एक कंस्ट्रक्शन साइड पर हथौड़े की आवाज़ें, मशीनों की गूँज) मज़दूर दौड़ता हुआ आता है मज़दूर: राघव भैया! आपकी बीवी का फोन है... चार्जर फिर हमारे वाले पर लगाया है न आपने? अब जब तक आप फोन नहीं उठाते, हम दौड़ते रहते हैं! राघव (घबराकर): दे फोन यार... (ध... एक कंस्ट्रक्शन साइड पर हथौड़े की आवाज़ें, मशीनों की गूँज) मज़दूर दौड़ता हुआ आता है मज़दूर: राघव भैया! आपकी बीवी का फोन है... चार्जर फिर हमारे वाले पर लगाया है न आपने? अब जब तक आप फोन नहीं उठाते, हम दौड़ते रहते हैं! राघव (घबराकर): दे फोन यार... (धीरे से फोन कान पर लगाता है) सरिता (चिल्लाते हुए): कहाँ मर गए हो? फोन क्यों नहीं उठाते? आते वक्त समोसे, कचोरी, जलेबी लेकर आना — और बहाने मत बनाना! राघव (धीरे से): पर सरिता... जेब में सिर्फ दो सौ हैं— सरिता: अरे फटीचर आदमी! मैंने पहले ही बच्चे को पाँच सौ देकर भेजा है, अब बस जा और सामान लेकर आ! Cycle की चेन घूमने की आवाज़, तेज़ साँसें । राघव थका था, मगर डर उससे बड़ा था। उसने साइकिल हवा में उड़ाई और समोसे लेकर घर पहुँचा। (दरवाज़ा खुलता है) सरिता: इतना टाइम लगा दिया? मर गए थे क्या रास्ते में? राघव (काँपते हुए): मैं तो... सीधा यहीं आ रहा था। सरिता: चुप! मेहमान इंतज़ार कर रहे हैं। जल्दी दे खाना! राघव रसोई में पानी पीते हुए खुद से) राघव (धीरे से): इतने साल में कोई मेहमान नहीं... आज इतना सत्कार किसके लिए? रसोई की खिड़की से झाँकते हुए) राघव ने जैसे ही उसने खिड़की से देखा... वहाँ बैठा था राहुल, सरिता का पुराना प्यार। वही राहुल... जिसकी हँसी में अब सरिता खोई जा रही थी। राघव की आँखें भर आती हैं रात का सीन: घड़ी की टिक-टिक रात के दो बजे... राघव को फिर आवाज़ आई। वह उठा, देखा — सरिता बिस्तर पर नहीं थी। स्टोर रूम की लाइट जल रही थी राघव धीरे से खुद से): यह आवाज़... कैसी है ये...? वह स्टूल रखकर झाँकता है... और जम जाता है) : अंदर सरिता थी... राहुल के साथ... दोनों बिना किसी शर्म के एक-दूसरे में खोए हुए। स्टूल गिरने की आवाज़) सरिता और राहुल दरवाज़ा खोलते हैं राघव की सास गुस्से में: बेवकूफ! बेडरूम में नहीं कर सकती थी ये सब? राघव (हैरान): माँजी... आप...? राहुल (हँसते हुए): चलो सरिता, अब बेडरूम में मज़ा जारी रखते हैं। दोनों राघव को लांघकर जाते हैं सास तंज कसते हुये: अब तलाक के पेपर पर साइन कर और निकल जा। सुबह तक तेरी शक्ल ना देखूँ मैं, रात, सड़क पर चलता राघव – वो चल पड़ा... कीचड़ में लथपथ... हर कदम पर टूटा हुआ, हर साँस में ज़िल्लत का ज़हर। आज उसने ठान लिया था — या तो सब खत्म... या वो खुद। अचानक गाड़ियों की हेडलाइटें उस पर पड़ती हैं लेकिन तभी... पंद्रह-बीस गाड़ियाँ उसे घेर लेती हैं... आख़िर कौन था उनमें?
Page 1 of 3
एक पुरानी फैक्ट्री में हथौड़ों की आवाज़ें गूंज रही थीं... राघव — एक सीधा-सादा मज़दूर था।
तभी एक मज़दूर भागते हुए उसके पास आकर बोला
राघव भैया! आपकी बीवी का फोन है. अब जब तक आप बात नह करोगे, वो कॉल करती ही रहेंगी!
राघव ने घबराकर उसके हाथ से फोन लिया.
फोन के दूसरी तरफ आकांक्षा चिल्लाते हुए
कहाँ मर गए हो? फोन क्यों नहीं उठा रहे? और सुनो — अभी जाओ और समोसे, कचोरी, जलेबी लेकर आओ!
राघव घबरा कर बोला पर आकांक्षा. मेरे पास सिर्फ दो सौ रुपए हैं—
ये सुनकर आकांक्षा गुस्से से दहाड़ते हुए बोली मुझे पता था फटीचर आदमी! इसलिए गली के बाहर एक बच्चे को पांच सो रुपए देकर भेजी हु,
अब राघव तेजी से साइकिल लेकर निकलता है
राघव मजदूरी करके थका हुआ था...
मगर वो साइकिल ऐसे चला रहा था जैसे उसकी ज़िंदगी उसी समोसे जलेबी के थैलों में बंधी हो।
फिलहाल वो घर गया सामने उसकी बीवी सरिता गुस्से से उसको देखकर बोली
इतना टाइम लगा दिया? मर गए थे क्या रास्ते में?
राघव काँपते हुए
मैं तो... सीधा यहीं आ रहा था... सरिता गुस्से से
चुपकर! मेहमान इंतज़ार कर रहे हैं, जल्दी दे सामान!
राघव का तेज साइकिल चलाने की वजह से गला सुख रहा था वो सीधा रसोई में पानी पीने गया।
फिर उसने सोचा
इतने साल में कोई मेहमान नहीं... आज इतना नाश्ता किसके लिए...?
तभी राघव ने खिड़की से झाँका...
और वहीं जम गया...
मेहमान कोई ओर नहीं बल्कि राहुल था आकांशा का बॉयफ्रेंड
ये देखकर उसकी आंखें भर आईं , वो रोने के अलावा और क्या कर सकता था।
और रात के दो बजे... राघव की नींद टूटी।
आकांक्षा बिस्तर पर नहीं थी।
और स्टोर रूम से कुछ आवाजें आ रही थी।
राघव उठा और बोला
ये आवाज़... कैसी है ये... फिर वो लकड़ी के स्टूल से स्टोर रूम में , झाँकने की कोशिश करने लगा
अंदर उसने कुछ ऐसा देखा जिससे वो... जम गया।
अंदर.. आकांक्षा राहुल के साथ इंटीमेट हो रही थी।
अचानक वो बैलेंस नहीं बना पाया और स्टूल से गिर गया
स्टूल गिरने की आवाज से आकांशा राहुल, साथ ही दूसरे कमरे से राघव की सास बाहर आ गए
और वो अपनी बेटी से बोली बेवकूफ! बेडरूम में नहीं कर सकती थी ये सब?
राघव हैरान हो गया और रुंधे स्वर से बोला
माँजी... आप...?
राहुल हँसते हुए:
चलो सरिता... अब बेडरूम में ही मज़ा जारी रखते हैं।
तब राघव की सास उसकी और गुस्से से देखकर अब तलाक के पेपर पर साइन कर... और निकल जा!
सुबह तक तेरी शक्ल ना देखूँ मैं!.. मजबूरी में उसे अपनी सास की बात माननी पड़ी और उसी रात सड़क पर हल्की बारिश में
कीचड़ में लथपथ सड़क पर चलता राघव हर कदम पर टूटा हुआ। दिखाई दे रहा था।
अब उसने ठान लिया — वो खुद को खत्म कर लेगा
वो नदी में कूदकर जान देने वाला था। तभी
अचानक... गाड़ियों की रोशनी उस पर पड़ी।
वो पलटकर देखने ही वाला था —
कि.. पंद्रह-बीस गाड़ियाँ उसे घेर लेती हैं...
