Novel Cover Image

Beyhad - “A love that breathes revenge "

User Avatar

~Bloom Diary~

Comments

3

Views

73

Ratings

3

Read Now

Description

✦ बेहद ✦ “एक ऐसा प्यार… जो बदले की साँसों से जीता है।” 💔 जब प्यार जुनून बन जाता है, तो दिल अपनी हद, अपना दर्द, अपनी होश-हवासी सब भूल देता है। वह प्यार के लिए बना ही नहीं था… पर फिर भी उसने उसके भीतर वह एहसास जगाया बेक़ाबू, बेहद, और ख़तरना...

Total Chapters (3)

Page 1 of 1

  • 1. Beyhad - “A love that breathes revenge " - Chapter 1

    Words: 1034

    Estimated Reading Time: 7 min

    कमरा बिल्कुल शांत था।
    चारों ओर फैली हल्की सुनहरी रोशनी लाल दुल्हन के लहंगे पर पड़कर और भी गहरी दिख रही थी।

    उस रोशनी के बीच—
    Nandini एकदम स्थिर बैठी थी।
    उसकी आँखों में आँसू भरे थे… पर गिर नहीं रहे थे।
    मानो उसका दिल अब भी एक रास्ता ढूँढ रहा हो—
    भाग जाने का, बच जाने का, या शायद… खुद को समझाने का।

    आखिरकार उसकी टूटती साँसों ने हार मान ली।

    धीरे से whispered हुआ—

    “न-नहीं… मैं ये शादी नहीं कर सकती।
    मैं उससे शादी नहीं करूँगी।”

    उसकी आवाज़ काँप रही थी।
    कमरे की भारी हवा और भारी हो गई।

    पास खड़ी दासियाँ एक-दूसरे को घबराकर देखने लगीं।
    किसी में इतना साहस नहीं था कि कुछ बोले…
    उसी पल—

    दरवाज़ा जोर से खुला।

    और अंदर दाखिल हुआ—

    Vedansh Oberoy.

    लंबा।
    ठंडा।
    निर्दयी नज़रों वाला।

    उसकी मौजूदगी ने पूरे कमरे का तापमान गिरा दिया।
    उसके कदमों की आवाज़ ऐसे गूंजी
    जैसे तूफ़ान अंदर चला आया हो।

    वह सीधे जाकर Nandini के सामने रुका।

    उसने बिना एक पल गँवाए
    उसका हाथ पकड़ लिया—
    इतनी मजबूती से कि Nandini हल्के से सिसक उठी।

    Vedansh की आँखों में गुस्सा, हुक्म और कुछ गहरा अंधेरा था।

    धीमी, मगर ज़हरीली आवाज़ में बोला—

    “रो सकती हो… चीख सकती हो… टूट सकती हो, Nandini…”

    वह थोड़ा झुककर उसके बिल्कुल करीब आया।

    “लेकिन आज की रात…
    चाहे तुम्हारा दिल माने
    या ना माने…
    तुम मेरी दुल्हन बनोगी।”

    Nandini की साँस अटक गई।
    उसकी आँखों से आँसू आखिरकार गिर पड़े।

    Vedansh…
    एक पल के लिए भी नहीं हटा।
    उसकी आँखें सिर्फ Nandini पर जमी थीं—
    जैसे वो उसके डर का हर कतरा पी रहा हो।

    बाहर मंडप की आग जल चुकी थी।
    उसकी लपटें Nandini की आँखों में दिखाई दे रही थीं—
    लपटें जो जीवन नहीं,
    एक अनचाही किस्मत का आरंभ थीं।

    वो लड़की जो कभी प्यार का सपना देखती थी—
    आज उसी सपने की राख पर बैठी थी।

    एक शादी…
    जो दर्द में लिखी गई थी।
    एक रिश्ता…
    जो बदले में बनाया जा रहा था।

    Vedansh और Nandini इस वक़्त कार में थे।
    Nandini अभी तक रो ही रही थी… उसकी सिसकियाँ मानो पूरे माहौल को चीर रही हों।

