राजकुमार रिवांश, जिसे अपने दोस्तों से मिला धोखा, और एक शापित जिंदगी, जहां उसे पूरी जिंदगी एक वैंपायर बनकर रहना होगा। ऐसे में रिवांश की जिंदगी में आई आकांक्षा, जिसके पास कुछ दैवीय शक्तियां है। क्या आकांक्षा रिवांश को उसके श्राप से मुक्ति दिला पाएगी या... राजकुमार रिवांश, जिसे अपने दोस्तों से मिला धोखा, और एक शापित जिंदगी, जहां उसे पूरी जिंदगी एक वैंपायर बनकर रहना होगा। ऐसे में रिवांश की जिंदगी में आई आकांक्षा, जिसके पास कुछ दैवीय शक्तियां है। क्या आकांक्षा रिवांश को उसके श्राप से मुक्ति दिला पाएगी या उसके प्यार में पड़कर अपना असली मकसद यानि रिवांश को खत्म करना, भूल जाएगी। जानने के लिए पढ़िए, "A cursed vampire and his angel"
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सन् 1850… यह वह दौर था, जब भारत में अंग्रेजी सत्ता ने अपनी पकड़ मज़बूत बना ली थी। रियासतों के शासक अंग्रेज़ों के गुलाम बन चुके थे। उसी तरह एक रियासत थी, "बिलासपुर की रियासत"। बिलासपुर की रियासत के शासक महाराज विक्रमप्रताप सिंह थे। आज महल में उत्सव का माहौल था। चारों तरफ़ बस खुशियाँ छाई हुई थीं। महल को बहुत ही ख़ूबसूरती से सजाया गया था। रानी मैनावती को तो जैसे आज पंख लग गए थे। वह इधर-उधर भाग-दौड़ में लगी हुई थी। मैनावती ने जोर से आवाज़ लगाकर कहा, "अरे चंपा..! तुम इधर आओ। जमुना किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं देनी चाहिए। पता है ना आज का दिन कितना शुभ है?" जमुना दौड़ कर उनके पास आई और मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हाँ हाँ, रानी सा! जैसा आपने बताया वैसा सब इंतज़ाम हो गया है। आप सुबह से दौड़-धूप में लगी हैं। कुछ देर विश्राम कर लीजिए।" मैनावती: "अब तो हम तभी विश्राम करेंगे, जब हमारे राजकुमार रीवांश हमारे सामने आएंगे। उनके पिताजी ने उन्हें विदेश में पढ़ने के लिए भेजा था। अब तक तो उनकी पढ़ाई पूरी हो चुकी होगी। पूरे 10 साल बाद हम अपने रीवांश को देखेंगे। जब वह गए थे, तब 15 साल के थे। कितने बड़े हो गए होंगे ना हमारे बेटे? अरे अब तो उनकी शादी की भी उम्र हो गई होगी। अब तो एक पल का भी इंतज़ार नहीं होता। बस अब तो वह आँखों के सामने आएंगे, तभी उन्हें सुकून मिलेगा।" दूसरी दासी चंपा भी उस तरफ़ दौड़कर आई। उसने रानी मैनावती को फूल दिखाते हुए पूछा, "ये ठीक है ना, रानी सा? और क्यों चिंता करती हैं? बस आज रात की बात है। यह रात गुज़र जाए, फिर सुबह तो राजकुमार आपकी आँखों के सामने होंगे।" मैनावती ने जवाब दिया, "यह रात ही तो नहीं गुज़रती। उनके इंतज़ार में हमने कितनी ही रातें बिता दीं। लेकिन यह एक रात का इंतज़ार हमारे पिछले 10 सालों के इंतज़ार पर भारी पड़ रहा है।" मैनावती वहाँ से शाही रसोईघर की तरफ़ मुड़ी, जहाँ पर रीवांश के पसंदीदा पकवान बनाए जा रहे थे। उधर दूसरी तरफ़, राजकुमार रीवांश अपने शाही घोड़े पर बिलासपुर की तरफ़ बढ़ रहे थे। उनके साथ उनकी रियासत के चार लड़के थे। वैसे तो वह चारों वहीं के दास-दासियों के पुत्र थे, लेकिन रीवांश ने उन्हें हमेशा अपना दोस्त समझा। राजकुमार रीवांश इस बात से पूर्णतया अन्जान थे कि जिन्हें वह अपना दोस्त समझ रहे हैं, वही आज उन्हें उनके जीवन का सबसे बड़ा श्राप देने वाले थे। **बिलासपुर के पास का जंगल…** **रात के 10 बजे…** रीवांश ने जंगल में प्रवेश करने से पहले अपने घोड़े को रोककर पूछा, "आप लोग हमें इस घने जंगल में क्यों लेकर जा रहे हैं? रास्ता तो उधर से भी जाता है ना?" विजय ने शैतानी मुस्कराहट के साथ जवाब दिया, "अरे युवराज! आप डर क्यों रहे हैं? यह रास्ता छोटा पड़ता है। रानी सा आपके इंतज़ार में बावली हुई जा रही हैं। तो हमने सोचा कि हम इस रास्ते से चलें।" रीवांश उनकी बात मानकर उनके साथ जंगल वाले रास्ते से आगे बढ़े। वह भी अपनी माँ से मिलने के लिए बहुत आतुर हो रहे थे। जंगल में कुछ दूर पहुँचकर उन चारों ने सबको रुकने का इशारा किया और रात को वहीं डेरा जमाने का आदेश दिया। रात काफ़ी हो चुकी थी और सब लोग बहुत थक भी चुके थे, तो वहीं कारवाँ जमाने में लग गए। संजय ने रीवांश के पास जाकर कहा, "जब तक ये लोग यहाँ डेरा लगाते हैं, हम थोड़ा आगे जाकर टहल आते हैं? क्यों, राजकुमार, चलेंगे ना?" "नहीं, हम काफ़ी थक गए हैं। और नींद भी काफ़ी आ रही है।" रीवांश ने उन्हें मना कर दिया। उसके मना करने पर उन चारों का चेहरा उतर गया। रवि ने मुँह लटकाकर कहा, "लगता है विदेश में पढ़कर आप अपने बचपन के साथियों को भूल गए? हमारी औक़ात नहीं थी कि हम भी परदेश में जाकर पढ़ें। हम आप के ओहदे से काफ़ी छोटे हैं, तभी आप हमारे साथ नहीं घूमना चाहते ना?" रीवांश ने चकित होकर कहा, "ये आप लोग कैसी बातें कर रहे हैं? हमने कभी अमीर-ग़रीब में भेद नहीं किया। भले ही हम विदेश में पढ़कर आए हैं, लेकिन हमारे संस्कार आज भी भारतीय ही हैं। चलिए, चलते हैं।" रघु ने अपने साथ एक थैला लिया। रीवांश ने उसकी तरफ़ सवालिया निगाहों से देखा तो उसने बहाना बनाकर कहा, "इसमें हमारे खाने-पीने का सामान है बस…!" रीवांश मुस्कुराते हुए उन चारों के साथ आगे बढ़े। काफ़ी दूर चलने के बाद वह जंगल में काफ़ी आगे निकल गए। "लगता है आप काफ़ी थक गए हैं, राजकुमार! चलिए, विश्राम करते हैं।" उनमें से चौथा लड़का रवि बोला। वह पाँचों वहीं बैठ गए। ठंड होने के कारण रवि ने वहाँ बीचो-बीच थोड़ी आग जला ली। फिर उसने अपने थैले में से कुछ तंत्र-विद्या का सामान निकाला। उस तंत्र-विद्या के सामान को देखकर विजय, संजय, रघु और रवि के चेहरों पर एक शैतानी मुस्कराहट आ गई। रीवांश कुछ नहीं समझ पा रहे थे कि उन लोगों के पास में यह सब क्या और क्यों था। रीवांश ने अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए पूछा, "ये आप सब लोगों ने क्या ले रखा है? हम लोग तो विश्राम करने के लिए रुके हैं ना?" संजय उन चारों में सबसे चालक था। उसने जवाब दिया, "अरे कुछ नहीं, युवराज… एक छोटी सी पूजा है। आप की सलामती और खुशहाली के लिए…! इसी बहाने रात भी कट जाएगी और देखिए ना, (आग जलाते हुए) आग होगी तो जंगली जानवर भी हमारे पास नहीं आएंगे और ठंड भी नहीं लगेगी।" रीवांश स्वभाव से बहुत मासूम और दिल का सच्चा था। वह उन सबके मन में चल रही कुटिलता से अनजान था। उसे नहीं पता था कि वह लोग दोस्ती के चोगे में छिपे हुए भेड़िये थे, जो उस पर पीठ पीछे वार करने की तैयारी के साथ ही आए थे। वह उन कुटिलों की मीठी-मीठी बातों में आ गया और अनजाने में उस पूजा में शामिल हो गया। यह पूजा कोई आम पूजा नहीं थी। यह एक बहुत ही सिद्ध काले जादू की पूजा थी। वे चारों काफ़ी समय से उस दिन का इंतज़ार कर रहे थे, जब वे राजकुमार के साथ वह तंत्र-विद्या कर सकें। वे उस साधना के ज़रिए स्वयं शैतान को जागृत करना चाहते थे। रीवांश का जन्म पूर्णिमा के दिन अश्विनी नक्षत्र में हुआ था। अश्विनी नक्षत्र सभी नक्षत्रों में सबसे शक्तिशाली नक्षत्र माना जाता है। उन चारों को अच्छी तरह से मालूम था कि राजकुमार के ग्रह-नक्षत्र बहुत शक्तिशाली हैं। इस सिद्ध पूजा को अभिमंत्रित करने के लिए कोई शक्तिशाली ग्रह-नक्षत्र का स्वामी होना ज़रूरी था, इसलिए उन्होंने बेईमानी से उन्हें पूजा में बिठा दिया। वे चारों इस पूजा में कई मासूमों की बलि से इकट्ठा किया हुआ रक्त का प्रयोग करते हैं। वे लोग काफ़ी समय तक उस पूजा को करते रहे। रात्रि के तीसरे पहर बीतने के साथ ही जंगल के अंदर मनहूसियत छा गई। शैतान बुराई का जड़ था। उसकी परछाई जंगल पर पड़ी और उसी क्षण वह जंगल एक शापित जगह में परिवर्तित हो गया। वह अंधेरी रात उस बुराई से और ज़्यादा अंधेरी हो गई। चारों तरफ़ भेड़ियों और चमगादड़ों के रोने की आवाज़ आ रही थी। जानवर इधर-उधर भागने लगे। हर तरफ़ से बुरी शक्तियाँ आने लगीं, मानो वह शैतान, जो कि उनका बादशाह था, उनके आने की खुशियाँ मना रहे हों… डायन और चुड़ैलें अपनी कर्कश ध्वनि से गुनगुना रही थीं… उनका स्वर इतना भयानक था कि उन पाँचों के कानों से ख़ून बहने लगा। वह शैतान की परछाई बहुत भयानक थी। भले ही कुछ साफ़ नज़र ना आ रहा हो, लेकिन वहाँ ख़ौफ़ पैदा करने के लिए उसका काला साया ही काफ़ी था। वह बहुत विशाल और भयावह था। उसकी परछाई ने पूरे जंगल को आकाश की भाँति अपने आगोश में ले लिया था। वे पाँचों घबरा गए। तभी किसी की बहुत ही भयानक आवाज़ गूँजी, "किसने किया है हमारा आह्वान… जानते नहीं… जब एक शैतान आता है, तो कईयों की मौत साथ लाता है।" रघु, विजय, संजय और रवि नीचे सिर झुकाकर बैठ गए। वह मंज़र इतना भयानक था कि उन चारों के मुँह से एक शब्द भी नहीं निकलता। रीवांश तो अपनी जगह पर जैसे पत्थर की मूर्ति बन गए। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वहाँ क्या हो रहा है। रघु ने हिम्मत बटोरकर हकलाते हुए कहा, "म… मालिक, हम चार दासों ने आप का आह्वान किया है। मालिक की जय हो… अंधेरे की जय हो।" तभी वह भयावह आवाज़ फिर गूँजते हुए बोली, "बोलो, क्या चाहिए?" विजय ने कुटिल मुस्कान के साथ जवाब दिया, "हमें अंधेरे का गुलाम बना लीजिए। हमें तामसी शक्तियाँ चाहिए। हमें… हमें अपनी सरगोशी में ले लीजिए, मालिक…!" संजय ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "हम हमेशा ज़िंदा रहना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि कभी बुढ़ापे का साया भी हम लोगों के ऊपर ना पड़े।" रवि: "बस कुछ भी करके हम हमेशा जीवित रहना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़े, वैसे-वैसे हमारी शक्तियाँ भी बढ़ती जाएँ।" "और तुम्हें क्या चाहिए? बोलो… तुम्हें क्या चाहिए? तुम्हारे द्वारा ही यह पूजा सम्पन्न हुई है।" शैतान का इशारा रीवांश की तरफ़ था। रीवांश उन सब घटनाक्रम से इतना ज़्यादा डर गया कि उसके मुँह से कुछ नहीं निकला। वह वहीं जड़ हो गया। "चलो, दिया, जो तुम पाँचों चाहते हो… वह सब दिया। पर जानते हो ना कि यहाँ हर एक इच्छा की एक कीमत होती है।" उसकी आवाज़ पूरे जंगल में गुँजने लगी। रघु ने जवाब में कहा, "हमने कीमत अदा की है ना… पूरे 100 बच्चों की बलि का रक्त अर्पित किया है आपको।" "वह तो हमारे आने की कीमत थी। अब जो तुमने माँगा है, उसकी भी एक कीमत होगी। तुम सब की आत्माएँ अंधेरों की गुलाम होंगी। तुम्हारे पास शरीर तो होगा, लेकिन आत्मा नहीं होंगी। तुम हमेशा जीवित तो रहोगे, लेकिन तुम सबको एक शापित जीवन जीना पड़ेगा। तुम्हारी शक्तियाँ दिन-ब-दिन बढ़ती तो जाएँगी, लेकिन उसके लिए तुम्हें जीवित लोगों के रक्त की आवश्यकता पड़ेगी।" संजय डरते हुए बोला, "आ… आप क्या बोल रहे हो? हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा…!" वह आवाज़ भयानक हँसी हँसते हुए बोली, "तुम लोग एक पिशाच का जीवन बिताओगे। नर-पिशाच… जो लोगों का ख़ून पीकर ज़िंदा रहते हैं। तुम्हें लम्बी उम्र, जवानी और शक्तियाँ चाहिए ना… एक पिशाच के पास वह सब कुछ होता है।" शैतान की बात सुनकर वे सारे डरकर वहाँ से भागने लगे। वे वहाँ से जा पाते, उससे पहले ही शैतान ने एक झटके में उन सब की आत्माओं को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया और यहाँ से शुरुआत होती है उन पाँचों के इंसान से नर-पिशाच बनने की…!! उधर बिलासपुर के महल में रानी मैनावती और राजा विक्रम प्रताप सिंह राजकुमार रीवांश का इंतज़ार करते रह गए। लेकिन आती है तो उनके ग़ायब होने की ख़बर…!! बिलासपुर की पूरी रियासत में यह ख़बर फैल गई कि रीवांश और उनके चार दोस्तों ने ख़ुद को शैतान का गुलाम बना लिया। इसी के साथ शुरू होता है बिलासपुर के जंगलों में मासूम मौतों का भयावह सफ़र… **कुछ समय बाद** **सन् 2018…** **शिमला…** **एक छोटा सा घर…** आकांक्षा ठाकुर अपने दादाजी राजवीर ठाकुर के साथ शिमला में शिफ़्ट हुई। राजवीर जी एक सरकारी कर्मचारी थे और रिटायरमेंट के बाद उन्होंने शिमला में रहने का फ़ैसला किया था। उन्होंने अपना घर जंगल के करीब लिया था, जहाँ पर आबादी ज़्यादा नहीं थी। राजवीर जी शहर के शोरगुल से दूर एक शांत जीवन बिताना चाहते थे… वहीँ उनकी यहाँ पर आकर रहने की वजह आकांक्षा भी थी। राजवीर जी का इकलौता बेटा मोहित और उसकी पत्नी नंदिनी का एक कार एक्सीडेंट में निधन हो चुका था। राजवीर जी का कहने के लिए कोई अपना नहीं रहा था। मोहित और नंदिनी की बेटी आकांक्षा में राजवीर जी की जान बसती थी। वहीँ वह आकांक्षा के साथ होने वाली घटनाओं से भी बहुत परेशान थे। इसलिए वह आकांक्षा को लोगों की भीड़ से दूर एक शांत जगह पर लेकर आए थे। आकांक्षा एक 22 साल की लड़की थी… दिखने में आम सी एक मासूम सी लड़की… जिसके लिए उसके दादू ही अब सब कुछ थे। आकांक्षा अपने कॉलेज की स्टडी पूरी कर चुकी थी और उसने शिमला के एक कॉलेज में अपनी मास्टर्स की स्टडी करने के लिए एडमिशन लिया था। राजवीर जी ने जोर से आवाज़ लगाई, "अक्षु, बेटा, क्या कर रही है? कितनी देर से देख रहा हूँ… 11:00 बज रहे हैं और अभी तक तू कॉलेज के लिए तैयार नहीं हुई।" आकांक्षा ने चिल्लाते हुए जवाब दिया, "दद्दू, मैं चली जाऊँगी ना अकेले कॉलेज… आप रोज़-रोज़ छोड़ने जाते हो, तो वहाँ पर सब मुझे बच्ची समझते हैं। और मैं आज कॉलेज नहीं जाने वाली हूँ। मैं आज मेरी फ़्रेंड जाह्नवी के पास जा रही हूँ।" राजवीर जी उसके पास जाकर बोले, "तू तो किसी को दोस्त नहीं बनाती… तो अब जाह्नवी कैसे… और यह वही है ना जो हमारे पड़ोस में रहती है।" आकांक्षा ने मुँह बनाते हुए जवाब दिया, "दद्दू, उसका घर हमारे घर से पूरे 15 मिनट दूर है, तो हमारी पड़ोसन कैसी हुई? अब मैं जा रही हूँ और आप मेरे साथ बिल्कुल नहीं जाएँगे।" राजवीर जी मुस्कुराते हुए बोले, "अच्छा, जा… लेकिन जल्दी आना… और अपने फ़ोन का जीपीएस ऑन रखना।" आकांक्षा बड़बड़ाते हुए बाहर निकली, "हाँ, ताकि आप मेरे हर एक सेकंड की लोकेशन का पता लगा सकें। आप भी ना, दद्दू… आपकी अक्षु अब बड़ी हो चुकी है।" आकांक्षा राजवीर जी को बाय बोलकर जाह्नवी से मिलने चली गई। जाह्नवी का घर पास होने के कारण वह पैदल ही वहाँ जा रही थी। रास्ते में वहाँ पर भीड़ इकट्ठा देखकर वह उस भीड़ के करीब चली गई। आकांक्षा ने आगे जाकर पूछा, "क्या हुआ है यहाँ पर?" भीड़ में से एक आदमी ने जवाब दिया, "अरे, वही जो रोज़ होता है। आए दिन जंगल के बाहर किनारे पर किसी ना किसी की लाश मिलती रहती है। अब तो पुलिस वाले भी इस शापित जंगल के अंदर जाने से डरते हैं।" आकांक्षा ने अपना चश्मा ऊपर करते हुए कहा, "शापित जंगल…!!" वह मुस्कुराते हुए आगे बोली, "हम ट्वेंटी-फ़र्स्ट सेंचुरी में रह रहे हैं। आप यह कैसी बातें कर रहे हो, अंकल? मैं भी तो देखूँ शापित जंगल के बाहर मिली लाश को।" बोलते हुए आकांक्षा भीड़ के अंदर जाकर देखा। वहाँ एक 20-22 साल की उम्र के लड़के की लाश पड़ी थी। उसके गर्दन पर दाईं तरफ़ किसी जानवर के काटने के निशान बने थे। उसे देखकर आकांक्षा ने सोचा, "लगता है इसे किसी जानवर ने काटा होगा। तभी देखो, बेचारे की मौत हो गई।" सोचते-सोचते अचानक आकांक्षा का हाथ उस लड़के के हाथ से टकरा गया… और ना चाहते हुए भी आकांक्षा की आँखें बंद हो गईं। आँख बंद होते ही आकांक्षा को कुछ दृश्य दिखाई देने लगे। "एक लड़का भयानक जंगल में भाग रहा था… चारों तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा था… और भागते हुए लड़का वह मदद की गुहार लगा रहा था। तभी अचानक से एक इंसान उसके पास आया और उसके कंधे के करीब आकर उसका ख़ून पीने लगा। इसी बीच लड़के की मौत हो गई।" और इसी के साथ आकांक्षा जोर से चिल्लाते हुए वहाँ बेहोश होकर गिर गई। क्रमशः…!!
Recap - अब तक आपने पढ़ा सन 1850 में बिलासपुर रियासत के राजकुमार रीवांश विदेश से अपनी पढ़ाई पूरी करके अपनी रियासत में लौट रहे थे। लेकिन रास्ते में उनके चार दोस्तों ने धोखे से उनसे एक तंत्र विद्या करवाकर शैतान को जागृत करवाया। शैतान ने उन पांचों को एक नर पिशाच बना दिया। कहानी का दूसरा हिस्सा सन 2018 के वक्त की कहानी को दर्शाता है, जहाँ 22 साल की आकांक्षा ठाकुर अपने दादा राजवीर ठाकुर के साथ शिमला में शिफ्ट हुई है। जहां आकांक्षा अपनी दोस्त जाह्नवी से मिलने उसके घर जा रही थी कि उसे रास्ते में एक लड़के की लाश दिखाई दी। अनजाने में जब आकांक्षा का हाथ उस लाश को छूआ, तो ना चाहते हुए भी उसे वो सब घटनाएं दिखाई देने लगी, जो उस लड़के के साथ पिछली रात को हुई थी। अब आगे.... आकांक्षा उन सब विजुअल्स ( दृश्यों) को देखकर बेहोश हो गयी। आसपास के लोग उसे बेहोश देखकर घबरा गए। उधर जाह्नवी भी आकांक्षा के घर ना आने पर परेशान हो गयी और उसे बुलाने के लिए उसके घर की ओर निकल पड़ी। । घर से निकलते ही जाह्नवी ने देखा कि उसके घर की कुछ दूरी पर भीड़ इकट्ठा थी। जाह्नवी ने उस भीड़ मे जाकर देखा कि वहाँ एक लाश के पास आकांक्षा बेहोश पड़ी थी। जाह्नवी ने घबराते हुए बोली, "अक्षु.... अक्षु... क्या हुआ तुझे?" वो जल्दी से अक्षु के पास आकर आई और कहा,"ये लड़की मेरी फ्रेंड है। किसी के पास पानी मिलेगा?" तभी भीड़ के आगे खड़े एक बच्चा ने अपनी बॉटल उसे पकड़ाते हुए कहा, "दीदी मेरे पास है. आप मेरी वॉटर बॉटल ले लो। पता नहीं इन दीदी को क्या हुआ..... जो अचानक से बेहोश हो गई।" जाह्नवी ने उस बच्चे से जल्दी उसकी पानी बॉटल ले ली। उसने आकांक्षा के ऊपर पानी छिड़कते हुए कहा, "थैंक यू सो मच बच्चा! अक्षु... अक्षु होश में आ.... ! दद्दू ने तुझे सीधा मेरे घर आने के लिए बोला था। तू भी ना.. . बीच में कहां बेहोशी - बेहोशी खेलने लगी।" पानी गिरने से आकांक्षा को होश आया। वो खुद को सम्भालते हुए खड़ी होने लगी। उसके कपड़ो पर मिट्टी लग गयी थी। उसने अपने कपड़े झाड़ते हुए कहा, "पता नहीं ये अजीब से सपने मुझे ही क्यों आते हैं?" आकांक्षा को लगा कि वो सपना देख रही थी। तभी उसका ध्यान गया कि उसके आसपास के लोग इकट्ठा थे और पास में एक लाश पड़ी थी। इन सब को वहां देख कर उसे समझ आया कि वो कोई सपना नहीं देख रही थी। वो उस लाश को देखकर थोड़ा डर गई। आकांक्षा ने जाह्नवी का हाथ पकड़कर कहा, "जाह्नवी चल यहां से.... मुझे बहुत अजीब लग रहा है।" जाह्नवी उसके साथ भीड़ से बाहर आ गई। "ऑफ कोर्स ... अजीब तो लगना ही है। डेड बॉडी के पास आकर कौन सोता है? तू तो मेरे घर आ रही थी ना ? बीच में कहां रुक गई ?" आकांक्षा ने चलते हुए कहा, "जैसे तू भीड़ को देखकर यहां आ गई थी, वैसे ही भीड़ को देखकर मैं भी यहां रुक गई थी। जाह्नवी ने हंसकर कहा, "ओह तो सारा कसूर भीड़ का है। ओके अब जल्दी से घर चलते है। बाकी बातें वहाँ करेंगे।" आकांक्षा और जाह्नवी दोनों जाह्नवी के घर पर पहुँची। आकांक्षा अपना प्रोजेक्ट बनाने के लिए जाह्नवी के घर पर आती है। लेकिन उसका ध्यान प्रोजेक्ट बनाने में ना होकर उस डेड बॉडी और उससे जुड़े हुए दृश्यों में लगा हुआ था। जाह्नवी ने देखा कि आकांक्षा सारा काम गलत कर रही थी उसने उसका हाथ पकड़ कर कहा,"अक्षु..! कहां ध्यान है तेरा? सब गलत कर दिया।" आकांक्षा ने काम को बीच में रोककर बोला, "यार जाह्नवी... पता नहीं क्यों मुझे अजीब- अजीब से विजुअल्स आते रहते हैं।" आकांक्षा और जाह्नवी को मिले हुए ज्यादा वक्त नहीं मिल पाता फिर भी बहुत कम समय में दोनों की पक्की दोस्ती हो गई थी। वो दोनों एक दूसरे से सभी बातें शेयर करती थी। वो उसी की हम उम्र थी। जाह्नवी और आकांक्षा का स्वभाव एक दूसरे से काफी मिलता था। जाह्नवी ने उसकी बात का जवाब दिया, "हां मै भी पिछले कई दिनों से नोटिस कर रही हूँ। तू अचानक से बेहोश हो जाती है और उठकर बहकी बहकी बातें करने लगती है। कहीं इसका मतलब ये तो नहीं कि तू किसी का भी फ्यूचर या पास्ट देख सकती है... मुझे हाथ लगा कर देख कर बता ना कि तेरे होने वाले जीजू कौन है.... और कब मिलेंगे मुझे?" आकांक्षा ने उसकी बात सुनकर हंसते हुए कहा, "ऐसे हाथ लगाने से पता चलता तो मैं खुद के बारे में पता नहीं लगा लेती कि मेरे साथ ये सब कुछ क्या हो रहा है। ये सब अचानक से ही होता है।" जाह्नवी ने आगे पूछा, "अक्षु..! जब तूने उस लड़के को छुआ था तो तुम्हें क्या दिखाई दिया था?" "पता नही कैसे अचानक से मेरा हाथ उस लाश को छू गया और मेरी आंखें बंद हो गई। मुझे दिखा जैसे वो लड़का भागे जा रहा है..... और मदद के लिए चिल्ला रहा है। वो किसी जंगल में था और वहां पर बहुत अंधेरा था। तभी एक और लड़का आता है, जिसने काले रंग के कपड़े पहने थे। उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। वो उसके पास आकर वो उसकी गर्दन पर काटता है और उसका खून पीने लगता है।" उसकी बात सुनकर जाह्नवी जोर जोर से हंसने लगी। "अरे ऐसा तो सिर्फ मूवीज और सीरियल्स में ही होता है। तू जिसके बारे में बात कर रही है... वो एक काल्पनिक व्यक्ति होता है। वैंपायर के बारे में नहीं सुना तुमने कभी?" आकांक्षा ने गहरी सांस लेकर बोला,"हां मैंने थोड़ा बहुत पढ़ा है। लेकिन ज्यादा कुछ नहीं पता इस बारे में....." जाह्नवी– " इंटरनेट पर सर्च करें इस बारे में?" आकांक्षा ने जवाब दिया, "कुछ खास नहीं मिलेगा। मैं पहले भी इस बारे में सर्च कर चुकी हूं। वही घिसी पिटी पुरानी बातें सामने आ जाती है।" "तो क्यों ना हम सिटी लाइब्रेरी जाएं और इस बारे में पढ़ें ? वहाँ जरूर कुछ मिल जायेगा।" जाह्नवी ने सुझाव दिया। आकांक्षा–"लेकिन जाह्नवी सिटी लाइब्रेरी तो यहां से बहुत दूर है। पता है ना हम सिटी के आउटसाइड जंगलों के पास रहते हैं.... ना कि सिटी एरिया के अंदर। हम आएंगे तब तक बहुत लेट हो जाएगी। वैसे भी मैंने दद्दू को सिर्फ तुम्हारे घर आने का बोला था।" राजवीर जी को आकांक्षा की इन अप्राकृतिक शक्तियों का पहले से अंदेशा था। यही वजह थी कि वो उसे ज्यादा लोगों से मिलने जुलने नहीं देते और उन्होंने अपने रिटायरमेंट के बाद भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर जंगलों के पास अपना घर लिया था। आकांक्षा भी उनकी हर बात बिना किसी सवाल किए मानती थी। जाह्नवी– "मैं दद्दू को कॉल कर के बोल दूंगी ना कि तू रात को मेरे घर पर रुक रही है।" "जैसे तुझे कुछ पता ही नही.. कि दद्दू मेरे फोन का जीपीएस एनी टाइम ऑन रखवाते हैं। जैसे ही हम जाएंगे..... उन्हें पता चल जाएगा।" आकांक्षा ने मुंह बना कर कहा। जाह्नवी– "तुम सिंगल हो ना ?" जाह्नवी अक्सर उटपटांग सवाल पूछती रहती थी। आकांक्षा ने हंसकर जवाब दिया, "हां... पर तू ये क्यों पूछ रही है? तुम्हें तो सब पता है ना।" जाह्नवी–" तो तुम्हें दद्दू के अलावा कौन कॉल करेगा? तू अपना फोन घर पर छोड़ दे। ,दद्दू को लगेगा कि तु घर पर ही है। पहले हम उनसे बात कर लेंगे कि तू रात को यहीं पर रुकेगी। उसके बाद में ये मैसेज छोड़ देंगे कि हम पढ़ाई कर रहे हैं, तो कॉल करके हमें डिस्टर्ब ना करें। तू बिल्कुल फिक्र मत कर, हम लोग शाम तक वापिस भी आ जाएंगे।" आकांक्षा ने कहा, "पता नहीं तू इतने उल्टे सीधे प्लांस बना कैसे लेती है? लेकिन मैं इसके बारे में जानना चाहती हूं, वरना तेरे इन प्लांस मे कभी तुम्हारा साथ नही देती।" जाह्नवी ने तिरछी मुस्कुराहट के साथ कहा, "तो चल..! सिटी लाइब्रेरी चलते हैं।" आकांक्षा ने राजवीर जी को फोन करके रात को जाह्नवी के घर रुकने की परमिशन ली। उन्होंने बिना किसी सवाल के उसे हाँ कह दी। वैंपायर के बारे में और ज्यादा जानने के लिए आकांक्षा और जाह्नवी दोनों सिटी लाइब्रेरी गए। वो वहाँ पहुँचे तब शाम के लगभग 4 बज रहे थे। सिटी लाइब्रेरी...... वो लोग वहां पहुंचे तब लाइब्रेरी बंद होने का समय हो रहा था। वहां पर ज्यादा भीड़ मौजूद नहीं थी। आकांक्षा ने घड़ी में समय देखकर कहा,"मैंने कहा था ना कि हम लेट हो जाएंगे। यहां पर पहुंचते पहुंचते ही हमें 4:00 बज गए हैं। कब तो हम अपनी रिसर्च करेंगे और कब वापस जाएंगे .... पता नहीं यहां पर कुछ मिलेगा भी या नहीं ....." जाह्नवी ने जवाब दिया, "अरे तुम नहीं जानती ये शिमला की सबसे पुरानी लाइब्रेरी है। यहां पर सभी तरह की बुक्स अवेलेबल है। यहां तक की शिमला के इतिहास से लेकर,,,,, हर एक राजा के जीवन के बारे में भी बुक मिल जाएगी। चल देखते हैं। आकांक्षा को हमेशा से ही पढ़ने का शौक रहा था। उसने लाइब्रेरी में किताबों की तरफ देखकर कहा, "व्हाव... !! अगर मुझे लेट नहीं हो रही होती तो मैं यहां पर बैठकर सारी किताबें पढ़ लेती। चल अब जल्दी से पता लगाते है।" आकांक्षा और जाह्नवी लाइब्रेरियन के पास गयी। आकांक्षा ने वहाँ जाकर बोला,"सुनिए सर! हमें वैंपायर से रिलेटेड बुक्स चाहिए।" जाह्नवी ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "हाँ... अगर आपको और भी सुपरनैचुरल करैक्टर के बारे मे पता हो, तो उससे जुड़ी बुक्स भी चाहिए।" वहां के लाइब्रेरियन ने उन दोनों को देखा और फिर अपना चश्मा ऊपर करके कहा,"लगता है पूरा शिमला आजकल वैंपायर के बारे में पढ़ रहा है। यहां पर वैंपायर मेरा मतलब है कि पिशाचों के जीवन से जुड़ी हुई सिर्फ दो या तीन ही किताबे थी। वो भी 2 दिन पहले किसी ने सेंशन करवा ली थी। 1 दिन का बोल कर गया था, लेकिन अभी तक किताबे वापस नहीं की है। जो नंबर देकर गया था, वो नंबर भी नहीं लग रहा है। पता नहीं कैसे कैसे लोग होते हैं..... पहले तो किताबें ले जाते हैं और फिर उन्हें वापस नहीं करते हैं। अगर वापस करते भी हैं, तो उन्हें फाड़ देते हैं .... या उनका कोई पेज निकाल लेते हैं।" "प्लीज सर हमारे लिए बहुत जरूरी है वैंपायरस् के बारे में जानना। प्लीज कोई और किताब होगी आप एक बार देखिए तो सही। " आकांक्षा ने उससे रिक्वेस्ट की। लाइब्रेरियन ने मुँह मे पान चबाते हुए कहा, "तुम तो इस तरह बिहेव कर रही हो, जैसे वैंपायर से 1 घंटे पहले ही मिली हो..... और अब उसके बारे में जानना चाहती हो।" आकांक्षा और जाह्नवी ने उसकी तरफ देख कर मुंह बनाया। जाह्नवी–"क्या किसी और लाइब्रेरी में वैंपायर की लाइफ से जुड़ी हुई बुक मिल सकती है?" लाइब्रेरियन ने जवाब मे कहा, "बुक तो नहीं मिल सकती.... लेकिन हां अगर वैंपायर की कहानी के बारे में जानना है, तो यहां के पुराने लाइब्रेरियन है और वो नीचे ऑफिस में बैठे होंगे। यहाँ रोज बुक्स पढ़ने आते है। उनसे जाकर पूछ लो उन्होंने काफी रिसर्च की है इस बारे में।" जाह्नवी और आकांक्षा जल्दी से निकल गई और लाइब्रेरी के पुराने लाइब्रेरियन मोहन दास गुप्ता से मिले। मोहन दास गुप्ता एक 75 साल के व्यक्ति थे, जो कद में छोटे लेकिन तजुर्बे में बहुत ही बड़े थे। मोहनदास जी ने उस लाइब्रेरी में लगभग 40 सालों तक काम किया था। इन 40 सालों में उन्होंने खूब पुस्तकें पढ़ी। रिटायर होने के बावजूद आज भी पुस्तको के प्रति प्रेम उन्हे लाईब्रेरी तक खींच लाता था। आकांक्षा ने हाथ जोड़कर कहा, "नमस्ते सर ... हमें आपसे बहुत जरूरी बात पूछनी थी।" उनके जवाब का इंतजार किए बिना जाह्नवी झट से बोली, "क्या आप वेंपायर आई मीन पिशाच के बारे में कुछ जानते हैं? एक ऐसा प्राणी जो किसी का खून पीकर जिंदा रहते हैं।" मोहनदास जी ने अपनी नजरे उठाकर कहा,"अरे.. अरे लड़कियों शांत हो जाओ। ये लाइब्रेरी है.... यहां पर इतना शोर कर ने की अनुमति नहीं है।" आकांक्षा ने अपनी आवाज को थोड़ा धीमा किया और कहा, "प्लीज सर आप हमें उनके बारे में कुछ बताएंगे।" मोहनदास जी वहां बैठकर किताब पढ़ रहे थे। उन्होंने अपनी किताब को बंद की और कहा,"चलो आओ बैठो दोनों... चाय पिओगी?" जाह्नवी ने मुस्कुरा कर कहा, "चाय के लिए पूछा नहीं जाता सर..... डायरेक्ट मंगवाई जाती है।" आकांक्षा– "हां चाय पीते पीते वैंपायर के बारे में जानने में तो और भी मजा आ जाएगा।" उनकी बात सुनकर मोहनदास जी मुस्कुराए और उन्होंने उन दोनों के लिए चाय मंगवाई। उन्होंने दबी आवाज मे आगे बोला,"इस लाइब्रेरी में नर पिशाच से जुड़ी हुई लगभग 10 किताबें थी। लेकिन जो भी उन किताबों को यहां से लेकर गया, वो उन्हें लौटाने कभी भी नहीं आया। अभी सुबह ही मेरी ध्यानचंद से बात हुई थी, जो कि अभी इस पुस्तकालय को संभालते हैं। 2 दिन पहले कोई लड़का आया था। जिसने बची हुई तीन किताबें थी, वो भी ले गया। 1 दिन का कह कर गया था, लेकिन अभी तक नहीं आया। जो नंबर देकर गया था, वो भी अभी तक बंद आ रहा है। मुझे तो डर है कि उसके साथ भी कोई अनहोनी तो नहीं हो गई।" उनकी बात सुनकर जाह्नवी और आकांक्षा थोड़ी घबरा गई। फिर भी वैंपायर के बारे में जानने की जिज्ञासा मे उन दोनों ने वहीं पर रुकने का फैसला किया। जाह्नवी ने पूछा, "तो क्या अब हम पिशाचों के बारे में कभी नहीं जान पाएंगे।?" मोहनदास जी– "नहीं लड़कियों..! ऐसा भी कुछ नहीं है कि तुम नहीं जान पाओगी। जितना मैंने इनके बारे में पढ़ा है उतना तो मैं तुम्हें बता दूंगा। आकांक्षा ने कुछ बोलने के लिए मुंह खुला कि तभी एक लड़का उनके लिए चाय लेकर आया। मोहनदास जी उसके सामने उन दोनों को चुप रहने का इशारा किया। लड़के ने चाय रखते समय उन दोनों की तरफ देखा। मोहन दास जी ने उसे तुरंत पैसे देकर वहां से भेज दिया। उसके जाते ही मोहनदास जी ने कहा," साइंस इस बात में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करता कि वैंपायर जैसा कोई भी प्राणी इस धरती पर है। साइंस उनके अस्तित्व को पूरी तरह से नकार चुका है। तुम तो आजकल की बच्चियां हो... फिर भी पिशाच के बारे में क्यों जानना चाहती हो?" "वो हमें कॉलेज में एक असाइनमेंट मिला है, तो हम उसके बारे में लिखना चाहते थे। बस इसीलिए..!" आकांक्षा ने झूठ बोला। मोहनदास जी ने हँसते हुए कहा,"हां तभी मैं सोचूं कि आजकल के बच्चे कहां वैंपायर, पिशाच, डायन और चुड़ैलों में मानते हैं। हाँ तो सुनो... इतिहास के अनुसार पिशाच ना तो जीवित और ना ही मृत प्राणी होते हैं। जीवित इसलिए नहीं होते क्योंकि उनके अंदर आत्मा नहीं होती.... और मृत इसलिए नहीं होते क्योंकि उनका शरीर कभी नष्ट नहीं होता। कहा जाता है कि पिशाच एक शापित जीवन व्यतीत करते हैं। उनकी कभी मौत नहीं होती.... मेरे कहने का मतलब है उनका शरीर कभी नष्ट नहीं होता। पर मैं नहीं मानता इस बात को... जिस चीज का जन्म हुआ है उसका विनाश होना तय है।" जाह्नवी ने हैरानी से पूछा, "तो क्या पिशाच को भी मारा जा सकता है?" मोहनदास जी ने जवाब दिया, "हां..! बिल्कुल मारा जा सकता है। लेकिन कैसे मारा जा सकता है..... इस बारे में मैं तुम लोगों की कोई मदद नहीं कर सकता। ये लोग किसी जीवित प्राणी का खून पीकर जिंदा रहते हैं। इनकी उम्र कभी नहीं बढ़ती। ये जिस उम्र में पिशाच बनते हैं, इनकी उम्र वहीं ठहर जाती है।" आकांक्षा ने पूछा, "कोई भी व्यक्ति कैसे पिशाच बनता है?" "मुझे ज्यादा कुछ तो नहीं पता ..... लेकिन उनकी भी कुछ शैतानी प्रक्रियाएं होती हैं। कुछ लोग इन प्रक्रियाओं को दोहरा कर शैतान को बुलाते हैं और उनसे शक्तियां मांगते हैं। कहते हैं ना बुराई अगर कुछ देती है, तो उसकी कीमत लेती है। शैतान बदले में इनकी आत्माओं को अपना गुलाम बना लेता है और छोड़ देता है इनके शरीर को एक शापित जीवन जीने के लिए.... बस मुझे इतना ही पता था, जो कि मैंने तुम दोनों को बता दिया।" मोहनदास जी उनके हर एक सवालों का जवाब दे रहे थे। उन्हें ज्यादा तो नहीं पता था लेकिन पिछले कुछ सालों में वहां लाइब्रेरी में रहते हुए उन्होंने इस बारे में काफी किताबें पढ़ी थी। उनका वही ज्ञान यहां आज काम आ रहा था। आकांक्षा और जाह्नवी मोहनदास जी से पिशाचों के बारे में सुनकर थोड़ा घबरा गयी। तभी आकांक्षा का ध्यान समय की तरफ ध्यान गया तो रात के 8:30 बज रहे थे। आकांक्षा ने घबराते हुए कहा, "जाह्नवी हमें लेट हो रहा है। जब तक घर पहुंचेंगे, उतने में तो 10:00 बज जाएंगे।" जाह्नवी ने आँखे बड़ी करके बोला,"इनकी बातें सुनने के बाद तो और भी डर लग रहा है। कहीं रास्ते में हमें पिशाच मिल गए और हमारे खून से अपनी आज रात की पार्टी कर ली तो.....!" मोहनदास जी उन दोनों की बातों को सुनकर हंसने लगे। "तुम आजकल के बच्चे भी ना.... बस हर चीज मजाक में लेते हो। आजकल की दुनिया मे पिशाचों का कोई अस्तित्व नहीं है। अब बिना डरे घर चले जाओ। ये सब बस किस्से–कहानियाँ है।" मोहनदास जी ने उनका डर खत्म करने के लिए उन्हे समझाया। मोहन दास जी की बात सुनकर आकांक्षा और जाह्नवी को थोड़ी संतुष्टि महसूस हुई कि पिशाचों का कोई अस्तित्व नहीं होता और बिना डरे वो दोनो घर की ओर निकल पड़ी। उनके जाते ही मोहनदास जी ने गंभीर स्वर मे कहा, "भगवान इन बच्चियों की रक्षा करें। भले ही मैंने इन्हें कह दिया हो कि पिशाचों का कोई अस्तित्व नहीं होता.... लेकिन जंगल में रोजाना किसी न किसी की लाश मिल रही है। उनकी मौते भी एक अलग ही रहस्यमय तरीके से हो रही है। ऐसे मे कौन कह सकता हैं कि पिशाचों का आज भी कोई अस्तित्व नहीं है।" क्रमशः....!