जान देने गए राघव को अचानक पंद्रह-बीस गाड़ियाँ घेर लेती है राघव पहले डर गया फिर उसने सोचा — “मुझे तो मरना ही है तो में डर क्यों रहा हूं।?” तभी एक सफेद गाड़ी से क्रीम रंग की साड़ी पहने एक औरत निकली, उसकी चाल में रुतबा था और आँखों में चमक थी। उसने अपने गार्ड्स वही रोक दिए और राघव की ओर बढ़ी।
अब राघव घबराते हुए बोला आप कौन हैं। औरत ने शांत तरीके से पूछा कि क्या वो मरना चाहता है। फिर उसने उसको बताया कि उसे सब मालूम है — राघव ने अपनी पत्नी को उसके बॉयफ्रेंड राहुल के साथ देखा है और इसलिए यहाँ जान देने आया है। औरत ने राघव के बचपन, अनाथाश्रम में उसकी परवरिश, चाय की टपरी में उसकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी और सरिता के साथ उसके रिश्ते की सारी बात बताई। उसने कहा कि सरिता ने कभी उसे सच में नहीं चाहा; वो उसे घर का नौकर समझती थी, अब उसने राघव को छोड़ दिया है और राहुल से शादी करने वाली है।
राघव ये सब सुनकर टूट गया। वो चीखकर, रो पड़ा और पूछा कि ये सब उसे कैसे पता चला। औरत ने कहा कि वे राघव की ज़िंदगी खत्म नहीं कर रहीं, बल्कि उसे एक नया जन्म देने आई हैं। वे चाहती हैं कि वो अपनी पुरानी पहचान भूलकर नई पहचान के साथ जीए।
और उस औरत ने अपना नाम गायत्री रघुवंशी बताया— और कहा कि वे अविनाश रघुवंशी की माँ हैं। गायत्री ने बताया कि उनका असली बेटा अब इस दुनिया में नहीं है और अगर ये बात बाहर चली गई तो उनका सारा साम्राज्य बर्बाद हो जाएगा। इसलिए उन्हें किसी ऐसी पहचान की ज़रूरत है जो किसी को बिना पता चले उनके अधिकारों को बनाए रख सके। उन्होंने राघव से कहा कि वे उसे अपनाना चाहती हैं — उसे अपना बेटा, अविनाश बनाना चाहती हैं —क्योंकि अविनाश की शक्ल राघव से हुबहु मिलती है और उन्हें राघव की पहचान और ज़िंदगी चाहिए।
राघव ये सुनकर हैरान था तब तक गायत्री के साथ आए लोगों ने राघव के कपड़ों से कीचड़ साफ़ किया, उसे गाड़ी में बैठाया और एक बड़े होटल ले गए। उसे नहलाकर अच्छे कपड़े पहनाए गए। जब वो गायत्री के सामने गया, तो उसने वही प्रस्ताव दोहराया: आज से तुम हमारे बेटे होगे, हमारी संपत्तियों और ज़िम्मेदारियों के वारिस।
राघव हैरान था। उसने पूछा कि अगर उनके दुश्मनों ने उसके लिए भी नुकसान किया तो क्या होगा। गायत्री ने गंभीरता से कहा कि राघव खुद मरना चाहता था, और अगर उसकी जान किसी बड़े मकसद के लिए काम आ सकती है तो क्या वो मना करेगा।
राघव ये सुनकर अब चुप था।
गायत्री जी ने बताया कि उनके असली बेटे अविनाश को उनके दुश्मनों ने मार डाला,
अब दुनिया को ये पता नहीं चलना चाहिए। अगर उनके बेटे की मौत का सच सामने आया तो उनका सब कुछ खत्म हो जाएगा। इसलिए, उन्हें राघव की ज़रूरत है ताकि वो अविनाश बनकर रहे।
राघव ने कहा कि ये खतरनाक हो सकता है
और उनके दुश्मन मुझे भी मार सकते है।
गायत्री जी ने कहा कि राघव पहले ही आत्महत्या करने वाला था, इसलिए अगर उसकी जान किसी अच्छे काम में आए तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
राघव ने कुछ देर सोचा और फिर कहा कि वो तैयार है। उसने पूछा कि उसे क्या करना है।
गायत्री जी ने राघव को बताया कि कल उसे एक बैंक जाना है और एक लॉकर से एक नीली फ़ाइल लानी है, जिसमें बहुत सारे मजदूरों के भविष्य के बारे में लिखा है।
राघव ने पूछा कि उसके फिंगरप्रिंट्स कैसे मैच होंगे। गायत्री जी ने कहा कि सब इंतज़ाम हो गया है और उसे एक गोल्डन कार्ड दिया, जिससे वो वीआईपी सेक्शन में जा सकता है।
राघव ने अपने पुराने घर जाने की इजाज़त माँगी। क्योंकि उसे अपना कुछ जरूरी सामान वहां से लाना था,गायत्री जी ने उसे जाने दिया।
राघव जब अपने घर पहुँचा, तो उसने देखा कि उसकी पूर्व पत्नी सरिता, राहुल के साथ सगाई कर रही थी। सरिता की माँ ने उसे वहाँ से जाने के लिए कहा।
राघव ने सरिता से पूछा कि क्या उसने कभी उससे प्यार किया था। सरिता ने उसे थप्पड़ मारा और कहा कि उसने उससे पैसे के लिए शादी की थी। राहुल ने राघव को पीटा।
राघव खून से लथपथ होकर उठा और अपना थैला लेकर वहाँ से चला गया।
उस रात, वो फुटपाथ पर सो गया। गायत्री जी ने जतिन को उसे परेशान न करने के लिए कहा।
अगले दिन, जब राघव उठा, तो बच्चे उसके चारों ओर थे। उसने मुस्कुराया और कहा...
"अब मेरी नई ज़िंदगी शुरू हो रही है।"
उसने जेब से गोल्डन कार्ड निकाला, देखा, और बैंक की ओर चल पड़ा।
दूसरी तरफ़, सरिता और राहुल भी बैंक जाने वाले थे।
सरिता खुश थी, राहुल पैसे निकालने जा रहा था। उसे शादी की शॉपिंग कराने के लिए।
बैंक पहुँचते ही राघव को सबने घूरकर देखा।
उसके कपड़े मैले थे।
चौकीदार उसे फटकारते हुए बोला
हे भिखारी कहाघुसा सा रहा है? ये जगह तेरे जैसे लोगों की नहीं!"
तब राघव बोला, मेरा यहाँ अकाउंट है।"
ये सुनकर सब हँसने लगे।
राघव एक पल के लिए डरा, फिर गायत्री जी की बात याद आई।
उसने जेब से गोल्डन कार्ड निकाला…
और तभी पीछे से किसी ने कहा —
"अरे भिखारी! तू यहाँ क्या कर रहा है?"
वो थी सरिता।
“अरे भिखारी! तू यहाँ क्या कर रहा है?” सरिता की बात सुनकर
अब सारे लोग राघव की ओर देखने लगे।
कोई हँसने लगा, कोई ताना मारने लगा।
राहुल, जो अब सरिता का होने वाला पति था, आगे आया और बोला —
“चौकीदार! इसे बाहर निकालो, ये फटीचर यहां कर क्या रहा है,?
भीड़ हँसी से भर उठी।
किसी ने मज़ाक में कहा — “कहता है इसका बैंक अकाउंट है!”
सरिता ने हँसते हुए कहा —
“मैं इसे जानती हूँ! इसका नाम तो राशन कार्ड में भी नहीं होगा।”
राहुल ने गुस्से में राघव का कॉलर पकड़ लिया और बोला —
“तेरे जैसे कूड़े वालों की यहाँ कोई जगह नहीं!”
राघव अब भी चुप रहा।
उसकी आँखों में आँसू थे, पर चेहरा अब कठोर हो गया था।
धीरे से उसने कॉलर छुड़ाया और बिना कुछ कहे VIP सेक्शन की कुर्सी पर जाकर बैठ गया।
पूरा बैंक सन्न रह गया।
सरिता गुस्से में चिल्लाई — “गार्ड! इसे बाहर निकालो!”
गार्ड्स ने दौड़कर उसे पकड़ा, किसी ने थप्पड़ मारा, किसी ने धक्का दिया।
राघव के होंठ से खून निकल आया।
उसने दर्द से भरी आवाज़ में कहा —
“मुझे छोड़ो... मैं इस बैंक का VIP कस्टमर हूँ।”
भीड़ फिर हँस पड़ी।
सरिता बोली — “VIP? तू? तलाक के बाद पागल हो गया है क्या?”
राघव को फिर धक्का दिया गया और वो गिर पड़ा — किसी के जूते के पास।
तभी अचानक, दरवाज़े से एक भारी आवाज़ आई
“ये क्या हो रहा है यहाँ? किसने इन्हें छुआ?”
सभी मुड़े — वो था बैंक का मैनेजर।
राहुल हकलाया — “सर, ये चोरी करने आया था।”
सरिता बोली — “हाँ सर, ये एक भिखारी है।”
मैनेजर ने सख़्ती से कहा —
“चुप रहिए! हमें पता है कौन मनहूस है।”
वो आगे बढ़ा और सबके सामने झुककर राघव को उठाया, बोला —
माफ कीजिएगा सर... बहुत बड़ी गलती हो गई।”
पूरा बैंक चौंक गया।गार्ड्स जिन्होंने उसे मारा था, अब माफ़ी मांगने लगे।
लोग फुसफुसाने लगे —
“अगर मैनेजर इसके आगे झुक रहा है, तो ये कोई बड़ा आदमी होगा।”
मैनेजर बोला — “सर, कृपया अंदर आइए।”
राघव बिना कुछ कहे अंदर गया।
VIP सेक्शन में — काँच के पार सब उसे देख रहे थे।
मैनेजर खुद उसके ज़ख्म पर दवा लगा रहा था और जूस सर्व कर रहा था।
स्टाफ में कोई बोला — “मैनेजर खुद सर्व कर रहा है? वो भी इसे?”
सरिता की आँखें फैल गईं, चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
कुछ देर बाद, मैनेजर बाहर आया और बोला —
“जानते भी हो ये कौन हैं?
ये हैं अविनाश रघुवंशी — पचास हज़ार करोड़ के मालिक।”
पूरा बैंक सन्न रह गया।
सरिता वहीं खड़ी रह गई और फिर बेहोश होकर गिर पड़ी।
राहुल ने उसे संभाला।
जब सरिता को होश आया, उसने काँपते हुए पूछा —
“राहुल... वो सच में अविनाश हैं?”
राहुल बस काँच की ओर इशारा कर सका।
काँच के उस पार अविनाश, यानी वही “राघव”, मुस्कुराकर बैठा था।
राघव, जो अब अविनाश बनने की कोशिश कर रहा था, बैंक में लॉकर खोलने में थोड़ा घबराया हुआ था। उसे फिंगरप्रिंट लगाने में भी मदद की ज़रूरत पड़ी।
उसने फाइल निकाली, और कहा —
“मुझे ज़रा जल्दी जाना है, ”
बाहर जाने पर राघव को सरिता राहुल दिखाई दिए।
राघव ने इग्नोर किया और आगे बढ़ गया।
तभी सरिता दौड़ती हुई आई और उसका कॉलर पकड़कर बोली,
“फटीचर! कौन सी चाल चली है तूने?”
तब तक भीड़ जमा हो गई।
मैनेजर ने सिक्योरिटी को बुलाया और कहा —
“मैडम, आप VIP कस्टमर के साथ बदतमीज़ी नहीं कर सकतीं।”
सरिता चिल्लाई —
“VIP कस्टमर? ये फटीचर आदमी? इसे तो मैंने दो साल तक खिलाया है!”
मैनेजर गुस्से में बोला —
“आपको मेंटल हॉस्पिटल जाना चाहिए, मैडम।”
बात बढ़ती देख राहुल ने सरिता को शांत रहने को कहा
पर सरिता पागलों की तरह चिल्ला रही थी —
“ये आदमी कुछ नहीं है!
