वो एक नादान सा लड़का, मासूमियत से भरा, नयन, जिसकी हर बात में था बचपन छिपा। और सामने चंद्र, एक सुलझा हुआ इंसान, जिसकी नजरों में था परिपक्वता का जहान। शुरुआत हुई तकरार से, जैसे आग और पानी, दफ्तर की हर मु... वो एक नादान सा लड़का, मासूमियत से भरा, नयन, जिसकी हर बात में था बचपन छिपा। और सामने चंद्र, एक सुलझा हुआ इंसान, जिसकी नजरों में था परिपक्वता का जहान। शुरुआत हुई तकरार से, जैसे आग और पानी, दफ्तर की हर मुलाकात में बस बढ़ी कहानी। पर न जाने कब तकरार ने प्यार की राह पकड़ी, और दिलों की दूरियां धीरे-धीरे सिमटने लगीं। क्या मासूम नयन समझ पाएगा अपने दिल की बात? क्या चंद्र की समझदारी इस रिश्ते को देगी नया साथ? देखिए एक प्यारी सी कहानी, जहां है तकरार और इकरार, "My Stupid Baby" - एक दिल छू लेने वाला प्यार।
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अजमेर स्टेशन पर रात साढ़े आठ बजे योगा एक्सप्रेस आ चुकी थी।
"हाँ मम्मा, मैं पहुँच गया स्टेशन! अरे आप तो मेरी ऐसी चिंता करती हो जैसे मैं आपका बेटा नहीं, बेटी हूँ। हाँ हाँ, मैं समझ गया, ओके... हाँ, पहुँचते ही फोन कर दूँगा।"
ये थे नयन शेखावत, दिखने में क्यूट, शरारती और नादान। उम्र 23 साल थी, लेकिन दिखने में अभी भी 18 साल के लगते थे।
नयन ने फोन जेब में रखा और ट्रेन में चढ़ गया।
"डब्बा न. S4," ये कहते हुए वह आगे बढ़ रहा था।
जब वह S4 में आया, तो उसने देखा कि कुछ लोग सो रहे थे, तो कुछ बैठे हुए थे। वह अपनी सीट ढूँढने लगा। उसे सीट मिल गई, लेकिन उसकी सीट पर पहले से ही कोई बैठा हुआ था।
"ऐ मिस्टर!" नयन ने उस शख्स के सामने चुटकी बजाते हुए कहा, जो अपने लैपटॉप में नज़रें गड़ाये बैठा था।
उसने अपना सिर उठाकर नयन को देखा।
ये शख्स थे चन्द्र सिंह राठौड़, उम्र 28 साल, दिखने में काफी हैंडसम और समझदार। हमेशा समझदारी से काम लेते थे, लेकिन जब बात हक़ की होती थी, तो किसी को पलटकर जवाब देने से भी पीछे नहीं हटते थे।
चन्द्र ने नयन को देखा और कहा, "कहिये!"
"कहिये नहीं, आप उठिये यहाँ से, ये सीट मेरी है।" नयन ने बड़े हक़ से कहा।
"शायद तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है, ये मेरी सीट है।" चन्द्र ने भी अपनी बात कही।
"अच्छा! खिड़की वाली सीट देखी नहीं कि बैठ गए उस पर और बड़े हक़ से उसे अपनी बता रहे हो। ये सीट मेरी है, उठो यहाँ से।" नयन ने उसे उंगली से उठने का इशारा करते हुए कहा।
तभी चन्द्र ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और नयन को दिखाते हुए बोला, "देखो मेरी टिकट, ये सीट मेरी ही है।"
"अच्छा! टिकट तो मेरे पास भी है, अभी दिखाता हूँ।" ये कहते हुए नयन ने भी अपना मोबाइल निकालकर उसके सामने कर दिया।
जिसे देखकर चन्द्र हल्का सा मुस्कुराया और नयन की तरफ़ देखकर बोला, "तुम अपनी आँखों को चेक कराओ, 13 और 18 में फर्क नज़र नहीं आता तुम्हें!"
ये सुनकर नयन ने मोबाइल देखा और अपनी गलती जानकर उसने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं, फिर धीरे से खोलते हुए चन्द्र की ओर देखा।
"ये सीट न. 13 है बच्चे, जोकि मेरी है और तुम्हारी 18 न. सामने किनारे वाली जो सीट है ना, वो है।" चन्द्र ने अपनी आँखों से ही उसकी सीट की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।
"क्या हुआ भाई?" चन्द्र का छोटा भाई राज, जो ऊपर वाली सीट पर सो रहा था, उसने नीचे झाँकते हुए कहा।
ये था राज सिंह राठौड़, उम्र 20 साल। ये भी दिखने में क्यूट और चंचल स्वभाव के थे, और ये थोड़े शैतान भी थे।
"कुछ नहीं, तू सो जा, इन्हें बस थोड़ी सी गलतफहमी हो गई थी, जो अब दूर हो गई है।" चन्द्र ने नयन को देखते हुए कहा, जो अभी भी वहाँ खड़ा चन्द्र को घूर रहा था। फिर इसी तरह घूरते हुए अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। वहीं राज भी उबासी लेते हुए फिर से सो गया।
नयन अपनी सीट पर बैठ तो गया था, लेकिन उसे वहाँ बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। उसे खिड़की वाली सीट चाहिए थी, लेकिन बदकिस्मती से उसे ये किनारे वाली सीट मिली थी। उसने अपने पास वाली सीट की ओर देखा, जहाँ एक औरत अपने बच्चे के साथ सोई हुई थी। वैसे रात का समय था, उस हिसाब से तो नयन को भी सबसे ऊपर वाली सीट पर जाकर सो जाना चाहिए था, क्योंकि स्लीपर के हिसाब से वो सीट उसकी थी, लेकिन वो सोना नहीं चाहता था। क्योंकि वो जानता था कि अगर वो एक बार सो गया, तो उठ नहीं पाएगा। घर पर तो जब उसकी मम्मा चिल्ला-चिल्लाकर उसे उठाती थी, तब जाकर उसका सवेरा होता था।
नयन ने देखा कि चन्द्र ने अपना लैपटॉप उठाकर ऊपर बैग में रख दिया और वापस अपनी सीट पर खिड़की की ओर मुँह करके बैठ गया। नयन ने भी अपने बैग को ऊपर रख दिया और वापस आकर अपनी सीट पर बैठ गया। वो चन्द्र को देख रहा था, जो अभी भी खिड़की की ओर मुँह किये बैठा था।
"ना जाने इस अंधेरे में कौन सा नज़ारा देख रहा है?" नयन ने अपने मन में ये सोचा और चन्द्र को देखकर मुँह सिकोड़ लिया।
तभी चन्द्र उठकर चल दिया, शायद वो बाथरूम जा रहा था। उसके जाने के बाद नयन ने उसकी खाली सीट की ओर देखा और उछलकर उसकी सीट पर बैठ गया। नयन खिड़की की ओर मुँह करके वहाँ से आती ठंडी हवा को अपने चेहरे पर महसूस करने लगा।
"ले लिया ठंडी हवा का आनंद।"
ये आवाज़ सुनकर जब नयन ने उस ओर देखा, तो पाया कि चन्द्र उसके सामने खड़ा उसे ठंडी निगाहों से घूर रहा था।
"चलो उठो यहाँ से।" चन्द्र ने उसे उठने का इशारा करते हुए कहा।
"मुझे यहीं बैठने दो ना, मेरी सीट पर जाकर बैठ जाओ, मुझे वहाँ अच्छा नहीं लग रहा।" नयन ने मासूम सी शक्ल बनाकर कहा।
"ओह्ह! मुझे तो जैसे वहाँ बैठकर परम आनंद की प्राप्ति होगी, है ना! देखो, मैं इस ट्रेन में कोई फ्री में सफ़र नहीं कर रहा, मैंने भी इस सीट के लिए पैसे दिए हैं, अब अगर तुम्हें वो सीट मिली है तो इसमें मैं क्या करूँ, उठो यहाँ से।" इस बार चन्द्र ने थोड़ा तल्खी से पेश आते हुए कहा।
"नहीं उठता मैं, कर लो जो करना है।" नयन ने भी अकड़ते हुए कहा।
"बड़े ढीठ हो।"
"हाँ, हूँ तो।"
"तो तुम ऐसे नहीं उठोगे।"
"नहीं।" नयन ये कहते हुए मुँह फेरकर बैठ गया।
"ठीक है।" ये कहते हुए चन्द्र ने एकदम से नयन को अपनी गोद में उठा लिया।
"अर्रे! ये ये क्या कर रहे हो...!!!" नयन ये कहते हुए अपने पैर हिलाने लगा, लेकिन चन्द्र ने उस पर कोई ध्यान ना देते हुए उसे उसकी सीट पर बिठा दिया और खुद अपनी सीट पर जाकर आराम से बैठ गया। नयन तो जैसे सदमे में ही चला गया था।
"ना जाने किस टाइप का इंसान है ये, ऐसे कैसे मुझे गोद में उठा लिया।" नयन ने ये सोचते हुए थूक निगल लिया। चन्द्र के लिए उसके मन में अलग ही इमेज बन चुकी थी।
चन्द्र ने जब उसकी ओर देखा, तो नयन ने घबराकर दूसरी ओर मुँह फेर लिया। चन्द्र ये देखकर हल्का सा मुस्कुरा दिया और खिड़की की ओर मुँह करके आँखें बंद कर लीं।
थोड़ी देर तो नयन बैठा रहा, लेकिन अब वो बोर हो रहा था। उसने अपना मोबाइल निकाला, तो देखा कि उसकी बैटरी भी ख़त्म होने वाली थी।
"ओह शिट, ये भी मरने वाला है।" ये कहते हुए उसने फिर से मोबाइल अपनी पॉकेट में डाल लिया। फिर उसने ऊपर अपने बैग की ओर देखा।
"ऐसा करता हूँ, लैपटॉप में ही कोई मूवी देख लेता हूँ, रात तो निकल ही जाएगी।" ये सोचकर वो अपने बैग से लैपटॉप निकालने के लिए उठा। जैसे ही उसने अपने बैग की चैन खोली, उसकी नज़र वहीं पास में सो रहे चन्द्र पर पड़ी, जो अभी भी वैसे ही खिड़की की ओर मुँह करके सोया हुआ था।
"चाहे बैठे-बैठे ही सोना पड़े, लेकिन खिड़की से दूर नहीं हटेगा, कैसा चिपका हुआ है खिड़की से चमगादड़।" नयन ने ये सोचते हुए अजीब सी शक्ल बना ली।
तभी अचानक से ट्रेन रुक गई, शायद किसी ने चेन खींची थी। इस तरह अचानक ट्रेन के रुकने से नयन संभल नहीं पाया और सीधा चन्द्र के ऊपर जा गिरा। उसके होंठ चन्द्र के गाल पर जाकर टिक गए और हाथ कंधों पर। अचानक से चन्द्र ने चिल्लाते हुए अपनी आँखें खोलीं। इससे पहले कि वो अपना मुँह सीधा करता, नयन जल्दी से हड़बड़ाते हुए उसके ऊपर से उठ गया। चन्द्र ने हैरान नज़रों से उसकी ओर देखा।
"स्स्स... सॉरी... मैं तो ब... ब... बस अपना लैपटॉप लेने आया था... ये ट्रेन ही अचानक से रुक गई... मैंने जानबूझकर नहीं किया..." नयन हड़बड़ाते हुए अपनी सफाई पेश कर रहा था, तो चन्द्र बस उसे हैरानी से एकटक देख रहा था, क्योंकि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो आखिर बोले तो क्या बोले?
जब नयन ने उसे इस तरह खुद को देखता हुआ पाया, तो हड़बड़ाते हुए जल्दी से अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। चन्द्र अब भी उसे देख रहा था। नयन उसकी ये नज़रें सहन नहीं कर पा रहा था, इसलिए वो जल्दी से उठा और सबसे ऊपर वाली सीट पर जाकर करवट लेकर दूसरी ओर मुँह करके लेट गया।
चन्द्र उसकी ये सब हरकतें देखकर अपने मन में सोचने लगा, "क्या अनाड़ी लड़का है, ऐसा भी क्या हो गया जो इतना रिएक्ट कर रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये मुझे कुछ और ही समझ रहा हो।" ये सोचते हुए उसने अपने घुटने पर कोहनी टिकाते हुए अपना हाथ माथे पर रख लिया और ना में सिर हिलाते हुए सोचा, "ओह गॉड! ये आजकल के बच्चे भी ना जाने क्या-क्या सोचते हैं।"
रात गहराती जा रही थी और ट्रेन अपनी रफ़्तार से दौड़ रही थी। कितने स्टेशन आए और गए।
सुबह साढ़े चार बजे ट्रेन दिल्ली स्टेशन पर रुकी। चन्द्र ने अपने भाई को उठाया और फिर वो दोनों अपना बैग उठाकर चलने लगे। चन्द्र ने एक नज़र नयन को देखा, जो अब भी सोया हुआ था।
चन्द्र के छोटे भाई राज ने जब उसे देखा, तो कहने लगा, "भाई! ये स्टेशन तो लास्ट है ना, तो फिर ये भाई साहब और आगे कहाँ जाएँगे?" उसने नयन की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।
चन्द्र ने ये सुनकर नयन को आवाज़ लगाते हुए थोड़ा तेज आवाज़ में कहा, "अरे सुनो! ये लास्ट स्टेशन है।" चन्द्र ने अपने बैग से नयन के पैर को हिलाते हुए कहा, क्योंकि उसे हाथ लगाकर वो उसके मन में अब और गलतफहमी पैदा नहीं करना चाहता था। उसके इस तरह उठाने का कोई असर नहीं हुआ नयन पर, उसके कान पर जूँ तक नहीं रेंगी।
"लगता है तेरी तरह कुंभकर्ण है।" चन्द्र ने राज से कहा।
राज हँसते हुए बोला, "अच्छा तो अब आप देखना कि ये कुंभकर्ण इस कुंभकर्ण को कैसे उठाता है।" ये कहते हुए राज ने अपना बैग चन्द्र को थमाया और नीचे वाली सीट पर पैर रखते हुए नयन की सीट तक पहुँच गया। नयन करवट लेकर गहरी नींद में सोया हुआ था। राज एकदम से उसके कान के पास आकर जोर से चिल्ला दिया। चन्द्र ने भी अपने कानों पर हाथ रख लिए और नयन तो "मम्मा मम्मा" चिल्लाते हुए एकदम से उठकर बैठ गया।
नयन के इस तरह "मम्मा" कहकर चिल्लाने पर राज और चन्द्र को हँसी आ गई। चन्द्र ने तो हँसते हुए फिर भी मुँह फेर लिया, लेकिन राज तो नयन के सामने ही हँसते हुए बोला, "और अब कहाँ तक जाओगे ब्रो, ये लास्ट स्टेशन है दिल्ली।"
"क्या? दिल्ली आ गया!" ये कहते हुए नयन जल्दी से उतरा और अपना बैग लेकर वहाँ से जाने लगा, तो सामने चन्द्र पर नज़र पड़ी। उसे देखकर वो अचानक से रुक गया। रात के सीन उसके दिमाग में चलने लगे। उस बारे में सोचते हुए वो घबराकर जल्दी से उसके साइड में से निकलकर भाग गया। उसे इस तरह भागते देख चन्द्र गहरी साँस लेते हुए ना में गर्दन हिलाने लगा।
"व्हाट अ स्ट्रेंज पर्सन? एक थैंक यू तक बोलकर नहीं गया।" राज ने उसे देखते हुए चन्द्र से कहा, "भाई! ये तो ऐसे भागा जैसे हम खा जाएँगे इसे।" राज ने जब चन्द्र से ये कहा, तो चन्द्र की आँखें एकदम से बड़ी हो गईं और उसने दूसरी ओर मुँह कर लिया और मन ही मन सोचने लगा, "अब इसे क्या पता कि वो सचमुच यही सोचकर तो भागा है।"
"चल अब हम भी चलते हैं।" चन्द्र ने राज से कहा।
"हाँ चलो भाई।" ये कहते हुए राज ने अपना बैग वापस लिया और वो दोनों भी ट्रेन से उतर गए।
जारी है......
लोटस सोसायटी (काल्पनिक नाम)
मकान नम्बर 99 में एक लड़की किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी।
"वाओ! हमें इतना बड़ा प्रोजेक्ट मिला है!" वह खुशी से चहकते हुए बोली।
यह गीता चौहान थीं, जो एक फैशन डिज़ाइनर थीं। थोड़ी ओपन माइंडेड और चंचल स्वभाव की थीं। इनकी उम्र 28 साल थी और ये एक मॉडल की तरह खूबसूरत थीं।
तभी दरवाज़े की घंटी बजी।
"अच्छा मिनी, मैं तुझसे बाद में बात करती हूँ।" यह कहते हुए गीता ने फ़ोन रखा और दरवाज़ा खोलने चली गई। जब उसने दरवाज़ा खोला, तो सामने खड़े इंसान को देखकर थोड़ा कंफ़्यूज़ हो गई।
"हाय मौसी!" सामने खड़ा नयन मुस्कुराते हुए बोला और अंदर आ गया।
"तू तो कल आने वाला था न, फिर आज कैसे आ गया?" गीता नयन के पीछे से आते हुए बोली।
"कल से तो मुझे जॉइन करना है, फिर कल क्यों आऊँगा? लगता है मौसी, आपने मम्मा की बात ध्यान से सुनी नहीं।" यह कहते हुए नयन ने पलटकर गीता की ओर देखा।
"पहले तो तू मुझे मौसी बोलना बंद कर, मुझे बहुत अजीब लगता है, केवल पाँच साल ही तो बड़ी हूँ मैं तुझसे।" गीता चिढ़ गई।
नयन हँस दिया और बोला, "तो क्या बोलूँ? मैंने तो नहीं कहा था आपसे कि आप मम्मा से इतने साल बाद पैदा हों।"
गीता ने उसके कंधे पर मारते हुए कहा, "तेरी मम्मा मेरे बड़े पापा की बेटी हैं, इसलिए मेरे और उनके बीच इतनी उम्र का इतना फ़ासला हो सकता है। गलती तेरी है, तू जल्दी पैदा हो गया।"
"इसमें मेरी क्या गलती? मैंने थोड़े ही बोला था भगवान से कि मुझे इतनी जल्दी दुनिया में भेज दो।" नयन ने भोलेपन से कहा।
"बिल्कुल नादान है तू।" गीता उसके भोलेपन को देखकर बोली और मुस्कुराकर नयन के सिर पर चपत लगा दी।
नयन घर में नज़रें घुमाते हुए गीता से बोला, "मामा कहीं दिखाई नहीं दे रहे?"
"मैं यहाँ हूँ भांजे।"
यह आवाज़ सुनकर नयन और गीता ने दरवाज़े की ओर देखा जहाँ खड़ा एक लड़का नयन को घूर रहा था।
यह विक्रम चौहान था, लेकिन इन्हें सब विकी बुलाते थे। उम्र 23 साल, दिखने में तो अच्छे थे, लेकिन इनका नेचर समझ नहीं आता था। कभी तो आक्रामक हो जाते थे और कभी चंचल। अपनी बहन से तो ना जाने कौन-सी दुश्मनी निभाते थे ये? यह तो आज तक किसी को समझ नहीं आया।
विक्रम अंदर आया और नयन को देखकर गीता से बोला, "तू तो फिर भी पाँच साल बड़ी है इससे, तब तुझे इतना अजीब लगता है, जरा मेरी सोच, मेरा क्या हाल होगा जब यह मुझे मामा कहता है, जबकि मैं तो इसी की उम्र का हूँ।"
यह सुनकर नयन और गीता दोनों ही हँस दिए।
उन्हें हँसता देख विक्रम चिड़चिड़ाते हुए बोला, "ऐ..अब तुम दोनों दांत दिखाना बंद करो।"
"तू तो काम पर गया था न, फिर वापस क्यों आ गया?" गीता ने विक्रम से सवाल किया।
विक्रम ने एक नज़र गीता को देखा, फिर बोला, "आज जोगी अंकल को एक ज़रूरी काम आ गया था, इसलिए वह रेस्टोरेंट बंद करके चले गए।"
"चलो अच्छा हुआ मामा, आज आप फ्री हो। आज सारा दिन हम मस्ती करेंगे, हैं न मामा!" यह कहते हुए नयन ने उसके कंधे पर से गले में हाथ डाल लिया, जिससे विक्रम फिर चिढ़ उठा उसके मुँह से अपने लिए "मामा" सुनकर। गीता मुँह फेरकर हँस दी।
इधर चन्द्र और राज एक अपार्टमेंट में आ गए थे। राज ने चन्द्र से पूछा, "भाई, आपकी कार कहाँ गई? बाहर तो नहीं थी, बेच दी क्या?"
चन्द्र मना करते हुए बोला, "नहीं, सर्विस के लिए गई है।"
"ओह!" यह कहते हुए राज काउच पर पसर गया।
चन्द्र उसे देखकर बोला, "सोना नहीं है, कल हमें यह अपार्टमेंट छोड़ना पड़ेगा, इसलिए सामान निकालने में मेरी हेल्प कर।"
राज को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। "क्यों भाई? कितना अच्छा अपार्टमेंट तो है, फिर इसे छोड़ने की क्या ज़रूरत?"
चन्द्र गंभीर स्वर में बोला, "ज़रूरत है तभी कह रहा हूँ, और अब तू ज़्यादा सवाल ना कर और मेरी हेल्प कर, वरना खाना नहीं दूँगा तुझे।" यह धमकी देकर वह कमरे की तरफ़ चला गया।
राज भी बेमन से उठा और उसके पीछे-पीछे चल दिया।
अगले दिन सुबह नयन नीले रंग की शर्ट और काले रंग की पैंट पहनकर अच्छे से तैयार हुआ था, और हो भी क्यों ना, आज उसका जॉब पर पहला दिन था। उसने अपने कंधे पर बैग टाँगा और मुस्कुराते हुए चल दिया।
"नयन! एक मिनट रुक।" पीछे से गीता उसे रोकते हुए बोली।
नयन पलटा और उसे देखकर बोला, "क्या अब आप भी मम्मा की तरह दही-शक्कर खिलाने वाली हो?"
यह सुनकर गीता ने अजीब सा मुँह बना लिया। "जी नहीं, यह पकड़।" यह कहते हुए गीता ने उसे एक बैग पकड़ा दिया।
"ये सब क्या है?" नयन ने उस बैग के अंदर रखे पैकेट्स को देखकर कहा।
"मैं जोगी अंकल के यहाँ से कुछ सामान लाई थी, नई डिश ट्राई करने के लिए, जिसमें कुछ एक्स्ट्रा चीज़ें भी आ गईं जो काम की नहीं हैं, इसलिए तू इन्हें वापस करते हुए चले जाना।" गीता ने कहा।
यह सुनकर नयन अपनी भौंह को खुजाकर उस बैग को देखते हुए बोला, "लेकिन यह काम तो आप मामा से भी करवा सकती थीं, वह तो वहीं रेस्टोरेंट में काम करता है ना?"
"वह मेरी कोई बात नहीं सुनता।" गीता ने विक्रम के बारे में सोचते हुए मुँह बना लिया।
"बचपन से देख रहा हूँ, लेकिन मुझे यह समझ नहीं आया कि आप दोनों की आपस में क्यों नहीं बनती?" नयन ने कहा।
गीता उसे देखते हुए बोली, "यह मुझे नहीं पता, तू उसी से जाकर पूछ। मैं तो फिर भी बचपन से उसे बहुत प्यार करती थी, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ और उसने मुझे उल्टा-सीधा बोलना शुरू किया, मुझे उससे नफ़रत सी हो गई। पता नहीं वह काला-कलूटा बंदर अपने आप को समझता क्या है।" गीता गुस्से में विक्रम को भला-बुरा कहने में लगी हुई थी और नयन मुँह दबाकर हँस रहा था।
गीता अपने मन की भड़ास निकालने के बाद नयन को देखकर बोली, "अगर मैं उससे कह भी देती न इस काम के लिए, तो भी वह नहीं करता, इसलिए तू ही यह उन्हें देते हुए निकल जाना, रास्ते में ही पड़ेगा उनका रेस्टोरेंट।"
"ओके! मैं देता हुआ चला जाऊँगा।" यह कहते हुए नयन जाने लगा।
"अच्छा, बेस्ट ऑफ़ लक।" गीता ने पीछे से कहा, जिसे सुनकर नयन मुस्कुराते हुए पलटा, "थैंक यू मौसी।"
"फिर मौसी!" यह कहते हुए गीता ने अजीब सी शक्ल बना ली, जिसे देखकर नयन हँसते हुए उसे बाय कहकर चला गया।
सोसायटी से निकलकर नयन बाहर मेन रोड पर आ चुका था। उस रोड पर चलते-चलते उसने एक रेस्टोरेंट की ओर नज़र उठाई, "जोगिन्दर रेस्टोरेंट" यह नाम पढ़कर वह उस रेस्टोरेंट के अंदर चला गया।
रेस्टोरेंट अंदर से काफ़ी खूबसूरत था। उसने चारों ओर नज़रें घुमाईं, तभी उसकी नज़र सामने काउंटर पर गई जहाँ विक्रम एक लड़की के साथ बैठा हँस-हँसकर बातें कर रहा था। वे दोनों ही वेटर की ड्रेस में थे; विक्रम यहाँ वेटर का ही काम करता था।
उन्हें देखकर नयन मन ही मन हँसा, "मामा तो यहाँ मामी के साथ बैठे हैं।"
तभी उसके पीछे से किसी ने खांसते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा। नयन ने जब पीछे मुड़कर देखा, तो एक अधेड़ उम्र के शख्स खड़े थे। "इतना ख्याली पुलाव मत पकाओ बच्चे, तुम्हारे मामा जिससे बात कर रहे हैं, एक बार उसे ध्यान से देख तो लो।"
उस शख्स की यह बात सुनकर नयन थोड़ा कंफ़्यूज़ हो गया। उसने फिर से पलटकर उन लोगों को देखा और कहने लगा, "क्या मतलब है आपका?"
नयन की बात सुनकर उस शख्स ने आवाज़ लगाई, "आदित्य! विकी! तुम दोनों काम छोड़कर गप्पे लगा रहे हो।"
"नहीं जोगी अंकल.....!!!" वे दोनों एकदम से हड़बड़ाते हुए बोले और उन्हें देखने लगे। नयन का मुँह तो हैरानी से खुला रह गया, क्योंकि जिसे वह लड़की समझ रहा था, वह एक लड़का था जिसके बाल थोड़े लंबे थे, जो पीछे से देखने पर लड़कियों जैसा ही लग रहा था, और उसका नाम था आदित्य।
विक्रम ने जब नयन को देखा, तो वह बोला, "तू यहाँ क्या कर रहा है?"
"मुझे तो मौसी ने जोगी अंकल को यह सामान वापस करने को बोला था।" नयन ने विक्रम को बैग दिखाकर कहा। फिर जोगी अंकल की तरफ़ देखकर बोला, "ये लीजिए जोगी अंकल, आपका सामान जो मौसी ने एक्स्ट्रा ले लिया था।"
जोगी अंकल नयन को पहचानने की कोशिश करते हुए बोले, "तुम नयन हो ना, विकी और गीता के भांजे!"
"हाँ, आपने पहचान लिया।" नयन ने हैरानी और खुशी के मिले-जुले भावों से कहा।
यह सुनकर आदित्य भी वहाँ आ गया और नयन को देखते हुए विक्रम से बोला, "तू इसका मामा है!"
विक्रम ने कुछ नहीं कहा, बस मजबूरी में हाँ में सिर हिला दिया, क्योंकि अब जो सच है वो तो है।
यह देखकर आदित्य हँस दिया और नयन से हाथ मिलाते हुए बोला, "हाय! मैं आदित्य! तुम्हारे मामा का दोस्त।" उसने जानबूझकर विक्रम की तरफ़ देखकर ऐसा कहा, जिससे विक्रम चिढ़ गया, लेकिन शायद आदित्य को पता नहीं था कि नयन भी शरारती है।
"हाय अंकल!" नयन मुस्कुराते हुए आदित्य से बोला, जिसे सुनकर विक्रम और जोगी अंकल ठहाके लगाकर हँस दिए।
"मैं अंकल कहाँ से दिखता हूँ!" आदित्य ने चिढ़कर कहा।
विक्रम हँसते हुए उनके बीच आकर बोला, "जब मैं इसका मामा हो सकता हूँ, तो तू अंकल नहीं हो सकता।" यह सुनकर आदित्य और भी चिढ़ गया। वह कुछ बोलता, उससे पहले ही जोगी अंकल बोल पड़े...
"अच्छा, बहुत हो गई बातें, अब तुम दोनों जाकर अपना काम करो, और हाँ, पहले स्टोर रूम में जाकर सामान सेट करो जो कल आया था।" जोगी अंकल ने विक्रम और आदित्य से कहा। वे दोनों अच्छे बच्चों की तरह उनकी आज्ञा का पालन करते हुए वहाँ से चले गए। जोगी अंकल ने नयन की ओर देखा और बोले, "हाँ तो नयन बेटा, इतने दिनों बाद यहाँ कैसे?"
"मेरी जॉब लग गई है यहाँ पर और आज मेरा जॉब पर पहला दिन है।" नयन ने खुश होकर उन्हें बताया, जिसे सुनकर वे भी बहुत खुश हुए।
"यह तो बहुत अच्छी बात है।" जोगी अंकल बात करते हुए काउंटर पर खड़े हो गए। नयन ने वह बैग भी काउंटर पर रख दिया।
"मेरी तरफ़ से तुम्हें ऑल दी बेस्ट और साथ में यह भी।" यह कहते हुए उन्होंने कपकेक निकालकर नयन के सामने रख दिया, जिसे देखकर नयन खुश होते हुए बोला, "वाओ अंकल! माय फेवरिट कपकेक।" यह कहते हुए उसने जल्दी से उसे उठा लिया और जल्दी-जल्दी खाने लगा।
"अरे! आराम से खाओ, मैं इसे वापस छीन नहीं लूँगा तुमसे।" जोगी अंकल हँसते हुए बोले।
"नहीं अंकल, अगर आराम से खाया तो मैं लेट हो जाऊँगा और इसे छोड़ना मैं नहीं चाहता हूँ।" नयन ने केक को देखकर कहा।
नयन खाते-खाते जैसे ही मुड़ा, अचानक से एक शख्स से टकरा गया। कपकेक नयन के कपड़ों पर गिर गया। उसने गुस्से में उस शख्स को देखा, तो उसके चेहरे के भाव बदल गए, क्योंकि जिससे वह टकराया था, वह चन्द्र था। वह भी एकटक नयन को ही देख रहा था। नयन के होठों पर अभी भी थोड़ा सा केक लगा हुआ था, जिसे देखकर चन्द्र के होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
जारी है......
नयन खाते-खाते जैसे ही मुड़ा, अचानक एक शख्स से टकरा गया। कपकेक नयन के कपड़ों पर गिर गया। उसने गुस्से में उस शख्स को देखा, तो उसके चेहरे के भाव बदल गए। क्योंकि जिससे वह टकराया था, वह चंद्र था। वह भी एकटक नयन को देख रहा था। नयन के होठों पर अभी भी थोड़ा-सा केक लगा हुआ था, जिसे देखकर चंद्र के होठों पर हल्की-सी मुस्कान आ गई।
ये देखकर अब नयन को गुस्सा आ गया था। एक तो उसके कपड़े खराब हो गए, और ऊपर से यह इंसान मुस्कुरा रहा है।
“एक तो तुम्हारी वजह से मेरे कपड़े खराब हो गए, और तुम मुझसे सॉरी कहने की बजाय मुस्कुरा रहे हो।” नयन ने अपने कपड़ों की तरफ देखते हुए गुस्से में कहा।
“एक मिनट, इसमें मेरी क्या गलती है? जल्दबाजी में तुम थे, मैं नहीं।” चंद्र ने जवाब देते हुए कहा।
“लेकिन मुझे क्या पता था कि तुम मेरे पीछे ही खड़े हो? तुम्हारी वजह से मेरे कपड़े खराब हो गए। अब मेरे पास इतना टाइम भी नहीं है कि मैं इन्हें चेंज कर सकूँ। आज सिर्फ तुम्हारी वजह से मेरे जॉब के पहले दिन ही मेरा सारा इंप्रेशन खराब हो जाएगा।” ये कहते हुए नयन ने उखड़ी सूरत बना ली।
विकी और आदित्य भी स्टोर रूम से बाहर आ गए थे। जब उन्होंने उन दोनों को देखा, तो जहाँ खड़े थे, वहीं खड़े रह गए।
“तुम जॉब करते हो!” चंद्र ने अचरज भरे भाव से कहा। “मुझे तो लगा था कि तुम अभी स्कूल में ही होंगे। इसीलिए तो कल बच्चा समझकर उठा लिया था तुम्हें।”
ये सुनकर जोगी अंकल के साथ-साथ विकी और आदित्य भी हैरान रह गए। नयन तो यह सुनकर और भी चिढ़ गया और चंद्र से बोला, “क्या? तुम मुझे बच्चा समझ रहे थे! इतना भी नादान मत समझो तुम मुझे। मैं सब जानता हूँ तुम्हारी नियत क्या थी। अरे तुम तो…” ये बोलते-बोलते वह खुद ही रुक गया और अपने चारों ओर देखने लगा, जहाँ जोगी अंकल के साथ-साथ विकी और आदित्य भी उसे शक़ी निगाहों से देख रहे थे।
ये देखकर चंद्र हल्के से हँसा और बोला, “सचमुच नादान हो तुम। बोलने से पहले सोचते नहीं हो और खुद को मैच्योर समझते हो। केवल उल्टी-सीधी बातों की समझ होना ही मैच्योरिटी नहीं होती बच्चे।” उसके मुँह से फिर से ‘बच्चा’ सुनकर नयन बुरी तरह चिढ़ गया।
नयन ने गुस्से में दाँत पीसते हुए चंद्र की ओर देखा और अपनी उंगली उसकी ओर पॉइंट करते हुए बोला, “ऐ मिस्टर! लिसन टू मी केयरफुली, आई एम 23 इयर्स ओल्ड, लास्ट ईयर आई हैव डन पोस्ट ग्रेजुएशन इन कॉमर्स एण्ड टुडे इज़ द फर्स्ट डे ऑफ़ माय जॉब, अण्डरस्टैण्ड।”
ये सुनकर आदित्य ने तो धीरे से उसके लिए ताली बजाई। जब विकी और जोगी अंकल ने उसे देखा, तो वह उन्हें देखकर रुक गया।
नयन को इस तरह काँफिडेंस से बोलते हुए देखकर चंद्र अपनी आईब्रो ऊँची करते हुए उससे बोला, “जब तुम्हारे पास बोलने का इतना काँफिडेंस है, तो तुम ये क्यों सोच रहे हो कि पहले दिन तुम्हारे कपड़ों की वजह से तुम्हारा इंप्रेशन खराब हो जाएगा? क्या वो लोग तुम्हारे टैलेंट से ज़्यादा तुम्हारे कपड़ों को इम्पोर्टेंस देंगे?”
“मेरे पास अभी तुमसे बहस करने का टाइम नहीं है।” ये कहते हुए नयन ने वहाँ रखा पानी का गिलास उठाया और अपनी शर्ट को साफ करने लगा और साथ ही साथ चंद्र को घूरते हुए बोला, “तुमसे तो मैं बाद में आकर बात करूँगा। जाना मत यहाँ से जब तक मैं वापस ना आ जाऊँ।” उसकी यह बात सुनकर चंद्र ने हल्के से हँसते हुए अपना रूमाल निकालकर उसकी ओर बढ़ा दिया। जिसे देखकर नयन को और भी गुस्सा आ गया। “इतना भी भिखारी नहीं हूँ मैं, रूमाल मेरे पास भी है।” नयन ने चीखकर कहा।
वहाँ खड़े जोगी अंकल के साथ-साथ विकी और आदित्य हँस दिए। उसकी चिढ़चिढ़ी शक्ल देखकर तो चंद्र भी मुस्कुरा दिया।
नयन अपने रूमाल से कपड़े साफ कर वहाँ से जाने लगा, तो चंद्र ने उसे रोककर कहा, “एक चीज़ तो साफ करना तुम भूल ही गए।” नयन ने असमंजस भरे भाव से उसकी ओर देखा। इससे पहले कि वह कुछ बोल पाता, चंद्र अपने रूमाल से उसके होंठों पर लगा केक साफ करने लगा। विकी, आदित्य और जोगी अंकल की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। वो लोग मुँह गोल किए यह नज़ारा देखने लगे।
नयन का दिमाग तो कुछ देर के लिए ब्लैंक हो गया, और वह भी वैसे ही खड़ा रहा। जब चंद्र उसके होंठ साफ करके दूर हटा, तब जाकर नयन को होश आया। उसे अब खुद पर ही गुस्सा आ रहा था कि उसने इसे यह साफ करने क्यों दिया? वह अब खिसिया गया था, इसलिए वह गुस्से में चंद्र को देखते हुए चिल्लाकर बोला, “जोगी अंकल, जब तक मैं वापस ना आऊँ, इस इंसान को यहाँ से जाने मत देना।” उसने जोगी अंकल को देखा, फिर चलते-चलते भी चंद्र की ओर देखकर उसे उंगली दिखाकर बोला, “छोड़ूँगा नहीं तुम्हें, याद रखना।” ये कहकर वह जल्दी से बाहर भाग गया।
उसके जाने के बाद चंद्र ने लंबी साँस लेकर मुँह गोल करते हुए उसे छोड़ दिया, फिर जोगी अंकल की तरफ देखकर बोला, “क्या आप सचमुच मुझे यहाँ पकड़कर रखेंगे?”
