जैतपुर की वह पुरानी हवेली का वह राज, जो अभी तक बना हुआ था, सब लोगों के लिए एक गहरा रहस्य है। वहां हवेली में जाने वाला कभी जिंदा लौटकर वापस नहीं आया। आखिर इस राज को जानने के लिए एक पत्रकार रिया पहुंची जैतपुर गांव। क्या होगा, जब वह पत्रकार जाएगी उस हवे... जैतपुर की वह पुरानी हवेली का वह राज, जो अभी तक बना हुआ था, सब लोगों के लिए एक गहरा रहस्य है। वहां हवेली में जाने वाला कभी जिंदा लौटकर वापस नहीं आया। आखिर इस राज को जानने के लिए एक पत्रकार रिया पहुंची जैतपुर गांव। क्या होगा, जब वह पत्रकार जाएगी उस हवेली के अंदर? क्या वह जान पाएगी वहां का कोई गहरा रहस्य, या फिर हमेशा के लिए और लोगों की तरह उसकी सांसें भी वहीं उसी हवेली में हमेशा के लिए दफन हो जाएंगी? यह सब जानने के लिए पढ़िए मेरी स्टोरी डायन एक प्रेम कथा ।
रिया
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विशाल
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रिया रिया यह में क्या सुन रही हूं कि तुम जैतपुर गांव जा रही हो उस भूतिया हवेली के बारे में जानने के लिए,,,,,,,,
यह सुनकर रिया अपनी अलमारी में कुछ ढूंढते हुए बोली हां मां मैं और जनकू आज ही वहां के लिए रवाना हो रहे है,,,,,,,,
यह सुनकर उसकी मां परेशान होते हुए बोली रिया तुम्हें मैंने बताया था ना की जैतपुर गांव की उस हवेली में जाना खतरों से खाली नहीं है,,,,,,,,
जो भी आज तक उस हवेली में गया है जिंदा वापस नहीं आया,यह तुम जानती हो ना तो फिर सब कुछ जानते हुए भी उस हवेली में क्यों जाना चाहती हो,,,,,,,,,रिया की मां प्रेमा ने गुस्से में रिया से कहा,,,,,,,,
यह सुनकर रिया बोली ओहो मां आप भी ना मा कैसी बातें करती हो ऐसा वहां कुछ नहीं है और वैसे से पापा सच कहते हैं कि आप बिल्कुल नहीं बदली हो अब भी बिल्कुल गांव की ही हो, इन सब अंधविश्वासों को मानती हो,,,,,,,,,
यह सुनकर रिया की मां बोली देखो रिया तुम चाहे जो समझो लेकिन मैंने बोल दिया तुम वहां पर नहीं जाओगे,,,,,,,,
तब रिया कुछ कहती उससे पहले ही,,,,,,,,,क्या हुआ भाई मां बेटी में किस बात को लेकर बहस चल रही है,,,,,,, रिया के पापा सुरेंद्र ने अंदर आते हुए कहा,,,,,,,,
अपने पापा को अंदर आते देखकर रिया उसके पास जाकर बोली देखो ना पापा मां मुझे जैतपुर जाने से मना कर रही है,,,,,,,,,
और आप तो जानते ही हो ना पापा कि मैं अपने काम को लेकर कितनी सीरियस हूं,,,,,,,,
और पापा आप तो जानते हो ना पिछली बार जब मैंने अहमदपुर के उस जंगली दुर्ग का पर्दाफाश उसकी सच्चाई उसका रहस्य सबके सामने लाई थी तो खुद कलेक्टर साहब ने अपने हाथों से मुझे सम्मानित किया था,,,,,,,,
यह सुनकर रिया के पापा मुस्कुराते हुए बोले हमारी बेटी है ही इतने काबिल इस बात में कोई शक की गुंजाइश ही नहीं है,,,,,,,
यह सुनकर रिया बोली लेकिन पापा मां का कहना है कि जैतपुर की उस हवेली में डायनों का बास है जबकि मैं इन बातों को नहीं मानती,,,,,,,,
क्योंकि पापा यह डायन भूत प्रेत पिशाच कुछ नहीं होता लोगों के मन का वहम होता है और कुछ नहीं आपको पता है ना अहमदपुर के जंगल में स्थित उस दुर्गे के बारे में भी ऐसी ही अफवाह फैली हुई थी,,,,,,,,,
जिसकी वजह से सब लोग वहां जाने से डरते थे, लोगों का मानना था कि वहां भूत पिचास रहते हैं जो भी वहां जाता है जिंदा वापस नहीं आता,,,,,,,,,
लेकिन पापा वहां की सच्चाई कुछ और थी जिससे लोग अनजान थे और उसी सच्चाई का पता लगाने के लिए जब मैं सावधानी से बिना किसी की नजर में आए उस दुर्ग में गई,,,,,,,,
तब बहां जाकर मुझे पता चला कि वहां कोई भी भूत पिसाच नहीं है, बलिक वह कुछ कुख्यात लुटेरे है जो लोगों को भूत पिशाच के नाम से डराते हैं,,,,,,,,
वे लोगों के डर का फायदा उठाकर रात को आने जाने वाले राहगीरों को लूटते हैं और मारकर उस जंगल में फेंक देते थे,,,,,,,,
क्योंकि जिससे लोगों को यह लगे कि भूत पिशाच ने उसे मार दिया है , यहां तक कि वह लोग जंगली जानवरों का शिकार कर उनके खाल, सिंग आंखें आदि को भी बेच देते हैं और लोगों को यही लगता है कि यह सब कुछ भूत पिशाच ने किया है,,,,,,,,
उन लुटेरों की सच्चाई किसी को पता न चल जाए, इसलिए वह लुटेरे जो भी उस जंगल में दुर्ग के आसपास जाता उसे मार देते,,,,,,,,,
जिस की वजह से लोग वहां जाने से डरने लगे और वो लुटेरे अपना सारा लूट का माल उस दुर्ग में रखते, क्योंकि उस दुर्ग में उनका चोरी का माल सुरक्षित था,,,,,,,,,
पापा उन लुटेरों की वजह से पूरे जिले में लुटेरों का आतंक छाया हुआ था, पुलिस भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही थी चारों तरफ डर का माहौल फैला हुआ था,,,,,,,,,
लेकिन जब मैंने उस दुर्ग में रहने वाले लुटेरों का पर्दाफाश कर लोगों को यह बताया था कि उस दुर्ग में कोई भूत पिशाच नहीं है बल्कि कुछ कुख्यात लुटेरों का काम है,,,,,,,,
सारी सच्चाई सामने आने पर लोगों को तब ज्ञात हुआ कि सच्चाई क्या है जबकि लंबे समय से तो लोग एक अंधविश्वास में ही जी रहे थे,,,,,,,
तब आप ही जानते हैं ना पापा कि मेरा कितना नाम हुआ था और लोगों में फैला बह डर भी दूर हो गया,,,,,,,
यह सुनकर रिया के पापा सुरेंद्र बोले हां बेटा तुम सही कह रही हो यह भूत पिशाच कुछ नहीं होता बस लोगों के मन का वहम अंधविश्वास होता है और कुछ नहीं,,,,,,,,
लेकिन तुम तुम्हारी मां की बातों पर ध्यान मत दो तुम्हें तो पता है बेटा तुम्हारी मां तो बस वहीं कुछ सड़ी गली बातें दोहराती रहती है,,,,,,,, रिया के पापा ने रिया का हौसला बढ़ाते हुए कहा,,,,,,,,
