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Accidental Ishq

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Aarya Rai

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"कभी-कभी मोहब्बत नहीं, बल्कि हालात इंसान को एक अजनबी से जोड़ देते हैं..." शादी की शहनाइयाँ गूंज रही थीं, मंडप सजा था, और अर्नव अपने जीवनसाथी का इंतज़ार कर रहा था। लेकिन... सृष्टि भाग गई! एक धोखा... एक साजिश... और एक जबरन लिया गया फैसला।...

Total Chapters (11)

Page 1 of 1

  • 1. Accidental Ishq - Chapter 1

    Words: 1395

    Estimated Reading Time: 9 min

    ये कहानी मेरी रचना "धृति - बेइंतेहा नफरत से बेपनाह मोहब्बत का सफर" का season 2 है। किरदार वही हैं पर स्टोरी का थीम और कहानी बिल्कुल नई है। दोनों कहानियों में कोई ताल्लुक नहीं है तो जो रीडर्स इस कहानी को पढ़ रहे हैं उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं आएगी। चाहें तो वो स्टोरी पढ़ सकते हैं और नहीं पढ़ना चाहते तब भी ये स्टोरी आपको अच्छे से समझ आ जाएगी।

    .....................................................................

    "कौन हैं आप और चाहते क्या हैं मुझसे.... मैं तो आपको जानती तक नहीं फिर मुझे ऐसे जबरदस्ती यहाँ बुलाने का क्या मतलब हुआ?"

    एक 24 - 25 साल की लड़की ने आँखों में गुस्सा भरते हुए अपने सामने खड़े लड़के को घूरा। जिसकी पीठ उसकी ओर थी। वो लड़का बड़े ही एटीट्यूड के साथ जेब में हाथ डाले उस लड़की की ओर पलट गया। ब्लैक बिजनेस सूट पहने, बालों को जैल लगाकर सैट किये वो लड़का अपनी किलर परस्नैलिटि से किसी के भी होश उड़ाने को तैयार था। बाएं हाथ की कलाई पर ब्रैंडेड ब्लैक वॉच चमक रही थी और पैरों में ब्लैक बूट्स, उसके हैंडसम से चेहरे पर कोल्ड लुक्स मौजूद थे। उसके कपड़ों से लेकर खड़े होने के ढंग तक में उसका रुतबा झलक रहा था, उसके आस पास अलग ही औरा कायम था।

    "कुछ याद आया?" उस लड़के के लबों पर तिरछी रहस्यमयी मुस्कान उभरी और आँखें अजीब नज़रों से उस लड़की को घूरने लगा।

    लड़की की नज़र जैसे ही उस लड़के पर पड़ी उसकी आँखों की पुतलियाँ आश्चर्य से फैल गयीं।

    "तुम......" उसने हैरानगी से सवाल किया। उस लड़के के मुस्कुराते लब अब सिमट गये और भौंहें खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गयीं।

    "हाँ मैं..........और तुम्हारा रिएक्शन देखकर लगता है कि तुम्हें भी मैं और मुझसे हुई वो मुलाकात बहुत अच्छे से याद है।"

    "क्या करूँ तुम जैसे घमंडी और सरफिरे लड़कों से रोज़ मेरा पाला नहीं पड़ता इसलिए जो साल में कोई एक दो नमूने मिल जाते हैं वो खुद ही याद रह जाते हैं।"

    उस लड़की ने उसी के अंदाज़ में करारा जवाब उसके मुँह पर दे मारा था और इसके साथ ही उस लड़के के चेहरे के भाव बिगड़ गए थे।

    "तुम आज भी उतनी ही बदतमीज़ी, मगरूर और लड़ाकू हो।"

    "ओह क्या आप मेरी बात कर रहे हैं....... मुझे तो लगा कि अपनी तारीफ कर रहे हैं....... वो क्या है न ये जो शब्द अभी आपने मेरे लिए इस्तेमाल किये हैं न वो आपपर ज्यादा सूट करते हैं।"

    लड़की ने शरारत से आँखें मटकाई और दिल जलाने वाली मुस्कान लबों पर बिखेरते हुए व्यंग्य भरी नज़रों से उसे देखा।

    "मेरे सामने ज़ुबान संभालकर बात करो और सोच समझकर शब्दों को इस्तेमाल करो..... भूलो मत इस वक़्त तुम मेरी कैद में हो।"

    उस लड़के ने गुस्से से जबड़े भींचते हुए उसे चेतावनी भरी नज़रों से घूरा पर वो लड़की बिल्कुल निडर होकर उसके सामने खड़ी रही और उसकी आँखों से आँखें मिलाते हुए उसी के अंदाज़ में सवाल किया।

    "तो क्या करेंगे आप मुझे यहाँ कैद करके?..... मारेंगे मुझे, बदला लेंगे मुझसे उस दिन का ......या अपने अहम को संतुष्ट करने के लिए जबरदस्ती करेंगे मेरे साथ?........ आप मर्द अपनी तागत दिखाने के लिए, किसी लड़की से बदला लेने के लिए यही सब करते हैं ना उसके साथ, आप भी ऐसा ही कुछ करना चाहते हैं मेरे साथ?"

    उस लड़की ने जिस अंदाज़ में ये बात कही और जैसे उसे देख रही थी उस लड़के ने गुस्से में अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं।

    "इतना भी घटिया और गिरा हुआ आदमी नहीं मैं कि किसी लड़की से बदला लेने के ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करूँ। .......... तुम्हारी जितनी वाहियात सोच नहीं है मेरी, अगर मुझे तुमसे उस दिन की बदतमीज़ी का बदला ही लेना होता और अपनी तागत ही दिखानी होती मुझे तो अब तक तुम सही सलामत मेरे सामने खड़ी मेरी निगाहों से निगाहें मिलाए इस लहज़े में बात नहीं कर रही होती मुझसे।"

    "अच्छा अगर आप मुझसे बदला नहीं लेना चाहते तो इस तरह मुझे यहाँ बुलाने का क्या मतलब हुआ? जबकि मैं तो आपको जानती तक नहीं, आपका नाम तक नहीं मालूम मुझे, उस दिन के अलावा कभी दोबारा मुलाकात तक नहीं हुई हमारी फिर मुझे इस तरह से यहाँ बुलाने का क्या मतलब हुआ?"

    "नहीं जानती तो बहुत जल्द जान जाओगी कि मैं कौन हूँ और तुम्हें यहाँ ऐसे लाने के पीछे क्या वजह है?.....अभी के लिए इतना समझ लो कि आज तुम्हारी शादी होने वाली है मुझसे।"

    उस लड़के ने उसी कोल्ड अंदाज़ में जवाब दिया और चेहरे पर अब भी कठोर भाव मौजूद रहे जबकि उसकी बात सुनकर वो लड़की बुरी तरह चौंक गयी। उसने अपनी सुनहरी आँखों को बड़ा बड़ा करते हुए हैरत से उसे घूरा।

    "क्या बकवास कर रहे हैं?...... शादी क्या कोई गुड्डा गुड़िया का खेल है या कोई मज़ाक चल रहा है यहाँ? ...... जान न पहचान और मुझसे शादी के ख्वाब देखने लगे तुम पर तुम्हारा ये ख्वाब कभी पूरा नहीं होगा। मैं ऐसे ही किसी ऐसे गैरे नत्थू खैरे से कभी शादी नहीं करूँगी जिसे मैं जानती तक नहीं।"

    उस लड़की ने उसी के अंदाज़ में उसे तबियत से झाड़ा। तेवर तो उसके भी कम न थे और उसका ये अंदाज़ देखकर उस लड़के के होंठ हल्के से मुड़ गए।

    "मैं कोई ऐरा गैरा आदमी नहीं। अर्नव सिंह रायज़ादा हूँ, पूरी फ़ैशन इंडस्ट्री में मेरा राज चलता है, लड़कियाँ पागल हैं मेरे पीछे और एक आवाज़ पर खुदको मुझपर लुटा देने को तैयार रहती हैं।......... तुम तो खुदको खुशकिस्मत समझो कि मैं.. अर्नव सिंह रायज़ादा तुम्हारा नेचर जानते हुए तुमसे शादी करके तुम्हें अपनी वाइफ कहलाने का हक दे रहा हूँ वरना लड़कियों की कोई कमी नहीं है मेरे पास,......... जिसे चाहे उसे हासिल करने का दम रखता हूँ। तुम जैसी मामूली सी मिडल क्लास लड़की की तो इतनी औकात ही नहीं कि मेरे ख्वाब भी देख सके। कहाँ तुम सड़क की धूल के बराबर हो और मैं तुम्हें मेरे सर का ताज बनने का, अपनी ज़िंदगी बदलने का सुनहरा मौका दे रहा हूँ।"

    वही पुराना गुरुर से भरा अंदाज़। जाने खुदको कहाँ का शहज़ादा समझता था की अकड़ कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी पर वो लड़की भी कुछ कम न थी, वो भी बराबरी से उसे करारी टक्कर देने को मैदान - ए - जंग में उतर आई थी।

    "नहीं चाहिए मुझे ऐसा थर्ड क्लास मौका, नहीं शौक मुझे आप जैसे खुदपसंद, घमंडी और अकड़ू आदमी की बीवी बनकर अपनी ज़िंदगी बर्बाद करने का। .............अगर खुदको इतना ही तीस मार खान समझते हैं और वाकई लड़कियों की लाइन लगी है आपके पीछे तो जाइये, कर लीजिये किसी और से शादी क्योंकि मैं तो किसी कीमत पर आपसे शादी नहीं करने वाली।"

    उसकी सारी अकड़ को उस लड़की ने अपने पैरों तले मसलकर रख दिया और उसे एक पल का वक़्त नहीं लगा उसके ऑफर को ठुकराने में। उसकी बातें और विश्वास से भरा लहज़ा देखकर अर्नव की गहरी काली आँखें गहरा गयीं।

    "शादी तो तुम खुद अपनी मर्ज़ी से करोगी मुझसे क्योंकि अर्नव सिंह रायज़ादा को ना सुनने की आदत नहीं है।............. वो जो चाहता है उसे किसी भी कीमत पर हासिल करके ही रहता है।"

    अर्नव का घमंड से चूर लहज़ा देखकर उस लड़की ने तीखी निगाहों से उसे घूरा और मुँह टेढ़ा करते हुए जवाब दिया।

    "अच्छा ऐसा है क्या? तो एक काम करिये अब अपनी ये घटिया आदत बदल लीजिये क्योंकि मैं कोई चीज़ नहीं जिसे आप हासिल कर लें। मैं वही करती हूँ को मेरा मन करता है और आप जैसे घमंडी, पैसों के मद में चूर मगरूर, अकड़ू, महा बदतमीज़ आदमी से मैं किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती।"

    उस लड़की ने उसे ठुकराया और जैसे ही जाने को पलटी अर्नव की कठोर रौबदार आवाज़ उसके कानों से टकराई और उसके आगे बढ़ते कदम ठिठक गए।

    "जा रही हो तो जाओ पर जाने से पहले इतना सुनती जाओ मिस धृति अवस्थी, अब चाहकर भी मुझसे ज्यादा दूर नहीं जा सकोगी तुम। तुम्हारी ज़िंदगी के हर रास्ते अब तुम्हें मुझ तक लेकर आएँगे।"

    अबकी बार उसकी बात सुनकर वो लड़की खीझते हुए उसकी ओर पलटी।

    "चाहते क्या हैं आप मुझसे?"

    अर्नव शातिर अंदाज़ में मुस्कुरा दिया।

    To be continued...

    आखिर चल क्या रहा है ये? अर्नव और धृति कैसे जानते हैं एक दूसरे को और उनके बीच क्या हुआ था कि वो दोनों एक दूसरे से इतनी नफरत करते हैं? अर्नव जबरदस्ती धृति को शादी के लिए क्यों मजबूर कर रहा है और क्या धृति सच में उसकी इस ज़िद से जीत पाएगी? क्या होगा आगे जानने के लिए मेरे साथ पढ़ते रहिये "Accidental Ishq"

  • 2. Accidental Ishq - Chapter 2

    Words: 2424

    Estimated Reading Time: 15 min

    पिछले भाग में हमने पढ़ा कि अर्नव ने धृति को शादी का ऑफर दिया था जिसपर दोनों के बीच खूब बहस बाज़ी हुई थी और आखिर में धृति अर्नव के ऑफर को ठुकराकर वहाँ से चली गयी थी पर अर्नव के लबों पर रहस्यमयी मुस्कान फैली हुई थी जिससे साफ ज़ाहिर था कि बात यहां खत्म नही हुई थी अब आगे.........

    "सर ये सब क्या था और आपने उस लड़की को ऐसे जाने क्यों दिया?" उस लड़की के वहाँ से जाते ही एक लड़का अर्नव के पास चला आया। ये था वरुण उसका सेक्रेटरी जो उसकी बातें सुनकर कुछ हैरान भी था और उसके माथे पर पड़े बल उसकी परेशानी ज़ाहिर कर रहे थे।

    अर्नव जो गुस्से में लंबे लंबे डग भरते हुए जाती धृति को अपनी सर्द निगाहों से देख रहा था उसके चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए।

    "ये सृष्टि नही उसकी जुड़वा बहन धृति है।"

    अर्नव की बात सुनकर वरुण की आँखे हैरत से फटी की फटी रह गयी।

    "जुड़वा बहन...." उसके मुँह से हैरानगी से ये शब्द निकला जिसपर अर्नव ने हामी भरते हुए आगे कहना शुरू किया।

    "हाँ जुड़वा बहन। दोनों बहने इतनी सिमिलर दिखती है कि पहली बार कोई भी उन्हे देखकर धोख़ा खा जाए पर ध्यान से देखने पर दोनों मे अंतर नज़र आता है। सृष्टि की आँखे डार्क ब्राउन है जबकि उसकी जुड़वा बहन धृति की आँखे लाइट ब्राउन कलर की है और उसके होंठ के ऊपर लेफ्ट साइड मे एक तिल है जो सृष्टि से उसे अलग करता है और ये जो तीखे तेवर अभी तुमने देखे वो धृति की पहचान है। इसलिए मैं 100 and 1% श्योर हूँ कि जिसे तुम पकड़कर लाए थे वो सृष्टी नही उसकी जुड़वा बहन धृति है।"

    "पर सर आपको कैसे पता सृष्टि मैडम की ट्विन सिस्टर के बारे मे और आप उन्हे इतने अच्छे से कैसे जानते है? इतनी श्योरिटि के साथ आप कैसे कह सकते है कि ये सृष्टि मैडम नही उनकी ट्विन सिस्टर ही थी?"

    वरुण जो बड़े ही ध्यान से उसकी बात सुन रहा था उसने तुरंत ही सवाल किया जिसपर पल भर ठहरते हुए अर्नव ने जवाब दिया।

    "धृति से मेरी पहले भी मुलाकात हो चुकी है और खुद सृष्टि ने मुझे उसके बारे मे बताया था। रही बात श्योरिटि की तो मैंने दोनों बहनों को करीब से देखा है इसलिए मेरे लिए उन्हे पहचानना मुश्किल नही है।"

    "पर सर अगर ये सृष्टि मैडम की बहन थी तब भी आपको उन्हे ऐसे जाने नही देना चाहिए था, क्या पता इनसे हमें सृष्टि मैडम के बारे मे कोई इंफोर्मेशन मिल जाए।"

    "तुमने मेरी बातों पर उसका रिएक्शन नही देखा? या तो ये लड़की सच मे बेखबर और नादान है ..... सृष्टि से मेरे रिश्ते और उसकी इस हरकत से पूरी तरह अंजान है या फिर ज़रूरत से ज्यादा शातिर। ..... मैंने इसे जाने ज़रूर दिया है पर अभी भी ये मेरे शक के घेरे से बाहर नही हुई है। अपने एक आदमी को इसके पीछे लगाओ, मुझे इसके पल पल की खबर चाहिए, किससे मिलती है, किससे बात करती है, कहाँ है ........ सब कुछ और इसमें कोई गलती नही होनी चाहिए समझे?"

    अर्नव की गहरी काली डरावनी आँखों ने घूरते हुए जैसे उसे धमकी दी थी। वरुण ने तुरंत ही सहमति मे सर हिलाया और वहाँ से जाने के लिए पलटा ही था की अर्नव की कठोर आवाज़ उसके कानों से टकराई।

    "सृष्टि अभी भी इसी शहर मे है पर अब तक तुम उसकी कोई खबर नही ला सके।"

    वरुण तुरंत ही उसकी ओर पलटा और सर झुका लिया।

    "सर मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूँ पर उनका फोन ऑफ है और जहाँ जहाँ उनके होने की पॉस्सिबिलिटी थी उनमे से कही उनकी कोई खबर नही है। उनसे जुड़े सभी लोगों से पूछताछ हो चुकी है पर किसी को नही पता कि वो कहाँ है? हम सबपर नज़र रख रहे है और उनके पैरेंट्स की तो हर हरकत पर हमारी नज़र है। जैसे ही हमें कोई लीड मिलेगी हम तुरंत एक्शन लेंगे और सृष्टि मैडम आपको आपके सामने मिलेगी।"

    अर्नव तीखी नज़रों से उसे घूरता रहा जिससे वरुण की सिट्टी बिट्टी गुल हो गयी। उसके गुस्से से वैसे ही बेचारे की हवा टाइट हो जाती थी और अभी तो वो अर्नव की हिट लिस्ट मे टॉप नंबर पर विराजमान था, जाने कब ये गुस्से से भरा ज्वालामुखी फटे और वो उसकी भेंट चढ़ जाए।

    अर्नव की वो डरावनी काली आँखे और कोल्ड औरा, वहाँ का माहौल डरावना बना रहा था पर इससे पहले की वरुण अर्नव के गुस्से की भेंट चढ़ता, वहाँ एक तीसरे इंसान ने कदम रखा और माहौल एकदम से बदल गया।

    "अर्नव उस बेचारे पर क्यों भड़क रहा है, जो हुआ उसमे उसकी क्या गलती थी? ....... कर तो रहा है वो कोशिश, सुबह से तेरे इन्ही कामों मे लगा है, एक सेकंड के लिए भी वो चैन से नही बैठा है, अब नही मिल रही सृष्टि तो क्या करे बेचारा? तू तो उसके पीछे ही पड़ गया है, सुबह से उस बेचारे की बैंड बजा रखी है, अपना सारा गुस्सा और फ़्रस्टेशन भी उसपर ही उतार रहा है, अब क्या जान लेगा उसकी?"

