रंजिशों में पनपी एक प्रेम कहानी.....नफ़रत की आग में जब दिल जलने लगे, तभी कहीं भीतर प्यार की चिंगारी जन्म लेती है। दो लोग, जो एक-दूसरे से बदले की तरह मिले, वक्त के साथ एक-दूसरे का सुकून बन गए। यह कहानी है उन जज़्बातों की, जहाँ रंजिशों के बीच भी मोहब्ब... रंजिशों में पनपी एक प्रेम कहानी.....नफ़रत की आग में जब दिल जलने लगे, तभी कहीं भीतर प्यार की चिंगारी जन्म लेती है। दो लोग, जो एक-दूसरे से बदले की तरह मिले, वक्त के साथ एक-दूसरे का सुकून बन गए। यह कहानी है उन जज़्बातों की, जहाँ रंजिशों के बीच भी मोहब्बत अपनी राह तलाश लेती है। वो दोनों एक-दूसरे के दुश्मन थे, हालात ने उन्हें आमने-सामने खड़ा कर दिया था। हर मुलाक़ात में तकरार थी, हर बात में ज़िद। मगर वक्त के साथ वही नफ़रतें गहराई बन गईं, वही ताने यादों में बदल गए। यह कहानी है उन दो दिलों की, जो एक-दूसरे को मिटाने निकले थे, मगर एक-दूसरे में ही खुद को पा लिया। रंजिशों की राख से जन्मा वो प्यार… जो ना चाहकर भी अमर हो गया।
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अब फैसला मुमकिन नहीं, अब तो जंग ही होगी। लड़ाई झगड़ा नहीं,ये जीवन मरण का प्रश्न है।
बात जब हाथ से निकल जाती है ,तो बातों से नहीं हाथों से ही बात होती हैं।
क्या कर रहे हैं चौधरी साहब ...आप तो हाथापाई पर उतर आए हैं! यह थाना है, कम से कम कानून का तो लिहाज कीजिए।
लिहाज करें ...और हम करें... क्यों ?गलती क्या है हमारी ... बस यही कि एक बेटी के बाप है... और हमें उसकी फिक्र है.. उसके भविष्य की चिंता है ,जो कल रात से ही नदारद है ।हमें मिल नहीं रही... कहां गई..?इस आदमी के बेरोजगार भाई के साथ......
आप कड़ा कदम उठाइए ,नहीं...... इसे जेल में डालिए,हो ना हो सब मालूम है इसे,दो-चार फटके पड़ेंगे तो सब उगल देगा। आपसे नहीं होता तो यह कार्रवाई हम कर लेंगे ।हमारे गांव का मामला है ,सुलझाने के अधिकार है हमारे पास ......
आपका नहीं दो गांव के बीच का मामला है ।जो बरसों से कलह करते आ रहे हैं। हम हमारी तरफ से कार्रवाई कर ही रहे हैं ,हम खोजने की पूरी कोशिश कर रहे हैं .....
कोशिश नहीं चाहिए, हमें परिणाम चाहिए ....क्या आप आज शाम तक उन्हें हमारे सामने पेश करने का वादा करते हैं। अगर हां तो फिर हम चुपचाप यहां से चले जाएंगे। वरना हमें कार्रवाई करने दीजिए ।
आप इतनी जल्दबाजी क्यों कर रहे हैं .....
बस अब और कोई बहस नहीं ,बात आपके हाथ में है ही नहीं। इसे तो हमें ही सिरे लगाना होगा ।
देखिए... आप ...
हम क्या करें हमारे तो कुछ समझ नहीं आ रहा.....
चौधरी साहब ....
बस उन्होंने हाथ उठाकर मना कर दिया और इसी के साथ बात खत्म। 15 मिनट से चलते आ रही बहस .. उनके हाथ दिखाने भर से खत्म हो गई। हर कोई जो बोल रहा था, चुप हो गया।
चौधरी साहब आप....
तुम चुप रहो ,अपना भाई तो तुमसे संभाला नहीं गया ।अब यहां पर पंचायत करने आए हो ....चौधरी साहब ने विशाल का हाथ झड़कते हुए कहा। इस वक्त सबसे ज्यादा परेशान अगर कोई था तो वह विशाल ही था, उसका दुख भी सबसे ज्यादा था। और परेशानी भी ।पर किसी को नजर नहीं आ रहा था ।
चौधरी साहब की बेटी थी ,पर उसमें विशाल क्या कर सकता था ।दो लोगों ने आपसी रजामंदी से घर छोड़ने का फैसला किया था, दोनों बालिग थे। ये सब हुआ, वह घर छोड़ कर चले गए, बिना बताए।
मेरी बेटी को लेकर गया है ना तुम्हारा भाई ...अब तुम्हारे घर की छोरी मारे घर आवेगी ....हमारी बहू बनकर.... चौधरी साहब ने मानो हुक्म सुनाया हो ।
नहीं...ये.....
नहीं तो लाशें उठाने के लिए तैयार रहना ।अपने भाई की भी और गांव वालों को भी........ हमारे गांव के कांकड़ में आए बिना तुम लोगों का दाना पानी बंद हो जाएगा। रास्ता ना टपने देंगे ......दो गांव की बरसों से चली आ रही दुश्मनी एक गांव के लोगों को शहर जाना पड़ता, तो उस गांव के बीचों-बीच रास्ता निकलता था । खाप पंचायत बैठने के बाद यह हल निकला था कि आने-जाने के लिए गांव के थोड़ा बाहर से रास्ता दे दिया जाए ।लेकिन उस गांव में कोई रुक नहीं सकता था। दोनों गांव अपनी अपनी हद में ही रहते और अब यह जो वाकिया हुआ ।इससे स्थिति बिगड़ती ही दिख रही थी । विशाल का स्टोर शहर में था। आने जाने के लिए एकमात्र वही रास्ता था।
विशाल पर उस गांव का दवाब था, तो अपने गांव वालों का भी बराबर दबाव बना हुआ था ।क्योंकि एक आदमी की गलती की वजह से पूरा गांव सजा नहीं भुगतना चाहता था।
देखिए आप थाने में इस तरह जोर जबरदस्ती नहीं कर सकते। हम इज्जत करते हैं ,आप बड़े बुजुर्ग हैं ।आदर सत्कार के काबिल है ।इसका मतलब यह नहीं कि आप जोर आजमाइश करेंगे.......
तू रोकेगा हमने... इतनी तो किसी की औकात ना है.....
देखिए बात यहां औकात की नहीं, कानून की है ।आप सरेआम सब लोगों के सामने धमकी दे रहे हैं ।
जै धमकी ना सै.. चेतावनी सै.. खुलेआम ही दिया करें हैं हम लोग...... ताम इब मुद्दे से दूर ही रहो तो अच्छा है ,वरना ऊपर तै शिकायत हम कर देंगे.... यों काम थारे बल का ना सै...हम अपने आप सुलट ल्या लेंगे।चौधरी साहब ने थानेदार को चुप कराया ।
बड़े बुजुर्गों ने समझा कर विशाल को आखिर तैयार कर ही दिया। विशाल की बहन की शादी चौधरी साहब के बेटे से कर दी जाए। कैसे मान सकता था। वह अभी कॉलेज में थी। पढ़ रही थी ।उसका सपना आगे पढ़ने का था ।जिसे विशाल ने सहर्ष कभी स्वीकार भी कर लिया था। इस तरह अचानक कैसे जाकर कह दे, कि तुम्हारी शादी होने वाली है ।
शादी आज के आज ही होगी ।
देखिए थोड़ा वक्त दीजिए ,सोचने के लिए......
सोचने के लिए वक्त ना होगा विशाल जी ..... हां मुर्दे उठाने के लिए चाहिए ,तो जरूर ले लीजिए ।उनकी कड़ाई अभी कम नहीं हुई थी ।
तेरी भी एक बेटी है ना....तु भी एक बेटी का बाप है ....क्या उसे बड़ा होता नहीं देखना चाहता.... चौधरी साहब ने ढके छुपे लहजे में विशाल की बेटी की मौत का फरमान सुनाया था। विशाल भीतर तक सहम गया।
चौधरी साहब आप... जल्दबाजी क्यों कर रहे हैं?क्या पता वह मिल ही जाए ......
अब जे मिल भी गए ,तो फिर बात वह नहीं रहेगी ।अपनी मनक कम ना होने देंगे.... चाहे तुम मारना उन्हें,चाहे हमें मारना पड़े। और अपनी बेटी को ही क्यों ना मारना पड़े ...अपने हाथों से मारने में गुरेज नहीं है ।और अगर अपनी बहन की शादी के लिए मान रहे हो ,तो फिर भले ही अपने भाई को अपने घर में रख लेना आने के बाद ....और म्हारी बेटी को भी... उस घर की बहू बनाकर ....
इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है, और नहीं मान रहे हो तो उसने तो हम कहीं ना कहीं ढूंढ ही लेंगे ।लेकिन वह जिंदा वापस नहीं आएंगे, अपनी बहन का घर बस्ता हुआ देखना चाहते हो और भाई दोनों को जिंदा रखना चाहते हो ,तो एक ही रास्ता है म्हारी बेटी थारे घर की बहू तोहरी बेटी म्हारे घर की बहू। नहीं अंजाम जो होगा, कि लाशें गिनते गिनते थक जाओगे। गांव की कांकड़ कोई पार नहीं कर पाएगा ।
चौधरी साहब के लहजे में जरा भी नरमी नहीं थी ।विशाल डरने पर मजबूर था ।लेकिन क्या कर सकता था। वक्त ने ऐसे बीच भंवर में लाकर खड़ा किया, कि निकलने का रास्ता एक मात्र यही था, जो नजर आ रहा था ।लेकिन काफी मुश्किल था लेकिन नामुमकिन नहीं था। पहले भी ऐसे कई ब्याह हो चुके हैं। गांवों में बात इज्ज़त पर आती हैं, तो कानून भी पिछे हट जाता है।
कहने को तो निर्णय सर्व सम्मति से लिए जाते थे। लेकिन यह हमेशा एक तरफा समाधान ही होता। बतलाया जाता कि हमने मामले का हल खोज लिया है लेकिन फैसले एक पक्षीय ही होते थे।दूसरे पक्ष को इस तरह दबाया जाता, कि उसके पास और कोई चारा ही नहीं बचता। बेबसी ,मजबूरी कुछ इस कदर होती थी, कि वे दबाव में आकर मान भी जाते। कभी घर वालों का प्रेशर तो कभी गांव का और अब यहां.....
कई जिंदगियां बचाने के लिए किसी एक के जीवन के हसीन तरीन सपनों को रौंदना होगा शायद........ विशाल भारी मन से वहां से रवाना हुआ।
चौधरी साहब आप अपने बेटे को बुला लीजिए ।विशाल को हम समझा देंगे ।
बिल्कुल ...दिल्ली दूर ना है ।वह 2 घंटे में आपके सामने होगा। लेकिन आप नहीं हुए तो मार कर जमीन में गाड़ देंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा। धमकियां पर धमकियां दी जा रही थी।
और हां ....हम बारात लेकर नहीं आएंगे ।शादी गांव के बाहर मंदिर में होगी ।उसे कहिए कि अपनी बहन और घर वालों को लेकर वहीं आए।
एक गांव के सरपंच ने दूसरे गांव के सरपंच से कहा ।
यह तो हद थी ।कि दो गांव के सरपंच किसी के जिंदगी का फैसला कर रहे थे ।और वह लोग जिनकी शादी होने वाली थी। उन्हें इन सब का कोई समाचार ही अब तक नहीं मिला था। दोनों बेखबर एक गांव में तो एक दिल्ली में अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे, और वहां.. दो गांवों की पंचायत में उनके जीवन का निर्णय कर दिया गया था।
रिश्ते जुड़ने से नहीं निभाने से खूबसूरत बनते हैं। और जब वह एक तरफा न हो कर दो तरफा हो जाए तो और भी खूबसूरत.....!
हेलो.....
विहान ...घर आ जा..
क्या हुआ पापा? जानवी का कुछ पता चला ...
नहीं,तू आ जा कुछ जरूरी बात है।
मैं कोशिश कर रहा हूं ,लगातार कांटेक्ट में हूं उसके जानने वालों के .....दो-तीन जगह जाकर भी आया हूं। जानवी से जरूरी अभी और क्या हो सकता था? हो ना हो जानवी से रिलेटेड ही कोई बात थी ।पापा उसे साफ-साफ बता नहीं रहे थे।
विहान को चिंता हो रही थी, सुबह से परेशान था ।फिर इस तरह अचानक घर बुलाया जाना ।लेकिन पापा की आवाज से वह भांप सकता था ,कि चिंता के कोई बात नहीं है। वह अभी उसी रौब से बात कर रहे थे।
हां कुछ उसी से जुड़ी हुई है। आने के बाद ही बात होगी।
लेकिन कितने दिनों.....तक...? मतलब .. क्या काम है? कब तक रुकना पड़ सकता है ?मैं कॉलेज से छुट्टी.......
10 सालों से एक ही बहाना सुन रहा हूं ।जब से तु दिल्ली पढ़ने गया है। पहले पढ़ता था ,अब पढ़ाता है।पर तेरी बातों में कोई फर्क ना आया....... चौधरी साहब खींझ कर बोले।
बस आज भर का ही काम है ।आज शाम या कल तक वापस चले जाना...... चौधरी साहब ने रवैया थोड़ा नरम किया। अभी विहान की सख्त जरूरत थी उन्हें ।जवान बेटा कहीं उनके फैसले पर कोई बगावत न कर बैठे। आराम से ही मसले को हल किया जा सकता है। बात उनके रुतबे की थी।जिसमें वह रत्ती भर भी फर्क नहीं आने दे सकते थे।
मैं आ रहा हूं पापा ..... विहान ने फोन रखा और सिर पीछे गाड़ी की सीट से टीका लिया ।सुबह से भाग दौड़ में परेशान था। जानवी की खोज खबर में हलकान हो रहा था।आज सुबह-सुबह सूरज भी ना निकला होगा। पौ फटने से पहले ही उसे यह अशुभ समाचार मिल गया था। मां अलग परेशान थी।वह अपनी भड़ास किस पर निकलता, पापा ने तो उस पर निकाल दी।
विहान ने दो-चार लंबी-लंबी सांसें भरी और आंखों को हाथों से मसलते हुए गाड़ी स्टार्ट कर दी। आज बहुत थक सा गया था। शारीरिक पीड़ा से अधिक चिंता मनुष्य की परेशानी का सबब बनती है।आज घर का माहौल तनाव पूर्ण था।मानसिक थकान इंसान को ऊर्जा रहित कर देती है।
अब उसने गाड़ी घर जाने वाली सड़क पर दौड़ा दी थी।लगभग डेढ़ घंटे में वह घर पहुंच जाएगा। यह रास्ते आज कितने अलग लग रहे थे। पहले भी वह इन पर आया गया है। पर आज ये अलग ही रंग रूप दिखा रहे थे।
मन में कुछ अलग सा एहसास हुआ। घर जाकर देखना होगा कि हालात कैसे हैं ?पापा अगर इतने परेशान है ,तो मम्मी की क्या हालत हो रही होगी? घर के माहौल से वह बेखबर नहीं था। इसीलिए उसने जाना कम कर दिया था। पढ़ने आया था दिल्ली और यही का होकर रह गया ।अब तो कभी-कभी मां को भी ले आता। बस एक-दो दिन के लिए ।इससे ज्यादा मां रहती भी नहीं थी।
जानवी अब तक तो उसके साथ ही थी ।अभी ग्रेजुएशन कंप्लीट करो हफ्ते 10 दिन पहले ही घर गई थी, और इतना बड़ा कदम उठा लिया। बावली छोरी......कम से कम एक बार उससे बात की होती, जो भी कोई बात थी। वह शोट आउट करने की कोशिश करता। खुशी और दुख दोनों में हम स्वाभाविक रूप से जो है, वही भीतर से निकल कर आते हैं। विहान का भी वही अंदाज खुलकर बाहर आ रहा था।
पापा नहीं मानने वाले थे। इस बात को भी वह अच्छी तरह जानता था। लेकिन मां के बारे में कैसे नहीं सोचा...... सबसे ज्यादा चिंतित भी वह और इन सब की गाज भी उन पर ही गिरेगी । विहान को मां की चिंता थी।
अब तक वह इन रास्तों का सफर कितना इंजॉय करता आया है, आते-जाते ...हर बार......घर का रंग ढंग कैसा ही रहा हो। वह आजाद था और यह दुनिया उसने अपने लिए खुद बनाई थी। हर पल को खुलकर जीता। जिंदगी में एक मकसद के साथ आगे बढ़ रहा था ।कि उसे कम से कम उनके जैसा नहीं बनना। वह आगे आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ बेहतर ही छोड़ कर जाएगा। एक ऐसी दुनिया जहां कम से कम विचारों में द्वंद ना हो ।अगर विरोधाभाव है। तब भी खुलापन हो। एक दूसरे पर हावी न होने पाए । अपने भावी जीवन और विचारों को लेकर वह बहुत अधिक स्पष्ट था।
क्योंकि उसके विचार उनसे कभी मेल नहीं खाए।शांतिपूर्ण जीवन जीने का एकमात्र यही रास्ता उसे नजर आया ।घर के नजदीक भी और महीने दो महीने में चक्कर भी लगा लिया करता। मम्मी को बुला लेना, जानवी को भी उस जगह से अपने पास लाने का फैसला उसी का था ।जिसका खामियाजा अब शायद उसे भुगतना पड़ सकता है।
बीच रास्ते पहुंचा था ।तब फोन की घंटी बजी। इस बार मां थी। सुबह से पचासों कॉल वह एक दूसरे को कर चुके थे ।दोनों ही एक दूसरे को तसल्लियां देने में लगे थे।
हेलो ...
