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बंधन... एक अनचाही डोर

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Guddi

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चार दोस्तों की एक मज़ेदार प्लानिंग... दो सच्चे प्रेमियों की छुपकर शादी का कराना... और एक रच गया एक ऐसा अनचाहा खेल जो सबकी ज़िंदगी बदल देता है। अपेक्षा एक अनाथ लड़की है जिसे समाज और परिवार की स्वीकृति के बिना प्यार मिला अभिषेक से। लेकिन जब अभिषेक के घ...

Total Chapters (2)

Page 1 of 1

  • 1. बंधन... एक अनचाही डोर - Chapter 1

    Words: 1134

    Estimated Reading Time: 7 min

    दिल्ली...

    एक खूबसूरत सा विला, जिसके बहार नेम प्लेट पर लिखा था सुकून। सुकून विला... जो यहां पर रहने वालों को एक सुकून सा देता था, एक एहसास कराता था कि इस विला में रहने वाले लोग भी एक इंसान है... न कि किसी के हाथ की कठपुतली।

    सूरज की हल्की किरणें  एक कमरे में लगे महँगे पर्दों के बीच से छनकर कमरे में फैल रही थीं। एक सुंदर सा कमरा... शानो शौकत में डूबा, मगर उस सुबह की नर्म धूप में सब कुछ खास सा लग रहा था।

    आइने के सामने बैठी वो लड़की खुद को सजो संवार रही थी। गहरे रंग का लहँगा, जिसमें जरी की महीन कढ़ाई चमक रही थी। कंधों तक लहराती लंबी ज़ुल्फें उसके चेहरे पर बेवसी सी टिकी हुई थीं। माथे पर सजे मांगटीके ने उसकी भोली सूरत में राजकुमारी जैसा अदा भर दिया था।

    उस लड़की की आँखों में आज कुछ अलग सी चमक थी, साथ ही उत्साह भी और थोड़ी सी घबराहट भी। वह कुछ सोचते हुए धीरे धीरे अपनी चूडियाँ पहन रही थी, हर एक कंगन पर अपना ध्यान दे रही थी, जैसे कि हर कंगन उसके लिए किसी वचन की तरह हो।

    आखिर में उसने बड़े कानों में भारी भारी बालियाँ लगाईं, आइने में दहकती आँखों से खुद को देखा और धीमे से फुसफुसाई – “आज का दिन बहुत खास है। बस… आज सब कुछ ठीक रहे, बिना किसी गड़बड़ के और बिना किसी परेशानी के।”

    गहरी साँस लेकर वह उठी, दुपट्टे को संभाला और अपने कमरे से निकल कर अगले कमरे की ओर चली... वही कमरा जहाँ उसकी सबसे प्यारी सहेली, उसकी परछाईं, उसकी बहन थी... जिसकी आज शादी थी।

    उसने दरवाजा धीरे से खोला और जो नज़ारा सामने पड़ा, उसे देखकर उसने  अपने माथे पर हाथ दे मारा। बिस्तर पर चादर में लिपटी उसकी दोस्त गहरी नींद में थी। बिखरे बाल, तकिये पर टिकी नाक, धीमी धीमी साँसें... जो इस बात की गवाही दे रहा था कि इस वक्त वह कितनी गहरी नींद में है।

    वो उसके पास जाकर बोली – “हे भगवान… जरा देखो तो इसे। आज इसकी शादी है और इसे देखकर लग भी रहा है कि आज का दिन इसके लिए कितना खास है? घोड़े गधे सब कुछ बेच कर आराम से सो रही हैं महारानी। और हम है जो इसकी फिक्र में पूरी रात खुली आंखों से काट दी।”

    चादर खींचते हुए उसने कहा – “अपु… अपेक्षा… उठ जा, वरना देर हो जाएगी।”

