Novel Cover Image

मदहोशी ए ट्रू लव स्टोरी

User Avatar

Moon Star

Comments

13

Views

1332

Ratings

96

Read Now

Description

18+ डार्क रोमांस, सस्पेंस और फोबिडन टेंशन*** यह कहानी एक 18+ डार्क रोमांटिक थ्रिलर है, जहाँ प्यार की परिभाषा सीमाओं को तोड़ती है, और इच्छा—डर और खतरे के बीच जन्म लेती है। इस कहानी की नायिका ऐश्वर्या है— एक खूबसूरत, शांत, लेकिन भीतर से टूटी ह...

Total Chapters (18)

Page 1 of 1

  • 1. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 1 (आह्ह्हृ ... बेबी और जोर से धक्का मारो आह्ह्हृ...)

    Words: 1328

    Estimated Reading Time: 8 min

    राजपूत हाऊस बंगला नहीं लेकिन बंगले से कम भी नहीं था | शहर कि सरहद पर क्या खुबसूरत दिखता था, सुबह की धूप रसोई की खिड़की से अंदर आकर काउंटर पर हल्की-सी सुनहरी परत बिखेर रही थी। ठंड के मौसम में देखने लायक नजरा,

    ऐश्वर्या किचन में खड़ी थी—पतली क्रीम-कलर की शिफॉन साड़ी, जिसकी हल्की-सी चिपकती बनावट उसकी पतली कमर और मुलायम पीठ को और उभार रही थी।

    बाल ढीले जूड़े में बंधे थे, कुछ लटें बार-बार चेहरे पर गिर जाती थीं।

    वो चुपचाप चूल्हे पर रखे दूध को हिलाती जा रही थी…

    मन उसी में उलझा था कि आज उनकी शादी की तीसरी सालगिरह है—

    और उसी दिन रनवीर थाईलैंड के लिए उड़ जाएगा।

    तीन दिन के लिए।

    उसे तो आदत हो चुकी थी…

    फिर भी दिल को समझाना आज मुश्किल हो रहा था।

    कमरा शांत था—बस दूध के उबलने की हल्की-सी आवाज़…

    और तभी—

    धीमे, भारी कदमों की आवाज़।

    जैसे कोई धीमी चाल से शिकार के करीब आता है।

    ऐश्वर्या के रगों में एक अनजाना-सा डर, एक सिहरन दौड़ गई।

    वो पलटी नहीं।

    सिर्फ सांस रोककर सुनने लगी।

    कदमों की लय और करीब…

    और करीब।

    फिर अचानक—

    किसी ने पीछे से उसकी कमर जकड़ ली।

    ऐश्वर्या का पूरा बदन उछलकर सख्त हो गया।

    चाय का चम्मच उसके हाथ से गिरकर काउंटर से टकराया।

    “र… रनवीर!”

    उसने घबराकर कहा, दिल की धड़कन गले में अटक गई।

    रनवीर की पकड़ और कस गई।

    उसकी गर्म सांसें ऐश्वर्या की गर्दन पर पिघलती चली गईं।

    उसकी उंगलियाँ साड़ी के पल्लू को खींचती हुई उसके पेट तक उतर आईं,

    शिफॉन की परत जैसे कुछ भी न छुपा पा रही हो।

    “सिर्फ दूध उबाल रही हो?”

    उसकी आवाज़ गहरी, धीमी… और खतरनाक थी।

    ऐश्वर्या ने धीरे से सिर घुमाया,

    उसकी आँखें एक पल को रनवीर से मिलीं—

    और पल भर में फिर झुक गईं।

    “तुम्हारी पसंद का ब्रेकफास्ट बना रही थी…”

    उसकी आवाज़ फुसफुसाहट जैसी थी।

    रनवीर की उंगलियाँ उसकी कमर पर एक इंच और खिसकीं—

    मसलती हुई, जैसे अपनी मौजूदगी दर्ज कराता हो।

    “आज एनिवर्सरी है…”

    ऐश्वर्या ने हिम्मत करके कहा,

    “सोचा… आज तुम ऑफिस जल्दी…”

    वो बात पूरी भी नहीं कर पाई।

    रनवीर ने उसके कान के पीछे चेहरा झुकाते हुए कहा—

    “मैं तीन दिन के लिए जा रहा हूँ…

    पहले तुम्हें अलविदा तो कहने दो।”

    उसकी पकड़ अब बिल्कुल काबू करने वाली,

    बिल्कुल टॉक्सिक,

    पर ऐश्वर्या के भीतर कहीं गहरी जगह पर

    ये स्पर्श वही पुरानी हलचल भी जगाता था

    जो उसे खुद से भी छुपानी पड़ती थी।

    दूध उबलकर ऊपर आ रहा था,

    लेकिन दोनों में से किसी को उसकी आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी।

    ऐश्वर्या की साँसें तेज़,

    कंधा पल-पल पल्लू से फिसल रहा था…

    रनवीर की उंगलियाँ उसकी नर्म कमर पर धड़क रहीं थीं…

    उसका बदन डर, ख्वाहिश, और उलझन में ठहरा हुआ था।

    और तभी—

    रनवीर ने उसे और करीब खींच लिया—

    किचन हल्की पीली रोशनी में डूबा था।

    खिड़की के पर्दे हल्के-से हिल रहे थे, जैसे हवा भी इस खामोशी में कुछ कहना चाहती हो।

    ऐश्वर्या रनवीर की बाँहों में थी—

    नाज़ुक, हल्की काँपती हुई, फिर भी उसके करीब आने की हिम्मत दिखाती हुई।

    रनवीर उसके बालों से खेलते हुए अचानक ठिठका।

    उसकी उँगलियों ने साड़ी का पल्लू पकड़कर धीरे-से साइड में गिरा दिया।

    ऐश्वर्या की सांस जैसे गले में ही अटक गई।

    “रनवीर… रुको,” वो फुसफुसाई।

    आवाज़ में मासूम दहशत थी, पर…

    उसमें एक अजीब-सा भरोसा भी छुपा था—वो भरोसा जो उसे खुद भी समझ नहीं आता था।

    रनवीर की नज़रें उसके चेहरे पर नहीं, उसके हौले से ढकते कंधों पर थीं।

    वो हल्की, धीमी मुस्कान—

    जो प्यार नहीं, पज़ेशन दिखाती थी।

    “तुम्हें लगता है तुम मुझे रोक पाओगी?” उसकी आवाज़ धीमी, ठंडी और पूरी तरह हावी थी।

    वो धीरे-से ब्लाउज़ के हुक छू गया।

    ऐश्वर्या ने झट से उसका हाथ रोक लिया।

    उंगलियों में हल्का-सा कंपन… डर, और खुद को सँभालने की कोशिश।

    “प्लीज़… ऐसे नहीं,” उसने आँखें झुकाते हुए कहा।

    रनवीर उसकी उंगलियाँ पकड़कर अपने हाथ से हटाता हुआ बोला—

    “मेरी बात काटना तुम्हारे बस की बात नहीं है, ऐश।”

    उसके लहजे में तानाशाही थी, पर वही टोन ऐश्वर्या को पत्थर की तरह जकड़ देता था—

    जैसे वो चाहकर भी उससे दूर नहीं जा सकती।

    रनवीर की उंगलियाँ फिर से हुक पर गईं।

    ऐश्वर्या की बारीक सांसें तेज़ हो गईं।

    उसकी पलकों के नीचे मासूम डर झिलमिला रहा था,

    जबकि रनवीर की आँखों में एक ही चीज़ थी—

    कंट्रोल।

    कमरा सन्नाटे में डूबा था,

    और ऐश्वर्या की धड़कनें ही बता रही थीं

    कि वो चाहे जितना डर जाए,

    रनवीर को "ना" बोलना अभी भी उसके बस में नहीं था।

    ब्लाउज का हुक खुलते ही कमरे की हवा जैसे एकदम भारी हो गई।

    ऐश्वर्या ने पल भर के लिए अपनी साड़ी को सीने के पास खींचकर पकड़ा,

    मानो वो खुद को बचा रही हो—

    पर उसकी उँगलियाँ काँप रही थीं, और ये रनवीर ने साफ देख लिया।

    “छोड़ो,” रनवीर ने उसकी कलाई को हल्के-से दबाकर कहा।

    लहजा धीमा था, मगर उसमें वो अजीब-सी टॉक्सिक नरमी थी

    जो इंसान को मजबूर कर देती है खुद पर भरोसा खोने को।

    ऐश्वर्या ने सिर हिलाया, आँखें झुकी हुई।

    “रनवीर… मैं—”

    वो बोल भी नहीं पाई।

    रनवीर ने उसकी ठुड्डी उठाकर उसका चेहरा ऊपर किया।

    “डर क्यों रही हो?”

    मानो उसे जवाब पहले से पता हो, बस उसकी घबराहट देखना चाहता हो।

    ऐश्वर्या की आँखों में मासूम आँच थी—

    ना विद्रोह, ना गुस्सा…

    सिर्फ उलझन और वो कमजोरी

    जिसका फायदा रनवीर जैसे आदमी आसानी से उठा लेते हैं।

    जब उसने साड़ी को पकड़ने वाली उसकी उँगलियाँ हटाईं,

    ऐश्वर्या का पूरा शरीर हल्का-सा पीछे सिमट गया—

    पर वो भागी नहीं।

    उसकी साँसें टूटी हुई थीं, और आँखें भीगी हुई।

    रनवीर उसके करीब झुककर whisper में बोला,

    “तुम्हारी ‘ना’ कभी नहीं सुनी जाएगी, ऐश।

    तुम्हारा डर… और तुम्हारी मासूमियत—

    दोनों मेरे पास अच्छी लगती हैं।”

    ऐश्वर्या के गाल गर्म हो गए,

    पर डर उसकी पलकों में अब भी जगा हुआ था।

    ब्लाउज खुलने के बाद की उसकी नाज़ुकता

    जैसे पूरे कमरे में फैल गई थी।

    रनवीर ने उसके कंधों को ढकने की कोशिश तक नहीं की—

    बल्कि उस vulnerability को उसी तरह महसूस करने दिया

    जैसे वो चाहता था।

    और ऐश्वर्या…

    वो बस उसके सामने खड़ी रही,

    डरी हुई, पर विरोध करने की हिम्मत अभी भी उसके अंदर जन्म नहीं ले पा रही थी।

    दीवार ठंडी थी, पर ऐश्वर्या का दिल जल रहा था।

    रनवीर ने उसे हल्के-से नहीं—पूरी ताक़त से दीवार से टिकाया,

    जैसे उसे याद दिला रहा हो कि उसकी पकड़ से बाहर जाना मुमकिन ही नहीं।

    ऐश्वर्या ने काँपते हुए उसकी शर्ट पकड़ी।

    “रनवीर… छोड़ो मुझे,”

    उसकी आवाज़ धीमी थी, मगर उसमें उतनी ही मासूम दहशत थी जितनी रात की खामोशी में किसी टूटती साँस में होती है।

    रनवीर उसके बिल्कुल करीब झुक आया।

    इतना कि उसकी साँसें ऐश्वर्या की गर्दन को छूकर नीचे उतरती चली गईं।

    उसकी पकड़ ऐश्वर्या के कंधों पर और कस गई—

    जैसे वो उसकी नर्मी को अपनी ताक़त के नीचे महसूस करना चाहता हो।

    “तुम्हें लगता है मैं रुक जाऊँगा… सिर्फ इसलिए कि तुम चाहती हो?”

    उसकी आवाज़ गहरी, धीमी और पूरी तरह हावी थी।

    ऐश्वर्या की पलकों में डर का रंग था,

    लेकिन उसके चेहरे पर वो अनजाना विश्वास भी—

    जो उसे खुद समझ नहीं आता।

    रनवीर ने उसका चेहरा अपनी उँगलियों से ऊपर उठाया,

    इतना करीब कि उसकी आँखों का काँपना

    रनवीर के चेहरे पर साफ पढ़ा जा सके।

    “तुम्हारा ये डर…”

    वह फुसफुसाया,

    “मुझे तुम्हारी सबसे खूबसूरत बात लगता है।”

    “तभी रनवीर ने उसे अचानक करीब खींच लिया। ऐश्वर्या की सांसें थम-सी गईं। उसकी उंगलियों की पकड़ गहरी होती गई, और ऐश्वर्या हल्की सिसकी दबा गई। रनवीर उसके हर रिएक्शन को ध्यान से देख रहा था—जैसे उसे उसी कमजोरी की तलाश हो।”

    “तभी रनवीर ने एक हाथ ऐश्वर्या के उभार पर, ब्रा के ऊपर ही, रख दिया। ऐश्वर्या की सांसें एक पल को थम-सी गईं। रनवीर उसकी हर छोटी-सी प्रतिक्रिया देख रहा था। उसने उभार को पकड़ा और अपनी पकड़ थोड़ी कस दी। ऐश्वर्या की सांसें भारी होने लगीं, और वह हल्की-सी सिसकी दबा न सकी। तभी रनवीर झुककर, ब्रा के ऊपर से ही, अपने होंठ उसके उभार के पास ले गया और वहाँ हल्का-सा काटा।”

  • 2. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 2 (आह्ह्हृ ... म्म्मा ऊं मां आह्ह्हृ... )

    Words: 1114

    Estimated Reading Time: 7 min

    जेल की दीवारों के भीतर आज एक अजीब-सी घुटन थी।

    लाल अलार्म की तेज़ गूँज, भागते-कूदते गार्ड, उच्चाधिकारियों की चिल्लाहट—

    सब मिलकर एक ही बात चिल्ला रहे थे:

    “दोनों फरार हो गए! दोनो फरार हो गए!”

    और ये कोई साधारण कैदी नहीं थे।

    यह दोनों वही थे जिन्होंने—

    बैंक से 300 करोड़ लूटे थे

    और जाते-जाते वहाँ के एक स्टाफ को

    बेरहमी से मार डाला था।

    इंस्पेक्टर रोहित चौहान ने जैसे ही खबर सुनी,

    वह एक झटके से अपनी कुर्सी से उठा और बाहर की ओर भागा।

    “जीप निकाले! जल्दी!!”

    हवलदार विनोद ने तुरंत इंजन स्टार्ट किया।

    धूल का गुबार उठता गया और पुलिस की गाड़ियों का काफ़िला

    जेल के गेट से गरजता हुआ हाईवे पर निकल पड़ा।

    रोहित ने तेज़ आवाज़ में कहा,

    “विनोद, ये दोनों आम चोर-उचक्के नहीं हैं।

    300 करोड़ की लूट… और एक मर्डर!

    ये लोग अपराध जरूरत के लिए नहीं करते…

    ये उनका जुनून है।”

    हवलदार ने घबराकर पूछा,

    “सर… सच में इतने खतरनाक हैं क्या?”

    रोहित ने सीट पकड़ते हुए कहा—

    “पहला — टोनी ‘वाइल्डफायर’।”

    “उसे लोग वाइल्डफायर इसलिए कहते हैं…”

    रोहित की आँखें सिकुड़ गईं,

    “…क्योंकि उसकी एंट्री हमेशा आग की तरह होती है—

    तेज़, अनियंत्रित और सबकुछ जलाकर रख देने वाली।”

    हवलदार का गला सूख गया।

    रोहित ने जारी रखा,

    “टोनी की सबसे खतरनाक बात ये है कि वो

    किसी को भी अपनी बातों से फँसा सकता है।

    लोग अपनी मर्जी से—हाँ, अपनी मर्जी से—

    उसे कैश, ज्वेलरी, डिटेल्स… सब दे देते हैं।

    और जब होश आता है,

    वो सब लुट चुके होते हैं।”

    हवलदार ने काँपते हुए कहा,

    “और दूसरा?”

    रोहित की आवाज़ गहरी, भारी और लगभग फुसफुसाहट बन गई—

    “—दूसरा… सेंट एंथोनी।”

    जीप हल्का-सा डगमगाई।

    विनोद के हाथ स्टेयरिंग पर कस गए।

    “एंथोनी को लोग कभी नाम सूनकर कम आँकते हैं…”

    रोहित बोला,

    “पर असल में वो… एक साइको है।

    बैंक के मैनेजर को जिस तरह उसने मारा था—

    उसकी फाइल पढ़कर भी मेरी नींद उड़ गई थी।”

    विनोद ने धीरे से कहा,

    “सर… मैंने सुना है वो… किसी भी तालाचाबी का खेल एक मिनट में कर देता है?”

    रोहित ने सिर हिलाया—

    “बिना देखे ताले की नसों को पहचान लेता है।

    जेल में भी… लॉक सिस्टम उसी ने हैक किया।

    ये फरारी प्लान उसी का दिमाग था।”

    हवा में तनाव बढ़ गया था।

    जीप आगे बढ़ती जा रही थी,

    लेकिन तभी—

    “सर!!”

    हवलदार विनोद की घबराई हुई चीख के साथ

    जीप जोर से ब्रेक खाती है।

    टायर सड़क पर जलकर चीख उठते हैं।

    रोहित आगे गिरते-गिरते खुद को सँभालता है।

    “क्या हुआ?!”

    विनोद काँपती आवाज़ में बोला—

    “सर… ये रास्ता किसी ने पहले ही काट दिया है।

    पेड़ गिरे हैं… तार काटे हुए हैं…

    ये सब प्लान्ड है।”

    रोहित की आँखें लाल हो गईं।

    “मतलब…

    एंथोनी सेंट और सेंट टोनी वाइल्ड फायर…

    यहीं से गुजरे हैं।”

    दोनों तरफ घना जंगल…

    टूटी हुई सड़क…

    और हवा में एक अजीब-सी खामोशी।

    रोहित ने गहरी साँस लेते हुए कहा—

    “विनोद… खेल अभी शुरू हुआ है।”

    वही राजपूत हाऊज में,

    रनवीर ऐश्वर्या को बाहों में उठा कर बेडरूम में लेकर आया और बेड पर फेंक दिया |

    रनवीर अब ऐश्वर्या के ऊपर झुका हुआ था। उसकी साँसें और भी गर्म हो चुकी थीं।

    उसने अपनी हथेली से ऐश्वर्या के सीने को पकड़ा, जैसे वो उन्हें अपनी पकड़ में कैद कर लेना चाहता हो।

    ऐश्वर्या (हल्की कराह के साथ)

    "ज़रा नर्मी से… या फिर बिल्कुल भी नहीं।"

    उसके शब्द सुनकर रनवीर के होंठ सीधे उसकी छाती पर उतर आए।

    पहले हल्की-हल्की किस, फिर जीभ से गोलाई बनाते हुए — और फिर तेज़ी से उसने उन्हें अपने होंठों के बीच ले लिया।

    ऐश्वर्या का बदन अचानक तन गया। उसके हाथ अपने आप रनवीर के बालों में जा धँसे।

    रनवीर (उसकी त्वचा पर फुसफुसाते हुए)

    "तुम्हारा स्वाद… मुझे और गहरा खींच रहा है।"

    वो अब रुकने वाला नहीं था। कभी दाहिने, कभी बाएँ — उसके होंठ और दाँत लगातार ऐश्वर्या के उभार पर खेल रहे थे।

    कभी हल्की बाइट, कभी तेज़ खींचाव, तो कभी लंबा चूसना — हर बार ऐश्वर्या की आवाज़ और ऊँची हो जाती।

    ऐश्वर्या अब खुद उसे और पास दबा रही थी। उसकी उँगलियाँ रनवीर की पीठ में खरोंच छोड़ रही थीं।

    ऐश्वर्या (आँखें बंद करके)

    "और तेज़… छोड़ना मत…"

    उसके शब्दों के साथ ही रनवीर ने एक हाथ से उसकी कमर थामी और दूसरे से उसके सीने को ऊपर उठाकर और गहराई से अपने मुँह में भर लिया।

    अब कमरे में सिर्फ उनकी साँसों और ऐश्वर्या की सिसकियों की आवाज़ थी।

    बिस्तर की सिल्क शीट्स उनकी हर हरकत पर और सिकुड़ रही थीं।

    रनवीर हर बार ऊपर उठता और फिर दुबारा उसके उभार पर टूट पड़ता — जैसे प्यासा हो, और यही उसका नशा हो।

    रनवीर लगातार उसके उभार पर झुका हुआ था। हर बार उसके होंठों और दाँतों की हरकत पर ऐश्वर्या का बदन काँप जाता।

    उसकी आवाज़ें अब दब नहीं रही थीं। वो पूरी तरह खुल चुकी थी।

    ऐश्वर्या (हांफते हुए)

    "अगर तुमने अब भी मुझे अधूरा छोड़ा… तो मैं तुम्हें छोड़ूँगी नहीं।"

    रनवीर हल्का-सा मुस्कुराया और उसके होंठों से ऊपर उठते हुए सीधे उसकी गर्दन पर आ गया।

    उसकी जीभ गर्दन से कंधे तक सरकती चली गई। ऐश्वर्या बेकाबू होकर उसके बाल खींचने लगी।

    उसने अचानक उसकी दोनों कलाई पकड़कर सिर के ऊपर दबा दीं। अब वो पूरी तरह उसके नीचे थी।

    रनवीर की आँखों में वही प्यास थी — और उसके अगले ही मूवमेंट ने उस प्यास को हकीकत में बदल दिया।

    वो धीरे-धीरे उसकी जाँघों के बीच सरक आया। ऐश्वर्या का दिल तेजी से धड़कने लगा।

    उसकी साँसें और आवाज़ें मिल चुकी थीं।

    अगले ही पल उसने एक गहरी साँस के साथ **फिर से उसमें प्रवेश किया**।

    ऐश्वर्या का पूरा बदन बिस्तर पर तन गया, उसकी चीख दबकर उसके काँधे में समा गई।

    अब हर धक्का और भी गहरा, और भी तेज़ था।

    रनवीर लगातार उसकी आँखों में देख रहा था, और ऐश्वर्या उसकी पीठ पर नाखून गड़ाए बिना रह नहीं पा रही थी।

    ऐश्वर्या (कराहते हुए)

    "और… और तेज़… मुझे रोकना मत…"

    उसके शब्दों के साथ ही रनवीर ने अपनी रफ़्तार और बढ़ा दी।

    बिस्तर की मढ़ी हुई ऐश्वर्या जोर-जोर से आवाज़ करने लगीं।

    ऐश्वर्या के पैर उसकी कमर के चारों ओर कस चुके थे।

    वो अब हर बार और गहराई में डूब रहे थे —

    जैसे दोनों एक-दूसरे के अंदर खुद को पूरा खो देना चाहते हों।

    ऐश्वर्या के होंठ कभी चीख में खुलते, कभी उसकी छाती पर दब जाते।

    उसके गाल लाल हो चुके थे, पसीना उसके पूरे बदन पर चमक रहा था।

    रनवीर (तेज साँसों में)

    "तुम्हें इस पल की कीमत कभी भूल नहीं पाएगी…"

    ऐश्वर्या (आँखें बंद कर)

    "ये पल… मेरे लिए बस मौत जैसा मीठा नशा है।"

    अब उनके बीच कोई रुकावट नहीं थी।

    हर हरकत और भी उग्र, और भी गहरी होती जा रही थी।

    कमरा उनकी कराहों और साँसों से भर चुका था।

  • 3. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 3 (कमरे में अभी भी हल्की-सी गर्माहट थी )

    Words: 1469

    Estimated Reading Time: 9 min

    कमरे में अभी भी हल्की-सी गर्माहट थी, लेकिन हवा में एक डरावनी खामोशी तैर रही थी। ऐश्वर्या बिस्तर के किनारे बैठी थी—बाल बिखरे हुए, साँसें हल्की-सी डरी हुई।

    रनवीर अलमारी की तरफ गया और हमेशा की तरह… वही छोटा सा पैकेट निकाला। रोज़ की तरह।

    वह मुड़ा और उसके हाथ में पानी का ग्लास और सफेद गोली रखते हुए बोला—

    “लो। अभी।”

    ऐश्वर्या की उँगलियाँ झटके से सिमट गईं। उसकी आवाज़ धीमी, डर दबाकर निकली—

    “रनवीर… आज नहीं।”

    रनवीर एक पल को रुका। उसकी आँखों में वही चमक—जो ऐश्वर्या पिछले तीन साल से पहचानती थी। वो चमक जो कहती थी कि गुस्सा अभी उभरा नहीं है… पर किसी भी पल भड़क सकता है।

    “क्यों नहीं?” उसकी आवाज़ बिल्कुल ठंडी थी।

    ऐश्वर्या ने हिम्मत जुटाई, पर बोलते वक्त उसकी आवाज़ काँप गई।

    “मैं… मैं बस नहीं लेना चाहती। हर दिन… तीन साल से… तुम रोज़ ये गोली दे रहे हो। मैं… मैं अब और नहीं लेना चाहती।”

    रनवीर धीरे-धीरे आगे बढ़ा।

    उसकी चाल में कोई जल्दी नहीं थी—बस एक ऐसा नियंत्रण, जो ऐश्वर्या की रीढ़ में सिहरन पैदा कर दे।

    वह उसके सामने खड़ा होकर नीचे झुका।

    “तीन साल से दी है, तो क्या हुआ? आज क्यों नहीं?”

