आरुही ने अपनी 'परफेक्ट' मगर घुटन भरी ज़िंदगी से आज़ादी के लिए नए साल के मौके पर एक ख़तरनाक अजनबी के साथ एक रात गुज़ारी। लेकिन यह आज़ादी महँगी पड़ी, जब वही रहस्यमय आदमी, वीर, उसका क्रूर और ताक़तवर नया सीईओ बनकर ऑफ़िस में आया। उस रात का एक नीला पत्थर व... आरुही ने अपनी 'परफेक्ट' मगर घुटन भरी ज़िंदगी से आज़ादी के लिए नए साल के मौके पर एक ख़तरनाक अजनबी के साथ एक रात गुज़ारी। लेकिन यह आज़ादी महँगी पड़ी, जब वही रहस्यमय आदमी, वीर, उसका क्रूर और ताक़तवर नया सीईओ बनकर ऑफ़िस में आया। उस रात का एक नीला पत्थर वाला कफ़लिंक अब आरुही की सबसे बड़ी कमज़ोरी बन जाता है। वीर उसे ब्लैकमेल करके अपनी गुप्त जासूस बनने पर मजबूर करता है, जिसकी पहली चुनौती उसकी सबसे करीबी दोस्त को बाहर निकलवाना है। सत्ता के इस अंधेरे खेल में आरुही को वीर के साम्राज्य के गहरे राज़ों को उजागर करना होगा, जबकि उसका गला गुलामी के प्रतीक (कफ़लिंक) से जकड़ा हुआ है।
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आरुही को अपनी ज़िंदगी से एक ही शिकायत थी—यह बहुत परफेक्ट थी।
तीस साल की उम्र, एक मल्टीनेशनल फ़र्म में मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव का पद, खार में सी-फेसिंग अपार्टमेंट, और एक ऐसा शेड्यूल जो घड़ी की सुइयों से ज़्यादा सख़्त था। सब कुछ शानदार था, सिवाय एक चीज़ के: ख़ुशी। वह एक सोने के पिंजरे में बंद थी, जहाँ ज़िम्मेदारियाँ ही उसकी सलाख़ें थीं।
बाहर, नए साल की पूर्वसंध्या का जश्न अपने चरम पर था। मुंबई की सबसे आलीशान होटल की बॉल-रूम पार्टी में, आरुही ने अपनी तीसरी शैम्पेन ख़त्म की। चारों ओर हँसी, शोर और तेज़ धुनें थीं, लेकिन उसके अंदर एक अजीब सी ख़ामोशी थी।
“नियमों से आज़ादी,” आरुही ने गुनगुनाया। आज उसे कोई नहीं पहचानता था। उसका नाम, उसका पद, उसकी उलझी हुई रिश्तेदारी... सब कुछ आज रात के लिए दरवाज़े के बाहर था। उसे बस एक रात की ज़रूरत थी—एक रात, जहाँ वह केवल एक 'आरुही' हो, न कि कोई ब्रांड एंबेसडर या किसी कॉर्पोरेट परिवार की बहू।
वह अकेली डांस फ़्लोर पर खड़ी थी, जब उसकी आँखें टकराईं।
कॉर्नर में, काँच की दीवार से सटी हुई, वह खड़ा था। ब्लैक टक्सीडो इतना परफेक्ट था कि लगता था, वह कपड़े नहीं, बल्कि एटीट्यूड पहने हुए है। उसकी त्वचा हल्की टैन, बाल थोड़े लम्बे और बिखरे हुए, और आँखें... उसकी आँखें ऐसी थीं, जैसे समंदर की गहराई में कोई राज़ छिपा हो। वे आँखें आरुही को सिर्फ़ देख नहीं रही थीं; वे उसे पढ़ रही थीं, उसके अंदर की विद्रोह की आग को पहचान रही थीं।
भीड़ आगे-पीछे हो रही थी, पर आरुही को लगा जैसे समय ठहर गया हो। यह आकर्षण नहीं था, यह एक ख़तरा था, जिसे वह जानबूझकर गले लगाना चाहती थी।
आरुही ने अपना होंठ ज़ोर से दबाया और फिर एक लंबी साँस ली। उसने ज़बरदस्ती एक बोल्ड, निमंत्रण भरी मुस्कान चेहरे पर लाई। जैसे ही उसने किया, उस अजनबी ने भी अपनी जगह से हिलना शुरू कर दिया। धीमे, आत्मविश्वास से भरे क़दमों से, वह आरुही की ओर बढ़ा। हर कदम पर, उसका अहंकार और उसकी शक्ति स्पष्ट झलक रही थी।
"हैलो," उसने कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी खनक थी, जैसे कोई महंगी सिगार पीने के बाद आवाज़ स्मूद हो जाती है।
"हैलो," आरुही ने जवाब दिया। उसकी आवाज़ काँप रही थी, जिसे उसने तुरंत छुपा लिया।
"नाम?"
आरुही मुस्कुराई, पर उसकी मुस्कान में एक चुनौती थी। "नाम... आज रात के लिए, नाम एक पहचान है, और मैं अपनी पहचान भूलना चाहती हूँ।"
उसने ज़रा भी हैरानी नहीं दिखाई। इसके बजाय, उसके होंठों पर एक हल्की, शैतानी मुस्कान तैर गई। "मुझे ये जवाब पसंद आया। नाम किसी को बाँध देता है, है ना?"
उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया, पर握 हैंडशेक के लिए नहीं। "बस इतना जान लो... मैं वो हूँ जो कल सुबह तुम्हारी ज़िंदगी में नहीं होगा।"
आरुही के दिल में कुछ टूटा और कुछ जागा। यह आदमी... जानता है कि मैं क्या चाहती हूँ। वह खतरनाक था, शायद अनैतिक भी, पर आज रात आरुही को यही चाहिए था—एक ऐसा अनुभव जो उसके "परफेक्ट" जीवन में एक गहरी, काली दरार डाल सके।
"ठीक है," आरुही ने अपनी आँखें उसकी आँखों में गड़ा दीं। "तो चलें, मिस्टर... 'कल सुबह जो नहीं होगा'।"
लगभग डेढ़ बजे, तेज़ बारिश के बीच वे होटल से बाहर निकले। टैक्सी की पिछली सीट पर, चुप्पी और सस्पेंस का माहौल था। आरुही को पता था कि वह एक ऐसा फ़ैसला ले रही है, जिसका पछतावा उसे कल हो सकता है, पर इस क्षण की आज़ादी के आगे कल की चिंता छोटी पड़ गई थी।
आरुही की आँखें खुलीं। कमरे में अंधेरा था, पर परदों के किनारे से हल्की रोशनी छनकर आ रही थी। पिछली रात की धुंध अभी भी दिमाग़ पर छाई थी।
उसने करवट ली। बिस्तर का दूसरा हिस्सा ठंडा और खाली था।
वो जा चुका था। ठीक वैसे ही, जैसे उसने वादा किया था। न कोई नोट, न कोई फ़ोन नंबर, न कोई याद दिलाने वाला निशान। एक पल के लिए, आरुही को दुख हुआ—एक ऐसी रात का अंत जिसने उसे पहली बार ज़िंदा महसूस कराया था—पर फिर एक संतुष्टि का भाव आया। काम पूरा हुआ। कोई अटैचमेंट नहीं। यही तो चाहिए था।
वह उठी, अपने कपड़े तलाशे और वॉशरूम की ओर बढ़ी। गर्म पानी के शावर के नीचे, उसने तय किया कि वह इस रात को हमेशा के लिए दफ़न कर देगी।
जब वह शीशे के सामने खड़ी होकर अपने बाल सुखा रही थी, उसकी नज़र संगमरमर के काउंटर पर पड़ी।
वहाँ, उसकी मेकअप किट के पास, एक चीज़ चमक रही थी।
यह एक एंटीक कफ़लिंक था।
आरुही ने उसे उठाया। उसका वज़न ज़्यादा था। गोल्डन बेस पर एक गहरा, समुद्री-नीला पत्थर जड़ा हुआ था। जैसे-जैसे आरुही ने उसे ध्यान से देखा, उसकी साँसें तेज़ होने लगीं। पत्थर पर एक जटिल, कलात्मक नक़्क़ाशी बनी हुई थी—एक मुकुट के नीचे तलवार और ढाल का निशान। यह किसी साधारण अमीर आदमी का कफ़लिंक नहीं था। यह किसी शाही या बहुत पुराने, ताकतवर परिवार का कुल-चिन्ह लगता था।
उसने उसे अपनी मुट्ठी में भींच लिया। अब यह सिर्फ़ एक रात की कहानी नहीं थी। यह एक पहला क्लू था। उस आदमी ने इसे जानबूझकर छोड़ा था। क्यों?
शाम के चार बजे। आरुही की कॉर्पोरेट इमारत के 20वें फ़्लोर पर, तनाव और उत्साह का एक अजीब मिश्रण था। आज उसके नए बॉस, मिस्टर विक्रम, कार्यभार संभालने वाले थे। आरुही की टीम इस नए बदलाव को लेकर बहुत डरी हुई थी।
"अंजलि, क्या तुम श्योर हो कि वह इतने सख़्त होंगे?" आरुही ने अपनी कलीग से फुसफुसा कर पूछा।
अंजलि ने अपनी आँखें चौड़ी कीं। "आरुही, सिर्फ़ सख़्त नहीं। वह एक रहस्य हैं। मैंने सुना है कि उनका परिवार इतना पावरफुल है कि वे किसी भी चीज़ का रुख़ बदल सकते हैं। उनका नाम विक्रम है, पर सब उन्हें 'वीर' बुलाते हैं—उनके पिता उन्हें 'वीर' कहकर पुकारते हैं। और हाँ, वह एक 'नो-नॉनसेंस' आदमी हैं। गॉसिप यह है कि उन्हें सीधे लंदन हेडक्वार्टर से यहाँ भेजा गया है।"
आरुही ने अपना ध्यान फ़ाइल पर लगाया, वीर? यह नाम उसके अंदर एक अजीब सा कम्पन पैदा कर रहा था। उसने अपने बैग में छिपे उस कफ़लिंक को छुआ।
बोर्ड मीटिंग शुरू हुई। बड़ी महोगनी की मेज के चारों ओर सभी अधिकारी बैठ चुके थे। कमरे में सन्नाटा पसरा था, सिर्फ़ एयर कंडीशनर की हल्की आवाज़ आ रही थी।
अचानक, मीटिंग रूम का भारी दरवाज़ा खुला। सभी सम्मान में खड़े हो गए।
आरुही का दिल उसके गले में आ गया। उसने धीरे से सिर उठाया।
लम्बा क़द। चौड़े कंधे। वही टक्सीडो, जो अब एक महंगे सूट में बदल गया था। वही इंटेंस आँखें। वही स्मूद मुस्कान, जो अब एक शीतल, पेशेवर कठोरता में ढल चुकी थी।
चेयरमैन ने अपनी आवाज़ में घोषणा की, "लेडीज एंड जेंटलमैन, मिलिए हमारे नए सीईओ, मिस्टर वीर से।"
आरुही के हाथ से फ़ाइल छूट गई। कागज़ हवा में उड़कर ज़मीन पर गिरे।
यह 'विक्रम' नहीं था... यह वीर था। वही अजनबी, जो कल सुबह उसकी ज़िंदगी से 'गायब' होने का वादा करके गया था।
आरुही के शरीर में ख़ून जम गया। उसने किसी तरह ख़ुद को नियंत्रित किया। कोई प्रतिक्रिया नहीं। साँस लो। तुम इसे नहीं जानती हो। उसने तुरंत अपने चेहरे को बेजान कर लिया—एक कॉर्पोरेट मशीन की तरह।
वीर की निगाहें एक पल के लिए आरुही पर रुकीं। कोई पहचान नहीं। कोई चमक नहीं। सिर्फ़ एक कोल्ड, खाली नज़र। उसने आरुही को ऐसे देखा, जैसे वह कमरे में रखा कोई फर्नीचर हो।
आरुही ने राहत की साँस ली— ठीक है। वह भी नाटक कर रहा है।
लेकिन तभी, वीर ने अपनी कुर्सी खींची और बैठने से पहले, अपनी शर्ट की स्लीव को हल्का सा ऊपर किया। आरुही की आँखें अनैच्छिक रूप से उसकी कलाई पर चली गईं।
वहाँ, उसकी दूसरी बांह पर...
