हीरो जो विलेन जैसा दिखे उस किरदार की कहानी🔥नफरत से इश्क़ तक के सफर की कहानी...बेदर्दी ❤यह कहानी उस हीरो की है, जिसे देखकर पहली नज़र में हर कोई विलेन समझ बैठता है। उसकी आँखों में नफरत की चिंगारी, लहजे में कटुता और हावभाव में बेरुख़ी... जैसे उसे किसी... हीरो जो विलेन जैसा दिखे उस किरदार की कहानी🔥नफरत से इश्क़ तक के सफर की कहानी...बेदर्दी ❤यह कहानी उस हीरो की है, जिसे देखकर पहली नज़र में हर कोई विलेन समझ बैठता है। उसकी आँखों में नफरत की चिंगारी, लहजे में कटुता और हावभाव में बेरुख़ी... जैसे उसे किसी चीज़ से मोहब्बत रही ही न हो। लोग कहते हैं, वह दिल का पत्थर है जिसके सीने में किसी के लिए कोई जगह नहीं। लेकिन सच तो यह है कि हर पत्थर के भीतर भी एक दरार होती है, जहाँ से रोशनी दाख़िल होती है। वह नफ़रत के रास्ते पर चलता हुआ, अनजाने में उस मोड़ तक पहुँचने वाला है जहाँ उसकी मुलाक़ात "इश्क़" से होगी। और यही सफ़र, "बेदर्दी" कहलाएगा जहाँ नफ़रत की ठंडी आहट से शुरू होकर मोहब्बत की गर्म धड़कनों तक की यात्रा लिखी जाएगी। 🔥 यह कहानी बताएगी कि कभी-कभी सबसे खतरनाक चेहरा ही सबसे गहरी मोहब्बत का आलम छुपाए बैठा होता है।
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प्रोमो
“सर इन्हें जूलियट रोज कहते है – ऐसे बेहतरीन गुलाब आपको पूरे शहर में बस मेरी दुकान में मिलेंगे |” वह फूलो की दूकान थी जिसका मालिक बड़े बड़े ग्राहकों के लिए गुलदस्ता खुद अपने हाथ से ही बनाता था| वह गुलाबो का एक बेहतरीन गुलदस्ता तैयार करके उसके सामने लाता हुआ कहने लगा – “इनकी खुशबू भी नेचुरल है सर – और ये जिन हाथो में जाता है उन रिश्तो की खुशबू हमेशा बनी रहती है – ये मेरा निजी अनुभव है सर |” गुलदस्ते को उसकी ओर बढ़ाते वह अतिरिक्त मुस्कान से उसे देख रहा था जो ठीक उसके सामने खड़ा था|
सूटेड बूटेड लम्बे कद वाला वह 27 साल का एक दिलकश मिलेनियर था| उसके चेहरे पर चढ़ा काला चश्मा भी उसकी आँखों की चमक छिपा नही पाया जिससे वह आज मिलने जा रहा था| उसी के लिए उसने ये शानदार बुके तैयार कराया था| बुके उसने खुद अपने हाथ में ले लिया तो उसके पीछे खड़े उसके सेक्रेटी ने एक चेक काटकर उसका पेमेंट कर दिया|
वह बुके को किसी ट्रोफी की तरह संभाले कार की ओर चल दिया| ब्लैक रंग की मर्सडीज का पिछला दरवाजा उसके लिए खुल गया| पर खुद बैठने के बजाये उसमे बुके रखता हुआ वह अपने सेक्रेटी की ओर मुड़ता है| उसके मौन निर्देश को शब्द देते उसका सेक्रेटी अब ड्राईवर से कहने लगा –
“तुम जाओ – सर खुद ड्राइव करेंगे |”
कहता हुआ वह अब ड्राइविंग सीट का डोर खोलकर खड़ा रहता है जब तक वह शक्स वहां नही आ जाता| उसके बैठते वह दबे स्वर में कहता है –
“सर फ़ॉर सिक्योरटी रीजन आपके बॉडीगार्ड की टीम पीछे से आपको फ़ॉलो करेगी |”
वह मौन हामी भरता कार स्टार्ट कर लेता है| चौड़ी चौड़ी सडको को पार करते कार एक फाइव स्टार होटल के सामने रुकी थी| वह एक लग्जरी शानदार होटल था जिसका पोर्च ही इतना बड़ा था कि कई अपार्टमेंट खड़े हो जाए| पोर्च में कार खड़ी करते दरबान को चाभी देते वह शख्स अब उस होटल के अंदर चल देता है|
उस समय रात के नौ बज रहे थे और होटल में अच्छी खासी हलचल थी| नया साल आने वाला था जिससे होटल में उसी के अनुरूप सजावट हुई थी साथ ही शायद कोई विदेशी टूरिजम ग्रुप वहां अभी अभी आया था जिसे होटल स्टाफ अटेंड कर रहा था| पर उस शख्स को जैसे वहां की हलचल या सजावट से कोई ख़ास फर्क ही नही पड़ रहा था| वह अपनी ही धुन में चला जा रहा था|
वह जिस तरह से लिफ्ट फिर कोरिडोर पार कर रहा था लग रहा था जैसे उसे पता था कि उसे किस रूम में जाना है| वह गुलदस्ता अभी भी उसके हाथो के बीच था| सेवेंथ फ्लोर के कोरिडोर में चलते अब वह एक रूम के बाहर रुका था|
रूम नम्बर 1011 पढ़ते उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| वह अपनी टाई की नॉट को ठीक करता एक सरसरी नज़र उस गुलदस्ते पर डालता है| वह सुनिश्चित हो लेना चाहता था कि कही इतना चलने में उसके फूल अपनी जगह से इधर उधर तो नही हो गए| सब अपनी तय जगह पाते वह दरवाजे को हलके से नॉक करता है| एक बार नॉक करते दरवाजा नही खुलता तो वह दूसरी बार नॉक करता है|
उसकी नज़र बस उस दरवाजे पर थी| वह बड़ी शिद्दत से उस दरवाजे के खुलने का इंतजार कर रहा था| आखिर दरवाजा खुला और उसके पार नज़र आया एक हसीन चेहरा| उस चेहरे को देखते उस शख्स ने अपनी आँखों पर से चश्मा उतार लिया| वह दिलकशी से उसे देखने लगा था|
“तुम !! यहाँ ? लेकिन तुम तो योरोप टूर पर गए थे ?” उसके सामने दरवाजे को हल्का से खोले वह युवती खड़ी थी| उसका स्वर लडखडा रहा था|
तभी उसके पीछे से एक दूसरा स्वर सुनाई पड़ा – “कौन आ गया साला मूड खराब करने ? कौन है बेबस ?”
उस अर्धखुले दरवाजे से उस कमरे में होने वाली गतिविधि का साफ़ साफ़ पता चल रहा था| वह लड़की अपने एक चादर में लपेटे ही दरवाजा खोलने आ पहुंची थी जबकि उसके पीछे आने वाला लड़का तो न के बराबर कपडे पहने था| और उन दोनों को अब वह शक्स अपनी तीक्ष्ण आँखों से घूरने लगा|
उसके जबड़े कसे हुए हो आए थे| वह सख्त स्वर में उस लड़के के प्रश्न का जवाब देता हुआ कहता है – “रंजीत सिंह दहल और तुम जैसो के लिए मेरा इतना परिचय ही बहुत है |” कहते हुए वह आधे खुले दरवाजे पर तेजी से हाथ मारता है जिससे वह दरवाजा झटके के साथ पूरा खुल जाता है|
दरवाजा खुलते वह लड़की चादर को अपने सीने पर और कसती हुई चीखी –
“how mean it ? तुम चले जाओ यहाँ से |”
लड़की आक्रोश में चीख रही थी वही उसके सामने खड़ा शख्स जिसने अभी अभी अपना नाम रंजीत बताया था उसे खा जाने वाली नज़रो से घूर रहा था| जबकि उस कमरे में मौजूद लड़का अब थोड़ा सहमा हुआ सा नज़र आने लगा था|
रंजीत कहने लगा - “मैं तुम्हे सरप्राइज देने आया था और खुद सरप्राइज हो गया – प्यार करता था मैं तुमसे - तुमने मुझे धोखा देकर ठीक नही किया |”
लड़की बेरुखे स्वर में बोल उठी – “प्यार में मैं तुम्हारी गुलाम नही बन गई - मेरी अपनी पर्सनल लाइफ भी है और यहाँ तमाशा करने की कोई जरूरत नही है - अभी तुम जाओ यहाँ से – मैं कल मिलती हूँ तुमसे |”
लड़की सहज स्वर में कहती दरवाजा बंद करने का उपक्रम करने लगी पर रंजीत अपने पैर से अभी भी दरवाजा रोके था|
उसकी कही बात से अब उसके अंदर जैसे क्रोध का लावा फूट पड़ा| वह कसकर चीख पड़ा –
“भाड़ में जाओ या कही और पर मुझसे मिलने की दुबारा कोशिश मत करना – वरना मैं भूल जाऊंगा कि कभी मैंने तुम्हे दिल से प्यार किया था|”
“you mean to say तुम मुझसे ब्रेकअप कर रहे हो ?”
इस बात पर रंजीत उसे बेहद बुरी तरह से घूरता रहा जबकि वह लड़की उसके सामने अब हंसती हुई कहने लगी –
“you poor guy – तुम मुझे क्या छोड़ेगे – मैं तुम्हारे साथ रही इस बात का तुम्हे शुक्रिया अदा करना चाहिए था वर्ना तुम जैसो को तो माहिरा अपना नाख़ून भी टच न करने दे |”
लड़की बेहद बेशरमी से कहे जा रही थी जबकि रंजीत अभी भी अपनी खा जाने नज़रो से घूर रहा था|
“सिर्फ पैसो से किसी का स्टेटस नही बढ़ जाता - स्टेट्स आता है खानदान से – और वो तो है ही नही तुम्हारे पास – जिसकी माँ अपना पति बेटा छोड़कर अपने यार के साथ भाग गई उस बदचलन माँ की औलाद हो तुम ? नही तो बताओ क्यों तुम्हारे डैड तुम्हे अपने साथ नही रखते क्योंकि.....|”
वह अपनी बात अधूरी छोड़कर अब कृत्रिम हँसी हंसने लगी थी| पर उसके सामने खड़ा शख्स जैसे ज्वालामुखी सा फट पड़ा –
“हाँ मैं जानता हूँ और मुझे मेरी औकात याद दिलाने की जरूरत नही है – बस इस बात का इंतजार कर कि मैं कब तुझे तेरी औकात याद दिलाता हूँ |”
जहर बुझे शब्दों में कहता वह गुलदस्ता वही फेक देता है| फिर उसे जूतों से कुचलते हुए लम्बे लम्बे डग भरता हुआ कोरिडोर पार करने लगता है|
क्रमशः............
“सर हमारी कंपनी से पांच सौ करोड़ की डील डॉक्टर रेड्डी कम्पनी से हो गई है – उनकी तरफ से उनके हेड एक्सक्यूटिव मिस्टर विपिन कांट्रेक्ट साइन के लिए आए है – क्या ये मीटिंग एस्क्युट की जाए |”
डी फार्मास्यूटिकल कंपनी का सीईओ रंजीत सिंह दहल अपने चैम्बर में बैठा अपने पीए अमन की बात सुन रहा था पर उसकी निगाह डेस्क टॉप पर थी और उंगलियों के बीच लगातार एक पेन नाच रहा था| इससे पहले कि इसपर रंजीत कुछ कहता उसके ठीक सामने बैठा उसका दोस्त और बिजनेस पार्टनर विहान झट से बोल उठा –
“ओके पांच मिनट में मीटिंग हॉल में मिलते है |”
“ओके सर |” कहता हुआ अमन तुरंत ही उस चैंबर से बाहर हो जाता है|
उसके जाते विहान आगे कहता है –
“ग्रेट न्यूज यार – डॉक्टर रेड्डी के साथ कोलैबरेशन करना हमारे लिए काफी अच्छा साबित होगा – सुना है मार्किट की फोर्टी परसेंट जेनेरिक मेडिसिन पर इन्ही का होल्ड है |”
रंजीत कहता है –
“तो इसका मतलब हमे सिक्सटी परसेंट पर होल्ड करने का टारगेट करना होगा|”
“क्या बात करते हो रंजीत ? हाव इज दिस पोसिबल ? इसका थेरटी परसेंट मार्किट तो तुम्हारे डैड की कम्पनी के पास है – और ट्वेंटी परसेंट हमारे पास और शेष 10 परसेंट पर अदर कम्पनी का होल्ड है |”
“इस 40 परसेंट को होल्ड में लेते हमारे ट्वेंटी मिलाकर हो गए न सिक्सटी |”
“तुम तो ऐसे बात कर रहे हो जैसे तुम्हारे डैड अभी अपनी कंपनी तुम्हारे नाम कर रहे है ?” हलके भाव से कहता हुआ विहान हँस पड़ा पर उसे नही पता था कि उसकी कही बात का असर रंजीत पर गहरा गुजरेगा| वह एकदम से पेन को अपनी उंगली से झटके से छोड़ देता है जिससे वह तीर की तरह छूटता हुआ कैबिन की दीवार घड़ी में जा लगता है| एक झटके से लगने से उसका कांच तेज आवाज के साथ टूट जाता है|
ये देख विहान रंजीत का तेवर समझ जाता है और आगे संभलते हुए कहने लगा –
“सॉरी यार मेरे कहने का ये मतलब नही था |”
“मुझे मतलबी बात पसंद भी नही |”
विहान रंजीत का मूड अच्छे से समझता था इससे वह आगे बात न बढ़ाता हुआ कहने लगा -
“यार बस इस डील पर तुम साइन कर देना – मुझे तो आने वाला समय जेनेरिक मेडिसिन का ही मार्किट लगता है और मैंने इसकी तैयारी भी कर ली है – शहर की सबसे बड़ी सरकारी लैब से बातचीत चल रही है – अगर ये गवर्नमेंट टेंडर हमे मिल जाता है तो देखना डी फार्मा कंपनी कितना ग्रो करेगी |”
“डी फार्मा लिमिटेड |” रंजीत उसे टोकता है|
“हाँ हाँ लिमेटेड – पता है लिमिटेड न लगाने से वो कम्पनी तुम्हारे डैड की नही हो जाएगी – इस कंपनी में तो मेरे 30 परसेंट ही शेयर है वो भी तुम्हारी दोस्ती की वजह से – इस कंपनी की असल ऊंचाई तो बस तुम्हारी मेहनत का नतीजा है दोस्त – चलो कोंफ्रेंस हॉल में चलते है |”
विहान जानता था कि रंजीत के उसके पिता पर बात करना उसे किस हद तक नाराज कर देता था इससे वह उस बात को और तूल न देता बस मीटिंग पर फोकस करने लगता है| दोनों साथ में कोंफ्रेंस हॉल में आते है जहाँ पहले से मिस्टर विपिन बैठा हुआ था जो एक नई उम्र का जोशीला व्यक्ति नज़र आ रहा था| आते ही वह अपने पॉइंट रखता हुआ साइन करने की फाइल रंजीत के सामने कर देता है|
विहान उसका जोश देखा थोड़ा सतर्क बना हुआ था लेकिन विपिन को तो जैसे इस बात की परवाह ही नही थी वह लगातार अपनी बात कहता जा रहा था जबकि रंजीत खामोश बना हुआ था|
“आई एम् वेरी इम्प्रेसड विथ यू – उम्मीद है इस नए प्रोजेक्ट से हमारी कम्पनी आपके साथ नए कीर्तिमान छूएगी – मैडम तो खुद आती पर विहान सर ने मुझे आने को बोला तो मैं चला आया – वैसे नेक्स्ट मीटिंग में तो मैम से मुलाकात हो ही जाएगी|” विपिन ने अपनी बात खत्म की और कमरे में एकदम से पिन ड्राप साइलेंट हो गया| लगा साँसों की आवाज भी कमरे में शोर कर रही है|
पीछे खड़े अमन के हाथ से पेन गिर गया जो वह रंजीत की ओर बढ़ा रहा था साइन करने| विहान तो अपना सर पकड़ते खुद से बडबडा उठा –
“लो आखिर जिस बात कर डर था वो गड़बड़ हो ही गई |’
रंजीत ने पेन नही पकड़ा इसलिए पेन फर्श पर गिर पड़ा और कुछ देर तक उसकी आवाज ही कमरे में अपनी मौजूदगी बनाए रही| रंजीत अब घूमकर विहान की ओर देखता है फिर एक्सक्यूटिव विपिन को जो मुंह बाए बारी बारी से सबकी ओर देख रहा था जैसे मौन ही पूछ रहा हो कि हुआ क्या ? क्या गलती हो गई उससे ?
अगले ही पल उसे उसकी गलती मालूम पड़ने वाली थी|
रंजीत सख्त स्वर में उससे पूछता है –
“तुम्हारी सीईओ मैडम है ?”
विपिन कहता है – “जी सर – मैडम मिसेज सुमन रंगनाथम रेड्डी – क्यों सर ?”
इस पर रंजीत उसे और गुस्से से देखता आगे कहता है –
“डील कैंसिल |”
“क क्या बात कर रहे सर ? क्यों सर ?”
“आई से डील कैंसिल – समझ नहीं आया तुम्हे |”
अपनी बात कहता रंजीत तुरंत ही उठकर मीटिंग हॉल से निकलने लगता है| ये देख विहान उसे रोकते हुए कहता है –
“रुको रंजीत – बात तो सुनो |”
एकदम से उसकी ओर पलटते हुए रंजीत कहता है –
“तुम्हे पता था सब न ?”
इसपर विहान अपनी नज़रे इधर उधर कर लेता है|
“ओके थैट्स गुड |”
“सुन न यार – ये डील बहुत जरुरी है |”
विहान अपनी बात कहता रह गया और रंजीत तुरंत ही वहां से निकल गया| दरवाजा झटके से बंद हुआ और इस पार विहान अपना सा मुंह लिए रह गया|
“हुआ क्या सर – मुझे तो बताए |” तभी विपिन धीरे से पूछता है|
इसपर विहान एकदम से आक्रोशित होता हुआ कहने लगा –
“तुम थोड़ी देर चुप नही रह सकते थे – कितना बोलते हो तुम – साइन हो जाता तब बता देते कि तुम्हारी मैडम कितना खुश होने वाली है पर नही भाभी जी की तरह बकर बकर करते रहे – अब जाओ यहाँ से – मैं बात करता हूँ रंजीत से |”
विहान जिस बुरी तरह से उसपर चीख ये सुनते वाकई विपिन पैर सर पर रखे हॉल से निकल गया|
जो बात आधी अधूरी उसे समझ आई उसका पूरा सार यही था कि रंजीत को औरतो से इतनी नफ़रत थी कि जिन कम्पनी की सीईओ औरते होती थी उसने वो डील भी नही करता था| यही उसका अतीत था जिसने उसे इतना खूंखार और दूसरो से अगल थलग बना दिया था|
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एक तेज तमाचा उसके गाल में पड़ा और वो एक कोने में लुढक गई| उसका नरम गाल उस तमाचे से ही लाल हो उठा था| ये मेंशन ऋत्विक सेंगर का था जहाँ वह अपनी मनमर्जी करता| वह अपनी कमर से बेल्ट निकालता हुआ उस लकड़ी पर वार करते चीखा –
“ये सजा नही याद है – अब से तुमसे भूल कर भूल नही होगी |”
एक बार के वार से ही वह लड़की बुरी तरह से तिलमिला कर रह गई थी| पर इस बात की परवाह किए बिना ऋत्विक अब बड़े बनावटी प्रेम भरे स्वर में कहता है –
“डार्लिंग – गेट रेडी फॉर द पार्टी |”
अब ऋत्विक के चेहरे पर मुस्कान थी जबकि वह लड़की अपना चेहरा पोछती खुद को खड़ा करने में लगी थी|
आखिर कौन है ये लड़की जिसकी जिंदगी जहन्नुम बना रहा है ऋत्विक ? ऋत्विक की दुनिया से क्या टकराएगा रंजीत ? जानने के लिए जुड़े रहे कहानी से....
क्रमशः................
वेस्ट मुंबई का वो सबसे महंगा बार था जहाँ रात के ग्यारह बजे भी बेहद रौनक थी| वही एक रिजर्वरड टेबल पर रंजीत सिगरेट का गहरा कश खींचता बीच बीच में शराब का सिप ले लेता| उसके कुछ दूरी पर डांसिंग फ्लोर पर चमकती लाईट के बीच लड़के लड़की एकदूसरे से चिपके डांस कर रहे थे, उनमे विहान भी था| इस वक़्त उसके साथ जो लड़की थी उससे वह अभी पांच मिनट पहले मिला और अब उसके साथ वह डांसिंग फ्लोर पर था|
तभी कुछ टकराने का तेज स्वर हुआ और म्यूजिक एकदम से बंद हो गया| अब सभी का ध्यान एकसाथ उस जगह पर गया जहाँ से वह आवाज आई थी|
“व्हाट्स द प्रोब्लम ?”
“वाई डिडेंट स्टॉप म्यूजिक ?”
सारे लड़के लड़की उस अवधान से परेशान हो उठे|
अगले ही पल सबको माजरा समझ आता है| म्यूजिक के तार से एक लड़की फसकर फिसल गई थी| उसे उठाते हुए एक स्वर दूसरा हाथ हवा में उठाता हुआ कहने लगा, वह ऋत्विक था –
“सॉरी फॉर इंटरपटिंग – यू कंटिन्यु |”
इसके बाद का शब्द वह बेहद दबे स्वर में कहता है पर वहां उस वक़्त इतनी शांति थी कि उसके वो शब्द भी सुन लिए गए| वह उस लड़की की बांह कसकर दबाए उसे अपनी ओर खींचता हुआ कह रहा था – ‘तुमसे बोला था न कि अपनी जगह से मत हिलना – अब तुम इसकी सजा भुगतने को तैयार रहना |’
विहान म्यूजिक सिस्टम के काफी नजदीक था इससे कम रौशनी में भी ऋत्विक की इस हरकत को देख भी पा रहा और सुन भी| वह तुरंत उस लड़की की ओर आता हुआ पूछता है –
“मिस – आर यू ओके ?”
वह लड़की तुरंत ही विहान की ओर देखती कुछ प्रतिक्रिया करने वाली थी उससे पहले ही ऋत्विक उसकी पकड़ी बांह में अपना दवाब इतना कस लेता है कि उस लड़की के हलक से बस दबी हुई चीख निकलकर रह जाती है|
ये देख विहान उसकी ओर बढ़ने वाला था पर उसे रोकता हुआ ऋत्विक का हाथ हवा में उठा और तुरंत ही उस लड़की को खींचता हुआ दूसरी ओर ले गया| उसी वक़्त म्यूजिक भी स्टार्ट हो गया| डांसिंग फ्लोर फिर अपनी धमक के साथ शुरू हो गया लेकिन विहान को ऋत्विक का ये रवैया कुछ अजीब लगा| एक मन उसका ये होने लगा कि वह उस अजनबी के पीछे जाए पर कुछ सोच वह रंजीत के पास चल दिया|
“यार सुन न मेरी बात |”
“बोल |”
“मुझे लगता है एक लड़की मुसीबत में है |”
“करेक्ट योर सेन्टेंस – लड़की ही मुसीबत है |”
“बी सीरियस यार – सच में मैंने उस तरफ एक अनजान आदमी को देखा वो एक लड़की को जबरन अपने साथ ले गया – मैंने उस आदमी को पहले यहाँ कभी देखा भी नही |” विहान हडबडाते हुए उसी ओर उंगली से संकेत कर रहा था जिस ओर ऋत्विक उस लड़की को खींचकर अपने साथ ले गया था|
विहान उस वक़्त जितना हड़बड़ी में था उसके विपरीत रंजीत के हाव भाव उतने ही सामान्य बने थे| वह अपना अगला पेग भी उतने ही इत्मिनान से हलक में डाल रहा था मानों विहान उससे कोई किस्सागोई कर रहा हो|
तभी लाउड म्यूजिक के साथ एक तेज जोशीला शोर उभरा जिससे विहान का ध्यान तुरंत ही डांसिंग फ्लोर की तरफ चला गया|
“एन्जॉय – आज की पार्टी का ड्रिंक मेरी ओर से – क्योंकि आज मेरी लवली वाइफ का जन्मदिन है – हैपी बर्थडे मेरी जान |” इसके बाद एक किस वह उसके गालो में चिपका देता है|
एक बार फिर विहान हैरान रह गया| वह उस शख्स का नाम नही जानता था पर चेहरा अच्छे से पहचान गया था| वह ऋत्विक था जो अब डांसिंग फ्लोर में उसी लड़की को अपनी बांहों के बीच लिए झूम रहा था| अब वहां और भी कम ब्राईट लाईट थी बस डिस्को लाईट में इतना समझ रहा था कि वह लड़की उसी के संकेत पर डांस कर रही थी| ये देख विहान बुदबुदा उठा –
“ये किस तरह की लड़की है ? अभी जिस शक्स से परेशान दिख रही थी अब उसी के साथ डांस कर रही है |”
विहान की बात पर रंजीत एक ठहाका मारता कह उठा –
“वो एक लड़की है यही काफी है उसका परिचय – लड़की बेवफाई का दूसरा नाम है – जहाँ पैसा वही इनकी लचक – लीव इट – अब चलते है|”
“यार अभी तो मेरी सेटिंग बाकी है और तू जाने की बात कर रहा है |” अबकी विहान का स्वर कुछ और ही हो उठा था|
“बंद कर ये लड़की के पीछे चक्कर काटना – किसी दिन बहुत महंगा पड़ेगा - समझा |”
“बस बस फाइव मिनट – यार एक किस तो करके आने दे – बड़ी मुश्किल से पटाई है – वैसे भी तेरे साथ रहते अपन की लाइफ सन्यासियों जैसी जा रही – तू तो स्टाफ भी लड़की का रखने नही देता कि आँख ही सेंक लूँ |”
रंजीत जानता था विहान अब नही रुकने वाला इससे वह भी उठते हुए कहने लगा –
“मैं पार्किंग में वेट कर रहा हूँ – देर लगाई तो कैब से आना |”
विहान उसकी बात पर बस दांत दिखाता हुआ डांसिंग फ्लोर के विपरीत बार की तरफ चल देता है जहाँ एक लड़की तब से उसी की ओर देख रही थी| उसके पास आते ही वह उसकी कमर पर अपनी बांह फैला लेता है| दोनों के चेहरे पर छाई मुस्कान ही अब दिख रही थी| वे साथ में वाशरूम की ओर चल देते है|
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विहान बस कार स्टार्ट करने वाला था तभी एक हाथ जल्दी से दूसरी तरफ के पेसेंजर सीट के दरवाजे को खोलता हुआ झट से अंदर बैठ जाता है|
“यार..हफ हफ – तू न बड़ा बुरा है – हफ हफ – अगली बार तेरे साथ अपनी कार लेकर भी आऊंगा – पता है – कितनी जल्दी जल्दी सब – करना पड़ा....|”
वो विहान था जो रंजीत के ठीक बगल की सीट पर दौड़ता हुआ बैठा| अगर एक मिनट की और देर लगती तो रंजीत कार लेकर बस निकलने वाला था| विहान की बात का उसपर कुछ असर ही नही हुआ वह तुरंत ही कार को रेस देता पार्किंग से निकलने लगता है| वही विहान अब आराम से बैठता हुआ अपने कपडे ठीक करने लगता है|
“कल की मीटिंग याद है न और हाँ इस बार कोई मिस्टेक नही होनी चाहिए |” रंजीत सख्ती से कहता है|
इस पर विहान अपने बिखरे बाल उँगलियों से सेट करता हुआ कहने लगा –
“हाँ हाँ याद है – कोई नई कम्पनी है और उसका सीईओ कोई फीमेल भी नही है |”
विहान अब गर्दन पीछे टिका लेता है पर तभी कार के रुकते वह साइड के कांच से देखता है कि वह कोई पेट्रोल पम्प था| उस आधी रात पेट्रोल पम्प सूना बना हुआ था इससे रंजीत इत्मिनान से कार लगा रहा था| अभी पेट्रोल सेलर बॉय रंजीत के पास आता कि उसकी कार के आगे बची जगह पर एक दूसरी कार आकर लग जाती है|
वह दूसरी कार रुकते शीशे के पार से उसे टंकी फुल करने का बोलता है| ये सुनते रंजीत की त्योरियां चढ़ जाती है| कायदे से वह पहले आया तो पेट्रोल उसे पहले मिलना चाहिए पर उसके आगे छूटी जगह पर दूसरी कार आ गई| ये देख रंजीत तेज कड़कती आवाज में पेट्रोल सेलर बॉय को अपनी गाड़ी में पेट्रोल डालने को कहता है|
दो बड़ी बड़ी गाड़ी और उन दोनों के ही सवार इगोइस्ट| उन दोनों के बीच फसा हुआ सेलर अब बुरी तरह काँप गया| उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे? ये देख आगे की कार का शक्स उतरकर सेलर बॉय के पास आता उसकी कनपटी में पिस्टल लगाते हुए कहता है –
“मेरे ख्याल से अब कन्फ्यूजन दूर हो गया होगा तुम्हारा कि किस गाड़ी में पेट्रोल पहले डालना है ?”