रात के 10 बजे के करीब शिमला के जंगल, जिन्हे आज भी लोग शापित मानते थे और वहाँ जाने के नाम से भी डरते थे, वहाँ चार दोस्त पिया, पलक, अंश और मयंक ट्रैकिंग के लिए आए हुए थे। उनकी उम्र लगभग 20-23 साल के बीच थी। रात हो जाने के कारण वो जंगल के अंदर नही गए और वही पास मे टेंट लगाकर बोनफायर के आगे गेम्स खेल रहे थे।
मयंक ने एक खाली बोतल घुमाते हुए कहा, "कम ऑन गायज... जल्दी सेलेक्ट करो... ट्रुथ या डेयर...."
बोतल का किनारा घूम कर पलक की तरफ आया। जिसे देखकर बाकी तीनो जोर से चिल्लाएं।
पलक ने अपने बाल झटकते हुए कहा, "डेयर...! मै नही डरती किसी से.... जल्दी बताओ क्या करना है?" पलक का उत्साह देख बाकी तीनो के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी।
अंश जल्दी से बोल पड़ा, "मै दूंगा तुम्हे डेयर...!"
पिया ने उसकी हाँ मे हाँ मिलाई और कहा, "कम ऑन अंश...! कुछ खतरनाक सा करवाना कि मैडम के सिर से डेयर का सारा भूत उतर जाए।"
उसकी बात सुनकर पलक ने मुँह बनाया। वो उसकी बात का कुछ जवाब दे पाती उस से पहले अंश ने हँसते हुए कहा,"ओके मिस डेयरिंग पलक..! ट्रैकिंग के लिए आये है ना, तो जंगल के अंदर जाकर वहां का एक राउंड लगा कर आओ।"
पलक उसकी बात सुनकर आँखे बड़ी करके बोली, "पर ये जंगल तो बहुत ज्यादा बड़ा है। मै इतनी रात को पूरे जंगल मे कैसे घूमकर आऊँगी?"
पलक ने उसकी बात मनाने से इंकार कर दिया। अंश ने उसे वो डेयर करने से मना कर दिया।
लेकिन पिया अभी भी जिद पर अड़ी रही।
"पलक अपना मोबाइल ले जा... और ज्यादा नही तो एक किलोमीटर तक जंगल के अंदर जाकर आ जाना। इतना काफी होगा। लेकिन तुम भी अपना डेयर कंप्लीट करना ही पड़ेगा।"
अंश ने कहा, "हाँ अगर आज तु नही गयी, तो नाम अब से डेयरिंग पलक से फटू पलक हो जाएगा।"
मयंक ने उनकी तरफ आँख दिखाकर कहा, "नही .... पलक कहीं नही जायेगी। पता है ना लोग क्या बोल रहे थे इस जंगल के बारे मे... ये जंगल शापित है।"
अंश – "तुम भी क्या लोगो की बातों मे विश्वास करने लगे। कुछ नही है इस जंगल के अंदर... गो पलक... और अगर तुम्हे डर लग रहा है... तो बता दो।"
पलक के पास अब हाँ करने के अलावा और कोई रास्ता नही बचा। पलक ने अपना एटीट्युड दिखाकर बोला,"पलक मेहता किसी से नही डरती। मै जंगल के अंदर एक नही बल्कि पूरे दो किलोमीटर आगे तक जाऊंगी।"
मयंक अभी भी उनकी इस बेवकूफी मे साथ नही देना चाहता था। वो उसे रोकने की पूरी कोशिश कर रहा था।
"प्लीज पलक ....जिद मत करो। हम लोग दिन में चले जाएंगे इस जंगल में। वैसे भी कल तो अंदर जाना ही है। तुम अपना डेयर कल पूरा कर लेना। बेवकूफी में आकर कुछ ऐसा काम मत कर देना कि जिंदगी भर पछताना पड़े।"
पिया ने आँखे तरेरकर बोला,"पलक..! ये मयंक तो है ही फट्टू। तू इसकी बातों पर ध्यान मत दे। तू एक काम कर.. अपने साथ में ये बैग ले ले। इसमे खाने पीने का सामान है और ये ले टॉर्च ....जंगल में बहुत अंधेरा होगा। और हाँ स्टेप ट्रैकर ऑन कर लेना, ताकि पता चल सके कि तुम जंगल मे कितने कदम चल कर आई हो।"
मयंक के लाख समझाने के बावजूद अंश और पिया की जिद पर पलक जंगल के अंदर गयी।
वो घबराते हुए जंगल मे आगे बढ़ रही थी। अपना ध्यान भटकाने के लिए वो कानों मे इयरपीस लगाकर म्युज़िक सुनते हुए आगे बढ़ रही थी। पलक हाथ मे टॉर्च लिए जैसे तेसै आगे बढ़ रही थी। वहाँ के पेड़ इतने घने थे कि कोई भी उन्हें देख कर डर जाए।
पलक ने खुद के डर पर काबू करके बोला,"अंदर तक आ तो गई हूं, लेकिन यहां पर कितना अंधेरा है। यहाँ तो कोई भी डर जाए। हे बजरंग बलि...! रक्षा कीजियेगा। पता नहीं यहां पर इतनी शांति क्यों है? एक काम करती हूं इधर-उधर वॉक कर लेती हूं और जाकर बोल दूंगी कि 2 किलोमीटर जा कर आई हूं।"
पलक इधर उधर घूम रही थी कि उसे वहाँ किसी के होने का अहसास हुआ। वो चीज हवा से भी तेजी से उसके कानों के ठीक पास से गुजरी थी।
पलक ने चिल्लाते हुए कहा, "क....कौन है... कौन है....वहां पर... सामने आओ। प.... पिया.... अंश ..... मयंक.... तुम लोग हो ना मुझे परेशान करने के लिए? मैं अच्छे से जानती हूं कि तुम लोग मुझे परेशान करने के लिए मेरे पीछे आए हो। देखो मुझे इस तरह का मजाक बिल्कुल पसंद नहीं है।"
पलक को चिल्लाने के बावजूद भी कोई नहीं दिखाई देता। तभी वो हवा का झोंका एक बार फिर उसी तेजी से उसके पास से गुजरा।
पलक घबराते हुए वहाँ से उल्टे पैर भागने लगी।
"ब....बचाओ..... ब.... बचाओ..... बचाओ कोई मुझे।"
पलक बेतहाशा इधर से उधर भाग रही थी। अंधेरा होने की वजह से उसे समझ नहीं आया कि वो किस दिशा में आगे जाए और वो जंगल की भूल भुलैया में खो गई थी। भागते- भागते उसके हाथ से टॉर्च और बैग गिर गयी। तभी अचानक से वो किसी से टकरा गयी। पलक डर के मारे अपनी आंखें बंद कर ली। तभी उसे महसूस हुआ कि वो किसी की गोद मे है।
पलक ने धीरे से एक आँख खोल कर बोला,"क... कौ... कौन... हो... तुम?"
सामने से कोई जवाब नही आया।
पलक ने हिम्मत करके अपनी दोनो आँखे खोली।
"जवाब दो.... कौन हो तुम? इस जंगल में कर क्या रहे हो?" उसे वहाँ देखकर उसमे थोड़ी हिम्मत आई। वो उस से दूर होते हुए बोली, "तुम डरा रहे थे ना मुझे?"
पलक ने अपनी पॉकेट से मोबाइल निकाला और उसकी टॉर्च ऑन करके उस लड़के की तरफ देखा।
उसने देखा कि सामने एक 24-25 साल का, लम्बा लड़का खड़ा था। उस लड़के के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी और चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी, जो कि उसके गोरे चेहरे पर काफी जच रही थी। उसकी हैजल ग्रीन आँखें देखकर पलक बस एक टक उसे ही निहार रही थी।
उसे देखकर पलक ने बुद्बुदाते हुए कहा, "मयंक बेवजह ही घबरा रहा था। वो तो ऐसे रिएक्ट कर रहा था जैसे जंगल में राक्षस हो। पर किसे पता था यहां पर तो एक राजकुमार मिल जाएगा।"
उसने लड़के ने थोड़ी रौबदार आवाज मे कहा, "इतनी रात को आप यहाँ क्या कर रही है?"
पलक ने खोई हुई आवाज मे कहा, "तुम तो किसी सियासत के राजकुमार लगते हो। वो नहीं होते क्या, जो लड़कियों के सपनों में आता है #ख्वाबो का शहज़ादा... जो कि सफेद घोड़े के ऊपर बैठकर आता है.... और अपनी शहज़ादी को ले जाता है।"
उसने उसी रौब से जवाब दिया, "हम राजकुमार ही हैं.... राजकुमार रीवांश.!"
पलक उसकी बात सुनकर खिलखिला कर हंसने लगी। वो आगे बोली, "अच्छा कौनसी रियासत के राजकुमार हो आप?"
रीवांश ने जवाब दिया, "यही से थोड़ी दूर है.... बिलासपुर।
पलक– " वैसे तुम तो देखने मे तो किसी राजकुमार जैसे लगते हो लेकिन मजाक काफी अच्छा कर लेते हो। इस ज़माने मे कहाँ रियासते है। वैसे उम्र क्या है तुम्हारी?"
रीवांश ने खोये हुए स्वर मे कहा, "ये कौनसा साल चल रहा है?"
पलक को अभी भी सब मजाक लग रहा था। उसने अपनी हंसी दबाकर बोला,"1950 चल रहा है।"
"इतना वक्त हो गया..? अगर 1950 चल रहा है, तो..." रीवांश ने अपनी उंगलियो पर गिनकर कहा, "तब तो हम 125 साल के है।"
उसकी बात सुनकर पलक अब अपनी हंसी रोक नहीं पाई। वो ठहाके लगाकर जोर जोर से हंसने लगी।
"तुम ना.. बहुत मजाक करते हो। कोई और सुने तो, सच में डर ही जाए।"
बोलते हुए पलक पीछे मुड़ी तो उसे कोई दिखाई नहीं दिया । एक पल के लिए वो बहुत घबरा गई कि तभी अचानक से किसी ने पीछे से आकर उसकी कमर को कस के पकड़ लिया। पलक ने मुड़कर देखा तो रीवांश उसके बिल्कुल करीब खड़ा था। पलक के दिल की धड़कनें बेकाबू होकर बढ़ने लगी।
पलक ने मदहोश होकर कहा, "अरे हम अभी ही तो मिले है। और इतनी जल्दी... प्यार तो मुझे भी तुम्हे देखते ही हो गया था..... ! लेकिन... " बोलते हुए उसकी आंखें बंद हो गई और वो उस लम्हे को महसूस करने लगी।
उसकी आँखें बंद थी। अचानक से रीवांश के आगे के दो दांत बाहर निकल आए। जिस चेहरे की मासुमियत देखकर पलक उसकी तरफ आकर्षित हो रही थी, उस पर एक शैतान की बुराई झलक रही थी। उसकी हरी आँखो में खून उतर आया।
रीवांश ने भारी स्वर मे कहा, "हमे माफ कीजियेगा....!"
रीवांश की आवाज सुनकर पलक बुरी तरह घबरा गयी। वो कुछ समझ पाती उस से पहले रीवांश का मुँह उसकी गर्दन के दाहिने तरफ था। वो उसकी गर्दन पर अपना मुँह लगाकर उसका खून पी रहा था। पलक के अंदर खून की एक भी बूंद नही बची और वो निढाल होकर गिर पड़ी। रीवांश के होठो पर पलक का खून लगा था। खून पीते ही उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक आ गई थी।
रीवांश ने पलक को उठाया और वही से उठाकर जंगल के बाहर फेंक दिया।
★★★★
उधर आकांक्षा और जाह्नवी को घर आते आते रात के 11 बज गए। जाह्नवी के मॉम डैड किसी वजह से आउट ऑफ स्टेशन चले गए थे। आकांक्षा ने घर आते ही अपना मोबाइल चेक किया, तो उसमे राजवीर जी के बहुत सारे कॉल्स आये हुए थे।
आकांक्षा ने गुस्से मे जाह्नवी की तरफ देखा, "जाह्नवी की बच्ची....!"
जाह्नवी मे मासूम चेहरा बनाया और कहा, "क्या यार..? बच्ची तो तब होगी ना, जब तु हाथ पकड़ कर अपने होने वाले जीजू के बारे मे कुछ बतायेगी।"
उसकी बात सुनकर ना चाहते हुए भी आकांक्षा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
"तु भी ना.... ! दद्दू को पता तो नही चल गया होगा ना?"
जाह्नवी ने हँसते हुए कहा, "बोल देना फोन साइलेंट था.... नींद आ गई थी या कुछ भी बोल देना ना यार...."
वो लोग आपस मे बात कर रहे थे कि तभी डोरबेल बजी। घर पर कोई ना होने की वजह से वो दोनों घबरा गए ऊपर से मोहन दास जी कि कहीं भी बातों का ख्याल आते ही जाह्नवी चिल्लाकर बोली, "मै नही खोलूगी दरवाजा...!कही कोई पिशाच हुआ तो... !"
आकांक्षा ने घबराते हुए कहा, "तो मै क्यों खोलुं... पिशाच मुझे खा गया तो?"
जाह्नवी– "तुझे नही खायेगा। मैने बोल दिया ना कि मै डोर नही खोलुंगी... वैसे इतनी रात को कौन होगा?"
जाह्नवी की बात सुनकर आकांक्षा सोच में पड़ गई। वो लोग जिस इलाके में रहते थे, वहां पर सब के घर काफी दूरी पर बने हुए थे। तो इतनी रात को किसी का आना लगभग नामुमकिन सा था।
"तुझे हनुमान चालीसा आता है जाह्नवी?"
जाह्नवी ने हाँ मे सिर हिलाया।
आकांक्षा– "चल तो फिर दोनो मिल कर कोरस मे गाते है। पर दरवाजा तो खोलने जाना ही पड़ेगा।"
"जय हनुमान....!" वो दोनों एक साथ बोली कि तभी बाहर से राजवीर जी के चिल्लाने की आवाज आई, "अक्षु.....! जाह्नवी..! दरवाजा खोलो। बच्चियों तुम दोनो ठीक तो हो ना?"
उनकी आवाज सुनकर जाह्नवी ने राहत की साँस ली।
"ओ गॉड .... दद्दू ने तो हमें डरा ही दिया था। मुझे तो लगा कहीं कोई पिशाच तो नहीं आ गया।"
आकांक्षा ने उसे आँखे दिखाकर कहा, "ए लड़की.... मेरे दद्दू को पिशाच मत बोल तू।"
जाह्नवी– "तो आधी रात को कौन आता है ऐसे ?"
आकांक्षा उसके साथ दरवाजे की तरफ बढ़ी।
"मैंने कहा था ना ... अगर मैंने कॉल पिक नहीं किया तो दद्दू डर जाएंगे।"
" डर जाएंगे या हमें डरा देंगे" जाह्नवी ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला।
उन दोनों को सही सलामत देखकर राजवीर जी ने भी चैन की सांस ली। राजवीर जी उनके साथ अंदर आते हुए बात कर रहे थे।
"कहां थी तुम दोनों ? मैं कब से फोन कर रहा था। ना तो कॉल उठा रही थी और ना ही दरवाजा खोल रही थी। जाह्नवी..! अगर तुम अकेली थी तो हमारे घर पर आ जाती। डरा दिया तुम दोनों ने मुझे..! "
आकांक्षा ने वापस दरवाजा बंद करते हुए कहा, "अरे दद्दू ... अब हम दोनो कोई बच्चियां थोड़ी ना है। आप चलिए अंदर... अब इतनी दूर आ ही गए हैं, तो रात को यहीं पर रुक जाइए।"
जाह्नवी– " हां दद्दू आप वापस मत जाइएगा। क्या पता कोई पिशाच आप को उठाकर ले गया तो...! '
उसकी बात सुनकर राजवीर जी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
"अक्षु सच ही कहती है कि उसकी फ्रेंड जाह्नवी थोड़ी पागल सी है।"
उनकी बात सुनकर जाह्नवी ने आकांक्षा को गुस्से से देखा तो उसने मुस्कुराते हुए अपना एक कान पकड़ लिया।
"सॉरी..!"
राजवीर जी जाह्नवी और आकांक्षा के साथ ही जाह्नवी के घर पर रुक गए।
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दूसरी तरफ जंगल के बाहर मयंक, अंश और पिया पलक का इंतजार कर रहे थे। रात के 2:30 बज चुके थे लेकिन पलक अभी तक वापस नहीं आई थी। उस के वापस ना आने से वो परेशान हो गए। उन्होंने उसे कॉल भी किया लेकिन उसका फोन आउट ऑफ कवरेज एरिया बता रहा था।
मयंक ने उन दोनों की तरफ गुस्से में देखा और कहा,"मैंने तो पहले ही कहा था कि ये जंगल शापित है। मना किया था मैंने पलक को अंदर जाने से ... लेकिन तुम लोगों की एक बेवकूफी की वजह से आज पलक की जान खतरे में हो सकती है।"
पिया को अपने किए पर पछतावा हो रहा था उसने नम आंखों से कहा, "अब तो मुझे भी पलक के लिए डर लग रहा है। उसे गए हुए लगभग 4 घंटे हो गए हैं ... और वो अभी तक वापस नहीं आई है।"
अंश– "अगर मुझे पता होता तो मैं पलक को कभी भी नहीं जाने देता । पता नही क्यों मेरा दिल बहुत घबरा रहा है।"
वो तीनों पलक के लिए बहुत घबरा गए।
"क्यों ना हम पलक को जंगल के अंदर जाकर देखें?" पिया ने सुझाव दिया।
उसकी बात सुनकर अंश थोड़ा नाराज हो गया।
"पागल हो गई हो क्या तुम? क्या पता ये जंगल सच में शापित हो। चलो किसी पास के पुलिस स्टेशन में चलते हैं"
मयंक–"पहले जंगल के आसपास उसे ढूंढते हैं। लेकिन जंगल के अंदर तक नहीं जाएंगे। हो सकता है कि पलक हमें यहीं कहीं मिल जाए।"
"हम उसे अलग-अलग जाकर ढूंढते हैं।" अंश ने कहा, तो पिया ने डरकर उसका हाथ पकड़ लिया, "नहीं.... प्लीज.... मुझे बहुत डर लग रहा है। हम एक दूसरे को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। जहां जाएंगे साथ रहेंगे।"
मयंक– "पिया बिल्कुल ठीक बोल रही है।"
वो चारो पलक को इधर उधर ढूंढ रहे थे कि तभी अचानक पिया का पैर किसी चीज से टकरा गया और वो नीचे गिर गयी।
नीचे गिरते ही पिया नजर सामने पड़ी चीज पर गई। उसे किसी के होने का एहसास हुआ, उसमें अपने मोबाइल की टॉर्च जला कर देखा और चिल्ला कर बोली,"पलक.... पलक .... पलक क्या हुआ तुम्हें ? तुम यहां कैसे आ गई?"
पिया के कहते ही अंश और मयंक ने अपने-अपने टॉर्च की रोशनी पलक की तरफ कर दी। उसे देखकर मयंक को थोड़ा संदेह हुआ और उसने अपनी उंगली उस के नाक के सामने रखकर उसकी सांसो को चेक किया।
उसे देखकर उसकी आँखे फटी रह गयी। उसने पिया की तरफ देखा जो कि उसका हाथ पकड़ कर खड़ी थी।
"पिया...! जल्दी से पलक से दूर हो जाओ क्योंकि ये पलक नहीं उसकी लाश है।" उसके कहते ही पिया चिल्लाते हुए उससे दूर हो गई।
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पलक की लाश देख कर वो तीनो घबरा गए। पिया डर के मारे चिल्लाते हुए अंश के गले लग गई। अंश ने घबराते हुए कहा, "ग....गायज हमें यहां से चलना चाहिए। प... पलक अब मर चुकी है। हम... हम भी बचेंगे। पुलिस को अगर पता चल जाए तो उनका सबसे पहला शक हम पर ही जाएगा। पलक को जंगल में जाने के लिए फोर्स भी तो हमने किया था।" पिया ने उसकी हाँ मे हाँ मिलाई। जबकि मयंक उसकी बात सुनकर गुस्सा हो गया। उसने चिल्लाते हुए कहा, "तुम पागल तो नहीं हो गए हो अंश? ये कैसी बातें कर रहे हो? वैसे भी पलक हमारे साथ आई थी। इसके घर वालों को ये बात अच्छे से पता है...... और रही बात पुलिस की, तो पुलिस हम तक कैसे भी करके पहुंच ही जाएगी।" पिया ने रोते हुए बोला, "मुझे बहुत डर लग रहा है। कहीं हम लोगों को जेल तो नहीं हो जाएगी.... मैं जेल नहीं जाना चाहती। प्लीज कुछ करो। मेरा कैरियर... मेरे पेरेंट्स तो मुझे मार ही डालेंगे।" "तुम दोनों इतने कैसे बेवकूफ हो सकते हो ? कैसी बातें कर रहे हो.... जब हमने कुछ किया ही नहीं है, तो बेवजह हम क्यों जेल जाएंगे। मैं अभी पुलिस को कॉल करके यहां पर बुलाता हूं। ऐसे कायरों के जैसे भागोगे तो पुलिस जरूर शक करेगी।" अंश– " पिया ... मयंक बिल्कुल ठीक बोल रहा है। अगर हम ऐसे यहां से भाग कर गए तो पुलिस को यही लगेगा कि हमारी वजह से पलक की जान गई है। लेकिन भूलकर भी पुलिस के सामने ये मत बोलना कि हमने उसे डेयर दिया था और जंगल में के लिए फोर्स किया था। ह... हम बोल देंगे कि वो रास्ता भटक गई थी .... या कुछ भी और कह देंगे।" पिया वहाँ खड़े होकर जोर जोर से रोये जा रही थी। "हां मयंक मुझे भी यही लगता है। अंश बिल्कुल ठीक बोल रहा है। हम....हमें पुलिस को ये बिल्कुल नहीं बताना चाहिए कि हमारे जिद की वजह से पलक जंगल में गई थी। बाकी तुम जैसा कहोगे .... हम वैसा करेंगे। पर प्लीज ये बात पुलिस को बिल्कुल मत बताना।" मयंक ने उसे शांत करते हुए बोला, "पिया तुम घबराओ मत..! जब हमने कुछ किया ही नहीं है, तो घबराने की क्या जरूरत है ? पिया और अंश तुम दोनों यही रुको .....मैं पुलिस को कॉल करता हूं।" मयंक ने पुलिस को कॉल करके वहां पर हुए हादसे की जानकारी दी लगभग एक घण्टे मे पुलिस टीम वहाँ पहुँच गयी। सुबह के लगभग 4 बजे बज रहे थे। चीफ इंस्पेक्टर श्यामदास गुप्ता तीन कांस्टेबल के साथ पहुँचे। वो अपनी मोटी घनी मूछों को ताव देते हुए क्राइम सीन का जायजा ले रहे थे। काफी देर तक इधर-उधर छानबीन करने के बाद वो उन तीनों के पास पहुंचे। इंस्पेक्टर दुबे ने उबासी लेते हुए कहा, "तुम यंगस्टर्स को भी चैन नहीं मिलता क्या? इतनी बार बोला है कि इस जंगल के पास ट्रैकिंग के लिए मत आया करो। पता नहीं यहां पर डेंजर का एक साइन बोर्ड क्यों नहीं लगवा दिया जाता? इतनी बार बता दिया कि ये जंगल शापित है। फिर भी पता नहीं क्यों घुस जाते हो इसके अंदर..!" उनकी बात सुनकर मयंक ने हैरानी से बोला, "सर आप पढ़े लिखे होकर ऐसी अंधविश्वास वाली बातें क्यों कर रहे है?" इंस्पेक्टर दुबे– " बेटा बात ऐसी है कि ...... चलो छोड़ो.... ये बताओ भगवान में मानते हो तुम?" मयंक ने उनकी बात के जवाब मे कहा, "हाँ.... भगवान में कौन नहीं मानता।" "तो यूँ है ना कि जब भगवान में मानते हो तो फिर शैतान में भी मानना सीखो। जहां अच्छाई है, वहां पर बुराई भी जरूरी होगी। अगर बुराई नहीं होती तो फिर भगवान की क्या जरूरत पड़ती। कुछ चीजें सोच और समझ से परे होती है। तो वहाँ अपना दिमाग नही लगाना चाहिए।" अंश और पिया वहां पर चुपचाप खड़े थे। इंस्पेक्टर दुबे ने उनकी तरफ मुड़ते हुए कहा, "तुम लोगों को घूमने फिरने का, ट्रैकिंग का, एडवेंचर करने का इतना ही शौक है, तो कम से कम किसी नई जगह पर जाने से पहले उस जगह के बारे में थोड़ी जानकारी ले लिया करो। ये कोई पहली लाश तो है नहीं, जो यहां जंगल के किनारे मिली है। आए दिन किसी न किसी की लाश यहां पर मिलती ही रहती है।" "अगर आए दिन यहां पर किसी की लाश मिलती रहती है, तो आप लोग पता क्यों नहीं लगा लेते कि कौन है,,,,,, जो इन लोगों को मार रहा है।" अंश ने उन पर तंज कसा। हवलदार सावंत उसकी बात पर हंसते हुए बोला, "कौन इस शापित जंगल के अंदर जाएगा? पहले भी कई लोगों ने इस बारे में पता लगाने की कोशिश की,,,,,, लेकिन आज तक कोई भी जिंदा वापस नहीं आ पाया। अब अपनी दोस्त को ही देख लो।" उनकी बातें सुनकर अंश, पिया और मयंक डर गए। उनकी नजर पलक की लाश पर गई.... जो कि खून ना होने की वजह से सफेद पड़ चुकी थी। इंस्पेक्टर दुबे ने आगे पूछा, "अच्छा अब अपनी सारी डिटेल्स शॉर्ट में बता दो।" "हम चार लोग यहां पर ट्रेकिंग के लिए आए थे। ये हमारी दोस्त पलक मेहता है।" पिया ने जवाब दिया। इंस्पेक्टर दुबे ने की तरफ ध्यान दिया,तो वो घबरा रही थी। "वैसे ये जंगल में क्यों गई थी .... वो भी अकेले?" पिया ने हकलाते हुए जवाब दिया, "सर वो... प... पलक ....र...रा.... रास्ता भटक गई थी।" इंस्पेक्टर दुबे–" जब तुम चारों साथ आए थे, तो अकेले वही रास्ता कैसे भटक गई थी?" पिया कुछ कहती उस से मयंक बोल पड़ा। "सर पिया पलक की डेडबॉडी देख कर घबरा रही है। मै बताता हूँ, ये रास्ता कैसे भटक गयी थी.... वो हम चारो ट्रुथ एंड डेयर खेल रहे थे। पलक ने अपने लिए डेयर सेलेक्ट किया था। और जंगल में जाना तय किया था। काफी देर तक वो नहीं आई, तो हम लोग उसे ढूंढने के लिए निकल गए। लगभग आधे घंटे तक हमने उसे ढूंढा और ढूंढते– ढूंढते हम यहां पहुंचे। तो पिया का पैर पलक की डेडबॉडी बॉडी से टकरा गया। मयंक ने उन्हे सब कुछ सच सच बता दिया। इंस्पेक्टर दुबे ने आगे कहा, "और तुम्हें लगा कि हम सबसे पहले तुम लोगों पर शक करेंगे, तो हमें झूठ बोल कर गुमराह कर देते हैं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। यहां आए दिन जंगल के बाहर किसी ना किसी की लाश मिलती रहती है। आप लोग अपना बयान लिखवा देना ... और हां जो हुआ, जैसे हुआ.... सच सच बताना।" हवलदार सावंत एक डायरी मे सब कुछ लिख रहा था। "उम्र क्या होगी इसकी ? कहां से हो तुम लोग.... इस के मम्मी पापा का नाम एड्रेस सब लिखवा देना।" वो लोग पूछताछ कर रहे थे। तभी एंबुलेंस भी वहाँ आ गयी। इंस्पेक्टर दुबे ने उन्हे कहा, "मैं लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा देता हूं। वैसे भी रिपोर्ट मे तो वही आना है, जो बाकी सारी डेड बॉडीज की रिपोर्ट में आया था। फिर भी फॉर्मेलिटी तो करनी ही पड़ेगी। आप सब लोग सावंत के साथ पुलिस स्टेशन जाकर अपना अपना बयान लिखवा दीजिए।" इस्पेक्टर दुबे वहां से जाने लगे कि मयंक उनके पास दौड़कर गया। मयंक ने उनके पास जाकर कहा, "एक्सयूज मी इस्पेक्टर! क्या मैं जान सकता हूं कि यहां जंगल किनारे मिली बाकी की डेड बॉडीज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या आया था?" इंस्पेक्टर दुबे ने जवाब दिया, "लगता है तुम लोगो ने यहां पर आने से पहले इन जंगलों के बारे में कुछ भी नहीं सर्च किया। वरना इंटरनेट पर तुम्हें इस के बारे मे एक दो आर्टिकल्स तो जरूर मिल जाते हैं। यहां जंगल किनारे जो भी लाश मिलती है, उन डेड बॉडीज के अंदर खून की एक बूंद तक नहीं मिलती। मौत का तरीका भी नहीं पता चलता.... और सभी डेड बॉडीज की गर्दन पर किसी जानवर के काटने के निशान मिलते हैं।" उनकी बात सुनकर मयंक दंग रह गया। वो एंबुलेंस में बैठकर वहां से जा चुके थे। सावंत उन तीनों को अपने साथ बयान देने के लिए पुलिस स्टेशन लेकर गया। ★★★★★
सुबह के 5:00 बज रहे थे। आकांक्षा जाह्नवी के साथ उसके कमरे में सो रही थी कि तभी सोते हुए वो नींद में जोर जोर से चिल्लाने लगी। "न....नहीं. ...प्लीज... मुझे मत मारो। जाने दो मुझे.... प्लीज...!" जाह्नवी ने नींद मे ही उसे हल्का सा देते हुए कहा, "यार अक्षु सोने दे ना। नींद में भी तेरी पटर पटर बंद नहीं होती क्या?" "बचाओ.... बचाओ....!" वो नींद मे अभी तक चिल्ला रही थी। जाह्नवी जैसे तैसे उठकर बोला, "अक्षु क्या हुआ तुझे? हे भगवान! ये तो पूरा पसीने में तरबतर हो रखी है। लगता है इसके सपने में जरूर कोई पिशाच आया होगा।" वो आकांक्षा को जगाने के लिए उसे पकड़कर हिलाने लगी, "उठ अक्षु.... क्या हुआ तुझे?" उसकी आवाज सुनकर आकांक्षा की नींद खुली और उसने डर कर उसे गले लगा लिया। "जाह्नवी मैंने बहुत बुरा सपना देखा। मुझे सच में बहुत डर लग रहा है।" "ये तो तेरी हालत देखकर कोई भी बता सकता है कि तूने कोई बुरा सपना देखा है। शक्ल देख अपनी। डर के मारे पूरा चेहरा लाल हो गया है। वैसे क्या देखा सपने में ? जरूर कोई हॉट सा पिशाच आया होगा।" आकांक्षा ने डांटते हुए कहा, "हॉट था या कूल.... ये मुझे नहीं पता..... पर जो भी था बहुत भयानक था।" जाह्नवी ने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा, "पता है मेरी दादी क्या कहती थी? सुबह के देखे हुए सपने सच होते हैं सोच अक्षु सोच .... अगर सच में तेरे सामने वो पिशाच आ जाए.... और क्या कहा था मोहन दास गुप्ता जी ने कि वो जिंदा रहने के लिए किसी का खून पीते हैं... और एक हॉट सा पिशाच प्यार से तेरी गर्दन के पास आकर.... एक बड़ा सा बाइट कर तेरी बॉडी का सारा खून चूस ले।" "सुबह-सुबह तेरी बकवास फिर चालू हो गई। एक तो मुझे ऐसे ही डर लग रहा है और मैंने कोई पिशाच नहीं देखा..... तो ये खुली आंखों से सपने देखना बंद कर। अगर कभी पिशाच मेरे सामने आ गया ना सबसे पहले उसके सामने तुझे ले जा कर पटकूंगी।" जाह्नवी ने मुँह बनाकर बोला, "कैसी दोस्त है तू... अपनी दोस्त को पिशाच से कटवाएंगी?" "यही दोस्त एक मिनट पहले मुझे भी उसी पिशाच से कटवा रही थी तब क्या? लेकिन यार मैंने सच में बहुत डरावना सपना देखा...... जैसे मैं जंगल में बस इधर से उधर दौड़े जा रही हूं और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं कहां जाऊं। और वो जंगल किसी भूल भुलैया की तरह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। तभी अचानक से एक जानवर मुझ पर हमला बोल दिया।" जाह्नवी– " कितना बोरिंग सपना था। तेरे डर की वजह से इतनी सुबह सुबह मुझे भी उठना पड़ा।" "अब उठ ही गए हैं, तो चलो दोनों रेडी होकर वापस प्रोजेक्ट करने में लगते हैं। वैसे भी कल तेरे सच पता लगाने के चक्कर मे कुछ नहीं किया।" आकांक्षा ने जबरदस्ती जाह्नवी को काम लगा दिया। वो दोनों कमरे में बैठकर काफी देर तक काम करती रही। राजवीर जी ने उठने के बाद उन दोनों के लिए नाश्ता बनाया। उनकी आवाज लगाने पर वो दोनों नीचे आकर उनके साथ नाश्ता करते हुए टीवी देखने लगी। टीवी एंकर– "कल रात को फिर से जंगलों के पास से एक और लाश मिली। ताज्जुब की बात है इस लाश की गर्दन पर भी वही जानवर के काटने के निशान है.... जो कि पहले मिली लाशों पर थे। क्या ऐसे में कहा जा सकता है कि ये जंगल एक शापित जंगल है .... या कुछ लोगों की मानें तो वहां पर नर पिशाच का डेरा है। देखिए हम किसी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। लेकिन फिर भी क्या इन घटनाओं को एक इत्तेफाक मानकर आगे बढ़ा जाए या जंगल में ऐसा कोई ईलीगल रैकेट चल रहा है, जिसे छुपाने के लिए ये सब हत्याएं हो रही है आप अपनी राय स्क्रीन पर दिखाए गए नंबरों पर मैसेज करें। आप हमारे ऑफिशियल टि्वटर आईडी पर ट्वीट करके अपनी राय बता सकते है।" #विश्वास या अंधविश्वास वो न्यूज़ देखकर जाह्नवी और आकांक्षा थोड़ी घबरा गयी। उन्हें मोहन दास जी की बातें याद आने लगी। टीवी में पलक की फोटो दिखाई जा रही थी जिसे देखकर आकांक्षा की आंखें बंद होने लगी। आकांक्षा ने अपना चेहरा टीवी की तरफ से हटा लिया। जहां राजवीर जी और जाह्नवी खाना खाने में व्यस्त थे, वही आकांक्षा के मन में कुछ और ही चल रहा था। "इस लड़की को टीवी पर देख कर मुझे इसके बारे में विजुअल्स क्यों आ रहे हैं? ना चाहते हुए भी मेरी आंखे बंद हो रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे ये लड़की जंगल में चलती जा रही है.... अचानक से एक लड़के से टकराती है और उसकी बाहों में गिर जाती है। फिर वो लड़का इससे बात करके इसके करीब आकर इसका खून पीने लगता है। क्या सच में पिशाच होते हैं?" वो कुछ कहती उससे पहले ही जाह्नवी ने राजवीर जी से पूछा, "दद्दू क्या सच मे पिशाच होते है?" "हाँ ददु..! मैं भी यही पूछने वाली थी। क्या सच मे.....।" राजवीर जी ने आकांक्षा की बात को बीच में काट कर बोला, "तुम दोनों आजकल की बच्चियां हो। क्या इन न्यूज़ वालों की फालतू बातों को सुनकर घबरा रही हो। इन लोगों को अपनी टीआरपी बढ़ाने होती है। इसके लिए ये लोग कुछ भी दिखा देते हैं" आकांक्षा– "दद्दू क्या सुपर नेचुरल पावर्स एक्जिस्ट करती है? आई मीन क्या किसी के पास मैजिकल पावर्स हो सकती है?" राजवीर जी आकांक्षा के मुंह से मैजिकल पावर्स का नाम सुनकर थोड़ा घबरा गए। "एक तो तुम लोग पता नहीं क्या क्या देखती रहती हो इस मोबाइल फोन में... कभी सुना है किसी के पास कोई जादुई शक्तियों जैसी चीज होती है। ये सब वहम होता है और कुछ नहीं चलो... तुम दोनों बच्चे यहां पढ़ाई करो, मैं घर पर होकर आता हूं।" आकांक्षा को टालकर राजवीर जी वहां से घर चले गए। आकांक्षा के सवालों ने उन्हें परेशानी में ला दिया था। "अक्षु ने अचानक से मैजिकल पावर के बारे में क्यों बात की? कहीं उसे अपनी शक्तियों के बारे में एहसास तो नहीं होने लगा है.... हे ईश्वर ! मेरी बच्ची के साथ ये सब होना जरूरी था क्या? मैं पहले ही अपने इकलौते बेटे और बहू को खो चुका हूं। अब इस उम्र मे मेरे अंदर मेरी अक्षु को खोने की हिम्मत बिल्कुल भी नहीं है। मेरी बच्ची की रक्षा करना.... जाने अनजाने में अगर उसके पास कोई कुदरती शक्ति है भी, तो आप वापस ले लीजिये। पता नहीं क्या होगा..... मेरी बच्ची पर कहीं कोई खतरा तो नहीं है।" अचानक से राजवीर जी को अतीत की कुछ बातें याद आने लगी। लगभग 18 साल पहले जब आकांक्षा सिर्फ 5 साल की थी, तब वो उसके साथ कांगड़ा में देवी मां के मंदिर गए थे। रोड एक्सीडेंट में बेटे और बहू की मौत होने के बाद मानसिक शांति की तलाश में वो अक्सर मंदिरों में घूमते रहते थे। वहाँ मंदिर के पास एक आदमी बेहोश पड़ा था। सब लोग उसके आस पास इक्कठे थे। उसी भीड़ में राजवीर आकांक्षा के साथ खड़े थे। मंदिर के राजपुरोहित जी आदमी की नब्ज देख कर रहे थे। "इसे किसी सर्प ने काटा है। तभी इसका शरीर नीला पड़ने लगा है। इससे पहले कि देर हो जाए हमें इसका इलाज करना होगा। कुछ देर पहले जंगल में गया था ना यह? एक काम करो... मोहन.....सोहन इसको तुम औषधालय में लेकर जाओ। मैं तब तक यही आसपास से कुछ जड़ी बूटियां इकट्ठा करके लाता हूं।" दो चार लोग मिलकर उस आदमी को मंदिर के औषधालय की तरफ लेकर गये। राजपुरोहित जी जड़ी बूटियां इकट्ठा करने के लिए वही थोड़ी दूर आगे जाने के लिए दिए थे कि आकांक्षा ने दौड़ कर उनका हाथ पकड़ लिया। "दद्दू आप वहां पर मत जाइए... वो सांप अभी भी वही पर ही हैं। मैंने देखा था ये अंकल जंगल में कुछ चीजें तोड़ रहे थे, तो एक सांप पेड़ पर से इनके ऊपर आकर गिर गया .... और इन्हे काट लिया। आप वहां गए तो आपको भी वो सांप काट लेगा।" आकांक्षा की बात सुनकर राजवीर जी और राजपुरोहित जी दोनों चकित रह गए। राजवीर जी ने धीमी आवाज मे कहा, "आप इसकी बातों पर ध्यान मत दीजिए। अक्षु थोड़ी इमेजिनेटिव है। आपके मुंह से सांप काटने की बात सुनी होगी तो इसलिए बोल दिया होगा। हम लोग तो काफी समय से मंदिर के अंदर थे, तो इसे जंगल के अंदर क्या चल रहा था.... वो कैसे पता हो सकता है?" राजपुरोहित जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "श्रीमन आप मेरे साथ मेरे कक्ष में चलने की कृपा करेंगे।" राजपुरोहित जी लगभग 90 साल के व्यक्ति थे, जो कि मंदिर में रहते हुए साधना करते थे। मंदिर के लोग उनका बहुत ही आदर करते थे। उनके पास भी साधना से प्राप्त की हुई कुछ अलौकिक सिद्धियाँ थी। राजवीर जी आकांक्षा के साथ राजपुरोहित जी के कक्ष में गए। वहां एक चटाई के अलावा और कुछ मौजूद नहीं था। राजपुरोहित जी ने आकांक्षा के सिर पर हाथ रख कर बोल, "बच्ची को देखते ही मैं समझ गया था कि ये कोई साधारण बच्ची नहीं है। वैसे देखा जाए तो इस जगत में साधारण तो कोई नहीं होता.... लेकिन कुछ लोग अपनी शक्तियों को पहचान पाते हैं और कुछ जीवनभर उनसे अज्ञात रहते हैं।" उनकी बात सुनकर राजवीर जी ने हैरानी से पूछा, "आप किन शक्तियों की बात कर रहे हैं राजपुरोहित जी? मेरी बच्ची सिर्फ 4 साल की है।" " कर्म हमारी उम्र देखकर निर्धारित नहीं किए जाते श्रीमन। भगवान हर व्यक्ति को एक लक्ष्य के साथ इस धरती पर भेजते हैं। उस लक्ष्य को पूरा करने में ये शक्तियां इस बच्ची की मदद करेगी। मुझे ज्यादा कुछ तो नहीं पता कि इसके पास क्या शक्तियां हैं .... क्योंकि मैंने इसे परखा नहीं है। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि ये बच्ची भूत देख सकती है। अपने आसपास से जुड़े हुए लोगों की घटनाओं को महसूस कर सकती है कि उनके साथ भूतकाल में क्या घटित हुआ था?" राजवीर जी– "आप जानते हैं ना राजपुरोहित जी ये है संसार कितना स्वार्थी है। अगर किसी को मेरी बच्ची की शक्तियों के बारे में पता चला तो वो जरूर उसका गलत उपयोग करने की कोशिश करेगा। मैं अपनी बच्ची को कभी भी उसकी शक्तियों के बारे में नहीं बताऊंगा।" राजपुरोहित जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "जी श्रीमन..! जैसा आपको ठीक लगे। आप भले ही इसे कुछ नहीं बताइएगा। लेकिन जब ये अपने लक्ष्य के करीब पहुंचने लगेगी.... या जिसके लिए इसका जन्म निर्धारित किया गया है वो वक्त करीब आएगा,,,, तब इसकी शक्तियां जागृत होने लग जाएगी। बाकी विश्वास रखिए ......बच्ची को कभी कोई खतरा नहीं होगा।" उन बातों को याद करके राजवीर जी सिहर उठे। "क्या वो वक़्त करीब आ रहा है, जिसके लिए मेरी आकांक्षा का जन्म हुआ था? जिसके लिए भगवान ने उसे कुछ अद्भुत शक्तियों से नवाजा था? हे ऊपर वाले! मेरी बच्ची की रक्षा करना। कहीं इसकी ये शक्तियां इसके लिए भक्षक ना बन जाए।" क्रमशः....!