यह सुनकर रिया की मां प्रेमा बोली देखिए जी मैं सही कह रही हूं, जैतपुर की उस हवेली के बारे में कोई झूठी अफवाह नहीं है एक सच्चाई है, वहां जाना खतरों से खाली नहीं है,,,,,,,
मेरी मां बताती थी मेरे नाना जी के बारे में मेरे नाना जी भी जंगल गए थे किसी काम से और आते वक्त रात हो गई तो लोगों का कहना है कि वह तो हवेली में जाते देखे गए थे और वे वापस लौट कर कभी नहीं आए,,,,,रिया की मां प्रेमा अपने अतीत में खोते हुए घबराते हुए बोली,,,,,,,,
यह सुनकर रिया के पापा सुरेंद्र खींचते हुए बोले
देखो प्रेमा तुम बार-बार वही बातें मत दोहराया करो,,,,,,,
अरे हम जानते हैं कि जैतपुर में तुम्हारा ननिहाल है और तुम बचपन से ही अपनी मां के साथ वहां रही हो,,,,,,,
और सच यह है कि वहां के लोगों की बात सुन सुन के तुम्हारा भी दिमाग खराब हो गया है और वहां के लोगों की तरह तो तुम को भी लगता है कि वहां डायन रहती है,,,,,,,
जबकि ऐसा कुछ नहीं है ,देखना मेरी बेटी इस बात का भी पर्दाफाश जरूर करेगी, उस समय तुम्हे खुद ही पता चल जाएगा कि उस हवेली में डायन रहती है या नहीं,,,,,,,
यह सुनकर प्रेमा बोली देखिए जी मेरी बात समझने की कोशिश कीजिए,,,,,,,,
यह सुनकर सुरेंद्र बोले प्रेमा अब मुझे इस बारे में और कुछ नहीं सुनना और ना ही कोई बहस करनी है और बेहतर यही होगा कि तुम भी यह अंधविश्वास बेफिजूल की बातें अपने दिमाग में मत लाया करो,,,,,,,,,
ऐसी अंधविश्वास की बेफिजूल की बातें सुना कर हमारा दिमाग खराब करती है और खुद भी परेशान होती है अगर इन सब के बारे में सोचना छोड़ दोगी तो तुम्हारे लिए और हमारे लिए भी बेहतर होगा समझी तुम,,,,,,, यह सुनकर प्रेमा कुछ नहीं बोली,,,,,,,,
तब सुरेंद्र रिया की तरफ देखते हुए बोले अच्छा बेटा मैं चलता हूं ऑफिस में मुझे कुछ जरूरी काम है,हां लेकिन सावधानी से काम लेना क्योंकि तुम जो काम करती हो ना उस पर कदम कदम पर खतरा भी हो सकता है रिया के पापा ने मुस्कुराते हुए कहा,,,,,,,
यह सुन कर रिया बोली पापा आप चिंता मत कीजिए आपकी बेटी इतनी कमजोर नहीं है वह बहुत बहादुर है देखना वह कैसे यह काम चुटकियों में कर कर आती है,,,,,, यह कहकर रिया अपने पापा के गले लग गई,,,,,,
तब सुरेंदर बाबू अपनी बेटी का गाल प्यार से थपथपाते हुए बोले ठीक है बेटा जाओ, और हां फोन पर अपने पापा को अपने खबर देते रहना तुम्हें पता है ना कि तुमसे एक पल भी दूर हमसे नहीं रहा जाता आखिर तुम हमारे जीने की वजह जो हो,,,,,, रिया के पापा ने मुस्कुराते हुए कहा,,,,,,,
तब रिया बोली ठीक है पापा,,,,,,,
यह सुनकर सुरेंद्रनाथ बोलें ठीक है बेटा अच्छा अब मैं चलता हूं ,यह कहकर सुरेंद्र बाबू अपने ऑफिस के लिए निकल गए,,,,,,,,
सुरेंद्र बाबू के ऑफिस जाने के प्रेमा फिर अपनी बेटी रिया से बोली रिया में तुम्हारी मां हूं और मुझे बेटा तुम्हारी चिंता है अपनी मां के लिए मत जाओ,,,,,,,,,
यह सुनकर रिया बोली मां प्लीज मैंने बोला ना मेरे लिए मेरे काम से बढ़कर कुछ नहीं है, मां अगर मैं इस तरह लोगों की बातें सुनकर डर गई तो फिर मुझ में और बाकी लोगों में क्या अंतर रह जाएगा, जबकि हमारा तो काम ही है लोगों के सामने सच्चाई को लाना,,,,,,,,,
यह कहकर रिया अपनी मां के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली मां आप परेशान मत हो ऐसा कुछ नहीं उस हवेली में,,,,,,,,,
आपको लगता है मां कि उस हवेली में डायनों का वास है यह सिर्फ मां आपके और लोगों के मन का वहम है और कुछ नहीं और देखना मां मैं बहुत जल्द यह सच्चाई सबके सामने भी ले आऊंगी रिया मुस्कुराते हुए बोली,,,,,,,,,
यह सुनकर प्रेमा उदास होते हुए बोली ठीक है बेटा लेकिन अगर तुम अपनी जिद पर अड़ी हुई हो और वहां जाना चाहती हो तो बेटा अकेले मत जाओ, किसी को साथ लेकर जाओ,,,,,,
यह सुनकर रिया बोली मां आप चिंता मत करो मैं जनकू को साथ लेकर जा रही हूं,,,,,,
रिया ने अपनी बात पूरी भी नहीं थी कि अचानक आवाज आई ना रिया ना वहा मैं नहीं जाने वाली तुम्हारे साथ,,,,,,, यह सुनकर रिया ने दरवाजे की तरफ देखा तो वहां पर जनकू उप जनक नंदिनी थी,,,,,,,,
फिर रिया की मां बोली अच्छा बेटा तुम बातें करो मुझे कुछ काम है,,,,,,,यह कहकर बह चली गई,,,,,,,
तब रिया जनकू की तरफ देखते हुए बोली अरे ओ जनकू की बच्ची यह क्या बोल रही है,,,,,,,
यह सुनकर जनकू उसके पास आते हुए बोली सच कह रही हूं रिया,,,,,,, अरे मेरी मौसी कि देवरानी बता रही थी जैतपुर में उसका ननिहाल है,,,,,,,,
वह बता रही थी कि उस हवेली में डायनों का वास है और जो भी वहां जाता है बह जिंदा लौटकर वापस नहीं आता,,,,,,,,
और देखों रिया मुझे अभी इतनी जल्दी नहीं मरना मुझे रुनझुन जी से अपनी शादी करनी है, उसके साथ अपनी जिंदगी जीनी है,,,,,,,यह कहते हुए जनकू के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वह अपने सुनहरे सपनों में खोने लगी,,,,,,,,
तब रिया उसके पास आकर उसके सिर पर एक हल्की सी हाथ की चप्पथ मारती हुई बोली क्या कहा तुमने जनक नंदिनी उप जनकु,,,,,,,,,
मुझे तो लगता है तुमने ही जरूर मां के कान भरे होंगे और यह बुआ जी की देवरानी जेठानी का किस्सा छोड़ो और कान खोल कर सुन लो तुम मेरे साथ जैतपुर चल रही हो,,,,,,,,
यह सुनकर जनक नंदिनी बोली लेकिन रिया अगर वहां सच में डायन हुई तो उसकी बात बीच में काटते हुए रिया बोली अब छोड़ो इन फालतू की बातों को,,,,,,,,
और मेरी बात सुनो मैंने कह दिया ना कि तुम मेरे साथ चलोगी तो चलोगी इसके आगे और मुझे कुछ नहीं सुनना,,,,,,,
फिर रिया कुछ देर चुप रह कर बोली जनकू तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो समझी ना तुम, और आप कोई तुम्हारा बायना नहीं चलेगा रिया ने जंकु की तरफ देखते हुए कहा,,,,,,,,
