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Kalyug ki darpati

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Dark Roseze

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Description

ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसका पुनर्जन्म होता है पिछले जन्म में वह पांच भाइयों की पत्नी थी लेकिन किसी वजह से उसे मारना पड़ता है फिर वह दोबारा जन्म लेकर आती है लेकिन इस बार सब कुछ बदल जाता है क्या फिर से वह पांचो पतियों इसके हो पाएंगे क्या उन्हें स...

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. Kalyug ki darpati - Chapter 1

    Words: 2075

    Estimated Reading Time: 13 min

    Disclaimer

    "यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और केवल मनोरंजन के लिए लिखी गई है। इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। इसे केवल एक फैंटेसी और इमेजिनेशन के रूप में लिया जाए। कृपया इसे गंभीरता सी ल।

    एक झलक..!!

    सरू अभी बहुत प्यारी सी लग रही थी ।उसके माथे पर बिंदी हल्के-हल्के चमक रही थी। आंखों में शरम और मासूमियत दोनों तैर रहे थे।

    उसके कदम थोड़े डगमगाते हुए अंदर आए।उसके कानों में मासा की वो बात फिर से गूंजने लगी "देख बहु रानी तुझे पतियों के साथ सुहागरात मनानी है…"

    उसे समझ नहीं आया था ये क्या होता है। उसे इस बात का जरा सा भी कोई आईडिया नहीं था। लेकिन इतना जरूर समझ में आया कि इसमें पति के पास जाना होता है। बहुत पास।

    रूद्र धीरे से उसके पास आया। उसके बिल्कुल सामने खड़ा हो गया। और फिर बहुत प्यार से उसके गालों को छुआ। सरू आंखें नीचे कर लीं, फिर धीरे से बोली
    "ए जी... हमें... हमें सुहागरात मनानी है..."

    उसकी आवाज़ में मासूमियत इतनी थी कि रूद्र की आंखें एक पल को भर आईं। उसने कुछ नहीं कहा, बस उसके माथे को बहुत प्यार से चूमा।

    "बीवी... तुम्हें नहीं पता इसका मतलब क्या है, है ना?"

    सरू ने हल्के से गर्दन हिला दी।

    रूद्र मुस्कुराया लेकिन उस मुस्कान में बहुत प्यार था।
    वो आगे बढ़ा, और सरू के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर बोला  "इसका मतलब होता है... एक-दूसरे के और करीब आना।लेकिन जब दोनों तैयार हों, जब दोनों का दिल कहे। कोई ज़बर्दस्ती नहीं होती इसमें,बीवी।"

    सरू अपनी मासूम भरी नजरों से रूद्र को देखते हुए बोलती है। "ए जी हम आपसे प्रेम करते हैं। और हमने सुना है। सुहागरात मनाने से प्रेम और बढ़ जाता है।

    रूद्र उसे बहुत प्यार से देख रहा था। वो उसके और करीब आया। उसकी कमर को हल्के से पकड़ लिया और थोड़ी गंभीर लेकिन मोहब्बत भरी आवाज़ में पूछा  "क्या तुम्हें अभी मेरे साथ सुहागरात मनानी है?"

    सरू ने धीरे-से आंखें उठाकर उसे देखा और फिर हल्के-से अपना सिर हां में हिला दिया। रूद्र के चेहरे पर एक प्यारी-सी स्माइल आ गई। वो थोड़ा सा मुस्कुराया, जैसे उस मासूम जवाब ने उसका दिल छू लिया हो।

    "तो तुम्हें दूध लाना चाहिए था ना... तुम्हें नहीं पता कि सुहागरात के दिन पत्नी अपने पति के लिए दूध लेकर आती है? या फिर तुम्हें अपना... उसने थोड़ा शरारत भरा टोन अपनाया, लेकिन उसकी आवाज़ में बस एक प्यारा-सा छेड़ना था।

    सरू ने झट से जवाब दिया  "ए जी… हमें पता था... लेकिन आपने ही तो कहा था कि आपको पसंद नहीं है… इसलिए हम नहीं लेकर आए।"

    ये सुनते ही रूद्र का दिल जैसे और भी पिघल गया।
    उसने हल्के से सरू की नाक को छुआ  "तो हमारी बीवी हमारी पसंद भी याद रखती है?"