सुबह के 11 बज रहे थे। राजवीर के जाने के बाद आकांक्षा और जाह्नवी दोनो हॉल मे बैठ कर अपना प्रोजेक्ट बना रही थी। उन दोनो का मन अभी भी मोहनदास जी की बातों मे उलझा था। जाह्नवी ने अचानक पूछा, "अक्षु तुझे क्या लगता है.... क्या ये पिशाच, डायन,चुड़ैल, भूत वगेरह सच में होते हैं..... या ये सब हमारे मन का वहम है?" "पता नहीं यार ... देखा नहीं न्यूज़ में..... कैसे आए दिन जंगल के बाहर लाशें मिल रही है। और उनकी गर्दन के पास किसी जानवर के काटने का निशान भी। अगर सच में जंगल में कोई जानवर है, जो लोगों को मारता है, तो वो सब को गर्दन के पास ही क्यों काटता है? और हमेशा उसी जगह पर ही क्यों?" आकांक्षा ने उसके सवालों के जवाब देने के बजाय और नये सवाल खड़े कर दिए। दोनो बात करते हुए साथ में काम भी कर रही थी क्योंकि अगले ही दिन उन्होंने अपना प्रोजेक्ट सबमिट करवाना था। जाह्नवी ने पेपर कटर से पेपर काटते हुए कहा, "पता नहीं यार क्या सच है और क्या वहम.... कब से दिमाग उसी में लगा है। कुछ और करने का मन ही नहीं करता। ऊपर से ये प्रोजेक्ट नाम की बला सिर पर मंडरा रही है।" जाह्नवी का सारा ध्यान बातों में था। इस वजह से पेपर कटर से उसका हाथ कट गया। कट गहरा लगने की वजह से उसमे बहुत खून बहने लगा। आकांक्षा उसे देखकर बहुत घबरा गयी। "ये क्या किया तूने .... जाह्नवी देख कितना खून बह रहा है। तु भी ना... बस जब देखो पटर पटर करती रहती है। ध्यान कहाँ रहता है तेरा?" "कहीं हमारे आस पास कोई पिशाच हुआ और मेरा खून देखकर यहां पर आ गया तो..... कुछ कर अक्षु! मुझे बहुत दर्द हो रहा है।" जाह्नवी को ऐसी परिस्थिति मे भी मजाक सूझ रहा था। "तेरा कट तो बहुत डीप है यार। हमें हॉस्पिटल जाना ही पड़ेगा। ऐसा करती हूँ मैं घाव का खून रोकने के लिए कुछ बांध देती हूं।" जाह्नवी दर्द से चिल्लाते हुए बोली, "आआहह..! जो करना है जल्दी कर। मुझे बहुत दर्द हो रहा है।" आकांक्षा दौड़कर फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आई। उसने जाह्नवी की चोट को साफ कर उस पर बैंडेज कर दिया। "जाह्नवी मैंने पट्टी बांध दी है। उसके बावजूद तेरा खून ही नहीं रुक रहा। हमें जल्दी से जल्दी हॉस्पिटल जाना पड़ेगा। तू एक काम कर .... मेरे पीछे बैठ, मैं स्कूटी चलाती हूं।" "मैं कहीं नहीं जाऊंगी। कहीं रास्ते में कोई पिशाच मिल गया ....और... और मेरा खून देखकर मेरे पास आ गया तो?" "अगर मिल गया तो मैं उससे डील कर लूंगी। मै उसे बोल दूंगी कि तेरे बदले किसी और जानवर का खून ले ले।" आकांक्षा ने उसकी टांग खींची। जाह्नवी ने आँखे तरेरकर जवाब दिया, "मैं क्या तुझे जानवर दिखाई देती हूं .... जो तू मेरे बदले किसी और जानवर का खून देगी। हाय..! मेरी तो कोई वेल्यू ही नही करता। एक अच्छी खासी लड़की की तुलना जानवर से की जा रही है। ये सुन ने से पहले ये धरती फट क्यों नही गयी... या तुझे कोई पिशाच उठा कर क्यों नही ले गया।" उसकी बात सुनकर आकांक्षा ने हँसते हुए कहा, "बस कर ड्रामा क्वीन! और हां ... अब तुझे दर्द नहीं हो रहा... मुझसे बहस करते हुए ? चल आ जा जल्दी से.... घर को लॉक करके चलते हैं। दद्दू को भी बताना पड़ेगा। वरना वो यहां पर आए और हम घर पर नहीं मिले तो पूरे शिमला सिर पर उठा लेंगे।" आकांक्षा जाह्नवी को जल्दी से हॉस्पिटल लेकर गयी। रास्ते मे जाह्नवी राजवीर जी को फोन पर सब बता दिया। कुछ देर बाद वो लोग सिटी हॉस्पिटल में थे। जाह्नवी की चोट पर डॉक्टर स्टिचेज (टांके) लगा रहे थे। जबकि आकांक्षा बाहर बैठ कर उसका इंतज़ार कर रही थी। वो वहाँ बाहर वेटिंग एरिया के एक बेंच पर बैठी थी कि तभी इंस्पेक्टर दुबे एक डॉक्टर के साथ उसी तरफ आए। इंस्पेक्टर दुबे ने डॉक्टर से पूछा, "डॉक्टर क्या उस लड़के की लाश को कोई लेने आया, जिसकी लाश 3 दिन पहले उन्ही जंगलो के बाहर मिली थी।" "नहीं इस्पेक्टर ... अभी तक तो कोई भी नहीं आया। और मुझे नहीं लगता कि कोई आएगा भी.... हमें उसका अंतिम संस्कार करवा देना चाहिए। "उस लड़के के पास से भी कुछ ज्यादा सामान बरामद नहीं हुआ। जिस से उसके बारे मे पता लगाया जा सके। उसके बैग मे कुछ खाने पीने का सामान था और साथ में दो तीन किताबें और एक स्लिप.... लगता है उस लड़के ने यही शिमला की किसी लाइब्रेरी से बुक सेंशन करवाई थी। अब लड़के का नाम पता अच्छे से नहीं मालूम, तो कौन जगह-जगह जाकर उसके बारे में पता लगाएं। उन सभी किताबो की एक ही खासियत है कि वो सभी किताबे पिशाचों के ऊपर थी। ऊपर से उसके लास्ट सीन जंगलों के बाहर मिली थी उनमें पिशाचों मे होने की अफवाह भी फैली हुई है। लगता है वो लड़का जंगल में पिशाच को ढूंढने गया था।" इंस्पेक्टर दुबे ने कहा। "वैसे तो साइंस इन सब अंधविश्वास में बिलीव नहीं करती है। लेकिन इतने सारे लोगों का एक ही तरीके से मरना कोई इत्तेफाक तो नहीं हो सकता ना... इन लोगों की डेड बॉडी में खून की एक बूंद भी नहीं मिली है। इसके अलावा सभी डेड बॉडीज की गर्दन के राइट साइड ही जानवर के काटने के निशान हैं। काटने का तरीका और निशान हर बार एक ही होता है।" डॉक्टर ने गंभीरता से जवाब दिया। " लेकिन हम भी क्या कर सकते है डॉक्टर साहब! अब इतनी हिम्मत भी किसी की नहीं पड़ती कि जंगल में जाकर पूरी खोजबीन कर के आए। हमें तो रिपोर्ट देनी है... वो दे देंगे।" वो दोनों आकांक्षा से थोड़ी ही दूरी पर खड़े होकर बातें कर रहे थे। उनकी बातें आकांक्षा के कानों में आराम से पड़ रही थी और उसने उनकी सारी बातें ध्यान से सुनी। उनकी बात खत्म होते डॉक्टर वहाँ से चले गए। दुबे वहां खड़े होकर किसी से फोन पर बात कर रहे थे। उन्हें वहां रुका हुआ देखकर ना चाहते हुए भी आकांक्षा के कदम इंस्पेक्टर की तरफ बढ़ गए। "एक्सक्यूज मी सर.... क्या मैं वो किताबें देख सकती हूं ?" इंस्पेक्टर दुबे ने पूछा, "और आप कौन हैं ? वो किताबे विक्टिम के पास से मिली है। तो वो किताबें मैं आपको नहीं दे सकता।" "मैं आपको उस लड़के की फैमिली तक पहुंचने में मदद कर सकती हूं। कल ही मैं लाइब्रेरी गई थी। तब उस लड़के के बारे में वहां के लाइब्रेरियन पूछ रहे थे। वो आपकी लड़के के परिवार तक पहुँचने मे मदद कर सकते है। वहां पर उस लड़के का फोन नंबर भी लिखा था। उसके जरिए भी उसके बारे में काफी कुछ पता लगाया जा सकता है।" आकांक्षा की बात सुनकर इंस्पेक्टर दुबे चिढकर बोले, "बस बस हमें अपना काम मत सिखाओ। और तुम उस लड़के को कैसे जानती हो?" दुबे ने उसकी तरफ संदेह भरी नजरों से देखा। "जानती तो नहीं ....लेकिन उन बुक्स के जरिए हम लाइब्रेरी में जाकर पूछताछ करेंगे.. तो शायद कुछ पता चल जाए।" "देखिए मैडम ये पूछताछ करने का काम हमारा है.... आपका नहीं। तो आप इन सब से दूर रहिए। इसी में आपकी भलाई हैं। रही बात को किताबें देने की, तो वो विक्टिम के पास से मिली है। तो वो किताबें आपको नहीं मिल सकती। आप ये सोचिएगा भी मत।" दुबे ने उसे झिड़क दिया। "लेकिन मुझे वो बुक्स देखनी थी। एक बार आप मुझे वो किताबे दे दीजिए। प्लीज .....!" "वो किताबें आपको नहीं मिल सकती मैडम। आप क्यों अपना वक्त जाया कर रही है।" आकांक्षा ने कहा, "बुक्स तो मैं लेकर रहूंगी। जब आप लाइब्रेरी में जमा करवा देंगे, उसके बाद ले लूँगी।" "वो किताबें अब लाइब्रेरी में जमा नहीं होंगी। क्या पता उन बुक्स की वजह से उस लड़के की जान गई हो?" वो दोनों आपस में बहस कर रहे थे कि तभी जाह्नवी भी वहां पहुँच गयी। दुबे को देखकर उसने उनके पैर छूकर बोला, "अरे दुबे अंकल आप यहां?" "खुश रहो बेटा। लेकिन तुम यहां पर क्या कर रही हो... और ये चोट?" उन्हे आराम से बात करते देख आकांक्षा ने हैरानी से पूछा, "जाह्नवी तुम जानती हो इनको?" "हां... अक्षु ये मेरे मौसा जी है। पर तुम इनसे क्यों बहस कर रही हो?" " देख ना जाह्नवी... कितना बड़ा कोइंसिडेंस है। याद है कल उस लड़के की लाश देखकर मैं बेहोश हो गई थी। वो वही लड़का था, जो लाइब्रेरी से बुक्स लेकर गया था। हम जिन बुक्स को ढूंढ रहे थे, वो अब इनके पास है और ये हमें देने से मना कर रहे हैं।" आकांक्षा ने मुँह बना कर कहा। "प्लीज अंकल बस सिर्फ 1 दिन के लिए हमें दे दीजिए।" अब जाह्नवी भी उनसे किताबों की जिद करने लगी। इस्पेक्टर दुबे, जो अब तक आकांक्षा से थोड़ा सख्ती से बात कर रहे थे, उन्होंने अब थोड़ा नरमी से बोला, "देखो बच्चियों ये मेरी जॉब का सवाल है। अगर किसी को पता चल गया तो ....!" "पर अंकल किसी को क्यों पता चलेगा? प्लीज आप हमें वो बुक्स दे दीजिए। प्लीज.... प्लीज.... प्लीज।" जाह्नवी उनसे बच्चों की तरह जिद करने लगी। इंस्पेक्टर दुबे ने धीमी आवाज मे जवाब दिया, "ठीक है .... लेकिन सिर्फ 1 दिन के लिए। कल इसी वक्त आकर तुम दोनों मुझे वो किताबे पुलिस स्टेशन में जमा करवाओगी।" आकांक्षा और जाह्नवी एक साथ चहक कर बोली, "हां अंकल प्रॉमिस.....!" इंस्पेक्टर दुबे उन दोनों के साथ रिसेपशन पर गए, जहां उन्हें उस लड़के का सारा सामान दिया गया। एक छोटे से बैग के अंदर वो तीन किताबें भी मौजूद थी, जो उस लड़के ने लाइब्रेरी से सेंशन करवाई थी। इंस्पेक्टर दुबे ने सबकी नजरों से छुप कर धीरे से वो किताबें उन दोनों को पकड़ा दी, जिसे लेकर वो घर आ गई। ★★★★ रात का समय के 12 बज रहे थे। चारों तरफ शांति पसरी थी। तभी अचानक से जंगलों के अंदर बहुत ही भयानक स्वर होने लगा। जिसने एक ही पल में वहां मौजूद शांति को नष्ट कर दिया। अचानक चारों तरफ धूल का उड़ने लगी। ऐसा लग रहा था मानो आधी रात को धूल का बवंडर आया हो। धरती में एक अलग ही कंपन हो रहा था. .. मानो कोई पेड़ों को उखाड़ रहा हो। वो कंपन इतना तेज था कि उससे दूर-दूर तक की जमीन हिल रही थी। जगंल का माहौल बहुत ही भयावो होता जा रहा था। मानो 1850 का इतिहास आज खुद को दोहरा रहा था, जो आज से इतने सालों पहले हुआ था। वही मौत का मंजर आज फिर छाया हुआ था। ऐसा होने की एकमात्र वजह थी, कि जंगल मे रीवांश अपने उन्ही कपटी साथियो रवि, रघु, विजय, संजय के साथ अपने असली शैतानी रूप मे थे। और उन चारो पिशाचो ने मिलकर पीछे से रीवांश पर हमला बोल दिया था। रीवांश ने चारो को एक झटके मे दूर फेंकते हुए कहा, "भले ही आज से कुछ साल पहले हम कमजोर थे।" उसने जोर से गुर्राते हुए बोला, "लेकिन आज नही..! पिशाचों के इतिहास मे हमसे शक्तिशाली आज तक नही हुआ।" वो चारों कमजोर नजरों से रीवांश की तरफ देख रहे थे। "आपने हमारी दोस्ती और मासूमियत का फायदा उठाया और आप लोगों की वजह से आज हम ये शापित जिंदगी बिताने पर मजबूर हैं। ना जाने हमने अनजाने में कितने मासूमों का खून कर दिया। लेकिन अब जब हम दरिंदे बन ही गए हैं, तो सबसे पहले तुम चारों गद्दारों को खत्म कर देंगे।" रीवांश सपने बड़े बड़े कदम बढ़ाते हुए उनकी तरफ बढ़ने लगा। उसे करीब आता देख रघु हिम्मत करके खड़ा हुआ और उसने पास का पेड़ उखाड़ कर रीवांश पर हमला बोल दिया। "मासूम तो आप तब भी नहीं थे युवराज.... अनजाने में ही सही आपने भी एक बहुत बड़ा पाप किया था। जिसकी वजह से आप ये जीवन बिताने पर मजबूर हो। मासूमों की रक्षा करने के लिए आपका भगवान आता है, लेकिन गुनहगारों के लिए शैतान आता है। तभी उस रोज आपका भगवान नहीं, हमारा शैतान आया था।" रीवांश ने उस पेड़ को पकड़ कर वापिस उसी की तरफ वापस फेंक दिया। "अंजाने में की गई गलती की कोई सजा नहीं होती है। हमें समझ नहीं थी जब हम से वो पाप हुआ था।" संजय ने एक बार फिर पीछे से वार करते किया। उसके वार से रीवांश थोड़ा लड़खड़ा गया। "अब तो समझ है ना? अब क्यों उन मासूम लोगों का खून पीते हो? तुम्हारे ग्रह नक्षत्र सबसे ज्यादा शक्तिशाली थे। इसी वजह से हमने तुम्हें उस पूजा में बिठाया था। तुम्हें नहीं पता, जिनके नक्षत्र शक्तिशाली होते है, उन्हें कभी कोई वश में नहीं कर सकता। लेकिन फिर न शैतान की परछाई तक तुम पर हावी हो गई। तुम्हारे उस अनजाने में किए गए पाप की वजह से शैतान ने तुम्हारी आत्मा को अपने काबू में कर लिया।" रीवांश ने गुस्से मे उसे उठाकर वहां से दूर फेंक दिया और जोर से गुर्राते हुए बोला, "तुम लोगों ने तो तब भी हमें छला था और आज भी पीछे से वार .... भूल गए क्या? पिशाचों में सबसे शक्तिशाली पिशाच हम हैं। बाकी तुम लोगों की हमारे आगे कोई औकात नहीं..... ना कल थी और ना ही आज।" वो चारों मत खा चुके थे। रघु और संजय को तो उसने पहले ही उठाकर दूर फेंक दिया था। रवि और विजय अभी भी वहीं पर गिरे हुए पड़े थे। वो वहां से जाने लगा, तो उस दोनों ने मौका देखकर उस पर दो तरफा वार किया। "कभी तुम्हारी भी कोई कमजोरी होगी. ... जिसकी वजह से तुम्हें भी एक दिन हार का सामना करना पड़ेगा। उस दिन इस जंगल और पिशाचों के राजा तुम नहीं हम बनेंगे।" रवि गुस्से मे गुर्राया। रीवांश ने अपने दोनो हाथो से उन दोनों का गला पकड़ कर हंसते हुए कहा, "चार –चार राजा?" तब भी तुम चारों जाहिल इसी तरह लड़ोगे और एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाओगे। लेकिन ऐसा दिन कभी नहीं आएगा। तुम चारों क्यों बार-बार हमसे भिड़ने के लिए आ जाते हो ... जबकि पता है कि हर बार मात तुम चारों की ही होगी। यहां अपनी शक्ति का थोड़ा बहुत प्रदर्शन करते रहो क्योंकि इस जंगल के बाहर तुम्हारी कोई औकात है।" विजय ने अटकते हुए कहा, "ओ....औकात तो त....तुम्हारी भी नहीं है, इस जंगल के बाहर... भले ही तुम होंगे सबसे शक्तिशाली पिशाच, लेकिन हो तो एक पिशाच ही। और तुम भी जानते हो कि पिशाच चाहे शक्तिशाली हो या कमजोर.... छोटा हो या बड़ा.... उन सब की कमजोरी एक ही होती है।" रीवांश ने गुस्से में उन दोनो को उठाकर अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिया। उससे जंगल में एक बहुत ही भयानक स्वर उत्पन्न हुआ। शिमला में इतना भयानक कंपन हुआ मानो वहां कोई भूकंप आया हो। रीवांश ने गुस्से मे जोर से गुर्राते हुए कहा, "क्यों... हमारे साथ ही क्यों हुआ.... हम इतने सालों से तड़प रहै है। ना चाहते हुए भी आज ये शापित जीवन बिताने पर मजबूर है। क्या कोई भी नहीं है, जो हमें इस पिशाच के जीवन से मुक्ति दिला सकेगा ? उस अनजाने में की गई गलती की हमें इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.... ये हमने कभी नहीं सोचा था। दम घुटता है हमारा इस जीवन से.... हमें मुक्ति चाहिए ....बस मुक्ति।" बोलते हुए रीवांश की आँखे छलक उठी और इसी के साथ वो अपने इंसान स्वरूप में आ गया। उसके अंदर की तरफ उसके आंखों से पानी बनकर बह रही थी, जहाँ वो इस पिशाची जीवन से मुक्ति पाना चाहता था। क्रमशः....!
