कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती है जहाँ दिल की ख्वाहिशें और हालात की मजबूरियाँ आमने-सामने खड़ी हो जाती हैं। रिया और आरव की शादी भी ऐसी ही मजबूरी से शुरू हुई थी—जहाँ एक तरफ़ प्यार की तलाश थी, तो दूसरी तरफ़ बिज़नेस डील की ठंडी शर्तें।... कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती है जहाँ दिल की ख्वाहिशें और हालात की मजबूरियाँ आमने-सामने खड़ी हो जाती हैं। रिया और आरव की शादी भी ऐसी ही मजबूरी से शुरू हुई थी—जहाँ एक तरफ़ प्यार की तलाश थी, तो दूसरी तरफ़ बिज़नेस डील की ठंडी शर्तें। लेकिन क्या हर रिश्ता कॉन्ट्रैक्ट पर चलता है? या फिर किसी रिश्ते की गहराई कागज़ पर नहीं, दिल पर लिखी जाती है? पढ़िए सीइओ की प्यार वाली कहानी "🌹 अनवांटेड सीईओ ब्राइड 🌹" क्या होगा इनकी कहानी में ? क्या सीइओ उसे एक्सेप्ट करेगा या फिर वह रह जाएगी अनवांटेड ?????
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मुंबई की शाम हमेशा भीड़भरी और शोर-शराबे से भरी रहती थी, लेकिन उस शाम रिया का दिल बिल्कुल शांत और खाली था।
“रिया बेटा, हमें ये शादी करनी ही होगी…”
पिता की आवाज़ में वो बेबसी थी जो रिया ने पहले कभी महसूस नहीं की थी।
उसके पापा की कंपनी, वर्मा ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़, दिवालियेपन की कगार पर खड़ी थी।
दूसरी तरफ़ था आरव मल्होत्रा—शहर का सबसे बड़ा बिज़नेस टायकून, जिसका नाम सुनते ही लोग सहम जाते थे।
वो ठंडा, कठोर और “बिज़नेस मशीन” कहलाता था।
रिया ने जब पहली बार उसके बारे में सुना तो उसके मन में डर बैठ गया।
“पापा, मैं किसी ऐसे इंसान से शादी कैसे कर सकती हूँ, जिसे मैं जानती तक नहीं?”
उसने रोते हुए कहा।
पिता की आँखें भर आईं—
“बेटा… ये सिर्फ शादी नहीं है, ये हमारे अस्तित्व की आख़िरी उम्मीद है। आरव ने कहा है अगर तुम शादी के लिए राज़ी हो जाओ, तो वो हमारी कंपनी को बचा लेगा।”
रिया का दिल टूट चुका था।
उसके सारे सपने, उसके ख्वाब, सब कुछ जैसे राख में बदल गए।
शादी का दिन
भव्य हॉल, चमकते झूमर, मीडिया की भीड़ और करोड़ों की डील जैसा माहौल।
हर कोई इस शादी को “बिज़नेस अलायंस” कह रहा था, लेकिन रिया के लिए ये उसके सपनों की मौत का दिन था।
दूल्हे की तरह नहीं, आरव वहाँ खड़ा एक सीईओ की तरह लग रहा था।
काले शेरवानी में, ठंडी आँखों के साथ, जैसे उसे इस शादी से कोई फर्क ही नहीं पड़ता।
फेरे शुरू हुए।
हर मंत्र के साथ रिया को लग रहा था कि उसके दिल पर एक और बोझ बढ़ रहा है।
फेरे खत्म होते ही आरव उसके कान में झुका और बेहद ठंडी आवाज़ में बोला—
“याद रखना, मिसेज़ मल्होत्रा… ये शादी सिर्फ़ एक डील है। तुम्हें मुझसे किसी प्यार या अपनापन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।”
रिया की आँखों में आँसू छलक आए।
लेकिन उसने सिर झुका लिया—
क्योंकि उसके पास कोई और रास्ता ही नहीं था।
शादी के बाद का पहला दिन हर लड़की के लिए खास होता है,
लेकिन रिया की सुबह अजनबीपन और खालीपन के बीच हुई।
वो जब नींद से जागी, तो उसके बगल में कोई नहीं था।
आरव रात को ही ऑफिस चला गया था, और नौकरानी ने आकर सिर्फ़ इतना कहा —
“मैडम, सर ने नाश्ता डाइनिंग टेबल पर लगाने को कहा है… लेकिन वो शायद नहीं आएँगे।”
रिया ने एक लंबी साँस ली।
जिस रिश्ते को वो दिल से निभाना चाहती थी, उस रिश्ते में शुरुआत से ही दरारें थीं।
कॉफ़ी टेबल पर पहली मुलाक़ात
दोपहर के समय आरव लौटा।
वो अपनी टाई ढीली करते हुए सोफ़े पर बैठ गया और लापरवाही से बोला —
“मुझे कॉफ़ी चाहिए।”
रिया धीरे से बोली —
“मैं बना देती हूँ…”
कुछ ही देर बाद जब उसने कप उसके सामने रखा, तो आरव ने एक नज़र उठाकर उसे देखा।
उस नज़र में अपनापन नहीं, बल्कि ठंडापन था।
“तुम्हें मेरी इन आदतों की आदत डालनी होगी, मिसेज़ मल्होत्रा।”
उसकी आवाज़ में ऐसा लग रहा था जैसे वह पत्नी से नहीं, किसी कर्मचारी से बात कर रहा हो।
रिया ने हिम्मत जुटाकर पूछा —
“क्या हमारे बीच… कभी सामान्य रिश्ता नहीं हो सकता?”
