एहसास एक कहानी बन जाता है। लिखना मेरे लिए सिर्फ अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक सुकून है... एक ऐसी जगह, जहाँ मैं अपने दिल की बातें कह सकती हूँ, बिना किसी डर के। “..... मेरी पहली कोशिश है एक ऐसी कहानी जो दिल की गहराइयों से निकली है। मैं उन... एहसास एक कहानी बन जाता है। लिखना मेरे लिए सिर्फ अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक सुकून है... एक ऐसी जगह, जहाँ मैं अपने दिल की बातें कह सकती हूँ, बिना किसी डर के। “..... मेरी पहली कोशिश है एक ऐसी कहानी जो दिल की गहराइयों से निकली है। मैं उन भावनाओं को शब्द देना चाहती हूँ, जिन्हें अक्सर लोग महसूस तो करते हैं, पर कह नहीं पाते। हर किरदार मेरे लिए हकीकत का हिस्सा है कभी किसी की मुस्कान में, तो कभी किसी की आँखों की नमी में। अगर मेरे शब्द तुम्हारे दिल को छू जाएँ, तो समझ लेना कि मेरी कोशिश सफल हुई। 💫 धैर्या "हर लफ़्ज़ मेरे दिल से निकला है..." 🌙........
Pratyusha
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नमस्ते मेरे प्यारे पाठकों,...
मैं हूँ धैर्या शब्दों की उस दुनिया से जुड़ी, जहाँ हर एहसास एक कहानी बन जाता है।
लिखना मेरे लिए सिर्फ अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक सुकून है... एक ऐसी जगह, जहाँ मैं अपने दिल की बातें कह सकती हूँ, बिना किसी डर के।
“..... मेरी पहली कोशिश है
एक ऐसी कहानी जो दिल की गहराइयों से निकली है।
मैं उन भावनाओं को शब्द देना चाहती हूँ, जिन्हें अक्सर लोग महसूस तो करते हैं,
पर कह नहीं पाते।
हर किरदार मेरे लिए हकीकत का हिस्सा है
कभी किसी की मुस्कान में, तो कभी किसी की आँखों की नमी में।
अगर मेरे शब्द तुम्हारे दिल को छू जाएँ,
तो समझ लेना कि मेरी कोशिश सफल हुई।
💫 धैर्या
"हर लफ़्ज़ मेरे दिल से निकला है..." 🌙........
और एक खासबात,,,,इस सफ़र की शुरुआत में मैं एक ख़ास इंसान उजाला राय को दिल से धन्यवाद कहना चाहूँगी,
क्योंकि उन्होंने ही मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया।
शायद मैं ये पहली कहानी लिख पाई, तो उनकी वजह से ही।
(◕ᴗ◕✿)
Agar aap sabhi ko pasand Aaye to hamen please bataiyega.....
...........
,,,, to chaliye pahle milte Hain Ham... Story ki maine character se... Pratyusha... Aur suno Pratyusha Jara apne bare mein batao na intro do apna..... Ham milte Hain aapse bad mein okay ab Pratyusha ka time hai bolane ka to aap uski baat sune... Kyunki vah khud Hi bataiye apni kahani ke bare mein..☺️.bye 👋🏻 😊☺️.....
......यार बोलो ,,,,,
अरे तुम चुप हो गई तभी तो में बोलु ,,,😏
Hi everyone...🙏🏻😁🌷🌷🌷🌷🌷🌷🙋🏻♀️🙋🏻♀️
मेरा नाम है प्रत्युषा अग्रवाल।
क्या आप सभी मेरी कहानी सुनना चाहेंगे?
अगर हाँ... तो थोड़ी देर ठहरिए, क्योंकि ये कहानी सिर्फ मेरी नहीं मेरी ज़िन्दगी का आईना है।
कभी-कभी न, हम सबके पास कुछ ऐसी बातें होती हैं जिन्हें हम किसी को नहीं बता पाते…
ना अपने घरवालों को,
ना दोस्तों को,
और ना ही उस इंसान को जिससे हम सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं।.......
शायद इसलिए मैंने ये पन्ने उठाए हैं ताकि मैं खुद को बयां कर सकूँ।
मैं बहुत साधारण सी लड़की हूँ,
ना ज़्यादा अमीर, ना बहुत मशहूर बस अपने छोटे-से शहर की,........
जो रोज़ सुबह चाय की ख़ुशबू और माँ की पुकार से जागती है।
मेरी दुनिया बहुत प्यारी है मेरे मम्मी-पापा, मेरी छोटी बहन, और मेरे कुछ पागल दोस्त।
हमेशा हँसते रहते थे, छोटी-छोटी बातों पर रो भी लेते थे,
पर ज़िन्दगी तब आसान थी... जब तक शादी का नाम मेरे हिस्से में नहीं आया था।.........
शायद किस्मत को मुझसे कुछ और ही लिखवाना था।
उम्र सिर्फ उन्नीस साल... और हाथों में मेहंदी लगी थी,
जो अभी सूख भी नहीं पाई थी कि मेरी मासूम ज़िन्दगी ने करवट ले ली।
लेकिन नहीं .....
आज मैं अपनी कहानी रोने के लिए नहीं,
बल्कि अपने आप को समझाने के लिए लिख रही हूँ।
क्योंकि हर लड़की की तरह, मैं भी कभी बहुत खुश थी...
और मैं चाहती हूँ कि जब आप ये कहानी पढ़ें
तो मेरी हँसी, मेरा दर्द, मेरा सपना सब महसूस कर पाएं।
तो चलिए...
शुरू करते हैं “प्रत्युषा: मासूम सी ज़िन्दगी” की शुरुआत,
जहाँ एक लड़की खुद अपनी कहानी बयां करती है…
शुरुआत से लेकर उस मोड़ तक, जहाँ उसकी मासूमियत, उसकी हँसी और उसकी दुनिया .. सब बदल जाती है...
...........
...... Chalo Bus itna hi Aaj Ke liye... Meri kahani start hogi first chapter se... To padhna na bolo per comment karke jarur batao....bye... Aur han mujhe bhulna mat...😁😁😁🌷🙋🏻♀️🙋🏻♀️
“एई प्रिया! तूने मेरा टिफ़िन फिर से खा लिया क्या...
प्रत्युषा का चेहरा देख कर लगता था जैसे उसने किसी बहुत बड़ी जंग हार ली हो।
हाथ में खाली डिब्बा लिए वो गुस्से में अपने दोस्त के पीछे भागी जा रही थी, और क्लास के सारे बच्चे ठहाकों में हँस रहे थे।
“अरे यार मैंने बस एक चपाती खाई the... प्रिया हँसते हुए बोली।
“एक नहीं, पूरी सब्ज़ी भी गायब है! और मेरी फेवरेट आलू की!”
“तो क्या हुआ, दोस्ती में ‘तेरा टिफ़िन मेरा टिफ़िन’ चलता है न!”
प्रत्युषा ने मुँह फुलाते हुए कहा
“अगली बार तुम्हारा पूरा टिफ़िन मैं ही खाऊँगी, फिर मत कहना!”
“ठीक है पगली, खा लेना, लेकिन पहले मेरे लिए चाय बना देना!”
सब लोग हँस पड़े।
वो कॉलेज का छोटा-सा कैंटीन, कोनों में रखी प्लास्टिक की कुर्सियाँ, और प्रत्युषा की वो नटखट मुस्कान .. सब कुछ किसी फिल्म का सीन लगता था।
फिर अचानक क्लास में प्रोफेसर आ गए
“Miss Pratyusha Agarwal, this is not a comedy club!”...............
पूरा क्लास फिर से हँस पड़ा, और प्रत्युषा ने धीरे से कहा
“Sir, sorry… बस आलू की खुशबू ज़रा ज़्यादा थी आज!”
और प्रोफेसर ने सिर पकड़ लिया
“आलू की खुशबू इस लड़की का तो कुछ नहीं हो सकता!”
बेल बजते ही सब लड़कियाँ क्लास से बाहर भागीं।
प्रिया बोली....“चल, अब कैंटीन चलते हैं, आज तू मेरी चाय पी ले प्रत्युषा मुस्कुराई नहींआज मैं ही बनाऊँगी, वैसे भी मेरी चाय तूसे ज़्यादा sweet होती है।”
वो दोनों हँसते हुए चल दीं .........
पीछे सूरज ढल रहा था, हवा में कॉलेज की चहल-पहल थी,और प्रत्युषा की आँखों में वो चमक
जो कह रही थी, “ज़िन्दगी फिलहाल मज़ेदार है।”उसे कहाँ पता था…कि ये वही दिन हैं जिनकी हँसी उसे आगे चलकर बहुत याद आने वाली है।...........
...,क्लास खत्म होते ही दोनों ने एक लंबी सांस ली और जैसे किसी जेल से आज़ाद हुई हों, वैसे बाहर निकलीं।
कॉरिडोर में बच्चों की भीड़ थी, हर ओर बातें, हँसी, किसी की किताब गिरना, किसी का मज़ाक उड़ाना।
प्रिया ने बालों को पीछे करते हुए कहा,
देख अब भीड़ से पहले निकल लें नहीं तो कैंटीन में सीट नहीं मिलेगी।........
प्रत्युषा हँस पड़ी,
सीट नहीं मिलेगी तो क्या हुआ, ज़मीन तो अपनी है न, वहीं बैठकर चाय पी लेंगे।
कैंटीन तक पहुँचते ही गरम चाय की महक हवा में घुली हुई थी।
वो वही महक थी जो हर कॉलेज के दिल में बसी रहती है ....
थोड़ी सस्ती, थोड़ी कड़क, लेकिन दोस्ती और ठहाकों से भरी।
प्रिया बोली
आज मैं चाय बनाऊँगी
प्रत्युषा ने तुरंत जवाब दिया
ना बाबा, पिछले हफ्ते तेरी बनाई चाय पी थी, तबसे ज़ुबान जल रही है।
आज मैं बनाऊँगी, अपनी खास स्टाइल में।....
कैंटीन वाला अंकल मुस्कुराते हुए बोले
अरे प्रत्युषा बिटिया, फिर आ गई तू स्टोव पर कब्जा करने
वो मुस्कुराई.....
हाँ अंकल, मेरी चाय के बिना तो कॉलेज का दिन अधूरा रहता है।
वो दोनों कैंटीन के छोटे से कोने में पहुँच गईं जहाँ पुराना सा गैस स्टोव रखा था।
एक अलमारी में धूल जमी थी और चाय की पत्तियाँ, अदरक और दूध रखे थे।
प्रत्युषा ने आस्तीन ऊपर की और पूरे आत्मविश्वास के साथ बोली
देख प्रिया, असली चाय बनाना एक कला है, और मैं हूँ चाय की कलाकार।
प्रिया ने सिर पकड़ लिया
पहले ही बता दे, तूने आज फिर नमक डाल दिया तो मैं जा रही हूँ।......
प्रत्युषा ने दूध उबलते देखा, उसमें पत्तियाँ डालीं, फिर अदरक को तोड़कर डाला और हल्की सी मुस्कान दी।
आँखें बंद कीं और कहा
बस अब कुछ मिनटों में ये दुनिया की सबसे प्यारी चाय बन जाएगी।
प्रिया बोली......
तेरे नाटक तो फिल्मों से भी लंबे हैं।
प्रत्युषा मुस्कुराई
हाँ लेकिन मेरी फिल्मों में सबको खुश एंडिंग मिलती है।
चाय की खुशबू हवा में घुल चुकी थी।
कैंटीन में बैठे बाकी बच्चे भी इधर देखने लगे।
किसी ने कहा.
.......
अरे देखो फिर से प्रत्युषा चाय बना रही है
दूसरे ने कहा
इसकी चाय में कोई जादू है, पीते ही मूड अच्छा हो जाता है।
वो दोनों हँसने लगीं।
प्रत्युषा ने दो ग्लास में चाय डाली और कहा
लो प्रिया, आज की चाय तैयार है, पी और बता कैसी लगी।
प्रिया ने चाय की चुस्की ली और आँखें बंद कर लीं
वाह, आज तो तूने सच में कमाल कर दिया।
प्रत्युषा ने गर्व से कहा.........
देखा, मैंने कहा था ना मेरी चाय मीठी भी और सच्ची भी।
वो दोनों कैंटीन की सीढ़ियों पर बैठ गईं।
सामने कॉलेज का बगीचा था, जहाँ कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे,.........
कुछ पेड़ों के नीचे बैठकर नोट्स पढ़ रहे थे,
और कुछ अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे।
प्रिया ने धीरे से कहा
कभी सोचा है प्रत्युषा, ये दिन फिर मिलेंगे क्या
प्रत्युषा ने मुस्कराते हुए जवाब दियापता नहीं, शायद.....नहीं.........
लेकिन अगर नहीं भी मिले तो क्या हुआ
कम से कम यादों में तो रहेंगे न
जैसे ये चाय की खुशबू जो हर बार वही एहसास देती है।
दोनों कुछ देर खामोश रहीं
फिर अचानक प्रत्युषा ने कहा......
चल अब फोटो लेते हैं, याद के लिए
प्रिया ने कहातेरी फोटो हमेशा blur आती है
प्रत्युषा हँस पड़ीblur ही तो असली है, perfect लोग बोरिंग लगते हैं।सूरज ढलने लगा था।.......
कैंटीन की खिड़कियों से सुनहरी रोशनी अंदर आ रही थी।
वो दोनों हँसते, बातें करते, एक-दूसरे की चाय में biscuit डुबोते रहेजैसे वक्त रुक गया होजैसे ये पल हमेशा के लिए उनका हो।फिर अचानक कॉलेज की घंटी बजीऔर सबकुछ जैसे फिर से दौड़ने लगा।
बच्चे बैग उठाकर निकलने लगे, कैंटीन धीरे-धीरे खाली होने लगा।.......
प्रत्युषा ने आखिरी चुस्की ली और कहा
चल प्रिया, अब घर चलें, वरना मम्मी कहेंगी फिर से चायघर खुल गया था क्या।
दोनों हँसते हुए निकलीं
हवा में अब भी अदरक और चाय की हल्की खुशबू थी
और उस खुशबू में एक मासूम सी हँसी
जो बाद में उसकी यादों में बस जाने वाली थी।
वो नहीं जानती थी कि एक दिन यही कैंटीन
यही चाय, यही दोस्ती ..........
सब कुछ किसी याद की तरह दिल में रह जाएगा
जैसे कोई गर्म कप धीरे-धीरे ठंडा हो जाता है
पर उसकी महक फिर भी देर तक हवा में तैरती रहती है।..................
........🌷🌷. Pratyusha..... 🌷🌷Are baba ruko aur Kitna padhoge mere bare mein thodi mastikhor hun ab 🌷🌷 kya kar sakte hain ab Jaisi hun sabko pyar to Karti hun na aap bhi Thoda pyar Karo mujhe... Are vah wala pyar nahin... Comment mein batao apna pyar bhej do...😁😁😁😁🙋🏻♀️🙋🏻♀️🙋🏻♀️......bye......
.........