    ऐश्वर्या ने निगाहें झुका लीं।

    “क्योंकि… अब मैं बच्चा चाहती हूँ। हमारी शादी को भी तीन साल हो गए… और मैं—”

    वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई।

    रनवीर ने अचानक उसका ठुड्डी पकड़कर ऊपर उठाया। उसकी पकड़ इस बार थोड़ी सख़्त थी—सावधानी से भरी धमकी जैसी।

    “ऐश… तुम जानती हो न, मुझे ऊँची आवाज़ में तर्क पसंद नहीं?”

    ऐश्वर्या का दिल धड़क कर जैसे गले में अटक गया।

    उसने तेजी से सिर हिलाया—“नहीं… मैं बस—मैं बस समझा रही थी।”

    रनवीर की आँखों में गुस्सा घिरने लगा।

    “तुम्हें बच्चे पसंद हैं, मुझे नहीं। ये बात कितनी बार समझानी पड़ेगी?”

    ऐश्वर्या के होंठ काँप गए।

    “पर… मेरी भी तो कोई इच्छा होती है, रनवीर… मैं डरते-डरते भी कह रही हूँ, पर—”

    वह रुक गई।

    क्योंकि रनवीर का चेहरा अब और सख़्त हो गया था—ऐसा चेहरा जिसे देखकर वह हमेशा चुप हो जाती थी।

    वह फुसफुसाई, लगभग साँस रोके हुए—

    "पीलिज… गुस्सा मत हो।”

    रनवीर ने धीरे से उसकी ठुड्डी छोड़ी, पर फिर उसकी कलाई पकड़ ली। डरा देने वाला शांत अंदाज़।

    “तुम्हें पता है, जब तुम मुझे मना करती हो, तो कैसा लगता है? लगता है जैसे तुम मुझे कंट्रोल करना चाहती हो।”

    “नहीं… नहीं रनवीर,” ऐश्वर्या ने तुरंत सिर हिलाया। उसकी आँखों में डर साफ चमक रहा था।

    “मैं बस… मैं बस अब अपने फैसले खुद करना चाहती हूँ। थोड़ा सा ही…”

    रनवीर ने गोली उसकी हथेली में फिर से रखते हुए कहा—

    “फैसले मैं करता हूँ। हमने ये शादी किस तरह चलानी है—ये भी मैं तय करूँगा। समझीं?”

    ऐश्वर्या ने पानी की तरफ देखा, फिर गोली की तरफ।

    उसकी उँगलियाँ हल्के से काँप रही थीं।

    उसे पता था—नहीं मानी तो क्या हो सकता है।

    और फिर भी उसके होंठों से धीमी, टूटती आवाज़ निकली—

    “लेकिन रनवीर… मैं… मैं बच्चा चाहती हूँ। कृपया…”

    रनवीर ने गहरी सांस ली। लगभग दहाड़ से पहले की खामोशी जैसी।

    “ऐश्वर्या…”

    उसकी आवाज़ अब खतरनाक रूप से धीमी थी—

    “अगर तुमने मुझे आज भी चैलेंज किया… तो तुम जानती हो क्या होगा। और ये बात याद रखना—मैं एक बार भी हाथ उठाने के लिए नहीं सोचता।”

    ऐश्वर्या की आँखें भर आईं।

    इस बार उसके होंठ काँपे भी नहीं।

    उसने बस धीरे से सिर झुका लिया—डर और टूटे विश्वास के बीच कहीं फँसी हुई।

    कमरा फिर से खामोश हो गया।

    और उस खामोशी में… ऐश्वर्या का डर सबसे ज़्यादा चीख रहा था।

    सुबह की हल्की धूप डाइनिंग रूम की खिड़कियों से छनकर टेबल पर गिर रही थी। ऐश्वर्या चुपचाप नाश्ता परोस रही थी—दूध गर्म, पराठे सजे हुए, और सामने सलीके से रखा हुआ कटोरी में फ्रूट सलाद।

    उसके हाथों में हल्की-सी कंपकंपी थी, लेकिन चेहरे पर वही शांत, मासूम मुस्कान… जिसमें डर छुपा था।

    रनवीर कुर्सी पर बैठा अखबार पलट रहा था, पर उसकी आँखें शब्दों पर नहीं—कंट्रोल पर थीं।

    ऐश्वर्या ने प्लेट रखते हुए हिम्मत करके कहा—

    “रनवीर… क्या आज ही ऑफिस जाना जरूरी है? आज हमारी… इंगेजमेंट ऐनिवर्सरी है।”

    रनवीर ने अखबार नीचे रखा और उसे ठंडी, लगभग काट देने वाली नज़र से देखा।

    “और?”

    स्वर इतना सूखा कि ऐश्वर्या का दिल धक से बैठ गया।

    “मैंने सोचा था…” वह धीरे से बोली, “आज हम थोड़ा टाइम साथ—”

    रनवीर ने उसे बीच में ही काट दिया।

    “ऐश, मेरी जिंदगी में सबसे आखिरी चीज़ जो जरूरी है… वो ऐसी बेकार की रस्में हैं। समझी?”

    ऐश्वर्या ने जल्दी से सिर झुका लिया।

    “जी…”

    रनवीर ने टेबल पर हाथ घुमाते हुए कुछ ढूँढा, और अचानक चिढ़कर बोला—

    “मेरा जूस कहाँ है?”

    ऐश्वर्या घबरा गई।

    “अ-अभी लाती हूँ… बस एक मिनट—”

    वह जल्दी से किचन की ओर भागी। उसे पता था—अगर देर हुई तो क्या होगा।

    जैसे ही वह अंदर गई, डाइनिंग रूम में टीवी अपने आप अनम्यूट हो गया।

    न्यूज़ एंकर की आवाज़ गूँजी—

    “ब्रेकिंग न्यूज़—दो खूंखार कैदी जेल से फरार… दोनों पर बैंक लूट और हत्या जैसे संगीन आरोप…”

    रनवीर ने आधी नज़र स्क्रीन पर डाली, पर वो फौरन वापस अखबार में व्यस्त हो गया।

    न्यूज़ कुछ ही सेकंड में अगले हेडलाइन पर चली गई।

    उसी समय ऐश्वर्या वापस आई, हाथ में स्टील का ट्रे और उस पर ताज़ा भरा हुआ ऑरेंज जूस।

    “ये… आपका जूस।”

    रनवीर ने ग्लास उसके हाथ से झटके से लिया, इतना तेज़ कि ऐश्वर्या का हाथ हल्का-सा डगमगा गया।

    वह कुछ बोल पाती उससे पहले ही उसने रूखे स्वर में कहा—

    “और सुनो—मेरे पीछे फालतू लोगों से मिलने मत जाया करो। वो पड़ोसी, वो बेकार दोस्त… सब दिमाग खराब कर देते हैं तुम्हारा।”

    ऐश्वर्या चुप रही। उसकी उँगलियाँ अपनी साड़ी के पल्लू को मसलने लगीं।

    रनवीर ने एक घूँट लेकर ग्लास टेबल पर पटका।

    “ध्यान रखना।

    समझीं?”

    ऐश्वर्या ने धीमे स्वर में कहा—

    “जी… समझ गई।”

    रनवीर थोड़ा आगे झुककर बोला—

    “और एक बात और…”

    उसकी आवाज़ अब और खतरनाक हो गई।

    “दो क्रिमिनल जेल से भाग चुके हैं।

    घर में किसी को भी मत आने देना।

    किसी को भी।

    यहाँ तक कि कोई जान-पहचान वाला भी दरवाजे पर आए—तो भी नहीं।”

    ऐश्वर्या ने आँखें नीचे करते हुए सिर हिलाया।

    “मैं… किसी को अंदर नहीं आने दूँगी।”

    रनवीर उठ खड़ा हुआ। कुर्सी की आवाज़ कमरे में गूँज गई।

    वह कोट पहनते हुए बोला—

    “और हाँ—मेरे बिना कहीं मत जाना। तुमको खुद संभालना भी नहीं आता।”

    ऐश्वर्या की आँखों में हल्की-सी नमी आ गई, पर उसने तुरंत नज़र फेर ली ताकि रनवीर देख न ले।

    “जी…”

    रनवीर ने कोई जवाब नहीं दिया। बस दरवाजा खोला और तेज़ कदमों से बाहर निकल गया।

    दरवाजा बंद होने की आवाज़ पूरे घर में गूँज उठी।

    और उसके बाद…

    बस ऐश्वर्या की धीमी, काँपती साँसें ही कमरे में बचीं।

    रनवीर घर से निकलने के लिए जूते पहन रहा था। उसकी हाथ की घड़ी की पट्टी कसते समय भी उसके चेहरे पर वही चिड़चिड़ा, घमंडी भाव था।

    ऐश्वर्या धीरे-धीरे उसके पास आई।

    उसके कदमों में झिझक थी… जैसे हर शब्द बोलने से पहले वह खुद को मन ही मन संभाल रही हो।

    “रनवीर…”

    उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी।

    “अगर… अगर मैं अपनी कज़िन अंजली को बुला लूँ तो? बस तीन दिन के लिए। मैं अकेली रहूँगी तो… डर लगेगा। वो दो क्रिमिनल भी फरार हैं…”

    रनवीर ने जूते का लेस बांधते-बांधते हाथ रोक दिया।

    धीरे से सीधा खड़ा हुआ।

    और उसे देखा—एक ऐसे अंदाज़ में, जैसे वो उसकी बात नहीं बल्कि उसकी ‘औकात’ तौल रहा हो।

    “अंजली?”

    उसने तिरस्कार से भौंह उठाई।

    “वही लड़की जो हर बात में दखल देती है? जिसकी हर बात बेकार होती है? वही?”

    ऐश्वर्या ने होंठ काटते हुए धीरे से सिर हिलाया।

    “वो… वो मेरी बहन जैसी है। बस दो–तीन दिन साथ रहेगी तो मुझे डर नहीं लगेगा। मैं… अकेले रह नहीं पाती।”

    रनवीर उसके बहुत करीब आ गया।

    इतना करीब कि ऐश्वर्या की साँस अटक गई।

    वह बोला—

    “डर तुम्हें घर में नहीं लगता, ऐश… डर तुम्हें मुझसे लगता है। और वो वजह है।”

    ऐश्वर्या ने नज़र झुका ली—

    उसकी उँगलियाँ घबराहट में खुद-ब-खुद आपस में उलझने लगीं।

    कुछ पल की खामोशी के बाद रनवीर ने अख़बार उठाया और बेमन से कहा—

    “ठीक है।”

    ऐश्वर्या ने तुरंत सिर उठाया—

    “स-सच में?”

    रनवीर ने रूखे, कड़े अंदाज़ में कहा—

    “हाँ, ठीक है। बुला लो अपनी कज़िन को।

    लेकिन…”

    वह उसके पास झुकते हुए बोला—

    “अगर उसने घर के किसी हिस्से में अनावश्यक दखल दिया… या तुम्हें मेरे खिलाफ भड़काने की कोशिश की… तो उसे उसी वक्त वापस भेज दूँगा। समझी?”

    ऐश्वर्या के चेहरे पर राहत की एक हल्की सी लहर आई, पर डर अभी भी साफ था।

    “जी… मैं उसे समझा दूँगी।”

    रनवीर ने ठंडी नज़र से उसे देखा, फिर दरवाज़ा खोलते हुए बोला—

    “और ध्यान रखना, घर में मेरी इज़्ज़त बनी रहनी चाहिए। अंजली हो या कोई भी… किसी के सामने मुझे शर्मिंदा मत करवा देना।”

    वह बाहर निकल गया।

    दरवाज़ा एक भारी आवाज़ के साथ बंद हुआ।

    ऐश्वर्या ने धीरे से अपनी साँस छोड़ी, जैसे दो मिनट बाद हवा मिली हो।

  • 4. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 4 (बॉडी लैंग्वेज में कितना पावर है )

    Words: 1255

    Estimated Reading Time: 8 min

    पड़ोसी का घर – उसी समय

    दूसरी मंज़िल की बालकनी में खड़ी साक्षी अपनी बड़ी-सी दूरबीन को पकड़कर सामने वाले घर की ओर झुकी हुई थी। बाल हवा में उड़ रहे थे, और आँखों में अजीब-सी चमक थी — जैसे किसी को देखना उसका रोज़ का शौक हो।

    सामने से रनवीर गाड़ी निकाल रहा था, और ऐश्वर्या दरवाज़े की चौखट पर खड़ी, हाथों को आपस में मसल रही थी।

    साक्षी धीरे से मुस्कराई—अपने आप से बुदबुदाते हुए,

    “हम्म… बंदा अजीब है। कम बोलता है, पर… बड़ा हैंडसम और रोमांटिक टाइप दिखता है। बॉडी लैंग्वेज में कितना पावर है… वाह।”

    वह दूरबीन को थोड़ा और झुकाती है।

    “और ऐश्वर्या… बेचारा चेहरा जैसे हमेशा डर में भीगा हो। पता नहीं इन दोनों में क्या चलता है। लेकिन… कितना इंटेंस कपल है, हाँ?”

    जोश में वह इतना झुकी कि दूरबीन रेलिंग से टकराई।

    तभी पीछे से एक भारी-सी खाँसी की आवाज़ आई।

    “खूँ… खूँ…”

    साक्षी चौंककर सीधी हुई।

    पीछे समीर खड़ा था — लंबा, दुबला, चश्मा लगाए हुए, और चेहरे पर साफ झुंझलाहट।

    उसने आगे बढ़कर दूरबीन उसके हाथ से खींच ली।

    समीर (चिढ़कर):

    “कितनी बार कहा है, उस घर की जासूसी मत किया करो! क्या मिलता है तुम्हें? उस घर में इंसान नहीं, शैतान की औलाद रहती है!”

    साक्षी ने आँखें तरेरी।

    “शैतान? बस करो ना, समीर! आदमी हैंडसम है, और उसकी आवाज़ सुनकर ही दिल धड़कने लगता है। थोड़ा रोमांस तो है उसकी पर्सनैलिटी में।”

    समीर का चेहरा गंभीर हो गया।

    “रोमांस? बस नाम मत लो। वह रनवीर राजपूत एक नंबर का घटिया इंसान है। जब देखो बेचारी ऐश्वर्या पर चिल्लाता रहता है।

    साक्षी ने हाथ कमर पर रखकर ताना मारा—

    “हां हां, तो लग गए प्रवचन करने। अपनी बीवी में इंटरेस्ट ना लो, और दूसरों की जिंदगी की फिक्र करो!”

    समीर की आँखें फैल गईं—

    “अरे नहीं मेरी जान, मैं तो बस…”

    लेकिन बात पूरी करने से पहले ही

    साक्षी ने झटके से उसका कॉलर पकड़ लिया।

    वह उसे खींचते हुए अंदर ले गई और सोफे पर जोर से धक्का देकर बैठा दिया।

    समीर स्तब्ध होकर उसे देखता रह गया — उसकी सांसें थोड़ी तेज हो गईं।

    साक्षी उसके बिलकुल करीब खड़ी थी, दोनों के बीच बस कुछ इंच का फासला।

    उसकी आवाज़ धीमी और भारी थी—

    “जब मैं तुमसे बात करती हूँ… तो तुम मुझे आधा सुनते भी नहीं। और जब दूसरी औरत की बात आती है, तो अचानक ज्ञान आ जाता है?”

    समीर ने पलटकर उसकी कलाई पकड़ ली — थोड़ा मजबूत दबाव, बिना चोट दिए, लेकिन अधिकार के साथ।

    उसकी आँखों में हल्का गुस्सा और भारी जुनून था।

    समीर (नीचे आवाज़ में):

    “मेरी नज़र किसी और पर नहीं जाती, साक्षी। लेकिन तुम्हें भी अपनी हदें पता होनी चाहिए।”

    साक्षी ने होंठों पर धीमी, खतरनाक मुस्कान ली।

    वह उसके चेहरे के बेहद करीब झुकी — इतनी कि उसकी सांस समीर के गाल को छू गई।

    साक्षी (फुसफुसाहट में):

    “हदें? मतलब तुम मुझे रोक सकते हो?”

    समीर ने उसकी कमर पकड़ी — अचानक, लेकिन खींचकर नहीं, सिर्फ रोकने जैसे।

    उसके हाथों में अनकहा गुस्सा, और आँखों में बेचैनी थी।

    समीर:

    “हाँ। जब तुम लाइन क्रॉस करो — तब मैं रोक सकता हूँ।”

    साक्षी का दिल तेज़ धड़कने लगा — उसके चेहरे पर चुनौती की चमक आ गई।

    वह और झुकी, उसकी नाक समीर की नाक से लगभग सट गई।

    साक्षी:

    “और अगर मैं चाहूँ… कि तुम रोको ही मत?”

    सोफ़े की चमड़ा सीट उनके बीच दबाव से हल्की चर्र–चर्र की आवाज़ निकाल रही थी।

    समीर ने उसकी कलाई को अपनी तरफ खींचा — इतना करीब कि उनकी सांसें एक-दूसरे से टकराईं।

    उसकी आवाज़ अब गहरी और भारी थी—

    समीर:

    “मत खेलो, साक्षी… मुझे पता है जब तुम ऐसे बोलती हो, तुम चाहती हो कि मैं कंट्रोल खो दूँ।”

    साक्षी के होंठों पर धीमी, खतरनाक मुस्कान फैल गई।

    उसने दोनों हाथ उसके कंधों पर रख दिए — उंगलियाँ उसकी शर्ट में धंसती हुई।

    साक्षी:

    “और अगर मुझे तुम्हारा कंट्रोल खोना ही सबसे ज़्यादा पसंद है, तो?”

    कमरा अचानक खामोश हो गया।

    सिर्फ दोनों की भारी साँसें और शरीरों की गर्मी टकरा रही थी।

    समीर ने उसकी आँखों में गहराई से देखा — जैसे उसके भीतर उतरकर जवाब ढूंढ रहा हो।

    फिर उसने धीरे–धीरे उसकी ठुड्डी पकड़ी — मजबूत पकड़, लेकिन स्नेह में लिपटी।

    समीर (धीमे, खतरनाक अंदाज़ में):

    “सावधान रहो, साक्षी… जब मैं कंट्रोल खो देता हूँ, तब मैं रुकना नहीं जानता।”

    साक्षी ने आँखें बंद करके उसके शब्दों को महसूस किया।

    उसकी आवाज़ लगभग एक फुसफुसाहट थी—

    “शायद… यही तो मैं चाहती हूँ।”

    उनके बीच की हवा गर्म हो चुकी थी।

    तनाव अब बिजली की तरह चटक रहा था।

    समीर ने एक झटके में उसे खींचकर करीब कर लिया।

    उसके हाथों की पकड़ मजबूत थी—जैसे वह पल भर भी उसे दूर नहीं जाने देना चाहता।

    साक्षी ने उसके सीने पर हाथ रखकर कहा—

    “अब बोलो मत… सिर्फ महसूस करो।”

    उनके शरीर एक-दूसरे से टकराए—धीमे, भारी, और बहुत करीब।

    कमरे में कुछ देर बाद सिर्फ तेज़ साँसों और दिल की धड़कन की आवाज़ गूँज रही थी।

    वहीं दूसरी तरफ

    ऐश्वर्या दरवाज़े के शीशे के पीछे खड़ी बाहर देख रही थी।

    उसकी आँखें गीली थीं।

    दिल में एक खामोश तूफ़ान।

    और हवा में एक अनकहा रहस्य…

    जिसे कोई न कोई बहुत जल्द खोलने वाला था।

    रनवीर के जाने के लगभग दस मिनट बाद

    घर में घना सन्नाटा उतर आया।

    ऐश्वर्या ने धीरे से दरवाज़ा लॉक किया और लिविंग रूम में आकर सोफे पर बैठ गई।

    उसकी उंगलियाँ अब भी हल्की-सी कांप रही थीं, पर चेहरे पर एक राहत की साँस थी—जैसे तीन दिनों की आज़ादी कम से कम दरवाज़े के इस तरफ खड़ी हो।

    उसने पानी का ग्लास उठाया, दो घूँट लिए और फिर मोबाइल हाथ में लेकर गहरी साँस भरी।

    स्क्रीन पर नाम चमका—“Anjali ❤️”

    उसने कॉल मिलाया।

    कुछ ही रिंग में अंजली की तेज़, उत्साहित आवाज़ सुनाई दी—

    “ऐश! सब ठीक? इतनी सुबह कॉल?”

    ऐश्वर्या ने हल्की-सी मुस्कान खींचने की कोशिश की।

    “अंजली… तुम आज आ सकती हो? प्लीज़? रनवीर तीन दिन के लिए देश से बाहर जा रहा है… और मैं घर पर अकेली हूँ। मुझे… अकेलेपन से डर लगता है।”

    फोन के उस तरफ कुछ पल की खामोशी रही।

    फिर अंजली की चिंता भरी आवाज़ आई—

    “ऐश, तुम जानती हो मैं कभी मना नहीं कर सकती। मैं शाम तक पहुँच जाऊँगी। बस तुम रोना मत, ठीक है?”

    ऐश्वर्या ने अपने आँसुओं को पलकों पर ही रोक लिया।

    “मैं नहीं रो रही… बस थोड़ा डर लगता है।”

    अंजली ने थोड़ा हल्के अंदाज़ में हँसकर कहा—

    “एक बात बताओ… तुम्हारे वो अकड़े हुए, खडूस हसबैंड ने इस बात के लिए हाँ कैसे कर दी? मुझे तो लगता था वो नाम सुनते ही आग उगल देगा!”

    ऐश्वर्या ने धीमे से आँखें बंद कीं, आवाज़ बहुत मुलायम थी—

    “नहीं पता… शायद आज मूड ठीक था या… किसी और वजह से मान गया।”

    अंजली की आवाज़ में साफ तंज था—

    “मूड ठीक? या फिर वो डरता है कि अगर तुम अकेले रही तो उसकी असली सूरत किसी को बता दोगी?”

    ऐश्वर्या का दिल एक पल को थम गया, पर उसने जल्दी से खुद को संभाला—

    “अंजली… ऐसी बात मत करो। बस जल्दी आ जाना। यहीं रुकना।”

    फोन के दूसरी तरफ से आवाज़ आई—

    “बस शाम तक पहुँचती हूँ। और सुन—अब मैं आ रही हूँ, तो तीन दिन में तुम्हारे घर का माहौल बदल दूँगी। उस रनवीर को ज़रा असली दुनिया दिखाऊँगी।”

    ऐश्वर्या के चेहरे पर हल्की, थकी मुस्कान उभरी।

    “अंजली… प्लीज़ कुछ मत करना। बस साथ रहना।”

    “ठीक है। मिलते हैं शाम को।”

    कॉल कट हो गया।

    घर में फिर से वही खामोश हवा तैर गई।

    ऐश्वर्या ने सिर पीछे टिकाया, आँखें बंद कीं—

    और पहली बार, तीन साल में, उसने खुद को थोड़ी साँस लेने दी।

  • 5. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 5 (उसके उभार किसी आम के पेड़ पर आम लटके )

    Words: 1182

    Estimated Reading Time: 8 min

    कमरा अब भी उसी गर्म हवा से भरा हुआ था।

    समीर की साँसें तेज़ थीं… साक्षी लगभग उसके ऊपर झुकी हुई उसके उभार किसी आम के पेड़ पर आम लटके हो जैसे लग रहे थे… और माहौल में एक अजीब-सी नमी और खामोशी घुली हुई थी। साक्षी के मोटे उभार देख दिल में उन्हें का जाने का चूसने का मन हो रहा था ,

    साक्षी ने उसकी ठुड्डी से अपनी पकड़ छुड़ाई, और अपनी उँगलियों को उसके सकत सीने पर हल्के से घुमाती हुई अचानक पीछे हट गई। साथ ही जहां समीर के निप्पल थे उस जगह गहरा टच किया,

    समीर चौंका—

    “क्या हुआ?”

    साक्षी की आँखों में वही शरारती चमक लौट आई थी।

    वह एक कदम पीछे गई, सुहागचूड़ी जैसे खनक उठी, और बोली—

    “जान… मैंने एक मूवी में देखा था कि कपल रोमांस से पहले डांस करते हैं। कुछ ऐसा डांस जो बोहोत खास होता है”

    समीर की भौंहें तन गईं—

    “डांस? इस टाइम?सुबह के इस वक्त”

    साक्षी ने दोनों हाथ हल्के से अपने उभार पर रखते हुए कहा—

    “हां! बिल्कुल इस टाइम!

