Novel Cover Image

Love In Disguise

User Avatar

Sanyogita

Comments

1

Views

654

Ratings

3

Read Now

Description

प्यार जेंडर देखकर नही होता! ये बात अक्सर समलैंगिक इंसान के लिए बोली जाती है, क्या हो जब उस समलैंगिक इंसान को ही ऐसा प्यार हो जाए जिसमें उसे जेंडर से कोई मतलब ना हो?

Total Chapters (2)

Page 1 of 1

  • 1. Love In Disguise - Chapter 1

    Words: 1076

    Estimated Reading Time: 7 min

    अमावस्या की काली रात में घने जंगलों के बीच बनी सुनसान सडक पर एक लडका अपनी जान बचाता हुआ दौडे जा रहा था। काले रंग की कार उसका पीछा कर रही थी। शायद कार में बैठा शख्स उसे दौडा-दौडा कर ही मारना चाहता था। उसने विंडो में से हाथ बाहर निकाला, उसके हाथ में गन थी। उसने ट्रिगर दबाया और गन से निकली गोली सामने दौड रहे उस लडके की पीठ में जा लगी। उसकी दर्दनाक चींख उस सुनसान जंगल में गूंज उठी। वो उस सुनसान सडक पर ही निढाल सा होकर गिर गया और उसने वहीं पर दम तोड दिया। एक हफ्ते बाद..... ये शहर के माफिया त्रिभुवन सिंह का बंगला था। इस वक्त त्रिभुवन ड्राईंग रूम में अपने आलीशान सोफे पर पैर पर पैर चढाए बडी ही शान से बैठा था। उम्र उसकी पचपन साल थी लेकिन व्यक्तित्व काफी दमदार और आकर्षक था। कुछ गार्ड्स उसके सोफे के पीछे सुरक्षा घेरा बनाए खडे थे। त्रिभुवन बडे ही गौर से अपने सामने खडे लडके को देख रहा था जो दिखने में यहीं कोई बीस-बाईस साल का होगा, ब्लैक जींस पर ब्लैक हुडी पहनी थी उसने, बालों को जेल लगाकर खडा किया हुआ था, काली आँखें जो इस वक्त एकदम शान्त और रहस्यमयी थीं, गेहुआं रंग, तीखे नैन-नक्श, कुल मिलाकर काफी प्यारा था वो लेकिन उसके चेहरे के भाव बडे ही ठंडे और रहस्यमयी थे। “तो वो तुम हो जो एक हफ्ते से हमारे आदमियों को मारे जा रहे हो” त्रिभुवन उससे बोला। वो लडका साफ मना करते हुए बोला, “जी नही, आपको कुछ गलतफहमी हुई है, मैंने आपके किसी भी आदमी को नही मारा, बल्कि आपके आदमी ही मुझे मारने आए थे, मैंने तो बस अपनी आत्मरक्षा के लिए उन पर गोलियां चलाईं, अब उनमें से कोई मर गया तो इसमें मेरा क्या कुसूर?” वो बिल्कुल निडर होकर बोल रहा था और उसकी यही बात त्रिभुवन को काफी प्रभावित कर रही थी। त्रिभुवन ने गंभीर होकर कहा, “लडके, तुम मौत के मुहँ में खडे हो, हमारे एक इशारे पर गोलियों से भून दिए जाओगे, फिर भी डर का एक कतरा तक तुम्हारे चेहरे पर नही, तुम्हारी उम्र से ये बात मेल नही खाती।” वो लडका फीका सा मुस्कुराकर बोला, “उम्र तो महज एक नंबर होता है सिंह साहब! दावे से कह सकता हूँ, मुझसे ज्यादा दुनिया आपने नही देखी होगी।” त्रिभुवन की भौंहे ऊँची हो गईं। ये लडका उसके हर सवाल का जवाब जिस तरह से दे रहा था वो हैरत में डालने वाला था। आखिर में त्रिभुवन हल्का सा मुस्कुराया और बोला, “नाम क्या है तुम्हारा?” “ऋत्विज!” नाम सुनकर त्रिभुवन मुस्कुराकर ही बोला, “हाँ तो ऋत्विज, क्या तुम हमारे साथ काम करना चाहोगे?” ऋत्विज भी मुस्कुराकर बोला, “अगर मैं ना कहूँ तो?” त्रिभुवन गंभीर होकर बोला, “तो तुम वापस तो यहाँ से जा नही पाओगे, इसलिए यही बेहतर होगा कि हमारे साथ काम करो और अगर फिर भी नही मानोगे तो तुम्हारे परिवार....” उनकी बात पूरी होने से पहले ही ऋत्विज बोल पडा, “मेरे परिवार में कोई नही है, अकेला