............... फिर से आप सभी का स्वागत है एक और नए अध्याय में,,, chaliye kahani Ko padhte Hai,,,,,, कहानी पसंद आए तो जरूर बताइएगा,,,,🙂🌷,,🌷🌷🌷🌷
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दोनों ही लड़कियां ऑटो में बैठी हुई बातें कर रही होती हैं,,,, प्रिया अचानक चक्कर ऑटो वाले से बोलता है,,,
अरे भैया और कितना आगे ले जाओगे यहीं पर उतरे मुझे,,, मैं आपसे पैदल ही चली जाऊंगी,,,,,
ऑटो वाला अचानक ही ब्रेक मार देता है और हंसते हुएकहता है,,, क्या बेटा तुम भी डरा देती हो,,, धीरे बोलो कान फाड़ दूंगा क्या बोलकर,,,,
ऑटो वाले कीबातों का जवाब देते हुए प्रिया हंसते हुए कहती है,,, अच्छा ठीक है यार भैया अब से नहीं इतनी तेज बोलूंगी,, पर आपको तो पता है ना इस महारानी के घर से पहले मेरा घर आता है तो आप इसके घर के पास क्यों लेकर जाते हो मुझे हमेशा,,,, आपकी वजह से मुझे डांट पड़ती है पापा से,,,,,,
,,,,, इतना कहकर वह ऑटो से उतरती है और अपने बैक को तंगते हुए,,, हंसने लगतीहै,,,, तभी पीछे से एक बुजुर्ग की आवाज आती है,,,,,
हां तो महारानी अब आईहै घर,,,,, आज क्या बहाना है आपके पास हमम ,,,,,,, यह कोई और नहीं प्रिया की दादी थी जो अपने हाथ में छड़ी लेकर धीरे-धीरे कदमों से उसके पास अपने चश्मे को ठीक करते हुए आ रही थी,,,,, उनको देखते ही प्रिया की हंसी ही रुक जाती है,,,, वह अपनी हंसी को रोकते हुए बोलती है,,,,, अरे दादी आज वह,,,, बसथोड़ी,,,
दादी जी बीच में चिल्लाते हुए बोलते हैं,,, बस बस रहने दो और बहाने मत मारो मेरे सामने,,,,, और,,,, चलो तुम्हारे पापा तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं,,,,,,,
,, प्रिया जल्दी से ऑटो वाले भैया को पैसे देती है और जाते हुए,,
.... प्रत्युषा को कहती है,,,, चल यार अब बाद में मिलते हैं वरना,, कोई मुसीबत खड़ी कर देगी यह दादी,,,
इतना कहकर प्रिया अपने घर चली जाती है,,,, और वही प्रत्यूषा ऑटो में बैठे हुए,, उसे जाते हुए चिढ़ा रही थी,,,, ऑटो वाले भैया ने कुछ कदम दूर ही अपनी ऑटो रॉकी,,, और बोले,,,
चलो बेटा तुम्हारा भी आ गया घर,,,, प्रत्यूषा अपने हाथ में, लंच बॉक्स और बैग लेकर उतरी,,, ऑटो वाले को पैसे पढ़ते हुए बोली,,,,, भैया कल छुट्टी है तो आप कल मत आना,,, यह कहो मुझे याद था तो मैंने आपको बता दिया,, नहीं तो खामोखा आपको परेशानी हो जाती चलिए अब चलती हूं,,, और हां आंटी को मेरी तरफ से नमस्ते कह दीजिएगा,,,,,
ऑटो वाला मुस्कुराते हुएबोला,,, हां बिटिया का दूंगा अब चलो जाओ,, ध्यान रखना अपना और उसे पागल लड़की का भी,,, बहुत बदमाश हो तुम दोनों,,,, इतना कहकर ऑटो वाला , मुस्कुराते हुए वहां से चला गया,,,,
,,,, प्रत्यूषा अपने घर का में डोर खोलते हुए अंदर गई,, वहां बहुत सारे गमले लगे हुए थे और हर गमले में बहुत सुंदर फूल लगे हुए थे मानो यह कोई घर नहीं फूल का बागान हो,,,, लेकिन था आप ही बहुत अच्छा यार सच में,,,,,,
,,, तो चलिए क्यों न मिलते हैं अग्रवाल फैमिली से,,,, hy धैर्य तुम बीच में क्यों बोल रही हो,,,, यह मेरी कहानी चली है ना कि तुम्हारी तो तुम बीच में मत ही आओ,,,हमम,,,
।।। अच्छा बाबा ठीक है नहीं आती,,, चलो जहां थे वहां से शुरू करो,,,,हमम,,,
घर के में डोर पर पहुंचते ही प्रत्यूषा को अपनी मां की चिल्लाने की आवाज आती है,,,,
हे भगवान,,, यह लड़की बहुत बदमाश हो गई है,, बिते भर से भी ज्यादा बड़ी हो गई है,,, लेकिन उसे अकाली नहींहै,,, की लड़कियां इतनी देर तक बाहर नहीं रहती क्या करूं इस पागल लड़की का मैं आप ही बताओ जी,,,, अरे आपसे ही क्या पूछना है अपने ही तो सर चढ़ा कर रखा है उसे नालायक को,,
,,, उसकी बातों का जवाब देते हुए एक आदमी जवाब देता है,,,, जो कि प्रत्युषा के पिताजी थे,,, राम अग्रवाल,,
उन्होंने अपनी पत्नी,,, मिताली,,, जी को देखते हुए बोले,,,
अरे मिताली जी आप इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो आई हो होगी अब क्यों खामोखा,, अपना सर गरम कर लेती हो,,, जरा ठंडा रखो दिमाग अपना,,,
।।।
,,,,, मिताली जी,,, किचन में बर्तन पटकते हुए बोलतेहैं,,,, हां हमारे ही दिमाग खराब है ना जो इतनी जवान बेटी को बोलते हैं,,,,, आप तो बोलिए ही मत,,,, आपको तो सिर्फ आपकी लाडली बेटी सो जाएगी यह नहीं देखा की बेटी जवान घर पर बैठी है,,,,,
,,, प्रत्यूषा जो गेट पर खड़ी होकर यह सब तमाशा देखकर अपने माथे पर मरते हुए कहती है,,, हे राम घर में आते ही क्लेश शुरू हो जाता है,, यह मन है की डायनहै,,, हे भगवान मुझे बचा लो इस मन से,,,, यह मेरी जिंदगी तबाह करने पर तुली है,,,,
तभी पीछे से एक प्यारी सी आवाज आती है,,,, जैसे की कोई गला खखर रहा हो,,,,
Hmm,, तो मैडम जी आप फिर यहां पर खड़ी हैं,,, अरे घर के अंदर चलिए ,,, अंदर आपकी सेवा करने के लिए हमारे मन है ना चलिए ना,,,
पीछे कोई और नहीं,,, प्रत्यूषा की छोटी बहन,,, शिवांगी थी,,, वह अपने मुंह पर हाथ रखकर, अपनी हंसी को रोकते हुए खड़ी थी,,,
उसने इस वक्त स्कूल यूनिफार्म पहन रखा था जिसमें वह काफी क्यूट लग रहीथी,,,,
उसकी बात सुनकर प्रत्यूषा,,, उस गुस्से में ताकते हुए कहती है,,, अगर अब तूने मुंह बंद नहीं रखा तो मैं तेरे मुंह पर मारूंगी फिर मत कहना,,,, मां मुंह तोड़ दिया मेरा ,, आपकी नालायक बेटी ने,,,,हमम,, अच्छा होगा तू अपना मुंह बैंड हीरक शिवांगी,,,
,,,,,,,
अरे बाबा इतना गर्म क्यों हो रही हो,,,, शिवांगी बोली,,, क्योंकि तू मेरा दिमाग गर्म कर रही है इसलिए,,, उसकी बातों का गुस्से में जवाब देते हुए प्रत्यूषा,, ने कहा,,,
,,,, तभी अचानक जब प्रत्यूषा,,, अपना ध्यान हटाकर,,,, दरवाजा खोलने की होती है,,, तभी उसके सामने अचानक,, राम जी खड़े हो जाते हैं,, और अपने चश्मे को चढ़ाते हुए उसे घूमने लगते हैं,,,
हमम,,, तो क्या बातें हो रही थी यहां पर अकेले-अकेले,,, जो इतनी देर तक यहां पर खड़ी हो,,,,,
अचानक उनका अपने सामने देखकर प्रत्यूषा,, डर जाती है और पीछे हो जाती है,,
,,,,, प्रत्यूषा हफ्ते हुएकहती है,, क्या पापा आपने तो डरा ही दिया,,,,,
,,,
राम जी कहते हैं,,,, बस अब नाटक बंद करो घर के अंदर चलो और तुम भी शिवांगी तुम्हें लड़ना जरूरी है क्या अपनी बड़ी बहन से,,,,
चलो घर केअंदर,,
इसमें कहकर वह दोनों को ही करके अंदर ले जाते हैं,, प्रत्यूषा,, मौका पाकर अपने कमरे में भाग जाती है,,,, उसे देखकर शिवांगी हंसती है और फिर अपनी मां को इशारा करते हुए कहतीहै,,,
अरे मां पता नहीं एक लड़की,,, आपका स्वागत के बिना ही भाग गई,,,, वही किचन से बाहर आते हुए मिताली जी कहते हैं,, कोई भी बात नहीं बेटा जाने दो,, ज्यादा देर तक थोड़ी ना बच पाएगी यह लड़की,,,,,
,,,,,,,,,,, इसी तरह हंसी मजाक करते हुए हमारा दिन यहीं पर खत्म होता है,,,,
और रातका वक्त,,,,
सभी,,, जमीन पर चटाई बेचकर बैठे हुए थे और अपना खाना खा रहे थे और सामने टीवी पर कॉमेडी शो चल रहा था,,,
Kapil Sharma show,,,, ,,
,,,,, शिवांगी और प्रत्यूषा तुम मुझे हंस रही थी लेकिन मिताली जी के चेहरे पर हंसी नहीं थे, वह कुछ सोच में डूबी हुई थी,, तभी राम जी ने उन्हें हिलाते हुएकहा,,, अरे क्या हुआ भाग्यवान इतनी,, गहरी सोच में डूबी हुई हो कोई तुम्हारा खाना ठंडा हो रहा है खा लो,,,, वरना बहुत ठंडा हो जाएगा,,,,
उसकी बात सुनकर,,, मिताली जी कहते हैं,,,, क्या हम प्रत्युषा को बता दे जी,, बाद में उसे कुछ बुरा ना लगे,,,, उसकी बातों का जवाब देने ही वाले थे राम जी तभी शिवांगी बोली,,,,
अरे कौन सी बात मान जो आप इतनी देर से चुप और खाना भी नहीं खा रही हो जल्दी बोलो ना क्या बात है,,,,
प्रत्यूषा भी अचानक उन सभी को देखने लगती है और कहतीहै,,,, हमें बताइए क्या बात है ऐसी जो आपने चुप हो और आज बहुत गुस्सा कर रही होमेरे पर,,,,,
,, मिताली जी राम जी को कुछ इशारा करते हैं जिसे समझ कर राम जी,, अपने गले को के खाते हुए कहते हैं,,,,,,
,, देखो प्रत्यूषा बेटा,,हम तुमसे कुछ छुपाना नहीं चाहते इसलिए मैं बता रहा हूं,,, क्योंकि छुपा कर कोई फायदा नहीं होगा,
प्रत्यूषा उनकी बातें को गौर से सुनती हुई कंफ्यूज होकर कहतीहै,,, आप कहना क्या चाहते हैं पापा अच्छे से बताइए ना मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा,,,,,
,,,, राम जी उसके सर पर हाथ रखकर कहते हैं,,,
आज तुम्हारे लिए एक लड़के का रिश्ता आया था,,,, चाचा जी लेकर आए थे,,,, तुम्हारी मां ने,, और रिश्ता मंजूर करलिया,,, देखो बेटा,, घर दवार परिवार खानदान बहुत अच्छा है तुम खुश रहोगे,,,, तुम्हारी मां ने यह रिश्ता पक्का करलिया,,, और उन्होंने कहा है कि कुछ महीने बाद ही शादी की तारीख पक्की कर देंगे,,,, देखो यह हम तुमसे बिना पूछे तो नहीं करना चाहते थे लेकिन,,
,,,, तभी प्रत्यूषा,, बिना किसी रिएक्शन के उन्हें देखते ,, कहतीहै,,, पापा आपने मुझसे बिना पूछे ही रिश्ता तय कर दिया,,, मैं अभी पढ़ना चाहती हूं पापा अभी मुझे शादी नहीं करनी और घर द्वार चाहे जैसाहो,, मुझे भी शादी नहीं करनी,,, और मांआपने,, अपनी भी एक बार मुझसे पूछा तक नहीं कि मैं शादी करना चाहती हूं या नहीं,,,
इतना कहकर प्रत्यूषा,,,, अपना खाना अधूरा ही छोड़कर कमरे में चली जाती है,,, उसके पीछे शिवांगी भी जाती है और वह कहते हैं,,,
अरे दी सुनो तो अभी बात पूरी नहीं हुई है मम्मी पापा की बात तो सुन लो पुरी,,
प्रत्यूषा अपने कमरे का दरवाजा जोर से बंद करते हुएअपनी रोधली,, आवाज में रहतीहै,, मुझे कोई बात नहीं सुनाई तुम जाओ यहां से,,,,
इतना कहकर प्रत्यूषा अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लेती है और अपने बिस्तर पर जाकर लेट जाती है और अपना मुंह तकिया में छुपा कर रोने लगती है,,,
,,,,,,,,,,
,,,, अरे बस यार,, अब और आगे मैं नहीं बताऊंगी वरना मैं रोदूंगी,,,, आज के चैप्टर यहीं पर खत्म करते हैं और तुम सब joo,,yaar.... और हां जाते-जाते,,,, कमेंट में बात कर जाना और हां रेटिंग दे देना,,,,,🌷🌷🌷🌷
,, are yaar Pratyusha RO mat,,, hm ..nhi to . hamari readers kya sochenge,,,,,🌷🌷🌷🌷🌷
Okay bye everyone milte Hain next chapter mein,, tab tak Ke liye Main Pratyusha ko Sambhal Lun,, swimming pool Bana degi Apne kamre mein,,,
Bye...🙂🌷🌷🌷🌷🌷🌷
............. फिर से स्वागत है आप सभी का एक और नए अध्याय में,,,,,
चलिए शुरू करते हैं आज की कहानी और देखते हैं कि रात के सन्नाटे में क्या हुआ हमारे प्यारे घर में,,,,🌙🌷
,,,,,,
कमरे की लाइट बंद थी और सिर्फ खिड़की से आती चांदनी कमरे में हल्की चमक फैला रही थी,,,,
प्रत्यूषा बिस्तर पर लेटी हुई थी, आंखों में आंसू और तकिये में मुंह छिपाए हुए,,, उसके रोने की आवाज इतनी धीमी थी कि शायद खुद हवा भी सुनने से डर जाए,,,,
तभी धीरे-धीरे दरवाजा खुलने की चर्र...चर्र... आवाज आई,,,
कदमों की धीमी आहट,,,, और कमरे में दाखिल हुई उसकी मां ,,,, मिताली जी,,,
उनके हाथ में पानी का गिलास था और चेहरे पर वही ममता जो हर मां के पास होती है जब वो अपनी बेटी को रोते हुए देखती है,,,,
वो धीरे से उसके पास आईं और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं ,,,,,,,,
“बेटा... प्रत्यूषा... उठो ना, रोना बंद करो, देखो पापा भी परेशान हैं, हमने तुम्हारे बुरे के लिए कुछ नहीं किया बेटा…”
प्रत्यूषा ने सिर नहीं उठाया, बस आंसू गिरे जा रहे थे,,,,
मां ने फिर कहा ,,,,,,
“मैं जानती हूं तू अपने सपने पूरे करना चाहती है, पर बेटा हर लड़की को एक ना एक दिन तो घर बसाना ही पड़ता है... जिस लड़के का रिश्ता आया है, बहुत अच्छा है, और घरवाले भी…”
मां की बातें आधे में ही रह गईं जब प्रत्यूषा ने धीरे से कहा ,,,,,,,,,
“मां, क्या मेरे सपनों की कोई कीमत नहीं? मैं भी खुश रहना चाहती हूं, पर अपने तरीके से… अभी नहीं मां, मुझे अभी शादी नहीं करनी…”
मिताली जी की आंखों में भी आंसू आ गए, उन्होंने कुछ पल तक उसकी ओर देखा, फिर थककर कहा ,,,,,
“शायद तुम अभी नहीं समझोगी… पर एक दिन समझ जाओगी…”
इतना कहकर वो गिलास मेज पर रखती हैं, एक बार उसकी पेशानी पर हाथ फेरती हैं और कमरे से चली जाती हैं...
दरवाजा धीरे से बंद होता है… और पीछे सिर्फ सन्नाटा रह जाता है…,,,
,,,
अब चलिए सुबह की ओर बढ़ते हैं 🌞
नई सुबह, पर घर का माहौल थोड़ा भारी है…
डाइनिंग टेबल पर सब नाश्ता कर रहे हैं ,,,,,,,
राम जी अखबार पढ़ रहे हैं,
मिताली जी चुपचाप पराठे पर घी लगा रही हैं,
शिवांगी अपनी स्कूल ड्रेस में बैठी हुई टोस्ट खा रही है और बार-बार घड़ी देख रही है,
और तभी बाहर से किसी की ज़ोर की आवाज़ आती है ,,,,,,
“अरे प्रत्यूषा बाहर आ ना! आज कॉलेज नहीं चलना क्या?? लेट हो जाएगी!”
हाँ जी, वही ,,,,, हमारी प्यारी प्रिया 😄
गेट के बाहर खड़ी होकर चिल्ला रही थी जैसे कोई फिल्मी हीरोइन,,,,,
शिवांगी तो हंसते-हंसते गिर ही पड़ी ,,,,,,,
“अरे मम्मी देखो, फिर आ गई ये प्रिया दी की पार्टनर!”
राम जी अखबार नीचे रखते हुए बोले ,,,,,
“कौन आया है अब सुबह-सुबह शोर मचाने?”
मिताली जी धीरे से बोलीं ,,,,,,,,
“वो ही प्रिया है, प्रत्यूषा की दोस्त…”
उसी वक्त कमरे का दरवाज़ा खुलता है…
सबकी निगाहें एक साथ मुड़ती हैं…
दरवाजे पर प्रत्यूषा खड़ी थी ,,,,,,,,,
चेहरा शांत, आंखें सूजी हुई, पर आवाज़ में एक अलग ही ठहराव था।
वो धीरे-धीरे चलकर डाइनिंग टेबल के पास आती है और सबको देखती है।
प्रिया अब भी बाहर खड़ी है ,,,,,,,,“अरे चले ना आज तो important class है!”
प्रत्यूषा हल्की सी मुस्कान देती है…
फिर सबकी ओर देखकर कहती है ,,,,,
“मां... पापा... मैंने सोच लिया है... मैं शादी के लिए तैयार हूं।”
सन्नाटा…
शिवांगी का मुंह खुला का खुला रह गया,,,,, “क्या?? दी तू सच में??”,,,,
मिताली जी के हाथ से चम्मच गिर गया…,,,
राम जी कुछ बोल नहीं पाए, बस अखबार मोड़कर उसे देखने लगे…
और प्रिया बाहर से चिल्लाई ,,,,,
“क्या?? शादी?? अरे पगली तू पागल हो गई क्या??” 😳
प्रत्यूषा बस एक लंबी सांस लेकर वहां से चली जाती है, और पीछे रह जाता है
एक हैरान परिवार…और एक सवाल
क्या प्रत्यूषा सच में मान गई?,,,,,
या उसके मन में कुछ और चल रहा है...,,,,
और फिर प्रत्यूषा,,, प्रिया से कहती है,,,
“प्रिया… आज मैं कॉलेज नहीं जाऊंगी।”
प्रिया का चेहरा जैसे उतर गया ,,,,,
“क्या?? क्यों?? तू ठीक तो है ना? कल तक तो बोल रही थी की notes पूरे करने हैं, अब क्या हुआ?”
