जब रुद्रान्श को पता चला कि आर्शी आरव को जानती है, तो उसका दिल जोर से धड़क उठा। पहले तो आर्शी चुप रही, लेकिन जब रुद्रान्श ने उसे झकझोरा, तो उसने सच उगल ही दिया— हा...हा... हा.. आरव मेरा मंगेतर है और बहुत जल्द हम दोनों शादी करने वाले है। यह सुनते ही रु... जब रुद्रान्श को पता चला कि आर्शी आरव को जानती है, तो उसका दिल जोर से धड़क उठा। पहले तो आर्शी चुप रही, लेकिन जब रुद्रान्श ने उसे झकझोरा, तो उसने सच उगल ही दिया— हा...हा... हा.. आरव मेरा मंगेतर है और बहुत जल्द हम दोनों शादी करने वाले है। यह सुनते ही रुद्रान्श जैसे ज़मीन पर नहीं बल्कि किसी गहरे अंधेरे खाई में गिर गया। उसका चेहरा सुन्न पड़ गया, साँसें जैसे रुक सी गईं। आँखों में पलक झपकते ही हजारों सवाल, हजारों टूटे सपनों की परछाइयाँ तैर गईं। उसके कदम इतने भारी हो गए मानो लोहे की जंजीरों से बँध गए हों......
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जब रुद्रान्श को पता चला कि आर्शी आरव को जानती है, तो उसका दिल जोर से धड़क उठा। पहले तो आर्शी चुप रही, लेकिन जब रुद्रान्श ने उसे झकझोरा, तो उसने सच उगल ही दिया— हा...हा... हा.. आरव मेरा मंगेतर है और बहुत जल्द हम दोनों शादी करने वाले है।
यह सुनते ही रुद्रान्श जैसे ज़मीन पर नहीं बल्कि किसी गहरे अंधेरे खाई में गिर गया। उसका चेहरा सुन्न पड़ गया, साँसें जैसे रुक सी गईं। आँखों में पलक झपकते ही हजारों सवाल, हजारों टूटे सपनों की परछाइयाँ तैर गईं।
उसके कदम इतने भारी हो गए मानो लोहे की जंजीरों से बँध गए हों। वह लड़खड़ाते हुए गिर पड़ा और घुटनों पर बैठा तो लगा जैसे पूरी दुनिया का बोझ उसके कंधों पर आ गया हो।
कुछ पल तक वह बस वहीं जमे रहा, फिर काँपते हाथों से ज़मीन को थामा और किसी तरह खड़ा हुआ। लेकिन उसका चेहरा अब बदल चुका था— आँसुओं से भीगा, टूटा हुआ, और फिर भी हँसता हुआ।
वह हँसी कोई साधारण हँसी नहीं थी… वह हँसी इतनी दर्दनाक थी कि जैसे हर सुर में दिल की चीख दबा दी गई हो। उसके टूटे हुए दिल की हर दरार उस हँसी में गूँज रही थी। यह हँसी उन सपनों का मज़ाक उड़ा रही थी जो उसने आर्शी के साथ देखे थे, ये हँसी उसकी आत्मा को चीर रही थी।
उसने आर्शी पर धोखे का इल्ज़ाम लगाया, उसे कड़वे ताने दिए। मगर आर्शी बस रोती रही, उसके आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। जब आर्शी ने उसे मनाने की कोशिश की, तो रुद्रान्श ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया।
लाल आँखों से वह गरजते हुए बोला—
"I hate you, आर्शी! मेरी ज़िंदगी से हमेशा के लिए दूर हो जाओ!"
