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Ego Se Ishq Tak

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Anjali Sharma

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Description

यह कहानी एक prestigious college की है, जहाँ रॉयल, रिच और पावरफुल स्टूडेंट्स का दबदबा है। इसी कॉलेज में कदम रखती है Rivaa Mehra — नीली आँखों वाली, खूबसूरत लेकिन उससे कहीं ज़्यादा आत्मसम्मान और हिम्मत रखने वाली लड़की। उसकी पहली ही मुलाक़ात होती है कॉले...

Characters

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Rivaa Mehra

Heroine

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Vihaan Singhania

Hero

Total Chapters (2)

Page 1 of 1

  • 1. Ego Se Ishq Tak - Chapter 1

    Words: 1074

    Estimated Reading Time: 7 min

    Episode 1 — एक नई शुरुआत की दहलीज़


    लखनऊ की हल्की-हल्की ठंडी हवा उस सुबह कुछ ज़्यादा ही खुशनुमा लग रही थी। चौक के पास बने पुराने मेहराबों पर कबूतर फड़फड़ाते हुए उड़ रहे थे, और शहर अपनी रोज़ की चहल-पहल के लिए धीरे-धीरे जाग रहा था। इसी शहर के एक शांत से मोहल्ले में रहती थी रिवा मेहरा—इस कहानी की नायिका।


    मेहरा परिवार छोटा था, पर प्यार और सादगी से भरा हुआ।

    रिवा की माँ रेशमा मेहरा, एक गृहणी, जो हमेशा घर को सलीके से संभालतीं और हर सुबह सबकी पसंद का नाश्ता बनातीं।

    उसके पिता अशोक मेहरा, एक प्राइवेट बैंक में काम करते थे—जिम्मेदार, शांत और अपनी दोनों बेटियों के लिए हर सपने को सच करने की कोशिश में लगे रहते।

    रिवा की छोटी बहन तानिया, जो नौवीं कक्षा में पढ़ती थी—शरारती और ज़िद्दी, पर अपनी दीदी की सबसे बड़ी फैन भी।


    आज का दिन मेहरा परिवार में खास था।

    आज रिवा का एंट्रेंस रिज़ल्ट आने वाला था।

    दिल्ली के सबसे बड़े और नामी बिज़नेस कॉलेज में बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन के लिए उसने परीक्षा दी थी। यह वही सपना था जिसे लेकर वह पिछले दो सालों से मेहनत कर रही थी।


    रिवा सुबह से ही बेचैन थी। उसने अपनी कॉफी का कप कई बार उठाया, रखा… पर ज़्यादातर कॉफी ठंडी ही रह गई।


    “दीदी, अगर सेलेक्शन नहीं हुआ न, तो मैं आपकी चॉकलेट नहीं दूँगी!”

    तानिया ने मज़ाक में कहा और तुरंत खुद ही हँसने लगी।


    रिवा मुस्कुरा दी, “अरे पगली! रिज़ल्ट जो भी हो, तेरी चॉकलेट पक्की।”


    लेकिन उसके दिल में डर भी था—क्या उसकी मेहनत रंग लाएगी?


    इतने में उसका फोन वाइब्रेट हुआ। स्क्रीन पर मैसेज था—

    Neha Sharma: "Result out!! Login fast!!!"


    नेहा—रिवा की बचपन की सबसे अच्छी दोस्त। दोनों ने साथ पढ़ाई की, साथ सपने बुने और एक ही कॉलेज के लिए अप्लाई भी किया था।


    रिवा ने घबराते हुए लैपटॉप खोला। उसकी उंगलियाँ हल्का-सा कांप रही थीं।

    मम्मी और पापा उसके पीछे खड़े हो गए। तानिया तो मानो सांस ही रोककर खड़ी थी।


    “यूज़र आईडी डालो… पासवर्ड डालो…” अशोक मेहरा धीमे से बोले, जैसे वही उसे हिम्मत दे रहे हों।


    रिवा ने एंटर दबाया।


    स्क्रीन कुछ सेकंड के लिए घूमी—जो उसे घंटों जैसे लगे—

    और फिर…


    Congratulations! You are selected.