हां ......विहान, क्या तुम आ रहे हो ?
हां मां ,पापा से बात हुई थी ।आधे रास्ते पहुंच गया हूं । थोड़ी देर में आ जाऊंगा।
मत आओ..... विहान यहां आकर तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा।
लेकिन मां जानवी का भी तो ख्याल करिए, वह न जाने ....... मां के रोकने पर विहान को हैरत भी हो रही थी। कुछ भी कहे इस वक्त पापा को उसकी जरूरत थी ।भावनात्मक सहारा जरूरी होता है, जो परिवार के लोगों से ही मिलता है । और हम उन के साथ खुल पाते हैं। जो हमारे दिल के बेहद नजदीक होते हैं।अपने पापा के लिए विहान इकलौता सहारा था। और इस बात का विहान को मन से एहसास था।
वह उनके विचारों का कभी हिमायती नहीं रहा ।लेकिन उनके जज्बातों को अच्छी तरह समझता था ।गांव के माहौल में ऐसी घटना हो जाना ,उन पर क्या बीत रही होगी ?
जो बाहर से कठोर दिखते हैं ।वह भीतर से उतने ही कोमल होते हैं ।इसीलिए एक खोल तैयार कर लेते हैं । कठोरता का आवरण ओढ़ लेते हैं ,ताकि हर एक के प्रहार से बच सके।
वो ठीक ही होगी ,तभी तो घर छोड़ने का फैसला किया है ।और जहां भी रहेगी ।इस घर से तो बेहतर ही स्थिति होगी ।
लेकिन किसके .......
विक्रम, विशाल का भाई है।
क्या वह जिनका शहर में स्टोर है ?
हां सुना तो ऐसा ही है ,
वह ....ओह!मैं जानता हूं उसे ......ठीक लड़का है । विहान थोड़ा शांत हुआ।
विशाल और विहान लगभग हम उम्र थे। जब भी वहां अपने घर आता तो सामान वगैरा के लिए विशाल के स्टोर पर जाना हो जाता था। नॉर्मली जान पहचान हो गई। दोनों ही जानते थे, कि उनके गांव अलग-अलग है ।जिनकी आपस में कभी बनी नहीं। इस खींचतान से दो गांव के लोग क्या आसपास के लोग भी अच्छी तरह वाकिफ थे ।इसके पीछे एक बहुत पुराना कारण था।
लेकिन मां ...आना तो होगा ,पापा को जरूरत होगी ।विशाल के घर भी जाना होगा ।क्या विशाल को इस बात की पहले से खबर थी या बाद में पता चला...... अब जो भी हुआ ,अच्छा होगा कि हम रीति रिवाज से उनकी शादी करवा देते हैं ।यह तो कोई बात ही नहीं ....अपनी बिरादरी के लोग हैं ।
क्या तुम अपने पापा को नहीं जानते......
जानता हूं ,इसीलिए तो कह रहा हूं ।मुझे आने दीजिए। बात करनी होगी।
इतना आसान नहीं है ....... मां ने लगभग रोते हुए कहा।
जानता हूं मां ....आसान होता तो जानवी ये कदम उठाती ही नहीं ।कुछ सोच कर ही तो निर्णय लिया होगा उसने ।
मुझे क्या इस दुश्मनी का पता नहीं है। फिर भी पापा को शांत रखना जरूरी है ।कहीं वह कोई ऐसा वैसा कम ना उठा दे।
वह उठा चुके हैं ,और इसीलिए तुम्हें बुलाया है ।
क्या मतलब ......?
तेरी शादी करवा रहे हैं ,
मेरी शादी.... क्यों..? किसके साथ ...?
वही तो बात है बेटा ,यह अपने इज्जत पर एक दाग भी न सह पाएंगे। इसमें बली का बकरा तुम्हें बनाने वाले हैं।
तुम्हारी और उस लड़की की इतनी ही गलती है। कि उन घर से भागने वाले जोड़े के तुम दोनों भाई बहन हो ।इससे ज्यादा ना तुम्हारा कोई दोष है ,ना ही उस लड़की का। जिसको यह बदले की भेंट चढ़ाने के लिए इस घर की बहू बनाकर ला रहे हैं।
अदले बदले का ब्याह अब न चलता ।तू तो सोच.... तू समझदार है ,और क्या तू रह लेगा ऐसे बंधन में जो इस तरह जोड़ा गया हो ।
मां इस वक्त बहुत ज्यादा तकलीफ में थी ।लेकिन फिर भी व्यावहारिक होकर सोच रही थी। भविष्य में दुख की जड़ ऐसे ही कारणों में पड़ती है ।इंसान जल्दबाजी में गलत कदम उठा जाता है ,फिर जीवन भर उसे ठीक करने में गुजार देता है।।
मुश्किल तो है मां ,लेकिन सिचुएशन हमारे सामने पैदा हुई है। तो संभालना भी हमें ही पड़ेगा ।
मैं आता हूं, फिर बात करते हैं ।भागना तो किसी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन नहीं है। पापा से बात करनी होगी। उन्हें समझना होगा।
तू उनकी जिद से अच्छी तरह वाकिफ है ।फिर ऐसा क्यों कर रहा है ?यहां आने के बाद तेरी नहीं चलेगी ।अब तो फिर भी स्थिति तेरे हाथ में है ।
तो क्या आप अकेले झेल पाओगे उनका गुस्सा..... मैं आपको मुश्किल में नहीं डाल सकता ।मैं आ रहा हूं। विहान ने घड़ी भर सोचा ,लेकिन तुरंत अपना फैसला सुना दिया । उसके वहां न होने का रीजन मां ही हो सकती थी।पापा से यह बात भला कैसे छुपी रह सकती है, कि उसे सब सच बताने वाला और कौन होगा?
मुझे आदत है ,मैं बर्दाश्त कर लूंगी।
नहीं बहुत कर लिया ,अब और नहीं ।मैं इस काबिल हो गया हूं कि बात कर सकूं ।कम से कम अपने लिए तो कर ही सकता हूं। अपने पैरों पर खड़ा होने का और क्या मतलब हुआ ।
अब विहान तू भी जिद्दी बन रहा है, ......
खून में है मां ,आप चिंता नहीं करिए । विहान ने मुस्कुरा कर कहा ।मुस्कुराहट में हल्का पन तो था ।लेकिन इस छोटे से वाक्य ने मां का मन जरूर हल्का कर दिया था। कम से कम वह स्पष्टता से अपनी बात तो उनके सामने रख पाएगा ।वरना उनकी तो जुबान ही नहीं खुलती थी ।उनका गुस्सा देखकर ही वह भयभीत हो जाती थी।
एक बार और सोच ले ...
आप संभालिए खुद को ,मैं बस थोड़ी देर में पहुंच रहा हूं। विहान ने उनको सांत्वना देते हुए कहा।
कुछ मोड़ अनचाहे से, अनजाने से,बिन सोचे से राहों में अक्सर आ ही जाते हैं।
किसी की भी जिंदगी किसी के भी इगो से बड़ी होती है। इसके साथ खिलवाड़ मत किजिए पापा..... वो मेरे, आपके इगो से बढ़कर हैं। विहान ने पापा को समझाते हुए कहा ।
देखो....
विहान...... पापा ने उसे रोक दिया। पास में दो चार लोग और खड़े थे। कोई बोलने को हुआ ।लेकिन विहान ने उन्हें चुप करा दिया। मैं इस गांव के सरपंच से नहीं ,अपने पापा से बात कर रहा हूं ।क्या कोई मुझे करने देगा ....?
जो भी बात करनी है, यहीं करो। सबके सामने... तुम्हें क्या दिक्कत है ?
दिक्कत ..... बदला लेना है पापा । किसी भी लड़की के लिए यह बहुत मुश्किल है। इंसान है वह ,कठपुतली तो नहीं। जो मन में आया फैसला सुना दिया।
क्यों तुम भी तो मान रहे हो हमारी बात.....
मेरी बात अलग है ।मैं अपनी मर्जी से आया हूं ,और अगर चुपचाप आपकी बात मान रहा होता तो अब तक जाकर शादी कर लेता ।इस तरह बहस नहीं करता। फिर भी मुझे कम से कम अपने लिए बोलने का हक तो मिला ।उस लड़की का क्या..... उससे तो किसी ने कुछ पूछा भी नहीं होगा। बस फैसला सुना दिया ,कि अगले कुछ घंटे में तुम्हारी शादी है। इस तरह रिश्ते तैयार होते हैं क्या यहां ......ऐसे घर नहीं बनते, किसी के सपनों को उजाड़ कर ...किसी की आवाज दबा कर... किसी की ख्वाहिशों को रौंद कर ...कोई अपना बसेरा नहीं कर सकता। पापा आप समझिए इस बात को।
इब तू सुण ले मेरी बात कान खोल के ....जा तो यह ब्याह होगा आज के आज ....नहीं तो भूल जा अपनी भाण ने हम तां ढूंढ लावेंगे ही.... और मार भी देंगे और साथ में तेरे उस बहनोई को भी ....कोई ना बचेगा... जमीन से खोद कर निकालें या आसमान से पकड़ कर...तू छोड़ दे इब बात न....
पापा यह आप एक बिना जरूरी चीज पकड़ कर बैठे हैं। जिसका कोई वजूद नहीं ।क्या किसी की जिंदगी भी आपकी इस खोखली इज्जत से बढ़कर है।
तू न समझेगा बेटा.... तेरी दुनिया अलग सै... हम यही जिए हैं, यही मरेंगे। इन्हीं लोगों के बीच में पले बढ़े और यही रहना है। यह समाज हमारा है, और हम इसके हिस्से। ऐसी ही बातों से हमने फर्क पड़ता है ।जबकि तुम्हारा क्या है? तुम तो दो दिन में भूल कर शहरी रंग में रंग जाओगे। मैं कैसे भुला दूंगा मेरी हार है ।
पापा आप इसे हार जीत के रूप में लेना बंद करो।उन दोनों की मर्जी थी। वह साथ रहना चाहते थे। बस इसीलिए चले गए और रही बात इस तरह घर छोड़ कर जाने की तो आप ही बताइए। क्या अगर वह आपके पास आते तो क्या आप उनके रिश्ते को मंजूरी देते हैं?
नहीं ना ...तो फिर क्यों आप इसे क्यों नहीं स्वीकार लेते। अपनी अना का प्रश्न बना रहे हैं ।
यही हमारी जिंदगी है, और यह पसंद है हमें....तू बात ना मान रहा सै म्हारी..... पापा कहते उठ खड़े हुए।
क्या बोल रहा है भाई..... ऐसे शादी हो जाती है क्या तुम्हारे यहां ?यूं ही खड़े-खड़े ...अभी दोपहर में तो निकला था, अपनी बहन को ढूंढते हुए .....अब शादी का समाचार दे रहा है। गौरव ने अपने सर पर हाथ रखते हुए कहा।
यार... अब क्या कहूं।ऐसे ही सिरफिरे सनकी उन्मादी लोग हैं ये। मैं कुछ नहीं कर सकता। तू बता विक्रम के दोस्त के यहां जाकर आया.... किसी को कुछ पता है ?
हां यार, कोशिश कर रहा हूं ।कोई मुंह नहीं खोल रहा ।क्या पता वाकई पता ना हो या ढोंग कर रहे हैं.... फिर भी मैं कोशिश कर रहा हूं ।तूने क्या सोचा है?
सोचना क्या है, जो होगा देखा जाएगा। तुम जानवी और विक्रम के बारे में पता करते रहो। यहां मैं संभाल लूंगा। विहान ने अपने दोस्त गौरव से कहा।
उसे पापा का फोन आते ही निकलना पड़ा। इसलिए वह आधी जगह जा पाया था। जानवी के बारे में गौरव को बता कर, घर के लिए निकल गया था।
गौरव ने गुस्से और उदासी में फोन रखा ।हद है यार ...अजीब पागल लोग हैं ...फैसला लेने से पहले जरा सोचते समझते नहीं है ।मन किया घर से भाग जाओ, मन किया अब इसकी शादी कर दो ....यह कर दो ..वह कर दो ...बेपरवाही की भी हद होती है। जिंदगी को मजाक में लेते हैं क्या यह लोग..... इतना हल्कापन.. ऐसा...उथला व्यवहार...गौरव को चिंता हो रही थी।
पहले कभी घर की बात आती विहान कुछ बताता तो उसे यकीन ही नहीं होता । वाकई उनके घर की सिचुएशन कुछ अलग सी थी। जिससे विहान आए दिन चक्करों में पड़ा रहता।
गौरव ने बाइक स्टार्ट की और एक गली में मोड़ दी ।कितनी देर से नुक्कड़ पर खड़ा फोन पर बातचीत कर रहा था। क्या पता यहां कुछ जानवी के बारे में पता चल जाए । विहान से ज्यादा तो गौरव ने जानवी को ढूंढने की कोशिश की थी। सुबह से वह उसके साथ था। फिर उसके जाने के बाद अभी तक दर दर भटक रहा था ।
हद है यार ...इस लड़की की भी... क्या जरूरत थी ऐसा कदम उठाने की।धनिए भर की लड़की और सबको पिछे लगा रखा है अपने।..छंटकी.......गौरव एक बार फिर चिढ़ गया था।
मैं क्या करूं नीरजा ... कुछ समझ नहीं आ रहा।इतना लाचार कभी महसूस नहीं किया। कभी नहीं सोचा था, कि इस तरह बेबस हो जाऊंगा ।अपनी बहन जिसे मैंने कभी उसके सपने पूरे करने के लिए वक्त देने का वादा किया था। अचानक उसे रुखसत करना पड़ रहा है। वह भी इस तरह ,कि इस घर के दरवाजे पर उसकी बारात भी नहीं आ रही है ।
ऐसी शादी का तो बिल्कुल नहीं सोचा था। मैं तो उसे मुंह दिखाने के काबिल भी नहीं रहा ।इतना नालायक भाई भगवान किसी बहन को ना दे । अपनी बच्ची , भाई,और गांव वालों , यहां तक उसकी भी जान बचाने के लिए इस तरह समझौता करना पड़ा।
विशाल ने लगभग नीरजा की गोद में टूट कर बिखरते हुए कहा। वह रो रहा था , नीरजा उसे समेटने की कोशिश कर रही थी। पर सब कुछ टूट कर उसके सामने ही किचरी किचरी हो चुका था। नीर की रोने की आवाज आई, वह उठकर उसे संभालने दौड़ी ।
विशाल ने भी अपने आंसू बेदर्दी से पोंछें । रोने का वक्त नहीं था ।अभी तो उसे अपनी चांद का सामना करना था। इस तरह हारा हुआ सा जाएगा क्या? लाचार, बेबस, मजबूर.....