और फिर बिना पीछे देखे वहाँ से चला गया, मानो उसकी पूरी दुनिया वहीं खत्म हो चुकी हो।
दरवाज़े से बाहर निकलते वक्त उसकी आँखें जल रही थीं और दिल तड़प रहा था। वह खुद से बुदबुदाया—
प्यार... हाँ, यही तो सबसे बड़ा मज़ाक है। और अब तो मुझे इससे घिन आने लगी है। मेरी ज़िंदगी में अब कभी प्यार नाम की कोई चीज़ नहीं आएगी। क्योंकि प्यार बस एक ही काम जानता है— धोखा देना प्यार का इस्तमाल करके लोग धोखा देते है और मैं... मैं अब कभी धोखा नहीं खाऊँगा।"
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प्रारंभ
सुबह से ही रिमझिम बारिश हो रही थी। कभी हल्की बूँदें, कभी तेज़ झोंके, और चारों तरफ मिट्टी की सोंधी खुशबू फैली हुई थी। खिड़की से बाहर झाँको तो हर पेड़ धुला हुआ लगता था। पत्तियों पर मोती जैसे पानी की बूँदें चमक रही थीं। सड़क किनारे खिले छोटे-छोटे फूल भी इस नमी में और ताज़गी से भर उठे थे। हवाएँ इतनी ठंडी और मुलायम थीं कि हर कोई अपना दिन सुहाना महसूस कर रहा था।
इसी खूबसूरत मौसम में, विद्या सिंह ने अपने बेटे वीरेंद्र रुद्रान्श सिंह के कमरे का पर्दा हटाते हुए आवाज़ लगाई –
“रुद्रान्श उठना है कि नहीं? या दिन भर इस मौसम का बहाना बनाकर सोते ही रहोगे?”
“हाँ माँ, उठ गया हूँ… इतनी भी क्या जल्दी है। आज तो बारिश हो रही है, आज तो दिन भर सोना चाहिए।”
रुद्रान्श ने अंगड़ाई लेते हुए शरारती अंदाज़ में कहा।
विद्या – बेटा, तुम जानते हो न कि तुम्हारे पापा ने आज तुम्हें ऑफिस बुलाया है। आगे चलकर ये सब बिजनेस तुम्हें ही संभालना है। सीखना तो पड़ेगा ही।
रुद्रान्श – ओह माँ, कितनी बार कहा आपसे…
मुझे ज़रा भी दिलचस्पी नहीं है इस बिज़नेस और ऑफिस के काम में। मैं तो गाना गाऊँगा और देखिएगा, में एक दिन बहुत बड़ा सिंगर बनूँगा। फिर मेरा नाम बड़े-बड़े बोर्ड्स पर लिखा होगा — सिंगर रुद्रान्श विधा सिंह।
इतना कहकर वह खिलखिलाकर हँस पड़ा।
विद्या उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बोलीं –
लेकिन बेटा, तुम्हें नाम के पीछे अपने पापा का नाम जोड़ना चाहिए, पर तुम हमारा नाम लगाना चाहते हो !
रुद्रान्श अपनी माँ को गले लगाते हुए बोला –
माँ, पापा को इस बात से कोई दिक़्क़त नहीं होगी। और मैं चाहता हूँ कि मेरे नाम के पीछे तुम्हारा नाम हो, क्योंकि जहाँ देखो सब अपने पापा का नाम लगाते हैं। पर मैं चाहता हूँ कि दुनिया मुझे आपके नाम से जाने, जब वो मुझे देखे तो उसके जुबां पर एक ही बात हो वो देखो विधा सिंह का बेटा रूद्रांश सिंह।
रुद्रांश की बातें सुनकर विद्या की आँखें भर आईं और वो बोली –
विधा - ठीक है बेटा, लेकिन फिलहाल उठो और तैयार हो जाओ। क्यूंकि तुम्हारे पापा ने बुलाया है, उनकी बात टाली नहीं जा सकती।
रुद्रान्श मुँह बनाते हुए –
ठीक है, जब आप कह रही हैं इसलिए जा रहा हूं मै लेकिन याद रखिएगा, ये सिर्फ आज के लिए है बाकी मैं अपना सपना पूरा करूँगा, बिज़नेस का झंझट नहीं देखने वाला में वो सब मेरे दिमाग के ऊपर से जाता है।
