसकी नजर बार-बार सलोनी पर जा रही थी, जो अपनी फैमिली के साथ मुस्कुरा रही थी, लेकिन प्रिया जानती थी कि सलोनी के दिल में कुछ अनकहा था। वो खुद भी तीन सालों से एक गहरे दर्द से गुजर रही थी, और अब उसका सामना करना शायद उसके लिए मुश्किल था।
लड़कों की परफॉर्मेंस खत्म होते ही, माहौल थोड़ा सा शांत हुआ। तभी प्रिया के सामने अचानक से एक हैंडसम सा लड़का आकर खड़ा हो गया। उसने गहरे नीले रंग का वेलवेट ब्लेजर पहना हुआ था, जो उसकी हाइट और चार्म को और उभार रहा था। उसकी आँखों में एक खास चमक थी, और उसकी मुस्कान में एक अजीब सा आत्मविश्वास झलक रहा था।
प्रिया उसे देखकर थोड़ा हैरान हुई। उसने उसे कभी पहले नहीं देखा था, और वह समझ नहीं पाई कि यह लड़का कौन है।
उसने धीरे से मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या तुम मेरे साथ कपल डांस करोगी?”
प्रिया एक पल के लिए ठिठक गई। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इस अजनबी ने अचानक से उससे ऐसा सवाल क्यों किया। वो उस शाम को अपने आप में खोकर बिताना चाहती थी, किसी के साथ डांस नहीं करना चाहती थी।
लेकिन उस लड़के की आंखों में एक खास जिज्ञासा थी, और उसके चेहरे पर ऐसी मासूमियत कि प्रिया मना भी नहीं कर पाई।
उसने थोड़ी झिझकते हुए कहा, “मैं… मुझे डांस करना नहीं आता।”
लड़के ने हंसते हुए कहा, “कोई बात नहीं, मैं भी इतना अच्छा डांसर नहीं हूं। हम दोनों साथ-साथ सीख सकते हैं।”
प्रिया उसकी इस बात पर हल्का सा मुस्कुरा दी, लेकिन उसके अंदर अभी भी कुछ असमंजस था। उसने आखिरकार कहा, “ठीक है, लेकिन मैं ज्यादा देर तक नहीं रहूंगी।”
लड़का उसे देखकर मुस्कुरा दिया, “जितनी देर तुम चाहो, बस इतना काफी है।”
लड़का प्रिया का हाथ पकड़कर उसे डांस फ्लोर की ओर ले गया। जैसे ही दोनों स्टेज पर पहुंचे, सबकी निगाहें उनकी ओर घूम गईं। हल्की-हल्की लाइट्स और धीमे संगीत के बीच, दोनों ने डांस करना शुरू किया। प्रिया थोड़ी नर्वस थी, लेकिन उस लड़के का आत्मविश्वास और सहजता उसे कुछ हद तक रिलैक्स कर रही थी।
म्यूजिक धीमा था, और दोनों के कदम एक-दूसरे के साथ धीरे-धीरे तालमेल बिठाने लगे। प्रिया ने पहली बार लंबे समय बाद खुद को थोड़ी सी आज़ादी देते हुए महसूस किया। उसने अपने चारों ओर से सारी उलझनों को कुछ पल के लिए पीछे छोड़ दिया।
उस लड़के की आंखों में कुछ था—कुछ ऐसा जिसे प्रिया समझ नहीं पा रही थी। लेकिन एक बात साफ थी, वो उसे आराम महसूस करा रहा था।
डांस के दौरान लड़के ने हल्के से कहा, “मैंने तुम्हें यहां बैठे देखा और लगा कि इतनी खूबसूरत शाम में तुम भी शामिल होनी चाहिए।”
प्रिया ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “मैं बस थोड़ी अकेले रहना चाहती थी, लेकिन शायद यह भी ठीक है।”
लड़के ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “कभी-कभी खुद को थोड़ा खुला छोड़ देना भी अच्छा होता है। शायद तुम्हें भी आज यही चाहिए।”
डांस खत्म होते ही, लड़का प्रिया को स्टेज से उतारकर फिर से उसके कोने में ले आया।
“तुम्हारा नाम क्या है?” प्रिया ने आखिरकार पूछा।
लड़के ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “राहुल। और तुम्हारा?”
“प्रिया,” उसने धीरे से कहा।
राहुल ने उसके नाम को दोहराते हुए कहा, “प्रिया—बहुत सुंदर नाम है। मुझे उम्मीद है कि हम फिर से मिलेंगे।”
और यह कहते हुए राहुल वहां से चला गया, लेकिन उसके जाने के बाद प्रिया के मन में एक हल्की सी हलचल छूट गई। वह सोच में पड़ गई कि आखिर ये लड़का कौन था, और उसने उसे क्यों इतना खास महसूस कराया।
संगीत की रात अब भी जारी थी, लेकिन प्रिया के मन में एक नया अध्याय खुल चुका था, जिसकी शुरुआत शायद अब ही हुई थी।
डांस खत्म होने के बाद पूरे माहौल में फिर से एक हल्का-सा सुकून छा गया था। सारे मेहमान धीरे-धीरे डिनर की तरफ बढ़ने लगे थे। नेहा के संगीत में हंसी-ठिठोली और रंगीन परफॉर्मेंस के बाद अब सबका ध्यान खाने की तरफ था। स्टॉल्स पर अलग-अलग तरह के पकवान सजाए गए थे—रसीली चाट, पनीर टिक्का, मटन बिरयानी, और मिठाइयों की तो पूरी एक लंबी कतार थी।
प्रिया भी अब डांस फ्लोर से हटकर खाने की तरफ बढ़ी। हालाँकि उसका मन आज किसी भी चीज़ में पूरी तरह से शामिल नहीं हो पा रहा था, लेकिन कुछ देर पहले का डांस और राहुल से मुलाकात ने उसे एक हल्का-सा सुकून जरूर दिया था। वह खाने के काउंटर के पास जाकर प्लेट उठा ही रही थी कि अचानक फिर से राहुल उसके सामने आ खड़ा हुआ।
“लगता है, हम बार-बार टकरा रहे हैं,” राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा।
प्रिया थोड़ा चौंकी, लेकिन फिर हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “शायद किस्मत यही चाहती है।”
राहुल उसकी बात पर हंस पड़ा। दोनों एक-दूसरे की ओर देख कर हल्की मुस्कान लिए खाना लेने लगे। इसी बीच नेहा दूर से यह सब देख रही थी। उसने मोहित को इशारा किया और दोनों एक कोने में जाकर धीरे-धीरे बातें करने लगे।
नेहा ने मोहित से कहा, “तुम्हारा दोस्त राहुल तो बहुत अच्छा है। वो सही मायने में प्रिया का ध्यान भटका रहा है, वरना यह तीन सालों से वह बहुत अकेली रही है।”
मोहित ने हंसते हुए कहा, “राहुल तो हमेशा से ही ऐसा है, वो जहां भी जाता है, वहां का माहौल हल्का कर देता है। तुम देखना, अगर राहुल कुछ दिनों तक यहां रहा, तो प्रिया का मूड भी थोड़ा ठीक हो जाएगा।”
नेहा ने मोहित का हाथ थामकर कहा, “थैंक यू, तुमने राहुल को बुलाकर बड़ा अच्छा किया। तुम नहीं जानते कि प्रिया किस दर्द से गुज़री है, लेकिन अब शायद उसे थोड़ा रिलैक्स महसूस हो।”
मोहित ने हंसते हुए कहा, “तुम सब दोस्त मिलकर प्रिया के मूड को ठीक करना चाहते हो। मेरी मानो तो उसे बस, थोड़ा समय चाहिए।”
नेहा की आंखों में थोड़ी उम्मीद दिखने लगी थी। उसे लगा कि शायद प्रिया को राहुल के जरिए थोड़ा खुशी मिले, और इसी खुशी के लिए उसने बाकी दोस्तों के साथ मिलकर एक छोटा-सा प्लान बना लिया था। सबने तय किया कि धीरे-धीरे राहुल को प्रिया के और करीब लाया जाएगा ताकि वह अपने पुराने दर्द से उबर सके।
खाना खत्म होने के बाद लड़के वाले धीरे-धीरे विदा होने लगे। सबने हंसी-खुशी एक-दूसरे को विदा किया। मोहित ने राहुल से कहा, “तुम तो मेरे साथ आओगे ना?”
राहुल ने हंसते हुए जवाब दिया, “हाँ, मैं आऊँगा, लेकिन थोड़ी देर में। पहले कुछ और काम है।”
यह कहकर राहुल प्रिया की ओर चला गया, जो अब भी खाने के बाद एक कोने में खड़ी थी और बाकी सबको जाते देख रही थी। उसने एक हल्की सांस ली और खुद को फिर से अकेला महसूस किया।
राहुल ने धीरे से उसके पास जाकर कहा, “खाना कैसा लगा?”
प्रिया ने उसकी ओर देखते हुए जवाब दिया, “ठीक था। वैसे भी भूख नहीं थी।”
राहुल ने हंसते हुए कहा, “कभी-कभी भूख न हो, फिर भी साथ में खाना खा लेना चाहिए। शायद इसी से भूख जाग जाए।”
प्रिया उसकी बात पर हंस दी। उसने महसूस किया कि राहुल की बातें कहीं न कहीं उसे थोड़ी राहत दे रही थीं। वो न चाहते हुए भी उसके साथ थोड़ा सहज महसूस कर रही थी।
राहुल ने उसके सामने खड़े होकर कहा, “तुम्हें देखकर लग रहा है कि तुम बहुत कुछ सोच रही हो। अगर तुम चाहो, तो हम बात कर सकते हैं। कभी-कभी किसी अजनबी से बातें करना आसान होता है, खासकर तब, जब कोई जानने वाला हो।”
प्रिया ने उसकी ओर देखते हुए कहा, “अजनबी हो या जानने वाला, कभी-कभी बातें दिल से निकलती नहीं।”
राहुल ने सिर हिलाते हुए कहा, “शायद इसलिए लोग डांस करते हैं। वहां शब्दों की ज़रूरत नहीं होती, सिर्फ ताल की।”
प्रिया ने एक हल्की मुस्कान के साथ उसकी बात का जवाब दिया। राहुल की बातें उसे अजीब लग रही थीं, लेकिन उसके भीतर कुछ ऐसा था जो उसे सहज महसूस करा रहा था।
खाना खत्म होते ही सब लोग अपने-अपने कमरे की ओर बढ़ने लगे। लड़की वाले परिवार के लोग भी अब आराम करने के लिए अपने रूम में चले गए। लेकिन प्रिया अब भी थोड़ी बेचैन थी। वह अपने कमरे में जाकर लेट गई, लेकिन उसकी आंखों के सामने बार-बार राहुल की बातें घूमने लगीं। क्या वह सच में उसे समझने की कोशिश कर रहा था या फिर यह सब एक खेल था?
प्रिया ने खुद से सवाल किया, “क्या मैं फिर से किसी पर भरोसा कर सकती हूँ? क्या यह ठीक होगा?”
वहीं दूसरी ओर, राहुल भी अपने कमरे में जाकर लेट गया। उसने खुद से कहा, “ये लड़की कुछ अलग है। इसका दर्द कुछ ज्यादा गहरा है। देखते हैं, इसे थोड़ा हंसा पाता हूँ या नहीं।”
रात का यह सिलसिला खत्म हुआ, लेकिन अगले दिन के साथ एक नई शुरुआत होने वाली थी। दोनों के बीच कुछ ऐसा होने वाला था, जो शायद दोनों की जिंदगी में एक बड़ा मोड़ लाने वाला था।
कहानी जारी है।।।।।
सुबह का वक्त था, और नेहा के घर में हलचल शुरू हो चुकी थी। हल्दी की रस्म की तैयारी चल रही थी। बाहर खुले लॉन में एक बड़ा मंडप सजाया गया था, जिसे पीले और सफेद फूलों से सजाया गया था। चारों तरफ गुलाब और गेंदे के फूलों की माला लटकी हुई थी, और हर कोने से एक मिठास भरी खुशबू आ रही थी। सूरज की हल्की किरणें इस मंडप पर पड़ रही थीं, और यह नज़ारा किसी सपने जैसा लग रहा था।
नेहा का पूरा परिवार और दोस्त पहले से ही पीले रंग के कपड़ों में तैयार थे। लड़कियों ने हल्के पीले रंग की साड़ियां पहनी हुई थीं, जिनमें सुनहरे बॉर्डर और महीन कढ़ाई थी। कृति ने एक बेहद खूबसूरत लेमन येलो लहंगा पहना था, जिस पर सिल्वर ज़री का काम था। उसने खुले बालों को हल्का सा कर्ल किया था और छोटे-छोटे सफेद फूलों से सजाया था। साक्षी ने शिफॉन की पीली साड़ी पहनी थी, और उसकी कलाई में चूड़ियों की खनक रस्म की मिठास को और बढ़ा रही थी। अक्षय और निखिल ने पीले कुर्ते और सफेद पायजामे पहने हुए थे, जिनकी फिटिंग एकदम परफेक्ट थी। सब एक-दूसरे को देख कर हंसते, तारीफ करते हुए हल्दी की रस्म की ओर बढ़ रहे थे।
नेहा को मंडप के बीच में बैठाया गया था, जहाँ एक छोटे स्टूल पर पीले फूलों से सजी तकिया रखी गई थी। नेहा ने भी पीले रंग की साड़ी पहनी थी, जिसमें सुनहरे गोटे की सजावट थी। उसने अपने बालों को जूड़े में बांध रखा था, जिसमें पीले और सफेद गुलाबों का गजरा सजा हुआ था। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों में एक गहरी चमक दिखाई दे रही थी। वह खुशी से भरी हुई थी, क्योंकि ये उसकी शादी की रस्मों में से एक महत्वपूर्ण रस्म थी।
जैसे ही रस्म शुरू हुई, नेहा की माँ सबसे पहले आगे आईं और नेहा को हल्दी का पहला लेप लगाया। माँ ने नेहा के माथे पर हल्दी लगाते हुए उसे गले से लगा लिया, और उसकी आँखों में आंसू आ गए। नेहा ने भी हल्के से मुस्कुराते हुए अपनी माँ को कस कर गले लगाया। इसके बाद बाकी रिश्तेदार और दोस्त बारी-बारी से नेहा को हल्दी लगाने आए।
कृति, साक्षी, और नेहा की बाकी सहेलियों ने उसे हल्दी लगाते वक्त उसे चिढ़ाया, "देख, हल्दी लगाने के बाद चेहरा तो और भी चमकने लगेगा। मोहित तुझसे नज़रें ही नहीं हटा पाएगा।" नेहा ने मुस्कुरा कर उनकी शरारतों का जवाब दिया, "अभी मुझे चेहरा बचाना है, तुमलोगों का इरादा कुछ ज्यादा ही खतरनाक लग रहा है!"
सबके हल्दी लगाने के दौरान ढोलक की आवाज़ और लोकगीतों की गूंज हर तरफ फैल गई। औरतें हंसी-ठिठोली करती हुई गीत गा रही थीं, और माहौल पूरी तरह से शादी की रौनक में डूबा हुआ था।
प्रिया भी वहीं मौजूद थी, लेकिन बाकी लोगों से थोड़ी दूर रहकर। उसने भी पीले रंग का अनारकली सूट पहना था, जिसमें हल्के सुनहरे काम की कढ़ाई थी। उसके बाल खुले हुए थे, लेकिन चेहरे पर गंभीरता और खामोशी छाई हुई थी। वह सबकी खुशियों में शामिल तो थी, लेकिन उसका मन कहीं और था। उसकी आंखों के सामने सलोनी की शादी की यादें आ गईं—जहाँ वह, नेहा और बाकी दोस्त अनिरुद्ध के साथ कितनी मस्ती करते थे। उस वक्त सबकुछ कितना अलग था। लेकिन अब, वह अकेलेपन और उन बीते हुए पलों की गहराई में खोई हुई थी।
सलोनी, जो अब तक नेहा को हल्दी लगा रही थी, अचानक प्रिया के चेहरे के भाव बदलते हुए देखती है। उसने महसूस किया कि प्रिया की खामोशी कुछ कह रही है। सलोनी को समझ में आ गया कि प्रिया के मन में अब भी पुराने घाव हरे हैं। वह जान गई थी कि प्रिया अभी तक अनिरुद्ध की यादों से बाहर नहीं आ पाई है।
सलोनी मन ही मन सोचने लगी, "प्रिया अब भी उसी दर्द में फंसी है। उसे इन सब से बाहर निकालना ही होगा।"
हल्दी की रस्म धीरे-धीरे खत्म हो रही थी। सब एक-दूसरे को हल्दी लगाकर हंसते-खेलते मंडप से बाहर आ रहे थे। नेहा भी हल्दी में पूरी तरह से नहा चुकी थी, और उसकी सहेलियाँ उसे चिढ़ाते हुए कह रही थीं, "अब तो मोहित तुझे हल्दी लगी देख कर ही और दीवाना हो जाएगा।"
लेकिन प्रिया अब भी उसी कोने में खड़ी थी, उसकी आँखों में अजीब सी गहराई थी। वह चाहकर भी इस खुशी में पूरी तरह शामिल नहीं हो पा रही थी। उसका मन उन तीन साल पुरानी यादों में उलझा हुआ था, जो बार-बार उसे बेचैन कर रही थीं।
सलोनी ने प्रिया की इस हालत को देख लिया था, और अब वह किसी भी तरह से उसे इस उदासी से बाहर निकालना चाहती थी। उसने मन में ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह प्रिया को फिर से वही पुरानी हंसमुख लड़की बनाएगी, जो वह कभी थी। लेकिन सलोनी जानती थी कि यह आसान नहीं होगा। उसे धीरे-धीरे प्रिया के दिल तक पहुंचना होगा, उसे समझाना होगा कि बीता हुआ वक्त वापस नहीं आएगा, लेकिन नई खुशियां उसका इंतजार कर रही हैं।
दिन ढलने लगा था, और हल्दी की रस्म का माहौल अब ठंडा पड़ने लगा था। हर कोई अब तैयारियों के बाद थोड़ा आराम करने के लिए अपने-अपने कमरों में जा रहा था। लेकिन प्रिया का दिल अब भी उस अतीत में उलझा हुआ था। उसके चेहरे पर उदासी थी, और आंखों में कई सवाल थे। क्या वह कभी उस पुराने दर्द से बाहर आ पाएगी? क्या वह फिर से अपने दोस्तों के साथ खुशी से जी पाएगी? या यह शादी उसके लिए एक नया मोड़ लाएगी?
सलोनी जानती थी कि यह लड़ाई आसान नहीं होगी, लेकिन उसने मन ही मन तय कर लिया था कि वह प्रिया को इस दर्द से बाहर निकालकर रहेगी। और इस तरह, हल्दी की रस्म के बाद का दिन समाप्त हुआ, लेकिन अगला दिन और नई चुनौतियां आने वाली थीं।
नेहा के घर पर हल्दी की रस्म खत्म हो चुकी थी, और अब मोहित के घर पर भी इसी रस्म की तैयारियाँ चल रही थीं। मोहित को एक मंडप के नीचे बैठाया गया था, जिसे रंग-बिरंगे फूलों और पत्तियों से सजाया गया था। घर की महिलाएं ढोलक बजा रही थीं, और हर कोई रस्मों में मग्न था। मोहित ने भी हल्दी की रंग में रंगी हुई पीली कुर्ता-पायजामा पहनी हुई थी। उसके चेहरे पर हल्दी का लेप लगाने की तैयारी थी, और सभी रिश्तेदार और दोस्त उसके चारों ओर खड़े थे।
मोहित के पास उसका सबसे अच्छा दोस्त राहुल बैठा था। राहुल ने भी हल्दी रंग का कुर्ता पहना था और हमेशा की तरह काफी आकर्षक लग रहा था। दोनों ही दोस्त आपस में हंसी-मजाक करते हुए हल्दी की रस्म का आनंद ले रहे थे। मोहित पर हल्दी लगते वक्त राहुल ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "यार, ये शादी का बुखार कब उतरेगा? हल्दी से तो तू और भी ज़्यादा चिपक जाएगा!"
मोहित हंसते हुए बोला, "अभी हल्दी लगी है, असली बुखार तो शादी के बाद ही चढ़ेगा!"
दोनों दोस्तों ने ठहाका लगाया, और बाकी लोग भी हंस पड़े। लेकिन बीच-बीच में, जब भी हल्दी की रस्म में थोड़ी चुप्पी होती, राहुल की नज़रें बार-बार नेहा के बारे में बातों पर और प्रिया की खामोशी पर लौट आतीं। उसे कहीं न कहीं लग रहा था कि प्रिया अकेली है, और उसकी मौन चुप्पी में बहुत कुछ छिपा हुआ है।
जब हल्दी की रस्म खत्म हो गई, तो सब खाने-पीने की तैयारियों में लग गए। मोहित और राहुल एक शांत कोने में बैठकर थोड़ी देर आराम करने लगे। राहुल को आज भी सुबह का वह पल याद आ रहा था जब वह प्रिया से मिला था। वह जानता था कि कुछ तो ऐसा है जो प्रिया को बहुत परेशान कर रहा है, लेकिन वह उसकी वजह नहीं जान पाया।
राहुल ने मोहित से धीरे-धीरे बातचीत शुरू की, "मोहित, यार, ये प्रिया की बात समझ नहीं आ रही मुझे। लगता है, उसकी लाइफ में कुछ बड़ा हुआ है, लेकिन हममें से कोई भी कुछ जानता नहीं।"
मोहित, जो हल्दी के लेप के बाद ठंडे पानी से अपना चेहरा साफ कर रहा था, थोड़ा गंभीर हो गया। उसने राहुल की ओर देखा और कहा, "हां, मैंने भी नोटिस किया है। नेहा ने कुछ-कुछ इशारों में बताया था कि प्रिया पिछले कुछ सालों में काफी अकेली हो गई है। लेकिन क्या हुआ, ये किसी को नहीं पता।"
राहुल ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "मुझे लगता है, हमें उसकी मदद करनी चाहिए। वो इस शादी में भी अकेली पड़ जाती है। सब लोग मस्ती कर रहे हैं, और वह बस कोने में बैठी रहती है।"
मोहित ने सिर हिलाते हुए कहा, "हां, यार। हम उसे अकेला नहीं छोड़ सकते। लेकिन बात ये है कि हमें उसकी जिंदगी के बारे में कुछ नहीं पता। अगर हम कुछ पूछते हैं, तो कहीं ऐसा न हो कि वह और भी दूर हो जाए।"
राहुल के चेहरे पर एक अजीब सी चिंता दिख रही थी। वह प्रिया की खामोशी से परेशान था, लेकिन उसके पास कोई ठोस जानकारी नहीं थी। उसने मोहित से कहा, "देख, जो भी हो, हम कोशिश तो कर सकते हैं। अगर हम उसकी बातें सुनेंगे और उसे अकेला महसूस नहीं होने देंगे, तो शायद वह खुल कर कुछ बताए।"
मोहित ने उसे सहमति में सिर हिलाया, "तू सही कह रहा है। मुझे लगता है कि ये शादी का माहौल ही सही वक्त है, जहां हम उसके साथ थोड़ा वक्त बिताकर उसे उसका अकेलापन महसूस नहीं होने देंगे। लेकिन एक बात ध्यान में रखना—उस पर कोई दबाव नहीं डालना। उसे खुद ही सामने आना होगा।"
राहुल ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "बिलकुल, भाई। मैं उसे ज्यादा परेशान नहीं करूंगा, बस धीरे-धीरे उसे जानने की कोशिश करूंगा। शायद इसी बहाने वह कुछ बोलने लगे।"
दोनों दोस्तों ने तय किया कि वे प्रिया के साथ थोड़ा और वक्त बिताने की कोशिश करेंगे। खासकर राहुल, जिसने अब इसे एक छोटा मिशन बना लिया था कि वह प्रिया के अकेलेपन को दूर करेगा। दोनों दोस्त अब एक साथ प्रिया को खुश करने की योजना बनाने लगे, ताकि वह इस शादी के माहौल में शामिल हो सके और थोड़ी सी हंसी-खुशी की ओर लौट सके।
मोहित ने हंसते हुए कहा, "शादी में हम हर रस्म में उसका साथ देंगे। हल्दी तो खत्म हो गई, अब संगीत की बारी है। मुझे लगता है, वहाँ हम उसे थोड़ा और मस्ती करने पर मजबूर कर सकते हैं।"
राहुल भी हंसते हुए बोला, "बिलकुल, मैं उसे स्टेज पर खींच कर ले जाऊंगा। देखते हैं, वह कैसे मना करती है।"
कहानी जारी है ।।।
मोहित और राहुल दोनों ही अब अपनी-अपनी जगहों से उठे और घर के बाकी लोगों के साथ हल्दी की रस्म के बाद के लंच में शामिल हो गए। उनके मन में अब एक ही बात थी—कैसे भी करके, प्रिया को इस शादी की खुशियों में शामिल करना है और उसके दिल की उदासी को थोड़ी देर के लिए ही सही, लेकिन दूर करना है।
अब तक राहुल के मन में प्रिया के लिए एक खास जगह बनने लगी थी। वह उसे करीब से जानने की कोशिश में था और उसे खुश देखने की चाहत उसमें बढ़ती जा रही थी।
हल्दी की रसम के बाद की रात थी, और शादी के माहौल में सब दोस्त थोड़ा और मस्ती करने के लिए छत पर इकट्ठे हो गए थे। नेहा, अक्षय, कृति, निखिल और बाकी सबने तय किया था कि वे रात को छत पर थोड़ी मस्ती करेंगे, हल्के-फुल्के मजाक और हंसी ठिठोली के साथ। छत पर टिमटिमाती रोशनी, ठंडी हवा और शादी के गाने माहौल को और भी खुशनुमा बना रहे थे। सब हंसी-मजाक में डूबे हुए थे, लेकिन एक कोने में प्रिया और सलोनी की नजरें बार-बार टकरा रही थीं।
जब सभी दोस्त आपस में मस्त थे और बातों में उलझे हुए थे, तभी सलोनी ने देखा कि यह सही मौका है जब वह प्रिया से अकेले में बात कर सकती है। उसे पता था कि प्रिया से बात करना आसान नहीं होगा, लेकिन यह जरूरी था। धीरे-धीरे, सलोनी ने प्रिया की ओर कदम बढ़ाए। दोनों के बीच अब सालों की दूरियां थीं, लेकिन दोनों के दिलों में पुरानी यादें और सवाल थे।
सलोनी ने प्रिया के पास जाकर धीरे से कहा, "कब तक तू मुझसे नाराज़ रहेगी, प्रिया?"
प्रिया ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा, "शायद हमेशा, सलोनी।" उसकी आवाज में साफ नाराजगी और दर्द झलक रहा था।
सलोनी को यह सुनकर झटका लगा, लेकिन उसने अपनी भावनाओं पर काबू रखा। उसने प्रिया की ओर देखते हुए कहा, "मैं जानती हूँ, मैंने जो किया, उससे तू बहुत आहत हुई। पर यकीन कर, मैंने वो सब तेरे भले के लिए ही किया था।"
प्रिया के चेहरे पर एक गहरी उदासी थी। उसने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "हां, सलोनी। सही कहा तूने। तूने मेरे भले के लिए किया, इसलिए ही तो तूने हमारी इतनी पुरानी दोस्ती तोड़ दी थी उस दिन। तूने मुझे उस वक़्त ऐसा महसूस कराया, जैसे मैं कुछ भी नहीं हूं। उस एक पल में तूने सब खत्म कर दिया। क्या तूने सोचा था कि मैं वो सब इतनी आसानी से भूल जाऊंगी?"
प्रिया की आवाज अब थोड़ी ऊंची हो गई थी, लेकिन उसमें दर्द साफ-साफ झलक रहा था। वो नाराजगी से भरी हुई थी, लेकिन उसकी आंखों में जो गुस्सा था, वह असल में उसकी टूटी हुई उम्मीदों का था। सलोनी को समझ में आ रहा था कि यह दर्द सिर्फ एक नाराजगी नहीं थी, बल्कि एक टूटी हुई दोस्ती का बोझ था, जिसे प्रिया पिछले तीन सालों से उठाए हुए थी।
सलोनी ने शांत तरीके से जवाब दिया, "मैं उस दिन तुझे वहां से भेजना चाहती थी, प्रिया। मुझे लगा, तुझे वहां रहना ठीक नहीं था। जो मैंने कहा, वो सिर्फ तुझे वहां से हटाने के लिए था। तू इस बात के लिए मुझसे नाराज है, लेकिन मैं बस तुझे बचाना चाहती थी। क्या तूने कभी ये सोचा कि मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था?"
प्रिया की आंखें अब और भी गहरी हो गईं। उसने सख्ती से जवाब दिया, "बचाना? किससे बचाना चाहती थी तू? और क्यों? मैं कोई बच्ची नहीं थी, सलोनी। मुझे समझाने का एक और तरीका हो सकता था, पर तूने सबसे आसान रास्ता चुना। मुझे हर्ट करके मुझे वहां से दूर कर दिया। क्या तुझे कभी लगा कि मैं भी तुझे कुछ बताना चाहती थी? तूने मुझे सुना ही नहीं!"