    उस आवाज़ ने दोनों का ध्यान अपनी ओर खींचा। जहाँ सामने से चले आ रहे अर्नव के ही हमउम्र और हैंडसम लड़के को देखकर वरुण की जान मे जान आई थी और चेहरे पर राहत के भाव उभरे थे, वही अर्नव के चेहरे के भाव भी कुछ सामान्य हुए थे।

    ये था अर्नव का बचपन का दोस्त, उसका यार और राज़दार कबीर जिसे उससे जुड़ी हर बात की खबर होती थी। कबीर ने आँखों से ही वरुण को जाने का इशारा किया और वो पलक झपकते ही वहाँ से गायब हो गया जबकि अर्नव जो सब खामोशी से देख रहा था उसके चेहरे पर नाराज़गी के भाव उभर आए थे।

    "कबीर ये तूने ठीक नही किया है।"

    कबीर के कदम अर्नव के सामने आकर ठहरे। उसके नाराज़गी भरे चेहरे को देखकर वो हौले से मुस्कुरा दिया।

    "क्या ठीक नही किया मैंने?"

    अंजान बनते हुए कबीर ने सवाल किया जिसे सुनकर अर्नव खींझ उठा, "तूने वरुण को यहाँ से जाने को क्यों कहा, अभी मेरी बात पूरी नही हुई थी।"

    "सबसे पहली बार तो ये कि तू बात नही कर रहा था उस बेचारे को डरा रहा था और दूसरी बात ये कि मैंने उसे तेरी क्रोधाग्नि मे भस्म होने से बचाया है। वरना तू बेवजह ही अपना सारा गुस्सा और फ़्रस्टेशन उस मासूम पर निकाल देता और अगर वो यहाँ खड़ा तेरी डाँट सुनता रहता तो जो ऑर्डर तूने उसे दिये थे उन्हें फॉलो कौन करता?....तो देखा जाए तो मैंने तेरी हैल्प ही की है।"

    कबीर ने उसे अपनी जलेबी जैसी बातों मे उलझाने की पूरी कोशिश की थी पर अफसोस की अर्नव उसकी बातों मे फंसने वालों मे से था नही। वो इन सब मामलों मे उससे एक कदम आगे और ज्यादा शातिर था जिसे बेवकूफ बनाना आसान बात नही थी। कबीर की बातें सुनकर अर्नव भौंह सिकोड़े तीखी नज़रों से उसके घूरने लगा।

    "अच्छा अब बस करदे, पहले ही बहुत डाँट चुका था तू उसे। सुबह से तेरे वजह से वो एक पल चैन से बैठा तक नही है। अब नही मिल रही सृष्टि तो इसमें वो बेचारा क्या कर सकता है? .........चल गुस्सा छोड़ और शांत हो जा।"

    "कैसे शांत हो जाऊँ?...... तुझे पता है कितनी बड़ी गड़बड़ हो गयी है, मेरे गर्दन पर इस वक़्त तलवार लटक रही है, शाम को शादी है और सृष्टि गायब है। उसकी कोई खबर नही, कही कुछ पता नही चल रहा। अगर शाम से पहले वो नही मिली तो वो तलवार मेरे सर को धड़ से अलग कर देगी। सबके सवालों का क्या जवाब दूंगा मैं? सृष्टि का मिलना बहुत ज़रूरी है अभी........"

    अर्नव का सारा गुस्सा अब चिढ़ और परेशानी मे बदल गया था और माथे पर सिलवटें उभर आई थी।

    "आई नो पर एक बात तो बता ...... वो यकीनन शादी से ही भागी है तो क्या अगर वो मिल जाती है....... तू उसे ढूँढ लेता है या वो खुद वापिस लौट आती है तो सच मे तू उससे शादी कर लेगा?........... मतलब तुझे झूठे और धोखेबाज लोगों से सख्त नफरत है और सृष्टि तुझे धोख़ा देकर ही भागी है।"

    कबीर का सवाल सुनकर अर्नव सोच मे पड़ गया। उसके माथे पर कुछ लकीरें उभर आई और चेहरे पर गंभीर भाव छा गए। उसे ख्यालों मे खोए देखकर कबीर ने उसकी कंधे पर हाथ रखते हुए आगे कहा।

    "एक और बैड न्यूज़ लाया हूँ मैं तेरे लिए वो सुन ले शायद तुझे फैसला करने मे आसानी हो।"

    अर्नव जो किन्ही ख्यालों मे खोया था उसने सवालिया निगाहें कबीर की ओर घुमाई और खींझते हुए बोला।

    "क्या मुसीबत है यार? ..... अब क्या हो गया? यहाँ एक प्रॉब्लम सॉल्व नही हो रही और तू दूसरी और ले आया।"

    अर्नव उसकी बात सुनकर खींझ उठा वही उसका ये उखड़ा हुआ लहज़ा देखकर कबीर ने भी उसी के अंदाज़ मे जवाब दिया।

    "Unfortunately तूने जिस खबर को मीडिया से छुपाकर रखने का फैसला किया था वो खबर मीडिया तक पहुँच चुकी है और हर न्यूज़ चैनल पर तेरी इस सीक्रेट मैरिज की ही खबर headline बनकर छाई हुई है। इतना ही नही शादी की न्यूज़ के साथ ही सृष्टि की पहचान भी रिविल हो चुकी है, तेरी फ्यूचर वाइफ के रूप मे।"

    कबीर ने राज़ पर से पर्दा उठाया और उसकी बात सुनकर अर्नव पल भर को शॉक्ड रह गया।

    "ऐसा कैसे हो सकता है? ......... किसने ये खबर मीडिया तक पहुँचाई?"

    अर्नव बेहद हैरान था और उतना ही परेशान। आखिर ये अप्रत्याशित घटना थी जिसपर वो चाहकर भी विश्वास नही कर पा रहा था। उसका सवाल सुनकर कबीर ने नासमझी से कंधे उचका दिये।

    "ये तो अभी तक पता नही चला है पर ऐसा हो चुका है। वैसे मैंने खबर हटवाने की कोशिश की थी पर मुझे नही लगता कि अब इसका कोई फायदा होगा। अब हालात देखे जाए तो तू चारों तरफ से घिर चुका है। शाम को शादी है, सृष्टि का कुछ पता नही है, मीडिया मे बात फैल चुकी है। ............. अगर अब तेरी शादी सृष्टि से तय वक़्त पर नही हुई तो तुझे सिर्फ अपनी फैमिली ही नही बल्कि मीडिया का भी सामना करना पड़ेगा। आगे सिचुएशन और बिगड़ सकती है और अब तेरी पर्सनल लाइफ मे मची इस भसड़ का असर सिर्फ तेरे परिवार ही नही बल्कि बिज़नेस पर भी पड़ सकता है तो कोई भी फैसला सोच समझकर लियो।"

    ये सब सुनकर अर्नव के कठोर चेहरे पर चिंता के भाव उभर आए और माथे पर पड़ी सिलवटें उसकी परेशानी ज़ाहिर करने लगी। अपनी तर्जनी ऊँगली से अपनी भौंह को सहलाते हुए वो इस मुसीबतों के चक्रव्यूह से बाहर निकलने का रास्ता ही ढूँढ रहा था और सोचने की कोशिश कर रहा था कि इन सबके पीछे आखिर कौन हो सकता है, जिस बात की उसने कानों कानों किसी को खबर नही होने दी वो न्यूज़ आखिर मीडिया तक कैसे पहुँची और किसने पहुँचाई?

    उसे यूँ परेशान देखकर कबीर ने उसके कंधे पर हाथ रखा और फुसफुसाते हुए बोला।

    "वैसे तूने सृष्टि मे ऐसा क्या देखा कि उससे शादी करने को तैयार हो गया?"

    उसका ये कहना था कि अर्नव एकाएक उसपर भड़क उठा।

    "नाम मत ले उस धोखेबाज का अगर अभी वो मेरे सामने आ गयी तो अपने इन्ही हाथों से उसका कत्ल कर दूँगा मैं।"

    "कत्ल बादमे करियो पहले उसे ढूंढ तो ले और सोच की अब इन प्रॉब्लम्स को कैसे फेस करेगा क्योंकि आगे का रास्ता तेरे लिए आसान नही होने वाला।"

    "तू क्या यहाँ मेरे जले पर नमक छिड़कने और मेरे हालात का मज़ाक उड़ाने आया है?" अर्नव ने तीखी निगाहों से उसे घूरा, कबीर ने तुरंत ही एतराज जताया और उसके कंधे को दबाते हुए बोला।

    "नही यार मैं तो तुझे मोरल सपोर्ट देने आया हूँ।"

    उसे यूँ चापलूसी करते देखकर अर्नव जलती निगाहों से उसे घूरने लगा। कबीर उससे दूर हट गया और बात बदलते हुए अर्नव का ध्यान भटकाने की कोशिश करने लगा।

    "तुझे क्या लगता है सृष्टी का ऐसे अचानक शादी के दिन गायब होना और तेरी शादी की खबर मीडिया तक पहुँचना इत्तफाक है?....... या किसी की सोची समझी साजिश है तेरे खिलाफ?"

    कबीर अपने मकसद मे कामयाब रहा था। उसका सवाल सुनते ही अर्नव के चेहरे के भाव बदल गए।

    "अगर इतना सब देखने के बाद भी मैं इसे महज़ एक इत्तफाक समझूँ तो मुझसे बड़ा बेवकूफ इस दुनिया मे कोई दूसरा नही होगा। .......... सृष्टि का अचानक मेरी ज़िंदगी मे आना, बात शादी तक पहुँचना, शादी वाले दिन अचानक उसका गायब हो जाना और जो खबर मेरी फैमिली, फ्रेंड्स और उसकी फैमिली के अलावा कही बाहर नही गयी उसका मीडिया तक पहुँचना इत्तफाक तो बिल्कुल नही हो सकता। ये सब किसी की सोची समझी साजिश का नतीजा है ........ सृष्टि को एक खास मकसद के तहत किसी के द्वारा मेरी ज़िंदगी मे भेजा गया था।

    कोई तो है जो मेरे साथ ये खेल खेल रहा है, जो मुझे, मेरी इमेज और मेरी कंपनी की रैपोटेशन को नुकसान पहुँचाना चाहता है। ये सब किसी की सोची समझी साजिश के तहत अंजाम दिया गया है ...... कोई है जो मुझसे अपनी दुश्मनी निकाल रहा है............

    पर वो जो कोई भी है उसने मुझे बहुत कम आँक लिया। उसे नही पता कि मैं अर्नव सिंह रायज़ादा हूँ। इतना आसान नही मुझे अपने जाल मे फँसाना। ये जिस किसी की भी हरकत है उसका पता तो मैं बहुत जल्द लगा लूँगा और उसे कभी किसी कीमत पर अपने इरादों मे कामयाब नही होने दूँगा। ....... शादी तो आज होकर रहेगी सृष्टि से नही तो धृति से ही सही। आखिर अपनों के किये गुनाहों की सज़ा हमें ही भुगतनी पड़ती है।"

    अर्नव का लहजा सर्द था, चेहरे पर सख्त भाव मौजूद थे, आँखे अजीब तरह से सिकुड़ी हुई थी और लबों पर रहस्यमयी शैतानी मुस्कान फैली हुई थी। उसके इरादे खतरनाक थे। उसके ये एक्सप्रेशन देखकर कबीर को कुछ गलत होने का अंदेशा होने लगा। उसके चेहरे पर उलझन के भाव उभरे और वो शक भरी नज़रों से उसे देखने लगा।

    "अब तेरे शैतानी दिमाग मे क्या चल रहा है और ये धृति कौन है जिससे तु शादी करने की बात कर रहा है?"

    "सब पता चल जाएगा बस शाम तक का इंतज़ार कर।" अर्नव ने इतना कहकर बात टाल दी पर उसके लबों पर जो मुस्कान थी उसने कबीर को चिंता मे डाल दिया था कि कही अपने गुस्से मे वो कोई गलत कदम न उठा ले।

    To be continued...

    जल्दी ही मिलते है अगले भाग के साथ तब तक बताइये कि आपको ये पार्ट कैसा लगा? और क्या चल रहा है यहाँ?.... अर्नव क्या करने वाला है और क्या सच मे धृति सृष्टि और अर्णव के बीच फंसने वाली है? पार्ट जल्दी पाने के लिए बढ़िया बढ़िया समीक्षा दीजिये ताकि मैं खुश होकर जल्दी से अगला भाग भी पब्लिश कर दूँ।

  • 3. Accidental Ishq - Chapter 3

    Words: 2393

    Estimated Reading Time: 15 min

    "सर .......... सृष्टि मैडम की बहन, अभी अभी उनके पैरेंट्स के बंगले के अंदर गयी है।"

    ये वरुण की आवाज़ थी, जिसने अभी अभी अर्नव को धृति की खबर दी थी। जिसे सुनकर अर्नव का चेहरा काला पड़ गया और आँखों के महीन रेशे सुर्ख रंग मे रंग गये, लबों पर व्यंग्य भरी मुस्कान उभरी ......... जो धीरे धीरे ज़हरीली मुस्कान मे बदल गयी और आँखे खतरनाक अंदाज़ मे सिकुड़ गयी।

    "ठीक है, नज़र रखो उसपर और जैसे ही बंगले से बाहर निकले, उसे सीधे मेरे पास लेकर आओ .............. और याद रहे, इसमें किसी तरह की कोई गलती नही होनी चाहिए ....... क्योंकि अब गलतियाँ करने और उसे सुधारने का वक़्त नही हमारे पास।"

    "Yes सर" वरूण ने तुरंत ही हामी भरी तो अर्नव ने कॉल कट कर दी और कुछ देर पहले का दृश्य उसकी आँखों के आगे, किसी फिल्म जैसे घूमने लगा। जब वो भी सृष्टि के घर यानी सिंह मेंशन गया था।

    फ्लैशबैक

    "कहाँ है सृष्टि?"

    अर्नव ने गुस्से भरी आँखों से सामने खड़े दंपत्ति को घूरा, उसका कठोर लहज़ा और खौफनाक अंदाज़, उनको अंदर तक डरा गया था।

    "हमें नही पता, हम पहले ही बता चुके है कि हम भी इस बारे मे कुछ नही जानते। वो कल शाम को निकली थी, उसके बाद वापिस ही नही लौटी। उसका फोन भी तभी से बंद आ रहा है। उसके किसी फ्रेंड को भी उसके बारे मे कुछ नही पता। ......... हमने अपने तरफ से उसे ढूँढने की पूरी कोशिश की..... पर उसके बारे मे कुछ पता नही चला और न ही वो लौट कर वापिस घर आई। "

    मिसेज सिंह दयनीय हालत मे अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए सफाई देने लगी, ताकि अर्नव के गुस्से से बच सके।

    "मुझे कुछ नही पता और न ही मैं यहाँ कोई बहाना या सफाई सुनने आया हूँ। ..... मुझे सिर्फ सृष्टि से मलतब है। मुझे किसी भी कीमत और सूरत मे वो मेरे सामने चाहिए। .............. गलती आप लोगों से हुई है, अपनी बेटी नही संभाली गयी आपसे। वो घर से भाग गयी और आपको खबर तक नही हुई।......... तो जब गलती आपकी, तो सज़ा मैं और मेरा परिवार क्यों भुगते?

    कुछ घंटे बाद हमारी शादी है और अगर तब तक सृष्टि नही आई, तो मैं आप दोनों को नही छोडूंगा .... ये याद रखियेगा .... इसलिए अगर अपनी खैरियत चाहते है तो कैसे भी करके अपनी बेटी को ढूंढकर, मेरे सामने लाकर खड़ा कीजिये ...... बस एक घंटे का टाइम है आपके पास।"

    अर्नव उन्हें धमकी देकर वहाँ से जा चुका था और दोनों की सिट्टी बिट्टी गुल हो चुकी थी। उनकी परेशान निगाहें एक दूसरे की ओर घूम गयी।


    अर्नव ने एक गहरी सांस छोड़ी। शायद उसे अंदाज़ा था कि धृति वहाँ क्यों गयी होगी। उसका चेहरा इस वक़्त बिल्कुल सपाट था, जिससे ये अंदाज़ा लगाना ज़रा मुश्किल था कि आखिर उसके दिमाग मे चल क्या रहा है?

    दूसरे तरफ धृति जब सिंह मेंशन से बाहर निकली, उस वक़्त उसके चेहरे पर गहरी उदासी और मायूसी के भाव मौजूद थे। उसकी आँखों मे हल्की लालिमा समाई थी ...... शायद रोई थी वो, जिसकी नमी अब भी उसकी आँखों मे झलक रही थी।

    धृति जैसे ही सिंह मेंशन से बाहर निकली, कुछ काले कपड़े पहने मुश्टंडे उसके सामने आकर खड़े हो गए। धृति ने निगाहें उठाई और आश्चर्य से उन्हें देखने लगी।

    "अब क्या चाहिए आप लोगों को मुझसे?" धृति ने खींझते हुए हल्के गुस्से मे सवाल किया। पहचान गयी थी वो उन लोगों को, पहले वही तो उसे अर्नव के पास लेकर गए थे और उन आदमियों मे सबसे आगे तो वरुण ही खड़ा था। जिसे देखते ही वो चिढ़ गयी थी।

    "मैम सर ने आपको, अपने साथ लाने कहा है।"

    अर्नव का ज़िक्र आते ही उसका बिगड़ा हुआ मूड और ज्यादा खराब हो गया और चेहरे पर गुस्से भरे सख्त भाव उभर आए।

    "मैं कही नही जाऊंगी।" धृति ने साफ शब्दों मे जाने से इंकार कर दिया और उनके साइड से निकलने की कोशिश करने लगी, पर वो खली जैसी बॉडीगार्ड उसे घेरकर खड़े हो गए। धृति आँखे छोटी छोटी किये गुस्से भरी निगाहों से उन्हें घूरने लगी।

    "मैम .... हमें सर का ऑर्डर मिला है कि आपको लेकर ही जाना है। अगर आप अपनी मर्ज़ी से हमारे साथ चलती है तो आपके लिए ही अच्छा होगा। हम आपको बिना कोई तकलीफ दिये, सुरक्षित सर तक पहुँचा देंगे ..... पर अगर आप हमारे साथ चलने को तैयार नही होती है तो हमें मजबूरन आपके साथ जबरदस्ती करनी होगी।"

    वरुण ने बड़े ही विनम्रता से उसको सारी स्थिति से अवगत करवा दिया था। धृति का मन तो किया .... या तो उन सबका सर फोड़ दे ..... या अपना सर जाकर किसी दीवार मे मार दे .... और सारा किस्सा यही खत्म कर दे।

    "अजीब जबरदस्ती है ये" उसने झुंझलाते हुए अपना सर पकड़ लिया। निगाहें अभी भी सामने खड़े वरुण और बाकी आदमियों को गुस्से से घूर रही थी। फ़्रस्टेशन इतनी बढ़ गयी थी कि अभी सुना सुना कर सबके कानों से खून निकाल दे ........ बड़े आए अपने सर का ऑर्डर झाड़ने ........ पर वो तो बस अपने बॉस के ऑर्डर को फॉलो कर रहे थे, जो उनकी नौकरी थी इसलिए उन्हें कुछ भी कहने से कोई फ़ायदा नही था।

    धृति ने कुछ पल सोचा फिर उनके आगे अपने हथियार डाल दिये।

    "चलिए...... ले चलिए मुझे अपने सर के पास। कर दीजिये मेरी पेशी उनके सामने। ....... जाने कौनसा गुनाह किया है मैंने, जो मैं पागलों की इस फ़ौज़ के बीच फंस गयी हूँ ..... कम्बख्त चैन से सांस लेना भी दुश्वार कर दिया है।"

    धृति की बातें सुनकर वो सब आँखे बड़ी बड़ी किए एक दूसरे की शक्लें देखने लगे फिर सर हिला दिया।


    कुछ देर बाद अर्नव और धृति एक दूसरे के सामने खड़े थे और बराबर एटिट्युड के साथ एक दूसरे को घूर रहे थे। अर्नव का चेहरा सपाट था जबकि धृति का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था।

    "क्या चाहते है आप मुझसे .....आखिर क्यों पीछे पड़े है आप मेरे?"