उसकी यह बात सुनकर जोगी अंकल के साथ-साथ विकी और आदित्य भी हँस दिए।
“अरे नहीं-नहीं, हम ऐसा क्यों करेंगे? वह तो कुछ भी कहता रहता है। अगर उसकी बातों को सीरियसली लेने लगे, तो हम पागल ही हो जाएँगे।” जोगी अंकल ने हँसकर कहा।
“हाँ, बाद में तो उसे खुद भी याद नहीं रहेगा कि उसे किसी को सबक भी सिखाना था।” विकी ने हँसते हुए उनके पास आकर कहा।
“वैसे आप दोनों पहले भी मिल चुके हो क्या?” आदित्य ने चंद्र से सवाल किया।
जिसे सुनकर चंद्र ने सिर हिलाया और कहा, “हाँ, कल ट्रेन में मिले थे। सीट को लेकर थोड़ी मिसअण्डरस्टैण्डिंग हो गई थी बस।”
“ओओओ…” विकी और आदित्य एक साथ मुँह गोल करते हुए बोले। फिर जोगी अंकल चंद्र के कंधे पर हाथ रखकर कहने लगे, “तुम उसकी बात का बुरा मत मानना। वह कभी-कभी गुस्से में ऐसा बोल जाता है, लेकिन दिल का बहुत अच्छा है।”
“कोई बात नहीं अंकल, इट्स ओके! मैं तो बस आपसे यह पूछने आया था कि मेरा काम हो गया।” चंद्र ने जोगी अंकल से पूछा।
“हाँ, ये लो चाबी।” ये कहते हुए जोगी अंकल ने उसे चाबी थमा दी।
चंद्र ने अपनी घड़ी में टाइम देखा और उन्हें देखकर बोला, “ओके, थैंक्स। अभी तो मैं चलता हूँ, शाम को आ जाऊँगा।” चंद्र भी यह कहते हुए वहाँ से चल दिया।
चंद्र के जाने के बाद विकी और आदित्य ने फिर से सामान सेट करना शुरू कर दिया। आदित्य ने विकी से पूछा, "यार एक बात बता मुझे, तेरे इस भांजे का आज जॉब पर पहला दिन है और ये आया भी आज ही है तो ये इंटरव्यू देने कब गया था?"
"वर्क फ्रोम होम सुना है तूने?" विकी ने आदित्य की ओर देखकर कहा।
"हाँ सुना है।" आदित्य ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा।
"हाँ तो वो पहले घर से ही इस कंपनी के लिए काम करता था। उन्होंने उसका इंटरव्यू भी ऑनलाइन ही लिया था और अब उस कंपनी ने उसे काम करने के लिए यहाँ बुला लिया है।" विकी ने आदित्य को समझाया।
रियल फूड प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड (काल्पनिक नाम)
नयन बस से उतरा और अपने सामने इतनी ऊंची और शानदार बिल्डिंग को देखकर उसका मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। "वाआआओ! हकीकत कितनी शानदार होती है, मैं सच में इतनी बड़ी कंपनी में काम करूँगा!" ये कहते हुए उसका चेहरा खुशी से खिल उठा। उसने खुशी से आँखें बंद करते हुए लम्बी साँस ली और उसे छोड़ते हुए अपनी आँखें खोली। "मम्मा-पापा अब मेरे सब सपने पूरे हो जायेंगे।" नयन ये कहकर मुस्कुराते हुए अंदर जाने लगा। तभी उसे कुछ याद आया और उसने अपना फ़ोन निकालकर किसी को कॉल किया।
"वेदांश भैया, आप अभी ऑफिस में ही हो ना......हाँ मैं आ चुका हूँ.......ओके।" ये कहते हुए नयन ने कॉल काट दिया और सीधा उस बिल्डिंग में घुस गया।
नयन लिफ्ट से सीधा टॉप फ्लोर पर आया। "ओह गॉड! लिफ्ट से आते हुए भी इतना टाइम लग गया।" नयन ये कहते हुए लिफ्ट से बाहर निकला। सामने ही एक केबिन था जिसके दरवाज़े पर एक 27 साल की उम्र का लड़का, सूट-पैंट पहने, खड़ा था और अपने मोबाइल को हाथ में लिए कुछ टाइप करने में लगा था।
उसे देखकर नयन मुस्कुराते हुए उसके पास गया। "हैलो!" नयन ने उस लड़के के सामने हाथ हिलाते हुए कहा। जिससे वो लड़का एकदम से चौंक गया। फिर सामने नयन को देखकर हँसते हुए बोला, "हाय नयन! आ गए!"
"क्या वेदांश भैया, अभी ही तो कॉल किया था मैंने, भूल गए क्या।"
"अरे भूला नहीं, अगर भूल जाता तो इस तरह दरवाज़े पर सिर टिकाए तुम्हारी राह नहीं तकता।"
"लेकिन आप को देखकर तो ऐसा नहीं लग रहा था कि आप मेरी राह तक रहे थे।" नयन उसके मोबाइल की तरफ़ देखकर शरारत से मुस्कुराते हुए बोला, "भाभी को मैसेज कर रहे थे ना।"
उसकी बात सुनकर वेदांश हल्के से मुस्कुराकर बोला, "हाँ, आज वो अपने मायके जा रही है, जब तक वहाँ पहुँचकर बिज़ी नहीं हो जायेगी ना ऐसे ही मुझे मैसेज करती रहेगी।"
ये सुनकर नयन हँस दिया। वेदांश ने नयन की ओर देखा और बोला, "चल अब मेरी बात बाद में करेंगे, आज तेरा पहला दिन है तो तुझे पहले अपने कुछ जूनियर्स से मिलवाता हूँ।" ये कहते हुए वेदांश नयन को एक बड़े से केबिन में ले गया जहाँ पर कुछ एम्प्लॉयी कंप्यूटर पर अपना काम कर रहे थे। वेदांश उनका सीनियर था, वो नयन को एक-एक करके सबसे इंट्रोड्यूस करवाने लगा।
आखिर में एक कंप्यूटर के सामने नयन की ही उम्र का एक लड़का अपना मुँह लटकाए बैठा था और एक लड़की उसे समझाने में लगी हुई थी।
"परी जो होना था वो हो गया, अब इसे एक्सेप्ट कर लो।" उस लड़की ने उस लड़के से कहा।
नयन उन दोनों को बड़े गौर से देख रहा था। फिर एकदम से नयन खुशी से चिल्लाते हुए उनके पास जाकर बोला, "परीक्षित और कलावती तुम दोनों यहाँ....!!!" अपने असली नाम सुनकर वो दोनों हड़बड़ाकर नयन को देखने लगे और एक साथ बोले, "नयन....!!!"
"हेय! तुम लोग आपस में एक दूसरे को जानते हो?" वेदांश उन तीनों के पास आकर हैरानी से बोला।
"हाँ भैया, ये दोनों मेरे स्कूल फ़्रेंड्स हैं, ट्वेल्थ तक हम सब साथ में ही पढ़े हैं।" नयन ने उन दोनों की तरफ़ देखकर वेदांश से कहा।
"हाँ वेदांश सर, ही इज राइट।" कलावती ने खुश होकर कहा और नयन के गले लग गई। परीक्षित भी उठकर नयन के गले लगा और फिर से मुँह लटकाकर बैठ गया।
"नयन अब से तू भी यहीं हमारे साथ काम करेगा?" कलावती ने नयन से पूछा।
नयन ने हाँ में सिर हिला दिया।
"चलो ये तो बहुत अच्छा हुआ कि तुम्हें तुम्हारे दोस्त मिल गए अब मुझे तुम्हें ज़्यादा कुछ समझाने की ज़रूरत नहीं है नयन, ये दोनों नमूने ही काफी हैं।" वेदांश ने परीक्षित और कलावती की ओर देखकर कहा।
ये सुनकर कलावती मुँह बनाते हुए बोली, "क्या सर, आप मुझे भी इस परी की तरह समझते हैं, आय एम नॉट अ नमूना।"
उसे देखकर नयन हँस दिया और वेदांश बोला, "तो और क्या कहूँ तुम दोनों को, हमारे ऑफिस के सबसे एंटीक पीस हो जिसमें ये परीक्षित तो कुछ ज़्यादा ही है।" उसने परीक्षित की ओर देखकर कहा जो अभी भी वैसे ही बैठा था।
"हाँ वेदांश भैया, यू आर राइट, मैं भी इन दोनों को बहुत अच्छे से जानता हूँ, आखिर मेरे बचपन के दोस्त जो हैं, क्यों परी।" नयन ने परीक्षित की ओर देखकर कहा। लेकिन परीक्षित ने कुछ खास रिस्पांस नहीं दिया, बस ज़बरदस्ती हँसकर चुप हो गया।
नयन उसकी इस हरकत से थोड़ा हैरत में पड़ गया। "इसे हुआ क्या है कला? ऐसी सूनी सी शक्ल क्यों बना रखी है इसने?" नयन ने कला की तरफ़ देखकर पूछा। फिर उसने परीक्षित को देखा। "ओए! क्या मेरा आना अच्छा नहीं लगा तुझे?" नयन ने परीक्षित के कंधे पर थपथपाते हुए कहा।
"तुम्हारा आना नहीं बल्कि किसी का जाना अच्छा नहीं लगा इस परी को।" कला परीक्षित के कंधों पर हाथ रख हँसते हुए बोली।
"क्या मतलब?" नयन ने पूछा।
"मतलब मैं समझाता हूँ।" वेदांश ने कहा और नयन की तरफ़ देखकर बोला, "हमारे एच आर हेड ने रिज़ाइन कर दिया है, उन्हीं के जाने का दुःख मना रहा है ये।" वेदांश ने परीक्षित की ओर देखकर कहा।
"क्या? मगर क्यों?" नयन हैरान होकर कला और परीक्षित की ओर देखकर बोला।
जिसे सुनकर कला परीक्षित को बच्चों की तरह पुचकारते हुए कहने लगी, "क्योंकि वो हमारी परी के क्रश थे ना इसलिए।"
"हँ...!!!" ये सुनकर नयन मुँह खोले परीक्षित को देखने लगा।
परीक्षित ने चिढ़ते हुए कला का हाथ हटाया और बोला, "हाँ थे वो मेरे क्रश, मैंने तुझसे कहा था कि मुझे कुछ देर के लिए इस बात का दुःख मना लेने दे फिर मैं मूव ऑन कर जाऊँगा, लेकिन नहीं! तुझसे तो मेरा दुःख बर्दाश्त ही नहीं होता ना।" ये कहते हुए परीक्षित ने कला को घूरा। जिसे देखकर वेदांश हँस दिया। "देखा, मैंने कहा था ना एंटीक पीस हैं दोनों।" वेदांश ने धीरे से नयन से कहा। नयन तो बस आँखें फाड़े उन दोनों को ही देख रहा था। बाद में परीक्षित की बात पर उसे भी हँसी आ गई।
"अरे तो मैंने सोचा कि तुम शोक मना रहे हो तो सिम्पैथी देने वाला भी तो कोई होना चाहिए ना।" कला ने हँसते हुए परीक्षित से कहा।
"अब अगर तुमने दुःख मना लिया हो और तुमने इसे सिम्पैथी दे दी हो तो अब तुम दोनों कुछ काम भी कर लो।" वेदांश ने उन दोनों से कहा।
"जी सर।" कला और परीक्षित एक साथ बोले। अब परीक्षित भी नॉर्मल हो गया था।
"नयन को यहाँ के बारे में सब समझा देना और फिर मीटिंग रूम में आ जाना, नए एच आर हेड आने वाले हैं।" वेदांश ने कहा।
जिसे सुनकर नयन वेदांश की तरफ़ देखकर बोला, "नए एच आर हेड?" उसे शायद इस बारे में पता नहीं था।
"हाँ नयन, जैसे आज तुम्हारा यहाँ पहला दिन है वैसे ही हमारे हेड का भी यहाँ पहला दिन है। वो अभी आते ही होंगे।" वेदांश ने कहा।
तभी परीक्षित मुस्कुराते हुए उससे बोला, "सर, एक बात बताएँगे?" वेदांश ने आँखें उठाते हुए हामी भरी। जिस पर परीक्षित बोला, "हमारे नए एच आर हेड दिखने में कैसे हैं?" ये सुनकर वेदांश ने उसे घूरा। "बड़ी जल्दी मूव ऑन कर लिया तुमने।"
ये सुनकर परीक्षित एकदम से सीधा तनकर खड़ा हो गया। "सॉरी सर।" ये देखकर कला और नयन मुँह दबाकर हँस दिए। वेदांश उसे देखकर ना में सिर हिलाते हुए चला गया।
कला और परीक्षित नयन को ऑफिस और ऑफिस के लोगों से परिचित कराते हुए मीटिंग रूम में ले आए। अभी उन तीनों के सिवाय वहाँ कोई नहीं था।
तभी वेदांश एक शख्स के साथ अंदर आया। "वेलकम सर!" वेदांश ने उस शख्स से कहा। ये आवाज़ सुनकर नयन, कला और परीक्षित ने उस ओर देखा।
उस शख्स को देखकर नयन हैरान रह गया क्योंकि वो चंद्र ही था जो वेदांश के साथ अंदर आया था। नयन को वहाँ देखकर चंद्र भी हैरान था।
"सो वेलकम द न्यू एच आर हेड ऑफ अवर कंपनी, मि. चंद्र सिंह राठौड़।" वेदांश ने चंद्र का परिचय कराते हुए कहा। ये सुनकर तो नयन के होश ही उड़ गए।
जारी है........
“सो वेलकम द न्यू एच आर हेड ऑफ अवर कंपनी, मि. चंद्र सिंह राठौड।” वेदांश ने चंद्र का परिचय कराते हुए कहा। ये सुनकर नयन के होश उड़ गए।
“और सर, ये लोग हमारे ऑफिस के बाकी बचे एंप्लॉयी हैं: मि. परिक्षित जोशी, मिस कलावती शर्मा और मि. नयन शेखावत, और बाकियों से तो आप बाहर मिल ही चुके हैं।” वेदांश ने एक-एक करके उन तीनों की तरफ इशारा करते हुए चंद्र से कहा।
“वेलकम सर!” कला और परिक्षित ने खुशी से चंद्र का वेलकम किया। लेकिन चंद्र की नजरें नयन पर थीं, जो उससे नजरें चुरा रहा था।
कला ने नयन के कंधे पर हाथ मारते हुए उसे भी इशारे से वेलकम करने को कहा। जिस पर नयन ने हिचकिचाते हुए कहा,
“व....व.....वेल....कम सर....!” वो अटकते हुए बोला।
“इतना टुकड़ो-टुकड़ो में वेलकम!” चंद्र ने नयन को देखकर कहा। जिसे सुनकर वेदांश थोड़ा सा हँसकर बोला,
“वो क्या है ना सर कि इसका भी आज यहाँ फर्स्ट डे है तो थोड़ा हिचक रहा है आपसे।”
“ओह आई सी! उस हिसाब से तो मुझे इनका छोटा सा इंटरव्यू लेना चाहिए ताकि इनकी हिचकिचाहट दूर हो जाए।” चंद्र ने बड़े ही सीरियस टोन में नयन को देखते हुए कहा। ये सुनकर नयन का कलेजा मुँह को आ गया।
“कम टू माय केबिन।” चंद्र ने नयन की ओर देखकर आदेशात्मक लहजे में कहा और मीटिंग रूम से बाहर अपने केबिन की ओर बढ़ गया।
“आज तो बुरा फँस गया मैं, अब क्या करूँ?” नयन खड़ा-खड़ा सोच रहा था। उसके कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे।
“हेय! अब खड़े क्यों हो जाओ ना, सर तुम्हें ही बुलाकर गए हैं।” वेदांश ने नयन से कहा। जिसे सुनकर नयन ने ना में सिर हिलाते हुए बोला,
“मैं अकेला नहीं जाऊँगा।” ये सुनकर वे तीनों हँस दिए।
“नयन तू डर क्यों रहा है? इस सिचुएशन का सामना तो जॉब में करना ही पड़ता है और तू तो फिर भी बहुत टैलेंटेड है।” कला ने नयन को समझाते हुए कहा।
“हाँ, अगर तेरे जैसा इंसान इंटरव्यू देने से डरेगा तो हम जैसे क्या करेंगे?” परिक्षित ने हँसते हुए कहा।
“बात वो नहीं है, मैं इंटरव्यू देने से नहीं डर रहा हूँ।” नयन ने एकदम से कहा।
“तो फिर बात क्या है?” उन तीनों ने एक साथ पूछा।
नयन ने धीरे से अपनी नजरें उन तीनों पर डाली और बोला,
“बात ये है कि तुम्हारे ये नए बॉस मेरा इंटरव्यू लेने से पहले ही मुझे यहाँ से निकालकर बाहर फेंक देंगे।” नयन ने रोती सूरत बनाकर कहा। नयन की ये बात उन तीनों को समझ नहीं आई।
“लेकिन क्यों?” कला और परिक्षित ने पूछा।
“इसलिए क्योंकि आज सुबह मैंने उनसे बहुत बदतमीजी से बात की थी, उन्हें सबक सिखाने की वार्निंग तक देकर आया था। अब वो इसका बदला जरूर लेंगे और मुझे पहले ही दिन फायर कर देंगे।”
ये सुनकर कला और परिक्षित मुँह खोले एक-दूसरे को देखने लगे।
“कुछ भी मत बोलो नयन, मैं सर को अच्छी तरह जानता हूँ क्योंकि उनके अंडर मैं पहले भी काम कर चुका हूँ। वो अपनी पर्सनल लाइफ को प्रोफेशन से कोसों दूर रखते हैं और तुम्हें भी वो तुम्हारे टैलेंट के बेसिस पर ही जज करेंगे। इसलिए टाइम खराब मत करो और जाओ उनके केबिन में।” वेदांश ने नयन को जाने के लिए कहा।
"आप नहीं जानते भैया! केवल आज सुबह ही नहीं बल्कि ट्रेन में भी मैंने बहुत कुछ बोल दिया था। उन्हें इतना सब सुनने के बाद तो वो बिल्कुल मुझे यहाँ नहीं रखेंगे।”
“लेकिन अभी तो वो ऐसा कुछ भी नहीं कहकर गए। अगर ऐसी बात है भी तो तुम उनसे माफी मांग लेना लेकिन पहले अंदर तो जाओ।” वेदांश ने कहा।
“यू आर राइट सर, तू जल्दी जा नयन वरना उनका ऑर्डर ना मानने पर जरूर फायर कर दिया जाएगा।” ये कहते हुए कला नयन को पकड़कर ले जाने लगी।
“हाँ नयन, और वैसे भी वो कितने शांत इंसान लग रहे थे, वाओ! ही इज सो हैंडसम, अगर तेरी जगह मुझे बुलाया होता ना तो मैं तो अभी तक उन्हें कि.......” परिक्षित आगे कुछ बोलता, उससे पहले ही वेदांश ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया और बोला,
“अगर तुझे बुलाया होता ना तो तेरी हरकतें देखकर तो तुझे सचमुच आग लगा देते वो।” ये सुनकर कला अपनी हँसी नहीं रोक पाई। जिसे देखकर परिक्षित चिढ़ गया।
नयन नुकुर कर रहा था लेकिन वो तीनों उसे जबरदस्ती खींचते हुए चंद्र के केबिन तक ले गए और केबिन के अंदर धक्का दे दिया। उसने दरवाजे की ओर देखा जो वे लोग बंद करके जा चुके थे।
चंद्र सामने अपनी चेयर पर बैठा था। उसे देखकर नयन हड़बड़ाकर सीधा खड़ा हो गया। उसकी नजरें नहीं उठ रही थीं चंद्र की तरफ। उसे ऐसा लग रहा था कि उसे शेर के पिंजरे में डाल दिया हो।
“वहाँ खड़े-खड़े ही इंटरव्यू दोगे क्या?” चंद्र ने एकदम से कहा। जिसे सुनकर नयन ने घबराकर अपनी नजरें उठाईं और उसे देखने लगा।
“यहाँ सामने आकर बैठो।” चंद्र ने सामने चेयर की ओर इशारा करते हुए कहा। ये सुनकर नयन धीरे-धीरे उस चेयर की ओर बढ़ने लगा।
“ज़बान तो बहुत कैंची की तरह चलती है तुम्हारी, पैर नहीं चलते, ऑफिस खत्म हो जाने के बाद पहुँचोगे यहाँ तक।” चंद्र ने नयन की धीमी चाल को देखकर कहा। जिसे सुनकर नयन जल्दी से दौड़ते हुए चेयर पर आकर बैठ गया और चिंता से नीचे देखते हुए अपने हाथों को मसलने लगा।
चंद्र ने एक नजर उसे देखा और बोला,
“चिंता मत करो, मैं तुम्हारे कपड़ों के बेसिस पर तुम्हें जज नहीं करूँगा।” ये सुनकर एकदम से नयन ने उसे सिर उठाकर देखा।
“तुम शायद ये सोच रहे होंगे कि मैंने तुम्हें यहाँ फायर करने के लिए बुलाया है। इसलिए पहले मैं ये क्लियर कर दूँ कि हमारे बीच सुबह जो भी बातें हुईं उसका कोई भी इफेक्ट तुम्हारी जॉब पर नहीं पड़ेगा। मैं अपनी पर्सनल लाइफ को अपने प्रोफेशन से अलग रखता हूँ।”
चंद्र की ये बातें सुनकर नयन ने राहत की साँस ली कि चलो अब उसकी जॉब को तो कोई खतरा नहीं है। अब नयन थोड़ा आराम से बैठ गया।
चंद्र नयन के सीवी को देखकर बोला,
“मि. नयन शेखावत, तुम्हारे ग्रेड्स तो काफी अच्छे हैं, क्या तुम चीटिंग करके पास हुए थे?”
“ये कैसा सवाल है?” नयन ने थोड़ा नासमझी भरे भाव से पूछा।
“इंटरव्यू मैं ले रहा हूँ या तुम?”
“आप।”
“तो मेरे सवाल के बदले सवाल मत करो, केवल जवाब दो।”
“जी नहीं, मैं चीटिंग करके नहीं बल्कि अपनी मेहनत से पास हुआ था।” नयन ने बिना उसकी ओर देखे जवाब दिया।
“तुमने अपने सीवी में अपनी हॉबीज़ के बारे में कुछ भी मेंशन नहीं किया, क्या केवल बिना बात के लड़ना ही तुम्हारी हॉबी है?” चंद्र ने फिर सवाल किया।
“अभी आप ही ने कहा था कि आप पर्सनल लाइफ को प्रोफेशन से दूर रखते हैं, अब ये सवाल पूछने का क्या मतलब है?” इस बार नयन ने थोड़ा चिढ़कर कहा।
“ये प्रोफेशन से ही रिलेटिड है, अक्सर इंटरव्यू में हॉबीज़ से रिलेटिड सवाल पूछे जाते हैं, जब तुमने इस बारे में कुछ मेंशन नहीं किया तो जो मैंने देखा वही तो कह रहा हूँ।” चंद्र ने बिल्कुल शांत होकर कहा।
“मैंने मेंशन नहीं किया लेकिन मुझे क्रिएटिव काम करना पसंद है, फिजिकल एक्टिविटी से ज्यादा मुझे अपने ब्रेन से काम करना अच्छा लगता है।” नयन ने ना चाहते हुए भी इस सवाल का जवाब दे दिया।
ये सुनकर चंद्र को मन ही मन हँसी आ गई क्योंकि अब तक उसने नयन का जो बिहेवियर देखा था उस हिसाब से लग तो नहीं रहा था कि वो अपने दिमाग से काम लेता होगा। फिर भी उसने नयन से इस बारे में कुछ नहीं कहा। उसने नयन की ओर देखा और बोला,
“पहले तुम वर्क फ्रॉम होम करते थे, राइट?”
“यस सर।” नयन ने कहा।
“योर वर्क इज़ रियली नाइस बट अकॉर्डिंग टू योर प्रीवियस बोस, यू आर टू इम्पेशेंट।”
ये सुनकर नयन एकदम से गुस्से में खड़ा हो गया,
“ये सब तुम अपने मन से बोल रहे हो ना, ये सब कहाँ लिखा है मेरे रिकॉर्ड में।”
उसका ये लहजा देखकर चंद्र भी टेबल पर हाथ मारते हुए खड़ा हो गया,
“मेरे पास तुम्हारा पूरा रिकॉर्ड है, और यहाँ मेरे सामने तुम इस तरह बात कर रहे हो, अब तुम्हें डर नहीं लग रहा कि मैं तुम्हें फायर कर सकता हूँ।”
“कर दो फायर अगर करना है तो, आई डोंट केयर।” ये कहते हुए नयन ने बेपरवाही से गुस्से में मुँह फेर लिया।
उसे देख चंद्र ने लंबी साँस ली और ना में सिर हिलाते हुए शांत होकर बोला,
“यू आर रियली इम्पेशेंट...प्लीज हैव अ सिट।” ये कहते हुए चंद्र ने उसे दुबारा बैठने का इशारा कर दिया। नयन फिर से बैठ गया लेकिन वो अभी भी उखड़ा हुआ सा था।
चंद्र ने कुछ पल उसे देखा फिर कहने लगा,
“तुम्हारा काम वास्तव में बहुत अच्छा है, तुम्हारा कॉन्फिडेंस मैं देख चुका हूँ, तुम इस फील्ड में इंट्रेस्टेड हो ये भी मैं देख चुका हूँ।” उसकी इस आखिरी लाइन पर नयन ने थोड़ा अचरज भरे भाव से उसकी ओर देखा। जिस पर चंद्र ने उसे देखकर कहा,
“ज्यादा मत सोचो इसके बारे में, यू मे गो नाओ।” चंद्र ने उसे जाने का इशारा कर दिया। नयन को कुछ समझ नहीं आया लेकिन फिर वो कुछ ना कहते हुए चुपचाप उठकर वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद चंद्र बस हल्के से मुस्कुरा दिया।
जारी है.........
शाम को जब नयन सोसायटी में वापस आया, तो उसकी नज़र अपने पड़ोस वाले घर, मकान नंबर 98 पर गई। यह घर गीता और विकी के घर के बिल्कुल बगल में था। उस घर को देखकर नयन को अपना बचपन याद आ गया, जब वह अपनी माँ के साथ यहाँ आया करता था। कितनी यादें जुड़ी थीं उसकी इस घर से!
वह उस मकान के मेन गेट तक गया। उसने देखा कि गेट खुला हुआ था। वह अंदर गया। उसने देखा कि आज भी सब वैसा ही था जैसा पहले हुआ करता था; सामने बड़ा सा गार्डन जिसमें झूला लगा हुआ था, नीम का पेड़ जो अब काफी घना हो चुका था, और उसी के पास एक अमरूद का पेड़। जिसे देखकर नयन को वो दिन याद आ गया जब उसके नाना वो छोटा सा पौधा लगा रहे थे और वह अपने नन्हें-नन्हें हाथों से उनकी मदद कर रहा था। आज वो पौधा एक पेड़ बन चुका था जिस पर अमरूद भी आ चुके थे।
नयन आगे बढ़ा। बाहर एक छोटी सी क्यारी थी जिसमें एक तुलसी का पौधा और कुछ रंग-बिरंगे फूलों के पौधे थे। उसे याद आया कि उसकी नानी रोज़ उसकी पूजा किया करती थी। चारों ओर वह खुद को भागते हुए और खेलते हुए देख रहा था। उसके मामा और मौसी उसके साथ खेला करते थे। वह अभी बाहर गार्डन में ही था; यह घर सामने से खुला हुआ था। वह यादों के समंदर में गोते लगाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। वह अंदर जाने के लिए जब दरवाजे पर पहुँचा, तो उसने देखा कि उस पर ताला लगा हुआ था। तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने पलटकर देखा; गीता खड़ी थी।
"बचपन याद आ रहा है," गीता ने मुस्कुराते हुए उससे कहा।
"हाँ मौसी, समय कितना जल्दी बीत जाता है ना! ऐसा लगता है जैसे कल ही की बात है जब मैं मम्मा के साथ छुट्टियों में यहाँ आया करता था, नाना के साथ घूमा करता था, नानी मेरे लिए रोज अलग-अलग डिशेज़ बनाती थीं, पूर्णिमा मौसी मुझे छुट्टियों में भी पढ़ाया करती थीं और वीरेन मामा रोज़ मेरे लिए बाज़ार से कुछ ना कुछ लाते ही रहते थे। और छोटे नाना-छोटी नानी भी मुझे बहुत प्यार करते थे। आप और विकी तो रोज़ ही मेरे साथ खेलने यहाँ आ जाया करते थे," उसने गार्डन की ओर इशारा करते हुए कहा। उसकी बातें सुनकर गीता भी कुछ पल के लिए अतीत की सुनहरी यादों में खो गई।
अतीत की यादों से निकलकर जब नयन वर्तमान में आया, तो उसने गीता से पूछा, "वैसे मौसी, आपने यह मेन गेट क्यों खोला है आज? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप इस घर में शिफ्ट हो रही हो?"
"अरे नहीं, हम यहाँ शिफ्ट नहीं हो रहे, बल्कि आज यहाँ रहने के लिए किरायेदार आने वाला है।"
"व्हाट? किरायेदार?" नयन ने थोड़ा चौंककर कहा।
"हाँ, वीरेन भैया ने यह घर किराये पर दिया है और उन्होंने कहा है कि यह किराया हर महीने मैं ले लिया करूँ। सच में वीरेन भैया दूर रहकर भी हम दोनों के बारे में कितना सोचते हैं!" गीता ने मुस्कुराकर कहा।
"वह तो ठीक है मौसी, लेकिन किरायेदार है कौन?" नयन ने सवाल किया। गीता कुछ कह पाती, उससे पहले ही एक ट्रक उस घर के आगे आकर रुका। उसमें कुछ सामान था।
"लगता है वो लोग आ गए। तू उनकी सामान उतरवाने में मदद कर, मैं अभी आई।" यह कहते हुए गीता जल्दी से अपने घर में घुस गई।
"क्या? मैं सामान उतरवाने में मदद करूँ?" यह कहते हुए नयन उस ट्रक में भरे सामान को देखने लगा। तभी दो-चार लोग उस ट्रक में से सामान उतारने लगे। नयन ने तो बिल्कुल हाथ नहीं लगाया और आराम से हाथ बाँधे खड़ा रहा। तभी उसने देखा कि एक लड़का एक बड़ा सा बॉक्स लिए आ रहा था। बॉक्स काफी बड़ा था जिस वजह से उसका चेहरा भी नज़र नहीं आ रहा था।
"ओह गॉड! इतना बड़ा बॉक्स अकेले लेकर चल रहा है!!! अरे भाई, गिर जाएगा...रुक! मैं पकड़ता हूँ!" यह कहते हुए नयन उसकी ओर भागा और एक तरफ़ से उस बॉक्स को पकड़ लिया।
वह दोनों उस बॉक्स को अंदर लाकर जैसे ही नीचे रखने लगे, तो अचानक से एक-दूसरे को देखकर चौंक गए और उन दोनों ने वह बॉक्स एकदम से नीचे छोड़ दिया। बॉक्स उन दोनों के पैर पर जा लगा, जिससे दोनों ही दर्द से कराहते हुए अपना पैर पकड़कर जमीन पर बैठ गए। इस बार भी चंद्र और नयन आमने-सामने थे।
उसे देख नयन अपना पैर पकड़कर गुस्से में बोला, "तुमने यह जानबूझकर किया ना ताकि मुझे चोट लगे।"
"जानबूझकर मैं खुद को भी चोट पहुँचाऊँगा क्या!" चंद्र ने भी दर्द से अपने पैर को सहलाते हुए कहा।
"तुम यहाँ कर क्या रहे हो?" नयन ने जैसे-तैसे खड़े होकर पूछा।
"यह सवाल पूछने वाले तुम कौन हो? क्या यह घर तुम्हारा है?" चंद्र भी खड़े होकर बोला।
"ऐसा ही समझ लो।"
"मैं ऐसा क्यों समझूँ? क्योंकि जहाँ तक मैंने सुना है कि यह घर वीरेन चौहान का है और तुम्हारा नाम तो नयन शेखावत है।"
"वीरेन चौहान मेरे मामा हैं और यह घर मेरे नाना-नानी का है, यानी मेरी मम्मा का भी है और उस हिसाब से तो यह मेरा भी है। इसलिए अब बोलो कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" नयन ने उसे अच्छे से समझाकर कहा।
"ओह, इसका मतलब कि यह तुम्हारा ननिहाल है।" यह कहकर चंद्र हल्के से हँस दिया।
"एक मिनट, कहीं तुम ही तो..."
"हाँ नयन, यही तो हैं हमारे किरायेदार, मि. चंद्र सिंह राठौड़।" गीता ने वहाँ आकर नयन की अधूरी बात पूरी कर दी।
यह सुनकर तो नयन मुँह खोले चंद्र को ही देखने लगा और मन ही मन सोचने लगा, "हे भगवान! यह दुनिया कितनी छोटी है! पहले ट्रेन, रेस्टोरेंट, ऑफिस और अब घर! लेकिन यह मैं नहीं होने दूँगा।" यह सोचकर उसने चंद्र की ओर देखा जिसकी सोच भी कुछ-कुछ ऐसी ही थी। बस फ़र्क इतना था कि वह नयन की तरह अपना आपा नहीं खो रहा था और जो सामने था उसे एक्सेप्ट कर रहा था।
गीता के हाथ में कुछ पेपर्स थे जिन्हें वह चंद्र की ओर बढ़ाते हुए मुस्कुराकर बोली, "मि. मून! ये हैं कांट्रेक्ट पेपर्स! आप इन पर साइन कर दीजिये।" चंद्र ने वे पेपर्स लेने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन उससे पहले ही नयन ने वे पेपर्स गीता के हाथ से छीन लिए।
"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि ये यहाँ पर नहीं रह सकते।" नयन ने चंद्र को देखते हुए गीता से कहा।
"यह क्या कह रहा है तू? यह घर वीरेन भैया ने इन्हें दिया है और ये मुझे एडवांस भी दे चुके हैं।" गीता ने कहा।
"तो आप इन्हें एडवांस वापस कर दीजिये, वीरेन मामा से बात मैं कर लूँगा।"
"वैसे इनके रहने से तुझे प्रॉब्लम क्या है?"
"प्रॉब्लम यह है कि यह मेरे बॉस हैं।"
"हैंएएएए...यह तो और अच्छी बात है! इसमें दिक्कत क्या है?"
"दिक्कत यह है कि अगर यह यहाँ रहेंगे तो मैं पूरा दिन इनके सामने रहूँगा, मेरा काम तो कभी खत्म ही नहीं होगा। यह हमेशा मुझ पर रौब जमाते रहेंगे, मेरी लाइफ़ कितनी स्ट्रेसफुल हो जाएगी!" नयन ने चंद्र को देखकर गीता से कहा।
जिसे देखकर चंद्र ने अपना सिर हिलाया, फिर नयन की तरफ़ देखकर बोला, "बहुत गलत सोच रहे हो तुम! भूल गए मैंने क्या कहा था तुमसे कि मैं अपनी पर्सनल लाइफ़ को प्रोफ़ेशन से दूर रखता हूँ। मैं तुम्हारा बॉस केवल ऑफ़िस में हूँ, यहाँ नहीं।" चंद्र ने उसे समझाकर कहा।
उसकी यह बात सुनकर नयन कुछ देर के लिए शांत हो गया। गीता उसके पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली, "अब तो कोई परेशानी नहीं है ना तुझे?"
नयन ने एक नज़र गीता को देखा, फिर चंद्र को देखते हुए बोला, "ठीक है, लेकिन अगर तुमने यहाँ मुझ पर कभी अपनी बॉसगिरी झाड़ने की कोशिश की ना, तो मैं मामा से कहकर तुम्हें इस घर से बाहर निकलवा दूँगा।" नयन यह कहते हुए वहाँ से चला गया।
चंद्र उसे जाते हुए देख रहा था कि तभी गीता मुस्कुराते हुए उसके पास आकर बोली, "मि. मून, आप चिंता मत कीजिये, वह ऐसा कुछ नहीं करेगा, क्योंकि वीरेन भैया से तो वह खुद भी बहुत डरता है। बस आपको धमकी देने के लिए उनका नाम इस्तेमाल कर रहा है।"
"जी, मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं। अगर वह उनका नाम इस्तेमाल ना भी करता, तो भी मैं यह सब हैंडल कर लेता।" चंद्र गीता की ओर देखकर बोला।
"वाओ! यू आर सो डेयरिंग। वैसे क्या आपकी शादी हो चुकी है?" गीता ने थोड़ा चंद्र के करीब आते हुए पूछा।
"जी नहीं।"
"कोई गर्लफ्रेंड?"
"नहीं।"
"कोई बॉयफ्रेंड?"
यह सुनकर चंद्र हँस दिया। "जी नहीं, कोई नहीं है...अब अगर आपके सवाल खत्म हो गए हों तो मैं कांट्रेक्ट पेपर्स साइन कर दूँ।"
"अरे हाँ! मैं तो भूल ही गई। ये लीजिये पेपर्स।" गीता ने उसे पेपर्स देते हुए कहा और उसे साइन करता हुआ देखकर मुस्कुराने लगी।
जारी है......
नयन घर में आया। उसने देखा कि विक्रम किचन में कुछ बना रहा था। वह उसके पास गया और गुस्से में चिल्लाया, "विकी! विकी!"
उसकी आवाज़ सुनकर विक्रम ने एक नज़र उस पर डाली। फिर अपना काम करते हुए बोला, "अपने मामा को नाम लेकर बुला रहे हो भांजे।"
"शट अप! मामा गया भाड़ में। एक बात बता, मुझे जो इंसान सुबह रेस्टोरेंट में मिला था, तू उसे अच्छी तरह जानता था ना? और तुझे यह भी पता था कि वह यहाँ हमारे पड़ोस में नाना-नानी के घर में रहने आने वाला है। तो तूने मुझे उसी समय क्यों नहीं बताया जब मैं उससे लड़ रहा था?"
"तू तो हवा के घोड़े पर सवार था, रुका था जो तुझे कुछ बताता? और मेरे अलावा जोगी अंकल और आदित्य भी वहाँ थे। जब वो ही कुछ नहीं बोल पाए तो मैं क्या कहता? और वैसे भी, कौन सा पहाड़ टूट पड़ा जो वह यहाँ रहने आ गया? तेरे लिए तो अच्छा ही हुआ ना? अब तू उसे अच्छे से सबक सिखा देना, जैसा कि तू सुबह कहकर गया था।" विक्रम ने उसे ताना मारा।
"हँस मत, तू जानता भी है वो कौन है?"
"कौन है?"
