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दिल दीवाना माने ना

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Simarpreet Singh kang

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एक लव स्टोरी जिसमें प्रेमी बिछड़कर फिर दुबारा मिल नहीं पाते वैसे भी कहते है ना मोहब्बत कभी पूरी नहीं होती अक्सर अधूरी रह जाती है।

Total Chapters (81)

Page 1 of 5

  • 1. दिल दीवाना माने ना - Chapter 1

    Words: 1548

    Estimated Reading Time: 10 min

    एक खूबसूरत लड़की और लड़का कॉलेज के मैदान में हाफ टाइम पर एक तरफ़ बैठे हुए थे। लड़की ने लड़के की पीठ के साथ अपनी पीठ लगा रखी थी। लड़की के चेहरे पर मुस्कान तैर रही थी और लड़का भी हल्का सा मुस्कुरा रहा था। लड़की खूबसूरत थी; दूधिया रंगत, नीली आँखें, गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ, काले लंबे खुले बाल, पिंक कलर का सलवार सूट और सफ़ेद दुपट्टा ओढ़े हुए, वह लड़के की पीठ के साथ अपनी पीठ जोड़कर बैठी हुई थी। लड़के ने व्हाइट टीशर्ट और ब्लू जींस पहनी हुई थी। लड़का भी हैंडसम लुक वाला, काफ़ी खूबसूरत था।

    "क्या सोच रही हो? जानती हो आज क्या है? हमारी ज़िंदगी का आज कौन सा ख़ास दिन है?"

    "आज फ़्राइडे है, २० तारीख़। लेकिन इस दिन का हमारी ज़िंदगी के साथ क्या रिश्ता है?"

    "वही तो मैंने तुमसे पूछा, लेकिन तुम उल्टा मुझे पूछ रही हो?"

    "आज के दिन तुम्हारा जन्मदिन तो बिल्कुल नहीं है, क्योंकि वह तो छह महीने पहले ही मनाया गया था ना? किसी इंसान का जन्मदिन साल में दो बार आने से तो रहा?"

    "हाँ, वह तो नहीं है। और कुछ याद करो, क्या है आज?"

    "सोचने दो यार, तुम तो मुझे उलझन में डाल रहे हो। अरे! हाँ, याद आया! आज के दिन हम पहली बार मिले थे। एक साथ हम कॉलेज में आए थे। लेकिन तीन साल तो हुए नहीं अभी? अभी तो दो महीने रहते हैं हमारे एग्ज़ाम को भी?"

    "अरे! बेवकूफ़ लड़की! तुम शक्ल-सूरत से ही खूबसूरत हो, लगता है अक्ल के मामले में तेरी खोपड़ी खाली है?"

    "ओए! क्या बकते हो तुम? मुझे बेअक्ल समझते हो? तुम्हें बड़ी अक्ल है?"

    "हाँ, तुमसे ज़्यादा है।"

    "अच्छा जी! अगर मुझसे ज़्यादा है, तो बताओ फिर आज के दिन क्या हुआ था? क्या ख़ास है हमारी ज़िंदगी में?"

    "अरे! वाह! कुछ ज़्यादा ही स्मार्ट बनने की कोशिश कर रही हो? अच्छा, एक काम करो, अपने घुटने पर अपना सिर मारो जोर से।"

    "हैं! अपने घुटने पर अपना सिर क्यों मारूँ? मेरे को काले कुत्ते ने काटा है क्या, जो मैं ऐसे करूँ?"

    "अरे! मैंने सुना है खूबसूरत लड़कियों की अक्ल उनके घुटनों में होती है। तो शायद सिर मारने की वजह से घुटने में छुपी हुई अक्ल एक्टिव हो जाए और तुझे समझ आ जाए कि आज क्या ख़ास दिन है।"

    वह लड़की लड़के की बात सुनकर एकदम से खड़ी हो गई और फिर पलटकर लड़के को घूरने लगी। उसने अपने सीने पर अपने हाथ बाँध लिए थे। खड़ी होने पर वह लड़की पाँच फीट पाँच इंच कद-काठी की लग रही थी।

    "क्या बोला तुमने? मुझे? मेरे घुटनों में अक्ल है? अगर ऐसा ही था, तो फिर तुमने मुझसे प्यार ही क्यों किया? मुझे तुमने प्रपोज़ क्यों किया? तब तो तुम मेरे आगे-पीछे लट्टू की तरह घूमते-फिरते रहते थे। जब तक मैंने तुम्हारे प्यार को एक्सेप्ट नहीं किया था, तब तक तो तेरी शक्ल मजनूँ के जैसी हुई पड़ी थी?"

    उस लड़की की बात सुनकर वह लड़का मुस्कुराने लगा, लेकिन वह उठा नहीं, बस बैठे-बैठे ही घूमा और उस लड़की को देखने लगा।

    "अब दाँत क्यों दिखा रहे हो? मुझे? एक थप्पड़ मारूँगी, तेरे कान के नीचे पूरी बत्तीसी बाहर आ जाएगी निकलकर।"

    "हे हे हे हे!"

    "यह क्या? तुम मुझे अपनी पूरी बत्तीसी निकालकर क्यों दिखा रहे हो?"

    "अरे! लगभग तुम वहाँ तक पहुँच ही गई हो कि आज कौन सा ख़ास दिन है, इसलिए।"

    लड़की ने लड़के की बात सुनी तो अपने सिर पर हाथ मारा।

    "पिट्।"

    "तो तुम इसलिए मेरा मज़ाक बना रहे थे? आज तो वही दिन है ना, जब तुमने मुझे प्रपोज़ किया था? और मैंने तेरे प्रपोज़ को एक्सेप्ट किया था?"

    "३२ नखरे दिखाते हुए एक्सेप्ट किया था।"

    "३२ नहीं, २० नखरे दिखाए थे। तुम झूठ बोल रहे हो। चल, कोई ना, दिखाएँ तो क्या हुआ, लेकिन तेरा प्रपोज़ तो एक्सेप्ट कर लिया था ना? बस यही बताने के लिए मुझे इतना चिढ़ा रहे थे। अगर पहले ही बता देते, तो?"

    "वैसे तो यह दो साल पहले की बात है, लेकिन ऐसे लगता है जैसे दो दिन पहले की बात होती है।" लड़के ने कहा।

    "ओ शीट यार! बातों-बातों में एक बात बताना तो भूल ही गई, जोकि बहुत ज़रूरी है तुम्हें बतानी।"

    "ओ अच्छा? कौन सी बात?"

    "परसों संडे को तुम हमारे घर पापा से मिलने आओगे। देखो, मना मत करना, वरना बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाएगी।"

    "अरे! क्या हुआ? कैसी गड़बड़ हो जाएगी? क्या तुझे लड़के वाले देखने आ रहे हैं?"

    "हाँ, सच में आ रहे हैं। वह मेरी खड़ूस ताई जी है ना। वैसे तो हमारे घर आती नहीं, लेकिन जब उसे मतलब होता है, तब आती है।"

    "अच्छा, तो अब तुम्हारी ताई जी तुम्हारा रिश्ता करवाने पर तुली हुई है?"

    "हाँ, और जानते हो उन्होंने किस लड़के के बारे में बताया? अपनी बेटी के देवर के बारे में। मतलब कि रॉकी के बारे में।"

    "ओहो! तो उस रॉकी की इतनी हिम्मत हो गई कि अपने लिए तुम्हारे घर रिश्ता भेज रहा है?"

    "वह रिश्ता नहीं भेज रहा, मेरी ताई जी ने खुद बात की है। अब रॉकी हमारे कॉलेज में तो है नहीं। फिर तुझे ऐसा क्यों लगता है कि यह सब उसने किया होगा?"

    "अरे! वह शैतान की पूँछ, कुछ भी कर सकता है। तुम नहीं जानती उसको। लेकिन यार, मैं अकेला कैसे आऊँ?"

    "देखो, अगर तुम मुझसे प्यार करते हो और मुझसे शादी भी करना चाहते हो, तो तुम्हें इस संडे को मेरे घर आना ही पड़ेगा। वह भी १०:०० बजे से पहले, क्योंकि १०:०० बजे वह लोग आ रहे हैं।"

    "तुमने अपने पापा को अभी तक बताया नहीं कि तुम मुझसे प्यार करती हो?"

    "अरे! कैसे बताऊँ? मरना है क्या? पापा तो छड़ी लेकर पीछे पड़ जाएँगे कि मैं कॉलेज में पढ़ने आती हूँ या प्यार के पचड़े में पड़ने?"

    "अगर मैं तुम्हारे घर आ गया, तो फिर तुम्हारे पापा तो छड़ी से मुझे ही पीटेंगे कि मैंने उनकी बेटी से प्यार ही क्यों किया?"

    "अरे! ऐसा नहीं होगा। तब मैं उन्हें मना लूँगी ना, और फिर इस काम में मेरी छोटी बहन श्वेता भी हमारा साथ देगी।"

    "देखो काम्या, ऐसे अगर मैं तुम्हारे घर आया, तब तो पक्का मेरी पिटाई होगी। मुझे कुछ सोचने दो यार। अपने घर से मैं किसी को साथ लेकर ही आऊँगा।"

    "नहीं जी! पहले तुम्हें अकेले आना होगा पापा के सामने। अगर तुम पापा को पसंद हुए, तो ही तुम अपने घरवालों को लेकर आना।"

    "इसका क्या मतलब हुआ? अगर मैं तुम्हारे पापा को पसंद नहीं हुआ, तो?"

    "तो क्या?"

    "तुम उनकी बात मानकर कहीं और शादी कर लोगी क्या?"

    "मजबूरी है, तब उनकी बात माननी पड़ेगी।"

    "ओए! काम्या की बच्ची! उस रॉकी को जान से मार दूँगा और तेरे को भी उसके साथ ही लगन मंडप पर ही मार दूँगा। क्या समझी?"

    "ओए होए! क्या बात है? मेरे मजनूँ को गुस्सा आ रहा है। बहुत अच्छा लग रहा है मुझे यह जानकर। लेकिन संडे को भूलना मत। कल मैं कॉलेज नहीं आने वाली, इसलिए आज ही बता रही हूँ। रवि के बच्चे, अगर तुम नहीं आए ना, तो फिर भूल जाना मुझे, और सोमवार को अपनी शक्ल भी मत दिखाना।" काम्या ने इटराते हुए कहा।

    और फिर वहाँ से जाने को हुई।

    "अरे अरे! सुनो तो?"

    रवि की बात सुनकर काम्या रुक गई, लेकिन वह पलटी नहीं थी।

    "एक शर्त पर मैं तुम्हारे घर आने को तैयार हूँ।"

    "कैसी शर्त?" काम्या ने बिना पलटे पूछा।

    "यार, मुझे डर लग रहा है तुम्हारे पापा से। तो तुम मुझे बाहर मिल सकती हो क्या? मैं ९:०० बजे ही तुझे मिलूँगा, फिर हम दोनों एक साथ जाएँगे तेरे घर।"

    "ठीक है, आ जाऊँगी मैं बाहर। लेकिन अगर तुम ९:०० बजे की बजाय १०:०० बजे तक भी ना आए, तो फिर समझ लेना कि तुझे मैं जान से मार दूँगी। और फिर खुद भी सुसाइड कर लूँगी, लेकिन किसी और के साथ मेरी शादी कभी नहीं हो सकती।"

    "ओके ओके! एक तो तुम बात-बात पर जान से मारने की धमकी बहुत देती हो। कहीं सच में ही किसी दिन जान से मत मार देना।" रवि ने मुस्कुराते हुए कहा।

    और फिर वह भी उठकर खड़ा हो गया।

    "अच्छा सुनो, मान लो मेरे पापा ने तुझे रिजेक्ट कर दिया, पसंद नहीं किया, तो तुम क्या करोगे?"

    "क्या मतलब? मैं क्या करूँगा? अगर मैं तुझे भागकर शादी करने का भी कहूँगा, तो वह ना तो तुम्हें मंज़ूर होगा और ना ही मुझे, क्योंकि ऐसा ना तुम कर सकती हो ना ही मैं।"

    "हाँ, यह तो है। तुम चाहकर भी मुझे भगाकर शादी नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे संस्कार हमारे आड़े आ जाएँगे। लोग क्या कहेंगे? लड़की घर से भाग गई, अपने परिवार का मुँह काला कर दिया। ऐरा-गैरा-नट्ठू-खैरा वगैरह-वगैरह?"

    "अरे! ऐसी बात नहीं है। लोगों का क्या है? वह तो बातें बनाते रहते हैं। लेकिन फिर हम अपने ही घरवालों के सामने क्या मुँह लेकर वापस आएँगे? मान लो अगर हम भागकर शादी कर भी लेते हैं, खाएँगे क्या? कमाएँगे क्या? घर से अगर कुछ रुपए चुराकर भी भाग गए, तो कितने दिन चलेगा हमारा काम? आजकल नौकरी तो मिलती नहीं।"

    "सही कहा तुमने। मैं भगवान से यही प्रार्थना करूँगी कि पापा को तुम पसंद आ जाओ। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो फिर एक ही प्रार्थना होगी कि इस जन्म में ना सही, लेकिन अगले जन्म में हमें कभी जुदा मत होने देना। इस जन्म में मैं किसी और की होने से रही। किसी और की होने से पहले मैं खुद मर जाना पसंद करूँगी।"

    ,,,,,,,,क्रमशः,,,,,,,,

  • 2. दिल दीवाना माने ना - Chapter 2

    Words: 1565

    Estimated Reading Time: 10 min

    रवि ने काम्या का हाथ प्यार से पकड़ा। "तुम तो कुछ ज्यादा ही इमोशनल हो गईं, डार्लिंग। चलो, चलते हैं क्लास में?"

    दोनों क्लास की ओर चल दिए। रवि और काम्या फाइनल ईयर में थे, एक ही क्लास में पढ़ते थे। इन दोनों की प्रेम कहानी कॉलेज में काफी प्रसिद्ध थी। रवि के होते हुए किसी लड़के में इतनी हिम्मत नहीं थी कि काम्या की ओर आँख उठाकर भी देखे। रवि हैंडसम होने के साथ-साथ शारीरिक रूप से भी किसी बॉडीबिल्डर से कम नहीं था। वह बकायदा घर में ही जिम लगाया करता था। उसके मसल्स कसे हुए थे। छह फीट कद-काठी का रवि, दोस्तों का दोस्त और दुश्मनों का दुश्मन था। पहल कभी उसने नहीं की थी, और पहल करने वाले को उसने कभी बख्शा भी नहीं था।

    रवि का पूरा नाम रवि शेर सिंह और काम्या का पूरा नाम कुलविंदर कौर था, लेकिन उसे प्यार से काम्या और रवि शेर सिंह को प्यार से रवि कहा जाता था। दोनों की प्रेम कहानी में ना तो फिल्मी लव स्टोरी की तरह कोई टकराव हुआ, ना ही दोनों के बीच कभी तकरार हुई। बस, दोनों पहले दिन कॉलेज में आए, एक-दूसरे को देखा और धीरे-धीरे दोनों के बीच दोस्ती हुई। और फिर यह दोस्ती प्यार में बदल गई। रवि शेर सिंह ने पहली बार प्रपोज किया तो काम्या ने कहा, "हट, पगला कहीं का!" लेकिन दूसरी बार किया तब काम्या ने "सेम टू यू" कहकर उसका प्रपोज़ स्वीकार कर लिया। छह महीने दोनों की दोस्ती चली और फिर दोनों के बीच प्रेम कहानी शुरू हुई। काम्या ने अपने घर में अपनी बहन के सिवाय किसी और को नहीं बताया था।

    काम्या की छोटी बहन शलविंदर कौर उर्फ श्वेता महज दस साल की थी, लेकिन शरारतों की नानी के नाम से जानी जाती थी। रवि शेर सिंह के परिवार में कौन है, कौन नहीं, इसके बारे में काम्या ने कभी पूछा ही नहीं था। रवि शेर सिंह उस समय चंडीगढ़ शहर में रहता था और उसके परिवार वाले अमृतसर जिले के एक गाँव, घुमटाला में रहते थे। रवि शेर सिंह चंडीगढ़ अपने गाँव से पढ़ने के लिए आया था। रवि शेर सिंह का गाँव अमृतसर के पास पड़ता था और काम्या तो चंडीगढ़ की ही रहने वाली थी। काम्या के घर में, काम्या के पिता, उसकी छोटी बहन के सिवाय, उनके पड़ोस में काम्या की ताई जी और उनकी दोनों बेटियाँ और एक दामाद रहते थे।

    बड़ी बेटी की शादी हो गई थी। छोटी बेटी श्वेता से दो साल बड़ी थी। उनका दामाद खुशहाल सिंह नाम का था, लेकिन दिमाग से चालबाज और सबसे कमीना इंसान था। ताई जी की कोई प्रॉपर्टी नहीं थी। जितनी भी थी, वह काम्या के पिता दलजीत सिंह की दी हुई प्रॉपर्टी थी। काम्या के ताऊ जी इस दुनिया से दस साल पहले एक एक्सीडेंट में चले गए थे। उसी एक्सीडेंट में काम्या की माँ का भी देहांत हो गया था। काम्या की ताई जी और ताऊ जी ने लव मैरिज की थी। ताई जी का पहला नाम कामिनी था। वह एक हिंदू परिवार से थी और आज भी वह अपने धर्म में आस्था रखती थी।

    काम्या के ताऊ जी के जाने के बाद से काम्या की ताई जी उनके पास वाले घर में रहती थी। यह घर भी काम्या के पापा का ही दिया हुआ था। दोनों घर एक साथ काम्या के पापा ने किसी समय खरीदे थे। उस वक्त काम्या की ताई जी दलबीर कौर अपने दामाद खुशहाल सिंह और अपनी बड़ी बेटी तानिया के साथ बैठी हुई थीं। वे तीनों अपनी ही योजनाएँ बना रहे थे। खुशहाल सिंह तीन भाई थे। खुशहाल सिंह से छोटा भाई रॉकी, खुशहाल सिंह की तरह ही कमीना था। लेकिन दलजीत सिंह की पूरी प्रॉपर्टी हथियाने के लिए ये लोग मिलकर साज़िश रचते रहते थे। काम्या की शादी रॉकी के साथ करवाने का प्लान इन लोगों ने बहुत पहले से ही बना रखा था और आज इसी प्लान पर आगे का काम करने की पूरी तैयारी कर रहे थे।

    "सासू माँ, आपको लगता है चाचा ससुर मान जाएँगे?"

    "ज़रूर मानेंगे। मुझ बेचारी बेवा की बात नहीं मानेंगे तो किसकी मानेंगे? वैसे भी, वह मेरा बहुत मान रखता है।"

    "लेकिन मम्मी, श्वेता को आप अच्छे से जानती हो। अगर उसे पता चल गया ना, तो वह घर में हल्ला मचा देगी। उसकी नज़र गिद्ध की तरह हम पर ही बनी रहती है।"

    "उसकी चिंता क्यों करती हो? वह तो दूधमुँही बच्ची है। उसकी क्या टेंशन लेना? बस, किसी तरह से देवर जी इस शादी के लिए मान जाएँ, तो फिर उनकी पूरी प्रॉपर्टी अपनी होगी?"

    "मैंने कभी आपसे पूछा नहीं है, सासू माँ, लेकिन आपको तो पता ही होगा कि उनकी कितनी प्रॉपर्टी होगी? पिछले तीन महीने से आपने मुझे अपने घर में घरजमाई बनाकर रखा हुआ है, लेकिन ना कभी अपनी प्रॉपर्टी के बारे में बताया और ना ही चाचा ससुर की?"

    "हमारे पास तो अपना कुछ भी नहीं है। तुम्हारे ससुर एक नंबर के नशेड़ी निकले। जो हिस्से में जमीन-जायदाद आई थी, पूरी नशे में उड़ा दी। एक घर ही बचा हुआ था। हम तो भूखे मरने लगे थे, तब तुम्हारे चाचा ससुर ने हमारी बांह पकड़ी थी।"

    दलबीर कौर अपने दामाद खुशहाल सिंह को बताने लगी।

    "लेकिन तुम्हारे चाचा ससुर की प्रॉपर्टी पाँच-सत्तर करोड़ के आसपास तो होगी ही, ज़्यादा भी हो सकती है, लेकिन इससे कम नहीं होगी।"

    "अगर मेरे भाई की शादी काम्या से हो गई ना, सासू माँ, तो यह घर तो आपका हो जाएगा, साथ में कुछ आपके गुज़र-बसर के लिए रुपयों का इंतज़ाम भी हो जाएगा।"

    "कुछ रुपयों का इंतज़ाम नहीं, खुशहाल। आधी प्रॉपर्टी मेरी होगी, क्या समझे? और आधी तुम्हारी।"

    "आपने इतनी प्रॉपर्टी अपने सिर पर मारनी है क्या, सासू माँ?"

    "अरे! भाई, जब तक ज़िंदगी रहेगी, तब तक मैं लोगों के आगे हाथ फैलाकर भीख माँगती रहूँगी क्या? अब और भीख नहीं माँगी जाती मुझसे, समझे? अपनी बेटी तुझे मैंने इसलिए नहीं दी कि तुम अपने बारे में ही सोचो।"

    खुशहाल सिंह अपनी सासू माँ की बात सुनकर दूसरी तरफ देखने लगा। दूसरी तरफ तानिया बैठी हुई थी।

    "माँ सही कहती है, खुशहाल। फिर माँ के बाद यह प्रॉपर्टी हमारी ही होगी ना, तो फिर टेंशन किस बात की? मैं तो कहती हूँ, चाचा जी की पूरी प्रॉपर्टी ही माँ को मिलनी चाहिए, बाद में माँ जितनी चाहे हमें दे सकती है।"

    "ठीक है, मैडम जी। मैंने कभी तुम्हारी बात टाली है क्या? करोड़ों की प्रॉपर्टी हमारे हाथ आ जाएगी। तब हमें काम करने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी, ऐश करेंगे।"

    "ओए! नासपीटे, दिन में सपने मत देख। पहले रिश्ता तो होने दे। इस संडे को अपने भाई को कहना कि जरा सज-धज कर आए। क्या गुंडों की तरह फटे-पुराने कपड़े पहनकर घूमता रहता है?"

    "अरे! मम्मी, यह फैशन है। फटे-पुराने कपड़े नहीं होते। आजकल का फैशन ही ऐसा है।"

    "आग लगे तुम लोगों के ऐसे फैशन को! लेकिन संडे के दिन अगर वह ऐसा फैशन करके आया ना, तो उसके फैशन को आग लगा दूँगी, मिट्टी का तेल डालकर। क्या समझी तुम?"

    "ठीक है, सासू माँ। मैं उसे कह दूँगा कि वह पैंट-कोट पहनकर जरा बन-ठन कर आए।"

    "लेकिन तुम भी बन-ठन कर आना। आ जाते हो नशेड़ी की तरह बनकर, जैसे कोई शराब पीकर नाली में गिरकर पड़ा होता है, ऐसी शक्ल बनाकर आते हो तुम भी?" दलबीर कौर ने खुशहाल सिंह को भी डाँट लगाई।

    चार बजे के आसपास काम्या कॉलेज से घर वापस आ गई। उसने रवि शेर सिंह को अपने घर आने के लिए मना लिया था। जैसे ही वह घर आई, दलजीत सिंह उसे देखकर खुश हो गया।

    "आ गई बेटा काम्या? कैसी हो तुम? कैसा रहा आज का दिन? मैंने तुझे कुछ सोचने को बोला था। कल फिर क्या फैसला किया तुमने?"

    "पापा, आप तो मेरे पीछे ही पड़ गए। अभी तो मैं और पढ़ना चाहती हूँ, लेकिन आप हैं कि मेरी शादी करने पर तुले हुए हो। क्या आपको मैं घर में अच्छी नहीं लगती? बोझ बन गई हूँ क्या आपके लिए मैं?"

    "अरे! कैसी बातें करती हो? एक दिन बेटी की शादी तो हर बाप को करनी पड़ती है, चाहे वह कोई राजा हो चाहे कोई रंक। क्या समझी?"

    "पापा, मुझे अभी शादी नहीं करनी। आप तो अच्छे से जानते हो ना?"

    "देखो बेटी काम्या, तुम्हारी शादी एक साल बाद ही होगी, लेकिन अब हमें सगाई तो करनी ही पड़ेगी ना? भाभी जी बहुत दबाव डाल रही हैं मुझ पर। मैंने पहले तो मना कर दिया था, लेकिन फिर रोना चालू हो गया उनका कि वह गरीब है तो उसकी कौन सुनेगा?"

    "अरे! पापा, ताई जी नौटंकी करती हैं नौटंकी, और आप उनकी नौटंकी में आ जाते हैं? कितनी बार आपको समझाया है कि उनकी नौटंकी को आप मत सुना करो? लेकिन आप तो बस उनकी बात को सीरियसली ले जाते हो?" श्वेता ने बाहर आकर कहा, जो कि पहले रूम में बैठी हुई अपना होमवर्क कर रही थी।

    "तुम चुप रहो श्वेता! तुझे तो अपनी ताई जी में हर वक्त गलतियाँ ही नज़र आती हैं। अरे! वह बेचारी हालातों की मारी हुई है। भाई साहब ने सब कुछ नशे में ही उड़ा दिया, उन लोगों के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा। अगर मैं अपने दम पर कुछ करने में कामयाब नहीं हो गया होता, तो उनको सहारा कैसे देता? क्या पता भगवान जी ने मुझे इतना कुछ इसीलिए दिया है कि मैं उनका सहारा बनूँ? क्या पता, जब से उनके कदम हमारे घर में पड़े हैं, तब से ही हमारी तरक्की हो रही हो?"

    क्रमशः

  • 3. दिल दीवाना माने ना - Chapter 3

    Words: 1574

    Estimated Reading Time: 10 min

    मुझे तो इतना मालूम है, पापा के कदम जब पहली बार हमारे घर पड़े थे, मैं अपनी माँ को खो बैठी थी। मैंने तो उनकी शक्ल भी नहीं देखी, यह तो आपने ही कहा था कि उस वक़्त मैं पैदा होने वाली थी जब उनका एक्सीडेंट हुआ और मेरे पैदा होते ही माँ चल बसी। ताई जी के अनुसार तो मैं मनहूस हूँ, जो अपनी माँ को खा गई और साथ ही साथ उनके पति को भी; जब देखो यही ताना देती रहती है।"

    "अरे! बड़ों की बात का बुरा नहीं मानते। उनकी तो आदत बन चुकी है, क्या करें? बेचारी ने बहुत दुःख देखे हैं अपनी ज़िन्दगी में।"

    दलजीत सिंह ने श्वेता को समझाने की कोशिश की।

    "तुम बताओ, काम्या, परसों रॉकी आ रहा है। अपना फैसला मुझे सुना दो तो अच्छा ही है, मैं भी चैन की साँस ले सकूँ।"

    "पापा, कहीं दीदी को किसी लड़के से प्यार तो नहीं हो गया, जो यह इस शादी से इंकार कर रही है?" श्वेता ने बीच में कहा।

    तो दलजीत सिंह ने पहले श्वेता को घूर कर देखा और फिर काम्या की तरफ देखने लगे; लेकिन काम्या तो श्वेता की बात सुनकर मन ही मन घबरा गई थी।

    "ओ ओ ओ न,,,,,,नो! यह छुटकी मेरा भंडाफोड़ कर मरवाएगी क्या मुझे? इससे हर बात शेयर करने का मतलब आज समझ में आ रहा है। मैंने इसे बताकर खुद के पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार ली?"

    काम्या मन में सोचने लगी; लेकिन श्वेता के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर रही थी।

    "श्वेता क्या कह रही है? काम्या, क्या सच में तुम किसी लड़के से प्यार करती हो? अगर यह सच है तो बताओ, फिर मैं सोचता हूँ कुछ और।"

    "प,,,,,,पापा, अ,,,,,आप भी ना! पता नहीं क्या सोचने लग जाते हैं। चल श्वेता, तेरा बाकी रह गया होमवर्क, मैं करवा दूँ।"

    काम्या ने श्वेता के कंधे पर हाथ मारा और उसे अपने साथ लेकर कमरे की तरफ चली गई। दूसरी तरफ, खुशहाल सिंह और तानिया एक तरफ बैठे हुए थे; खुशहाल सिंह गहरी सोच में डूबा हुआ था।

    "अब तुझे क्या हुआ? मम्मी ने तुझे यकीन तो दिला दिया है ना, फिर किस बात पर इतनी टेंशन लेकर बैठे हुए हो?"

    "टेंशन रवि की है मुझे। अगर उसे पता चल गया तो वह चुप नहीं बैठने वाला।"

    "क्या कर सकता है? शोर मचा देगा, झगड़ा करेगा, चिल्लाएगा, बस इतना ही ना? इससे ज़्यादा तो कुछ नहीं कर सकता।"

    "लेकिन अगर तुम्हारी बहन उसके साथ भागकर शादी कर लेती है, तब क्या होगा? पागल औरत! यह भी तो सोचो।"

    "कुछ नहीं होगा, टेंशन मत लीजिये। मुझे मालूम है काम्या कभी भागकर शादी नहीं कर सकती, चाहे कुछ भी हो जाए।"

    "तो फिर एक बात और है, तुम्हारी मम्मी तो प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा चाहती है। बुढ़िया इस उम्र में आधे हिस्से को अपने सीने पर रखकर साथ ले जाएगी क्या?"

    "अरे! ऐसी बातें क्यों करते हो? मम्मी की बातों में बस हाँ हाँ करते रहो, जब मौका आएगा तब छक्का मारेंगे। मैं भी जानती हूँ कि अगर हमने मम्मी को आधी प्रॉपर्टी दे दी तो उस प्रॉपर्टी पर छोटी बहन नताशा का अधिकार भी हो जाएगा, जो मैं हरगिज़ नहीं चाहती कि कभी ऐसा हो।"

    "अरे! वाह मेरी बुलबुल! तुम तो बहुत ज़्यादा समझदार हो। मैं तो तुझे उल्लू की पट्ठी समझ रहा था।"

    "ओए! जुबान संभालकर! उल्लू होगा तू! तुझे तो मैंने ऐसे ही पसंद कर लिया था, वरना तुमसे भी बहुत समझदार लोग हैं। वह तो तेरे फाइट करने की वजह से तुझ पर मैं फ़िदा हो गई थी, वरना तुम एक गरीब आदमी, मेरी पाँव की जूती के बराबर भी नहीं हो।"

    खुशहाल सिंह ने तानिया की बात सुनी तो गुस्से से उसकी गर्दन पकड़ ली।

    "देख, तेरे घर में आया हुआ हूँ तो ज़्यादा उछल मत, वरना तेरी मुंडी मरोड़कर तुझे यहीं दफ़न कर जाऊँगा, समझी?"

    "मुझे दफ़न कर जाओगे तो करोड़ों की प्रॉपर्टी कैसे हासिल करोगे? मेरे मरने के बाद तो तुझे हमारे मोहल्ले के कुत्ते भी नहीं पूछेंगे, कोई हैसियत नहीं है तेरी मेरे बिना।"

    तानिया की बात सुनकर खुशहाल सिंह ने उसका गला छोड़ दिया।

    "यह सोचो कि रॉकी को काम्या के पीछे कैसे लगाना है। अगर रॉकी काम्या को इम्प्रेस करने में कामयाब हो जाए तो कुछ बात बने।"

    "अरे! तेरी बहन ने रॉकी को घास नहीं डाली, उस रवि को ही चरने दी घास, उसके लिए तो वह कुछ भी कर सकती है।"

    "मेरे दिमाग में एक आईडिया आया है, अगर तुम कहो तो बताऊँ।"

    "बताओ, क्या आईडिया है मैडम? लेकिन जो भी आईडिया है, अच्छा ही बताना, जिस पर अमल होते हुए हमारा काम भी बने।"

    "देखो, जहाँ तक मुझे मालूम है, चाचा जी इतनी जल्दी मम्मी को हाँ नहीं कहेंगे, भले ही मम्मी ने कुछ भी कहा हो उनको; लेकिन हाँ, एक बात हो सकती है।"

    तानिया ने रहस्यमयी तरीके से खुशहाल सिंह को देखा।

    "अब ऐसे आँखें फाड़े क्यों देख रही हो? बताओ, बात क्या है?"