विशाल ,आप दिल छोटा ना करिए ।क्या पता इसी में बेहतरी हो। क्या मालूम इस तरह उठाया गया यह कदम आगे जाकर सही साबित हो ?प्लीज... आप ठीक रहिए । नीरजा ने विशाल को सांत्वना देने की गरज से कहा। ये बोल शायद उसे धीरज रखने में सहायक हो,ढांढस बंधाए।इसलिए उसने भगवान के भरोसे और आने वाले कल पर डाल दिया ।जब कोई और रास्ता नहीं सूझता ,कहने के लिए कोई शब्द ना हो ।तो यही एकमात्र राह नजर आती है कि सब्र का दामन थाम कर ही बैठ जाएं।
थोड़ी उलझन और कशमकश के बीच पनपतीं एक कहानी.....
चंद्रिका... विशाल ने रूंदै गले से चंद्रिका को आवाज दी ।लगभग शाम हो चली थी ,और आग बरसाते आसमान से कुछ ठंडक पड़नी शुरू हो चुकी थी ।फिर भी दिन भर की तपिश से इतनी जल्दी रहता कहां मिल पाती है। चंद्रिका खुले से छत पर खड़ी अपने खेतों को निहार रही थी ।गेहूं की बालियां कल तक जो धानी रंग में रंगी थी ।अब सुनहरी सोने सी हो चली थी । शायद इसीलिए इसे कनक कहा जाता है। जो स्वर्ण जैसी चमक लिए दिखता है ।चंद्रिका को गेहूं का एक और नाम याद आया।
जिंदगी को भी एक ही साइड से नहीं देखना चाहिए ।उसकी भी कई सारी दिशाएं होती है। जो वक्त के साथ हर मोड़ पर एक आकार लेती है ।एक दिशा का चुनाव करती है, और फिर उस पर आगे बढ़ती है ।घूम फिर कर पलटते हुए वापस एक मोड़ पर आकर थमती है ।और फिर वही दौर शुरू हो जाता है वापस.... जिंदगी इसी गति से आगे बढ़ती रहती है ।वक्त और नए लोगों के साथ..... साथ।
अभी विशाल के घर आने के बाद से जो कुछ भी हुआ। चंद्रिका ने सब सुना और समझा । इस पर मंथन करने के लिए उसने शायद एक तन्हा जगह ढूंढी । निर्णय विशाल ले चुका था। विशाल के बुलावे पर चंद्रिका पलटी।उसने भरी-भरी सी आंखों से विशाल को देखा ।चंद्रिका की यह आंखें विशाल के दिल में एक खंजर की भांति धंस गई । और धंसती चली गई।
भाई.... आज आपने चंद्रिका कहा ।अभी तो शादी हुई भी नहीं, इतना जल्दी पराया कर दिया ?
विशाल हमेशा प्यार से उसे चांद कहा करता था ।आज चांद कहने की हिम्मत इसलिए नहीं कर पाया था। कि वह उसे चांद की तरह रख नहीं पाया। जितनी हिफाजत से उसे रखने का वादा करता आया था ।जिस प्यार का वादा उसने किया था। वह उसे उस हिसाब से नहीं रख पाया ।विशाल के अनुसार तो वह शायद भाई कहलाने के लायक भी नहीं था। एक जिंदगी बचाने के लिए वह एक की जिंदगी उजाड़ रहा है ।
हैं तो दोनों उसके अपने.... उसका खून... और उससे छोटे। वह तो मां बाप के जाने के बाद उन दोनों की जगह लेकर बैठा था। बड़ा था। सिर्फ बाप ही नहीं ,उनकी मां भी था।फिर क्यों नहीं उसे अपनी छांव तले संभाल पाया ।इस आग में चंद्रिका नहीं झुलस रही होती। अगर वह वक्त रहते विक्रम को संभाल लेता।
विशाल ने क्षितिज में अस्त होते सूरज को देखा ।जो चारों ओर अपनी लालिमा बिखर रहा था ।आसमान की यह लाल ज्वाला उसे निगलने को आतुर थी ।अब तो शायद कभी यह ठीक नहीं होगा ।इस बात का मलाल उसे हमेशा रहेगा।
नहीं, पराया नहीं किया है तुझे और ना ही मेरी इतनी औकात है। यह घर जितना मेरा है ,उतना ही तेरा रहेगा। और हमेशा रहेगा ।बस मुझे अपनी असफलता का एहसास कुछ इस कदर है ।कि मैं शायद वह नाम लेने के काबिल ही नहीं समझता खुद को ।
आप फिक्र क्यों करते हैं भाई.... जिसको चांद चाहिए, उसको दाग भी लेना होगा। उस दाग का हिस्सा भी बनना पड़ेगा । जिंदगी की राह में अगर कांटे मिले, तो वह झेलने होंगे। कहकर चंद्रिका थोड़ा चुप हो गई।
उससे ज्यादा दुखी तो विशाल था। वह इस घर का कर्ताधर्ता था। इस घर की बागडोर उसके हाथों में थी ।अब कोई भी शब्द उसके दिल में जल रही आग को ठंडा करने का दम नहीं रखते थे ।चंद्रिका को चिंता थी, कहीं वह इस आग में खुद को भस्म ना कर लें।
विक्रम भैया का कुछ पता चला .....
नहीं ....विशाल ने नहीं में गरदन हिलाते हुए कहा ।
क्या ये जानवी वहीं जानवी है।पास वाले गांव के सरपंच की लड़की है । चंद्रिका ने अपना शक पुख्ता करने के लिए पूछा।
क्या यह वही जानवी है .... नीरजा ने जानवी की बात दोहराते हुए कहा ।वह कैसे भूल गई। कई बार विक्रम के मुंह से जानवी का नाम सुना था।
जानवी ....क्या तुम जानती थी इसके बारे में ....कभी कुछ सुना विक्रम के मुंह से......
हां कई बार जिक्र किया था उन्होंने ...जानवी दिल्ली में उनके साथ पढ़ती थी ।भाभी को भी पता है ,लेकिन यह नहीं बताया कि वह पास वाले सरपंच साहब की बेटी है । हमें लगा दिल्ली में उनकी कोई क्लासमेट होगी और यहां तक भला सोचने की जरूरत ही कहां थी विक्रम भी तो सब बातों से बखूबी परिचित था।
ह्म्म ....पहले हम पता कर पाते ,तब भी क्या हो जाता। होना तो वही होता है ,जो तय होता है ।और कौन सा वह हमसे रिश्ता कर लेते। इसीलिए तो उन्होंने शायद बताया नहीं और जानवी के नाम के आगे कभी पूछने पर भी हमेशा बात टाल जाते थे। नीरजा ने निर्वि को गोद में लिए हुए ही कहा। वह विशाल के पीछे ही ऊपर आई थी ।शायद वह चंद्रिका से बात ना कर पाए ।
हां....यही सोच कर कदम उठाया होगा ।विशाल ने भी उनकी बात पर सहमति जताई ।
आप चिंता मत कीजिए ,मिल जाएंगे जल्दी...... चंद्रिका ने विशाल को दिलासा देते हुए कहा। विशाल ने भी हां में गरदन हिलाई।
कितने अराजक लोग है ये....किसी भी तरह कन्वेंस नहीं होंगे। विहान ने अपने हाथों में अपना माथा रखते हुए कहा। मन तो उसका सिर पटकने का कर रहा था।पर खुद को नुकसान पहुंचा कर भी वह क्या हासिल कर लेता।
पता नहीं लोग अपनी दुनिया इतनी छोटी क्यों बना लेते हैं। कि उन्हें इससे आगे और कुछ दिखाई ही ना दे। इस कवच से बाहर निकल कर क्यों नहीं देखते ।दुनिया के कितने रंग रूप है। कितनी हसीन है ।हर ढंग में जीवन जिया जा सकता है। पर यह जरा जरा सी बात पर मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं ।
कितने बेफिक्र हैं ,ना किसी का डर है ना ही चिंता ।सिवाय अपनी बात के अलावा ,उन्हें समझाना दीवार में सर मारने जैसा था। विहान ने भी आखिरकार अपने हथियार डाल दिए ।यह कभी नहीं समझेंगे ,और ना ही सुधरेंगे।
पुराने ढंग से ही चलते रहेंगे। जबकि जमाना कितना बदल गया है।
चिंता मत कर विशाल.. विहान छोरा अच्छा है।ध्यान रखेगा हमारी चंद्रिका का...खुश रेवेगीं बा...सागे जोड़ी फूटरी लागै है।फबते हैं.... तू भी इब चिंता मुक्त हो जा ...बहन का ब्याह हो लिया , और कै चाहिए था,जिम्मेदारी पूरी हो ली ....अरे चौधरी साहब ने तो दहेज भी ना मांग्या ,बड़ा दिल राखै स... अपने गांव पर उपकार स यों तो.... नहीं तो तेरे भाई ने जो किया वह ठीक ना सै ... तो इब तू भी इस धांस ने दिल से निकाल दे।
गांव के मुखिया ने विशाल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। हालांकि विशाल की फिक्र कम करने के लिए उन्होंने लहजा नरम ही रखा। साथ में समझाइश भी थी। लेकिन विशाल को तो यह ताना ही लग रहा था।
दहेज की कोई बात नहीं हुई, तो क्या इस तरह ब्याह करेंगे वह। ऐसा तो नहीं सोचा था ।खैर ...अब फैसला तो गांव के बीच हो गया ,सो हो गया ।
विहान लड़का अच्छा है ताऊजी, इसीलिए मान गया हूं ।भले ही शादी कैसे ही हो रही हो .......जानता हूं । विहान के होते हुए चंद्रिका के साथ और कोई अन्याय नहीं होगा। बाकी सब कुछ तो किस्मत पर निर्भर करता है ।लकीरों में जो लिखा है ,वह कैसे भी टल नहीं सकता ।अगर होनी हमसे टाली जाती, तो चंद्रिका की बारात भी आज धूमधाम से आती ।
खैर..... अब तो जो हो गया, सो हो गया । विशाल ने उनकी बात स्वीकार तो कर ली ,लेकिन अब वह और उनके सामने कमजोर नहीं पड़ा।
अब तक पूरा गांव और मुख्य रूप से यह दोनों सरपंच करनहार बने हुए थे।अब चंद्रिका के लिए करतार विहान था ।जो विधाता ने लिख दिया, जो उसके भाग्य में था ।वह हो गया ।आगे उसे अपनी बहन की समझदारी पर पूरा भरोसा था ।विशाल ,चंद्रिका के फेरे होते हुए देख रहा था।
कन्यादान के समय विशाल के हाथ कांप रहे थे ।जिसे देखकर नीरजा की भी कंपकंपी छूट गई ।और चंद्रिका अपने आंखों के सामने यह होते देख रही थी ।कितना विवश किया गया था उन्हें.......! क्या गलती सिर्फ उनकी थी?
दिन छिपने के साथ विहान और चंद्रिका के फेरे हो चुके थे। सूरज अब अस्त हो चुका था और समय रात की चांदनी का था। जो इस गर्माहट भरे दिन के आंचल में ठंडक भरी चादर लेकर आई। चांद की यह शीतलता जिस्म को ठंडक प्रदान कर रही थी। वही मन को भी प्रफुल्लित करने का काम कर रही थी। क्योंकि दिन भर अंगारे बरसाती गर्मी आजकल मार्च अप्रैल में ही अपना असर दिखाना शुरू कर देती है। लेकिन रातें बेहद खूबसूरत होती है इन दिनों की, खास कर हरियाणा के इलाके में।।
मां ने नई नवेली बहू की आरती उतारी और सादगी से लेकिन पूरी रस्मों रिवाज के साथ गृह प्रवेश करवाया। यूं तो विशाल का चंद्रिका के साथ नाता मंदिर तक ही था। बारात ना सही कम से कम वह अपनी बहन को अपने घर से विदा करना चाहता था। लेकिन यह तय हो चुका था ,कि विदाई भी मंदिर से ही होगी। इसलिए वह विहान के घर तक साथ आया था ।साथ में नीरजा और निर्वि भी थी।
इस तरह स्वागत होते देखकर कहीं ना कहीं उसे तसल्ली हुई। कम से काम सब लोग तो एक जैसे नहीं है इस घर में.....! मां और बेटे उसकी बहन का ख्याल रखेंगे। निर्वि नीरजा की गोद में थी । वह भी चंद्रिका के पास बैठे थे। जिस तरह चंद्रिका को लाया गया था। यों अचानक शादी करके, हाथों-हाथ रुखसती करके,उसे नए घर में घबराहट हो रही होगी।
विशाल, विहान के साथ था।
आप को कुछ कहने का हक तो नहीं है मुझे, और सच कहूं तो समझ में भी नहीं आ रहा कि कहां से शुरू करूं..... लेकिन फिर भी यह कहना चाहता हूं ,कि आप तसल्ली रखिए। आपकी बहन यहां सुरक्षित रहेगी। विहान समझ सकता था। कि एक भाई के दिल पर इस वक्त क्या बीत रही होगी ।आज सुबह से वह भी अपनी बहन के लिए इतना ही परेशान रहा था। पूरा दिन किस तरह गुजरा था उसका वो भी समझ सकता था। इतना लाचार, बेबस, बेसहारा उसने भी शायद ही कभी खुद को महसूस किया हो । कि जी जान लगाने के बाद भी वह अपनी बहन का पता नहीं खोज पाया ।
और यहां विशाल .....और उसमें एक बात का फर्क यहां आ कर आ जाता था ।कि उसकी बहन अपने मनपसंद आदमी के साथ खुद अपनी मर्जी से गई है। जबकि वह और चंद्रिका तो कभी मिले भी नहीं , फिर कैसे उस लड़की की मर्जी हो सकती है। जबकि वह खुद भी इस फैसले में शामिल नहीं था। उस पर जबरदस्ती थोपा गया था ,और उसने उन्हें अपने मन की करने दी।
इवन विहान तो चंद्रिका का नाम भी नहीं जानता था। यह भी नहीं की विशाल की कोई बहन है ,तो फिर चंद्रिका को उसके बारे में कम ही जानकारी में जी रही होगी ।
और किस्मत ने अचानक दोनों को एक साथ ला दिया। नियति ने ऐसा गठबंधन तय किया ,कि अब यह हमारी संस्कृति में जन्म-जन्मांतर कहलाने वाला बंधन एक झटके में जुड़ गया। अटूट और मजबूत जोड़ सिर्फ दो लोगों का ही नहीं दो परिवारों का आपस में जुड़ा होता है ।उनके में बात यह हुई कि किस तरह अचानक से जुड़ा और किन हालातो में ।
विहान का तो खुद पर हंसने का मन कर रहा था। किसी को बताए तो शायद मजाक में लें ।बात उपहास की ही थी ।एक अट्ठाहास किया खुद पर।और वह इसके लिए कितना परेशान था ।कि अगर अभी यह कदम नहीं उठाया, तो अगले ही पल कुछ गलत ना हो जाए । अपनी सूझबूझ से उसने वक्त पर सही निर्णय ले ही लिया। कितनी ही जाने बचाई होगी।इतनी सी बात पर कम से कम किसी की जान तो नहीं जानी चाहिए। अगर दो लोगों ने आपसी रजामंदी से साथ रहने का फैसला किया है ।तो उनके पीछे बाकी के लोग क्यों कट मरे। इन जानवरों को अंदाजा भी नहीं ,कि वह क्या बात कर रहे थे .....और जितना भी वह उन्हें जानता था ।वह सिर्फ बात नहीं कर रहे थे। वह वाकई में कर गुजरते,एक दूसरे को काट मार देते हैं ।
उम्मीद तो मैं भी यही करता हूं ,लेकिन विहान यकीन मानो वह ऐसा कोई कदम उठाएंगे। हमें मालूम नहीं था ।
हां ...जानवी का नाम एक दो बार उस से सुना जरूर था ।पर हम कभी इस बात का अंदाजा ही नहीं लगा पाए।ऐसा कुछ हो सकता है ।हमें लगा कि जानवी कोई जानवी हो सकती है। विशाल ने मलाल से कहा।
मेरे साथ ही रहती थी ।विक्रम और जानवी साथ पढ़ते थे। पिछले 3 सालों से जानवी दिन रात तो विक्रम कॉलेज में दिन भर मेरी निगाहों के सामने ही रहता था। अब जब मैं इस बात का अंदाजा नहीं लग पाया। तो आपकी इसमें क्या गलती ?
