जयश्री रॉय एक मासूम, हिम्मती और खूबसूरत लड़की है, जिसकी ज़िंदगी बिल्कुल साधारण है। वो अपने सपनों और परिवार के लिए जीती है। लेकिन उसकी मुलाक़ात होती है ध्रुव राठी से — एक ऐसा नाम जिससे पूरा शहर डरता है। ध्रुव, एक डार्क और पावरफुल माफ़िया टायकून,... जयश्री रॉय एक मासूम, हिम्मती और खूबसूरत लड़की है, जिसकी ज़िंदगी बिल्कुल साधारण है। वो अपने सपनों और परिवार के लिए जीती है। लेकिन उसकी मुलाक़ात होती है ध्रुव राठी से — एक ऐसा नाम जिससे पूरा शहर डरता है। ध्रुव, एक डार्क और पावरफुल माफ़िया टायकून, जिसके लिए दुनिया सिर्फ़ दो चीज़ों पर चलती है: ताक़त और कंट्रोल। उसकी नज़रें जब पहली बार जयश्री पर ठहरती हैं, तो उसे लगता है जैसे उसकी ज़िंदगी की सबसे कीमती चीज़ मिल गई हो। लेकिन उसका प्यार मासूम नहीं, खतरनाक और पज़ेसिव है। ध्रुव के लिए जयश्री सिर्फ़ एक लड़की नहीं, बल्कि जुनून बन जाती है। वो उसकी हर चीज़ पर हक़ जताता है — उसका वक़्त, उसका जिस्म, उसका दिल, यहाँ तक कि उसकी साँसें भी। जयश्री जितना उससे दूर भागने की कोशिश करती है, उतना ही ध्रुव उसे अपनी गिरफ्त में ले लेता है। उनका रिश्ता प्यार और नफ़रत का खेल है। जयश्री डरती भी है, नफरत भी करती है, लेकिन ध्रुव के इंटेंस प्यार और पैशन के सामने खुद को रोक नहीं पाती। वहीं ध्रुव अपनी डार्क दुनिया, दुश्मनों और सीक्रेट्स के बीच सिर्फ़ एक चीज़ खोने से डरता है — जयश्री।
Jayshree Roy
Heroine
Dhruv rathi
Hero
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📖 Chapter 1 –
पहली मुलाक़ात
रात का वक़्त था। शहर की गलियों में हल्की बारिश की बूँदें ज़मीन को छूकर ठंडी हवा फैला रही थीं। जयश्री रॉय अपनी किताबों से भरा बैग कंधे पर डाले तेज़ी से चल रही थी। कॉलेज से लौटते हुए उसका रास्ता हमेशा सुनसान पड़ता था और आज तो बिजली भी चली गई थी।
उसकी साँसें तेज़ थीं, जैसे किसी अनजाने डर ने उसे घेर लिया हो। तभी अचानक पीछे से गाड़ियों की हैडलाइट्स उस पर पड़ीं।
काले रंग की लंबी कार उसके पास आकर रुकी।
कार का दरवाज़ा खुला और बाहर उतरा एक शख़्स—ऊँचा कद, काले सूट में, आँखों में अजीब-सा सन्नाटा और होंठों पर हल्की-सी स्माइल। वो था ध्रुव राठी।
उसकी नज़रें जैसे सीधा जयश्री की रूह तक उतर गई हों।
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पहली नजर
“कहाँ जा रही हो इतनी रात को, अकेली?” उसकी आवाज़ भारी थी, लेकिन उसमें अजीब-सा खिंचाव था।
जयश्री ने पलटकर देखा, दिल की धड़कन बेकाबू हो चुकी थी।
“आप… आपको क्या मतलब?” उसने काँपते हुए कहा।
ध्रुव हल्की हँसी हँसा, जैसे किसी बच्चे की मासूम जिद देख रहा हो।
“मतलब है… क्योंकि अब से तुम जहाँ भी जाओगी, मैं जानना चाहूँगा।”
जयश्री को उसकी बात सुनकर गुस्सा भी आया और डर भी। वो जल्दी से आगे बढ़ने लगी, लेकिन ध्रुव ने उसका हाथ थाम लिया। उसकी पकड़ मजबूत और पज़ेसिव थी।
“छोड़िए मुझे!” जयश्री की आवाज़ काँपी।
ध्रुव उसकी आँखों में झुककर बोला, “तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है… अभी पहली बार देखा है और लग रहा है जैसे बरसों से तुम्हें ढूँढ रहा था। अब तुम्हें छोड़ना? वो मेरे बस में नहीं।”
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जयश्री ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन ध्रुव ने धीरे-धीरे उसकी उँगलियों को अपनी पकड़ में कैद कर लिया।
बारिश की ठंडी बूँदें उनके बीच गिर रही थीं, लेकिन माहौल में अजीब-सी गर्मी फैल चुकी थी।
ध्रुव ने उसकी ओर झुकते हुए फुसफुसाया,
“डरो मत… डर तो दूसरों को लगता है मुझसे। तुमसे तो मैं सिर्फ़ एक चीज़ चाहता हूँ… तुम्हें अपना बना लेना।”
जयश्री की साँसें तेज़ हो गईं। उसका दिमाग़ कह रहा था कि भागो, लेकिन दिल किसी अजीब-से खिंचाव में फँस चुका था।
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ध्रुव ने उसकी ठोड़ी को हल्के से उठाया। उसकी नज़रें इतनी गहरी थीं कि जयश्री उसमें खोती चली गई।
“इतनी मासूमियत… ये शहर तुमसे छीन लेगा। लेकिन मैं नहीं… मैं तुम्हें अपने पास रखूँगा, चाहे तुम्हें पसंद हो या न हो।”
उसने अचानक उसकी कमर पकड़ ली। जयश्री हड़बड़ा गई, उसकी धड़कनें कानों तक सुनाई देने लगीं।
“ये क्या कर रहे हैं आप?” उसकी आँखों में आँसू आ गए।
ध्रुव की मुस्कान और गहरी हो गई।
“तुम्हें सिखा रहा हूँ कि ध्रुव राठी के खिलाफ़ जाना कितना मुश्किल है।”
वो पल ऐसा था जहाँ डर और रोमांस दोनों एक साथ घुल गए। जयश्री का दिल कह रहा था कि वो खतरनाक है, लेकिन शरीर उसकी गिरफ्त को तोड़ नहीं पा रहा था।
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रात की उस मुलाक़ात ने सबकुछ बदल दिया।
जयश्री को पता भी नहीं था कि ये शुरुआत है एक ऐसे सफ़र की, जहाँ उसका हर क़दम अब ध्रुव राठी की गिरफ्त में होगा—
एक ऐसा रिश्ता, जिसमें नफरत भी होगी, आँसू भी… और सबसे ज़्यादा होगा जुनून।
---To be continued 💖🌈
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📖 Chapter 2 – पज़ेशन
बारिश थम चुकी थी, लेकिन शहर की नमी और भी गहरी लग रही थी। जयश्री रॉय अभी भी कॉलेज से घर लौट रही थी, पर उसके दिमाग़ में पिछले रात की मुलाक़ात का असर साफ़ था। ध्रुव राठी… उसका नाम बस दिल के हर हिस्से में घुस चुका था। डर, गुस्सा और खिंचाव—तीनों मिलकर उसे परेशान कर रहे थे।
वो सोच रही थी, “मैंने उसे देखा… और फिर भी मैं भाग नहीं पाई। ये कौन है जो मुझे इतनी जल्दी अपनी पकड़ में ले सकता है?”
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अगले दिन, जयश्री अपने कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए लाइब्रेरी गई। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, उसे लगा कि कोई उसे देख रहा है।
और था भी।
ध्रुव राठी।
वो हमेशा की तरह काले सूट में, ठंडा और खतरनाक, लेकिन उसकी आँखों में वही पैशनेट, ओब्सेसिव खिंचाव था।
“तुम यहाँ भी आ गई?” ध्रुव की आवाज़ में हल्की मुस्कान थी, लेकिन टोन गंभीर और डार्क था।
जयश्री ने कदम पीछे खींचे।
“आप… आप यहाँ कैसे?” उसकी आवाज़ कांप रही थी।
ध्रुव ने धीरे-धीरे उसके पास कदम बढ़ाया।
“मैं कह सकता हूँ कि तुम्हारा पीछा करना मेरा शौक है… या ज़रूरत। तुम चुन लो।”
जयश्री की धड़कन तेज़ हो गई। उसका दिमाग़ कह रहा था कि भागो, पर शरीर ठहर गया।
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जबरदस्ती की नज़दीकियाँ
ध्रुव ने उसकी किताबें धीरे से अपने हाथ में ले लीं।
“इतनी मासूमियत… और फिर भी इतनी हिम्मत। पर मेरी नज़रों से तुम नहीं बच सकती।”
जयश्री ने झुकी हुई आँखें उठाईं।
“मैं… मैं बस…”
ध्रुव ने उसे बीच में ही रोक दिया। उसकी उंगलियाँ जयश्री की ठोड़ी पर हल्के से टिक गईं।
“बस क्या? बस यह मान लो कि अब से तुम्हें मुझे सुनना होगा। चाहे तुम्हें पसंद हो या न हो।”
जयश्री का दिल बेकाबू हो गया। डर, क्रोध, खिंचाव—सभी भावनाएँ एक साथ।
ध्रुव ने उसका हाथ पकड़कर धीरे से अपने पास खींच लिया। उसकी साँसें गर्म और तेज़ थीं।
“तुम मेरी हो। अब से हर पल, हर सांस… मेरी निगरानी में।”
जयश्री ने झुककर पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन ध्रुव की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो खुद को रोक नहीं पाई।
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डर और चाहत
जयश्री को एहसास हुआ कि वो जितना ध्रुव से डरती है, उतना ही उसके पास रहना चाहती है। उसकी आंखें ध्रुव की आँखों में खो गईं—डर और चाहत के मिश्रण में।
ध्रुव ने धीरे से उसके बालों को पीछे किया और फुसफुसाया,
“तुम भागोगी नहीं। और अगर कभी कोशिश की… मैं तुम्हें खुद ढूँढूँगा। क्योंकि मैं तुम्हें खोने का जोखिम नहीं ले सकता।”
जयश्री की सांसें तेज़ थीं, लेकिन दिल किसी अजीब-सी तड़प में फँस गया था। डर, प्यार और पज़ेशन—तीनों इतनी घनी मिश्रित थीं कि वो खुद को रोक नहीं पा रही थी।
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ध्रुव ने उसकी आंखों में देख कर कहा,
“तुम मेरी हो… चाहे तुम चाहो या न चाहो। मैं ये साबित कर दूँगा कि तुम्हारा दिल भी अंततः मेरे पास आएगा।”
जयश्री ने पलटकर देखा—उसकी आँखों में खतरनाक जुनून और सच्चा प्यार दोनों झलक रहे थे।
वो पल ऐसा था, जहाँ डर और पैशन दोनों एक साथ धधक रहे थे।
और तभी जयश्री ने महसूस किया—ये सिर्फ शुरुआत है।
ध्रुव राठी का पज़ेशन, उसका कंट्रोल, और उसका जुनून… इसे कोई रोक नहीं सकता।
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📖 Chapter 3 – नज़दीकियाँ
बारिश थम चुकी थी, लेकिन शहर की गलियों में अब भी नमी और ठंडक थी। शहरी रोशनी में पानी की चमक उनकी परछाइयों को और बढ़ा रही थी। श्री अपने घर की ओर बढ़ रही थी, पर उसका दिल आज भी पिछले दो दिनों की घटनाओं में फंसा हुआ था।
"Dhruv… वो आदमी… मेरी रूह में कैसे उतर गया?" उसका दिमाग़ बार-बार यही सवाल कर रहा था। डर, गुस्सा, और अजीब-सा खिंचाव—तीनों भाव उसे बेचैन कर रहे थे।
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कॉलेज में सामना
अगले दिन, श्री कॉलेज पहुंची तो लाइब्रेरी की ओर बढ़ी। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, उसकी नजरें Dhruv पर पड़ीं। हमेशा की तरह काले सूट में, उसके चेहरे पर वही गंभीरता और आंखों में वही ऑब्सेसिव चमक।
“Shree…” उसकी आवाज़ भारी थी, पर उसमें पैशन झलक रहा था।
श्री ने कदम पीछे खींचे।
“Dhruv… आपने यहाँ कैसे?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।
Dhruv ने हल्की हँसी हँसते हुए पास आया।
“मैं कह सकता हूँ कि तुम्हारा पीछा करना मेरा शौक है… या ज़रूरत। तुम चुन लो।”
श्री का दिल बेकाबू हो गया। शरीर खुद को रोक नहीं पा रहा था, पर दिमाग़ उसे चेतावनी दे रहा था—भागो।
Dhruv ने उसकी किताबें धीरे से अपने हाथ में ले लीं और उसे अपनी ओर खींचा।
“इतनी मासूमियत… और इतनी हिम्मत। पर मेरी नज़रों से तुम नहीं बच सकती, Shree।”
श्री ने झुकी हुई आँखें उठाईं।
“मैं… मैं बस…”
Dhruv ने फुसफुसाते हुए उसे बीच में ही रोक दिया। उसकी उंगलियाँ Shree की ठोड़ी पर टिक गईं।
“बस क्या? बस यह मान लो कि अब से तुम्हें मुझे सुनना होगा। चाहे तुम्हें पसंद हो या न हो।”
Shree ने झुककर पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन Dhruv की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो खुद को रोक नहीं पाई।
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Dhruv ने उसकी आंखों में देख कर धीरे से कहा,
“Shree… तुम भागोगी नहीं। और अगर कभी कोशिश की… मैं तुम्हें खुद ढूँढूँगा। क्योंकि मैं तुम्हें खोने का जोखिम नहीं ले सकता।”
श्री की साँसें तेज़ हो गईं। डर और चाहत के बीच उसका दिल बेकाबू हो गया। वो खुद को रोक नहीं पा रही थी, पर साथ ही उसे एहसास हुआ कि Dhruv सिर्फ़ डराने वाला नहीं है। उसकी निगाहों में एक अजीब सा जुनून और पैशन भी छुपा हुआ है।
Dhruv ने धीरे से Shree का चेहरा छू लिया।
“इतनी मासूमियत… इतनी खूबसूरती… और ये डर। ये सब मुझे पागल कर देता है।”
Shree की आँखों में आँसू थे, पर वो झुककर उससे दूर नहीं हुई। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। Dhruv की पकड़ ने उसे कहीं रोक रखा था, पर साथ ही उसके भीतर छुपी चाहत को भी जागृत कर दिया।
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डर और मोहब्बत
Shree ने धीरे से पूछा,
“Dhruv… आप मुझे क्यों… ऐसा महसूस करवा रहे हैं?”