हूँ।” त्रिभुवन की भौहें एक बार फिर उठ गईं, “तभी इतने निडर हो क्योंकि परिवार वाला तो चाहकर भी निडर नही बन पाता।” “बिल्कुल आपकी तरह” ऋत्विज ने उस पर व्यंग्य किया। त्रिभुवन की नजरें सख्त हो गईं, “कहना क्या चाहते हो तुम?” ऋत्विज व्यंग्य भरी मुस्कान चेहरे पर लाकर बोला, “इतने नासमझ तो आप हो नही, फिर भी अगर मेरे ही मुहँ से सुनना चाहते हो तो बता देता हूँ, आपका बेटा! आपकी सबसे बडी कमजोरी, आपकी निडरता के दरवाजे पर लगा एक मनहूस ताला..” “बडे ही भोले हैं वो जो मुझे मेरे बाप की कमजोरी समझते हैं।” ये आवाज सुनकर सबने ऊपर की ओर देखा। सीढियों से एक अट्ठाईस साल का हैंडसम लडका वहाँ आ रहा था। उसने ब्लू टीशर्ट पर ब्लैक लॉअर पहना था, बाल उसके घने थे जो कानों तक आते थे, कुछ माथे पर भी बिखरे थे, गोरा रंग, भूरी आँखें, चेहरे पर हल्की दाढी-मूंछ। उसने वहाँ खडे ऋत्विज को देखा और मुस्कुरा उठा। ऋत्विज को उसकी मुस्कान कुछ अजीब लगी इसलिए उसने दूसरी तरफ मुहँ फेर लिया। त्रिभुवन ने जब ये देखा तो उनके चेहरे पर कठोर भाव आ गए, वो अभी आए उस लडके पर चिल्लाए “रुद्रांश!” रुद्रांश ने उनकी ओर देखकर कहा, “क्या है? क्यों गला फाड रहे हो? क्या किया मैंने?” उसे अपने पिता से इस तरह बात करते देख ऋत्विज ने थोडा हैरानी से उसकी ओर देखा। त्रिभुवन अब सोफे पर से उठ खडे हुए और रुद्रांश से बोले, “तुम्हें यहाँ आने को किसने कहा, जाओ यहाँ से।” रुद्रांश चारों ओर देखकर बेपरवाही भरे अंदाज मे बोला, “जहाँ तक मुझे याद है डैड, कि ये घर मेरा भी है और अपने ही घर में कहीं जाने के लिए मुझे किसी की इजाज़त लेने की कोई जरूरत नही।” त्रिभुवन की मुट्ठियां भिंच गईं। रुद्रांश ने आगे कहा, “और जब कोई मुझे आपकी कमजोरी समझ रहा है तो उसकी ये गलतफहमी दूर करना बनता है कि मैं आपकी कमजोरी नही बल्कि बागी हूँ” ये कहते हुए उसने ऋत्विज की ओर देखा फिर कहा, “क्यों, बागी समझता है न? वही जो किसी के खिलाफ होता है, उसी तरह मैं अपने माफिया बाप के खिलाफ हूँ, ये मुझे बिल्कुल भी पसंद नही करते, वैसे मुझे नापसंद करने का एक ओर कारण है...” तभी त्रिभुवन ने रुद्रांश को जोरदार चांटा मार दिया। उसका चेहरा तिरछा हो गया। ऋत्विज भी सन्न रह गया। चांटा खाने के बाद भी रुद्रांश की शक्ल ऐसी थी जैसे उसे कोई फर्क ही ना पडा हो, उसे आदत पड गई हो। त्रिभुवन अपनी कठोर आवाज में उससे बोला, “अब एक ओर शब्द मुहँ से निकाला तो मुझसे बुरा कोई नही होगा, जा अपने कमरे में।” रुद्रांश ने अपने गाल को सहलाया और कहा, “इससे ज्यादा आप कुछ कर भी नही सकते, इकलौता बेटा जो ठहरा आपका।” ये कहकर उसने त्रिभुवन को देखा और मुस्कुरा दिया। फिर ऋत्विज की ओर देखकर बोला, “बस तुझे जो समझाना था वो मैंने समझा दिया, इसलिए अब अपने दिल से ये बात निकाल देना कि मैं अपने बाप की कमजोरी हूँ, मैं तो बागी हूँ।” इतना कहकर वो फिर से सीढियों की तरफ जाने लगा। सीढियों पर चलते-चलते उसने एक नज़र ऋत्विज पर डाली और मुस्कुरा दिया। उसकी मुस्कान देख ऋत्विज को फिर से अजीब लगा। वो अपने मन में बोला, “कहीं इसके बाप का इसे नापसंद करने का दूसरा कारण यही तो नही कि ये गे है, तभी मुझे देखकर मुस्कुरा रहा है, और अगर ऐसा नही है तो कहीं ये समझ तो नही गया कि मैं ऋत्विज नही ऋतिका हूँ।” जारी है...... पार्ट कैसा लगा, समीक्षा जरूर दें।