वही कफ़लिंक लगा हुआ था।
गोल्डन बेस पर, तलवार और ढाल का वही शाही निशान। लेकिन इस कफ़लिंक में नीला पत्थर नहीं था। यह सिर्फ़ सादा, नक़्क़ाशीदार सोना था।
आरुही ने अपनी मुट्ठी में भींचे हुए उस गहरे नीले पत्थर वाले कफ़लिंक को याद किया।
यह सिर्फ़ एक रात का रोमांस नहीं था। यह आदमी उसके लिए एक सन्देश छोड़कर गया था। यह अधूरा सेट, उसके पास पड़ा हुआ टुकड़ा... यह एक ख़ामोश डील थी।
वीर ने एक नज़र आरुही की ओर नहीं देखा, लेकिन उसके माथे पर शिकन थी। उसने धीमे से, पर दृढ़ आवाज़ में अपना पहला आदेश दिया: "मीटिंग शुरू करें।"
आरुही को लगा जैसे उसके कानों में उस रात की फुसफुसाहट गूँज रही हो।
"रखना।"
उसने उसे छोड़ने के बजाय, एक अधूरी सच्चाई उसके पास छोड़ दी थी। और अब, वह उसका बॉस था। आरुही की ज़िंदगी का सबसे बड़ा रहस्य अब उसी छत के नीचे था, जहाँ उसका करियर टिका हुआ था।
आरुही को लगा जैसे उसके सिर में एक बम फटा हो। वह अपनी मेज पर खड़ी थी, जबकि मिस्टर वीर (जो कल रात का अजनबी था) अपनी कुर्सी पर बैठा था। वह उसे ऐसे देख रहा था जैसे उसने कोई अपराध नहीं किया, जैसे वह उसका बॉस होने के नाते, किसी भी कॉर्पोरेट मीटिंग की अध्यक्षता करने का अधिकार रखता हो।
अधिकार। यही वह शब्द था जो वीर को परिभाषित करता था।
आरुही ने तेज़ी से अपनी ढीली हुई फ़ाइलें उठाईं। उसकी उंगलियाँ अनायास ही अपने पर्स की ओर बढ़ीं, जहाँ वह नीला पत्थर वाला कफ़लिंक रखा था। यह अब सिर्फ़ एक चीज़ नहीं थी; यह एक टोकन था। वीर की सत्ता का अधूरा सबूत, जिसका दूसरा हिस्सा आरुही के पास था।
वह जानती थी कि उसे इसे वापस करना होगा, और अभी। इसे अपने पास रखना ख़तरा मोल लेना था, पर इसे छुपाना उससे भी बड़ा ख़तरा। वह वीर को यह ज़ाहिर नहीं करने दे सकती थी कि वह घबराई हुई है। आरुही की आज़ादी की रात अब उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन गई थी।
बोर्ड मीटिंग ख़त्म होते ही, आरुही ने खुद को संभाला। उसने जानबूझकर औपचारिक लहजे में वीर को ईमेल किया: "सर, पिछली तिमाही के डेटा पर कुछ बारीकियाँ स्पष्ट करनी हैं। क्या मैं आपके ऑफ़िस में पाँच मिनट के लिए आ सकती हूँ?"
जवाब सिर्फ़ एक शब्द का था: "Now."
आरुही ने अपनी सबसे सख़्त, कॉर्पोरेट ब्लू ड्रेस पहनी। उसका चेहरा शांत था, पर अंदर ही अंदर एक तूफ़ान उठ रहा था। 30वें फ़्लोर पर जाने वाली लिफ़्ट की यात्रा आरुही को नर्क के दरवाज़े तक जाने जैसी लगी।
दरवाज़ा खुलते ही, 30वें फ़्लोर की खामोशी ने उसे घेर लिया। वह फ़्लोर, जो सिर्फ़ वीर का था, शहर की शोर-शराबे से कटा हुआ, अपनी ठंडी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा था। हर कदम पर, आरुही को अपने ही जूते की आवाज़ गूँजती हुई सुनाई दी। यह एक तरह का मनोवैज्ञानिक दबाव था, जिसे वीर ने जानबूझकर बनाया होगा।
उसने दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक दी।
"आ जाओ, आरुही।"
उसने दरवाज़ा बंद किया। ऑफिस विशाल था, लेकिन उसे भरने वाली शक्ति केवल वीर की थी। वह अपनी चेयर पर बैठा था, उसके सामने एक बड़ा-सा लैपटॉप खुला था। वह उस पर झुका हुआ था, और आरुही को अंदर आते देख उसने अपनी उँगलियाँ की-बोर्ड पर चला दीं—जैसे आरुही कोई इंतज़ार करने लायक चीज़ नहीं, बल्कि एक व्यवधान हो।
आरुही दो मिनट तक इंतज़ार करती रही। यह पावर-प्ले था—उसे याद दिलाना कि अब वह कौन है, और वह कौन है।
आख़िरकार, वीर ने लैपटॉप बंद किया। उसने अपने हाथ डेस्क पर रखे और आरुही को देखा। उसकी आँखें अब केवल कठोर और कोल्ड थीं।
"तो, बारीकियाँ?" उसने पूछा। उसकी आवाज़ में हल्का मज़ाक था, जो सिर्फ़ आरुही के लिए था।
आरुही ने बिना हिचकिचाए, पर्स से वह कफ़लिंक निकाला। उसने उसे मेज़ के बीचोंबीच, वीर की उंगलियों से कुछ इंच दूर, रख दिया। धातु की छोटी सी आवाज़ उस विशाल ऑफ़िस में भयानक रूप से तेज़ लगी।
"यह मेरी तरफ़ से पारदर्शिता है, मिस्टर वीर," आरुही ने अपनी आवाज़ को स्थिर बनाए रखा। "पिछली रात, मैंने अपनी पहचान खोई थी, पर आज सुबह मैंने आपकी पहचान का एक टुकड़ा उठा लिया। यह एक बहुत ज़्यादा क़ीमती चीज़ है जिसे मैं लापरवाही से अपने पास नहीं रख सकती।"
वीर ने कफ़लिंक को देखा। फिर, उसने अपनी बाईं कलाई की स्लीव को थोड़ा ऊपर किया। वहाँ, दूसरा अधूरा, नीला पत्थर रहित कफ़लिंक चमक रहा था।
"तुम्हें इसे वापस करने में पूरे बीस घंटे लगे," वीर ने कहा। "तुम इसे रख सकती थी। एक स्मृति चिन्ह।"
"मैं उस तरह की लड़की नहीं हूँ, जो क़र्ज़ रखती है," आरुही ने कहा। "और मैं स्मृति चिन्ह में विश्वास नहीं रखती।"
वीर मुस्कुराया—एक धीमी, ख़तरनाक मुस्कान। "हाँ, तुम नहीं रखती। तुम आज़ादी में विश्वास रखती हो। और मुझे पता है कि वह आज़ादी तुम्हें पसंद आई। तुम्हें उस पिंजरे से बाहर निकलना पसंद आया। उस एक रात की क़ीमत अब तुम्हें चुकानी होगी।"
वीर अपनी कुर्सी पर पीछे की ओर झुक गया। "वह कफ़लिंक, आरुही, सिर्फ़ एक धातु का टुकड़ा नहीं है। यह हमारे बीच एक पैक्ट है। तुम यह जानती हो। और अब, क्योंकि तुम यह जानती हो... तुम मेरी हो।"
आरुही के होंठ काँपने लगे। "मैं आपकी कोई चीज़ नहीं हूँ।"
"ओह, तुम हो," वीर ने दृढ़ता से कहा। "तुम मेरी आँखें और कान बनोगी। यहाँ। मेरे साम्राज्य में।"
उसने डेस्क की दराज खोली और एक गुलाबी रंग की सील्ड फ़ाइल निकाली। यह अजीब तरह से हल्की थी। उसने फ़ाइल आरुही की ओर धकेल दी।
"कल रात की आज़ादी के बदले में... तुम्हारा पहला काम। इस फ़ाइल में एक नाम है: अंजलि गोखले।"
आरुही स्तब्ध रह गई। अंजलि? उसकी भरोसेमंद कलीग?
"हाँ, वही," वीर ने शायद आरुही के चेहरे पर आये भावों को पढ़ लिया था। "वह मेरे एक बड़े डील में बाधा बन रही है। कल सुबह 9 बजे से पहले, मुझे ठोस सबूत चाहिए कि वह कंपनी के लिए हानिकारक है। तुम जानती हो कि सबूत कैसे 'बनाए' जाते हैं, आरुही। अगर वह कल सुबह इस ऑफ़िस में दिखी, तो तुम्हारा खेल ख़त्म।"
आरुही को एहसास हुआ कि वह आदमी कितना पावरफुल है। वह सिर्फ़ उसके साथ सोया नहीं था—उसने उस रात से पहले ही आरुही और उसके आसपास की हर चीज़ की जाँच कर ली थी।
"अगर मैंने यह नहीं किया," आरुही ने फुसफुसाया।
वीर की मुस्कान और भी चौड़ी हो गई। "तो मैं तुम्हारी 'परफेक्ट' ज़िंदगी के उस काले धब्बे को... पूरी दुनिया के सामने फैला दूँगा। तुम्हारे पिता, तुम्हारे दोस्त, तुम्हारे क्लाइंट... सब जान जाएँगे कि आरुही ने अपनी ज़िम्मेदारियों से भागने के लिए क्या किया था।"
द मार्क ऑफ़ ओनरशिप (The Mark of Ownership)
आरुही ने फ़ाइल उठाई। उसके हाथ ठंडे हो गए थे। यह सचमुच एक खेल था, और वह उसकी मोहरा थी।
"ठीक है," आरुही ने कहा। उसकी आवाज़ में हार नहीं, बल्कि नई ताक़त थी—ख़ुद को बचाने की ताक़त। "मुझे सबूत कहाँ मिलेंगे?"