    चलो, हम भी करते हैं।”

    समीर ने खुद को सोफे की बैक से टिकाया, जैसे समझ नहीं पा रहा हो कि वो मज़ाक कर रही है या सच में कह रही है।

    “साक्षी… तुम सीरियस हो?”

    साक्षी ने नज़र झुकाकर धीमे से जवाब दिया—

    “हाँ… बहुत।”

    वह मुड़कर स्पीकर की तरफ गई, उसकी चाल में कुछ खास था जब वो चलती तो उसके कुल्हे हिल रहे थे ये सब समीर उसके कपड़ों के ऊपर से अच्छे से महसूस कर पा रहा था लेकिन इसी के साथ उसके मन में ख्याल आया कि अक्सर जब साक्षी चलती है उसके कुल्हे हिलते हैं भारी शरीर कि वजह से लेकिन इस वक्त तो कुछ ज्यादा ही मटक रहे थे वो सोचा शायद वो ये सब जानबूझ कर रही है समीर को रिझाने के लिए म्यूज़िक ऑन किया—

    हल्की-सी बीट… फिर धीरे-धीरे बढ़ती हुई गर्म, sensuous धुन।

    लाइट्स की पीली रोशनी में उसकी कमर की नरम-सी परछाई दीवार पर थिरकने लगी।

    समीर वहीं बैठा रहा—

    थोड़ा असहज, थोड़ा लाचार, लेकिन आँखें उससे हट ही नहीं रही थीं।

    साक्षी उसके सामने खड़ी हुई— हल्की दरशन वाली, धीमी मुस्कान के साथ।

    “चलो ना… उठो।”

    उसने हाथ आगे बढ़ाया।

    समीर ने उसकी तरफ देखा—

    “साक्षी… मैं ये सब—”

    “बस चुप,”

    वह बीच में ही बोल पड़ी,

    “आज तुम सिर्फ मेरे हो। और मैं… तुम्हें नाचता हुआ देखना चाहती हूँ।”

    समीर ने कहा,

    " जान मेरा तो बोहोत कूछ नाच रहा है तुम्हें यू देख,"

    उसकी आवाज़ में इतना पिघलाव था कि समीर ने अनायास उसका हाथ पकड़ लिया।

    साक्षी ने उसे खींचकर अपने पास ला लिया—

    अपने पतले, दुबले-से पति को।

    वह हँस पड़ी—

    “इतने दुबले हो कि शर्ट की सिलाई भी तुम्हें ढूंढती होगी… पर आज… तुम मेरे हीरो हो।”

    समीर हकला गया—

    “ऐसा मत बोलो…”

    लेकिन साक्षी ने उसकी ऊँगलियों को अपनी कमर पर रख दिया।

    धड़क—धड़क—धड़क।

    म्यूज़िक तेज़ हुआ।

    माहौल और गर्म।

    साक्षी ने पहला मूव किया—

    धीमे, रेशमी, कमर की तरंग जैसी हिलावट से।

    समीर की साँसें अटक गईं—

    वह कभी इतनी करीब नहीं नाची थी।

    वह उसे खींचते हुए बोली—

    “Step by step… मेरी जान।”

    समीर ने कोशिश की—

    हल्के कदम… थोड़ा डगमगाए हुए।

    साक्षी ने उसकी ठुड्डी पकड़कर ऊपर उठाई।

    “मेरी तरफ देखो।

    डर मत।”

    समीर ने उसकी आँखों में झाँका—

    भूरे, चमकते हुए, शैतानी से भरे।

    साक्षी ने उसका हाथ अपनी कमर के थोड़ा नीचे सरका दिया—

    “यहाँ पकड़ो… हाँ, अब ठीक।”

    समीर का गला सूख गया—

    “साक्षी… लोग ऐसे—”

    वह फिर बीच में बोली—

    “मुझे नहीं पता लोग क्या करते हैं…

    मैं जानती हूँ हम क्या करने वाले हैं।”

    उसने समीर को अपनी ओर खींचा—

    उनके सीने लगभग छू गए।

    धीरे-धीरे वह उसके साथ थिरकने लगी—

    कमर मुलायम, हल्के गोलाकार मूवमेंट…

    पाँव फर्श पर रेशमी आवाज़ करते हुए।

    समीर पहले तो असहज था, पर साक्षी का रिद्म इतना पिघलाने वाला था कि वह खुद-ब-खुद उसके साथ बहने लगा।

    साक्षी ने उसके बालों में उँगलियाँ फेरीं—

    “देखा? मेरे पतले-सूखे पति भी डांस कर लेते हैं।”

    समीर ने धीरे से उसकी कमर कस ली—

    “मेरे में इतना दम है कि तुम्हें संभाल सकूँ…”

    उसके शब्दों में पहली बार हल्की मर्दाना रफ्तार आई।

    साक्षी की सांस रुक गई—

    “ओहो… आज टोन बदल रहा है।”

    वह घूमकर उसकी पीठ उससे सटा दी—

    उसका पूरा कर्वी ढाँचा समीर के पतले शरीर से मिल गया।

    उसने उसका हाथ अपनी कमर पर रखा—

    “अब… मेरे मूव्स फॉलो करो।”

    समीर का दिल तेज़ हो गया—

    साक्षी की पीठ उसके सीने पर थी, उसकी बालों की खुशबू उसे घेर रही थी।

    म्यूज़िक और गर्म।

    साक्षी ने कमर दाएँ-बाएँ हिलाई—

    धीमे, लचीले अंदाज़ में।

    समीर ने हिचकते हुए फॉलो किया,

    पर साक्षी ने उसका हाथ पकड़कर अपनी कमर पर दबा दिया—

    “ज़ोर से… मैं टूट नहीं जाऊँगी।”

    समीर की उँगलियाँ कस गईं।

    साक्षी की आँखें बंद हो गईं।

    उसने धीरे से कहा—

    “अब ये सही है…”

    फिर वह घूमकर उसके सामने आ गई,

    छाती से छाती टकराती हुई,

    चेहरा उसके इतने करीब कि दोनों की सांसें एक-दूसरे में घुल रही थीं।

    साक्षी ने उसकी शर्ट की कॉलर पकड़कर कहा—

    “अब रिद्म तेज़ करते हैं।”

    और उसने अचानक उसे पीछे खींचकर घुमाया—

    उसकी पतली कमर को हाथ से पकड़कर उसका बैलेंस बनाया।

    समीर की आँखें फैल गईं—

    “साक्षी… तुम प्रोफेशनल हो क्या?”

    “नहीं…

    पर मैं अपनी मन की सुनती हूँ,”

    उसने फुसफुसाकर कहा,

    “और मेरा मन कह रहा था…

    कि तुम्हें पिघलाना ज़रूरी है।”

    समीर ने उसके गालों को दोनों हाथों से पकड़ा—

    अचानक, मजबूत पकड़।

    साक्षी थम गई।

    उसने उसे अपनी ओर खींचा—

    इतना करीब कि उसकी कमर उसके पतले हाथों में बंधकर रह गई।

    समीर की आवाज़ भारी, धीमी और गरम थी—

    “तुम्हें लगता है सिर्फ तुम खेल सकती हो…?”

    साक्षी ने अपने होंठ काटे—

    “क्यों? क्या कर सकते हो?”

    समीर ने उसे पीछे धकेलते हुए दीवार से सटा दिया—

    धीमे, मगर पावरफुल मूव में।

    साक्षी की साँस अटक गई—

    उसकी पीठ दीवार पर…

    समीर उसके सामने…

    दोनों हाथ उसके सिर के दोनों ओर टिकाए।

    म्यूज़िक हवा में तैर रहा था—

    गर्म, sensuous, भारी।

    समीर:

    “अब मूव्स मैं कराऊँगा।”

    साक्षी की आँखों में आग आ गई—

    “तो करो।”

    समीर ने उसकी कमर कसकर पकड़ ली—

    और उसे अपने साथ धीमे, भारी रिद्म में झुलाने लगा।

    उनके शरीर एक-दूसरे से ऐसे फिट बैठे थे जैसे हमेशा इसी दूरी के लिए बने थे।

    साक्षी ने उसकी गर्दन के पीछे हाथ डाले,

    कमर से उसकी पकड़ और भी ज्यादा कस गई।

    कमरा अब सिर्फ एक ही चीज़ से भरा था—

    उन दोनों की गर्मी।

    साक्षी धीमी आवाज़ में बोली—

    “जान… तुम्हें पता है?

    मैंने ये डांस सिर्फ रोमांस के लिए शुरू नहीं किया।”

    समीर उसकी आँखों में डूबता हुआ बोला—

    “फिर?”

    साक्षी उसके कान के बिल्कुल पास जाकर फुसफुसाई—

    “क्योंकि मैंने सुना है…

    डांस में आदमी का कंट्रोल सबसे पहले टूटता है।”

    समीर की साँस अटक गई।

    उसकी पकड़ और कस गई।

    अंदर कहीं कोई धागा टूटता-सा महसूस हुआ।

    साक्षी ने होंठों पर खतरनाक मुस्कान रखी—

    “अब बताओ… कंट्रोल किसका टूट रहा है?”

    समीर ने बिना शब्द बोले उसे खींचकर अपनी ओर भींच लिया।

    उनके बीच की दूरी अब ख़त्म।

    साँसें, धड़कनें, गर्म हवा…

    सब एक हो गईं।

    और म्यूज़िक—

    धीमी, भारी, और उन्हें और करीब धकेलता हुआ…

  • 6. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 6 (आह्ह्हृ... बेबी और जोर से)

    Words: 1364

    Estimated Reading Time: 9 min

    वही समीर साक्षी को किस करते हुए रूम में आता है, और साक्षी को बेड पर लेटा देता है — जो खुद साक्षी ने फूलों से सजाया था।

    समीर एक पल ठहर कर साक्षी के पसीने भींगे बदन को देखता है। साक्षी उस रेड नाइटी में बहुत ही हॉट एंड सेक्सी लग रही थी।

    समीर अब खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाता, और साक्षी की नाइटी फाड़कर उसके बदन से अलग कर देता है।

    इस वक्त साक्षी समीर के सामने अपनी रेड कलर की नेट वाली ब्रा और पैंटी में थी, जिसमें से सब कुछ विज़िबल हो रहा था।

    समीर के होंठों पर एक डेविल स्माइल थी।

    साक्षी गहरी साँसें ले रही थी, जिसके कारण उसकी ब्रेस्ट ऊपर–नीचे हो रही थी, जो समीर को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी।

    इसके साथ आज पहली बार साक्षी समीर को बहुत ही इंटेंस नज़रों से देख रही थी।

    समीर साक्षी के काँपते होंठों को देखता है, और फिर उन काँपते होठों को दीवानों की तरह चूमने लगता है।

    समीर के हाथ साक्षी के पूरे बदन पर चल रहे थे, वहीं साक्षी के हाथ समीर के बालों में चल रहे थे।

    समीर साक्षी को फ़्रेंच किस कर रहा था।

    25 मिनट की लंबी किस के बाद समीर साक्षी के होंठों को छोड़कर उसकी गर्दन पर किस और बाइट करने लगता है।

    साक्षी लंबी–लंबी साँसें ले रही थी।

    वहीं समीर के बाइट करने से साक्षी उसे कहती है—

    साक्षी— (सेक्सुअल वॉइस में) “बेबी… आह… प्लीज़, बाइट नहीं…।”

    वैसे साक्षी और समीर की अभी कुछ वक्त पहले ही शादी हुई थी, समीर को साक्षी के मुँह से बेबी सुनना पसंद था।

    इस पर समीर अपनी गर्म साँसें साक्षी की गर्दन पर छोड़ते हुए कहता है—

    समीर— (सेक्सुअल वॉइस में) “स्वीटहार्ट… ये स्वीट टॉर्चर तो अब तुम्हें पूरी जिंदगी सहना ही पड़ेगा।”

    समीर साक्षी के कॉलरबोन पर किस और बाइट करते हुए उसके ब्रेस्ट की ओर बढ़ गया।

    समीर साक्षी के ब्रेस्ट को ज़ोर–ज़ोर से प्रेस करने लगा, जिससे साक्षी की लगातार आह… निकल रही थी।

    समीर साक्षी को पलटकर उसकी गोरी पीठ पर किस और बाइट करने लगता है, और फिर अपने दाँतों से उसकी ब्रा का हुक खोल देता है।

    इसके बाद वह साक्षी को वापस अपनी ओर पलटकर उसकी ब्रा निकालकर फर्श पर फेंक देता है।

    इस वक्त समीर का एक हाथ साक्षी की कमर पर था , दुसरा हाथ साक्षी की पीठ को सहला रहा था , वही अचानक साक्षी के दोंनों हाथ भी अपने आप समीर के बाल में चलने लगे, समीर साक्षी के मुंह में अपनी जीभ एंडर करता हैं , और साक्षी की जीभ के साथ खेलने लगता हैं , इस वक्त दोंनों की ही आंखें बंद थी ।

    साक्षी की दिल की धड़कन बहुत तेज हो चुकी थी , समीर के टच से साक्षी की पुरी बाॅडी में सिरहन सी दौड़ गई थी , लम्बी किस के बाद समीर साक्षी के होंठों को छोड़ता हैं।

    समीर साक्षी के क्लीवेज की और देखने लगता हैं ,और अपने होंठों को साक्षी के क्लीवेज पर रख देता हैं , अपने क्लीवेज पर समीर के होंठों की छुवाने से साक्षी की सांसें गहरी हो जाती हैं , समीर का एक हाथ साक्षी के ब्रेस्ट को उसके हाथों के ऊपर से ही सहला रहा था, जैसे साक्षी की सांसें ऊपर नीचे हो रही थी।

    समीर ने साक्षी के हाथ पकड़ कर साक्षी से कहा," हमें कोई एक होने से नहीं रोक सकता, " साक्षी तो पहले ही मदहोश हो चुकी थी,

    और एक पल ठहर कर साक्षी के बदन को देखता हैं , इस वक्त हाॅट एंड सेक्सी लग रही थी , समीर अब खुद पर कंट्रोल नहीं कर पता, वो इस वक्त समीर के सामने सिर्फ सिर्फ पेंटी में थी ।

    साक्षी गहरी सांसें ले रही थी , जिसके कारण उसकी ब्रेस्ट ऊपर नीचे हो रही थी , जो समीर को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी , समीर साक्षी को बहुत ही इंटेंस नज़रों से देखा रहा था ।

    समीर साक्षी के होंठों को कांपते हुए देखता हैं, और फिर उन होठों को दिवानों की तरह चूमने लगता हैं , समीर के हाथ साक्षी के पुरे बदन पर चल रहे थे ।

    वही साक्षी के हाथ समीर के बालों में चल रहे थे , समीर साक्षी को फ्रांच किस कर रहा था , वही 25 मिनट की लम्बी किस के बाद समीर साक्षी के होंठों को छोड़ कर,उसकी गर्दन पर किस और बाइट करने लगता हैं।

    वही साक्षी लम्बी - लम्बी सांसे लेने रही थी , वही समीर के बाइट करने से साक्षी उसे सेक्सुअल वॉइस में बोली," आह..... समीर प्लीज़ बाइट मत करों... उफ्फ...।"

    समीर तिरछी मुस्कान मुस्कुराते हुए बोला," ये तो तुम्हें सहना ही होगा, तुम्हें बाइट करने में अगल ही नशा है, मेरी जान।" समीर फिर साक्षी के कोलर बोन पर किस और बाइट करते हुए उसके ब्रेस्ट की ओर बढ़ गया , समीर साक्षी के ब्रेस्ट को जोर - जोर से प्रेस करने लगा, जिससे साक्षी की लगातार आह... निकल रही थी ।

    समीर साक्षी को पलट कर उसकी गोरी पीठ पर किस और बाइट करने लगता हैं , और कुछ देर बाद साक्षी को वापस अपनी ओर पटल कर उसकी पेंटी निकाल कर फर्श पर फैंक देता हैं ।

    घर में समीर और साक्षी का रोमांस परवान चढ़ा रहा था, समीर साक्षी के एक ब्रेस्ट को अपने मुंह में लेकर जोर - जोर से शक कर रहा था , और दूसरी ब्रेस्ट को अपने एक हाथ से प्रेस कर रहा था , बीच - बीच में समीर साक्षी के ब्रेस्ट पर बाइट भी कर रहा था ।

    जिससे साक्षी मचल - मचल जा‌ रही थी , उस का भी शरीर गर्म होने लगा था , समीर काफी देर तक साक्षी के दोनों ब्रेस्ट के किस और बाइट करता रहा ,और फिर नीचे की तरफ बढ़ गया ।

    समीर साक्षी की नावेल पे किस करते हुए,बाइट भी कर रहा था , समीर वक्त के साथ वाइल्ड होता जा रहा था,  और साक्षी के पुरे पेट पर पागलों की तरह किस और बाइट करके अपने प्यार की निशानी साक्षी के गोरे बदन पर बना रहा था ।

    समीर ने धीरे - धीरे और नीचे पहुंच गया , समीर के सामने साक्षी की गुलाबी किटी थी , जिसपर समीर एक पल गंवाए बिना होंठों रख देता हैं ।

    समीर के हाथ साक्षी के बदल को सहला रहे थे , साक्षी ने अपने पैर समीर के कंधों के ऊपर रख दिए, मदहोश हो कर समीर ने साक्षी की किटी पर जोर से बाइट किया ।

    जिससे साक्षी की चींख निकल गई , समीर अपनी जीभ से साक्षी की किटी में शैतानी कर रहा था, और साक्षी की सिसकियां उस पुरे घर में गूंज रही थी, आधे घंटे बाद समीर अपने कपड़े उतार देता हैं ।

    और वापस साक्षी के ऊपर आ जाता हैं , और एक नज़र साक्षी के मदहोश चेहरे को देखता हैं ,और फिर एक झटके में साक्षी में समा जाता हैं ।

    यूं तो दोनों पहले भी कई बार इंटीमेट हुए थे फिर भी वो वही फास्ट टाइम हो जैसे साक्षी की जोरदार चींख निकल जाती हैं , और इसके के साथ आंखों के कोने से आंसू भी निकल जाते हैं ,वो समीर को धक्का देते हुए बोली, " समीर बाहर निकलो, मुझे बहुत दर्द हो रहा हैं, आह...."

    समीर साक्षी के गाल सहलाते हुए बोला," बेबी बस कुछ देर का दर्द और फिर मज़ा," साक्षी कराहते हुए बोली," नहीं... नहीं...., तुम बाहर निकलो, अभी ।"

    समीर साक्षी के होंठों पर अपने होंठ रख देता हैं, उसको किस करने लगता हैं , साक्षी भी अपना दर्द भूल जाती हैं , अब समीर अपनी कमर हिलाने लगता हैं, और वक्त के साथ अपनी स्पीड बढ़ा देता हैं , साक्षी की सिसकियां पुरे चारो ओर गूंज रही थी ।

    साक्षी के हाथ हाथ के बालों में चल रहे थे , और साक्षी भी समीर का साथ दे रही थी , कुछ दो घंटे बाद समीर ने साक्षी को अपने ऊपर बैठ लिया , साक्षी भी अपनी कमर मूव करने लगी ।

    वही समीर के हाथ साक्षी की कमर पर थे , और नज़रें उसकी ब्रेस्ट पर , वही एक घंटे बाद समीर झटके से साक्षी को अपने नीचे करके अपने स्पीड बढ़ा देता हैं , दोनों फिजिकल होते रहे, की राउंड के बाद दोनों थक कर एक दूसरे से लिपट कर सो गए।

  • 7. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 7 ( आह्ह्हृ... दर्द हो रहा है )

    Words: 1183

    Estimated Reading Time: 8 min

    घर में सिर्फ घड़ी की टिक-टिक गूँज रही थी।

    ऐश्वर्या किचन में खड़ी बर्तन धो रही थी, ऐसा नहीं था कि घर में नौकर नहीं थे लेकिन एक बार एक नौकर ने ऐश्वर्या कि खुबसूरती कि तारीफ क्या कर दी तो रनवीर ने उसे बेल्ट से मार अधमरा कर दिया था तब से घर में कोई नौकर नहीं है इसलिए ऐश्वर्या खुद ही इतने बड़े घर को जोकि किसी बंगले जैसा था उसे साफ करती है, किसी नौकर से भी ज़्यादा अच्छे से क्यों कि नौकरों का क्या है उन्हें तो बस काम करना है दिल से तो एक घर में रहने वाला ही साफ कर सकता है , वही ऐश्वर्या ध्यान उन आवाज़ों में अटका था जो शायद घर के बाहर से आती हर छोटी हलचल को सुन रही थीं।

    रनवीर के जाने के बाद पूरे घर में एक अजीब-सी खालीपन की गूँज थी—

    डर से भरी, सन्नाटे से भरी।

    ऐश्वर्या ने लंच की तैयारी पूरी की, हॉल की टेबल पोंछी, और फिर अपने हाथों को एप्रन से साफ किया।

    उसकी आँखें बार-बार घड़ी पर जा रही थीं—

    “अंजली कब आएगी…?”

    वह खुद से फुसफुसाई।

    इसी बीच…

    ट्रिंग-ट्रिंग—

    डोरबेल की आवाज़ ने पूरा शरीर झटका दिया।

    उसका दिल एक पल को रुक ही गया।

    “इतनी जल्दी? अंजली तो नहीं हो सकती… क्यों कि उसने तो शाम तक आने को कहा था…”

    उसकी धड़कन तेज़ हो गई।

    रनवीर की बात याद आई—

    “दो क्रिमिनल जेल से भाग चुके हैं। किसी को अंदर मत आने देना। किसी को भी।”

    ऐश्वर्या ने धीरे-धीरे अपने गले को निगला।

    उसके पैर खुद-ब-खुद दरवाज़े की ओर बढ़े, पर हर कदम पिछले से ज्यादा भारी था।

    घंटी फिर बजी—

    इस बार ज़रा ज़ोर से।

    ऐश्वर्या ने हिम्मत जुटाई।

    कमज़ोर, काँपती उँगलियों से दरवाज़े की चेन हटाई…

    धीरे-धीरे कुंडी घुमाई…

    दरवाज़ा जस्स्स करके खुला—

    और उसके सामने…

    दो आदमी खड़े थे।

    वो पल… जैसे समय थम गया।

    पहला आदमी

    लंबा—बहुत लंबा।

    करीब 6’3” का होगा।

    काले बाल पीछे से हल्के झड़ते हुए, पर आगे से घने और परफ़ेक्ट सेट।

    जबड़े की रेखाएँ इतनी तेज़ कि सीधा दिल काट दें।

    शक्ल कुछ-कुछ किसी ग्रीक गॉड जैसी…

    और आँखें—

    गहरी, धुँधली, खामोश…

    जैसे उन आँखों में अनगिनत रहस्य दबे हों।

    उसकी काली टी-शर्ट, जिस पर हल्की सिलवटें थीं, उसके चौड़े कंधों और तराशी हुई बॉडी को और खतरनाक बना रही थी।

    ऐश्वर्या ने उसे देखा…

    और अगले ही पल, नजर हटाना भूल गई।

    वो भी उसे देख रहा था—

    एकदम सीधे, पैनी नजर में।

    ऐसा नहीं कि ऊपर-नीचे तौल रहा हो…

    बल्कि जैसे उसकी रूह तक झाँक रहा हो।

    उसकी नज़र जब धीरे-धीरे उसकी ट्रांसपेरेंट साड़ी की तरफ गई…

    ऐश्वर्या का गला सूख गया।

    दूसरा आदमी

    दूसरा पहली नजर में थोड़ा कम खतरनाक लग रहा था,

    पर उसका चेहरा… गज़ब था।

    हल्की दाढ़ी, तीखी आँखें, और एक ऐसा हँसी-न-हँसी वाला भाव चेहरे पर…

    जैसे वो हर चीज़ को मज़ाक समझता हो—पर उसका मज़ाक भी डर पैदा कर दे।

    उसने लेदर जैकेट पहनी थी।

    जैकेट के नीचे सफेद टी-शर्ट…

    और उसकी चाल, उसका खड़े होने का ढंग…

    सब कुछ ऐसा जैसे वो दुनिया को अपने पैरों के नीचे महसूस करता हो।

    ऐश्वर्या कुछ सेकंड बोल ही नहीं पाई।

    उसकी उंगलियाँ दरवाज़े के फ्रेम को पकड़कर सफेद पड़ चुकी थीं।

    पहले आदमी ने हल्की, धीमी आवाज़ में कहा—

    “हैलो।”

    एक शब्द।

    बस एक शब्द।

    लेकिन उसकी गूँज… ऐश्वर्या की साँसें रोकने को काफी थी।

    वह बोली भी तो आवाज़ काँपी—

    “ज-जी… कौन… कौन हैं आप?”