Dhruv ने उसकी तरफ झुककर फुसफुसाया,
“क्योंकि तुम मेरी हो, Shree। अब से हर पल, हर साँस… मेरी निगरानी में।”
श्री के दिल में अजीब-सा मिश्रित एहसास हुआ। डर, गुस्सा, और चाहत—तीनों भावों का मेल उसे और पास खींच रहा था।
वो पल ऐसा था जहाँ उनके बीच पहली इंटेंस फिजिकल और इमोशनल नज़दीकियाँ पैदा हुईं। Dhruv की हर हल्की स्पर्श ने Shree के शरीर और दिल को झकझोर दिया।
Dhruv ने उसकी आंखों में गहरी नज़रें डालकर कहा,
“Shree… अब से तुम्हारे दिल की धड़कनें भी मेरे अधीन होंगी। मैं तुम्हें हमेशा खुद से जोड़ कर रखूँगा। चाहे तुम चाहो या न चाहो।”
श्री ने महसूस किया कि ये सिर्फ़ खतरा नहीं था। ये प्यार, जुनून और पज़ेशन का खतरनाक मिश्रण था।
और यही उनका सफर की शुरुआत थी—जहाँ प्यार, डर, नफरत और पैशन एक साथ घुलकर उनके रिश्ते को और गहरा बनाने वाले थे।
श्री अपने कमरे में बैठी थी, लेकिन उसके दिल की धड़कनें अभी भी Dhruv के पास थीं।
वो जान चुकी थी कि अब कोई रास्ता पीछे नहीं है। Dhruv का पज़ेशन उसे कहीं भी जाने नहीं देगा। और धीरे-धीरे, उसे एहसास हुआ कि वह खुद भी उसके खतरनाक प्यार की तरफ खिंची जा रही थी।
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📖 Chapter 4 – पहली kiss
रात शहर की गलियों में फैल चुकी थी, और घर के अंदर भी अजीब-सी नर्मी और खिंचाव का माहौल था। शॉर्ट रेनकोट में Shree धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर बढ़ रही थी, पर दिल की धड़कनें अब भी Dhruv के ख्यालों में फँसी थीं।
"ये आदमी… इतना डार्क और खतरनाक, और फिर भी… मुझे उसके पास जाने से रोक नहीं पा रही?"
जैसे ही Shree अपने कमरे के दरवाज़े की तरफ़ झुकी, Dhruv अचानक सामने आ खड़ा हुआ। उसकी आँखों में वही ओब्सेसिव चमक और चेहरे पर गंभीरता थी।
“Shree…” उसकी आवाज़ हल्की, मगर इतनी पज़ेसिव कि Shree की सांसें थम गईं।
“Dhruv… आप फिर से?” Shree ने झुकी आँखों से पूछा।
Dhruv ने एक कदम आगे बढ़ाया और उसके हाथ को अपने हाथ में थाम लिया।
“मैं कह रहा हूँ… तुम मेरी हो। अब से हर कदम, हर पल… मेरी निगरानी में।”
Shree की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसका दिमाग़ चिल्ला रहा था कि भागो, पर शरीर खुद को रोक नहीं पा रहा था।
नज़दीकियाँ
Dhruv ने धीरे से Shree की ठोड़ी को उठाया, उसकी आँखों में सीधे झाँकते हुए।
“तुम डर रही हो, Shree?” उसने फुसफुसाया।
Shree ने पलटकर पीछे हटने की कोशिश की, पर Dhruv ने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली।
“छोड़ो मुझे!” Shree की आवाज़ काँपी, पर अंदर से कुछ उसे रोक रहा था—भागने का मन नहीं था।
Dhruv ने धीरे से उसके होंठों को छुआ। पहली बार Shree ने महसूस किया कि यह सिर्फ़ एक साधारण किस नहीं थी। यह possessive, डार्क और ऑब्सेसिव था।
Dhruv ने धीरे-धीरे अपना सिर झुका कर उसे अपने पास खींच लिया। उसकी सांसें Shree के होंठों पर टकरा रही थीं, और उसकी गर्मी शरीर में फैल रही थी।
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Shree ने पलकें झपकाईं, डर और चाहत का मिश्रण उसे हिला रहा था।
Dhruv ने उसे कसकर अपनी ओर खींचा और धीरे से बोला,
“ये मेरा हक़ है, Shree… तुम्हारे दिल, तुम्हारे होंठ… सब मेरा है।”
Shree के होंठ धीरे-धीरे उसके होंठों के साथ मेल खाने लगे।
पहली बार उसे एहसास हुआ कि Dhruv का प्यार सिर्फ़ पैशन नहीं, बल्कि पज़ेशन और ऑब्सेशन का मिश्रण है।
उसकी हाथों की पकड़, उसकी साँसें, उसकी नज़रों का इंटेंस होना—सब कुछ Shree को और पास खींच रहा था।
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डर
Shree ने धीरे से कहा,
“Dhruv… ये सही नहीं है…”
Dhruv ने उसका चेहरा पकड़कर उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा,
“श्री… सही और गलत का अब कोई मतलब नहीं। तुम मेरी हो। तुम्हें मेरा प्यार और पज़ेशन महसूस करना होगा, चाहे तुम चाहो या न चाहो।”
Shree ने महसूस किया कि डर के बावजूद, उसका शरीर और दिल Dhruv की तरफ़ खिंच रहे हैं। उसका खिंचाव, डर और चाहत—तीनों उसे रोक नहीं पा रहे थे।
Dhruv ने धीरे से Shree के बालों में हाथ फेरते हुए फुसफुसाया,
“अब से तुम्हारा हर पल, हर साँस… मेरे अधीन होगा। और मैं तुम्हें कभी जाने नहीं दूँगा।”
Shree की आँखों में आँसू थे, लेकिन वह झुकी नहीं। उसका दिल बता रहा था कि यह पहला सच्चा टेस्ट है—डर और प्यार, दोनों एक साथ महसूस करना।
Dhruv ने अपनी额 नज़रों में गहराई डालते हुए कहा,
“Shree… मैं तुम्हें हमेशा अपने पास रखूँगा। चाहे तुम चाहो या न चाहो। ये पहली रात नहीं, बल्कि हमारी नई शुरुआत है।”
Shree ने महसूस किया कि यह सिर्फ़ शुरुआत है। Dhruv का पज़ेशन, उसका ऑब्सेशन, और उनका खतरनाक प्यार… इसे कोई रोक नहीं सकता।
वो पल ऐसा था, जिसमें डर और पैशन दोनों ने Shree और Dhruv को और करीब ला दिया।
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📖 Chapter 5 – रात की नज़दीकियाँ
शहर की रात अभी भी शांत थी। Shree अपने कमरे में बैठी थी, पर उसका मन Dhruv की यादों में डूबा हुआ था।
उसकी धड़कनें तेज़ थीं और पूरे शरीर में एक अजीब सी गर्मी फैल रही थी।
"ये आदमी… डरावना, खतरनाक और… इतना पास?" Shree सोच रही थी।
तभी दरवाज़ा अचानक खुला। Dhruv खड़ा था, काले सूट में, उसकी आँखों में वही डार्क चमक।
“Shree…” उसने धीरे कहा। उसकी आवाज़ में पज़ेशन इतनी थी कि Shree की साँसें थम गईं।
Shree ने पीछे हटने की कोशिश की।
“Dhruv… अब नहीं…” उसकी आवाज़ कांप रही थी।
पर Dhruv ने तेजी से उसके हाथ पकड़ लिए।
“अब तुम्हें भागने का मौका नहीं मिलेगा। तुम मेरी हो। समझी?”