रात के 2 बज रहे थे। आकांक्षा और जाह्नवी ने अपना प्रोजेक्ट निपटा कर वो किताबे लेकर बैठी जो वो दोनों इंस्पेक्टर दुबे से लाई थी। उन दोनो ने जमीन मे अचानक उठे कंपन महसूस किया। जाह्नवी ने आकांक्षा का हाथ पकड़कर पूछा, "अक्षु क्या तूने भी वाइब्रेशन कंपन फील की?" " हां यार.... धरती में एक अजीब सा ही कंपन महसूस हो रहा है।" जाह्नवी उसका हाथ छोड़कर बेड के नीचे छुप गयी। "अक्षु, तु भी नीचे आ जा।कहीं भूकंप तो नहीं आ रहा? मुझे सच में बहुत डर लग रहा है। जब से ये वैंपायर के बारे में सुना है, तब से छोटी छोटी चीजों का डर लगने लगा है .... और तू भी कहां आधी रात को ये किताबें पढ़ा रही है।" "ड्रामा बंद कर और और चुपचाप ऊपर आकर बैठ जा। तू ना चुप करके पढ़.... मुझे भी तो नींद आ रही है। मैं भी तो पढ़ रही हूं ना?" जाह्नवी ने बेड पर बैठते हुए कहा, "अगर इतनी शिद्दत से रात को बैठकर सिलेबस की बुक्स पढ़ती ना, तो टॉप कर लेती।" " तू ये जींस टॉप को छोड़ और चुपचाप बुक पढ़" " अक्षु कभी सोचा है, ये किताबें इतनी मोटी क्यों होती है? पहले तो वो प्रोजेक्ट कंप्लीट किया और फिर तूने मुझे इन किताबों में लगा गया। इनमें भी बकवास के अलावा और कुछ नहीं लिखा।" आकांक्षा ने कहा, "हां तो करना पड़ेगा। एक तेरी हो गई और एक मेरी हो गई। बची हुई ये किताब हम दोनों मिलकर आधा-आधा पढ़ लेंगे। वैसे भी ये तीसरी किताब ज्यादा मोटी नही है। मेरी तो कंप्लीट होने वाली भी है।" " कंप्लीट तो मेरी भी होने वाली है। पर इन बुक्स में कुछ नहीं है..." जाह्नवी ने पन्ने बदलकर बोला, "इनमें वही लिखा है, जो हमें गुप्ता अंकल ने बताया था। इससे अच्छा उनसे पूछ लेते कि इस तीसरी किताब में क्या है ?" "ला वो किताब तो दे ... नाम क्या है इसका?" आकांक्षा ने किताब का शीर्षक पढा, "पहला पिशाच" "हो सकता है इस बुक मे अंदर उस व्यक्ति के बारे में लिखा हो, जो दुनिया का पहला पिशाच हो। सुनने मे तो काफी इंटरेस्टिंग लग रहा है।" "ठीक है,फिर साथ पढ़ते है।" आकांक्षा वो किताब पढ़ने लगी, "वैसे तो पिशाच के बारे में कही सटीक जानकारी नहीं मिलती, लेकिन इतिहास में कई सारी प्राचीन पौराणिक कथाएं दर्ज हैं, जो उनके होने या न होने की ओर इशारा करती हैं। इसमें जो सबसे ज्यादा प्रचलित कथा है। उसके अनुसार पिशाच शुरुआत से ही पिशाच नहीं था.... बल्कि, वो हमारी और आपकी तरह एक आम इंसान था ....... जिसका नाम था एमब्रोगिओ। उसका जन्म इटली में हुआ था और वो एक रोमांच पसंद शख्स था। इसी गुण के कारण वो अपनी किस्मत आजमाने समुद्र के रास्ते ग्रीस पहुंच गया।" जाह्नवी ने बीच मे बोला,"ओ वाओ. .. मुझे भी ग्रीस जाना है।" " तू चुप करके सुनेगी .... या फिर एक काम कर तू ही पढ़ ले।" गुस्से में आकांक्षा ने वो किताब जाह्नवी को पकड़ा दी। "आगे बढ़ते-बढ़ते वो ग्रीस के डेल्फी शहर जा पहुंचा। वहां सूरज के देवता अपोलो का घर था। इस दौरान एमब्रोगिओ अपोलो के घर में घुस गया और वहां उसे सेलेना नाम की एक दासी पसंद आ गई.....आँखें चार हुईं तो बात शादी तक पहुंच गई।" जाह्नवी किताब पढ़ना छोड़कर बीच मे जोर जोर से हंसने लगी, "ओ माय गॉड..! प्यार एंड ऑल. ...!" आकांक्षा उसकी पर गुस्सा हो गयी और उस से वो किताब छीन ली। "तू ये किताब मुझे दे ... वरना तू साथ साथ में अपनी कॉमेंट्री करेगी और सारा इंटरेस्ट खराब कर देंगी।" " हां यार अब तो मुझे भी बहुत इंटरेस्ट आ रहा है ले तू पढ़ अच्छे से.... मैं तो आराम से सुनूंगी। तू 2 मिनट रुक मैं पॉपकॉर्न लेकर आती हूं।" जाह्नवी जल्दी से जाकर अपने हाथ में चिप्स और पॉपकॉर्न लेकर आई। आकांक्षा चिप्स खाते हुए किताब को पढ़ने लगी। "जब एमब्रोगिओ और सेलेना को एक दूसरे से प्यार हो गया तो अब दोनों शादी करना चाहते थे। मगर जब अपोलो को इस बारे में पता चला कि एक इंसान उनकी दासी को भगाने की कोशिश कर रहा है, तो उन्होंने एमब्रोगिओ को श्राप दिया कि अगर वो सूर्य के प्रकाश में आएगा, तो जल कर राख हो जाएगा। इस कारण गुस्से में एमब्रोगिओ पाताल के देवता हेडिस के पास जा पहुंचा..... क्युकी पाताल मे सूर्य की रोशनी नही जाती। लेकिन वहां हैडिस ने एमब्रोगिओ की आत्मा को अपने पास कैद कर लिया। इस दौरान अपोलो की बहन अरटेमिस ने आकर उसकी मदद की..... उसने एमब्रोगिओ को वहां से आजाद करवाया।" उसे सुनकर जाह्नवी का मुँह उतर गया। "बेचारा.... प्यार करने की ये सज़ा....!" आकांक्षा ने आगे पढा, "हालांकि, किसी वजह से अरमैटीस ने एमब्रोगीऔ को श्राप दे दिया और वो एमब्रोगिओ को श्राप से नहीं बचा सकी। इस श्राप के तहत अगर उस पर चांदी से बनी किसी भी वस्तु से वार किया जाएगा, तो उसकी मौत हो जाएगी! हालांकि, बाद में अरटेमिस को एमब्रोगिओ की कहानी के बारे में पता चला, तो उसे उस पर तरस आ गया। उन्होंने उसे वरदान दिया कि वो सदा अमर रहेगा, साथ ही उसे बेशुमार ताकत और शिकार करने की कला भी वरदान के तौर पर दी गई। अरटेमिस ने एमब्रोगिओ को बताया वो कि सेलेना का खून पीकर उसे भी अमर कर सकता है। इसके अलावा अगर वो किसी अन्य इंसान का भी खून पीता है, तो वो उसी की तरह पिशाच बन जाएगा। अरटेमिस की बात मान कर एमब्रोगिओ ने सेलेना को भी पिशाच बना दिया। फिर ये दोनों इटली के शहर फ्लोरेंस चले गए, जहां उन्होंने पिशाचो के पहले वंशज को जन्म दिया।" उसे पढ़कर जाह्नवी और आकांक्षा एक दूसरे की तरफ देखने लगी। आकांक्षा– "अगर इस स्टोरी के हिसाब से चलें तो एक पिशाच किसी इंसान को मार भी सकता है और वो चाहे तो उसे भी काटकर पिशाच बना सकता है।" "अब तो मुझे और भी डर लग रहा है। जंगल में जो पिशाच है, वो एमब्रोगीऔ है क्या ? यार इटली से शिमला क्यों आया ? माना शिमला अच्छी जगह है.... पर इटली तो बहुत ही ज्यादा खूबसूरत हैं।" "या हो सकता है कि वो कोई और पिशाच हो। ओवर ऑल इस बुक से दो बातें पता चली है.... पहली ये कि कोई भी पिशाच है, वो सूर्य की गर्मी को झेल नहीं सकता... जैसा कि अपोलो ने उसे श्राप दिया था। और अगर अरमेटिस् के श्राप के हिसाब से चलें, तो किसी भी पिशाच को चांदी से बने हुए हथियार से मारा जा सकता है।" आकांक्षा ने निष्कर्ष निकाला। "पर मारेगा कौन ? ये तो वही बात हो गई ना... जैसे कि चूहों ने प्लान किया था कि बिल्ली के गले में घंटी बांध देंगे,, ताकि पता चल जाएगा कि बिल्ली आ रही है। पर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन।" आकांक्षा– "बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा, इसका तो नहीं पता। लेकिन इतना जरुर पता चल गया कि इस बिल्ले के गले में भी घंटी बांधनी है और वो भी चांदी वाली .... चल अब सो जाते हैं। सुबह उठकर सोचते हैं कि क्या करना है?" "थैंक गॉड अक्षु... तुझे याद तो आया कि सोना भी है.... और हम क्या करेंगे ? हम कुछ नहीं करने वाले। तू ये मत सोचना कि तेरे पास थोड़ी बहुत पावर है, तो मुंह उठाकर जंगल में चली जाएगी। देख मैं नहीं जाने वाली तेरे साथ कहीं पर भी.... जंगल तो बिल्कुल नही।" आकांक्षा ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "तुझे लिए बिना तो बिल्कुल नहीं जाने वाली हूं मैं। जाऊंगी तो तुझे साथ लेकर जाऊंगी।" जाह्नवी ने सारी किताबे बेडसाइड टेबल पर रख दी और फिर दोनों सोने चली गई। ★★★★ सुबह 6 बजे के छः बज रहे थे। जंगल में पेड़ों का घना साया था. ... इतना कि सूरज की एक किरण भी जंगल के अंदर नहीं पड़ती थी। यही वजह थी कि वहां पर पिशाचों का डेरा हो चुका था। भले ही जंगल में सूरज की एक किरण भी ना पड़े, लेकिन जंगल के बाहर सूरज की पहली किरण दस्तक दे चुकी थी। जंगल के अंतिम छोर पर एक आदमी जा रहा था। उसकी खुशबू जंगल के बीचो बीच खड़े रीवांश तक पहुँची। रीवांश ने वही से अपना हाथ लम्बा करके उस आदमी को जंगल के अंदर खींच लिया। वो आदमी से डर से चिल्लाया, "बचाओ. ... कोई मुझे बचाओ। मै....मैं जंगल के अंदर कैसे आ गया?" वो आदमी बुरी तरह घबरा रहा था, "सच कहते हैं लोग इस जंगल में पिशाच रहते हैं।" वो आदमी जंगल के बाहर जाने के लिए इधर उधर बेतहाशा दौड़ने लगा। तभी अचानक रीवांश उसके सामने आ कर खड़ा हो गया। "आप कितना भी चिल्लाइए। आपकी आवाज इन जंगलों से बाहर नहीं जाएगी।" वो उस आदमी के गर्दन के पास आकर उसके कान मे बुदबुदाया, "हमें माफ कर दीजिए... हमे बहुत भूख लगी है। भगवान आपकी आत्मा को शांति दे।" रीवांश ने उस आदमी के शरीर के आखिरी बूंद खत्म होने तक उसका खून पीता रहा। अगले ही क्षण वो व्यक्ति मर कर नीचे गिर गया। रीवांश ने अपने मुँह पर लगा खून पोंछते हुए कहा, "इन बीतें सालों में हम क्या से क्या हो गए है। कहाँ हम हमारी माँ के लाडले रीवांश हुआ करते थे.... और खून का एक कतरा देख कर ही डर जाया करते थे। आज उसी खून के प्यासे बन गये है। क्या वो चारों बोल रहे थे वो सच था। हमारी बचपन की एक भूल की हमें ये सज़ा मिलेगी हमने कभी नही सोचा था।" बोलते हुए रीवांश का ध्यान अपने हाथ की तरफ गया, जो कि लाल पड़ गया और हथेली के पिछले हिस्से पर बहुत सारे फफोले निकल आए थे... मानो वहाँ किसी ने उबला हुआ पानी डाल दिया हो। "लगता है बाहर सूरज निकल आया है। इस आदमी को खींचने के लिए जब हमने अपना हाथ बढ़ाया, तो हमारा हाथ भी जल गया। बहुत जलन हो रही है इस पर और दर्द भी.... पर इससे भी ज्यादा दर्द और जलन तो हम पिछले कई सालों से भुगत रहे हैं। एक ऐसा दर्द... जो अनंतकाल तक रहेगा।" ★★★★★ सुबह के 11 बज रहे थे। आकांक्षा कमरे मे जाह्नवी का इंतेजार कर रही थी, जबकि वो अंदर बैठ कर अपने मोबाइल मे गेम्स खेल रही थी। आकांक्षा ने जाह्नवी को आवाज लगाई, "जल्दी कर ना जाह्नवी.... चल चलते हैं। पता नही इतनी देर से घर के बाथरूम में कर क्या रही है?" "देख अक्षु मैं नही जाने वाली तेरे साथ किसी भी जंगल में....! भाड़ मे जाए ये पिशाच..!" जाह्नवी अंदर से चिल्लाई। "एक तो इसकी नौटंकी कभी खत्म नहीं होती।" आकांक्षा बाथरूम के बाहर आकर बोली, "हम जंगल नहीं जा रहे हैं मेरी मां.... भूल गई दुबे अंकल को बोला था कि 1 दिन बाद उसी वक्त पर उन्हें वो किताबें लौटानी है। 11:00 बज रहे हैं। पुलिस स्टेशन पहुंचेंगे... उनसे मिलेंगे ..... तब तक 1 आराम से बज जाएंगे। अब चुपचाप बाहर निकल।" "चलो अच्छा है... जल्दी से ये पिशाच वाली किताबों को उनको दे कर आते हैं। जब से इनको देखा है, तब से मेरे दिमाग का दही हो गया है।" जाह्नवी बाहर आकर बोली। "तो उसी दही का रायता बनाकर पी ले। लेकिन जल्दी कर....हमें लेट हो रही है।" जाह्नवी और आकांक्षा जल्दी से उन तीनो किताबों को लेकर पुलिस स्टेशन पहुँची। उनके चेहरे पर निराशा के भाव थे क्योंकि उन्हें उस किताब में कुछ खास नहीं मिला था। ★★★★ वो दोनो पुलिस स्टेशन पहुँची। जाते ही उनकी नजर सामने की डेस्क पर बैठे इंस्पेक्टर दुबे पर पड़ी, जो कि किसी से फोन पर बात कर रहे थे। इंस्पेक्टर दुबे ने उन्हे देखकर उनकी तरफ हाथ हिला कर कहा, "हां इधर आ जाओ बच्चियों..... अच्छा सावंत मैं तुमसे बाद में बात करता हूं। देख लेना आसपास कुछ उस लड़की का सामान मिले तो...!" जाह्नवी उनके पास पहुँचकर बोली, "नमस्ते अंकल ...." "हम आपके दिए हुए समय से पहले किताबे भी ले आये। थैंक यू सो मच अंकल! आपने हमारी हेल्प की।" "तुम दोनों बैठो.... अगर कुछ रह गया है तो अभी देख लो। वापिस नहीं मिलने वाली है तुम्हें ये किताबें। मै अभी आता हूँ।" कहकर दुबे कुछ देर के लिए वहां से चले गए उनके कहने पर आकांक्षा उन किताबों के पन्नो को जल्दी जल्दी पलट कर देखने लगी। "अब क्या रह गया तेरा ?" जाह्नवी ने उनकी तरफ मुँह बनाकर कहा। "जो बुक तूने पढ़ी थी, उसे एक बार फिर से देख रही हूं। तू तो किताबों से वैसे भी बोर हो जाती है.... क्या पता कुछ रह गया हो।" पन्ने बदलते हुए आकांक्षा का ध्यान किसी चीज पर गया। उसने घबराते हुए कहा, "देख इसे.... इतनी इंपॉर्टेंट चीज को तू कैसे मिस कर सकती है जाह्नवी?" "सॉरी यार... पता नहीं मेरा ध्यान उसकी तरफ क्यों नहीं हो गया... और अच्छा ही हुआ जो नहीं गया। वरना मेरे को तो पूरी रात डर के मारे नींद भी नहीं आती। वैसे ये लिखा क्या है यहां पर?" जाह्नवी ने वहाँ लिखे शब्द को पढ़ने की कोशिश की। "तेरी आंखें तो खराब नहीं हो गई ना ? खून से किसी का नाम लिखा हुआ है। उस लड़के ने जरूर पिशाच को देखकर कुछ लिखा होगा। पर पढ़ने में नहीं आ रहा। ये नाम क्लीयर क्यों नही है।" आकांक्षा उसे पढ़ने के चक्कर में किताब के उस पन्ने को पूरी तरह इधर-उधर घुमा दिया। उसे देखते हुए अचानक उसका हाथ उस शब्द पर पड़ा और उसे छूते ही आकांक्षा की आंखें अपने आप बंद हो जाती है और उसे फिर कुछ अस्पष्ट दृश्य दिखाई देने लगे। उसे उन दृश्यों को मे कुछ भी साफ नजर नही आया। उन्हे देखते हुए आकांक्षा ने बन्द आँखो से बुदबुदाया, "राजकुमार रीवांश...!" क्रमशः....!
आकांक्षा के मुंह से राजकुमार रीवांश का नाम सुनकर जाह्नवी हैरानी से उसे देखने लगी। जबकि आंखें बंद करके उन दृश्यों को देखने के बाद आकांक्षा का सिर बुरी तरह चकराने लगा। "जाह्नवी मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है।" उसने बिल्कुल धीमी आवाज़ में सिर पकड़कर बोला,"मुझे चक्कर आ रहे हैं। ऐसे लग रहा है.... जैसे आंखों के आगे अंधेरा छा गया हो। जाह्नवी..... जा.... नवी....!" जाह्नवी उसे बीमार देख बुरी तरह घबरा गयी, "क्या हुआ तुझे अक्षु? मैंने पहले ही कहा था कि इन सब बकवास के पीछे नहीं भागते हैं। ये सब चीजें हमारी पहुंच से परे हैं।" जाह्नवी ने उसे पानी पकड़ाया, "तू पहले ये पानी पी, फिर हम यहाँ से घर चलते हैं और छोड़ते हैं इन सब झंझटों को।" आकांक्षा ने पानी पीया। आकांक्षा अक्सर बन्द आंखों से देखे विजुअल्स को भूल जाती थी और अभी थोड़ी देर पहले उसके साथ जो भी हुआ, उसे वो कुछ भी याद नहीं था। "मैंने कुछ कहा जाह्नवी, तूने सुना क्या?" आकांक्षा ने सिर पकङकर पूछा, "मुझे कुछ याद नहीं आ रहा। मैं इन अक्षरों को फिर से छू कर देखती हूं।" जैसे ही आकांक्षा ने उस किताब के अक्षरों को छूने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, जाह्नवी ने तुरन्त किताब बंद करते हुए कहा, "अब तू इस किताब को हाथ भी नहीं लगाएगी। चल चलते हैं यहां से.... हमें कुछ पता नहीं लगाना..... ना किसी पिशाच के बारे में और ना ही किसी राजकुमार रीवांश के बारे में...!" हड़बड़ाहट में उसके मुंह से राजकुमार रीवांश का नाम निकल गया। "हाँ राजकुमार रीवांश..... यही नाम था.... शायद वो जंगल में हो। मैने इसी का नाम ही तो बोला था।" "हे भगवान ! ये लड़की खुद भी मरेगी और मुझे भी मरवाएगी।" जाह्नवी उसका हाथ पकड़कर उसे वहाँ से ले जाने लगी, "मुझे कुछ पता नही लगाना। तू घर चलेगी..... अगर तूने मेरी बात नही मानी तो.... तो मै दद्दू को सब सच सच बता दूँगी। " "मैं घर चल लूंगी, लेकिन तू मुझे दद्दू का नाम लेकर ब्लैकमेल मत कर। तुझे पता है ना मेरी आदत कि एक बार जब मै किसी......." जाह्नवी ने उसकी बात काटते हुए कहा, "हां हां मेरी मां..... मुझे सब पता है कि एक बार आकांक्षा मैडम अगर किसी चीज के पीछे पड़ जाए, तो जब तक उसकी बाल की खाल ना निकाल ले.... तब तक उन्हें चैन कहाँ मिलता है।" "बिल्कुल सही कहा। चल अब घर चलते हैं और वहां जाकर आगे का प्लान बनाते हैं..... और खबरदार अगर तूने दद्दू को कुछ भी बताया। वरना मैं भी बता दूंगी कि कैसे उन्हें तू उनको बेवकूफ बनाकर मेरा फोन घर पर रखवा कर मुझे सब जगह लेकर जाती है।" आकांक्षा ने झूठा गुस्सा दिखाया। जाह्नवी ने जाते समय एक हवलदार से कहा, "सर हम लोग जा रहे हैं। ये कुछ किताबें हैं, वो आप दुबे अंकल को दे दीजिएगा।" "ठीक है..... आप ये किताबें यहीं रख दीजिए। दुबे सर अभी आते ही होंगे। जब वो आएंगे तो मैं उन्हें बोल दूंगा।" हवलदार ने जवाब दिया। आकांक्षा और जाह्नवी वहाँ से सीधे घर पर आ गयी। घर पर उन्होंने देखा कि राजवीर जी दरवाजे के बाहर उनका इंतजार करते हुए इधर से उधर चक्कर लगा रहे थे। उनके चेहरे पर परेशानी के भाव थे। उन दोनो को देखते ही राजवीर जी ने नाराजगी जताते हुए कहा, "आ गई तुम दोनों? मैं देख रहा हूं, आजकल तुम दोनों का ध्यान पढ़ाई में कम और इधर उधर की बातों में ज्यादा रहता है। जाह्नवी, कब वापिस आ रहे हैं तुम्हारे मम्मी पापा? देखो मैं अक्षु को अब और तुम्हारे पास यहां नहीं छोड़ सकता। अगर तुम्हें अकेले डर लगता है, तो तुम हमारे घर पर रहने आ जाओ।" "दद्दू उन्हें तो आने में अभी एक हफ्ता और लग जाएगा और मैं आपके घर पर रहने के लिए नहीं आऊंगी। आपका घर जंगल के पास है और जंगल में पि..! " जाह्नवी बोलते हुए रुक गयी। "भले ही हमारा घर जंगल के पास हो जाह्नवी, लेकिन जंगली जानवर हमारे घर पार्टी मनाने नहीं आते हैं। ऐसा कर ना तू अपना घर लॉक कर दे और अपना सामान लेकर 1 हफ्ते तक हमारे घर पर रहने के लिए आ जा।" आकांक्षा ने बात को संभाला। "हां जाह्नवी, अक्षु बिल्कुल ठीक कह रही है।" राजवीर जी ने आकांक्षा की हाँ मे हाँ मिलाई। "ओके दद्दू, मै मम्मी को पूछकर बताती हूँ कि क्या करना है।" कहकर जाह्नवी अपनी मम्मी को फोन करने के लिए अंदर कमरे में चली जाती है, जबकि राजवीर जी और आकांक्षा अभी भी हॉल में बैठे थे। राजवीर अपने मोबाइल मे कुछ देख रहे थे, जबकि आकांक्षा के ख्यालों मे अभी तक पिशाचों से जुड़ी बाते चल रही थी। "कौन हो सकता है ये राजकुमार रीवांश? ना चाहते हुए भी मेरा ध्यान बार-बार वही पर जा रहा है। कैसे पता लगाऊं इसके बारे में? इंटरनेट पर कुछ मिल सकता है क्या?" "अक्षु...." राजवीर जी की एक बार बुलाने पर आकांक्षा ने ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने थोड़ा जोर से बोला, "अक्षु.....!" "जी दद्दू ..! " उनकी आवाज से आकांक्षा का ध्यान टूटा और उसने हड़बड़ा कर जवाब दिया। " किसके ख्यालों में खोई हुई है ? तेरी तबीयत तो ठीक रहती है ना आजकल .... या फिर से वही अजीब अजीब सपने आते रहते हैं?" राजवीर जी की बात सुनकर आकांक्षा ने सोचा, "दद्दू वो सब मेरे सपने नहीं है, बल्कि एक ऐसी हकीकत है, जिससे मैं चाह कर भी नहीं भाग सकती।" आकांक्षा राजवीर जी को कुछ जवाब देती, उससे पहले जाह्नवी वहां पर आकर बोली,"दद्दू...अक्षु , मम्मा ने मुझे परमिशन दे दी है, आप लोगों के साथ रहने के लिए। लेकिन उन्होंने कहा है कि दिन में एक बार मैं घर पर आकर, यहां सब कुछ ठीक है...ये चेक करूं।" "फिर जल्दी से अपना सामान लेकर आ जाओ। हम चलते हैं।" राजवीर के कहते ही जाह्नवी ने झट से जवाब दिया, "मेरा सामान रेडी है दद्दू.... चलिए चलते हैं।" " तुम दोनों घर लॉक करके आओ, तब तक मैं कार बाहर निकालता हूं।" आकांक्षा–"दद्दू आप चले जाइए.... हम दोनों स्कूटी से आ जाएंगे। बस आप जाह्नवी का सामान अपने साथ में ले जाइए।" "ठीक है.... लेकिन 10 मिनट के अंदर तुम घर पहुंचोगी। पता है ना, यहां से हमारा घर सिर्फ 15 - 20 मिनट की दूरी पर ही है। तो बेवजह कहीं पर भी नहीं रुकना है।" राजवीर ने सख्ती से कहा। "जी दद्दू, हम सीधे घर ही आएगे। जाह्नवी, तु दद्दू को अपना बैग लाकर दे दे।" आकांक्षा के कहते ही जाह्नवी ने अपना सामान राजवीर जी को लाकर दे दिया, जिसे लेकर वो तुरंत वहाँ से चले गए। उनके जाते ही जाह्नवी ने पूछा,"अक्षु तूने दद्दू को पहले घर पर क्यों भेजा ? जरूर तेरे दिमाग में कुछ खिचड़ी पक रही है। देख मैं पहले ही बता रही हूं, मैं कोई जंगल वंगल में नहीं जाने वाली हूं।" "जंगल नहीं, मोहन दास जी के पास.... मैं राजकुमार रीवांश के बारे में पता लगाना चाहती हूं। हो सकता है उन्हें इस बारे में कुछ पता हो.... उन्होंने काफी सारी किताबें पढ़ी है, तो इस राजकुमार के बारे में भी कहीं ना कहीं तो पढ़ा ही होगा।" जाह्नवी– "और दद्दू को क्या बोलेगी? उन्होंने अभी-अभी कहा था कि 10 मिनट के अंदर हम घर पहुंचे।" "मैं दद्दू को बोल दूंगी कि हम लाइब्रेरी जा रहे हैं। देख इससे पहले कि हमें उस दिन की तरह आने मे लेट हो जाए .... पहले हम लाइब्रेरी जा कर आते हैं।" आकांक्षा ने कहा। "ठीक है। लेकिन इस बार दद्दू को फोन तू करेगी। मुझे उनसे बहस नहीं करनी।" आकांक्षा ने राजवीर जी को फोन करके उनसे लाइब्रेरी जाने की परमिशन ली। राजवीर जी ने पढाई लिखाई के मामले मे उसे कभी कही जाने से नही रोका। आकांक्षा और जाह्नवी बिना देर किए मोहन दास गुप्ता जी से मिलने लाइब्रेरी पहुँच गई। ★★★★ शाम के 4 बज रहे थे। आसमान सूरज की रोशनी से जगमगा रहा था। भले ही जंगल के बाहर सूरज की रोशनी चारों तरफ छाई हुई थी. ... लेकिन जंगल के अंदर अभी भी वही घनघोर अंधेरा था। मानो रात के 12:00 बज रहे हो। ये कह पाना मुश्किल था कि वो अंधेरा सूरज की किरण ना पहुंचने की वजह से था.... या फिर वहां पर रहने वाली काली शक्तियों की वजह से। उस जंगल में काफी सारी अलग अलग प्रकार की काली शक्तियां निवास करती थी। जंगल मे रीवांश, रघु, रवि, विजय और संजय के अलावा भी बहुत सारे पिशाचों का डेरा था। उन चारों ने सभी पिशाचों को वहां पर इकट्ठा कर रखा था। विजय ने गुर्राते हुए सबको सम्बोधित किया, "आखिर कब तक आप लोग उस रीवांश की गुलामी करोगे। अगर हम सब एक हो जाए, तो उसे हराने में एक मिनट भी नहीं लगेगा।" "तुम सब लोग समझते क्यों नहीं..... हम बहुत सारे हैं और वो अकेला। हम सब के सामने वो कुछ नही कर सकेगा। भले ही वो शक्तिशाली है, लेकिन जब अकेला होगा तो उसे हराना आसान होगा।" संजय ने विजय की बात को आगे बढ़ाते हुए बोला। वो चारों जंगल के पिशाचों को रीवांश के खिलाफ भड़का रहे थे। रघु– "उसे बहुत घमंड है खुद पर कि वो एक राजघराने से संबंधित है और खुद को हम सब का राजा मानता है। अरे अब कोई राजघराना नहीं रहा। वक्त बदल गया है।" "और हम कोई इंसान नहीं जो राजघराने की परंपरा का अनुसरण करें। हम पिशाच हैं....... हम सब सिर्फ एक के ही गुलाम हैं और वो है शैतान। फिर पता नहीं क्यों तुम सब लोग उस रीवांश से डरते हो? अगर हम सब एक हो जाए तो उसे हराना बहुत आसान होगा। पता नहीं तुम लोग समझते क्यों नहीं इस बात को...!" रवि ने बात खत्म की। उन चारों वैंपायर्स ने मिलकर रिवांश के खिलाफ साजिश शुरू कर दी थी, ताकि रिवांश को कमजोर कर वो उसे खत्म कर सके। इसके लिए उन चारों ने बाकी वैंपायर्स को भड़काना शुरू कर दिया। ★★★★
उन चारों वैंपायर्स ने मिलकर रिवांश के खिलाफ साजिश शुरू कर दी थी, ताकि रिवांश को कमजोर कर वो उसे खत्म कर सके। इसके लिए उन चारों ने बाकी वैंपायर्स को भड़काना शुरू कर दिया। पिशाचों का नेतृत्व करते हुए, भीड़ मे से सबसे बुजुर्ग पिशाच जीवन बोला, "देखो बेटा, जब रीवांश ने हमारा कुछ बिगाड़ा ही नहीं है, तो हम क्यों बेवजह उससे दुश्मनी मोल ले। जंगल के सारे पिशाच जानते हैं कि तुम चारों के मन में हमेशा से ही कुटिलता रही है। अरे जलते हो तुम उससे, तो अपनी कुनीतियों को हमारे जरिये तो पूरा करने की मत ही सोचो। हे..!" जीवन ने अपनी सफेद दाढी को बल दिया। उसकी हाँ मे हाँ मिलाते हुए एक और पिशाच बोला, "देखो दादा, भले ही वो अकेला होगा.... लेकिन हम सब पर भारी है। कल रात को भी तुम चारों ने मिलकर उस पर हमला किया था ना। क्या परिणाम निकला? फिर मुंह की खा कर आ गए. ... खुद तो आए दिन उससे जख्मी होते ही रहते हो। अब तुम क्या चाहते हो कि हम सब भी जख्मी होकर जंगल के किसी कोने में पड़े रहें। एह ना चालबे..!" उनकी बात सुनकर रवि गुस्से मे गुर्राते हुए बोला, "अरे कल रात को सिर्फ हम चार थे.... और अगर हम सारे साथ मिल जाए तो मिलकर उस रीवांश को जरूर हरा देंगे।" जीवन ने फिर सबकी तरफ से अगुवाई की, "पर बेटा उनको हराना ही क्यों है ? ये जंगल हम सब का घर है। अगर तुम लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आए, तो हम सब लोग मिलकर तुम चारों को इस जंगल से बाहर फेंक देंगे। फिर पता है ना क्या होगा तुम लोगों के साथ?" सारे पिशाच जीवन की हां में हां मिला रहे थे, तो उनकी बातें सुनकर रवि, रघु, संजय और विजय को गुस्सा आने लगा। संजय ने गुस्से मे गुर्राते हुए कहा, "तो करते रहना उसकी उम्र भर गुलामी, और अनंतकाल तक छोटे मोटे पिशाच बनकर रहना।" संजय अपनी बात बोल ही रहा था, कि तभी रीवांश वहाँ आया। उसने उन लोगो की सारी बाते सुन ली थी। गुस्से मे उसने अपने शरीर का विशाल रूप धारण किया और संजय का गला पकड़ कर उसे किसी खिलौने की भाँति अपने हाथ मे जकड़ लिया। "और कितना गिरोगे तुम चारों.... छल, कपट, लालच, ईर्ष्या, सब कूट कूट कर भरे है तुम चारो मे... तुम जब इंसान थे, तब भी किसी पिशाच से कम नही थे।" रीवांश का गुस्सा उसकी आँखों मे खून बन कर उतर आया था। संजय घुटे स्वर में बोला,"छ....छोड़ो.....मुझे.....!" संजय को मुसीबत मे देख रवि, रघु और विजय ने एक साथ रीवांश पर हमला बोल दिया। भले ही वो एक दूसरे को पूर्णतया खत्म नही कर सकते थे, लेकिन एक पिशाच के दिए जख्म काफी गहरे होते थे। उनका दर्द काफी असहनीय होता था। रीवांश को मुसीबत मे देख जीवन ने बाकी पिशाचों को आदेश दिया, "आक्रमण...!" और इसी के साथ सारे पिशाच झुंड मे उन तीनो पर टूट पड़े। "तुम चारो को ये अंतिम चेतावनी है.... अगर फिर से कभी ऐसा किया तो अंजाम बहुत बुरा होगा।" जीवन जोर से गुर्राया। रीवांश ने संजय को फैंकते हुए कहा, "हम से उलझ कर कोई फायदा नही है।" वो उनकी बेवकूफियों पर हंसते हुए बोला, "कितने बेवकूफ हो तुम चारों, बार बार मुँह की खाने के बाद भी हमसे टकराने आ जाते हो।" जीवन– "युवराज आप का हाथ जख्मी हो गया है। अगर इसका तुरंत इलाज नही किया गया, तो जख्म नासूर ना हो जाए। आप आप फिक्र ना करे.... इन कपटियों के लिए हम काफी है। आप पहले जाकर इस पर जड़ी बून्टी का लेप लगाए।" जीवन की बात सुनकर रीवांश अगले ही पल हवा की तरह वहां से गायब हो गया। उसके जाते ही, जंगल के बाकी पिशाचो मे उन चारो को एक बड़े जादुई पिंजरे मे कैद कर दिया। इस पिंजरे में अक्सर उन्हीं पिशाचों को कैद किया जाता था, जो बगावत पर उतर आते थे। उसके चारों तरफ जादूई सलाखे लगी हुई थी, जिन्हें छूने भर से कोई भी पिशाच पूरी तरह जख्मी हो सकता था। ★★★★ कुछ देर बाद आकांक्षा और जाह्नवी लाईब्रेरी पहुची। वो जाते ही, वो दोनो सबसे पहले उस कमरे मे गई, जहां मोहनदास के बैठा करते थे। मोहनदास जी ने उन दोनो को देखते ही पहचान लिया। "तुम दोनों फिर आ गई ...और यही वक्त मिलता है क्या तुम्हें आने का? वापिस जाते वक्त डर नहीं लगेगा?" आकांक्षा ने बात घुमाए बिना सीधे पूछा, "नहीं अंकल... हमें आपसे एक बहुत जरूरी बात करनी थी।" "अंकल क्या आप जानते हो कि जो लड़का यहां से वो तीन पिशाच वाली किताबें लेकर गया था, उसका खून हो चुका है।" जाह्नवी ने हड़बड़ाकर कर बोला। मोहनदास जी– " हां पता है। आज सुबह ही पुलिस पूछताछ के लिए आई थी। वो तीनों किताबें अभी भी पुलिस के पास है .... और उन्होंने मामला निपटने पर वो किताबें वापस लाइब्रेरी में जमा करवाने का भी बोला था। लेकिन तुम दोनो इतनी घबराई हुई क्यों लग रही हो?" "अंकल आप पूरी बात नहीं जानते। हमने वो किताबें इंस्पेक्टर दुबे से पढ़ने के लिए मांगी थी। उनमें से एक किताब में खून से किसी राजकुमार रीवांश का नाम लिखा हुआ था।" आकांक्षा ने जवाब दिया। जाह्नवी– "क्या आप जानते हो कि राजकुमार रीवांश कौन था? कहां का राजकुमार था?" "इस दुनिया में ना जाने कितने राजकुमार रीवांश होंगे.... लेकिन हां यहां लाइब्रेरी में बिलासपुर रियासत के राजा जय प्रताप सिंह के बारे में भी कुछ पुस्तके है..... उनके बेटे का नाम भी रीवांश प्रताप सिंह था। बिलासपुर के आस पास के गांव में भी राजकुमार रीवांश के बारे में कुछ बातें फैली हुई है। अब उन बातों में कितनी सच्चाई है, ये तो ऊपर वाला ही जाने।" मोहनदास जी उन्हे जवाब दिया। " कौन सी बातें?" आकांक्षा ने हैरानी से पूछा। मोहनदास जी ने हंस कर जवाब दिया, "तुम दोनो तो बिल्कुल पुलिस की तरह पूछताछ कर रही हो। मुझे ज्यादा कुछ नहीं पता लेकिन मैं तुम्हें कुछ किताबें देता हूं। उनके जरिए तुम्हें पता चल जाएगा। मैंने वो किताबें बहुत पहले पढ़ी थी। इसलिए मुझे सारी बातें याद नहीं है।" "ओ नो.. फिर से किताबें.. प्लीज नहीं, वरना फिर से पूरी रात ये मुझे बैठाकर वो किताबें पढवाएगी।" जाह्नवी ने मुँह बनाकर कहा। आकांक्षा ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "हां तो अच्छा ही है ना..... थोड़ा ज्ञान प्राप्त हो जाएगा।" "मैंने कल भी कहा था और आज भी बोल रही हूं कि अगर इतना मैंने अपने सिलेबस की किताबों को पढ़ा होता, तो आज कोई अच्छी नौकरी मिल गई होती।" जाह्नवी ने झुंझला कर कहा। आकांक्षा को उसे देखकर हंसी आने लगी। "अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। वो तो तू अभी पढ़ कर एक अच्छी सी नौकरी लग सकती है।" "अच्छा बच्चीयों, बहस बन्द करो। चलो ऊपर लाइब्रेरी में चलते हैं। वहां पर कुछ किताबें मिल जाएगी।" मोहनदास जी उठते हुए कहा। वो उन दोनों के साथ ऊपर लाइब्रेरी की किताबो वाले सेक्शन में गए। उन्होंने वहाँ से एक किताब उठाकर उसका शीर्षक पढा, "बिलासपुर और कुछ किवदंतीयां!" मोहनदास जी मे वो किताब आकांक्षा को पकड़ाते हुए कहा, "ये किताब बिलासपुर में फैली हुई कुछ किवदंतियों के बारे में है। जिसे एक व्यक्ति ने अपने रिसर्च के आधार पर लिखा था। इसे जरूर पढ़ना। शायद इसमें तुम्हें कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां मिल सके।" आकांक्षा ने खुश होते हुए कहा, "थैंक यू सो मच अंकल.! आपने हमारी बहुत मदद की है।" मोहनदास जी ने जवाब दिया, "वोतो ठीक है बच्चों। लेकिन किसी मुसीबत में मत पड़ जाना। हो सकता है कि इन किताबों में लिखी कुछ बातें सच हो.... और कुछ सच के पीछे जाना या उनके बारे में पता लगाना बहुत खतरनाक साबित होता है।" उनकी बात सुनकर जाह्नवी ने जवाब दिया, "एक्जेक्टली अंकल, पिछले 2 दिनों से मैं इसे यही समझा रही हूं कि कुछ चीज़े हमारी पहुंचे से परे होती है।" मोहन दास जी ने बुक रेंक से एक और किताब निकालते हुए बोला, "और ये किताब महाराजा जयप्रताप सिंह जी के राजघराने के ऊपर है। इसे भी रख लो.... लेकिन मेरी बातों को भी याद रखना।" "जी जरूर अंकल.... अच्छा अब हम चलते है। ये किताबें हम आपको दो दिन बाद वापिस लौटा देंगे" आकांक्षा ने कहा। "ठीक है, लेकिन जाते वक्त रजिस्टर में अपना नाम एड्रेस और फोन नंबर लिखवा देना।" आकांक्षा ने हाँ मे सिर हिलाया। वो और जाह्नवी मोहनदास जी से वो किताबें लेकर घर पहुँची। घर आते ही आकांक्षा उस किताब के आखिरी पन्ने पर बने चित्र को देख रही थी कि उसे छुते ही उसे फिर से कुछ दृश्य दिखाई देने लगे। क्रमशः....!
लाइब्रेरी से लाई हुई किताबों को जब आकांक्षा ने छुआ, तो उसे फिर से कुछ दृश्य दिखाई देने लगे। उसने झटके से उस किताब को खुद से दूर कर दिया। " दादू के सामने मुझे इन किताबों से दूर रहना होगा। अगर मैंने इन विजुअल्स देखते टाइम गलती से कुछ बोल दिया तो उन्हें पता ना चल जाए कि मैं किसी का पास्ट देख सकती हूं।" आकांक्षा ने राजवीर जी की तरफ देखकर सोचा, जो उस समय टीवी देखने मे व्यस्त थे। उसने दोनो किताबो को अपने कमरे मे बाकी किताबो के साथ रख दिया। रात को डिनर के बाद आकांक्षा के साथ अपने के कमरे मे बैठकर वो किताबें पढ़ रही थी। जाह्नवी ने उन किताबों की तरफ देखकर बोला,"पता नही किस घड़ी में मैने तुझे अपना दोस्त बनाया था और कौनसे जन्म का बदला ले रही है तु मुझसे, ये बोरिंग किताबें पढ़वा कर।" "हे भगवान! एक तो इस लड़की की नौटंकी खत्म नही होती। चुप कर के पढ़ नही सकती क्या?" आकांक्षा ने आँखे तरेरकर कहा। जाह्नवी ने किताब खोलकर जोर जोर से पढ़नी शुरू कर दी, "क्या पढ़ूँ इसमे.... एक रियासत थी... जहाँ पर कभी कोई तो कभी कोई शासन करता था। कभी कोई विक्रम प्रताप सिंह था, तो कभी कोई जय प्रताप सिंह ..... राजतंत्र था तो राजा का बेटा ही नया राजा बनता था। कुछ नहीं लिखा इन सबके अलावा.... पता नहीं किसने लिखी होगी ये बोरिंग किताब। लिखते लिखते नींद नहीं आई क्या उसे।" जाह्नवी ने किताब को बंद कर के साइड में रख दिया। "चल इसे छोड़ .... ये वाली पढ़ते हैं।" आकांक्षा ने किताब का शीर्षक पढा, "बिलासपुर और कुछ किवदंतीयां" "तू पढ़..... मैं सुन रही हूं।" जाह्नवी ने उबासी से लेकर कहा। "मुझे पता है कि तू सो जाएगी। इसलिए तू पढ़ और मैं सुन रही हूं।" कहकर आकांक्षा ने वो किताब जबरदस्ती जाह्नवी के हाथ पर रख दी। अब जाह्नवी के पास उस किताब को पढ़ने के अलावा और कोई चारा नहीं था। "अच्छा पूरी बुक को रहने देते हैं.... सिर्फ राजकुमार रीवांश से जुड़ी हुई किंवदंती को पढ़ते हैं।" आकांक्षा ने अपना चश्मा उतार कर साइड मे रख दिया और बोला, "हां तो पढ़... तू कितने भी बहाने बना ले, ये किताब तो मैं तुझ ही से पढ़वाऊंगी।" जाह्नवी ने किताब पढ़नी शुरू की, "वैसे तो बिलासपुर में कई किवदंतीया फैली हुई थी.... लेकिन जो सबसे प्रचलित थी, वो थी सन 1850 से जुड़ी हुई घटना। सन 1850 में बिलासपुर में काले जादू का बहुत बोलबाला था। सभी लोग शक्ति और सत्ता के लालच में काले जादू को सीखते और उसका प्रयोग करते थे। इन्हीं में चार नौजवान दोस्त थे.... जो बिलासपुर के श्मशान में तंत्र विद्या का प्रयोग करते थे। वो चारों भी शक्तिशाली बनना चाहते थे। लेकिन उन चारों में से किसी के भी ग्रह नक्षत्र इतने शक्तिशाली नहीं थे कि वो एक बड़ी पूजा को अंजाम दे सके। उन चारों ने अपने बुरे कामों को अंजाम देने के लिए राज्य के अगले उत्तराधिकारी राजकुमार रीवांश को चुना। पूरे बिलासपुर में राजकुमार रीवांश के बारे में सबको पता था कि उनका जन्म एक विशेष मुहूर्त में हुआ था। जिसके अनुसार उनके द्वारा किया हुआ हर कार्य सफल ही सिद्ध होगा। लेकिन राजकुमार रीवांश को किसी कारणवश विलायत पढ़ने भेज दिया गया था।" आकांक्षा ने उसकी बात को बीच मे बोला, "मतलब उस समय में भी लोग बाहर पढ़ने जाते थे?" जाह्नवी ने जवाब दिया, "हां क्योंकि तब तक ब्रिटिश सत्ता भारत में स्थापित हो चुकी थी। तो शायद अंग्रेजी भाषा भी अपने इंडिया में आ गई होगी। वैसे भी तूने सुना नहीं क्या ज्यादातर राजा लोग थे, वो अंग्रेजों के गुलाम ही थे।" आकांक्षा ने वापिस चश्मा लगाते हुए कहा, "ये बुक इधर दे, आगे मैं पढ़ती हूं...!" आकांक्षा ने आगे पढ़ना शुरू किया, "राजकुमार रीवांश अपनी पढ़ाई को पूरी करके विदेश से वापस लौट रहे थे। उस दिन पूर्णिमा की रात थी.... भले ही रात को आसमान में चांद पूरा था,,,,, लेकिन उस रात चांद पर ग्रहण लगने वाला था। काली शक्तियाँ अपनी चरम पर थी। उसी वक्त को उन चारों ने अपने काले कारनामों को अंजाम देने के लिए चुना। महल लौटते वक्त रास्ते में घना जंगल था। जिसमें उन पांचों ने वो रात बिताई थी। कहते हैं उस रात स्वयं शैतान जागृत हुआ था और उन पांचों को अद्भुत शक्तियां प्राप्त हुई थी। कुछ लोगों का मानना है कि राजकुमार रीवांश अपने दोस्तों के भ्रम जाल में आकर उनकी कुनीतियों का शिकार हो गए। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि राजकुमार रीवांश ने शक्तियां हासिल करने के लिए स्वयं वो पूजा की थी। उस रात के बाद वो जंगल शापित हो गया। शैतान की परछाई ने पूरे जंगल को अपने आगोश मे ले लिया। वहां चारों तरफ अंधेरा छा गया। उस रात के बाद सूरज की रोशनी भी उस जंगल को छू नहीं सकती।" आकांक्षा ने राजकुमार रीवांश से जुड़ी हुई बातें पढ़ कर उसके बारे मे सोचने लगी। तभी जाह्नवी ने हैरानी से आँखे बड़ी कर के कहा, "क्या सच में वो राजकुमार अपने दोस्तों की बातों में आ गया था या फिर उसे खुद को शक्तियां चाहिए थी?" आकांक्षा ने हंसकर जवाब दिया, "तू तो मुझे ऐसे पूछ रही है, जैसे उस रात उन पांचों के साथ मैं भी उस जंगल में मौजूद थी। आगे पढ़ने दे मुझे....!" वो उसे फिर से पढ़ते हुए बोली, "उस भयानक रात के बाद बिलासपुर में एक के बाद एक मौतें होने लगी। जो भी उस जंगल में जाता.... लौट कर कभी भी वापस नहीं आता। कहते हैं उस रात के बाद उस जंगल में भी पिशाचों का डेरा है।" "अक्षु वैसे उस जंगल का एग्जैक्ट लोकेशन क्या है?" जाह्नवी ने किताब में बने एक छोटे से नक्शे को देख कर कहा। आकांक्षा– "अगर इस मैप के हिसाब से जाएं, तो वो जंगल हमारे शिमला के पास वाला जंगल ही है। यहां से लगभग 1 घंटे दूर... इसका एक कोना शहर की आबादी की तरफ भी लगता है।" "थैंक गॉड..! ये जंगल यहाँ से 1 घंटे दूर है। मैं तो उस तरफ कभी ना जाऊं।" जाह्नवी ने हाथ जोड़े। "क्यों ना हम वहां पर जाए और जाकर सच्चाई का पता लगाएं।" आकांक्षा के कहते ही जाह्नवी ने उसे समझाया, "देख बहन, ये सच्चाई-सच्चाई वाला गेम किताबों तक ही ठीक है। देखा नहीं कैसे लोगों की लाशें मिल रही है, उस जंगल के पास से, ना तो मैं जाऊंगी और ना ही तुझे जाने दूँगी। रात के 12:00 बज रहे हैं। अब चुपचाप सो जा।" आकांक्षा ने मुँह बनाकर जवाब दिया, "अच्छा ठीक है सो जाऊंगी .... और वैसे भी किताबें भी तो जमा करवानी है। कल ही इन्हे वापिस कर देंगे। और कल से तो रेगुलर कॉलेज भी जाना पड़ेगा।" "हां कॉलेज भी जाएंगे .... लाइब्रेरी भी जाएंगे.... फिर कैफे भी जाएंगे .... और तो और इवनिंग वॉक के लिए पार्क भी जाएंगे। सब जगह चलेंगे.... लेकिन उस जंगल में कभी नहीं।" आकांक्षा ने चश्मा उतारकर रखते हुए कहा, "अच्छा ठीक है मेरी माँ.... अब जाकर लाइट्स तो ऑफ कर दे।" जाह्नवी– " मुझसे नहीं उठा जाता.... आंखें बंद कर ले। अपने आप अंधेरा हो जाएगा।" "पता नहीं क्या होगा इस लड़की का.... सारा काम मुझे ही करना पड़ता है।" आकांक्षा ने उठकर कमरे की लाइटस बंद की और जाह्नवी के पास बेड पर आकर सो गए। रात के 12.30 बज रहे थे। जाह्नवी और आकांक्षा दोनो गहरी नींद मे सोई थी। आकांक्षा को फिर से वही अजीब खौफनाक सपने आने लगे, जिन्हे देखकर वो नींद मे बड़बड़ा रही थी, "ये कहाँ आ गयी हूँ मै... जाह्नवी कहाँ है तु? मुझे अकेले ही भेज दिया यहाँ.... कोई है? कहां पर आ गई मैं? कुछ समझ नहीं आ रहा... कहां जाऊं... इतना इतना अंधेरा क्यों है यार? देखती हूं आगे चलकर की कहीं कुछ दिखे तो....!" आकांक्षा को लगा कि वो सपना देख रही है, लेकिन उसे पता ही नहीं चला कि कब वो नींद में जंगल में पहुंच गयी। जंगल के एक हिस्से में जादुई पिंजरे में वो चारों पिशाच (रवि,रघु संजय और विजय) कैद थे। जबकि रात के अंधेरे में बाकी पिशाच अपने शिकार की तलाश में जंगल में इधर से उधर घूम रहे थे। क्रमश:..!!