और फिर बोली और यह क्या छिपकली सी सब दिन कुछ ना कुछ खाती रहती हो लेकिन वजन 100 ग्राम से ज्यादा नहीं होगा तुम्हारा रिया ने उसके हाथ सेव छीन कर फेंकते हुए कहा,,,,,,,
तब जनकू बोली लेकिन रिया मुझे कुछ खाने तो दे,,,,,,,
तब रिया बोली अरे ओ जंकु महारानी यह खाना-पीना बाद में कर लेना पहले भगवान के लिए मुझ पर तरस खाकर हां बाद अब जल्दी से तैयार हो जाओ हमें निकलना है,,,,,,,,
यह सुनकर जनकू उदास होते हुए बोली ठीक है रिया अरे अगर अपनी बेस्ट फ्रेंड के खातिर मेरी जान भी चली गई तो ठीक है लेकिन रुनझुन से मेरा विवाह करने का सपना अधूरा ही चला जाएगा,,,,,,,
यह सुनकर रिया बोली अब चुप कर अपनी यह नौटंकी और जल्दी से तैयार होकर आ हमें निकलना अभी तो है यह सुनकर जनकू बोली ठीक है रिया डांटो मत लेकिन मैं अपना यह सेब तो ले जा सकती हूं ना जनकू अपना सेव उठाते हुए बोली,,,,,,,
यह देखकर रिया कुछ बोलती इससे पहले ही वह बोली ठीक है ठीक है जा रही हूं और वह कमरे से और अपने घर तैयार होने के लिए चली गई,,,,,,,
फिर रिया अपने सिर पर हाथ लगाते हुए खुद से ही बोली यह जनकू की बच्ची भी ना मुझे पागल कर छोड़ेगी यह कहते हुए बह अपना जरूरी सामान अपने बैग में रखने लग गई,,,,,,
रिया बहुत ही होनाहार सुंदर और बहुत ही बहादुर लड़की है वह एक 24-25 साल की पत्रकार है,,,,,,,
और जनक नंदिनी उसकी कॉलेज की फ्रेंड है और अब उसके ही साथ उसके ही ऑफिस में काम करती है जिसे प्यार से सब जनकु कहकर बुलाते है,,,,,,
जनक नंदिनी देखने में दुबली पतली लड़की है मुश्किल से उसमें 45 किलो वजन भी नहीं होगा, जनक नंदिनी अपने ही ऑफिस के एक लड़के रुनझुन से प्यार करती है,,,,,,,
जहा जनक नंदिनी देखने में दुबली पतली लड़की है ,वही रुनझुन देखने में 80- 90 किलो का लड़का है, जनक नंदिनी उससे बहुत प्यार करती है वही रुनझुन भी जनक नंदिनी को चाहता है, ऑफिस में सारे लोग उनकी जोड़ी का कद्दू और भिंडी की जोड़ी कहकर मजाक बनाते हैं,,,,,,,,
बही रिया की मां प्रेमा एक सीधी-सादी औरत है जो बचपन से ही गांव में रही है और शादी के बाद अपने पति के साथ शहर आकर बस गई,,,,,,,
वहीं रिया के पापा सुरेंद्र बाबू शुरू से ही शहर में पले बढ़े है और काफी खुले विचारों के है बह रिया को अपनी बेटी नहीं बेटा मानते हैं और रिया के घूमने फिरने खाने-पीने और कुछ भी पहनने पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगाते हैं,,,,,
सुरेंद्र बाबू और प्रेमा दोनों की ही अपनी इकलौती बेटी रिया में जान बसती है वही रिया भी अपने मम्मी पापा से बहुत प्यार करती है उनका छोटा सा परिवार बड़ा ही खुशहाल जिंदगी जी रहा था,,,,,,
1 घंटे बाद रिया के कहने पर जंनकु तैयार होकर और अपना बैग लेकर रिया के पास उसके घर आ गई,,,,,,,
उसे आए देख कर रिया मुस्कुराते हुए होली आ गई जनकू तुम,,,,,,
तब जनकू रिया को देखकर घबराते हुए बोली अगर तुम कहती हो रिया तो मैं तुम्हारे साथ चलती हूं अपनी बेस्ट फ्रेंड के लिए इतना तो कर ही सकती हूं,,,,,,
यह सुनकर रिया हंसते हुए बोली हां हां क्यों नहीं और वैसे भी जैतपुर की हवेली में हमें डायन अगर मिल भी गई तो बेचारी तुझे तो वैसे ही छोड़ देगी,,,,,,,
क्योंकि तुम्हारे अंदर तो उसे कुछ खाने को मिलेगा ही नहीं ऐसे ही उसे मेहनत करनी पड़ेगी इसलिए तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है, डायन को भी तुम पर तरस आ ही जाएगा इसलिए आराम से चलो,,,रिया हंसते हुए बोली,,,,,,,,
तभी प्रेमा वहां आ गई और आकर रिया के पास आकर बोली बेटा यह माता रानी का लॉकेट है तुम्हारे गले में बांध देती हूं यह तुम्हारी हमेशा रक्षा करेगा ,,,,,,
यह देखकर रिया मुस्कुराते हुए बोली हो हो मां आप भी ना,,
तब रिया की मां बोली बेटा अपनी मां के लिए कम से कम यह माता रानी का लॉकेट तो अपने गले में बंधवा लो जिससे मुझे यह तसल्ली रहेगी कि माता रानी हमेशा तुम्हारे साथ है और तुम्हारी रक्षा करेगी ,,,,,
ठीक है मां यह कहकर रिया ने अपनी मां के हाथ से वह लॉकेट अपने गले में बंधवा लिया,,,,,,,
तब जनक नंदिनी बोली आंटी एक माता रानी का लॉकेट मेरे गले में जरूर बांध दो अगर डायन मिल गई तो,,,, नहीं नहीं मुझे नहीं मरना,,,,,,,
यह सुनकर प्रेमा बोली हां बेटा क्यों नहीं उसने एक लॉकेट माता रानी के चरणों में से लेकर जनक नंदिनी के गले में भी बांध दिया,,,,,,,
तब रिया बोली मां अब हमें चलना चाहिए देर हो जाएगी तब उसकी मां बोली बेटा अपना ध्यान रखना और माता रानी तुम दोनों की रक्षा करेगी,,,,,,
तब रिया बोली मां आप घबराओ मत कुछ नहीं होगा देखना आपकी रिया एक बार फिर कितना बड़ा पर्दाफाश करके लौटेगी,,,,,,
तब रिया की मां ने दोनों के सिर पर हाथ रख दिया और कहा ठीक है बेटा
फिर रिया जनक नंदिनी के साथ जैतपुर के लिए रवाना हो गई,,,,,,
शहर से जैतपुर का सफर बस से लगभग दो-तीन घंटे का था जैतपुर पहुंचते-पहुंचते उन्हें शाम के 5:00 बज चुके थे,गर्मियों का मौसम था इसलिए अभी तक धूप खिली हुई थी,,,,,
जैतपुर पहुंचकर रिया ने वहां के एक घर में जाकर अपना परिचय दिया और उसकी फ्रेंड जनकु के बारे में जानकर उस घर के एक बुजुर्ग आदमी ने उन्हें अंदर बुला कर चारपाई पर बैठने के लिए कहा और खुद दूर कुर्सी पर बैठ गए,,,,,,
फिर वह बुजुर्ग व्यक्ति रिया और जनक नंदिनी की तरफ देखते हुए बोला बेटा तुम पत्रकार हो तो यहां किस काम से आई हो,,,,,,
शायद वह पिछली बार गांव की पाइप लाइन बनने के 6 महीने बाद ही टूट गई थी उसके बारे में खबर लेने आई हो ना,,,,,,