विद्या मुस्कुराकर बोली – ओके बेटा, अब जाओ जल्दी नहा लो। मैं तुम्हारा नाश्ता बनाती हूँ।
विद्या किचन में चली गई। वहीं पुरानी नौकरानी रमा आलू की सब्ज़ी बना रही थी। विद्या ने वहाँ पहुँचकर गरम-गरम पूरियाँ तलना शुरू कर दीं।
कुछ देर बाद रुद्रान्श सिंह तैयार होकर आईने के सामने खड़ा हुआ।
उसका लंबा कद, चौड़े कंधे और एथलेटिक बॉडी उसे औरों से अलग बनाती थी।
सिल्की ब्लैक हेयर उसके माथे पर हल्के से गिर रहे थे। व्हाइट शर्ट और ब्लैक जींस में वह बेहद रॉयल और स्मार्ट दिख रहा था।
लेकिन उसकी असली पहचान उसकी गहरी काली आँखें थीं। उनमें एक रहस्यमयी गहराई थी। जैसे कोई उनमें झाँककर खो जाए और वापस निकल ही न पाए। उन आँखों में एक अजीब सा जादू था— तेज, आकर्षण और मासूमियत सब एक साथ।
उसकी शार्प जॉ लाइन, परफ़ेक्ट नाक और हल्की दाढ़ी उसे और भी मर्दाना और हैंडसम बना देती थी। सच में, वह किसी रॉयल प्रिंस से कम नहीं लगता था।
खुद को आईने में देखकर रुद्रान्श हल्की सी मुस्कान देता है और नीचे डाइनिंग टेबल पर आ जाता है।
विद्या और रमा वहाँ नाश्ता लेकर आती हैं।
विद्या बेटे को देख मुस्कुराती हैं –
“बेटा, आज तो तुम बहुत ही प्यारे लग रहे हो। किसी की नज़र न लगे।”
इतना कहकर वह अपनी आँखों से काजल निकालकर रुद्रान्श की ठोड़ी पर लगा देती हैं।
रुद्रान्श हँसते हुए – माँ, आप हैं न मुझे हर बुरी नज़र से बचाने के लिए।
विद्या (नाश्ता सर्व करते हुए) – अच्छा, अब जल्दी से नाश्ता करो।
रुद्रान्श – वाह, क्या खुशबू है। रमा काकी, आपके हाथों में सच में जादू है।
रमा मुस्कुराते हुए – अरे बेटा, ऐसा कुछ नहीं है।
विद्या – ऐसा ही है, तभी तो हम हमेशा कहते हैं कि रमा ही खाना बनाए।
कहते हुए विधा रुद्रांश की थाली ने नाश्ता परोसती है और फिर दोनों मां बेटे साथ बैठकर नाश्ता करते हैं।
रुद्रान्श – चलिए माँ, मैंने नाश्ता कर लिया। अब ऑफिस के लिए निकलता हूँ।
विद्या – बेटा, आज ड्राइवर भी घर पर नहीं है।
रुद्रान्श – कोई बात नहीं माँ, मैं खुद कार ड्राइव कर लूँगा। बारिश में ड्राइव करने का भी मज़ा आएगा।
विद्या – अरे नहीं दूसरा ड्राइवर बस आ ही रहा होगा उसे लेकर जाओ तुम...
रुद्रांश ( मुंह बनाते हुए ) प्लीज न मॉम...
विधा ( मुस्कुराते हुए ) अच्छा, संभल कर जाना।
रुद्रांश प्यार से अपनी मां के गले से लगता है और अपनी मां के गाल पर प्यार से चूम कर उन्हें बाय कहता है।
वो टेबल पर से कार की चाभी उठाता है और ऑफिस के लिए निकल पड़ता है।
क्रमश:
अब आगे —
रुद्रांश ऑफिस के लिए निकल जाता है। तभी उसका फोन रिंग करने लगता है। स्क्रीन पर विवेक नाम शो हो रहा था। जिसे देख कर रुद्रांश फटाक से फोन उठा लेता है।
रुद्रांश - हेलो
विवेक - हेलो रुद्र, कहाँ हो यार? आज तो तू हमें अपना न्यू सॉन्ग सुनाने वाला था ना, कहाँ अटका पड़ा है?