  • 2. Love In Disguise - Chapter 2

    Words: 1953

    Estimated Reading Time: 12 min

    माफिया किंग त्रिभुवन सिंह के सामने जो लडका खडा था, असल में वो लडकी थी! उसका असली नाम ऋतिका था। त्रिभुवन का बेटा रुद्रांश उसे जिन नजरों से देखकर मुस्कुराया, उसे देखकर ऋतिका को कुछ अजीब लगा। उसने अंदाजा लगाया कि हो सकता है रुद्रांश गे हो और इसी कारण उसके पिता उसे पसंद नही करते लेकिन अगर ऐसा नही है तो फिर पक्का वो रुद्रांश समझ गया है कि वो लडका नही लडकी है। ऋतिका अब उलझन में पड गई थी। त्रिभुवन अब उसकी ओर सख्त निगाहों से देखकर बोले, “तुम जाओ यहाँ से।” ऋतिका ने हैरान होकर कहा, “पर अभी तो कुछ देर पहले आपने ही कहा था कि मैं यहाँ से वापस नही जा पाऊँगा, इसलिए यही बेहतर होगा कि आपके साथ काम करूँ।” त्रिभुवन गुस्से में कुछ बोलने वाले थे कि तभी उनका सेकेट्री विशाल जो कि उनका सबसे भरोसेमंद था, वो उनसे बोला, “बॉस, अब जब वो मानने की कगार पर है तो आप क्यों मना कर रहे हो? और अगर आप रुद्रांश के कारण मना कर रहे हो तो इसकी पूरी जिम्मेदारी मैं लेता हूँ, ये लडका तो उसके सामने भी नही जा पाएगा।” पैंतीस साल का विशाल काफी होशियार था। उसने आज तक त्रिभुवन को जितनी भी सलाह दीं सब की सब फायदेमंद साबित हुईं इसलिए त्रिभुवन खुद से ज्यादा भरोसा विशाल पर करते थे। लेकिन इस बार सिचुऐशन कुछ अलग थी। त्रिभुवन ने सामने खडी ऋतिका से कहा, “तुम भी तो कुछ देर पहले ना कहना चाहते थे, फिर अचानक से तुम्हारा मन कैसे बदल गया?” उन्हें इस बात का खटका था कि कहीं रुद्रांश से मिलने के बाद तो इसका मन नही बदला। ऋतिका ने इस बात का जवाब बेहद संजीदगी से दिया, “मैंने तो बस ये कहा था कि अगर मैं ना कहूँ तो..ना किया तो नही था। खैर, अगर आप नही चाहते तो कोई बात नही, मैं चला जाता हूँ।” वो पलटकर जाने लगी। इतने में ही त्रिभुवन ने उसे रोक दिया, “ठीक है, तुम काम करोगे हमारे साथ।” यह सुनकर ऋतिका का चेहरा हल्की सी मुस्कान के साथ सख्त हो गया। उसकी आँखों में चुनौतीपूर्ण भाव नजर आने लगे। चेहरे के भाव देखकर साफ झलक रहा था कि वो किसी मकसद से यहाँ आई है। ************** यहाँ रुद्रांश अपने कमरे में आ तो गया था लेकिन उसकी नजरों के सामने बार-बार ऋतिका का मासूम चेहरा घूम रहा था। उसे अब चिंता होने लगी और वो खुद से ही बोला, “मैं उसे वहाँ यूं ही छोड आया, ना जाने मेरे जालिम बाप ने क्या किया होगा उसके साथ? कहीं वो उसे मार ना...” ये कहते हुए उसका दिल धक्क से रह गया और पलटकर फिर से जाने लगा तभी उसकी नजर कमरे की खिडकी पर गई। उसने देखा बाहर लॉन में ऋतिका विशाल के साथ कहीं जा रही थी। विशाल उससे कह रहा था, “हमारे काम में ईमानदार रहोगे तो पैसों में खेलोगे।” ऋतिका ने स्टाईल से अपने हाथ में रिवॉल्वर