    "जब मम्मी बात करने के बाद वापस आए तो तुम उन्हें धमकी देना, तुम्हारे भाई की शादी काम्या के साथ नहीं हुई तो तुम मुझे छोड़ दोगे। इस हालत में, जब कि मैं प्रेग्नेंट हूँ, तो मम्मी तुम्हारी धमकी से डर जाएगी।"

    खुशहाल सिंह तानिया की बात सुनने लगा; उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कुराहट तैरने लगी।

    "और फिर मैं भी मम्मी के आगे मगरमच्छ वाले २-४ आँसू बहाकर, ज़हर खाकर मर जाने की धमकी दे दूँगी। तब मम्मी को मजबूर होना पड़ेगा मेरी बात मानने के लिए।"

    "तुझे लगता है मैडम कि ऐसा करने से तुम्हारे चाचा जी मेरे भाई के साथ अपनी बेटी को ब्याहने के लिए मान जाएँगे?"

    "अरे! यार, तब हम काम्या को इमोशनल ब्लैकमेल करेंगे, क्या समझे? उसे घर बुलाकर मैं उसे अपना वादा दूँगी, अपने होने वाले बच्चे का वादा दूँगी, समझे?"

    "तुम बड़ी खतरनाक औरत हो यार! इस बात का मुझे अंदाजा तो पहले से था कि तुम बहुत चालू चीज हो; लेकिन आज मान गया। चल ठीक है, अभी तो मम्मी जी वहाँ गई नहीं, जब जाकर वापस आएंगी, उसके बाद सोचेंगे।"

    दलबीर कौर शाम के समय फिर से दलजीत सिंह के घर आ गई। वह दलजीत सिंह के पास बैठी हुई थी, बहुत ज़्यादा गंभीर बनकर; और दलजीत सिंह अपनी भाभी की तरफ देख रहा था।

    "कुछ कहेंगी भी, भाभी जी? क्या बात है? आप इतनी टेंशन में क्यों हो?"

    "देवर जी, तुमने मुझे अभी तक कुछ बताया नहीं। संडे को रॉकी आ रहा है, लेकिन मैं उन लोगों को क्या कहूँ? मैंने तो अपनी तरफ़ से उन्हें हाँ कह दिया है, कहीं तुम मेरी बेइज़्ज़ती मत करवा देना।"

    "भाभी जी, मैंने काम्या से पूछा था, वह अभी मान नहीं रही। लगता है उसके दिल में कुछ और चल रहा है।"

    "देवर जी, माना कि मैं अभागिन विधवा औरत हूँ, मुझे कौन पूछता है? लेकिन मैं अपनी बच्ची का बुरा थोड़ी करूँगी? मैं तो उसे खुश देखना चाहती हूँ।"

    इतना कहने के साथ ही दलबीर कौर बड़े-बड़े मगरमच्छ के आँसू बहाने लगी।

    "अरे! भाभी जी! इसमें इतना रोने या परेशान होने वाली क्या बात है? ठीक है, संडे के दिन अगर आप चाहती हैं कि रॉकी और उसका भाई आए तो आने दीजिये, इसके बाद सोचेंगे कि क्या करना है।"

    "करना क्या है? शादी तय कर देनी है और क्या करना है? और कहते हैं ना, झट मंगनी पट ब्याह, बस यही करना है।"

    "अरे! भाभी जी! अभी तो काम्या पढ़ाई कर रही है, वह अपनी पढ़ाई छोड़कर शादी के लिए कभी हाँ नहीं कहेगी।"

    "अरे! उससे मना थोड़ी किया है? जितना चाहे पढ़ाई कर सकती है, शादी के बाद भी तो लड़कियाँ पढ़ती हैं ना? मेरी तानिया को ही देख लो, अभी भी पढ़ रही है।"

    दलबीर कौर की बात सुनकर दिलजीत सिंह आगे कुछ नहीं बोला। इसके बाद दलबीर कौर वापस अपने घर चली गई। अपनी तरफ़ से उसने हथौड़ा मार दिया था, अब उस मारे गए हथौड़े का क्या असर होता है, यह देखना बाकी था। श्वेता और काम्या ने कमरे में छिपकर ही अपनी ताई जी की बातें सुनी थीं। श्वेता परेशान हो गई थी, तो वहीं काम्या भी परेशान थी; लेकिन उन दोनों के बीच इस विषय को लेकर कोई बात ही नहीं हुई। अगली सुबह काम्या परेशान सी कॉलेज में गई; उसका मन तो नहीं कर रहा था कॉलेज जाने का, लेकिन वह रवि से फ़ाइनल बात करने का सोचकर ही कॉलेज आई थी। रवि ने जब काम्या को परेशान देखा तो वह भी परेशान हो गया और जल्दी से उसके पास आ गया।

    "क्या हुआ? तुम इतनी परेशान सी क्यों दिख रही हो? किसी ने कुछ कहा क्या?"

    "इतना कुछ हो रहा है मेरे घर में, लेकिन तुझे क्या?"

    "अरे! कुछ बताओगी भी? हुआ क्या?"

    "कल शाम के समय ताई जी फिर से आए थे, वह वही बात फिर से दोहरा रहे थे; और पापा ने कल ही लड़के वालों को आने के लिए कह दिया है। अगर वह आ गए तो फिर मेरी शादी तय हो जाएगी।"

    "तो तुम क्या चाहती हो? वैसे तुम आज छुट्टी पर थी ना?"

    "घर मन नहीं लगा, इसलिए आ गई। मैंने तुझे कहा था ना कि तुम कल मेरे पापा को पहले मिलो आकर। वैसे तो मेरे पापा ने पूछा भी था; लेकिन क्या करूँ? जब तक तुम उनसे मिल नहीं लेते, तब तक मैं कैसे कह सकती हूँ कि मुझे किसी से प्यार है?"

    "ठीक है। अगर तुम इसी बात पर खुश हो कि मैं तुम्हारे घर आऊँ और तेरे पापा से जूते खाऊँ, तो मेरा वादा रहा, मैं कल ज़रूर आऊँगा। मैं सुबह 9:00 बजे ही आ जाऊँगा।"

    रवि ने यह बात कुछ मज़ाकिया अंदाज़ में कही थी।

    ,,,,,,क्रमशः,,,,,,,,

  • 4. दिल दीवाना माने ना - Chapter 4

    Words: 1548

    Estimated Reading Time: 10 min

    "क्या सच में कहीं तुम मेरा दिल रखने के लिए तो नहीं कह रहे? और हाँ, मेरे पापा इतने भी बुरे नहीं हैं कि घर आए हुए मेहमान को जूते मारें, समझे तुम?" काम्या ने रवि को उँगली दिखाई।

    "अरे! मैं मज़ाक कर रहा था ताकि तुम थोड़ा रिलेक्स हो जाओ। लेकिन क्या तुझे मुझ पर भरोसा नहीं है कि मैं आऊँगा?"

    "भरोसा तो मुझे खुद से भी ज़्यादा है तुम पर, लेकिन क्या करूँ, इस दिल को कैसे समझाऊँ?"

    रवि ने अपनी एक उँगली काम्या के दिल वाली जगह पर रखी।

    "ओए! तुम मेरे लिए धड़कते हो। देखो, कभी भूल कर भी धोखा मत दे देना, कहीं धड़कने से जवाब मत दे देना मेरी जान को?"

    रवि की बात सुनकर काम्या ने उसके हाथ पर अपना हाथ मारा।

    "चल हट, तुझे मस्ती सूझ रही है क्या? और मेरी जान सूखकर काँटा हुई पड़ी है?"

    "अरे! बिल्कुल मस्ती नहीं सूझ रही, सच कह रहा हूँ।"

    "देखते हैं कल तुम आते हो कि नहीं। लेकिन रवि, मैं तुझे सीरियसली कह देती हूँ। अगर तुम कल पापा से मिलने नहीं आए, तो मुझे भूल जाना हमेशा के लिए।"

    इतना कहने के साथ ही काम्या वहाँ से चली गई।

    "अरे! काम्या, सुनो तो! ओए! हवा-हवाई, सुनो तो! हद है यार, लड़कियाँ ऐसी क्यों होती हैं? अपनी ही बात मनमाने के लिए मुँह क्यों फुला लेती हैं?"

    रवि काम्या के पीछे जाने को हुआ, लेकिन इसी बीच किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर रोक लिया। रवि पीछे पलटा, तो उसका दोस्त विकी मुस्कुरा रहा था।

    "क्या यार, तुम्हें भी अभी आना था? इतना सीरियस मैटर हो रहा है, और तुम हो कि बीच में दाँत दिखाने आ गए?"

    "मैंने तुम दोनों की बातें सुन ली हैं। देख रवि, तुम काम्या की बात मान लो। कल चले जाओ उसके घर। अगर कहो तो मैं तुम्हारे साथ चला जाऊँ।"

    "देख विकी, मैं नहीं जानता कि मैं कल काम्या के पापा से क्या बात करूँगा। यार, मुझे इस बात को लेकर ही डर लग रहा है। आखिर मैं अकेला उनके घर कैसे जाऊँ?"

    "अपने घरवालों से किसी को बुला ले, इतनी सी तो बात है?"

    "अरे! यार, मैंने कहा था, लेकिन मिस हवा-हवाई ही नहीं मानी। कहती है पहले मैं खुद उसके घर आऊँ। अगर मैं उसके पापा को पसंद आया, तो ही मैं अपने घरवालों को लेकर आऊँ।"

    "बात भी सही है। अगर अंकल ने तुझे रिजेक्ट कर दिया, तो फिर किस मुँह से तुम अपने घरवालों को वापस लेकर जाओगे वहाँ से? एक तरह से अच्छा ही है कि तुम पहले काम्या के पापा से मिल लो।"

    "अबे! मेरा दोस्त है कि दुश्मन? जब भी बोलता है, उल्टा ही बोलता है। उल्टे दिमाग का पैदा हुआ था क्या?"

    "इस बात का तो मुझे नहीं मालूम कि मैं उल्टे दिमाग का पैदा हुआ कि सीधे, यह तो भगवान ही जाने।"

    "अरे! यार, आजकल सीटी स्कैन हो जाता है। किसी डॉक्टर की सहायता से सीटी स्कैन करवा कर देख लो, तुम्हारा दिमाग सच में उल्टा ही निकलेगा।" रवि ने कहा।

    "चल, क्लास की तरफ़ चलते हैं। और हाँ, कल तुम काम्या की बात मानते हुए उसके घर जाओगे। अगर नहीं गए, तो फिर मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, समझे? काम्या तुझे कुछ कहे ना कहे, लेकिन मैं तुम्हारी धुलाई अच्छे से करूँगा।"

    "ठीक है मेरे भाई, अब चलो क्लास में चलते हैं। इसके बाद मुझे सोचना भी है कि मैं कल काम्या के घर कैसे जाऊँ।" रवि ने कहा।

    और फिर दोनों ही क्लास की तरफ़ चले गए। हाफ टाइम पर काम्या रवि के पास फिर से आ गई। वे दोनों ग्राउंड में आकर बैठ गए, जैसे पहले बैठते थे, एक-दूसरे की पीठ के साथ पीठ लगाकर।

    "क्या सोचा? तुमने कल आ रहे हो ना मेरे पापा से मिलने?"

    "हाँ बाबा, हाँ आ रहा हूँ। अब तो खुश हो जाओ?"

    "खुश तो मैं तब होऊँगी जब मेरे पापा तुझे पसंद कर लेंगे।"

    "लेकिन अगर उन्होंने रिजेक्ट कर दिया, तो क्या करोगी? भाग कर शादी करने से तो रही, क्योंकि इतना तो हम कर ही नहीं सकते।"

    "एक काम हो सकता है। रॉकी के साथ मेरी शादी पक्की तो हो जाएगी, लेकिन मेरी शादी उसके साथ नहीं होगी। दुल्हन का जोड़ा तो मैं पहनूँगी, लेकिन तेरे नाम का, और फिर जहर खाकर उसी दुल्हन के जोड़े में इस दुनिया को अलविदा कह दूँगी।"

    "ओए! पागल, ऐसी बातें नहीं करते। ऐसी बात करके तो तुमने मेरा दिल ही चीर कर रख दिया।"

    रवि एकदम से घूमा और उसने काम्या को पीठ पीछे से ही अपनी बाँहों में भर लिया।

    "ओए! कुछ ज़्यादा ही चिपकने की कोशिश कर रहे हो आज तुम। पीछे हटो, छोड़ो मुझे।"

    "अरे! यार, क्या करूँ? तुमने बात ही ऐसी करी है। देखो, मेरा दिल मेरे बस में नहीं है, कितनी जोर से धड़क रहा है।"

    रवि ने काम्या को बैठी हुई को ही घुमा दिया और उसका हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख दिया।

    "इसे कंट्रोल करो, यह तो बात-बात पर धड़कने लगता है।"

    "क्या करूँ? तेरे लिए ही धड़कता है। प्यार जो तुमसे बहुत है ना।"

    "चलो उठो, वापस चलते हैं। आज मेरा मन नहीं है ज़्यादा बातें करने का।"

    "अरे! इतनी भी क्या परेशानी? कह तो दिया कि मैं आ रहा हूँ, तो फिर टेंशन क्यों लेती हो?"

    "देखो रवि, तुम बात को मज़ाक में मत लो। मेरे घर में मेरी छोटी बहन श्वेता के सिवाय और कोई नहीं जानता कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ। जब पापा तुम्हें देखेंगे, तो मुझे नहीं मालूम कि वे कैसे रिएक्ट करेंगे।"

    "कहने का मतलब कि अगर उन्हें गुस्सा आ गया, तो मेरी हड्डी-पसली तोड़ कर रख सकते हैं?"

    "कुछ भी हो सकता है। अकेले तेरी ही नहीं, तुझे बचाने के चक्कर में मैं अपनी भी हड्डी-पसली तुड़वा बैठूँगी। तुझे अपनी आँखों के सामने पिटता हुआ कैसे देख सकती हूँ?" काम्या ने बड़ी-बड़ी आँखें दिखाते हुए रवि से कहा।

    "हुस्न हाजिर है, मोहब्बत की सज़ा पाने को। कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को। तुम ही होश में आओ ओ मेरे पापा।" रवि अटपटे ढंग से गुनगुनाया, तो काम्या ने उसे मुक्का दिखाया, लेकिन मारा नहीं।

    और रवि मुस्कुराते हुए उठ खड़ा हुआ।

    "चलो चलते हैं क्लास में।" रवि ने काम्या का हाथ पकड़ कर उसे भी उठाया। काम्या अपना हाथ छुड़ाने को हुई, तो उसने उसका हाथ नहीं छोड़ा।

    "क्या हुआ? आज तो कुछ ज़्यादा ही प्यार दिखाने की कोशिश कर रहे हो। पहले तो कभी ऐसा नहीं किया तुमने।"

    "तुम्हारी बातें सुनकर मुझे डर लगता है, कहीं हमारा प्यार अधूरा ही ना रह जाए।"

    तो काम्या हल्का सा मुस्कुरा दी, लेकिन उसने रवि के हाथ से अपना हाथ नहीं छुड़ाया। रवि काम्या का हाथ अपने हाथ में पकड़े हुए उसके साथ क्लास में चला गया। कॉलेज की छुट्टी के बाद रवि काम्या को ढूँढता रहा, लेकिन काम्या पहले ही चली गई थी। इसके बाद रवि भी अपने घर चला गया और वह सोच रहा था कि वह क्या करे। उसके घर का बाहर वाला दरवाज़ा खुला हुआ था। इसी बीच रवि के दादाजी उससे मिलने आ गए। रवि के दादाजी ने चादर-कुर्ता पहना हुआ था, सफ़ेद रंग की पगड़ी पहन रखी थी। उनकी उज्जवल सफ़ेद दाढ़ी बहुत जच रही थी। उनका चेहरा नूरानी लग रहा था। रवि अपने दादा जी को देखकर हैरान हो गया।

    "द,,,,, दादा जी आप य,,,,, यहाँ पर?"

    "ओए! खोते दे पुत्र, हकला क्यों रहे हो? मैं ही हूँ, कोई जिन-भूत नहीं बन गया, जो तुम ऐसे हकला कर बात कर रहे हो?"

    रवि अपने दादाजी की बात सुनकर उठकर खड़ा हुआ। पहले उसने अपने दादाजी के पाँव छुए और फिर उनके गले लग गया।

    "क्या बात है? आज कुछ ज़्यादा ही दादा पर प्यार आ रहा है?" दादाजी ने रवि को गले से लगाते हुए कहा।

    "दादा जी, मैं बहुत परेशान हूँ। समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ, लेकिन देखिए ना, भगवान ने मेरे मोटिवेशन को भेज दिया।"

    "क्या हुआ? बता तो सही, किस बात को लेकर परेशान है मेरा पुत्र?"

    रवि के दादाजी ने अपने दोनों हाथ रवि के चेहरे पर रखकर उसके चेहरे को ऊपर किया।

    "दादाजी, मैंने आपको एक बार बताया था ना, मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ? तो आपने मज़ाक में कहा था कि मैं उसे भगाकर उसके साथ शादी कर लूँ?"

    "तो क्या हुआ? सच में तुमने उसे भगाकर उसके साथ शादी कर ली क्या? देख, अगर ऐसा किया है, तो अभी बता दे, मैं मामले को संभाल लूँगा।"

    "अरे! नहीं दादाजी, उसके पापा उसके लिए कल लड़का देखने वाले हैं, और वह चाहती है कि मैं उसके घर आऊँ, उसके पापा से बात करने।"

    "ओए! बल्ले! यह कौन सी बड़ी बात है? मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ ना। देख, फिर अपने दादा का कमाल। तेरा वह ससुर, सच में तेरा ससुर बन जाएगा। मेरी बात मानकर तो वह कल ही तुम्हारी शादी करवा देगा अपनी बेटी से।"

    "अरे! दादाजी, सीरियसली बात कर रहा हूँ मैं, मज़ाक नहीं कर रहा। मुझे उसके घर अकेले ही जाना है, यही उसकी शर्त है।"

    "हैं! ऐसा क्यों भाई?"

    "उसका कहना है कि वह पहले अपने पापा के सामने मेरे बारे में बात करना चाहती है। अगर मैं उसके पापा को पसंद आ गया, तो ठीक।"

    "अगर नहीं आया, तो तेरे पिछवाड़े में लात मारकर घर से बाहर निकाल देंगे, ऐसा कहा क्या? फिर तो तेरे साथ वह मज़ाक ही कर रही है, या तेरा मज़ाक बनाना चाहती होगी?"

    "दादाजी, आप फिर से मस्ती कर रहे हो?"

    ,,,,,,,,क्रमश,,,,,,,,

  • 5. दिल दीवाना माने ना - Chapter 5

    Words: 1559

    Estimated Reading Time: 10 min

    रवि के दादाजी ने कहा, "तू बता क्या करूँ? तुम बात ही ऐसी कर रहे हो! हमारे जमाने में तो अपनी घरवाली की शक्ल देखना तो शादी से पहले संभव ही नहीं होता था। हमारे जमाने में तो फोटो का रिवाज भी नहीं था। बस, लागी जो फैसला कर देते, वही होता और घरवाले भी उन्हीं की बातों पर सहमति जताते थे। लेकिन आज का जमाना कुछ और है?"

    "आज के जमाने के लड़का-लड़की एक-दूसरे को देख लेते हैं। घरवाले मान गए तो ठीक, वरना भाग कर शादी कर लेते हैं। लेकिन तेरे मामले में कुछ अलग सा लग रहा है मुझे। लड़की चाहती तो है कि तुमसे शादी हो, लेकिन उसके पापा की सहमति से, ना कि भागकर? इसका मतलब यह हुआ कि वह लड़की अपने पापा का सम्मान करती है। और वह कभी नहीं चाहेगी कि उसके पापा की सरेआम इज़्ज़त उछले और लोग उसके पापा पर उँगली उठाएँ।"


    "आपने सही कहा, दादाजी। और मैं भी उसकी बात का दिल से सम्मान करता हूँ। मैंने कभी भी उसे भाग कर शादी करने के लिए एक बार भी नहीं कहा।"

    "और कहना भी मत। तुम उसके पापा को मिलो, जाकर कल। ठीक है? वाहेगुरु सब अच्छा ही करेंगे। घबराने की ज़रूरत नहीं है। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे सिर पर है। और जब बड़े बुज़ुर्गों का आशीर्वाद अपने बच्चों के सिर पर हो ना, तो उनके बिगड़े हुए काम भी बन जाते हैं?" दादाजी ने मुस्कुराते हुए कहा।

    और फिर रवि को एक बार फिर से कसकर गले से लगा लिया। रवि के दादाजी रवि के लिए गाँव से खाने-पीने का बहुत सारा सामान लेकर आए थे। रवि के लिए गुड़, देसी घी से बने लड्डू और देसी घी का एक डब्बा, सरसों का बना हुआ साग लेकर भी आए थे। कुछ और भी मिठाइयाँ थीं। रवि ने वह सब कुछ अपनी रसोई में रख लिया और फिर अपने दादाजी के पास बैठ गया। वह दोनों ही दादा-पोता आपस में बातचीत करते रहे। रवि ने खाना बनाया, फिर दोनों ही दादा-पोते ने खाया। सुबह होने से पहले ही रवि के दादाजी चले गए थे और रवि तैयार होकर काम्या के घर जाने की तैयारी करने लगा। 7:00 बजे ही रवि तैयार होकर बैठ गया, लेकिन वह दुविधा में बैठा हुआ था।

    "क्या करूँ? समझ में ही नहीं आ रहा कैसे जाऊँ? अगर काम्या के पापा ने देखते ही मुझे भगा दिया तो बहुत बेइज़्ज़ती हो जाएगी। यार, मैं एक बार काम्या से बात कर लेता हूँ।"

    इतना सोचकर रवि ने अपना मोबाइल फ़ोन उठाया और काम्या को कॉल लगा दी। काम्या की जगह पर श्वेता ने कॉल उठाई। काम्या उस वक्त नहाने के लिए बाथरूम में गई हुई थी।

    "हेलो? कौन साहब हैं? फ़ोन पर तो नाम लिखा हुआ शो हो रहा है 'धड़कन'? तो धड़कन भाई साहब, दीदी फ्रेश होने गई हुई हैं। जो कुछ भी उनके लिए आपका संदेश है, मुझे बता सकते हो। १ मिनट! आप तो हमारे घर आने वाले थे? कहीं आप दरवाजे पर तो नहीं अटके पड़े? मैं आकर दरवाजा खोलती हूँ।"

    "अरे! रुको रुको, श्वेता। अभी मैं घर नहीं आया तुम्हारे। मैं तो काम्या से पूछना चाहता था कि तुम्हारे पापा का मूड कैसा है?"

    "पापा के मूड का तो मत ही पूछिए! हमेशा ही उबले हुए आलू की तरह रहता है। उनके मूड को और क्या होगा? बस, मैं तो आपका इंतज़ार कर रही थी क्योंकि मुझे आपसे बहुत सी बातें करनी हैं।"

    श्वेता की बात सुनकर रवि कन्फ्यूज़ हो गया।

    "हैं! उबले हुए आलू की तरह? इसका क्या मतलब हुआ?"

    रवि ने मन में सोचना शुरू कर दिया।

    "ओ धड़कन महाशय, कहाँ खो गए? मेरी बात का जवाब नहीं दिया आपने। कब आ रहे हो? मैंने आपसे ढेरों बातें करनी थीं?"

    "ओहो! अच्छा, तो तुम्हें मुझसे बहुत सी बातें करनी हैं? क्या बात है, छुटकी?"

    "ऐसी ही बात है, धड़कन भाई साहब। आप आइए तो सही! आपका स्वागत बड़े धूम-धड़ाके के साथ होगा।"

    इतना कहने के साथ ही श्वेता ने कॉल काट दी।

    "ध,,,, धूम-धड़ाके से क्या मतलब हुआ? कहीं मेरी बैंड बजाने का प्रोग्राम तो नहीं बना रखा है इन लोगों ने? बाप रे बाप!"

    रवि ने अपना सिर खुजाया और फिर वह काम्या के घर की तरफ़ चल दिया। रवि 8:30 बजे ही काम्या के घर के दरवाजे पर पहुँच गया। काम्या का घर बहुत बड़ा था, बड़ी सी कोठी बनी हुई थी। काम्या का यह घर सेक्टर 10 में पड़ता था। इस सेक्टर में सभी अमीर लोग रहते थे। ज्यादातर तो चंडीगढ़ शहर में रहने वाले लोग अपने ही काम से काम रखते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो दिल के दरिया होते हैं। ऐसे ही लोगों में एक काम्या के पापा, दलजीत सिंह भी हैं। रवि ने दरवाजे की डोर बेल बजाई तो एक गार्ड ने दरवाजा खोला।

    "जी, कहिए? किससे मिलना है आपको?" गार्ड ने कहा।

    "जी, मुझे दलजीत अंकल से मिलना है। मैं उनकी बेटी काम्या का फ्रेंड हूँ।"

    "एक मिनट रुकिए। इससे पहले मैंने आपको नहीं देखा। मैं पूछ कर आता हूँ।"

    इतना कहकर वह गार्ड अंदर चला गया। आँगन में ही दलजीत सिंह बैठे हुए, चाय पीते हुए, अखबार पढ़ रहे थे।

    "साहब, बाहर कोई रवि नाम का लड़का आया है। कह रहा है कि वह काम्या जी का फ्रेंड है।"

    "ठीक है, भेजो उसे अंदर।"

    दलजीत सिंह की बात सुनकर गार्ड बाहर चला गया।

    "काम्या का फ्रेंड? कौन हो सकता है? और वह भी इस वक्त इतनी सुबह-सुबह? काम्या ने तो मुझे कुछ भी नहीं बताया।"

    दलजीत सिंह गहरी सोच में डूब गए। इसी बीच श्वेता अपने पापा के पास आ गई।

    "क्या हुआ, पापा? किस सोच में डूब गए आप? चाय का कप आपके हाथ में टेढ़ा हुआ पड़ा है और अखबार आपके हाथ से उलटी हुई पड़ी है?"

    "अंह, हंह! अरे! कुछ नहीं। वह क्या है कि मैं हैरान हो रहा हूँ कि काम्या का कोई फ्रेंड इस वक्त काम्या से मिलने क्यों आया?"

    "तो रवि साहब आ गए! बहुत अच्छे! मैं उनका स्वागत करती हूँ, धूम-धड़ाके से!" श्वेता मुस्कुराई।

    "अरे! श्वेता! कौन है रवि? तुम उसका नाम सुनते ही खुश क्यों हो गई? क्या बात है?"

    "पापा, इट्स अ सीक्रेट! बस 5 मिनट रुकिए! उनको आपके सामने ही लाया जाएगा। और फिर आपके सामने एक नया सजा-सजाया शो पीस पेश किया जाएगा।" श्वेता ने कहा।

    और जल्दी से दरवाजे की तरफ़ गई। तब तक रवि दरवाजे से अंदर आ गया था। उसने श्वेता की तरफ़ देखा तो श्वेता मुस्कुराने लगी। उसने रवि को सिर से पाँव तक देखा।

    "पहली बार किसी चलते-फिरते खूबसूरत गुड्डे को देख रही हूँ।" श्वेता ने कहा।

    तो रवि एक बार के लिए हैरान हो गया।

    "आइए, आपका स्वागत है! अगर आप बता देते कि आप आए हैं तो मैं बैंड-बाजा बजाने का इंतज़ाम करवा देती।" श्वेता ने अपने दोनों हाथों से रवि को आगे बढ़ने का इशारा किया।

    तो रवि उसके साथ बिना कुछ बोले चुपचाप चल दिया।

    "वैसे आप बोलते नहीं हो या आपके मुँह में जुबान ही नहीं है? फ़ोन पर आप ही बोल रहे थे ना? कोई और तो नहीं था?" श्वेता ने रवि को छेड़ा।

    लेकिन रवि श्वेता की बात सुनकर कुछ नहीं बोला। वह नर्वस हो रहा था और श्वेता को साफ़-साफ़ पता चल रहा था कि रवि नर्वस हो रहा है।

    "अगर आप ऐसे ही नर्वस रहोगे ना तो पापा आपको एक ही झटके में रिजेक्ट करके भगा देंगे। समझे आप? शक्ल-सूरत से तो आप अच्छे खासे लगते हो, लेकिन यह आपका नर्वस होना आपके लिए खतरा बन सकता है।"

    श्वेता की बात सुनकर रवि ने एक बार उसकी तरफ़ देखा।

    "बहुत बोलती हो तुम! कहाँ से सीखा इतना बोलना?"

    "क्या करें, भाई साहब? कुछ अपने लोगों ने सिखाया, कुछ इस जमाने ने सिखाया है।"

    "लोगों से ही तो जमाना बनता है, छुटकी।"

    "बनता होगा, लेकिन हमारे लिए तो जमाना कुछ अलग ही बना हुआ है। वह सामने पापा बैठे हैं। आप जाकर उनसे मिलिए। मैं दीदी को बताकर आती हूँ तब तक।" श्वेता ने कहा।

    और तेज़ी से एक तरफ़ चली गई और रवि ने पहले एक बार श्वेता को जाते हुए देखा और फिर उस तरफ़ देखा जिस तरफ़ दलजीत सिंह बैठे हुए थे। दलजीत सिंह एकटक रवि को ही निहार रहा था। उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट तैरती हुई नज़र आ रही थी। रवि सधे हुए कदमों से चलते हुए दलजीत सिंह के पास पहुँच गया।

    "सति श्री अकाल सर, मेरा नाम रवि है। मैं काम्या का फ्रेंड हूँ।"

    "बैठो, रवि। कभी काम्या ने मेरे को तुम्हारे बारे में बताया नहीं। जब मुझे गार्ड ने आकर बताया कि तुम काम्या के फ्रेंड हो तो मुझे बहुत ताज्जुब हुआ। खैर, कोई बात नहीं। आ ही गए हो तो तुमसे ही पूछ लेता हूँ। तुम्हारे साथ उसकी फ़्रेंडशिप कब हुई? और मुझे उसने कभी तुम्हारे बारे में बताया क्यों नहीं?"

    रवि दलजीत सिंह की बात सुनकर नर्वस हो गया था, लेकिन बोला कुछ नहीं।

    "तो तुम काम्या के साथ ही पढ़ते हो कॉलेज में? तुम्हारे पापा क्या करते हैं?"

    "ज,,,,,, जी, वैसे तो हमारा मुख्य धंधा खेती-बाड़ी का है, लेकिन मेरे पापा एक्सपोर्ट का काम करते हैं।"

    "अच्छा, कहाँ के रहने वाले हो तुम?"

    "ज,,,,, जी, हम अमृतसर के रहने वाले हैं।"

    "अच्छा, तो तुम गुरु रामदास जी की नगरी के रहने वाले हो। तुम्हारा आगे क्या प्रोग्राम है, पढ़ाई के बाद?"