ये देख बिना समय गंवाए रंजीत अपनी तरफ से उतरता हुआ उसकी ओर बढ़ने लगता है| रंजीत तुरंत ही अपने एक हाथ में पकड़ी बोतल की शराब उस पिस्टल पर उड़ेल देता है तो दूसरे हाथ में पकड़े लाइटर से उसमे आग लगाने लगता है| ये देख वह शख्स बुरी तरह चौंकता पीछे होता बोल उठा –
“पागल है क्या ? खुद की जान भी प्यारी नही क्या ? ये लोडेड पिस्टल है खाली नही |”
सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि न सेलर कुछ प्रतिक्रिया कर पाया न कार की पेसेंजर सीट पर बैठा विहान| वह शीशे के पार से उस दृश्य को देख रहा था|
“ये साला वही आदमी है जो उस लड़की को जबरन पकड़े था|” इसके साथ ही उसका ध्यान ऋत्विक की कार के अंदर की ओर जाता है जहाँ पीछे की सीट पर उसे एक लड़की के बैठे होने का आभास हो रहा था|
वह ऋत्विक ही था जिसने रंजीत की कार के आगे अपनी कार लगा दी थी और वही सेलर के ऊपर पिस्टल भी ताने था| लेकिन रंजीत की प्रतिक्रिया से उसके पैर उखड़ गए|
“आई लाइक योर एटीत्युड – चल इसकी कार में पहले पेट्रोल डाल दे|” कहता हुआ ऋत्विक पीछे हट जाता है|
रंजीत उसपर ध्यान न देते हुए अब वापस अपनी कार की ओर बढ़ जाता है|
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उसी रात के पहर में शानदार कार एक मेंशन के सामने रुकती है जिसके बाहर बड़ा बड़ा दहल मेंशन लिखा था| उस कार से एक लड़की उतरती हुई सीधे अंदर जाने लगी तो ड्राइविंग सीट पर बैठा शख्स उसकी ओर दौड़ता हुआ आता कहने लगा –
“अमारा डार्लिंग - यार कल पक्का आ रही हो न – याद रखना तुम्हारे मंगेतर ने ये पार्टी रखी है – मेरी जान मुझे और ज्यादा इंतजार मत कराना और जल्दी ही अपना मूड बनाओ ताकि हम शादी कर सके – ओके गुड नाईट |” कुणाल कोठारी उसका मंगेतर अपनी बात कहता रहा और उसकी बात पर लापरवाही से हाथ झटकती अमारा अपने मेंशन के अंदर चल देती है| वह जगदीश सिंह दहल का मेंशन था जो कहने को रंजीत के पिता थे पर यहाँ वे अपनी दूसरी पत्नी और दो बेटियों के साथ रहते थे|
क्रमशः.................
उस मेंशन के बाहर बड़ा बड़ा लाइटिंग के साथ जगदीश सिंह दहल लिखा था| उस आधी रात जब सारा मेंशन चैन की नींद सोया था तब उसकी छोटी बेटी प्रिशा अपने कमरे में खिड़की से दाखिल होती चुपके से अपना बैग एक ओर फेक देती है| लेकिन तभी उसके कमरे का दरवाजा खुलता है और सामने एक अधेढ़ औरत खड़ी उससे कहने लगी –
“बेबी आ गई – मैं तो बहुत डर गई थी – सोनाली मैडम कई बार तुमको पूछ चुकी|”
वह एक उन्नीस साल की चंचल लड़की थी, जिसकी आंखे देखकर ही कोई बता सकता था कि उसके सारे सपने जैसे उन्ही चंचल आँखों में सदा चमकते रहते हो| उसके सामने उस घर की सबसे पुरानी और विश्वासपात्र सहायिका उर्मिला आंटी खड़ी थी|
प्रिशा उन्हें देख झट से उनके गले लगती हुई चहक पड़ी –
“पता है आंटी – आज तो मैंने कमाल कर दिया – दस लोगो के लिए खाना मैंने बनाया और सबको पसंद भी आया|”
“जरुर बेबी तुम्हारे हाथ में तो अन्नपूर्णा का आशीर्वाद है लेकिन बेबी अगर घर पर किसी को ये मालूम पड़ गया तो क्या होगा ?” वे प्यार से उसके सर पर हाथ फिराती हुई कह रही थी पर उस बात का डर साफ़ साफ़ उनकी आँखों में नज़र आ रहा था|
इसके विपरीत प्रिशा की आंखे तो जैसे जुगनू सी चमक रही थी| वह उनके कंधे पर झूलती हुई कहने लगी –
“ओह आंटी ऐसा होगा ही नही क्योंकि उसके लिए उन्हें मेरे साथ होना होगा जो कभी होगा नही – डैडी और दी को अपनी बिजनेस मीटिंग से फुर्सत नही और मम्मा को अपने बाबा जी के आश्रम से ..|”
“और तुम्हे अपने नये नये कारनामे से !”
अबकी दोनों साथ में हँस पड़े| उर्मिला जी ने प्रिशा और उसकी बड़ी बहन अमारा को अपने हाथो से पाला पर अमारा बड़ी होती उनके लिए मैडम बन गई जबकि प्रिशा आज भी उर्मिला जी के सामने वही छोटी बच्ची बनी हुई थी|
“अच्छा अब तुम आराम से सो जाओ नही तो सुबह उठोगी नही तो सबके साथ नाश्ते की टेबल पर कैसे नज़र आओगी ?”
कहती हुई वे उसका नाईट सूट निकालने लगी| प्रिशा भी चेंज करते करते अपनी बात कह रही थी –
“हाँ बस सुबह का वही एक टाइम तो है जब सब साथ नज़र आते है पर कनेक्ट नही होते – दी और डैडी बिजनेस की बात करते रहते है तो मम्मा बाबा जी का मन्त्र पढ़ती खाने पर प्रवचन देती रहेंगी – मेरी कौन सुनता है ?”
“मैं हूँ न – मुझे सुनाना अपने किस्से – अभी सो जाओ |”
उर्मिला जी के उन चंचल आँखों को सुलाना भी एक बड़ा काम था| वे प्यार से उसका सर सहलाती हुई आखिर उसे सुला देती है|
****
एक चमचमाती कार पोर्च पर तेजी से ब्रेक मारती हुई रूकती है| अगले ही पल उस कार से ऋत्विक निकलता है| उसके उतरते खड़ा दरबान तेजी से पिछले दरवाजे की ओर बढ़ता है पर ऋत्विक का हवा में ठहरा हाथ देख अपनी जगह जमा रह जाता है| वह खुद पिछला दरवाजा खोलकर अपना हाथ अंदर बढ़ा देता है| अगले ही पल उसकी कर्कश पकड में वह कोमलांगी ही होती है|
“कम माय डार्लिंग – टुडे इज योर इस्पेशल डे |”
अगले ही पल उसकी पकड में खिचती हुई वही लड़की थी जिसे वह अपने साथ पब ले गया था| उस वक़्त उस लड़की केचेहरे पर ढेरो दर्द और दहशत साफ़ साफ़ नज़र आ रही थी| वह उसकी पकड में थी जिससे चाहकर भी वह छूट नही सकती थी|
“आज तुम्हारा जन्मदिन है न – चलो इसे और यादगार बनाते है |”
वह अभी भी उसकी हथेली पकड़े उसे अपने साथ मेंशन के अंदर ले जा रहा था| वह लड़की उस वक़्त इतनी घबराई हुई थी कि कार से उतरते समय उसकी सैंडिल वही उतर गई थी| वह उन्हें पहनना चाहती थी लेकिन ऋत्विक उन सैंडिल पर अपनी जूते रख देता है जिससे वह उन्हें वही छोड़कर उसके साथ साथ नंगे पैर ही चलने को मजबूर हो जाती है|
“आओ आज मैं तुम्हारे पैरो में जन्नत का अहसास कराता हूँ |”
ऋत्विक उसका हाथ पकड़े उसे अंदर ले जा रहा था| वह भी जैसे खुद में सिमटी उसके साथ खिची जा रही थी| तभी एक जोरदार छन्न की आवाज के साथ उसका ध्यान अपने सामने गया| चलते चलते ऋत्विक ने एक कांच का फूलदान फर्श पर पटक दिया जिससे उसका कांच वहां बिखर गया था|
वह लड़की ये देख चलते चलते वही रुक गई| उसकी आँखों के सामने के फर्श पर टूटे हुए कांच पड़े थे| वह ऋत्विक का हाथ छोड़ना चाहती थी क्योंकि अब जो होने वाला था उसे उस बात का अंदाजा था लेकिन ऋत्विक उसका हाथ नही छोड़ता|
वह अब उसकी कलाई कसकर थामे उसे आगे चलते रहने का मौन संकेत करता है|
“न नही – मुझे नही चलना |”
“चलो |”
उसकी कडक आवाज जैसे वहां गूँज उठी| इसके बाद उसकी कलाई कसकर पकड़े उसे वैसे ही आगे चलाता रहा| हर कदम पर जहाँ ऋत्विक के जूते कांच को कुचल रहे थे वही वह टूटे कांच के टुकड़े उस लड़की के कोमल तलवो को बुरी तरह से घायल कर रहे थे| वह रो रही थी, बार बार फर्श पर झुककर रुकने की कोशिश करती पर ऋत्विक उसे रुकने नही देता| अगले ही पल फर्श ढेरो खून भरे पैरो के निशानों से भर उठा|
आगे जाकर वह उसे एक कमरे के अंदर धकेलता हुआ चीख उठा –
“ये पब में मेरी बात न मानने की सजा थी – याद रखना ऋत्विक न उधार रखता है और न रखने देता है |”
वह बुरी तरह उसे घूरता हुआ कह रहा था –
“ऋत्विक तुम्हारे जिस्म में ही नहीं तुम्हारी आत्मा तक में अपना नाम लिख देगा तब तुम्हारी हर सांस के साथ बस मेरा नाम ही निकलेगा – मेरे हुकुम पर तुम्हारी गर्दन झुकेगी – बस उस हद तक ही तुम्हे प्यार करना चाहता हूँ – समझी न |”
वह डरी सहमी सर झुकाए बैठी थी|
“समझी न !!”
उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर वह एक बार फिर चीखा जिससे घबराकर वह सर हिला देती है|
ये देख उसके सख्त चेहरे पर मुस्कान आ गई| अब वह दरवाजा बंद कर देता है जिसके पार उसकी घुंटी हुई आवाज जाने कितनी देर तक गूंजती रही|
फिर तेज तेज कदमो से चलता हुआ वह कहता है –
“इसे तब तक कोई खाना नही देगा जब तक मैं न कहूँ |”
वहां मौजूद घर के नौकर बस सर झुकाए हामी भरते है| ऋत्विक अब अन्य कमरे की ओर बढ़ जाता है| वो मेंशन नही उसकी हुकूमत की जेल थी जहाँ उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नही हिलता था| सब देर तक उस लड़की का रोना फिर सुबकना सुनते रहे पर किसी की हिम्मत नही हुई कि उस कमरे में उसके पास जा सके|
क्रमशः.............
जगदीश दहल के मेंशन में सुबह के नाश्ते की तैयारी पूरी हो चुकी थी| जगदीश दहल, उनकी पत्नी सोनाली और बड़ी बेटी अमारा टेबल पर आ चुके थे पर प्रिशा का कही अता पता नही था| वे उसकी कुर्सी की ओर सख्त नज़र से देखते हुए पूछते है –
“प्रिशा कहाँ है ?”
इसपर सोनाली जो टेबल पर बैठी मन्त्र की माला पर अपना हाथ अभी तक फसाए थी एकदम से चौंक गई| दो पल के मौन में जैसे वह कुछ सोचने लगी तो वही खड़ी उर्मिया जल्दी से कह उठी –
“वो बेबी का एग्जाम आने वाला है न तो कल रात देर तक पढ़ रही थी...|”
“सो व्हाट – सुबह उसे यहाँ मौजूद होना चाहिए – सोनाली....|”
वे अपनी कड़क आवाज में उसे पुकारते है इससे उर्मिला घबराई में जल्दी से कहती है –
“उर्मिला जाओ उसे जगाकर लाओ |”
“जी |” कहती हुई उर्मिला सीढियों की ओर बढ़ जाती है|
तभी जल्दी जल्दी सीढियां उतरती हुई प्रिशा टेबल की ओर आने लगती है| उर्मिला आंटी प्रिशा को आँखों के इशारे से सबका मूड बता देती है| इसपर वह जल्दी से कुर्सी खिसका कर बैठती हुई सबको गुड मोर्निग तो अपनी माँ को राधे कृष्ण कहती है|
वह नाश्ते के सामानों को देखती उत्साह सी कहने लगी –
“वाओ – क्या बात है ? डोसा भी भी है ?”
वह जितना चहक रही थी बाकी सभी उतने ही मौन थे| उसके इस तरह टेबल पर उत्साह दिखाना जैसे उसके पिता को नागवारा गुजर रहा था| इससे अमारा उसे टोक उठी –
“प्रिशा क्या कल रात से तुमने कुछ नही खाया क्या ?”
“ओह दी खाया तो था पर आपको पता है खाने को देखकर उत्साह दिखाने से ये खाना पेट में जाकर डांस करता है – लेकिन आप तो इतना सीरियस हो कर खाती हो कि आपके पेट में जाकर खाना तो कही दुबक जाता होगा |” अपनी बात खत्म करती हुई वह तेजी से हँस पड़ी पर इसके विपरीत उसके पिता और और बहन उसे घूरते लगे इसपर वह जल्द्दी ही खुद को सयंत करती सॉरी बोलकर अब चुपचाप खाने लगती है|
अब वे चारो एक साथ मौजूद थे साथ ही वहां मौजूद था सन्नाटा बस कटलरी की आवाज ही वहां गूँज जाती थी|
टोस्ट खत्म करते कॉफ़ी का सिप लेते हुए जगदीश दहल अमारा को देखते हुए कहते है –
“अमारा आज की मीटिंग की क्या तैयारी है ? क्या कोरियन कॉन्ट्रैक्ट हमे मिल जाएगा ?”
अमारा अब अपना जूस का सिप लेकर उसे टेबल पर रखती हुई कहने लगी –
“यस डैड वो कॉन्ट्रैक्ट हमारे सिवा किसी को नही मिलेगा – मैंने इस बात की पूरी तैयारी कर ली है|”
“हाँ ऐसा ही होना चाहिए – समझो इसके बाद हम अपनी डी फार्मा की एस्क्युटिव लैब भी शुरू कर सकते है |”
“यस डैड डेफिनिटली – डॉक्टर रेड्डी से भी हमारी बातचीत चल रही है और अगर उनकी ओर से इनिशेट हो गया तो जेनेरिक मेडिसिन में हमारा मार्किट बढ़ने से कोई नही रोक सकता |”
इसपर वे थोड़ा सोचने की मुद्रा में आ जाते है|
“व्हाट हैपेण्ड डैड – विश्वास रखिए डॉक्टर रेड्डी हमारी डील से इंकार नहीं कर पाएंगी |”
“लेकिन अमारा मुझे लगता है वे अपनी डील पहले ही फाइनल कर चुकी है|”
जिस बात को जगदीश दहल ने शब्दों से नही बोला उसे भी अमारा अच्छे से समझ चुकी थी आखिर बहुत कम उम्र से ही वह अपने पिता के साथ उनका बिजनेस ज्वाइन कर चुकी थी और अब इस मुकाम पर थी कि उसके फैसले भी कंपनी में ख़ास मायने रखते थे| वस वक़्त बिना नाम लिए वे उसी डील पर बात कर रहे थे जो रंजीत की कम्पनी के साथ होने वाली थी| अभी तक उसने उससे मना कर दिया इसकी खबर उनतक नही पहुंची थी इससे उस डील के अपने पास न होने का मलाल तो था|
“ठीक है अमारा पर तुम उन्हें इसके लिए खुद आने दो |”
अब तक वे बात करते करते नाश्ता खत्म कर चुके थे| इस बीच वे दोनों बिजनेस की बात में खुद इतने व्यस्त थे कि इसके बाद प्रिशा और सोनाली पर उनका ध्यान गया ही नही| वैसे भी ये सब उन सबके लिए सामान्य व्यवहार था| वे साथ बैठते थे पर साथ कभी नही थे| बात करते वे साथ में उठकर ऑफिस के लिए निकलने का उपकम करने लगे| उस वक़्त तक भी उन्होंने एक नज़र न प्रिशा पर डाली और न सोनाली पर|
उनके जाते प्रिशा के एक गहरी सांस हवा में छोड़ती हुई कहती है –
“पहले प्रिशा प्रिशा पूछ रहे थे और जब वापस आई तो एक बात भी नही बोली गई अमेजिंग डैड अमेजिंग सिस |”
तभी प्रिशा की नज़र अपनी माँ की प्लेट पर जाती है जो अभी तक खाली थी|
“मम्मा – आपने ब्रेकफास्ट कर लिया क्या ?”
“नही बेटा - मेरा आज पूर्णिमा का व्रत है |”
ये सुनते प्रिशा को समझते देर नही लगी कि उनका साथ बैठना ही जरुरी था, न आपस में कनेक्ट होना और न एक दूसरे का ख्याल रखना|
“ओह मम्मा आप हफ्ते के पांच दिन तो व्रत ही रखती है और उनमे से कुछ व्रत तो आप डैडी के लिए रखती है पर क्या आपको लगता है उन्हें इससे कुछ मतलब भी होगा ?”
“प्रिशा बेटा – व्रत जताने के लिए थोड़े रखा जाता है|”
“फिर भी मम्मा उन्हें अहसास तो हो कि आप उनके लिए भूखी रहती है – कुछ तो रियक्ट करना चाहिए न ?”
प्रिशा जो बात पूछ रही थी उसका जवाब उनके पास था नही या वे खुद बरसो से इस सवाल को खुद के भीतर से खोज रही थी| वे इस बात को वही खत्म करने कह उठी –
“मुझे मंदिर जाना है – देर हो रही है – तुम अपना नाश्ता खत्म कर लेना |”
वे चली गई अब प्रिशा एक नज़र अपने सामने और आस पास की खाली कुर्सियों को देखती हुई कह उठी –
“न किसी को मेरे कोशन का आंसर देना है और न मुझसे कुछ पूछना है तो फिर बुलाया क्यों प्रिशा को ?”
कंधे उचकाती वह अपनी प्लेट की ओर देखती है कि तभी उसका मोबाईल बज उठता है| स्क्रीन में नाम देख वह एकदम से खुश होती हुई कॉल रिसीव करती कह उठी –
“थैंक्स हार्दिक – एक तुम ही हो जो सही समय पर मेरा साथ देते हो – हाँ बस अभी पहुँचती हूँ कॉलेज |”
इसके बाद वह जैसे हिरनी सी कुलाचे भरती अपने कमरे की ओर भागती नज़र आती है|
****
जिस बात का डर था वो बात धमाके की तरह रंजीत के ऑफिस में गिरी|
विहान तेजी से उसके केबिन में आते हुए बोल उठा –
“यार कर दी न तुमने गड़बड़ – मैंने कहा था पहले ही |”
विहान जितनी हड़बड़ी में था रंजीत उतना ही शांत बना हुआ पूछता है –
“हुआ क्या सीधे सीधे बोल |”
“होने को बचा क्या है ? कितनी मुश्किल से मिसेज रेड्डी को अपनी कंपनी से डील करने को कन्वेस किया था पर तूने बस एक झटके से मना कर दिया |”
“तो !! वो आखिरी कंपनी नही थी |”
“पर तुम्हारी आखिरी बेवकूफी जरुर बन गई – पता है अब किस कंपनी से डील कर लिया – तुम्हारे डैड की कम्पनी से |”
अबकी रंजीत के हाव भाव में हल्का बदलाव आता है पर उसे देखकर बताना मुश्किल था कि वह इससे गुस्से में है या अफसोस में !!
विहान अभी भी कह रहा था –
“मुझे न ये सब अमारा की चाल लगती है – अभी कल ही तो हमारी बात हुई और आज उनकी ओर से फाइनल कर लिया गया – जैसे वह हमारी कम्पनी की हर एक्टिविटी पर नज़र रखे हो – पता नही अमारा की प्रोब्लम क्या है ? तुमसे क्यों कम्पटीशन रखती है – उसने जानबूझ कर इतनी जल्दी अपनी डील फ़ाइनल की – मुझे लगता है तुम्हारे डैड को इस बारे में नही पता होगा – तुम एक बार उनसे क्यों नही बात करते |”
विहान एक साँस में बोले जा रहा था कि तभी रंजीत तेजी से टेबल पर हाथ मारता है| उसके ऐसा करते विहान चौंक जाता है| वह देखता है कि रंजीत की आँखों में जैसे आग भड़क उठी हो|
“यार मैं तो बस एडवाइज दे रहा था|”
“एक बार जब मैंने डील कैंसिल कर दी तब सामने वाला किसी दूसरी कम्पनी के पास जाए या भाड़ में मुझे इससे कोई फर्क नही पड़ता और इस बात को तुम अच्छे से याद रखा करो |”
“हाँ ठीक है |” विहान के सारे शब्द जैसे सुस्त हो जाते है|
“ओके अब ये बताओ नेक्स्ट मीटिंग की क्या प्रोग्रेस है ?”
“उनके एज्क्युटिव से बात चल रही है – फाइनल होते तुम्हारी मीटिंग रखते है |”
अपनी बात खत्म करता गहरा उच्छ्वास छोड़ता हुआ विहान अब केबिन से बाहर निकल जाता है|
वह जैसे ही बाहर आता है उसके सामने अमन आ जाता है जो रंजीत का पीए था| उसका इस तरह से सामने आन विहान को अजीब लगा|
“क्या बात है अमन ? कोई ख़ास बात कहनी थी ?”
“यस सर – आपको अपने भाई के बारे में बताया था न सर...|”
“ओह यस यस – तो आज उसका इंटरव्यू है न – तो क्या हुआ उसका ?”
“सर उसके पास कोई एक्स्पिरिंस नहीं है इसलिए उसका सीवी एसेप्ट ही नही हुआ – अगर आप एडमिन ऑफिस में एक बार कॉल कर देते तो...|”
“देखो अमन तुम ऑफिस के रूल्स से वाकिफ तो हो न – तुम्हे पता है न रंजीत को सिफारिश से कितनी चिढ है – अगर उसे पता चल गया कि मैंने किसी एम्प्लाई के लिए सिफारिश की है तो पता है न क्या होगा ?”
“आई नो सर – पर आपके यहाँ छह सालो से काम कर रहा हूँ – आपको एक शिकायत का मौका नही दिया और यही कुछ मेरे भाई से नही मिलेगा – अभी अगर उसे यहाँ नौकरी मिल आती तो सुका कोई एक्स्पियांस हो जाता – बाहर तो कोई बिना एक्सपीरियंस के लेता भी नही – सर प्लीज एक मौका दे कर देखिए |”
“ओके ओके – चलो कॉल कर देता हूँ |”
विहान वहां से निकलकर अपने केबिन की ओर चल देता है| वही अमन अब फोन उठाए उस पार कॉल में मौजूद अपने भाई से सख्ती से बोल रहा था –
“देखो आरव मैंने बहुत रिक्वेस्ट की है तुम्हारे लिए अब तुम कोई मिस्टेक मत करना – मैं रंजीत सर को नाराज नही कर सकता |”
“ओह भईया डोंट वरी – मैं आपको भी नाराज नही करूँगा|” कहता हुआ वह अपने भाई का कॉल काट कर अन्य किसी को कॉल लगाता है –
“हाई विधि – लगता है तुम्हारे ऑफिस में मेरी जॉब पक्की हो गई – अब तो रोज हम मिल सकेंगे |”
“शांत शांत आरव – अब तुम यहाँ मेरी जॉब न खतरे में डाल देना – पता है न रंजीत सर के ऑफिस में तीन ही फीमेल स्टाफ है और उनसे भी कोई बात नही कर सकता – तो प्लीज़ आरव तुम कुछ गलती मत करना |”
“अरे यार ये रंजीत सर को लडकियों से प्रोबलम क्या है – काश इनकी लाइफ में कोई लड़की आ जाए |”
क्रमशः.................
देर शाम अपने नियम के अनुसार रंजीत ऑफिस से सीधे क्लब आ पहुंचा| उसके लिए क्लब बस एक समय काटने का जरिया भर था| जहाँ सब वहां लड़की, शराब और डांस की मस्ती में डूबने आते वही रंजीत अपनी तन्हाई और ख़ामोशी के साथ कुछ पेग लगाता और वापस अपने मेंशन चला जाता| उसके इस साथ में हमेशा विहान उसके साथ रहता पर आज वो वहां नही था| इससे रंजीत जो ग्यारह बजे वहां से निकलता आज आठ बजे ही मेंशन के लिए निकल गया|
“क्लब क्यों नही आया ?” मुख्य हॉल में विहान को अपने मोबाईल संग समय बिताते देख रंजीत उसके सामने आता हुआ पूछता है|
“कुछ नही बस आज मूड नही था |” विहान उसकी ओर बिना देखे स्किन स्क्रोल करता रहता है|
अबकी उसकी बात पर रंजीत कोई प्रतिक्रिया नही करता बल्कि शांति से उसके विपरीत बैठ जाता है|
फिर एक नौकर को आवाज देता है –
“कोई है ?”
“जी साहब |” उसकी आवाज पर झट से एक नौकर आकर उसके सामने खड़ा हो जाता है|
“चाय लेकर आओ और खाना लगाओ |”
रंजीत जितनी शांति से कहता है उसके विपरीत वो नौकर और उसके सामने बैठा विहान आश्चर्य से उसे देखने लगते है| नौकर तो बिना पलके झपकाए उसे देखने लगा तो रंजीत थोड़ी सख्त आवाज में उसे टोकता है –
“मैंने अभी कुछ बोला है – सुना नही तुमने ?”
“ज जी साहब |” नौकर उलटे पैर वहां से भाग लेता है|
विहान अभी भी उसे हतप्रभ देख रहा था जबकि रंजीत उसकी ओर बिना ध्यान दिए दूसरी ओर टेबल पर रखे पॉट को अपने हाथ में उठा लेता है| फिर उसके पीले पत्ते तोड़ता हुआ किनारे फेक रहा था|
विहान इतना आश्चर्य में था कि अबकी अब रंजीत दूसरा पॉट उठाने लगा तो वह उसकी ओर एक छलांग में आ पहुंचा और उसके हाथ से पॉट लेता हुआ बोल उठा –
“अब क्या घर के सारे गमले दुरुस्त करने के बाद बताएगा कि बात क्या है ?”
“कौन सी बात ? कुछ भी तो नही |” सहज भाव से कहता वह टेबल से अख़बार उठा लेता है|
“बस कर यार – इतना सस्पेंस क्रियेट करेगा तो मैं सोच सोचकर ही मर जाऊंगा – क्यों कर रहा है सारे वो काम जो तेरे को सूट ही नहीं करते – तू चाय पीएगा, घर का खाना खाएगा, गमला भी ठीक करेगा ? यार बता न क्या बात है ?”
“कुछ भी तो नही |”
“ओके ओके सॉरी – मैं क्लब नही आया इसलिए तू नाराज हो गया – अब बता न बात क्या है – तब से तू सारी अजीब हरकते कर रहा है |”
विहान हकबकाया सा बोले जा रहा था जबकि रंजीत उसके सामने बैठा अपने पैर पर पैर चढाते अब उसे देख रहा था| उस समय उसके होंठो के विस्तार विहान को एकदम से चौका देते है|
विहान अब अपना सर खुजाते हुए कहने लगा –
“एक मिनट एक मिनट – मैंने क्यों तुझे सॉरी बोला ? गलती तेरी थी – तूने ऑफिस में मुझसे रूडली बात की इसलिए मैं तेरे साथ क्लब नही गया – तो उस हिसाब से सॉरी तुझे बोलना था – फिर मैंने क्यों सॉरी बोला ?”
अब नौकर ट्रे में चाय लिए उसके सामने खड़ा ही हुआ था कि रंजीत बोल उठा –
“सोडे के साथ व्हिस्की लेकर आओ |”
अबकी फिर नौकर पलके झपकाए उसकी बात समझता रहा|
“सुना नही तुमने ?”
“जी जी साहब |” वह फिर बुरी तरह से हकबका गया और वापस जाने लगा|
ये देख रंजीत फिर उसे टोक उठा –
“और ये चाय ले जाओ यहाँ से |”
नौकर बेचारा तुरंत ही पलटा और चाय की ट्रे लिए वहां से तुरंत ही निकल गया|
विहान फिर से मुंह बनाए रंजीत के सामने बैठता हुआ बोल उठा –
“तू न बड़ा दुष्ट है – गलती खुद करता है और सॉरी दूसरो से बुलवाता है |”
“अच्छा छोड़ – फालतू में भाभी जी तरह मुंह लटकाए बैठा है |”
“हाँ भाभी ही बना ले – क्योंकि इस जन्म में तो इस घर में कोई लड़की आने से रही|”
अब नौकर उसके आगे शराब सजा रहा था| रंजीत अब इत्मिनान से शराब का घूँट भरते हुए बैठा था|
विहान भी अपने लिए गिलास बनाते हुए कहने लगा –
“मैं समझ गया – ये सब मुझे बनाने के लिए तू कर रहा था – नही तो मैं समझा कि ये आज पश्चिम में सूरज कहाँ से उग आया ? चाय पीएगा फिर घर का खाना खाएगा – जबकि मुझे तो याद ही नही कि कब तूने घर का बना खाना खाया होगा ? पापा के बाद से तो तूने जैसे मेंशन को भी होटल बना दिया – कब आता है कब जाता है कुछ पता नही – जब पापा थे तो तू उनकी सारी बात मानता था|”
अबकी विहान और रंजीत की नज़रे आपस में मिली और उस बीते वक़्त की नमी उनकी आँखों में झलक आई| इस बार दोनों अपने अपने मौन में गुम हो गए| बस गिलास पर गिलास लेकर अपने अपने हलक में उसे उतारते रहे मानों गुजरे अतीत को पीछे धकेलने की कवायत कर रहे हो|
****
अँधेरी रात की गहराई हर सीने में अलग अलग उतरती है| कही ये सन्नाटा बन जाती है तो कही ये दहशत| ऋत्विक के अत्याचार के बाद से वह लड़की अभी भी उसी तरह कमरे में बंद थी| वह फर्श पर उन्ही उदासी से पड़ी थी पर उसके पैरो पर पट्टी बंधी थी|
तभी दरवाजा फिर खुला| वह लड़की डरकर उठ बैठी लेकिन उस कमरे में आते अब वह जिसे देखती है उसे देख उसके चेहरे पर गहरी शान्ति छा जाती है| एक अन्य युवक उस कमरे में आता है और उसके ठीक सामने पालथी मारे बैठता हुआ कहता है –
“भाभी – ये खा लो |”
वह लड़की देखती है वह युवक अपने हाथ में पेपर रोल में लिपटा हुआ उसे कुछ खाने को दे रहा था|
लड़की कुछ नहीं कहती बस हिल्की भरी साँस भीतर खींचती हुई अपलक उसे देखती रहती है| कुछ समय पहले वही उसके पैरो पर दवा लगा कर गया था|
“भईया अभी घर पर नही है – आप न इसे खा लो – देखो आप नही खाओगी तो मैं भी खाऊंगा – लो – खाओ |”
वह बच्चो सा हट लिए वो रोल उसके मुंह की ओर बढ़ा देता है| वह लड़की जबरन उसका एक कौन अपने होठो के भीतर ले लेती है पर उसका चेहरा बता रहा हा कि उस कौर को ही अपने हलक में उतारना उसे कितना भारी पड़ रहा था|
“देबू भईया – आप चले जाओ – वरना आप पर भी मुसीबत आ जाएगी |”
ये मुसीबत उन दोनों के लिए वो ऋत्विक ही था| उस लड़की के सामने बैठा युवक दिखने में पच्चीस साल का लगता पर उसका तौर तरीका और हाव भाव बता रहा था कि उसमे मानसिक समझ कम थी जिससे उसका व्यवहार किसी जवान लड़के के जैसा होने के बजाये एक बच्चे की तरह था|
वह फिर से दूसरा कौर उस लड़की के मुंह की तरफ बढ़ाते हुए कहता है –
“देखना भाभी जब मैं बड़ा हो जाऊंगा न तो भईया को पनिश करूँगा – फिर आप कभी मत रोना – मैं आपको ढेर सारा अच्छा अच्छा खाना खिलाऊंगा – आपको गार्डन में भी ले जाऊंगा |”
देबू की बाल सुलभ बाते सुनते उसकी आँखों से आंसू बह निकलता है जैसे उसे यकीन हो गया हो कि ये सब उसके लिए बस एक सपना ही है, अब शायद ही वह इस कैद से कभी बाहर निकल पाए|
तभी एक आवाज आई और दोनों एकसाथ चौंक गए|
“तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?”