"ढूँढो," वीर ने जवाब दिया। "तुम एक स्मार्ट महिला हो। या तो तुम मेरे लिए काम करोगी, या तुम मेरे ख़िलाफ़ काम करोगी। बीच में कोई रास्ता नहीं है।"
तभी, वीर ने एक अजीब, अचानक हरकत की। वह अपनी कुर्सी से उठा और आरुही के बहुत क़रीब आ गया। उसने आरुही की ओर हाथ नहीं बढ़ाया, पर वह इतनी नज़दीक था कि आरुही को उस रात की सैंडलवुड और मिंट की ख़ुशबू महसूस हुई।
आरुही की आँखें अनैच्छिक रूप से बंद हो गईं। उस एक रात का तीव्र आकर्षण अभी भी उसकी नसों में दौड़ रहा था।
जब उसकी आँखें खुलीं, तो वीर वापस अपनी कुर्सी पर था।
"अब तुम जा सकती हो।"
आरुही तेज़ी से दरवाज़े की ओर बढ़ी। तभी, उसके गले पर कुछ ठंडा महसूस हुआ।
उसने नीचे देखा। अपनी कॉलर के अंदर... एक पतली सोने की चेन पर... वही नीला पत्थर वाला कफ़लिंक लटक रहा था।
वीर ने कब? कैसे? उसने बिना उसे छूए, बिना एक शब्द कहे... यह उसकी गर्दन में डाल दिया था।
आरुही ने घबराकर उसे उतारने की कोशिश की, पर उसकी उँगलियाँ चेन की लॉक तक नहीं पहुँचीं।
"उसे पहन कर रखो," वीर ने आदेश दिया। उसकी आवाज़ अब सिर्फ़ बॉस की नहीं थी, वह मालिक की थी। "यह तुम्हारा इंश्योरेंस है। यह तुम्हें याद दिलाएगा कि तुम किसके लिए काम कर रही हो।"
यह कफ़लिंक अब उसका राज़ नहीं था, यह उसकी ज़ंजीर थी।
आरुही बिना कुछ कहे, तेज़ी से दरवाज़े की ओर बढ़ी और बाहर निकल गई।
क्लिफहैंगर: लिफ़्ट में नीचे आते हुए, आरुही ने अपनी मुट्ठी में कफ़लिंक को कसकर पकड़ लिया। यह ठंडी धातु उसे वीर की जकड़ का एहसास करा रही थी। तभी, उसके ऑफ़िस के लैंडलाइन पर एक मैसेज आया—यह एक एनक्रिप्टेड ईमेल था। भेजने वाला: ANONYMOUS-7। विषय: "उस रात की सच्चाई"। आरुही के हाथ काँपने लगे। यह वीर नहीं था। यह कोई तीसरा खिलाड़ी था, जो उस रात को जानता था, और अब इस खेल में कूद चुका था।
यह रहा आपकी कहानी का दूसरा, सस्पेंस और ड्रामा से भरपूर पार्ट!
हमने इस हिस्से में ब्लैकमेल को निजी और पेशेवर दोनों स्तरों पर स्थापित किया है, और आरुही के गले में कफ़लिंक डालकर गुलामी के प्रतीक को स्थापित किया है।
अब, ANONYMOUS-7 कौन है? क्या वह वीर का विरोधी है या कोई ऐसा व्यक्ति जो आरुही की मदद करना चाहता है? क्या आप चाहेंगे कि आरुही तुरंत इस एनक्रिप्टेड ईमेल को खोले या पहले वीर का आदेश पूरा करे?
आरुही ने तेज़ी से अपनी मेज़ पर रखा एनक्रिप्टेड ईमेल वाला लैपटॉप बंद किया। उसका गला जल रहा था। उसने अनैच्छिक रूप से अपनी साड़ी के अंदर नीले कफ़लिंक को टटोला—वह अब सिर्फ़ एक ठंडी धातु नहीं थी, वह वीर की गुलामी का गर्म निशान थी।
ANONYMOUS-7 का ईमेल। "उस रात की सच्चाई।" यह वीर की तरफ़ से नहीं था। वीर तो सीधा ब्लैकमेल करता है। यह कोई तीसरा खिलाड़ी था, जो उस रात को जानता था, और अब चुपके से इस खेल में कूद चुका था।
आरुही के पास दो ख़तरे थे, दोनों जानलेवा। एक, वीर की खुली धमकी (अंजलि को निकालो, या मैं तुम्हें तबाह कर दूँगा)। दूसरा, ANONYMOUS-7 का रहस्यमय संदेश, जो बताता था कि आरुही अब केवल वीर के नियंत्रण में नहीं है, बल्कि नज़र में है।
उसने घड़ी देखी। रात के 10 बज रहे थे। वीर का अल्टीमेटम: कल सुबह 9 बजे से पहले अंजलि को ऑफ़िस से बाहर करना है। आरुही जानती थी कि उसे पहले वीर की आग बुझानी होगी, और फिर ANONYMOUS-7 के धुएं की जाँच करनी होगी।
आरुही ने जल्दी से अपनी खाली डेस्क के पास की कैबिन में ख़ुद को बंद कर लिया। उसने अपनी कॉर्पोरेट एक्सेस का इस्तेमाल किया और अंजलि गोखले की पिछले छह महीनों की कंपनी कम्यूनिकेशन और फ़ाइल एक्सेस की जाँच शुरू कर दी।
पहले तो आरुही को लगा कि वीर ने झूठा सबूत बनाया होगा। लेकिन जैसे-जैसे उसने अंजलि के डेटा को खंगाला, उसे छोटी-छोटी दरारें दिखीं। अंजलि ने पिछली तिमाही में एक छोटी क्लाइंट लिस्ट एक बाहरी वेंडर को भेजते समय, 'गलती' से एक पुरानी क्लाइंट स्ट्रैटेजी फ़ाइल भी संलग्न कर दी थी। यह कोई बड़ा लीक नहीं था—अंजलि ने बाद में वेंडर को कॉल करके उसे डिलीट भी करवा दिया था—लेकिन यह लापरवाही थी।
आरुही की साँस अटक गई। वीर ने झूठ नहीं बनाया था। उसने सिर्फ़ अंजलि की छोटी सी गलती को एक घातक हथियार में बदल दिया था। वीर की क्रूरता इस बात में थी कि वह किसी भी इंसान की सबसे छोटी कमज़ोरी को पहचानकर उसे हथियार बना लेता था।
आरुही ने आँखें बंद कर लीं। उसे याद आया कि कैसे तीन साल पहले, जब आरुही एक ख़राब रिश्ते से गुज़र रही थी, अंजलि ने बिना सवाल किए उसे अपने घर में पनाह दी थी। आज, आरुही को उसी दोस्त के करियर पर कील ठोकनी थी।
तुम्हें इसे अपने अस्तित्व के लिए करना होगा। आरुही ने अपने आप को समझाया। यह कॉर्पोरेट दुनिया है, और इस समय, ख़ुद को बचाना सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
उसने अपने गुमनाम ईमेल अकाउंट से एक विस्तृत, तकनीकी रिपोर्ट बनाई। उसने अंजलि के कार्य को 'लापरवाही' नहीं, बल्कि 'जानबूझकर सिक्योरिटी प्रोटोकॉल का गंभीर उल्लंघन' बताया। उसने सबूत को इस तरह से पेश किया कि एचआर हेड के पास तुरंत इस्तीफ़ा माँगने के अलावा कोई विकल्प न रहे, पर उस पर कोई आपराधिक या ब्लैकलिस्ट करने वाला आरोप न लगे। यह आरुही का समझौता था—वीर को आज्ञा देना, पर अंजलि को पूरी तरह तबाह होने से बचाना।
रात के 3:45 बजे, उसने 'सेंड' बटन दबाया। डेस्क पर माथा रखकर, आरुही ने रोने की कोशिश की, पर उसकी आँखें सूखी थीं। अपराधबोध की जगह एक ठंडी, पेशेवर संतुष्टि ने ले ली थी। वह अब वीर के खेल में थी।
सुबह 7 बजे। आरुही ऑफ़िस पहुँची। अंजलि की डेस्क खाली थी। उसका कोई निशान नहीं था। वीर जीत गया था।
आरुही ने सीधे 30वें फ़्लोर की ओर जाने से पहले, मेज़ पर बैठ कर ANONYMOUS-7 के एनक्रिप्टेड ईमेल को खोला।
यह एक बहुत ही पुराने और साधारण सिफ़र से एन्क्रिप्ट किया गया था—एक ऐसा सिफ़र जिसका इस्तेमाल पुरानी कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन में होता था। ऐसा लगा जैसे यह संदेश किसी ने जानबूझकर उस टूल का उपयोग करके भेजा था जिसे आरुही जैसा पुराना कर्मचारी ही पहचान पाए।
आरुही ने जल्दी से एक ऑनलाइन डिक्रिप्शन टूल का इस्तेमाल किया।
संदेश डिक्रिप्ट हो गया। यह कोई लम्बा टेक्स्ट नहीं था, बल्कि केवल तीन चीज़ें थीं:
एक ब्लरी, ज़ूम्ड-इन फ़ोटो। यह फ़ोटो आरुही के गले में लटके नीले कफ़लिंक के शाही मुकुट और तलवार के निशान की थी।
एक बैंक अकाउंट नंबर।
एक साधारण टेक्स्ट मैसेज: "कफ़लिंक अधूरा है। तुम्हारी कहानी भी।" (The cufflink is incomplete. Your story too.)
आरुही काँप गई। यह ANONYMOUS-7 उसे बता रहा था कि वह जानता है कि कफ़लिंक उसके पास है, और वह जानता है कि उसका अधूरापन ही उसका राज़ है।
बैंक अकाउंट नंबर क्या था? वीर का? या किसी और का? आरुही ने तुरंत अपनी कंपनी की फ़ाइनेंशियल डेटाबेस में उस अकाउंट नंबर को सर्च किया।
नतीजा चौंकाने वाला था। यह अकाउंट न तो वीर का था, न ही उसकी कंपनी का। यह अकाउंट पिछले चार सालों से वीर के सबसे बड़े कॉर्पोरेट प्रतिद्वंद्वी, 'द शौर्या ग्रुप' के एक निष्क्रिय शेल कॉर्पोरेशन से जुड़ा था!
आरुही ने तेज़ी से फ़ोन उठाया और वीर के ऑफ़िस में कॉल किया।
"कम इन," वीर की ठंडी, साफ़ आवाज़ आई।
आरुही अंदर गई। वीर अपनी चेयर पर बैठा था, उसकी कलाई पर अधूरा कफ़लिंक चमक रहा था, और आरुही के गले में उसका दूसरा, पूरा हिस्सा अब भी था। यह किसी गुप्त समाज के टोकन जैसा लग रहा था।
"तुम्हारी 'बारीकियाँ' स्पष्ट हो गईं, आरुही," वीर ने एक फ़ाइल पर हस्ताक्षर करते हुए कहा। "अंजलि चली गई। तुमने मेरा पहला टेस्ट पास कर लिया है।"
"और अब?" आरुही ने पूछा।
वीर ने मेज पर एक और छोटी, काली चमड़े की डायरी रख दी।
"यह मेरी ज़रूरी संपर्क और गोपनीय डेटा रखती है। यह अब तुम्हारी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। इसे अपने पास, अपने घर में सुरक्षित रखना। अगर यह किसी और के हाथ लगी... तो सिर्फ़ तुम्हारा करियर नहीं, मैं तुम्हारा अस्तित्व ही मिटा दूँगा। अब तुम मेरी पहचान हो।"
आरुही ने डरते हुए काली डायरी उठाई। यह किसी प्राचीन चीज़ की तरह वज़नी थी।
"यह तुम्हारी अगली ज़िम्मेदारी है," वीर ने अपने फ़ोन पर कुछ देखते हुए कहा। "द शौर्या ग्रुप का सीईओ, मिस्टर हर्ष शर्मा, मेरे पिता का सबसे बड़ा दुश्मन है। तुम्हें किसी भी तरह से उसके नज़दीक जाना होगा और पता लगाना होगा कि उसका अगला बड़ा अधिग्रहण क्या है। तुम्हें कल रात 10 बजे तक शौर्या ग्रुप की गोपनीय फ़ाइनेंशियल रिपोर्ट की एक प्रति मुझे देनी होगी।"
वीर ने अपना सिर उठाया। उसकी आँखें चमक रही थीं। "तुम जानती हो कि वह तुम्हें क्यों चुनेगा। वह तुम्हारी ख़ूबसूरती और प्रतिभा को नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएगा।"
आरुही को लगा जैसे वह गंदी हो गई है। "आप मुझे... क्या करने को कह रहे हैं?"
