यह कहानी एक लड़की की है जो अपने प्यार की खातिर कुर्बान होने को तक को तैयार रहेगी,, पर बदले में उसे दर्द के सिवा कुछ नहीं मिलेगा जिस शाख से वह प्यार करती है वह एकदम पत्थर है क्या इस लड़की के नसीब में कभी इश्क हो पाएगा या तरसती रह जाएगी अपने इश्क को दे... यह कहानी एक लड़की की है जो अपने प्यार की खातिर कुर्बान होने को तक को तैयार रहेगी,, पर बदले में उसे दर्द के सिवा कुछ नहीं मिलेगा जिस शाख से वह प्यार करती है वह एकदम पत्थर है क्या इस लड़की के नसीब में कभी इश्क हो पाएगा या तरसती रह जाएगी अपने इश्क को देखते रहिए deewani यह कहानी एक लड़के के प्यार में हुई पागल लड़की की जो हद से ज्यादा खुद से टूट कर उसे लड़के को प्यार करेगी क्या इस लड़की का इश्क पूरा हो पाएगा क्या मुकम्मल हो पाएगी इन दोनों की कहानी क्या वह लड़का पत्थर ही बनाकर इसके से भगत रहेगा
Deewani
Archer
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दिल्ली,
गाजियाबाद,
एक छोटे से चॉल में एक लड़की सुन होकर अपनी जगह पर बैठी हुई थी। उस लड़की का गोरा रंग, ऊपर से उसके चेहरे पर आई लाली, पतले सुर्ख लाल होंठ और ऊपर से रो-रो कर लाल हो चुकी भूरी आंखें जो अब सूख चुकी थीं। नाक में एक नोज रिंग जिसमें ब्लैक कलर के मोती थे। हाइट 5 फीट 3 इंच, और बाल कमर से भी नीचे आते हुए — वह लड़की कुल मिलाकर किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। इस वक्त वह अपने लहंगे में बैठी हुई थी और उसके सीने पर कोई दुपट्टा नहीं था, जिस वजह से उसका क्लीवेज साफ दिख रहा था। उसका दुपट्टा एक साइड पर गिर पड़ा था और इस वक्त उसकी आंखें पूरी तरह से सूनी पड़ी थीं। उसकी मां रोते हुए उसके कंधों को झकझोड़ते हुए बोली —
“क्यों रे कामाख्या, क्यों किया तूने ऐसा? अरे वह असुर है, असुर! तूने सोच भी कैसे लिया कि वह तुझे जिंदा छोड़ देगा! अरे, इश्क करता था तुझसे… और तूने ऐसा क्या कर दिया जो इतना गुस्सा है? अरे भाग जा यहां से! वह नहीं छोड़ेगा तुझे…”
उसकी मां लगातार चिल्लाए जा रही थी, पर वह लड़की बिना कुछ कहे सुन होकर अपनी जगह पर बैठी थी। उस लड़की की सूनी आंखें बहुत कुछ बयान कर रही थीं। तभी उसकी मां ने उसके चेहरे पर एक थप्पड़ झड़ते हुए कहा —
“तुझे सुनाई नहीं दे रहा? भाग जा यहां से! तुझे असुर नहीं छोड़ेगा! वह तेरा और नहीं रहा जो तुझसे इश्क करता था — वह राक्षस बन चुका है, राक्षस! तूने जो किया है, उसकी सजा तुझे जरूर देगा!”
अपनी मां की बात पर कामाख्या फीका सा मुस्कुराते हुए बोली —
“और उसकी सजा मुझे मिलनी जरूरी है मां… मैंने मेरे असुर को तोड़ दिया, तोड़ दिया मैंने मेरे असुर को मां… बहुत इश्क करता था वह मुझसे, और मैंने क्या किया — उसका विश्वास चकनाचूर कर दिया। मैं जानती हूं, मैंने गलती की है और इस गलती की सजा मुझे भुगतनी होगी मां…”
अभी वह अपनी मां से बात कर ही रही थी कि तभी उनके चॉल का दरवाजा जोर-जोर से बजने लगा।
जैसे ही दरवाजा बजा, कामाख्या की मां का दिल जोर-जोर से धक-धक करने लगा। वह और जोर से रोने लगी, और कामाख्या की तरफ देखते हुए बोली —
“भाग जा बेटी, भाग जा! वह नहीं तुझे छोड़ेगा, वह तेरा असुर नहीं है! तूने अपने असुर का गला खुद घोंट दिया आज रात को… अगर तू उसकी बहन के साथ…”
इतना कहते हुए कामाख्या की मां कुर्बानी जी वहीं पर चुप हो गई।
कामाख्या दर्द से भरी आवाज में बोली —
“मां, यही तो मेरी गलती है… और इसी चीज़ का भुगतान मुझे करना है। मुझे अपने असुर की तड़प को शांत करना है — जो शायद मैं कभी कर न पाऊं…”
इतना कहते हुए कामाख्या की आंखों से आंसू उसके गालों पर लुढ़क आए।
लेकिन इससे आगे वह कुछ कहती कि तभी जोर से दरवाजा टूटने की आवाज आई — और अगले ही पल बाहर से एक लंबा-चौड़ा लड़का, लगभग 6 फुट 3 इंच हाइट, ब्लैक कलर का कुर्ता-पजामा पहने हुए, अंदर आया। उसकी गहरी काली आंखें इस वक्त पूरी तरह से लाल थीं और बाल बिखरे हुए थे, लेकिन फिर भी वह इस हालत में एकदम कातिलाना लग रहा था। उसकी मस्कुलर बॉडी, सीने के तीन खुले बटन की वजह से साफ छलक रही थी। गर्दन पर बना बब्बर शेर का टैटू और भी ज्यादा कातिलाना लग रहा था। कान में पड़ा डायमंड का स्टड —
देखने से ही उस लड़के की पर्सनैलिटी दमदार लग रही थी। वह लड़का दरवाजे पर खड़ा अपनी सर्द नजरों से कामाख्या की तरफ देख रहा था और इस वक्त उसके जबड़े पूरी तरह से कसे हुए थे।
अगले ही पल वह लड़का आगे आया और देखते ही देखते कामाख्या के पास आकर उसने उसके बालों को पीछे से अपनी मुट्ठी में भर लिया। उसने इतनी क्रूरता से कामाख्या के बाल पकड़े कि वह एक पल के लिए तड़प उठी, उसके मुंह से “आह” निकल गई। उसे देखकर कामाख्या की आंखों में आंसू अब लबालब बहने लगे। वह तड़पते हुए उसे देख रही थी, पर उसके होठों से एक भी आवाज नहीं निकल रही थी।
वह असुर अब उसकी तरफ अपनी डेविल नजरों से देखते हुए पीछे से किसी को आवाज लगाता है —
“अजीत…”
जैसे ही असुर ने अजीत को बुलाया, अजीत बिल्कुल उसके सामने आकर सर झुकाकर खड़ा हो गया।
“सोना बाई को कॉल किया?”
