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महताबे हयात!

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Neha Sayyed

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" हाऊ केन आई हेल्प यू मैम ..? " रिसेप्शन पर खड़ी लड़की ने बड़ी गर्मजोशी के साथ कहा था। " म...मुझे .. मुझे मिलना है । " उसकी आवाज़ काफी घबराहट से भरी हुई थी। उसकी उन कत्थई सी आंखो में एक खौफ था। जबकि वह बराबर अपने इर्द गिर्द नज़रे दौड़ा रही थ...

Total Chapters (45)

Page 1 of 3

  • 1. महताबे हयात! - Chapter 1

    Words: 1529

    Estimated Reading Time: 10 min

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    " हाऊ केन आई हेल्प यू मैम ..? " रिसेप्शन पर खड़ी लड़की ने बड़ी गर्मजोशी के साथ कहा था।


    " म...मुझे .. मुझे मिलना है । " उसकी आवाज़ काफी घबराहट से भरी हुई थी। उसकी उन कत्थई सी आंखो में एक खौफ था। जबकि वह बराबर अपने इर्द गिर्द नज़रे दौड़ा रही थी। मानो उसे अपने पकड़े जाने का डर हो।


    " किस से मिलना है आपको ..? " रिसेप्शनिस्ट ने उसी तरफ मुस्कुरा कर पूछा था।


    " इ... इमाद  "


    " ओ ! तो आप इमाद जाफरी की बात कर रही है ..? "


    " जी । "


    " क्या आपके पास कोई अप्वॉइंटमेंट है ..? आपका नाम क्या है ..? " लैंडलाइन वाला फोन उठाते हुए उसने सवाल किया था।


    " उनसे कहिए कि म...महावश आई है । "


    " लेकिन आपके पास अप्वॉइंटमेंट है ..? " फिर वही सवाल था। महावश ने नफ़ी में सर हिलाया था।


    " जी वैसे आप उनकी लगती क्या है ..? "


    रिसेप्शनिस्ट के इस सवाल पर फिर उसका दिल धक् से हुआ।


    " म... मैं उनकी फ्रेड हूं । " गले के ना जाने कौन से हिस्से से यह निकला था पता नहीं लेकिन आवाज़ ने नमी तैरी थी।


    " ओके " रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुरा कर कहा। फोन पर बात करने के बाद उसने फोन रख दिया और एक तरफ इशारा करते हुए महावश से बोली - " मैम इस तरफ । "


    रिसेप्शनिस्ट के पीछे अपने आप को उस सफेद चादर में ढके उसकी पैरवी करने लगी थी। वह काफी डरी सहमी हुई थी।


    " मैम जाइए । " एक कैबिन का दरवाजा खोलते हुए उसने अंदर की जानिब हाथ किया था। महावश अंदर आई तो दरवाजा बंद हो गया।


    " डार्लिंग व्हाट आ प्लेसेंट सरप्राइज़ । " अपनी चेयर से उठते हुए इमाद जाफरी उसकी तरफ बढ़ गया था। वह एक आम सी शक्ल - ओ - सूरत का मालिक था।


    " पीछले एक हफ्ते से मै तुम्हे कॉल पर कॉल किए जा रही हूं और तुम ..? जानते हो ना कितनी बड़ी मुश्किल में हूं । घरवालों ने शादी तय कर दी है मेरी । " महावश भर्राए गले के साथ बोली।


    " मुबारबाद  !  " इमाद जाफरी को जैसे कोई ऐतराज़ नहीं हुआ।


    " किसी और के साथ । और तुम्हे कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा इमाद । " उसके रद्दे अमल पर महावश के चहरे का रंग  उड़न छू हुआ था ।


    " क्या वाकई फ़र्क पड़ना चाहिए ..? "


    " हां... तुम मुझ से प्यार करते हो । "


    " प्यार ..? अब क्या फ़ायदा । "


    " क्या मतलब ..? "


    " अब हम साथ नहीं आ सकते । इसलिए रास्ते अलग हो जाने में बेहतरी है । " टेबल पर बैठते हुए इमाद ने पेपरवेट को घुमाया था।


    महावश आगे बढ़ी और बेचारगी से बोली - " अगर तुम चाहते हो तो अब भी हो सकता है । हम भाग कर निकाह कर लेते है । आज नहीं तो कल , घर वाले अपना लेंगे । "


    " ओह प्लीज़ महावश । अब वाकई कुछ नहीं हो सकता । तुम्हारे कहने पर बाबा और अम्मी रिश्ता लेकर गए थे ना तुम्हारे घर । क्या हुआ ..? । क्या इज़्ज़त रखी गई मेरे पेरेंट्स की ..? मुंह पर मना कर दिया था तुम्हारे अब्बा जान ने । हर लम्हा सिर्फ़ बेज्जती नहीं करवा सकते हम । कुछ इज़्ज़त है मेरी और मेरे पेरेंट्स की । अब बात यहां मोहब्बत की नहीं इज़्ज़त की है । " इमाद ने काफी संजीदगी के साथ कहा था।


    " हमारे प्यार के बीच , पेरेंट्स कहां से आए ..? "


    " वह तब आए जब तुम्हारे अब्बा जान ने मेरे पेरेंट्स को तुम्हारे रिश्ते के लिए इंकार कर घर से जाने को कहा । "


    " स्टॉप इमाद । पांच सालों का रिश्ता है हमारा । "


    " और मेरे पेरेंट्स से मेरा 24 साल का । मैं उनके खिलाफ़ नहीं जा सकता । " इमाद जाफरी ने कहा तो महावश का दिल जैसे धड़कना भूल गया। और पैरो के तले जमीन बची ही नहीं थी। आंखों में सैलाब लिए वह एकटक उसे देख रही थी। पांच सालों का रिश्ता उसने पांच अल्फाज़ो में तोड़ दिया था।


    आज यह पहली बार था जब उसने ख़ुद को इतना बेबस पाया था। बेसाख्ता कदम दरवाजे की तरफ बढ़े मग़र इमाद कुछ कह रहा था। वह वही रुक सी गई।


    " अगर तुम अपने अब्बा जान से कहो कि वह हमारे घर आकर मेरे बाबा और अम्मी के कदमों में गिर कर उनसे मुआफी मांगे तो बात बन सकती है । आफ्टर ऑल हमारा पांच साल का रिश्ता था। " वह अहसान करने वाले अंदाज़ में कह रहा था।


    बिना आवाज़ का वह करारा थप्पड़ महावश महसूस कर सकती थी , अपने गाल पर नहीं बल्कि दिल पर। जमीन तो बची नहीं थी अब आसमान भी छीनने की फ़िराक में था यह शख्स उसकी


    एक फीकी सी मुस्कुरा के साथ वह उसकी तरफ मुड़ी - " शौक - ए - वफ़ा ना सही मग़र खौफ - ए - खुदा तो रखो इमाद । "


    और दरवाजा खोल कर वह वहां से तुरंत निकल गई। इमाद जाफरी ने लापरवाही से उसे जाते हुए देखा और सिर झटक कर अपनी चेयर पर बैठ गया।


    अपने वजूद को सम्हाले वह बिल्डिंग के बाहर आई और अपनी गाड़ी में आकर बैठ गई। स्टेयरिंग व्हील पर अपनी पकड़ कसती हुई वह सिसक उठी।


    वह गाड़ी चला रही थी मग़र उसे कोई होश ना था कि वह किस जानिब गाड़ी ले जा रही है। क्योंकि वह घर का रास्ता नहीं था। उसके घर का तो बिल्कुल नहीं ।


    दो रेड सिग्नल को ब्रेक करती हुई उसकी गाड़ी गुजरी थी और फिर बेसाख्ता आंखों के सामने अंधेरा छा गया। उसे अपना चहरा एक तेज़ आवाज़ के साथ स्टेयरिंग व्हील पर लगता हुआ महसूस हुआ था। एक खून की धार उसके सिर से होते हुए सुर्ख रुख़सार पर लुढ़क आई।


    एक आम से क्लीनिक में उसकी आंखे खुली। अपने सिर में वह शदीद दर्द का एहसास कर सकती थी। अपनी दूसरी जानिब उसने नज़रे घुमाई तो रिम्शा बेगम को खड़ा पाया। जो अपनी जवानजहान बेटी को इस कद्र देख बेहद परेशान थी। हाथ में तस्बीह थी जिसके एक - एक मोती पर सिर्फ़ अपनी बेटी के लिए सलामती की दुआ थी।


    " मम्मी ! " उसने उठ कर बैठने की कोशिश की। रिम्शा बेगम ने जब उसे होश में देखा एक राहत उनके चेहरे पर उतर आई। तस्बीह को अपनी आंखो से लगा कर उन्होंने उसे अपने पर्स में बड़े सम्हाल कर रखा और अपनी बेटी के पास आकर उसके सिर पर हाथ फेर फिक्रमंद होते हुए बोली - " पंद्रह दिन बाद शादी है और यह आप ने अपनी क्या हालत बना ली बेटा ..? क्या आपको हमारी और अपने पापा की फिक्र नहीं । "


    " सॉरी ! मैं तो बस शॉपिंग के लिए .. पता नहीं कैसे वह एक्सीडेंट हो गया ।  " पछतावे के साथ उसने अपना सिर पकड़ लिया।


    " कोई बात नहीं । अल्लाह का शुक्र है कि चोट ज्यादा नहीं है । डॉक्टर ने कहा है कि सिर की चोट भी जल्दी ही दुरुस्त हो जायेगी । " उसकी पेशानी को चूमते हुए उन्होंने कहा था।


    " बेहतर । " अफ़सोस हुआ था उसे। किस चीज़ का , पता नहीं ।


    रिम्शा बेगम से उसे पता चला कि उसका एक्सीडेंट जिस से हुआ था वहीं उसे यहां लेकर आया था क्योंकि यह क्लिनिक शायद नज़दीक था इसलिए।


    " आप लोगो ने उसे इतनी आसानी से छोड़ दिया ..? "


    " बेटा , आप ही ग़लत डायरेक्शन में थी तो हम क्या कहते । "


    " हम्म्म ! मेरी ग़लती ही थी । " महावश ने अपनी गलती कुबूल की।


    डॉक्टर के चेक करने के बाद उस रूम में वसीम शाह के साथ कोई अंदर आया। उस अनजान शख़्स को देख महावश का चहरा एकदम सर्द हो गया


    " बेटा अब कैसी है आप  ..? " वसीम शाह ने पूछा तो महावश सर झुकाए हुए ही बोली - " जी पहले से बेहतर है पापा । "


    " दुरुस्त । " अपने साथ खड़े शख़्स की ओर मुखातिब होते हुए - " देखिए बेटा जी हमने तो पहले ही कहा था कि यह ठीक है । आप तो यूंही घबरा रहे थे । "


    " आई एम सो सॉरी अंकल । मेरी वजह से आपकी बेटी!!!!!! .. आप सबको मेरी वजह से इतनी तकलीफ़ हुई । सॉरी । " एक अफ़सोस में डूबी आवाज़ जिस पर महावश ने नज़रे उठा कर देखा। तो कुछ देर देखती रही।


    " इट्स ओके । ग़लती मेरी ही थी । आई एम सॉरी " महावश ने वापस अपनी नज़रे झुका ली।


    " बेटा तुम ने अपना नाम नहीं बताया अभी तक ..? " रिम्शा बेगम ने पूछा तो महावश मन में बोल उठी - " शाद "

    " जी आंटी मेरा नाम शाद .. शाद है । " उसने लबों पर एक छोटी सी मुस्कान के साथ अपना तारूफ दिया था।


    वसीम शाह से इजाज़त लेकर शाद वहां से जा चुका था। एक दो घंटे के बाद महावश के साथ ,  वसीम शाह और रिम्शा बेगम घर लौट आए थे। अपने कमरे में आते ही वह बिस्तर पर लेट गई थी।


    जिस्मानी थकान से ज़्यादा जेहनी कैफियत का शिकार जो थी वह।





    क्रमशः

  • 2. महताबे हयात! - Chapter 2

    Words: 1293

    Estimated Reading Time: 8 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---





    चांदनी चौक की उन कई तंग गलियों में घूमने में बाद अब कहीं जाकर उन्हें एक अच्छी जोड़ो की दुकान दिखी थी। महावश का हाथ थामे वह वही बैठ गई।


    " मेरी बेटी की शादी के लिए कुछ अच्छे जोड़े दिखाए ।" महावश के साथ आई रिम्शा बेगम ने दुकानदार से कहा।


    दुकानदार ने भी लम्हे भर में उनके सामने एक से बढ़ कर एक जोड़ो की भरमार लगा दी। पसंद रिम्शा बेगम कर रही जबकि महावश तो उनके साथ बस फॉर्मेलिटी के लिए आयी थी।


    रिम्शा बेगम उसे ड्रेस दिखाती तो माहवश बस हूं , हम्म्म , अच्छी है , ठीक है कहकर खामोश बैठ जाती। दस जोड़े थे वह जिनकी बिलिंग करवा कर वह मेन रोड तक आई। महावश सारे शॉपिंग बैग्स को गाड़ी में पीछे रखती हुई आगे ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गई।


    महावश ने गाड़ी स्टार्ट की तो रिम्शा बेगम बोल उठी - " बेटा ज़रा गाड़ी ज्वैलरी शॉप के यहां रोकना । आपके पापा कह रहे थे कि वलीद ( महावश का होने वाला शौहर ) के लिए जो डायमंड रिंग बननी दी थी वह बन कर आ गई है । बस रिसीव करनी है । दो दिन बाद निकाह है तो बाद में याद नहीं रहेगा । अब आए है तो यह काम करके ही चले । "


    " अभी कुछ और भी बाकी है तो बता दीजिएगा मम्मी । "


    " नहीं बेटा और कुछ नहीं है । "


    कुछ देर बाद दोनो एक ज्वैलरी शॉप पर थे। रिम्शा बेगम शॉप के मालिक से कुछ बात कर रही थी । महावश दूसरी तरफ बैठी शोकेस पर लगी पायलों को देख रही थी। बेसाख्ता उसके लबों पर मुस्कान आई थी।


    " अगर पसंद है तो ले लीजिए।  "


    महावश ने चौक कर अपनी बराबर में देखा। वह शाद था , जो मुस्कुरा कर उसे ही देख रहा था।


    " मुझे पायलें पसंद नहीं । " उसने रूखेपन के साथ कहा।


    " इफ यू डॉन्ट माइंड ! क्या मैं जान सकता हूं कि क्यों नहीं पसंद आपको ..? "


    " नहीं " उसी रूखेपन के साथ उसने जवाब दिया था।


    " ओके ! ओके ! " शाद अब कुछ नहीं कह पाया।


    महावश , रिम्शा बेगम के साथ वहां से चली गई तो शाद ने एक गहरी सांस लेकर उन पायलों की जोड़ी को देखा। - " मैने अब जान बूझकर थोड़ी एक्सीडेंट किया था उनका । बिना बात ही गुस्से में है मुझ से । " वह मन में बोला।


    " साहब यह हो गया । " पीछे से दुकान पर काम करने वाले एक मुलाजिम ने कहा। शाद मुड़ा और उसके हाथ से वह चेन लेकर उसे देखने लगा - " भाई अच्छे वाला हुक लगाया है ना । मम्मी पिछली दफा भी शिकायत कर रही थी । "


    " अरे साहब ! अब अगर यह हुक टूटा या खराब हुआ..." अपने गले में पहनी उस सोने की चीन को दिखाते हुए - " यह आप की । "


    " हां ताकि मैं सारी ज़िंदगी इन चैनों के हुक ही ठीक करवाता फ़िरु । " शाद ने मुंह बना कर कहा। पेमेट कर वह बाहर आया । उसने अपनी गाड़ी थोड़ा दूरी पर पार्क की थी इसलिए वह रोड के किनारे चलने हुए गाड़ी तक जाने लगा। गाड़ी का लॉक खोल कर उसने हैंडल पकड़ खींचा के तभी किसी ने उसे पुकारा।


    वह आवाज की जानिब ( ओर , दिशा ) मुड गया। वहां वसीम शाह खड़े थे मुस्कुराते हुए। शाद बड़ी गर्मजोशी ( उत्साह ) से उनसे मिला - " अस्सलाम वालेकुम अंकल कैसे है आप .. ? "


    " वालेकुम अस्सलाम ! बेटा मै ठीक हूं । मेरी बेटी की शादी है ना तो एक दोस्त के यहां शादी का कार्ड देने आया था । तुम्हे देखा तो तुम्हारी तरफ आ गया । " वसीम शाह ने कहा।


    " ओ ! मुबारकबाद अंकल । " शाद ने लबों पर एक नर्म सी मुस्कान के साथ कहा।


    " थैंक्यू बेटा । तुम भी आना शादी में । " कहकर अपने हाथ में पकड़े बैग से उन्होंने एक कार्ड निकाला और शाद की जानिब बढ़ाया।


    " मगर अंकल मै .. कैसे ..? "


    " बेटा जी ! तुम ने मेरी बेटी की जान बचाई वक्त पर उसे ट्रीटमेंट दिलवा कर । अगर तुम आओगे तो मुझे अच्छा लगेगा । "


    " जी अंकल मै आने की कोशिश करूंगा।  " शाद ने अब कार्ड पकड़ते हुए कहा।


    " कोशिश नहीं , बल्कि आना है । वह भी अपने परिवार के साथ । मुझे इंतज़ार रहेगा तुम्हारा ! " कहकर वह उसका शाना थपथपा कर वहां से चले गए।


    गाड़ी में बैठकर शाद ने शादी का कार्ड देखा जिसपर बड़े - बड़े सुनहरे अल्फाजों में लिखा था। महावश वेड्स वलीद ।


    " ऐसा ही कार्ड तो हमारे घर पर ऑलरेडी आया हुआ है ना । " शाद बुदबुदाया। फिर बड़ी लापरवाही से कार्ड को पीछे वाली सीट पर फेंक कर उसने गाड़ी स्टार्ट की और वहां से निकल गया।


    महावश का घर इस वक्त मेहमानों से भरा हुआ था। दूर से रिश्तेदार शादी में शिरकत ( शामिल होना ) के लिए पहले ही आ कर घर पर डेरा डाल चुके थे। हर तरफ कहकहा लगा हुआ था। महावश का कमरा दूसरी मंजिल पर था। वह अपने बैग्स के साथ ऊपर आई और दरवाजा खोल अंदर घुस गई।


    बिस्तर पर महावश की बड़ी बहन शर्जिना , अपने साल भर के बच्चे को सुला रही थी। उसने अपने सिर पर एक सिल्क सा स्कॉफ हिजाब की तरह लपेटा हुआ था।


    महावश ने बड़े आराम से बैग्स को एक तरफ रखा और बिस्तर के कोने पर बैठ गई। शर्जिना अपने बच्चे को सुलाने के बाद उठी और महावश के पास आकर बैठ गई।


    " हो गई सारी शॉपिंग पूरी ..? "


    " जी आपी ! "


    " खुश तो हो ना ..?  "


    महावश का गला जैसे चोक गया। और आंखे डबडबाने लगी।


    " वलीद अच्छा लड़का है। मैने ख़ुद देखा है उसे।  " उसके शाने पर हाथ रख शर्जिना ने कहा तो महावश उसके सीने से लग कर फुट - फुट कर रो पड़ी। शर्जिना जानती थी कि महावश किसी और को पसंद करती है। और यह बात किसी से छिपी नहीं थी। मगर ! वसीम शाह ने इनकार कर दिया था। क्या कारण था .. पता नहीं । और बताने की कोशिश तक नहीं की थी उन्होंने ।


    महावश इस वक्त काफी टूटी हुईं थी। इमाद जाफरी के बदले भाव देख कर । वाकई उसने अपनी बातों से उसे काफी हर्ट किया था। और उसकी शर्त ..? वह अपनी कुर्बानी दे सकती है मग़र अपने वालिदैन को किसी के कदमों में नहीं झुकवा सकती। अपने लिए तो कतई नहीं।


    उसकी तो मुहब्बत अब अना के हत्थे चढ़ गई थी। वह शख्स जो मुहब्बत के बड़े बड़े दावे करता था वह अना परस्त ( स्वार्थी  ) निकला। तो क्या वाकई उसने मुहब्बत की भी थी ..?