प्रत्यूषा बस हल्की सी मुस्कान देती है, और कहती है
“बस… मन नहीं है आज…,,,,,
प्रिया थोड़ा रुकती है, कुछ बोलना चाहती है, पर फिर खुद को रोक लेती है।
वो धीरे से कहती है ,,,ठीक है यार… मैं चलती हूं… लेकिन तू ऐसा मत रहना, तुझमें वो हंसी अच्छी लगती है जो आज कहीं खो गई है।”
इतना कहकर प्रिया मुड़ती है, और धीरे-धीरे बाहर निकल जाती है…
उसके कदमों की आवाज़ गेट तक सुनाई देती है
हर कदम जैसे उदासी छोड़ती जा रही हो।
,,,,,
अब सीन बदलते हैं ,,,,,,,प्रिया कॉलेज पहुंचती है।
वह क्लास में बैठी है, पर उसका मन नहीं लग रहा।
टीचर पढ़ा रहे हैं, दोस्त बातें कर रहे हैं, लेकिन उसका ध्यान कहीं और है।
वो खिड़की से बाहर देखती है और खुद से बड़बड़ाती है
“पता नहीं आज वो ऐसी क्यों थी… कुछ तो जरूर हुआ है… पर क्या,,,,,
उसके बगल में बैठी सहेली बोलती है ,,,,,
“क्या हुआ प्रिया, तू इतनी चुप क्यों है आज,,,,,,
प्रिया बस मुस्कुराने की कोशिश करती है ,,,,,
“कुछ नहीं यार… बस थोड़ी टेंशन है…”
और वहीं घर पर ,,,,,,
मिताली जी अब भी चिंतित हैं,
राम जी बार-बार घड़ी देख रहे हैं,
शिवांगी बार-बार ऊपर जाकर बहन का हाल देखने की कोशिश करती है, पर दरवाज़ा बंद है…
सबके मन में एक ही सवाल ,,,,,
“आख़िर प्रत्यूषा ने अचानक ऐसा फैसला क्यों लिया?”
क्या उसने किसी दबाव में आकर “हाँ” कहा है?
या कोई और वजह है उसके इस बदलते इरादे की...?
,,,,,,,,,,,,,
बस दोस्तों आज के लिए इतना ही,,,
अगले chapter में पता चल ही जाएगा कि प्रत्यूषा के इस फैसले के पीछे असली वजह क्या थी ,,,,,
क्या ये मजबूरी थी या कोई राज़ जो वो सब से छुपा रही है…
,,,,,,,,,
बस दोस्तों आज के लिए इतना ही,,,,
अगले अध्याय में पता चल ही जाएगा कि प्रत्यूषा ने ये फैसला क्यों लिया और इसके पीछे क्या राज़ है,,,,
तब तक के लिए bye everyone 🌷🙂
और हां, अगर कहानी पसंद आई तो कमेंट करना मत भूलना…
क्योंकि प्रिया अब अगली बार ज़रूर कुछ धमाका करने वाली है।।।,,,, 😄🌷🌷🌷🌷,,,,,
.🌷🌷🌷🌷.....aap sabhi ka swagat hai new chapter mein..... Achcha yah jante Hain aage kya hua...🌷🌷🌷🌷 Pratyusha...🥺 Tum jada dukhi Mat ho...hm...🥺
........
पूरे दिन कमरे की खिड़की पर पर्दा खिंचा रहा और बाहर की रोशनी मानो उस कमरे के दरवाजे तक भी आकर रुक जाती थी। प्रत्यूषा अपने कमरे की चार दीवारों में समाई हुई थी ,,,,,,, माँ-बाप की बातें, घर का शोर, और सबसे बढ़कर अपने अंदर का उथल-पुथल। वह खाट पर पड़ी रहती, तकिये से चेहरे को छुपा कर रोती और कभी-कभी घड़ी की टिक-टिक सुनकर उठकर खिड़की के पास आकर बाहर की तरफ देखती ,,,,पर बाहर भी सब कुछ वही था, हँसी-हँसी लोग, चिड़ियों की किलकारियाँ, पर उसके भीतर अँधेरा बढ़ता जा रहा था।
दिन दिन गंवाता गया। कॉलेज का बैग वही कोने में पड़ा रहा, नोट्स अधूरे, फोन पर आने वाले मैसेज अनदेखे। प्रिया कई बार आई, घंटों बैठकर समझाने की कोशिश की, पर प्रत्यूषा बस छोटी-छोटी बातों पर मुस्कुरा देती और फिर वहीं लौट आती ,,,, खामोश, अनुत्तरित। घर वाले चिंतित थे पर किसी ने वह सवाल नहीं पूछा जो सबसे बड़ा था,,,,“तुमने क्यों हाँ कह दी?” और प्रत्यूषा ने भी सचाई का खुलासा नहीं किया। वह चुप रहने को ही सुरक्षित समझ रही थी।
रात हो या दिन ,,,,, परिवार में हर किसी की निगाहें अक्सर उसकी कमरे की तरफ ठहर जातीं,,,,,,,,। मिताली जी की आँखों में अब बस एक गहरी चिंता थी, राम जी ऑफिस से जल्दी घर आते और घंटों सोचते। शिवांगी बहन की तरह उसे जगाने आती, चाचा-चाची के मिलने की बातें घर में फिर से होने लगीं। लेकिन प्रत्यूषा का मन कहीं और था ,,,,,,, कहीं दूर उस अनकहे फैसले के पीछे जो उसने लिया था।
कुछ दिनों की इस खामोशी के बाद एक शाम राम जी ने टेबल पर बैठकर मिताली से कहा, ,,,,,,,,,“मिताली, रिश्ता वाले कल फिर आएंगे। उन्हें देखकर सब कुछ फाइनल कर देंगे। लड़का अच्छा है, परिवार अच्छा है। हमने पढ़ाई के बाद ही सोचा था, पर अब ज्यादा देर सही नहीं होगी।”.......,,,,,
मिताली ने चावल की थाली पर ध्यान देते हुए धीमे स्वर में कहा, “राम, मैं समझती हूं पर वह अभी पढ़ना चाहती है। मैं प्रत्यूषा के सपनों को जानती हूं... पर तुम क्या कर सकते हो,,, हमारे लिए भी सही कुल-वर्षा ज़रूरी है।,,,,,
राम जी बस सिर हिला कर गहरे विचारों में चले गए। घर में एक अजीब-सी सूनी सी हवा चल पड़ी थी। पर अगले दिन के लिए सब तैयारियाँ तेज कर दी गईं ,,,,,,, कपड़े बदले, घर की सफाई हुई, और मेहमानों के बैठने की व्यवस्था भी कर दी गई।
वो रात जब घर धीरे-धीरे सो रहा था, अचानक राम जी की आवाज आई ,,,,, “प्रत्यूषा, दरवाजा खोलो।” प्रत्यूषा ने दरवाजा आहिस्ता से खोला और पिता के इशारे पर अंदर आई। राम जी की आँखों में कुछ गंभीरता और थकान थी। मिताली भी साथ थीं, पर उनकी आँखें नम थीं।
राम जी ने कमरे में बैठकर कहा, “बेटा, देखो हम ये नहीं चाहते पर सामाज क्या सोचें गा इस लिए ये कदम उठाया है,,,,,, कल तुम्हें देखने लड़के वाले आ रहे हैं तो तैयार रहना,,,,,,,,
प्रत्यूषा ठंडी हवा की तरह बैठी रही,,,,,,,,। अंदर का कोलाहल फिर से बढ़ा पर बाहर वह उन शब्दों के बीच एक तरह से स्थिर भी हो गई। उसने धीमें स्वर में कहा, “पापा, क्या मैं कुछ कह सकती हूँ?” पर राम जी ने हाथ हिलाकर कहा, “पहले सुनो। बात बाद में।”
मिताली ने आँखें नम कर के कहा, “हम तुम्हारे भले के लिए कर रहे हैं। यह सही रिश्ता है। तुम सोचो मत। बस तैयार रहो।” पर प्रत्यूषा के भीतर एक सिहरन उठी ,,,,,,, वह बताना चाहती थी पर कैसे? कैसे कहे कि उसने ‘हाँ’ कहा था ताकि घर को थोड़ी सुकून मिले? कैसे बताए कि उसका यह कदम किसी मजबूरी का नतीजा tha...
उस रात बिना खाना खाए ही प्रत्यूषा अपने कमरे में चली गई। न तो सो पाई, न ही रोते-रोते पूरा थक पाई। उसने अपना,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ऑक्सफोर्ड बैग उठाया और उसमें नोट्स रखने की कोशिश की पर पन्ने अपने आप बाहर गिरने लगे। उसने अखबार के टुकड़े पढ़े पर शब्द कुछ अर्थ नहीं रखते थे। धीरे-धीरे उसे एक शांत विचार आया अगर वह सच सबको बता दे तो क्या मिलेगा? और अगर वह चुप रहे तो क्या खो देगी?,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,, अगली सुबह,,,,,,,,,,,,
सुबह की पहली किरण जब खिड़की के पर्दे से छनकर अंदर आई, तब भी प्रत्यूषा की आँखें खुली हुई थीं। रात जैसे उसकी पलकों में सिमट कर रह गई थी न पूरी नींद, न पूरी जाग। कमरे के कोने में घड़ी की सुइयाँ टिक-टिक कर रही थीं, पर हर आवाज़ उसे किसी सज़ा जैसी लग रही थी।,,,,,,,
बाहर से आवाजें आनी शुरू हो गई थीं ,,,,“शिवांगी, ज़रा वो पीला परदा तो लगा देना, मेहमानों के आने में अब ज़्यादा वक़्त नहीं है,,,,,,
माँ की आवाज़ में हड़बड़ी थी, पर उसमें एक अजीब-सी बनावटी उत्सुकता भी थी।,,,,,,,
रसोई में बर्तनों की खनक, बाहर झाड़ू की सरसराहट और बैठक में कुर्सियों के खिसकने की आवाज़ें… पूरा घर किसी रस्म की तैयारी में डूबा हुआ था।
शिवांगी हँसते हुए बोली, “माँ, प्रिया दी तो आई नहीं अभी तक… उसने कहा था वो साड़ी लेकर आएगी।”
मिताली ने जवाब दिया, “आ जाएगी, उसे पता है लड़के वाले बारह बजे तक पहुँचेंगे।”,,,,,
घड़ी में सुई जैसे तेज़ भाग रही थी। पर प्रत्यूषा के लिए हर मिनट जैसे ठहर गया था।,,,,,,,
वह खिड़की के पास जाकर खड़ी हुई, नीचे आँगन में रंगोली बन रही थी ,,,,
पीले और गुलाबी रंगों से। धूप दीवारों पर पड़ रही थी, पर उसके भीतर जैसे अब भी अँधेरा था।
दरवाज़े पर दस्तक हुई ,,,, “दीदी…”,,,,,
शिवांगी ने धीरे से झाँका, “तुम अब तक तैयार नहीं हुईं? माँ बहुत परेशान हो रही हैं… सब पूछ रहे हैं तुम क्या पहनोगी।”
प्रत्यूषा ने बिना मुड़े बस कहा, “शिवांगी, सबकी मत सुनो… मैं बस थोड़ी देर में आऊँगी।”
उसकी आवाज़ में कोई भाव नहीं था,,, न गुस्सा, न दुख, न ही कोई उम्मीद।,,,,,
कुछ देर बाद प्रिया आ गई, हाथ में गिफ्ट्स और एक साड़ी लिए। वह जल्दी-जल्दी कमरे में आई और बोली, “अरे पागल, तू ऐसे चेहरे के साथ नीचे जाएगी तो सब समझ जाएंगे कि कुछ ठीक नहीं है! थोड़ा मुस्कुरा ना… बस आज का दिन है, फिर देख लेंगे।”
प्रत्यूषा ने हल्की मुस्कान की कोशिश की, पर आँखों में नमक-सा दर्द उतर आया।,,,,,,,,,,,,
“प्रिया… कभी-कभी लगता है न, हम जो बोलना चाहते हैं, वो कोई सुनता ही नहीं,” उसने कहा।
प्रिया ने उसका हाथ थाम लिया, “सुनेंगे दीदी, पर सही वक़्त आने दो… अभी बस खुद को संभालो।”
नीचे से मिताली की आवाज़ आई, “प्रत्यूषा,,,,जल्दी आ जाओ, गाड़ी घर के बाहर रुक गई है।,,,,,,
प्रिया ने झट से साड़ी उसके कंधे पर डालते हुए कहा, “चलो, अब देर मत करो।”,,,,,,,,,,,।।।।।।।।।।।,,,,,,,,,
बस यार बाकी next chapter mein बताउंगी,,,,,अभी ,,,मैं बिजी हु,,,,,,,,
Hm.. acha koi baat nahi yaar,,,,......fir milte hai.....
Aur han aap sb comment karna na bhule....hm 🥺🙂
To fir se swagat karte hain Meri kahani mein.... Abhi to Meri Aankhen suji Hui Hai to Mai... Bahut udaas hun yaar comment mein batana Main Kya Karun apni jindagi ka mere Mummy Papa Ne Meri jindagi tabah kar di.....
... Dhairya ka to achcha hai.... Chaliye jyada bakwas na karte hain story padhiye Meri....
...............
बैठक में अब तक हँसी-खुशी और मिठास भरी बातचीत चल रही थी। सब लोग आराम से सोफे पर बैठे थे ,,, मिताली जी बार-बार पानी और जूस परोस रहीं थीं, राम जी सामने बैठकर शालीनता से बातचीत कर रहे थे।
प्रत्यूषा एक ओर चुपचाप बैठी थी, उसके हाथ अब भी साड़ी के पल्लू को बार-बार मोड़ रहे थे।
बुआ जी, जो इस रिश्ते की मुख्य प्रतिनिधि बनकर आई थीं, बेहद आत्मविश्वासी लग रही थीं ,,,उम्र करीब पचपन के आसपास, माथे पर बड़ी लाल बिंदी, हाथों में चूड़ियाँ और आवाज़ में ठहराव।
“अरे बहन जी,” बुआ जी ने हँसते हुए कहा, “आपका घर तो बहुत सुंदर है, सब कुछ एकदम सजा-संवरा… बिल्कुल हमारी पसंद का।”
मिताली मुस्कुराईं, “बस बच्चों का ही तो मन होता है कि सब ठीक लगे।”
सामने लड़के के पिता जी बैठे थे ,,, बहुत शांत, पर उम्र का असर उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था। उनके बाल सफेद हो चुके थे, आँखों में थकान थी, पर बातों में विनम्रता थी।
राम जी ने पूछा, “तो शिवांश जी आजकल क्या कर रहे हैं?”
बुआ जी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “अरे, लड़का तो बहुत ही तेज है… अपने पापा का बिजनेस संभाल रहा है। अभी कुछ काम से बाहर गया था, पर कहकर गया है कि सीधे यहीं आएगा।”
शिवांगी ने धीरे से माँ के कान में कहा, “माँ, ये तो अच्छा है कि लड़का खुद आने वाला है।”
मिताली ने सिर हिलाया, “हाँ, सब अपने आप ही अच्छा हो जाए।”
बातों का सिलसिला आगे बढ़ता रहा ,,,,,, कभी पुरानी यादें, कभी रिश्तेदारों का जिक्र।
प्रिया बीच-बीच में हल्के मज़ाक भी कर देती, ताकि माहौल थोड़ा हल्का रहे।
बुआ जी हँसते हुए बोलीं,,,,,, “आजकल के बच्चे तो फोन पर ही रिश्ते बना लेते हैं, अच्छा है आप लोगों ने पुराने तरीके से सोचा।”
राम जी ने मुस्कुराकर कहा, “हम तो परंपरा में ही विश्वास करते हैं।”
इतने में मिताली ने धीरे से कहा, “थोड़ा और जूस डाल दूँ क्या?”
बुआ जी बोलीं, “हाँ हाँ, बस थोड़ी सी… और वैसे भी, जब तक शिवांश नहीं आ जाता, तब तक हम लड़की को कैसे देख लें?”
सबने एक-दूसरे की तरफ देखा।
मिताली ने भी सिर हिलाकर कहा, “हाँ, सही कह रही हैं आप। पहले लड़का आए, फिर सब साथ बैठेंगे।”
वातावरण शांत था ,,,, पर उसी क्षण बाहर से “धड़ामmm... धड़ामmm…” की आवाज़ आई।
जैसे कोई बहुत तेज़ स्पीड में बुलेट लेकर गली में घुसा हो।
शिवांगी ने चौंककर कहा, “अरे मम्मी! ये क्या आवाज़ है…,,,, लगता है गली के आवारा लड़के फिर से आ गए!”
वह खिड़की की ओर भागी, पर पर्दे के पार झाँकते हुए बोली, “आंटी जी, यहां ऐसे रोज़ होता है… कोई न कोई बुलेट लेकर शोर मचाते रहते हैं।”
बुआ जी ने ज़ोर से हँसते हुए कहा, “अरे बेटा, ये आवारा लड़के नहीं… ये आवाज़ तो हमारे शिवांश की है!”
सबके चेहरे पर एक पल को हैरानी छा गई।
मिताली ने कहा, “क्या मतलब? ये आपके शिवांश की बुलेट,,,,
बुआ जी ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया, “हाँ हाँ, वही तो… उसका स्टाइल ही ऐसा है। जहां जाता है, लोग पहले उसकी बुलेट की आवाज़ से ही पहचान जाते हैं।”
शिवांगी ने हँसते हुए कहा, “मतलब एकदम फ़िल्मी एंट्री है!”