    "ज,,,,,, जी, अपने पापा के साथ ही बिज़नेस संभालने का ही इरादा है।"

    "अपने शहर से इतनी दूर आकर रहते हो? क्या तुम्हारा यहाँ खुद का घर है या किराए का?"

    क्रमशः

  • 6. दिल दीवाना माने ना - Chapter 6

    Words: 1554

    Estimated Reading Time: 10 min

    "जी, किराए पर लिया हुआ है फिलहाल तो, लेकिन खुद का घर खरीदने का सोच रहा हूँ। पापा ने अपने बिज़नेस को बढ़ाने का सोचा हुआ है; इस शहर में भी एक ब्रांच खोलने का उनका इरादा है। बस, कुछ दिनों तक इस शहर में एक साइट देखेंगे पहले, फिर डिसाइड करेंगे यहाँ पर ब्रांच खोलनी है या नहीं।"

    "बहुत बढ़िया! तब तो तुम यहीं का काम संभालोगे। वैसे, इतनी सुबह-सुबह तुम हमारे घर आए हो? तो तुम्हारा मकसद काम्या से मिलने का तो बिल्कुल नहीं रहा होगा। मुझे तो कुछ और बात लग रही है?"

    रवि दलजीत सिंह की बात सुनकर उनकी तरफ देखने लगा। इसी बीच काम्या भी वहाँ आ गई। श्वेता ने काम्या को बता दिया था। हालाँकि काम्या के चेहरे पर मुस्कुराहट थी, लेकिन दिल में हल्का सा डर भी था।

    "अरे! काम्या, तुम्हारा कोई रवि नाम का फ़्रेंड भी है? कभी तुमने बताया ही नहीं! और देखो तो यह इतनी सुबह-सुबह ही आ गया! क्या काम था तुमको इसके साथ?"

    "पापा, वह... यह रवि... वह वाला लड़का है?"

    "हैं! क्या कह रही हो तुम? वह भी हकलाते हुए? वह वाले लड़के से क्या मतलब?"

    इसी बीच श्वेता भी पीछे-पीछे आ गई।

    "पापा, समझा करो आप! इतने बुद्धू तो हो नहीं कि आपको स्पेशली समझाना पड़े?" श्वेता ने कहा।

    काम्या ने श्वेता के कंधे पर हाथ रखा। श्वेता की बात सुनकर दलजीत सिंह गंभीर हो गया।

    "कब से चल रहा है यह सब? जब भी मैंने पूछा, तुमने मुझे हमेशा टाल-मटोल ही किया या फिर बताने से पहले भाग गई। और आज अचानक से यह सामने आकर बैठ गया! नमूना कहीं का?"

    काम्या के पापा के मुँह से रवि ने अपने लिए 'नमूना' शब्द सुना, तो वह एक बार सिर से पाँव तक हिल गया।

    "ग... गए काम से! लगता है अब तो मेरी खूब पिटाई होगी! वह गार्ड भी इनका हट्टा-कट्टा है! अब हड्डी-पसली तो ज़रूर टूटेगी?"

    रवि मन ही मन घबराने लगा। वहीं पर काम्या भी अपने पापा की बात सुनकर हल्का सा घबरा गई। लेकिन श्वेता देख रही थी कि उसके पापा के चेहरे पर गुस्से के भाव बिल्कुल नहीं थे; बस दिखावा कर रहे थे जैसे वह गुस्से में हों।

    "पापा, गलतियाँ बच्चों से ही होती हैं। इन दोनों बच्चों से भी हुई है। माफ़ कर दीजिए इनको, आख़िर हैं तो दोनों बच्चे ही?" श्वेता ने कहा।

    "तो तुम इनकी माँ बनने की कोशिश कर रही हो क्या? लेकिन जो 10:00 बजे आ रहे हैं, उनको क्या जवाब दूँ? अगर पहले बताया होता तो कुछ बात भी बनती?" दलजीत सिंह ने कहा।

    "पापा, आप चाहे तो कुछ भी कर सकते हैं; किसी को जवाब देने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी?" श्वेता ने कहा।

    "कुछ नहीं कर सकता मैं! तुम लोगों ने अचानक से ही धमाका कर दिया! चलो, फिर भी देखता हूँ कुछ। अच्छा, तुम इसको चाय-पानी पिलाओ, मैं तुम्हारी ताई जी से मिलकर आता हूँ।"

    "पापा, अगर आप ताई जी के घर जाकर उनको जवाब देंगे, तो वह गुस्से में आ सकती हैं और आपको भला-बुरा कह सकती हैं?" काम्या ने कहा।

    "यह तुझे पहले सोचना चाहिए था ना! अब सोचने का क्या फायदा? चाहे वह भला कहे चाहे बुरा, लेकिन उनको बताना तो होगा ही?"

    लेकिन उनको उठकर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ी, क्योंकि दलबीर कौर खुद ही आ गई थी। उसने एक लड़के को वहाँ देखा, तो उसका माथा ठनका। लेकिन फिर भी वह मुस्कुराते हुए दलजीत सिंह के पास आ गई।

    "क्या बात है देवर जी? यह किसको घर बुला लिया आपने इतनी सुबह-सुबह? वह क्या है कि आने वाले मेहमान अब शाम के 4:00 बजे आएंगे। उनको एक अर्जेंट काम पड़ गया था। यही बताने के लिए आई हूँ।"

    "भाभी जी, अब मेहमानों के आने की ज़रूरत नहीं है। काम्या ने एक लड़का अपने लिए पहले ही पसंद किया हुआ है, बस बताने से डर रही थी। लेकिन आज हिम्मत करके उस लड़के को ले आई। मिलिए इससे, इसका नाम रवि है।"

    "सति श्री अकाल आंटी जी।" रवि ने हाथ जोड़ते हुए कहा।

    रवि को देखकर दलबीर कौर के चेहरे का रंग उड़ गया। वह कुछ और कहने आई थी, लेकिन उसके आगे कुछ और ही हो गया था।

    "देवर जी, आपने देख लिया क्या? अगर इस लड़के के बारे में आपको पहले मालूम था, तो आप पहले ही मना कर देते? अब क्या इज़्ज़त रह जाएगी मेरी मेरे दामाद के सामने?"

    "ताई जी, जीजू ऐसे नहीं हैं कि आपको कुछ कहें; आपसे तो वह बहुत डरते हैं। आपकी एक दहाड़ ही उसे मूँह बंद करने पर मज़बूर कर देती है!" श्वेता ने कहा।

    दलबीर कौर ने श्वेता को खा जाने वाली नज़रों से देखा।

    "श्वेता, ताई जी के साथ ऐसे मज़ाक वाली बात नहीं करते!" दलजीत सिंह ने श्वेता को घूरकर देखा।

    "देवर जी, आपने बहुत बुरा किया मेरे साथ! सुबक! मैं तो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रही। मेरा दामाद अपने भाई को लेकर आता ही होगा; कैसे उसे कहूँगी? मेरे देवर जी ने ही मुझे धोखा दिया! मेरे साथ धोखा किया! उनके दिल में चोर था! सुबक सुबक!" दलबीर कौर रोने का ड्रामा करते हुए अब और ही बातें बनाकर सुनाने लगी।

    "देखिए भाभी जी, मैं अपनी बेटी की खुशियाँ चाहता हूँ; वह जिसके साथ खुश रह सकती है, उसने पहले ही चुन लिया है। तो फिर मैं इसमें हस्तक्षेप कैसे कर सकता हूँ? आप ही बताइए?"

    "पुर्रर!" दलबीर कौर ने पहले अपने पल्लू से नाक साफ़ की।

    "लेकिन मेरी इज़्ज़त का क्या होगा? पहले तो तुमने हाँ कही थी ना? और जब आज मेरा दामाद अपने भाई के साथ तुम्हारे घर रिश्ते की बात करने आ रहा है, और तुमने अचानक से इस लड़के को मेरे सामने बैठा दिया लाकर! यह तो अच्छी बात नहीं हुई! सुबक!"

    "इसमें अब मैं क्या कर सकता हूँ भाभी जी? आप ही बताइए! एक तरफ़ मेरी बेटी की खुशियाँ हैं! कौन सा बाप अपनी बेटी की खुशियों को अपने हाथों से आग लगाना पसंद करेगा?"

    दलबीर कौर को दलजीत सिंह की बात का कोई जवाब नहीं सूझा, और वह मगरमच्छ वाले आँसू बहाते हुए चुपचाप वहाँ से उठकर चली गई।

    "माफ़ कीजिएगा अंकल, मेरी वजह से आप लोगों के पारिवारिक रिश्तों में खटास पैदा हो गई। लेकिन काम्या ने ही कहा था कि अगर मैं आज आपसे मिलने नहीं आया, तो मैं इसे भूल जाऊँ।"

    "इसने सही कहा था बेटा जी! अगर तुम आज नहीं आते, तो सच में तुम्हें इसे भूलना पड़ता। क्योंकि तब मैं अगर एक बार भाभी जी के दामाद के भाई के साथ रिश्ते की बात कर लेता, तो फिर मैं चाहकर भी इंकार नहीं कर सकता था।" दलजीत सिंह ने कहा।

    "लेकिन डोंट वरी, तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है। मैं अपनी भाभी जी को अच्छे से जानता हूँ। हाँ, एक-आध दिन गुस्सा तो रहेगी, लेकिन मान जाएगी, देख लेना! काम्या और तुम्हारी शादी में सबसे आगे मेरी भाभी जी होगी।" दलजीत सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा।

    "जी, मैं समझ सकता हूँ।" रवि ने कहा।

    "तुम मुझे अपनी बेटी के लिए एक परफेक्ट लड़के लगे हो। मुझे तुम बहुत पसंद आए हो। मुझे अपनी बेटी की पसंद पर बहुत नाज़ है। बरखुरदार, अपने मम्मी-पापा को किसी दिन लेकर आना हमारे घर। बड़ों के साथ ही तो रिश्ते की बात होगी ना?"

    "जी जी, ज़रूर। जब भी आप कहेंगे, मैं उनको यहाँ ले आऊँगा।"

    "तो ठीक है, एक हफ़्ते बाद, आज के ही दिन, मतलब कि संडे के दिन तुम अपने मम्मी-पापा को लेकर आना, ठीक है?"

    "जी अंकल, बिल्कुल ठीक है।"

    "अब तुम मुझे अंकल नहीं, पापा कहा करो। मैंने तुझे आज से ही अपना दामाद मान लिया है, क्या समझे?"

    "जी पापा जी, समझ गया।"

    दलजीत सिंह की यह बात सुनकर काम्या अपने पापा के गले लग गई।

    "थैंक्यू थैंक्यू सो मच पापा! मैं डर रही थी कि कहीं आप मेरे साथ-साथ रवि के भी दो-चार कान नीचे ना लगा दो।"

    "इरादा तो कुछ ऐसा ही था मेरा, लेकिन फिर मुझे तुम दोनों पर रहम आ गया। आख़िर तुम लोगों के सिवाय मेरा है ही कौन?" दलजीत सिंह ने काम्या को गले से लगाते हुए कहा।

    काम्या ने रवि को आँख से इशारा किया, तो रवि समझ गया, और वह भी पहले दलजीत सिंह के पाँव छूता है, फिर उनके गले लग गया।

    "जीते रहो मेरे बच्चो! सदा खुश रहो! वाहेगुरु तुम दोनों के सिर पर अपना मेहरबान हाथ हमेशा बनाए रखे।" दलजीत सिंह ने रवि को भी अपने गले से लगा लिया।

    "इन प्यार भरे लम्हों की एक यादगार सेल्फी तो बनती है पापा?" श्वेता ने चहकते हुए कहा।

    "अरे! जब देखो तुझे सेल्फी की पड़ी रहती है! चलो, जाकर कुछ चाय-पानी का इंतज़ाम करो।" दलजीत सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा।

    "आप क्या जानो पापा? नए ज़माने के रंग! यह सेल्फी बड़े काम की चीज़ होती है। हम अपने जीवन के कुछ यादगार पल इसमें कैप्चर करते हैं, संभालकर रखने के लिए।"

    काम्या और रवि मुस्कुरा रहे थे; वह श्वेता की तरफ़ देख रहे थे।

    "चलिए सब तैयार हो जाओ! मैं तो अपने रवि जीजू के पास खड़ी होकर सेल्फी लूँगी।" श्वेता ने कहा।

    और उसकी बात सुनकर रवि और काम्या दलजीत सिंह के गले लगे हुए ही दाएँ-बाएँ हो गए। और श्वेता रवि के साथ खड़ी हो गई।

    "अब आप सब थोड़ा मेरे फ़ोन की तरफ़ देखिए, मुस्कुराते हुए।" श्वेता ने कहा।

    और फिर श्वेता अपने फ़ोन से एक सेल्फी ले लेती है।

    "क्लिक।"

    ,,,,,,,,क्रमश,,,,,,,,

  • 7. दिल दीवाना माने ना - Chapter 7

    Words: 1578

    Estimated Reading Time: 10 min

    सेल्फी लेने के बाद भी श्वेता नहीं रुकी।

    "अब एक पिक्चर पापा, दीदी और जीजू की बनती है।"

    श्वेता की बात सुनकर काम्या और रवि अपनी-अपनी जगह पर सीधे हो गए। तब श्वेता ने तीन-चार पिक्चर एक साथ लीं।

    "अब दीदी और जीजू की बारी।"

    "हरगिज नहीं। अब तुम ज़रूरत से ज़्यादा आगे बढ़ रही हो, श्वेता।" काम्या ने जल्दी से कहा।

    श्वेता की बात सुनकर काम्या शर्म से लाल हो गई; उसके चेहरे पर घबराहट भी दिखाई देने लगी थी। लेकिन दलजीत सिंह मुस्कुरा रहे थे और काम्या पसीना-पसीना हो रही थी।

    "अरे! एक ही पिक्चर की तो बात है, इसमें मना करने वाली क्या बात हुई? भला आप ही बताओ ना, पापा, क्या मैंने कुछ गलत कहा है?"

    "अरे! भाई, मुझसे कुछ मत पूछो। मैं तो चला अंदर अपनी मेडिसिन खाने। यह तुम दोनों बहनें आपस में ही निपटाओ, मुझे बीच में मत खींचो।"

    दलजीत सिंह काम्या की घबराहट को महसूस कर रहे थे, वहीं रवि के चेहरे पर उड़ रही हवाइयाँ भी देख रहे थे। इसलिए वे वहाँ से बहाना बनाकर निकल गए।

    "यह कैमरे वाले स्मार्टफ़ोन क्या आ गए! आज की जनरेशन इसमें ही घुसकर रह गई है। हद है यार! कभी गधे की तरह दाँत निकालकर, कभी बंदर की तरह शक्ल बनाकर, तो कभी कुत्ते की तरह टाँग उठाकर मूतने वाले अंदाज़ में फ़ोटो खींचकर उसे सेल्फी का नाम दे देते हैं।" दलजीत सिंह अपने ही मन में बड़बड़ाते हुए जा रहे थे।

    दलजीत सिंह के जाने के बाद काम्या और रवि को श्वेता ने मनाना शुरू कर दिया।

    "देखिए दीदी, अब तो पापा भी चले गए। दो-चार पिक्चर बनवा लो ना?"

    "नहीं, श्वेता, बिल्कुल भी नहीं।" काम्या से पहले रवि ने कहा।

    "लो, कर लो बात! छज्ज़ ता बोले, छाननी क्यों बोले? चलो, एक ही पिक्चर, प्लीज़, मान जाओ। वरना मैं रूठ जाऊँगी, तो तुम दोनों की शादी नहीं होगी?" श्वेता ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा।

    रवि ने काम्या को देखा; दोनों ने ही सहमति से सिर हिलाया और एक-दूसरे के पास खड़े हो गए।

    "ऐसे नहीं, रोमांटिक प्रेमी जोड़े की तरह, एक-दूसरे के गले में बाहें डालकर खड़े होना है यार?"

    "नो, नो, नेवर।" दोनों ने एक साथ कहा।

    "ओके, ओके। लेकिन जीजू, आप दीदी के कंधे पर हाथ रखो?"

    रवि ने काम्या के दाएँ कंधे पर अपना बायाँ हाथ रखा।

    "बाएँ कंधे पर रखिए, दाएँ पर नहीं।"

    तो रवि घूमकर काम्या के बाईं तरफ़ हुआ और अपना दायाँ हाथ काम्या के बाएँ कंधे पर रखा। तो श्वेता ने अपना सिर पीटा और आगे आ गई। उसने रवि का दायाँ हाथ पकड़ा और घुमाते हुए काम्या के बाएँ कंधे पर रख दिया।

    "बिल्कुल ऐसे रखने को बोला था, बुद्धू कहीं के! अब हिलना मत, वरना पिक्चर खराब हो जाएँगी।"

    काम्या और रवि ने घूमकर एक बार रूम की तरफ़ देखा।

    "पापा नहीं आने वाले। उनको मालूम था कि आप उनके सामने पिक्चर नहीं खिंचवाओगे, इसलिए वे उठकर गए थे।"

    श्वेता की बात सुनकर दोनों फिर सीधे हो गए। श्वेता ने दो-तीन पिक्चर ले लीं।

    इसके बाद वहाँ पर दलजीत सिंह बाहर आ गए। फिर वहाँ रवि के लिए चाय-पानी का इंतज़ाम किया गया। रवि को दलजीत सिंह ने खाना खाए बिना जाने नहीं दिया था। रवि काम्या को देखकर मुस्कुराया, वहीं श्वेता भी बहुत खुश थी। रवि जाने की तैयारी कर रहा था; श्वेता उसके साथ बाहर के दरवाज़े तक आई।

    "वैसे जीजू, आप मुझे बहुत पसंद हो। आप अपने जैसा ही लड़का मेरे लिए भी ढूँढ़ना। काश मैं बड़ी होती, दीदी की जगह! तो कितना अच्छा होता। आपकी बातें करने का स्टाइल मुझे ज़्यादा अच्छा लगा।" श्वेता ने बेबाकी से कहा।

    "ठीक है, जैसा आप कहो, आपके लिए वैसा ही लड़का ढूँढ़ेंगे हम सब मिलकर।" रवि ने कहा।

    "मेरी बड़ी इच्छा है कि मेरी शादी में कुछ अलग टाइप का प्रोग्राम हो, जो आज तक किसी की शादी में ना हुआ हो। क्या आप मेरी यह इच्छा पूरी कर सकते हैं?"

    "ज़रूर करूँगा। बताओ, क्या इच्छा है आपकी? कैसे ढंग से शादी करना चाहती हो?"

    "मैं चाहती हूँ कि कुछ अलग अंदाज़ में मेरा दूल्हा मुझे ब्याहने आए। नाच-गाना, बैंड-बाजा तो होता ही है, लेकिन कुछ अलग स्टाइल का नाच-गाना हो, तो बढ़िया रहेगा।"

    "अब आप कौन से स्टाइल को आजमाना चाहती हो, यह भी बता दो, ताकि उसी हिसाब से हम लड़के वालों को कह सकें कि भाई, इस हिसाब से बारात लेकर आना, यह हमारी छुटकी श्वेता की इच्छा है।" रवि ने मुस्कुराते हुए कहा।

    "मैं चाहती हूँ, सबसे पहले छोटे बच्चे, पाँच से दस साल के, डांस करते हुए आएँ; उसके बाद नौजवान लड़के-लड़कियाँ; उसके बाद बड़ी उम्र के बुज़ुर्ग डांस करते हुए आएँ, तो मज़ा आ जाए।"

    "अरे! वाह! आपने तो सचमुच ही कुछ बहुत ज़्यादा अलग सोचा हुआ है! यह तो कुछ स्पेशल ही है।"

    "क्या आप मेरी यह इच्छा पूरी करेंगे? ना वादा कीजिए मुझसे?" श्वेता ने अपना नन्हा सा हाथ आगे कर दिया।

    "ज़रूर, आपकी इच्छा तो मैं ज़रूर पूरी करूँगा। आपने तो बहुत ही स्पेशल शादी की बात की है। तो आपकी शादी बिल्कुल स्पेशल ही होगी, ठीक वैसी ही जैसी आप चाहती हो।"

    "एक बात और है, जीजू, जो आज तक किसी लड़की ने नहीं किया, वह मैं करूँगी। लड़कियाँ अपने दूल्हे का हाथ पकड़कर उसे स्टेज के ऊपर लेकर आती हैं, लेकिन मैं चाहती हूँ कि मैं अपने दूल्हे के साथ आपको स्टेज पर लेकर जाऊँ। मैं आपको अपने जीजू और भाई दोनों के रूप में देखती हूँ।"

    "अरे! यह भी कोई पूछने की बात है? मैंने कहा ना, आपकी हर इच्छा पूरी होगी, जैसा आप चाहती हो, वैसा ही होगा। आप मेरी साली नहीं, छोटी बहन हो, समझी? और कुछ?" रवि ने प्यार से श्वेता के सिर पर हाथ रखा।

    "नहीं, बस इतना ही काफी है। लेकिन मिलते रहना आप मुझसे। मैं जानती हूँ कि दीदी आपको मुझसे मिलने नहीं देंगी, लेकिन आप फिर भी किसी भी तरह से, चोरी से या बहाने से, मुझसे मिलने आना।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

    तो रवि ने मुस्कुराते हुए प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और फिर वहाँ से चला गया। श्वेता वापस आ गई, तो उसे काम्या ने पकड़ लिया।

    "क्या खुसुर-फुसुर चल रही थी तुम्हारी रवि के साथ?"

    "आपको क्यों बताऊँ? आपको क्यों जलन हो रही है? है कोई हमारे बीच सीक्रेट बात, जो आपको नहीं बताई जा सकती?" श्वेता ने बड़े घमंड से कहा।

    "अच्छा जी! अभी गाँव बसा नहीं, लुटेरे पहले आ पड़े?"

    "कोई ना! गाँव भी बस जाएगा। गाँव बसाने की नींव तो रखी गई है ना! बस अगले हफ़्ते ही गाँव बसाने की तैयारी भी हो जाएगी।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

    और फिर वहाँ से चली गई। काम्या अपने पापा के पास जाकर बैठ गई। दूसरी तरफ़, दलबीर कौर के घर में दलबीर कौर अपनी बेटी तानिया के साथ बैठी हुई थी। उसने सब कुछ बता दिया था। खुशहाल सिंह अपने भाई के साथ वहाँ आ गया था, लेकिन जैसे ही उसे पूरी बात का पता चला, तो प्लानिंग के मुताबिक़ खुशहाल सिंह ने अब अपना रंग दिखाया।

    "यह आपने बहुत गलत किया, सासू माँ! अगर मेरे भाई का रिश्ता नहीं हुआ ना, तो आपकी बेटी को भी मैं अपने साथ नहीं लेकर जाऊँगा। छोड़कर जा रहा हूँ इसको, मैं! संभालिए अपनी बेटी को।"

    "द… दा… दामाद जी! यह आप क्या कह रहे हैं? तानिया आपके बच्चे की माँ बनने वाली है, आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?"

    "जो मेरी इज़्ज़त उछली, उसका क्या? घर बुलाकर आप लोगों ने मुझे जलील किया है। मैं यह बात कभी नहीं भूल सकता।"

    "दे… देखिए जी, इसमें मेरी क्या गलती है? जो कुछ किया, चाचा जी ने किया। आप मुझे क्यों छोड़ रहे हैं?"

    "तुम तो चुप ही रहो! बहुत दावे करती थी ना, तुम्हारे चाचा तुम्हारी बात नहीं टालते, तुम्हारी मम्मी की बात नहीं टालते? क्या हुआ? टका सा जवाब दे दिया तुम लोगों को, आईना दिखा दिया उसने कि तुम लोगों की औक़ात उसके सामने क्या है! चलो, रॉकी, हम चलते हैं।"

    "लेकिन भाई, भाभी का क्या दोष है? भाभी को छोड़कर क्यों जा रहे हो आप?" रॉकी ने कहा।

    "अबे! चुप! भाभी के चम्मचे! यह मेरा मैटर है, समझे? और हाँ, सासू माँ, अगर आप अपने देवर को मनाने में कामयाब हो गईं, तो मुझे बता देना, मैं तुम्हारी बेटी को लेने आ जाऊँगा। वरना भूल जाओ कि कभी तुम्हारी बेटी का घर फिर बसेगा।"

    "सुबक! य… यह अ… आप क्या कर रहे हो? मैं आपके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ, और आप मुझे ऐसे ही छोड़ देना चाहते हो?"

    "म… मैं फ… फिर से कुछ करती हूँ, अपने देवर को समझाने की कोशिश करती हूँ। द… देखिए दा… दामाद जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ, मेरी बेटी के साथ ऐसा मत करो, उसकी ज़िंदगी तबाह हो जाएगी।" दलबीर कौर गिड़गिड़ाने लगी।

    "जो मेरी बेइज़्ज़ती हुई है, उसका क्या? कोई जवाब है उसका आपके पास? क्या कहूँगा मैं अपने घर जाकर कि रॉकी का रिश्ता नहीं हुआ?"

    "म… मैं मा… मानती हूँ, मेरी गलती है। मैं कुछ करती हूँ, देखिए, कुछ भी हो जाए, मैं उसे समझाने की कोशिश करती हूँ, शायद वह मेरी बात मान ही ले।"

    "नहीं, अब कुछ नहीं होगा। हाँ, इतना ज़रूर है, अगर वह आपकी बात मान ले, तो मुझे बता देना। मैं आपकी बेटी को लेने आ जाऊँगा, लेकिन तब जब मैं अपने भाई की बारात लेकर आपके उस देवर के घर में आऊँगा। अपने भाई की शादी करवाने के बाद ही मैं आपकी बेटी को अपने साथ लेकर जाऊँगा।"

    इतना कहने के साथ खुशहाल सिंह ने तानिया की तरफ़ देखा। तानिया नकली आँसू बहा रही थी।

    ,,,,,,,,क्रमशः,,,,,,,,

  • 8. दिल दीवाना माने ना - Chapter 8

    Words: 1567

    Estimated Reading Time: 10 min

    तानिया ने खुशहाल सिंह को आँख मारी। फिर खुशहाल सिंह ने कहा,

    "यह मत सोचना कि जो आपने मुझे दहेज में गाड़ी दी है, मैं उसे लेकर जाऊँगा। बिल्कुल नहीं। रखो अपनी गाड़ी अपने पास। मैं ऑटो पकड़ कर चला जाऊँगा।"

    इतना कहकर खुशहाल सिंह घर से बाहर चल दिया। रॉकी भी उठकर अपने भाई के पीछे चल दिया।

    "अ,,,,,,, अरे! ब,,,,,, बेटा! रुको तो, दामाद जी! मेरी बात सुनिए! ऐसा मत कीजिए! दामाद जी! मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ! मेरी जिंदगी भर की कमाई है मेरी बेटियाँ! आप मेरी तानिया के साथ ऐसा नहीं कर सकते! दामाद जी! दामाद जी?"

    लेकिन खुशहाल सिंह रुका नहीं। दलबीर कौर भागते हुए उसके पीछे गई, लेकिन खुशहाल सिंह ने बाहर का दरवाजा खोला और तेजी से चला गया। बाहर जाते हुए खुशहाल सिंह को देखकर दलबीर कौर निराश हो गई। उसने बाहर निकल रहे रॉकी को रोक लिया।

    "र,,,,,, रॉकी! ब,,,,, बेटा! अपने भाई को समझाओ ना! मेरी बेटी की क्या गलती है? आज तक मैंने आप लोगों की सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ी? फिर मेरे साथ ऐसा बुरा व्यवहार क्यों किया जा रहा है? सुबक,,,"

    "आंटी जी, मैं अपने भाई को समझाने की कोशिश करूँगा। आप चिंता मत कीजिए। अभी वह गुस्से में हैं। जब उनका गुस्सा शांत होगा, मैं बात करता हूँ।" रॉकी ने कहा।

    "भगवान तेरा भला करे बेटा! मैं जरूर कोशिश करूँगी काम्या और उसके पापा को मनाने की। तुम्हारी शादी तो काम्या से होकर रहेगी, मेरा वादा रहा तुमसे।"

    "आंटी जी, वह काम्या है, उसको मनाना इतना आसान नहीं है। जाने दीजिए, अच्छा मैं चलता हूँ।" रॉकी ने कहा।

    और फिर वह भी बाहर चला गया। दलबीर कौर की आँखों से आँसू बह रहे थे।

    "मेरी बेटी की जिंदगी बर्बाद करने वाली उस लड़की को तो मैं छोड़ूँगी नहीं! उसकी जिंदगी बर्बाद कर दूँगी! अगर मेरी बेटी का घर नहीं बसा, तो उसका भी नहीं बसेगा!"

    दलबीर कौर गुस्से से दाँत पीसती हुई, घर का दरवाजा बंद करके वापस आ गई। खुशहाल सिंह कुछ दूर जाकर रुक गया था। रॉकी उसके पास चला गया।

    "क्या भाई? यह क्या खेल खेल रहे हैं आप? मैंने देखा था भाभी ने आपको आँख मार कर कोई इशारा किया था।"

    "छोटे, तुम नहीं समझोगे। हम दोनों ही चाहते हैं कि तुम्हारी शादी काम्या से हो, कैसे भी करके।"

    "लेकिन अगर वह लोग नहीं मान रहे तो जोर-जबर्दस्ती क्यों करना भाई?"

    "उन लोगों को मानना ही पड़ेगा, रॉकी! तुम मर्द हो, तो अपनी मर्दानगी दिखाओ!"

    "क,,,,,, क्या मतलब भाई? आप कहना क्या चाहते हो?"

    "हर बात तुझे समझानी पड़ती है, रॉकी! कब अक्ल आएगी तुझे? अगर सीधी उँगली से घी नहीं निकल रहा, तो उँगली टेढ़ी कर लो, क्या समझें?"

    "आपके कहने का मतलब कि मैं काम्या को उसके कॉलेज से ही उठा लूँ?"

    "हाँ, बिल्कुल सही समझे तुम! उसे उसके कॉलेज से उठा लो और फिर जबरदस्ती से उसके साथ शादी कर लो। बाकी का मैं संभाल लूँगा।"

    "देख लीजिए भाई, बहुत भारी पड़ सकता है ऐसा करना।"

    "तुम डरते हो क्या? तुम्हारे साथ तुम्हारे 8-10 दोस्त भी होते हैं, और उस रवि के साथ कौन है? सिर्फ एक-दो दोस्त?"

    "ठीक है भाई, फिर मैं अपने दोस्तों के साथ मिलकर कुछ सोचता हूँ।"

    "तुम इस बात को याद करते हुए काम्या को उठाकर उससे जबरदस्ती करना कि उसी की वजह से तुम्हें उस कॉलेज से निकाला गया था, समझे?"

    "मैं भूला नहीं हूँ भाई! पहले ही साल मुझे उस कॉलेज से जलील होकर निकलना पड़ा था! उस काम्या और रवि की वजह से! मैं भी उन दोनों से बदला लेने का कब से सोच रहा था!"