नासमझ थे,दोनों बचपना कर गए। शायद जानते नहीं थे, कि उनके पीछे यह लोग क्या कर जाएंगे.......
मैं दिल्ली जाकर पता करूंगा, हो ना हो कहीं आसपास ही हैं।मिल जाएंगे..... कोई जानकारी मिली तो आपको तुरंत इत्तला कर दूंगा ।आप अब बेफिक्र रहिए ,ये लोग कुछ नहीं करेंगे।उन्हें भी कोई कुछ नहीं करेगा..... शायद !
फिर भी उनसे कहना, एक बार एहतियात ही बरते और जल्दी घर ना आए ,तो ही अच्छा है। अभी इनका दिमाग गरम है ।मैं भरोसा नहीं कर सकता । विशाल ने अफसोस से कहा।
विहान को भी विशाल की बात ठीक लगी।
ठीक है , मैं समझा दूंगा.....आप खाना खाकर जाइएगा। मैं मां से कह देता हूं।
नहीं विहान जी, अब इच्छा नहीं है। मैं बस आ गया यूं ही ...भाई हूं ना, दिल नहीं माना। आप तो समझ सकते हैं मेरी हालत ......
विशाल जी, आप निश्चित रहिए। मेरी तरफ से आपको कोई शिकायत का अवसर नहीं मिलेगा। मेरी कोशिश रहेगी कि आपकी बहन महफूज तो है, मेरे साथ खुश भी रहे ।
आपका उपकार रहेगा ये ...विशाल ने विहान के सामने अपने हाथ जोड़ दिए।और विहान ने उनके हाथ को अपने दोनों हाथों के बीच में ले लिया।
अब इसकी कोई जरूरत नहीं। हम दोनों एक ही कश्ती पर सवार है, हाथ जोड़ने की नहीं यहां हाथ पकड़ने की जरूरत है। नीरजा ,निर्वि को गोद में लिए विशाल के पास आई।
घर चले......
ह्म्म ....बस निकल रहे हैं।
विहान ने निर्वि को अपनी गोद में लिया ।एक डेढ़ साल की बच्ची बहुत क्यूट थी। विहान से आखिर रुका नहीं गया। इस तनाव भरे माहौल में बच्चे होते हैं, जो अपनी मनमोहक और निश्छल मुस्कान से सब का मन मोह लेते हैं।
विहान और विशाल दोनों ही हम उम्र थे ।जबकि विहान अपने करियर में ध्यान देने में इतना व्यस्त रहा।कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दे पाया ।कि उसकी भी शादी की उम्र हो चली थी। मम्मी पापा जब भी कहते ,वह टाल जाता था। मां तो कई बार उसके सामने आंसू भी निकाल चुकी थी ।कि वह शादी क्यों नहीं कर रहा ।
परिवार में आकर भी बहुत सुकून मिलता है। ये उसने अब तक पाया नहीं था।
अचानक विहान को अपने फैसले पर मलाल हुआ। अगले ही पल हंसी आई । ये वो क्या सोचने लगा था। अभी अभी तो शादी हुई थी वो भी इस तरह....
काश! वह पहले शादी कर लेता, तो आज इस तरह उसकी शादी नहीं होती ।लेकिन फिर क्या होता.... जो होता वह विध्वंसक और विनाशकारी होता ..... ए खुदा सच में..... तू ही मालिक है। बड़ा ही कारसाज है। इसके फैसले कभी गलत नहीं होते।
इसी सोच के साथ विहान ने अपने विचारों को पाबंद किया।
किसी के सपनों का हकीकत से सामना इस तरह होगा.... यह तो सोचा ना था...?
विहान ,खाना खा लो बेटा ......मां ने उसके पास आकर कहा।
अभी थोड़ी देर पहले ही विशाल और नीरजा गए थे। विशाल एक बार जाते-जाते चंद्रिका से मिलना चाहता था, और चंद्रिका ने उसे मुस्कुरा कर विदा किया। वह नहीं चाहती थी कि विशाल इस घर से भारी मन के साथ जाए। अभी थोड़ी देर पहले विहान के साथ बातें करने के बाद उसका मन कुछ हल्का हुआ था। फिर छाती पर बोझ रखना वह भी नहीं चाहता था।
कम से कम उसे सुकून तो मिलेगा, कि चंद्रिका के होठों पर मुस्कुराहट थी। भले ही वह फर्जी हो ।दिल से खुश इस वक्त वह कैसे हो सकती थी ,जब आपकी आंखें इस तरह का मंजर देख लें .....और सिर्फ देखना ही नहीं बल्कि यकायक किसी के साथ घटित हो ।फिर भी खुद को शांत और संतुष्ट दिखा रही थी।
अगर वह चंद्रिका को रोते हुए देख लेता ,तो शायद आज रात की नींद और चैन ही खो देता। पर चंद्रिका ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे विशाल को तकलीफ पहुंचे।
जी मां ,आया विहान हाथ धोने की गरज से उठा। चाहे वह फ्री बैठा हो, कुछ ना कर रहा हो ,अभी हाथ धुले हो ,लेकिन खाने पर बैठने से पहले उसकी आदत थी। कि वह हाथ धोकर ही बैठता। उसने अभी हाथ होने के लिए आगे बढ़ाए ही थे कि कुछ देर पहले का नरम और नाजुक सा स्पर्श याद आ गया। जब विहान के हाथों में चंद्रिका का हाथ दिया गया था।यह हथलेवे की रसम थी, जो गठबंधन के वक्त की जाती है। एक अलग सा एहसास मन में जाग उठा ।विहान जरा सचेत हो गया।
क्या बच्चों जैसा बिहेव कर रहा था वह..... उसने उस उमर को पार कर लिया है ,जब ऐसी भावनाएं मन में उमड़ती रहती है..... फिर भी एक बार गौर से अपनी हथेली को देखे बिना उससे रहा नहीं गया ।होठों के कोने उठें और सिमट गए । अगले ही पल वह सर झटकता हाथ धोकर खाना खाने बैठ गया।
यह विहान का कमरा है, हमेशा से..... लेकिन अब बस जब कभी भी आता है ,वरना बंद ही रहता है । मां ने थोड़ा रुकते रुकते, थोड़ा सोचते सोचते कहा।
चंद्रिका लगातार कभी कमरे को निहार रही थी। तो कभी मां के चेहरे की ओर देख रही थी ।और कभी खुद को..... बाहर आंगन में बैठे-बैठे उसे गर्मी लगने लगी थी। फिर इतनी भीड़ ,सब लोगों को नई नवेली दुल्हन को देखना था ।कितना बड़ा गांव था ,और कितने सारे लोग.......
मैं ही आकर कभी-कभार इस कमरे में बैठ जाती हूं ।जब उसकी याद हद से ज्यादा परेशान करती है तो... बस यहां आकर की मौजूदगी को महसूस कर लेती हूं ।कभी उससे बात कर लेती हूं ।इतने में मन हल्का हो जाता है ।
दूर हो गया है ना अब... फिर काम की वजह से व्यस्त भी रहता है ।रोज-रोज आने का वक्त तो मिलता नहीं, बस इसलिए .... ऐसा करने से मेरा मन भी बहल जाता है।
मां ने धीरे से आगे कहीं खोए हुए से कहा। मानो अब भी उन लम्हों को जी रही हो। जैसे विहान यहां हो ही ना...... बस उसकी यादें भर हो।
तुम्हारी नंनद या जेठानी यहां होती ,तो तुम्हें इस कमरे में लेकर आती ।अब कोई है नहीं, तो मुझसे ही काम चला लो ।मां ने चंद्रिका के सिर पर हाथ रखा और उसे विहान के कमरे में लाकर छोड़ते हुए कहा । बीच-बीच में मुस्कुरा रही थी । झूठी हंसी हंस रही थी। शायद उसका मन बहलाने की कोशिश कर रही थी। चंद्रिका को सब समझ आ रहा था, लेकिन उसके पास भी कहने को कुछ नहीं था।
उसका सामान पहले से ही वहां था ।ज्यादा कुछ नहीं बस दो-चार जोड़ी कपड़े जो निरजा ने डाल दिए थे याद से ।जरूरत भी थी ।रात के 10:00 बज गए थे। वैसे भी कब तक वो इन भारी भरकम से कपड़ों में रहती ।ऊपर से यह गर्मी । वह कब से सोच रही थी, कि पहले जाकर इन्हें बदल ले। ताकि थोड़ा रिलैक्स फील करें । लेकिन नीरजा ने रोक दिया कि वह जब तक है ,तब तक आराम से बैठी रहे। क्योंकि गांव घर की औरतें भी लगभग वहीं थी।
गर्मी ऐसी कि कूलर पंखे भी फेल थे। फिर बरामदा और आंगन आपस में लगे हुए थे ।चारपाई, कुर्सियों के साथ लोगों का जमावड़ा उसे घुटन हो रही थी और होती ही रही। अब तो यह लोग, जब उसे फ्री करेंगे तभी उठना होगा।
जिस तरह शादी हुई थी। दूर के रिश्तेदार ना सही लेकिन आसपास वाले और पड़ोसी आ ही गए थे ।चंद्रिका ने उनके शब्दों की ओर ध्यान दिया।
नंनद तो वह जानती है, जो उसकी भाभी भी बन गई है ।शायद.... दोनों ने अब तक तो शादी कर ली हो ?नहीं तो घर से भागने का क्या तुक ....पर क्या उसकी कोई जेठानी भी है.... ऐसा कुछ उसने सुना नहीं ।ना ही कोई औरत देखीं ।शायद दूर रहते होंगे, इसलिए आ नहीं पाए होंगे ।
अगले ही पल उसे ध्यान आया। विशाल, नीरज भाभी को बता रहा था। विहान तो चौधरी साहब का इकलौता लड़का है। तो फिर क्या ताऊ, चाचा का परिवार भी संग रहता है .....चंद्रिका ने गर्दन हिलाई। उसे इतना कुछ नहीं सोचना था । अभी अभी तो आई है। परिचय होते रहेंगे।
तुम कपड़े बदल लो, परेशान हो रही होगी.... खाना भी अच्छे से नहीं खाया, मैं दूध भिजवाऊंगी.... पी लेना..... चंद्रिका ने बस सिर हिला कर जवाब दिया।
जगह अनजान तो थी ही ,साथ में माहौल भी अलग सा था। यह चौधरी साहब के गुस्से के आगे कोई कुछ बोल ही नहीं रहा था। शादी वाले घर में जहां चहल पहल होनी चाहिए। वहां सन्नाटा भरा था ।
वैसे इस तरह की शादियों में कहां शोरगुल होता है। कब रौनकें लगती है। वहां तो गुस्सा, डर ,नफरत जैसी बातों का रहवास होता है।
गांव की औरतें भी खुसर-पुसर कर रही थी ।लेकिन इतने धीमे कि उसे ताजुब हुआ। क्या यह सब उनके डर का नतीजा है...? इतने बुरे इंसान है क्या चौधरी साहब.... सुन तो अब तक यही था ।उसके गांव वाले भी यही कहते थे। और जिस तरह शादी का फैसला लिया, उससे लगता भी यही था। ऐसे कैसे इंसान होते हैं ,दूसरों की जिंदगियों को खेल समझते हैं, और अपनी जिंदगी को भी ।वरना कोई इस हद तक आगे कैसे जा सकता है? कि उसके अलावा उसे कुछ दिखे ही ना......!
चंद्रिका ने आईने में खुद को देखा और उसे अपने पहनावे पर हंसी आ गई ।पहनावे पर हंस रही थी या ,किस्मत पर .....पता नहीं! लेकिन अचंभा हुआ था अपने नसीब पर .....दोपहर से पहले विक्रम के लिए परेशान थी ,और दोपहर के बाद खुद के भविष्य के लिए ,सुबह तक शादी का कोई जिक्र ही नहीं था..... और अब शादी हो भी गई.......
अभी तो उसके लिए विशाल ने रिश्ते देखने भी शुरू नहीं किए थे। आज अगर यह वाक्यात नहीं होता तो वह अपने शब्दों पर टिका था। कि वह पहले उसे पढ़ने देगा, और अब देखो ब्याह कर दूसरे घर भी भेज दिया।सब तकदीरों का खेल है...!