    दोनों पुरुषों के बीच निगाहें टकराईं।

    जैसे दोनों बिना बोले बात कर रहे हों।

    फिर दूसरा आदमी मुस्कुराया—

    एक ऐसी मुस्कान जिसमें शरारत और झूठ दोनों चमक रहे थे।

    “हम रनवीर के दोस्त हैं।”

    ऐश्वर्या की आँखें हल्का-सा फैल गईं।

    “रनवीर… के?”

    पहला आदमी भी अब थोड़ा आगे बढ़ा।

    इतना करीब कि ऐश्वर्या उसकी गर्म साँसें महसूस कर सकती थी।

    उसने धीरे से कहा—

    “हाँ। उसने भेजा है। एक फाइल घर में रह गई थी… वही लेने आए हैं।”

    ऐश्वर्या ने घबराकर जवाब दिया—

    “अ-अंदर… अंदर? मैं—मैं अभी देखकर—”

    दूसरा आदमी बोला—

    “अगर अंदर आने देंगी तभी तो ढूँढ पाएँगे… है न?”

    उसकी आवाज़ हल्की थी, पर अजीब-सी चुभन लिए हुए।

    ऐश्वर्या ने अनजाने में अपना पल्लू कसकर पकड़ लिया।

    पहला आदमी… अब भी उसे देख रहा था।

    ऐसा लगता था जैसे वो उसकी हर झिझक, हर डर, हर कंपकंपी को महसूस कर रहा हो।

    उसके कदम अचानक बहुत धीमी चाल में आगे बढ़े—

    ऐश्वर्या पीछे हट गई।

    दरवाज़ा अब इन तीनों के बीच एक पतली दीवार जैसा रह गया था।

    उसने हिम्मत जुटाकर कहा—

    “आप… आप दोनों सच में रनवीर के दोस्त हैं?”

    दोनों ने एक-दूसरे को देखा।

    फिर दूसरा आदमी बोला—

    “हाथ में उसकी चाबी है। क्या ये प्रूफ नहीं?”

    उसने जेब से एक चाबी उछालकर पकड़ ली—

    वही स्टाइल, जो लोगों को डराने का काम करे।

    ऐश्वर्या का दिल और तेज़ धड़का।

    पहला आदमी बोला—

    “डरो मत।”

    उसके स्वर की गहराई… ऐश्वर्या को और ज्यादा कमजोर कर रही थी।

    वह धीमे से फुसफुसाई—

    “मैं… बस पूछ रही थी।”

    पहला आदमी झुका—

    इतना कि उसका चेहरा ऐश्वर्या से कुछ इंच ही दूर रह गया।

    उसकी उँगलियाँ दरवाज़े पर टिक गईं—

    दरवाज़े और ऐश्वर्या के बीच दूरी अब लगभग ना के बराबर थी।

    “अगर हम तुम्हारे लिए खतरा होते…

    तो क्या तुम इतनी देर से दरवाज़ा खुला रखती?”

    ऐश्वर्या ने हड़बड़ाकर गला साफ किया।

    उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं।

    दूसरे आदमी ने धीरे से कहा—

    “दिखता है… तुम्हें डर जल्दी लगता है।”

    पहला आदमी हल्की मुस्कान के साथ बोला—

    “और डरने में तुम… बहुत खूबसूरत लगती हो।”

    ऐश्वर्या का दिल एक पल को रुक गया।

    वह तुरंत पीछे हट गई, पल्लू सीने पर पकड़कर।

    फिर थोड़ा सँभलकर बोली—

    “फ… फाइल… कहाँ है? आप बताएं, मैं ले आती हूँ—”

    पहले आदमी की आँखें उस पर जमी रहीं।

    उसकी आवाज़ खतरनाक रूप से धीमी हुई—

    “अंदर चलकर बताएँगे।”

    ऐश्वर्या ने सिर हिलाया—

    ना में।

    बहुत हल्की, पर साफ़।

    “नहीं… आप यहीं रुकिए। मैं ले आती हूँ।”

    दोनों आदमी… अब उसे एक अलग ही नज़र से देखने लगे।

    जैसे वो उन्हें मना करने की हिम्मत पर हैरान हों।

    या… उत्सुक।

    दूसरा आदमी हल्के से हंसा—

    “जैसा तुम चाहो, मैडम।”

    ऐश्वर्या जल्दी से दरवाज़ा आधा बंद करती अंदर जाने लगी—

    लेकिन तभी—

    पहले आदमी ने अपनी हथेली दरवाज़े पर रख दी।

    हथेली—जिसमें नसें उभरी हुई थीं।

    उसकी ताकत इतनी कि दरवाज़ा वहीं रुक गया।

    ऐश्वर्या ने चौंककर उसकी तरफ देखा।

    उसकी आँखें गहरी, भूखी, और खतरनाक थीं।

    उसने धीरे से कहा—

    “जल्दी आना।”

    उस स्वर में… कोई आदेश नहीं था।

    कोई विनती नहीं थी।

    बस एक टोन था—

    जो होता है जब दो खतरनाक लोग किसी चीज़ को पाने के बीच बस एक दरवाज़ा खड़ा पाते हैं।

    ऐश्वर्या अंदर चली गई—

    दिल तेज़ धड़कता हुआ, साँसें काँपती हुई।

    दरवाज़ा बंद होते ही—

    दोनों आदमी एक-दूसरे की तरफ देखे।

    दूसरा आदमी बोला—

    “ये लड़की… रनवीर के काबू में है… और फिर भी इतनी खूबसूरत?”

    पहला आदमी फिर से उस बंद दरवाज़े को देखता रहा—

    जैसे वह दीवार के आर-पार भी उसे महसूस कर सकता हो।

    उसकी आवाज़ धीमी, पर धधकती हुई थी—

    “ये सिर्फ खूबसूरत नहीं…

    ये दिलचस्प है।”

    कहानी अच्छी लगे तो कमेंट कर देना , और बता दू आप लोगों को इसका नेक्स्ट पार्ट Friday रात 10 बजे आएगा |

  • 8. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 8 (“पीलिझ… दूर हटो” )

    Words: 1066

    Estimated Reading Time: 7 min

    ऐश्वर्या कमरे में तेजी से इधर-उधर फाइलें पलट रही थी।

    हाथ काँप रहे थे… सांसें हल्की-हल्की टूट रही थीं।

    रनवीर की कड़क आवाज़ उसके कानों में गूंज रही थी—

    “घर में किसी को मत आने देना।”

    “दो क्रिमिनल भागे हुए हैं…”

    और अब दो अजनबी घर में थे।

    लेकिन जो उसे सबसे ज़्यादा डरा रहा था… वो अजनबी नहीं थे—

    पहले वाले आदमी की निगाहें थीं।

    कमरे की खामोशी में उसकी भारी साँसों की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी।

    ऐश्वर्या नीचे झुकी फाइल निकाल रही थी कि अचानक उसे कदमों की बेहद धीमी… मगर भारी आहट सुनाई दी।

    वह पलटी—

    और देखा कि वही पहला आदमी, ग्रीक गॉड जैसा चेहरा, मजबूत जबड़े की लाइन, गहरी भूरी आँखें, उसके ठीक पीछे खड़ा था।

    बहुत पास।

    इतना पास कि ऐश्वर्या का दिल एक पल को सचमुच रुक गया।

    वह उससे कुछ बोलती, उससे पहले ही वो उसकी ओर बढ़ा।

    एक लंबा, ताकतवर हाथ बढ़कर खिड़की का पल्ला पकड़ता है और धपाक से बंद कर देता है।

    हवा का झोंका रुक गया। पर्दे हिलते-हिलते थम गए।

    ऐश्वर्या की आँखें चौड़ी हो गईं।

    “तुम… तुम खिड़की क्यों बंद कर रहे हो?”

    उसकी आवाज़ फुसफुसाहट जैसी काँपती हुई थी।

    वह आदमी मुड़ा—धीरे, बेहद धीमे।

    जैसे शिकारी अपनी शिकार को देखने के लिए सरकता है।

    उसके चेहरे पर एक हल्की, खतरनाक मुस्कान थी।

    “क्योंकि…”

    उसने एक कदम और बढ़ाया—पहले से भी ज़्यादा करीब।

    ऐश्वर्या को लगा जैसे कमरे की दीवारें अचानक सिकुड़ गई हों।

    “…मैं नहीं चाहता कि बाहर की हवा तुम्हारी खुले बालों को छूए।”

    वह रुक गया।

    अपनी उंगलियाँ हल्के से हवा में उठाईं—इतना नज़दीक कि ऐश्वर्या को उसने छुआ तो नहीं… लेकिन छू लेने का एहसास ज़रूर हुआ।

    “और…”

    उसकी आवाज़ और धीमी, और गहरी।

    “…मैं नहीं चाहता कि अब मेरे अलावा कोई भी तुम्हें छुए।”

    ऐश्वर्या का चेहरा लाल पड़ गया।

    डर से, शर्म से… या उस खतरनाक आकर्षण से जिसे वह समझ नहीं पा रही थी।

    उसने तुरंत कदम पीछे खींचने चाहे—

    लेकिन वह पीछे हटते ही, वह आदमी आगे बढ़ गया।

    अब उनके बीच दो सांसों का फासला भी नहीं था।

    ऐश्वर्या का दिल जोर से धड़क रहा था।

    उसकी उँगलियाँ पल्लू को मरोड़ रही थीं।

    ये कौन है…? ये ऐसा क्यों बोल रहा है? रनवीर ने पहले कभी किसी आदमी को घर नहीं भेजा… और ये… ये तो कुछ और ही है।

    उसने हिम्मत करके कहा—

    “तुम… तुम झूठ बोल रहे हो।

    रनवीर ने कभी किसी आदमी को घर नहीं भेजा है।

    और… और कोई फाइल भी नहीं मिल रही।”

    वह आदमी एक पल के लिए उसे देखता रहा—

    उसी नजर से…

    जिसमें पज़ेशन था।

    डॉमिनेंस था।

    और कुछ ऐसा… जिसे ऐश्वर्या महसूस कर रही थी, पर नाम नहीं दे पा रही थी।

    वह धीमे से मुस्कुराया।

    “हम्म…”

    उसने सिर झुकाते हुए कहा,

    “…तुम्हारी आँखों में डर बहुत खूबसूरत लगता है।”

    ऐश्वर्या ने घबराकर पल्लू को और कस लिया।

    “दूर रहो…”

    उसकी आवाज़ कमजोर थी, पर कोशिश में थी।

    वह आदमी थोड़ा और झुका—

    इतना कि उसकी सांस ऐश्वर्या की गर्दन के पास महसूस हुई।

    “अगर मैं कहूँ कि मैं दूर नहीं रह सकता?”

    उसकी आवाज़ धीमी… मगर गहराई से भरी हुई थी।

    ऐश्वर्या का गला सूख गया।

    वह पीछे हटना चाहती थी—

    लेकिन पीछे दीवार थी।

    और सामने…

    वह आदमी।

    उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जिसे वह पढ़ नहीं पा रही थी।

    वह एक पल उसे देखता रहा—

    फिर अचानक उसकी आवाज़ बदली।

    गंभीर।

    कटी हुई।

    सीधी।

    “और हाँ…”

    वह थोड़ा पीछे हुआ, लेकिन आँखें नहीं हटाईं।

    “…हमें रनवीर ने नहीं भेजा है।”

    ऐश्वर्या का दिल पूरे कमरे में धड़कता हुआ लगा।

    “क्या…?”

    उसकी सांस अटक गई।

    वह आदमी एक कदम और पीछे हट गया, मगर आँखों में वही गहराई बरकरार थी।

    उसने धीरे से कहा—

    “हाँ, ऐश्वर्या।

    हमें रनवीर ने नहीं भेजा।”

    कमरा ठंडा हो गया।

    हवा रुक गई।

    ऐश्वर्या की साँस सीने में अटक गई।

    वह खुद को संभालते हुए बोली—

    “तो…

    तुम दोनों… हो कौन…?”

    वह आदमी फिर मुस्कुराया—

    डरावनी तरह से आकर्षक मुस्कान।

    “वो…

    तुम्हें अभी बताना जरूरी नहीं।”

    उसकी नजरें एक बार फिर नीचे सरकीं—

    साड़ी की नरम परतों से होती हुई उसी जगह पर रुक गईं जहाँ थोड़ी देर पहले उसकी आँखें ठिठक गई थीं।

    ऐश्वर्या ने घबराकर पल्लू खींचकर आगे कर लिया।

    लेकिन उसकी आँखों की गर्मी फिर भी कम नहीं हुई।

    “और…”

    आदमी की आवाज़ उतनी ही धीमी, उतनी ही खतरनाक रही—

    “…अभी जो मैंने कहा था—

    वो मज़ाक नहीं था।”

    ऐश्वर्या ने भय से पूछा—

    “क्या कहा था…?”

    वह एक कदम और बढ़ा।

    “कि अब तुम्हें…”

    उसकी आवाज़ और भारी हो गई।

    “…मेरे सिवा कोई नहीं छू सकता।”

    ऐश्वर्या की सांसें रुक गईं।

    वह सिर्फ दीवार से नहीं…

    उसकी नजरों से भी बंध चुकी थी।

    उसने काँपती आवाज़ में कहा—

    “म-मुझे जाने दो…

    मैं… मैं फाइल देख रही थी…”

    वह आदमी उसके बालों की ओर देखता हुआ बोला—

    “फाइल बाद में मिल जाएगी…

    पहले एक बात समझ लो।”

    वह इतना पास आ गया कि ऐश्वर्या को उसकी गर्म सांस अपने गाल पर महसूस हुई।

    “मुझे तुम खूबसूरत लगीं।”

    उसने फुसफुसाते हुए कहा।

    “बहुत खूबसूरत।”

    ऐश्वर्या ने घबराई निगाहें घुमाईं, पर उसकी हथेली दीवार पर थी—

    ज़रा-सा भी स्पेस नहीं छोड़ा था उसने।

    वह बोली—

    “पीलिझ… दूर हटो।”

    वह हल्के से मुस्कुराया।

    एकदम धीमे।

    “मैं हट सकता हूँ…”

    उसने कहा।

    “…लेकिन क्या तुम चाहती हो कि मैं हटूँ?”

    उसके सवाल में कुछ ऐसा था

    जो ऐश्वर्या को अंदर तक झकझोर गया।

    उसकी आँखें डर से फैल गईं।

    वह काँपते स्वर में बोली—

    “हाँ… मैं… मैं चाहती हूँ।”

    उस आदमी ने एक पल उसे देखा।

    उसकी आँखें बहुत गहरी हो गईं।

    फिर वह अचानक—

    एकदम मर्दाना अंदाज़ में पीछे हट गया।

    ऐश्वर्या ने राहत की सांस ली—

    लेकिन उसने जो अगला वाक्य कहा…

    उसकी रीढ़ में झटका दौड़ा गया।

    वह बोला—

    “ठीक है, हट गया।”

    उसकी आवाज़ धीमी, लगभग खतरनाक।

    “…लेकिन याद रखना—

    हम यहाँ फाइल लेने नहीं आए।”

    ऐश्वर्या का दिल ज़मीन पर गिर गया।

    उसने काँपती आवाज़ में पूछा—

    “तो… तुम दोनों आए किसलिए हो…?”

    वह मुस्कुराया।

    धीमे से।

    कानों में उतर जाने वाली आवाज़ में बोला—

    “वो तुमसे बाद में कहूँगा।”

    फिर उसने रात जैसी गहरी आँखों से उसे एक आखिरी बार देखा—

    “अभी इतना जान लो…”

    वह झुका—

    ऐश्वर्या की ऊँची धड़कती साँसों के करीब—

    “…तुम अब अकेली नहीं हो, ऐश्वर्या।

    हम आ गए हैं। तीन दिन हम यही रहेगे”

    और इससे पहले कि वह कुछ बोल पाती—

    वह आदमी मुड़ा और कमरे से बाहर चला गया।

    दरवाज़ा आधा खुला रह गया…

    और वहाँ खड़ी ऐश्वर्या की साँसें अटकी रह गईं।

  • 9. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 9 ( आह्ह्हृ...ऊं मां )

    Words: 1135

    Estimated Reading Time: 7 min

    ऐश्वर्या की उंगलियाँ दरवाज़े के चौखट पर जमी थीं।

    साँसें अनचाहे तेज़ चल रही थीं।

    “क्… क्या मतलब ‘तीन दिन यही रहोगे’?”

    उसकी आवाज़ काँप गई।

    गले में कुछ फँसा हुआ सा महसूस हुआ।

    “मेरे पति घर पर नहीं हैं… यहाँ से चले जाओ,”

    उसने कोशिश की कि आवाज़ सख्त लगे,

    पर डर उसके हर शब्द से रिस रहा था।

    कमरे की रोशनी कमजोर थी।

    पंखे से आती हवा परदे को हल्का-हल्का हिला रही थी,

    पर कमरे का माहौल अजीब तरह से भारी था—

    मानो दीवारों तक को सांस लेना मुश्किल हो रहा हो।

    वो आदमी…

    धीरे से अपना सिर एक तरफ झुकाता है।

    एक पल ऐसे देखता है जैसे उसकी बात उसे सुनाई ही न दी हो।

    फिर उसकी भारी, ठंडी आवाज़ कमरे में फैलती है—

    “मेरी कही बात शायद तुम्हें समझ नहीं आई…”

    वो एक कदम और बढ़ा।

    ऐश्वर्या पीछे हट गई।

    “…हम तीन दिन यहीं रहेंगे। समझी?”

    उसकी आँखों में वो सख़्ती थी जो किसी भी बहस को खत्म कर देती है।

    ना गुस्सा

    ना चिल्लाहट

    बस एक ठंडा आदेश।

    “पुलिस हमारे पीछे है…”

    उसने हल्की सी मुस्कान दी—अजीब, खतरनाक,

    मानो ये उसके लिए खेल हो।

    “…और इस घर से अच्छी जगह कोई और नहीं हो सकती।

    पुलिस यहाँ नहीं आएगी। और अगर आई भी…”

    अब वो ऐश्वर्या के इतनी पास आ चुका था

    कि उसके साँस की गर्माहट ऐश्वर्या के गाल से टकराने लगी।

    “…तो तुम उन्हें भगाओगी।”

    ऐश्वर्या का दिल सीने में जोर से धड़कने लगा।

    उसने निगलकर कहा,

    “ना… नहीं, मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी।

    प्लीज़… यहाँ से चले जाओ।

    मैं किसी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती…”

    उसकी आवाज़ आधी दबी हुई थी।

    डर उसकी रीढ़ में ठंडा पानी बनकर उतर रहा था।

    तभी—

    वो आदमी अचानक हाथ बढ़ाता है

    और ऐश्वर्या के जबड़े को अपनी उंगलियों से कसकर पकड़ लेता है।

    ऐश्वर्या की साँस अटक गई।

    उसकी रीढ़ सहम उठी।

    आदमी का हाथ ठंडा था,

    पर पकड़…

    लोहे जैसी।

    उसने ऐश्वर्या का चेहरा ऊपर को उठाया—

    जबरदस्ती नहीं,

    लेकिन उस तरह…

    जैसे वो उसे परख रहा हो।

    “तुम करोगी,”

    उसने धीमी आवाज़ में कहा।

    उसकी आँखें गहरी थीं—

    अंधेरी, पर शांत।

    जैसे वो सब कुछ पहले से तय कर चुका हो।

    ऐश्वर्या के होंठ हल्का-सा कंपन करने लगे।

    उसने उसके हाथ से अलग होने की कोशिश की,

    पर उसकी पकड़ न हिली, न ढीली हुई।

    वो आदमी कुछ सेकंड

    बस उसे देखता रहा।

    कभी उसके चेहरे को—

    कभी उसकी आँखों की घबराहट को।

    कमरा और खामोश हो गया।

    ऐसा लगा जैसे घड़ी की टिक-टिक भी रुक गई हो।

    फिर…

    उसकी नज़र धीरे-धीरे

    ऐश्वर्या की गर्दन से नीचे उतरी।

    उसकी साँस परदे के बीच से आने वाली हवा से तेज़ सुनाई देने लगी।

    उसने फिर धीरे से, बहुत धीरे से,

    अपनी पकड़ ढीली की।

    और चुपचाप एक इंच पीछे हुआ—

    पर आँखें…

    अभी भी उसी पर टिकी थीं।

    ऐश्वर्या की धड़कनों की आवाज़ खुद उसे सुनाई दे रही थी।

    कंधे कांप गए थे।

    आदमी की नज़रें

    उसके चेहरे से नीचे जाती हैं…

    एक पल के लिए उसके गालों पर ठहरती हैं—

    फिर और नीचे…

    और फिर अचानक

    उसकी नज़रें…

    ठहर जाती हैं।

    ऐश्वर्या के होंठों पर।

    लाल…

    बड़े…

    शाइनिंग…

    हल्की रोशनी में चमकते हुए।

    उसकी साँसें एक पल को थम गईं।

    ऐसा लगा जैसे हवा ही गायब हो गई हो।

    वो आदमी धीरे-धीरे सिर तिरछा करता है

    मानो सिर्फ होंठ नहीं—

    उनके पीछे छिपी कोई कहानी देख रहा हो।

    ऐश्वर्या ने होंठ दबाए,

    बचने की कोशिश में,

    पर यही हरकत

    उन्हें और उभार देती है।

    उसके होंठों पर लगी लाल लिपस्टिक

    हल्की रोशनी में और गहरी लग रही थी।

    आदमी की आँखों में एक अजीब-सी चमक आई—

    न इच्छा

    न वासना

    लेकिन…

    एक ध्यान

    जो इंसान को असहज कर दे।

    वो एकदम नज़रों से उसे जैसे पकड़ लेता है।

    ऐसा लगता है

    जैसे कमरे की हवा उसके इर्द-गिर्द सख्त हो गई हो।

    ऐश्वर्या का दिल तेज़ धड़कता है।

    वो एक कदम पीछे हटती है,

    तो वो आदमी भी एक कदम आगे बढ़ता है—

    पर छूता नहीं।

    फासला वही…

    लेकिन हवा बदल चुकी थी।

    “डरती क्यों हो इतना?”

    उसकी आवाज़ धीमी, भारी और अजीब थी।

    ऐश्वर्या काँपते हुए बोली,

    “तुम… तुम लोग अपराधी हो।

    मैं… मैं किसी को छुपा नहीं सकती…”

    वो हल्का-सा हँसा—

    पर ये वो हँसी नहीं थी जिससे आराम मिले।

    ये वो थी…

    जो रीढ़ में ठंडा डर पैदा कर दे।

    “किसने कहा छुपाओगी?

    मैंने सिर्फ कहा…

    मेरी बात मानोगी।”

    अब वो फिर पास आया।

    उसके कदम बहुत धीमे—

    लेकिन इतने भारी

    कि हर कदम की हवा

    ऐश्वर्या के दिल पर लगता महसूस हुआ।

    वो ऐश्वर्या के और करीब आ गया—

    इतना कि

    उनके बीच सिर्फ एक साँस का फासला रह गया।

    ऐश्वर्या पीछे हटना चाहती,

    लेकिन दीवार टकरा गई पीठ से।

    उस आदमी ने कुछ नहीं किया।

    बस अपनी हथेलियाँ दीवार पर टिका दी—

    ऐश्वर्या को छुए बिना

    उसे घेरते हुए।

    अब वह ऐश्वर्या के सामने था—

    इतना पास…

    कि उसके कंधे पर हवा की हल्की-सिहरन तक महसूस हो सकती थी।

    ऐश्वर्या की साँसें उखड़ने लगीं।

    गर्म हवा दीवार से टकरकर लौट रही थी।

    उसने धीरे से सिर झुकाया—

    और फिर…

    फिर से…

    उसी एक जगह देखता रहा।

    उसके होंठ।

    ऐश्वर्या का दिल सीने में जोर से धड़का—

    मानो बाहर निकल आएगा।

    उसने काँपते हुए कहा,

    “मेरे… मेरे पति आ गए तो?”