    उसके कहने पर अपेक्षा ने कोई जवाब नहीं दिया... उसकी सांसों की रफ्तार देखकर वह समझ गई कि मैडम अभी गहरी नींद में है। इसलिए उसने आवाज़ थोड़ी तेज़ करते हुए कहा – “ओए दुल्हन, उठना नहीं है क्या। आज तुम्हें सात फेरे लेने हैं।”

    अपेक्षा करवट बदलते हुए तकिये में गुम होती हँसी में बड़बड़ाई – “हम्म… बस एक मिनट और…”

    उसने अपेक्षा के तकिये को खींचते हुए नाराज़गी से कहा– “कोई एक मिनट नहीं मिलने वाली। अभी के अभी उठ जा, वरना हम पंडित जी  से कह देंगे कि दुल्हन ने शादी से इंकार कर दिया क्योंकि उसे अपनी शादी से ज्यादा अपनी नींद प्यारी है।”

    अपेक्षा झल्लाते हुए बोली – क्या हैं यार सुबह सुबह? क्यों खींच तान कर रही हो इतना? पाँच मिनट तो दे दो न… सिर दर्द से फट रहा है हमारा।”

    वह अपनी आँखें छोटी करती हुई बोली –“हाँ, वो तो होगा ही... रात भर जमकर पार्टी जो हुई थी। अब उठ जा और कोई पांच वाच मिनिट नहीं मिलेगी तुझे। क्या तुम अपनी ही शादी में लेट पहुँचना चाहती हो?”

    अपेक्षा  अपनी दोस्त को देखते हुए आँखें मिचमिचाते हुए बोली – “क्या मज़ाक कर रही हैं तू... कौन सी शादी... किसकी शादी... और तू इतना सज धज के क्यों आई है?”

    वह हैरान होते हुए बोली – “किसकी शादी मतलब? अरे तेरी और अभिषेक की शादी। पार्टी के नशे में सब कुछ भूल गई हो  क्या?”

    इस बार अपेक्षा अचानक से चौंक पड़ी और उसकी आँखें क्षण भर के लिए बड़ी हो गईं। एक पल को तो उसे समझ ही नहीं आया कि यह सपना है या हकीकत? अपने सामने खड़ी अपनी दोस्त को देखा फिर बिस्तर से उछल कर  जोर से चिल्लाई – “ओह माय गॉड… हम… हम सो गए थे? अपने इम्पॉर्टेन्ट दिन पर! तूने हमें क्यों नहीं उठाया पहले? क्या सोच रहा होगा हमारा अभि कि हम अपनी शादी में लेट आ रहे है।”

    उस लड़की ने डांटते हुए कहा – “अबे ओए नौटंकी, अब अपना ड्रामा बंद कर और तैयार हो जा। कोई ज्यादा देर नहीं हुई है... पर अगर अभी नहीं उठी तो सच में देर हो जाएगी और अभिषेक तुझसे बिना शादी किया ही चला जाएगा।”

    अपेक्षा जल्दी जल्दी बिस्तर से उठी और बाथरूम की ओर भागते हुए बोली – “नहीं नहीं, हम ऐसा नहीं होने देंगे। हमारे गहने कहां हैं और हमारा लहँगा आ गया क्या? ओह गॉड हम इतनी देर तक कैसे सोते रहे?”

    उसकी दोस्त हँसते हुए बोली – “सब कुछ रेडी है, बस दुल्हन ही तैयार नहीं हुई अभी तक।”

    बाथरूम का दरवाज़ा बंद हुआ और अंदर से पानी की आवाज के साथ गुनगुनाहट सुनाई देने लगी। अपेक्षा बहुत खुश थी, की आज उसका प्यार, उसका होने वाला है और जिंदगी भर  का साथ... सब कुछ मानों उसकी मुट्ठी में है।

    वह लड़की मुस्कुराते हुए सोचने लगी – “भगवान, अब तक तूने हमेशा हमारा साथ दिया है, इस बार भी दे देना। आज का दिन बिना किसी ड्रामे के निकल जाए, बस।”