आज का दिन कितना जल्दी बीता । और जिस तरह से बीता वो हैरान थी, वक्त के खेल पर .....क्या कुछ नहीं होता रहा !कभी कुछ तो अगले ही पल कुछ...... ऊपर वाले के हाथ में डाइस होता है, और वह कब पासा पलट दे ।कोई सोच भी नहीं सकता। उसके मामले में तो कम से कम यही हुआ।
आनंन फानन में कुछ तैयार नहीं था। कैसे कपड़े पहन रखे थे। और किस तरह दुपट्टा सेट किया हुआ था। अपना बैग टेबल पर धरा और कॉटन का सादा सा सूट निकाला ।नहा कर कपड़े बदले पहले। तभी आराम मिलेगा ,तभी जाकर कुछ सोचा जा सकता है। उसके तो दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया था।
चंद्रिका ने सूट निकाला ,जो हल्के गुलाबी रंग का था। चलो यह तो भाभी ने अच्छा किया.... कि चमकीले दमकीले कपड़े नहीं भरे..... आज का दिन, लोग और बातें उसे इतनी भारी लगने लगी कि कम से कम कुछ तो उसकी जिंदगी में हल्का था। चाहे वह उसके कपड़ों का रंग ही क्यों ना हो। वह इतने में ही हल्का पन महसूस कर रही थी।
लाइट पिंक कलर सोबर और प्यारा सा..... यह सॉफ्टनेस का सिंबल माना जाता है । इतने कठोर से लोगों में कुछ तो नरमों नाजुक था।चंद्रिका सब बातों को दिमाग से निकालने के लिए सर पर हाथ रखकर आंखें बंद करके खड़ी हो गई। यह बोझ सब अब धीरे-धीरे उतरने दे।
जीवन के धरातल पर अपने आप से रूबरू होना। स्वयं को सुनना...!यह ज्यादा जरूरी है, कि हम क्या चाहते हैं...?
आप यहां आराम से हैं...?
कैसे? वह इस तरह यहां आई हुई है, कि आराम से कैसे हो सकती है? उसकी तो नींदें हराम हो रखी है ।लेकिन इस सामने से पूछने वाले शख्स की क्या गलती ?
वह भी तो उसी की तरह था । दोनों एक ही कश्ती के सवार....!जिस पर जबरदस्ती यह निर्णय थोप दिया गया था। वह अपने भाई की और वह अपनी बहन की जान बचाने के लिए यह कदम उठा गया।
हूं... मैं ठीक हूं। उससे यही कहते बना। सामने खड़ा शख्स चिर परिचित नहीं था। फिर भी आज से वह खुद को छोड़कर उस पर सबसे अधिक हक रखता था और वो उस पर।
अभी कुछ घंटे पहले ही दोनों एक अटूट बंधन में बंधे थे। वह भी सबकी सहमति से ... दिखावटी तौर पर उनकी भी सहमति थी। लेकिन अंदर से .....अभी कुछ मालूम नहीं!
अच्छा ठीक है ,आप यहां आराम से सोइए। मैं बाहर छत पर ही हूं ।वही सोऊंगा।
जी ,
गर्मी लग रही है, तो ऐसी चला लीजिए ।नहीं खिड़की खोलने से भी कमरा ठंडा हो जाएगा ।जैसे आपको कंफर्टेबल लगे ।विहान ने चंद्रिका से कहा, और दरवाजे से ही वापस मुड़ गया।
सुनिए, चंद्रिका ने पीछे से आवाज दी ।
ह्म्म....कहिए..., वो पलटा।
वो, क्या....
क्या हुआ?
वो .....विक्रम भैया और जानवी के बारे में कुछ पता चला ?
अभी तक तो नहीं, हम ढूंढ रहे हैं और पुलिस भी ।जल्द पता चल जाएगा ...
क्या चौधरी साहब भी ढूंढ रहे हैं?
नहीं , उनकी ज़िद पूरी हो चुकी है। अब उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं ।उन्हें अपने बच्चों की थोड़ी ही फ़िक्र है ।बात तो उनकी इज्जत की थी ना..... इसलिए जोश में थे।विहान ने थोड़ा चिड़ कर कहा। वह हमेशा यही देखते आया था। उनका जिद्दी पन, अड़ियलपन ,कड़क रुख हमेशा परिवार में कलेश का कारण बनता और अब उसकी शादी का भी ......
चंद्रिका क्या सोचती होगी? कि उसे इस तरह यहां लाकर बिठा दिया? वह वापस जाने के लिए पलटने को हुआ।
लेकिन ,तुम अब कोई फिक्र मत करो। मिल भी गए ,तो वह उन्हें कुछ नहीं कहेंगे। बात बस इतनी सी थी। कि उनके मन की होनी चाहिए। वैसे ना सही ,ऐसे ही सही। विहान ने चंद्रिका की फिक्र कम करने के लिहाज से कहा।
उसे अपनी बहन के चिंता थी ।तो उसे भी अपने भाई की और साथ में बहुत सारे निर्दोष लोगों की भी।
वो जाने लगा लेकिन वापस चंद्रिका के पास आया ।क्या तुम्हें इस बारे में कुछ मालूम है? तुम विक्रम से आखरी बार कब मिली थी ?मतलब रात के किस वक्त.... तक वह घर पर था? कोई आईडिया .....कोई दोस्त जिसे शायद मैं नहीं जानता हूं? एनी क्लू ........ एक चंद्रिका ऐसी थी, जो उसे विक्रम के बारे में सटीक जानकारी दे सकती थी ।इसलिए उसने पूछने की कोशिश की। शायद उसे कुछ याद हो...?
भैया को कल रात के 11:00 बजे के लगभग मैंने छत पर जाते हुए देखा था। वह नॉर्मिली फोन लेकर शाम को छत पर आ जाते थे ,दोस्तों से बात करने के लिए और शायद जानवी से भी..... फिर काफी देर बाद नीचे आए ...... अपने कमरे में जाकर सो गए । बाहर आंगन में विशाल भैया और भाभी सोते हैं। घर के मेन गेट के आगे जो कमरा है,उसके दूसरी साइड कभी कभार विक्रम भैया सो जाते थे ।जब भी उनका बाहर सोने का मन हो। मैं अंदर थी अपने कमरे में.....लगभग 12:00 बजे की बात है, वो भी शायद सो गए थे।उसके बाद मुझे पता नहीं ,मैं भी सो गई थी।
कब उठे... कब गए ...कोई आईडिया नहीं ,जरा सी आहट भी नहीं की थी। चंद्रिका ने एक-एक बात करके पूरा किस्सा कह सुनाया ,जो जो कल रात उसने नोटिस किया था। उसे तो रोज की तरह ही लगा, कुछ भी अलग नहीं था।
विहान ने चंद्रिका की बातों को गौर से सुनते हुए हां में गर्दन हिला दी ।किसकी नींद खुलती है? सोने के बाद...और ऐसा सोचकर कौन सोता है ....कि क्या कुछ होने वाला है ? जानवी जब घर से निकली थी ,मां की आंख भी तो नहीं खुली थी। शायद उन्होंने पैकिंग वगैरह पहले से कर रखी थी। पूरी प्लानिंग थी भागने की ....कितने शातिर निकले दोनों?
उनकी यह होशयारी उन पर उल्टी पड़ गई थी ।
ह्म्म....अच्छा और वैसे तुम रात को इतनी देर तक क्यों जाग रही थी? न जाने क्यों विहान ने यह सवाल कर लिया ।वह शायद इसलिए कि वह अब उससे जुड़ चुकी थी। दोनों एक रिश्ते में साथ बंध चुके थे।
कहीं ...... कहीं विक्रम और जानवी की तरह उसका भी तो किसी से....... विहान न चाहते हुए भी उस दिशा में सोच रहा था। उसने शादी की ,क्योंकि उसकी तरफ से क्लियर था। वह शायद बोल ना पाई हो, फिर सब कितना जल्दी-जल्दी हुआ। मन को हल्का धक्का सा लगा।
मैं रात को देर से ही सोती हूं ।हमेशा से आदत रही है, लेट नाइट तक पढ़ने की ।इसलिए जल्दी नींद ही नहीं आती। तो मैं पढ़ लेती हूं। चंद्रिका ने अपनी बात मजबूती के साथ रखते हुए कहा। विहान के भी सोचों पर लगाम लग गई।
आज उनकी शादी की पहली रात थी, और वह किस टॉपिक पर बात कर रहे थे..? उनके पास और कुछ था ही नहीं बात करने को ,क्योंकि उनका रिश्ता ही नॉर्मल तरीके से नहीं जुड़ा था ।यह तो अच्छा हुआ था, कि उनके पास बात करने को कुछ तो था .....और यह मैटर मिल गया। जो वह एक दूसरे के साथ साझा कर पा रहे थे।
अच्छा तुमने कभी जानवी के बारे में सुना क्या विक्रम से?
भैया से एक दो बार पहले भी नाम सुन रखा था। उन्होंने बताया कि दिल्ली में उनकी क्लासमेट है ।जस्ट फ्रेंड... मेरे आगे बस इतना ही ,लेकिन भाभी को कभी हंस कर कह देते थे ,कि उनकी होने वाली देवरानी है। उन्होंने भी इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया। अगर होती, तब भी हमारे घर में किसी को कोई प्रॉब्लम नहीं थी।
लेकिन तब विशाल भैया , मैं और ना भाभी ही यह जानते थे, कि वह आपकी बहन है। चंद्रिका ने गंभीर होकर लेकिन स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा। क्योंकि उसका ऐसा कोई इंटेंशन नहीं था ।
तो तुम लोगों को मेरी बहन से क्या प्रॉब्लम थी?
नहीं ,आप गलत समझ रहे हैं ।हमें कोई प्रॉब्लम नहीं थी , बल्कि नहीं भी है । बस आपके पापा और आप ......
मुझे भी कोई प्रॉब्लम नहीं है, ना मेरी मां को है ।यह बात जान लो तुम ......और पापा का मैं कुछ कर नहीं सकता। नतीजा तुम देख ही चुकी हो । विहान ने भी सिचुएशन क्लियर कर दी ।पहले ही इतना रायता फैल चुका था। अब कुछ और मिस अंडरस्टैंडिंग ना हो तो ही बेहतर है ।क्योंकि अनजाने में दो बंधन में बंध चुके थे और यह रिश्ता जुड़ चुका था और चलने वाला था। उन दोनों की पहले से ही मर्जी थी ,इन दोनों ने शादी करने में रजामंदी दे दी थी।
जी, मैं समझ गई। मुझे मालूम नहीं था। मैंने बस ऐसा सुन रखा था ।आपको हर्ट करने का इरादा नहीं था। विहान ने सिर हिला कर उत्तर दिया ।
अच्छा और कुछ कभी तुम्हें ऐसा लगा .... कुछ भी अलग सा.. शायद कोई क्लू मिले । वो कोशिश कर रहा था। कोई तो सबूत मिल ही सकता है ।किसी का नाम ,किसी का एड्रेस?
जहां तक उसने जाना था ।सब जगह छान मारी, वह चाहे जानवी के फ्रेंड हो या विक्रम के कॉलेज में साथ दिखने वाले लड़के....... कहीं भी पता नहीं चला।
नहीं ,इसके अलावा तो ....मुझे कुछ याद नहीं ,फिर कभी इतना इंटरफेयर मैंने किया भी नहीं... कि ये शायद ठीक नहीं था और जरूरी भी नहीं लगा ।
फिर भी,कुछ अगर याद आ रहा हो तो......
नहीं अभी तो ऐसा कुछ नहीं ।कभी ऐसा कुछ लगा तो मैं आपको जरूर बताऊंगी । क्या पता वह मिल ही जाए।चंद्रिका को बातें लेकर बैठने का, उन्हें खींचने का या बेवजह लंबा करने का कोई शौक नहीं था ।वह क्यों कुछ छुपाएगी ।ऐसा उसे कुछ पता चला तो जरूर विहान को बताएंगी। वह भी तो उसकी तरह उनकी भलाई चाहता था ।
ठीक है,अच्छा .....तुम थक गई होगी ।आराम करो। मैं जाता हूं। विहान कह कर मुड़ा ।
चौधरी साहब..... चंद्रिका ने आवाज दी।
मुझे इस नाम से नहीं बुलाना कभी। तुम मेरा नाम ले सकती हो। चंद्रिका के बुलाने पर विहान ने बस यही बात कही और वह समझ गई।
विहान जी,
जी ......
आप चाहे तो यहां भी सो सकते हैं.... मुझे कोई दिक्कत नहीं.... चंद्रिका को अजीब लग रहा था। क्योंकि विहान के बेडरूम पर उसने अचानक से कब्जा कर लिया। वह शायद बाहर उसकी वजह से सो रहा था ।
नहीं ,मैं यहां आता हूं ,तो अक्सर बाहर ही सोता हूं। मुझे नींद अच्छी आती है। तुम सो जाओ बेफिक्र होकर...... मैं बस यही हूं कमरे के आगे ...... उसे कंफर्टेबल फील करवाते हुए कहा।
वह नहीं चाहता था कि उसकी मौजूदगी में वह अनकंफरटेबल हो ।अभी जानते हुए कितनी की देर तो हुई थी। इस तरह रूम शेयर करना शायद उसे अच्छा ना लगे, और फिर उसकी आदत भी थी ।उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।
विहान का कमरा छत पर था, इसके अलावा एक और कमरा भी था ।जो ज्यादातर बंद ही रहता। दोनों कमरों के लगता ही बरामदा था और आगे खुली छत ......छत पर सोने वाला रात को बारिश आने पर आराम से बरामदे में सो सकता था । गांव में ऐसी व्यवस्था की ही जाती है।
चंद्रिका ने गोलमोल सर हिला दिया। उसे भी अकेले सोने की आदत थी । सोते वक्त ऐसा कुछ अनजानापन उसे नहीं लगता था।बस सोने के लिए शांत जगह की जरूरत थी। जो उसे मिल गई थी।
अक्सर हम सुकून की तलाश कहीं और करते हैं। और वह हमें अपने भीतर ही मिलता है,जब हम मन की गांठ स्वयं खोल पाते हैं।
रात धीरे-धीरे करके बीत रही थी। जैसे-जैसे घड़ी की सुइयां आगे बढ़ रही थी। वैसे वैसे विहान का दिल उछल कर बाहर आ रहा था ।उसे जानवी की फिकर थी। यह तो गनीमत थी, कि जानवी, विक्रम के साथ है।
वरना वह चैन से कैसे सो सकता था? दोपहर तक उसे पक्का नहीं था, कि जानवी और विक्रम साथ निकले हैं। तब तक वह अधिक चिंतित था। लेकिन अब तो चौतरफा बात फैल गई थी। विहान को इसी में तसल्ली हुई कि ,लड़का उसकी जान पहचान का था। वह मक्कार नहीं था ,अगर किसी ऐसे इंसान के साथ गई होती ।जिसे वह जानता नहीं था। तो कैसे भरोसा कर पाता? क्या पता कोई झूठा, फरेबी निकले ? कच्ची उम्र में बच्चे भी झांसे में आ जाते हैं.... यह विशाल का भाई था। 3 सालों से कॉलेज में उसके सामने रहता था ।कुछ बात परिवारों की भी होती है, और कुछ इंसान के स्वाभाविक गुण होते हैं । जिस आधार पर वह व्यक्तिगत रूप से जाने जाते हैं ।
विहान, विक्रम के बारे में इतना तो जान गया था ।कि वह अगर उसे अपनी जिम्मेदारी पर लेकर गया है ।तो हिफाजत से रखेगा। उसके होते हुए उसे जानवी की इतनी चिंता नहीं थी। फिर भी घर से दूर कहां गए ?कैसे रहेंगे ?और फिर वापस आने के बाद पापा के रवैये का अंदेशा.... यह सब तो डर मन में आ ही रहे थे।
बस एक तसल्ली थी ,कि दोनों एक दूसरे के साथ खुश और सुरक्षित रहेंगे। वह जानवी के केयरिंग और लॉयल स्वभाव से भी परिचित था ।दोनों एक दूसरे का ख्याल रख सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं।
विहान छत पर चारपाई डालें ,अपने दोनों हाथ सिर के नीचे टिकाए एक टक आसमान को निहार रहा था ।तारों से भरा आसमान ,जिसमें एक अकेला चांद नजर आ रहा था। और उसके आसपास उसकी फैली चांदनी ...... विहान के होठों पर बरबस एक नाम आया....... चंद्रिका
विहान ने लेटे-लेटे ही गरदन मोड़ कर कमरे की ओर झांका। तो पाया कि कमरे का दरवाजा खुला था, और सब खिड़कियां भी। बाहर चल रही ठंडा हवा ने अब तक कमरे का तापमान भी सही कर दिया था ।
"चलो, कोई और नहीं तो कम से कम यह तो मुझ पर भरोसा करती है। "
विहान ने अपनी तुलना आसमान में टिमटिमाते लाखों तारों के बीच अकेले रोशन होते चांद से की ।उसे लग रहा था, कि वह भी आकाश की इस भीड़ की तरह दुनिया की इस भीड़ में बिल्कुल चांद की तरह अकेला और तन्हा है। जिसे कोई समझता नहीं, जिस पर किसी को विश्वास नहीं .......