आरव हँसा नहीं, गुस्सा नहीं हुआ, बस एकदम सपाट बोला —
“मैं शादी में यकीन नहीं रखता। मेरे लिए ये बस एक कॉन्ट्रैक्ट है। तुम्हें सिर्फ नाम के लिए मेरी पत्नी बनना है, और मुझे तुम्हारे पिता की कंपनी संभालनी थी। हम दोनों अपनी-अपनी वजहों से इस समझौते में बँधे हैं। बस।”
रिया की आँखों में आँसू भर आए, लेकिन उसने चुपचाप सिर झुका लिया।
दिन गुज़रते गए।
रिया पूरे घर में अकेली घूमती रहती, किताबों से दिल बहलाती, नौकरों से बात करती।
लेकिन असली साथी की कमी उसे हर पल सालती थी।
वो कभी-कभी छत पर जाकर तारों को देखती और सोचती —
“क्या ये ज़िंदगी मुझे इसी अकेलेपन में जीनी है?”
आरव देर रात तक काम करता।
घर आता भी तो उसके चेहरे पर थकान और चिड़चिड़ापन होता।
उनके बीच बातचीत बस कुछ औपचारिक शब्दों तक सीमित रह गई थी।
एक रात डाइनिंग टेबल पर आरव और रिया आमने-सामने बैठे थे।
रिया ने हिम्मत करके कहा —
“मैंने तुम्हारे लिए कढ़ी-चावल बनाए हैं। सुना था तुम्हें पसंद हैं।”
आरव ने बस एक चम्मच खाया और तुरंत नैपकिन रखते हुए बोला —
“मुझे समय बर्बाद करना पसंद नहीं। अगली बार से शेफ ही बनाएगा। तुम अपनी पढ़ाई या किताबों में ध्यान दो।”
रिया का दिल जैसे टूटकर बिखर गया।
उसने सोचा था शायद उसके हाथों का बना खाना कोई रिश्ता जोड़ देगा, लेकिन वहाँ दीवार और ऊँची हो गई।
उस रात उसने तकिये में मुँह छिपाकर आँसू बहाए।
और तभी उसके दिल में एक वादा जन्मा—
“अगर ये रिश्ता मजबूरी से शुरू हुआ है… तो मैं ही इसे अपनी सच्चाई और प्यार से बदलूँगी।”
बरसात की रात
मुंबई की सड़कों पर मूसलाधार बारिश हो रही थी।
रिया खिड़की के पास खड़ी थी।
उसने कभी बारिश को इतना उदास न देखा था।
आरव फिर से देर से घर आया।
वो हमेशा की तरह भीगा हुआ, मोबाइल पर बिज़नेस डील की बातें करते हुए अंदर आया।
रिया ने धीरे से कहा—
“तुम भीग गए हो… पहले कपड़े बदल लो, मैं अदरक वाली चाय बना देती हूँ।”
आरव ने उसकी तरफ़ देखा तक नहीं।
बस फोन पर बात करता हुआ अपने कमरे में चला गया।
रिया चुपचाप मुस्कराने की कोशिश करती रही, लेकिन उसकी आँखें भर आईं।
अगली सुबह रिया तेज़ बुख़ार में थी।
बारिश में खड़े-खड़े वो ठंड खा गई थी।
जब आरव ने देखा कि वो सोफ़े पर लेटी काँप रही है, तो उसके कदम रुक गए।
दिल में पहली बार चिंता की हल्की-सी लहर उठी।
“रिया…” उसने धीरे से पुकारा।
रिया ने आँधी-सी आवाज़ में कहा—
“मैं ठीक हूँ…”
आरव ने तुरंत डॉक्टर बुलाया, सारी दवाइयाँ लाकर खुद अपने हाथों से उसे दीं।
रात भर वो उसके पास बैठा रहा।
पहली बार उसका चेहरा नरम और आँखें बेचैन थीं।
रिया ने धुंधली नज़रों से देखा—
“तुम्हें परवाह है मेरी?”