    उस एक लाइन ने पूरे घर को खुशियों से भर दिया।


    “रिवा! हो गया? हो गया ना?”

    रेशमा मेहरा की आँखें खुशी से चमक उठीं।


    “हाँ मम्मी… हो गया…”

    रिवा की आँखों में नमी थी। और अगली ही क्षण तानिया उस पर कूद पड़ी।


    अशोक मेहरा ने पहली बार इतने जोर से हँसते हुए बेटी को गले लगाया—

    “मुझे पता था, मेरी बेटी ये कर सकती है!”


    उसी समय नेहा का फोन आया—

    “रिवा!! हम दोनों सेलेक्ट हो गए!! दिल्ली… हम आ रहे हैं!”


    उस पल रिवा को लगा—शायद ज़िंदगी अभी-अभी सच में शुरू हुई है।

    अब उसके सामने एक नया शहर था, नए सपने थे, और एक नई दुनिया…


    और उसे नहीं पता था कि ये शुरुआत, सिर्फ शुरुआत नहीं—

    उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी कहानी की पहली सीढ़ी थी…
    दिल्ली के सपनों की उड़ान


    लखनऊ की उस सुबह में एक अलग ही चमक थी—जैसे पूरे शहर को पता हो कि रिवा की ज़िंदगी बदलने वाली है।

    रिवा आज कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। वैसे भी वह जहाँ खड़ी होती, लोगों की नज़र वहीं ठहर जाती—


    उसकी नीली, गहरी आँखें, जैसे किसी झील की शांत लहरें…

    लंबे, खुले बाल, जो हवा के साथ खेलते रहते थे…

    और उसके दिल के आकार वाले होंठ, जिन्हें देखकर कोई भी दो बार देखने पर मजबूर हो जाए।

    5'6 की उसकी लंबी, आत्मविश्वासी चाल में ऐसा आकर्षण था कि लोग मुड़कर देखे बिना नहीं रह पाते।


    लेकिन इन सब से बढ़कर, वह दिल की उतनी ही खूबसूरत थी—

    दूसरों की मदद करना उसकी आदत नहीं, उसकी कमज़ोरी थी।



    ---


    घर में जश्न का माहौल


    रिज़ल्ट आने के बाद से ही घर में जैसे त्योहार शुरू हो गया था।

    रेशमा मेहरा ने इतनी मिन्नतों के बाद भी रिवा को रसोई में नहीं आने दिया।


    “तू कुछ मत कर, आज सब मैं करूँगी… मेरी बेटा सेलेक्ट हो गई है दिल्ली के कॉलेज में!”

    मम्मी भावुक हो रही थीं।


    पापा खुशी में बार-बार अखबार के बहाने उठकर रिवा को देखते—

    “अरे वाह, हमारी तो अब बड़ी-बड़ी फोटो अखबार में छपेंगी!”


    और तानिया?

    वो तो पूरे मोहल्ले में यह खबर फैलाने निकल चुकी थी।


    “मेरी दीदी दिल्ली जा रही है… पढ़ने नहीं, धूम मचाने!”

    उसके इस डायलॉग पर पूरा घर हँस पड़ा।



    ---


    नेहा का धमाकेदार एंट्री


    दोपहर में नेहा घर पहुँची।

    नेहा हमेशा की तरह cute थी—थोड़ी नटखट, थोड़ी नादान, और पूरी की पूरी शरारतों का पिटारा।


    “मैडम सेलेक्ट हो गई… और मुझे याद भी नहीं किया!”

    नेहा ने नकली गुस्से में हाथ बांध लिए।


    रिवा ने उसे कसकर गले लगाया—

    “अरे पागल, हमने साथ दिया था, सेलेक्ट दोनों ने ही होना था!”