Shree का दिल धड़क रहा था, डर भी था, पर शरीर Dhruv की तरफ़ खिंच रहा था।
--- नज़दीकियाँ
Dhruv ने धीरे से Shree को अपने पास खींचा। उसके होंठों और उसके चेहरे के बीच केवल कुछ इंच की दूरी थी।
“Shree… तुम्हारा डर और खिंचाव मुझे पागल कर रहा है,” उसने फुसफुसाया।
Shree ने पलटकर पीछे हटने की कोशिश की, पर Dhruv ने उसे कसकर पकड़ लिया।
“छोड़ो मुझे!” Shree ने कहा, पर अंदर से कुछ उसे रोक रहा था—भागने का मन नहीं था।
Dhruv ने उसके होंठों को धीरे से छुआ। Shree के होंठ काँपने लगे। यह पहली बार था जब उसने महसूस किया कि यह किस सिर्फ़ पैशन की नहीं, possessive और ऑब्सेसिव थी।
Dhruv ने धीरे-धीरे उसे अपने पास खींचा। उनकी सांसें मिल गईं। Dhruv की गर्मी Shree के शरीर में फैल रही थी।
Dhruv ने उसकी कमर कसकर पकड़ ली और फुसफुसाया,
“Shree… अब से तुम्हारा हर पल मेरे पास होगा। तुम मेरी हो, चाहे तुम चाहो या न चाहो।”
Shree ने पहली बार महसूस किया कि Dhruv का प्यार सिर्फ़ प्यार नहीं, बल्कि पज़ेशन और जुनून का मिश्रण है।
उसकी हाथों की पकड़, उसकी साँसें और उसकी नज़रों का इंटेंस होना—सब कुछ Shree को और पास खींच रहा था।
Dhruv ने धीरे से Shree के बालों में हाथ फेरते हुए उसे और करीब खींचा।
“तुम भाग नहीं सकती, Shree। मैं तुम्हें खुद से जोड़कर रखूँगा।”
Shree ने महसूस किया कि डर और चाहत दोनों उसके अंदर एक साथ जल रहे थे। उसके होंठ Dhruv के होंठों से मेल खा रहे थे, धीरे-धीरे और गहराई में।
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Dhruv ने उसकी आंखों में गहरी नज़र डालकर कहा,
“Shree… मैं तुम्हें कभी जाने नहीं दूँगा। ये पहली रात नहीं, हमारी नई शुरुआत है। मैं तुम्हारा पज़ेशन और प्यार दोनों साबित करूँगा।”
Shree ने महसूस किया कि अब कोई रास्ता पीछे नहीं था। Dhruv का पज़ेशन और ऑब्सेशन उसे पूरी तरह अपने पास खींच चुके थे।
उसने खुद को Dhruv की पकड़ में छोड़ दिया। डर, खिंचाव और पैशन—तीनों उसके अंदर एक साथ झकझोर रहे थे।
Dhruv ने धीरे-धीरे Shree को अपने कमरे की दीवार के पास खड़ा किया और फुसफुसाया,
“Shree… तुम मेरी हो। अब कोई तुम्हें मुझे रोक नहीं पाएगा। ये रात हमारी है।”
Shree की आँखों में आँसू थे, लेकिन वह झुकी नहीं। उसके दिल में डर और चाहत दोनों एक साथ उमड़ रहे थे।
Dhruv ने धीरे-धीरे उसे अपने पास और करीब खींचा। उनका पहला possessive, डार्क और पैशनेट रोमांस गहराई में उतर रहा था।
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📖 Chapter 6 – रात, guilt और जबरदस्ती शादी
रात का सन्नाटा धीरे-धीरे सुबह में बदल रहा था। Shree और Dhruv की रात भर की नज़दीकियाँ और डार्क पैशन अभी भी कमरे में गूंज रही थी।
Dhruv ने उसे अपने पास कसकर पकड़ा हुआ था। Shree के शरीर और दिल में डर और चाहत का अजीब मिश्रण था। उसका दिल लगातार धड़क रहा था।
“Shree… अब तुम मेरी हो। मैं तुम्हें छोड़ने नहीं दूँगा,” Dhruv ने धीरे से फुसफुसाया।
Shree ने अपनी आंखें बंद कीं। डर भी था, पर अंदर की चाहत उसे पूरी तरह रोक नहीं पा रही थी। Dhruv ने धीरे-धीरे उसे चूमा, उसकी सांसें उसके होंठों से टकरा रही थीं। हर स्पर्श, हर किस, हर नज़दीकी में possessive और ऑब्सेसिव प्यार था।
Shree की सांसें अटकी हुई थीं, शरीर में गर्मी फैल रही थी। Dhruv का हाथ उसके बालों में, कमर पर, और कभी-कभी उसके चेहरे के पास—हर जगह उसकी पज़ेशन दिख रही थी।
धड़के, फुसफुसाहटें, धीमी-धीमी आवाज़ें—सब कुछ उस रात को पैशनेट और डार्क बना रही थीं।
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सुबह Shree ka
guilt
अचानक सूरज की हल्की किरणें कमरे में आईं। Shree धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलती है।
वह Dhruv के पास लेटी हुई थी, उसके हाथों में फंसी हुई। उसकी सांसें अभी भी भारी थीं।
Shree ने अचानक पलटा और सोचा,
"मैंने क्या किया… ये सही नहीं था… मुझे उससे दूर रहना चाहिए।"
वो कमरे के कोने में जाकर बैठी। आँखों में आँसू, हाथ में सिर पकड़कर।
“मुझे खुद पर गुस्सा है… पर फिर भी…” उसका मन उलझा हुआ था।
Shree ने महसूस किया कि Dhruv की नज़रों और पज़ेशन ने उसे पूरी तरह अपनी पकड़ में ले लिया है। डर और guilt के बावजूद, उसके दिल ने Dhruv को चाहा था।
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Shree ने सोचा कि अगर Dhruv से थोड़ी दूरी रहे, तो शायद उसका मन शांत होगा।
वो धीरे-धीरे उठकर घर के बाहर चली गई। ठंडी हवा, हल्की धूप, और कुछ देर अकेले रहना—यह उसे राहत दे रहा था।
“थोड़ा दूर रहूँगी… शायद मैं खुद को संभाल सकूँ,” Shree ने अपने आप से कहा।
लेकिन Dhruv का पज़ेशन उसे कहीं भी नहीं छोड़ने वाला था।
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Dhruv की जबरदस्ती
कुछ ही घंटे बाद Dhruv ने Shree को ढूँढ लिया। उसकी आँखों में वही डार्क, ऑब्सेसिव चमक थी।
“Shree… अब और इंतजार नहीं। तुम मेरी हो, और हम शादी करेंगे। आज। अभी।”
Shree ने पीछे हटने की कोशिश की।
“Dhruv… नहीं… ये सही नहीं है… मुझे थोड़ी जगह दो…”
पर Dhruv ने उसे कसकर पकड़ लिया।
“कोई रास्ता नहीं, Shree। मैं तुम्हें खुद से जोड़कर रखूँगा। आज हमारी शादी होगी। चाहे तुम चाहो या न चाहो।”
Shree के दिल में डर और गिल्ट था, पर Dhruv की जबरदस्ती और पज़ेशन ने उसे रोक दिया।
Dhruv ने धीरे-धीरे उसे अपनी बाहों में पकड़ लिया।
“Shree… अब तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं है। मैं तुम्हें अपनी जिंदगी में हमेशा के लिए बाँधूँगा।”
Shree की आँखों में आँसू थे, पर उसने महसूस किया कि अब वह Dhruv के हाथों से दूर नहीं जा सकती। उसके डर, guilt और चाहत Dhruv के पज़ेशन के सामने हार गया।
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📖 Chapter 7 – Court Marriage और Wedding Night
सर्द सुबह थी। Court की गली में हल्का हुल्लड़ और भीड़ थी, लेकिन Dhruv और Shree के लिए समय जैसे रुक गया था। Dhruv ने अपनी नज़रें Shree पर टिकाई हुई थीं। उसकी आँखों में वही डार्क और ऑब्सेसिव चमक थी।
Shree ने अपने हाथ को धीरे-धीरे उसकी पकड़ से छुड़ाने की कोशिश की, पर Dhruv ने कसकर पकड़ रखा था।
“Shree… आज तुम्हारा हर पल मेरा है। कोई तुम्हें रोक नहीं सकता,” उसने फुसफुसाया।
Shree का दिल धड़क रहा था। डर भी था, पर Dhruv की पकड़ और उसकी नज़रों का खिंचाव उसे रोक नहीं पा रहा था।
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Court Marriage
Court के अंदर, दोनों चुपचाप बैठे। Dhruv का हाथ Shree के हाथ में था। उसकी आँखें पूरी तरह Dhruv पर थीं, और Dhruv की निगाहें Shree को ही तलाश रही थीं।
Judge ने उनकी शादी की प्रक्रिया शुरू की। Dhruv ने धीरे से Shree की तरफ़ देखा।
“अब तुम पूरी तरह मेरी हो,” उसने धीरे फुसफुसाया।
Shree ने सिर झुकाया, आँखों में डर और खिंचाव का मिश्रण।
“हां… मैं… मैं…” उसकी आवाज़ कांप रही थी।
Judge ने नाम और तारीख पूछी, और Dhruv ने तेजी से जवाब दिया।
“Shree Roy… मेरी पत्नी।”
Shree ने धीरे से सिर हिलाया। Court के सामने, Dhruv ने possessive अंदाज़ में उसे छू लिया। उसकी नज़रों में वही पज़ेशन और जुनून था, जो Shree को अंदर तक हिला रहा था।
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Court के बाद
Court के बाहर आते ही Dhruv ने Shree को अपनी कार में खींचा।
“अब कोई तुम्हें मुझसे दूर नहीं कर सकता,” उसने फुसफुसाया।
Shree ने खुद को धीरे-धीरे उसकी बाहों में ढाल दिया। डर और खिंचाव, guilt और चाहत—सब कुछ एक साथ उसके दिल में चल रहा था।
Car की खिड़की से हल्की धूप आ रही थी। Dhruv ने Shree की आँखों में देखा और धीरे से उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा,
“तुम मेरी हो, Shree… और मैं तुम्हें आज रात पूरी तरह अपने पास रखूँगा।”
Shree की सांसें अटक गईं। वह जानती थी कि Dhruv का पज़ेशन केवल प्यार नहीं, बल्कि ऑब्सेसिव और डार्क था।
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Wedding Night
Dhruv के घर पहुँचते ही उसने Shree को अपने कमरे में खींचा। कमरे की लाइट धीमी थी, हल्की खुशबू और रोशनी ने माहौल को intimate बना दिया था।
Shree ने पलटा और धीरे से कहा,
“Dhruv… मैं डर रही हूँ…”
Dhruv ने उसकी कमर कसकर पकड़ लिया।
“डर मत, Shree… डर और चाहत दोनों तुम्हारे अंदर हैं। मैं तुम्हें पूरा महसूस करूँगा। ये रात हमारी है।”
Shree की आँखों में आँसू थे। डर, guilt और खिंचाव—तीनों एक साथ उसके दिल में थे। लेकिन Dhruv की गर्मी और पकड़ उसे रोक नहीं पा रही थी।
Dhruv ने धीरे-धीरे Shree को अपनी तरफ़ खींचा। उनके होंठ टकराए। यह सिर्फ किस नहीं था। यह possessive, डार्क और पैशनेट था।
Shree ने महसूस किया कि Dhruv का प्यार और पज़ेशन उसे पूरी तरह अपने पास खींच रहा था। उसकी सांसें, उसका हाथ, उसका शरीर—सब Dhruv की पकड़ में थे।
Dhruv ने धीरे-धीरे Shree को अपनी बाहों में लिया। उसके शरीर की गर्मी Shree के शरीर में फैल रही थी। Dhruv ने धीरे से उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा,
“Shree… अब तुम्हारा हर पल, हर सांस, सिर्फ़ मेरे पास है। मैं तुम्हें खुद से जोड़कर रखूँगा।”
Shree ने अपनी आँखें बंद कीं। डर और चाहत के बीच उसका शरीर Dhruv के पास झुक गया। Dhruv ने धीरे-धीरे उसे चूमा। हर स्पर्श, हर किस, हर हाथ की हल्की दबाव—सब possessive और डार्क थे।
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Dhruv ने धीरे-धीरे Shree को बेड पर लेटाया। उसकी कमर, कंधे और होंठ—हर जगह Dhruv का पज़ेशन था।
“तुम मेरी हो, Shree… अब कोई तुम्हें मुझे रोक नहीं पाएगा,” Dhruv ने फुसफुसाया।
Shree ने महसूस किया कि उसके डर और guilt के बावजूद, उसका शरीर और दिल Dhruv की तरफ़ पूरी तरह खिंच चुका था।
Dhruv ने धीरे से उसके कान के पास फुसफुसाया,
“तुम्हारा डर, तुम्हारी चाहत, सब कुछ मेरा है। मैं तुम्हें पूरी रात अपने पास रखूँगा।”
Shree ने धीरे से सिर हिलाया। उसका शरीर Dhruv की पकड़ में हल्का-हल्का कांप रहा था। डर और चाहत दोनों ने उसे पूरी तरह Dhruv की ओर खींच लिया।
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रात के अंधेरे में Dhruv ने Shree को कसकर पकड़ लिया। उसकी आंखों में वही ऑब्सेसिव, डार्क चमक थी।
“Shree… अब तुम्हारा कोई विकल्प नहीं है। मैं तुम्हें पूरी तरह अपने पास रखूँगा। ये रात हमारी है, हमारी शुरुआत।”
Shree ने महसूस किया कि अब वह पूरी तरह Dhruv की हो चुकी है। डर, guilt और चाहत—सब कुछ उसके अंदर एक साथ जल रहे थे। Dhruv ने धीरे-धीरे उसे अपनी बाहों में पकड़ रखा।
वो रात दोनों के लिए passionate, dark और possessive थी। Shree का डर और guilt धीरे-धीरे Dhruv की पकड़ के आगे घुटने टेक रहा था।
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📖 Chapter 8 – प्यार या कैद?
सुबह की हल्की रोशनी खिड़की से कमरे में उतर रही थी। Bed पर Shree बैठी थी, उसके चेहरे पर रात की थकान और आँखों में गिल्ट साफ झलक रहा था। उसके कपड़े बिखरे थे, बाल उलझे हुए थे और आँखें लाल।
उसका दिल अभी भी तेज़ धड़क रहा था। पिछली रात Dhruv की possessive बाँहों में बिताए हर लम्हे की याद उसे कंपकंपा रही थी।
“मैंने ये सब क्यों होने दिया?” Shree ने खुद से फुसफुसाया। आँसू उसकी पलकों से फिसल पड़े।
“मैं उससे नफ़रत करती हूँ… पर… मैं उसका विरोध क्यों नहीं कर पाई?”