रुद्रांश - क्या बताऊँ विवेक, तू तो जानता ही है। पापा चाहते हैं कि मैं उनका बिज़नेस संभालूँ और इसलिए उन्होंने आज मुझे अपने ऑफिस में बुलाया है।
विवेक - तो साफ-साफ मना क्यों नहीं कर देता अंकल को कि तुझे नहीं संभालना बिज़नेस विजनेश?
रुद्रांश - यार, तू जानता है न… पापा को ये बिल्कुल पसंद नहीं कि मैं सिंगर बनूँ। बस इसलिए चुप हूँ यार..
विवेक - चलो ठीक है, कोई बात नहीं। वैसे भी तू ऑफिस जा ही रहा है न, हो सकता है वहाँ जाकर तुझे बिज़नेस पसंद आने लगे।
रुद्रांश - हम्म ठीक है, ऑफिस आ गया हूँ, तुझसे बाद में बात करता हूँ।
विवेक - ओके, बाय।
रुद्रांश - बाय डियर।
रुद्रांश जैसे ही कार से बाहर निकलने को होता है, वह देखता है कि वहाँ दीनू काका छतरी लेकर हाज़िर हो जाते हैं।
दीनू काका शुरुआत से ही यहाँ ऑफिस में चपरासी का काम करते थे और बेहद हँसमुख भी थे।
रुद्रांश - अरे नमस्ते दीनू काका, ये देखिए मैं छाता लेकर ही आया हूँ।
दीनू काका मुस्कुराते हुए - खुश रहो बाबू, अच्छा चलो आराम से आ जाओ।
रुद्रांश ऑफिस के अंदर आता है। पूरे रास्ते में कार की खिड़की खुली रखकर आने की वजह से उसके बाल भीग चुके थे। उसके आगे के बाल, जो उसके माथे पर आ रही थीं, सच में उसे और हैंडसम बना रही थी और उस वक्त वो किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं लग रहा था।
ख़ैर, इन सब बातों पर ध्यान न देते हुए वो अपने पापा के केबिन की ओर बढ़ने लगता है। जैसे ही वह वहाँ मौजूद स्टाफ के सामने आता है, सब उसे आश्चर्य से देखने लगते हैं। सब एक-दूसरे का मुँह देखने लगते हैं।
रुद्रांश जो इन सबसे अंजान अपने बाल संवारते हुए और भीगे हुए जींस को फोल्ड किए आगे बढ़ रहा था, उसका ध्यान किसी की तरफ नहीं जाता।
लेकिन रुद्रांश उनके बॉस का बेटा था और उनका होने वाला न्यू बॉस। बस इसलिए सभी स्टाफ अपनी जगह से उठकर रुद्रांश को बेमन से गुड मॉर्निंग विश करते हैं।
रुद्रांश उन सब को ऐसा खड़े हुए देख थोड़ा झेंप जाता है।
रुद्रांश - गुड मॉर्निंग जी… प्लीज़ आप सब ऐसे खड़े मत रहिए, अपना काम कीजिए।
गुड मॉर्निंग सर…
कानों में ये आवाज़ सुनते ही रुद्रांश उसी दिशा में मुड़ता है।
वो देखता है सामने राहुल खड़ा है। राहुल करीब 25-26 साल का नवयुवक था और वहाँ का मैनेजर था।
रुद्रांश - अरे राहुल, क्या हाल है भाई?