वो ऋत्विक था जो खुले दरवाजे पर खड़ा उन दोनों को ही जहरीली आँखों से देख रहा था| दोनों भी बुरी तरह से काँप जाते है| देबू जल्दी से बची रोटी अपनी पॉकेट में छिपाए खड़ा हो जाता है|
“मैंने मना किया था न कि मेरी इज्जात के बिना कोई यहाँ नही आएगा – आतिश |”
वह जोर से चीखा और उसके अगले ही पल एक बॉडीगार्ड उसके सामने हाजिर होता है|
ऋत्विक उसकी ओर मुड़ता है और एक जोर का तमाचा उस आदमी के गाल पर जमाता है| एक पल को वह समझ ही नही पाता कि उसे क्यों मारा गया फिर ऋत्विक देबू की ओर घूर कर देखता है| अब इसके बाद जैसे कुछ कहने को शेष नही रहता| देबू चुपचाप डरा सहमा उस कमरे से निकल जाता है| उसके निकलते बॉडीगार्ड आतिश भी दरवाजे के बाहर खड़ा हो जाता है|
ये सब होता हुआ देख वह लड़की भी देख रही थी जो अभी भी फर्श पर बैठी थी| उसके हाव भाव में फिर से डर और दहशत समा जाती है| अबकी उसका ध्यान ऋत्विक के बगल में जाता है| उसकी एक बांह में एक कमसिन लड़की झूल रही थी| उसने अपने कमसिन बदन को दिखाने के हिसाब से काफी छोटे और कम कपडे पहने थे| जाहिर सी बात थी कि वह क्यों ऋत्विक के साथ थी|
अब ऋत्विक उसे लिए कमरे के अंदर आने लगता है| उन दोनों को अंदर आते और बेड की ओर बढ़ते देख वह लड़की किसी तरह से फर्श से उठने लगती है| वह आह के साथ उठती कमरे से बाहर निकलना चाहती थी पर उससे पहले ऋत्विक की कड़क आवाज उसे टोक देती है –
“तुम्हे किसने बाहर जाने को कहा – दरवाजा बंद करो और यही खड़ी रहो तबतक जब तक मैं बैठने को न कहूँ |”
ये सुनते उस लड़की का चेहरा सफ़ेद पड़ गया| ऋत्विक का रोजाना नए नए तरह ला अत्याचार उसे सहना पड़ता था| उसमें वह कितनी तरह से उसे मारता पर ये अत्याचार उसके लिए असहनीय होता|
ऋत्विक के साथ आई लड़की भी थोड़ा हिचकिचा उठी –
“तो क्या तुम इस लड़की के सामने ही...?”
“हाँ तो ! तुझे पैसे किस बात के इतने सारे दिए |”
इसके बाद वह लड़की कुछ न बोल सकी| ऋत्विक उस कमरे में उसके सामने उस लड़की से intimate होने वाला था और इस बीच न वह कमरे से जा सकती थी और न अपनी जगह से हट सकती थी| वह कसकर आंखे भीचे अपने भीतर से उमड़ते आंसुओ को रोकने की नाकाम कोशिश करती रही|
धीरे धीरे आप कहानी के हर किरदार से मिलेंगे....तभी न तय करंगे हमारे साथ एक लम्बी यात्रा...
क्रमशः...................
अलार्म की लगातार की आवाज से तंग होकर आखिर विहान उठ बैठता है| सुबह के सात बज रहे थे|
“अरे यार ये अलार्म का टाइम कभी रुक क्यों नही जाता -|”
उस अलार्म को बंद करके वह फिर करवट बदलकर सो जाता है| अभी एक आधा मिनट भी नही बीता था कि दुबारा बज उठा| अबकी बिना देखे वह उसे बंद करने की कोशिश करता है पर वह बंद नही होती| वह समझ गया कि ये दूसरी घड़ी होगी| वह आवाज की दिशा को पहचानते उस दूसरी घडी को भी बंद कर देता है| वह उसे बंद करके तकिया से अपना चेहरा ढककर लेटने ही वाला था कि फिर तीसरी अलार्म घडी बज उठी|
इस बार वह झल्लाया हुआ उठकर बैठ जाता है|
“पता है ये काम रंजीत का होगा – यार कल दो बजे तो सोया था |”
अब उसके पास उठने के अलावा कोई चारा नही रहता| इसके अगले ही पल वह मेंशन के जिम की ओर चल देता है| और जैसा कि उसका अंदाजा सही था वहां रंजीत उसे बॉडी बिल्डिंग मशीनों के बीच हैवी एक्सरसाइज करता हुआ मिलता है| उस समय उसकी उपरी बॉडी पसीने से नहाई हुई थी जिसके बीच उसकी देह की मसल्स साफ़ साफ़ स्पष्ट थी|
विहान उसके आगे आता हुआ तेजी से भुनभुना उठा –
“न तुझ नींद आती है न तू दूसरो को सोने देता है – कसम से बेदर्द इन्सान है – यार तुझे जिम करना होता है तो मुझे क्यों जगा देता है|”
रंजीत कुछ नही कहता बस उस हैवी मशीन को अप डाउन करता रहता है|
“वैसे भी तू क्यों करता है इतनी मेहनत ? क्या करेगा ये सिक्स पैक बॉडी बनाकर ? लोग तो दो वजह से बनाते है – या तो किसी से भिड़ना हो या लड़की पटाना हो – पर तेरे साथ तो दोनों पोसिबल नही – फिर क्यों फालतू में खून जलाता रहता है – साथ में मेरा भी जलाता है |”
विहान अपनी बात कहते कहते उसके पास आ जाता है| इसी बीच रंजीत उसके हाथो में पुली खींचकर पकड़ा देता है| विहान को बोलने में ये ख्याल नही रहता कि रंजीत जैसे ही वहां से उठता है पुली के दवाब से विहान उस मशीन कि चेयर पर आ बैठता है|
“अरे यार – अभी तो नींद भी ठीक से नही खुली थी और तूने दिमाग खोल दिया |”
झक मारे उसे उसका स्टेप पूरा करना पड़ता है| कुछ देर बाद दोनों जब काफी एक्सरसाइज कर चुके तो रेस्ट टेबल पर अ बैठते है| विहान तो थका सा लेट जाता है|
विहान कहने लगा – “वैसे तेरे साथ इस एक्सरसाइज का फायदा तो हुआ है – आज कल क्लब में लडकियां मुझपर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहती है |”
रंजीत उसकी बात पर सख्ती से कहता है –
“फालतू बात नही ये बता कि आज की मीटिंग का क्या फ़ाइनल हुआ – मुझे जेनेरिक मेडिसिन की फैक्टरी जल्दी ही शुरू करनी है|”
“अरे हाँ यार ये तो मैं बताना ही भूल गया – तू जो चाहता था वो हो गया है – मेरी बात हुई ही कोई मिस्टर चौधरी है – वे हमारे साथ कोलैबरेशन तो तैयार है – पर बात इस पर अटकी है कि वे फैक्टरी सीकर में डालना को अग्री है |”
“वहां क्यों मुंबई में क्यों नही ?”
“अब उनका मेनेजर बता रहा तह कि जितना इन्वेस्टमेंट हम यहाँ करेंगे उसके हाफ से कम में भी सीकर में काम हो जाएगा इससे मुनाफा ज्यादा होने का चांस रहेगा – वैसे बात तो ठीक ही लगी |”
“लेकिन हमने अभी शहर से बाहर कही फिल्ड इन्वेस्टमेंट नही किया है – क्या पता कैसी जगह हो ? लैब मुंबई में और फैक्टरी राजस्थान में ? डील होल्ड पर डाल दो |”
“अरे मेरे भाई रुक तो जरा – आज बात करते है फिर सोच लेना |”
“तुझे पता है मैं दूसरो की शर्तो पर काम नही करता |”
“एक बार मीटिंग तो कर लेते है – वैसे भी ये चौधरी अजब इन्सान है – ऑफिशियल मीटिंग पता है कहाँ रखी है ?”
रंजीत प्रश्नात्मक नज़र से देखता है|
“शूटिंग रेंज में – आज शाम को |”
“ठीक है – देखते है इस शख्स का निशाना कितना अचूक साबित होता है?”
रंजीत सख्ती से कहता हुआ अब वहां से जाने लगता है|
****
“यार मैं नही जा रहा सुबह सुबह मैडम से डांट खाने |”
“क्यों डाटेंगी ? अभी तो कोई गलती नही की |”
“गलती तो हमसे हो गई भाई जो इस ऑफिस में काम कर लिया – उन्हें तो हर बात कर डांटना होता है – अभी देखा है मिस्टर तारीख मुंह लटकाए मैडम के केबिन से निकले है - तू जा मैं नही जा रहा अभी |”
“ये फ़ाइल तो तुमसे मंगाई है न ? अब मैं लेकर गया तो शर्तिया डांट खाऊंगा |”
वे दोनों अमारा के बारे में बात कर रहे थे| उसके रूखे और सख्त तेवर से सभी परेशान रहते थे|
“तुम दोनों यहाँ क्या खुसुर पुसुर कर रहे हो ?”
“अनिरुद सर ?” वे दोनों एक साथ बुरी तरह चौंक उठे| अनिरुद्ध अमारा के ऑफिस का हेड मेनेजर था|
“मेरे ख्याल से तुम्हे फ़ाइल लेने भेजा था तो अब तक पहुंचे क्यों नही ?”
दोनों फिर बुरी तरह अचकचा गए अब कैसे कहते कि वे अमारा का खराब मूड पहले ही भांप चुके थे इससे वे उसके सामने जाने से अभी बच रहे थे| उनको इस तरह चुप देख अनिरुद्ध आगे बढ़कर उनके हाथो से फ़ाइल लेता हुआ बोला –
“लाओ फ़ाइल मैं पहुंचा देता हूँ |”
ये सुनते दोनों झट से फ़ाइल उसकी ओर बढ़ा देते है|
अमारा अपने केबिन में बैठे बेहद रुखाई से मोबाईल पर कह रही थी –
“सो व्हाट केके – क्या हुआ जो मैंने पहले हाँ बोला और अब क्यों न बोल रही हूँ |”
उस पार उसका मंगेतर और शहर का बड़ा बिजनेसमैन कुनाल कोठारी था जिसे सभी केके बुलाते थे|
वह बेहद नरमी से कह रहा था – “सुनो न अमारा – मैंने अपने सारे फ्रेंड्स से तुम्हारा आना बता दिया और अब तुम ही नही आओगी तो क्या कहूँगा मैं तुमसे ?”
“बोल देना अमारा का मूड बदल गया |”
“यार ऐसे मत बोलो – मैं सबको बोल चुका हूँ – और वैसे भी मैंने तुमसे पूछकर पार्टी रखी थी फिर अब क्यों माना कर रही हो ? यहाँ सब हमारी शादी पर बात करना चाहते है और तुम हो कि मिलने तक का टाइम नही देती – हमारी मंगनी को छह महीने हो रहे है – अब तो शादी की डेट फाइनल करने का मूड ही बना लो |”
“मैंने बोला न मेरा मूड बदल गया – आज पार्टी जाने का मेरा मूड नही – मेरा कुछ और प्रोग्राम है |”
“कौन सा प्रोग्राम ?”
“उससे तुम्हारा कोई मतलब नही – मेरा मूड मेरा प्रोग्राम – और जब मन होगा तब आ जाउंगी – बाय |”
उस पार कुनाल अपनी बात कहता रह गया पर अमारा ने कुछ नही सुना| तभी दरवाजे पर नॉक करते हुए अनिरुद्ध उसके सामने खड़ा होता है|
“बोलो अनिरुद्ध |”
“ये रेड्डी कोंट्रेक्ट की फ़ाइल देने आया था|”
ये सुनते अमारा अपनी इजी चेयर पर पीठ टिकाती हुई उसे ध्यान से देखती है| ऐसा करते उसकी उंगलियाँ लगातार पेन्सिल से खेल रही थी|
“मिस्टर अनिरुद्ध आपको कितना टाइम हो गया इस ऑफिस में काम करते ?”
“ऑफिस में पांच साल और आपके साथ तीन साल |”
इसपर वह भौं उठाए उसे गौर से देखती है| अनिरुद सुगठित शरीर का एक स्मार्ट मेनेजर था| वह अमारा के पिता का पीए का बेटा था| और उन्ही के संरक्षण में काम करता था पर जब अमारा ने ऑफिस संभाला तब से वह उसके साथ काम कर रहा था| अमारा जितनी गुसैल और तेवर वाली समझी जाती थी उसके बीच अनिरुद शांत वह सुलझा हुआ नौजवान था|
उसके जवाब पर वह और सख्ती से कहने लगी –
“तो पता होना चाहिए कि जिसका जो काम है उसे ही करना चाहिए – ये फ़ाइल लाने का काम आपका नही |”
“मैम मैं तो कोटेशन ले कर आ रहा था फिर सोचा फ़ाइल मैं ही लेता चलू ताकि बार बार आपको कोई डिस्टर्ब न करे |”
अमारा के नाराजगी भरे स्वर पर वह मुस्कान के साथ अपनी बात कहता है| इसपर अमारा अब टेबल की ओर झुकती हुई कहने लगी –
“ओके तो बिना एक्स्ट्रा बोले मुझे कोटेशन बताओ – इस बार भी गवर्नमेंट का टेंडर हमे ही मिलना चाहिए |”
“बिलकुल मैम – इस बार तो न्यू टेस्टेड मेडिसिन भी इनक्लूड है – अगर ये टेंडर पास हो गया तो हम कंफर्म गवर्नमेंट टेंडर होल्डर बन जाएँगे |”
“ओके पढो |”
अमारा अब कुर्सी पर गर्दन टिकाए उसकी सुन रही वही अमारा के सामने बैठा अनिरुद्ध अपनी बात कहता कहता एक भरपूर प्यारी नज़र उसके चेहरे पर डालता है जो आम लोगो के लिए घमंडी लड़की का चेहरा होगा पर उसके लिए तो वो कुछ और ही था|
क्रमशः........................
उसके चेहरे पर एक शैतान भरी मुस्कान थी| एक नौकर उसके पैरो की ओर झुका उसके बूट के तस्मे बाँध रहा था जबकि उसकी नज़र बस उस कोने में थी जहाँ वह लड़की खुद में सिमटी खड़ी थी| जैसे ही वह तस्मे बांधकर खड़ा होता कुछ कहने को हुआ ही था कि ऋत्विक अपने हाथ से उसे पीछे धकेल देता है इससे वह गिरते गिरते बचता है| लेकिन तुरंत ही खुद को संभालता हुआ वह कमरे से बाहर निकल जाता है| वैसे भी ऋत्विक के मेंशन के हर नौकर को उसके इस तरह के व्यवहार की आदत थी|
वह अब उस लड़की के बेहद पास था जिस वजह से वह डरी सहमी सी दीवार में सिमटी जा रही थी| वह उसकी ओर झुकता हुआ कहने लगा –
“तुमने एक बार फिर से मुझे नाराज किया न – मैंने कहा था कुछ भी करो बस मुझे नाराज मत करना वरना मैं इतना खौफनाक बन जाऊंगा कि तुम्हारे जिस्म में रूह को भी चैन नही आएगा – समझी |” वह आखिरी शब्द बोलता हुआ इतनी जोर से चीखा कि वह लड़की लगभग रोने को हो आई|
अब वह उसके चेहरे को अपनी मुट्ठी में भीचे बेदर्दी से उसे पीछे धकेलता हुआ बोलने लगा –
“याद रखो तुम मेरी कैद में हो और मैं तुम्हारा मालिक हूँ – इसलिए ये बार बार यहाँ से भागने की कोशिश मत किया करो – इससे तुम बस मुझे नाराज करती हो और कुछ नही|”
झटके से वह उसे पीछे धकेल देता है जिससे एकदम से उसका सर दीवार से जा भिड़ता है| वह दर्द से बुरी तरह छटपटा उठी थी| उस हालत में भी वह खुद को समेटती उसके आगे गिड़गिड़ा उठी –
“म मुझे – जाने दो – मुझे छोड़ दो |”
वह बुरी तरह से बिफरती हुई रो रही थी जबकि उसके सामने खड़ा ऋत्विक मुस्करा रहा था| वह उसके आगे हाथ जोड़े उसके पैरो की ओर झुकने लगी ये देख वह एकदम से उसके बाल पकड़े उसे उपर खीच लेता है| इससे उसके हलक से बस एक दबी चीख निकलकर रह जाती है|
उसके बालो पर अपना दवाब बनाते हुए कहने लगा –
“अभी तुझे पकड़ा ही कहाँ है ठीक से पकड़ लूँ फिर तुझे छोडूगा – सुन – आज रात तू तैयार होगी मेरे लिए – बहुत दिन से मुझसे बच रही है – आज तुझे तेरे हिस्से की सजा दूंगा मैं|”
कहता हुआ एक बार फिर उसे पीछे धकेलता हुआ वह कमरे से लम्बे लम्बे डग भरता हुआ निकलने लगता है| जबकि वह लड़की अब बुरी तरह से बिलख कर रोने लगी थी|
“आतिश..|” उसके आवाज लगाते उसका ख़ास बॉडीगार्ड तुरंत उसके सामने हाजिर हो जाता है|
“इस लड़की को भी ले चलो |”
“शूटिंग रेंज में !! क्या आप आज रात वही रुकेंगे ?”
“तो और क्या बोला मैंने – |” ऋत्विक उसे आँखों से बुरी तरह से घूरते हुए बोला|
इससे वह तुरंत यस सर बोलता दो कदम पीछे हट जाता है|
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“यार इतनी दूर क्यों इसने मीटिंग रखी है कुछ समझ नही आ रहा ? क्या ये हमसे और कुछ डील करना चाहता है – हम तो बस फैक्ट्री की बात करना चाहते थे|”
विहान रंजीत के पीछे खड़ा था और उसे शीशे में देख रहा था जो एक आदमकद शीशे के सामने खड़ा अपने बाल सेट कर रहा था| जेल की सहायता से उसके बाल कुछ इस कदर सेट थे जैसे वह अपना हर तौर तरीका सेट रखता था| ये रंजीत का अंदाज था कि अगर उसे कोई उसके फुर्सत के पल में भी देखे तो लगता था जैसे अभी अभी वह मीटिंग के लिए तैयार हुआ हो| हर समय अपने चेहरे पर मौजूद एक से हाव भाव की तरह उसके कपडे और बाल भी सेट रहते थे| कुल मिलाकर एक इम्फोर्मल तरीके से वह रहता था|
“तुम इतना क्यों बोल रहे हो ? चल तो रहे है वही देख लेंगे|”
“हाँ भाई – वो तो ठीक है – अब हमे उससे डील करनी है तो उसकी बात माननी ही पड़ेगी |”
विहान की बात पर रंजीत एकदम से उसकी ओर मुड़ता हुआ कहने लगा –
“मज़बूरी बिजनेस की नहीं समय की है – हमे कोलैबरेशन बढ़ाना है बस |”
“ओके ओके भाई समझ गया – वैसे भी तुम्हारे आगे किसकी चली है – खैर चलो – उसने लोनावला में अपने गेस्ट हॉउस में मिटिंग रखी है – वही चल कर देखते है उसकी रेंज में कितना दम है ? चल भाई |”
विहान रंजीत के आने का इंतजार किए बिना कमरे से बाहर निकलने लगता है|
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“तुम क्यों जिद्द कर रही हो ? मैंने कहा न मैं संभाल लूँगा |”
“हाँ हाँ देख लिया कि तुम कितना संभाल सकते हो – दो दिन से कॉलेज में लेट आ रहे हो – क्योंकि तुम्हे कभी कैटरिंग का काम करने जाना होता है तो कभी कुकिंग का – और आजहोटल में जा रहे हो न ?”
वो प्रिशा थी जो कॉलेज के बाद हार्दिक के साथ किसी एकांत में बैठी थी| वे दोनों कॉलेज में दोस्त थे या उससे भी कुछ ज्यादा उनका गहरा रिश्ता था| उनके इस गहरे रिश्ते को बस एक ही चीज अलहदा कर देती थी और वो थी दौलत की दीवार| हार्दिक जहाँ एक मामूली लड़का था जो पार्ट टाइम काम कर करके अपने कॉलेज की फीस जमा करता वही प्रिशा उसकी सोच से कही ज्यादा अमीर थी| फिर भी वह उसकी मदद करना चाहती थी|
“हार्दिक तुम क्यों इन सब कामो में अपना समय बर्बाद करते हो – इससे तुम्हारी क्लास में पोजीशन खराब होती है – तुम मुझसे उधार समझकर ही ले लो – फिर बाद में लौटा देना – सिम्पल |”
“नही प्रिशा ये इतना आसान नही है – बात सिर्फ फीस की नही है – वो तो ट्यूशन क्लास से हो जाता है |”
“फिर ?”
“मुझे कुछ ज्यादा पैसे इकट्ठे करने है |” वह हिचकिचाते हुए कहता है|
“कितने ?”
“तुम ये सब छोड़ो न – कल भी तुम कैटरिंग में मेरी काफी मदद कर चुकी हो – बस वही बहुत था |”
“सो व्हाट हार्दिक – मैं तुम्हारे लिए ही ये सब करती हूँ |” अबकी प्रिशा आगे बढ़कर उसके हाथ पर अपना हाथ रखती हुई कहती है| जहाँ प्रिशा की आँखों में बेशुमार प्रेम झलक रहा था वही हार्दिक जैसे अब भी उनके बीच खिंची सीमा रेखा पार करने को नही तैयार था|
“प्रिशा प्लीज़ तुम जाओ – मुझे आज होटल में बार टेंडर का काम मिला है और वहां मैं तुम्हे नही ले जा सकता |”
“वाओ – तब तो बड़ा मजा आएगा – हम दोनों साथ में सबको सर्व करेंगे |”
“प्लीज़ प्रिशा समझो न – ये घर की पार्टी नही बार है – अब मैं जा रहा हूँ और तुम मेरे साथ बिलकुल नही आओगी – पिछली बार भी मना करने पर तुम जबरन आ गई – अबकी तुम ऐसा बिलकुल नही करोगी |”
“ओके |” प्रिशा फर्माबरदार बच्चे की तरह हाँ में सर हिलाती है पर हार्दिक फिर भी पांच मिनट तक उसी घूरता रहा जैस जानता हो कि उसकी मनमानी के आगे उसकी फिर नही चलने वाली|
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उस होटल के प्राइवेट लाउंज एरिया में कुणाल अपने ख़ास दोस्तों के साथ मौजूद थाजहाँ मौके के हिसाब से ड्रिक और स्नेक्स रखे थे| तभी कुणाल का एक दोस्त उसका ध्यान एक ओर दिलाता हुआ बोला –
“वो देख यार अमारा आ गई और तुम कह रहे कि वह नही आएगी|”
उसकी बात पर वह मुस्कराते हुए तुरंत उठकर उस दिशा में बढ़ जाता है जहाँ से अमारा आ रही थी| टाईट वी नेक टॉप के साथ मिडी में भी वह गर्वीली चाल चलती हुई उसी की ओर आ रही थी| कुणाल उसे देखते उसकी ओर आता कहने लगा –
“थैंक्स डअमारा – आखिर तुम आ गई |”
“बाई दवे मैं तुम्हारे लिए नही अपनी मीटिंग के लिए आई हूँ – क्या तुमने यही के लिए बोला था – ओके एन्जॉय विथ योर फ्रेंड्स |”
अमारा उससे कहती उसके बगल से यूँ निकल गई जैसे वो उसके लिए कुछ ख़ास मायने न रखता हो| उसकी इस हालत को उसके दोस्त भी देख लेते है| पर इन सबपर अपना ध्यान न देती अमारा आगे बढ़ गई जहाँ एक वेटर उसके लिए कुर्सी खिसकाए खड़ा था| वही एक दो क्लाइंट भी बैठे थे|
उसी पल वेटर एक नए वेटर को ड्रिंक लाने का संकेत करता है, उसके बाद दो वेटर चेहरे पर भारी मुस्कान लिए हथेली पर ट्रे टिकाए उस जगह आने लगते है पर अगले ही पल उन दोनों के पैर वही जम जाते है| सामने अमारा क्लाईट की ओर देख रही थी तो दूसरी ओर वे दोनों वेटर जो हार्दिक और प्रिशा थे अपने स्थान पर जमे रह गए थे|
क्या प्रिशा खुद को अमारा की नज़रो में आने से रोक पाएगी ? और कौन है वो लड़की जिसपर ऋत्विक जानवरों का सुलूक करता था ? क्या लोनावला में रंजीत उस लड़की से मिलेगा ? कहानी जारी रहेगी..आखिर हीरो को अपनी हिरोइन से मिलना जो है..
क्रमशः............
“अरे यार ये क्या नई मुसीबत है ? दी को यही आना था – अब तो मैं गई काम से |”
प्रिशा जैसे ही अमारा को होटल के अंदर बिजनेस मीटिंग में देखती है, उसकी आँखें एक पल के लिए चौड़ी हो जाती हैं।
"यह यहाँ क्या कर रही है?" प्रिशा मन ही मन सोचने लगती है। अमारा, जो हमेशा अपनी एलीट क्लास लाइफस्टाइल में व्यस्त रहती है, आज होटल की बिजनेस मीटिंग में दिखाई दे रही थी। प्रिशा जानती थी कि वे एक अरबपति की बेटी है, और उसे यहाँ देखकर उसकी बहन के जरुर जैसे होश उड़ जाएँगे।
प्रिशा को लगा कि अमारा उसे वेटर के कपड़ों में देख लेगी तो सीधे हेलिकॉप्टर बुलवाकर घर भेज देगी। और हार्दिक? वह तो यहाँ तक सोचने लगा था कि कहीं उसे "वेटर ऑफ द ईयर" का अवॉर्ड न मिल जाए!
प्रिशा दो कदम पीछे हटती हुई कहने लगी| हार्दिक अमारा को पहचानता था|
“मैंने कहा था न कि मेरे साथ मत आओ |” हार्दिक दबी आवाज में फुसफुसाया|
“अरे यार – अब करूँ क्या – ये दी भी अपना कोई प्रोग्राम पहले से बताती ही नही – अब यहाँ आना था तो बता देती – अरे ये मैं क्या बडबडाए जा रही हूँ – वो तो ऑफिशियल मीटिंग में आई है तो मुझे क्यों बताएंगी ?”
कुल मिलाकर दोनों की हालत खस्ता होने लगी|
“ये तुम दोनों ट्रे लिए यही क्यों रुक गए – आर्डर टेबल तक क्यों नही ले जा रहे ?”
तभी उनके पीछे से स्टाफ मेनेजर आता हुआ उन्हें टोकता है| आवाज सुनते वे पलटकर पीछे देखते है| आपने पीछे ही मेनेजर को खड़ा देख
तभी पीछे से मेनेजर आता है। उसका चेहरा ऐसा था जैसे किसी ने उसके चाय में चीनी की जगह नमक डाल दिया हो। वह घूरते हुए पूछता है, "तुम लोग अभी तक आर्डर क्यों नहीं पहुँचा रहे हो?"
प्रिशा एक पल के लिए सोच में पड़ जाती है, फिर बेमन से जवाब देती है, "सर, हम...हम बस... चम्मच गिन रहे थे। आप जानते हैं, ये कितना गंभीर मामला है।"
हार्दिक भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहता है, "हाँ, सर, चम्मचों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है!"
मेनेजर की भौहें तिरछी हो जाती हैं। "चम्मच? आर्डर पहुँचाओ, वरना दोनों की छुट्टी पक्की!"