    " आपी ! आपी ! .. मुहब्बत ऐसी होती है ..? यूं ज़लील करने वाली ..? इमाद कहता है कि मैं पापा से कहूं की वह उसके मम्मी पापा के कदमों में गिर पर माफी मांगे । तब वह मुझसे शादी करेगा । आज तक पापा का सिर नहीं झुकने दिया तो अब कैसे झुकने दू आपी!!!!!! " अपने रुखसार ( गाल ) से आंसुओं को साफ करते हुए उसने पूछा।


    शर्जिना ने अपना सिर नफी में हिलाया - " जो ज़लील करे वह मुहब्बत नहीं महावश । अना परस्त लोगों के लिए अपने आंसू नहीं बहाया करते मेरी बहन । इमाद जाफरी तुम्हारी मुहब्बत डिजर्व नहीं करता । जिस महताब - ए - हयात की तुम्हे तलाश है वह इमाद जाफरी नहीं है । वह रंज - ए - हयात है , अगर अब तुम उसके पास गई तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद कर देगा वह शख्स!!!!!!! "


    महावश बस डबडबी आंखों से शर्जिना को देख रही थी।





    क्रमशः

  • 3. महताबे हयात! - Chapter 3

    Words: 1174

    Estimated Reading Time: 8 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---






    महावश खाली निगाहों से अपने हाथो में लगी मेहंदी को देख रही थी। कभी तसव्वुर भी नहीं किया था उसने की उसके हथेलियों पर इमाद के अलावा किसी और के नाम की मेंहदी लगाई जायेगी । उसका दिल कट रहा था। यह जो हो रहा उसे वह रोक देना चाहती थी। मग़र अब शायद काफी देर हो चुकी थी।


    दरवाजा खोल शर्जिना अंदर कमरे में आई। उसे अभी भी साकित बैठा पाकर वह उसके करीब आई और उसके शाने पर हाथ रख बोली - " सो जाओ महावश । किसी और के लिए अपनी रातों की नींद खराब कर तुम अपनी ही सेहत को बिगाड़ रही हो । कल सुबह मांझा की तक़रीब ( रस्म ) है । मेरे ख्याल से अब तुम्हे सो जाना चाहिए । "


    " आपी नींद ही नहीं आ रही । " महावश ने बेमन से कहा।


    " अपने दिमाग को इतना दौड़ाओगी तो कैसे नींद आयेगी। " शर्जिना उसके पास बैठ गई। महावश ने अपना सिर उसकी गोद में रखा और आंखे बंद कर बोली - " आपी ! क्या मैं बाहम बसर कर पाऊंगी यह शादी ..? "


    " बिल्कुल मेरी जान । "


    " मग़र मेरे जेहन से इमाद नहीं जा रहा है । "


    " अगर वह तुम्हारे जेहन से नहीं जा रहा तो तसव्वुर करो भरी महफ़िल में पापा का शर्मिंदगी में झुका हुआ सर ..। देख पाऊंगी ..? अगर देख पाऊंगी तो अभी उठो और जाकर पापा से कहो कि तुम यह शादी नहीं करना चाहती । तुम जानती हो वह तुम्हारी मर्ज़ी के खिलाफ़ नहीं जायेंगे । " शर्जिना अब संजीदा थी।


    महावश झट से उठ बैठी और आंखों में आंसू लिए अपना सिर ना में हिला कर बोली - " नहीं बिल्कुल नहीं । "


    " तो फिर भूल जाओ उस इमाद जाफरी को । अपने जेहन से दफा करो उसे। " संजीदगी से शर्जिना ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखा - " परसो निकाह है तुम्हारा । मैं तुम्हे एक नसीहत देना चाहूंगी मानना या ना मानना तुम पर डिपेंड करता है । शादी के बाद तुम्हारा और इमाद का हर ताल्लुक़ खत्म हो जायेगा । जितनी ईमानदारी तुम ने उसके साथ निभानी थी निभा चुकी मगर अब तुम्हे सिर्फ एक शख़्स के लिए वफादार रहना है और वह है तुम्हारा होने वाला शौहर , यानी वलीद । कभी भूल कर भी पीछे मत देखना वरना अपने लिए अज़ाब पैदा कर लोगी तुम । "


    " आहिस्ते - आहिस्ते ही सही मगर मैं कोशिश करूंगी आपी । " महावश ने अपने आंसुओं को साफ कर कहा। शर्जिना ने प्यार से उसके पेशानी को चूमा।


    पस-ओ-पेश ( असमंजस ) में उलझ कर उसे कब नींद आई पता नहीं। मग़र सुबह जब आंखे खुली तो रिम्शा बेगम के अल्फ़ाज़ उसके कानो में पड़े थे।


    " आपका जोड़ा और बाकी चीज़ें रख दी मैने यही । फौरन तैयार हो कर नीचे आइए । तक़रीब शुरू होने वाली है ।  "


    रिम्शा बेगम वहां से बाहर चली गई। महावश बिना कुछ कहे , बिना मजीद सोचे बिस्तर को छोड़ कर सीधा बाथरूम में घुस गई।


    सरसों के रंग का दुपट्टा अपने शाने पर रखते हुए उसने अपने आप को आईने में एक नजर देखा। शर्जिना उसे लेने आ गई थी। नीचे लॉन में उसे बीच - ओ - बीच बिठा दिया गया था। एक - एक कर सब मांझे की तक़रीब अदा कर रहे थे। शर्जिना की बारी आई तो वह उसके सामने ही घुटनों के बल बैठी और उबटन अपने हाथों की उंगलियों के पोरो पर ले कर उसने धीरे से महावश के रुखसार पर लगा दिया। फिर शानो से लेकर कलाईयों तक।


    " अल्लाह तुम्हे हर खुशी अता फ़रमाएं आमीन " शर्जिना कहकर वहां से मुस्कुराते हुए चली गई। महावश का मन फिर भारी हो गया। मगर वह ज़बरदस्ती मुस्कुराती रही।


    मांझे की तक़रीब अदा करने के बाद सभी खाना खाने चले गए। महावश की एक कज़िन उसे उसके कमरे तक छोड़ने आई। कमरे का दरवाज़ा भीरत से बंद करते हुए वह बाथरूम में आयी। अपने गले में पड़े दुपट्टे को उसने उतार कर एक जानिब फेंका। बालो में पिन लगा कर उन्हें बांध लिया और फिर सीधा शॉवर चला कर उसके तले खड़ी हो गई।


    पानी उसके वजूद पर लगे उबटन को बहाकर ले जा रहा था। अपने दोनो हाथो को दीवार से टिकाए अब वह आहिस्ता - आहिस्ता नीचे बैठ गयी। अब पानी उबटन के साथ उसके आंसुओं को भी बहा रहा था।


    अगले रोज शाम तक लॉन मेहमानों के क़हक़हों से गूंज रहा था। वसीम शाह ने अपनी छोटी बेटी की शादी में कोई कमी ना छोड़ी थी। उनकी दो ही बेटियां थी और दोनो को अच्छे से सेटल होते देख उनके चेहरे पर पुरसुकून था। बड़ी गर्मजोशी से उन्होंने सबका इस्तिक़बाल किया था।


    वही इस शोर - शराबे से दूर महावश अपने कमरे में आइने के सामने बैठी थी । वह गहरे मैरून रंग के एक भारी लहंगे में मलबूस थी जिस पर बारीक ज़री की कढ़ाई की गई थी। लहंगे की कारीगरी बेहद नफीस थी। हल्के सुनहरे आभा वाला दुपट्टा, जो उसके सिर और शाने पर नर्म गिरावट लिए हुए था।

    उसके पेशानी पर चमचमाता मांगटीका और कानों में एक लय में झूलते वह भारी झुमके। उसकी खूबसूरती का जादू बिखेर रहे थे। उसकी गरदन पर फैला मांगटिके और झुमकों से मैच करता नेकलेस जिसे वह बार - बार सही कर रही थी। उसकी शख्सियत पूरी तब्दील कर दी थी इस जोड़े ने। वह ख़ुद को आईने में देख हैरत में थी।


    कुछ देर बाद शर्जिना कमरे में आयी। महावश ने नज़रे उठा कर उसे देखा। हल्के पिसता रंग के शरारा सूट में वह भी बेहद खूबसूरत लग रही थी। हमेशा की तरह एक भूरे रंग के सिल्क के स्कॉफ के साथ उसने हिजाब लिया हुआ था।


    " आपी ! कौन कह दे आपकी शादी को तीन साल हो गए और आपका एक 1 साल का बेटा है । " महावश बेसाख्ता बोली। शर्जिना की आंखे लबों की मुस्कान की वजह से छोटी हुई। महावश की पेशानी को चूमते हुए उसने उसकी बलाएं ली।


    " बेहद हसीन लग रही हो । "


    " थैंक्यू "


    " बारात आने वाली है । " उसके दुपट्टे को ठीक करते हुए उसने कहा।


    " आपी!!!!!! "


    " हम्म्म "


    " पापा ने जहेज़ तो नहीं दिया ना । "


    शर्जिना के लबों की मुस्कान सिमटी - " वह पहुंचा चुके है तुम्हारे ससुराल । एक गाड़ी भी दी है । "


    " क्या!!!!!!!!!!!! मग़र मैने मना किया था ना आपी । पापा ने ऐसा क्यों किया ..? "


    " तुम्हारे मना करने से क्या होता है । हम जिस समाज में रहते है वहां के कुछ कायदे क़ानून है । जो हमे फॉलो करने पड़ेंगे । "


    " तो ठीक!!!!!!!! है । सबको अपनी मर्ज़ी करनी है तो अब मै भी अपनी मर्ज़ी करूंगी । मुझे मेरा हक़्क़-ए-महर चाहिए । "

    " हक़्क़-ए-महर मिलेगा ना तुम्हे । "


    " कितना हक़्क़-ए-महर मिलेगा..? "


    " ढाई लाख तय हुआ है । "


    " दस लाख चाहिए मुझे । " महावश ने संजीदगी से कहा तो शर्जिना को अपने पैरो तले जमीन गायब होती लगी।




    क्रमशः

  • 4. महताबे हयात! - Chapter 4

    Words: 1276

    Estimated Reading Time: 8 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---






    " पापा ! मम्मी कहां रह गई । हम लेट हो जायेंगे । शादी हो जायेगी तो क्या फायदा होगा हमारे जाने का " शाद ने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखते हुए झल्ला कर कहा।


    " बेटा औरतों को वक्त लगता है तैयार होने में । " कादिर साहब ने अपने फोन पर उंगलियां चलाते हुए बड़ी लापरवाही से कहा था।


    " उफ्फ ! मैं देख कर आता हूं । "कहकर शाद ने मुंह बनाया । एक कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था वह बेधड़क भीरत घुस गया। ड्रेसिंग टेबल के सामने उसने सलमा बेगम को अपना सोने का पुश्तैनी हार ठीक करते पाया।


    " मम्मी कतई सोने की खदान बन कर जाओगी क्या । उधर आपकी देवरानी - जेठानी नहीं मिलेंगी जिनके सामने आप शोऑफ करेंगी अपने गहनों का ।  " शाद ने उकता कर कहा।


    " काश वह वहां होती तो जल भून जाती मुझे देख कर । यह देख तेरी दादी अम्मा ने शादी के वक्त मुझे चढ़ाया था ये हार । अच्छा कैसी लग रहीं हूं मैं ..? " कहते हुए उन्होंने अपने साड़ी के पल्लू को सही किया।


    शाद ने उन्हें देखा - " बिल्कुल श्री देवी लग रही है । "


    " चल अब बात ना बना।  " कहकर वह शरमाई। फिर एक गहरी सांस लेकर उन्होंने शाद के गाल पर छुआ - " मेरी बड़ी ख्वाहिश थी कि मैं तेरी शादी इसी साल करु । मगर आज कल ना जाने अच्छी लड़कियां किधर छिप गई है । "


    " ढूंढने घर से बाहर निकलेंगी तब ना मिलेगी आपको । फोन में फोटो देख ही रिजेक्ट कर देती है आप तो । " शाद ने फिर झल्ला कर कहा था।


    " गयी तो थी मगर तुमने बताया उसे कोई और पसंद था "


    " जले पर नमक ना उड़ेलिये अब । शादी ना सही शादी की दावते ही सही । " शाद उन्हें अपने साथ बाहर लेकर आता हुआ बोला।


    " वाह बेगम साहिबा!!!!!! बड़ी खूबसूरत लग रही है । " कादिर साहब ने सोफे से उठ कर अपने ब्लेजर के बटन बंद कर कहा। सलमा बेगम सुर्ख चहरे के साथ बोली - " आप भी ना .. बेटे का तो लिहाज़ कीजिए । "


    " फिलहाल मै बहरा हूं मम्मी । " सलमा बेगम की जानिब देख शाद ने शरारत से कहा।


    " हट बदमाश। " सलमा बेगम ने बनावटी गुस्से में उसे देखा।


    शाद हंसा और गाड़ी की चाबी लेकर बाहर जाता हुआ बोला - " आइए आप दोनो जल्दी "


    शाद के पीछे ही कादिर साहब और सलमा बेगम बाहर ही निकल आए।


    " वैसे आपने कभी बताया नहीं वसीम अंकल के बारे में ..? " ड्राइविंग करते हुए शाद ने कादिर साहब से सवाल किया।


    " बिजनेस के सिलसिले में ही मिले है हम । कुछ रोज पहले ऑफिस आए थे स्पेशली इनविटेशन कार्ड देने । हमारे फ्रेड सर्कल में सब काफी तारीफे करते है उनकी । काफी अच्छे है वह " कादिर साहब ने कहा।


    " यही है क्या घर ..? " कुछ देर बाद शाद ने सामने रंग बिरंगी लाइट्स से जगमगाते उस तीन मंजिला घर को देख कर कहा।


    " लग तो यहीं रहा है । मैं भी पहली बार आया हूं बेटा । "


    शाद ने गाड़ी एक तरफ पार्क की फिर कादिर साहब और सलमा बेगम के साथ घर की जानिब बढ़ गया।


    लॉज में एकदम खामोशी थी। वसीम शाह किसी गहरे सदमे में सोफे पर बैठे थे। उनके पास ही रिम्शा बेगम चहरे पर दुनियाजहां की परेशानी लिए हुए थे। शर्जिना और उसका शौहर दानियाल भी वही बैठे हुए थे। ज़ाहिर था शर्जिना ने महावश की शर्त उन्हें बता दी थी। मग़र मसला यह नहीं था बात कुछ और थी। अपने लहंगे को सम्हाले महावश ! सीढ़ियां उतर कर नीचे आई।


    सब के चहरे पर परेशानी देख कर उसने शर्जिना से इशारे में पूछा कि क्या हुआ। तो शर्जिना ने लाचारी में गर्दन हिला दी। महावश को समझ नहीं आया कि क्या हुआ था । मगर माहौल में टेंशन वह महसूस कर सकती थी।


    " मम्मी.. क्या हुआ । आप सब ऐसे मुंह लटकाए क्यों बैठे है ..? " रिम्शा बेगम के पास आकर महावश ने पूछ ही लिया था।


    " अब शादी नहीं हो रही । " रिम्शा बेगम ने कहा तो महावश कद्रे हैरानगी से बोली - " मग़र क्यों ..? क्या हुआ है अब । शादी तो आज होनी तय हुई थीं तो ..? "


    " उन्होंने मना कर दिया । " इसबार वसीम शाह ने कहा।


    " मग़र क्यों ..? ऐन वक्त पर अब वह मना कर रहे है । जब हमारे सारे मेहमान आ चुके है । " महावश धड़ाम से सोफे पर बैठ गई।


    " अब क्या ही कर सकते है हम । " कहकर उन्होंने खिड़की की ओर देखा जहां से लॉन दिखाई दे रहा था । वही कादिर साहब के साथ उसे शाद नजर आया जो शायद ! उनकी टाई ठीक कर रहा था। वह किसी बात पर हंस रहे थे।


    " वह लोग ऐसा कैसे कर सकते है पापा । कोई तो वज़ाहत पेश की होंगी उन्होंने ..? " महावश ने फिर सवाल किया। वसीम शाह ने महावश की ओर देखा , जिसकी आंखों में नमी थी। शादी टूटने का ग़म नहीं था , उसे अपने बाप की इज़्ज़त के पाश - पाश होने का डर था। वह उस रुसवाई से ख़ौफजदा थी जो कुछ समय बाद उसके खानदान की होने वाली थी सारे रिश्तेदारों के सामने।


    " उन्हें कहीं से पता चल गया कि तुम और इमाद.. इस लिए उन्होंने शादी के लिए इनकार कर दिया । " वसीम शाह ने कहा तो महावश पर जैसे आसमान टूटा। यह शख़्स उसे किसी के सामने मुंह दिखाने लायक़ नहीं छोड़ेगा ।


    वसीम शाह ने जितने कम अल्फ़ाज़ो में कहा था उतने शायद ही उन्हें सामने से सुनने को मिले थे। कुछ तो महावश के बारे में भी अनाब - सनाब कह होगा उन्होंने। जो वसीम शाह ने किसी ने सामने ज़ाहिर नहीं किया। सच्च में अज़ाब ही पैदा कर दिया था उसने अपने और अपने परिवार के लिए।


    महावश की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। शर्जिना ने जल्दी से आकर उसके गाल को थपथपाया। दानियाल फ़ौरन किचन की तरफ दौड़ा। वसीम शाह और रिम्शा बेगम दोनो उठ कर महावश के पास आ गए।


    " महावश!!!!!! बेटा ठीक हो ..? " रिम्शा बेगम ने रूंधे गले के साथ महावश की हथेली रगड़ी।


    महावश अपना सिर सोफे की पुश्त पर लगाते हुए आंखे बंद कर बोली - " मैं ठीक हूं । "


    शर्जिना , रिम्शा बेगम और वसीम शाह की सांसे बहाल हुई। दानियाल पानी का ग्लास लेकर आया। शर्जिना ने महावश को थोड़ा पानी पिलाया। वसीम शाह परेशान होकर दानियाल के साथ लॉज से निकल कर बाहर आ गए।


    वह दानियाल को कुछ समझा कर कादिर साहब की तरफ बढ़ गए जो अब अकेले खड़े थे। सलमा बेगम और शाद कुछ दूरी पर एक टेबल पर बैठे खाना खाने लगे थे। गर्म गुलाब जामुन को अपनी चम्मच से काटते हुए शाद की नज़रे अपने बाप और वसीम शाह पर थी । उसकी छट्टी हिस ने उसके दिमाग़ को सिग्नल दिया था मगर अपना ही वहम सोच कर उसने उसे दरकिनार कर दिया था।


    वह बाते करते हुए कई बार शाद को देख चुके थे। और करीब दस से पंद्रह मिनट बाद बिलाखिर दोनो ने एक साथ शाद को देखा। और जो मुस्कान उन्होंने उसकी तरफ उछाली शाद को अपने गले में खाना अटकता हुआ महसूस हुआ।


    क्या मतलब था उसे बलि का बकरा बनाया जाने वाला था। कम - से - कम उसे तो फ़िलहाल ऐसा ही लग रहा था। अपने हलक में अटके खाने को उसने बमुश्किल पानी से नीचे उतारा था। उसकी छट्टी हिस उसे सही सिग्नल दे रही थी।





    क्रमशः

  • 5. महताबे हयात! - Chapter 5

    Words: 1072

    Estimated Reading Time: 7 min

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    रात का एक बज रहा था और महावश की आंखों से नींद फाख्ता थी। उसके खुले बाल तकिए पर फैले हुए थे और आंखे सीलिंग पर टिकी हुई थी। शर्जिना , जो उसके करीब ही अपने बेटे के साथ सो रही थी। उसे हल्की ठंड का अहसास हुआ तो वह उठ कर अपने ऊपर कंबल खींचने लगी तो सहसा ही उसकी नज़र महावश पर गई।


    उसे इस वक्त तक जगा देख वह कद्रे हैरानगी से बोली - " महावश तुम सोई नहीं अभी तक ..? "


    महावश की सोचो का सिलसिला टूटा। उसने नज़रे घुमा कर शर्जिना को देखा - " बस नींद नहीं आ रही आपी । "


    " मगर क्यों ..? "


    " अगर यह पता होता तो सुकून से सो रही होती अभी । " वह फ़ीकेपन से मुस्कराई थी।


    " परेशान हो किसी बात को लेकर ..? "


    महावश उठ कर बैठी और घुटनों को मोड़ उसके इर्द गिर्द अपनी बाहें लपेट कर अपना चहरा उस पर टिकाते हुए बोली - " पता नहीं खुदा ने क्या लिखा है किस्मत में । किसी और से शादी करना चाहती थी , होनी तय किसी और के साथ हुई और हो किसी और के साथ गई । क्या वाकई ज़िंदगी इतनी कॉम्प्लिकेटेड होती है आपी ..? मैं समझ नहीं पा रही हूं । शाद ! .. वो ना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था । और आज मैं उसी की मनकूहा हूं । "


    " क्या तुम उसे पहले से जानती थी ..? " शर्जिना की तरफ से सवाल आया था। की कुछ लम्हा महावश कुछ ना बोली।


    " बोलो महावश मैने कुछ पूछा है । क्या तुम उसे जानती थी पहले से ही । "


    " हां " वह इनकार करना चाहती थी मग़र ! बेसाख्ता उसके मुंह से निकला।


    " क्या!!!!!!! "


    " हां आपी । मैं उसे जानती थी मगर वह मुझे नहीं जानता था। "


    " अब इसका क्या मतलब हुआ ..? "


    " यही की मैं किसी के ज़रिए उसे जानती थी।  "


    " किस के ज़रिए ..? "


    " इमाद के ज़रिए । "


    " इमाद का उससे क्या ताल्लुक़ अब ..? "


    " इमाद का कजिन है शाद । कुछ फैमिली इशू की वजह से उनकी आपस में बोल चाल नहीं है।  एक दिन जब मैं और इमाद कॉफी डेट पर गए थे तब शाद भी वही अपने किसी दोस्तो के साथ आया था। इसलिए इमाद और मैं बिना कॉफी पिए वहां से वापस आ गए थे। तब मैंने पूछा था तो उसने मुझे शाद के बारे में बताया था।  उसने बताया था कि वह पागल है बचपन से ही।  " अपनी बात कहकर वह रुकी। सांस बहाल हुआ।


    मग़र शर्जिना का सांस ऊपर - का - ऊपर और नीचे - का - नीचे रह गया।


    " और यह बात तुम अब बता रही हो जब तुम दोनो का निकाह हो गया । क्या तुम्हे यह बात हम सब को पहले नहीं बतानी चाहिए थी महावश ..? " शर्जिना हल्के दबे गुस्से में बोली।


    " उस वक्त मेरा दिमाग़ काम करना बंद कर चुका था । मुझे तो यह तक याद नहीं कि मैने निकाह नामे पर साइन कैसे किए ..? "