जैसे ही असुर ने सोना बाई का नाम लिया, कामाख्या की मां कुर्बानी जी पूरी तरह से कांप उठीं। वह असुर के सामने हाथ जोड़ते हुए बोलीं —
“क्या कर रहे हो बेटा असुर! वह बच्ची है, गलती हो गई!”
तभी असुर बोला —
“मेरी बहन भी बच्ची ही थी!”
इतना कहते हुए उसने अपनी सर्द नजरों से कुर्बानी जी को देखा तो कुर्बानी वहीं चुप हो गईं।
वह फिर से हाथ जोड़कर बोलीं —
“बेटा, मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं, ऐसी जगह पर…”
अभी वह बोल ही रही थी कि असुर बोला —
“कोई और दरिंदा नहीं, आज से इसे मैं ही नोचूंगा।”
इतना कहते हुए असुर ने अपनी सर्द नजरों से कामाख्या की तरफ देखा। कामाख्या उसकी बात पर पूरी तरह से कांप गई। आज तक असुर ने कभी उसके साथ ऐसा नहीं किया था।
कुर्बानी जी बोलीं —
“अरे बेटा, तुम तो इसे इश्क करते हो ना? तो ऐसी बातें क्यों कर रहे हो? तुम जानते हो ना तुम किस जगह की बात कर रहे हो?”
तभी असुर बोला —
“वह असुर मर चुका है जिसने कभी इस लड़की से इश्क किया था।”
इतना कहते हुए उसने कामाख्या के बालों को और कसकर पकड़ा और घसीटते हुए बाहर की तरफ ले जाने लगा।
देखते ही देखते वह कामाख्या को घसीटते हुए बाहर की तरफ लेकर आया। बाहर काफी भीड़ लगी हुई थी जो असुर की गाड़ियों को देख रही थी। वहां लगभग 40 गाड़ियां खड़ी थीं, जिनमें से एक गाड़ी असुर की थी।
वह अब कामाख्या को घसीटते हुए अपनी गाड़ी तक लाया और अगले ही पल उसने उसे गाड़ी में धक्का दिया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। वहां खड़े सभी लोग कामाख्या और असुर को देख रहे थे। असुर का यह रूप देखकर सभी हैरान थे क्योंकि आज तक उसने कामाख्या के साथ ऐसा नहीं किया था।
असुर अब मिरर में से कामाख्या को देख रहा था, जो सूनी आंखों से मिरर में उसे देख रही थी। उसने अभी तक अपने होठों से कुछ नहीं कहा था। वही असुर भी जैसे पत्थर बन चुका था — उसने भी एक बार कुछ पूछना जरूरी नहीं समझा।
देखते ही देखते 15–20 मिनट में उनकी गाड़ी एक कोठे के आगे आकर रुकी। अगले ही पल असुर बाहर निकला, गाड़ी के दूसरी तरफ आया और कामाख्या के बालों को दोबारा अपनी मुट्ठी में भर खींचते हुए बाहर निकाला और कोठी के अंदर ले गया। अंदर जाकर उसने बीचोबीच कामाख्या को धक्का दे दिया।
सामने एक औरत बैठी थी, जो कम से कम 40–45 साल की थी। उसने साड़ी पहनी हुई थी और सामने झूले पर बैठी पान खा रही थी। उसकी आंखों में लबालब काजल भरा हुआ था। जैसे ही उसने असुर को देखा, उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कराहट तैर गई।
वह औरत ताली बजाते हुए बोली —
“क्या बात है, क्या बात है! आज असुर सिंह पठानी हमारे यहां… क्या बात है पठानी साहब! अरे लड़की कौन है? बड़ा कड़क माल है! क्या बात है पठानी साहब, इस लड़की को यहां किसलिए लेकर आए हैं?”
असुर की नजर अब भी कामाख्या पर टिकी थी और कामाख्या की नजर असुर पर। कामाख्या ने एक पल के लिए भी असुर से कोई शिकायत नहीं की, कोई शब्द नहीं कहा।
असुर अपनी गहरी नजरों से कामाख्या की तरफ देखते हुए बोला —
“सोना बाई, इसे अपने कोठे पर नचा। जितना हो सके उतना नचा। और इस लड़की की रोज बोली लगनी चाहिए। इसका जिस रोज बिकना चाहिए, उसे भी पता चले कि जब किसी का बदन बिकता है तो कैसा लगता है… और यहां पर आने वाला हर मर्द…”
इतना कहते हुए असुर वहीं रुक गया। उसकी आंखें गहरी लाल होनी शुरू हो गईं। कामाख्या ने अपनी आंखें कसकर बंद कर लीं और अब उसकी आंखों से आंसू और भी ज्यादा बहने लगे।
तभी कामाख्या बोली —
“हर मर्द के साथ मेरा संबंध होगा, असुर बाबू?”