प्रिशा और हार्दिक ने एक-दूसरे को देखा और अपने-अपने ट्रे संभाल लिए। जैसे ही दोनों ट्रे लेकर आगे बढ़ते हैं, प्रिशा की नजर बार-बार अमारा पर जाती है, जो बड़े आत्मविश्वास से अपने क्लाइंट्स के साथ बैठी थी। दोनों ने जैसे ही आर्डर लेकर टेबल की ओर कदम बढ़ाए, प्रिशा का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसकी नज़रें बार-बार अमारा पर जा टिकती थीं, जो सामने अपने बिजनेस पार्टनर्स के साथ बैठी थी। अमारा, हमेशा की तरह अपने नखरे दिखाते हुए, हाथ में कॉफी का कप लिए, कुछ ज्यादा ही एटीट्यूड के साथ बात कर रही थी।
"अगर इसने मुझे देखा तो… भगवान प्लीज़ बचा लो आज !" प्रिशा ने मन ही मन सोचा और हार्दिक की ओर इशारा किया, जो खुद को बेखबर दिखाने की नाकाम कोशिश कर रहा था।
प्रिशा सोच रही थी, "अगर अमारा मुझे देख लेगी, तो घर जाकर डैडी मुझे 'वेटर ऑफ द डिकेड' का खिताब दे देंगे।"
“बस अमारा मुझे देख न ले!” प्रिशा मन ही मन सोचती खुद में इतनी मग्न हो जाती है कि डरकर आँख ही बंद कर लेती है, पर तभी...
प्रिशा का पैर अचानक फिसलता है, और उसकी ट्रे में रखा एक बड़ा जूस का गिलास उछलकर सीधे एक बिज़नेसमैन की गोद में जा गिरता है! वह बिज़नेसमैन हैरान होकर खड़ा हो जाता है, “ये क्या हो रहा है?” उसकी आवाज इतनी जोर से थी कि पूरा हॉल उसकी ओर देखने लगता है।
“आज ख्त्न मेरा कैरियर |” हार्दिक बुदबुदाया|
हार्दिक ने जल्दी से प्रिशा की मदद करने की कोशिश की, लेकिन उसकी ट्रे भी कांप रही थी। "उफ्फ! हार्दिक, आज तेरा करियर नहीं, हमारा जीवन खत्म होने वाला है!" प्रिशा घबराते हुए फुसफुसाती है। और तभी....
अमारा का वह बिजनेस पार्टनर, जो वहाँ बैठा था, जब अचानक अपनी कुर्सी से खड़ा होता है तो उसकी कुर्सी खिसकते ही, हार्दिक की ट्रे झटके से पलट जाती है, और कॉफी का कप सीधे अमारा की ओर उड़ता है। सब कुछ स्लो मोशन में जैसे दिखने लगता है – प्रिशा की आँखें चौड़ी हो गईं, कॉफी अमारा के कपड़ों पर गिर जाती है। वह एक पल के लिए शॉक में खड़ी रह जाती है, फिर गुस्से से तमतमाते हुए उठती है, "तुमने मेरी इतनी महंगी ड्रेस बर्बाद कर दी!"
इससे पहले कि अमारा की नज़रे उनपर पड़ती प्रिशा खुद को बचाने के लिए मेज के नीचे छिपने की कोशिश करने लगती है, और हार्दिक तो घबराहट में एक ज़ोरदार चीख मार बैठा। एक ही पल में जैसे वहां भगदड़ मच गई|
मेनेजर अमारा की ओर भागा| प्रिशा के दिमाग में जैसे एक खलबली मच जाती है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस हालात से कैसे निकले। अब दोनों के पास कोई चारा नही बचता और दोनों सर पर पैर रखे वहां से भाग लेते है| दोनों बाहर आ गए थे| वे बुरी तरह हांफते दीवार की ओट लिए खड़े थे|
हार्दिक, जो अब तक डरा हुआ था, अचानक हंस पड़ा, "वाह! अगर ये सीन किसी फिल्म में होता, तो इसे 'मिशन इंपॉसिबल: वेटर एडिशन' कहा जाता!"
प्रिशा ने राहत की सांस ली। उसने सोचा, - “शायद ये काम इतना बुरा नहीं था।“ इसके बाद दोनों मुंह में हाथ रखे तेजी से हँस पड़े|
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लोनावाला के ठंडे मौसम में एक हल्की सी धुंध फैली हुई थी। रंजीत, विहान के साथ बिजनेस मीटिंग के सिलसिले में यहाँ आया हुआ था। सुनिश्चित समय के अनुसार उन्हें इंतज़ार करते काफी देर हो गई थी| इसलिए दोनों इंतजार कर रहे थे|
ये एक अनौपचारिक मीटिंग थी जिस वजह से विहान कैजुअल कपड़ो में जबकि रंजीत पूरी तरह से बिजनेस सूट में था| रंजीत जिसे हर चीज़ में परफेक्शन पसंद था, चाहे वो बिजनेस हो या उसकी जिंदगी। वह उस गेस्टहाउस की लॉबी के वीआईपी सेक्शन में बैठा था| पर कुछ बिजनेस लेडिज के वहां आते वह असहज महसूस करने लगा जबकि विहान की नज़रे वही ठहर गई| लेकिन रंजीत जिसे खासकर लड़कियों से चिढ़ थी जिस वजह से वह वहां से उठने लगा|
“कहाँ जा रहा है ?”
“यहाँ मेरा दम घुट रहा है – जब मीटिंग स्टार्ट हो बता देना - बाहर हूँ मैं|”
विहान जानता था रंजीत को अब रोकना मुमकिन नही इससे वह भी बस हाँ में सर हिला देता है|
गेस्ट हाउस में वह कुछ समय के लिए बाहर खुले आंगन में टहलने निकला। उसकी आंखें हमेशा की तरह गंभीर और चेहरे पर वही जमी हुई कठोरता मौजूद थी। तभी उसने धुंध के बीच एक परछाई को देखा, जो दीवार के पास दुबकी हुई थी। वह लड़की थी—बिखरे बाल, उलझी हुई आँखें, और चेहरा ऐसा जैसे कई रातों से सोई न हो। उसकी कपड़े भी किसी अमीर परिवार की झलक दे रहे थे, लेकिन उस पर बेहाल हालत का असर साफ़ दिखाई दे रहा था।
कुछ ऐसा था उसमे कि रंजीत खुद को उसे देखने से रोक नही पाया| उसने एक पल के लिए रुक कर उसे देखा। उनकी नजरें मिलीं, और उस एक पल में दोनों के बीच खामोशी की एक अजीब सी लहर दौड़ गई। लड़की की आंखों में डर और बेबसी थी, लेकिन एक तरह की उम्मीद भी छिपी हुई थी, जैसे वह किसी से मदद की उम्मीद कर रही हो, फिर भी कुछ कहने से डर रही हो। रंजीत की सख्त निगाहें, जो कभी किसी पर ज्यादा देर नहीं ठहरती थीं, उस लड़की पर थम गईं।
उसे देख कर, रंजीत के अंदर एक अनजानी सी हलचल मच गई। उसने कभी अपने इमोशन्स को ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी, लेकिन आज कुछ अलग था। वह लड़की उसकी ओर कुछ कहने को बढ़ी, पर फिर अचानक रुक गई। शायद उसे रंजीत की ठंडी आँखों से डर लग रहा था, या शायद उसकी अपनी बेबसी उसे रोक रही थी।
रंजीत ने कुछ पल उसे देखा, लेकिन फिर अपने आप को संभालते हुए पीछे मुड़ गया। उसे लगा कि ये बस एक और लाचार इंसान है, जिसका उसकी जिंदगी में कोई मतलब नहीं। वह वापस चलने लगा, लेकिन उसकी बेख्याली ने उसे सचेत नहीं किया कि उस लड़की के लिए खतरा उसके पास ही मंडरा रहा था।
जैसे ही रंजीत मुड़ा, एक और परछाई धीरे-धीरे लड़की की ओर बढ़ी। वह ऋत्विक था| उसके चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान थी, उसकी आँखों में विजय की चमक बढ़ उठी। वह चुपचाप पीछे से आकर लड़की का हाथ पकड़ता है। लड़की हल्की सी चीख निकलने को होती है, पर ऋत्विक उसे ज़ोर से खींचकर अपने साथ अंधेरे में ले जाता है, उसकी आवाज़ वही दबकर रह जाती है|
रंजीत अब तक पूरी तरह से अनजान था कि उसके सामने क्या हुआ। वह अपनी दुनिया में खोया, बिना एक बार पीछे मुड़े, वापस गेस्ट हाउस के अंदर चला गया। उसकी आँखों में अभी भी वो पल था, जब उसने लड़की की बेबस आँखों को देखा था, लेकिन उसके कठोर स्वभाव ने उसे यह सोचने से रोक दिया कि शायद वो उससे मदद की उम्मीद कर रही थी।
अंधेरे में लड़की फिर से कैद हो चुकी थी, और रंजीत ने उस सच्चाई को कभी महसूस ही नहीं किया।
ऋत्विक, जिसने उस लड़की को एक बार फिर अपनी गिरफ्त में ले लिया था, उसे गेस्ट हाउस के पीछे बने एक पुराने, सुनसान कमरे में ले गया। यह कमरा वैसे तो कभी किसी को दिखाई नहीं देता था, लेकिन यह उसकी अंधेरी साजिशों का अड्डा बन चुका था। कमरा छोटा, दमघोंटू, और न जाने कितने राज़ों का गवाह था। कमरे के कोने में सिर्फ एक छोटी सी खिड़की थी, जहां से हल्की रोशनी आती थी, लेकिन वह भी किसी जेल की सलाखों से कम नहीं लगती थी।
ऋत्विक ने लड़की को कमरे के अंदर धकेला और दरवाज़े को ज़ोर से बंद कर दिया। लड़की ने दीवार का सहारा लेते हुए खुद को संभाला, लेकिन उसके चेहरे पर डर की लकीरें साफ दिख रही थीं।
"तुमने सोचा था कि तुम भाग जाओगी?" ऋत्विक की आवाज़ में गुस्से और जीत का अजीब मिश्रण था। "कितनी बार कहा है कि मुझसे दूर जाने का ख्याल भी मत रखना।"
लड़की ने चुपचाप, बिना किसी प्रतिरोध के, उसकी बात सुनी। वह जानती थी कि अब उसका किसी से बच पाना मुश्किल है, खासकर ऋत्विक से। उसकी आँखों में आँसू भरे थे, पर उसने उन्हें रोकने की कोशिश की। ऋत्विक उसकी आँखों में यह डर देख कर और क्रूर हो गया।
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे खिलाफ जाने की?" उसने उसकी कलाई को ज़ोर से पकड़ लिया, इतनी ज़ोर से कि लड़की को दर्द महसूस होने लगा। उसका चेहरा पीला पड़ गया था, लेकिन वह कुछ कहने या चिल्लाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। ऋत्विक को यही चाहिए था—बिना आवाज़, बिना प्रतिरोध की एक कठपुतली।
ऋत्विक ने उसे एक पुरानी, धूल भरी कुर्सी पर धकेल दिया और बोला, "अब तुम्हें सिखाऊंगा कि मुझसे कैसे दूर नहीं जाया जाता।" उसकी आवाज़ में एक ठंडक और क्रूरता थी, जो दिल को दहला देती थी।
इसके बाद उसने उस लड़की को कुर्सी पर बाँध दिया| तभी ऋत्विक का मोबाईल बज उठा| उसे बिना रिसीव किए ही उसका हाव भाव बदल गया जैसे वह जानता हो कि किसका कॉल है|
“सोचा था आज तुम्हारे साथ रात बिताऊंगा पर तुमने फिर मुझे नाराज कर दिया –|”
वह उसका चेहरा क्रूरता से पकड़ता हुआ चीखा –
“तुम्हे ढूँढने में मेरा काफी समय बर्बाद हो गया – अभी तो फ़िलहाल मैं जा रहा हूँ लेकिन ये मत भूलना कि इस बात की तुम्हे सजा नही मिलेगी |”
इसके बाद वह उसी उस जगह बंद करके बाहर निकल गया| इसके पीछे वह लड़की सिसकती हुई वही रोती रह गई|
क्रमशः...........
अमारा रेस्टोरेंट के एक कोने में बैठी, अपने कपड़ों पर गिरी कॉफी को साफ़ करने की नाकाम कोशिश कर रही थी। उसका मूड पूरी तरह से खराब हो चुका था, और उसकी महत्वपूर्ण मीटिंग भी इस गड़बड़ में बर्बाद हो गई थी। उसका गुस्सा अंदर ही अंदर उबल रहा था। वह जानती थी कि उसकी ड्रेस पर लगे दाग़ को लेकर उसके ऑफिस में लोगों की निगाहें उस पर टिक जाएंगी। और यह सब वेटर्स की नादानी की वजह से हुआ था।
तभी उसकी नज़र सामने पड़ी, जहां से उसका मंगेतर कुणाल प्रवेश कर रहा था। कुणाल उसका मंगेतर था लेकिन अमारा हमेशा उसके साथ एक अजीब दूरी बनाए रखती थी। शायद उसका एटिट्यूड ही ऐसा था—कभी किसी को अपने पास आने नहीं देती थी, यहां तक कि अपने मंगेतर को भी।
कुणाल ने आते ही मुस्कुराते हुए कहा, "अमारा, आज का दिन थोड़ा खराब हो गया लगता है, लेकिन मैं इसे बेहतर बनाने के लिए आया हूँ।"
अमारा ने उसकी ओर देखा, उसके चेहरे पर हल्की सी झुंझलाहट थी।
"कुणाल, मैं अभी मूड में नहीं हूँ - सब कुछ खराब हो चुका है, और ऊपर से मेरी ड्रेस भी बर्बाद हो गई है।"
कुणाल ने उसे ध्यान से देखा और फिर पीछे से एक खूबसूरत पैकेज निकाला।
"मुझे नही पता था कि ऐसा कुछ हो जाएगा – मैंने तुम्हारे लिए ये एक खास ड्रेस ली थी जो तुम्हें जरूर पसंद आएगी - तुम चाहो तो इसे यहीं बदल सकती हो।"
अमारा, जो पहले कुणाल की बातों पर ध्यान नहीं दे रही थी, अब थोड़ी हैरान हो गई। उसने पैकेज की तरफ देखा और फिर कुणाल की ओर। उसकी पसंद को लेकर अमारा हमेशा आशंकित रहती थी, लेकिन इस बार कुणाल की बातों में कुछ ऐसा था जो उसे इम्प्रेस कर गया।
"क्या सच में?" उसने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा।
कुणाल ने हल्की मुस्कान दी, - "तुम्हें पता है, मैं तुम्हारी पसंद जानता हूँ - और हाँ, आज के खास दिन के लिए मैंने ही सोचा कि तुम्हें कुछ अलग सा तोहफा दूं।"
अमारा का गुस्सा जैसे पिघलने लगा। उसने पैकेज को खोला और देखा कि वाकई अंदर एक बेहद खूबसूरत ड्रेस थी, जो बिल्कुल उसकी पसंद के मुताबिक थी। इससे पहले कि वह कुछ कहती, रेस्टोरेंट का मेनेजर घबराते हुए आ गया।
"मैम, जो भी हुआ उसके लिए हम माफी चाहते हैं - यह हमारी गलती थी कि आपकी मीटिंग और मूड खराब हुआ - हम आपकी नाराज़गी को समझते हैं, और इसके लिए हम आपको एक शानदार कोम्प्लिमेंटरी डिनर ऑफर करना चाहते हैं।"
कुणाल ने मेनेजर की बात को ध्यान से सुना, फिर उसे ठंडी नजरों से घूरते हुए सख्त लहजे में कहा, - "यह जो भी हुआ, उसकी जिम्मेदारी वाकई तुम्हारी है – तुम्हारे स्टाफ की लापरवाही से अमारा का पूरा दिन खराब हो गया - एक कोम्प्लिमेंटरी डिनर से यह गलती सुधरने वाली नहीं है – तुमको यह समझना होगा कि ऐसे प्रोफेशनल माहौल में ऐसी गलतियां माफ़ी योग्य नही होती और जब अमारा जैसे बिजनेस वोमेन हो तब तो और भी नही ।"
मेनेजर हड़बड़ाते हुए क्षमा मांगता रहा, लेकिन कुणाल की सख्त बातें उसे समझ आ गई थीं। अमारा, जो अब तक हमेशा कुणाल से दूरी बनाए रखती थी, उसकी इस प्रोफेशनलिज़्म और सख्ती से बेहद प्रभावित हो गई।
अमारा ने कुर्सी से उठते हुए कुणाल की ओर देखा और हल्की मुस्कान दी। "ठीक है कुणाल, तुमने मेरा मूड सही कर दिया - मैं तुम्हारे साथ डिनर करने के लिए तैयार हूँ लेकिन पहले मैं ये ड्रेस बदल लूं।"
कुणाल ने संतोष की नज़र से उसकी ओर देखा। वह जानता था कि यह एक छोटी जीत थी, लेकिन अमारा को इम्प्रेस करने का सही मौका उसने भुना लिया था।
थोड़ी देर बाद, अमारा ने वही नई ड्रेस पहनकर कुणाल के साथ शानदार डिनर के लिए हामी भर दी।
****
लोनावला की ताज़ी हवा में हल्की ठंडक थी, और गेस्ट हाउस से थोड़ी दूर स्थित शूटिंग रेंज पर रंजीत ऋत्विक का इंतजार कर रहा था। वह काले चश्मे में, सटीक निशाना लगाते हुए पूरी तरह से खोया हुआ था। उसके हाथ में बंदूक की पकड़ इतनी मजबूत थी कि हर बार उसका निशाना एकदम सटीक लग रहा था। हर बार ट्रिगर दबते ही एक तेज़ धमाका होता, और टारगेट के बीचों-बीच एक नया छेद बन जाता।
रंजीत के साथ खड़ा विहान, मुस्कुराते हुए उसके निशाने को देख रहा था।
"भाई, तुम्हारी शूटिंग स्किल्स तो कमाल हैं! लगता है तुमने अपने बिजनेस के साथ-साथ किसी स्पेशल ट्रेनिंग में भी महारत हासिल की है|” विहान ने चुटकी लेते हुए कहा।
रंजीत ने हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखें अब भी टारगेट पर टिकी थीं।
"सिर्फ फोकस चाहिए, विहान - बाकी सब आसान हो जाता है," उसने शांत आवाज़ में जवाब दिया।
तभी शूटिंग रेंज पर एक शख्स तेज़ी से आया और रंजीत के पास आकर रुक गया। वह ऋत्विक का मेनेजर था। उसने एक हल्का सा झुकाव करते हुए कहा, "सर, ऋत्विक सर आ रहे हैं।"
रंजीत ने सिर हिलाते हुए बंदूक नीचे रख दी और अपना चश्मा उतारा। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, लेकिन उसकी आँखों में गहरी सतर्कता थी। थोड़ी ही देर में, ऋत्विक गाड़ी से उतरा और अपनी ट्रेडमार्क चाल में, आत्मविश्वास से भरा हुआ, शूटिंग रेंज की तरफ बढ़ा।
रंजीत ने उसे देखा और एक पल के लिए उसे पिछली मुलाकात याद आ गई। वह और ऋत्विक अजीब हालात में मिले थे। जैसे ही ऋत्विक पास आया, उसने रंजीत की ओर देखकर तालियाँ बजानी शुरू कर दीं। उसकी आँखों में एक हल्की चमक थी।
"वाह, रंजीत! तुम तो वाकई में शार्पशूटर हो! लगता है तुम्हें बिजनेस के साथ-साथ रेंज पर भी जीतने की आदत है।"
रंजीत ने बिना किसी भाव के हल्का सिर हिलाया।
"बस फोकस की बात है, ऋत्विक।" उसकी आवाज़ उतनी ही स्थिर और ठंडी थी जितनी उसकी नजरें।
ऋत्विक मुस्कुराया, जैसे वह रंजीत के शांत और गंभीर स्वभाव का आदी हो।
"अच्छा है,- हमारी खूब जमेगी ये मुझे अपनी पहली मुलाकात से समझ आने लगा था पर नही पता था हम बिजनेस पार्टनर बनने वाले है|" ऋत्विक की बात पर रंजीत उसी गंभीरता से उसे देखता रहा|
ऋत्विक ने आगे कहा -
"वैसे, मैं तुम्हारे बिजनेस स्किल्स के साथ-साथ अब तुम्हारी शूटिंग स्किल्स का भी कायल हो गया हूँ - लगता है कि हमें पार्टनरशिप करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।"
रंजीत ने उसे देखा, थोड़ी हैरानी के साथ।
"अभी तो हमने मीटिंग का एजेंडा भी डिस्कस नहीं किया," उसने सीधे शब्दों में कहा।
ऋत्विक ने हंसते हुए जवाब दिया, - "जब किसी इंसान में फोकस और आत्मविश्वास दिखता है, तो मीटिंग्स की जरूरत नहीं होती - मैं जानता हूँ कि हम दोनों के लिए यह डील फायदेमंद होगी और वैसे भी, तुम्हारी शार्पशूटिंग ने मेरा मन पहले ही बना दिया है!"
रंजीत ने एक पल के लिए सोचा, लेकिन उसके चेहरे पर कोई बदलाव नहीं आया। वह जानता था कि ऋत्विक का व्यक्तित्व अजीब और अप्रत्याशित था। वह अपनी शर्तों पर खेलना पसंद करता था। लेकिन रंजीत के लिए यह डील जरूरी थी, और ऋत्विक के इस अप्रत्याशित फैसले ने उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया।
"ठीक है," रंजीत ने कहा। "अगर तुम यही चाहते हो, तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है।"
ऋत्विक ने हंसते हुए पूरी गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाया|
"मैं जानता था कि तुम मेरे फैसले पर भरोसा करोगे - अब चलो, एक ग्लास उठाते हैं और इस पार्टनरशिप का जश्न मनाते हैं!"
रंजीत ने हल्का सा सिर हिलाया, लेकिन उसके अंदर कहीं एक अजीब सी बेचैनी थी। ऋत्विक के अचानक राजी हो जाने का यह तरीका उसे सामान्य नहीं लगा, लेकिन उसने इसे नज़रअंदाज करते हुए सोचा कि शायद यह सिर्फ उसका अंदाजा हो।
दोनों बिजनेसमेन रेंज से बाहर निकलने लगे, और रंजीत के मन में यह सवाल अब भी गूंज रहा था—ऋत्विक का यह रवैया सिर्फ बिजनेस के लिए था, या इसके पीछे कुछ और छिपा था?
क्रमशः............
क्या कहानी पसंद नही आ रही..उतने कमेन्ट दिख नही रहे......
प्रिशा और हार्दिक रेस्टोरेंट से बाहर निकल आए थे। उनके चेहरों पर हल्की मुस्कान थी, जो अंदर की सारी गड़बड़ी को याद करके निकल रही थी। पहले वे दोनों हंसते रहे, मजाक करते रहे कि किस तरह उन्होंने गलती पर गलती की, और किस तरह मेनेजर उन्हें घूर रहा था। लेकिन धीरे-धीरे हार्दिक की मुस्कान फीकी पड़ने लगी, और उसका चेहरा गंभीर हो गया।
प्रिशा ने उसकी ओर देखा और उसकी बदली हुई भावनाओं को भांपते हुए पूछा, "क्या हुआ हार्दिक? तुम अचानक से चुप क्यों हो गए?"
हार्दिक ने लंबी सांस ली और सड़क की ओर देखते हुए बोला, "प्रिशा मुझे इस पार्ट-टाइम नौकरी की सख्त जरूरत है - मुझे पढ़ाई के साथ-साथ पैसे भी कमाने हैं - मेरा गाँव... मेरी जमीन... मुझे वहाँ की चौधरी से अपनी जमीन वापस लेनी है - और जब तक मैं उतनी रकम जमा नहीं कर लेता, तब तक मैं गाँव वापस नहीं जा सकता।"
प्रिशा उसकी बातें सुन रही थी, पर उसे यह सब ठीक से समझ नहीं आ रहा था। वह जानती थी कि हार्दिक के पास इतने पैसे नहीं थे, लेकिन वह इस संघर्ष की गहराई में कभी गई नहीं थी।
प्रिशा, हार्दिक के कंधे पर हाथ रखकर बोली, -
"हार्दिक, तुम चिंता क्यों कर रहे हो? मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ - जितनी रकम चाहिए, मैं तुम्हें दे सकती हूँ - मुझे पता है कि तुम्हारे लिए यह जरूरी है, और हम दोस्त हैं, इसलिए मदद करने में कोई बुराई नहीं है।"
हार्दिक ने एकदम से सिर हिलाया - "नहीं, प्रिशा - मैं तुम्हारी मदद नहीं ले सकता - यह रकम बहुत ज्यादा है, और मैं नहीं चाहता कि हमारे रिश्ते में पैसों की दीवार खड़ी हो - तुम समझती क्यों नहीं?"
प्रिशा ने उसकी आँखों में देखा और हल्के स्वर में कहा, -
"हार्दिक, मैं तुम्हें मजबूर नहीं कर रही हूँ। मैं बस मदद करना चाहती हूँ क्योंकि मैं देख सकती हूँ कि तुम इस प्रोब्लम से कितने परेशान हो।"
हार्दिक ने उसकी बात को ध्यान से सुना, पर उसके मन में एक और चिंता थी—प्यार। वह प्रिशा से प्यार करता था, और उसकी आर्थिक स्थिति हमेशा से उसके मन में एक बोझ थी। वह जानता था कि प्रिशा अमीर थी, और वह नहीं चाहता था कि पैसे उनके रिश्ते में कोई दरार पैदा करें।
हार्दिक ने उसकी तरफ देखा और धीरे से बोला, -
"मैं तुमसे प्यार करता हूँ, प्रिशा और यही वजह है कि मैं तुम्हारी मदद नहीं ले सकता - मैं नहीं चाहता कि पैसे हमारे बीच आएं - मैं तुम्हें वह सब कुछ देना चाहता हूँ जो तुम डिज़र्व करती हो, लेकिन मैं यह सब अपनी मेहनत से हासिल करना चाहता हूँ।"
प्रिशा ने हार्दिक की आंखों में सच्चाई देखी। वह जानती थी कि उसका आत्म-सम्मान उसके लिए कितना महत्वपूर्ण था।
हार्दिक ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, -
"मैं अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए यह पार्ट-टाइम काम कर रहा हूँ, ताकि मैं एक दिन अपने गाँव वापस जा सकूँ और वहाँ की जमीन जो चौधरी ने मुझसे छीनी है, उसे वापस ले सकूँ। मेरे दादा की जमीन थी वो, और जब तक मेरे पास वो रकम नहीं होती, मैं अपने गाँव वापस नहीं जा सकता - यही वजह है कि मुझे इस नौकरी की सख्त जरूरत है।"
प्रिशा ने एक गहरी सांस ली और हार्दिक के पास खड़े होकर हल्के स्वर में कहा,
"मैं तुम्हें समझती हूँ, हार्दिक - और अगर तुम नहीं चाहते कि मैं तुम्हारी मदद करूं, तो मैं तुम्हारी बात मानूंगी - बस इतना जान लो कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, चाहे तुम जिस रास्ते पर चलो।"
हार्दिक ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में एक राहत की झलक थी। उसने प्रिशा का हाथ पकड़ा और धीरे से मुस्कुरा दिया। "शुक्रिया," उसने बस इतना ही कहा।
दोनों के बीच एक पल के लिए खामोशी छा गई, लेकिन उस खामोशी में प्यार और समझ का एहसास था। हार्दिक को यह यकीन था कि वह अपनी मेहनत से अपने सपनों को पूरा करेगा, और प्रिशा उसके हर कदम पर साथ होगी।
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एक बड़ी कॉन्फ्रेंस रूम में हल्की-हल्की रोशनी फैली हुई थी। टेबल के चारों ओर कंपनी के बोर्ड सदस्य बैठे हुए थे, और सबकी नज़रें टेबल के उस छोर पर थीं, जहाँ चेयरपर्सन जगदीश दहल बैठे थे। उनके बगल में उनकी बेटी, अमारा, जो कंपनी की सीईओ थी, पूरी तैयारी के साथ अपनी प्रेजेंटेशन की फाइलें खंगाल रही थी। दोनों की बॉडी लैंग्वेज से साफ झलक रहा था कि आज की मीटिंग उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी।
जगदीश ने अपने हाथ से इशारा करते हुए सभी का ध्यान खींचा, फिर गंभीर आवाज़ में बोले, "जेनरिक दवाओं का बाजार हमारे लिए सबसे बड़ा अवसर है, लेकिन यह आसान नहीं होगा - हर कंपनी अपने तरीके से इस मार्केट पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है लेकिन अब हम ऐसा कुछ करेंगे जो अब तक किसी ने नहीं किया।"
अमारा ने अपने लैपटॉप स्क्रीन पर चार्ट प्रदर्शित किया और बोलना शुरू किया, -
"हमारी कंपनी के पास टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग दोनों में पर्याप्त रिसोर्सेज हैं - हमें केवल एक आक्रामक रणनीति की जरूरत है, जो हमें इस पूरे मार्केट में लीड दिला सके।"
उसने एक स्लाइड दिखाते हुए कहा, -
"सबसे पहले, हमें हमारे उत्पादों की लागत को बाकी कंपनियों से कम करना होगा। लेकिन यह काफी नहीं है। हमें सप्लाई चैन पर भी पूरा कंट्रोल चाहिए - हर मेडिकल स्टोर, हर अस्पताल, और ऑनलाइन प्लेटफार्म्स पर हमारी दवाएं पहले पहुंचनी चाहिए - हम यहां सिर्फ प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगे—हम हर जगह होंगे, हर समय, हर किसी के लिए।"
जगदीश ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा, -
"चाहे इसके लिए हमें किसी भी स्तर पर जाना पड़े, हम जाएंगे - हमारे प्रतिद्वंद्वी कीमतों में मुकाबला नहीं कर पाएंगे अगर हम उनके सप्लायर्स को अपने पक्ष में कर लेंगे - हमें बस एक मजबूत नेटवर्क बनाना है।" उनकी आँखों में एक कठोर दृढ़ता थी।
अमारा ने आगे जोड़ा, - "हमारे पास विज्ञापन बजट भी बढ़ाना होगा - हमें यह दिखाना है कि हमारी दवाएं न केवल सस्ती हैं, बल्कि गुणवत्ता में भी बेहतरीन हैं - हर प्लेटफार्म पर, हर डॉक्टर के रूम में हमारी दवाओं की जानकारी होनी चाहिए - पब्लिक ओपिनियन हमारी तरफ होना चाहिए - इसके लिए अगर हमें कुछ मुफ्त सैंपल देने पड़ें या भारी डिस्काउंट ऑफर करना पड़े, तो हम करेंगे।"
बोर्ड के सदस्य एक-दूसरे को देख रहे थे, उनकी आँखों में योजना की आक्रामकता को लेकर कुछ असमंजस था, लेकिन जगदीश की निगाहें किसी भी सवाल को दबा देती थीं।
जगदीश ने गंभीर स्वर में कहा, -
"याद रखो, हमें किसी भी हालत में मार्केट का राजा बनना है - इसके लिए चाहे सप्लायर्स हों, रिटेलर्स हों, या डॉक्टर—हर किसी को हमें अपने साथ जोड़ना होगा। कोई भी कसर नहीं छोड़ी जाएगी - अगर हमें दूसरों से सस्ती दवाएं बनानी हैं, तो बनाएं - अगर किसी को मार्केट से हटाना है, तो हटाएं - हमें हर कीमत पर जीतना है।"
अमारा ने आखिरी स्लाइड दिखाते हुए कहा, -
"यह सिर्फ बिजनेस नहीं, बल्कि हमारी कंपनी की प्रतिष्ठा का सवाल है - और मैं, बतौर सीईओ, यह सुनिश्चित करूंगी कि हमारा हर कदम सही दिशा में हो और हम पूरे मार्केट पर कब्जा करें।"
मीटिंग रूम में एक गहरी खामोशी थी। सब जानते थे कि जगदीश और अमारा के नेतृत्व में यह सिर्फ एक योजना नहीं थी, बल्कि एक संकल्प था।
इसके बाद सारे बोर्ड मैम्बर चले गए और पिता पुत्री ही रूम में रह गए| जगदीश अमारा की ओर मुस्कराते हुए देखते हुए कहने लगे –
“वेल डन अमारा – आज का तुम्हारा प्रेज्टेशन काबिले तारीफ था|”
“डैड – तारीफ तब करिएगा जब सारा मार्किट मैं अपनी कम्पनी के हिस्से कर लुंगी - |”
“वाय नॉट |”
“अभी एक मुश्किल और हल करनी है – रॉ मेटेरियल के लिए हमे राजस्थान के चौधरियों से भी बात करनी होगी – वहां से डील फाइनल हो गई तो आगे ये काम तो मैं आसान कर ली लुंगी |”
इसपर दोनों सहमती में मुस्करा देते है| मीटिंग खत्म करके अमारा कुणाल से मिलने निकल जाती है|
आने वाले समय में क्या अमारा और रंजीत एक दूसरे के प्रबल प्रतिद्वंदी बनेंगे ? क्या भाई बहन के बीच बिजनेस वॉर होगा ? आगे जानने के लिए कनेक्ट रहे और कमेन्ट करते रहे.....