    " मग़र तुम सब जानती थी । शाद .. हे मेरे परवरदिगार ! " अफ़सोस के साथ उसने अपना सिर पकड़ा था। - " तुम जानती नहीं महावश तुम ने क्या कर लिया था । तुम कहती थी ना कि आपी अज़ाब क्या होती है तो सुनो ! यही होती है अज़ाब । शाद और इमाद कजिन है कभी तो इमाद का सामना होगा शाद की बीवी से । तुम्हे अज़िय्यत ( दुःख  ) देने के लिए वह शाद को अपने और तुम्हारे रिश्ते के बारे में नहीं बताएगा ..? मेरी बहन तुम भोली हो मगर हर कोई नहीं । इमाद तुम्हे बर्बाद करने के लिए शाद को वह सब बतायेगा और जान बूझकर कर बतायेगा , बढ़ा चढ़ा कर बतायेगा । क्योंकि वह बड़े अव्वल दर्जे का अना परस्त है । अब दुनिया का कौन ही मर्द अपनी बीवी की तारीफ़ उसके एक्स से सुनेगा ..? कसम खुदा की अगर मेरे इल्म में यह बात होती ना तो मै तेरा और शाद का यह रिश्ता जुड़ने ही नहीं देती । इमाद नाम की तलवार अब सारी ज़िंदगी तुम्हारी गर्दन पर लटकने वाली है । "


    " मग़र आपी मै शाद को कुछ ना पता चले दु तो ..? "


    " कब तक ! .. कब तक नहीं पता चलने दोगी ..?  एक - ना - एक दिन तो उसे पता चल ही जायेगा ना । और पता है दुनिया का कोई मर्द यह बात बर्दाश्त नहीं कर सकता । नौबत तलाक़ तक भी आ सकती है । "


    शर्जिना की बात सुनकर एक सिहर दौड़ी थी उसके बदन में । अगर वह बेवकूफ़ थी तो बड़े अव्वल दर्जे की । अगर वह कमज़ोर थी तो बड़े आला दर्जे की। निकाह को जुम्मा - जुम्मा कुछ घंटे ही हुए थे और शर्जिना उसे आगे से अवगत कराते हुए तलाक़ तक सोच बैठी थी।


    वह जानती थी शादी बार - बार नहीं होती थी । शाद अब उसका शौहर था तो कम - से - कम उसे उसके साथ बना कर रखनी थी। उसकी ज़ात उससे जोड़ी जा चुकी थी। जोड़ने वाले लोग ज़रिआ थे मगर कुन कहने वाला वह एक था .. वह खुदा था। उसने लिखा था तब ही तो मिला था। कहां उसकी इजाज़त के बगैर एक पत्ता भी हिलता था ।


    इमाद जाफरी ! ... अजाब बन गया था। उसे समझा बुझा कर शर्जिना सो चुकी थी मग़र नींद फिर फाख्ता हुई थी महावश की। और अब वजह थी । तलाक़ । इमाद ने बताया था शाद के पागलपन के बारे में। बचपन में इमाद का सिर फोड़ा था उसने । जिसका निशान आज तक इमाद के पेशानी पर मौजूद था। और वजह थी कि इमाद ने उसकी फेवरेट रिमोट कंट्रोल कार के साथ खेला था । जबकि शाद ने उसे खेलते हुए देखा नहीं था बस शाद के बड़े भाई ने उसे बताया था। उसका सिर फोड़ कर उसने अपनी वही फेवरेट रिमोट कंट्रोल कार भी तोड़ दी थी। ताकि उसकी गैर मौजूदगी में दोबारा कोई उससे खेल ना सके।


    किसी दूसरे के दोबारा छूने के डर से उसने जब अपनी फेवरेट रिमोट कंट्रोल कार तोड़ थी तो फिर तो वह उसकी बीवी थी । इस वाक़िआ से बस वह इतना समझी थी कि वह अपनी चीजों के लेकर बेहद पजेसिव था। अब उसे खौफ आने लगा था शाद से। बेहद खौफ....





    क्रमशः

  • 6. महताबे हयात! - Chapter 6

    Words: 1026

    Estimated Reading Time: 7 min

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    फज्र की नमाज़ के बाद वह अपना जाए-नमाज़ फोल्ड करती हुई उठी थी। जाए-नमाज़ को एक तरफ रख , उसने अपने सिर से दुपट्टा खोला और आंसुओं से भीगे चेहरे को अपनी हथेलियों से साफ किया। इस वक्त कमरे में कोई नहीं था। शर्जिना भी अपने बेटे के उठने के बाद उसे कुछ खिलाने नीचे ले गई थी।


    कमरे की साफ सफाई करने के बाद वह नीचे आयी। किचन से उसे बाते करने की आवाजें आ रही थी। वह वही आ गई। रिम्शा बेगम और उसकी कुछ कजिन सब के लिए नाश्ता बना रही थी।


    " मम्मी मै कुछ मदद करूं ..? " उसने पूछा था।


    " नहीं बेटा ! आप रहने दो । मैं और तुम्हारी बहन कर लेंगे । अच्छा ! शाद बेटा आने वाले है कादिर भाईसाहब और सलमा बहनजी के साथ । आप एक काम करे , कमरे में जाकर तैयार हो जाएं । " रिम्शा बेगम ने एक प्लेट ने ड्रायफ्रूट्स सजाते हुए उससे कहा था ।


    " क्यों आने वाले है वह ..? " महावश ने उदास सी आवाज़ में पूछा था।


    " बेटा क्यों आते है । शाद का ससुराल है अब यह । आपकी रुख़्सती की बात भी तो करनी है । कल तो आप ने इनकार कर दिया था कि अभी आप रुख़्सती नहीं चाहती । वरना जाना आपको कल ही था उनके साथ... और फिर सलमा बहनजी भी चाहती थी कि वह आपका स्वागत, अपने घर में बड़ी धूम धाम उसे करे । " कहकर रिम्शा बेगम ने एक चाय का कप और पोहे की प्लेट उसकी तरफ बढ़ाई थी। महावश ने बिना कुछ कहे अपनी चाय और नाश्ता पकड़ा और फिर वापस अपने कमरे में आ गई।


    बिस्तर के कोने पर बैठ कर उसने एक चाय की घुट भरी तो वह उसे बड़ी शिद्दत से अंदर जाती हुई महसूस हुई। कल दुपहर के बाद से उसने कुछ नहीं खाया था । और परेशानियों में इतनी उलझी कि खाने का खयाल तक नहीं आया था। उसकी तो छोड़ो ! और किसी को भी उसका खयाल नहीं आया था क्या ..? उसने इस बारे में ज़्यादा नहीं सोचा । चाय नाश्ते के बाद वह उठ कर कुछ देर बालकनी की रेलिंग को पकड़ खड़ी हो गई । लॉन में टेंट और बाकी सारी सजावट हटाई जा रही थी। वसीम शाह , वही खड़े काम देखने के साथ दानियाल से किसी मौज़ू' ( मुद्दा ) पर बात कर रहे थे।


    वह ख़ामोशी से उन्हें देखती रही। कुछ लोगों को टेंट हटाते हुए , तो कभी वसीम शाह को , तो कभी आसमान में उड़ते परिंदों को। वह वही खड़ी थी जब उनके घर के बाहर एक सफेद रंग की फॉरच्यूनर कार आ कर रुकी थी। उसने गाड़ी से कादिर साहब और सलमा बेगम को उतरते और घर के अंदर आते हुए देखा। फिर ड्राइविंग सीट का दरवाजा खुला था। शाद का झुंझलाया चहरा उसकी आंखो से बच नहीं पाया था। उसके होठ फड़फड़ा रहे थे मगर दूरी इतनी थी कि वह सुनने और समझने के काबिल नहीं थी कि वह क्या कह रहा था।


    डिग्गी का दरवाजा खोल कर उसने उसमें से कुछ बैग्स निकाले और गाड़ी को अच्छे से लॉक कर घर के मुख्य दरवाजे से अंदर आया। चलते हुए अचानक उसने नज़रे उठा कर देखा था। महावश को रेलिंग पर झुका देख अचानक उसके होठों पर तिरछी मुस्कान आई थी। वही महावश के माथे पर बल गहरा गए।


    " यहां से सिर्फ़ सर या हाथ - पैर ही टूटेंगे । आप तीसरी मंजिल की छत से कूद सकती है । आई एम डैम श्योर की मौत पक्की है । " वह थम्सअप करके वहां से अंदर चला गया था वहीं महावश कद्रे हैरानगी से उसकी बातो को सोचने लगी। मग़र अचानक उसे एहसास हुआ था कि वह रेलिंग पर काफी झुकी हुई थी। और तो और उसका एक पैर भी रेलिंग की दूसरी रॉड पर था। कोई भी देखता तो यही समझता कि वह कूदने की तैयारी में थी।  वह हड़बड़ा कर पीछे हटी और हल्के गुस्से में शाद को कोसते हुए कमरे के अंदर चली गई।


    नीचे लॉज में कादिर साहब , सलमा बेगम, वसीम शाह , वसीम शाह का छोटा भाई , दानियाल और शाद। यह सब सोफों पर बैठे हुए थे। रिम्शा बेगम , शर्जिना से चाय और नाश्ता मिडल टेबल पर रखवाते हुए वही वसीम शाह के बराबर में बैठ गई थी।


    शर्जिना ने सब को चाय दी और एक तरफ खड़ी हो गई । वहां काफी ख़ामोशी थी बात की शुरुआत सलमा बेगम ने की थी। वह मुस्कुरा कर बोली - " हमारी बेटी नजर नहीं आ रही कहीं बहनजी ..? "


    " जी.. जी वो तैयार हो रही होंगी । मैं बुलाती हूं । " कहकर उन्होंने शर्जिना की ओर इशारा किया। जिसे समझ कर वह सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई।


    कुछ देर बाद महावश , शर्जिना के साथ नीचे आई थी। सलमा बेगम ने मुस्कुरा कर उसे अपने पास बैठा लिया था। चाय पीते हुए सब इधर - उधर की बाते कर रहे थे जबकि शाद ख़ामोशी से बैठा चोर नज़रों से महावश को देख रहा था।


    रोज़ गोल्डन रंग का सूट जिसपर काफी हैवी वर्क था जिसके साथ उसने मैरून रंग का शरारा पहना हुआ था। और उसी रंग का दुपट्टा जो उसके सिर पर रखा हुआ था। पैरो में मैरून रंग की ही हील्स थी। तीन इंच की तो थी शाद ने बैठे - बैठे अंदाजा लगाया था। उसे सिर से लेकर पांव तक ऑब्जर्व करने के बाद उसने चाय का एक और घुट भरा था।


    चाय नाश्ते के बाद सलमा बेगम अब मेन मौज़ू पर आ ही गई थी। उन्होंने कहा था - " वो दरअसल ! शाद .. महावश से बात करना चाहता था । अगर आप लोगो की इज़ाजत हो तो क्या वह कर सकता है ..? "


    ज़वाब रुक कर नहीं बल्कि फ़ौरन आया था रिम्शा बेगम की तरफ़ से - " हां ! हां ! क्यों नहीं । और अब आपको इज़ाजत लेने की ज़रूरत नहीं है ।  क्योंकि महावश आपकी भी तो बेटी है । उस पर अब आपका भी पूरा - पूरा हक़ है । "


    अपनी बेगम की बात कर वसीम शाह ने हामी में सिर हिलाया था। जबकि सब मुस्कुरा दिए थे।




    क्रमशः

  • 7. महताबे हयात! - Chapter 7

    Words: 1218

    Estimated Reading Time: 8 min

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    शर्जिना , महावश को उसके कमरे में छोड़ गई थी। कुछ देर बाद दरवाजे पर आहट हुई तो महावश चौकन्ना होकर बैठ गई थी। शाद भीतर आया मगर वह दरवाजा झुकाना नहीं भूला था।


    अपने झुके हुए सिर को उसने और झुकाया था। उस कमरे में नज़रे दौड़ते हुए शाद एक दूरी बना कर बेड पर ही बैठ गया था।



    " उधर ! " शाद के बेड पर बैठते ही महावश ने झुके सिर के साथ ही सामने वाली चेयर की तरफ इशारा किया था । शायद ! वह चेयर उसके लिए रखी गई थी। उसका इशारा समझ कर शाद मुस्कुराया और चेयर को खींच कर बिस्तर के पास लाया। फिर बिस्तर पर वापस बैठ कर उसने अपने पैरो को आराम से चेयर पर रखा था। जिसे देख कर महावश हैरान हुए बिना ना रह सकी थी। वह कुढ़ती हुई बालकनी की जानिब देखने लगी थी। बालकनी में एक विंड चाइम लटका हुआ था । ट्यूब्स और स्ट्राइकर हवा के कारण एक दूसरे से टकरा रहे थे और एक संगीत सी मधुर ध्वनि पैदा कर रहे थे। जो उस शांति भरे माहौल में किसी धुन की तरह उनके कानों से होते हुए दिल में उतर रही थी।


    " वैसे आप घर में हील्स पहनी है ..? " सवाल शाद की तरफ से ही आया था और क्या सवाल था ..? महावश ने फ़ौरन गर्दन घुमा कर उसकी जानिब देखा था जिसकी निगाहें अभी भी उसके पैरो की तरफ थी।


    अपने पैरो को छुपाते हुए उसने बस इतना ही कहा - " घर में कोई पहनता है क्या ..? "


    " तो फिर आप ने क्यों पहनी हुई है ..? " बिना रुके एक और सवाल आया था। और महावश झुंझलाई थी। क्या वह यहां उसकी हील्स को डिस्कस करने बैठे थे ..?


    " जी अब ठीक है ..? " बिलाखिर उसने झुक पर अपने पैरो से वह हील्स उतार कर एक तरफ रख दी थी।


    शाद ने अब उसके लिबाज़ की ओर देखा था। - " इतने चमकीले और भारी कपड़े आप घर पर पहनती है ..? "


    महावश ने दांतों तले अपने होठ की दबाया था। यह शख़्स उसके सब्र का इम्तिहान ले रहा था क्या ..?


    " आप लोग आने वाले थे बस इसलिए तैयार हुई थी । "


    " पहना हुआ है मगर अच्छी नहीं लग रही हो ।  " शाद ने उसकी बात खत्म होते ही कहा था। और महावश का चहरा एकदम सुर्ख हुआ था गुस्से में।


    " कैन यू प्लीज स्टॉप दिस नॉनसेंस । कम टू द प्वाइंट ऐंड टेल मी व्हाट यू वांट टू टॉक टू मी अबाउट ।  " अपने हर एक अल्फ़ाज़ को उसने चबाया था।


    " गुस्सा क्यों हो रही हो । मैं तो बस ! .. खैर ! मुझे बस यही कहना था कि तुम अपनी रुखसती जल्दी करवा लेना । "


    " मगर क्यों ..? "


    " क्योंकि मै चाहता हूं ।  "


    " मगर मै अभी नहीं चाहती।  "


    " क्यों ..? "


    " क्योंकि मेरे एग्जाम है । "


    " किस चीज़ के ..? "


    " मास्टर्स कर रहीं हूं मैं । "


    " अरे ! मैं भी कर रहा हूं । हां लेकिन कभी - कभी पापा के साथ उनके ऑफिस चला जाता हुं मगर कभी - कभी ही । "


    " किस सब्जेक्ट से ..? "


    " इंग्लिश लिटरेचर  "


    " ओह्ह्ह वेरी नाइस । "


    " है ना । पता है तुम्हे .. पापा ने मना किया था कि इंग्लिश लिटरेचर में मत करो । पॉलिटिकल साइंस में करो । मगर सच्च कहूं तो ना मुझे पॉलिटिकल साइंस पसंद है और ना वह लोग को उसे पढ़ने है । अच्छा वैसे तुम किस में मास्टर्स कर रही हो ..? " जवाब की उम्मीद में वह उसके सुर्ख चहरे को देख रहा था।


    महावश का खून घटा था और गुस्सा बढ़ा - " पॉलिटिकल साइंस । "


    और शाद दम - ब - ख़ुद बैठ गया था। महावश उसे घूर रही थी। वह ज़बरदस्ती मुस्कुराया - " वैसे बुरा सब्जेक्ट भी नहीं है ।  "


    महावश कुछ नहीं बोली थी बस उसे ही देख रही थी।


    " तो तुम करवा रही हो ..? "


    " सोचने का समय चाहिए । "


    " शाम तक जवाब दे देना कोई जल्दी नहीं है । अच्छा वैसे कल वलीद शादी में क्यों नहीं आया था ..? " शाद ने फिर सवाल पूछा था। महावश उससे कुछ नहीं छिपाना चाहती थी। इसलिए अपने हाथो को आपस में गूथे बोली - " व.. क्योंकि उन्हें यह पता चल गया था कि मैं इससे पहले किसी और के साथ रिलेशनशिप में थी। "


    " तो तुम्हारी शिप डूब गई थी क्या ..? " शाद की आंखे चमक रही थी। महावश समझ नहीं पाई कि क्यों ..?


    " बड़ा अना परस्त था । पांच सालों का रिश्ता लम्हे भर में तोड़ दिया था। सिर्फ़ एक बात पर कि मैं अपने पापा से कहूं उसके पेरेंट्स के कदमों में गिर पर माफी मांगे , जिसमें शायद ! उनकी कोई गलती भी नहीं थी ।  " महावश की आंखों में नमी तैरी थी।


    " पांच साल!!!!!!!!! ए मेरे खुदाया । " शाद ने अब चौंकते हुए कहा था।


    " हां हम स्कूल में मिले थे। पहले दोस्त थे फिर....."


    " ठीक है ! ठीक है ! कुछ तो खयाल रखो मेरा । अब तो हसबैंड हूं तुम्हारा । हसबैंड के सामने अपने एक्स नामा खोल कर बैठ गई हो । हद है । " शाद ने उसकी बात बीच में काटते हुए नाराज़गी से कहा था। - " अब तो नहीं हो तुम उसके साथ टच में ..? "


    " नहीं " ...


    " हां ! तो अब तुम्हे ध्यान देने की जरूरत है । अब तुम मेरी मनकुहा हो । और मुझे यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा कि तुम आज भी उसके साथ टच में रहो । शादी से पहले जो भी तुम्हारा था , मुझे वाकई उससे कोई लेना देना नहीं मगर तुम्हारे आज से है । " शाद कब गंभीर हो गया था पता ही नहीं चला था महावश को मगर एक फिक्र सिर से उतरी थी कि चलो कम - से - कम शाद को उसके पास्ट से कोई लेना देना नहीं था । अगर वह ना बताती तो शायद ! सारी ज़िंदगी सच्चाई खुलने के इसी खौफ में जीती।


    " मैने सभी ताल्लुक़ खत्म कर दिए थे । "


    " हम्म्म ! अच्छा अब मैं चलता हूं । " कहकर वह उठा के तभी उसे कुछ याद आया। अपनी जेब को टटोल कर उसने उसमें से एक ज्वैलरी बॉक्स निकाला और उसमें मौजूद अंगूठी को महावश की उंगली में पहनाते हुए उसने आहिस्ते से उसकी उंगलियों को चूमा था।


    " जल्दबाजी ने बस यही ला पाया।  जब घर आओगी तब जो तुम मांगो ।   " उसके सिर को थपथपाते हुए वह मुस्कुराया था। फिर दरवाजे के पास आकर वह रुका।


    " वैसे इतनी बुरी भी नहीं लग रही हो इस गोल्डन सूट में"


    " रोज़ गोल्डन है यह ।  " बेसाख्ता उसके मुंह से निकला था। शाद ने सिर खुजलाया - " गोल्डन अलग - अलग होते है क्या ..?  "


    " हां जैसे बाकी कलर्स की शेड होती है वैसे ही गोल्डन की शेड होती है।  " अपनी उंगली ने मौजूद अंगूठी को बड़े गौर से देखते हुए उसने कहा था। शाद सिर हिला कर चला गया था।


    वही महावश के लबों पर एक नर्म सी मुस्कान आई थी।





    क्रमशः

  • 8. महताबे हयात! - Chapter 8

    Words: 1128

    Estimated Reading Time: 7 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---






    " मम्मी रुखसती इसी संडे को रखते है । " महावश ने कहा था। रिम्शा बेगम जो रात के खाने की तैयारी कर रही थी वह कद्रे हैरानगी से बोली - " मगर बेटा ! आप तो कह रही थी कि अभी आप...."