    आदमी मुस्कुराया।

    खतरनाक मुस्कान।

    धीमी…

    ठंडी…

    और किसी भी जवाब से ज्यादा डरावनी।

    “तीन दिन में…

    बहुत कुछ हो सकता है।”

    उसने एक लंबी सांस खींची…

    और वो सांस ऐश्वर्या के चेहरे से टकराई—

    गर्म…

    धीमी…

    और खतरनाक रूप से करीब।

    ऐश्वर्या ने घबराकर अपना चेहरा दूसरी तरफ मोड़ लिया,

    लेकिन उससे सिर्फ एक चीज़ साबित हुई—

    वो डर रही थी।

    आदमी ने कुछ नहीं कहा।

    बस अपनी ऊँगलियों को हल्का सा हिलाया—

    दीवार पर टिकी हुई।

    और इतनी धीमी आवाज़ में बोला

    कि शायद सिर्फ उन्हीं दो के लिए हो—

    “डरो मत…

    तुम्हें छूने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी…

    तुम पहले ही डर से थरथरा रही हो।”

    उसकी आँखों में देखे बिना भी

    ऐश्वर्या को उसकी नज़रें महसूस हो रही थीं।

    वो नज़रें जो

    सिर्फ एक इंच दूर से

    उसके चेहरे को पढ़ रही थीं।

    कमरा अब बदला नहीं—

    कमरा अब कैद जैसा लगने लगा था।

    और वो आदमी…

    उसकी नज़रें…

    उसकी साँसें…

    उसकी आवाज़…

    सब ऐश्वर्या के बहुत करीब आ गए थे—

    खतरनाक करीब।

    ऐश्वर्या दीवार से सटकर खड़ी रह गई,

    साँसें अनियंत्रित…

    हाथ ठंडे पड़ते हुए।

    वो आदमी उसके इतने करीब था

    कि अगर ऐश्वर्या थोड़ा भी हिलती

    तो शायद उसके कंधे का साया

    आदमी की छाती को छू जाता।

    उसने धीरे से फुसफुसाया—

    “मैं सिर्फ तीन दिन मांग रहा हूँ…

    और तुम ऐसे कांप रही हो

    जैसे मैं तुमसे कुछ छीनने आया हूँ।”

    उसकी आँखें अब भी ऐश्वर्या के होंठों पर थीं—

    धीमी, गहरी,

    अजीब तरह की सोच में डूबी।

    ऐश्वर्या ने हिम्मत कर चेहरा उठाया—

    एक पल के लिए…

    बस एक पल को…

    उनकी नज़रें टकराईं—

    और कमरे का पूरा माहौल

    और ज़्यादा भारी, और ज़्यादा गर्म

    हो गया।

  • 10. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 10 (फिर एक तेज़ टिक… टक… टक… )

    Words: 1192

    Estimated Reading Time: 8 min

    ऐश्वर्या की साँसें अभी भी अनियमित थीं।

    पहले वाले आदमी की नज़रों का दबाव उसके चेहरे पर जैसे छप गया था।

    दीवार से सटी उसकी पीठ अभी तक ढीली नहीं हुई थी।

    उसी खामोशी के बीच…

    अचानक नीचे के कमरे से कुछ खटकने की आवाज़ आई।

    ऐश्वर्या चौंकी।

    पहले वाले आदमी की गर्दन हल्की-सी घूमी—

    सावधान, लेकिन शांत।

    उसने धीमे, ठंडे स्वर में कहा,

    “मेरा आदमी है।”

    इस घर में अब दो अनजान, खतरनाक लोग थे।

    पहले आदमी ने धीरे से चेहरे को उलटी दिशा में किया—

    एक सेकंड के लिए उसकी आँखें बंद हुईं,

    फिर खुलीं…

    और उनमें वही शांत, डर पैदा करने वाली कठोरता थी।

    “ऊपर जाओ मत,”

    उसकी आवाज़ धीमी, पर पूरी तरह आदेश भरी थी,

    “वो अपना काम कर रहा है।”

    नीचे वाली मंज़िल पर फिर एक भारी-सी आवाज़ आई—

    किसी चीज़ के घिसटने की।

    फिर एक तेज़ टिक… टक… टक…

    जैसे किसी धातु की पेंच कसकर खोली जा रही हो।

    ऐश्वर्या ने फुसफुसाकर पूछा,

    “क-कैसा… काम?”

    पहले आदमी ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,

    “इस घर को काट रहा है।”

    ऐश्वर्या समझ नहीं पाई।

    “काट रहा है” का मतलब?

    लेकिन तभी…

    नीचे से एक और आवाज़ आई—

    एक तार के टूटने की,

    और उसके बाद खामोशी।

    सख्त, दम घोंटने वाली खामोशी।

    उसकी रीढ़ में ठंडा सिहरन दौड़ गई।

    पहले आदमी ने दीवार से हाथ हटाया,

    धीरे-धीरे सीधा खड़ा हुआ,

    फिर एकदम अचानक—

    इतना नज़दीक आ गया

    कि ऐश्वर्या को उसके सांस की गर्मी महसूस हुई।

    “तुम्हारे घर का हर फोन अब बेकार है।”

    उसकी आवाज़ में ऐसा यकीन था

    जैसे उसने ये बात नहीं कही—

    सुना दी हो।

    ऐश्वर्या के होंठ हल्का से खुले रह गए।

    वह पलटकर भागना चाहती थी,

    लेकिन उसके पैर जैसे जमे थे।

    पहले आदमी ने सिर झुकाकर उसकी आँखों में देखा,

    और बहुत धीमे बोला,

    “और जो खिड़कियाँ खुली थीं…

    वो भी बंद की जा रही हैं।”

    ऐश्वर्या का दिल गले में अटक गया।

    “क्यों…?”

    उसने काँपते स्वर में पूछा।

    वो मुस्कुराया—

    लेकिन वो मुस्कान ऐसी थी

    जो अंधेरे कमरे में किसी को भी पसीना दे दे।

    “तुम कहीं भाग न जाओ।”

    एक पल को पहले वाले आदमी ने अपना चेहरा ऐश्वर्या से थोड़ा हटाया,

    लेकिन उसकी निगाहें एक इंच भी नहीं हिलीं।

    “हम तुमसे कुछ छीनने नहीं आए,”

    उसने धीरे, शांत पर खतरनाक आवाज़ में कहा,

    “बस… हमें यहाँ तीन दिन चाहिए।

    और तुम कोई भी चाल चलो…

    फायदा नहीं होगा।”

    ऐश्वर्या ने अपनी सांस रोक ली।

    कमरे की हवा भारी हो चुकी थी—

    इतनी कि साँस लेना भी मुश्किल लग रहा था।

    नीचे के कमरे में वो दूसरा आदमी

    अब खिड़कियों की तरफ जा चुका था।

    हर खिड़की का ठक से बंद होने की आवाज़

    ऐश्वर्या के कानों में डर की घंटियाँ बजा रही थी।

    पहले कमरे की खिड़की—

    ठक!

    दूसरे की—

    ठक!

    ऐश्वर्या ने खुद को दीवार से अलग करना चाहा,

    पर उसके पैर अब भी कांप रहे थे।

    पहले आदमी ने उसकी हर कोशिश को

    नज़रें झपकाए बिना देखा।

    वो उसे छू नहीं रहा था

    पर उसके इतने पास था

    कि हर हरकत, हर सांस…

    उसके नज़दीक होने का एहसास

    ऐश्वर्या की गर्दन पर चुभता महसूस हो रहा था।

    नीचे से कदमों की आवाज़ आने लगी।

    धीमी…

    ढीली…

    अपने हिसाब से टहलते हुए।

    कुछ सेकंड बाद

    दूसरा आदमी दरवाज़े पर प्रकट हुआ।

    हाथ में काले रंग के कुछ कटे हुए तार थे।

    एक बैग में स्क्रूड्राइवर जैसी चीजें।

    पसीना नहीं…

    थकान नहीं…

    बस एक अजीब सनक-भरी ठंडक।

    वो जैसे ही कमरे में आया,

    पहले आदमी की आँखों में संकेत भरी चमक उभरी।

    दूसरे आदमी की नज़रें पूरी स्थिति को एक पल में स्कैन कर गईं—

    दीवार से सटी ऐश्वर्या…

    उसके सामने खड़ा पहला आदमी…

    और हवा में भरा हुआ घुटन भरा तनाव।

    फिर उसकी नज़र ऐश्वर्या पर ठहर गई।

    लेकिन वो नज़रों से उसे उतना देर तक नहीं देखता,

    जितना पहला आदमी।

    वो बस एक रूपरेखा लेता है…

    और फिर एक बेहद साधारण पर डरावनी बात कहता है—

    “सारे फोन काट दिए।”

    उसने अपना बैग ज़मीन पर रखा,

    और धीरे-धीरे पास आया।

    ऐसे जैसे उसके कदम ही तय कर रहे हों

    कि घर में अब किसकी सांस चलेगी

    और किसकी… थमेगी।

    ऐश्वर्या के गले में बोल अटक गया।

    वो दीवार पर उंगली दबाकर खड़ी थी

    जैसे संतुलन उसी उंगली पर टिक गया हो।

    दूसरा आदमी अब खिड़की की तरफ गया

    और हाथों से उसे जोर से खींचकर

    पूरी तरह बंद किया।

    लैच नीचे गिराया—

    टक!

    फिर उसने धीरे से कहा,

    “अब कोई अंदर नहीं झाँक सकेगा।

    और ना ही बाहर निकल पाएगा।”

    ऐश्वर्या का दिल हलक तक आ गया।

    पहले आदमी ने एक कदम उसकी तरफ बढ़ाया।

    उसकी आवाज़ पहले से और धीमी,

    और अधिक भारी हो गई—

    “अब ये घर… हमारा है

    तीन दिन तक।”

    दूसरा आदमी खिड़की बंद कर

    वापस मुड़ा।

    और चुपचाप पहले आदमी के पास खड़ा हो गया।

    दोनों की आँखों में वही अजीब-सी चुप्पी थी—

    चुप्पी जो डराती है।

    चुप्पी जो बताती है

    कि ये लोग सिर्फ शरीर से ही नहीं,

    दिमाग से भी खतरनाक हैं।

    ऐश्वर्या ने हिम्मत कर आवाज़ निकाली—

    “तुम लोग ये सब क्यों… क्यों कर रहे हो?

    क्या चाहते हो मुझसे?”

    नीचे से आते ठक-ठक कदमों की आवाज़ अब कमरे के अंदर पूरी तरह समा चुकी थी।

    ऐश्वर्या का गला सूख चुका था।

    पहला आदमी—ने नज़रें हटाए बिना कहा,

    “सवाल मत पूछो, जवाब हमेशा अच्छे नहीं होते।”

    दूसरा आदमी—आराम से सामने वाले काउच पर बैठ गया।

    जैसे किसी दोस्त के घर चाय पीने आया हो,

    ना कि किसी के घर को कैदखाना बनाने।

    उसने अपने हाथ में पकड़े कटे हुए तारों को मेज़ पर रखा

    और बड़े ही सहज, ठंडे स्वर में बोला,

    “आज हम वहीं हैं… जैसा तुम्हारे पति ने कहा था,”

    उसकी आँखें कुछ पल के लिए छत की ओर उठीं,

    जैसे किसी याद को पकड़ रही हों,

    “घर से जाते वक्त उसने कहा था—

    दो क्रिमिनल जेल से भागे हैं…

    मैं टोनी… और ये एंथनी।”

    ऐश्वर्या ने साँस रोक ली।

    “क्र… क्रिमिनल…?”

    एंथनी ने इतना ही कहा,

    “समझी।”

    एक शब्द—पर उसमें इतना वजन

    कि रीढ़ में ठंडक उतर गई।

    फिर उसने अपना पैर काउच पर थोड़ा आगे सरकाया,

    जैसे किसी ऑफिस मीटिंग में सहज बैठा हो, और बोला,

    “और इस वक्त शहर में हमारी खोज चल रही है।

    इसलिए हम यहाँ छुपने आए हैं।

    तीन दिन बाद… हमारा आदमी

    हमें यहाँ से निकाल ले जाएगा।

    सीधे… बिना किसी शोर के।”

    ऐश्वर्या की आँखों में डर और सवाल दोनों तैर रहे थे।

    वह बमुश्किल बोल पाई—

    “तुम्हें… मेरे घर के अंदर की बातें कैसे पता?

    कैसे मालूम कि मैं अकेली हूँ?

    कैसे—”

    टोनी ने एक लंबी, बेहद शांत सांस ली,

    और उसकी तरफ ऐसे देखा

    जैसे किसी बच्चे की नासमझ सवाल सुन रहा हो।

    “ये तुम्हारा जानना ज़रूरी नहीं है।”

    उसने धीरे कहा,

    लेकिन उसके धीमेपन में भी

    एक ऐसी सख्ती थी

    जो गला बैठा दे।

    एंथनी बिना पलक झपकाए जोड़ता है—

    “और अगर तुम ये सोच रही हो

    कि हम तुम्हें कुछ नुकसान पहुँचाने आए हैं…”

    टोनी उसके बिल्कुल पास आकर फुसफुसाता है—

    “तो ये भी जान लो—

    हमारे पास उसके लिए समय नहीं है।

    तीन दिन… बस तीन दिन।

    तुम चुप रहो, हम चुप रहेंगे।”

    कमरे में फिर वही भारी, दमघोंटू खामोशी उतर गई—

    जो बताती थी कि अब खेल

    पूरी तरह उनके हाथ में है।

    ❤️नेक्स्ट चैप्टर अगले शुक्रवार को रात 10 बजे❤️

  • 11. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 11 (“आजा गुफाओं में आ… आजा गुनाह कर लें…” )

    Words: 1186

    Estimated Reading Time: 8 min

    पुलिस स्टेशन के पुराने ट्यूबलाइटों की झिलमिलाहट पूरे कमरे में बेचैनी फैला रही थी।
    दीवार पर लगी घड़ी दिन के 11:45 का समय बता रही थी—पर स्टेशन में इस वक्त सिर्फ खामौशी।
    चारों तरफ सन्नाटा और बीच–बीच में वायरलेस सेट की खरखराहट, जैसे शहर की नब्ज़ उस मशीन में अटकी हो।
    मुख्य हॉल के दरवाज़े से तेज़ क़दमों की आवाज़ आई।
    इंस्पेक्टर रोहित और हवलदार विनोद अंदर घुसे—दोनों के चेहरे पर थकान साफ दिख रही थी।
    शर्ट के कॉलर ढीले, बाल अस्त-व्यस्त, और उनके जूतों पर धूल जमी थी।
    विनोद ने कुर्सी पकड़कर जैसे ही बैठना चाहा, रोहित ने उसे इशारे से रोका—
    “अरे पगले, सीधे साहब के कमरे में चल… रिपोर्ट देनी है।”
    दोनों तुरंत दाईं तरफ बने कांच वाले केबिन की ओर बढ़े, जहाँ बड़े अफसर डी.सी.पी. शेखावत फाइलों में उलझे बैठे थे।
    रोहित ने हल्के से दरवाज़ा खटखटाया।
    “आओ!”
    अंदर से भारी, कड़क आवाज़ आई।
    दोनों कमरे में दाख़िल हुए।
    DCP शेखावत का चेहरा देखते ही पता चल गया—मूड बेहद खराब है।
    उन्होंने बिना ऊपर देखे पूछा—
    “कहो। सिटी में इतनी दौड़धूप करवाई… क्या मिला?”
    रोहित ने लंबी साँस छोड़ी।
    “सर… बहुत कोशिश की।
    पूरा शहर खंगाल दिया।
    लेकिन एंथनी और टोनी हाथ नहीं आए।”
    इस एक लाइन के बाद कमरे में सन्नाटा छा गया।
    DCP ने चश्मा उतारकर मेज़ पर रखा, दोनों हाथों को आपस में जोड़ा और धीमी, दबाव वाली आवाज़ में बोले—
    “मतलब…
    दो आदमियों ने पूरे शहर को नचा रखा है…
    और हमारी दस टीम भी उन्हें पकड़ नहीं पाईं?”
    विनोद ने हिम्मत करके कहा—
    “सर, वो लोग जगह बदलने में बहुत तेज़ हैं।
    हम साइबर यूनिट, ट्रैफिक कैमरे, सब जगह चेक कर आए—
    हर जगह एक मिनट पहले निकल जाते हैं।”
    DCP की आँखें संकुच गईं।
    “और बैंक मैनेजर का मर्डर?
    उसके बारे में कुछ पता चला?”
    रोहित ने सिर हिलाया।
    “सर, नहीं।”
    DCP ने कुर्सी से ज़ोर का धक्का मारकर उठ गए।
    कुर्सी पीछे जाकर दीवार से टकराई— धड़ाम!
    कमरे का माहौल और भारी हो गया।
    “तो अब तक ना वो पकड़े गए…
    ना मर्डर कबूल करवाया…
    ना ये बताया कि 300 करोड़ कहाँ छुपाया है!”
    उनकी आवाज़ पर बाहर बैठे कांस्टेबल भी चौक गए।
    रोहित ने सावधानी से कहा—
    “सर, रिपोर्ट्स कहती हैं कि पैसा शहर में ही कहीं है।
    या तो किसी लॉकर्स में…
    या किसी खाली पड़े गोदाम में।”
    DCP घूमकर उसकी तरफ आए।
    “और तुम मुझे बता रहे हो कि शहर में पैसा है।
    अरे! ये तो मैं भी जानता हूँ।
    नक्शा उठाकर देखो—ये शहर है ही कितना?
    छुपाने की जगहें गिन लो… मुश्किल से सौ!”
    विनोद ने बात जोड़ने की कोशिश की—
    “सर… एंथनी और टोनी बहुत चालाक हैं।
    उनका मूवमेंट प्रेडिक्ट करना मुश्किल है।”
    DCP ने टेबल पर हाथ मारा— थपाक!
    “चालाक? चालाक?”
    उन्होंने दोनों की तरफ तेज़ नज़रें घुमाईं।
    “अरे दो आदमियों ने पूरे पुलिस डिपार्टमेंट को जोकर बना दिया है!”
    रोहित ने धीमे स्वर में कहा—
    “सर… हमने उनका गैंग, उनके पुराने साथी, सब पर रेड मारी।
    लेकिन… लगता है वो इस बार किसी नए ठिकाने पर छुपे हैं।”
    DCP गुस्से में अपनी कुर्सी पर बैठ गए।
    एक पल को कमरे में जानलेवा खामोशी छा गई।
    फिर उन्होंने गहरी साँस ली और शांत लेकिन डरावने स्वर में कहा—
    “देखो रोहित…
    ये केस अब सिर्फ क्रिमिनल्स पकड़ने का मामला नहीं रहा।
    ये पुलिस की इज़्ज़त का सवाल बन गया है।”
    उन्होंने मेज़ पर रखी फाइल को जोर से बंद किया।
    “उस बैंक मैनेजर का मर्डर…
    300 करोड़ की चोरी…
    और दो आदमी हैं कि हाथ नहीं आते!”
    रोहित ने धीरे से कहा—
    “सर, उनका नेटवर्क बहुत बड़ा है।”
    DCP ने उंगली उठाकर रोहित को रोका—
    “नेटवर्क बड़ा नहीं, दिमाग तेज़ है उनका।
    और हमारा?
    हमारा पूरा विभाग मिलकर भी इनसे एक कदम पीछे है!”
    विनोद के माथे पर पसीना छलक गया।
    “सर, हम कोशिश छोड़ नहीं रहे…
    बस उनसे एक कदम पीछे हैं।”
    DCP ने हँसकर कहा—
    “कदम?
    अरे बेटा, वो तो शहर छोड़कर भी जा सकते हैं…
    और हमारे लोग अभी भी चौराहों पर खड़े गाड़ियों की तलाशी ले रहे हैं!”


    पुलिस स्टेशन के कॉन्फ़्रेंस रूम में तनाव ऐसा जमा था जैसे हवा में धूल तैरती हो। नक्शों से भरी मेज़, अधजले सिगरेट के टुकड़े और तीन घंटे से चल रही मीटिंग… सब मिलकर माहौल को और भारी बनाए हुए थे। डीसीपी शेखावत कुर्सी पर आगे झुके बैठे थे, आँखें फाइल पर गड़ी हुईं, और इंस्पेक्टर रोहित उनके सामने खड़ा, रिपोर्ट समझाते-समझाते पसीना पोंछ रहा था।
    उसी घड़ी—
    ट्र्र… ट्र्र… ट्र्र…
    रोहित का फोन लगातार तीसरी बार बज उठा।
    डीसीपी ने भौंहें सिकोड़ते हुए कहा,
    “ले लो इंस्पेक्टर। शायद खबरी होगा। आज जो भी जानकारी मिले, एक सेकंड भी बर्बाद नहीं करनी।”
    रोहित ने बिना नंबर देखे फोन उठा लिया।
    “हेलो… कौन—”
    डीसीपी ने हाथ उठाकर इशारा किया,
    “स्पीकर ऑन करो। मैं भी सुनूँगा।”
    रोहित ने मन मारकर स्पीकर ऑन कर दिया।
    और फिर…
    फोन के दूसरी तरफ से आई कोमल, मादक, मखमली आवाज़—
    “ओ ज़रा ज़रा टच मी… ज़रा ज़रा किस मी…”
    पूरे कमरे में सन्नाटा।
    चारों तरफ बैठे पुलिसवाले ऐसे देखने लगे जैसे ये गाना फोन से नहीं, रोहित की जेब से निकली बेइज़्ज़ती हो।
    रोहित की साँस अटक गई।
    नंबर देखा—
    शिवानी।
    उसकी पत्नी।
    मन में उसने वही कहा जो उसके चेहरे पर साफ लिखा था—
    "शिट।"
    दूसरी तरफ से शिवानी ने एक और तीर छोड़ा—
    “आजा गुफाओं में आ… आजा गुनाह कर लें…”
    इस बार हवलदार विनोद ने अपनी हँसी दाँत दबाकर दबाने की कोशिश की, पर कमरा फिर भी खनखनाकर हिल गया।
    रोहित का चेहरा ऐसा लाल कि खुद डीसीपी भी नज़रें फेर लें।
    “इंस्पेक्टर…?”
    डीसीपी ने खाँसते हुए पूछा,
    “ये… खबरी है?”
    रोहित कुछ बोल पाता, उससे पहले फोन पर शिवानी और गहरी, और सेक्सी आवाज़ में बोली—
    “बेबी… कहाँ हो? ये मेरा दिल ना… बहुत बेचैन है तुम्हारे लिए… आह्ह्ह… कल रात जो हुआ था… वो आज भी करना है…”
    रोहित ने ऐसे फोन पकड़ा जैसे वो जल रहा हो।
    “शि— शिवू… प्लीज़! मैं मीटिंग में हूँ! स्पीकर पर हो तुम!”
    शिवानी ने आधे सेकंड की चुप्पी के बाद शर्म से फोन काट दिया।
    कमरे में दो पल की खामोशी।
    फिर डीसीपी ने अपना गला साफ किया—
    “हम्म… चलो, वापस काम पर आते हैं। आज कोई घर नहीं जाएगा। रात में भी ऑपरेशन जारी रहेगा। मुझे वो दोनों क्रिमिनल हर हाल में चाहिए। समझे?”
    सभी जवान एक साथ बोले,
    “जी सर!”
    पर माहौल अभी भी हल्का होने को तैयार नहीं था।
    हवलदार विनोद बड़बड़ाया,
    “साला… उन दोनों क्रिमिनल्स की वजह हम तो गए। अब हम घर जाएँगे तो हमारी बीवियाँ भी यही पूछेंगी— ‘टच मी-किस मी कौन है?’”
    एक और हवलदार ने फुसफुसाकर कहा,
    “आज पहली बार लगा कि अपराधियों से ज्यादा खतरनाक शादीशुदा ज़िंदगी है।”
    रोहित ने सिर पकड़ लिया।
    डीसीपी ने उसकी पीठ थपथपाई,
    “चिंता मत करो, इंस्पेक्टर। मिशन खत्म होने के बाद… तुम्हें एक दिन की स्पेशल छुट्टी दूँगा। अपनी मैडम को मना लेना। और हाँ—
    अगली बार फोन साइलेंट रखना।
    देश की सुरक्षा के साथ-साथ… अपनी भी करो।”
    कमरे में हल्की हँसी गूँज गई, लेकिन रोहित अभी भी जमीन में गड़ने का तरीका खोज रहा था।
    फ़ाइलें दोबारा खुलीं, प्लानिंग शुरू हुई—
    पर हर किसी के चेहरे पर वही दबी-दबी मुस्कान थी।
    रोहित जानता था—
    आज की ये “रिंगटोन वाली बेइज़्ज़ती” उसकी पूरी डिपार्टमेंट की चाय-कॉफी गपशप बनेगी।

  • 12. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 12 ( बॉडी मसाज )