राहुल - सब ठीक है सर।
रुद्रांश - अरे यार, कम से कम तुम तो मुझे ये "सर-वर" मत बुलाओ। बहुत अजीब लगता है सबसे ये वर्ड सुनकर।
लेकिन तभी एक गहरी आवाज़ पीछे से आती है —
“लेकिन अब तुम्हें ये वर्ड सुनने की आदत डाल लेनी चाहिए रुद्रांश…”
ये सुनकर रुद्रांश पीछे मुड़ा और देखा कि सामने उसके पापा विक्रम सिंह खड़े थे।
रुद्रांश "पापा" कहते हुए उनके गले लग जाता है।
विक्रम - थैंक्यू बेटा, तुम यहाँ आए। हमें खुशी हुई। आने में कोई दिक़्क़त तो नहीं हुई न, बारिश भी थी आज।
रुद्रांश - नहीं पापा, कोई दिक़्क़त नहीं हुई।
राहुल - सर, आज हमारी एक क्लाइंट के साथ मीटिंग भी है।
विक्रम - हाँ, अच्छा याद दिलाया।
रुद्रांश, तुम भी हमारे साथ आज मीटिंग अटेंड करोगे।
रुद्रांश - लेकिन पापा 😑, मुझे तो कुछ पता ही नहीं है।
विक्रम - तुम बस वहाँ बैठे रहना, बाकी सब समझाने की ज़िम्मेदारी राहुल की होगी। वो तुम्हें सब सिखा देगा। और जब तुम वहाँ रहोगे तो बहुत कुछ नया सीखने को मिलेगा।
(फिर राहुल की ओर देखते हुए) क्यों राहुल, तुम मदद करोगे ना?
राहुल - क्यों नहीं सर, मैं पूरी हेल्प करूँगा रुद्रांश सर की।
विक्रम अपने सिक्योरिटी को बुलाता है और उसे रुद्रांश का केबिन दिखाने को कहता है।
विक्रम - रुद्रांश, तुम तब तक अपना केबिन देख लो, मैं थोड़ा काम कर लूँ। फिर 11 बजे मीटिंग है, तैयार रहना।
रुद्रांश "हाँ" में सिर हिलाता है और अपने केबिन की तरफ बढ़ जाता है।
सिक्योरिटी उसे उसके केबिन में ले जाता है।
सिक्योरिटी - सर, ये रहा आपका केबिन। आपको किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो बताइएगा।
रुद्रांश - थैंक्यू।
वो केबिन को ध्यान से देखने लगता है।
रुद्रांश खुद से बड़बड़ाते हुए - "कहाँ फँस गया यार 😑… पापा कितने खुश हैं। उन्हें दुखी भी नहीं कर सकता। अब तो लगता है मम्मी को ही मनाना पड़ेगा, बस किसी तरह जल्दी से यहाँ से घर निकल जाऊँ शीट कितनी बोरिंग जगह है ये.."
वो खिड़की के पास जाकर खड़ा हो जाता है। बाहर बारिश में हरियाली और ठंडी हवा का नज़ारा बेहद खूबसूरत लग रहा था।
वो अपने मोबाइल में एक सॉन्ग चलाता है और इयरफोन लगाकर सुनने लगता है। उसके चेहरे पर हल्की सी स्माइल आ जाती है और उसका मूड अच्छा हो जाता है।
कुछ देर बाद…
उसे अपने केबिन में किसी के आने की आहट महसूस होती है। वो पीछे मुड़ता है तो वहाँ राहुल खड़ा होता है। जो उसे इशारे से कहता है कि वो अपने कान से इयरफोन निकाले।
राहुल - क्या सर, मैं कबसे बुला रहा हूँ और आप यहाँ इयरफोन लगाए खड़े हैं।
रुद्रांश - अरे यार, पहले तो मुझे "सर" कहना बंद करो वरना दिमाग खराब हो जाएगा मेरा। तुम दोस्त हो मेरे और तुम ही…
राहुल - ओके-ओके रूडी, गुस्सा मत हो। चलो, मीटिंग शुरू होने वाली है।
रुद्रांश - अरे यार 😑, मेरा वहाँ होना ज़रूरी है क्या?