क्रमशः........................
रंजीत गेस्ट हाउस के बाहर खड़ा अपने फोन पर नज़रें जमाए विहान का इंतजार कर रहा था। हवा में एक हल्की ठंडक थी, और अब अँधेरा भी धीरे धीरे घिर आया था इससे वह जल्द ही मुंबई लौटने की तैयारी में था। तभी फोन बजा, स्क्रीन पर विहान का नाम चमकता देख उसने कॉल उठाया।
उस ओर से विहान संकुचाते हुए कहने लगा - "भाई, मुझे थोड़ी देर और लग जाएगी - दरअसल, एक ज़रूरी काम में फंस गया हूँ।"
पर ये सुनते रंजीत सपाट भाव से कह उठा - "वो ब्लू ड्रेस वाली है... या शायद पिंक?"
विहान को समझ में आ गया कि रंजीत ने उसकी हरकत भांप ली है। वह अपनी खिसियानी हँसी से कहने लगा - "अरे, भाई! वो.. ऐसी बात नहीं है।"
फिर अगले क्षण बाद हल्का हंसते हुए बोला, "ठीक है, भाई। सुबह से पहले आ जाऊंगा।"
रंजीत अपनी उसी कडकती आवाज में कहने लगा – “सुबह से पहले लौट आना ही है समझे ।"
विहान को अल्टीमेटम देकर, रंजीत अपनी गाड़ी में बैठकर अकेले ही मुंबई के लिए रवाना हो गया। रास्ते में पहाड़ों के बीच सफर करते हुए, अचानक एक झरने की आवाज़ ने उसका ध्यान खींचा, जो पहाड़ी के किनारे बहता हुआ नीचे गिर रहा था। शांत और ठंडी हवा के बीच उस पानी की आवाज उसे अपनी ओर खींचने लगी। वह उस झरने के पास कार रोक देता है| फिर वह गाड़ी किनारे रोककर झरने के पास उतर गया।
पानी की तेज़ लहरें और उस झरने की ठंडक को देखकर वह खुद को रोक नहीं पाया। उसने अपनी घड़ी और शर्ट उतारी और झरने में नहाने के लिए उसमे छलांग लगा दी।
दूसरी ओर, गेस्ट हाउस के कमरे में, ऋत्विक के चेहरे पर गहरी मुस्कान छाई थी| उसने कमरे के कोने में बैठी उस लड़की की ओर देखा, जो अब भी बंधी हुई थी।
ऋत्विक उसके पास आता हुआ कहने लगा - "तुम्हें पता है, आज एक बड़ी डील फाइनल कर ली मैंने और अब इसका जश्न तो बनता है, है ना?"
उसकी बात सुनकर लड़की ने उसकी ओर नज़र उठाई।
ऋत्विक ने उसकी रस्सियाँ खोलते हुए कहा - "जाओ, तुम आज़ाद हो।"
अचानक हुई इस प्रतिक्रिया से वह लड़की कुछ पल को बुत बनी रह गई|
“मैंने कहा जाओ |” ऋत्विक मुस्कराते हुए कह रहा था|
लड़की हैरानगी से उसे देखती हुई पूछ उठी - "सच में?" उसकी आवाज में संदेह था|
इस बार ऋत्विक ने मौन हामी भरी|
उसकी आँखों में अचरज और खुशी का एक मिला-जुला भाव था, लेकिन कुछ कहे बिना वह झटपट बाहर की ओर बढ़ने लगी। वह बड़े धीमे कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ने लगी। ऋत्विक सीने पर हाथ बांधे उसे जाते हुए देखता रहा|
जैसे ही वह बाहर निकली, ऋत्विक का बॉडीगार्ड उसके करीब आते हिचकिचाते हुए पूछ उठा - "बॉस, सच में आप उसे छोड़ रहे हैं?"
इस पर ऋत्विक मुस्कुराते हुए कह उठ - "मुझे घायल शिकार का शिकार करने में ज्यादा मजा आता है – आज इसी शिकार संग खेलना है मुझे – और वैसे भी इतनी रात में ये ज्यादा दूर नहीं जा पाएगी और जब थक जाएगी, तो उसे पकड़ने का मजा कुछ और ही होगा।" उसके ऋत्विक के हाव भाव में एक शैतानी मुस्कान स्पष्ट हो आई थी|
उसकी आँखों में एक बेरहम संतोष झलक रहा था। दोनों कुछ पल पर खड़े उसे जाता हुआ देखते रहे| लेकिन तभी उन्हें कुछ अनहोनी का अहसास हुआ| उसने यह अंदाज़ा नहीं लगाया था कि लड़की अचानक ही तेजी से जंगल की ओर दौड़ जाएगी।
ऋत्विक के बॉडीगार्ड ने उस लड़की को भागते हुए देखा और चौंककर बोला, "बॉस ! वो तो भाग रही है!"
ऋत्विक को एक क्षण के लिए गुस्सा आया, लेकिन फिर उसने बॉडीगार्ड को इशारा करते हुए कहा, "भागो, उसे पकड़कर लाओ।"
यह देख ऋत्विक और उसके बॉडीगार्ड तुरंत उसे पकड़ने के लिए भागते हैं।
आज चांदनी रात थी उस खुली रात की दुधिया रौशनी में भी रंजीत झरने के ठंडे पानी में मग्न था। उसकी ऊपरी खुले मस्कुलर देह में पानी की बुँदे चमक रही थी| वह बार बार पानी के नीचे दुबकी लगाता पानी की ठंडक को महसूस कर रहा था, इससे उसे ताजगी का अहसास हो रहा था। पानी में उसकी आँखें बंद थीं, और वह अपने विचारों में खोया हुआ था।
तभी, रंजीत को झरने के पास की झाड़ी में कुछ हलचल लगी| हल्की हलचल सुनकर रंजीत को लगा कि शायद कोई जंगली जानवर होगा। सतर्क होकर उसने पास की एक मोटी टहनी उठाई और आवाज पर निशाना लगाकर उसे झाड़ियों की ओर फेंक दी।
अचानक एक हलकी सी चीख सुनाई दी| वह एक लड़की की चीख थी| उस चीत्कार को सुन रंजीत उस ओर लपका और अगले ही पल उसके सामने वह लड़की गिर पड़ी, उसकी बांहों में। उसकी हालत देखकर रंजीत चौक गया; उसकी आँखों में घबराहट और दर्द का अजीब संयोजन था। घाव से रिसता खून, कपड़ों पर लगे कीचड़ और चेहरे पर उभरी चोटें उसकी तकलीफ बयान कर रही थीं।
रंजीत ने लड़की को संभालते हुए धीमी आवाज में पूछा, "तुम कौन हो?"
लड़की की कमजोर होती साँसे और लड़खड़ाती आवाज में वह फुसफुसाई, "मुझे...बचाओ...वो लोग मेरे पीछे हैं।"
रंजीत ने बिना एक पल गंवाए उसे अपनी बांहों में कसकर थाम लिया और उसे झरने के किनारे से हटाकर सुरक्षित जगह पर ले गया। उसकी निगाहें उस पर टिकी थीं, जैसे वह उसकी स्थिति का अंदाज़ा लगा रहा हो। वह अब उसकी बांहों में बेहोश हो गई थी| उस सूनी वीरान रात के अँधेरे में उसके खुले जिस्म के पास आज पहली बार कोई लड़की इतने करीब थी| अगले ही पल रंजीत बुरी तरह से हिचकिचा उठा| उस पल जाने कैसे वह भूल गया कि उसे लड़कियों से नफरत है|
उस खिली रात में उस लड़की का दुधिया बदन भी जैसे किसी जुगुनू की भांति चमक रहा था| रंजीत अब उसे वही छोड़कर खड़ा हो जाता है जैसे मन में तय कर रहा हो कि वह उस लड़की को यही छोड़ देगा|
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रात के करीब एक बजे थे, और घर में गहरी ख़ामोशी छाई हुई थी। अंधेरे में फर्श पर रखी चीजों से खुद को बचाते हुए प्रिशा धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर बढ़ने लगी। हर कदम के साथ उसकी सांसें थम जातीं, जैसे कोई जासूस किसी मिशन पर हो।
वह दरवाजे के करीब पहुंची ही थी कि तभी फर्श पर रखे किसी सामान पर उसका पैर पड़ गया, और अगले पल उस सामान की आवाज़ के साथ वह चौंककर वहीं रुक गई। उसने गहरी सांस ली और खुद को दिलासा दिया, "प्रिशा, घबराना नहीं... ये तो बस फ्लाक्स था।"
जैसे ही उसने दरवाजा खोलने की कोशिश की, दरवाजा धीमी-धीमी चररररर की आवाज के साथ खुला। उसने खुद को संभालते हुए हल्के से दरवाजा खिसकाया और अंदर घुस गई। जैसे ही वह अपने कमरे में घुसने ही वाली थी कि अचानक बत्ती जल गई। दरवाजे के पास अमारा खड़ी थीं, बिल्कुल नज़रें गड़ाए हुए।
प्रिशा ने अमारा को देखकर झट से मासूम चेहरा बनाते हुए कहा, "अरे, दी ! आप... जाग रही थीं?"
अमारा ने तीखे स्वर में कहा, "हाँ, और ये जानने के लिए कि मेरी छोटी बहन आधी रात को आखिर घर में किसकी तरह घुसती है – चोर या जासूस की तरह।"
प्रिशा ने थोड़ी अटकते हुए जवाब दिया, "अरे दी, वो... वो मैं... सच कहूं तो... वो दोस्तों के साथ... स्टडी ग्रुप... हाँ! स्टडी ग्रुप था!"
अमारा ने सख्त आँखों से देखते हुए कहा - "हां, और उस स्टडी ग्रुप में तुम कौन सी किताबें पढ़ रही थीं – ‘रात भर जागे रहें’ या ‘चुपके से घर घुसने की कला’?"
प्रिशा ने घबराते हुए कहा, "अरे, दी , आप भी मजाक कर रही हैं! मैं सच में..."
अमारा ने उसकी बात काटते हुए कहा, - “अब इस बारे में डैड को कल बताना – अभी जाओ और जितनी रात बची है उसमे सो जाओ|”
प्रिशा का चेहरा झट से लटक गया, उसने मन ही मन सोचा, - "फिर से पकड़ी गई।"
“आज का दिन ही खराब था पहले वो इडियट वेटर्स ने मेरा दिन खराब किया और अब मैं इससे उलझ रही हूँ – डिस्कसटिंग |” बडबडाती हुई अमारा अपने कमरे की ओर चली गई पर उसकी बात सुनते प्रिशा ने राहत की सांस लेते हुए खुद से कहा –
“अरे प्रिशा तू तो बस मरती मरती बची – अगर दी को पता चल जाता कि वो वेटर्स...|”
कहते कहते अपने हाथ से अपना ही मुंह पकडती वह कमरे की ओर भाग जाती है|
क्रमशः.............
रंजीत घने जंगल के बीच एक झरने के पास खड़ा पशोपेश में पड़ा था| ठंडी हवा के साथ एक अजीब सी खामोशी वहां पसरी हुई थी| वहीं पास में वह लड़की अभी भी बेहोश पड़ी थी। वह लौटने का मन बनाने लगा था कि तभी वही झाड़ियो में कुछ सरसराहट हुई|
रंजीत मन ही मन झल्ला उठा –
“क्या मुसीबत है – इसे यहाँ छोड़ भी नही सकता – जंगल है तो पता नही कौन सा जंगली जानवर आ जाए |” उस आधी रात में वह उस लड़की के साथ फस चुका था| वह गुस्से में दांत भीचे आखिर उस लड़की के पास पहुंचा और उसका चेहरा थपथपा कर उसे उठाने की कोशिश करने लगा|
“ए लड़की उठो – उठो – ये कोई तुम्हारा बेडरूम नही है जिसमे तुम आराम से पड़ी हो और न मैं तुम्हारा कोई बॉडीगार्ड कि तुम्हारी रखवाली करूँ|”
लड़की बेहोश थी जिससे उसपर इस बात का लेशमात्र फर्क नही पड़ा पर उसका गाल छूते वह बुरी तरह चौंक उठा –
“इसका शरीर तो भीगने से ठंडा पड़ा हुआ है और ये क्या चिपचिपा सा है...खून...!”
वहां अँधेरा था पर अपने हाथ को रौशनी की तरफ करते वह फिर से चौंक उठा –
“ये खून ! कही उस लकड़ी की चोट की वजह से तो नही हुआ ऐसा ?”
अजीब सी दुविधा में फसा हुआ रंजीत परेशान सा इधर उधर देखता है|
“कार में फर्स्ट एड बॉक्स होगा – वो ले आता हूँ फिर देखता हूँ क्या करना है ?”
रंजीत दौड़ता हुआ अपनी कार तक पहुँचता है और अगले ही पल उसके हाथ में एक फर्स्ट एड बॉक्स नज़र आता है| वह लड़की के पास बैठता हुआ उसका चेहरा पोछने लगता है| रुई से चेहरा साफ़ करते वह देखता है कि उसके माथे के किनारे एक घाव था जिससे खून रिस रहा था| उस पल रंजीत के हाव भाव में एक शर्मिंदी सी दौड़ गई| उसे लगने लगा कि अनजाने में फेकी गई लकड़ी से ही उसे चोट लगी होगी|
उसका चेहरा पोछने के बाद माथे पर बेंडेज लगाता हुआ वह देखता है कि उस लड़की के कपडे भीगे हुए थे और शायद इसी ठंड की वजह से उसका शरीर ठंडा पड़ चुका था।
“अब क्या करूं? न इसे यहाँ छोड़ सकता हूँ और न ही इसे लेकर जा सकता हूँ – जाने ये कहाँ से आ गई अचानक?
रंजीत कुछ देर तक लड़की को देखता है, फिर सोचते हुए वहां पास ही सूखे पत्ते और लकड़ियाँ इक्कठी करने लगता है|
फिर झटपट लकड़ियाँ इकट्ठी करके आग जलाता हुआ लड़की को उसके पास ही लेटा देता है। लड़की अभी भी बेहोश थी| उसे देखता हुआ रंजीत बुरी तरह से परेशान हुआ जा रहा था| उसकी नजर बार-बार चारों ओर घूम रही है, जैसे इंतजार कर रहा हो कि शायद कोई उसका जानकार यहाँ आ जाए। लेकिन रात बीतने को थी और अभी तक उसे तलाशते कोई नहीं आया।
“किसी का इंतजार करने का कोई फायदा नहीं… सुबह होने को है और ये जगह भी ठीक नहीं है - मुझे इसे यहाँ से ले जाना होगा।“
रंजीत गहरी सांस लेते हुए लड़की को गोद में उठाता है। लड़की का सिर धीरे से उसके कंधे पर झुक जाता है। रंजीत उसे संभालता हुआ अपनी कार की ओर बढ़ जाता है।
रंजीत कार में लड़की को पिछली सीट पर सुला देता है और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है। जैसे ही वह कार स्टार्ट करता है, सूरज की पहली किरणें आसमान को रोशन करने लगती हैं। लेकिन रंजीत के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही थी।
रंजीत कार ड्राइव करते करते खुद में बुदबुदा उठा था – “पता नहीं कौन है ये और यहाँ इस हालत में कैसे पहुंची... लेकिन इसे यूं ही छोड़ देता तो शायद कुछ अनहोनी हो जाती - चलो, पहले मेंशन पहुँचता हूँ, फिर सोचूंगा क्या करना है।“
कार धीरे-धीरे घने जंगल को पीछे छोड़ती सड़क की तरफ बढ़ती जाती है। रंजीत एक बार पीछे मुड़कर लड़की को देखता है, जो अब भी बेहोश पड़ी थी। उसके चेहरे पर हल्की सी दर्द की झलक दिखती है जैसे वह किसी डरावने सपने में हो।
रंजीत कार से उतरता लड़की को गोद में उठाकर मेंशन के अंदर ले जाता है। घर के नौकर हैरानी से उसे देखते हैं लेकिन रंजीत से कुछ पूछने की हिम्मत नही कर पाते| वह लड़की को अपने आउट रूम में ले जाकर आराम से बिस्तर पर लिटा देता है|
रंजीत लड़की को देखते हुए – “पता नही कौन हो तुम - जब होश में आओगी, तब ही जान पाऊँगा कि तुम इस हालत में वहाँ कैसे पहुंची?”
रंजीत गहरी सांस लेते हुए रूम से बाहर निकलने लगता है| उसके चेहरे पर अनगिनत सवाल और बेचैनी की परछाई तैर रही जाती है।
अचानक विहान रंजीत के सामने आ जाता है| वह अपनी सवालिया नज़रो से उसे देखने लगा जबकि रंजीत अपनी नज़रे इधर उधर करने लगता है| अपने चिरपरिचित मस्ती भरे अंदाज में दरवाजे से अंदर आते रंजीत को लड़की के पास देखकर पहले वह चौंक जाता है फिर विहान अब उसकी लम्बी काठी से पीछे देखता हुआ पूछने लगा –
“बात क्या भाई – मुझे सुबह जल्दी आने का अल्टीमेटम देकर खुद लोनावला से मिस मोनालिसा ले आए ?”
रंजीत हिचकिचाता हुआ कहने लगा –
“मैं रात में ही वापस आ रहा था – पर तभी पता नही कहाँ से ये लड़की मेरे सामने आकर बेहोश हो गई – फिर मैं मजबूर हो गया इसे यहाँ लाने के लिए |”
“अरे वाह, भाई ! किस रास्ते से आया यार? मुझे तो कभी कोई ऐसी बेहोश लड़की नहीं मिलती!”
रंजीत गुस्से से कहता है – “विहान, मजाक का वक्त नहीं है! मुझे नहीं पता ये कौन है और इस हालत में मेरे सामने कैसे आ गई - यही सोच रहा हूँ कि पुलिस में रिपोर्ट कर दूँ।“
विहान अब उस लड़की को गौर से देखने लगा| उस वक़्त खरोचों से उसका चेहरा बुरी तरह से ऐसा घायल था कि विहान उसे पहचान भी नही पाया फिर सामान्य तरह से कहने लगा –
“वो तो ठीक है भाई पर इस लड़की को इतनी खरोचे और माथे पर चोट कैसे आई – उसके लिए तू पुलिस को क्या बताएगा ?”
ये सुनते रंजीत बुरी तरह से सकपका गया|
“वो दरअसल मुझसे गलती हो गई|”
रंजीत ने ये कहा और विहान की आंखे एकदम से चौड़ी हो गई| ये देख रंजीत बुरी तरह बिगड़ते हुए बोल उठा –
“अब फालतू का कोई कचरा दिमाग में मत घुसा – समझे |”
“तो बता न कौन सी मासूम गलती कर दी तूने ?”
इसके बाद झाड़ी पर पास हलचल होने और बिना देखे लकड़ी मारने वाली बात वह उसे बता देता है|
“ओह तो उसके बाद से ये होश ही नही आई |”
“यही तो प्रोबलम है – अब मैं पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखाता हूँ और उन्हें भी मैं ये सब सच बता दूंगा |”
“और तू सोचता है कि पुलिस मान लेगी तेरी बात ?”
“क्यों नही मानेगी ?”
“अच्छा मान लेते है पुलिस तेरी बात पर यकीन कर लेती है तब भी ये सोच ये लड़की उस जंगल में ऐसी हालत में मिली तो जरुर किसी मुसीबत में होगी ? अगर ऐसे में इसकी रिपोर्ट दर्ज हुई तो कही तेरी वजह से दुबारा न ये लड़की मुसीबत में फस जाए ?”
“तो करे क्या ये बता ?”
“इंतजार – जब तक ये लड़की होश में नहीं आ जाती, हमें कुछ पता नहीं चलेगा – देख रहा है किस कदर घायल है ये - हो सकता है वो किसी मुसीबत में फंसी हो - पहले उसे होश में आने दो, फिर देखते हैं क्या करना है।“
रंजीत विहान की बात सुनते हुए असहज महसूस करता है, जैसे उसे यह सब एक बड़ी मुसीबत लग रही हो। वह गुस्से में सिर झटकता है और कमरे के दूसरी तरफ जाकर खड़ा होता बडबडा उठा – “मुसीबत ही तो है ये लड़की! अगर इसके साथ कुछ गड़बड़ है तो? इस चक्कर में मैं क्यों फंस रहा हूँ?”
रंजीत जहाँ चिढ़ा हुआ था विहान उतना ही मुस्कुराता हुआ कहने लगा – “अरे यार मैं तो पहली बार इस घर में और तेरे साथ कोई लड़की को देखकर ही खुश हूँ |” वह हल्की-फुल्की मजाकिया लहजे में रंजीत को देखता है, जैसे उसे चिढ़ाने में मजा आ रहा हो।
रंजीत गुस्से में विहान की बात सुनकर उसे घूरता हुआ कहता है – “ठीक है, होश में आने का इंतजार करते हैं... लेकिन याद रखना, अगर कुछ उल्टा-सीधा निकला, तो सारी जिम्मेदारी तेरी होगी।“
“पहले ये तो चेक कर लूँ कि लड़की ज़िंदा तो है ?” रंजीत की बात अनसुनी करता हुआ लड़की की कलाई पकड़ता है|
अगले ही पल व बुरी तरह चीख पड़ा| उसकी चीख सुनते रंजीत तुरंत ही उसकी ओर दौड़ता हुआ आता पूछ उठा – “क्या मर गई लड़की ?”
“नही यार – पर इसकी नब्ज कितनी स्लो हो रही है – अरे ये तो भीगी हुई है – कही ये कल रात से ही तो नही भीगी हुई – ओह तभी तो – इस तरह से तो इसे निमोनिया हो सकता है |”
“ज्यादा डॉक्टर मत बन – फैन चला देता हूँ – सूख जाएँगे कपडे |”
“कैसा बेदर्दी है तू – लड़की को मारना चाहता है क्या ? इससे तो इसे और ठण्ड लग जाएगी |”
“तो !!”
“तो क्या - इसके कपडे बदलने होंगे – अब मेंशन में तेरी वजह से कोई फिमेल सर्वेंट तो है नही इसलिए अब ये काम तू ही करेगा |”
विहान ने ये कहा और रंजीत यूँ उछल पड़ा जैसे सौ बिछुओ ने एकसाथ उसे डंक मार दिया हो|
“पागल हो गया है तू ? मैं ये क्यों करूँगा ?”
“क्योंकि तेरी वजह से बेचारी बेहोश हुई है – अब ये तेरी जिम्मेदारी है तो तू जाने और तेरा काम जाने – मैं तो चला – एक तो तेरी वजह से आधी रात भाग कर आना पड़ा – सो भी नही पाया – मैं तो जा रहा सोने |” नाटकीयता से जमाही लेता हुआ विहान उस कमरे से निकलने लगता है|
विहान को जाते देख रंजीत चिल्ला पड़ा - “तू ऐसे मुझे छोड़कर नही जा सकता – मैं इसके कपडे कहाँ से लाऊंगा ?”
“फ़िलहाल अपने कपडे पहना दे – मैं भिजवा देता हूँ |” बिना उसकी ओर पलटे लापवाही से कहता वह आगे बढ़ता गया| उस वक़्त उसके चेहरे पर मस्ती भरी मुस्कान थी जैसे रंजीत की असहजता से उसे मजा आ रहा हो।
रंजीत बेबस सा लड़की को देखने लगा जो अभी भी बेहोश थी| ठंड से उसका चेहरा पीला पड़ गया था।
रंजीत, गहरी सांस भीतर भरता, बेचारगी भरी नजरों से विहान को जाता हुआ देखता है फिर धीरे-धीरे, वह लड़की के पास जाकर उसके कपड़ों को हल्के से पकड़ता है| वह मन ही मन घबरया हुआ था। जैसे ही उसके कपड़ों को वह हाथ लगाता है, लड़की अचानक आंखें खोल देती है।
लड़की एकदम से उठकर बैठती हुई -
“अ...आप कौन हैं? और ये... ये मैं कहां हूँ?”
रंजीत, जो पहले से ही पूरी स्थिति को लेकर असहज था, लड़की को होश में देखकर पीछे हट जाता है|
“होश में आ गई लड़की !”
रंजीत कुछ रियक्ट भी कर पाया उससे पहले विहान की आवाज सुनते वह उसकी ओर मुड़ता उसे घूरता है|
“तुम तो चले गए थे ?”
इसपर विहान दांत दिखाता हुआ कहने लगा –
“जा ही रहा था |”
रंजीत समझ गया कि विहान उसके मजे लेता बस जाने का नाटक ही कर रहा था|
विहान अब उस लड़की की ओर देखता हाउ पूछने लगा –
“क्या नाम है तुम्हारा ? कहाँ से आई हो ? और उस जंगल में कैसी पहुंची ?”
एक साथ इतने प्रश्न और उन दोबनो को देखती वह डरी सहमी सी उन्हें देखने लगी|
“अब बोलोगी कुछ ?” रंजीत गुस्से से बोल उठा|
“मुझे कुछ भी याद नहीं... बस इतना याद है कि मैं कहीं गिर गई थी, और फिर सब अंधेरा हो गया।“
“क्या मतलब कि तुम्हे कुछ याद नही – तुम लोनावला के जंगल में झील के पास थी और वही तुम मुझसे मिली – तुमने बेहोश होने से पहले कहा भी था कि मुझे बचाओ – कोई था तुम्हारे पीछे पर बहुत देर इंतजार के बाद भी वहां कोई नही आया – अब सीधे सीधे तुम बताओ कि तुम्हारा घर कहाँ है – मैं वही तुम्हे भिजवा दूंगा – समझी |” बेहद बेरुखी से कहता रंजीत सख्त नज़रो से उसे देख रहा था|
“मुझे सच में कुछ याद नही |” कहती हुई वह नज़रे झुकाती हुई खुद में सिकुड़ जाती है|
रंजीत गहरी सांस लेकर लड़की के इस अजीब से जवाब को समझने की कोशिश कर रहा था, जबकि विहान अपनी हंसी रोकने की कोशिश करता है| उसे तो रंजीत के चेहरे पर की बेचैनी मजेदार लग रही थी|
“देखा, रंजीत! मेरा कहा मानने में हमेशा फायदा होता है - अब ये तेरी मेहमान है और इसकी देखभाल भी तू ही करेगा।“
रंजीत अब विहान को घूरते हुए, लड़की से कहने लगा -
“तुम्हारा नाम क्या है? और सच-सच बताओ, तुम यहाँ कैसे आई?”
लड़की बिना जवाब दिए चुपचाप रंजीत को देखती रहती है, जैसे उसके सवाल से बचना चाहती हो।
क्रमशः...........
रंजीत और लड़की आमने-सामने थे। रंजीत के चेहरे पर सवालों का सैलाब था, जबकि लड़की उसे डरी सहमी सी देख रही थी| वही विहान दरवाजे पर थोडा कन्फ्यूज सा उन दोनों को बारी बारी से देख रहा था|
“देखो, तुम जो भी हो, अब तुम इस वक्त मेरे घर में हो वैसे मुझे तुम्हारे बारे में जानने का कोई शौक नहीं बस अपने घर का एड्रेस बताओ ताकि मैं तुम्हे वहां भिजवा दूँ |” रंजीत सख्त लहजे में कहता है|
पर लड़की उसे एक असहाय निगाह से देखती हुई चुपचाप नज़रे झुका लेती है जैसे उसके पास कोई और चारा न हो।
लड़की को चुप देख रंजीत की भवे जैसे और चढ़ जाती है|
“मैंने तुमसे कुछ पूछा है ?”