    " मम्मी ! मैने काफी सोचा है । आप आंटी से कह देना कि इस संडे रुखसती कर लेंते है । " उसने बीच में ही उनकी बात काटते हुए कहा था।


    शर्जिना ने महावश की बाजू पकड़ी -" चलो ज़रा बात करते है । "


    " आपी!!!!!!! " महावश उसके साथ चलते हुए बोली। मगर शर्जिना ने उसकी एक ना सुनी। दोनो कमरे में आई तो शर्जिना ने उसकी बाजू छोड़ दी - " कल तक तुम कह रही थी कि तुम अभी रुखसती नहीं चाहती । आज शाद ने ऐसा क्या कह दिया जो तुम फौरन तैयार हो गई ..? "


    " आपी शाद ने कुछ नहीं कहा । और वैसे भी जाना तो है ही एक ना एक दिन । दो हफ्ते बाद जाऊं या दो दिन बाद , क्या ही फ़र्क पड़ता है । अब मैं आपके और जीजू की तरह इसी घर में शाद के साथ तो नहीं रह सकती ना । " वह बिस्तर पर बैठते हुए बोली।


    " अच्छा!!!!!!!!! और इमाद के बारे में बताया तुम ने ..? " शार्जिन अब उसके पास ही बैठ गई। महावश ने एक गहरी सांस ली - " हां मैने उसे बता दिया कि मेरा एक पांच साल का रिलेशन था । उसने कहा कि उसे फर्क नहीं पड़ता मेरे पास्ट से । "


    " यानी कि तुम ने यह नहीं बताया कि तुम और इमाद एक रिश्ते में थे ..? "


    " नहीं मैने नाम नहीं बताया , और बता पाती उससे पहले ही उन्होंने मना कर दिया यह कहकर कि उन्हें सुनना ही नहीं है जो भी मेरे पास्ट में हुआ । उन्हें तो बस मेरे प्रेजेंट से मतलब है । "


    महावश की बात सुनकर शर्जिना को थोड़ा सुकून मिला। महावश उसके हाथ पर अपना हाथ रख सोचते हुए बोली - " मगर आपी । मुझे एक बात समझ नहीं आई । "


    " कौन सी बात ..? "


    " यही की इमाद ने जो शाद के बारे में मुझे बताया था।  और आज जब सुबह हम दोनो की बाते हुई । दोनो बातों में मेल ही नहीं बैठ रहा है । शाद का बर्ताव बेहद नॉर्मल था । तो क्या इमाद ने झूठ बोला था ..? "


    " हां शायद ! उसने झूठ ही कहा होगा । मुझे तो शाद ठीक ही लगा । मतलब थोड़ी बहुत बाते हुई मेरी और उसकी । काफी अच्छा लगा मुझे तो । " शर्जिना ने भी हामी भरी।


    " तो इमाद ने झूठ क्यों कहा मुझ से ..? "


    " मुझे नहीं पता कि उसने क्यों कहा होगा । खैर अब तुम यह इमाद जाफरी के कसीदे पढ़ना बंद करो । शाद के साथ एकदम वफादार और फ़रमाँ-बरदार बीवी बन कर रहना । खुश रहोगी । " शर्जिना ने एक बार फिर उसे समझाया।


    " इमाद ऐसा तो नहीं था आपी । वह तो कहता था कि मुझे बहुत प्यार करता है । मुझ से ही शादी करेगा तो फिर ..? मुहब्बत में तो लोग कुर्बानी तक दे देते है अपनी और वह मेरे लिए लड़ा तक नहीं । " महावश ने उदास से लहजे में कहा। शर्जिना ने उसके कंधे पर हाथ रखा और हल्के से उसे दबाते हुए बोली - " क्योंकि वह खुदगर्ज था । उसे मुहब्बत से ज्यादा अपनी अना प्यारी थी । वह मुहब्बत नहीं थी , सिवाए टाइम पास के । वह तुम्हारे साथ बस टाइम पास कर रहा था । क्योंकि उसका इरादा तुम्हारे साथ शादी करने का नहीं था । अगर होता ना तो वह तुम्हारी शादी वाले दिन यहां होता , हमारे घर में और पापा से तुम्हारा हाथ मांग रहा होता । वह कह रहा होता कि उसे एक मौका दे दो । मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ ना वह आया और ना उसने कोई दलीलें दी । इससे साफ पता चलता है की कितनी मोहब्बत थी उसे तुम से । "



    " मगर आपी ! मैने तो की थी ना ।" उसका गला रुंधा था।


    " अपने सिर से यह मोहब्बत का भूत उतार दो महावश । खुश रहोगी । क्योंकि परेशानी तो यही है । शाद के बारे में सोचो क्योंकि वह तुम्हारा शौहर है अब । इमाद अब तुम्हारे लिए गैर है । और शादीशुदा होकर एक गैर मर्द का तसव्वुर करना पाप है । अभी तौबा कर लो वरना आख़िरत ( वो दुनिया जहाँ क़ियामत के बाद दुनियावी कर्मों का हिसाब किताब होगा ) में तुम्हे अपने कर्मों का हिसाब देना होगा । " शर्जिना उसे समझा कर चली गई थी। और महावश का दिमाग़ अटक चुका था उसकी बातो में।


    वह संडे की शाम थी जब महावश ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी नर्वसनेस में अपने पैरो को हिलाते हुए बार - बार दरवाजे की ओर देख रही थी। कांपते हाथ के साथ उसने टेबल से एक डार्क कलर की लिपस्टिक उठाई और उसे अपने होठों पर पहले से ही चढ़ी मैरून कलर की शेड पर लगा लिया।


    इस वक्त उसने एक आफ वाइट कलर का लहंगा और उसके साथ लाइट पिंक कलर का दुपट्टा कैरी किया हुआ था। कानो में झूलते झुमके और कलाईयों में भरी भरी ड्रेस से मैचिंग चूड़ियां। 


    दरवाजा खोला था और रिम्शा बेगम के साथ शर्जिना और सलमा बेगम अंदर आई थी। सलमा बेगम ने तो आते ही महावश की बलाएं लेनी शुरू कर दी थी। शर्जिना , महावश के सामने घुटनों के बल बैठी और मुस्कुरा कर उसकी नोज रिंग निकालने लगी। वह सोने की नथ जैसे ही सलमा बेगम ने महावश को पहनाई , सहसा ही उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े थे।


    अपने साथ लाएं कुछ और गहनों को उन्होंने महावश पर सजा दिया यह कहते हुए कि - " शाद की शादी के बाद अब मेरी सारी ख्वाहिश पूरी हो गई । "


    महावश जानती थी कि अब उसे अपने इस परिवार से दूर एक नए घर में जाना है , एक नए परिवार के बीच । यह लम्हा उसके लिए बहुत भावुक कर देने वाला था। रिम्शा बेगम , शर्जिना और फिर वसीम शाह के गले लग वह बहुत रोई थी।


    महावश की रुखसती के बाद सब लॉज में आकर बैठ गए थे। एकदम ख़ामोश। कोई एक दूसरे से कुछ नहीं कह रहा था । क्योंकि इस वक्त सब बहुत भावुक थे। रिम्शा बेगम और शर्जिना के तो आंसू नजर आ रहे थे मगर वसीम शाह सब की आंखो से छुप कर बार - बार अपनी आंखे साफ़ कर रहे थे। इतना तो वह शर्जिना की विदाई पर भावुक नहीं हुए थे जितना महावश की विदाई पर हो रहे थे। लबों पर बस अपनी बेटी के अच्छे जीवन की दुआएं थी।





    क्रमशः

  • 9. महताबे हयात! - Chapter 9

    Words: 1452

    Estimated Reading Time: 9 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---






    रात के दस बज रहे थे और महावश अकेले उस कमरे में बैठी थी जिसे सब शाद का कमरा बता कर उसे यहां छोड़ गए थे। यह कमरा सजाया गया था फूलों से। लम्हे - लम्हे उसकी धड़कने बढ़ रही थी। नर्वस थी वह और इसी नर्वसनेस में उसके पसीने छूट रहे थे।


    और ऊपर से यह सिर दर्द , अपने उरूज़ पर था। घूंघट के अंदर हाथ डाल कर उसने अपने माथे को हल्के से दबाया। कमरे में फैली गुलाबो और महकती मोमबत्तियों की खुशबू उसके सिर दर्द में इज़ाफ़ा कर रही थी।


    लम्हा - लम्हा उसे लग रहा था कि उसके सिर की नसे फटने वाली थी। अब वह धीरे से तकिए पर टेक लगा कर लेट गई। जबकि उसकी नज़रे जमी हुई थी दरवाजे पर। उसे लग रहा था कि दरवाजा अब खुलेगा और शाद अंदर आयेगा।  उसकी आंखे अब बोझिल होने लगी। बावजूद इसके वह फिर भी अपने आप को जगाए हुए थी। मगर कितनी ही देर वह खुद को जगा पाती। पलके बन्द हुई तो फिर उसकी गहरी सांसो का ही शोर गूंजा था।


    यहां वह सोई थी और वहां शाद कमरे का दरवाज़ा खोल कर अंदर आया था। सबसे पहले उसकी नज़र बिस्तर पर लंबी ताने सो चुकी महावश पर गई थी। दरवाजा अंदर से बंद करते हुए वह बड़ा सम्हल कर बिस्तर के पास आया।


    और फिर मुंह बना उसका - " इतनी ज्वैलरी पहन कर कौन सोता है । बताओ मम्मी ने भी इस बेचारी को चलती फिरती गहनों की खदान बना दिया । "


    उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया ताकि वह उसे उठा सके यह कहने के लिए कि वह उठ कर कपड़े चेंज करे । मग़र फिर उसने अपना हाथ रोक लिया - " कहीं इसे बुरा लग गया तो ..? नहीं ! नहीं ! रहने देता हूं वरना लम्हे भर में कैरेक्टर सर्टिफिकेट थमा देंगी हाथ में । मग़र यह सो कैसे पायेगी ..? "


    शाद ने खुद में ही उलझ कर एक गहरी सांस ली और कंधे उचका कर बिस्तर के दूसरी जानिब आकर लेट गया।


    सुबह दोनों की आंखे किसी के दरवाजा खटखटाने से खुली थी। महावश उठ कर बैठी ही थे के तब तक शाद आंखों को मसलते हुए दरवाजे तक पहुंच गया था।


    " क्या हुआ मम्मी । " सामने सलमा बेगम को देख कर वह उखड़े हुए अंदाज में बोला। क्योंकि शायद ! उसे और सोना था।


    " बेटा 7 बज रहे है । महावश को कहो कि तैयार होकर बाहर आए । शर्जिना और दानियाल आए है उसे लेने । " सलमा बेगम ने मुस्कुरा कर नरमी से कहा था।


    " ठीक है  " उसने कहा। सलमा बेगम ने बस सिर हिला दिया था क्योंकि वह अपने बेटे का मिज़ाज जानती थी। वह वही से वापस लौट गई।


    शाद बिस्तर पर वापस औंधे मुंह गिरता हुआ आंखे बंद कर बोला - " तुम्हारी बहन आई है । मम्मी बाहर आने का कह रही है । "


    अपनी बहन के आने की खबर सुनकर वह बिस्तर से फौरन उतरी और बिना देरी के कमरे से बाहर निकल गई।


    शाद एक बार फिर नींद में जा चुका था। महावश बाहर आई तो लॉज में शर्जिना अपने बेटे और दानियाल के साथ वही सोफे पर बैठी थी। कादिर साहब और सलमा बेगम उनकी खातिरदारी कर रहे थे। उनके साथ ही वहां शाद के दो बड़े भाई मौजूद थे।


    आहट पर सबने एक साथ मुड़ कर अंदर की जानिब देखा तो जैसे हर कोई ठिठक सा गया। शर्जिना और सलमा बेगम की आंखे कद्रे हैरानगी में बड़ी हुई थी। सबकी नजरों को ख़ुद पर महसूस कर महावश मुस्कुराई।


    सलमा बेगम उठती उससे पहले ही शर्जिना अपने बेटे को दानियाल को थमा कर महावश के पास आई और उसका हाथ थाम कर अंदर की तरफ ले जाती हुई बोली - " आओ मेरे साथ अंदर । "


    " आपी क्या हुआ ..? " लॉज के अंदर की ओर गैलरी थी वहीं खड़े होकर माहवश ने सवाल किया था।


    " तुम क्या पागल हो ..? कल के ही कपड़े अभी तक तुम ने पहने हुए है ..? "


    " मैं कुछ समझी नहीं आपी ..? "


    " कल रात शाद और तुम्हारे बीच कुछ बाते नहीं हुईं ना।"


    " आपी मै तो उनका वेट करती हुई सो गई थी । मुझे नहीं पता कि शाद कब आए ..? "


    " और ना कुछ हुआ तुम्हारे बीच । "


    " आपको कैसे पता ..? "महावश ने हैरान होकर कहा था।


    " क्योंकि महावश  तुम्हारा यह श्रृंगार इधर - से - उधर तक नहीं हुआ है । कम - से - कम तुम नहा कर और दूसरे कपड़े पहन कर तो बाहर आती । ताकि यह बात ज़ाहिर ना होती " शर्जिना की बाते सुनकर अब महावश को एहसास हुआ।


    " आई एम सॉरी आपी । आप लोगो से मिलने की एक्साइटमेंट में इस बात कर ध्यान नहीं गया । मै आती हूं " कहकर महावश कमरे में चली गई। शर्जिना भी लॉज में चली गई। सलमा बेगम की दोनों बड़ी बहुओं ने नाश्ता टेबल पर सजाया तो सब वही आ गए। महावश भी अब तक नहा कर आ चुकी थी। शाद भी उसके बगल में बैठा हुआ था। कमरे में होती खट पट से शाद भी सही से सो नहीं पाया था इसलिए वह बाहर ही आ गया था।


    डाइनिंग टेबल पर सब बाते कर रहे थे सिवाए महावश और शाद के। जो एकदम ख़ामोश अपना नाश्ता करने में लगे हुए थे। शाद को लगा सलमा बेगम उसे कुछ कह रही थी। नज़रे उठा कर उन्होंने उसे देखा - " हां मम्मी ..? "


    " मैं कह रहीं थी कि शाम को महावश को लेने चले जाना । " सलमा बेगम ने बात दोहराई।


    " ठीक है । " शाद ने एक नजर महावश पर डाली और सहजता से कहा।


    महावश , शर्जिना और दानियाल के साथ अपने घर जा चुकी थी। उनके जाते ही सलमा बेगम के दोनो बड़े बेटे भी अपनी - अपनी बीवियों के साथ जाने को तैयार हो गए थे।


    यह देख कर सलमा बेगम उदास मन के साथ उन दोनो से बोली थी - " कुछ दिन और रुक जाओ ना । "


    " मम्मी ! कल की छुट्टी बड़ी मुश्किल से की थी । अब और नही कर सकता । काम का नुकसान होगा । " उनके बड़े बेटे ने कहा।


    " जल्दी आयेगे मिलने । " अपने बड़े भाई की बात कर हामी भरते हुए उनके मंझले बेटे ने कहा गया।


    सलमा बेगम नाराज से बोली - " एक शहर में रहते हुए भी हमें मिले महीनों बीत जाते है । इतना भी क्या काम जो तुम दोनो को अपने मां बाप की भी याद नहीं आती । "

    " मम्मी ऐसा कुछ नहीं है । " उनके बड़े बेटे ने परेशान होकर कहा तो वह फीका सा मुस्कुरा कर बोली - " जाओ अब वरना काम में देर हो जायेगी । "


    उनके जाने के बाद सलमा बेगम की आंखों में आंसू आ गए। जिसे देख कर शाद उनके पास ही बैठता हुआ बोला - " श्रीदेवी रो क्यों रही हो । मैं हूं ना आपके पास । वह तो दोनो वैसे भी अपनी बीवियों के कहने पर चलते है , जानती तो हो तुम "


    " शाद अगर कभी महावश ने भी कह दिया कि वह हमारे साथ नहीं रहना चाहती तो क्या तुम भी हमें छोड़ जाओगे बेटा ..? "


    " अगर उसने कहा ना तो मैं उसे छोड़ दूंगा । लेकिन आप दोनो को नहीं । क्योंकि मुझे ऐसी बीवी बिल्कुल ! नहीं चाहिए जो मुझे मेरे ही मां बाप से अलग करे । " शाद ने यह बात संजीदगी से कही थी।


    " अरे छोड़ पागल । बीवी की बात सुनते है । क्या पता वह तुम्हारी भलाई के बारे में सोच रही हो । " सलमा बेगम ने अपने आंसू साफ़ कर कहा।


    " यही बात तो आप ने अपने दोनो बड़े बेटो से कहीं की । साला वह दोनो ने इतनी सुनी उनकी बात की अपनी -  अपनी बीवियों के साथ यहां से गए सो गए । मुझे तो लगता है सांस लेते वक्त भी वह दोनो अपनी बीवियों से इजाज़त मांगते होंगे । "


    " क्या फ़र्क पड़ता है बेटा । वह खुश तो है ना अपनी छोटी सी फैमिली में । हर मां बाप यही चाहता है कि उनके बच्चे खुश रहे । चाहे फिर उनके साथ खुश रहे या उनसे दूर खुश रहें । "


    अपनी मां की बात सुनकर शाद उठा और जाने लगा तो सलमा बेगम बोल उठी - " कहां जा रहे हो ..?  "


    " वो जो आपके महानता के मेडल्स पड़े है ना अंदर कमरे में । उन्हें चमकाने जा रहा हूं । सारे घर के बाहर लटकाऊंगा । " शाद का तंज था जो सलमा बेगम के चेहरे पर मुस्कुराहट ले आया था।





    क्रमशः

  • 10. महताबे हयात! - Chapter 10

    Words: 1057

    Estimated Reading Time: 7 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---






    " कुछ और तो नहीं रह गया तुम्हारा ..? " महावश के सामान को देख कर वह यह सवाल पूछने से खुद को रोक नहीं पाया था। गाड़ी की डिग्गी और पिछली सारी सीट महावश के सामान में भरी हुई थी।


    " है अभी थोड़ा । लेकिन वह फिर कभी ले जाऊंगी । " पैसेंजर सीट पर बैठते हुए उसने बड़ी लापरवाही से कहा था।


    शाद दम - ब - खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गाड़ी स्टार्ट कर चुका था। महावश ने मुस्कुरा कर अपनी फैमिली को बाय कहा जो उन्हें छोड़ने दरवाजे तक आए थे।


    वह दोनों घर पहुंचे तो रात के नौ बज चुके थे। शाद ने उसका सारा सामान कमरे में पहुंचाया तब तक महावश लॉज में ही कादिर साहब और सलमा बेगम के पास बैठ गई थी। वही इधर - उधर की बाते जिनका जवाब महावश मुस्कुरा कर दे रही थी।


    " मम्मी पापा कॉफी पियोगे ..?  " गाड़ी को अच्छे से पार्क कर वह अंदर आता हुआ बोला था।


    " हां बिल्कुल ! " सलमा बेगम ने मुस्कुरा कर सिर हिलाया था। शाद किचन में जाने लगा तो महावश उठते हुए बोली - " मैं बनाती हूं । "


    " रहने दो । " सलमा बेगम के कहने से पहले शाद मुड़ कर बोला। सलमा बेगम ने उसका हाथ पकड़ उसे वापस अपने पास बैठा लिया यह कहते हुए कि - " बेटा उसे सब आता है बनाना । वो बना लेगा । "


    शाद किचन में चला गया था जबकि महावश झिझकती हुई वही बैठी रही। थोड़ी देर बाद तीन कप कॉफी ट्रे में रख कर लाया , जिसे उसने वही मिडल टेबल पर रख दिया था। महावश को लगा उसने उसके लिए कॉफी नहीं बनाई थी।


    इसलिए वह उठते हुए जबरदस्ती मुस्कुरा कर बोली - " मै आती हूं मम्मी । "


    " किधर जा रही हो बेटा । पहले कॉफी तो पियो । फिर सोने ही चली जाना । " सलमा बेगम ने फ़ौरन कहा।


    " मगर... " वह फिर झिझकी।


    शाद उसे देखते हुए अपने कमरे में चला गया। सलमा बेगम ने कॉफी का कप महावश के हाथ में पकड़ाया और धीमे से बोली - " शाद कॉफी नहीं पीता है । यह उसने तुम्हारे लिए बनाई है । " महावश कुछ नहीं बोली बस खामोशी से अपनी कॉफी पीने लगी।


    लॉज की लाइट बंद कर , महावश गैलरी से होते हुए अपने कमरे में आई। शाद औंधे मुंह लेटा हुआ था। वही रखी चेयर पर बैठ , वह अपनी हील्स उतारते हुए अपने सामान को देखने लगी। जो शाद ने एक कोने में रख दिया था। कपड़े चेंज कर वह बिस्तर पर आ बैठी - " थैंक्यू "


    " किस लिए ..? " शाद ने फ़ौरन गर्दन घुमा कर उसे देखा था।


    " कॉफी के लिए । "


    " और जो सामान रखा उसका क्या ..? मुझे तो समझ नहीं आया कि इन तीन बॉक्स में तुम ने कौन से पत्थर पैक किए हुए है । " वह उठ कर बैठता हुआ बोला।


    " पत्थर नहीं है । मेरी बुक्स है । "


    " इन तीनों में ..? "


    " हां । "


    " सही है । लगता है काफी होशियार हो पढ़ाई में ..? "


    महावश मुस्कुराई। शाद - " वैसे क्या सोचा है आगे का फिर ..? "


    " किस चीज़ के बाबत ..? "


    " लाइफ और पढ़ाई दोनो के बाबत । "


    " लाइफ का ज़्यादा सोचा नहीं अभी । पढ़ाई में पी.एच.डी करने का सोचा है । "


    " सही है ।  " कहकर शाद मुस्कुराया। महावश भी हल्के से मुस्कुराई।


    " गुड नाईट " अपने ऊपर कंबल खींचने हुए शाद ने कहा और दूसरी तरफ करवट बदल कर सो गया। जबकि महावश उसकी पुश्त को देख रही थी। शाद कहीं से भी वैसा नहीं था जैसा इमाद ने बताया था। इमाद ने झूठ क्यों कहा था यह बात उसे अब तक समझ नहीं आई थी।


    अगली सुबह नाश्ते के बाद शाद , कादिर साहब के साथ उनके ऑफिस चला गया था। बची सलमा बेगम और महावश। किचन का काम सलमा बेगम ने समेट दिया था वही घर की साफ सफाई के लिए मुलाज़मा आती थी। जो करके जा चुकी थी।


    महावश कमरे में अपने सामान को जचा रही थी। जब सलमा बेगम तैयार होकर वहां आई थी।


    " मम्मी आप कहीं जा रही है क्या ..? "


    " हां बेटा एक काम है । दोपहर तक वापस आ जाऊंगी । और हां शाद का कॉल आया था वह आता होगा । "


    " दो घंटे भी नहीं हुए उन्हें गए । " महावश हैरान हुई।


    " वो ऐसा ही है । अपने पापा के डर की वजह से चला जाता है उनके साथ मगर एक या दो घंटे बाद वापस आ जाता है । " सलमा बेगम ने हंसते हुए कहा - " मैं जा रहीं हूं दरवाजा बंद कर लेना । शाद आए तो खोल लेना । "


    सलमा बेगम के जाने के बाद महावश दरवाज़ा बंद कर वापस अपने कमरे में आई। अपने गले में पड़ा दुपट्टा उसने उतार कर बेड पर रखा और फर्श पर बैठ कर बॉक्स से एक एक बुक निकालने लगी।


    बीस मिनट बाद ही उसे घर की डोर भेज बजती हुई सुनाई पड़ी थी। बुक्स को वही छोड़ कर वह लगभग दौड़ते हुए दरवाजे के पास आई और बेधड़क उसने दरवाजा खोला था जबकि सामने खड़े शख़्स को देख उसका दिल धक् से हुआ।


    " महावश तुम यहां ! " इमाद हैरान होकर बोला था।


    महावश की ज़ुबान उसके तालु से चिपक गई थी। और दिमाग एकदम ब्लैंक। उसे तो लगा था कि शाद आया होंगा मगर यह तो इमाद था जिसके आने की अपेक्षा भी उसने नहीं की थी।



    इमाद ने उसे खोया देख उसकी बाजू पर हाथ रख पूछा था - " महावश ! तुम यहां क्या कर रही हो ..? और यह आह्ह्ह्ह!!!!!!!!!!!