"वो ऑफिस में मेरा बॉस है।"
"क्या!" विक्रम थोड़ा हैरानी से बोला, "इसका मतलब तू जिसे सबक सिखाना चाहता था, उल्टा ऑफिस में खुद उससे सबक सीखकर आ गया।" यह कहते हुए विक्रम और भी जोर से हँसने लगा।
"शट अप! वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वो मेरा बॉस केवल ऑफिस में है। अगर यहाँ उसने मुझ पर अपनी धौंस जमाई तो उसी समय मैं वीरेंद्र मामा से कहकर उसे यहाँ से बाहर फिंकवा दूँगा।"
"भैया के खिलाफ़ जाने की हिम्मत है तुझमें? कितने किरायेदार आए थे इस मकान के लिए, लेकिन भैया ने किसी को यह घर नहीं दिया। अगर इन्हें दिया है तो कुछ सोचकर ही तो दिया होगा।"
यह सुनकर नयन कुछ नहीं बोला। बस पैर पटकते हुए अपने कमरे में चला गया।
चंद्र घर के अंदर आया और अपना सामान सेट करने लगा। तभी उसका भाई राज, कंधे पर बैग लटकाए, अंदर आया और चंद्र से बोला, "भाई, आप मुझे छोड़कर आ गए।"
"मैं तुझे छोड़कर नहीं आया, बल्कि तू मेरे साथ नहीं आया।"
"यह क्या बोल रहे हो आप? भला मैं ऐसा क्यों करूँगा?"
"मैं बताता हूँ।" यह कहते हुए चंद्र ने राज का कान पकड़ लिया।
"आआआआह....." राज चिल्लाया।
"कामचोर कहीं के, तुझे कोई सामान उठाना ना पड़े इसलिए साथ नहीं आया ना।" चंद्र ने उसे डाँटते हुए कहा।
"नहीं भाई, ऐसी कोई बात नहीं है। कान छोड़ दो, टूट जाएगा।" राज दर्द से चिल्लाते हुए बोला।
"ठीक है, ऐसी कोई बात नहीं है ना? तो तेरा सामान बाहर ही पड़ा है। जा और अंदर लेकर आ।" चंद्र ने उसका कान छोड़ते हुए कहा।
"क्या भाई, जब आप अपना सामान ले आए थे तो साथ के साथ मेरा भी ले आते।"
"ले तो आता, लेकिन मैं माँ की तरह नहीं हूँ। उनके लाड-प्यार ने बिगाड़ के रख दिया है तुझे। अगर मेरे साथ रहना है तो अपना काम खुद करना होगा, समझा।"
"समझ गया कि आप माँ की तरह नहीं बल्कि पापा की तरह हो। लेकिन अभी थोड़ी धूप है, मैं शाम को ले आऊँगा।" यह कहते हुए राज ने अपना बैग सोफ़े पर पटक दिया और बैठने जा ही रहा था, तभी चंद्र थोड़ा सीरियस टोन में बोला, "तो तू ऐसे नहीं जाएगा।" यह कहते हुए चंद्र उसकी ओर बढ़ा। राज डरते हुए पीछे हटकर बोला, "अच्छा अच्छा जाता हूँ, मारना मत।" यह कहते हुए राज दरवाजे तक भागा। फिर चंद्र को देखते हुए जीभ निकालकर चिढ़ाने लगा। 😛 चंद्र फिर से उसकी ओर भागा तो राज सॉरी कहते हुए बाहर निकलकर बॉक्स उठाने लगा। राज जैसे-तैसे घसीटते हुए उन्हें अंदर लाया और अपना सामान सेट करने के बाद बॉक्स के गत्ते बाहर ही पटक दिए। अंदर आकर खुद सोफ़े पर पड़ गया, जैसे पहाड़ खोदा हो उसने। चंद्र उसे इस तरह देखकर ना में सिर हिलाते हुए अपने काम में लग गया।
गीता अपने घर में आई। डाइनिंग टेबल पर रखे दम आलू देखकर, उनकी खुशबू लेते हुए, टेबल तक पहुँच गई।
"इन्हें हाथ भी मत लगाना, गीता देवी!" किचन में खड़े विकी ने वहीं से तेज आवाज़ में कहा। गीता ने यह सुनकर मुँह बनाते हुए उसकी ओर देखा।
विकी चलते हुए वहाँ आया और बोला, "ये मैंने अपने लिए बनाए हैं।" यह कहते हुए वह चेयर पर बैठ गया।
"अच्छा, फिर कल जो मैंने मटर-पनीर बनाया था वो क्यों खाया तूने?" गीता ने उसे घूरते हुए कहा।
"किसे उल्लू बना रही है? वो मटर-पनीर तूने नहीं बनाया था, बल्कि ऑनलाइन मँगवाया था।"
"लेकिन पैसे तो मैंने ही दिए थे।"
"उन पैसों पर पूरी तरह तेरा हक़ नहीं था। बल्कि वो किराये के एडवांस लिए हुए पैसे थे, जिसमें मैं भी बराबर का हिस्सेदार हूँ।"
"तू सच में बहुत सेल्फिश इंसान है। और वैसे भी मुझे नहीं खाने तेरे ये सड़े हुए दम आलू। मेरे हाथ अभी सलामत हैं, मैं खुद बना लूँगी।" यह कहते हुए वह किचन में जाने लगी।
"हँ! एक चाय तक तो ढंग से बनानी आती नहीं और दम आलू बनाएगी।" विकी ने उसे जाते हुए देखकर कहा।
"ओहो... खुद तो जैसे मास्टर शेफ है ना तू।" गीता भी किचन में से ही उसे देखते हुए तेज आवाज़ में बोली।
"और नहीं तो क्या? तभी तो देख कितने अच्छे दम आलू बनाए हैं मैंने।" विकी खाते हुए उसे चिढ़ाकर बोला।
"अगर इतना ही घमंड है तुझे तो किसी होटल में शेफ क्यों नहीं बन जाता? रेस्टोरेंट में वेटर का काम क्यों करता है?"
"वो दिन भी बहुत जल्दी आएगा जब दुनिया मुझे मास्टर शेफ विक्रम चौहान के नाम से जानेगी।"
गीता नकली हँसी हँसकर बोली, "अब यह ख्याली पुलाव पकाना बंद कर दे। सब जानती हूँ मैं। दस बार इंटरव्यू के लिए जा चुका है तू, लेकिन एक बार भी पास नहीं हुआ। आया बड़ा मास्टर शेफ बनने।" गीता ने हँसते हुए उसे चिढ़ाया।
"अब अगर तू चुप नहीं हुई ना तो ये दम आलू तेरे मुँह पर फेंक दूँगा, सारा दम निकल जाएगा तेरा।" विकी ने थोड़ा गुस्से में कहा।
यह देखकर गीता एकदम से सहम गई और मन ही मन उसे भला-बुरा कहने लगी, "और कर भी क्या सकता है यह काला कलूटा बंदर? हे भगवान! कुछ तो करो ऐसा कि इसके मन में भी प्यार जाग जाए।" यह सोचते हुए गीता ने एक नज़र विकी को देखा, फिर किचन में अपने काम में लग गई।
चंद्र जब घर से बाहर आया, उसने देखा कि राज ने सामान खाली करने के बाद बॉक्स और उसके टूटे-फूटे गत्ते बाहर गार्डन में यूँ ही पटक दिए थे। वे पूरे गार्डन में इधर-उधर बिखरे पड़े थे, कुछ तो उस क्यारी में भी पड़े थे जिस वजह से उसके छोटे-छोटे पौधे दब गए।
"यह लड़का भी ना, अगर जबरदस्ती धक्के मारकर एक काम करवा भी लो तो उल्टा दस काम बिखेर कर रख देता है।" चंद्र ने उस गार्डन की हालत देखकर कहा।
वहीं दूसरी ओर नयन भी ऊपर बालकनी में खड़ा था। वहाँ से यह नज़ारा साफ़ दिख रहा था। जब उसने गार्डन की यह हालत देखी तो वह गुस्से में दनदनाते हुए सीढ़ियों से नीचे आया और भागते हुए ही घर से बाहर निकल गया।
उसे इस तरह भागता देख, डाइनिंग रूम में बैठा विकी और किचन में काम कर रही गीता हैरान रह गए। "इसे अचानक से क्या हुआ?" गीता ने कहा। जिसे सुनकर विकी बेपरवाही से हँसते हुए बोला, "लगता है इसे कुछ हज़म नहीं हुआ होगा, इसलिए हज़म करने गया है।" यह सुनकर गीता अपने कंधे उचकाते हुए फिर से काम में लग गई।
इधर नयन भागता हुआ सीधा चंद्र के यहाँ जाकर रुका और पूरे गार्डन की हालत देखकर बोला, "यह क्या हाल कर दिया तुमने इस गार्डन का।"
"देखो मैंने...." चंद्र ने अपनी बात कहनी चाही।
लेकिन नयन ने अपनी ही बात जारी रखते हुए कहा,
"अभी आए हुए एक दिन भी नहीं हुआ और यह हाल किया तुमने इस गार्डन का, आगे ना जाने इस घर का क्या हाल करोगे।"
"लेकिन मेरी बात..." चंद्र ने फिर कहना चाहा। लेकिन नयन उसकी तरफ़ कोई ध्यान ना देते हुए दौड़ता हुआ क्यारी के पास गया, "हाय राम! इस क्यारी के फूलों को तो दबोच के रख दिया, बेरहम इंसान।"
"अरे सुन तो.......” चंद्र ने फिर से कहने की कोशिश की। लेकिन नयन उसकी बात काटकर गुस्से में बोला, "क्या सुनूँ??? तुम नहीं हो यहाँ रहने लायक। मैं अभी मामा को फोन करता हूँ और तुम्हें बाहर फिंकवाता हूँ।" नयन ने उसे उंगली दिखाते हुए धमकी देकर कहा और कहते हुए जाने लगा, "अभी करता हूँ फोन.....रुको तुम..." तभी एकदम से चंद्र ने उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए उसे नीम के पेड़ के तने से लगा दिया और दोनों हाथ उसके अगल-बगल रखते हुए खड़ा हो गया। उसने नयन को घेर जरूर रखा था, लेकिन उसने दोनों के बीच फ़ासला बनाए रखा। वह उसे बिल्कुल भी टच नहीं कर रहा था।
यह सब इतना अचानक हुआ कि नयन एकदम से सहम गया और घबराते हुए चंद्र को देखने लगा जो काफी सख्त चेहरा बनाकर उसे देख रहा था।
"देखो मि. नयन शेखावत, मैंने यह घर बस कुछ दिनों के लिए किराये पर लिया है। और अगर तुमने अपनी यह चोंच बंद नहीं की तो मैं इस घर को खरीदने की भी हैसियत रखता हूँ। फिर करते रहना तुम मामा..मामा.. और बाई द वे, यह गार्डन जो तुम बिखरा हुआ देख रहे हो ना, यह मैंने नहीं बल्कि मेरे नालायक भाई ने किया है, जिसके लिए मैं तुमसे माफ़ी मांगता हूँ, ओके।"
अपनी बात कहकर चंद्र उससे दूर हट गया। नयन की तो बोलती ही बंद हो गई थी। वह चंद्र को देखते हुए बिना कुछ कहे धीरे से मेन गेट की तरफ़ चल दिया।
वह मेन गेट से थोड़ी ही दूर था। वह डरता भले ही था, लेकिन वह हमेशा अपना डर छिपाने की नाकाम कोशिश जरूर करता था। यहाँ भी उसने यही किया। वह अपनी पूरी हिम्मत बटोरकर चंद्र से सख्त लहजे में बोला, "ठीक है, लेकिन अगर तुमने इस घर में कुछ भी चेंज करने की कोशिश की ना तो मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं, याद रखना।"
यह सुनकर चंद्र ने बड़ी ही इंटेंस निगाहों से उसे देखा और बोला, "अच्छा, लेकिन उसके लिए तुम्हें मुझे पहले पकड़ना तो पड़ेगा ना? तो आओ पकड़ो।" यह कहते हुए चंद्र उसकी ओर बढ़ने लगा।
नयन घबरा गया और पीछे हटते हुए बोला, "हेय, आगे मत आओ, वरना मुझे गुस्सा आ गया ना तो मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं।"
"यही तो मैं कह रहा हूँ, पहले पकड़ो तो सही, कम ऑन, कैच मी।" चंद्र यह कहते हुए आगे बढ़ रहा था और नयन पीछे हटते-हटते मेन गेट तक पहुँच गया।
"मम्माआआआ!!!"
वह एकदम से "मम्मा" कहते हुए गेट खोलकर वहाँ से भाग गया।
चंद्र पहले तो चौंका, लेकिन फिर जोर से हँस दिया, "नादान!"
यह कहते हुए उसने पलटकर जब गार्डन को देखा तो खुद से ही बोला, "अब यह सब मुझे ही साफ़ करना होगा। वरना अगर अपने नालायक भाई से कहा तो वह फिर कोई गड़बड़ कर देगा और यह मेरा जबरदस्ती का मकान मालिक फिर से आ जाएगा मुझे धमकी देने।" यह कहते हुए वह सफ़ाई करने में जुट गया।
सब कुछ साफ़ करने के बाद जब चंद्र घर के अंदर आया तो उसने देखा कि राज सोफ़े पर ही सो गया था। उसे देखकर चंद्र मुस्कुराते हुए उसके पास आया और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरकर कमरे में चला गया।
जारी है.......
अगले दिन रविवार था। नयन घोड़े बेचकर सो रहा था, विकी रनिंग करने गया था, और गीता को अपने काम के सिलसिले में अपनी दोस्त मिनी से मिलना था, इसलिए वह अपने कमरे में तैयार हो रही थी।
"आज तो रविवार है, नयन को उठाने का कोई फायदा नहीं," यह कहते हुए वह शीशे के सामने अपने बाल संवार रही थी।
इधर, चंद्र भी सोया हुआ था क्योंकि पिछली रात बगीचे की सफाई करने के चक्कर में वह देर से सोया था। जब उसकी आँख खुली, तो उसने देखा कि राज का एक पैर उसके पेट के ऊपर था और वह खुद चंद्र के पैरों की ओर मुँह करके उन्हें पकड़कर सोया हुआ था।
"जागते हुए तो कभी मेरे पैर नहीं पकड़े और नींद में कैसे मेरे चरणों में पड़ गया है," यह कहते हुए चंद्र ने राज का पैर अपने ऊपर से हटाया और अपने पैर छुड़ाने लगा। लेकिन राज ने उल्टा और कसकर पकड़ लिए। आखिरकार चंद्र ने झटके से अपना पैर छुड़ाकर राज को लात मारकर नीचे गिरा दिया।
राज नीचे गिरा तो उसकी आँख खुल गई।
"आहह..भाई, यह सुबह-सुबह टॉर्चर क्यों कर रहे हो मुझे....." राज नीचे पड़े-पड़े दर्द से कराहते हुए बोला।
"तू तो कल रात सोफे पर सो रहा था ना, फिर यहाँ मेरे कमरे में कैसे?" चंद्र ने पूछा।
राज उठकर बैठा और उसे देखते हुए बोला, "रात में मेरी आँख खुल गई थी। अब नया-नया घर है तो मैं डर के मारे आपके कमरे में आ गया और आप भी कितने खराब हो, मुझे वहाँ अकेला छोड़कर कमरे में आकर सो गए।"
"तू गहरी नींद में सो रहा था, इसलिए मैंने नहीं उठाया," यह कहते हुए चंद्र बिस्तर से उठकर खड़ा हो गया।
उसके उठते ही राज कुदक कर बिस्तर पर लेट गया और मज़ाक में हँसते हुए बोला, "तो आप उठाकर ले आते, आपके मसल्स तो वैसे भी काफी स्ट्रॉन्ग हैं।"
"तू क्या पाँच साल का बच्चा है जो मैं उठाकर लाता? आज से अपने कमरे में ही सोना, समझा?" यह कहते हुए चंद्र बाथरूम में चला गया।
कुछ देर बाद विकी रनिंग करके लौट आया। गीता बाहर ही आ रही थी। वे दोनों बहन-भाई एक-दूसरे पर कोई ध्यान न देते हुए अपने-अपने रास्ते चल दिए। विकी भी तैयार होकर रेस्टोरेंट के लिए निकल गया।
सूरज सर पर चढ़ आया था। नयन बालकनी में था और लंच के समय सुबह की चाय पी रहा था, लेकिन उसकी नज़र बगल वाले घर पर ही टिकी हुई थी। तभी चंद्र अपना लैपटॉप लेकर बगीचे में आया और झूले पर बैठकर अपना काम करने लगा। उस बगीचे में पेड़ों की वजह से काफी छाया थी, जिस कारण वहाँ धूप का नामो-निशान तक नहीं था।
नयन उसे ही देख रहा था और मन ही मन कह रहा था, "तुम क्या समझते हो चंद्र सिंह राठौड़, मैं तुमसे डर जाऊँगा? इतना तो मैं समझ ही चुका हूँ कि तुम मुझे नौकरी से तो नहीं निकाल सकते, क्योंकि तुम तो पर्सनल लाइफ को अपने प्रोफ़ेशन से कोसों दूर रखते हो। तो यहाँ तो मैं तुम्हें कुछ भी कह सकता हूँ।" यह सोचकर उसके चेहरे पर शातिर मुस्कान आ गई।
कुछ देर बाद चंद्र लैपटॉप बंद करके उठा और बगीचे में घूमने लगा। नयन अब भी वहीं खड़ा सी आई डी की तरह उस पर नज़र रखे हुए था।
"क्या दिन आ गए हैं! कल तक जिस घर में मैं बड़े हक से जाता था और बगीचे में खेला करता था, आज वहाँ एक अंजान इंसान बड़े हक से रह रहा है और मेरे प्यारे बगीचे में मजे से टहल रहा है।" नयन रोने सी सूरत बनाकर मन ही मन बोला।
चंद्र घूमते हुए अमरूद के पेड़ के पास आया और एक अमरूद तोड़ लिया। यह देखकर तो नयन के तन-बदन में आग लग गई। वह जल्दी से नीचे आया और इस बार उसके घर ना जाकर अपने घर की दीवार के सहारे टेबल पर खड़ा होकर चिल्लाया, "किससे पूछकर तुमने यह फल तोड़ा?"
यह आवाज सुनकर चंद्र ने सामने दीवार की ओर देखा, जहाँ नयन दीवार के पार खड़ा गुस्से में उसे घूर रहा था। उसे देख चंद्र ने अपनी भौंहें ऊँची कर गहरी साँस भरकर सिर हिलाते हुए उसे देखा और बोला, "अब तुम्हें इसमें क्या दिक्कत है? एक फल ही तो तोड़ा है मैंने, कौन सी तुम्हारी वाटिका उजाड़ दी।"
"तुम इस घर पर अपना हक़ जमा सकते हो, लेकिन इस अमरूद के पेड़ पर नहीं।" नयन तेज आवाज में बोला।
"क्यों? क्या यह पेड़ इस घर से अलग है?" चंद्र ने उस पेड़ की ओर इशारा करते हुए उससे कहा।
"यह पेड़ मेरा है। यह मेरे खेत में उगा था, तब यह छोटा सा पौधा था। मैं और मेरी मम्मी ने इसे बहुत ही संभालकर यहाँ लाया था। मेरे नाना और मैंने मिलकर इसे लगाया था, इसलिए इस पेड़ के फल खाने का तुम्हें कोई हक़ नहीं।" नयन ने बड़ा हक़ जमाते हुए अपने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा।
नयन की यह बात सुनकर चंद्र को मन ही मन बहुत हँसी आ रही थी कि यह लड़का अपना अधिकार जमाने के लिए कितने गड़े मुर्दे उखाड़ता है। अब तो वह भी उसे चिढ़ाने के मूड में आ गया और उससे बोला, "यह बात है। चलो, एक बात मैं भी तुम्हें बताता हूँ। कहते हैं कि जो इंसान पेड़ लगाता है, उसके फल वह खुद नहीं खा पाता।"
"कौन कहता है? जिसने भी यह कहा है ना, मैं अभी उसकी यह बात गलत साबित करके दिखाता हूँ...." यह कहते हुए नयन टेबल से नीचे उतरा और सीधा मेन गेट खोलकर चंद्र के यहाँ आ गया।
चंद्र अब भी वहीं उस पेड़ के पास खड़ा था। नयन उसके सामने आकर खड़ा हो गया और सिर ऊँचा कर उस पेड़ को देखकर चंद्र से बोला, "मैं अभी इस पेड़ का फल खाकर दिखाता हूँ।" वह अमरूद तोड़ने के लिए उछका, लेकिन उसका हाथ नहीं पहुँच रहा था। चंद्र उसे देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहा था और अपने हाथ बाँधे खड़ा था।
नयन जब उछक-उछक कर परेशान हो गया, तो चंद्र को देखकर खिसियाते हुए बोला, "जो नीचे था उसको तो पहले ही तोड़ लिया तुमने।"
चंद्र के चेहरे पर हल्की सी हँसी आ गई। "मैं ऊँचाई पर लगे हुए भी तोड़ सकता हूँ तुम्हारे लिए, अगर तुम चाहो तो।"
"जी नहीं, इसकी ज़रूरत नहीं। मैं खुद तोड़ सकता हूँ।"
"ओके! तो फिर तोड़ लो।"
नयन ने इधर-उधर देखा। उसे एक पुरानी सी कुर्सी दिखाई दी जो क्यारी के पास रखी हुई थी। वह उसे लाया और उस पर चढ़ गया, लेकिन वह कुर्सी बेजान थी, इसलिए नयन का भार झेल नहीं पाई और उसकी एक टांग टूट गई।
"मम्मा....." नयन गिरने के डर से जोर से चिल्लाया, लेकिन वह गिरता उससे पहले ही चंद्र ने उसे पकड़ लिया। अगर वह गिर जाता, तो सीधा मुँह के बल नीचे गिरता। इसलिए जब चंद्र ने उसे सामने से पकड़ा, तो वह उसके कंधों पर ही लटक गया। उसकी दोनों बाहें चंद्र की गर्दन के चारों ओर लिपटी हुई थीं और चंद्र के हाथ उसकी कमर पर थे। नयन चंद्र के गले से लगा हुआ डर के मारे अपनी आँखें कसकर बंद किए हुए था। नयन के दिल की धड़कनें चंद्र को सुनाई दे रही थीं, जिनसे साफ़ पता चल रहा था कि वह कितना डर गया था, जिस वजह से उसका दिल काफ़ी तेज़ी से धड़क रहा था।
चंद्र ने नयन को पकड़कर बचा तो लिया था, लेकिन इस तरह उसके इतना करीब होने से वह खुद ही असहज हो गया। उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी। खुद को चंद्र के इतना करीब पाकर नयन ने एकदम से अपनी आँखें खोली और हिचकिचाते हुए जल्दी से उससे दूर हो गया।
वैसे इस बार चंद्र भी थोड़ा हिचकिचा गया था, लेकिन उसने अपने चेहरे पर यह जाहिर नहीं होने दिया। नयन तो हिचकिचाते हुए अपने कदम पीछे ले रहा था, लेकिन तभी राज बाहर निकलकर आया और नयन को वहाँ देख आश्चर्य से बोला, "हेय! तुम तो वही हो ना जो ट्रेन में मिले थे।"
उसकी आवाज सुनकर नयन वहीं रुक गया और उसे देखने लगा। राज उनके पास आया और चंद्र से बोला, "है ना भाई, वही है ना यह।" चंद्र ने बस हाँ में सिर हिला दिया।
राज ने फिर से नयन को देखा और बोला, "वैसे तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
"यह हमारे दूर के ऑनर हैं।" चंद्र ने नयन की ओर देखकर थोड़ा मज़ाकिया लहजे में कहा, ताकि थोड़ी देर पहले हुए वाक्ये से नयन का ध्यान भटक जाए।
यह सुनकर नयन ने गुस्से में मुँह सिकोड़कर उसे देखा और बोला, "मैंने यह कभी नहीं कहा कि मैं इस घर का ऑनर हूँ, लेकिन इस घर से मेरी कई यादें जुड़ी हैं, इसलिए कोई अंजान इंसान इस घर को कोई नुकसान पहुँचाए, यह मुझे कतई बर्दाश्त नहीं। यह बात तुम भी समझ लो और अपने इस भाई को भी समझा दो।" नयन ने राज की ओर इशारा करते हुए चंद्र से कहा।
"ऐ....यह किस तरह से बात कर रहे हो तुम? हमने रेंट दिया है, कोई फ़्री में नहीं रह रहे...." राज नयन की ओर देखकर गुस्से में बोलने लगा। वह आगे कुछ बोलता, उससे पहले ही चंद्र ने उसे हाथ दिखाकर चुप रहने को कहा और खुद नयन के सामने आकर बोला, "ओके! जैसा तुम कहो, अब खुश।"
"लेकिन भाई....." राज ने कुछ बोलना चाहा, लेकिन चंद्र ने उसे फिर चुप करा दिया।
चंद्र की बात सुनकर नयन कुछ पल उसे देखता रहा, फिर बोला, "ओके! लेकिन अगर तुम अपनी बात पर कायम नहीं रहे, तो जो मैं पनिशमेंट दूँगा, वह माननी होगी तुम्हें।"
चंद्र कुछ देर सोचते हुए बोला, "ठीक है, लेकिन सिर्फ़ यहाँ। ऑफिस टाइम में बॉस मैं हूँ और वहाँ तुम्हें मेरी बात माननी होगी।"
यह सुनकर नयन सोचने लगा, "ऑफिस टाइम नौ से पाँच, यानी सिर्फ़ आठ घंटे यह मेरा बॉस रहेगा, बाकी सोलह घंटे तो मेरे हैं।" यह सोचकर वह मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोला, "ओके, डन।" नयन ने यह कहा और वहाँ से चला गया।
उसके जाने के बाद राज बोला, "भाई, आपने इतनी आसानी से उसकी यह बात क्यों मान ली? क्या आप उस बच्चे से डर गए?"
"मैं किसी से नहीं डरा, लेकिन हमें उसकी भावनाओं की क़द्र करनी चाहिए जो उसकी इस घर से जुड़ी हैं। वैसे वह कोई बच्चा नहीं है, बल्कि वह तो तुमसे उम्र में तीन साल बड़ा है और मेरे अंडर ऑफिस में ही जॉब करता है।"
"व्हाट? यह आपके ऑफिस में ही जॉब करता है!" राज ने थोड़ा हैरान होकर कहा, जिस पर चंद्र ने हाँ में सिर हिला दिया।
राज कुछ पल तो इस बारे में सोचता रहा, फिर चंद्र से हँसते हुए बोला, "भाई, या तो आप बहुत होशियार हो या फिर वह नादान है। उसने आपसे डील तो कर ली, पर यह नहीं सोचा कि चौबीस घंटे में से बारह घंटे तो दिन होता है और ऑफिस टाइम है आठ घंटे, यानी केवल चार घंटे ही तो हैं उसके पास अपना हुकुम चलाने के लिए। बाकी रात में वह सोएगा या हुकुम चलाएगा।"
यह सुनकर चंद्र भी हल्के से हँस दिया, फिर राज को देखते हुए बोला, "उसे छोड़ और यह बता कि तू यह तैयार होकर कहाँ जा रहा है?"
"अपने एक दोस्त से मिलने जा रहा हूँ।" राज ने अपने बालों में हाथ फेरकर कहा।
"यहाँ आए हुए सिर्फ़ दो दिन हुए हैं तुझे और तूने दोस्त भी बना लिए!"
"दो दिन तो बहुत ज़्यादा हैं। मुझे तो दो सेकेंड ही काफी हैं दोस्त बनाने के लिए।"
"किसे पागल बना रहा है तू? मैं भी इस दौर से गुज़रा हुआ हूँ, इसलिए समझा रहा हूँ तुझे। यह सब चक्कर छोड़ और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।"
"भाई, आप गलत समझ रहे हैं। मैं रियली अपने दोस्त से ही मिलने जा रहा हूँ। ट्रस्ट मी।"
चंद्र उसे आँखें छोटी करके घूर रहा था, जिसे देखकर राज बोला, "अब आप ऐसे पापा की तरह मत घूरो। मैं सच कह रहा हूँ।"
"ओके!" चंद्र ने जब यह कहा, तो राज खुश होकर उससे लिपट गया। "थैंक्स भाई!"
"देख, यह शहर तेरे लिए नया है, इसलिए अपना ख्याल रखना और किसी पर जल्दी भरोसा मत करना।" चंद्र ने उससे कहा।
"ओके भाई, मैं ध्यान रखूँगा।" यह कहते हुए राज खुश होते हुए चला गया।
जारी है.......
रेस्टोरेंट में विकी और आदित्य में किसी बात पर बहस हो गई थी और वे दोनों लड़ रहे थे। लड़ते-लड़ते बात मार-पीट पर पहुँच गई और इस चक्कर में काउंटर पर रखा वास नीचे गिरकर टूट गया, और उसमें लगे गुलाब के फूल भी नीचे बिखर गए। वहाँ पर कुछ लोग बैठे हुए थे; कुछ तो उन दोनों की फाइट को इंजॉय कर रहे थे, और कुछ उन्हें रोकने की कोशिश कर रहे थे।
तभी जोगी अंकल वहाँ आए और चिल्लाते हुए बोले, "ये क्या हो रहा है यहाँ?" उन्होंने उन दोनों को एक-दूसरे से छुड़ाया। "तुम दोनों ने मेरे रेस्टोरेंट को अखाड़ा क्यों बना रखा है? और ये वास भी तोड़ दिया?" उन्होंने उस टूटे हुए वास को देखकर गुस्से में कहा।
"शुरूआत पहले इसने की थी....." आदित्य ने विकी की तरफ इशारा करके कहा।
"भड़काया तूने था मुझे।" विकी ने भी उसकी बात का जवाब देते हुए तेज आवाज में कहा।
"आवाज नीचे कर विकी, और आराम से बता, क्या बात हुई तुम दोनों के बीच?" जोगी अंकल ने पूछा। विकी ने गुस्से में मुँह फेर लिया।
"बात कुछ नहीं थी। वहाँ उस टेबल पर एक मैडम ने इसे बुलाया, तो इसने मुझसे कहा कि 'तू चला जा।' मैंने बस मजाक में इतना कह दिया कि 'तू कभी किसी लड़की के क्लोज़ नहीं जाता और अपनी बहन से भी चिढ़ता है, इसका मतलब तुझे लड़कों में इंट्रेस्ट है।' और ये भड़क गया मुझ पर।" आदित्य ने कहा। जिस पर विकी गुस्से में बोला, "मुझे इस तरह के मजाक बिल्कुल पसंद नहीं। मेरी फीलिंग्स के बारे में अंदाजा लगाने वाला तू होता कौन है?"
"मैं....मैं तेरा लंगोटिया यार हूँ और तेरी रग-रग से वाकिफ हूँ। मैंने तो बस मजाक किया था, लेकिन जिस तरह से तू चिढ़ रहा है ना, उससे तो मुझे कुछ डाउट....." आदित्य इतना ही कहा था कि विकी फिर से उसे मारने के लिए आगे बढ़ा। लेकिन जोगी अंकल बीच में आ गए और उसे रोकते हुए बोले, "सही तो कह रहा है वो। अगर ऐसा नहीं है, तो तुझे हँस कर टाल देना चाहिए था। लेकिन तू तो ऐसे दिखा रहा है जैसे उसने तेरा बहुत बड़ा राज खोल दिया हो।"
यह सुनकर विकी कुछ देर चुपचाप खड़ा आदित्य को घूरता रहा। फिर जोगी अंकल ने उन दोनों से कहा, "अब तुम दोनों ने जो ये रायता फैलाया है, इसे साफ करो। जानते हो, ये फ्रेश फ्लावर वास था जो मैंने आज ही मँगवाया था। लेकिन तुम दोनों बेवकूफों ने सब बर्बाद कर दिया। अब जो ये नुकसान किया है ना, वो तुम दोनों की सैलरी में से कटेगा।" उन्होंने काफी गुस्से में यह कहा और वहाँ से चले गए। उनके जाने के बाद विकी ने वहाँ खड़े लोगों की ओर देखा, जो उसे देखकर मुँह दबाकर हँस रहे थे। विकी आदित्य को घूरने लगा, जिस पर आदित्य ने अपने कान पकड़ लिए। उसके बाद वे दोनों सफाई में लग गए।
इधर, राज जब सोसायटी से निकलकर मेन रोड पर आया, तो उसे सामने से गीता आती हुई दिखी। उसे देखकर तो वह अपनी सुध-बुध खो बैठा और मन ही मन मुस्कुराकर बोला, "वाओ! सो ब्युटिफुल!"
गीता ने ब्लू कलर का वन पीस पहना था। उसके कंधे तक आते भूरे बाल हल्के से माथे पर बिखरे हुए थे, और बड़ी काली आँखों में लाइनर और होंठों पर हल्के गुलाबी रंग की लिपस्टिक में वह किसी मॉडल की तरह चलते हुए आ रही थी।
राज तो उसे देखते हुए आगे बढ़ता रहा और जोगी अंकल के रेस्टोरेंट के सामने आ गया। गीता तो उसके साइड से होकर निकल गई, और वह उसे जाते हुए देखता रह गया। तभी चलते-चलते सामने आते विकी से टकरा गया। विकी का भी ध्यान नहीं था; वह तो गुलाब के फूल समेटकर उन्हें टोकरी में भरकर ठिकाने लगाने जा रहा था। लेकिन राज से टकराते ही वे सारे फूल उसके हाथों से छूटकर हवा में उड़ गए, और वह राज को लेकर नीचे गिर गया। उन दोनों के ऊपर फूलों की बारिश हो गई। राज विकी के ऊपर था, और उसका सिर विकी के सीने पर टिका हुआ था।
"व्हाट द हेल, आँखें क्या घर पर छोड़कर आए हो...?" विकी ने गुस्से में कहा। जिसे सुनकर राज ने धीरे से अपना सिर उठाकर उसे देखा। राज को देखकर विकी के शब्द उसके मुँह में ही रह गए। राज का क्यूट सा गोल चेहरा, जिस पर स्लेटी रंग की आँखें, छोटी सी नाक और भरे हुए गाल थे; गिरने की वजह से उसके बाल भी बिखरकर माथे पर आ गए थे। राज को देखकर तो विकी का गुस्सा ना जाने कहाँ गायब हो गया।
यह सब आदित्य भी देख रहा था, क्योंकि वह भी वास के टुकड़े साफ करके उन्हें फेंकने आया था। तो सामने यह एक्सीडेंट होता देख वहीं जम गया। उसकी तो आँखें ही फटी रह गईं यह सीन देखकर।
तभी राज सॉरी कहते हुए विकी के ऊपर से उठा और अपने कपड़े झाड़ने लगा। विकी भी उसे देखते हुए उठकर खड़ा हो गया। "सॉरी, मेरा ध्यान कहीं और था।" राज अपने कपड़े झाड़ते हुए विकी से बोला। लेकिन विकी तो बस उसे देखने में लगा हुआ था। यह देखकर राज ने उसके सामने हाथ हिलाया। "हेय, मैं आपसे सॉरी कह रहा हूँ, सुना आपने?" तब जाकर विकी होश में आया। "इट्स ओके!" उसने बस इतना ही कहा। जिसे सुनकर आदित्य को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि उसका यह गुस्सैल दोस्त इतनी आसानी से किसी को माफ़ कैसे कर सकता है।
राज वहाँ से चला गया, और विकी वहीं खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा। तभी पीछे से आदित्य उसके कंधे पर हाथ रखकर हल्के से खराश दिया। विकी ने जब पलटकर उसकी ओर देखा, तो उसने मुस्कुराते हुए अपनी आईब्रो उचका दी।
"क्या? कुछ उल्टा-सीधा मत सोचना मेरे बारे में, वरना तुझे कड़ाई में डालकर तल दूँगा, समझा?" विकी झटके से उसका हाथ अपने कंधे पर से हटाते हुए जाने लगा। तभी आदित्य उसे रोकते हुए बोला, "जाने से पहले ये फूल तो साफ़ करता जा, जो तूने उसके स्वागत में उड़ाए थे।" यह कहते हुए आदित्य मुँह फेरकर हँस दिया।
विकी ने उसे हँसते हुए देख तो लिया था, लेकिन जब उसने खिड़की में से जोगी अंकल को देखा, तो अपने गुस्से का घूँट पीते हुए वहाँ आया और चुपचाप उन फूलों को समेटने लगा।
अगले दिन 8 बजकर 20 मिनट हो चुके थे, लेकिन नयन की नींद अब तक नहीं खुली थी। उसने 7:30 बजे का अलार्म तो लगाया था, लेकिन फ़ोन में बैटरी ना होने की वजह से बजा ही नहीं। (ना जाने इस बंदे के फ़ोन में बैटरी क्यों नहीं रहती)
गीता जल्दी-जल्दी नयन के रूम में आई और चिल्लाते हुए उसे उठाने लगी, "नन्नू!!! उठ जा!!!!! ऑफ़िस नहीं जाना क्याआआ......?" वह उसके कान के पास आकर चिल्लाई। तब जाकर नयन हड़बड़ाते हुए उठा और घड़ी में टाइम देखकर एकदम से चिल्लाते हुए बोला, "8:20 हो गए!!!! आपने मुझे उठाया क्यों नहीं?"
"मैं तो आज खुद ही लेट हो गई उठने में, तुझे क्या उठाती!"