“अरे भाई, शायद इसे वाकई कुछ याद नहीं हो - वैसे भी, जो लोग जंगलों में बेहोश होकर गिरते हैं, उनके साथ ऐसी ही कहानियां जुड़ी होती हैं।“ विहान तुरंत उनके बीच कूदता हुआ कहने लगा|
“इसका क्या मतलब हुआ ?” रंजीत अब गुस्से से विहान की ओर देखता है|
“मतलब कि तुम देख नहीं रहे – हो सकता है शौकड में आने से इस बेचारी की याददाश्त चली गई हो – इसका फेस तो देखो कितनी मासूम है ?”
“मासूम ?” कहता हुआ रंजीत उस लड़की पर एक फेकी हुई नज़र डालता हुआ दुबारा उसी तीखेपन से कहने लगा – “मुझे तो शक्ल से बहुत चालबाज लग रही है ?”
“क्या बात करते हो भाई – लगता है अब वक़्त आ गया कि तुम नज़र का चश्मा लगाओ |” दांत दिखाते हुए विहान अपनी बात कहता है वही रंजीत, विहान की बातों से परेशान होकर सिर झटकता उसे बाहर जाने का इशारा करता है। विहान हाथ उठाते हुए बाहर जाने का उपक्रम करने लगा पर उसकी नजरें शरारत से भरी रहती हैं।
रंजीत फिर से उस लड़की की ओर देखता हुआ उसी लहजे में कहता है –
“तुम |”
“!!” चौककर अवाक् रंजीत की ओर देखती है|
“हाँ मैं तुमसे बात कर रहा हूँ – तुम जो भी हो – मैं तुम्हे आज शाम तक का वक़्त दे रहा हूँ – अपने बारे में याद करो नहीं तो तैयार रहो पुलिस को तुम्हारे बारे में सब पता लगाने के लिए |”
“जी !!”
ये सुनते लड़की घबराकर एकदम से खड़ी हो जाती है जिससे रंजीत शंकित नज़र से उसे देखते हुए आगे कहने लगा – “पुलिस के नाम में ही असर है |”
ये सुनते लड़की की घबराहट जैसे और बढ़ जाती है|
तभी उनके बीच आता हुआ विहान कहने लगा – “अरे यार घबराएगी नहीं – अपने बारे में सब भूली है – याददाश्त जाने से आदिमयुग में थोड़े चली गई |”
“लेकिन तुम तो जा रहे थे ?” तिरछी भव उठाए रंजीत विहान को देखता है|
“हाँ तो जा ही रहा था फिर सोचा तू जिस तरह से लड़की को घूर रहा है बेचारी की बची कुची याददाश्त भी चली जाएगी |” ये सुनते रंजीत के चेहरे पर और ज्यादा गुस्सा नज़र आने लगा वही विहान बिन आवाज के मुंह खोले हंस पड़ा|
“साहब |” आवाज से सबका ध्यान दरवाजे की ओर जाता है जहाँ एक नौकर खड़ा हुआ कह रहा था – “साहब – अमन साहब आए है ?”
“अमन !! विहान आज मीटिंग थी न हमारी ?”
रंजीत के पूछते विहान एकदम से उछलते हुए कहने लगा – “शिट यार – ये बात तो दिमाग से निकल ही गई – आज ही प्रोजेक्ट फ़ाइनल होना है|”
विहान की बात सुनते रंजीत अपनी कलाई घड़ी देखता हुआ कहने लगा – “आधे घंटे में मीटिंग शरू होगी – चलो रेडी होकर साथ में निकलते है |”
“हाँ ठीक है |” जल्दी से रंजीत की बात का समर्थन करता हुआ विहान उस नौकर की ओर देखता हुआ आगे कहता है – “रमेश तुम इनका रहने का अरेजमेंट कर दो |”
“किस कमरे में करना है साहब ?”
“गेस्ट रूम तो आउटर में है – ऐसा करो रंजीत के रूम के बगल वाला रूम खाली है उसमे कर दो |” अपनी बात कहता हुआ वह तुरंत ही लड़की के पास आता हुआ कहने लगा – “आप न आराम से बिंदास रहिए – हम शाम को आकर मिलते है|”
विहान जल्दी से अपनी बात करता है वही रंजीत बिदकता हुआ कहने लगा – “ये क्या है ? तुम इसे घर में बसाने वाले हो क्या ?”
“वो भी बुरा आइडिया नहीं बस तू राजी हो जा |” विहान मस्ती में कह जाता है पर जब रंजीत उसे घूरकर देखता है तो वह जल्दी से कहता है – “यार - बेचारी को कुछ समय के लिए तो चैन की सांस लेने दो – हो सकता है इसे कुछ याद आ जाए – और हाँ जल्दी करो – यार तुम बातो के चक्कर में मीटिंग के लिए लेट कर दोगे |”
अपनी बात कहता विहान हवा के झोके सा बाहर निकल गया और रंजीत उसे देखता रह गया|
‘एक दिन लड़की आई नहीं सब गड़बड़ होना शुरू हो गया|’
मीटिंग के लिए सच में उन्हें देर हो रही थी इस कारण रंजीत बुदबुदाता हुआ बस एक आखिरी नज़र उस लड़की पर डालता वहां से चला जाता है| वही वह लड़की उन्हें जाता हुआ देखती रह गई|
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ऑफिस के बड़े से कांफ्रेंस रूम में अमारा का पीए दीपक और हेड मेनेजर अनिरुद्ध साथ में कुछ अन्य कर्मचारियों के साथ राजस्थान में नई साइट पर प्रोजेक्ट की संभावनाओं पर चर्चा कर रही है। एक बड़े प्रोजेक्टर पर साइट की तस्वीरें और डिटेल्स दिखाई जा रही हैं।
दीपक स्लाइड दिखाते हुए कह रहा था -
“यह साइट हमारे नए प्रोजेक्ट के लिए एकदम परफेक्ट है - लोकेशन शानदार है, और यहां की डिमांड भी हमारे प्रोडक्ट्स के लिए बहुत बढ़िया साबित हो सकती है।“
अमारा ध्यान से सुनते हुए पूछती है -
“तो, प्रॉब्लम क्या है?”
दीपक बेहद संजीदगी से कहता है -
“प्रॉब्लम यह है कि साइट की जमीन सरकारी है, और उसे इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट के लिए अप्रूवल दिलाना आसान नहीं होगा - हमें किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है, जिसकी सरकारी अधिकारियों तक पहुंच हो - वरना ये डील हमारे हाथ से निकल सकती है।“
ये सुनते अमारा गंभीर स्वर में कहती है -
“ऑप्शन क्या क्या है ? कोई ऐसा लिंक जो इस प्रॉब्लम को जल्दी सुलझा सके?”
इस पर दीपक थोड़ा सोचते हुए कहता है -
“एक विकल्प है, मैम - राजस्थान में ऋत्विक चौधरी नाम का एक बिज़नेसमैन है - वह हाल ही में मुंबई आया है और मैंने पता किया है कि सरकारी मामलों में उसकी पकड़ बहुत मजबूत मानी जाती है - अगर उससे संपर्क हो जाए, तो यह डील फाइनल करना आसान हो सकता है।“
तभी अनिरुद्ध कह उठता है –
“लेकिन मैम मैंने जितना उसके बारे में सुना है उससे मैं आपको यही एडवाइज करूँगा कि आप उनसे खुद बात न करे |”
ये सुनते अमारा सोच में डूब जाती है। कुछ देर कमरे में खामोशी छा जाती है। फिर वह कुर्सी से उठती है और खिड़की के पास जाकर बाहर देखने लगती है।
अमारा आहिस्ता से अनिरुद्ध की ओर देखती हुई कहती है -
“क्यों ऐसा क्या है इस ऋत्विक चौधरी में ?”
अनिरुद्ध कहता है -
“मैम, वह बिज़नेस की दुनिया का बड़ा नाम है, लेकिन वह काफी अजीब नेचर का है – जितना मैं पता कर पाया उस हिसाब से सीधे तौर पर बात करना शायद काम न करे।“
अमारा मुड़कर उसकी ओर देखती हुई कह उठी -
“तो क्या तुम यही कहना चाह रहे हो कि मुझे उससे संपर्क करने के लिए कोई और रास्ता अपनाना होगा?”
अनिरुद्ध थोड़ा झिझकते हुए -
“जी, और मुझे लगता है कि अगर आपके पिता इस मामले में बात करें, तो बात बन सकती है - उनका नाम और उनकी पर्सनैलिटी इस डील को काफी आसान बना सकती है।“
अमारा यह सुनकर कुछ असहज हो जाती है। वह कुछ क्षण के लिए शांत रहती है, जैसे कि यह तय कर रही हो कि अपने पिता से मदद मांगना सही रहेगा या नहीं।
अमारा अब हल्की झुंझलाहट के साथ कहती है -
“डैड हर बार मेरे फैसलों को सवालों के घेरे में रखते हैं - अगर मैं उनसे यह मदद मांगूंगी, तो इसका मतलब होगा कि मैं उनके बिना यह डील नहीं कर सकती।“
अमारा की नाराजगी पर दीपक हलके से होठो के भीतर से मुस्करा दिया जैसे वह चाहता हो कि अमारा की नजरो के सामने अनिरुद्ध कमतर पड़े|
इससे पहले कि दीपक कुछ कहता अनिरुद्ध तुरंत कह उठा – “मैम, कभी-कभी बड़े कदम उठाने के लिए छोटी चीज़ें नजरअंदाज करनी पड़ती हैं - और यह प्रोजेक्ट आपके लिए कितना जरूरी है, यह आप उनसे बेहतर जानते हैं – अगर आप कहे तो क्या मैं सर से बात करूँ ?”
अमारा गहरी सांस लेती मेज के पास आकर अपने लैपटॉप को बंद करती है।
फिर अनिरुद्ध की ओर देखती हुई कहने लगी -
“इसकी जरुरत नहीं है - मैं सोचूंगी कि यह बात डैड तक कैसे पहुंचानी है - लेकिन इस बीच, दीपक तुम ऋत्विक चौधरी के बारे में सारी जानकारी इकट्ठा करो - उसकी प्रोफाइल, प्रोजेक्ट्स, और वह क्या चाहता है - मुझे उसका हर पहलू मालूम होना चाहिए।“
दीपक मुस्कुराते हुए -
“आप बिल्कुल सही फैसला कर रही हैं, मैम - मैं तुरंत काम पर लग जाता हूं।“
इसके बाद सभी वहां से जाने लगते है| अनिरुद्ध जाते जाते अमारा पर एक नज़र डालता है| उस समय उसका परेशान चेहरा जैसे उसे भी परेशान कर दे रहा था| पर वह कुछ कहने की स्थिति में नहीं था इससे वह चुपचाप वहां से बाहर निकल जाता है| जबकि ये सब चुपके से दीपक की नजर में आ जाता है| वह बाहर निकल कर अपने साथी से धीरे से फुसफुसाता है –
‘ये अनिरुद्ध सर कुछ ज्यादा पर्सनल फ़िक्र नहीं करते अमारा मैडम की ? पर उन्हें पता नहीं क्या कि जो अपने मंगेतर को घास नहीं डालती तो अनिरुद्ध जैसो को तो तिनका भी नहीं डालने वाली |’
इस पर दोनों फुसफुसाते हुए हँस लेते है|
****
मीटिंग खत्म करके रंजीत अपने केबिन में वापस आते अमन को देखता हुआ कहता है|
“अमन – विहान को भेजो |”
“विहान सर तो घर चले गए |”
“क्या ? इतनी जल्दी कैसे ? मेरे बिना तो नहीं जाता |” फिर जैसे अपने ही प्रश्न का उत्तर खुद को देता हुआ कहने लगा – “ठीक है तुम जाओ – मैं भी निकल रहा हूँ |”
रंजीत अपनी बात कहता तेजी से केबिन से बाहर निकल गया और अमन खड़ा उसे जाता हुआ देखता रहा |
रंजीत ने अपने मेंशन में कदम भी नहीं रखा कि जो दृश्य उसके सामने से गुजरा उसे देखते गुस्से से उसका पारा एकदम से गर्म हो गया और वह तेज कदमो से उस लड़की के पास आता उसकी कलाई पकड लेता है|
“ये क्या है ? तुमने मेरा नाईट सूट क्यों पहन रखा है ?”
गुस्से से उसकी कलाई थामे वह उस लड़की को ऊपर से नीचे देखता है जो ढीले से कपडे पहने खड़ी थी और अब रंजीत के गुस्से को देखती हुई काँप गई थी| तभी उनके बीच में आता हुआ विहान उसकी कलाई छुड़ाता हुआ कहने लगा –
“अरे यार इसे तो मैंने दिए थे कपडे |”
“क्यों ?” कलाई झटके से साथ छोड़ता हुआ कहने लगा वही वह लड़की अपनी कलाई मसलती रुआंसी हो उठी थी|
“इस बेचारी के कपडे गीले थे तो क्या गीले कपडे पहनती – अब जब तक लौंडरी होकर नहीं आ जाते इसके कपडे तब तक कुछ तो देना था न पहनने के लिए – और देखो तो लग रहा है जैसे तम्बू पहने खड़ी हो |” अपनी बात कहता हुआ विहान ठहाका मार कर हँस पड़ा| वही रंजीत का गुस्सा और डबल हो चुका था|
“ये लड़की अभी इसी वक़्त घर से बाहर जाएगी |”
“आप नाराज़ मत होइए – आपने मेरी जान बचाई यही बहुत है – आप कहेंगे तो मैं चली जाउंगी |”
“मैं कह नहीं रहा बल्कि चाहता हूँ कि तुम इस घर से चली जाओ |”
रंजीत एकदम से चीख पड़ा| इसके बाद लड़की सच में बाहर की ओर जाने लगी| ये देख विहान उसे आवाज देते हुए बोल उठा –
“रुको झील |”
“झील !!” रंजीत आश्चर्य से देखता हुआ पूछता है – “तो इसे अपना नाम याद आ गया ?”
“अरे नहीं ये नाम तो मैंने दिया है इसे – कब तक ए लड़की बुलाते रहेंगे ?”
विहान की बात पर रंजीत उसे अजीब नज़र से देखता हुआ कहता है – “मतलब ?”
“देख ये तुझे झील के पास मिली तो झील रख दिया नाम – अब जब तक इसे अपना नाम याद नहीं आ जाता तब तक ये हमारे लिए झील रहेगी – आओ झील इधर आओ |”
रंजीत देखता है कि झील सच में विहान की बात सुनते उसके पास आकर खड़ी हो जाती है इससे रंजीत फिर से उसे तीखी नज़र से देखने लगा|
विहान अब झील की ओर देखता हुआ कहने लगा –
“झील तुम इसकी बात को दिल पर मत लेना – नारियल जैसा दोस्त है मेरा – अंदर से सॉफ्ट है ये – जब तक तुम्हारी याददाश्त नहीं आ जाती तुम आराम से रहो – चलो मैं तुम्हे तुम्हारे कमरे तक ले चलता हूँ |”
कहता हुआ विहान झील के साथ सीढियों की ओर बढ़ जाता है| उन्हें इस तरह जाते देख रंजीत दांत पीसते हुए बडबडा उठा –
‘जा तो ऐसे रही है जैसे इसी का घर हो – ये जरुर कोई फ्रॉड है और मैं इस फ्रॉड को यहाँ टिकने नहीं दूंगा – झील....बकवास नाम है इसकी शक्ल की तरह |’
अपने में बडबडाता हुआ वह उनके विपरीत चला जाता है|
क्रमशः................
आलीशान ऑफिस में लकड़ी की नक्काशीदार दीवारें और फर्श पर मखमली कालीन बिछा हुआ है जहाँ एक बड़ा झूमर हल्की रोशनी बिखेर रहा है। ऋत्विक चौधरी अपने ऑफिस की खिड़की से बाहर तेज़ी से गुजरती कारों और शहर की हलचल को देख रहा है। उसके माथे पर गुस्से की लकीरें साफ झलक रही हैं। कमरे में सन्नाटा पसरा है, सिर्फ उसकी भारी सांसों की आवाज सुनाई दे रही है।
सामने खड़ा बॉडीगार्ड, काले कपड़ों में, सिर झुकाए हुए, अपने पसीने को छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहा है।
ऋत्विक तेज कड़क आवाज में चीख रहा था|
“तुम लोग क्या कर रहे थे इतने दिन से? मैंने तुम्हें कहा था कि उस लड़की को ढूंढकर लाओ लेकिन... अब तक कुछ भी नहीं?”
बॉडीगार्ड हकलाते हुए -
“स... सर, हमने पूरी कोशिश की - हर अस्पताल, हर होटल, और गेस्टहाउस को खंगाल डाला है - मगर... मगर उसका कोई सुराग नहीं मिल रहा।
ऋत्विक गुस्से में अपनी डेस्क पर हाथ मारता है। डेस्क पर रखा हुआ ग्लास पानी गिरकर फर्श पर टूट जाता है वो आवाज कमरे की शांति को तोड़ देती है। ऋत्विक का गुस्सा देख बॉडीगार्ड एक कदम पीछे हट जाता है।
“क्या मतलब है तुम लोगो का - कोई सुराग नहीं? वो लड़की मेरे पास से भाग गई और तुम उसे ढूंढने में अब तक नाकाम रहे हो? ये मेरे लिए सिर्फ शर्म की बात नहीं है, बल्कि मेरे काम और इज्जत का सवाल है।“
बॉडीगार्ड घबराकर कहता है -
“सर, हम हर जगह खोज रहे हैं - ऐसा लगता है कि उसने शहर छोड़ दिया हो।“
ऋत्विक अपनी कुर्सी पर बैठकर माथा पकड़ लेता है। वह कुछ देर चुप रहता है, लेकिन उसके चेहरे पर बढ़ता गुस्सा साफ नजर आ रहा है। अचानक, वह फिर खड़ा हो कर बॉडीगार्ड की ओर इशारा करता है।
ऋत्विक ठंडी लेकिन गंभीर आवाज में कहने लगा -
“तुम्हें क्या लगता है कि मैं ये सब सुनने के लिए यहां बैठा हूं? अगर उसने शहर छोड़ दिया है, तो उसे ढूंढने के लिए किसी भी हद तक जाओ – मुझे वो लड़की किसी भी कीमत में अपने सामने चाहिए |”
बॉडीगार्ड नजरें झुकाए, कांपते हुए कहने लगे -
“जी, सर - हम अगले 24 घंटे में उसे ढूंढ लेंगे।“
ये सुनते ऋत्विक तेज और धमकी भरे स्वर में चीखा -
“24 घंटे – याद रखना तुम्हारी जिंदगी और मौत के बीच भी यही चौबीस घंटे शेष है|”
बॉडीगार्ड तेज़ी से सिर हिलाते कमरे से बाहर भागते है।
ऋत्विक गहरी सांस लेता अपनी जैकेट पहनता है। वह एक पल के लिए रुककर खुद को शीशे में देखता है और मन ही मन कुछ तय करता है। फिर अपने डेस्क पर रखे मोबाइल को उठाकर के कोई नंबर पर कॉल करता है।
“खम्मा घणी काका सा |”
ऋत्विक की आवाज सुनते उस पार से एक सख्त आवाज सुनाई देती है –
“काका सा नहीं मैं लखन बोल रिया हूँ और हाँ शुक्र मना कि फोन पर काका सा नहीं है – अभी तक उस लड़की का तू पता नहीं लगा पाया एक महीना हो रहा है – इसलिए समझा रिया हूँ कि काका सा का गुस्सा फूटने से पहले ही उस लड़की का पता लगा ले |”
ये सुनते ऋत्विक की आवाज में घबराहट आ जाती है –
“हाँ यही बताने कॉल किया था कि जल्दी ही मैं पता लगा लूँगा |”
“हाँ ऐसा ही होना चाहिए |”
उस पार से फोन रख दिया जाता है| मोबाईल गुस्से में एक ओर फेककर धीरे से बुदबुदा उठता है –
“क्या बताऊंगा काका सा को कि एक महीने से लड़की मेरे पास ही थी लेकिन अब तो लड़की सच में भाग गई है – अगर मैं उसे नहीं खोज पाया तो काका सा के गुस्से से कोई मुझे नहीं बचा पाएगा |”
****
सुबह का समय। मेंशन के जिम में हल्की रोशनी फैली हुई थी। खिड़कियों से आती सूरज की किरणें मशीनों पर चमक रही थी। वही रंजीत शर्टलेस होकर अपने डम्बल्स उठा रहा है। उसके मांसपेशियों में खिंचाव और पसीने की बूंदें उसकी मेहनत को दर्शा रही थी। वह पूरी तरह से अपने वर्कआउट में डूबा हुआ है।
उधर, झील घर में इधर-उधर टहलते हुए जिम का दरवाजा खोल देती है। जैसे ही वह अंदर कदम रखती है, उसकी नजर रंजीत पर पड़ती है। उसे देखकर वह ठिठक जाती है। रंजीत भी, अचानक हलचल सुनकर पीछे मुड़ता उसे देख चौंक जाता है।
रंजीत गुस्से से बोल उठा -
“तुम यहां क्या कर रही हो?”
झील बुरी तरह से हड़बड़ा उठी|
“मैं… मैं बस…|”
उसकी नजरें अनजाने में रंजीत की मांसपेशियों पर टिक जाती हैं। उसे देख, वह झेंपती तुरंत अपनी नजरें झुका लेती है।
रंजीत अभी भी उसे गुस्से से देख रहा था| झील उस समय भी उसी के कपड़ो में थी| वह उसे गुस्से में कह उठा -
“क्या ये तुम्हारे अंदर आने की जगह है? अगर कुछ चाहिए था, तो पूछ सकती थी।“
झील शरमाते हुए धीमे स्वर में कहती है -
“मैंने सोचा… यहां कोई नहीं होगा।“
रंजीत अपनी पानी की बोतल उठाकर एक घूंट लेता फिर उसकी ओर गंभीरता से देखता है।
“अगर तुम्हें नहीं पता कि यहां कैसे आना है, तो कम से कम दरवाजा खटखटाना सीखो।“
झील धीरे से कहती है -
“सॉरी… मुझे पता नहीं था कि आप...|”
वह बात पूरी नहीं कर पाती। उसकी नजरें फिर से रंजीत के पसीने से भीगे बदन पर जाती हैं। रंजीत उसकी झिझक और निगाहों को भांप जाता है जिससे वह खुद थोड़ा असहज हो जाता है, लेकिन उसे अपनी झुंझलाहट से ढकने की कोशिश करता है।
“तुम यहां खड़े-खड़े क्या देख रही हो?”
झील झेपती हुई कहने लगी -
“नहीं... कुछ भी नहीं - मैं जा रही हूं।“
वह दरवाजे की ओर बढ़ती है, लेकिन जल्दी में उसका पैर मशीन के किनारे से टकरा जाता है। वह गिरने लगती है। ये देख रंजीत तुरंत उसे पकड़ लेता है। झील उसके करीब आ जाती है। दोनों की सांसें कुछ पल के लिए रुक जाती हैं।
रंजीत धीमी लेकिन गंभीर आवाज में कहता है -
“तुम्हारी ये आदत है क्या ? हर जगह मुसीबत खड़ी करने की?”
“मैं... मैं सच में सॉरी।“
वह खुद को संभालती है और तुरंत अपनी जगह से हटने की कोशिश करती है। लेकिन रंजीत का मजबूत हाथ अभी भी उसे सहारा दिए हुए है। उनकी नजदीकी दोनों को बेचैन कर दे रही थी|
झील धीमे स्वर में कहती है -
“प्लीज... अब मुझे जाने दीजिए।“
तभी विहान, अपने चिर-परिचित मस्तीभरे अंदाज में अंदर दाखिल होता है। उसके हाथ में प्रोटीन शेक का गिलास था और चेहरे पर हमेशा की तरह शरारती मुस्कान।
विहान दोनों को इतने करीब देख चौंकता हुआ कहने लगा -
“अरे! क्या बात है, उम्मीद से कुछ ज्यादा ही देख लिया |”
झील कुछ कहने की कोशिश करती है, लेकिन विहान उसके चेहरे पर आए लाज को देखकर अपनी हंसी रोक नहीं पाता।
विहान हंसते हुए कहने लगा -
“ओह, समझ गया! तुम दोनों की स्पेशल प्राइवेट जिम क्लास चल रही थी – मुझे इसमें खलल डालने का कोई इरादा नहीं था।“
रंजीत, जो अब तक अपनी झुंझलाहट को संभालने की कोशिश कर रहा था, गहरी सांस लेता दांत पीसते हुए विहान की ओर देखता है।
“विहान, वैसे तुम कभी भी जिम में समय पर नहीं आते - आज अचानक इतनी सुबह यहां आने की क्या सूझी?”
“यार, सुबह तो मैं कभी टाइम पर नहीं आ सकता लेकिन आज ये सोचकर आया था कि जिम खाली होगा पर यहां तो अलग ही फिल्म चल रही है।“
झील अपनी घबराहट और शर्मिंदगी को छिपाते हुए, तुरंत जिम से बाहर निकलने की कोशिश करती है जैसे ही झील जिम से बाहर निकलती है, विहान ठहाका लगाता रंजीत की ओर देखता है।
विहान शरारती लहजे में कहने लगा -
“क्या बात है, बॉस? वैसे मानना पड़ेगा, तुम्हारी किस्मत बड़ी जबरदस्त है - मुझे तो जिम में सिर्फ डम्बल्स मिलते हैं, और तुम्हें...|”
रंजीत गुस्से से -
“चुप हो जाओ, विहान।“
रंजीत प्रोटीन शेक का गिलास छीनता विहान की ओर गुस्से से देखता है। वही विहान बेफिक्री से कंधे उचकाता कहने लगा -
“अरे, क्यों गुस्सा हो रहे हो? मान लिया, बॉस - लड़की का ध्यान रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है लेकिन इतना टेंशन मत लो - जिम में रोमांस करना भी सेहत के लिए अच्छा होता है।“
रंजीत गुस्से में दांत पीसते हुए कहने लगा -
“अगर एक और शब्द कहा, तो तुम्हारा यही प्रोटीन शेक तुम्हारे सिर पर डाल दूंगा।“
ये सुनते विहान ठहाका लगाता है रंजीत को छेड़ते हुए वर्कआउट मशीन पर बैठ जाता है। रंजीत गहरी सांस लेकर खुद को शांत करने की कोशिश करता है, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ जाती है, जो उसे खुद एहसास नहीं होता।
क्या आने वाले समय में रंजीत का पत्थर दिल पिघल जाएगा या किसी और सच से उसका सामना होगा ?
क्रमशः.............
ऋत्विक चौधरी अपने ऑफिस की बड़ी खिड़की के पास खड़ा था, जहां से पूरे मुंबई का नजारा दिख रहा था। उसके हाथ में एक क्रिस्टल बॉल थी जिसे वह लगातार टेबल पर घुमा रहा था| वह अपने मेनेजर अर्जुन से बातचीत कर रहा है।
अर्जुन -
“सर, मुंबई में आपका नाम तेजी से फैल रहा है - हर कोई आपके प्रोजेक्ट्स के बारे में बात कर रहा है।“
ऋत्विक कठोरता से कहता है -
“नाम फैलाना आसान है, अर्जुन - असली चुनौती है इसे बनाए रखना और मुझे इसके लिए कोई तो मजबूत कन्धा चाहिए |”
अर्जुन -
“वैसे सर - एक खबर है कि देहल ग्रुप की सीईओ अमारा देहल आपसे मिलने की कोशिश कर रही है।“
ऋत्विक उसकी बात सुनकर पलटता है और कुर्सी पर बैठ जाता है। उसके चेहरे पर हल्की उत्सुकता है।
ऋत्विक -
“अमारा देहल... जगदीश सिंह देहल की बेटी?”
अर्जुन -
“यस सर - उन्होंने राजस्थान में एक प्रोजेक्ट के लिए आपकी मदद लेने का इंटेंशन दिखाया है।“
ऋत्विक हल्की हंसी के साथ -
“इंट्रेस्टिंग - पिता का नाम और बेटी की काबिलियत दोनों का इस्तेमाल करना चाहती है - लेकिन सवाल है, अर्जुन, क्या यह मेरे वक्त के लायक है?”
अर्जुन उसके आगे झुकता हुआ धीरे से कहता है -
“सर, देहल ग्रुप का नाम बड़ा है - शायद यह आपके लिए एक मौके जैसा हो।“
ऋत्विक अब उस क्रिस्टल बॉल को फर्श पर लुढकाते हुए कहता है -
“देखते है मेरे हिस्से की गेंद किसके पाले में जाती है – मीटिंग फिक्स करो |”
वही अमारा अपने पीए दीपक के साथ ऑफिस में ऋत्विक चौधरी से मुलाकात की तैयारी कर रही थी। दीपक ने ऋत्विक की प्रोफाइल और उससे जुड़े हर पहलू की जानकारी इकट्ठा कर रखी थी।
दीपक डॉक्यूमेंट्स दिखाते हुए कहता है -
“मैम, ऋत्विक चौधरी की प्रोफाइल तैयार है – मैं जितनी जानकारी जुटा पाया ओ सब इसमें है - वह बहुत चालाक और अवसरवादी व्यक्ति हैं - सरकारी अफसरों और बड़े बिज़नेसमैन के बीच उनकी पकड़ काफी मजबूत है – अभी कुछ समय पहले उसने मुंबई में कदम रखा है और बड़े बड़े बिजनेसमैन उसके शेयर खरीदना शुरू कर चुके है लेकिन उनकी एक खासियत यह भी है कि वह किसी के दबाव में काम नहीं करते।“
अमारा मेज पर झुकते हुए उन फाइलों को ध्यान से देखते हुए -
“यानी हमें उसे इस प्रोजेक्ट में अपने फायदे से ज्यादा उसका फायदा दिखाना होगा।“
दीपक -
“बिल्कुल, और एक और बात - ऋत्विक चौधरी छोटे खेल नहीं खेलता - अगर उसे कोई ऑफर पसंद नहीं आया, तो वह उसे बड़ी आसानी से ठुकरा देगा।“
अमारा खड़ी होती हुई कहने लगी -
“ठीक है, तो हमें ऐसा ऑफर देना होगा जिसे वह मना न कर सके – अमारा भी कच्चे खेल नहीं खेलती |”
****
ऋत्विक चौधरी और अमारा देहल की मुलाकात का समय तय हो चुका था। वो एक प्राइवेट लॉन्ज था, उस लॉन्ज का माहौल बेहद शांत था। ऋत्विक पहले से वहां मौजूद था| ऋत्विक सफेद शर्ट और ब्लेज़र में अपने क्लासिक स्टाइल में सोफे पर आराम से बैठा हाथ में एक क्रिस्टल ग्लास लिए था जिसमें हल्की स्कॉच थी। तभी, अमारा लॉन्ज में प्रवेश करती है।
अमारा काले रंग की खूबसूरत और क्लासिक फॉर्मल ड्रेस में थी, जिसमें उसकी प्रोफेशनलिज्म के साथ-साथ उसकी खूबसूरती भी निखर कर आ रही है। वह आत्मविश्वास से भरी चाल चलती हुई जैसे ही टेबल के पास आती है, ऋत्विक अपनी नजरें उससे हटाने में थोड़ा समय लेता है। वह उसके हर कदम और उसकी खूबसूरती को निहारता है, जैसे किसी शिल्पकार ने कोई बेहतरीन मूर्ति बनाई हो।
ऋत्विक हल्की मुस्कान के साथ कहता है -
“मिस देहल, आपका स्वागत है।“
अमारा बैठते हुए -
“मिस्टर चौधरी, आपका कीमती वक्त देने के लिए धन्यवाद।“
वही ऋत्विक हल्की मुस्कान के साथ कहता है -
“मिस देहल, मेरा वक्त कीमती है - लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि आप उसे कैसे वसूल करती हैं?”