    "तो फिर तुम्हारे पास यही एक मौका है! तुम एक और काम करना: एक हफ्ते तक काम्या के साथ खेलना, काम्या की जिंदगी पूरी तरह बर्बाद करके फिर छोड़ना! फिर वह लोग खुद ही काम्या की शादी तुम्हारे साथ करने को तैयार हो जाएँगे।"

    "ठीक है भाई, मैं कल ही मौका देखकर काम्या को उठा ले जाऊँगा और फिर उसको किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ूँगा।"

    "मुझे तुमसे यही उम्मीद थी! अब लग रहा है कि तुम मेरे भाई हो।"

    तभी वहाँ पर एक ऑटो आया। खुशहाल सिंह ने उस ऑटो को हाथ देकर रोका। दोनों भाई उसमें बैठकर अपने घर की तरफ चले गए। रॉकी काम्या को उसके कॉलेज के रास्ते से ही उठाने की योजना बनाने लगा। वह आगे जाकर बीच रास्ते में ही उतर गया था और वह अपने दोस्तों के पास चला गया। उसके दोस्त उसके जैसे ही गुंडे टाइप के थे। वह सब एक ही जगह बैठे हुए थे। उनमें से एक लड़के ने रॉकी को देखा तो खड़ा हो गया।

    "अरे! वाह! यारों का यार आ गया! क्या बात है रॉकी? तुम्हारी तो आज लॉटरी लग गई! कहो, कब है तुम्हारी शादी काम्या के साथ?"

    "जब तक वह रवि जिंदा है, काम्या मेरी नहीं हो सकती! वह साला बीच में हर बार टाँग घुसा देता है!" रॉकी ने दाँत पीसे।

    "तो फिर उसकी टाँग को हमेशा के लिए काट देते हैं?"

    "उसकी टाँग को नहीं काटना! अब हम दूसरी प्लानिंग करेंगे, बिरजू।"

    "कहो रॉकी, क्या दूसरी प्लानिंग है तुम्हारी?"

    "काम्या को कल हम कॉलेज से उठा लेंगे, चाहे सुबह के टाइम उठा ले, कॉलेज जाते समय या फिर कॉलेज से आते हुए।"

    "अरे! वाह! यह हुई ना बात! वैसे एक बात कहूँ, बुरा मत मानना! अगर तुम उसे उठा ही रहे हो, तो फिर उसके साथ अच्छे से मजे करो! और फिर उसे छोड़ना, जब तुम्हारा मन भर जाए, तब! वह लोग खुद ही तुमसे उसकी शादी करने के लिए मान जाएँगे।"

    "मेरे भाई ने भी ऐसा ही कहा है, बिरजू! अब तो बस यही करना है, उस साली को जिंदगी भर खून के आँसू रोने पर मजबूर कर देना है!"

    इसके बाद रॉकी अपने दोस्तों के पास बैठ गया। वह लोग दिन में ही दारू पी रहे थे। रॉकी जब ज्यादा ही टुन हो गया, तो उसके दोस्त उसे उसके घर छोड़ आए। और फिर अगली सुबह रॉकी अपने दोस्तों के साथ मिलकर काम्या को उठाने निकल गया। उन्होंने तो पहले ही तैयारी कर रखी थी। काम्या अपने घर से कॉलेज के लिए निकली, तो उसके पीछे रॉकी का एक दोस्त अपनी गाड़ी लेकर लग गया। वह बराबर अपने साथियों के संपर्क में बना हुआ था। काम्या एक ऐसे रास्ते से होकर जाती थी जहाँ पर इतनी ट्रैफिक नहीं होती थी, बस इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही वहाँ से जाती थीं। रॉकी अपने दोस्तों के साथ उसी जगह पर खड़ा था। काम्या की गाड़ी देखते ही रॉकी के इशारे पर उसके एक दोस्त ने अपनी गाड़ी को काम्या की गाड़ी के आगे कर दिया। रॉकी और उसके दोस्तों ने काम्या की गाड़ी को घेर लिया। काम्या ने गाड़ी रोकी और रॉकी और उसके दोस्तों की तरफ देखा।

    "यह क्या बदतमीजी है? तुम लोगों ने मेरा रास्ता काहे रोका?" काम्या ने गुस्से से कहा।

    "वह क्या है जानेमन? मेरा दिल तुझ पर आ गया है, तो सोचा आज तुझे उठा ही लेता हूँ! चलो, चलकर मजे करें!"

    "तेरी इतनी हिम्मत, कमीने? तुम मुझे उठाने की बात करता है? तुझे तो मैं जान से मार दूँगी!"

    काम्या ने गुस्से से गाड़ी का दरवाजा खोला और रॉकी को थप्पड़ मारने को हुई।

    "ना ना मेरी जान! ऐसी भूल करने की कोशिश भी मत करना! अभी तो मैं तुम्हारी जवानी के मजे लूटने का ही सोच रहा हूँ! कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारी जवानी के मजे लूटने के बाद तुझे मैं जान से मार दूँ!"

    रॉकी ने बेशर्मी के साथ काम्या का हाथ पकड़ा।

    "छ,,,,,, छोड़ो मुझे! हरामजादे! छोड़ दे! वरना तुझे बहुत भारी पड़ेगा मुझे हाथ लगाना!"

    "अरे! मेरी जिंदगी झंड बन गई तुम्हारी वजह से! वह रवि क्या आ गया? तुम तो उसके ही गुणगान करती रहती हो! जब भी मैं तुम दोनों को एक साथ देखता हूँ, तो मेरा दिल खून के आँसू रोता है, हरामजादी!" रॉकी ने गुस्से से कहा।

    काम्या उसके ऊपर अपने बाएँ हाथ से थप्पड़ मारने को हुई, लेकिन रॉकी ने काम्या का बायाँ हाथ भी पकड़ लिया।

    "लगता है तुम ऐसे नहीं मानोगी! तुझे यहीं पर कुछ सबक सिखाना होगा!"

    इतना कहते हुए रॉकी ने काम्या के दोनों हाथ मरोड़ दिए और फिर उसके मुँह पर जोर से थप्पड़ मारा।

    "आहहहह,,,!"

    काम्या चीखते हुए एक तरफ गिर गई। उसके होंठ के किनारे से खून बहने लगा था।

    "देख क्या रहे हो बे! उठा लो इसको और गाड़ी में डाल दो!" रॉकी ने कहा।

    इसी बीच वहाँ पर एक गाड़ी आकर रुकी।

    "यह क्या हो रहा है? कौन हो तुम लोग? छोड़ो इस लड़की को! वरना मैं पुलिस को कॉल कर दूँगा!" एक 40 साल का आदमी गाड़ी से बाहर निकला।

    "चल बे! बुढ़ाऊ! निकल यहाँ से! वरना तुझे काट कर फेंक देंगे!" बिरजू ने अपना चाकू दिखाते हुए उस आदमी को डराया।

    तो वह फिर से गाड़ी में चुपचाप बैठकर वहाँ से निकल गया।

    "अब तुझे कौन बचाने आएगा मेरी डार्लिंग? आज तो मेरे मजे ही मजे हैं!"

    "क्या सोचने लगे तुम रॉकी भाई?"

    "अरे! भाई! तुम लोग मेरा इतना साथ देते हो, तो सोच रहा हूँ कि मेरे बाद तुम लोग भी इसके साथ मजे कर सकते हो!"

    "अरे! वाह! रॉकी भाई! यह तुमने हमारे ऊपर एहसान ही कर दिया!"

    "कमीने! रवि तुझे छोड़ेगा नहीं! जान से मार देगा!"

    "अरे! उसे जब तक पता चलेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी! और तब तक तुम अपना सब कुछ लुटा चुकी होगी! और फिर रवि तेरी तरफ तो वैसे भी नहीं देखेगा? हा हा हा हा हा!" रॉकी हँसा।

    ,,,,,,,क्रमश,,,,,,

  • 9. दिल दीवाना माने ना - Chapter 9

    Words: 1559

    Estimated Reading Time: 10 min

    काम्या सिर से पाँव तक काँप गई। वह इधर-उधर देखते हुए वहाँ से भागने की फिराक में थी। लेकिन तभी रॉकी के दो दोस्तों ने उसे पकड़ लिया।

    "आहह! छोड़ो मुझे, कमीनो! तुम लोगों को मैं जान से मार दूँगी! छोड़ो मुझे!" काम्या अपने पाँव चलाने लगी।

    लेकिन रॉकी के दोस्तों ने काम्या को नहीं छोड़ा। फिर, एक बड़ी गाड़ी में काम्या को उन लोगों ने पटक दिया। कुछ लोग उस गाड़ी में बैठे, तो बाकी दूसरी गाड़ी में। और वे वहाँ से निकल गए। लेकिन उसी रास्ते से एक लड़की अपनी स्कूटी से कॉलेज की तरफ जा रही थी। उसने यह सब कुछ देखा। अपना फोन निकालकर उसने अपने एक दोस्त को कॉल लगा दी। दूसरी तरफ से कॉल उठाई गई।

    "हेलो त्रिशा, क्या बात है? तुम कॉलेज तो आ रही हो, फिर कॉल क्यों की?"

    "अरे! विजय, मेरी बात सुनो। तुम्हारे पास रवि का नंबर है ना? उसे कॉल करो कि रॉकी और उसके दोस्त काम्या को उठाकर ले गए हैं।"

    "व्हाट? यह तुम क्या कह रही हो? मैं अभी कॉल करता हूँ रवि को, लेकिन तुम कहाँ हो?"

    "मैं उन लोगों के पीछे जाने की कोशिश कर रही हूँ।"

    "अरे! पागल है क्या? उन लोगों ने तुझे देखा तो नहीं? अगर देख लिया तो वह तुझे भी उठाकर ले जाएँगे, समझी? उनके पीछे मत जाना!"

    "अरे! यार, पता तो चले वे लोग जा कहाँ रहे हैं?" त्रिशा ने कहा।

    "अरे! यह क्या?"

    "क… क्या हुआ? उन्होंने तुम्हें देख लिया क्या?"

    "अरे! नहीं यार, तुम जल्दी से रवि को कॉल करके बताओ। वे लोग शहर से बाहर की तरफ जाने वाले रोड पर चले गए हैं।" त्रिशा ने कहा।

    वह अपनी स्कूटी चलाते हुए ही विजय से कॉल पर बात कर रही थी। विजय ने कॉल काटी और रवि को कॉल लगा दी।

    "क्या हुआ विजय? पहली बार तुमने मुझे कॉल की है, कोई खास वजह?"

    "कहाँ हो तुम रवि? मुझे त्रिशा की कॉल आई थी। रॉकी और उसके दोस्त काम्या को उठाकर ले गए हैं।"

    "व्हाट? यह तुम क्या कह रहे हो? कहाँ लेकर गए? कुछ पता चला?"

    "त्रिशा उनके पीछे लगी हुई है। तुम उससे बात कर सकते हो। मैं तुम्हें उसका नंबर मैसेज कर देता हूँ।"

    इतना कहकर विजय ने कॉल काटी और फिर त्रिशा का नंबर रवि के फोन पर भेज दिया। रवि ने वह नंबर देखा और फिर त्रिशा को कॉल लगा दी।

    दूसरी तरफ, दोनों गाड़ियाँ पूरी स्पीड से जा रही थीं। जल्द ही वे त्रिशा की पहुँच से दूर हो गईं। त्रिशा ने अपनी तरफ से स्कूटी तो बहुत तेज चलाई थी, लेकिन गाड़ियों और स्कूटी का क्या मुकाबला था?

    "ओह्ह! नो! यह तो बहुत बुरा हुआ। अब मैं क्या करूँ? मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा।"

    इसी बीच त्रिशा के फोन पर रवि की कॉल आ गई। जैसे ही उसे विजय ने बताया, वह बहुत घबरा गया था।

    "हेलो रवि, माफ़ करना यार। मैं स्कूटी पर थी और वे लोग गाड़ियों पर थे। वे लोग काम्या को लेकर मेरी आँखों से ओझल हो गए।"

    "लेकिन गए किस तरफ? तुम्हें कुछ तो आईडिया होगा?"

    "वे शहर से बाहर की तरफ गए हैं।"

    "क्या? शहर से बाहर की तरफ? मोहाली वाले रास्ते पर या पंचकूला वाले रास्ते पर?"

    "मुझे लगता है कि वे पंचकूला वाले रास्ते पर जाने वाले हैं।"

    "अच्छा, मैं समझ गया। वे लोग कहाँ जा सकते हैं। बहुत शुक्रिया त्रिशा, तुमने अपनी तरफ से बहुत अच्छी कोशिश की।"

    इतना कहकर रवि ने कॉल काटी और अपनी गाड़ी को फुल स्पीड से भगाते हुए एक तरफ चला गया। उसे इस बात का भी ध्यान रखना था कि वह किसी की नज़र में ना आए। इतना तो उसे मालूम था कि उसका चालान कटेगा ही कटेगा, शहर के बीच तेज गाड़ी चलाने की वजह से, और उसे सज़ा भी हो सकती है। लेकिन फिर भी उसने इस बात की परवाह नहीं की थी। कैमरे की रिकॉर्डिंग में उसकी गाड़ी की स्पीड कैप्चर हो रही थी। ट्रैफिक पुलिस को जल्द ही पता चल गया था। ट्रैफिक पुलिस की एक गाड़ी रवि की गाड़ी के पीछे लग गई, लेकिन रवि तब तक उस रोड पर चला गया था जो शहर से पंचकूला की तरफ जाती थी। दूसरी तरफ, रॉकी अपने दोस्तों के साथ पंचकूला वाले रास्ते पर ही जा रहा था। पंचकूला से पाँच किलोमीटर आगे जाकर एक गाँव पड़ता था। उस गाँव के खेतों में ही उसके एक दोस्त का घर बना हुआ था।

    वह घर इस वक्त बिल्कुल खाली था। वहाँ पर कोई नहीं रहता था क्योंकि रॉकी के उस दोस्त का इस दुनिया में कोई नहीं था। इसी बात का फायदा उठाकर रॉकी काम्या को उसी घर में ले जा रहा था। लेकिन उसे क्या मालूम था कि उसके हर दोस्त की खबर रवि को भी रहती है? जब त्रिशा ने उसे बताया कि वह पंचकूला वाले रास्ते पर गया है, तभी वह समझ गया था कि रॉकी कहाँ जा सकता है। रॉकी की गाड़ी पंचकूला में दाखिल हो गई, लेकिन रवि को शहर से बाहर निकलने में ही टाइम लग गया। वह भी फुल स्पीड से ही जा रहा था। हालाँकि रवि फुल स्पीड से ही चल रहा था, लेकिन चौक आने की वजह से उसे कहीं-कहीं रुकना पड़ा। यह तो उसकी किस्मत अच्छी थी कि उसे किसी भी चौक पर रोका नहीं गया था। लेकिन एक ट्रैफिक पुलिस की गाड़ी उसकी ओवरस्पीड की वजह से उसके पीछे लगी हुई थी। जैसे ही वह उस गाँव वाले रोड पर निकल गया, तो वे पुलिसवाले भी उसके पीछे लगे रहे। रवि को पता चल गया था कि उसके पीछे पुलिस की गाड़ी आ रही है, लेकिन वह बिना परवाह किए चलता रहा।

    "मुझे रुकना नहीं है। अगर मैं रुक गया तो पुलिसवाले मेरी बात नहीं सुनेंगे और मुझे पकड़ कर ले जाएँगे। अगर काम्या के साथ कोई अनहोनी हो गई तो मैं कभी खुद को माफ नहीं कर पाऊँगा।"

    रवि मन में सोचते हुए जा रहा था। काम्या को गाड़ी में बेहोश कर दिया गया था। जैसे ही उसे उठाकर गाड़ी में डाला गया था, तभी गाड़ी में पहले से ही बैठे हुए रॉकी के एक दोस्त ने काम्या को बेहोश कर दिया था। ताकि वह शोर ना मचा सके और उनके लिए कोई दिक्कत पैदा ना कर सकें। वे लोग उस जगह पर जल्दी पहुँच गए जहाँ पर उन्हें पहुँचना था। वह घर खेतों के बीच बना हुआ था। गाँव की तरफ जाती सड़क से एक किलोमीटर लंबा रास्ता उस घर तक जाता था। वह घर काफी बड़ा था; आठ फीट ऊँची चारदीवारी की हुई थी। दस गुणा दस फीट का बड़ा गेट लगा हुआ था। अंदर बड़ा सा आँगन था, जिसमें एक साइड बनाया गया गार्डन देखभाल ना होने की वजह से सूख गया था। छह रूम बने हुए थे, एक हाल और एक रसोई थी। हर रूम बाथरूम अटैच बना हुआ था। एक रूम में उन्होंने काम्या को लाकर बेड पर लिटा दिया।

    "लो रॉकी भाई, हम तो आ गए। अब क्या इरादा है इस बेहोश हुई चिड़िया के साथ? ही मजे करोगे क्या?"

    "नहीं, इसे होश में लाकर इसे तड़पाते हुए इसके साथ मजे करने हैं। समझे तुम लोग? इसे होश में लाने की तैयारी करो।"

    रॉकी का वह दोस्त, जिसका यह घर था, उसका नाम केशव था। वह जल्दी से पानी लेने के लिए चला गया। और फिर एक जग पानी का भरकर वहाँ ले आया और उसने वह पानी का जग रॉकी को थमा दिया।

    "यह लो भाई, पानी का जग। डाल दो इस चिड़िया के मुँह पर, ताकि यह फड़फड़ाते हुए उठ बैठे।"

    रॉकी ने वह जग पकड़ा और पूरा का पूरा काम्या के चेहरे पर उँडेल दिया। काम्या बेहोशी की हालत में कसमसाई, लेकिन अभी उसने आँखें नहीं खोली थीं।

    "लगता है तुम लोगों ने इसे ज़्यादा ही गहरी बेहोशी में पहुँचा दिया। अबे! जग से कुछ नहीं होगा। बाल्टी भर कर पानी की लाओ।" रॉकी ने कहा।

    केशव फिर से वापस गया और बड़ी स्टील की बाल्टी पानी की भरकर ले आया। रॉकी ने वह पानी की पूरी बाल्टी काम्या के ऊपर फेंक कर मारी। तो काम्या ने हड़बड़ाते हुए आँखें खोलीं, लेकिन उसका सिर अभी भी काफी भारी था। उसकी आँखों में अभी भी नींद का खुमार छाया हुआ था, बेहोशी की दवा की वजह से।

    "आहह! क… कहाँ हूँ मैं? कहाँ ले आए हो तुम मुझे?" काम्या ने आँखें खोलने की कोशिश करते हुए पूछा।

    "वहीं पर मेरी जान, यहाँ पर। मैं तुझे लेकर आना चाहता था यहाँ पर। तुम जितना चिल्लाना चाहो चिल्ला सकती हो। तुझे बचाने वाला कोई नहीं आने वाला। तुम बस मेरे रहमों-करम पर हो। लेकिन मैं तुझ पर आज रहम करने के मूड में बिल्कुल नहीं हूँ।"

    "हा हा हा हा हा हा हा!" रॉकी और उसके दोस्त हँसे।

    "दे… देखो, तु… तुम ऐसा नहीं कर सकते।"

    "मैं कुछ भी कर सकता हूँ, डार्लिंग। तुम्हारे पापा ने और तुमने मेरे साथ अपना रिश्ता ना करके जो मेरी बेइज्जती की है ना, उसका बदला तो मैं ऐसे ही लूँगा।"

    "चलो बे! तुम सब बाहर निकलो। अब मुझे हुस्न की मल्लिका के हुस्न के मजे लूटने हैं।" रॉकी ने कहा।

    "और फिर मेरे बाद तुम लोगों की बारी होगी।"

    रॉकी की बात सुनकर वे सब लोग बाहर निकल गए। वे सब काम्या को देखकर अपने-अपने मुँह से लार टपकाते हुए उस कमरे से बाहर निकले। काम्या ने इधर-उधर देखा। उसके हाथ-पैर दो बड़े भारी-भरकम तकियों से लग गए जो उसी बेड पर रखे हुए थे। रॉकी तब तक रूम का दरवाज़ा बंद कर चुका था और काम्या की तरफ़ बढ़ने लगा।

    ,,,,क्रमश,,,,

  • 10. दिल दीवाना माने ना - Chapter 10

    Words: 1566

    Estimated Reading Time: 10 min

    "द... देखो, मेरे पास आने की कोशिश मत करना, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा!"

    काम्या को कमजोरी महसूस हो रही थी, लेकिन फिर भी वह रॉकी से खुद को बचाने की जद्दोजहद करने को तैयार थी। दूसरी तरफ, रवि उनसे दस मिनट पीछे चल रहा था। रवि को पंचकूला शहर से निकलने में समय लगा; पुलिसवाले उसके पीछे लगे हुए थे।

    "अरे! यह लड़का क्या कर रहा है, समझ में नहीं आ रहा। इतनी तेजी से जा रहा है, जैसे इसके पिछवाड़े में आग लगी हो!"

    इंस्पेक्टर साहब मन में सोच रहे थे।

    "लेकिन इसको पकड़ना ही होगा। माना कि यह चंडीगढ़ में ही कहीं रहता होगा, लेकिन अगर आज यह बचकर निकल गया हमारे हाथ से, तो फिर इसे पकड़ने में हमें मुश्किल होगी!"

    इंस्पेक्टर साहब अपने मन में सोचता हुआ गाड़ी में बैठा था।

    पुलिस की गाड़ी भी पंचकूला से बाहर निकली। रवि की गाड़ी के पीछे-पीछे पुलिस की गाड़ी भी निकली। रवि सीधा ही उस तरफ हो गया, जिस तरफ केशव का घर बना हुआ था। उस घर की तरफ एक कच्चा रास्ता जाता था; पुलिस की गाड़ी भी रवि के पीछे ही उस रास्ते पर चल पड़ी।

    "तो यह है इस लड़के का घर। कोई ना बच्चे, तेरे घरवालों के सामने ही तेरी खटिया खड़ी करेंगे हम!" इंस्पेक्टर ने मन में सोचा।

    "सर, अब तो यह हमारे हाथों से बचकर नहीं जा सकता। अगर इसके घरवाले इसे छुड़ाने की कोशिश करेंगे ना, तो उनको भी उठा लेंगे हम!" एक हवलदार ने कहा।

    "सही कहा तुमने!" इंस्पेक्टर साहब ने कहा।

    रवि ने देखा कि सामने का दरवाजा बंद है, तो उसने अपनी गाड़ी रोकी। आठ फीट ऊंची दीवार रवि ने एक ही झटके में उछल कर पार कर ली। इंस्पेक्टर साहब और बाकी के पुलिस वाले यह देखकर हैरान हो गए।

    "हैं! यह... यह क्या? यह लड़का दरवाजा खोल कर अंदर जाने की जगह पर दीवार से कूदकर अंदर गया?"

    "अरे! सर, अगर दरवाजा खटखटाता, तो तब तक हम इसे पकड़ लेते। यह इसीलिए दीवार से कूदकर अंदर घुस गया है कि हम इसे पकड़ न पाएँ!" एक कांस्टेबल ने कहा।

    वहाँ अंदर आँगन में केशव, बिरजू और बाकी के सात लोग बाहर खड़े थे। अंदर काम्या रॉकी से खुद को बचाने की कोशिश में लगी हुई थी। उसने अपने हाथों में पकड़े हुए तकिए रॉकी पर मारने शुरू किए। एक तकिया रॉकी ने छीन लिया था, लेकिन दूसरा तकिया काम्या के हाथ में ही था। वह रॉकी को हाथ नहीं लगाने दे रही थी, ना खुद को और ना ही उस तकिए को। वह बहुत तेजी से अपने हाथ चला रही थी। तकिया उसके हाथों में बड़ी कुशलता से घूमता हुआ रॉकी के हाथों को डोज़ कर रहा था।

    "कब तक यह नाटक करती रहोगी, मेरी बुलबुल? लगता है मुझे कुछ और ही सोचना पड़ेगा?"

    रॉकी इतना कहने के साथ ही पीछे हुआ और एक ही झटके के साथ उसने बेड पर छलांग लगा दी। काम्या इसके लिए पहले से ही तैयार थी। वह घूमते हुए बेड से दूसरी साइड उतर गई और लड़खड़ाते हुए खड़ी हो गई। रॉकी की लगाई छलांग उसके किसी काम नहीं आई; वह खुद को संभाल नहीं पाया और उसका सिर बेड के पीछे दीवार पर जा लगा।

    "आहहह! साली बहुत तंग कर रही है ना, लेकिन याद रखना, तुम मुझे जितना तंग करोगी ना, उससे ज्यादा मैं तुझे तड़पाऊँगा। तुम यहाँ पर एक महीना मेरे कब्जे में रहोगी; मैं भी मजे करूँगा और मेरे दोस्त भी तेरे साथ मजे करेंगे!" रॉकी गुस्से से तिलमिलाया।

    और फिर काम्या की तरफ उठकर झपटा। काम्या पीछे की तरफ हुई; उसने तकिया घुमाकर रॉकी के ऊपर फेंका। इसी बीच काम्या की नज़र वहाँ पड़ी हुई स्टील की बाल्टी पर पड़ी। उसने उस बाल्टी को लपक कर उठा लिया। रॉकी दाँत पीसते हुए काम्या की ओर बढ़ा।

    "कब तक मेरी बुलबुल? कब तक बचोगी? आज तो तुझे बचाने के लिए कोई भी नहीं आएगा, तेरा वह आशिक भी नहीं। वैसे भी तो उस रवि की जूठन ही हो, फिर मेरे सामने इतने नखरे क्यों कर रही हो?"

    "छी! घटिया इंसान की घटिया सोच! मेरा रवि ऐसा नहीं है। उसने तो आज तक मुझे मेरी मर्ज़ी के बिना एक किस तक नहीं की, और तुम छी!"

    "हैं! क्या? सच में? अगर ऐसा है, तो उसका मेडिकल टेस्ट करवा लेना, कहीं वह नपुंसक तो नहीं है! लेकिन तब, जब हम तुझे जूठी करके छोड़ेंगे! हा हा हा हा!"

    काम्या ने रॉकी को गुस्से से देखा। रॉकी उसके हाथ में पकड़ी बाल्टी को देख रहा था। वह काम्या को अच्छे से जानता था कि वह इस बाल्टी के सहारे उस पर भारी पड़ सकती है। वह काम्या के हाथ से बाल्टी छीनने का सोचने लगा। दूसरी तरफ, बाहर रवि को देखकर केशव और बिरजू का रंग उड़ गया था। इसी बीच पुलिसवालों ने भी दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया।

    "भ... भाई! यह... यह साला किसको साथ ले आया? बाहर कौन आया होगा?" केशव ने कहा।

    रवि उन सब पर एक बार नज़र डालकर उस तरफ देखने लगा, जिस तरफ उस घर के अंदर जाने का दरवाजा बना हुआ था।

    "त... तुम क्या सोचते हो? अपने एक-दो दोस्तों को साथ ले आओगे तो बच जाओगे? कभी नहीं! आज तुम्हारे साथ-साथ तेरे दोस्तों की समाधि भी यहीं बनेगी!" बिरजू ने कहा।

    हालांकि वह अंदर से डरा हुआ था। एक बार रॉकी के साथ उसकी और केशव की रवि के हाथों धुलाई हो चुकी थी। इसलिए वह रवि को दूर से डराने की कोशिश कर रहा था।

    "मेरे दोस्त नहीं आए, तेरे ससुराल वाले मेरे पीछे आए हैं। जाकर मुलाकात तो करो एक बार, पैंट में ना मूत गए तो कहना!" रवि ने दाँत पीसते हुए कहा।

    और फिर तेजी से आगे बढ़ा। केशव अपने हाथ में मोटी रॉड पकड़े हुए रवि की तरफ बढ़ा, लेकिन रवि ने उसे घूमते हुए छक्का दिया और फिर तेजी से उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

    "अ... अरे! यह तो हमें डोज़ करते हुए दरवाजे की तरफ जा रहा है! पकड़ो इसे!" वह सब चीखे।

    "हैं! सर, अंदर तो हंगामा हो रहा है। मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रही है, और हम यहाँ दरवाजा पीट रहे हैं!" हवलदार ने कहा।

    "मुझे भी ऐसा ही लगता है। चलो, हम भी दीवार कूदकर अंदर जाते हैं!" इंस्पेक्टर साहब ने कहा।

    और पुलिसवाले भी दीवार कूदकर अंदर की तरफ जाने लगे। रवि ने तब तक दरवाजे को एक ही झटके से खोल दिया था। उसके पीछे से उसकी शर्ट को बिरजू ने पकड़कर पीछे खींचने की कोशिश की, लेकिन रवि ने खुद को झटका दिया; उसकी शर्ट फटकर बिरजू के हाथ में आ गई। बिरजू के बाकी साथी अंदर की तरफ घुसने को हुए, तो रवि ने दरवाजा उन लोगों के मुँह पर जोर से बंद कर दिया।

    "बड़ाक!"

    दो लोग एक साथ आगे बढ़े थे; उनके ऊपर दरवाजा बहुत जोर से लगा, और वे लड़खड़ाते हुए पीछे जा गिरे और अपने साथ अपने दो दोस्तों को भी ले गिरे।

    "आहहहह! हाय हाय!" वे चिल्लाए।

    "क्या हो रहा है यहाँ? क्या कर रहे हो तुम लोग? किस चीज़ को लेकर झगड़ा हो रहा है?" इंस्पेक्टर साहब ने जोर से कहा।

    बिरजू और उसके दोस्तों के पुलिस को देखते ही होश उड़ गए।

    "अ... अरे! भ... भागो! पुलिस आ गई!" केशव चिल्लाया।

    "भागने की भूल भी मत करना! यह तुम लोगों को भारी पड़ेगा। मुझे बताओ, मसला क्या है तुम लोगों का? वरना एक-एक की हड्डी-पसली तोड़ दी जाएगी!" इंस्पेक्टर साहब ने कहा।

    तो वे जो यहाँ थे, वहीं जमकर खड़े हो गए। उनके पाँव लड़खड़ाने लगे थे। एक तरफ काम्या रॉकी के साथ जद्दोजहद कर रही थी। रवि को पता चल गया कि काम्या किस रूम में है, क्योंकि एक तरफ से आवाजें आ रही थीं। रवि तेजी से उस दरवाजे के पास गया। उसने दरवाजे को खोलने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा नहीं खुला।

    "क... काम्या! तुम ठीक तो हो? साले रॉकी! तुझे तो मैं काट कर फेंक दूँगा! आज तुमने अपनी मौत को खुद बुलाया है!"

    "र... रवि! मुझे बचा लो! यह दरिंदा मुझे बर्बाद कर देगा!" काम्या अंदर से रोते हुए चिल्लाई।

    लेकिन रॉकी के तो पैर वहीं जम गए थे, रवि की आवाज सुनकर।

    "अरे! बाप रे! यह... यह साला यहाँ कैसे आ गया? इसका मतलब कि इसने मेरे दोस्तों को भगा दिया मार-मार कर? और मैं अकेला इसके हाथ आ गया, तो यह मुझे भी मार देगा!" रॉकी कांपने लगा।

    काम्या दरवाजे की तरफ लपक कर गई और उसने दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खोलते ही उसके सामने रवि खड़ा था, तो वह रवि के गले लग गई। काम्या सिर से पाँव तक पानी से भीगी हुई थी। यह देखकर रवि का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया।

    "तुम यहीं रुको काम्या, मैं अभी आया, दो मिनट में!"

    "न... नहीं! र... रवि! मुझे बहुत डर लग रहा है! इसके और भी दोस्त हैं! मुझे तुम यहाँ से ले जाओ!" काम्या ने कहा।

    "डरो नहीं! बाहर पुलिस भी आई हुई है। भले ही वह मेरे पीछे लगी हुई थी, ट्रैफिक नियम तोड़ने की वजह से, लेकिन इन लोगों को भी वह पकड़ कर ले जाएगी!"

    "त... तुमने ट्रैफिक नियम तोड़े? यह तुमने क्या किया रवि?"