"मैं तुम्हें बैलेंस शीट लाने को कह रहा हूँ, आरुही," वीर ने धीरे से कहा। "और हाँ, हर्ष शर्मा अंजलि गोखले का पुराना दोस्त है।"
यह एक और ट्विस्ट था।
अंजलि को हटाना सिर्फ़ रास्ते से हटाना नहीं था—वह हर्ष शर्मा तक पहुँचने के लिए पुल को जलाना था। अब आरुही के पास कोई विकल्प नहीं बचा था।
आरुही उसी शाम अपने खार स्थित सी-फ़ेसिंग अपार्टमेंट में पहुँची। उसने काली डायरी और गुलाबी फ़ाइल को छिपाने के लिए अपनी पुरानी अलमारी खोली।
अलमारी के पिछले कोने में, जहाँ उसने अपनी सारी पुरानी कॉर्पोरेट नोट्स और पुरानी परफेक्ट ज़िंदगी के काग़ज़ात रखे थे, वहाँ एक बंद, पुराना लिफ़ाफ़ा पड़ा था।
आरुही की साँस रुक गई।
यह उसकी हैंडराइटिंग में लिखा था:
"जल्दी जागो।"
आरुही ने वह लिफ़ाफ़ा कभी नहीं लिखा था। वह अब जानती थी कि ANONYMOUS-7 कोई बाहर वाला नहीं है। वह उसके घर में है। वह उसे बहुत पहले से देख रहा है।
उसने डरते हुए लिफ़ाफ़े को खोला। अंदर एक काग़ज़ था, जिस पर सिर्फ़ एक पता लिखा था—वीर के लंदन वाले पुराने घर का पता।
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यह लिफ़ाफ़ा आरुही की अलमारी में कैसे आया? और वह पता क्यों? ANONYMOUS-7 ने वीर का राज़ आरुही के घर में क्यों छोड़ा?
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आरुही की साँस उसके गले में अटक गई थी। वह अपने खार वाले अपार्टमेंट में, अपनी आलमारी के सामने ज़मीन पर बैठी थी, जहाँ उसने अपनी सारी पुरानी, परफ़ेक्ट ज़िंदगी को दफ़न कर रखा था। लेकिन अब, उसकी सबसे निजी जगह भी अनजानी नज़रों से सुरक्षित नहीं थी।
"जल्दी जागो।" यह उसकी अपनी हैंडराइटिंग थी, पर उसने वह लिफ़ाफ़ा कभी नहीं लिखा था।
आरुही ने काँपते हाथों से वह बंद लिफ़ाफ़ा खोला। अंदर का सफ़ेद काग़ज़ पुराना और पीला पड़ चुका था। उस पर एक पता लिखा था, जिसे देखते ही आरुही के दिमाग़ में बिजली सी कौंध गई: 22, Belgravia Crescent, London SW1X.
यह पता ANONYMOUS-7 ने छोड़ा था, जो जानता था कि वह उस रात को, उस कफ़लिंक को और अब आरुही के घर के हर कोने को जानता है। यह वीर का घर नहीं था, बल्कि एक ऐसी जगह थी जहाँ वीर का अतीत दफ़न था।
आरुही को ज़मीन पर बैठी उस आदमी की याद आई, जिसने कहा था, "कफ़लिंक अधूरा है। तुम्हारी कहानी भी।" इसका मतलब था कि यह केवल वीर और आरुही का खेल नहीं है। यह उससे कहीं ज़्यादा गहरा, खूनी और पुराना है।
उसने जल्दी से अपनी प्रोफ़ेशनल ट्रेनिंग को याद किया। सबसे पहले: पहचानो, जाँचो, कार्रवाई करो।
आरुही ने तुरंत अपना एनक्रिप्टेड लैपटॉप खोला। यह एक ऐसा टूल था, जिसे उसने अपनी कॉर्पोरेट जासूसी के लिए बनाया था, पर आज वह इसका इस्तेमाल अपनी जान बचाने के लिए कर रही थी।
उसने लंदन के उस पते को सर्च किया। यह कोई आम घर नहीं था। यह पता एक गोपनीय चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम पर दर्ज था, जिसे सालों पहले वीर के परिवार, 'द वीरज ग्रुप' ने बंद कर दिया था। ट्रस्ट का नाम था: 'नील तारा फाउंडेशन'।
'नील तारा'... आरुही ने अपनी गर्दन पर लटके उस गहरे नीले पत्थर वाले कफ़लिंक को छुआ। क्या यह कफ़लिंक उस फ़ाउंडेशन से जुड़ा था?
आरुही ने वीरज ग्रुप के इतिहास को खंगाला। उसे पता चला कि वीर के पिता, विक्रम वीरज, ने सालों पहले अपने परिवार के एक बड़े राज़ को छिपाने के लिए इस चैरिटेबल ट्रस्ट को बंद कर दिया था। उस राज़ का सीधा कनेक्शन वीरज परिवार के पुराने, शाही निशान (कफ़लिंक पर बना मुकुट और तलवार) से था।
आरुही को एहसास हुआ कि वह केवल वन-नाइट स्टैंड के ब्लैकमेल में नहीं फँसी है। वह वीर के परिवार के विशाल और काले अतीत का एक अनजाने में पकड़ा गया मोहरा बन चुकी है।
अब वीर का आदेश: हर्ष शर्मा।
आरुही जानती थी कि उसे वीर का आदेश मानना होगा, लेकिन ANONYMOUS-7 के संदेश को नज़रअंदाज़ करने का मतलब था कि वह अंधेरे में खेल रही है। उसे शक्ति चाहिए थी, और वह शक्ति वीर की काली डायरी में थी।
आरुही ने वह वज़नी, काली चमड़े की डायरी उठाई, जिसे वीर ने उसे 'इनाम' के तौर पर दिया था। डायरी पर कोई ताला नहीं था, पर वह जानती थी कि इसकी जानकारी तक पहुँचना किसी लॉक से ज़्यादा मुश्किल होगा।
डायरी के पन्ने पुराने, मखमली थे। पहले कुछ पन्नों पर कॉर्पोरेट अकाउंट्स के नंबर, क्लाइंट्स के नाम और कोडवर्ड्स लिखे थे। ये साफ़ तौर पर वीर के साम्राज्य का नक्शा थे।
आरुही ने हर शब्द, हर नंबर को स्कैन किया। उसे लगा जैसे डायरी में कुछ ग़ायब है। कुछ ज़रूरी पन्ने...
तभी, उसकी नज़र डायरी के बीच में पड़ी एक छोटी दरार पर पड़ी। एक बारीक कट, जो सिर्फ़ तब दिखता था जब पन्नों को एक ख़ास कोण पर मोड़ा जाता था। आरुही ने अपनी उंगली से उस दरार को टटोला और धीरे से खींचा।
एक छोटा, पतला पन्ना डायरी की बाइंडिंग से बाहर निकल आया। यह पन्ना काग़ज़ का नहीं, बल्कि एक पुराने, नक़्क़ाशीदार वेल्लम का था—जिस पर स्याही नहीं, बल्कि रक्त की तरह दिखने वाले काले निशान थे।
वह निशान कोई भाषा नहीं थे, बल्कि एक जटिल गोपनीय कोड था, जिसे आरुही ने अपनी पिछली कंपनी में 'सिक्योरिटी प्रोटोकॉल' के तौर पर पढ़ा था। इसे 'विक्रम-ए' कोड कहा जाता था, जो केवल वीरज परिवार के सबसे वफ़ादार सदस्य इस्तेमाल करते थे।
आरुही ने तुरंत अपने लैपटॉप में उस कोड को डिक्रिप्ट किया।
संदेश चौंकाने वाला था:
कोड 7824B: नील तारा ट्रस्ट अब बंद हो चुका है। उसका असली काम अब हर्ष शर्मा के पास है। यह कफ़लिंक एक चाबी है—दूसरी चाबी अंजलि गोखले के पास है।
आरुही की आँखें फटी रह गईं।
यह संदेश Veer की डायरी के अंदर छिपा था। इसका मतलब था कि वीर अंजलि को केवल रास्ते से हटा नहीं रहा था—वह दूसरी चाबी को नष्ट कर रहा था! और हर्ष शर्मा केवल वीर का प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि 'नील तारा' के गुप्त मिशन का अगला संरक्षक था।
वीर ने आरुही को हर्ष शर्मा के पास भेजा था, ताकि वह उससे एक चाबी (फ़ाइनेंशियल रिपोर्ट) ले सके, और दूसरी चाबी (अंजलि) को पहले ही नष्ट कर चुका था।
आरुही अब जानती थी कि वीर का असली मकसद केवल कॉर्पोरेट अधिग्रहण नहीं है। यह कुछ और है।
आरुही के पास अब कोई संदेह नहीं था। वह इस खेल का हिस्सा है। वह ब्लैकमेल हो रही है, पर अब उसके पास ज्ञान की शक्ति भी है।
उसे हर्ष शर्मा से मिलना ही था। लेकिन अब वह एक ब्लैकमेल की गई जासूस के रूप में नहीं, बल्कि एक जानकारी वाली मोहरे के रूप में जाएगी।
अगली सुबह, आरुही ने एक गहरी साँस ली। उसने अपनी सबसे महंगी, सबसे आकर्षक साड़ी पहनी—एक ऐसी साड़ी जो शक्ति और नियंत्रण दोनों दर्शाती थी।
उसने अपने गले पर लटके नीले कफ़लिंक को छुआ। यह अब ज़ंजीर कम, हथियार ज़्यादा लग रहा था। यह वह चारा था जो हर्ष शर्मा को जाल में फँसाएगा, क्योंकि कोड साफ़ कह रहा था कि हर्ष भी इस शाही राज़ से जुड़ा है।
आरुही ने अपने आप को आईने में देखा। उसकी आँखें अब भयभीत नहीं थीं, उनमें एक ठंडी दृढ़ता थी।
उसने अपने फ़ोन पर एक छोटा, औपचारिक टेक्स्ट मैसेज टाइप किया, जिसे वह तुरंत हर्ष शर्मा को भेजेगी:
आरुही: "मिस्टर शर्मा। मुझे आपकी कंपनी के नए प्रोजेक्ट पर एक गुप्त इनसाइट देनी है, जो आपके लिए फ़ायदेमंद हो सकती है। मैं जानता हूँ कि आप अपनी पिछली टीम को लेकर निराश हैं। क्या हम कॉफ़ी पर मिल सकते हैं?"
भेजने से ठीक पहले, उसने मैसेज को डिलीट किया। वह जानती थी कि हर्ष शर्मा चालाक है। वह उसे अपने क़रीब आने देगा क्योंकि वह अंजलि की दोस्त थी।
आरुही ने फिर से एक नया टेक्स्ट टाइप किया, जो व्यक्तिगत और भावनात्मक दोनों था:
आरुही: "मिस्टर शर्मा, मैं आरुही बोल रही हूँ। मैं अंजलि की दोस्त थी। मुझे पता है कि उसके साथ क्या हुआ... और मुझे पता है कि यह किसने किया। मैं आपसे अंजलि के बारे में बात करने के लिए मिलना चाहती हूँ। यह बहुत ज़रूरी है।"
आरुही ने 'सेंड' बटन दबा दिया। यह सच का इस्तेमाल करके बुना गया पहला झूठ था।
अब वह जानती थी कि उसे हर्ष शर्मा से रिपोर्ट नहीं, बल्कि नील तारा ट्रस्ट और अंजलि गोखले के राज़ निकालने हैं।
क्लिफहैंगर: आरुही को तुरंत हर्ष शर्मा का जवाब मिला। वह केवल एक शब्द का था, पर उसकी पूरी रणनीति को हिला दिया: "कफ़लिंक। आज रात 8 बजे, ताज लैंड्स एंड पर।"
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हर्ष शर्मा को कैसे पता चला कि आरुही के पास कफ़लिंक है? क्या ANONYMOUS-7 ने हर्ष को यह जानकारी दी? या हर्ष ही ANONYMOUS-7 था?