अमारा भी उसी आत्मविश्वास से कहती है -
“मिस्टर चौधरी - आपसे मिलना मेरे लिए बहुत जरूरी था।
ऋत्विक उसे ध्यान से देखता है, उसकी मुस्कान, उसकी बॉडी लैंग्वेज और उसकी आंखों में झलकते दृढ़ संकल्प को पढ़ने की कोशिश करता है। लेकिन उसकी नजरें अमारा की ड्रेस, उसके खुले बालों और उसकी खूबसूरती पर टिक जाती हैं।
ऋत्विक हल्के से उसकी ओर झुककर देखते हुए कहने लगा -
“मुझे यकीन नहीं था कि देहल ग्रुप की सबसे तेज़ और होशियार सीइओ इतनी आकर्षक भी होगी।“
अमारा थोड़ा मुस्कुराते हुए, पर प्रोफेशनल अंदाज में आगे कहती है -
“आपकी तारीफ का शुक्रिया लेकिन मैं यहां आपकी मदद पाने के लिए आई हूं, ना कि तारीफ सुनने।“
इस पर ऋत्विक हंसते हुए कहने लगा -
“स्पष्ट और सीधी बात करना आपकी खासियत है, यह मुझे अच्छा लगता है लेकिन मेरी आदत है कि मैं हर डील में हर पहलू को ध्यान से देखता हूं।“
यह कहते हुए, वह अमारा की आंखों से लेकर उसके हाथों पर टिकती अपनी नजरें वापस अपनी ग्लास पर ले आता है।
अमारा आगे कहती है -
“तो चलिए, बिना समय गंवाए काम की बात करते हैं ।“ वह अपने लैपटॉप की स्क्रीन पर उसका ध्यान दिलाती हुई कहने लगी – “हमारा राजस्थान प्रोजेक्ट न सिर्फ हमारी कंपनी के लिए, बल्कि उस क्षेत्र के डेवलेपमेंट के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण बनेगा - हमें ऐसी जमीन चाहिए जो रणनीतिक रूप से हमारे इंडस्ट्रियल हब के लिए परफेक्ट हो।“
अमारा अपने साथ लाए डॉक्यूमेंट्स टेबल पर रखे और प्रोजेक्ट की बारीकियां बताने लगी। ऋत्विक उसकी हर बात ध्यान से सुनता है, लेकिन बीच-बीच में उसकी नजरें अमारा के चेहरे और उसके आत्मविश्वास भरे हाव-भाव पर जाती हैं। वह महसूस करता है कि अमारा सिर्फ अपने लुक्स से ही नहीं, बल्कि अपने दिमाग और पेशेवर रवैये से भी प्रभावशाली थी।
ऋत्विक आराम से पीछे झुकते हुए कहता है -
“और आपको लगता है कि मैं आपकी यह समस्या हल कर सकता हूं?”
अमारा भी उसी अंदाज में आगे कहती है -
“मैं जानती हूं कि आप कर सकते हैं - आपके नेटवर्क और आपकी क्षमताओं पर कोई सवाल नहीं - सवाल यह है कि आप इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनना चाहते हैं या नहीं।“
ऋत्विक उसे ध्यान से देखते हुए कहने लगा -
“आपकी बातें सुनकर लगता है कि आप काम को लेकर बहुत गंभीर हैं लेकिन मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या आप इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं?”
अमारा आंखों में आत्मविश्वास लिए कह उठी -
“मिस्टर चौधरी, मेरा विश्वास है कि सही रास्ते पर चलकर भी हर चैलेज्स का सेलुशन निकाला जा सकता है और मैं किसी भी हाल में यह प्रोजेक्ट पूरा करने का हौसला रखती हूं।“
ऋत्विक उसकी बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराता है। उसकी आंखों में एक अजीब चमक है, जो यह इशारा करती है कि वह अमारा की खूबसूरती और उसकी समझदारी दोनों से प्रभावित हो चुका है।
ऋत्विक आगे कहता है -
“मुझे आपकी बातों में दम नजर आता है लेकिन मैं फौरन कोई फैसला नहीं करता - मैं सोचूंगा और तब आपको जवाब दूंगा।“
अमारा भी जवाब में हल्के से मुस्कुराते हुए कहने लगी -
“जितना समय चाहिए, आप ले सकते हैं - लेकिन उम्मीद है, मेरा प्रोजेक्ट आपको निराश नहीं करेगा।“
ऋत्विक एक बार फिर उसे ध्यान से देखता है, और उसकी मुस्कान इस बात का संकेत देती है कि वह अमारा को सिर्फ एक बिजनेस डील के रूप में नहीं, बल्कि एक दिलचस्प शख्सियत के रूप में भी देखने लगा है।
ऋत्विक खड़ा होता है, अपना कोट ठीक करता है और लॉन्ज से बाहर चला जाता है। अमारा उसे जाते हुए देखती है। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास है, लेकिन अंदर वह यह सोच रही है कि क्या ऋत्विक उसकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा।
****
दीपक अपने केबिन में बैठा फाइल्स चेक कर रहा होता है, जब दरवाजा तेज आवाज के साथ खुलता है। अनिरुद्ध अंदर आता है,जिसका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था।
“दीपक! ये क्या किया तुमने? मैंने साफ कहा था कि अमारा मैडम को खुद ऋत्विक चौधरी से मिलने मत जाने देना।“
दीपक उसे अजीब नज़र से देखते हुए -
“लेकिन सर, अमारा मैडम ने खुद कहा था कि वह इस मीटिंग को हैंडल कर लेंगी - मैं रोक नहीं सका।“
अनिरुद्ध आवाज तेज करते हुए कहता है -
“तुम रोक नहीं सके? तुम्हारा काम सिर्फ मैडम की बात मानना नहीं, बल्कि उन्हें सही सलाह देना भी है - क्या तुम्हें पता है कि ऋत्विक चौधरी जैसे लोग कितने चालाक होते हैं?”
दीपक धीमे स्वर में बुदबुदा उठा -
“सर, मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आप क्यों परेशान हैं, जबकि अमारा मैडम ने मुझसे साफ कहा था कि यह उनका डिसीजन है।“
अनिरुद्ध गुस्से में कुछ बोलने की कोशिश करता है, लेकिन खुद को रोक लेता है। वह गहरी सांस लेकर केबिन से बाहर चला जाता है।
अनिरुद्ध अपने केबिन में आकर कुर्सी पर गिरता है। उसका चेहरा तनावग्रस्त हो उठा था| वह अपनी मेज पर रखी फाइल्स को एक ओर सरका कर सिर अपने हाथों में थाम लेता है। तभी विकास, उसका करीबी दोस्त और सहकर्मी, अंदर आता है।
विकास उसके पास आता हुआ कहता है -
“क्या बात है, अनिरुद्ध? आज तो काफी नाराज लग रहे हो।“
अनिरुद्ध अचानक सर उठाता हुआ जवाब देता है -
“कुछ नहीं - बस ऑफिस के काम का तनाव था |”
जबकि विकास अपनी नज़र चमकाता हुआ कहता है -
“अरे यार, ऑफिस का तनाव तो बहाना है – मैं देख रहा हूँ कि तुम अमारा मैडम को लेकर थोड़ा ज्यादा पजेसिव हो रहे हो।“
अनिरुद्ध चौंककर विकास की ओर देखता है।
अनिरुद्ध तुरंत झुंझलाते हुए कहता है -
“पजेसिव? ऐसी कोई बात नहीं है - मैं बस उनका हेड मैनेजर हूं और चाहता हूं कि सब कुछ सही तरीके से हो।“
“अरे भाई, तुम उनके हेड मैनेजर हो, ये तो ठीक है लेकिन उनकी इतनी चिंता क्यों करते हो? ये ऑफिस के काम से ज्यादा पर्सनल लगने लगा है।“
अनिरुद्ध चुप रहता है। वह खिड़की के पास जाकर बाहर देखने लगता है। विकास कुर्सी पर बैठकर उसकी ओर मुस्कुराते हुए देख रहा था।
विकास आगे कहता है -
“देखो, अनिरुद्ध, मैं तुम्हारा दोस्त हूं - तुम चाहे छुपाओ या न छुपाओ, मुझे पता है कि अमारा मैडम तुम्हारे लिए सिर्फ बॉस नहीं हैं।“
अनिरुद्ध लंबी सांस लेकर खिड़की से पीछे हटता है। उसकी आंखों में गहरी भावनाएं झलकने लगती हैं।
अनिरुद्ध धीमे स्वर में कहने लगा -
“तुम समझते हो, विकास? अमारा... वो मेरे लिए कुछ अलग है - जब हम कॉलेज में थे, तब से...|”
वह रुक जाता है, जैसे अपनी बात को कहने का साहस नहीं कर पा रहा हो लेकिन विकास गंभीर हो जाता है।
“और फिर?”
अनिरुद्ध सहसा खुद को सँभालते हुए बात को टालने की कोशिश करते हुए कहता है -
“और फिर क्या? वो एक अमीर बिजनेसमैन की बेटी थी - मेरे जैसे मिडल-क्लास लड़के की क्या बिसात थी कि उसके बारे में सोचता?”
विकास उसकी आंखों में सच्चाई पढ़ लेता है और धीरे से कहता है -
“लेकिन अब तुम उसके हेड मैनेजर हो और उसके सबसे भरोसेमंद इंसान - तुम्हारे पास मौका है, अनिरुद्ध।“
ये सुनते अनिरुद्ध मुस्कुराते हुए कहता है -
“मौका? मौका तो बस ख्वाबों में होता है, विकास - असलियत में कुछ भी बदलता नहीं है।“
विकास कुछ कहने ही वाला होता है, लेकिन तभी फोन की घंटी बजती है। अनिरुद्ध फोन उठाता है। दूसरी तरफ अमारा की आवाज सुनाई देती है।
अमारा उसी सख्त लहजे में -
“अनिरुद्ध, मीटिंग खत्म हो गई है - मैं ऑफिस वापस आ रही हूं - ऋत्विक से डील पर आगे बात करनी है।“
अनिरुद्ध भी सपाट भाव में कहता है -
“ठीक है, मैम - मैं इंतजार करूंगा।“
फोन रखकर अनिरुद्ध वापस कुर्सी पर बैठ जाता है। उसकी आंखों में हल्की बेचैनी और चेहरे पर गहरी खामोशी छा जाती है।
क्या ऋत्विक से हुए अमारा की मुलाकात कोई नहीं मुसीबत खड़ी करेगी? क्या कभी अमारा अनिरुद्ध की भावना समझ पाएगी? अगले एपिसोड में रंजीत और झील स्पेशल होगा
क्रमशः..............
ऋत्विक अपने आलीशान ऑफिस के बड़े ग्लास पैनल के पास खड़ा था,, जहां से मुंबई का शानदार नज़ारा दिखाई दे रहा था| उसके हाथ में एक व्हिस्की का गिलास था। सामने डेस्क पर डील के कागजात फैले हुए थे जिसे उसका वकील अपनी अनुभवी आँखों के दायरे में लिए बैठा था।
ऋत्विक खिड़की से बाहर देखते हुए - “ये डील अब सिर्फ रंजीत तक सीमित नहीं रहनी चाहिए - इसे आगे बढ़ाने का वक्त आ गया है।“
वकील एकदम से उसकी ओर देखता हुआ – “सर, डील पहले ही फाइनल हो चुकी है - रंजीत सिंह देहल को इससे बाहर रखना आसान नहीं होगा।“
इसपर ऋत्विक मुस्कुराते हुए कहता है – “बिल्कुल सही कहा - रंजीत को हटाने की जरूरत ही नहीं है - मैं चाहता हूं कि डील में ऐसा बदलाव करो जिससे अमारा इसमें इन्वॉल्व हो जाए।“
वकील चौंकता है और तुरंत अपने नोट्स देखने लगता है। वह अपनी चश्मा ठीक करते हुए गंभीरता से ऋत्विक की तरफ देखता हुआ कहता है।
“अमारा? लेकिन सर, ये डील तो सिर्फ रंजीत और आपकी कंपनियों के बीच थी - अमारा मैडम को इसमें लाने की वजह...?”
ऋत्विक धीमे स्वर में, मुस्कुराते हुए – “क्योंकि मेरा असली टारगेट अमारा है - रंजीत को बस एक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा हूं।“
वकील सावधानी से शब्द तोलता हुआ बोलता है – “सर, ये डबल गेम खतरनाक हो सकता है - अगर रंजीत या अमारा को इसकी भनक लग गई, तो...|”
ऋत्विक कटाक्ष करते हुए – “यही तो इस खेल की खूबसूरती है - रंजीत सोचता है कि मैं उसका पार्टनर हूं, और अमारा... उसे तो अभी ये भी नहीं पता कि वह मेरे प्लान का हिस्सा बन चुकी है।“
ऋत्विक धीरे-धीरे डेस्क की ओर बढ़ता है। उसके चेहरे पर उस समय चालाकी भरा आत्मविश्वास झलक रहा था। ऋत्विक अब वकील की तरफ झुकते हुए – “मैं चाहता हूं कि इस डील के एक सेक्शन में ऐसा क्लॉज डालो, जिससे अमारा के बिजनेस का इंवॉल्वमेंट अनिवार्य हो जाए।“
“लेकिन, सर...|”
ऋत्विक अब गिलास में बची व्हिस्की खत्म करके वकील की ओर पलटता तेज आवाज में बोल उठा – “बस करो! तुम्हारा काम सिर्फ कागजात तैयार करना है - अगर अमारा का नाम इस डील में आ गया, तो ये डील रंजीत के खिलाफ भी इस्तेमाल हो सकेगी।“
वकील घबराकर सिर हिलाता है और काम शुरू कर देता है। ऋत्विक फिर से खिड़की के पास खड़ा होकर नीचे देखता है। उस वक़्त उसकी मुस्कान अब और गहरी हो गई थी|
****
रंजीत अपने बिजनेस कॉल में व्यस्त रहते रहते हॉल की ओर आ रहा था और तभी उसकी नज़र झील पर जाती है जो आराम से सोफे पर बैठी विहान के किसी मजेदार किस्से पर हंस रही थी। रंजीत कमरे में घुसते ही झील को देखता है और उसकी नजरें तुरंत उसके कपड़ों पर जाती है| उसका चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है।उसने रंजीत के कपड़े पहने हुए थे, लेकिन उनका फिटिंग और अंदाज़ अजीब-सा लग रहा है।
रंजीत कड़क आवाज में बोला – “क्या ये अभी तक तुम्हारे कपड़े नहीं सूखे?”
झील चौंककर रंजीत को देखती है, लेकिन कुछ कहती नहीं। विहान, जो अपनी कॉफी का मजा ले रहा है, तुरंत बीच में कूद पड़ता है।
“भाई, कपड़े तो झाड़ियों में फंस गए थे, याद है? बेचारी फटे कपडे कैसे पहनेगी ?”
उसकी बात पर रंजीत झुंझलाकर कहता है – “तो इसका मतलब ये है कि ये हमेशा मेरे घर में मेरे कपड़े पहनकर घूमेगी?”
झील असहज होकर खामोश रहती है, लेकिन विहान मुस्कुराता हुआ कहता है -
“वैसे, आप चाहो तो इसे बोल दो कि मॉल जाकर अपने लिए कपड़े खरीद ले।“
अब रंजीत आंखें तरेरते हुए कहता है -
“और इसे पैसे कौन देगा, तुम?”
लेकिन विहान अपने मजाकिया लहजे में कहता रहा – “बेचारी की याददाश्त गई है, भाई – अकेली जा नहीं सकती - और घर में कोई महिला मेड भी नहीं है जिसके कपड़े इसे दिए जा सकें।“
रंजीत गहरी सांस लेता है, मानो खुद को शांत करने की कोशिश कर रहा हो।
रंजीत कुछ सोचते हुए कहता है – “ऑफिस में विधि है - उससे कहो कपड़े भेज दे।“
“भाई, अगर ऑफिस में किसी को पता चल गया कि तुम अपने घर में किसी अंजान लड़की को रखे हुए हो, तो क्या जवाब दोगे?”
ये सुनते रंजीत का चेहरा कसैला हो जाता है। विहान अपनी हंसी छिपाने की कोशिश करता है, लेकिन असफल रहता है।
“वैसे भाई एक ऑप्शन है—तुम इसे खुद मॉल ले जाओ।“
रंजीत चिढ़कर उसकी ओर देखता है – “मैं क्यों?”
विहान अब बाहर जाते हुए हवा में हाथ हिलाते हुए कहने लगा – “क्योंकि मैं इसे ले जाने वाला नहीं हूं और फिर, तुम्हें ही तो इसे घर से निकालने की इतनी जल्दी है – अब तुम ही जानो ।“
रंजीत कुछ पल के लिए गुस्से में खामोश रहता है, फिर गहरी सांस लेकर अपनी चाबी उठाता हुआ उसके सामने आता हुआ कहता है -
“चलो – कम से कम तम्बू जैसे कपड़ो में तो नहीं देखना पड़ेगा |”
झील हैरान होकर खुद को देखते हुए – “मैंने तो वही पहना जो मुझे मिला - मुझे लगा...|”
ये सुनते रंजीत कटाक्ष करते हुए – “कुछ भी पहनने से पहले आईने में देख लिया करो।“
झील धीमी आवाज़ में जवाब देती है – “ आप हमेशा मुझे डांटते क्यों रहते हैं।“
रंजीत उसके करीब आते हुए, चिढ़ते हुए कहता है – “क्योंकि तुम्हारी हर हरकत ऐसी होती है कि कोई चुप नहीं रह सकता।“
रंजीत पास आकर उसकी तरफ देखता है, लेकिन तभी झील का हाथ लगकर मेज पर रखी पानी की बोतल फिसल जाती है और पानी फर्श पर गिर जाता है। ये देख झील घबरा जाती है और जल्दी से पानी साफ करने के लिए झुकती है। उसी वक्त रंजीत भी मदद के लिए झुकता है, और दोनों का सिर टकरा जाता है।
झील सर पकडे बोल कराह उठी – “आउच!”
रंजीत भी माथा रगड़ते हुए – “तुम्हारा सिर पत्थर का है क्या?”
“मुझे भी दर्द हुआ |”
“हमेशा खुद गलती करती हो और भुगतना मुझे भी पड़ता है |”
“मैं पानी साफ़ करती हूँ |” कहती हुई झील दूसरी को जाने लगती है लेकिन तभी झील अपना संतुलन खोती फिसल जाती है और रंजीत तेजी से उसे पकड़ लेता है।
झील सांस रोकते हुए - “आपने... मुझे गिरने से बचा लिया।“
एक बार फिर रंजीत झुंझला उठता है – “तुम खुद को संभालना कब सीखोगी?”
दोनों के बीच एक अनजानी नज़दीकी का एहसास होता है। झील उसकी बाहों में थी और रंजीत कुछ कहने के लिए मुंह खोलता है, लेकिन उसकी नज़रें झील की मासूमियत पर टिक जाती हैं। झील के गाल हल्के-से गुलाबी हो आते हैं। वह खुद को छुड़ाने की कोशिश करती कहती है -
“शायद... अब मुझे खड़े हो जाना चाहिए।“
इससे रंजीत सकपकाते उसका हाथ छोड़ देता है| अब झील खड़ी हो जाती है और अपने कपडे ठीक करती है। रंजीत एक कदम पीछे हटता है, लेकिन उसकी नजरें झील पर टिकी रहती हैं। लेकिन अगले ही पल वह खुद को झटका देते हुए सीधा खड़ा हो जाता है।
इसके बाद रंजीत बाहर जाने को कदम उठाता ही है कि फर्श के पानी से खुद को फिसलने से बचाता है। ये देख झील चुपके से हंस पड़ती है। दोनों मॉल जाने के लिए तैयार हो जाते हैं, लेकिन उनके बीच का यह अनकहा पल दोनों के दिलों में कहीं गहराई तक छाप छोड़ गया था।
****
रंजीत और झील मॉल के एक फैशन स्टोर में दाखिल होते हैं। रंजीत झील से कुछ दूरी पर खड़ा रहता है, जैसे इस बात पर शर्मिंदगी महसूस कर रहा हो कि वह उसके साथ है तभी स्टोर की सेल्सगर्ल उन्हें देखती मुस्कुरा देती है।
सेल्सगर्ल मुस्कुराते हुए कहने लगी – “सर, आपकी वाइफ के लिए कुछ और मदद चाहिए?”
रंजीत झटके से उसका चेहरा देखता है।
“वो... वो मेरी वाइफ नहीं है।“
सेल्सगर्ल की मुस्कान और चौड़ी हो जाती है। रंजीत झेंपकर झील से दहनीय स्वर में कहने लगा – “देखो, जो भी चाहिए, जल्दी से ले लो।“
झील चारों तरफ नजर घुमाती है,फिर वह कुछ कपड़े उठाकर ट्रायल रूम की तरफ जाती है। रंजीत झुंझलाकर अपना फोन देखने लगता है। तभी झील नए कपड़ों में बाहर आती है। वह बेहद खूबसूरत लग रही है।
झील मासूमियत से पूछती है -
“ये कैसा लग रहा है?”
रंजीत एक पल के लिए चुप रह जाता है। उसे समझ नहीं आता कि क्या जवाब दे। फिर एक सरसरी नजर डालता हुआ कहता है -
“बस ठीक है।“
झील उदासी से सर झुकाती दुबारा ट्रायल रूम की तरफ चली जाती है। रंजीत बेचैनी से अपनी घड़ी देखता है। कुछ देर बाद झील एक खूबसूरत ड्रेस पहनकर बाहर आती है। हल्के रंग की वह ड्रेस झील की मासूमियत और खूबसूरती को और भी निखार देती है। रंजीत पहली बार उसकी तरफ ध्यान से देखता है और कुछ पल के लिए खो जाता है।
“ये कैसी लग रही है?”
रंजीत अपनी खयालों से बाहर आता नजरें फेरता हुआ कहता है – “ये... ये ठीक है।“
झील उसकी हिचकिचाहट को भांप जाती है और मौन ही मुस्कुरा लेती है।
झील धीरे से कहती है – “ठीक है? मतलब ये पसंद आई है आपको।“
रंजीत कुछ कहने के लिए मुंह खोलता है, लेकिन तभी ट्रायल रूम के पास रखी एक रैक से कुछ कपड़े नीचे गिर जाते हैं। झील उन्हें उठाने के लिए झुकती है, और रंजीत भी मदद के लिए आगे बढ़ता है। दोनों एक ही समय पर कपड़े उठाते हैं, और उनकी उंगलियां अनजाने में आपस में छू जाती हैं।
दोनों एक पल के लिए ठहर जाते हैं। रंजीत झील की आंखों में देखता है। हल्की मॉल की रोशनी में उसकी मासूमियत और चेहरे की चमक रंजीत को विचलित कर देती है। झील भी उसे देखती है और पहली बार उसकी आंखों में कुछ अनकहा महसूस करती है।
झील धीमे स्वर में – “मुझे... माफ कीजिए।“
रंजीत भी उसी धीमे स्वर में – “संभलकर चला करो - हर बार गिरोगी, तो कौन उठाएगा?”
उनकी आंखें कुछ पल के लिए बातें करती हैं, लेकिन झील तुरंत खड़ी हो जाती है|
झील धीरे कहती है – “वैसे, ये ड्रेस आपके पैसे की वाकई कीमत है।“
रंजीत उसकी बात पर हल्का सा मुस्कुराता है। यह शायद पहली बार है जब उसकी मुस्कान झील ने देखी हो। वह खुद हैरान रह जाती है।
लेकिन जब झील को अपनी ओर गौर से देखता हुआ पाता है तो तुरंत गंभीर हो जाता है और दुबारा अपनी घड़ी देखने लगता है।
रंजीत – “चलो, और कुछ खरीदना है तो जल्दी करो।“
झील मुस्कुराती है और कपड़ों की ओर बढ़ जाती है।
शॉपिंग के बाद झील रंजीत एक साथ वही कैफे में कॉफी पीने रुकते है। झील अपने कप से कॉफी की सिप ले रही है और आसपास की चीजों को देख रही है, जबकि रंजीत उसकी हरकतों को चुपचाप देख रहा है।
अचानक उनकी आंखे आपस में मिलती है और झील धीरे से कहती है – “आपको पता है, मुझे लगता है कि आप इतने बुरे नहीं हैं जितने बनने की कोशिश करते हैं।“
इसपर रंजीत आंखें सिकोड़ता हुआ कहता है – “तुम्हें मुझे समझने की कोई जरूरत नहीं।“
“क्यों? क्या आपके अंदर का इंसान इतना बुरा है?”
रंजीत चुप हो जाता है। वह खिड़की के बाहर देखने लगता है। झील उसे ध्यान से देखती रही|
रंजीत उसकी बातों से विचलित लग रहा था लेकिन कुछ नहीं कहता। उसकी नजरें बार बार झील की मासूमियत पर टिक जाती। दोनों के बीच कुछ ऐसा महसूस होता है जिसे शब्दों में कहना मुश्किल था। झील हल्की सी मुस्कान के साथ अपनी कॉफी खत्म करती है और रंजीत के चेहरे पर एक नरम मुस्कान देखकर मुस्कुरा उठती है।
कैफे के बाहर हल्की बारिश शुरू हो चुकी थी। दोनों चुपचाप खिड़की से बाहर देखते रहे लेकिन उनकी खामोशी में एक नई धुन पनपती रही।
तभी...
कैफे के दूसरी ओर एक टेबल पर बैठा व्यक्ति, जिसकी आंखें लगातार झील पर टिकी हैं, अपने मोबाइल फोन को धीरे-धीरे उठाता है। वह सावधानी से इधर-उधर देखता है कि कोई उसे नोटिस न करे। यह व्यक्ति ऋत्विक का खास आदमी, अनवर था, जो झील को देखकर एकाएक सतर्क हो गया है।
क्रमशः ..................
कॉफ़ी खत्म होने के बाद भी दोनों उस टेबल से उठे नहीं थे| उनके बीच रखे खाली कप भी जैसे उनके बीच बाधा नहीं बनना चाहते थे|
झील धीरे-धीरे भुनभुनाती रही – "...जितने बनने की कोशिश करते हैं।"
रंजीत के चेहरे पर हल्की झिझक झलकती है, लेकिन वह तुरंत अपने सामान्य, सख्त अंदाज़ में आ जाता है और उतनी ही रुखाई से कहता है –
"तुम मुझे जानती ही कितना हो कि ऐसा कह सको?"
"शायद इतना नहीं लेकिन मैंने जो देखा और महसूस किया... उससे यही लगता है।"
रंजीत उसे घूरते हुए दूसरी ओर देखने लगता है।
इससे झील संकोच से धीरे से कहती है - "आप हमेशा इतने गंभीर क्यों रहते हैं? जैसे दुनिया का सारा बोझ आपने अपने सिर पर ले रखा हो।"
इस पर रंजीत संजीदगी से कहने लगा - "कुछ चीजें तुम्हारी समझ के बाहर हैं - और वैसे भी, हर किसी को सबकुछ जानने की ज़रूरत नहीं होती।"
इस पर झील हल्की मुस्कान के साथ कहती है - "आप मुझसे बात करने से क्यों बचते हैं? क्या मैं इतनी बुरी हूं?"
रंजीत थोड़ा असहज होकर - "ऐसी कोई बात नहीं है - मैं बस... लोगों से दूरी बनाए रखना पसंद करता हूं।"
झील हल्का ठहाका लगाते हुए - "लोगों से या अपने दिल से?"
रंजीत उसकी ओर एक तीखी नजर डालता है। उसके चेहरे पर हल्की बेचैनी उभरती है।
“ज्यादा समझदार बनने की कोशिश मत करो - जो सामने दिख रहा है, बस उसी तक रहो।“
झील धीरे से कहती है – “कभी-कभी दिल का बोझ कम करने के लिए किसी से बात करना जरूरी हो जाता है |”
रंजीत झील की बात सुनकर खामोश हो जाता है। उस पल ये समझना मुश्किल हो जात है कि ये बात झील ने खुद के लिए कही या रंजीत के लिए इसके कुछ समय बाद जैसे ही वे उठने लगते हैं, झील हल्के से कहती है "वैसे साथ में कॉफ़ी पीना भी अच्छा लगा ?"