    अपनी बात कहते हुए वह अचानक दर्द में तड़पा था। महावश सारे सूरत - ए - हाल समझ पाती उससे पहले ही किसी ने उसे गुद्दी से पकड़ते हुए अंदर की तरफ धकेला था। वह गिरते - गिरते बची थी । उस ने ख़ुद को जल्दी से सम्हाला और मुड़ कर देखा तो शाद बेहद गुस्से में इमाद का हाथ मरोड़ उसकी पीठ पर लगाए खड़ा था। जबकि उसकी आंखो में एक नाराज़गी थी जिससे वह महावश को देख रहा था।


    महावश हक्की बक्की सी अपनी जगह पर ही जमी खड़ी रही।




    क्रमशः

  • 11. महताबे हयात! - Chapter 11

    Words: 1153

    Estimated Reading Time: 7 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---





    महावश हक्की बक्की सी अपनी जगह पर ही जमी खड़ी रही। शाद ने अपनी नज़रे उससे हटा कर इमाद पर डाली और उसे बाहर की ओर धकेलता हुआ गुस्से में बोला - " तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर आने की । तोते की तरह तुझे समझाया था । तुझे मना किया था ना कि हमारे घर की ओर रुख करके भी नहीं सोना । शायद ! तुझे यह बात समझ नहीं आई । "


    " शाद पागल हो क्या । छोड़ो  , मुझे दर्द हो रहा है । " इमाद खुद को छुड़वाने की कोशिश कर रहा था जिसमें वह नाकामयाब था।


    " क्यों आया इधर ..? " शाद ने उसका हाथ और मोड़ा। इमाद दर्द में कराहया।


    " अरे यार  ! मेरी शादी थी तो चाचा चाची को इनवाइट करने आया था । " फर्श पर पड़े कार्ड की तरफ उसने इशारा कर कहा था।


    " क्यों हमारे घर में काज़ी है । जो हमारे बिना शादी नहीं होंगी तेरी साले नल्ले । " उसे यूंही पकड़े हुए शाद ने कार्ड को उठाया और उसके सिर पर मारा।


    " शाद!!!!!!!!!!!!!! लगता है पिछली बार की तरह हवालात की हवा खाने का मन है तुम्हारा । छोड़ दो मुझे । वरना अभी पुलिस को बुलाऊंगा समझे । " इमाद ने उसे धमकी दी।


    " एक घंटे में ही छूट गया था साले । अब बोल , बड़ा उड़ रहा है । मैं भी देखता हूं कि क्या उखाडेगा तू  मेरा । " कहकर उसने जोर का धक्का दे दिया। इमाद खुद को सम्हाल ना पाया तो सीधा फर्श पर गिरा। इमाद दांत पीसते हुए खड़ा हुआ और जैसे ही मुड़ा शाद ने फिर उसके मुंह पर उसका ही कार्ड फेंक दिया था यह कहते हुए कि - " कोई नहीं आयेगा हमारे घर से और आइंदा इस एरिया में भी दिखे तो मैं खुद पुलिस को बुलाऊंगा । "


    अंदर जाते हुए उसने उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया था।


    " तुझे तो मैं छोड़ूंगा नहीं शाद!!!!!!!!! " इमाद कुढ़ते हुए बोला और पैर पटकते हुए वहां से चला गया।


    शाद दरवाजा बंद कर मुड़ा तो महावश सुन्न सी खड़ी थी। गुस्से में उसकी बाजू पकड़ते हुए वह उसे कमरे में लेकर आया और वहां आकर उसे छोड़ दिया। महावश डरी सहमी सी उसे देख रही थी। उसकी प्रतिक्रिया ऐसी थी मानो उसके शौहर ने उसे  , उसके आशिक के साथ पकड़ लिया था , रंगे हाथों। उसका चहरा सदमे में सफ़ेद था।


    शाद ने अपने साथ लाए पेपर बेग को बेड पर रखा और वही से उसका दुपट्टा उठाते हुए उसके ऊपर फेंकता हुआ वहां से निकल गया।


    जल्दी से अपने दुपट्टे को पकड़ते हुए वह शाद की ओर मुड कर उसे आवाज लगाते हुए बोली - " शाद!!!!!!! मेरी बात सुनो एक बार । "


    शाद के आगे बढ़ते कदम वही थम गए। महावश कुछ कहती उससे पहले ही शाद बिना उसकी बात सुने वहां से चला ही गया था।


    वह गैलरी के दरवाजे से लग कर खड़ी थी जब सलमा बेगम , शाद को डांट रही थी। क्योंकि कुछ देर पहले उसने जिस तरह का बर्ताव इमाद के साथ किया था। घर जाकर इमाद ने अपने पेरेंट्स से कहा था और उसके पेरेंट्स ने कादिर साहब और सलमा बेगम के सामने शिकायत लगा दी थी। इस वक्त दोनों लॉज में सोफे पर बैठे थे।


    शाद बिना कुछ कहे बस सामने दीवार पर बने डिजाइंस को देख रहा था। जबकि सलमा बेगम अपना सिर पकड़ कर बोली - " तुम... मै तुम्हे कैसे समझाऊं शाद । इमाद के साथ तुम ऐसे हाथापाई क्यों करते हो । वह यहां सिर्फ कार्ड देने आया था । तुम्हे उसके साथ इस तरह का बर्ताव हरगिज़ नहीं करना चाहिए था ।


    " तो क्यों आया था वह यहां । "


    " क्योंकि हम उसकी फैमिली है । "


    " नहीं ! वो हमारी फैमिली नहीं है । हमारी फैमिली में सिर्फ मै , पापा , आप और अब महा है । इसके अलावा कोई नहीं सुना आप ने । और हां ताई अम्मी को कह देना कि आइंदा अगर वह मुझे नजर भी आया ना तो कसम खुदा की साले के पैर तोड़ कर भेजूंगा । " शाद ने दांत पीसते हुए कहा था।


    " अपना पागलपन बंद कर दो शाद । किस बात की खुन्नस है तुम्हे उससे । "


    " खुन्नस हर्फ़ छोटा है मम्मी । नफ़रत है मुझे उससे । नफ़रत । " शाद अब उठ खड़ा हुआ था। - " मैं कुछ देर के लिए बाहर जा रहा हूं । अपनी बहू से कहिए कि अब ज़रा आराम करे । दरवाजे के पीछे खड़े - खड़े पैर दर्द करने लगे होंगे । "


    वह निकल गया था , महावश को शर्मिंदा करके। सलमा बेगम ने मुस्कुरा कर दरवाजे की ओर देखा - " महावश उधर क्यों खड़ी हो बेटा इधर आओ मेरे पास । "


    महावश शर्मिंदगी में सिर झुकाए उनके पास आकर बैठ गई। सलमा बेगम ने मुस्कुरा कर उसके सिर पर हाथ फेरा - " वह ऐसा ही है । अभी गुस्से में है मग़र जब थोड़ी देर बाद आयेगा तो नॉर्मल मिलेगा । "


    " मम्मी एक बात पूछूं ..? "


    " हां बेटा पूछो ना । "


    " शाद अपने कजिन के साथ इस तरह का बर्ताव क्यों करते है ..? "


    महावश के सवाल पर सलमा बेगम ने एक गहरी सांस ली - " बचपन से ही इनकी बनती नहीं है । जब भी मिलते है बस लड़ाई हो जाती है । "


    " मग़र कोई कारण भी तो होगा ..? "


    " हम जब एक साथ जॉइंट फैमिली में रहते थे तब इमाद के पापा का बिजनेस काफी अच्छा था और घर का घर खर्च चलाने वाले वह अकेले थे । उस वक्त तक कादिर साहब सिर्फ कुछ हजार रुपए की एक नौकरी करते थे । इमाद के पापा ज्यादा कमाते थे तो हर कोई सिर्फ़ उन्हें और उनके बच्चों को इंपोर्टेंस देते थे । और इनमें शाद के दादा और दादी शामिल थे। यही बात शाद को काफी बुरी लगती थी । उस वक्त बहुत ज्यादती हुई मेरे बच्चों के साथ । शाद छोटा था तो मेरी गोद में सिर रख कर रो देता था लेकिन जैसे - जैसे बड़ा होने लगा । रोना बंद कर गुस्से में इमाद को पीटना जैसे उसका पसंदीदा काम बन गया। वह चिढ़ने लगा था उससे । घर पर सब के बीच कुछ कहता नहीं था लेकिन बाहर जाकर उसे पीट कर ही आता था । वह दिन था और आज का दिन है इनके बीच कुछ नहीं बदला । शाद के दादा दादी की फ़ौत के बाद हम फिर अलग हो गए थे।  " सलमा बेगम अपनी बात कहकर ख़ामोश हो गई। वही महावश उनकी बात के बारे में सोचने लगी। अब उसे समझ आ रहा था उस दिन कैफे में शाद को देख कर इमाद , उसे लेकर वापस क्यों लौट आया था। क्योंकि उसे पता था कि अगर शाद उसे देख लेता तो वह पक्का तमाशा लगाता।





    क्रमशः

  • 12. महताबे हयात! - Chapter 12

    Words: 1212

    Estimated Reading Time: 8 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---









    सलमा बेगम से बात करने के बाद महावश अपने कमरे में आ गई थी। उसने जल्दी - जल्दी अपनी सभी बुक्स को साइड में रखा और बिस्तर के पास आई। शाद का लाया वह पेपर बैग अभी भी वही रखा हुआ था। महावश ने उसे उठा कर उसमें देखा तो वह एक ज्वैलरी बॉक्स था।


    उसके अंदर क्या था यह बिना देखे ही उसने वह बैग टेबल पर रखा और बिस्तर पर लेट गई। शाद में उलझ कर इमाद महावश के बारे में जैसे भूल ही गया था। और यह तो शुक्र था कि उसे जाते वक्त भी महावश का खयाल नहीं आया था वरना आज ना जाने क्या ही हो जाता जब शाद के सामने उसकी सच्चाई आती। क़यामत ही गिरती उसपर तो।


    अपना सिर झटक कर उसने आंखे बंद कर ली - " अल्लाह मेरे राज की हिफाज़त करना । शाद के सामने कभी मुझे रुसवा ना करना । कभी उसके सामने ज़ाहिर मत होने देना कि मेरा और इमाद का एक रिश्ता रह चुका है । वरना ना जाने शाद क्या ही कर गुजरेगा । "


    बड़े बड़े सूखे पहाड़ , भूरी मिट्टी का बड़ा सा मैदान और स्याह आसमान।  वह आगे पैर रख रही थी मगर पैर उस भूरी मिट्टी में धसते जा रहे थे। बिल्कुल ऐसे जैसे वह रेत उसे अपने भीतर निगल रहा था। उसके आस पास सफेद कपड़ों में मलबूस लोग उसकी तरफ हाथ बढ़ा रहे थे उसकी मदद के लिए मगर वह किसी का भी हाथ पकड़ नहीं पाई थी।


    जितना हिलने की कोशिश करती उतनी अंदर धस जाती । वहां चल रही गर्म हवाएं उसके जिस्म के रुओ तक को जला रही थी। उसके चहरे पर ऐसे भाव थे जैसे वह अपनी मौत अपनी आंखो से देख रही थी। उसकी आंखे बरसने लगी । सांसे उखड़ने लगी।  दिल की धड़कने बीते लम्हा - लम्हा रुकने लगी। लेकिन तभी अचानक एक तेज रोशनी उसके चहरे पर आकर पड़ी के एक लम्हे के लिए उस रोशनी की चमक से उसकी ही आंखे चौंधिया गई थी।


    वह पसीने में तरबतर थी। उसे लगा उसे किसी ने शाने से पकड़ ऊपर खींचा था। और महावश की आंखे चौंकते हुए खुली। उसे डरता देख उसके पास खड़ा शाद उसे शांत करवाने के इरादे से बोला - " यह मैं हूं महावश। "


    महावश ने बढ़ती सांसों के साथ शाद के हाथ की ओर देखा जो उसके शाने पर रखा हुआ था। शायद ! वह उसे जगाने ही आया होंगा।  


    " उठ जाओ अब क्या सोती ही रहोगी । शाम को गई है । मैने चाय बनाई है । आ जाओ बाहर । " कहकर वह कमरे से निकल गया था।


    यह एक ख़्वाब था जो वह देख रही थी , एक बेहद डरावना ख़्वाब । इसी पस - ओ - पेश में उलझी महावश ने अपने ऊपर से कंबल को हटाया और अपने सिरहाने रखा दुपट्टा उठा कर बाथरूम में चली आई।


    काफी देर तक वह ठंडे पानी से मुंह धोती रही थी। लॉज में आई तो सब उसका ही इंतज़ार कर रहे थे। कादिर साहब भी ऑफिस से आ गए थे। उन्हें ग्रीड करते हुए महावश ! सलमा बेगम के पास बैठ गई। सलमा बेगम ने उसके सिर पर हाथ फेरा और मुस्कुरा कर बोली - " अच्छी नींद आई ..? "


    महावश कुछ कहती उससे पहले ही शाद सबको चाय सर्व करता हुआ सलमा बेगम से बोला - " अच्छी नींद ..? मम्मी बेहोश होकर सो रही थी यह आपकी बहू । पांच से छ बार आवाज़ लगाई तब जाकर कहीं उठी थी । "


    महावश हड़बड़ा सी गई - " मम्मी ऐसा कुछ नहीं है । शाद झूठ बोल रहे है । इन्होंने मुझे सिर्फ एक बारी उठाया था और मै उसी में उठ कर आ गई थी । "


    शर्मिंदगी उसके चहरे पर फ़ौरन तारी हुई थी।


    " हां यह शाद झूठा ही है बेटा । " सलमा बेगम ने शाद को आंखे दिखाते हुए कहा।


    " मैने कोई झूठ तो नहीं बोला मम्मी । " शाद ने चाय का पहला घुट लेते हुए कहा।


    महावश सिर झुका कर बैठ गई थी। सलमा बेगम , शाद को डपटने वाले अंदाज़ में बोली - " अब बस भी करो शाद । " फिर महावश की जानिब देख प्यार से - " इसकी बात पर ज़्यादा तवज्जोह ना दो बेटा । तुम चाय पियो । "


    शाद ने मुंह बना लिया। सलमा बेगम ने कादिर साहब की तरफ देखा जो किसी गहरी सोच ने डूबे हुए थे।


    " क्या सोच रहे है आप ..? "


    " मैं ..? उम्म कुछ नहीं । अच्छा मुझे यह बताना था कि परसो इमाद का निकाह है तो...... "


    " पापा हम नहीं जायेंगे । " कादिर साहब की बात को बीच में ही काटते हुए शाद नाराजगी से बोला।


    " मैने तुम से पूछा शाद ..? " उन्होंने भौहें चढ़ा कर पूछा।


    शाद बेज़ारी से उन्हें देखने लगा।


    " बड़े भाई साहब ने काफी अपनेपन से कहा था और मैं हां कर चुका हूं । हम सब जायेंगे । और शाद तुम भी चल रहे हो । अगर कोई मसला है तो मुझे बताओ ..? " कादिर साहब का चहरा सख़्त था। शाद गुस्से में उठ कर उनके सामने से उनका चाय का कप उठा किचन में चला गया।  यह कहते हुए कि - " अब चाय अपने बड़े भाई साहब के यही पीना ।


    " शाद वापस आओ । अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है । " कादिर साहब ने तेज़ आवाज़ में कहा। मगर शाद तो शाद । बड़ा ढीठ था इस मामले में । वापस आया ही नहीं ।


    " महावश बेटा तुम भी चलोगी शादी में , तो अपनी तैयारी कर लेना । " सलमा बेगम ने रोटियां सेंकते हुए महावश से कहा था जो हाथो को आपस में बांधे वही खड़ी थी।


    " मेरा जाना ज़रूरी है क्या ..? " वह इमाद का सामना नहीं करना चाहती थी शाद की बीवी के रूप में। इसलिए घबरा रही थी।


    " हां बेटा । हमारा सारा खानदान इकट्ठा होगा तो सब शाद की बीवी से तो मिलना चाहेगें । शाद की शादी में तो किसी को बुला ही नहीं पाई। वलीमा का सोचा था मगर शाद ने मना कर दिया । " सलमा बेगम ने उदास होकर कहा।


    " मगर वलीमा तो सुन्नत है ना फिर मना क्यों किया ..? "


    " सुन्नत है मानता हूं लेकिन फर्ज़ या वाजिब नहीं । " शाद अंदर आते हुए बोला।


    " हमारे नबी ﷺ ने वलीमा करने की सलाह दी है । बेहद सादगी से और गरीबों को खाना खिलाना भी उसने शामिल...."


    " वही तो मैं यह काम कर चुका हूं मैडम । वलीमा की दावत मै गरीबों और जरूरतमंदो को दे चुका हूं । तो अब बिना बात रिश्तेदारों को इकट्ठा करने का क्या फ़ायदा ..? जो यहां आयेगे फक्त चुगली करने एक दूसरे की " शाद ने झट से कहा और महावश , सलमा बेगम को झटका लगा।


    " कब ..? " दोनो एक साथ बोली।


    " शादी के अगले दिन । पापा की सलाह ली थी मैने " शाद ने कहा और पानी की बॉटल उठा कर चला गया। और वह दोनो गूंगी हो चुकी थी।





    क्रमशः


    ( वलीमा- शादी के बाद दूल्हे की ओर से दिया जाने वाला सुन्नत भोज है, जो अल्लाह का शुक्र अदा करने और खुशी साझा करने के लिए किया जाता है। )

  • 13. महताबे हयात! - Chapter 13

    Words: 1342

    Estimated Reading Time: 9 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---






    " तुम ने वो बेग देखा ..? " टेबल पर रखे उस पेपर बैग की जानिब इशारा कर शाद ने कहा था। महावश अभी ही कमरे में आई थी।


    उसने इनकार किया - " नहीं । "


    शाद - " अच्छा मुझे वो लाकर दो तो । "


    महावश दरवाज़ा बंद कर टेबल के पास आई और वह बैग उठा कर बिस्तर पर आकर बैठ गई। शाद ने बेग में हाथ डाल कर वह ज्वेलरी बॉक्स निकाला और उसे महावश के सामने रख लिया। उसने सवालिया नजरों से शाद को देखा जो उसे अब यह खोलने का इशारा कर रहा था।


    " क्या है इसमें और आप....." आगे के अल्फ़ाज़ उसके हलक में ही अटक गए थे। जब उसने वह बॉक्स खोल कर देखा था। और आंखे लगभग हैरानगी से बड़ी हुई। उसने उसी हैरानगी के साथ अपने साथ बैठे उस शख्स को देखा जो अब मुस्कुरा कर रहा था। सलमा बेगम सही कहती थी । उसका मूड लम्हा - लम्हा बदलता था । इतना ढीठ था जैसे उसे किसी की परवाह नहीं और अगले ही लम्हा कुछ ऐसा कर देता था जिससे महावश गूंगी ही हो जाती थी।


    " उम्म ! कैसी लगी ..? " उस बॉक्स से पायलों की जोड़ी उठाते हुए शाद ने सवाल किया था।


    " यह तो वही है ना जो उस रोज मैने देखी थी । आपको याद रहा यह बात । आप मेरे लिए लेकर आए ..? " महावश ने अविश्वास से पूछा था। तो शाद अनजान बनता हुआ उन पायलों को देख बोला - " ओह्ह् ! अच्छा यह वही है । मुझे तो याद ही नहीं । मैं तो बस यूंही ले आया रैंडमली!!!!! " 


    " रैंडमली ..? हां आप रैंडमली लेकर आए होंगे । " उसे शाद की बात पर विश्वास हो गया। वह खुशी से उन पायलों को पहन कर देखने लगी। जबकि शाद एकटक उसके चहरे की खुशी देख मुस्कुरा रहा था। हां उसे याद था । भूला ही कहा था वो । शादी के अगले दिन जब उसके लिए अंगूठी लेने गया था तब उसे वह पायलें याद आई थी। वह उसे देना चाहता था खरीद कर मगर वह पायलें बिक चुकी थी। मगर वह डिजाइन शाद के जेहन में छपा हुआ था ।  इसलिए तो उसने ऑर्डर करके वैसी ही पायले बना दी थी


    " अच्छा आप इनमें से यह घुंघरू हटा दे । मैं पहन लिया करुगी हर रोज । " महावश ने पायलें उसकी तरफ बढ़ाई। वह कोशिश कर चुकी थी मगर हुक काफी टाइट था इसलिए वह निकाल नहीं पाई।