बुआ जी बोलीं, “अरे फ़िल्मी नहीं, हमारा शिवांश असल में थोड़ा अलग ही है… थोड़ा तेज़, थोड़ा बेपरवाह, पर दिल का बहुत साफ़।,,,,,,
बाहर अब बुलेट की आवाज़ और करीब आ रही थी “धड़ाम्म्म…,,,घर की खिड़कियाँ तक हल्की सी काँप गईं।
राम जी ने चश्मा उतारते हुए कहा, “अरे, ये तो सच में बहुत तेज़ चला रहा है!”.....,,,,बुआ जी मुस्कुराईं, “अरे भाई साहब, लड़का जब तक बुलेट चलाते हुए चारों गली पार नहीं करता, उसे चैन नहीं आता। मैं कहती हूँ, कभी-कभी डर भी लगता है पर उसकी पहचान ही यही है।”
शिवांगी हँसकर बोली, ,,,,,आंटी जी, फिर तो वो पूरे मोहल्ले में मशहूर होंगे।”
बुआ जी ने हँसते हुए कहा, “मशहूर,,,,,,अरे बेटा, ये तो कम शब्द है। जहाँ भी जाता है, सब कहते हैं ‘शिवांश आया मतलब कुछ अलग होने वाला है।’”
बाहर अब बुलेट की आवाज़ रुक गई थी।
गली के मोड़ पर किसी के ब्रेक लगाने की तेज़ आवाज़ आई ,,,,,,
सबकी नज़रें दरवाज़े की ओर उठीं।मिताली ने धीरे से कहा, “लगता है वो आ गया…”,,,बुआ जी ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ, अब माहौल थोड़ा और दिलचस्प हो जाएगा।”
प्रत्यूषा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई।,,,,,,,,
वो खिड़की के पर्दे के पीछे से झाँकने लगी दूर से उसने एक लंबा-चौड़ा कद देखा, सफ़ेद शर्ट, काले पैंट, और बुलेट की चाबी उँगलियों में घूमाता हुआ…,,,,
शिवांगी ने कहा, “वाह मम्मी! कितना स्टाइलिश लग रहा है कोई…”
मिताली ने हड़बड़ाकर कहा, “अरे अंदर आओ सब, ठीक से बैठो।”।।।।।।।।।।।।।।।,,,,,,,,,,,,
बुआ जी ने उत्साहित होकर कहा, “अब आ गया हमारा शिवांश।।।।।
”राम जी मुस्कुराए, “तो अब तो मिलवाइए अपने बेटे से।”
बुआ जी बोलीं,,जी,,,
प्रत्यूषा के हाथ ठंडे पड़ गए… दिल की धड़कन अब कानों तक गूँज रही थी।
वह खिड़की से पीछे हट गई, और बुदबुदाई “तो ये है… वो, जिससे मेरा रिश्ता तय किया जा रहा है…”
बाहर किसी ने दरवाज़े की बेल बजाई ,,,,,,ट्रिन ट्रिन…घर के अंदर सन्नाटा छा गया।
बुआ जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “लो आ गया हमारा शिवांश…”
और कमरे की हवा जैसे अचानक भारी हो गई।,,,,,,,,
Hm... अरे बस बस आज यहीं पर खत्म करते हैं,,,, और हां आप सब यह मत सोचना कि मैं शर्मा क्यों रहीथी,,,, यार मैं भी तो लड़की हूं ,,, कहां लड़की शर्म आतीहै,,,, मैं भी थोड़ा शर्मा दिया,,,, अब तेरे इस बात का मजाक उठेगी पहले तो होती है फिर हंसती है फिर शर्म आती है अगर चक्कर क्या है तेरा,,,,, वह तो मुझे बाद में सुना देगी आप सब मुझे सुना देना कमेंटमें,,, फिर मिलती हूं नेक्स्ट चैप्टरमें,,,,
Aur han mujhe Mat bhul Jana aap sabhi main bhi hun line mein...😁🙆🏻♀️
Hm . Welcome to the my new chapter... तो कैसे हैं आप सभी जरूर बताना,,,, चलिए कहानी को आगे बढ़ते हैं,,,, कहानी पसंद है तो आपको भी पता है क्या करना है पता नहीं की जरूरत तो नहीं है वैसे,,,,,,
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।,,,,, घर में इस वक्त सभी लोगों सोफे पर बैठे हुए थे बुआ जी जिनका नाम था मोनिका सिंह अरोड़ा,,,,, और उनके बड़े भाई,,,, जो की थोड़ी बुजुर्ग हो चुके थे उनका नाम था,,, महावीर,,, जोशी,,,, उन सभी लोगों की नजर दरवाजे पर ही नहीं टिकी हुई थी और तभी दरवाजा,, दरवाजे पर किसी की डंक,धड़कन कहानी की आवाज आई,,, जिससे शिवांगी दरवाजा खोलना गई दरवाजा खोलते ही उसने अपने सामने एक बहुत ही ज्यादा हैंडसम लड़के को देखा जो की दिखने में काफी ज्यादा हैंडसम पर्सनालिटी का मालिक था,,,,, वह लड़का और कोई नहीं,,, शिवांश था,,,
जिसका रिश्ता पक्का करने तो यहां पर आए थे सब लोग,,,, उसके पीछे एक लड़की भी खड़ी थी लेकिन वह लड़की शादीशुदा दिख रही थी उसने गहरा गोल्डन रंग का सलवार सूट पहना था और गले में भारी मंगलसूत्र और हाथ में उसका पर्स था जो की दिखने में बहुत सुंदर लग रही थी,,,,,,,
शिवांगी उन्हें अंदर आने का इशारा करती है जिसे समझ कर दोनों ही अंदर आते हैं और वह लड़की जिसका नाम था पंखुड़ी बुआ को देखते हीकहती है,,,, बुआ आप तो मुझे अकेले ही छोड़ कर यहां पर आ गई फिर पूछा तक नहीं कि मेरे भाई की शादी तय करने जा रही हो,,, यह गलत बात है बुआ,,,और पापा आप आप तो बता सकते थे ना अपनी बेटी को,,,,
बुआ जी बीच में बोलते हुएकहते हैं,,, थोड़ा चुप करो पंखुड़ी हम किसी के घर पर हैं हम अपने घर पर नहीं है जब तुम इतना बोल रही हो अभी बैठजो,,,, अभी रिश्ता पक्का नहीं हुआ है होने वाला है,,,, यह सुनकर पंखुड़ी मुंह बनाते हुए बैठी है लेकिन उसकी नजर जैसे ही प्रत्यूषा पर जाती है उसके चेहरे पर बहुत ही बड़ी स्माइल आ जाती है वह उसे देखते हुए बुआ के कानों में रहती है,, बुआ की यही लड़की है,,,,
बुआ जी अपनी आंखें से इशारा करती है हा ,में,,,,, पंखुड़ी उनका इशारा समझ कर,,, मन ही मान कहती है, अरे वह मेरे भाई को तो इतनी सुंदर बीवी मिल गई दिखने में तो काफी सुंदर है देखते हैं गुण कैसा है इसका,,, और इसका बिहेवियर,,,
यह कहकर वह चुपचाप बैठ जाती है वही शिवांश अपनी बहन के बगल में बैठा होता है वह अपने फोन को निकाल कर अपने फोन में लग जाता है और कुछ टाइप करने लगता है उसकी नजर एक बार भी प्रत्यूषा पर नहीं गई थी,,, प्रत्यूषा अपनी नज़रें नीचे झुकाए चुपचाप खड़ी थी,,, उसके बगल में ही प्रिया खड़ी थी जो उसको कोनी मार के कह रही थी कि वह अपने होने वाले पति को तो देख एकबार,, लेकिन प्रत्यूष उसे आंख दिखाकर मना कर रही थी,,,
लेकिन तभी अचानक उसकी नजर उसे भरे आंख वाले इंसान से मिल जाती है,,, शिवांश के दोनों आंखें उसे पहली बार देखते हैं देखते ही अचानक उसके दिल में कुछ अजीब सा हलचल होने लगता है,,, प्रत्यूषा तो बेचारी डर के मारे अपनी नज़रें तक नीचे झुका लेती है उसने एक बार भी उसकी तरफ सर उठा कर नहीं देखा लेकिन वही अपने फोन पर टाइप करता हुआ शिवांश उसे लगातार देख रहा था,,,,,
,,,, अरे यार आप सभी यह मत बोलना कि मैं क्यों शर्मा रही हूं अपने होने वाले पति को देखकर प्यार में क्या करूं एक तो मेरी पागल दोस्त हंसने पर मजबूर कर रही होती है तो बेचारी मैं क्या करती अचानक कि हम दोनों की नजरे मिल गई,,,,,,, लेकिन क्या यह मैं सही कर रही हूं यह सब आप सब कमेंट में बताना,,, कहानी जारी रखतेहैं,,,,,
कुछ घंटे बाद, जोशी फैमिली वहां से जाने को हुई क्योंकि अब शादी पक्की हो गई थी और सभी ने एक दूसरे को बधाई दी और गले मिले,,, महावीर जी ने जाते हुए प्रत्यूषा, को देखते हुएकहां,,,,
अब तुम जल्दी हमारे घर की बहू और रौनक बनोगी इंतजार रहेगा तुम्हारा जोशी फैमिली में कम से कम तुम्हारे आने से घर में औरत की कमी तो नहीं रहेगी, बस एक ही ख्वाहिश है बेटा मेरी की मेरे घर को भी एक औरत संभाल कर रखे और वह तुम कर सकतीहो,,,,, बस जल्दी से शादी हो जाए और तुम हमारे घर आ जाओ,,,,, इतना कहकर सभी लोग वहां से जाने को हुए,,,, पंखुड़ी जाते-जाते,,, प्रत्यूषा के कानों में बोलती है,,, भाभी आप हो तो बड़ी सुंदर बस जल्दी से आ जाओ मजा ही आएगा नंद भाभी के बीच,, अब जाना होगा अब सीधा मिलते हैं शादी में अपना ख्याल रखिएगा भाभी,,,,
इतना कहकर वह अपने पापा का और बुआ के साथ ही कर में बैठ जाती है,,,
शिवांश अपनी बुलेट में चाबी लगाते हुए बार-बार उसकी तरफ देख रहा होता है,,,, उसकी शर्ट के दो बटन खुले हुए थे जिससे उसकी परफेक्ट शेप की चेस्ट दिख रही थी,,,, मोहल्ले की कई सारी लड़कियां अपने बालकनी में खड़ी होकर यह नजारा देखकर जेलर फुल कर रही थी कि इस बेवकूफ जैसी लड़की को इतना हैंडसम पति कैसे मिल सकता है,,,,,, महलों की औरतें भी बहुत ज्यादा जल रही थी अग्रवाल फैमिली से,,,,
,,,,,, कभी प्रिया आगे आता है और,,,शिवाश के बुलेट पर हाथ रखकरकहती है,,, हां तो होने वालेजीजा जी,,, अपनी साली को कुछ देकर नहीं जाएंगे,,, तभी बीच में शिवांगी आती है और उसे पीछे गिरते हुएकहती है,,
अरे तुम कौन सी साली हो ऐसी साली तो मैं हूं जीजा जी की तो तुम बीच में मत आओ जीजा जी कभी हमें भी घुमाइएइस पर,,,,
शिवांश उनकी बातें सुनकर अपने आइब्रो उठाकर एक नजर प्रत्यूष को देखा है और कहता है,, अरे साली साहिबा अभी शादी तो होने दीजिए पहले आपकी बहन को घुमाऊंगा फिर आप भी आ जाना,,,,, इतना कहकर वह अपनी बुलेट स्टार्ट कर देता है,,, और प्रत्यूषा को घूरते हुए वहां से चला जाता है उसके जाते ही हर तरफ शांति छा गई थी,,,,,
,,,,,, सभी लोग घर के अंदर वापस आते हैं और बैठकर बहुत सारी बातें करते हैं शादी की तैयारी कैसे करेंगे और कैसे नहींयह सब,, लेकिन प्रत्यूष सीधा अपने कमरे में जाती है और अपनी खिड़की के पास खड़ी होकर सोते हुए अपने मन में रहतेहैं,,, क्यों मुझे कर लेनी चाहिए शादी,,,,
।।।
अरे बस आज का चैप्टर नहीं खत्म करते हैं और मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टर में,, और हां प्लीज फॉलो कर देना मैं फॉलो बैक करदूंगी,,,,
Hello everyone aap sab kaise hain jarur bataiyega... Chaliye chapter start karte Hain..... Comment mein jarur bataiyega kaisa laga aapko...
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।।। उसे दिन को लगभग दो दिन बीत चुके थे,,, लेकिन अभी भी प्रत्यूष बहुत उदास रहती थी और ज्यादा किसी से बात नहीं करती थी यहां तक वह सिर्फ एक दिन ही कॉलेज गई और फिर उसने कॉलेज जाना ही बंद कर दिया,,, जब से वह कॉलेज गई थी तब से सभी बच्चे उसे कहते थे कि उसकी इतनी जल्दी शादी क्यों हो रही है अभी तो उसकी पढ़ने की उम्र है उनका बातों का जवाब ना देते हुए प्रत्यूष कॉलेज ही नहीं जाती,,,,,
,,,,,, और सिर्फ अपने कमरे में बैठी हुई अपनी किताबों को पढ़ने रहती है,,, और बार-बार पूछ सोचती है कि क्या वह ठीक कर रही है या नहीं,,,,,
लेकिन अब और कोई चारा नहीं था क्योंकि अब शादी तय हो चुकी थी,, सिर्फ डेट तारीख तय करनी बाकी थी वह भी आज होने वाला था,,,,
,,,,,, प्रत्युषा की मन आंगन में बैठी हुई,,, अपनी कुछ पड़ोसने से बातें कर रही थी,,,, सभी पड़ोसन ए हंस रही थी और किसी की बातों को लेकर मजाक बना रही थी,,,
प्रत्यूष अपने कमरे में बैठी हुई यह सब देख रही थी लेकिन वह बिना किसी भाव के आसमान को देख रही थी तो कभी अपनी पड़ोसनों को जो कि हर बात का बखेड़ा करती थी,,, और अपनी बकवास चुगलियों का बखेड़ा करती,,, कभी उसकी बात तो कभी इसकीबात,,,
अक्सर हर मोहल्ले में होता है,,,, ऐसा ही कुछ हाल यहां भी था,,,,,,
,,,, और तभी शिवांगी और उसके पापा,,, एक पुरानी से स्कूटी पर बैठकर, आते हुए दिखाई देते हैं,,, उनके चेहरे में बहुत ज्यादा खुशी थी दूर से देखने पर ही पता लग रहा था,, शिवांगी अपनी दीदी को दूर से ही है करती है और अपनी उंगलियों से इशारा करती है की शादी की डेट पक्की हो गई,, जिसे देखकर बिना किसी भाव के ही प्रत्यूष अपनी खिड़की बंद कर देती है और गुस्से से बेड पर बैठ जाती है,,,,
,,,,, वही शिवांगी उसको ऐसा करता हुआ देखकर मुंह, बनालेती है,,, उसके पापा गाड़ी आंगन में ही खड़े करते हैंऔर, स्कूटी से उतरते हुए मिताली जी को बुलाते हैं,,,
अरे सुनती हो भाग्यवान,, भाई साहब ने शादी की डेट फिक्स कर दी है यह देखो,, वह उन्हें,, शादी की कार्ड दिखाते हैं जो की लड़कों वालों की तरफ से बन चुकी थी,,, मिताली जी देखते हैं की शादी तो अगले हफ्ते की 9 तारीख को है,, यह देखकर मालती जी चिंता हो करते हुए कहतीहैं,,, अरे इतनी जल्दी शादियों की तैयारी कैसे करेंगे हम हमारे पास इतना नहीं वक्त है जी,, जो हम हर रस्म की तैयारी करपे,,,, उन्हें इतना बोलते हुए और चिंता करते हुए देखकर राम जी हल्की मुस्कान के साथ कहते हैं,,,,,,
,,,, अरे भगवान क्यों इतना चिंता कर रही हो,,, उन्होंने कहा है की शादी,,,मंदिर में होगी और पूरा खर्चा वही उठाएंगे,,
यह सुनकर मिताली जी के चेहरे पर एक बड़ी सी स्माइल आती है और वह थोड़ा हंसते हुए कहती हैं,, अच्छा जी फिर ठीक है हमें भी यही अच्छा लगता है कि मंदिर में ही शादी नहीं पट जाए ना कोई झंझट ,, ना कोई दिक्कत अच्छे से निपट जाएगी तब तो,,,, बस भगवान जी करें शादी अच्छे से हो जाए मेरी बेटी की,,,
तभी शिवांगी अपने फोन को घुमाते हुए आती है औरकहती है,, अरे मम्मी पापा आप सब क्या यही पर खड़े-खड़े सारी बातें कर लोगे कि घर के अंदर भी चलोगे,,,
यह सुनकर सभी के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ जाती है और सभी घर के अंदर चले जाते हैं,,,,,,
8:00 बजे
रसोई में बर्तनों की खनखनाहट, गैस की हल्की सी सीटी, और बाहर आँगन में पड़ोसनियों की बेमतलब हँसी–ठिठोली। घर में हर तरफ एक अजीब-सा शोर था, पर प्रत्यूषा के अंदर सिर्फ सन्नाटा।
शिवांगी और मिताली जी रसोई में आकर सब्जियाँ काटने लगीं। दोनों के चेहरों पर शादी की तैयारियों की जल्दी और उत्साह साफ दिखाई दे रहा था।
“अरे शिवांगी, ज़रा प्याज दे ना… जल्दी कर, आज मेहमान भी आ सकते हैं,”
मिताली ने कहा और अपना दुपट्टा कंधे पर ठीक किया।
शिवांगी ने हँसकर कहा,
“हाँ मम्मी… आज घर में खाना थोड़ा अच्छा बनाते हैं। पापा भी पूरे जोश में है, शादी की डेट जो आ गई!”