अच्छा किया बेटा आ गई अरे सरकार भी कैसे काम करती है बड़े-बड़े वादे करती है और देखो वोट मांगने तो ऐसे आ जाती है,,,,,,
बड़ी मुश्किल से जाकर पाइप लाइन लगी थी पानी का थोड़ा सुख मिला था गांव में लेकिन 6 महीने भी ना हुए और टूट गई पाइपलाइन अब फिर से बही पानी की किल्लत है बह बुजुर्ग उनकी तरफ देखते हुए बोला,,,,
यह सुन कर जनक नंदिनी हसते हुए बोली अरे नहीं बाबा नहीं हम तो किसी और काम से आए हैं,,,,,,
तभी उस बुजुर्ग आदमी ने अंदर आवाज देते हुए कहा बहू जल्दी से कुछ चाय नाश्ता लेकर आओ,,,,,
तब उस बुजुर्ग आदमी ने हैरानी से उनकी तरफ देखते हुए कहा फिर किस काम से आई हो बेटा,,,,,
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तब रिया ने बोली बाबा हम यहा कुछ जरूरी काम से आए हैं और आपसे भी कुछ मदद चाहिए,,,,,,
यह सुनकर वह बुजुर्ग व्यक्ति बोला मैं कुछ समझा नहीं बेटा,,,,,
तब रिया बोली बाबा हमने सुना है कि यहां गांव से बाहर सुनसान इलाके में एक हवेली है और लोगों का कहना है कि बहा डायन का वास है,,,,,,
जबकि हमको ऐसा नहीं लगता, हमें लगता है कि यह सिर्फ लोगों का मन का वहम है और कुछ नहीं यह डायन भूत प्रेत पिशाच ऐसा कुछ नहीं होता और जरूर हवेली में कोई ना कोई राज छुपा हुआ है इसलिए हम उस हवेली के बारे में जानने के लिए यहां आए हैं,,,,,
रिया के मुंह से उस हवेली के बारे में सुनकर उस बुजुर्ग के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी और वह घबराते हुए बोला ना बेटा ना उस हवेली की तरप ना जाइयो ना, वरना बह डायन तुम्हें भी जिंदा नहीं छोड़ेगी ,,,,,
तब तक एक औरत घूंघट डाले हाथ में चाय के प्याले और नाश्ते में कुछ बिस्कुट नमकीन ले आई और रखकर अंदर चली गई,,,,,
तब उस बुजुर्ग आदमी ने रिया और जनक नंदिनी की तरफ चाय का प्याला बढ़ाते हुए कहा लो बेटा चाय पियो,,,,
फिर चाय की चुस्की लेते हुए रिया बोली क्यों बाबा आप को भी लगता है क्या कि बहा डायन का वास है,,,
यह सुनकर वह बुजुर्ग बोला लगता नहीं है बेटा, वहां सच में ही डायन का वास है,,,,,,,
आज तक जो भी उस तरफ गया है जिंदा वापस नहीं आया है और शाम के 7:00 बजे के बाद तो उस तरफ जाने वाले गांव के रास्ते को ही बंद कर दिया जाता है जिससे गलती से कोई उस तरफ जा भी ना पाए,,,,,
अगर तुम उस हवेली के लिए यहां पर आई हो ना तो बेटा तो वापस लौट जाओ बरना अपनी जान गवाने के सिवा कुछ ना मिलेगा तुम दोनों को बहां पर बह डायन तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेगी,,,,,,
यह सुनकर रिया मुस्कुराते हुए बोली लेकिन आप लोगों को कैसे पता कि वहां पर डायनों का बास है आपने कभी डायनों को देखा है क्या ,,,,,,
यह सुनकर वह बुजुर्ग व्यक्ति उनकी तरफ देखते हुए बोला हां बेटा बहा सच में ही डायनों का वास है कई बार गांव के लोगों के साथ-साथ मैंने भी उस हवेली में से चीखने चिल्लाने रोने और घुंगरू की आवाजें आती सुनी है,,,,,,
यह सुनकर जनक नंदिनी घबराते हुए रिया से बोली मैंने कहा था ना रिया उस हवेली में डायन है,,,,,लेकिन तुम मेरी बात मानती ही कहां हो,,,,,
देखो रिया अभी वक्त है वापस चलते हैं,शहर जाने वाली बस हमें मिल जाएगी और अंधेरा होते होते हम अपने घर पहुंच जाएंगे,,,,,,
क्यों बेवजह अपनी जान यहां रहकर मुसीबत में डालें और वैसे भी भला यह बाबा झूठ थोड़ी ना वोलेंगे ,,,,,,
यह सुनकर रिया बोली तुम तो जानती ही हो ना जनकु मैं यह सब कुछ नहीं मानती और उस हवेली के बारे में पता लगाकर ही रहूंगी,,,,,,
तब जनकू घबराते हुए बोली अब और क्या पता लगाना है अरे भला यहां के लोगों से बेहतर उस हवेली के बारे में कौन जानता होगा,,,, चलो यहां से चलते हैं,,,,,,
यह सुन कर रिया बोली ठीक है तुम घबराओ मत लेकिन मुझे कुछ वक्त सोचने के लिए दो,,,,,,,
तब रिया उस बाबा से बोली बाबा आपको कब से मेरा मतलब आप सब गांव वालों को कब से लगता है कि उस हवेली में डायन रहती है,,,,,,,
और बह हवेली भी तो किसी की धरोहर होगी कोई तो मालिक होगा उस हवेली का तो क्या आप हमें विस्तार से इस बारे में बताएंगे ,,,,,,,,,
रिया की बात सुनकर वह बुजुर्ग बोला बेटा इसके पीछे भी एक बड़ी ही लंबी और मनहूस कहानी है यह सुनकर रिया बोली कैसी कहानी,,,,,, रिया हैरानी से उस बुजुर्ग की तरफ देखते हुए बोली,,,,,
तब वह बुजुर्ग बोला बेटा एक ऐसी कहानी जिसने उस हवेली को एक भूतिया हवेली बना कर रख दिया कभी उस हवेली में भी चहल-पहल हुआ करती थी,,,,,,
यह सुन कर रह रिया बोली बाबा आप हमें विस्तार से बताइए ना उस हवेली के बारे में,,,,,,
फिर मैं बुजुर्ग बोला ठीक है बेटा यह कहकर वह अपने अतीत में खोता हुआ बोला बेटा आज से लगभग 75 साल पहले जब मैं लगभग 5 साल का था, तब उस हवेली में ठाकुर अभय प्रताप का राज था,,,,,,
यह कहकर उस बुजुर्ग ने जो कहानी बताई वह इस प्रकार है,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप के पिता ठाकुर जगजीवन प्रताप की मौत के बाद ठाकुर अभय प्रताप ने उस हवेली का राज संभाला था, इस पूरे गांव पर और आसपास के कई गांवों पर ठाकुर का राज था,,,,,,,
जिस समय ठाकुर अभय प्रताप ने राज संभाला था उस समय उसकी उम्र यही 26- 27 होगी,,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप के पिता ने उसका रिश्ता बचपन में ही अपने दोस्त की बेटी गायत्री के साथ तय कर दिया था,,,,,,,,
गायत्री के माता-पिता की बचपन में ही मौत हो चुकी थी इसलिए गायत्री का लालन-पालन भी ठाकुर अभय प्रताप के साथ उसी हवेली में हुआ था,,,,,,,