    शाद ने अपने मुंह से हुक को खोलते हुए बारी - बारी उनमें से घुंघरू निकाल दिए तो महावश ने भी फ़ौरन उन्हें पहन लिया।


    " कैसी लग रही है ..? " उसने खुशी से पूछा।


    " मुझे क्या पता कि कैसी लग रही है । तुम्हे पसंद है तो बात खत्म । " शाद ने कंबल की तह खोलते हुए कहा। तो महावश का मुंह बन गया। वह इस जवाब की उम्मीद तो नहीं कर रही थी। उसे तो तारीफ सुननी थी।



    " बेटा यह शेरवाती देखो जरा । " इमाद की मम्मी ने उसके सामने एक शेरवानी रखते हुए कहा। इमाद ने अपना लैपटॉप बंद कर साइड में रखा और अपनी मम्मी की ओर मुखातिब हो गया।


    " अच्छी है अम्मी । "


    " बहुत सुंदर लगेगी तुम पर । " उसकी बलाएं लेते हुए - " खुदा तुम्हे हर नज़र - ए - बद से बचाएं । वैसे एक बात कहूं । उस महावश से तो अच्छी मुझे खतिजा लगी । तुम दोनो की जोड़ी माशाअल्लाह से बहुत जचेगी। "


    " और अम्मी, खतिजा अपने मां बाप की इकलौती बेटी है। " इमाद ने मुस्कुरा कर कहा।


    " हां बेटा ! जानती हूं मै । वैसे महावश भी तो दो बहने ही है ..? "


    " हां दो ही है वह भी मग़र अम्मी वो बिल्कुल सही नहीं रहती हमारे घर में । शुक्र है कि उसके पापा ने पहले ही मना कर दिया । वरना हमें मना करना पड़ता तो बात हम पर ही उल्टी पड़ती । जल्दी पीछा छूट गया उस बला से । " इमाद ने कहा तो उसकी मम्मी ने हामी भरी - " हां बेटा सही कहा ।  "


    " अम्मी ! अम्मी ! आपको पता है कल क्या हुआ था ..? " इमाद को अचानक जैसे कुछ याद आया था।


    " क्या ..? "


    " मैने महावश को चाचा अब्बू के घर देखा । जब मैं कल उनके घर कार्ड देने गया था । तब महावश ने आकर ही दरवाजा खोला था । " इमाद उलझा।


    " बेटा ऐसा कैसे हो सकता है । महावश वहां क्या करेगी । उसकी तो शादी हो गई है ना । वह तो अपने ससुराल में होंगी ना । "


    " वही तो अम्मी पर वह थी उधर । "


    " बेटा तुम्हे बस वहम हुआ होगा।  " उन्होंने उसकी बात को सिरे से नकार दिया।


    " नहीं वहम तो नहीं था । मगर महावश उधर हो भी तो नहीं सकती । " उनके जाने के बाद इमाद खुद से ही बोला। - " मगर वह वहां थी । क्यों ..? " वह उलझा ही रहा था। और इस सवाल का जवाब उसके पास नहीं था ।


    " अब आगे से हट भी जाओ या सारा मेकअप आज ही करोगी मैडम । " शाद , महावश के पीछे खड़ा होता हुआ बोला। इमाद की शादी में जाने के लिए दोनों तैयार हो रहे थे। महावश आंखों में काजल डालते हुए बोली - " एक मिनट रुके । बस हो ही गया । "


    शाद उसे घूर कर देखने लगा। और यह जब महावश को महसूस हुआ तो वह फ़ौरन हट गई - " अच्छा आप कर ले जो आपको करना है । मैं बाद में कर लूंगी । "


    शाद ने हेयर ब्रश उठाई और अपने बाल बनाने लगा। महावश ने बेड के नीचे से अपनी हील्स निकाली और उन्हें पहनने लगी।


    शाद यह कहते हुए कमरे से निकल गया कि - " दो मिनट में आ जाओ बाहर । "


    महावश ने अपना बचा हुआ मेकअप किया और बेड से अपना दुपट्टा उठा कर गले में डाल लिया। मगर फिर उसे लगा कि उसे दुपट्टा गले में नहीं डालना चाहिए। घर की बात अलग है यहां कोई उसे कुछ नहीं कहता मगर वह है तो इस घर की बहू ही।


    गले से उतारते हुए उसने वह दुपट्टा अब अपने सिर पर अच्छे से जमा लिया और बाहर आ गई। लाउंज में आते ही सलमा बेगम, उसके कान के पीछे काला टिका लगाते हुए बोली - " हाय मेरी बच्ची को किसी की नज़र ना लगे। बड़ी प्यारी लग रही है । "


    महावश मुस्कुरा दी। शाद दरवाजे से टिक कर खड़ा उसे देखने लगा। पिच कलर के शरारा सूट में वह काफी खूबसूरत लग रही थी।


    " चलो अब वरना देर हो जायेगी । " कादिर साहब ने सोफे से उठते हुए कहा।


    शाद पहले ही बाहर निकल गया। कादिर साहब चलते हुए महावश से बोले - " बेटा आपके पापा कह रहे थे कि आपको गाड़ी चलानी आती है ..? चलो आज हम देखने है कि हमारी बेटी को कैसी गाड़ी चलानी आती है । आज आप ड्राइविंग करेगी ।  "


    महावश मुस्कुरा कर कुछ कहती उससे पहले ही गाड़ी को अनलॉक करता हुआ शाद बोला - " भई हमे वेन्यू पर पहुंचाना है ना कि हॉस्पिटल । मैं तो रिस्क नहीं लूंगा । "


    वह ड्राइविंग सीट पर बैठ चुका था। महावश मुंह बना कर बड़बड़ाते हुए सलमा बेगम के साथ पीछे बैठ गई।


    " पापा मुझे अच्छी गाड़ी चलानी आती है । " महावश ने कादिर साहब से कहा। वह सुना शाद को रही थी।


    " हां ! हां ! बेटा । आपके पापा बता रहे थे । " कादिर साहब ने मुड़ कर हामी भरी। शाद गाड़ी स्टार्ट करता हुआ धीमे से बोला - " रॉन्ग डायरेक्शन में अच्छी गाड़ी चलती है । "


    महावश ने सुना और काफी अच्छे से सुना। वह तंज था। अपना हाथ साइड से ले जाते हुए उसने एक मुक्का शाद के शाने पर जमा दिया था। और वह बस मुस्कुरा कर रह गया।




    क्रमशः

  • 14. महताबे हयात! - Chapter 14

    Words: 1377

    Estimated Reading Time: 9 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---







    शाद गाड़ी स्टार्ट करता हुआ धीमे से बोला - " रॉन्ग डायरेक्शन में अच्छी गाड़ी चलती है । "


    महावश ने सुना और काफी अच्छे से सुना। वह तंज था। अपना हाथ साइड से ले जाते हुए उसने एक मुक्का शाद के शाने पर जमा दिया था। और वह बस मुस्कुरा कर रह गया।


    कुछ देर बाद सब वेन्यू पर पहुंचे। सलमा बेगम , महावश को अपने साथ अंदर लेकर जाने लगी तो महावश फौरन बोली - " मम्मी । आप और पापा चलिए । मैं शाद के साथ आती हूं । "


    सलमा बेगम मुस्कुरा कर कादिर साहब के साथ अंदर चली। गाड़ी अच्छे से पार्क कर शाद अंदर जाने लगा तो महावश ने उसकी बाह पकड़ ली। शाद ने सवालिया नजरों से पहले उसके हाथ को देखा , जो उसकी बाह से लिपटा हुआ था और फिर महावश के चहरे को जो उसे काफी घबराहट में लगी थी।


    " कुछ मसला है ..? " शाद ने भौहें चढ़ा कर पूछा।


    महावश ने जबरदस्ती मुस्कुरा कर अपना सिर नफी में हिलाया। - " नहीं कोई मसला नहीं है।  आप प्लीज मेरे साथ ही रहना । मैं यहां किसी को जानती नहीं । अच्छा क्या मै घूंघट कर लू ..? "


    शाद की पेशानी पर पहले से ज़्यादा बल पड़े। - " घूंघट ..? "


    " हां घूंघट । वो दअरसल मै हूं तो बहू ही ना । "


    " महावश ! हमारी फैमिली या हमारा खानदान स्टीरियोटाइप या कंजर्वेटिव नहीं है । काफी प्रोग्रेसिव है । तो यह नाइंटीज का घूंघट तुम रहने ही दो । " शाद ने काफी सहजता से कहा था और महावश के चेहरे पर चिंता बढ़ी। शाद उसे लेकर अंदर आ गया।



    " अरे सलमा ! शाद की बीवी नहीं आई क्या ..? " इमाद की मम्मी ने सलमा बेगम से सवाल किया था। सलमा बेगम ने पीछे की ओर देखते हुए जवाब दिया - " वो आती होगी शाद के साथ । "


    " अच्छा शाद भी आया है । उससे कह देना कि आज कोई बखेड़ा ना खड़ा करे । इमाद की शादी है और मैं कोई तमाशा नहीं चाहती।  "


    " हां मैने समझा दिया है । वैसे भी निकाह के बाद वह चला जायेगा अपनी बीवी के साथ घर । मैने और कादिर साहब ने आज यही रुकने का फैसला किया है । "


    " यह तो अच्छी बात है । काफी समय हो गया वैसे भी हमें शांति से बैठ कर बात किए हुए । अच्छा मै एक बार इमाद को देख कर आती हूं वह तैयार हुआ कि नहीं । " इमाद की मम्मी मुस्कुरा कर वहां से चली गई।


    सलमा बेगम नाक सिकोड़ कर अपने बड़े बेटो और बड़ी बहुओं के पास चली गई। जो एक तरफ बैठे हुए थे। कादिर साहब तो इमाद के पापा के पास ही खड़े हो गए थे।

    अंदर आते हुए अचानक महावश को इमाद की मम्मी नजर आई। वह घबरा कर थोड़ा साइड हो गई। शाद ने हैरान होकर उसे देखा - " क्या हुआ अब ..? "


    " म...मुझे वॉशरूम जाना है । आप चलिए मै आती हूं " कहकर महावश अलग ही दिशा में चली गई। शाद ने हैरानगी में उसे जाते हुए देखा।


    महावश ने चलते हुए अपने चेहरे को घूंघट से ढका और एक वेटर से वॉशरूम का पूछ कर वॉशरूम में आ गई। उसका दिल इस वक्त असामान्य रूप से धड़क रहा था। सबसे ज़्यादा तो उसे खौफ था। पहचाने जाने का। कोई उसे पहचाने या ना पहचाने मगर इमाद , और इमाद के पेरेंट्स ने उसे काफी अच्छे से पहचाने थे। पांच मिनट तक वह वॉशरूम में रही। फिर धीरे से बाहर आकर सबकी और ना जाकर वह अंदर की तरफ आई जहां कुछ कमरे थे। एक कमरे का हल्का सा दरवाजा खुला हुआ था।  उसने सोचा कि वह कुछ देर यहां टाइमपास कर सकती थी। वह अंदर घुस आई। शायद ! ऊपर वाला उसे सच्चाई दिखाना चाहता था इसलिए तो उसे यहां तक खींच लाया था।


    वह दुल्हन का कमरा था जहां आइने के सामने वह सुर्ख लाल जोड़े में बैठी थी। उसके पास ही खड़ी एक मेकअप आर्टिस्ट उसे लास्ट टचअप दे रही थी। महावश को लगा शायद उसे यहां आना नहीं चाहिए था वह जाने के लिए निकलने लगी के तभी उसे बाहर इमाद की मम्मी नजर आई। वह घबरा कर वापस अंदर आकर एक ओर बैठ गई।


    " बड़ा ग्लो दिख रहा है आपके चेहरे पर तो खतिजा । " मेकअप आर्टिस्ट ने कहा तो खतिजा मुस्कुरा कर बोली - " क्या सच्च में ..?


    " जी बिल्कुल । बहुत प्यारी लग रही है आप । और मेंहदी का रंग भी काफी चढ़ा है आपके हाथों पर। "


    खतिजा ने अपने हाथो को देखा - " बहुत प्यार करते है इमाद मुझसे , इसलिए तो । "


    महावश ने यह सुना तो उसने मुंह बना किया। वह धीरे से बुदबुदाई - " प्यार माय फुट । "


    मगर खतिजा की आगे की बात सुनकर उसपर जैसे बिजली गिरी थी वह कह रही थी - " तीन साल तक हमने अपने रिश्ते को अपने - अपने घर वालो से छुपा कर रखा । "


    " यानी आपकी लव मैरिज है । सही है । " मेकअप आर्टिस्ट ने मुस्कुरा कर कहा।


    महावश बेआवाज़ बुदबुदाई - " तीन साल ..? यानी इमाद मुझे धोखा दे रहा था । "


    अगर वह ऊपर वाला उसकी आंखे खोलना चाहता था तो वह कामयाब हो गया था। इमाद के सो कोल्ड प्यार की पट्टी हटी थी । और वह पांच साल का रिश्ता जिसमें वह सोचती थी कि इमाद लॉयल था उसके साथ । अगर लॉयल था तो फिर यह तीन साल का रिश्ता कहां से आ गया था। वह उसे अंधेरे में रखे हुए था।


    ऊपर वाले ने उसकी जात बचाई थी। उसे एक धोखेबाज शख़्स को नहीं सौंपा था सारी ज़िंदगी के नाम का। किसी से कहलवाया हो मगर कहलवाया तो था । ना थी तो ना ही थी । आंखों से आंसू छलके थे । जिन्हें उसने फ़ौरन साफ भी किया था।


    " किधर चली गई थी । " सामने से महावश को आता देख शाद ने नाराजगी से पूछा था।


    " कहीं नहीं । मेरा जी घबरा रहा है यहां । किस टाइम घर चलेंगे ..? " उसने अपने उतरे हुए चहरे के साथ कहा। शाद ने उसकी कलाई पकड़ी और उसे अपने साथ ले जाता हुआ बोला - " चलो पहले खाना खाते है उसके बाद चलेंगे । "


    वह सबसे अलग एक टेबल पर बैठ गए थे। उसकी तरफ खाने की प्लेट सरकाता हुआ शाद खुद भी खाने लगा था। शाद को शक ना हो इसलिए वह भी बेमन से खाने लगी।


    खाना खाते हुए भी शाद दूर स्टेज पर बैठे इमाद को घूर रहा था। खुश वह हो रहा था और खून शाद का जल रहा था। उसकी खुशी जहर लगती थी उसे। हमेशा से ही...


    " तुम जरा यहां खड़ी हो जाओ और अगर कोई आए तो फौरन मुझे इनफॉर्म करना ।" शाद , महावश को स्टेज के पीछे लेकर आया था। महावश ने बस अपना सिर हिला दिया। कुछ दूरी पर एक जरनेटर के साथ कई तारे आपस में उलझी पड़ी थी। शाद उस तरफ चला गया।


    महावश उसे तारों के साथ कुछ छेड़खानी करते हुए देख रही थी। मगर उसे समझ नहीं आया कि वह कर क्या रहा था। महावश ने कई बार धीमे से उससे पूछा भी मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया।


    " मेरे भाई की शादी है । आतिशबाजी तो बनती है ना महावश " अपने हाथो को झाड़ते हुए वह उसके पास आ गया था।


    महावश को उसका सार्कैज़म समझ नहीं आया।


    " अच्छा चलो घर चलते है । " शाद ने कहा और वहां से निकल कर इंट्रेंस की ओर बढ़ गया। महावश भी उसके पीछे चल रही थी जब एक तेज ब्लास्ट की आवाज उसके कानो में पड़ी थी और उसने सहम कर शाद की बाजू पकड़ी।


    शाद और महावश ने चलते हुए एक साथ पीछे मुड़ कर देखा। स्टेज पर धुआं - ही - धुआं हो चुका था । इमाद की वह आफवाइट शेरवानी अब काली नजर आ रही थी।


    महावश ने अपने साथ चल रहे उस शख्स को हैरानी से देखा था जिसके चहरे पर अब एक सुकून भरी मुस्कान थी। उसे समझते देर नहीं लगी थी कि वह बीस मिनट तक क्यों उन तारों में उलझा रहा था।




    क्रमशः

  • 15. महताबे हयात! - Chapter 15

    Words: 1040

    Estimated Reading Time: 7 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---





    गाड़ी को पोर्च एरिया में पार्क करते हुए दोनों अंदर आए। महावश सोफे पर बैठते हुए अपनी हील्स उतारने लगी । शाद किचन से जाकर पानी लेकर आया और महावश के सामने रखता हुआ बोला - " मम्मी या पापा को मत बताना जो मैने किया।  "


    " क्या किया था आपने ..? " महावश अनजान बन गई थी। शाद उसे देखते हुए मुस्कुराया और फिर कमरे में चला गया।


    उसने थोड़ा सा पानी पीया और मन में बोल उठी - " शुक्र था कि आज इमाद या उसके पेरेंट्स ने मुझे नहीं देखा । अगर देख लेते तो ना जाने क्या ही हो जाता । "


    " सोना नहीं है क्या ..? " शाद कपड़े चेंज कर लाउंज में आया था जहां महावश सोफे पर ही बैठी हुई किसी गहरी सोच में डूबी लगी थी उसे।


    महावश अपने खयालों को एक तरफ झटक कर उठी और शाद के साथ कमरे में आ गई। वह आइने के सामने खड़ी होकर अपनी ज्वैलरी उतारने लगी।  शाद ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर पैर लटका कर बैठता हुआ उससे बोला - " वैसे आज वहां तुम काफी अजीब ही बिहेव कर रही थी । डरी हुई भी लगी थी मुझे । कोई बात थी क्या ..? "


    " न... नहीं ऐसा तो कुछ नहीं है शाद । " वह ज़बरदस्ती मुस्कुरा कर बोली।


    " हम्म्म " शाद ने हुंकार भरी मगर उसे महावश की बात पर एक प्रतिशत भी यकीन नहीं हुआ था।


    शाद का दिमाग़ वहां से हटाने के लिए महावश उसकी ओर मुड़ी - " वैसे आज मै कैसी लग रही थी ..? "


    शाद ने कंधे उचकाए - " मुझे क्या पता कि कैसी लग रही थी ।


    " आप थोड़ी सी भी तारीफ़ नहीं कर सकते ना मेरी । मम्मी को तो आप श्रीदेवी कह रहे थे और मुझे ..? एक शब्द भी नहीं निकल रहा मेरे लिए आपके मुंह से । " उसने नाराज़गी से कहा था।


    शाद के होठों पर मुस्कान गहरी हुई - " मम्मी को मैं और पापा टीज करने के लिए श्रीदेवी कहते है । दअरसल ! मम्मी हमेशा कहती थी कि जब उनकी शादी पापा से हुई तो सब उन्हें कहते थे कि वह श्रीदेवी जैसी सुंदर है और एक दिन उनकी तरह ही बड़ी हीरोइन बनेगी । अब मम्मी का हीरोइन बनने में तो कोई इंट्रेस्ट नहीं था लेकिन वह पापा के सामने बड़ा रोला जमाती थी । इसलिए बस मै और पापा उन्हें श्रीदेवी कह देते है । "


    " अच्छा!!!!!!!!!!!! " महावश ने उसकी बात समझने वाले अंदाज़ में कहा।


    दोनो लाइट बंद कर बिस्तर पर सोने के लिए लेट गए। शाद ने फोन में अलार्म सेट करते हुए उसे तकिए के नीचे रखा। और कंबल अपने ऊपर खींचता हुआ बोला - " महावश अलार्म बजे तो तुम भी उठ जाना प्लीज । कल मुझे यूनिवर्सिटी जाना है असाइनमेंट सबमिट करवाने । नाश्ता बना देना बस । "


    असाइनमेंट सबमिट करवाने की बात पर महावश को जैसे कुछ याद आया था वह झट से उठी और अपना फोन उठाकर उसमें कुछ देखने लगी। और अगले ही लम्हा उसने अपना सिर पीट लिया था।


    " अब तुम्हे क्या हुआ ..? " महावश ने उठ कर लाइट ऑन की तो शाद ने पूछा।


    महावश अपनी बुक्स वाला बॉक्स खोलते हुए फर्श पर बैठ गई - " शादी के चक्कर में मुझे याद ही नहीं रहा था कि कल तो मुझे भी असाइनमेंट सबमिट करवाने जाना है कॉलेज । कल लास्ट डेट है । और मेरे तो असाइनमेंट सही से बने भी नहीं है । एक तो पूरा ही रहता है । "


    " तुम अपना काम टाइम पर नहीं कर सकती ..? " शाद भी उठ कर बैठ गया।


    महावश ने रोनी सी शक्ल बनाई - " मुझे याद नहीं रहा । "


    " ले आओ इधर । हेल्प करवा दूंगा । "


    महावश अपना सारा सामान लेकर बेड पर आ गई।


    " कितने बनाए है तुम ने । " शाद ने सवाल किया।


    " तीन बन चुके है । आप इस नोटबुक में से देख कर इनमें क्वेश्चन लिख देना । सुबह बांइडिंग मैं ख़ुद करवा लूंगी । " कुछ पेपर्स और एक नोटबुक महावश ने उसकी तरफ बढ़ाई और अपना बचा हुआ असाइनमेंट लिखने बैठ गई। शाद सिरहाने से टिक कर बैठा और नोटबुक में से देख कर क्वेश्चन लिखने लगा। हर असाइनमेंट में पांच क्वेश्चन थे। आधे घंटे से भी कम समय में उसने वह लिख दिए थे और सभी पेजों को सीरीज में लगा कर अच्छे से रख दिया।