ना जानवी अपने मन की बात अपने भाई से कर पाई और ना पापा ने उसकी बात मानी। मां ने भी उसे बचाने की खातिर घर आने से मना कर दिया था । क्या जानवी अपने बड़े भाई को बता नहीं सकती थी। कि उसे क्या चाहिए? क्या पापा अपने बेटे पर भरोसा नहीं कर सकते थे ?कि वह सब कुछ ठीक कर देगा..... क्या मां को नहीं चाहिए था ,कि वह भी इस घर का हिस्सा है ।उसे अब घर के मामलों में बोलने का हक दिया जाए?
उसे पर मालूम है, कि पापा नहीं समझने वाले ......शायद भगवान उनके भीतर वह नस बनाना ही भूल गया है ,जो समझने के लिए जरूरी होती है। फिर भी कोशिश करना उसका कर्तव्य था ।सुख हो या दुख परिवार एक दूसरे का साथ देकर ही आगे बढ़ता है, तो अच्छा लगता है। उससे कहां चूक हुई? वह भी घर में हर काम के लिए हाथ बटाना चाहता था। उसे यह तरीका पसंद नहीं था। तो उसे इन सबसे विलग ही कर दिया।
लेकिन जब उसने चंद्रिका से कहा, कि वह बाहर छत पर ही सो रहा है । वह उसकी बात का मान रखते हुए ,दरवाजा खोल कर सो गई ।उसे अपनी सुरक्षा की अनावश्यक चिंता करने की जरूरत नहीं थी ।क्योंकि बाहर विहान सो रहा था ।इसलिए किसी बाहरी के आने का डर नहीं और विहान के ऊपर चंद्रिका को कोई बेवजह का शक शुबहा नहीं था। इससे तो यही बात जाहिर होती है।उसने एक बार और उस ओर देखा। फिर मुस्कुरा दिया ।
दिल को खुश रखने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है।
कोई तो आया, उसकी जिंदगी में.... जो शायद उसे उससे बेहतर जानने का साहस रखता है। उसने यहीं नहीं हिम्मत हारी थी। कम से कम वह कोशिश जरूर करेंगी।
आगे क्या होता है ,यह तो बीतते वक्त के साथ ही मालूम होगा।
चंद्रिका, विहान की जिंदगी में ढलते सूरज के बाद आसमान में उतरते अंधेरे के साथ आई थी ।लेकिन वह अंधेरा लेकर नहीं आई ।बल्कि अपने साथ चांद की रोशनी और वही शीतलता लाई थी। जिसका नरम और मुलायम सा एहसास विहान को गदगद कर गया ।विहान ने एक बार फिर दोहराया ,चांद की चांदनी...... यानी चंद्रमा की चंद्रिका!
बड़ा अनोखा सा नाम था। पुराना और यूनिक, इतना ही खूबसूरत उसके नाम का अर्थ था । विहान न चाहते हुए भी सोचने पर मजबूर हो गया। एक बात यहां और यह अच्छी हुई कि ,चंद्रिका को सोचते सोचते उसे नींद आ गई ।वरना जिस तरह आज दिनभर टेंशन का माहौल था ।उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी ।लेकिन फिलहाल के लिए चंद्रिका के नाम का मतलब ही विहान का माइंड डाइवर्ट करने में कामयाब हुआ।
सुबह के आगमन पर चिड़ियों ने चहचहाना शुरू किया। आसमान में सूरज अभी निकाला नहीं था। लेकिन अपने आगमन की सूचना दे दी थी। पंछियों ने घोंसलों को छोड़कर सुंदर और मनोरम विहंगम शुरू कर दिया था। कोई दाने पानी की तलाश में था, तो कोई अठखेलियां करने में सुख पा रहा था। इसी सुरसुराहट ने चंद्रिका की आंखें खोल दी।
वह चौंक कर उठी और खिड़की से बाहर की ओर देखा। आकाश में हल्की लालिमा छाई थी ।साथ में सूरज का एक कोना उभरता दिख रहा था। चंद्रिका ने दरवाजे से बाहर कदम रखा और वह सूरज को प्रणाम करती हाथ जोड़कर नमन की मुद्रा में खड़ी हो गई। सूर्य देव को नमस्कार कर अंगड़ाई तोड़ती इधर-उधर हुई जब उसे चारपाई पर बैठा विहान दिखा । जो उसकी ओर ही देख रहा था।
चंद्रिका ने विहान को देखा और उसके पीछे उगते सूरज को। हिंदी में पढ़ा था, विहान का अर्थ होता है ......अरुणोदय अर्थात सुबह.....!
सच है,क्या विहान अपने नाम की तरह मेरी जिंदगी में भी सवेरा लेकर आएगा ?जो मैं चाहती हूं ,क्या कभी बना पाऊंगी ?चंद्रिका, विहान के नाम के अर्थ में अनजाने में ही अपना भविष्य ढूंढने लगी।
अभी तो लंबा चलना है, उसका मन टटोलना होगा... क्या पता अपने नाम को सार्थक करता हो ?या नहीं भी ....!
वक्त बताएगा। वह वापस अंदर की ओर मुड़ गई ।जैसे ही उसे अपनी हालत का भान हुआ।
लेकिन पलटने से पहले वह विहान को से बात करना नहीं भूली थी। इस तरह सरासर नजरअंदाज नहीं कर सकती थी। कल से वह पति था उसका। हर रिश्ते के अपने मायने होते हैं।
गुड मॉर्निंग ,चंद्रिका ने इतना कहा ही था ।कि नीचे से पापा की आवाज सुनाई दी ।
विहान...... यह जोरदार पुकार चौधरी साहब की थी।
व्हाट इज़ गुड अबाउट दिस मॉर्निंग ........!विहान ने अनमने से मन से कहा। उसका लहजा भी चिड़चिड़ा सा था ।फिर भी वह दबा गया ।
गुड मॉर्निंग, तुम तैयार होकर नीचे आओ। मैं चलता हूं ,पापा आवाज दे रहे हैं।
पैरों में चप्पल डालता वह दरवाजा खोल कर सीढ़ियां उतर गया। चंद्रिका खड़े की खड़ी रह गई ।आसमान में सूरज अब पूरी तरह निकल आया था। लाल सुर्ख और सुंदर सा .......इस समय अगर कोई सूरज को निहारता होगा, तो सोचता होगा कि क्या यही वह होगा ,जो थोड़ी देर बाद आग बरसानी शुरू कर देगा। इतना खूबसूरत, प्यारा नज़ारा, इतना अदभुत दिखने वाला...... क्या यह भी लोगों को अपनी तपिश से झुलसाता होगा?
लेकिन जीवन का सच तो यही है। कभी कभार हमारे अपने और मन को अच्छे लगने वाले भी हमें दर्द दे जाते हैं ।दो राहे पर लाकर खड़ा कर देते हैं, उन सवालों के जवाब मांगते हैं ,जो हम खुद जानते भी नहीं ।तकलीफ और दुख भी पहुंचाते हैं। कभी-कभी तन्हा कर जाते हैं, और अकेलापन इनाम में दे जाते हैं ।
यह तो यथार्थ है जिंदगी का...... और इसके साथ जीना चाहिए, ताकि इंसान जिए तो सच के साए तले जिए। झूठ की चादर तानकर नाहक ही आंखों पर्देदारी कर जीने में कोई अर्थ नहीं। ऐसा जीवन ही निरर्थक है।
चंद्रिका ने थोड़ा रुक कर इस मन को भाने वाले मनभावन दृश्य को आंखों के जरिए अपने मन में कैद कर लिया। वह एक सुंदर तस्वीर की तरह उसके मन में उतरता चला गया।
प्रकृति बहुत कुछ सिखाती है ,बल्कि सब कुछ ।आंखें बंद कर या खुली आंखों से कुदरत को यदि महसूस किया जाए। तो कुछ परेशानियों का हल निकल आता है, लेकिन समय के साथ।
जी पापा, विहान पापा के सामने आकर खड़ा हो गया ।
वापस कब जा रहे हो ?उन्होंने अपनी तेज कड़क आवाज में पूछा ।
इसलिए सुबह-सुबह जगाया। यह तो उठने के बाद कभी भी पूछ सकते थे। लेकिन वह इस बात पर नाराज नहीं हुआ। उनकी आवाज सुनकर ही जान गया था। कि ऐसा ही कुछ पूछेंगे। उनका यह अंदाज पुराना था ।
आज दोपहर के बाद निकलूंगा। विहान ने नपे तुले शब्दों में कहा। कल की वजह से ज्यादा तो नहीं लेकिन मन में नाराज़गी तो थी।जो होनी भी चाहिए।इस तरह डिसीजन कौन लेता है? लेकिन अब उसे इन सब की आदत हो चली थी । उसने हमेशा उन्हें इस अंदाज में देखा था।
फिर कब आना होगा ? वो किसी विचार के तहत बोले।
फिर तो ....कुछ कह नहीं सकते ,एक बार जानवी का पता चल जाए।उस की और विक्रम की तलाश भी करनी हैं ।अगर मिल गई तो ,लेकर जल्दी आऊंगा। आप परेशान नहीं रहिए। मिल जाएगी। विहान ने कुछ सोच कर कहा।
हैं .....मुझे उसकी कोई चिंता नहीं ....अपने मर्जी से गई है, अपनी मर्जी से आ गई जाएगी ।अब भई वह बड़ी हो गई है, अपनी मर्जी की मालिक है ।अपनी पसंद के छोरे के साथ गई है। मेरी बात मानो ,तुम भी उसके पीछे ज्यादा परेशान मत होना। अपने जीवन में आगे बढ़ो । जैसा कि विहान को पहले ही उम्मीद थी ,कुछ ऐसा ही सुनने को मिलेगा। उसे ज्यादा ताज्जुब नहीं हुआ।
आजकल बच्चे मां-बाप पर इतना ही हक समझते हैं। पाल-पोश कर बड़ा कर दो ,काम खत्म। आगे की जिंदगी हम अपने हिसाब से खुद ही देख लेंगे ....ना राय लेनी होती है ,वह तो छोड़ो ....दूर की बात .....मन में कुछ ख्याल आए, तो बताते भी नहीं ।ऐसे कदम उठाते देर भी नहीं लगाते ।
आगे पीछे कोई नहीं होता क्या ....परिवार को धरा छोड़ देते हैं। हू्ं ...... उन्होंने सिर मारा।
गुस्सा तो पापा का बिल्कुल भी कम नहीं हुआ था। पर उनकी ज़िद पूरी होने से उनका जोश ठंडा पड़ गया था ।
तेवर अभी भी वही थे उनके। और ना सोच में फर्क आया।
विहान को विशाल की बात सही लगी ।इस तरह अगर जानवी और विक्रम को पापा के सामने लाकर खड़ा कर दिया। तो वह उन्हें गोली मारते देर नहीं लगाएंगे। लेकिन अपने वचनों के पक्के थे ।कह दिया कि, कुछ नहीं करेंगे ....तो कुछ नहीं करेंगे। लेकिन वह तो वाकई कुछ नहीं कर रहे थे। उन्होंने उन्हें खोजना ही छोड़ दिया और विहान को भी मना कर रहे थे।
अगर मिल गए तो,इसी तरह अपना गुस्सा और नाराजगी उनके सामने भी दिखाएंगे ।
पता तो करना होगा पापा.... दोनों ही बच्चे हैं ,अभी उम्र ही क्या है ?
क्यों सुना नहीं कल पुलिस वालों ने क्या कहा ...?दोनों बालिग है ,अपनी मर्जी से ब्याह कर सकै हैं ।बताओ.... ब्याह करने के लिए बालिग होना जरूरी है, मां-बाप की मर्जी जरूरी कोई ना...... पापा ताने पर ताने मारे जा रहे थे । और उनके व्यंग्य बाणों का शिकार विहान बना। बच्चों के अच्छे बुरे की बड़ों को चिंता रहती है ।उन्हें भी होगी,बस सामने से कठोर बने थे।
पापा आप मेरा मुंह मत खुलवाइए, अगर वह आपके पास आते तो क्या आप मानते ? विहान को आखिरकार गुस्सा आ ही गया। वह उनके पिछले रिकार्ड को भी देख रहा था। कुछ सालों पहले इस घर में क्या हुआ? कितना हो हल्ला और कोहराम मचा और आखिर हासिल क्या हुआ? इस घर के एक बेटे को घर निकाला ....पापा ने तीखी नजरों से विहान को देखा।
अब तू भी मेरे सामने बोलेगा.....
नहीं, इस बार मुझे जवाब चाहिए। कब तक आप उन्हें घर से दूर रखेंगे? क्या उसके बच्चों की शक्ल भी नहीं देखेंगे ?क्यों पापा... आखिर इस तरह खुद को सख्त बनाकर आपको क्या हासिल होता है? बच्चे तो खुश नहीं है..... मां भी नहीं... परिवार है ,लेकिन परिवार के नाम पर कौन आपके करीब है?आपके डर के मारे आपसे कुछ कह भी नहीं पाते ?और जो कहने की हिम्मत करें ,उनकी आप सुनते नहीं .... सुनकर भी अनसुना कर देते हैं? कोई अपने मन की कर ले, तो फिर आप उसकी शक्ल देखना पसंद नहीं करते..... जानवी का तरीका बेशक गलत हो सकता है, लेकिन आप खुद ही बताओ... उसके पास और कौन सा रास्ता बचा था ?अगर अपने मन से उसने किसी को पसंद कर लिया ,तो क्या गुनाह था?
विहान को यह मौका ठीक लगा ।क्या पता बरसों पहले बिगड़ी बात बन जाए .......पापा इस वक्त थोड़ा कमजोर पड़ रहे थे। शायद बेटी का मोह था।अब जब बात निकल ही चुकी है।तो डरना नहीं चाहिए ।
बताइए ना पापा..... अपना दिल बड़ा करते आप?क्या दिखाते बड़पन? मान जाते हैं उनकी शादी के लिए? कर देते रिश्ता उनका ? मंजूरी देते उनके फैसले को?रजामंद होते रिश्तेदारी निभाने की खातिर?और अगर ऐसा होता तो तब क्यों नहीं हुआ?
आए थे ना पृथ्वी भाई ......आपके पास शादी के लिए, तब क्यों ना कर दी? तब तो उन्हें घर आने के लिए ही मना कर दिया। और आज तक इस तरह दिखाते हैं, मानो वह परिवार का हिस्सा कभी हो ही ना......