    वहीं Vedansh, जो अब उसकी इन आंसुओं से चिड़ चुका था—
    उसने गुस्से में उसकी तरफ देखा।

    अचानक उसने अपना हाथ बढ़ाकर Nandini की ठुड्डी को जोर से पकड़ लिया और दाँत भींचते हुए बोला,

    “बस… बहुत हो गया तुम्हारे ये झूठे आँसू।
    अब अगर एक भी आँसू या एक भी शब्द निकला तुम्हारे मुँह से…
    तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”

    इतना बोलकर उसने उसे पीछे की तरफ धक्का दे दिया।

    Nandini उसके इस तरह के व्यवहार से दर्द में तड़प उठी।
    उसकी आँखों से और ज़्यादा आँसू बहने लगे…
    पर इस बार डर ने उसकी आवाज़ छीन ली थी—
    एक भी आवाज़ उसके होंठों से बाहर नहीं आई।

    कुछ देर बाद…

    कार एक विशाल, काले रंग की हवेली के सामने जाकर रुकी।

    गेट पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था—
    “THE OBEROY MANSION”

    जैसे ही कार पहुँची, भीतर से कई गार्ड दौड़ते हुए आए।
    गेट खोला गया… और कार हवेली के अंदर चली गई।

    Vedansh गुस्से में कार से उतरा और
    Nandini का हाथ कसकर पकड़ते हुए उसे लगभग घसीटता हुआ हवेली की ओर ले जाने लगा।

    Nandini का हाथ उसकी पकड़ से जल रहा था—
    वह छुड़ाने की कोशिश कर रही थी,
    लेकिन Vedansh की ताकत और गुस्सा दोनों उससे कहीं ज़्यादा भारी थे।

    जैसे ही वे अंदर पहुँचे…

    Vedansh की नज़र सामने बैठे एक बुज़ुर्ग, कड़क शख़्स पर पड़ी।
    उन्हें देखते ही Vedansh के कदम रुक गए।

    वो थे— Arnav Singh Oberoy
    Vedansh के दादा।

    उनकी नज़र जैसे ही Vedansh पर गई—
    उनकी आँखों में हल्का सा सदमा दिखा।
    लेकिन जब उनकी नज़र Nandini पर पड़ी…
    उनकी आँखें अँधेरी हो गईं।

    उनके चेहरे पर गुस्सा साफ़ चमक रहा था।

    वो तमतमाते हुए उठ खड़े हुए और गरजती आवाज़ में बोले—

    “ये क्या है, Ved? ये लड़की हमारे घर क्यों आई है?”

    उनकी दहाड़ सुनकर
    Nandini सहमकर एक कदम पीछे हट गई।

    Vedansh ने ठंडी, सख़्त आवाज़ में जवाब दिया—

    “मैं इसे… शादी करके लाया हूँ।”

    Arnav सिंह की आँखें सदमे से फैल गईं।

    “क्या?!
    Ved, तुम उस शख़्स की बेटी से शादी कैसे कर सकते हो
    जिसने हमसे इतनी बड़ी गद्दारी की थी?”

    Vedansh ने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए,
    अपनी कड़क आवाज़ में कहा—

    “इसीलिए तो इसे लाया हूँ, दादाजी…
    अपने हर दर्द का बदला…
    दर्द से लेने के लिए।”

    बिना एक शब्द और सुने,
    वह Nandini को जोर से पकड़कर ऊपर अपने कमरे की ओर चल पड़ा।

    Nandini बस उसके पीछे-पीछे घसीटती चली जा रही थी…
    डरी हुई… खोई हुई…
    और उस अंधेरी हवेली में
    उसकी नई ज़िंदगी—
    एक कैद बनकर शुरू हो चुकी थी।

    कमरे का दरवाज़ा खुलते ही… Vedansh ने बिन किसी रहम के, Nandini को अंदर खींचा।
    अगले ही पल—
    धक्का।
    और Nandini धड़ाम से फर्श पर जा गिरी।