राहुल - बिल्कुल, सर ने तुम्हें वहाँ बुलाने के लिए ही मुझे भेजा है।
रुद्रांश बे - मन से राहुल के साथ मीटिंग में पहुँचता है। जहाँ पहले से उसके पापा विक्रम मौजूद होते हैं।
तभी वहाँ क्लाइंट भी आ जाता है।
सभी एक साथ वहाँ बैठ जाते हैं। काफ़ी देर तक मीटिंग चलती है और आखिर में मीटिंग पूरी हो जाती है।
विक्रम - चलो अच्छा है, ये मीटिंग अच्छे से पूरी हो गई। मुझे लगा नहीं था कि ये क्लाइंट मानेगा।
राहुल - मानता क्यों नहीं सर, हमारे सारे प्रोडक्ट्स अच्छे हैं। उसे तो मानना ही था। और रुद्रांश... आई मिन रुद्रांश सर ने भी बहुत आसानी से क्लाइंट को समझाया। आपने देखा न, सर? उसे रुद्रांश सर का तरीका कितना पसंद आया।
विक्रम - हाँ, वो तो देखा ही मैंने। आखिर मेरा बेटा है, होशियार तो होगा ही।
(रुद्रांश के सिर पर हाथ फेरते हुए) बेटा, हमें बहुत खुशी है कि तुम धीरे-धीरे बिज़नेस में रुचि ले रहे हो।
रुद्रांश - थैंक्यू पापा 🙂
विक्रम - ठीक है, अब घर चलते हैं चलो तुम्हारी मां भी तुम्हारा इंतजार कर रही होगी....
इतना सुनते रुद्रांश राहत ही सांस लेता है और फिर
दोनों वहाँ से अपने घर के लिए निकल जाते हैं।
क्रमशः
अब आगे —
रुद्रांश ऑफिस के लिए निकल जाता है और विवेक से बात करता है। ऑफिस पहुँचने पर, उसे दीनू काका मिलते हैं। ऑफिस में प्रवेश करने पर, स्टाफ उसका अभिवादन करता है। राहुल उसे "सर" कहने से मना करता है। विक्रम सिंह, रुद्रांश के पिता, उसे मीटिंग में शामिल होने के लिए कहते हैं। रुद्रांश को एक केबिन मिलता है। राहुल उसे मीटिंग के लिए बुलाता है, जो सफल होती है। विक्रम, रुद्रांश की व्यवसाय में रुचि लेने की प्रशंसा करते हैं और दोनों घर लौट जाते हैं।
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अब आगे —
घर पर -
‘ अरे आ गए आप दोनों, चलिए फ्रेश हो जाइए हम चाय मंगवाते हैं ’....... सोफे पर बैठ कर टीवी देख रही विद्या ने कहा.....
विक्रम - हाँ और आज मैं बहुत ही खुश हूँ।
विक्रम और रुद्रांश वही पास पड़े सोफे पर बैठ जाते हैं।
विद्या - क्या बात है रुद्रांश, आज आपके पापा बहुत ज्यादा खुश हैं? कोई खास बात है तो हमें भी बताइए आप लोग।
रुद्रांश - माँ, ये तो आप पापा से ही पूछिए।
विद्या - बताइए ?