यहां से उनकी बातचीत और भी गंभीर हो गई। सलोनी ने अपना सिर झुका लिया और बोली, "शायद तू सही कह रही है, प्रिया। शायद मैंने जल्दीबाजी में कुछ गलत फैसले लिए। पर यकीन कर, मैंने जो किया, उसमें मेरी मंशा खराब नहीं थी। मैं बस तुझे मुश्किलों से दूर रखना चाहती थी। पर उस वक्त मैं ये नहीं समझ पाई कि तू उन मुश्किलों का सामना कर सकती थी।"
प्रिया ने गहरी नजरों से सलोनी की ओर देखा। उसने धीरे से कहा, "सलोनी, मैं तेरी सबसे पुरानी दोस्त थी। तुझसे ये उम्मीद कभी नहीं थी कि तू मुझे वहां छोड़कर खुद को सही साबित करने की कोशिश करेगी। मुझे तुझसे सिर्फ साथ चाहिए था, न कि दिमागी लड़ाई।"
सलोनी अब समझ चुकी थी कि प्रिया के दिल में उसकी नाराजगी कितनी गहरी थी। उसने सोचा था कि वह आसानी से माफी मांग लेगी, लेकिन प्रिया की तकलीफ कहीं ज्यादा थी, और वह उसकी गहराई को सही से समझ नहीं पाई थी।
सलोनी ने आखिरकार प्रिया की आंखों में देखते हुए कहा, "मैंने तुझे खो दिया, प्रिया। और ये गलती मैंने की। पर क्या अब भी तू मुझे माफ नहीं कर सकती?"
प्रिया ने एक गहरी सांस ली और उसकी नजरें अब भी आंसुओं से भरी हुई थीं। उसने धीरे से कहा, "मुझे नहीं पता, सलोनी। इतने सालों की नाराजगी इतनी आसानी से नहीं जाएगी। मैं तेरे साथ क्या महसूस करती हूं, इसे मैं खुद भी पूरी तरह नहीं समझ पा रही हूं। शायद हमें वक्त चाहिए, शायद ये नाराजगी कभी खत्म न हो।"
दोनों के बीच की बातचीत खत्म तो हो गई थी, लेकिन अब भी दोनों के दिलों में अनकहे शब्द बचे हुए थे। सलोनी जान गई थी कि इस रिश्ते को ठीक करने के लिए उसे वक्त देना होगा। और प्रिया भी ये समझ रही थी कि सलोनी की मंशा गलत नहीं थी, लेकिन उसकी भावनाएं अब भी उलझी हुई थीं।
दोनों के बीच यह मुलाकात एक कड़वी याद को ताजा करने के साथ ही एक नए अध्याय की शुरुआत की तरह लग रही थी। शायद आगे चलकर, वक्त के साथ, ये दोस्ती फिर से वही पुरानी राह पकड़ लेगी, या शायद हमेशा के लिए यह दूरी बनी रहेगी।
उस रात छत पर फिर से दोस्त मस्ती कर रहे थे, लेकिन प्रिया और सलोनी की यह छोटी सी बातचीत दोनों के जीवन में एक बड़ा बदलाव लाने वाली थी।
छत पर मस्ती के बीच में जब प्रिया और सलोनी वहां पहुँची, तो माहौल थोड़ा असमंजस भरा था। बाकी दोस्त मस्ती में डूबे हुए थे, लेकिन प्रिया और सलोनी के बीच की खामोशी अलग ही कहानी बयां कर रही थी। जब प्रिया ने हल्के से कहा, “इंतज़ार करवाने के लिए माफी मांगती हूं, बस कुछ पुराने सवालों के जवाब दे रही थी किसी को,” तो उसके लहजे में छिपी कड़वाहट और दर्द साफ झलक रहा था।
सलोनी समझ गई कि प्रिया उसके बारे में बात कर रही थी, लेकिन उसने माहौल को और ज्यादा तनावपूर्ण होने से रोकने के लिए कोई बात नहीं बढ़ाई। उसने हंसते हुए कहा, "चलो, कोई गेम खेलते हैं। मस्ती करते हैं!"
सबने सलोनी की बात मान ली और अंताक्षरी का खेल शुरू किया। हवा में गानों की गूंज और हंसी की आवाज़ें घुलने लगीं। दोस्तों का जोश और माहौल में घुला संगीत एक खुशनुमा समां बना रहा था।
नेहा, कृति, अक्षय, और साक्षी ने अपनी अपनी धुनों पर गाने गाए। कुछ तो पुराने फिल्मी गीत थे और कुछ हाल ही में आए रोमांटिक गाने।
लेकिन जैसे ही प्रिया की बारी आई, माहौल अचानक बदल गया। वह गाना जो उसने चुना, वह उसकी अंदर की पीड़ा और अकेलेपन का साक्षी था। उसकी आवाज़ में ऐसा दर्द था जिसने सभी दोस्तों को चुप कर दिया। गाने के बोल थे:
"तू जहां, जहां चलेगा...मेरा साया साथ होगा..."
प्रिया का हर शब्द जैसे उसकी गहरी भावनाओं से भरा हुआ था। उसकी आवाज़ में जो उदासी थी, वह न केवल सलोनी बल्कि बाकी सभी दोस्तों ने महसूस की। प्रिया का चेहरा गाने के हर शब्द के साथ और भी गंभीर होता जा रहा था। उसकी आंखों में हल्की नमी थी, और उसके गाने के खत्म होते ही छत पर सन्नाटा छा गया। सभी दोस्तों को पहली बार समझ में आया कि प्रिया के दिल में कितनी तकलीफ थी।
प्रिया के दर्द भरे गाने ने माहौल को थोड़ा भारी कर दिया था। सलोनी ने यह महसूस किया और समझ गई कि अब उसे माहौल हल्का करना होगा। उसने अपनी ओर से एक पहल करते हुए प्रिया के साथ की गई दोस्ती को याद दिलाने का फैसला किया।
सलोनी ने मुस्कुराते हुए कहा, "अब मेरी बारी है," और फिर एक दोस्ती पर आधारित गीत गाने लगी: "तेरे जैसा यार कहाँ...कहाँ ऐसा याराना..."
गाने के हर शब्द में उसकी प्रिया के लिए दोस्ती और माफी छिपी हुई थी। सलोनी ने गाने के दौरान प्रिया की ओर कई बार देखा, उसकी आंखों में उस पुरानी दोस्ती की चमक थी, जो कभी दोनों के बीच हुआ करती थी। गाना खत्म करते ही सलोनी ने एक नजर प्रिया पर डाली, मानो उसे कहना चाह रही हो कि वह सब कुछ फिर से ठीक करना चाहती है।
प्रिया ने सलोनी की तरफ देखा, लेकिन उसकी आंखों में अभी भी वही दर्द था। वह सलोनी की माफी और उसकी कोशिश को समझ तो रही थी, लेकिन अंदर के जख्म इतने गहरे थे कि तुरंत ठीक होना मुश्किल था।
सलोनी के गाने के बाद माहौल थोड़ा हल्का हुआ, लेकिन प्रिया के अंदर का दर्द अभी भी कहीं छिपा हुआ था। बाकी दोस्तों ने भी महसूस किया कि प्रिया अब भी अपनी पुरानी तकलीफों से बाहर नहीं निकल पाई है। अंताक्षरी का सिलसिला चल तो रहा था, लेकिन प्रिया और सलोनी के बीच की अनबन अभी भी कायम थी।
साक्षी ने माहौल को और खुशगवार बनाने के लिए हंसते हुए कहा, "चलो, अब कोई फिल्मी गानों से हटकर कुछ मस्ती भरे गाने गाएं!"
अक्षय ने भी मजाक में कहा, "हां, हां, और प्रिया अब हमें कोई दुखभरा गाना नहीं सुनाएगी, वरना यहां सब रोने लगेंगे।"
सब हंस पड़े, और माहौल फिर से सामान्य होने लगा। लेकिन सलोनी के दिल में एक बात साफ थी: उसे प्रिया से पूरी तरह माफी मांगने और उसे वापस अपनी जिंदगी में लाने के लिए अभी और कोशिश करनी होगी।
कहानी जारी है।।।।
सब हंस पड़े, और माहौल फिर से सामान्य होने लगा। लेकिन सलोनी के दिल में एक बात साफ थी: उसे प्रिया से पूरी तरह माफी मांगने और उसे वापस अपनी जिंदगी में लाने के लिए अभी और कोशिश करनी होगी।
अंताक्षरी खत्म होने के बाद, सभी छत पर कुछ देर और बैठे रहे। प्रिया और सलोनी ने एक-दूसरे की ओर कई बार देखा, लेकिन कोई सीधी बातचीत नहीं हुई।
साक्षी और नेहा ने महसूस किया कि प्रिया और सलोनी के बीच कुछ बात जरूर है, लेकिन उन्होंने उसे छेड़ा नहीं।
रात गहराती गई, और सभी दोस्तों के बीच की मस्ती भी धीरे-धीरे शांत हो गई। सलोनी को पता था कि प्रिया को मना पाना इतना आसान नहीं होगा, लेकिन उसने यह ठान लिया था कि वह अपनी पुरानी दोस्ती को फिर से वापस लेकर आएगी।
उस रात के अंत में, जब सब नीचे जाने लगे, तो सलोनी ने एक बार फिर प्रिया की ओर देखा। प्रिया ने भी उसकी नजरें पकड़ लीं, लेकिन दोनों में कोई बात नहीं हुई। यह खामोशी कुछ कह रही थी—शायद यह एक शुरुआत थी, या शायद अभी भी वह दूरी बनी हुई थी जिसे पाटने के लिए और वक्त लगेगा।
रात का समापन हो चुका था, लेकिन दोस्ती की यह कहानी अभी बाकी थी।
अगला दिन नई शुरुआत लेकर आया था। आज नेहा की मेहंदी की रस्म थी, और घर के हर कोने में हरे रंग की छटा फैली हुई थी। सलोनी की आंखों में एक नई चमक थी, एक उम्मीद कि शायद आज वो और प्रिया अपनी दूरियों को पाट सकेंगी। उसने एक शादीशुदा महिला की तरह खुद को पूरी तरह से सजाया था—चूड़ा, मंगलसूत्र, मांग में सिंदूर—हर चीज़ उसकी शादीशुदा जिंदगी की पहचान थी। लेकिन उसकी आंखें बार-बार ऊपर की ओर उठ जातीं, जैसे प्रिया का इंतज़ार कर रही हों।
उधर, प्रिया अपने कमरे में तैयार होकर बैठी थी। हरे रंग की साड़ी पहने हुए, उसने खुद को संजीदगी से सजाया था, लेकिन नीचे जाने का उसका मन नहीं था। वह अपने अंदर की उलझनों और पुरानी यादों में उलझी हुई थी। हालांकि, नेहा की मेहंदी की रस्म में उसे शामिल होना ही था, इसलिए भारी मन से उसने नीचे जाने का मन बना लिया।
कमरे में बैठी हुई प्रिया को अचानक अतीत के वे पल याद आ गए जब वो और अनिरुद्ध सलोनी की शादी में खूब मस्ती किया करते थे। उन दिनों की यादों ने उसकी आंखों को नम कर दिया। अपनी ही दुनिया में खोई हुई, वो हल्की सी मुस्कान के साथ उन पुरानी बातों को याद करते हुए खुद से बातें करने लगी।
"कितना हंसीन वक्त था वो...अनिरुद्ध और मैं, हम दोनों सलोनी की मेंहदी में कितना नाचे थे। हर पल जैसे किसी खूबसूरत सपने सा था।"
उसकी आंखों में अतीत के वो अनमोल पल किसी चलचित्र की तरह दौड़ने लगे। उसे याद आया कि कैसे अनिरुद्ध उसकी हर छोटी-बड़ी बात का ध्यान रखा करता था, और जब भी वो उदास होती, तो वो उसकी हंसी वापस लाने की हर कोशिश करता। उस वक्त उसे लगता था कि शायद वही उसकी जिंदगी का सच्चा साथी होगा।
अतीत की इन यादों से भरी प्रिया को अचानक नेहा का ख्याल आया। वो जानती थी कि आज का दिन नेहा के लिए बहुत खास था, और ऐसे मौके पर उसका वहाँ होना ज़रूरी था। भारी मन से उसने खुद को तैयार किया और नीचे जाने का फैसला किया।
जैसे ही प्रिया धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आई, उसकी नजरें मेहंदी के उस खूबसूरत मंडप पर पड़ी जहाँ नेहा बैठी थी। चारों ओर हरे रंग की सजी-सजाई सजावट और मेहंदी की खुशबू पूरे माहौल को खुशनुमा बना रही थी। प्रिया को देखकर सबकी निगाहें उसकी ओर घूम गईं, और कुछ ही देर में उसकी मुलाकात सलोनी की नजरों से हुई। सलोनी की आंखों में प्रिया के लिए ढेरों सवाल और एक नर्म सा इंतज़ार था।
सलोनी ने प्रिया को देख हल्की सी मुस्कान दी और अपनी जगह से उठकर उसके पास आ गई।
सलोनी ने बिना कुछ कहे उसकी तरफ एक दोस्ती भरी मुस्कान दी, मानो बिना शब्दों के कह रही हो, "मैं अब भी तुम्हारी दोस्त हूं, और तुम्हें समझती हूं।" दोनों की आंखों में पुरानी दोस्ती की झलक थी, और शायद एक नई शुरुआत का वादा भी।
प्रिया ने भी हल्की सी मुस्कान दी और दोनों ने बिना शब्दों के अपनी-अपनी भावनाएं एक-दूसरे के साथ बांटी।
इस क्षण में, माहौल में बसी खामोशी में दोनों के बीच का वो अनकहा रिश्ता फिर से जुड़ता हुआ सा लगा।
नेहा की मेहंदी की रस्म पूरे जोरों पर थी। घर में हर तरफ खुशियों का माहौल था। हरे रंग की सजावट, फूलों की खुशबू, और हर कोने से आती हंसी-ठिठोली की आवाजें इस खास दिन को और भी यादगार बना रही थीं। मंडप के बीचोंबीच नेहा बैठी थी, अपने हाथों पर धीरे-धीरे मेंहदी लगवाते हुए। उसकी मुस्कान, दोस्तों और परिवार के बीच, चमकते सूरज से कम नहीं लग रही थी।
इस बीच, सलोनी बार-बार घड़ी की तरफ देख रही थी। उसे आज अपने पति, मोहन, का बेसब्री से इंतजार था। मोहन लंबे समय बाद आने वाला था, और सलोनी को इस बात की खुशी थी कि उसके पति को आज उसके सभी पुराने दोस्तों से मिलने का मौका मिलेगा।
सलोनी ने दर्पण में खुद को एक बार फिर निहारा। उसने पीले रंग की खूबसूरत साड़ी पहनी थी, जिस पर सुनहरी कढ़ाई का काम था। उसके माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर उसके चेहरे की चमक को और बढ़ा रहे थे। उसने खुद से मुस्कुराते हुए कहा, "आज का दिन तो बिल्कुल खास है।"
नीचे, दोस्तों ने मेहंदी की रस्म के दौरान मस्ती शुरू कर दी थी। साक्षी और कृति ने नेहा को चिढ़ाते हुए कहा,
"नेहा, अब देखना, मोहित का नाम इतना बड़ा लिखवाना कि वो खुद ढूंढ न पाए!"
नेहा ने शरमाते हुए जवाब दिया, "अरे बस करो तुम लोग!"
अक्षय और निखिल ने माहौल को और मजेदार बनाने के लिए ढोलक उठा ली और गाने शुरू कर दिए।
"मेहंदी है रचने वाली…"
गाने की शुरुआत होते ही सब दोस्त झूम उठे। सभी के पैर खुद-ब-खुद थिरकने लगे, और मंडप में डांस और मस्ती का माहौल बन गया।
प्रिया, जो आमतौर पर इन सब मस्ती में शामिल नहीं होती थी, आज चुपचाप कोने में खड़े रहने के बजाय अपने दोस्तों के साथ ताल से ताल मिला रही थी। उसे देखकर सभी दोस्त खुश हो गए।
नेहा ने साक्षी से कहा, "देख, प्रिया आज हमारे साथ नाच रही है। लगता है, धीरे-धीरे वो फिर से पहले जैसी हो रही है।"
साक्षी ने मुस्कुराते हुए कहा, "ये तो सबसे बड़ी बात है। उसे खुश देखकर ऐसा लग रहा है जैसे सब कुछ सही हो जाएगा।"
इसी बीच, घर के बाहर गाड़ी के हॉर्न की आवाज आई। सलोनी समझ गई कि मोहन आ चुका है। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने जल्दी से दरवाजा खोला और मोहन को देखकर उसकी आंखें चमक उठीं।
मोहन ने हल्के पीले रंग का कुर्ता-पायजामा पहना हुआ था। वह अपने स्वभाव के अनुसार शांत और विनम्र था, लेकिन चेहरे पर मुस्कान साफ झलक रही थी।
घर में प्रवेश करते ही दोस्तों ने उसे घेर लिया। निखिल ने चुटकी लेते हुए कहा,
"अरे, मोहन भइया, आते ही बीवी के पास नहीं गए? पहले दोस्तों से मिलो!"
मोहन हंसते हुए बोला, "अरे, तुम सब तो मेरे परिवार जैसे हो। सबसे पहले तो आप सबका हक बनता है!"
सबने हंसी-मजाक और ठिठोली के साथ मोहन का स्वागत किया। घर में खुशी और मस्ती का माहौल था। लेकिन इस बीच, प्रिया अभी भी अपने आप में खोई हुई थी। वह मंडप के एक कोने में खामोशी से बैठी थी, बाकी सबकी हंसी और मस्ती को देख रही थी।
प्रिया के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी उदासी झलक रही थी। सलोनी ने उसे दूर से देखा और उसके पास जाने का मन बनाया, लेकिन नेहा ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"अरे, आज के दिन सब खुश हैं। तुझे टेंशन लेने की जरूरत नहीं। प्रिया का मूड ठीक हो जाएगा। बस उसे थोड़ा समय दे।"
सलोनी ने हल्के से सिर हिलाया और खुद को संभाल लिया।
मोहन के आने के बाद, सभी ने मिलकर मस्ती का सिलसिला शुरू किया। अक्षय ने ढोलक बजानी शुरू की और सब दोस्तों ने गाने गाए।
"ओए, अब तो डांस होना चाहिए!" निखिल ने कहा।
"हां! और डांस की शुरुआत मोहन-सलोनी करेंगे!" कृति ने चिल्लाते हुए कहा।
मोहन ने सलोनी की ओर देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "चलो, आज तुम्हारी दोस्ती के लिए कुछ भी।"
सलोनी और मोहन ने डांस किया, और उनके बाद सभी दोस्तों ने मिलकर डांस फ्लोर संभाल लिया।
"प्रिया, तू भी आ जा।" साक्षी ने उसे बुलाते हुए कहा।
प्रिया ने मना कर दिया, लेकिन नेहा ने उसे खींचकर सबके साथ डांस फ्लोर पर लाकर खड़ा कर दिया।
धीरे-धीरे प्रिया का मूड हल्का होने लगा। वह दोस्तों के साथ थोड़ा मुस्कुराने लगी।
मेहंदी का दिन सबके लिए खास था। सलोनी के मन में अब एक नई उम्मीद जाग चुकी थी कि शायद धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। नेहा, साक्षी, निखिल, और अक्षय भी प्रिया के इस छोटे-से बदलाव को देखकर खुश थे।
हालांकि, प्रिया के दिल के अंदर अब भी कई सवाल थे, लेकिन आज की इस खुशी ने उसके अंदर एक हल्की-सी रोशनी जगा दी थी।
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डांस और मस्ती के बाद सभी लोग खाने के लिए इकट्ठा हुए। रंग-बिरंगी रोशनी और स्वादिष्ट खाने की महक ने माहौल को और भी खुशनुमा बना दिया था। सभी हंसी-मजाक और गपशप के बीच खाने का आनंद ले रहे थे।
खाना खत्म होते ही लड़कियां अपने हाथों में मेंहदी लगवाने के लिए मंडप की तरफ चली गईं। नेहा के साथ उसकी सहेलियां और बाकी महिलाएं मेंहदी के डिज़ाइनों पर चर्चा करते हुए अपनी बारी का इंतजार करने लगीं। दूसरी ओर, सारे लड़के समूह बनाकर बातों में लग गए।
मोहन, निखिल, और अक्षय पास ही एक कोने में बैठ गए। यह मौका तीनों के लिए थोड़ा आराम करने और आपस में बातें करने का था।
मोहन ने बातचीत की शुरुआत करते हुए कहा,
"यार, ये बीवियां भी न, जिंदगी में चैन नहीं देतीं। सलोनी को देखो, हर छोटी बात पर टोकना और चीज़ें कंट्रोल करना उसकी आदत बन गई है।"
निखिल भी तुरंत अपनी शिकायत लेकर तैयार था। उसने जोड़ा,
"साक्षी को तो हर चीज़ पर परफेक्ट रहना है। अगर मैं गलती से कोई काम अधूरा छोड़ दूं, तो पूरे दिन उसका लेक्चर सुनना पड़ता है।"
मोहन ने कहा, “यार, ये सलोनी कभी-कभी तो मुझे लगता है कि पूरी सीआईडी टीम लेकर मेरे पीछे पड़ी रहती है। कहीं भी जाऊं, उसकी कॉल आ जाती है। खाना खाया या नहीं, कब आओगे, ये सब सवाल! और अगर गलती से जवाब न दूं तो साइलेंट ट्रीटमेंट शुरू हो जाता है।”
निखिल और अक्षय हंसने लगे। निखिल ने कहा, “भाई, यही हाल मेरी साक्षी का भी है। उसे लगता है कि मैं दिनभर उसके लिए काम कर रहा हूं। और अगर कहीं दोस्तों के साथ समय बिताने का सोचूं, तो वह ऐसे देखती है, जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया हो।”
अक्षय, जो अब तक चुपचाप सुन रहा था, ज़ोर से हंसा और मजाक करते हुए बोला,
"वाह! तुम दोनों तो बहुत ही दुखी पति हो। मुझे देखो, सिंगल हूं और ज़िंदगी मजे में बिता रहा हूं। शादी के झमेले से दूर।"
मोहन ने हल्का-फुल्का चिढ़ाते हुए कहा,
"अरे, अभी तो तुम अकेले हो, लेकिन जिस दिन तुम्हारी शादी होगी, तब तुम्हें भी पता चलेगा। फिर हमें मत कहना कि तुम्हें पहले से नहीं बताया।"
निखिल ने भी हामी भरते हुए कहा,
"सही कहा। ये शादीशुदा जिंदगी किसी एडवेंचर से कम नहीं है। हर दिन एक नया चैलेंज होता है।"
अब दोनों दोस्तों ने अपनी-अपनी पत्नियों की और भी शिकायतें करना शुरू कर दीं।
मोहन ने कहा,
"सलोनी हमेशा सजने-संवरने में लगी रहती है। घर में बैठो या शादी में आओ, उसके तैयार होने में घंटों लगते हैं। और ऊपर से, अगर कुछ कह दो तो खुद को सही साबित करने के लिए पूरा भाषण दे देती है।"
निखिल ने हंसते हुए कहा,
"साक्षी भी बिल्कुल वैसी ही है। घर में हमेशा कहती है कि मैं काम में उसकी मदद नहीं करता। अब मैं सारा दिन ऑफिस में काम करूं, फिर भी उसकी शिकायतें खत्म नहीं होतीं।"
अक्षय इन सारी बातों पर ज़ोर-ज़ोर से हंस रहा था। उसने मजाक करते हुए कहा,
"तुम दोनों तो जैसे शादी करके मुसीबत में फंस गए हो। मैं सोच रहा हूं कि ये शिकायतें सुनकर मैं अपनी सिंगल जिंदगी के लिए शुक्रगुजार हूं।"
मोहन और निखिल अपने दिल की भड़ास निकालने में इतने मग्न थे कि उन्हें यह एहसास ही नहीं हुआ कि उनकी पत्नियां, सलोनी और साक्षी, उनके ठीक पीछे खड़ी होकर उनकी सारी बातें सुन रही थीं।
सलोनी ने आंखें तरेरी और धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए मोहन के पास आई।
उसने आवाज़ में मिठास लाते हुए पूछा,
"मोहन, तुम मेरी सजने-संवरने की कितनी तारीफ कर रहे थे, ज़रा और बताओ न?"
मोहन के चेहरे का रंग उड़ गया। उसने मुड़कर देखा तो सलोनी की मुस्कुराहट में छिपा हुआ गुस्सा साफ झलक रहा था।
वहीं साक्षी ने निखिल की ओर देखते हुए कहा,
"और निखिल जी, आप तो कह रहे थे कि मैं आपको घर में काम नहीं करने देती। अब मुझे बताइए, आपके हिसाब से और क्या करना चाहिए?"
निखिल ने हड़बड़ाते हुए कहा,
"अरे नहीं-नहीं, मैं तो मजाक कर रहा था। सच में, तुम बहुत अच्छी हो।"
सलोनी ने भी मोहन को घूरते हुए कहा,
"मुझे समझ में आ गया कि मैं कितनी कंट्रोलिंग हूं। अब से मैं तुम्हें बिल्कुल भी नहीं टोकूंगी। अब तुम्हें खुद ही सब काम करना होगा।"
साक्षी ने हंसते हुए कहा,
"हां, और मैं भी निखिल को उसकी मनमर्जी करने दूंगी। लेकिन फिर खाना खुद बनाना पड़ेगा, और सफाई भी खुद करनी होगी।"
अक्षय इस पूरे ड्रामे को देखकर अपनी हंसी रोक नहीं पाया। उसने चुटकी लेते हुए कहा,
"भाई, तुम्हारे तो बुरे हाल हो गए। अब तो मुझे यकीन हो गया कि सिंगल रहना ही सही है।"
लेकिन सलोनी और साक्षी ने मिलकर उसे भी घेर लिया। सलोनी ने कहा,
"अक्षय, अभी तुम हमारी मजाक उड़ा रहे हो। लेकिन जब तुम्हारी शादी होगी, तब तुम्हारे भी होश ठिकाने आ जाएंगे। तब हम भी देखेंगे कि तुम कितना हंसते हो।"
साक्षी ने जोड़ा,
"हां, और तब तुम्हारी बीवी हमें बताएगी कि तुम कितने बड़े आलसी हो।"
अक्षय ने हंसते हुए कहा,
"अरे भाई, मुझे छोड़ दो। मैं अभी इस झमेले में फंसने के मूड में नहीं हूं।"
मोहन, निखिल, और अक्षय की हंसी-ठिठोली के बाद माहौल हल्का हो गया। सलोनी और साक्षी ने भी ज्यादा नाराज़गी न दिखाते हुए मजाक में बात खत्म कर दी। पूरे घर में एक खुशनुमा माहौल था। मेहंदी का मंडप सजी हुई लाइटों और फूलों से जगमगा रहा था। हल्की संगीत की धुन और चूड़ियों की खनक माहौल को और भी दिलकश बना रही थी।
मंडप के अंदर लड़कियां और महिलाएं मेंहदी लगवाने में मग्न थीं। नेहा के हाथों पर सबसे पहले मेहंदी लग चुकी थी। उसका नाम और उसका होने वाले दूल्हे मोहित का नाम बड़े प्यार से उसकी हथेलियों पर लिखा गया था। नेहा के चेहरे पर खुशी और शर्म दोनों झलक रही थीं। उसके दोस्त और सहेलियां इस मौके पर उसकी खूब खिंचाई कर रहे थे।
"नेहा, अब तो बस दूल्हे राजा का नाम ढूंढना बाकी है," साक्षी ने मजाक करते हुए कहा।
नेहा ने शर्माते हुए अपनी हथेलियां छुपा लीं।
दूसरी तरफ, प्रिया भी मंडप में आ गई थी। हालांकि वह सबसे अलग एक कोने में बैठी थी। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी लेकिन उसकी आँखों में कहीं ना कहीं उदासी थी। सलोनी ने उसे अकेला देखकर उसके पास जाने की सोची।
सलोनी: "प्रिया, तुम अकेले क्यों बैठी हो? चलो हमारे साथ बैठो।"
प्रिया: (मुस्कुराते हुए) "नहीं, मैं यहीं ठीक हूं। तुम सबको एन्जॉय करते हुए देख रही हूं।"
सलोनी ने उसका हाथ पकड़कर खींच लिया और उसे लड़कियों के बीच बिठा दिया।
मेंहदीवाली ने प्रिया के हाथों पर डिजाइन बनाना शुरू किया।
"दीदी, आप भी नाम लिखवाइए न," मेंहदी लगाने वाली लड़की ने चुटकी ली।
प्रिया ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा,
"नाम? मेरे हाथों पर किसी का नाम नहीं लिखना है। बस डिजाइन ठीक से बना देना।"
सलोनी और बाकी सहेलियों ने उसकी इस बात को महसूस किया लेकिन किसी ने आगे कुछ कहा नहीं।
मेंहदी लगवाते हुए प्रिया की आंखें फिर से अतीत में चली गईं। उसे सलोनी की शादी का वह दिन याद आ गया जब सब इसी तरह हंसी-मजाक कर रहे थे।
उसे अनिरुद्ध के साथ बिताया हर पल याद आ रहा था। वो मेहंदी की रसम में उसकी हथेलियों पर नाम ढूंढता था और फिर उसे चिढ़ाता था।
"तुम्हारे हाथों पर मेरा नाम नहीं है? मैं तो यहां अनिरुद्ध-अनिरुद्ध ढूंढ रहा हूं।"
प्रिया उसकी बातें सोचकर हल्का सा मुस्कुरा पड़ी लेकिन अगले ही पल उसकी आंखें नम हो गईं।
सलोनी, जो उसे ध्यान से देख रही थी, समझ गई कि प्रिया एक बार फिर अतीत में खो गई है। वह उसके पास आई और हल्के से बोली,
"प्रिया, मैं जानती हूं कि सब कुछ भुलाना आसान नहीं है। लेकिन जिंदगी हमें नए मौके देती है, हमें उन्हें अपनाना चाहिए।"
प्रिया ने उसकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, बस चुपचाप बैठी रही।
नीचे लड़कों का ग्रुप अभी भी अपनी मस्ती में लगा हुआ था। अक्षय ने माहौल को और हल्का करते हुए कहा,
"अब जब शादी की रसमें खत्म हो जाएं, तब हमें एक धमाकेदार बैचलर पार्टी करनी है।"
मोहन ने हंसते हुए कहा,
"तू शादी कर, फिर तेरे लिए बैचलर पार्टी का भी इंतजाम कर देंगे।"
निखिल ने चुटकी लेते हुए कहा,
"लेकिन अक्षय के लिए लड़की ढूंढने वाला काम सबसे मुश्किल होगा।"
तीनों दोस्त ठहाका लगाकर हंस पड़े।
मेंहदी की रसम धीरे-धीरे खत्म हो रही थी। लड़कियों ने अपने-अपने हाथों में मेहंदी लगवा ली थी। सबके चेहरों पर थकान थी लेकिन खुशी उससे कहीं ज्यादा थी।
नेहा को सबने उसके हाथों की मेंहदी की तारीफ करते हुए खूब चिढ़ाया।
साक्षी ने मजाक में कहा,
"नेहा, कल सुबह तक दूल्हे राजा को बताना कि मेंहदी का रंग कितना गहरा आया है। कहते हैं, जितना गहरा रंग, उतना प्यार।"
नेहा ने शर्मा कर सिर झुका लिया।
शाम ढलते-ढलते सभी लोग अपने कमरों की ओर चले गए। सलोनी ने जाते-जाते प्रिया को एक बार फिर देखा। उसके मन में एक नई उम्मीद थी कि शायद आने वाले दिनों में वह प्रिया को उसके पुराने दर्द से निकाल पाए।
प्रिया ने कमरे में जाकर एक बार फिर हाथों में लगी मेंहदी को देखा। उसकी आँखें गहरी सोच में डूब गईं। उसने खुद से कहा,
"क्या कभी ये रंग फिर से मेरे जीवन में खुशियां ला पाएगा?"