    सरू शर्माते हुए बोली  "हमें सब याद रहता है… बस, कह नहीं पाते।"

    रूद्र अब बिल्कुल उसके पास था। उसने बहुत प्यार से सरू का चेहरा अपने हाथों में लिया, और उसके माथे पर एक लंबा-सा किस दिया। "मैं बहुत लकी हूं, बीवी..."
    उसकी आवाज़ भीग गई थी।


    रूद्र अब सरू के इतने करीब था कि उसकी सांसें सरू के माथे को छू रही थीं। कमरे में एक अजीब-सी शांति थी। बस दोनों की दिल की धड़कने तेज धड़क रही थी।

    रूद्र ने बहुत हल्के से सरू के बालों को उसके कान के पीछे सरकाया, और फिर एक धीमे से सुर में बोला
    "बीवी..." उसकी आवाज़ बहुत मुलायम थी, "सुहागरात मनाने के वक़्त... तुम्हें थोड़ा दर्द होगा। क्या तुम उस दर्द को झेलने के लिए तैयार हो?"


    ***चलिए वक्त में थोड़ा पीछे चलते हैं........

    ( सौरगढ़ ) हिमाचल प्रदेश  20वीं शताब्दी।

    शताब्दी पहले की सुबह थी। एकादशी का दिन थी। | झरने के किनारे  एक दासी भागती हुई उस झरने के पास आ रही थी। जो जगह बहुत ज्यादा सुंदर ओर बिल्कुल परियों के जैसा लग रहा था। जंगल में घने घने वृक्ष थे और उनके बीच में फूलों से ढका हुआ एक सुंदर सा झरना। वो दासी गहरी गहरी सांस लेते हुए आती है। "महारानी! आपके पति लौट आए हैं। सब युद्ध से सकुशल आ चुके हैं। महल में आपकी प्रतीक्षा हो रही है।"


    घने वृक्षों से घिरा एक शांत सरोवर झरने की कलकल करती ध्वनि और उस पर पड़ती सूरज की सुनहरी किरणें। कहीं दूर मंदिर से आती शंख की गूंज और हवा में फैली चंदन और गुलाब की खुशबू।

    झरने के नीचे, पानी में नहाती एक स्त्री "सौरंधी"। उसके कंधों से नीचे भीगे हुए काले बाल झरने की लहरों से मिल रहे थे। सफेद रेशमी पोशाक उसके शरीर से लिपटी थी, जो अब और भी अधिक पारदर्शी हो चुकी थी। उसकी त्वचा पर सूरज की रोशनी पड़ते ही वह किसी देवी जैसी दिख रही थी। उसकी आंखों में एकदम से यह बात सुनते ही बहुत ही प्यार तरीके से खिल जाती है। चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ जाती है उसका गोरा बेदाग रंग लहराते बाल भीगे हुए बदन वह सच में बहुत ही ज्यादा सुंदर और आकर्षक लग रही थी।


    सौरंधी ने चुपचाप मुस्कुराते हुए पानी से हाथ भरकर अपने माथे पर लगाया।  वो रथ में बैठी, फूलों से सजी सवारी, चारों तरफ शुभ संकेत।


    रथ जैसे ही महल के मुख्य द्वार पर रुका, ढोल-नगाड़ों की आवाज़ गूंज उठी। फव्वारों की हल्की सी बूँदें, फूलों की बरसात और सफेद घोड़ों से खींचा गया रथ... जैसे कोई देवी स्वयं लौट आई हो।

    रथ से नीचे उतरी सौरंधी  झरने से नहाकर आई हुई, गीले खुले बाल उसकी कमर तक लहरा रहे थे, सफेद झिलमिलाता पारंपरिक वस्त्र जैसे चाँदनी को ओढ़ लिया हो। चेहरा थका जरूर था, पर उसकी आँखें चमक रही थीं। किसी खास को ढूँढती हुई।

    और वहाँ सामने खड़ा था रूद्र, उसका पहला प्रेम, सबसे बड़ा भाई और पति। मजबूत शरीर, गहरी आँखें, हल्के-लंबे बाल जो हवा में उड़ रहे थे। उसकी आँखों में वही शरारती मुस्कान थी जो सौरंधी को सबसे पहले भा गई थी।

    रूद्र बोला  "स्वागत है महारानी साहिबा… लगता है हमारी दुनिया फिर से पूरी हो गई है।"

    रुद्र सौरंधी का पहला पति। जिससे उसका प्रेम विवाह हुआ था। लेकिन किस पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उसे उसके सभी भाइयों से शादी करनी पड़ी लेकिन उसके दिल में सबसे प्रिय जगह किसी की तो वो रूद्र कि ही थी।