ये फटीचर भिखारी है, मैनेजर गुस्से से बोला लगता है पुलिस को बुलाना पड़ेगा
ये सुनकर सरिता का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
तभी अचानक बैंक के बाहर 20 काली गाड़ियाँ आकर रुकीं।
काले सूट में बॉडीगार्ड्स निकले और राघव को घेरे में ले लिया।
सरिता और राहुल हैरान खड़े रहे।
राघव ने हल्की मुस्कराहट दी, और गाड़ी में बैठ गया।
गाड़ियाँ निकल गईं।
मैनेजर बोला —
“देखा? वो चाहे तो एक फोन पर हजारों गाड़ियाँ बुला सकता है।”
सरिता ये बर्दाश्त नहीं कर पाई और एक बार फिर वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी —
राहुल उसे घर ले गया।
सरिता की माँ घबराकर पूछती है — “क्या हुआ मेरी बेटी को?”
राहुल बोला —
“बस थोड़ा शॉक लगा है... डॉक्टर देख चुके हैं।”
फिर वह छत पर जाकर फोन मिलाता है और बुदबुदाता है —
“राघव... या अविनाश रघुवंशी... आखिर है कौन?”
वही राघव सामने बैठी गायत्री रघुवंशी को नीली फाइल देता है और कहता है —
“मैडम, माफ कीजिए... मैं आपका बेटा बनने की कोशिश कर रहा था।”
गायत्री मुस्कराईं —
“हमें सब पता था। कल से हमारे लोग तुम्हारे हर कदम पर नज़र रख रहे थे। बैंक में तुम्हारी मदद हमने ही करवाई।”
राघव चौंक गया — “आपने?”
“हाँ,” गायत्री बोलीं,
“क्योंकि अब तुम्हारी ज़िंदगी हमारी है।
और तुम्हें एक कॉन्ट्रैक्ट पर साइन करना होगा —
तुम अविनाश की दौलत का गलत इस्तेमाल नहीं करोगे...
और सिया से दूरी बनाकर रखोगे।”
राघव घबरा गया —
“सिया? वो कौन है?”
गायत्री शांत स्वर में बोलीं —
“तुम्हें जल्द पता चल जाएगा।
अभी तुम्हारा काम है — अविनाश रघुवंशी बनना।”
राघव काँपते हुए बोला —
“मैं तो सिर्फ सातवीं तक पढ़ा हूँ... मैं ये सब कैसे कर पाऊँगा?”
गायत्री बोलीं — “हम सिखाएँगे तुम्हें — अविनाश की चाल, उसकी मुस्कान, उसकी आवाज़... सब कुछ।
लेकिन याद रखना — अगर धोखा देने की कोशिश की...
तो हम तुम्हारी जान ले लेंगे।”
राघव के माथे पर पसीना छलक आया।
धीरे से बोला —
“आपने इस फटीचर की जान बचाई है... अब ये ज़िंदगी आपकी है।”
गायत्री के लिए आने वाला महीना बहुत मुश्किल था। उसका बेटा अविनाश हर काम में होशियार था, लेकिन उसमें एक बुरी आदत थी, ऐसी जिसे बताना गायत्री के लिए शर्म की बात थी। फिर भी, राघव को सच बताना जरूरी था।
गायत्री, राघव को एक खास जगह पर लेकर गई — वहाँ एक प्राइवेट जेट खड़ा था। जेट देखकर राघव डर गया, क्योंकि उसने कभी इतना बड़ा जेट पास से नहीं देखा था। गायत्री ने बताया कि वे उसी जेट से एक ऐसी जगह जा रहे हैं, जहाँ राघव को एक महीना रहना होगा। राघव घबरा गया — उसे उड़ान से भी डर लग रहा था और आने वाले बदलाव से भी। गायत्री ने कहा कि वहाँ उसका पूरा ध्यान रखा जाएगा।
जब जेट एक सुनसान इलाके के पास बने बड़े से फार्महाउस पर उतरा, तो राघव चारों ओर देखकर हैरान रह गया। वहाँ कोई नहीं था, बस एक बड़ा बंगला और चारों ओर सन्नाटा। गायत्री ने कहा कि यही जगह अब उसका घर है — यहीं वह उसे अविनाश रघुवंशी की तरह बनना सिखाएगी। उसे उसकी चाल-ढाल, बोलचाल, आदतें — सब कुछ सिखाया जाएगा ताकि जब लोग उसे देखें, तो कोई शक न करे कि वह असली अविनाश नहीं है।
राघव अंदर गया, जहाँ हर कोई उसे सम्मान से झुककर नमस्ते कर रहा था। यह उसके लिए नया था, क्योंकि उसने कभी इतनी इज़्ज़त नहीं देखी थी। गायत्री ने उसे कहा कि वह आराम करे और खाना खा ले। कमरे में उसे एक फ़ाइल मिली — जिसमें रघुवंशी परिवार की सारी जानकारी थी। उसने फ़ाइल पढ़ी, और थककर सो गया।
उधर, सरिता को होश आया। उसकी माँ और राहुल उसके पास थे। सरिता को यकीन नहीं हो रहा था कि वही गरीब राघव अब पचास हजार करोड़ की प्रॉपर्टी का मालिक बन गया है। राहुल ने उसे सब समझाया —उसने सारी जानकारी निकाल ली थी। गायत्री ने पहले से ही अनाथालय के काग़ज़ बनवाकर रखे थे ताकि यह लगे कि राघव वहीं से आया है।
राहुल ने अविनाश की कुछ तस्वीरें और वीडियो दिखाए — जेट, गाड़ियाँ, बॉडीगार्ड्स — सब असली लग रहा था। सरिता और उसकी माँ को विश्वास नहीं हो रहा था। माँ तो बेहोश ही हो गई। जब उन्हें होश आया, तो दोनों को अफ़सोस हुआ कि उन्होंने इसके साथ कितना गलत किया
अब सरिता के मन में पछतावा और लालच दोनों थे। उसने ठान लिया कि वह किसी तरह राघव को वापस लाएगी उसकी दौलत के लिए वो कुछ भी करेगी
इधर फार्महाउस में गायत्री और उसका साथी जतिन राघव की तैयारी में लग गए। जतिन के पास अविनाश के खाने, चलने, बोलने और हावभाव की सारी वीडियो थीं। अब वे सब राघव को दिखाएंगे ताकि वह ठीक वैसे ही बन सके।
गायत्री जानती थी कि राघव का स्वभाव बहुत सीधा है जबकि अविनाश का गुस्सैल और घमंडी था।
फिलहाल अगले दिन से राघव की नई ज़िंदगी शुरू होनी थी —
फार्म हाउस पर अगली सुबह राघव ने भजन गाकर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की
गायत्री जी, उसे देखकर हैरान थीं।
उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि अविनाश जैसा दिखने वाला यह लड़का इतना शांत और भक्ति-भाव वाला होगा।
उन्होंने कहा — “आज से तुम्हारी ज़िन्दगी की नई शुरुआत है, बेटा।”
राघव ने सिर झुकाकर बस इतना कहा — “मैं कोशिश करूँगा कि आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूँ।”
थोड़ी देर बाद गायत्री जी उसे प्रोजेक्टर रूम में ले गईं।
वहाँ रघुवंशी परिवार की तस्वीरें दिखाई जा रही थीं।
उन्होंने सभी का परिचय कराया —
दीनदयाल रघुवंशी, परिवार के बुज़ुर्ग और सबके प्रिय दादा।
रमन रघुवंशी, अविनाश के पिता, सख्त और गुस्सैल स्वभाव के।
अधर्व रघुवंशी, जो हमेशा अपने भाई से जलते रहते थे।
और धरा — अधर्व की बेटी, जो कॉलेज में पढ़ती थी और सबकी चहेती थी।
फिर गायत्री जी ने एक और तस्वीर दिखाई —
एक लड़की की, जिसकी मुस्कान किसी रोशनी की तरह थी।
वह थी सिया, अविनाश की मंगेतर।
सिया बेहद मासूम और दिल की सच्ची लड़की थी।
वह अविनाश से बहुत प्यार करती थी, लेकिन अविनाश ने कभी उसकी परवाह नहीं की।
हर बार जब सिया उसके लिए कुछ अच्छा करती — तो वह उसे सबके सामने डाँट देता।
फिर भी सिया मुस्कुरा देती,
क्योंकि उसे यकीन था कि एक दिन उसका प्यार जीत जाएगा।
राघव चुपचाप तस्वीर को देखता रहा।
वह मन ही मन सोच रहा था —
“कितना बड़ा बेवकूफ था ये अविनाश... इतनी अच्छी लड़की की कद्र ही नहीं की।”
तभी प्रोजेक्टर की आखिरी तस्वीर चली —
और स्क्रीन पर उभरा अविनाश रघुवंशी का चेहरा।
राघव सन्न रह गया।
वह चेहरा बिल्कुल उसका ही था।
वही आँखें, वही शक्ल, जैसे आईने में खुद को देख रहा हो।
गायत्री जी ने कहा —
“अविनाश बहुत होशियार था, कई भाषाएँ जानता था, बिज़नेस में तेज़ था...