जैसे ही कामाख्या ने यह बात कही, अगले ही पल असुर ने उसके बालों को मुट्ठी में भरते हुए कहा —
“क्या बात है, बड़ी आग है तेरे बदन में। चल, आज तेरी आग को ठंडा करता हूं — पहले मुझसे शुरुआत कर ले।”
इतना कहते हुए उसने कामाख्या को बालों से पकड़ कर खड़ा किया। कामाख्या अब अंदर तक कांप गई। असुर उसे खींचता हुआ वहीं पर एक कमरे में ले गया और अगले ही पल उसे बेड पर पटक दिया, दरवाजे की कुंडी लगाकर उसकी तरफ घूम गया।
बाहर खड़ी सोनाबाई भी उनकी तरफ देखती रह गई। उसके अंदर भी असुर से बात करने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि असुर वहां का जाना-माना गुंडा था।
अंदर असुर ने जैसे ही कामाख्या को बेड पर पकड़ा, कामाख्या का दिल जैसे उसके मुंह को आने को हो गया। वह नामें सिर हिलाते हुए पीछे की तरफ खिसकने लगी। उसे ऐसे खिसकता देख असुर के चेहरे पर डेविल स्माइल आ गई।
असुर अब अपनी डोमिनेटिंग वॉइस में बोला —
“आज तुझे पता चलेगा कि जब कोई किसी के बदन को नोचता है तो कैसा फील होता है।”
असुर की बात सुनकर कामाख्या का दिल जैसे वहीं पर रुक गया।
To be continued...
Awaari
दिल्ली,,
गाजियाबाद,,
सोना बाई का कोठा,,
अभी-अभी असुर ने कामाख्या को अंदर लाकर बेड पर पटका था,, जिससे कामाख्या के मुंह से आह निकल गई थी,, पर फिर भी वह अपने दर्द को बर्दाश्त करते हुए अपने होठों को दांतो तले दबा दिया,,, वही असुर जो कि अब अंदर की तरफ आया था,, उसने कमरे का दरवाजा बंद किया और अपनी गहरी नजरों से सामने बैठी कामाख्या को देखने लगा,,,
कामाख्या भी अपनी सूनी नजरों से असुर को देख रही थी,, इतनी देर से असुर ने कामाख्या के साथ जिस तरह से पेश आ रहा था एक बार भी कामाख्या ने उफ्फ तक नहीं की थी वह बस अपनी सूनी आंखों से असुर को देखे जा रही थी,, पर जब नीचे असुर ने उसके बदन की बोली लगाने को कहा था तो कामाख्या को अपने अंदर तक दर्द महसूस हुआ था,,
और उसे बात पर कामाख्या की आंखों में आंसू बह रहे थे,, पर जब कामाख्या ने खुद ही अपने बदन की बोली लगने की बात की तो असुर गुस्से से कांपने लगा,, असुर अब अपनी गहरी नजरों से कामाख्या को देखते हुए,, बहुत आग है ना तेरे अंदर चल आज तेरी आग ठंडी करता हूं,, इतना कहते हुए उसने अपने कदम कामाख्या की तरफ बढ़ा दिए,,
जैसे ही असुर ने अपने कदम कामाख्या की तरफ बढ़ाए,, तो कामाख्या अपने आप ही बिस्तर पर पूरी तरह से लेट गई,, जैसे ही कामाख्या बिस्तर पर लेती तो असुर की आईब्रो ऊपर की तरफ उठ गई उसकी आंखें और भी ज्यादा लाल हो गई और जबड़े पूरी तरह से कस गए,, अब वह तेजी कदम लेते हुए कामाख्या के पास आया,, और अगले ही पल दोबारा से उसके ऊपर झुका और उसके बालों को मुट्ठी में भरते हुए दोबारा से बिस्तर पर बैठाते हुए उसके ऊपर झुका,, और उसकी आंखों में देखते हुए शर्म नाम की चीज नहीं है तेरे अंदर क्या अरे अपनी आबरू बेच खाई है क्या तूने....
जो किसी के भी सामने ऐसे लेट रही है इतनी ही आग लगी है बदन में मेरे नीचे लेटने की,, उसकी बात पर कामाख्या अभी भी उसकी आंखों में देख रही थी पर अब,,
असुर की बात सुनकर अब जाकर कामाख्या की चुप्पी टूटी और वह दर्द भरी आवाज में बोली,, आपके लिए क्या आबरू असुर बाबू यह कामाख्या तो शुरू से आपसे इश्क करती है,, ये आबरू यह जिस्म सब कुछ आप ही का तो है,, अरे आप तो मेरी आबरू को रौंद भी देंगे ना तो ये कामाख्या उफ्फ तक नहीं करेगी,, उसकी बात पर अब असुर ने उसके बालों को और भी कसके पकड़ और उसकी आंखों में आंखें डाल कर बोला तुझे क्या लगता है। मैं तुझे अपने सीने से लगाऊंगा,,
ना ना ना कामाख्या देवी,, इतना सस्ता नहीं हूं मैं की जो तेरे जैसी औरत को छुए,, एक पल के लिए सोचा था कि तुझे अपने नीचे रौंद दूं पर नहीं,, अगर मैने तुझे हाथ लगाया तेरी तो कीमत बढ़ जाएगी,, अरे तू तो आबाद हो जाएगी मेरे हाथ लगाने से,, तू तो खुद को सौभाग्यशाली समझेगी,,,तुझे हाथ लगाना तो दूर यह असुर सिंह पठानी,, तुझे छूएगा भी नहीं,, सिर्फ तुझे बर्बाद करेगा,,,, और यह असुर सिंह पठानी का वादा है तुझे,, हर मर्द की नजर तेरे ऊपर होगी सिवाए असुर सिंह पठानी के..