अभय प्रताप के माता-पिता ने यह तय किया था कि जब गायत्री जवान हो जाएगी ,तब गायत्री और अभय प्रताप दोनों का पूरे रिती रिवाज से विवाह कर दिया जाएगा,,,,,,,
बही गायत्री और अभय प्रताप सिंह भी दोनों साथ-साथ खेलकूद कर बड़े हुए थे, दोनों अच्छे दोस्त थे और यह दोस्ती जवान होने के बाद प्यार में बदल गई थी,,,,,,
अपने वादे के मुताबिक दोनों के जवान होने पर अभय प्रताप के पिता जी ठाकुर जगजीवन प्रताप ने अभय प्रताप के जन्मदिन पर सभी के सामने उन दोनों की शादी की तिथि तय कर दी,,,,,,,
और सब लोगों के सामने 1 महीने की अगले महीने की पूर्णिमा को दोनों की शादी का शुभ मुहूर्त निश्चित कर दिया,,,,,,,
लेकिन ठाकुर अभय प्रताप और बाईसा गायत्री के विवाह की घोषणा करने के चार-पांच दिन बाद ही एक रहस्यमई ढंग से ठाकुर अभय प्रताप के पिता जगजीवन प्रताप की छत से गिरकर मौत हो गई,,,,,,,
उसकी मौत के बाद ठाकुर अभय प्रताप और सभी लोगों को बहुत दुख हुआ,,,,,,
लेकिन अचानक छत से गिरने से हुई मौत को सभी ने एक हादसा मान लिया सभी को यही लग रहा था कि शायद ठाकुर जगजीवन प्रताप गलती से छत पर से पैर फिसल कर गिर गए लेकिन सच्चाई कुछ और थी,,,,,,,
जैतपुर के ठाकुर अभय प्रताप के पिता जगजीवन प्रताप बहुत ही भले मानुष थे,,,,,,
अपने पिता की मौत के बाद ठाकुर अभय प्रताप ने अपने विवाह की तिथि को आगे बढ़ाना चाहा,,,,,,,
लेकिन अपने राज ज्योतिष के कहने पर उसने तिथि को नहीं बढ़ाया,,,,,,
क्योंकि राज ज्योतिष का कहना था कि इस विवाह के मुहूर्त जैसा शुभ मुहूर्त 12 साल तक आप दोनों के लिए कोई भी मुहूर्त शुभ नहीं है,,,,,,,
और आपके पिताजी की इच्छा थी कि आप दोनों का विवाह इसी शुभ मुहूर्त को होना चाहिए,,,,,,
आपके पिताजी तो आपका विवाह उसी समय आज से लगभग चार-पांच साल पहले ही कर देना चाहते थे जब राजकुमारी बाईसा गायत्री 18 बरस की हुई थी,,,,,
लेकिन पंचांग के अनुसार इस शुभ मुहूर्त जैसा शुभ मुहूर्त नहीं था इसलिए तुम्हारे पिताजी ने इस समय शुभ मुहूर्त में तुम्हारा विवाह होने के लिए इतना लंबा इंतजार किया है,,,,,,,
क्योंकि 75 साल में एक बार यह तिथि और यह पूर्णिमा आती है, और इस मुहूर्त में जो बंधन एक बार बंध जाता है वह सात जन्मों के लिए हजार जन्मों के लिए एक हो जाता है,,,,,,,
अपने राज ज्योतिष की बात सुनने के बाद अपने पिता की इच्छा का मान रखने के लिए ठाकुर अभय प्रताप ने अपनी और राजकुमारी गायत्री के विवाह की तिथि को आगे नहीं बढ़ाया,,,,,,
बही जैसे-जैसे विवाह की तिथि नजदीक आ रही थी, वैसे वैसे हवेली में अन्य घटनाएं घटने लगी,,,,,,,,
यहां तक की हवेली के राज्य में आने वाले आस-पास के गांव और इस गांव में रोजाना बच्चे गायब होने लगे,,,,,,,
आएं दिन घटने वाली घटनाओं को देखते हुए ठाकुर अभय प्रताप ने बहुत कोशिश की लेकिन वह पता नहीं लगा पाए कि आखिर यह बच्चे गायब कैसे हो रहे हैं,,,,,,,
जब ठाकुर अभय प्रताप को कुछ समझ में नहीं आ रहा था तो उसके एक दोस्त ने उसे अपने राज्य से बाहर जंगल में रहने वाले रहने वाले एक तांत्रिक के बारे में बताया,,,,,,
जब ठाकुर अभय प्रताप ने इसके बारे में उस तांत्रिक को बुलाकर पूछा,,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप की बात सुनकर उस तांत्रिक के चेहरे पर गंभीरता के भाव आ गए थे,,,,,,
किसी अनहोनी और काली शक्ति का एहसास उसे जैसे हो गया था लेकिन जो कुछ भी था उसका पता लगाने के लिए उसका हवेली में जाना जरूरी था,,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप किसी भी तरह इन सब घटनाओं का पता लगाना चाहते थे इसलिए वह उस तांत्रिक को हवेली में अंदर लेकर गए,,,,,
तब तांत्रिक ने हवेली में अंदर आकर हाथ में कुछ दाने अनाज के लेकर आंखें बंद कर कुछ मंत्र पढ़ा,,,,,,, कुछ देर बाद उसने अपनी आंखें खोली अब भी उसके चेहरे पर गंभीरता के भाव थे,,,,,,
फिर उस तांत्रिक ने ठाकुर अभय प्रताप की तरफ देखते हुए कहा कि इस हवेली में कोई काला साया है जो यह सब कुछ कर रहा है,,,,,,,,
मुझे मेरी तंत्र विद्या से इतना ज्ञात हुआ है कि शायद वह काला साया ही गांव के मासूम बच्चों को उटाकर अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए शैतान के आगे उनकी बलि देता है,,,,,,
यह सुनकर अभय प्रताप हैरानी से बोले काला साया,बह भी हवेली में लेकिन कैसे आप मुझे इस बारे में बताइए ,,,,,,
यह सुनकर बह तांत्रिक बोला राणा सा मैं इस समय तो इन सब के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता पाऊंगा,,,,,,
क्योंकि कि रात को ही में अपनी तंत्र विद्या से जानकर तुम्हें सुबह सब कुछ सच-सच बता दूंगा और उस काले साए से छुटकारा पाने के निदान भी बता दूंगा,,,,,,,
और हमेशा के लिए उस काले साए को इस हवेली से निकाल कर इस राज्य के सारे गांव को उसके काला जादू से मुक्त कर दूंगा,,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप हाथ जोड़कर बोले बाबा चारों तरफ डर का माहौल बना हुआ है लोग घरों से बाहर निकलने में भी डर रहे है,,,,,,
लेकिन घरों के अंदर भी उनके बच्चे सुरक्षित नहीं है आए दिन घट रही इन घटनाओं से हम काफी परेशान है,,,,,,
चाहे जो हो आप हमें से निदान के उपाय बताइए आपकी बड़ी कृपा होगी, हमें इस मुसीबत से छुटकारा दिलाइए,,,,,,,
यह सुनकर बह तांत्रिक बोला राणा सा आप चिंता मत करो मैं पूरी कोशिश करूंगा उस काले साए से सब को छुटकारा दिलाने की लेकिन मुझे अब चलना होगा क्योंकि तंत्र विद्या मैं मुझे जो सामग्री चाहिए वह भी मुझे लानी है,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप ने अपने सैनिकों से उस तांत्रिक को स सम्मान अपने ठिकाने पर छुड़ाने के लिए कहा फिर बह तांत्रिक सैनिकों के साथ वहां से चला गया,,,,,,,