उसी वक्त रसोई की चौखट पर धीमे कदमों की आहट हुई।
प्रत्यूषा…
एकदम चुप, एकदम फीके चेहरे के साथ दरवाज़े पर खड़ी थी।
न कोई खुशी, न कोई चौंक, बस एक खाली-सी नज़र।
मिताली ने उसे देखकर कहा,
“अरे बेटा, आ गई तुम? अच्छा हुआ… चलो आकर बैठो। तुम्हें भी बताना है बहुत सी बातें।”
प्रत्यूषा धीमे से रसोई में आई और पास की स्टूल पर चुपचाप बैठ गई।
उसकी उँगलियाँ उसके दुपट्टे के कोने को जैसे बेमतलब मरोड़ रही थीं।
शिवांगी ने मुँह बनाते हुए कहा,
“दीदी, आपको पता है ना? शादी अगले हफ्ते की 9 तारीख को फिक्स हो गई! मंदिर में होगी… कितना आसान रहेगा ना सब?”
प्रत्यूषा ने बिना किसी भावना के बस सिर हल्का झुका लिया।
“हम्म…”
इतना ही निकला उसके मुँह से।
शिवांगी ने आँखें घुमाईं,
“दीदी ये ‘हम्म’ मत बोला करो, कुछ तो बोलो यार… शादी है आपकी!”
मिताली ने उसे डाँटते हुए कहा,
“अरे छोड़ ना… लड़की खुद ही इतनी परेशान रहती है। थोड़ी घबराहट तो होगी ही।”
इसके बावजूद प्रत्यूषा चुप ही रही… मानो उसकी आवाज़ कहीं अंदर खो गई हो।
थोड़ी देर बाद मिताली ने बात शुरू की,
“देख बेटी… शादी मंदिर में होगी। अच्छा है ना,,,,
सब कुछ जल्दी निपट जाएगा… कोई टेंशन नहीं, कोई भीड़ नहीं, और सबसे बड़ी बात,,,खर्चा भी सब लड़के वाले उठाएँगे।”
शिवांगी बीच में बोल पड़ी,
“और दीदी! बुआ जी ने कहा कि शिवांश जीजू,,तो मंदिर वाली शादी को बहुत पसंद करते हैं… कहते हैं जल्दी, साफ-सुथरी और बिना झंझट वाली।”
प्रत्यूषा ने पहली बार थोड़ा चेहरा उठाया,
“शिव… शांश…?”
शिवांगी हँस पड़ी,
“हाँ दीदी, आपके होने वाले पति! ओहो… नाम याद नहीं रहता आपको!”मिताली ने हल्की आवाज़ में कहा,
“हम्म… शिवांश राठौर। अच्छा लड़का है… थोड़ा तेज़ है पर दिल से ठीक है। उसके पापा भी बहुत खुश थे शादी की बात सुनकर।”
प्रत्यूषा फिर चुप हो गई।
उसकी आँखों में गहरा डर उतर रहा था क्या वह सच में तैयार थी?
पर उसके चुप रहने को सबने “लड़की वाला संकोच” समझ लिया।
शिवांगी ने चाय चढ़ाते हुए कहा,
“दीदी, आप बस कल पार्लर चलना। और हाँ, कुछ गहने भी देख लेते हैं।
शादी की इतनी कम तैयारी में बहुत भागदौड़ होगी।”
प्रत्यूषा धीमे स्वर में बोली,“इतनी जल्दी… सब कुछ इतनी जल्दी क्यों?”
शिवांगी ने मजाक करते हुए कहा,“क्योंकि दीदी… आपको किसी ने पसंद कर लिया है! और जब रिश्ता जम जाए, तो देर किस बात की!”
मिताली भी उसी भाव से बोलीं,और क्या! लड़की अच्छी, लड़का अच्छा, परिवार अच्छा… इससे ज़्यादा क्या चाहिए?”
पर प्रत्यूषा के मन में तो हर शब्द काँटों की तरह चुभ रहा था।
उसे लगा जैसे वो किसी और की कहानी देख रही हो…
उसकी अपनी ज़िंदगी उससे दूर कहीं चली गई हो।
शिवांगी ने उसे प्लेट थमाई,
“दाल चखकर बताओ दीदी, नमक ठीक है ना?”
प्रत्यूषा ने बिना सोचे दाल चखी,
“ठीक है…”शिवांगी चौंककर बोली,
“अरे इतने जल्दी?? ठीक से चखा भी नहीं!”
प्रत्यूषा का चेहरा बस शांत था…एक खतरनाक तरह की शांति
जैसे तूफ़ान से पहले का सन्नाटा।मिताली उसके पास आईं और उसके बालों पर हाथ फेरा,“बेटा, हम सब तेरे साथ हैं। शादी जल्दी तय हो गई है तो क्या,,,
इंसान धीरे-धीरे सब सीख जाता है…
और शिवांश अच्छा है, जिम्मेदार भी है।”,,,,,प्रत्यूषा की आँखें नम हो आईं, पर वह फिर भी कुछ नहीं बोली।
शिवांगी ने माहौल हल्का करने की कोशिश की,
“दीदी… कल बुआ जी ने कहा था कि शिवांश जीजू थोड़ा रफ-टफ है… बुलेट बहुत तेज चलाते हैं…
पर दिल के बहुत अच्छे हैं।
वैसे आपकी पहली मुलाकात अभी ठीक से हुई नहीं… मिलोगी तो शायद आपको भी अच्छा लगे।”
प्रत्यूषा ने धीरे से पूछा,
“वो… फिर आएँगे? मिलने?”शिवांगी खिखियाई,
“अरे हाँ! बुआ जी ने कहा था कि वो कल या परसों आ सकते हैं।
शादी की बाकी बातों के लिए… और आपको देखने के लिए भी।”
उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।
मिताली बोलीं,“डर मत बे ,,,सब अच्छे से हो जाएगा।”
लेकिन प्रत्यूषा ने महसूस किया अब उसका निर्णय, उसकी राय…कुछ भी मायने नहीं रखती।उसके हाथ थरथराए…
गिलास काँपते हुए प्लेट से टकराया।मिताली ने पकड़ा,
“अरे… क्या हुआ?”
प्रत्यूषा ने सिर्फ इतना कहा,
“कुछ नहीं…”और वापस खिड़की की ओर चली गई, वही जगह जहाँ से वो अक्सर आकाश को ताकती थी जैसे वहाँ कोई जवाब छुपा हो।रसोई से उसकी धीमी जाती परछाईं को दोनों माँ-बेटी देखती रहीं।
शिवांगी ने धीमे स्वर में कहा,
“मम्मी… दीदी खुश तो नहीं लग रही।”
मिताली ने लंबी साँस लेकर कहा,
“लड़कियाँ शादी से पहले घबराती हैं…
सब ठीक हो जाएगा।”
पर………
उन्हें कहाँ पता था कि प्रत्यूषा की चुप्पी सिर्फ घबराहट नहीं…
एक गहरी, अनकही पीड़ा थी।,,,,
,,,,
बस मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टरमें,,,, और माफ करना मैं कल चैप्टर पब्लिश नहीं किया,, कमेंट में जरूर बताइएगा कैसी लगी,,, पर मेरी दूसरी कहानी को भी सपोर्टकरिए,,,,
Hello everyone aap sab kaise hain jarur batayiyega aaj ka chapter shuru karte hain aur comment mein jarur likhna ki aaj ka chapter kaisa laga aapko
……….।।।
।।। सुबह की ठंडी हवा कमरे में हल्का सा पर्दा हिलाते हुए अंदर आ रही थी दो दिन हो चुके थे शादी की डेट फिक्स हुए और घर में लगातार बातें चल रही थीं तैयारियों की भागदौड़ की रिश्तेदारों के फोन की लेकिन प्रत्यूषा का मन कहीं खो गया था आज अचानक उसने फैसला लिया कि वह कॉलेज जाएगी शायद आखिरी बार शायद अपने आप को समझाने के लिए कि सब ठीक है शायद खुद को यह यकीन दिलाने के लिए कि उसकी जिंदगी अब कितनी तेजी से बदलने वाली है
वह बहुत चुपचाप तैयार हुई अपने दुपट्टे को सेट किया और आईने में खुद को लंबे समय तक देखती रही उसके चेहरे पर वही उदासी वही डर वही उलझन जैसे कोई उसको खरोंच रही हो लेकिन उसने किसी तरह खुद को संभाला और बैग उठाकर बाहर आंगन से निकल गई और बिना किसी से कुछ बोले सीधे गेट की तरफ बढ़ गई
शिवांगी ने उसे जाते हुए देखा और चौंक गई दीदी कॉलेज
प्रत्यूषा ने बस सिर हिलाया हाँ
शिवांगी ने कहा
अरे आज जाने का मन कैसे कर गया आपका कल तो आप बोल रही थीं कि नहीं जाओगी
प्रत्यूषा धीमी आवाज में बोली
बस ऐसे ही
उसके कदम आज बहुत धीमे थे जैसे हर कदम उसे यह याद दिला रहा हो कि यह तभी तक है बस आज तक है उसके बाद वह लड़की नहीं रहेगी जो सिर्फ पढ़ती है सपने देखती है दोस्तों से मजाक करती है कॉलेज की गलियों में हँसते हुए घूमती है आज वह कुछ टूटे हुए दिल के साथ कॉलेज जा रही थी
रास्ते में चलते हुए उसे ऐसा लगा जैसे हवा भी उसमें फुसफुसा रही हो कि ये दिन आखिरी हैं हर मोड़ हर ईंट हर पेड़ उसे पहचान रहा था उसकी चुप्पी को महसूस कर रहा था
कॉलेज का बड़ा नीला गेट दिखा तो उसका कदम एक पल के लिए रुक गया
उसने खुद से पूछा
क्या मैं तैयार हूँ
पर जवाब फिर वही सन्नाटा
गेट के अंदर कदम रखते ही कुछ छात्रों की जोर से आवाजें कानों में गूँजने लगीं
अरे अरे ये देखो प्रत्यूषा आ गई
भाई सुना है इसकी शादी हो रही है
इतनी जल्दी
पढ़ाई छोड़ देगी क्या अब
ससुराल जाएगी क्या
जीजाजी कैसे हैं
कौन है लड़का
कितने साल का है
और फिर वही बच्चों की बेहूदा हँसी
जिसे सुनकर उसका दिल अंदर तक काँप गया
वह जैसे-तैसे क्लास की ओर चली पर हर कदम पर कोई न कोई उसके पास आता कोई हँसता कोई चिढ़ाता कोई ताना मारता
अरे तूने ही बोला था ना तू IAS बनेगी अब क्या बनेंगी भाभी जी
तेरी उम्र ही क्या है शादी की
इतना जल्दी क्यों कर रही है
कोई मजबूरी है क्या
उसकी आँखें भर आईं लेकिन उसने सिर झुका लिया किसी को जवाब देना उसके बस की बात नहीं थी वह बस चुपचाप आगे बढ़ती रही उसी चुप्पी में जिसमें वह पिछले दो दिनों से गुम थी
क्लास में प्रवेश करते ही अचानक सन्नाटा छा गया हर लड़की हर लड़का उसे ऐसे देखने लगा जैसे वह कोई अजीब चीज हो जैसे उसकी जिंदगी का फैसला उनका मनोरंजन हो
उसकी सबसे करीबी दोस्त रूही तुरंत उसके पास आई
अरे तू पागल है क्या अचानक शादी
तूने बताया भी नहीं
तू खुश भी नहीं लग रही है
क्या सब ठीक है
प्रत्यूषा की आँखें बहने को तैयार थीं लेकिन उसने खुद को रोका
उसने बस इतना कहा
बस… घर में सबने फैसला कर लिया
रूही ने हैरानी से कहा
पर तू अभी पढ़ रही है न तू खुद क्या चाहती है यह किसी को फर्क नहीं पड़ता
प्रत्यूषा चुप हो गई उसकी नज़रें जमीन पर टिक गईं
रूही ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा
प्रत्यूषा देख मेरी बात सुन शादी कोई छोटी चीज नहीं है ये जिंदगी का फैसला है और तू खुद को ही नहीं सुन रही है
कुछ तो बोलना चाहिए ना घर वालों को
प्रत्यूषा ने डरी हुई आवाज़ में कहा
मैंने कोशिश की थी पर…
सबने कहा लड़की की जिंदगी शादी में ही बसती है और मैं क्या बोलती
सबने कहा कि लड़का अच्छा है जिम्मेदार है सब देख लिया है बस अब तुझे हाँ करनी है
और… मैने हाँ कह दी रूही
क्या करती
कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा
रूही को उसकी आवाज में वह गहराई वाला दर्द सुनकर खुद भी आँसू आ गए
तू खुश नहीं है न
प्रत्यूषा ने सिर हल्का सा हिलाया
पता नहीं… शायद
मेरे अंदर कुछ कहता है कि सब गलत है
पर बोलने की हिम्मत नहीं होती
तभी क्लास के पीछे बैठे दो लड़कों ने ज़ोर से कहा
ओये भाभी जी आओ ना इधर
हम भी देख लें कौन सा लकी इंसान आपको ले जा रहा है
सारी क्लास हँसने लगी
प्रत्यूषा के कान जलने लगे पर उसने कोई जवाब नहीं दिया
रूही ने गुस्से से कहा
चुप रहो तुम लोग ये शादी का मजाक नहीं है किसी के दिल का मामला है
लड़के फिर हँसे
अरे कौन सा हम गलत बोले भाभी जी तो बन ही रही है
प्रत्यूषा ने बस अपनी कुर्सी पर बैठने की कोशिश की लेकिन उसकी टांगें काँप रही थीं उसका दिल डर से धड़क रहा था उसका मन चीख रहा था पर आवाज नहीं निकल रही थी
क्लास में उसके शिक्षक आए सर ने उसे देखकर पूछा
प्रत्यूषा बेटा सबने सुना कि तुम्हारी शादी तय हो गई है
क्या ये सही है
प्रत्यूषा धीरे से बोली
हाँ सर
सर बोले
लेकिन तुम्हारी पढ़ाई
तुम अच्छे नंबर लाती थीं तुमने खुद कहा था कि तुम पढ़ना चाहती हो आगे
तुमने सोचा कैसे छोड़ दोगी ये सब
तुम्हारे पास अभी उम्र है बेटी
प्रत्यूषा की आँखें लाल हो गईं वह बोली
सर मैंने… बहुत कोशिश की
मेरी कोई नहीं सुनता
सर ने गहरी साँस लेकर कहा
अगर कभी भी जरूरत पड़े बात करना चाहो तो मैं उपस्थित हूँ
लेकिन ये फैसला…
यह तुम्हारी जिंदगी है बेटी
पर कॉलेज में तो किसी को परवाह ही नहीं थी
किसी के लिए उसकी शादी एक गपशप थी किसी के लिए मजाक किसी के लिए टीसटिंग का मौका
दिन भर यही चलता रहा
कभी लड़कियाँ कहतीं
अरे दिख तो रही नहीं खुश लग तो रहा नहीं कि शादी हो रही है
कहीं और पसंद तो नहीं था
या घर वालों ने मजबूर किया
कभी लड़के कहते
भाभी जी भाभी जी
कह दी ना कोई बात
हम जीजू को बता देंगे
और हर बार प्रत्यूषा का चेहरा और ज्यादा बुझता गया
वह जैसे-तैसे दिन काटती रही
लंच में भी चुप बैठी
कैंटीन में सब उसे देखकर कानाफूसी करते
अरे देखो ना वही लड़की जिसकी शादी हो रही है
मुझे तो बेचारी लग रही है
अरे रहने दो यार ये खुद मान गई होगी क्या बेचारी
देखो उसके कपड़े भी कितने पुराने से हैं
उसकी शादी जल्दी हो ही रही है
हर बात पर हँसी
हर बात पर ताना
जैसे उसकी जिंदगी किसी खेल की तरह हो
क्लास खत्म होने के बाद रूही ने उसे रोक लिया
प्रत्यूषा प्लीज आखिरी बार बता क्या तू सच में ये सब चाहती है
क्या तू खुश है
क्या तू ये सब अपनी मर्जी से कर रही है
प्रत्यूषा की आँखों में आँसू भर आए
उसने धीरे से कहा
रूही…
मेरी मर्जी पूछने वाला कोई नहीं है
मैं… मैं बस बह रही हूँ
सब कहते हैं शादी कर लो अच्छे घर में जा रही हो
इसलिए मैं…
उसकी आवाज टूट गई
शायद ये मेरा आखिरी दिन है कॉलेज का
रूही ने उसे गले लगा लिया
तू अकेली नहीं है
अगर कभी भी कुछ गलत लगे तो मुझे बता देना
मैं तेरे साथ हूँ
प्रत्यूषा ने हल्की मुस्कान दी
बहुत हल्की
टूटी हुई
और फिर वह आखिरी बार कॉलेज के गेट से बाहर आई
उसी तरफ जिससे वह एक सपनों वाली लड़की बनकर अंदर गई थी
और आज
एक मजबूर लड़की बनकर बाहर निकल रही थी
उसने पीछे मुड़कर कॉलेज को एक आखिरी बार देखा
जैसे अपने पुराने जीवन को अलविदा कह रही हो
उसकी पलकों से एक आँसू नीचे गिरा
और वह धीमे कदमों से घर की ओर चल दी
जहाँ उसकी किस्मत तय हो चुकी थी
जहाँ सवाल करना मना था
जहाँ उसका दिल किसी को दिखता नहीं था
और उसके इस कॉलेज के आखिरी दिन को
कोई समझ न पाया
सिवाय उसकी टूटती साँसों के
जो बस खामोशी में कह रही थीं
क्या मैं सच में तैयार हूँ
……….