"अगर मैं लेट हो गया, तो बहुत बड़ी मुसीबत में फँस जाऊँगा...." यह कहते हुए नयन जल्दी से बिस्तर से नीचे उतरा और बाथरूम में घुस गया।
इधर, चंद्र ऑफ़िस जाने के लिए पूरी तरह रेडी था, लेकिन उसे उसका लैपटॉप नहीं मिल रहा था। उसने पूरा घर छान मारा, लेकिन उसे लैपटॉप कहीं नहीं दिखा। "आज कंपनी के ओनर से भी मीटिंग है मेरी, अगर मैं लेट हो गया, तो बहुत बड़ी मुश्किल में पड़ जाऊँगा।" वह खुद में ही बड़बड़ाते हुए लैपटॉप ढूँढ रहा था। "कहीं राज के कमरे में तो नहीं? ज़रूर उसी के पास होगा। मुझे सबसे पहले वहीं देखना चाहिए था।" चंद्र गुस्से में बड़बड़ाते हुए राज के कमरे में गया।
राज तो चादर तान कर सो रहा था। चंद्र ने एक नज़र उसे देखा और उसके कमरे की तलाशी लेने लगा, लेकिन उसे वहाँ भी लैपटॉप नहीं मिला। "बड़ी अजीब बात है, चीज़ घर में से आखिर जा कहाँ सकती है...?" यह कहकर उसने वहाँ रखी टेबल पर अपना हाथ मार दिया। फिर उसने घड़ी में टाइम देखा, जिसमें 8 बजकर 35 मिनट हो चुके थे। "मेरी तो कार भी सर्विस वाले लेकर ही बैठ गए, बस या टैक्सी से ही जाना पड़ेगा।" उसने राज की ओर देखा। "इसी से पूछता हूँ...." यह कहते हुए वह राज के पास गया और उसके ऊपर से चादर हटा दी। चादर हटते ही उसका पारा हाई हो गया, क्योंकि जिस लैपटॉप के लिए वह कब से परेशान हो रहा था, राज उसे अपने सीने पर रखकर सो रहा था। राज ने अपनी आँखें खोलीं और चंद्र को देखकर आँखें मसलते हुए बोला, "गुड मॉर्निंग भाई!" चंद्र ने कुछ नहीं कहा, बस आँखों में गुस्सा लिए उसे घूरता रहा।
"क्या हुआ आपको?" राज ने उससे पूछा।
"क्या है ये?" चंद्र ने लैपटॉप की ओर इशारा करके कहा।
उसे देखकर राज घबराते हुए उठा और लैपटॉप चंद्र की ओर बढ़ाते हुए बोला, "सॉरी, मैं कल रात इसमें सीरीज़ देखते हुए ही ऐसे ही सो गया था।"
चंद्र ने झटके से लैपटॉप लेते हुए गुस्से में उसे मारने के लिए हाथ उठाया, लेकिन फिर बीच में ही रोक लिया। राज घबराकर अपने सिर पर हाथ रखते हुए थोड़ा नीचे झुक गया।
"अभी मेरे पास तुझे कूटने का टाइम नहीं है।" चंद्र यह कहकर उसके कमरे से बाहर चला गया।
नयन भी जल्दी-जल्दी तैयार होकर आया और अपना बैग उठाकर घर से बाहर भाग लिया। "अरे शूज़ तो पहन ले।" पीछे से गीता चिल्लाते हुए बोली। यह सुनकर नयन ने अपने पैरों की तरफ़ देखा, जिनमें सिर्फ़ सॉक्स ही थे। वह फिर से भागकर अंदर गया और जल्दी-जल्दी शूज़ पहनकर बाहर आया।
चंद्र भी उसी समय घर से निकला। वे दोनों एक-दूसरे को देखकर चौंक गए।
"आज तो सर खुद ही लेट हैं।" नयन ने चंद्र को देखकर मन ही मन कहा। वहीं चंद्र भी उसे देखकर सोच रहा था, "अब इसे अच्छा मौका मिल जाएगा मुझे परेशान करने का; खुद लेट है, इस बात पर ध्यान नहीं देगा, लेकिन मुझे इस बात के लिए ज़रूर टीज़ करेगा।" यह सोचते हुए चंद्र तेज कदमों से आगे बढ़ गया। उसे देखकर नयन ने तो दौड़ ही लगा दी और उसे देखते हुए आगे बढ़ गया।
"रेस लग रही है क्या?" चंद्र ने उसे भागता देख मन ही मन कहा और तेज कदमों से आगे बढ़ता रहा। तभी उसने देखा नयन भागता हुआ वापस आ रहा था और चिल्ला भी रहा था। उसे देखकर चंद्र वहीं रुक गया। "अब क्या हुआ इसे?" नयन जल्दी से आकर चंद्र के पीछे छिप गया। चंद्र को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन जब उसने सामने देखा, तो एक खतरनाक डॉगी भागते हुए आ रहा था। चंद्र ने नीचे से एक पत्थर उठाकर उस डॉगी पर मारने के लिए जैसे ही हाथ ऊपर किया, वह डॉगी डर के मारे वहाँ से भाग गया।
चंद्र ने अपने पीछे छिपे नयन से कहा, "ये डॉगी भी तुम्हारी ही तरह था। भौंक तो ऐसे रहा था जैसे कितना खतरनाक है, और ज़रा सा पत्थर क्या उठाया, डरकर भाग गया।"
"ऐ....तुम मुझे गाली दे रहे हो।" नयन ने उसके सामने आकर कहा।
"मैंने तुम्हें गाली कब दी?" चंद्र ने कहा।
"तुमने मुझे अभी डॉगी कहा, क्या मैं दिन भर भौंकता रहता हूँ?" नयन थोड़ा गुस्से में बोला।
"नहीं, तुम तो उस छोटे पप्पी की तरह हो, जिसके भौंकने पर भी किसी को डर नहीं लगता।" चंद्र यह कहकर व्यंग्य से मुस्कुरा दिया और वहाँ से चल दिया।
"मेरी इतनी बेइज़्ज़ती.....तुम्हें तो मैं छोड़ूँगा नहीं...." यह कहते हुए नयन उसके पीछे भागा।
"पहले पकड़ तो लो।" चंद्र भी यह कहते हुए भागने लगा। उसने मेन रोड पर आकर एक टैक्सी रुकवाई, लेकिन वह बैठ पाता उससे पहले ही नयन जल्दी से आकर उसमें घुस गया और डोर बंद करते हुए ड्राइवर से बोला, "भैया, रियल फ़ूड प्रोडक्ट कंपनी चलो।"
"ऐ....ये पहले मैंने रुकवाई है।" चंद्र ने खिड़की में से उसे देखते हुए कहा।
"लेकिन तुमसे पहले मैं इसमें बैठ चुका हूँ।" नयन ने उसे देखकर कहा। फिर सामने ड्राइवर से बोला, "भैया जल्दी चलो ना, अगर मैं लेट हो गया तो मुझे मेरे बॉस से डाँट खानी पड़ेगी।" यह लाइन नयन ने चंद्र को देखकर कही। ड्राइवर ने टैक्सी स्टार्ट की, और नयन खिड़की में से चंद्र को बाय-बाय करता हुआ उसे चिढ़ाकर चला गया। 😛
इस बार चंद्र गुस्से में उसे देख रहा था। "डाँट तो तुम्हें वैसे भी खानी पड़ेगी, पहले ऑफ़िस तो पहुँचो।"😠 यह कहकर चंद्र ने पीछे से आती हुई दूसरी टैक्सी रुकवा ली।
जारी है.......
राज के कॉलेज जाने का अभी समय था। सुबह चंद्र का गुस्से भरा चेहरा देखने के बाद उसे नींद नहीं आई थी, इसलिए वह बाहर गार्डन में घूम रहा था। तभी उसकी नज़र बगल वाले घर की बालकनी पर गई जहाँ गीता किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी।
उसे देखकर राज चलते-चलते रुक गया। वह हैरान भी था और खुश भी।
"अरे! ये तो वही है जिसे मैंने कल देखा था।" उसने खुद से कहा। ये कहते हुए उसके होंठों की मुस्कान और गहरी हो गई। वह वहीं झूले पर बैठ गया और उसे देखता रहा। कुछ देर बाद गीता बात करते हुए नीचे चली गई। उसके जाने के बाद राज सोचने लगा, "ये तो पड़ोस में ही रहती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि यही इस घर की ऑनर हो, जिन्हें भाई ने एडवांस दिया था? लगता है भाई ने भी इन्हें ही देखकर यह घर रेंट पर लिया है।" यह सोचकर राज हँस दिया।
इधर विकी भी रेस्टोरेंट जाने के लिए घर से निकला, लेकिन जब उसने गार्डन में हँसते हुए राज को देखा तो उसके कदम वहीं रुक गए। वह बस चुपचाप खड़ा उसे देखता रहा।
राज की नज़र जब विकी पर गई तो उसने कहा, "अरे! आप तो वही हो जिनसे कल मेरा एक्सीडेंट हुआ था।" वह यह कहकर हँसते हुए मेन गेट पर आकर खड़ा हो गया।
यह सुनकर गेट के उस पार खड़े विकी के चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान आ गई और उसने कहा, "हाँ, वही हूँ। और तुम शायद चंद्र के भाई हो, राइट?"
"यस, आई एम राज। वैसे आप यहाँ क्या कर रहे हैं?" राज ने उससे पूछा।
"मेरा नाम विकी है और यह घर मेरा है।" उसने अपने घर की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।
"विकी!… कहीं आप इस घर की ऑनर के भाई तो नहीं?" राज सोचते हुए उससे बोला।
"हाँ।" विकी ने कहा।
"वाओ! शी इज़ सो ब्यूटीफुल।" राज गीता को याद करते हुए बोला।
"किसकी बात कर रहे हो?" विकी ने थोड़ा कन्फ़्यूज होकर पूछा, क्योंकि उसे थोड़ा ही पता था कि राज गीता को ऑनर मान रहा है।
"आपकी बहन जो इस घर की ऑनर हैं।" राज ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा।
"ओह, हेलो! मेरी बहन इस घर की ऑनर नहीं है। इस घर के ऑनर मेरे बड़े भैया वीरेन हैं, जो अब्रॉड में रहते हैं।"
"वो तो मुझे भी पता है, लेकिन भाई ने एडवांस तो आपकी बहन को ही दिया था ना? और रेंट भी हर महीने उन्हीं को देंगे।"
"अच्छा, अगर ऐसा है तो फिर तो मैं भी इस घर का ऑनर हुआ, क्योंकि रेंट में तो मेरा भी बराबर का हिस्सा है।" विकी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा।
जिसे सुनकर राज थोड़ा कन्फ़्यूज होकर बोला, "कितने ऑनर हैं इस घर के! आपके बड़े भैया, आपकी बहन, आप खुद और कल जो लड़का भाई से लड़ रहा था—क्या नाम है उसका… हाँ, नयन… वो भी खुद को मकान मालिक समझता है। भाई ने भी क्या घर लिया है रेंट पर…" यह कहते हुए राज की नज़र फिर से बालकनी पर चली गई जहाँ गीता पौधों को पानी दे रही थी। उसे देखकर राज मुस्कुराते हुए बोला, "लेकिन जो भी है, बहुत ब्यूटीफुल है।"
विकी ने राज की नज़रों का पीछा किया और राज के कान के पास आकर थोड़ा सा खराश दिया। राज ने जब उसकी ओर देखा तो वह एकदम से पीछे हो गया। विकी ने एक नज़र उसे देखा, फिर बालकनी की तरफ़ इशारा करते हुए बोला, "अपनी होने वाली भाभी को इस तरह मत देखो।" वैसे विकी को जलन तो किसी और ही बात की थी, लेकिन अभी वह खुद ही अपनी फीलिंग्स से अनजान था या फिर मानने को तैयार नहीं था।
"व्हाट यू मीन?" राज को विकी की बात समझ नहीं आई।
"यस, तुम्हारे भाई के पीछे पागल है वो।" विकी ने राज से कहा।
यह सुनकर राज जोर से हँस दिया। "भाई के पीछे तो कितनी लड़कियाँ पागल हैं, तो क्या मैं सबको अपनी भाभी मानने लग जाऊँ?"
उसे हँसता देखकर एक पल को तो विकी उसकी हँसी में ही खो गया, फिर उसने कहा, "मत मानो, लेकिन मैं अपनी बहन को बहुत अच्छे से जानता हूँ। वो तुम जैसे लिटिल बॉय को बिल्कुल भाव नहीं देगी।" यह कहते हुए विकी ने राज के गाल को हल्के से पिंच कर दिया और उसे देखते हुए मुस्कुराकर वहाँ से चल दिया।
राज वहीं खड़ा उसकी बात को याद करते हुए बोला, "अभी तो मैंने मोहब्बत की कश्ती में कदम रखा भी नहीं और इन्होंने तो कश्ती को ही निकालकर बाहर रख दिया। वैसे बात तो इनकी भी सही है, लेकिन मैं फिर भी ट्राई करता रहूँगा।" यह कहते हुए राज हँस दिया। तभी उसे याद आया कि उसे कॉलेज भी जाना है। "कहीं आज मैं भी भाई की तरह लेट ना हो जाऊँ?" यह कहते हुए वह अंदर भाग गया।
इधर ऑफ़िस में नयन जल्दी-जल्दी लिफ़्ट से होकर टॉप फ़्लोर पर पहुँचा तो कला और परीक्षित सामने ही खड़े थे। नयन ने घड़ी में टाइम देखा तो 9 बजकर 10 मिनट हो चुके थे।
"हाय, कला और परी…" नयन ने उन दोनों के पास आकर कहा।
"तू आज थोड़ा लेट हो गया।" परीक्षित ने कहा।
"हाँ, लेकिन सर तो नहीं आए ना अभी तक?" नयन ने उन दोनों से पूछा।
"अभी तक तो नहीं आए।" कला ने कहा। यह सुनकर नयन मन ही मन बहुत खुश हुआ और उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई।
तभी कुछ देर बाद चंद्र भी लिफ़्ट से ऊपर आया और उसने देखा कि नयन कला और परीक्षित के साथ हँस-हँसकर बातें कर रहा था। वह नयन के पीछे आकर खड़ा हो गया। उसे देखकर कला और परीक्षित तो चुप हो गए और उसे पीछे देखने का इशारा करने लगे।
नयन ने पीछे मुड़कर देखा तो वह चंद्र को देखकर बोला, "अरे सर! आप आ गए! शायद आप थोड़ा लेट हो गए हैं।" नयन ने अपनी घड़ी देखी और उससे बोला, "आप पूरे पंद्रह मिनट लेट हैं। आप अलार्म लगाना भूल गए थे क्या?" नयन टोंट मारने वाले अंदाज़ में बोल रहा था और चंद्र सीरियस होकर उसे देख रहा था। कला और परीक्षित पीछे से उसके कंधे पर मारते हुए उसे चुप रहने के लिए कह रहे थे, लेकिन नयन ने उन्हें इग्नोर करते हुए अपनी बात कहना जारी रखा, "मुझे तो लगा था कि आप बहुत पंक्चुअल पर्सन हैं, फिर आप लेट कैसे हो गए…?"
वेदांश भी वहाँ आ गया था और नयन को इस तरह बात करते देख वह उसे रोकने जा ही रहा था कि तभी चंद्र बोल पड़ा, "यह मत भूलो कि तुम इस वक्त ऑफ़िस में हो।" चंद्र थोड़ा सीरियस होकर बोला। जिसे सुनकर नयन को कल उसके साथ हुई डील याद आ गई।
"तुम तीनों वर्क टाइम में यहाँ खड़े होकर गॉसिप कर रहे हो। मैंने जो वर्क से रिलेटिड मेल भेजा था, वह कंप्लीट किया तुम लोगों ने?" चंद्र ने थोड़ा सख्ती से पूछा। जिसे सुनकर वे तीनों सहमें हुए से एक साथ बोले, "यस सर!"
"ओके! 11 बजे तुम सब मीटिंग रूम में आ जाना।" यह कहकर चंद्र ने नयन की ओर देखा, "और तुम मेरे लेट होने का कारण जानना चाहते हो ना? तो सुनो, मैं लेट हुआ मेरे डरपोक पड़ोसी के कारण।" यह कहकर चंद्र नयन को देखते हुए वहाँ से चला गया और नयन गुस्से में दाँत पीसते हुए उसे देखता रहा… "मुझे डरपोक कहा…!"😠
जारी है…
नयन गुस्से में दांत पीसते हुए उसे देखता रहा। "मुझे डरपोक कहा…!"
"डरपोक पड़ोसी...? वो कौन है?" कला और परीक्षित ने एक साथ कहा।
"हमारे नयन शेखावत हैं, इनके डरपोक पड़ोसी।" वेदांश ने वहाँ आते हुए कहा।
"व्हाट?" कला और परीक्षित यह सुनकर एकदम से चौंक गए और नयन को देखने लगे जो दांत भींचे खड़ा था।
इधर, चंद्र कंपनी के ऑनर माणिक्य अरोड़ा के केबिन में था। माणिक्य एक अधेड़ उम्र का शख्स था और नामी बिजनेसमैन था। उसकी कंपनी की और भी ब्रांचेज़ थीं; कुछ तो इसी शहर में थीं और कुछ बाहर के शहरों में थीं। पहले चंद्र इसी शहर में उसकी दूसरी कंपनी में काम करता था, लेकिन जब इस कंपनी के एचआर हेड ने रिजाइन किया, तो माणिक्य ने उसे यहाँ बुला लिया क्योंकि उसे चंद्र का काम पसंद आया था और इस कंपनी को एक अच्छे एचआर की भी जरूरत थी जो एंप्लॉयीज़ को अच्छे से हैंडल कर पाए।
माणिक्य फोन पर किसी से बात कर रहा था और चंद्र को वहाँ बैठे हुए आधे घंटे से ज़्यादा हो चुके थे। चंद्र ने माणिक्य की ओर देखा। "मैंने फ़ालतू में ही इतनी जल्दबाज़ी मचाई," उसने मन ही मन कहा क्योंकि माणिक्य ने उसे बुला तो लिया, लेकिन उसका कोई कॉल आ गया था इसलिए वह बात करने लग गया।
कुछ देर बाद माणिक्य ने कॉल रखा और चंद्र को देखकर बोला, "सॉरी चंद्र, एक इम्पोर्टेन्ट कॉल था।"
"इट्स ओके सर।" चंद्र ने बस इतना ही कहा।
"हाँ तो तुम ऑफ़िस के स्टाफ़ से तो मिल ही लिए होंगे।"
"यस सर।"
"अभी हाल ही में कुछ नए एंप्लॉयीज़ भी हमारी कंपनी में अपॉइंट हुए हैं जिनका प्रोबेशन पीरियड चल रहा है। उन पर तुम्हें ख़ास ध्यान देना होगा ताकि वे बाक़ी एंप्लॉयीज़ के साथ अच्छे से वर्क कर सकें।"
"आई नो सर, टीम वर्क इज़ वेरी इम्पोर्टेन्ट।"
कुछ देर वे दोनों कंपनी से रिलेटेड बात करते रहे। लास्ट में माणिक्य ने चंद्र से पूछा, "मैंने सुना है तुमने घर भी चेंज कर लिया है।"
"हाँ सर, वैसे भी मैं वो अपार्टमेंट छोड़ना चाहता था क्योंकि वहाँ का माहौल दिन-ब-दिन ख़राब होता जा रहा था। और फिर मेरा भाई भी ज़िद करके यहाँ आ गया कि उसे इस शहर के कॉलेज में पढ़ना है और उसका कॉलेज भी वहाँ से दूर पड़ रहा था। इसलिए मैंने एक घर रेंट पर लिया है। जब तक उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक हम वहीं रहेंगे।" चंद्र ने कहा।
इधर, वेदांश भी चंद्र के बारे में यही बता रहा था। जिसे सुनकर नयन मन ही मन सोचने लगा, "अच्छा तो यह बात है, तभी उन्होंने मुझसे उस दिन कहा था कि मैंने यह घर बस कुछ दिनों के लिए किराये पर लिया है।"
"नयन…," परीक्षित ने नयन को पुकारा और मुस्कुराते हुए बोला, "तू अपनी मौसी से कहकर मुझे भी अपने घर में पेइंग गेस्ट रख ले ना।"
"और मुझे भी।" कला भी नयन के पास आकर बोली।
नयन ने उन दोनों की ओर देखा और बोला, "क्यों?"
"हम भी चाहते हैं कि वे हमेशा हमारी नज़रों के सामने रहें।" उन दोनों ने एक साथ शर्माते हुए कहा।
यह सुनकर वेदांश ने अपना सिर पीट लिया और नयन गुस्से में बोला, "मेरी मौसी का घर कोई धर्मशाला नहीं है और चंद्र में ऐसा क्या है जो तुम दोनों मरे जा रहे हो उन्हें देखने के लिए?" नयन ने चिढ़कर कहा।
"सही बात है। जिसका घर ताजमहल के सामने हो, तो वह उसे देखने में क्यों इंट्रेस्ट लेगा?" परीक्षित ने नयन को देखकर मुँह बनाते हुए कहा।
"ही इज़ राइट।" कला ने परीक्षित की तरफ इशारा करके कहा।
जिसे सुनकर नयन कला से बोला, "आज तू भी हर बात में इस परी का ही साथ दे रही है।"
"ये दोनों ऐसे ही हैं, कभी तो इनमें याराना हो जाता है और कभी जानी दुश्मन बन जाते हैं।" वेदांश ने कला और परीक्षित को देखकर कहा।
11 बजे वेदांश, कला, परीक्षित और नयन मीटिंग रूम में बैठे थे। बीच में एक बड़ी सी टेबल थी जिसके एक तरफ नयन और कला थे और दूसरी तरफ वेदांश और परीक्षित बैठे हुए थे। सामने बीच वाली चेयर खाली थी।
चंद्र अंदर आया तो वे सब खड़े हो गए। उसने एक नज़र उन सब पर डाली और बीच वाली चेयर पर आकर बैठ गया। उसके बाद वे सब भी बैठ गए। कला और परीक्षित तो चंद्र को मुस्कुराते हुए देख रहे थे और नयन उसे घूर रहा था। चंद्र ने नयन को देखा, फिर ज़्यादा ध्यान ना देते हुए वर्क से रिलेटेड डिस्कशन स्टार्ट कर दिया।
"आई होप कि तुम लोगों ने रिसर्च अच्छे से कम्पलीट कर ली है।" चंद्र ने उन लोगों से कहा।
"यस सर।" उन सबने कहा।
"हमारी कंपनी एक नया प्रोडक्ट लॉन्च करने वाली है, जिससे रिलेटेड इन्फॉर्मेशन मैंने ऑलरेडी तुम लोगों को सेंड कर दी थी। उसकी प्रेज़ेंटेशन तो तुम लोगों ने तैयार कर ही ली होगी।" चंद्र ने उन सबकी ओर देखकर कहा।
यह सुनकर कला, परीक्षित और नयन एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। वेदांश ने जब उन लोगों को इस तरह देखा तो बोला, "अगर तुम लोगों ने प्रेज़ेंटेशन तैयार कर ली है, तो मुझे अब तक सेंड क्यों नहीं की? अगर कुछ चेंजेज़ करने हैं, तो एन टाइम पर कैसे करेंगे?"
"सर, अभी तो हमने रिसर्च ही की है। आपने तो दो दिन की डेडलाइन दी थी ना।" परीक्षित ने चंद्र की ओर देखकर कहा।
"हाँ सर, हमने वर्क आज ही शुरू किया है और कल का दिन भी तो है ना हमारे पास।" कला ने कहा, जिस पर परीक्षित भी उसकी हाँ में हाँ मिलाने लगा।
यह सुनकर चंद्र ने वेदांश की ओर देखा। जिसे देखकर वेदांश थोड़ा डरते हुए बोला, "शायद कुछ मिसअंडरस्टैंडिंग हुई है सर।"
चंद्र ने उन सबकी ओर देखा और बोला, "हाँ, यह सही है कि मैंने दो दिन की डेडलाइन दी थी, लेकिन मैंने तुम लोगों को मेल सैटरडे को भेजा था और कल संडे था। कल का दिन और आज का दिन मिलाकर दो दिन हो चुके हैं। इसलिए आज लास्ट डे है और कल सुबह 10 बजे बोर्ड ऑफ़ ऑथोरिटी के सामने प्रेज़ेंटेशन देनी है।"
"व्हाट?" वेदांश को छोड़कर वे तीनों एकदम से चौंक गए।
"हाँ, केवल आज का ही दिन है तुम लोगों के पास।" चंद्र ने कहा।
"लेकिन दो दिन का काम आज कैसे हो पाएगा? आपको क्लियर करना चाहिए था कि संडे का दिन भी काउंट है। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप मुझ पर सुबह का गुस्सा उतार रहे हैं?" नयन ने एकदम से खड़े होकर कहा।
यह सुनकर चंद्र को उस पर गुस्सा आ गया। फिर भी, खुद को कंट्रोल करते हुए बोला, "मैं कोई गुस्सा नहीं उतार रहा हूँ और अगर मुझे गुस्सा उतारना भी होता, तो केवल तुम पर उतारता, इन सब पर नहीं। मैंने क्लियरली टू डेज़ मेंशन किया था। अगर तुम लोगों को डाउट था, तो तुम्हें मुझसे क्लियर करना चाहिए था या फिर वेदांश से, लेकिन तुम लोगों ने तो अपना ही दिमाग लगाया।" चंद्र ने थोड़ा सख्त आवाज़ में कहा। जिसे देखकर नयन दुबारा अपनी जगह पर बैठ गया।
"नयन, यह क्या कर रहा है? ये हमारे बॉस हैं और यह मत भूल कि अभी तू परमानेंट नहीं हुआ है। कहीं ऐसा ना हो कि तेरा प्रोबेशन पीरियड ख़त्म होने से पहले ही यह तुझे फ़ायर कर दें।" कला ने धीरे से नयन के कान के पास आकर कहा।
चंद्र ने नयन की ओर देखा, "तुम तो डाउट तब क्लियर करोगे ना जब तुम्हें अपने पड़ोसियों की निगरानी करने से फुर्सत मिलेगी। कल का सारा दिन तुमने इसी काम में तो बिताया है।"
"आप पर्सनल लाइफ़ को बीच में ला रहे हैं।" नयन ने उसे देखकर थोड़ा तेज आवाज़ में कहा। कला, परीक्षित और वेदांश नयन को इशारे से चुप करा रहे थे, लेकिन उसने किसी की तरफ़ ध्यान नहीं दिया और चंद्र को घूरता रहा।
"मैं वर्क से रिलेटेड ही बात कर रहा हूँ। अगर कल मैं तुमसे इस बारे में बात करता, तो तुम यह कह देते कि मैं ऑफ़िस के काम के बारे में बात कर रहा हूँ। कहीं तो मुझे अपनी बात कहनी पड़ेगी ना तुमसे।" इस बार चंद्र भी थोड़ा तेज आवाज़ में बोला।
"तो आप क्लियरली डेट बता देते ना कि कब हमें अपना वर्क सबमिट करना है।" नयन ने फिर से तेज आवाज़ में कहा।
"अच्छा, तो तुम यह कहना चाहते हो कि गलती मेरी थी।" चंद्र ने थोड़ा सीरियस चेहरा बनाते हुए कहा।
"ओफ़ कोर्स, इट्स योर मिस्टेक।" नयन ने उसे घूरकर कहा। वेदांश ना में सिर हिलाते हुए नयन से कुछ कहने की कोशिश कर रहा था, लेकिन नयन ने तो उसकी तरफ़ देखा ही नहीं और चंद्र से बहस करने में लगा रहा, "आप बॉस हैं, इसका मतलब यह नहीं कि हमेशा आप ही सही हों। आप भी इंसान ही हैं, आपसे भी गलती हो सकती है। तो अपनी गलती मान लीजिए या फिर हो सकता है कि आपने यह गलती जानबूझकर की हो…" नयन नॉनस्टॉप बोले जा रहा था। वेदांश ने कई बार उसे रोकना चाहा। जब नयन ने वेदांश की ओर ध्यान नहीं दिया, तो हारकर वह भी चुप बैठ गया कि अब जो होगा, देखा जाएगा।
वेदांश के साथ-साथ कला और परीक्षित भी बस मूकदर्शक बने, उन दोनों की बहस सुन रहे थे और मन ही मन डरे हुए भी थे कि कहीं नयन के किए की सज़ा उन सबको ना भुगतनी पड़े। चंद्र बस गंभीर चेहरा बनाए नयन की बातें सुन रहा था।
तभी परीक्षित धीरे से वेदांश के कान के पास आकर बोला, "सर, कुछ कीजिए। वरना यह नयन खुद तो मरेगा ही और साथ में हमें भी मरवाएगा। देखिए तो सही, सर से कैसे बात कर रहा है और अब तो मुझे सर की आँखों में गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा है। कैसी जलती निगाहों से देख रहे हैं वह।" परीक्षित ने चंद्र की ओर देखते हुए कहा।
वेदांश ने तो बस टेंशन में सिर हिला दिया, "अब मैं क्या करूँ? जो करेंगे, सर करेंगे।"
नयन की बातों को सुनकर चंद्र एकदम से खड़ा हुआ और सख़्ती से पेश आते हुए कड़क आवाज़ में बोला, "कल 10 बजे प्रेज़ेंटेशन है और मुझे वर्क कम्पलीट चाहिए, किसी भी हाल में। वैसे मैंने दो दिन का समय दे ज़रूर दिया था, लेकिन यह काम एक दिन में भी हो सकता है और मैं जानता हूँ कि तुम लोग यह कर सकते हो। अब तुम लोग यह कैसे करोगे, यह तुम जानो।" नयन जो इतनी देर से चंद्र से बहस करने में लगा था, चंद्र का यह सख़्ती भरा रवैया देख एकदम से चुप हो गया और उसे घूरता रहा। अपनी बात कहकर चंद्र ने एक नज़र नयन को देखा जो उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रहा था। उसे देखकर चंद्र वहाँ से चला गया।
उसके जाते ही कला बोली, "बाप रे! इनका नाम चंद्र रख किसने दिया? यह तो हम सब पर सूरज की तरह अंगारे बरसाकर चले गए। और अगर अब हम उन अंगारों पर नहीं चले, न तो कल यह हमें भस्म कर देंगे, यानी फ़ायर कर देंगे।"
"यह सब इस नयन की वजह से हुआ है।" परीक्षित ने नयन की तरफ़ इशारा करके कहा, "यह सुबह से ही उन्हें गुस्सा दिला रहा है। अब इसका अंजाम देखा क्या हुआ।"
"गेहूँ के साथ-साथ घुन भी पिस गए।" वेदांश वहीं बैठे-बैठे अपने सिर पर हाथ रखते हुए बोला। फिर उसने उन लोगों की तरफ़ देखा और उन पर चिल्लाया, "अब एक-दूसरे को ब्लेम करना बंद करो… और नयन तू," उसने नयन की ओर देखकर थोड़ा गुस्से में कहा, "तू सर की गलती बता रहा था ना, लेकिन उनकी इसमें कोई गलती नहीं है। उन्होंने मुझसे सब क्लियर किया था।" यह सुनकर नयन ने एकदम से वेदांश को देखा, "तो आप मुझे बता तो देते। मैंने ना जाने क्या-क्या बोल दिया उन्हें।" नयन ने चिंतित स्वर में कहा।
"मैंने कोशिश की थी, लेकिन तू तो उनसे बहस करने में इतना मगन था कि तूने मेरी तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया। ऐसा लग रहा था जैसे तुझे तो बस मौका चाहिए था उनसे लड़ने का।" वेदांश नयन को डाँटते हुए बोला।
यह सुनकर नयन चुपचाप चेयर पर बैठ गया। थोड़ी देर मीटिंग रूम में शांति पसरी रही।
फिर वेदांश ने उन लोगों की तरफ़ देखा और शांत आवाज़ में बोला, "गलती हम लोगों से हुई है, इसलिए अब इसे सुधारना भी हमें ही पड़ेगा। गलती मेरी है, मुझे एक बार तुम लोगों से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए थी…" वेदांश ने थोड़ा अफ़सोस के साथ कहा, "लेकिन अब इन सब बातों को छोड़ो और काम शुरू करो और जब तक काम कम्पलीट ना हो जाए, कोई घर नहीं जाएगा।"
नयन ने उन लोगों को देखा और बोला, "तुम लोग चिंता मत करो, मैं यह काम पूरा करके ही रहूँगा, चाहे मुझे पूरी रात ही यहाँ क्यों ना बितानी पड़े।"
"तू अकेला सब कर लेगा… ओके! फिर हम तो चलते हैं।" परीक्षित और कला खुश होते हुए बोले और अपना बैग टांगने लगे।
लेकिन तभी नयन ने उन दोनों के बैग की टांग खींचते हुए कहा, "एक मिनट, अगर तुम दोनों यहाँ से चले गए, तो मैं कल हमारे बॉस से साफ़-साफ़ कह दूँगा कि यह काम मैंने अकेले ही किया है और फिर वह तुम्हारा क्या हाल करेंगे, यह तुम दोनों अच्छी तरह जानते हो।" यह सुनकर कला और परीक्षित रुक गए और चुपचाप फिर से अपनी जगह पर बैठ गए।
"मैं भी उन्हें दिखा दूँगा कि वे चाहे कितना भी मुश्किल टास्क दें, मैं उसे पूरा कर सकता हूँ।" नयन ने छाती चौड़ी करते हुए कहा।
"बातों से ही पूरा नहीं होगा, पहले शुरू तो कर।" वेदांश ने कहा, जिस पर कला और परीक्षित को हँसी आ गई। फिर वे लोग अपने काम में लग गए।
जारी है…
दिन ढलने लगा था। राज अपने कॉलेज से वापस आ रहा था। वह मेन रोड पर ही था, तभी उसने गीता को जोगी अंकल के रेस्टोरेंट में जाते देखा। वह भी खुश होते हुए रेस्टोरेंट की ओर बढ़ गया। जब वह रेस्टोरेंट के दरवाजे पर पहुँचा, तो अंदर का नजारा देखकर उसके कदम वहीं थम गए।
अंदर गीता एक लड़के को बेल्ट से मार रही थी। यह देखकर राज हैरान रह गया। विकी, आदित्य और जोगी अंकल भी आराम से खड़े, यह नजारा देख रहे थे, जैसे उनके लिए यह कोई आम बात हो।
अचानक विकी की नज़र राज पर पड़ी। वह अपने चेहरे पर मुस्कान लिए राज की ओर बढ़ गया और धीरे से उसके पास आकर बोला,
"अपना फ्यूचर देख रहे हो क्या?"
ये सुनकर राज एकदम से हड़बड़ा गया और विकी को देखकर बोला,
"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"
"क्योंकि तुम भी तो वही करने वाले हो ना, जो इस लड़के ने किया।" विकी ने उस लड़के की तरफ इशारा करते हुए कहा, जिसे गीता पीट रही थी।
"क्या किया है इसने?" राज ने उसे देखकर पूछा।
"इसने मेरी बहन को प्रपोज़ किया था। उसका जवाब मिल रहा है इसे।" विकी ने हँसते हुए कहा।
गीता ने उस लड़के को पीटकर वहाँ से भगा दिया और पास में खाली टेबल पर बैठ गई। उसे देखकर राज ने विकी से कहा,
"वो लड़का तो पागल है। ऐसे कोई डायरेक्ट प्रपोज़ करता है क्या? पहले बातचीत करके सामने वाले का दिल तो जीतना चाहिए, उसके मन में अपने लिए फीलिंग्स जगाना चाहिए, तब जाकर कुछ बात बनेगी।"
"ओह! तुम तो लव गुरु हो। ठीक है, अगर ऐसा है तो तुम कोशिश करके देख लो। जाओ, जीतो गीता देवी का दिल, जगाओ अपने लिए फीलिंग्स उसके मन में।" विकी ने कहा।
जिसे सुनकर राज थोड़ा अविश्वसनीय चेहरा बनाते हुए बोला,
"मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि आप मुझे अपनी बहन को पटाने के लिए खुद भेज रहे हैं।"
"नहीं बेटा, मैं तुम्हें पटाने के लिए नहीं भेज रहा, बल्कि पिटने के लिए भेज रहा हूँ। एक बार पिट जाओगे ना, तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी तुम्हारी।"
"अगर बात पिटने की है ना, तो मैं भी आपको चैलेंज देता हूँ कि वो मुझे पीटेंगी तो नहीं।"
"ठीक है, अगर तुम्हें खुद पर इतना ही भरोसा है तो जाओ।" विकी ने कहा। राज विकी को देखते हुए गीता की तरफ चल दिया। विकी राज को जाते हुए देख रहा था, लेकिन अब उसे ना जाने क्यों राज की चिंता होने लगी कि कहीं गीता उसे सचमुच पीट ना दे।
इधर, ऑफिस बंद होने का समय हो गया था। सब लोग जा रहे थे, केवल वेदांश, कला, परीक्षित और नयन को छोड़कर। वे लोग अभी भी मीटिंग रूम में बैठे अपने काम को पूरा करने में लगे थे।
"ओह गॉड! कितनी स्लाइड बनानी पड़ेगी इसमें......" नयन ने अपने बालों को नोचते हुए कहा। वह अपने लैपटॉप को घूर रहा था और मुँह सिकोड़े अपनी प्रेजेंटेशन को देख रहा था।
तभी वेदांश उसके पास आया और बोला,
"नयन...ये तुझे हो क्या गया है? घर बैठकर तो बड़े अच्छे से काम करता था, अब यहाँ क्या हो गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि घर पर किसी और से काम करवाता था।"
"किससे काम करवाता? मेरे घर पर कोई है करने वाला? केवल मेरे मम्मी-पापा ही तो हैं, और आप जानते हो कि उनकी एजुकेशन कितनी है।" नयन थोड़ा खिसियाते हुए बोला, जिस पर वेदांश हँस दिया।
"अरे मैं तो ऐसे ही बोल रहा हूँ। देख, पहले तू ये स्ट्रेस लेना बंद कर, और इस फ्रस्ट्रेशन को बाहर निकालकर काम कर, तब मन भी लगेगा और काम भी सही से होगा, ओके।"
"फ्रस्ट्रेशन को तो बाहर निकाल दूँ, लेकिन स्ट्रेस को कैसे कम करूँ?" नयन बोला।
"क्या मतलब?"
"हाँ, अगर मैंने यह काम ढंग से नहीं किया, तो मेरा क्या होगा? और ऊपर से मैंने सर को इतना कुछ बोल दिया है, पता नहीं वो मेरा क्या हाल करेंगे अगर यह काम नहीं हुआ तो?"