चांदनी रात में घर का आंगन शांत था। हल्की-हल्की हवा में फूलों की खुशबू तैर रही थी। हर कोई शादी की तैयारियों में जुटा था लेकिन प्रिया की जिंदगी के रंग अभी भी अधूरे थे।
अगले दिन की हलचल और नई रसमों के साथ क्या प्रिया के जीवन में कुछ बदलाव आएंगे? क्या सलोनी और उसके दोस्त उसे उसके अतीत से बाहर निकाल पाएंगे?
कहानी जारी है।।।।।
सुबह की रौशनी में घर का माहौल बहुत ही खास था। सभी लोग शादी की तैयारियों में व्यस्त थे। नेहा की शादी का दिन था, और घर में हलचल थी। सलोनी, प्रिया, और बाकी दोस्त शादी की सजावट में मदद कर रहे थे। हर जगह रंगीन फूलों और लाइट्स से सजावट हो रही थी। महिलाएं साड़ी और अन्य पारंपरिक कपड़ों में बहुत खूबसूरत लग रही थीं, और लड़के पारंपरिक कुर्ता-पजामा पहनकर तैयार हो रहे थे।
सलोनी और बाकी दोस्तों ने मिलकर नेहा की हल्की खिंचाई करना शुरू कर दिया। "नेहा, अब तो तुझे दूल्हे राजा से बिछड़ने का डर नहीं होगा?" अक्षय ने मजाक करते हुए कहा।
"क्या होगा तेरे बिना, तेरा प्यारा सा नाम तो अब दुल्हन के साथ जुड़ जाएगा।" निखिल ने भी वही तंज किया।
नेहा शर्म के मारे सिर झुकाए खड़ी रही। उसके चेहरे पर एक मासूम सी मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों में हल्की सी झिझक और शर्म दिख रही थी। सभी दोस्त उस पर मजाक करते रहे, लेकिन वह बस मुस्कुरा कर चुप रही।
इसी बीच, सलोनी का फोन बज उठा। उसकी आँखों में एक पल के लिए हल्की घबराहट आई, लेकिन फिर उसने चेहरे पर हल्की मुस्कान लाने की कोशिश की और तुरंत सबको कहा,
"थोड़ा अर्जेंट कॉल है, आप लोग काम में लगे रहिए।"
यह बात किसी ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी, लेकिन प्रिया ने ध्यान से देखा। सलोनी का व्यवहार थोड़ा असामान्य था। वह फोन से बात कर रही थी, लेकिन प्रिया को लगा कि सलोनी कुछ छुपा रही है। उसने सोचा कि यह सही समय है, वह सलोनी के पीछे चुपके से चल पड़ी।
प्रिया ने अपनी जिज्ञासा को दबाया नहीं, और सलोनी को बिना देखे पीछे-पीछे चलने लगी। उसने हल्के कदमों से सलोनी का पीछा किया। सलोनी किसी एक कोने में जाकर फोन पर बात कर रही थी। प्रिया ने ध्यान से सुनीं कुछ बातें, जो उसने कभी नहीं सोची थीं।
सलोनी फोन पर कुछ इस तरह से बात कर रही थी:
"हां डॉक्टर, अब अनिरुद्ध की तबियत कैसी है?"
"आप तो जानती हो कि अनिरुद्ध को कौन सी बीमारी है, और इसके बावजूद वह दवाई लेने से मना कर रहा है। वह आप से मिलने चाहता है।" डॉक्टर की आवाज में चिंता थी।
सलोनी के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ थीं, लेकिन उसने अपनी आवाज को सामान्य रखते हुए कहा,
"जी, जी डॉक्टर, मैं उससे कल ही मिलने आऊँगी। बस कल तक उससे संभाल लीजिए। और अनिरुद्ध को बोलिए कि वही बहन जल्द मिलने आएगी, अगर वह दवा खाएगा। आप तो जानते हो कि अनिरुद्ध की जान के साथ कोई खिलवाड़ मैं बिल्कुल भी पसंद नहीं करूंगी।"
डॉक्टर ने समझाया, "जी, ma'am, मैं उसे समझा रहा हूँ, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं है।"
सलोनी ने गहरी सांस ली और कहा,
"ठीक है, मैं अभी नहीं आ सकती, क्योंकि आज मेरी दोस्त की शादी है, लेकिन कल पक्का आऊँगी। तब तक आप देख लीजिए।"
प्रिया ने यह सब सुनकर पूरी तरह से चौंक कर सुना। उसका दिल जोर से धड़कने लगा। उसकी सोच में हलचल मच गई। "अनिरुद्ध अस्पताल में है? और वह किस बीमारी से जूझ रहा है? सलोनी ने ऐसा क्यों छुपाया?"
सलोनी जब बात खत्म करके पीछे मुड़ी, तो देखा कि प्रिया वहाँ नहीं थी। प्रिया बिना किसी को बताये चुपचाप निकल चुकी थी। सलोनी को यह महसूस हुआ कि किसी ने उसकी बातें सुन ली थीं। उसका चेहरा अचानक गंभीर हो गया, लेकिन उसने खुद को शांत रखा।
प्रिया जल्द ही घर से बाहर निकल चुकी थी। उसके मन में कई सवाल घूम रहे थे—अनिरुद्ध और सलोनी का क्या रिश्ता है? वह किस बीमारी का शिकार है? सलोनी ने उसकी बीमारी को क्यों छुपाया? यह सब सवाल अब प्रिया के मन में एक पेच बनकर घूम रहे थे।
प्रिया घर से बाहर निकलते हुए इस बारे में सोचने लगी। सलोनी ने उसे कभी भी अनिरुद्ध के बारे में ज्यादा नहीं बताया था। लेकिन आज फोन कॉल से यह बात सामने आई थी कि अनिरुद्ध अस्पताल में है और वह दवाई लेने से मना कर रहा है। सलोनी का व्यवहार भी थोड़ा अजीब था—एक तरफ वह अपनी दोस्त की शादी के दिन भी उसकी देखभाल करने के लिए सोच रही थी, और दूसरी तरफ उसकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी।
प्रिया को लगा कि यह सब कुछ बहुत पेचीदा हो रहा है। उसने सोचा, "क्या मुझे इस बारे में सलोनी से बात करनी चाहिए? क्या वह सच में अनिरुद्ध की मदद करने के लिए इतना कुछ कर रही है?" लेकिन वह यह भी जानती थी कि सलोनी कभी किसी से अपनी निजी बातें नहीं करती।
प्रिया अब पूरी तरह से उलझन में थी। उसका दिल और दिमाग दोनों लड़ रहे थे। क्या उसे सलोनी से खुलकर पूछना चाहिए, या उसे इस बात को सिर्फ अपने दिमाग से निकाल देना चाहिए?
लेकिन जब उसने बाहर की ओर देखा, तो उसे महसूस हुआ कि सलोनी की मुस्कान में अब पहले जैसी सच्चाई नहीं थी। यह सब कुछ बहुत ही उलझा हुआ था। क्या सलोनी सच में अनिरुद्ध की मदद कर रही थी, या फिर उसके छुपे हुए कुछ राज थे?
प्रिया का मन अंदर ही अंदर सवालों से घिरा था, और अगले कुछ घंटों में उसे कई और खुलासे हो सकते थे।
शादी का दिन पूरे धूमधाम से शुरू हुआ था। सब जगह रंग-बिरंगे फूलों और झालरों से सजावट थी। नेहा ने अपने जीवन के इस खास दिन के लिए अपनी सबसे प्यारी साड़ी पहनी थी, जो हल्के गुलाबी रंग की थी, जिसमें सुनहरी कढ़ाई थी। उसके बालों में खूबसूरत फूलों की एक जड़ाई की गई थी, और उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान छाई हुई थी। वहीं मोहित एक शानदार शेरवानी में सजे हुए थे, जो उनके आत्मविश्वास और प्रेम को दर्शा रहे थे।
शादी की रस्में शुरू हो चुकी थीं। सब लोग एक साथ बैठकर हवन कर रहे थे, और फिर एक-एक कर फेरे शुरू हो गए। मोहित ने अपनी दुल्हन नेहा को सात फेरे दिए, और दोनों ने एक-दूसरे के सामने अपनी जिंदगी के हर रास्ते पर साथ चलने का वचन लिया।
नेहा और मोहित का प्यार इस पल में झलक रहा था। उनकी आँखों में विश्वास और खुशी थी, जैसे उन्होंने अपने सपनों को साकार किया हो। दोनों के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, और उनकी जोड़ी बहुत खूबसूरत लग रही थी।
शादी के बाद, विदाई का समय आ चुका था। इस पल को हर लड़की के जीवन का सबसे भावुक और महत्वपूर्ण क्षण माना जाता है। नेहा ने विदाई के पहले अपनी मां और परिवार के सभी सदस्यों से गले मिलकर अलविदा ली। उसके दोस्तों, विशेष रूप से प्रिया, सलोनी, और बाकी सभी नेहा के साथ बिताए हर खूबसूरत पल को याद किया। सभी की आंखों में आंसू थे, लेकिन उनके चेहरे पर खुशी और गर्व था क्योंकि वे जानते थे कि यह एक नई शुरुआत है, और नेहा अब अपने जीवन के नए चरण की ओर बढ़ रही थी।
नेहा ने अपनी दोस्तों को गले लगा लिया, और भावुक होकर कहा, "आप सभी का दिल से धन्यवाद, आपने मेरे जीवन के इस सबसे बड़े दिन को खास बना दिया। मैं जानती हूं, हम हमेशा एक-दूसरे के साथ रहेंगे, चाहे हम कहीं भी हों।"
हर किसी के दिल में एक हल्का सा दर्द था क्योंकि अब नेहा उनके बीच नहीं रहेगी, लेकिन सभी ने उसे अपनी शुभकामनाएं दीं और उसे खुश रहने का आशीर्वाद दिया।
नेहा के साथ-साथ उसके परिवार के लोग भी भावुक थे। उसकी मां ने उसे गले लगाकर कहा, "तुम हमेशा हमारे दिल में रहोगी, बेटा।" और उसके पिता ने भी उसे अपनी आंखों में आंसू भरकर दुआ दी।
जब सभी रस्में पूरी हो गईं और विदाई का समय पास आ गया, नेहा ने अचानक प्रिया का हाथ पकड़ लिया और धीरे से उसे कमरे में ले आई। प्रिया को आश्चर्य हुआ, क्योंकि उसने इस अचानक के बदलाव को महसूस किया था।
नेहा ने अपनी आवाज में हलकी सी चिंता और गंभीरता दिखाते हुए कहा, "मुझे तुझसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।"
प्रिया ने भी ध्यान से पूछा, "क्या बात है, नेहा?"
नेहा थोड़ी देर चुप रही, फिर उसने धीरे से कहा, "प्रिया, तू सलोनी से नाराज है, यह बात मुझे बहुत अच्छे से पता है। लेकिन तुझे यह जानकर चौंकना होगा कि सलोनी ने तुझे इन तीन सालों में हमेशा ढूंढा।"
प्रिया थोड़ी चौंकी, और उसने अपनी आंखें घुमाई। "सलोनी ने तो कहा था कि उसने मुझे ढूंढने की कोई कोशिश नहीं की, और मुझे तो एक भी खत नहीं मिला, तो वह मुझे कैसे ढूंढ सकती है?"
नेहा ने गहरी सांस ली और कहा, "सलोनी ने तेरे लिए कभी सीधे खत नहीं भेजे। वह हमेशा हमारे नाम से तुझे खत भेजती थी ताकि तुझे कभी इसका पता न चले। वह नहीं चाहती थी कि तुम जानो कि वह तुझसे मिलना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी कि हम सबको इस बात का पता चले, और वह सिर्फ तुझे तकलीफ नहीं देना चाहती थी।"
प्रिया को इस बात पर यकीन नहीं हुआ। उसे कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ था कि सलोनी ने इतनी सच्ची कोशिश की थी, लेकिन उसने हमेशा सब कुछ छिपाए रखा था। इस बात ने प्रिया को बहुत सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने कभी सलोनी के बारे में इतना नहीं सोचा था।
प्रिया (सोचते हुए): "तो सलोनी ने मेरे लिए सच में इतनी मेहनत की थी? फिर क्यों मुझे हमेशा यही लगता रहा कि वह मुझसे दूर है?"
नेहा ने फिर आगे बताया, "और एक बात और है। क्या तुझे पता है कि अनिरुद्ध अब कहां है?"
प्रिया की आंखें चौड़ी हो गईं। "क्या, अनिरुद्ध? वह कहां है?"
नेहा ने जवाब दिया, "हां, वह अपने मामा के घर पढ़ाई करने गया है। सलोनी की शादी के बाद से वह वहीं है।" फिर नेहा ने थोड़ा चुप होकर कहा, "शादी के दौरान, कुछ खास हुआ था। अनिरुद्ध की तबियत अचानक खराब हो गई थी, और उसे चक्कर आ गए थे। सलोनी को सभी ने हॉस्पिटल ले जाने का फैसला लिया, लेकिन हम लोग वहां नहीं जा पाए। सलोनी ने बताया था कि शादी की भागदौड़ की वजह से वह परेशान हो गया था। लेकिन अब वह ठीक है।"
प्रिया की पूरी दुनिया हिल गई। वह समझ नहीं पा रही थी कि अचानक सब कुछ कैसे बदल गया। सलोनी और अनिरुद्ध के बीच ऐसा क्या था जो अब तक छुपा हुआ था?
प्रिया: "लेकिन सलोनी ने मुझे क्यों नहीं बताया? वह ऐसा क्यों छुपा रही थी?"
नेहा ने कहा, "वह नहीं चाहती थी कि तुझे और किसी को परेशानी हो। सलोनी ने सब कुछ अपने तरीके से संभाला, और अब जब सब ठीक है, तो शायद वह चाहती थी कि तुम जान सको।"
प्रिया का दिल भारी था, और उसकी आँखों में सवाल थे। वह सोच रही थी, "क्या सलोनी और अनिरुद्ध के बीच कुछ और था? और अगर हां, तो वह मुझसे यह सब क्यों छुपा रही थी?"
नेहा की विदाई का वक्त आ चुका था। सब लोग एक बार फिर से उसे गले लगाने के लिए आए। नेहा और मोहित ने सभी को अलविदा कहा। नेहा ने अपने दोस्तों, परिवार, और सबसे खास प्रिया को गले लगाकर बाय किया। सलोनी और प्रिया ने भी एक आखिरी बार उसे शुभकामनाएं दीं, और नेहा को भावुकता के साथ ससुराल भेज दिया।
जब नेहा कार में बैठी, तो उसकी आँखों में आंसू थे, लेकिन उसके दिल में एक नई शुरुआत का उत्साह था। वह जानती थी कि यह सफर अब उसके लिए और मोहित के लिए एक नई शुरुआत है।
इस विदाई ने प्रिया के दिल में कई सवाल खड़े कर दिए। वह सलोनी और अनिरुद्ध के बारे में जानने के लिए और भी जिज्ञासु हो गई थी।
कहानी जारी है।।।।
नेहा की विदाई के बाद माहौल में गहरा सन्नाटा था। सभी लोग नेहा के जाने की उदासी में डूबे थे, लेकिन प्रिया का मन कुछ और ही सोच रहा था। उसके दिमाग में नेहा की बातें गूंज रही थीं—“सलोनी ने तुझे तीन साल तक ढूंढा और अनिरुद्ध की तबीयत शादी के समय बहुत खराब हो गई थी।” प्रिया के दिल में कई सवाल थे, और उसे उन सवालों के जवाब चाहिए थे।
जैसे ही विदाई का शोर थमा, प्रिया ने देखा कि सलोनी किसी से फोन पर बात कर रही थी और काफी चिंतित लग रही थी। फोन खत्म करने के बाद, सलोनी जल्दी-जल्दी अपने बैग को संभालते हुए बाहर जाने लगी। प्रिया ने उसे रोक लिया।
प्रिया: "सलोनी, इतनी जल्दी में कहां जा रही हो?"
सलोनी एक पल के लिए ठिठक गई। प्रिया को सामने देखकर वह थोड़ा घबरा गई, लेकिन तुरंत अपने चेहरे के भाव बदलते हुए बोली, "कहीं नहीं, बस अपने घर जा रही हूं। थोड़ा थक गई हूं, इसलिए आराम करने की सोची।"
लेकिन प्रिया इतनी आसानी से मानने वालों में से नहीं थी। उसने सलोनी की बेचैनी और आवाज़ की घबराहट को भांप लिया था।
प्रिया ने सीधे सवाल किया, "सच-सच बताओ, सलोनी। तुम कहां जा रही हो? तुम्हारी हरकतें आजकल अजीब लग रही हैं।"
सलोनी ने बात टालने की कोशिश करते हुए कहा, "अरे, तुम तो हर बात में शक करने लगती हो। मैं सच में घर जा रही हूं।"
प्रिया: "सच-सच बताओ, सलोनी। तुम मुझसे क्या छुपा रही हो?"
सलोनी: "मैंने कहा न, कुछ नहीं। तुम क्यों इतना परेशान हो रही हो?"
प्रिया: "देखो सलोनी, मुझे सब पता है। नेहा ने मुझे सब बताया कि तुमने तीन साल तक मुझे ढूंढने की कोशिश की, और अनिरुद्ध की तबीयत शादी के समय खराब हो गई थी। अब और झूठ मत बोलो। सच बताओ, क्या हो रहा है?"
यह सुनकर सलोनी के चेहरे का रंग उड़ गया। वह खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन प्रिया की नज़रों से बचना मुश्किल था।
सलोनी (हिचकिचाते हुए): "देखो प्रिया, ये सब बातें अभी करने का वक्त नहीं है। मुझे जाना है। बाद में बात करेंगे।"
प्रिया: "नहीं, सलोनी। आज तुम कहीं नहीं जा रही। जब तक तुम मुझे सब सच नहीं बताती, मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी। क्या अनिरुद्ध की तबीयत वाकई में इतनी खराब है? और ये तीन सालों का क्या मामला है?"
सलोनी ने गहरी सांस ली। वह जान गई थी कि अब उसे सच बताना ही पड़ेगा।
प्रिया: "सबसे पहले ये बताओ कि अनिरुद्ध को हुआ क्या है?"
सलोनी ने कुछ देर तक चुप्पी साधी, फिर धीरे से बोली, "उसे हार्ट और ब्लड कैंसर है।"
प्रिया को यह सुनकर झटका लगा। वह सन्न रह गई।
प्रिया: "क-क्या? ये कब से है? और तुमने मुझे अब तक क्यों नहीं बताया?"
सलोनी: "मुझे उसके बारे में शादी के समय पता चला। जब उसकी तबीयत अचानक बिगड़ी थी, तब उसे अस्पताल ले जाया गया था। वहीं, डॉक्टर ने बताया कि उसे कैंसर है। लेकिन अनिरुद्ध से ये बात छुपाने की कसम ले ली मैने थी। मैने पूरे घर में कहा था कि किसी को मत बताना।"
प्रिया: "क्या? तुमने मुझसे ये इतनी बड़ी बात छुपाई? और वो खुद कैसे है? क्या उसका इलाज चल रहा है?"
सलोनी: "हां, इलाज चल रहा है। लेकिन डॉक्टर ने कहा है कि उसका ठीक होना लगभग नामुमकिन है। उसकी बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। अब सिर्फ दवाइयां ही उसे थोड़ा ठीक रख सकती हैं, और वो भी सिर्फ कुछ समय के लिए।"
यह सुनकर प्रिया की आंखों में आंसू आ गए।
प्रिया: "तो अब क्या होगा? क्या वो ठीक हो सकता है?"
सलोनी: "डॉक्टर ने कहा है कि जब तक वो दवाइयां लेता रहेगा, तब तक उसकी स्थिति थोड़ी स्थिर रहेगी। लेकिन यह सिर्फ वक्त की बात है। हमें नहीं पता कि वह कितना समय और हमारे साथ रहेगा।"
प्रिया: "तुमने मुझसे ये सब क्यों छुपाया, सलोनी? क्या तुम समझती हो कि मैं ये सब नहीं सह सकती थी?"
सलोनी: "नहीं, प्रिया। बात ये नहीं थी। मैने खुद को मना किया था। मैं नहीं चाहता कि तुम उसके लिए परेशान हो। और सच कहूं तो, मैं खुद भी समझ नहीं पा रही थी कि इस सच्चाई का सामना कैसे करूं।"
प्रिया: "तुम ने मुझे बिल्कुल भी इस लायक नहीं समझा? क्या मैं तुम्हारे इतने भी करीब नहीं थी कि तुम मुझसे अपनी परेशानियां बांट सकती?"
सलोनी (रोते हुए): "ऐसा मत कहो, प्रिया। तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। लेकिन जब मैं यह सच्चाई जानती थी, तो मैं खुद इतनी टूटी हुई थी कि किसी से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। मैं मजबूर थी।"
प्रिया (आंसू पोंछते हुए): "और अब? क्या वह अस्पताल में है?"
सलोनी: "हां। उसकी हालत अचानक बिगड़ गई थी, इसलिए मैंने डॉक्टर से बात की और उसे भर्ती कराया। अब मैं उसे देखने जा रही हूं।"
प्रिया: "तो मुझे भी तुम्हारे साथ चलने दो। मैं उसे देखना चाहती हूं।"
सलोनी: "नहीं, प्रिया। आज नहीं। तुम अभी बहुत परेशान हो। मैं तुम्हें बाद में सब कुछ विस्तार से बताऊंगी। अभी मुझे जल्दी अस्पताल पहुंचना है।"
प्रिया: "लेकिन सलोनी—"
सलोनी: "नहीं, प्रिया। तुम मुझ पर भरोसा करो। मैं तुम्हें सब सच बताऊंगी। बस आज मुझे अकेले जाने दो।"
सलोनी ने यह कहकर अपना बैग उठाया और तेज़ी से घर से बाहर निकल गई। प्रिया वहीं खड़ी रह गई, उसकी आंखों में आंसू और दिल में अनगिनत सवाल।
सलोनी ने जल्दी से टैक्सी ली और अस्पताल पहुंची। अनिरुद्ध को एक प्राइवेट रूम में रखा गया था। वह कमरे में दाखिल हुई, तो उसने देखा कि अनिरुद्ध बिस्तर पर लेटा हुआ था। उसकी आंखें बंद थीं, और उसके चेहरे पर थकावट साफ झलक रही थी।
सलोनी (धीरे से): "अनिरुद्ध, मैं आ गई हूं। तुम कैसा महसूस कर रहे हो?"
अनिरुद्ध ने धीरे-धीरे अपनी आंखें खोलीं और हल्की मुस्कान के साथ कहा, "मैं ठीक हूं, दीदी । तुम यहां क्यों आई हो? तुम्हें तो आराम करना चाहिए था।"
सलोनी (गुस्से से): "तुम्हें पता है, तुम्हारी वजह से मैं कितनी परेशान हूं? तुम्हारी ये हालत देखकर मेरा दिल टूट जाता है।"
अनिरुद्ध: "दीदी, मैंने तुमसे कहा था कि मुझे लेकर परेशान मत होना। मैं जानता हूं कि मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम अपनी जिंदगी को खुशी से जियो।"
सलोनी (रोते हुए): "तुम ऐसा क्यों कह रहे हो? तुम्हें पता है, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। डॉक्टर ने कहा है कि दवाइयों से तुम्हारी हालत थोड़ी ठीक हो सकती है। मैं हर हाल में तुम्हारे साथ रहूंगी।"
दूसरी तरफ, प्रिया घर में बेचैनी से घूम रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसके मन में बार-बार अनिरुद्ध और सलोनी की बातें गूंज रही थीं। उसने ठान लिया था कि वह किसी भी हाल में सच जानकर रहेगी।
अगले दिन, प्रिया ने फैसला किया कि वह खुद सलोनी के पास जाएगी और सारी बातें जानेगी।
अस्पताल से लौटते समय सलोनी का मन बुरी तरह उथल-पुथल में था। कार में बैठे हुए मोहन ने देखा कि उसकी पत्नी के चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही थीं।
मोहन: "क्या हुआ, सलोनी? तुम इतनी चुप क्यों हो? अस्पताल से लौटने के बाद से एक शब्द नहीं बोली हो।"
सलोनी ने अपने हाथों को अपनी गोद में मोड़ा और खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, "कुछ नहीं, बस थोड़ा थक गई हूं।"
मोहन ने उसके झूठ को भांप लिया था। वह सलोनी को पिछले सात सालों से जानता था। वह समझ गया कि सलोनी कुछ छुपा रही है।
मोहन: "सलोनी, मुझसे कुछ मत छुपाओ। तुम परेशान लग रही हो। क्या अनिरुद्ध की तबीयत और बिगड़ गई है?"
सलोनी ने गहरी सांस ली और धीरे-धीरे जवाब दिया, "नहीं, अभी तो उसकी हालत स्थिर है। लेकिन..." वह रुक गई।
मोहन ने गाड़ी सड़क किनारे रोक दी।
मोहन: "लेकिन क्या? साफ-साफ बताओ, सलोनी। तुम्हारे मन में क्या चल रहा है?"
घर पहुंचने तक सलोनी ने कुछ नहीं कहा। वह सीधे अपने कमरे में चली गई और बिस्तर पर बैठ गई। मोहन भी उसके पीछे आया और उसके पास बैठ गया।
मोहन: "सलोनी, अब तुम चुप नहीं रहोगी। मैं जानता हूं कि अनिरुद्ध की बीमारी ने तुम्हें बहुत परेशान किया है, लेकिन ऐसा क्या है जो तुम मुझे भी नहीं बता रही हो?"
सलोनी ने उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में आंसू थे।
सलोनी: "मोहन, तुम नहीं समझोगे। ये सब इतना आसान नहीं है। मैं तीन साल से ये सब छुपा रही हूं। और अब... अब मुझे डर है कि प्रिया को सब सच पता चल जाएगा।"
मोहन: "सच? कौन सा सच? सलोनी, मैं तुम्हारा पति हूं। अगर तुम मुझसे अपनी परेशानियां नहीं बांटोगी, तो और किससे करोगी?"
सलोनी ने अपने आंसुओं को रोकते हुए कहा, "मोहन, प्रिया को अनिरुद्ध से प्यार है। लेकिन उसे ये नहीं पता कि अनिरुद्ध को हार्ट और ब्लड कैंसर है। अगर उसे ये पता चल गया, तो वह अपनी पूरी जिंदगी उसके लिए कुर्बान कर देगी। और मैं ये नहीं चाहती।"
मोहन ने चौंकते हुए पूछा, "तीन साल? मतलब तुम ये बात इतनी समय से जानती हो?"
सलोनी ने सिर झुका लिया।
सलोनी: "हाँ, मुझे तीन साल पहले पता चला था। शादी के बाद, जब अनिरुद्ध की पहली बार तबीयत बिगड़ी थी, तब डॉक्टर ने मुझे बताया था। लेकिन उस समय अनिरुद्ध को खुद अपनी बीमारी के बारे में कुछ भी नहीं पता था। डॉक्टर ने कहा था कि ये बीमारी इतनी खतरनाक है कि इसका ठीक होना नामुमकिन है।"
मोहन हैरान था।
मोहित: "और अनिरुद्ध को ये सब कब पता चला?"
सलोनी: "कुछ महीने पहले। जब उसकी हालत ज्यादा खराब हो गई, तब उसे सच बताना पड़ा। पहले तो वह पूरी तरह टूट गया था, लेकिन फिर उसने खुद को संभाल लिया। उसने मुझसे कहा कि वह नहीं चाहता कि प्रिया उसकी बीमारी के बारे में जाने।"
मोहन ने गहरी सांस ली और सलोनी का हाथ थामते हुए कहा, "तुमने ये सब अकेले कैसे झेला, सलोनी? प्रिया को बताना सही नहीं होगा?"