    उसने फ़ोन उठाया और किसी को कॉल करते हुए बोली– “हैलो… हम राधिका… राधिका प्रताप राठौर बोल रहे है। क्या वहाँ सारी तैयारियाँ हो गई हैं? हम्मम ठीक है, हम अभी कुछ देर में वहां पहुंच रहे है।”

    कहते हुए राधिका ने कॉल कट किया ही था कि तभी फिर से किसी का कॉल आने लगा। कॉलर आईडी में उस नाम को देख राधिका का मुंह बन गया।

    राधिका ने कॉल रिसीव की– “हम्म, बोलो…”

    फोन के उस पार किसी लड़के की हँसी की आवाज़ आई – “यार, तुम सच में किसी दूसरे ग्रह से आई हो क्या?”

    राधिका – “क्या मतलब?”

    वह लड़का बोला – “मतलब ये कि धरती के लोग जब किसी का फोन उठाते हैं तो पहले हैलो बोलते हैं। पर तुम्हारा तरीका अलग है... हां, हम्म, कहो, बोलो… ऐसे कौन बोलता है?”

    राधिका हल्के गुस्से से बोली – हम बोलते है। और तुमने सुबह सुबह लोगों को ज्ञान बाँटना शुरू कर दिया है क्या?”

    वह हँसते हुए बोला – “अब क्या करे… किसी के पास दिमाग कम होता है तो ज्ञान बाँटना पड़ता है।”

    अपना मजाक उड़ते देख राधिका ने गुस्से में कहा – “शट अप, यू लफ़ँटर! बेकार की नसीहतें बाँटने की ज़रूरत नहीं है समझे। असल में नसीहतें  की तुम्हें ज़रूरत हैं, हमे नहीं। कहो, फोन किसलिए था?”

    ______________________________________________

    कभी कभी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत दिन सबसे बड़ी हलचल लेकर आते हैं। क्योंकि ज़िंदगी जब भी मुस्कुराती है, उसके पीछे कोई अनकही कहानी ज़रूर छिपी होती है।

    पढ़ते रहिए...

  • 2. बंधन... एक अनचाही डोर - Chapter 2

    Words: 1137

    Estimated Reading Time: 7 min

    अपना मजाक उड़ते देख राधिका ने गुस्से में कहा – “शट अप, यू लफ़ँटर! बेकार की नसीहतें बाँटने की ज़रूरत नहीं है समझे। असल में नसीहतें  की तुम्हें ज़रूरत हैं, हमे नहीं। कहो, फोन किसलिए किया था?”

    वह प्रतिक्रिया देते हुए बोला – “मेरा नाम ऋषि रंधावा है, समझी? तो मुझे मेरे नाम से बुलाओ। और मैंने इसलिए कॉल किया है क्योंकि वहाँ सामूहिक विवाह में मीडिया तो जरूर होगी। इसलिए तुम इस बात का खास ध्यान रखना कि अपेक्षा और अभिषेक का नाम किसी भी लिस्ट में न आए। अगर अभिषेक के घर वालों को पता चल गया तो बेमतलब का हंगामा खड़ा हो जाएगा।”

    राधिका ने मोबाइल कसकर पकड़ा और हल्की चिढ़े हुए अंदाज़ में बोली – “हमे अच्छे से पता है कि हमे क्या करना है और क्या नहीं… हमे किसी की सलाह मशवरा की जरूरत नहीं है, समझे? और जितनी प्लानिंग तुमने की है, उससे कहीं ज़्यादा दिमाग़ हमारा लगा है। तो तुम खुद को ज़्यादा हीरो मत समझो।”

    ऋषि ने राधिका की हंसी उड़ाते हुए कहा – “ओह वॉव… मतलब दुल्हन के साथ साथ उसकी Z+ सिक्योरिटी भी मौजूद है! यार, मैं तो सच में इम्प्रेस हो गया।”

    राधिका तुनककर बोली – “ऋषि तुम...”