    धृति के लहज़े मे उसकी चिढ़ और फ़्रस्टेशन साफ झलक रही थी पर अर्नव अब भी शांत और गंभीर बना हुआ था।

    "तुम नही जानती की क्या चाहता हूँ मैं?...... और तुमपर इतना ध्यान क्यों दे रहा हूँ?"

    उसका लहज़ा सर्द था और चेहरा भावहीन.... पर भौंहें सिकुड़ गयी थी और वो गहरी काली आँखे कुछ अजीब अंदाज़ मे उसे देख रही थी।

    अर्नव का ये लहज़ा और जवाब सुनकर धृति खींझ उठी।

    "पहले नही पता था ..... पर अब शायद जान गयी हूँ कि क्यों आप नहा धोकर मेरे पीछे पड़े है।....... अब समझ गयी हूँ कि आप क्यों यूँ गुस्से मे बौखलाए हुए है ..... और मुझसे शादी करने के लिए क्यों कह रहे थे।

    मेरी दी से आज शादी है न आपकी?..... पर दी ही नही है, जिनसे आपकी शादी होनी थी इसलिए आप मुझे अपनी इन हरकतों से परेशान कर रहे है।....... दी के साथ भी ऐसा ही रवैया रहा होगा, तभी वो अपनी ही शादी से भाग गयी........ और अच्छा हुआ जो दी भाग गयी। उन्हें भी एहसास हो गया कि कैसे सरफिरे, अकडू, बदतमीज़ और मगरूर आदमी है आप। ..... तभी अपनी ज़िंदगी तबाह होने से पहले ही भाग निकली और आप जैसे आदमी से अपना पीछा छुड़वा लिया।

    आप मेरी दी पर इतना नाराज क्यों हो रहे है? कभी गौर से अपनी हरकतें और बिहेवियर को देखियेगा। जितने घमंडी, अकड़ू और गुस्सैल आप है ना ..... दी क्या दुनिया की कोई भी लड़की आप जैसे आदमी से शादी नही करना चाहेगी। ......... मेरी दी की किस्मत अच्छी थी, जो वक़्त रहते उन्हें अक्ल आ गयी ...... अगर मुझे पता होता की वो आपसे शादी करने वाली है तो मैं पहले ही उन्हें warn कर देती और बात यहाँ तक पहुँचती ही नही ...... पर जो हुआ अच्छा हुआ, कम से कम मेरी दी को तो आपके इस टॉर्चर से आज़ादी मिल गयी।"

    धृति अपने गुस्से और फ़्रस्टेशन मे इतनी अंधी हो गयी थी कि उसे ध्यान ही नही रहा की बोलते बोलते कब वो अपनी लिमिट्स क्रॉस कर गयी और उसकी बातें अर्नव को humiliate और उसकी इंसल्ट कर गए। .......... उसकी पर्सनल लाइफ पर किया ये कमेंट, अर्नव को नागवार गुज़रा था .... प्रहार सीधे उसके सेल्फ रिस्पेक्ट और सेल्फ स्टीम पर हुआ था, उसके गुरुर को चोट लगी थी और वो गुस्से से तिलमिला उठा था।

    अर्नव ने आव देखा ना ताव, तेज़ कदमों से धरती को अपने पैरों तले बड़ी ही बेदर्दी से रौंदते हुए धृति के पास पहुँचा और उसकी नाज़ुक कलाई को अपनी पत्थर जैसी मजबूत और सख्त हथेली मे भींचते हुए लगभग उसे खींचते हुए अपने साथ लेकर जाने लगा।

    ये सब इतने अचानक हुआ की धृति कुछ समझ ही न सकी .... और ब्लैंक सी कटी पतंग जैसे उसके साथ खिंचती चली गयी। जब अर्नव की कसती पकड़ से कलाई मे तेज़ दर्द उठा और उसके लंबे पैरों की बराबरी न कर पाने की सूरत मे गिरने हो हुई, तब जाकर वो होश मे लौटी और अर्नव के हाथ से अपनी कलाई छुड़ाते हुए, उसका विरोध करने लगी।

    "कहाँ लेकर जा रहे है आप मुझे? ............ कैसे जल्लादों जैसे मेरे हाथ को पकड़ा हुआ है........ छोड़िये मेरी कलाई...... दर्द हो रहा है मुझे ........ सुनाई नही दे रहा आपको....... मैंने कहा हाथ छोड़िये मेरा....... ऐसे जबरदस्ती खींचते हुए कहाँ लेकर जा रहे है आप मुझे?........"

    धृति लगातार उसका विरोध कर रही थी, उससे अपनी कलाई छुड़वाने की कोशिश कर रही, चीखते हुए उसे रोक रही थी। पहले तो अर्नव इन सबसे बेअसर रहा, फिर एकाएक रुक गया और झटके से धृति की ओर पलटा जो उसके यूँ अचानक रुकने पर उससे टकराते टकराते बची थी और अब भी अपनी कलाई को उससे छुड़वाने की नाकाम सी कोशिश कर रही थी।

    "तुम्हारी बहन ने मेरे और मेरे परिवार की इज़्ज़त का तमाशा बनाया है और तुम ये सब बहुत एंजॉय कर रही हो ...... तो अब हमारे इस नुक्सान की भरपाई भी तुम ही करोगी।" अर्नव गुस्से मे दहाड़ा, उसकी गर्जना सुनकर धृति भी घबरा गयी। अर्नव का चेहरा कठोर था और लहजा सख्त, उसकी गुस्से भरी निगाहें धृति के चेहरे पर टिकी थी जिसपर हैरानगी, घबराहट, डर और उलझन जैसे भाव झलक रहे थे।

    "क..... क्या मतलब हुआ इसका?"

    अर्नव उसके एक कदम और करीब आया और उसकी उन बड़ी बड़ी कत्थई आँखों मे झाँकने लगा।

    "मतलब साफ है मिस धृति अवस्थी। अगर ये बात बाहर मीडिया को पता चली कि शादी से पहले दुल्हन भाग गयी तो मेरे और मेरे परिवार की बहुत बदनामी होगी और जिसका असर मेरी फैमिली के साथ, मेरे बिजनेस पर भी पड़ेगा ......... और इन सबकी ज़िम्मेदार तुम्हारी खुदगर्ज़, धोखेबाज और भगोड़ी बहन है, जिसपर तुम्हे बहुत गर्व महसूस हो रहा है ...... तो अब उसके दिए धोखे की कीमत तुम चुकाओगी। उसके किये नुकसान की भरपाई तुम करोगी।.......... अब मेरी शादी तुमसे होगी।"

    अर्नव ने ज़ोर का झटका ज़ोरों से दिया था, जिसने धृति की पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। अब तक वो वो बस शादी के लिए कह रहा पर अब सृष्टि के जगह उससे शादी करना चाहता था, ताकि सृष्टि की गलतियों की सज़ा उसे दे सके।

    "शा.........शादी........ वो........वो भी आपसे.......... कभी नही ....... मैं नही करूँगी आपसे शादी।"

    धृति पहले तो उसके चेहरे के कठोर भाव देखकर घबरा गयी, जिसके फलस्वरूप उसकी ज़ुबान भी लड़खड़ाई..... पर जल्दी ही उसने खुदको संभाल लिया और दृढ़ता से उसके सामने खड़ी होकर, मजबूती के साथ उसकी बात मानने से साफ इंकार कर दिया। ये देखकर अर्नव की भौंहें खतरनाक अंदाज़ मे सिकुड़ गयी।

    "शादी तो तुम्हे करनी ही होगी........ चाहे अपनी मर्ज़ी से..... या मजबूरी मे।"

    अर्नव के इरादे भी मजबूत थे जो धृति के मन मे अजीब सा डर पैदा कर रहे थे।

    "क........... क्या मतलब है आपका?"

    धृति खुदको उसके आगे मजबूत दिखाने की पूरी कोशिश कर रही थी पर घबराहट और नर्वस्नेस उसके बिहेवियर और चेहरे के भावों मे साफ झलक रही थी।

    जिसे देखकर अर्नव के चेहरे पर कुटिल भाव उभर आए।

    "तुम्हारे पापा हार्ट पेशेंट है न और इलाज के लिए पैसे चाहिए तुम्हे।...... आज अभी इसी वक़्त शादी करो मुझसे ..... और बदले मे तुम्हारे पापा का इलाज करवाकर, उन्हे बिल्कुल ठीक करने की ज़िम्मेदारी मेरी।.......... अब बोलो अब भी नही करोगी शादी?"

    धृति पहले तो अर्नव की बात सुनकर बुरी तरह से चौंक गयी पर फिर उसे ये समझते देर ना लगा कि अगर उसके सामने खड़ा ये आदमी, उसका पता लगवा सकता है तो उसकी ज़िंदगी की हिस्ट्री निकालना और उसकी जुड़े लोगों के बारे मे पता करना कोई बड़ी बात नही है। इसके साथ ही उसके चेहरे पर कठोर भाव उभर आए।

    "नही....... मैं खुदसे अपने पापा का इलाज करवा लुंगी।"

    "Oh really ........ कैसे?....... उस छोटे से बुटीक मे काम करके, उनके इलाज के पैसे जमा करोगी?"

    अर्नव ने भौंह उछालते हुए उससे सवाल किया और उसके लबों पर ठहरी व्यंग्य भरी मुस्कान धृति का मज़ाक उड़ा गयी। धृति उसकी बात सुनकर बुरी तरह से खींझ उठी और तुनकते हुए बोली।

    "कैसे भी करूँ?.... इससे आपका कोई लेना देना नही, पर आप इतना समझ लीजिये कि मैं आपसे शादी तो किसी कीमत पर नही करूँगी।"

    "अगर यही तुम्हारा आखिरी फैसला है ...... तो तुम भी मेरी ये बात ध्यान से सुन लो कि अगर आज ये शादी नही हुई, तुम्हारी बहन के कारण मेरे और मेरे परिवार की इज़्ज़त सारी दुनिया और मीडिया के सामने उछाली गयी तो इस बदनामी के छीटे तुम्हारे परिवार के दामन पर भी आएंगे। ....... तुम और तुम्हारी बहन दोनों को कही का नही छोडूंगा मैं ..... और जब सरेआम तुम्हारी इज़्ज़त उछाली जाएगी तो शायद तुम्हारे पापा, जो पहले से बहुत बीमार है ...... अपनी इज़्ज़त पर ये आघात वो सह न सके और वक्त से पहले ही दुनिया को अलविदा कह दे। ......... जिसकी ज़िम्मेदार तुम होगी।"

    अर्नव ने धृति की कमज़ोर नस दबाई थी और वो दर्द से तिलमिला उठी थी, चेहरे पर बेबसी के भाव उभर आए थे।

    "क्यों कर रहे है आप मेरे साथ ऐसा?"

    "क्योंकि नफरत है मुझे इस चेहरे से........ और आज इसी चेहरे के कारण, मेरी मेरे परिवार की सालों की इज़्ज़त, रैपोटेशन, मेरे दादा जी की ज़िंदगी दाव पर लगी है.............. जिसे बचाने के लिए, मैं किसी भी हद तक जा सकता हूँ।"

    अर्नव का चेहरा अब भी सपाट था और लहज़ा कठोर। उसकी आँखों मे जुनून और उसके मजबूत इरादे झलक रहे थे। जिससे साफ ज़ाहिर था कि वो अपने कदम पीछे नही हटाएगा।

    To be continued...

    क्या होने वाला है आगे? क्या अर्नव अपने मकसद मे कामयाब हो जाएगा?...... धृति फंस जाएगी उसके जाल मे? क्या उसका चेहरा उसकी बर्बादी की वजह बन जाएगा?....

  • 4. Accidental Ishq - Chapter 4

    Words: 1493

    Estimated Reading Time: 9 min

    "अर्नव, सृ......" कबीर ने अर्नव को पुकारते हुए उस कमरे में कदम रखा। वो कुछ बात करने आया था, पर जैसे ही उसकी नजर अर्नव के सामने खड़ी धृति पर पड़ी, आगे के शब्द उसके मुंह में ही रह गए और आंखें हैरानी से फैल गईं।

    "सृष्टि!" कबीर के लब फड़फड़ाए और हैरत भरी आवाज उसके गले से बाहर निकली।

    "सृष्टि नहीं, धृति।"

    अर्नव ने उसकी गलती को सुधारते हुए उसे धृति की सही पहचान बताई और कबीर की हैरानी भरी निगाहें उसकी ओर घूम गईं।

    "धृति......"

    अर्नव ने उसकी हैरानी की वजह समझते हुए आंखों से उसे कुछ इशारा किया तो उसने सर हिला दिया।

    "तू कर ले बात, फ्री होकर आ जाना मेरे पास।"

    इतना कहकर कबीर उड़ती नजर धृति पर डालते हुए वहां से उल्टे पांव वापस चला गया। कबीर के जाने के बाद अर्नव ने निगाहें धृति की ओर घुमाईं और उसकी सख्त रौबदार आवाज वहां गूंज उठी।

    "जा रहा हूं मैं। जब तक वापस लौटूंगा, सिर्फ तब तक का टाइम है तुम्हारे पास...... और सिर्फ दो रास्ते हैं। अगर मुझसे शादी करती हो तो मैं तुम्हारे पापा के इलाज का सारा खर्च उठाऊंगा, तुम्हें और उन्हें मैं कोई प्रॉब्लम नहीं होने दूंगा। तुम्हारी बहन ने जो किया, उसकी सजा भी उसके मॉम-डैड को नहीं दूंगा। ......पर अगर तुम इस शादी से इनकार करती हो तो जो तुम्हारी बहन ने किया है, उसकी सजा उसे, उसकी फैमिली के साथ-साथ, तुम्हें और तुम्हारे पापा को भी मिलेगी। उससे जुड़े किसी इंसान पर रहम नहीं करूंगा मैं।

    मुझे किसी और से मतलब नहीं है, मुझे बस अपनी फैमिली से मतलब है और अगर तुम्हारी बहन के वजह से उन्हें कोई परेशानी हुई तो मैं किसी को भी नहीं छोड़ूंगा। अगर मेरे परिवार की इज्जत उछलेगी तो बचोगे तो तुम लोग भी नहीं।......और अगर मैं बदला लेने पर आया तो तुम और तुम्हारा खानदान खून के आंसू रोएगा, तब भी किसी को मुझसे माफी नहीं मिलेगी।........... बाकी सब तो शायद वो सब सह भी लें, पर तुम्हारे पापा जो सारी जिंदगी अपनी इज्जत और सम्मान के लिए जीते रहे..... वो ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे और अगर उन्हें कुछ हुआ तो उसकी जिम्मेदार तुम होगी।

    अब फैसला तुम्हें करना है, मेरी बात मानकर उन्हें नई जिंदगी देनी है या मुझसे दुश्मनी मोल लेकर अपनी और उनकी जिंदगी तबाह करनी है, उन्हें शर्मिंदगी भरी मौत देनी है।"

    इतना कहकर अर्नव चला गया और पीछे छोड़ गया धृति को जो अब पूरी तरह से उसकी बातों में उलझ चुकी थी।

    कबीर वहां से चला तो गया पर अब भी उसकी आंखों के आगे धृति का चेहरा घूम रहा था और अर्नव की कही बात उसके कानों में गूंज रही थी...... कि सृष्टि ना सही तो धृति से शादी होगी, अपनों की गलतियों की सजा हमें ही भुगतनी होती है।

    धृति को देखने के बाद उसे इन बातों का मतलब समझ आने लगा था। कहीं ना कहीं वो धृति और सृष्टि के रिश्ते को इमेजिन भी कर पा रहा था, अर्नव के इरादे भी समझ रहा था। धृति के यहां होने की वजह भी समझ आ रही थी उसे।.............पर अब भी उसके मन में कई सवाल थे जिसके जवाब वो अर्नव से चाहता था। अर्नव जैसे ही उसके पास पहुंचा, कबीर ने भौंहें सिकोड़ते हुए उस पर सवाल दाग दिया।

    "अर्नव, कौन है ये लड़की, जो हुबहू सृष्टि जैसी दिखती है?"

    "धृति।" अर्नव ने सपाट लहजे में जवाब दिया, जबकि कबीर ये सुनकर खींझ उठा।

    "नाम पता है मुझे, ये नहीं पूछ रहा मैं तुझसे।"

    कबीर को यूं झुंझलाते देखकर, अर्नव ने गहरी सांस छोड़ी और उसकी निगाहों से निगाहें मिलाते हुए, गंभीर सख्त लहजे में जवाब दिया।

    "ये धृति है.............. सृष्टि की जुड़वा बहन, जिसे उसके पापा ने पाला है और उन्हीं के साथ रहती है ये। सृष्टि तो अब मेरी जिंदगी में कभी शामिल नहीं हो सकती............पर उसके वजह से जो सिचुएशन आज मेरे सामने खड़ी है, उससे अब मुझे उसकी जुड़वा बहन बाहर निकालेगी। मेरी शादी आज ही होगी.....पर सृष्टि से नहीं, धृति से।"

    "और वो शादी कर लेगी तुझसे?" कबीर ने भौंहें उचकाते हुए सवाल किया और चेहरे पर गंभीर भाव लिए उसे देखने लगा।

    "उसे करनी पड़ेगी.....इसके अलावा उसके पास और कोई रास्ता ही नहीं है।" अर्नव का चेहरा अब भी सपाट था, पर आंखों में कुछ अजीब से भाव उभर आए थे। कबीर उसकी बात सुनकर चौंक गया।

    "करनी पड़ेगी का क्या मतलब है?......कुछ किया है तूने उसके साथ?........फोर्स कर रहा है उसे अपने साथ शादी करने के लिए...... या ब्लैकमेल कर रहा है?"