आरव चौंक गया।
उसने नज़रें चुराते हुए कहा—
“मतलब… तुम मेरी ज़िम्मेदारी हो। तुम्हें कुछ हो गया तो लोग उँगली मुझ पर उठाएँगे।”
लेकिन उसके दिल ने भी सच छुपाया नहीं—
वो परवाह कर रहा था। बहुत गहरी।
कुछ दिन तक आरव ने रिया का ख्याल रखा।
उसके लिए सूप बनवाया, दवा का टाइम याद रखा, और ऑफिस भी जल्दी आने लगा।
रिया जब मुस्कराकर “थैंक यू” कहती, तो उसके चेहरे पर एक अनजानी शांति उतर आती।
धीरे-धीरे उसे एहसास हुआ कि रिया सिर्फ़ मासूम नहीं, बल्कि बहुत मजबूत भी है।
वो नौकरों से हँसी-मज़ाक करती, घर की हर चीज़ को अपनेपन से सँवारती, और ज़रा-सी बात पर सबका दिल जीत लेती।
एक शाम आरव ने उसे बालकनी में बैठा किताब पढ़ते देखा।
उसने अनायास पूछ लिया—
“तुम इतनी खुश कैसे रहती हो… जबकि मैं तुम्हें कभी खुश नहीं रख पाया?”
रिया ने मुस्कराकर कहा—
“खुशी छोटी-छोटी चीज़ों में ढूँढनी पड़ती है। अगर हम दूसरों से उम्मीद करें, तो कभी खुश नहीं रह सकते।”
आरव चुप हो गया।
उसके दिल में पहली बार रिया की बात गहराई से उतर गई।
अब जब भी वो ऑफिस से लौटता, तो अनजाने में उसकी नज़रें रिया को ढूँढतीं।
रिया की हँसी, उसकी देखभाल, और उसकी मासूमियत—सब उसे बाँधने लगे।
वो मानना नहीं चाहता था, लेकिन सच ये था—
रिया धीरे-धीरे उसके दिल की जमी बर्फ़ पिघला रही थी।
कमेंट्स
उस दिन आरव ऑफिस से जल्दी लौट आया।
रिया छत पर पौधों को पानी दे रही थी।
उसके गीले बाल हवा में उड़ रहे थे, और चेहरे पर मिट्टी की खुशबू के साथ एक मासूम मुस्कान थी।
आरव कुछ देर वहीं खड़ा रहा।
वो पहली बार उसे यूँ खुलकर देख रहा था—बिना किसी नकली सजावट, बिना किसी दिखावे के।
सिर्फ़ रिया… सच्ची और साफ़।
उसने धीमे से कहा—
“तुम्हें ये सब करने में मज़ा आता है?”
रिया ने मुस्कराकर उसकी तरफ़ देखा—
“हाँ। पौधे और इंसान दोनों को सिर्फ़ देखभाल चाहिए… फिर वो खिलने लगते हैं।”
आरव उस पल कुछ बोल न सका, लेकिन उसके दिल में कुछ हल्का-सा हिल गया।
डाइनिंग टेबल पर उस रात का माहौल अलग था।
रिया ने अपनी पुरानी कॉलेज की मज़ेदार घटनाएँ सुनानी शुरू कीं।
कैसे उसने और उसकी दोस्त ने प्रोफ़ेसर की क्लास में मच्छरदानी लगाई थी, और कैसे पूरा क्लासरूम हँसी से गूँज उठा था।
आरव पहले तो बस चुपचाप सुनता रहा,
लेकिन जब रिया ने मिमिक्री करके प्रोफ़ेसर की आवाज़ निकाली, तो उसके होंठों पर अनजाने में मुस्कान आ गई।
रिया ठिठक गई—
“आप… हँसे?”