उस तांत्रिक की बात सुनकर ठाकुर अभय प्रताप को थोड़ी तसल्ली हुई कि शायद अब उन सभी मुसीबतों से उन्हें छुटकारा मिल जाए,,,,,,
लेकिन उसे यही बात खाए जा रही थी आखिर हवेली पर उस काली शक्तियों का साया आखिर कौन है जो हवेली में इन काली शक्तियों का प्रयोग कर रहा है,,,,,,,
उसे इतना परेशान देखकर बाईसा गायत्री उसके पास आकर बोली क्या हुआ राणा सा आप कुछ परेशान हो,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले हां,,,,, यह कहकर उसने सारी बात बाईसा गायत्री को बताई,,,,,,
सारी बात सुनकर बाईसा गायत्री बोली आप चिंता मत कीजिए राणा सा देवी मां पर भरोसा रखिए सब कुछ ठीक हो जाएगा और काली शक्तियां चाहे कितनी भी शक्तिशाली हो लेकिन देवी मां की शक्ति के आगे नहीं टिक सकती,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले काश ऐसा ही हो देवी मां हमारा साथ दें,,,,,,,
तब बाईसा गायत्री बोली राणा सा रात होने को आई है आज हमने आपके पसंद का भोजन बनवाया है चलिए ग्रहण कीजिए,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले जरूर और वह बाईसा गायत्री के साथ भोजन करने के लिए चले गए,,,,,
सुबह जब ठाकुर अभय प्रताप ने अपनी सैनिक उस तांत्रिक को बुलाने के लिए जंगल में उसके ठिकाने पर भेजे,,,,,,,
लेकिन जब सैनिकों ने वापस आकर ठाकुर अभय प्रताप को बताया कि तांत्रिक की रात को ही किसी रहस्यमई ढंग से मौत हो गई,,,,,,
जब वह सैनिक जंगल में उस तांत्रिक की गुफा में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सारा सामान अस्त-व्यस्त था और उस तांत्रिक का सिर गायब था,,,,,,,,
और उसका धड़ जमीन पर पड़ा हुआ था चारों तरफ खून खून फैला हुआ था शायद किसी ने बेरहमी से उसकी हत्या कर दी थी,,,,,,
जब ठाकुर अभय प्रताप ने सुना तो वह बहुत परेशान हो उठे, लेकिन उसे इतना तो समझ में आ गया था कि उस तांत्रिक की हत्या उसी ही काले साए ने की है,,,,,,,
अब तो जैसे ही यह खबर पूरे राज्य में फैली तो लोग काफी घबरा उठे सोचने लगी इतने शक्तिशाली तांत्रिक की इतनी बेरहमी से बह काला साया हत्या कर सकता है तो उन लोगों का क्या हाल होगा,,,,,,,
इन सब के बारे में सोचकर ठाकुर अभय प्रताप काफी परेशान रहते ,हवेली में और आसपास के गांव में घटनाएं दिनों दिन बढ़ती जा रही थी, लोग काफी डरे हुए थे चारों तरफ उस काले साये का डर पसरा हुआ था,,,,,,
एक दिन जब ठाकुर अभय प्रताप बहुत ज्यादा परेशान थे तो वह अपनी प्रेयसी और अपनी होने वाली धर्मपत्नी गायत्री से मिलने उसके कक्ष में गए,,,,,,
एक वही तो थी जो उसका दर्द समझती थी और बुरे वक्त में उसका सामना करने का हौसला देती थी,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप और बाईसा गायत्री बचपन से ही अपनी बातें और अपनी समस्या एक दूसरे को बताते आए थे,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप, बाईसा गायत्री और अपनी माता के अलावा किसी को भी अपनी परेशानी खुलकर नहीं बताता था,,,,,,,
लेकिन अपने पिताजी की मौत के बाद उसकी मा शा की तबीयत अक्सर ही ज्यादा खराब रहती थी, इसलिए ठाकुर अभय प्रताप उसे कुछ भी बता कर परेशान नहीं करना चाहते थे,,,,,,
वहीं बाईसा गायत्री जोकि काफी समझदार थी राणा सा अभय प्रताप सिंह की हर समस्या में खुलकर मदद करती,,,,,,
दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे हर कोई महल में बाईसा गायत्री के अच्छे व्यवहार के कारण खुश था,,,,,,
क्योंकि बाईसा गायत्री किसी ने भी ऊंच-नीच का फर्क नहीं करती थी लोगों का कहना था कि उसमें दया तो जैसी कूट-कूट कर भरी हो,,,,,,,
दूसरे के दर्द यानी किसी बेजुबान जानवर के दर्द को देखकर भी वह तड़प उठती थी हमेशा दूसरों की मदद करना और देवी मां की आराधना करना यही उसका जीवन था,,,,,,
बाईसा गायत्री देवी मां की बड़ी भक्त थी सुबह शाम देवी मां की आरती करना उसकी पूजा अर्चना करना यही उसका नियम था, वह शुद्ध शाकाहारी थी किसी भी बेजुबान जानवर की हत्या करने के खिलाफ थी,,,,,,,
पूरे राज्य में देवी मां की किसी भी उत्सव पर वह दान दक्षिणा भी बढ़-चढ़कर करती थी उसके उसमें उस राज्य की रानी सा बनने के सभी गुण थे,,,,,,
जब ठाकुर अभय प्रताप बाईसा साहब गायत्री के कक्ष में गए तो उस समय वहां बाईसा गायत्री नहीं थी,,,,,,
उस कमरे में जाकर जब ठाकुर अभय प्रताप ने गायत्री को बहा नहीं पाया तो वह वापस आने लगे,,,,,,,
तभी उनकी नजर गायत्री की अलमारी की तरफ गई जो उस वक्त खुली हुई थी उसमें कुछ देखकर ठाकुर अभय प्रताप वहीं रुक गए और अलमारी के पास जाकर देखा,,,,,,
उसने उस अलमारी में कुछ ऐसा देखा कि ठाकुर अभय प्रताप सिंह के पैरों तले जमीन खिसक गई,,,,,,,
उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि जो उसने देखा वह सच है या नहीं,,,,,,
बाईसा गायत्री की उस आलमारी में एक थैली मैं कुछ काला जादू और जादू टोना करने का सामान था,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप काफी हैरान हो गए उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था बाईसा गायत्री के कमरे की अलमारी में काले जादू का सामान लेकिन बाईसा गायत्री को इन सब से क्या काम है,,,,,,, आखिर यह सब क्या है उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप इसी सोच में डूबे हुए थे तभी उसे उस अलमारी में एक विचित्र तरह का निशान दिखाई दिया,,,,,,,