इतना कहते हुए उसने एक बार फिर से कामाख्या के बालों से पकड़ा और खड़ा किया वही कामाख्या अब अंदर तक कांप गई वह ना में है सर हिलाते हुए,, ऐसा मत कीजिए असुर बाबू,, हम जीते जी मर जाएंगे,, आपके सिवा पर हम किसी के सामने इस तरह से... जैसे ही उसने यह बात कही असुर ने उसके बालों को जोर से खींच जिससे कामाख्या की चीख उसे कमरे में गुंज गई,,, असुर उस की आंखों में देखते हुए दांत पीसकर बोला,,, तुम मेरे सामने क्या तू सबके सामने नाचेगी वो भी इसी हाल में नाचेगी,,, इतना कहते हुए वह घसीटते हुए कामाख्या को बाहर की तरफ दोबारा से लेकर आया,,
वही कामाख्या भी आराम से असुर के साथ खींची चली आ रही थी,, आखिर बेचारी की उम्र ही क्या थी 19 साल की उम्र में उसने बहुत से दर्द देखे थे ,, पर सहारा मिला तो वह भी दर्द में बदल गया और उसे सहारे का नाम था असुर...
कामाख्या सोनी सी आंखों से अभी भी असुर की तरफ देखे जा रही थी वही असुर अब घसीटते हुए उसे कोठी के बीचो-बीच लेकर आया सोना भाई जो कि अपने झूले पर बैठी अभी भी सामने खड़ी लड़कियों का मुजरा देख रही थी,, अब उसकी नजर दोबारा से असुर और कामाख्या पर गई,, असुर ने अब कामाख्या को दोबारा से कोठी के बीचो-बीच लाकर धक्का दिया,, और वहां पर खड़े सभी मर्द जो कि यह नजारा देख रहे थे उनकी नज़रें अब कामाख्या पर थी,,
अपनी एक नजर असुर को तो देखा पर अगले ही पल उनकी नज़रें कामाख्या पर आकर ठहर गई कामाख्या थी इतनी खूबसूरत,, इस वक्त कामाख्या ने लहंगा पहना हुआ था जो की मेहरून कलर का था उसका ब्लाउज का गला थोड़ा सा आगे से भी था जिस वजह से उसके हल्के हल्के cleavage शो हो रहे थे,, असुर ने अब सोना बाई की तरफ देखकर बोला अब तुझे क्या सफाई देनी पड़ेगी क्या कर जल्दी से इसके कपड़े बदलवा,,,
जैसे ही असुर ने यह बात कही कामाख्या का दिल धक सा रह गया वह हैरानी से असुर की तरफ देखे जा रही थी..
पर असुर को उसकी नजरों का जैसे रति भर भी असर नहीं हो रहा था वह अपनी सर्द नजरों से देखते हुए कामाख्या की तरफ क्या देख रही है... उसकी बात पर कामाख्या ने कुछ नहीं कहा बस अपनी नज़रें नीचे कर ली,, जिसे देखकर असुर के चेहरे एकदम से एक्सप्रेशन लेस हो गया,,
दूसरी तरफ सोना भाई जो कि अपने झूले पर बैठी हुई थी वह जल्दी से उठी और उसने दो लड़कियों को इशारा किया जो की कामाख्या के पास आई और उसकी दोनों बाजुओं से पकड़ते उसे खड़ा किया और अंदर की तरफ ले गई,, वही कामाख्या तो जैसे अपनी जगह पर जमी हुई थी उसने एक बार भी उनके साथ जाने के लिए विरोध नहीं किया,, कुछ देर में वह लड़कियां उसको अंदर की तरफ लेकर गई और एक छोटा सा घाघरा और उसके साथ बोल्ड ब्लाउज जिसमें से,, उसका सीना हद से ज्यादा बाहर की तरफ रिवील हो रहा था,, वह छोटा सा ब्लाउज उसके सीने को ढकने में नाकामयाब हो रहा था,,
और ऊपर से न्यूड मेकअप उसे पर और भी ज्यादा खेल रहा था,, और बाल खुले,, इस वक्त कामाख्या कर तो उठा रही थी पर अंदर ही अंदर वह पूरी तरह से टूट चुकी थी,, जिस तरह से के कपड़े आज उसने अपने तन पर पहने थे,, उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसकी आबरू छीन ली हो,, पर वो उसे तक नहीं कर रही थी,, वही वह लड़कियां जो कामाख्या को तैयार कर रही थी वह लड़कियां उसकी तरफ देखकर बोली,, करी बड़ी चुपचाप कपड़े पहन रही है,, नखरे नहीं करेगी,,
उन लड़कियों की बात का कामाख्या ने कोई जवाब नहीं दिया बस चुपचाप उन लड़कियों के साथ तैयार हुई और कुछ ही देर में बाहर की तरफ जब उसने अपने कदम रखे,, तो उन लड़कियों ने उसके चेहरे पर घूंघट कर दिया जो की उसके सीने तक का था,, पर वह घूंघट भी उसका कुछ भी छुपा नहीं पा रहा था। उसमें से उसका चांद सा चेहरा साफ दिखाई दे रहा था,, अब लड़कियों ने कामाख्या को बाहर की तरफ लाया और असुर के सामने लाकर खड़ा कर दिया,,, कामाख्या की आंखें इस वक्त पूरी तरह से झुकी हुई थी उसने एक बार भी अपनी नजरे उठाकर असुर की तरफ नहीं देखा था,, वहां पर खड़े हर शख्स की नजरे इस वक्त कामाख्या पर थी जो कि अपनी गंदी नजरों से कामाख्या को देख रहे थे,,
उनकी नज़रें कामाख्या की टांगों से लेकर उसके सीने पर बार-बार जा रहीथी,, वह बेशर्मी से अपने होठों को कोई काट रहा था तो कोई अपने लोअर बॉडी पर अपना हाथ रखकर आहा भर रहा था,,
वही असुर ने एक जब कामाख्या को दिखा तो उसकी नज़रें कामाख्या पर और भी ज्यादा गहरी हो गई,, और वह उसके ऊपर झुकते हुए बोला,,, बिल्कुल फिट बैठते हैं ऐसे कपड़े तेरे पर तू इसी लायक है,, और क्या कहा तूने इश्क अरे तेरा इश्क जला कर रखना कर दिया मेरा नाम भी असुर सिंह पठानी नहीं..
