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“अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)

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Mira Sharma

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अदित्री एक सिंगल मदर थी, जिसकी ज़िंदगी अपने बच्चे और बहन से शुरू होकर उन्हीं पर खत्म होती थी। उसकी मुलाकात हृदय से बस एक सामान्य मुलाकात थी, एक डॉक्टर और पेशेंट की तरह। लेकिन वक़्त के साथ उनकी मुलाकातें बढ़ती गईं और कुछ ऐसा जुड़ाव उनके बीच आने लगा। ज...

Total Chapters (21)

Page 1 of 2

  • 1. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-1

    Words: 1178

    Estimated Reading Time: 8 min

    ———————————————

    उत्तर प्रदेश!
    बरेली!

    सुबह का समय था और एक छोटा सा गलियारा था। काफी मकान थे एक कतार से लगे हुए। एक मकान के बाहर नल था। वहीं एक लड़की, एक तकरीबन सात साल के बच्चे को नहला रही थी। हाथ पैर पर मालिश करते हुए उसको साबुन लगा कर नहाए जा रही थी। होंठ हिल रहे थे, जैसे कुछ न कुछ बड़बड़ा रही हो।

    “कभी नहीं सुधरेगा ये लड़का? हर दम बदमाशी करते फिरता है फिर लोग आकर हमको सुना जातें हैं। हश!... करे भी क्या बेटा भी तो हमारा ही है।”

    तभी उस मकान से एक लड़की बाहर निकली, हाथ में फोन पकड़े थी। उसने उससे कहा, “जीजी! किसी का फोन आए रहा है। कान पर लगा देते हैं बात कर लो।”

    “नाम नहीं लिखा है क्या?”, वो अपने बेटे के माथे पर लगे शैंपू को धोते हुए पूछी थी।

    “अरे नहीं लिखा!... तभी तो बोल रहें हैं। लो कर लो बात।”, वो उसकी तरफ फोन बढ़ा दी।

    वो अपने हाथ पानी से धो कर अपनी साड़ी में पोंछते हुए, फोन पकड़ कर कान पर लगा ली। और बोली, “हेलो... कौन?”

    “जी क्या आप ही ‘आद्यन्त’ की माँ ‘अदित्री शर्मा’ हैं?”, सामने से एक उम्रदराज महिला की आवाज आई तो अदित्री की नजर खेल रहे उसके बेटे पर गई। जरूर इसी ने कुछ किया होगा।

    “जी हाँ कहिए... कोई बात हुई है क्या?”

    “अरे नहीं... कोई बात नहीं हुई है। वो मैं बताना चाहती थी कि आपके बेटे ने इस बार स्कूल में टॉप किया है। और आज उसको हमारी ओर से अवॉर्ड दिया जाएगा तो आप भी आइएगा उसको लेकर।”

    “अच्छा ये बात है! ठीक है, इसको लेकर मैं जरूर आऊंगी। स्कूल टाइमिंग पर ही आना है शायद।”, अदित्री पूछते हुए थोड़ी सकुचाई थी।

    “हाँ जी! स्कूल टाइमिंग ही है।”, कहकर सामने से फोन काट दिया गया।

    अदित्री फोन नीचे कर थोड़े देर सोचते हुए बैठी रह गई। तो अचानक से आद्यन्त ने उसपर पानी उछाल दिया और घर के भीतर भाग गया।

    “रुक बदमाश! तुझको तो अच्छा खासा कुटुंगी मैं। रुक!...”, अदित्री स्वयं भी उसके पीछे आई जिस पर आद्यन्त बिस्तर पर चढ़ गया और कोने में जाकर छिपते हुए तुतला कर कहा, “मम्मी!... मम्मी!... छौली अगली बाल पक्का से नहीं कलूँगा।”

    अदित्री उसकी बात पर और गुस्सा गई, “कल वो मिश्राईन आकर तुम्हारे बारे में शिकायतें कर रही थी। और सुबह वो चाची करके गई है। तू पकड़ में आ खाली मेरे... इतना कुटुंगी कि एक ही बार में शांत होकर पड़ा रहेगा एक जगह। पूरा दिन तू क्षमा का माथा खराब किए रहता है और अभी छौली! छौली! कर रहा है।”

    अचानक से आद्यन्त उसके दूसरे तरफ से भागा। लेकिन उसकी फूटी किस्मत जो दरवाजे पर ही क्षमा खड़ी थी छुप कर और उसके आते ही धप्प से उसको पकड़ ली। क्षमा ने उसको घूरते हुए कहा, “क्यों रे हीरो हौंडा अब कहां भागोगे। अब तुम मार खाओ अपनी माँ से। मेरे कहने से नहीं सुनते थे ना लो खाओ मार। पकड़िए जीजी इसको और खुद पीटीए।”

    आद्यन्त घबराई नजरों से कभी क्षमा को देखता, तो कभी अदित्री को। वो डर गया था और उसके चेहरे का रंग लाल हो रहा था। अदित्री ने उसको घबराए देखा तो खुद परेशान हो गई और भागते हुए उसको पकड़ ली। उसने उसके माथे को छूते हुए पूछा, “बुखार हो गया क्या बेटा? कहीं चोट-वोट तो नहीं लग गया ना? दर्द भी रो रहा कहीं क्या?”

    “नहीं मम्मी कुछ नहीं हो लहा!...”, वो सुबकते हुए अदित्री के सीने से चिपका गया।

    उसका माथा सहलाते हुए अदित्री स्वयं भी खूब परेशान हुए जा रही थी। उसने क्षमा को इशारा कर कहा, “क्षमा जाकर कुछ पीने को लाओ इसके लिए। चेहरा अचानक से लाल काहे पड़ने लगा समझ नहीं आ रहा। स्कूल से आते हुए डॉक्टर को भी दिखा दूंगी।”

    क्षमा तुरंत उसकी बात मानकर किचेन से उसके लिए जूस ले आई। अदित्री ने आद्यन्त के आँसू साफ किए और उसको अपनी गोद में बिठा कर जूस पिलाई।

    “अब ठीक लग रहा है ना बेटा।”, वो अभी भी परेशान थी और चिंता आवाज में साफ झलक रही थी।

    आद्यन्त आँखें मूंदे सिर हिला दिया। अदित्री ने उसको वापस से अपने गले से लगा लिया। कुछ ही देर हुए थे कि क्षमा ने वॉल क्लॉक देखते हुए कहा, “जीजी!... आदि के स्कूल का टाइम होने वाला है। तैयार कीजिए इसको या मुझे दीजिए मैं कर देती हूं और आप जाकर नहाकर तैयार हो जाइए। पानी मैने भर कर रख दिया था।”

    अदित्री एक गहरी साँस भर कर उठी और आद्यन्त को क्षमा को देते हुए खुद नहाने चली गई थी। कुछ ही देर लगे थे उसे नहाने में, वो वॉशरूम से बाहर आई तो आद्यन्त अब थोड़ा हँस-हँस कर बात कर रहा था क्षमा से। उनको देख खुद-ब-खुद मुस्कान आ ठहरी थी उसके होठों पर। उसने अपने माथे पर एक हल्की सी चपत लगाई और अपने गीले बालों को तौलिए से सुखाने लगी।
    उसकी जिंदगी केवल यहीं तक तो थी। उसका बेटा और क्षमा और वो खुद। बस यही तीन लोग मिलकर उसके परिवार को पूर्ण करते थे। जीवन में कभी किसी की लालसा उसे नहीं रही थी... क्योंकि जब भी उसने कोई स्वप्न देखा किसी चीज को लेकर या कोई इंसान। उसे आज तक ऐसा कुछ नहीं मिला और वो इतने से में ही संतुष्ट और प्रसन्न थी.... बेहद प्रसन्न!

    अचानक उसकी तंद्रा तब टूटी, जब आद्यन्त आकर उसके कमर से किसी सांप की भांति लिपट गया था। वो मुस्कुरा कर उसको देखी और प्यार से उसको अपने गोद में उठा ली। उसने उसे अपने गोद जैसे ही उठाया आद्यन्त ने गंभीरता से कहना शुरू किया, “मम्मी... मम्मी... क्या आप जानते हो? मैने ना ईगजाम में सारे आँछल लिखे थे। कोई भी मिछ नहीं किया। मेले जो दोछत है ना... टिंकू और पिंकू दोनों ने चीटिंग की लेकिन मैने ना तोला छा भी नहीं किया।”

    “ऐसा क्या? सच में किसी का नहीं देखा।”, उसने आँखें छोटी कर उसे घूरा था।

    पीछे से क्षमा ने आद्यन्त को चिढ़ाते हुए कहा, “अरे झूठ बोल रहा है जीजी। पक्का किसी की चीटिंग की होगी इसने। वरना इतने नंबर वो भी इसके... कतई नहीं हो सकता।”

    “गॉद प्रोमिच्छ मम्मी!... मैने कीछि का नहीं देखा!”, आद्यन्त ने अपने गले पर हाथ लगाया।

    “अच्छा ठीक है! अब स्कूल के लिए लेट हो रहा है।”, अदित्री ने कहा और ताला-चाबी और अपना पर्स लेकर उसको लिए बाहर निकल आई। उसके निकलते ही क्षमा भी आद्यन्त के बाग पकड़े बाहर आई थी। उसने चिढ़ते हुए कहा, “जब आज पढ़ाई होगी नहीं स्कूल में, तो ये बैग ले जाने का मतलब!”

    आद्यन्त ने गंभीर बन कहा, “माछी! बैग ले जाने से मैं होछियार बच्चा लगूंगा.... इच्छलिए!”

    क्षमा ने मुंह बना कर कहा, “अच्छा बच्चू! घर में हीरो हौंडा बने फिरते हो और स्कूल में... होछियार बच्चा लगूंगा!...”, उसने नकल उतारी थी उसकी।

    आद्यन्त रोंदू सा बन कर अदित्री की ओर घुमा तो अदित्री ने सिर हिला कर दोनों को देखा। वो परेशान हो जाती थी दोनों से। उसने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और ऑटो को रोकते हुए उसमें बैठ कर आद्यन्त के स्कूल को निकल गई।

    ———————————————

    जारी है....
    आगे की कहानी जानने के लिए आने वाले अगले भागों की प्रतीक्षा अवश्य करें!
    धन्यवाद!

  • 2. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)- 2

    Words: 1161

    Estimated Reading Time: 7 min

    ———————————————

    अदित्री ऑटो वाले को पैसे देकर अपना पर्स और आद्यन्त को संभालते हुए क्षमा के स्कूल के अंदर गई। उसने रिस्ट वॉच में समय देखा तो लेट नहीं हुआ था, तो उसे जल्दबाजी करने की आवश्यकता नहीं थी।

    वो काफी बड़ा स्कूल था। और हर जगह पेड़ पौधे लगाए गए थे। दिखने में एक मनमोहक सा दृश्य था। बाहर ही पार्क भी बना था, जहां कुछ ऊंची क्लास के स्टूडेंट्स बैठे हुए थे। इधर-उधर देखते हुए आद्यन्त ने एक जगह रुक किसी को आवाज लगाई, “उन्ति!... उन्ति!.... यहां देखो!”

    कुछ ही दूर पर एक उसी की हमउम्र बच्ची अपने पेरेंट्स के साथ आई थी। दिखने में प्यारी सी थी और गोल मटोल थी। वो आद्यन्त के आवाज लागने पर झट से उसकी तरफ मुड़ी और तेजी से भागते हुए उसके पास आई थी। भागते हुए वो एक बार गिरने के भी हालात में आई थी। लेकिन उसके साथ जो उसके पेरेंट्स थे। वो जल्दी से उसके पीछे दौड़े थे और उसको गिरने से बचाया था।

    और अब वो डांट सुनते हुए मुंह बना रही थी। उसने सुनते हुए अचानक से तेज आवाज में कहा, “मामू! मेले इज्जत का कबाला यहां मत कलो। छब मेले को ही देख लहे है।”, उसने आस-पास सबको अपने-आप को देखता देखा था।

    उसके मामू ने हल्की सी भौंह चढ़ाई और लगभग और डांट कर कहा, “और अगर अभी मुंह के बल गिरती तब... तब! कहां जाता आपका सो कॉल्ड इज्जत!... तब नहीं देखते क्या ये लोग?”, बच्ची ने मुंह बनाया और आद्यन्त को देखते हुए बोली, “आजयंत ये मेले मामू और ये मेली मम्मी! ये मामू मेले को भौत डांटता है।”, कहते हुए उसने अपने मामा के साथ खड़ी एक औरत की तरह भी इशारा किया था। वो माँ थी उसकी।

    “उन्नति! ये कैसे बात कर रहीं हैं आप अपने मामा से? यही सब कहना सिखाया मैने आपको।”, उन्नति की माँ ने इस बार कहा तो उन्नति पूरी चुप पड़ गई। उसकी हिम्मत नहीं हुई उसके सामने कुछ बोल दे।

    उन्नति के मामू की नजर उन्नति के दोस्त की माँ पर थी। वो एकटक उसको देख रहा था।
    पीले रंग की साड़ी में वो काफी खूबसूरत लग रही थी। दिखने में भी बहुत सीधी-साधी सी थी। माथे पर उसकी वो बिंदिया कुछ ज्यादा ही जच रही थी। एकदम भोली-भाली और प्यारी सी वो।
    तभी, उसके होंठ कुछ बोलने के लिए खुले तो वो सकपका कर झेंप गया उसने खुद से बुदबुदाते हुए कहा, “व्हाट आर यू डूइंग, नक्षत्र? ऐसे कैसे तुम एक बच्चे की माँ को घूर सकते हो? कुछ लाज-शरम बची है या नहीं तुम्हारे भीतर?”, उसकी पलके उसके बाद दुबारा उसको देखने को ना उठी थी।

    “आपकी बेटी भी तुतला कर बोलती है? या बस ऐसे ही।”, अदित्री ने पूछा।

    “जी! ये भी तुतलाती है। इसको बहुत मना करती हूं लेकिन ये है कि सुनती ही नहीं। कभी-कभी तो ये मुझ से मार भी खा जाती है इस चीज को लेकर। लेकिन अब क्या करूं ज्यादा बोलूंगी तो रोने लग जाएगी और इसका रोना देखा नहीं जाता।”, उन्नति की माँ ने उन्नति को देखते हुए उसकी भरपूर तारीफ कर दी थी। उन्नति ने मुंह बनाते हुए एक तरफ फेर लिया।

    अदित्री हल्के से मुस्कुराई और बोली, “ओह! अभी तक भ्रम में जी रही थी कि ये नालायक ही सिर्फ तुतलाता है लेकिन शायद मैं गलत थी।”
    उसने कहा ही था कि आद्यन्त की आँखें बड़ी हुईं और वो वैसे ही अपनी मम्मी को देख रहा था तो कभी अपनी मासी को। लेकिन क्षमा ने कंधे झटक कर उसे देखा तो वो उसके ही पीछे जाकर छिपा और धीरे से उन्नति को इशारा कर वहां से निकल लिया।

    उन्नति को उसका इशारा मिलते ही वो भी फौरन उसके पीछे भाग गई। अदित्री और क्षमा ने आद्यन्त को भगत देखा तो दोनों ने निराशा में सिर हिला लिया।
    उन्नति को देखते ही उसका मामू नक्षत्र चिल्लाने के लिए मुंह खोला लेकिन अदित्री और क्षमा पर नजर पड़ते ही एकदम से मुंह बंद कर लिया।

    उन्नति, आद्यन्त जिस तरफ भागे थे उसी तरफ इशारा करते हुए क्षमा ने कहा, “अब हमे भी अंदर चलना चाहिए।”

    उसकी बात पर बाकी तीनों ने सिर हिलाया और उसके पीछे - पीछे चल दिए। उन्नति की मम्मी अदित्री से बातें करती जा रही थी। वो हसमुख स्वभाव की थीं ये अदित्री को समझ आ गया था, लेकिन उसे स्वयं इतना बात करना नहीं पसंद था।
    बातों के दौरान उसे उन्नति की मम्मी का नाम भी पता चला था। नक्षत्रा नाम था उसका। अदित्री ने अपना नाम नहीं बताया था क्योंकि उसने पूछा नहीं था।

    ———————————————

    लगभग आधे घंटे तक ऑडिटोरियम में बैठे रहने के बाद आद्यन्त के स्टैंडर्ड की बारी आई थी। स्टैंडर्ड वन में उसने टॉप किया था और इसी के उसे स्टैग पर बुलाकर अवॉर्ड दिया गया और कुछ गिफ्ट्स दिए गए। उन्हें देखते हुए आद्यन्त की आँखें चमक रही थीं। उसकी हेड मैम ने उसे कुछ बोलने को कहा तो पहले वो अपनी माँ को देखा। बदले में अदित्री ने सिर हिलाया।

    आद्यन्त ने माइक पकड़ा और अपनी तुतलाती आवाज में बोलना शुरू किया, “मेली मम्मी के कालन आद मैं यहां हूं। मम्मी मुझे बहुत प्याल कलती है औल जब नालाज होती है तो भौत गुच्छा भी कलती है लेकिन मालती भी नहीं है।”

    उसकी बात पर वहां सब हंस कर तालियां बजा रहें थे।

    अदित्री ने उसको देख मुस्कुराते हुए अपना सिर हिला दिया, “ये लड़का सच में बहुत बदमाश होता जा रहा है।”

    आद्यन्त ने माइक अपनी हेड मैम को वापस करना चाहा लेकिन उसकी हेड मैम ने माइक लेने के बजाय उससे पूछा, “अच्छा आद्यन्त आपको ये इतने सारे जो गिफ्ट्स मिले हैं वो आप खुद रखोगे या अपनी मम्मी और किसी और दोगे।”

    “नहीं! ना मैं खुद लखूंगा... ना मैं किसी ऑल को दूंगा। मैं छब कुछ मम्मी को दूंगा।”, वो काफी क्यूटली ये सारी बातें कर रहा था।

    वहां फिर से सबने तालियां बजाईं।
    उसको देखते हुए अदित्री के चेहरे पर स्वतः ही मुस्कान आ ठहरी थी। वो अभी अपने-आप को काफी खुशकिस्मत समझ रही थी क्योंकि इस नालायक बेटे की माँ वो खुद थी। क्षमा ने उसके हाथों पर अपना हाथ रख कर अपना सिर हिलाया तो उसे अपने आँखों में पानी महसूस हुए। उसने जल्द हाथ से रगड़ कर उसे साफ किया।

    और तभी, आद्यन्त स्टेज से उतर कर भागते हुए आया और सीधे उसकी गोद में चढ़ गया और अवार्ड उसके हाथों में रख दिया।

    “मम्मी अब तो आप खुछ होना?”, उसने मासूमियत से पलके झपकाते हुए पूछा तो अदित्री ने उसे अपने सीने से लगा लिया, “बोहोत!.... नालायक कहीं का!”