    कबीर के इन सवालों पर अर्नव ने अपनी निगाहें फेर लीं और उसकी ये खामोशी कबीर को उसके सवालों के जवाब दे चुकी थी। उसने बेबसी से अपनी आंखों को भींच लिया, चेहरे पर विचलित से भाव उभर आए। खुद को संभालते हुए वो अर्नव के पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए नर्म लहजे में उसे समझाने लगा।

    "देख अर्नव.....ये गलत है, माना सृष्टि ने तेरे साथ गलत किया है और अभी तू बहुत टफ सिचुएशन में फंसा है.....पर ऐसे एक इनोसेंट लड़की को उस गलती की सजा देना जो उसने किया ही नहीं, उसे जबरदस्ती शादी के लिए मजबूर करना सही नहीं है।"

    "मैं यहां सही-गलत देखने बैठा भी नहीं हूं। अभी मुझे सिर्फ अपने और अपनी फैमिली की इज्जत और रैपोटेशन को खराब होने से बचाना है, जिसके लिए मुझे जो भी करना पड़ेगा...... मैं करूंगा............और क्या भरोसा है कि ये सच में इनोसेंट है, अपनी बहन के साथ नहीं मिली है?"

    एक जुनून सा झलक रहा था, उन गहरी स्याह आंखों में। जिसे देखकर पल भर को कबीर भी स्तब्ध रह गया, अगले ही पल उसने धृति के पक्ष में तर्क रखा।

    "उसका यहां होना, इस बात का सबूत है।"

    "रहने दे कबीर। जरूरी नहीं कि वो यहां है तो बेकसूर ही है। ये भी उसकी और उसकी बहन की कोई चाल हो सकती है..... कोई बड़ा गेम प्लान हो सकता है, जिससे अभी तक हम अनजान हैं।"

    "अगर ऐसा है तो, तू क्यों उससे शादी करके जानबूझकर उनके जाल में फंसना चाहता है?"

    "क्योंकि अभी मेरे पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं है, वैसे भी मेरा मानना है कि अपने दुश्मन को अपने करीब ही रखना चाहिए ताकि उसकी हर चाल की खबर रहे और वक्त रहते उसकी हर साजिश को नाकाम कर सकूं।"

    "अर्नव....तू किसी और से पहले, खुद के साथ गलत कर रहा है। पहले सृष्टि और अब धृति.......शादी कोई खेल नहीं है मेरे यार, जिंदगी भर का बंधन है। यूं हालातों के आगे मजबूर होकर बेमन से, जबरदस्ती या बदला लेने के लिए, किसी से शादी नहीं की जाती। ये रिश्ता तो उससे जोड़ा जाता है, जिसके लिए आपके दिल में प्यार के कोमल एहसास हों और जिसके साथ आप अपनी पूरी जिंदगी बिताने के ख्वाहिशमंद होते हैं। तू छोड़ दे ये सब, हम कोई और तरीका सोच लेंगे इन सबसे बाहर निकलने का।"

    कबीर ने एक आखिर कोशिश की थी उसे समझाने की, पर अर्नव पर कोई असर न हुआ।

    "अब इतना वक्त नहीं है हमारे पास....और न ही इसके अलावा कोई और सोल्यूशन है इन प्रॉब्लम्स का। अब बात सिर्फ मेरी फैमिली तक सीमित नहीं है, पूरे इंडिया में फैल गई है। अगर आज मेरी सृष्टि से शादी नहीं हुई....तो मेरी, मेरी फैमिली की इज्जत, मान-सम्मान, रैपोटेशन सब दांव पर लग जाएगा। सालों की मेहनत से खड़े किए बिजनेस पर इसका असर पड़ेगा, हमारी कंपनी की मार्केट इमेज खराब होगी और मैं ऐसा होने नहीं दे सकता। और इन सारी प्रॉब्लम्स का एक ही सोल्यूशन है, धृति से मेरी शादी।

    ये सब कुछ सृष्टि ने शुरू किया था और इसे खत्म मैं करूंगा....अपने अंदाज में, अपने तरीके से। तू बस अब शादी की तैयारियां कर, हर मीडिया चैनल को इन्विटेशन भेज। अब मैं चाहता हूं कि पूरी मुंबई क्या पूरा इंडिया हमारी शादी का गवाह बने।"

    "और ये करके, तुझे क्या हासिल होगा?"

    "मैं उस सृष्टि को दिखाना चाहता हूं कि उसने गलत इंसान से पंगा ले लिया.....और बहुत कम आंक लिया उसने मुझे। I am damn sure कि वो जहां कहीं भी छुपी होगी, इस उम्मीद के साथ न्यूज जरूर देखेगी कि उसके यूं शादी से गायब होने पर मेरा और मेरी फैमिली का क्या हाल है। पर जब न्यूज में वो मेरी शादी होते देखेगी, अपनी जगह अपनी ही बहन को बैठे देखेगी...तो एक झटका लगेगा उसे........ बस वही शॉक देना चाहता हूं मैं उसे, ताकि वो अपने बिल से बाहर निकलकर मेरे सामने आए और मैं उससे इन सबका बदला ले सकूं।

    उसे एहसास दिला सकूं कि मुझे धोखा देकर उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती की है, जिसकी सजा से तो अब खुद भगवान भी उसे नहीं बचा सकते।"

    खतरनाक इरादों के साथ कबीर को इंस्ट्रक्शंस देने के बाद अर्नव ने एक बार फिर उस कमरे की ओर कदम बढ़ा दिया जहां मौजूद धृति अपने ही ख्यालों में खोई थी। उसका मन भटकते हुए उस वक्त में पहुंच गया था, जब वो सिंह मेंशन गई थी।

    To be continued...

    क्या होगा आगे? क्या अर्नव अपने इरादों में कामयाब होगा? क्या अर्नव जान पाएगा कि सृष्टि ने ऐसा क्यों किया?.... जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ।

  • 5. Accidental Ishq - Chapter 5

    Words: 1646

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब तक हमने पढ़ा कि अर्नव फैसला कर चुका था और कबीर, जो उसे समझाने की कोशिश कर रहा था, वो भी उसके इरादों को बदलने में नाकाम रहा था। अर्नव ने एक बार फिर उस कमरे की ओर कदम बढ़ा दिया जहाँ मौजूद धृति अपने ही ख्यालों में खोई थी। उसका मन भटकते हुए उस वक्त उन्हें देखते ही उसके सौम्य चेहरे पर कठोर भाव उभर आए।

    "मुझे यहाँ क्यों बुलाया है आपने?" धृति की गुस्से भरी निगाहें अपनी माँ, मिसेज कोमल सिंह, पर ठहरी थीं। उसे देखते ही कोमल जी उठकर उसके पास चली आईं।

    "कैसी है मेरी बेटी?" उन्होंने प्यार से उसे पुचकारा, लाड लड़ाते हुए, उसे अपने गले से लगाना चाहा। पर धृति ने अपने कदम पीछे हटाते हुए, अपनी हथेली उनके सामने कर दी।

    "जहाँ हैं, वहीं रुक जाइए आप। मेरे करीब आने की कोशिश भी मत कीजिए। मैं आपके असली चेहरे से बहुत अच्छे से वाकिफ हूँ, आपके इस झूठे दिखावटी प्यार की मुझे कोई ज़रूरत और चाहत नहीं है। इसलिए ये नाटक बंद कीजिए और साफ-साफ बताइए कि मुझे यहाँ क्यों बुलाया है? अब कौनसा काम पड़ गया है आपको कि आपको मेरी याद आ गई?

    फिर से आपकी लायक और लाडली बेटी ने आपके लिए कोई मुसीबत खड़ी कर दी है, जिससे बाहर निकलने के लिए आपको अपनी इस बेटी की ज़रूरत पड़ गई है... जिसे न आपने कभी अपनी बेटी माना और न ही उसके सर पर कभी अपना ममता भरा हाथ रखा, कभी प्यार से गले तक नहीं लगाया... बस हर बार अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए उसका इस्तेमाल किया।"

    धृति की आवाज़ बुलंद थी,जबड़े भींचे हुए थे, और उसमें गुस्से के साथ-साथ नफरत और रोष के भाव भी झलक रहे थे। उसकी बातें सुनकर कोमल जी ने परेशान निगाहें सोफे पर बैठे मिस्टर सिंह पर डालीं। उन्होंने पलकों को झपकाते हुए उन्हें आँखों से कुछ इशारा किया, जिस पर कोमल जी ने सहमति में सिर हिला दिया।

    गमगीन, दुखी, उदास, पीड़ित और लाचारगी भरा चेहरा बनाकर उन्होंने धृति को देखा और आँखों में मगरमच्छ के आँसू भरते हुए बोलीं, "बेटा, आज हम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं और इस मुसीबत से अब सिर्फ तुम हमें बाहर निकाल सकती हो।"

    "कैसी मुसीबत?" धृति के तेवर तीखे थे और निगाहें अब भी उन्हें ही घूर रही थीं। अब उसका शक यकीन मे बदलता नज़र आ रहा था।

    "बेटा, अर्नव सिंह रायज़ादा का नाम तो सुना ही होगा तुमने। फैशन की दुनिया का बेताज बादशाह है वो, एशिया के टॉप फाइव बिज़नेसमैन में पहले नंबर पर आता है और पूरे वर्ल्ड में पाँचवें नंबर पर। कई नामी अवार्ड्स अपने नाम कर चुका है और बहुत यंग एज में वो अचीव किया है जिसका सपना देखते-देखते लोग बूढ़े हो जाते हैं। लड़कियों का प्रिंस चार्मिंग है।"

    यहाँ वो अर्नव के बारे में उसे बता रही थी और धृति के आगे उसका चेहरा उभर आया था, भौंहें सोचने के अंदाज़ में सिकुड़ गयी थीं।

    "आप मुझे इनके बारे में क्यों बता रही हैं?"

    "बेटा, वो जितना सक्सेसफुल है, उतना ही खतरनाक भी है। वो और सृष्टि एक-दूसरे को पसंद करते थे, शादी करना चाहते थे, तो हमने भी मंज़ूरी दे दी। सब कुछ सही चल रहा था। दोनों परिवार इस रिश्ते से खुश थे, धूमधाम से सब रस्में हुई थीं और आज सृष्टि की शादी थी... पर पता नहीं सृष्टि कल रात को कहाँ गयी कि अभी तक वापस नहीं लौटी है। उसका फोन भी बंद आ रहा है, उसके किसी फ्रेंड को भी उसके बारे में कुछ नहीं पता। हमने उसे ढूंढने की भी बहुत कोशिश की, पर वो मिल नहीं रही। कुछ घंटे में शादी है और अगर सृष्टि टाइम पर शादी के वेन्यू पर नहीं पहुँची, तो अर्नव हमें बर्बाद कर देगा। वो हमें धमकी देकर गया है कि अगर सृष्टि से आज उसकी शादी नहीं हुई, तो किसी को नहीं छोड़ेगा वो।"

    उनकी आँखों में अर्नव का खौफ साफ झलक रहा था। सृष्टि को अब अर्नव की उन बातों के पीछे की वजह समझ आ रही थी। सृष्टि के गायब होने की बात सुनकर, पल भर को उसे उसकी चिंता भी हुई, पर अगले ही पल उसका चेहरा एकदम सर्द हो गया।

    "तो ये सब मुझे क्यों बता रही हैं आप? और क्या चाहती हैं मुझसे?"

    धृति अब भी तीखी निगाहों से उन्हें घूर रही थी। मिसेज सिंह ने शब्दों में प्यार की मिठास घोलते हुए, उसे अपने आँसू दिखाकर बहलाने की कोशिश की।

    "बेटा, एक तुम ही हो, जो हमें इस मुसीबत से निकाल सकती हो। सृष्टि का तो कुछ पता नहीं है, पर तुम हुबहू उसके जैसी दिखती हो। अगर तुम सृष्टि की जगह अर्नव से शादी कर लो, तो सब ठीक हो जाएगा।"

    उन्होंने ऐसी बेशर्मी से ये बात कही कि पहले तो धृति हतप्रभ सी, बेयकीनी से उन्हें देखती ही रह गयी। अगले ही पल उसका मन कड़वाहट से भर गया, चेहरा कसैला हो गया, कुछ बीती पुरानी बातें याद आ गयी और आँखों में गुस्से में घुली बेइंतेहा नफरत झलकने लगी।

    "जिस अर्नव सिंह रायज़ादा की बात आप कर रही हैं न, जिनसे इतना डर रही हैं... मिल चुकी हूँ मैं उनसे। अगर वाकई में दी की शादी उनसे होने वाली थी, तो अच्छा ही हुआ जो दी भाग गयी। उस अड़ियल, सरफिरे, गुस्सैल और घमंडी आदमी से शादी करके, अपनी ज़िंदगी बर्बाद करने से तो अच्छा ही है कि बंदा कभी शादी ही न करे। और लगता है आखिरकार दी को ये बात समझ आ ही गयी होगी, तभी उन्होंने अपनी शादी से भागने जितना बड़ा कदम उठाया।"

    दृष्टि ने हिकारत भरी नज़रों से उन्हें देखा और होंठों पर व्यंग्य भरी मुस्कान उभर आई।

    "कितनी अजीब बात है न, मैं एक लड़की और इंसान होने के नाते ये कभी नहीं चाहती कि इस बदतमीज़ आदमी से दी की शादी हो, और एक आप हैं, जो मेरी सगी माँ होकर मुझे जानबूझकर उस नर्क में धकेलने को तैयार हैं।

    आज तक मैंने अपने मन के खिलाफ जाकर, अपने बाबा से छुपकर बहुत कुछ किया है आपके और आपकी बेटी के लिए... सिर्फ इसलिए क्योंकि बदकिस्मती से आप मेरी माँ हैं... जन्म दिया है आपने मुझे, मुझे ये ज़िंदगी दी है आपने, और आपके इस एहसान की कीमत, शायद मैं मरकर भी न चुका सकूँ... पर मैं इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर सकती। मैं दी की सब्स्टिट्यूट नहीं हूँ, मैं कभी उनके होने वाले पति से शादी नहीं करूँगी।"

    मिस्टर एंड मिसेस सिंह के चेहरे पर कुछ लकीरें उभरी जो उनकी चिंता और परेशानी ज़ाहिर कर रही थी। धृति ने हल्की नाराज़गी से कहा, "आप मुझे ऐसा करने के लिए कह भी कैसे सकती हैं? जानती हैं न कैसे इंसान हैं वो? उन्हें पहले ही आपकी लाडली बेटी धोखा दे चुकी है, अगर मैंने भी उन्हें धोखा दिया, तो हम दोनों में फर्क ही क्या रह जाएगा? कल को अगर उन्हें सच्चाई का पता चल गया, तो क्या हश्र करेंगे वो मेरा?

    शादी को क्या आपने खेल समझ रखा है कि अगर दी भाग गयी, तो उनके जगह मुझे बिठा दो। उनकी ज़िंदगी तो बच गयी, पर खुद को बचाने के लिए मेरी खुशियाँ, मेरे सपने, सबको बलि चढ़ा दो? किसने हक दिया आपको मेरी ज़िंदगी का इतना बड़ा फैसला लेने का, और आपने ये सोच भी कैसे लिया कि मैं आपकी बात मानकर ऐसा कुछ करूँगी?

    मुझे तो समझ नहीं आता कि कोई माँ, इतनी भी स्वार्थी कैसे हो सकती है? अपने ही दो बच्चों में इतना फर्क कैसे कर सकती है? कभी-कभी तो आपका ये दोगलापन देखकर, मुझे शक होता है कि क्या वाकई में मैं आपकी ही बेटी हूँ? कितना फर्क किया आपने बचपन से मुझमें और दी में। माँ के होते हुए मैं माँ के प्यार के लिए तरसती रही, आपको सिर्फ अपनी एक बेटी का दुख, उसकी खुशियाँ, उसकी ख्वाहिशें, उसकी ज़रूरतें नज़र आईं... पर जब-जब माँ होने का हक लेने की बारी आई, आप बेशर्मी से मेरे पास चली आईं।

    आज भी यही कर रही हैं आप... पर माफ कीजिए, लेकिन आज मैं आपके लिए कुछ नहीं कर सकती। ये मुसीबत आपकी बेटी ने खड़ी की है, तो उससे निकलने का रास्ता आप खुद ढूँढिए। मैं आप जैसे स्वार्थी लोगों के लिए अब कुछ नहीं करूँगी, इसलिए मुझसे किसी तरह की कोई मदद की उम्मीद भी मत कीजिएगा।"


    "तो क्या फैसला लिया तुमने?"

    अर्नव की आवाज़ धृति के कानों से टकराई और उसे खींझते हुए अतीत की उन यादों से बाहर लाई। अपनी माँ का वो स्वार्थ से भरा रूप याद करते हुए, एक बार फिर उसकी आँखें भर आईं और दिल में अजीब सा दर्द उठ रहा था। जिसे अपने दिल में छुपा लिया। बड़ी ही बेरहमी से अपनी हथेलियों से अपने आँसू पोंछते हुए, मन ही मन सोचने लगी,

    "सब यही चाहते हैं कि मैं इनसे शादी कर लूँ। अगर मैं इस रिश्ते के लिए हाँ कहती हूँ, तो इससे सबकी मुश्किलें आसान हो जाएंगी। बाबा का इलाज हो जाएगा, माँ को अर्नव सिंह रायज़ादा नामक दानव से छुटकारा मिल जाएगा, उनके और उनकी फैमिली की इज़्ज़त और रेपुटेशन भी बच जाएगी, और मुझे क्या मिलेगा? उनके जैसा पति..."

    ये सोचते हुए धृति की रूह काँप गयी और उसने हड़बड़ाते हुए मन ही मन खुद को फटकार लगाई,

    "धृति, ये क्या सोचने लगी तू? नहीं... नहीं, ये गलत है। तू किसी कीमत पर, किसी सूरत में... ये शादी नहीं करेगी। तू बस अपने और अपने बाबा के बारे में सोच।"

    "जवाब नहीं दिया तुमने, क्या फैसला किया है तुमने?" धृति अपने ही मन के ख्यालों में उलझी थी, जब एक बार फिर अर्नव की कठोर आवाज़ उसके कानों से टकराई... और अपने दिमाग में उठते ख्यालों को परे झटकते हुए, धृति उसकी ओर पलट गयी।

    To be continued...

    अर्नव के इस सवाल का धृति क्या जवाब देगी? क्या फैसला लेगी वह? और क्या होगा अब आगे?