    उसने बात बीच में ही काट दी – “अच्छा ठीक है अब अपनी हिटलरगिरी थोड़ी देर के लिए साइड में रखो और फ़ौरन सामूहिक विवाह पर पहुँचो। हमें पहले वहाँ जाकर अपनी तरफ़ से स्ट्रॉन्ग अरेंजमेंट्स करने होंगे। तब जाकर उन दोनों की शादी सक्सेस हो पाएगी क्योंकि मैं अपने दोस्त की ज़िंदगी के साथ कोई रिस्क नहीं लेना चाहता।”

    राधिका का चेहरा अचानक गंभीर हो गया। उसने धीमे स्वर में कहा – “हाँ, हमे पता है और हम कुछ भी गलत नहीं होने देंगे। जितना अभिषेक तुम्हारे लिए मायने रखता है, उतनी ही अपेक्षा हमारे लिए ख़ास है। हम दोनों अपने दोस्तों के प्यार को मिलाने के लिए कुछ भी कर जाएंगे। हम पहुँच रहे है वहाँ।”

    कहते हुए राधिका ने कॉल काटा और वॉशरूम के पास जाकर बोली – “अपु सुन… थोड़ी देर में तुझे रेडी करने के लिए ब्यूटीशियन आने वाली है। हम अभी निकल रहे है, तू जब तैयार हो जाए तो हमे कॉल कर देना क्यों की गाड़ी हम ले जा रहे है, ठीक है?”

    अंदर से अपेक्षा की हँसी भरी आवाज़ आई – “ओके मेरी जान! तू आराम से जा और हमारी शादी की तैयारियाँ करवा। हम तुझे  कॉल कर देंगे।”

    उसकी बात सुन राधिका मुस्कराते हुए वहाँ से निकल गई...

    ******************

    दिल्ली शहर के सबसे पोश और शांत एरिया में स्थित एक बड़ा सा और आलिशान घर। जिसके बहार लिखा था... "स्वर्ग... The Mansion of Randhawa's... "

     
    जहा पर ऋषि रेहता था, अपने पुरे परिवार के साथ... 

    ऋषि अपने कमरे से बड़बड़ाते हुए बाहर निकला – “अजीब लड़की है… नहीं, लड़की नहीं वो बिल्ली है बिल्ली! हमेशा काटने को तैयार रहती है। कभी ढंग से बात तक नहीं करती। पता नहीं खुद को क्या समझती है! अरे राजकुमारी के खानदान में पैदा हुई है तो क्या खुद को सच में राजकुमारी समझने लगी है? बड़ी आई मुझे ऑर्डर देने वाली... हिटलर कहीं की!”

    ऋषि राधिका के बारे में सोचते हुए कब अपने कमरे से बाहर हॉल में आ पहुंचा उसे खुद भी पता नहीं चला। हॉल में बैठे सारे लोग उसे हैरानी से देखने लगे।

    तभी एक आवाज़ आई – “ऋषि पुत्तर… ये सुबह सुबह सड़ा हुआ मुँह बनाए क्यों घूम रहा है? किसी बिल्ली ने तेरे रास्ता काट दिया क्या जो इतना भुनभुना रहा है?”

    आवाज़ सुनते ही ऋषि के कदम ठिठक गए। पलटकर देखा तो सामने उसकी दादी कामेश्वरी रंधावा खड़ी थीं।

    ऋषि अपनी दादी को घूरते हुए बोला – “दादी, अब आप भी मत शुरू हो जाइए प्लीज़।”

    कामेश्वरी जी ने आँखें सिकोड़ते हुए पूछा – “आप भी मतलब? फिर से तेरीे उस बिल्ली ने तुझे परेशान किया है क्या?”

    ऋषि डाइनिंग टेबल पर जाकर बैठा और बेमन से बोला – “उसका काम ही क्या है मुझे परेशान करने के अलावा!”