रात के 8 बज रहे थे। मुंबई की रात तेज़, चमकदार और ख़तरनाक थी।
आरुही अपनी काली एसयूवी से ताज लैंड्स एंड के आलीशान पोर्च के नीचे उतरी। उसने आज अपने सबसे बोल्ड कपड़े चुने थे—एक डीप मरून रंग की साड़ी, जो कॉर्पोरेट शक्ति और छिपी हुई कामुकता का मिश्रण थी।
गले पर लटकता नीला कफ़लिंक साड़ी के अंदर, उसकी त्वचा को छू रहा था। आरुही जानती थी कि यह सिर्फ़ एक आभूषण नहीं, बल्कि एक हथियार है—वह चारा जो हर्ष शर्मा को फँसाएगा।
हर्ष का जवाब: "कफ़लिंक।" यह एक सवाल नहीं था, यह एक दावा था। इसका मतलब था कि वह इस शाही राज़ को जानता था।
आरुही को लगा जैसे वह किसी अंधेरे शतरंज के बोर्ड पर चल रही है, जहाँ उसके हर कदम को दो ख़तरनाक राजा देख रहे थे—एक वीर (उसका ब्लैकमेलर) और दूसरा हर्ष (उसका टारगेट)। और उनके ऊपर ANONYMOUS-7 (वह अदृश्य, सर्वव्यापी शक्ति) थी।
वह बार में दाख़िल हुई। यह एक शांत जगह थी, जहाँ की धीमी रौशनी गहरे राज़ों को छुपाने के लिए परफेक्ट थी। हर्ष पहले से इंतज़ार कर रहा था।
हर्ष शर्मा: द ओल्ड गार्ड (The Old Guard)
हर्ष शर्मा, वीर से एकदम अलग था। वीर जहाँ ताक़त और उग्रता का प्रतीक था, हर्ष वहाँ शालीनता और बुद्धि का प्रतीक था। उसके बाल सफ़ेद होने लगे थे, पर उसकी आँखें गहरी और अनुभवी थीं। उसके चेहरे पर एक शांत उदासी थी, जो आरुही के मन में तुरंत भरोसा पैदा करने लगी।
"आरुही, प्लीज बैठिए," हर्ष ने गर्मजोशी से कहा। उसकी आवाज़ में वो तेज़, काटने वाली धार नहीं थी जो वीर की आवाज़ में थी।
जैसे ही आरुही बैठी, हर्ष की आँखें एक पल के लिए उसकी ओर टिकीं। वह आरुही की आँखों में नहीं, बल्कि उसकी गर्दन पर देख रहा था। उसे साफ़ दिख रहा था कि साड़ी की गहरी नेकलाइन के अंदर, नीले पत्थर का किनारा चमक रहा था।
"मैं जानता हूँ कि तुम क्यों यहाँ हो," हर्ष ने सीधे कहा। "अंजलि।"
आरुही ने राहत की साँस ली। वह अंजलि का कार्ड खेलने के लिए तैयार थी।
"अंजलि मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी, सर," आरुही ने अपनी आवाज़ में सच्चा दर्द भरने की कोशिश की, जो ज़्यादातर अपराधबोध था। "मैंने उसे बचाने की कोशिश की, पर वीर... मिस्टर वीर ने उसे फँसाया। मुझे पता है कि आप उसके पुराने दोस्त हैं।"
हर्ष ने एक लम्बी, धीमी साँस ली। "अंजलि ने मुझसे संपर्क करने की कोशिश की थी। आख़िरी बार। वह जानती थी कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन वीर ने उसे पहले ही खत्म कर दिया।" उसने आँखें उठाईं और आरुही को सीधी, दृढ़ता से देखा।
"और तुम? तुम यहाँ क्यों हो, आरुही? तुम अपनी दोस्त के बदले दूसरे पक्ष के लिए जासूसी कर रही हो। या तुम उसे पहन कर क्यों आई हो?"
आरुही को एहसास हुआ कि नाटक करने का कोई फ़ायदा नहीं। हर्ष सब जानता था।
"मुझे ब्लैकमेल किया गया है," आरुही ने फुसफुसाया। "कल रात की आज़ादी के बदले में। वीर जानता है कि मैं अपनी 'परफेक्ट' ज़िंदगी खो नहीं सकती। यह कफ़लिंक उसने मुझे पहनाया है—यह मेरी ज़ंजीर है।"
हर्ष की आँखों में पहली बार क्रोध की एक चिंगारी भड़की, जो तुरंत दब गई।
"यह ज़ंजीर नहीं है, आरुही," हर्ष ने कहा। "यह चाबी है। और यह सिर्फ़ तुम्हारी नहीं है, यह द शौर्या ग्रुप की भी है। और यह द वीरज ग्रुप की भी नहीं है।"
उसने टेबल पर अपना हाथ रखा और झुककर आरुही की ओर देखा।
"तुम जो पहन रही हो, वह नील तारा का चिन्ह है। नील तारा फ़ाउंडेशन वीरज परिवार द्वारा स्थापित एक गुप्त सामूहिक संस्था थी, जो केवल कॉर्पोरेट लाभ के लिए नहीं, बल्कि किसी पुरातन शक्ति की रक्षा के लिए बनाई गई थी। यह कफ़लिंक उस संस्था के अभिभावक (Guardian) का प्रतीक है।"
आरुही को काली डायरी का कोड याद आया: नील तारा ट्रस्ट अब बंद हो चुका है। उसका असली काम अब हर्ष शर्मा के पास है।
"आप 'नील तारा' के अगले संरक्षक हैं?" आरुही ने पूछा।
हर्ष ने हाँ में सिर हिलाया। "और यह नीला पत्थर... यह दिखाता है कि तुम मुखिया की मोहर हो। इस पूर्ण कफ़लिंक का मतलब है कि इसे पहनने वाला ही उस गुप्त तिजोरी तक पहुँच सकता है, जहाँ असली राज़ छिपा है।"
"तो वीर क्या चाहता है?" आरुही ने पूछा।
"वीर केवल कॉर्पोरेट अधिग्रहण नहीं चाहता," हर्ष ने समझाया। "वह अपनी विरासत चाहता है। सालों पहले, वीर के पिता, विक्रम वीरज, ने नील तारा के सिद्धांतों के साथ विश्वासघात किया। उन्होंने उस 'पुरातन शक्ति' का इस्तेमाल कॉर्पोरेट बाज़ार पर क़ब्ज़ा करने के लिए किया। जब बाकी अभिभावकों ने विरोध किया, तो विक्रम ने ट्रस्ट बंद कर दिया और उसका सबसे ज़रूरी राज़ कहीं छिपा दिया।"
आरुही को लंदन का पता याद आया: 22, Belgravia Crescent, London.
"और वह राज़ कहाँ है?"
"वीर उसी राज़ को ढूँढ रहा है, और वह जानता है कि उसकी चाबी केवल दो लोगों के पास है: एक वह जो नीला कफ़लिंक पहनेगा (यानी तुम) और दूसरा... जो राज़दार था।"
हर्ष ने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कीं।
"दूसरी चाबी थी: अंजलि गोखले।"
आरुही के मुँह से दर्द भरी आह निकल गई। "नहीं! अंजलि एक मार्केटर थी!"
"वह एक आख़िरी संदेश थी," हर्ष ने कहा। "विक्रम ने मरने से पहले अंजलि को कोड में कोई संदेश दिया था। वीर को यह पता चला, इसलिए उसने तुम्हें बीच में डाल दिया। उसने तुम्हें मजबूर किया कि तुम अंजलि को हटा दो, ताकि तुम्हारी ही आँखों से वह राज़ को ढूँढे। तुम उसके सबसे बड़े विश्वासघात का हिस्सा बन गईं।"
आरुही को अपने ऊपर घिन आने लगी। उसने अपनी आज़ादी के लिए, अपनी दोस्त को एक ऐसे साज़िश का मोहरा बना दिया था जिसका उसे पता भी नहीं था।
"मैं तुम्हें एक मौका दे रहा हूँ, आरुही," हर्ष ने अपना हाथ मेज पर आगे बढ़ाया। "तुम वीर की मोहरा नहीं हो। तुम अब चाबी हो। मेरे साथ आओ। हम दोनों मिलकर उस राज़ तक पहुँचते हैं, और वीर के साम्राज्यवाद को ख़त्म करते हैं। मैं तुम्हारी मदद करूँगा... तुम्हें तुम्हारी आज़ादी वापस दिलाऊँगा।"
आरुही ने हर्ष के हाथ को देखा। यह एक नया पाला था। वीर के पास सत्ता थी, पर हर्ष के पास सच्चाई थी। वीर के पास ज़ंजीर थी, पर हर्ष के पास वादा था।
"ठीक है," आरुही ने अपना हाथ बढ़ाया और हर्ष के हाथ में दे दिया। उनकी पकड़ दृढ़ थी। "मैं आपके साथ हूँ। लेकिन सबसे पहले, मुझे यह जानना है... ANONYMOUS-7 कौन है?"
हर्ष ने अपना हाथ वापस खींचा, और एक हल्की, दुख भरी मुस्कान दी। "ANONYMOUS-7 वह है जो तुम्हें तुम्हारी पहचान याद दिलाना चाहता है। वह तुम्हारे लिए अलमारी में संदेश छोड़कर गया था।"
हर्ष ने अपने फ़ोन को छुआ। "और हाँ, वह संदेश... मैंने ही छोड़ा था।"
"मैं ही ANONYMOUS-7 हूँ, आरुही।"
आरुही सदमे में अपनी कुर्सी से लगभग गिर पड़ी। "आप... आपने मेरे घर में घुसपैठ की?"
"ज़रूरत थी," हर्ष ने सादगी से कहा। "जब मैंने देखा कि वीर ने तुम्हें चुना है, तो मुझे तुम्हें जगाना पड़ा। मैं वीर की तरह ब्लैकमेल नहीं करता। मैं तुम्हें जानकारी देता हूँ, ताकि तुम सही फ़ैसला ले सको।"
"और वह लंदन का पता?"
"वह तुम्हारे लिए अगला क़दम है। वहाँ कोई तिजोरी नहीं है। वहाँ कोई और राज़ है, जो तुम्हें वीर के इरादों को समझने में मदद करेगा।"
आरुही खड़ी हो गई। "ठीक है, हर्ष। मैं आपके साथ हूँ। अब मुझे बताइए कि हमें पहले क्या करना है।"
"पहले यह," हर्ष ने कहा।
जैसे ही आरुही ने हर्ष के साथ अपना गठबंधन पक्का किया, उसके फ़ोन पर एक नया, एनक्रिप्टेड मैसेज आया। भेजने वाला: वीर (The Boss)।
संदेश में सिर्फ़ एक वाक्य था:
वीर (BOSS): "दिखावा अच्छा था। अगली बार, जब तुम किसी दुश्मन से मिलो, तो कृपया अपने नीले कफ़लिंक को इतना उजागर मत करना। मुझे तुम्हारी निष्ठा पर संदेह नहीं करना चाहिए, आरुही।"
आरुही का दिल धम्म से बैठ गया। वीर ने न सिर्फ़ उसे ट्रेस किया था, बल्कि वह उसकी हर हरकत को देख रहा था। क्या वह अभी भी वहीं कहीं था? क्या वह हर्ष शर्मा के साथ उसकी पूरी बातचीत सुन रहा था?
आरुही ने घबराकर दरवाज़े की ओर देखा। वीर ने उसे देखा था। वह कहीं दूर नहीं, बल्कि शायद उसी होटल में था। आरुही के गले पर लटके कफ़लिंक को छूते ही उसे एहसास हुआ, शायद यह ज़ंजीर नहीं, बल्कि एक ट्रैकर था!