    “चल... क्षमा अब चलते हैं।”, अदित्री उसे गोद में पकड़े हुए ही उठी और बाहर निकल गई। क्षमा आद्यन्त के समानों को अपने बैग में रख कर उन्हीं के पीछे बाहर आई।

    ———————————————

    बाहर निकल कर अदित्री ने आद्यन्त को नीचे उतारा और क्षमा से कहा, “इसको अच्छे से घर लेकर जाओ। मैं थोड़ा ज्वेलरी शॉप जातीं हूं।”

    क्षमा ने उसे देख हल्की आवाज में कहा, “जीजी!... एक बात कहूं?”

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    जारी है....
    आगे की कहानी जानने के लिए आने वाले अगले भागों की प्रतीक्षा अवश्य करें!
    धन्यवाद!

  • 3. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-3

    Words: 1119

    Estimated Reading Time: 7 min

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    अदित्री ने सिर हिलाया तब क्षमा बोली, “जीजी!... इतना तो हम दोनों मिलकर कमाते ही हैं तो क्यों अपने ऊपर इतने बोझ ले रही हो।”

    “मैं बोझ नहीं ले रही क्षमा! मैं बस अपने, तुम्हारे और अपने बेटे के लिए कुछ और जुटाना चाहतीं हूं। जीतन अभी हो पाता है उसमें कहां ही कुछ बचता है और अभी का कुछ ठीक नहीं है कब, क्या हो जाएगा! आज सुबह आद्यन्त को देखकर बहुत डर गईं थीं और ये डर जा नहीं रहा। इसलिए बात को समझो!”, उसने एक गहरी साँस भरी और आद्यन्त की ओर देखा जो उनसे थोड़ी दूर पर एक आइसक्रीम के ठेले पर जाकर आइसक्रीम ले रहा था।
    उसको देखते ही उसकी आँखें फिर भरने लगी, “देखो उसे कितना उछलता रहता है ये पूरा दिन भर। अगर एक दिन को ये बीमार पड़ जाए तो हम दोनों का जीना हराम हो जाएगा। मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा कभी बिस्तर पर बीमार पड़े। मुझसे नहीं देखा जाएगा इसको ऐसा और इसके लिए तुम जानती हो इतना कमाना कम है।”

    क्षमा ने भी आद्यन्त को देखा। वो उसके साथ बचपन से रहता आया था। और जब भी ये बीमार हो जाता था या बस एक वायरल फीवर ही। ये सच था कि अदित्री और उसकी जान निकलने पर आ जाती थी।

    आद्यन्त आइसक्रीम लेकर भागते हुए उन दोनों के पास आया। उसके हाथों में तीन आइसक्रीम थी। उसने एक अदित्री की तरफ बढ़ाया और एक क्षमा को दिया।
    पहले तो अदित्री ने उसे घूरा फिर आइसक्रीम ले ली। तीनों ने वहीं आइसक्रीम खाया और फिर अदित्री अपना पर्स सही कर बोली, “अच्छा अब तुम दोनों अच्छे से घर जाओ और तुम....”, उसने आद्यन्त की तरफ उंगली पॉइंट किया, “मासी को जरा भी परेशान किए ना और मासी ने मुझे बताया तो अच्छा खासा कूटोगे मुझसे। कपड़े बदल कर, खाना खा लेना और चुप-चाप सो जाना बिना कोई बदमाशी किए।”

    आद्यन्त ने अच्छे बच्चे की तरह सिर हिलाया और कहा, “ठीक है मम्मी! लेकिन ये मासी खुद मुझे परेशान करती है।”

    “चल झूठे!”, क्षमा ने उसके माथे पर हल्की चपत लगाई। उसका चेहरा तुरंत रोंदू सा बन गया। जिस पर अदित्री ने उसका माथा सहलाया था और दोनों के लिए ऑटो रुकवा कर घर भेज दी थी।

    अदित्री ने इस ऑटो को देखा, फिर मुस्कुरा कर एक ओर बढ़ गई।

    ———————————————

    स्वर्णमयी ज्वैलर्स!

    ये एक बड़ी सी शॉप थी और काफी कस्टमर्स भी थे। पार्किंग एरिया अलग से बना हुआ था और साथ ही आस-पास खूबसूरत से पेड़ पौधों द्वारा सजावट की गई थी। वहां का माहौल काफी अच्छा था और सारे स्टाफ्स भी सलीके से अपना काम कर रहे थे।

    अदित्री की ऑटो वहीं आकर रुकी थी। उसने पैसे ऑटोवाले को थमा कर उस शॉप को देखा। एक प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई उसके होठों पर। उसने इधर-उधर देखा सब कुछ काफी अच्छा लगा उसको। उसने एक गहरी साँस भरी और आगे बढ़ गई।

    ग्लास डोर था जिसे एक स्टाफ ने उसके लिए खींचा और वो अंदर आई। एक तरफ जाकर उसने एक फीमेल स्टाफ से कहा, “आज न्यू जॉइनिंग है मेरी और ये रहा मेरा जॉइनिंग लेटर!”

    उसके हाथों से वो लेटर लेकर स्टाफ ने उसे अपने साथ अंदर आने को कहा। स्टाफ उसे अपने साथ एक कोने जैसे जगह में आईं।
    उस जगह को देख कर अदित्री को कुछ गड़बड़ लगी।
    लेकिन अगले ही पल स्टाफ ने उस दीवाल पर ही नॉक किया। हालांकि वो दीवाल ग्लास का था लेकिन रखा खींची थीं दरवाजे जैसी, जिसपर अदित्री ने ध्यान नहीं दिया था। स्टाफ ने नॉक किया और उसके जैसे जान में जान आई थी।

    दरवाजा खुल वक्त बाद खुद-ब-खुद खुल गया था। स्टाफ ने इजाज़त मांगी अंदर जाने की और अदित्री को इशारा किया अंदर जाने को।

    अदित्री अंदर उतरी। वहां नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां थीं। उसने अपनी नजरें सामने की ओर की।
    एक औरत थी और एक लड़का। औरत ने अदित्री को इशारा किया सामने की चेयर पर बैठने के लिए। अदित्री बैठी तो उसने पूछा, “नाम बताइए अपना?”

    “अदित्री शर्मा...!”, उसने पूरे आत्मविश्वास से कहा।

    “ह्म्म्म!... मुझे यकीन है कि आपको पता ही होगा कि आपको कब अपनी उपस्थिति दर्ज करानी है।”, उस महिला ने कहा था जो मुस्कान लिए हुए थी।

    “हाँ! मुझे सारी इनफॉर्मेशन पहले ही दे दी गई है।”

    “आप आज से ही ज्वॉइन करने आईं हैं?”

    “जी... मैम!”, उसने कहा तो उन्होंने बस सिर हिलाया और अदित्री के साथ आई स्टाफ को उसे ले जाने का इशारा।

    स्टाफ आगे आई और अदित्री को अपने साथ ले गई।

    ———————————————

    ज्वैलरी शॉप के बाहर एक गाड़ी आकर रुकी थी। एक करीब तीस का लड़का फोन पर किसी से बात करता हुआ उतरा था। साथ ही एक लड़की और थी जिसने साड़ी पहनी थी और एक बच्ची थी।

    “हाँ माँ! आप अभी शॉप में ही हैं ना?”, उसने पूछा तो सामने से कहा गया, “जी बेटा जी! अभी फिलहाल तो यहीं हूं। कोई काम है क्या आपको?”

    “नहीं! कोई काम नहीं है... बस ऐसे ही फोन कर लिया पूछने के लिए।”, उसने मुस्कुराते हुए अपने साथ आई लड़की को देखते हुए एक आँख दबा दी। जिस पर उसने अपना माथा पीट लिया।

    वो अपना फोन बंद कर ज्वैलर्स शॉप के अंदर दोनों को अपने साथ लिए गया। अंदर वो कोने की तरफ एक रूम के सामने खड़े होकर अपना फिंगरप्रिंट स्कैन किया था और स्कैन होते ही दरवाजा खुल गया।

    अंदर बैठी महिला और वो लड़क एकदम से शॉक थे उसे देखकर।

    “नक्षु तू यहां!.....”

    “नक्षत्र भैया आप!.....”

    महिला और उस लड़के के मुंह से अचानक से निकला। जिस पर नक्षत्र मुस्कुरा दिया। वो आकर अपनी माँ के पैरों को छू लिया था। और उठते के साथ ही बोला, “क्यों हो गईं ना मिसिज संजना भारद्वाज शॉक?”

    संजना पहले मुस्कुराई और उसके गालों को छूते हुए प्यार से बोलीं, “तुझे देख कर तेरी माँ कैसे खुश नहीं होगी नक्षु!... सोच भी नहीं सकते हो तुम कि कितना मिस मैने तुम्हे।”, बोलते हुए वो उसको गले लगा लीं थीं।
    अपनी माँ के गले से लगे हुए वो भी मुस्कुराया।

    “लेतीन, क्या मुझे कीछी ने मीछ नहीं किया? गलत बात नानी!”, उन्नति ने मासूमियत से कहा था।

    उसके साथ ही नक्षत्रा ने भी कहा, “हाँ बेटा! हम दोनों को कीछी ने मीछ नहीं किया। सब को बेटा दिखता है बेटी कहां ही दिखती है।”, अंत तक उसका गला सच में भर्रा गया था।

    संजना फिर अपनी दोनों बेटी, नातिन के पास आई। कान पकड़ते हुए उन्होंने कहा, “माफ कर देओ हमको हमारी लाडो रानी। लेकिन मामू को इतने दिनों के बाद देखा ना नानी ने, इसलिए नानी उनसे मिलने लगी। अच्छा! अब माप कल दो अपनी नानी को!”

    उन्नति उछल कर उनकी गोद में चढ़ गई। नक्षत्रा दोनों को देखती हुई बस चुप थी।

    ———————————————

    जारी है....
    आगे की कहानी जानने के लिए आने वाले अगले भागों की प्रतीक्षा अवश्य करें!
    धन्यवाद!

  • 4. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-4

    Words: 1240

    Estimated Reading Time: 8 min

    ———————————————

    नक्षत्रा दोनों को देख कर मुस्कुरा दी। तभी, बीच में वो लड़का बोला जो अब तक शान्त था, “भ्राता श्री क्या हम आपके स्मृति से विस्मृत हो चुके हैं? क्योंकि आपने तब से हमे ऐसे इग्नोर किया है जैसे हम आपके कुछ लगते ही ना हो!”

    नक्षत्र ने नजरें उठाकर उसको देखा। वो अपना सिर हिलाते हुए खुद आगे बढ़कर और उसके गले में झूल गया। नक्षत्र बुरी तरह चिढ़ उठा। उसने चिढ़न से कहा, “ये क्या बकवास हरकतें करना सिख रहे हो तुम संस्कार? दूर हटो मुझसे वरना अभी के अभी दो चार धर दूंगा।”, उसके आवाज से साफ था कि वो मजाक तो बिल्कुल नहीं कर रहा था।

    संस्कार मुंह बनाते हुए पीछे अवश्य हटा था, लेकिन दूर थोड़ा सा भी नहीं हुआ था।

    “सिर्फ नाम के संस्कार हो तुम! लेकिन मजाल तुम्हारे अंदर तनिक भी संस्कार हो। संभल जाओ वक्त है अभी, वरना मैं सुधारने पर आया ना तो तुम्हारे गाल और हड्डियां हर वक्त सूजी हुई मिलेंगी।”, उसके मुंह बनाने पर नक्षत्र में उसको बुरी तरह घूरा था।

    संस्कार ने रोंदू बनाकर मुंह लटका लिया और संजना के पास जाकर कहने लगा, “बड़ी माँ! अपने बेटे को समझा लीजिए, ये हर समय बच्चों पर जुल्म ढाना सही नहीं होता। बच्चों पर बुरा असर पड़ता है।”

    संजना ने नक्षत्र को देख कर भौहें सिकुड़ी और नाराजगी जताते हुए बोलीं, “नक्षु! अपने से छोटों से ऐसा बिहेव करेंगे आप!...”

    “माँ पहले तो इसको समझा लीजिए आप! ये हर वक्त चिपका-चिपकी से सख्त नफरत है मुझे। इसको पता है लेकिन तब भी आके चिपकेगा। हद होती है यार!...”, नक्षत्र ने फिर संस्कार को घूर ठंडे लहजे में कहा।

    “भाईईई......!”, संस्कार ने जोड़ देते हुए कहा तो नक्षत्र ने उसको फिर अनदेखा किया, “नॉट इंटरेस्टेड!...”
    कहते हुए अपनी माँ की तरफ पलट कर कहा, “माँ! मैं थोड़ा टहल कर आता हूं। बहुत दिन हो गए सब कुछ देखे!”
    वो बिना रुके बाहर निकल गया। कुछ दूर चला ही था कि सामने देखते ही उसकी आँखें बड़ी हो गईं। अनायास ही कुछ शब्द निकले थे उसके मुंह से, “ये यहां!...”

    कुछ ही दूर पर कुछ लड़कियां खड़ी थीं, साथ में कुछ लड़के भी थे। सब एक उम्र के ही नजर आ रहे थे। नक्षत्र अगले ही पल पलट कर खड़ा हो गया। गहरी साँस भरते हुए वो आगे बढ़ा और बिलिंग काउंटर पर जो लड़की थी। उससे कुछ बातें करने लगा।

    “अम! हेलो! सब सही से किया जा रहा है ना? कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं नजर आई आपको!”, नक्षत्र ने ना जाने क्या बोला था, जो काउंटर पर खड़ी लड़की उसको देखते ही रह गई थी। उसने एक सैकेंड के लिए भी नजर इधर-उधर नहीं हटाईं।

    नक्षत्र को जैसे अब चिढ़ होने लगी। वो धीरे से सिर हिलाया फिर अपना हाथ उसके चेहरे के सामने लेजाकर एक चुटकी बजाई। उसको अब होश आया और हड़बड़ाते हुए उसने कहा, “क्या सर? वो एक्चुअली मैने सुना नहीं आपने क्या कहा! मेरा ध्यान कहीं और था। आप बताइए आपको क्या काम था?”