जैसे ही असुर ने यह बात कही कामाख्या उसकी बात पर व्यंग्य से मुस्कुराई और अब जाकर उसने अपनी आंखें असुर की तरफ उठाई ,, और उसकी आंखें असुर से जा टकराई,, पर अगले ही पल वह व्यंग्य से एक हंसी और अपने ऊंचे स्वर में बोली,, आप नहीं समझेंगे असुर बाबू...
इश्क है इश्क कोई मजाक नहीं,, और एक बात और एक औरत का इश्क ऐसा होता है कि कोई उसे हरा नहीं सकता,, और औरत के इश्क से कोई जीत जाए ऐसा कोई पैदा नहीं हुआ,, उसकी बात पर अब असुर के जबड़े और भी ज्यादा कस गए अगले ही पल उसने उसने कामाख्या के चेहरे से वह घूंघट उठाकर कोठे के बीचो-बीच फेंकते हुए उसके बालों को कसकर पढ़ते हुए बोला,,, और असुर सिंह पठानी किसी से हारता नहीं है,,
इतना कहते हुए उसने दोबारा से कामाख्या को वहीं पर धक्का दिया और बोला नाच आज तेरा नाच यहां पर खड़ा हर मर्द देखेगा,, दिखेगा क्या तेरे जिस्म को अपनी आंखों से नोचेगा,, चल नाच,, उसकी बात पर कामाख्या की आंखें,, अब भर आई उसका चेहरा अब नीचे की तरफ़ था,, और उसकी आंखों के आंसू जमीन पर गिर रहे थे,, उसका दिल इस वक्त बुरी तरह से तड़प रहा था पर उसने एक बार भी असुर से शिकायत उसका दिल इस वक्त बुरी तरह से तड़प रहा था,,
पर बिना असुर पर सवाल दागे अगले ही पल वह अपनी जगह से उठी,,
और और हल्के से गुनगुनाने लगी,, जैसे ही कामाख्या ने गुनगुनाना शुरू किया असुर अब अपने कदमों को सोना भाई की झूले की तरफ लेकर गया और सोना भाई के जब पास पहुंचा तो उसके अपनी गहरी नजरों से देखने लगा जैसे ही सोना को असुर की नजर खुद पर महसूस हुई वह डरकर कांपते हुए पीछे की तरफ हो गई और झूले से उठकर सामने बेंच पर जाकर बैठ गई,,
वही कामाख्या अब अपनी जगह पर खडी गाना गुनगुनाते हुए अपने हाथों को हवा में लहराने लगी,, वहां खड़े हर शख्स की नजरे कामाख्या पर और भी गहरी हो गई,, और असुर की नजरे उन सब पर गहरी हो गई,,
Teri baahon mein jo sakoon tha mila
Maine dhoondha bahut tha
Phir na milaa...
इतना कहते हुए कामाख्या ने अपनी कलाइयों को बल कहते हुए असुर की तरफ घुमाया,, जैसे ही उसने असुर की तरफ इशारा किया असुर की आंखें उसे पर गड़ गई,, और अगले ही पल उसकी नज़रें कामाख्या पर सर्द हो गई,, वही कामाख्या तो मानो जैसे असुर में ही कहीं कोई हुई थी,, आस-पास कोई है या नहीं है उसे कोई खबर नहीं थी उसने किसी पर भी कोई ध्यान नहीं दिया उसकी नज़रें सिर्फ असुर पर थी वह नाच तो रही थी पर उसके लिए वहां सिर्फ असुर ही बैठा हुआ था बाकी कोई नहीं,,
Duniya chhoona chaahe mujh ko yoon
Jaise un ki saari ki saari main
Duniya dekhe roop mera
Koi na jaane bechaari main
इतना कहते हुए उसने अपनी हाथों को अपने सीने पर ले जाते हुए आंखों से पानी निकल रहा था पर बार-बार उसकी नज़रें असुर पर ठहर रही थी वही असुर की नजरे भी सिर्फ उसी पर टिकी हुई थी,, पर उसे सब खबर था कि आसपास के जितने भी मर्द थे वह किस नजरों से कामाख्या को देख रहे थे,, जिससे अगले ही पल उसने सर्द नजरों से सोना को देखा,, जैसे ही असुर ने सोने को देखा तो सोने का गला सूखने लगा और अगले ही पल उसने वहां पर खड़े बॉडीगार्ड की तरफ देखा तो बॉडीगार्ड उसका इशारा समझ कर वहां पर खड़े सभी मर्दों को बाहर की तरफ भेजने लगे,,, देखते ही देखते सोना ने सारे मर्दों को बाहर की तरफ भेज दिया और अब वहां पर सिर्फ कामाख्या और असुर रह गए थे,, कामाख्या कोठी के बीचो-बीच नाच रही थी और असुर से अपनी गहरी नजरों से देख रहा था,, उसकी नज़रें इस वक्त आग उगल रही थी,,
Haaye, tooti saari ki saari main
Tere ishq mein hoi Awaari main
Koi shaam bulaaye
Koi daam lagaaye
Main bhi upar se hansti
Par andar se haaye..