पर उसके भीतर एक अंधेरा भी था।”
उन्होंने बताया कि अविनाश अहंकारी था,
और औरतों को खिलौना समझता था।
हर रात नई लड़की, हर दिन नया चेहरा —
उसका यही स्वभाव था जिसने उसे बर्बाद कर दिया।
गायत्री जी ने राघव की आँखों में देखकर कहा —
“अब तुम्हें वही सब सीखना होगा, बेटा।
अविनाश जैसा चलना, बोलना, व्यवहार करना — सब कुछ।”
“लेकिन याद रखना... अगर तुम्हारा असली, सीधा स्वभाव किसी को दिख गया,
तो सब जान जाएँगे कि तुम असली अविनाश नहीं हो।”
राघव ने बस सिर झुका लिया।
धीरे से कहा — “मैं कोशिश करूँगा, माँ।”
गायत्री जी की आँखें नम हो गईं।
उधर, दूसरी तरफ़ सरिता की ज़िन्दगी टूट रही थी।
राहुल अमीर था, लेकिन बेरहम।
वह सरिता को सिर्फ़ अपने शारीरिक सुख के लिए चाहता था।
जब सरिता ने इंकार किया, तो उसने ज़बरदस्ती की और कहा —
“मैंने तुम पर लाखों खर्च किए हैं, सिर्फ तुम्हारे जिस्म के लिए
सरिता को अब समझ आ गया था कि उसने क्या खो दिया।
लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।
राघव एक अमीर और झूठी दुनिया में अपनी नई भूमिका निभा रहा था,
और सरिता अपने लालच के अंधेरे में डूब चुकी थी।
फिलहाल राहुल ने एक चादर सरिता पर फेंकी —
और बोला चलो, तैयार हो जाओ। आज तुम्हें शादी की शॉपिंग कराता हूँ।"
राहुल बाहर गया, और सरिता दुःख से वही खड़ी रह गई फिलहाल उसने चुपचाप कपड़े पहने और राहुल के साथ बाज़ार चली गई।,
— वही राघव एक छोटे कमरे में उलझन के साथ मास्टर के सामने बैठा था।
मास्टर उसे हिंदी, इंग्लिश, फ्रेंच, बंगाली, यहाँ तक कि रशियन भी सिखा रहा था।
राघव परेशान था।
तभी गायत्री जी अंदर आईं —
"क्या बात है राघव बेटा? ऐसे क्यों बैठे हो?"
राघव बोला —आंटी जी, मैं यह सब नहीं सीख पाऊँगा। मैं एक मामूली आदमी हूँ। जिसने बस ठोकरें खाई हैं। मैं कैसे किसी अमीर इंसान की नकल कर सकता हूँ?"
गायत्री जी ने उसका हाथ थामा —
"बेटा, हमें पता है ये आसान नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी नहीं। अब यही समझो कि तुम्हारी ये नई ज़िंदगी हज़ारों लोगों के काम आएगी।"
प्लीज राघव, हमें मायूस मत करो। तुम्हारी पूरे रघुवंशी परिवार को ज़रूरत है।"
राघव की आँखें भर आईं —
"आप मेरी माँ समान हैं। मैं वादा करता हूँ, पूरी जान लगाऊँगा। जैसा आप कहेंगी, वैसा ही करूँगा।"
गायत्री जी ने प्यार से उसका सिर सहलाया और चली गईं।
राघव फिर पढ़ाई में जुट गया — अब पहले से ज़्यादा जोश के साथ।
कुछ दिन बाद, गायत्री जी उसे जिम में ले गईं —
"राघव, तुम्हें अविनाश जैसी बॉडी बनानी होगी। देखो, यह उसकी तस्वीर है।"
राघव हैरान था — तस्वीर में अविनाश की स्टील जैसी बॉडी चमक रही थी।
गायत्री जी बोलीं —
"तुम्हारा शरीर वैसे ही 80% उसके जैसा है। बाकी 20% मेहनत से पूरा कर लोगे।"
फिर एक हैवी बॉडी ट्रेनर आया। उसने राघव को ट्रेनिंग देना शुरू किया।
राघव के लिए ये सब नया था, पर मज़दूरी की आदत थी उसे।
वह इतनी मेहनत से एक्सरसाइज़ कर रहा था कि ट्रेनर भी हैरान रह गया।
दो-ढाई घंटे बीत गए। तभी गायत्री जी आईं —
अब वक्त था लंच का है चलो
राघव जब डाइनिंग टेबल पर पहुँचा, तो उसके सामने तरह-तरह का खाना था — बिरयानी, चिकन, मोमोस, चाइनीज़ डिशेज़।
उसकी आँखें चमक उठीं। वह जल्दी-जल्दी अपनी प्लेट भरने लगा।
गायत्री जी बोलीं —
"राघव, रिलैक्स। यह सारा खाना तुम्हारा है, लेकिन तुम्हें अविनाश की तरह खाना होगा — फ़ोर्क और स्पून से।"
राघव सन्न रह गया।
जब उसने कांटे से खाना उठाने की कोशिश की, तो सब फिसल गया।
वह परेशान हो गया। मन तो भरपेट खाने का था, लेकिन खा नहीं पा रहा था। जब वो कांटा छुरी से खाने में नाकाम हुआ तो बोला
"मैडम जी, मेरा पेट भर गया है।"
गायत्री जी मुस्कुराईं —
"ठीक है बेटा, पहले अपने तरीके से खा लो। बाद में सिखा देंगे।"
अब राघव ने जैसे ही अपने हाथों से खाना खाना शुरू किया, उसका चेहरा खिल उठा।
वह चटकारे से खा रहा था।
गायत्री जी उसे देखती रहीं — और सोचने लगी,
"काश मेरा बेटा भी इतना सच्चा और सीधा होता.
और तभी, गायत्री जी का फ़ोन बज उठा —.."
:
गायत्री जी का फ़ोन अचानक बज उठा — कॉल रमन रघुवंशी का था।
फ़ोन उठाते ही उनकी आवाज़ सुनाई दी, भारी और गुस्से से भरी हुई।
वह नाराज़ थे कि गायत्री इतनी लंबी छुट्टी क्यों, और बोले — “वापस आओ, ये सब अब बंद करो।”
गायत्री ने शांत स्वर में जवाब दिया कि जब तक उनका कहा हुआ काम पूरा नहीं होता, वह रघुवंशी मेंशन नहीं लौटेंगी।
रमन झुंझला गए, बदनामी का डर दिखाया — पर गायत्री का चेहरा कठोर हो गया।
उन्होंने आख़िरी बार कहा, “पहले वो करो जो मैंने कहा है, वरना मैं अपने बेटे के साथ विदेश चली जाऊँगी।”
इतना कहते ही रमन ने गुस्से में फ़ोन काट दिया।
गायत्री की आँखें भर आईं।
बीते सालों की सारी यादें लौट आईं — 26 साल की शादी, पर खुशियाँ गिनी-चुनी थीं।
उन्हें वो दिन याद था जब बेटे के जन्म के साथ ही उन्होंने अपने पति की बेवफाई पकड़ी थी।
उस दिन के बाद उन्होंने खुद को बदल लिया था।
पति से दूरी बनाकर, सारा ध्यान अपने बेटे और बिज़नेस पर लगा दिया।
समय के साथ वह रघुवंशी परिवार की ताकत बन गईं।
एक दिन जब उन्होंने रमन को उसकी गर्लफ्रेंड के साथ देखा, तो उन्होंने उस औरत को तमाचे मारे और रमन को चेतावनी दी कि अगर यह सब नहीं रुका, तो वह चली जाएँगी।
फिलहाल उसी समय, राघव के कमरे से आवाज़ आई। उन्होंने तुरंत जाकर देखा तो राघव झाड़ू लेकर सफाई कर रहा था।
गायत्री ने चौंककर पूछा कि यह क्या कर रहे हो?
राघव ने मासूमियत से कहा बस कमरे में गंदगी थी, साफ़ कर रहा था।
गायत्री हँस दीं, नौकरों को बुलाया
जब नौकर ने उसके कपड़े बदलाने की कोशिश की, तो राघव शरमाकर बाथरूम भाग गया।
गायत्री की हँसी थमी नहीं — इतने दिनों बाद उनके चेहरे पर मुस्कान आई थी।
उन्होंने मन ही मन सोचा, “इस लड़के में कुछ तो बात है”
उधर दूसरी तरफ़, सरिता शॉपिंग मॉल में राहुल के साथ थी।
पर उसका मन कहीं और था — शायद अपने पुराने पति राघव के पास।
राहुल ने उसे ताना मारा, बुरा बर्ताव किया, और होटल चलने की बात की।
सरिता मजबूर थी, चुपचाप साथ चली गई।
इधर राघव बाथरूम से लौट आया।
गायत्री ने उसे बुलाकर कहा कि अब उसे अविनाश रघुवंशी की तरह रहना सीखना होगा।
वह उसे प्रोजेक्टर रूम में ले गईं और अविनाश के वीडियो दिखाने लगीं —
चलने, बोलने और खाने के तौर-तरीके।
राघव को बोरियत हो रही थी, लेकिन गायत्री ने सख़्त लहजे में कहा कि अब उसे वही बनना है।
फिर एक वीडियो चली — उसमें अविनाश एक लड़की पर गुस्सा कर रहा था, उसे थप्पड़ मार रहा था और धमका रहा था कि अगर मुस्कुराहट कम हुई तो वह उसे ख़त्म कर देगा।
यह देखकर राघव सिहर गया।
स्क्रीन पर अगला पल और डरावना था — अविनाश ने उस लड़की को ज़ोर से पकड़कर चूम लिया।
राघव का चेहरा पीला पड़ गया।
उसे समझ नहीं आया कि जिस इंसान की जगह उसे बनना है, वह असल में कितना खतरनाक है।
अविनाश रघुवंशी… एक ऐसा नाम, जिसे लोग सम्मान से लेते थे।
लेकिन आज राघव ने उस नाम के पीछे छिपा चेहरा देखा — और सब कुछ बदल गया।
कमरे में हल्की रोशनी थी।
सामने स्क्रीन पर अविनाश था — पर वो इंसान नहीं, एक राक्षस जैसा दिख रहा था।
उसकी आँखों में पागलपन था, चेहरे पर अजीब-सी संतुष्टि, और सामने एक बेबस लड़की खड़ी थी।
राघव का दिल काँप गया।
उसके कदम लड़खड़ाने लगे।
वो डर और घृणा के बीच बाहर निकल आया।
साँसें तेज़ थीं, आँखें नम थीं।
बाहर गायत्री रघुवंशी खड़ी थीं — जिनकी आँखों में अब सिर्फ़ टूटी हुई उम्मीदें थीं।
उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा कि जब जतिन ने उन्हें ये वीडियो दिखाया था, तब उन्होंने जाना कि उनका बेटा कितना गिर चुका है।
राघव के मन में उथल-पुथल थी।
वो सोच भी नहीं पा रहा था कि कोई आदमी किसी औरत के साथ इतनी क्रूरता कैसे कर सकता है।
उसका मन भारी था, सिर झुका हुआ।
कुछ देर बाद वो फिर गायत्री जी के पास लौटा।
चेहरे पर गंभीरता थी, आवाज़ में एक अलग ठहराव।
उसने कहा कि उन्हें जो अपनापन मिला है, वो पहले कभी नहीं मिला।
अब जो ज़िंदगी उसे मिली है, वो सिर्फ़ उनकी अमानत है।
वो अविनाश की जगह लेने को तैयार है।
गायत्री की आँखों में आँसू थे।
उन्होंने राघव को अपने गले से लगा लिया।
उन्हें लगा जैसे सालों बाद उन्हें फिर से अपना बेटा मिल गया हो।
उन्होंने कहा — अब वही इस घर की उम्मीद है।
अविनाश ने जिस राह पर गलतियाँ कीं, राघव अब उसी राह को रोशनी से भर देगा।
फिर उन्होंने बताया — अविनाश का नाम सिर्फ़ दौलत नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी है।
पचास हज़ार करोड़ की संपत्ति और सत्तर हज़ार परिवारों की रोज़ी-रोटी उस नाम से जुड़ी है।
अब राघव को वही सब सीखना था — चलना, बोलना, व्यवहार करना — ठीक अविनाश की तरह।
जतिन हर समय उसके साथ रहेगा ताकि कोई पहचान न सके।
हर कदम अब एक परीक्षा होगी।
राघव ने सिर झुकाया और धीरे से कहा —
वो पूरी कोशिश करेगा कि गायत्री जी को कभी शर्मिंदा न होना पड़े।
गायत्री मुस्कुराईं।
बहुत समय बाद उनके चेहरे पर सुकून था।
उन्होंने कहा — अब ये नया अविनाश लोगों के दिलों में डर नहीं, मोहब्बत जगाएगा।
धीरे-धीरे कमरे में शांति फैल गई।
गायत्री की आँखों में गर्व था, और राघव के दिल में एक वादा।
अब वो राघव नहीं रहा।
वो बन चुका था — अविनाश रघुवंशी।
पर इस बार, ये नाम पाप नहीं, प्रायश्चित की पहचान था।
सरिता की माँ परेशान नज़र से अपनी बेटी की ओर देखते हुए बोली
तू अचानक राहुल से दूर क्यों जा रही है? पहले तो वही तेरा सबकुछ था। मैं चाहती थी कि तेरी शादी उसी से हो, इसलिए कभी तुझे रोका नहीं। अब जब राहुल तुझसे शादी करना चाहता है, तो तू राघव के बारे में क्यों सोच रही है?"