आकांक्षा को लगा कि वो सपना देख रही है, लेकिन उसे पता ही नहीं चला कि कब वो नींद में जंगल में पहुंच गयी। जंगल के एक हिस्से में जादुई पिंजरे में वो चारों पिशाच (रवि,रघु संजय और विजय) कैद थे। जबकि रात के अंधेरे में बाकी पिशाच अपने शिकार की तलाश में जंगल में इधर से उधर घूम रहे थे। जिस जंगल में इतने सालों से घनघोर अंधेरा था, वहां आकांक्षा के कदम रखते ही उसके चारों तरफ उसकी शक्तियों से एक रोशनी का एक घेरा बन गया। भले ही आकांक्षा अपनी शक्तियों से अनजान थी. ...लेकिन कुदरत की वो अद्भुत शक्तियां हमेशा उसकी रक्षा करती थी। आकांक्षा की शक्तियों का घेरा को देख पाना या महसूस कर पाना किसी आम इंसान के बस में नहीं था। जंगल में इतने सारे पिशाच होने के बावजूद किसी की भी नजर उस रोशनी पर नही पड़ी। अक्सर पिशाच किसी इंसान की खुशबू सुंघकर चुटकियों में उनके पास आ जाते थे, लेकिन आकांक्षा जंगल में इधर-उधर घूम रही थी, उसके बावजूद किसी को उसकी महक नही आई। रीवांश जंगल मे मौजूद एक झील के पास बैठा था। वहां बैठे हुए उसकी नजर झील पर पड़ी। इतने सालों में पहली बार आज झील का पानी बिल्कुल साफ और शुद्ध था। वो उसकी तरफ हैरानी से देख रहा था कि उसकी नजर जंगल के किसी कोने से आ रही रोशनी की तरफ गई। "ये अचानक से इस जंगल के अंधेरे में रोशनी कहां से आ रही है। जिस जंगल में शैतान की शक्तियों की वजह से कभी भी रोशनी की एक किरण तक नहीं पहुंचती, ,,,वहां आज ये अद्भुत रोशनी कहां से आ रही है?" रीवांश उस रोशनी को ढूंढते हुए अगले ही पल आकांक्षा के सामने खड़ा था। उसके आस पास रोशनी का सुरक्षा चक्र देखकर वो समझ गया कि वो कोई आम इंसान नही थी। "इस शैतानी दुनिया में आप क्या कर रही हो?" रीवांश सोचते हुए उसके करीब गया। आकांक्षा कुछ समझ पाती, उस से पहले वो चकरा कर रीवांश की बाहों मे गिर गयी। ★★★★ सुबह के सात रही थे। अलार्म की आवाज सुनकर जाह्नवी नींद में बड़बड़ाई, "अक्षु..! अलार्म बन्द कर ना..!" काफी देर तक कोई जवाब नहीं आने पर जाह्नवी ने उठकर अलार्म बंद किया। जाह्नवी का ध्यान बिस्तर पर गया, जहां पर आकांक्षा मौजूद नहीं थी और उनके कमरे का दरवाजा भी खुला था। "ये अक्षु की बच्ची, आज जल्दी कैसे उठ गई? रात को तो हम इतना लेट सोए थे।" वो बेड से उठकर चिल्लाते हुए बाहर आई, "अक्षु ...... अक्षु .... कहां है यार तू? इतनी सुबह सुबह उठ गई और मुझे जगाया तक नही।" जाह्नवी की बातों का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बाहर देखा तो वहां पर कोई मौजूद नहीं था। " यहां पर तो कोई नहीं है। हो सकता है कि अक्षु दद्दू के साथ मॉर्निंग वॉक पर गई होगी। ऐसा करती हूं कि मै तैयार हो जाती हूं। जब तक वो लोग आते हैं, तब तक ब्रेकफास्ट भी बनाकर तैयार कर लेती हूँ। ब्रेकफास्ट रेडी होगा , तो अक्षु को भी तैयार होने में ज्यादा टाइम नहीं लगेगा। कॉलेज भी तो पहुंचना है। ये लड़की भी ना.. कई बार हद करती है।" जाह्नवी जल्दी से रेडी होकर ब्रेकफास्ट बनाने लगी। लगभग 8.30 बजे के करीब राजवीर जी हमेशा की तरह मॉर्निंग वॉक से वापिस आए। राजवीर जी ने जाह्नवी को डाइनिंग टेबल के पास देखा, तो वहाँ जाकर बोले, "गुड मॉर्निंग जाह्नवी बेटा......आज तो सुबह-सुबह आप लोग उठ भी गए और ब्रेकफास्ट भी बना लिया।" जाह्नवी ने मुँह बनाकर जवाब दिया, "आप लोग कहां दद्दू ? कब से मैं अकेले लगी हुई हूं। एक तो इस अक्षु की बच्ची ने मुझे जगाया भी नहीं और आप दोनों अकेले ही मॉर्निंग वॉक पर क्यों गए? मुझे भी तो लेकर जाना चाहिए था ना.... माना कि वॉक करने में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है। लेकिन सुबह सुबह वहां जाकर कुछ फोटोज ही क्लिक कर लेती।" " ये तुम क्या बोल रही हो जाह्नवी? अक्षु मेरे साथ नहीं गई थी। रात को भी तो तुम दोनों साथ ही थी। ऊपर से तुम दोनों रात को दरवाजा बंद करके नहीं सोई थी। घर में कोई चोर घुस जाता तो ... या कोई भी जंगली जानवर आ सकता है। कितने लापरवाह हो गए हो तुम आजकल के बच्चे।" राजवीर जी ने नाराजगी जताते हुए कहा। उनकी बात सुनकर जाह्नवी घबरा गयी। "आप मजाक कर रहे हो क्या सुबह-सुबह? अक्षु तो घर में कहीं पर भी नहीं है। मुझे लगा वो आपके साथ मॉर्निंग वॉक पर गई होगी।" "ये तुम क्या बोल रही हो? अक्षु घर पर नहीं है? वो मेरे साथ मॉर्निंग वॉक पर नही गयी थी। सुबह भी जब मै उठा, तो मैन गेट खुला था।" राजवीर जी बुरी तरह परेशान हो गए। राजवीर जी और जाह्नवी ने पूरे घर में आकांक्षा को छान मारा। लेकिन वो कहीं नहीं मिली। आकांक्षा के ना मिलने से राजवीर जी परेशान हो गए। पहले ही उन्होंने अपने बेटे बहू को खो दिया था। अब उनका एकमात्र सहारा आकांक्षा ही थी। राजवीर जी ने रोते हुए कहा, "पता नहीं मेरी बच्ची कहां चली गई होगी?" "अरे दद्दू आप परेशान मत होइए। हो सकता है कि कहीं पड़ोस में गई होगी.... मैं उसे फोन करके देखती हूं। आप तब तक ये पानी पीजिए।" जाह्नवी ने उन्हें पानी का ग्लास पकड़ाया और दिलासा दिया। जाह्नवी ने आकांक्षा को कॉल किया, तो उसका मोबाइल घर पर ही बज रहा था। "चलिए आस पास जाकर देखते है। वो कहीं नहीं गई, यहीं कहीं होंगी।" जाह्नवी राजवीर जी को संभालने की पूरी कोशिश कर रही थी। जाह्नवी और राजवीर जी आकांक्षा को आस पास के उन सभी हिस्सों मे ढूंढने लगे, जहाँ वो जा सकती थी। लेकिन उन्हे वो कही नही मिलती। राजवीर जी ने जाह्नवी से बोला,"हमे पुलिस स्टेशन चलना चाहिए। मैं अपने बच्चे को लेकर किसी भी तरह का रिस्क नहीं ले सकता।" "हाँ दद्दू..!' कहकर जाह्नवी राजवीर जी के साथ कार में बैठ गई। उसने अभी तक राजवीर जी को किताबों से जुड़ी कोई बात नहीं बताई थी, लेकिन उसके मन में उसी से जुड़ी बातें चल रही थी, "कही अक्षु उस रिवांश के सच का पता लगाने जंगल तो नही चली गयी। हे भगवान! सब ठीक हो। ददू को इन सब के बारे में पता चलेगा, तो वो भी गुस्सा हो जाएंगे। एक बार उन्हें इस बारे में कुछ नहीं बताती हूं। जब अक्षु आ जाएगी, तब दोनों मिलकर बात कर लेंगे।" ★★★★★ सुबह के 9 बज रहे थे। जंगल मे अभी तक घनघोर अंधेरा था। आकांक्षा अभी भी रीवांश की गोद मे बेहोश पड़ी थी और रिवांश बस अपलक उसे ही देख रहा था। रीवांश ने अक्षु के बालों मे हाथ फिराते हुए कहा, "होश मे आइये।" रीवांश के जादू का उस पर कोई असर नही पड़ा। उसने हैरानी से कहा, "इन पर हमारा जादू काम क्यों नही कर रहा है?" रीवांश खुद से बात कर रहा था कि तभी उसकी नजर आकांक्षा की तरफ गई, जो कि धीरे-धीरे अपनी आंखें खोल रही थी। अक्षु ने अंगड़ाई लेकर बोला, "जाह्नवी की बच्ची... जा मेरे लिए चाय लेकर आ..!" आकांक्षा अपना सिर पकड़कर उसने की कोशिश करने लगी, "ये मेरे सिर मे इतना दर्द क्यों हो रहा है?" रीवांश ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "आपको होश आ गया.! " उसकी आवाज सुनकर आकांक्षा की नजर रीवांश पर गई, तो उसने देखा कि वो उस की गोद में लेटी पड़ी थी। आकांक्षा ने जल्दी से रीवांश की गोद से उठते हुए बोला,"कौन हो तुम? मै यहाँ कैसे? और यहाँ इतना अंधेरा क्यों है? यार मेरा चश्मा कहाँ है,,,, एक तो कुछ साफ दिख भी नही रहा।" रीवांश ने जवाब मे कहा, "आप यहाँ जंगल मैं क्या कर रही है? ये इलाका सुरक्षित नहीं है।" आकांक्षा ने घबराकर इधर उधर देखा। वहां चारों तरफ अंधेरा था लेकिन पास पड़ी धूल–मिट्टी और पेड़ों की महक से पता लगाया जा सकता था कि वो शहरी इलाके में अपने घर पर नहीं है। "क्या .....जंगल.....मैं यहां जंगल में क्या कर रही हूं? जाह्नवी कहां है? तुमने मुझे किडनैप तो नही किया ना?" "यहां आपके और मेरे अलावा और कोई नहीं है।" रीवांश ने कहा। "तुम कौन हो.... और क्या कर रहे हो यहां पर? पहले एक बात बताओ, यहां पर इतना अंधेरा क्यों है ? अभी सुबह हुई नहीं क्या?" आकांक्षा ने इधर उधर देख कर पूछा। "हम रीवांश हैं।" उसने जवाब दिया। उसका नाम सुनकर आकांक्षा ने आंखें बड़ी करके कहा, "क्या.... तुम राजकुमार रीवांश हो क्या? बिलासपुर वाला... जो विदेश से पढ़कर वापस आ रहा था।" आकांक्षा के मुँह से अपनी सारी जानकारी सुनकर वो दंग रह गया। उसकी बात सुनकर रीवांश सोच मे पड़ गया, "ये हमारे बारे में कैसे जानती है? इन्हे कैसे पता हम बिलासपुर के राजकुमार थे और विलायत पढ़ने गए थे।" "अरे बोलो कुछ? कहाँ खो गए? हे भगवान! पता नहीं कहां फंस गई मैं?" रीवांश ने खुद को संभाला और कहा, "आप क्या बोल रही हो ... हमें कुछ समझ नहीं आ रहा। हम भी आप ही की तरह इस जंगल में फंस गए हैं।" "थैंक गॉड..! कोई तो साथ मिला, जो इस जंगल में मेरी तरह फंस गया है। चलो दोनों मिलकर रास्ता ढूंढते हैं। माना कि अभी अंधेरा है... लेकिन जब सुबह होगी तो सूरज की रोशनी चारों तरफ फैल जाएगी और रास्ता ढूंढने में आसानी होगी।" उसे देखकर आकांक्षा में थोड़ी हिम्मत आ गयी। " पता नहीं हमने आपसे झूठ क्यों बोला .... लेकिन कैसे कहें आपसे कि इस जंगल में कभी भी सवेरा नहीं होगा। लेकिन आप इस जंगल में कैसे आ गई? ये जगह आपके लिए ठीक नही है। पहली बार शिकार सामने होते हुए भी, उसे मारने का मन नही कर रहा। हम पूरी कोशिश करेंगे, आपको यहां से सुरक्षित बाहर भेज दे। कितनी मासूम है आप..बिल्कुल किसी छोटे बच्चे की तरह..!" रीवांश आकांक्षा की तरफ देखकर सोच रहा था, जो कि अंधेरे मे भी रास्ता तलाशने की कोशिश कर रही थी। क्रमशः....
सुबह के 10 बज रहे थे उसके बावजूद जंगल में घनघोर अंधेरा था मानो रात के 12:00 बज रहे हो। आकांक्षा उस अंधेरे में भी धीरे धीरे चलते हुए रास्ता ढूंढने की कोशिश कर रही थी। रीवांश सच जानते हुए भी उसके साथ साथ चल रहा था कि वो कभी जंगल के छोड़ तक नहीं पहुंच पाएगी। "अगर इस तरह रास्ता ढूंढा तो आप इस जन्म में तो क्या अगले जन्म में भी जंगल के बाहर नहीं पहुंच पाएगी। कहीं आपकी दिव्य शक्तियां आपके लिए खतरा ना बन जाए। हमें एक पल भी आपको अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना है।" रीवांश चलते हुए सोच रहा था। वो दोनों चुपचाप आगे बढ़ रहे थे। काफी देर चलने के बाद आकांक्षा ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा,"तुम्हारे पास घड़ी है क्या? टाइम क्या हुआ होगा?" " नहीं..... हमारे पास कुछ नहीं है।" रीवांश ने धीमे स्वर मे जवाब दिया। "पता नहीं मैं नींद में चलते चलते यहां पर कैसे आ गई? मुझे तो नींद में चलने की बीमारी भी नहीं है। मेरा जरूरी सामान घर पर रह गया। अगर जाह्नवी यहां होती तो वो पक्का बोलती, तू कौन सा जंगल में पिकनिक करने आई है, जो सारा सामान साथ लेकर आएगी।" आकांक्षा चलते हुए खुद से बातें कर रही थी। रीवांश बिना कुछ बोले आकांक्षा की बातों को सुने जा रहे थे। भले ही आकांक्षा को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन रीवांश एक पिशाच होने की वजह से अंधेरे में भी सब कुछ साफ-साफ देख सकता था। आकांक्षा के आसपास रोशनी का घेरा रीवांश के अलावा खुद उसे भी नहीं दिखाई दे रहा था। "एक तो यहां पर इतना अंधेरा है.... ऊपर से मैं अपना चश्मा भी घर भूल आई। चलो कोई नही अगर चश्मा भूल आई तो.... यार कम से कम मोबाइल तो अपने साथ लाना चाहिए था ना। और तुम क्या इतनी देर से चुपचाप चल रहे हो.... कुछ बोलोगे नहीं क्या ? तुम कैसे फंसे यहां पर?" आकांक्षा ने पूछा। रीवांश ने सकुचाते हुए जवाब दिया, "आप कब से बोले जा रही है.... आपने मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया, तो मैं कैसे बोलूंगा।" "मैं तुम्हें बोलने का मौका नहीं दे रही? थैंक गॉड जाह्नवी यहां पर नहीं है, फिर तुम्हें पता चलता कि बोलने का मौका ना देना क्या होता है। खैर छोड़ो, ये बताओ तुम यहां जंगल में कब से हो?" रीवांश से अपने बारे में कुछ नहीं बताना चाहता था, इसलिए उस ने बातों का रुख बदलने की कोशिश की। "आप कब से हम से सवाल पूछे जा रही हैं। आप अपने बारे में कुछ बताएगी कि आप इस जंगल में क्या कर रही हो, वो भी अकेले?" "मै वो.....मै.. सच कहती थी जाह्नवी... वो किताबें ही मनहूस थी। पता नहीं किस घड़ी में हमने वो किताबें पढ़ी। रात को हम उस राजकुमार रीवांश के बारे में पढ़ कर सोये थे, और आंख खुली तो खुद को इस जंगल में पाया। मुझे नहीं पता कि मैं यहां पर कैसे आई।" आकांक्षा के मुंह से अपना नाम सुनकर रीवांश चौक गया। "और आप कैसे जानती हो राजकुमार रीवांश के बारे में?" रीवांश की बात सुनकर आकांक्षा ने सोचा, "पता नहीं ये कौन है? मैं इसे अपनी शक्तियों के बारे में बिल्कुल नहीं बता सकती। कहीं इसने मेरी शक्तियों का गलत फायदा उठाना चाहा तो? कुछ भी करके मुझे बातों को घुमाना होगा।" आकांक्षा उसकी बातों का जवाब देने के बजाय चुपचाप चल रही थी। जबकि उसके मुंह से अपना नाम सुनकर रीवांश की बेचैनी बढ़ रही थी। "आपने बताया नहीं कि आप रीवांश के बारे में कैसे जानती हैं?" "आप तो ऐसे पूछ रहे हो जैसे वो मेरा कोई रिश्तेदार लगता हो. .. या तुम उसके कोई रिश्तेदार हो। मैं तो एक स्टूडेंट हूं। मुझे किताबें पढ़ने का बहुत शौक है। कल जब लाइब्रेरी गई थी, वहाँ हिस्ट्री से रिलेटेड कुछ किताबें दिखाई थी तो मैं उन्हे घर ले आई। बस वही पर मैंने राजकुमार रीवांश का नाम पड़ा था। लेकिन तुम उस में इतना इंटरेस्ट क्यों ले रहे हो?" "क्योंकि हमारा नाम भी रीवांश है ना, अक्सर एक नाम वालों से ना चाहते हुए भी कनेक्टेड फील होता है। आपने बताया नही कि आपने राजकुमार रीवांश के बारे में क्या पढ़ा?" "ये तो सही कहा तुमने। वैसे ज्यादा कुछ तो उनके बारे में पढ़ने को नहीं मिला। लेकिन बिलासपुर से जुड़ी कुछ किवदंतियो के बारे में लिखा था, तो बस उसी में उनका जिक्र था।" "और क्या लिखा था उस पुस्तक मे? " डिवाइस अपने बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक हो रहा था। पिशाच का शापित जीवन मिलने के बाद उसे नहीं पता कि बिलासपुर में क्या हुआ था। आप इतने सालों में पहली बार उसमें किसी के मुंह से अपना नाम सुना था। "मै तुम्हें बता तो दूँगी, पर तुम डर तो नही जाओगे ना?" आकांक्षा ने हिचकीचाते हुए कहा। बोलते हुए उसका चेहरा किसी बच्चे की तरह मासूम लग रहा था, जिसे देखकर रीवांश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। " ठीक है, हम कोशिश करेंगे कि हम ना डरे। बाकी आप तो है ही हमारे साथ.... चलिए बताइए।" "हाँ तो सुनो.. बिलासपुर का नाम सुना है तुमने? हिमाचल से ही हो ना तुम?" "हाँ सुना है। हम भी हिमाचल से ही है।" आकांक्षा– "रीवांश बिलासपुर के ही राजकुमार थे। पता है उस जमाने मे भी वो विदेश मे पढ़ने गए थे... हाउ कूल ना?" "हाँ...! क्या विदेश मे पढ़ना या वहाँ की सभ्यता अपनाना कूल होता है?" रीवांश ने गंभीर होकर पूछा। "नही.... लेकिन तुम भी सोचो... हम इतने मॉडर्न है। इस टाइम मे है, लेकिन फिर भी दद्दू मुझे अकेले घर से बाहर निकलने से पहले सौ इंस्ट्रक्शन देते हैं और राजकुमार रीवांश इतने पुराने जमाने में होकर भी बाहर पढ़ने गए।" रीवांश– "तो आपको घर से बाहर निकालने की इजाजत नहीं है। कहीं आप घर से भागकर यहाँ जंगल मे तो नही आ गई?" उसकी बात सुनकर आकांक्षा चलते हुए रुक गई। वो रीवांश की तरफ मुड़ी और गुस्से में बोली, "तुम क्या पागल वागल हो क्या? अभी तो बताया कि नींद में चलते हुए गलती से आ गई.... हां तो मुझे छोड़ों.... रीवांश के बारे में बात करते हैं।" "जी..!" रीवांश ने उसे देखकर सोचा, "आज पहली बार किसी की बातें सुनने का मन कर रहा है। कितनी प्यारी है ये..! बिल्कुल हमारे ख्वाबों की शहज़ादी की तरह..! हमारी शहज़ादी।" "पता है उस बुक में क्या लिखा था?" आकांक्षा चलना छोड़कर वही रुककर बात करने लगी, "राजकुमार रीवांश जब अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस अपनी रियासत मे लौट रहे थे, तो उसी रात उन्होेंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक शैतानी तंत्र प्रक्रिया की थी। कहते हैं उस रात शैतान स्वयं जागृत हुआ था और उन लोगो को असीम शक्तियां दी थी। लेकिन इस बात पर सभी लोग अभी भी एक मत नहीं हैं कि राजकुमार रीवांश ने खुद वो शैतानी प्रक्रिया की थी या उनके दोस्तों ने उनके साथ में छलावा किया था। हो सकता है, उन लोगो ने अपनी बुरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए उन्हें एक मोहरा बनाया था। कुछ कह नही सकते।" रीवांश उसकी बातें सुनकर दुखी हो गया। "और आपको क्या लगता है? क्या राजकुमार ने सच में शक्तियों के लिए किसी शैतान को जागृत किया था?" "पता नहीं यार ... लेकिन जो इंसान विदेश में पढ़ा लिखा हो, वो इन सब अंधविश्वासों मे क्यों मानेगा। पहले से जिसके पास में इतनी बड़ी रियासत हो, जिसका वो एकलौता वारिस था। वो क्यों किसी शैतान को जागृत करके शक्तियां प्राप्त करेगा? बाकी इन बुक्स का क्या है, इनमें तो कई बार आधी बकवास लिखी होती है।" आकांक्षा ने अपनी राय दी। उसकी बातों ने रीवांश को अंदर तक छलनी कर दिया। उसने आकांक्षा की बातों का कोई जवाब नही दिया और चुपचाप चलने लगा। रीवांश के मन मे काफी बाते चल रही थी। "तो ये इतिहास बनाया, लोगो ने हमारा। हमारी क्या गलती थी उस रात, जो उसकी सज़ा हम आज तक भुगत रहे है। आपको भी जब सच का पता चलेगा तो.. तो आप भी हमसे नफरत करने लगेगी।" "तुम बार बार किसके ख्यालों मे खो जाते हो? पता नहीं कब सुबह होगी और कब हम रास्ता ढूंढ पाएंगे।" आकांक्षा ने फिर बातचीत शुरू करने की कोशिश की, "तुम्हे क्या लगता है, सुबह कब तक होगी?" उस का सवाल सुनकर रीवांश ने सोचा, "कैसे बताएं अब आपको... इस जंगल में कभी सुबह नहीं होती। यहां पर ना तो सूरज की.... और ना ही उम्मीद की कोई किरण नजर आती है। इस जंगल में सिवाय अंधेरे के और कुछ नहीं है.... या फिर एक ऐसी कैद, जो अनंत काल तक रहती है। हमें डर है कि कहीं आप भी इसी चक्कर में कैद होकर ना रह जाए।" रीवांश के मन में आकांक्षा के प्रति फिक्र और डर के भाव एक साथ आए। ★★★★
राजवीर जी ने जाह्नवी के साथ उन सभी जगहों पर गए, जहां पर आकांक्षा जा सकती थी। लेकिन उन्हें हर तरफ निराशा ही हाथ लगी। सुबह से दोपहर का वक्त हो गया था, उसके बावजूद आकांक्षा का कुछ पता नहीं चला। आखिर में राजवीर जी को पुलिस स्टेशन आना ही पड़ा। वो दोनो पुलिस स्टेशन पहुंचे, तो इंस्पेक्टर दुबे वही मौजूद थे। जाह्नवी को देखते ही इंस्पेक्टर दुबे उसके पास जाकर बोले, "अरे जाह्नवी.... तू फिर आ गई यहां पर। दीदी और जीजा जी यहां पर नहीं है, इसका मतलब ये नहीं कि तू आए दिन पुलिस स्टेशन में आ जाए.....और आज तेरी दोस्त नहीं आई तेरे साथ?" उनकी बात सुनकर राजवीर जी ने हैरानी से पूछा, "आप जानते हो जाह्नवी को ... और कौन से दोस्त की बात कर रहे हो?" "अरे जाह्नवी के साथ रहती हैं ना वो. ... वो है ना, जो चश्मा लगा कर रखती हैं। भूरे बालों वाली गोरी सी लड़की.... पता नहीं इन दोनों के दिमाग में पूरे दिन क्या खुराफात चलती रहती है। ये आजकल के बच्चे भी ना..!" इंस्पेक्टर दुबे के कहते ही राजवीर जी ने जाह्नवी को गुस्से मे घूरकर देखा। "जाह्नवी ये मैं क्या सुन रहा हूं .... तू और अक्षु पहले भी यहां पर आई थी। लेकिन बेटा पुलिस स्टेशन में किसलिए?" इंस्पेक्टर दुबे– " अरे मत पूछिए सर, यहां तीन-चार दिन पहले एक लड़के का मर्डर हो गया था। जंगल के छोर पर उसकी लाश मिली थी और उसकी लाश के पास कुछ किताबें। दोनों लड़कियों ने जबरदस्ती वो किताबे मुझसे पढ़ने के लिए ली थी। पता नहीं आजकल के बच्चे क्यों भूत पिशाच के बारे में स्टडी करते रहते हैं?" "लगता है, दुबे अंकल सारी पोल आज ही खोल देंगे। ये अक्षु की बच्ची, पता नहीं खुद तो कहां चली गई और मुझे यहां अकेली छोड़ गई।" जाह्नवी बड़बड़ाई। "इंस्पेक्टर साहब, जाह्नवी के साथ जो लड़की आती है, वो मेरी पोती है, आकांक्षा ठाकुर..! पता नहीं सुबह से कहां चली गई। मिल ही नहीं रही। उसी की कंप्लेंन लिखवाने आए थे।" राजवीर जी भावुक होकर बोले। "बुरा मत मानिएगा सर, लेकिन ये आजकल के बच्चे हम बड़ो की सुनते कहां हैं? ये लोग भूत पिशाच वाली किताबें पढ़ते है, वीडियोज देखते है, फिर उन्हे खोजने निकल जाते है। देखिए, हम आपकी रिपोर्ट 24 घंटे से पहले नहीं लिख सकते, लेकिन फिर भी मैं जाह्नवी को जानता हूं, तो आपके साथ एक कॉन्स्टेबल को भेज देता हूं। वो उसकी फोटो लेकर इधर-उधर पूछ लेगा।" इंस्पेक्टर ने कहा। "जी सर, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। लेकिन अब उसकी जरूरत नहीं है। अगर आपकी मदद की जरूरत हुई, तो मै जाह्नवी से आपको कॉल करने को बोल दूंगा।" कहकर राजवीर जी जाह्नवी के साथ बाहर आ गए। वो जाह्नवी की तरफ गुस्से में देख रहे थे। "दद्दू अब आप ऐसे लूक्स तो मत दीजिए... मुझे डर लग रहा है।" जाह्नवी ने मुंह बनाकर बोला। "जाह्नवी, तू सच सच बताएगी कि इन दो-तीन दिनों में चल क्या रहा है? कभी तुम दोनो को आधी रात को लाइब्रेरी जाना होता है, तो कभी तुम दोनों पुलिस स्टेशन चली जाती हो।" "दद्दू आप विश्वास नहीं करेंगे... लेकिन हमारी अक्षु के पास कुछ मैजिकल पावर्स है।" जाह्नवी ने इधर-उधर देखकर धीमी आवाज में कहा। राजवीर जी जाह्नवी के मुंह से मैजिकल पावर्स की बात सुनकर चौक गये। उन्होंने बात को ज्यादा बढ़ाना जरूरी नहीं समझा। "क्या बोल रही हो तुम जाह्नवी? हम घर पर नहीं हैं। तुम्हारी हरकतें तो पागलों वाली है ही, अब बातें भी पागलों जैसी करने लगी।" "ठीक है दद्दू.... हम घर पर चल कर बात करते हैं। अब आपने मुझे पागल बोल दिया है, तो ये पागल आज आपको सारा सच बता देगी। लेकिन प्रॉमिस कीजिए कि जब अक्षु मुझे मारेगी, तब आप मुझे बचाएंगे उससे?" राजवीर जी का पागल बोलना जाह्नवी को पसंद नहीं आया। "घर चलकर बात करते हैं।" कहकर राजवीर जी गाड़ी की तरफ बढ़ें। कुछ देर बाद राजवीर जी और जाह्नवी घर वापिस पहुंचे। वो जाह्नवी से थोड़ा गुस्सा थे। "अब सब कुछ सच-सच बताओगी? मुझे कोई झूठ नहीं सुनना जाह्नवी।" "एक गिलास पानी मिलेगा?" जाह्नवी ने मासूम शक्ल बनाकर कहा। "नहीं मिलेगा... कहीं मैं पानी लेने गया और तुमने कोई नया बहाना सोच लिया तो ... पहले सब कुछ सच-सच बता दो, पानी क्या जूस बनाकर पिलाऊंगा।" "ओके..!" जाह्नवी एक सांस मे जल्दी-जल्दी सब बोलने लगी, "याद है आपको दो-तीन दिन पहले अक्षु मेरे घर पर आ रही थी। दुबे अंकल ने बताया उस लड़के की लाश रास्ते मे पड़ी थी। अक्षु जब भी किसी को छूती है, तो उसे उसका पास्ट दिखने लगता है। तो उस लड़के को भी अक्षु ने गलती से छु लिया था, तो उसे पता चला कि उस लड़के को किसी पिशाच ने मारा है।" "बोल तो ऐसे रही हो जैसे वो पिशाच तुम्हारा रिश्तेदार हो ? इतने यकीन के साथ कैसे कह सकती हो कि उस लड़के को किसी पिशाच ने मारा है?" राजवीर ने उसकी बात काटकर बोला। "मुझे पता था, कि आप हमारी बात पर विश्वास नही करोगे। लेकिन ददु, हम दोनों ने कुछ बुक्स पढ़ी और थोड़ी बहुत सर्च की थी। हो सकता है कि वो जंगल में रहने वाला पिशाच एमब्रोगियो हो या फिर राजकुमार रीवांश..... पर कुछ भी कहो दद्दू अक्षु के पास मैजिकल पावर तो है। चाहे आप मेरी बात मानो या...." राजवीर जी ने फिर उसकी बात के बीच मे बोले, "मुझे सब पता है जाह्नवी कि अक्षु के पास कुछ शक्तियाँ है। आज से नहीं बल्कि बचपन से, लेकिन मुझे ये नही पता था कि उसकी शक्तियाँ जागृत है।" राजवीर के मुँह से सच सुनकर जाह्नवी हैरान हो गयी। उसने आँखे बड़ी करके बोला, "तो ये बात आपने पहले क्यों नहीं बताया? ये आपकी बहुत गलत बात है दद्दू ... अक्षु मेरी सिर्फ 2 महीने पुरानी फ्रेंड है। फिर भी मुझसे कुछ नहीं छुपाती है। आप अक्षु को बचपन से जानते हो.... और इतनी बड़ी बात आपने उससे छुपाई।" "मैने सब कुछ अक्षु की भलाई के लिए ही किया था। मैं नहीं चाहता था कि वो इन पावर्स की वजह से किसी मुसीबत में आए। जाह्नवी हमें इसके लिए वापस राजपुरोहित जी से मिलना होगा।" राजवीर जी के चेहरे पर चिंता के भाव थे। "अब ये राजपुरोहित जी कौन हो गए? कोई न्यू एंट्री है क्या?" राजवीर जी–"कांगड़ा में जो माता रानी का मंदिर है, वो उसी में रहते हैं। राजपुरोहित जी को ही सबसे पहले आकांक्षा की शक्तियों के बारे में पता चला था। हो सकता है इसका हल भी उन्हीं के पास हो। हमें उनके पास जाने में देर नहीं करनी चाहिए।" "और पीछे से अक्षु घर पर आई तो?" "अगर आकांक्षा को घर पर आना होता तो वो आ चुकी होती। वह मुझे बिना बताए कभी कहीं नहीं जाती। लगता है, वो वक्त करीब आ गया है, जिसके लिए उसका जन्म हुआ है।" "ये तो आप भ्रम ही है कि आपको बिना बताए कहीं नहीं जाती आपकी अक्षु..!" जाह्नवी धीरे से फुसफुसाई। "और वो कहीं जाती भी है, तो इतनी देर में वापस भी आ जाती है। जरूर वो किसी मुसीबत में है। तुम चलोगी मेरे साथ ?" राजवीर ने पूछा, तो जाह्नवी ने झट से हाँ मे सिर हिलाते हुए बोला,"और कोई ऑप्शन भी नहीं है।" "ठीक है। तुम थोड़ा खाने पीने का सामान पैक कर लो। मैं तब तक कुछ और जरूरी चीजें देख लेता हूं।" राजवीर जी के दिए निर्देशों के हिसाब से जाह्नवी ने सब कुछ तैयार कर लिया और कोई देर बाद वो दोनो का कांगड़ा के मंदिर के लिए निकल पड़े। ★★★★ दूसरी तरफ जंगल में आकांक्षा रीवांश के साथ वहाँ से बाहर जाने का रास्ता ढूंढ़ रही थी। उन दोनों को चलते हुए काफी वक्त हो गया, लेकिन जंगल तो मानो किसी भूलभुलैया की तरह हो गया था। वो दोनो जहां से शुरु करते, घूम फिर कर वापस वही पहुंच जाते। आकांक्षा चलते चलते बहुत थक गयी, तो एक पेड़ के नीचे बैठ गयी। रीवांश भी उसके साथ वही पास में बैठ गया। "हम दोनो कितनी देर से चले जा रहे हैं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि अब तक सुबह ना हुई हो.... फिर यहां पर सूरज की रोशनी क्यों नहीं आ रही?" आकांक्षा ने हांफतें हुए पूछा। "यहां पर सूरज की रोशनी नहीं आती।" रीवांश ने जवाब दिया। "लेकिन क्यों ?" "आप खुद ही देख लीजिये, यहाँ के पेड़ कितने घने हैं और इनमे से कई पेड़ सौ साल से भी पुराने हैं। इस वजह से यहां पर सूरज की रोशनी नहीं आती होगी।" रीवांश के कहते ही आकांक्षा का ध्यान उपर की तरफ गया, जहाँ वाकई पेड़ काफी घने थे। उनमें से कुछ पेडों पर फलों को देखकर आकांक्षा ने खुश होकर कहा, "थैंक गॉड! कुछ तो खाने को मिला। वरना मेरे पेट में तो चूहे कब से हिपहॉप करे जा रहे थे? बहुत भूख लगी है।" आकांक्षा फलों को तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने जा ही रही थी कि रीवांश ने उसे रोकने के लिए उसका पैर पकड़कर खींचा। वो नीचे गिरने ही वाली थी, लेकिन रीवांश ने उसे अपनी बाहों मे थाम लिया। भले ही जंगल में बहुत अंधेरा था लेकिन आकांक्षा रीवांश के इतने करीब थी कि उसने पहली बार आकांक्षा को इतने करीब से देखा और महसूस किया। अचानक ऊपर से नीचे आने की वजह से आकांक्षा की आंखे डर के मारे बंद हो गई थी। "ये क्या कर रही है आप? जानती नहीं कि जंगल के पेड़ और फल दोनों जंगली हो सकते हैं। आप उनको खाएगी, तो बीमार हो जाएंगी। आपकी जान भी जा सकती है।" रीवांश ने उसे डांटा। आकांक्षा खुद रीवांश की बाहों में सुरक्षित महसूस कर रही थी। उसने धीरे से आँखे खोली। अंधेरा होने के बावजूद उसकी नजर रीवांश की आंखों पर गई। "तुम्हारी आंखें कितनी खूबसूरत है। मैंने कभी इतनी खूबसूरत आंखें किसी की नहीं देखी!" "हमने भी आपसे खूबसूरत लड़की आज तक नहीं देखी। आप बिल्कुल किसी शहजादी के जैसी हैं। क्या हम आपको शहजादी बुला सकते हैं?" आकांक्षा ने हंसते हुए जवाब दिया, "चलो कोई तो मिला शहजादी बुलाने वाला.... वरना घर के काम करते-करते नौकरानी वाली फील आने लगी थी। अब छोड़ो भी मुझे!" आकांक्षा की बातें सुनकर रीवांश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी। वो उसे कुछ कहता, उस से पहले जंगल मे रघु, विजय, संजय और रवि के चिल्लाने का भयंकर स्वर गुंजा, जिसकी गर्जना से जंगल के पेड़ों की जड़े तक हिल गयी। क्रमशः....!