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कहानी में अब एक स्पष्ट हो चुका है... आरुही अब हर्ष के साथ मिलकर वीर के खिलाफ़ काम करेगी। लेकिन वीर एक कदम आगे है, क्योंकि वह आरुही को ट्रैक कर रहा है।
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हर्ष शर्मा की बात सुनकर आरुही का शरीर अविश्वास और आतंक से काँप गया। वीर ने उसे सिर्फ़ ब्लैकमेल नहीं किया था—उसने उसे एक चलते-फिरते ट्रैकर में बदल दिया था। वह कफ़लिंक, जो उसकी आज़ादी की निशानी थी, अब उसकी सबसे ख़तरनाक ज़ंजीर थी।
"वह हमें देख रहा है," आरुही ने फुसफुसाया। उसकी आँखें घबराकर बार के अंधेरे कोनों को स्कैन करने लगीं। "अभी भी। क्या वह सुन रहा होगा?"
"शांत रहो, आरुही," हर्ष ने अपनी आवाज़ धीमी की, पर उसमें एक दृढ़ता थी। "यह ट्रैकर केवल GPS सिग्नल भेजता है, यह बातचीत रिकॉर्ड नहीं करता। लेकिन हाँ, वह जानता था कि तुम मुझसे मिली हो। वीर हमेशा एक कदम आगे रहता है।"
आरुही ने गुस्से से अपनी साड़ी के अंदर नीले कफ़लिंक को पकड़ा। "मुझे इसे अभी हटाना होगा। अगर वह जानता रहा कि मैं कहाँ हूँ, तो हम कभी नील तारा का राज़ नहीं खोल पाएँगे।"
हर्ष ने एक कागज़ उठाया और जल्दी से कुछ लिखा। "वीर के ट्रैकर जटिल होते हैं। अगर तुम इसे हटाकर फेंक दोगी, तो उसे तुरंत पता चल जाएगा कि तुम 'ऑफ़-ग्रिड' हो चुकी हो। यह एक अलार्म बजा देगा।"
"तो फिर क्या करें?"
"हम एक घोस्ट सिग्नल बनाएँगे," हर्ष ने कहा। "तुम इस कफ़लिंक को नष्ट करोगी, पर इसे इस तरह नष्ट करोगी कि वीर को लगे कि तुम अभी भी मुंबई में, अपने अपार्टमेंट के आसपास हो। यह एक मुश्किल, तकनीकी काम है, पर मेरे पास एक आदमी है जो इसमें तुम्हारी मदद कर सकता है।"
हर्ष ने आरुही को कागज़ थमाया। उस पर सिर्फ़ एक पता और एक समय लिखा था: "बांद्रा वर्ली सी लिंक के पास पुराना गोदाम। रात 2 बजे।"
आरुही ने कागज़ को अपनी मुट्ठी में भींच लिया। "और लंदन?"
"तुम आज रात इस ट्रैकर को तोड़ोगी। कल सुबह तुम वीर से झूठ बोलोगी। तुम उसे बताओगी कि तुम्हें लंदन हेडक्वार्टर से एक अर्जेंट, 'सीक्रेट' ऑडिट मिला है। यह बहाना काम करेगा, क्योंकि वीर का असली राज़ लंदन में है, और वह हमेशा वहाँ की गतिविधियों को लेकर संदेह में रहता है। वह तुम्हें जाने देगा—वह तुम्हारी चाल से अविश्वसनीय है, पर वह अपनी कंपनी के काम को नहीं रोकेगा।"
आरुही ने हर्ष की आँखों में देखा। "हम अब एक टीम हैं, हर्ष। कोई ब्लैकमेल नहीं। कोई राज़ नहीं।"
"हाँ," हर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा। "तुम्हारी आज़ादी के लिए, और नील तारा के न्याय के लिए।"
रात के 2:30 बजे। बांद्रा वर्ली सी-लिंक के पास एक सुनसान, पुराने गोदाम में, आरुही हर्ष के भेजे हुए तकनीशियन से मिली। वह एक चुपचाप, डरी हुई महिला थी जो केवल कोड और सर्किटरी की भाषा समझती थी।
तकनीशियन ने आरुही को एक छोटी, स्टील की डिब्बी दी। "मैम, यह फ़ैराडे केज (Faraday Cage) है। यह बाहरी सिग्नल को ब्लॉक कर देगा। आपको इस कफ़लिंक को इसके अंदर रखना होगा।"
आरुही ने अपने गले से नीला कफ़लिंक उतारा। पहली बार, उसने उस धातु के टुकड़े को अपने हाथ में लिया—उसे लगा जैसे वह अपनी दुखद कहानी को हाथ में लिए हुए है।
"अब क्या?"
"अब आप इसे हथौड़े से तोड़ेंगी," तकनीशियन ने एक छोटा, भारी हथौड़ा आरुही को थमाया। "आपको जीपीएस चिप को चकनाचूर करना होगा, पर नीले पत्थर को कोई नुक़सान नहीं पहुँचना चाहिए। नीला पत्थर ही असली चाबी है। कफ़लिंक के बेस के अंदर, बाईं ओर चिप है।"
आरुही ने गहरी साँस ली। यह केवल धातु को तोड़ना नहीं था, यह वीर के नियंत्रण को तोड़ना था।
उसने कफ़लिंक को डिब्बी के अंदर रखा। उसकी उँगलियाँ नीले पत्थर पर टिकी थीं। उसने हथौड़े को उठाया।
धम्म!
एक ही वार। धातु की एक तीखी चीख़ आई। आरुही ने डिब्बी खोली। कफ़लिंक का गोल्डन बेस टेढ़ा हो गया था, और अंदर की छोटी सी हरी चिप टूटकर बिखर चुकी थी। नीला पत्थर सुरक्षित था।
"अब," तकनीशियन ने एक छोटी डिवाइस लगाई। "मैं इस चिप के आख़िरी सिग्नल को कैप्चर कर रही हूँ। यह सिग्नल अब लूप पर मुंबई में तुम्हारे अपार्टमेंट के पास हर 10 मिनट में वीर को भेजता रहेगा। उसे लगेगा कि तुम अपने घर पर सो रही हो।"
आरुही ने अपने हाथ में टूटा हुआ कफ़लिंक उठाया। वह अब आज़ाद थी। शारीरिक रूप से। लेकिन मानसिक रूप से वह वीर से दूर नहीं थी।
गोदाम से निकलने के बाद, आरुही सीधे अपने घर गई। उसने तुरंत काली डायरी उठाई। वीर का पहला आदेश पूरा हो गया था—वह अब गुप्त रूप से काम कर सकती थी।
आरुही को डायरी के अंदर छिपा वह वेल्लम काग़ज़ याद आया, जिस पर विक्रम-ए कोड था। उसने कोड डिक्रिप्ट किया। अब उसे एक नया संकेत मिला।
कोड 55D: अंतिम संपर्क। एम्स्टर्डम में पुराना लॉकर नंबर 412। चाबी उसी आदमी के पास है जिसने नील तारा की रक्षा के लिए सबसे बड़ा त्याग किया। उसे वहाँ खोजो।
आरुही को एहसास हुआ कि लंदन का पता केवल एक शुरुआत है। असली राज़ यूरोप में है। यह साज़िश केवल मुंबई और लंदन तक सीमित नहीं थी।
"वीर केवल कॉर्पोरेट अधिग्रहण नहीं चाहता," आरुही ने धीरे से फुसफुसाया। "वह एक पुरातन शक्ति चाहता है, जो यूरोप में छिपी है।"
वीर का संदेह और आरुही का झूठ (Veer's Suspicion and Riya's Lie)
सुबह 9 बजे। आरुही ने अपनी सबसे पेशेवर, शांत मुद्रा के साथ 30वें फ़्लोर पर वीर के ऑफ़िस में प्रवेश किया।
वीर पहले से इंतज़ार कर रहा था। उसकी आँखें पहले से ज़्यादा ठंडी और खोजपूर्ण थीं।
"तुम्हारी नाइट आउट कैसी रही, आरुही?" वीर ने सीधे सवाल किया। उसकी आवाज़ में एक अजीब सा दबाव था।
आरुही समझ गई। वह सिग्नल चेक कर रहा था।
"उत्कृष्ट, सर," आरुही ने शांति से जवाब दिया। "मैंने सारी तैयारी कर ली है। लेकिन एक समस्या है।"
"क्या?"
"मुझे अभी लंदन हेडक्वार्टर से एक गोपनीय ऑडिट के लिए कॉल आया है। वे चाहते हैं कि मैं तुरंत लंदन जाऊँ और द शौर्या ग्रुप से जुड़ी एक पुरानी फ़ाइल की जाँच करूँ। यह इतना गोपनीय है कि उन्होंने सीधे मुझे कॉल किया।"
आरुही ने एक फ़र्ज़ी ईमेल का प्रिंट-आउट मेज पर रखा। यह वीर के ही हेडक्वार्टर के लेटरहेड पर बना था, जिसे हर्ष ने जाली बनाया था।
वीर ने उस फ़ाइल को देखा। उसके चेहरे पर अविश्वसनीयता का एक पल आया, जिसे आरुही ने पकड़ लिया। वह हमेशा अपने हेडक्वार्टर पर संदेह करता था।
"मुझे पता नहीं था कि तुम लंदन की जासूसी भी करती हो," वीर ने व्यंग्य किया।
"मैं कंपनी की निष्ठा के लिए काम करती हूँ, सर," आरुही ने कहा। "और यह ऑडिट सीधे हर्ष शर्मा के पुराने मामलों से जुड़ा है। मुझे लगता है कि यह आपके अगले कदम के लिए गोपनीय जानकारी जुटाने का एक शानदार मौका है।"
वीर ने अपना सिर एक तरफ़ झुकाया, अपनी उंगलियों से मेज पर धीमी ताल बजाई। उसने आरुही की आँखों में देखा—उसकी आँखों में अब संदेह था, पर आरुही का चेहरा इतना शांत था कि वह कुछ पकड़ नहीं पाया।
"ठीक है," वीर ने कहा। "जाओ। यह तुम्हारी पहली विदेश यात्रा होगी। लेकिन याद रखना, आरुही, तुम वहाँ सिर्फ़ एक कर्मचारी हो। मेरे अलावा किसी पर भरोसा मत करना।"
आरुही को लगा जैसे वह जीत गई है। "धन्यवाद, सर।"
आरुही जैसे ही दरवाज़े तक पहुँची, वीर ने उसे रोका।
"आरुही," वीर ने कहा।
आरुही मुड़ी।
वीर धीरे से मुस्कुराया। "तुमने आज कफ़लिंक नहीं पहना है।"
आरुही के होंठ सूखे पड़ गए। उसने सोचा था कि वीर केवल GPS ट्रैक करता है, पर वह ध्यान भी रखता था।
"वह... थोड़ा टाइट हो रहा था, सर," आरुही ने जल्दी से झूठ बोला। "मैंने उसे अपनी अलमारी में सुरक्षित रख दिया है।"
वीर अपनी कुर्सी से उठा और धीरे से आरुही की ओर बढ़ा। उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और आरुही के गले पर उस जगह को छुआ जहाँ कफ़लिंक होना चाहिए था। आरुही का शरीर काँप गया।
"मुझे यह पसंद नहीं है जब मेरी चीज़ें मेरी आँखों से दूर होती हैं," वीर ने फुसफुसाया। "तुम कल मुझे अपना लोकेशन हर घंटे भेजोगी। और अगर तुमने किसी तरह का विश्वासघात करने की कोशिश की..."
उसने अपना हाथ वापस खींच लिया और उसकी हथेली में एक छोटी सी, काली चिप रखी।
"यह एक ऑडियो रिकॉर्डर है," वीर ने कहा। "इसे हर मीटिंग में ऑन रखना। यह मेरा ट्रैकर नहीं है, आरुही। यह तुम्हारा सुरक्षा कवच है। तुम्हें इसकी ज़रूरत पड़ेगी। अब जाओ।"
आरुही ने चिप को अपनी मुट्ठी में भींच लिया। वह जानती थी कि यह 'सुरक्षा कवच' नहीं, बल्कि एक और ज़ंजीर थी। लेकिन यह जीपीएस ट्रैकर नहीं था। वह अब एक नई आज़ादी के साथ लंदन जा रही थी।
विक्रम? आरुही का दिमाग़ घूम गया। वीर का भी नाम विक्रम था। क्या यह दोनों एक ही थे, या वीर का असली नाम कुछ और था, और ANONYMOUS-7 ने जानबूझकर उसे जाल में फँसाया था?