    सौरंधी की नज़र बस उसी पर रुकी। होंठों पर धीमी सी मुस्कान आई, और जैसे वक़्त कुछ पल के लिए ठहर गया।

    तभी पीछे से आवाज़ आई, विहार की  "और हम? हम सब भी तो आपके पति हैं रानी जी! हमारा भी तो इंतज़ार था आपको!" विहार चंचल और रोमांटिक स्वभाव का था, हर बात में मस्ती और अंदाज़। ये चौथा भाई था।

    सौरंधी उसकी बात पर हँस पड़ी हल्की सी, प्यारी सी हँसी, जैसे फूल झर गए हों।

    अब तीसरे नंबर पर नैर्विक थोड़ा तुनकमिज़ाज और खुद को बहुत खास मानने वाला। उसने भौंहें चढ़ाकर कहा।
    "हाँ हाँ, और हम भी आपके पति परमेश्वर हैं, थोड़ा ध्यान हमें भी दे दीजिए!"

    विप्र, सबसे छोटा, थोड़ा मासूम, पर सब समझने वाला। वो धीरे से बोला  "हमें तो ये लगता है कि हमारी रानी जी का पहला प्रेम तो रूद्र भाई ही हैं, इसीलिए तो सारा प्यार उन्हीं पर बरसता है। हम तो बस... बाकी हैं।"

    सौरंधी मुस्कराई, उसकी आँखों में स्नेह था। "ऐसा बिल्कुल नहीं है! रूद्र भले ही मेरा पहला प्रेम हो… लेकिन आप सब मेरी जान से भी बढ़कर हैं। आप सबने मुझे अपनाया, मेरा साथ दिया… मैं आप सबकी उतनी ही हूँ जितनी रूद्र की।"

    सारी बातें प्यार से चल रही थीं, लेकिन तभी सबसे शांत और गंभीर स्वभाव वाला अरविंद, जो अक्सर कम बोलता था लेकिन हर बात गहराई से सोचता था उसने एक तीखी सी बात कही "हां हां… हम तो बस जान से भी बढ़कर हैं… क्योंकि जान तो रूद्र भाई हैं ना?"

    अचानक थोड़ी सी चुप्पी छा गई। रूद्र हल्के से मुस्कराया, लेकिन सौरंधी जानती थी  अरविंद के मन में कुछ तो है। वो हमेशा से रूद्र से थोड़ा जलता रहा है… और सौरंधी से उसका ये बर्ताव कुछ ठीक नहीं लगता था।

    सौरंधी बीच में ही हँस पड़ी और बोली  "ओह हो! आप लोग भी ना! अभी मैं महल में आई नहीं और आप लोगों ने झगड़ा शुरू कर दिया! अब बताइए, क्या मुझे वस्त्र भी बदलने जाना है?"

    सभी हँसने लगे। लेकिन सौरंधी की इस मुस्कान के पीछे कोई हल्का सा डर छुपा था… क्योंकि उसे नहीं पता था  ये शाम उसकी आखिरी खुशियों वाली शाम बनने वाली है।


    राजमहल की रात हमेशा की तरह शांत थी, लेकिन उस दिन का माहौल कुछ अजीब था। रात के भोजन के बाद, राजमहल के सबसे बुज़ुर्ग और विद्वान ज्योतिषाचार्य ने सौरंधी को अकेले मिलने के लिए बुलाया। सौरंधी थोड़ी हैरान थी, लेकिन वो आदरपूर्वक उनके कक्ष में पहुँची।

    "आपने इस समय मुझे बुलाया?"

    ज्योतिषाचार्य की आंखें चिंतित थीं। उन्होंने गहरी सांस ली और बोले, "महारानी, आपकी कुंडली में बहुत बड़ा संकट है। युद्ध के दौरान, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति बदल गई थी। अब जो योग बना है… वो बहुत खतरनाक है।"

    "कैसा खतरा?" सौरंधी की आवाज़ धीमी हो गई थी।

    "अगर आज रात बारह बजे से पहले तक अगर आप जिंदा रही  तो अगले तीन दिनों के भीतर… पाँचों की मृत्यु निश्चित है।"

    सौरंधी को जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। उसकी सांसें तेज़ हो गईं। "नहीं… ये नहीं हो सकता… क्या इसका कोई उपाय नहीं है?"