जादुई पिंजरे में कैद संजय, विजय, रघु और रवि बुरी तरह तड़प रहे थे। उनके पूरे शरीर पर बहुत बड़े-बड़े जख्म बन गए थे, जिनका दर्द उनके लिए असहनीय हो रहा था। दर्द के मारे हुए वो चारों जोर–जोर से चिल्ला रहे थे, जिसकी वजह से जंगल की धरती कांपने लगी। आकांक्षा उस कंपन से घबरा गई और डर के मारे रीवांश का हाथ पकड़ लिया। "आज कल शिमला में कुछ ज्यादा ही अर्थक्वेक नहीं आ रहे क्या? और.... और ये जंगल में इतना भयंकर शोर किस चीज का हो रहा है? तुम यहां कितने दिनों से कैद हो? कहीं यहां पर खतरनाक जानवर तो नहीं.... प्लीज यहां से निकलने के लिए कुछ करो। इससे पहले कि वो हमें अपना शिकार बना ले।" आकांक्षा ने घबराते हुए बोला। " सही कहा आपने, जंगली जानवरों का ही शोर है।" रीवांश ने अपने दूसरे हाथ से उसका हाथ सहलाया, "लेकिन आप फिकर मत कीजिए, वो इस तरफ नहीं आएंगे। हम यहां सुरक्षित हैं।" "तुम पागल हो गए हो क्या? जानवरों का क्या भरोसा? वो तो कहीं भी आ सकते हैं। मुझे यहां पर की हर एक चीज काफी रहस्यमई लग रही है। पता नहीं तुम इतना नॉर्मल बिहेव कैसे कर सकते हो।" आकांक्षा ने चारों तरफ देखते हुए बोला। उन चारों के चिल्लाने की आवाज बढ़ती जा रही थी। जिसे सुनकर आकांक्षा बहुत ज्यादा डर रही थी। "अगर ये चारों ऐसे ही चिल्लाते रहे, तो हम ज्यादा देर तक इनसे सच नहीं छुपा पाएंगे। हमें कुछ ना कुछ करना होगा। रीवांश ने आकांक्षा की तरफ देखकर सोचा, जो कि डर के मारे कांप रही थी। रीवांश ने आकांक्षा को अपने वश में करने के लिए उसे पकड़ कल अपने करीब खींचा, और उसकी आंखों में देखने लगा। उसकी हरकत से वो गुस्सा हो गई और उसने रीवांश को खुद से दूर धकेला। " ये क्या कर रहे थे तुम? देखो.. भले ही हम दोनों जंगल में एक साथ फंस गए है, लेकिन तुम इस तरह सिचुएशन का एडवांटेज कैसे उठा सकते हो? इस वक्त हमें यहां से बाहर निकलने के बारे में सोचना चाहिए। अगर यहां पर अंधेरा नहीं होता, तो मैं कभी तुम्हारे साथ नहीं रूकती। तुमने जो ये किया है वह...." आकांक्षा बोल रही थी तभी रीवांश ने अपने आंखों से ऊपर के पेड़ की लकड़ी को तोड़कर नीचे गिरा दिया। जिससे उसे लगा कि रीवांश ने उसे बचाने के लिए अपने करीब खींचा था। " हम तो बस आप को बचाना चाहते थे। आप हमें गलत मत समझिए। अगर हम आपको नहीं खींचते, तो ये लकड़ी आपके ऊपर गिर जाती और आप इससे बेहोश भी हो सकती थी" रीवांश ने झूठी सफाई दी। "और तुम्हें इतने अंधेरे में सब कुछ साफ कैसे दिखाई दे गया आकांक्षा गुस्से में पूछा तो रीवांश ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, "अगर आपको हम पर विश्वास नहीं है, तो हम यहां से चले जाते हैं।" आकांक्षा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि अब उसके पास रीवांश पर विश्वास करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। "ठीक है लेकिन मुझ से थोड़ा दूर रहना।" कहकर आकांक्षा आगे की तरफ चलने लगी। "इस पर हमारे जादू का कोई असर क्यों नहीं हो रहा? ना तो हम इसका मन पढ़ पा रहे हैं और ना ही ये हमारे बस में आ रही हैं। लगता है, अब तो उन चारों आवाज रोकने के लिए हमें उनके पास जाना पड़ेगा" सोचते हुए अगले ही पल रीवांश वहां से हवा की तरह दौड़ते हुए उस पिंजरे के पास पहुंचा, जहां पर वो चारों पिशाच कैद थे। "बाहर निकालो हमें यहां से.... तुम इस तरह हमें बंदी बनाकर नहीं रख सकते।" रीवांश को देखकर रघु दर्द से चिल्लाया। रीवांश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उस पिंजरे को उठाकर वहां से दूर चल दिया। उसने अपना विशाल रूप धारण कर रखा था और सब कुछ इतनी तेजी से हो रहा था कि आकांक्षा को एहसास भी नहीं था कि रीवांश उसके साथ नहीं हैं। जंगल के दूसरे कोने पर जाकर रीवांश ने जमीन के अंदर अपने पैरों से जोर से एक बड़ा वार किया। एक ही वार में बड़ा सा गहरा गड्ढा बन गया। उसने उस पिंजरे को उस गड्ढे में डाल दिया। उस गड्ढे को फिर से बंद करके रीवांश आकांक्षा के पास वापस आ गया। "अच्छा, ठीक है। मैंने तुम्हें गलत समझा, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं यहां अकेले पटर पटर बोलती रहूं और तुम कुछ जवाब ही ना दो। कुछ तो बोलो। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि मैं इतनी देर से अकेले चल रही हूं। पिछले 10 मिनट से तुमने एक शब्द भी नहीं बोला।" आकांक्षा थकने की वजह से एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गई। "वो बस हम आपकी बातें सुन रहे थे।" रीवांश ने उसके पास बैठते हुए जवाब दिया," आप की जगह उस वक्त कोई और होता, तो वो भी हमें गलत ही समझता। डोंट वरी हम आप से नाराज नहीं है।" "मुझे बहुत भूख लग रही है... अब मुझसे नही चला जाएगा। क्या यहाँ ऐसा कोई पेड़ नही है, जो जंगली ना हो।" "ठीक है। हम कुछ लेकर आते है। लेकिन आप यहां से बिल्कुल भी मत हिलीएगा।" "लेकिन तुम कहाँ जा रहे हो? जानते हो ना, यहां बहुत खतरा है। ऐसे में तुम मेरे लिए खाने के लिए कुछ कैसे लेकर आओगे?" आकांक्षा ने उसे जाने से साफ इनकार कर दिया। "हम यहाँ काफी समय से है। तो हमें यहाँ के बारे में थोड़ी जानकारी है। यहाँ से थोड़ा आगे जाकर कुछ पेड़ है, जिनके फल जंगली नही है।" "अगर थोड़ी ही दूरी पर है, तो मै भी चलती हूँ तुम्हारे साथ.!" आकांक्षा खड़ी होकर उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गई। "आप थक गयी होंगी, यहाँ आराम कीजिए। हम बस अभी लेकर आते है। वैसे भी हम यहां पर काफी दिनों से फंसे हुए हैं, तो यहां के माहौल से थोड़ा बहुत परिचित हो गए हैं। ये जगह सुरक्षित है। यहां पर कोई जंगली जानवर नहीं आएगा। हम बस अभी आपके लिए कुछ खाने के लिए ले आएंगे।" रीवांश पलक झपकते ही जंगल के किनारे वाले कुछ पेड़ों पर से बहुत सारे फल तोड़कर ले आया। वो लगभग 2 से 3 मिनट में वापस आ गया, तो उसे इतनी जल्दी वहां देखकर आकांक्षा ने हैरानी से पूछा, "अरे तुम इतनी जल्दी आ भी गए?" "हाँ बस पास में ही था।" रीवांश ने मुस्कुराते हुए सभी फलों को उसे दे दिया। आकांक्षा जल्दी जल्दी उन्हे खाने लगी, तो रीवांश मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था। ★★★★★ शाम के वक्त जाह्नवी और राजवीर जी राजपुरोहित जी से मिलने कांगडा का मंदिर पहुँचे। वो मंदिर पहुँचे, तब वहाँ संध्या आरती हो रही थी। राजवीर जी और जाह्नवी पहले आरती मे शामिल हुए और उसके बाद पंडित जी मिलने पहुँचे। "प्रणाम पंडित जी.!" राजवीर जी ने हाथ जोड़कर कहा, "वो हमें राजपुरोहित जी से मिलना था। आज तो वो संध्या आरती में भी दिखाई नहीं दिए वरना ऐसा तो हो नहीं सकता कि वो आरती में शामिल ना हो।" पंडित जी ने उन्हें प्रसाद देते हुए कहा, "हाँ श्रीमान... वैसे तो राजपुरोहित जी संध्या आरती के वक़्त मंदिर के प्रांगण में ही रहते है, लेकिन आज ही किसी विशेष पूजा को संपन्न करवाने के लिए पास ही के गाँव मे गए है।" "क्या? लेकिन हमारा उनसे मिलना बहुत जरुरी था। वो वापिस कब तक आएगे?" पंडित जी की बात सुनकर जाह्नवी का मुँह उतर गया, "दद्दू अब कैसे होगा?" "वो कल सुबह तक आ जाएंगे। आप तब तक मंदिर की धर्मशाला मे रुक जाइये। कल जब वो वापिस आएंगे, तो मिल लीजियेगा। मै श्यामु को कह देता हूँ, वो आपको वहाँ छोड़ आएगा।" पंडित जी ने पास में खड़े इस आदमी को इशारे से बुला कर कहा, "श्यामू, इन श्रीमान जी और इनके साथ आई बच्ची को गेस्ट हाउस में कमरा दिला दो, ताकि इन्हे रुकने में कोई परेशानी ना हो। कल सुबह जब राजपुरोहित जी यहां वापस लौट आएंगे। तब आप उनसे बातचीत कर लीजिएगा। वहां आपके रहने के साथ खाने का भी प्रबंध हो जाएगा। अब मुझे इजाजत दीजिए।" "धन्यवाद पंडित जी! चलो जाह्नवी, गेस्ट हाउस मे चलते है। एक राजपुरोहित जी से ही उम्मीद थी कि वो शायद कुछ कर सके, लेकिन वो भी यहाँ पर नही है। ये मुसीबते है कि पीछा छोड़ने का नाम ही नही लेती।" राजवीर जी ने निराश होकर कहा। "हाँ दद्दू, मुसीबते भी बिल्कुल पिंपल्स की तरह है, एक जाता नही कि उस से पहले दो - चार और निकल आते हैं।" उसकी बात सुनकर राजवीर जी के उदास चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई। "तुम भी ना जाह्नवी.... उदाहरण तो अच्छा देती। मुसीबतों को पिंपल से कौन कंपेयर करता है?" "दद्दू आपको नही पता, पिंपल्स किसी मुसीबत से कम नही होते।" राजवीर जी जाह्नवी के साथ धर्मशाला के कमरे में पहुंचे। अब उनकी एकमात्र उम्मीद राजपुरोहित जी थे और वो यहां पर मौजूद नहीं होने के कारण उनके पास उनका इंतजार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। ★★★★ वहीं दूसरी तरफ जंगल में फल खाने के बाद आकांक्षा कुछ देर के लिए सो गई। सूरज ढल चुका था और वो दोनों अभी तक उसी पेड़ के नीचे बैठे थे। आकांक्षा को फिर से भूख लगने की वजह से वो बचे हुए फल खा रही थी। "तुमने कुछ खाया क्यों नही... तुम्हे भूख नही लगी। ये लो तुम भी कुछ फ्रूटस खा लो ।आगे हमें काफी दूर तक चलना होगा। क्या पता कुछ खाने को मिले या ना मिले।" "हाँ... और शिकार हमारे सामने बैठा है लेकिन पहली बार किसी की जान लेने का मन नही हो रहा है।" रीवांश ने सोचा। "तुमने बोला था ना कि तुम यहाँ का रास्ता जानते हो। मुझे बाहर जाना है। मेरे घरवाले मेरी फिक्र कर रहे होंगे। क्या हम यहां से जल्द से जल्द नहीं निकल सकते।" आकांक्षा की बात का जवाब देने के बजाय रीवांश अपने मन में सोच रहा था, "हम चाहे तो एक मिनिट में आपको जंगल के बाहर फेंक दे, लेकिन फिर आपको हमारी सच्चाई का पता चल जाएगा।" उसके जवाब ना देने की वजह से आकांक्षा झुंझला उठी। उसने नाराज होकर बोला, "तुम बार बार कहाँ खो जाते हो? मै कब से बकबक किए जा रही हूँ और तुम हो कि कुछ बोल ही नही रहे।" "आप सामने वाले को बोलने का मौका ही कहाँ देती है?" इतना बोल कर रीवांश फिर चुप हो गया। वो दोनों बात कर रहे थे कि तभी रीवांश को किसी की आहट सुनाई दी। उसे किसी इंसान के आसपास होने की खुशबू आ रही थी। "लगता है कि हमारी भूख मिटाने का इंतज़ाम हो गया।" रीवांश ने सोचा, कि तभी उसकी नजर आकांक्षा कि तरफ गयी, जो कि उसकी सच्चाई से बेखबर थी। "आप यही रहियेगा, हम अभी आते है बस।" कहकर रीवांश वहां से हवा की तरह फुर्र हो गया। रीवांश खुशबू का पीछा करते हुए आगे बढ़ा तो उसे सामने एक आदमी दिखाई दिया, जो कि बाकी लोगों की तरह गलती से जंगल मे आ गया था। "पता नहीं कैसे इस मनहूस जंगल में कदम पड़ गए। हे भगवान! रक्षा करना।" वो आदमी बड़बड़ाते हुए चल रहा था। तभी रीवांश ने उसके करीब आकर कहा, "लगता है आप रास्ता भटक गए हैं। आइए हम आपकी मदद करते हैं।" उस आदमी ने रीवांश को धक्का देकर बोला,"अरे जाओ! तुम जैसे दो कौड़ी के लोगों से मदद लूंगा क्या मै? तुम नहीं जानते मैं कौन हूं.... अरे बहुत पैसे वाला आदमी हूं। मैं तुम जैसे लुटेरों को अच्छे से जानता हूं। अमीर आदमी देखा नहीं कि बस आ जाते हैं लूटने...!" रीवांश तेजी से फिर उसके पास आ गया, "शायद आप नहीं जानते कि हम कौन हैं।" रीवांश ने उसे आगे कुछ बोलने का मौका नहीं दिया और उससे पहले ही उसकी गर्दन के पास आकर उसका सारा खून एक बार पी लिया, "इस बार हम अपने शिकार से माफी नहीं मांगेंगे। आप जैसे लोग जो गरीब लोगों को कुछ नहीं समझते हैं, उन्हें जीने का भी कोई हक नहीं है। आपके खून की बदबू ही बता रही है कि आपने कितने मासूम लोगों के हक का खाया होगा।" रीवांश वहाँ खड़ा था कि तभी अचानक उस के चेहरे पर टॉर्च की लाइट पड़ी। उस रोशनी में रीवांश के चेहरे पर खून लगा हुआ साफ दिखाई दे रहा था। उसके चेहरे पर शैतानियत और आंखों में खून उतर आया था। मुंह पर रोशनी आने की वजह से रीवांश की आंखें चौधिया गई। वो उस रोशनी में साफ देख पाता कि तभी सामने से आवाज आई। "त....तुम... तुम एक पिशाच हो।" सामने आकांक्षा खड़ी थी। क्रमशः...!
रीवांश की लाल आँखे और होठों पर लगा ताजा खून देखकर आकांक्षा सच समझते देर नही लगी। फिर सबूत के तौर पर नीचे उस आदमी की लाश भी तो पड़ी थी। उसकी सच्चाई जानकर वो डरकर पीछे हो गई, "तो ये है तुम्हारी सच्चाई? क्या कहा था तुमने कि तुम भी रास्ता भटक गए हो। ये तो अच्छा हुआ कि मुझे वहां पर एक टॉर्च गिरा हुआ मिला, जो कि शायद तुम्हारे ही किसी शिकार का गिरा होगा। तुम ही हो ना वो राजकुमार रीवांश... इतने सालों तक जंगल से जो लाशे मिलती है, उन सब को तुमने ही मारा है। तुम इतने मासूमों की जान ऐसे कैसे ले सकते हो। शायद लोग सच ही कहते हैं तुम्हारे बारे में..... कि तुमने शक्तियां पाने के लिए शैतानी प्रक्रियायें अपनी मर्जी से की थी।" डरते हुए भी आकांक्षा ने अपनी सारी बातें उसके सामने रख दी थी। रीवांश सामान्य रूप में वापस आ गया था, ताकि आकांक्षा को उससे डर ना लगे। "आप हमें गलत समझ रही है शहजादी..!" आकांक्षा ने गुस्से में जवाब दिया, "मै क्या गलत समझ रही हूं? बल्कि अभी सही समझा है तुम्हें ... मुझे पता है तुम मुझे भी मार दोगे ना..!" "हम आपको कभी नहीं मार सकते हैं। अगर मारना होता तो अब तक मार चुके होते.... हमें तो आपको देखते ही आपसे प्या..!" आकांक्षा ने बात को काटते हुए कहा, "एक शैतान कभी किसी से प्यार नहीं कर सकता.... वो जानता है तो सिर्फ किसी की जान लेना।" वो वहाँ से दुर जाने लगी, "और मेरे पीछे मत आना। हां अगर मारना ही है, तो यहीं पर मार दो। तुम्हें तो ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी।" रीवांश ने दुखी होकर जवाब दिया, "हम आपको क्यों मारेंगे ? हमने बताया ना कि आपको देखते ही हमें आपसे प्यार हो गया था। आप बहुत मासूम है,,,, बिल्कुल किसी बच्चे की तरह.... हम पूरे दिन से आपकी एक-एक बात पूरे ध्यान से सुन रहे हैं। प्लीज एंजेल आप ऐसे अकेले आगे मत जाइए..... इस जंगल में बहुत खतरा है आपके लिए।" आकांक्षा उससे थोड़ा दूर पहुंच चुकी थी लेकिन फिर भी उसके कानों में उसके आवाज एकदम स्पष्ट सुनाई दे रही थी। वो दूर से चिल्लाते हुए बोली, "और सबसे बड़ा खतरा तुमसे ही है। मेरे पीछे मत आना तुम..!" "जैसी आपकी मर्जी...... अब आपकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी हमारी है। हम आपको जंगल में अकेले नहीं भटकने दे सकते। हम आपसे प्यार करते हैं, लेकिन यहां के बाकी पिशाच नहीं। उन्होंने आपको देख लिया तो 1 मिनट नहीं चलेगा आप का शिकार करने में....।" आकांक्षा उसकी बातों को अनसुना करते हुए चल रही थी। जबकि बाकी पिशाचों का ख्याल आते ही रीवांश वहां से चला गया और उसी वक्त जंगल के पिशाचों को एक जगह पर इकट्ठा किया। पिशाचों का नेतृत्व करते हुए सबसे बुजुर्ग पिशाच जीवन ने पूछा,"युवराज..... आपने ऐसे हम सबको यहाँ एक साथ क्यों बुलाया? क्या फिर कोई संकट आन पड़ा है? उन दुष्टों को तो हमने कैद कर लिया था ना?" "क्या बॉस..... अपुन अभी च किसी लड़की को पटाने का प्लान बना रेला था... तुमने बीच मे डिस्टर्ब कर डाला.!" एक दूसरा पिशाच बोला। उसकी बात काटकर बिनॉय,जो कि उम्र मे ज्यादा बड़ा नही था, परंतु फिर भी काफी समझदार था, ने कहा, "कि होलो राजकुमार? क्या वो चारों फिर से आज़ाद हो गए क्या? उन्होंने फिर से आपको परेशान करने की कोशिश की?" रीवांश ने उन सबको चुप करवाते हुए बोला, "शशश्अअ.... चुप हो जाइए आप सारे.... कोई हमें बोलने का मौका नहीं दे रहा। सुबह से वो कुछ बोलने नही दे रही और अब आप सारे भी शुरू हो गए!" "वो कौन युवराज ?" जीवन ने पूछा। "जंगल में कल रात को एक लड़की गलती से आ गई थी। शायद उसके पास कुछ अच्छी शक्तियां हैं.... तभी जब वो आई तो उसके चारों तरफ से एक अद्भुत रोशनी का घेरा था। शायद इसी वजह से हम उसकी तरफ खिंचे चले गए। हमने बहुत कोशिश की कि उन्हें पता ना चले कि हम कौन हैं..!" बोलते हुए रीवांश का चेहरा उतर गया, "लेकिन उन्हें पता चल गया कि हम एक सामान्य इंसान नहीं है.... और वो गुस्सा करके यहां से चली गई है। हम नहीं चाहते कि आप में से कोई भी उनका शिकार करें।" "अरे बॉस .... हम क्यों तुम्हारे शिकार पर हाथ डालेगा ? तुम बिंदास होकर उसका खून पीना.... और पार्टी करना आज रात।" मोहित ने आदतन फिर बीच मे बोला, तो जीवन ने उसे डांटा,"मोहित तू अपना मुंह बंद रख.... अगर युवराज को उनका शिकार करना होता, तो अब तक जिंदा नहीं होती वो लड़की। वो उन का शिकार नहीं करना चाहते बल्कि उन्हें बचाना चाहते हैं। अब ऐसा क्यों है, ये तो वो खुद ही बेहतर जानते है।" "पता नही दादा, ऐसा क्यों है। लेकिन वो हमसे नाराज होकर चली गयी है। फिर भी हम कोशिश करेंगे कि कल सुबह तक उन्हें वापस जंगल से बाहर भेज दें। बस तब तक आप सब उनसे दूर रहिएगा। याद रखिएगा कि उन्हें कोई नुकसान नहीं होना चाहिए।" "लगता है बॉस, आपको भी प्यार हो गेला (गया) है।" मोहित फिर बड़बड़ाया। उसकी बात सुनकर सारे पिशाच उसकी तरफ देखने लगे, जबकि रीवांश मुस्कुराते हुए वहाँ से आकांक्षा की तरफ जाने लगा। ★★★★ अगले ही पौ फटने से पहले राजपुरोहित जी पूजा संपन्न करवा कर वापस मंदिर में लौट चुके थे। उनके लौटने की खबर सुनकर जाह्नवी और राजवीर जी तुरंत उनसे मिलने के लिए उनके कक्ष में गए। "प्रणाम राजपुरोहित जी...!" राजपुरोहित जी को देखते ही राजवीर जी ने आदरपुर्वक अपने दोनो जोड़ लिए, "पहचाना आपने मुझे ? हम वो...!" "शांत हो जाइए श्रीमान। जिसे हम मिल चुके होते हैं, उन्हें हम कभी नहीं भूलते। आज आपका मन इतना अशांत क्यों है?" राजपुरोहित जी शांत चित से जवाब दिया। राजवीर जी जाह्नवी के साथ उनके समक्ष बैठ गए। "प्रणाम राजपुरोहित जी..!" जाह्नवी ने वहाँ बैठने से पहले बोला। "खुश रहो बेटी..!" राजपुरोहित जी ने जाह्नवी को आशीर्वाद देते हुए कहा, "ये तो आप की पोती नहीं लग रही है।" उनकी बात सुनकर राजवीर जी ने हैरानी से उनकी तरफ देखा और कहा,"आपको कैसे पता कि आकांक्षा नही है?" "मैंने कहा था ना, हर इंसान अपने एक लक्ष्य को लेकर पैदा होता है... और ना चाहते हुए भी ऊपर वाला उसे उस लक्ष्य के करीब पहुंचा ही देता है। लगता है आपकी पोती आकांक्षा अपने लक्ष्य के करीब पहुंच गई है। तभी उसकी चिंता आपको इतने सालों बाद यहां मेरे पास खींच लाई। राजवीर जी और जाह्नवी हैरानी से राजपुरोहित ने की तरफ देखने लगे। उन्होंने अभी तक उन्हें कुछ नहीं बताया था। उसके बावजूद राजपुरोहित जी ने परिस्थिति को सटीक पहचान लिया था। उनके सवालिया चेहरे को देख कर राजपुरोहित जी ने मुस्कुराते हुए कह, "हैरान मत होइए श्रीमान.! हम भी आप ही की तरह एक सामान्य इंसान हैं। आपके चेहरे पर चिंता की लकीरें आपके मन की अशांति का इशारा कर रही हैं। अब बताइए कि क्या हुआ?" "मेरी अक्षु शिमला से आगे वाले जंगल में पहुंच गई है। लोग कहते हैं वो जंगल शापित है..... और वहां पर पिशाचों का डेरा है।" राजवीर जी ने नम आँखो से कहा, " राजपुरोहित जी मेरी बच्ची को बचा लीजिये। वो मेरा इकलौता सहारा है।" "जिस जगह स्वयं शैतान की परछाई पड़ी हो, वो धरती पवित्र हो भी कैसे सकती है?" लगता है आपकी पोती का जन्म धरती माँ को उस बोझ से छुटकारा दिलाने के लिए हुआ है, जो वो सदियो से सह रही है।" "मेरी बच्ची की जान को कोई खतरा तो नहीं है ना राजपुरोहित जी?" "आप के चेहरे पर चिंता का नही गर्व का भाव होना चाहिए, कि उपरवाले ने आपकी पोती को एक विशिष्ट कार्य के लिए चुना है। जिस कुदरत ने उसे शक्तियां दी है, वही उसकी हर पल रक्षा भी करती है। आप बिल्कुल फिक्र मत कीजिए। आकांक्षा को कुछ नहीं होगा।" "पर जंगल में पिशाच...!" जाह्नवी ने धीमी आवाज मे कहा। " जरूरी नहीं होता कि सभी बुरी शक्तियां बुरी ही हो। कई बार बुराई में भी अच्छाई छुपी हो सकती है... और उन्हीं बुराई में कुछ अच्छाई भी हैं, जो अनजाने में शैतान की गुलाम बन गई है।" राजपुरोहित ने उसकी शंका को दूर किया। "आपके कहने का मतलब है कि उन पिशाचों में कुछ अच्छी पिशाच भी हैं, जो कि अक्षु की रक्षा करेंगे। तब तो अक्षु को कोई खतरा नहीं होगा ना?" जाह्नवी ने पूछा। राजपुरोहित जी– "हां आशा तो यही है। लेकिन कहते है कि उस जंगल से कोई भी जिंदा वापस नहीं आ पाया है। बुराई को अच्छाई पर हावी होते देर भी नहीं लगती। ऐसे मे आकांक्षा को अपनी शक्तियों को पहचान कर बुराई का सामना करना होगा।" "लेकिन मेरी बच्ची अकेले उन पिशाचों से कैसे लड़ेगी?" राजवीर ने हैरानी से कहा, "उसे तो अपनी शक्तियों का पूर्णतया आभास भी नहीं..!" उनकी बात सुनकर राजपुरोहित जी ने कुछ देर आँख बन्द करके सोचा और फिर कहा, "आप लोग तैयार होकर मंदिर के प्रांगण में पहुंचे। हम वहां देवी मां से प्रार्थना करेगे और आकांक्षा की मदद करने की कोशिश भी ..... कल सूरज की पहली किरण निकलने के पहले भोर मे एक विशेष बड़ी पूजा करेगे.... बाकी आपको पंडित जी सब समझा देंगे।" राजपुरोहित जी के कहे अनुसार जाह्नवी और राजवीर जी मंदिर के प्रांगण में तैयार होकर छोटी पूजा के लिए पहुंचे। उस पूजा मे उन राजपुरोहित जी सहित एक और पंडित तथा राजवीर जी और जाह्नवी भी सम्मिलित हुए। ये पूजा आकांक्षा की रक्षा के लिए की जा रही थी। ★★★★ आकांक्षा रीवांश से छिपते छिपाते जंगल मे घूम रही थी, जबकि रीवांश साये की तरह उसके साथ था। रात बिताने के लिए वो पेड़ पर चढ़ गई थी। हालांकि उसे समय का कोई अंदाजा नही था, लेकिन आँख खुलते ही वो पेड़ से नीचे उतर आई थी। आकांक्षा रास्ता ढूंढते हुए खुद से बात कर रही थी। "पता नहीं इस जंगल का अंतिम छोर कहां पर है? रात तो जैसे तैसे पेड़ के ऊपर चढ़कर बिता दी। यहां तो दिन में भी डर लगता है। पता नहीं टाइम भी क्या हो रहा होगा? एक तो इतनी भूख लगी है ना कि एक कदम भी नहीं चला जा रहा।" तभी उसे किसी के कदमो की आहट सुनाई दी। उसे सुनकर वो थोड़ा डर गयी। "कौन..!" आकांक्षा ने घबराते हुए बोला, "क....क... कौन है वहां पर ? प्लीज मुझे मत मारना..!" रीवांश ने उसकी तरफ फल फेंकते हुए बोला, "ये लिजिए शहजादी..... आपको भूख लगी थी ना।" "तुम फिर से आ गए? लगता है मुझे नहीं, तुम्हें भूख लगी है, जो तुम मुझे मारने के लिए मेरे पीछे आए हो।" रीवांश ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "हमें अगर आपको मारना होता, तो हम आपको कब का मार चुके होते। आप हमारे पास आइए, हम आपको उठाकर जंगल से बाहर फेंक देते हैं। आपको हम सुरक्षित यहाँ से बाहर निकाल देंगे।" "क्या.... तुम पागल तो नहीं हो गए हो? मैं क्यों आऊंगी तुम्हारे पास... तुम्हारा क्या भरोसा .... मेरा खून पी जाओ तो। देखो मैंने लास्ट मंथ ही डॉक्टर से चेक करवाया था। मेरे अंदर तो ऐसे ही खून की कमी है.... तुम्हारा तो पेट भी नहीं भरेगा।" आकांक्षा वहाँ से तेजी से आगे बढ़ने लगी। "आप हमारे सामने रहिए ना, हमारा पेट भरे या ना भरे, हमारा मन खुश रहेगा।" आकांक्षा ने रीवांश के फेंके हुए फल खाते हुए कहा, "देखो मुझे भूख लगी है, इसलिए खा रही हूं.... और यहां पर कोई और है भी नहीं, जो मेरी मदद कर सके।" "इसका मतलब आप हम पर विश्वास करती हैं? डरिए मत.! हमने जंगल के सभी पिशाचों को बोल दिया है कि वो आपसे दूर रहे। आपको अब कोई खतरा नहीं है।" रीवांश की बात सुनकर आकांक्षा डर कर नीचे बैठ गयी। "क्या.... जंगल में और भी पिशाच है। हे भगवान! कहां फंस गयी हूँ मै..... कहीं ये लोग मिलकर पार्टी ना मना ले..... और पता चला कि मैं निपट गई।" "तो क्या हम आपको फेंक दे जंगल के बाहर?" आकांक्षा वहाँ से भागते हुए चिल्लाई,"मैं बोल रही हूं.... तुम मेरे पीछे मत आना।" "हम बता रहे है, आप एक पिशाच से तेज नहीं दौड़ सकती शहजादी..!" अगले ही पल रीवांश उसके आगे खड़ा था। क्रमशः....!