    महावश काफी जल्दबाजी में लिख रही थी। शाद ने समय देखा तो रात के 11 बज चुके थे। वह बिस्तर से उतर कर बाहर जाता हुआ बोला - " मैं एक स्ट्रांग सी कॉफी बना कर लाता हूं तुम्हारे लिए। "


    " हम्म्म " महावश अपनी पीठ सिरहाने से टिका कर बैठ गई।


    शाद किचन में खड़ा कॉफी बना रहा था जब अचानक उसे बाहर से कुछ आवाज़ आई थी। फ्लेम को कम करता हुआ वह बाहर आया और लाउंज की लाइट्स ऑन की। मिडल टेबल पर एक बिल्ली घूम रही थी।


    एक बाउल में थोड़ा सा दूध लेकर वह धीरे से टेबल के पास आया और उसे वही रख दिया। वह बिल्ली धीरे - धीरे बाउल के पास आई और उसे सूंघते हुए दूध पीने लगी। शाद ने मुस्कुरा कर बिल्ली के सिर और पीठ को अपने हाथ से सहलाया। जब तक बिल्ली ने दूध नहीं पिया शाद उसके पास ही बैठा रहा। दूध पीकर वह बिल्ली टेबल से कूद कर भाग गई।


    शाद ने कॉफी कप में डाली और कमरे में आया। टेबल पर कप रखते हुए उसने अपनी आंखों को छोटा कर महावश को देखा। वह बेड के सिरहाने से पुश्त टिकाए मस्त सो रही थी। उसकी गोद से पेपर्स को हटाते हुए शाद ने उन्हें अपनी साइड में रखा और महावश को बिस्तर पर सही से लेटा दिया। उसके ऊपर कंबल डालते हुए वह धीरे से बुदबुदाया - " बना लिए मैडम ने असाइनमेंट । "


    स्टडी टेबल की कुर्सी को खींचते हुए उसने पेपर्स को टेबल पर रखा और लैंप ऑन करता हुआ लिखने लगा। तीन बजे के करीब उसने महावश का बचा हुआ असाइनमेंट भी पूरा कर दिया था।


    उन पेपर्स को सीरीज में लगाते हुए वह उठा और बेड पर गिरते ही सो गया।





    क्रमशः

  • 16. महताबे हयात! - Chapter 16

    Words: 1096

    Estimated Reading Time: 7 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---




    सुबह छ बजे अलार्म की आवाज़ से महावश घबरा कर उठी। शाद ने अलार्म बंद किया और उठ कर नहाने चला गया।


    " मैं सो कैसे गई और मेरा असाइनमेंट ..? " महावश जल्दी से स्टडी टेबल के पास आई और अपना असाइनमेंट पूरा करने के लिए बैठने लगी मगर उसने जब ध्यान से देखा तो वह असाइनमेंट लिखा जा चुका था।


    " तो क्या शाद ने पूरा किया । " महावश खुश होते हुए बोली।


    टॉवल से अपने गिले बालो को पोछता हुआ शाद ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा हुआ।


    " थैंक्यू शाद । मेरा असाइनमेंट लिखने के लिए । " महावश उसके पास खड़ी होती हुई बोली। गीले टॉवल को चेयर पर फैलाते हुए शाद उसकी ओर मुड़ा - " तुम्हे नींद काफी आती है । "


    " नहीं ऐसा नहीं है । कल काफी भागदौड़ हो गई थी इसलिए थकान की वजह से कब सोई पता ही नहीं चला । "


    " कोई बात नहीं । " वॉर्डरोब से अपना जाए-नमाज़ निकाल कर वह कमरे से निकल गया था।


    महावश ने भी नहा कर नमाज़ पढ़ी और फिर किचन में आ गई। फ्रिज खोलते हुए उसने उसमें से दूध और ब्रेड निकाले और जल्दी - जल्दी नाश्ता बनाने लगी।


    साढ़े सात बज रहे थे जब दोनो डाइनिंग टेबल पर बैठे खामोशी से नाश्ता कर रहे थे।


    " कॉलेज कैसे जाओगी ..? " शाद ने सवाल किया।


    " आप फ़िक्र ना करे । मैं कैब बुक कर लूंगी । "


    " ठीक है । सबमिट हो जाएं तो मुझे मैसेज कर देना । लेने आ जाऊंगा । "


    " ठीक है । " महावश ने अपना सिर हिला दिया। नाश्ते के बाद अपने असाइनमेंट सबमिट करवाने शाद निकल गया था। महावश का कॉलेज ज़्यादा दूर नहीं था इसलिए वह सलमा बेगम और कादिर साहब के आने तक रुक गई थी। उनके आते ही उसने कैब बुक की जो दस मिनट में घर के बाहर आ गई थी। जिसमें बैठते हुए उसने अपनी किसी फ्रेंड को कॉल लगाई थी।



    एक बजे तक उसके असाइनमेंट सबमिट हो गए थे। उसने शाद को मैसेज किया कि वह अभी अपने घर जायेगी । शाम तक ख़ुद ही आ जायेगी । शाद ने मैसेज देख लिया था मगर जवाब नहीं दिया। फोन को बंद करते हुए उसने उसे अपने हैंडबैग में डाला।


    वह घर पहुंची तो रिम्शा बेगम और शर्जिना दोनो उसे लाउंज में ही मिल गई। दोनों उसे देख कर हैरान हुई क्योंकि उसने आने की खबर भी कहां दी थी। महावश ने नीचे बैठ कर खेलते फुरकान को अपनी गोद में उठाया और शर्जिना के पास बैठते हुए रिम्शा बेगम से बोली - " मम्मी भूख लगी है कुछ ले आइए । "


    " अभी लाती हूं । " रिम्शा बेगम ने कहा और उठ कर चली गई। 


    " आपी वह इमाद बहुत बड़ा चीटर था । " कहकर उसने शर्जिना को सब बता दिया जिसे सुनकर शर्जिना बस इतना ही बोली - " अच्छा तो उस लड़की का नाम खतिजा है ।  "


    " आप पहले से जानती थी उसे ..? " महावश कद्रे हैरानगी से बोली थी।


    " जानती नहीं थी मगर पापा ने एक दिन बताया था कि उन्होंने काफी बार एक लड़की को इमाद के साथ देखा था । पापा को पता था कि वह तुम्हे धोखा दे रहा था इसलिए तो उसके मम्मी पापा को तुम दोनो के रिश्ते के लिए मना की थी । " शर्जिना ने कहा तो महावश को जैसे झटका लगा - " यानी आप सबको पता था।  तो फिर मुझे क्यों नहीं बताया किसी ने । "


    " क्योंकि तुम उस वक्त शायद यह सच्चाई बर्दाश्त नहीं कर पाती । पापा ने मना किया था कि तुम्हे कुछ ना बताएं । मतलब पक्का भी नहीं था उस वक्त तक । कोई सबूत नहीं था उसके ख़िलाफ़ । हां पर पापा को महसूस हुआ था कि वह तुम्हारे लिए बिल्कुल सही नहीं था । इसलिए पापा ने इनकार कर दिया था , जब इमाद के मम्मी पापा तुम्हारा हाथ मांगने आए थे । अगर पापा को इमाद एक परसेंट भी सही इंसान लगता ना तो वह तुम्हारी ख़ुशी के लिए उससे तुम्हारी शादी करवा देते । "


    महावश ने अपना सिर पकड़ लिया।


    " महावश ! तुम्हारा फोन किधर है ..? " शर्जिना उसके कमरे में आते हुए उससे बोली। महावश ने सीलिंग से नज़र हटा कर उसे देखा - " मेरे हैंडबैग में होगा आपी । क्यों .. क्या हुआ । "


    " शाद तुम्हे कब से फोन कर रहा है । उठा भी नहीं रही हो । " उसके हैंडबैग से उसका फोन निकाल उसे दिखाते हुए शर्जिना बोली। महावश ने फोन की लॉक्ड स्क्रीन को देखा जहां शाद की चार मिस्ड कॉल की नोटिफिकेशन नज़र आ रही थी।


    " मुझे घर जाना है । " अपने बालों को समेटते हुए वह उठ बैठी।


    " अपना हुलिया ठीक करके नीचे आओ। शाद आया हुआ है तुम्हे लेने । " कहकर शर्जिना कमरे से निकल गई।


    शाद गाड़ी चला रहा था और महावश उसके पास वाली सीट पर एकदम ख़ामोशी इख्तियार किए बैठी थी।


    " सुबह तो तुम ने नहीं कहा था कि तुम अपने घर जाने वाली हो ..? " वहां की ख़ामोशी को तोड़ते हुए शाद ने सवाल किया।


    " पहले प्लान नहीं था । जाने से पहले मैने मम्मी ( सलमा बेगम ) को कॉल करके पूछा था उन्होंने इजाज़त दी तब मै गई थी । "


    " मैं इजाज़त की बात नहीं कर रहा । खैर ! अच्छा लगा जाकर ..? "


    " अपने घर जाकर किसी अच्छा नहीं लगता है । मेरा तो मन करता है कि वहीं रहूं । काश ! हम दोनों मेरे घर रहते जैसे शर्जिना आपी और जीजू रहते है । कितना मजा आता ना । " अपनी ख्वाबगाह में खोते हुए महावश ने कहा। जबकि उसकी बात सुनकर शाद के चेहरे से मुस्कान अचानक गायब हो गई।


    " तुम अपने घर हमेशा के लिए रह सकती हो । मगर सिर्फ़ तुम । " शाद ने कहा आराम से था मगर उसकी आंखों में गुस्सा देख महावश को समझ नहीं आया कि अचानक उसे क्या हो गया था । ऐसा तो उसने कुछ नहीं कहा था उसके हिसाब से ।


    " शाद ! " उसकी बाजू पर हाथ रख उसने कहा। तो शाद ने उसका हाथ झटक दिया और बेहद सर्दमहरी में उसे देखा - " मुझे मेरे पेरेंट्स से अलग करने का ख्याल अगर तुम्हारे जेहन में आइंदा आए ना तो साथ अपने तलाक़ का भी सोच लेना । "


    महावश को लगा जैसे उसका दिल धड़कना भूला था और सांसे ! .. सांसे हलक में ही अटक गई थी ।



    क्रमशः

  • 17. महताबे हयात! - Chapter 17

    Words: 1018

    Estimated Reading Time: 7 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---







    उसे घर छोड़ कर शाद कहीं निकल गया था। महावश बेजान कदमों से अंदर आई तो सलमा बेगम ने किचन से ही उसे आवाज लगाई - " आ गई बेटा तुम । "


    महावश जबरदस्ती मुस्कुराई और वहीं चली आई - " हां मम्मी । "


    " शाद के साथ ही आई हो ना । "


    " जी वह बाहर छोड़ कर कहीं चले गए । "


    " हां वह बता रहा था कि उसके किसी फ्रेड का बर्थडे है । शायद वहीं गया होगा । मैने ही कहा था कि तुम्हे ले आए । कहां दुःखी होती फिरती वरना । अच्छा अब तुम जल्दी से हाथ मुंह धो कर आओ । मैने ना आज पुलाव बनाया है खा कर बताना कैसा बना है । " सलमा बेगम ने खीरा काटते हुए मुस्कुरा कर कहा।


    महावश सिर हिला कर अपने कमरे में चली गई।


    रात के नौ बजे पोर्च एरिया में गाड़ी खड़ी करते हुए शाद अंदर आया। सलमा बेगम और कादिर साहब , दोनों सोफे पर बैठे टीवी देख रहे थे। शाद उनके पास ही बैठ गया।


    " खाना लगाऊं बेटा ..? " सलमा बेगम ने पूछा तो शाद ना में सिर हिलाता हुआ बोला - " नहीं मम्मी । मैं खाना खा कर आया हूं । "


    कहकर उसने अपनी नजरों को घर में दौड़ाया। जैसे किसी को ढूंढ रहा हो ।


    " महावश कमरे में है । सिर दर्द हो रहा था उसे । इसलिए खाना खाने के बाद कमरे में चली गई । " उसकी नजरों को पढ़ते हुए सलमा बेगम ने कहा।

    शाद कुछ नहीं बोला। कुछ देर बाद सलमा बेगम और कादिर साहब सोने चले गए। शाद किचन में आया और फ्रिज से पानी की बॉटल लेकर कमरे में आ गया।


    दरवाजा बंद होने की आवाज पर महावश ने अपनी आंखे बंद कर ली। बॉटल को टेबल पर रख कर शाद ने महावश को देखा। उसकी भीगी पलके देख कर शाद समझ गया था कि वह जाग रही थी।


    " मम्मी बता रही थी कि सिर दर्द है तुम्हे । दवाई ली है ..? " शाद ने बिस्तर पर अपनी साइड बैठते हुए सवाल किया 


    " ली थी अभी । " महावश ने धीरे से जवाब लिया।


    " अब दर्द हो रहा है । सिर दबाऊं क्या ..? "


    " न...नहीं अब ठीक है । "


    हम्मम कहकर शाद खामोश हो गया। क्योंकि अब उसे समझ नहीं आया कि क्या बात करे । कुछ देर की ख़ामोशी के बाद महावश रूंधे गले के साथ बोली - " मेरा कहने का वह मतलब नहीं था  जो आप ने समझा था शाद । "


    शाद ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया वह एकटक सीलिंग को देखता रहा।


    महावश थोड़ा रुक कर आगे बोली - " मैं तो बस यूंही कह रही थी । मैंने कौन सा आपको यह पक्के तौर पर कह था कि आप मेरे घर चल कर रहिए अपने मम्मी पापा से अलग । आपने सोचा भी कैसे की मैं... मैं आपको आपके पेरेंट्स से दूर करूंगी । "


    " सिर दर्द बढ़ जायेगा । "


    " आप मेरी बात को इग्नोर करने की कोशिश कर रहे है ना । "


    " हां कर रहा हूं क्योंकि मुझे अब इस बारे में कोई बात नहीं करनी है । सो जाओ । "


    " मगर मुझे करनी है शाद । मुझे करनी है । क्या गलतफहमी पाले हुए है आप मुझे लेकर अपने मन में । मां बाप से दूर होने का दर्द क्या होता है मैं जानती हूं । और आज कल काफी शिद्दत से महसूस भी कर रही हूं । तो मै क्यों एक बेटे को उसके मां बाप से दूर करने लगी । मेरे मम्मी पापा की तर्बियत नहीं है घर तोड़ना । उन्होंने हमेशा मुझे सबके साथ हंसी खुशी रहना सिखाया है , रिश्तों को जोड़ कर रखना सिखाया है । और .. और आप... आप कह रहे थे कि... त .. ला..क " उसका गला चोक गया था आगे के शब्द उसके अदंर ही कहीं अटक गए थें।


    " सो जाओ महावश । तुम्हारी तबीयत खराब हो जायेगी । "


    " आप.. आप बहुत ढीठ है । आप बेपरवाह है । आपको सिर्फ अपनी पड़ी होती है । कुछ भी कह देते है । कुछ भी बोल देते है फिर सामने वाले को अच्छा लगे या बुरा आपको कोई मतलब नहीं इस बात से । आप बहुत बुरे है शाद । बहुत बुरे.. आप जानते भी नहीं है कि आपकी वह बात मुझे किस कद्र दर्द दे कर गई है । " महावश सिसकते हुए बोली।


    " कौन सी सस्ती सी काजल यूज करती है देखो सारी फेल गई । मैबलिन की स्मचप्रूफ यूज करके देखना । काफी ऐड आते है टीवी में । " शाद मुस्कुरा कर बोला । महावश ने पनीली आंखों के साथ हैरानगी में उस शख़्स को देखा था। वह एक सीरियस मुद्दे पर बात कर रही थी और यह शख़्स उसे काजल के बारे में बता रहा था। 


    " मै क्या कह रही हूं और आप क्या कह रहे है शाद , आपका दिमागी संतुलन हिला हुआ है क्या ..?" अपने आंसू साफ करते हुए महावश चिढ़ कर बोलीं।


    " ओह्ह् तुम्हे कैसे पता चला । " शाद इस कद्र खुशी हुआ था जैसे महावश ने उसे कोई अच्छी उपाधि दी थी।


    " वाकई आप.... "


    " महावश कानों को भी आराम चाहिए होता है । अब चुप भी हो जाओ । कब से बोले ही जा रहीं हो । खुद का सिर दर्द ठीक कर अब मुझे देना चाहती हो क्या ..? " उसकी बात को बीच में ही काटते हुए शाद ने कहा और अपने दोनों कानों को ढक लिया।


    " आपको तो बड़ी चुभती!!!!!!!!!!! होंगी मेरी आवाज़ हैना । "


    " रोना अच्छा होता है । आंखे साफ हो गई तुम्हारी इसी बहाने । " शाद ने फिर मुस्कुरा कर कहा। महावश ने उसे घूरा।


    अगर वह बेवकूफ़ था तो बड़ा अव्वल दर्जे का। अगर एक्टिंग कर रहा था तो बड़े आला दर्जे का एक्टर था ।


    " मै आपको सच्च में नहीं समझ सकती । " कहकर महावश ने दूसरी जानिब करवट बदल ली थी। शाद ने राहत की सांस ली।





    क्रमशः

  • 18. महताबे हयात! - Chapter 18

    Words: 1205

    Estimated Reading Time: 8 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---






    " क्या हुआ तुम इतनी चुप चुप क्यों घूम रही हो बिल्ली । मुझ से बात क्यों नहीं कर रही हो ..? क्या तुम्हारा गला खराब है ..? " सीढ़ियों पर चढ़ती बिल्ली को अपने हाथो में उठाते हुए शाद ने उसकी पीठ को सहलाया।


    उसके पास से गुजरती महावश ने उसे घूरा और लाउंज का दरवाजा खोल बाहर चली गई। शाद तुरंत उसके पीछे - पीछे बाहर आया।


    रेलिंग पर सुख चुके पर्दो को उतार कर महावश तह करने लगी। शाद उससे थोड़ा दूरी पर खड़ा हो कर उसे देखने लगा। बिल्ली अभी भी उसके हाथो में म्याऊं म्याऊं कर रही थी।


    सुबह से देख रहा था महावश उससे बात नहीं कर रही थी। और वह ! .. वह उससे बात करने के लिए उसके आगे पीछे घूम रहा था। यह बात महावश सुबह से ही नोटिस कर रही थी । मगर मजाल वह एक दफा भी उससे बोली हो।


    अंदर भी वह बिल्ली के जरिए उसे कह रहा था। वह जानती थी।


    वह वापस बिल्ली से मुखातिब होता हुआ बोला - " अब कुछ बोलो भी । चुप रहोगी तो कहीं तुम बोलना ही ना भूल जाओ । फिर लोग तुम्हे गूंगा कहेंगे।  और मै यह कैसे सुन पाऊंगा कि मेरे घर की बिल्ली!!!!!!!! को कोई गूंगी कहे । "


    शाद की बात पर महावश ने फिर उसे घूर कर देखा और सभी पर्दो को उठा कर अंदर चली गई। शाद ने अपना सिर खुजलाया और उसके पीछे ही अंदर आ गया। महावश उसे सलमा बेगम के साथ किचन में नजर आई तो वह सोफे पर बैठ गया। और बिल्ली को अपने पास ही बिठा लिया मगर वह शाद से छुटते ही भाग गई। शाद बेमन से टीवी देखने लगा।


    सलमा बेगम ने सोफे पर बैठे शाद को देखा और फिर अपने पास खड़ी महावश को ।


    " क्या चल रहा तुम दोनो के बीच ..? "


    " कुछ भी तो नहीं मम्मी । "


    " बेटा मैं मां हूं । मुझसे भी छुपाओगी ..? "


    सलमा बेगम की बात पर महावश ने सब्जी काटना बंद किया और उनकी जानिब देखते हुए सब बता दिया जिसे सुनकर सलमा बेगम ने अपना सिर पकड़ लिया।


    " वह बस हम से प्यार करता है । उसने अपने दो बड़े भाइयों को अपनी बीवियों के साथ यहां से जाते हुए देखा है और कारण बस इतना था कि उनकी बीवियां उनके मां बाप के साथ नहीं रहना चाहती थी । तुम्हारी बात सुन कर उसे लगा कि कहीं तुम भी उससे कहो कि तुम्हे भी उसके मां बाप के साथ नहीं रहना । हमें लेकर वह थोड़ा जज़्बाती है । "


    " तो मम्मी मैने कौन सा कहा था कि हम मेरे मायके रहेंगे । मैने तो बस यूंही कह दिया था । और वह इतना हाइपर हो गए और फिर मैने जब रात को बात करनी चाही तो अजीब - ओ - ग़रीब बात शुरू कर दी । जिनका मुद्दे से कोई लेना देना ही नहीं था । " महावश ने मुंह बनाया।


    सलमा बेगम धीरे से हंसी - " तुम्हे पता है शाद की आदत है यह की जब उसकी गलती होती है ना तब वह ऐसे ही लोगों को अपनी बातों के जाल में गोल - गोल घुमा देता है । मगर मजाल जो मुद्दे पर आए । मुद्दे की बात के अलावा वह हर बात कर डालेगा । "


    " हां वह रात को यही तो कर रहे थे । "


    " वह ऐसा ही है । सुबह से तुम्हे मनाने के लिए , तुम से बात करने के लिए तुम्हारे आगे पीछे घूम रहा है । अच्छा चलो अब नाराजगी खत्म करके आओ । मै समझाऊंगी उसे । वह दोबारा ऐसे बात नहीं करेगा तुम से । " कहकर सलमा बेगम ने उसे बाहर की जानिब धकेला।


    " चाय पियेंगे क्या ..? " शाद के पास आकर महावश ने सवाल किया। वहीं उसकी आवाज़ सुनते ही शाद सोफे पे सीधा होकर बैठ गया और मुस्कुरा कर फ़ौरन गर्दन हिला दी - " हां बिलकुल ! अगर तुम बनाओगी तो मै ज़रूर पीऊंगा । "


    " अब किधर गई आपकी बिल्ली ..? " उसने इधर - उधर देखते हुए बिल्ली को ढूंढा।


    " वह तो चली गई है । "


    " हम्म्म ! मै चाय बना कर लाती हूं । " कहकर महावश चली गई।



    शाम का वक्त था जब लाउंज से ठहाको की आवाज़ गूंज रही थी। महावश के पापा वसीम शाह और जीजा दानियाल , उसकी तरफ ही आए हुए थे। महावश , वही सलमा बेगम के पास चुप चाप बैठी थी।


    इधर - उधर की बातो के बीच सब ने चाय पी। उसके बाद वसीम शाह , कादिर साहब की ओर देखते हुए धीमे से बोले - " भाईसाहब दअरसल ! मैं आपसे और शाद बेटा जी से कुछ बाते करने आया था । अगर अकेले में....."