    इतने में उसकी माँ लक्ष्मी रंधावा किचन से बाहर आईं और झिड़कते हुए बोलीं – “चुप कर तू! हर वक्त उस लड़की के पीछे पड़ा रहता है। कितनी प्यारी बच्ची है वो, इतनी संस्कारी और समझदार लड़की  तुझे बिल्ली दिखती है? तेरा तो टेस्ट ही खराब हो गया है!”

    ऋषि मुँह बनाते हुए बोला – “कभी कभी तो लगता है कि मैं इस घर का बेटा नहीं, बल्कि वो इस घर की बेटी है। आप सब तो हमेशा उसी की साइड लेते हो। अरे कोई तो मेरी भी सुने यार!”

    इतना कहते ही हॉल में एक और महिला दाखिल हुई... जो दिखने में बेहद सुंदर और सलीकेदार... हर्षा रंधावा, और उनके साथ उनकी सात साल की प्यारी बेटी टिन्नी, जो स्कूल यूनिफ़ॉर्म में थी।

    हर्षा मुस्कराते हुए ऋषि के पास बैठीं और बोली– “देवर जी, आप बिल्कुल फ़िक्र मत कीजिए। कोई आपका साथ दे या न दे, पर मैं हमेशा आपके साथ हूँ।”

    ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा – “लव यू भाभी!”

    टिन्नी ने मासूमियत से चुटकी ली – “चाचू… आप कोई साइड लेने वाला काम तो करिए पहले, तब कोई साइड लेगा ना आपकी! आप खुद ही तो हमेशा राधी दीदी के आगे पीछे घूमते रहते हो। उनके बिना तो आपका दिन ही शुरू नहीं होता!”

    ऋषि ने उसे घूरते हुए कहा – “टिन्नी की बच्ची! तुम्हारे स्कूल में पढ़ाई के साथ साथ चुगली करना भी सिखाते हैं क्या? जब देखो तब पकर पकर करती रहती हो! चली जाओ अपनी राधी दीदी के पास… अगर इतनी ही प्यारी लगती हैं तो!”

    टिन्नी ने दूध का ग्लास मेज़ पर रखा और शरारती अंदाज़ में बोली – “मैं भला क्यों जाऊँ? आप ही उन्हें यहाँ ले आइए… शादी करके!”

    उसकी बात सुनते ही ऋषि, जो कॉफ़ी पी रहा था... एकदम चौंक गया। उसके मुँह से कॉफ़ी फव्वारे की तरह बाहर निकली और वो टिन्नी को खा जाने वाली आंखों घूरने लगा, जैसे निगल जाएगा अभी।

    टिन्नी को ऋषि के ऐसे घूरने से कुछ फर्क नहीं पड़ा। वो तो मस्ती से अपना दूध पीती रही, पर उसकी बात सुनते ही हॉल में बैठे सबके चेहरे खिल उठे। दरअसल, राधिका रंधावा परिवार की सबकी चहेती थी... सिवाय ऋषि के।

    ऋषि ने सबकी तरफ देखा, जो सब उसी को मुस्कराते हुए देख रहे थे... जैसे कह रहे हों “हाँ बेटा, राधिका से शादी कर लो।”

    ऋषि झुँझलाकर बोला – “अरे यार, आप सब मुझे ऐसे क्यों देख रहे हैं? और ये शादी क्या बच्चों का खेल है? वैसे भी, आपको वो हिटलर पसंद होगी… लेकिन मुझे तो वो फूटी आँख नहीं सुहाती! उसके साथ में एक सेकंड भी नहीं गुज़ार सकता, पूरी ज़िंदगी तो छोड़ ही दो!”

    ▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️▫️

    कहते हैं न… कुछ रिश्ते पहली नज़र में दुश्मनी जैसे लगते हैं, पर असल में उनकी जड़ें किसी अनकहे बंधन से जुड़ी होती हैं। और शायद… शायद किस्मत ने उनकी कहानी का पहला पन्ना अभी अभी पलटा है। क्योंकि ज़िंदगी के सबसे तीखे झगड़े… कई बार सबसे गहरे रिश्तों का इशारा होते हैं।