घुमाते हुए कहा, “बस यही तो चाहिए मुझे, गरीबी के कारण बचपन तो रोते-रोते निकल ही गया, अब कम से कम अपनी जवानी तो हँसते-खेलते बिताऊँ, फिर बुढापे में तो हँसना-खेलना भी शोभा नही देता।” यह सुनकर विशाल हँस दिया। ऋतिका तो बस मुस्कुराकर रह गई। अपने कमरे की खिडकी पर खडा रुद्रांश जलती निगाहों से उन दोनों को देख रहा था, ऋतिका का विशाल के साथ होना उसे बिल्कुल भी रास नही आया। लेकिन इसके साथ ही उसे राहत थी कि ऋतिका सही-सलामत थी। मतलब उसके बाप ने उसे काम पर रख लिया था। तभी विशाल किसी काम से चला गया और ऋतिका अकेली ही वहाँ खडी रह गई। अब जाकर रुद्रांश मुस्कुराया और उसे देखते हुए बोला, “आज तक ऐसा कोई नही मिला जो पहली नजर में ही भा गया हो, ना जाने तुम्हारे अंदर ऐसा क्या है जो मुझे तुम्हारी ओर खींच रहा है, नही जानता तुम कौन हो कहाँ से आए हो और क्यों आए हो? पर कहीं ना कहीं लगता है कि तुम बस मेरे लिए आए हो।” वो उसमें खो सा गया। तभी लॉन में खडी ऋतिका की नजर भी उस खिडकी पर गई। रुद्रांश को इस तरह अपनी ओर देखता पाकर वो एक बार फिर असमंजस में पड गई। उसने चेहरा दूसरी ओर कर लिया और परेशानी भरे भाव से बोली, “हे भगवान! क्या मेरे मकसद के बीच इस वायरस को लाना जरूरी था? ऊपर से मिस्ट्री मेन भी बना हुआ है ये! पर ये मिस्ट्री तो वो विशाल भी सुलझा सकता है, उसी से पूछती हूँ।” ऋतिका ने अब दुबारा खिडकी की तरफ नही देखा और तुरंत उस ओर भाग गई जहाँ विशाल गया था। उसे भागते देख खिडकी पर खडा रुद्रांश हल्के से हँसकर बोला, “भाग लो भाग लो, कहाँ तक भागोगे, कभी तो मेरे सामने आ ही जाओगे।” ************** विशाल एक गार्ड से बात कर रहा था। तभी ऋतिका दौडी-दौडी वहाँ आई और उससे बोली, “मुझे आपसे कुछ पूछना है?” विशाल को लगा कि काम के बारे में होगा इसलिए उसने उस गार्ड को वहाँ से भेजा और ऋतिका से बोला, “हाँ बोलो, क्या समझ नही आया?” ऋतिका बोली, “बॉस का बेटा रुद्रांश!” विशाल चौंका, “ये क्या कह रहे हो?” ऋतिका ने हाँ में ऊपर-नीचे सिर हिलाकर कहा, “जी! बॉस का बेटा रुद्रांश! क्या है वो? मुझे देखकर मुस्कुरा क्यों रहा था?” विशाल इधर-उधर देखते हुए बोला, “अभी कहाँ देखा तुमने उसे?” उसको लग रहा था कि रुद्रांश यहीं लॉन में कहीं आसपास है। ऋतिका मना करते हुए बोली, “अरे यहाँ नही है, वहीं अपने कमरे की खिडकी पर खडे होकर देख रहा था मुझे, क्यों देख रहा था?” विशाल थोडे गंभीर भाव से बोला, “शायद तुम उसे पसंद आ गए हो?” “क्या!” ऋतिका चौंकी। विशाल ने भी बता दिया, “याह..