    “ध्यान काम पर रहेगा, तब तो आप मेरे सवालों का जवाब देंगी।”, नक्षत्र ने ठंडे लहजे में कहा, “आई थिंक! शायद अब आपको इस जॉब की कोई जरूरत महसूस नहीं हो रही।”

    “नो... नो सर! आई एम सॉरी सर। रियली वेरी सॉरी वो मैं.....”, वो लगभग घबरा गई थी।

    उसकी बात को बीच में ही काटते हुए उसने फिर कहा, “अगर अगली बार से आपके तरफ से मैने ऐसी कोई भी हरकत नोटिस की। तो आप जानती हैं आपके साथ क्या होगा?”, उसने अपनी आवाज और कठोर कर दी थी।
    वो मुड़ा लेकिन सामने फिर वही लड़की नजर आई। उसके भाव हल्के बदले थे अचानक ही उसे कुछ और भी दिखा। वो तेज कदमों से चलते हुए उस ओर जाने लगा।

    इसी दौरान जिस लड़की पर नक्षत्र की नजर पड़ी थी। उसने हर तरफ निगाहे घुमाते हुए देखा नक्षत्र जब नजर आया तो आँखें बड़ी कर उसके पीछे आई।

    अदित्री अभी भी उसी फीमेल स्टाफ के साथ थी। पर उसने अपनी ड्रेस बदल ली थी। एक नेवी ब्लू साड़ी थी उसके शरीर पर शायद वो वहां के स्टाफ्स यूनिफॉर्म थी। उसके साथ चलते हुए वो मुस्कुरा रही थी।

    “तो अदित्री तुम्हारा एक बेटा है पर तुम मैरिड नहीं हो? ये कैसे पॉसिबल है भला!”, स्टाफ ने हैरानी से पूछा था।

    अदित्री के चेहरे की मुस्कुराहट थोड़ी परेशानी में बदल गई थी। थोड़े देर चुप रहने के बाद वो बोली, “हाँ राशि! मेरा बेटा है एक सात साल का। लेकिन वो सिर्फ मेरा बेटा है सिर्फ मेरा। और, ये भी सच ही है कि मैं मैरिड नहीं हूं और ना कभी होना चाहूंगी।”, अंत तक उसकी आवाज बदल कर कठोर हो गई थी।

    “ओह! शायद कुछ गलत पूछ लिया मैने।”, राशि ने जल्दी से कहा, “अच्छा अब बहुत बातें हो गईं, तुम तो अब यहीं हो कभी साथ में चलेंगे कहीं। ठीक है!”, वो मुस्कुरा दी।
    बदले में अदित्री भी मुस्कुरा दी।

    पर तभी सामने से एक युवक आकर खड़ा हो गया था उन दोनों के सामने। अदित्री चौंक गई और राशि ने जल्द सर झुका कर उसका अभिवादन किया था। अदित्री को कुछ समझ नहीं आया वो नासमझी से कभी राशि को देखती तो कभी नक्षत्र को।

    नक्षत्र मुस्कुराते हुए अदित्री को देख रहा था। उसने राशि के अभिवादन पर सिर हिलाया था।

    राशि ने एक कोहनी से हल्का झटका दिया अदित्री को तो उसने उसे देखा था। राशि ने अपना सिर हिला दिया जब अदित्री ने उसके इशारे का अर्थ ना समझा तो।

    अचानक ही अदित्री ने नक्षत्र से पूछा, “क्या आप भी यहाँ स्टाफ हैं?”
    उसके सवाल पर राशि ने बड़ी-बड़ी से उसे देखा पर नक्षत्र ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “जी!... मैं भी यहीं एक स्टाफ के तौर पर आज ही ज्वॉइन हुआ हूं। आप भी आज ही आईं हैं क्या?”

    “हाँ! अभी ही कुछ देर हुआ है। अच्छा अब मैं जाऊं?”

    “हाँ क्यों नहीं! जरूर।”, नक्षत्र मुस्कुराते हुए उसके रास्ते से हट ही रहा था कि वो लड़की उसके एकदम सामने आकर खड़ी हो चुकी थी।

    अदित्री ने एक नजर दोनों की तरफ देखा और राशि का हाथ पकड़ कर आगे बढ़ गई।

    वो लड़की नक्षत्र के सामने मुस्कुरा रही थी। उसने कहा, “नक्षत्र आप यहां.... लेकिन आप तो आउट ऑफ इंडिया थे। संजना मैम ने बताया था। तो फिर....!”

    उसकी बात बीच में काट कर नक्षत्र फटाक से बोला, “हाँ तो फिर.... तुम मेरे पीछे-पीछे यहां तक पहुंच गई कृषा।”

    कृषा सकपका गई और जैसे ही कुछ बोलने को हुई थी कि नक्षत्र ने हाथ उठा कर उसे रोक दिया।
    वो चुप रह गई, जिसे देख नक्षत्र बोला, “अगली बार कहीं भी मुझे इस तरह टोकने की भूल मत करना, कृषा। भले ही तुम मेरी दोस्त की बहन हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हर वक्त मेरे पीछे रहो।”
    उसने गहरी साँस छोड़ी और उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, “तुम अभी अपने करियर के उस मुकाम पर हो जहाँ से बिना हासिल किए लौटना सही नहीं होगा। सो प्लीज… अभी तुम्हारा करियर ही ज़्यादा ज़रूरी है। जो भी सोच रही हो… बैटर होगा उसे फिलहाल स्किप कर दो।”
    वो एक पल उसके बाद नहीं रुका वहां और सीधे अपनी माँ संजना के केबिन की तरफ बढ़ गया।

    कृषा अपने ही स्थान पर जड़ थी। उसके मुट्ठियां भींच गईं थीं और चेहरा हल्का उदास भी हुआ था। उसकी दोस्तों में से एक लड़की उसके सामने आई थी और उसके साथ बात करने लगी। कृषा का ध्यान अभी भी उसी तरफ था, जिस तरफ नक्षत्र बढ़ा था।

    ———————————————

    जारी है....
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  • 5. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-5

    Words: 1171

    Estimated Reading Time: 8 min

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    अदित्री, राशि के साथ खड़ी थी। राशि ने हैरानी से नक्षत्र की तरफ देख कर अचंभे से कहा, “उन्होंने अभी ज्वाइन किया है। लेकिन ये हुआ कब?”

    “क्या? कब हुआ राशि?”, अदित्री ने उस तरफ देखा जहां देख राशि हैरान थी। नक्षत्र नजर आया था लेकिन राशि का यूं उसको देखना उसे कुछ समझ नहीं आ सका इसलिए उसने कहा, “राशि अब तुम्हारी फिजूल हरकतें हो गईं हो, तो चलो। वरना पता चला कि आज ही ज्वॉइन हुई और ही काम से निकाल दिया गया।”

    राशि को लिए वो उस तरफ जाने लगी, जहां कुछ कस्टमर्स आए हुए थे। राशि की हैरानी अब तक वैसे ही थी। पर अब वो भी इस बात पर अधिक गौर ना करते हुए उसके साथ चल दी।

    ———————————————

    साढ़े आठ बजे थे वाल क्लॉक पर जब अदित्री नीचे खड़ी दिखी उसे किसी के साथ। नक्षत्र सैकेंड फ्लोर पर कॉफी पीते हुए खड़ा था। आँखों में चमक लिए वो उसको निहार रहा था। अचानक से पीछे किसी ने तेज आवाज में कहा, “भाई आप अभी तक यहीं हो। बड़ी माँ और दी कब की घर पहुंच चुकीं हैं और बार-बार मुझे कॉल करे जा रहीं हैं आपके लिए।”

    बेचारे नक्षत्र के मुंह दोनों से कॉफी बाहर आते-आते बचा था। हाथ में पकड़ी मग भी हल्का उछला था। कुछ बूंद छिटक कर उसके शर्ट पर गिरा।
    नक्षत्र घूम कर एकदम से उसके माथे पर एक जोड़दार चपत लगाई। संस्कार मुंह बनाते अपना सिर सहलाने लगा।

    “भाई आप ऐसे अपने से छोटों पर जब तब हाथ नहीं उठा सकते। इंडिया में ये अपराध की श्रेणी में आता है।”

    “अच्छा तब तो मैं दस साल की सजा भी भुगतने को तैयार हूं, लेकिन तुमको मरना ना, मैं नहीं छोडूंगा। और ये जो तुम पीछे से आकर एकदम से बोल देते हो इसके लिए मैं अभी तुमको काल कोठरी में बंद करूंगा।”, नक्षत्र शर्ट पर गिरा कॉफी झाड़ते हुए वॉशरूम की तरफ कदम बढ़ा दिया।

    कुछ देर बाद जब वो वॉशरूम से बाहर आया था। तब वो जल्दी से विंडो से नीचे झांका लेकिन जो उसे देखना था वो उसे नहीं दिखा। एक पल को मन किया कि इस संस्कार को यहीं कूट कूट कर भजिया बना दे। पर खुद को काबू में कर वो संस्कार के साथ शॉप से निकल गया।
    इस टाइम शायद शॉप के बंद होने का समय था इसलिए ज्यादातर स्टाफ्स जा चुके थे।
    नक्षत्र अपना सिर हिलाया और जिस गाड़ी से वो आया था उसमें बैठ गया।

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    एक अच्छा खासा बड़ा घर था। चारों तरफ से बड़ी-बड़ी दीवारों से घिरा था। एक सुंदर बगीचा था दूसरी तरफ और बीच से जाने का रास्ता।
    एक गाड़ी आकर उसके पार्किंग में रुकी थी। नक्षत्र अपना गर्दन दाएं-बाएं झटक कर उतरा और घर को देख मुस्कुरा दिया। संस्कार उतरा और उसके साथ ही चलने लगा।

    “भाई! कोई गर्लफ्रेंड-वलफ्रेंड बनी की नहीं आपकी। अरे भाई... जल्दी अपना रास्ता सेट करो, मुझे भी तो अपना सेट करना है।”, वो डांट दिखाते हुए कहा था और उससे थोड़ा दूरी बना लिया था।

    नक्षत्र रुक कर उसको कुछ देर तक घूरा और लापरवाही से पूछा, “क्यों तुमने भी पटा रखी है क्या? जो मुझे अपने रास्ते से हटा रहे हो।”

    “नहीं भाई, मेरी और गर्लफ्रेंड तौबा-तौबा ऐसा ना ही हो तो बेहतर है। मैं तो बस आपकी विकेट सेट करवाना चाहता हूं।”, कहते हुए वो डांट निपोड़ते हुए हंस दिया जिसको देखते हुए नक्षत्र की एक भौंह चढ़ गई। उसने अगले ही पल उसके सिर पर एक जोड़दार चपत लगाई।
    संस्कार चुप हो गया और नीचे देखते हुए उसके पीछे चलने लगा।

    संजना और कुछ लोग बहार बैठे थे। नक्षत्रा भी एक कुर्सी पर बैठी थी। नक्षत्र सबको देख हैरान रह गया और जल्दी से आगे बढ़कर एक महिला के पैर छू लिया। करीब-करीब सत्तर की रहीं होंगी और थोड़ी गंभीर दिखाई पड़ती थीं।
    नक्षत्र को देखते ही उसको अपने साथ बिठा लीं। जी भर के प्यार लुटाते हुए उससे बात कर रही थीं।

    उन दोनों को देख अचानक से संजना ने कहा, “माँ! खाने का वक्त को चला है। चलिए पहले खाना खा लीजिए।”

    “बहु, तू हमेशा ऐसा ही करती है। देख रही है यहां हम अपने लाडले से बात कर रहें लेकिन तब भी तुमको चैन नहीं मिलता ना।”, उन्होंने कहा था जब नक्षत्र ने उनके गालों पर हाथ लगाते हुए कहा, “दादी, माँ सही तो कह रही है। अगर ऐसे ही भूखे रहेंगी तो और ज्यादा चिढ़ होती रहेगी आपको। इसलिए चलिए पहले भोजन कर लेते हैं।”

    वो उठ ही रहा था कि उन्होंने उसका हाथ पकड़कर वापस से अपने पास बिठा लिया। फिर उसके कान को कसकर जकड़ लीं और बोली, “अरे ओ नासपीटे की औलाद! जब तेरा बाप मेरे सामने मुँह खोलने की हिम्मत नहीं कर पाया… तो तू कौन होता है बोलने वाला कि दादी सारा दिन चिढ़ती रहती है? बोलो, अब काहे चुप हो गए?”

    नक्षत्र की कराह निकल गई थी। वो जल्दी से बोला, “दादी मैने आपको थोड़े ही कहा है वो तो बस ऐसे ही!....”

    “क्या हमको नहीं कहा? जब तुम हमको नहीं कहा है तो फिर किस को कहा। विदेश जाकर भूल गए हो का हमको।”, वो गुस्साती हुईं बोलीं थीं।

    उन दोनों को देखते हुए सब मुस्कुरा दिए। जब अंदर से उन्नति दौड़ती हुई आई थी और हाथ में फोन पकड़ी थी। नक्षत्रा को फोन पकड़ाती हुई वो बोली, “मम्मी! पापा का फोन!...”

    नक्षत्रा ने पहले तो फोन को देखा, फिर फोन उससे लेकर एक तरफ चली गई थी। उन्नति अपनी नानी को अपने मामू का कान पकड़े हुए देखी तो खुशी से उछलते हुए तालियां बजाने लगी।

    “वाओ बली नानी!... इनको ऑल मालो पूला दिन मुझ पल चिल्लाता लहता है।”, उन्नति ने कहा तो सभी ने अपना सिर हिला दिया था।

    नक्षत्र ने उसको घूरा तो वो संजना के पास जाकर उनके गोद में चढ़ गई। उनके गले लग कर मासूमियत से बोली, “नानी! मामू मेले को फिल घूर रहा है। मुझ को फिल डांटेगा मामू।”

    संस्कार जो एक ही तरफ कब से खड़ा हो नक्षत्र की ऐसी हालत पर खुश हुए जा रहा था अचानक से बोल पड़ा, “अरे घूर कर कर भी क्या लेंगे? अभी उनकी कमान दादी के हाथों में है। वहीं सीधाआ.....”, वो बोलते हुए रुक चुका था क्योंकि वैजयंती जी ने उसके कान छोड़ दिए थे।

    और अब नक्षत्र उसको घूर रहा था जिसको देखते हुए वो सकपका कर कहा, “नहीं... नहीं.. मैने ऐसा कुछ भी नहीं कहा। ये... ये... उन्नति कह रही है सब।”

    “अच्छा बच्चू!.. ऑल मैने ये छब कब कहा। झूठ बोलना... गंदी बात होती है मामू।”, उन्नति ने जल्दी से अपने बचाव में कहा था क्योंकि नक्षत्र उसको भी घूर रहा था।

    नक्षत्रा आई वहां और उन्नति को अपनी गोद में उठाकर संजना से बोली, “माँ! अंदर चलिए रात काफी हो गई।”
    वो आगे बिना कुछ सुने, घर के अंदर चली गई थी। उसको देखते हुए बाकी सब भी अंदर चले गए थे।

    ————————————————

    अदित्री जब अपने घर पहुंची थी। तब से अब तक वो आद्यन्त को डांट रही थी और कोने में क्षमा खड़ी हो कर मजे ले रही थी।

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    जारी है....
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  • 6. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-6

    Words: 1220

    Estimated Reading Time: 8 min

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    आद्यन्त पलंग के कोने में दुबक कर अपने-आप को तकिए से ढक रखा था। उसका छोटा सा शरीर तकिए से थोड़ा भी दिखता तो झट से तकिए को उधर कर लेता। अदित्री का मन भी उसको और सुनाने का नहीं हुआ।

    वो पलटी और क्षमा से बोली, “इसके दो दिन तक के चॉकलेट बंद कर दो। एक बार में ही इस नालायक को सब समझ आ जाएगा।”
    वो पूरे कमर में एक बार फिर नजरें घुमा कर, किचेन की ओर बढ़ गई थी।

    पूरे कमरे में कहीं टॉयज पड़े थे, तो कहीं कपड़े और कहीं खाने के प्लेट्स। चिप्स वगैरह के पैकेट्स भी इधर-उधर फैलाया गया था।
    और ये सारा किया धारा उसके लाल का था। लेकिन अब ऐसे दुबका बैठा था जैसे मासूम पर ज्यादती की जा रही हो।
    क्षमा ने उसको कई बार डांट कर बिठा दिया था लेकिन कुछ देर शान्त रहता और फिर उसकी बदमाशी शुरू होती थी।

    क्षमा ने उसको घूरा, तो उसने आँखों में आँसू के साथ चमक लिए उसकी तरफ मुस्कुरा दिया। फिर बड़ा सा मुंह खोल दांत दिखा दिया।

    “जीजी थकी हुई है, तो बच गए हो। लेकिन कब तक बचते रहोगे बच्चू। हुंह!...”, वो किचेन की तरफ बढ़ गई थी।

    अदित्री किचेन में आई थी तब उसे खाने की खुशबू महसूस हुई। उसने अचंभे से बर्तनों को खोल कर देखा। खाना बना हुआ था और सब कुछ उसकी पसंद का था।
    वो मुड़ने को हुई तो पीछे से आती हुई क्षमा ने कहा, “सरप्राइस कैसा लगा जीजी....!”