सलोनी: "मुझे भी कई बार लगा कि मैं प्रिया को सब कुछ बता दूं। लेकिन फिर अनिरुद्ध ने मुझसे मना कर दिया। वह खुद नहीं चाहता कि प्रिया उसकी जिंदगी का हिस्सा बने। उसे लगता है कि अगर प्रिया को उसकी बीमारी का पता चल गया, तो वह अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेगी।"
मोहन: "लेकिन प्रिया को सच जानने का हक है, सलोनी। अगर वह अनिरुद्ध से प्यार करती है, तो उसे ये फैसला खुद लेने दो।"
सलोनी (गुस्से में): "तुम नहीं समझते, मोहन। अनिरुद्ध की हालत इतनी खराब है कि वह ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह सकता। प्रिया को उससे दूर रखना ही सबसे अच्छा है। मैं नहीं चाहती कि वह अपनी पूरी जिंदगी उसकी देखभाल में बर्बाद करे।"
मोहन चुप हो गया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि सलोनी सही कह रही थी या गलत।
सलोनी ने आगे कहा, "जब अनिरुद्ध को अपनी बीमारी का पता चला, तो उसने मुझे धन्यवाद दिया। उसने कहा, 'सलोनी, अगर तुमने ये बात प्रिया को बता दी होती, तो वह मुझसे कभी दूर नहीं जाती। लेकिन मैं नहीं चाहता कि वह मेरी वजह से अपनी जिंदगी खराब करे। मैं चाहता हूं कि वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़े और खुश रहे।'"
मोहन ने उसे ध्यान से सुना।
मोहन: "अनिरुद्ध की सोच बहुत बड़ी है, लेकिन क्या प्रिया को उसकी सच्चाई से दूर रखना सही है? क्या तुम नहीं सोचती कि प्रिया को सब कुछ पता चलना चाहिए?"
सलोनी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "मुझे नहीं पता कि सही क्या है। लेकिन एक बात तय है—मैं अभी प्रिया को कुछ नहीं बताने वाली। जब सही समय आएगा, तब मैं उसे सब सच बताऊंगी। फिलहाल, मुझे अनिरुद्ध की देखभाल करनी है।"
मोहन ने उसे गले लगाते हुए कहा, "जो भी फैसला लो, मैं तुम्हारे साथ हूं। लेकिन ध्यान रखना कि तुम्हारे इस फैसले से किसी का दिल न टूटे।"
सलोनी ने मोहन को धन्यवाद दिया और अगली सुबह की तैयारी में लग गई। उसे पता था कि आने वाले दिनों में सब कुछ और मुश्किल होने वाला था।
कहानी जारी है।।।।।
अगले दिन होते ही प्रिया ने टैक्सी ली और सलोनी के घर के लिए रवाना हो गई। प्रिया के दिल में उथल-पुथल मची हुई थी। टैक्सी की खिड़की से बाहर झांकते हुए वह सोच रही थी कि सलोनी और उसकी फैमिली का सामना कैसे करेगी। उसने महसूस किया कि अब सच जानने का समय आ गया है। उसकी बेचैनी हर पल बढ़ती जा रही थी।
जैसे ही टैक्सी सलोनी के घर के सामने रुकी, उसने एक गहरी सांस ली। "हिम्मत रखो, प्रिया," उसने खुद से कहा।
दरवाजे की घंटी बजाने के बाद, प्रिया ने अपने आसपास नजर दौड़ाई। उसका मन लगातार अनिरुद्ध के बारे में सोच रहा था।
दरवाजा खुला, और सामने सलोनी खड़ी थी।
दोनों सहेलियां कुछ पल एक-दूसरे को देखती रहीं। न कोई शब्द, न कोई सवाल। बस आंखों में अनगिनत भाव।
सलोनी की आंखों में खुशी थी, लेकिन उसके चेहरे पर गंभीरता झलक रही थी।
सलोनी की मां (पीछे से): "कौन है, बेटा?"
जब उन्होंने प्रिया को देखा, तो आश्चर्यचकित हो गईं।
प्रिया (झुकते हुए): "नमस्ते आंटी!"
प्रिया ने उनके पैर छुए। सलोनी की मां ने उसे आशीर्वाद दिया और सलोनी की ओर देखा।
सलोनी की मां: "प्रिया! इतने दिनों बाद? आओ, अंदर आओ।"
लेकिन सलोनी ने बिना कुछ कहे प्रिया का हाथ पकड़ा और उसे सीधे अपने कमरे में ले गई।
सलोनी के कमरे में पहुंचकर दोनों चुपचाप बिस्तर पर बैठ गईं। कमरे की दीवारों पर सलोनी और प्रिया की पुरानी तस्वीरें लगी थीं। दोनों की दोस्ती का हर लम्हा इन तस्वीरों में कैद था।
सलोनी: "तो अब बताओ, आखिर तुम यहां क्यों आई हो?"
प्रिया ने एक गहरी सांस ली। "मैं जानने आई हूं। अब और कोई झूठ नहीं, सलोनी। मुझे सबकुछ सच-सच बताओ।"
सलोनी कुछ पल चुप रही। उसकी आंखों में चिंता साफ दिख रही थी।
सलोनी: "प्रिया, तुम मुझसे सच्चाई क्यों जानना चाहती हो? आखिर तुम्हें क्या फर्क पड़ता है?"
प्रिया (थोड़ा तेज होकर): "फर्क पड़ता है, सलोनी। मैं जानना चाहती हूं कि आखिर अनिरुद्ध की जिंदगी में ऐसा क्या हो रहा है जिसे तुम मुझसे छुपा रही हो और क्यों छुपा रही हो।"
सलोनी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "पहले ये बताओ, तुम अनिरुद्ध से कितना प्यार करती हो?"
प्रिया यह सुनकर चौंक गई। उसके चेहरे पर हल्की घबराहट आ गई। उसने हकलाते हुए कहा, "मैं... प्यार? नहीं, सलोनी, तुम गलत समझ रही हो। मैं अनिरुद्ध से प्यार नहीं करती। वह बस मेरा एक अच्छा दोस्त है।"
सलोनी उसकी आंखों में गहराई से देख रही थी।
सलोनी: "झूठ मत बोलो, प्रिया। मैं सब जानती हूं। मुझे पता है कि मेरी शादी के दौरान तुम दोनों के बीच क्या चल रहा था। और वो सब भी, जब तुम मेरे घर आने वाली थी और अनिरुद्ध तुम्हें लेने गया था तो वह क्या हुआ, ये कहानी कब शुरू हुई है मुझे जानना है।"
प्रिया के होंठ कांपने लगे। उसके पास कोई जवाब नहीं था।
प्रिया (धीरे से): "मैं... मैं कुछ नहीं जानती। तू क्या बोल रही है।"
सलोनी ने उसकी आंखों में देखा और कहा, "अगर कुछ नहीं जानती तो क्यों रो रही हो?"
प्रिया के आंसू अब तक उसके गालों पर बहने लगे थे।
सलोनी: "अब छुपाने की कोशिश मत करो, प्रिया। सच-सच बताओ कि तुम्हारे और अनिरुद्ध के बीच क्या हुआ। कैसे शुरू हुआ सबकुछ? मैं हर बात जानना चाहती हूं।"
प्रिया ने उसकी ओर देखा। उसकी आंखों में दर्द और गुस्से का अजीब सा मेल था।
प्रिया: "तुम्हें ये सब क्यों जानना है? क्या फर्क पड़ता है तुम्हें?"
सलोनी: "फर्क पड़ता है, क्योंकि तुम्हारी कहानी में मेरी तेरे सारे सवाल के जवाब छुपे है। जब तक तु सच नहीं बताएगी, मैं तुम्हें अपनी बात नहीं बता सकती।"
प्रिया ने गहरी सांस ली। वह अंदर से टूट चुकी थी, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा, "नहीं, सलोनी। मैं ये सब याद नहीं करना चाहती। जो कुछ भी हुआ, मैं उसे भूल चुकी हूं।"
सलोनी (गुस्से में): "तो तुम्हें याद दिलाना पड़ेगा, प्रिया। अगर तुमने मुझे सबकुछ नहीं बताया, तो मैं भी तुझे अनिरुद्ध के बारे में कुछ नहीं बता पाऊंगी।"
कमरे में सन्नाटा छा गया। प्रिया चुपचाप बैठी थी, उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। सलोनी ने देखा कि उसकी सहेली अपने अंदर की लड़ाई से जूझ रही है।
सलोनी (धीरे से): "देख, प्रिया। मैं तुझसे कुछ छीनना नहीं चाहती। बस ये समझ कि जो सच तू मुझसे छुपा रही है, वही सच मेरे लिए सबसे ज्यादा जरूरी है और उसमें ही तेरा जवाब भी है ।"
प्रिया ने सिर झुका लिया।
प्रिया: "सलोनी, मैं सच में ये सब भूल जाना चाहती हूं।"
सलोनी: "तो फिर मेरी मदद कर। मुझे अपनी कहानी बता। मैं तुझे बाद में सबकुछ बताऊंगी, कि ये सब मेरे लिए क्यों जरूरी है।"
प्रिया ने सलोनी की ओर देखा। उसकी आंखों में दर्द साफ दिख रहा था।
प्रिया: "ठीक है, लेकिन मैं अभी कुछ नहीं कह सकती। मुझे थोड़ा वक्त चाहिए।"
सलोनी: "ठीक है। लेकिन याद रखना, जब तक तुम मुझे सबकुछ नहीं बताओगी, मैं तुझे अनिरुद्ध के बारे में कुछ नहीं बता पाऊंगी।"
कुछ देर बाद, सलोनी और प्रिया कमरे से बाहर निकाली। उसकी मां ने प्रिया के लिए चाय बनाई और दोनों ने थोड़ी औपचारिक बातें कीं। लेकिन दोनों के दिलों में अभी भी अनकही बातें थीं।
सलोनी और प्रिय कमरे में आकर बैठ गईं। कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। प्रिय ने एक गहरी सांस ली और सलोनी की तरफ देखा। वह जानती थी कि सलोनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ेगी।
प्रिय (धीमे स्वर में): "तुझे सच में सब कुछ जानना है, सलोनी? हर छोटी-बड़ी बात?"
सलोनी: "हां, प्रिय। अब और झूठ मत बोल। तुझे सब कुछ बताना ही होगा। आखिर मैं भी जानना चाहती हूं कि मेरे भाई के साथ तेरा रिश्ता कहां से शुरू हुआ था।"
प्रिय कुछ पल के लिए चुप हो गई। उसके मन में पुराने दिनों की यादें ताज़ा होने लगीं। उसने खुद को संभालते हुए बोलना शुरू किया।
सलोनी ने एक सवालिया नज़र से प्रिय की ओर देखा, लेकिन कुछ कहा नहीं।
प्रिय ने एक गहरी सांस ली और उसे धीरे-धीरे छोड़ते हुए बोली,
"ये कहानी है आज से ठीक तीन साल पहले की। मैं और अनिरुद्ध, यानी तुम्हारा भाई, पहली बार एक कॉलेज इवेंट में मिले थे।"
सलोनी ने थोड़ा चौंकते हुए पूछा, "मेरा भाई? लेकिन वो तुम्हें कैसे मिला? उस दिन तो वो मुझे घर लाने आया था।"
प्रिय ने हल्की मुस्कान दी ।
सलोनी (हैरान होकर): "तुझे याद है, जिस दिन हमारे यूनिवर्सिटी में फेयरवेल हो रहा था? मैं तो घर जाने के लिए तैयार थी, और मम्मी ने अनिरुद्ध को भेजा था मुझे लेने के लिए। लेकिन वो तुझसे कैसे मिला?"
प्रिय: "तब मुझे नहीं पता था कि वो तुम्हारा भाई है। हमारी पहली मुलाकात उस दिन हुई थी। शायद आखिरी दिन में कोई पहली मुलाकात इतनी यादगार बन जाएगी, ये मैंने कभी सोचा नहीं था।"
प्रिय की आँखें अतीत में खो गईं।
तीन साल पहले
दिल्ली यूनिवर्सिटी के वह हरे-भरे गलियारे, जहां हर छात्र का कोई न कोई सपना संजोया हुआ था। प्रिय, सलोनी, और उनके बाकी दोस्त (कृति, अक्षय, निखिल, साक्षी) यहाँ पढ़ते थे।
उस दिन यूनिवर्सिटी में फेयरवेल का आयोजन था।
चारों तरफ रंगीन लाइट्स, फूलों की सजावट और चमक-दमक से माहौल एकदम जीवंत हो उठा था।
दिल्ली यूनिवर्सिटी, वो जगह जहां आज यूनिवर्सिटी का फेयरवेल था। यूनिवर्सिटी को भव्य तरीके से सजाया गया था। स्टूडेंट्स के साथ उनके पैरेंट्स और कई बाहरी मेहमान भी पहुंचे थे।
कॉलेज के गेट के पास खड़ी प्रिय ने परेशान होकर अपनी दोस्त नेहा की ओर देखा।
हॉल के बाहर प्रिय अपनी सहेली नेहा को आवाज देती हुई आई।
प्रिय: "अरे नेहा, रुक तो सही! अरे नेहा, रुक जा न! मुझे इसमें चलने में बहुत प्रॉब्लम हो रही है। मुझे इस साड़ी में चलने में दिक्कत हो रही है।"
नेहा (हंसते हुए): "यार, तूने पहले कभी साड़ी पहनी नहीं क्या? चल जल्दी, मुझे मोहित से मिलना है।"
प्रिय ने अपनी साड़ी का पल्लू संभालते हुए चिढ़कर कहा, "सच-सच बता, तुझे जल्दी है न मोहित से मिलने की।"
नेहा, जो खुद किसी की तलाश में थी, झुंझलाते हुए बोली," जब तुझे पता है तो पूछ क्यों रही है।"
प्रिय (मुँह बनाते हुए): "तो सीधे-सीधे क्यों नहीं कहती कि तुझे सिर्फ मोहित से मिलना है?"
नेहा मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई।
प्रिय ने अपने आप को संभालते हुए यूनिवर्सिटी के मेन हॉल की तरफ कदम बढ़ाए।
आज उसने डार्क पिंक रंग की सिल्क साड़ी पहनी थी, जिसमें सुनहरे बॉर्डर की कढ़ाई थी।
उसने बाल खुले रखे थे, जो हवा में लहराते हुए उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे।
उसके कानों में मध्यम आकार के झुमके झूल रहे थे, और गले में ‘P’ अक्षर वाला पेंडेंट चमक रहा था।
उसकी क्रीम रंग की चूड़ियाँ, पायल, और कमरबंद उसकी सादगी को एक अनोखा आकर्षण दे रहे थे।
उसका मेकअप बेहद हल्का था—सिर्फ एक क्रीम रंग की बिंदी, हल्की गुलाबी लिपस्टिक, और काजल।
सच में, प्रिय आज किसी परी से कम नहीं लग रही थी।
दूसरी तरफ, अनिरुद्ध अपनी कार से उतर रहा था।
वह पहली बार इस यूनिवर्सिटी में आया था, और वो भी सिर्फ अपनी बहन सलोनी को लेने।
उसने देखा कि पूरा कॉलेज एक उत्सव स्थल में बदल गया था।
चारों तरफ लोग रंग-बिरंगे कपड़ों में अपनी चमक बिखेर रहे थे।
अनिरुद्ध ने सफेद प्लेन शर्ट और ब्लैक पैंट पहन रखी थी।
उसकी पर्सनैलिटी ऐसी थी कि लोग उसे एक बार देखे बिना नहीं रह सकते थे।
वह धीमे कदमों से कॉलेज के गेट की तरफ बढ़ने लगा।
उसी वक्त, प्रिय गेट के बाहर आ रही थी।
साड़ी में चलने की कोशिश में उसका बैलेंस बिगड़ा, और वह गिरने ही वाली थी कि अनिरुद्ध ने झपटकर उसे पकड़ लिया।
दोनों के बीच एक पल के लिए समय थम गया।
उनकी आँखें मिलीं और जैसे पूरी दुनिया उस पल में सिमट गई हो।
कुछ सेकंड बाद, जब दोनों होश में आए, तो अनिरुद्ध ने उसे संभालते हुए पूछा,
"आप ठीक तो हैं न? कहीं चोट तो नहीं लगी?"
प्रिय ने शर्माते हुए जवाब दिया,
"हाँ, मैं ठीक हूँ। और थैंक यू... अगर आप नहीं होते, तो मेरा आज का दिन खराब हो जाता।"
अनिरुद्ध ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"लगता है आपने पहली बार साड़ी पहनी है, इसलिए चलने में दिक्कत हो रही है।"
प्रिय ने पल्लू ठीक करते हुए जवाब दिया,
"हाँ, बहुत प्रॉब्लम हो रही है। लेकिन कोई बात नहीं, आज सब चलेगा। वैसे, आपको यहाँ पहले कभी नहीं देखा।"
अनिरुद्ध ने सहजता से जवाब दिया,
"वो मैं... अपनी बहन को लेने आया हूँ।"
प्रिय और अनिरुद्ध एक-दूसरे को चुपचाप देखते रहे।
अनिरुद्ध को प्रिय की सादगी बहुत पसंद आई।
जहाँ सभी लड़कियाँ मेकअप से सजी-धजी थीं, वहीं प्रिय अपनी सादगी में सबसे अलग लग रही थी।
प्रिय के मन में भी एक अजीब सा आकर्षण था।
प्रिय ने एक गहरी सांस लेते हुए अपनी कहानी यहाँ खत्म की।
सलोनी ने उसके चेहरे की ओर देखा, जहाँ स्मृतियों की परछाईं और अनकही भावनाएँ झलक रही थीं।
सलोनी ने धीरे से कहा,
"बस यही शुरुआत थी?"
प्रिय ने हल्के से सिर हिलाया और बोली,
"हाँ, लेकिन ये सिर्फ शुरुआत थी।"
प्रिय की आँखें नम हो गईं। वो सलोनी की तरफ देख कर चुप हो गई।
सलोनी: "अब बस इतनी बातें मत कर। मुझे सब कुछ डिटेल में जानना है। तेरा और अनिरुद्ध का हर लम्हा।"
प्रिय कुछ बोलने ही वाली थी कि सलोनी की मम्मी ने बाहर से आवाज दी।
सलोनी की मम्मी: "बेटा, खाना तैयार है। तुम दोनों बाहर आ जाओ।"
प्रिय और सलोनी ने बात वहीं रोक दी। लेकिन प्रिय जानती थी कि अब उसे अपना अतीत याद करके बताना होगा।
कहानी जारी है।।।।।
सलोनी की मम्मी सबको बुलाकर नीचे ले आई थीं। प्रिय और सलोनी ने भी लंच के लिए नीचे आकर डाइनिंग टेबल के पास जगह ली। टेबल पर सलोनी के मम्मी-पापा और उसका पति मोहन पहले से मौजूद थे। यह घर का सामान्य सा दिन लग रहा था, लेकिन प्रिय के दिल में उथल-पुथल चल रही थी।
लंच का समय हो चुका था। सभी चुपचाप खाना खा रहे थे। कभी-कभी बातचीत के छोटे-छोटे टुकड़े सुनाई दे जाते थे।
सलोनी की मम्मी (हंसते हुए): "मोहन, तुम्हारी ऑफिस की प्रेज़ेंटेशन कैसी रही?"
मोहन (शांत स्वर में): "अच्छी थी। अब देखना है, आगे क्या होता है।"
प्रिय ने चुपचाप अपनी प्लेट में खाने की ओर देखा। सलोनी भी अपने मन में कुछ सोच रही थी। दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी थी।
लंच के बाद सभी अपने-अपने कामों में व्यस्त हो गए। प्रिय और सलोनी वापस ऊपर कमरे में आ गईं। कमरा थोड़ा ठंडा था, खिड़की से हल्की धूप अंदर आ रही थी। प्रिय बिस्तर के किनारे बैठ गई और अपनी उंगलियों से चादर के कोने को मरोड़ने लगी। सलोनी चुपचाप उसे देख रही थी।
प्रिय के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी थी। वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन खुद को रोक रही थी। सलोनी को यह देखकर बेचैनी हो रही थी।
सलोनी (धीरे से): "क्या हुआ, प्रिय? तू इतनी शांत क्यों है?"
प्रिय ने उसकी तरफ देखा, फिर अचानक से पूछा:
प्रिय: "ये बता, तूने विदाई के बाद मुझे अचानक से क्यों भेज दिया था? वो दिन... वो सब क्यों हुआ?"
सलोनी यह सुनकर सन्न रह गई। उसकी आंखों में एक पल के लिए झलक आया कि वह इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा:
सलोनी: "तुझे सब सच-सच बताऊंगी, प्रिय। लेकिन पहले तू मुझे अपनी कहानी बता। फेयरवेल के बाद क्या हुआ? और तुझे अनिरुद्ध से प्यार कैसे हुआ?"
प्रिय ने गहरी सांस ली। उसकी आंखों में फ्लैशबैक की परछाइयां उभरने लगीं।
प्रिय (धीमी आवाज में): "फेयरवेल का वो दिन हमारी पहली मुलाकात थी। उसके बाद तुम भी उसके साथ आ गई थी। मुझे नहीं पता था कि वो तुम्हारा भाई है। लेकिन दिल में उसे जानने की ख्वाहिश थी। पता नहीं क्यों, लेकिन मेरी आंखें उसे ढूंढ रही थीं। और मेरा दिल उसके साथ समय बिताने की चाहत कर रहा था।"
प्रिय (थोड़ा मुस्कुराते हुए): "धीरे-धीरे कुछ महीने बीत गए। मैंने उसे भुला दिया। लेकिन फिर एक दिन तेरा मैसेज आया। तुमने अपनी शादी का निमंत्रण दिया और कहा कि मुझे शादी से 15 दिन पहले आना है। तुमने अपने सभी दोस्तों को बुलाया था।"
प्रिय (हंसते हुए): "हां और तुझे याद है, जब तुझे मैंने शादी के बारे में का मैसेज भेजा था, तूने कितना इग्नोर किया था मेरे मैसेज को ?"
सलोनी: "गुस्सा! मुझे याद है। लेकिन उस दिन कुछ और हुआ था। मैंने तुझे तेरे मैसेज का जवाब नहीं था इसलिए तू मुझसे गुस्सा हुई थी न ?"
प्रिय: "हां मैं उसके लिए गुस्सा हुई थी लेकिन और एक बात थी गुस्सा होने की।"
सलोनी: "और एक बात?"
प्रिय :" हां जब तेरा मुझे जवाब नहीं मिला तो मैंने तुझे कॉल किया और तूने मेरा कॉल भी नहीं उठाया। मैंने तुझे 3 से 4 बार कॉल किया था, लेकिन तूने मेरा फोन नहीं उठाया था और मुझे और गुस्सा आने लगा था। फिर अचानक से तेरा काल उठा मुझे लगा कि तूने उठाया था लेकिन फोन अनिरुद्ध ने उठाया था।"
फ्लैशबैक:
तीन साल पहले
सलोनी का फोन कब से बज रहा था, लेकिन वह अपने कमरे में थी ही नहीं। फोन की लगातार घंटी से अनिरुद्ध परेशान हो गया था। आखिरकार उसने फोन उठा लिया।
प्रिय (गुस्से में): "सलोनी, कहां है तू? कब से तुझे कॉल कर रही हूं! अब तुझे हमें याद करने की जरूरत ही नहीं है, ना? तुझे तो वो मोहन मिल गया है। अब हमें भुला ही देगी, है ना?"
अनिरुद्ध फोन पर कुछ पल चुप रहा। उसकी आवाज में एक हल्का सा आकर्षण था।
अनिरुद्ध (धीमी आवाज में): "दी घर पर नहीं है।"
प्रिय अचानक से चौंक गई। उसने सोचा था कि सलोनी बात करेगी। उसने थोड़ा धीरे से पूछा:
प्रिय: "सॉरी, लेकिन आप कौन?"
अनिरुद्ध: "दी का छोटा भाई। और आप कौन?"
प्रिय थोड़ा चिढ़कर बोली:
प्रिय: "तुम्हारी दी की बेस्ट फ्रेंड बोल रही हूं। अगर वो आए, तो बोल देना कि मैंने कॉल किया था।"
अनिरुद्ध मुस्कुराया और फोन पर सेव नाम पढ़ा।
अनिरुद्ध: "जी, आपका नाम... हेडेक, है न?"
प्रिय का मुंह बन गया। उसने गुस्से में कहा:
प्रिय: "हेडेक? उसने मेरा नाम हेडेक सेव किया है? चलो, थैंक यू। और बताना मत भूलना कि मैंने कॉल किया था।"
फोन रखते ही प्रिय ने गुस्से में फोन को देखा। लेकिन उसके दिल में अनिरुद्ध की आवाज कहीं अटक गई थी।
अनिरुद्ध फोन रखने के बाद भी कुछ पल के लिए प्रिय की आवाज के बारे में सोच रहा था।
अनिरुद्ध (मन ही मन): "कितनी अजीब लड़की है ये। जब इसकी आवाज इतनी दिलचस्प है, तो ये खुद कैसी दिखती होगी?"
अनिरुद्ध ने फोन पर प्रिय की प्रोफाइल फोटो देखी। उसमें एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी। उसने सफेद रंग की सादी कुर्ती और उसके साथ सफेद पलाज़ो पहन रखा था। कानों में छोटे-छोटे झुमके, हाथों में हल्की चूड़ियां, और माथे पर एक छोटी सी बिंदी।
अनिरुद्ध के दिमाग में एक ख्याल आया।
अनिरुद्ध (खुद से): "ये चेहरा कहीं देखा हुआ लगता है। लेकिन कहां?"
फिर उसे फेयरवेल का दिन याद आया। जब वह अपनी दीदी, सलोनी, को लेने गया था। वहां उसने एक लड़की को देखा था, जिसकी आवाज उसकी यादों में बसी थी। वह लड़की मुस्कुराते हुए सबके साथ बातें कर रही थी।
अनिरुद्ध (सोचते हुए): "उस दिन उसकी आवाज कितनी मीठी थी, और आज फोन पर ये गुस्से भरी आवाज... क्या ये दोनों एक ही हैं? अगर हां, तो ये लड़की कितनी अलग-अलग तरीके से पेश आती है।"
उसने सिर झटक दिया और खुद को अपने काम में व्यस्त करने की कोशिश की। लेकिन प्रिय की तस्वीर और उसकी आवाज उसके दिमाग में घूमती रही।
शाम को सलोनी कमरे में आई। अनिरुद्ध ने तुरंत कहा:
अनिरुद्ध: "आपकी दोस्त हेडेक का फोन आया था।"
यह सुनते ही सलोनी ने झट से अपना फोन उठाया और सीधे प्रिय को कॉल लगाई। बालकनी में जाकर दोनों सहेलियां घंटों बात करने लगीं।
प्रिय: "तू कहां थी? कब से तुझे कॉल कर रही थी। और ये क्या, तूने मेरा नाम 'हेडेक' क्यों सेव कर रखा है?"
सलोनी (हंसते हुए): "तो क्या गलत किया? तू मेरे सिर का दर्द ही तो है!"
प्रिय (गुस्से में): "तू बस हंसी मजाक कर, और मैं यहां परेशान थी। तुझे पता है, मैं तेरे भाई से बात कर रही थी और वो भी मुझे 'हेडेक' कह रहा था!"
दोनों सहेलियां हंसी में डूब गईं।
सलोनी: "अच्छा छोड़, ये बता, तू आ कब रही है?"
प्रिय: "मैंने तुझे बताया था न, कल सुबह की ट्रेन से आ रही हूं। बस मुझे लेने स्टेशन पर आ जाना। और सुन, शादी की तैयारी कैसे चल रही है?"
सलोनी: "सब बढ़िया चल रहा है। लेकिन तुझे आने के बाद खुद देखना होगा। और तू जल्दी आ, मेरे पास ढेर सारी बातें करनी हैं।"
दोनों की बातें कभी कॉलेज के दिनों की यादों पर चली जातीं, तो कभी शादी की तैयारियों पर।
रात के खाने के दौरान, सलोनी ने सबको बताया:
सलोनी: "मम्मी-पापा, दो दिन में मेरे बाकी दोस्त भी आ रहे हैं। और प्रिय कल सुबह आ रही है।"
यह सुनते ही अनिरुद्ध ने उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ कहा:
अनिरुद्ध: "हेडेक!"
सलोनी ने उसकी तरफ घूरते हुए कहा:
सलोनी: "हाँ, वही हेडेक। उसका नाम प्रिय है, और वो कल आ रही है।"
अनिरुद्ध ने तुरंत कहा:
अनिरुद्ध: "क्या मैं उसे लेने स्टेशन जा सकता हूं?"
यह सुनते ही सलोनी चौंक गई।
सलोनी: "तू क्यों जाएगा? वो मेरी दोस्त है, मैं जाऊंगी उसे लेने।"
इस पर उनके माता-पिता ने हस्तक्षेप किया।
मम्मी: "बेटा, तुम्हारी शादी में अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। तुम्हें बाहर जाकर ज्यादा थकना नहीं चाहिए।"
पापा: "अनिरुद्ध जा सकता है। आखिरकार, वही तो घर में सबसे फुर्सत वाला है।"
सलोनी ने थोड़ी नाराजगी से कहा:
सलोनी: "ठीक है। ले जा उसे लेने, लेकिन सही-सलामत घर ले आना। और हाँ, उससे ज्यादा बात मत करना!"
अनिरुद्ध मुस्कुराते हुए बोला:
अनिरुद्ध: "जैसा आप कहें, दीदी।"
अगले दिन सुबह का समय था। घर में हलचल थी। अनिरुद्ध ने जल्दी उठकर तैयार होना शुरू कर दिया। उसने नीले रंग की शर्ट और काले रंग की जींस पहनी। बालों को हल्का सा संवारते हुए उसने खुद को शीशे में देखा।
अनिरुद्ध (मन ही मन): "तो, आज इस हेडेक से मिलना होगा। देखते हैं, ये असल में कैसी है।"
वह जल्दी-जल्दी नाश्ता करके घर से निकलने लगा। तभी सलोनी ने पीछे से आवाज लगाई।
सलोनी: "अनिरुद्ध, सुन! ध्यान रखना, प्रिय को परेशान मत करना। वो मेरी सबसे प्यारी दोस्त है।"
अनिरुद्ध ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया:
अनिरुद्ध: "आपके कहने पर ध्यान रखूंगा, दीदी। वैसे भी मैं किसी को परेशान करने में यकीन नहीं रखता।"
अनिरुद्ध गाड़ी में बैठकर स्टेशन की ओर बढ़ा। रास्ते में उसके दिमाग में प्रिय की प्रोफाइल फोटो और उसकी आवाज बार-बार घूम रही थी।
अनिरुद्ध (सोचते हुए): "वो सच में अजीब है। लेकिन उसकी तस्वीर कुछ और ही कहानी बयां कर रही थी। क्या असलियत भी वैसी ही होगी?"