Aapke liye Bus itna hi milte Hain next chapter mein
आप सभी का स्वागत है हमारे नए चैप्टर में।।।
।।
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शादी का दिन अब बस कुछ ही दिनों की दूरी पर था और पूरे घर में हर तरफ हलचल थी सजावट की खुशबू थी शोर था लोगों का आना जाना था लेकिन इन सबके बीच प्रत्युषा अजीब सी खामोशी में घिरी रहती थी जैसे उसके भीतर कुछ टूट गया हो जैसे उसके आसपास हजारों आवाजें हों पर उसके मन में एक भी नहीं हर सुबह वह उठती थी और आईने में खुद को देखती थी तो उसे अपनी ही आँखों में डर दिखाई देता था उसे लगता था जैसे वह धीरे धीरे किसी ऐसे रास्ते पर धकेली जा रही हो जिसे उसने कभी चुना ही नहीं और हर दिन जैसे कोई उसके सपनों को थोड़ा थोड़ा करके तोड़ रहा हो उसके हौसलों को कुचल रहा हो और उसकी मुस्कान से रोशनी छीन रहा हो,,,,,,
दादी हर वक्त उसके चारों ओर घूमकर तैयारियों पर चर्चा करती थी कहती कि अब बस दो ही दिन बचे हैं सबको बुलावा भेज दिया है पंडित जी ने मुहूर्त भी पक्का कर दिया है घर में खुशियां होनी चाहिए हमारी लड़की की शादी है लेकिन प्रत्युषा के भीतर खुशी का एक कण भी जागता नहीं था वह बस चुपचाप सुनती रहती थी सिर हिलाती रहती थी जैसे उसका कोई अस्तित्व ही न हो जैसे वह बस शरीर भर रह गई हो आत्मा कहीं और खो चुकी हो,,,,,,,,,,,,,,
रातों में उसे नींद नहीं आती थी वह अपनी छत को घूरती रहती थी उसे लगता था जैसे हर ईंट से कोई सवाल टपक रहा है कोई शिकायत कोई पुकार कि क्यों तुम इतनी चुप हो क्यों तुम लड़ी नहीं क्यों तुमने सब स्वीकार कर लिया क्या यही सपना था तुम्हारा कि तुम किसी के डर के साथ जीने लगो किसी की कठोर आवाज में कैद हो जाओ किसी ऐसे इंसान की जिंदगी का हिस्सा बन जाओ जो तुम्हारी आत्मा का दर्द तक नहीं समझता लेकिन हर बार जब वह हिम्मत जुटाने की सोचती थी कोई कदम उठाने की कोशिश करती थी तभी उसके कानों में वही आवाज गूंज जाती थी वही सख्त शब्द जो उसे हमेशा उसकी जगह दिखा देते थे उसे बताते थे कि उसकी जिंदगी पर उसका अधिकार कितना कम है और दूसरों का कितना ज्यादा,,,,,,,,,
सुबह परिवार वाले उसके कमरे में आए तो उसे साड़ी पहनाई जाने लगी मेहंदी की लिस्ट बनाई जा रही थी संगीत के लिए गानों की बात हो रही थी पर प्रत्युषा को ऐसा लग रहा था जैसे सबकी बातें उसके बहुत दूर से आ रही हैं जैसे वह यहाँ हो ही नहीं जैसे वह कहीं और खड़ी हो जहां तक किसी का हाथ नहीं पहुँच सकता उसके अंदर बस एक ही भावना बार बार उठती थी एक भारी घुटन इतनी गहरी कि उसे लगता था कि अगर वह बोल दे अगर वह रो दे अगर वह सच कह दे तो पूरा घर उसकी इस हालत को देख लेगा लेकिन उसके होंठों पर ताला लगा हुआ था वह वही ताला था जो डर ने लगाया था और जिसे किसी भरोसेमंद हाथ ने कभी खोला ही नहीं,,,,,,
संगीत का दिन आते आते रिश्तेदार घर भरने लगे थे हर तरफ हंसी थी रंग थे गाने थे लेकिन प्रत्युषा की आँखें हर चीज को फीका दिखाती थीं उसे सब कुछ धुंधला दिखाई देता था मानो वह उस खुशी का हिस्सा ही न हो वह बस औपचारिकता में मुस्कुराने की कोशिश करती लेकिन उसकी मुस्कान के कोने कांपते थे और उसकी नजरें बार बार नीचे झुक जाती थीं जब भी कोई पूछता कि क्या तुम खुश हो वह बस एक हल्का सा सिर हिलाती और मन में कोई भारी पत्थर और गहरा धंस जाता,,,,,,,,,,
रात को जब वह अकेली हुई तो उसके अंदर जमा हुआ डर बाहर आने लगा उसकी साँसें तेज़ होने लगीं दिल धड़कने लगा और उसे लगा जैसे कोई उसके कान में फिर वही आवाज फेंक रहा है वही जो उसके सपनों को रोज तोड़ देती है वह खुद को fetal position में समेटकर बैठ गई और धीरे से बुदबुदाई कि मैं क्या करूँ मुझसे ये सब क्यों करवाया जा रहा है मेरी जिंदगी मेरी इच्छा मेरी आवाज कहाँ चली गई अगर मैं आज भी चुप रही तो क्या बचेगा मेरे पास कल वह सोचते सोचते अपने बालों में हाथ फेरती रही लेकिन कोई जवाब नहीं आया,,,,,,,,,
अगली सुबह तैयारियों का जोर और तेज़ था लेकिन प्रत्युषा की चाल धीमी थी उसका चेहरा सूजा हुआ था उसकी आँखें बहुत सारी अनकही बातों से भरी थीं मंगनी की रस्म के लिए जब उसे नीचे बुलाया गया वह सीढ़ियों पर रुक गई क्योंकि नीचे वही व्यक्ति खड़ा था जिससे उसकी शादी होने वाली थी वह बड़ी शांति से उसे देख रहा था लेकिन उसकी आँखों में एक ठंडापन था एक ऐसी कठोरता थी जिसने प्रत्युषा के दिल को और कस दिया वह सीढ़ियों से नीचे उतरते उतरते जैसे और छोटी होती जा रही थी उसका आत्मविश्वास जमीन में गिरता जा रहा था,,,,
वह उसके कान के बहुत पास आकर धीमे से बोला तुम ज्यादा सोचो मत बस वही करो जो कहा जाए प्रत्युषा की सांस वहीं रुक गई जैसे किसी ने उसका गला कस दिया हो वह जवाब देना चाहती थी पर उसके होंठ नहीं खुले वह बस सिर झुकाकर आगे बढ़ गई उसके इस एक वाक्य ने उसके भीतर के सारे टूटे हुए सपनों को फिर से और बुरी तरह चीर दिया,,,,,,
घर के हर कोने में जगमगाहट थी पर उसके भीतर अंधेरा था हर तरफ आवाजें थीं पर उसके मन में सन्नाटा था हर कोई कह रहा था कि खुश रहो पर खुशी उसके भीतर कहीं नहीं थी वह बस सवाल करती रही कि आखिर कब कोई उसे समझेगा कब कोई पूछेगा कि वह क्या चाहती है उसके सपने क्या थे उसकी मर्जी क्या थी लेकिन हर दिन हर पल वही महसूस होता रहा कि जैसे कोई उसकी दुनिया को एक एक रेखा में तोड़ता जा रहा है और वह खुद को पकड़ने की कोशिश में लगातार कमजोर होती जा रही है,,,,,,,,
जैसे जैसे शादी का दिन नजदीक आता गया प्रत्युषा की नींद कम होती गई उसकी आँखों में डर बढ़ता गया और उसका दिल लगातार यह कहता रहा कि शायद अभी देर नहीं हुई शायद अभी वह कुछ कर सकती है शायद अभी भी कोई रास्ता बचा है लेकिन उसके कदमों में बंधी अदृश्य जंजीरें उसे वहीं रोक देतीं और वह फिर एक बार गहरी सांस लेकर खुद को चुप रहने पर मजबूर कर देती..............
....bye
...... Milte Hain next chapter mein bhulna mat mujhe..... Dhairya ko.... okay..
शादी का दिन आखिरकार आ ही गया था और पूरे घर में सुबह से ही जोरदार हलचल थी हर तरफ रंगोली की खुशबू थी फूलों की महक थी और लोग आते जाते हुए एक दुसरे से कह रहे थे आज बहुत ही शुभ दिन है और हमारी प्रत्युषा की शादी है पूरा आँगन चमक रहा था और दादी बार बार कह रही थीं जल्दी करो सब तैयारियां पूरी हो जानी चाहिए आज कोई कमी नहीं रहनी चाहिए तभी मासी बोली अरे भाभी सब हो जाएगा आप टेंशन मत लीजिए लेकिन काश कोई पूछता कि असल टेंशन किसके दिल में थी
प्रत्युषा कमरे में चुपचाप बैठी दुल्हन के कपड़े पहनी थी उसकी आँखें काजल से भरी थीं पर अंदर की थकान उन्हें फीका कर रही थी तभी रानी चाची हंसते हुए अंदर आईं और बोलीं अरे वाह हमारी गुड़िया तो बिलकुल अप्सरा लग रही है और सब लोग कहेंगे कि कैसी सुंदर जोड़ी बनी है लेकिन प्रत्युषा ने धीरे से सिर्फ इतना कहा चाची बस तैयार कर दिया है उन्होंने चाची ने उसके चेहरे पर उदासी देखी और पूछा क्या हुआ बेटा खुश नहीं हो क्या पर प्रत्युषा बस हल्के से मुस्कुराई जैसे मजबूरी की मुस्कान हो
तभी दादी ने आवाज़ लगाई चलो सब लोग निकलो बारात की तरफ से भी खबर आ गई है और हमें मंदिर पहुँचने में देर नहीं करनी है सबने मिलकर प्रत्युषा को उठाया और धीरे से बाहों में थामकर बाहर ले आए कारों की लंबी लाइन लगी थी और सब कह रहे थे चलो चलो मुहूर्त निकल जाएगा रास्ते में मामा बोले प्रत्युषा बेटा आज तुम्हारी जिंदगी का सबसे सुंदर दिन है तुम खुश रहना और हाँ मुस्कुराना मत भूलना इस बात पर प्रत्युषा ने बस धीमी आवाज में कहा कोशिश करूँगी मामा
मंदिर पर पहुँचते ही सबके कदम रुक गए क्योंकि मंदिर को आज जैसे किसी स्वर्ग सा सजाया गया था फूलों की लड़ियाँ हर तरफ लटकी थीं बड़े बड़े दीये जल रहे थे और हवा में कपूर और चंदन की मीठी महक थी मामी ने कहा वाह क्या सजावट है सच में आज का दिन यादगार बन जाएगा तभी दूल्हे की तरफ से कोई बोला शिवांश जी आ गए हैं और सब लोग थोड़ा पीछे हट जाएं
शिवांश सफेद शेरवानी में खड़ा था और सब उसकी तारीफ कर रहे थे पर जब उसकी नजर प्रत्युषा पर गई तो वह धीमे स्वर में बोला तैयार हो तुम प्रत्युषा ने अपनी आँखें नीचे कर लीं और बोली जी लेकिन उसके दिल में कुछ और ही चल रहा था
पंडित जी ने सबको बुलाया और कहा वर वधू को मंडप में ले आइए मुहूर्त शुरू हो चुका है सब लोग बैठ गए ढोलक और शहनाई की आवाज़ें धीरे धीरे तेज होने लगीं और पूरा माहौल पवित्रता से भर गया पंडित जी मंत्र पढ़ते जा रहे थे और परिवार वाले तस्वीरें खींचते जा रहे थे तभी दादी ने कहा देखो कितनी सुंदर लग रही है मेरी पोती और उसके पास बैठी बुआ बोली बिल्कुल लक्ष्मी लग रही है
शिवांश ने धीरे से प्रत्युषा के कान के पास झुककर कहा सब ठीक है न तुम बहुत चुप हो प्रत्युषा ने हल्की सी साँस लेते हुए कहा बस थोड़ा मन भारी है शिवांश ने कहा शादी का दिन है थोड़ा नर्वस होना तो चलता है लेकिन प्रत्युषा मन में बोली नर्वस मैं नहीं हूँ डर मैं हर दिन से रही हूँ पर उसने कुछ नहीं कहा
मंत्रों की आवाज के बीच पंडित बोले अब वरमाला की रस्म होगी दोनों को एक दुसरे को वरमाला पहनानी है सब लोग खड़े हो गए और तालियाँ बजाने लगे रानी चाची बोली अरे जल्दी करो फोटो खींचनी है इंस्टा पर डालनी है तभी प्रत्युषा थोड़ी धीरे से उठी और वरमाला पकड़ी शिवांश ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया और बोला आओ मैं संभाल लेता हूँ सब कहते रहे कितनी प्यारी रीत है लेकिन हर प्यारी चीज़ का एहसास प्रत्युषा के दिल तक नहीं पहुँच पा रहा था
वरमाला के बाद पंडित बोले अब सात फेरों की तैयारी कीजिए और सबको थोड़ा शांत रहना चाहिए सबने अपनी जगह ली और दूल्हा दुल्हन अग्नि के पास खड़े हो गए जब पहला फेरा शुरू हुआ तभी मामा बोले बेटा ये सबसे पवित्र पल है बस मन में भगवान का नाम लेना प्रत्युषा ने मन ही मन कहा भगवान अगर तुम मेरी आवाज सुनते हो तो मेरे दिल की थकान कम कर दो
फेरे एक एक करके पूरे हुए पंडित बोले अब सिंदूर की रस्म होगी सबकी आँखें उत्सुकता से भर गईं दादी बोली ये पल तो हर माँ बाप के लिए सबसे सुखी होता है शिवांश ने सिंदूर उठाया और बहुत शांत चेहरे से प्रत्युषा की मांग में भर दिया और सब लोग खुशी से चीखने लगे वाह बहुत खूब बधाई हो बधाई हो
फिर मंगलसूत्र की रस्म होई और सबने पंडित जी के शब्द दोहराए जैसे यह रिश्ता हमेशा अटूट रहे लेकिन प्रत्युषा के भीतर शब्द टूटते हुए लगे उसे लगा जैसे कोई अदृश्य हाथ उसके सपनों को आखिरी बार मसल रहा है
मंत्रों के खत्म होते ही पंडित बोले शादी पूर्ण हुई सब लोग आशीर्वाद दें सारे रिश्तेदार आगे आए कोई बोला खुश रहना बेटी कोई बोला दूल्हा दुल्हन की जोड़ी सलामत रहे और कोई बोला यह तो सबसे सुंदर शादी थी लेकिन प्रत्युषा मुस्कुराती रही जैसे उसके चेहरे पर सिर्फ एक नकाब रह गया हो
शिवांश के दोस्त आए और बोले भाई finally शादी हो गई यार कैसे लग रहा है और शिवांश ने हँसकर कहा अच्छा ही है अब जिंदगी नई शुरू होगी और इधर प्रत्युषा की सहेलियाँ बोलीं तुझे कैसी लग रही है शादी और प्रत्युषा ने धीरे से कहा शायद ठीक ही है
शाम को सब लोग भोजन हॉल की तरफ चले गए और मेहमान कहते जाते थे खाना कितना स्वादिष्ट है मिठाई तो लाजवाब है और लोग plates लेकर लाइन में लगते जा रहे थे और हर तरफ बस उठता हुआ धुआँ था भाप थी और खुशबू थी लेकिन प्रत्युषा को खाना देखते ही कुछ भी महसूस नहीं हुआ जैसे स्वाद उसके भीतर पहुँचता ही नहीं था बुआ ने कहा बेटा कुछ खाओ तुमने सुबह से कुछ नहीं खाया प्रत्युषा बोली बस भूख नहीं है बुआ बोली आज इतना बड़ा दिन है कुछ तो खा लो पर उसने सिर हिला दिया
दूर से शिवांश आया और बोला खाना नहीं खा रही हो क्या हुआ प्रत्युषा ने कहा बस दिल नहीं कर रहा शिवांश ने कहा दिन भर की थकान है शायद पर अब से हम दोनों साथ हैं सब ठीक हो जाएगा पर यह वाक्य सुनकर प्रत्युषा के दिल में एक चुभन उठी उसने सोचा कि क्या सच में सब ठीक होगा
पूरी शादी शोर खुशी गानों और लोगों की दुआओं में बीती लेकिन हर पल के बीच प्रत्युषा के भीतर एक टुकड़ा गिरता जा रहा था उसके सपनों का उसके दिल का और उसे ऐसा लगा जैसे हँसी के बीच उसका अपना मन कहीं रोता हुआ पड़ा हो जिसे कोई सुन नहीं पा रहा था
,,,,,, स्वागत है नएअध्याय में,,,,,,,,,
।मंदिर में शादी पूरी हो चुकी थी और अब माहौल अचानक से बदलने लगा था ढोल की आवाज़ धीमी पड़ गई थी लोग खाने से हटकर गाड़ी के पास इकट्ठा होने लगे थे और हर चेहरे पर एक अलग सी भावना थी कोई खुश था कोई उत्साहित था लेकिन एक ,,,,
चेहरा ऐसा था जो सबके बीच होते हुए भी अकेला था और वह थी प्रत्युषा जो अपने लाल दुल्हन के लिबास में खड़ी सबको जाते हुए देख रही थी जैसे उसे कुछ समझ ही न आ रहा हो कि इस शोर के बीच उसके अंदर कैसी खामोशी छाई है
दादी आगे बढ़ीं और बोलीं अरे कोई मुँह मीठा कराओ अब विदाई की तैयारी करो उठाओ ये नारियल और ये अक्षत भी ले चलो तभी मामी ने कहा भाभी थोड़ा रुको अभी लड़की से सब लोग मिलने देना दादी ने सिर हिलाया और बोलीं हाँ हाँ बिल्कुल मिल लो सब उससे
तभी रानी चाची दौड़ती हुई आई और बोलीं अरे मेरी प्यारी गुड़िया जरा इधर तो आ तुझे ,,,,,,