"देख, तू पहले अच्छे से काम कर, फिर घर जाकर उनसे सॉरी कह देना।"
यह सुनकर कला और परीक्षित हँसने लगे।
"सर, इसकी डिक्शनरी में सॉरी शब्द कहीं है ही नहीं, हम इसे अच्छी तरह जानते हैं। मन ही मन में गिल्ट रखेगा, लेकिन माफी मांगने में तो नाक नीची हो जाती है इसकी।" कला ने हँसते हुए कहा।
"तुम दोनों चुप रहो!" नयन एकदम से तेज आवाज में बोला। "मेरी बदतमीजी के बदले उन्होंने मुझे पनिश कर तो दिया, अब सॉरी कहने का क्या मतलब? अब तो बस किसी भी तरह यह काम पूरा करना है। काम पूरा करना मतलब उनकी पनिशमेंट को पूरा करना, हिसाब बराबर।"
"सॉरी तो छोड़ो, तू तो किसी से पोलाइटली बात कर ले, वो ही बड़ी बात है।" परीक्षित बोला।
यह सुनकर नयन ने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला, लेकिन वेदांश बीच में आ गया और नयन को रोकते हुए बोला,
"अरे अब तुम लोग बहस मत करो और काम करो, सारी रात नहीं बितानी यहाँ।" यह सुनकर वे तीनों अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए।
"ओके!" नयन ने एक लंबी साँस लेकर कहा और फिर से अपने काम में लग गया। कला और परीक्षित भी चुपचाप अपने काम में लग गए।
रेस्टोरेंट में राज गीता के सामने बैठा मुस्कुरा रहा था। वह अपना परिचय उसे दे चुका था और बस नॉर्मली बात कर रहा था, जिस वजह से गीता भी उससे नॉर्मली हँसकर बात कर रही थी। वहीं दूसरी तरफ, यह देखकर विकी जलकर राख हो चुका था। आखिरकार विकी से रहा नहीं गया और वह उन दोनों के पास वाली टेबल के पास खड़ा हो गया और उस टेबल पर बैठे लोगों से ऑर्डर लेने के बहाने वहाँ खड़ा उनकी बातें सुनने लगा।
"वैसे आप करती क्या हैं?" राज ने गीता से सवाल किया।
"मैं एक फैशन डिजाइनर हूँ।" गीता ने जवाब दिया।
"वाओ! फैशन डिजाइनर!... तो क्या आपके पास इस बैग में फैशनेबल सामान है?" राज ने गीता के हाथ में बैग देखकर पूछा।
"अरे नहीं, इसमें तो मैं नई रेसिपी के लिए कुछ सामान ले जा रही हूँ।" गीता ने कहा।
"हाँ, जो कभी बनती ही नहीं है।" वहीं खड़े विकी ने जवाब दिया। जिसे देखकर गीता चिढ़ते हुए बोली,
"तू चुप रह! और कौन सी रेसिपी है जो नहीं बनी अभी तक मुझसे।"
"ये पूछ कि कौन सी रेसिपी है जो अब तक बनी है तुझसे।" विकी ने जब यह कहा, तो राज बड़ी हैरानी से उन दोनों को देखने लगा। इन दोनों बहन-भाई को इस तरह बात करता देखकर जोगी अंकल और आदित्य भी अपना काम करते हुए रुक गए। आदित्य ने जब राज को उन दोनों के साथ देखा, तो उसका पहला ध्यान इसी बात पर गया कि विकी हो ना हो, इसी के कारण अपनी बहन से जल रहा है।
"आपसे अगर कोई रेसिपी ना बने, तो आप मेरी हेल्प ले सकती हैं।" राज खुश होते हुए गीता से बोला।
"तुम्हें कुकिंग करना आता है?" विकी ने एकदम से यह कहते हुए राज को चेयर समेत अपनी ओर घुमा लिया।
उसे देखकर राज अपना मुँह सिकोड़ने लगा।
"पहले तो खुद भेजते हैं, अब जब मैं आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ, तो बीच में अपनी नाक क्यों घुसा रहे हैं?" उसने मन ही मन कहा। फिर उससे बोला,
"हाँ, आता है।" यह कहते हुए वह फिर से गीता की ओर घूम गया और उससे बोला, "मेरे भाई बहुत अच्छी कुकिंग करते हैं और मैं उनकी हेल्प करता हूँ, इसलिए मुझे भी आता है कुकिंग करना।"
"तो अपने भाई से कहो ना कि मुझे भी सिखा दें।" गीता एकदम से खुश होकर बोली। जिसे सुनकर राज का मुँह हल्का सा खुला रह गया और विकी मुँह दबाकर हँस दिया।
"कहो ना मि. मून से कि मैं उनसे कुकिंग सीखना चाहती हूँ।" गीता ने फिर से कहा।
"मैंने भाई को बीच में लाकर ही गलती की," राज ने मन ही मन कहा। फिर गीता की ओर देखकर बोला, "भाई को तो फुर्सत ही कहाँ है? या तो वो ऑफिस में रहते हैं और घर पर भी अपने लैपटॉप में नज़रें गड़ाए काम ही करते रहते हैं।"
"ताज्जुब की बात है कि फिर भी उनकी आँखों पर नज़र का चश्मा नहीं लगा।" गीता यह कहते हुए चंद्र के ख्यालों में खो गई। यह सुनकर राज अपना माथा पीटने लगा, क्योंकि गीता उस पर ध्यान कम दे रही थी और चंद्र के बारे में ज़्यादा सोच रही थी।
राज को देखकर विकी धीरे से उसके पीछे कान के पास आकर बोला,
"मैंने तुमसे पहले ही कहा था, यहाँ तुम्हारी दाल नहीं गलेगी।"
यह सुनकर राज ने जैसे ही अपनी गर्दन घुमाई, उसका चेहरा विकी के चेहरे के एकदम सामने आ गया। पल भर के लिए उन दोनों की नज़रें एक-दूसरे से जा टकराईं।
आदित्य काउंटर के पास खड़ा यह सब देख रहा था और मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।
"दिल आने की बात है जब जो लग जाये प्यारा, दिल पर किसका जोर है, दिल के आगे हर कोई हारा।" यह गाते हुए आदित्य अपना काम करने लगा।
जारी है.......
शाम को चंद्र अपनी कार में ही घर वापस आया। राज भी घर आ चुका था और बाहर गार्डन में ही था। उसने जब चंद्र को कार में से निकलते देखा तो बोला, "भाई, आपकी कार आज वापस मिली है! मुझे तो लगा था कि इस जन्म में तो मिलने से रही।" उसने मजाक करते हुए कहा और हँस दिया।
"ये कार उन लोगों ने वहीं अपार्टमेंट में भेज दी थी। इसलिये मैं खुद जाकर इसे वहाँ से लेकर आया हूँ। ना जाने कैसे लोग हैं! मैंने एड्रेस भी दिया था यहाँ का, लेकिन पता नहीं ध्यान ही नहीं दिया उन लोगों ने।"
"छोड़ो भाई, अब आप ले तो आये ना।" राज ने कहा। तभी राज का फोन बजा और वह बात करते हुए अंदर चला गया।
चंद्र भी अंदर आ रहा था। तभी गीता अपने घर की छत पर खड़े हुए उसे देखकर हाथ हिलाते हुए बोली, "हाई....!" उसे देखकर चंद्र ने भी हाथ हिलाते हुए उसे हाई कहा।
"मि. मून, आप तो ऑफिस से आ गये, लेकिन नयन अब तक क्यों नहीं आया?" गीता ने पूछा।
यह सुनकर चंद्र सोच में पड़ गया। "इसका मतलब वो लोग अब तक ऑफिस में ही काम कर रहे हैं। लेकिन यह काम घर पर भी तो हो सकता था!" यह सोचते हुए चंद्र ने गीता की ओर देखा और उससे बोला, "आज उसने ओवरटाइम किया है..." यह कहकर चंद्र सीधा घर के अंदर चला गया।
गीता उसे बात करने के लिए रोकती ही रह गई, लेकिन चंद्र ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया।
"ये तो ऐसे अनदेखा करके चले गये जैसे मैं हूँ ही नहीं! मेरी ब्यूटी कम हो गई है क्या... चेक करना पड़ेगा।" वह अपने चेहरे को हाथ लगाते हुए बोली और जल्दी से नीचे भाग गई।
रात को डिनर करने के बाद चंद्र सोफे पर अपने लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। लेकिन आज उसका मन नहीं लग रहा था। उसने लैपटॉप बंद कर दिया। तभी राज धीरे से वहाँ आया और उसे बड़े ही प्यार से पुकारते हुए बोला, "भाई!"
"क्या हुआ? इतने फूल क्यों झड़ रहे हैं मुँह से? क्या चाहिए?" चंद्र ने बिना उसकी ओर देखे शांत तरीके से कहा।
"ये...." राज ने लैपटॉप की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"सुबह इतना कुछ हुआ, इसके चक्कर में फिर भी तुझे उम्मीद है कि मैं तुझे दे दूँगा।" चंद्र ने उसके ऊपर तिरछी सी नज़र डालते हुए कहा।
"हाँ।" राज ने बड़े विश्वास के साथ हाँ में सिर हिलाया।
"नहीं देता।" यह कहते हुए चंद्र दूसरी ओर मुँह फेर लिया।
"ऐसा मत करो भाई।" यह कहते हुए राज सोफे पर चंद्र के बगल में बैठ गया और उसे इस तरह पकड़ लिया जैसे वह कोई टेडीबियर हो। "मेरे लिए खरीदते भी नहीं हो और अब अपना भी नहीं दे रहे।"
"मैंने तुझे देने से कभी मना नहीं किया, लेकिन फालतू कामों के लिए नहीं खरीदूँगा। जब पढ़ाई पूरी होने के बाद तेरी जॉब लग जाये तो खुद खरीद लेना, ओके।"
"अच्छा ठीक है, लेकिन अभी तो दे दो... प्लीज।" राज ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा। जिस पर चंद्र ने उसे आँखें छोटी करके घूरा। यह देखकर राज बोला, "मैं लेट नाइट सीरीज नहीं देखूँगा। मुझे कुछ इम्पोर्टेन्ट काम करना है इस पर, सच्ची!" राज ने भोली सी सूरत बनाकर प्रॉमिस करते हुए कहा।
चंद्र कुछ पल तो उसे घूरता रहा। फिर उसने बिना कुछ कहे लैपटॉप दे दिया। यह देखकर राज खुशी से उछलते हुए उसे गाल पर किस करते हुए बोला, "थैंक्स भाई, लव यू....." यह कहते हुए वह लैपटॉप लेकर अपने रूम में भाग गया।
"इम्पोर्टेन्ट काम तो कुछ नहीं करना। या तो बकवास सीरीज देखेगा या फिर गेम खेलेगा....." चंद्र राज को जाते देख मन ही मन बोला, "मेरी लाइफ में ही ऐसे लोग क्यों हैं?" यह सोचते हुए चंद्र को कुछ याद आया। फिर उसने अपना फोन उठाया और किसी को कॉल लगा दिया।
रात के 12 बज रहे थे जब नयन सोसायटी में आया। इस समय नयन की आँखें नींद से बोझिल हो रही थीं। बालों को तो पहले ही उसने काम करते हुए नोच डाला था, जिस वजह से वे भी बिखरे हुए थे। उसकी चाल को देखकर तो लग रहा था जैसे वह पीकर आया हो, लेकिन ऐसा नहीं था। वह थक चुका था और उबासी लेते हुए चल रहा था। गली में थोड़ा अंधेरा था, शायद लाइट गई हुई थी। नयन ने चलते-चलते आकाश की ओर देखा, जिसमें बस तारे टिमटिमा रहे थे।
"बचपन में पढ़ा था कि रात में चाँद-सितारों से ही रोशनी होती है। वे हमें रास्ता दिखाते हैं, लेकिन आज तो केवल आकाश में तारे ही हैं। चन्द्रमा तो कहीं है ही नहीं।" नयन ने ऊपर की ओर देखते हुए कहा।
"आकाश में नहीं है तो क्या हुआ? यहाँ तो है।" चंद्र यह कहते हुए अपने हाथ में मोबाइल की टॉर्च लेकर आया और अपने मेन गेट पर खड़ा हो गया।
उसे देखकर नयन एकदम से चौंक गया। "तुम अब तक जाग रहे हो?" उसने चंद्र को देखकर पूछा।
"हाँ, लाइट नहीं थी तो मैं यहाँ बाहर ही बैठा था।" चंद्र ने जवाब दिया।
"लाइट ना होने से तुम्हें क्या फर्क पड़ रहा था? तुमने तो इनवर्टर लगवा रखा है..... कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरी ही राह ताक रहे थे कि कब मैं आऊँ और तुम मेरी हालत पर हँस सको।" नयन ने बड़े ही शांत ढंग से कहा।
"यह काम तो तुम करते हो, मैं नहीं।" चंद्र ने कहा।
"अच्छा, फिर तो तुमने यह सोचा होगा कि इस अमावस्या की काली रात में आकाश का चंद्र तो निकला नहीं है, तो मैं ही निकल आऊँ, है ना।" नयन चंद्र की तरफ देखकर बोला।
यह सुनकर चंद्र को हँसी आ गई। "ऐसा ही समझ लो। इसीलिए तो तुम्हें रात के अंधेरे में रास्ता दिखा रहा हूँ।"
"मेरा नाम भी नयन है। मैं अपना रास्ता खुद देख सकता हूँ। तुम्हें दिखाने की ज़रूरत नहीं।" यह कहते हुए वह आगे बढ़ गया। लेकिन तभी आगे बने एक छोटे से गड्ढे में उसका पैर चला गया और वह नीचे गिर पड़ा।
"देख लिया रास्ता.....!" यह कहते हुए चंद्र गेट खोलकर बाहर आया और उसे पकड़कर खड़ा करते हुए बोला, "नाम नयन है, लेकिन वह गड्ढा दिखाई नहीं दिया तुम्हें।" चंद्र ने उस पर व्यंग्य करते हुए कहा।
चंद्र उसे अभी भी कंधे से पकड़कर खड़ा था। लेकिन नयन चुपचाप उसे देखता रहा। फिर वह भी चंद्र की तरह उस पर व्यंग्य करते हुए बोला, "नाम तो तुम्हारा भी चंद्र है, लेकिन क्या चंद्र जैसी शीतलता है तुम्हारे अंदर? सूरज की तरह आग ही उगलते रहते हो।"
नयन की बातें सुनकर चंद्र को समझ नहीं आता था कि वह उस पर गुस्सा करे या हँसे। क्योंकि नयन के बोलने का लहजा ही कुछ ऐसा था जिस पर चंद्र बस मुस्कुराकर रह जाता था। उसने देखा कि नयन उस गड्ढे को देख रहा था और वहाँ खड़े-खड़े उबासी ले रहा था।
"अब क्या इस गड्ढे में सोने का इरादा है?" चंद्र ने नयन से कहा। जिस पर नयन उसे घूरने लगा।
"अगर चलने की हिम्मत ना हो तो मुझे बता दो। मैं तुम्हें गोद में उठाकर घर के अंदर छोड़ आऊँगा।" चंद्र ने थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ में कहा। जिसे सुनकर नयन के जिस्म में अजीब सी सिरहन दौड़ गई और दिल धड़क उठा। लेकिन फिर भी वह चुपचाप उसे देखता रहा। चंद्र तो अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए उसे देख रहा था।
"ले चलो।" नयन ने अचानक से कहा। जिसे सुनकर चंद्र की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा। "क्या?"
चंद्र ने तो सोचा था कि उसकी बात सुनकर नयन डर जायेगा, लेकिन इसके विपरीत वह इतनी आसानी से मान जायेगा। चंद्र के लिए यह बड़ी हैरानी की बात थी।
"सचमुच उठाकर ले जाऊँ?" चंद्र ने आश्चर्य से कहा।
"हाँ, कह तो दिया ले चलो।" यह कहते हुए नयन ने अपने दोनों हाथ ऊँचे कर दिए।
चंद्र ने माथे पर शिकन लाते हुए उसे देखा। फिर उसके थोड़ा उसके मुँह के करीब आया। "स्मेल तो नहीं आ रही, इसका मतलब इसने ड्रिंक तो नहीं की। फिर यह ऐसा बिहेव क्यों कर रहा है?" चंद्र उसे देखकर सोचने लगा।
"अब क्या सोच रहे हो, चलो ना।" नयन ने फिर कहा।
"आर यू श्योर?" चंद्र ने फिर उससे पूछा।
"यस।" नयन बोला। जिसे सुनकर चंद्र अपने कंधे उचकाते हुए उसे उठाने के लिए आगे बढ़ा। तो नयन ने उसे रोकते हुए कहा, "रुको, ऐसे नहीं।"
"तो फिर कैसे?" चंद्र ने उसे देखकर पूछा।
"घूमो।" नयन ने उसे हाथों से इशारा कर घूमने को कहा।
चंद्र घूम गया और नयन बच्चों की तरह उसकी पीठ पर चढ़ गया और अपने हाथ उसके गले में डाल लिए और पैरों को उसकी कमर पर लपेट लिया। तभी लाइट भी आ गई और खंभों पर लगे बल्बों के कारण पूरी गली में रोशनी हो गई।
चंद्र हल्के से मुस्कुराया और नयन से बोला, "आज तुम्हें हुआ क्या है? उस दिन तो ट्रेन में भीगी बिल्ली बन गये थे और आज खुद ही बंदर की तरह मेरे ऊपर चढ़ गये। आज डर नहीं लग रहा।"
"विश्वास नाम की भी कोई चीज होती है। उस दिन तुम मेरे लिए एक अजनबी थे, लेकिन आज नहीं।"
"आज विश्वास है तुम्हें मुझ पर?"
"हाँ।"
"कुछ ही दिनों में तुम्हें मुझ पर विश्वास भी हो गया, बड़ी हैरानी की बात है!"
"जो इंसान मेरी इतनी बदतमीज़ियों के बाद भी मुझे बिना कुछ कहे माफ़ कर सकता है, वह इतना बुरा नहीं हो सकता।" नयन ने जब यह कहा तो चंद्र के होठों की मुस्कान गहरी हो गई।
"नयन, एक बात बोलूँ तुमसे..." चंद्र ने गर्दन तिरछी करते हुए कहा।
"हम्म!" नयन ने इतना ही कहा।
"किसी पर इतनी जल्दी भरोसा नहीं करना चाहिए।"
"मैं किसी पर नहीं कर रहा, बस तुम पर कर रहा हूँ क्योंकि मेरा मन मुझे ऐसा करने को कह रहा है।"
नयन की बातें सुनकर चंद्र सोच में पड़ गया। "आज पक्का कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है। यह इस तरह से बातें क्यों कर रहा है? कहीं मेरे साथ कोई प्रैंक करने की कोशिश तो नहीं कर रहा?"
"अब सारी रात लेकर ही खड़े रहोगे? चलो भी, मुझे नींद आ रही है।" यह कहते हुए नयन ने अपना सिर चंद्र की गर्दन पर रख दिया। नयन की साँसों को अपनी गर्दन पर महसूस कर चंद्र के शरीर में एकदम से झुनझुनी सी दौड़ गई। फिर वह अपना सिर झटकते हुए उसे लेकर चल पड़ा। उसने उसके घर का मेन गेट खोला और अंदर चला गया। गीता और विकी का घर भी आगे से खुला हुआ ही था, जिसमें साइड में छोटा सा गार्डन था और बाकी जगह पर घास उगी हुई थी। दीवार के सहारे टेबल रखी थी जो नयन ने रखी थी। चंद्र नयन को लेकर दरवाजे तक पहुँचा। उसने दरवाजे की डोर बेल बजानी चाही, लेकिन फिर रुक गया और हल्के से गर्दन घुमाते हुए नयन से बोला, "ऐ....जाग रहे हो या सो गये?"
"हम्म...." नयन ने उनींदी भरी आवाज़ में कहा, "आधा ही सोया था। तुमने फिर जगा दिया, बोलो।"
"अगर मैंने डोरबैल बजाई और तुम्हारे मामा या मौसी ने तुम्हें इस तरह मेरे साथ देख लिया तो वह तुमसे सवाल नहीं करेंगे?" चंद्र ने फिर से मज़ाकिया लहजे में कहा।
"कुछ नहीं करेंगे, बजा दो।" यह कहते हुए उसने फिर से चंद्र की गर्दन पर सिर टिका लिया।
"पता नहीं आज यह कौन सा नशा करके आया है?" मन ही मन यह कहते हुए चंद्र ने डोर बेल बजा दी। कुछ देर बाद गीता ने दरवाज़ा खोला। चंद्र को देख वह एक पल के लिए खुश भी हुई और हैरान भी। लेकिन फिर अगले ही पल नयन को देखकर वह चौंक गई। "यह क्या हुआ इसे?" वह थोड़ा चिन्ता भरी आवाज़ में बोली।
"वह तो मुझे भी नहीं पता। मैं तो बस लाइट ना आने की वजह से बाहर गार्डन में था। यह चाँद-सितारों से बातें करता चला आ रहा था। मुझसे कहने लगा कि मैं अंदर ले चलूँ, इसलिए मैं ले आया।" चंद्र ने इतनी लंबी कहानी गीता को दो लाइनों में सुना दी।
चंद्र उसे सोफे पर सुलाने ले जा रहा था। तभी गीता उसे रोकते हुए बोली, "एक मिनट रुकिए मि. मून।" चंद्र रुक गया....
"जब आप यहाँ तक ले आये हैं तो इसे इसके कमरे में ही सुला दीजिये।" गीता ने कहा। जिसे सुनकर चंद्र नयन को लेकर उसके कमरे की ओर बढ़ गया और उसे बेड पर सुला दिया।
चंद्र जब कमरे से बाहर आया तो गीता उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। "मि. मून, यू आर वेरी काइंड पर्सन।" चंद्र ने यह सुनकर गीता की ओर देखा। गीता उसके पास आते हुए बोली, "नयन आपसे कभी ढंग से बात नहीं करता। हमेशा लड़ता रहता है। फिर भी आपने उसकी हेल्प की, उसे लेकर आये।"
चंद्र हल्के से हँसकर बोला, "माना कि वह ढंग से बात नहीं करता, लड़ता रहता है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं उससे दुश्मनी निभाऊँ।"
"या....यू आर राइट।" गीता भी हँसकर बोली।
"अच्छा, अब मैं चलूँ। रात बहुत हो गई है। सुबह ऑफिस भी जाना है।" चंद्र ने कहा। जिस पर गीता ने बस मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिला दिया। चंद्र जाने के लिए मुड़ा। फिर वापस गीता को देखकर बोला, "और हो सके तो कल नयन को भी जल्दी उठा देना। वरना वह आज की तरह फिर लेट हो जायेगा।"
"डोंट वरी, मैं उठा दूँगी....और अगर आप कहें तो आप को भी...." यह कहते हुए गीता के चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान आ गई।
जिसे देखकर चंद्र हँसते हुए बोला, "उसकी कोई ज़रूरत नहीं। मैं खुद उठ जाऊँगा।" यह कहकर चंद्र चला गया।
गीता उसे जाते हुए देखती रही। "सच में, आपके जैसा कोई नहीं है।"
जारी है......
अगले दिन सुबह 7 बजे नयन विकी के साथ घर की छत पर था। विकी एक्सरसाइज कर रहा था और नयन इधर-उधर घूम रहा था। गीता ने उसे किसी तरह जल्दी उठा ही दिया था।
वह छत की रेलिंग के पास खड़ा था तभी उसकी नज़र चंद्र की कार पर पड़ी। रात में उसने ध्यान नहीं दिया था। उसने विकी के पास जाकर पूछा, "ये ब्लैक कार किसकी है?"
"जिसके घर के बाहर खड़ी है उसी की तो होगी।" विकी ने पुशअप्स लगाते हुए जवाब दिया।
"यू मीन... ये चंद्र की कार है।"
"यस।"
"जब इनके पास कार है तो कल ये टैक्सी में ऑफिस क्यों गए थे?"
"सर्विस के लिए गई थी। कल ही लेकर आए हैं।" विकी ने जवाब दिया।
"ओके!" इतना कहते हुए नयन फिर से छत की रेलिंग के पास आकर खड़ा हो गया।
तभी उसने देखा कि राज अंदर से भागते हुए गार्डन में आया और चंद्र उसके पीछे भाग रहा था। "आज तू पिट के रहेगा मेरे हाथों से।"
"ये सुबह-सुबह महाभारत क्यों मची हुई है?" नयन ने उन दोनों को देखते हुए खुद से कहा।
"तेरी वजह से मुझे फालतू के मैसेजेस और कॉल्स आ रहे हैं।" चंद्र ने राज पर चिल्लाते हुए कहा।
"सॉरी भाई, मुझे नहीं पता था कि वो सब इतना सीरियसली ले लेंगी।" राज सॉरी भी कह रहा था और हँस भी रहा था। दरअसल, राज ने चंद्र की आईडी से लड़कियों से चैटिंग की थी जिस वजह से अब वो सब चंद्र को मैसेज करके और कॉल करके परेशान कर रही थीं।
छत पर खड़े नयन को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर बात क्या है? वह बस वहाँ खड़ा यह ड्रामा देख रहा था। उनकी आवाज सुनकर विकी भी नयन के पास आकर खड़ा हो गया। उसने जब राज को चंद्र से बचकर भागते हुए देखा तो वह नयन से बोला, "ये क्या हो रहा है? ये इसे मार क्यों रहा है?" विकी ने थोड़ी चिंता भरी आवाज में कहा।
इसे सुनकर नयन ने हैरानी भरी नज़रों से विकी की ओर देखा, "तुझे क्यों इतनी चिंता हो रही है?"
नयन ने जब यह कहा तो विकी भी मन में सोचने लगा, "सही बात है, मुझे क्यों इतनी चिंता हो रही है?"
राज भागते हुए गेट के पास आ गया था। चंद्र ने गार्डन में पड़ा एक डंडा उसे मारने के लिए उठाया और उसकी ओर बढ़ाया। इसे देखकर राज घबराते हुए बोला, "अरे इस डंडे से मुझे मत मारो! अगर मैं मर गया तो आपको फाँसी हो जाएगी।"
यह सुनकर छत पर खड़े नयन को हँसी आ गई और विकी को गुस्सा आ गया। "अब बहुत ज्यादा हो रहा है, उसे लग जाएगी....." इतना कहते हुए विकी नीचे जाने के लिए जैसे ही मुड़ा, नयन ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया। "तू क्यों इस महाभारत के युद्ध में कूद रहा है? याद है उस युग में भी उन भाइयों के युद्ध में जितने भी बाहरी राजा कूदे थे, सब वीरगति को प्राप्त हो गए थे।" नयन ने यह डायलॉगबाजी करते हुए विकी को फिर से अपने साथ खड़ा कर लिया।
चंद्र ने जैसे ही राज को मारने के लिए डंडा उठाया, वह फुर्ती से वहाँ से हट गया और चंद्र ने वह डंडा वहाँ दीवार पर लगे बल्ब पर दे मारा जिस वजह से वह फूट गया। यह देखकर नयन को गुस्सा आ गया और विकी खुश हो गया कि राज को कुछ नहीं हुआ।
जब राज की नज़र ऊपर छत पर खड़े नयन और विकी पर पड़ी तो वह हँसते हुए चंद्र से बोला, "भाई... आपने नुकसान कर दिया। अब आपको पनिशमेंट मिलेगी।"
यह सुनकर चंद्र ने उसकी ओर देखा तो राज उसे छत की तरफ इशारा करते हुए बोला, "वो देखो ऊपर....नयन आपको अपने नयनों से घूर रहा है।"
यह सुनकर चंद्र ने ऊपर छत पर खड़े नयन को देखा जो उसे ही देख रहा था, लेकिन अब उसके चेहरे पर गुस्सा नहीं बल्कि कुटिल मुस्कान थी।
राज वहीं से चिल्लाकर नयन से बोला, "मैंने कुछ नहीं किया। ये बल्ब इन्होंने तोड़ा है।" उसने चंद्र की तरफ इशारा करते हुए कहा।
विकी तो बस राज को ही देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था, "मैं भी किस पर दया कर रहा था? इसकी भोली सी सूरत के पीछे इतना बड़ा शैतान छिपा है!" यह सोचकर विकी के चेहरे पर हल्की सी हँसी आ गई।
नयन को देखकर चंद्र समझ चुका था कि अब यह उसे पनिशमेंट ज़रूर देगा क्योंकि उसने नुकसान जो कर दिया था, बल्ब तोड़कर।
राज तो यह कहकर घर के अंदर भाग गया था और चंद्र वहीं खड़ा नयन को देख रहा था। नयन उसे नीचे आने का इशारा करते हुए मुड़ गया।
"अब ना जाने यह क्या सजा सुनाएगा?" इतना कहते हुए चंद्र उसके आने का इंतज़ार करने लगा। नयन नीचे आया और दीवार के सहारे लगी टेबल पर खड़ा हो गया। उसे देखकर चंद्र भी दीवार के पास आकर खड़ा हुआ और उसे देखते हुए अपने हाथ में पकड़ा हुआ डंडा उसे देते हुए बोला, "लो, कर लो अपने दिल के अरमान पूरे।"
नयन ने मुस्कुराते हुए वह डंडा लिया और नीचे फेंक दिया। यह देखकर चंद्र ने उसे असमंजस भरे भाव से देखा।
"सर, आप क्या चाहते हैं कि मैं यहाँ आप पर हाथ उठाऊँ ताकि आप ऑफिस ले जाकर मुझे आग लगा दें?" नयन ने तंज कसने वाले अंदाज़ में कहा।
"क्या मतलब?" चंद्र को उसकी बात समझ नहीं आई।
"मतलब यह कि तुम्हें अच्छा-खासा रीज़न मिल जाएगा मुझे फायर करने का कि मैंने तुम पर हाथ उठाया।" नयन एकदम से अपनी बात का मतलब समझाते हुए बोला।
उसकी ये बातें सुनकर चंद्र मन ही मन मुस्कुराते हुए सोचने लगा, "लगता है कल रात का मेमोरी कार्ड खाली हो गया, कुछ याद नहीं है इसे। इसलिए अब अपने अकड़ वाले अंदाज़ में ही बात कर रहा है।"
"इसका मतलब तुम मुझे कोई सजा नहीं दोगे?" चंद्र ने नयन को देखकर पूछा।
"मैंने ऐसा कब कहा कि तुम्हें पनिशमेंट नहीं मिलेगी? ज़रूर मिलेगी।" नयन बोला।
"तो क्या है मेरी पनिशमेंट?"
"वैसे यह बल्ब तो तुम दूसरा लगवा ही दोगे, तो तुम्हारी पनिशमेंट यह है कि....तुम्हें मेरा ड्राइवर बनना होगा।" नयन ने अचानक से कहा, जिसे सुनकर चंद्र एकदम से चौंक गया।
"क्या? ड्राइवर?" चंद्र ने कहा।
"हाँ, तुम्हारी जो यह कार है ना, ब्लैक कलर की..." नयन ने चंद्र की कार की तरफ इशारा करते हुए कहा, "...तुम मुझे इसमें बिठाकर ऑफिस ले जाओगे और वापस भी लेकर आओगे।"
यह सुनकर तो एक पल के लिए चंद्र हैरान रह गया। "मैं और तुम्हारा ड्राइवर!" उसने कहा।
"क्यों, तुमने उस दिन डील की थी ना कि अगर तुमने कुछ भी नुकसान किया तो मैं जो सजा दूँगा उसे मानोगे? फिर....."
यह सुनकर चंद्र ने एक लंबी साँस लेकर कहा, "ओके! आय एम रेडी।"
उसकी बात सुनकर नयन कुटिलता से मुस्कुराया। "ड्राइवर, मैं अभी रेडी होकर आया, गाड़ी तैयार रखना, ओके!" उसने चंद्र पर हुकुम चलाते हुए कहा और अंदर चला गया।
चंद्र उसे जाते हुए देखता रह गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आज वह इसे नयन की नादानी समझे या उसकी समझदारी! नयन ने तो उसे सजा देकर अपना काम निकलवा लिया।
इधर नयन रेडी हो रहा था। "चलो अब रोज बस या टैक्सी में लटककर तो नहीं जाना पड़ेगा, मेरे बॉस खुद मुझे लेकर जाएँगे, मेरे ड्राइवर बनकर।" वह शीशे के सामने खड़े हुए खुद से ही कह रहा था और मुस्कुरा रहा था।
राज अब अपने घर की छत पर आ गया था। विकी अभी भी अपनी छत पर ही था और स्ट्रेचिंग कर रहा था। वह शॉर्ट्स और बनियान पहने हुए था। राज की नज़र जब उस पर पड़ी तो वह मुँह खोले विकी को देखने लगा। एक्सरसाइज करते हुए विकी पसीने से भीग चुका था और उसकी व्हाइट बनियान उसके शरीर से चिपक गई थी जिसमें उसके एब्स साफ नज़र आ रहे थे।
विकी की नज़र जब राज पर पड़ी तो उसने देखा कि राज उसे ही देख रहा है। यह देखकर वह हल्के से मुस्कुरा दिया और उससे बोला, "हेय! ऐसे क्या निहार रहे हो मेरी बॉडी को? नज़र लगाओगे क्या?" विकी ने मस्करी करते हुए कहा।
"मैं क्यों निहारूँगा? वैसे मेरी बॉडी भी काफी अच्छी है।" राज ने थोड़ा टशन दिखाते हुए कहा।
"अच्छा, मैंने तो नहीं देखी।" इतना कहते हुए विकी राज के पास आ गया। दोनों घरों की छत के बीच एक डॉली थी जिसके एक तरफ राज खड़ा था तो दूसरी तरफ विकी।
राज ने कट स्लीव ब्लैक रंग की टी-शर्ट पहनी हुई थी जो उसके गोरे रंग पर काफी जँच रही थी। वह अपने हाथ को कोहनी से मोड़ते हुए बोला, "ये देखो मेरी बॉडी।"
वैसे राज ने अभी बॉडी बनाना शुरू ही किया होगा, इसलिए वह थोड़ा नॉर्मल ही दिखता था, लेकिन उसे टशन जो दिखाना था। राज के फेस एक्सप्रेशन देखकर विकी हल्के से हँसकर बोला, "ये तो देख ली मैंने। अब अपने एब्स तो दिखाओ..." इतना कहते हुए विकी ने राज की टी-शर्ट को ऊपर करना चाहा, लेकिन अपने पेट पर उसका हाथ लगते ही राज हँसते हुए एकदम से पीछे हो गया। "ऐई....ये क्या कर रहे हो?"
"क्यों? क्या हुआ?" विकी ने भी हँसते हुए पूछा।
"मैं बहुत सेंसिटिव हूँ, मुझे गुदगुदी होती है अगर मुझे कोई इस तरह से टच करे तो।"
राज की यह बात सुनकर तो विकी के चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई और वह डॉली कूदकर उसकी छत पर आ गया। "अच्छा, यह बात है...फिर तो मैं ज़रूर करूँगा।"
राज यह सुनकर भागा, लेकिन विकी ने पीछे से उसे कमर से पकड़ते हुए अपनी ओर खींच लिया और उसके पेट पर गुदगुदी करने लगा।
"ऐ....छोड़ो......मत करो.....प्लीज़!" राज यह कहते हुए हँस भी रहा था और उससे छूटने की कोशिश भी कर रहा था, लेकिन विकी की मज़बूत पकड़ से छूट पाना उसके लिए इतना आसान नहीं था।
विकी ने उसे गुदगुदी करते हुए डॉली से सटा दिया। विकी से छूटने की कोशिश करते हुए राज जब दूसरी तरफ गिरने को हुआ तो विकी ने उसे पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। राज का चेहरा विकी की चेस्ट के एकदम सामने था और उसके हाथ विकी के कंधों पर थे। विकी ने भी उसे कमर से पकड़ा हुआ था। राज ने सिर उठाकर विकी को देखा तो पाया कि विकी उसे सरगोशी भरी निगाहों से देख रहा था। विकी की गहरी काली आँखों में जो कशिश और आकर्षण था, उसे देखकर तो एक पल के लिए राज भी उनमें खो गया।
"एक बात पूछूँ?" राज ने विकी की आँखों में देखते हुए पूछा।
"पूछो।" विकी ने भी उसमें खोये हुए ही जवाब दिया।
"तुम बीएल सीरीज देखते हो?"
"नहीं।"
"तुम्हें पता है ऐसी सिचुएशन में क्या होता है?"
"क्या होता है?"
"किस!" राज ने बड़े ही रुमानी अंदाज़ में कहा।
यह सुनकर विकी राज के सुरख गुलाबी होंठों को देखने लगा और धीरे-धीरे आगे भी बढ़ने लगा। तभी राज ने हँसकर उसके सीने पर हाथ मारते हुए उसे धक्का दे दिया। "अरे हटो यार, तुम तो सीरियस ही हो गए...जाओ नहा लो, कितने स्वैटी हो रखे हो और मुझे भी कर दिया।" इतना कहते हुए राज अपनी टी-शर्ट को झटकते हुए वहाँ से चला गया।
राज तो चला गया, लेकिन विकी के मन में हलचल सी मच गई। विकी वहीं खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा। "ओह गॉड! यह क्या हो रहा है? मुझ फीलिंगलेस पर्सन में फीलिंग कब से जागने लगी? वह भी एक लड़के के लिए! कहीं मैं पागल ना हो जाऊँ।" विकी यह सोचते हुए अपने बालों को नोचने लगा।
जारी है.......
नीचे चंद्र रेडी होकर अपनी कार के पास खड़ा नयन का इंतज़ार कर रहा था और हॉर्न बजा रहा था। तभी नयन घर से निकला और कानों पर हाथ रखते हुए बोला, "अब बस भी करो आ गया मैं।"
चंद्र ने हॉर्न बजाना बंद कर दिया।
नयन कार में लगे कांच को देखते हुए अपने बाल सेट कर रहा था। उसे देखकर चंद्र ने सिर हिलाते हुए कहा, "अब तुम्हारा श्रृंगार पूरा हो गया हो तो चलें।"
"ड्राइवर, मेरे लिये डोर खोलो।" नयन ने एक नज़र उस पर डाली और घमंड से बोला।
"अब ये डोर भी मैं ही खोलूँ तुम्हारे लिये?"
"क्यों, तुम मेरे ड्राइवर हो तो मेरे लिये डोर भी तो तुम ही खोलोगे ना।"
चंद्र उसके लिये डोर खोलने लगा। "रुको....ये आगे वाला नहीं।"
नयन आँखें तानते हुए बोला, "पीछे वाला डोर खोलो।"
चंद्र ने उसे घूरते हुए चुपचाप पीछे वाला डोर खोल दिया। नयन बड़े रौब से जाकर उसमें बैठ गया। फिर चंद्र ने वो डोर बंद किया और आगे ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया। उसने गाड़ी स्टार्ट की और उसे लेकर चल दिया।
रास्ते में नयन पीछे आराम से बैठे हुए चंद्र से बोला, "कार तो तुम्हारी बहुत अच्छी है। वैसे ये सच में तुम्हारी है?"
"तुम्हें क्या लगता है?" चंद्र ने ड्राइव करते हुए सामने देखकर कहा।
"मुझे तो लगता है कि ये भी रेंट पर ही ली होगी।" नयन यह कहकर हँस दिया। "वैसे कितनी बड़ी बात है ना कि मेरे बॉस मेरे ड्राइवर बनकर मुझे ऑफिस लेकर जा रहे हैं!......क्या शान होगी मेरी ऑफिस में...!"
चंद्र चुपचाप उसकी बातें सुनता रहा, लेकिन कुछ नहीं बोला। बस अपनी घड़ी में टाइम देख रहा था।
"तुम अपनी घड़ी में बार-बार टाइम क्यों देख रहे हो?" नयन ने उसे देखकर पूछा।
"देख रहा हूँ कि मेरा टाइम आने में कितना टाइम है।" चंद्र ने सामने देखकर ही जवाब दिया।
"क्या मतलब?" नयन को कुछ समझ नहीं आया।
"मतलब, अभी बताता हूँ।" यह कहते हुए चंद्र ने एकदम से कार रोक दी।
"ये कार क्यों रोकी तुमने?"