ही इज़ गे!” ऋतिका के सिर पर तो जैसे पहाड टूट पडा। अब कैसे बोल दे जाकर उसे कि वो लडका नही लडकी है, और एक लडकी को पसंद करना उसके अस्तित्व के खिलाफ है। विशाल ने ऋतिका के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “लेकिन तुम चिंता मत करो, तुम्हारा उससे ज्यादा आमना-सामना होगा भी नही, इसलिए अब अपने रूम में जाकर रेडी हो जाओ, हमें एक बहुत ही इंपोर्टेंट मीटिंग के लिए निकलना है।” ऋतिका ने अपने ऊपर नजर डालते हुए कहा, “मुझको रेडी होने की क्या जरूरत है, सब-कुछ परफेक्ट ही तो है।” विशाल भी उसे देखते हुए बोला, “हाँ, तुम्हारे हिसाब से तो सब परफेक्ट ही है लेकिन हमारे हिसाब से नही, यहाँ हमारी टीम में काम करने वाले मेंबर्स जिस तरह के गेटअप में रहते हैं, तुम्हें भी वैसे ही रहना होगा।” ऋतिका ने वहाँ आसपास खडे बाकी गार्ड्स को देखा जो काले रंग का सूट, सफेद शर्ट और टाई पहने थे। उनके कानों में ब्लूटूथ लगे थे और आँखों पर काले रंग के सनग्लासेज, चमकदार काले जूते और बेल्ट के नीचे छिपा हुआ हथियार। ये सब काफी प्रोफेशनल और खतरनाक दिखाई पडते थे। ऋतिका भी उन सबकी तरह रेडी होने के लिए जाने लगी तभी एकदम से रुकी और विशाल से पूछा, “लेकिन मेरा कमरा किधर है?” विशाल भी याद आने वाले भाव से बोला, “अरे हाँ! कमरा तो मैंने तुम्हें बताया ही नही, चलो बताता हूँ।” वो ऋतिका को अपने साथ उसका कमरा दिखाने ले गया। एक बार फिर वो दोनों उसी जगह से गुजरे जहाँ से रुद्रांश खिडकी के पास खडा होकर उन दोनों को देख रहा था। “अब कहाँ जा रहे हैं ये दोनों?” रुद्रांश को अब काफी बैचेनी हो रही थी। फिर कुछ सोचकर वो पलटा और अपने कमरे से बाहर निकल गया। बाहर आया तो सामने त्रिभुवन आते दिखे। त्रिभुवन ने जब रुद्रांश को देखा तो बोले, “कहाँ जा रहे हो?” रुद्रांश बिना उनकी तरफ देखे ही बोला, “मैंने आपसे पहले भी कई बार कहा है कि ये घर मेरा भी है, मुझे कहीं भी जाने के लिए किसी की इजाज़त लेने की कोई जरूरत नही।” “मैं बाप हूँ तुम्हारा” त्रिभुवन की आवाज तेज हो गई। रुद्रांश उनकी ओर देखकर बोला, “हाँ तो मालूम है मुझे, फिर क्यों चिल्ला रहे हो?” त्रिभुवन अब दांत पीसते हुए बोले, “मैं चिल्ला नही रहा बस इतना पूछ रहा हूँ कि कहाँ जा रहे हो?” रुद्रांश अब गहरी साँस छोडते हुए बोला, “मैं बस बाहर लॉन में जा रहा हूँ।” इतना कहकर वो आगे बढ गया। त्रिभुवन उसे रोकते तो सही लेकिन फिर उन्हें विशाल की बात याद आ गई जिसने कहा था कि ऋत्विज अब रुद्रांश के सामने नही आ पाएगा। अपने भरोसेमंद साथी की बात याद करके त्रिभुवन ने रुद्रांश को नही रोका और अपना फोन निकालकर विशाल को लगा दिया। इधर विशाल और ऋतिका बंगले के पिछले हिस्से में थे। ये जगह विशेष तौर पर माफिया गैंग के लिए ही बनाई गई थी। वहाँ पर कई कमरे थे। उन्हीं में से एक कमरे का दरवाजा विशाल खोल रहा था कि तभी उसके पास त्रिभुवन का फोन आया। उसने कान पर लगाकर कहा, “यस बॉस!” दूसरी ओर से त्रिभुवन ने कहा, “रुद्रांश लॉन में जा रहा है, तुम कहाँ हो और वो लडका ऋत्विज कहाँ है?” विशाल ने कहा, “डोंट वरी बॉस, हम दोनों तो बंगले के पिछले हिस्से में हैं, इसका कमरा दिखाने लाया हूँ इसे।” अब जाकर त्रिभुवन को राहत मिली और उन्होंने फोन रख दिया। विशाल के सामने कमरे के दरवाजे पर खडी ऋतिका उसे सुनकर बोली, “बॉस ने फोन किया था?” विशाल ने हल्के से सिर हिलाया और उसे कमरे में जाने का इशारा करते हुए बोला, “ये तुम्हारा कमरा, अब जल्दी से रेडी हो जाओ, आधे घंटे में निकलना है हमें।” उसने अपनी घडी देखकर कहा और वहाँ से चला गया। ऋतिका अब कमरे में आ गई। उसने देखा कमरा छोटा और साधारण था। उसमें एक ही खिडकी थी। छोटा सा लकडी का पलंग, एक लकडी की अलमारी, एक पुरानी सी मेज और कुर्सी, दीवारों पर हल्के पीले रंग का पेंट। कमरे में रोशनी थोडी कम थी इसलिए उसने लाइट जला ली। तभी एक गार्ड उस कमरे के दरवाजे पर आया और बोला, “विशाल सर ने तुम्हारे लिए ये कपडे भेजे हैं।” उसके हाथ में एक गत्ते का बॉक्स था जिसमें कपडे और बाकी सामान था। ऋतिका ने वो सब उससे ले लिया। वो गार्ड वहाँ से चला गया। ऋतिका ने वो बॉक्स खोला जिसमें कपडे थे। “ये त्रिभुवन का चमचा विशाल तो काफी फास्ट है, बडी जल्दी मेरे साइज के कपडे ऑर्डर करके मंगवा लिए!” ये कहते हुए उसके चेहरे पर फीकी सी मुस्कान आ गई। फिर उसने कमरे का दरवाजा बंद किया और वॉशरूम में चली गई। उसने शॉवर लिया और बाहर आकर वो कपडे पहन लिए। उन्नीस-बीस ऊपर नीचे था लेकिन उसे इस बात से कोई मतलब नही था। उसे तो बस अपने मकसद से मतलब था। शीशे के सामने व्हाईट शर्ट और ब्लैक पैंट पहने खडी ऋतिका अब टाई बांध रही थी जो उससे बंध ही नही रही थी। उसने गुस्से में उसे नीचे पटक दिया, “पता नही ये टाई बांधने की परंपरा किस फौकट इंसान ने शुरू की है?” अब वो अपने बालों में कंघी कर रही थी। उसके बाल छोटे ही थे बस पहले उसने जेल लगाकर खडे किए हुए लेकिन अब धुल जाने से वो स्ट्रेट हो गए थे। अपने बालों में कंघी करते हुए वो उदास सी लग रही थी। कुछ पुरानी यादें उसकी नजरों के सामने घूमने लगीं.... “काली तेरी चोटी है परांदा तेरा लाल नी, ओ रूप की ओ रानी तू परांदे को संभाल नी, किसी मनचले का तुझपे आ गया जो दिल होगी बडी मुश्किल......” “मनचले! छोडो मेरी चोटी को वरना तुम्हारे सारे बाल उखाड दूंगी।” “अगर तुमने मेरे बाल उखाडे तो मैं तुम्हारी चोटी काट दूंगा, फिर हम दोनों टकला-टकली बनकर गाएंगे...” “कितने बुरे हो तुम, हटो!” “हाहाहाहाहा... तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज हुई और ऋतिका इन यादों से बाहर आई। उसने दरवाजे की ओर देखकर सोचा, “विशाल आया होगा!” पलंग पर रखा कोट उठाकर उसे पहनते हुए वो दरवाजे की तरफ गई। उसने जब दरवाजा खोला तो चौंक गई। सामने रुद्रांश खडा था। जारी है....... पार्ट कैसा लगा, पसंद आए तो समीक्षा जरूर दें।