आरुही ने हीथ्रो हवाई अड्डे के बाहर खड़े होकर लंदन की सर्द, नमी भरी हवा में एक गहरी साँस ली। मुंबई की चिलचिलाती गर्मी और वीर की आँखों की तपन से दूर, इस शांत शहर में उसे पहली बार सच्ची आज़ादी का एहसास हुआ। उसने कफ़लिंक तोड़ दिया था, और वीर को चकमा देने के लिए अपनी यात्रा को कॉर्पोरेट ऑडिट का नाम दिया था।
लेकिन उसके बैग में, वीर द्वारा दी गई ऑडियो रिकॉर्डर चिप रखी थी—एक नया, शांत ख़तरा। आरुही जानती थी कि वह इसे फेंक नहीं सकती, क्योंकि इससे वीर को तुरंत शक हो जाएगा।
उसने हर्ष शर्मा को कोडवर्ड में मैसेज भेजा: “ऑडिट शुरू। लंदन 22 पर पहुँच रही हूँ।”
जवाब तुरंत आया: “विक्रम इंतज़ार कर रहा है। उस पर भरोसा रखो। चिप का ध्यान रखना।”
आरुही ने एक काली टैक्सी ली और 22, Belgravia Crescent की ओर बढ़ी। यह पता लंदन के सबसे प्रतिष्ठित, पर शांत, इलाके में था। यह कोई कॉर्पोरेट टावर नहीं, बल्कि एक पुराना, भूरे रंग का शाही टाउनहाउस था, जिसकी खिड़कियाँ और दरवाज़े बरसों की चुप्पी ओढ़े हुए थे। यह जगह किसी राज़ को दफ़न करने के लिए परफेक्ट थी।
दरवाज़े पर एक साधारण सी प्लेट लगी थी: 'द फ़ाउंडेशन, रजिस्टर्ड ऑफ़िस'।
आरुही ने डरते हुए घंटी बजाई। दरवाज़ा एक लम्बे, दुबले-पतले आदमी ने खोला। वह आदमी वीर से ज़्यादा बड़ा लग रहा था—लगभग 50 की उम्र, बाल सफ़ेद हो चुके थे। लेकिन उसकी आँखें... वे आँखें वीर जैसी ही तीव्र थीं, पर उनमें वीर की क्रूरता नहीं, बल्कि गहरी उदासी और थकान थी।
"आरुही वीरज," उस आदमी ने आरुही का पूरा नाम लिया। उसकी आवाज़ में हल्की, विलायती टोन थी, जो आरुही को तुरंत अपरिचित लगी। "अंदर आइए।"
आरुही अंदर गई। ड्राइंग रूम की दीवारों पर वीरज परिवार के पुराने चित्र टंगे थे।
"तो, आप..." आरुही हिचकिचाई।
"हाँ," उसने धीरे से कहा। "मैं हूँ... विक्रम।"
आरुही को एक पल के लिए चक्कर आ गया। विक्रम! वीर का भी यही नाम था।
"आप वीर के..."
"मैं वीर का बड़ा भाई हूँ," विक्रम ने बीच में टोकते हुए कहा। "वह जिसे तुम वीर कहती हो, उसका असली नाम वेदांश है। और मेरा असली नाम, जिसे अब वह इस्तेमाल करता है... वह विक्रम है। उसने मेरा नाम चुरा लिया।"
विक्रम ने आरुही को बैठने का इशारा किया और सीधे मुद्दे पर आया।
"मुझे हर्ष ने सब बता दिया है। वह कफ़लिंक, वह वन-नाइट स्टैंड... सब कुछ एक जाल था। तुम उसकी संपत्ति नहीं, बल्कि एक अप्रत्याशित चाबी हो।"
विक्रम ने मेज पर एक पुराना, मुड़ा हुआ नक्शा फैलाया।
"तुम्हारे पास जो नीला पत्थर है," विक्रम ने समझाया, "वह केवल एक आभूषण नहीं है। यह नील तारा फ़ाउंडेशन की तिजोरी खोलने के लिए सक्रियण चाबी (Activation Key) है। वह तिजोरी ही असली राज़ रखती है। वीर (वेदांश) के पास जो अधूरा, खाली क्रेस्ट है, वह पहचान चाबी (Identity Key) है। उसे तिजोरी खोलने के लिए दोनों की ज़रूरत है: पहचान (जो उसने चोरी कर ली) और सक्रियण (जो तुम्हारे पास है)।"
आरुही ने पूछा, "लेकिन वह तिजोरी कहाँ है?"
"यहीं पर अंजलि का रोल आता है," विक्रम ने कहा। "हमारे पिता, मरने से पहले, नील तारा के गुप्त स्थान को तीन कोड्स में बाँट गए थे। पहला कोड मेरी काली डायरी में है (जो अब तुम्हारे पास है)। दूसरा कोड उन्होंने हर्ष को दिया था। और तीसरा, अंतिम कोड, उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को दिया था जिस पर वीर कभी शक नहीं करेगा—अंजलि।"
विक्रम ने अपने माथे पर शिकन डाली। "अंजलि उस कोड को सीधे नहीं जानती थी। वह कोड उसकी पर्सनल ईमेल फ़ाइल में एक एन्क्रिप्टेड फ़ॉर्मेट में छिपा था, जिसे केवल तभी सक्रिय किया जा सकता था जब कोई विश्वासपात्र उसे सही सवाल पूछता।"
आरुही को याद आया कि वीर ने किस तरह से अंजलि को अचानक हटवा दिया था। "वीर ने मुझे इसीलिए उसका डेटा डिलीट करवाया... ताकि वह तीसरा कोड हमेशा के लिए मर जाए।"
"सही," विक्रम ने दुःख भरी आवाज़ में पुष्टि की। "लेकिन अब, हम केवल दो ही चाबियों के साथ खेल रहे हैं। हर्ष ने तुम्हें मेरे पास भेजा है, ताकि तुम नील तारा के राज़ का अगला स्तर जान सको।"
अंतिम कोड: काग़ज़ का राज़ (The Final Code: The Secret of the Paper)
आरुही ने तुरंत अपनी काली डायरी निकाली। उसे एम्स्टर्डम लॉकर 412 का कोड याद था।
"डायरी ने मुझे एम्स्टर्डम में एक लॉकर का पता दिया है। 55D कोड—उसी आदमी को खोजो जिसने सबसे बड़ा त्याग किया।"
विक्रम के चेहरे पर एक पल के लिए दर्द आया। "वह मैं हूँ। मेरे पिता ने मुझे वीर से बचाने के लिए दुनिया से छिपा दिया। वह लॉकर मैंने ही बनवाया था। लेकिन लॉकर तक पहुँचने का कोड केवल डायरी के अंदर है।"
"मैंने कोड डिक्रिप्ट कर लिया है," आरुही ने कहा।
"नहीं, आरुही," विक्रम ने गंभीर होकर कहा। "तुमने केवल ऊपरी कोड डिक्रिप्ट किया है। लॉकर तक पहुँचने का असली कोड डायरी के पन्नों में छिपा है। विक्रम-ए कोड केवल एक धोखा था।"
विक्रम ने एक माइक्रोस्कोपिक लेंस निकाला और डायरी के एक सादे पन्ने पर लगाया।
"वीर के पिता ने काग़ज़ बनाने में एक ख़ास रासायनिक मिश्रण का इस्तेमाल किया था। हर पन्ने पर अदृश्य, माइक्रोस्कोपिक नीले और लाल फाइबर हैं। लाल फ़ाइबर एक कोड बनाता है, और नीला फ़ाइबर उसकी स्थिति बताता है।"
आरुही को एहसास हुआ कि वह कितनी भोली थी। वीर की डायरी केवल एक किताब नहीं, बल्कि एक तकनीकी तिजोरी थी।
"तुम्हें फ़ाइबर काउंट करना होगा," विक्रम ने कहा। "तुम्हें उस पन्ने पर छिपे लाल फ़ाइबर्स की संख्या को जोड़ना होगा, और उस कोड को लॉकर नंबर के साथ मिलाना होगा।"
"आप यह सब मुझसे क्यों करवा रहे हैं?" आरुही ने पूछा। "आप ख़ुद क्यों नहीं जाते?"
"क्योंकि वीर को पता है कि मैं यहाँ हूँ," विक्रम ने दुखद स्वर में कहा। "और अब, वीर को यह भी पता चल गया है कि तुम यहाँ हो।"
विक्रम के अंतिम शब्द सुनते ही आरुही का दिल डूब गया। वह खड़ी हो गई। "क्या मतलब? उसे कैसे पता चला?"