"खिड़की से झाँककर देखो। ऑफिस आ चुका है।" यह कहकर चंद्र डोर खोलकर बाहर आ गया।
"अब बाहर आओ।" उसने खिड़की में से झाँक रहे नयन से कहा।
"तुम डोर खोलो मेरे लिये।" नयन डोर की तरफ इशारा करके बोला।
यह सुनकर चंद्र हल्की सी मुस्कान लिए उससे बोला, "नहीं, अब तुम खुद खोलकर बाहर आओ।"
"क्यों, तुम मेरे ड्राइवर हो।"
"अब नहीं हूँ। घड़ी में टाइम देखो। नौ बजकर एक मिनट हो चुके हैं और यह ऑफिस टाइम है जहाँ मैं तुम्हारा बॉस हूँ। यहाँ तुम्हें मेरी बात माननी होगी।" चंद्र ने उसे अपनी घड़ी दिखाते हुए कहा।
नयन ने लाचारी से अपने दोनों होंठ भींच लिए और चुपचाप डोर खोलकर बाहर आ गया। चंद्र ने उसे मुस्कुराकर देखा, फिर अपना बैग उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला, "ये लो पकड़ो इसे।"
"क्या...! मैं इसे पकड़ूँ?" नयन ने एकदम से चौंककर कहा क्योंकि उसने चंद्र से इस बात की उम्मीद बिल्कुल नहीं की थी कि वह इस तरह बदला लेगा।
"क्यों? डील भूल गए कि क्या हुई थी? ऑफिस टाइम में तुम मेरी बात मानोगे, तो पकड़ो।" यह कहते हुए चंद्र ने अपना बैग उसे थमा दिया और तेज कदमों से आगे बढ़ गया।
"अरे धीरे तो चलो...." नयन यह कहते हुए चंद्र का बैग पकड़े उसके पीछे भाग रहा था।
चंद्र लिफ्ट में चला गया। उसके पीछे नयन भी भागते हुए अंदर आ गया और उसे घूरते हुए बोला, "तुमने तो नुकसान किया था इसलिए मैंने पनिशमेंट दी, लेकिन तुम तो बेवजह मुझे अपना सर्वेंट बना रहे हो।"
यह सुनकर चंद्र ने उसे देखा और अपनी आँखें ऊँची करते हुए बोला, "अच्छा, तुम तो जैसे कुछ करते ही नहीं हो, बड़े शरीफ़ हो, है ना। कल याद नहीं सुबह मुझसे कैसे बात की थी तुमने।"
"तो उसके बदले तुम मेरे साथ-साथ मेरे दोस्तों को भी तो पनिश कर गए थे।" नयन ने उसे जवाब दिया।
"मैंने कोई पनिश नहीं किया था। बस काम पूरा करने को कहा था। और इसके अलावा कल रात को भी तुमने मेरे साथ बदतमीजी की।" यह झूठ चंद्र ने इसलिए कहा ताकि वह जान सके कि नयन को कल रात की बात याद है या नहीं।
"क्या किया था मैंने कल रात?" नयन सोचते हुए बोला।
"तुम्हें याद नहीं।" चंद्र ने उसे देखकर कहा।
"मुझे तो बस इतना याद है कि मैं गली में आया था, लाइट गई हुई थी, तुम बाहर थे मुझसे बात कर रहे थे, उसके बाद तो मैं घर चला गया था। मुझे नींद आ रही थी और क्या किया मैंने...?" यह कहते हुए नयन ने उसकी तरफ देखकर सवाल किया।
"खुद गए थे!" चंद्र ने उसे देखकर पूछा।
"अब यह क्या सवाल है?" नयन ने नासमझी के भाव से आँखें सिकोड़कर कहा, "खुद ही तो चलकर गया था।" नयन ने जवाब दिया।
चंद्र उसकी ये बातें सुनकर कुछ सोचते हुए उसे देखता रहा। वह कुछ कहता उससे पहले ही लिफ्ट का दरवाज़ा खुल गया। फिर चंद्र कुछ ना कहकर तेज कदमों से बाहर निकल गया।
"अरे फिर भाग लिए.....!" यह कहते हुए नयन भी उसके पीछे भागा।
जब कला और परीक्षित ने उसे इस तरह चंद्र के पीछे भागते देखा तो वे दोनों शॉक्ड रह गए। उसके हाथ में बैग देखकर कला परीक्षित से बोली, "हमारी पनिशमेंट तो कल काम फिनिश होने के साथ ही फिनिश हो गई, लेकिन नयन की तो अब भी जारी है।"
"अपनी करनी का फल भोग रहा है।" यह कहकर परीक्षित हँस दिया और उसके साथ कला भी।
चंद्र जब वहाँ आया तो वे दोनों मुस्कुराकर बोले, "गुड मॉर्निंग, सर!" तभी नयन भी चंद्र का बैग पकड़े वहाँ आकर खड़ा हो गया।
"गुड मॉर्निंग!" चंद्र ने उन दोनों से कहा।
परीक्षित ने नयन को देखकर चंद्र से कहा, "सर, आपने नया सर्वेंट रखा है क्या?"
"ऐ...मैं कोई सर्वेंट नहीं हूँ।" नयन ने चिढ़ते हुए कहा। उसने आस-पास नज़रें घुमाईं तो उसके और भी कलीग्स उसे देखकर हँस रहे थे। यह देखकर वह और चिढ़ गया, फिर वह चंद्र को देखकर बोला, "तुम पकड़ो अपना बैग।" यह कहते हुए नयन उसे बैग देने ही जा रहा था, लेकिन चंद्र उस पर ध्यान ना देकर अपने केबिन की ओर जाते हुए बोला, "मेरे केबिन में लाकर रख दो।"
"क्या? केबिन में? मैं नहीं आ रहा।" उसने कहा।
जिसे सुनकर चंद्र पलटा और सख्त चेहरा बनाते हुए तीखी निगाहों से उसे देखने लगा। यह देखकर नयन घबराते हुए बोला, "आ...आ रहा हूँ।" यह कहते हुए नयन पीछे-पीछे उसके केबिन की ओर बढ़ गया।
उनके जाने के बाद कला और परीक्षित बहुत हँसे। "लगता है कल रात को डोज़ देने का भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ।" कला परीक्षित से बोली।
जिसे सुनकर परीक्षित हँसते-हँसते रुक गया, "याह.. तो यह कल रात सर से मिला ही नहीं होगा या फिर मिला भी होगा तो इसने बदतमीजी ही की होगी।" उसने कहा।
"हाँ ऐसा ही हुआ होगा।" कला भी सोचते हुए बोली।
केबिन के अंदर जाकर नयन ने उसका बैग टेबल पर पटक दिया। चंद्र जब अंदर आया तो वह नयन को देखते हुए अपनी चेयर पर जाकर बैठ गया। उसे देखकर नयन खिसियाते हुए बोला, "तुम ड्राइवर बने किसी ने ना देखा लेकिन मैं नौकर बना सबने देखा। यू आर वेरी बेड, आई हेट यू!" यह कहते हुए नयन गुस्से में मुँह बनाते हुए उसके केबिन से बाहर निकल गया।
उसके जाने के बाद चंद्र को भी उस पर हँसी आ गई। फिर कुछ देर बाद वह नॉर्मल हुआ और किसी को फोन करने लगा।
कुछ देर बाद कला और परीक्षित चंद्र के केबिन में खड़े थे और चंद्र उन दोनों को गंभीर चेहरा बनाकर देख रहा था।
"तुम दोनों नयन के बहुत अच्छे दोस्त हो, राइट।" चंद्र ने उन दोनों से कहा।
"यस सर।" उन दोनों ने कहा।
"फिर तो तुम उसके बारे में सब कुछ जानते हो और कल भी तुम उसके साथ ही थे..तो फिर बताओ कल रात ऐसा क्या हुआ था जिस वजह से वह इतना अलग बिहेव कर रहा था?" चंद्र ने पूछा।
"सर, क्या आप कल रात नयन से मिले थे?" कला ने अचरज भरे भाव से पूछा।
"हाँ मिला था।"
"क्या उसने आपके साथ कोई बदतमीजी की?"
"नहीं की। इसीलिए तो पूछ रहा हूँ कि उसका बिहेवियर बदला हुआ क्यों था?...कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम लोग कल रात ड्रिंक करने गए थे?" चंद्र ने थोड़ा सख्ती से कहा।
"नो सर, हम लोग ड्रिंक करने नहीं बल्कि होटल में डिनर करने गए थे और नयन के चेंज हुए बिहेवियर के पीछे इस परी का हाथ है।" कला ने यह कहते हुए परीक्षित की ओर इशारा कर दिया।
चंद्र ने जब परीक्षित को देखा तो वह बत्तीसी चमकाते हुए बोला, "सर, आप गलत मत समझिये, मेरा इंटेंशन गलत नहीं था, मैं आपको सब कुछ डीटेल में बताता हूँ.......”
(फ्लैशबैक)
ऑफिस का काम फिनिश होने के बाद वेदांश तो अपने घर चला गया था। कला, नयन और परीक्षित डिनर करने पैराडाइज होटल में आ गए। वहाँ भी नयन टेंशन में ही था, भले ही उसने वर्क कंप्लीट कर लिया था, लेकिन चंद्र की गलती ना होने के बावजूद भी उसने जिस तरह से उससे बात की, उस वजह से वह अंदर ही अंदर बहुत गिल्ट महसूस कर रहा था, लेकिन उसकी अकड़ उसे माफी माँगने की इजाज़त बिल्कुल नहीं दे रही थी।
कला, परीक्षित और नयन एक टेबल पर बैठे डिनर कर रहे थे। कला और परीक्षित नयन की हालत बखूबी समझ रहे थे, आखिर वह उसके बचपन के दोस्त थे, तो उसके नेचर को अच्छे से जानते थे। तभी नयन का फोन बजा। उसने देखा कि गीता का कॉल था। उसने कॉल उठाया, लेकिन शायद वहाँ नेटवर्क नहीं आ रहा था।
"नयन, बाहर जाकर बात कर ले।" परीक्षित ने कहा। जिसे सुनकर नयन बाहर चला गया।
कला तो चुपचाप खा रही थी। तभी परीक्षित के मन में एक विचार आया। वह उठकर गया और शराब की एक बोतल ले आया। वह उसे नयन के पानी के गिलास में मिला रहा था। जिसे देखकर कला एकदम से बोली, "अरे! यह क्या कर रहे हो? उसे पता नहीं चलेगा क्या कि इसमें शराब है?"
"अरे नहीं पता चलेगा, क्योंकि यह वोडका है, नीट एण्ड क्लीन, ना तो इसमें कोई टेस्ट है और ना ही कोई स्मेल। इससे केवल उसका दिमाग शांत हो जाएगा और उसे नींद अच्छी आएगी। शायद इसके असर से उसके मन की बातें जुबान पर आ जायें और वह घर जाकर सर से माफ़ी माँग ले।" परीक्षित ने कहा।
यह सुनकर कला ने कुछ पल के लिए सोचा, फिर बोली, "अगर इसके असर से उसने और बदतमीजी कर दी तो।"
"अरे तो वैसे भी वह कौन सा तमीज़ से बात करता है।" परीक्षित ने उससे कहा।
"हाँ, बात तो तुम्हारी बिल्कुल सही है। वाओ परी! मैं तुम्हें जितना बेवकूफ़ समझती थी, उतने तुम हो नहीं।" कला ने हँसकर कहा।
"व्हाट?" परीक्षित कला को घूरने लगा।
"अरे अब मुझे मत देखो। जल्दी इस बोतल को रखकर आओ, वरना वह आ जाएगा।" कला ने कहा।
परीक्षित उस बोतल को रखकर आ गया और वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गया। तभी नयन वापस आया और बोला, "अच्छा, अब मैं चलता हूँ। बहुत देर हो गई है।"
"डिनर फ़िनिश तो किया ही नहीं तूने?" कला ने नयन से उसकी प्लेट की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा।
"अरे खा लिया जितना खाना था।" नयन अपना बैग टाँगते हुए बोला।
"अच्छा पानी तो पी ले, भरा ही रखा है।" परीक्षित ने पानी के गिलास की तरफ़ इशारा करके कहा। नयन ने उस गिलास को देखा, फिर उसे उठाकर पी लिया। "बड़ा बेस्वाद पानी है।" उसने मुँह बनाते हुए कहा।
"एकदम प्योर वाटर है।" परीक्षित ने कहा। जिसे सुनकर कला मुँह फेरकर हँस दी।
(वर्तमान)
यह बात सुनकर चंद्र उन दोनों को एकटक घूर रहा था। यह देखकर वे दोनों सहमे हुए से उससे अपनी नज़रें चुरा रहे थे।
"कैसे दोस्त हो तुम दोनों...माना तुम्हारा इंटेंशन गलत नहीं था, लेकिन तरीका तो गलत था ना। तुम लोगों ने यह नहीं सोचा कि इतनी रात को उसे अकेले घर जाना है। अगर रास्ते में कुछ हो गया तो, कम से कम उसे घर तक तो छोड़ आते या फिर तुम दोनों खुद ही नशा करके बैठे थे।" चंद्र ने उन दोनों को थोड़ा डाँट लगाकर कहा।
यह सुनकर उन दोनों को भी लगा कि शायद उन्हें भी नयन के साथ घर जाना चाहिए था, लेकिन पता नहीं क्यों उस वक्त उन्हें यह ध्यान ही नहीं आया।
"सॉरी सर! लेकिन आप नयन को इस बारे में कुछ मत बताना, वरना वह हम पर कभी भरोसा नहीं करेगा।" परीक्षित ने पछतावे भरा चेहरा बनाकर चंद्र से विनती करते हुए कहा।
"हाँ सर, प्लीज हम ऐसी गलती फिर कभी नहीं करेंगे।" कला और परीक्षित ने चंद्र से माफ़ी माँगते हुए कहा।
"तुम लोगों को इस बात का पछतावा है, यही बहुत बड़ी बात है। इसलिए मैंने तुम्हें माफ़ किया, लेकिन आइन्दा ध्यान रखना, ओके।" चंद्र ने उन दोनों से शांत होकर कहा।
"जी सर।" उन दोनों ने कहा।
उसके बाद परीक्षित चंद्र को देखकर मुस्कुराते हुए उसके सामने टेबल पर अपनी कोहनी को टिकाकर अपना हाथ अपने गाल पर रखते हुए बोला, "वैसे सर, कल रात उसके और आपके बीच क्या बातें हुई?" उसने चंद्र को छेड़ने वाले अंदाज़ में पूछा। जिसे सुनकर चंद्र उसे सीरियस चेहरा बनाते हुए तीखी नज़रों से देखने लगा।
कला ने जब चंद्र की ओर देखा तो वह डरते हुए धीरे से परीक्षित के पीछे उसके कान के पास आकर बोली, "तुम्हें मन ही मन श्राप दे रहे हैं वह, देखो किस तरह जलती हुई निगाहों से घूर रहे हैं तुम्हें।" कला की बात सुनकर परीक्षित चंद्र से सॉरी सर कहते हुए सीधा खड़ा हो गया। चंद्र ने आँखों से ही उन दोनों को बाहर जाने का इशारा कर दिया।
उनके जाने के बाद चंद्र नयन के बारे में सोचने लगा, "नशे में लोग बदतमीज़ हो जाते हैं, लेकिन यह तो अच्छा बच्चा बन जाता है जिससे किसी को भी प्यार हो जाए।" यह सोचते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
जारी है........
नयन के नशे में होने पर उसके दिल की बात जानने के बाद, चंद्र समझ चुका था कि नयन बाहर से जैसा खुद को दिखाता है, वैसा है नहीं। इसलिए अब चंद्र उसकी हर नादानी को हँसी में टालने लगा, और बदतमीज़ियों को अनदेखा करने लगा। अब तो यही होता था कि जब नयन चंद्र पर घर में रौब जमाता था, तो चंद्र उसका बदला ऑफिस में ले लिया करता था, केवल नयन को चिढ़ाने के लिए। विकी के मन में भी राज के लिए अहसास पनपने लगे थे। जब विकी अपने अहसासों से मजबूर होकर राज के करीब जाने की कोशिश करता, तो राज उसे हँसकर दूर कर देता; विकी बेचारा मन मसोस कर रह जाता। विकी तो खुल्लम-खुल्ला राज से अपने प्यार का इज़हार करता रहता था, लेकिन राज के मन में क्या था, यह उसे अभी तक पता नहीं चला था। ऐसे ही नोंक-झोंक, तकरार और प्यार में कुछ महीने बीत गए।
एक दिन ऑफिस के मीटिंग रूम में चंद्र, नयन, वेदांश, कला और परीक्षित के साथ-साथ और भी कलीग्स बैठे हुए थे। चंद्र कंपनी के नए प्रोडक्ट की सेल के रिव्यू के बारे में बात कर रहा था। इसके अलावा, आगे कंपनी द्वारा बनाए गए अन्य प्रोडक्ट की इंफॉर्मेशन भी दे रहा था। इस बार वह उन लोगों को एकदम शुरू से इसकी मैन्यूफैक्चरिंग के बारे में बताते हुए, उसके आगे की प्रोसेस की पूरी डिटेल एक परफेक्ट वे में बता रहा था। कुछ एम्प्लॉयी तो उसे सुन रहे थे, लेकिन जो नयन जैसे थे, वे बोर हो रहे थे और इधर-उधर देखने में लगे हुए थे।
तभी नयन के पैर पर उसी की चेयर लग गई और वह हल्के से कराह गया। उसकी आवाज सुनकर सब ने उसकी ओर देखा। चंद्र ने भी उसे देखकर पूछा,
"व्हाट हैपण्ड?"
यह सुनकर नयन ने चंद्र को देखा और बोलने लगा,
"मेरे पापा और चाचा की कभी नहीं बनती थी। मेरे ताऊ की एक दुकान थी जिसे वे दोनों लेना चाहते थे…"
उसे इस तरह बोलता देख चंद्र ने उसे रोका,
"एक मिनट! इस बात का क्या मतलब है?"
"अरे आप सुनिए तो सही।" यह कहकर नयन फिर से जल्दी-जल्दी बिना रुके बोलने लगा, "ताऊ ने दुकान बेचनी चाही तो पापा-चाचा दोनों आपस में लड़ने लगे कि मुझे चाहिए, मुझे चाहिए। ताऊ तो यह लड़ाई देखकर भाग गया, फिर तो उनमें महाभारत शुरू हो गई। चप्पल-घूंसे, लात सब चले। फिर मैं भी कहाँ पीछे रहने वाला था? जब मेरे पापा लड़ाई में अर्जुन की तरह लड़ रहे थे, तो अभिमन्यु की तरह मुझे भी तो कूदना था उसमें। कूद लिया और सीधा कूदा अपने चाचा पर, लेकिन जैसे ही कूदा, उन्होंने दे मारी मेरे पैर पर कुर्सी… बस यही कुर्सी अब फिर से मेरे पैर पर लग गई, और वह जख्म फिर से हरा हो गया।"
नयन ने अपनी कहानी सुनाकर खत्म की और आराम से बैठ गया। पूरे मीटिंग रूम में पहले तो शांति छाई रही, फिर सब जोर से हँस दिए। कला और परीक्षित को भी हँसी आ गई, लेकिन वेदांश चंद्र को ही देख रहा था, जिसके चेहरे पर गुस्सा था।
चंद्र अपनी कड़क आवाज में नयन से बोला,
"यह क्या मज़ाक है नयन? यह मीटिंग रूम है, यहाँ हम वर्क से रिलेटेड बात कर रहे हैं, और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है। यह बात तुम एक लाइन में भी तो बता सकते थे, इतनी लंबी कथा कहने की क्या ज़रूरत थी?"
"एग्ज़ेक्टली!" नयन ने दोनों हाथ टेबल पर मारते हुए कहा, "यही तो मैं आपको समझाना चाहता हूँ कि इतनी देर से आप प्रोडक्ट के बारे में इतनी लंबी कथा क्यों कह रहे हैं? सीधे मुद्दे पर आइए ना। हमें क्या लेना-देना कि कब यह निर्मित हुआ, कितनी मशीनें लगी इसे बनाने में? सीधा-सीधा बोल दो कि हमें इसके बारे में रिसर्च करनी है, इस पर प्रेजेंटेशन तैयार करनी है, और इस बात के लिए यह इतनी बड़ी मीटिंग बुलाने की क्या ज़रूरत थी? यह तो आप मेल करके भी बता सकते थे।"
"उस दिन मेल ही तो किया था मैंने, कितनी अच्छी तरह से समझा था तुमने।" चंद्र ने भी उस पर तंज कसते हुए कहा, "आज जब मैं सब कुछ खुद डिटेल में समझा रहा हूँ, तो अब इसमें भी प्रॉब्लम है।"
"अरे तो वही गलती हम बार-बार थोड़े ही दोहराएँगे, बिल्कुल ही नादान समझा है क्या? …और वैसे भी उस दिन टाइम समझने में गलती हुई थी, काम समझने में नहीं।" नयन बड़े घमंड से अपनी बात समझाकर बोला, जिसे देख चंद्र कुछ पल के लिए शांत हो गया और उसे देखने लगा।
चंद्र ने अब बात आगे ना बढ़ाते हुए मीटिंग खत्म की और नयन को अपने केबिन में आने को बोलकर, अपने केबिन की ओर बढ़ गया।
नयन केबिन में चंद्र के सामने खड़ा था।
"व्हाट इज़ दिस? आखिर प्रॉब्लम क्या है तुम्हारी?" चंद्र ने उससे पूछा तो नयन ने बोलना शुरू किया, और इन दोनों की कन्वर्सेशन चालू हो गई-
"देखो, प्रॉब्लम कुछ भी नहीं है, लेकिन तुम इस तरह की मीटिंग मत रखा करो जिसमें इंसान बोर हो जाए। अरे शक्लें तो देखी होती उन कलीग्स की, ऐसा लग रहा था जैसे तुमने उन्हें ज़बरदस्ती बैठाया हो।" नयन ने कहा।
"ये बातें तुम बाद में आराम से भी तो कह सकते थे, बीच में यह गँवारों वाला तरीका अपनाने की क्या ज़रूरत थी?" चंद्र ने पूछा।
"ताकि उन लोगों का एंटरटेनमेंट हो जाए। देखा नहीं, चेहरे खिल उठे थे उनके।" नयन ने हँसकर जवाब दिया।
"मेरी इंसल्ट करके तुम उनका मनोरंजन कर रहे थे।" चंद्र आँखें तानते हुए बोला।
"मैंने तो कोई इंसल्ट नहीं की।" नयन ने बेपरवाही से जवाब दिया।
"देखो, तुम्हारी बदतमीज़ियाँ हद से ज़्यादा बढ़ती जा रही हैं।" चंद्र ने गुस्से में अपनी आइब्रो ऊँची करके कहा।
"मैं बदतमीज़ी नहीं कर रहा, अपनी बात रख रहा हूँ।" नयन ने उसके गुस्से की परवाह ना करते हुए जवाब दिया।
"ओके! तुमने अपनी बात रख दी, अब जाओ। तुमसे कुछ भी बोलने का कोई फ़ायदा नहीं।" चंद्र ने उसकी बेपरवाही को देखते हुए कहा, और यह कहकर उसने नयन को जाने का इशारा कर दिया।
नयन उसे देखकर मन ही मन अपनी जीत की खुशी मनाते हुए वहाँ से चला गया।
उसके जाने के बाद चंद्र ने मन ही मन सोचा, "मीटिंग सच में बोरिंग थी? लेकिन अगर इन्हें ना समझाओ तो मिस्टेक करते हैं, और समझाओ तो बोर होते हैं। ओह गॉड! लगता है इस नयन के साथ रहकर मैं भी पागल हो गया हूँ, हह!" उसने गहरी साँस ली और उसे छोड़ते हुए बोला, "अब मेल ही भेजना पड़ेगा… लिखो!" यह कहते हुए वह अपने लैपटॉप पर मेल टाइप करने लगा।
कला और परीक्षित कैंटीन में साथ बैठे बात कर रहे थे।
"परी, नयन का यह बिहेवियर किसी दिन उसे ले डूबेगा।" कला ने कहा।
"हाँ, अब तो दिन-ब-दिन वह सर के साथ बहुत रूड होता जा रहा है।" परीक्षित भी उसकी बात का समर्थन करते हुए बोला।
"मैंने तो सुना है कि उसकी शिकायत ऑनर तक भी पहुँच चुकी है। अगर उसने अपना बिहेवियर नहीं बदला, तो वह उसे यहाँ से निकाल देंगे।" कला ने थोड़ा चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा।
"हमें कुछ करना चाहिए।" परीक्षित ने कुछ सोचते हुए कहा।
"हम क्या कर सकते हैं? नयन को तो हम कई बार समझा चुके हैं, लेकिन वह हमारी बातों को सीरियसली ले तब ना! उसे तो लगता है कि सर उसे फायर कर ही नहीं सकते।" कला बेपरवाही से बोली।
"अब समझाने से काम नहीं चलेगा, डराना पड़ेगा। कहते हैं ना कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।" यह कहकर परीक्षित के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कराहट तैर गई।
विकी अपने घर पर था और लैपटॉप में कुछ देख रहा था। कभी तो वह मुस्कुरा जाता, तो कभी उसके चेहरे पर कामुकता के भाव उमड़ आते। कभी अपने होंठों को भींच लेता, तो कभी अपने पैरों को मसलने लगता। तभी गीता वहाँ आई। उसने जब विकी को इस तरह की हरकतें करते देखा, तो वह धीरे-धीरे दबे पाँव से चलकर उसके पीछे जाकर खड़ी हो गई। और उसके लैपटॉप में जो उसने देखा, उसका मुँह हैरानी से खुला रह गया। विकी बीएल सीरीज़ देख रहा था। जब से उसने राज के मुँह से बीएल सीरीज़ के बारे में सुना था, वह भी यह सब देखने लग गया था।
विकी को जब महसूस हुआ कि पीछे कोई है, तो उसने जल्दी से लैपटॉप बंद कर दिया और पलटकर देखा। तो गीता को देखकर तो उसका पारा वैसे ही हाई हो गया,
"तू क्या कर रही है मेरे पीछे?" वह तेज और कड़क आवाज में बोला।
"पहले तू बता, यह सब क्या देख रहा है तू!…कहीं कोई मिल तो नहीं गया जिसके लिए इन चीजों का एक्सपीरियंस ले रहा है?" गीता ने आँखें छोटी करके उसे घूरते हुए कहा।
विकी को शर्म तो बहुत आ रही थी, लेकिन उसने अपनी शर्म को गुस्से के पीछे छिपाते हुए कहा,
"तुझे इससे क्या लेना-देना? अपने काम से काम रख, समझी! और वैसे भी… तू भी कोई दूध की धुली नहीं है। हर महीने तो तेरे बॉयफ्रेंड चेंज होते हैं, और एक परमानेंट गर्लफ्रेंड भी रखी हुई है… मिन्नी।"
"यह क्या बोल रहा है? मिन्नी सिर्फ़ मेरी फ्रेंड है।"
"हाँ हाँ, सब जानता हूँ मैं, कितनी फ्रेंड है वह तेरी।"
"तू अपनी करतूत छिपाने के लिए मुझ पर लाँछन क्यों लगा रहा है? और वैसे भी मैंने कुछ बोला है क्या तुझे? बस इतना ही तो पूछा था कि कोई मिल गया है क्या? कौन सा मैं तुझे फाँसी चढ़ा रही हूँ? आजकल सब नॉर्मल है।" गीता यह कहते हुए अपने रूम में चली गई।
"ओ तेरी! मैंने तो सोचा था कि यह गीता देवी अपने नाम की तरह ही पुरानी विचारधारा वाली होगी, लेकिन यह तो मेरी सोच से कहीं आगे है। इसे तो कोई फर्क ही नहीं पड़ा। चलो मेरे लिए तो अच्छा ही है।" यह कहते हुए विकी के चेहरे पर राहत भरी मुस्कान आ गई। फिर वह राज को याद करने लगा, "यार यह राजा बाबू भी दो दिन से कॉलेज टूर पर गया हुआ है। एक तो वह पहले ही पास नहीं आने देता, हमेशा बत्तीसी चमकाकर दूर कर देता है, और अब तो दो दिन से दिख भी नहीं रहा है। अब इस दिल को कैसे संभालूँ?"
ऑफिस में कला और परीक्षित नयन के अगल-बगल चेयर पर बैठे थे और उसे कुछ समझाने में लगे थे, या फिर यूँ कहें कि इस बार परीक्षित ने जो प्लान बनाया था, उसे अंजाम दे रहे थे।
"नयन, तुझे पता है तेरी कंप्लेंट ऑनर के पास पहुँच गई है कि चंद्र सर के साथ तेरा बिहेवियर बहुत रूड है।" कला ने नयन से कहा।
"रूड! लेकिन मैं तो उनसे इसी तरह बात करता हूँ, उन्होंने तो कभी कुछ नहीं कहा।" नयन इस तरह बेपरवाही से बोला, जैसे यह बात वह कई बार सुन चुका हो।
"वह कहेंगे नहीं, अब सीधा करेंगे।" परीक्षित ने अब अपने प्लान की शुरुआत करते हुए कहा।
"क्या मतलब?" यह सुनकर नयन ने उसकी बात पर ध्यान देते हुए उसकी ओर देखा।
"मतलब यह कि हमारे ऑनर के दोस्त के बेटे को यह जॉब चाहिए, इसलिए तेरे इस बिहेवियर को देखते हुए तेरी जगह उसे रख लिया जाएगा।" परीक्षित ने अपने मन से नमक-मिर्च लगाकर यह बात कही।
जिसे सुनकर नयन एकदम से खड़ा होकर बोला,
"क्या? इसका मतलब मुझे सचमुच निकाल देंगे।"
"हाँ, अगर तूने अपना बिहेवियर चेंज नहीं किया, तो चंद्र सर ना चाहते हुए भी ऑनर के कहने पर तुझे यहाँ से निकाल देंगे, क्योंकि ऑनर की बात तो वह टाल नहीं पाएँगे ना।" यह कहते हुए परीक्षित भी खड़ा हो गया और चिंता करने का दिखावा करते हुए बोला।
"अब मैं क्या करूँ?" नयन ने उन दोनों की तरफ देखकर कहा, जिसे सुनकर वे दोनों खुश हो गए। उन्हें लगा कि उनका तरीका काम कर रहा है।
"देख, अगर तुझे अपनी जॉब बचानी है, तो तुझे अपना बिहेवियर चेंज करना ही होगा। तुझे चंद्र सर की रिस्पेक्ट ऑफिस और घर दोनों जगह करनी होगी, तभी कुछ हो सकता है, और अगर नहीं कर सकता तो अपने लिए दूसरी नौकरी ढूँढ ले।" परीक्षित ने कहा, और फिर उन दोनों ने हाँ में सिर हिलाते हुए नयन के कंधों पर हाथ रख दिया।
"क्या? दूसरी नौकरी?" नयन मन ही मन सोचने लगा, "लेकिन इनके जैसा बॉस मुझे दूसरा नहीं मिलेगा।" नयन भी यह जॉब नहीं छोड़ना चाहता था, क्योंकि उसे भी शायद चंद्र की आदत सी हो चुकी थी, और उसके जैसा बॉस मिलना इम्पॉसिबल था, जो उसकी नादानियों को झेल सके और उसकी गलतियों को माफ़ कर सके। इसलिए नौकरी से निकाले जाने की बात सुनते ही उसे झटका सा लग गया था। वह काफी गहन चिंतन में डूब गया। इस समय उसका चेहरा भावहीन था, जिस कारण कला और परीक्षित उसे देखकर अंदाज़ा नहीं लगा पा रहे थे कि आखिर वह सोच क्या रहा है।
क्या सोचा होगा नयन ने? क्या वह चंद्र के प्रति अपना व्यवहार बदलेगा? क्या उसकी अकड़ उसे यह करने की इजाज़त देगी? और अब कब होंगे विकी को राज के दर्शन?
अगले दिन, जब सुबह चंद्र अपने घर से बाहर निकला, उसने देखा कि नयन उसकी गाड़ी के पास, चेहरे पर मुस्कान लिए, खड़ा था।
चंद्र को देखकर नयन ने उसके लिए घर का मेन गेट खोल दिया।
"गुड मॉर्निंग, सर।" उसने अपना सिर झुकाकर कहा।
ये देखकर चंद्र का दिमाग घूम गया क्योंकि उसे नयन से इस तरह की रिस्पेक्ट कभी नहीं मिली थी।
नयन ने उसे मुस्कुराकर देखा और बोला, "सर, गाड़ी की चाभी दीजिए, आज से मैं आपका ड्राइवर हूँ।" नयन ने चाभी के लिए हाथ आगे किया।
ये देखकर चंद्र सोच में पड़ गया।
"मैं जग भी चुका हूँ या नींद में ही सपना देख रहा हूँ?"
उसे सोचता देख नयन ने उसका हाथ पकड़कर हिलाते हुए कहा, "सर, कहाँ खो गए? मैं आपसे गाड़ी की चाभी मांग रहा हूँ, दीजिए ना।"
चंद्र ने हैरानी से उसके हाथ की तरफ देखा जिसे नयन ने पकड़ा हुआ था।
"सॉरी सर।" ये कहते हुए नयन ने दांत चमकाकर उसका हाथ छोड़ दिया।
चंद्र ने उसे देखा और बोला, "क्या तुमने कोई नशा किया है?"
"नहीं सर।" नयन ने मुस्कुराते हुए ना में सिर हिलाया।
"किसी गड्ढे में गिर गए थे जो सिर पर गहरी चोट आई है?"
"अरे नहीं सर, इतना गिरा हुआ नहीं हूँ मैं। अब आप यहीं खड़े रहेंगे? चलिए जल्दी चाभी दीजिए, वरना ऑफिस के लिए लेट हो जाएँगे।" नयन ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा।
चंद्र उसे चाभी देने लगा, फिर देते हुए रुक गया।
"एक मिनट, तुम्हें ड्राइव करना आता भी है? मैं सही-सलामत ऑफिस पहुँच तो जाऊँगा ना?" उसने अविश्वसनीय चेहरा बनाकर कहा।
ये सुनकर नयन फिर से जबरदस्ती मुस्कुराया।
"हाँ सर, अक्सर लोगों को मेरी शक्ल देखकर गलतफहमी हो जाती है कि मैं बेवकूफ और पागल हूँ, लेकिन मुझे सब काम आता है। आप चिंता ना करें।"
चंद्र ने उसकी शक्ल देखते हुए उसे चाभी दे दी। नयन ने चाभी ली और मुस्कुराते हुए, आदर सहित, कार के पीछे वाला डोर चंद्र के लिए खोल दिया और हाथ से उसे अंदर जाने का इशारा करने लगा।
"आइये सर, आराम से बैठिए।"
चंद्र अविश्वास के साथ उसे देखते हुए कार में जाकर बैठ गया। उसे अब भी नयन पर भरोसा नहीं हो रहा था, लेकिन उसे कुछ समझ भी नहीं आ रहा था कि नयन ऐसा क्यों कर रहा है। इस बात की चिंता तो नयन को पहले ही नहीं थी कि चंद्र उसे फायर कर देगा, फिर आज ऐसा क्या हो गया? चंद्र गाड़ी में बैठे हुए नयन को देखकर यही सब सोच रहा था।
पूरे रास्ते नयन उससे "जी सर, जी सर" कहकर बड़े ही आदर से बात कर रहा था, जो चंद्र को बिल्कुल हजम नहीं हो रहा था। शायद उसे भी नयन की बदतमीजियों की ही आदत पड़ चुकी थी।
ऑफिस आते ही नयन ने कार रोकी और चंद्र के उतरने से पहले ही खुद जल्दी से उतरा और चंद्र के लिए डोर खोल दिया।
"सर, आपका ये बैग मुझे दे दीजिए।" ये कहते हुए उसने चंद्र के हाथ से बैग ले लिया। चंद्र तो कुछ बोल ही नहीं पाया, बस नासमझी भरा चेहरा बनाते हुए उसे देखता रहा।
लिफ्ट में भी नयन ने चंद्र को ऊपर जाने के लिए लिफ्ट का बटन तक नहीं दबाने दिया; वो सब काम पहले ही कर देता था। ऊपर आकर सभी कलीग्स ने चंद्र को गुड मॉर्निंग विश किया। चंद्र भी उन सबसे गुड मॉर्निंग कहकर आगे बढ़ रहा था और नयन पीछे-पीछे मुस्कुराते हुए उसका बैग पकड़े चल रहा था।
जब वेदांश वहाँ आया, तो वो भी एक पल के लिए हैरान रह गया। उसने चंद्र से पूछा, "सर, आपने इसे पनिशमेंट दी है क्या?"
चंद्र कुछ बोलता उससे पहले ही नयन बोल पड़ा, "अरे नहीं वेदांश भैया, सर मुझे क्यों पनिशमेंट देंगे? वो तो मैं ही अपनी खुशी से इनका काम कर रहा हूँ।" ये कहकर नयन ने मुस्कुराते हुए चंद्र की ओर देखा, जो कुछ ना कहकर, बस परेशानी और नासमझी में सिर हिलाते हुए सीधा केबिन की ओर बढ़ गया। नयन भी उसके पीछे-पीछे भागा और उसके पहुँचने से पहले ही केबिन का दरवाजा उसके लिए खोल दिया। ये देखकर चंद्र उसे देखते हुए अंदर चला गया और नयन भी दरवाजा बंद कर उसके पीछे आ गया।
तब तक कला और परीक्षित भी वहाँ आकर वेदांश के पास खड़े हो गए थे। उन दोनों ने जब ये सब देखा, तो वो भी हैरान रह गए क्योंकि इतनी उम्मीद तो उन्होंने भी नहीं की थी नयन से।
"ये तो कुछ ज्यादा ही कर रहा है।" कला ने धीरे से परीक्षित के कान में कहा।
"करने दो ना, अच्छा ही तो है।" परीक्षित थोड़ा हँसकर बोला।
इधर केबिन में नयन ने चंद्र का बैग अच्छे से टेबल पर रख दिया और उसके सामने सिर झुकाकर बोला, "अच्छा सर, अब मैं अपना काम करने जाऊँ?"