स्टेशन पर पहुँचते ही उसने ट्रेन का समय देखा। ट्रेन कुछ ही मिनटों में आने वाली थी। वह प्लेटफॉर्म पर खड़ा होकर इधर-उधर देख रहा था।
ट्रेन रुकी, और यात्री उतरने लगे। अनिरुद्ध की नजरें भीड़ में प्रिय को ढूंढ रही थीं। तभी उसने एक लड़की को देखा, जिसने सफेद रंग की लॉन्ग कुर्ती और उसके साथ हल्के नीले रंग की दुपट्टा लिया हुआ था। वह बहुत ही सादगी भरी और प्यारी लग रही थी।
प्रिय ने ट्रेन से उतरते ही इधर-उधर देखा। तभी अनिरुद्ध की नजर उस पर पड़ी।
अनिरुद्ध (मन ही मन): "यही है वो? हेडेक? मुझे यकीन नहीं हो रहा।"
प्रिय ने भी अनिरुद्ध को देखा, लेकिन उसने तुरंत पहचान नहीं पाई। वह पास आते ही बोली:
प्रिय: "आप... सलोनी के भाई हैं, है ना?"
(सलोनी ने उसे पहली ही बता दिया था कि उसका भाई जा रहा है उसको लेने को और सलोनी ने उसको अपने भाई की फोटो भी भेज दी थी ताकि उसको कोई प्रॉब्लम ना हो। पहले तो प्रिय फोटो देख कर शौक हो गई ये वही लड़का है जो उस दिन फेयरवेल में मिला था जो अपनी दीदी को लेने आया था। प्रिय शौक होते हुए खुद से बोली इसका मतलब ये सलोनी को लेने आया था उस दिन )
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "और आप... मेरी दीदी की 'हेडेक'।"
प्रिय ने गुस्से से उसकी तरफ देखा।
प्रिय: "ये क्या बकवास है? मेरा नाम प्रिय है। और आप मुझे बार-बार हेडेक क्यों कह रहे हैं?"
अनिरुद्ध (हंसते हुए): "अरे, दीदी ने ही आपका नाम अपने फोन में ऐसा सेव किया है। वैसे, आपका नाम जितना प्यारा है, आप उससे भी ज्यादा प्यारी आप लग रही हैं।"
प्रिय ने अनिरुद्ध की बात को नजरअंदाज करते हुए कहा:
प्रिय: "चलिए, जल्दी करें। मुझे घर पहुंचना है।"
गाड़ी में बैठने के बाद दोनों के बीच अजीब सी खामोशी थी। प्रिय खिड़की के बाहर देख रही थी, और अनिरुद्ध बार-बार उसे देख रहा था।
कुछ देर बाद, अनिरुद्ध ने बात शुरू की।
अनिरुद्ध: "तो, आपकी और दीदी की दोस्ती कितने सालों की है?"
प्रिय: "चार साल पुरानी है। हम कॉलेज से साथ हैं। वो हमेशा मेरी बड़ी बहन जैसी रही है।"
अनिरुद्ध: "अच्छा, और आप? आपके बारे में कुछ बताइए। आप क्या करती हैं?"
प्रिय: "मैं... अभी तो कुछ खास नहीं। बस तुम्हारी दीदी की शादी की तैयारियों में मदद करने आई हूं।"
अनिरुद्ध ने उसकी ओर देखते हुए कहा:
अनिरुद्ध: "आप बहुत ही शांत स्वभाव की लगती हैं। लेकिन फोन पर आपकी आवाज कुछ और ही कह रही थी।"
प्रिय ने उसकी तरफ देखते हुए कहा:
प्रिय: "क्योंकि उस वक्त मुझे गुस्सा आया था। और वैसे भी, आपकी आदत है लोगों का मजाक बनाने की?"
अनिरुद्ध ने हंसते हुए जवाब दिया:
अनिरुद्ध: "नहीं, सिर्फ उनके, जो मुझे पसंद आते हैं।"
प्रिय ने उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया, लेकिन उसकी हल्की सी मुस्कान अनिरुद्ध की नजरों से नहीं बची।
कहानी जारी है........।
प्रिय ने उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया, लेकिन उसकी हल्की सी मुस्कान अनिरुद्ध की नजरों से नहीं बची।
अनिरुद्ध और प्रिय गाड़ी में बैठे तो एक पल के लिए माहौल थोड़ा गंभीर और शांत हो गया। अनिरुद्ध ने गाड़ी स्टार्ट की और रास्ते पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन प्रिय की तरफ बार-बार एक हल्की नजर डालने से खुद को रोक नहीं पाया। प्रिय ने खिड़की से बाहर देखते हुए बालों को पीछे किया, जिससे उसकी सादगी और निखर गई।
अनिरुद्ध ने हल्के-फुल्के अंदाज में बातचीत शुरू की।
अनिरुद्ध: "तो, आप पहली बार हमारे शहर आई हैं?"
प्रिय (मुस्कुराते हुए): "नहीं, पहले भी आई हूं। सलोनी की वजह से कई बार आना हुआ है। लेकिन हां, आपके साथ ये पहली बार है।"
अनिरुद्ध ने उसकी तरफ देखते हुए थोड़ा मजाकिया लहजा अपनाया।
अनिरुद्ध: "और मेरे साथ आने का अनुभव कैसा लग रहा है?"
प्रिय (हंसते हुए): "अभी तक तो ठीक है। लेकिन आपका ‘हेडेक’ कहना मेरे दिमाग में अटका हुआ है।"
दोनों की हंसी से माहौल हल्का हो गया।
जैसे-जैसे गाड़ी आगे बढ़ती गई, दोनों के बीच बातचीत गहरी होती गई।
अनिरुद्ध: "वैसे, आपकी और दीदी की दोस्ती कब से है?"
प्रिय: "कॉलेज के पहले साल से। सलोनी बहुत मजेदार है। उसने हमेशा मेरा साथ दिया है।"
अनिरुद्ध: "हां, दीदी तो हर किसी की फेवरेट हैं। लेकिन मुझे यकीन है कि आपकी और उनकी दोस्ती में काफी मजेदार पल भी होंगे।"
प्रिय: "बहुत सारे! वो मुझे हमेशा अपने घर बुलाती थीं, और मैं हमेशा कुछ न कुछ बोल के मना कर देती थी। वो मुझे 'मुसीबत' कहकर बुलाती थीं।"
अनिरुद्ध ने हंसते हुए कहा:
अनिरुद्ध: "तो, पहले आप 'मुसीबत' थीं, और अब 'हेडेक' हैं। आपकी नामकरण परंपरा काफी दिलचस्प है।"
प्रिय ने गुस्से में उसकी तरफ देखा लेकिन फिर खुद को हंसने से नहीं रोक पाई।
बातचीत करते-करते गाड़ी एक मोड़ पर पहुंची। गाड़ी अचानक रुक गई क्योंकि सड़क पर एक गाय आ गई थी।
प्रिय (हड़बड़ाते हुए): "अरे, ध्यान से! गाय को चोट लग जाती तो?"
अनिरुद्ध (गंभीर होकर): "आप मुझे ड्राइविंग सिखा रही हैं?"
प्रिय: "नहीं, लेकिन ध्यान रखना जरूरी है।"
अनिरुद्ध ने शांति से जवाब दिया।
अनिरुद्ध: "आप फिक्र मत करें। मैं हर चीज का ध्यान रखता हूं, खासकर तब, जब आप मेरे साथ हों।"
प्रिय इस बात पर कुछ नहीं बोली लेकिन उसके चेहरे पर हल्की सी शर्मिंदगी झलक रही थी।
कुछ देर की चुप्पी के बाद, अनिरुद्ध ने फिर से बात शुरू की।
अनिरुद्ध: "वैसे, आपकी आवाज इतनी मीठी है कि गुस्से में भी अच्छा लगता है।"
प्रिय (आश्चर्य से): "गुस्से में अच्छी आवाज? ये तो पहली बार सुना है।"
अनिरुद्ध: "हां, लेकिन सच में, आपकी आवाज में एक अलग सा जादू है। शायद इसलिए दीदी आपको इतना पसंद करती हैं।"
प्रिय ने उसकी तरफ देखा, लेकिन कुछ कहने के बजाय हल्का मुस्कुरा दी।
बातों-बातों में, अनिरुद्ध के दिमाग में प्रिय की आवाज और उसका चेहरा बार-बार गूंज रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि उसने कहीं प्रिय को पहले देखा या सुना है।
अनिरुद्ध (मन ही मन): "ये चेहरा इतना मासूम क्यों लग रहा है? और ये आवाज... ?"
उसने अपने शक को दिल में दबा लिया और आगे कुछ नहीं कहा।
प्रिय को भी इस सफर में कुछ अलग सा महसूस हो रहा था। वह यह समझ नहीं पा रही थी कि क्यों अनिरुद्ध के साथ समय बिताना उसे अच्छा लग रहा है।
प्रिय (मन ही मन): "अजीब लड़का है। कभी मजाक करता है, कभी गंभीर बातें। लेकिन इसके साथ सफर में वक्त पता ही नहीं चलता।"
गाड़ी धीरे-धीरे घर के करीब पहुंचने लगी। अनिरुद्ध ने प्रिय की तरफ देखा और कहा:
अनिरुद्ध: "तो, ये सफर कैसा रहा?"
प्रिय: "ईमानदारी से कहूं तो अच्छा। मुझे लगा था कि आप ज्यादा मजाक करेंगे, लेकिन आप ठीक निकले।"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "शुक्र है। वैसे, दीदी से शिकायत मत कीजिएगा। वरना फिर से मुझे डांट पड़ेगी।"
दोनों हंसते हुए घर पहुंचे।
सलोनी घर के दरवाजे पर बेसब्री से खड़ी थी। उसने प्रिय को देखते ही गले लगा लिया।
सलोनी: "प्रिय! तू आ गई। मैं तुझे कितना मिस कर रही थी।"
प्रिय ने भी सलोनी को गले लगाया और कहा:
प्रिय: "मैं भी तुझे बहुत मिस कर रही थी। और ये तेरा भाई... इसे थोड़ा संभाल के रख। ये मुझे हर वक्त 'हेडेक' कहता रहता है।"
सलोनी ने हंसते हुए अनिरुद्ध की तरफ देखा।
सलोनी: "तूने फिर से इसे परेशान किया?"
अनिरुद्ध (हंसते हुए): "नहीं दीदी, मैंने तो सिर्फ सच कहा।"
सलोनी प्रिय को अंदर ले गई। अनिरुद्ध ने दूर से दोनों को देखना शुरू किया।
अनिरुद्ध (मन ही मन): "ये लड़की वाकई खास है। लेकिन क्यों? शायद वक्त के साथ इसका जवाब मिल जाएगा।"
प्रिय ने भी जाते-जाते अनिरुद्ध की तरफ देखा। उनके बीच एक खामोश जुड़ाव था, जिसे दोनों ने अभी तक समझा नहीं था।
जैसे ही प्रिय ने घर में कदम रखा, पूरे घर का माहौल मानो बदल गया। सलोनी की मम्मी, श्रीमती शारदा, ने उसे गले लगाते हुए कहा:
शारदा: "प्रिय बेटा, तू तो हमारी सलोनी की जान है। अब आ गई है, तो घर की रौनक और बढ़ गई।"
प्रिय ने आदर से उनके पैर छुए।
प्रिय: "आपका घर हमेशा से मुझे अपना सा लगता है, आंटी। और वैसे भी, सलोनी के बिना मेरा कोई दिन पूरा नहीं होता।"
शारदा: "बिलकुल सही कहा। अब तू भी हमारी बेटी जैसी ही है। आराम से रहना और अपनी पढ़ाई की टेंशन मत लेना।"
अनिरुद्ध दूर खड़ा इस पूरे दृश्य को देख रहा था। प्रिय की मुस्कान और उसकी सादगी उसे अंदर तक प्रभावित कर रही थी।
अनिरुद्ध (मन ही मन): "कैसे कोई इतनी जल्दी सबका दिल जीत सकता है?"
प्रिय ने उसकी तरफ देखा और हल्की सी मुस्कान दी। अनिरुद्ध ने नजरें चुराते हुए वहां से हटने का बहाना किया।
सलोनी और प्रिय ने अपने पुराने दिनों की यादों को ताजा करने के लिए बालकनी में बैठकर बातें शुरू कीं।
सलोनी: "याद है, जब कॉलेज में तूने मेरी जगह प्रोजेक्ट प्रेजेंट किया था?"
प्रिय (हंसते हुए): "और उसके बाद तेरे प्रोफेसर ने मुझे अपनी असिस्टेंट बनने का ऑफर दे दिया था?"
सलोनी: "अरे हां! और मुझे क्या मिला? डांट कि मैं कामचोर हूं।"
प्रिय ने सलोनी की तरफ देखते हुए कहा:
प्रिय: "वैसे, तेरे घर का माहौल बहुत अच्छा है। अंकल-आंटी भी बहुत प्यारे हैं। और हां, तेरा भाई..."
सलोनी ने उसे चिढ़ाते हुए बीच में टोका।
सलोनी: "क्या हुआ मेरे भाई को?"
प्रिय (शरारत से): "कुछ नहीं, बस थोड़ा अजीब है। पहले तो मुझे 'हेडेक' बोलता था, और अब... अब समझ नहीं आता, क्या सोचेगा।"
सलोनी ने हंसते हुए कहा:
सलोनी: "तू उसकी बातों को सीरियसली मत ले। वो ऐसा ही है।"
अनिरुद्ध अपने कमरे में बैठा प्रिय के बारे में सोच रहा था।
अनिरुद्ध (खुद से): "क्यों मैं उसके बारे में इतना सोच रहा हूं? मैंने तो बस उसे रास्ते में थोड़ा जाना... लेकिन वो मुझे इतनी खास क्यों लगती है?"
उसने खुद को इस सोच से बाहर निकालने के लिए काम में व्यस्त कर लिया।
डिनर टेबल पर पूरा परिवार इकट्ठा हुआ। प्रिय ने सभी की प्लेटें परोसने में मदद की।
शारदा: "प्रिय, बेटा तू मेहमान है। बैठ जा, मैं संभाल लूंगी।"
प्रिय: "अरे नहीं आंटी, आप मुझे ऐसे शर्मिंदा मत कीजिए। मुझे ये सब करना अच्छा लगता है।"
अनिरुद्ध ने प्रिय की तरफ देखते हुए कहा:
अनिरुद्ध: "आप इतनी जल्दी घर का काम संभाल लेंगी तो दीदी का क्या होगा?"
प्रिय ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
प्रिय: "सलोनी को अब संभालने की जरूरत नहीं। वो खुद समझदार हो गई है।"
अनिरुद्ध ने हल्के से कहा:
अनिरुद्ध: "समझदार? वो तो मुझे बचपन से परेशान करती आ रही है।"
पूरा परिवार हंसने लगा।
डिनर के बाद, प्रिय बालकनी में खड़ी थी। अनिरुद्ध भी वहां आ गया।
अनिरुद्ध: "अकेले खड़ी हो? सब ठीक है?"
प्रिय: "हां, बस रात की ठंडी हवा का मजा ले रही हूं। यहां का मौसम बहुत अच्छा है।"
अनिरुद्ध ने उसकी तरफ देखते हुए कहा:
अनिरुद्ध: "आप सच में सबके दिल में जगह बना लेती हैं।"
प्रिय (हंसते हुए): "शुक्रिया। वैसे, आपको भी थोड़ा अपनी इमेज बदलनी चाहिए। लोग आपको बहुत सीरियस समझते हैं।"
अनिरुद्ध: "सीरियस? ऐसा तो मैंने सोचा नहीं था। लेकिन ठीक है, कोशिश करूंगा।"
दोनों के बीच हल्की मुस्कान और चुप्पी का एक पल बीता।
सलोनी वहां आई और बोली:
सलोनी: "अरे, तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो? प्रिय, तू सोने क्यों नहीं गई?"
प्रिय: "बस, हवा का मजा ले रही थी। चल, अब सोने जा रही हूं।"
अपने कमरे में जाकर प्रिय ने अपने बिस्तर पर बैठकर सोचा।
प्रिय (मन ही मन): "यह परिवार कितना प्यारा है। और अनिरुद्ध... वो अजीब है, लेकिन उसकी बातें दिल को छू जाती हैं।"
दूसरी तरफ, अनिरुद्ध ने भी खुद से बात की।
अनिरुद्ध (मन ही मन): "ये क्या हो रहा है मेरे साथ? क्यों मैं प्रिय के बारे में इतना सोच रहा हूं? मुझे इसे रोकना होगा।"
सुबह प्रिय जल्दी उठ गई और सलोनी के साथ नाश्ते की तैयारी में मदद करने लगी।
सलोनी: "तू क्यों इतनी जल्दी उठ गई?"
प्रिय: "बस, आदत है। और तेरा घर मुझे अपना सा लगता है।"
पूरा परिवार प्रिय के आने से खुश था। अनिरुद्ध और प्रिय के बीच एक अनकही कहानी शुरू हो चुकी थी, जो धीरे-धीरे आकार ले रही थी।
कहानी जारी है ।।।।।
सुबह की हल्की धूप बालकनी के पर्दों से छनकर प्रिय के चेहरे पर पड़ रही थी। प्रिय ने आंखें खोलीं और एक गहरी सांस लेते हुए मुस्कुराई।
प्रिय (मन ही मन): "इस घर में एक अलग ही सुकून है। सब इतने अपने से लगते हैं। और अनिरुद्ध..."
प्रिय ने खुद को रोका। उसे लगा कि अनिरुद्ध के बारे में सोचने का कोई मतलब नहीं, लेकिन उसके दिल की धड़कन मानो उसे कुछ और ही कह रही थी।
नीचे किचन में शारदा और सलोनी नाश्ता बना रही थीं।
शारदा: "सलोनी, बेटा प्रिय को आराम करने दे। वो मेहमान है।"
सलोनी: "मम्मी, आप उसे नहीं जानतीं। वो मेहमान नहीं है, काम करने में मुझसे आगे है।"
प्रिय किचन में आ गई और मुस्कुराते हुए बोली:
प्रिय: "अरे आंटी, मेहमान का टैग मुझे मत दीजिए। मुझे आपकी मदद करने में मज़ा आता है।"
शारदा ने सिर हिलाते हुए उसे साथ काम करने दिया।
अनिरुद्ध ने नाश्ते की खुशबू सूंघते हुए किचन में कदम रखा।
अनिरुद्ध: "वाह, क्या बात है। आज का नाश्ता तो बहुत स्पेशल लग रहा है।"
प्रिय ने पलटकर देखा।
प्रिय: "स्पेशल इसलिए है क्योंकि इसे मैंने बनाया है।"
अनिरुद्ध ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया:
अनिरुद्ध: "तो फिर मैं स्पेशल डिश का पहला टेस्टर बनना चाहूंगा।"
प्रिय ने हंसते हुए एक प्लेट उसकी तरफ बढ़ाई।
प्रिय: "लीजिए, टेस्टर साहब। बताइए, पास हुआ या फेल?"
अनिरुद्ध ने पहला निवाला खाया और तारीफ करते हुए कहा:
अनिरुद्ध: "अगर मैं ये कहूं कि ये अब तक का सबसे अच्छा नाश्ता है, तो क्या आप रोज़ मेरे लिए बना देंगी?"
प्रिय ने शरारत से कहा:
प्रिय: "बिलकुल नहीं। खुद बनाना सीखिए।"
शाम को शारदा ने प्रिय और अनिरुद्ध को बाजार से कुछ सामान लाने के लिए कहा।
शारदा: "अनिरुद्ध, प्रिय के साथ जाओ। उसे रास्ता पता नहीं है।"
अनिरुद्ध: "जी मम्मी।"
बाजार जाते वक्त कार में एक अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी।
अनिरुद्ध: "आप इतनी शांत क्यों हैं? आमतौर पर तो आप बहुत बोलती हैं।"
प्रिय: "मैं शांत नहीं हूं, बस सोचा कि आपको भी थोड़ा स्पेस दूं।"
अनिरुद्ध मुस्कुराया और रेडियो ऑन कर दिया। गाना बजने लगा: "तेरा होने लगा हूं..."।
प्रिय ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा:
प्रिय: "मौसम कितना अच्छा है न?"
अनिरुद्ध: "हां, और कंपनी भी।"
प्रिय ने उसकी तरफ देखा और हल्के से मुस्कुरा दी।
दुकान पर पहुंचकर दोनों सामान चुनने लगे।
प्रिय: "ये मसाले अच्छे लग रहे हैं।"
अनिरुद्ध: "लेकिन मम्मी ने इस ब्रांड का कहा था।"
प्रिय: "अरे, ये भी अच्छा है। आप मुझ पर भरोसा कीजिए।"
अनिरुद्ध: "ठीक है, अगर मम्मी ने कुछ कहा तो मैं आपका नाम लूंगा।"
दोनों हंसने लगे।
घर लौटते वक्त अचानक बारिश शुरू हो गई।
प्रिय: "वाह, बारिश! चलिए रुकते हैं।"
अनिरुद्ध: "आप भीग जाएंगी। चलिए जल्दी घर पहुंचते हैं।"
लेकिन प्रिय ने कार रोकने की ज़िद की।
दोनों बाहर निकले। प्रिय ने बारिश में हाथ फैलाकर घूमना शुरू किया।
अनिरुद्ध (मन ही मन): "ये लड़की सच में अलग है।"
प्रिय ने उसे भी खींच लिया।
प्रिय: "डर क्यों रहे हैं? बारिश का मज़ा लीजिए।"
अनिरुद्ध ने पहली बार खुद को इतना आज़ाद महसूस किया।
भीगे हुए दोनों जब घर पहुंचे तो शारदा ने डांटते हुए कहा:
शारदा: "ये क्या हाल बना लिया? दोनों भीगकर आए हैं।"
सलोनी (हंसते हुए): "अनिरुद्ध, तुम भी बारिश में भीगे? यकीन नहीं होता।"
प्रिय ने शर्माते हुए कहा:
प्रिय: "गलती मेरी है। मैंने उन्हें रोक लिया था।"
अनिरुद्ध: "नहीं, इसमें गलती की बात नहीं। बारिश का मजा कभी-कभी लेना चाहिए।"
रात को अनिरुद्ध अपने कमरे में बैठा सोच रहा था।
अनिरुद्ध (खुद से): "प्रिय मेरे जीवन में क्या जगह बना रही है? क्यों उसका साथ मुझे इतना सुकून देता है?"
दूसरी तरफ, प्रिय भी यही सोच रही थी।
प्रिय (मन ही मन): "अनिरुद्ध जितना सीरियस दिखता है, उतना है नहीं। उसका साथ मुझे अच्छा लगता है।"
प्रिय और अनिरुद्ध के बीच की दूरी कम हो रही थी। एक नई शुरुआत ने दोनों के दिलों में जगह बना ली थी, लेकिन यह सिर्फ शुरुआत थी।
आने वाले दिनों में क्या यह दोस्ती प्यार में बदलेगी, या यह केवल एक भ्रम है? दोनों के मन में सवाल तो थे, लेकिन जवाब अभी तक किसी के पास नहीं थे।
सुबह की पहली किरणें प्रिय के कमरे में फैली थीं। हल्की धूप उसकी खिड़की से आकर उसके चेहरे पर गिर रही थी, और प्रिय की नींद धीरे-धीरे खुलने लगी। उसने अपनी आँखें झपकाईं और धीरे से बिस्तर से बाहर निकली। कमरे का माहौल ठंडा था, और खिड़की से हल्की हवा आ रही थी। प्रिय बालकनी में खड़ी हो गई और गहरी साँस ली। वो सुबह का समय पसंद करती थी, खासकर जब घर में सब चुपचाप होते थे और कोई हंगामा नहीं होता था।
नीचे गार्डन में उसने अनिरुद्ध को देखा। वह मॉर्निंग वॉक कर रहा था, हाथ में कॉफी का मग पकड़े हुए। प्रिय ने उसे देखा और हल्का सा मुस्कुराई। अचानक उसके मन में एक अजीब सी खिचक महसूस हुई, जैसे कुछ बदल रहा हो। उसने अपनी नज़रें हटा लीं और नहाने के लिए अन्दर चली गई।
प्रिय जब डायनिंग टेबल पर बैठी तो शारदा आंटी पहले से बैठी थीं, और सभी लोग नाश्ता कर रहे थे। प्रिय के आते ही सब ने उसे देखा और मुस्कुराए।
शारदा आंटी: "अरे, प्रिय, तू तो सुबह-सुबह उठ गई। क्या बात है? कोई खास बात है?"
प्रिय: "जी आंटी, आज जल्दी नींद खुल गई।"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "नींद खुली या किसी को देखने के लिए उठीं?"
प्रिय थोड़ा झेंपते हुए हंसते हुए बोली, "बस, कुछ खास नहीं , बस थोड़ी जल्दी नींद खुल गई।"
वहीं अनिरुद्ध ने मुँह चिढ़ाते हुए कहा, "क्या? तुम्हारे जैसा आलसी, जल्दी उठने वाला? कोई जादू हो गया है क्या?"
प्रिय उसकी बात को हल्के से नज़रअंदाज कर दी।
प्रिय ने उसकी बात पर उसे घूरा।
प्रिय: "जी नहीं, मैं आपकी तरह देर तक सोने वालों में से नहीं हूँ।"
अनिरुद्ध: "अच्छा? फिर कल रात कौन जाग रहा था?"
प्रिय ने उसे चिढ़ाने के लिए कहा, "तुम क्या जानोगे जल्दी उठने का मजा, तुम्हें तो हमेशा नींद में रहते हो।"
प्रिय की आँखें बड़ी हो गईं।
प्रिय: "तुम्हें कैसे पता?"
अनिरुद्ध: "मैंने देखा था, तुम्हारी बालकनी की लाइट ऑन थी।"
सलोनी हंसते हुए बोली, "लगता है कोई किसी के बारे में ज्यादा ध्यान दे रहा है।"
प्रिय और अनिरुद्ध दोनों झेंप गए।
सलोनी और शारदा दोनों ही हंसते हुए प्रिय और अनिरुद्ध की नोक-झोंक देख रहे थे। प्रिय और अनिरुद्ध की तकरार अब कोई नई बात नहीं रह गई थी, और दोनों के बीच के छोटे-मोटे झगड़े अब सबको मस्ती लगने लगे थे।
दोपहर के समय शारदा आंटी ने प्रिय और अनिरुद्ध को बाजार जाने के लिए कहा।
शारदा: "प्रिय, अनिरुद्ध के साथ जाओ। तुम अकेले नहीं जा सकती, और वो भी तुम्हारे साथ जाएगा।"
शारदा: "अनिरुद्ध, प्रिय के साथ जाओ, उसे अकेले रास्ता पता नहीं है।"
अनिरुद्ध: "फिर से? लगता है मम्मी को हमें साथ भेजने में मज़ा आ रहा है।"
प्रिय (मुस्कुराते हुए): "कोई ज़रूरत नहीं है साथ आने की। मैं खुद चली जाऊंगी।"
शारदा: "अकेले नहीं। अनिरुद्ध जाएगा तुम्हारे साथ।"
प्रिय ने देखा कि अनिरुद्ध मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था। उसे लगता था कि शारदा आंटी जानबूझकर उन्हें एक साथ भेज रही हैं, लेकिन प्रिय को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा।
प्रिय: "ठीक है, मैं तो तुम्हारे साथ जा ही रही थी, लेकिन तुम साथ चलने के लिए राज़ी हो ना?"
अनिरुद्ध ने शरारत से कहा, "मेरे पास और कोई चारा नहीं है। तुम्हारी वजह से ही तो आ रहा हूँ।"
प्रिय और अनिरुद्ध दोनों कार में बैठकर बाजार की ओर निकल पड़े। रास्ते भर दोनों एक-दूसरे से बातचीत कर रहे थे। प्रिय ने अनिरुद्ध से पूछा, "तुम्हारी पसंदीदा जगह कहाँ है?"
अनिरुद्ध: "कहीं खास नहीं, लेकिन मुझे चाय के स्वाद के बारे में काफी जानकारी है।"
प्रिय हंसते हुए बोली, "चाय तो तुम्हारी जान लगती है, है ना?"
दोनों के बीच की बातचीत का लहजा हल्का-फुल्का था, और प्रिय को अच्छा लग रहा था कि अनिरुद्ध के साथ समय बिताना अब बहुत आरामदायक हो गया था।
बाजार में पहुँचकर प्रिय अलग-अलग चीज़ें देख रही थी।
प्रिय: "ये वाला डेकोरेशन आइटम कैसा रहेगा?"
अनिरुद्ध: "बहुत भड़कीला है। तुम्हारा टेस्ट ऐसा ही है?"
प्रिय: "तुम्हें तो कुछ पसंद ही नहीं आता।"
अनिरुद्ध: "ऐसा नहीं है, लेकिन मेरी पसंद क्लासी होती है।"
प्रिय: "मतलब मेरी पसंद अच्छी नहीं?"
अनिरुद्ध: "यही तो तुम कह रही हो!"