Shree ने चुपचाप अपने कपड़े समेटे और धीरे से उठकर बाहर निकलने की कोशिश की। लेकिन तभी पीछे से एक मज़बूत बाँह ने उसका हाथ पकड़ लिया।
“कहाँ जा रही हो?” Dhruv की भारी, ठंडी आवाज़ उसके कानों में गूँजी।
Shree ने पलटकर देखा। Dhruv अब भी बिस्तर पर आधा लेटा था, उसकी आँखों में वही डार्क पज़ेशन।
“मुझे… मुझे जाना है, Dhruv। ये सब… गलत है।” Shree की आवाज़ काँप रही थी।
Dhruv अचानक उठ खड़ा हुआ और उसे खींचकर पास ले आया।
“गलत?” उसने उसके होंठों के बेहद पास आकर कहा। “गलत वो होता है जो दिल न चाहे। कल रात… तुम्हारा शरीर, तुम्हारी साँसें… सबने मुझे चाहा था।”
Shree काँप गई। उसने झुककर कहा,
“नहीं… वो बस… डर था। मैं तुम्हें नहीं चाहती।”
Dhruv ने उसकी ठुड्डी उठाई और उसकी आँखों में गहराई से देखा।
“झूठ बोल रही हो। तुम्हारी आँखें तुम्हें betray कर रही हैं। Shree… तुम मेरी addiction हो। और addiction से भागकर कोई नहीं बच पाया।”
Shree ने उसकी पकड़ छुड़ाने की कोशिश की।
“Dhruv… मैं कैदी नहीं बन सकती तुम्हारी। मुझे जाने दो।”
Dhruv ने हँसते हुए उसके बालों में हाथ फेरा और उसे दीवार से दबा दिया।
“कैदी? नहीं Shree… तुम मेरी पत्नी हो। अब तुम्हारी हर साँस, हर धड़कन… मेरे नाम है। और अगर तुमने भागने की कोशिश की… तो मैं पूरी दुनिया के सामने तुम्हें अपना बना लूँगा।”
Shree की आँखें आँसुओं से भर गईं।
“क्यों कर रहे हो ये सब? ये प्यार नहीं है, Dhruv… ये ज़बरदस्ती है।”
Dhruv ने उसके होंठों पर गहरा किस किया। Shree ने छूटने की कोशिश की, लेकिन Dhruv की पकड़ बहुत मज़बूत थी।
“हाँ… ये ज़बरदस्ती है। क्योंकि मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता। तुम मेरी हो और हमेशा मेरी रहोगी। चाहे तुम्हें मंज़ूर हो या न हो।”
Shree ने रोते हुए उसका सीना धक्का दिया।
“मैं तुमसे नफ़रत करती हूँ!”
Dhruv ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा,
“नफ़रत? नफ़रत भी एक जुनून है, Shree। और मैं तुम्हारा हर जुनून बनना चाहता हूँ। प्यार, नफ़रत, डर, चाहत—सब सिर्फ़ मेरे नाम हो।”
Shree ने सिर झुका लिया। उसका दिल मानने को तैयार नहीं था, पर दिमाग चिल्ला रहा था कि ये गलत है।
उसने धीरे से कहा,
“अगर तुम सच में मुझसे प्यार करते हो, Dhruv… तो मुझे आज़ाद कर दो।”
Dhruv की आँखें और गहरी हो गईं। उसने धीरे से उसके कान के पास फुसफुसाया,
“प्यार कभी आज़ाद नहीं करता, Shree। प्यार तो बाँधता है। और मैंने तुम्हें बाँध लिया है… हमेशा के लिए।”
Dhruv ने उसे फिर से अपनी बाँहों में भर लिया। Shree की आँखें आँसुओं से भीगी थीं। उसका दिल चीख रहा था कि वो भाग जाए, लेकिन शरीर अब भी Dhruv की बाँहों से लड़ नहीं पा रहा था।
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उस सुबह Shree समझ चुकी थी कि उसकी ज़िंदगी अब बदल चुकी है। Dhruv का डार्क प्यार, उसकी possessive पकड़ और उसका ऑब्सेशन—सब कुछ उसकी ज़िंदगी पर छा चुका था।
वो सोच रही थी: क्या ये सचमुच प्यार है… या एक कैद?
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📖 Chapter 9 – भागने की कोशिश और वापसी
शाम का वक्त था। हवेली के बड़े दरवाज़े पर पहरेदार खड़े थे, लेकिन Shree ने तय कर लिया था कि आज वो यहाँ से निकल जाएगी। पूरे दिन वो चुप रही, Dhruv की आँखों से बचती रही। पर अंदर ही अंदर उसका दिल कह रहा था—अब और नहीं सह सकती, मुझे यहाँ से निकलना होगा।
रात का अंधेरा घिरते ही Shree धीरे-धीरे कमरे से बाहर निकली। उसने हल्के कदमों से सीढ़ियाँ उतारीं, साँसें तेज़ हो रही थीं। हाथ काँप रहे थे पर दिल कह रहा था—“आज आज़ादी मिलेगी।”
दरवाज़े तक पहुँचते ही उसने चुपचाप पहरेदार को कुछ पैसों का लालच दिया। वो घबराकर दरवाज़ा खोलने को तैयार हो गया। Shree तेज़ी से बाहर भागी। उसकी आँखों में डर और उम्मीद दोनों थे।
लेकिन…
“Shree…” वो भारी आवाज़ अचानक उसके कानों में गूँजी।
Shree का दिल धड़कना बंद हो गया। वो धीरे-धीरे पीछे मुड़ी।
Dhruv वहीं खड़ा था—काले सूट में, उसकी आँखों में आग और चेहरे पर खतरनाक गुस्सा। उसके पीछे गाड़ियों का काफ़िला और बॉडीगार्ड खड़े थे।
“तुम… मुझसे भागने की कोशिश कर रही हो?” Dhruv की आवाज़ धीमी थी, पर उसमें वो खतरनाक सन्नाटा था जिससे Shree काँप उठी।
Shree ने हिम्मत जुटाई, आँसू उसकी आँखों से गिरने लगे।
“हाँ! मैं भागना चाहती हूँ… मैं तुम्हारी कैद नहीं हूँ, Dhruv। मैं तुम्हारे बिना जीना चाहती हूँ।”
Dhruv धीरे-धीरे उसकी तरफ़ बढ़ा। उसके कदमों की आवाज़ रात की खामोशी में गूंज रही थी।
“मेरे बिना जीना?” उसने Shree की ठुड्डी पकड़कर उसे ऊपर देखा।
“तुम सोच भी कैसे सकती हो कि मैं तुम्हें जाने दूँगा? तुम मेरी addiction हो, Shree। और addiction से कोई भाग नहीं सकता।”
Shree ने उसका हाथ झटक दिया।
“ये प्यार नहीं है, Dhruv… ये पागलपन है। मैं तुमसे नफ़रत करती हूँ!”
Dhruv ने गुस्से में उसका हाथ कसकर पकड़ लिया और झटके से अपनी गाड़ी की तरफ़ खींचा।
“नफ़रत? Perfect. क्योंकि नफ़रत भी तुम्हें मुझसे बाँधती है। और मैं तुम्हें खोने का risk कभी नहीं लूँगा।”
Shree चीख उठी,
“छोड़ो मुझे! मैं तुम्हारे साथ नहीं जाना चाहती!”
Dhruv ने उसे गाड़ी के अंदर धक्का दिया और खुद भी अंदर बैठ गया।
उसने उसके कान के पास झुककर धीरे से कहा,
“तुम्हारी चाहत, तुम्हारा गुस्सा, तुम्हारा डर—सब मेरा है। समझीं? अब ये भागने का खेल दोबारा मत करना। वरना मैं तुम्हें ऐसी सज़ा दूँगा कि तुम खुद मेरे पास आकर गिड़गिड़ाओगी।”
Shree काँप गई। उसकी आँखों में आँसू थे। पर Dhruv की आँखों में सिर्फ़ पज़ेशन और डार्क जुनून था।
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हवेली वापसी
कमरे में पहुँचते ही Dhruv ने Shree को दीवार से जोर से दबा दिया।
“तुम सोचती हो कि मुझसे भाग जाओगी? Shree… मैं तुम्हारी साँसों तक का मालिक हूँ। तुम्हें आज़ादी चाहिए थी न? तो अब मैं तुम्हें ऐसी कैद दूँगा जिसमें तुम खुद खो जाओगी।”
Shree रोते हुए बोली,
“Dhruv… तुम मुझे तोड़ रहे हो। ये प्यार नहीं है…”
Dhruv ने उसके होंठों पर possessive किस किया।
“प्यार हमेशा मीठा नहीं होता, Shree। कभी-कभी प्यार जलता है, जकड़ता है… और तुम्हारे लिए मेरा प्यार वैसा ही है।”
उसने उसे कसकर बाँहों में भर लिया। Shree रोते-रोते भी Dhruv की पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाई।
उस रात फिर से Dhruv का डार्क और ऑब्सेसिव प्यार Shree पर हावी था। Shree का गुस्सा, उसका डर, उसकी चीखें—सब Dhruv के पैशन में खो रहे थे।
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Shree अब समझ चुकी थी—Dhruv से भागना नामुमकिन है।
वो सिर्फ़ उसका है… और Dhruv उसे हमेशा कैद करके रखेगा।
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📖 Chapter 10 – डर, guilt और खिंचाव
सुबह की धूप धीरे-धीरे कमरे में घुस रही थी। Shree ने पलंग पर बैठकर बाहर की ओर देखा। उसके हाथ काँप रहे थे, आँखों में नींद नहीं, बल्कि रात भर की चिंता और डर की झलक थी।
"मैंने क्या किया… क्या ये सही है? मैं उससे नफ़रत करती हूँ… और फिर भी… मेरा दिल उसे चाहता है?"
Shree ने सिर झुकाया। उसके दिमाग़ में Dhruv की हर बात, हर स्पर्श और हर किस घूम रही थी। वह जानती थी कि Dhruv possessive और डार्क है। हर बार उसने उसे पकड़ा, हर बार उसे अपनी बाहों में बाँधा, Shree के अंदर डर और चाहत दोनों छोड़ गया।
उसका मन लड़ रहा था—भागना, विरोध करना, खुद को बचाना। लेकिन शरीर अपने आप Dhruv की ओर खिंच रहा था।
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Dhruv का इंतजार
कमरे का दरवाज़ा धीरे खुला और Dhruv अंदर आया। उसकी आँखों में वही डार्क और ऑब्सेसिव चमक थी। उसने कमरे में कदम रखते ही Shree की तरफ देखा।
“Shree… उठ गई हो?” उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि Shree का दिल उछल पड़ा।
Shree ने पलटकर सिर हिलाया। उसने कहा,
“मैं… मैं थोड़ी देर अकेली रहना चाहती थी।”
Dhruv मुस्कराया। उसकी मुस्कान में पज़ेशन और डार्क control दोनों झलक रहे थे।
“अकेली? तुम मेरी पत्नी हो। अकेली होना अब तुम्हारे लिए नामुमकिन है। तुम्हारा हर पल, हर सांस… अब मेरा है।”
Shree ने धीरे से सिर झुका लिया। उसका दिल मान रहा था, दिमाग़ चिल्ला रहा था, पर शरीर… शरीर Dhruv के पास ही खिंच रहा था।
Dhruv उसके पास आया और धीरे से उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा,
“Shree… डरना, गिल्ट महसूस करना, ये सब तुम्हारे लिए normal है। लेकिन समझो, मैं तुम्हारे लिए हमेशा यहाँ हूँ। मैं तुम्हें पूरी तरह अपना बनाना चाहता हूँ।”
Shree ने उसकी आँखों में देखा। डर के बावजूद, उसके दिल में Dhruv के लिए एक अजीब खिंचाव था।
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पहला psychological conflict
Shree ने धीरे से कहा,
“Dhruv… मैं तुम्हें चाहती नहीं हूँ… मैं तुम्हारे पास नहीं रह सकती।”
Dhruv ने उसकी ठुड्डी उठाकर आँखों में देखा।
“झूठ बोल रही हो। तुम्हारा दिल तुम्हें betray कर रहा है। तुम भागना चाहती हो, पर तुम्हारा मन मुझसे जुड़ा हुआ है। और मैं तुम्हें हमेशा अपने पास रखूँगा।”
Shree काँप रही थी। उसका दिमाग़ कह रहा था—ये प्यार नहीं है, ये कैद है।
पर शरीर Dhruv के पास खिंच रहा था। उसकी बाँहों में बैठते ही उसका गिल्ट और डर थोड़े-थोड़े कम होने लगे।
Dhruv ने धीरे-धीरे Shree के होंठों को छुआ। यह सिर्फ किस नहीं था—possessive, डार्क और पैशनेट था। Shree ने महसूस किया कि उसका शरीर अपने आप उसकी तरफ़ झुक रहा है।
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Stockholm Syndrome की शुरुआत
Shree की आँखों में आँसू थे। डर, गिल्ट, और अब धीरे-धीरे प्यार भी आने लगा।
“मैं… मैं क्यों महसूस कर रही हूँ… कि मैं तुम्हें चाहती हूँ?” उसने धीरे से खुद से कहा।
Dhruv ने उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा,
“क्योंकि मैं तुम्हारे लिए हूँ। मैं तुम्हें डराता हूँ, बाँधता हूँ, लेकिन मैं तुम्हें कभी चोट नहीं पहुँचाऊँगा। तुम्हारा डर, तुम्हारा प्यार, सब मेरा है। समझी?”