चंद्र ने हैरत और परेशानी भरा चेहरा बनाकर उसे देखा और उससे बोला, "सिर ऊपर करके जरा अपनी शक्ल दिखाना मुझे।"
नयन ने चेहरे पर मुस्कान लिए अपना सिर उठाया। चंद्र ने पहले तो उसके माथे पर हाथ रखकर चेक किया, फिर उसके गाल पर, फिर उसकी गर्दन पर। लेकिन चंद्र के इस तरह हाथ लगाते ही नयन की आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गईं और उसके दिल की धड़कनें तेज हो गईं।
चंद्र चेक कर रहा था कि कहीं उसकी तबियत तो खराब नहीं है।
"बुखार तो नहीं है तुम्हें?" चंद्र के ऐसा कहने पर नयन एकदम से होश में आया और अपनी आँखें खोल उसे देखते हुए बोला, "मैं ठीक हूँ सर, क्या मैं जा सकता हूँ?" नयन ने जिस तरह हल्की साँसें लेकर ये बात कही, उसे देखकर चंद्र ने तुरंत अपना हाथ हटा लिया।
"ओके, तुम जा सकते हो।" उसने जल्दी से कहा।
नयन धीरे-धीरे अपने दिल पर हाथ रखे आगे बढ़ रहा था, फिर अपने सिर को झटकते हुए दरवाजा खोलकर वहाँ से बाहर चला गया।
उसके जाने के बाद चंद्र ने अपने हाथ की ओर देखा।
"क्या जरूरत थी उसे चेक करने की? अब वो फिर से मेरे बारे में उल्टा-सीधा सोचेगा।" उसने खुद से कहा।
लेकिन चंद्र की सोच गलत थी। नयन ने इस बार उसके लिए कुछ भी गलत नहीं सोचा था, बल्कि इस बार तो उसे कुछ अलग ही अहसास हुआ था चंद्र के छूने पर, लेकिन वो कुछ समझ नहीं पाया क्योंकि अभी वो इन अहसासों से अनजान था।
आज राज भी वापस आ चुका था और गार्डन में झूले पर आँखें बंद करके लेटा हुआ था। चंद्र के ऑफिस जाने के बाद वो दरवाजा बंद करने आया था, लेकिन बाहर सुहावना मौसम देख वहीं झूले पर ही लेट गया।
विकी जब रेस्टोरेंट जाने के लिए घर से निकला, तो उसकी नज़र गार्डन में सोते हुए राज पर पड़ी।
"अरे, राजा बाबू वापस आ गया!" उसने खुश होते हुए कहा और उसके कदम उस ओर बढ़ गए। विकी ने मेन गेट खोला और धीरे-धीरे राज की ओर बढ़ने लगा। राज को देखकर तो उसे ऐसा लगा जैसे किसी प्यासे को पानी मिल गया हो। वो चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए राज के पास आने लगा और राज के पास पहुँचकर अपने घुटनों के बल बैठ गया।
राज अब भी झूले पर ही आँखें बंद किए वैसे ही लेटा था। राज के बाल माथे पर बिखरे हुए थे, जो हवा के कारण हल्के-हल्के उड़ रहे थे। सारी दुनिया जहान की क्यूटनेस इस वक्त राज के चेहरे पर थी, जिसे देखकर विकी अपने होश खो बैठा और धीरे-धीरे उसके चेहरे की तरफ बढ़ने लगा।
उसने धीरे से अपने होंठ राज के माथे पर रख दिए, फिर थोड़ा नीचे आते हुए बड़े ही प्यार से उसकी दोनों आँखों को चूम लिया। उसके बाद बारी-बारी से उसके क्यूट से गालों पर हल्के से किस किया। इतना करने पर भी जब राज ने कोई हलचल नहीं की, तो विकी उसके होंठों की तरफ बढ़ने लगा।
वो अपने होंठ उसके होंठ पर रखने ही वाला था कि तभी राज ने अपना हाथ उसके होंठों पर रख दिया और आँखें बंद किए हुए ही मुस्कुराकर बोला, "इस तरह नींद में किसी का फायदा नहीं उठाया करते, विक्रम।" उसके मुँह से अपना पूरा नाम सुनते ही विकी की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। राज ने अपनी आँखें खोली और विकी को खुद से दूर हटा दिया।
"सारी दुनिया मुझे मेरे निक नेम से बुलाती है और तुम मुझे मेरे असली नाम से बुला रहे हो।" विकी ने थोड़ा असमंजस के भाव से कहा।
"क्यों? अच्छा नहीं लगा... विक्रम।" राज फिर से उसका पूरा नाम लेते हुए उठकर बैठ गया।
विकी भी उसके बगल में बैठते हुए बोला, "तुम जो चाहे बुलाओ मुझे, बुरा बिल्कुल नहीं लगेगा।" ये कहते हुए विकी ने मुस्कुराकर राज को देखा और उसे अपनी बाहों में भर लिया।
"अपने होने वाले जीजा जी के साथ ऐसी हरकतें करते हुए शर्म नहीं आती तुम्हें?" राज विकी के कंधे पर मारते हुए बोला।
"ये अपनी फ़ालतू बकवास ना बंद रखा करो और जो चीज़ हो नहीं सकती उसके बारे में सोचना बंद कर दो।" विकी ने नाराजगी भरा चेहरा बनाकर कहा।
"और तुम्हें क्या लगता है कि तुम जो कर रहे हो वो प्यार पॉसिबल है?" राज ने अपनी बटन जैसी आँखों को गोल करते हुए कहा।
"मैं इसे पॉसिबल करके रहूँगा।" विकी कॉन्फिडेंस के साथ बोला और राज पर अपनी पकड़ मज़बूत कर दी।
"खुद पर इतना भरोसा।"
"हाँ, देखना एक दिन तुम्हें भी मेरे प्यार का एहसास ज़रूर होगा।"
विकी की ये बात सुनकर राज मुँह फेरकर हँस दिया। तभी उसने गीता को बाल्कनी में देखा, तो विकी को दूर झटकते हुए खड़ा होकर गीता से बोला, "हाय... गीता जी।"
विकी ये देखकर जलन और गुस्से की भावना से मुँह बनाते खड़ा हो गया।
"हाय राज... आ गए तुम, टूर कैसा रहा?" गीता ने राज से पूछा।
"वेरी नाइस, आपकी तरह।" ये कहकर राज ने विकी की तरफ देखा, जो आँख सिकोड़कर उसे घूर रहा था। फिर वो चुपचाप वहाँ से चला गया। ऐसा नहीं था कि विकी राज से गुस्सा हो गया था, क्योंकि इतना तो वो जान ही चुका था कि राज हर किसी से फ़्लर्ट करता था, लेकिन सीरियस किसी के लिए नहीं था, इसलिए विकी की हरकतों का भी बुरा नहीं मानता था; लेकिन विकी का प्यार राज के लिए सच्चा था। उसने राज के अलावा ना तो कभी किसी के पास जाने की कोशिश की और ना ही किसी ओर को अपने पास आने दिया। उसे अपने प्यार पर पूरा भरोसा था कि एक दिन राज उसके प्यार को ज़रूर एक्सेप्ट करेगा।
इधर ऑफिस में चंद्र नयन से इतना सम्मान पाकर परेशान हो चुका था। आज नयन साये की तरह उसके पीछे चल रहा था और उसका हर काम कर रहा था। यहाँ तक कि उसके केबिन में कॉफी भी बनाकर ले गया।
नयन ने डोर नॉक करते हुए पूछा, "मे आय कम इन सर?" नयन की आवाज सुनकर चंद्र ने एकदम से हैरानी भरी नज़रों से दरवाजे की ओर देखा, क्योंकि नयन ने आज तक कभी भी अंदर आने से पहले उससे नहीं पूछा था।
चंद्र ने कुछ नहीं कहा, बस हाथ से ही उसे अंदर आने का इशारा कर दिया। नयन होंठों पर मुस्कान लिए अंदर आया और टेबल पर कॉफी मग रखकर बोला, "ये लीजिए सर, आपकी फ़ेवरिट ब्लैक कॉफी।"
चंद्र उस कॉफी मग को देखकर ऐसी शक्ल बनाकर देखने लगा जैसे उसने ये कभी देखी ही ना हो।
"सर, ये मैंने खुद बनाई है।" नयन ने अपने चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान लाते हुए कहा।
"ये तुमने बनाई है! तुम्हारी इस बड़ी सी मुस्कान से मुझे तुम पर डाउट हो रहा है, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम मेरे साथ कोई प्रैंक करने की कोशिश कर रहे हो।" चंद्र ने उसे शक भरी नज़रों से देखते हुए कहा।
"नो सर, ट्रस्ट मी। अगर आपको फिर भी डाउट हो तो मैं आपको पीकर बता देता हूँ।" ये कहते हुए नयन ने वो कॉफी उठाई और एक घूंट पीकर बोला, "सर, कड़वी तो है क्योंकि ब्लैक कॉफी है ना इसलिए, लेकिन आपको तो यही पसंद है, है ना?" ये कहते हुए उसने कॉफी मग चंद्र की ओर बढ़ा दिया, बगैर ये सोचे कि उसने अब इसे जूठा कर दिया है। और चंद्र ने भी अविश्वास और हैरानी से उसे देखते हुए, बिना इस बात पर ध्यान दिए, वो मग ले लिया और पीने लगा।
नयन की हरकतें देखकर चंद्र का दिमाग खाली होने लगा था। नयन उसे मुस्कुराते हुए देखता रहा।
"सर, आज शाम को आप फ्री हैं, तो मैं आपको डिनर के लिए इनवाइट करना चाहता हूँ।" ये सुनकर कॉफी पीते हुए चंद्र के मुँह से एकदम से कॉफी बाहर निकलकर उड़ गई।
"क्या हुआ सर?" ये कहते हुए नयन जल्दी से चंद्र के पास आया और उसकी पीठ को सहलाने लगा, क्योंकि नयन की बात सुनकर चंद्र को ठसका लग गया था।
चंद्र ने जब उसे इस तरह खुद की परवाह करते देखा, तो वो धीरे से उससे दूर होकर बोला, "क्या कहा तुमने? तुम मुझे डिनर पर इनवाइट कर रहे हो!" चंद्र को विश्वास नहीं हो रहा था।
"हाँ सर, मौसी आपको कब से बुलाने की सोच रही थीं, लेकिन उन्हें समय ही नहीं मिलता था। इसलिए आज उन्होंने मुझसे कहा कि मैं आपको इनविटेशन दे दूँ, हमारे यहाँ डिनर पर आने का और अपने साथ छोटे सरकार को भी लेकर आइएगा।" नयन ने जब ये बात कही, तब जाकर चंद्र को थोड़ा विश्वास हुआ।
"ओके!" चंद्र ने इतना ही कहा और कॉफी का मग रखते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ गया। वो उसे खोलता उससे पहले ही नयन ने आकर वो दरवाजा खोल दिया। चंद्र ने उसे देखा तो उसने अपनी बत्तीस चमका दी। अब चंद्र को उसकी इन हरकतों से चिढ़ होने लगी थी, फिर भी वो कुछ ना कहते हुए केबिन से बाहर निकल गया। नयन भी जल्दी-जल्दी उसके पीछे चला गया।
चंद्र वाशरूम के दरवाजे के पास आकर रुका, तो नयन ने बिना कुछ सोचे उसका दरवाजा भी पहले ही खोल दिया। तभी कला और परीक्षित भी वहाँ से गुज़र रहे थे, तो उन्होंने भी ये सीन देख लिया।
"हाय राम!... अब तो सचमुच बहुत ज्यादा हो गया, अब इसकी खैर नहीं।" कला अपने मुँह पर हाथ रखते हुए परीक्षित से बोली।
"अब तो राम ही बचाए इसे।" परीक्षित ने भी कहा।
अब चंद्र का सब्र जवाब दे चुका था। वो फ्रस्ट्रेशन में आकर चिल्लाते हुए नयन से बोला, "अब अंदर भी मेरे साथ ही चलोगे क्या? और जो करने आया हूँ वो भी तुम ही कराओगे?" ये सुनकर नयन के गाल शर्म से लाल हो गए। वहीं कला और परीक्षित मुँह दबाकर हँस दिए और अपने चेहरे को हाथों से ढकते हुए वहाँ से भाग गए कि कहीं चंद्र उन्हें देख ना ले।
"सॉरी सर, ये तो आपको खुद ही करना पड़ेगा।" नयन ने मरी हुई आवाज में कहा और बिना चंद्र की ओर देखे वहाँ से भाग गया। चंद्र बेचारा वाशरूम के अंदर घुसकर उसका दरवाजा बंद करके अपना माथा उस दरवाजे पर टिकाकर खड़ा हो गया।
शाम को नयन चंद्र की कार को ड्राइव करके उसे घर लेकर आया। उसने चंद्र के लिए मेन गेट खोला और उसका बैग थामे उसके पीछे चल दिया। चंद्र को किसी का कॉल आ गया था, इसलिए अभी वो बात करने में बिजी था, वरना नयन को अब तक वो उसके घर भगा देता। तभी चलते-चलते अचानक से चंद्र का पैर क्यारी के पास रखे एक छोटे से गमले पर लग गया और वो गमला नीचे गुड़गुड़ाते हुए टूट गया। ये देखकर चंद्र ने एकदम से नयन की ओर देखा; उसे लगा कि वो अब इस नुकसान के लिए गुस्सा करेगा, लेकिन इसके उलट नयन उसे चिंता भरी नज़रों से देखते हुए उसके पास आया और नीचे बैठकर उसके पैर को हाथ लगाते हुए बोला, "सर, कहीं आपको चोट तो नहीं लगी ना।"
ये सुनकर चंद्र का दिमाग खराब हो गया। वो एकदम से नयन की दोनों बाहों को पकड़कर उसे खड़ा करके बोला, "तुम्हारा दिमाग क्या घास चरने गया है? वो गमला इतना छोटा है, मैंने शूज़ पहने हुए हैं, मुझे क्यों चोट लगेगी? अरे, मेरी वजह से तो वो गमला टूटकर गिर गया, क्या अब तुम्हें गुस्सा नहीं आ रहा कि मैंने नुकसान कर दिया।"
"नहीं सर, मुझे क्यों गुस्सा आएगा? छोटा सा ही तो गमला था, मैं कल दूसरा ले आऊँगा।" नयन ने बड़े ही शांत तरीके से मुस्कुराकर जवाब दिया। ये सुनकर तो बस चंद्र को अब चक्कर आना ही बाकी था कि नयन ने नुकसान होने पर भी गुस्सा नहीं किया।
"तुम डॉक्टर के चलो, तुम्हारे दिमाग का चेकअप कराना होगा।" ये कहते हुए चंद्र उसे लेकर मेन गेट की ओर बढ़ गया।
"नहीं सर, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।" नयन ने उससे अपना हाथ छुड़ाकर कहा।
"ठीक हो ना, तो फिर अपने घर जाओ।" ये कहते हुए चंद्र ने गेट खोलकर उसे जाने का इशारा कर दिया।
"ओके सर, जैसा आप कहें, लेकिन शाम को 8 बजे डिनर के लिए ज़रूर आ जाना।" ये कहते हुए नयन मुस्कुराते हुए वहाँ से चला गया। उसके जाते ही चंद्र राहत की साँस लेते हुए अंदर गया और सोफे पर अपना सिर पकड़कर बैठ गया।
नयन ने जब घर जाकर गीता और विकी को डिनर के बारे में बताया, तो वो दोनों तो खुशी से फूले नहीं समाए। गीता तो कब से उन्हें बुलाना चाहती थी, लेकिन नयन ही कभी राजी नहीं होता था। लेकिन आज जब नयन ने आगे होकर उन्हें बुलाया, तो गीता और विकी पहले तो खुश हुए, लेकिन बाद में नयन को ही आँखें छोटी करके घूरने लगे।
"आज तेरे मन में मि. मून के लिए इतना सम्मान क्यों जाग रहा है?" गीता ने उससे पूछा।
"और नहीं तो क्या? पहले तो कभी उन्हें घर के दरवाजे तक भी नहीं आने देता था और आज डिनर के लिए बुला रहा है!" विकी ने कहा।
"वो मैंने सोचा कि मौसी कब से उन्हें बुलाना चाह रही हैं, तो मुझे लगा कि मैं कौन होता हूँ उन्हें मना करने वाला और वैसे भी वो मेरे बॉस हैं, तो मुझे भी तो उनकी रिस्पेक्ट करनी चाहिए।" नयन के मुँह से चंद्र के लिए "रिस्पेक्ट" शब्द सुनकर विकी और गीता उसे ऐसे देखने लगे जैसे वो कोई दूसरे ग्रह का प्राणी हो।
"अब आप दोनों मुझे ऐसे मत देखो और डिनर की तैयारी करो।" ये कहते हुए नयन अपने कमरे में चला गया।
अब डिनर बनाए कौन? नयन को तो चाय-कॉफी के अलावा कुछ बनाना आता नहीं, गीता ढंग से कुछ बना नहीं पाती, बचा विकी। सारा बोझ उस पर ही आ गया, लेकिन फिर भी उसने खुशी-खुशी इस बोझ को अपने सिर पर ले लिया, क्योंकि चंद्र अकेला थोड़े ही आ रहा था, राज भी तो था उसके साथ।
अब इन सब का डिनर कैसा होगा? क्या चंद्र हजम कर पाएगा इस डिनर को?
विकी किचन में डिनर बनाने में लगा था। गीता को एक इंपोर्टेंट कॉल आया था, जिस वजह से वह घर से बाहर चली गई थी। नयन बाहर मेन गेट पर खड़ा चंद्र की ही राह देख रहा था।
तभी राज छत के रास्ते से होकर विकी के पास किचन में आ गया। विकी ने जब उसे देखा तो वह मुस्कुराते हुए उससे बोला, "टाईम तो 8 बजे का दिया था लेकिन तुम तो पहले ही आ गए, मेरी हेल्प करने आए हो?"
"नहीं तो, मुझे तो लगा कि गीता जी डिनर बना रही होंगी इसलिए मैं तो उनकी हेल्प करने आया था।" राज ने इस तरह कहा जैसे उसे विकी से कोई मतलब ही ना हो।
"पहली बात तो तुम्हारी गीता जी को कुछ बनाना नहीं आता और दूसरी ये कि इस वक्त वह अपने किसी जरूरी काम से गई हुई हैं।" विकी ने इस बार बड़े शांत तरीके से उसकी बात का जवाब दिया।
"अच्छा, अगर ऐसा है तो मैं भी चलता हूँ।"
ये कहते हुए राज जैसे ही जाने को मुड़ा, विकी ने उसकी कलाई पकड़कर उसे अपने करीब खींच लिया और उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "जब आ ही गए हो तो मेरी ही मदद कर दो।"
"तुम तो खाना बनाने में एक्सपर्ट हो, फिर तुम्हें मदद की क्या ज़रूरत?" राज ने भी उसे देखकर अपनी आँखें गोल करके कहा।
"लेकिन बनाना भी तो कितना सारा है, प्लीज कर दो ना, तुम्हें तो कुकिंग भी आती है, है ना!" विकी ने विनती भरा चेहरा बनाकर कहा।
जिसे सुनकर राज ने सिर नीचे करते हुए अपनी जीभ को दाँतों तले दबा लिया और मन ही मन कहने लगा, "घंटा कुकिंग आती है, मैंने तो उस दिन गीता जी को इम्प्रेस करने के लिए ऐसे ही बोल दिया था, कभी किचन में पैर तक तो धरा नहीं मैंने।"
"चलो अब सोचो मत, सब्ज़ियाँ काटो।"
ये कहते हुए विकी ने राज को स्लैब के पास खड़ा कर दिया। राज तो बस हाथ में चाकू लिए उन सब्ज़ियों को देख रहा था।
"क्या हुआ, पहली बार सब्ज़ियाँ देखी हैं? चलो काटो इन्हें।" विकी उसे देखकर बोला।
विकी सब जानता था कि राज को कुछ नहीं आता, लेकिन फिर भी वह उसे परेशान कर रहा था। तभी राज ने उन सब्ज़ियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और बेतुके तरीके से उन्हें काटने लगा।
ये देखकर विकी ना में सिर हिलाकर मुस्कुराया और पीछे से राज की कमर के चारों ओर हाथों का घेरा बनाते हुए उसके दोनों हाथों को पकड़ लिया और बोला, "ये जंग में आए सैनिक नहीं हैं जिन्हें तुम इस तरह काट रहे हो।"
ये कहते हुए विकी राज के हाथों को पकड़कर बड़े प्यार से उसे सब्ज़ी काटना सिखाने लगा।
"तुम इतना प्यार से मत सिखाओ, मुझे आदत नहीं है इतने प्यार से कोई काम सीखने की।" राज ने थोड़ा हँसकर कहा।
"क्यों, तुम्हारे भाई क्या पीट-पीटकर सिखाते हैं?" विकी ने उसे सिखाते हुए पूछा।
"या... यू आर एब्सोल्यूटली राइट! एक काम गलत किया तो इधर से चांटा, दूसरा काम गलत किया तो उधर से थप्पड़।" राज ने खुद का ही मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
"फिर भी तुम सुधरते नहीं हो।" विकी ने थोड़ा हँसकर कहा।
"जो सुधर जाए वो राज नहीं।"
ये कहते हुए राज हँसने लगा और हल्की सी गर्दन तिरछी कर विकी को देखने लगा। विकी भी हँसते हुए उसे देख रहा था। धीरे-धीरे विकी ने अपनी ठुड्डी राज के कंधे पर टिका ली और राज को मुस्कुराकर देखने लगा।
तभी राज मुस्कुराते हुए उससे बोला, "विक्रम.... एक बात पूछूँ तुमसे?"
"हम्म!" विकी ने धीरे से सिर हिलाकर इतना ही कहा।
"ये तुमने कोई बी एल सीरीज देखी है जिसका सीन तुम रीक्रियेट कर रहे हो?" राज ने उससे पूछा।
"व्हाट?" इस बात पर विकी थोड़ा कन्फ्यूज हो गया।
"हाँ, ये इस तरह प्यार से सब्ज़ी काटना सिखाने के बहाने रोमांस करना तुमने कहाँ से सीखा?" राज अपनी आइब्रो उठाते हुए उससे पूछने लगा।
"कहाँ से क्या सीखा, ये सब मेरी खुद की इमेजिनेशन है।" विकी ने बड़े ही गर्व से जवाब दिया।
"ओहो..... तुम ना मेरे सामने स्मार्ट बनने की कोशिश मत किया करो, ये सीन मैंने भी देखा है।" राज भी बड़े तैश में आकर बोला।
"अच्छा, ये बात है। फिर मैं तुम्हें अब वो सीन दिखाऊँगा जो तुमने नहीं देखा होगा।" विकी ने थोड़ा रहस्यमयी तरीके से कहा।
"कौन सा सीन?" राज कन्फ्यूज हो गया।
विकी के चेहरे पर कातिल मुस्कान आ गई। उसने राज के हाथ से चाकू ले लिया, जिसे देखकर राज की आँखें बड़ी हो गईं। "अब क्या मेरा कत्ल करने का इरादा है?" उसने थोड़ा घबराकर कहा।
"यस।"
ये कहते हुए विकी ने उस चाकू की नोक राज की गर्दन पर रख दी।
"तुम मुझे सचमुच मार दोगे।" राज ने डरकर कहा।
"हाँ, अगर तुमने मेरे प्यार को एक्सेप्ट नहीं किया तो पहले तुम्हें मारूँगा, बाद में खुद मर जाऊँगा।" विकी ने वह चाकू राज की गर्दन पर घुमाते हुए कहा।
"तुम तो बड़े डेंजरस लवर हो।" राज ने डर के मारे थूक निगलकर कहा।
"ऐसा ही हूँ मैं और मेरा प्यार भी ऐसा ही है।"
ये बात विकी ने काफी रोमांटिक अंदाज़ में राज के कान को हल्के से चूमते हुए कही। उसकी इस तरह की रुमानी आवाज़ सुनकर राज के चेहरे पर अपने आप ही एक प्यार भरी मुस्कान आ गई, लेकिन अगले ही पल उसने अपने चेहरे के भावों को बदल लिया।
"ये कैसा प्यार है तुम्हारा, मुझे तो कुछ फील ही नहीं होता।" राज ने थोड़ी बेपरवाही दिखाते हुए कहा। जिसे सुनकर विकी ने एक नज़र उसे देखा और उसकी गर्दन से चाकू हटा लिया, लेकिन फिर अगले ही पल उसने नीचे से राज की टी-शर्ट को हल्के से उठाते हुए अपना हाथ, जिसमें उसने चाकू पकड़ा हुआ था, उसकी टी-शर्ट के अंदर डाल दिया।
अचानक विकी के ऐसा करने पर राज सकपका गया। विकी धीरे-धीरे उसके जिस्म को छूते हुए अपना हाथ ऊपर की ओर ले जाने लगा और उसने चाकू की नोक राज की गर्दन पर रख दी।
"अब कुछ फील हुआ?" विकी ने फिर से रुमानी आवाज़ में पूछा। उसकी इस हरकत पर राज की साँसें गहरी हो चली थीं, लेकिन फिर भी वह खुद को नॉर्मल दिखाते हुए ना में सिर हिलाने लगा। ये देखकर विकी उस चाकू की नोक से लाइन बनाते हुए उसे नीचे लाने लगा, लेकिन उसने इतना अंदाज़े से उसकी नोक रखी थी जिस कारण वह राज को चुभ तो नहीं रही थी, बस उसे थोड़ी सी गुदगुदी हो रही थी। ऊपर से विकी का हाथ भी उसके जिस्म को छू रहा था, जिस कारण राज थोड़ा अनकम्फ़र्टेबल होने लगा, लेकिन बोला कुछ नहीं। बस जैसे-तैसे खुद को कंट्रोल करके खड़ा रहा।
विकी उस चाकू को धीरे-धीरे उसके पेट तक ले आया। तभी राज ने उसका हाथ पकड़कर कहा, "बस, अब इससे नीचे मत ले जाना, वरना तुम्हारे होने वाले भांजे-भांजियों का क्या होगा, वे बेचारे तो इस दुनिया में आने से पहले ही यतीम हो जाएँगे।"
राज की यह बात सुनकर विकी बुरी तरह चिढ़ उठा। उसने चाकू नीचे फेंक, राज के सिर पर चपत लगाते हुए उसे दूर धकेल दिया। "तुम सच में पिटने लायक हो, दिमाग़ खराब है मेरा जो मैं ऐसा करूँगा। इतनी भी गिरी हुई सोच नहीं है मेरी, सारे रोमांटिक मूड का कचरा कर दिया। हमेशा किसी न किसी तरह से गीता देवी का ज़िक्र कर ही देते हो। तुम ना एक घड़ी की तरह हो जिसकी नज़रें घड़ी की दोनों सुइयों की तरह हर नंबर पर घूमती रहती हैं और अटकती भी हैं तो गलत नंबर पर जाकर। पता नहीं वह दिन कब आएगा जब ये सुइयाँ एक साथ सही नंबर पर जाकर अटकेंगी।" विकी के मुँह से अपने लिए इस तरह का एग्ज़ाम्पल सुनकर राज अपनी हँसी रोक नहीं पाया और जोर-जोर से हँसने लगा।
ये देखकर विकी ने गुस्से में उसे किचन से बाहर धकेलते हुए कहा, "जाओ यहाँ से, मुझे खाना बनाने दो।"
"अच्छा यार, गुस्सा मत करो, मैं हेल्प करता हूँ ना तुम्हारी।" राज हँसते हुए उसके पास आकर बोला।
"मुझे कोई हेल्प नहीं चाहिए।" विकी ने गुस्से में मुँह फेरकर कहा, लेकिन राज उसके सामने आकर बोला,
"प्लीज़, सॉरी!" राज ने कान पकड़कर कहा, "वैसे मुझे सब्ज़ी काटना नहीं आता, लेकिन पकाना आता है तो मैं वही कर दूँगा तुम्हारे लिए।" राज की यह बात सुनकर विकी मुँह फेरकर हँस दिया।
नयन अपने घर के दरवाज़े पर खड़ा चंद्र के आने का इंतज़ार कर रहा था। उसने घड़ी में टाइम देखा तो 8 बज चुके थे।
"आए क्यों नहीं अभी तक?"
ये कहते हुए उसने चंद्र के घर की तरफ़ देखा, "चलो कोई ना, मैं ही चला जाता हूँ। अगर जॉब बचानी है तो इनके साथ अच्छा बिहेव करना ही होगा।" नयन बस अपने मन को समझा रहा था कि वह यह सब अपनी जॉब बचाने के लिए कर रहा है, लेकिन सच बात तो यह थी कि वह चंद्र से दूर नहीं जाना चाहता था, क्योंकि अगर एक बार उसकी जॉब चली गई तो उसके मम्मी-पापा उसे यहाँ रहने नहीं देंगे। उसकी मम्मी ने तो वैसे ही बड़ी मुश्किल से उसे इतनी दूर भेजा था।
नयन चंद्र के घर में आया तो उसने देखा कि चंद्र सोफ़े पर बैठा लैपटॉप पर काम कर रहा था। यह देखकर अब नयन को थोड़ा गुस्सा आने लगा। "मैं इतनी देर से इनके आने की राह देख रहा हूँ, लेकिन ये हैं कि इन्हें कोई परवाह ही नहीं।" वह मन ही मन बोला और उसकी तरफ़ बढ़ने लगा, लेकिन तभी वह कुछ सोचते हुए रुक गया। "नहीं.... मुझे इनके साथ अच्छा बिहेव करना है।" उसने आँखें बंद करके गहरी साँस ली और अपने गुस्से को कंट्रोल किया।
चंद्र को भी पता चल चुका था कि नयन आया है और उसे ही देख रहा है। फिर भी उसने जानबूझकर उस पर ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा। वह यह सब कर भी जानबूझकर रहा था ताकि नयन अपने पुराने अवतार में वापस आ जाए, लेकिन यह हो ना सका और नयन उसी तरह मुस्कुराते हुए उसके सामने प्रकट होकर बोला, "सर, आप भूल गए, मैंने डिनर के लिए इनवाइट किया था।"
यह सुनकर चंद्र ने धीरे से अपना सिर उठाकर उसे देखा, फिर वह भी उसी की तरह मुस्कुराते हुए बोला, "बस आने ही वाला था, राज के लिए रुका हुआ था।"
उसे अपनी तरह मुस्कुराता देखकर नयन को थोड़ी हँसी आ गई। फिर वह उसके हाथ से लैपटॉप लेकर उसे बंद करते हुए बोला, "ऑफिस का काम ऑफ़िस में करना चाहिए, घर को भी ऑफ़िस बनाकर रखा हुआ है।"
ये कहते हुए उसने लैपटॉप टेबल पर रख दिया।
नयन की यह हरकत देखकर चंद्र को मन ही मन बहुत हँसी आई। वह धीरे से मुस्कुराते हुए नयन के करीब आकर बोला, "तुम तो ऐसे बिहेव कर रहे हो जैसे तुम मेरी वाइफ हो।"
यह सुनकर नयन की आँखें एकदम से बड़ी हो गईं, लेकिन फिर वह जैसे-तैसे खुद को संभालते हुए बोला, "जी नहीं सर, भला मेरी ऐसी किस्मत कहाँ?"
यह सुनकर तो चंद्र के होश ही उड़ गए और उसकी बोलती बंद हो गई। "ये लड़का सच में पागल हो चुका है।" चंद्र ने मन ही मन कहा। उसने तो यह बात बस थोड़ा मज़ाक में कही थी, लेकिन नयन से इस तरह का जवाब मिलने की उम्मीद उसे बिल्कुल नहीं थी।
"चलिये अब देर मत करिये, मौसी इंतज़ार कर रही होंगी।" नयन चंद्र का हाथ पकड़कर उसे ले जाने लगा।
"लेकिन राज....."
ये कहते हुए चंद्र रुक गया।
"उसे छोड़िये, आप चलिये, वह आपकी तरह लेटलतीफ नहीं है।"
ये कहते हुए नयन ने चंद्र की बाजू को पकड़ लिया और उसे खींचते हुए ले गया। चंद्र को उसकी यह बात बिल्कुल समझ नहीं आई।
नयन चंद्र को इसी तरह खींचते हुए घर से बाहर ले आया। तभी गीता भी वापस आ रही थी। उसने जब नयन की इतनी बालमनहार देखी तो उसके आश्चर्य का तो ठिकाना ही नहीं रहा।
"नयन, तू इन्हें डिनर के लिए ले जा रहा है या कोई सज़ा दिलाने।" गीता ने उन दोनों के पास आकर कहा।
"मैं क्यों इन्हें सज़ा दिलाने लगा, भला मेरी इतनी हिम्मत कहाँ, है ना सर!" नयन ने चंद्र की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा, जिस पर चंद्र ने भी बस जबरदस्ती मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिला दिया।
"देख, वह तुझसे परेशान हो रहे हैं, चल छोड़ उन्हें।"
ये कहते हुए गीता ने चंद्र का हाथ नयन से छुड़ाकर खुद पकड़ लिया, "चलिये मि. मून, हमारी पहली डेट पर चलते हैं।" गीता ने शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा और चंद्र को लेकर अपने घर की तरफ़ बढ़ गई। यह देखकर नयन मुँह खोलकर उन दोनों को जाते हुए देखता रहा, फिर वह भी उनके पीछे-पीछे चल दिया।
चंद्र को तो ना जाने आज कौन सी सज़ा मिल रही थी। एक से छूटा तो दूसरे ने पकड़ लिया। अब वह इन लोगों से कहता भी तो क्या कहता, बेचारा चुपचाप जबरदस्ती डिनर करने उनके साथ चल रहा था।
यहाँ घर में अलग ही सीन चल रहा था। खाना बनाते वक्त जब विकी ने छोंका लगाया तो मिर्च का कोई तिनका सा उड़कर राज की आँख में जा लगा, जिस कारण विकी उसकी आँख में पानी के छींटे देकर फूँक मारने में लगा हुआ था।
"आ... कितनी जलन हो रही है, कहीं मैं एक आँख का होकर ना रह जाऊँ।" राज ने नौटंकी करते हुए कहा, जिसे सुनकर विकी को हँसी आ गई और वह बोला, "चिंता मत करो, मैं नयन के नयन तुम्हें लगवा दूँगा।"
ये सुनकर राज भी हँस दिया।
राज को हँसता देख विकी फिर से उसकी हँसी में खो गया। तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई, जिसे सुनकर राज ने विकी को जल्दी से खुद से दूर कर दिया।
गीता के साथ चंद्र और उनके पीछे नयन जब घर में आए तो राज को वहाँ देखकर एक पल के लिए चौंक गए।
"तू यहाँ क्या कर रहा है?" चंद्र ने राज से सवाल किया। अब राज के पास तो कोई जवाब ही नहीं था। उसकी बात का वह तो वैसे ही चंद्र को वहाँ देखकर हड़बड़ा गया था।
"इसे मैंने बुलाया था हेल्प करने के लिए, गीता देवी और नयन तो किसी काम के हैं नहीं। फिर मुझे ध्यान आया कि राज ने एक बार कहा था कि उसे कुकिंग बहुत अच्छे से आती है, क्यों राज!" विकी ने राज की तरफ़ देखकर कहा। राज तो कुछ ना कहकर बस चंद्र को ही देखे जा रहा था।
"इसे कुकिंग का सी भी नहीं आता।" चंद्र ने एकदम से कहा।
"लेकिन इसने तो कहा था कि इसे आता है। गीता देवी से पूछ लो, उनके सामने ही तो कहा था।" विकी ने गीता की तरफ़ इशारा करके चंद्र से कहा।
"कहा तो था, लेकिन उसने तो मेरी हेल्प करने के लिए कहा था। तू कहाँ से बीच में टपक पड़ा और मुझे तो यह समझ नहीं आ रहा कि तुझे हेल्प की ज़रूरत कब से पड़ने लगी?" गीता ने सोचते हुए अपनी आइब्रो उठाकर विकी से सवाल किया। अब तो विकी खुद ही फँस गया और गीता से नज़रें चुराने लगा।
"अरे तुम सब अपनी बातें बंद करो, मैं बताता हूँ यह यहाँ क्यों आया है।" नयन ने उन सब के बीच आकर कहा, जिस पर राज और विकी की तो साँसें ही अटक गईं कि कहीं इसने उन दोनों को रोमांस करते देख तो नहीं लिया।
नयन ने बोलना शुरू किया, "जब मैं बाहर था तो मैंने इसे छत के रास्ते से अंदर जाते हुए देख लिया था। इसे लगा होगा कि मौसी खाना बना रही होंगी इसलिए यह उनकी हेल्प करने आया होगा, लेकिन हमारे मामा का स्वभाव तो हम सब जानते हैं कि कोई बिना पूछे चोरों की तरह इनके घर और किचन में आ कैसे गया, बस दे दी होगी इन्होंने पनिशमेंट इस बेचारे को।" नयन राज पर तरस खाते हुए बोला, जिसे सुनकर राज और विकी ने राहत की साँस ली।
"तू अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आएगा ना।"
ये कहते हुए चंद्र गुस्से में राज की तरफ़ बढ़ा। उसे देखकर राज विकी के पीछे छिप गया और नयन उसके सामने आकर उसे रोकते हुए बोला, "सर, मैंने आपको डिनर के लिए बुलाया है, आप राज को अपने घर पर पीट लीजिएगा, लेकिन यहाँ नहीं, ओके।"
नयन को चंद्र से इतनी अच्छी तरह बात करता देख राज और विकी भी हैरान रह गए। नयन चंद्र को पकड़कर डाइनिंग टेबल की तरफ़ ले गया और वे दोनों मुँह खोले उन्हें जाते हुए देखते रहे और एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे।
डाइनिंग टेबल पर नयन चंद्र के बगल में बैठा था। उसके पास राज और राज के बगल में गीता, यानी गीता चंद्र के सामने थी और गीता के बगल वाली चेयर पर विकी बैठा था। जिस वजह से वह राज के सामने था। इनके घर की डाइनिंग टेबल गोल थी।
नयन ने चंद्र की प्लेट में खाना खुद ही सर्व किया। राज, विकी और गीता तो अपना खाना भूलकर हैरानी से बस उन्हें ही देखे जा रहे थे कि आखिर यह चल क्या रहा था?
"गीता जी, यह सब क्या हो रहा है, मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा?" राज ने धीरे से गीता के पास आकर कहा।
"अगर मुझे समझ आता तो मैं भी तुम्हारी तरह हैरान होकर यह सब नहीं देखती।" गीता ने भी धीरे से जवाब दिया।
तभी विकी भी उन दोनों के बीच आकर धीरे से बोला, "हम क्या, हमारे घर के खिड़की-दरवाज़े और फ़र्नीचर भी यह देखकर हैरान हैं और चीख-चीखकर पूछ रहे हैं कि आखिर यह सब चल क्या रहा है?"