सरिता गुस्से से"माँ, इस बात का ज़िक्र मत कीजिए। मुझे सिर्फ़ राघव चाहिए। तुम जानती हो न, उसके पास पचास हज़ार करोड़ की दौलत है! अगर मैं थोड़ा भी इमोशन दिखाऊँ, तो वो वापस मेरे पास आ जाएगा। बस मुझे उससे मिलने का मौका चाहिए — और फिर देखना, वो मेरा होगा!"
सरिता की बातों ने उसकी माँ को डरा दिया। उसे एहसास था कि अगर सरिता ने ये खेल ज़्यादा आगे बढ़ाया, तो वो राहुल और राघव — दोनों को खो सकती है।
---
उधर राघव ने खुद को पूरी तरह बदलने में झोंक दिया था। वो अब अविनाश रघुवंशी बनने की तैयारी में था। सुबह से रात तक जिम में पसीना बहाता, भाषाएँ सीखता, चाल-ढाल, बोलचाल — सब कुछ अविनाश जैसा करने की कोशिश करता।
एक महीने की कड़ी मेहनत के बाद वो अब लगभग अविनाश बन चुका था। गायत्री जी की आँखों में पहली बार सुकून था। और अविनाश के जैसे तैयार हुए राघव को देखकर बोली... तूने कमाल कर दिया। अगर मैं खुद तुझे पहचान नहीं पाई, तो और कोई कैसे पहचान पाएगा?”
राघव ने झुककर कहा,
“माँ, मैं पूरी कोशिश करूँगा कि आपकी उम्मीदों पर खरा उतर सकूँ।”
गायत्री ने उसका माथा चूम लिया। उसी वक्त जतिन कमरे में आया — चेहरे पर घबराहट थी।
गायत्री: “जतिन, क्या हुआ? तुम इतनी जल्दी लौट आए?”
जतिन हड़बड़ाते हुए
“मैडम... एक बुरी खबर है। रमन साहब... उन्होंने दूसरी शादी कर ली है। वो अपनी पत्नी कल्याणी को लेकर मेंशन आ चुके हैं।”
गायत्री स्तब्ध रह गईं। कुछ क्षणों तक कुछ बोली नहींं। फिर खुद को संभालते हुए बोलीं —
“हमें पहले से अंदेशा था कि वो ऐसा करेगा। लेकिन अब ये घर सिर्फ़ उसका नहीं, मेरा भी है। राघव... अब हमें इंसाफ़ दिलाना होगा। दादाजी के बाद इस घर का फैसला अब हमारे हाथ में है।”
राघव ने कहा,
“आप चिंता न करें, माँ। आप जो कहेंगी, वही करूँगा।”
गायत्री ने सिर उठाया — अब उनकी आँखों में दर्द नहीं, बल्कि अहमथा--
उधर, सरिता के घर में राहुल खुश होकर आया। उसने सुनहरे अक्षरों वाला कार्ड उसकी ओर बढ़ाया।
और बोला
“देखो, रघुवंशी की बर्थडे पार्टी का निमंत्रण मिला है। डैड नहीं जा पाएंगे, तो मैं जाऊँगा।”
सरिता की आँखें चमक उठीं। मैं भी चलूँगी। मैं खुद देखना चाहती हूँ कि वो आदमी सच में अविनाश है या फिर राघव।”
राहुल ठीक है, जैसा तुम कहो। मैं डैड से कह चुका हूँ — इस बार हम दोनों ही जाएंगे।”
सरिता के चेहरे पर मुस्कान थी,
वो जानती थी, ये पार्टी सिर्फ़ एक समारोह नहीं,
बल्कि राघव की सच्चाई उजागर करने का मौका होगी।
---
सरिता के चेहरे पर मक्कारी भरी मुस्कान थी।
उसने तय कर लिया था — अब वह राघव को सबके सामने बेनकाब करेगी।
उसका प्लान साफ़ था, पार्टी में वह ऐसा माहौल बनाएगी कि राघव खुद सच उगल देगा।
राहुल उसके साथ था। दोनों के बीच अब एक गहरी समझ बन चुकी थी।
राहुल ने कहा था कि उस दिन सिर्फ़ वही दोनों पार्टी में जाएंगे —
यह सुनते ही सरिता की आँखों में चमक आ गई।
वह खुशी से उछली और राहुल को गले लगा लिया।
राहुल भी बहक उठा, मगर तभी सरिता की माँ कमरे में आ गईं।
दोनों को पास देखकर वे कुछ पल के लिए रुक गईं,
पर कुछ नहीं बोलीं।
दिल के किसी कोने में यह सुकून था कि अगर सरिता की शादी राहुल से हो गई,
तो ज़िन्दगी आसान हो जाएगी।
फिर भी, एक कसक बाकी थी —
“राघव को जाने क्यों दिया…”
वह सोचती रहीं।
वो लड़का अमीर था, समझदार था, और सबसे बढ़कर… दिल का साफ़ था।
उधर, राघव ने देखा कि गायत्री जी का चेहरा आज बहुत उदास था।
टीवी पर हर चैनल पर एक ही खबर चल रही थी —
“रमन रघुवंशी की दूसरी शादी।”
यह खबर गायत्री जी के दिल को गहराई से चुभ गई।
पर इस बार उन्होंने ठान लिया —
वह चुप नहीं रहेंगी।
अब वह रघुवंशी मेंशन लौटेंगी,
और सबको दिखाएँगी कि असली ताक़त क्या होती है।
दूसरी ओर, दादाजी का ग़ुस्सा उबाल पर था।
उन्होंने अपनी ताक़त का इस्तेमाल किया और
कुछ ही घंटों में वह खबर हर जगह से गायब हो गई।
टीवी, अख़बार, सोशल मीडिया — सब जगह सन्नाटा।
अब बस कुछ लोग फुसफुसा रहे थे।
राघव हैरान था।
वह जल्दी से गायत्री जी के पास गया और घबराई आवाज़ में बोला,
कि खबर अचानक हर जगह से कैसे गायब हो गई।
गायत्री जी मुस्कुराईं —
और बस इतना कहा,
“रघुवंशी परिवार साँप-सीढ़ी का खेल है, बेटा…
जो इसे समझने की कोशिश करता है,
वो इसमें फँसता चला जाता है।
और जिसने यह खबर चलाई थी… शायद अब तक उसकी जान जा चुकी होगी।”
राघव के बदन से पसीना बहने लगा।
गायत्री जी ने उसकी ओर देखा और कहा,
“जितना ऊँचा आदमी होता है, उतनी गहरी उसकी अँधेरी दुनिया होती है।”
राघव ने बात पलटने की कोशिश की।
उसने पूछा कि दादाजी के लिए उसे कौन-सा गिफ़्ट लेकर जाना है।
गायत्री जी ने जवाब दिया कि सब तय हो चुका है,
बस दो दिन बाद वही गिफ़्ट लेकर जाना है।
राघव सोच में पड़ गया —
“ऐसा कौन-सा गिफ़्ट हो सकता है, जो इतना रहस्यमय है?”
सरिता आज बेहद शांत लेकिन भीतर से उबल रही थी। उसके दिमाग में सिर्फ़ एक ही बात चल रही थी — आज की पार्टी में राघव का असली चेहरा सबके सामने लाना है। उसने राहुल से शॉपिंग की बात की, तो राहुल ने सहजता से कहा कि उसके कपड़े पहले से बाहर रखे हैं । सरिता ने मुस्कुराकर उसे गले लगाया, लेकिन उस मुस्कान के पीछे एक चाल छिपी थी। मन में उसने सोचा, “राघव... अब तेरे खेल का अंत यहीं होगा। आज मैं तुझे सबके सामने उजागर कर दूँगी।
वहीं दूसरी ओर, गायत्री अपने कमरे में थीं। किसी से फ़ोन पर बात खत्म करते हल्की मुस्कान के साथ बोली। — आज वो राघव को पूरी तरह अविनाश बनाने जा रही थीं। लेकिन जब वो उसके कमरे में पहुँचीं, तो सामने एक कमज़ोर, डरा हुआ लड़का दिखाई दिया। राघव कंबल में लिपटा काँप रहा था।
उन्होंने पूछा, “क्या हुआ बेटा?”