Shree ने धीरे से सिर हिलाया। उसने महसूस किया कि डर और guilt के बावजूद उसका मन Dhruv की ओर खिंच रहा था। उसके अंदर की चाहत धीरे-धीरे जाग रही थी।
Dhruv ने उसे कसकर अपनी बाहों में खींचा। उसकी गर्मी, उसकी आवाज़, उसकी पकड़—सब कुछ Shree के अंदर एक अजीब mixture छोड़ रहा था: डर, guilt और अब प्यार भी।
“Shree… तुम मेरे बिना कुछ नहीं कर सकती। तुम मेरे पास ही सुरक्षित हो। ये तुम्हारे लिए best है,” Dhruv ने धीरे से कहा।
Shree ने महसूस किया कि वह सही कह रहा था। डर और गिल्ट उसके दिमाग़ में थे, पर उसके दिल में अब Dhruv की गर्मी और पास होने का खिंचाव धीरे-धीरे dominate करने लगा।
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पहला acceptance
Shree ने धीरे से कहा,
“Dhruv… मैं… मैं शायद… मुझे समझ नहीं आ रहा…”
Dhruv ने उसकी आँखों में देखा और धीरे-धीरे उसका चेहरा अपने हाथों में लिया।
“Shree… ये ठीक है। मैं जानता हूँ कि तुम्हारा मन अब भी लड़ रहा है। लेकिन तुम्हारा शरीर और दिल… वो मेरा हो चुके हैं। तुम्हें धीरे-धीरे महसूस होगा कि डर के बीच भी प्यार है।”
Shree ने धीरे से सिर झुका लिया। उसे अब समझ आ रहा था कि भागना बेकार है। Dhruv का possessive और डार्क प्यार उसे रोक रहा था, पर धीरे-धीरे उसके अंदर भी खिंचाव आ गया।
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दिन की समाप्ति
पूरा दिन Shree और Dhruv के बीच psychological और physical proximity में बीता। Dhruv हर बार Shree के करीब आता, उसे अपनी बाँहों में लेता और धीरे-धीरे उसके डर और गिल्ट को प्यार में बदल देता।
Shree अब मान चुकी थी कि वह धीरे-धीरे Dhruv के डार्क प्यार में खिंच रही है। डर, guilt और चाहत—तीनों ने मिलकर उसे Dhruv के पास बाँध दिया।
रात आते-आते Shree ने खुद से कहा,
"मैं अब उसकी कैद में हूँ… और शायद… मैं इसे पसंद भी करने लगी हूँ।"
Dhruv ने धीरे-धीरे उसकी कमर पकड़कर कहा,
“Shree… अब तुम्हारा कोई विकल्प नहीं। तुम मेरी हो। तुम्हारा डर, तुम्हारा प्यार… सब कुछ मेरा है।”
Shree ने सिर झुका लिया। उसके दिल और दिमाग़ में confusion था, पर एक बात साफ़ थी—अब उसका मन Dhruv के पास ही था।
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📖 Chapter 11 – "जुनून की कैद"
सुबह की हल्की धूप खिड़की से छनकर कमरे में फैल रही थी। पर कमरे का माहौल उतना ही भारी और तीखा था जितना पिछली रात Dhruv का स्पर्श। Shree तकिए में मुँह छुपाकर सोने का नाटक कर रही थी। उसकी सांसें तेज़ थीं, धड़कनें बेकाबू।
Dhruv बिस्तर के किनारे बैठा था, हाथ में कॉफ़ी का कप और आँखों में वही काली गहराई, जिसमें Shree बार–बार खोना नहीं चाहती थी, पर खिंचती चली जाती थी।
“नाटक मत करो Shree…” उसकी आवाज़ गहरी और खुरदुरी थी। “मुझे पता है तुम जाग रही हो।”
Shree धीरे से आँखें खोली, लेकिन नज़रें उस तरफ़ नहीं उठाई।
“तो क्या हर पल मुझे देखोगे? क्या अब साँस लेने पर भी तुम्हें इजाज़त लेनी होगी?”
Dhruv ने उसकी ठोड़ी पकड़कर चेहरा ऊपर उठाया। “हाँ। जब से तुम मेरी बनी हो, तुम्हारी हर साँस… हर धड़कन… सिर्फ़ मेरी है।”
उसकी आँखों में डर और गुस्सा दोनों तैर गए। “तुम मुझे कैद कर रहे हो Dhruv! ये प्यार नहीं है… ये बस…”
“ये प्यार ही है, Shree!” उसने उसकी बात काट दी। उसकी आवाज़ में सर्द जुनून था। “तुम समझ नहीं सकती। मैं तुम्हें खोने का ख्याल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। चाहे तुम लाख लड़ो, मेरा होना तुम्हारे शरीर और रूह में गूँजता रहेगा।”
Shree ने झटका देकर उसका हाथ हटाने की कोशिश की, लेकिन Dhruv और करीब झुक आया। उसकी सांसें Shree के चेहरे पर गरम लहरों की तरह छू रही थीं।
“मुझसे दूर जाने की सोचना भी मत…” उसने उसके कान के पास फुसफुसाया।
Shree का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। वो डर और चाहत के बीच झूल रही थी। उसकी आँखों से आँसू छलक आए, लेकिन Dhruv ने उन्हें होंठों से सोख लिया।
“तुम्हारी ये आँखें… तुम्हारे ये आँसू… सिर्फ़ मेरे लिए हैं।”
Shree ने कांपती आवाज़ में कहा—“तुम्हें हक़ किसने दिया Dhruv? मैं तुम्हारी बीवी हूँ, पर इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुम्हारी गुलाम हूँ।”
Dhruv हल्की हँसी हंसा, लेकिन उसमें पागलपन झलक रहा था।
“गलत हो Shree। तुम सिर्फ़ मेरी बीवी नहीं हो… तुम मेरी जुनून हो, मेरी कैद हो, मेरा सब कुछ। और मैं वो आदमी हूँ जो तुम्हें कभी खो नहीं सकता।”
उसने Shree को अपनी बाहों में भर लिया। Shree ने विरोध करना चाहा, पर उसकी पकड़ लोहे जैसी मज़बूत थी।
“Dhruv छोड़ो…”
“कभी नहीं…” उसने उसकी गर्दन पर होंठ रख दिए। Shree का शरीर सिहर उठा। वो चाहकर भी खुद को उसके स्पर्श से दूर नहीं कर पाई।
कुछ पल तक कमरे में सिर्फ़ उनकी धड़कनों की आवाज़ गूँजती रही। Shree का हर विरोध धीरे–धीरे कम होता जा रहा था। वो जानती थी Dhruv की पकड़ से निकलना नामुमकिन है, पर उसका दिल भी मानने लगा था कि ये पागलपन कहीं न कहीं उसे भी बाँध रहा है।
Dhruv ने उसके कान में धीमे स्वर में कहा—
“तुम मेरी हो Shree… आज, कल और हमेशा। ये कैद तुम्हें चाहे कितनी भी भारी लगे, पर एक दिन तुम खुद मानोगी कि तुम सिर्फ़ मेरी हो।”
Shree ने आँखें बंद कर लीं। उसके आँसू उसके गालों पर लुढ़क रहे थे, पर Dhruv ने उन्हें होंठों से चूम लिया। वो डर और चाहत के भंवर में डूब चुकी थी।
बाहर धूप तेज़ हो गई थी, पर कमरे में अँधेरा और जुनून ही छाया हुआ था
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📖 Chapter 12 – "सज़ा का हक़"
शाम का वक्त था। हवेली की लाइट्स जल चुकी थीं, पर Shree का कमरा अंधेरे में डूबा हुआ था। वो खिड़की के पास खड़ी बाहर देख रही थी, आँखों में बेचैनी और दिल में गुस्सा। शादी को अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए थे, लेकिन Dhruv का हर लम्हा उसके लिए दम घोंटने जैसा था।
आज सुबह ही Dhruv ने उसके कॉलेज जाने से साफ़ मना कर दिया था।
“तुम्हें पढ़ाई की ज़रूरत नहीं है Shree। अब तुम्हारी जगह मेरे पास है, मेरे घर में।”
Shree ने तब कुछ नहीं कहा था, लेकिन अंदर ही अंदर उसकी रूह सुलग उठी थी।
दरवाज़े की आवाज़ हुई। Dhruv कमरे में दाख़िल हुआ, उसी खुरदुरी शांति के साथ जैसे हर बार। हाथ में फाइल थी, लेकिन आँखें Shree पर ही टिकी थीं।
“तुम मुझसे नाराज़ हो?” उसने धीमे स्वर में पूछा।
Shree ने उसकी तरफ़ देखा तक नहीं। “तुम्हें परवाह कब से होने लगी मेरी नाराज़गी की? तुम्हें तो बस हक़ जताना आता है Dhruv। हर चीज़ पर, हर साँस पर।”
Dhruv की भौंहें तन गईं। वो उसके पास आया और उसके हाथ पकड़ लिए।
“हाँ, हक़ है मुझे! क्योंकि तुम मेरी हो, Shree। तुम्हारा नाम, तुम्हारा जिस्म, तुम्हारी धड़कन—सब पर मेरा हक़ है।”
Shree ने झटके से उसका हाथ छुड़ाने की कोशिश की।
“बस करो ये कैद! मैं कोई खिलौना नहीं हूँ Dhruv, कि जब चाहो उठा लो, जब चाहो तोड़ दो। मुझे भी जीने का हक़ है, अपनी मरज़ी से।”
Dhruv की आँखें और गहरी हो गईं। उसमें एक खतरनाक सन्नाटा उतर आया।
“मरज़ी? तुम्हारी कोई मरज़ी नहीं है Shree। तुम्हारी हर चाहत, हर ख्वाहिश अब मेरी है। और अगर तुम भूल रही हो… तो मुझे याद दिलाना आता है।”
Shree पीछे हटने लगी, लेकिन Dhruv ने उसे पकड़कर दीवार से सटा दिया। उसका चेहरा बेहद करीब था, साँसों की गरमी Shree की गर्दन को छू रही थी।
“Dhruv…” उसकी आवाज़ काँप रही थी। “मत करो ऐसा… प्लीज़…”
Dhruv की पकड़ और मज़बूत हो गई।
“सज़ा मिलेगी तुम्हें। क्योंकि तुमने मेरी बात काटी, मेरी नज़रों से दूर जाने का सोचा। ये मत भूलो Shree… मैं Dhruv Rathi हूँ। जिसे जो चाहिए, वो छीनकर लेता हूँ। और तुम तो मेरी बीवी हो।”
Shree की आँखों से आँसू छलक पड़े। “ये प्यार नहीं है Dhruv… ये ज़ुल्म है।”
Dhruv ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वो किस ज़बरदस्ती थी, लेकिन उसमें उसकी पागलपंथी चाहत छिपी थी। Shree ने विरोध किया, उसे धकेलने की कोशिश की, पर Dhruv की पकड़ लोहे जैसी थी।
कुछ पल बाद जब उसने उसे छोड़ा, Shree हाँफ रही थी। उसके गाल आँसुओं से भीग चुके थे।
Dhruv ने उसका चेहरा पकड़कर कहा—
“रो मत Shree। तुम्हारे आँसू भी मुझे अच्छे लगते हैं। तुम्हारी हर चीख, हर सिसकी… सब मेरे लिए हैं। और अगर तुम मुझे छोड़ने का सोचोगी… तो मैं तुम्हें ऐसी सज़ा दूँगा कि तुम भूल भी नहीं सकोगी।”
Shree ने काँपती आवाज़ में कहा—
“तुम्हें सिर्फ़ पाना आता है Dhruv… निभाना नहीं। तुम मुझे प्यार नहीं करते… बस मुझे कैद करना चाहते हो।”
Dhruv ने उसकी ठोड़ी उठाई और आँखों में देखते हुए बर्फ़ जैसे लहजे में बोला—
“हाँ, मैं तुम्हें कैद करना चाहता हूँ। क्योंकि मुझे डर है… अगर तुम आज़ाद हुई तो मुझसे दूर चली जाओगी। और मैं वो नहीं सह सकता। तुम मेरी हो Shree, और हमेशा मेरी रहोगी। चाहे तुम्हें पसंद हो या नहीं।”
Shree ने थके हुए लहजे में कहा—
“ये पागलपन है Dhruv…”
Dhruv ने उसके बालों को पीछे करते हुए उसके कान में फुसफुसाया—
“हाँ, पागलपन है। और ये पागलपन ही तुम्हें मेरी बना चुका है। चाहे तुम लाख इंकार करो, तुम्हारी साँसें, तुम्हारा जिस्म—सब मेरी गिरफ्त में हैं।”
कमरे का माहौल और भारी हो गया। Shree दीवार से सटी, आँखें बंद किए आँसुओं में डूबी थी, जबकि Dhruv उसकी गर्दन पर अपने निशान छोड़ रहा था—उसकी सज़ा, उसका हक़, उसकी मोहब्बत और उसका पागलपन।
बाहर रात गहराती जा रही थी, लेकिन उस कमरे में सिर्फ़ जुनून, आँसू और कैद का खेल चल रहा था।
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chapter 13 ___ खामोशी
रात अपनी पूरी ताक़त में थी, लेकिन हवेली के कमरे में ऐसा लग रहा था मानो समय ठहर गया हो। दीवारों पर टंगी हर तस्वीर, हर कोना—सबने जैसे Shree की बेचैनी को अपने भीतर समेट रखा हो। बाहर का चाँद फीका सा था, उसकी धुंधली रोशनी पेड़ों की डालियों पर पड़ रही थी, और हवेली के पुराने दरवाज़ों के बीच हवा सरसराती हुई अंदर आ रही थी। लेकिन कमरे के भीतर की हवा, Shree के लिए, किसी भारी जंजीर जैसी थी—दम घोंटती हुई, हर ख्याल को कैद करती हुई।
वो बिस्तर पर बैठी थी, घुटनों को सीने से लगा कर। उसके बाल खुले थे और धीरे-धीरे उसकी पीठ पर गिर रहे थे। आँखों में नींद नहीं थी—सिर्फ़ आँसू, सवाल और अंदर घुटती हुई भावनाएँ। क्या यही उसकी ज़िंदगी बनने वाली है? एक ऐसी कैद, जहाँ उसकी मरज़ी, उसकी आज़ादी, उसके सपने—सब कुछ धुएँ की तरह उड़कर खो जाते हों?