प्रिय ने झूठा गुस्सा दिखाया और अलग-अलग चीज़ें उठाकर उसे दिखाने लगी।
शॉपिंग के बाद प्रिय की नज़र गोलगप्पे की दुकान पर पड़ी।
बाजार पहुंचने के बाद प्रिय की नजर गोलगप्पे की दुकान पर पड़ी थी उसको तब से गोलगप्पे खाना था। उसने अनिरुद्ध को दिखाते हुए कहा, "यहाँ के गोलगप्पे बहुत अच्छे होते हैं।"
प्रिय: "मुझे गोलगप्पे बहुत पसंद हैं। खाओगे?"
अनिरुद्ध: "नहीं, मैं इतना तीखा नहीं खा सकता।"
प्रिय: "डरपोक!"
अनिरुद्ध: "क्या कहा?"
प्रिय: "अगर तुम्हें इतना ही कॉन्फिडेंस है तो चलो, कम्पटीशन करते हैं।"
अनिरुद्ध ने नकारात्मक तरीके से कहा, "नहीं यार, इतना तीखा कैसे खा सकते हो? मैं तो नहीं खाऊँगा।"
प्रिय हंसते हुए बोली, "तुम डरपोक हो।"
अनिरुद्ध (आश्चर्य से): "क्या कहा? तुम इसे चैलेंज समझ रही हो?"
प्रिय ने चिढ़ते हुए कहा, "अगर तुम सच में मर्द हो, तो आओ और देखो कि तुम कितने गोलगप्पे खा सकते हो।"
अनिरुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, लेकिन यह तुम पर भारी पड़ेगा।"
दोनों ने गोलगप्पे खाने की शुरुआत की। प्रिय बहुत जल्दी गोलगप्पे खा रही थी, जबकि अनिरुद्ध धीरे-धीरे खा रहा था। प्रिय ने शरारत से कहा, "अगर तुम इसे इतनी धीरे-धीरे खाओगे तो तो कभी नहीं जीत पाओगे।"
अनिरुद्ध ने हंसते हुए कहा, "कोई बात नहीं, ये मुझे फिर से सबक सिखाएगा।"
आखिरकार प्रिय ने मुकाबला जीत लिया। प्रिय मुस्कुराते हुए बोली, "मैं जीत गई, अब तुम्हें कल सुबह मेरे लिए चाय बनानी होगी।"
अनिरुद्ध ने गुस्से से कहा, "तुमने बहुत बड़ा सजा दिया मुझे।"
प्रिय हंसते हुए बोली, "तुम ही ने मुझे चैलेंज दिया था, तो भुगतो।"
दोनों हंस पड़े और फिर घर की ओर निकल पड़े।
अनिरुद्ध (मन ही मन): "ये लड़की मेरे दिमाग से क्यों नहीं निकल रही?"
दोनों के दिलों में हलचल थी, लेकिन इसे कबूल करने के लिए अभी बहुत वक्त बाकी था।
रात को प्रिय अपने कमरे में बैठी थी, और अपनी डायरी में कुछ लिखने की कोशिश कर रही थी।
प्रिय (मन ही मन): "क्या मैं सच में अनिरुद्ध के बारे में कुछ महसूस करने लगी हूँ? हर बार जब मैं उसे देखती हूँ, तो दिल में हलचल सी मच जाती है। वो मुझसे चिढ़ता है, मजाक करता है, लेकिन उसके साथ वक्त बिताना अब अच्छा लगने लगा है। क्या यह प्यार है?"
प्रिय ने अपनी डायरी में लिखा, "आज का दिन बहुत खास था। अनिरुद्ध के साथ बिताए हर पल ने दिल में एक नई जगह बना ली है। क्या यह सब सही है? क्या मैं उसके साथ अपना भविष्य देख सकती हूँ?"
कहानी जारी है।।।।
वहीं, अनिरुद्ध भी अपने कमरे में बैठकर प्रिय के बारे में सोच रहा था।
अनिरुद्ध (मन ही मन): "प्रिय, ये लड़की मेरे दिमाग से बाहर क्यों नहीं जा रही? उसका चेहरा, उसकी बातें, सब कुछ मुझे खींचता है। क्या मैं भी उसके बारे में कुछ महसूस करने लगा हूँ?"
दोनों के दिलों में हलचल थी, लेकिन इसे कबूल करने का वक्त अभी नहीं आया था।
सलोनी की शादी अब कुछ ही दिनों में थी, और घर में शादी की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। हर कोई अपने-अपने काम में लगा था, लेकिन सबसे ज़्यादा उत्साह सलोनी, अनिरुद्ध, और प्रिय को था, क्योंकि उन्हें आज शादी की शॉपिंग के लिए जाना था।
सुबह होते ही प्रिय और सलोनी तैयार होने लगीं। प्रिय ने हल्के गुलाबी रंग की चिकनकारी कुर्ती के साथ सफेद प्लाज़ो पहना था, और कानों में छोटे झुमके डाल रखे थे। उसने हल्का मेकअप किया था, जिससे उसकी खूबसूरती और भी निखर गई थी। सलोनी ने पीले रंग की अनारकली ड्रेस पहनी थी, और उसके चेहरे पर शादी की खुशी साफ झलक रही थी।
नीचे हॉल में अनिरुद्ध पहले से ही तैयार खड़ा था। उसने सफेद शर्ट के ऊपर हल्का ब्लू ब्लेज़र पहना था और साथ में काले रंग की जींस। उसे शॉपिंग का कोई खास शौक नहीं था, लेकिन प्रिय को तंग करने का मौका वो नहीं छोड़ सकता था।
जैसे ही प्रिय नीचे आई, अनिरुद्ध ने उसे देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "वाह, लगता है कोई बहुत तैयार होकर आई है आज। किसके लिए इतनी मेहनत कर रही हो?"
प्रिय ने आँखें घुमाते हुए कहा, "खुद के लिए! मुझे तुम्हारी तरह आलसी बनकर नहीं घूमना पसंद।"
सलोनी ने हँसते हुए दोनों को टोका, "तुम दोनों लड़ना बंद करोगे या रास्ते में भी यही चलता रहेगा?"
अनिरुद्ध ने मजाक में कहा, "ये तो अभी से शुरू हुआ है, अभी पूरी शॉपिंग बाकी है।"
तीनों कार में बैठे और शॉपिंग के लिए निकल पड़े।
मॉल में कदम रखते ही सलोनी सबसे पहले अपनी शादी का लहंगा देखने चली गई। प्रिय और अनिरुद्ध भी उसके साथ थे, लेकिन प्रिय की नज़र हर जगह घूम रही थी।
प्रिय: "अनिरुद्ध, देखो ये लहंगा कितना सुंदर है!"
अनिरुद्ध ने एक नज़र डालकर कहा, "हां, हां, ठीक ही है। वैसे भी लड़कियों के कपड़े सब एक जैसे ही लगते हैं।"
प्रिय ने चौंककर कहा, "तुम्हें फैशन की बिल्कुल भी समझ नहीं है!"
अनिरुद्ध ने कंधे उचका दिए, "शुक्र है, वरना तुम्हारी तरह घंटों एक ही ड्रेस को देखने का दिमाग तो नहीं चाहिए।"
सलोनी बीच में आई और कहा, "अनिरुद्ध, तुम्हें प्रिय के साथ बैठना चाहिए, जब वो अपने कपड़े चुनेगी। वैसे भी, शादी में तुम्हें अच्छे कपड़े पहनने चाहिए।"
अनिरुद्ध ने झट से कहा, "मुझे नहीं चाहिए कुछ! मैं टी-शर्ट और जींस में ही ठीक हूँ।"
प्रिय ने आँखें तरेरी, "तुम शादी में ऐसे जाओगे?"
अनिरुद्ध ने शरारत से कहा, "क्यों? क्या फर्क पड़ता है?"
प्रिय ने गुस्से में कहा, "इसलिए कि ये शादी का फंक्शन है, कोई चाय की दुकान पर बैठने का इवेंट नहीं!"
अनिरुद्ध हंस पड़ा और प्रिय की खीझ और बढ़ गई।
सलोनी अपने लहंगे का ट्रायल लेने चली गई, और प्रिय ने भी सोचा कि वो कुछ ड्रेस ट्राई कर ले।
प्रिय: "अनिरुद्ध, ज़रा ये ड्रेस पकड़ो। मैं इसे पहनकर आती हूँ।"
अनिरुद्ध ने बिना मन से ड्रेस पकड़ ली और सोफे पर बैठ गया। कुछ देर बाद प्रिय बाहर आई, तो अनिरुद्ध उसे देखकर चौंक गया।
उसने गहरे पिंक रंग का लहंगा पहना था, जिसकी कढ़ाई सुनहरी थी। खुले बाल और हल्की ज्वेलरी के साथ वो किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी।
अनिरुद्ध ने उसे देखते हुए कहा, "तुम... यह ड्रेस तुम्हारे ऊपर अच्छी लग रही है।"
प्रिय मुस्कुरा दी, लेकिन फिर शरारत से बोली, "क्या सच में? कहीं मजाक तो नहीं कर रहे?"
अनिरुद्ध ने सिर हिलाया, "नहीं, सच कह रहा हूँ।"
प्रिय थोड़ा झेंप गई लेकिन बोली, "चलो, फिर इसे ले लेते हैं।"
इसके बाद, तीनों जूतों की दुकान पर गए। प्रिय को एक बहुत सुंदर हाई हील पसंद आई।
प्रिय: "अनिरुद्ध, कैसी लग रही है?"
अनिरुद्ध ने देखा और कहा, "अच्छी है, लेकिन तुम इसे संभाल पाओगी?"
प्रिय ने आँखें घुमाईं, "मैं रोज़ हील्स पहनती हूँ, मुझे किसी की सलाह की जरूरत नहीं!"
अनिरुद्ध ने हंसते हुए कहा, "फिर भी, अगर शादी में गिर गई तो मेरी हंसी नहीं रुकेगी।"
प्रिय ने गुस्से से कहा, "मैं गिरूंगी नहीं!"
सलोनी ने हंसते हुए कहा, "तुम दोनों की शर्त लगवा दूँ?"
अनिरुद्ध ने हंसते हुए कहा, "हाँ, और अगर प्रिय गिर गई, तो मुझे पूरी शादी में मुझसे बहस करने की इजाजत नहीं होगी!"
प्रिय ने चुनौती स्वीकार कर ली, "अगर मैं नहीं गिरी, तो तुम मुझे हर दिन कॉफी बना कर दोगे!"
अनिरुद्ध ने हाथ मिलाया, "डन!"
शॉपिंग खत्म होते-होते शाम हो गई थी। तीनों ने काफी मज़े किए और अब घर वापस आ रहे थे। प्रिय और अनिरुद्ध कार में पीछे बैठे थे, और सलोनी आगे ड्राइव कर रही थी।
अनिरुद्ध ने हल्की आवाज़ में पूछा, "प्रिय, सच बताओ, तुम्हें आज मज़ा आया?"
प्रिय ने हल्की मुस्कान दी, "हां, बहुत। तुम्हारी नोकझोंक के बिना तो ये दिन अधूरा सा लगता।"
अनिरुद्ध ने उसे देखा और कहा, "और तुम्हारी ड्रेस बहुत अच्छी लगी थी।"
प्रिय को यह सुनकर हल्की शर्म महसूस हुई। उसने खिड़की की तरफ देखा और खुद को संभालते हुए बोली, "थैंक यू।"
अनिरुद्ध ने हल्का हंसते हुए कहा, "अगर तुम ऐसे ही मुस्कुराती रहो, तो शायद मैं रोज़ शॉपिंग करने के लिए तैयार हो जाऊं।"
प्रिय ने हंसते हुए कहा, "हां, हां, सपने देखते रहो!"
लेकिन दोनों की आँखों में कुछ नया था—एक अनकहा एहसास, जो अब धीरे-धीरे उनके करीब आ रहा था।
शॉपिंग से थके-मांदे जब तीनों घर पहुंचे, तो पूरे घर में रौनक थी। शादी की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं, और हर कोई अपने-अपने काम में लगा हुआ था। सलोनी, प्रिय और अनिरुद्ध ने अपने-अपने बैग रखे और फिर उत्साह से सलोनी की मम्मी को अपनी खरीदी हुई चीजें दिखाने लगे।
प्रिय ने एक खूबसूरत गुलाबी लहंगा खरीदा था, जिसे उसने सलोनी की मम्मी को दिखाया। सलोनी ने अपनी शादी के लिए भारी कढ़ाई वाला लाल रंग का लहंगा लिया था, और अनिरुद्ध ने अपनी पसंद की एक क्रीम कलर की शेरवानी खरीदी थी। सबकी पसंद देखकर सलोनी की मम्मी बेहद खुश हुईं।
सलोनी की मम्मी: "सब कुछ बहुत सुंदर है! अब तो बस शादी का दिन आने का इंतजार है।"
प्रिय ने अपनी नई हील्स निकालीं और हंसते हुए कहा, "देखिए आंटी, मैंने कितनी सुंदर हील्स ली हैं! और अनिरुद्ध को तो यही लग रहा था कि मैं इन्हें पहनकर गिर जाऊंगी!"
अनिरुद्ध, जो वहीं खड़ा था, मुस्कुराया और चिढ़ाने के अंदाज में बोला, "मैंने गलत नहीं कहा था। अभी भी लगता है कि तुम गिरने वाली हो।"
प्रिय ने आँखें तरेरी, "मैं बिल्कुल भी गिरने वाली नहीं हूँ!"
वो अपनी हील्स पहनकर धीरे-धीरे चलने लगी, जैसे ही वो दो कदम आगे बढ़ी, तभी अनिरुद्ध दूसरी तरफ़ से अपना नया कुर्ता-पायजामा पहनकर कमरे में आया ।
अनिरुद्ध को इस नये अंदाज़ में देखकर प्रिय अचानक ठिठक गई। उसने कभी अनिरुद्ध को इस तरह पारंपरिक कपड़ों में नहीं देखा था। सफेद कुर्ता और क्रीम रंग का पायजामा पहने हुए, वो सच में बेहद आकर्षक लग रहा था।
प्रिय उसे देखकर एक पल के लिए खो गई, लेकिन तभी उसके पैर लड़खड़ा गए, और उसके बैलेंस का अंदाजा गलत हो गया।
प्रिय: "आह...!"
वो गिरने ही वाली थी कि अनिरुद्ध ने झट से आगे बढ़कर उसे गोद में उठा लिया।
उसके गिरने की जगह अनिरुद्ध की बाहों में सिमटने से, दोनों के बीच एक अलग सी गर्माहट महसूस हुई। प्रिय के दिल की धड़कन तेज़ हो गई थी, और अनिरुद्ध भी थोड़ा गंभीर हो गया था।
प्रिय (धीमी आवाज़ में): "मुझे... नीचे उतारो..."
अनिरुद्ध हल्का सा मुस्कुराया, "अगर उतार दूँ तो फिर से गिर जाओगी।"
प्रिय ने नज़रे चुराईं, लेकिन उसे महसूस हुआ कि उसके पैर में हल्की मोड़ आ गई थी।
अनिरुद्ध ने उसे गोद में ही उठाकर प्रिय के कमरे में ले जाने का फैसला किया। वो बिना कुछ बोले उसे बेहद नज़दीक पकड़े हुए ले गया, और प्रिय उसके कंधे पर सिर टिकाए हुए थी।
जब वो कमरे में पहुँचे, तो अनिरुद्ध ने प्रिय को धीरे से बिस्तर पर बिठा दिया। लेकिन जैसे ही वो पीछे हटने लगा, प्रिय की चेन अनिरुद्ध की शेरवानी में फंस गई।
दोनों अचानक बेहद करीब आ गए। प्रिय ने उसकी शेरवानी को हल्के से खींचने की कोशिश की, लेकिन उसकी चेन और ज़्यादा उलझ गई।
प्रिय: "रुको... मैं इसे निकालती हूँ।"
अनिरुद्ध ने भी कोशिश की, लेकिन जब उसने हल्का खींचा, तो प्रिय का पेंडेंट टूट गया।
प्रिय ने नीचे देखा और देखा कि उसकी पसंदीदा दिल के आकार वाली पेंडेंट अब टूटकर उसके हाथ में थी।
उसकी आँखों में हल्के आँसू आ गए।
प्रिय (धीमे स्वर में): "ये... मेरी सबसे प्यारी चीज़ थी।"
अनिरुद्ध ने पहली बार प्रिय की आँखों में नमी देखी थी। उसने चाहा कि वो कुछ कहे, लेकिन उसके पास शब्द नहीं थे।
तभी बाहर से सलोनी और उसकी मम्मी आ गईं। उन्होंने देखा कि प्रिय का पेंडेंट टूटा हुआ था और उसकी आँखें नम थीं।
सलोनी की मम्मी: "क्या हुआ बेटा?"
अनिरुद्ध ने जल्दी से पीछे मुड़कर खड़ा हो गया और प्रिय ने अपने आँसू छुपाने की कोशिश की।
प्रिय (मुस्कुराने की कोशिश करते हुए): "कुछ नहीं आंटी... बस जरा..."
लेकिन उसकी आवाज़ हल्की कांप रही थी।
अनिरुद्ध ने झट से पेंडेंट उठाया और धीरे से प्रिय की हथेली पर रख दिया।
अनिरुद्ध (धीमे स्वर में): "मैं इसे ठीक करवा दूँगा।"
प्रिय ने एक पल के लिए उसकी आँखों में देखा, और उसे महसूस हुआ कि अनिरुद्ध को भी उसका दुख महसूस हुआ था।
सबने मिलकर डॉक्टर को बुलाया, और कुछ देर बाद डॉक्टर ने प्रिय का पैर चेक किया।
डॉक्टर: "कोई चिंता की बात नहीं, बस हल्की मच गई है। थोड़ा आराम करिए और ये दवाई लीजिए।"
प्रिय ने सिर हिला दिया, और डॉक्टर चले गए।
सब लोग थोड़ी देर के लिए प्रिय के पास बैठे, लेकिन प्रिय अभी भी अपने पेंडेंट को देखकर खोई हुई थी।
अनिरुद्ध ने एक नज़र प्रिय पर डाली और फिर चुपचाप वहाँ से चला गया।
कहानी जारी है।।।।।।
रात को प्रिय अपने कमरे में अकेली बैठी थी। उसने अपना टूटा हुआ पेंडेंट उठाया और हल्के से उसे सहलाने लगी।
तभी दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई।
प्रिय: "कौन?"
अनिरुद्ध अंदर आया, उसके हाथ में एक नई डिब्बी थी।
प्रिय ने आश्चर्य से देखा, और अनिरुद्ध ने वो डिब्बी खोलकर उसकी तरफ बढ़ाई।
अंदर एक नया, वैसा ही पेंडेंट था।
प्रिय की आँखें एक बार फिर भर आईं।
प्रिय (धीमे स्वर में): "तुमने...?"
अनिरुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैंने कहा था ना कि इसे ठीक करवा दूँगा? लेकिन ये थोड़ा अलग है, पर तुम इसे पहन सकती हो।"
प्रिय ने पेंडेंट उठाया और हल्के से मुस्कुराई।
प्रिय: "थैंक यू, अनिरुद्ध।"
अनिरुद्ध ने सिर हिलाया और फिर हल्के से बोला, "अब आराम करो, वरना फिर गिर जाओगी।"
प्रिय ने झट से तकिया उठाकर उसकी तरफ फेंका, लेकिन अनिरुद्ध हंसते हुए बाहर चला गया।
प्रिय ने एक गहरी सांस ली और पेंडेंट को पहन लिया।
वो नहीं जानती थी कि क्यों, लेकिन आज उसके दिल में एक अजीब सी हलचल हो रही थी...
रात का खाना तैयार था और सब लोग डाइनिंग टेबल पर इकट्ठा हो गए थे। घर में शादी की तैयारियों की चहल-पहल थी, हर कोई हंसी-मजाक कर रहा था, लेकिन एक चेहरा अब भी गायब था—प्रिय।
उसके पैर में मोच आ जाने की वजह से वह अब तक अपने कमरे में ही थी।
सलोनी: "प्रिय को बुलाते हैं, वो भी हमारे साथ खाना खाएगी।"
सलोनी की मम्मी: "पर बेचारी के पैर में चोट लगी है, वो कैसे नीचे आएगी?"
सबके बीच हल्की चर्चा चल रही थी कि प्रिय को कैसे नीचे बुलाया जाए। तभी अनिरुद्ध ने अचानक कहा,
अनिरुद्ध: "कोई ज़रूरत नहीं है उसे बुलाने की... मैं खुद उसे नीचे ले आता हूँ।"
सबने चौंक कर उसकी तरफ देखा, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। सलोनी की मम्मी ने मुस्कुरा कर उसे देखा। शायद वो इस रिश्ते को समझने लगी थीं।
प्रिय अपने कमरे में बिस्तर पर बैठी थी, और उसकी आँखें उस नए पेंडेंट पर टिकी हुई थीं, जो अनिरुद्ध ने उसे दिया था।
प्रिय (मन में सोचते हुए): "उसने इतनी जल्दी नया पेंडेंट लाकर दे दिया... उसे इतना क्यों फर्क पड़ा?"
वो हल्के से मुस्कुराई, लेकिन फिर अपने ख्यालों में खो गई।
तभी उसके कमरे का दरवाज़ा हल्के से खुला।
प्रिय ने चौंककर देखा, और वहाँ अनिरुद्ध खड़ा था।
वो अंदर आया, और प्रिय की तरफ देखा।
अनिरुद्ध: "सब नीचे खाने के लिए इंतजार कर रहे हैं, तुम चलोगी या मैं खुद ले जाऊं?"
प्रिय हल्का सा हंसी, "जाने दो ना, मैं यहीं ठीक हूँ।"
अनिरुद्ध ने भौंहें चढ़ाईं, "अगर मैं जाने दूँगा, तो तुम यूँ ही भूखी रह जाओगी।"
प्रिय ने होंठ भींचते हुए कहा, "मैं बाद में कुछ खा लूंगी।"
अनिरुद्ध ने एक पल के लिए उसे देखा, फिर धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ने लगा।
प्रिय को उसकी नज़दीकी से अजीब सा एहसास होने लगा। उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
प्रिय (धीरे से): "रुको... तुम क्या करने वाले हो?"
अनिरुद्ध बिना कुछ कहे आगे बढ़ा और प्रिय को अपनी बाहों में उठा लिया।
प्रिय को अचानक ऐसा महसूस हुआ जैसे ज़मीन उसके पैरों के नीचे से खिसक गई हो।
प्रिय: "अनिरुद्ध! ये क्या कर रहे हो? मुझे नीचे उतारो!"
अनिरुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम खुद नीचे चलकर नहीं आ सकती, तो मुझे ही तुम्हें लाना पड़ा।"
प्रिय हल्की गुस्से में बोली, "मैं तुम्हें शिकायत कर दूँगी!"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "शिकायत तो तब करोगी, जब तुम्हें कोई सुनेगा।"
प्रिय ने देखा कि अनिरुद्ध बिल्कुल बेपरवाह अंदाज में उसे गोद में लिए सीढ़ियाँ उतर रहा था।
नीचे आते ही सबकी नजरें उन दोनों पर टिक गईं।
सलोनी ने हल्की मुस्कान दबाई और उसकी मम्मी ने गहरी नजरों से उन्हें देखा।
अनिरुद्ध ने प्रिय को धीरे से कुर्सी पर बैठाया।
सलोनी (हंसते हुए): "अरे वाह! हमारी प्रिय तो आज किसी राजकुमारी की तरह नीचे आई हैं!"
प्रिय शर्म से नजरें झुका कर हंसी, लेकिन अनिरुद्ध ने उसकी तरफ देखा और बिना कुछ बोले खाना परोसने लगा।
खाने के दौरान अनिरुद्ध बार-बार प्रिय की प्लेट में कुछ ना कुछ रख रहा था।
प्रिय (धीरे से): "इतना क्यों परोस रहे हो?"
अनिरुद्ध: "क्योंकि तुम खुद खाना नहीं लोगी, तो मुझे ही ध्यान देना पड़ेगा।"
प्रिय ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसका दिल अब पहले से ज्यादा तेज़ धड़क रहा था।
खाना खत्म होने के बाद, अनिरुद्ध प्रिय को वापस उसके कमरे तक छोड़ने गया।
प्रिय ने कहा, "अब रहने दो, मैं खुद चली जाऊंगी।"
अनिरुद्ध: "सुन नहीं सकती? तुम चोटिल हो, और मैं तुम्हें ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकता।"
वो उसे धीरे से बिस्तर पर बिठाने लगा।
जैसे ही प्रिय बैठी, अनिरुद्ध उसके पैरों की पट्टी निकालने लगा ताकि दवाई लगा सके।
प्रिय (हड़बड़ा कर): "नहीं! मैं खुद कर लूंगी!"
अनिरुद्ध: "ज़िद मत करो, प्रिय।"
प्रिय के दिल में कुछ होने लगा। उसकी सांसें हल्की तेज़ हो गईं।
बाहर खड़ी सलोनी की मम्मी दरवाजे के पीछे से ये सब देख रही थीं।
उन्होंने अनिरुद्ध को प्रिय की इतनी परवाह करते हुए पहली बार देखा था।
सलोनी की मम्मी (मन में सोचते हुए): "इन दोनों के बीच कुछ तो खास चल रहा है।"
उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई।
वो जानती थीं कि ये रिश्ता दोस्ती से कहीं आगे बढ़ रहा था...
रात गहरी हो चुकी थी, लेकिन प्रिय के दिल में हलचल अब भी जारी थी। अनिरुद्ध की परवाह, उसकी नज़दीकी, और उसकी नज़रों में छिपी चिंता ने प्रिय के अंदर कुछ नया जगा दिया था।
प्रिय (सोचते हुए): "ये क्या हो रहा है मुझे? अनिरुद्ध बस सलोनी का भाई है... फिर मुझे उसकी इतनी परवाह क्यों महसूस होती है?"
वो खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अनिरुद्ध के करीब आने से उसका दिल बार-बार तेज़ धड़कने लगता था।
दूसरी तरफ, अनिरुद्ध भी अपने कमरे में बैठा हुआ सोच रहा था।
अनिरुद्ध (मन में): "प्रिय अजीब लड़की है... पहले मुझसे बहस करती थी, अब जब मैं उसकी मदद करता हूँ, तो भी उसे समस्या है।"
उसने एक गहरी सांस ली और अपनी घड़ी उतारकर टेबल पर रखी। उसकी नज़र अचानक उस पेंडेंट पर पड़ी जो प्रिय के गले में था और जो शाम को टूट गया था।
अनिरुद्ध (धीरे से): "क्या वाकई मुझे उसकी इतनी परवाह है?"
उसने अपनी सोच से ध्यान हटाने के लिए खुद को काम में व्यस्त करने की कोशिश की, लेकिन बार-बार प्रिय का चेहरा उसकी आँखों के सामने आ रहा था।
अगली सुबह प्रिय अपनी चोट के बावजूद खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही थी। उसने हल्के गुलाबी रंग का अनारकली सूट पहना, बालों को खुला रखा और हल्का मेकअप किया।
जब वह नीचे आई, तो अनिरुद्ध उसे देखकर चौंक गया।
अनिरुद्ध (आश्चर्य से): "तुम्हें चोट लगी थी न? इतना तैयार होने की क्या ज़रूरत थी?"
प्रिय (हंसते हुए): "अरे, मैं किसी की दुल्हन नहीं बनने जा रही। बस अच्छा दिखने का मन किया।"
अनिरुद्ध (हल्के से मुस्कुराते हुए): "इतनी हिम्मत कहाँ से लाती हो?"
प्रिय ने उसकी तरफ देखा और हल्की मुस्कान दी।
जब प्रिय नाश्ते के लिए बैठी, तो अनिरुद्ध ने फिर से उसकी प्लेट में पराठा रख दिया।
प्रिय: "तुम्हें मेरी इतनी चिंता क्यों हो रही है?"
अनिरुद्ध (मजाक में): "क्योंकि अगर तुम बीमार पड़ गई, तो मुझे फिर से तुम्हें गोद में उठाकर चलना पड़ेगा।"
प्रिय ने उसे घूरा, जबकि सलोनी ने हंसते हुए कहा,
सलोनी: "अनिरुद्ध, कहीं ऐसा न हो कि शादी के बाद भी तुम्हें उसे ऐसे ही उठाकर रखना पड़े!"
प्रिय और अनिरुद्ध दोनों एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। उन दोनों के बीच कुछ अजीब सा हुआ, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा।
घर में शादी की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। सब लोग अपनी-अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त थे। प्रिय और अनिरुद्ध को भी साथ में कुछ काम सौंपे गए थे।
जब वे दोनों एक गेस्ट लिस्ट तैयार कर रहे थे, तो प्रिय अचानक ठहर गई।
प्रिय: "अनिरुद्ध, तुम्हें क्या लगता है कि शादी के बाद ज़िंदगी बदल जाएगी?"
अनिरुद्ध (थोड़ा सोचते हुए): "शायद... लेकिन मैं चाहता हूँ कि सलोनी खुश रहे। उसके लिए सही इंसान मिले।"
प्रिय ने उसकी तरफ देखा और धीरे से कहा,
प्रिय: "क्या तुम अपने लिए भी कुछ सोचते हो?"