मोटा होने की वजह से वहां पर शराब का इंतजाम बड़े आराम से किया गया था सामने ही टेबल पर बहुत सी शराब की बोतल पड़ी हुई थी,, और अगले ही पल असुर अपनी जगह पर खड़ा हुआ और उसने शराब की बोतल उठा कर सीधी अपने होंठो से लगा ली और अपनी गुस्से भरी नजरों से नाचती हुई कामाख्या की तरफ देखने लगी,, वही कामाख्या अपनी कमर को लचकते हुए ,, और अपनी बाहों को लहराते हुए नाच रही थी,, पर अगले ही पल आगे के बोल अब असुर ने अपने मुंह से निकले,,
Kyun dard chupaaye baithi hai,
Kyun tu mujh se kehti hai
Main to khud hi bikhra hua.
Haaye andar andar se toota main
Tere ishq mein khud hi se rootha main
जैसे ही असुर ने अपने मुंह से बोल निकल तो कामाख्या के कदम वहीं पर रुक गए और उसकी आंखों में नमी तैरने लगी,, कामाख्या का दिल इस वक्त जोर-जोरों से ढक-ढक कर रहा था क्योंकि असुर ने अपने कदम कामाख्या की तरफ बढ़ा दिए थे,, देखते ही देखते वह कामाख्या के बिल्कुल पास आकर खड़ा हो गया,, और अपनी लाल आंखों से कामाख्या को देखने लगा दोनों की आंखें इस वक्त आपस में मिली हुई थी और कामाख्या की धड़कनें इस वक्त किसी ट्रेन की तरह दौड़ रही थी और सांस गहरी हुई पड़ी थी,, पर अगले ही पहले जो हुआ उसे देखकर कामाख्या की आंखें और भी ज्यादा बहने लगी,, क्योंकि असुर ने अपनी हाथों में पकड़ी हुई शराब की बोतल को सीधे जमीन पर फेंक तोड़ दिया था,, और अगले ही पल कामाख्या की तरफ देखते हुए चल नाच तूने क्या सोचा था कि मैं तुझे रोक दूंगा नाच अब नाच के दिखा,, बड़ी आई इश्क की दुहाई देने वाली,,
इतना कहते हुए असुर ने अपनी गहरी नजरों से कामाख्या को देखा वही कामाख्या फीका सा मुस्कुराते हुए एक बार फिर से उसने अपने कदम अब कांच पर रखा ही था कि तभी उसकी आह निकल गई,, जैसे ही उसने अपने कदम कांच पर रखे,, ससुर की आंखें हद से ज्यादा लाल हो गई पर उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ मोड़ लिया और सामने झूले पर जाकर दोबारा से बैठ गया,, कामाख्या अब उसे कांच पर नाचने लगी,, और असुर अपने लबों से गाने के कुछ बोल गुनगुना रहा था और उन पर कामाख्या नाच रही थी,,
Main jee bhar ke ro loon
Teri baahon mein so loon
Aa phir se mujhe mil
Main tujh se ye boloon
Tu anmol thi
Pal pal bolti thi
Aisi chup tu laga ke gayi
Saari khushiyaan kha ke gayi
वहां पूरे आंगन में कामाख्या के पैरों के निशान बन गए थे उसके पैरों से बेइंतहा खून निकल रहा था पर फिर भी वह रुक नहीं रही थी,, ना असुर के बोल रुक रहे थे और ना ही कामाख्या के पैर,, कामाख्या की आंखों से पानी आ रहा था पर फिर भी वह रुकने का नाम नहीं ले रही थी तभी आसमान में बादल गरजे और बारिश होनी शुरू हो गई और उसे बारिश में कामाख्या बिना रुके नाच रही थी,,
Haaye, andar andar se toota main
Tere ishq mein khud hi se rootha main
Haaye, teri hoon saari ki saari main
tere liye na saari main
इसी के साथ कामाख्या गोल-गोल घूमते हुए वहीं कांच पर जा गिरी,, उसके सांस इस वक्त बेहद गहरी चल रही थी और देखते ही देखते कामाख्या बेहोश हो गई उसको आंगन के बीच ऐसे लेटे देखकर असुर ने अपने लाल आंखों से कामाख्या को देखा और अपनी जगह से खड़ा हुआ और अपने कदम कामाख्या की तरफ बढ़ा दिए,, और देखते ही देखते उसके ऊपर झुका और उसे अपनी गोद में उठाकर अपनी गहरी नजरों से उसके चेहरे की तरफ देखते हुए,,
तूने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी अब मैं तुझे बर्बाद कर दूंगा..
इतना कहते थे असुर की आंखें हद से ज्यादा लाल थी और अब उसने अपने कदम बाहर की तरफ बढ़ा दिए इस वक्त कामाख्या उसकी गोद में थी
देखते ही देखते ही अपनी गाड़ी में बैठा और कामाख्या को अपनी गाड़ी की बैक सीट पर प्लेट आया और वहां से ले गया,,
To be continue....