    शायद अब आप समझ गए होंगे, फिर भी मैं इतना बता देती हूँ कि सृष्टि एंड धृति ट्विंस हैं, पर उनके पेरेंट्स का सालों पहले डिवोर्स हो चुका है। धृति अपने पापा के साथ रहती है और सृष्टि अपनी माँ और स्टेप-फादर के साथ।

  • 6. Accidental Ishq - Chapter 6

    Words: 1731

    Estimated Reading Time: 11 min

    "जवाब नहीं दिया तुमने, क्या फैसला किया है तुमने?" धृति अपने ही मन के ख्यालों में उलझी थी, जब एक बार फिर अर्नव की कठोर आवाज़ उसके कानों से टकराई। अपने दिमाग में उठते ख्यालों को परे झटकते हुए, धृति उसकी ओर पलट गई।

    "देखिए, मैं समझती हूँ कि दी ने आपके साथ जो किया, वो ठीक नहीं किया। वजह चाहे जो हो, पर उन्हें ऐसे शादी से भागना नहीं चाहिए था। इससे आप और आपकी फैमिली मुश्किल में पड़ गई है। पर जो भी हुआ, उसमें मेरे या मेरे पापा का कोई कसूर नहीं है। आप प्लीज हमें इन सब से दूर रखिए।"

    धृति ने इस बार बहुत ही शांति से उससे डील करने की कोशिश की, पर अर्नव नहीं पिघला। उल्टा उसकी बात सुनकर वो पैनी निगाहों से उसे घूरते हुए तल्ख लहज़े मे बोला,

    "तुम्हारी ये बकवास सुनने का वक्त नहीं है मेरे पास। तुम बस मुझे इतना बताओ कि तुम अपनी मर्ज़ी से मुझसे शादी करोगी या मुझे किसी उल्टे तरीके का इस्तेमाल करके तुम्हें ऐसा करने पर मजबूर करना होगा?"

    अजीब ही नमुना किस्म का आदमी था, जिसकी सूई बस एक ही बात पर अटकी हुई थी। बाकी न वो कोई दूसरी बात सुनने को तैयार था और न ही समझने को। ये देखकर धृति खीझ उठी।

    "आप समझ क्यों नहीं रहे, आप जो चाहते हैं, मैं वो नहीं कर सकती।"

    "और तुम ये बात समझ लो कि इसके अलावा तुम्हारे पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं, अपने पापा की जान बचाने का। गोल्डन चांस दे रहा हूँ तुम्हें मैं। मेरी बात मानो, बदले में तुम्हारी और तुम्हारे पापा की सारी ज़िम्मेदारी मेरी।"

    अर्नव का लहजा अब भी सख्त था और चेहरा कठोर, उसमें ज़रा भी लचक नही थी। धृति ने उसकी ये बात सुनकर आँखें छोटी करते हुए उसे घूरा।

    "तो आप मुझसे मेरी ज़िंदगी का सौदा करना चाहते हैं?"

    "मजबूरी है मेरी," वही शब्दों के पत्थर फेंककर सर फोड़ने वाला, बेरुखी भरा कठोर लहजा। धृति को अब खीझ होने लगी।

    "पर आपकी मजबूरी से मेरा कोई सरोकार नहीं। अगर मेरे बाबा को इस शादी के बारे में पता चल गया तो मुझ पर से उनका विश्वास उठ जाएगा। इसलिए मुझे माफ़ करें, मैं ये नहीं कर सकती।"

    "तुम्हारे बाबा को मनाना मेरी ज़िम्मेदारी है। इसके अलावा अगर तुम्हारे इंकार की कोई और वजह है तो बताओ।"

    धृति पहले तो उसकी बात सुनकर चौंकते हुए आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी। फिर तुरंत ही उसने तुनकते हुए कहा, "मैं आपसे प्यार नहीं करती, आप मुझे ज़रा भी नहीं पसंद।"

    बोलते हुए धृति ने अजीब सा मुँह बनाया। जवाब में अर्नव ने भी उसी का अंदाज़ अपनाया।

    "तुम्हारे बारे में मेरे ख़्याल भी कुछ ऐसे ही हैं। पर फिर भी मुझे तुमसे शादी करनी होगी, हमें साथ रहकर इस रिश्ते को निभाना ही होगा। और कोई चारा नहीं है... न तुम्हारे पास और न ही मेरे पास।"

    "आप दी से प्यार करते हैं, उनसे शादी करना चाहते थे। फिर मैं कैसे आपसे शादी कर सकती हूँ?" धृति ने माथे पर बल डालते हुए, परेशान निगाहों से उसे देखा। सृष्टि का ज़िक्र आते ही गुस्से से अर्नव की मुट्ठियाँ कस गईं और त्योरियाँ चढ़ाए धृति को घूरते हुए, उसने सर्द लहज़े में उससे सवाल किया।

    "तुम्हें ये ग़लतफ़हमी कैसे हुई कि मैं तुम्हारी उस धोखेबाज़, भगोड़ी बहन से प्यार कर सकता हूँ?" उसकी आवाज़ में गुस्सा साफ झलक रहा था, पर धृति ने उस पर ध्यान न देते हुए तपाक से जवाब दे दिया।

    "आप दोनों की शादी हो रही थी, उनके शादी से भागने पर आप गुस्से से बौखलाए फिर रहे हैं, तो प्यार तो करते ही होंगे आप उनसे।"

    "जी नहीं, कोई प्यार-मोहब्बत नहीं था हमारे बीच। बस एक डील थी," अर्नव ने जैसे किसी गहरे रहस्य पर से पर्दा उठाया था। उसका चेहरा सपाट था, पर उसकी ये बात सुनकर धृति बुरी तरह से चौंक गई थी।

    "कैसी डील?"

    "ये जानना तुम्हारे लिए ज़रूरी नहीं। मैंने तुम्हें बता दिया कि हमारे बीच कोई प्यार वाला रिश्ता नहीं था, जो था सिर्फ और सिर्फ एक डील थी। इतना जानना काफ़ी होना चाहिए तुम्हारे लिए, मुझसे शादी करने का फ़ैसला लेने के लिए।"

    अर्नव का ये बेरुखी भरा जवाब सुनकर, धृति ने खीझते हुए नाक-मुँह सिकोड़ लिया।

    "फिर मुझसे शादी क्यों करना चाहते हैं? क्या ये भी किसी तरह की कोई डील है?"

    धृति ने आँखें बड़ी-बड़ी करते हुए सवाल किया, जिस पर अर्नव ने गंभीर भाव के साथ एतराज़ जताया।

    "बिल्कुल नहीं, ये एक सच्ची शादी होगी, जैसे बाकी आम शादियाँ होती हैं, बिल्कुल वैसे।"

    "क्यों? पहले डील थी, फिर अब रियल शादी क्यों?" अगला सवाल आया था उसके मन में। जिसे सुनकर अर्नव की भौंहें खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गईं और वो अपनी काली डरावनी आँखों से उसे घूरने लगा।

    "क्योंकि तुम्हारे बहन से मिले धोखे के बाद, मैंने अपना इरादा बदल लिया है।"

    "तो अगर आपको असली में ही शादी करनी है तो किसी और लड़की को क्यों नहीं ढूँढते आप? इतने अमीर हैं, पैसे वाले हैं, इतनी पहुँच है आपकी, ग़लती से दिखते भी ठीक-ठाक हैं। आपको तो कोई भी लड़की मिल जाएगी, किसी से भी शादी कर सकते हैं आप। फिर मेरे पीछे क्यों पड़े हैं? मुझसे क्यों शादी करना चाहते हैं?"

    "क्योंकि तुमने कहा था कि दुनिया की कोई लड़की मुझसे शादी नहीं करेगी। तुमने कहा था कि तुम्हारी बहन, मेरे बिहेवियर के वजह से शादी से भागी है। तो अब तुम खुद मुझसे शादी करोगी और अपनी सारी ज़िंदगी मेरे साथ बिताओगी। अपनी आँखों से देखोगी कि कितना बुरा हूँ मैं और मेरे साथ रहना कितना मुश्किल।"

    अर्नव ने जो जवाब दिया, धृति के तो सर के सारे तार झनझना उठे। वो आँखें फाड़े और मुँह खोले हैरान-परेशान सी उसे देखती ही रह गई।

    "साइको हैं आप।"

    "जैसा भी हूँ, अब होने वाला पति हूँ तुम्हारा। तो इज़्ज़त से बात करो।"

    अर्नव की बात सुनकर धृति का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा।

    "इज़्ज़त माय फुट। हटिये सामने से, मुझे नहीं करनी है आपसे कोई शादी-वादी।"

    धृति उसे धकेलते हुए वहाँ से जाने के लिए आगे बढ़ी ही थी कि अर्नव के शब्द उसके कानों से टकराए और उसके आगे बढ़ते कदम ठिठक गए।

    "सोच लो, शायद तुम नहीं जानती पर तुम्हारे पापा के पास ज़्यादा वक़्त नहीं है। अगर एक-दो महीने के अंदर उनका ऑपरेशन नहीं हुआ तो तुम उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए खो दोगी। और जहाँ तक मुझे पता है, उनके अलावा अपना कहने के लिए कोई नहीं है तुम्हारे पास। अगर उन्हें कुछ हो गया तो इस इतनी बड़ी दुनिया में बिल्कुल अकेली हो जाओगी तुम? एक तो अकेली, उस पर जवान और ख़ूबसूरत लड़की। कैसे काटोगी अपनी ज़िंदगी? और क्या कभी खुद को इस बात के लिए माफ़ कर सकोगी कि मौका था तुम्हारे पास, तुम चाहती तो बचा सकती थी अपने पापा को, पर तुमने उन्हें बचाने की एक कोशिश तक नहीं की?"

    अब अर्नव उसकी भावनाओं का फ़ायदा उठाकर, उसे इमोशनल ब्लैकमेल कर रहा था। धृति का दिमाग पल भर को सुन्न रह गया। आँखों के आगे उसके बाबा का मुस्कुराता हुआ चेहरा आया और उनकी गिरती सेहत याद करते हुए, उसका दिल घबराने लगा। अगले ही पल वो अर्नव की ओर पलट गई।

    "आप झूठ बोल रहे हैं न? बाबा ने तो मुझे नहीं बताया कि उनकी हालत इतनी क्रिटिकल है। फिर आपको ये बात कैसे पता चली? कहीं आप जानबूझकर ये झूठ तो नहीं कह रहे मुझसे, ताकि मुझे इस शादी के लिए राज़ी कर सकें?"

    "मैं झूठ नहीं कहता। मैंने तुम्हें सिर्फ वही बताया, जो सच है। और तुम्हारा बाबा ये बात बहुत अच्छे से जानते हैं। शायद उन्होंने इसलिए तुम्हें न बताया हो कि तुम डर न जाओ। मैंने उनके डॉक्टर से बात की है, पर अगर फिर भी तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं, तो मैं अभी तुम्हारी उस डॉक्टर से बात करवा सकता हूँ। और अगर तुम्हें फिर भी लगे कि मैं झूठ कह रहा हूँ, उस डॉक्टर को मैंने पैसे देकर झूठ कहने को कहा है, तो इंतज़ार करना, एक-दो महीने में तुम्हें खुद पता चल जाएगा कि मैं सच कह रहा था या झूठ।"

    अर्नव बेहद गंभीर लग रहा था और जिस विश्वास के साथ उसने ये सब कहा था, उससे साफ ज़ाहिर था कि इनमें से कोई भी बात झूठ नहीं है। अपने बाबा के बारे में ऐसी बातें सुनकर धृति का दिल घबराने लगा, उनको खोने के ख़्याल से ही उसकी आँखें बरसने को आतुर हो गईं, पर उसने खुद को कमज़ोर नहीं पड़ने दिया। उसने हिम्मत से काम लेते हुए, अपने आँसुओं को अपनी हथेलियों से पोंछा और भीगी उम्मीद भरी निगाहें अर्नव पर आकर ठहर गईं।

    "अगर मैं आपसे शादी करती हूँ तो आप मेरे बाबा का इलाज करवाएंगे, उन्हें कुछ नहीं होने देंगे।"

    "तुम्हारे बाबा की जान सिर्फ हार्ट ट्रांसप्लांट के ज़रिए ही बचाई जा सकती है। मैं अभी से ये तो नहीं कह सकता कि सर्जरी सक्सेसफुल होगी या नहीं और आगे क्या होगा? पर इतना वादा करता हूँ कि अगर तुम मुझसे शादी करती हो तो उनके लिए डोनर का इंतज़ाम मैं करूँगा, बेस्ट डॉक्टर उन्हें ऑपरेट करेंगे और उन्हें बेस्ट ट्रीटमेंट दिया जाएगा। सारा खर्चा मैं उठाऊँगा और अपने तरफ से मैं पूरी कोशिश करूँगा कि तुम्हारे सर से तुम्हारे पापा का हाथ न उठे, आगे जो भगवान की मर्ज़ी।"

    "कितने परसेंट चांस है कि सर्जरी के बाद मेरे बाबा बिल्कुल ठीक हो जाएंगे?"

    "चांसेस हाई हैं। रिजल्ट इस बात पर डिपेंड करता है कि सर्जरी कैसी जाती है? और तुम्हारे बाबा का शरीर उस नए दिल को एक्सेप्ट करता है या नहीं। पर अगर सब ठीक रहा, कोई परेशानी नहीं हुई, तो यकीनन तुम्हारे बाबा बिल्कुल ठीक हो जाएंगे।"

    इस बार अर्नव का लहजा नरम था, शायद धृति के आँसू देखकर उसके सख्त व्यवहार में नरमी झलकने लगी थी। धृति किन्हीं ख़्यालों में खोई थी, जब अर्नव के आगे के शब्दों ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा।

    "अगर तुम अपने बाबा की जान बचाना चाहती हो तो तुम्हें ये रिस्क लेना ही होगा। अगर उनकी सर्जरी नहीं होती है तो उनका बचना नामुमकिन है। अब फ़ैसला तुम्हें लेना है कि तुम क्या चाहती हो? और वक़्त नहीं है तुम्हारे पास।"

    धृति, जो शून्य में तकते हुए इस पूरी परिस्थिति के बारे में सोच रही थी, उसकी सूनी निगाहें अर्नव के चेहरे पर ठहरीं, जिनमें अभी भी नमी बाकी थी।

    "मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूँ पर मेरी एक शर्त है।"

    To be continued...

    कौन सी शर्त रखने वाली है धृति और उसकी शर्त पर अर्नव का रिएक्शन क्या होगा? क्या धृति ने सही फ़ैसला लिया है? या वो अर्नव के जाल में फंस चुकी है?

  • 7. Accidental Ishq - Chapter 7

    Words: 1608

    Estimated Reading Time: 10 min

    धृति जो शून्य में तकते हुए इस पूरी situation के बारे में सोच रही थी। उसकी सूनी निगाहें अर्नव के चेहरे पर ठहरीं, जिनमें अभी भी नमी बाकी थी।

    “मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूँ, पर मेरी एक शर्त है।”

    “कैसी शर्त?” अर्नव ने आँखें चढ़ाए गहरी निगाहों से उसे देखने लगा। धृति के चेहरे पर अजीब-सी मायूसी और बेबसी के भाव उभर आए।

    “मैं चाहती हूँ कि मेरा कन्यादान मेरे बाबा के हाथों से हो, पर उन्हें ये पता नहीं चलना चाहिए कि मेरी शादी है।”

    “मंज़ूर है। जैसा तुम चाहती हो, वैसा ही होगा।”

    धृति का चेहरा भावहीन था, जबकि अर्नव के चेहरे पर इत्मिनान झलकने लगा था।


    मुंबई शहर से दूर सुनसान इलाके पर बना वो आलीशान बंगला, जो चारों ओर से बड़े-बड़े घने पेड़ों और दूर-दूर तक फैले घास के हरे मैदानों से घिरा था। उस बंगले में मौत-सा सन्नाटा पसरा था और उस सन्नाटे में कुछ धीमी-धीमी-सी आवाज़ें गूँज रही थीं।

    पूरा बंगला खाली था, इंटीरियर कमाल का था और हर चीज़ नई-सी चमक रही थी, पर किसी इंसान का नामोनिशान तक नहीं था वहाँ। उस बंगले में एक कमरा था, जहाँ घना अँधेरा फैला था। बस खिड़की से आती चाँद की हल्की रोशनी बिखरी थी वहाँ। उस आलीशान कमरे के किंग साइज़ बेड पर एक लड़का पिलो से टेक लगाए तिरछा लेटा हुआ था। जिसके बदन पर कपड़े के नाम पर बस एक झीनी-सी चादर पड़ी थी, जिससे उसकी कमर के नीचे का हिस्सा ढका हुआ था। जबकि उसका उपरी धड़ निरावरण था और चाँद की रोशनी में वहाँ बने नाखून व दाँतों के निशान साफ नज़र आ रहे थे, जबकि उसका चेहरा अँधेरे में गुम था।

    उसने अपना हाथ बढ़ाया और एक लड़की सर्प बेल जैसे आकर उसके सीने से लिपट गई। उस लड़की ने ब्लैक कलर की सेक्सी-सी मिनी ड्रेस पहनी हुई थी, जिसमें उसके गोरे कंधे के साथ कुछ हद तक उसके कंधे से नीचे का हिस्सा भी उजागर हो रहा था, उसकी लंबी पतली टाँगें बेहद आकर्षक लग रही थीं।

    उस लड़की का चेहरा उसके सीने में छुपा था, उसके बिखरे बाल, अस्त-व्यस्त हो चुके कपड़े और जिस्म पर उभरे लाल और नीले रंग के निशान, उनके बीच के रिश्ते की कहानी सुना रहे थे।

    “बेबी, तुम्हारी शादी का टाइम हो गया है और तुम यहाँ मेरे साथ सुहागरात मना रही हो।”

    उस लड़के ने उस लड़की के जिस्म के साथ खेलते हुए, नाटकीय अंदाज़ में बात कही। जिसे सुनकर वो लड़की जो एक बार फिर उसमें समा जाने को बेताब थी और उसकी मोहब्बत में खोई सिसकारियाँ भरते हुए, उसके सीने को चूम रही थी। उसने सर उठाकर आँखें बड़ी-बड़ी करके, उस लड़के को देखा।

    हुबहू धृति-सी शक्ल-सूरत, बिल्कुल उसी की जैसी लग रही थी वो इस वक़्त। ये थी सृष्टि... जो पहले तो कुछ परेशान-सी उस लड़के को देखती रही, फिर एकाएक दोनों की शैतानी हँसी उस कमरे में गूँज उठी।

    “Hmm टाइम तो हो गया है, चलो अर्नव की बर्बादी की शुरुआत का लाइव टेलीकास्ट देखते हैं।”

    सृष्टि ने सिडक्टिव मुस्कान लबों पर सजाते हुए कहा और जैसे ही उससे दूर होने लगी। उस लड़के ने उसकी कमर को जकड़ते हुए उसे खुद से सटा लिया और उसके खुले कंधों को बेताबी से चूमते हुए उसके कान में सरगोशी की,

    “उसके लिए मुझसे दूर जाने की क्या ज़रूरत है बेबी, अभी मेरा मन नहीं भरा है तुमसे। मैं कुछ देर और ऐसे ही तुम्हारे जिस्म के साथ खेलना चाहता हूँ।”

    “अच्छा तो फोन तो लेने दो मुझे।” सृष्टि ने फिर उससे दूर होना चाहा पर उस लड़के ने उसकी कमर पर अपनी बाँह की पकड़ कस दी। उसे एक झटके से बिस्तर पर पटकते हुए खुद उसके ऊपर आ गया। हाथ बढ़ाकर उसने साइड में रखा अपना फोन उठाया और सृष्टि को पकड़ाते हुए बेताबी से उसके लबों को चूमने लगा। सृष्टि उसकी बाहों में मचल उठी। उसकी बेताबी और बेकरारी देखकर मन ही मन मुस्कुराई और जैसे ही फोन का लॉक खोला, स्क्रीन पर उसकी खूबसूरत-सी फोटो उभर आई।

    “तुमने वॉलपेपर पर मेरी फोटो कब लगाई?”