    उसके होंठों से एक टूटती सी “आ…” निकली।
    आँसू उसकी पलकों से बहते चले जा रहे थे… जैसे किसी ने ख़ामोशी को भी रुला दिया हो।

    Vedansh उसके पास झुकता है…
    उसकी नज़रों में दहकती हुई नफ़रत थी—इतनी कच्ची, इतनी काली, कि साँस थम जाए।
    वो Nandini का चेहरा बेरहमी से पकड़कर ऊपर उठाता है।

    उसकी आवाज़ घाव की तरह कटती हुई—
    “बोहोट शौक था ना तुम्हारे बाप को मेरे परिवार से खेलने का… उनके विश्वास से… उनकी इज़्ज़त के साथ खेलने का!!”
    उसकी पकड़ और सख़्त हो जाती है—
    “अब वही सब खेल मैं खेलूँगा… और इतना अच्छा खेलूँगा कि तुम्हारे बाप की रूह भी काँपेगी… मेरा खेल देखकर।”
    “हर उस दर्द का बदला लूँगा जो मैं 28 सालों से झेलता आ रहा हूँ… तुम्हें ज़र्रे–ज़र्रे से तोड़ दूँगा मैं…”

    अगले ही सेकंड… वो उसका चेहरा झटक कर दूर कर देता है।
    Nandini की चीख गले में ही घुट जाती है…

    डरी हुई, टूटी हुई, वो बमुश्किल शब्द निकाल पाती है—
    “क…क्या किया है मेरे बाबा ने? क्यों तुम उन्हें ऐसा बोल रहे हो? वो शख्स तुम्हारा क्या बिगाड़ सकता है जो… 20 साल से इस दुनिया में नहीं है…”

    उसकी आवाज़ टूटकर रुआंसी हो जाती है।
    Vedansh की आँखें गुस्से से और फैल जाती हैं—
    “सब बताऊँगा… उन सारी हरकतों के बारे में बताऊँगा जो तुम्हारे बाप ने की हैं। पर ऐसे ही नहीं… वो हर एक दर्द देकर बताऊँगा।”

  • 2. Beyhad - “A love that breathes revenge " - Chapter 2

    Words: 1025

    Estimated Reading Time: 7 min

    कहकर वो मुड़ता है… और बाथरूम की ओर चला जाता है।

    कमरे में सिर्फ़ Nandini की सिसकियाँ गूँजती रहती हैं।

    वो फर्श पर बैठी… बिल्कुल अकेली… बिल्कुल बेसहारा।

    उसकी कंपकंपाती आवाज़ गूँजती है—

    “मेरे साथ ही क्यों होता है ये भगवान जी… पहले आपने मुझसे मेरे माँ–बाबा छीने… और अब ये सब… क्यूँ… क्यूँ कर रहे हो मेरे साथ ऐसा…”

    उसकी चीख कमरे की दीवारों से टकराती है।

    आँसू पोंछते हुए उसकी नज़र एक मेज़ पर जाती है—

    जहाँ फलों के साथ एक तेज़ चाकू रखा था।

    धीरे–धीरे… जैसे किसी खिंचाव में बँधी हो… वो उसकी ओर बढ़ती है।

    चाकू हाथ में लेते ही उसकी उंगलियाँ काँप जाती हैं।

    “मैं… मैं इस इंसान की नहीं रह सकती… माँ–बाबा… मैं भी आपके पास आ रही हूँ…”