    "तुम्हारे लिए तो मैं बहुत कुछ तोड़ सकता हूँ। यह तो फिर भी ट्रैफिक नियम थे, अभी तो रॉकी को तोड़ना बाकी है!"

    रवि ने काम्या को खुद से अलग किया और फिर रूम के अंदर चला गया।

    "द... देखो, भ... भूल कर भी मुझे हाथ लगाने की कोशिश मत करना, वरना मेरा भाई तुझे जान से मार देगा!"


    क्रमशः

  • 11. दिल दीवाना माने ना - Chapter 11

    Words: 1559

    Estimated Reading Time: 10 min

    "किस भाई की धमकी दे रहे हो? उस भाई की, जिसको मैंने तेरे साथ आगे लगाकर दौड़ाया था, भूल गया क्या?" रवि ने इतना कहकर ही रॉकी के मुँह पर जोरदार मुक्का मारा।

    "डिशूम।"

    इसके बाद रवि रुका नहीं।

    "साले! तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी काम्या का अपहरण करने की? तुझे तो मैं जान से मार दूँगा!"

    "डिशूम डिशूम धड़ाक धड़ाक।"

    रवि रॉकी पर टूट पड़ा था। रवि की मार से रॉकी जमीन पर गिर गया और रवि उसे लातों और मुक्कों से पीटने लगा। रॉकी वहाँ चिल्ला रहा था—

    "ब...बचाओ! ब...बचाओ! अरे! कोई इस पागल से मुझे बचाओ!"

    "डिशूम डिशूम धड़ाक धड़ाक।"

    रवि रॉकी को पीट रहा था। रॉकी में इतनी भी हिम्मत नहीं बची थी कि वह रवि पर पलटकर वार करे।

    इसी बीच, चार पुलिसवाले अंदर घुसे। उन्होंने काम्या को देखा, जिसके कपड़े पूरी तरह भीगे हुए थे। काम्या ने अपनी बाहों से अपने आप को ढकने की कोशिश की और सिकुड़कर एक तरफ खड़ी हो गई।

    "ओहो! तो यह मामला है! तो उस लड़के ने इस लड़की को बचाने के लिए ट्रैफिक नियमों को तोड़ा?" इंस्पेक्टर साहब ने काम्या को देखते हुए मन ही मन सोचा। जो पुलिसवाले अंदर घुसे थे, उन्होंने किसी तरह रवि को पकड़कर रॉकी से अलग किया। रॉकी वहाँ बुरी तरह लहूलुहान होकर कराहने लगा था।

    "छोड़िए मुझे! मैं इसे जान से मार दूँगा! छोड़ूँगा नहीं इसे!"

    "लड़के, होश में आओ! अगर तुम इसको जान से मार दोगे, तो तुम कौन सा बच जाओगे? तुम्हें भी सजा होगी। फिर सोचो, इस लड़की का क्या होगा, जिसके लिए तुम यहाँ तक आए हो?" इंस्पेक्टर साहब ने कहा।

    रवि शांत हो गया। इसके बाद पुलिसवालों ने रवि को छोड़ दिया और वह बाहर आ गया। उसने वहाँ से काम्या का दुपट्टा उठाकर उसे दे दिया।

    "तुमने ट्रैफिक नियम तोड़े हैं, पुलिस को देखकर भागे भी हो। जानते हो ना, इसकी सजा क्या है?" इंस्पेक्टर साहब ने कहा।

    "स...सर, इसने जो कुछ भी किया, मुझे बचाने के लिए किया। प्लीज, आप इसे गिरफ्तार मत करना! जुर्माना चाहे जितना भरना होगा, मैं भर दूँगा।"

    "यहाँ के हालात को देखते हुए, मैं इसे गिरफ्तार नहीं करूँगा, लेकिन इसे एक बार पुलिस स्टेशन आना होगा। चलो, इन सबको ले चलो पुलिस स्टेशन। इनकी तो वही सेवा पानी होगी।" इंस्पेक्टर साहब ने कहा।

    पुलिसवालों ने रॉकी को उसके दोस्तों के साथ गिरफ्तार कर लिया।

    "लड़के, अपना लाइसेंस और अपनी गाड़ी के कागजात मुझे दे दो। समझ गए? और फिर चालान भरने के बाद अपने कागजात ले जाना। अगर तुम ऑन द स्पॉट चालान भर सकते हो, तो देख लो।"

    "सर, कितना जुर्माना पड़ेगा मुझे? वैसे, मुझे आपसे माफी मांगनी चाहिए। अगर मैं एक मिनट के लिए गाड़ी रोककर आपको अपनी मजबूरी बता देता, तो शायद आपको मेरे पीछे इतनी दूर तक नहीं आना पड़ता।" रवि ने कहा।

    "अगर तुम अपनी गाड़ी रोककर हमें बताते भी, तो हम तुम्हारी बात नहीं मानते और तुम्हें अरेस्ट करके ले जाते। और फिर इस लड़की का क्या होता? मुझे तो यह सोचकर ही घबराहट होती है! कि अगर हम तुम्हें पकड़ लेते, तो कितनी बड़ी गलती कर देते। लेकिन वह कहते हैं ना, भगवान जो भी करता है, अच्छे के लिए करता है। हम भी तुम्हारे पीछे शायद भगवान की मर्जी से ही लगे हुए थे, वरना पंचकूला तक तो हम किसी के पीछे आते ही नहीं।" इंस्पेक्टर साहब मुस्कुराते हुए बोले।

    काम्या रवि के गले लगी हुई थी। रवि उसे किसी तरह संभालते हुए अपने साथ बाहर ले गया और उसे गाड़ी में बिठाया। उसने एक पानी की बोतल काम्या को दी। लेकिन काम्या का मन पानी पीने का बिल्कुल नहीं था। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। रवि ने ऑन द स्पॉट चालान भर दिया और फिर पुलिसवाले रॉकी और उसके दोस्तों को लेकर चले गए। रवि ने भी अपनी गाड़ी घुमाई और वापस चल दिया, काम्या को अपने साथ लेकर। पूरे रास्ते में काम्या घबराई हुई बैठी रही। उसने रवि से ठीक से बात भी नहीं की थी। रवि उसकी हालत को देखते हुए सब समझ रहा था कि उस पर क्या बीती होगी।

    "डोंट वरी, काम्या। सब सही हो गया ना? तो फिर क्यों डर रही हो तुम?" रवि ने कहा।

    लेकिन काम्या ने जैसे रवि की बात सुनी ही नहीं थी।

    "काम्या, प्लीज मेरी तरफ देखो। ऐसा मत करो। अगर तुम ही कमजोर पड़ गई, तो तुम्हारे घरवालों का क्या होगा?"

    "न...नहीं! घ...घर में किसी को मत बताना, प्लीज! वरना पापा टेंशन में आ जाएँगे। पहले ही वह बहुत बीमार रहते हैं। तुझे मेरी कसम?"

    "ओके ओके, नहीं बताऊँगा।" रवि ने कहा।

    "लेकिन तुम्हारे कपड़े तो गीले हुए पड़े हैं। इसका क्या? घर पहुँचने तक तो ये सूखने वाले नहीं। अगर किसी मॉल से मैं तुझे नए कपड़े भी दिला दूँ, तो भी घर में तुमसे पूछा जा सकता है कि तुमने कपड़े क्यों बदले। तब?"

    "त...तब मैं कह सकती हूँ ये मुझे तुमने गिफ्ट में दिए थे और तुम्हारी जिद की वजह से मुझे वहीं मॉल में ही पहनने पड़े। ये कपड़े तुम ले जाना और फिर मुझे बाद में वापस कर देना, सुखाने के बाद।"

    काम्या की बात सुनकर रवि मुस्कुरा दिया।

    "क्या तुम गीले कपड़ों के साथ ही किसी मॉल में जाओगी?"

    रवि की बात सुनकर काम्या सोच में डूब गई।

    "तुम मेरे नाप के कपड़े खुद ही ले आना। मैं तुम्हारे घर जाकर कपड़े बदल लूँगी।"

    "ठीक है। तुम मुझे अपना नाप बता दो। मैं कपड़े लेकर आता हूँ।" रवि ने पंचकूला के ही एक मॉल में गाड़ी रोकते हुए कहा।

    और फिर काम्या के बताए नाप के अनुसार उसके कपड़े लेकर जल्दी से आ गया रवि। काम्या को अपने घर ले आया था रवि। काम्या ने अपने कपड़े बदले और रूम से हॉल में आकर बैठ गई। काम्या अभी भी बुरी तरह डरी हुई लग रही थी। उसके हाथ अभी भी काँप रहे थे। तब तक रवि उसके लिए कॉफी बना लाया था। उसने दो कप कॉफी बना लिए थे।

    "ये लो, कॉफी पियो। आज मेरी जिंदगी का पहला दिन है जब मैंने कॉलेज से बंक मारा है, वह भी अपने प्यार को बचाने की खातिर।" रवि मुस्कुराते हुए बोला।

    "सॉरी ना! ये सब मेरी वजह से हुआ। तुम्हारा रिकॉर्ड कॉलेज में बहुत अच्छा है, लेकिन आज मेरी वजह से एक दिन के कारण खराब हो गया।"

    "अरे! कुछ नहीं खराब हुआ! एक दिन की तो कोई बात ही नहीं! तुमसे ज़्यादा इम्पॉर्टेन्ट मेरी लाइफ में और कुछ नहीं है, समझी? और हाँ, किसी से डरने की ज़रूरत नहीं। लेकिन एक मिनट...?"

    रवि ने कुछ सोचा और काम्या की तरफ देखा।

    "क...क्या हुआ? क्या सोच रहे हो?"

    "तुमने तो ब्लैक बेल्ट हासिल की है ना? तो फिर तुम रॉकी के हाथ कैसे पड़ गई?"

    यह बात कहकर अब बारी थी रवि के हैरान होने की। वह मुँह खोले काम्या की तरफ देख रहा था। काम्या ने रवि की बात सुनकर अपनी नज़रें झुका लीं और वह कॉफी के कप के ऊपर अपनी उंगली घुमाने लगी।

    "क...क्या हुआ? मैंने कुछ पूछा है तुमसे?"

    "व...वह...मैं डर ही इतना गई थी कि मुझे कुछ समझ ही नहीं आया।"

    "व्हाट? अरे! उस रॉकी के बच्चे को तो तुम आराम से धूल चटा ही सकती थी अकेली! जब वह तुझे रूम में ले जाकर तुमसे बदतमीजी करने की कोशिश कर रहा था?"

    "म...मैंने कहा ना, मैं डर ही इतना गई थी कि मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया। मैं तो ये भी भूल गई कि मैं उसे और उसके दोस्तों को धूल चटा सकती हूँ।"

    "लेकिन कैसे? तुम इतनी बड़ी बेवकूफ कैसे बन गई? उन लोगों को धूल चटाने की जगह पर खुद ब खुद ही उनके हत्थे चढ़ गई?" रवि अपना सिर खुजाने लगा।

    "मैंने अभी तक किसी को ऐसे खुले में पीटा नहीं है, ना कभी ज़रूरत ही पड़ी थी। तो ये बात दिमाग से ही निकल गई कि मैंने ब्लैक बेल्ट हासिल की हुई है। जब रॉकी और उसके दोस्तों ने मुझे पकड़ा, तब भी मेरे दिमाग ने काम नहीं किया।" काम्या ने कहा।

    "ऐसा करना, घर जाकर उस बेल्ट को आग लगा देना! अरे! किस काम की तुम्हारी ये सिखलाई, जो समय पर तुम्हारे काम नहीं आई? रॉकी जैसे चार-पाँच लोगों को तो आसानी से धूल चटा सकती हो। अगर तुम वहाँ पर, जब वह तुझे उठाने आए थे, ऐसे कुछ तेवर दिखा देती, तो वह बाकी के लोग तो वैसे ही भाग जाते! तुम्हारे वहाँ लड़ने तक मैं भी पहुँच जाता और हम दोनों मिलकर उन सबको मार-मार कर भगा देते। क्या त्रिशा भी वहीं आई थी?"

    "मैंने उसको नहीं देखा। लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि मुझे रॉकी उठा ले गया?"

    "अरे! उसी के रास्ते तो मुझे पता चला कि तुम्हें रॉकी ने किडनैप कर लिया है। वह तो तुम्हारे पीछे-पीछे आने की कोशिश कर रही थी। लेकिन 100 से ऊपर की स्पीड गाड़ी की थी और वह बेचारी स्कूटी पर?"

    "देखो रवि, जो हो गया वह तो मेरे दिमाग में एक छाप छोड़ गया, लेकिन प्लीज तुम मेरा मज़ाक मत बनाना पूरे कॉलेज में! ये कहकर कि एक ब्लैक बेल्ट लड़की बुद्धू बन गई, कुछ लड़कों को देखकर डर गई।" काम्या ने कहा।

    उसने नज़रें अभी भी नीची की हुई थीं। वैसे ही वह कॉफी के कप पर अपनी उंगली घुमाती जा रही थी।

    ,,,,,,क्रमशः,,,,,,

  • 12. दिल दीवाना माने ना - Chapter 12

    Words: 1577

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब चुपचाप कॉफ़ी पियो और ज़्यादा मत सोचना। और हाँ, आगे से इस बात का ख़्याल रखना कि तुम एक ब्लैक बेल्ट प्राप्त हो, समझी कमज़ोर सी लड़की नहीं हो। १०-१० लोगों को धूल चटा सकती हो तुम अकेली ही!

    इसके बाद काम्या और रवि चुपचाप कॉफ़ी पीने लगे। फिर काम्या को अपनी गाड़ी याद आई।

    "ओ शीट! अरे यार, मेरी गाड़ी तो वहीं रह गई थी! कहीं कोई चोर तो नहीं उठाकर ले गया?"

    "अगर ले भी गया होगा तो क्या कर सकते हैं? मैं तुझे तेरे घर छोड़ देता हूँ।" रवि ने कहा।

    और फिर वे दोनों उठ खड़े हुए। काम्या रवि के घर से रवि के साथ बाहर निकल आई। रवि ने अपने घर को ताला लगाया और काम्या के साथ नीचे आ गया। दोनों गाड़ी में बैठकर वहाँ से चल दिए, काम्या के घर की तरफ़। काम्या और रवि उस वक़्त घर पहुँचे जब कॉलेज से छुट्टी होने के बाद काम्या अपने घर पहुँचती थी। काम्या की छोटी बहन श्वेता पहले ही आ गई थी। उसके चेहरे पर परेशानी के भाव थे। जैसे ही उसने रवि और काम्या को देखा, तो वह भागकर उनके पास आ गई।

    "अरे! कहाँ रह गई थीं आप दीदी? पता है, आपकी गाड़ी पुलिस स्टेशन में पहुँच गई है। पुलिसवालों ने हमें बताया कि आपकी गाड़ी के लॉक खुले हुए थे और आप वहाँ नहीं थीं?"

    "वह क्या है श्वेता? काम्या की गाड़ी खराब हो गई थी, अचानक से बंद हो गई। इसी बीच में रवि वहाँ पहुँच गया था, तो इसे अपने साथ ले गया। मैकेनिक को तो गाड़ी ठीक करने के लिए हमने भेजा था, लेकिन लगता है पुलिसवाले मैकेनिक से पहले गाड़ी तक पहुँच गए।" रवि ने बात को संभालने की कोशिश की।

    "लेकिन पापा इतने परेशान हो गए थे कि उनका बीपी अभी तक बढ़ा हुआ है। तीन बार मेडिसिन दे चुकी हूँ।" श्वेता ने कहा।

    रवि और काम्या जल्दी से अंदर गए। दलजीत सिंह बेड पर लेटे हुए थे।

    "पापा, क्या हुआ आपको? आप इतनी टेंशन क्यों लेते हो जब आपको मैंने मना किया है टेंशन लेने से?" काम्या ने अंदर आते हुए कहा।

    तभी दलजीत सिंह की नज़र काम्या के पीछे आ रहे रवि पर पड़ी।

    "कहाँ गए थे तुम दोनों? और तुम अपनी गाड़ी ऐसे ही रास्ते में छोड़कर कैसे चली गई?"

    "वह क्या है पापा? गाड़ी में कुछ प्रॉब्लम आ गई थी। इसी बीच रवि वहाँ आ गया तो इसके साथ चली गई। गाड़ी लॉक करना भूल गई थी। मैकेनिक को रवि ने कहा था, लेकिन..."

    "लेकिन मैकेनिक के वहाँ पहुँचने से पहले पुलिस पहुँच गई और तेरी गाड़ी को ले गई?" दलजीत सिंह ने बात को बीच में काटा।

    दलजीत सिंह की बात सुनकर काम्या और रवि पहले एक-दूसरे को देखते हैं और फिर दलजीत सिंह की तरफ़ देखने लगे।

    "क्या छुपाने की कोशिश कर रहे हो तुम दोनों? और तुम काम्या, कॉलेज में और कपड़े पहनकर गई थीं, वापस आई तो और कपड़ों में?" दलजीत सिंह ने पूछा।

    "वह क्या है पापा? कि यह मुझे रवि ने गिफ़्ट दिया है।" काम्या ने अपने पापा की तरफ़ देखते हुए कहा।

    काम्या के पापा दलजीत सिंह ने काम्या की आँखों की तरफ़ देखा। उसने देखा कि काम्या सिर्फ़ उसकी आँखों में ही देख रही है। तो उसने संतोष के साथ गहरी साँस छोड़ी। काम्या को मालूम था कि अगर वह अपने पापा को देखकर अपनी नज़रें चुराने लगी, तो उसके पापा इसका गलत मतलब निकालेंगे। तो उसने भी सही मौके पर दिमाग से काम लिया।

    "अच्छा, लेकिन गिफ़्ट किस खुशी में दिया, रवि? ना तो इसका आज जन्मदिन है, ना ही कोई ख़ास दिन है आज?"

    रवि ने दलजीत सिंह की तरफ़ देखा और हल्का सा मुस्कुरा दिया।

    "वह क्या है अंकल? कि मेरी वजह से काम्या के कॉलेज में कपड़े जाते समय खराब हो गए थे।"

    "तुम मुझे अंकल कह रहे हो? पापा कहने में तुम्हारा जबड़ा दुखता है क्या?" दलजीत सिंह ने कहा।

    तो रवि हड़बड़ा गया।

    "व,,,, वह ऐसी बात नहीं है प,,,, पापा?"

    "अच्छा, अब ठीक है। लेकिन तुम्हारी वजह से इसके कपड़े कैसे खराब हुए?"

    अब दलजीत सिंह ने रवि को छोड़कर काम्या की तरफ़ देखा।

    "पापा, ग्राउंड में पानी का छिड़काव किया गया था। तो रवि ने एकदम से पीछे से आकर मुझे डरा दिया। तो मैं हड़बड़ाते हुए गिर गई थी, जिस वजह से वह कपड़े खराब हो गए थे।"

    "अच्छा, ठीक है। रवि को चाय पिलाए बिना मत भेजना। मैं थोड़ी देर आराम कर लूँ। और हाँ, गाड़ी की चिंता मत करना, मैं ठीक होते ही खुद ले आऊँगा।"

    "ठीक है पापा।" काम्या ने कहा।

    और फिर दलजीत सिंह बेड पर अपनी आँखें मूंदकर लेट गया। रवि, काम्या और श्वेता बाहर आ गए। श्वेता इस बीच कुछ भी नहीं बोली थी। वे तीनों ही बाहर आकर आँगन में बैठ गए।

    "क्या बात है? आप दोनों ने तो बड़ी सफ़ाई से पापा को झूठ बोल दिया?"

    "क,,,, क्या म,,,, मतलब छुटकी? तुम कहना क्या चाहती हो? हमने कौन सा झूठ बोला?" काम्या ने पूछा।

    "आपके कपड़े कॉलेज के ग्राउंड में गिरने से खराब तो हुए नहीं। बात तो कुछ और है, लेकिन आप बात कुछ और बना रहे थे?"

    "छुटकी, ऐसी कोई बात नहीं है। तुम भी ना, ख़ामख़्वाह पता नहीं क्या सोचने लग जाती हो? चलो मेरे साथ आओ, रवि के लिए चाय बनाते हैं।" काम्या ने उठते हुए कहा।

    "आप अकेली ही जाओ। मैं तो यहीं बैठूँगी जीजू के पास।" श्वेता ने साफ़ मना करते हुए कहा।

    तो काम्या अकेली ही चली गई। लेकिन जाने से पहले उसने रवि को श्वेता को कुछ भी बताने से मना करने वाला इशारा कर दिया था। रवि ने भी सिर्फ़ काम्या की तरफ़ देखा था, उसके इशारे का जवाब नहीं दिया था। क्योंकि वह जानता था कि अगर श्वेता ने देख लिया, तो वह सब कुछ समझ जाएगी। काम्या के जाते ही श्वेता का ध्यान रवि की तरफ़ हुआ।

    "अब आप बताने का कष्ट करेंगे जीजू? असल बात क्या है? मुझे ऐसा लगता है कि कुछ बड़ी गड़बड़ हुई है।"

    "अ,,,, आप कुछ ज़्यादा सोच रही हो श्वेता। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जो आप सोच रही हो।"

    "दीदी की गाड़ी के लॉक खुले हुए थे। यह तो आप लोगों ने पापा को कहा कि दीदी की गाड़ी खराब थी। जबकि पुलिसवालों की कॉल आई थी, तो उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं बोला था।" श्वेता ने कहा।

    "अगर उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं बोला था, तो फिर पापा ने पूछा क्यों नहीं?"

    "क्योंकि पुलिसवालों की कॉल पापा ने नहीं, मैंने सुनी थी। मैंने खुद उनसे बात की थी कि क्या गाड़ी खराब है? तो उन्होंने कहा था, नहीं, गाड़ी तो सही है। गाड़ी के अंदर उसकी चाबी भी है।"

    श्वेता की बात सुनकर रवि को अब आगे कोई बात नहीं सूझ रही थी।

    "अरे बाप रे! यह तो ज़रूरत से ज़्यादा ही ख़तरनाक है! यह तो बाल की खाल निकालने पर उतारू हो गई। और काम्या भी यहाँ से चली गई। अब मैं क्या करूँ?"

    रवि मन में सोचने लगा। वह उलझन में पड़ा हुआ था कि वह श्वेता से क्या कहे।

    "क्या हुआ? किस सोच में खो गए आप? मैंने तो बस छोटा सा सवाल पूछा है। अगर आप दीदी को साथ लेकर डेट पर गए थे, तो इसमें छुपाने वाली क्या बात है? यह तो नॉर्मल बात है ना?" श्वेता ने कहा।

    तो रवि उसकी तरफ़ देखने लगा।

    "लेकिन गाड़ी को तो कहीं लगाकर जाते। ऐसे ही खुले में छोड़ गए। अगर पुलिस की जगह पर गाड़ी को चोर उठा ले जाता, तो?" श्वेता ने कहा।

    "जल्दबाज़ी में भूल गए। मैंने तो शायद सोचा था कि काम्या ने गाड़ी को लॉक लगा दिया होगा। वैसे आप उसे बताना मत कि मैंने आपको बता दिया है कि हम कहाँ गए थे।"

    "अच्छा, तो आप लोग डेट पर ही गए थे? यह तो मुझे पहले ही शक था। पहली डेट पर जाने की खुशी में आपने दीदी को गिफ़्ट भी दिया?"

    "हाँ, तुम ऐसा ही समझ सकती हो। वैसे मानना पड़ेगा आपको, बहुत चालाक हो आप। हमारी बात को आपने झट से पकड़ लिया, जबकि पापा नहीं पकड़ पाए।" रवि ने मुस्कुराते हुए कहा।

    "थैंक्स गॉड! इसको और कोई शक नहीं हुआ। वरना लेने के देने पड़ जाते। इसकी बातें बहुत ही ख़तरनाक लेवल तक की होती हैं। बाप रे बाप!"

    रवि मन में सोचने लगा।

    "आप दीदी को डेट पर लेकर गए थे। वहाँ पर आपने दीदी के साथ किस किया था क्या?"

    श्वेता की बात सुनकर रवि भौचक्का रह गया।

    "अरे बाप रे! यह बात को किधर के किधर घुमा रही है! अरे यार! अब इसे मैं क्या बताऊँ?"

    रवि श्वेता की बात सुनकर फिर से हड़बड़ा गया।

    "क्या सोचने लगे हो आप? बताओ ना?"

    "नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं। किस तो नहीं किया था। आप तो जानती ही होगी, आपकी दीदी ब्लैक बेल्ट चैंपियन है। हाथ-पाँव थोड़ी तुड़वाने थे? उसकी मर्ज़ी के बिना उसे किस करके?" रवि ने अपनी तरफ़ से बात को संभालने की कोशिश की।

    "हाँ, यह भी है। क्या पता कब वह अपना कमाल आपको दिखा देती। खैर, जाने दीजिए। मैं आपसे और कुछ पूछकर आपको परेशान नहीं करना चाहती।"

    "सब कुछ पूछ लिया और कह रही है कि मुझे कुछ पूछकर परेशान नहीं करना चाहती? सिर से पाँव तक हिलाकर रख लिया इसने तो!"

    रवि मन में ही सोचने लगा। लेकिन श्वेता उसके सामने बैठी हुई मुस्कुरा रही थी।

    "अच्छा पकड़ा इन दोनों को! मुझसे आज तक कोई बचकर नहीं जा पाया। तो यह रवि जीजू किस खेत की मूली है?" श्वेता मन में ही मुस्कुराई।

    ,,,,,,क्रमश,,,,

  • 13. दिल दीवाना माने ना - Chapter 13

    Words: 1563

    Estimated Reading Time: 10 min

    दूसरी तरफ, खुशहाल सिंह को उसके भाई के गिरफ्तार होने की सूचना मिल गई थी। उसे यह भी पता चल गया था कि वह कैसे गिरफ्तार हुआ था। वह परेशान सा बैठा हुआ था।

    "यार, यह सब कुछ उल्टा कैसे हो गया? मैंने तो बहुत बड़ी योजना बनाकर ही सब कुछ करवाया था, फिर भी वह उल्लू का पट्ठा पकड़ा कैसे गया?"

    खुशहाल सिंह मन में सोचने लगा।

    "अब उसे जेल से छुड़वाने के लिए मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। लेकिन पहले मैं तानिया से बात करता हूँ, वह क्या कहती है इस बारे में?"

    इतना सोचकर खुशहाल सिंह ने तानिया को कॉल लगा दी। तानिया उस वक्त अपने कमरे में बैठी हुई थी। उसकी माँ परेशान सी उसके पास बैठी हुई थी। उसने तानिया को कुछ नहीं कहा था। वह बस किसी तरह से दलजीत सिंह और काम्या को बदनाम करने का सोचने लगी थी। वह अब बदला लेने के मूड में थी। उसे लग रहा था कि उसकी बेटी के साथ अन्याय हो गया है; उसकी बेटी का घर काम्या की वजह से टूट गया था।

    "मम्मी, मैं आती हूँ। एक कॉल आ गई है, सुनने के बाद आपके पास आती हूँ।"

    "किसकी कॉल है? जहाँ पर मुझे कुछ भी सूझ नहीं रहा और तुझे कॉल की पड़ी हुई है? दामाद जी घर से नाराज होकर चले गए, तेरा क्या होगा, मुझे यही चिंता लगी हुई है। लेकिन तुझे तो कोई भी फिक्र नहीं?" दलबीर कौर ने बुरा सा मुँह बनाया।

    "मम्मी, कुछ ना कुछ हल ढूँढते हैं ना। मैं आपसे बात करती हूँ, बस पाँच मिनट?"

    इतना कहकर तानिया अपना फ़ोन लेकर बाहर चली गई। इस बीच, रिंग बजने के बाद कॉल कट हो गई थी। तानिया ने बाहर निकलते ही खुशहाल सिंह को बैक कॉल लगा दी।

    "अरे! कहाँ रह गई थी तुम? पहले कॉल क्यों नहीं उठाई तुमने?"

    "अरे! मम्मी पास बैठी हुई थीं, तो उनके सामने कॉल उठाती तो उन्हें शक नहीं हो जाता?"

    "अच्छा, चलो छोड़ो इस बात को। मेरी बात सुनो, रॉकी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। और उसे छुड़वाने के लिए क्या करना चाहिए, मुझे तुम कुछ आईडिया दे सकती हो?"

    "व्हाट? रॉकी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया? लेकिन क्यों? क्या किया उसने?"

    "देखो, मेरी बात का बुरा मत मानना, मैंने तो अपनी तरफ़ से एक कोशिश की थी।"

    "पहले बात तो बताओ, हुआ क्या? तुमने ऐसा भी क्या कांड कर दिया कि तेरी जगह पर रॉकी को जेल जाना पड़ा?"

    तानिया की बात सुनकर खुशहाल सिंह ने फिर अपनी वह प्लैनिंग बता दी जो उसने रॉकी के साथ मिलकर की थी और जो बुरी तरह से असफल हो गई थी। तानिया ने जब खुशहाल सिंह की बात सुनी तो उसके चेहरे पर गुस्से के भाव आ गए।

    "तुम इतने बड़े बेवकूफ़ और गधे दिखते तो नहीं हो, फिर तुमने इतनी बड़ी गलती कैसे की?" तानिया ने थोड़ा गुस्से से कहा।

    तो खुशहाल सिंह को कोई बात नहीं सूझी कि वह क्या जवाब दे।

    "जब हम अपने दूसरे पैंतरे को अज़माते हुए चाल चल रहे हैं, तो फिर तुझे यह घटिया हरकत करने की क्या ज़रूरत थी?"

    "अरे! यार, मैंने सोचा अगर रॉकी अपने मकसद में कामयाब हो गया, तो फिर उन लोगों के पास और कोई रास्ता नहीं बचेगा, उनको मजबूरी में काम्या और रॉकी की शादी करनी ही पड़ेगी।"

    "तुम बहुत बड़े गधे हो, खुशहाल सिंह, सचमुच बहुत बड़े गधे! तुझे लगता है कि ऐसा हो जाने से रॉकी और काम्या की शादी हो पाती? बिल्कुल भी नहीं! और तुम यह बात कैसे भूल गए कि काम्या ब्लैक बेल्ट प्राप्त है? रॉकी जैसे पाँच-सात नामूनों को वह अकेली ही धूल चटाने की समर्थ रखती है?"

    "यार, अब कुछ सोचो ना, क्या करूँ मैं?"

    "हमें अपनी पहली बनाई गई प्लैनिंग के हिसाब से ही चलना होगा। और जब मेरा चलाया तीर निशाने पर लग जाएगा, तब मैं रॉकी को छुड़वाने की बात काम्या से कहूँगी। मुझे यकीन है कि काम्या ने अपने पापा को अपने साथ रॉकी द्वारा किए गए दुर्व्यवहार की बात नहीं बताई होगी।"

    "तुझे ऐसा क्यों लगता है कि उसने अपने पापा को नहीं बताया होगा?"

    "अरे! नहीं बता पाएगी, क्योंकि उसके पापा की तबियत ठीक नहीं रहती। तो ऐसे में, उनको टेंशन वाली बात बताकर वह कोई और प्रॉब्लम खड़ी नहीं करना चाहेगी।"

    "अगर ऐसा है, फिर तो कुछ हो सकता है। सोचो यार, कुछ तो करो।"

    "देखो, मुझे एक हफ़्ते का टाइम दो, फिर मैं कुछ सोचती हूँ।"

    "अरे! यार, तब तक मेरा भाई जेल में रहेगा क्या? जरा जल्दी नहीं कर सकती?"