    वो लड़का जो अब उसके लबों को छोड़कर उसकी सुराहीदार गर्दन पर अपने लबों के निशान छोड़ने लगा था, उसने अपने काम को पूरी शिद्दत के साथ अंजाम देते हुए ही जवाब दिया।

    “जब तुम उस अर्नव को, अपने झूठे प्यार के जाल में फँसाने में बीज़ी थी और मैं तुम्हारी याद में तड़प रहा था।”

    उसका जवाब सुनकर सृष्टि की मुस्कुराहट गहरी हो गई। उसने फोन में न्यूज़ लगाई और उसे बेड पर पटककर खुद भी उस लड़के के साथ इन्वॉल्व हो गई। दोनों एक-दूसरे में समाने को बेताब थे और पैशनेटली एक-दूसरे को चूम रहे थे, तभी अचानक उस कमरे में एक तेज़ आवाज़ गूँजी और दोनों एक झटके में उन हसीन प्यार भरे लम्हों की खुमारी से बाहर आ गए।

    सृष्टि ने खुद को चादर से कवर करते हुए फोन उठाया, जिसपर आज की अर्नव की शादी का लाइव वीडियो चल रही थी, साथ ही एंकर अपने viewers को ब्रेकिंग न्यूज़ भी दे रही थी।

    “हम मौजूद हैं रायज़ादा मैंशन में, जहाँ इस वक़्त करोड़ों लड़कियों के दिल पर राज करने वाले, सिर्फ मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में अपने काम के लिए जाने जाने वाले, इंडिया के मोस्ट एलिजिबल बैचलर्स में सबसे पहले नंबर पर आने वाले...... मिस्टर अर्नव सिंह रायज़ादा की शादी हो रही है। अर्नव सिंह रायज़ादा जिनका नाम सिर्फ एक नाम नहीं, ब्रैंड है... ये वही हैं जो पिछले तीन सालों से एशिया में बेस्ट यंग बिज़नेसमैन का खिताब अपने नाम करते आ रहे हैं। जिनके टैलेंट के चर्चे सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में भी मशहूर हैं। जिन्होंने बहुत कम वक़्त में इस कामयाबी को अपने नाम किया है और अपने किलर लुक्स और डैशिंग पर्सनैलिटी से करोड़ों लड़कियों के दिलों पर राज करते हैं... पर आज वो उन सभी लड़कियों के दिलों को तोड़ते हुए शादी के अटूट बंधन में बंधने जा रहे हैं।”

    एंकर और भी बहुत कुछ कह रही थी और उस लाइव न्यूज़ की करोड़ों की संख्या में लोग देख-सुन रहे थे, पर इस न्यूज़ को सुनकर सृष्टि और उस लड़के दोनों के ही होश उड़ गए।

    “How is this possible?” सृष्टि ने हैरानगी से सवाल किया। ठीक उसी वक़्त स्क्रीन पर दुल्हन के जोड़े में सजी धृति की तस्वीर दिखाई गई। जिसमें वो गले में वरमाला पहने अर्नव के साथ खड़ी थी।

    “ये लड़की कौन है?” उस लड़के ने हैरानगी से सवाल किया। हुबहू सृष्टि जैसी दिखने वाली इस लड़की को अर्नव के साथ देखकर, वो शॉक्ड रह गया था। सृष्टि का ध्यान भी अब उस तस्वीर पर गया और उसकी आँखें अविश्वास से फैल गईं।

    “धृति...”

    “कौन धृति? तुम जानती हो इस लड़की को? ये हुबहू तुम्हारी जैसी कैसे दिखती है? क्या ये तुम्हारी हमशक्ल है? क्या तुम पहले कभी मिली हो इससे?”

    उस लड़के ने हैरानगी से एक के बाद एक कई सवाल दागे थे उसपर और भौंह सिकोड़े सवालिया निगाहों से उसे देखने लगा। सृष्टि जो धृति को अर्नव के साथ देखकर सदमे की स्थिति में थी। उस लड़के के सवाल सुनकर उसने कातर निगाहों से उसे देखा और घबराते हुए बोली,

    “मेरी हमशक्ल नहीं बल्कि मेरी बहन है ये। हम दोनों ट्विंस हैं। जब हमारे मम्मी-पापा का डिवोर्स हुआ था तो मैं मम्मी के साथ चली गई थी पर धृति पापा के साथ रह गई थी। उसके बाद हम दोनों अलग-अलग जगह, अलग-अलग माहौल में पले-बढ़े। मम्मी-पापा के बीच की दूरियों का असर हमारे रिश्ते पर भी हुआ।

    मैं इतने सालों में गिनती में पाँच-छः बार इससे मिली हूँ। हम दोनों एक-दूसरे को पसंद नहीं करते, हम दोनों की बस शक्ल मिलती है, हमारा नेचर, पर्सनैलिटी सब एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा है। ये पापा के साथ उनके छोटे से घर में रहती है और उन्हीं के आदर्शों पर चलती है इसलिए मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। मैंने तो कभी किसी को हमारे रिश्ते के बारे में भी नहीं बताया पर पता नहीं अर्नव इस तक कैसे पहुँच गया और धृति इसके साथ क्या कर रही है?

    मुझे लगता है ज़रूर अर्नव ने अपनी बदनामी होने से बचाने के लिए, धृति को ब्लैकमेल करके इस शादी के लिए मजबूर किया होगा... वरना वो कभी अर्नव जैसे इंसान से शादी करने के लिए तैयार नहीं होती। वो इमोशनल फूल है, उसकी इसी कमज़ोरी का फायदा उठाया होगा अर्नव ने।”

    पूरी बात बताने के बाद सृष्टि ने उस लड़के को देखा, जिसका चेहरा गुस्से से लाल था और आँखें खूनी रंग में रंग चुकी थीं।

    “बेबी तुम गुस्सा करके अपना खून मत जलाओ। क्या हुआ अगर इस बार अर्नव अपनी चालाकी से हमारे जाल में फँसने से बच गया। हर बार किस्मत उसका साथ नहीं देगी। मैं हूँ ना तुम्हारे साथ, अर्नव को बर्बाद करने के लिए मैं किसी भी हद तक चली जाऊँगी, बस तुम मुझपर विश्वास रखो।

    क्या हुआ अगर हमारा ये वार खाली चला गया? अभी तो जंग का आग़ाज़ ही हुआ है, अभी बहुत से मौके मिलेंगे हमें अर्नव को बर्बाद करने के। हम उससे बदला ज़रूर लेंगे, वो तुम्हारे आगे घुटनों पर बैठकर अपने गुनाहों की माफी माँगेगा। बस तुम शांत हो जाओ, गुस्से में अगर तुमने कोई गलत कदम उठाया तो हमारी अब तक की सारी मेहनत बर्बाद हो जाएगी।”

    “किस हद तक जा सकती हो तुम अर्नव से मेरा बदला लेने के लिए?”

    उस लड़के की कठोर आवाज़ उस कमरे में गूँज उठी। सृष्टि ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए जुनूनियत भरे अंदाज़ में जवाब दिया,

    “किसी भी हद तक जा सकती हूँ, खुद मर भी सकती हूँ और किसी को मार भी सकती हूँ।”

    “अपनी बहन को मार सकती हो?”

    जैसे ही उस लड़के ने ये सवाल किया, सृष्टि के चेहरे के भाव बदल गए।

    To be continued...

    क्या जवाब देगी सृष्टि उसके इस सवाल का? कौन है ये लड़का? और क्या दुश्मनी है उसकी अर्नव से?

  • 8. Accidental Ishq - Chapter 8

    Words: 1382

    Estimated Reading Time: 9 min

    “किसी भी हद तक जा सकती हूँ, खुद मर भी सकती हूँ और किसी को मार भी सकती हूँ।”

    “अपनी बहन को मार सकती हो?” जैसे ही उस लड़के ने ये सवाल किया, सृष्टि के चेहरे के भाव बदल गए।

    “धृति को क्यों मारना है? मैंने बताया न तुम्हें, वो उसूलों पर चलने वाली एक सीधी-सादी-सी लड़की है। वो अर्नव के पैसे या चार्म से इम्प्रेस होने वालों में से नहीं है। अगर उसने अर्नव से शादी की है तो ज़रूर उसकी कोई मजबूरी रही होगी।”

    धृति को मारने का सुनकर सृष्टि बुरी तरह से घबरा गई और उसका ये रिएक्शन देखकर उस लड़के के लबों पर तिरछी मुस्कान उभर आई।

    “बस इतने में ही घबरा गई, अभी तो बहुत बड़े-बड़े दावे कर रही थी तुम।”

    उस लड़के को अपनी बातों और फीलिंग्स का मज़ाक उड़ाते देखकर, सृष्टि ने रूठते हुए मुँह फुलाया और उससे दूर होने को मचल उठी। वो लड़का सृष्टि की ये अदा देखकर मुस्कुरा उठा।

    “तुम तो इतनी जल्दी नाराज़ हो गई, मैं तो बस मज़ाक कर रहा था। कुछ नहीं करूँगा मैं तुम्हारी बहन को। मेरा इरादा किसी की जान लेना नहीं है स्वीटहार्ट। मैं बस अर्नव से बदला लेना चाहता हूँ, उसे एहसास दिलाना चाहता हूँ उस गलती का जो उसने की है। उसके वजह से जो मैंने खोया है, उसकी कीमत तो अर्नव को चुकानी होगी।”

    उस लड़के के चेहरे पर अजीब-सा दर्द उभरा, जिसमें घुली थी अर्नव के लिए गुस्सा और बेइंतेहा नफरत। सृष्टि वापिस उसके सीने से लग गई।

    “तुमने तो मुझे डरा ही दिया था।”

    “डर गई थी तुम?” उस लड़के ने उसके खुले बालों से खेलते हुए सवाल किया। जिसपर सृष्टि ने उठाकर उसे देखा और मुँह बिचकाते हुए बोली,

    “बहुत।”

    “क्यों? तुम्हीं ने तो कहा था कि तुम अपनी बहन को पसंद नहीं करतीं, फिर डर क्यों गई?” उस लड़के ने भौंह उछालते हुए सवाल किया। सृष्टि कुछ पल उसे देखती रही, फिर उसने निगाहें झुका लीं और उसके सीने पर अपनी उंगलियाँ घुमाने लगी।

    “Hmm... मैं उसे पसंद नहीं करती क्योंकि वो बहुत ज़्यादा अच्छी है और इतनी अच्छाई मुझे हजम नहीं होती। अगर उससे बहस करने जाओ, तो वो किसी को खुद से जीतने नहीं देती इसलिए मुझे उससे चिढ़ भी होती है। उसके आदर्श, सिद्धांत बहुत आउटडेटेड से लगते हैं। इक्कीसवीं सदी में है पर उन्नीसवीं सदी की लगती है। शायद मैं इसलिए भी उसे पसंद नहीं करती क्योंकि पापा ने मुझे नहीं... उसे चुना, उसे मेरे हिस्से का भी प्यार मिला और वो बिल्कुल उन्हीं की कार्बन कॉपी है। जबकि मेरा नेचर, मेरी मॉम पर गया है... जो मुझे खुद नहीं पसंद।

    पापा ने अकेले उसकी बहुत अच्छी परवरिश की है, मुझसे दो मिनट छोटी है पर बातें ऐसी करती है जैसे दादी है मेरी। जब भी हमारी मुलाकात हुई है, उसने किसी ना किसी बात पर मुझे टोका है और फिर हमारी बहस हो जाती थी। कहती गलत नहीं थी वो, मेरा भला ही चाहती थी फिर भी मुझे उसकी बातें चुभती थीं।

    मुझे मॉम ने बिल्कुल अपने जैसा बना लिया, कभी किसी चीज़ के लिए कोई रोक-टोक नहीं लगाई, जिसका नतीजा था कि मैं गलत संगति में चली गई थी। तब भी धृति ने मुझे समझाया था पर मैंने उसकी नहीं सुनी... और मैं उस दलदल में फँसने ही वाली थी कि तुम मेरी ज़िंदगी में आ गए। तुमने मुझे उस गलत रास्ते पर जाकर बर्बाद होने से बचा लिया।

    पता है, कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि अगर पापा ने मुझे चुना होता तो क्या आज मैं भी धृति जैसी होती? पर ऐसा मुमकिन नहीं है। शायद तब मैं उनसे और ज़्यादा नाराज़ होती क्योंकि मैं वैसी ज़िंदगी नहीं जी सकती थी जैसी धृति जी रही है। वो कमियों में भी satisfy है, खुश है पर मैं ऐसी नहीं हूँ। मैं कभी उस नॉर्मल मिडल क्लास सी ज़िंदगी में खुश नहीं रह पाती, तब मैं उनसे नफरत करती कि उन्होंने धृति को मॉम के साथ भेजकर उसकी ज़िंदगी सुधार दी और मुझे अपने पास रखकर मेरी लाइफ को बर्बाद कर दिया।”

    “अच्छा और अगर कल को मेरे पास ये पैसा प्रोपर्टी, बैंक बैलेंस न रहा, मैं तुम्हें ये ऐशो-आराम की ज़िंदगी नहीं दे सका तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगी, जैसे तुम्हारी माँ ने तुम्हारे पापा को छोड़ दिया था?”

    उस लड़के का सवाल सुनकर सृष्टि ने तुरंत ही इंकार में सर हिलाया।

    “कभी नहीं... दौलत से ज़्यादा प्यार ज़रूरी होता है, इसकी अब समझ आई है मुझे, जब तुमसे बेइंतेहा मोहब्बत करने लगी हूँ। मॉम आज डैड के साथ खुश है पर अपनी इस खुशी में उन्होंने मुझे पूरी तरह से नेगलेक्ट कर दिया। पापा ने धृति को अभावों में पाला है पर जब उसे उनकी ज़रूरत थी तो वो उसके पास होते थे, जबकि मैं अकेली होती थी क्योंकि मॉम तो डैड के साथ बिज़ी रहती थी।

    जो प्यार पापा ने धृति को दिया वो मुझे कभी मॉम-डैड से नहीं मिला। हाँ उन्होंने मुझे ये लग्ज़ूरियस लाइफस्टाइल दिया है, पहनने के लिए महँगे डिज़ाइनर कपड़े दिए हैं, जो मैंने चाहा मुझे मिला, जो मैंने करना चाहा मुझे करने की आज़ादी दी गई। शायद ये उस प्यार का कम्पेंसेशन ही था।”

    “तुम्हें पता है तुम्हारी बातें सुनकर क्या लग रहा है?”

    “क्या लग रहा है?”

    “जैसे तुम अपनी बहन और पापा से नाराज़ तो हो पर उनसे प्यार भी करती हो। जैसे तुम्हारी मॉम ने तुम्हें ये लाइफस्टाइल दिया इसलिए उनसे नाराज़ नहीं पर उनके प्यार के लिए तरसी हो तुम। तुम खुद को बहला रही हो, ये कहकर कि तुम धृति जैसी ज़िंदगी नहीं जी पाती पर अगर अब तुम्हें मौका मिले तो तुम अपने पापा और बहन के साथ ही रहना पसंद करोगी। क्योंकि तुम जितना मर्ज़ी उनसे नाराज़ हो, अपनी बहन से चिढ़ती हो, पर प्यार भी उनसे बहुत करती हो। उनकी कमी खलती है तुम्हें।”

    “पर वो लोग मुझसे प्यार नहीं करते। धृति से तो हर बार लड़ती हूँ मैं और पापा भी मुझे पसंद नहीं करते, तभी तो कभी भूलकर भी मुझसे मिलने नहीं आते।”

    “हो सकता है कि तुम उनके प्यार को समझने में गलती कर रही हो। वो प्यार करते हों बस जताते न हों।”

    “जो भी हो, वो अपनी ज़िंदगी में खुश हैं और मैं अपनी लाइफ में तुम्हारे साथ बहुत खुश हूँ।”

    सृष्टि उसकी गर्दन में अपनी बाहों को लपेटते हुए मुस्कुराई तो वो लड़का भी मुस्कुरा दिया।

    अगले ही पल उस लड़के ने उसकी गर्दन में अपना चेहरा छुपा लिया और एक बार फिर उसमें खो गया। जबकि सृष्टि अतीत की उन गलियों में भटकने लगी, जब उसकी पहली बार इस लड़के से मुलाकात हुई थी।

    फ्लैशबैक

    रात का वक़्त था। सृष्टि अपने दोस्तों और नए-नए बने अपने बॉयफ्रेंड के साथ होटल आई हुई थी। जहाँ पार्टी उन लोगों के और भी दोस्त अपने पार्टनर्स के साथ पार्टी एंजॉय करने आए हुए थे। पार्टी हॉल में हल्की रंगीन रोशनी बिखरी थी। धीमा लाउड म्यूज़िक बज रहा था। समाँ बड़ा रोमांटिक बना हुआ था, जहाँ नज़र जाती एक-दूसरे में गुम यंग कपल्स ही नज़र आ रहे थे।

    अमीर घरों से आने वाले बच्चों की पार्टी थी, जो अभी-अभी जवान हुए थे और जवानी के सुनहरे दिनों को खुलकर एंजॉय कर रहे थे। सृष्टि जिसके लिए ऐसी पार्टीज़ में जाना आम-सी बात थी। टेंथ तक आते-आते तो उसने अपने दोस्तों के साथ बाहर घूमना-फिरना और पार्टी करना शुरू कर दिया था, जिससे उसे न तो कोई रोकने वाला था और न ही टोकने वाला। उस आज़ादी का उसने पूरा फ़ायदा उठाया फिर उसके फ्रेंड्स भी सब ऐसे ही थे तो उनकी संगति में उसे और शह मिल गई।

    पर आज जब उसने यहाँ का नज़ारा देखा तो उसे अजीब-सा फील होने लगा। कहीं लड़का-लड़की एक-दूसरे की बाहों में बाँहें डाले झूमते हुए फ्लर्ट कर रहे थे, तो कहीं कोने में छुपे एक-दूसरे के लबों को खाने को बेताब थे। इतना क्या कम था कि वहाँ लगे काउच और सोफ़ों पर ही एक-दूसरे से चिपके वो जाने क्या-क्या कर रहे थे। ड्रिंक काउंटर के पास ग्रुप बनाकर बैठे लड़का-लड़की मज़ाक के बहाने से बड़ी ही बेतकल्लुफ़ी से एक-दूसरे को छू रहे थे, गंदी-गंदी बातों से छेड़ रहे थे और उसे एंजॉय भी कर रहे थे।

    “यार ये कैसी पार्टी में ले आए तुम लोग मुझे?” आस-पास का नज़ारा देखकर सृष्टि का सर घूम गया था। उसने वहाँ से जाने की बात कही तो उसके बॉयफ्रेंड ने उसकी बाँह पकड़कर उसे खुद से सटा लिया।

    To be continued...