दरवाज़े की हल्की सी चरमराहट ने उसके ख्यालों को तोड़ा। Dhruv अंदर आया, धीमे कदमों से, जैसे हर कदम उसके अधिकार और जुनून की गूंज लिए हुए हो। हाथ में वह ट्रे थी—जिसमें गर्मागर्म खाना रखा था—लेकिन वह ट्रे उस कमरे की खामोशी में कुछ भी भारी नहीं कर पा रही थी।
Shree ने उसकी ओर देखा भी नहीं। उसकी निगाहें खिड़की की तरफ टिकी रहीं, जैसे बाहर की ठंडी हवा ही उसे कोई उम्मीद दे सकती हो।
Dhruv ने ट्रे मेज़ पर रखा और धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा। उसकी गहरी आँखों में वह पागलपन था, जो किसी भी इंसान को डर और आकर्षण दोनों महसूस करवा सकता था।
“इतनी खामोशी क्यों है, Shree? तुम्हें पता है, तुम्हारा यूँ चुप रहना मुझे अच्छा नहीं लगता।”
Shree की आवाज़ सूखी थी, शब्द उसके गले में अटके हुए थे। फिर भी, उसने हिम्मत जुटाई।
“और तुम्हें क्या अच्छा लगता है, Dhruv? मुझे कैद करना? मेरी हर साँस पर हक जमाना? तुम्हें मेरे आँसू अच्छे लगते हैं… मेरी खामोशी अच्छी लगती है… लेकिन मेरी मरज़ी?”
ये शब्द पहली बार उसके होंठों से निकले थे, आंखों में दर्द और होंठों पर बगावत की झलक थी।
Dhruv ने कुछ पल उसे देखा। उसकी आँखों में गहराई, जुनून और पागलपन का अद्भुत मिश्रण था। फिर उसने झुककर Shree के बेहद पास आ गया। उसका हाथ धीरे से Shree के चेहरे तक पहुँचा और उसने सावधानी से उसके आँसू पोंछे।
“हाँ… तुम्हारी मरज़ी मुझे मंज़ूर नहीं, Shree। क्योंकि तुम्हारी मरज़ी और मेरी चाहत कभी एक नहीं हो सकती। और मैं वो आदमी हूँ जो सिर्फ़ अपनी चाहत जीता है।”
Shree ने सख़्ती से उसका हाथ हटा दिया।
“ये चाहत नहीं है, Dhruv। ये ज़ुल्म है।”
Dhruv की आँखों में हल्की सी आग चमक उठी। उसने उसके चेहरे को मजबूती से थाम लिया।
“अगर ये ज़ुल्म है… तो मान लो Shree, तुम्हें मेरी मोहब्बत की सज़ा मिली है। मैं तुम्हें खोने का सोच भी नहीं सकता। तुम्हें मेरी गिरफ्त से बाहर जाने दूँ, ये मुमकिन ही नहीं।”
Shree की आँखें भर आईं। उसकी साँसें तेजी से आ-जा रही थीं। उसका दिल धड़क रहा था—कहीं डर से, कहीं उस अजीब-सी खिंचाव से, जो उसने खुद महसूस नहीं किया था।
“Dhruv…” उसकी आवाज़ हिचकी जैसी टूटी हुई थी, “कभी तुम्हें ख्याल आया कि अगर तुम्हारा ये प्यार मुझे तोड़ दे तो?”
Dhruv ने उसकी आँखों में गहराई से देखा। उसकी नज़रें इतनी तीव्र थीं कि ऐसा लग रहा था कि वह Shree की रूह तक उतरना चाहता है।
“तोड़ दूँगा… तो फिर जोड़ भी लूँगा। लेकिन तुम्हें छोड़ूँगा नहीं।”
उसके शब्द ठंडी हवा की तरह नहीं, बल्कि जलती हुई आग की तरह Shree के दिल पर उतरे।
Shree खड़ी हुई और दरवाज़े की ओर बढ़ी, पर Dhruv ने उसकी कलाई पकड़ ली। उसकी पकड़ लोहे की जंजीर जैसी थी—इतनी मज़बूत कि Shree का पूरा शरीर सिहर उठा।
“कहाँ जा रही हो?”
Shree की आवाज़ काँप रही थी, “साँस लेने… इस कमरे से बाहर… तुमसे दूर।”
Dhruv की मुस्कान किसी भूतिया ख्वाब जैसी थी—ख़तरनाक, लेकिन आकर्षक।
“साँसें? तुम्हें साँसें भी मेरी इजाज़त से लेनी होंगी, Shree। याद है मैंने कहा था न? तुम्हारी हर धड़कन सिर्फ़ मेरी है।”
वह Shree को अपनी बाँहों में खींच लिया। उसकी ठोड़ी अब उसके कंधे पर थी, और उसकी साँसें उसकी गर्दन को छू रही थीं। Shree ने ज़ोर लगाया छूटने की कोशिश की, लेकिन Dhruv का आलिंगन लोहे की जंजीर जैसा अटूट था।
“लड़ लो जितना चाहो…” उसने कान में फुसफुसाया। “लेकिन हर बार तुम मेरे ही पास आओगी। तुम्हारी ये जंग… तुम्हारी हार में ही खत्म होगी।”
Shree की आँखों से आँसू बहते रहे। उसने फुसफुसाकर कहा—“तुम मुझे कैद करके जीत नहीं सकते।”
Dhruv ने उसकी गर्दन पर धीरे से होंठ रख दिए। उस स्पर्श से Shree का शरीर काँप उठा।
“नहीं… मैं जीतूँगा नहीं, Shree। मैं पहले ही जीत चुका हूँ। क्योंकि चाहे तुम मुझे नफरत से देखो या आँसुओं से… तुम्हारी हर सांस, हर लम्हा, मेरे नाम हो चुका है।”
कमरा खामोशी में डूब गया। सिर्फ़ उनकी धड़कनों की आवाज़ और चुप्पी में बसी तनावपूर्ण गूँज रह गई।
बाहर सुबह होने को थी, लेकिन Shree की रातें Dhruv के पागलपन में उलझ चुकी थीं। चाहकर भी वह इस कैद से निकल नहीं पा रही थी—और धीरे-धीरे, अनजाने ही सही, उसका दिल इस आग और जंजीरों की धड़कनों को पहचानने लगा।
To be continued…
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📖 Chapter 14 – यादों की शुरुआत
जयश्री ने खिड़की से बाहर झाँकते हुए गहरी साँस ली। मुंबई की ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी। यह वही शहर था जहाँ उसकी ज़िंदगी ने करवट बदली थी।
आज भी जब वह अपनी डायरी खोलती है, तो सबसे पहले जिस याद पर कलम ठहर जाती है, वो है—उसकी पहली मुलाक़ात इस शहर से… और ध्रुव राठी से।
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flashback
कुछ हफ्ते पहले
मुंबई – दोपहर का वक़्त / रेलवे स्टेशन
मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस हमेशा की तरह भीड़ से भरा हुआ था। गाड़ियों की सीटी, प्लेटफ़ॉर्म पर भागते हुए लोग, और हवा में घुली समुद्र की नमी—हर चीज़ उस शहर की रफ्तार बयां कर रही थी।
उस भीड़ में उतरती हुई एक लड़की बाकियों से अलग लग रही थी—सफ़ेद कुर्ते के ऊपर हल्की नीली दुपट्टा ओढ़े, आँखों में अजनबी शहर की दहशत और चेहरे पर मासूमियत की चमक।
वही थी—जयश्री रॉय। दिल्ली से आई, अपने सपनों को साथ लेकर।
उस दिन उसे अंदाज़ा भी नहीं था कि ये शहर सिर्फ़ उसके सपनों की मंज़िल नहीं बनेगा, बल्कि उसके दिल की सबसे बड़ी उलझन भी यहीं से शुरू होगी।
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हॉस्टल – शाम
ग्रीन पार्क गर्ल्स हॉस्टल का छोटा-सा कमरा, और पहली बार मिली उसकी roommate—साक्षी शर्मा।
साक्षी की चंचल मुस्कान और दोस्ताना अंदाज़ ने जयश्री के अकेलेपन को आधा कर दिया था।
वही बोली थी—
“कल Fresher’s Party है, रूमी। चलना ज़रूर। हो सकता है ज़िंदगी का सबसे यादगार दिन हो।”
कौन जानता था, साक्षी की वो बात सच साबित होगी।
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कॉलेज कैंपस – Fresher’s Party
संगीत, हँसी-ठिठोली और रोशनी से भरा हॉल।
और फिर… एक शख़्स की एंट्री ने सबकी साँसें थाम दी थीं।
ध्रुव राठी।
मुंबई का नामी बिज़नेसमैन। ऊँचा कद, काले सूट में सधी चाल और आँखों में समंदर-सा गहरा रहस्य।
उसकी आवाज़ आज भी जयश्री के कानों में गूंजती है—
“Life यहाँ से शुरू होती है… और असली खेल तब, जब आप अपने सपनों को सच करने के लिए लड़ना सीखते हैं।”
लेकिन उस दिन ध्रुव का असली खेल उसकी निगाहों में छुपा था।
भीड़ में सैकड़ों चेहरे थे, पर उसकी आँखें बार-बार ठहर रही थीं सिर्फ़ एक लड़की पर—जयश्री।
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पहली नज़र
वो कुछ सेकंड का सामना आज भी जयश्री को याद है।
ध्रुव की नज़रें उसकी आँखों में ऐसे अटक गई थीं जैसे बरसों का इंतज़ार वहीं थम गया हो।
पार्टी खत्म होने पर जब भीड़ बाहर निकली, तो ध्रुव अचानक उसके सामने खड़ा था।
उसकी गहरी, धीमी आवाज़—
“पहली बार हो इस शहर में?”
उस दिन की काँपती हुई अपनी आवाज़ आज भी जयश्री को हँसा भी देती है और रुला भी देती है—
“जी… लेकिन आप?”