गले लगाऊं आज से तू हमारे घर की लक्ष्मी बनी है ये सुनते ही प्रत्युषा की आँखों में फिर हल्की चमक आई पर उसके दिल में कोई आवाज नहीं उठी वह बस चुपचाप चाची के गले लग गई तभी चाची ने भावुक होकर कहा खुश रहना बेटा और अगर कभी दिल भारी लगे तो फोन जरूर कर देना हम सब यहीं हैं तेरे लिए
शिवांगी दौड़कर उसके पास आई और बोली दीदी तुम सच में जा रही हो यार मेरा दिल नहीं मान रहा और उसने रोते हुए कहा तुम मेरे बिना,,,,,,,,
कैसे रह लोगी दीदी प्रत्युषा ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा मैं यहीं हूँ पगली रोज फोन करूँगी तू चिंता मत कर पर उसकी आवाज खुद कांप गई जैसे खुद को ही मनाने की कोशिश कर रही थी
राम जी उसके पास आए और बोले बेटा आज तुझे कोई दुख नहीं होना चाहिए ये सब रीत रिवाज हैं और हर लड़की को निभाने पड़ते हैं तेरा घर अब और बड़ा हो गया है वहाँ भी खुश रहना और सबका मन जीतना प्रत्युषा ने सिर झुकाकर कहा जी पापा पर वो जी कहने में भी एक डर छिपा था जिसे केवल उसका दिल ही जानता था
मिताली जी ने उसे कसकर पकड़ लिया जैसे छोड़ना ही नहीं चाहती हों और बोलीं मेरी बच्ची तूने हमेशा हमारी इज्जत रखी आज जा रही है तो बस इतनी सी दुआ है कि तेरी जिंदगी में कभी कोई दुख न आए और अगर आए भी तो भगवान तुझे उससे लड़ने की ताकत दें प्रत्युषा ने अपनी माँ से लिपटते हुए कहा मैं आपसे दूर कैसे रहूँगी माँ मैं तो आपके बिना कुछ भी नहीं हूँ और उसकी आवाज टूटती चली गई
तभी पंडित जी ने कहा विदाई का मुहूर्त निकल रहा है दूल्हे दुल्हन को कार की तरफ ले आइए सब लोग धीरे धीरे गाड़ी की तरफ बढ़ने लगे आवाजें बढ़ने लगीं पर प्रत्युषा के कानों में सब धुंधला होने लगा जैसे दुनिया दूर जाती जा रही हो और मन की धड़कन तेज होती जा रही हो
शिवांश आगे खड़ा था थोड़ी उलझन लेकर उसने धीरे से कहा अगर चाहो तो मैं कुछ देर रुकवा दूँ पर प्रत्युषा ने सिर हिलाकर कहा नहीं सब जैसे,,,,,
चल रहा है वैसा रहने दो शायद यही होना था शिवांश ने उसकी आँखों में देखा लेकिन उसके मन की गहराई वह भी नहीं समझ पाया
राह में दादी ने कहा अरे,,,,,, बेटा एक बार सबको प्रणाम कर ले यही रिवाज है और सब आशीर्वाद दे रहे हैं प्रत्युषा एक एक करके सबके पैरों को छूने लगी हर कोई उसे आशीर्वाद दे रहा था कोई कह रहा था खुश रहो कोई कह रहा था खूब फलो फूलो कोई कह रहा था ये दिन यादगार रहेगा पर प्रत्युषा के भीतर जो टूट रहा था उसे कोई नहीं देख पा रहा था,,,,,,,,
तभी कार के पास से किसी ने आवाज लगाई अरे जल्दी करो मुहूर्त निकल रहा है पैरों में घुँघरू सी आवाज होती है विदाई के वक्त और दिल में कहीं चुभन सी उठती है ठीक वैसा ही हो रहा था प्रत्युषा धीरे धीरे चल रही थी जैसे हर कदम उसे उसका पुराना घर पीछे छोड़ने का एहसास दिला रहा हो
शिवांगी फिर से दौड़ी आई और बोली दीदी रुको मुझे तुमसे एक बार और गले लगना है और वह उससे कसकर लिपट गई और फूट फूटकर रोने लगी बोली तुम चली जाओगी तो मैं किससे लड़ूँगी किससे शिकायत करूँगी तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो मेरी दीदी हो मैं कैसे रहूँगी दीदी प्रत्युषा की आँखें भर आईं और उसने काँपती आवाज में कहा मैं भी कैसे रहूँगी पगली पर जाना तो पड़ेगा,,,,,
राम जी ने कहा बेटा अब चलने का समय हो गया है और उन्होंने कार का दरवाज़ा खोला तभी मिताली जी फिर रो पड़ीं और बोलीं मेरी बच्ची एक बार मेरी तरफ देख तो ले प्रत्युषा पलटी और उस पल उसके दिल ने जैसे खुद को ज़ोर से भींच लिया वह माँ की बाहों में गिर गई और बोली माँ मैं आपको छोड़कर नहीं जाना चाहती पर उसकी बात सुनकर सबकी आँखें नम हो गईं मिताली जी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा बेटा हर बेटी को जाना पड़ता है और तू भी जाएगी लेकिन तू हमेशा हमारे दिल में रहेगी
दादी ने कहा बहुत रोना ठीक नहीं बेटा विदाई का पल है मजबूत बनो लेकिन वह खुद भी अपनी आँखें पोंछ रही थीं
आखिरकार प्रत्युषा कार के पास खड़ी हो गई और एक बार अपने घर की तरफ देखने लगी दीवारें वही थीं दरवाज़ा वही था आँगन वही था पर आज सब उसे अजनबी सा लग रहा था जैसे सब उससे कह रहे हों कि अब तुम्हारा यहाँ कुछ नहीं रहा....,,,
उसने काँपते हुए कहा
सब लोग अपना ध्यान रखना मैं आप सबको बहुत याद करूँगी
मिताली जी बोलीं
खुश रहना बेटी भगवान तुम्हारे साथ रहेगा
शिवांगी चिल्लाई.....
दीदी जल्दी फोन करना वरना मैं मानूँगी नहीं
राम जी ने कहा
जाना ही जिंदगी का हिस्सा है बेटा हिम्मत रखना
प्रत्युषा ने आँसू पोंछे मुस्कुराने की कोशिश की पर मुस्कान टूटी हुई थी और उसने आखिरी बार कहा
अलविदा सबको… मैं चलती हूँ…
उसकी आवाज फट गई आँसू बहने लगे और उसने कार का दरवाज़ा पकड़कर अंदर बैठते हुए आखिरी बार अपने घर को देखा जैसे उस नज़र में उसका पूरा बचपन समा गया हो.....
कार धीरे धीरे आगे बढ़ी और मंदिर की भीड़ पीछे छूटने लगी लोग हाथ हिलाकर बाय कह रहे थे और प्रत्युषा खिड़की से बाहर देखते हुए रोती जा रही थी उसके आँसू उसके लाल दुपट्टे पर गिर रहे थे और कार उसे उसकी नई जिंदगी की तरफ ले जा रही थी एक ऐसी जिंदगी जिसे उसने चुना नहीं था पर अब उसे उसी को अपनाना था,,,,
तुम मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टरमें,,,, आप सभी अपना ध्यानरखिएगा,,,,
,,, हेलो रीडर ,,,,
गाड़ी धीरे धीरे रुकती है और सामने एक छोटा सा घर दिखाई देता है बस दो कमरे एक छोटा सा आंगन और दीवारों पर चढ़ी हुई मनीप्लांट की बेल जैसे घर ने खुद को अपने अंदाज़ में सजाया हो यह बड़ा नहीं था पर जितना भी था उतना ही सुकून देने वाला उतना ही अपनापन भरा
शिवांश ने गाड़ी का दरवाज़ा खोलते हुए कहा आओ प्रत्युषा ये है हमारा घर छोटा है पर हर खुशी इस घर में है और उसने हल्की मुस्कान के साथ उसका सामान उठाया
दरवाज़े पर शिवांश की माँ खड़ी थीं हल्की सी थाली और छोटे से दीये के साथ उन्होंने कहा आ जा बहू घर में कदम रख अच्छा समय लेकर आएगी तू और उनकी आँखों में सच्चा प्यार था कोई दिखावा नहीं कोई बनावट नहीं
प्रत्युषा ने कांपते हुए कदम आगे बढ़ाए और जैसे ही उसने पहला कदम अंदर रखा उसे महसूस हुआ कि यह घर उसके मायके जितना बड़ा नहीं था पर जितना भी था उसमें गर्माहट थी दीवारें पुरानी थीं पर उन पर परिवार की हंसी की परछाइयाँ टंगी थीं
अंदर से छोटे से कमरे में शिवांश के पापा निकले और बोले अरे आ गई बहू welcome बेटा घर भले छोटा है पर दिल से सब बड़े हैं यहाँ और कोई भी बात मन में मत रखना जो चाहो खुलकर बोलना
उसकी आंखों में हल्की नमी आ गई शायद पिछले कुछ दिनों में जितना डर चिंता और अकेलापन उसने महसूस किया था उसे उम्मीद न थी कि यहाँ सब इतने प्यार से मिलेंगे
उसी वक्त एक छोटी लड़की भागती हुई आई जो शायद शिवांश की बहन की बेटी थी उसने मासूमियत से कहा नई मम्मी आ गईं क्या और उसकी हंसी ने पूरा माहौल हल्का कर दिया प्रत्युषा के होंठों पर पहली बार हल्की मुस्कान आई
शिवांश की माँ उसे उसके कमरे में ले गईं कमरा छोटा था बस एक लकड़ी की अलमारी एक सिंगल बेड और खिड़की के पास रखा एक पुराना स्टूल मगर जैसे ही प्रत्युषा ने अंदर कदम रखा उसे महसूस हुआ कि यह सब सच्चा था साफ था बिना किसी दिखावे का था
शिवांश धीरे से बोला देखो घर छोटा है पर यहाँ कोई अकेला नहीं रहता सब एक दूसरे की परवाह करते हैं और मैं चाहता हूँ कि तुम यहाँ आराम से रहो किसी बात की टेंशन मत लेना
माँ ने उसके सामान को रखते हुए कहा बहू जब घर छोटा होता है तब मोहब्बत ज्यादा फैली होती है क्योंकि हर कोई एक दूसरे के पास रहता है और उसे संभालता है
प्रत्युषा ने धीरे से सिर हिलाया और अपने बैग को खोलते हुए बोली जी मम्मी
कमरे की खिड़की से हल्की हवा आ रही थी बाहर पड़ोस के बच्चे खेल रहे थे और पूरे घर में चूल्हे पर बनी दाल की खुशबू फैली हुई थी उसे लगा उसके बचपन का घर भी ऐसा ही था छोटा लेकिन हंसी मजाक से भरा हुआ
शाम तक परिवार ने उसके साथ बैठकर चाय पी सबने बात की हंसी मजाक किया और किसी ने भी उस पर कोई दबाव नहीं डाला
शिवांश की माँ ने उसका चेहरा देखते हुए कहा बहू तू बहुत थक गई होगी आज का दिन भारी था अब थोड़ा आराम कर ले
शिवांश पास आकर धीरे से बोला अगर किसी बात का डर लगे या मन भारी लगे तो मुझे बता देना मैं यहाँ हूँ और हमेशा रहूंगा
प्रत्युषा ने उसकी ओर देखा उसकी आंखों में पहली बार भरोसे की एक हल्की सी चमक उतरी उसे लगा शायद जिंदगी इतनी कठोर नहीं कि हर बार सिर्फ दुख दे शायद कहीं न कहीं एक नया मौका हमेशा मौजूद होता है
उसने धीरे से कहा धन्यवाद और यह शब्द उसके दिल से निकले थे
रात को जब वो छोटी सी खिड़की से बाहर देख रही थी उसका मन बोला हाँ यह घर छोटा है पर दिलों में बहुत जगह है और शायद यही घर मुझे फिर से जोड़ देगा
वह चुपचाप लेट गई और उसकी आँखों में यह सोचकर थोड़ी राहत आई कि उसकी नई जिंदगी शायद उतनी डरावनी नहीं होगी जितनी उसने सोचा था
यह छोटा सा घर प्यार से भरा हुआ था और वह पहली बार अपने अंदर थोड़ी शांति महसूस कर रही थी।।।।।।।।
।।।।।।
सुबह का समय था हल्की धूप खिड़की के पर्दों को चीरकर अंदर आ रही थी और प्रत्युषा एक पल को भी चैन से सो नहीं पाई थी शादी का थकान अभी भी शरीर में था लेकिन मन में चल रही उलझनों ने उसे चैन की नींद लेने ही नहीं दी तभी दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई और बुआ जी की मीठी आवाज़ सुनाई दी
बुआ जी प्रत्युषा बिटिया जाग गई क्या पहली रसोई की तैयारी भी करनी है न
प्रत्युषा जी बुआ जी अभी उठती हूँ
वह जल्दी से उठकर तैयार होने लगी हल्की गुलाबी रंग की साड़ी पहनकर उसने दुपट्टा अपने कंधों पर संभाला और धीरे से बाहर आ गई हॉल में कदम रखते ही उसने देखा कि घर छोटा था पर हर कोने में बस अपनापन बसा हुआ था दो कमरे का ये साधारण सा घर उसके लिए किसी महल से कम नहीं था क्योंकि पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि भले ही जीवन कठिन हो मगर यहाँ प्यार सच में मौजूद है
हॉल में बुआ जी ससुर जी पंखुड़ी दीदी और उनके हस्बैंड बैठकर बातें कर रहे थे
पंखुड़ी अरे भाभी आ गईं आप चलिए आज आपका दिन है हमारी नई बहू की पहली रसोई
ससुर जी मुस्कुराते हुए बिटिया घबराना मत जो भी बनाओगी घर का पहला भोजन हमेशा शुभ होता है
प्रत्युषा ने हल्की सी मुस्कान दी पर उसके अंदर अनगिनत भावनाएँ चल रही थीं वह रसोई में गई वहाँ का हर सामान बिल्कुल सादा पर साफ सुथरा और अपनापन लिए था उसने गैस जलाई और चाय का पतीला चढ़ाया तभी बुआ जी रसोई के दरवाजे पर टिककर बोलीं
बुआ जी देख बिटिया पहली रसोई में मिठाई जरूर बनाते हैं तुम सूजी का हलवा बना लो सबको पसंद भी आएगा
प्रत्युषा जी बुआ जी मैं कोशिश करती हूँ
बुआ जी कोशिश नहीं बिटिया तुम बहुत अच्छा करोगी तुमसे खुशबू में भी प्यार झलकता है
बुआ जी के इन शब्दों ने उसे थोड़ी हिम्मत दी उसने हलवा तैयार करना शुरू किया चाशनी की महक पूरे छोटे से घर में घुलने लगी तभी पंखुड़ी दीदी अंदर आईं
पंखुड़ी भाभी सच बताऊं इतना अच्छा महक तो हमारे घर में कभी नहीं फैला था आप तो सच में घर की लक्ष्मी जैसी लगती हैं
प्रत्युषा दीदी आप भी बस
पंखुड़ी अरे नहीं भाभी सच में अच्छा लग रहा है आपसे मिलकर
हलवा तैयार हो चुका था सब लोग मेज पर जमा थे प्रत्युषा के हाथ काँप रहे थे वह कटोरी में हलवा रखकर लाई
ससुर जी लो बेटी सबसे पहले मैं खाता हूँ और तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ
उन्होंने एक चम्मच हलवा खाया और उनका चेहरा खिल गया
ससुर जी अरे वाह बहु ये तो बहुत उम्दा बना है तुम तो सच में हाथ की जादूगर हो
बुआ जी मैंने पहले ही कहा था ये बिटिया दिल की भी मीठी है और हाथ की भी
सब हँसने लगे और रसोई की रस्म पूरी हो गई उसके बाद छोटे छोटे रीति रिवाज भी हुए पैर छूना तिलक लगाना और आशीर्वाद लेना सब कुछ सरल था पर हर आशीर्वाद के साथ जिम्मेदारी का भार भी महसूस हो रहा था
फिर धीरे धीरे मेहमान लौटने लगे पंखुड़ी दीदी और उनके हस्बैंड अपनी कार लेने बाहर निकले
पंखुड़ी भाभी ध्यान रखना खुद का भी और घर का भी
प्रत्युषा जी दीदी
दीदी के हस्बैंड कोई भी दिक्कत हो तो हमें फोन कर देना
ससुर जी भी जाने को खड़े हुए
ससुर जी बेटा तुम चिंता मत करना मैं हूँ ही यहीं पास में किसी भी वक्त बुला लेना
घर में सिर्फ बुआ जी रह गई थीं उन्होंने अपना बैग एक तरफ रखते हुए कहा
बुआ जी बिटिया मैं कुछ दिन तुम्हारे साथ रहूँगी ताकि तुम्हें घर में सेट होने में परेशानी न हो
प्रत्युषा बुआ जी आपको रुकने की जरूरत ही नहीं है आप बहुत थक जाएंगी
बुआ जी अरे पगली मैं तो यही चाहती हूँ कि नए घर में तुम अकेली महसूस न करो
बुआ जी ने उसके सिर पर हाथ फिराया और बोलीं
बुआ जी तुम जितनी नाज़ुक हो उतनी ही मजबूत भी बनना होगा बहू नया घर नई जिम्मेदारियाँ लेकिन मैं हूँ न
इन बातों को सुनकर प्रत्युषा की आँखें भीग गईं वह बोल नहीं पाई बस सिर हिला दिया
दिन धीरे धीरे ढल रहा था और प्रत्युषा ने शाम की चाय बनाई दोनों बैठकर बातें करने लगी
बुआ जी बताओ बिटिया शादी से पहले तुम क्या सोचती थी
प्रत्युषा बहुत कुछ बुआ जी सपने भी थे डर भी था