    " हां ! हां ! क्यों नहीं । आइए गार्डन में चलते है । आओ शाद । तब तक सलमा और महावश खाने की तैयारी कर लेंगी । " कादिर साहब उठते हुए बोले ।

    वह सब बाहर चले गए और सलमा बेगम, महावश किचन में आ गई।


    " क्या बात करने वाले है तुम्हारे पापा ..? "


    " मुझे ख़ुद नहीं पता मम्मी । आने से पहले भी उन्होंने कहां ही मुझे बताया था । " उसने नाक सिकोड़ कर कहा।


    डिनर के बाद वसीम शाह और दानियाल अपने घर चले गए थे। वहीं महावश के अंदर कुलबुलाहट होने लगी थी यह जानने की के आखिर क्या बात करके गए होंगे उसके पापा । फटाफट किचन का काम समेट कर दोनो सास बहू अपने - अपने कमरे में चली गई।



    " क्या बात कर रहे थे पापा ..? " कमरे का दरवाज़ा बंद करते हुए वह बिस्तर पर लगभग उछलते हुए चढ़ गई थी।

    अपने लैपटॉप में कुछ टाइप करते हुए शाद बड़े आराम से बोला - " जहेज़ का कहने आए थे । फर्नीचर , गाड़ी वगैरा । "

    महावश की दिलचस्पी पानी की तरह बह गई।


    " तो कब भेजने को कहा है आप लोगो ने ..? " उसके लहजे में रूखापन था जो शाद ने भी महसूस किया।


    " क्या ..? "


    " जहेज़ । फर्नीचर , गाड़ी वगैरा । "


    " कभी नहीं । "


    " क्या!!!!!!!!!!!! " महावश चौकी।


    " क्यों , तुम्हे हमारे घर किसी चीज़ की कमी है जो तुम्हे अपने मायके से जहेज़ चाहिए ..? " शाद ने भौहें उछाल कर पूछा था।


    " बिल्कुल नहीं । "


    " हां तो मैने पहले ही मना कर दिया है । तुम्हारे मायके से जहेज़ ना मुझे चाहिए और ना मेरे घर वालो को । अल्हम्दुलिल्लाह सब है हमारे पास । " कहकर वह वापस लैपटॉप में घुस गया।


    और महावश फिर गूंगी हो गई। जहां उसका रिश्ता हुआ था उन लोगों ने तो मुंह फाड़ कर जहेज़ की डिमांड की थी और यहां ! .. यहां इन्होंने मना कर दिया था । काफी देर तक वह उलझी रही मगर फिर ख़ुद ही मुस्कुरा दी। दिल के किसी कोने में एक मीठी सी ख़ुशी का एहसास हुआ।


    " महावश कम - से - कम उठ कर लाइट्स तो ऑफ कर दो । " शाद की आवाज़ से वह अपने होश में आई। शाद सोने के लिए लेट चुका था। महावश गर्दन हिला कर उठी और लाइट्स ऑफ कर दी।





    क्रमशः

  • 19. महताबे हयात! - Chapter 19

    Words: 1339

    Estimated Reading Time: 9 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---






    " शाद ! मेरी बात कान खोल कर सुन लो । आज रात इमाद और उसकी बीवी खतिजा डिनर पर हमारे यहां आयेगे । तो इमाद के साथ कोई मिसबिहेवियर मत करना वरना तुम जानते हो ना अपने पापा का गुस्सा । " सलमा बेगम लाउंज में बैठी टीवी देखते शाद को समझा रही थी और वह ऐसे बैठा था जैसे उनकी बात सुन ही नहीं रहा हो ।


    " शाद बेटा मेजबानों को मेहमानों की अच्छे से खातिरदारी करनी चाहिए । आज इमाद और उसकी बीवी खतिजा हमारे यहां मेहमान बन कर आयेगे और हम मेज़बान होने के नाते उनकी अच्छे से खातिरदारी तो कर सकते है ना बेटा । " शाद पर धमकियों का असर ना होता देख अब सलमा बेगम उसे जज्बाती कर रही थी।


    " उनके घर का खाना खत्म हो गया मम्मी ,जो वह हमारे यहां आ रहे है ..? "


    " बेटा ऐसा नहीं कहते । खुदा हमे मेहमानवाजी करने का मौका दे रहा है तो बेटा यह सबाब ही तो है । "


    " मै किसी जरूरतमंद को खाना खिला कर सबाब कमाना पसंद करूंगा  " शाद नाक सिकोड़ कर बोला। और सलमा बेगम ने अपना सिर पीट लिया।


    यह उनका वाहिद ( अकेला ) बेटा था जिसे समझाने में उन्हें अपना ही दिमाग़ खराब करना पड़ता था । मगर मजाल फिर भी उसे बात समझ आए । वह अपनी मनमर्जी करना पसंद करता था और आज तक वहीं करता आया था। ढीठ इतना था कि अगर एक दफा अपनी बात पर अड़ जाए तो फिर चाहे दुनियां इधर की उधर हो जाएं वह झुक जाएं या बात से मुकर जाएं.. हो ही नहीं सकता था।


    कितनी ही बार उनके परिवार वालों ने इमाद और उसकी सुलह करवाने की कोशिश की थी। इमाद तो मान भी जाता था मगर शाद ! .. शाद नहीं मानता था और ना आज तक मना था।


    किचन में चावल चुनती महावश घबराहट में नजर आ रही थी। चावल के कुछ दानों को अपने मुंह में डालती हुई वह खुद में ही बुदबुदाई - " शादी वाले दिन तो नहीं देखा था मगर आज ! .. आज तो इमाद अपनी बीवी के साथ आने वाला है डिनर पर । अब तो छुप भी नहीं सकती । क्या करूं ..? अगर उसने शाद को सब बता दिया तो ..? शाद तो पहले ही पसंद नहीं करता इमाद को और फिर जब उसे पता चलेगा कि मैं और इमाद पांच साल तक साथ थे तो कहीं शाद मुझे भी नापसंद ना करने लगे । हे मेरे खुदाया । अब क्या करु मैं । अल्लाह ! .. अल्लाह ! रुसवा ना करना मुझे शाद और उसके पेरेंट्स के सामने । "


    " कच्चे चावल क्यों खा रही हो फिर पेट दर्द करेगा ना महावश । " यह शाद था जो पानी पीने किचन में आया था।


    उसकी आवाज़ पर वह अपने होश में आई।


    " शाद ! क्या आज मै अपने घर चली जाऊ ..? " अपने घर जाने से अच्छा बहाना उसे अब नजर नहीं आ रहा था।


    " आज नहीं । आज मेहमान आयेगे घर पर । " अपने ग्लास में पानी भरते हुए शाद ने फ़ौरन इनकार किया।


    " मगर आज मेरा बहुत मन कर रहा है शाद । " वह गिड़गिड़ाई।


    " ठीक है कल सुबह छोड़ आऊंगा एक दो दिन वही रहना । मगर आज नहीं " कहकर वह मुस्कुराया और अपना ग्लास उठा कर बाहर सोफे पर जा बैठा।


    महावश के चेहरे पर चिंता की लकीरें में इज़ाफ़ा हुआ।



    शाम को इमाद और खतिजा दोनो आ गए थे। सलमा बेगम ने उन्हें चाय नाश्ता सर्व किया। महावश उस वक्त सलमा बेगम के कहने पर तैयार होने गई थी। शाद सब के साथ लाउंज में ही था। उसकी तो नज़रे बस इमाद पर थी । वह घूर रहा था उसे । और इमाद को इसी बात का खौफ आ रहा था कि कहीं वह उसकी बीवी के सामने ही उसकी इंसल्ट ना कर दे। वह तो यहां आना ही नहीं चाहता था मगर सलमा बेगम ने बड़े प्यार से उसे और उसकी बीवी को डिनर के लिए इनवाइट किया था कि वह मना नहीं कर पाया था।


    लाउंज में गैलरी की जानिब वाले दरवाजे पर आहट हुई तो सब ने एक साथ नज़रे उठा कर देखा। लाइट पिंक फ्लावर प्रिंट चंदेरी सिल्क साड़ी में लिपटी महावश अंदर आई।


    महावश को देखते ही इमाद का चहरा किसी गहरे सदमे में सफ़ेद पड़ गया था। शाद मुस्कुरा कर उठा और महावश के सामने आ खड़ा हुआ। महावश जबरदस्ती मुस्कुराई। उसके रुखसार को चूमती उसकी जुल्फों को कान के पीछे करता हुआ शाद प्यार से बोला - " यू आर लुकिंग सो ब्यूटीफुल महा । मैंने कहा था ना कि तुम पर यह साड़ी बेहद खूबसूरत लगेगी । "


    अगर और कोई मौका होता तो शाद की इस तारीफ पर महावश का चेहरा सुर्ख हो चुका होता। वह घबराई हुईं थी तो शाद की तारीफ़ पर उसका ध्यान भी नहीं था।

    महावश का हाथ पकड़ कर शाद उसे अपने पास ही बैठाता हुआ इमाद और खतिजा की जानिब मुखातिब होता हुआ बोला - " मीट माय वाइफ । मिसेज महावश शाद जाफरी । "


    इमाद दम - ब - खुद बैठा हुआ सारे सूरत - ए - हाल को समझने की कोशिश कर रहा था। महावश की शादी किसी और के साथ तय हुई थी तो वह शाद की बीवी कैसे हुई । क्या हुआ होगा यही सोच - सोच कर वह पागल हुए जा रहा था मगर उसे अपने एक भी सवाल का जवाब नहीं मिल रहा था।


    महावश घबराहट में सिर झुकाए बैठी थी। उसके हाथ आपस में गूथे हुए थे।


    एक दो रस्मी जुमलों के तबादले के बाद सब डिनर के लिए डाइनिंग टेबल पर आ आए। सबको खाना सर्व करने के बाद महावश भी शाद के बराबर वाली कुर्सी पर बैठ गईं।


    " और खतिजा बेटा ससुराल कैसा लगा तुम्हे ..? " खाना खाते हुए सलमा बेगम ने बातों का सिलसिला जारी रखने के इरादे से पूछा था।


    " जी चाची अम्मी ! .. बहुत अच्छा।  " खतिजा ने मुस्कुरा कर कहा।


    " हम्म्म और हमारा बेटा ..? " सलमा बेगम का इशारा इमाद की जानिब था।


    खतिजा ने एक नजर इमाद को देखा और फिर शर्माते हुए अपना सिर हिला दिया। सलमा बेगम मुस्कुरा उठी।


    अपनी प्लेट से एक खीरे का टुकड़ा उठा कर खाता हुआ शाद , खतिजा से मुखातिब होता हुआ बोला - " वैसे भी हमारा भाई बड़ा मिलनसार किस्म का शख्स है भाभी । स्पेशली लड़कियों के साथ ! ... लड़कियों के साथ इसे घुलने मिलने में ज़्यादा समय नहीं लगता है । तभी तो स्कूल से लेकर कॉलेज तक हर सेमेस्टर में इसकी गर्लफ्रेंड बदल जाया करती थी । मैं तो हैरान हूं कि इसने शादी भी कैसे की । मतलब जिस तरह का यह शख्स है... "


    शाद ने एक तिरछी मुस्कान इमाद की ओर उछाली और अपनी बात आधे में ही छोड़ दी। खतिजा एकदम ख़ामोश होकर इमाद को देखने लगी। उसके चेहरे से पता नहीं लग रहा था कि उसके मन में क्या चल रहा था मगर शाद शत प्रतिशत कह सकता था कि घर जाकर इनके बीच जंग जरूर होने लगी थी।


    कादिर साहब और महावश दोनो ही बात तो समझने की कोशिश कर रहे थे।

    सलमा बेगम शाद की बात को ढकते हुए जबरदस्ती हंस कर बोली - " खतिजा बेटा , शाद की बातो को ज़्यादा माइंड मत करना । इसकी तो आदत है बात - बात पर मजाक करने की । "


    खतिजा फीका सा मुस्कुरा दी। इमाद ने अपने सफेद पड़े चहरे के साथ शाद को घूरा तो शाद तुरंत बोला - " मै मज़ाक नहीं कर रहा हूं।  "


    " शाद बेटा बस करो । खाना खाते हुए बात नहीं करते है । " कादिर साहब ने भी अब बात सम्हालने के इरादे से कहा।


    शाद ने नाराजगी में अपने मम्मी पापा को देखा और फिर उठ कर अपने कमरे की जानिब चला गया। डाइनिंग टेबल पर मौजूद हर शख़्स एक दूसरे का चहरा तकने लगे। कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही शाद दोबारा नाज़िल हुआ था अपने लैपटॉप के साथ ।





    क्रमशः

  • 20. महताबे हयात! - Chapter 20

    Words: 1132

    Estimated Reading Time: 7 min

    बढ़ते है कहानी की ओर---






    शाद ने नाराजगी में अपने मम्मी पापा को देखा और फिर उठ कर अपने कमरे की जानिब चला गया। डाइनिंग टेबल पर मौजूद हर शख़्स एक दूसरे का चहरा तकने लगे। कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही वह दोबारा नाजिल हुआ था अपने लैपटॉप के साथ ।


    शाद एकदम संजीदा था। वह अपने लैपटॉप के साथ वापस अपनी चेयर पर बैठा और उसमें कुछ निकालने लगा।


    " शाद बेटा जो करना है बाद में कर लेना । अभी सही से खाना खाओ । " कादिर साहब ने उसे टोका था। मगर शाद ने कोई जवाब नहीं दिया था उनकी बात का और ना उसने अपना लैपटॉप बंद किया था।


    कादिर साहब , सलमा बेगम , महावश, इमाद और खतिजा सभी अपना अपना खाना छोड़ कर अब उसे ही देख रहे थे।


    एक बड़ी सी मुस्कान के साथ उसने लैपटॉप सबकी जानिब घुमाया। स्क्रीन पर एक लड़की का फोटो था। स्कूल ड्रेस में। सबके चेहरों पर सवाल उभर आए मगर इमाद के चहरे का रंग भक्क से उड़ा।


    " इसका नाम शैलजा था । नाइंथ क्लास में इमाद भाई की गर्लफ्रेड थी यह । " कहकर शाद ने नेक्स्ट का बटन दबाया। तो स्क्रीन पर एक और लड़की का फोटो चमका - " इसका नाम मरियम था । टेंथ क्लास में इमाद भाई की गर्लफ्रेड ।


    ऐसे ही करके उसने बहुत सी लड़कियों के फोटोज दिखाए और साथ में यह भी कि कब और कितने समय तक वह उसकी गर्लफ्रेड्स थी। उसने सबूत के साथ सच्चाई बताई थी। महावश का हर भ्रम टूटा था। वह गुस्से में घूर रही थी अपने सामने बैठे इमाद को । पांच साल ! .. पांच साल तक उसे बेवकूफ बनाया था इस शख़्स ने और वह बनती आई थी । उसने अपनी हयात के पांच साल इस शख्स के लिए ज़ाया किए थे। अब उसे इस जुमले पर यकीन आया था कि औरत की मोहब्बत मर्द को तो बदल सकती है मगर उसकी फितरत को नहीं । गिरगिट मौसम को देख कर रंग बदलता है और मर्द ! .. मर्द दूसरी औरतों को देख कर । एक औरत की सबसे बड़ी हार , बुदजील मर्द से प्यार करना होती है। वह मर्द , औरत को सिर पर तो बैठाता है मगर अगले ही लम्हा उसे उतार कर फेंक भी देता है ।


    इमाद वह शख़्स था ही नहीं  जिससे वफ़ा का तसव्वुर भी किया जाएं। वह फरेबी था धोखेबाज था ।


    खतिजा के चहरे का रंग सुर्ख था। शर्मिंदगी , गुस्सा , अफ़सोस , जिल्लत हर एक भाव उसके चहरे पर था इस वक्त ।


    कादिर साहब और सलमा बेगम अपनी औलाद को खा जाने वाली नज़रों से देख रहे थे। जो इस वक्त खतिजा को डिटेल दे रहा था। कुछ लम्हा पहले तक का वह ख़ुशगवार माहौल यक - ब - यक ना-खुशगवारी में तब्दील हुआ था। मुस्कुराता चहरा फक्त ( सिर्फ़ ) शाद का था बाकी सदमे की हालत में बैठे थे।


    " देखा मै झूठ नहीं बोल रहा । बड़े रंगीन मिज़ाज के है हमारे भाई । " कहकर अब शाद ने लैपटॉप शटडाउन कर उसे साइड में रख दिया था। और बड़े मजे से खाना खाने लगा था। ऐसे जैसे कुछ हुआ ही नहीं था । शायद उससे लगती यह बात कोई बड़ी नहीं थी।

    डाइनिंग टेबल पर अब घुप ख़ामोशी थी। किसी के भी हलक से निवाला नीचे नहीं जा रहा था। खतिजा बेहद शर्मिंदगी में सिर झुकाए बैठी थी। शायद ! अपनी ज़िंदगी में यह पहली दफा था जब वह किसी की बात का जवाब नहीं दे पाई थी ।


    " महा  ! पनीर की सब्जी दो ना । मेरा हाथ नहीं पहुंच रहा उधर तक । वैसे पुलाव अच्छा बना है। " शाद ने उसे कोहनी मार कर इशारा करते हुए कहा था।  - " अरे ! आप सब खा क्यों नहीं रहे है । सब कितना मजे का है । खाओ ना । "


    सब दम - ब - खुद थे । वहां की शांति को तोड़ते हुए खतिजा एक जबरदस्ती की मुस्कान अपने होठों पर सजाए चेयर से उठ खड़ी हुई। - " खाना बड़े मजे का था चाची अम्मी । मेरे खयाल से अब हमे चलना चाहिए । मुझे और इमाद को अम्मा अब्बा की तरफ भी जाना है अभी । फिर कभी आयेगे । "


    " हां ! हां ! बेटा क्यों नहीं । " सलमा बेगम भी उठते हुए बोली।


    कादिर साहब और सलमा बेगम, इमाद और खतिजा को बाहर तक छोड़ने चले गए थे। महावश ने खाना खाते हुए शाद का हाथ पकड़ा।


    " यह सब क्या था शाद ..? "


    " मैने ख़ुद को प्रूफ किया कि मैं ना मजाक कर रहा हूं और ना झूठ बोल रहा हूं । "


    " आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था । "


    " और मुझे ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए था ..? "


    " उनकी शादी को अभी दिन ही कितने हुए है शाद । जो आपने इमाद की फितरत को खतिजा के सामने बेपर्दा कर दिया। "


    " वह उसकी बीवी है । और एक बीवी को उसके शौहर की सच्चाई पता होनी चाहिए । सो मैने वही किया । कम - से - कम अब वह किसी वहम - ओ - गुमान में तो नहीं रहेगी कि उसका शौहर , बड़ा पारसा ( पवित्र और शुद्ध चरित्र तथा विचारों वाला ) है । अब ज़रा कंट्रोल रखेगी वह अपने शौहर पर । " पानी का ग्लास उठा कर उसने उसका सारा पानी अपने अंदर उड़ेला और उठ कर अपने लैपटॉप के साथ अपने कमरे में चला गया।


    गुस्से में दनदनाते हुए सलमा बेगम अंदर आई - " किधर है तुम्हारा वह निकम्मा शौहर ..? "


    महावश ने आहिस्ते से गैलरी की साइड वाले दरवाजे की जानिब इशारा किया। टेबल पर रखे वाश को उठाते हुए सलमा बेगम अंदर चली गई यह कहते हुए कि - " आज इस लड़के का कत्ल होगा मेरे हाथों से । "


    महावश के तो तारे टूटे थे। अपनी साड़ी के पल्लू को कमर में घुसाते हुए वह लगभग उनके पीछे दौड़ गई थी। मगर अपने कमरे से बाहर आकर उसकी सांसे बहाल हुई। वह पहले ही दरवाजा बंद करके बैठा था मानो उसे अंदाज़ हो कि उनके जाने के बाद उसकी अच्छी बैंड बजने वाली थी।


    सलमा बेगम पागलों की तरह गुस्से में दरवाज़ा पीटते हुए शाद से दरवाजा खोलने का कह रही थी और अंदर से शाद की चू की भी आवाज़ नहीं आई थी। ऐसे जैसे वह कमरे में था ही नहीं ।


    " मैं भी देखती हूं कब तक तुम कमरे में रहते हो । जीना तो हराम इसी निकम्मी औलाद ने किया है हम दोनो मियां बीवी का । एक लम्हा सुकून का सांस नहीं लेने देता । " बिलाखिर बड़बड़ाते हुए वह गुस्से में ही वहां से चली गई थी। महावश ने एक नज़र बंद दरवाजे पर डाली और उनके पीछे ही बाहर चली गई।





    क्रमशः