    Words: 1100

    Estimated Reading Time: 7 min

    कमरा धुँधली पीली रोशनी में डूबा था—
    एंबिएंट म्यूज़िक की धीमी, कामुक धुन पूरे स्पा रूम में तैर रही थी।
    हवा में लैवेंडर और गर्म तेल की खुशबू थी, और कमरे के बीचों-बीच काँच की बनी लो-हाइट बेड पर मैगी लेटी हुई थी—
    उसके बदन पर सिर्फ़ एक सफ़ेद, मुलायम टॉवल, जो उसके कर्व्स को बस उतना ही ढँक रहा था जितना ज़रूरी था।
    उसकी पीठ चमक रही थी—तेल की हल्की परत पूरे बदन पर ऐसे फैली थी जैसे किसी कलाकार ने उसको पॉलिश किया हो।
    कमरे के दोनों तरफ़ दो लड़के, आरव और कबीर, उसके मसाज थेरेपिस्ट, खड़े थे—मजबूत कंधे, फिट बॉडी और प्रोफेशनल लेकिन नज़रों में हल्की सी चाहत।
    आरव ने मैगी की कमर पर धीरे से उंगलियों का दबाव डाला।
    “मैम… प्रेशर ठीक है?”
    मैगी ने आँखें बंद करके धीमे से कहा—
    “हम्म… येस… वहीं… वहीं प्रेशर चाहिए था।”
    उसकी आवाज़ में आलस नहीं, एक मीठी, गर्माहट से भरी ख़ुशबू थी।
    कबीर ने उसकी टांगों पर गर्म तेल डाला—तेल की पतली धार जैसे ही उसकी त्वचा से चिपकी, मैगी ने हल्का-सा साँस छोड़ा, जैसे उसका शरीर हर स्पर्श को महसूस करके जवाब दे रहा हो।
    कमरा और भी शांत हो गया।
    आरव ने उसकी कंधों पर झुककर हल्की स्ट्रोक दिया—धीमे, डिटेल्ड, जैसे वो उसके हर नर्व को समझता हो।
    मैगी के होठ़ों पर एक हल्की, सुकूनभरी मुस्कान थी।
    उसी पल—
    ट्रिंग… ट्रिंग… ट्रिंग…
    ड्रेसिंग टेबल पर रखा मोबाइल बज उठा।
    कबीर रुका, बोला—
    “मैम, फोन…”
    मैगी ने बिना आँखें खोले हाथ थोड़ा बाहर निकाला।
    कबीर ने फोन उसके हाथ में रख दिया।
    मैगी आधी लेटी, आधी करवट में, टॉवल को हल्का-सा थामते हुए, फोन कान पर ले आई।
    “यस… बोलो।”
    दूसरी तरफ़ से एक आदमी की तेज़, भारी आवाज़ आई—
    “मैगी… खुशखबरी है।”
    मैगी की आँखें आधी खुलीं।
    चेहरे पर एक हॉट, शैतानी सी मुस्कान।
    “अच्छा? कहो।”
    आवाज़ फुसफुसाई—
    “एंथनी और टोनी… जेल से फरार हो गए हैं।”
    मैगी ने जैसे साँस रोकी।
    उसके अंदर कहीं एक तूफ़ान जागा—
    वो मुस्कुराई, होंठ भीगे-से चमक उठे।
    “मैं जानती थी…
    एंथनी को कोई जेल नहीं रोक सकती।”
    उसकी आवाज़ गहरी हो गई।
    पीठ पर पड़े मसाज स्ट्रोक और तेज़ हो गए, और मैगी का पूरा बदन एक सेकंड के लिए तन गया—उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वो यह खबर सुनकर कितनी खुश हुई है।
    “और?”
    मैगी ने पूछा।
    “आज रात शहर में मूवमेंट होगा। सबकुछ बदलने वाला है।”
    कुछ पल और बातें हुईं।
    फिर मैगी ने कॉल काट दी।
    उसने टॉवल ठीक किया, बैठ गई।
    आरव और कबीर एकदम पीछे हट गए।
    मैगी ने seductive confidence में कहा—
    “थैंक यू, बॉयज़। पर अब मैं जाना चाहती हूँ।”
    कार, तेज़ स्पीड और अकेली सड़क
    मैगी ने ब्लैक ड्रेस पहन ली, बाल खुले छोड़ दिए, और बड़े गोल सनग्लासेस लगा लिए।
    स्पा के ग्लास दरवाज़े से निकलते हुए उसकी चाल में वही बेशुमार आत्मविश्वास था—तेज़, नियंत्रित और सेक्सी।
    उसने कार स्टार्ट की।
    इंजन गरजा।
    और अगले ही पल—
    कार तीर की तरह सड़क पर दौड़ पड़ी।
    शाम ढल चुकी थी।
    सड़कें खाली थीं।
    विरान रास्ता, दोनों तरफ़ सूखी जमीन और कुछ पुराने पेड़—फिल्मी सूनापन।
    मैगी कार को ऐसे चला रही थी जैसे दिल में किसी तूफ़ान को बाँधकर रखे बैठी हो।
    उसे एक-एक सेकंड भारी लग रहा था।
    उसे जल्दी से उस बंगले तक पहुँचना था—उसी सेफहाउस में जहाँ वो और एंथनी अपना प्लान छिपाते थे।
    विरान रास्ते पर बना बंगला
    बड़ा गेट।
    काली दीवारें।
    कम रोशनी।
    और हवाओं में सन्नाटा।
    कार जैसे ही पहुँची, वॉचमैन तुरंत भागकर आया।
    “मैडम…”
    मैगी बिना देखे बोली—
    “गेट खोलो।”
    वॉचमैन ने फौरन भारी लोहे का गेट खोल दिया।
    मैगी कार अंदर ले गई।
    मुख्य दरवाज़े पर नौकर पहले से खड़ा था।
    उसने दरवाज़ा खोला—
    “मैडम, जूस—”
    “नहीं चाहिए।”
    मैगी ने हाथ उठाकर रोका।
    आवाज़ में बेसब्री थी।
    वो सीधे अपने कमरे की ओर बढ़ गई—
    ऊँची हील्स की टक-टक पूरे empty हॉल में गूँजती हुई।
    कमरे में — वह कागज़ जिन पर सबकुछ टिका है
    मैगी ने कमरे का दरवाज़ा धक्का देकर खोला।
    अंदर थोड़ी-सी धूप और बहुत-सी खामोशी थी।
    वो अलमारी के पास गई, एक hidden लॉक खोला, और अंदर से एक फ़ाइल निकाली।
    फाइल भारी थी।
    उसके पन्नों में नक्शे, अकाउंट स्टेटमेंट, पासपोर्ट, नए नामों के दस्तावेज़, और एक टिकट—
    सिंगापुर।
    उसने पन्ने फैलाए।
    धीमे से फुसफुसाई—
    “बहुत जल्द…
    मैं और एंथनी इस देश से बहुत दूर होंगे।
    नई दुनिया।
    सिर्फ़ मैं… और वो।”
    उसकी आँखों में एक गहरी चमक थी—
    खतरा और प्यार का अजीब, नशे जैसा मिश्रण।
    इसी दौरान—
    पिछे से दरवाज़ा बंद होने की आवाज़—
    ठक्।
    मैगी मुड़ी।
    चेहरा थोड़ा चौंका, फिर सख्त हो गया।
    दरवाज़े पर एक आदमी खड़ा था।
    धवल सिंह।
    कोट-पैंट में, पर शर्ट के चार बटन खुले।
    शर्ट बाहर।
    आँखों में धूर्त चतुराई।
    चाल धीमी।
    मुस्कान बेहद मतलबी।
    वो धीरे-धीरे आगे बढ़ा।
    कमरे की रोशनी उसके चेहरे को आधा ढँक रही थी—जिससे उसकी मौजूदगी और भी खतरनाक लग रही थी।
    मैगी ने आँखें सिकोड़कर कहा—
    “कांग्रेस…
    तुम्हें पता चल ही गया कि एंथनी जेल से निकल चुका है।”
    धवल मुस्कुराया,
    “मैंने ही तो बताया तुम्हें, मैगी।”
    मैगी ने साफ नफरत से उसे देखा।
    “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?
    तुम गद्दार हो…
    तुम्हारी वजह से ही वो दोनों जेल में गए।
    उस रात चोरी के बाद अगर तुमने पुलिस न बुलवाई होती—”
    धवल ने हाथ उठाकर उसे रोका।
    “हां लेकिन मैं करता भी क्या मेरी भी तो मजबूरी थी मैगी माई स्वीटहार्ट,
    वो एंथनी ने तुम्हें कितना बदल दिया है पहले हम कितने खुश थे लेकिन अब सब बदल गया है।”
    वह एक कदम और पास आया।
    मैगी तनाव में आ गई, पर चेहरा शांत रखा—
    “दूर रहो, धवल।”
    धवल हल्की हँसी हँसा—
    “इतना भी दूर नहीं, मैगी।
    हम दोनों एक ही खेल के खिलाड़ी हैं।
    और अब… एंथनी बाहर है।
    मतलब—
    खेल फिर शुरू।”
    धवल और करीब आया—
    लेकिन एक इंच की दूरी पर रुक गया।
    ऊँगली उठाकर बोला—
    “और हाँ…
    इस बार गद्दारी मैं नहीं करूँगा।
    करोगी तुम।”
    मैगी की साँस रुक-सी गई।
    उसने पूछा—
    “मतलब?”
    धवल की मुस्कान और गहरी हुई—
    “मतलब…
    तुम मेरे साथ नहीं आई…
    तो एंथनी को पता चल जाएगा कि उसका असली दुश्मन कौन है।”
    कमरा खामोश हो गया।
    दूरी बहुत कम थी—
    टेंशन बहुत ज्यादा।
    मैगी ने धीरे से कहा—
    “धवल… तुम आग से खेल रहे हो।”
    धवल धीरे झुककर फुसफुसाया—
    “और तुम आग से बनी हो, मैगी।
    तुम्हें बुझाया नहीं जा सकता—
    बस…
    काबू किया जा सकता है।”
    मैगी ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—
    "और तुम्हारी यही गलती है…
    तुम सोचते हो तुम मुझे काबू कर लोगे।"
    धवल सीधा खड़ा हुआ।
    मुस्कुराया—
    "देखते हैं…
    सिंगापुर तक पहुँचती हो या नहीं।"
    तभी झटके से धवल मैगी को बिस्तर पर धक्का दिया और वो खुद बिस्तर पर उसके ऊपर आ गया ,

  • 13. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 13 ( लेकिन रात में नॉनवेज चाहिए )

    Words: 1184

    Estimated Reading Time: 8 min

    डाइनिंग हॉल — दोपहर का समय
    बंगले जैसे इस घर के डाइनिंग हॉल में आज जो माहौल था…
    वो किसी भी सामान्य दोपहर से बिल्कुल अलग था।
    टेबल के दोनों सिरों पर—
    एंथनी और टोनी बैठे हुए थे।
    दोनों के सामने सजी हुई थालियाँ।
    सब्ज़ियाँ, दाल, चावल, सलाद…
    सब कुछ वेजीटेरियन।
    ऐश्वर्या धीरे-धीरे खाना परोस रही थी।
    हाथ काँप रहे थे…
    लेकिन उसने हर प्लेट उतनी ही सफाई से सजाई,
    जैसे कोई भी मेहमान के लिए करती।
    फर्क बस इतना था—
    ये मेहमान नहीं थे।
    ये उसकी आज़ादी के फैसले कर रहे लोग थे।
    टोनी ने चम्मच उठाया,
    दाल को हल्का-सा घुमाते हुए बोला—
    “सारा खाने का सिस्टम ठीक रखा है तुमने…
    पर एक कमी है।”
    ऐश्वर्या ने पल भर को उसकी तरफ देखा।
    “क्या?”
    टोनी ने बिना कोई भाव जताए कहा—
    “ये सब तो ठीक है…
    लेकिन रात में नॉनवेज चाहिए।”
    सुनते ही ऐश्वर्या रुक गई।
    एक पल को उसके हाथ में भरी चम्मच भी हवा में ठहर गई।
    “घर में… कुछ नहीं है।”
    उसने धीमी आवाज़ में कहा।
    टोनी मुस्कुराया नहीं…
    लेकिन उसकी आवाज़ वैसी थी
    जैसे उसे पहले से पता हो कि यही जवाब मिलने वाला है।
    “तो मंगवाया जा सकता है।”
    ऐश्वर्या का दिल एक पल रुक गया।
    “कैसे?”
    उसने पूछ तो लिया…
    लेकिन उसके शब्दों में डर बहुत साफ था।
    टोनी ने प्लेट में सब्ज़ी का एक छोटा कौर उठाया,
    आँखें उसकी तरफ उठाईं—
    “तुम्हारी फ्रेंड आ रही है,
    उसे कह दो।”
    ऐश्वर्या का दिल ऐसे धड़का
    जैसे किसी ने भीतर अलार्म बजा दिया हो।
    उसके मन ने लगभग चीखकर कहा—
    “ये… इन्हें कैसे पता?
    मेरी फ्रेंड?
    कौन?
    कैसे…?”
    उसके चेहरे पर वही भ्रम उभर आया,
    और टोनी ने जैसे उसकी आँखों में लिखे सवाल पढ़ लिए।
    वो धीमे, लगभग थके हुए सुर में बोला—
    “आवाज़ें मत बदलो।
    चौंकने से कुछ नहीं होता।
    हम जानते हैं…
    जो जानना चाहिए।”
    ऐश्वर्या ने अपने होठ भींच लिए।
    पसीने की पतली परत उसकी गर्दन पर उतर आई।
    दूसरी तरफ—
    एंथनी की नज़रें प्लेट पर नहीं थीं।
    उसके हाथ चल रहे थे…
    लेकिन निगाहें सिर्फ ऐश्वर्या पर थीं।
    एकदम शांत।
    एकदम स्थिर।
    ऐसी नज़र जो इंसान को भीतर तक पढ़ लेती है
    और बिना कुछ कहे बता देती है
    कि उसके मन में कुछ भी छुपा नहीं है।
    ऐश्वर्या को महसूस हुआ
    कि वो हर कदम, हर सांस,
    हर हिचकिचाहट को पढ़ रहा है।
    वो सिर झुकाकर पानी का गिलास रखने लगी,
    पर उसकी उंगलियों की हल्की-सी थरथराहट
    एंथनी ने तुरंत पकड़ ली।
    टोनी ने लापरवाही से कहा—
    “कौन-सी फ्रेंड है ये?”
    ऐश्वर्या ने झूठ बोलने की कोशिश भी नहीं की।
    डर गले में फंसा हुआ था।
    “अ... अंजलि मेरी कजन।
    कभी-कभी आ जाती है… बस।”
    टोनी ने बिना किसी खास दिलचस्पी के कहा—
    “अच्छा है।
    उसे आने दो।
    आज उससे काम लेना है।”
    ऐश्वर्या का मन चीख उठा।
    “न…
    अंजली को नहीं पता चलना चाहिए…
    उसका क्या कसूर…”
    लेकिन वो कुछ कह नहीं पाई।
    शब्द जैसे बंद हो गए थे।
    टोनी ने खाना खाते हुए पूछा—
    “फोन कहाँ है?”
    ऐश्वर्या ने बमुश्किल कहा—
    “कमरे में… लेकिन वो… सभी लाइनें काट दी गईं आपने।”
    टोनी ने शांति से जवाब दिया—
    “मोबाइल है न?”
    ऐश्वर्या चौंक गई।
    “आपको… ये भी पता?”
    टोनी ने चम्मच टेबल पर रख दिया।
    उसका चेहरा बिना हिले—
    लेकिन शब्द तेज़, साफ़ और अडिग—
    “देखो…
    अभी भी तुम समझने में समय लगा रही हो।
    ये हमारा पहला दिन है।
    और हम तुम्हें बस इतना कह रहे हैं—
    जो बोले वो करो।
    जितना कहें उतना करो।
    तुम्हारी फ्रेंड आएगी।
    तुम उसे बोलोगी कि नॉनवेज ले आए।”
    डाइनिंग हॉल — वही दोपहर की घनी, भारी हवा
    ऐश्वर्या जैसे ही प्लेटें समेटकर थोड़ा पीछे हटी, उसे लगा पैर ज़मीन पर टिक ही नहीं रहे। दिल जैसे बरफ हो गया हो… और सांसें किसी अदृश्य बोझ के नीचे दबी हों।
    वो धीरे-धीरे हॉल से बाहर निकली। गलियारा शांत था—बहुत ज़्यादा शांत।
    जैसे हर आवाज़, हर हलचल उसकी तरफ ही मुड़ी हो।
    उसके हाथ अब भी काँप रहे थे जब वो अपने कमरे की तरफ बढ़ी। कमरे का दरवाज़ा हल्का बंद था। उसने अंदर जाकर मोबाइल उठाया—
    स्क्रीन पर ‘0 नेटवर्क’ का निशान देखकर उसकी धड़कन फिर उथल-पुथल हुई…
    लेकिन कुछ सेकंड बाद एक-दो बार सिग्नल की छोटी-सी लाइन blink हुई।
    उसका दिल तेज़ हुआ।
    हाथ काँपे।
    उसने तुरंत अंजली का नंबर मिलाया।
    ट्रिंग… ट्रिंग…
    घंटी बजते ही उसकी सांस गले में अटक गई।
    और तभी—
    दरवाज़े के फ्रेम पर दो परछाइयाँ आकर रुकीं।
    एंथनी और टोनी।
    दोनों बिल्कुल स्थिर खड़े…
    सिर्फ उसे देखते हुए।
    ऐसे जैसे वो यह भी गिन रहे हों कि ऐश्वर्या ने फोन मिलाते वक्त कितनी बार पलकें झपकाईं।
    कॉल लगी।
    “ह-हलो… अंजली…?” ऐश्वर्या बमुश्किल बोल पाई।
    उसके शब्दों में ऐसा डर था कि अंजली तुरंत सतर्क हो गई—
    “हाँ ऐश, बोल… सब ठीक?”
    ऐश्वर्या का गला सूख गया था। उसने निगाह ऊपर उठाई—
    एंथनी की आँखें उस पर टिकी थीं। एक भी पलक नहीं झपक रही थी।
    टोनी हाथ बाँधे खड़ा था। उसके चेहरे पर हल्की-सी चेतावनी तैर रही थी।
    ऐश्वर्या ने निगलकर कहा—
    “अंजली… वो… तु— तू आ रही है न?”
    “हाँ, आ रही हूँ। ऑफिस में बहुत काम था… शाम तक पहुँच जाऊँगी।”
    अंजली की आवाज़ सामान्य थी। उसे कोई अंदाज़ा नहीं था कि उधर ऐश्वर्या किस तूफान में फँसी है।
    ऐश्वर्या की साँसें तेज़ हो गईं।
    “अंजली… मुझे… डर लग रहा है…”
    आँखें भर आईं, पर उसकी आवाज़ धीमी थी—रोने की इजाज़त यहाँ किसी को नहीं थी।
    अंजली चौंकी—
    “डर? काहे का डर? ऐश क्या हुआ? तु ठीक तो है?”
    ऐश्वर्या ने साइड में खड़े दोनों मर्दों को देखा—
    उनकी आँखों में ऐसा सन्नाटा था कि किसी के भी शब्द गायब हो जाएँ।
    वो काँपते हुए बोली—
    “कुछ… नहीं… बस आ जा।”
    टोनी ने उँगली से इशारा किया।
    ‘आगे बोलो।’
    ऐश्वर्या की सांस फिर अटक गई।
    “अंजली… आते हुए… नॉनवेज ले आना।”
    फोन के दूसरी तरफ एक पल को चुप्पी छाई।
    फिर अंजली की उलझी हुई आवाज़—
    “नॉनवेज? ऐश्वर्या तू? तू नॉनवेज नहीं खाती… फिर किसके लिए?”
    ऐश्वर्या का दिल धक से गिरा।
    एंथनी की नज़रें उस पर और गहरी हो गईं।
    वो तुरंत बोल पड़ी—
    “अ- मैं नहीं खाती… लेकिन तू तो खाती है न… तेरे लिए ही…”
    उसकी आवाज़ इतनी बनावटी लगी कि खुद उसे लगा झूठ पकड़ लिया जाएगा।
    अंजली हँस पड़ी—
    “मेरे लिए? ऐश, मैं रास्ते में खा लूँगी। क्या हो गया तुझे? तू ठीक तो—”
    उसका वाक्य पूरा हो पाता, उससे पहले—
    एक झटका।
    फोन ऐश्वर्या के हाथ से छिन गया।
    एंथनी।
    उसका हाथ ऐश्वर्या की उँगलियों पर एक पल के लिए छुआ—
    ठंडा, कठोर, और बिल्कुल भावहीन।
    उसने फोन कान पर लगाया।
    कुछ नहीं बोला।
    बस कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।
    ऐश्वर्या हड़बड़ा गई।
    “म-मेरा फोन…!”
    उसके हाथ हवा में उसी मुद्रा में रह गए—
    जैसे किसी ने उससे उसकी आखिरी उम्मीद छीन ली हो।
    टोनी एक कदम पीछे हट गया,
    पर एंथनी…
    वो एक कदम और करीब आया।
    इतना करीब कि ऐश्वर्या की साँसें उसके सीने से टकराकर वापस लौटीं।
    एक पल।
    एक भारी, घुटता हुआ सन्नाटा।
    एंथनी झुककर उसके बहुत पास रुका—
    इतना पास कि ऐश्वर्या को अपनी ही धड़कन उसके कानों में गूंजती लगी।
    उसकी आवाज़ बेहद धीमी…
    लेकिन इतनी ठंडी कि रीढ़ तक उतर गई—
    “अगली बार… बिना पूछे कुछ मत बोलना।”
    ऐश्वर्या पलक भी नहीं झपका पाई।

  • 14. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 14 ( आह्ह्हृ... दूर रहो )

    Words: 1258

    Estimated Reading Time: 8 min

    कमरा आधा अँधेरे में डूबा था।
    पीली-सी लाइट बस धवल और मैगी के चेहरों तक गिर रही थी—बाकी सब साया था, गर्म साँसों और सिमटी दूरी से भरा।
    मैगी उसके नीचे दबे होने के बावजूद आँखों में वही तेज़ी लिए उसे धकेलने की कोशिश कर रही थी।
    मैगी (खीजकर, दाँत भींचते हुए):
    दूर हटाओ अपने गंदे हाथ… आई हेट यू!
    धवल उसके गाल पर उंगलियाँ फेरता ही गया। उसके स्पर्श में एक अजीब-सी पकड़ थी—जैसे वो महीनों से दबाई आग अचानक भड़क उठी हो।
    धवल (धीमे, भारी स्वर में उसके कान के पास):
    हेट?
    जब तक वो एंथनी हमारी गैंग में नहीं आया था, स्वीटहार्ट…
    तुम तो मेरे इसी टच पर टूट पड़ती थीं।
    मैगी का सीना धड़कने लगा—गुस्से से, नफरत से… या शायद उस पुराने एहसास से जिसे वो मानने को तैयार नहीं थी।
    मैगी:
    तुम?
    तुम घटिया इंसान!
    दूसरी लड़कियों के पीछे घूमते थे… मुझे पागल समझ रखा था?
    धवल हँस पड़ा—धीमी, खतरनाक गर्म हँसी।
    वो एक झटके से और नीचे झुक आया… इतना कि मैगी की साँसें उसकी गर्दन से टकराने लगीं।
    धवल:
    और तुम?
    दूध की धुली थी?
    तुम भी उन्हीं जैसी थीं… बस फर्क ये था कि तुम मुझे झूठे हक़ में बाँधकर रखती थीं।
    मैगी की उँगलियाँ उसके सीने पर धकलने लगीं—but जितना वो धकेलती, धवल उतना पास आता गया। उनका चेहरा एक-दूसरे से इंच भर की दूरी पर।
    मैगी ने उसका कॉलर पकड़कर झटका—
    मैगी (आँखों में आग):
    तुम्हें लगता है तुम मुझे जानते हो?
    तुम्हें लगता है मैं तुम्हारी थी?
    धवल के होंठ उसकी गर्दन के पास छूते-छूते रुक गए…
    बस उतनी दूरी पर जहाँ से उसकी गर्म साँसें मैगी की त्वचा में सिहरन पैदा कर दें।
    धवल (फुसफुसाहट में):
    तुम आज भी मेरी हो, मैगी…
    तुम्हारी ये सारी गर्मी—ये गुस्सा—ये तड़प…
    मेरे बिना जागती ही नहीं।
    मैगी ने उसकी कलाई पकड़कर कस दी—जैसे तोड़ देगी।
    आँखें लाल, साँसें भारी।
    मैगी:
    ख्वाब में भी मत सोचना…
    मैं तुम्हारी कुछ नहीं हूँ।
    धवल मुस्कुराया… खतरनाक, पजेसिव, घायल जानवर जैसी मुस्कान।
    धवल:
    कुछ खत्म नहीं होगा, स्वीटहार्ट…
    ये तो अभी शुरू हुआ है।