ध्रुव ने मुस्कुराकर कहा था—
“मतलब है… क्योंकि अब से तुम जहाँ भी जाओगी, मैं जानना चाहूँगा।”
flashback end
जयश्री ने अपनी डायरी बंद कर दी।
वो मुस्कुराई, लेकिन उस मुस्कान में हल्की कसक छुपी थी।
उसकी कहानी यहीं से शुरू हुई थी—
एक नज़र, एक मुलाक़ात, और फिर एक ऐसा सफ़र…
जिसने उसकी ज़िंदगी की हर दिशा बदल दी।
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✨ To be continued…
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📖 Chapter 15 – रिश्तों की जड़ें
जयश्री ने डायरी बंद करके उसे तकिये के पास रख दिया। खिड़की से आती ठंडी हवा अब भी उसके बालों से खेल रही थी। पर उसके दिल में अजीब-सी हलचल थी।
ध्रुव के साथ बिताए पलों की यादें जितनी खूबसूरत थीं, उतनी ही डरावनी भी—क्योंकि कहीं न कहीं उसके मन के कोने में ये बात गहराई से बैठी थी कि “रिश्ते सिर्फ़ दो लोगों के बीच नहीं होते, उनके परिवारों के बीच भी होते हैं।”
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🌆 दिल्ली – रॉय हाउस ( Introduction)
दिल्ली का पुराना बंगला… रॉय हाउस।
सर्दी की शाम, आँगन में रखे बड़े बरगद के पेड़ के नीचे बैठा एक शख़्स अख़बार पढ़ रहा था।
सफ़ेद कुर्ता-पायजामा, माथे पर हल्की झुर्रियाँ लेकिन आँखों में सख़्ती और प्यार का अजीब-सा मेल।
वो थे—राजेश्वर रॉय, जयश्री के पिता।
दिल्ली में एक छोटे मगर नामी वकील, जिनकी ईमानदारी उनकी पहचान थी। उनके लिए इज़्ज़त और संस्कार किसी भी रिश्ते से ऊपर थे।
अंदर रसोई में, पूजा की थाली सजाती हुईं संध्या रॉय—जयश्री की माँ।
नर्म स्वभाव, लेकिन बेटी के मामले में दिल की बेहद कमजोर।
अक्सर कहतीं—
“श्री मेरी जान है, उसका हर सपना मेरा सपना है।”
और घर के कोने-कोने में गूँजती एक मासूम हँसी—जयश्री की छोटी बहन अनुष्का।
सिर्फ़ पंद्रह साल की, शरारतों से भरी हुई।
उसे अक्सर बहन से शिकायत रहती—
“दीदी, तुम हमेशा पढ़ाई और सपनों में रहती हो, कभी मेरी तरफ़ भी देख लिया करो।”
पर अनुष्का ही थी, जो जब भी घर का माहौल भारी होता, अपनी मासूमियत से सबके चेहरों पर मुस्कान ला देती।
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🏙️ मुंबई – राठी मैंशन (Introduction)
वहीं दूसरी ओर, मुंबई में राठी मैंशन की दुनिया बिल्कुल अलग थी।
समंदर के किनारे बनी उस हवेली की ऊँची दीवारें और काँच की बड़ी खिड़कियाँ, बाहर से देखने पर तो शाही लगती थीं, लेकिन भीतर गहरी खामोशी थी।
उस हवेली में अकेली रहती थीं—सावित्री राठी ध्रुव की माँ।
साड़ी में लिपटी हुईं, चेहरे पर एक राजसी ठहराव।
वो हर वक्त यही चाहती थीं कि उनका बेटा अपने नाम और खानदान की शान बनाए रखे।
लेकिन उनके दिल का सबसे बड़ा डर था—
“ध्रुव कहीं अपने दिल के फ़ैसले को दिमाग़ से ऊपर न रख दे।”
ध्रुव का एक छोटा भाई भी था—विक्रम राठी ।
उम्र में ध्रुव से पाँच साल छोटा, लेकिन स्वभाव में बिल्कुल उल्टा।
बेफ़िक्र, दोस्तों के साथ पार्टी और शौक़ की ज़िंदगी में डूबा हुआ।
अक्सर कहता—
“भाई, तुम business संभालो… मैं ज़िंदगी का मज़ा लूँगा।”
सावित्री कभी-कभी परेशान हो जातीं—
“एक बेटा हद से ज़्यादा जिम्मेदार… और दूसरा बिल्कुल गैर-जिम्मेदार।”
Flashback and
ध्रुव का मैंशन
जयश्री कमरे में अकेली बैठी थी। खिड़की से बाहर का नज़ारा बदल चुका था, पर उसके दिल की तस्वीर अब भी अतीत में उलझी थी।
वो सोच रही थी—
“दिल्ली में माँ-पापा ने मुझे हमेशा सपने देखने की आज़ादी दी… लेकिन क्या वो मेरे इस रिश्ते को समझ पाएँगे? और ध्रुव की माँ? उनकी निगाहों में तो बस खानदान और नाम का बोझ है। कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि हमारे बीच का रिश्ता इन दोनों दुनियाओं के बीच फँसकर रह जाए?”
अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई।
ध्रुव था।
उसकी गहरी आँखों में वही ठहराव, वही सख़्ती और वही चाहत झलक रही थी।
“फिर से सोच रही हो न?”—ध्रुव ने धीमे स्वर में कहा।
जयश्री ने नज़रें झुका लीं।
“ध्रुव… मैं बस ये सोच रही हूँ कि हमारी दुनिया कितनी अलग है। मेरी फैमिली… तुम्हारी फैमिली… सब कैसे स्वीकार करेंगे?”
ध्रुव उसके पास आकर ठहर गया।
“श्री… दुनिया चाहे कितनी भी अलग क्यों न हो, अगर हम साथ खड़े हैं तो कोई हमें अलग नहीं कर सकता।”
उसके शब्दों में एक दृढ़ता थी, लेकिन जयश्री जानती थी—यह सफ़र आसान नहीं होगा।
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✨ To be continued.... ... ... ... ... ... ...
like and comment .... ...... ...... ..... .. ... ...... ...... ...... ....... .... ♡ ........
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📖 Chapter 16 – आग और चाहत
कमरा सन्नाटा लिए खड़ा था। हल्की रोशनी खिड़की से अंदर आ
रही थी, और मुंबई की ठंडी हवा धीरे-धीरे जयश्री के बालों को
झकझोर रही थी। वह पलंग पर बैठी थी, आँखें जमीन पर टिकाए, और मन में एक अजीब हलचल महसूस कर रही थी।
ध्रुव की आवाज़ अभी भी उसके कानों में गूँज रही थी, उसका वादा, उसकी प्यास, और उसकी धड़कनें।
ध्रुव धीरे-धीरे उसके पास आया। उसके कदमों की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी, और जयश्री का दिल तेजी से धड़क रहा था।
“श्री…” उसने फुसफुसाया, “दुनिया चाहे कुछ भी कहे, अगर मैं तुम्हारे साथ हूँ, तो कोई भी दीवार हमें अलग नहीं कर सकती।”
वो उसके पास खड़ा हुआ, इतनी नज़दीकी कि जयश्री की साँसें थम सी गईं। ध्रुव का हाथ उसके गालों को छूते हुए धीरे-धीरे उसके बालों में फिसल गया।
“तुम हमेशा इतनी नज़ाकत से क्यों भागती हो?” उसने अपनी गहरी, कमज़ोर आवाज़ में कहा।
जयश्री का चेहरा लाल हो गया।
“मैं… मैं बस… डरती हूँ।” उसकी आवाज़ लगभग कानों तक फुसफुसाई सी थी।
“डर?” ध्रुव ने उसके होंठों के पास अपना चेहरा झुका दिया। “डर क्यों, श्री? जब मैं तुम्हारे पास हूँ, तब कोई भी तुम्हें चोट नहीं पहुँचा सकता।”
उसने धीरे से उसके कमर को पकड़ा। उनका शरीर एक दूसरे की ओर खिंच रहा था।
ध्रुव ने उसकी कमर को और करीब खींचा, और उसकी सांसों की गर्मी सीधे उसके चेहरे को छू रही थी।
जयश्री ने अपनी आँखें बंद कर ली। वह जानती थी कि ये moment उनके लिए कितना खतरनाक और आकर्षक था।
“ध्रुव…” उसने फुसफुसाया, “हम… हमारी families…”
“छोड़ो,” ध्रुव ने धीरे-धीरे कहा। “अब सिर्फ हम हैं। सिर्फ मैं और तुम।”
उसने उसकी कलाई पकड़कर अपने होठों से हल्का सा छू लिया।
जयश्री का दिल जैसे छलांग मारने लगा। उसके अंदर की चाहत, जो उसने खुद से छुपाई थी, अब उबल रही थी।
धीरे-धीरे, ध्रुव ने उसे पलंग पर बैठने के लिए कहकर अपने ऊपर खिंच लिया। उनके शरीर अब इतने करीब थे कि हर एक स्पर्श, हर एक सांस उनके बीच की दूरी को मिटा रही थी।
ध्रुव का हाथ उसकी पीठ पर फिसल गया, और उसके होंठ उसके कान के पास हल्का सा छू गए।
जयश्री ने खुद को रोकने की कोशिश की, लेकिन ध्रुव की तीव्रता और उसका आत्मविश्वास उसे पूरी तरह से बेबस कर रहा था।
“श्री… अब मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा। ये सिर्फ़ हमारी चाहत है, हमारी आग… और मैं इसे कभी कम नहीं होने दूँगा।”
उसके शब्दों ने जयश्री के दिल की हर धड़कन को तेज कर दिया।
धीरे-धीरे, उनके होंठ मिले। एक लंबी, गहरी और अनकही चाहत से भरी चुंबन।
जयश्री का शरीर झकझोर उठा। उसे महसूस हुआ कि ध्रुव सिर्फ़ उसका नहीं, उसके अंदर की हर भावना का भी हिस्सा बन चुका है।
कुछ देर बाद, जब उनकी सांसें थमीं, ध्रुव ने उसकी आँखों में देखा।
“अब तुम college जाने की permission चाहती हो, है न?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
जयश्री ने सिर हिलाया।
ध्रुव ने पास आते हुए उसकी आँखों में intensity भर दी।
“ठीक है… लेकिन मेरी शर्त है, कि तुम मुझे हर पल अपनी दुनिया की हर छोटी बात बताओगी। मैं तुम्हारे बिना एक सेकंड भी नहीं रह सकता।”
जयश्री मुस्कुराई। उसकी नज़रें धीरे-धीरे विश्वास और चाहत से भरी हुई थीं।
“ठीक है…” उसने फुसफुसाया।
ध्रुव ने उसे पास खींचा और धीरे से उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा, “तुम हमेशा मेरी रहोगी, श्री। और मैं हमेशा तुम्हारा।”
कमरे में सन्नाटा था, पर उनकी धड़कनें और पास-पास होने की गर्मी ने हर कोने को जलती हुई आग से भर दिया था।
यही था उनका पहला कदम, उनकी आग और चाहत का, जो उन्हें एक दूसरे के और करीब लाएगा, और जिसमे कोई भी रोड़ा उनके बीच आने वाला नहीं था।
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✨ To be continued…
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📖 Chapter 17 – शर्तें, और कॉलेज
सुबह की सुनहरी किरणें कमरे के पर्दों से छनकर अंदर आ रही थीं।
हल्की हवा के झोंके जयश्री के बालों से खेल रहे थे। वो आईने के सामने खड़ी थी — हल्के नीले सूट में, चेहरा सादगी से दमक रहा था। कॉलेज की नई शुरुआत की उत्सुकता थी, मगर आँखों में कल रात की यादें अब भी झिलमिला रहीं थीं।
दरवाज़े के पास ध्रुव खड़ा था — हाथ में कॉफी का मग, पर निगाहें सिर्फ़ उस पर टिकी थीं।
“तैयार?” उसकी आवाज़ में नर्मी थी, मगर भीतर छिपा अधिकार साफ़ महसूस हो रहा था।
जयश्री मुस्कुराई, “हाँ… आज orientation day है। थोड़ा nervous हूँ।”
ध्रुव उसके करीब आया, कदम धीमे लेकिन स्थिर।
“तुम जा सकती हो,” उसने कहा, “पर कुछ शर्तों के साथ।”
जयश्री ने भौंहें उठाईं, “शर्तें?”
वो मुस्कराया, मगर मुस्कान में एक ठंडी तीव्रता थी।
“पहली — कॉलेज में किसी से ज़्यादा बातें नहीं।
दूसरी — हर ब्रेक में मुझे कॉल करना।
और तीसरी…”
वो झुककर उसके बहुत करीब आया, “तुम्हारी आँखों में सिर्फ़ मेरा नाम रहेगा।”
जयश्री का चेहरा हल्का सख्त हुआ।
“और अगर कोई बस दोस्ती करना चाहे तो?”
ध्रुव की मुस्कान गायब हो गई। उसकी नज़रें गहरी और ठंडी हो उठीं।
“मैं तुम्हारी मुस्कान किसी और के साथ बाँट नहीं सकता, श्री। मेरे लिए ये दोस्ती नहीं, धोखा है।”
उसके शब्दों में प्यार से ज़्यादा स्वामित्व था।
जयश्री ने धीमे से कहा, “ध्रुव… मैं तुम्हारी हूँ, इसमें शक नहीं। लेकिन मेरी भी एक दुनिया है, जिसे मैं जीना चाहती हूँ।”
ध्रुव कुछ पल उसे देखता रहा, फिर गंभीर स्वर में बोला, “ठीक है, जाओ। लेकिन अगर किसी ने तुम्हारे करीब आने की कोशिश की, तो उसे मेरा ग़ुस्सा देखना पड़ेगा।”
जयश्री ने उसकी आँखों में देखा — उनमें प्यार भी था, डर भी। बिना कुछ कहे उसने बैग उठाया और निकल गई।
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कॉलेज कैंपस
कॉलेज का वातावरण उत्साह से भरा हुआ था। चारों ओर नए चेहरे, हँसी, और नयापन हवा में तैर रहा था।
जयश्री के दिल में उत्सुकता और हल्की घबराहट दोनों थीं।
“Hey, तुम नई हो न?”