रीवांश को अपने सामने देखकर, आकांक्षा उस से बचने के लिए विपरीत दिशा मे भागने लगी। रीवांश फिर से उसके सामने आकर बोला, "आपका ये टॉर्च वही पर गिर गया था। इसे ऑन कर लीजिये, आपको देखने मे परेशानी नही होगी।" "तुम पागल हो क्या?" आकांक्षा हाँफते हुए बोली, " यहाँ भागते भागते मेरी जान जा रही है। ना यहाँ खाने को खाना है, और ना ही पीने को पानी... अब मुझसे नही भागा जाएगा... तुम्हें मुझे मारना है, तो तुम मुझे मार लो। पर मैं अब और नहीं भाग सकती।" आकांक्षा को भूख और प्यास की वजह से चक्कर आने लगे। वो चकरा कर नीचे गिरने लगी कि तभी रीवांश उसे अपनी बाहों में थाम लिया।" "हम आपको क्यों मारेंगे? कितनी बार बताएं कि अगर हमें आपको मारना होता, तो हम आपको कब का मार चुके होते।" "हां ये बात सुन सुनकर तो मेरे भी कान पक गए हैं। क्या मुझे थोड़ा पानी मिल सकता है?" "आपने पहले क्यों नही बताया, कि आपको प्यास लगी थी।" कहकर रीवांश ने उसे अपनी गोद में उठा लिया। आकांक्षा ने धीरे से अपनी पलकें झपकाई ही थी कि अगले ही पल वो उसके साथ एक झील के आगे थी। "चलो अब नीचे उतारो मुझे...! इतनी जल्दी तो एरोप्लेन भी किसी को नहीं पहुंचाता होगा। तुम इतना तेज कैसे दौड़ लेते हो मिस्टर डेविल?" आकांक्षा ने आँखे बड़ी करके पूछा। "डेविल.... नोट बेड. ... हमें ये नाम पसंद आया एंजेल!" कहते हुए रीवांश ने उसे नीचे उतारा। "अरे वाह तुम तो इंग्लिश भी बोल लेते हो।" "आप शायद भूल रही है कि हमने विदेश में पढ़ाई की थी, तो वहां उनकी भाषा आना तो जाहिर है। चलिए अब जल्दी से पानी पी लीजिये। ये जगह सुरक्षित नही है।" रीवांश को उनसे कुछ दूरी पर वो गड्ढा दिखाई दिया, जहाँ उसने उस पिंजरे को गाड़ा था। आकांक्षा ने जल्दी से वहाँ से पानी पिया और आराम करने वही झील किनारे बैठ गयी। "वैसे कितने पिशाच रहते हैं यहां पर... और वो सब तुम्हारी बात क्यों मानेंगे ? कही किसी ने मुझे पकड़कर पार्टी कर ली तो..!" "वो हमारी बात इसलिए मानेंगे क्योंकि हम इस जंगल के सबसे शक्तिशाली पिशाच है। हमसे पहले इस जंगल में और कोई पिशाच नहीं रहते थे।" रीवांश भी वही उसके पास बैठ गया। "ओह तो दादागिरी एंड ऑल... अच्छा कभी ऐसा हो कि जंगल में कोई शिकार ना आए.... तो, तुम लोगों को क्या भूख नहीं लगती क्या?" आकांक्षा को अब रीवांश से डर नही लग रहा था। "सारा इंटरव्यू आज ही ले लेगी क्या? जब आप हम पर भरोसा करने ही लगी हैं तो, लाइए हम आपको जंगल से बाहर फेंक देते हैं। आप सुरक्षित अपने घर पर पहुंच जाएगी। और अब आपको डर नही लग रहा है मुझसे?" आकांक्षा ने हाँ मे सिर हिलाया और बोला, "लेकिन अब मुझे तुमसे बात करनी है। मै सच जानना चाहती हूँ रीवांश, उस रात का सच।" "आपने तो सब उस किताब मे पढ़ ही लिया था, तो अब आपको हमसे क्या जानना बाकी रह गया?" " क्या मैं थोड़ी देर तुम्हारा हाथ पकड़ सकती हूं?" "ताकि आप सब कुछ जान सके कि हमारे साथ क्या हुआ था?" रीवांश की बात सुनकर आकांक्षा चौक गई। "तुम्हें कैसे पता कि मेरे पास कुछ शक्तियां.....! मैंने तो तुम्हे इस बारे में नही बताया?" "हम कोई आम इंसान नहीं है, जिसे कुछ बताने की जरूरत पड़े। जिस समय आपने जंगल में कदम रखा था, उसी के साथ हमें एहसास हो गया था कि आप कोई आम इंसान नहीं है। आप की अच्छाई की शक्तियों का कवच, जो कि आप की रक्षा कर रहा था, उसी की वजह से हमे आपके खास होने का अहसास हुआ। जंगल के घनघोर अंधेरे में पहली बार रोशनी की कोई किरण दिखाई दी। आप इस जंगल में नींद में चलकर नहीं आई है .... ना ही अनजाने में। आपका लक्ष्य आपको यहां तक खींचकर लाया हैं शहजादी..!" रीवांश ने जैसे ही अपनी बात खत्म की, आकांक्षा उसकी तरफ हैरानी से देखने लगी। "कैसा लक्ष्य रीवांश? तुम क्या कहना चाह रहे हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।" "आपका लक्ष्य तो हम नहीं जानते, लेकिन हम चाहते हैं कि आप हमारे बारे में जाने। वर्तमान हमारे इतिहास बारे में जाने, कि ना तो हम कल गलत थे और ना ही आज। गलत तो हमारे साथ हुआ था, जो आज हम ये शापित जीवन बिताने पर मजबूर हैं।" रीवांश के बातों से उसका दर्द साफ छलक रहा था। "भले ही तुम कल गलत नहीं होंगे। लेकिन आज तुम गलत हो.... तुमने अपनी भूख मिटाने के लिए पता नहीं कितने लोगों की जान ली है। तुमने कहा था ना कि इस जंगल में तुमसे पहले और कोई पिशाच नहीं थे, तो बाकी पिशाच कहां से आए? मैंने पढ़ा था कि अगर एक पिशाच किसी आम आदमी को काट ले, तो वो भी पिशाच बन जाता है। जो शापित जीवन तुम्हें नसीब हुआ, वही तुमने कईयो के नसीब मे लिख दिया।" आकांक्षा ने गुस्से मे कहा। उसकी बात सुनकर रीवांश को बहुत बुरा लगा। उसने आकांक्षा को अपने करीब खींचकर कहा, "आप हमे ऐसा कैसे बोल सकती हो? देखिए, हमारी आंखों में..! क्या आपको इन आंखों में एक शैतान नजर आता है?" "तो वो क्या था, जो मैंने कल रात को देखा था?" आकांक्षा ने रीवांश की पकड़ से छुटने की नाकाम कोशिश कर रही थी। "आप पिछले 2 दिनों से इस जंगल में है। आपको खाना नहीं मिला, तो आप तड़प उठी। सोचिए... हम तो पिछले कई सौ सालों से जंगल में कैद होकर रह गए हैं। इस जंगल के बाहर एक कदम तक नहीं रखा। इस अंधेरे में दम घुटता है हमारा। आप नही जानती, हमें भी इस जीवन से कितनी घिन्न आती है। लेकिन मजबूरी में हमने ये सब करना पड़ता है। आप इंसान तो खाना ना मिलने की वजह से मर भी सकते हो। लेकिन हम.... हमारा क्या.... हमें तो तब भी सिर्फ और सिर्फ तकलीफें ही मिलनी है। और जानना चाहती है ना आप कि जंगल के बाकी पिशाच कहां से आए?" रीवांश ने आकांक्षा के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, "अपनी आंखें बंद कीजिए.... और देखिए ..... कि हमेशा जो दिखता है वो सच नहीं होता। कई बार सच 100 पर्दों के पीछे भी छिपा होता है। जिन्हें देखने के लिए आंखें नहीं, मन की शुद्धि चाहिए होती है।" रीवांश के हाथ पकड़कर जैसे ही आकांक्षा ने अपनी आंखें बंद की, वैसे ही उसे वो सब कुछ दिखाई देने लगा,जो उस रात को हुआ था। उस रात का भयंकर मंजर देखकर, आकांक्षा की रूह कांप गयी। रीवांश के साथ हुए धोखे को देखकर, उसकी आँखो मे आँसू आ गए। रीवांश ने आकांक्षा के आँसू पोंछकर कहा, "क्या हुआ आकांक्षा? अब आपकी आँखो में आँसू क्यों आ गए?" "मुझे माफ कर दो। मुझे नही पता था कि तुम्हारे साथ इतना बड़ा धोखा हुआ था। लेकिन फिर भी तुम्हें बाकी लोगों को पिशाच नहीं बनाना चाहिए था। तुमने भी वही किया, जो तुम्हारे साथ हुआ...!" रीवांश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हम क्या आपको ऐसे लगते हैं? ये हमने नहीं किया। भले ही हमें मजबूरी में किसी की जान लेनी पड़ती है, लेकिन हम किसी को भी पिशाच नहीं बनाते। ये सब उन चारों कपटियों ने किया है। जब भी वो किसी का खून पीते हैं, तो अपने खून का कुछ अंश उनके अंदर डाल देते हैं ... और उनकी आत्माओं को शैतान का गुलाम बना देते हैं। जिससे वो लोग भी पिशाच बन जाते हैं। ऐसा करने से शैतान उन से खुश हो जाते है।" "उन चारों से तुम्हारा मतलब, तुम्हारे धोखेबाज दोस्तो से है ना? क्या वो चारों भी इसी जंगल मे है?" "जी..! उन को बंदी बनाकर रखा हुआ है। अब पता चल गया कि बाकी के पिशाच आज हमारी बात क्यों मानते हैं? क्योंकि हम उन्हें सभी तकलीफों से बचाते हैं। वो चारों इनके मालिक है, लेकिन हम उन्हे इनके अत्याचारो से बचाते है।" रीवांश का अतीत जानने के बाद भी आकांक्षा का मन अशांत था। उसके मन में रीवांश के अतीत से जुड़े कई सवाल चल रहे थे, जिन्हे वो पूछने से हिचकिचा रही थी। "आपकी शक्ल साफ बता रही है कि अभी भी आपकी जिज्ञासा शांत नही हुई है। आप के मन मे जो भी है, आप बेझिझक होकर पूछिये।" रीवांश के कहते ही आकांक्षा सहज हो गयी। "तुम्हारे दोस्त तुम्हें बोल रहे थे, तुमसे कुछ ऐसी गलती हुई है कि जिसकी वजह से तुम्हारी बाकी सारी अच्छाइयां पर उस पाप की बुराई हावी हो गई .... और तुम्हें ये पिशाच का जीवन मिला। तुमने ऐसा क्या किया था, जिसकी वजह से तुम्हे एक पिशाच का जीवन बिताना पड़ रहा है?" उसने पूछा। "ये तो हमें भी याद नहीं है... अगर हमें याद होता तो हम उसका पश्चाताप जरूर करते। कहते हैं पश्चाताप करने से बड़े से बड़ा गुनाह माफ हो जाता है। अनजाने में किए एक पाप की हमें इतनी बड़ी सजा मिलना, कहां का न्याय है?" रीवांश ने उदास स्वर मे जवाब दिया, "चलिए.. अब यहाँ से चलते है। ये जगह सुरक्षित नही है। यहीं से कुछ दूरी पर हमने उन चारों को कैद किया था।" बोलते हुए रीवांश का हाथ आकांक्षा के हाथ से जा टकराया। उसे अचानक छूने से वो थोड़ा सकुचा गयी। "तुम सिचुएशन एडवांटेज मत उठाओ। मै खुद से भी खड़ी हो सकती हूँ..!" आकांक्षा ने खड़े होकर बोला। "वो गलती से हमारा हाथ आपके हाथ को छू गया। वैसे आप बहुत खूबसूरत हैं.... मन से भी और तन से भी।" "यहां पर तो इतना अंधेरा है, फिर मै तुम्हें कैसे दिखाई दी?" आकांक्षा ने हैरानी से पूछा। "अंधेरा तो औरों के लिए है...अंधेरे के लिए क्या अंधेरा? हम अंधेरे में भी देख सकते है। अब तो आपको आपके सारे सवालों का जवाब मिल गया ना... लाइए हम आपको जंगल के बाहर फेंक देते हैं, ताकि आप सुरक्षित अपने घर पहुँच सके।" "अरे तुम बार-बार मुझे फेंकने की बात क्यों कर रहे हो ? मुझे चोट लग गई तो.!" आकांक्षा ने आँखे तरेरकर कहा। "हमारे होते हुए तो, बिल्कुल नही..!" "तुम्हे मुक्ति चाहिए ना?" आकांक्षा के मुक्ति का नाम सुनकर रीवांश ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "अब नहीं ... आपको देखकर हमें भी जीने का मन करता है।" "तुम तो मर चुके हो ना? तुम्हारा सिर्फ शरीर तुम्हारे पास है, आत्मा तो शैतान के पास कैद है ना?" "और जिसे खुद भगवान भी आजाद नही करवा सकते।" कहते हुए रीवांश की आवाज की भारी हो गयी और वो वहाँ से उठकर जाने लगा। ★★★★
जंगल मे जो भी चल रहा था, भले ही राजपुरोहित जी उस से पूर्णतया अंजान थे, लेकिन मौसम मे पल-पल हो रहे बदलाव को देखकर होने वाले अनिष्ट से वो बेखबर भी नही थे। उनके कहे अनुसार राजवीर जी, जाह्नवी के साथ पूजा करने के लिए रात के 12:00 बजे मंदिर के प्रांगण में उपस्थित हो गए। उन तीनों के अलावा उस वक्त मंदिर के कुछ खास पंडित मौजूद थे। राजवीर जी ने वहाँ लोगों के होने की मौजूद उम्मीद नहीं की थी। उन्होंने राजपुरोहित जी पूछा, "राजपुरोहित जी, इतने सारे लोग...!" "डरिए मत श्रीमान, ये सब पूजा को संपन्न कराने के लिए ही आए हैं।" राजपुरोहित जी ने उन्हे आश्वस्त किया। पूजा शुरू होने से पहले वहाँ मौजूद पंडितों के समूह ने मंदिर के चारों तरफ एक सुरक्षा कवच बनाया। उसके पश्चात वो लोग पूजा मे बैठे ही थे कि आसमां का रंग काला हो गया और बादलों की भयंकर गड़गड़ाहट के साथ बिजली कड़कने लगी। मौसम मे अचानक हुए बदलाव को देख कर जाह्नवी घबरा गयी। "मुझे बहुत अजीब लग रहा है। आकांक्षा ठीक तो होगी ना?" " देखिए मैं आपसे कुछ छुपाना नहीं चाहता। ये पूजा एक विशेष शस्त्र को जागृत करने की पूजा है। आकांक्षा की जान को खतरा है। हम यज्ञ करके शस्त्र जागृत करेंगे.... अगर वो शस्त्र उस तक पहुंच गया और आज वो उस बुराई को खत्म कर देगी, तो उसका लक्ष्य पूर्ण हो जाएगा। आज या तो वो बुराई जड़ से खत्म हो जाएगी... ये वो खुद..!" राजपुरोहित जी कहते ही राजवीर जी ने डर कांपते हुए कहा, "ऐसा तो मत कहिए राजपुरोहित जी। एक आप से ही तो उम्मीद..!" "उम्मीद तो उस माता रानी से लगाइए श्रीमान। जिस तरह उन्होंने स्वयं बुराई का विनाश किया था.... वैसे ही आप की पोती आज बुराई का नाश करें। चलिए पूजा प्रारंभ करते हैं। हो सकता है हमें रोकने के लिए आज यहां पर शैतान के बाशिंदे भी आए, लेकिन हम मे से कोई भी इस प्रांगण से बाहर कदम नही रखेगा... और ना ही यज्ञ की पवित्र अग्नि के अलावा किसी और चीज को देखेगा। मंदिर के बाहर छल की शक्ति चरम पर होगी, लेकिन आज छल को श्रद्धा और भक्ति से हराना है।" कहकर राजपुरोहित जी ने पूजा आरंभ की। जैसा कि उन्होंने सोचा था कि ये सब करना इतना आसान नही होगा, वहाँ मंदिर के सुरक्षा कवच के बाहर अजीब तरह के जानवरो के रूप मे शैतानी शक्तियाँ आ गयी। लेकिन राजपुरोहित जी इस तरह की स्थिति से भली भाँति परिचित थे, इसलिए उन के बनाये अभेद्य कवच को तोड़ना इतना आसान नही था। हजारों मुसीबतें आने के बावजूद वहाँ मौजूद एक भी शख्स ने पूजा से पल भर के लिए ध्यान नही हटाया। ★★★★ जंगल के अंदर पिंजरे में कैद चारों पिशाच संजय, विजय, रघु और रवि तड़प रहे थे। पहले ही उन्हें पिंजरे में कैद होने की वजह से तकलीफ हो रही थी, ऊपर से रीवांश ने उस पिंजरे जमीन में भी गाड़ दिया था। इस वजह से उनका कोई बस नहीं चल पा रहा था । "हमें कैसे भी करके इस पिंजरे से बाहर निकलना होगा। आज के दिन के लिए हमने इतनी सारी योजनायें बनाई थी। याद है ना आज कौन सा मुहूर्त है?" रघु ने तड़पते हुए कहा। "हां हां सब याद है...और भूल भी कैसे सकते हैं। अभी कुछ समय पश्चात पाताल लोक मे चंद्र ग्रहण शुरू हो जाएगा, जिसमे चंद्रमा अपने सबसे अशुभ नक्षत्र भरिणी मे स्थित होगा।" संजय ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा। "और इस समय मे शैतान के सभी गुलाम बराबर शक्तिशाली होते है", विजय ने कहा, "तभी उन बेवकूफ पिशाचों को अपनी तरफ करने की कोशिश की। लेकिन सब व्यर्थ रहा।" गुस्से में उसने पैर पटके। "लेकिन हमे कुछ भी करके इस अवसर का लाभ उठाना ही होगा। अगर आज हमने कुछ नहीं किया, तो फिर कभी ये मौका आसानी से हाथ नहीं आएगा। चलो, अब एक साथ मिलकर अपनी पूरी ताकत लगाते हैं और यहाँ इस कैद से बाहर निकलते है।" रवि के कहने पर तीनों उसके साथ मिलकर वहां से बाहर निकलने के लिए हाथ-पैर मारने लगे। वही दूसरी तरफ रीवांश अपनी मुक्ति का सोच कर दुखी हो गया। वो अच्छे से जानता था कि उसकी ये मुक्ति की तड़प कभी नही मिट पायेगी। जब से आकांक्षा ने उसका हाथ पकड़कर उसकी सच्चाई देखी थी, तब से उसे उसके दर्द का भी एहसास होने लगा था। वो रीवांश के साथ उसके पीछे-पीछे बिना कुछ बोले चल रही थी। अपने दर्द और तकलीफ मे रीवांश ये भूल गया कि वो जिस दिशा मे बढ़ रहा था, वहीं उसने जमीन मे पिंजरे मे कैद रवि, रघु, संजय और विजय को डाला था। रीवांश बिना किसी डर के दिशाहीन आगे बढ़ रहा था। उसके पीछे आते हुए आकांक्षा का पैर जैसे ही उस गड्ढे पर पड़ा, वहाँ एक जोर के झटके के साथ वो चारों पिंजरे सहित बाहर आ गए। धरती फटने से जोर का झटका हुआ और आकांक्षा उछल कर दूर जा गिरी। पिंजरा बाहर आते ही खुल गया और चारो पिशाच उसकी कैद से आजाद थे। आकांक्षा को देखते ही, उस पर रघु उस पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा। "ओह... यहाँ तो प्यार मोहब्बत चल रही थी।" उसे अपनी तरफ आता देख आकांक्षा ने डर से अपना चेहरा ढक लिया और जोर से चिल्लाई,"ब... बचाओ..! रीवांश..!" उसे आकांक्षा की तरफ बढ़ता देख रीवांश हवा की तेजी से आया और आकांक्षा को अपनी गोद मे उठाकर, अपने पैरो से रघु को दूर धकेल दिया। उन चारो को बाहर देख वो गुस्से मे गुर्राया, "तुम चारों फिर से बाहर आ गए। इस बार हम आप को छोड़ने वाले नही है।" आकांक्षा रीवांश की गोद मे थी। गुस्से में उसने अपना विशाल रूप धारण कर लिया, जिसे देख कर आकांक्षा बुरी तरह घबरा गयी। उसका विशाल शरीर किसी भयानक जानवर की तरह दिखता था। उसे देख आकांक्षा घबराकर चिल्लाने लगी, "छ... छोड़ो मुझे..!" "अरे आपकी प्रेमिका तो डर गई युवराज..! यही है इनका असली रूप.... लगता है, पहले कभी देखा नहीं आपने... लेकिन अब देख लिया, तो बाकियो की तरह तुम्हे भी मार देगा।" रवि हंसकर बोला। रीवांश ने आकांक्षा ने छोड़ दिया। ऊँचाई से गिरने की वजह से उसे थोड़ी चोट लग गयी। उसने गुस्से मे रवि को हवा मे उठा लिया। "पता नहीं क्यों हर बार मुंह की खाने को आ जाते हो। अगर इन्हें कुछ हुआ, तो हम तुम्हारी जान ले लेंगे।" कहकर उसने रवि को दूर पटक दिया। "ये तुम्हें भी मार देगा.... जैसे बचपन में इसने अपनी मंगेतर को मारा था। बेहतर यही होगा, कि तुम यहाँ से अपनी जान बचाकर भाग जाओ। वरना ये तुम्हे भी मार देगा। ये तुम्हारी इंसान नही, बल्कि एक हैवान है। " विजय की बात सुनकर आकांक्षा अपनी जगह से खड़े हुई और गुस्से में चिल्लाई, "हैवान तो तुम चारों हो, जो दोस्त बनकर अपने ही दोस्त को छला..!" "इसने अपनी झूठी कहानी बताकर तुम्हे भी बेवकूफ बना दिया" संजय ने हंसकर कहा, "यही मासूम होता, तो आज एक पिशाच का जीवन नही बिता रहा होता।" "अच्छा ऐसा भी क्या किया था इसने, जो ये पिशाच बन गया।" आकांक्षा बातों ही बातों में उनसे सब जानने की कोशिश कर रही थी। "तुम भी जानना चाहते थे ना युवराज, तुमने क्या पाप किया था? याद करो वो दिन.. जब तुम बचपन में अपनी मंगेतर सुनैना के साथ नदी के किनारे गए थे।" रघु रीवांश की पकड़ मे होने के बावजूद उसे उकसाने का प्रयास कर रहा था ताकि गुस्से में आकांक्षा की जान ले ले। "ये क्या बकवास कर रहे हो तुम? हमने कभी किसी का गलती से भी बुरा नही चाहा..!" रीवांश ने जवाब दिया। "बकवास नहीं है ये, सच है सब। तुम्हारा पाप छुपाने के लिए तुम्हारे बाप ने तुम्हें विदेश में पढ़ने के लिए भेज दिया था। वरना लोग तुम्हें जिंदा जला देते....अगर तुम बिलासपुर में होते। एक खूनी और हत्यारे को बिलासपुर का उत्तराधिकारी कभी नही बनने देते..!" संजय के याद दिलाने पर रीवांश अपने अतीत के बारे में सोचने लगा। इसी बीच उसने अपना समान्य रूप धारण कर लिया। आकांक्षा ने जल्दी से आकर उसका हाथ पकड़ लिया ताकि वो उसकी स्मृतियों के जरिये उसके अतीत में झांक सके। क्रमशः..!!
आकांक्षा ने जल्दी से आकर संजय का हाथ पकड़ लिया ताकि वो उसकी स्मृतियों के जरिये उसके अतीत में झांक सके। सन् 1835...... बिलासपुर रियासत मे जश्न मनाने की तैयारी की जा रही थी क्योंकि राजकुमार रीवांश जो कि उस रियासत के इकलौते उत्तराधिकारी थे, उनकी शादी जय प्रताप सिंह जी के दोस्त राघवेंद्र प्रताप सिंह की बेटी सुनैना के साथ तय की गई थी। रीवांश उस वक्त 10 साल के थे और सुनैना 7 साल की... दोनों बच्चे कुछ अन्य बच्चो के साथ, जिनमे रवि, रघु, संजय और विजय भी शामिल थे, उन के साथ खेलने के लिए महल के बाहरी हिस्से मे बनी झील के किनारे पर गए थे। काफी देर खेलने के बाद दोनों पास मौजूद एक कृत्रिम झील के पास आकर बैठ गए। "देखिए राजकुमारी.. वो हंस कैसे तैर रहे हैं .... आपको तैरना आता है क्या? आप भी उनकी तरह तैरिए ना... वरना हम आपसे शादी नहीं करेंगे।" रीवांश ने अपने बचपने में जिद की। "लेकिन हमें तैरना नहीं आता है।" सुनैना ने मासुमियत से जवाब दिया। उसकी बात सुनकर रीवांश गुस्सा हो गया। वो उस पर जोर से चिल्लाया, "नहीं आपको तैरना पड़ेगा।" सुनैना कुछ बोलती उससे पहले ही बचपने में रीवांश ने उसे नदी में धक्का दे दिया। उसे पानी मे देखकर वहाँ मौजूद बच्चे तालियां बजाते हुए जोर जोर से हँसने लगे, "राजकुमारी तैर रही है।" उन लोगो की आँखों के सामने सुनैना की जान चली गयी। जहां एक तरफ जश्न का माहौल था, वहीं अब राघवेंद्र प्रताप सिंह के रियासत के लोग रीवांश की जान के दुश्मन बन चुके थे। जय प्रताप सिंह उन से बचाने के लिए 5 साल तक रीवांश को अपने किसी दूसरे दोस्त के यहां छुपा कर रखा। जब रीवांश बड़ा हुआ, तो उन्होंने उसे विदेश में पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया। वक्त के साथ लोगो के दिलो दिमाग से इस हादसे की याद फीकी पड़ने लगी, तो राजा साहब ने रीवांश को फिर से रियासत बुलाने का सोचा। उस दिन का सच जानकर रीवांश ने भारी मन से कहा, "लेकिन वो सब हमसे अनजाने में हुआ था। एक अनजाने में हुई गलती की हमें इतनी बड़ी सजा कैसे मिल सकती है? हमने जानबूझकर सुनैना की जान नहीं ली थी। हम बच्चे थे..!" रीवांश पश्चाप की अग्नि मे झुलस रहा था। विजय, संजय, रवि और रघु ने देखा कि रीवांश अपने पश्चाताप की आग में जल रहा था कि तभी मौके का फायदा उठाकर रवि और रघु ने वो पिंजरा उठाकर रीवांश पर डाल दिया। रीवांश अब पिंजरे मे कैद घायल शेर की तरह तड़प रहा था। आकांक्षा उसे बाहर निकालने के लिए आगे बढ़ी। उसने उस पिंजरे को खोलने के लिए उसे छुआ, तो एक बिजली से भी तेज झटका उसे लगा और वही घायल होकर गिर गयी। उसे उस हालत मे देख वो चारों शैतानी हंसी हंस रहे थे। वो चारों बाहर उसे कैद करके फिर से उसी कुटिलता पर उतर आए थे, जो उन्होंने आज से इतने साल पहले की थी। "बाहर निकालो हमें..!" रीवांश दर्द से चिल्लाया। "रवि.. रघु..जल्द से जल्द तंत्र साधना की तैयारी करो। इससे पहले कि धरती पर सूर्योदय हो, हमें युवराज की बलि देकर इसे शैतान को अर्पित करना होगा।" संजय के कहते ही वो तीनो तंत्र साधना के समान जुटाने बढे ही थे, कि रीवांश के चिल्लाने सुनकर जंगल के सारे पिशाच उस तरफ इक्कठा होने लगे। उन्हे इस तरफ आता देख वो चारों घबरा गए। " विजय जल्दी कुछ करो। इतने सारे पिशाचों से हम चारों नहीं निपट पाएंगे। इससे पहले कि ये सब हमारी तरफ बढ़े और हमें खत्म कर दे, हमें उन्हें कैद करना होगा।" संजय जोर से चिल्लाया। "लेकिन हमारे पास बस एक ही पिंजरा मौजूद है, जिसमें रीवांश कैद हैं। इस छोटे से पिंजरे में हम इतने सारे पिशाचों को कैसे कैद करेंगे।" विजय ने जवाब दिया। "कैसी बेवकूफो जैसी बातें कर रहे हो? ये कोई आम पिंजरा नही बल्कि एक जादुई पिंजरा है। हम इसमे एक साथ पूरी दुनिया को कैद कर सकते है....फिर ये तो चन्द पिशाच है।" रवि ने कहा। "बेवकूफ तो तुम हो गए हो... अगर इन लोगो को कैद किया, तो हमें रीवांश को आजाद करना होगा। अगर उसे आजाद कर दिया, तो हम इस साधना को कभी संपन्न नहीं जब पाएंगे।" रघु ने गुस्से मे जवाब दिया। "बातचीत मे समय व्यर्थ मत करो। युवराज को काबू करने मे ये लड़की हमारी मदद करेगी।" बिना उन तीनो के जवाब का इंतेजार किए, संजय ने पिंजरा रीवांश से हटाकर सभी पिशाचों के उपर फेंक दिया। "युवराज... हमारी रक्षा कीजिये..! बाहर निकलिए हमे..!" सारे पिशाच एक सुर मे तड़पाये स्वर मे बोलने लगे। जंगल के बाकी पिशाच ज्यादा शक्तिशाली ना होने की वजह से उस पिंजरे मे आते ही बहुत कमजोर पड़ने लगे थे। दूसरी तरफ अब रीवांश आजाद तो था, लेकिन पिंजरे की शक्तियों ने उसे कमजोर बना दिया था। वो चाह कर भी उठ नही पा रहा था। वही उसके पास घायल अवस्था मे आकांक्षा पड़ी थी। "उठिए शहजादी... आज हमें आपकी जरूरत है।" रीवांश ने थके स्वर मे कहा। आकांक्षा अपना पूरा जोर लगा कर उनकी कोशिश कर रही थी। उन चारों ने अपनी तंत्र साधना शुरू कर दी थी, इस वजह से रीवांश और भी कमजोर पड़ने लगा था। कांगड़ा के मंदिर मे इतने सारे विघ्नों के बावजूद राजपुरोहित जी ने अपनी पूजा बंद नहीं की थी। सुरक्षा घेरे के बाहर पूरा स्थान शैतानी शक्तियों ने उजाड़ दिया था। सुबह के 4:00 बज रहे थे और उस पहर में वो दिव्य शस्त्र जागृत होकर अग्नि में से बाहर निकला। वो एक छोटी तलवारनुमा आकृति मे था, जो कि चांदी से बना होने के कारण बर्फ की भाँति सफेद था। जागृत शस्त्र को देखकर सबने उसे प्रणाम किया और इसी के साथ वो उनके आँखो के सामने से उड़कर अगले ही पल जंगल में प्रवेश कर गया। जंगल मे रीवांश जमीन पर छटपटा रहा था। वो खुद को बहुत शक्तिविहीन और कमजोर महसूस कर रहा था। "अ...आकांक्षा.. प्लीज खुद को पहचाइये.. आप एक आम इंसान नही है... अगर आप होती तो... तो ये लोग आपको मारने मे एक पल का समय भी व्यर्थ नही गवाते। खुद की शक्तियों को महसूस कीजिये... जो... कुदरत ने किसी विशेष कार्य के लिए आपको दी है।" जमीन पर पड़ा रीवांश आकांक्षा की हिम्मत बढ़ा रहा था। अब वही उसका एकमात्र सहारा थी, जो उसे और इस जंगल को उन चारों के बुरे इरादो से बचा सकती थी। "लेकिन मै तो सिर्फ का पास्ट ही देख सकती हूँ... फिर मै इन शक्तिशाली पिशासों से कैसे निपटूंगी? तुमने तो खुद देखा होगा, जब मैं तुम्हें बचाने के लिए उस पिंजरे के पास आई, तो एक ही झटके में उससे दूर हो गई। उसको छू तक नहीं सकी थी मैं... ऐसे में मैं कैसे तुम लोगों की मदद करूं?" आकांक्षा ने उदास होकर कहा। रीवांश ने आकांक्षा का हाथ पकड़ा, मानो वो उसमे किसी तरह की ऊर्जा का संचारण करना चाह रहा हो... लेकिन उसके हाथ पकड़ते ही, रीवांश खुद को फिर शक्तिशाली महसूस कर रहा था, जैसे कि दोनो की शक्तियाँ मिल गयी हो। एक ही झटके के साथ उसका हाथ पकड़े हुए रीवांश वहाँ से खड़ा हुआ और अपना विशाल स्वरूप धारण करने लगा। वो चारों अपनी पूजा में मग्न थे, जो कि बस थोड़ी ही बची थी। जैसे वो चारों अंतिम आहुति के लिए खड़े हुए, रीवांश ने संजय को हवा मे उठा लिया। उसके उठते ही उनकी साधना खंडित हो चुकी थी। गुस्से मे रघु आकांक्षा की तरफ वार करने बढ़ा, तो शक्तियों ने उसके आसपास एक सुरक्षा घेरा बना लिया, जिसे पार करना संजय के लिए मुश्किल था। "सही कहा था तुमने रीवांश, ये मुझे कभी नुकसान नही पहुँचा पाएंगे।" आकांक्षा चिल्लाई, ताकि उसकी आवाज रीवांश के कानों में पड़ सके, जो कि उस वक्त अपना विशाल स्वरूप धारण किया हुआ था। "तुम्हे तो कुछ नही कर सकते, लेकिन इसे तो अभी भी मार सकते है।" रवि ने पास स्थित पेड़ को उखाड़ कर रीवांश पर वार किया। हैप्पी के बाद करती थी उसके बाकी के 3 साथी भी विवांश बर्बाद करने लगे। आकांक्षा चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी कि तभी उसकी नजर जंगल को चीरते हुए आ रहे हैं दिव्य शस्त्र पर पड़ी। कांक्षा ने अपना हाथ ऊपर किया कि वो सबसे सीधा उसके हाथ में जा कर चुका हूं। " इसका क्या करूं? अब अचानक से ये कहां से आ गया। जो भी हो, इनसे निपटने में कुछ तो मदद करेगा। " शस्त्र की शक्तियों से अनभिज्ञ आकांक्षा ने बिना सोचे समझे शस्त्र से रघु के हाथ पर वार किया। एक छोटे से वार से ही रघु का हाथ कट कर दूसरी तरफ जा गिरा, जिसकी किसी ने उम्मीद तक नही की थी। उस दृश्य को देखकर, रीवांश को उस शस्त्र की शक्तियां पहचनाते देर नही लगी। "आकांक्षा ये कोई आम शस्त्र नही है। इस शस्त्र से इनके सिर के बीचो बीच वार कीजिये।" रीवांश के चिल्लाते ही रघु को वही छोड़ वो तीनों पिशाच अपनी जान बचाकर वहाँ से भागने लगे। लेकिन रीवांश ने उन्हे वही दबोच लिया और आकांक्षा ने उनके कहे अनुसार उस शस्त्र से उन चारो के सिर बीचो बीच वार किया। वो चारों वही घायल होकर गिरने लगे। "लगता है, ये अभी मरने वाले है।" आकांक्षा के चेहरे पर जीत के भाव थे। "नही... इस शस्त्र से भले ही ये घायल हो गए हो, लेकिन मरे नहीं हैं।" रीवांश ने आंख बंद करके कुछ देखा और फिर धीरे से आंखें खोल कर बोला, "जंगल के बाहर सूरज की किरणें दस्तक दे चुकी हैं। अब उसी की दिव्य रोशनी में इनका अंत होगा।" कहकर रीवांश ने एक-एक करके उन चारों को जंगल के बाहर फेंक दिया। सूरज की रोशनी में वो सभी जलकर राख में बदल गए। उनके मरते ही पिंजरे मे कैद सभी पिशाचों की राख जंगल मे उड़ने लगी। "ये कैसे...!" आकांक्षा ने हैरानी से पूछा। "ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि ये सब उन्ही के गुलाम थे और उन्ही की अंश से पिशाच बने थे। उनके खत्म होते ही, इनका अस्तित्व स्वतः ही मिट गया।" रीवांश ने जवाब दिया, "देखा जाए तो एक तरह से सब अच्छा ही हुआ, जो इन्हें मुक्ति मिल गयी। हम बस हम बचे है आकांक्षा... हम पर भी वार कीजिये और हमें इस जीवन से मुक्ति दीजिये।" रीवांश के मुँह से उसे मारने की बात सुनकर आकांक्षा की आँखे नम हो गयी। वो वही पत्थर बनी खड़ी थी जबकि रीवांश के हाथों से वक़्त रेत की तरह फिसला जा रहा था। "वार कीजिये शहजादी..!" रीवांश ने आकांक्षा का हाथ पकड़कर बोला। उसने रीवांश का हाथ झटका और सख्त आवाज मे कहा, "नही...!" ★★★★ कांगड़ा के मंदिर मे पूजा मे राजपुरोहित जी को मौसम के शांत होने के साथ ही आभास हो गया कि बुराई का अंत हो चुका है। राजपुरोहित जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "आज एक बार फिर बुराई पर अच्छाई की विजय हुई ... देवी मां सबकी रक्षा करें। बेफिक्र हो जाइये श्रीमान, आपकी पोती सुरक्षित है।" राजपुरोहित जी के मुँह से आकांक्षा के ठीक होने की बात सुनकर राजवीर जी और आकांक्षा ने राहत की सांस ली जाह्नवी ने खुश होकर बोला, "चलो अच्छा हुआ कि अक्षु ठीक है... अब आने दो उसे... मैं बताती हूं। अकेले-अकेले जंगल चली गयी।" "ठीक है जाह्नवी... अक्षु आएगी तो उसे बोलूंगा कि अगली बार तुझे भी साथ लेकर जाए।" राजवीर जी ने हंसते हुए कहा। "नहीं... मैं नहीं जाने वाली किसी जंगल में।" जाह्नवी ने मुँह बनाकर कहा। राजवीर जी ने धन्यवाद स्वरूप राजपुरोहित जी के आगे हाथ जोड़कर कहा, "आपने जो किया, उसके लिए धन्यवाद शब्द बहुत छोटा पड़ जाएगा। मै आपका हमेशा अहसानमंद रहूँगा राजपुरोहित जी..!" "अहसान तो आपकी पोती ने किया है, इस धरती को पाप मुक्त करके... उसे यहाँ हमारे पास जरूर लेकर आईएगा। मातारानी... सदैव उसकी रक्षा करें। अब आपको घर जाना चाहिए। वो आपकी राह देख रही होगी।" राजपुरोहित जी को प्रणाम करके राजवीर जी जाह्नवी के साथ शिमला के लिए निकल पड़े। ★★★★ जंगल मे रीवांश आकांक्षा के मुँह से उसे ना मारने का सुनकर हैरान खड़ा था। "वार कीजिये शहज़ादी...!" रीवांश ने एक बार फिर कहा। "मै तुम पर कभी वार नही कर सकती रीवांश..!" "लेकिन क्यों? बस हम ही बचे है यहाँ.... और... और हमे मुक्ति चाहिए शहजादी... प्लीज वार कीजिये..!" "तुमने ही तो कहा था कि मुझसे मिलने के बाद तुम्हारा जीने का मन करता है. .. तो क्या तुम्हें देख कर जीने का मेरा मन नहीं कर सकता?" आकांक्षा भावुक होकर बोली। "पागल मत बनिए... हम आपकी तरह इंसान नही है। हमारा अंत जरूरी है आकांक्षा...! हम आपसे कह रह रहे है... आप वार कीजिये। हम दोनो का कोई भविष्य नही है। हम एक हैवान है.. और एक एंजेल..! भावनाओ मे बहकर कोई फैसला मत कीजिये।" "सॉरी...! लेकिन मै तुम्हे नही मार सकती।" आकांक्षा ने दिव्य शस्त्र छुपाते हुए कहा, "आई... आई लव यू...! फिर मुझे इस बार से कोई फर्क नही पड़ता कि तुम एक डेविल हो।" "नही आकांक्षा...! आप... आप हमसे प्यार कैसे कर सकती है? आप तो हमारी सच्चाई जानती है... फिर आप हमसे प्यार कैसे...!" रीवांश को अपने कानों पर विश्वास पर विश्वास नही हो रहा था। "यही सच है रीवांश..! और तुम कोई हैवान नही हो। तुम्हारा साफ दिल मैंने खुद महसूस किया है।" आकांक्षा शस्त्र नीचे फेंककर रीवांश के गले लग गयी। "एक बार फिर सोच लीजिये... हमारे साथ आपका जीवन आसान नही होगा।" "अब तो सोच लिया मिस्टर डेविल...!" "तो क्या आप इस डेविल की एंजेल बनने के लिए तैयार है?" रीवांश ने पूछा, तो आकांक्षा ने उसकी बाहों मे छुपकर जवाब दिया, " हां ...लेकिन तुम कभी किसी की जान नहीं लोगे... प्रोमिस करो...!" "जैसा आप कहे... शहज़ादी।" रीवांश ने उसके बालों को सहलाते हुए कहा, "हम वादा करते है कि हम किसी भी जीवित प्राणी का खून नही पियेगे। और ये एक डेविल का अपनी एंजेल से वादा है।" ★★★★ हैलो रीडर्स..! यहाँ पर कहानी का पहला चेप्टर खत्म होता है। जहाँ आकांक्षा का एक डेविल की एंजेल बनकर रहना, कौनसी नई मुसीबते खड़ी करता है। जानने के लिए बने रहिये..! और प्लीज अगर आपको कहानी पसन्द आती है, तो उस पर लाइक और कॉमेंट जरूर करें...! एक राइटर को अपनी मेहनत थोड़ी तारीफ तो चाहिए ही होती है। आगे भी ये साथ यूँ ही बनाये रखिये। आपके प्यार और साथ के लिए शुक्रिया..!