    धवल का चेहरा अभी भी मैगी के ऊपर झुका हुआ था, इतना पास कि उसके होंठों की गर्मी मैगी के होंठों को छूकर वापस लौट रही थी।
    कमरे में सिर्फ दो आवाज़ें थीं—
    उनकी साँसें… और दिलों की धड़कनें, जो अब एक-दूसरे के खिलाफ नहीं बल्कि एक-दूसरे को खींचती-सी लग रही थीं।
    मैगी ने पूरी ताकत से उसे हटाने की कोशिश की, मगर उसकी उँगलियाँ धवल के शर्ट के कॉलर पर फँसकर वहीं रुक गईं।
    जैसे उसका शरीर उसके अपने ही इरादों को धोखा दे रहा हो।
    धवल ने उसकी कमर के पास हाथ टिका दिया—मजबूत, गर्म, बिल्कुल बेझिझक।
    मैगी की पीठ हल्की-सी ऊपर उठी… कंट्रोल में रहने की उसकी कोशिश टूटती हुई।
    मैगी (साँसें काँपती हुई):
    धवल… स्टॉप…
    धवल (धीमे, खतरनाक सॉफ्ट टोन में):
    सच कहो…
    रुक जाऊँ?
    या तुम चाहती हो मैं और करीब आऊँ?
    उसकी उँगलियाँ मैगी के जबड़े से होते हुए उसकी गर्दन के पास रुकीं।
    मैगी ने पल भर के लिए आँखें बंद कर लीं—नफरत के लिए? या उस सिहरन के लिए जिसे वो मानने को तैयार नहीं थी… पता नहीं।
    धवल ने उसकी ठुड्डी पकड़कर हल्का-सा ऊपर उठाया, जैसे उसे घूरने का हक़ उसी को हो।
    धवल:
    तुम अभी भी मुझसे दूर नहीं जा सकती, मैगी…
    तुम्हारे शरीर की हर धड़कन मुझे पुकारती है।
    मैगी ने उसकी पकड़ झटका, मगर उसकी उंगलियाँ धवल की शर्ट में और कस गईं।
    उसके होंठ धवल के इतने पास आ गए कि अगर एक और साँस आगे बढ़ती, तो स्पर्श हो जाता।
    मैगी (काँपते गुस्से में):
    मैं तुम्हें चाहती नहीं… समझे?
    धवल मुस्कुराया, उसके गाल के एकदम पास से—
    इतना पास कि मैगी की साँस अटक गई।
    धवल:
    तुम चाहती नहीं…
    पर फिर भी…
    मुझसे दूर भी नहीं जा पा रही हो।
    उनके बीच की दूरी बस आधा इंच रह गई—
    हवा गर्म, भारी और खतरनाक हो चुकी थी।

    मैगी की उंगलियाँ अभी भी धवल की शर्ट को पकड़े थीं—
    ना छोड़ पा रही थी,
    ना कसकर खींचने की हिम्मत जुटा पा रही थी।
    धवल ने उसकी कमर के नीचे हाथ सरकाया—धीरे, गरम, इतना गहरा स्पर्श कि मैगी की साँस एक पल को रुक गई।
    उसका शरीर एकदम अड़ गया…
    मगर धवल के हाथ की पकड़ ने उसकी विरोध की दीवारों में दरारें डाल दी थीं।
    धवल (उसके कान के बिल्कुल पास):
    देखा?
    तुम्हारा शरीर कभी झूठ नहीं बोलता, मैगी।
    मैगी ने एक झटके से चेहरा उसके चेहरे से दूर करने की कोशिश की—
    लेकिन धवल ने उसकी ठुड्डी पर उंगली रखकर उसे वहीं रोक लिया।
    उनके होंठों के बीच गर्म हवा की एक पतली-सी लकीर बची थी।
    मैगी (साँस फूली हुई, काँपती आवाज़):
    हट जाओ…
    मैं सच में कह रही हूँ…
    धवल ने उसकी कलाई पकड़ ली—धीरे, मगर इतनी दृढ़ता से कि मैगी ने खुद को उसके नीचे और बंधा हुआ महसूस किया।
    धवल:
    तुम्हारी “हट जाओ” वाली आवाज़…
    हमेशा से मेरी कमजोरी रही है।
    मैगी का गुस्सा और धड़कनें एक साथ बढ़ीं।
    उसने धवल को एक हाथ से फिर धक्का दिया,
    इस बार पूरी ताकत से—
    मगर धवल हिला भी नहीं।
    उल्टा, वो उसके और ज़्यादा करीब झुक आया।
    उनके नाकें अब लगभग छूने लगीं।
    मैगी की साँसें उसके होंठों से टकराकर वापस लौट रहीं थीं—
    गर्म, बिखरी हुई।
    मैगी:
    तुम्हें लगता है तुम्हारी ये हरकतें मुझ पर असर करती हैं?
    धवल ने उसके बालों की एक लट पकड़कर कान के पीछे टक कर दी—
    धीमी, चुभती हुई नज़दीकी के साथ।
    धवल:
    करती हैं…
    और तुम चाहकर भी रोक नहीं पा रही हो।
    मैगी का गला सूख गया।
    छाती ऊपर-नीचे हो रही थी।
    धवल की उँगलियाँ उसकी कमर पर और कस गईं—
    और उसके चेहरे पर वो मुस्कान आ गई
    जो मैगी सालों से भूलने की कोशिश कर रही थी।

    धवल की साँसें अभी भी मैगी की गर्दन के पास गर्म होकर टकरा रही थीं।
    मैगी का हाथ उसकी शर्ट पर अटका था—विरोध में, पर उसी विरोध में एक अजीब-सी कंपकंपी भी।
    धवल ने धीरे-धीरे पीछे हटते हुए उसकी नज़रें पकड़ लीं।
    उसके चेहरे पर वो पुरानी, पागल कर देने वाली स्मिर्क उभर आई।
    फिर—
    उसने अपनी शर्ट के ऊपर वाले बटन पर हाथ रखा…
    और क्लिक
    पहला बटन खुला।
    मैगी की साँस हल्की-सी अटक गई।
    मैगी (भौंहें सिकोड़कर):
    ये क्या कर रहे हो तुम…?
    धवल ने दूसरा बटन खोला—धीरे, जानबूझकर, उसकी नज़रें मैगी की आँखों से हटे बिना।
    धवल (गहरी आवाज़ में):
    तुम कहती हो तुम पर मेरा असर नहीं होता…
    तो सोचो—
    ये सब तुम्हें परेशान क्यों कर रहा है?
    तीसरा बटन खुल गया।
    अब उसकी शर्ट ढीली होकर सीने से फिसलने लगी।
    कम रोशनी में उसकी गर्दन और कॉलरबोन की शैडो मैगी की तरफ से अनदेखी नहीं हो सकी।
    मैगी ने नज़रें हटाने की कोशिश की, पर हटा नहीं पाई।
    उसकी उंगलियाँ अनजाने में चादर को भींचने लगीं।
    मैगी (साँस भारी):
    तुम… ड्रामा करना बंद करो।
    धवल हल्का-सा झुककर उसके बिल्कुल सामने आ गया—
    अब उसके खुले बटनों के बीच से आती गर्माहट मैगी की त्वचा से सीधी टकरा रही थी।
    धवल:
    ड्रामा?
    मैं तो बस तुम्हें वही दिखा रहा हूँ…
    जिससे तुम भाग नहीं पाती।
    उसने चौथा बटन खोला—
    अब शर्ट आधी खुल चुकी थी,
    और धवल का सीना उसके एक साँस की दूरी पर था।
    मैगी ने उसे धकेलने की कोशिश की,
    पर उसके हाथ धवल के सीने पर टिककर ही रुक गए—
    जैसे उसकी उंगलियाँ खुद फैसला नहीं कर पा रही हों कि धकेलें या रोकें।
    धवल नीचे झुककर फुसफुसाया—
    धवल:
    देखा?
    तुम्हारे हाथ भी मुझे छूने से मना नहीं कर पा रहे।
    कमरे में गर्मी इतनी बढ़ चुकी थी कि मैगी की आँखों ने पल भर के लिए मजबूरी और खींच दोनों को एक साथ स्वीकार कर लिया।

  • 15. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 15 ( आह्ह्हृ... और गहराई में )

    Words: 1310

    Estimated Reading Time: 8 min

    उसकी बात पर मैगी की आँखों में वो जानी-पहचानी चमक लौटी —

    वो जो हर बार उसकी बातों में खो जाती थी,

    पर फिर खुद को संभाल लेती थी।

    “तुम्हें पता है,” उसने धीमे से कहा,

    “हर बार जब सोचती हूँ , तुम से बोहोत दूर चली जाऊ

    कि,

    तब तुम कुछ ऐसा बोल देते हो…”

    धवल ने उसकी बात काटी,

    “कि दिल फिर से तुम्हारे पास लौट आता है?यही कहना चाहती हो ना मेरी जान”

    मैगी ने सिर झुका दिया,

    “तुम्हें बहुत भरोसा है खुद पर। है ना”

    “तुम पर है,मेरी जान हमेशा से चलो सब कुछ भूल कर इस वक्त को अपना बना लेते हैं”

    धवल ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा,

    “क्योंकि हर बार जब दूर जाने की कोशिश करता हूँ,

    तुम्हारी याद और करीब खींच लाती है। मैं बोहोत परेशान हो जाता हूं तुम सबसे अलग हो मेरी जान”

    मैगी ने उसके हाथ को हल्के से दबाया,

    “कभी सोचा है, अब कितना वक्त साथ गुजारा है,हम इतने सारे पल जी चुके हैं,

    फिर भी हर मुलाक़ात नई क्यों लगती है?”

    “शायद इसलिए कि हम कभी ‘मुकम्मल ’ नहीं हुए,”

    धवल ने जवाब दिया,

    “हर बार बस रुके हैं, फिर वहीं से शुरू हुए जहाँ छोड़ दिया था।”

    दोनों के बीच कुछ देर तक बस साँसों की आवाज़ रही।

    कमरे की हवा अब भीग सी गई थी —

    जैसे उस खामोशी में भी उनकी यादों की नमी थी।

    मैगी ने फुसफुसाया,

    “धवल… तुम्हें याद है, उस रात जब बारिश हो रही थी?”

    “जब तुमने कहा था कि ठंड लग रही है,

    और फिर खुद ही मेरी शर्ट पहन ली थी?”

    धवल हँसते हुए बोला,

    “हाँ, याद है।”

    “और जब सुबह हुई थी, तुमने कहा था कि वो शर्ट अब तुम्हारी नहीं रही,”

    मैगी मुस्कराई,

    “मुझे लगा था तुम मज़ाक कर रहे हो।”

    “पर वो सच था,”

    धवल ने कहा,

    “जैसे तुम थी, हो… और रहोगी।”

    मैगी की साँसें थोड़ी तेज़ हुईं,

    उसकी नज़रों में अब वो पुराना खिंचाव था —

    जो हर बार उन्हें एक-दूसरे की ओर खींच लाता था।

    “कभी डर नहीं लगता?” उसने पूछा,

    “कि हम जो दोबारा पास आ रहे हैं… वो फिर अधूरा न रह जाए?”

    धवल ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा,

    “डर अब बस तब लगता है जब तुम दूर होती हो।”

    वो अब और करीब आया,

    उसकी उंगलियाँ मैगी के बालों में ठहर गईं,

    “क्योंकि हर बार तुम्हारे जाने के बाद… कमरे की ये हवा भी खाली लगती है।”

    मैगी ने बहुत धीरे से कहा,

    “और अगर फिर जाना पड़ा तो?”

    “तो पहले तुम्हें इतना पास रख लूँगा कि जाना नामुमकिन हो जाए,”

    धवल ने मुस्कुराकर कहा।

    वो अब बहुत पास थे —

    इतने कि एक पुरानी याद की खुशबू भी दोनों की साँसों में घुल चुकी थी।

    मैगी ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,

    “तुम्हें पता है, हर बार जब तुम ऐसे देखते हो,

    तो मुझे फिर से वही रात याद आती है…”

    धवल ने फुसफुसाया,

    “जहाँ वक्त रुक गया था?”

    “हाँ,”

    उसने मुस्कराकर कहा,

    “और शायद आज भी वो वहीं खड़ा है।”

    धवल ने उसके गाल को छुआ,

    “फिर क्यों न आज उसे आगे बढ़ने दें?”

    मैगी ने आँखें बंद कर लीं —

    वो पल अब किसी शुरुआत का नहीं था,

    बल्कि एक पुराने वादे की वापसी थी।

    बाहर बारिश अब तेज़ थी,

    अंदर बस दो लोग — जो पहले भी एक-दूसरे में खो चुके थे,

    और अब फिर उसी अधूरेपन को पूरा करने आए थे।

    धवल ने बहुत धीरे से कहा,

    “अगर सुबह फिर सब बदल गया तो?”

    मैगी ने उसकी साँसों के बीच फुसफुसाया,

    “तो आज सब कह देंगे… जो पहले नहीं कहा।”

    धवल मुस्कराया,

    “तो फिर सुनो — मैं तुम्हें फिर से चाहता हूँ,

    उसी पुराने एहसास में,

    पर अब बिना किसी डर के।”

    मैगी की मुस्कान बस ठहर गई —

    धीमी, सच्ची, और पुरानी यादों जैसी गर्म।

    और जैसे ही लैम्प की लौ टिमटिमाई,

    वो दोनों फिर उसी खामोश में लौट गए —

    जहाँ बातों से ज़्यादा यादें बोलती थीं,

    और हर साँस में वही एक नाम था — मैगी।

    उसने मैगी‌ की ठुड्डी हल्के से पकड़कर ऊपर उठाई।

    दोनों कि नज़रें कुछ सेकंड तक एक-दूसरे में अटकी रहीं — जैसे बहुत कुछ कहना बाकी था।

    "अब और रुकना मुश्किल हो रहा है..." उसने धीमे लेकिन साफ़ लहजे में कहा।

    और फिर...

    उसने मैगी के होंठों को अपने होंठों से छू लिया —

    धीरे-धीरे, बिना किसी जल्दी के... जैसे ये पल कभी ख़त्म न हो।

    शुरुआत बहुत सॉफ्ट थी, बस होंठों की हल्की टच।

    फिर अचानक उसमें एक गहराई आ गई —

    जैसे वो सारी अधूरी बातें अब इस एक किस में बयां कर रहा हो।

    उसकी उंगलियाँ मैगी कि कमर को कसकर पकड़ चुकी थीं,

    और मैगी के हाथ खुद-ब-खुद धवल के बालों में चले गए — उसे और करीब खींचते हुए।

    दोनों अब एक-दूसरे को बस चूम नहीं रहे थे...

    दोनों उस पल में पूरी तरह खो चुके थे।

    उसका चुंबन कभी धीमा, कभी तेज़ होता गया —

    हर सेकंड के साथ उनके बीच की दूरी कम होती जा रही थी।

    मैगी के होंठों की कंपन को धवल ने अपने होंठों से समेट लिया —

    जैसे उसे हर एहसास महसूस हो रहा हो।

    कमरे में अब सिर्फ हमारी साँसों की आवाज़ थी...

    और वो गर्माहट जो हर पल दोनों को और पास ला रही थी।

    उसने मैगी का चेहरा अपनी हथेलियों में लिया…

    और बिना कुछ कहे, एक लंबी सांस भरकर मैगी के होंठों पर झुक गया।

    पहली छुअन में ही मैगी का दिल तेज़ धड़कने लगा।

    धवल मैगी को धीरे-धीरे, बहुत सलीके से चूम रहा था…

    पर जैसे-जैसे सेकंड बीतते गए, उसमें बेचैनी आनी लगी।

    अब उसका किस धीरे से तेज़ होता जा रहा था —

    उसके होंठों की हरकतें अब मैगी के होंठों को दबाने लगी थीं,

    वो बस एक चुंबन नहीं, पूरा वक्त रोक देना चाहता था।

    मैगी की सांसें घुटने लगीं, लेकिन मैगी ने खुद को पीछे नहीं खींच पाई…

    उल्टा मैगी ने उसे और करीब खींच लिया।

    मैगी के हाथ धवल कि पीठ पर फिसलने लगे और धवल मैगी कि कमर को कसकर पकड़ रहा था।

    कभी धवल मैगी के नीचे वाले होंठ को हल्के से काटता, कभी ऊपर वाले को खींचता —

    एक अजीब सी सिहरन हर बार मेरे पूरे बदन में दौड़ जाती।

    वो एक मिनट से ज़्यादा तक बिना रुके किस कर रहे थे।

    बीच-बीच में जब सांसें टूटतीं, धवल मैगी का चेहरा अपनी गर्दन में छुपा लेता, फिर दोबारा होंठों तक लौट आता।

    मैगी के होंठ अब थोड़े सूजे हुए लगने लगे थे, और उसकी सांसें मैगी के चेहरे पर गर्म हवा की तरह महसूस हो रही थीं।

    वो बस चूम नहीं रहा था… वो उसे अपने अंदर समेट रहा था

    कमरे में बस एक धीमी रौशनी थी… और उनके बीच कुछ भी कहने को बचा नहीं था।

    मैगी ने उसकी आँखों में देखा — वहाँ कोई जल्दी नहीं थी, कोई जल्दबाज़ी नहीं… बस इंतज़ार।

    जैसे वो चाहता था कि मैगी खुद आगे बढ़े… खुद उसे इजाज़त दे।

    मैगी ने अपनी नज़रें झुका लीं… और एक पल बाद, मैगी कि कमर पर उसकी उंगलियाँ हल्के से फिसलीं।

    धवल उसकी टॉप की गिरती हुई झालर को धीरे से हटाने लगा… मैगी के पेट तक आते हुए,

    एक-एक इंच जैसे साँसें थम रही थीं।

    "ठीक है न?" – उसने फुसफुसाते हुए पूछा।

    मैगी ने बस आँखें मूंद लीं।

    और फिर…

    उसके होंठ मैगी के पेट के सबसे नाज़ुक हिस्से तक आ गए।

    उसकी नाभि के पास।

    एक पल को कुछ नहीं हुआ।

    बस उसकी साँसें मेरी त्वचा से टकराईं।

    गर्म, धीमी… और छूती हुई।

    और फिर —

    उसने बहुत धीमे से मैगी कि नाभि के पास एक किस किया।

    कोई जल्दबाज़ी नहीं, कोई ज़ोर नहीं — बस एक लंबी, बहुत गहरी किस।

    मैगी ने अपनी उँगलियों से चादर को कसकर पकड़ लिया।

    उसके होंठ वहीं टिके रहे कुछ देर,

    जैसे वो सिर्फ छू नहीं रहा था…

    बल्कि महसूस कर रहा था मैगी को, उसके हर रिएक्शन को।

    "तेरी धड़कन यहाँ भी है," – उसने फुसफुसाया,

    और मैं हँसते-हँसते कांप गई।

  • 16. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 16 ( इसका साइज भी कमाल का है आह्ह्हृ... )

    Words: 1272

    Estimated Reading Time: 8 min

    धीरे-धीरे धवल की उँगलियाँ मैगी की कमर से ऊपर की ओर बढ़ीं,

    और उसके कपड़ों को एक-एक परत उतारती चली गईं।

    मैगी की साँसें तेज़ थीं—

    शर्म, घबराहट और उस पल की गर्माहट… सब मिलकर उसे पागल कर रहे थे।

    धवल के करीब आते ही

    उसने भी उसके शर्ट के बटन खोलने शुरू किए,

    धीमे-धीमे, जैसे हर स्पर्श में कोई सवाल छिपा हो।

    कुछ ही पलों में दोनों के कपड़े फर्श पर बिखर चुके थे,

    और वे बिल्कुल नग्नावस्था में एक-दूसरे के सामने खड़े थे।

    मैगी की आँखें झुक गईं,

    चेहरा लाल… साँसें काँपती हुईं।

    उसकी हल्की-सी शर्म और घबराहट ने धवल को और पागल कर दिया।

    वो धीरे से उसकी ठुड्डी उठाकर बोला,

    “शर्माओ मत… मैं हूँ न।”

    मैगी ने उसके सीने से खुद को हल्का-सा सटा लिया—

    और उस पल में दूरी भी खत्म हो गई,

    और हिचक भी। इस वक्त दोनों खड़े थे एक दम नग्न ,

    धवल मैगी के बूब्स को पकड़ कर सहलाने लगा मैगी भी उसके हार्डनेस को पकड़ सहलाने लगी,

    दोनों काफी देर तक खड़े होकर ऐसे ही करते रहे फिर धवल घूंटने के बल बैठ गया,

    और फिर वो मैगी कि टांगों को फैला कर उसकी किटी को देख दिवाना होने लगा , उसने उंगली उस पर रख कहा ,

    " स्वीट हार्ट ये बोहोत खुबसूरत है , इसका साइज भी कमाल का है ,"

    वो शरमा गई तभी वो अपनी उंगली से मैगी कि किटी को सहलाने लगा ,

    जब को मैगी कि उस जगह सहला रहा था उसकी आहे निकलने लगी वो एक्साइटेड होकर अपनी रफ़्तार तेज कर दिया ,

    " आह्ह्हृ ......... आइ....... ऊं...... मां....... आराम से जान दर्द हो रहा है ,"

    वो बोला ,

    " स्वीटहार्ट ये तो इस मिठे दर्द कि शुरुआत है ,"

    उसके पैर कांप रहे थे फिर वो गिली हो रही थी वो मैगी कि सोफ्टनेस मे,

    उंगली घूमाने लगा फिर तभी वो अपने होंठ वहां रख कर पेशिनेट होकर चूमने लगा ,

    उसके होंठों का टच मैगी को पागल कर रहा था , उसने वहां बाइट किया तो मैगी उछल गई , धीरे धीरे धवल और मैगी और आगे बढ़ने लगे

    फिर उसने मैगी को बाह में उठा लिया और बिस्तर पर लेटा दिया , फिर उसने मैगी के पैरे पर बिस्तर पर फैला दिये ,

    मैगी कि किटी उसके सामने थी वो अपनी हार्ड नेस निकाल कर मैगी गहराई में उतर गया उसकी चिख निकली ,

    मैगी को ऐसा लगा जैसे उसने पहली बार कुछ ऐसा किया था उसके हाथों में चादर भींच गई , धवल उसके अंदर समाया था उसके हर झटके में वो मैगी के और गहराई में उतरता रहा ,

    अब वो उसकी ऊपर था गहराई में समाया हुआ ,

    वो मैगी बूब्स को हाथों में लेकर खेलने लगा फिर एक को मुंह में लेकर बूब्स पीने करने लगा मैं आंखें बंद कर उसके बाल सहला रही थी ,

    उसकी ज़बान से थूक मेरे बूब्स पर लग रहा था वहां उसने जोर से काटा तो मेरी चिख निकल गई ,

    " आह्ह्हृ....... आह्ह्हृ.......,"

    फिर वो मैगी का दूध पीने के बाद ऊपर होंठों पर आ गया ,

    **"बस एक सेकंड भी और नहीं..."** उसके लहजे में बेचैनी थी, और एक मीठा इंतज़ार।

    उसने कुछ नहीं कहा। उसकी आँखें जवाब थीं। पलकों में काँपता भरोसा, होंठों पर अटकी हुई एक साँस।

    और फिर…

    उनके होंठ मिले।

    धीरे।

    नर्म।

    जैसे वक़्त रुक गया हो।

    उसके होंठों की गर्माहट जैसे सीधे रूह में उतर रही थी। उसने उसकी निचली होंठ को हल्के से पकड़कर चूमा — एक **धीमी, मगर पिघलती हुई फ्रेंच किस** जिसने दोनों के अंदर छुपी आग को हवा दे दी।

    **"आह्ह्ह…"** — एक साँस के साथ निकली वो आवाज़ जैसे उस पल की गवाही दे रही थी।

    उसकी उंगलियाँ उसकी गर्दन के पीछे उलझ गईं, जैसे वो उसे और पास खींचना चाह रही थी — और वो भी, बिना रुके, उसकी साँसों को अपने में भरता गया।

    उनके होंठ अब एक-दूसरे के भीतर उतरते जा रहे थे, धीमे-धीमे गहराई पकड़ती ये **फ्रेंच किस**, अब तेज़ होती धड़कनों के साथ मेल खा रही थी। उसका स्वाद, उसकी साँसों की मिठास — सब कुछ जैसे एक गीत बन चुका था, जिसे उनकी आत्माएं सुन रही थीं।