    अदित्री ने उसको देखा और हल्की कठोरता से बोली, “किसने कहा तुम्हे खाना बनाने को... मैं आकर बनाती ना।”

    “क्यों जीजी? बच्चे हैं क्या हम? ऐसे कह रही हो जैसे दूधमुंहे हो और तनिक खा कर बताओ कैसा बनाए?”, वो एक प्लेट निकाल कर उसमें खाना पड़ोसने लगी थी, “बाहर बैठो आए रहे हैं लेकर खाना।”

    अदित्री के होठों पर अनायास ही मुस्कान आ गई थी। वो क्षमा को पीछे से अपनी बाहों में भर कर प्यार से बोली, “कितनी किस्मत वाली हूं ना मैं जो तुम जैसी बहन मिली।”

    “किस्मत वाली आप नहीं... मैं हूं जीजी। जो आप जैसी जीजी मिली मुझ जैसी झल्ली को!...”, उसके आँखें एकदम से भरने लगी थीं, “अगर आप नहीं होती ना जीजी तो सच में जिंदा नहीं होते हम। मर जाते उसी दिन, उतना सब हुआ था एक ही साथ की... संभलने का मौका नहीं हमको। लेकिन तब आप थीं हमारे साथ.... हमको संभालने के लिए। आप हो तो हम है जीजी।”
    अदित्री की तरफ पलट कर उसका हाथ अपने माथे पर लगा लिया था क्षमा ने।

    अदित्री सिर हिलाते हुए मुस्कुराई और उसके माथे को सहलाते हुए बोली, “भूल जाने बोले हैं ना वो सब तुमको। क्यों याद करती हो? जब कुछ था ही नहीं हमारा तो हम क्यों ही किसी पर हक जताने जायेंगे। अच्छा इसी में होगा कि कभी किसी चीज को ध्यान में ही ना लाओ।”

    “आसान नहीं होता... जीजी!....”, क्षमा ने रुंधे स्वर में कहा तो अचानक से अदित्री ने अपनी मुस्कान और गहरी कर कहा, “चलो कल से तुम्हारे लिए लड़का ढूंढते हैं। वो तुम्हारे साथ रहेगा तो सब चुटकियों में भूल जाओगी।”

    “जीजी! ये भी कोई मजाक करने वाली बात है और ये आज कल के लड़के-वड़के से तो हमें ईश्वर ही बचाए। हम आपके और आपके लल्ला साथ बहुत खुश हैं। दुबारा ऐसी बात मत करा कीजिएगा हमारे सामने।”, उसका छोटा सा चेहरा गुब्बारे की भांति फूल गया था।

    अदित्री ने हल्की चपत लगाई उसको और खाने की तरफ इशारा कर स्वयं बाहर आई। उसने एक बार को आद्यन्त के कमरे में झांका। आद्यन्त बार-बार दरवाजे की तरफ मुंह करता और कुछ देर देख कर फिर से अपना बनाया गया घोंसला समेटने लगता। अदित्री उसकी ना समझी पर सिर पर हाथ लगा कर मुस्करा दी।
    आज काफी थकान हुई थी उसको लेकिन घर वापस पहुंचते ही सब खत्म हो गया था मानो।

    कुछ समय बाद तीनों हॉल में थे। आद्यन्त मुंडी झुकाए अदित्री के साथ उसके गोद में बैठा था। अदित्री निवाला तोड़ कर उसको अपने हाथों से खिला रही थी। क्षमा आद्यन्त को जब भी मुंडी उठाए देखती तो जीभ निकाल कर चिढ़ा देती और आद्यन्त बुरा सा मुंह बना कर चुप-चाप मुंडी झुका लिया करता था।

    तभी, क्षमा को जैसे कुछ सुझा उस समय और एकदम से वो चहकते हुए बोली, “जीजी क्यों ना अब आपके लिए लड़का ढूंढा जाए। कब तक बिना शादी के रहोगी? और आद्यन्त को भी तो एक पापा चाहिए होगा। क्यों आद्यन्त सही कह रही की नहीं मैं?”

    आद्यन्त उसकी बात पर एकदम से चेहरे उठाया और उसको टुकुर-टुकुर देखने लगा था। क्षमा ने एक बार फिर उससे इशारे में जवाब मांगा, तो वो अदित्री की तरफ नजरें घुमा कर उसे देख वापस सिर झुका लिया।

    अदित्री, क्षमा के बात पर कुछ देर रुक सी गई थी। साँसें सामान्य से अधिक तेज होने लगीं थीं और हृदय गति भी एकायक बढ़ने सी लगी थीं। वो स्वयं अपनी इस स्थिति को समझने में असफल महसूस कर रही थी।
    वो क्षमा के सवाल का कोई जवाब तक ना से सकी थीं, लेकिन तभी क्षमा को एकायक अपनी गलती का भान हुआ था। नजरें अपने-आप झुकीं थीं उसकी और बिना आगे कुछ कहे वो अब मौन रह गई थी।

    अदित्री ने स्वयं को संयत किया और क्षमा के तरफ मुस्कुराते हुए देख बोली, “अभी रहने देतें हैं, फिर कभी सोचा जाएगा लेकिन मुझे किसी साथी की जरूरत नहीं रही अब। और अगर बात रही इस नालायक की!....”, उसने आद्यन्त का माथा सहलाया था इस दौरान, “तो अकेली ही काफी हूं मैं! और अगर जरूरत पड़ी कभी ऐसा लगा... ऐसा ख्याल आया मन में कि नहीं रह पाऊंगी अकेले तब.... तब सोचूंगी आगे का। अभी फिलहाल ऐसे ही ठीक हूं।”

    क्षमा ने धीमे से सिर हिलाया था उसकी बात पर और आगे चुप रह कर ही भोजन की थी। अदित्री ने कुछ नहीं कहा था उसके आगे वो स्वयं इस बात के लिए तैयार ना थी। अचानक से हुए इस बातचित से वो थोड़ी परेशान लगने लगी थी।

    ———————————————

    अदित्री, आद्यन्त को लिए ऑटो रिक्शाॅ में बैठी थी। आद्यन्त अब फिर शरारतें कर रहा था लेकिन साथ में अदित्री भी थी, इसलिए चुप भी रह रहा था जब उसका ध्यान उस पर जाता था। अदित्री ने अपनी रिस्ट वॉच में टाईम देखा तो दो बजने को थे। उसकी घबराहट बढ़ रही थी।

    उसने बाहर देखा और ऑटो वाले को रोकने को कहा। ऑटो रुकी और आद्यन्त को उसने बाहर इंतेज़ार करती क्षमा के साथ भेज दी और स्वयं ऑटो को आगे बढ़ाने को बोल दी थी। लेकिन अभी भी उसकी घबराहट कम नहीं हुई थी।

    कुछ देर बाद ऑटो स्वर्णमयी ज्वैलर्स के सामने रुकी और ऑटो वाले ने पीछे मुड़कर उससे कहा, “मैडम जी आ गया आपका स्वर्णमयी! अब उतरो भी.... आगे के कस्टमर भी लेने हैं।”, वो गुटका खाने के साथ ही कह रहा था।

    अदित्री की तंद्रा टूटी थी और उसने सामने देखा। स्वर्णमयी ज्वैलर्स आ गया था और वो जल्दी से ऑटो से उतर ऑटो वाले को पैसे दी और आगे बढ़ गई।
    टाईम देखते हुए वो फिर परेशान हो उठी थी। अपने में भी बड़बड़ाते हुए वो कह रही थी, “दूसरे दिन ही लेट होना था तुझे। सही कह रही थी क्षमा वो ही लेने चली जाती आद्यन्त को तो मुझे अभी देर ना.....”, अचानक से कोई सामने आ खड़ा हुआ था उसके।

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    जारी है....
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  • 7. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-7

    Words: 1224

    Estimated Reading Time: 8 min

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    अदित्री ने पलके उठा कर सामने देखा तो नक्षत्रा दिखी थी उसे। वो मुस्कुरा रही थी और उसको देखकर हैरान थी।

    “आप यहां? कोई ज्वैलरी लेनी थी क्या?”

    “नहीं... नहीं... मुझे कोई ज्वैलरी नहीं लेनी। वो मैं यहां....”, वो बोल रही थी कि पीछे से संजना आई थी उसके सामने उनको देखते हुए उसने सिर झुकाए उनका अभिवादन किया, “गुड मॉर्निंग मैम!... वो मुझे आज थोड़ा लेट हो गया था क्योंकि बेटे को स्कू....!”

    संजना ने मुस्करा कर उसको बीच में रोकते हुए कहा, “कोई बात नहीं! अदी...अदी...!”, वो उसका नाम याद कर रहीं थीं लेकिन याद नहीं आ रहा था तो अदित्री ने ही उनके वाक्य को पूरा किया, “अदित्री मैम! अदित्री!”

    संजना ने सिर हिलाया, “कोई बात नहीं अदित्री। इसमें तुम्हारी भी कोई गलती नहीं है। बच्चे का ख्याल माँ नहीं रखेगी तो और कौन रखेगा। जाओ अंदर कोई दिक्कत नहीं मुझे।”

    तब से चुप नक्षत्र ने हैरानी जाहिर कर कहा, “आप यहां काम करतीं हैं अदित्री जी?”

    “जी...! कल ही तो न्यू ज्वॉइन किया है।”, उसने कहा लेकिन नक्षत्रा को शायद इस चीज की कोई उम्मीद नहीं थी। वो और अधिक हैरान हो गई।

    “लेकिन आप तो कह रही थी कि आप टीचर हैं किसी स्कूल में।”, नक्षत्रा ने कहा।

    अदित्री को उसकी बात सुनकर अब याद आया कि उसने नक्षत्रा को ये सब बता दिया था।
    ‘हाय रे उसकी किस्मत! हर वक्त बद से बद्तर ही होती जाती है!’
    अदित्री का मन उस समय अपने माथे पर हथौड़ा मारने का हो रहा था। उसको चुप देखकर इस बार संजना जी ने कहा था, “सच में अदित्री! अगर आपको कोई हेल्प की आवश्यकता हो तो हमें बताइए हम अवश्य हेल्प करेंगे आपकी। आपको इतना अपने ऊपर प्रेशर नहीं लेना चाहिए। बच्चे को संभालना, फिर स्कूल, फिर यहां। इतना सब करने के बाद आपका शरीर थकता नहीं होगा क्या? मुझे तो नहीं लगता ऐसा। आप बस बताइए हमे हम अवश्य करेंगे सहायता।”

    “मैम आपने पूछा यही हमारे लिए बहुत बड़ी बात है। लेकिन अभी फिलहाल हमे कोई दिक्कत नहीं है।”, अदित्री ने बिना एक पल सोचे कह दिया था।

    “सच में, ऐसा कुछ नहीं है ना!”

    “नहीं मैम!”

    “तो फिर ठीक है लेकिन जब भी आपको ऐसे लगे कि आपको आवश्यकता है आप बस हमे एक बार अवश्य याद कर लीजिएगा। हम आपकी सहायता के लिए हमेशा रहेंगे।”

    अदित्री ने सहमति में सिर हिला दिया तो संजना ने उसे अंदर जाने का इशारा कर दिया था।

    अदित्री के मन में उसके बाद से उनकी ही बातें चली हुईं थीं।
    ‘कितनी अच्छी हैं ना वो बस इतना जानने के बाद ही उन्होंने स्वयं से मदद के लिए कह दिया था। जबकि वो ठीक है अभी तक अदित्री को जान तक ना पाईं थीं। शायद इस संसार में ऐसी बहुत कम महिलाएं होती हैं जो इतना सोचतीं हैं अपने से अधिक किसी दूसरे के बारें में।’
    अदित्री स्वतः ही मुस्कुरा दे रही थी।

    अंदर जाते ही उसी जगह पर उसे फिर से राशि मिली थी। उससे बात करते हुए वो अब अपने काम पर ध्यान दे ली थी।

    ———————————————

    नक्षत्र जल्दी से अपने कार रुकते ही उतर गया था। उसका फोन लगातार बजे जा रहा था। उसने एक बार उठा कर कान पर लगाया तो सामने से घबराती आवाज सुनाई पड़ी थी।

    “डॉक्टर नक्षत्र! कहां तक पहुंचे आप अभी? तनिक जल्द आने का प्रयास कीजिए। पेशेंट की हालत कंटिन्यूसली बिगड़ रही है। हमने जैसे-तैसे संभला हुआ है लेकिन अब ज्यादा देर तक हम भी नहीं सम्भाल पाएंगे।”

    नक्षत्र शांत था। लेकिन चाल समाने वाले की बात सुनते ही बढ़ चुकी थी। वो अब लगभग भाग रहा था। उसने शांत आवाज में ही उत्तर दिया, “मैं आ ही रहा हूं, आप चिंतित ना हों डॉ शार्दूल! ग्राउंड फ्लोर पर हूं दो मिनिट बस और लगेंगे।”

    वो कहते हुए लिफ्ट में इंटर कर चुका था।

    “जी, आप जल्दी करिए।”, सामने से फोन रख दिया गया था।

    नक्षत्र ने फोन अपने पैंट की पॉकेट में डाला और एकदम स्थिर हो कर खड़ा हो गया था। कुछ लोग उसके बाद भी लिफ्ट में आए थे और तब लिफ्ट बंद हो कर उपर उठने लगी। लिफ्ट बंद होने से खुलने तक पूरे समय नक्षत्र केवल सामने की ओर देख रहा था। लिफ्ट में कुछ लड़कियां भी चढ़ी थीं जो रह-रह कर उसको देखती रहीं थीं। नक्षत्र ने किसी पर ध्यान ना दिया था।

    लिफ्ट फोर्थ फ्लोर पर खुलते ही वो निकल कर इमरजेंसी वॉर्ड की तरफ चला गया था। उसकी रफ्तार फिर बढ़ी हुई थी। उसका एक साथी डॉक्टर खड़ा था शायद उसके इंतेज़ार में। उसपर नजर पड़ते ही उसने हाथ हिलाया था तो वो जल्द ही उसके पास आया और लगभग हांफते हुए कहा, “डॉक्टर नक्षत्र जल्दी कीजिए! पेशेंट की हालत ठीक नहीं हो रही और वहां बाहर उसका भाई और बाप चिल्लाए जा रहा है।”

    नक्षत्र के भौहें आपस में सिकुड़ी उसकी बात पर। एक तेज गुस्से की लहर जैसे उसके बदन में दौरी हो। उसने ठंडे लहजे में कहा, “अगर उन्हें इतनी ही चिंता है अपने बेटे की तो, स्वयं आकर क्यों नहीं ऑपरेशन कर लेतें हैं।”

    उसने कहा और तेज कदमों से ओटी की तरह बढ़ गया। तभी अचानक अपने से पीछे से एक तेज आवाज उसके कानो में पहुंची, जिसे सुनते ही कुछ पल तक उसके आँखें बंद ही रहीं। उसने काफी नियंत्रण रखा था स्वयं पर।

    “तो तुम हो वो डॉक्टर!....”, वो आदमी काफी तेज चिल्लाने लगा था।

    नक्षत्र एक सेकेंड तक रुका और गहरी नजरों से उस आदमी को घूरा। फिर एक साइड जाने लगे। पीछे खड़ा उसका साथी माथा पीट लिया था।

    “जब डॉक्टर नक्षत्र आ गए हैं तो क्यों इस बुड्ढ़े को इतनी चूल मच रही है? अब पता नहीं डॉ नक्षत्र इस ऑपरेशन के लिए मानेंगे भी या नहीं।”, वो खुद में बुदबुदाया था, जब फिर से उस आदमी की आवाज उसके कानो में पड़ी थी।

    “ओ डॉक्टर! कहां खोए हो? कहां गया वो, जो अभी तुम्हारे साथ आया था?”

    “अब आप अपने बेटे को ले जाइए किसी दूसरे हॉस्पिटल में देखिए कि वो बचा पाते हैं आपके बेटे को।”, वो गंभीरता से कहा।

    वो आदमी एकदम से भड़क गया, “ये क्या बकवास किए जा रहे हो? हम जब इस हॉस्पिटल में आएं हैं तो यहीं उसका ऑपरेशन होगा ना।”

    “आपने उस डॉक्टर को नाराज किया है जो इतनी जल्दबाजी में यहां पहुंचा है और जो आपके बेटे का ऑपरेशन करने वाला था। अब आप उनसे ही बात कीजिए शायद मान जाएं। नहीं तो.... आप अपने बेटे को लेकर जा सकते हैं।”, वो बिना रुके वहां से चला गया था।

    वो आदमी सिर पर हाथ धरे। भौहें सिकोड़ कर आस-पास ताक रहा था। लेकिन जैसे किसी को उससे मतलब ही ना हो। सब अपने-अपने परिवार जनों के लिए परेशान थे और कुछ बेहद उदास भी नजर आ रहे थे। लेकिन किसी ने भी डॉक्टर से ऐसे बात ना की थी। अब वो सजा भुगतने के अलावा कुछ ना कर सकता था।
    वो जल्द से उठते पड़ते भगा था उस तरफ, जिस तरफ नक्षत्र गया था।

    नक्षत्र अपने केबिन में आ चुका था और उसका मिजाज़ अब कुछ उखड़ा-उखड़ा सा हो गया था। जिस पेशेंट के ऑपरेशन के लिए इतने जल्दबाजी और सबसे भिड़ते हुए आया था। उसका पिता उससे पूछ रहा था कि ‘तुम हो वो डॉक्टर?’

    उसने अपने टेबल पर रखे पेन स्टैंड से एक पेन निकाला और सीधे अपनी केबिन के खिड़की की कांच पर दे मारा था।

    ———————————————

    जारी है....
    आगे की कहानी जानने के लिए आने वाले अगले भागों की प्रतीक्षा अवश्य करें!
    धन्यवाद!

  • 8. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-8

    Words: 1221

    Estimated Reading Time: 8 min

    ———————————————

    अदित्री बाहर ऑटो के इंतेज़ार में खड़ी थी। मौसम कुछ ठीक नहीं लग रहा था। तेज हवाएं बह रही थी और बारिश होने की प्रबल संभावनाऐं नजर आ रही थी। मौसम को लेकर अदित्री भी चिंतित थी। वो बार-बार परेशानी से ऑटो मिल जाने के लिए सड़क के दूर तक नजर दौड़ती। मगर नहीं नजर आने पर बस पैर पटक कर रह जाती।

    संजना और नक्षत्रा तभी साथ में निकले। अदित्री पर नजर जाते ही नक्षत्रा ने मौसम देखा और जल्दी से उसके पास आई।

    “अदित्री!... आप अभी तक यहीं हैं?”, नक्षत्रा ने पूछा था तो वो थोड़ी परेशानी से उत्तर दी, “ऑटो नहीं आईं अब तक। जबकि कल उस समय तक घर पहुंच चुकी थी। क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा?”

    नक्षत्रा ने बिना एक पल को रुके पूछा, “तो आप हमारे साथ चलिए। आप अपना लोकेशन बता दीजिए बस।”

    उसके सवाल पर अदित्री कुछ पल तक जबाव ना दी। नक्षत्रा ने उसके चेहरे को देखते हुए कहा, “अरे इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? आपको ऐसे यहां रास्ते पर ही खड़े रहना है क्या? चलिए हमारे साथ और मैं कोई किडनैपर तो हूं नहीं जो आपको किडनैप कर लूंगी। इसलिए इतना मत सोचें।”

    अदित्री उसकी बात पर मुस्कुराई और संजना जी भी तब तक आईं थीं उनके पास। अदित्री उनके साथ गाड़ी में बैठ तो गई थी लेकिन उसे समझ नहीं आया कि अब कैसे, क्या बोला जाए? इसलिए वो चुप ही रही थी जब नक्षत्रा ने हंसते हुए उसको देखा था।
    वो हैरानी जाहिर करते चेहरा लिए उसको ताकने लगी। जिसपर नक्षत्रा और हंसने लगी।

    अंत में उसने पूछ ही लिया, “क्या हुआ नक्षत्रा जी? आप मुझे देखते हुए इतना क्यों हंस रहीं हैं? क्या कुछ लगा है मेरे चेहरे पर?”, उसने अपने चेहरे पर हाथ फिराया।

    “मुझे कुछ नहीं हुआ! मैं बस ऐसे ही हंस रही थी क्योंकि आप इतनी शांत बैठीं हैं जैसे सच में किडनैप कर ले जा रहीं हूं।”, वो अपनी हंसी रोकने की पूर्ण प्रयत्न की थी लेकिन उससे तब भी नहीं हुआ था।

    अदित्री फिर मुस्कुरा कर वैसे ही बैठी रह गई थी। गाड़ी उसके मकान के सामने खड़ी की गई। अदित्री जल्दी से अपने साइड की डोर खोल बाहर निकल गई थी।
    जाते-जाते उसने झुककर नक्षत्रा से कहा, “शुक्रिया नक्षत्रा जी! आज आप नहीं होतीं तो अभी तक घर नहीं पहुंच पाती।”

    नक्षत्रा बदले में सिर हिलाकर मुस्कुरा दी थी। अदित्री फिर अपने घर की ओर मुड़ गई थी।

    गाड़ी में बैठी संजना ने उसे जाते हुए देख कहा, “ये लड़की बड़ी अच्छी लगी है मुझे! कोई दिखावट नहीं करती जैसे आज कल की लड़कियां। पता नहीं क्यों ईश्वर ने इन्हें ऐसा जीवन दिया।”

    “माँ आप जितना भी सुख चाहे अपने जीवन में... मिलेगा तो वही ना जो आपके भाग्य में होगा। पिछले जन्म की अवश्य ही कोई भूल रहती ही है सबकी, जो इस जन्म में भुगतना होता है। अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप उससे बचना चाहते हैं या डट कर सामना करना चाहते हैं। अदित्री मुझे डट कर सामना करने वालों में से लगतीं हैं। भाग्य जल्द ही उनके साथ होगा।”, नक्षत्रा ने गंभीर भाव से कहा था जिसको देखते हुए संजना ने उसका सर सहला दिया था।

    ———————————————

    नक्षत्र अपने बिस्तर पर मुंह के बल लेटा हुआ था। गहरी नींद में सोया हुआ था। संजना ने कुछ पल तक उसके गुस्से भरी नजरों से घूरा था लेकिन तब भी वो ज्यों के त्यों था। अचानक से संजना ने पास ही लैंप के पास रखे पानी के ग्लास को उठाया और सारा पानी उस पर खाली कर दिया।

    नक्षत्र हड़बड़ाते हुए उठा था और बार-बार रट रहा था, “भूत! भूत! माँ देखिए कोई भूत आया है।”, सामने नजर गई तो धुंधला दिखने के कारण उसको समझ ना आ सका। तभी फिर से संजना ने ग्लास के बगल में पड़े जार का भी सारा पानी उस पर उड़ेल दिया था।
    वो छटपटा रहा था और संजना उसको देखती हुई मुस्कुरा रही थी, “कैसा लगा मेरा लल्ला? नींद टूटी या बची है अभी भी कुछ!”

    “माँ आप! यार ये जो आप हर रोज सुबह-सुबह आकर मुझ पर इतना पानी वेस्ट करती हो। देखना पानी का संकट जल्द ही आएगा इस घर में!”, उसने अपने आँखों को बेरहमी से मसला था और उसका मिजाज़ बिगड़ गया था।
    पर संजना ने उसके माथे पर एक चपत लगा दी। जिससे वो और खीज से अपनी माँ को देखने लगा था।

    “चल नीचे! नाश्ते का समय हो चला है और इन महाराज को अभी भी बिस्तर पर पसरे रहना है। उठ नहीं तो और दो लगाऊंगी!”, संजना ने कहा तो नक्षत्र मुंह बनाता हुआ बिस्तर से उठा था और सीधे वाशरूम घुस गया था।

    संजना ने सिर हिलाते हुए उसको देखा फिर उसके कमरे से बाहर आईं। दरवाजे के पीछे संस्कार पेट पकड़ते हुए हँसे जा रहा था। संजना ने उसको भी घूर माथे पर चपत लगाया तो वो सावधान की मुद्रा में खड़ा होकर। सिर नीच झुका लिया था। मात्र कुछ ही देर लगा होगा उसे इस

    “एक से बढ़ कर एक नमूने है मेरे घर के बच्चे! पता नहीं किसकी जिंदगी इतनी खराब होगी जो इनसे ब्याहयेगी।”, संजना बड़बड़ाते हुए सीढियां उतरीं थीं और उनके पीछे से संस्कार भी नन्हे मुन्हें बच्चे की तरह मुंह लटकाए आ रहा था।

    नक्षत्र जब नीचे आया था तो उसके पिता और चाचा जी आपस में बात करते हुए सोफे पर बैठे थे। वो बिना देर किए उनके पास आया और उनके पाँव छूकर आशीर्वाद लिया। उसके पिता ने उसके माथे पर हाथ फेर दिया था लेकिन चाचा जी उससे कुछ उखड़े-उखड़े से थे। परन्तु नक्षत्र को इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ा था। उसने अपने कर्तव्य अनुसार झुककर उनके चरण स्पर्श किए थे।

    “तुम काफी पतले होते जा रहे हो नक्छतर! कुछ खाते-वाते नहीं थे का ऊंहा?”, वैजयंती जी जो चाय पी रही थी, उसको देखते हुए बोलीं थीं, “कल तुम पूरा दिन घर पर नाही दिखे थे हमको। काहे? कहां गए थे?”

    नक्षत्र को नक्षत्रा ने चाय का प्याला पकड़ा दिया था। वो एक घूंट अपने मुंह में भरते हुए अपनी दादी को हैरानी से देखा था। फिर बोला, “दादी एक ही बार में इतने सवाल। तनिक साँस भी ले लिया करिए कभी बीच-बीच में।”

    “हाँ हाँ ऊ सब ठीक है! तुम बताओ इतना दुबराये कैसे और कल कहां थे सारा दिन?”

    नक्षत्र सिर हिला दिया था उनकी बात सुनते हुए, “दादी पहले बात तो मैं पतला नहीं हुआ हूं आपको लग रहा है ऐसा क्योंकि आप काफी दिन बाद देख रहीं हैं मुझे।”
    सोफे पर पसर कर बैठ वो फिर बोला, “और दूसरी बात आपको शायद याद हो कि आपका पोता एक डॉक्टर है। कल हॉस्पिटल में था मैं। एक पेशेंट आया हुआ था क्रिटिकल केस वाला... नहीं ऑपरेशन करता तो मर ही जाता वो।”
    उसको फिर से उस आदमी का व्यवहार याद आया था जो पी तो बड़े रोष से उससे बात कर रहा था फिर उसके केबिन में आकर हाथ जोड़ते हुए माफी मांगता हुआ खड़ा था।
    दो मिनिट नहीं लगे थे उसको अपने घुटने पर आने में सोचते हुए नक्षत्र मुंडी झुकाते हुए हल्का मुस्कुरा दिया था।

    तभी, उन्नति भागती हुई आई थी। काफी जोड़ से चिल्लाई थी वो और उसको देखते हुए सीधे उसके गोद में चढ़ गई। उसकी बात सुनकर एक पल को नक्षत्र अपने ही जगह स्थिर ही रह गया था।

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    जारी है....
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  • 9. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-9

    Words: 1258

    Estimated Reading Time: 8 min

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    “मामू! मामू! मम्मी पापा का ना झगला हो गया था छूबह-छुबह। मम्मी बालकनी में जाकल पापा को खूब छुना लही थी ऑल पापा बिल्कुल चुप थे।”, उन्नति ने आँखें बड़ी-बड़ी कर कहा था।

    सबकी नजरें अब नक्षत्रा के ऊपर उठ गई थी। वो थोड़ा हड़बड़ा गई थी। लेकिन जल्द ही अलम चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए उसने कहा, “अरे मैं बस बात कर रही थी उनसे। उन्नति, ये कैसे बकवास कर रहे हो आप? देखो बहुत पिटोगे आप मुझसे।”, उसने उसको उंगली दिखाई थी।

    जब नक्षत्र ने उसे घूरते हुए कहा, “अगर बच्चे को डराया तो मैं तुम्हे भी नहीं छोडूंगा। माँ हो तो कैसे भी, कुछ भी बोलोगी और इसके बाप को अभी तक समय नहीं मिला अपनी बेटी से मिलने का।”

    नक्षत्रा अपनी पैरों की उंगली कुतरते हुए बस चुप रह गई थी। उसने आगे कुछ नहीं बोला। संजना जी उसके पास आकर पूछी, “कोई बात हुई है क्या? तुम दोनों के बीच। पति-पत्नी थोड़ा बहुत झगड़ा हो जाता है लेकिन इसका असर बच्चों पर तो नहीं पड़ने देना चाहिए। ध्यान रखा करो इस बात का।”

    नक्षत्रा ने सिर हिलाया और पलट कर किचन की तरफ चली गई थी। नक्षत्र और बाकी सब ने कुछ नहीं कहा था।
    उन्नति का कसाव अपने ऊपर जब नक्षत्र को महसूस हुआ, तो वो उसको देखते हुए उसका सर सहलाया और कुछ सोच कर कहा, “उन्नति चलो आज कहीं घूमने चलते हैं, आज तुम्हारा स्कूल तो होगा नहीं।”

    उन्नति की आँखें एकदम से चमक उठी थी उसकी बात सुनकर। वो झट से बोली, “मामू आजयंत के घल जायेंगे। वो मेले को बहुत दिनों से बुलाया लेकिन मैं नहीं गई।”

    नक्षत्र एक पल को ठहरा था कुछ सोचते हुए। फिर उसने सिर हिला दिया। उन्नति को अपनी गोद में उठाए वो वहां से चला गया।

    ———————————————

    अदित्री अभी नहा कर वॉशरूम से बाहर आई थी। घर में ही बने छोटे से लकड़ी के मंदिर में वो श्री कृष्ण के भजन गाते हुए पूजा कर रही थी। आद्यन्त को भी वो नहला चुकी थी। क्षमा कुछ काम कर रही थी। जब घर का बेल बजा था।

    क्षमा ने आँखें सिकोड़ लिया था दरवाजा खोलते वक्त और जैसे ही उसने खोला वो बिना रुके बोलने लगी, “नहीं दूंगी चंदा...! एक तो हर रोज आ जाते हो और चंदा-चंदा करने लगते हो। कल ही दो को चंदा दिया है अब नहीं...!”, कहते हुए जब उसका ध्यान सामने गया था तो सामने कोई नजर ही नहीं आया।
    वो हैरानी से इधर-उधर देखी लेकिन उसको तब भी कोई नहीं दिखा। वो स्वयं से ही सवाल करते हुए पीछे हटी थी, “अभी तो डोर बैल बजा और अब कोई नहीं है। जरूर गली के बच्चों की ही हरकत होगी।”, वो दरवाजा बंद करने को हुई तभी अपने कपड़े पर खिंचाव महसूस कर उसने तुरंत अपना सिर झुकाया।
    एक नन्ही बच्ची खड़ी थी। गुलाबी रंग में एक टॉप पहनी हुई थी और एक ब्ल्यू स्कर्ट। उसने टॉफी खाते हुए और जब क्षमा ने दरवाजा बंद करना चाहा होगा तब बच्ची ने उसका सूट खींचा होगा। क्षमा सोचते हुए अपने माथे पर चपत लगाई थी और उसने उसको अंदर बुलाया।

    वो अपने छोटे से बैग को अपने कंधे पर लटकाए घर में आई थी। जब क्षमा ने उसको टोका, “बेटा अपने शूज यहीं खोल दीजिए। वरना जीजी गुस्सा करेंगी।”

    उन्नति ने अपनी टिमटिमाती हुई आँखें लिए उसको देखा और हैरानी से पूछी, “क्या आपके घल के अंदल छुज पैन कल नहीं जातें?”

    क्षमा ने ना में सिर हिलाया तो उन्नति ने अपने शूज उतार कर साइड में वैसे ही रख दिया जैसे बाकी के चप्पल पड़े थे।
    अंदर आकर उसने आवाज लगाई, “आजयंत! आजयंत! कहां हो तुम?”

    आद्यन्त उसकी आवाज सुना तो दौरे-भागे आया। उन्नति को देखते हुए वो चिल्लाया ही था कि आवाज उसके मुंह से निकली नहीं। क्षमा जो पिछे थी उसने उसको इशारा किया था चुप रहने को। अदित्री को दिखाते हुए उसने थप्पड़ अपने गाल पर हल्के से लगाया था।
    उसका मतलब आद्यन्त समझते हुए वो अपने सिर हिला दिया और मुंह पर उंगली रख कर चुप हो गया।

    तभी, उन्नति ने कुछ याद कर क्षमा से कहा, “दीदी! बाहल मामू है। उन्होंने कहा वो अंदल नहीं आयेंगे। क्या मैं उनको जाने को बोल दूं?”