    नेहा खी-खी करती बोली,

    “हाँ, और दिल्ली में लड़के भी दोनों को ही मिलेंगे!”


    रिवा ने तुरंत तकिया उठाकर फेंका—

    “मर जा! पढ़ाई करने जा रहे हैं हम।”


    नेहा ने आँख मारते हुए कहा,

    “हाँ हाँ… पढ़ाई ही करेंगे, और क्या…?”


    दोनों की हँसी से कमरा गूंज उठा।



    ---


    दिल्ली की तैयारी


    पापा ने एक बड़ा सा नया सूटकेस निकालकर रिवा को दिया।

    “कुछ कपड़े, कुछ सपने… दोनों संभाल कर रखना,”

    उन्होंने कहा, और उनकी आवाज़ में छिपा गर्व सुनाई दे रहा था।


    मम्मी ने धीरे से रिवा के सिर पर हाथ फेरा,

    “तू अकेली नहीं है वहाँ… तेरा भला भगवान खुद करेगा।”


    रिवा की नीली आँखों में हल्की नमी उतर आई—

    घर छोड़ने का ख्याल उसे भीतर तक छू रहा था।

    पर नए सफर का उत्साह भी उतना ही बड़ा था।


    नेहा ने माहौल हल्का करने के लिए अचानक कहा,

    “और हाँ, दिल्ली में पहले दिन मेरे लिए एक हॉट-सा लड़का ढूँढ लेना। मैं अकेली नहीं घूमने वाली।”


    रिवा ने उसे चपत लगाई,

    “तेरी शक्ल देखकर ही भाग जाएंगे। पहले तेरी हिंदी ठीक करा दूँ, फिर लड़के ढूंढेंगे!”


    दोनों फिर से हँसने लगीं।



    ---


    रात का सुकून


    रात को छत पर खड़ी रिवा आसमान देख रही थी।

    हवा उसके बालों से खेल रही थी, और चाँद उसकी नीली आँखों में अपनी चमक छिपा रहा था।


    उसने सोचा—

    “क्या दिल्ली सच में वैसी होगी जैसी मैंने सोची है?

    क्या मैं वहाँ खुद को पहचान पाऊँगी?

    क्या मेरी कहानी वहीं से शुरू होगी… या किसी बिल्कुल नए मोड़ से?”


    नीचे से पापा की आवाज़ आई,

    “सो जा बेटा, कल से एक नई शुरुआत है।”


    रिवा ने आसमान को मुस्कुराकर देखा—

    “हाँ… कल से मैं सच में उड़ान भरने वाली हूँ।”

  • 2. Rivaa or Neha ka Delhi pahuchna

    Words: 1046

    Estimated Reading Time: 7 min

    सफ़र की पहली सीढ़ी

    सुबह की हल्की धूप स्टेशन की लोहे की छतों पर चमक रही थी।

    प्लेटफॉर्म पर भागते लोग, आवाज़ें, चाय की महक… और इनके बीच खड़ी थीं—

    19 साल की रिवा और नेहा, अपने सपनों के शहर दिल्ली की ओर जाने के लिए तैयार।

    दोनों ने अपने-अपने बैग टाँग रखे थे।

    रिवा के लंबे बाल हवा में हल्के-हल्के उड़ रहे थे, और उसने माँ की बात मानकर हल्का-सा face cover लगा रखा था।

    नेहा हमेशा की तरह cute और थोड़ा-सा naughty मूड में थी, लेकिन आज उसकी आँखों में भी हल्की नमी थी।

    ---

    स्टेशन पर भावुक विदाई

    रिवा की मम्मी रेशमा मेहरा ने उसे कसकर पकड़ लिया।

    उनकी आवाज़ काँप रही थी—

    “Beta, tum humara gurur ho… kabhi kisi baat se ise chhukne mat dena.

    Aur haan, wahan par apni sundarta ko zyada saamne mat lana… face cover rakha karo.