राघव ने थरथराती आवाज़ में कहा, “जब आपने कहा कि उस रिपोर्टर की जान चली गई होगी... तब से डर लग रहा है।”
गायत्री का चेहरा उतर गया। उन्हें अहसास हुआ — ये लड़का अविनाश की जगह तो ले सकता है, पर उसके जैसे कठोर दिल का नहीं है। उनकी आँखों में मायूसी झलक आई। राघव ने उठकर उन्हें थाम लिया, “मैं आपकी आँखों में आँसू नहीं देख सकता।”
गायत्री बोलीं, “बेटा, मैं अपनी किस्मत पर रो रही हूँ।”
फिर उन्होंने अपना दर्द बयान किया — कैसे उन्होंने मजबूरी में रमन रघुवंशी से शादी की थी, जो किसी और से प्यार करता था। उनका बेटा अविनाश हर दिन नई गलतियाँ करता गया, और जब राघव आया तो लगा जैसे खोया बेटा लौट आया। लेकिन अब, उम्मीदें टूट चुकी थीं।
उन्होंने धीरे से कहा, “अगर तू जाना चाहता है, तो जा। अब तू आज़ाद है। इस घर में वही रह सकता है, जिसके दिल में दया न हो।”
राघव ने उनका हाथ थामा, आँखों में आँसू थे —
“मुझे माफ़ कर दो, माँ। मैं बस कुछ वक्त के लिए लालची हो गया था। इस आलीशान ज़िंदगी ने मुझे धोखा दिया। मैं वो बच्चा हूँ जो तीन साल की उम्र में अनाथालय के बाहर छोड़ दिया गया था। जिसने कभी किसी का प्यार नहीं देखा। सरिता ने मुझे फँसाया, और मैं उसे प्यार समझ बैठा। लेकिन जब उसे राहुल के साथ देखा, तो ज़िंदगी खत्म करने चला गया था... तभी आप मिलीं। आपने मुझे ज़िंदा किया। मुझे माफ़ कर दीजिए।”
गायत्री ने उसकी पीठ थपथपाई। राघव अब पहले से ज़्यादा दृढ़ था। उसने कहा, “मैं तैयार होकर आता हूँ। बस बताइए, दादाजी का गिफ़्ट क्या है?”
गायत्री मुस्कुराईं, “वहीं जाकर देख लेना। लेकिन याद रख — रघुवंशी मेंशन में कदम रख दिया, तो वापसी नहीं होगी।”
राघव बोला, “अब मेरा कोई नहीं, सिवाय आपके।”
गायत्री ने जतिन को फ़ोन मिलाया।
और उधर — रघुवंशी मेंशन किसी स्वर्ग की तरह सजा था। चमकते झूमर, कैमरे, मीडिया, और ऊँचे लोग — सब एक ही शख्स के जन्मदिन के गवाह थे — मिस्टर दीनदयाल रघुवंशी।
यहीं से, राघव की असली परीक्षा शुरू होने वाली थी।
पार्टी की चमक के बीच, भीड़ में सिया खड़ी थी — हल्के नीले गाउन में बेहद खूबसूरत, लेकिन चेहरा डरा हुआ। उसकी आँखों में भय का रंग था। उसे अविनाश से मिलने का खौफ़ सताने लगा था। वह उसे कभी पसंद नहीं करती थी, पर पिता के कर्ज़ ने उसे इस रिश्ते में बाँध दिया था। उसके पिता दीनदयाल रघुवंशी के ऑफिस में क्लर्क थे, जिन्होंने अपनी बड़ी बेटी के इलाज के लिए पैसे उधार लिए थे। बदले में सिया की किस्मत तय कर दी गई थी — अविनाश की दुल्हन बनकर। यह वही तरीका था जैसा कभी गायत्री को रमन की ज़िंदगी में धकेला गया था। अविनाश का हिंसक चेहरा जब सिया ने पहली बार देखा, तभी से उसका मन डर से भर गया था।
वहीं दूसरी ओर, गायत्री जी ने राघव को अविनाश के सूट में देखा तो एक पल के लिए उनकी आँखें भर आईं। वही चाल, वही नज़र — जैसे उनका बेटा लौट आया हो। राघव उनके पैरों पर झुका, मन में एक संकल्प लिए — आज उसे उस बेटे का किरदार निभाना था, जिसे दुनिया अविनाश रघुवंशी के नाम से जानती थी। गायत्री जी ने उसकी ओर देखा, आँखों में गर्व और चिंता दोनों थी। उन्होंने कहा, अब बस निभाने की देर है।
राघव ने कार की ओर कदम बढ़ाया। बाहर काले सूट पहने गार्डों की कतारें खड़ी थीं। सबने सिर झुका लिया। उसे पहली बार ऐसा सम्मान महसूस हुआ जो डर और ज़िम्मेदारी दोनों से भरा था।
जैसे ही वह रघुवंशी मेंशन पहुँचा, उसकी आँखें चौंधिया गईं। संगमरमर के फर्श पर सुनहरे झूमर झिलमिला रहे थे, और हज़ारों मेहमान तालियों से स्वागत कर रहे थे। गायत्री जी ने धीमे से कहा, “यह तुम्हारा घर है बेटा, अब तुम अविनाश रघुवंशी हो।”
अचानक हॉल की लाइटें बंद हुईं। एक स्पॉटलाइट राघव पर पड़ी। फूलों की बरसात होने लगी। और मंच से गूँजी दीनदयाल जी की भारी आवाज़ — “देखो, आ गया मेरा शेर!”
भीड़ तालियों से गूंज उठी। उसी भीड़ में सरिता और राहुल भी दाख़िल हुए। सरिता की आँखें मंच पर टिकीं — वही राघव, जो कभी उसके सामने झिझकता था, आज सबका ध्यान खींच रहा था।
दीनदयाल जी ने गर्व से कहा, “यह सब तुम्हारे सम्मान में खड़े हैं बेटा, इन्हें बैठने को कहो।”
राघव थोड़ा झिझका, फिर आत्मविश्वास से बोला, “आप सब बैठ जाइए।”
दीनदयाल ने कहा, “रोब से!”
राघव ने दोबारा दृढ़ आवाज़ में कहा, “आप सब बैठिए और पार्टी का आनंद लीजिए।”
इसी बीच, गायत्री ने माहौल संभालते हुए बात मोड़ी। उन्होंने सबके सामने कहा कि अविनाश अपने पिता की दूसरी शादी से परेशान है। दीनदयाल ने निगाहें झुका लीं। फिर उन्होंने मुस्कराकर कहा, “चलो बेटा, अब मेरा गिफ्ट दो।”
राघव के चेहरे पर एक पल को घबराहट छा गई। उसे गिफ्ट का अंदाज़ा नहीं था। गायत्री ने हल्का इशारा किया —
राघव ने मुस्कुराकर तीन बार ताली बजाई।
लाइटें बुझ गईं।
स्पॉटलाइट उस लाल कपड़े से ढके बड़े बॉक्स पर पड़ी।
सन्नाटा फैल गया।
हर नज़र उसी बॉक्स पर टिक गई —
दीनदयाल जी ने हँसते हुए बॉक्स खोला… और उनकी हँसी गूंज उठी।
अंदर एक आदमी था — बुरी तरह पिटा हुआ, हाथ बाँधे, मुँह पर टेप चिपकी।
राघव के होश उड़ गए। उसे लगा वो बेहोश हो जाएगा।
लेकिन दीनदयाल जी चिल्लाए —
“वाह मेरा शेरा! मज़ा आ गया!”
सभी लोग दंग रह गए। वो आदमी कोई और नहीं, शहर का नामी क्रिमिनल लॉयर अजीत ठाकुर था — जिसने कुछ दिन पहले मीडिया के सामने दीनदयाल जी से ऊँची आवाज़ में बात की थी।
अब वही आदमी अधमरी हालत में उनके सामने था।
गायत्री जी मुस्कुराईं —
उन्होंने वही किया था जो अविनाश कर सकता था।
सरिता काँप गई। उसने देखा कि ये राघव नहीं हो सकता, जो पहले डरा करता था।
वो सोचने लगी — “क्या ये सच में राघव है… या अविनाश रघुवंशी?”
दीनदयाल जी ने गर्व से राघव के कंधे पर हाथ रखा
“प्राउड ऑफ यू, मेरा शेरा!”
राघव का पूरा शरीर काँप रहा था। वो गायत्री जी की ओर देख रहा था।
गायत्री जी बोलीं —
“जतिन, इसे आदमी को बाहर ले जाओ।
गार्ड्स ने बॉक्स उठाया और बाहर ले गए।
हॉल में खामोशी छा गई थी।
सभी ने पहली बार रघुवंशी परिवार की ताकत देखी थी।
गायत्री जी का आदेश मिलते ही अपराधी वकील को अर्ध-बेहोशी में शहर के बाहर फेंक दिया गया। उसकी जान तो बच गई, मगर डर ऐसा लगा कि रघुवंशी परिवार से दुश्मनी का ख्याल तक नहीं कर सका।
महल में भव्य पार्टी चल रही थी। दीनदयाल जी का जन्मदिन था। केक तैयार था, मगर गायत्री जी की नज़र भीड़ में किसी को ढूँढ रही थी — धरा और उसका परिवार गायब था। उन्हें शक हुआ और जतिन को तुरंत धरा का पता लगाने का आदेश दिया।
केक आने पर गायत्री जी ने राघव (जो अब सबके सामने अविनाश था) से कहा —
“पहले दादाजी से धरा के बारे में पूछो, फिर केक काटना।”
राघव ने पूछा — “दादाजी, धरा कहाँ है?”