    जब अगरबत्ती लिए अपने हाथों को घुमाते हुए अदित्री आई थी। उसने सुना तो बिना रुके ही बोली, “अरे बेटा लेकिन बाहर क्यों है? हम उनको थोड़े ही आने से मना किया हुआ है। जाइए अंदर बुला लाइए उनको।”
    वो तब तक अगरबत्ती पूरे घर में घुमाते हुए अंदर चली गई थी।

    उन्नति उठ कर बाहर गई और नक्षत्र के पास दौड़ते हुए गई।
    नक्षत्र एक चाय के दुकान के पास अपनी कार से टेक लगाए खड़ा था। वो अपने फोन में कुछ देख रहा था जब उसके पास उन्नति आई थी। उसने उसे देखा तो कहा, “हो गया आपका मिलना-मिलाना। काफी जल्दी नहीं हो गया।”, उसने अपनी वॉच में टाईम देखा था।

    “अले नहीं मामू... वो आजयंत की ममी आपको अंदल बुला लही है। जल्दी चलिए!”, वो उसका हाथ पकड़ कर पूरी जोड़ से खींचते हुए बोली थी लेकिन वो एक इंच भी नहीं हिला।

    “क्या?..”, नक्षत्र के मुंह से बस यही शब्द निकले थे। उन्नति ने उसको खींचा तो वो खुद ही उसके पीछे-पीछे खींचते हुए जाने लगा।

    दरवाजे पर पहुंचा ही था कि बेहद मीठी आवाज उसके कानो में पड़ी थी। बिल्कुल शहद की तरह। वो एक पल को भूल ही गया कि कहाँ है वो अभी। वो एकाग्रता से इस आवाज को सुनने लगा। जो शायद एक भजन का था।

    अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।
    हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥

    वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
    चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥

    वेणुर मधुरो रेणुर मधुरः, पाणिर मधुरः पादौ मधुरौ ।
    नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥

    गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
    रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥

    करणं मधुरं तरणं मधुरं, हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
    वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥

    गुंजा मधुरा माला मधुरा, यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
    सलिलं मधुरं कमलं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥

    गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
    दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥

    *गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर मधुरा सृष्टिर मधुरा ।
    दलितं मधुरं फलितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥

    अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।
    हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥

    वो इतना लिप्त था सुनने में की उसे ये भान तक ना हुआ कि सामने आरती की थाली लिए अब अदित्री खड़ी थी। सफेद साड़ी में लिपटी हुई थी वो और बालों में गजरा था। कानो में छोटे से झुमके जो उसकी खूबसूरती पर काफी जचता था। वो पूर्णतः सम्मोहित हो चुका था उसमें।

    जब कुछ देर तक उसने कोई प्रतिक्रिया ना दी तो उन्नति ने उसको पूरा जोड़ लगाकर धक्का दे दिया था। वो एकायक सामने की तरफ नजरें घुमाया और झेंप कर जल्द आरती की थाली में हाथ घुमाकर अपने सर पर लगाया लिया था।

    अदित्री उसको मुस्कुरा कर देख रही थी। जब उन्नति ने धक्का दिया तो हल्की हँसी भी छूट गई। वो मंदिर में वापस चली गई थी।

    उन्नति ने भौहें आपस में जोड़ कर गुस्से से कहा, “मामू! अंदल चलो या यही पल पुले दिन खले लहोगे।”

    नक्षत्र कुछ पल अंदर जाने से रुका था फिर जब उसने पूरे घर में नजरें दौड़ाई तब वो अंदर आया। पूरे घर में धूप की खुशबू थी जो एक भिन्न शांतिमय वातावरण उत्पन्न करती थी। नक्षत्र को एक सुकून मिला था यहां आकर।

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    जारी है....
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    धन्यवाद!

  • 10. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-10

    Words: 1262

    Estimated Reading Time: 8 min

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    नक्षत्र जब तक बैठा रहा था तब तक उसको चंदन के धूप की खुशबू आई थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो महक उसके भीतर तक उतरती जा रही हो। नक्षत्र चुप ही रहा था इतने समय तक। अदित्री की पूजा समाप्त हुई थी तो वो अपने बालों को ठीक करते हुए बाहर आई थी।

    नक्षत्र की नजरें एक बार फिर उसको देखने के लिए उठी थी लेकिन तभी आद्यन्त भागते हुए अदित्री के पास गया तो अचानक ही उसके मन में ये विचार कौंधा।
    “तुम फिर से ये भूल कर गए नक्षत्र। ये सही नहीं है। हाँ! ये बिल्कुल भी सही नहीं है। तुम्हे इन पर अब अपनी दृष्टि भूल से भी नहीं डालनी है।”, वो मन ही मन दृढ़ता से ये बोल तो गया था पर जब अदित्री के हँसी उसको सुनाई पड़ी तो खुद-ब-खुद पलकें उठ गईं थीं।
    असलियत का भान होते ही तुरंत नजरें नीचे गिराईं और मौन बैठा रहा।उसने अपने आप संयमित किया था जो स्पष्ट दिख रहा था।

    अदित्री के हाथ में एक कागज़ था। आद्यन्त ने उसपर कुछ ड्रॉ किया हुआ था उन्नति के साथ मिलकर। उन्नति अपनी ड्रॉइंग में अभी भी लगी हुई थी। अदित्री ने एक बार आद्यन्त को देखा फिर उसके ड्रॉइंग को। उसको विश्वास नहीं हुआ था कि उसने इतनी अच्छी ड्रॉइंग स्वयं से बनाई होगी।

    उस ड्रॉइंग में वो थी, बीच में आद्यन्त था और उसके बगल में क्षमा थी। उसमें केवल तीन जन ही थे और पीछे उसने घर बनाया था।
    अदित्री ने खिलखिलाकर हँसते हुए उसको अपनी गोद में उठा कर उसके चेहरे को चूम ली। चेहरे का कोई भाग नहीं छोड़ा था उसने।

    अंत में जब वो रुकी तो आद्यन्त ने मुंह बनाते हुए कहा, “ममी! आप इतना कीछी क्यों कलते हो। ये गंदा लगता है।”

    “क्यों गंदा लगता है? कोई दूसरी हूं क्या मैं। जो अपने बच्चे को प्यार भी करूंगी। जी भर के कीछी करूंगी तुमको।”, अदित्री ने कहकर उसको गोद से उतार दिया था क्योंकि उसकी नजर अब सोफे पर बैठे नक्षत्र पर भी पड़ गई थी।

    वो अपने फोन में कुछ देख रहा था लेकिन उसके सामने अदित्री को ऐसे रहना सही नहीं लगा। वो आद्यन्त से बोली, “तुम्हारी ड्रॉइंग क्लासेज लगवा दूं? जाओगे!”

    उसका पूछना भर ही था कि आद्यन्त ने जल्दी-जल्दी हाँ में सिर हिलाने लगा। अदित्री सिर हिलाकर किचेन में जाने को हुई थी कि उन्नति उठ कर आई और उसकी साड़ी पकड़े एकदम मासूम चेहरा बनाकर बोली, “आंती... आंती... मेली भी ड्लॉइंग देखिए ना!”
    उसने अपना काग़ज़ बढ़ाकर उसके हाथों में थमा दिया था।

    अदित्री ने उसकी ड्रॉइंग भी देखी थी और उसको भी ड्रॉइंग क्लास ज्वॉइन करने की सजेशन दी थी। उन्नति उछलते हुए अपने मामू के पास गई और अदित्री की तरफ इशारा कर बोली, “मामू...! मामू! देखो ये आंती भी मुझको ड्लॉइंग क्लास जाने के लिए बोली। मुझको भी जाना है, भेज दोगे ना।”

    “मुझसे पूछने से क्या होगा? अपनी माँ से पूछना वो भेजेगी तब मैं भी भेज दूंगा।”, नक्षत्र ने बिना फोन पर से अपनी नजरें हटाए कहा।

    अदित्री जो किचेन तक जा चुकी थी, उन्नति की बात सुनकर रुक गई। उनकी तरफ देखते हुए वो नक्षत्र के जवाब का इंतेज़ार कर रही थी। जब उसने जवाब दिया था तो ना जाने क्यों उसको काफी गुस्सा आया था इस बात पर। लेकिन उसने कुछ कहा नहीं क्योंकि ये उसका मामला नहीं था।

    जब उन्नति की आवाज फिर सुनाई पड़ी, “मामू! आप बोलोगे तो मम्मी जल्दी मान जाएगी ऑल मुझे दांतेगी भी नहीं।”

    “लिसन उन्नति!... नक्षत्रा अभी बहुत परेशान है और तुम ऐसे में उससे जाकर ये कहोगी कि तुम्हे ड्रॉइंग क्लासेज ज्वॉइन करना है तो वो जरूर गुस्सा करेगी ही करेगी.... और इस मैटर में मुझे कुछ नहीं बोलना। कुछ दिन रुको मैं खुद जाऊंगा उससे कहने। ठीक!”, उसने कहा तो उन्नति ने आगे कोई जिद नहीं की।

    अदित्री उनको देखते हुए किचेन में जा चुकी थी। नक्षत्र कुछ दी बैठा रहा और इधर-उधर नजरें दौड़ाते हुए उसने उन्नति को अपने पास बुलाया, “सुनो उन्नति! जाकर उन आंती से बोल देना की मैं चला गया हूं। तुम्हे जब घर जाना हो तब मुझे फोन कर देना अगर मैं फ्री रहा तो खुद आ जाऊंगा नहीं तो किसी को भेज दूंगा। ठीक है, बाय!”
    वो उठा और बाहर निकल गया।

    कुछ देर बाद अदित्री किचेन से एक प्लेट लिए बाहर आई। नजरें घुमा कर उसने पूरे कमरे को छाना। जब उसने कहीं नक्षत्र को ना देखा तब उन्नति की ओर मुड़कर उससे पूछी, “बेटा! आपके मामा जी कहीं गए हैं क्या?”

    उन्नति ने टॉय ट्रेन को सही करते हुए बताया, “हाँ मामू! चले गए उनको कोई जलूली काम आ गया था।”

    “अच्छा! लेकिन इतनी जल्दी चले गए।”, अदित्री खुद में ही सोचते हुए बोली थी और फिर सिर हिलाकर वो प्लेट उन्नति को दे दी।

    उन्नति को सुबह से शाम हो गए थे लेकिन उसने अभी भी जाने का नाम तक नहीं लिया था।
    शाम का समय भी पूरे होने की कगार पर था। जब एक गाड़ी आकर अदित्री के घर के बाहर रुकी थी।
    नक्षत्रा परेशान सी गाड़ी रोकते ही उतरी और भागते हुए वो घर के बरामदे में पहुंची थी। उसने दरवाज़ा खटखटाया तो क्षमा ने खोला। उसने नक्षत्रा को अंदर बुलाया तो जल्दी से अंदर आई।

    उन्नति, आद्यन्त और कुछ छह-सात बच्चों के साथ बैठी थी। अदित्री एक किताब हाथ में लिए हुए थी। वो उन्हें पढ़ा रही थी। उन्नति बड़े गौर से उसको सुन रही थी।
    नक्षत्रा उनको देखते हुए अपने ही जगह पर रुक गई थी। अदित्री का ध्यान अब तक उसकी तरफ नहीं गया था और क्षमा जब बताने को हुई थी तब नक्षत्रा ने उसे रोक दिया था। क्षमा चुप कर गई थी और किचेन में जाकर अपना काम वापस करने लगी थी।

    काफी समय तक वो उसी प्रकार उन सबको देखती रही थी। फिर जब अनायास ही उन्नति की नजर उसपर गई थी तो वो उससे डर कर अदित्री के आड़ में छुप गई। अदित्री उसके अचानक से ऐसा करने पर थोड़ी हड़बड़ाई लेकिन फिर उसने भी दरवाजे की तरफ देखा।

    नक्षत्रा मुस्कुराते हुए खड़ी थी। उसके माथे के सभी चिंता की रेखाएं अब सीधी हो चुकीं थीं।

    “जी आप! आइए बैठिए...!”, अदित्री ने कहा।

    नक्षत्रा आकर उनके साथ बैठ गई। उन्नति को अपने पास आने का इशारा की तो वो घबराते हुए बोली, “मालोगे तो नहीं....!”

    “नहीं मारूंगी! अब आ जा!”, नक्षत्रा ने जैसे ही कहा उन्नति फटाक से दौड़ी और उसके गोद में चढ़ कर बैठ गई। नक्षत्रा ने उसके माथे को सहलाते हुए पहले अपने गले से लगाया।

    अदित्री मुस्कुरा कर सिर हिलाते हुए उन बच्चों को पढ़ाने लगी। नक्षत्रा ने उसको देखा और अचानक से उसने पूछा, “अदित्री आप मेरी बेटी को भी पढ़ा देंगी क्या?”

    वो सवाल बिल्कुल अप्रत्याशित था अदित्री के लिए, वो चौंक गई थी। हैरानी से नक्षत्रा को देखा तो उसने फिर पूछा, “अदित्री इतना मत सोचिए, बता दीजिए।”

    “लेकिन मैं क्यों?”

    “आप क्यों नहीं अदित्री!”

    ”पर!”

    “पर-वर कुछ नहीं जवाब दीजिए बस। आज देखा मैने ये कितने ध्यान पढ़ रही थी आपसे। अगर आप पढ़ाएंगी तो ये भी सही से पढ़ने लगेगी। वरना ये रोज मुझसे और अपने मामा डांट सुनती है।”, नक्षत्रा ने काफी उम्मीद लिए उससे पूछा था तो अब अदित्री के पास कहने के लिए कुछ शब्द ही नहीं मिले। उसने कहा, “ठीक है! मुझे क्या दिक्कत होगी? आप भेज दीजिएगा उन्नति को मेरे पास क्योंकि मैं स्वयं नहीं आ पाऊंगी।”

    “क्यों नहीं!”, नक्षत्रा ने झुककर उन्नति का सिर चूम लिया था। वो परेशान हो गई थी उन्नति को ढूंढते हुए लेकिन जब वो इसे यहां पूर्णतः सुरक्षित मिली तब उसके जान में जान आई थी।

    ———————————————

    जारी है....
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  • 11. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-11

    Words: 1173

    Estimated Reading Time: 8 min

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    नक्षत्र अपने केबिन में बैठा था और अपने सामने बैठे व्यक्ति की रिपोर्ट्स चेक कर रहा था। वो व्यक्ति थोड़ा घबराया नजर आ रहा था। नक्षत्र ने उनको शांत रहने का इशारा किया था लेकिन वो अभी भी डरे हुए दिख रहे थे।

    नक्षत्र ने पूरी रिपोर्ट्स देखी तो उनसे कहा, “आप घबराइए मत वरना आपकी स्थिति और ज्यादा खराब हो सकती है। अब मेरी बात ध्यान से सुनिए। आपको स्टेज टू ब्लड कैंसर है!”

    वो व्यक्ति सुनते ही कुछ ज्यादा ही भयभीत दिखने लगे थे, “डाक्टर साहब इसमें घबराने वाला बात कहां नहीं है। आप कह रहे की कैंसर है और ये भी कहते है नहीं डरना है।”, उन्होंने डरते हुए कहा था।

    उनकी बात पर नक्षत्र एक गहरी साँस भर कर मुस्कुराया, “देखिए काका! आप मेरे पिता के उम्र के हैं इसलिए मैं झूठ नहीं बोल सकता। अगर आपको अपने ऊपर ये पूरा भरोसा है कि आप ठीक हो सकते हैं, तो आप अवश्य ठीक हो सकतें हैं। हम आपको दवा दे सकते हैं लेकिन आपको स्वयं ये निश्चित करना होगा कि ये जो दवा मैं ले रहा हूं ये मुझे ठीक कर देनी चाहिए, तब ही दवा असली मायने में अपना काम करेंगी और आपको जल्द ही ठीक कर आपको वापस पहले जैसा कर देंगी।”

    उनकी आँखें भर आईं थीं और फिर उन्होंने कहा, “हम इसलिए भयभीत नहीं हैं डाक्टर साहब की हमको कोनो कैंसर हुआ है। हमको चिंता इस बात का लगा है कि जो पैसा लगेगा ऊ कहां से आएगा। हमारा बेटा इतना ही कमा पाता है जितना मैं घर जैसे-तैसे चल जाए। अभी हमारे इलाज में काफी पैसे लगे लेकिन उसने कर्जा लेकर हमारा इलाज कराया। अब ऊ ये सुनेगा कि हमको कैंसर हुआ है तो फिर कर्जा लेगा और ऊ कर्जा देने वाला लोग आकर उसको गाली देगा और हमारी बहु-बेटी को सबके सामने बेइज्जत करेगा। हमको बस यही खराब लगता है। ये दिन देखकर हमको इसी बात का पछतावा होता है कि हम मर काहे नहीं गए।”

    “मरना हर चीज का उपाय नहीं होता है काका।”, उसने कहा ही था कि उन्होंने आँखें का गीलापन साफ करते हुए फट से कहा, “मरना उपाय नहीं होता लेकिन सब चीजों से मुक्ति जरूर होता है डाक्टर साहब!”

    नक्षत्र ने सिर हिला दिया था। वो आँखें बंद कर कुछ देर सोचकर कहा, “काका मेरा ये पूछना सही होगा या नहीं... लेकिन मैं तब भी पूछ रहा हूं। कितना कमाता है आपका बेटा? और कुछ ऐसा वैसा काम तो नहीं करता?”