    और अगले ही क्षण—

    उसने चाकू अपनी कलाई पर रखकर खींच दिया।

    खून…

    फर्श पर गिरती बूँदें…

    और उसके साथ उसकी चेतना भी फिसलती चली गई।

    कुछ ही पल में, वो ज़मीन पर पड़ी थी—बिल्कुल निर्जीव, बिल्कुल ख़ामोश।

    बाथरूम का दरवाज़ा खुलता है—

    Vedansh बाहर आता है, कपड़े बदले हुए, चेहरे पर वही ठंडा घमंड…

    पर जैसे ही उसकी नज़र फर्श पर पड़ी Nandini पर पड़ती है—

    उसकी साँस अटक जाती है।

    खून…

    उसकी कलाई…

    उसकी आँखों से ढली आँसुओं की चुप परत…

    Vedansh की आँखें फैल जाती हैं—

    किसी तूफ़ान की तरह।

    वो झट से दौड़ता है, Nandini को बाँहों में उठाता है और बिस्तर पर लिटा देता है।

    थरथराते हाथों से फोन मिलाता है—

    “जल्दी से Mansion में कोई लेडी डॉक्टर भेजो… अभी के अभी!”

    बिना जवाब सुने वो फोन काट देता है।

    फिर Nandini की ओर देखकर… दबी, खतरनाक आवाज़ में फुसफुसाता है—

    “इतनी आसानी से नहीं बचोगी मुझसे… अपना बदला पूरा किए बिना… तुम्हें मैं इस दुनिया से जाने नहीं दूँगा।”

    पर इस बार… उसकी आँखों के पीछे कुछ और भी था—

    डर… और एक बहुत गहरी, बहुत छिपी हुई बेचैनी।

    कुछ देर बाद…

    डॉक्टर आ चुकी थी।

    वह इस समय नंदिनी के घायल हाथ पर बड़ी सावधानी से पट्टी बाँध रही थी।

    पट्टी पूरी करने के बाद, डॉक्टर ने वेदांश की ओर देखते हुए शांत स्वर में कहा—

    “मिस्टर ओबेरॉय, चिंता की कोई बात नहीं है। बस अधिक ख़ून बहने के कारण इन्हें कमजोरी महसूस हो रही है। थोड़ी ही देर में होश आ जाएगा। ये दवाइयाँ समय पर दे दीजिएगा।”

    इतना कहकर डॉक्टर वहाँ से चली गई।

    डॉक्टर के जाते ही कमरे में गहरी ख़ामोशी फैल गई।

    वेदांश की नज़र एक पल के लिए नंदिनी पर पड़ी—

    बिस्तर पर पड़ी वह बिल्कुल निर्जीव-सी लग रही थी, चेहरे पर पीलेपन की एक परत और पलकों पर जमे आँसुओं के निशान अब भी साफ़ दिख रहे थे।

    एक क्षण को वेदांश की निगाहें हल्की-सी नरम पड़ीं…

    पर अगले ही पल उसका भाव फिर वैसा ही कठोर हो गया।

    बिना कुछ कहे, बिना ज़रा भी ठहरे—

    वह मुड़कर कमरे से बाहर चला गया।

    उसके कदमों की आवाज़ बस कुछ ही क्षणों तक गलियारे में गूँजती रही… फिर सब कुछ एकदम शांत हो गया।

    सेंट पीटर्सबर्ग (रूस)-द कोल्ड किंग्स सिटी...

    दूसरी तरफ...

    एक अंधेरा कमरा...

    आवाज़ काफी तेज़ थी...जहां से उस समय दो लोगों की सांसों की आवाज़ आ रही थी...दो लोग एक ही बिस्तर पर लेटे हुए थे, नंगे, एक-दूसरे को गले लगाए हुए...

    लड़का और लड़की दोनों... एक-दूसरे को जोश से किस कर रहे थे...लड़के का हाथ लड़के की छाती को कसकर दबा रहा था...लड़की को किस कर रहा था...थोड़ी देर बाद, लड़का घूमा और लड़की को अपने ऊपर बिठा लिया...

    वह लड़की...ऊपर आने के बाद...

    ...बिस्तर पर बैठ गई...लड़की धीरे-धीरे लड़के के निचले शरीर की तरफ झुकने लगी...नीचे झुकने के बाद, लड़की इस निचले शरीर को किस करने और चूसने लगी...