चेहरों पर सन्नाटा छा गया। दादाजी ने कहा उसका थोड़ा एक्सीडेंट हुआ है, आराम कर रही है।”
फिर इशारे से राघव को सिर हिलाने को कहा। दीनदयाल जी ने केक काटा, टुकड़ा राघव को दिया
“ये सिया को खिला दे।”
गायत्री जी ने तुरंत उसका हाथ रोक लिया। राघव चौंक गया।
“नहीं, मैं किसी को नहीं खिलाऊँगा!” उसने कठोर आवाज़ में कहा।
दादाजी बोले, “ये हमारे आदेश हैं।”
गायत्री जी ने फिर आँखों से इशारा किया, और राघव ने केक ले लिया।
सिया के सामने जाकर उसने उसका मुँह पकड़कर केक खिला दिया।
सिया चुप रही। सरिता ईर्ष्या से जलने लगी।
वो राहुल से बोली, “मुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा।”
राहुल झल्लाया, “ये अमीर लोग हर रोज़ नहीं बुलाते। मैं कहीं नहीं जा रहा।”
राघव को तभी गायत्री जी का मैसेज मिला —
वो काँप गया। “माँ, ये आप मुझसे करवा क्या रही हैं?”
गायत्री बोलीं, “जो कह रही हूँ, करो।
अचानक राघव ने भीड़ में रमन और कल्याणी को देखा
और भरी महफ़िल में बंदूक निकालकर कल्याणी के माथे पर तान दी।
“
राघव (जो अब सबके सामने अविनाश था) ग़ुस्से में पागल हो चुका था। उसकी बंदूक सामने काँपती कल्याणी पर तनी थी।
“रघुवंशी परिवार में घुसने की कीमत जान देकर चुकानी होगी!”
पूरा हॉल सन्न रह गया।
रमन चिल्लाए — “अविनाश! बंदूक नीचे कर!”
गायत्री जी आगे आईं, बिना बोले उसका हाथ पकड़कर बंदूक नीचे की।
धीरे से बोलीं, “अब इसे जेब में रखो।”
सबने देखा — राघव ने उनकी बात बिना एक शब्द कहे मान ली।
दीनदयाल जी के चेहरे पर शक उभरा — उन्हें महसूस हुआ, असली ताक़त अब इस घर में गायत्री की है।
राघव की नज़र सरिता पर पड़ी, फिर सिया पर।
वह समझ गया — औरत की ख़ूबसूरती, आदमी की सबसे बड़ी कमज़ोरी है।
गायत्री बोलीं, “रमन, अपनी बीवी को यहाँ से ले जाओ।”
रमन कल्याणी को लेकर निकल गया।
दादाजी ग़ुस्से में बोले — “अविनाश! तूने सबको डरा दिया!”
गायत्री तुरंत बीच में आईं, “पिताजी, मैं इसे संभाल लूँगी।”
फिर राघव से कहा, “अब जाकर सबको कहो कि सब ठीक है।”
राघव मंच पर गया, और ठंडे लहज़े में बोला —
“जो कुछ हुआ, उसे मनोरंजन समझकर भूल जाइए। अब पार्टी का आनंद लीजिए।”
भीड़ थोड़ी असहज हुई, पर सब मुस्कुरा दिए।
फिर उसने अपने सेक्रेटरी जतिन को इशारा किया —
VIP मेहमानों को “स्पेशल रूम्स” में भेज दो।
हॉल धीरे-धीरे खाली होने लगा।
दादाजी उत्सुकता से कॉरिडोर में गए —
जैसे ही उन्होंने एक दरवाज़ा खोला, उनके होश उड़ गए।
अंदर एक विदेशी लड़की शहर के कमिश्नर के साथ थी।
दादाजी ने सिर पकड़ लिया, “हे भगवान... ये लड़का कहाँ जा रहा है…”
गायत्री ने धीरे से कहा, “अब अविनाश अपने कमरे में जाए।”
राघव मुड़ा — उसने देखा राहुल गायब था।
जतिन घबराया, “उसने VIP रूम की चाबी ली …”
राघव की आँखें लाल हो गईं।
उधर, सरिता रघुवंशी परिवार की साड़ी पहनकर राहुल से मिलने जा रही थी — शायद पहचान बनाने की कोशिश में।
वह कमरे के पास रुकी। उसे राहुल की मदहोश आवाज आई सरिता ने दरवाजा खोलकर देखा कि राहुल एक विदेशी लड़की के साथ था।
राहुल चौंका, और ग़ुस्से में उसे धक्का देकर बाहर निकाल दिया।
सरिता रोती हुई भाग गई।
उसी वक्त राघव वहाँ पहुँचा —
राहुल और विदेशी लड़की को शर्मिंदा हालत में बाहर लाया गया।
राघव ने गुस्से से कहा,
राहुल और सरिता दोनों को 21 दिन तक नौकर बनकर काम करना होगा।
जतिन ने दोनों को बाहर फेंक दिया।
उनके कपड़ों पर कीचड़, चेहरे पर शर्म साफ दिख रही थी
सरिता अपमान में काँपती घर लौटी।
राहुल भी सिर झुकाए खड़ा रहा।
राघव गायत्री के पास गया। गायत्री का प्लेन सक्सेसफुल हो चुका था
अविनाश की पहचान सबके दिलों में गहरी उतर गई थी।
थोड़ी देर बाद राघव धरा के कमरे में गया।
धरा नाराज़ बैठी थी।
राघव ने उसे छोटी सी कैंडी और चॉकलेट देकर मना लिया।
राघव के दिल में पहली बार बहन के प्यार का एहसास हुआ मानो वो उसकी असली बहन हो।
फिलहाल राघव (अविनाश) अपने कमरे में पहुँचा।
वहाँ सिया कॉफी लेकर खड़ी थी।
लेकिन राघव ने उसे डांट दिया,
गायत्री ने सिया को धीरे से सहारा दिया। सिया की आँखों में डर और अपमान का मिश्रण था; वह खुद को संभालती दिखी, पर भीतर टूट चुकी थी। घर के बाहर सरिता अपने कमरे में बैठी रो रही थी। माँ ने राहुल को फोन किया और गुस्से में उसे अपनी नसीहत दी — पर राहुल चुप रहा; उसे पता था कि उसने बहुत कुछ खो दिया है।
सरिता की माँ ने पहले सहानुभूति दिखाई, फिर क्रोध में बदल गई। वह बेटी के कमरे में पहुँची तो देखा कि सरिता थक कर सो चुकी थी। इस सबके बावजूद, आज का दिन रघुवंशी परिवार के लिए बहुत बड़ा था — एक नई सुबह, पर पुरानी घावों के साथ।
राघव जब सो कर उठा तो चारों ओर आलीशान सुविधाएँ देखकर चौंक गया — जिम, स्विमिंग पूल, और दीवारों पर लटकी हुई लड़कियों की तस्वीरें। उसने उन फोटोज़ की वजह समझने की कोशिश की। जतिन ने आकर उसे सजाया, और शीघ्र ही राघव आईने में खुद को अविनाश की शक्ल में देखकर अलग सा महसूस करने लगा।
नाश्ते के समय पूरा परिवार मेज पर बैठा था। पर घर की रीतियों और खत्म न होने वाले परफॉर्मेंस के बीच राघव के भीतर असल का संघर्ष दिखा — करेले का रस पीने से उसे जकड़न हुई और उल्टियाँ आ गईं। जतिन ने चुपचाप उसकी मदद की। उसकी कमजोरी गायत्री की आंखों से छिपी नहीं; उनके भीतर चिंता और उम्मीद एक साथ थी।
जब राघव बाहर निकला, रास्ते में सिया से उसकी टकराहट हुई। उस झटके में पुरानी घृणा फिर उभर आई; उसने सिया को झटक दिया और वह गिर पड़ी। राघव का रवैया कठोर और ठंडा था, अब राघव को लगता था हर खूबसूरत लड़की सरिता जैसी धोखेबाज ही होती है।सिया टूट कर गायत्री के पास गई। जतिन ने पूरा वाकया गायत्री को सुनाया; गायत्री ने गहरी साँस ली और चेतावनी दी कि यदि ऑफिस में भी ऐसा हुआ तो परिणाम भयानक होंगे।
गायत्री खुद तैयार हुई और नीचे उतरीं। रास्ते में रमन का सामना हुआ; वह जानबूझकर उसके रास्ते में आईं और उसके हाथ से थाली गिरा दी। इस अंदाज में उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि अब सहने की हद्द पार हो चुकी है। रमन को ठहरना पड़ा, और गायत्री आगे बढ़ गईं — — सरिता के घर। कल पार्टी की घटनाओं की याद उसे घेर लेती है। उसने माँ को सब कुछ बताया; माँ का गुस्सा उमड़ पड़ा। पर सरिता के चेहरे पर अब आँसू नहीं थे, सिर्फ़ बदले की ठंडी चमक थी। वह अब टूटकर नहीं, लड़ने के इरादे से भरी थी।
राघव ऑफिस के लिए निकला लेकिन एक बड़ा ब्लास्ट हुआ
हमला अविनाश पर होना था — लेकिन गाड़ी बदलकर बैठने से उसकी जान बच गई।
गायत्री जी ने फिक्र जताते हुए कहा
“प्यारे बच्चे, अच्छा हुआ तू उस गाड़ी में नहीं था…
राघव बस मुस्कुराकर बोला चिंता मत कीजिए।”
दीनदयाल जी बोले, “अब यहाँ से निकलो। हमने पुलिस कमिश्नर को खबर दे दी है। सिक्योरिटी और बढ़ाई जाएगी।”
ऑफिस पहुँचते ही राघव हैरान रह गया —
इतना बड़ा, ऊँचा ऑफिस, जहाँ सबकुछ अविनाश के नाम था।
गायत्री जी ने उसका हाथ थामा, “याद रखो, अब तुम अविनाश रघुवंशी हो। किसी को शक नहीं होना चाहिए।”
कमरे में महँगी शराब, सजावट, और आलीशान साज-सामान देखकर राघव की आँखें फैल गईं।
गायत्री जी बोलीं, “यह अविनाश का सीक्रेट रूम है। जहाँ वो अपने ‘मनोरंजन’ के लिए लड़कियाँ लाया करता था।
यहाँ उसकी कुछ वीडियोज़ हैं…
राघव के हाथ काँप गए। लेकिन उसने वह सब देखने का फैसला किया।
लैपटॉप खोला — वीडियोज़ देखीं — और सन्न रह गया।
वह देख रहा था कि अविनाश एक लड़की को बंद कर उसके साथ अमानवीय हरकतें करता था।
सिर्फ एक ही लड़की थी उन सभी वीडियो में।
राघव को झटका लगा — कौन थी वो लड़की?