Guys,, प्राइज मनी इस नाग कामाख्या का नाम चेंज करदिया है objection uthai hai jis vajah se mujhe Kamakhya ka naam change karna pada kyunki Kamakhya hamari Kamakhya Devi maa ke naam se prasiddh hai to main unka Naam is noble mein use nahin kar sakti to isiliye Maine Kamakhya ki jagah Kanika kar diya hai I hop aap log samjhenge
Highway पर,
असुर की गाड़ी इस वक्त हाईवे पर दौड़ रही थी, और उसके हाथ में इस वक्त शराब की बोतल थी, जो कि वह होठों से लगाए तेजी से गाड़ी चला रहा था। उसकी आंखें, जो कि खून की तरह लाल थीं, आगे के मिरर से पिछली सीट पर बेहोश पड़ी कनिका पर टिकी थीं। इस वक्त कनिका पूरी तरह से बेहोश थी, और उसके चेहरे से रौनक पूरी तरह गायब थी। वही असुर, उसे अपनी लाल आंखों से एकटक देखते हुए, अपने होठों से शराब लगाकर गटागट पिए जा रहा था। उसकी नज़रें एकटक कनिका के चेहरे पर बनी हुई थीं।
कुछ ही देर में उनकी गाड़ी एक बड़े से हवेली जैसे घर के आगे आकर रुकी। घर इतना बड़ा था कि हवेली भी उसके सामने फीकी पड़ जाए। घर के बाहर नेम प्लेट पर "पठानी हाउस" लिखा हुआ था।
असुर, जो कि गाड़ी में बैठा अभी भी शराब पी रहा था, अपनी गहरी नज़रों से फ्रंट मिरर से कनिका को देखता जा रहा था। वही कनिका, जिसकी पीठ पर कांच धंसा हुआ था, उसे अभी तक होश नहीं आया था। असुर अब गाड़ी से बाहर निकला, और अपनी बैक सीट का डोर खोलकर अगले ही पल उसने कनिका को अपनी गोद में उठाया और सामने पठानी हाउस की तरफ अपनी लाल आंखों से देखने लगा।
देखते ही देखते असुर ने अपने कदम पठानी हाउस की तरफ बढ़ा दिए। पठानी हाउस के बाहर दो गार्ड खड़े थे। उन्होंने जब असुर को देखा तो हैरानी से उनकी आंखें बड़ी हो गईं, क्योंकि पिछले दस सालों से असुर वहां नहीं आया था। जब से असुर की माँ और डैड का देहांत हुआ था, उसने यहां पर आना छोड़ दिया था।
18 साल के असुर ने अपनी जिंदगी में इतना कुछ देखा था कि वह पूरी तरह से टूट चुका था — और तब जाकर उसे एक सहारा मिला था, और वह थी कनिका...
पर आज हालात बहुत अलग थे। कभी वह कनिका से इश्क कर बैठा था, लेकिन आज उसकी आंखों में कनिका के लिए सिर्फ और सिर्फ नफरत थी। और इस नफरत का कारण कनिका खुद थी। और यह कारण क्या था — वह तो आगे चलकर ही पता चलने वाला था।
देखते ही देखते असुर, कनिका को पठानी हाउस के अंदर लेकर गया। जैसे ही उसने अंदर कदम रखा, उसकी आंखें आग उगलने लगीं। एक पल के लिए उसके कदम वही दहलीज पर ठहर गए, और उसकी आंखों के सामने एक औरत का चेहरा घूम गया, जो बड़े प्यार से उसके गाल पर हाथ रख रही थी। पर अगले ही पल उसने अपना सिर झटका और अंदर की तरफ बढ़ गया।
तकरीबन 15-20 मिनट बाद,
उसने कनिका को एक कमरे में लिटाया और खुद कमरे से बाहर निकल गया।
बाहर आकर उसने एक सर्वेंट को आवाज़ लगाई, जो किचन में काम कर रही थी — दीप्ति, जो कि वहां की काफी पुरानी नौकरानी थी। उसकी उम्र लगभग 45 साल के आसपास लग रही थी।
असुर ने ऊंची आवाज़ में पुकारा —
"दीप्ति!"
जैसे ही असुर ने उसे आवाज़ लगाई, दीप्ति की आंखें बड़ी हो गईं क्योंकि उसने भी असुर की आवाज़ सुने बहुत वक्त हो चुका था। दीप्ति अब अपने तेज कदमों से किचन से बाहर निकली और असुर के सामने आकर खड़ी हुई। उसने सिर झुका कर कहा —
"जी साहेब... मैं आपके लिए क्या कर सकती हूं?"
असुर ने जो कहा, उसे सुनकर दीप्ति की आंखें बड़ी हो गईं, और अगले ही पल उसने सिर झुका कर हाँ में हिला दिया।
वहीं दूसरी तरफ, कमरे में कनिका अभी भी बेहोश पड़ी थी। तकरीबन आधा दिन ऐसे ही बीत गया। दोपहर के 1:00 बजे, कनिका को होश आने लगा। उसने आंखें खोलीं तो अगले ही पल उसके मुंह से "आह..." निकल गई, क्योंकि उसकी पूरी पीठ पर कांच धंसा हुआ था। उसके जख्म गहरे थे, पर खून सूख चुका था। कांच अभी भी कई जगहों पर धंसे हुए थे।
उसने अब अपने होठों को दांतों तले दबाते हुए धीरे से बिस्तर पर उठी और इधर-उधर देखने लगी। कमरे को देखकर कनिका की आंखें बड़ी हो गईं, क्योंकि वह इस कमरे को बहुत अच्छी तरह पहचानती थी। हालांकि उसे इस कमरे में आए बरसों हो गए थे, पर फिर भी वह इसे पहचान गई।
कनिका का दिल अब जोर-जोर से धड़क रहा था। वह धीरे-धीरे कमरे के दरवाजे तक पहुंची। जैसे ही उसने दरवाजे पर हाथ रखा, दरवाजा अपने आप खुल गया। सामने सर्वेंट खड़ी थी —
"मेमसाहब, आपको नीचे बुलाया जा रहा है..."