    Tum dono akeli ho wahan, samajh rahi ho na main kya keh rahi hoon?”

    रिवा ने मम्मी का हाथ पकड़कर मुस्कुराते हुए कहा—

    “Mummy, mere saath mere Mahadev humesha hain… aap tension mat lo.”

    मम्मी की आँखों में भरोसा और डर दोनों थे।

    पापा अशोक मेहरा रिवा के कंधे पर हाथ रखकर बोले—

    “Delhi bada shehar hai beta… par humari beti usse bhi badi है.”

    तानिया पीछे से चिल्लाई—

    “दीदी! Delhi se chocolate laana!!”

    सब हँस पड़े, और माहौल हल्का हो गया।

    ---

    नेहा के घर की इमोशनल मोमेंट

    नेहा के पापा दीपक शर्मा थोड़े सख्त स्वभाव के थे, लेकिन आज उनकी आँखें भी भर आई थीं।

    उन्होंने नेहा का चेहरा पकड़कर कहा—

    “Beta, tum humari ek lauti aulaad ho… apna bahut khayal रखना.

    Bahut saare log milेंगे, bahut saari baatein होंगी… par tum hamesha strong रहना.”

    उसकी मम्मी सीमा शर्मा ने नेहा को गले लगाते हुए कहा—

    “Phone karte rehna… warna main Delhi aa jaaungi tumhare peeche!”

    नेहा ने हल्की सी हँसी में आँसू छुपाते हुए कहा—

    “Mom… I’ll be fine. Promise.”

    फिर वह रिवा की तरफ मुड़ी—

    “Dekha? Main hi unki favourite hoon… tum nahi!”

    और रिवा ने उसे हल्की सी चपत लगा दी।

    ---

    ट्रेन का आगमन और दिलों की धड़कनें

    ट्रेन की सीटी ने हवा में कंपन पैदा किया।

    लाल बत्ती चमकी… और धीरे-धीरे ट्रेन प्लेटफॉर्म पर रुकने लगी।

    दोनों लड़कियों के दिल एक साथ धड़क उठे—

    यह सिर्फ सफ़र नहीं था, एक नई जिंदगी की शुरुआत थी।

    “Ready?” रिवा ने पूछा।

    “More than ready!” नेहा ने मुस्कुराकर कहा, पर उसकी आँखें बता रही थीं कि वो अंदर से थोड़ी डरी हुई थी।

    ---

    विदाई का अंतिम आलिंगन

    ट्रेन का दरवाज़ा खुला।

    मम्मी ने आखिरी बार रिवा का चेहरा छुआ—

    “Bhagwan tumhari raksha kare beta…”

    नेहा के पापा ने उसे सीने से लगाकर कहा—

    “Jo sikhaya hai… uska dhyaan रखना.”

    दोनों लड़कियों ने अपने परिवार को एक लंबी, भावुक नज़र से देखा…

    जैसे उस पल को हमेशा के लिए दिल में कैद कर रही हों।

    फिर धीरे-धीरे वे ट्रेन में चढ़ गईं।

    ---

    खिड़की के बाहर जाते हुए शहर

    ट्रेन चल पड़ी।

    लखनऊ धीरे-धीरे पीछे छूटता गया—

    घर की खुशबू, मम्मी की आवाज़, पापा की मुस्कान, तानिया की शरारतें…

    सब खिड़की के बाहर दूर होते जा रहे थे।

    नेहा ने हल्के से रिवा का हाथ पकड़ा।

    “Tum ho na… toh main theek hoon,” उसने धीमे से कहा।

    रिवा मुस्कुरा दी—

    “Hum dono saath हैं… Delhi kya, duniya bhi handle कर लेंगे!”

    नेहा हँस दी—

    “Confidence dekho madam ka!”