    कहाँ आ गई सृष्टि और अब क्या होगा उसका।

  • 9. Accidental Ishq - Chapter 9

    Words: 1452

    Estimated Reading Time: 9 min

    “यार ये कैसी पार्टी में ले आए तुम लोग मुझे?” आस-पास का नज़ारा देखकर सृष्टि का सर घूम गया था। उसने वहाँ से जाने की बात कही तो उसके बॉयफ्रेंड ने उसकी बाँह पकड़कर उसे खुद से सटा लिया।

    “Come on सृष्टि... कॉलेज में हैं हम, ये आज की यंग जेनरेशन है यार। एक-दूसरे से प्यार करते हैं, पार्टी के लिए आए हैं तो इतनी तो मस्ती चलती है। देखो सब यहाँ कितना कम्फ़र्टेबल होकर एक-दूसरे के साथ इन लम्हों को खुलकर जी रहे हैं, एंजॉय कर रहे हैं... और एक तुम हो जो इस मॉडर्न एज में होते हुए पता नहीं कितनी पिछड़ी सोच लेकर जी रही हो। अगर तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लगता तो हम नहीं करेंगे ऐसा कुछ, इन्हें अपने तरीके से पार्टी एंजॉय करने दो और तुम मेरे साथ चलो।”

    वो लड़का जो सृष्टि का बॉयफ्रेंड था, बातों-बातों में उसकी सोच पर तंज भी कस चुका था और उसके बाद सृष्टि को कुछ बोलने का मौका न देते हुए सीधे ड्रिंक काउंटर की तरफ ले गया। उसके बाकी दोस्त तो पहले ही अपने पार्टनर्स के साथ अलग हो चुके थे और बाकियों जैसे इस रात को खुलकर जी रहे थे।

    सृष्टि ने एक-दो ड्रिंक की, कुछ बातें हुईं फिर उसे कुछ अजीब-अजीब-सा महसूस होने लगा। अजीब-सी बेचैनी-सी होने लगी उसे। गर्मी-सी लगने लगी थी, सर भी भारी-सा महसूस हो रहा था। सृष्टि के बॉयफ्रेंड ने उसके बिहेवियर में बदलाव देखा, इसके साथ ही उसके लबों पर रहस्यमयी शैतानी मुस्कान फैल गई। उसने फोन में किसी को थम्स-अप का मैसेज सेंड कर दिया और बातों-बातों में उसे छूने लगा।

    कभी उसकी हथेली सृष्टि के खुले कंधे पर ठहरती तो कभी उसके पैरों को अपनी हथेली से सहलाता। पहले तो सृष्टि उसके हाथ को हटाती रही पर धीरे-धीरे उसे उसका छूना अच्छा लगने लगा और इसके साथ ही उस लड़के की हरकतें बढ़ने लगीं।

    सृष्टि की पलकें अब भारी होकर बार-बार बंद होने लगी थीं। कुछ देर उनके बीच यही सब चलता रहा फिर सृष्टि ने ज़बरदस्ती अपनी आँखें खोलीं और अपने होश संभालते हुए उस लड़के से दूर हो गई।

    “I need to go to the washroom.”

    इतना कहकर वो लड़खड़ाते कदमों के साथ वाशरूम की ओर बढ़ गई। कुछ कदम आगे बढ़कर उसने पलटकर देखा तो उसका बॉयफ्रेंड जो अभी तक उसके साथ कर रहा था, अब वही उसकी फ्रेंड के साथ कर रहा था और वहाँ मौजूद ग्रुप में सब एक-दूसरे की गर्लफ्रेंड के साथ ऐसे ही मस्ती कर रहे थे। ये देखकर सृष्टि ने बुरा-सा मुँह बनाया और वाशरूम की जगह एंट्रेंस गेट की ओर बढ़ गई।

    किसी की नज़रों में आए बिना वो किसी तरह हॉल से बाहर निकली। लिफ्ट के पास आई पर जब कुछ देर इंतज़ार के बाद भी लिफ्ट नहीं आई तो उसने अपनी हील्स उतारकर उन्हें हाथ में पकड़ा और लड़खड़ाते कदमों के साथ सीढ़ियों की ओर बढ़ गई। किसी तरह वो अपने होश संभालते हुए दो फ्लोर नीचे चली आई पर अब उसके लिए और चलना मुमकिन न हो सका। क्योंकि नशा अब उसके सर पर चढ़ने लगा था, आँखें बमुश्किल खुल रही थीं। साफ-साफ कुछ नज़र नहीं आ रहा था, उसपर उसकी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी और पूरा बदन अब भट्टी जैसे तपने लगा था। वो लिफ्ट के पास चली आई। लगातार दो-तीन बार उसने बटन प्रेस किया और वहीं दीवार से टिककर फ्लोर पर ही बैठ गई।

    कुछ देर बाद उस फ्लोर पर लिफ्ट खुली, जिसमें इस वक़्त एक हैंडसम-सा लड़का खड़ा था। जिसने ब्लैक राउंड नेक की टी-शर्ट के साथ ब्लू जींस पहनी हुई थी, बाल माथे पर बिखरे थे और लबों पर सौम्य-सी मुस्कान सजाए वो अपने फोन की स्क्रीन को देख रहा था। लिफ्ट खुलने पर उस लड़के ने निगाहें सामने की ओर उठाई तो बस हील्स और किसी लड़की के गोरे पैर नज़र आए। कुछ सोचते हुए वो लिफ्ट से बाहर आया तो नज़र साइड में खुद में सिमटी बैठी सृष्टि पर चली गई।

    “हैलो मिस, आपने लिफ्ट रोकी है?” उस लड़के ने उसे पुकारा। तब कहीं जाकर सृष्टि ने अपने घुटनों के बीच छुपे चेहरे को उठाकर उसे देखा। उस लड़के की निगाहें उस चेहरे पर ठहर गईं जो पसीने से तरबतर था, उसकी आँखों में मदिरा-सा नशा समाया था, सुर्ख होंठ जैसे उसे ललचाने की कोशिश कर रहे थे। उस लड़के ने थूक निगलते हुए अपने सूखते गले को तर किया और उसपर से निगाहें फेर ली। इतनी देर में सृष्टि दीवार का सहारा लेते हुए उठकर खड़ी हो गई।

    “म... मुझे यहाँ से... ले... र... च... लो।”

    सृष्टि की ज़ुबान लड़खड़ा गई और इसके साथ ही उसके कदम भी लड़खड़ा गए। जिससे वो उस लड़के के सीने से आ टकराई। वो तो भला था जो उस लड़के ने वक़्त पर उसे थाम लिया, वरना सृष्टि नीचे जा गिरी होती। खुमारी उसके सर पर छा चुकी थी, मर्दाना शरीर से उठती खुशबू उसे अजीब-सा सुकून देने लगी थी और नशा इस कदर उसपर हावी था कि उसे खुद को होश नहीं था कि वो क्या कर रही है। उसकी आँखें बंद थीं और उस लड़के के सीने से लगी, वो मंद-मंद मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे उसके और करीब जाने लगी थी। जैसे उसमें समाने को बेकरार हो।

    उस लड़की की भौंहें सिकुड़कर आपस में जुड़ गईं और माथे पर पसीने की बूँदें चुहचुहाने लगीं। उसने परेशान निगाहें आस-पास घुमाईं तो वहाँ दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था। ये लड़की जो अचानक आकर उससे लिपट गई थी, उसके पास इन हील्स के अलावा कुछ था भी नहीं और उसकी बेखुदी देखकर उस लड़के को कुछ-कुछ अंदाज़ा होने लगा था कि ये किसका असर है।

    अचानक ही उसके कानों में सृष्टि के कहे शब्द गूँजे, एक गुज़ारिश की थी उसने, उसे यहाँ से ले जाने को कहा था। वो बात याद आते ही बिना एक पल गँवाए उस लड़के ने सृष्टि की सैंडल्स उठाई और उसे अपनी बाहों में संभाले वापिस लिफ्ट में चला गया, जो सीधे टॉप फ्लोर पर जाकर रुकी।

    सृष्टि को अपनी बाहों में थामे वो लड़का लिफ्ट से बाहर निकला और सबसे लास्ट वाले रूम की ओर बढ़ गया। डोर बेल बजाने के कुछ सेकंड बाद ही दरवाज़ा खुल गया। सामने उसी की उम्र का कोई लड़का खड़ा था, जो उस लड़के की बाहों में एक अंजान लड़की को देखकर पहले तो चौंक गया। फिर उसने झट से दरवाज़ा बंद किया और उस लड़के के पीछे लपका।

    “Hey पार्थ, ये लड़की कौन है तेरे साथ?”

    “हाँ यार, ये किसे अपने साथ ले आया तू?”

    “लग तो हॉट रही है और शायद नशे में भी है।”

    उस रूम में तीन और लड़के मौजूद थे और लड़की देखते ही उनकी आँखें यूँ चमकी थीं जैसे कोई खज़ाना उनके हाथ लग गया हो। जहाँ वो... उस लड़के, जिसका नाम पार्थिव था, उसके साथ किसी अंजान लड़की को देखकर हैरान थे, वहीं क्यूरियस भी थे और साथ ही सृष्टि के खूबसूरत चेहरे और दिलकश रूप पर मोहित भी हो गए थे।

    पार्थ ने सृष्टि को देखा जो उसके सीने से यूँ लिपटी थी जैसे सर्प चंदन के पेड़ से लिपटता है, फिर गहरी साँस छोड़ते हुए गंभीर स्वर में बोला,

    “तुम सब जाओ यहाँ से, हम कल पार्टी करेंगे।”

    “Ohh तो आज की रात तू अकेले इस हसीना के साथ बिताना चाहता है... thats not fair, यार तू तो बड़ा कमीना निकला... अकेले-अकेले एंजॉय करना चाहता है?”

    पार्थ के दोस्त ने शरारत से मुस्कुराते हुए आँख दबाई और उसके कंधे से कंधा टकराते हुए उसे छेड़ा। उसकी बात का मतलब समझते हुए पार्थ के चेहरे पर नाराज़गी के भाव उभर आए और उसने ज़रा सख्ती से उन्हें डपट दिया।

    “Shut up guys... मैं कल तुमसे मिलकर सारी बात बताता हूँ, अभी तुम सब जाओ यहाँ से।”

    “नाराज़ क्यों होता है? जा रहे हैं हम, नहीं करेंगे तुझे डिस्टर्ब। तू आराम से इस हॉट एंड सेक्सी गर्ल के साथ एंजॉय कर।”

    पार्थ के दूसरे दोस्त ने अब शरारत से बातों को घुमाया। पार्थ ने गुस्से भरी नज़रों से घूरकर उन्हें देखा, तो वो सब उसे बाय कहकर वहाँ से चले गए... पर जाते-जाते ऐसे इशारे कर गए, जिससे पार्थ का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।

    उसने गहरी-गहरी साँसें छोड़ते हुए खुद को शांत किया। फिर अपनी बाहों में मौजूद उस लड़की को देखा, जिसके लब अब बड़ी ही बेकरारी से उसके गर्दन को चूमने लगे थे।

    “क्या मुसीबत है यार।” पार्थ को अपनी ही हालत पर तरस आने लगा। उसने उस लड़की को बेड पर लिटाना चाहा पर वो तो जैसे उसे छोड़ने को ही तैयार नहीं थी।

    बड़ी मुश्किल से पार्थ ने उसे खुद से दूर किया और कमरे से बाहर निकल गया। अंदर रूम में सृष्टि उसके जाने के बाद यूँ छटपटाने लगी, जैसे पानी से बाहर निकालने पर मछली छटपटा उठती है।

    To be continued...

    कौन है पार्थ? क्या होने वाला है सृष्टि के साथ? क्या वो एक मुसीबत से निकलकर दूसरी मुश्किल में फँस गई है?

  • 10. Accidental Ishq - Chapter 10

    Words: 1451

    Estimated Reading Time: 9 min

    कुछ देर बाद पार्थ एक लेडी डॉक्टर के साथ वापिस रूम में आया तो रूम खाली था और बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। पार्थ ने परेशान निगाहों से साथ में खड़ी लेडी डॉक्टर को देखा।

    “तुम बाहर जाओ, मैं देखती हूँ उसे।” डॉक्टर ने पलकें झपकाते हुए उसे आश्वस्त किया तो पार्थ सर हिलाते हुए रूम से बाहर चला गया।

    कुछ आधे घंटे बाद डॉक्टर बाहर आई तो लिविंग रूम में बैठा पार्थ तुरंत उठकर उनके पास चला आया और बेचैनी भरी निगाहों से उन्हें देखते हुए सवाल किया,

    “आंटी, वो लड़की ठीक तो है?”

    “ड्रग्स की काफी हैवी डोज़ ली थी उसने... या शायद उसे दी गयी थी। जिससे उसकी sexual desires out of control हो गई थीं, इसलिए वो इतना अजीब बिहेव कर रही थी तुम्हारे साथ... पर घबराने की कोई बात नहीं है, मैंने उसे इंजेक्शन लगा दिया है। अब वो गहरी नींद में सो रही है, सुबह तक बिल्कुल नॉर्मल हो जाएगी।”

    “थैंक्यू आंटी... पर आप मॉम-डैड को इस बारे में कुछ मत बताइयेगा।”

    “नहीं बताऊँगी और तुमने बहुत अच्छा किया जो मुझे बुला लिया।” उस लेडी डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए उसके कंधे को थपथपाकर उसे शाबासी दी और चली गई।

    होटल रूम का मेन डोर बंद करने के बाद पार्थ ने बेडरूम की ओर कदम बढ़ा दिए। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोलकर रूम में कदम रखा, निगाहें सीधे बेड की ओर घूमीं और नज़र उस अंजान लड़की पर जा ठहरी। जो बिना किसी वार्निंग के अचानक ही किसी आँधी-तूफान जैसे उसकी ज़िंदगी में घुस आई थी और उसके शांत से मन में हलचल मचा गई थी। उसने तो अपनी बेसब्र हरकतों से उसके दिल में भावनाओं की प्रचंड लहरें उमड़ने पर मजबूर कर दिया था, पर अब खुद कितने सुकून से सो रही थी।

    पार्थ उसके पास ही बैठ गया और उसकी मखमल-सी कोमल और नर्म हथेली को अपनी हथेली में थाम लिया। निगाहें सृष्टि के चेहरे पर जाकर ठहर गईं, जिसपर उसके सुनहरे रंग में रंगे बाल बिखरे हुए थे।

    “मेरे मन को बेचैनियों से भरकर, अब खुद कितने चैन से सो रही हो तुम। तुम्हें तो अंदाज़ा भी नहीं कि नशे की हालत में तुमने जो किया, उससे मेरा क्या हाल था?... ज़िंदगी में पहली बार, कोई लड़की मेरे इतने करीब थी कि उसकी खुशबू अब भी मेरी साँसों को बहका रही है। तुमने तो आज शांत तालाब जैसे मेरे दिल में कंकड़ फेंककर, उसमें ऐसी हलचल पैदा कर दी थी कि खुद पर से अपना संयम खोने लगा था मैं...

    तुम्हारी करीबी, तुम्हारे जिस्म से उठती वो परफ्यूम की भीनी-भीनी सी खुशबू, तुम्हारे लबों का मेरे जिस्म पर ठहरता लम्स... मदहोश कर रहा था मुझे। नशा तुमने किया था और उसका असर मुझपर होने लगा था। आज पहली बार मुझे लगा जैसे मेरे ही दिल पर मेरा ही अख्तियार नहीं रह गया था।

    तुम्हारी वो भूरी-भूरी नशीली आँखें, मुझे खुद में डूबने पर मजबूर कर रही थीं। जब तुम मुझे छोड़ नहीं रही थीं तो दिल चाह रहा था कि तुम्हें अपनी बाहों में भरकर तुम्हारी सारी बेचैनी मिटा दूँ... पर मैंने खुद को बहकने की इज़ाज़त नहीं दी... आखिर हो तो तुम एक अंजान ही, जिसने मुझसे मदद माँगी थी... फिर मैं खुद तुम्हारे नशे में होने का फायदा उठाकर, तुम्हारे साथ गलत कैसे कर सकता था?... इसलिए मैंने संभाल लिया अपने बहकते दिल को... और इससे पहले कि तुम्हारी करीबी में मुझसे कोई भूल हो जाती, मैंने तुमसे दूरी बना ली...