अनिरुद्ध उसकी तरफ देखने लगा। कुछ पल के लिए दोनों के बीच खामोशी छा गई।
शाम को, प्रिय ने बालकनी में खड़े होकर ठंडी हवा का आनंद लेना चाहा। लेकिन जैसे ही उसने कदम बढ़ाया, उसका पैर हल्का मुड़ा और वह गिरने ही वाली थी कि अनिरुद्ध ने अचानक आकर उसे पकड़ लिया।
दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब आ गए। अनिरुद्ध की बाहें प्रिय के चारों ओर थी, और प्रिय की सांसें तेज़ हो रही थीं।
प्रिय (धीरे से): "अनिरुद्ध... मुझे छोड़ो।"
अनिरुद्ध (हल्की मुस्कान के साथ): "पहले संभल जाओ। मैं फिर छोड़ दूँगा।"
दोनों की आँखें एक-दूसरे में समा गईं। उनके दिलों में चल रही हलचल अब चेहरे पर साफ़ दिखने लगी थी।
दूर से सलोनी की मम्मी ये सब देख रही थीं और मुस्कुरा रही थीं।
सलोनी की मम्मी (मन में सोचते हुए): "इन दोनों को शायद अब तक एहसास नहीं हुआ, लेकिन मैं समझ सकती हूँ कि इनके बीच कुछ खास है।"
वो मन ही मन इस रिश्ते की दुआ करने लगीं।
शादी की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं, और सलोनी के घर का माहौल पहले से कहीं ज्यादा ख़ुशगवार हो गया था। घर मेहमानों से भर गया था, और आज सलोनी के कुछ खास दोस्त भी शादी में शामिल होने के लिए पहुँच चुके थे।
क्या अनिरुद्ध और प्रिय अपने जज़्बातों को समझ पाएंगे?
कहानी जारी है।।।।।
शादी की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं, और सलोनी के घर का माहौल पहले से कहीं ज्यादा ख़ुशगवार हो गया था। घर मेहमानों से भर गया था, और आज सलोनी के कुछ खास दोस्त भी शादी में शामिल होने के लिए पहुँच चुके थे।
कृति, अक्षय, निखिल, साक्षी पहले ही आ चुके थे और शादी की मस्ती में डूबे हुए थे। लेकिन नेहा का घर पास में ही था, इसलिए पहले सब दोस्त नेहा के घर मिलने चले गए। वहाँ उन्होंने काफी मज़ाक-मस्ती की, पुराने किस्से याद किए और फिर सब मिलकर सलोनी के घर की ओर निकल पड़े।
जैसे ही ये सब लोग सलोनी के घर पहुंचे, पूरे माहौल में और ज्यादा रौनक आ गई। हँसी-ठिठोली, मज़ाक और चुटकुलों से घर गूंज उठा।
जैसे ही सब दोस्त घर में दाखिल हुए, उन्होंने देखा कि अनिरुद्ध प्रिय को गोद में उठाए नीचे ला रहा था। प्रिय के पैर में मोच आने के कारण अनिरुद्ध उसे सावधानी से लेकर आ रहा था, लेकिन इस नज़ारे को देखकर दोस्तों की मुस्कान और शरारतें बढ़ गईं।
कृति (हंसते हुए): "अरे-अरे, ये क्या हो रहा है? शादी सलोनी की है या इनकी?"
अक्षय: "लगता है अनिरुद्ध ने पहले से ही ट्रायल शुरू कर दिया है!"
निखिल (मजाक में): "हमें बताना था न कि ये शादी इतनी जल्दी फिक्स हो गई!"
प्रिय एकदम लाल पड़ गई और अनिरुद्ध ने हल्की सी खाँसी करके सबको चुप करवाने की कोशिश की।
अनिरुद्ध (संभलते हुए): "अरे, ऐसा कुछ नहीं है। उसके पैर में चोट आई थी, तो बस उसे नीचे लाने में मदद कर दी।"
लेकिन उसके इस सफाई देने से सबका शक और गहरा गया।
प्रिय पहले से ही सबके मजाक उड़ाने से चिढ़ी हुई थी, और अब जब अनिरुद्ध ने भी सफाई दी, तो उसे और गुस्सा आ गया।
प्रिय (गुस्से में): "तुम्हें मेरी इतनी चिंता क्यों हो रही थी कि मुझे गोद में उठाना पड़ा?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "तुम्हें सीढ़ियों पर गिरते देखना पसंद नहीं है, इसलिए!"
प्रिय: "मैं गिरती नहीं, मैं संभल जाती!"
अनिरुद्ध: "हाँ, बिल्कुल! जैसे कल खुद को संभाल लिया था?"
सब दोस्त ज़ोर से हंस पड़े।
साक्षी (मुस्कान दबाते हुए): "ये लड़ाई कम, फ्लर्टिंग ज्यादा लग रही है!"
नेहा: "यार, ये दोनों कितने क्यूट लग रहे हैं! जैसे बचपन के दोस्त जो हर वक़्त लड़ते रहते हैं, लेकिन एक-दूसरे के बिना रह भी नहीं सकते।"
प्रिय ने आँखें तरेरी, लेकिन अनिरुद्ध ने उसकी नाराज़गी को अनदेखा करते हुए हल्का सा मुस्कुरा दिया।
इधर सलोनी इस सब मज़ाक से अनजान थी, क्योंकि उसे मोहन का फोन आया था और वो उससे बात करने के लिए बाहर चली गई थी। वो अपने होने वाले पति से शादी से जुड़े कुछ जरूरी बातों पर चर्चा कर रही थी।
सब दोस्त अब एक जगह बैठकर चाय और स्नैक्स का आनंद ले रहे थे। लेकिन उनके मज़ाक करने का सिलसिला खत्म नहीं हुआ था।
निखिल: "अच्छा सुनो, अनिरुद्ध, ये सब अचानक हुआ या तुमने पहले से ही प्लान कर रखा था कि कैसे प्रिय को गोद में उठाओगे?"
अक्षय: "यार, लड़का प्रेक्टिस कर रहा है! शादी के बाद भी तो करना पड़ेगा ना!"
प्रिय ने गहरी सांस ली और फिर गुस्से में अनिरुद्ध की तरफ देखा।
प्रिय: "तुम्हारी वजह से मेरी टांग खींची जा रही है!"
अनिरुद्ध (हंसते हुए): "तो क्या करूँ? तुम्हें चोट लगी थी, इसलिए मदद कर दी। अब अगर मैं तुम्हें गिरने देता, तो फिर तुम मुझे ही दोष देती।"
प्रिय (गुस्से में): "तुम्हारी वजह से ही तो मैं गिरी थी!"
सब दोस्तों ने फिर से हँसना शुरू कर दिया।
इस सबके बीच, सलोनी की मम्मी पास खड़ी थी और सबकुछ गौर से देख रही थी। उन्हें प्रिय और अनिरुद्ध के बीच की ये नोंक-झोंक सिर्फ लड़ाई नहीं बल्कि कुछ और ही नजर आ रही थी।
सलोनी की मम्मी (मन में सोचते हुए):
"इन दोनों में कुछ तो खास है। ये लड़ते भी हैं, लेकिन एक-दूसरे का साथ भी नहीं छोड़ते। शायद ये दोनों खुद नहीं समझ पा रहे, लेकिन ये प्यार की शुरुआत ही तो है।"
वो मन ही मन मुस्कुरा दीं और सोचने लगीं कि क्या वाकई ये रिश्ता कहीं आगे बढ़ने वाला है?
शाम को सबने मिलकर शादी की बाकी तैयारियों पर चर्चा की। सभी दोस्त मिलकर शादी के फंक्शन्स की जिम्मेदारियां बांट रहे थे।
कृति: "हम सबको मिलकर सलोनी की शादी को और भी खास बनाना है।"
साक्षी: "हाँ! और हमें सगाई की रस्मों में मज़ाक-मस्ती भी करनी है।"
निखिल (शरारत से): "प्रिय और अनिरुद्ध का कोई खास डांस नंबर होना चाहिए!"
प्रिय ने गुस्से से निखिल को घूरा, और अनिरुद्ध ने हल्की मुस्कान के साथ अपनी नज़रें चुरा लीं।
पूरा घर खुशी से गूंज रहा था, लेकिन प्रिय और अनिरुद्ध के दिलों में अलग ही हलचल चल रही थी।
क्या सच में इनके बीच कुछ खास था?
क्या ये दोनों अपने जज़्बात समझ पाएंगे?
या ये नोंक-झोंक बस मज़ाक तक ही सीमित रह जाएगी?
अगले कुछ दिनों में, शादी के फंक्शन्स और मस्ती के बीच, ये सवाल खुद-ब-खुद अपने जवाब खोज लेंगे।
सलोनी की शादी में अब कुछ ही दिन बाकी थे। घर में हर तरफ तैयारियों की हलचल थी। सभी दोस्त शादी को यादगार बनाने में जुटे हुए थे। सलोनी और प्रिय पहले ही शादी के मुख्य समारोह के लिए अपने कपड़े ले चुके थे, लेकिन बाकी रस्मों के लिए अभी शॉपिंग बाकी थी।
रात का खाना खाने के बाद सबने अगले दिन की शॉपिंग की प्लानिंग की और जल्दी सोने का फैसला किया ताकि सुबह जल्दी निकल सकें। लेकिन रात के खाने के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसने माहौल को और भी दिलचस्प बना दिया।
डाइनिंग टेबल पर सभी दोस्त और घर के सदस्य बैठे हुए थे। सामने गरमा-गरम खाना परोसा गया था—मलाई कोफ्ता, दाल मखनी, रोटी, पुलाव और सलाद। माहौल खुशनुमा था और डाइनिंग टेबल पर सभी दोस्त और परिवार वाले बैठकर रात का खाना खाने लगे थे। हंसी-मज़ाक का माहौल बना हुआ था, लेकिन जैसे ही प्रिय ने अपनी प्लेट में सलाद लिया, अनिरुद्ध की नज़र उस पर चली गई।
अनिरुद्ध (शरारत से): "अरे वाह, आज तो बड़ी हेल्दी खा रही हो, कहीं डाइट पर तो नहीं हो?"
प्रिय ने उसे घूरकर देखा, लेकिन कुछ नहीं बोला।
अक्षय: "वैसे देखा जाए तो प्रिय को हेल्दी खाने की जरूरत नहीं है, ये वैसे ही फिट है!"
अनिरुद्ध: "हाँ, हाँ, पता है! पर मुझे तो अब भी लगता है कि ये बस दिखावे के लिए हेल्दी खाना खा रही है। असल में इसे मिठाइयाँ बहुत पसंद हैं!"
नेहा (हंसते हुए): "यार, ये दोनों जब भी साथ में होते हैं, तो लड़ना शुरू कर देते हैं!"
अक्षय: "लगता है इनकी बातचीत प्यार से नहीं बल्कि तकरार से ही आगे बढ़ेगी!"
प्रिय, जो अपने खाने में व्यस्त थी, एकदम चौंक गई।
प्रिय (गुस्से में): "क्या मतलब? मैं किसी से भी झगड़ा नहीं करती!"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "सच में? फिर तो शायद मैं कोई और ही हूँ जिससे तुम रोज़ बहस करती हो!"
प्रिय ने गुस्से में अपनी रोटी का टुकड़ा तोड़ा और बोली, "तुम्हें इतनी प्रॉब्लम क्यों है कि मैं क्या खाती हूँ और क्या नहीं?"
अनिरुद्ध (हंसते हुए): "क्योंकि जब तुम भूखी होती हो तो और ज्यादा गुस्सैल हो जाती हो!"
प्रिय (गुस्से में): "तुम्हें क्या फर्क पड़ता है?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "फर्क पड़ता है, वरना तुम्हारे मूड स्विंग्स कौन झेलेगा?"
सब दोस्तों ने हँसना शुरू कर दिया, और प्रिय बस आँखें तरेरकर अनिरुद्ध को देखने लगी।
साक्षी (मजाक उड़ाते हुए): "यार, इन दोनों की बहस हर दिन देखने लायक होती है!"
प्रिय: "तुम हर वक़्त मेरी टांग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़ते, है ना?"
अनिरुद्ध (शरारत से): "मैं तो बस सच कह रहा हूँ, और सच हमेशा कड़वा लगता है!"
सब दोस्तों ने एक साथ हँसना शुरू कर दिया, और प्रिय बस आँखें तरेरकर अनिरुद्ध को घूरने लगी।
साक्षी: "प्रिय, अब तो तुम्हें मान ही लेना चाहिए कि अनिरुद्ध तुम्हारा स्पेशल अटेंशन चाहता है!"
प्रिय (चिढ़कर): "मुझे नहीं लगता!"
निखिल (मुस्कुराते हुए): "देख लेना, जो सबसे ज्यादा लड़ते हैं, वही सबसे ज्यादा प्यार करते हैं!"
प्रिय ने चुपचाप अपनी नज़रें झुका लीं, जबकि अनिरुद्ध हल्की मुस्कान दबाने की कोशिश कर रहा था।
कृति: "अरे, मैं तो शर्त लगा सकती हूँ कि अनिरुद्ध को प्रिय को चिढ़ाने में बहुत मजा आता है!"
प्रिय ने गुस्से में अपने हाथों को क्रॉस किया और सिर घुमा लिया।
प्रिय: "बिल्कुल नहीं! मुझे तो इसकी शक्ल तक देखनी पसंद नहीं है!"
अनिरुद्ध (मजाक में): "अरे वाह! मतलब तुम दिनभर मुझे देखती ही रहती हो!"
प्रिय कुछ कहने ही वाली थी कि साक्षी और निखिल ने हँसते हुए कहा, "तुम दोनों officially cutest fighting couple बन चुके हो!"
प्रिय झेंप गई और जल्दी से खाना खत्म करके उठ गई। अनिरुद्ध उसे जाते हुए देखता रहा और हल्की मुस्कान के साथ वापस अपने खाने में लग गया।
रात के करीब 2 बजे थे। सब अपने-अपने कमरों में सो चुके थे, लेकिन प्रिय की नींद खुल गई। उसे प्यास लगी थी, लेकिन उसके कमरे में रखा पानी खत्म हो गया था।
"अब क्या करूँ?" उसने सोचा। बोतल खाली थी, और इस वक्त किसी को जगाना सही नहीं लगा।
वो धीरे-धीरे कमरे से निकली और नीचे किचन की ओर बढ़ने लगी। घर में हल्का अंधेरा था, लेकिन चांदनी की रोशनी से सबकुछ हल्का-हल्का दिख रहा था।
जैसे ही वो किचन में पहुँची, अचानक एक परछाई दिखी।
प्रिय (डरते हुए): "क..कौन है?"
परछाई धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ी और अनिरुद्ध निकला!
अनिरुद्ध (हंसते हुए): "अरे, तुम इतनी डरपोक कब से हो गई?"
प्रिय (गुस्से में): "तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
अनिरुद्ध: "मैं कुछ काम से आया था, लेकिन तुम बताओ, इतनी रात को क्या कर रही हो?"
प्रिय: "मुझे पानी लेना था।"
अनिरुद्ध ने बिना कुछ कहे साइड टेबल से पानी की बोतल उठाई और प्रिय की ओर बढ़ा दी।
प्रिय ने अनजाने में बोतल पकड़ ली, लेकिन जब उसका हाथ अनिरुद्ध के हाथ से टकराया, एक हल्की-सी सिहरन दोनों के बदन में दौड़ गई।
प्रिय को अचानक ही कुछ अजीब महसूस हुआ और उसने बोतल को जल्दी से पकड़ लिया।
अनिरुद्ध (धीमी आवाज़ में): "प्रिय, क्या तुम्हें कभी ऐसा लगता है कि हम बेवजह ही लड़ते हैं?"
प्रिय ने चौंककर उसकी ओर देखा।
प्रिय: "मुझे नहीं पता... पर तुम हमेशा लड़ाई शुरू करते हो!"
अनिरुद्ध: "शायद इसलिए क्योंकि तुम्हें चिढ़ाने में मजा आता है।"
प्रिय का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
कुछ सेकंड की खामोशी के बाद, अनिरुद्ध धीरे-धीरे प्रिय की ओर बढ़ा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, और उसकी आँखों में एक गहरी चमक।
प्रिय (धीमी आवाज़ में): "त..तुम इतना पास क्यों आ रहे हो?"
अनिरुद्ध (हल्के से फुसफुसाते हुए): "क्या तुम्हें मेरी नज़दीकी से डर लगता है?"
प्रिय ने कुछ भी कहे बिना नज़रें झुका लीं। अनिरुद्ध को पहली बार ऐसा महसूस हुआ कि प्रिय कभी-कभी बहुत मासूम भी लग सकती है।
वो अचानक थोड़ा और करीब आया और प्रिय के कान के पास हल्के से फुसफुसाया -
"आज से हमारी लड़ाई थोड़ी कम होनी चाहिए, वरना तुम्हें रोज़ मुझे देखने का बहाना बनाना पड़ेगा।"
प्रिय एकदम शॉक्ड रह गई और उसने हड़बड़ाकर पानी की बोतल पकड़ ली।
प्रिय (जल्दी से): "मुझे जाना है!"
और वो जल्दी से ऊपर चली गई। अनिरुद्ध वहीं खड़ा उसकी हड़बड़ाहट पर हल्का सा मुस्कुराया।
"प्रिय, तुम खुद नहीं जानती कि तुम्हारा डरा-सहमा चेहरा कितना प्यारा लगता है," उसने खुद से कहा और वापस अपने कमरे की ओर चला गया।
कहानी जारी है।।।।
कमरे में आते ही प्रिय अपने दिल पर हाथ रखकर बैठ गई।
"ये क्या था?"
उसका दिल तेजी से धड़क रहा था।
"क्या अनिरुद्ध सिर्फ मजाक कर रहा था, या उसके कहने का कुछ और मतलब था?"
प्रिय खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बस एक नॉर्मल लड़ाई थी। लेकिन अंदर से उसका दिल कुछ और ही कह रहा था।
दूसरी ओर, अनिरुद्ध अपने बिस्तर पर लेटा हुआ छत को देख रहा था।
"प्रिय सच में बहुत अलग है... शायद इसीलिए मैं हमेशा उसके आसपास रहना चाहता हूँ।"
उसने हल्की मुस्कान के साथ अपनी आँखें बंद कर लीं।
अनिरुद्ध अपने कमरे में खिड़की के पास खड़ा हुआ, और बाहर हल्की चांदनी बिखरी हुई थी। उसके दिमाग में प्रिय की गुस्से से भरी हुई मासूम शक्ल बार-बार आ रही थी। वो सोच रहा था कि आखिर उसे प्रिय से उलझने में इतना मज़ा क्यों आता है?
"क्या सच में मैं उससे ज्यादा लड़ता हूँ, या मैं उसके करीब रहने के बहाने ढूंढता हूँ?"
उसने हल्की मुस्कान के साथ अपनी घड़ी उतारी और बिस्तर पर लेट गया।
दूसरी ओर, प्रिय भी अपने बिस्तर पर लेटी थी। वो बार-बार अनिरुद्ध की बातें याद कर रही थी।
"क्या सच में मैं उससे इतनी लड़ती हूँ? और अगर लड़ती हूँ, तो क्यों?"
उसने करवट बदली और तकिये में मुंह छुपा लिया। उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि वो अनिरुद्ध की बातों पर गुस्सा थी, या उन बातों को सोचकर उसे हल्की सी खुशी हो रही थी।
धीरे-धीरे, दोनों की आँखें बंद हो गईं और अनिरुद्ध और प्रिय एक-दूसरे के ख्यालों में खोए-खोए सो गए।
रात की वो मुलाकात, वो हल्की-हल्की नोकझोंक, और अनिरुद्ध की पास आने की कोशिश—प्रिय के दिल को बेचैन कर गई थी। अगली सुबह जब वो उठी, तो मन ही मन खुद को समझाने लगी कि जो भी हुआ, उसे ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। लेकिन उसका दिल उसकी बात मानने को तैयार ही नहीं था।
सुबह होते ही घर में हलचल मच गई। सभी दोस्त जल्दी तैयार हो रहे थे ताकि शॉपिंग के लिए निकल सकें। प्रिय अभी भी अपने कमरे में थी, जब साक्षी ने दरवाजा खटखटाया।
साक्षी (मुस्कुराते हुए): "अभी तक सो रही हो? उठो न, आज बहुत शॉपिंग करनी है!"
प्रिय ने धीरे से आँखें खोली और उठकर बैठ गई।
प्रिय (नींद भरी आवाज में): "बस पाँच मिनट और..."
साक्षी (शरारती अंदाज़ में): "अनिरुद्ध को बुलाऊँ क्या? शायद वो तुम्हें जल्दी जगा दे!"
प्रिय तुरंत उठकर बैठ गई और तकिया साक्षी पर फेंक दिया।
प्रिय (गुस्से में): "तुम्हारी यही आदत सबसे खराब है!"
साक्षी हंसते हुए कमरे से बाहर भागी।
घर में सुबह-सुबह शादी की तैयारियों की हलचल शुरू हो गई थी। सब अपनी-अपनी तैयारियों में व्यस्त थे, लेकिन प्रिय का ध्यान कहीं और था। वो हर बार अनिरुद्ध को नजरअंदाज करने की कोशिश करती, लेकिन उसकी नजरें अनायास ही उसे ढूंढने लगतीं।
तभी, साक्षी और कृति भागते हुए आईं।
साक्षी: "प्रिय, जल्दी से तैयार हो जाओ, हमें शॉपिंग पर जाना है, डिनर डेट पे नहीं जो तू इतना तुम लगा रही है!"
प्रिय: "कौन-कौन जा रहा है?"
कृति: "सब! अनिरुद्ध भी!"
प्रिय का दिल हल्का-सा तेज़ धड़कने लगा, लेकिन उसने खुद को नॉर्मल दिखाने की कोशिश की।
थोड़ी ही देर में सभी दोस्त तैयार होकर मॉल जाने के लिए निकल गए। शॉपिंग का प्लान खासतौर पर शादी की रस्मों के लिए था—सलोनी की हल्दी, मेहंदी और संगीत के लिए कपड़े लेने थे।
साक्षी: "सबसे पहले सलोनी की हल्दी और मेंहदी के कपड़े खरीदते हैं!"
प्रिय: "हाँ, और मुझे भी हल्की एथनिक ड्रेसेस देखने हैं।"
जैसे ही वे एक बड़े डिज़ाइनर स्टोर में पहुंचे, अनिरुद्ध और प्रिय फिर से एक-दूसरे से उलझने लगे।
अनिरुद्ध: "प्रिय, यह पीला रंग तुम पर अच्छा लगेगा!"
प्रिय (भौंहें चढ़ाते हुए): "तुम्हें कैसे पता कि मुझे क्या पसंद है?"
अनिरुद्ध (हंसते हुए): "क्योंकि मैं तुम्हें ध्यान से देखता हूँ!"
प्रिय थोड़ा झेंप गई, लेकिन खुद को संभालते हुए बोली,
प्रिय: "मुझे नहीं चाहिए तुम्हारी राय, मैं खुद चुन लूंगी!"
अक्षय (मुस्कुराते हुए): "भाई, तू हार मत मान! कभी-कभी लड़कियों को ज़िद्दी होने में भी मज़ा आता है!"
अनिरुद्ध ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया।
प्रिय को एक बहुत सुंदर ग्रीन और गोल्डन अनारकली पसंद आई, लेकिन उसकी डोरी बांधने में परेशानी हो रही थी।
नेहा (हंसते हुए): "अनिरुद्ध, मदद कर दो!"
प्रिय हैरान रह गई और नेहा को गुस्से से देखा।
प्रिय: "नहीं, मुझे कोई मदद नहीं चाहिए!"
लेकिन अनिरुद्ध धीरे-धीरे पास आया और डोरी को पकड़कर बाँध दिया।
प्रिय की धड़कनें तेज़ हो गईं, और उसे अनिरुद्ध की नज़दीकी का अहसास हो रहा था। दोनों के बीच एक अजीब-सी कशिश थी, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा।
जब सब कपड़े देख रहे थे, प्रिय एक हल्के गुलाबी रंग का लहंगा पसंद कर रही थी, लेकिन दुविधा में थी कि वो इसे ले या नहीं।
तभी, अनिरुद्ध उसके पास आया और धीरे से बोला,
"ये तुम्हारे ऊपर बहुत अच्छा लगेगा।"
प्रिय एकदम से चौंक गई और उसने अनिरुद्ध की ओर देखा। उसकी आँखों में वो पहली बार इतनी ईमानदारी से कुछ कहता हुआ दिखा।
प्रिय ने जल्दी से दूसरी ड्रेस उठाई और बोली, "मुझे ये ज्यादा पसंद आई!"
अनिरुद्ध हल्का-सा मुस्कुराया, लेकिन कुछ नहीं कहा। जब प्रिय काउंटर पर पेमेंट करने गई, तब उसे पता चला कि उसकी ड्रेस पहले ही किसी ने पे कर दी थी।
प्रिय (दुकानदार से): "पर मैंने तो अभी पेमेंट नहीं किया!"
दुकानदार: "आपके दोस्त ने कर दिया है।"
प्रिय ने तुरंत पीछे मुड़कर देखा, लेकिन अनिरुद्ध पहले ही वहां से जा चुका था।
शॉपिंग के बाद सबको भूख लगी थी, इसलिए सब पास के एक रेस्टोरेंट में लंच के लिए चले गए।
सब अपने-अपने ऑर्डर दे रहे थे, लेकिन प्रिय और अनिरुद्ध की नोकझोंक फिर शुरू हो गई।
प्रिय: "मुझे पनीर टिक्का खाना है!"
अनिरुद्ध: "नहीं, हम चिली पनीर लेंगे!"
प्रिय: "क्यों? तुम ही तय करोगे कि मैं क्या खाऊँगी?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "हाँ! क्योंकि तुम वैसे भी बाद में मेरा ही खाना चखने वाली हो!"
प्रिय (गुस्से से): "मैं बिल्कुल नहीं खाऊँगी!"
अक्षय (हंसते हुए): "चलो शर्त लगा लो! प्रिय खाने के बाद अनिरुद्ध की प्लेट से जरूर खाएगी!"
प्रिय ने गुस्से में आँखें तरेरी, लेकिन जब खाना आया, तो सबके सामने चुपके से अनिरुद्ध की प्लेट से एक टुकड़ा उठा लिया।
सबने उसे देख लिया और जोर-जोर से हंसने लगे।
कृति: "देख लिया? हम सही कह रहे थे!"
प्रिय झेंप गई और चुपचाप अपनी प्लेट में वापस लग गई।
लंच करने के बाद, सब एक कैफे में गए और मज़े से कॉफी पीने लगे।
नेहा: "आज बहुत मज़ा आया! लेकिन अनिरुद्ध और प्रिय का रोमांस सबसे हाईलाइट था!"
प्रिय (चिढ़कर): "क्या बकवास कर रही हो तुम?"
निखिल (मजाक में): "तुम्हारी और अनिरुद्ध की नोकझोंक इतनी प्यारी लगती है कि हम सबको लग रहा है कि यह शादी सिर्फ सलोनी की नहीं, बल्कि तुम्हारी भी हो रही है!"
सभी ने जोर से ठहाका लगाया, और प्रिय गुस्से से लाल हो गई।
शाम तक सब घर पहुंचे।
सब बहुत ज्यादा ही थक गए थे।
अभी तक उनकी पूरी शॉपिंग नहीं हुई थी। अभी भी कुछ सामान उनको लेने थे। किसी की मेंहदी के ड्रेस नहीं मिली तो किसी को संगीत के लिए नहीं मिली। इसलिए सब ने तय किया कि कल फिर वो लोग दूसरे मॉल जाएंगे।
क्या प्रिय और अनिरुद्ध अपनी फीलिंग्स कबूल करेंगे?
क्या शादी की रस्मों के दौरान कुछ खास होगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए!
रात के करीब 11 बजे, सब अपने-अपने कमरों में थे। लेकिन प्रिय फिर से प्यास के कारण नीचे आई। उसे लगा कि आज तो अनिरुद्ध यहाँ नहीं होगा, लेकिन जैसे ही उसने किचन की लाइट ऑन की, अनिरुद्ध पहले से वहाँ खड़ा था।
प्रिय (चौंककर): "तुम फिर यहाँ?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "और तुम?"
प्रिय कुछ नहीं बोली और जल्दी से पानी लेने लगी।
तभी, अचानक से अनिरुद्ध ने हल्के से उसका हाथ पकड़ लिया। प्रिय ने चौंककर उसकी ओर देखा।
अनिरुद्ध (धीमी आवाज़ में): "प्रिय, क्या तुम कभी इस बारे में सोचती हो कि हम दोनों के बीच कुछ खास है?"
प्रिय की धड़कनें तेज हो गईं।
प्रिय (धीरे से): "मुझे नहीं पता..."
अनिरुद्ध (आँखों में गहराई लिए): "तुम्हें पता है, प्रिय। बस मानने से डर रही हो।"
प्रिय एकदम चुप हो गई। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो इस सच्चाई से भाग नहीं सकती।
तभी, अनिरुद्ध ने हल्के से उसके गाल पर उंगलियों से छुआ, और प्रिय की सांसें एक पल के लिए थम गईं।
प्रिय (धीमे स्वर में): "अनिरुद्ध, ये सब सही नहीं है..."
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "तो फिर मुझे गलत साबित कर दो।"
प्रिय ने कुछ भी कहे बिना अपना हाथ धीरे से छुड़ाया और ऊपर भाग गई।
अनिरुद्ध बस वहीं खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा। उसकी आँखों में एक हल्की-सी मुस्कान थी, लेकिन साथ में एक इंतजार भी।
कमरे में आकर प्रिय ने दरवाजा बंद किया और आईने के सामने खड़ी हो गई।
उसका चेहरा हल्का लाल हो गया था, और दिल की धड़कनें तेज़ हो रही थीं।
"क्या सच में मेरे दिल में भी कुछ है?"
उसने अपने गालों को छुआ, जहाँ कुछ देर पहले अनिरुद्ध की उंगलियों का एहसास था।
उसने झट से सिर झटक दिया और बिस्तर पर लेट गई।
"मुझे ज्यादा नहीं सोचना चाहिए!"
लेकिन उसे पता था, अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रहने वाला था...
अगली सुबह का माहौल खुशनुमा था। हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और घर में शादी की तैयारियों की हलचल बनी हुई थी। आज सभी दोस्त शॉपिंग के लिए जाने वाले थे, बाकी के फंक्शन्स के लिए सबको कपड़े लेने थे।
लेकिन आज कुछ अलग था...