बुआ जी अब
प्रत्युषा अब सिर्फ संभलकर चलने की कोशिश कर रही हूँ
बुआ जी उसके हाथ पकड़कर बोलीं
बुआ जी बहू घर का आकार मायने नहीं रखता प्यार मायने रखता है और अपने जोशी परिवार में प्यार की कमी कभी नहीं रही
इन शब्दों के साथ प्रत्युषा के मन में पहली बार लगा कि वह शायद इस नए घर में वाकई अपनी जगह बना पाएगी और शायद यह छोटा सा प्यार भरा घर उसके टूटे हुए दिल को जोड़ने में मदद भी कर देगा,,,,,,
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तू आज का चैप्टर यहीं खत्म करते हैं,,,,
सुबह से ही प्रत्युषा पूरे दिन हर एक रसम निभाने में लगी हुई थी घर छोटा था दो कमरों का लेकिन काम बहुत था और रिश्तों की गर्माहट उससे भी ज्यादा बुआ जी कभी उसे कोई दुपट्टा पकड़ा देतीं तो कभी कह देतीं कि बहू ये लड्डू वाली थाली इधर रख दो फिर कोई नया रिवाज़ सामने आ जाता और प्रत्युषा बिना थके सब करती जाती थी पर हर पल उसके मन में बस एक ही बात घूम रही थी कि अब उसकी नई जिंदगी की असली शुरुआत हो चुकी है
उधर शिवांश सुबह ही अपने ऑफिस चला गया था
शिवांश बुआ जी मैं चलता हूँ ऑफिस में कुछ जरूरी काम हैं देर न हो जाए
बुआ जी अरे बेटा आज शादी के अगले दिन भी ऑफिस
शिवांश मुस्कुराकर काम छोटा है बुआ जी लेकिन मेहनत तो हर हाल में करनी होती है और घर में सब कुछ अकेले संभालना है इसलिए जल्दी जाना जरूरी है
वह अपनी पुरानी सी शर्ट पहनकर और बैग कंधे पर डालकर जल्दी से निकल गया रास्ते में जाते हुए वह सोच रहा था कि घर में नई बहू आई है उसे थोड़ा और समय देना चाहिए था पर नौकरी की मजबूरी भी थी और घर की जिम्मेदारी भी पूरी तरह उसी पर
ऑफिस पहुंचते ही सभी लोग उसकी तरफ हँसते हुए आए
राकेश अरे भाई शिवांश आखिरकार शादी कर ली तूने
शिवांश कुछ संकोच से हाँ कर ली भाई
सीमा मुस्कुराते हुए कैसी है भाभी
शिवांश बहुत शांत है बहुत सीधी सी है
राकेश और सुंदर भी बहुत होगी
शिवांश शर्माते हुए हाँ सुंदर है
फिर चारों तरफ से बधाइयाँ मिलने लगीं
एक सहकर्मी भाई इतनी सुंदर बेबी मिली है तुझे बोले तो किस्मत खुल गई
शिवांश हँसकर अरे बस रहने दे तू
दूसरा सहकर्मी सच में भाई तेरा चेहरा ही बता रहा है कि शादी की खुशी अलग ही होती है
शिवांश हल्का सा मुस्कुराया लेकिन अंदर से उसका दिल जिम्मेदारियों के बोझ से भरा था वह हमेशा से जानता था कि वह अमीर नहीं है नौकरी भी छोटा सा एम्पलॉय वाला है सैलरी भी ज्यादा नहीं थी पर वह मेहनत से कभी पीछे नहीं हटता क्योंकि उसे पता था कि घर चलाना है बुआ जी को संभालना है और अब एक नई जान यानी प्रत्युषा भी उसी पर भरोसा कर रही है
इधर घर में प्रत्युषा रसोई में खड़ी थी
बुआ जी बहू थोड़ा आराम कर ले तू सुबह से खड़ी है
प्रत्युषा नहीं बुआ जी ठीक हूँ मैं
बुआ जी बिटिया देख नई दुल्हन को इतना काम नहीं कराते पर तुझे खुद ही हाथ बंटाने की आदत है लगता है
प्रत्युषा धीरे से हाँ आदत है
फिर अचानक फोन बजा और बुआ जी ने उठाया
बुआ जी हाँ बेटा
फोन पर शिवांश था
शिवांश बुआ जी सब ठीक है न घर पर
बुआ जी हाँ सब ठीक है तेरी बहू तो सुबह से एक पल नहीं बैठी बहुत काम करती है
शिवांश अच्छा उसे कहना मैं शाम तक आ जाऊँगा
प्रत्युषा यह सुनकर एक पल को चौंक गई उसके होंठ पर हल्की सी मुस्कान आई पर मन में फिर वही अनजाना डर लौट आया वह खुद से बोली
प्रत्युषा काश दिल भी ऐसे कामों में लगकर इतना व्यस्त हो जाए कि दुख को महसूस ही न हो
दिन भर काम का सिलसिला चलता रहा कभी रसोई की आवाज कभी मेहमान का आना कभी थालियाँ रखना कभी बातों का सिलसिला और भीतर ही भीतर वह हर पल खुद को इस घर के रंग में ढालने की कोशिश कर रही थी
उधर ऑफिस में राकेश ने शिवांश के कंधे पर हाथ रखकर कहा
राकेश भाई भाभी को शाम को कहीं लेकर जाना घर में नई बहू को समय देना चाहिए
शिवांश मेरे पास वक्त कहाँ है यार आज भी इतनी फाइलें हैं
सीमा अरे समय निकाला जाता है जब जिंदगी में कोई नया आता है
शिवांश चुप हो गया उसके पास कहने को कुछ नहीं था वह बस ये जानता था कि उसे घर भी संभालना है और ऑफिस भी पर अंदर से कहीं न कहीं वह भी चाहता था कि शाम को जाकर प्रत्युषा को देखे उससे बातें करे
घर में शाम आई तो प्रत्युषा ने चाय बनाई दोनों खूबसूरत कपों में चाय डालकर बुआ जी के सामने रखी
बुआ जी आह बहू सच में तू घर में आई है तो जैसे घर में फिर से रौनक आ गई
प्रत्युषा मुस्कुराते हुए आप ऐसा कहती हैं तो अच्छा लगता है
दरवाज़े पर आवाज हुई
बुआ जी लगता है शिवांश आ गया,,,,, बुआ जी उठकर गेट खोलते हैं और सामने शिवांश होता है,,,
शिवांश अंदर आते हुए गेट बंद कर देता है और अपनी तारीख को ढीली करते हुए अपने कमरे की तरफ चला जाता है लेकिन उसकीनिगाहें,, प्रत्युष को घूर रही थी,,,,
शाम को डिनर के वक्त शिवांश बार बार प्रत्युषा को देखता जा रहा था जैसे उसकी आँखें उसी पर अटक गई हों और वह चुपचाप अपने मन में ही मुस्कुराया किए जा रहा था बुआ जी और पंखुड़ी बातें कर रही थीं पर शिवांश की नज़रें बस एक ही दिशा में थी
बुआ जी अरे बहू थोड़ी सब्ज़ी और ले ले
प्रत्युषा बस इतना ही ठीक है बुआ जी
पर उसके शब्दों में जान नहीं थी आवाज़ धीमी थी और चेहरा उतरा हुआ था जैसे पूरे दिन की थकान उसके अंदर जमा हो गई हो
खाना खत्म होते ही शिवांश ने आखिरी बार उसकी तरफ देखा और फिर बोला
शिवांश बहू जी और काम है क्या या तुम भी आ जाओ कमरे में
प्रत्युषा ने हल्का सा सिर हिलाकर कहा
प्रत्युषा हाँ अभी थोड़ी देर में आती हूँ
लेकिन उसके चेहरे की थकान ने बता दिया कि वह सच में बहुत परेशान थी
शिवांश अंदर कमरे में चला गया उसने खिड़की खोली फिर बंद की फिर अपने फोन को देखा फिर पलंग पर बैठकर इंतज़ार करता रहा वह सोच रहा था कि वह आएगी और कुछ बात करेगी कुछ मुस्कुराएगी पर समय बीतता जा रहा था
शिवांश अपने दिल में बुदबुदाया ये बुआ जी भी ना एक पल को अकेला नहीं छोड़ती बेचारी को थोड़ा आराम भी नहीं मिलता,,,,
।।।,,,,,, बेचाराशिवांश,,, इसलिए मिलते हैं नेक्स्टचैप्टर में,,,,,,
आधी रात तक बुआ जी ने प्रत्युषा को कभी पत्तल समेटने को कहा कभी रसोई पोंछने को कभी मेहमानों की दरी उठाने को और हर काम के साथ उसकी सहनशीलता जैसे कम होती जा रही थी उसके पाँव दर्द से जल रहे थे और दिमाग लगातार चिढ़ता जा रहा था वह कई बार सोच चुकी थी कि बस छोड़ दूँ सब और कमरे में चली जाऊँ पर संस्कार और नई बहू की शर्म ने उसे रोके रखा
उधर शिवांश अभी भी जाग रहा था बत्ती बन्द थी पर वह आंखें खोले छत की तरफ देखता रहा
शिवांश लगता है आज तो वो आएगी ही नहीं
और इसी इंतज़ार इंतज़ार में वह धीरे धीरे तकिये पर सर रखकर सो गया
रात के बारह बज रहे थे घर पूरी तरह शांत था तभी धीरे से कमरे का दरवाज़ा खुला हवा का एक हल्का झोंका अंदर आया और साथ ही आई प्रत्युषा उसकी साड़ी का पल्लू संभल नहीं रहा था इसलिए उसने हल्का सा घूंघट कर रखा था उसकी पायल की छनछन कमरे में खिलने लगी और चूड़ियों की खनखनाहट मानो सन्नाटे को तोड़ने लगी
वह अंदर आई तो देखा शिवांश सो चुका था वह एक पल को रुकी उसके चेहरे को देखा और मन में बोली
प्रत्युषा ये तो सच में इंतज़ार करते करते सो गया होगा
उसके मन में थोड़ी सी ग्लानि आई कि वह इतनी देर से आई पर थकान उसके शरीर में इस कदर भरी थी कि खड़े रहना भी मुश्किल था
वह धीरे से बाथरूम में गई चेहरा धोया घूंघट थोड़ा सा ठीक किया फिर वापस आकर पलंग के पास बैठ गई और उसके बाद धीरे से लेट गई लेकिन उसे नींद नहीं आई उसके अंदर जैसे कुछ हलचल हो रही थी बेचैनी डर उलझन सब कुछ एक साथ महसूस हो रहा था
कुछ देर लेटी रहने के बाद उसने एक गहरी साँस ली और उठकर खिड़की की तरफ चली गई खिड़की खोलते ही ठंडी हवा उसके चेहरे से टकराई और उसने आँखें बंद कर ली जैसे मन को शांत करने की कोशिश कर रही हो बाहर अंधेरा था पर दूर कहीं किसी घर का बल्ब टिमटिमा रहा था
वह धीरे से बोली
प्रत्युषा क्या यही मेरी जिंदगी है अब क्या मैं सच में खुश रह पाऊँगी क्या मैं इस घर में अपने लिए कोई जगह बना पाऊँगी
उसकी आवाज़ टूट रही थी पर आँसू अभी भी गाल तक नहीं पहुँचे थे उसके हाथ खिड़की की जाली पर थे और पायल की हल्की आवाज़ रात की हवा में खो गई थी
पीछे शिवांश नींद में थोड़ा करवट लेता है जैसे उसे महसूस हुआ हो कि कोई जाग रहा है पर वह गहरी नींद में था इसलिए जागा नहीं
प्रत्युषा ने एक बार उसकी तरफ देखा उसकी शांत सोती हुई शक्ल देखी और मन ही मन कहा
प्रत्युषा शायद ये बुरा इंसान नहीं है बस हालात ऐसे हैं
फिर उसने एक लंबी साँस ली और वापस धीरे से पलंग पर आकर लेट गई लेकिन बेचैनी अभी भी उसके सीने में पिघले हुए शीशे की तरह चुभ रही थी वह छत को देखती रही और रात उसके इंतज़ार उसके डर उसकी उम्मीदों में धीरे धीरे बीतने लगी,,,,,,
प्रत्यूषा खिड़की के पास खड़ी रही, उसकी आँखों में आँसू तो नहीं थे लेकिन उसका दिल धड़क रहा था और अंदर ही अंदर उसने महसूस किया कि शायद वह डर अब धीरे धीरे खत्म हो रहा है और उसकी जिंदगी में कुछ नया शुरू होने वाला है,,,,,
,,,,,चांद की हल्की रोशनी में उसका चेहरा फीका सा दिख रहा था वह धीरे धीरे साँस ले रही थी और अपने अंदर की बेचैनी को महसूस कर रही थी तभी उसे लगा कि उसके कमर पर कोई गर्म हाथ टिका हुआ है उसका दिल धड़कने लगा जैसे अचानक बिजली गिर गई हो उसने जल्दी से पीछे देखा और देखा शिवांश अपनी आँखों में हल्की मुस्कान लिए उसके पीछे खड़ा था और उसने अपने हाथ उसकी कमर पर कस कर रखा हुआ था
शिवांश , डर तो नहीं लगा
प्रत्युषा , मैं… मैं ठीक हूँ
शिवांश डर? इतनी जल्दी डरोगी या बस अब तक मेरी गैरमौजूदगी में अकेली अकेली डरती रही
प्रत्यूषा को उसका हाथ और गर्म और मजबूत महसूस हुआ, और उसने खुद को थोड़ा खींचने की कोशिश की
प्रत्यूषा मुझे… मुझे अकेले रहना है अभी
शिवांश ,,,,
अकेले,,ये हाथ तुम्हें अकेला छोड़ने के लिए नहीं है, बस तुम्हारे पास रहने के लिए है
प्रत्यूषा ने अपनी आँखें बंद कर ली जैसे कुछ सोच रही हो या खुद को रोक रही हो
प्रत्यूषा शिवांश… मैं… मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूँ
शिवांश
,,, कुछ नहीं सोचना बस मेरी बात सुनो और ये हाथ कभी छोड़ेंगे नहीं
वह थोड़ा झुककर उसके कान के पास बोला और उसकी साँसें तेज हो गईं
शिवांश जानती हो बहू, ये जो डर है तुम्हारा… ये बस एक नई शुरुआत है, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ
प्रत्यूषा ने हाथ से उसके हाथ को हटाने की कोशिश की लेकिन उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह खुद को रोक नहीं पाई
प्रत्यूषा शिवांश… मुझे डर लग रहा है, मैं अभी तैयार नहीं हूँ
शिवांश डर? ये डर तुम्हारा है, मैं बस यहाँ हूँ, तुम्हें संभालने के लिए, डरने की जरूरत नहीं
प्रत्यूषा के दिल की धड़कन इतनी तेज हो गई कि वह खुद को संभाल नहीं पा रही थी वह चुपचाप खड़ी रही, उसकी आँखों में डर और हल्की भावनाएँ दोनों झलक रही थीं
शिवांश देखो, मैं तुमसे कुछ नहीं माँग रहा, बस तुम्हारे पास रहना चाहता हूँ, तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा हो और मैं तुम्हारा
प्रत्यूषा ने हल्की साँस ली और अपने हाथों से उसकी पकड़ को महसूस किया वह चाहकर भी पीछे हट नहीं पा रही थी
प्रत्यूषा लेकिन… मैं…
शिवांश , बस अब तुम्हारी जरूरत है, बाकी सब बाद में
वह धीरे से झुका और उसके कान के पास बोला
शिवांश मैं जानता हूँ, तुम्हें डर है, ये नया घर, नई जिंदगी… लेकिन डर को छोड़ दो और मुझे भरोसा दो
प्रत्यूषा ने अपनी आँखें बंद कर ली और अपने सिर को उसके कंधे के पास टिका लिया उसका मन और शरीर दोनों ही हल्का कांप रहे थे लेकिन डर के साथ-साथ उसे एक अजीब सा आराम भी महसूस हुआ
प्रत्यूषा ,,,,मैं… मैं कोशिश करूँगी
शिवांश हाँ बस यही कोशिश, और तुम चाहो तो मैं धीरे धीरे सब कुछ ठीक कर दूँगा, तुमसे कोई गलती नहीं होने दूँगा
प्रत्यूषा ने थोड़ी देर के लिए उसकी आँखों में देखा और महसूस किया कि उसके शब्दों में कोई झूठ नहीं, बस एक अजीब सी ताकत और सुकून था
शिवांश देखो ये हाथ तुम्हारे लिए है, तुम्हें डर से बचाने के लिए, और ये दिल तुम्हारे लिए धड़कता है
प्रत्यूषा ने उसकी बात सुनी और मन ही मन खुद को समझाया कि शायद ये डर सिर्फ नई जिंदगी का हिस्सा है
प्रत्यूषा शिवांश… मैं… मैं बस समय चाहती हूँ
शिवांश समय? तुम्हें जितना चाहिए, मैं इंतज़ार करूँगा, बस तुम मेरे पास रहो, बस यही काफी है
प्रत्यूषा ने हल्का सा सिर हिलाया और पलंग की तरफ चली गई लेकिन उसके पैर अब भी कांप रहे थे उसकी सांस तेज थी और दिल जोर जोर से धड़क रहा था वह पलंग पर बैठ गई और खिड़की की तरफ देखती रही, चांद की रोशनी में उसका चेहरा थोड़ा रोशनी में चमक रहा था लेकिन उसकी आँखों में डर और नई उम्मीद का मिश्रण साफ दिख रहा था
शिवांश ने पलंग पर आकर बैठने की कोशिश नहीं की, बस वहीं खड़ा रहा और धीरे से बोला
शिवांश मैं बाहर खड़ा नहीं रह सकता, बस तुम्हारे पास रहना चाहता हूँ
प्रत्यूषा ,,,,,अभी… अभी नहीं
शिवांश ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया
शिवांश ठीक है , जब तुम तैयार हो जाओगी, मैं जानता हूँ कि ये दिन आएगा,,
।। मिलते हैं चैप्टर में,,,