उस विचित्र निशान को देखकर ठाकुर अभय प्रताप ने जैसे ही उस निशान को छुआ तो बह अलमारी एक तरफ खिसक गई और उसके पीछे एक दरवाजा बन गया,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप को और ज्यादा हैरान हुई बह सोचने लगी यह दरवाजा लेकिन इस बारे में तो उसे आज तक नहीं पता था यहां तक कि शायद ही महल में इस बारे में किसी को पता होगा,,,,,,,,
और यह दरवाजा राजकुमारी गायत्री के कमरे में लेकिन फिर जैसे ही बह उस दरवाजे के पास आएं तो देखा कि वह दरवाजा जैसे कहीं जा रहा हो,,,,,,,
बही अंदर दरवाजे के दूसरी तरफ मसाल चल रही थी जिससे थोड़ा उजाला हो रहा था,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप की सच्चाई क्या है यह पता लगाने के लिए जैसे ही उस दरवाजे के अंदर गये तो उसे दरवाजे के बाएं तरफ एक मशाल जलती हुई मिली,,,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप ने जैसे ही उस जलती हुई मशाल को जैसे ही अपने हाथ में लिया तो उस मसाल के पास ही उसे एक निशान और दिखाई दिया जो बिल्कुल वैसा ही था जैसा अलमारी में दिखाई दिया था,,,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप ने जैसे ही उस निशान को छुआ तो वह दरवाजा बंद हो गया यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप सोचने लगे कि वह आखिर कहां पर आ गया,,,,,,,
यह सोचते हुए उसने फिर से वह निशान छुआ तो दरवाजा खुल गया, ठाकुर अभय प्रताप को समझ में आ चुका था कि इन विचित्र निशान का संबंध दरवाजा खोलने और बंद करने से है,,,,,,,
फिर ठाकुर अभय प्रताप ने वापस उस निशान को छूकर दरवाजा बंद किया और आखिरी इन सब के पीछे की सच्चाई क्या है यह पता लगाने के लिए उस मसाले को लेकर उस मशाल के उजाले की मदद से आगे बढ़ते लगें,,,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे उसे बह गुफा एक गहरी और रहस्यमई गुफा जैसी प्रतीत हो रही थी,,,,,,,,
जैसे जैसे वह आगे बढ़ते जा रहे थे वैसे वैसे उसी जगह जगह जानवरों के इंसानों के नर कंकाल मिल रहे थे जिसे देखकर ठाकुर अभय प्रताप को कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,,,,,,
लगभग 10 मिनट चलने के बाद अचानक जैसे ठाकुर अभय प्रताप किसी चीज से टकराकर गिरने वाले थे लेकिन उसने अपने आप को संभाल लिया फिर जैसे ही उसने नीचे देखा तो देखा कि वहां पर नर कंकालों का एक ढेर लगा हुआ था,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप काफी परेशान हो उठे उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था लेकिन फिर भी बिना रुके वह आगे बढ़ते रहें,,,,,,,
फिर अचानक उसे एक बड़ा सा खण्डरनुमा हॉल दिखाई दिया जिसमें से जैसे कोई रोशनी आ रही हो,,,,,,
बही साथ में ही उस खंडहर नुमा हॉल में से अजीब तरह का आव्हान करने की आवाज सुनाई दे रही थी,,,,,,,
यह देखकर और उस आवाज को सुनकर उस खंडहर नुमा हॉल में जाने से पहले ठाकुर अभय प्रताप ने कुछ सोचा,,,,,,,
फिर उसने उस मसाल को एक तरफ दीवार पर रखा और अंधेरे में ही छुपते छुपाते उस खंडहर नुमा हॉल की तरफ गए,,,,,,,
उस खंडहर नुमा हॉल में पहुंचकर उसके एक विशाल खंम्भे के पीछे ठाकुर अभय प्रताप छुप कर बैठ गए और आगे का नजारा देखने लगे,,,,,,,
उसने देखा कि उस खंडहर नुमा हॉल में सामने एक बड़ी ही भयानक और विचित्र मूर्ति लगी हुई थी जिसे देखकर हर किसी की चीख निकल जाए,,,,,,
वह मूर्ति बड़ी ही भयानक और डरावनी थी बड़ी-बड़ी आंखें जो बड़ी ही भयानक थी साथ मुंह से बाहर एक लंबी जीभ बाहर की तरफ लटक रही थी,,,,,,
जिससे जैसे खून टपक रहा हो लंबे लंबे दांत उसकी विचित्र मूर्ति की एक झलक ही किसी की भी जान निकालने के लिए काफी थी,,,,,,
उस विचित्र मूर्ति की आंखों से हरे रंग की रोशनी निकल रही थी और इधर-उधर मासूम बच्चों के नर कंकाल पड़े हुए थे,,,,,,
उस विचित्र और डरावनी मूर्ति को देखकर ठाकुर अभय प्रताप ने अंदाजा लगा लिया कि यह मूर्ति एक शैतान की है,,,,,,,,
लेकिन ठाकुर अभय प्रताप को अभी तक भी अजीब आह्वान करने की आवाज सुनाई दे रही थी लेकिन यह आह्वान कौन कर रहा है यह ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था,,,,,,,,
वही उस मूर्ति को देखकर ठाकुर अभय प्रताप सोचने लगे कि लेकिन यह मूर्ति इस गुफा में आखिर यह सब क्या है वह अभी इसी सोच में डूबे हुए थे,,,,,
बही उस खंडहर नुमा गुफा में इधर-उधर चमगादड़ लटक रहे थे, चारों तरफ मासूम बच्चों के नर कंकाल जानवरों की नर कंकाल पड़े हुए थे बड़ी ही भयानक थी वह गुफा,,,,,,,
तभी यह पता लगाने के लिए कि इस विचित्र शैतानी मूर्ति की आराधना कौन कर रहा है ठाकुर अभय प्रताप ने इधर-उधर देखा,,,,,,,,
तब अचानक ठाकुर अभय प्रताप की नजर उस मूर्ति के सामने बैठकर विचित्र तरीके से उस शैतान का आव्हान करते हुए किसी औरत पर पड़ी,,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप को हैरानी हुई वह सोचने लगा कि इस शैतान का आव्हान वह भी एक औरत कर रही है,,,,,,
लेकिन यह औरत कौन है यह ठाकुर अभय प्रताप को समझ में नहीं आया,,,,,,,,
क्योंकि ठाकुर अभय प्रताप की तरफ उस औरत की पीठ थी जिसकी वजह से ठाकुर अभय प्रताप को उस औरत का चेहरा साफ दिखाई नहीं दे रहा था,,,,,,
यह सोचकर उसने बड़ी ही सावधानी से कदम बढ़ाऐ और उस मूर्ति से कुछ ही दूरी पर स्थित एक खंबे के पास जाकर चिपक कर बैठ गया और ध्यान से देखने लगे,,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप ने जैसे ही उसने उस औरत का चेहरा देखा तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई,,,,,,,