    लड़के के हाथ उसके बालों पर थे...वह उसके बाल पकड़े हुए था...और उन्हें ज़ोर से दबा रहा था...थोड़ी देर चूसने के बाद, लड़की वापस ऊपर आई...और लड़के को किस करने लगी...

    लड़के ने जल्दी से उसे अपनी ओर खींचा और उसके अंदर चला गया...बिना किसी वॉर्निंग के...जैसे ही लड़की की चीखें पूरे कमरे में गूंजीं...

    यह काफी देर तक चलता रहा समय...

    सुबह हो गई थी

    लेकिन कमरे में अभी भी पाप की बदबू आ रही थी। वह लड़का धीरे-धीरे लड़की के शरीर से हट गया...वह शांत पड़ी थी, टूटी हुई और बेदम,

    उसकी स्किन पर रात के ज़ख्म थे...
    उसने फ़र्श से अपने कपड़े उठाए,
    अपनी शर्ट के बटन लगाए..

    एक सिगरेट सुलगाई,
    और बालकनी में चला गया
    जैसे कुछ हुआ ही न हो।खामोशी शब्दों से ज़्यादा ज़ोर से चीख रही थी....

    कुछ मिनट बाद,
    सूरज की रोशनी उसके पीले चेहरे पर पड़ी।

    उसकी पलकें फड़कीं; वह धीरे-धीरे उठ
    उलझन में, कांपती हुई, खोई हुई।उसकी नज़रें इधर-उधर घूमीं—

    खाली बिस्तर,

    फटी चादरें,
    और उस आदमी की गायब परछाई जिसने उसकी नींद खराब कर दी थी।घबराहट उसकी नसों में दौड़ गई।

    उसने अपने कपड़े पकड़े, उन्हें पहना,
    और बालकनी की तरफ़ भागी...

    वह वहाँ था। विद्युत शेखावत* सुनहरी रोशनी में खड़ा था,
    उंगलियों के बीच सिगरेट..

    आँखें आसमान के पार कहीं खोई हुई...एक सेकंड के लिए, वह बस उसे देखती रही..वह आदमी जो स्वर्ग और नर्क दोनों जैसा लग रहा था....
    बिना सोचे,

    वह उसके पास दौड़ी और अपनी बाहें उसकी पीठ पर लपेट लीं। उसका स्पर्श बेताब था
    गर्मी की गुहार लगा रहा था, शायद प्यार की।लेकिन विद्युत जम गया...

    फिर, एक पल में..उसने उसके हाथ छोड़ दिए, मुड़ा,
    और उसे ज़ोर से दीवार से टकरा दिया...

    उसका हाथ उसके गले में फंस गया।
    उसकी सांस टूट गई।
    उसका शरीर लड़ने लगा,
    लेकिन उसकी पकड़ और मज़बूत होती गई। “तुमने मुझे छूने की हिम्मत की?
    तुम तो बस एक रात की परछाईं थी।
    और सुबह कभी अपनी परछाईं नहीं रखती।” वह अपने पीछे पहुँचा,

    एक बंदूक निकाली। उसका दिल रुक गया...
    हैरान होकर उसके होंठ खुल गए...
    सुबह की रोशनी में उसकी चांदी जैसी चमक फैल रही थी। उसने उसकी गर्दन छोड़ी;
    वह खांसते हुए, सांस के लिए हांफते हुए, फर्श पर गिर पड़ी...

    author note - guyss ye meri peheli story hai jo me yaha likh rahi hoon... and I hope ap logo ko ye pasnd aayegi.. ap log bhi plss padhe aur like kare comment kare review de.. aur apne friends ke sath share kare...

    Follow the "𝕽𝖊𝖊𝖒'𝖘 𝖜𝖔𝖗𝖑𝖉✨🌍" channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VbBydXf2Jl8FY4q0DK1e

    https://whatsapp.com/channel/0029VbBydXf2Jl8FY4q0DK1e


    follow my channel for more updates guyss..

  • 3. Beyhad - “A love that breathes revenge " - Chapter 3

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min