आरव ने नज़रें झुका लीं।
“शायद।”
रिया की आँखों में चमक आ गई।
“मतलब आप इंसान हैं, रोबोट नहीं।”
और दोनों के बीच पहली बार हल्की-सी हँसी गूँज उठी।
कुछ दिन बाद, किचन में गलती से रिया की कलाई जल गई।
जब आरव ने देखा तो उसका चेहरा सख़्त हो गया।
“रिया! तुम्हें ज़रा-सी भी सावधानी नहीं है क्या?”
उसने तुरंत फर्स्ट एड बॉक्स उठाया और खुद उसके हाथ पर मरहम लगाया।
रिया दर्द से मुँह सिकोड़ रही थी,
और आरव उसे सँभालते हुए बुदबुदाया—
“मैं नहीं चाहता तुम्हें चोट लगे…”
रिया उसकी आँखों में देखती रही।
वहाँ पहली बार चिंता नहीं, बल्कि प्यार की परछाई थी।
उस रात रिया ने डायरी में लिखा—
"शायद आरव उतने ठंडे नहीं, जितना दुनिया कहती है।
उसके दिल के पीछे कहीं गहराई में… एक धड़कन छिपी है।"
और उधर आरव अपने कमरे में अकेले बैठा सोच रहा था—
"क्यों मुझे उसकी मुस्कान इतनी सुकून देती है? क्यों मैं अब उसके आँसुओं से डरने लगा हूँ?"
दोनों के बीच अभी भी दूरी थी, लेकिन उस दूरी के बीच प्यार की पहली कोंपलें फूट चुकी थीं।
आरव की बेचैनी
गेस्ट हाउस वाली रात के बाद आरव के दिल में एक अजीब-सी हलचल थी।
वो ऑफिस में बैठा भी रिया की मुस्कान याद करता,
मीटिंग में होते हुए भी उसके मासूम चेहरे की छवि उसकी आँखों के सामने आ जाती।
कभी-कभी वो खुद से झुंझलाता—
"नहीं, मैं रिश्तों में नहीं पड़ सकता। प्यार… प्यार सिर्फ़ दर्द देता है।"
लेकिन सच ये था कि उसके दिल की दीवारें अब दरक रही थीं।
रिया ने अब आरव की खामोशियों को पढ़ना सीख लिया था।
वो जानती थी कि उसके भीतर बहुत दर्द है, जो वह किसी को बताना नहीं चाहता।
एक शाम जब आरव घर आया, थका और चिड़चिड़ा,
रिया उसके लिए कॉफ़ी लेकर आई और धीरे से बोली—
“कभी-कभी अपने बोझ किसी और के साथ बाँट लेना चाहिए। दिल हल्का हो जाता है।”
आरव ने उसकी तरफ़ देखा,
लेकिन उसकी आँखों में कोई सवाल नहीं था, बस अपनापन था।
उस अपनापन ने उसके सीने में दबे ज्वालामुखी को हिलाकर रख दिया।
कुछ दिन बाद, आरव और रिया एक चैरिटी इवेंट में गए।
वहाँ एक छोटी बच्ची रिया से लिपटकर कहने लगी—
“आप तो मेरी मम्मी जैसी हो…”
रिया ने बच्ची को प्यार से गले लगाया।
उसकी आँखों में मातृत्व की कोमलता देखकर आरव ठिठक गया।
उसके दिल से आवाज़ निकली—
"काश, रिया हमेशा मेरी ज़िंदगी में ऐसे ही रहे।"
उसी रात, जब दोनों बालकनी में खड़े चाँद देख रहे थे,
आरव ने धीमे स्वर में कहा—
“रिया… तुमने मेरी ज़िंदगी बदल दी है।”
रिया ने हैरानी से उसकी ओर देखा।
“क्या मतलब?”
आरव उसकी आँखों में देखते हुए बोला—
“मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि शादी… मुझे सुकून दे सकती है।
लेकिन तुम्हारे साथ रहकर मुझे लगता है जैसे… मैं अधूरा नहीं हूँ।”
रिया की साँसें थम गईं।
उसने धीमे से पूछा—
“तो… क्या ये सिर्फ़ डील वाली शादी नहीं रही?”