    “डाक्टर साहब! ऊ लड़का दिन भर मजदूरी करता है। जो पैसा होता है उसमें से घर का काम में लगता है और जो कुछ बच पाता है उसमें से हम और हमारी पत्नी का इलाज में चल जाता है। कुछ भी ऐसा-वैसा काम ऊ नहीं करता है। पहले सिगरेट पीता था लेकिन पैसा का अकाली के कारण ऊ भी छोड़ दिया।”, वो अब रोने लगे थे।

    नक्षत्र अब चुप पड़ गया था। उसके पास कोई शब्द नहीं बचे आगे कुछ बोलने को या उसे समझ ही नहीं आ सका कि वो बोले क्या इस बात पर। कुछ पल बाद उसने कहा, “काका, पहले आप शांत हो जाइए...!”
    कहते हुए अपना रुमाल उनके तरफ बढ़ा दिया था।

    वो कुछ पल सकुचाए फिर उन्होंने ले लिया। आंसू साफ कर उन्होंने उसको वापस लौटना चाहा तो नक्षत्र ने कहा, “आपके इलाज में जितना खर्चा आएगा वो हम देख लेंगे। आप अब चिंता मत करिए ऐसे ही आपका तबियत सही नहीं है और बिगड़ जाएगा।”

    उनको विश्वास नहीं हुआ कि उनके सामने बैठे डॉक्टर ने अभी-अभी क्या कहा। कानों में शायद उनका साथ छोड़ दिया था उस समय मानो। वो अविश्वास से उसको ताकते रहे। बेध्यानी से उसको देखते हुए उन्होंने कहा, “डाक्टर साहब आप गलत बात बोल गए।”

    “नहीं काका हम यही कहना चाहते हैं। अब आप परेशान मत होइए हमसे जितना होगा उतना मदद हम करेंगे।”, नक्षत्र मुस्कुराते हुए कहा।

    काका को अभी भी विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने अपना सिर हिलाया एक बार तो नक्षत्र ने हामी भरते हुए सिर हिलाकर उनको सत्य भान कराया। वो हाथ जोड़कर उससे बात करने लगे थे। काका कुछ देर तक बैठे रहने के बाद उठ कर चले गए थे। लेकिन नक्षत्र के दिमाग में उनकी हर एक बात घूम रही थी।
    ‘मजबूरी इंसान को कहीं का नहीं छोड़ती है।’

    वो गुम था अपने विचार में की अपने केबिन पर दस्तक वो सुन ना सका था। दो से तीन बार खटखटाया गया था फिर धड़धड़ाते हुए कोई अंदर घुस आया था। वो सीधे आया और नक्षत्र को कंधे से पकड़े पूरे तेजी से हिलाते हुए चिल्लाया, “अबे ए! तू जिंदा तो हैं ना कि स्वर्ग सिधार गया। अगर स्वर्ग गया तो मुझे भी ले चलियो। यार जिंदगी झंड हो गई मेरी! उसने मेरे को इंस्टाग्राम से ब्लॉक मार दिया। अब सुबह शाम किसको हाय, हेल्लो, गुड मॉर्निंग, बैड मॉर्निंग का मैसेज भेजूंगा। कतई दुख पीड़ा है इस जीवन में। ए अपने साथ ले चल ना मेरे को भी।”

    “अबे ए! ज्यादा चूल मची है जिंदगी ना जीने की तो जा किसी ब्रेक फैल गाड़ी बैठ कर किसी पेड़ को ठोक दे। स्वर्ग सिधारने में दस मिनट नहीं लगेंगे गैरेंटी दे रहा हूं। अगर तब भी नहीं मरा तो खी जाकर तेरा फेफड़ा निकाल आऊंगा। अब चल फुट ले इधर से।”, नक्षत्र ने काफी अनमने ढंग से कह दिया था। उसका दिमाग उसकी बातों को सुनकर काफी खराब हुआ था।

    “हाय! इस छोटे से गरीब, दुखिया को अब तूने भी इग्नोर कर दिया नक्छतर। सच ही कहा है किसी महान बुजुर्ग बाबा ने दुख के इस मुश्किल घड़ी में कोई किसी के काम नहीं आता है।”, वो उसके साथ ही रखी चेयर पर बैठ गया था और रोने का झूठ रचते हुए उसने कहा था।

    “अबे भक्क! तू पहले फूट ले इधर से। एक तो जब मना किया था उस शूर्पणखा के साथ रिलेशन रखने को तब तो बड़ा उछल-उछल कर बोल रहे थे कि नहीं नक्षत्र! वो मेरी जान है, प्राण है! जिंदगी का आधा हिस्सा है। तुम्हारा कलेगा, फेफड़ा सब कुछ जब वही है तो अब जाओ उसी के पास मेरे केबिन में क्या करने टपके पड़े हो।”, नक्षत्र अब गुस्से से लाल हुआ जा रहा था। जिसको देखते हुए वो पीछे हटकर शांति से बैठ गया था।

    फिर कुछ देर चुप रहने के बाद वो मुस्कुराते हुए बोला, “ए भाई सुन ना! तनिक शादी-वादी कर। कब तक ऐसे कुंवारा फिरते रहेगा।”

    नक्षत्र ने उसको ऐसे घूरा की वो एकदम से अपने मुंह पर हाथ से ढके चुप-चाप बैठ गया था। अचानक से नक्षत्र के दिमाग में कुछ आया तो उसके मुंह से अपने-आप निकला।

    “ए! आदित्य सुन तो जरा... मुझे तुझको एक बात बतानी है। कुछ उल्टा सीधा सोचा तो खींच के लगाऊंगा।”

    आदित्य के चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई थी। उसने छेड़ने के लहजे से पूछा, “क्यों भाई तेरी कोई है क्या? लेकिन तूने तो कहा था मैं अपने परिवार के हिसाब से चलूंगा और मुझको इतनी जल्दी किसी पर दिल नहीं आएगा।”

    नक्षत्र उसे बेहद गहरी निगाहों से घूरा था जिससे वो थूक गटकते हुए फिर चुप हो गया था।

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    जारी है....
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  • 12. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-12

    Words: 1190

    Estimated Reading Time: 8 min

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    नक्षत्र ने उसको देखते हुए सिर हिलाया और धीमे से बोला, “किसी को बताएगा तो नहीं?”

    आदित्य ने तेजी से दाहिने-बाहिने सिर हिलाने लगा। जिस पर नक्षत्र एक पल को अटक कहा, “तुम्हे कभी किसी से सच्ची का प्रेम हुआ है? या बस ऐसे ही डेट करते रहते हो।”

    “सच्ची का प्रेम अगर मैं करने लग गया ना भाई... तो कई हसीनाओं के दिल टुकड़ों में बट जायेंगे इसलिए मैं दिलों के टुकड़े ना ही करूं तो बेहतर है और यही करते हुए सही हूं।”, आदित्य ने बेपरवाही से हल्के अभिमान से कहा।

    नक्षत्र की भौहें तुरंत सिकुड़ गई। उसने उसे काफी बुरी तरह घूरा था जिसपर वो चिढ़ गया।
    “भाई तू आगे बोल ना ऐसे घूर रहा है जैसे तेरी भैंसिया चुरा ली हो मैने।”

    कुछ सोचते हुए नक्षत्र ने धीमे आवाज में कहा, “एक बच्चे की माँ पर दिल आ जाए तो क्या करना चाहिए?”

    “ऐ पगला-वगला गया है क्या? कहीं तेरी बुद्धि भ्रष्ट तो नहीं हो गई ना! भाई दूर हो जा भलाई होगी तेरी इसी में। इस जनम में तो मत ही कर ऐसा। पहले ही सतर्क हो जा और मत पड़ इन सब चक्कर में...!”, वो चिल्लाते हुए अपने जगह से उठ खड़ा हुआ था।
    जब नक्षत्र ने फिर दुबारा कहा, “अच्छा लेकिन अगर....!”, वो आगे कह ही सका था क्योंकि आदित्य ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया।

    “ऐ तू चुप ही रह तो अच्छा होगा। अगली बार से भाभियों पर नजर कतई ना डालियो! भाई फंस गया ना कभी तो अच्छा खासा पिटेगा तू मोहल्लों वालों और खुद उस बच्ची की माँ से भी।”, उसने उसको आँखें दिखाई थी लेकिन नक्षत्र अब चुप ही रहा।

    ‘ठीक ही तो कह रहा था वो! इस संसार में ऐसे प्रेम की क्या ही स्थान थी। अगर वो स्वयं उसके प्रेम में भी होगी तो भी इसे ये संसार के कुछ नीच स्तरीय के मानसिकता लिए हुए गिनती के महान लोग अजब-गजब नाम दे देते और पीठ पीछे चुगली करते सो अलग!’
    नक्षत्र ने आगे इस विषय पर कोई बात नहीं की थी। लेकिन पूरे दिन उसके माथे में बात घूमी थी।

    ———————————————

    अदित्री एक कैफे में बैठी थी। साथ के चेयर पर क्षमा, आद्यन्त को अपने गोद में लिए थी। उन दोनों के ठीक ऑपोजिट में राशि बैठी थी। वो थोड़ी परेशान लग रही थी।

    अदित्री ने उनके मध्य मौजूद सन्नाटे को भंग कर कहा, “तुम्हे इतनी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है राशि। तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारे कुछ सही ही सोचा होगा। तभी तो वो....!”

    राशि उसको बीच में ही रोक कर बोली, “कैसे परेशान ना होऊं आ
    अदित्री? उन्होंने एक बार भी मुझसे ये तक नहीं पूछा कि मुझे क्या चाहिए? बस गए और मेरी जिंदगी इस अनजाने को जाकर सौंप कर चले आए। मैं घर पहुंची तो बस फरमान सुना दिया गया कि तुम्हे इससे शादी करनी है और इस दिन करनी है। क्या मैं एक कठपुतली नजर आ रही हूं उन्हें? यू नो जितना कमाती हूं उसमें ऑलमोस्ट सब पैसे जाकर उनके हाथों में सौंपती हूं कि उन्हें ये लगे कि मैं कमाने लगी तो अपने ही माँ-बाप को भूल गई। क्यों हो रहा हैं मेरे साथ ऐसा?”
    वो सब कुछ एक ही लय में कहती चली गई थी। आँखों में हल्की नमी दिखने लगी थी।

    अदित्री ने उसकी पूरी बात सुनी और अपना माथा झुकाकर आँखें मूंद लीं। कुछ दृश्य स्वतः ही उभरने लगे थे उसके मन में।

    “तुम्हे ये शादी करनी ही होगी अदित्री! बस! और अब मैं कुछ नहीं सुनूंगी।”

    उसके दिमाग में ये शब्द गूंजते ही तुरंत आँखें खोल ली थी। पसीने की बूंदे आ रहे थे माथे पर और कुछ जी पलों में रोशनी से चमकने भी शुरू हो गए थे। हाथ-पैर थरथरा रहे थे जिसको नियंत्रित करने की भरकस कोशिश कर रही थी वो।
    तभी, एक पानी का ग्लास उसके सामने आया था। उसने गीली नजरें उठा कर देखा तो नक्षत्रा मुस्कुराते हुए खड़ी दिखाई पड़ी थी। हैरानी ने अब उसके चेहरे की रंगत बदल दी थी। अदित्री झुकी हुई थी और अब सीधी हुई थी पानी का ग्लास उसने पकड़ा और एक साँस में ही पूरा खाली कर गई।

    नक्षत्रा भी एक चेयर खींच कर बैठ गई। उन्नति को अपने में बिठा कर वो मुस्कुराते हुए सबको देख रही थी।
    राशि ने उसको देखा तब हैरानी अपने-आप चेहरे आकर घिरी और उसने तुरंत खड़े होकर कहा, “गु..गुड आफ्टरनून मैम!”

    “अरे ऐसे खड़े मत होइए, यहां मैं कोई मैम नहीं हूं! बैठ जाइए।”, नक्षत्रा ने आस-पास देखा तो कुछ लोगों की नजर उन पर ही थी।

    राशि थोड़े देर उसको देखती रही जब फिर नक्षत्रा ने उसको बैठने का इशारा किया। वो झट से बैठ गई और सिर हिलाकर चुप रह गई।

    “अम... तो कुछ जरूरी बातें चल रही थी क्या? गलत समय पर आई हूं मैं।”
    नक्षत्रा ने सवाल किया।

    “नहीं! कोई गलत समय पर नहीं आईं हैं आप। वो राशि परेशान थी तो उसने हमे बुलाया था मिलने को। आज वीकेंड है तो आद्यन्त को घुमाने के लिए आ गई।”, अदित्री बिना किसी भाव के बोली।

    क्षमा ने उसको देखते हुए सिर हिलाया और उसके कंधे पर हाथ फेरकर उसको संयमित रहने का इशारा भी कर दी थी। अदित्री ने अपना सिर झुकाया और इस बार जब उसका चेहरा ऊपर उठा तो अब लबों पर मुस्कुराहट आ चुकी थी।

    नक्षत्रा राशि की ओर पलटी। राशि उनको नहीं देख रही थी। उसका ध्यान वहां पर था ही नहीं। जैसे किसी और संसार में गुम हो चुकी हो और अब इस संसार से उसका कोई नाता नहीं रहा था।

    “कुछ बात हुई है राशि? देखिए ऐसा मत सोचिएगा कि मैं आपकी प्रॉब्लम नहीं समझूंगी। जरूर समझूंगी अगर नहीं भी समझी... तो पूरी कोशिश करूंगी समझने की। मैं भी एक औरत हूं! विश्वास करिए।”, नक्षत्रा ने बड़े प्रेम भाव से कहा था जिस पर राशि के नेत्रों में आँसू स्वतः ही आए थे और अपनी रेखा गालों के नीचे तक खींच भी चुके थे।

    वो बिना आवाज के रोने लगी थी। नक्षत्रा अपने चेयर से खड़ी होकर उन्नति को अपने जगह पर बिठा कर। स्वयं उसके बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई।

    “राशि! देखिए जो भी प्रॉब्लम खुल कर बताइए ऐसे रोने से कुछ नहीं होता।”, नक्षत्रा ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा।

    राशि का चेहरा पूरा लाल रंग में रंग गया था। रोने से हिचकियां बंध गई थी लेकिन रोना तनिक सा भी कम ना हुआ था। नक्षत्रा ने उसको समय दिया था और उसको संयमित करने का प्रयत्न भी अब छोड़ चुकी थी। केवल उसके पीठ पर हाथ रख कर उसको रोते हुए सुन रही थी।

    अदित्री उन दोनों पर अपने आँखें टिकाए रखी थी। उसके नेत्रों में अभी भी कुछ था जो काफी उदासीन प्रतीत होता था। आद्यन्त अदित्री की गोद में खुद कर बैठ गया और उसके सीने से चिपक गया। अदित्री की हथेलियां उठीं और उसके बालों पर धीमे-धीमे से घूमने लगे। कुछ दृश्य अभी भी धुंधले सा दिखाई पड़ रहा था उसे जिन्हें छिपाने का भरपूर कोशिशें की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ था।

    अचानक उसका शरीर काफी हल्के से थरथराया जिसको उसने अनदेखा किया। फिर कुछ देर तक ही वो सही रही। उसका बदन अब उसके नियंत्रण से बाहर था।
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    जारी है....
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  • 13. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-13

    Words: 1209

    Estimated Reading Time: 8 min

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    अदित्री ने स्वयं के शरीर को संभालने की पूरजोड़ कोशिश की थी। उसकी थरथराहट भांप कर आद्यन्त भी एकदम से उससे अलग हुआ और उसके गालों को अपने हाथों में भरकर बोला, “ममी... क्या हुआ आपको? आप इतने काप क्यों रहे हो?”

    अदित्री ने ना में सिर हिला कर उसको वापस अपने सीने से लगा ली। उसका कांपना अब कम नहीं हो रहा था और बढ़ता ही जा रहा था। क्षमा की नजर एकायक उस पर पड़ी तो उसने जल्दी से अपने पर्स को टटोलना शुरू कर दी थी। कुछ हाथ आते ही उसने अदित्री के हाथों में रखा और आँखों से ही जल्द लेने का इशार की और पानी का ग्लास उसके पास बढ़ा दी।

    अदित्री की अब ब्रीदिंग भी फास्ट हो रही थी। चेहरा हल्का सा लाल दिखाई देने लगा था लेकिन वो हर बढ़ते वक्त के साथ आद्यन्त को अपने से और चिपका लेती। क्षमा की दी गई मेडिसिंस उसने अपने मुंह में रखा और फिर पानी भरते हुए एक ही साँस में गटक गई। करीब दो से तीन ही मिनिट लगे हुए होंगे उसको सामान्य स्थिति में पहुंचने के लिए।
    क्षमा ने उसको देखते हुए उसके हाथ को अपने हाथ से कसके पकड़ कर दूसरे हाथ से सहलाने लगी थी।

    ये सब केवल उन तीनों के मध्य ही रहा था नक्षत्रा, राशि और उन्नति को कुछ ज्ञात नहीं हुआ था इस बारे में।

    नक्षत्रा ने जैसे तैसे ही लेकिन राशि को कई बातें कहीं थीं। उसकी बातें गौर से सुनी भी थी। राशि अब उन सबके साथ कुछ शांत हो गई थी और अब उसका रोना भी बंद हो गया था।
    जब उसी के मूड को हल्का करने के वास्ते नक्षत्रा ने अदित्री से पूछा, “अदित्री आपके पेरेंट्स ने भी आपके साथ ऐसा किया था क्या? और अभी तक मैने आपके हसबैंड को नहीं देखा इतना भी क्या पोजेसिव हो रही हैं अपने पति परमेश्वर के लिए?”