ना इस घर में उनके समाचार पूछे जाते हैं, ना कभी आप उनका हाल-चाल जानते हैं ,और तो और मां के वहां जाने पर पाबंदी है....... विहान चुप ही नहीं हो रहा था। उसकी शिकायतें बादस्तूर जारी थी ।आज मौका मिला था, और वह मौका गंवाना नहीं चाहता था।
तनै तो ना रोक्या..... तू तो दिन रात उसकी संगत में रैवे है ....फेर भी शिकायत राख राखी है मन में.......
नहीं रोकते, क्योंकि आपका बस नहीं चलता मुझ पर .....पहले पहल तो आपने मुझे भी मना किया था ।लेकिन आपके पास कोई चारा नहीं .... मैंने आपकी यह बात मानी नहीं और मां....
तेरी मां ने भी कदै ना रोक्या, बस एक बात कही है, जा तो मैं... जा वो..... उस पर मेरा बस चाले से, तेरे पर बस चलता ना मेरा..... और वह अपनी मर्जी से रुकी है ।अपनी मर्जी तो मैं कर सकता हूं ना ...?अपनी मर्जी से कुछ भी कह सकता हूं? बस उतना ही किया था मनें। या उतना भी अधिकार न है मेरा ,मेरे पर....... उनके तेवर जरा ढीले नहीं पड़े थे।
विहान तो बस बात करना चाहता था। क्योंकि सुबह-सुबह बाप बेटे अकेले थे। कल तो उसे पापा गांव के लोगों के झुरमुट के बीच मिले थे। अब खुलकर बात हो सकती थी। अपने घर परिवार की ,जानवी की, पृथ्वी की, मां की और खुद की ।क्योंकि वह अपने हुकुम के आगे और किसी की नहीं सुनते थे। सब उम्मीद छोड़ चुके थे ।उन्हें समझना छोड़ चुके थे। जानवी का घर से इस तरह जाना इसी ओर इशारा करता था। कि वह मान बैठी थी ,कि पापा उसके फैसले से कभी सहमत नहीं होंगे।
लेकिन विहान अभी नहीं हारा था। जब भी बात होती, हमेशा दिल में उम्मीद की एक लो जगा कर ही वह उनके सामने आता।
बात तो वही हुई ना पापा ,मां ने आपकी बात मान ली और मैंने मानी नहीं । क्योंकि यहां मुझे आप सही नहीं लगे।आप गलत हो पापा....उस बात के लिए मैं हमेशा पृथ्वी के साइड खड़ा रहूंगा।
क्यों पापा इतने अकेले होकर कहां जाओगे? कहीं तो आप लचीलापन दिखाया करो? फिर रिश्तो में एक हद तक लचक होनी भी जरूरी है?
धागे जैसे होते हैं ,जितना खींचोगे....... टूटने का डर उतना ही बना रहता है ।और रही बात जानवी की, तो मैं समझता हूं उसने क्यों नहीं बताया आपको .......क्योंकि पृथ्वी भाई के वक्त देख लिया था उसने आपका फैसला ......उनकी ही बात नहीं मानी तो जानवी की क्या मानते........ एक तो वह लड़की है, यूं ही हमारे समाज ने लड़कियों को कम अधिकार दे रखे हैं ।दूसरा आपकी दुश्मनी बीच में आ जाती है ।ना जाने कैसा बैर पाल कर बैठे हैं ,एक पूरे गांव से.........
विहान यह सब नहीं कहना चाहता था ।वह भी सुबह-सुबह, लेकिन बात अब छिड़ ही गई थी ,तो थोड़ा बहुत बोलना जरूरी था । क्या पता वह सोच विचार कर कुछ फ्लैक्सिबिलिटी ले आए अपने रवैये में....... यह उनके परिवार के लिए अच्छा ही होता।
थे भी कमाल करो हो.... सवेरे सवेरे शुरू हो गए, छोरे ने चा तो पीण द्यो.......
मने मुंह ना पकड़ा इसका, वैसे भी इसका मुंह कुछ ज्यादा ही चालण लाग्या........ ले जा छोरै ने चा पानी पिया, सेवा पानी कर ....... इसकी खातिरदारी में कोई कमी ना रह जावे ,इब तो जे एक ही बच्या है। मने तो आ डोर भी इब टूटती लागे हैं ।चौधरी साहब शायद विहान के शब्दों से हर्ट हो गए थे।
पापा मेरा आपका दिल दुखाने का कोई इरादा नहीं था। मैं बस आपको .......
जा चा पाणी पी ले ,तेरी तरह तेरी मां ने भी सारी शिकायतें मेरे ते ही हैं।
चलो ...विहान, मां उसे अंदर ले जाने के लिए ही आई थी। चौधरी साहब का मूड कल से उखड़ा उखड़ा था। इसकी गाज कहीं विहान पर ना गिर जाए। वैसे भी वह कल से बहुत कुछ झेल चुका था ।जो उसकी जिंदगी का इतना बड़ा फैसला इस हिसाब से लिया गया। मानो वह कोई महत्व ही ना रखता हो।
मां मुझे बात तो करने देती.... क्या पता पापा ..... सोचते इस बारे में, वह कहां गलती कर रहे हैं ?उन्हें पता तो चले ।
आज तक तो उन्हें पता चला नहीं ,अब क्या खाक चलेगा ।तु दीवार में सर मार रहा है ,ले चा पी... मां उसे ग्लास थमा दिया।
विहान आगे क्या सोचा है ? मां ने एक घूंट भी आराम से नहीं भरने दिया होगा।
इसीलिए खींच लाई थी मुझे वहां से........विहान ने चाय का घूंट लेते हुए कहा।
मां ने आंखें तरेर देखा।
सोचना क्या है मम्मी, सब ठीक तो चल रहा है ।जो हो गया वह भी और जो नहीं हुआ है वह भी.......
कुछ बातें हमारे बस में नहीं होती और कुछ काम भी । वहां पर धैर्य रखा जाना आवश्यक है।
मेरा मतलब चंद्रिका से है .....?
हां तो उसका क्या ?
आज जा रहा है ना तु...
हां शाम तक जाऊंगा, जानवी का पता लग जाए और .....
चंद्रिका .....
उसका क्या ? बार बार बीच में उसे क्यों ला रहे हो? यहां मुझे जानवी और विक्रम......
तेरी जिंदगी में आ गई है , वो बीच में भी आएगी और मेरी एक बात याद रखना ....अपने और चंद्रिका के बीच में किसी को मत आने देना कभी भी ......मां ने एक हिदायत दी जो उनके रिश्ते के बेहतरी के लिए थी।
मैं ख्याल रखूंगा। विहान ने मां की तसल्ली के लिए कहा।
उसने भी साथ ले जा...
पर मां .... मां ने गुस्से से उसे देखा।
मेरा मतलब है ,अभी मैंने उससे पूछा नहीं। वह जाना चाहती है या नहीं .....इतनी जल्दबाजी में ..........
उसके चाहने से क्या होता है? चाहती तो यह शादी करना भी नहीं थी ,और इस तरह शादी हो ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं चाहती होगी। पर कोई ना ....कुछ बातें हो जाती है ।
विहान, कल जो हुआ.... वह नहीं होना चाहिए था। लेकिन उसे साथ लेकर जाना तुम्हारी जिम्मेदारी है। यह बिल्कुल होना चाहिए ।
पर मां यहां गांव नजदीक है ।एक गांव से दूसरे गांव 10 मिनट का रास्ता नाप कर आई है। वहां अपने परिवार से दूर अचानक ले जाना। उसका लिए ठीक नहीं है। मैं अभी जाने से पहले उसे अपने घर छोड़ आऊंगा।
तेरे पापा अब वहां न रहने देंगे।
लेकिन अब पापा को क्या प्रॉब्लम?
उनकी बेटी उनके घर नहीं है, तो उनकी क्यों रहने देंगे ?
तू क्या अपने पापा को जानता नहीं है ।
अब क्या यहां भी पापा अपनी टांग अड़ाएंगे ? विहान का दिमाग काम करना बंद कर रहा था। वह जितना आराम से मामले को सुलझाने में लगा था। इस तरह की खींचतान से उसका सुकून ही हराम होने लगा।
विहान 30 साल का हो गया है तू.... अब भी अपने पापा को ना समझ सका। उनसे माथा मारना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है।
क्या मां आप भी.... पापा के लिए कहावत तो कुछ अच्छी चुन लेती।कहां मासूम जानवरों को बीच में ले आई। विहान ने हंस कर कहा।सुबह-सुबह की बहस के बाद उसका मूड अब कुछ हल्का हो चला था ।
मां हमेशा ही कुछ पापा के बारे में इस तरह कुछ भी बोल दिया करती और फिर वह चाहकर भी खुद को हंसने से रोक नहीं पाता।
किसी दिन पापा को पता चल गया ना, आप उनके बारे में ऐसा कहती हैं। मैं बता रहा हूं ,शामत आ जाएगी आपकी? और मैं नहीं बचाने आऊंगा।
कोई फर्क ना है तेरे बाप में और जानवर में.... और तेरे आने की जरूरत नहीं,उन्हें कैसे हैंडल करना है ।मैं अच्छे से जानती हूं। तेरे पापा को उनसे भी ज्यादा जान चुकी हूं अब।मेरी चिंता ना कर......
मां के दिल के फफोले फूट रहे थे। कुछ पुराने से जख्म और दुख भरे पल याद आ गए ।
गलती आपकी भी है मां.... चुप्पी हमेशा सही नहीं होती, कभी-कभी, कहीं-कहीं बोलना भी जरूरी होता है। विहान ने कहा साधारण ही था, लेकिन मां की आंखों में पानी भर आया।
अच्छा ना... अब बस...कहिए आप,सुन रहा हूं मैं .... विहान उनके जज्बात समझ गया।
मां को इस बात का हमेशा मलाल रहता ,कि इस घर में उनकी चलती नहीं थी। कोई सुनता तक नहीं था ।जितना विहान ने उनके मन को जाना, वह कोशिश करता पापा ना सही कम से कम वह उनके मन की करें । और कुछ नहीं उन्हें सुन तो ले ।हर इंसान की इच्छा होती है कि कोई उसे भी महत्व दें। उसके शब्दों का मान रखें। मां की भी तो होगी।
ज्यादा कुछ नहीं ,मैं बस चाहती हूं कि चंद्रिका को अपने साथ ले जाओ।उसी में उसकी भलाई है।
कैसे? जानूं तो.... विहान ने आंखें मटकाते हुए पूछा।
मां ने एक बार आंखें दिखाई, फिर बोलना शुरू किया। हर एक बात समझानी पड़ेगी क्या?
ह्म्म..... कल से लग तो यही रहा है।
बाप के आगे चलती नहीं , मां को धौंस दिखा रहा है। नालायक...... मां ने सर के पीछे हल्की सी चपत लगाई।
तुम्हारे भी लिए भी ठीक रहेगा। खाना बनाने, घर संभालने और........
अब आप क्या चाहती हैं ।मैं भी उससे बस वही करवाऊं ,जो अब तक आप इस घर के लिए करते आई हैं। कल आई थी वह इस घर में.... कल से पहले उसके मन में शादी और अपने पति को लेकर ढेरों ख्वाहिशें होगी ।वह पूरा होना तो दूर यहां उसके जिंदगी को लेकर बुने गए,ख्वाबों तक की कदर नहीं।
विहान कोई जबरदस्ती नहीं करवा रहा मुझसे ......अच्छा लगता है ,इसलिए मैं घर संभालती हूं ।और ज्यादातर औरतों को अच्छा लगता है ,अपने घर परिवार की देखभाल करना..... उन्हें सुकून मिलता है। पता नहीं इस काम को लोग कम क्यों आंकते हैं ।जबकि यह सबसे मुश्किल भरा काम है ।जो हर किसी के बस की बात नहीं ,और आदमियों के तो बिल्कुल नहीं ।
ह्म्म...विहान ने घूरा।
90% .....मैं यकीन के साथ कह सकती हूं ।हां अपवाद तो हर जगह मिलते हैं ।उनका कुछ नहीं। लेकिन फिर भी वह औरतों से बेहतर नहीं हो सकते।
आपको अपने बेटे पर जरा विश्वास नहीं।छोड़ो मुझे नहीं बात करनी।
जबरदस्ती करवाने का नहीं कह रही, उसे साथ लेकर जाने का कह रही हूं ।ले जा....
मेरी प्यारी मां ,मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। जिसको जो करना चाहिए ,मतलब जो मन से करना चाहता है ।अभी थोड़ा वक्त तो दो। हम दोनों आपस में बात तो करें।
तो साथ जाकर नहीं कर सकता क्या.... वहां जाकर तू गूंगा हो जाएगा। जो तेरे गले से बात नहीं निकलेगी और खुद खाना बनाकर खाता है, कभी बाहर खाता है। क्या तब तक वो नहीं कर देगी।
रोज नहीं, अभी पृथ्वी भाई यहां नहीं है । बस इसलिए.....
खुद ही तो बनाते हो , तब चार लोगों का बनाना पड़ता है।
वह हम मर्जी से बनाकर खाते हैं, क्योंकि उस घर में जो खाना हमें मिलता है, हमारे गले से नहीं उतरता और आप क्या बड़ी-बड़ी बात कर रही हैं। दिल्ली जब आप आती है, तो रोज वह खाकर बताना .........मां ने विहान को चिढ़ाया तो विहान ने भी पलट वार किया।
धीरे बोल ....घर से निकलवाएगा क्या मुझे? इस उम्र में बेघर होती अच्छी नहीं लगूंगी ।
बेघर क्यों? आपका खुद का घर है दिल्ली में.....
सो तो है ,तेरा जो है ,वो मेरा.....
नहीं आप का ही है, यह भी ....वह भी।
पर मैं ये घर छोड़ना ना चाहूं , तेरे बाप का पता है ना तनै.......तू रैवेगी या मैं... धमकी देता टेम कोनी लगावै।
अब तो मान ले मेरी बात ........
क्या पता उसे खाना बनाना आता भी है, या नहीं ।मैं तो कहता हूं कुछ दिन रखो ,सिखाओ उसे अच्छे से ...... विहान मजाक पर उतारू हो गया था।
गांव की छोरी है, मां बाप सीखा ही देते हैं। इस काम में भी तो आत्मनिर्भर होना जरूरी है, और किसी के लिए हो ना हो अपने लिए तो मनपसंद बनाकर खा सके। इतना तो आना ही चाहिए।
हां यह भी अपने मन की बात है ,कोई चाहता है कोई नहीं।
हां जो मजबूर होती है, उनका मैं कुछ कह नहीं सकती ।
विहान ने उन्हें देखा। एक हद तक मजबूरी भी होती है, कि उनके पास कोई विकल्प नहीं ।लेकिन अब ऐसा नहीं है, वह जो करना चाहती है ,वही कर लेगी ।
यहां गांव में रहकर..... तेरे पापा क्या करने देंगे ?उसके लिए वहां से सुरक्षित और अच्छी जगह अब और कोई नहीं हो सकती। तेरे खाने के लिए सुविधा रहेंगी तो वह भी कुछ ना कहेंगे। तू ले जा उसे अपने साथ ....