कनिका ने सिर हिला दिया, पर कुछ नहीं कहा।
वह धीरे-धीरे सीढ़ियों की ओर बढ़ी। जैसे ही वह सीढ़ियों पर पहुंची, नीचे का नज़ारा देखकर उसका दिल धड़कने से इनकार करने लगा। नीचे हर तरफ गद्दे बिछे थे, मर्द बैठे थे — सब अपनी मदहोश निगाहों से ऊपर आ रही कनिका को देख रहे थे।
बीच में एक बड़ा सा गद्दा लगा था, जिस पर खुद असुर बैठा हुआ था — हाथ में शराब का ग्लास, होठों से लगाए, और लाल आंखों से ऊपर खड़ी कनिका को देखता हुआ।
असुर ने ऊंची आवाज़ में कहा —
"क्या हुआ? पैरों में जंजीर बन गई है क्या? जल्दी नीचे आ, हमें नाच देखना है। और ये घुंघरू पैरों में बांध ले!"
इतना कहते हुए असुर ने हाथों में घुंघरू की पायल जो कि नचनिया पहनती थी, जमीन पर फेंक दी।
उसे देखकर कनिका की आंखों में आंसू भर आए। उसने आंखें झुका लीं और धीमे से बड़बड़ाई —
"आप बहुत बड़ा पाप कर रहे हैं बाबू... इश्क को कोठे में नीलाम करके..."
इतना कहते हुए वह धीमे कदमों से नीचे उतरने लगी। जैसे ही उसने कदम नीचे रखे, कुछ मर्दों ने सीढ़ियां बजानी शुरू कीं। असुर की आंखें एक पल के लिए सर्द हो गईं, पर अगले ही पल तिरछी मुस्कान के साथ उसने कनिका की तरफ देखा।
अब कनिका धीरे-धीरे आगे बढ़ी। कुछ ही देर में वह घेरे के बीच में आकर खड़ी हुई — चारों तरफ मर्द उसे गंदी नजरों से देख रहे थे। लेकिन कनिका की नजरें सिर्फ असुर पर थीं।
उसने कदम असुर की तरफ बढ़ाए।
असुर की आंखें ठंडी पड़ गईं, उसने जबड़े भींचते हुए कहा —
"तुझे नाचने को बोला है, मेरे पास आने को नहीं! चल, नाच!"
पर कनिका ने कुछ नहीं कहा। वह उसके पास जाकर एक घुटने के बल नीचे बैठी और उसकी आंखों में देखते हुए बोली —
"इतना सितम ढाकर, इतना जुल्म करके... आपके दिल में दर्द महसूस नहीं हो रहा है आपको? अरे पाप लगेगा बाबू, थोड़ा भला कर दीजिए... इन मर्दों को यहां से भेज दीजिए। हम आपके सामने तो नाच सकते हैं, पर इनके सामने नहीं..."
उसकी बात सुनते ही असुर की आंखें खून से लाल हो गईं। अगले ही पल उसने कनिका के बालों को पीछे से मुट्ठी में भर लिया और उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोला —
"ये सितम, ये जुल्म... अब उम्र भर तुझ पर चलेंगे! अगर ये पाप है, तो ऐसा पाप मैं रोज करूंगा! और रही बात भला करने की... मैं तो तेरा सत्यानाश करने आया हूं!"
इतना कहते हुए उसने कनिका को पीछे की तरफ धक्का दिया। कनिका मुंह के बल गिर गई, पर असुर को उस पर रत्ती भर भी तरस नहीं आया।
कनिका ने अब फिर से खुद को संभाला, ऊपर उठी, और असुर के पास जाकर झुककर उसके कान के पास धीरे से बोली —
"जो भी भला होना हो, वो आपका ही हो... आपको लगने वाले सारे पाप मुझे लग जाएं..."
उसकी आवाज़ में दर्द, तड़प, और एक गहरी हुक थी।
पर असुर पत्थर बन चुका था। उसने फिर कनिका के बालों को कसकर पकड़ा और दांत पीसते हुए बोला —
"तुझे नाचने को बोला है, अपनी दरियादिली दिखाने को नहीं! जितनी मर्जी दरिया दिली दिखा ले, मैं जानता हूं तेरी औकात कहां तक है! तू अब एक कोठी की नचनिया बनकर रहेगी — और मैं तुझे रोज तेरी औकात याद दिलाऊंगा! तूने मेरी जिंदगी बर्बाद की ना... अब मैं तेरी जिंदगी बर्बाद करूंगा!"
"तुझे भी पता चले कि असली तड़प, असली दर्द होता क्या है!"
जैसे ही असुर ने ये कहा, कनिका व्यंग्य से मुस्कुराई। उसकी मुस्कुराहट में एक अलग सा दर्द था। वह बोली —
"जितना दर्द देना चाहे दे लीजिए असुर बाबू... ये कनिका इश्क की इंतहा कर देगी..."
इतना कहते हुए कनिका अब अपनी जगह पर खड़ी हुई।
वह घेरे के बीच गई और घुंघरू को देखने लगी।
धीरे से झुकी, कांपते हुए हाथों से घुंघरू उठाए और उन्हें चेहरे के सामने करके देखा।
उन घुंघरुओं को देखकर उसके कलेजे में दर्द उठ रहा था। उसकी आंखें तो सूख चुकी थीं, लेकिन दिल बुरी तरह रो रहा था।
वहीं बैठे एक मर्द ने कहा —
"कहो तो मोहतरमा, हम पहना दें?"
इतना कहते हुए वो आदमी — विजय ठाकुर, जो करीब 26-27 साल का था, अपनी जगह से उठा और कनिका की तरफ बढ़ा। उसकी मदहोशी भरी नजरें कनिका की कमर पर थीं। वह होठों पर जीभ फेरते हुए बोला —
"लो दो मोहतरमा, हम पहना देते हैं... विजय ठाकुर कौन किसी से कम है?"
इतना कहते हुए वह कनिका के पास पहुंचा, उसका हाथ पकड़ने ही वाला था कि —
“धाँय!!”
गोली चलने की आवाज़ गूंजी।
वहां मौजूद हर शख्स का दिल धक्क से रह गया।
वहीं कनिका अपनी जगह पर जैसे जम गई थी।
To be continued...
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