    "फिर भी दो-तीन दिन तो चाहिए ही। पहले काम्या को शीशे में उतारना होगा, फिर ही मैं कुछ कर सकती हूँ ना।"

    "ठीक है, लेकिन तीन-चार दिन से ज़्यादा टाइम मत लेना यार। मुझे अपने भाई की बहुत चिंता है। कहीं वह जेल में सुसाइड ना कर ले, शर्म के मारे?"

    "तुम और तुम्हारा भाई इतने बेशर्म और ढीठ हो कि सुसाइड करने का तो कभी सोच भी नहीं सकते। बल्कि दूसरे सुसाइड करते हैं, तुम लोगों से तंग आकर।"

    "अरे! यार, ताना क्यों दे रही हो? बताओ ना, क्या मेरी मदद कर सकती हो तुम?"

    "मैंने कहा ना कि मुझे टाइम दो। ठीक है, मैं कुछ करती हूँ। अच्छा, मैं अब रखती हूँ, अगर माँ को शक हो गया ना, तो वाट लग जाएगी हम दोनों की।"

    इतना कहने के साथ ही तानिया ने कॉल काटी और फिर वापस अंदर आ गई। उसने अपनी माँ की तरफ़ देखा, जो काफी परेशान दिखाई दे रही थी।

    "मम्मी, एक बार मैं बात करती हूँ काम्या के साथ। क्या पता काम्या मेरी बात मान जाए?"

    "अरे! जब मेरी नहीं सुनी गई, तो तुम्हारी कौन सुनेगा? वहाँ, वहाँ सब हैवान रहते हैं, हैवान!"

    "लेकिन कोई हमसे बड़ा हैवान वहाँ नहीं रहता? क्या समझी आप?" तानिया ने कहा।

    "अरे! तेरा ख़स्म तुझे छोड़कर चला गया, तुझे इस बात की जरा भी परवाह नहीं है? तेरी जगह कोई और होती, तो रो-रोकर दीवारों से सिर फोड़ लेती, लेकिन तुम पर तो जरा भी असर नहीं हुआ?"

    "छोड़िए ना मम्मी, क्या फ़र्क पड़ता है? अगर उसे मुझे छोड़ना ही था, तो कोई और बहाना भी बना सकता था। अपने भाई का बहाना तो उसने ऐसे ही बना लिया।"

    "लेकिन तुम काम्या से अब क्या कहना चाहती हो?"

    "बस मोटे-मोटे मगरमच्छ के आँसू बहाने हैं, और काम्या का मोम जैसा दिल पिघलकर आँसुओं के रास्ते बाहर आ जाएगा, और फिर मेरा काम बन जाएगा।"

    "ठीक है, मैं उसे बुलाती हूँ। अब आगे तुम्हें जो भी करना है, करो।"

    "अरे! मेरी भोली-भाली माँ, पहले मेरी पूरी प्लैनिंग तो सुन लीजिए आपने। वहाँ जाकर क्या कहना है काम्या से?"

    दलबीर कौर तानिया की तरफ़ देखने लगी और फिर तानिया ने अपनी माँ को अपनी पूरी प्लैनिंग एक बार नहीं, दो बार समझाई, ताकि उसकी माँ से कुछ छूट ना जाए।

    "बहुत ही बढ़िया प्लैनिंग है। लेकिन जो भी करना, सावधानी से करना। कहीं तेरा दाव तुझ पर उल्टा ही ना पड़ जाए। अच्छा, मैं उसको लेकर आती हूँ।"

    इतना कहकर दलबीर कौर वापस अपने देवर के घर चली गई। शाम के पाँच बज रहे थे। काम्या श्वेता के साथ आँगन में बैठी हुई थी। इसी बीच दलबीर सीधे उसके पास आ गई।

    "क,,,,,, काम्या, ब,,,,,, बेटा, मेरी एक विनती मान लेना। अपनी बहन को जाकर समझाओ, वह सुसाइड करने का सोचकर बैठी हुई है। वह मेरी तो सुन ही नहीं रही, दामाद जी नाराज़ होकर क्या चले गए, वह तो सुसाइड करने की बातें कर रही है, सुबक-सुबक?" दलबीर कौर रोने लगी।

    काम्या ने अपनी ताई जी की तरफ़ देखा।

    "मुझे तो आप दोनों माँ-बेटी की यह नौटंकी ही लगती है। वह चुड़ैल भला सुसाइड क्यों करेगी? जो लोगों का घर बर्बाद करने के सपने देखती हो?"

    "श्वेता, ऐसा नहीं बोलते। वह हमारी बड़ी बहन है, और यह हमारी ताई जी हैं। समझी? इज़्ज़त के साथ बात करो।" काम्या ने श्वेता को डाँटा।

    "हाँ-हाँ, आप ही इनको इज़्ज़त दो। इनको तो इज़्ज़त देती हैं मेरी जूती में तो चली यहाँ से, बड़ी आई इज़्ज़त वाली?" काम्या की बात सुनकर श्वेता ने बुरा सा मुँह बनाया और फिर अपने कमरे की तरफ़ चली गई।

    "ताई जी, श्वेता की तरफ़ से मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ। वह क्या है कि कल सुबह जो कुछ भी हुआ, उसके चलते यह थोड़ी नाराज़ है, वरना इसके दिल में कुछ भी नहीं है किसी के लिए।"

    "म,,,,, मैं जानती हूँ, इसका नाराज़ होना जायज़ है। मुझे इस पर गुस्सा नहीं, और तुम्हें माफ़ी मांगने की भी ज़रूरत नहीं। बस तुम अपनी बहन तानिया को समझाओ कि वह सुसाइड करने का कभी मत सोचे, वरना मेरा क्या होगा? सुर्ररर?" दलबीर कौर ने अपने दुपट्टे से नाक साफ़ की।

    "ठीक है ताई जी, मैं कोशिश करती हूँ तानिया दीदी को समझाने की। वैसे तो वह खुद ही समझदार हैं। लेकिन इसके पीछे वजह क्या है? वह ऐसा क्यों करना चाहती हैं?"

    "अरे! दामाद जी उसे छोड़कर चले गए। अब क्या बताऊँ? वह उसे तलाक देने को कह रहे हैं। ऐसे में जबकि तानिया प्रेग्नेंट है, भला कोई अपनी पत्नी को तलाक देता है? तलाक देने का सोचता है? सुबक-सुबक?" दलबीर कौर ने मगरमच्छ वाले आँसू बहाने शुरू कर दिए।

    "मैं तुम्हारे आगे अपनी झोली फैलाकर दया की भीख माँगती हूँ, सुबक! मेरी बेटी को सुसाइड करने से बचा लो, सुबक?" दलबीर कौर ने अपना अंतिम दाव खेला। उसने अपना दुपट्टा काम्या के आगे झोली की तरह फैला दिया।

    "अरे! ताई जी, यह आप क्या कर रही हैं? चलिए, मैं आपके साथ चलती हूँ और तानिया दीदी को समझाती हूँ।"

    ,,,,,,,,क्रमश,,,,,,,

  • 14. दिल दीवाना माने ना - Chapter 14

    Words: 1587

    Estimated Reading Time: 10 min

    काम्या ने अपनी ताई जी का दुपट्टा थामा और उनके साथ उनके घर चली गई। तानिया ने अपनी नौटंकी शुरू कर रखी थी। उसने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर रखा था, पर जाली वाला दरवाज़ा ही बंद किया था ताकि बाहर से अंदर क्या हो रहा है, साफ़-साफ़ दिखाई दे। तानिया अपना भारी-भरकम दुपट्टा पंखे से बांध चुकी थी और बेड पर एक स्टूल रखकर उस पर खड़ी हो गई थी। जैसे ही उसने काम्या और उसकी माँ को आते देखा, उसने आगे की नौटंकी शुरू कर दी। उसने अपने दुपट्टे को गोल-गोल लपेटकर रस्सी की तरह बनाया और उसे अपने गले में डालकर गाँठ बाँधनी शुरू कर दी। दुपट्टे की बनी रस्सी इतनी मोटी थी कि तानिया का पूरा गला मुश्किल से उसमें आ रहा था। उसने इस बात का भी ध्यान रखा था कि अगर उसे लटकना भी पड़े तो एकदम से उसकी गर्दन दुपट्टे में फँसकर न कसे। काम्या दरवाज़े के पास आकर अंदर झाँक कर देखती है, तो उसकी आँखें भय से फैल जाती हैं।


    "दीदी! ये...ये आप क्या कर रही हैं? आप ऐसा क्यों कर रही हैं? देखिए, हम जीजाजी को समझाएँगे, सब मिलकर। प्लीज़ आप ऐसा मत कीजिए?"


    "कोई फ़ायदा नहीं है काम्या! आज तुमने जो मेरी मिट्टी पलीत की है ना, वो जिंदगी भर मुझे याद रहेगी! मरने के बाद भी मेरी आत्मा को चैन नहीं मिलेगा, शांति नहीं मिलेगी!"


    "अरे दीदी! मैंने क्या किया? किसी से प्यार करना कोई गुनाह है क्या? आपने भी तो खुशहाल जीजू से प्यार किया था ना?"


    "लेकिन तुमने पहले क्यों नहीं बताया? जबकि तुम्हारा चक्कर दो साल से चल रहा था रवि के साथ?"


    "आपको तो पहले ही पता था, तो फिर आप अनजान क्यों बन रही थीं?" काम्या ने कहा।


    "तुम मुझे नहीं रोक सकती मरने से! आज तुम मेरी मौत अपनी आँखों के सामने देखोगी! और जिंदगी भर मेरी लटकती हुई लाश तुम्हारी आँखों के सामने नज़र आती रहेगी! तुम कभी भी चैन से ज़िंदगी नहीं जी पाओगी!" तानिया ने कहा।


    और जानबूझकर स्टूल को अपने पैर से हिलाने लगी, ताकि ऐसा लगे कि वह स्टूल को गिराने की कोशिश कर रही है। वह स्टूल को नीचे गिराकर सच में पंखे से लटकने वाली थी।


    "दीदी! दीदी! प्लीज़! आपको मेरी कसम! हम बैठकर बात करते हैं। जो आप कहेंगी, वही होगा। मैं आपसे वादा करती हूँ! प्लीज़! प्लीज़! सुसाइड मत कीजिए!" काम्या चीख उठी।


    वहीं पर काम्या के पीछे खड़ी दलबीर कौर के चेहरे पर मुस्कराहट तैर रही थी।


    "ताई जी! आप कुछ कहिए ना! दीदी को देखिए तो! क्या पागलपन कर रही हैं?"


    काम्या पलटी, तो दलबीर कौर ने एकदम से अपने चेहरे के भाव बदल लिए।


    "अब मैं क्या कह सकती हूँ बेटी? तुम दोनों का मामला है, आपस में सुलझाओ। तुम अपनी बहन को मनाओ। मुझसे तो खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा। ये सब देखकर... मुझे तो चक्कर आ रहे हैं!"


    इतना कहकर दलबीर कौर वहीं फर्श पर बैठ गई। काम्या ने पलटकर तानिया की तरफ़ देखा।


    "दीदी! मैंने आपसे वादा किया है ना, जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। मेरी बात तो सुनिए!"


    "पक्का वादा करती हो? जो मैं कहूँगी वही करोगी?"


    "हाँ, पक्का वादा करती हूँ दीदी!"


    "तो फिर वादा करो मुझसे कि रवि को अपनी ज़िंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दोगी?"


    तानिया की बात सुनकर काम्या की आँखों में आँसू बहने लगे।


    "देखा! देखा! झूठे वादे करना ही जानती हो तुम! तुम ऐसा नहीं कर सकती, मैं जानती हूँ! तुम उसे अपने से दूर नहीं कर सकती! इसीलिए तो मैं मरना चाहती हूँ! अब मुझे मरना ही होगा!"


    फिर तेज़ी से तानिया ने स्टूल को एक तरफ़ सरकाकर गिरा दिया और वह लटकने लगी। उसने जानबूझकर ऐसा किया था। यह देखकर काम्या की चीख निकल गई।


    "आहह्ह्ह! दीदी! नहीं!"


    "हाय! हाय! मेरी बेटी मर रही है! कोई इसे बचाओ! हाय! हाय! काम्या! तेरा सत्यानाश हो जाए! अगर तुम मेरी बेटी की बात मान लेती, तो वह ऐसा नहीं करती!"


    दलबीर कौर चीत्कार करने लगी।


    "दीदी! रुक जाइए! प्लीज़! मैं आपसे वादा करती हूँ कि मैं रवि को अपनी ज़िंदगी से दूर कर दूँगी, हमेशा के लिए!"


    जैसे ही काम्या ने यह बात कही, तानिया ने अपने दोनों हाथ अपनी गर्दन में डाले दुपट्टे में फँसाए और एक ही झटके से अपनी गर्दन उसके भीतर से निकाल ली और फिर आराम से बेड पर उतर गई। और फिर वह अपनी गर्दन को हाथों से सहलाने लगी।


    "उफ़्फ़! कमबख्त! अगर बोलने में थोड़ी सी देर लगा देती, मेरा तो राम नाम सत्य हो जाता!" तानिया ने मन ही मन कहा।


    "बाप रे! मरने का नाटक करना भी कितना महँगा पड़ने वाला था मुझे! सचमुच गला दर्द करने लगा लटकने की वजह से! ये तो शुक्र है कि मैं झटके से नहीं लटकी, वरना मेरी गर्दन की हड्डी टूट जाती! प्लानिंग करके लटकने का आईडिया काम कर गया!" तानिया ने मन ही मन कहा।


    तानिया बेड पर बैठ गई थी।


    "दीदी! अब तो दरवाज़ा खोलिए! देखिए तो ताई जी की तबियत खराब हो गई है।" काम्या ने कहा।


    क्योंकि दलबीर कौर वहाँ जमीन पर बैठी-बैठी लेटने लगी थी और ऐसे जता रही थी जैसे उसे कोई दौरा पड़ गया हो। तानिया ने अपनी माँ की नौटंकी देखी, तो फिर उसने रोती हुई सूरत बनाकर दरवाज़ा खोल दिया।


    "देख ले काम्या! तुमने मुझसे वादा किया है! अब वादे से मुकरना मत!"


    "नहीं! दीदी! मैं अपने किए वादे से नहीं मुकरती! मैं सुबह होते ही रवि को खुद से दूर होने का कह दूँगी!"


    काम्या इतना कहकर तानिया के गले लग गई। काम्या को तो यही लग रहा था कि उसने रवि को छोड़ने के बदले में अपनी बहन की जान बचा ली है। तानिया ने काम्या को एक झटके से खुद से अलग किया और अपनी माँ को उठाने लगी।


    "मम्मी! आँखें खोलो ना! सब ठीक है! देखिए तो! मैं ठीक हूँ! काम्या ने मुझे मरने से बचा लिया। पानी...पानी?"


    दलबीर कौर की आवाज़ सुनकर काम्या पानी लेने अंदर चली गई।


    "अरे वाह! क्या प्लानिंग की थी तुमने तानिया! मेरा दिल खुश कर दिया आज तुमने! लेकिन इसे कहना कि कल नहीं, आज अभी रवि को बुलाकर अपनी ज़िंदगी से दूर जाने को कहे।"


    "ओके! वो आ रही है, तो चुपचाप लेटी रहो।"


    काम्या जल्दी से पानी ले आई। तानिया ने काम्या के हाथ से पानी का गिलास लेकर अपनी माँ को पानी पिला दिया और फिर काम्या की तरफ़ देखा।


    "देखो! तुमने वादा किया है, लेकिन मैं चाहती हूँ तुम रवि को सुबह नहीं, आज ही, अभी कहो उसे फ़ोन पर!"


    "दीदी! फ़ोन पर कैसे कह सकती हूँ मैं? वो ऐसे नहीं मानेगा! उससे मिलकर ही कहना होगा, तब जाकर वो मेरी बात मानेगा!"


    "मैं तुमसे एक बात कहूँगी काम्या बेटी! अभी गुरुद्वारा साहिब में रेहरास साहिब शुरू होने वाली है, तो तुम उसे वहाँ बुलाकर कसम देकर उससे वादा लो! मैं भी वहाँ तुम्हारे साथ चलती हूँ। एक जगह बैठकर मैं भी सुनूँगी कि तुम सच में उसे अपनी ज़िंदगी से दूर करती हो या फिर मेरी बेटी को ही झूठी तसल्ली देने की कोशिश कर रही हो?" दलबीर कौर ने कहा।


    "ठीक है ताई जी! मैं गुरुद्वारा साहिब उसे बुलाकर उसे आज ही अपनी कसम देकर अपनी ज़िंदगी से दूर कर देती हूँ। अब तो आप खुश हैं ना? लेकिन एक वादा आपको भी मुझसे करना होगा तानिया दीदी! बोलिए! वादा करती हैं आप मुझसे?"


    काम्या ने अपना हाथ तानिया की तरफ़ बढ़ाया। तानिया असमंजस में पड़ गई थी। उसने अपनी माँ की तरफ़ देखा, तो उसकी माँ ने इशारा किया कि वह वादा कर सकती है।


    "ठीक है! कहो काम्या! क्या वादा चाहती हो मुझसे? मैं तुमसे वादा करती हूँ, जो भी तुम कहोगी मुझे मंजूर होगा!"


    तानिया ने काम्या का हाथ थाम लिया। दलबीर कौर को तो यही लगा कि काम्या तानिया से ज़्यादा से ज़्यादा यही वादा लेगी कि वह फिर कभी सुसाइड करने का नहीं सोचेगी। इसीलिए माँ के इशारा करते ही तानिया ने काम्या का हाथ पकड़ लिया था। तानिया ने वादा कर लिया।


    "आप फिर कभी मेरे घर में रॉकी या किसी और लड़के का रिश्ता लेकर नहीं आएँगी! अब मैं किसी के साथ शादी नहीं करूँगी! जिंदगी भर अपने घर में रहूँगी, अपने पापा की सेवा करूँगी। वो बीमार रहते हैं, अब बस वही मेरा सहारा बनेंगे!"


    काम्या की बात सुनकर तानिया और उसकी माँ दलबीर कौर की आँखें फैल कर बड़ी हो गईं। उन्हें इस बात की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि काम्या कुछ ऐसा वादा लेगी। काम्या की बात सुनकर तानिया अपनी माँ की तरफ़ देखने लगी।


    "ये...ये कैसा वादा हुआ बेटी काम्या? शादी तो करनी ही पड़ती है ना? चलो रॉकी ना सही, एक और लड़का है, खुशहाल सिंह का मामेरा भाई, वो तो रॉकी से भी ज़्यादा खूबसूरत है, पढ़ा लिखा है। तुम उसके साथ शादी कर सकती हो?" दलबीर कौर ने बात को संभालने की कोशिश की।


    "ताई जी! अगर मैंने दीदी से वादा किया था, तो निभाने वाली हूँ ना! तो दीदी को भी वादा निभाना पड़ेगा और आपको भी इसमें दीदी का साथ देना होगा!" काम्या ने कहा।


    और फिर वापस पलटी।


    "अभी तो तुमने रवि को फ़ोन करके गुरुद्वारा साहिब बुलाया ही नहीं और उसे कुछ कहा भी नहीं। ऐसे में मैं तुझ पर भरोसा कैसे कर सकती हूँ?"


    "ताई जी! इस वक़्त मैं रवि को गुरुद्वारा साहिब बुला रही हूँ। आप मेरे साथ चल सकती हैं?"

    क्रमशः

  • 15. दिल दीवाना माने ना - Chapter 15

    Words: 1590

    Estimated Reading Time: 10 min

    इतना कहकर काम्या थके हुए कदमों से बाहर की ओर जाने लगी। उसने अपना फ़ोन निकाला और रवि को कॉल लगा दी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। दूसरी ओर, रवि अपने दादाजी के साथ बातें कर रहा था; अपने दादाजी को खुशखबरी सुना रहा था।

    "तो तुम्हारी बात बन गई, पुत्र? बड़ा दिल करते हुए तुम काम्या के पापा से मिल ही लिए कल, शाबाश! मुझे तुमसे ऐसी ही उम्मीद थी।"

    "दादा जी, डर तो बहुत लगा था कि कहीं काम्या के पापा छड़ी लेकर मेरे पीछे ना पड़ जाएँ, लेकिन सब कुछ अच्छा ही हुआ। मैं आज बहुत खुश हूँ।"

    "और तुमसे ज़्यादा मैं खुश हूँ कि तुम्हारी शादी देखने के बाद, तुम्हारे बच्चे देखकर ही इस दुनिया को अलविदा कहूँगा।"

    "अरे! दादा जी, यह क्या बात हुई? खुशखबरी के बीच में आप मरने वाली बातें क्यों लेकर बैठ गए?"

    "बेटा, एक दिन तो सबको जाना है। इस दुनिया में रहता तो कोई भी नहीं; अमर-अजर होकर तो कोई भी पैदा नहीं हुआ।"

    "दादा जी, अगर आपने फिर ऐसी बात की ना, तो मैं आपसे बोलचाल बंद कर दूँगा। अरे! रुकिए दादा जी, लगता है काम्या की कॉल आ रही है। मैं आपसे बाद में बात करता हूँ।"

    "ठीक है, तुम उसकी कॉल सुनो। आज तो वह भी बहुत खुश होगी।"

    इतना कहने के साथ ही रवि के दादाजी ने कॉल काट दी और रवि ने काम्या की कॉल उठा ली।

    "हाय काम्या, क्या बात है?"

    "रवि, क्या तुम मुझे गुरुद्वारा साहब में मिल सकते हो?"

    "अरे! क्या हो गया? तुम्हारी आवाज़ कुछ भारी हुई सी क्यों है?"

    "थोड़ा सा गला खराब हो गया, इसलिए ऐसा है। बस ऐसे ही मेरा मन कर रहा था कि हम दोनों आज गुरुद्वारा साहब में एक साथ माथा टेकें।"

    "ठीक है, मैं तुम्हारे पास आधे घंटे में आता हूँ।"

    रवि ने कॉल काट दिया और फिर जल्दी-जल्दी उसने खुद को तैयार किया और फिर घर का ताला लगाकर बाहर निकल गया। उसने अपनी बाइक पकड़ी और काम्या के सेक्टर 7 में पड़ते गुरुद्वारा साहब के बाहर पहुँच गया। वहाँ पर काम्या उसका इंतज़ार कर रही थी। दलबीर कौर उन दोनों से थोड़ी दूर बैठी हुई थी। काम्या की आँखों में सूजन रवि को दिखाई दी, तो वह थोड़ा परेशान हो गया।

    "क... क्या हुआ काम्या? तुम्हारी आँखें सूजी हुई क्यों हैं? लाल भी दिखाई दे रही हैं। तुम रोई थी क्या?"

    "अरे! नहीं, वह क्या है कि श्वेता ने आज शरारत कर दी मेरे साथ। मिर्ची पाउडर होता है ना? मुझे डराने के लिए उछाल रही थी, तो सच में वह मेरी आँखों में चला गया। इसी वजह से आँखें सूज गईं और लाल हो गईं।"

    काम्या ने अपने बहते आँसू साफ़ किए। उसने भरपूर कोशिश की कि रवि को किसी भी बात का पता ना चले, लेकिन रवि का दिल काम्या की बात मानने को तैयार नहीं था।

    "बात तो कुछ और ही है, लेकिन काम्या मुझे बता नहीं रही। खैर, कोई बात नहीं। खुद गुरुद्वारा साहब ले जा रही है। माथा टेकने के बाद इसे मैं पूछ लूँगा, शायद बता ही दे।"

    "चलो रवि, चलें। रेहरास साहिब समाप्त होने वाली है। अंदर चलते हैं, लेकिन तुम्हें मुझसे एक वादा करना होगा।"

    काम्या ने अपना हाथ रवि की ओर बढ़ाया।

    "व... वादा? कैसा वादा? क्या हो गया है तुम्हें आज?"

    "अरे! कुछ नहीं, बस एक छोटा सा वादा ही तो है। डर गए क्या कि वादा नहीं निभा सकते तुम? या फिर वादा करना ही नहीं चाहते?" काम्या ज़ोर से मुस्कुराई।

    "अरे! ऐसी बात नहीं है। चल, ठीक है। मेरा वादा रहा, जो भी तुम कहोगी मैं मानूँगा।"

    इतना कहकर रवि ने काम्या के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। इसके बाद काम्या और रवि दोनों ही गुरुद्वारा साहब के अंदर चले गए। वहाँ पर दोनों ने माथा टेका। रेहरास साहिब की समाप्ति के बाद वहाँ पर अरदास हुई और फिर दोनों ही बाहर आ गए। गुरुद्वारा साहब के प्रांगण में एक जगह बैठकर काम्या ने रवि की ओर देखा। इसी बीच काम्या की ताई जी चुपचाप से उनके पीछे आकर बैठ गई थीं। थोड़ी सी दूरी बनाकर वहाँ पर इन तीनों के अलावा और कोई भी नहीं था। अगर कोई था भी, तो इनसे दूर ही था।

    "र... रवि, तु... तुमने मुझसे वादा किया है। निभाओगे ना? कहीं तोड़कर चले तो नहीं जाओगे?"

    "अरे! वादा किया है तो निभाना तो पड़ेगा। वह आदमी ही क्या जो वादा करके निभा ना सके?" रवि ने कहा।

    "र... रवि, आ... आज के बाद हम दोनों की ज़िंदगी अलग हो जाएगी। ह... हमेशा-हमेशा के लिए।"

    "क... क्या मतलब? तुम यह क्या कह रही हो?" रवि हैरान हो गया।

    "र... रवि, तु... तुम्हें मुझसे दूर जाना होगा, हमेशा के लिए। अगर तुमने अपना वादा तोड़ा तो मैं सुसाइड कर लूँगी।"

    "क... काम्या, यह क्या पागलपन है? तुम क्या बकवास कर रही हो?" रवि बुरी तरह से बौखला गया।

    "र... रवि, म... मैंने बहुत सोच-समझकर ही तुमसे कहा है। मेरी तानिया दीदी का घर बर्बाद हो जाएगा। हमारे जीजू उनको छोड़कर चले गए हैं और उन्हें तलाक देने की धमकी देकर गए हैं।"

    "त... तो क... क्या तुम उनके आगे घुटने टेक दोगी? रॉकी के साथ शादी कर लोगी? उस लड़के के साथ जिसे तुम सबसे ज़्यादा नफ़रत करती हो?"

    "न... नहीं, श... शादी तो मैं उसके साथ नहीं करूँगी, क्योंकि इतना तो वादा मैंने अपनी दीदी तानिया से ले लिया है।"

    "त... तो फ... फिर मुझसे दूर होने का क्या मतलब?"

    "ब... बस इसी शर्त पर दीदी ने सुसाइड करने से खुद को रोक लिया था। कि तुम मेरी ज़िंदगी से हमेशा के लिए दूर चले जाओगे।"

    काम्या की बात सुनकर रवि को आगे कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या बोले। वही पीछे बैठी हुई दलबीर कौर चुपचाप वहाँ से उठकर चलती बनी; उसका काम तो बन गया था।

    "तु... तुमने मु... मुझसे वादा किया है रवि। आज के बाद भूलकर भी कभी तुम मेरे सामने मत आना। अगर मैं थोड़ी सी भी कमज़ोर पड़ गई ना, तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगी। और तुम जानते हो कि जो मैं कहती हूँ, वही करके दिखाती भी हूँ।"

    "तु... तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारी ज़िंदगी से दूर चला जाऊँ? लेकिन इस शहर में रहते हुए कई बार हमारा एक-दूसरे से सामना तो होगा ही। तब क्या होगा? जबकि तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारे सामने कभी ना आऊँ?"

    "मु... मुझे न... नहीं मालूम कि तुम यह सब कैसे करोगे, लेकिन तुमने मुझसे वादा किया है। तो तुम्हें मेरे सामने आने से खुद को रोकना ही होगा। कैसे, यह तुम जानो रवि।"

    रवि काम्या की बात सुनकर सोच में डूब गया।

    "इ... इसका म... मतलब तो बस एक ही बनता है कि मुझे इस शहर को छोड़कर जाना होगा। तभी तो ऐसा हो सकता है कि मैं कभी तुम्हारे सामने ना आऊँ, लेकिन...?"

    "ल... लेकिन व... लेकिन कुछ नहीं रवि। तुमने मुझसे वादा किया है, तो निभाना ही पड़ेगा। ज़िंदगी में अगर कभी भूल कर भी तुम मेरे सामने आ गए ना, तो तुम मेरा मरा मुँह देखोगे। सच कहती हूँ, उसी वक़्त मैं अपनी जान ले लूँगी।"

    "ओके ओके, तुम्हें ऐसा कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। मैं सुबह होने से पहले ही यह शहर छोड़कर वापस चला जाऊँगा, लेकिन जो पूछना था वह तो पूछने दो।"

    "आ... हाँ, कहो। क्या कहना चाहते हो?"

    "लेकिन इत्तेफ़ाक़ से किसी फ़ंक्शन में या कभी किसी शादी में हमारा आमना-सामना अचानक हो जाए, तो तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी? क्योंकि वह बस इत्तेफ़ाक़ होगा, इससे ज़्यादा कुछ नहीं। तुम मरने की धमकी तो दे रही हो, लेकिन अगर ऐसी कंडीशन आती है, तो वादा करो कि तुम सुसाइड नहीं करोगी।"

    "ठ... ठीक है। मेरा वादा रहा। अगर ऐसी कंडीशन कहीं आती भी है, तो मैं तुमसे मुँह फेरकर दूसरी तरफ़ चली जाऊँगी। लेकिन कभी तुम्हारे सामने आने की कोशिश नहीं करूँगी। अगर भूलवश सामना हो भी जाए, तो तुम भी ऐसा ही करना? एक अजनबी की तरह मेरे पास से निकल जाना, जैसे कभी हम एक-दूसरे को जानते ही नहीं थे।"

    "ठ... ठीक है। मेरा वादा रहा, तुमसे ऐसा ही होगा। लेकिन तुमने मेरे साथ बहुत ग़लत किया। इस बात को मैं हमेशा याद रखूँगा। कल सुबह ही तुमने बहुत बड़ी खुशी दी थी और आज एक ही झटके में सब कुछ छीन भी लिया मुझसे।"

    इतना कहने के साथ ही रवि की आँखों में आँसू आ गए। रवि की आँखों में आँसू देखकर काम्या रोने लगी, लेकिन उसने खुद पर कण्ट्रोल रखा।

    "तु... तुम ज... जाओ रवि। मैं अब तुम्हें अपने पास और ज़्यादा देर तक बैठा हुआ देख नहीं सकती। अगर ऐसा ही चलता रहा ना, तो मैं कमज़ोर पड़ जाऊँगी और फिर मुझे वह क़दम उठाना पड़ेगा जो मैंने तुझे कहा है।"

    रवि ने काम्या की बात सुनी और चुपचाप उठकर चल दिया। उसने एक बार गुरुद्वारा साहब की ओर अपना मुँह किया और फिर दोनों हाथ जोड़कर आँखें मूँद लीं।

    "वाहेगुरु, मुझे नहीं मालूम आपकी यह कैसी परीक्षा है, लेकिन काम्या के सिर पर अपना हाथ हमेशा बनाए रखना। मुझे नहीं मालूम इसकी क्या मजबूरी है, लेकिन इतना जानता हूँ कि इसके साथ धोखा किया जा रहा है और यह धोखे में आ गई है। आप इसकी रक्षा करना, वाहेगुरु।"

    इतना कहने के बाद रवि वहाँ से चल दिया। वह थके हुए कदमों से जा रहा था। जहाँ वह खुशी-खुशी आया था, वहाँ वह अब दुखी मन से जा रहा था। उसने अपनी बाइक संभाली और उस पर बैठकर अपने घर की ओर चला गया। काम्या बहते हुए आँसू भरी आँखों से रवि को जाता हुआ देखती रही। उसने भी गुरुद्वारा साहब की ओर मुँह करके हाथ जोड़े।

    ,,,,,,क्रमशः,,,,,,

  • 16. दिल दीवाना माने ना - Chapter 16

    Words: 1548

    Estimated Reading Time: 10 min

    वाहेगुरु! मेरे रवि की हमेशा रक्षा करना। इसे मेरे द्वारा दिए गए धोखे को झेलने की हिम्मत देना। आप तो जानते हो कि मैंने ऐसा जानबूझकर नहीं किया, मेरी भी मजबूरी थी। भले ही जो मैंने गुनाह किया है, इसकी मुझे माफी न मिले? काम्या ने मन ही मन कहा।

    और फिर वह अपने घर की ओर चल दी। काम्या अपने घर पहुँची तो उसके पिता उसका ही इंतजार कर रहे थे।

    "इतनी देर लगाकर कहाँ से आई हो? और तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों? क्या हो रहा है यह सब? क्या मुझे कोई बताएगा?"