    और दोनों हँसते हुए सीट पर बैठ गईं।

    ---

    ट्रेन तेज़ी से दौड़ रही थी…

    और साथ ही दौड़ रहे थे दो लड़कियों के सपने, उम्मीदें और उनका पूरा भविष्य।

    दिल्ली—हम आ रहे हैं।

    दिल्ली में पहला सवेरा

    दिल्ली की हवा लखनऊ से बिल्कुल अलग थी—थोड़ी तेज़, थोड़ी भागती हुई, और पूरी तरह नई।

    रिवा और नेहा जैसे ही स्टेशन से बाहर निकलीं, चारों तरफ़ की भीड़ और आवाज़ें देखकर दोनों थोड़ी हैरान भी और excited भी थीं।

    “Cab book kar doon?”

    रिवा ने मोबाइल निकाला।

    “Please! Main toh itna thak gayi hoon ki khadi bhi mushkil se ho pa rahi hoon,”

    नेहा बोली और अपना बैग जमीन पर रखकर लम्बी सांस ली।

    कुछ मिनट में कैब आ गई और वे दोनों कॉलेज हॉस्टल की ओर निकल पड़ीं।

    ---

    कॉलेज और हॉस्टल की औपचारिकताएँ

    कॉलेज पहुँचकर दोनों ने सारी formalities पूरी की—

    ID verification, documents, hostel forms, signatures…

    सबमें पूरा आधा दिन चला गया।

    फिर वॉर्डन मैडम ने कमरे की चाबी देते हुए कहा—

    “Room number 103. Samay ka dhyan rakhna. Hostel rules follow karna.”

    रिवा और नेहा एक साथ बोलीं—

    “Ji ma’am.”

    कमरा खोलते ही दोनों ने राहत की सांस ली।

    थोड़ा छोटा था, पर साफ-सुथरा, और सबसे बड़ी बात—

    दोनों एक ही कमरे में थीं।

    “Yaar… ab main shower le kar seedha bed par gir jaungi,”

    नेहा बिसतर पर गिरते हुए बोली।

    “Same here!”

    रिवा ने भी अपने जूते उतारकर एक लंबी सांस ली।

    दोनों ने नीचे कैंटीन से dinner मंगाया, जल्दी-जल्दी खाया, और बिना एक भी word बोले गहरी नींद में सो गईं।

    ---

    अगली सुबह – रिवा की आदत

    सुबह 6:30 बजे हल्की धूप खिड़की की जाली से कमरे में उतर रही थी।

    रिवा धीरे-धीरे उठी—उसके लंबे बाल कंधों पर फैल गए थे, और नींद में भी उसका चेहरा बेहद शांत लग रहा था।

    वह उठकर पर्दा खींचती है और फिर नेहा को धीरे से जगाती है—

    “Neha… uth na. Main mandir jaa rahi hoon. Mahadev ke darshan karne.”

    नेहा आँखें मलते हुए बोली—

    “Abhi? 6:30 hue hain… pagal hai kya? Aaj first day hai hamara.”

    रिवा ने मुस्कुराते हुए कहा—

    “Haan, pata hai. Par main bina darshan kiye kabhi koi naya kaam start nahi karti.

    Permission bhi leni padegi warden se, isliye main abhi jaa rahi hoon.”

    नेहा ने करवट बदलकर कहा—

    “Tu chal ja… mujhe 15 minute aur sone de.

    Aur haan, mujhe kahin le jaane ki sochna bhi mat abhi.”

    रिवा ने उसके सिर पर हल्की चपत लगाई—

    “Drama queen.

    Main mandir se seedha college gate par milungi, okay?”

    नेहा आधी नींद में ही बोली—

    “Okay baba… jaa ab. Aur dhyan rakhna.”

    रिवा ने अपना face cover लिया, बाल ठीक किए और चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई।

    ---

    बाहर सुबह की ताजी हवा में उसका मन और भी शांत हो गया था।

    पहले दिन के लिए दिल में excitement भी थी और एक हल्की-सी nervousness भी…

    लेकिन रिवा जानती थी—

    जब Mahadev साथ हैं, तो रास्ते अपने आप आसान हो जाते हैं।