उसने वे सारे वीडियो अपनी मेल पर भेज दिए। अब वह गायत्री जी से जवाब चाहता था।
थोड़ा सँभलने के बाद उसने कॉफी बनाई और अविनाश की कुर्सी पर जा बैठा।
जैसे ही हाथ टेबल पर रखा, अलार्म बजा —
एक नौकर कॉफी लिए दौड़ा आया।
घबराहट में कप से कॉफी छलक गई — और नौकर घुटनों पर बैठ गया,
“मुझे माफ़ कर दीजिए साहब, गलती हो गई… मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं।”
राघव का दिल काँप गया। उसने नौकर को उठाया और गले लगा लिया,
“थोड़ी-सी कॉफी गिरी है काका, डरिए मत।”
नौकर हैरानी से उसे देखता रह गया।
उसी वक्त एक कांस्टेबल आया, “सर, कमिश्नर साहब बुला रहे हैं।”
राघव थोड़ा घबरा गया, पर उसे गायत्री जी की बात याद आई — अविनाश किसी के सामने नहीं झुकता।
वह कुर्सी पर पैर चढ़ाकर बोला,
“कमिश्नर को बोल दो, अविनाश रघुवंशी उन्हें अपने केबिन में बुला रहा है।”
कांस्टेबल के होश उड़ गए,
कमिश्नर और दीनदयाल जी को यह खबर मिली —
दीनदयाल बोले, “कमिश्नर साहब, अविनाश पचास हज़ार करोड़ का मालिक है। उसका गुस्सा मत बढ़ाइए, आप ही चलिए उसके पास।”
कमिश्नर झिझकते हुए बोले, “ठीक है, चलिए। गायत्री मैडम, आप भी साथ आइए।”
गायत्री जी मुस्कुराईं — राघव ने सही चाल चली थी।
तीनों अविनाश के केबिन पहुँचे।
राघव उसी रौब से बैठा रहा।
कमिश्नर को बैठने की जगह तक नहीं दी।
दीनदयाल ने कहा, “बैठिए कमिश्नर साहब।”
कमिश्नर ने कहा, “मिस्टर रघुवंशी, हम जानते हैं आप पर तीसरी बार हमला हुआ है। हम दोषियों को पकड़ेंगे।”
राघव हँस पड़ा।
दीनदयाल झुँझलाए, “क्या बात है बेटा, हँस क्यों रहे हो?”
राघव बोला, “क्योंकि ये मज़ाक है दादाजी…
कमिश्नर जो कह रहे हैं — यह सब मज़ाक ही तो है!”
सब शांत सा हो गया राघव, यानी ‘नकली अविनाश’, अब सच में ख़तरनाक अविनाश की तरह लगने लगा।
सरिता राहुल से पूरी तरह छुटकारा नहीं पा सकी थी। उसने उसे मनाया, ताकि वह उस पर शक न करे।
पर भीतर ही भीतर सरिता परेशान थी —
तभी अचानक उसके घर के बाहर भीड़ जमा होने लगी।
सरिता की माँ, उपासना जी, बाहर आईं —
"क्या हुआ? आप लोग यहाँ क्यों हैं?"
एक पड़ोसी बोला —
"बहनजी, आपको नहीं पता? आपकी बेटी के पति राघव की मौत हो गई है।"
यह सुनकर उपासना जी के होश उड़ गए।
सरिता भी बाहर आई —
"क्या बकवास है! मेरे पति ज़िंदा हैं!"
पर लोग कहने लगे —
"कंस्ट्रक्शन साइट के पास एक लाश मिली है... वही राघव है। उसके कपड़े, घड़ी — सब उसी के जैसे हैं।"
सरिता के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
उसे भरोसा नहीं हो रहा था कि राघव मर सकता है।
माँ सदमे में थीं, पड़ोसी ताने दे रहे थे,
और राहुल तंज कस रहा था —
"क्या हुआ सरिता बेबी, उस नकली राघव के लिए रो रही हो?"
लेकिन सरिता ने तय किया —
वह खुद जाकर सच्चाई पता लगाएगी।
"मुझे यकीन है, राघव नहीं मरा।"
---
उधर, गायत्री जी राघव को लेकर रघुवंशी फ़ार्महाउस पहुँचीं।
भव्य, चमकदार जगह देखकर राघव हैरान था।
फव्वारे, सिक्योरिटी, और हॉल में सजी विदेशी मॉडल्स —
मानो यह किसी राजा का साम्राज्य हो।
गायत्री जी बोलीं —
"यह अविनाश का संसार है। उसने इसे खुद बनाया,
और यहाँ अपने शौक पूरे करता था।
यहाँ कोई भारतीय लड़की नहीं... सब विदेशी।"
राघव सन्न था।
गायत्री जी ने आगे कहा —
"पर एक भारतीय लड़की थी — IPS दिव्या चौधरी।
वह उसके रास्ते में आई... और तब जो हुआ, उसने सब कुछ बदल दिया।"
राघव स्तब्ध था। गायत्री जी ने जतिन से एक फ़ाइल मँगवाई।
उसमें अविनाश के गुनाहों की पूरी कहानी थी —
एक विदेशी मॉडल के साथ उसकी ज़बरदस्ती,
और फिर IPS दिव्या चौधरी की एंट्री,
जिसने उसे उसी रात गिरफ़्तार किया।
लेकिन... अविनाश को बचाने के लिए
दीनदयाल जी ने अपने रसूख का इस्तेमाल किया।
उन्होंने दिव्या को उसी सेल में डाल दिया —
जहाँ अविनाश बंद था।
और वहीं हुआ वो सब... अविनाश ने उसके साथ सारी हद पार की उसकी इज्जत से न केवल खिलवाड़ किया बल्कि उसकी रूह तक को जख्म दिए।
जिसने दिव्या की ज़िंदगी और अविनाश का भविष्य हमेशा के लिए बदल दिया।
---
---
फिलहाल अविनाश के स्टडी रूम में
राघव ने लाल किताब निकाली तो अचानक दीवार पर लगा शीशा हिला और वहाँ एक गुप्त दरवाज़ा खुल गया। जब वह अंदर गया, तो उसे एक क्लब जैसा डिस्को रूम दिखाई दिया — चारों ओर बिखरी शराब की बोतलें, धुंधली रोशनी, और नाचते हुए लोग। बीच में रिचर्ड और इलियाना थे। इलियाना बहुत भड़काऊ कपड़ों में डांस कर रही थी, और रिचर्ड उसे उकसा रहा था।
राघव यह देखकर हैरान और परेशान हो गया। उसे लगा जैसे वह किसी ऐसी दुनिया में आ गया है जहाँ इच्छाएँ और गुनाह एक साथ बिकते हैं — और यह सब किसी न किसी तरह अविनाश की दुनिया थी।
रिचर्ड ने मज़ाक में इलियाना को राघव की ओर बढ़ाया, पर राघव ने नफ़रत से इंकार कर दिया। उसे अपनी पत्नी सरिता की याद आ गई और अंदर से ग्लानि महसूस हुई। उसने दिखावे में नशा करने का नाटक किया और रिचर्ड की शराब को चुपके से गमले में उड़ेल दिया।
थोड़ी देर तक उसने अभिनय किया ताकि रिचर्ड को शक न हो। रिचर्ड ने जब इलियाना को राघव के करीब करने की कोशिश की, तो राघव ने गुस्से में कहा — “इसे यहाँ से हटाओ।”
रिचर्ड को शक हुआ कि यह असली अविनाश नहीं है, लेकिन राघव ने हँसकर खेल जारी रखा और आखिर में दोनों को डरा दिया कि “पुलिस आने वाली है।” डरकर रिचर्ड और इलियाना वहाँ से भाग गए।
बाहर निकलते ही राघव ने देखा — सिया खून से लथपथ दौड़ती जा रही थी। यह देखकर उसका मन बेचैन हो गया। उसने तुरंत उसके कमरे में जाकर मदद की। सिया रो रही थी, बहुत टूटी हुई थी। राघव ने उसका ज़ख्म साफ़ किया, उसे हल्दी वाला दूध देने की बात कही। लेकिन जब वह सिया की ओर देखता, तो उसे उसके चेहरे में सरिता दिखाई देती — उसकी अपनी पत्नी। यह भ्रम उसे बहुत परेशान कर रहा था।
राघव ने सिया से माफ़ी मांगी, लेकिन जानता था कि अगर उसने अपनी असल पहचान बता दी, तो बहुत कुछ टूट जाएगा। इसलिए वह चुपचाप वहाँ से चला गया।
बाद में जब गायत्री माँ को सब पता चला, तो वे बहुत चिंतित हुईं। उन्होंने राघव को समझाया कि परिवार को जोड़कर रखना ज़रूरी है, रिचर्ड और इलियाना को घर से हटाना चाहिए, और बाकी रिश्तेदारों से मेलजोल बढ़ाना चाहिए।
राघव ने उनकी बात मानी। उसने वादा किया कि वह सिया की रक्षा करेगा और घर की इज़्ज़त बनाए रखेगा। लेकिन अंदर से वह अभी भी परेशान था — उसे अब भी यह सवाल सताता रहा कि अविनाश कौन है, और यह रहस्यमय दुनिया कहाँ तक जाएगी।
अगली सुबह राघव ने एक निर्णय लिया। उसने रिचर्ड और इलियाना के लिए स्विट्ज़रलैंड की टिकटें बुक कर दीं ताकि उन्हें घर से दूर भेजा जा सके। अब वह अपने परिवार और उनके रिश्तों की ज़िम्मेदारी खुद पर ले चुका था।