आरव ने एक कदम उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा—
“नहीं, रिया… अब ये मेरा सच है।
मुझे तुमसे… प्यार हो गया है।”
रिया की आँखों में आँसू भर आए।
जिस इज़हार का वो महीनों से इंतज़ार कर रही थी, आज उसके सामने सच बनकर खड़ा था।
उसने काँपती आवाज़ में कहा—
“तुम्हें पता भी है ये मेरे लिए कितना मायने रखता है?”
आरव ने उसका हाथ थामकर कहा—
“हाँ, और अब से मैं हर लम्हा तुम्हें वो देना चाहता हूँ… जिसकी तुम हक़दार हो।”
आरव ने उसे पहली बार चूमा। उसके होठों को चूमते हुए वेह उसमें खो गया था। उसने उसे दीवार से सटाते हुए उसके दोनों हाथों को ऊपर की तरफ करते हुए बांधा और उसके होठों को चूमने लगा। यह किस एक लोंग किस में बदल गई।
उसने उसकी आँखों में झाँकते हुए धीमे स्वर में कहा —
“आज मैं तुम्हारे साथ सभी हदें पार कर देना चाहता हूँ।”
यह शब्द मानो वातावरण में घुलते ही एक अनकहा जादू बुन गए। कमरे की खामोशी अब बोझिल नहीं रही, बल्कि एक मधुर संगीत-सा महसूस होने लगी। वह लरज गई, उसकी धड़कनें तेज़ हो उठीं। उसका हाथ उसके हाथ में सिमट गया, और उस स्पर्श से जैसे पूरे शरीर में एक मीठी सिहरन दौड़ गई।
धीरे-धीरे उसने उसे अपनी ओर खींच लिया। उनकी साँसें एक-दूसरे से टकराने लगीं। आँखों की खामोश भाषा ने शब्दों को पीछे छोड़ दिया था। उनके बीच अब केवल चाहत, अपनापन और एक गहरी तड़प बाकी थी।
उस रात समय जैसे ठहर गया था। दीये की हल्की रोशनी और खिड़की से आती चाँदनी दोनों को एक दिव्य आभा में नहला रही थी। वे एक-दूसरे में खोते चले गए—जैसे दो नदियाँ मिलकर सागर का रूप ले लेती हैं। हर पल एक नई अनुभूति, हर स्पर्श एक नई गहराई समेटे हुए था।
उसके होंठों पर मुस्कान थी और आँखों में भीनी नमी। जैसे सदियों की प्रतीक्षा आज पूरी हो रही हो।
वह रात केवल एक मिलन की रात नहीं थी—यह वह क्षण था जब प्रेम ने अपना असली रूप पाया। यह रात उनकी आत्माओं के मिलन की साक्षी बनी।
सुबह जब पहली किरण खिड़की से भीतर आई, तो दोनों एक-दूसरे की बाहों में सिमटे हुए थे। उस शांति और तृप्ति में मानो दुनिया की सारी अधूरी कहानियाँ पूरी हो गई थीं।
उस रात, पहली बार दोनों के बीच सच्चे रिश्ते की नींव रखी गई।
अब ये शादी किसी मजबूरी या सौदे की नहीं, बल्कि दिल की कबूलियत की शादी बन चुकी थी। एसी शादी जिसमें प्यार था, मंजूरी थी और वो सब कुछ था जो एक पति पत्नी के रिश्ते में होना चाहिए। आज शादी के बाद पहली बार उन्होनें एक साथ इतने करीब होते हुए रात गुजारी थी, जिसमें दोनों पूर्णता के साथ एक दूसरे के हो गए थे। रिया खुश थी कि उसकी अनचाही शादी अब चाहत की शादी में बादल चुकी थी।
कमेंट्स
आरव और रिया की ज़िंदगी अब बदल चुकी थी।
जहाँ पहले चुप्पी और ठंडापन था, अब वहाँ हँसी और अपनापन था।
आरव ऑफिस से जल्दी आने लगा, रिया उसके लिए नए-नए व्यंजन बनाने लगी।
रिया ने सोचा—
"अब शायद मेरी ज़िंदगी भी किसी फ़िल्मी कहानी जैसी हो सकती है… जहाँ अंत हमेशा खुशियों से होता है।"
लेकिन तक़दीर ने एक बार फिर करवट ली।
आरव का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी था — करण मेहता, एक चालाक और निर्दयी बिज़नेसमैन।
उसे आरव और रिया की शादी कभी हज़म नहीं हुई थी।
उसने मीडिया में अफ़वाहें फैलानी शुरू कर दीं—
कि रिया ने आरव से शादी सिर्फ़ दौलत और कंपनी बचाने के लिए की है।
यहाँ तक कि उसने नकली सबूत भी तैयार कर दिए, जिनमें दिखाया गया कि रिया गुपचुप करण से मिलती है।
एक शाम करण ने आरव को तस्वीरें भेजीं —
रिया, कॉफ़ी शॉप में करण से मिल रही थी।
(सच यह था कि करण ने खुद बहाने से रिया को बुलाया था, ताकि चाल चल सके।)
आरव ने जब तस्वीरें देखीं, उसका दिल सिहर गया।
उसके भीतर का पुराना डर और अविश्वास फिर जाग उठा।
रिया जब घर लौटी तो उसने देखा कि आरव की आँखों में गुस्सा और ठंडापन है।
“तुम… करण से क्यों मिली?”