    दिल तो नहीं कर रहा था, उस हालत में तुम्हें अकेला यहाँ छोड़कर जाने का... पर रुकना तुम्हारे और मेरे दोनों के लिए ठीक नहीं था और कल को तुमसे नज़रें मिला सकूँ, इसके लिए मेरा जाना ही ठीक था।

    अब तो तुम पहले से बहुत बेहतर लग रही हो। सुकून की नींद में सो रही थी... पर मेरी नींद-चैन सब कहीं खो सा गया है। दिल बस तुम्हें जी भरकर देखना चाहता है, महसूस करना चाहता है... फिर पता नही मुझे दोबारा ऐसा मौका मिले न मिले।”

    पार्थ कुछ पल उसे देखता रहा, फिर अपने अनकहे एहसासों से लब्रेज़ होंठों को उसके माथे पर रखकर उसकी पेशानी को चूम लिया, उसके चेहरे पर बिखरे बालों को समेटा और नज़र भर उसे देखने के बाद, कमरे से बाहर निकल गया। बिस्तर पर लेटी सृष्टि के लबों पर मीठी सी मुस्कान बिखर गई, शायद कोई प्यारा सा ख्वाब देख रही थी वो और खुद को अपनी ही बाहों में भरे नींद में ही मुस्कुराए जा रही थी।

    अगली सुबह सृष्टि की नींद खुली तो खुद को एक अंजान जगह देखकर, वो झटके से उठकर बैठ गई। आस-पास निगाहें घुमाते हुए उसने अपने दिमाग पर ज़ोर डाला तो कुछ धुंधली-धुंधली से दृश्य नज़र आए, जो टुकड़ों में बँटे थे... कुछ अंजान सी आवाज़ें भी सुनाई दे रही थीं पर कुछ भी क्लियर नहीं था। सर पर ज्यादा ज़ोर देने से उसका सर दर्द करने लगा तो उसने सब ख्यालों को परे झटका और बेड से नीचे उतर गई। अब उसकी नज़र खुद पर गई। उसके बदन पर बस एक बाथरॉब ही डला था। उसने खुद को चेक किया तो शरीर पर ऐसा-वैसा कोई निशान नहीं था, ये देखकर उसने गहरी सांस छोड़ी। अगले ही पल मन में ख्याल आया।

    “ये किसका रूम है?... मैं यहाँ आई कैसे?... और मैंने बाथरॉब क्यों पहना हुआ है?... मैंने खुद से इसे पहना है?... या किसी और ने मेरे कपड़े बदलकर ये पहना दिया है?”

    सवाल बहुत थे, उन्हीं सवालों में उलझी वो बेडरूम से बाहर निकली तो नज़र सीधे सामने सोफे के ऊपर टाँग फैलाए गहरी नींद में सोए पार्थ पर गई, जो उसके लिए बिल्कुल अंजान था। वो वहीं दरवाज़े पर खड़ी, कुछ देर तक एकटक बड़े ही गौर से उसके चेहरे को देखती रही। अचानक ही उसकी आँखों के आगे वो दृश्य उभरा, जब उसने पार्थ को लिफ्ट के पास देखा था। अपने कहे शब्द भी याद आए उसे, इसके साथ ही चेहरे के भाव कुछ कोमल हो गए।

    “तुम तो वही हो, जो लिफ्ट के पास मिले थे मुझे और मैंने तुम्हें मुझे वहाँ से ले जाने कहा था... मतलब तुम मुझे यहाँ लेकर आए हो... क्या मेरे कपड़े उतारकर मुझे ये बाथरॉब भी तुम्हीं ने पहनाया है?”

    ये सोचते हुए सृष्टि ने आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखा और सीने पर से अपने बाथरॉब को मुट्ठियों में भींच लिया, फिर एक बार फिर उसकी नज़र पार्थ के चेहरे पर पड़ी और उसके लबों पर सौम्य सी मुस्कान बिखर गई। धीमे कदमों से चलते हुए वो पार्थ के पास पहुँची और उसके चेहरे की ओर झुकते हुए, बड़े ही गौर से उसे देखने लगी।

    फिर कुछ सोचते हुए उसने अपनी हथेली को उसके चेहरे की ओर बढ़ाकर ऊँगली से उसे छूने की कोशिश की... पर फिर रुककर हाथ वापिस पीछे खींच लिया। उसने अब अपनी आँखें मूँद लीं और एक गहरी साँस भरी... और इसके साथ ही उसके लबों पर ठहरी मुस्कान गहरी हो गई।

    सृष्टि कुछ देर यही सब करती रही फिर जैसे ही उसे पार्थ की पलकों के हिलने का आभास हुआ तुरंत पीछे हटते हुए दो-चार कदम पीछे ले लिए। इसी बीच पार्थ ने अपनी आँखें खोल दीं, नज़र सीधे सामने खड़ी सृष्टि पर पड़ी और वो उठकर बैठ गया।

    “तुम जाग गई?... अब कैसा फील कर रही हो?”

    “Hmm... मैं ठीक हूँ... पर तुम कौन हो?... और मैं यहाँ क्या कर रही हूँ?”

    सृष्टि ने सर हिलाते हुए अपने ठीक होने का सबूत दिया और आँखें बड़ी-बड़ी किए उलझन भरी निगाहों से उसे देखने लगी।

    “कल तुम मुझे लिफ्ट के पास बैठी मिली थीं, काफी नशे में लग रही थीं और मुझे तुम्हारी हालत भी ठीक नहीं लग रही थी, तो मैं तुम्हें यहाँ ले आया। डॉक्टर को भी बुलाया था मैंने... उन्होंने कहा कि तुमने ड्रग्स की हैवी डोज़ ली है, जिससे sexual desires बढ़ती है, उसी का असर था कि तुम्हारी तबियत बिगड़ रही थी और तुम इतनी बेचैन थीं। उन्होंने तुम्हें इंजेक्शन दिया, जिसके बाद तुम गहरी नींद में सो गई थीं।”

    पार्थ ने सहजता से जवाब दिया और संक्षिप्त में सारी बातें उसे बता दी, उसके बाद पल भर ठहरते हुए गंभीर निगाहों से उसे देखा।

    “वैसे एक सवाल पूछूँ?”

    “Hmm.” सृष्टि ने हामी भरी पर उससे नज़रें चुरा लीं। ड्रग्स, sexual desire सुनकर ही उसके चेहरे की हवाइयाँ उड़ गई थीं। बच्ची नहीं थी, समझती थी कि वो किसकी बात कर रहा है, तभी अब उससे नज़रें नहीं मिला पा रही थी।

    “तुम्हारी उम्र इतनी नहीं लगती, फिर ये ड्रग्स की आदत कहाँ से लगा ली तुमने? और वो भी उस टाइप का ड्रग्स... देखने में तो तुम उस तरह की लड़की नहीं लगती।”

    सृष्टि जो पहले ही उससे नज़रें बचाती फिर रही थी, उसका ये सवाल सुनकर और ज्यादा शर्मिंदा सी हो गई।

    To be continued...

    क्या जवाब देगी सृष्टि पार्थ की इस बात का? और कैसा है पार्थ?... सृष्टि और पार्थ की ये मुलाकात क्या रंग लाएगी?...

  • 11. Accidental Ishq - Chapter 11

    Words: 1518

    Estimated Reading Time: 10 min

    “तुम्हारी उम्र इतनी नहीं लगती, फिर ये ड्रग्स की आदत कहाँ से लगा ली तुमने? और वो भी उस टाइप का ड्रग्स... देखने में तो तुम उस तरह की लड़की नहीं लगती।”

    सृष्टि जो पहले ही उससे नज़रें बचाती फिर रही थी, उसका ये सवाल सुनकर और ज्यादा शर्मिंदा सी हो गई।

    "आप गलत समझ रहे है मुझे, मैं ड्रग्स नहीं लेती और न ही मेरा किसी लड़के संग पहले कोई intimate relation रहा है। मेरे फ्रेंड्स मुझे कल पार्टी के लिए होटल लाए थे। मुझे नहीं पता था कि उस पार्टी में क्या होने वाला है। वहाँ आकर जब मैंने लड़के-लड़कियों को सबके सामने एक-दूसरे के साथ इन्वॉल्व होते देखा तो मुझे ठीक नहीं लगा। मैं वापिस जाना चाहती थी पर मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझे रोक दिया। उसी ने मुझे ड्रिंक दी थी जिसको पीने के बाद मुझे अजीब सा फील होने लगा था और वो मेरे करीब आने की कोशिश कर रहा था। मैं उसे दूर करना चाहती थी खुद से पर पता नहीं क्यों मेरा उसे खुद से दूर करने का मन नहीं कर रहा था। उसका मुझे छूना अच्छा लग रहा था मुझे।

    मुझे वो गलत भी लग रहा था पर मैं खुद को रोक भी नहीं पा रही थी। वो मुझे छोड़ भी नहीं रहा था। मैं किसी तरह वाशरूम का बहाना बनाकर छुपते-छुपाते उस पार्टी हॉल से बाहर निकली थी और लिफ्ट तक पहुँची थी। उसे बंद देखकर सीढ़ियों से दो फ्लोर नीचे उतरी पर उसके आगे मेरी हिम्मत नहीं हुई तो मैं वापिस लिफ्ट के पास पहुँची और उसके बाद का मुझे कुछ भी याद नहीं है।"

    सृष्टि ने सारी बात बताते हुए अपनी बिगड़ती इमेज को क्लीयर किया। उसके मायूसी भरे चेहरे को देखकर और उसकी बातें सुनकर पार्थ के चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए।

    "अगर बुरा न मानो तो एक सवाल करूँ?"

    "पूछो।"

    "तुम्हारा तुम्हारे बॉयफ्रेंड के साथ relationship को कितना टाइम हो गया?"

    "कॉलेज में ही तो बना है, अभी बस कुछ महीने ही हुए हैं।"

    "क्या तुम्हारे बॉयफ्रेंड ने पहले कभी तुमसे sexual रिलेशन बनाने की इच्छा जाहिर की है या तुम्हारे करीब आने की कोशिश की हो?"

    "Hmm पर मैंने मना कर दिया था क्योंकि अभी मैं उसे ठीक से जानती ही नहीं हूँ और मैंने ये खुद से वादा किया है कि 18 की होने से पहले मैं अपनी वर्जिनिटी नहीं खोऊँगी और उसी लड़के को अपने करीब आने का हक दूँगी जो मुझसे सच्चा प्यार करेगा, जिसके लिए मेरे दिल में फीलिंग्स होगी और जिसके साथ मेरा सीरियस वाला रिलेशनशिप होगा।"

    जिस अंदाज़ में सृष्टि ने ये बात कही और अंत में मुस्कुराई, न चाहते हुए भी पार्थ के लबों पर हल्की मुस्कान उभर आई पर अगले ही पल कुछ सोचते हुए एक बार फिर उसके चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए।

    "अब अगर मेरी एक बात मानो तो कहूँ...?"

    "क्या?" सृष्टि ने झट से सवाल किया और आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी। पार्थ पहले तो कुछ झिझका फिर उसने गंभीर निगाहों से उसे देखते हुए संजीदगी से जवाब दिया।

    "ब्रेकअप कर लो उससे और अपने दोस्तों पर अंधा विश्वास करना बंद करो। कल उन सबने मिलकर तुम्हें बहुत बुरा फंसाने की प्लानिंग कर ली थी। वो तो तुम्हारी किस्मत अच्छी थी जो तुम वक्त पर वहाँ से निकल गईं वरना जो तुम्हारी कल हालत थी न, उसका तुम्हारे बॉयफ्रेंड के साथ वहाँ मौजूद और कितने लड़के फायदा उठाते, तुम्हें पता तक नहीं चलता और एक बार सिलसिला शुरू हो जाता तो उसका रुकना मुश्किल था।"

    अब सृष्टि को समझ आ रहा था कल रात उस पार्टी में सब ऐसे बेफिक्र से खुलेआम सब कुछ क्यों कर रहे थे। इस एक्सपीरियंस के बाद उसकी आँखों के आगे उसके दोस्तों और सो-कॉल्ड बॉयफ्रेंड का असली चेहरा आ चुका था। उसने पल भर सोचते हुए सहमति में सर हिलाया और कातर निगाहों से उसे देखते हुए झिझकते हुए सवाल किया।

    "मैंने रात को कुछ गलत तो नहीं किया था?"

    "नहीं।" पार्थ ने एकदम से इंकार किया तो सृष्टि कुछ चौंक गई।

    "अब तुम फ्रेश हो जाओ, मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूँगा।"

    पार्थ ने बात बदली जिसपर सृष्टि ने पहले तो हामी भर दी फिर निगाहें झुकाकर खुद को देखते हुए बोली।

    "पर मैं पहनूँगी क्या?"

    "अंदर कबर्ड में कुछ कपड़े रखे हैं मेरे, उनमें से जो भी पसंद आए पहन लो क्योंकि तुम्हारे कपड़े तो तुमने रात को गीले कर लिए थे।"

    "तो मेरे कपड़े किसने बदले?" इतनी देर से मन में सवाल घूम रहा था सो मौका मिलते ही झट से पूछ लिया।

    "चिंता मत करो मैंने नहीं बदले थे, लेडी डॉक्टर आई थीं उन्होंने ही तुम्हारे गीले कपड़े उतारकर तुम्हें ये बाथरॉब पहनाया था।"

    शायद पार्थ उसके मन की उलझन समझ गया था और उसे दूर भी कर दिया जिसपर सृष्टि ने होंठों को गोल करते हुए मुँह से आवाज़ निकाली।

    "Ohhhh"

    "वैसे तुम्हारा नाम क्या है?" अगले ही पल उसने निगाहें पार्थ की ओर उठाईं।

    "आप से सीधे तुम..." पार्थ ने भौंह सिकोड़ते हुए हल्की नाराज़गी से कहा। सृष्टि ने उसकी बात सुनी तो झट से बोल पड़ी।

    "तो तुम भी तो मेरे साथ फॉर्मल बिहेव नहीं कर रहे तो मैं तुम्हें आप क्यों कहूँ?"

    सृष्टि ने अकड़ते हुए बड़े ही एटीट्यूड के साथ सवाल किया। उसका ये अंदाज़ देखकर पार्थ मुस्कुरा उठा।

    "Hmm बात तो तुम्हारी सही है, चलो तुम मुझे तुम ही कहकर पुकार लो।"

    "तुम्हारा नाम क्या है?" सृष्टि ने अपना सवाल दोहराया और लबों पर मुस्कान सजाए उसे देखने लगी।

    "पार्थिव और तुम्हारा?"

    "सृष्टि।" सृष्टि का नाम सुनकर हल्की मुस्कान पार्थ के लबों पर उभरी, अगले ही पल उस मुस्कुराहट की जगह संजीदगी ने ले ली।

    "सृष्टि तुम बहुत खूबसूरत हो, ख्याल रखा करो अपना। किसी गलत इंसान के हाथ लग गई तो बहुत कुछ गलत हो सकता है तुम्हारे साथ।"

    "कहीं मेरी खूबसूरती और हालत देखकर, कल रात तुम्हारी नियत तो नहीं बिगड़ गई मुझपर?" सृष्टि ने उसे इतना सीरियस देखकर शरारत से आँखें मटकाईं, उसकी शरारत समझते हुए पार्थ मन ही मन मुस्कुराया फिर चेहरे पर गंभीर भार लाते हुए इंकार में सर हिला दिया।

    "बिल्कुल नहीं।"

    "अच्छा... मुझे तो ऐसा ही लग रहा है।" सृष्टि ने एक फिर निगाहों और शब्दों से उसे छेड़ा और उसका चेहरा देखकर खिलखिला कर हँस पड़ी और उसकी निश्छल हँसी पार्थ के लबों पर मुस्कान बनकर बिखर गई।

    "वैसे मैं छोटी बच्ची नहीं हूँ, इतनी बड़ी हूँ कि सही और गलत इंसान में फर्क समझ सकूँ। इतनी समझदार भी हूँ कि खुद को मुश्किल में पड़ते देखकर उससे निकल सकूँ और हिम्मत तो इतनी है मुझमें कि कल नशे में होने के बावजूद न सिर्फ मैं उस पार्टी से बाहर निकली बल्कि दो फ्लोर नीचे गई वो भी सीढ़ियों से।"

    सृष्टि की ये बात सुनकर पार्थ हल्के से मुस्कुरा दिया।

    "जानता हूँ कि तुम बच्ची नहीं हो, समझदार हो, ब्रेव हो और कल रात तुमने बहुत अच्छे से मुझे इस बात का एहसास दिला दिया है कि तुम बच्ची नहीं हो और तुममें किसी भी लड़के को अपने करीब आने को मजबूर करने की सलाहियत मतलब capability है। साथ ही मुझे ये भी पता चल गया कि तुम न तो बेवकूफ हो और न ही कमज़ोर पर फिर भी हो तो लड़की। जब तक होश में हो, खुद को बचाने की कोशिश कर सकती हो पर अगर तुम्हें अपना ही होश नहीं रहा तो फिर तो तुम खुद को बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर सकतीं। तो थोड़ा अलर्ट रहना आगे से, तुम्हारे लिए अच्छा होगा।"

    "Okay बॉस आपका ये ऑर्डर ज़रूर फॉलो किया जाएगा।" सृष्टि ने नाटकीय अंदाज़ में उसके आगे सर झुकाया और मुस्कुरा उठी। उसकी नौटंकी देखकर पार्थ के लब बेसाख्ता ही मुस्कुरा उठे।

    "यकीनन तुम बच्ची नहीं हो पर शैतान बहुत हो।"

    "नहीं मैं शैतान नहीं हूँ......... मैं तो रूड हूँ, घमंडी हूँ, बहुत नखरे हैं मेरे, अभी तुम मुझे ठीक से जानते ही नहीं हो।"

    सृष्टि ने तुरंत ही उसकी बात पर ऐतराज जताया था और एकदम से उसके चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए थे।

    "शायद अभी तक तुम खुद को ठीक से नहीं जानती या तुम्हारी लाइफ में अभी तक कोई ऐसा इंसान नहीं आया जिसके सामने तुम अपना ट्रू सेल्फ दिखा सको।"

    जितनी संजीदगी से पार्थ ने जवाब दिया सृष्टि कुछ पल उसे देखती ही रह गई। उसकी निगाहों को खुद पर ठहरे देखकर पार्थ हौले से मुस्कुराया।

    "अब जाओ फ्रेश होकर कपड़े बदल लो।"

    सृष्टि के कानों में जैसे ही उसके शब्द पड़े उसने सकपकाते हुए उसपर से निगाहें फेर लीं और तुरंत ही सर हिलाते हुए जाने को पलटी थी जब पार्थ की आवाज़ सुनकर उसके आगे बढ़ते कदम ठहर गए।

    "ब्रेकफास्ट करना चाहोगी मेरे साथ या अब घर ही जाना है।"

    घर का ज़िक्र होते ही एक अजीब सी उदासी उसके चेहरे पर झलकने लगी जिसे छुपाते हुए उसने मुस्कुराहट को अपने लबों पर सजाया और उसकी ओर पलट गई।

    "पिज़्ज़ा खाऊँगी मैं।"

    "सुबह-सुबह पिज़्ज़ा?" पार्थ ने हैरानी से आँखों की पुतलियों को फैलाया। सृष्टि ने सर हिलाते हुए हामी भर दी फिर पल भर ठहरते हुए बोली।

    "अपनी पसंद का कुछ ऑर्डर कर लो। रात को तुमने मेरी हेल्प की तो आज मैं तुम्हारे पसंद का ब्रेकफास्ट कर लेती हूँ।"

    "Okay जाओ तुम फ्रेश हो जाओ फिर मुझे भी बाथरूम इस्तेमाल करना है।"

    To be continued...

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