पूछना पड़ेगा मां... उसकी मर्जी हुई ,तो ही लेकर जाऊंगा और अगर अपने भाई के घर रहना चाहती है ।तो मुझे कोई आपत्ति नहीं और पापा की फिक्र नहीं करिए। बीवी है मेरी.... मैं जो चाहे फैसला लूं ।इसमें पापा काट मार की धमकी नहीं दे सकते। ऐसे तो वह ब्लैकमेल करके हर बुरा और गलत काम मुझसे करवाते रहेंगे ।
इसीलिए कल तुझे कहा था ,वापस चला जा.... तूने मेरी बात नहीं मानी ।
कल नहीं आता ,तो कत्ले आम हो जाता। बात दो गांव की आन बान शान की हो गई थी ।इन लोगों के नाक का सवाल था ।अब यह घर की बात है ,खास तौर पर पति-पत्नी का मामला .....मेरे और चंद्रिका के बीच का मामला ....और अब फैसला हम दोनों मिलाकर लेंगे ।वह चाहे जाए ,या रहे। यह उसकी मर्जी होगी और इस बार में पापा से बात खुद करूंगा और उन्हें मेरी बात माननी होगी ......
मैं यह नहीं चाहती थी कि मार काट हो ।मैं यह चाहती थी कि कहीं तुम दबाव में आकर ऐसा कोई कदम ना उठा लो कि बाद में तुम्हें या उस लड़की को पछताना पड़े। अब जब शादी कर ली है तो इस रिश्ते की गांठ मजबूत ही रखना ।इसमें उसकी कोई गलती नहीं है बेटा ....हाथ थामा है तो आखिर तक निभाना। तुम्हारी जिम्मेदारी है वह और तुम उसकी ।एक दूसरे के पूरक होते हैं पति-पत्नी ,एक दूसरे की गलतियां छुपाने ,उनको सुधारने और थोड़ा बहुत बदलाव लाने के लिए एक दूसरे की जिंदगी में आते हैं। सहज रिश्ते बनते हैं ,परिवार आगे बढ़ते हैं, इसी से यह समाज चलता है ।
मनमुटाव ,दरार यह सब नहीं देखना चाहती मैं,इसे कभी मजबूरी की तरह मत देखना। यह रिश्ता तुम्हारी मर्जी से जुड़ा है ।यही सोचकर निभाओगे ,तो उम्र भर साथ चल पाओगे। इसके लिए तुम चंद्रिका को कभी बोझ की तरह मत लेना ।
मैं समझ गया मेरी मां ,लेकिन एक बात बताइए मुझे यह सब हिदायत मेरे लिए ही है या, अपनी बहू को भी कुछ समझाएंगी ? विहान ने चाय का ग्लास बेच पर रख कर, मां के दोनों गाल पिचकाते हुए कहा ।
चंद्रिका सीढीयो पर खड़ी , यह सीन अपनी आंखों के सामने देख कर मुस्कुरा दी ।
आओ जरा अपनी सास से ज्ञान ले लो, बांट रही हैं अभी। विहान कहता सीढ़ियां चढ़ गया। उसे नहाने के लिए देर हो रही थी।
मैं साथ चलने के लिए तैयार हूं। विहान ने चंद्रिका से उसकी मर्जी पूछी ,तो चंद्रिका ने यही उत्तर दिया।
ओह तो, मां ने तुम्हारा अच्छे से ब्रेनवाश कर दिया है!
नहीं, ऐसा नहीं है ।
तो फिर क्या कहा उन्होंने ? बहुत देर से सास बहू की बातचीत जारी थी। विहान ने चाय की घूंट भरते हुए कहा। चंद्रिका जब ऊपर आई, तो मां ने चाय साथ भिजवाई थी ।क्योंकि विहान को नहाने के बाद एक और चाय पीने की आदत थी।
कुछ नहीं, पहले तो हमें पग फेरे की रस्म के लिए मेरे मायके जाना है। मतलब अगर आप जानना चाहते हैं ,तो चल पड़िए । नहीं ,कोई बात नहीं .....वैसे भी हमारी सब रस्में कहां हुई है? सीधे शादी हो गई ........
शादी के पहले के रस्मों का तो पता नहीं ,लेकिन शादी के बाद की हर रस्म होगी। मैं चल रहा हूं तुम्हारे साथ.... और क्या कहा मां ने ......
बस फिर साथ जाने के लिए पैकिंग करने को बोला है।
देखो चंद्रिका, तुम उनकी बातों में मत आओ। तुम्हारा क्या मन है, वह बताओ मुझे ........
आप अगर लेकर नहीं जाना चाहते ,तो कोई बात नहीं..... मैं मां से कह दूंगी ।
नहीं ,ऐसा बिल्कुल नहीं है ।मैं बस तुम्हारे लिए कह रहा हूं । मां से बात मैं खुद कर लूंगा।
मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है ,यहां रहने में भी और साथ जाने में भी....... पापा अगर भाई के घर नहीं रहने देंगे, तो मैं यहां भी रह लूंगी।
तुम अभी पापा को जानती नहीं हो ?विहान ने समझाते हुए कहा ।वह शायद चौधरी साहब को बहुत हल्के में ले रही थी।
आप पापा से इतना चिढ़ते क्यों है?
मैं नहीं चिढ़ता ,मैं बस उनके नेचर के बारे में तुम्हें बता रहा हूं। उनके विचार तुम बर्दाश्त नहीं कर पाओगी ?
और ये तुम क्या पूछ रही हो... तुम्हारा पूरा गांव उनसे चिढ़ता है।
हां तो मेरे गांव के साथ उनकी दुश्मनी है ।आप उनके दुश्मन थोड़ी ना हो ....ना वह आपके ....
पापा को अपने फैसले से, अपनी जिद से ,अपनी इज्जत से इतना प्यार है। कि अगर कोई उनकी तरफ उंगली करेगा, तो वह हर कोई उनका दुश्मन हो जाएगा। इसलिए तो जानवी भाग गई। वह जानती थी अच्छे से। उनकी रग रग से वाकिफ थी।
मैं जानवी नहीं हूं, भागूंगी नहीं ।वैसे भी उसका मसला अलग था। सोच समझ कर फैसला किया होगा। मुझे भागने की जरूरत नहीं है ।ना मैं समस्याओं से भागना पसंद करती हूं, और ना ही मुझे बेचारी कहलाना पसंद है ।मुझे किसी चीज से डर नहीं लगता ।आप भले ही मुझे यहां छोड़ जाइए ।मैं रह लूंगी और इसे आप मेरी मर्जी समझ लीजिए ।
मुझे लग रहा है ,तुम बहुत भोली हो।
बहम है आपका...... चंद्रिका टस से मस नहीं हुई ।वह इरादों की पक्की थी।
आपने क्या सोचा है? वह बता दीजिए ।
सोचना क्या है, चलना चाहती हो तो चलो..... मैं बस तुम्हें फोर्स नहीं करना चाहता ।शादी का डिसीजन मेरा नहीं था। उसमें मैं कुछ नहीं कर सकता, अब आगे की जिंदगी तुम अपने हिसाब से जियो ।मुझे फर्क नहीं पड़ता। हां ..बस इतना याद रखना कि अब हम एक दूसरे से कनेक्ट हो चुके हैं ।इससे ज्यादा और कुछ नहीं ,तुम जो करना चाहो, वह करो ।
चंद्रिका ने विहान को देखा ।वह अपने कपड़े बैग में भर रहा था। और बहुत ही साधारण से लहजे में उसने यह बात की। जैसे बात को रफा दफा कर रहा हो ।क्या वह सीरियस था?
तुम तैयार हो जाओ, चलते हैं। विहान ने बैग की जीप बंद करते हुए चंद्रिका से कहा ,और नीचे चला गया उसे चाय की आदत बहुत थी। नहाने के बाद दोबारा तालाब हो रही थी। चंद्रिका ने खुद को ठीक किया ,और अपने कपड़े समेट कर तह करके रख दिए ।
उसे अपने घर से भी सामान लेना था। अगर दिल्ली जा रही है, तो सामान भी उसी हिसाब से लेना होगा। रात तो बस दो-चार जोड़ी कपड़े भर लाई थी। नीरजा ने कहा था, कि कल पग फेरे की रस्म के लिए आएगी ।तब वह तैयार रखेगी। पग फेरे की रस्म भी होगी ,उसे तो इस बात पर भी विश्वास नहीं था ।वैसे भी कौन से यहां सब रीति रिवाज निभाए गए थे।
क्या कहा आपने उससे..? अपनी बात से बिल्कुल नहीं पलटी। बाद पक्का करके भेजा उसे आपने....!
मैंने उसे कुछ नहीं कहा, बस यहां रहने का नफा नुकसान बताया है। बाकी वह खुद समझदार है, और तुम भी।
डरा रही हैं?
डरा नहीं रही हूं, ये सच है। मेरा कहने का फ़र्ज़ है।और तुम ध्यान से मेरी बात सुनो ,शादी के लिए इसलिए मना कर रही थी। कि तुम शादी करके उसे कहीं यही ना छोड़ जाओ। शादी तुमने की है ,तो उसे निभाना भी तुम्हें होगा ।उसे अपने साथ रखना होगा। अब यह मां की जोर जबरदस्ती समझ लो।
जबरदस्ती नहीं समझ रहा हूं ।मुझे लगा कि वह मेरे साथ जाने में कंफर्टेबल नहीं होगी ।
हां बिल्कुल ...बाकी सब लड़कियां तो मर्जी से ससुराल आती है। मैं तो नाचते गाते आई थी ।
फिर भी शादी के तरीके में तो अंतर था। आप यहां वह नहीं देख रही हैं ?
सामने वाला इंसान अच्छा होना चाहिए, जिससे शादी हो रही है। तरीका तो बहुत होते हैं ,शादी के ......चाहे जैसे हो। यह जोग संजोग की बात है । और मेरा बेटा इंसान अच्छा है ।यह बात मैं जानती हूं,बाकी कुछ खास नहीं।
तो क्या पापा अच्छे इंसान नहीं है? इनडायरेक्ट आप यह कहना चाहती हैं...... विहान ने अपनी मां को बातों में फसाया।
तो यह अर्थ निकाला तुमने मेरी बात का? हर बार तुम मुझे बहकावे में लाकर अपने साथ लेकर जाना चाहते हो ......मैं नहीं मानूंगी ,तुम जिद करना छोड़ क्यों नहीं देते?
कैसे छोड़ दूं ,खून में जो है। आपको मेनू प्लेट करने का कोई फायदा नहीं । बहुत मंझी हुई खिलाड़ी हैं।
खैर.......... विहान ने एक लंबी सांस छोड़ी। मां चलिए चाय बनाइए ,चाय पीते हैं ।फिर मुझे चंद्रिका को उसके घर छोड़ना है। और किसी काम से बाहर भी जाना है ,आते वक्त उसे ले आऊंगा ,खाना तैयार रखना खाकर निकलेंगे ।
खाना आज ससुराल में खाना । चाय मैं अभी बना रही हूं।बहुत चाय पीने लगा है आजकल..... खुद को किताबों में कम उलझाया कर, किताबी कीड़ा बनने में कोई फायदा नहीं। व्यवहारिक ज्ञान जिंदगी की हकीकत की जमीन पर उतर कर पाते हैं।
ठीक है, ध्यान रखूंगा। वैसे घर में ही ऐसे लोगों से पाला पड़ा है। कि पैदा होने के साथ ही दोनों हाथों से दिन रात ज्ञान बटोरता जा रहा हूं , लेकिन खत्म ही नहीं हो रहा ।विहान का इशारा कहीं और था ।
मां ने तेज नजरों से देखा ।
आपको नहीं कह रहा, कि आपके लिए नहीं था ये।मैं किसी और की बात कर रहा हूं।
जानती हूं, जिसकी भी बात कर रहा है। ज्यादा मत सोचा कर..... जल्दी बुड्ढा हो जाएगा।
आप भी मत सोचा करिए ,सब अच्छा चल रहा है। फालतू के झंझटों में कभी मत पड़ना ।
अब तो उम्र निकल ली। पर ठीक है ,मैं भी ध्यान रखूंगी।
यह ले चाय ..... और खाने के लिए नखरे मत दिखाना, वह कहेंगे...चुपचाप खा लेना।
मां आप .......
मां क्या....? रिवाज होती है।
हां बिल्कुल, जैसे मेरी शादी की बाकी सब रिवाजें बड़ी तसल्ली और शौक से निभाई गई थी ।विहान ने मुंह सिकोड़ा। चंद्रिका के क्या ?यहां तो बेचारे विहान के अरमान भी अधूरे रह गए थे। बारी-बारी दोनों ही याद कर रहे थे, और मन में महसूस कर रह जाते।
पापा कहां है ?
बाहर बैठे, हुक्का गुड़का रहे हैं ।
ओह.....ठीक है,
आप मां को इतना हल्के में क्यों लेते हैं? हरदम उनके साथ मजाक के मूड में ,जबकि वह कितना गंभीर होकर बातचीत कर रही थी ....और आप भी इतने मजाकिया मुझे लगे नहीं। चंद्रिका ने गाड़ी में बैठते ही अपने शंका जाहिर की। उसे लगा उसे विहान से नहीं पूछना चाहिए ,लेकिन उससे रहा नहीं गया। वह बस अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहती थी।
चंद्रिका जी ,अभी आप इस परिवार को जानी नहीं है। नब्ज पकड़ने में वक्त लगेगा। कोई ना ,मैं बता देता हूं ।मां, पापा की वजह से हरदम टेंशन में रहती है ।उन्हें लगता है ,जिंदगी कितनी ही भारी है ?मैं बस उनको एहसास दिलाना चाहता हूं ।कि जिंदगी में इतनी भी मुश्किलें और परेशानियां नहीं है । जितनी उन्हें लग रही है , या पापा की ओर से जानबूझकर क्रिएट की गई है।सब कुछ सामान्य ही चल रहा है ।तुम भी मां के साथ ज्यादा गहराई में मत उतरना ।कहीं वह डिप्रेशन में ही ना चली जाए ।
नहीं, मैं इतना नहीं सोचती। लेकिन मां की बात सही है ,मुझे लगता है, वह सही कहती हैं ।
लगता है नहीं, वह सही ही कहती है । उन्होंने एक लंबी उम्र जी है।पापा के साथ अपनी आधी से ज्यादा जिंदगी बिताई है, इंसानों की परख उन्हें बहुत अच्छे से हैं,और मैं उनकी बातें मान भी लेता हूं। बस मैं उनको परेशान नहीं देख सकता। इसलिए उनका मूड कूल करने के लिए थोड़ा लाइट बिहेव करता हूं। ताकि वह थोड़ा फ्री फिल करें। तुम भी जल्दी समझ जाओगी । धीरे-धीरे तुम्हें हैंडल करना आ जाएगा। जबकि चंद्रिका को लगता था ,कि वह हर सिचुएशन आराम से हैंडल कर सकती हैं। उसे नया कुछ सीखने की जरूरत नहीं ।
बातें करते-करते वह घर पहुंचे। जहां विशाल और नीरजा उनका पहले से ही इंतजार कर रहे थे ।चंद्रिका ने निर्वि को गोद में उठाया । विहान ने अपने हाथ आगे बढ़ाए तो निर्वि लपक कर उसकी गोद में आ गई ।
विशाल से बात करते हुए कल रात उनकी अच्छी जान पहचान हो गई थी ।शायद यही वजह थी, कि निर्वि को विहान की गोदी पसंद आई, और अब जब उसे वह मिल रही थी। तो उसने वहां जाने में जरा भी देर नहीं लगाई।