    ज्योतिषाचार्य ने दुखी होकर सिर हिलाया।  "एक उपाय है… लेकिन वो बहुत कठिन है।"

    "क्या?" उसने अपनी घुटन भरी आवाज में कहा जैसे वह अब बिल्कुल टूट चुकी है।

    "अगर आप स्वयं सुहागन रहते हुए मृत्यु को प्राप्त करें, तो ये दोष नष्ट हो जाएगा। पाँचों की जान बच सकती है…"

    उसके आंखों से आंसू गिरने लगते हैं।  रात के तीसरे पहर, जब पूरा महल सो रहा था, सौरंधी ने चुपचाप अपने वस्त्र निकाले। उसने सफेद रेशमी साड़ी पहनी, वही जो रूद्र ने एक बार उसे प्रेमपूर्वक दी थी। सिर पर लाल चुनरी थी, मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र, और हाथों में चूड़ियाँ। पैरों में रजत की पायलें बंधी थीं।

    आईने में देख रही सौरंधी सच में किसी देवी से कम नहीं लग रही थी। लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान नहीं, एक भारी शांति थी। आँखें नम थीं… पर ठहराव से भरीं।

    वो धीमे क़दमों से महल की सबसे ऊँची छत पर पहुँची। नीचे आंगन में पाँचों भाई खड़े थे। " रूद्र, अरविंद ,विप्र नैर्विक और विहार।

    उनमें से सबसे पहले रूद्र ने उसे देखा और घबरा गया।
    "सौरंधी! ये क्या कर रही हो!"

    सौरंधी ने मुस्कुराकर सबको देखा। उसकी आँखें सब कुछ कह रही थीं। विहार ने गुस्से में अपनी तलवार ज़मीन पर फेंकी  "हम कोई और रास्ता निकालेंगे! तुम्हें मरने की ज़रूरत नहीं!"

    अरविंद ने कहा। "तुम्हारे बिना हम अधूरे हैं!"

    नैर्विक और विप्र की आँखें भर आईं। "हम सबको साथ जीना है,ओर साथ ही मरना है!"

    लेकिन सौरंधी चुप रही। उसकी आंखों में एक दर्द था, एक संतोष भी। "मुझे माफ़ करना… इस जन्म हम साथ ना रह सके। पर अगले जन्म में हम फिर से आपसब के होंगे।

    रूद्र ने रोते हुए कहा । "रुक जाओ! मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूँ!"

    सौरंधी ने बस एक बार प्रेम से रूद्र को देखा… और फिर खुले आसमान की ओर मुँह करके हाथ जोड़ लिए।

    "मैं जा रही हूँ… ताकि आप सब जीवित रह सको। मेरे बिना, लेकिन ज़िंदा…"

    और फिर… उसने पीछे कदम बढ़ाए… और झरने की ओर छलांग लगा दी।

    नीचे से सिर्फ आवाज़ आई। जो उसके राज्य के लोग थे। जो अपनी महारानी का इतना बड़ा बलिदान देखकर बहुत प्रसन्न हो रहे थे। ओर कहीं ना कहीं बहुत उदासभी थे।  "जय सौरंधी… पंचवधू अमर रहे…" नारे लगा रहे थे तो वहीं पर पांचो भाई के समने ही उनकी धर्मपत्नी अब नहीं रही। सभी बहुत ज्यादा टूट गए थे। ऐसा लग रहा था। जैसे अब उनके जीने का कोई मकसद नहीं रहा।



    जब सौरंधी ने प्राण त्यागे, ज्योतिषाचार्य ने महल में सभी को घोषणा की। "एक सौ वर्षों बाद… जब वही दुर्लभ नक्षत्र दोबारा बनेगा, जब पंचग्रह युति पुनः होगी… तब वो दोबारा जन्म लेगी। और वो फिर मिलेगी तुम पाँचों से। लेकिन इस बार हालात कुछ और होंगे।

    उसी वक्त पांचो भाई भी एक-एक करके उसे झरने में छलांगा मार देते हैं । सभी बस देखते रह जाते हैं वहां की जनता तो पूरी हैरान हो जाती है। जिन पांचो के लिए उनकी महारानी ने अपनी जान की परवाह नहीं कि वो भी उनके वजह से उन्हीं के साथ चले गए। एक पल में सौरगढ़ अब अनाथ हो चुका था।


    To Be Continued…



    अब कहानी में रीबर्थ होगा। तो बहुत मजा आने वाला है प्लीज आपको यह ट्रेलर या फिर फर्स्ट चैप्टर पढ़ कर कैसा लगा जरूर बताइएगा।