    "पापा... सॉरी, लेकिन आज के बाद मेरी आँखों में आपको आँसू ही देखने को मिलेंगे। कभी खुशी की झलक दिखाई नहीं देगी।"

    "ऐसा... क्यों कह रही हो? आखिर हुआ क्या अपनी ताई जी के घर जाने के बाद? तुम वहाँ से अब आ रही हो। ऐसा भी वहाँ क्या हो गया कि तुम ऐसी बातें कर रही हो?"

    काम्या ने अपने पापा की बात सुनी तो उन्हें अपनी ताई जी के आने और फिर गुरुद्वारा साहब जाकर रवि से जो कुछ भी कहा, वह सब कुछ बता दिया। इतना बताकर काम्या फूट-फूट कर रोने लगी।

    "यह... तुमने क्या किया? उन लोगों के बहकावे में आकर तुमने इतना बड़ा कदम उठा लिया? अरे! एक बार मुझसे तो बात की होती, तुझे मैं समझाता। पागल लड़की! आह्ह्ह..."

    "धड़ाम।"

    काम्या के पापा इतना ही कह पाए और धड़ाम से गिर गए।

    "क्या... हुआ आपको पापा? प्लीज उठिए ना?"

    काम्या चीखती हुई अपने पापा को उठाने की कोशिश करने लगी। तभी श्वेता भी वहाँ आ गई। वह भी रोने लगी।

    "पापा... पापा... क्या हुआ आपको? प्लीज उठिए ना... पापा... श्वेता, एंबुलेंस को कॉल लगाओ! लगता है पापा की तबीयत अचानक से खराब हो गई है।"

    काम्या की बात सुनकर श्वेता घबराते हुए एंबुलेंस को कॉल लगाती है। काम्या ने अपने पापा के सीने पर हाथ रखकर उनके सीने पर प्रेशर दिया। उसे लग रहा था कि उसके पापा को हार्ट अटैक आया है क्योंकि उन्हें हार्ट की प्रॉब्लम थी। वहाँ पर बीस मिनट में ही एंबुलेंस पहुँच गई और फिर आनन-फानन में काम्या के पापा को हॉस्पिटल की ओर ले जाया गया। काम्या और श्वेता ने घर का ताला लगाया और एंबुलेंस के पीछे ही अपनी गाड़ी लगा दी। काम्या के पापा की वह गाड़ी थी। जल्द ही वह सब हॉस्पिटल में पहुँच गए। काम्या के पापा का चेकअप करने के बाद डॉक्टर साहब बाहर आए। उनके चेहरे पर निराशा के भाव थे।

    "डॉक्टर साहब... क्या हुआ मेरे पापा को? वह ठीक तो हो जाएँगे ना?"

    "काम्या बेटा, तुम्हारे पापा को पैरालाइसिस अटैक आया है।"

    "आह्... नहीं!"

    यह बात सुनते ही काम्या के मुँह से चीख निकल गई। उसने अपने दोनों हाथ अपने मुँह पर रख लिए।

    "बेटा, खुद को संभालो। हमने बहुत कोशिश की है, लेकिन इस अटैक के कारण उनके शरीर का एक हिस्सा अब कभी काम नहीं करेगा। हमने उन्हें इंजेक्शन भी लगा दिए हैं, लेकिन उन पर इंजेक्शन का कोई असर होता दिखाई नहीं दे रहा है।" डॉक्टर साहब ने कहा।

    और फिर डॉक्टर साहब वहाँ से चले गए। काम्या और श्वेता एक बेंच पर बैठकर रोने लगीं। रवि अपने घर पहुँच गया था। वहाँ जाकर वह अपना सारा सामान सेट करने लगा। सुबह के तीन बजे ही रवि उस घर को छोड़कर हमेशा के लिए चल दिया, अपने शहर अमृतसर की ओर। तानिया के घर में इस समय जश्न का माहौल था। वहीं पर काम्या के घर में मातम था। हॉस्पिटल में किसी को रुकने नहीं दिया जाता था। इसलिए काम्या और श्वेता को आधी रात के समय ही वापस आना पड़ा। वह अपने घर में बैठी हुई उदास थीं। तो वहीं पर दलबीर कौर और तानिया अपनी सफलता का जश्न मना रही थीं।

    सुबह हुई, दलबीर कौर और तानिया फिर से योजना बनाने लगीं।

    "मम्मी, मेरी योजना काम कर गई। मानते हो ना अपनी बेटी को?"

    "मानती तो हूँ, लेकिन जो उसने तुमसे वादा ले लिया, उसका क्या? अब वह किसी से भी शादी नहीं करेगी?"

    "कोई बात नहीं मम्मी, हम अपनी एक और योजना बनाएँगे और फिर एक न एक दिन उसे शादी के लिए मना ही लेंगे। आप टेंशन मत लीजिए, भले ही इसके लिए हमें कुछ समय लगे। लेकिन अगर वह नहीं मानती तो श्वेता है ना? तो फिर श्वेता की शादी मैं अपने सबसे छोटे देवर के साथ कर दूँगी।"

    "वह अभी पन्द्रह साल का है और श्वेता दस साल की है?"

    "ओह्हो! मम्मी, शादी तो हो ही जाएगी। आप टेंशन मत लीजिए।"

    "ठीक कहती हो। अगर काम्या शादी नहीं करती तो भी वह प्रॉपर्टी का क्या करेगी? फिर श्वेता के हिस्से ही प्रॉपर्टी आएगी। लेकिन तब तक हमारे हाथ तो खाली रह गए ना? कब श्वेता जवान होगी? और कब उसकी शादी होगी? कब प्रॉपर्टी हमारे हाथ आएगी?" दलबीर कौर ने निराश होते हुए कहा।

    "इतना भी निराश होने की जरूरत नहीं है, समझी? बस खुश हो जाइए, आज से वह प्रॉपर्टी हमारी है, इतना समझ लीजिए।"

    "चलो, मैं उनके घर जाकर आती हूँ एक बार। देवरजी को तो मिल आऊँ, देखूँ तो सही हमारे देवर जी के चेहरे पर मौत जैसी फैली हुई निराशा कैसी दिखती है। क्योंकि काम्या ने उसे बता तो दिया होगा कि क्या हुआ है और उसने क्या किया है।"

    इतना कहकर दलबीर कौर उठकर जाने को हुई।

    "अरे! मैं भी आपके साथ चलती हूँ। कुछ ज्यादा गड़बड़ होगी तो चाचा जी से माफी माँग लेंगे। मेरी मजबूरी थी, क्या करती? मेरी ज़िन्दगी बर्बाद हो रही थी, तो मुझे मजबूरी में ऐसा काम्या से वादा लेना पड़ा। हमदर्दी के दो बोल बोलकर वापस आ जाएँगे।"

    "चल आजा, तुम भी मेरी बेटी हो ना, मेरे जैसी ही बातें सोचती हो। और हम दोनों ही मिलकर मगरमच्छ वाले आँसू बहाने का काम करती हैं।"

    दोनों ही माँ-बेटी उठकर चल पड़ीं। इन लोगों को पता ही नहीं चला था कि रात के समय काम्या के घर पर क्या हुआ है। दलजीत सिंह को कुछ हुआ है या नहीं, यह भी नहीं जान पाईं। दरवाजे पर गार्ड खड़ा था। दलबीर कौर ने उसे दरवाजा खोलने का इशारा किया। लेकिन उसने दरवाजा नहीं खोला, तो दलबीर कौर को थोड़ा गुस्सा आ गया।

    "क्यों ओए! खोतिया, दरवाजा क्यों नहीं खोल रहे?"

    "छोटी मालकिन ने मना किया है दरवाजा खोलने से। वह लोग आपको अपने घर में अब आने नहीं देना चाहते।"

    "अरे! उस छोटी की क्या मजाल? जा जाकर तुम मेरे देवर को बताओ, उसकी भाभी आई है।"

    "उन्हें कैसे बता सकता हूँ? वह तो हॉस्पिटल में हैं। रात के समय उन्हें पैरालाइसिस का अटैक आया था।"

    "चलो, अच्छा हुआ। समय रहते हैं वह भी अपने जीवन से मुक्त हो जाएगा। बहुत दुख झेले हैं उसने।"

    दलबीर कौर के मुँह से यह बात निकल गई तो तानिया ने उसके पाँव पर अपना पाँव मारा। वहीं पर गार्ड दलबीर कौर की बात सुनकर उसे घूर कर देखने लगा।

    "आपकी इसी घटिया सोच की वजह से ही तो हमारे साहब का घर बर्बाद हुआ है। आप जाइए यहाँ से। मैं आपको अंदर आने नहीं दे सकता। और हाँ, भूलकर भी कभी यहाँ आने की कोशिश मत कीजिएगा।" गार्ड ने दलबीर कौर को फटकार लगाई।

    दलबीर कौर और तानिया वापस चली गईं।

    "यह आपने क्या किया मम्मी? आपको उस दो टके के नौकर के आगे ऐसा बोलने की क्या जरूरत थी? है तो वह चाचा जी का वफ़ादार कुत्ता ही।"

    "अरे! खुशी के मारे मेरे मुँह से यह बात निकल गई। मैं खुद पर कंट्रोल ही नहीं कर पाई। यह बात सुनकर कि उन्हें पैरालाइसिस का अटैक आया है।"

    "मुझे लगता है हमें हॉस्पिटल में चाचा जी का हालचाल जानने के लिए जाना चाहिए।"

    "अरे! नहीं। अगर वहाँ पर वह श्वेता की बच्ची हुई ना तो पूरे हॉस्पिटल में वह हमारी इज़्ज़त का कचरा कर देगी। छोड़ो इन लोगों को। वैसे भी हमें अब कुछ देर रुकना होगा। जब हालात थोड़े से शांत होंगे तब हम जाएँगे।"

    "आपको लगता है कि हालात शांत हो जाएँगे?"

    "टेंशन मत लो। महीना, छह महीने लग जाएँगे तो क्या हुआ? लेकिन मेरे मगरमच्छ वाले आँसू तेरे चाचा जी को पिघलने पर मजबूर कर देंगे। अगर तब तक कहीं वह मर भी गया तो हम काम्या को पकड़ लेंगे।"

    "ठीक है, जैसी आपकी इच्छा वैसा ही करते हैं। लेकिन आपके पास बाकी का खर्चा-पानी तो है ना? क्योंकि खुशहाल सिंह और मैं अब आपको खर्चा-पानी नहीं दे सकते।"

    "अरे! मेरे पास इतना कुछ है कि दस साल तक आराम से चल जाएगा। यहाँ तक कि तुम दोनों का खर्चा-पानी भी उठा सकती हूँ, समझी? लेकिन एक मिनट, तुमने अभी-अभी खुशहाल सिंह का जिक्र किया। इसका क्या मतलब था?"

    "अरे! बस ऐसे ही मुँह से निकल गया। मैं भूल गई थी कि वह मुझे छोड़कर चला गया है। लेकिन आप बताओ, आपके पास इतना पैसा आया कैसे?"

    "अरे! जहाँ मुझे बीस रुपये की ज़रूरत होती थी, वहाँ पर सौ रुपये लेती थी। और जहाँ पाँच सौ रुपये की ज़रूरत होती, वहाँ पर हज़ार रुपये। ऐसा करके मैंने अपने पास काफी पैसा बचा लिया। कम से कम पच्चीस लाख हैं मेरे पास। टेंशन मत लो।"

    अपनी मम्मी दलबीर कौर की बात सुनकर तानिया के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई।

    "अब क्या हुआ? मैंने तुझे अपने पास पैसे होने की बात बताई तो तुम मुस्कुराने लगी हो?"

    "मेरे दिमाग में एक और खतरनाक चाल आ रही है। कहो तो बताऊँ आपको मैं?"

    "बताओ, क्या कहना चाहती हो? बताओ मुझे?"

    ,,,,,,क्रमशः,,,,,,

  • 17. दिल दीवाना माने ना - Chapter 17

    Words: 1575

    Estimated Reading Time: 10 min

    इस वक्त चाचा जी बीमार हो गए थे, हमारी वजह से। आपके पास एक मौका है। उनकी बीमारी का बहाना बनाकर यह घर अपने नाम करवा लीजिए?

    "लेकिन अगर हम उनके घर जाएँगे तो श्वेता हमें घर में टिकने नहीं देंगी। वैसे भी वह हॉस्पिटल में पड़ा हुआ है?"

    "अरे! हम हॉस्पिटल में तो जा सकती हैं ना, उनके पास। तब आप मिलने के बहाने उनसे बात करना कि देवर जी, अगर आपको कुछ हो गया तो हमारा क्या होगा? हमारे पास जो आपका दिया घर है, वह आपकी दोनों बेटियाँ छीन लेगी। हमको घर से धक्के मार कर निकाल देंगी। हमारे बारे में सोचिए कुछ?"

    तानिया की बात सुनकर दलबीर कौर मुस्कुराने लगी।

    "सही कहा तुमने। यह काम मैं आज शाम को ही करूँगी। तुम भी मेरे साथ चलना। अगर उसने सहमति दे दी ना, तो समझो यह घर हमारा हो गया। तुम सही कहती हो, अगर वह मर गया ना, तो वह काम्या और श्वेता मिलकर हमें इस घर से बाहर निकाल देंगी। हालाँकि इतनी जल्दी मैं कब्ज़ा छोड़ने वाली नहीं। लेकिन उनके पास बहुत पैसा है, तो वह कुछ भी कर सकती हैं।"

    दूसरी तरफ, काम्या परेशान सी अपने घर में बैठी हुई थी। श्वेता उसके पास नाराज़ होकर बैठी हुई थी, क्योंकि काम्या से श्वेता रवि की वजह से नाराज़ थी।

    "इस दुःख के समय में तुम भी मुझसे रूठ कर बैठ जाओगी तो कैसे चलेगा? पापा के बारे में तो सोचो कुछ?"

    "आपने जो किया है, उसके बाद भी आपको यह उम्मीद है कि मैं आपसे बात करूँगी? अरे! क्या कसूर था उस बेचारे का, जो उसे इतनी बड़ी सज़ा दी है आपने?"

    "श्वेता, तुम मेरी मजबूरी को क्यों नहीं समझ रही?"

    "अरे! कैसी मजबूरी? उन दोनों की चाल थी, आपको जीजू से दूर करने की, और आप उनकी चाल में फँस गईं?"

    "तुझे यह उनकी चाल लग रही है? अरे! वह मेरे सामने पंखे पर लटकी हुई थी। अगर मैं उससे वादा नहीं करती तो वह लटक कर मर जाती?"

    "लेकिन मरी नहीं ना? यही तो वह चाल थी उनकी। अरे! अगर कुछ देर आप चुप रहतीं तो वह खुद ही अपने गले से फंदा निकाल लेती। आपको क्या मालूम उन माँ-बेटी की शातिर चालों के बारे में?"

    "श्वेता, जो होना था वह हो गया। लेकिन अब हमें अपने पापा को संभालना है। अगर तुम उनके सामने भी मुझसे रूठना जारी रखोगी तो वह कभी ठीक नहीं होंगे। जानती हो ना, डॉक्टर साहब भी तो यही कह रहे थे।"

    श्वेता अपनी दीदी काम्या की बात सुनकर चुप हो गई। श्वेता और काम्या शाम के समय हॉस्पिटल की तरफ़ चली गईं और वहीं पर अपनी शातिर चाल को अंजाम देने के लिए दलबीर कौर और तानिया भी हॉस्पिटल की तरफ़ चली गईं। तानिया को देखकर श्वेता तो गुस्से में आ गई, लेकिन काम्या ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया।

    "अभी कुछ मत करना। हम हॉस्पिटल में हैं। यहाँ पर किसी पर चिल्लाना या किसी के साथ झगड़ना अलाउड नहीं है। डॉक्टर लोग हमें हॉस्पिटल से बाहर फेंक देंगे। समझी?"

    "लेकिन यह दोनों क्यों आई हैं? ज़रूर दोनों कोई कुटिल चाल चलने का सोचकर ही आई होंगी। अब इनकी कोई भी चाल मैं कामयाब नहीं होने दूँगी।"

    "अभी तुम बच्ची हो, क्या कर सकती हो तुम? इसलिए चुप रहो।"

    "मैं हमेशा बच्ची तो नहीं रहूँगी। किसी दिन बड़ी भी हो जाऊँगी। तब इनको बताऊँगी, इन्होंने जो हमारे साथ किया है उसका अंजाम क्या होता है?" श्वेता ने दाँत पीसे।

    "हाय हाय काम्या! देवर जी को क्या हो गया? तुमने हमें बताया ही नहीं। वह ठीक तो हो जाएँगे? उनको कुछ हो तो नहीं जाएगा ना?" दलबीर कौर ने अपने मगरमच्छ वाले आँसू बहाते हुए अपनी नौटंकी चालू कर दी।

    "कोई कसर नहीं छोड़ी थी आप लोगों ने ताई जी, मेरे पापा की जान लेने में?" श्वेता ने कड़वाहट के साथ कहा।

    "क.....क्या बकवास करती हो तुम? मैं भला तुम्हारे पापा की जान क्यों लूँगी? अरे! वह तो हमारे अन्नदाता हैं, हमारा सहारा है। और मैं अपने ही सहारे को कुछ करने का कभी सोच सकती हूँ क्या?"

    "इतना कुछ तो करवा दिया और कह रही हैं कि कुछ करने का सोचूँगी क्या? अब भी तो आप कोई ना कोई खतरनाक चाल चलने के लिए ही आई होंगी ना?"

    "तुम्हारे तो मुँह लगना ही बेकार है। तुम्हें तो हमारा दुःख दिखाई नहीं देता। मेरी आँखों में बहते आँसू तुझे नकली लगते हैं क्या?"

    "आपकी आँखों में बहते आँसू मुझे मगरमच्छ के आँसू लगते हैं। कोई पहली बार नहीं हुआ। जब भी आपने यह मगरमच्छ वाले आँसू बहाए हैं, हमारे घर में कुछ ना कुछ गलत ही हुआ है।"

    "देख रही हो ना काम्या, तेरी इस बहन की जुबान कैंची की तरह चलती है, और तुम चुपचाप खड़ी तमाशा देख रही हो? मैं देवर जी का हाल-चाल जानने आई हूँ और यह है कि मुझे ही खरी-खोटी सुना रही है। हाय हाय मेरी किस्मत ही फूटी है। मैं तो आप लोगों का भला ही सोचती रहती हूँ और आप लोग मुझे डायन से कम नहीं समझते?"

    "ताई जी, पापा से मिलने का टाइम बीत गया है। उनकी कंडीशन अभी भी खराब है। उन्हें आईसीयू रूम में रखा हुआ है। कुछ देर बाद हम भी वापस जाने वाली हैं। जब तक उनकी कंडीशन सही नहीं हो जाती, किसी को उनसे मिलने भी नहीं दिया जा सकता।" काम्या ने दो टूक कहा।

    तो श्वेता ने राहत की साँस ली।

    "बच गए! वरना मुझे ही इसे भगाना पड़ता, यह कह कर कि यह लोग पापा से कभी नहीं मिल सकते, जब तक पापा हॉस्पिटल में हैं।" श्वेता ने मन में सोचा।

    "यह तो बहुत बुरा हुआ। मैं अपने देवर जी को देख भी नहीं सकती, उनका हाल-चाल भी नहीं जान सकती? हाय हाय मेरी फूटी किस्मत! पता नहीं हमारा क्या होगा। वह तो हमारा सहारा है, हमारे अन्नदाता हैं?"

    इस बीच तानिया कुछ भी नहीं बोली थी। वह चुपचाप अपनी मम्मी का तमाशा देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी।

    "बहुत अच्छी एक्टिंग कर लेती हैं मेरी प्यारी मम्मी। लेकिन यह श्वेता कुछ ज़्यादा ही चालू चीज है। इसका भी कुछ ना कुछ इंतज़ाम तो करना ही पड़ेगा, वरना यह पता नहीं आगे जाकर क्या स्यापा करके बैठ जाए।" तानिया मन में सोचने लगी।

    "चाचा जी को कुछ हो गया तो हमें घर से बाहर निकालने वालों में से यह श्वेता ही सबसे पहले आगे आएगी। काम्या तो फिर भी भोली है। इसको तो हम अपने मगरमच्छी आँसुओं में ही बहाकर फँसा लेंगे। लेकिन इस श्वेता का कुछ अलग से करना पड़ेगा।" तानिया मन में सोचती रही।

    "आप ने सुन लिया ना, दीदी ने क्या कहा? तो कृपया आप लोग यहाँ से दफ़ा हो जाओ। मैं आपको यहाँ पर एक पल भी सहन नहीं कर सकती। मुझे नफ़रत हो गई है आपसे। जब से आप हमारी ज़िन्दगी में आई हो, तब से ही हमारे साथ कुछ ना कुछ गलत होता रहता है।" श्वेता ने थोड़ा गुस्से से कहा।

    "चलिए मम्मी, यहाँ खड़े होकर हम अपनी बेइज़्ज़ती क्यों करवा रही हैं इस दो टके की लड़की के हाथों से?" तानिया ने थोड़ा गुस्से से कहा।

    "ठीक कहा तुमने। यह दो टके की लड़की खुद को पता नहीं क्या समझती है। एक बार देवरजी को ठीक होकर घर आ जाने दो। तब इसको वही बड़ों से बात करने की तमीज़ सिखा सकते हैं। चलो हम चलते हैं।" दलबीर कौर ने कहा।

    और फिर वह दोनों माँ-बेटी वापस चली गईं।

    "देख लिया आपने इनको? इनके तेवर कैसे हैं? ज़रूर यह यहाँ पर अपने ही मतलब के लिए आई होगी। देख लेना आप।"

    "कभी-कभी लोग बीमार आदमी का हाल-चाल जानने भी आते हैं, तो उसका मतलब यह नहीं होता कि उनको कोई अपना मतलब होगा। लेकिन तुम तो अपने हिसाब से सोच लेती हो।"

    "मुझे आपके साथ बहस नहीं करनी। बस मेहरबानी करके चुप हो जाएँ।" श्वेता ने अपने दोनों हाथ जोड़े।

    तो काम्या चुपचाप एक बेंच पर बैठ गई। वह दोनों वहाँ पर रात के 10:00 बजे तक बैठी रहीं। इसके बाद वह दोनों घर वापस चली गईं। श्वेता ने अपने स्कूल से और काम्या ने अपने कॉलेज से छुट्टी ले रखी थी। श्वेता अब दलबीर कौर को अपने पापा से मिलने ही नहीं देना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी कि हॉस्पिटल में दलबीर कौर कोई ऐसी बात कहें, जिसको सुनकर उसके पापा की तबियत फिर से बिगड़ जाए। इसलिए वह सुबह अपनी दीदी काम्या को लेकर जल्दी ही हॉस्पिटल चली गई। तानिया ने श्वेता और काम्या को हॉस्पिटल जाते हुए देख लिया था। वह तमतमाई हुई अपनी मम्मी के पास बैठी हुई थी।

    "क्या हमें चाचा जी से अपनी बात कहने का मौका नहीं मिलेगा? अगर उन्हें हॉस्पिटल में ही कुछ हो गया तो हमारा क्या होगा मम्मी? सोचिए कुछ?"

    "अरे! क्या सोचूँ? वह श्वेता की बच्ची ही मेरे पाँव नहीं लगने देती। देखा नहीं था कल कैसे बोल रही थी मेरे साथ? छोटे-बड़े की तमीज़ ही नहीं रही उसमें?"

    "इसमें उसकी क्या गलती है? हम हैं ही ऐसी कि हमें कोई इतनी इज़्ज़त दे ही नहीं सकता। मूर्ख काम्या को छोड़कर, अगर वह भी श्वेता जितनी तेज होती तो वह मेरी नौटंकी झट से समझ जाती। लेकिन नहीं, वह तो मेरी झूठी नौटंकी में फँसकर अपने प्यार को हमेशा के लिए खो बैठी।"

    "मुझे कुछ भी करके एक बार देवरजी से मुलाक़ात करनी ही पड़ेगी, भले ही उनकी हालत खराब है। लेकिन अपनी बात उन्हें कहनी ही होगी। शायद वह कोई मसला हल कर ही दे। कहीं ऐसा ना हो कि हमें बात करने में देर हो जाए और वह वहीं से टपक जाए, और फिर हम ना घर के रहे ना घाट के?" दलबीर कौर सोचने लगी।


    ,,,,,,,,क्रमशः,,,,,,,

  • 18. दिल दीवाना माने ना - Chapter 18

    Words: 1554

    Estimated Reading Time: 10 min

    "किस सोच में डूब गई आप, मम्मी? अगर चाचा जी से मुलाक़ात करनी है, तो कुछ सोचिए?"

    "सोच तो रही हूँ, लेकिन समझ नहीं आ रहा क्या किया जाए। उस श्वेता से पार पाना मुश्किल होता जा रहा है।"

    "एक आइडिया है मेरे पास। श्वेता अभी बच्ची ही है, उसे बड़े-बड़े टेडी बियर बहुत भाते हैं। उसके घर में हर रंग के टेडी बियर भरे पड़े हैं। लेकिन एक नीले रंग वाला टेडी बियर उसका ख़राब हो गया था, वह अभी तक नहीं मिला उसे। तो क्यों ना आप...?"

    "मैं समझ गई, तुम क्या कहना चाहती हो। ठीक है, तुम वह टेडी बियर लेकर आओ। फिर शाम को हम फिर से हॉस्पिटल चलेंगे। सच कहा तुमने, आख़िर वह तो एक बच्ची ही है, उसे उसकी पसंद की चीज़ देकर बहला देते हैं।"

    "मैं फिर उसके लिए टेडी बियर ढूँढ कर लाती हूँ। आप बस उसे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में लगा कर, और फिर टेडी बियर देकर खुश कर देना। फिर हमारा काम बन जाएगा।" तानिया ने कहा।

    "ठीक है, तुम जाओ। कहीं से भी ढूँढकर लाओ टेडी बियर। आज तो हम उसे शीशे में उतार कर ही रहेंगी।" दलबीर कौर ने मुस्कुराते हुए कहा।

    तानिया घर से बाहर निकल गई। उसने अपनी गाड़ी निकाली, जिसे खुशहाल सिंह छोड़कर चला गया था। बाहर आकर उसने खुशहाल सिंह को कॉल लगाई।

    "अरे! वाह! क्या बात है, मैडम? लगता है मेरे बिना तुम्हारा दिल नहीं लगता। इतनी याद आ रही है तो लेने आ जाऊँ?" खुशहाल सिंह ने कॉल उठाते ही कहा।

    "बकवास बंद करो और ध्यान से सुनो। तुम मुझे फ़ौरन मिलो। मैं घर से निकल आई हूँ। हमें एक टेडी बियर खरीदना है, बड़ा वाला, नीले कलर का।"

    "अभी से टेडी बियर खरीद कर रखना चाहती हो क्या?"

    "ओह, शटअप यार! मैं अपनी बात नहीं कर रही। श्वेता को शीशे में उतारना है, इसलिए लेना है।"

    "अरे! भाई! अब उन लोगों के साथ और क्या खेल खेलने वाली हो? जो तुम लोगों ने खेल खेला, वह कम था क्या?"

    "ओह, अच्छा जी! हमारा खेल खेलना तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा है? लेकिन जो तुमने किया, वह क्या था? सीधे काम्या को ही उठवा दिया था, भूल गए क्या?"

    "अरे! यार, ताना मत मारो। ठीक है, मैं आता हूँ। लेकिन अगर तुम मुझे घर से बाहर से ही ले लो, तो कितना अच्छा है।"

    "ठीक है, तुम घर से बाहर निकलो। मैं आती हूँ। लेकिन हाँ, कभी मम्मी को पता नहीं चलना चाहिए कि हम दोनों ने मिलकर टेडी बियर खरीदा है।"

    "ओके, ठीक है। जैसी तुम्हारी इच्छा। जब तक तुम अपनी मम्मी के पास रहना चाहती हो, रह लेना। मुझे कोई आपत्ति नहीं है।"

    "ओह, हेलो! यह मत समझना कि मैं मम्मी के घर पर हूँ, तो मेरी नज़र तुम पर नहीं है। अगर मैंने तुम्हें कहीं किसी छम्मकछल्लो के साथ देख लिया ना, तो तेरी वहीं पर चमड़ी उधेड़ कर रख दूँगी।"

    "अरे! मैडम जी! मैं ऐसा थोड़ी हूँ? मैं तो एक वफ़ादार हस्बैंड हूँ, जो बस तुम्हारा ही गुलाम है।" खुशहाल सिंह ने कहा।

    "मैं कॉल रखती हूँ। तुम अपने घर से बाहर निकलो।" तानिया ने कहा।

    और कॉल कट कर दी। जल्द ही वह अपने ससुराल वाले घर के पास चली गई। खुशहाल सिंह पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। वह गाड़ी में आकर बैठ गया।

    "चलो, जहाँ से टेडी बियर लेना चाहती हो, वहीं चलते हैं। लेकिन आख़िर तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है? श्वेता को टेडी बियर क्यों देना चाहती हो?"

    "अरे! यार, वह हमें हॉस्पिटल में नहीं जाने दे रही। चाचा जी बीमार हो गए हैं, अचानक से। तो उनसे मिलने के लिए मम्मी जाना चाहती है।"

    "लेकिन जब वह ठीक होकर घर आ जाएँगे, तब तुम लोग मिलने जा सकती हो। अभी क्या पड़ी है?"

    "अरे! यार, वह इतने गंभीर बीमार हैं कि कहीं हॉस्पिटल में ही टपक गए ना, तो हमारे सिर से छत जाती रहेगी, समझे? और मम्मी चाहती है कि चाचा जी के टपक जाने से पहले ही वह घर को अपने नाम करवाने की बात चाचा जी को कह दें।"

    "बहुत दूर का सोचती हो तुम दोनों, माँ-बेटी। लेकिन पता नहीं क्यों, इतनी मक्कारी और चालाकी होने के बावजूद भी तुम दोनों की कोई भी चाल सफल नहीं होती।"

    "ओए! हेलो! अगर हम मक्कार और चालाक नहीं होतीं ना, तो तेरे जैसे से मेरी शादी कभी नहीं होती, समझे?"