उसकी आवाज़ काँप रही थी, जैसे दिल टूटने वाला हो।
रिया हैरान रह गई।
“क्या? मैं… मैं तो बस… उसने कहा था कि किसी चैरिटी प्रोजेक्ट पर बात करनी है…”
लेकिन आरव ने बीच में ही कहा—
“बस! मुझे और बहाने मत दो।
शायद करण सही कह रहा था… ये शादी भी तुम्हारे लिए सिर्फ़ सौदा थी।”
रिया की आँखों में आँसू भर आए।
“आरव… तुम मुझ पर भरोसा नहीं कर सकते? इतने दिन की मेरी सच्चाई, मेरी परवाह… सब झूठ लगती है तुम्हें?”
आरव चुप रहा।
उसका दिल रिया पर विश्वास करना चाहता था, लेकिन दिमाग़ बार-बार धोखे की कहानियाँ सुना रहा था।
उस रात दोनों एक ही छत के नीचे होकर भी हजारों मील दूर हो गए।
रिया ने अपने कमरे में बैठकर आँसुओं में लिखा—
"अगर मेरा प्यार सच्चा है… तो मुझे खुद अपने रिश्ते को बचाना होगा।
मैं करण की चाल को बेनक़ाब करके रहूँगी।"
करण की धमकी
रिया ने करण को फोन मिलाया।
उसकी आवाज़ ठंडी लेकिन दृढ़ थी—
“तुम्हारी ये गंदी चाल मैं यूँ ही नहीं छोड़ूँगी।”
करण हँस पड़ा—
“ओह प्रिय, तुम्हें लगता है कि कोई तुम्हारी बात पर यकीन करेगा?
आरव तो पहले ही तुम्हें शक की नज़र से देख रहा है।
अगर तुमने ज़्यादा शोर मचाया, तो मैं ऐसे सबूत पेश कर दूँगा कि दुनिया भी तुम्हें लालची औरत मान लेगी।”
रिया के सीने में आग जल उठी।
लेकिन उसके चेहरे पर डर नहीं, संकल्प था।
रिया ने चुपचाप करण की चालों का पता लगाना शुरू किया।
उसने पुराने कर्मचारियों से बातें कीं, उसकी कंपनी के अकाउंट्स की कॉपियाँ देखीं।
धीरे-धीरे सच सामने आने लगा—
करण न सिर्फ़ धोखेबाज़ था, बल्कि आरव की कंपनी को बर्बाद करने के लिए अवैध सौदे भी कर रहा था।
रिया ने सारे सबूत एक पेन ड्राइव में इकट्ठा कर लिए।
लेकिन ये काम आसान नहीं था।
करण के लोग हर जगह उसकी निगरानी कर रहे थे।
एक रात जब रिया करण के ऑफिस से निकल रही थी, तो उसके गुंडों ने रास्ता रोका।
“मैडम, बहुत जासूसी हो गई। अब घर बैठिए।”
रिया डर से काँप गई, लेकिन उसने हिम्मत नहीं खोई।
“हटो मेरे रास्ते से!”