रंजीत उसे देखता कहने के लिए मुंह खोलता है, लेकिन फिर खुद को रोक लेता है
अब दोनों मॉल से बाहर निकलते हैं। कार में बैठने के बाद, झील खिड़की से बाहर देख रही होती है।
कुछ देर की खामोशी के बाद, झील धीरे से कहती है – “आपकी जिंदगी में बहुत सारी बातें हैं, जो शायद आप चाहें तो उन्हें किसी के साथ बांट सकते हैं।“
रंजीत बिना उसकी ओर देखे सख्त लहजे में कहता है – “मैंने कहा ना, झील, मेरी जिंदगी में ताक-झांक करने की कोशिश मत करो।“
झील हल्की हंसी के साथ – “आप हमेशा इतना गुस्सा क्यों करते हैं? कभी मुस्कुरा कर बात किया करें।“
रंजीत की नजरें कुछ पल के लिए झील पर टिकती हैं।
“मुस्कुराने की वजह होनी चाहिए, झील और फिलहाल, मेरे पास कोई वजह नहीं है।“
अगले ही पल वे मेंशन पहुँच जाते है| रंजीत कार पार्क करता है और झील को अंदर आने का इशारा करता है। झील अपने बैग को संभालते हुए धीरे-धीरे उसके पीछे चलती है।
जैसे ही दोनों घर के अंदर आते हैं, झील हल्के स्वर में कहती है – “वैसे इसके लिए थैंक्यू ।“
रंजीत उसकी ओर बिना देखे जवाब देता है – “अच्छा? अब कमसे कम मेरे कपडे छोड़ देना ये ।“
झील मुस्कुराते हुए – “पर इतना गुस्से में क्यों कह्र रहे आप – मैं तो डर जाती हूँ।“
रंजीत झुंझलाते हुए – “सोने जाओ, झील - सुबह जल्दी उठकर अपने लिए कोई काम ढूंढो - मैं तुम्हें यूं बेकार नहीं रख सकता।“
इसके बाद झील चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है। रंजीत उसे जाते हुए देखता है और फिर खिड़की के पास जाकर खड़ा हो जाता है। उसके चेहरे पर एक अजीब-सा तनाव और उलझन थी। वह खुद से बड़बड़ाता है –
“क्या हो रहा है मुझे? मैं क्यों उसकी हर बात पर ध्यान दे रहा हूं?”
अचानक, विहान कमरे में दाखिल होता मुस्कुराते हुए कहता है –
“भाई, सब ठीक है? या फिर किसी के साथ मॉल जाने का असर हो रहा है?”
रंजीत गुस्से से उसकी ओर देखता है – “विहान, तुझे जो कहना है कह ले, लेकिन ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं।“
विहान हंसते हुए कहता है – “भाई, मुझे कुछ नहीं कहना – मैं तो चुप हूँ पर ये आंखे नहीं चुप रहती यार ।”
रंजीत उसे अनदेखा करते हुए कमरे से बाहर चला जाता है। लेकिन उसके मन में झील की मासूमियत और उसकी कही गई बातें गूंजती रहती हैं
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रंजीत अपनी कार में झील के साथ बैठकर जब निकल रहा था तब दूसरी ओर, ऋत्विक अपनी गाड़ी से मॉल के बाहर आता है। वह कुछ दूरी से रंजीत और झील को कार में बैठते देखता है। उसके चेहरे पर एक शातिर मुस्कान उभरती है। उसके पास खड़ा एक बॉडीगार्ड उससे कुछ पूछने को तैयार खड़ा था। इसी दौरान ऋत्विक का दूसरा आदमी,अनवर , जो अंदर मॉल में निगरानी कर रहा था, उसे कॉल करता है।
“ सर, वो लड़की इसी आदमी के साथ थी - मॉल में दोनों एक साथ थे – उन लोगो से कुछ खरीददारी भी की लेकिन सर एक बात अजीब थी वो इस लड़की को झील बुला रहा था|”
ऋत्विक शातिर हंसी हंसते हुए – “रंजीत सिंह देहल... लड़की को नए कपड़ो के साथ नया नाम बजी दे दिया - वो मेरी प्यारी झील को मुझसे छुपा रहा है - अब इस खेल में असली मज़ा आएगा।“
बॉडीगार्ड – “सर, अब आगे क्या करना है?”
ऋत्विक सोचते हुए – “आगे?”
उस समय उसकी आंखों में एक खतरनाक चमक दिखाई देने लगती है|
वह उसी अंदाज में कहता है - “आगे का खेल हम तय करेंगे - लेकिन इस बार चाल ऐसी होगी कि रंजीत को समझने का मौका भी नहीं मिलेगा।“
“जी !!”
बोडिगार्ड थोडा कन्फ्यूज दिखने लगा था| रंजीत आगे कहता है –
“उस लड़की पर और रंजीत पर नज़र रखो – मुझे उसका हर कदम पता होना चाहिए – रंजीत ने मेरे रास्ते पर आने की गलती कर दी है तो उसका खामियाजा तो उसे भुगतना ही पड़ेगा – ध्यान रखो उन पर से तुम्हारी नज़र नहीं हटनी चाहिए |”
“जी सर |”
ऋत्विक अपनी जेब से फोन निकालता है और किसी को कॉल करता है।
ऋत्विक फोन पर कहने लगा – “अजीत, तुमसे काम की बात करनी है - तुरंत ऑफिस पहुंचो।“
बॉडीगार्ड - “ सर, आप बोले तो अभी उस लड़की को वहां से उठा लाते है?
“नहीं, अभी नहीं – उस लड़की के साथ साथ रंजीत के साथ खेलने में भी मजा आएगा - उसका मेरे पास आना तय है – बस खेल मजेदार होने वाला है|”
इसके बाद ऋत्विक अपनी गाड़ी की ओर बढ़ता है। वह गाड़ी का दरवाजा खोलता है और अंदर बैठते हुए अपने ड्राइवर को आदेश देता है।
“ ऑफिस चलो।“
इसके बाद ऋत्विक अपनी कार की ओर बढ़ जाता है| उसकी कार के निकलते उसके बॉडीगार्ड भी अपनी जिप्सी से उसके पीछे हो लेते है|
क्रमशः.......
मैं आ गई आप भी लौट आए...तो कहानी भी रफ़्तार पकडे..
कॉलेज की कैंटीन के कोने में प्रिशा और हार्दिक बैठे थे| प्रिशा के सामने एक हॉट चॉकलेट का कप रखा था वही हार्दिक अपनी कॉफी में चीनी मिला रहा था। शाम का समय होने से कैंटीन में भीड़ बहुत कम थी| दोनों में हलकी फुलकी बातचीत चल रही थी।
प्रिशा हार्दिक को ध्यान से देखती हुई कहने लगी – “हार्दिक, तुम अक्सर अपने गाँव की बातें करते हो पर तुमने कभी बताया नहीं कि वहाँ तुम्हारा परिवार कैसा है?
इस पर हार्दिक मुस्कुराते हुए कहने लगा – “मेरा गाँव... वो मेरी असली दुनिया है – सुवाना मेरा गाँव – कितना याद आता है वहां का सब |” थोड़ा रुककर वह आगे कहता है – “अब जल्द ही मैं वहां वापस जाने वाला हूँ।“
ये सुनते प्रिशा चौंकते हुए कहने लगी - “वापस? लेकिन क्यों?”
“मेरी दीदी...उनके लिए |”
कहता हुआ हार्दिक अपनी जेब से वॉलेट निकाल लेता है| अगले ही पल वो उसमे लाहगी एक तस्वीर प्रिशा के सामने करता हुआ कहने लगा –
“ये है मेरी दीदी - मेरी सबसे बड़ी ताकत - मैंने उनसे वादा किया है कि जब भी मैं कुछ बन जाऊँगा, सबसे पहले उनके पास जाऊँगा।“
वह वॉलेट से अपनी दीदी की एक पुरानी, हल्की धुंधली तस्वीर निकालता है। तस्वीर में एक युवा लड़की पारंपरिक साड़ी में मुस्कुराती हुई दिखाई दे रही थी|
हार्दिक गर्व से देखता हुआ कहने लगा - “ये हैं मेरी सिया दीदी - उन्होंने ही मुझे सपने देखने का हौसला दिया – प्रिशा मैं उनके लिए सब कुछ कर सकता हूँ |”
प्रिशा तस्वीर को देखते हुए कहने लगी – “तुम उनसे इतना प्यार करते हो... तुम्हारी दीदी सच में बहुत खुशकिस्मत हैं।“
“वो ही नहीं, पूरा परिवार उनकी वजह से संभला है – मेरी वजह से वे अपनी पढाई तक पूरी नहीं कर पाई – तुम्हे क्या बताऊँ प्रिशा – वो एक तरह से मेरी माँ की तरह है |”
“लेकिन तुम तो बहुत समय से अपने गाँव नहीं गए ?”
“हाँ प्रिशा क्योंकि अब हमारा परिवार कर्ज में दबा हुआ है - दीदी ने हमारी जमीन गिरवी रख दी थी ताकि मुझे पढ़ाई के लिए पैसे मिल सकें - अब मुझे वो कर्ज चुकाना है।“
प्रिशा भावुक होकर कहने लगी – “हार्दिक, तुम कितने खुशनसीब हो कि तुम्हारे पास इतनी बड़ी प्रेरणा है - काश मैं भी तुम्हारे गाँव जा पाती।“
इस पर हार्दिक हंसते हुए कहने लगा - “तुम मेरे गाँव? वो जगह तुम्हारे लिए बहुत छोटी और अलग होगी - वहाँ इतनी भीड़-भाड़ या बड़े कैफे – मतलब शहर नहीं हैं वह।“
इस पर प्रिशा मुस्कुराते हुए कहने लगी – “मुझे भीड़-भाड़ या बड़े कैफे नहीं चाहिए - मुझे वो सुकून चाहिए, जो तुम्हारी बातों से झलकता है।“
हार्दिक अब प्रिशा के हाथ पर हाथ रखता हुआ कहने लगा – “सच कहूँ तो, मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे गाँव आओ - वहाँ की हरियाली, वो ठंडी हवा, और हमारे त्योहार... तुमसे सबकुछ शेयर करना चाहता हूँ।“
दोनों कुछ देर के लिए खामोश हो जाते हैं। प्रिशा की आंखों में एक हल्की चमक उभरती है जैसे वह कल्पना कर रही हो कि वह गाँव में हार्दिक के साथ घूम रही है।
प्रिशा धीमे स्वर में कहने लगी – “काश, मेरी जिंदगी भी इतनी सादी और खूबसूरत होती।“
हार्दिक थोड़ा झिझकते हुए कहने लगा – “तुम्हारी जिंदगी भी खूबसूरत है, प्रिशा – बस, तुमने शायद अभी वो खूबसूरती देखी नहीं – वैसे भी तुम्हारे पास किस चीज की कमी है?”
उस पल प्रिशा ही का मन जानता था कि उसका मन अपने परिवार में भी कितना अकेला था पर उस पल भर की उदासी को झटकते हुए प्रिशा खनकती हुई कहने लगी – “हार्दिक, क्या तुम सच में सोचते हो कि मैं तुम्हारे गाँव जाऊँ तो...|”
हार्दिक भी उसी उत्साह से कहने लगा – “सोचता ही नहीं, चाहता भी हूँ और तुम जब मेरी दीदी से मिलोगी न तब देखना – तुम उन्हें कितना पसंद करने लगोगी – वो है ही इतनी प्यारी |”
“तब तो मैं जरुर मिलूंगी उनसे |”
“पर तुम मेरे गाँव कैसे जा पाओगी ?”
“अरे वो तुम मुझपर छोड़ दो – जिस दिन प्रिशा ने ठान लिया न उस दिन तुम भी मुझे रोक नहीं पाओगे |” अपना कॉलर उठाती हुई प्रिशा इस ढंग से बोली कि हार्दिक भी अपनी हंसी रोक नहीं पाया|
अब प्रिशा और हार्दिक बाहर निकलते हैं। हार्दिक स्कूटर की चाबी घुमा रहा है, और प्रिशा उसके पीछे बैठने को बिलकुल तैयार थी|
“हार्दिक, एक बात कहूँ?”
“ हाँ, बोलो।“
“जब तुम गाँव जाओगे, तो मुझे कॉल करना - मैं कम से कम फोन पर तुम्हारे गाँव का हाल तो जान सकूँ।“
इस पर हार्दिक हंसते हुए कहने लगा – “पक्का वीडियो कॉल से सब दिखाऊंगा – लेकिन अगर उस दिन नेटवर्क ने काम किया तो नहीं तो एक दिन तुम्हें वहाँ खुद आना पड़ेगा।“
“क्या पता मेरे प्रोग्राम से पहले राजस्थान मुझे वहां बुला ले |”
इसपर दोनों साथ में हँस पड़ते है|
अब दोनों स्कूटर पर बैठ गए थे और हार्दिक के स्कूटर चलाना शुरू करते प्रिशा उसके कंधे पर हल्का हाथ रखती है, जैसे किसी अनकहे भरोसे का एहसास उनमे हो।
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दहल मेंशन का लिविंग रूम था जहाँ रात के खाने के समय वहां सारा परिवार इकट्ठा था|
जगदीश सिंह दहल, अमारा, और उनकी पत्नी सोनाली सोफे पर बैठे हैं। बीच में एक कॉफी टेबल पर राजस्थान प्रोजेक्ट की फाइल्स और दस्तावेज बिखरे हुए थे| अमारा गंभीर स्वर में कुछ समझा रही थी। प्रिशा, सीढ़ियों से उतरते हुए अपनी धुन में वहीँ आ रही थी|
अमारा कागज़ पलटते हुए कहने लगी –“ पापा, ये ऋत्विक का प्रपोजल काफी इंट्रेस्टिंग है – उसने जो राजस्थान प्रोजेक्ट के लिए योजना दी है, वो हमारे ब्रांड के विस्तार के लिए परफेक्ट साबित हो सकती है।
जगदीश फ़ाइल के पन्ने पलटते हुए गंभीर स्वर में कहने लगे – “अमारा, प्रपोजल इंट्रेस्टिंग होना काफी नहीं है - ऋत्विक इरादे कैसे है ये भी जानना जरुरी है - वो आदमी इतना परफेक्ट दिखने की कोशिश कर रहा है या है – तुम्हे इसपर भी ध्यान देना चाहिए |”
अमारा थोड़ी तल्खी से कह उठी – “लेकिन डैड, अगर ये प्रोजेक्ट सच में अच्छा हुआ तो?”
“देखो अमारा इस प्रोजेक्ट को मैं पूरी तरह से तुम्हारे हैन्डिल किया है इसलिए तुम्हे बहुत सोच समझकर काम करना चाहिए |”
“मैं भावना से नहीं, तर्क से फैसला करती हूँ डैड - इसलिए मुझे खुद राजस्थान जाना होगा।“
अब प्रिशा धीरे-धीरे उनके पास आती उनके बीच आती मुस्कराते हुए कहने लगी – “क्या बात है? यहाँ इतनी गंभीरता क्यों है?”
अमारा गहरी सांस छोडती तुरंत कह उठी – “प्रिशा, ये बिजनेस की बात है - तुम्हारे लिए नहीं है।“
“अरे, मैं तो बस सुन रही थी कि राजस्थान की बात हो रही है - वैसे, अगर आप लोग जा रहे हैं तो मुझे भी साथ ले चलिए।“
जगदीश गंभीर स्वर में पूछ उठे – “ क्यों? वहाँ जाकर तुम क्या करोगी?”
प्रिशा अब उनके बीच बैठती नाटकीय अंदाज में कहने लगी - “पापा, मैं तो बस एक बार राजस्थान में जाकर ऊंट सवारी करना चाहती हूँ और वैसे भी, एक दी के साथ मेरा फैमिली आउटिंग का बहाना बन जाएगा।“
तब से चुप बैठी सोनाली कह उठी – “प्रिशा की बात सुनकर मेरा भी मन होने लगा |”
लेकिन अमारा प्रिशा को घूरती है। प्रिशा उसकी ओर मासूम चेहरा बनाकर देखती रही ।
इसपर अमारा सख्त स्वर में कह उठी – “प्रिशा, ये कोई पिकनिक का प्लान नहीं है - ये बिजनेस है - और बिजनेस के मामलों में तुम्हारी दखलअंदाजी की जरूरत नहीं।“
“दी, तुम्हारे चेहरे पर ये बिजनेस वाली गंभीरता देख-देखकर मैं थक गई हूँ - प्लीज, एक बार तो हंस कर बोल दो।“
प्रिशा की मासूमियत पर राधा हल्की हंसी रोकने की कोशिश करती हैं। इस पर जगदीश उन्हें घूरकर देखते है।
“प्रिशा, ये बच्चों का खेल नहीं है - राजस्थान का प्रोजेक्ट हमारी कंपनी के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।“
प्रिशा चुलबुले अंदाज में कहने लगी – “ठीक है, ठीक है - मैं हार मानती हूँ।“ फिर थोड़ा रूककर कहने लगी – “लेकिन अगर आप लोग नहीं ले गए, तो मैं खुद अकेले चली जाऊँगी - हार्दिक ने कहा था कि उनका गाँव राजस्थान में ही है और बहुत खूबसूरत है|”
प्रिशा की बात सुनते सभी चौंककर एक साथ उसकी तरफ देखते हैं। ये समझते प्रिशा अपनी जीभ दांतों से दबाती हुई खुद से कह उठी – ‘अरे ये किया प्रिशा ? लोगो के पैर कुल्हाड़ी पर पड़ते हैओर तूने कुल्हाड़ी पर पैर दे मारा – हार्दिक का नाम लेने की क्या जरुरत थी – अब मर |’
अमारा उसे सख्त नज़र से देखती हुई कहने लगी – “हार्दिक? तुम उसके गाँव क्यों जाना चाहती हो?”
जगदीश भी उसे घूरने लगे थे|
इससे प्रिशा हंसते हुए कहने लगी – “दी, वो हमारा कॉलेज का प्रोजेक्ट है न उसमे मेरा पार्टनर है और उसी प्रोजेक्ट के लिए हमे गाँव में सर्वे करना था – फिर गाँव घूमने का मज़ा अलग होता है - वहाँ की सादगी, वहाँ की खुली हवा...|”
अमारा आखें सिकोड़ते हुए कहने लगी – “मुझे लगता है, तुम्हारा मन आजकल कुछ ज्यादा ही दौड़ रहा है।“
इस पर सोनाली धीमे स्वर में कहने लगी – “ जगदीश जी, अगर प्रिशा को अमारा ले जाएँ तो बुरा क्या है? वो उसे परेशान तो नहीं करेगी।“
जगदीश थोड़ा सोचते हैं, फिर प्रिशा की तरफ गंभीरता से देखते हुए कहते है -
“ ठीक है|”
इसपर अमारा तुरंत विरोध कर उठी – “नौ डैड – मैं बिजनेस टूर में प्रिशा के साथ...!”
प्रिशा की आँखों में तो चमक आ गई थी|
जगदीश जी कह उठे “हाँ हो सकता है ये तुमसे कुछ सीख सके |”
“लेकिन डैड ?”
“प्रिशा लेकिन इसके लिए एक शर्त है।
प्रिशा उत्साहित होकर पूछ उठी – “शर्त? बताइए, मैं मानने को तैयार हूँ।“
जगदीश कहने लगे – “तुम वहाँ जाकर कोई बचपना नहीं करोगी - ये तुम्हारे लिए मस्ती का ट्रिप नहीं होगा।“
प्रिशा अंदर ही अंदर नाच उठी थी पर ऊपर से झूठी मासूमियत से कह उठी – “पक्का, पापा - मैं आपकी कंपनी के लिए सबसे जिम्मेदार बेटी बन जाऊँगी।“
अमारा जबरन सिर हिलाते हुए कागज समेटते कहने लगती है – “ये तुम्हारा "जिम्मेदार" बनना मैंने पहले भी देखा है।“
प्रिशा चिढ़ाते हुए कहने लगी - “और दी, आपने हर बार देखा है कि मैं कितनी काबिल हूँ।“
ये सुनती राधा हल्के से मुस्कुराती हैं, जबकि जगदीश और अमारा दोनों उसे घूरने लगते हैं।
क्या अमारा और प्रिशा का राजस्थान जाना कहानी को नया मोड देगा? ऋत्विक की चाल मे कौन फसेगा और कौन निकलेगा जानने के लिए पढ़े और कमेंट जरूर करे 💥
क्रमश....
गहरी शाम का वक्त था। ऑफिस की बड़ी कांच की खिड़कियों से शहर की जगमगाती रोशनी अंदर झांक रही थी। कुणाल अपनी कुर्सी पर बैठा था, उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, मगर उसकी आंखों में एक अलग ही इरादा झलक रहा था। उसके सामने उसकी सेक्रेटरी, श्रेया, हाथ में कुछ दस्तावेज लिए खड़ी थी।
"कुणाल, ये नए प्रोजेक्ट के डॉक्यूमेंट्स साइन करने हैं," श्रेया ने हल्की झिझक के साथ कहा।
कुणाल ने धीरे से अपना लैपटॉप बंद किया, जिसमें अभी कुछ सेकंड पहले ही अमारा की तस्वीर खुली हुई थी। उसके होठों पर एक चालाकी भरी मुस्कान खेल रही थी।
"रख दो - बाद में देखूंगा," उसने ठंडे स्वर में कहा।
श्रेया ने सिर हिलाया और टेबल पर फाइलें रखते हुए मुड़ने ही वाली थी कि कुणाल ने उसका हाथ पकड़ लिया। वह चौंक गई, मगर उसकी आंखों में कोई संकोच नहीं था।
"सुनो," वह कुर्सी से थोड़ा आगे झुकते हुए बोला, "अमारा के बिजनेस मॉडल की रिपोर्ट तैयार करवा लो - मुझे हर डिटेल चाहिए—उनके क्लाइंट्स, प्रॉफिट मार्जिन, फाइनेंशियल स्ट्रेटजी, सब कुछ।"
श्रेया हल्का मुस्कुराई और धीरे से उसकी गोद में बैठ गई। उसने अपनी उंगलियां कुणाल की शर्ट के कॉलर पर फेरते हुए कहा, "लेकिन सर, आपने कहा था कि शादी के बाद—"
कुणाल ने हल्का हंसते हुए उसकी कमर को पकड़कर उसे और करीब कर लिया। "शादी के बाद ही असली खेल शुरू होगा - फिलहाल, मुझे अमारा के सामने परफेक्ट मंगेतर बनकर रहना है।"
उसकी आंखों में एक शैतानी चमक थी, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार पर नजर गड़ाए बैठा हो। श्रेया ने उसकी गर्दन पर अपने होंठ फिराते हुए फुसफुसाया, "और मैं? मैं क्या करूंगी?"
कुणाल ने उसकी ठोड़ी पकड़कर उसे ऊपर देखा, "तुम्हें बस वही करना है, जो मैं कहूं - हम दोनों जानते हैं कि हमें क्या चाहिए - पैसा, ताकत और अमारा की पूरी कंपनी।"
श्रेया ने शरारती हंसी हंसते हुए कहा, "तो फिर खेल शुरू किया जाए?"
कुणाल ने उसे अपनी बाहों में कसकर भींच लिया और धीरे से उसके कान में कहा, "खेल तो बहुत पहले ही शुरू हो चुका है, श्रेया - बस अब इसे अंजाम तक पहुंचाना है।"
उसने अपना फोन उठाया और किसी का नंबर डायल किया।
"मुझे तुम्हारी जरूरत है," उसने गंभीर लहजे में कहा। "काम शुरू करो, और किसी को भनक तक नहीं लगनी चाहिए।"
फोन कटते ही कुणाल की मुस्कान और गहरी हो गई। उसके इरादे अब और भी ज्यादा खतरनाक नज़र आ रहे थे।
****
रात का समय था। कुणाल के घर का आलीशान हॉल बार की हल्की रोशनी से जगमगा रहा था। उसकी भाभी, सुमन, सोफे पर बैठी हुई थी। उसके हाथ में शराब का गिलास था, और उसकी आंखों में अजीब-सी बेचैनी झलक रही थी। साड़ी में लिपटी हुई वह अपने दुखी और लाचार व्यक्तित्व का दिखावा कर रही थी।
कुणाल हॉल में दाखिल हुआ। उसे देखकर सुमन हल्की मुस्कान दे दी।
"कुणाल...कितनी देर लगा दी आने में – कब से तुम्हारा इंतज़ार करते करते दो वोडका अकेले ही पीना पड़ा|”
सुमन की लहकती हुई आवाज पर कुणाल तीखे स्वर में कहने लगा –
“किसने कहा तुम्हे मेरा इंतज़ार करने कके लिए |”
“क्योंकि तुम मुझे अच्छे लगते हो... बिल्कुल अपने भाई की तरह," सुमन ने नशे में लहराती आवाज में कहा।
कुणाल की भौंहें तन गईं। उसने ठंडी आवाज में कहा, "अगर तुम्हारा नाटक खत्म हो गया हो, तो जाकर आराम करो।"
सुमन ने गिलास टेबल पर रखते हुए कुणाल की तरफ देखा। उसकी आंखों में हल्का दर्द था, मगर होठों पर एक हल्की मुस्कान थी।
"नाटक? तुम्हें क्या लगता है, मैं नाटक कर रही हूं? मेरा पति मर गया, मेरा सब कुछ छिन गया... और तुम मुझे नाटक कह रहे हो?" उसकी आवाज कांप गई।
वह धीरे-धीरे उठी और कुणाल के पास आकर रुकी। उसकी नजरें किसी अनकहे दर्द से भरी थीं।
"लेकिन तुम्हें क्या फर्क पड़ता है? आखिर, हम दोनों अकेले हैं।" सुमन ने उसकी तरफ एक कदम और बढ़ाते हुए कहा।
कुणाल अचानक चौकन्ना हो गया। उसने असहज महसूस किया और थोड़ा पीछे हटा। "ये क्या बकवास कर रही हो?"
सुमन ने उसके चेहरे पर अपनी आंखें गड़ा दीं। "बकवास नहीं, सच्चाई - तुम्हें मुझसे डरने की जरूरत नहीं - तुम्हें तो मैं पसंद करती हूं... बहुत पहले से।"
कुणाल ने झटके से उसका हाथ झटक दिया। उसकी आंखों में गुस्सा और नफरत थी।
"तुम्हें शर्म नहीं आती? एक आदमी की मौत के बाद तुम...! तुम्हारे पास मर्दों की कमी हो गई है क्या?" कुणाल की आवाज में गुस्सा था।
सुमन का चेहरा कठोर हो गया। उसकी आंखों में गहरा अपमान था।
"कुणाल! तुमसे ये उम्मीद नहीं थी।" उसने आहत स्वर में कहा।
कुणाल ने सख्त लहजे में कहा, "और मुझसे उम्मीद करना भी मत - तुमने जो कुछ भी खोया है, उसके लिए दूसरों को मत दोष दो - और हां, अपनी गंदी चालों से मुझे फंसाने की कोशिश मत करना।"
सुमन ठिठक गई। उसकी आंखें क्रोध और अपमान से भर गईं।
"कुणाल! तुम खुद क्या हो क्या मैं जानती नहीं – अमारा से मंगनी के बाद भी जाने कितनी लडकियों के साथ तुम्हारे सम्बन्ध है - तुम भी अपने भाई की तरह हो, किसी एक जिस्म से तुम्हारी भूख शांत नहीं होती! और मैं तो बस तुम्हे पाना चाह रही हूँ |" सुमन ने तंज कसते हुए कहा।
कुणाल की आंखों में क्रोध भड़क उठा।
“अपनी औकात से आगे मत बढ़ो इसी में तुम्हारी भलाई है|”
“ये बात तुम भी याद रखो |”
सुमन का लहजा कुणाल को बुरी तरह से चिढ़ा गया| वह उसकी ओर आता हुआ दांत भीचे हुए चीखा -
"तुम जैसी लालची औरत ये बोल रही है? तुम भूल रही हो कि तुम्हारी औकात क्या थी?”
“हाँ अच्छे से मुझे मेरी औकात पता है – के के इंटरप्राइजेज की आधी मालकिन मैं हूँ – और ये बात तुम भूला मत करो|”
ये सुनते कुणाल का जैसे पारा सांतवे आसमान पर पहुँच गया| वह उसकी ओर आता उसका बाजु अपनी हथेली से दबाते हुए कहने लगा -
“तेरी असली औकात क्या है ये मैं बताता हूँ - एक साधारण नर्स की तरह इस घर में आई थी और मेरे भाई को अपने जिस्म के जाल में फंसा कर उसकी पत्नी बन बैठी!"
सुमन दर्द में कराहती उसे धक्का देकर खुद को अलग कर लेती है| उसकी आंखों में क्रोध और अपमान चमक उठा।
"औकात? हां, मैं नर्स थी! लेकिन तुम्हारा भाई कौन सा दूध का धुला था? आधे शरीर से पैरालिसिस होने के बाद भी मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाता था! तब तो उसे नर्स के शरीर का उपयोग करने में शर्म नहीं आई! अगर मैंने उससे शादी कर ली, तो क्या गलत किया? और वो कमीना मुझे ऐसा फंसा कर गया कि अब या तो उसकी जायदाद छोड़नी होगी, या अगर उसकी जायदाद भोगूं, तो किसी और से संबंध नहीं रख सकती! अब क्या सारी उम्र उसकी विधवा बनकर गुजार दूं?" सुमन की आवाज दर्द और गुस्से से कांप रही थी।
“मुझे इससे मतलब नहीं है – मैं तो बस इस दिन का इंतजार कर रहा हूँ कि किसी रोड एक्सीडेंट में तू मर जा और तब फिर तेरा जिस्म और तू किसी काबिल नहीं रहेगी – बस तब तक के लिए मुझसे दूर रह और अपना काम से काम रख समझी|”
कुणाल उसे घूरता हुआ वहां से चला गया। सुमन की आंखों से आंसू छलक पड़े, लेकिन वे आंसू सच्चे थे या दिखावे के, यह कहना मुश्किल था। उसकी नजरें अब नफरत और बदले की आग से जल रही थीं।
सुमन नशे में धीरे-धीरे सोफे पर गिर पड़ी। सुमन का चेहरा कठोर हो गया। उसकी आंखों में गहरा अपमान यूँ कुलबुला उठा जैसे कोई वादा खुद से वो कर रही हो|
कहानी आगे जारी रहेगी.............