विक्रम - आज हमारे बेटे ने क्लाइंट के साथ मीटिंग में हमारा साथ दिया। क्लाइंट तैयार नहीं था लेकिन रुद्रांश की सूझ-बूझ से वो हमारे प्रोडक्ट्स खरीदने के लिए मान गया।
विद्या - ये तो बहुत अच्छी बात है। हम खुश हैं कि हमारा रुद्रांश अब बिज़नेस में भी रुचि ले रहा है।
विक्रम - बिल्कुल।
तभी वहाँ रमा चाय लेकर आ जाती है। और सभी चाय पीते हैं।
रुद्रांश - माँ, हम अपने कमरे में जा रहे हैं, थोड़ा आराम करेंगे।
विद्या हाँ में सिर हिलाती है और रुद्रांश अपने रूम की तरफ चला जाता है।
दूसरी तरफ –
इधर एक अंजान लड़की अपना मोबाइल फोन निकालती है और किसी का नंबर डायल करके उसे कॉल करती है।
सामने से आवाज आती है –
‘ बताओ, क्या खबर लाई हो ? ’
लड़की बोली – ‘ सर, उसकी वजह से सब चौपट हो गया। उसने क्लाइंट को मना ही लिया और क्लाइंट अब इनके साथ डील करने के लिए तैयार हो चुका है। ’
उस अंजान शख्स ने गुस्से से कहा – ‘ हाँ ये तो मैं भी जानता हूँ कि वो क्लाइंट तैयार हो चुका है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी और वो रुद्रांश मुझे जरूरत से ज्यादा ही तेज़-तर्रार लग रहा है। ये डील हमारे आदमियों के साथ होनी चाहिए थी लेकिन बीच में वो आ गया और हमारा इस बार नुकसान हो गया। ’
लड़की - ‘ सर, अब क्या होगा अगर ऐसा ही होता रहा तो... ’
अंजान शख्स - ‘ कुछ नहीं होगा। इस बार हमें पता नहीं था कि रुद्रांश इतनी आसानी से क्लाइंट को मना लेगा, वरना मैंने पूरी तैयारी कर ही ली थी कि क्लाइंट डील कैंसल कर दे। जैसे हमने विक्रम सिंह राजपूत को इतने सालों तक खबर नहीं होने दी, वैसे ही रुद्रांश को भी संभाल लेंगे। बेचारा अभी नया-नया है इस बिजनेस में और हम तो ठहरे पुराने खिलाड़ी। और तो और उसे इस बिजनेस में कोई खास दिलचस्पी भी नहीं है। तो वो ज्यादा ध्यान नहीं देगा। ऊपर से वो सब पर इतना विश्वास करता है कि आँख बंद करके भरोसा करेगा। खैर, तुम इस रुद्रांश पर नज़र रखना, बड़ा शातिर है ये। ’
लड़की - ‘ बिल्कुल सर, आप निश्चिंत रहिए। ’
इसके बाद सामने से उस आदमी ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।
इधर रुद्रांश अपने बेड पर लेट जाता है। दिन भर की थकान के कारण उसे जल्दी ही नींद अपने आगोश में ले लेती है।
दूसरी तरफ मुंबई में —
‘ एक तो मैं आज ही सैलरी लेकर आई थी, ऊपर से वो चुड़ैल आके पैसे ले गई। ’
आर्शी गुस्से में अपनी मकान मालकिन को कोसते हुए बोले जा रही थी।
तभी उसकी रूममेट सीमा बोली –
‘ क्या हो गया, कितना गुस्सा करेगी। ’
आर्शी - तो और क्या करूँ? दिमाग खराब कर दिया। टाइम से पहले पैसे लेने आ जाती है लालची औरत। मेरी मजबूरी है जो इसे झेल रही हूँ, वरना ऐसे लोगों को सीधा करना जानती हूँ मैं।
सीमा - मैं भी तो एडजस्ट कर ही रही हूँ न, तू भी कर ले थोड़ा।
आर्शी - चुपचाप बैठी रहती है।
तभी सीमा अपने मोबाइल में रील्स देखते-देखते एक जगह रुक जाती है।
‘ ले आर्शी, ये सुन... कितना बढ़िया सॉन्ग है। पक्का तेरा मूड भी अच्छा हो जाएगा। ’
सीमा सॉन्ग प्ले करती है –
तुम हसीं लम्हात हो,
राहतों की बात हो,
ख्वाबों को रख के लबों पे.....
गुनगुनाती रात हो......
तुम हो.....दिन के उजालो में भी....
रब सा खयालों में भी.....
तुम हरदफा हो......
तुम हो.....मेरी आवाज़ों में भी......
बिन बोले वादों में भी .....
तुम हरदफा हो....