    किसी की घड़ी की टिक-टिक अब सुनाई नहीं दे रही थी।

    बस उसकी ऊँगली उसके जबड़े के पास की त्वचा को छू रही थी, और उसकी हल्की सी कराह…

    **"उह्ह… आह्ह्ह…"**

    जैसे उसकी आत्मा से निकली हो।

    वो अब उसके होंठों से उसके गाल की तरफ़ बढ़ा, एक-एक स्पर्श के साथ जैसे उसके शरीर की हर कोशिका को जगाता जा रहा हो। फिर दोबारा उसकी नज़रें उसकी आँखों से मिलीं — और बिना कहे ही दोनों ने अगला कदम बढ़ाया।

    उनके होंठ फिर मिले — इस बार और गहराई से, और अधिक पैशन के साथ। उसकी जीभ अब उसकी जुबान से खेल रही थी, और उसने खुद को रोकना बंद कर दिया।

    वो सिसकी जो उसके गले से निकली, वो कोई शर्म नहीं, बल्कि उस पल की पुकार थी।

    **"मुझे कुछ नहीं चाहिए… बस तू…"**

    उसकी आवाज़ टूटी थी — जैसे वो खुद उस किस में खो गई हो।

    धीरे-धीरे वे दोनों एक-दूसरे में समा गए, लेकिन वो फ्रेंच किस — वो अब भी चल रही थी, मानो वक़्त उसी पर टिक गया हो।

    हर सेकंड, हर साँस, जैसे अमर हो रही थी।

    उसकी साँसें तेज़ थीं, धड़कनें बेकाबू… लेकिन जाने क्यों, उस पल में एक अजीब-सा सुकून घुला हुआ था।

    उसने मैगी के माथे पर हल्का-सा चुम्बन दिया और बहुत धीमी आवाज़ में कहा —

    **"मैं थक गया हूँ… लेकिन तुझसे दूर जाने का मन नहीं करता…"**

    वो बस मुस्कुरा दी। मैगी कि उंगलियाँ अब भी उसकी पीठ पर तैर रही थीं, जैसे कुछ कहना चाहती थीं…

    **"तो मत जाओ… यही रहो…"**

    मैगी कि ये बात सुनकर उसकी आँखें कुछ और नरम पड़ गईं।

    वो बोल नहीं रहे थे, लेकिन उनके जिस्म जैसे आपस में बात कर रहे थे।

    कहीं कोई जल्दी नहीं थी, ना कोई झिझक…

    बस हर छुअन में अपनापन था, हर स्पर्श में एक सुकून।

    जब उसने मैगी के बालों को सहलाते हुए मैगी के कंधे पर एक नर्म चुम्बन लिया…

    मैगी रूह तक काँप गई।

    **"उफ्फ…"**

    ये आह खुद-ब-खुद उसके होंठों से निकली थी।

    वो एहसास… इतना गहरा था कि मैगी को लगा जैसे वो खुद को उसके भीतर पिघलते हुए महसूस कर रही हूँ।

    वो धीरे-धीरे मैगी के और करीब आया — अब उनके बीच कुछ भी नहीं था, सिवाय नज़दीकियों के।

    धवल ने मैगी का चेहरा अपनी हथेलियों में भरकर देखा…

    उसकी आँखों में थकान थी, लेकिन साथ ही एक शांति… एक गहराई।

    और फिर वो लम्हा आया —

    जब मैगी ने पहली बार खुद को पूरी तरह किसी के हवाले किया।

    बिना किसी डर के, बिना किसी सवाल के।

    धीरे-धीरे, बेहद सौम्यता से वो मैगी को उस एहसास की ऊँचाई तक ले गया —

    जहाँ कोई नाम नहीं होता, कोई शब्द नहीं… बस साँसों की लय होती है, और रूह का सुकून।

    कई पल बाद…

    उसकी साँसें थकी हुई थीं, बाल उलझे हुए थे… और मैगी कि उंगलियाँ अब भी उसकी पीठ को थामे हुए थीं।

    मैगी ने अपना सिर उसकी छाती पर रखा — उसकी बाँहें अपने आप उसके चारों ओर कस गईं।

    **"अब कुछ मत कहो…"**

    उसने धीमे से फुसफुसाया —

    **"बस ऐसे ही रहो…"**

    कमरे में अब सिर्फ हमारी साँसों की धीमी आवाज़ थी…

    मैगी धवल कि उसकी बाहों में थी — पूरी तरह, पूरी सुकून में।

    धीरे-धीरे मैगी कि पलकों पर नींद उतरने लगी…

    और मैगी उसके ही आलिंगन में खो गई।

    आख़िरी बार उसने मैगी पीठ को सहलाया…

    और जब मैगी ने आँखें बंद कीं, तो उसे यकीन था —

    **इस वक्त ने कुछ बदल दिया है।**

    वो एक बार फिर धवल कि… पूरी तरह उसकी हो गई थी।

    और वो... सिर्फ मैगी।

  • 17. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 17 ( प्लीज़… अब दूर रहो। मैं फ्रेश होने जा रही हूँ” )

    Words: 1105

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैगी और धवल अब बिस्तर पर थे। सफ़ेद चादर दोनों के ऊपर हल्के-से पड़ी थी, जैसे लंबे झंझट और थकान के बाद उन्हें थोड़ा सुकून मिल गया हो। कमरे में बस धीमी साँसों की आवाज़ थी और बाहर से आती हुई हल्की-सी हवा की सरसराहट।

    धवल धीरे से उसकी ओर मुड़ा। अपना सिर उसने हथेली पर टिका लिया, जैसे अब सिर्फ मैगी को ही देखना उसकी सबसे बड़ी जरूरत हो। मैगी सीधी लेटी थी—चादर उसके सीने तक थी, आँखें बंद, साँसें थोड़ी भारी। वो थकी हुई थी… और उसकी ये थकान कहीं न कहीं धवल के चेहरे को भी नरम कर रही थी।

    कुछ पल तक धवल बस उसे देखता रहा। उसके चेहरे पर पड़ती हल्की रोशनी, बंद आँखों के पास जमा हुई नर्मी, और बालों की कुछ लटें जो गाल पर आ गिरी थीं—सब कुछ उसे अजीब-सा खींच रहा था।

    धीरे से उसने अपना हाथ बढ़ाया और मैगी के गाल को सहलाने लगा। उसकी उंगलियों का स्पर्श बहुत हल्का था, जैसे डर हो कि कहीं मैगी की नींद न टूट जाए। लेकिन मैगी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी—न खोली आँखें, न हिली। बस उसकी सांस थोड़ी-सी गहरी हुई।

    धवल उसके चेहरे से नीचे आया… बहुत धीरे-से। उसकी उंगलियाँ अब उसके जबड़े की लाइन को फॉलो करते हुए गले तक पहुँचीं। मैगी का गला चादर के ऊपर ही था, बहुत साफ़, बहुत शांत। उसकी उंगली वहाँ पहुँचकर रुक गई नहीं—हल्के-हल्के से घूमने लगी, जैसे वो सिर्फ उसे महसूस करना चाहता हो, बिना कुछ कहे।

    मैगी की पलकों में हल्की-सी हलचल हुई, लेकिन उसने आँखें बंद ही रखीं। उसके होंठों पर बमुश्किल दिखने वाली एक थकी हुई साँस निकली, जिसे धवल ने साफ़-साफ़ महसूस किया।

    उसे लगा वो और करीब आना चाहता है… लेकिन वो जल्दबाज़ी नहीं कर रहा था। बस देख रहा था—मैगी को, उसकी थकान को, उसके शांत चेहरे को।

    धवल ने फिर धीरे से उसके बालों को कान के पीछे किया, और अपना अंगूठा उसके गले पर चलाते हुए रुक गया। कमरे में एक अजीब-सी गर्म नर्मी भर गई थी—न कोई शब्द, न कोई आवाज़… बस दो लोग, एक-दूसरे की मौजूदगी में पिघलते हुए।

    मैगी ने अपने हाथ को थोड़ा-सा हिलाया, जैसे नींद और होश के बीच फँसी हो, पर धवल के स्पर्श को अनजाने में स्वीकार कर रही हो। धवल हल्का-सा मुस्कुराया… उसे इतने करीब, इतने शांत देखकर शायद पहली बार उसे लगा कि ये पल सिर्फ उसका नहीं—दोनों का है।

    वो वहीं उसके पास फैसले की तरह टिक गया—न बोला, न उसे जगाया… बस उसे महसूस करता रहा।

    तभी मैगी ने आँखे खोल, धवल को खुद से दूर कर दिया और कहा,

    “धवल, प्लीज़… अब दूर रहो। मैं फ्रेश होने जा रही हूँ।”

    धवल बोला, “चलो, दोनों साथ चलते हैं, स्वीटहार्ट।”

    मैगी ने फिर कहा, “प्लीज़ जाने दो।”

    और फिर मैगी ने अपने ऊपर से चादर हटाई और बिस्तर से नीचे उतरकर बाथरूम जाने लगी।

    एक बार फिर उसका नेक्ड बॉडी धवल के सामने दिखने लगी थी।

    धवल की नज़र उसके कूल्हों पर थी, जो बहुत बड़े थे।

    चलते हुए जब वो ऊपर–नीचे होते, तो धवल की हार्डनेस फिर से खड़ी हो गई।

    दोपहर 12:35

    मीटिंग खत्म होते-होते रोहित का दिल वैसे ही पस्त हो चुका था, जैसे किसी ने उसकी इज़्ज़त को बेलन से बेल देकर चपटा कर दिया हो।

    वो फाइलें दबाए अपने छोटे केबिन में घुसा और दरवाज़ा बंद करके कुर्सी पर ढेर जैसा बैठ गया।

    रोहित (बड़बड़ाते हुए):

    “हे भगवान… आज तो पूरे थाने में मेरा मज़ाक ‘किस मी–टच मी’ नाम से चलेगा…”

    उसने माथा दबाया ही था कि—

    ट्र्र्र… ट्र्र्र…

    फिर वही नंबर।

    शिवानी।

    रोहित ने गहरी साँस ली।

    “अब क्या बोलूँगी वो…”

    उसने फोन उठाया और धीरे से बोला,

    “हेलो…?”

    उधर से शिवानी की वही नरम, पिघलती आवाज़—

    थोड़ी सी शर्म, थोड़ा सा गुस्सा, और ज़्यादा… वही शरारत।

    शिवानी:

    “मीटिंग में था न? बहुत मज़ा आ रहा होगा सबके सामने मेरी आवाज़ सुनकर…”

    रोहित:

    “अरे पगली, मरवा दिया तुमने! DCP तक सुन रहा था! पूरा थाने वाले मुझ पर हँस रहे हैं!”

    फोन की दूसरी तरफ हल्की हँसी गूंजी।

    वो हँसी नहीं… चिढ़ाना था।

    शिवानी:

    “तो क्या करूँ? तुमने ही कहा था कल रात—

    ‘तुम्हारी आवाज़ सुनकर मेरा दिन बन जाता है।’

    अब मैंने सोचा… दिन बना दूँ।”

    रोहित ने होंठ भींच लिए।

    याद आते ही कान लाल हो गए।

    रोहित:

    “वो बात रात में अच्छी लगती है… दिन में नहीं। और स्पीकर पर तो बिल्कुल नहीं!”

    शिवानी ने धीमे और और भी मुलायम स्वर में कहा—

    “अच्छा… तो रात वाली बातें याद आ रही हैं?”

    रोहित तुरंत सीधा होकर बैठ गया।

    “अरे यार, प्लीज़… अभी मत शुरू करो। मैं स्टेशन में हूँ।”

    शिवानी:

    “तो क्या हुआ? दरवाज़ा बंद है, है ना?”

    रोहित ने इधर-उधर देखा, केबिन का दरवाज़ा खिड़की सब चेक किया।

    “हाँ… बंद है।”

    शिवानी (और नरम आवाज़ में):

    “तो सुनो…”

    एक लंबा, धीमा साँस लेने की आवाज़…

    “मैं सुबह से तुम्हें याद कर रही हूँ।

    तुम्हारे जाने के बाद तकिया भी ठंडा हो गया था…

    और मुझे नींद भी नहीं आई।”

    रोहित का गला सूख गया।

    “शिवू… प्लीज़, मैं सच में काम पर हूँ।”

    शिवानी:

    “मुझे पता है।

    पर क्या करूँ…

    तुमसे बात होते ही कुछ-कुछ होने लगता है…”

    फिर मुस्कुराकर बोली,

    “वैसे एक बात पूछूँ?”

    रोहित ने माथा रगड़ा।

    “पूछो…”

    शिवानी:

    “कल रात तुमने कहा था न—

    ‘आज नहीं तो कब…’

    तो बताओ… आज रात क्या प्लान है?”

    रोहित ने कुर्सी के हत्थे को पकड़ा जैसे गिरने वाला हो।

    “शिवानी… आज रात हमें ऑपरेशन पर बाहर जाना है। शायद देर हो जाएगी।”

    थोड़ी खामोशी…

    फिर बेहद धीमी, नरम आवाज़—

    शिवानी:

    “तो जल्दी आ जाना।

    मैं… तैयार रहूँगी।”

    रोहित हँस दिया—

    पागलपंती और प्यार दोनों से हार चुका था।

    रोहित:

    “तुम मुझे मरवाओगी एक दिन।”

    शिवानी:

    “मरना ही है तो मेरी बाँहों में मरना… ऑफिस की मीटिंग में नहीं।”

    रोहित मुस्कुराए बिना नहीं रह पाया।

    रोहित:

    “ठीक है… आज रात जल्दी आऊँगा।

    और हाँ—

    फोन पर वो गाने मत भेजना।

    मैं अब डर जाता हूँ उसे देखकर।”

    शिवानी खिलखिलाकर हँसी।

    “ठीक है… पर रात में वही गाना तुम गाओगे मेरे लिए।”

    रोहित ने हाथ से माथा पकड़ा—

    “भगवान…”

    शिवानी:

    “ठीक है, अब काम करो।

    बस याद रखना…

    मैं इंतज़ार कर रही हूँ।”

    फोन कट गया।

    रोहित कुर्सी पर पीछे टिक गया।

    चेहरा शर्म से अब भी गर्म,

    पर दिल में एक प्यारी सी मुस्कान।

    इतने में बाहर से विनोद की आवाज़ आई—

    “सर, हम अंदर आएँ? या कोई और रोमांटिक कॉल बाकी है?”

    रोहित ने फाइल उठाकर चिल्लाया—

    “चुप कर विनोद! अंदर आ!”

    और बाहर पूरा स्टाफ दबाकर हँस रहा था।

    रोहित ने खुद से कहा—

    “साला… क्रिमिनल पकड़ना आसान है।

    बीवी को सँभालना सबसे मुश्किल।”

    अगर चाहें तो अगला सीन लिख दूँ— जहाँ रात में ऑपरेशन शुरू होने वाला है और रोहित घर जाकर शिवानी से एक प्यारा-शरारती आमना-सामना करता है।

  • 18. मदहोशी <br> <br>ए ट्रू लव स्टोरी - Chapter 18 ( आह्ह्हृ... ऐसे ही करते रहो )

    Words: 1103

    Estimated Reading Time: 7 min

    धवल बिस्तर पर ही बैठा रह गया।

    कमरे की खामोशी अब पहले जैसी शांत नहीं थी—उसमें एक अजीब-सी बेचैनी घुल गई थी।

    बाथरूम से शावर की आवाज़ आ रही थी… पानी की लगातार गिरती धार, और बीच-बीच में मैगी की हल्की-सी साँसें, जो दीवारों से टकराकर जैसे सीधे उसके सीने में उतर रही थीं।

    उसने करवट बदली।

    फिर सीधा बैठ गया।

    फिर वापस तकिये से टिक गया—

    पर चैन कहीं नहीं था।

    उसकी नज़र अनजाने में उसी दरवाज़े पर अटक जाती, जहाँ से कुछ देर पहले मैगी गुज़री थी।

    वो पल…

    वो एक झलक…

    दिमाग में बार-बार लौट रही थी।

    “शांत रह, धवल…”

    उसने खुद से कहा, लेकिन जिस्म उसकी बात नहीं मान रहा था।

    शावर के नीचे, मैगी ने आँखें बंद कर ली थीं।

    गर्म पानी उसके कंधों से फिसलता हुआ नीचे जा रहा था—

    जैसे सारी थकान, सारा बोझ, सब कुछ धो देना चाहता हो।

    उसने हथेलियाँ दीवार पर टिका दीं और लंबी साँस ली।

    उसके दिमाग में भी वही पल घूम रहा था—

    धवल का पास आना,

    उसकी उँगलियों का वो हल्का-सा स्पर्श,

    और फिर खुद को रोककर उससे दूर जाना।

    वो जानती थी—

    अगर एक पल और रुकती,

    तो शायद खुद को संभाल पाना मुश्किल हो जाता।

    शावर की आवाज़ में उसकी साँसें थोड़ी तेज़ हो गईं।

    पानी के साथ-साथ वो बेचैनी भी बहा देना चाहती थी,

    जो उसके अंदर कहीं गहरी अटक गई थी।

    बाहर, धवल उठकर खिड़की के पास चला गया।

    पर्दा हटाया—

    दोपहर की धूप सीधी कमरे में आ गिरी,

    लेकिन उसके अंदर का अँधेरा कम नहीं हुआ।

    उसने कलाई घड़ी देखी।

    कुछ ही मिनट हुए थे…

    पर उसे लगा जैसे बहुत वक्त बीत गया हो।

    शावर बंद होने की आवाज़ आई।

    धवल एकदम सीधा हो गया।

    दिल की धड़कन तेज़।

    साँसें भारी।

    बाथरूम का दरवाज़ा अभी खुला नहीं था,

    पर उसे पता था—

    मैगी बस आने ही वाली है।

    और वो खुद से एक ही सवाल कर रहा था—

    जब वो सामने आएगी,

    तो क्या वो फिर से खुद को रोक पाएगा?

    या

    ये बेचैनी किसी और मोड़ पर ले जाएगी…?

    मैगी शावर के नीचे खड़ी थी। उसे किसी और बात का होश नहीं था। तभी एक हल्की-सी आवाज़ आई, लेकिन उसने उस पर गौर नहीं किया।

    तभी उसने अपने हाथ से बालों को पीछे किया—वो बाल, जिनसे अब तक उभार ढके थे।

    उसे मालूम नहीं था कि इस वक्त धवल भी बाथरूम में आ चुका था।

    धवल की नज़रें जब मैगी के बूब्स पर गईं, तो उसके हार्डनेस में कुछ होने लगा।

    धवल ने कहा,

    “वाओ… क्या लग रहे हैं! इसकी ये नरमी, पानी में भीगता इसका बदन—मुझे फिर पागल बना रहा है।”

    धवल खुद भी बिल्कुल नेक्ड था।

    वो मैगी को शावर में भीगते देख अपने हार्डनेस को पकड़कर सहलाने लगा।

    तभी मैगी ने उसे देखा। उसने कहा—

    मैगी: धवल, प्लीज़ जाओ।

    लेकिन धवल ने कहा—

    धवल: स्वीटहार्ट, तुम्हें लगता है मैं तेरे जलवे देख यहाँ से कहीं जा भी सकता हूँ? अभी तो तेरी और मौज लूटनी है।

    मैगी भी जैसे अब मूड में आ गई। उसने अपने बूब्स पर सहलाते हुए कहा—

    मैगी: दूर रहकर सिर्फ़ आँखों से ही मज़े ले सकते हो।

    धवल पल भर में क़रीब आ गया, शावर के नीचे, और मैगी के पीछे खड़ा होकर धीरे से उसके कान में कहा—

    धवल: स्वीटहार्ट, तुझे क्या लगता है मैं आँखों से ही मौज लूटने वाला हूँ? ये तेरी ग़लतफ़हमी है। अब तो मैं तुझे पहले से ज़्यादा कसके प्यार देने वाला हूँ।

    तभी धवल अपने हाथों को मैगी के कंधों से सरकाते हुए आहिस्ता से सामने की ओर, सीने तक ले गया। एक हाथ उसने पीछे से मैगी की टाँगों के बीच डाल दिया और एक हाथ मैगी के बूब्स पर।

    धवल अपने सीधे हाथ से मैगी की टांगों के बीच नाज़ुक किटी को पकड़कर उसे सहला रहा था। दूसरे हाथ से बूब्स ज़ोर से मसल रहा था। मैगी के हाथ भी वैसे ही थे—उल्टा हाथ धवल के हाथ पर, जो बूब्स पर था; और सीधा हाथ टांगों के बीच, जहाँ धवल का हाथ उसकी किटी को सहला रहा था। मैगी भी अपने हाथों से दबाव बना रही थी। उसके मुँह से सेक्सी आवाज़ें निकलने लगीं—

    “आह्ह्ह…।”

    मैगी बोली, “धवल, बेबी, और ज़ोर से कर। मैं कब से परेशान थी।”

    धवल—“मेरी जान…”

    मैगी—“और कर… वहाँ उँगली भी डाल ना। बहुत अच्छा लग रहा है, जान। करना वहाँ उँगली—तेरी उँगली वहाँ बहुत अच्छी लगती है। और ज़ोर से फ़ाड़ दे उसे।”

    जीप की नीली बत्ती धूप से भरी सड़कों पर घूमती हुई आगे बढ़ रही थी।

    सायरन बंद था, लेकिन इंजन की भारी आवाज़ ही बता रही थी—पुलिस अब मज़ाक के मूड में नहीं है।

    इंस्पेक्टर रोहित आगे की सीट पर बैठा था।

    आँखें सड़क पर थीं, लेकिन दिमाग़ में सिर्फ एक ही लोकेशन घूम रही थी—

    वही पुराना बैंक… वही जगह, जहाँ से 300 करोड़ गायब हुए थे।

    पीछे बैठा हवलदार विनोद खिड़की से बाहर झांकते हुए बोला—

    “सर… अजीब बात है।

    चोर भाग गए, पैसा नहीं मिला…

    और हम फिर वहीं लौट रहे हैं।”

    रोहित ने ठंडी आवाज़ में जवाब दिया—

    “कई बार जवाब वहीं होता है, जहाँ से सवाल शुरू हुआ हो।”

    जीप बैंक के सामने रुकी।

    बिल्डिंग वही थी—ऊँची, खामोश, और कुछ ज़्यादा ही डरावनी।

    गेट पर तैनात गार्ड ने पुलिस जीप देखते ही चौकन्ना होकर सलाम ठोका।

    अंदर घुसते ही बैंक मैनेजर लगभग दौड़ता हुआ आया।

    उसके चेहरे पर घबराहट और उम्मीद—दोनों साफ़ दिख रहे थे।

    “इंस्पेक्टर साहब!”

    उसने हांफते हुए कहा,

    “आप यहाँ…?

    क्या… क्या 300 करोड़ मिल गए हैं?”

    रोहित ने बिना मुस्कराए सिर हिलाया—

    “नहीं, मैनेजर साहब।

    लेकिन एक शक ज़रूर मिला है।”

    मैनेजर का चेहरा उतर गया।

    “तो फिर अब?

    चोरों को पकड़ने की जगह आप लोग यहाँ क्या करने आए हैं?”

    हवलदार विनोद ने माहौल हल्का करने की कोशिश में कहा—

    “रुपया तो नहीं मिला साहब…

    लेकिन एंथनी और टोनी ज़रूर जेल से फरार हैं।”

    मैनेजर ने एक पल के लिए उसे घूरा।

    “ये कोई मज़ाक का वक्त है, हवलदार?”

    विनोद ने कंधे उचकाए—

    “साहब, जब करोड़ों उड़ जाएँ…

    तो थोड़ा ह्यूमर ही इंसान को ज़िंदा रखता है।”

    रोहित ने बातचीत रोकते हुए कहा—

    “हमें उस दिन की सारी CCTV फुटेज फिर से चाहिए।

    हर एंगल से।

    हर सेकंड।

    और वो पुराना वॉल्ट—जिसे ‘क्लियर’ घोषित कर दिया गया था—

    वो भी दोबारा खुलवाइए।”

    मैनेजर के चेहरे पर बेचैनी लौट आई।

    “लेकिन सर… वहाँ तो पहले ही सब—”

    “लेकिन अपराधी भी वहीं से निकले थे,”

    रोहित ने उसकी बात काट दी।

    “और मैं मानता हूँ—

    कोई भी इतना बड़ा खेल बिना किसी निशान के नहीं खेलता।”

    बैंक के अंदर की लाइटें एक-एक कर जलीं।

    फाइलें फिर से खुलने लगीं।

    टीम पोज़िशन में आ गई।

    और उसी खामोश बैंक हॉल में—

    एक बार फिर

    300 करोड़ का भूत

    ज़िंदा हो उठा।