पीछे से किसी ने आवाज़ दी।
वो पलटी — सामने एक चुलबुली लड़की खड़ी थी, घुँघराले बाल, आँखों में चमक और होंठों पर सहज मुस्कान।
“हाँ, मैं जयश्री,” उसने कहा।
“मैं सिया,” लड़की ने हाथ आगे बढ़ाया। “English honors, first year. चलो, साथ चलते हैं। मैं भी नई हूँ।”
जयश्री मुस्कुराई — इस अनजान शहर में किसी अपने जैसी ऊर्जा मिलना सुकूनभरा था। दोनों बातें करती हुई क्लास की ओर चलीं।
लेकिन दूर, कॉलेज गेट के बाहर खड़ी काली कार में ध्रुव का ड्राइवर बैठा था। पीछे सीट पर ध्रुव का फोन रखा था — live location ऑन।
ध्रुव अपने ऑफिस की खिड़की से उसी स्क्रीन पर नज़र टिकाए बैठा था, जैसे उसकी हर सांस जयश्री की हर हलचल के साथ जुड़ी हो।
---
क्लास खत्म होने के बाद सिया और जयश्री कैंटीन की तरफ़ बढ़ीं।
सिया ने कहा, “आज तो seniors पूरे hero बन रहे हैं, हर किसी को impress करने में लगे हैं।”
जयश्री ने हल्की हँसी दी, “हाँ… लेकिन मैं बस अपना कोना चाहती हूँ।”
तभी पीछे से एक आवाज़ आई, “Excuse me, new admission?”
दोनों पलटीं — सामने एक tall, confident लड़का खड़ा था। सलीकेदार शर्ट, सहज मुस्कान, और आँखों में शरारत।
“हाँ,” सिया बोली, “मैं सिया, और ये जयश्री।”
“आरव,” उसने हाथ बढ़ाया। “Second year. Welcome to St. Xavier’s jungle!”
जयश्री ने झिझकते हुए हाथ मिलाया ही था कि उसका मोबाइल वाइब्रेट हुआ — ध्रुव calling…
उसका दिल एक पल को थम गया।
“कहाँ हो?” ध्रुव की आवाज़ में ठंडापन था।
“कैंटीन में… सिया के साथ,” जयश्री ने फुसफुसाया।
“और वो लड़का?”
जयश्री की साँसें थम गईं। “तुम… देख रहे हो मुझे?”
“बस तुम्हारी सुरक्षा चाहता हूँ,” ध्रुव ने धीमे से कहा, “लेकिन लगता है तुम भूल रही हो कि तुम किसकी हो।”
कॉल कट गया।
जयश्री के चेहरे पर एक पल के लिए सन्नाटा छा गया।
सिया ने पूछा, “सब ठीक है न?”
जयश्री ने जबरन मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ, बस घर से कॉल था।”
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शाम को हॉस्टल लौटते वक्त उसकी मुलाकात फिर साक्षी से हुई — वही लड़की जिससे वो एडमिशन वाले दिन टकराई थी।
“अरे, मिस जयश्री रॉय !” साक्षी ने हँसते हुए कहा। “पहला दिन कैसा रहा?”
जयश्री मुस्कुराई, “थकाने वाला, पर अच्छा। तुम्हारा?”
“मैंने तो library तक घूम ली,” साक्षी ने कहा। “वैसे तुम तो काफी reserved लगती हो… सब ठीक है न?”
जयश्री ने नज़रें झुका लीं, “हाँ… बस थोड़ा adjustment बाकी है।”
साक्षी ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “अगर कभी बात करनी हो, तो मैं यहीं रूम नंबर 108 में हूँ। और हाँ — कॉलेज में सबके साथ थोड़ा घुलो, वरना ये जगह तुम्हें अकेला कर देगी।”
जयश्री ने हल्की मुस्कान दी, मगर मन में कहीं ध्रुव का चेहरा घूम रहा था।
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रात में हॉस्टल रूम का दरवाज़ा खटखटाया गया।
सामने courier boy खड़ा था — हाथ में छोटा-सा बॉक्स।
अंदर एक note था —
> “तुम्हें फूलों से प्यार है न? तो ये गुलाब याद दिलाए कि तुम्हारा हर दिन सिर्फ़ मेरा है — ध्रुव।”
बॉक्स में एक लाल गुलाब और सुनहरे रंग का ब्रेसलेट था — जिसमें एक छोटा-सा लॉक था।
नीचे छोटे अक्षरों में लिखा था —
> “इसमें GPS है… ताकि मैं हमेशा तुम्हारे पास रह सकूँ।”
उसकी आँखें कुछ पल के लिए नम हो गईं।
क्या ये प्यार था, या एक सुनहरी कैद?
वो समझ नहीं पा रही थी।
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रात गहराने लगी थी।
जयश्री खिड़की के पास बैठकर डायरी लिख रही थी —
> “ध्रुव मुझसे बहुत प्यार करता है… लेकिन कभी-कभी उसका प्यार साँसों पर पहरा बन जाता है।
मैं उसे खोना नहीं चाहती, पर खुद को भी नहीं।”
चाँदनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी।
वो सोच रही थी — क्या हर प्यार में एक हिस्सा ऐसा होता है जो डर भी देता है?
दूसरी ओर, ध्रुव अपने पेंटहाउस की बालकनी में खड़ा था।
फोन स्क्रीन पर जयश्री की live location अब भी जल रही थी।
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान उभरी।
> “अब कोई नज़र तुमसे नहीं हटेगी, श्री… न मेरी, न किसी और की।”
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📖 Chapter 18 – “निगाहों का पहरा”
सुबह की हवा में हल्की-सी नमी थी। हॉस्टल के बगीचे में खिले फूलों की खुशबू फैल रही थी, लेकिन आज जयश्री को सब कुछ कुछ अलग-सा महसूस हो रहा था।
रात की डायरी की आखिरी पंक्ति अब भी उसके मन में गूंज रही थी —
“मैं उसे खोना नहीं चाहती, पर खुद को भी नहीं।”
उसने अपनी कलाई की ओर देखा। सुनहरे ब्रेसलेट की चमक में अब उसे किसी अनदेखी बेड़ी की झिलमिलाहट महसूस हुई।
वो पल भर को झिझकी।
क्या इसे पहनना सही था?
पर तभी उसके मन में ध्रुव की आवाज़ गूंज उठी —
“इसे कभी मत उतारना, ये तुम्हारी सुरक्षा है।”
उसने गहरी सांस ली, और ब्रेसलेट को फिर से अपनी कलाई पर कस लिया।
शायद ये प्यार का प्रतीक था… या एक अदृश्य पहरा।
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कॉलेज कैंपस आज और भी ज़िंदा लग रहा था। चारों ओर नई मुस्कानें, हल्की हँसी और बातचीतों का शोर — सब कुछ हवा में घुला हुआ था।
सिया ने दूर से जयश्री को देखा और शरारत से पुकारा,
“अरे मिस रिज़र्व! आज तो चेहरे पर मुस्कान आ ही गई!”
जयश्री हँसी, “तुम्हें देखकर किसी का भी मूड अच्छा हो जाएगा।”
“कॉफी और gossip का असर है!” सिया ने आँख मारी। “वैसे, याद है न, कल आरव ने तुम्हें notes देने की बात कही थी?”
जयश्री ने थोड़ा संकोच से कहा, “हाँ… लेकिन मुझे नहीं लगता, मुझे ज़रूरत—”
“बस करो!” सिया ने हँसते हुए टोका। “मदद लेना कोई कमजोरी नहीं होती, जयश्री।”
उसी पल, सामने से आरव आता दिखाई दिया — नीली जीन्स, सफेद शर्ट, और चेहरे पर सहज आत्मविश्वास।
वो मुस्कराया, “जयश्री! तुम्हारे लिए कुछ notes लाया हूँ, पहले lecture में काम आएंगे।”
जयश्री ने हल्की मुस्कान के साथ धन्यवाद कहा।
लेकिन जैसे ही उसने नोट्स थामे, उसकी घड़ी की स्क्रीन पर एक नीली रौशनी टिमटिमाई —
📍 Location Active.
उसका दिल एक पल को थम गया।
उसने धीमे से चारों ओर नज़र दौड़ाई —
जैसे हवा में कोई अनदेखी नज़र उसे छू गई हो।
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दूसरी तरफ़, शहर के एक ऊँचे बिल्डिंग की कार में, ध्रुव बैठा था।
लैपटॉप की स्क्रीन पर वही दृश्य चल रहा था —
जयश्री और आरव का मिलना, उसका मुस्कुराना, और वो “thank you” कहना।
ध्रुव की उंगलियाँ steering पर कस गईं।
आरव की सहज मुस्कान और जयश्री की नर्मी, दोनों उसे चुभने लगे थे।
वो खुद से बुदबुदाया —
> “मैंने कहा था न, श्री… तुम्हारी नज़रों में सिर्फ़ मेरा नाम रहेगा।”
उसने फोन उठाया।
“तुमने lunch किया?”
दूसरी तरफ़ हल्की सी काँपती आवाज़ आई, “अभी नहीं… क्लास में हूँ।”
“क्लास के बाद?”
“सिया के साथ lunch plan है…”
“आरव भी होगा?”
वो सवाल नहीं, एक आदेश जैसा था।
जयश्री कुछ पल चुप रही, फिर शांत स्वर में बोली,
“ध्रुव, वो सिर्फ़ क्लासमेट है।”
ध्रुव का स्वर ठंडा था —
> “हर betrayal यही कहकर शुरू होता है।”
कॉल कट गया।
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लंच टाइम में कैंटीन में भीड़ थी, पर जयश्री को हर नज़र, हर हँसी जैसे अपने ऊपर महसूस हो रही थी।
सिया और आरव उसके साथ बैठे थे, मगर उसका मन कहीं और था।
वो जल्दी से उठी, “मुझे कुछ काम याद आ गया,” कहकर बाहर चली गई।
कॉलेज के बगीचे में जाकर वो बेंच पर बैठी रही।
हवा में फूलों की खुशबू थी, लेकिन भीतर बेचैनी गहरी थी।
उसने अपनी कलाई को देखा — ब्रेसलेट पर वही नीली रोशनी फिर टिमटिमाई।
उसने उसे उतारने की कोशिश की… पर lock हिला भी नहीं।
धीरे से फुसफुसाई,
> “ध्रुव… तुम मुझे प्यार करते हो, या control?”
पीछे से किसी ने पूछा, “सब ठीक है?”
वो पलटी — आरव खड़ा था।
वो जल्दी से हाथ पीछे करती हुई बोली, “हाँ, बस थोड़ा सिर भारी लग रहा है।”
आरव मुस्कुराया, “तुम्हारी आँखों में बेचैनी दिखती है, जैसे कुछ कहना चाहती हो पर कह नहीं पा रही।”
जयश्री ने नज़रें झुका लीं, “तुम बहुत observant हो।”
आरव ने शांत स्वर में कहा, “और तुम बहुत छिपी हुई।”
वो कुछ क्षण का संवाद था, लेकिन किसी स्क्रीन पर दर्ज हो चुका था।
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रात —
ध्रुव के पेंटहाउस की दीवारों पर नीली स्क्रीन की रोशनी फैल रही थी।
वो उसी footage को बार-बार देख रहा था।
आरव की मुस्कान, जयश्री की नर्मी, और वह क्षण जब उसने notebook लौटाई —
हर फ्रेम उसके भीतर आग बनकर जल रहा था।
उसने फोन उठाया,
“विक्रम, कल से St. Xavier’s की security मेरे contact में रहेगी।
मुझे हर entry, हर face चाहिए जो जयश्री के आसपास आता है।”
“जी, सर।”
फोन कट गया।
ध्रुव balcony पर आ गया। नीचे फैला शहर जगमगा रहा था, लेकिन उसकी आँखों में बस एक ही तस्वीर थी —
जयश्री की।
> “वो मेरी है… और मेरी ही रहेगी। चाहे दुनिया रुक जाए।”
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उधर हॉस्टल में, जयश्री अपनी डायरी खोले बैठी थी।
उसके शब्द धीमे-धीमे पन्नों पर उतर रहे थे —
> “हर इंसान को किसी की निगाहों में रहना अच्छा लगता है,
लेकिन जब निगाहें दीवार बन जाएँ, तो साँसें कैद हो जाती हैं।”
उसने पन्ना बंद किया।
खिड़की के बाहर झाँका — चाँद बादलों में छिपता जा रहा था।
उसे लगा, जैसे उसका अपना आसमान भी धीरे-धीरे धुंधला पड़ रहा है।
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✨ To be continued...
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