आज पहली बार अनिरुद्ध और प्रिय के बीच सुबह से कोई लड़ाई नहीं हुई थी।
प्रिय खुद भी हैरान थी कि अनिरुद्ध ने आज उससे कोई बहस नहीं की। ना उसने कोई ताना मारा, ना कोई कमेंट किया। ये बिल्कुल अजीब था।
सभी दोस्त तैयार होकर गाड़ी में बैठ चुके थे।
प्रिय ने आज गुलाबी रंग का एक अनारकली सूट पहना था, जिसके किनारों पर हल्की कढ़ाई थी। उसके लंबे बाल खुले थे, और हल्का सा काजल उसकी आँखों को और भी आकर्षक बना रहा था।
अनिरुद्ध ने ब्लैक शर्ट और ब्लू डेनिम जींस पहनी थी, जिसमें वो हमेशा की तरह काफी डैशिंग लग रहा था।
सभी दोस्त एक बड़े शॉपिंग मॉल की ओर निकल पड़े।
मॉल में घुसते ही सभी अलग-अलग ब्रांड्स की दुकानों में घुस गए।
साक्षी और नेहा: "चलो सबसे पहले दुल्हन के लिए कुछ एक्सेसरीज़ देख लेते हैं!"
प्रिय और सलोनी उन्हें फॉलो करने लगीं।
अक्षय और निखिल: "हम लोग भी थोड़ी शेरवानी ट्राय कर लेते हैं!"
इधर अनिरुद्ध अकेला खड़ा रह गया। उसे लगा कि शायद प्रिय उसे कुछ बोलेगी, लेकिन आज प्रिय ने भी उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया।
"तो इसका मतलब ये सिर्फ मुझे ही अजीब लग रहा है?" अनिरुद्ध ने खुद से सोचा।
कुछ देर बाद, प्रिय एक गहरे नीले रंग का लहंगा हाथ में लिए खड़ी थी।
प्रिय: "साक्षी, ये कैसा लग रहा है?"
अनिरुद्ध (आहिस्ता से): "अच्छा लग रहा है, तुमपर और भी अच्छा लगेगा।"
प्रिय चौंककर उसकी ओर देखती है।
प्रिय: "तुमने मेरी पसंद की तारीफ की? तुम ठीक तो हो?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "हां, आज से मैंने तय किया है कि मैं तुमसे बेवजह झगड़ना बंद कर दूँगा।"
प्रिय को अजीब-सा महसूस हुआ। उसे पहली बार अनिरुद्ध की बातों में गंभीरता दिखी।
थोड़ी देर बाद, जब सभी ने अपनी-अपनी खरीदारी पूरी कर ली, तो अचानक अक्षय, कृति, निखिल, नेहा और साक्षी ने एक-दूसरे को इशारा किया।
अक्षय (धीमे से): "चलो, प्रिय और अनिरुद्ध को अकेला छोड़ देते हैं!"
नेहा (हंसते हुए): "अरे वाह! फिर तो कुछ मज़ेदार होने वाला है!"
निखिल: "चलो, सब गाड़ी लेकर पहले घर निकलते हैं!"
प्रिय और अनिरुद्ध उस वक्त अलग-अलग दुकानों में व्यस्त थे, और जब वे दोनों वापस आकर पार्किंग में पहुँचे, तो देखा कि बाकी दोस्त पहले ही जा चुके थे।
प्रिय ने गुस्से में फोन निकाला और अक्षय को कॉल किया।
प्रिय (गुस्से में): "तुम लोग कहाँ हो?"
अक्षय (मज़े लेते हुए): "अरे हम सब तो पहले ही निकल गए! अब तुम्हें और अनिरुद्ध को साथ आना होगा!"
प्रिय ने गुस्से में फोन काट दिया और गहरी सांस ली।
प्रिय: "ये लोग पागल हैं!"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "तो अब क्या करें, मैडम?"
प्रिय: "ऑटो लेकर चलते हैं!"
दोनों सड़क पर आकर एक ऑटो रोके और बैठ गए।
ऑटो में बैठते ही अनिरुद्ध ने प्रिय के बैग को देखा, जिसमें बहुत सारी छोटी-छोटी चीज़ें भरी हुई थीं।
अनिरुद्ध: "तुम्हें सच में इतनी शॉपिंग करने की जरूरत थी?"
प्रिय: "हाँ! वैसे भी ये तुम्हारा पैसा नहीं लग रहा है!"
अनिरुद्ध: "हाँ, लेकिन मुझे तुम्हारा साथ बैठना मुश्किल लग रहा है! तुम्हारा बैग पूरी जगह घेर रहा है!"
प्रिय: "तो फिर उतरो!"
अनिरुद्ध: "वाह! मतलब अब मैं सड़क पर उतर जाऊँ?"
प्रिय: "हाँ, क्यों नहीं? वैसे भी तुम्हें मेरी शक्ल नहीं देखनी थी ना!"
अनिरुद्ध: "अब तुम्हें तो पता है कि मैं तुम्हें देखने का बहाना ढूंढ ही लेता हूँ!"
प्रिय ने झटके से उसकी ओर देखा।
प्रिय: "क्या मतलब?"
अनिरुद्ध (शरारती अंदाज़ में): "अरे कुछ नहीं, बस तुम्हारी शक्ल अच्छी लगती है, इसीलिए देखता रहता हूँ!"
प्रिय गुस्से में बाहर देखने लगी, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की गुलाबी रंगत आ चुकी थी।
ऑटो धीरे-धीरे चल रहा था। कुछ देर की नोकझोंक के बाद दोनों चुप हो गए।
फिर अचानक, प्रिय का दुपट्टा अनिरुद्ध के हाथ में फँस गया।
प्रिय (गुस्से में): "अब क्या कर रहे हो?"
अनिरुद्ध (हंसते हुए): "कुछ नहीं! लेकिन ये अच्छा बहाना था तुम्हें पकड़ने का!"
प्रिय ने गुस्से में झटके से दुपट्टा खींचा और फिर अनिरुद्ध को हल्की सी स्माइल दी।
घर पहुँचते ही, जैसे ही दोनों अंदर आए, सभी दोस्त हंसने लगे।
कृति: "तो, सफर कैसा रहा?"
अक्षय: "कोई नई लड़ाई हुई?"
प्रिय ने गुस्से से बैग टेबल पर पटका और सीधा ऊपर चली गई।
नेहा: "अरे वाह, इसका मतलब कुछ तो जरूर हुआ है!"
अनिरुद्ध ने हल्की सी मुस्कान दी और अपने बालों में हाथ फेरते हुए बोला,
"कुछ भी कहो, प्रिय के साथ सफर जितना मुश्किल होता है, उतना ही मज़ेदार भी!"
❤️ क्या ये दूरियाँ पास लाने का इशारा थीं?
(आगे क्या होगा? क्या अनिरुद्ध और प्रिय की ये लड़ाई दोस्ती में बदल जाएगी, या फिर प्यार में? जानने के लिए पढ़ते रहिए...)
कहानी जारी है।।।।।
घर पहुँचने के बाद माहौल एकदम मज़ेदार हो चुका था। सभी दोस्त हॉल में बैठे थे, और अनिरुद्ध और प्रिय का मज़ाक उड़ाने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं दे रहे थे।
अक्षय (हंसते हुए): "तो, सफर कैसा रहा? क्या-क्या बातें हुईं?"
साक्षी (शरारती अंदाज में): "क्यों प्रिय? अनिरुद्ध के साथ सफर कैसा रहा?"
साक्षी (शरारती अंदाज में): "या फिर कहना चाहिए... क्या-क्या हुआ?"
प्रिय ने गुस्से में अपनी तरफ से पानी का गिलास उठाया और पीने लगी, ताकि किसी को उसकी शर्मिंदगी महसूस ना हो। लेकिन अनिरुद्ध एकदम रिलैक्स होकर सबके मज़ाक का आनंद ले रहा था।
निखिल (मुस्कुराते हुए): "प्रिय, बताओ ना! रास्ते में कितनी बार एक-दूसरे की आँखों में खो गए थे?"
नेहा: "या फिर ऑटो में बैठते ही रोमांटिक म्यूजिक बजने लगा था?"
प्रिय (गुस्से में): "बिल्कुल नहीं! और तुम सब ऐसा क्यों कर रहे हो?"
कृति (हंसते हुए): "क्योंकि ये सच है! कब तक इनकार करोगी?"
अक्षय: "हां, कब तक?"
सबने एक साथ "कब तक?" बोलकर माहौल और मज़ेदार बना दिया।
प्रिय ने गुस्से में अनिरुद्ध की तरफ देखा।
प्रिय: "तुम क्यों कुछ नहीं कह रहे? कुछ बोलो ना!"
अनिरुद्ध (शरारती मुस्कान के साथ): "क्या बोलूं? जब सच में कुछ नहीं हुआ तो मैं क्या सफाई दूं?"
साक्षी: "ओह! यानी प्रिय के साथ रहने में तुम्हें कोई प्रॉब्लम नहीं है?"
अनिरुद्ध ने हल्की मुस्कान दी और कंधे उचकाए।
अनिरुद्ध: "बिल्कुल नहीं!"
अब प्रिय का गुस्सा सातवें आसमान पर था।
प्रिय: "तुम सबकी तो ऐसी की तैसी! जानबूझकर हमें अकेला छोड़कर चले गए ना?"
निखिल (हंसते हुए): "अरे, हमें लगा कि तुम दोनों को अकेले समय बिताने का मौका मिलना चाहिए!"
प्रिय (गुस्से में): "तुम लोग पागल हो क्या?"
कृति: "अरे लेकिन मानना पड़ेगा प्रिय, तुम्हारी और अनिरुद्ध की जोड़ी कितनी अच्छी लग रही थी!"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "बस-बस, अब ज्यादा मत चिढ़ाओ!"
लेकिन दोस्तों का चिढ़ाना तो अब शुरू हुआ था!
सभी लोग मस्ती में लगे थे, लेकिन सलोनी दूर खड़ी ये सब देख रही थी।
सलोनी अब तक इन सब बातों को ज़्यादा ध्यान नहीं दे रही थी। वो हमेशा से प्रिय और अनिरुद्ध को सिर्फ अच्छे दोस्त ही मानती थी।
"लेकिन... क्या ये सिर्फ दोस्ती है?" उसने मन ही मन सोचा।
उसका दिल कहीं न कहीं चाहता था कि प्रिय ही उसकी भाभी बने।
"अगर प्रिय इस घर की बहू बने, तो इससे अच्छा और क्या होगा?"
लेकिन वह अब भी शक में थी।
"क्या अनिरुद्ध भी ऐसा ही सोचता है?"
अब जब वो अपने भाई को देख रही थी, तो उसे पहली बार एहसास हुआ कि अनिरुद्ध प्रिय को लेकर कुछ अलग महसूस करता है। प्रिय भी उसकी बातों पर कुछ ज़्यादा ही रिएक्ट करती थी।
"अगर मेरे भाई को किसी से शादी करनी हो, तो मैं चाहूंगी कि वो मेरी बेस्ट फ्रेंड हो।"
लेकिन वो फिलहाल इन सब बातों को दिमाग से हटा देना चाहती थी।
अब प्रिय गुस्से में उठी और चुपचाप जाने लगी, लेकिन सब दोस्तों ने उसे घेर लिया।
अक्षय (शरारत से): "अरे-अरे, ऐसे कैसे जा सकती हो?"
नेहा: "पहले बताओ, आज ऑटो में क्या हुआ?"
प्रिय (गुस्से में): "कुछ नहीं हुआ!"
साक्षी: "अच्छा? तो फिर तुम्हारे चेहरे पर ये गुलाबी रंग क्यों है?"
सभी जोर से हंसने लगे।
प्रिय का गुस्सा अब और बढ़ चुका था।
प्रिय (अनिरुद्ध की ओर देखते हुए): "तुम कुछ बोलोगे या चुपचाप बैठे रहोगे?"
अनिरुद्ध (हंसते हुए): "क्या बोलूं? सच बोलूं या तुम्हारी इज्जत बचाऊं?"
सभी दोस्तों ने एक साथ कहा: "सच-सच-सच!!!"
प्रिय ने गहरी सांस ली और मुँह फेर लिया।
प्रिय: "मुझे और कोई काम नहीं है तुम लोगों की बकवास सुनने के अलावा!"
लेकिन सभी दोस्तों ने उसे रोक लिया।
नेहा (मासूमियत से): "अरे प्रिय, हम तो बस तुम्हारा भला चाहते हैं!"
प्रिय (झुंझलाकर): "मुझे किसी के भले की जरूरत नहीं है!"
निखिल: "लेकिन अनिरुद्ध को तुम्हारी जरूरत है!"
प्रिय अब पूरी तरह झेंप चुकी थी।
प्रिय: "तुम सब... बहुत बेशर्म हो!"
साक्षी: "और तुम बहुत इनकार करने वाली!"
अब अनिरुद्ध भी हंसते हुए प्रिय की तरफ देखने लगा।
अनिरुद्ध: "वैसे प्रिय, तुम्हें इनकी बातें बुरी क्यों लग रही हैं?"
प्रिय ने गुस्से में उसकी तरफ देखा।
प्रिय: "तुम भी अब इन्हीं के साथ मिल गए हो?"
अनिरुद्ध: "अरे नहीं, बस इतना पूछ रहा था कि क्या तुम्हें सच में इन सब बातों से फर्क नहीं पड़ता?"
प्रिय को उसकी इस बात का कोई जवाब नहीं मिला। उसने बस गहरी सांस ली और गुस्से में पैर पटकते हुए वहां से चली गई।
जब प्रिय वहां से चली गई, तो अनिरुद्ध ने धीमे से मुस्कुराया।
अक्षय: "ओहो! ये क्या स्माइल थी?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "कुछ नहीं!"
कृति: "देखो-देखो! ये कुछ नहीं वाले लोग ही असल में सबसे बड़े आशिक होते हैं!"
सबने एक साथ हंसते हुए अनिरुद्ध को छेड़ना जारी रखा। लेकिन अंदर ही अंदर अनिरुद्ध भी प्रिय के रिएक्शन को सोचकर खुश हो रहा था।
"क्या सच में हम सिर्फ दोस्त हैं?"
कुछ देर बाद सभी खाना खाने बैठ गए।
प्रिय ने अपने लिए पनीर बटर मसाला और तंदूरी रोटी ली।
अनिरुद्ध ने चिकन करी और चावल लिया।
प्रिय: "तुम्हें हर बार चिकन ही क्यों चाहिए?"
अनिरुद्ध: "तुम्हें हर बार पनीर ही क्यों चाहिए?"
प्रिय: "पनीर हेल्दी होता है!"
अनिरुद्ध: "चिकन भी हेल्दी होता है!"
सभी दोस्त हंसते-हंसते लोटपोट हो गए।
रात को सभी अपने-अपने कमरों में चले गए। प्रिय अब भी थोड़ी नाराज़ थी।
उसका मूड अब भी ठीक नहीं था, लेकिन उसे बहुत प्यास लगी थी।
रात के करीब 1 बज चुका था। सभी अपने-अपने कमरों में थे।
प्रिय सोने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे बहुत प्यास लगी थी।
जब उसने अपने कमरे में पानी की बोतल देखी, तो वो खाली थी।
"उफ्फ! अब नीचे जाना पड़ेगा!"
वो धीरे से कमरे से निकली और नीचे पानी लेने चली गई।
वह किचन में पानी लेने गई लेकिन जैसे ही उसने किचन का दरवाजा खोला, वो अचानक रुक गई।
जैसे ही उसने लाइट ऑन की, सामने अनिरुद्ध खड़ा था।
अनिरुद्ध (हैरानी से): "तुम यहाँ क्या कर रही हो?"
प्रिय: "पानी लेने आई थी... और तुम?"
प्रिय (चौंककर): "तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
अनिरुद्ध: "तुम्हारे बारे में सोच रहा था!"
प्रिय आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगी।
प्रिय: "मज़ाक मत करो!"
अनिरुद्ध: "मुझे भी पानी चाहिए था।"
दोनों एक-दूसरे को देखने लगे।
प्रिय: "अच्छा सुनो..."
अनिरुद्ध: "हम्म?"
प्रिय (धीरे से): "आज तुमने पूरे दिन मुझसे झगड़ा नहीं किया..."
अनिरुद्ध (हंसते हुए): "हाँ, आज मैंने सोच लिया कि तुमसे प्यार से पेश आऊँगा।"
प्रिय की आँखें थोड़ी बड़ी हो गईं।
प्रिय: "मतलब?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "सच में। तुम जब गुस्से में होती हो, तो और भी प्यारी लगती हो।"
प्रिय: "मतलब?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "मतलब कुछ नहीं, बस तुम अच्छी लगती हो।"
प्रिय एकदम चौंक गई।
प्रिय का दिल तेज़ धड़कने लगा।
प्रिय: "तुम... तुम सही में कुछ अजीब लग रहे हो आज!"
अनिरुद्ध (करीब आकर): "अच्छा? तो तुम्हें मेरी बातों से फर्क नहीं पड़ता?"
प्रिय ने धीरे से गला खंखारा और पीछे हटने लगी।
प्रिय: "मुझे बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ता!"
अनिरुद्ध (शरारत से): "तो फिर इतनी तेज़ धड़कनें क्यों सुनाई दे रही हैं?"
प्रिय ने एकदम अपने दिल पर हाथ रखा।
प्रिय: "बकवास बंद करो!"
अनिरुद्ध (धीरे से फुसफुसाते हुए): "बस एक बार मान लो कि तुम्हें भी फर्क पड़ता है..."
प्रिय को लगा कि उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा है। वो जल्दी से अपनी पानी की बोतल उठाई और वहाँ से पीछे मुड़ गई।
जैसे ही प्रिय जाने लगी, उसका दुपट्टा फिर से अनिरुद्ध की घड़ी में फँस गया।
प्रिय: "तुमने फिर से मेरा दुपट्टा पकड़ा?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "नहीं, ये खुद मेरे पास आ गया।"
प्रिय ने धीरे से अपना दुपट्टा निकाला और भागकर अपने कमरे में चली गई।
पीछे रह गया सिर्फ अनिरुद्ध की हल्की मुस्कान... और एक अहसास, जो अब और बढ़ता जा रहा था।
क्या ये सिर्फ दोस्ती थी? या कुछ और?
अनिरुद्ध दरवाजे के पास खड़ा मुस्कुरा रहा था।
"क्या प्रिय भी अब मुझे लेकर कुछ महसूस कर रही है?"
प्रिय अपने कमरे में बैठी थी, और उसके दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं।
"मुझे क्यों लग रहा है कि अनिरुद्ध के बिना सब अधूरा सा लगता है?"
प्रिय अब सोचने लगी थी कि क्या सच में अनिरुद्ध सिर्फ उसका दोस्त था? और अनिरुद्ध?
"शायद अब वक्त आ गया है कि हम अपनी फीलिंग्स को खुद भी समझें..."। अनिरुद्ध ने खुद से बोला.....
सुबह के 11 बज चुके थे, और प्रिय अब तक गहरी नींद में थी।
जैसे ही उसने अलार्म देखा, वह घबरा गई।
"हे भगवान! इतनी देर हो गई?"
वह फटाफट बिस्तर से कूदी, जल्दी-जल्दी अपने बाल सुलझाए, चेहरा धोया, और एक हल्का पीच कलर का सूट पहन लिया।
बालों को एक सिंपल चोटी में बांधते हुए वह जल्दी से नीचे भागी।
नीचे नाश्ते की टेबल पर सभी दोस्त बैठे थे।
सलोनी, अक्षय, कृति, नेहा, साक्षी, निखिल और अनिरुद्ध सब मिलकर मस्ती कर रहे थे।
जैसे ही प्रिय सीढ़ियों से उतरी, सबने एक-दूसरे को शरारती अंदाज में देखा।
अक्षय: "अरे-अरे, देखो कौन आ रहा है!"
साक्षी (हंसते हुए): "प्रिय जी, क्या बात है? आज सूरज पश्चिम से निकला क्या?"
नेहा: "इतनी देर तक सोई? कहीं कोई खूबसूरत सपना तो नहीं देख रही थी?"
निखिल (शरारती अंदाज में): "हां हां, और सपना किसके बारे में था?"
प्रिय गुस्से से लाल हो गई।
प्रिय: "तुम सबकी तो...! मैं लेट उठ गई तो क्या हुआ?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "हम्म... लगता है कल रात कोई बहुत ज्यादा सोच रहा था!"
प्रिय ने गुस्से से अनिरुद्ध की तरफ देखा।
अक्षय: "अरे प्रिय, सब ठीक तो है? कल रात ज्यादा सोच-विचार में लगी थी क्या?"
साक्षी (शरारत से): "या फिर कोई मीठे सपने देख रही थी?"
प्रिय को सारी रात का वाकया याद आ गया—अनिरुद्ध, किचन, दुपट्टा, वो खास पल...
लेकिन उसने खुद को संभाला और अपनी कुर्सी पर बैठते हुए बोली—
प्रिय: "तुम सबके दिमाग में कोई और काम नहीं है क्या?"
अनिरुद्ध (हँसते हुए): "अरे रहने दो प्रिय, तुम जितना मुँह फेरोगी, हम उतना ही तुम्हें परेशान करेंगे!"
सभी जोर-जोर से हँसने लगे।
थोड़ी देर बाद, जब सबका नाश्ता खत्म हुआ, सलोनी ने एक मजेदार आइडिया दिया।
सलोनी: "यार, अब शादी की सारी शॉपिंग भी हो गई है, तो आज पूरा दिन घर पर ही रहना है!"
अक्षय: "तो क्यों न कुछ मजेदार खेल खेला जाए?"
सभी एक-दूसरे की तरफ देखने लगे।
कृति: "हां यार! बहुत टाइम हो गया कोई मजा नहीं किया!"
अक्षय: "तो फिर खेलते हैं 'सांग विद पिलो'!'"
साक्षी: "हां! ये तो मजेदार होगा!"
कृति (जोश में): "हाँ, हाँ! Dare वाला गेम खेलते हैं!"
सभी ने एक साथ हामी भर दी।
🔹 गेम का नियम:
1. सभी लोग एक गोला बनाएंगे।
2. स्पीकर पर गाना बजेगा, और सब एक-दूसरे को तकिया (pillow) पास करेंगे।
3. गाना जब रुकेगा, तकिया जिसके पास होगी, उसे Dare दिया जाएगा!
नेहा: "इस गेम में कोई Truth नहीं होगा, सिर्फ Dare होगा!"
निखिल: "मगर Dare कोई नॉर्मल नहीं होना चाहिए, कुछ तगड़ा होना चाहिए!"
सभी ने ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ बजाईं और मजा आने की उम्मीद में अपनी जगह ले ली।
नेहा: "तैयार हो?"
सभी ने जोर से कहा: "हाँ!"
पहला गाना बजा— "Kala Chashma" 🎶
सभी ने हंसते हुए एक-दूसरे को तकिया पास करना शुरू कर दिया।
गाना अचानक बंद हुआ!
तकिया किसके पास थी?
नेहा के पास!
सभी ने मिलकर उसे घेर लिया।
साक्षी: "नेहा, तुम्हें Dare देना है!"
अक्षय: "हाँ, और ये हल्का-फुल्का नहीं होगा!"
प्रिय (शरारती अंदाज में): "तुम्हें पूरे घर में बिल्ली की तरह म्याऊँ-म्याऊँ करते हुए घूमना होगा!"
सभी ज़ोर से हँसने लगे।
नेहा ने मुँह बनाया, लेकिन Dare पूरा किया!
गाना बजना शुरू हुआ:
"Dil Dhadakne Do..."
सबने पिलो पास करना शुरू किया।
जैसे ही गाना अचानक बंद हुआ, पिलो प्रिय के हाथ में रह गया!
साक्षी (शरारती अंदाज में): "ओहो प्रिय! डेयर तुम्हें मिला!"
निखिल: "अब कुछ ऐसा बोलो, जिससे हमें मजा आए!"
कृति: "हाँ! प्रिय, तुम्हें किसी एक लड़के की आँखों में देखकर प्यार से ‘I like you’ बोलना होगा!"
प्रिय चौंक गई।
प्रिय: "क्या? पागल हो क्या?"
अक्षय (हंसते हुए): "बिल्कुल नहीं! जल्दी चुनो कि किसे कहोगी?"
प्रिय ने सबकी ओर देखा, और सबकी निगाहें अनिरुद्ध की ओर थी!
नेहा (शरारती मुस्कान के साथ): "अरे प्रिय, ज्यादा मत सोचो, बस दिल की सुनो!"
प्रिय ने गहरी सांस ली, फिर अनिरुद्ध की ओर देखा।
वह मुस्कुराते हुए कॉफी पी रहा था, जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता।
प्रिय ने उसकी आँखों में देखा और धीरे से कहा:
"I like you!"
अनिरुद्ध ने हैरानी से प्रिय की ओर देखा।
सभी दोस्त हंस-हंसकर पागल हो गए!
अक्षय (मस्ती में): "अरे वाह! अनिरुद्ध भाई, कुछ तो बोलो!"
अनिरुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा:
"मुझे पता था प्रिय को ये डेयर मिलेगा!"
प्रिय ने गुस्से से उसे देखा।
प्रिय: "मतलब? तुमने गेम को सेट किया था?"
अनिरुद्ध (मुस्कुराते हुए): "हो सकता है!"
गाना फिर से बजा:
"Gallan Goodiyan..."
सबने फिर से पिलो पास करना शुरू किया।
अचानक गाना रुका, और पिलो इस बार... अनिरुद्ध के हाथ में था!
सभी एक साथ बोले: "अहा! अनिरुद्ध जी, अब आपकी बारी!"
नेहा: "अनिरुद्ध, तुम्हें प्रिय के लिए एक शानदार डायलॉग बोलना होगा।"
प्रिय थोड़ा नर्वस हो गई।
अनिरुद्ध उसके पास आया, उसकी आँखों में देखा, और धीरे से कहा:
"तुम्हें देखकर मुझे हमेशा लगता है कि मेरी ज़िन्दगी में कुछ अधूरा सा था, और अब वो पूरा हो गया है..."
प्रिय सन्न रह गई।
सभी दोस्त "Ooooo" करते हुए शोर मचाने लगे!
निखिल: "अरे प्रिय, देख क्या रही हो? जवाब तो दो!"
प्रिय गहरी सांस लेते हुए बोली:
"अच्छा डायलॉग था, लेकिन इसका असर मुझपर नहीं हुआ!"
सभी हंस पड़े।
अक्षय: "झूठ मत बोल प्रिय, तुम्हारे गाल तो अभी भी गुलाबी हो रहे हैं!"
प्रिय ने गुस्से से सबकी ओर देखा और कहा:
"तुम सब बहुत बड़े शरारती हो!"
फिर से गाना बजा— "Tera Ban Jaunga" 🎶
सभी ज़ोर-ज़ोर से तकिया पास करने लगे।
अचानक गाना रुक गया...
और तकिया प्रिय के हाथ में थी!
सभी एक-दूसरे को शरारती नजरों से देखने लगे।
अक्षय: "ओहो... प्रिय की बारी!"
कृति: "अब इसे कुछ खास Dare देना पड़ेगा!"
निखिल (मुस्कुराते हुए): "हाँ... और ये Dare अनिरुद्ध से जुड़ा होगा!"
प्रिय की आँखें चौड़ी हो गईं।
प्रिय: "नहीं! ऐसा कुछ मत करना!"
नेहा (मुस्कुराकर): "अब तो और भी करना पड़ेगा!"
साक्षी: "प्रिय, तुम्हें अनिरुद्ध को आई लव यू बोलना होगा!"
प्रिय चौंक गई।
प्रिय (गुस्से में): "तुम लोगों के दिमाग में कुछ और नहीं आता क्या?"
सभी ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे।
अक्षय: "अगर तुमने ये नहीं किया, तो तुम्हें पूरे दिन अनिरुद्ध को "मेरा बाबू" बोलना पड़ेगा!"
प्रिय: "हे भगवान! तुम लोग सच में मुझे पागल बना दोगे!"
सभी उत्सुकता से देखने लगे।
अनिरुद्ध ने मुस्कुराते हुए प्रिय को देखा।
अनिरुद्ध (शरारती अंदाज में): "क्या हुआ प्रिय? डर लग रहा है?"
प्रिय ने गहरी सांस ली।
फिर उसने धीरे से अनिरुद्ध की तरफ देखा और...
प्रिय (धीमे से): "आई लव यू!"
सभी ज़ोर से तालियाँ बजाने लगे।
प्रिय ने जल्दी से अपनी नजरें फेर लीं।
लेकिन तभी अनिरुद्ध धीरे से उसके पास आया।
उसने हल्की आवाज़ में कहा—
"आई लव यू टू!"
प्रिय ने चौंककर उसकी ओर देखा।
अनिरुद्ध ने हल्की मुस्कान दी और फिर अपनी जगह बैठ गया।
प्रिय हैरान रह गई।
"क्या अनिरुद्ध मजाक कर रहा था? या इसमें कुछ सच्चाई थी?"
प्रिय का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
प्रिय अब भी अनिरुद्ध की तरफ देख रही थी।
"क्या वो सच में ऐसा सोचता है? या ये सिर्फ खेल का हिस्सा था?"
अनिरुद्ध आराम से हँस रहा था, लेकिन उसकी आँखों में कुछ और था...
"क्या ये सिर्फ मस्ती थी? या कुछ ज्यादा?"
प्रिय को अब तक इस सवाल का जवाब नहीं मिला था...
इसके बाद भी गेम चलता रहा और सभी ने खूब हंसी-मजाक किया।
प्रिय और अनिरुद्ध के बीच जो अजीब सी केमिस्ट्री थी, वह अब सबके सामने धीरे-धीरे आ रही थी।
(आगे क्या होगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए!)
कहानी जारी है।।।।