विकी की यह बात सुनकर गीता और राज हँस दिए। उनकी आवाज़ सुनकर चंद्र और नयन ने उनकी ओर देखा तो राज अपनी बत्तीसी चमकाते हुए बोला, "भाई, वह मैं अपने कॉलेज टूर की बात बता रहा था, इसलिए हँस रहे हैं।" राज की इस बात पर चंद्र उसे आँखें छोटी कर घूर रहा था, क्योंकि इतना तो वह भी जानता था कि वे लोग उसे ही देखकर हँस रहे हैं।
"सर, आप उस बेचारे को ऐसे क्यों घूर रहे हैं, क्या हँसी-मज़ाक करना भी पाप है आपकी नज़रों में?"
यह सुनकर चंद्र ने अपनी नज़रें राज से हटाकर नयन पर कर ली और चुपचाप खाना खाने लगा।
नयन की ये बातें सुनकर तो राज का भी दिमाग़ घूम गया। वह फिर से गीता के पास आकर धीमी आवाज़ में बोला, "गीता जी, लगता है नयन के अंदर कोई अच्छे गुणों वाली प्रेतात्मा घुस गई है।" जिसे सुनकर गीता मुँह दबाकर हँस दी।
"शायद उस प्रेतात्मा को तुम्हारे अंदर होना चाहिए।" विकी ने फिर से उन दोनों के बीच अपनी नाक घुसाते हुए कहा। यह सुनकर राज विकी से चिढ़ गया।
चंद्र के मुँह से तो निवाला भी बड़ी मुश्किल से नीचे उतर रहा था, क्योंकि नयन द्वारा की गई इतनी खातिरदारी से ही उसका पेट भर गया था। वह जब भी नयन की ओर देखता तो वह उसे मुस्कुराता हुआ ही मिलता। अब वह इस बात से असहज होने लगा था और जल्द से जल्द अपना खाना खत्म करके घर भाग जाना चाहता था।
चंद्र ने अपना खाना खत्म किया और उठकर खड़ा हो गया। "अब मैं चलता हूँ।"
"अरे सर, इतनी जल्दी?"
ये कहते हुए नयन भी उसके साथ खड़ा हो गया, "अभी तो आपने पूरा फ़िनिश भी नहीं किया।" उसने कहा।
"हाँ मि. मून, अभी तो आपकी प्लेट में खाना बचा हुआ है।" गीता ने भी कहा।
जिस पर चंद्र उससे बोला, "नहीं गीता, मुझे जितनी भूख थी मैं खा चुका हूँ। अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं होगा।" चंद्र ने यह लाइन नयन की ओर देखकर कही।
जिस पर नयन को थोड़ा गुस्सा तो आया, लेकिन उसने चेहरे पर यह जाहिर नहीं होने दिया और जबरदस्ती मुस्कुराकर बोला, "ओके सर, जैसी आपकी मर्ज़ी।"
ये कहकर उसने फिर से सिर झुका लिया, लेकिन इस बार उसने सिर इसलिए झुकाया ताकि उसके गुस्से वाले भाव चंद्र को दिखाई ना दें।
"भाई, मेरे लिए तो रुक जाओ।" राज ने चंद्र से कहा।
जिस पर चंद्र उसे देखते हुए बोला, "बोल तो ऐसे रहा है जैसे मेरे साथ ही आया था, आ जाना बाद में।"
ये कहते हुए चंद्र वहाँ से जाने लगा और नयन भी उसके पीछे लग लिया।
बाहर मेन गेट पर आकर चंद्र ने नयन की ओर देखा और उससे बोला, "देखो नयन, अब मज़ाक नहीं, सीधी तरह बताओ कि तुम यह सब क्यों कर रहे हो?"
उसकी बात सुनकर नयन सोचने लगा, "अगर मैंने इन्हें वजह बता दी तो ये समझ जाएँगे कि यह सब मेरा दिखावा है और सच में मुझे फ़ायर कर देंगे। नहीं, मैं इन्हें वजह नहीं बता सकता। मुझे यही दिखाना होगा कि मैं सच में इनकी रिस्पेक्ट कर रहा हूँ।"
ये सब सोचने के बाद नयन ने मुस्कुराकर चंद्र की ओर देखा और बड़े ही विनम्र तरीके से पेश आते हुए बोला, "सर, आप मेरे बॉस हैं तो मुझे आपकी रिस्पेक्ट करनी चाहिए ना।"
"अच्छा, इतने महीनों में तुम्हें आज जाकर पता चला कि मैं तुम्हारा बॉस हूँ।" चंद्र ने थोड़ा व्यंग्य करते हुए कहा।
"अरे सर, पता तो पहले दिन ही चल गया था, लेकिन एहसास आज जाकर हुआ है।" नयन ने अब थोड़ा जबरदस्ती की मुस्कान चेहरे पर लाकर जवाब दिया, जिससे साफ़ पता चल रहा था कि उसे चंद्र की बातों से चिढ़ तो हो रही है, लेकिन वह ज़ाहिर नहीं कर रहा।
चंद्र ने उसे देखते हुए सोचा, "ठीक है नयन, मत बताओ। अब तक तुमने मुझे परेशान किया है ना, अब अगर मैंने भी तुम्हारे ही तरीके से तुम्हें तुम्हारे पुराने अवतार में आने पर मजबूर ना किया तो मेरा भी नाम चंद्र नहीं।"
अब क्या करने वाला था चंद्र?
अगले दिन कार्यालय में नयन, कला और परीक्षित मीटिंग रूम में बैठे थे। उस समय उन तीनों के सिवाय वहाँ कोई नहीं था। नयन चेयर पर चुपचाप बैठा था। तभी परीक्षित ने उससे कहा, "वाह! नयन, कमाल कर दिया तूने! अब तुझे इस ऑफिस से ऑनर तो क्या, उनके पप्पा भी नहीं निकाल सकते।" परीक्षित के बोलने का अंदाज़ ऐसा था जैसे वह उसका मज़ाक उड़ा रहा हो।
"सर के साथ तेरा इतना अच्छा बिहेवियर देखकर तो तेरी सारी पुरानी गलतियाँ भूल दी जाएँगी।" कला ने कहा। उसके बाद कला और परीक्षित जोर से हँस दिए।
"शटअप!" नयन जोर से चिल्लाया।
"तू ठीक तो है ना?" परीक्षित ने बनावटी चिंता का दिखावा करते हुए कहा।
जिस पर नयन गुस्से में बोला, "मैं ठीक बिल्कुल नहीं हूँ। थक गया हूँ कल से उनकी आवभगत करते-करते, जी सर जी सर की रट लगाते हुए मेरी ज़बान थक गई है, उनके आगे सिर झुकाते-झुकाते मेरी गर्दन अकड़ गई है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं इलेक्शन में खड़ा हुआ हूँ, जो उनके सामने सिर झुकाना पड़ रहा है और जबरदस्ती हँसते-हँसते मेरे गाल भी दुखने लगे हैं।" उसने अपने गालों को हल्का सा दबाते हुए कहा। यह देखकर कला और परीक्षित बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी कंट्रोल करके खड़े थे।
"और ऊपर से उनके सवाल, पता है क्या-क्या पूछ रहे थे मुझसे?" नयन ने कहा। जिस पर कला और परीक्षित ने ना में गर्दन हिला दी। तभी चंद्र भी अंदर आ रहा था, लेकिन नयन की आवाज सुनकर वह वहीं दरवाजे पर ही रुक गया।
नयन चंद्र की तरह खड़े होकर उसकी आवाज की नकल करते हुए बोला, "क्या तुमने कोई नशा किया है? किसी गड्ढे में गिर गए थे जो सिर पर गहरी चोट आई है? तुम्हें ड्राइव करना आता भी है? मैं सही सलामत ऑफिस पहुँच तो जाऊँगा ना? तुम्हारी इस बड़ी सी मुस्कान से मुझे तुम पर डाउट हो रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम मेरे साथ कोई प्रैंक करने की कोशिश कर रहे हो? देखो नयन, अब मज़ाक नहीं, सीधी तरह बताओ कि तुम ये सब क्यों कर रहे हो? आआआ........." यह कहते हुए वह एकदम से चिल्ला दिया। उसने एक-एक बात चंद्र के अंदाज़ में कही। उसे चंद्र की नकल करता देख कला और परीक्षित अपनी हँसी रोक ही नहीं पाए और जोर से हँसने लगे।
दरवाजे पर खड़ा चंद्र भी नयन को अपनी नकल करता देख हल्के से हँस दिया। फिर वह अंदर ना जाकर कुछ सोचते हुए सीधा अपने केबिन में चला गया।
अगले ही पल कला और परीक्षित उसके केबिन में खड़े थे और चंद्र उन्हें घूर रहा था। जिसे देखकर परीक्षित ने उससे कहा, "सर, आप हमें इस तरह घूर क्यों रहे हैं?"
"तुम लोग अच्छी तरह जानते हो कि मैं क्या जानना चाहता हूँ।" चंद्र ने उससे कहा। जिसे सुनकर वे दोनों एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे।
फिर चंद्र की तरफ देखकर बोले, "सर, आपको पता चल गया कि उसके बदले बिहेवियर के पीछे हमारा ही हाथ है।"
"हाँ, उसकी इस कहानी के स्क्रिप्ट राइटर तुम दोनों ही हो। अब तुम बताओ पूरी कहानी क्या है?" चंद्र ने उन दोनों से पूछा।
उन्होंने पूरी बात चंद्र को बता दी। जिस पर चंद्र हैरान रह गया और बोला, "वाह! दोस्त हो तो ऐसे, कितना सोचते हो तुम लोग उसके बारे में! लेकिन तुम्हारे इस याराने के चक्कर में मेरा क्या हाल हो रखा है, ये सोचा है तुम लोगों ने?" चंद्र ने थोड़ा सख्ती से कहा।
"सर, आपके लिए तो अच्छा ही है ना कि वह आपके साथ कितना अच्छा बिहेव कर रहा है।" परीक्षित ने थोड़ा मज़ाकिया लहजे में मुस्कुराकर कहा।
"अच्छा बिहेव नहीं कर रहा, चापलूसी कर रहा है मेरी। ऐसा लग रहा है जैसे कोई साया मेरे साथ घूम रहा है, जहाँ जाता हूँ पीछे-पीछे जाता है।" यह सुनकर कला और परीक्षित मुँह दबाकर हँस दिए क्योंकि उन्हें कल की बात याद आ गई थी जब नयन वॉशरूम तक चंद्र के पीछे-पीछे गया था और अनजाने में उसका दरवाज़ा भी खोल दिया था।
चंद्र ने जब उन्हें हँसते देखा तो चिल्लाकर बोला, "हँसना बंद करो!" उसके चिल्लाने पर वे दोनों एकदम से चुप हो गए और सीधे तनकर खड़े हो गए।
चंद्र ने बोलना शुरू किया, "कैसे एम्प्लॉयीज़ हो तुम लोग? मुझे यह समझ नहीं आता कि मैं तुम्हें अपने हिसाब से चलाता हूँ या तुम लोग मुझे अपने हिसाब से चलाते हो। मेरी कोई रिस्पेक्ट है भी या नहीं?"
"सर, प्लीज़ आप ऐसा मत कहिए। हम आपकी बहुत रिस्पेक्ट करते हैं और हम तो यही चाहते थे कि नयन भी आपकी रिस्पेक्ट करे, लेकिन हमें क्या पता था कि वह इतनी ज़्यादा रिस्पेक्ट करने लग जाएगा।" परीक्षित ने थोड़ा मायूसी भरा चेहरा बनाकर कहा।
"हाँ सर, उसे बस इस बात का डर है कि उसे कहीं निकाल ना दिया जाए। वह सच में यहाँ काम करना चाहता है, भले ही उसका बात करने का तरीका सही नहीं है, लेकिन आप खुद ही सोचकर बताइए क्या उसके काम में आपको कभी कोई कमी दिखाई दी?" कला ने जब यह कहा तो चंद्र कुछ पल के लिए विचार करने लगा।
चंद्र उन दोनों की ओर देखकर बोला, "तुम दोनों अब यहाँ से जा सकते हो और याद रखना जो भी बातें यहाँ हुईं वह तुम लोग नयन को बिल्कुल नहीं बताओगे, वरना मैं क्या कर सकता हूँ तुम दोनों अच्छी तरह जानते हो।" यह कहते हुए चंद्र ने उन्हें जाने का इशारा कर दिया।
उसकी इस बात पर वे दोनों कन्फ़्यूज़ सा चेहरा बनाने लगे। तभी परीक्षित मुस्कुराते हुए चंद्र के पास आया और उसकी चेयर पर एक साइड अपने दोनों हाथ रखकर थोड़ा उसकी ओर झुकते हुए बोला, "वैसे सर, अब आप नयन को किस तरह ट्रीट करने वाले हैं?" उसकी इस हरकत पर चंद्र ने भावहीन चेहरा बनाकर उसे देखा।
"नयन का तो पता नहीं, लेकिन यह ज़रूर फायर होगा आज।" कला परीक्षित को इस तरह चंद्र से बात करता देख मन ही मन घबराते हुए बोली।
परीक्षित अभी भी मुस्कुराकर चंद्र को देख रहा था। इस वक्त चंद्र के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। फिर वह नॉर्मल तरीके से बोला, "मि. परीक्षित जोशी!"
"परी बुलाइए ना सर।" परीक्षित ने उसे छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा।
चंद्र ने चेहरे पर व्यंग्य भरी मुस्कान लाकर कहा, "परीक्षित जोशी, आप आग में खुद कूदेंगे या मैं आपको धक्का दूँ?"
"क्या मतलब सर?" परीक्षित ने कन्फ़्यूज़न भरा चेहरा बनाकर पूछा। कला तो इस वक्त डर के मारे अपना चेहरा हाथों से छिपाकर खड़ी थी और अपनी उंगलियों के बीच छोटी सी नज़र बनाकर उसे देख रही थी।
"मतलब यह कि आप खुद रिज़ाइन करेंगे या मैं आपको फायर करूँ।" यह कहते हुए चंद्र की मुस्कान सख्ती में बदल गई।
यह सुनकर परीक्षित एकदम से हड़बड़ाते हुए सीधा खड़ा हो गया, "न...नो सर, आई मीन सॉरी सर, आई मीन रियली सॉरी सर, मुझे फायर मत कीजिए, वरना मुझे आपके दर्शन कैसे हो पाएँगे।" परीक्षित ने अनजाने में ही यह सब कह दिया। लेकिन जब उसने यह कहा तो चंद्र गुस्से में चिल्लाया, "दफ़ा हो जाओ तुम यहाँ से!" यह सुनकर तो कला और परीक्षित वहाँ से सर पर पैर रखकर भाग गए।
उनके जाने के बाद चंद्र अपना सिर पकड़कर बैठ गया, "मैं अगर इन्हें फायर करूँ भी तो क्या रीज़न बताऊँ कि मेरे एम्प्लॉयीज़ मुझसे ही फ़्लर्ट करते हैं? इसमें मज़ाक तो मेरा ही बनेगा ना।" उसने खुद से ही कहा। फिर कुछ देर बाद वह खुद को नॉर्मल करते हुए नयन के बारे में सोचने लगा, "अब तुम देखो नयन, मैं क्या करता हूँ!" यह सोचते हुए उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान आ गई।
आज जब राज जोगी अंकल के रेस्टोरेंट में आया तो उसने विकी को गीता से लड़ते हुए पाया। वह दरवाज़े पर खड़े होकर विकी को देख मन ही मन बोला, "अच्छा तो मेरे सामने ही ढंग से बात होती है, वरना पीठ पीछे तो वही हाल है जो पहले था।" वह सोचने लगा। राज पहले भी विकी को गीता से लड़ते हुए देख चुका था और इस चक्कर में उसने कई बार विकी को इग्नोर भी किया था। जिसका असर विकी पर केवल इतना ही हुआ था कि वह राज के सामने ही गीता से थोड़ा ढंग से बात करता था या करता ही नहीं था, लेकिन उसका गीता के साथ सख्त रवैया बिल्कुल नहीं बदला था। अगर यह नॉर्मल बहन-भाई वाली लड़ाई होती तो शायद राज इतना रिएक्ट ना करता, लेकिन विकी तो गीता से दुश्मनों की तरह लड़ता था।
कुछ देर बाद गीता विकी से लड़कर वहाँ से चली गई। उसने दरवाज़े पर खड़े राज पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। राज उसे जाते हुए देखता रहा। विकी और आदित्य काउंटर के पास खड़े थे। जब आदित्य की नज़र राज पर पड़ी तो उसने विकी के कंधे पर हल्के से थपथपाते हुए उसे राज की ओर देखने का इशारा किया। बीते कुछ महीनों में आदित्य दोस्त होने के नाते विकी के मन का हाल जान चुका था और विकी ने भी उसके सामने यह एक्सेप्ट कर लिया था कि वह राज को पसंद करता है। वैसे आदित्य को तो उसी दिन इस बात का अंदाज़ा हो गया था जब विकी और राज की पहली मुलाक़ात हुई थी। (आपको याद है ना वह दिन जब आदित्य ने विकी से कहा था, "जाने से पहले ये फूल तो साफ़ करता जा जो तूने उसके स्वागत में उड़ाए थे।")
राज को देखकर विकी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वह राज की तरफ़ बढ़ गया। लेकिन राज उसकी तरफ़ कोई ध्यान ना देते हुए सीधा अंदर आ गया और एक टेबल पर जाकर बैठ गया। उसे देखकर विकी कुछ समझ नहीं पाया, "यह तो इस तरह चला गया जैसे मैं यहाँ हूँ ही नहीं।" उसने मन ही मन कहा। शायद उसे पता नहीं था कि राज ने उसे गीता से लड़ते हुए देख लिया था।
"आदित्य, मेरे लिए एक ब्राउनी ले आना प्लीज़।" राज ने आदित्य से कहा। जिस पर विकी थोड़ा हैरानगी भरी निगाहों से उसे देखते हुए आदित्य के पास आकर खड़ा हो गया, क्योंकि राज तो हमेशा ही विकी को ऑर्डर देता था, लेकिन आज उसने विकी को तो पूरी तरह इग्नोर कर दिया।
जोगी अंकल भी वहाँ आ गए। जब उन्होंने राज को देखा तो उससे बोले, "अरे छोटे चंद्र तुम यहाँ! चलो अच्छा है तुम तो आए, वरना तुम्हारे भाई चंद्र तो कभी आते ही नहीं हैं।"
"वह आपके यहाँ कुछ ऐसे लोग भी काम करते हैं जो अपने से बड़ों की इज़्ज़त करना नहीं जानते, इसलिए भाई यहाँ नहीं आते।" राज ने यह बात विकी की तरफ़ देखकर कही।
जिसे सुनकर आदित्य धीरे से विकी के कान में बोला, "इसका इशारा तेरी तरफ़ ही है।" आदित्य के ऐसा कहने पर विकी ने उसे अपनी आँखें दिखा दीं, जिस पर आदित्य एकदम से उससे दूर हो गया।
विकी मन ही मन खुद को कोसने लगा, "आज इसने मुझे लड़ते हुए देख लिया। मेरी जुबान काबू में क्यों नहीं रहती? क्यों मैं गीता देवी से जरा-जरा सी बातों पर भिड़ जाता हूँ?"
राज आदित्य और जोगी अंकल से ही बात करता रहा। विकी ने कई बार उससे बात करने की कोशिश की, लेकिन राज ने उसे हर बार इग्नोर कर दिया। यह देखकर आदित्य को हँसी भी आ रही थी और विकी पर तरस भी आ रहा था।
राज के जाने के बाद आदित्य विकी के पास आकर बोला, "अब तो सुधर जा मेरे यार।"
"क्या मतलब?" विकी ने कहा।
जिस पर आदित्य ना में सिर हिलाकर बोला, "तुझे अब भी मतलब समझ नहीं आया? वह तुझे इग्नोर करके क्यों गया है, जानता है ना।"
"हाँ जानता हूँ।" विकी ने उसकी बात समझते हुए कहा।
"तो फिर अपने आप को बदल क्यों नहीं लेता?" आदित्य ने उसे समझाया।
"क्या करूँ? कोशिश तो करता हूँ, लेकिन बचपन से ही आदत पड़ी है लड़ने की, कैसे सुधारूँ?"
"सुधरना तो पड़ेगा, वरना भूल जा उसे।" आदित्य ने जब यह कहा तो विकी को लगा जैसे उसके दिल पर किसी ने हथौड़े से वार कर दिया हो।
जारी है......
ऑफिस में नयन, आज्ञाकारी बच्चे की तरह, चंद्र के केबिन में उसके सामने खड़ा था। चंद्र चेयर पर बैठे हुए, उसकी बनाई हुई प्रेजेंटेशन को देख रहा था।
उसे देखने के बाद चंद्र ने नयन से कहा, "व्हाट इज़ दिस?"
"व्हाट, सर!" नयन बोला।
"ये किस तरह की प्रेजेंटेशन तैयार की है तुमने? कुछ भी ढंग से मेंशन नहीं किया।"
"सर, क्या समझ नहीं आया आपको?"
"कुछ भी समझ नहीं आया। इसलिए तुम इसे दुबारा बनाकर लाओ।" ये कहते हुए चंद्र ने उसे जाने का इशारा कर दिया। नयन कुछ नहीं बोला, चुपचाप "यस सर" कहकर दुबारा प्रेजेंटेशन बनाने चला गया।
इधर, जब विकी घर आया, तो उसकी नज़रें बगल वाले घर पर ही टिकी थीं। वह एक बार राज को देखना चाहता था, लेकिन राज उसे नहीं दिखा। उसने निराश होकर अपने घर का गेट खोला और अंदर आने लगा।
"अब मुझे खुद में बदलाव करना ही होगा। आखिर वो मेरी बहन ही तो है, और उसने मेरा बिगाड़ा भी क्या है? अगर थोड़ा इज़्ज़त से बोल लूँगा तो क्या चला जाएगा?" वह यह सोचते हुए चल रहा था कि तभी उसने देखा कि गीता सामने से आ रही थी। उसने खुद को तैयार किया और उसके सामने जाकर बोला, "स...सॉरी....बहना?" वह अटकते हुए इतना ही कह पाया।
"क्या कहा तूने?" विकी के मुँह से "बहना" शब्द सुनकर गीता के हाथ से पर्स छूटकर नीचे गिर गया। वह अविश्वास भरी नज़रों से उसे देखते हुए बोली।
विकी कुछ ना कहकर सीधा घर के अंदर चला गया। क्योंकि एक बार तो उसने "बहना" बोल दिया, लेकिन झिझक के मारे दुबारा नहीं बोल पाया। लेकिन गीता की आँखें नम हो गईं। आज इतने सालों बाद उसने फिर से विकी के मुँह से अपने लिए "बहना" शब्द सुना था।
विकी ने दस साल की उम्र तक ही गीता को बहना कहकर बुलाया था। उसके बाद ना जाने उसे क्या हो गया, जो वह गीता से चिढ़ने लगा, उसे उल्टा-सीधा बोलने लगा, उसे उसके नाम से बुलाने लगा। शायद इसका कारण यह था कि गीता उसे टोका करती थी जब वह अपनी मनमानी करता था। उसने गीता की रोक-टोक को कुछ ज़्यादा ही सीरियसली ले लिया था। विकी का स्वभाव ही ऐसा था, वह थोड़ा गुस्सैल टाइप का था। उसे पसंद नहीं था कि कोई उस पर रोक-टोक करे। वैसे स्वभाव तो उसका आज भी नहीं बदला था, गुस्सैल तो वह था, लेकिन राज के सामने आते ही नरम पड़ जाता था।
राज अपने घर की छत पर ही था, लेकिन विकी के आने पर छिप गया था। उसने उन दोनों को बात करते हुए भी देख लिया था। फिर वह गीता को देखकर मुस्कुराने लगा, जो नीचे गिरा हुआ अपना पर्स उठा रही थी।
शाम को नयन फिर से प्रेजेंटेशन तैयार करके चंद्र के केबिन में गया और उसे दिखाते हुए बोला, "सर, मैंने यह फिर से तैयार की है, अब तो ठीक है ना?"
चंद्र ने उसकी प्रेजेंटेशन को देखा। फिर उसने नयन को देखा; वह अब भी चेहरे पर मुस्कान लिए खड़ा था। चंद्र ने उसकी प्रेजेंटेशन को देखकर कहा, "ठीक तो है, लेकिन अब भी कुछ कमी है इसके अंदर।"
"अब क्या कमी है सर?"
"है तभी तो कह रहा हूँ।"
"लेकिन सर, आप मुझे बताइए तो सही, इसमें कमी क्या है?"
"बस मुझे पसंद नहीं आ रहा। दुबारा बनाओ इसे, और हाँ... याद रखना, कल सुबह 9 बजे से पहले मुझे भेज देना, ओके।" ये कहते हुए चंद्र जाने के लिए चेयर से उठा, लेकिन नयन अभी भी वहीं खड़ा उसे देख रहा था, और उसके चेहरे के भाव बदलने लगे थे।
"क्या हुआ, नहीं बनाओगे?" चंद्र ने उसे देखकर कहा।
"जी नहीं सर, मैं बनाऊँगा और कल सुबह तक आपको भेज भी दूँगा।" नयन ने फिर से मुस्कुराकर कहा और प्रेजेंटेशन बनाने चला गया। चंद्र भावहीन चेहरा बनाए उसे जाते हुए देखता रहा।
नयन आज घर भी नहीं गया था, बल्कि ऑफिस में मीटिंग रूम में ही बैठा काम कर रहा था। कला और परीक्षित भी आज उसके साथ नहीं थे, क्योंकि उन्हें तो चंद्र ने पहले ही वार्न कर दिया था। वेदांश तो आज जल्दी छुट्टी लेकर चला गया था क्योंकि उसे अपनी वाइफ को लेने जाना था, इसलिए उसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था।
रात होने को आई थी और नाईट शिफ्ट में काम करने वाले एम्प्लॉयीज़ भी आने लगे थे।
(कुछ कंपनियों में नाईट शिफ्ट भी चलती है और यह एम्प्लॉयीज़ पर डिपेन्ड करता है कि वे डे शिफ्ट में काम करना चाहते हैं या नाईट शिफ्ट में।)
नयन अपने काम में लगा हुआ था कि तभी सिक्योरिटी गार्ड एक खाने का पैकेट लाया और उसे देते हुए बोला, "साहब, बाहर कोई आदित्य नाम का लड़का आया था। उसने कहा कि यह खाना आपकी मौसी ने भिजवाया है।"
नयन ने वह पैकेट ले लिया और उसमें से खाना निकालकर खाने लगा। "आज खाने का टेस्ट कुछ अलग है। विकी ने तो नहीं बनाया, लगता है मौसी ने बनाया होगा। आखिरकार यह भी अच्छा खाना बनाना सीख ही गई, काफी टेस्टी बनाया है।" वह यह कहते हुए खा रहा था। फिर वह खाना खाकर अपने काम में लग गया। सारी रात उसने बैठकर प्रेजेंटेशन तैयार की और उसे बार-बार चेक किया। जब उसे अपनी तरफ से कोई गलती नज़र नहीं आई, तो उसने उसे चंद्र को भेज दिया और कुछ देर वहीं टेबल पर अपना सिर रखकर आँखें बंद कर लीं।
अगले दिन चंद्र समय से पहले ही ऑफिस आ गया था। जब वह मीटिंग रूम के अंदर गया, तो नयन को वहाँ इस तरह से सोता देख, वह उसके पास जाने लगा। नयन टेबल पर एक साइड से सिर टिकाकर सोया हुआ था। उसका लैपटॉप भी खुला हुआ ही था। चंद्र ने उसके लैपटॉप को देखा, फिर उसमें कुछ करके उसे बंद कर दिया। फिर उसने नयन को देखा जो सो रहा था।
नयन के बाल बिखरे हुए थे और माथे पर आ रहे थे। चेहरे पर थकावट साफ़ झलक रही थी। कितना प्यारा और मासूम लग रहा था वह इस तरह सोते हुए! उसे देखकर चंद्र के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसके हाथ अनायास ही उसके चेहरे की ओर बढ़ गए। इससे पहले कि वह उसे छू पाता, नयन के फ़ोन का अलार्म बज उठा।
"नन्नू उठ जा...सुबह हो गई... नन्नू उठ जा...सुबह हो गई..." यह सुनकर चंद्र ने हड़बड़ाते हुए अपना हाथ पीछे कर लिया।
दरअसल नयन ने अपने फ़ोन में अपनी मम्मा की आवाज़ का अलार्म लगाया था, जिसे वह बिल्कुल अपने कान के पास रखकर सोता था, ताकि अगर कोई ना उठाए तो वह उठ सके।
(वैसे तो इस बंदे के फ़ोन में बैटरी रहा नहीं करती थी और अलार्म भी नहीं बजता था, लेकिन जब आज नहीं होनी चाहिए थी तब थी, और जब अलार्म नहीं बजना चाहिए था तब बज उठा। अच्छे-खासे रोमांटिक सीन का कचरा कर दिया इस फ़ोन ने।)
उस अलार्म को सुनकर नयन अपनी आँखें मसलते हुए उठा, लेकिन जब उसने अपने सामने चंद्र को देखा, तो वह एक पल के लिए चौंक गया। फिर मुस्कुराकर बोला, "गुड मॉर्निंग सर!"
वैसे उसका "निक नेम" जानकर चंद्र को हँसी तो आई थी, लेकिन नयन के देखने से पहले वह नॉर्मल हो चुका था।
"गुड मॉर्निंग। अपना हुलिया सुधारो और केबिन में आओ।" सख्ती से यह कहते हुए चंद्र अपने केबिन की तरफ़ बढ़ गया।
अब नयन को उस पर गुस्सा आ गया कि चंद्र ने यह तक नहीं पूछा कि वह पूरी रात यहीं था, घर क्यों नहीं गया। फिर भी नयन उसकी बात मानकर वाशरूम में गया और खुद का हुलिया सही कर चंद्र के केबिन की ओर बढ़ गया।
केबिन में चंद्र सामने चेयर पर बैठा था और वह उसके सामने खड़ा था। उसे देखकर चंद्र ने बोलना शुरू किया, "तुमने अभी तक प्रेजेंटेशन तैयार नहीं की?"
नयन हैरान होकर बोला, "सर, मैंने तैयार की है और कल रात आपको भेज भी दी। शायद आपने चेक नहीं की होगी।"
"मैंने अभी अपना लैपटॉप चेक किया है, इसमें कोई प्रेजेंटेशन नहीं है।" चंद्र अपने लैपटॉप की तरफ़ इशारा करके बोला।
"सर, आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? रियली मैंने भेजी थी, या फिर कोई नेटवर्क इश्यू हो गया होगा। मैं अपने लैपटॉप में आपको दिखा देता हूँ।" ये कहते हुए नयन अपना लैपटॉप लेकर आया, लेकिन उसमें भी उसे कुछ नहीं मिला। यह देखकर उसे कुछ समझ नहीं आया और वह चंद्र की ओर देखने लगा।
"क्या हुआ?" चंद्र ने अपनी आइब्रो ऊँची करते हुए उससे पूछा।
"सर, पता नहीं, मिल क्यों नहीं रही?" नयन ने कन्फ़्यूज़्ड चेहरा बनाकर कहा।
"अब कितना झूठ बोलोगे तुम? सीधा-सीधा बोल दो ना कि तुम सो गए थे, तुमने कोई प्रेजेंटेशन बनाई ही नहीं, लापरवाह हो तुम।"
चंद्र ने जिस तरीके से यह कहा, उससे नयन का सब्र जवाब दे गया। उसने गुस्से में चंद्र की ओर देखा, "मि. चंद्र सिंह राठौड़! यह कैसा खेल खेल रहे हो तुम मेरे साथ???" नयन ने जैसे ही चिल्लाकर यह कहा, चंद्र के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, क्योंकि यही तो चाहता था वह, कि नयन उसे पलटकर जवाब दे। नयन काफी गुस्से में बोलने लगा, "क्या समझते हो तुम खुद को? मैं सब जानता हूँ कि तुम यह सब जानबूझकर कर रहे हो, क्योंकि तुम्हें रीज़न चाहिए मुझे यहाँ से निकालने का। इसलिए कल से मेरे काम में कमी निकाल रहे हो, कभी यह मेंशन नहीं किया, कभी वह मेंशन नहीं किया, कभी तुम्हें मेरी प्रेजेंटेशन ही पसंद नहीं आई। अरे अब मैं कैसे अंदाजा लगाऊँ कि तुम्हें क्या पसंद नहीं आया? मैं तुम्हारा दिमाग तो नहीं पढ़ सकता। और आज तो हद ही कर दी, यह कहकर कि मैंने कोई प्रेजेंटेशन तैयार ही नहीं की, मैं रात भर सोता रहा। अरे मैं ही जानता हूँ कि मैंने पूरी रात किस तरह जागकर यह काम किया, और तुमने एक झटके में मुझे लापरवाह कहकर मेरी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। मैं इंसान हूँ, कोई मशीन नहीं हूँ।" नयन गुस्से में बिना रुके बोले जा रहा था और यह कहते-कहते उसकी आँखों में भी पानी आ गया था।
"नयन, मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि..." चंद्र ने उसे अपनी बात समझानी चाही, लेकिन नयन की पुरानी आदत, वह उसकी बात बीच में ही काटकर बोला, "क्योंकि तुम मुझे यहाँ से निकालना चाहते हो और मुझे निकालकर मेरी जगह ऑनर के दोस्त के बेटे को रखना चाहते हो, यही ना! लेकिन तुम्हें इसके लिए कोई रीज़न ढूँढने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि मैं खुद ही रिज़ाइन कर दूँगा।" यह कहते हुए नयन की आँखों से झरझर आँसू बहने लगे और वह वहाँ से जाने लगा।
तभी चंद्र उसे आवाज़ लगाते हुए अपनी चेयर से उठ गया, "नयन, रुको..." उसने कहा, लेकिन नयन ने कोई ध्यान नहीं दिया, बस रोते हुए वहाँ से जा रहा था।
चंद्र जल्दी से उसकी ओर बढ़ा और उसकी कलाई पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया। नयन पलटते हुए सीधा आकर उसके गले से लग गया।
"छोड़ो मुझे..." नयन रोते हुए उससे छूटने की कोशिश कर रहा था, वहीं चंद्र उसे पकड़कर अपनी बात कहने की कोशिश कर रहा था।
"सॉरी, प्लीज़ डोंट क्राई, मेरी बात तो सुनो..." चंद्र ने कहा, लेकिन नयन उसकी कोई बात ना सुनते हुए उससे छूटने की कोशिश करता रहा।
"मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी।" नयन रोते हुए यह कह रहा था और उससे छूटने की कोशिश करते हुए पीछे हट रहा था, जिस वजह से वह पीछे दीवार पर सट गया। चंद्र उसके सामने खड़ा था और नयन ने रोते हुए मुँह साइड में कर लिया। वह बच्चों की तरह सुबक रहा था। उसकी मासूमियत देखकर चंद्र को उस पर प्यार भी आ रहा था और दया भी, कि उसने उसे इस तरह ट्रीट क्यों किया? इसके लिए अब उसे खुद पर गुस्सा भी आने लगा। उसे इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि नयन इतना भावुक हो जाएगा। आज उसकी समझदारी के आगे नयन की नादानी भारी पड़ गई। नयन की आँखों से आँसू अब भी बह रहे थे, जिन्हें देखकर चंद्र ने अपने हाथों से उन्हें पोछ दिया। नयन ने जब उसकी ओर देखा, तो चंद्र उसके चेहरे पर मासूमियत देखकर हल्के से मुस्कुरा दिया, जिसे देखकर नयन गुस्से में उसे खुद से दूर करते हुए बोला, "तुम मेरी हालत पर हँस रहे हो, सच में बहुत बुरे हो तुम। मुझे तो लगा था कि तुम्हारे जैसा बॉस मुझे कोई दूसरा नहीं मिलेगा, क्योंकि तुम सबसे अलग हो, लेकिन मैं गलत था। यू आर वेरी बेड, आई हेट यू!"
आखिर में उसके इन रटे हुए शब्दों को सुनकर चंद्र को मन ही मन हँसी आ गई और अपने बारे में उसकी यह सोच जानकर उस पर प्यार उमड़ आया। और वह उसके पास जाते हुए बोला, "नयन, तुम मेरी बात नहीं समझ रहे हो, मैंने यह सब..."
चंद्र इतना ही कह पाया था कि तभी किसी ने दरवाज़ा नॉक किया, "मे आई कम इन सर?" यह वेदांश की आवाज़ थी, जिसे सुनकर चंद्र नयन से खुद ही दूर हो गया और वेदांश को अंदर आने को कह दिया। वेदांश ने जैसे ही दरवाज़ा खोला, नयन गुस्से में वहाँ से चला गया। उसने वेदांश पर भी कोई ध्यान नहीं दिया।
वेदांश ने जब नयन को इस तरह जाते देखा, तो वह चंद्र से बोला, "सर, इसे आज हुआ क्या है? इसकी आँखें इतनी लाल क्यों हो रखी हैं? कोई नशा-वशा करके आया है क्या यह?"
"नहीं, नशा तो उसका अब जाकर उतरा है।" चंद्र ने नयन को जाता देखकर, उसमें खोये हुए ही जवाब दिया। (नयन के रोने से आँखें लाल हो गई थीं।)
"क्या कहा आपने सर?"
"कुछ नहीं। तुम बताओ क्यों आए हो?"
"सर, एक गुड न्यूज़ है। नयन ने जो उस दिन प्रेजेंटेशन तैयार की थी, वह बोर्ड को बहुत पसंद आई और अब उसका प्रोबेशन पीरियड भी खत्म होने वाला है। तो आप उसे पास कर सकते हैं और उसे यहाँ परमानेंट कर सकते हैं।" वेदांश ने खुश होकर कहा।
यह सुनकर चंद्र के चेहरे पर नयन के लिए गर्व भरी मुस्कान आ गई। लेकिन अब उसके लिए समस्या यह थी कि वह नयन को मनाए कैसे? अपनी बात उसे समझाए कैसे?
आप लोगों ने एक गाना सुना है, "रूठे रब को मनाना आसान है, रूठे यार को मनाना मुश्किल है," और खासकर तब जब वह यार नयन की तरह नादान हो...!