    खुशहाल सिंह तानिया की बात सुनकर मुस्कुराने लगा, लेकिन वह कुछ बोला नहीं। सुबह से शाम तक वह दोनों घूमते रहे। पंचकूला में जाकर भी उन्होंने देख लिया, लेकिन उन्हें ब्लू कलर का टेडी बियर नहीं मिल रहा था, जितना बड़ा वह लेना चाहती थीं। छोटे साइज़ का मिल रहा था। फिर एक पंचकूला की शॉप वाले ने उन्हें मोहाली के बारे में बताया। वहाँ की शॉप का एड्रेस लेकर वह मोहाली पहुँच गए। वहाँ से उन्हें बड़ा वाला टेडी बियर मिल गया, लगभग 5 फ़ीट का था और काफ़ी महँगा मिला था। लेकिन तानिया ने कोई परवाह नहीं की। वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी कि उसका काम बन गया।

    "चलो, मैं तुझे तेरे घर पर छोड़ देती हूँ, फिर मैं चलती हूँ।"

    "अरे! यार, मुझे भी अपने साथ ले जाओ ना?"

    "मरना है क्या? मम्मी को पता चल गया ना कि यह सब खिचड़ी मैंने तुम्हारे साथ मिलकर पकाई थी, तो मेरी खाल खींच लेंगी वह।"

    "अरे! तुम्हारी मम्मी है कोई जल्लाद थोड़ी है?"

    "तुम नहीं जानते उनको। उन्होंने आज तक जो कुछ भी किया है, मेरे लिए किया है। और मैंने अपनी मम्मी को ही मजबूर किया है। वरना वह तो पहले ऐसी नहीं थी, जैसी अब बन गई है, समझे?"

    तानिया की बात सुनकर खुशहाल सिंह आगे कुछ नहीं बोला। तानिया ने खुशहाल सिंह को घर छोड़ा और फिर वापस अपने घर आ गई। शाम के 6:00 बज गए थे जब तानिया घर आई। तानिया के हाथ में दलबीर कौर ने बड़ा सा टेडी बियर देखा, तो उसकी बाँछें खिल गईं।

    "अरे! वाह! तुमने तो कमाल कर दिया, तानिया! चलो, इसी वक़्त हम हॉस्पिटल की तरफ़ चलते हैं। अभी वह दोनों वापस नहीं आई हैं।"

    "अरे! मम्मी, चाय तो पीने देती। सुबह से गई हूँ, अब आई हूँ। खाना भी नहीं खाया मैंने तो सुबह से, आपके इस टेडी बियर के चक्कर में।"

    "इस टेडी बियर का चक्कर तुमने ही चलाया था। अब बनने की कोशिश मत करो, समझी? चलो, पहले अपना काम करें।"

    दलबीर कौर ने तानिया को वहाँ बैठने भी नहीं दिया और फिर वह दोनों माँ-बेटी हॉस्पिटल की तरफ़ चली गईं। श्वेता और काम्या हॉस्पिटल से घर आने की तैयारियाँ कर रही थीं, जब दलबीर कौर और तानिया वहाँ पहुँच गईं।

    "हे हे हे हे! बेटी श्वेता, तुम्हारे पापा की तबियत कैसी है? देखो तो मैं तुम्हारे लिए कितना बड़ा टेडी बियर लेकर आई हूँ। तुम्हें पसंद है ना?" दलबीर कौर ने अपने हाथ में वह टेडी बियर पकड़ा हुआ था।

    "ना तो मेरा आज जन्मदिन है और ना ही हमारे घर में कोई फंक्शन। तो फिर यह टेडी बियर आप मुझे किस खुशी में दे रही हैं? कहीं आपको इस बात की खुशी तो नहीं हो रही कि मेरे पापा जी बहुत ज़्यादा बीमार हैं और इसी खुशी को आप सेलिब्रेट कर रही हैं?"

    "क.....कैसी बातें कर रही हो, बेटी श्वेता? मैं तो तेरे लिए यह बस ऐसे ही लेकर आई थी। लेकिन तुम तो उल्टा मुझ पर ही भड़क रही हो।"

    "मुझे मस्का लगाने की कोशिश मत कीजिए, ताई जी। आपकी दाल मेरे सामने नहीं गलने वाली, समझी आप? चुपचाप यहाँ से जैसे आई हो, वैसे ही चलती बनो। वरना ऐसा ना हो कि मेरा पारा हाई हो जाए और सब लोगों को पता चल जाए कि इस छोटी बच्ची में किसी बड़े के साथ बात करने की तमीज़ भी नहीं है।" श्वेता ने दलबीर कौर को उंगली दिखाई।

    तानिया ने श्वेता की बात सुनकर उसे गुस्से से देखा। फिर उसने अपनी मम्मी का हाथ पकड़ लिया।

    "चलो मम्मी, हमारी यहाँ दाल नहीं गलने वाली। श्वेता कुछ ज़्यादा ही चालाक है।" तानिया ने अपनी मम्मी के कान में कहा।

    "चलो चले। लेकिन इस टेडी बियर को अब तुम रख लो। तेरा अपना बच्चा इसके साथ खेला करेगा। इस श्वेता को तो मैंने कम आँकने की भूल कर दी, छोटी बच्ची समझकर। लेकिन यह छोटी बच्ची नहीं है, शैतान की नानी है नानी।" दलबीर कौर ने धीरे से कहा।

    दोनों माँ-बेटी घर की तरफ़ चली गईं। दलबीर कौर गाड़ी में निराश होकर बैठी हुई थी। दलबीर कौर की कोई भी योजना श्वेता के रहते किसी काम नहीं आई। तो थक हार कर दोनों माँ-बेटी को वापस घर आना पड़ा। २ दिन बीत गए थे। दलजीत सिंह की हालत में थोड़ा सा सुधार हुआ था। वह बोलने लायक तो हो गए थे, लेकिन उनका एक हाथ और एक टाँग बेकार हो गई थी। चेहरे पर पैरालाइज़ का इतना प्रभाव नहीं पड़ा था, जितना कि उनकी एक टाँग और एक बाज़ू पर हुआ था। तानिया अब इस फ़िराक़ में बैठी हुई थी कि उसकी और उसकी माँ की योजना तो काम करें ही करें, साथ ही उसका देवर जेल से भी छूट जाए। खुशहाल सिंह राॅकी की ज़मानत कराने में कामयाब नहीं हो पाया था अभी तक। पुलिसवालों ने काम्या और उसके पापा को इस मामले में पुलिस स्टेशन में नहीं बुलाया था, क्योंकि पुलिस को काम्या के पापा की ख़राब हालत के बारे में पता चल गया था। लेकिन फिर भी इंस्पेक्टर साहब काम्या के बयान लेने के लिए उसके पास आ ही गए, और वह भी हॉस्पिटल में। तो काम्या इंस्पेक्टर साहब को देखकर घबरा गई, क्योंकि उसके पास श्वेता भी बैठी हुई थी।

    ,,,,,,क्रमशः,,,,,,

  • 19. दिल दीवाना माने ना - Chapter 19

    Words: 1565

    Estimated Reading Time: 10 min

    पुलिसवाले यहाँ पर लेकिन किस लिए? श्वेता ने इंस्पेक्टर साहब को देखकर मन में सोचा।

    "तुम्हारे पापा की तबियत कैसी है, काम्या बेटा? सब ठीक तो है?" इंस्पेक्टर साहब ने पूछा।

    "जी सर, उनकी तबियत पहले से कुछ ठीक है, लेकिन हमें दस दिन लगेंगे उन्हें घर ले जाने में।"

    "कोई बात नहीं। मुझे तुमसे ही काम था। क्या हम अकेले में बात कर सकते हैं?"

    "जी सर। मैं अभी आई। आप चलिए, हम बाहर पार्किंग में जाकर बात करते हैं।"

    "ठीक है। जरा जल्दी आना, मुझे वापस भी जाना है।" इंस्पेक्टर साहब ने कहा।

    और वे बाहर की तरफ चल दिए।

    "यह क्या लोचा है, दीदी? इंस्पेक्टर साहब आपको कैसे जानते हैं? आखिर बात क्या है?"

    "अरे! कुछ नहीं, वह गाड़ी के सिलसिले में बात करने आए हैं। पापा की तबियत खराब होने की वजह से गाड़ी का तो हमने कुछ किया ही नहीं।" काम्या ने सफेद झूठ बोला।

    "अच्छा, तो आप इंस्पेक्टर साहब से बात करने जा रही हो? ठीक है, आप जाइए, मैं यहाँ बैठी हूँ।" श्वेता ने कहा।

    और काम्या, श्वेता की बात सुनकर, वहाँ से बाहर चली गई।

    "जी सर, कहिए। क्या बात है? आप मुझसे मिलने हॉस्पिटल तक आ गए?"

    "काम्या, रॉकी के मामले में हमें तुम्हारी स्टेटमेंट चाहिए। हमने उसे रिमांड पर लिया हुआ है। अगर हम अदालत में कोई सुबूत या गवाह पेश नहीं कर पाए, और तुमने भी अदालत में उसके खिलाफ कुछ बयान नहीं दिया, तो वह छूट सकता है।"

    "सर, मेरे पापा की तबियत इतनी खराब है कि अगर उनको इस बारे में मालूम पड़ा, तो कुछ भी हो सकता है। मैं अभी इस हालत में नहीं हूँ कि अपनी स्टेटमेंट दे पाऊँ।"

    "अगर तुमने कोई स्टेटमेंट नहीं दी, तो हमें रॉकी को छोड़ना पड़ सकता है। सोच लो, यह तुम्हारे लिए बाद में अच्छा नहीं होगा। अगर वह एक बार छूट गया, तो उसका हौसला और भी बढ़ जाएगा।"

    "मैं जानती हूँ सर, लेकिन क्या करूँ? मुझे अपने पापा की ज़िन्दगी भी बहुत प्यारी है।"

    "तो फिर हमें रॉकी को छोड़ना पड़ेगा, अगर तुम उसके खिलाफ नहीं जाती तो?"

    "ठीक है सर, आप उसे छोड़ दीजिए। मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं। जो भी होगा, मेरी किस्मत में लिखा हुआ है, उसे तो कोई टाल ही नहीं सकता।" काम्या ने अपने दोनों हाथ इंस्पेक्टर साहब के आगे जोड़ दिए।

    "तुम्हारी गाड़ी मैं घर भिजवा दूँगा। कल तक ठीक है। एक छोटी सी स्टेटमेंट मुझे लिखकर दे दो, बस।"

    "जी सर, अभी लिख देती हूँ।"

    इंस्पेक्टर साहब ने काम्या को पेपर और पेन दिया। काम्या ने अपनी स्टेटमेंट लिखकर इंस्पेक्टर साहब को वापस कर दी। फिर वह वापस आ गई। इंस्पेक्टर साहब भी वहाँ से वापस चले गए। इंस्पेक्टर साहब ने खुशहाल सिंह को कॉल करके पुलिस स्टेशन में बुला लिया। खुशहाल सिंह तो घबराकर नंगे पाँव ही घर से भागा आया था कि कहीं उसके भाई को कुछ हो न गया हो। वह पुलिस स्टेशन में तेज़ी से अंदर चला गया।

    "क,,,,,, क्या ह,,,,,, हुआ इंस्पेक्टर साहब? आपने मुझे अर्जेंट क्यों बुलाया?"

    "अरे! भाई, तेरे लिए खुशखबरी है। तेरे भाई को हम छोड़ रहे हैं। तुम उसकी अदालत से जमानत करवा सकते हो। भले ही हमने उसे रिमांड पर लिया था, लेकिन हम कोई आपत्ति नहीं जताएँगे अदालत में।"

    "यह चमत्कार कैसे हुआ सर? क्या आप इस विषय में कुछ बता सकते हैं मुझे?"

    "अरे! भाई, आम खाने से मतलब रखो, पेड़ गिनने में क्या रखा है?" इंस्पेक्टर साहब ने कहा।

    खुशहाल सिंह ने वहीं से अपने वकील को कॉल किया और रॉकी की जमानत करवाने के लिए कह दिया।

    तीन घंटे बाद खुशहाल सिंह अपने भाई को जमानत पर छुड़वाकर घर ले आया। रॉकी बहुत ज्यादा अपसेट और बीमार भी हो गया था। रास्ते में खुशहाल सिंह ने रॉकी से कोई बात नहीं की। घर आते ही उसने रॉकी को एक बिस्तर पर लिटाया।

    "क्या बात है, छोटे? इतनी टेंशन क्यों ले रहे हो? मैंने तुझे कुछ कहा नहीं, तो तुम्हें किस बात की चिंता? मम्मी-पापा को भी मैंने यही कहा था कि तुम कॉलेज टूर पर गए हुए हो।"

    "भाई, मुझे शर्म आ रही है। मेरी वजह से आपको पुलिस स्टेशन आना पड़ा और इतने दिन आपको मेरी वजह से परेशान होना पड़ा।"

    "अरे! भाई, हमारी प्लानिंग फेल हो गई। तुम्हारी किस्मत में ही जेल जाना लिखा था। भूल जाओ इन बातों को।"

    "नहीं भाई, अब मैं उस रवि और काम्या को किसी भी कीमत पर छोड़ने वाला नहीं हूँ।" रॉकी ने दाँत पीसे।

    "अब तो उसका मददगार रवि भी शहर में नहीं रहता। उसे हमने अपनी चालाकी से शहर छोड़कर जाने पर मजबूर कर ही दिया।"

    "अच्छा किया। मेरे रास्ते का सबसे बड़ा कांटा आपने निकाल फेंका। लेकिन आपने किया क्या? कुछ तो बताएँ?"

    तब खुशहाल सिंह ने रॉकी को विस्तार से पूरी घटना बताई। रॉकी की बाँछें खिल गईं।

    "अब तो मज़ा आएगा! काम्या को मैं फिर से उठा सकता हूँ। अब उसे बचाने वाला कौन होगा? अब तो मैं उसके घर के पास से ही उसे उठा ले जाऊँगा।"

    "बिल्कुल! उसका बूढ़ा बाप अब तो चारपाई पकड़ कर बैठ गया है, तो वह भी कुछ नहीं कर पाएगा।"

    "हा हा हा हा हा!" खुशहाल सिंह और रॉकी दोनों ही एक साथ हँसे।

    काम्या के घर के पास वाला घर पिछले कुछ सालों से बंद पड़ा हुआ था। उस घर को आज खोला गया था, और उस घर में काफ़ी चहल-पहल दिखाई दे रही थी। एक खूबसूरत नौजवान, छह फीट कद-काठी वाला, उस घर में साफ़-सफ़ाई करवा रहा था। उसका एक छोटा भाई वहाँ पर मस्ती से इधर-उधर खेलकूद कर रहा था। दोनों ही भाई इस घर में रहने के लिए आए थे। यह घर उन्होंने एक दिन पहले ही खरीदा था।

    "समर, क्या कर रहे हो? इधर आओ मेरे पास।"

    "विराट भाई, खेलने दीजिए ना मुझे! बड़ा मज़ा आ रहा है। बहुत दिनों बाद एक बड़े घर में आए हैं हम लोग।"

    "देखो, घर की साफ़-सफ़ाई हो गई है और सामान भी सेट कर दिया है। अब इधर-उधर बाहर मत जाना, समझे? अनजान जगह पर कहीं गुम मत हो जाना खेलने के चक्कर में।"

    "ठीक है, विराट भाई। मैं कहीं नहीं जाऊँगा। वैसे भी मुझे लगता है कि यहाँ पर मेरे जितने छोटे बच्चे कम ही हैं।"

    विराट की उम्र पच्चीस साल के आसपास थी, तो वहीं पर समर की उम्र ग्यारह-बारह साल के आसपास की थी। शाम के सात बजे तक विराट का घर सेट हो गया था। विराट अपने घर में इधर-उधर टहल रहा था।

    "भाई, हमारे पड़ोसी कौन होंगे? क्या आपने पता किया? या फिर मैं जाकर पता लगाऊँ?"

    "अबे! चुपचाप बैठे रहो! मरवाएगा क्या? हम यहाँ किसी को नहीं जानते, और किसी के साथ जान-पहचान करने की कोशिश हमें महंगी भी पड़ सकती है।"

    "लेकिन क्यों भाई? आप ऐसा क्यों कह रहे हो?"

    "अरे! छोटे भाई, यहाँ के लोग कुछ हाई-फ़ाई सोसाइटी वाले हैं। ना तो क्या पता वे सीधे मुँह बात करना चाहेंगे या नहीं।"

    "एक बात समझ में नहीं आई, विराट भाई। आप यहाँ आए तो आए किसलिए? हमारा काम तो हमारे इलाके में भी अच्छा था। खामख्वाह आपने पापा को नाराज़ कर दिया।"

    "छोड़ो ना, फिर कभी तुझे बताऊँगा। तुम नहीं समझोगे। अभी तुम छोटे हो। जब बड़े हो जाओगे ना, तो अच्छे से समझ जाओगे कि मैंने ऐसा क्यों किया।"

    "लेकिन आप मुझे अपने साथ क्यों लेकर आए? यह बात समझ में नहीं आई।"

    "तुम्हें मैं अपने साथ रखकर यहीं पढ़ाना चाहता हूँ, समझे? इसलिए तुझे अपने साथ लेकर आया हूँ। और हाँ, किसी को कभी मत बताना कि हम अपने किस शहर से आए हैं। जब भी कोई पूछे, तो यही कहना कि हम कनाडा से वापस लौट कर आए हैं।"

    "क,,,,,, क्या भाई? इतना बड़ा झूठ बोलने की क्या ज़रूरत है? माना कि आप वहाँ कनाडा में घूमने गए थे, लेकिन मैं आपके साथ थोड़ी गया था?"

    "अबे! तुम कान्वेंट स्कूल में पढ़े हुए हो। थोड़ी-बहुत अंग्रेज़ी तो आती ही होगी। अगर कोई पूछे भी, तो अंग्रेज़ी में ही बोलना उसके सामने, समझे? ताकि लोगों को लगे कि हम सच में कनाडा से आए हैं।"

    विराट की बात सुनकर समर मुस्कुराते हुए अपने खेलकूद में फिर से बिजी हो गया। विराट और समर रात का खाना खाने के बाद अपने-अपने कमरों में जाकर सो गए। विराट ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर ली थी। उसने यहाँ पर अपना बिज़नेस जमाने का सोचा था। सुबह होते ही वह अपना ऑफ़िस देखने के लिए चल पड़ा, जहाँ पर उसने अपना काम शुरू करना था। घूमते-घूमते एक जगह पर उसे अच्छी साइट मिल गई, और फिर वहीं पर उसने अपना ऑफ़िस खोलने का फ़ैसला कर लिया। वह साइट बिकाऊ थी, तो विराट ने इसे एक अच्छा मौका समझा, और फिर जल्द ही उस साइट के मालिक के साथ उसका सौदा हो गया।

    समर को उसने एक स्कूल में एडमिशन दिला दी थी। समर अपनी ही गाड़ी से स्कूल जाता था और उसी में बैठकर वापस आता। इत्तेफ़ाक से समर की एडमिशन उसी स्कूल में करवाई गई जहाँ पर श्वेता पढ़ती थी। श्वेता से एक साल आगे समर था। श्वेता पाँचवीं कक्षा में थी, तो समर छठी कक्षा में। काम्या श्वेता को स्कूल भेजने लगी थी, लेकिन उसने कॉलेज से छुट्टी ली हुई थी। श्वेता ना चाहते हुए भी काम्या की बात मानकर स्कूल जाने लगी। श्वेता और समर एक ही रास्ते से अपने घर आते थे। कभी श्वेता की गाड़ी पहले आ जाती, तो कभी समर की। आज समर की गाड़ी श्वेता की गाड़ी से पहले आ गई थी।

    ,,,,,,,क्रमश,,,,,,,

  • 20. दिल दीवाना माने ना - Chapter 20

    Words: 1549

    Estimated Reading Time: 10 min

    समर रोड पर अपनी गाड़ी से बाहर निकलते ही श्वेता की नज़र उस पर पड़ी। उसने समर की गाड़ी अपने बगल वाले घर में घुसते देखा तो वह सोच में डूब गई।

    "इसका मतलब इस घर में रहने वाले लोग बरसों बाद वापस आ गए हैं। लेकिन यह नमूना तो मेरे ही स्कूल में पढ़ता है! इसका नाम क्या होगा?" श्वेता सोचने लगी।

    श्वेता भी अपनी गाड़ी से बाहर उतरी थी। उसने समर की तरह बड़े ध्यान से देखा; समर जानबूझकर वहाँ दरवाजे के पास खड़ा इधर-उधर देख रहा था। उसकी नज़र श्वेता पर पड़ी तो उसने श्वेता को देखकर मुस्कुराया।

    "ही ही ही ही ही!"

    "गधा कहीं का! लगता है यह भी दिल फेंक लड़का है। मुझे देखते ही अपनी बत्तीसी दिखाने लगा?" श्वेता ने बुरा सा मुँह बनाया।

    लेकिन समर तो पूरे मूड में था। उसने अपना एक हाथ उठाकर श्वेता को हेलो किया। लेकिन श्वेता ने अपना मुँह टेढ़ा-मेढ़ा बनाया और अपने घर में चली गई।

    "कमाल है! नए पड़ोसी आए हैं, जान-पहचान करनी चाहिए। इसमें बुरा सा मुँह बनाने वाली क्या बात है? वैसे भी हम एक ही स्कूल में पढ़ते हैं।" समर ने सोचते हुए अपने कंधे उचकाए और घर के अंदर चला गया। उसने अपना खाना खाया और फिर अपने कमरे में जाकर बैठ गया। विराट ने एक मेड और दो नौकर रख लिए थे, और दो साफ-सफाई के लिए अलग से नौकर भी रखे थे। विराट अब अपने ऑफिस को देखने लगा था; वह सुबह जाता और शाम को 6:00 बजे वापस आता था। वह इस वक्त घर में ही था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और लगा हुआ था। तभी उसके फ़ोन पर कॉल आ गई। वह आँगन में बैठा कुछ सोच रहा था; उसका ध्यान टूटा फ़ोन की रिंग सुनकर, और फिर उसने कॉल उठा ली। और फिर वह वहाँ चुपचाप एक तरफ जाकर बातें करने लगा। बहुत धीरे-धीरे वह किसी के साथ बातें कर रहा था; कभी उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती, तो कभी उसका चेहरा गंभीर हो जाता। कुछ देर बातें करने के बाद विराट फिर से अपनी जगह पर आकर बैठ गया।

    "आपकी बात हो गई, भाई? मैं तो आपसे अपना होमवर्क करवाने के लिए आया था, लेकिन आप तो कहीं और ही बिजी दिखाई दे रहे थे।"

    "अरे! भाई, पहले ही बता देते तो तुम्हारा होमवर्क पहले करवा देता, फ़ोन पर कॉल फिर कर लेता।" विराट ने मुस्कुराते हुए कहा।

    "भाई, पड़ोस वाले घर में एक लड़की रहती है, मेरी ही उम्र की लगभग होगी, और मेरे ही स्कूल में पढ़ती है।"

    "अबे! आते ही लड़कियों को देखना शुरू कर दिया?" विराट ने समर को आँखें दिखाईं।

    "अरे! वह बात नहीं है, भाई। वह तो मैंने आपको इसलिए बताया कि पड़ोस में मेरी उम्र के बच्चे भी हैं। अगर वे खेलते होंगे, तो क्या मैं उनके साथ खेल सकता हूँ बाहर?"

    "पता नहीं, समर। यहाँ के बच्चे कहाँ खेलते होंगे? क्या पता बाहर खेलते भी हैं कि नहीं?"

    "यह तो बहुत बुरी बात होगी! मैं अकेला घर में खेलते हुए बोर हो जाऊँगा, भाई। आप तो सुबह गए और रात को ही वापस आते हो।"

    "समर, हमें अब यहीं रहना है, तो तुझे खुद को हालात के अनुसार ढालना ही पड़ेगा। स्कूल में ग्राउंड है ना, वहाँ खेल लेना जितना तुम्हारा मन करे।"

    "शायद आप ठीक कहते हो, भाई।" समर ने कहा और फिर चुप हो गया।

    "चल, तुम्हारा होमवर्क तुझे करवा ही देता हूँ। अंदर चल कर बैठते हैं।"

    विराट की बात सुनकर समर उसके साथ अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। वे दोनों जल्दी ही कमरे में पहुँच गए। विराट ने समर का होमवर्क एक घंटे में कंप्लीट करवाया और फिर वह उठकर वापस अपने कमरे में चला गया। दोनों भाइयों ने 9:00 बजे के आसपास खाना खाया था। अगली सुबह समर स्कूल चला गया और विराट अपने ऑफिस में। समर ने स्कूल में भी श्वेता को देखा था; उसका मन स्कूल में नहीं लग रहा था। स्कूल से छुट्टी हुई और समर घर आ गया। घर आकर भी समर तो श्वेता के बारे में ही सोच रहा था; उसकी आँखों के सामने श्वेता का ही चेहरा घूमता हुआ दिखाई दे रहा था। जब शाम के समय विराट वापस आया तो उसने पहली बार समर को एक जगह पर बैठे हुए देखा, जो कि कहीं खोया हुआ था; तो वह हैरान हो गया।

    "यह कभी एक जगह टिक कर नहीं बैठता! आज इसे क्या हो गया? कहाँ खोया हुआ है?" विराट ने मन में सोचा और फिर समर के पास जाकर बैठ गया।

    "क्या हुआ, समर? तुम कुछ खोए-खोए से लग रहे हो। क्या हुआ?"

    "क्या करूँ, भाई? एक खूबसूरत लड़की हमारे पड़ोस में रहती है, मुझसे एक क्लास पीछे है और मेरे ही स्कूल में पढ़ती है।"

    विराट समर की बात सुनकर कुछ समझ नहीं पाया कि वह कहना क्या चाहता है।

    "तो क्या हुआ? उसने तुझे कुछ कहा क्या? लेकिन तुमने पहले भी तो उसके बारे में बताया था ना?"

    "लेकिन तब उस पर ज़्यादा नहीं सोचा था। अब वह मुझे बहुत अच्छी लगने लगी है। मैं उसके साथ दोस्ती करनी चाहता हूँ, लेकिन वह तो कुछ घमंडी लगती है मुझे।"

    "ओए! तेरे को भी लड़कियों में इंटरेस्ट होने लगा! उल्लू के पट्ठे! पढ़ाई पर ध्यान दें, लड़कियों की तरफ नहीं! समझे? अभी तुम इतने बड़े नहीं हुए हो।"

    "क्या करें, भाई? दिल तो बच्चा है, यह कहाँ हमारी सुनता है?" समर ने कहा।

    "अबे! एक थप्पड़ मारूँगा कान के नीचे खींच कर! बड़ा आया दिल की सुनने वाला!"

    "वैसे एक बात और भी है। सुना है उसकी बड़ी बहन भी बहुत खूबसूरत है, आपके लिए परफेक्ट होगी।"

    समर की बात सुनकर विराट ने सच में उसके गाल पर एक थप्पड़ मार दिया।

    "तड़ाक!"

    "कुछ भी बक देते हो! थोड़ा सा अक्ल से काम लिया करो, समझे? अगर तुमने फिर ऐसी बात कही ना, तो तेरी अच्छे से धुलाई हो जाएगी।"

    "आने दो मम्मी-पापा को, फिर मैं आपको बताऊँगा कि मैं क्या चीज हूँ! अभी तो आप मुझ पर अपना जोर दिखा रहे हो ना? फिर मैं दिखाऊँगा आपको।" समर ने अपना गाल सहलाते हुए कहा।

    विराट समर की बात सुनकर वहाँ से उठकर चला गया। उसे मालूम था कि मम्मी समर की तरफ़दारी करती हैं और पापा विराट की, लेकिन फिर भी दोनों भाइयों में बहुत प्यार है। एक हफ़्ते में ही दोनों के मम्मी-पापा उनके पास मिलने के लिए आने वाले थे। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे। काम्या के पापा को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई और वह उसे घर ले आई थी। आज श्वेता थोड़ी सी खुश दिखाई दे रही थी। आँगन में काम्या और उसके पापा बैठे हुए थे; एक व्हीलचेयर पर काम्या के पापा बैठे हुए थे, काम्या उनके पास ही एक दूसरी चेयर पर बैठी हुई थी, और श्वेता एक तरफ़ अकेली ही अपनी मस्ती में लगी हुई थी। श्वेता के हाथों में एक बॉल थी; श्वेता उसके साथ खेल रही थी। खेलते-खेलते श्वेता के हाथ से बॉल जोर का टप्पा खाकर उछली और बॉल दूसरी साइड विराट के घर में चली गई।

    "ओ नो! यार, यह बॉल तो उस नमूने के घर में चली गई!" श्वेता ने बुरा सा मुँह बनाया।

    "दीदी, आप मेरी हेल्प करेंगी क्या? मेरी बॉल नए पड़ोसियों के घर में चली गई है। क्या आप लाकर दे सकती हो?" श्वेता ने काम्या की तरफ़ देखा।

    "तुम खुद जाकर ले आओ। मुझे क्यों कह रही हो? तुमने खुद बॉल फेंकी है ना, तो तुम ही जाओ लेने।"

    "अरे! दीदी, उस घर में एक लड़का है, मुझसे एक क्लास आगे। बहुत ही ज़्यादा आवारा किस्म का लगता है मुझे।" श्वेता ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा।

    "जाओ, बेटा। काम्या, वरना यह आसमान सिर पर उठा लेगी।" दलजीत सिंह ने कहा।

    "चलो, मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ। हम दोनों ही वहाँ जाते हैं, ठीक है?" काम्या ने कहा।

    तो श्वेता ने अनमने मन से हामी भरी। वे दोनों ही बॉल लेने के लिए चली गईं। दलजीत सिंह के पास एक नौकर को काम्या ने आवाज़ देकर खड़ा कर दिया था। श्वेता ने काम्या के साथ चलते हुए इधर-उधर देखा और फिर उस घर के दरवाजे की डोर बेल बजा दी। अंदर आँगन में विराट और समर बैठे हुए थे; समर श्वेता की बॉल को अपने हाथों में पकड़े हुए था।

    "अरे! बाहर कोई आ गया है। राम सिंह, जरा देखना तो बाहर कौन आया है?" विराट ने अपने एक नौकर को आवाज़ लगाई।

    तो एक नौकर, जिसका नाम राम सिंह था, भागता हुआ दरवाजे की तरफ़ चला गया।

    "अरे! आराम से! इतनी भी कोई जल्दी नहीं है।" विराट ने भाग रहे राम सिंह से कहा।

    तो राम सिंह चलते हुए दरवाजे पर पहुँचा और उसने दरवाजा खोल दिया। उसने छोटा वाला दरवाजा खोला था, तो उसके सामने श्वेता और काम्या खड़ी थीं।

    "जी, कहिए? आपको किससे मिलना है?" राम सिंह ने पूछा।

    "वह... वह... क्या है अंकल, कि मेरी बॉल आपके घर में आ गई है, तो मुझे वह वापस चाहिए थी। क्या मुझे मेरी बॉल मिल सकती है?" श्वेता ने काम्या से पहले कहा।

    "जी, मैं देखकर आता हूँ। अगर आपकी बॉल यहाँ है, तो मैं आपको वापस दे देता हूँ।"

    इतना कहकर राम सिंह विराट की तरफ़ चला गया।

    "क्या हुआ? तुम दरवाज़ा खुला छोड़कर ही आ गए? कौन था बाहर?"

    "विराट साहब, पड़ोस के घर वाले हैं। उनकी बच्ची की बॉल अपने घर में आ गई है, तो वह बॉल लेने के लिए ही आए हुए हैं।"

    ,,,,,,क्रमश,,,,,,