गुंडे पास बढ़े ही थे कि अचानक वहाँ गाड़ी आकर रुकी—
आरव की गाड़ी।
वो बाहर निकला, उसकी आँखों में आग थी।
उसने गुंडों को धक्का दिया और रिया को अपनी बाँहों में खींच लिया।
“हिम्मत कैसे हुई मेरी पत्नी को छूने की?”
गुंडे भाग गए।
रिया काँपती हुई बोली—
“आरव… मैंने करण की साज़िश के सबूत जुटाए हैं। वो हमें तोड़ना चाहता था।”
आरव स्तब्ध रह गया।
उसने रिया की आँखों में सच्चाई देखी।
उसकी अपनी नज़रों से शर्म टपक पड़ी—
“रिया… मैं तुम्हारे प्यार पर शक करके… कितना बड़ा पाप कर बैठा।”
रिया की आँखों से आँसू बहे, लेकिन उसने धीरे से कहा—
“प्यार में शक ज़हर होता है, आरव।
अगर हम साथ हैं, तो हमें हर हाल में एक-दूसरे पर विश्वास करना होगा।”
आरव ने उसके हाथ थामकर कहा—
“मुझे माफ़ कर दो, रिया।
अब चाहे जो भी हो, मैं तुम्हें और हमारे रिश्ते को कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।”
अगले दिन आरव और रिया ने मिलकर करण की साज़िश सबके सामने रख दी।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबूत दिखाए गए, और करण को गिरफ्तार कर लिया गया।
मीडिया वही सवाल कर रही थी—
“क्या अब ये रिश्ता सिर्फ़ बिज़नेस डील है या सच्चा प्यार?”
आरव ने सबके सामने रिया का हाथ थाम लिया और कहा—
“ये रिश्ता अब मेरी ज़िंदगी है।”
करण के जेल जाने के बाद, आरव और रिया की ज़िंदगी में जैसे कोई तूफ़ान थम गया हो।
पहली बार, दोनों ने बिना किसी डर या शक के चैन की साँस ली।
सुबह जब धूप खिड़की से कमरे में उतरी, तो रिया ने देखा—
आरव सोते हुए भी उसका हाथ थामे हुए था।
उसके चेहरे पर पहली बार मासूम मुस्कान थी।
रिया ने मन ही मन सोचा—
"काश ये लम्हा कभी ख़त्म न हो।"
इस रिश्ते को सिर्फ़ मजबूरी मानती थीं, अब रिया को सीने से लगाकर बोलीं—
“तुम्हारे जैसे बहादुर और सच्चे दिल की लड़की ही इस घर की बहू बनने लायक थी।”
रिया की आँखों में खुशी के आँसू आ गए।
अब उसे पहली बार लगा कि यह घर सचमुच उसका है।
शाम को आरव ने रिया को शहर की सबसे ऊँची इमारत की छत पर बुलाया।
हवा चल रही थी, आसमान में चाँद खिल रहा था।
आरव धीरे से बोला—
“रिया, जब ये शादी हुई थी, मैं इसे बोझ समझता था।
लेकिन आज… ये शादी मेरी सबसे बड़ी दौलत है।
क्या तुम… मुझे फिर से अपना पति मानकर, अपने दिल से स्वीकार करोगी?”
रिया मुस्कुराई, उसकी आँखें नम थीं।
“आरव… मेरे दिल ने तो कब का तुम्हें अपना लिया था।”
दोनों ने एक-दूसरे को गले लगा लिया।
चाँदनी रात उनकी मोहब्बत की गवाह बन गई।
कुछ हफ़्तों बाद, जब सब कुछ सँभल चुका था, रिया ने डॉक्टर से चेकअप करवाया।
वो घर लौटी तो उसके हाथ में एक रिपोर्ट थी।
दिल धड़क रहा था… होंठों पर हल्की मुस्कान थी।
रिपोर्ट देखकर उसके होठों से सिर्फ़ एक शब्द निकला—
“आरव…”
आरव ने हैरानी से पूछा—
“क्या हुआ?”
रिया ने उसकी हथेली में रिपोर्ट रख दी।
उसमें साफ़ लिखा था—
“प्रेग्नेंसी पॉज़िटिव”।
आरव की आँखों में आँसू आ गए।
उसने रिया को अपनी बाँहों में भर लिया—
“ये हमारी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत तोहफ़ा है।” (9)
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