"तुमने अपनी सबसे बड़ी गलती कर दी, आरुही," विक्रम ने शांत, कठोर आवाज़ में कहा। "जब तुम अंदर आई, तो तुमने रिकॉर्डर चिप बंद नहीं की।"
आरुही ने काँपते हुए अपने बैग की ओर देखा। वह रिकॉर्डर चिप—जिसे वीर ने 'सुरक्षा कवच' कहा था—आरुही ने जल्दबाज़ी में उसे ऑन करके बैग में डाल दिया था ताकि वीर को लगे कि वह ऑडिट मीटिंग में है।
"वीर ने आपकी पूरी बातचीत सुन ली है," विक्रम ने स्पष्ट किया। "वह जानता है कि मैं कौन हूँ, कि तुम मेरे पास आई हो, कि तुम कफ़लिंक का राज़ जानती हो, और सबसे ज़रूरी... वह जानता है कि एम्स्टर्डम लॉकर उसका अगला निशाना है।"
आरुही के चेहरे का रंग उड़ गया। उसकी आज़ादी सिर्फ़ 18 घंटों तक चली थी।
"हमें तुरंत यहाँ से निकलना होगा!" आरुही ने कहा।
"नहीं," विक्रम ने निराशा से सिर हिलाया। "अब हमें भागना नहीं है। अब हमें तेज़ होना है।"
विक्रम ने आरुही को एक छोटी, पुरानी पीतल की चाबी दी।
"यह लॉकर की चाबी है। वीर अब सीधे एम्स्टर्डम जाएगा। तुम्हारे पास बस 8 घंटे हैं। तुम्हें यह फ़ाइबर कोड डिकोड करना होगा और उससे पहले वहाँ पहुँचना होगा।"
आरुही ने चिप को मुट्ठी में भींच लिया। यह सिर्फ़ एक जासूसी का खेल नहीं था; यह वीरज परिवार के भाग्य की लड़ाई थी। और वह अब मुख्य मोहरा थी।
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आरुही लंदन से एम्स्टर्डम के लिए निकली, उसके पास केवल एक सूक्ष्मदर्शी लेंस (Magnifying Glass) था, जिससे उसे काली डायरी के अदृश्य लाल फ़ाइबर्स की गिनती करनी थी। तभी, उसे हर्ष का एक आखिरी मैसेज आया: "सावधान रहना, आरुही। लॉकर के अंदर केवल राज़ नहीं है। वहाँ 'वसीयत' है। जो इसे हासिल करेगा, वह वीरज साम्राज्य का असली मालिक होगा।"
आरुही लंदन से एम्स्टर्डम जाने वाली फ़्लाइट में बैठी थी। उसके पास केवल दो चीज़ें थीं: एक माइक्रोस्कोपिक लेंस और वीर की काली डायरी। और उसके दिमाग़ में, नफ़रत और असहनीय आकर्षण का एक भयंकर तूफ़ान चल रहा था।
हर बार जब वह आँखें बंद करती, तो उसे वीर (वेदांश) का चेहरा याद आता—नया सीईओ नहीं, बल्कि वह शक्तिशाली अजनबी जिसने उसे एक रात के लिए आज़ाद किया था। उसकी आवाज़, उसका स्पर्श, और सबसे बढ़कर, उसकी अधिकार-भावना, जिसने आरुही को एक पल के लिए अपनी 'परफेक्ट' ज़िंदगी के बोझ से आज़ाद कर दिया था।
अब वह उसी आज़ादी के लिए एक जासूस बन चुकी थी।
"नफ़रत करो," आरुही ने खुद को फुसफुसाया। "उसने तुम्हें एक मोहरा बनाया। उसने तुम्हारी दोस्त को बर्बाद किया।"
लेकिन फिर उसे याद आया कि कैसे वीर ने कफ़लिंक डालते समय उसके गले को छुआ था। वह क्षण, जिसमें क्रूरता और तीव्र इच्छा का मेल था, आरुही को कंपकंपा देता था। वह उसे मिटाना चाहती थी, पर वह चाहती थी कि वह उसे फिर से छुए। यह एक ऐसा ज़हरीला चक्र था जिससे वह चाहकर भी बाहर नहीं निकल पा रही थी।
आरुही ने लेंस निकाला और काली डायरी के उस पन्ने पर लगाया जिस पर विक्रम-ए कोड लिखा था। विक्रम (वीर का भाई) ने कहा था कि कोड फ़ाइबर काउंट में छिपा है।
आरुही ने धीरे-धीरे लाल फ़ाइबर्स की गिनती शुरू की। यह काम आसान नहीं था। फ़्लाइट की रौशनी कम थी, और हर झटका उसकी गिनती को बिगाड़ रहा था।
पहले दो अंक: '47'।
जैसे ही वह तीसरा अंक गिनने लगी, उसका फ़ोन वाइब्रेट हुआ। हर्ष शर्मा (ANONYMOUS-7) का मैसेज था: “वीर की प्राइवेट फ़्लाइट 2 घंटे पहले उड़ चुकी है। वह तुम्हारे टारगेट को जानता है। वह पहले पहुँचेगा। तुम्हें 45 मिनट के भीतर लॉकर खोलना होगा।”
तनाव आरुही के अंदर एक गर्म लहर की तरह दौड़ा। उसके पास समय नहीं था।
उसने जल्दी से अपनी आँखें बंद कीं और कोड पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन उसका ध्यान बार-बार टूट रहा था। उसे लगा जैसे वीर उसे देख रहा है, उसकी हर कमज़ोरी को भांप रहा है।
वह तीसरा अंक गिनने में सफल रही: '2'।
चौथा अंक: '11'।
कोड बना: 47211।
आरुही ने अपने मन में एम्स्टर्डम के लॉकर नंबर 412 के साथ इस कोड को मिलाया। लॉकर की चाबी उसकी मुट्ठी में थी—यह पीतल की पुरानी चाबी थी जो विक्रम ने उसे दी थी।
जैसे ही फ़्लाइट लैंड हुई, आरुही ने कोड को अपनी हथेली पर पेन से लिख लिया। अब केवल दौड़ना था।
आरुही ने टैक्सी से एम्स्टर्डम के ऐतिहासिक बैंक डी ओडस्टैट तक का सफ़र तय किया। यह बैंक अपनी गोपनीयता और पुराने लॉकर के लिए प्रसिद्ध था।
आरुही भागकर बैंक के अंदरूनी लॉकर रूम में पहुँची। वह खाली था। उसे लगा कि वह जीत गई। उसने तुरंत मैनेजर से बात की और लॉकर नंबर 412 तक जाने की अनुमति ली।
जैसे ही लॉकर रूम का भारी, स्टील का दरवाज़ा खुला, आरुही की आँखें चौड़ी हो गईं।
दरवाज़े के पास खड़ा था वेदांश (वीर)।
उसने आरुही को उसी शांत, आत्मविश्वासी मुद्रा में देखा। उसके चेहरे पर कोई आश्चर्य नहीं था, केवल एक जीत की मुस्कान थी। वह जानता था कि वह आ रही है।
"मुझे पता था कि तुम यहाँ होगी," वेदांश ने धीरे से कहा। उसकी आवाज़ में एक गहरा, व्यक्तिगत दर्द था जो आरुही ने पहले कभी नहीं सुना था। "तुम्हारे 'गोस्ट सिग्नल' ने मुझे तुम्हारी चाल दिखा दी, आरुही। लेकिन तुम्हारी धड़कनें मुझे बता रही थीं कि तुम कहाँ हो।"
वीर ने अपने कोट की जेब से लॉकर की चाबी निकाली। आरुही ने देखा—वह पीतल की चाबी नहीं थी। यह एक इलेक्ट्रॉनिक एक्सेस कार्ड था, जिस पर नील तारा का शाही निशान खुदा था।
"तुमने अपनी आज़ादी के लिए उस कफ़लिंक को तोड़ा," वेदांश ने उसके क़रीब आते हुए कहा। उसकी चाल धीमी थी, पर हर कदम एक चेतावनी था। "पर तुम मुझसे भाग नहीं सकती। तुम मुझे चाहती हो। और यह नफ़रत... यह सिर्फ़ उस इच्छा को छुपाने का एक तरीका है।"
आरुही की आँखें गुस्से से भर गईं। "तुम एक क्रूर, ब्लैकमेल करने वाले चोर हो! तुमने अपने भाई को धोखा दिया, और तुमने मुझे एक रात की आज़ादी के लिए खरीदा!"
"खरीदा? मैंने तुम्हें चुनौतियाँ दीं, आरुही," वेदांश उसके इतना क़रीब आ गया कि आरुही को उसके सैंडलवुड इत्र की ख़ुशबू महसूस हुई। "मैंने तुम्हें तुम्हारी कमज़ोरियों से बाहर निकाला। उस रात तुम आज़ाद महसूस कर रही थी, और अब तुम ताक़तवर महसूस कर रही हो। क्या तुम वाकई में मुझे मिटाना चाहती हो, आरुही, या तुम यह देखना चाहती हो कि हम दोनों मिलकर क्या बना सकते हैं?"
वेदांश ने अपना हाथ उठाया और आरुही के चेहरे को छुआ। उसकी उँगलियाँ आरुही की ठंडी, पसीने से तर हथेली पर गईं, जहाँ कोड लिखा था। उसने अपनी उँगली से कोड को मिटाया नहीं, बल्कि धीरे से टटोला।
"क्या यह वह कोड है, आरुही? वह चाबी जो तुम्हारे प्यार-नफ़रत के नाटक को ख़त्म कर देगी?"
आरुही को उस पल महसूस हुआ कि वह उसे धकेलना चाहती है, पर उसका शरीर अडिग खड़ा था। उस आदमी के छूने से उसके अंदर की सारी नफ़रत, सारी सावधानी एक पल के लिए पिघल गई।
तभी, लॉकर के अंदर से एक धीमी, स्वचालित आवाज़ आई: "एक्सेस प्रदान किया गया।"
वेदांश ने अपनी इलेक्ट्रॉनिक चाबी से लॉकर खोल दिया था।
वह मुस्कुराया। "तुमने मुझे कोड दे दिया, आरुही। जाने-अनजाने में ही सही। और हाँ, मैंने भाई को धोखा नहीं दिया। यह राज सिंहासन मेरा है।"
वेदांश ने लॉकर से तीन चीज़ें निकालीं:
विक्रम वीरज (वीर के पिता) की वसीयत।
काग़ज़ों का एक बंडल जिस पर 'नील तारा—अंतिम निर्देश' लिखा था।
और... एक और कफ़लिंक—यह भी अधूरा, पर चाँदी का।
"यह क्या है?" आरुही ने पूछा।
वेदांश ने वसीयत खोली। उसके हाथ काँपने लगे। वह पढ़ना शुरू ही करने वाला था, तभी उसने रुककर आरुही की ओर देखा। उसकी आँखें अब दर्द और डर से भरी थीं।
"मेरे पिता ने यह वसीयत तभी खोली जानी तय की थी जब पहचान चाबी (अधूरा क्रेस्ट) और सक्रियण चाबी (नीला पत्थर) एक ही जगह पर मौजूद हों," वेदांश ने कहा। "उन्होंने लिखा है कि उनका असली उत्तराधिकारी वही होगा, जिसके पास दोनों चाबियाँ हों।"
उसने लॉकर में से चाँदी का अधूरा कफ़लिंक उठाया।
"यह चाँदी का कफ़लिंक मेरे पिता का था। यह असली पहचान चाबी है। और यह गोल्डन कफ़लिंक जो मेरे पास है... यह मेरी चोरी है। मेरे पिता ने मुझसे, और मेरे भाई से भी, सच छिपाया था।"
आरुही ने अपने मन में सोचा—इसका मतलब था कि वीर (वेदांश) भी अधूरा था।
"अब पढ़ो," आरुही ने कहा।
वेदांश ने वसीयत पढ़ी। उसकी आवाज़ में जीत की जगह एक भयानक चुप्पी थी।
वसीयत का सार: विक्रम वीरज का पूरा साम्राज्य और नील तारा की शक्ति उसी व्यक्ति को जाएगी जो विक्रम का पहला नाम और नील तारा का पत्थर धारण करेगा। शर्त: वह व्यक्ति अपनी इच्छा से वीरज परिवार के सबसे बड़े दुश्मन (हर्ष शर्मा) को आत्मसमर्पण करे, ताकि 'नील तारा' की शक्ति का दुरुपयोग न हो।
वेदांश ने काग़ज़ नीचे गिरा दिया। "मुझे हर्ष के पास जाना होगा। यह आत्मसमर्पण एक तरह की शर्त थी।"
तभी, लॉकर रूम का स्टील का दरवाज़ा अचानक खुला, और अंदर आया विक्रम (वह आदमी जो लंदन में मिला था, वीर का भाई)।
"बहुत देर हो चुकी है, वेदांश," विक्रम ने कहा। उसके हाथ में एक छोटा, चमकदार ऑटोमेटिक पिस्टल था। "वसीयत की आखिरी शर्त यह है: जो भी आत्मसमर्पण करेगा, उसे खत्म कर दिया जाएगा। पिता ने यह शर्त इसलिए रखी ताकि उनकी शक्ति कभी किसी लालची हाथ में न पड़े। तुमने मेरे नाम का इस्तेमाल किया, पर मैं असली विक्रम हूँ।"
आरुही को एक पल में समझ आ गया। विक्रम (असली) वीरज साम्राज्य का मालिक बनना चाहता था।
विक्रम ने पिस्तौल वेदांश (वीर) की ओर तान दी। तभी, आरुही ने एक बिजली की तरह तेज़ हरकत की। उसने लॉकर में रखे काग़ज़ों के बंडल (नील तारा—अंतिम निर्देश) को उठाया और अपनी पूरी ताक़त से विक्रम की आँखों में फेंक दिया। वह वेदांश को बचाने की कोशिश कर रही थी। पिस्तौल की आवाज़ कमरे में गूँज उठी। आरुही ने देखा—वेदांश ज़मीन पर गिर रहा था, और उसके सीने से खून बह रहा था। आरुही चिल्लाई, पर उसके चीख़ने से पहले ही वेदांश ने अपने होंठों पर उँगली रखी, और फुसफुसाया: "लव यू।"
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अब आरुही के सामने केवल एक ही चुनौती है: वेदांश को बचाना, जिसका नाम उसने अब जान लिया है, और उस आदमी का सामना करना जिसने उसे बचाने का नाटक किया था।
क्या वेदांश सचमुच आरुही से प्यार करता था, या यह उसकी अंतिम चाल थी? आरुही अब क्या करेगी?
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