एक रहस्यमयी जगह, जहाँ चारों तरफ घनघोर अंधेरा था, लेकिन इसी घनघोर अंधेरे में आग और लावे की लाल रोशनी ने उस स्थान को थोड़ा जगमग कर रखा था। वह जगह इतनी गरम थी कि लोहे को भी आसानी से पिघला दे। वहीं पर, बीचोबीच, एक बड़ा और ऊँचा सूखे पेड़ की टहनी की आकृति जैसा कुछ दिखाई दे रहा था... लेकिन वह कोई पेड़ नहीं था। वह ऊँचाई पर बना एक सिंहासन था। उस पर कोई बैठा था... और उस सिंहासन को घेरे नीचे असंख्य आकृतियाँ थीं, जो सिर झुका कर खड़ी थीं। "मालिक... मालिक... बर्फ की गुफा में कैद सभी पिशाचों की आत्माएँ एक-एक करके मुक्त हो गईं। जहाँ कल इस संसार में बुराई का एक नया राज स्थापित होना था... वहीं पृथ्वी पर बुराई का अंत हो गया।" एक साया सिर झुका कर बोला। "नहीं... यह नहीं हो सकता!" सिंहासन पर बैठा वह व्यक्ति जोर से चिल्लाते हुए खड़ा हुआ; उसके हाथ में एक लम्बा सा डंडा था, जिसके सिरे पर एक नीला रत्ननुमा पत्थर जड़ा था। वह कोई और नहीं, बल्कि सभी काली शक्तियों का राजा स्वयं था, जो कि पाताल में रहता था। "यह कैसे संभव हो सकता है, कि कोई बिना पाताल में कदम रखे, वहाँ पर कैद पिशाचों की आत्माओं को यहाँ से आजाद करवा दे... और... और पिशाचों का राजा... राजकुमार रीवांश? उसकी आत्मा...! क्या वह भी मुक्त हो गई?" उसके पूछते ही वहाँ मौजूद आत्माओं में से किसी ने कहा, "नहीं मालिक... उसकी आत्मा आज भी बर्फ की गुफा में कैद है, जहाँ बाकी पिशाचों की आत्माएँ कैद थीं।" "फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि बाकी के पिशाच मुक्त हो गए...! ऐसे पहरेदारी कर रहे थे तुम...!" गुस्से में उसने हाथ में लिए डंडे के नीले पत्थर से कुछ रोशनी उन पहरेदारों पर डाली, जिससे वे वहीं पर राख के ढेर में परिवर्तित हो गए। उसने आगे बोला, "अगर पिशाचों का राजा सुरक्षित है, तो घबराने की कोई बात नहीं..! अब वक्त आ गया है, कि पृथ्वी पर पिशाचों का राज स्थापित किया जाए... बुराई को एक नया रूप दिया जाए और यह सब करेगा... स्वयं पिशाचों का राजा... राजकुमार रीवांश...!" फिर पूरे पाताल में बुराई के देव की भयानक हँसी गूंज उठी..! "अगले चंद्रग्रहण में पूरे 93 दिवस शेष हैं। तब तक पिशाचों का राजा स्वयं धरती पर पिशाच राज स्थापित करेगा। यह हमारी भविष्यवाणी है... शैतान की वाणी है।" पूरे पाताल में उसकी आवाज गूंजने लगी। और नीचे खड़ी शैतानी शक्तियाँ एक सुर में उसकी जय-जयकार करने लगीं। लेकिन उसकी आवाज इतनी तेज और भयानक थी कि उसमें उन लोगों की आवाज दब गई। चारों तरफ बस एक ही स्वर गूंज रहा था: "पिशाचों का राजा रीवांश स्वयं धरती पर पिशाच राज स्थापित करेगा...!" ★★★★ वहीं दूसरी तरफ, आकांक्षा और रीवांश एक-दूसरे की बाहों में प्यार की कसमें ले रहे थे। भले ही वहाँ बैठे रीवांश के कानों में शैतान की आवाज नहीं पड़ी, लेकिन उसे अपने अंदर एक अजीब सी सिहरन महसूस हुई, जो कि एक शुभ संकेत नहीं था। रीवांश अचानक से आकांक्षा से दूर हो गया। "क्या हुआ? तुम ठीक तो हो ना?" आकांक्षा उसके इस बर्ताव से थोड़ा हैरान थी। "आकांक्षा... वह शस्त्र कहाँ है, जिससे आपने बाकी के पिशाचों को मारा था?" रीवांश खड़े होकर उस दिव्य शस्त्र को ढूँढ़ने लगा, "आकांक्षा... आपने हमें ना मारकर सही फैसला नहीं लिया। हम... हम किसी के लिए भी खतरा बन सकते थे। आप... आप वह शस्त्र ले और हमें खत्म कर दीजिए। कहाँ गया वह शस्त्र?" "वह तो मेरे फेंकते ही गायब हो गया था। लेकिन तुम्हें ऐसे अचानक से हो क्या गया है?" आकांक्षा ने रीवांश का हाथ पकड़कर उसे रोका, "प्लीज मुझसे कुछ मत छुपाओ...! क्या... कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है। मैं ही पागल थी, जो तुम्हें इतनी वैल्यू दे रही थी... और तुम...!" बोलते हुए उसकी आँखें नम हो गईं। रीवांश ने उसे खींचकर गले लगा लिया और कहा, "यह फिर मत कहिएगा कि हम आपसे प्यार नहीं करते। बल्कि हमें तो आपको देखते ही पहली नज़र में प्यार हो गया था।" "तो फिर ऐसी बातें क्यों कर रहे हो?" "हमें बहुत अजीब महसूस हो रहा है। ऐसा लग रहा है... कुछ गलत होने वाला है... बहुत गलत। आपने हमें बचाकर सही नहीं किया आकांक्षा...!" "सही-गलत डिसाइड करने वाले तुम कौन होते हो... और जब तक हम साथ हैं... कभी कुछ गलत नहीं हो सकता।" आकांक्षा ने मुस्कुराकर कहा, तो उसकी मुस्कान देखकर रीवांश ने उस एहसास को अपना भ्रम समझकर भुला दिया। आकांक्षा और रीवांश जंगल में घूम रहे थे... अब वहाँ का अंधेरा मिट चुका था। सूरज की रोशनी जंगल के घने पेड़ों से छनकर वहाँ उजाला कर रही थी। "थैंक गॉड! यहाँ जंगल में इतने सारे पेड़ हैं, वरना इस सनलाइट में तुम्हें प्रॉब्लम होती ना...?" आकांक्षा रीवांश के साथ एक पेड़ के नीचे बैठी थी। "हाँ..! भले ही आपने मेरी जान बख्श दी हो..! लेकिन हैं तो हम एक पि..." रीवांश अपनी बात पूरी करता, इससे पहले आकांक्षा ने उसके होंठों पर अपनी उंगली रखकर बोला, "शश्श्श्श...! अब फिर यह कभी मत बोलना। तुम क्या हो, यह मुझसे बेहतर कोई नहीं जान सकता। अच्छा बताओ ना... तुम्हारे पास कौन-कौन सी शक्तियाँ हैं?" "हम अपने शरीर को विशाल कर सकते हैं... लेकिन सिर्फ हम ही... बाकी के पिशाच नहीं! हम उनके राजा हैं। किसी का भी मन पढ़ सकते हैं... उन्हें अपने वश में कर सकते हैं।" "अगर तुम किसी का मन पढ़ सकते हो, तो चलो बताओ मेरे मन में क्या चल रहा है?" "नहीं... हम आपका मन नहीं पढ़ सकते..! आप पर हमारी शक्तियाँ काम नहीं करतीं। वरना आपको कब का आपके घर पहुँचा देते।" रीवांश के मुँह से घर का नाम सुनकर आकांक्षा ने जीभ बाहर निकालकर कहा, "घर... हे भगवान..! मैं दादू और जाह्नवी को तो भूल ही गई। मेरे बिना तो उनका बुरा हाल हो गया होगा। रीवांश... मुझे घर जाना होगा। मेरे दादू मेरा वेट कर रहे होंगे... और जाह्नवी... वह दादू के पास अकेली होगी।" "और आपके माता-पिता? और यह जाह्नवी कौन है?" रीवांश ने पूछा। "जाह्नवी मेरी फ्रेंड है रीवांश, किसी दिन तुम्हें उससे ज़रूर मिलवाऊँगी। और मेरे मम्मी-पापा अब इस दुनिया में नहीं रहे। इस दुनिया में दादू के अलावा और मेरा कोई नहीं है।" आकांक्षा ने उदास होकर जवाब दिया। "नहीं.... इस दुनिया में आपके दादू के अलावा, अब एक और शख्स भी है, जो आपसे बेहद प्यार करता है। और आप फ़िक्र मत कीजिए... हम आपको आपके घर सुरक्षित पहुँचा देंगे।" "लेकिन... हम वापिस कैसे मिलेंगे? और... और तुम्हारे पास तो मोबाइल भी नहीं होगा। हम बात कैसे करेंगे? यार... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि हम कैसे करेंगे।" आकांक्षा एक साँस में जल्दी-जल्दी बोल रही थी। रीवांश ने मुस्कुराकर कहा, "बस कीजिए..! हमारे होते हुए आपको इन सब के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं है। और हाँ... आप दिल से कभी भी हमारा नाम ले लीजिएगा। उसी पल हम आपकी आँखों के सामने होंगे।" "सच कहूँ तो मेरा यहाँ से जाने का बिल्कुल भी दिल नहीं कर रहा है। यह जंगल मुझे अपना ही घर लग रहा है। अगर दादू की फ़िक्र नहीं होती, तो मैं तुम्हें छोड़कर कभी नहीं जाती... लेकिन क्या हम फिर मिल पाएँगे? मुझे अधूरी प्रेम कहानियाँ बिल्कुल नहीं पसंद...!" आकांक्षा रीवांश से अलग होने के ख्याल से ही परेशान हो गई। रीवांश उसकी बेचैनी अच्छे से समझ पा रहा था। उसने उसके हाथों को अपने हाथों में लिया और प्यार से कहा, "आपको यह किसने कह दिया कि हम आपसे रोज़ नहीं मिलेंगे। आसमान का यह चाँद हमारे प्यार का गवाह बनेगा.... बस यूँ समझ लीजिए कि जब भी चाँद आसमान में दस्तक देगा.... उसी के अगले ही पल हम आपकी आँखों के सामने होंगे। आपका भी एक परिवार है और हम आपको उससे कभी जुदा होने को नहीं कहेंगे। अपने परिवार से बिछड़ने का दर्द हम अच्छे से जानते हैं। चलिए... हम आपको जंगल के छोर पर छोड़ आते हैं। वहाँ से आप अपने घर चले जाइएगा।" जाने से पहले आकांक्षा ने रीवांश को फिर से गले लगा लिया। वे दोनों एक-दूसरे से दूर नहीं होना चाहते थे, लेकिन राजवीर जी के ख्याल ने आकांक्षा को बाँध रखा था। "सूरज अस्त होने वाला है आकांक्षा। आपके बिना आपके घर वाले परेशान हो रहे होंगे।" रीवांश ने उसे खुद से अलग किया। "ठीक है। तो फिर कल मिलते हैं।" आकांक्षा ने मुस्कुराकर कहा, तो जवाब में रीवांश ने मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिलाया। रीवांश ने आकांक्षा को जंगल के छोर पर छोड़ दिया था। जहाँ से वह घर के लिए निकल पड़ी। काफी देर चलने के बाद वह घर पहुँच चुकी थी। लेकिन वहाँ जाकर उसने देखा कि घर का दरवाज़ा बंद था। वह जैसे-तैसे मेन गेट पर चढ़कर घर के अंदर चली गई। राजवीर जी और जाह्नवी दोनों ही वहाँ पर मौजूद नहीं थे। "दादू कहाँ चले गए? और जाह्नवी.... कहीं ऐसा तो नहीं कि जाह्नवी के मॉम-डैड वापस आ गए और वह दादू को अकेले छोड़कर अपने घर चली गई हो। बिचारे दादू मेरे बिना परेशान हो रहे होंगे। वह तो एक पल के लिए भी मुझे अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे और यहाँ तो पूरे 3 दिन हो गए...!" अंदर जाने के लिए एक और दरवाज़ा था। दरवाज़ा लॉक होने की वजह से आकांक्षा वहीं पर उसके आगे बैठ गई। उसे वहाँ बैठे कुछ ही समय हुआ होगा कि तभी राजवीर जी और जाह्नवी भी वहाँ पहुँच गए थे। आकांक्षा को वहाँ सही-सलामत देखकर राजवीर जी दौड़कर उसके पास गए और उसे गले लगा लिया। "अक्षु! तू कहाँ चली गई थी... बच्चे! तू ठीक तो है ना.... कुछ हुआ तो नहीं...!" राजवीर जी ने भावुक होकर उसे गले लगा लिया। "दादू! आप इतनी फ़िक्र क्यों कर रहे हो? मैं बिल्कुल ठीक हूँ... आप खुद देख लीजिए... मैं आपके सामने सही-सलामत खड़ी हूँ।" आकांक्षा ने उन्हें शांत करवाया। राजवीर जी ने खुद को संभाला और दोनों को अंदर ले कर गए। अंदर जाते ही राजवीर जी फिर से आकांक्षा से पिछले 3 दिनों के बारे में पूछने लगे, "अक्षु! अब तुम मुझसे झूठ नहीं बोलेगी और सब सच बताएगी कि इन 3 दिनों में क्या हुआ था? तूने जाह्नवी तक को बता दिया कि तेरे पास शक्तियाँ हैं, लेकिन एक बार भी मुझे बताना ज़रूरी नहीं समझा।" राजवीर जी की बातों से उनकी नाराजगी साफ़ झलक रही थी। "जाह्नवी की बच्ची... इसके पेट में कोई बात नहीं रह सकती।" आकांक्षा ने जाह्नवी की तरफ़ घूरकर देखा, तो उसने गुस्से से जवाब दिया, "देखो बोल भी कौन रहा है दादू, जो अकेले-अकेले पता नहीं कहाँ घूमते फिर रही है। तुझसे तो हमें बात ही नहीं करनी। एक बार भी हमारे बारे में नहीं सोचा कि अगर तू ऐसे अचानक से गायब हो जाएगी, तो हम पर क्या बीतेगी।" "जंगल में क्या हुआ था आकांक्षा?" राजवीर जी के मुँह से जंगल का नाम सुनकर आकांक्षा ने हैरानी से उनकी तरफ़ देखकर पूछा, "दादू! आपको कैसे पता कि मैं जंगल में.... और मेरी शक्तियों के बारे में आपको जाह्नवी ने बताया ना?" "नहीं! मुझे जाह्नवी ने इस बारे में कुछ नहीं बताया! बल्कि मैं तो पहले से ही जानता था कि तुम्हारे पास कुदरत की दी हुई कुछ नायाब शक्तियाँ हैं। बस अब तक इस सच को नकार रहा था। लेकिन कहते हैं कि होनी को कोई नहीं टाल सकता। वह तो शुक्र मानाओ राजपुरोहित जी का, जिनके होते हुए आज इतना बड़ा खतरा टल गया। वरना पता नहीं मेरी बच्ची अकेले कैसे उस बुराई से लड़ पाती।" बिना सच बताए राजवीर जी के मुँह से इतना सब कुछ जानकर आकांक्षा आँखें फाड़कर उनकी तरफ़ देख रही थी। "दादू! आप तो अंतर्यामी निकले। बताइए ना आपको यह सब कैसे पता?" राजवीर जी आकांक्षा की बातों का कुछ जवाब देते उससे पहले जाह्नवी बोल पड़ी, "पता है अक्षु! तेरे गायब होने के बाद हम लोग कांगड़ा के मंदिर में गए थे। वहाँ पर एक राजपुरोहित जी थे, जिन्हें सब कुछ पता था। उन्होंने हमसे एक पूजा करवाई और उस पूजा में से एक बहुत ही सुंदर सी तलवार जैसा कुछ निकला था, वह तेरे पास आया था क्या?" "दादू! जो हो गया, उसे भूल जाइए.... अब तो सब खत्म हो चुका है ना... और हम अपनी नॉर्मल लाइफ में वापस आ चुके हैं। मैं नहीं चाहती कि हम इन सब के बारे में बात करें और वैसे भी मैं काफी थक चुकी हूँ।" आकांक्षा ने उनकी बातों को टालते हुए कहा। "ठीक है। तुम थोड़ी देर आराम कर लो और बाद में डिनर के लिए बाहर आ जाना। तुम एक बार इन सब से बाहर निकल जाओ। उसके बाद हम फिर से कांगड़ा जाएँगे, राजपुरोहित से मिलने...!" राजवीर जी की बात खत्म करते ही आकांक्षा अपने कमरे में आराम करने के लिए जाने लगी, तो जाह्नवी भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ी। "जाह्नवी.... तुम मेरे साथ किचन में आकर मेरी हेल्प करो और अक्षु को थोड़ी देर आराम करने दो। जब तुम दोनों साथ में होती हो, तो दोनों की खुराफ़त फिर से शुरू हो जाती है। तुम दोनों की बातें तुम कल कर लेना।" राजवीर जी की बात सुनकर जाह्नवी मुँह बनाते हुए उनके साथ जाने लगी। आकांक्षा बुदबुदाते हुए जाह्नवी की तरफ़ इशारे में कहा, "हम रात को बात करेंगे और मैं तुझे सब कुछ बता दूँगी।" उसकी बात सुनकर जाह्नवी ने हाँ में सिर हिलाया और राजवीर जी के पीछे चली गई। उनके जाते ही आकांक्षा अपने कमरे में आ गई और थोड़ी देर लेट गई। इतना ज़्यादा थकने के बावजूद भी नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी और वह रीवांश के बारे में ही सोच रही थी। "रीवांश ने कहा था कि वह मुझसे रोज़ाना मिलने आएगा। जाह्नवी को बताऊँगी तो वह बहुत खुश हो जाएगी। भले ही मैं एक बार दादू को उसके बारे में नहीं बता सकती लेकिन रीवांश को दूर से दादू से ज़रूर मिलवाऊँगी।" उसके बारे में सोचते हुए आकांक्षा को नींद आ गई। ★★★★ दूसरी तरफ़, रीवांश जंगल में अकेले झील के किनारे बैठा आकांक्षा के बारे में सोच रहा था। सोचते हुए उसका हाथ झील के पानी में गया, और उसके हाथ लगते ही झील का पानी सूख गया। "यह कैसे संभव हो सकता है कि झील का पानी हमारे हाथ लगाने से सूख गया... इस झील का पानी तो इतने सारे पिशाच और काली शक्तियाँ होने के बावजूद भी कभी नहीं सूखा और अचानक से.... क्या हमें जो एहसास हो रहा है, वह सच है या हमारे मन का एक भ्रम... अब तो हमारी उलझन का हल निकालने के लिए यहाँ कोई और भी नहीं है... क्या शहजादी ने हमारे प्रेम के मोह में आकर कोई गलत फैसला तो नहीं ले लिया।" परेशान होकर रीवांश वहाँ से जाने लगा। जंगल में उसके अलावा और कोई नहीं था। "लगता है कि इस उलझन का हल निकालने के लिए हमें वह करना पड़ेगा, जो हमने आज तक नहीं किया था।" सोचते हुए रीवांश के कदम जंगलों के बाहर की तरफ़ निकल पड़े। क्रमशः....!
रात के 9 बज रहे थे। जंगल से आने के बाद, आकांक्षा थककर अपने कमरे में सोई हुई थी। जबकि बाहर, राजवीर जी और जाह्नवी ने मिलकर रात का खाना तैयार कर लिया था। "जाह्नवी, तू ऐसा कर, जाकर अक्षु को बुला ला।" खाना डाइनिंग टेबल पर लगाते हुए, राजवीर जी ने कहा। लेकिन अगले ही पल उन्हें कुछ ख्याल आया और उन्होंने जाह्नवी को रोकते हुए कहा, "चल, ऐसा कर, रहने दे। वह बहुत थक गई होगी। लगता है, अब तक तो वह सो भी गई होगी।" "मैं जाकर चेक कर लेती हूँ दादू। अगर वह जाग रही होगी, तो मैं उसे बाहर बुलाकर ले आऊँगी। वरना कोई बात नहीं... जंगल की बातें तो वह मुझे कल भी बता सकती हैं।" कहकर जाह्नवी आकांक्षा के कमरे की तरफ़ बढ़ने लगी। "ये दोनों लड़कियाँ भी ना.... जब तक सारी बातें एक-दूसरे को नहीं बता देतीं, इन्हें चैन नहीं आता।" राजवीर जी मुस्कुराते हुए खुद से बातें कर रहे थे। वे वहाँ पर बैठकर उन दोनों के आने का इंतज़ार कर रहे थे। जाह्नवी अंदर कमरे में गई, तो उसने देखा कि आकांक्षा सच में सो रही थी। "इसे तो देखो.... मेरी नींदें उड़ाकर यहाँ पर खर्राटे लेकर सो रही है। किसी महान इंसान ने कहा है कि सोते हुए बन्दे को नींद से जगाने पर पाप लगता है.... लेकिन जब इतने पाप कर ही लिए हैं, तो एक छोटा-मोटा पाप और सही...." मुस्कुराते हुए, जाह्नवी ने टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाया और जाकर आकांक्षा के मुँह पर उड़ेल दिया। "बारिश.... अरे कोई बचाओ.... बारिश हो रही है! जाह्नवी, छाता तो लाकर दे...!" पानी गिरने से आकांक्षा चौंक कर उठी। उसे इस तरह हड़बड़ाता देखकर, जाह्नवी हँसते हुए उसके पास आकर बैठी और बोली, "बारिश नहीं, बेटा, तूफ़ान आने वाला है। एक तो तुम मुझे सारी बातें बताए बिना यहाँ पर घोड़े बेचकर सो रही हो, ऊपर से तेरे दादू बाहर मुझसे काम करवा रहे हैं। खुद तो मजे से यहाँ से चली गई थी। तेरे पीछे मुझे दादू का गुस्सा झेलना पड़ा।" "मेरे दादू गुस्सा नहीं करते हैं.... हाँ, बस तेरी हरकतें ही ऐसी हैं कि दादू क्या, किसी को भी गुस्सा आ जाए।" आकांक्षा ने अपना मुँह साफ़ करते हुए, पास में रखा चश्मा लगाया, "अगर मैं बाहर जाकर दादू को यह बोल दूँगी, कि तूने मेरे ऊपर पानी डालकर मुझे जगाया है, तो तेरी शामत आ जानी है। मैं इतनी थकी हुई थी यार, कुछ तो रहम करती।" "तू भी मुझ पर रहम कर और जल्दी से सब कुछ बता कि जंगल में क्या हुआ था। यार, क्यूरियोसिटी के मारे मेरे पेट में बटरफ्लाई उड़ने लगी है। आई डोंट नो एनीथिंग.... हम डिनर के बाद में कमरे में आएंगे और तुम मुझे सब कुछ डिटेल में बताएगी।" "अच्छा, ठीक है। मैं भी जब तक तुझे सारी बातें नहीं बता देती, मुझे भी कहाँ सुकून मिलता है। चल, अब यह ड्रामा छोड़ और बाहर जाकर खाना खाते हैं। दादू वेट कर रहे होंगे।" कहकर आकांक्षा बेड से खड़ी हो गई। जाह्नवी भी उसके पीछे-पीछे बाहर आ गई। उन दोनों को साथ देखकर, राजवीर जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "आखिरकार जाह्नवी, तूने जगा ही लिया। अक्षु, तू खाना बाद में खा लेना, पहले इसे सारी बातें बता दो। नहीं तो यह तुम्हें रात को भी नहीं सोने देगी।" "दादू... क्यों ना आज रात आप भी हमारे साथ अक्षु की जंगल यात्रा के किस्से सुनने आ जाइए। हमें भी तो पता चले कि इसने वहाँ पर कितना इन्जॉय किया।" जाह्नवी की बात सुनकर, राजवीर जी ने हँसकर जवाब दिया, "नहीं, बच्चों! ये सब बातें तुम दोनों ही करो। मैं तो आज सुकून से सोऊँगा क्योंकि इतने दिनों बाद मेरी अक्षु मेरे पास है। चलो, आओ अब साथ में खाना खाते हैं।" राजवीर जी, आकांक्षा और जाह्नवी तीनों साथ मिलकर खाना खाने लगे। खाना खाते हुए, आकांक्षा को उस समय की याद आने लगी, जब भूख लगने पर रीवांश उसके लिए फल तोड़कर लाया था। "लास्ट टाइम जब भूख लगी थी, तो रीवांश मेरे लिए जंगल से फ्रूट्स लेकर आया था। वह इस वक्त जंगल में क्या कर रहा होगा? अभी तो उससे अलग हुए 1 दिन भी नहीं हुआ और मुझे उसकी इतनी याद आ रही है। क्या उसे भी मेरी याद आ रही होगी?" रीवांश के बारे में सोचकर आकांक्षा के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई। राजवीर जी खाना खाने में व्यस्त थे, लेकिन जाह्नवी की नज़र आकांक्षा के चेहरे पर गई, तो उसने उसकी कोहनी मारकर धीरे से पूछा, "लगता है जंगल में ज़रूर तुम्हें कोई ऐसा मिल गया होगा, जिसके बारे में सोचकर मैडम की होठों पर मुस्कराहट आ गई। तभी मैं सोचूँ कि थकान के बावजूद भी तू इतनी फ़्रेश कैसे लग रही है। कौन है वह?" "अभी नहीं.... रात को बताऊँगी।" आकांक्षा ने अपनी मुस्कराहट को काबू में करके जवाब दिया। वे लोग खाना खा रहे थे कि तभी अचानक बाहर जानवरों के रोने का भयानक शोर होने लगा। उनके रोने की आवाज़ इतनी तीव्र थी कि वह किसी के भी कानों को चीर सकती थी। "जानवरों का रोना अशुभ होता है! अब पता नहीं कि यह किस संकट का संकेत दे रहे हैं।" राजवीर जी ने परेशान होकर कहा। "ऐसा कुछ नहीं है दादू। यह भी तो हो सकता है कि बाहर जानवरों में लड़ाई हो रही होगी या फिर यह शोर उनके रोने की आवाज़ ना होकर एक-दूसरे को बुलाने की कोई सांकेतिक आवाज़ हो। आप छोटी-छोटी बातों पर परेशान मत हुआ कीजिए।" आकांक्षा ने उन्हें परेशान देखकर कहा। "चलो, ठीक है। भगवान करे ऐसा ही हो.... पिछले दिनों में इतना कुछ हो गया कि अब तो इन छोटे-छोटे संकेतों से भी डर लगने लगा है। तुम लोगों का खाना हो जाए, तो अंदर जाकर सो जाना। रात को लेट मत करना। मेरा खाना हो गया है। मैं बाहर थोड़ी देर बगीचे में टहलकर अंदर आ जाऊँगा।" कहकर राजवीर जी ने अपने खाने की प्लेट रखी और बाहर टहलने चले गए। बाहर जानवरों के रोने का शोर बढ़ता ही जा रहा था। आकांक्षा के समझाने के बाद, राजवीर जी ने उसे मात्र उनके मन का वहम समझकर भुला दिया। ★★★★ रीवांश के कदम इतने सालों में पहली बार जंगल से बाहर पड़े थे। और इसके बाहर आते ही, कुदरत ने इस बात का संकेत देना शुरू कर दिया था। चाँद आसमान में सिर पर था। बाहर आते ही उसकी नज़र चाँद पर पड़ी। "आज एक अरसे बाद आपको देखा है..! आकांक्षा... हमने आपसे वादा किया था कि हम आपसे रोज़ मिलने आएंगे... लेकिन पता नहीं क्यों दिल में एक अजीब सा डर घर कर गया है कि आपने हमें बचाकर सही नहीं किया। आज से पहले इतनी बेचैनी कभी महसूस नहीं की.... यह आपको खो देने का डर है या फिर किसी अनिष्ट की आशंका.... जो भी हो, हम सच का पता लगाकर रहेंगे...." सोचते हुए, रीवांश तेज़ी से आगे बढ़ने लगा। चलते हुए, वह काफी आगे निकल आया था। जब सामने उसे बहुत सारे पहाड़ और गुफ़ाएँ दिखाई देने लगीं, तब वह एक जगह पर रुककर आँखें बंद करके उन गुफ़ाओं के द्वार के आगे आकर कुछ महसूस करने लगा। हर द्वार के आगे खड़े होकर, वह मन ही मन कुछ बुदबुदाता और फिर दूसरी-दूसरी गुफ़ा के आगे जाकर खड़ा हो जाता। यह प्रक्रिया वह काफी बार दोहरा चुका था, लेकिन हर बार उसे नाकामयाबी ही हाथ लगी। "यह भी नहीं है।" रीवांश गुस्से में चिल्लाया, "हम पहली मायावी शक्ति होंगे, जिन्हें पाताल के द्वार का रास्ता तक नहीं पता... इतने सालों में एक बार भी हमने पाताल लोक में कदम तक नहीं रखा, शायद इसी वजह से हम वहाँ नहीं जा पा रहे। लेकिन सच का पता लगाने के लिए हमें वहाँ पर जाना ही होगा। जब तक हम वहाँ नहीं जाएँगे.... तब तक हमारे मन की बेचैनी दूर नहीं होगी।" सभी गुफ़ाओं के आगे वह प्रक्रिया दोहराने के बाद, निराश होकर रीवांश वापस शिमला के जंगलों की तरफ़ लौट आया। भले ही वह पाताल के अंदर नहीं पहुँच पाया हो, लेकिन उसके कदमों की आहट से ही पाताल में बैठे बुराई के देव को उसका आभास हो गया था। "तो बुराई ने तुम्हें अपनी तरफ़ खींचना शुरू कर दिया है। आज नहीं तो कल तुम अपनी सही जगह पर पहुँच ही जाओगे पिशाचराज! बस विशिष्ट मुहूर्त का इंतज़ार करो, तुम्हारे लिए भी पाताल द्वार खुल जाएगा। और जिस दिन तुम्हारे कदम यहाँ पड़े, तुम यही के होकर रह जाओगे।" सिंहासन पर बैठा शैतान रहस्यमयी तरीके से मुस्कुरा रहा था। वहाँ पर बैठे हुए भी, उसकी नज़रें उन गुफ़ाओं पर थीं, जहाँ रीवांश थोड़ी देर पहले गया था। उन गुफ़ाओं में से एक गुफ़ा के द्वार के आगे उसके कदमों के नीले निशान बने हुए थे। वहाँ बने वे निशान इस बात के गवाह थे कि वही पाताल का दरवाज़ा था, लेकिन वह रीवांश के लिए क्यों नहीं खुला, यह अभी भी एक रहस्य बना हुआ था.... जिसका पता सिंहासन पर बैठे शैतान के अलावा किसी को नहीं था। ★★★★ थोड़ी देर टहलने के बाद, राजवीर जी अपने कमरे में वापस आकर सोने चले गए थे। आकांक्षा और जाह्नवी भी खाना खाने के बाद कमरे में आ गई थीं। अंदर आते ही, आकांक्षा ने दरवाज़ा बंद कर लिया। "अब मुझे बताएगी कि किसके बारे में सोचकर तेरे चेहरे पर इतनी लम्बी मुस्कराहट थी? मेरे बारे में सोचकर तो तू कभी इतनी खुश नहीं हुई।" जाह्नवी ने बेड पर पसरते हुए कहा। आकांक्षा भी उसके पास आकर लेट गई और आँखें बंद करके रीवांश के चेहरे को महसूस करने लगी। "तुझे पता है मैं जंगल में किससे मिली थी?" "तू तो इस तरह से खुश हो रही है, जैसे वहाँ जंगल में तुझे टॉम क्रूज़ मिल गया हो।" जाह्नवी ने उसकी बात काटकर कहा। "टॉम क्रूज़ ना सही, लेकिन वह भी किसी राजकुमार से कम.... राजकुमार ही तो था वह। राजकुमार रीवांश..! उसकी आँखें...!" आकांक्षा अपनी बात को पूरा करती, इससे पहले जाह्नवी चौंककर बैठ गई और हैरानी से चिल्लाई, "क्या कहा तूने? राजकुमार रीवांश..? यह वही है ना जिसके बारे में हमने बुक में पढ़ा था। बिलासपुर का वह राजकुमार, जो विदेश से पढ़कर आया था और लौटते वक्त अपने दोस्तों के साथ मिलकर कुछ शैतानी प्रक्रियाएँ की थी। वह अब तक ज़िंदा है? लेकिन यह कैसे पॉसिबल है?" हैरानी से जाह्नवी की आँखें बड़ी हो गई थीं। "तू पहले मेरी पूरी बात सुनेगी? अब चुप करके बैठ और मेरी सारी बातें ध्यान से सुन। मुझे नहीं पता कि उस रात मैं जंगल कैसे पहुँच गई थी। वहाँ पर जाते ही, मैं सबसे पहले रीवांश से ही मिली थी। उस किताब में लिखी बातें तो सच थीं.... लेकिन अधूरा सच....! उस रात जो शैतानी प्रक्रियाएँ की गई थीं, वे रीवांश के द्वारा नहीं बल्कि उसके चार धोखेबाज़ दोस्तों के द्वारा की गई थीं, जिनके बारे में किताब में लिखा हुआ था।" "तो क्या सच में वैम्पायर्स होते हैं? रीवांश अब तक ज़िंदा है, इसका मतलब वह भी एक वैम्पायर..." जाह्नवी ने हैरानी से पूछा। "अनफ़ॉर्चूनेटली, रीवांश भी एक पिशाच है, लेकिन इसमें सच में उसकी कोई गलती नहीं है जाह्नवी। उसके साथ उस रात धोखा हुआ था, जिसकी वजह से वह बेचारा यह शापित जीवन बिताने के लिए मजबूर हो गया।" "और तूने जंगल में क्या किया? आई मीन टू से, राजपुरोहित जी ने कहा था कि तेरा जन्म और ये शक्तियाँ किसी लक्ष्य के लिए हैं? तेरे पास वह दिव्य शस्त्र पहुँचा था, तब तुमने उससे सारे पिशाचों को मार दिया?" आकांक्षा ने जवाब देते हुए कहा, "हाँ, मैंने जंगल के सभी बुरे पिशाचों को मार दिया.... लेकिन रीवांश को नहीं.... जाह्नवी, वह बुरा नहीं है। और.... और उसके साथ रहते हुए मुझे उससे.... मुझे उससे प्यार...!" आकांक्षा की बात खत्म होने से पहले, जाह्नवी फिर से बीच में बोल पड़ी, "तुम्हें उसे ज़िंदा नहीं छोड़ना चाहिए था... अक्षु, वह इंसान नहीं है। हमने बुक में पढ़ा था ना कि किसी भी पिशाच को ज़िंदा रहने के लिए किसी दूसरे प्राणी के खून की आवश्यकता पड़ती है। उसका जीवित रहना, धरती पर एक नई तबाही लाएगा।" "तू बेवजह की फ़िक्र कर रही है। रीवांश ने मुझसे प्रॉमिस किया है कि वह किसी भी प्राणी का खून नहीं पिएगा।" "और अगर उसने ऐसा नहीं किया, तो वह खुद का पेट कैसे भरेगा? तू पागल हो गई है.... एक वैम्पायर और एक इंसान की लव स्टोरी, सिर्फ़ किसी कहानियों या फ़ेयरी टेल्स में ही अच्छी लगती है, रियल लाइफ़ में नहीं.... मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं कैसे रिएक्ट करूँ?" जाह्नवी उसकी बातें सुनकर परेशान हो गई। आकांक्षा ने इसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं की थी। "एक तू ही तो है, जिससे मैं सारी बातें शेयर कर सकती हूँ। अब यह सब बोलकर मेरा दिल तो मत तोड़।" आकांक्षा के चेहरे पर उदासी के भाव थे। जाह्नवी ने उसका मूड ठीक करने के लिए बोला, "हम्म.... आई विश कि आगे भी सब अच्छा ही हो। अक्षु, तुम मेरी बेस्ट फ़्रेंड हो और मैं नहीं चाहती कि तेरे साथ कुछ भी बुरा हो। रीवांश... वह कैसा है, हम नहीं जानते हैं।" "तुम नहीं जानती, लेकिन मैं तो जानती हूँ ना। मेरी शक्तियाँ जानती हैं। वे महसूस कर सकती हैं कि रीवांश अच्छा है।" "अच्छा, तेरा वह राजकुमार रीवांश दिखने में कैसा है।" जाह्नवी ने आकांक्षा को परेशान करते हुए कहा। "बस इतनी सी बात.... उसे तो मैं अभी तुम्हें ड्रा करके दिखा देती हूँ। वैसे तो वह बहुत हैंडसम है.... और उसकी हेज़ल ग्रीन आँखें.... ओ माय गॉड.... किसी को भी दीवाना बना दें। तुझे पता है, वह कैसे बात करता है," आकांक्षा ने रीवांश की तरह बोलने की कोशिश करते हुए कहा, "शहजादी.... हम आपसे बहुत प्यार करते हैं। और आप देखिएगा.... हम आपको हमेशा खुश रखेंगे।" आकांक्षा के रीवांश की नकल करने पर जाह्नवी और आकांक्षा दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ीं। जाह्नवी को रीवांश का चेहरा दिखाने के लिए आकांक्षा ने कुछ ही समय में एक पेपर पर उसका चेहरा बना दिया। "अरे वाह! यह तो सच में बहुत हैंडसम है...!" जाह्नवी ने रीवांश की ड्राइंग देखते हुए कहा। "हाँ, यह तो बहुत हैंडसम है, लेकिन अब हमें सो जाना चाहिए। रात के 2 बज रहे हैं। दादू ने इस वक्त हमें बातें करते देख लिया, तो तेरी क्लास लग जानी है।" "अच्छा, अच्छा, ठीक है। बहुत हो गया.... कल से हम अपनी स्टडी को भी ज्वाइन करेंगे। तेरे चक्कर में मैंने भी अपनी क्लासेस मिस कर दी। चल, गुड नाईट...!" लाइट्स बंद करके आकांक्षा और जाह्नवी सोने चली गईं। कमरे में अंधेरा होने के बावजूद, वहाँ एक अजीब सी हरी रोशनी फैली हुई थी.... जो कि रीवांश की तस्वीर से, उसकी हरी आँखों से निकल रही थी, जो आकांक्षा ने बनाई थी। क्रमशः....! ★★★★