    “दिखाने के लिए होना भी तो चाहिए होता है!”, अदित्री ने एक फीकी मुस्कान अपने चेहरे पर ओढ़े कह।

    नक्षत्रा को इसके बातों का मतलब समझ ना आया था। उसकी नजर एक आध बार आद्यन्त पर फिर रुकी थी लेकिन गलतफहमी की तरह उसने इस बात को माथे से हटाया।
    भले ही अदित्री ने कम आवाज में कहा था पर सुनाई सभी को दिया था।

    “अदित्री क्या कह रही हैं आप? जो मुझे लग रहा है वो सही तो नहीं हैं ना...!”, नक्षत्रा की आवाज में अचंभा झलका था।

    अदित्री इसका कोई जवाब देती ही की क्षमा ने उसको हाथ दिखा कर चुप कर दिया और खुद बोली, “नहीं... आप जैसा सोच रहीं हैं वैसा कुछ भी नहीं है और इस बात को जब भी जीजी याद करतीं हैं तो उनको पैनिक अटैक्स आतें हैं इसलिए जरूरी यही होगा कि इस बात यहीं स्किप करते हैं। फिर कभी हो सके तो चर्चा होगी।”
    उसने जिस प्रकार कहा था आगे किसी की हिम्मत ही नहीं बंधी कि कुछ आगे इस विषय पर बोला जा जाए।

    नक्षत्रा को कुछ खटका था लेकिन क्षमा को देखती हुई वो आगे ना बोली।

    “अब शायद समय ज्यादा हो गया है और स्टूडेंट्स आतें ही होंगे। सो अब हमे जाने का कष्ट करना ही होगा।”, क्षमा ने अपनी कुर्सी पीछे कर उठ गई थी और आद्यन्त को अपने गोद में लेकर अदित्री को अपने साथ आने का बोली थी।

    नक्षत्रा ने जाते हुए अदित्री से कहा, “अगर भूल चुक से कोई गलत सवाल पूछ लिया हो मैने तो माफ कर दीजियेगा। मुझे नहीं पता था कि ये आपके इतना सीरियस टॉपिक होगा।”

    अदित्री कुछ देर रुकी और कुछ सोचने के बाद उसने इंकार में सिर हिलाकर कहा, “जी नहीं नक्षत्रा जी! कोई गलत सवाल नहीं पूछा आपने बल्कि अगर मैं आपकी जगह होती तो स्वयं ये ऐसे क्वेश्चन्स पूछने की भूल कर सकती थी तो इस बात का इतना प्रेशर मत लें अपने ऊपर और हाँ कल से शाम के छः बजे आप उन्नति को मेरे घर ले आइएगा। वो एक स्टूडेंट की कोचिंग लगवा दी है उसकी माँ ने तो अब उसके स्थान पर उन्नति आ जाएगी।”

    “जी बिल्कुल! मैं तो कब से इंतजार कर रही थी इस समय का। मैं जरूर उन्नति को लिए आऊंगी कल।”, नक्षत्रा ने खुशी बयां करते हुए कहा।

    अदित्री अब उससे विदा लेकर क्षमा में रुकवाए ऑटो में बैठ गई थी। राशि भी उन्हीं के साथ थी उसका स्टॉप थोड़ा पहले आता था तो वो भी बैठ गई।

    नक्षत्रा एक ओर बढ़ गई जहां उसकी गाड़ी पार्कड थी। गाड़ी से टेक लगाए एक शख्स खड़ा था जो उन्हीं दोनों के इंतजार में लग रहा था। नक्षत्रा की नजर उसपर पड़ी और उसके कदम एकदम से ठिठक गए। उन्नति ने उसको देख चिल्लाते हुए हाथ बढ़ाया, “पापा!...”

    वो उसको देखते हुए उसके एक टांग को जकड़ ली तब उसके पापा ने हँसते हुए उसको अपनी गोद में उठा लिया। नक्षत्रा ने दोनों को एक नजर देखते हुए नजरें फिरा लीं और गाड़ी में जाकर बैठ गई। उसके माथे पर शिकन की रेखाएं उभरने लगी थीं और मुट्ठियां भींच रहीं थीं।

    “अब क्यों आएं हैं आप?”, उसने स्वयं से बड़बड़ाते हुए कहा था।

    “क्यों नहीं आ सकते?”, एक ठंडी आवाज उसके कानो में आई तो वो नजरें पलट कर तुरंत उस ओर देखी थी। वो हल्के डर से पीछे खिसक गई और अपने-आप वो बोली, “नहीं भाई! ऐसा कुछ नहीं है! वो तो बस...!”

    नक्षत्र ने घूरती नजरों से उसको देखा और कहा, “मुझे ऐसे बहानों से सख्त नफरत है बहना। इसलिए जो है तुम दोनों के बीच या जो कुछ भी चल रहा है... उसको या तो सॉल्व करो या मैं ही जड़ से खत्म करूं!”

    “नहीं भाई! ऐसा कुछ भी जो आप सोच रहे हैं नहीं है। वो एक छोटा सा झगड़ा हो गया था तो बस बात नहीं हो रही थी।”, उसने दबे आवाज में कहा लेकिन तब भी नक्षत्र का घूरना कम ना हुआ।

    “तुम दोनों का साल के बारह माह.. बारह सौ बार ये झगड़ा होता है। वो भी उल-जलूल टॉपिक पर.... एक काम क्यों नहीं करते तुम दोनों डायवोर्स ले लो और अलग हो जाओ और उन्नति की कस्टडी एक दूसरे में से कोई ले लो। बस सारी प्रॉब्लम यहीं खत्म हो जाएगी।”, नक्षत्र ने गाड़ी के फ्रंट शीशे से देखा था जहां दोनों बाप बेटी हँसते हुए बातें कर रहे थे।
    उन्नति बीच बीच में उसके बालों को खींच रही थी जो पूरे सलीके से सेट थीं पर उसने एक बार भी उसको इस बात पर टोका नहीं था।

    नक्षत्रा की निगाहें अपने पति पर एक बार भी नहीं गई थी। उसने उन्नति को देखा था जो काफी खुश नजर आ रही थी। एक अजीब सी चिंता डायवोर्स वाले बात को सुनते हुए उसके मन में घर कर गई थी और अब वो कुछ ज्यादा ही भयभीत दिखाई पड़ रही थी।

    तभी, गाड़ी के पैसेंजर सीट पर वो उन्नति को लिए हुए बैठा और ड्राइवर को गाड़ी चलाने का इशारा किया। उसकी नजर एक बार मिरर पर गई तो नक्षत्रा का अक्स नजर आया लेकिन वो बिन भाव के वो एकदम परेशान लगी थी। उसने भी दुबारा उसको नहीं देखा।

    गाड़ी जा एक जगह रुकी तब नक्षत्रा के माथे पर ठंडे पसीने साफ नजर आने लगे। उसने पलट कर उसको देखा जो पहले से उस पर अपनी पैनी नजरे बनाए देख रहा था।

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    जारी है....
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    धन्यवाद!

  • 14. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा)-14

    Words: 1237

    Estimated Reading Time: 8 min

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    नक्षत्रा अब भी वैसे ही बैठी थी। आगे के सीट से वो उतर चुका था और उसने अब नक्षत्रा पर कोई ध्यान दिए बिना अपने कदम आगे बढ़ा दिए थे। नक्षत्रा को बैठा देख नक्षत्र ने आँखें छोटी करते हुए उससे कहा, “उतरना नहीं है क्या तुम्हे? अभी भी ऐसे बैठी हो। ‘अर्चित’ कब का जा चुका।”

    नक्षत्रा ने सिर हिलाया लेकिन मुख से साफ था उसका जाने का कोई मन नहीं था। वो उतरी और हल्के कदमों से उस तीन मंजिले मकान में भीतर प्रवेश कर गई।
    नक्षत्र ने तब तक अपनी गाड़ी नहीं बढ़ाई जब तक वो अंदर ना चली गई।

    “कुछ तो ये दोनों छुपा रहे हैं? अगर नहीं रहना है साथ तो फिर रह ही क्यों रहे हैं!...”, नक्षत्र ने स्वयं से पूछा लेकिन उत्तर उसे थोड़ी देर तक सोचने के बाद भी ना मिला।
    एक नजर फिर उस मकान को देख उसने ड्राइवर को गाड़ी बढ़ाने का इशारा किया। अपना फोन जेब से निकाल कर किसी को कॉल करने लगा।
    कुछ दो रिंग जाने पर ही कॉल उठा तो उसने कठोर आवाज में कहा, “कहां हो अभी रितुल?”

    “अपनी आयटम के गली में.... निगरानी कर रहा!”
    सामने से आई बात सुन कर नक्षत्र हल्का चिढ़ गया और कहा, “यही कर तू पूरा दिन! लड़कियों को ताड़ने के अलावा और कुछ धंधा रह ही क्या गया तेरे पास।”

    “ए...इतना नहीं बोलने का! लड़की ताड़ते हुए भी इतना तो कमा ही लेता हूं मैं की मेरे आने बाल-बच्चे के बाल-बच्चे भी ऐश करते हुए जिंदगी जिएंगे।”

    नक्षत्रा अपना सिर हिला दिया। वो भी किस भैंस के आगे बीन बजा रहा था। उसने आगे कहा, “अच्छा सुन! मेरे को एक चीज पता लगवाना है... करेगा?”

    “अरे बिल्कुल काहे को नहीं करूंगा मैं... पईसे के आगे मैं सब कुछ करूंगा, बस हुकुम कर दो मेरे आका।”

    “मेरे हॉस्पिटल में आकर मुझसे मिलो!”

    “ओके बॉस! मैं शाम के पांच बजे फिरी होता हूं तो आने में थोड़ा इधर-उधर होगा। तो वो आप थोड़ा मईनेज कर लीजिए।”

    “ठीक है! लेकिन इतना भी देरी नहीं होना चाहिए जो मैं ही हॉस्पिटल से निकल लूं।”, उसने कहा और फोन काटते हुए अपने जेब में ठूस लिया।

    ———————————————

    अदित्री, क्षमा के साथ एक सीट पर बैठी हुई थी। क्षमा उसको देखते हुए मुस्कुरा रही थी लेकिन अदित्री मुंह बनाए थी। जिस पर क्षमा ने उसको एक तरफ से उसके गले में बाहें डाल कर गले लगा लिया। अदित्री ने फिर भी कुछ नहीं कहा।

    “अरे जीजी!... इतना गुच्छा चेहत के लिए सही नहीं होत। अब मुस्कुराए दो।”, उसने अपने होठों को गोल कर लिया था और वो इस समय एक नन्हे बच्चे के तरह लगी।

    अदित्री ने एक नजर उसको देखा फिर धीमे आवाज में लेकिन गुस्से में बोली, “तो काहे इन्हा लाके पटक दी हमको। कहे थे ना तुमको नहीं आना है हमको अस्पताल फिर भी हमको ले आई। अब हम बोल दे रहें हैं तुमसे बात नहीं करेंगे और ज्यादा चू चपर कि तो लगा देंगे दुई ठो तो सब अकल ठिकाने आ जाएगा। अब खिसक कर बैठ जाओ शांति से और हमको भी शांति से रहने दो।”

    “जीजी.... इतना गुस्सा काहे ला करती हो तुम! देखो तुम्हारी चिंता हुई रहती है पूरा दिन भर आज हमारे सामने तुम्हारा ई हालत है तो कल को कहीं बाहर अकेले में भी तो हो सकता है। अब मुंह ना फैलाओ नहीं तो कुछ हो ना हो लेकिन तुम फूल-फूल के फुल्का जरूर बन जाओगी।”, क्षमा ने अपनी पकड़ और अधिक कस ली थी उसपर और अंत में बोलते हुए उसने बत्तीसी चमकाई थी।

    अदित्री ने टेढ़ी नजरों से उसको घूरकर देखा था, जब एक डॉक्टर उनके पास आया और अदित्री का बीपी चेक करने लगा। एमरजेंसी वार्ड में तीसरे नंबर पर वो थी। क्षमा ने उसकी एक नहीं सुनी थी जबसे उसकी ऐसी हालत उसने फिर देखी थी, इसलिए सीधे हॉस्पिटल ही के आई थी।

    “क्या दिक्कतें हो रही हैं आपको? जैसे कुछ साँस में प्रॉब्लम वगैरह....!”, डॉक्टर ने पूछा।
    तब अदित्री ने सिर हिलाते हुए बताया, “हाँ! वो अचानक से साँसें अटकने लगीं थीं आज।”

    डॉक्टर ने तुरंत उसको देखा फिर पूछा, “अभी भी साँस अटक रही है?”

    “नहीं! अभी तो वैसी कोई दिक्कत नहीं हो रही।”

    “अच्छा! कोई चेस्ट में पेन हुआ था उस समय?”

    “हाँ!”

    “ये लीजिए कुछ देर में ये डॉक्टर आयेंगे आप एक बार उनसे कंसल्ट करिए।”, उस डॉक्टर ने उसको पर्चा पकड़ाया और दूसरे पेशेंट की ओर बढ़ गया।

    अदित्री मुंह बनाते हुए फिर बैठ गई। काफी देर तक उसने और क्षमा के इंतेज़ार करते हुए बीते। अदित्री की खीज बढ़ती जा रही थी और क्षमा इसको देखते हुए पलके झुका कर बत्तीसी दिखा दे रही थी। अदित्री ने जैसे तैसे स्वयं को संयत किया था। लेकिन बस उस डॉक्टर की आने की ही देर थी और बस उसका गुस्सा फुट पड़ना तय था। इस बात से क्षमा भी वाकिफ थी और काफी बुरा लग रहा था उसे उस डॉक्टर साहब के लिए।

    अचानक से एमरजैंसी वार्ड के भीतर एक शख्स प्रवेश किया था। मेहरून शर्ट और ब्लैक पेंट पहने था, बालों में बार-बार हाथ फिराते हुए आ रहा था। हल्के गिले बालों जो कुछ माथे के आधे भाग को भी घेर रहे थे। चेहरा ऐसा था कि सारी लेडीज पेशेंट ने एक बार अवश्य ही माथा उठा कर देखा था।
    अपने फोन में डूबे हुए वो एक सीट के सामने खड़ा हुआ और नजरे फोन में गड़ाए ही पूछा, “अभी उनके चेक करने के बाद कोई दिक्कत महसूस हुई आपको?”

    “जी नहीं! फिलहाल कोई दिक्कत नहीं हुई।”
    उस आवाज के कानो में घुलते ही तुरंत अपनी नजरें उठाया और अदित्री को सामने बैठे देख कुछ पल हैरानी से ताकता रहा। अचानक ही उसकी तंद्रा भंग हुई और हिचकते हुए उसने फिर कहा, “अदित्री जी! आप आद्यन्त की मदर ही हैं ना कि मैं कोई स्वप्न देख रहा हूं।”

    “नहीं आप कोई भी स्वप्न नहीं देख रहे। मैं ही हूं, अदित्री!”, अदित्री को अभी तक जितना क्रोध इस हॉस्पिटल के कर्मचारियों पर आया था, अब वो कहीं नजर नहीं आया था उसके लहजे में।

    नक्षत्र हल्का मुस्कुराया और धीमे से पूछा, “ओह! मैं शायद कन्फ्यूज हो गया था।”

    तभी अचानक से अदित्री के चेहरे की रंगत बदल गई थी और इसमें आश्चर्य से बड़ी-बड़ी आँखों के साथ पूछा, “आप तो ज्वैलरी शॉप के स्टाफ थे ना... तो फिर यहां डॉक्टर कैसे?”

    नक्षत्र का मन अभी अपना माथा किसी बड़े पत्थर पर दे मारने का हुआ था। उसे लगा था कि शायद अदित्री इस बात को भूल चुकी है लेकिन वो सरासर गलत निकला था। उसने फिर एक कुछ सोचा और कहा, “वो मेरी माँ का ही शॉप था शायद आप ध्यान से इस बात को गौर करेंगी और सोचेंगी तो जरूर समझ आ जाएगा।”

    “ओह हाँ! आप तो नक्षत्रा जी के भाई हैं! मैं कैसे इस बात को गौर नहीं कर पाई। आपको और नक्षत्रा जी को साथ देखा भी पर खैर... छोड़िए। बीती बातें। आप यहीं के डॉक्टर हैं ना।”, अदित्री ने कुछ देर सोचा फिर जवाब दिया।

    नक्षत्र ने हाँ में सिर हिला कर उत्तर दिया, “अब ऐसे ही तो आया नहीं होऊंगा। जरूर कोई काम है तभी आया हूं।”

    “जीजी! टेढ़े जवाब दे रहे ये आपको।”, क्षमा ने उसकी बात सुनी थी और फुसफुसाते हुए उसके कान में चुगली करने की हिसाब से बोली।

    उसकी आवाज इतनी तेज थी कि नक्षत्र के कानो में भी पड़ी थी और अब वो क्षमा को देख रहा था, जिसने उसके देखते ही चेहरा घुमा लिया था।

    ———————————————

    जारी है....
    आगे की कहानी जानने के लिए आने वाले अगले भागों की प्रतीक्षा अवश्य करें!
    धन्यवाद!

  • 15. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा) - Chapter 15

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  • 16. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा) - Chapter 16

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  • 17. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा) - Chapter 17

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  • 18. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा) - Chapter 18

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  • 19. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा) - Chapter 19

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  • 20. “अलभ्य संगमः”(हृदयस्य तृष्णा) - Chapter 20

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