सीमा - ‘ कैसा लगा? ’
आर्शी - हाँ, बढ़िया है।
सीमा - वो तो होगा ही, इसे गाने वाला बड़ा मस्त है। ये हर गाना अपनी आवाज़ में गाता है और जो सुने, सच मे यार इसका दीवाना हो जाए।
आर्शी - हाँ हाँ, तू तो दीवानी ही बन। ये नहीं कि कुछ काम-धाम कर ले।
सीमा - ओह हो, फिर शुरू हो गई तू। मैं तो बस गाने ही सुन रही हूँ।
आर्शी - तेरा गाना खत्म हो गया हो तो ज़रा सब्ज़ी देख ले, मैंने गैस पर रखी है। मैं ज़रा मम्मी को कॉल करके आती हूँ।
सीमा मोबाइल हाथ में लिए किचन की तरफ बढ़ जाती है।
वहीं आर्शी अपनी माँ को फोन लगाती है।
‘ हेलो ’ सामने से आवाज़ आती है....
आर्शी - ‘ प्रणाम माँ, कैसी हैं आप? ’
जानकी - ‘ खुश रहो बेटा। मैं ठीक हूँ। तू ठीक है न? ’
आर्शी - हाँ माँ, मैं ठीक हूँ। और , आरती... ये कैसी है समय से स्कूल जा रही है ना और विजय ठीक है उसके कॉलेज की पढ़ाई ठीक हो रही ना ?
जानकी - हाँ आरू, दोनों ठीक हैं। और तू चिंता मत कर, दोनों अपनी अपनी पढ़ाई भी कर रहे हैं ध्यान से।
आर्शी - ये अच्छी बात है। आप सबने खाना खा लिया?
जानकी - हाँ, सभी ने खा लिया है। तूने खाया आरू?
आर्शी - बस माँ, आपसे बात करके खाने जाऊँगी।
जानकी - बेटा, आज जमींदार साहब आए थे।
आर्शी - हाँ माँ, मैं आपको कल सुबह ही पैसे भेज दूँगी। आप उन्हें कुछ पैसे दे देना और बाकी धीरे-धीरे चुका दूँगी मैं।
जानकी - मैं कैसी माँ हूँ बेटा, जिस उम्र में मुझे तेरा ब्याह करना चाहिए था, उस उम्र में तुझे शहर भेजकर तेरे बाप का कर्ज तुझसे उतरवा रही हूँ। मुझे कहीं काम नहीं मिल रहा है, वरना तुझे इतनी दूर मुंबई कभी न भेजती। तू कितनी मेहनत करके अपना और हम तीन लोगों का पेट पाल रही है, ऊपर से ये कर्ज।
आर्शी - माँ, सब ठीक हो जाएगा। भगवान पर भरोसा रखो। मेरे होते आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। मैं सब ठीक कर दूँगी। बस आप अपना आशीर्वाद ऐसे ही बनाए रखना मुझ पर।
जानकी - मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ है, मेरी बच्ची। जा, अब तू खाना खा ले और सो जा, थक गई होगी न।
आर्शी - हाँ माँ। आप अपनी दवाई तो समय से खा रही हैं न? मैं पूछना ही भूल गई थी।
जानकी - हाँ, मेरी दादी अम्मा। मैं दवा समय से ही खाती हूँ। मेरे पीछे तूने अपना जासूस जो छोड़ा है... विजय !
मुझे दवाई वही देता है। बस बेटा, और अब नहीं खा सकती ये दवा, परेशान हो गई हूँ खा-खा के।
आर्शी - माँ, आप एक बार ठीक हो जाइए फिर आपको कोई नहीं खिलाएगा दवाई। वैसे ये बहुत अच्छी बात है कि विजय अपना काम अच्छे से कर रहा है।
जानकी - ठीक है-ठीक है, अब अपने भाई का पक्ष मत ले ज्यादा। जा बेटा, तू अब आराम कर।
आर्शी - ठीक है माँ, फोन रखती हूँ।
इतना कहकर आर्शी फोन रख देती है और नीचे अपने रूम में चली जाती है।
क्रमशः