शैतान की उस विचित्र मूर्ति के आगे आव्हान करती उस औरत को देखकर ठाकुर अभय प्रताप को जैसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि वह जो देख रहा है वह सच है,,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप ने अपनी आंखों के सामने जो दृश्य देखा था उसे देखकर बह अपने आप से ही बातें करने लगा कहने लगा नहीं यह नहीं हो सकता हो,,,,,,,,
लेकिन अपनी आंखों के सामने जो देख रहा है बह अभी तो हकीकत है,,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप ने जिस औरत को देखा वह औरत कोई और नहीं बाईसा गायत्री थी जिसके एक हाथ में एक मासूम बच्चे का कटा सिर था तो दूसरे हाथ में एक सिर कटे मुर्गे का धड़ था,,,,,,
जिन से खून बह रहा था और वह खून बाईसा गायत्री के आगे रखी एक बर्तन में टपक रहा था लेकिन वह आंखें बंद करके उस शैतान का आव्हान कर रही थी,,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप को तो ऐसे लगा जैसे उसके पैरों तले जमीन खिसक गई हो उसने देखा कि बाईसा गायत्री अजीब अजीब तरह के आव्हान कर रही थी,,,,,,,,
फिर उसने उस सिर को सामने जल रही अग्नि में समर्पित किया और उन से निकले खून को उस शैतान की मूर्ति को पिलाना शुरू कर दिया फिर उसमें बजे थोड़े उनको खुद भी गई और उस मुर्गे के अटपटे धड़ को उस नोच कर खा गई,,,,,,,
जिसकी वजह से बाईसा गायत्री का पूरा चेहरा खून से सन गया और बड़ा ही खूंखार लग रहा था,,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप के चेहरे पर घृणा के भाव आ गए उसका चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा उसका मन तो ऐसे किया कि बह अभी जाकर अपनी तलवार से बाईसा गायत्री को मौत के घाट उतार दे,,,,,,,,
लेकिन फिर उसने सोचा कि इस तरह उसे यहां आसानी से सजा नहीं दे सकते उसे सभी के सामने इसे सजा देंगे जिससे लोगों में जो डर व्याप्त है बह कम हो,,,,,,,,
यह सोचकर ठाकुर अभय प्रताप सोचने लगे अगर उसने अपने गुस्से में आकर यहां बाईसा गायत्री को सजा देने की सोची तो यह भी तो हो सकता है बाई सा गायत्री उसे उस काले जादू में कैद करके हमेशा के लिए यहीं पर कैद कर दे या फिर मौत के घाट उतार दे,,,,,,,,,
उसे अपनी जान का डर नहीं था लेकिन अगर ऐसा हुआ तो बाईसा गायत्री कही इन सब की सजा और मासूम लोगों को ना दे दे साथ में ही फिर बाईसा गायत्री का सच किसी को पता नहीं चल पाएगा,,,,,,
यह सोचकर उसने उस समय चुप रहना ही बेहतर समझा वह भी यही सोच रहा थी कि फिर उसकी नजर पड़ी कि जो सामने जमीन पर उस बच्चे का का शरीर पड़ा था बह अब बाईसा गायत्री के हाथ में था,,,,,,
जिसे अब बह अपने मुंह से लगाकर उसका खून चूसने लगी,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप को तो जैसे अपने आप पर काबू नहीं हो रहा था साथ में ही उसे काफी तकलीफ हो रही थी,,,,,,,
जैसे उसकी आंखें जो देख रही है उस पर विश्वास नहीं कर पा रही थी,,,,,,,
क्योंकि बाईसा गायत्री ऐसा कर सकती है यह वह कभी सोच भी नहीं सकती थी,,,,,,,,
जिससे उसने अपनी जान से ज्यादा प्यार किया खुद से बढ़कर विश्वास किया बह ऐसे कैसे कर सकती है उसका दिल यह मानने को तैयार नहीं था,,,,,,,,
फिर ठाकुर अभय प्रताप सोचने लगे इसका मतलब आज तक जो राज्य में घटनाएं घट रही थी वह इसी वजह से कट रही थी मासूम बच्चों के लोगों के गायब होने के पीछे इसका हाथ था,,,,,,,
फिर ठाकुर अभय प्रताप गुस्से में वहां से उठे और छुपते छुपाते हुए वापस उस खंडहर नुमा हॉल से निकलकर उस मसाल को हाथ में लेकर उस गुफा को पार करते हुए उसी कमरे में के दरवाजे के पास आ गए,,,,,,,
फि उसने उस अजीब तरह के निशान को छुआ दरवाजा खुल गया और अलमारी में जाकर उस निशान को छूकर उस दरवाजे को वापस बंद कर दिया,,,,,,,
जैसे ही ठाकुर अभय प्रताप बाईसा गायत्री के कक्ष से बाहर निकलकर अपने कक्ष की तरफ बढ़े तो उसे भागवती मिल गई,,,,,,,
भागवती गायत्री की सौतेली बहन थी दोनों बहनों में ही 1 महीने का अंतर था भगवती गायत्री से एक महीने छोटी थी,,,,,,
लेकिन उन्हें देखकर हर कोई कहता कि उन दोनों में संगी बहनों से भी बढ़कर प्रेम है दोनों अधिकतर एक दूसरे के साथ रहती थी,,,,,,
तब भागवती ठाकुर प्रताप को इतना परेशान देखकर बोली क्या हुआ ठाकुर सा कोई परेशानी है क्या,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया और अपने कमरे अपने कक्ष में चला गया कक्ष में आते ही उसने दरवाजा बंद कर लिया और अपने बेड पर आकर बह धम्म से बैठ गया,,,,,,,
उसकी आंखों के सामने बार-बार वही मंज़र घूमता नजर आ रहा था,,,,,,
उसका दिल कहता कि जो उसने देखा वह सच नहीं था वही उसका दिमाग कहता की कानों का सुना गलत हो सकता है लेकिन आंखों देखा भला कैसे झूठ हो सकता है,,,,,,,,
तब ठाकुर सा अभय प्रताप सोचने लगे अगर कोई उसे इस बारे में बताता तो बह उसकी जान ले लेता लेकिन जो कुछ उसने अपनी आंखों से देखा उसे बह कैसे भूल सकता है,,,,,,,
फिर कभी वह अपने आपसे बातें करते हुए कहता नहीं यह नहीं हो सकता यह उसके मन का भ्रम भी हो सकता है,,,,,,
तभी दूसरे ही पल अपने आप से कहता नहीं यह भ्रम नहीं हो सकता यही सच्चाई है भला आंखों का देखा झूठ कैसे हो सकता है भ्रम में तो वह आज तक था,,,,,,
आज तक उसने बाईसा गायत्री पर कितना भरोसा किया और उसने उसके भरोसे का इस तरह फायदा उठाया है,,,,,,
चाहे जो हो जाए लेकिन मैं इस तरह उस पर जरा भी दया नहीं करेंगे और उसमें जो घिनौनी हरकतें की है इसके लिए उसे उसके किए की सजा जरूर देंगे,,,,,,
तभी उसने कुछ सोचा और एक नौकर से कहकर भागवती को बुलावा भेज दिया,,,,,,
बही ठाकुर सा अभय प्रताप सिंह का बुलावा मिलते ही भगवती भाग कर आई,,,,,,
तब ठाकुर अभय प्रताप भागवती की तरफ देखते हुए गुस्से में बोले तुम्हारी ही बहन है राजकुमारी गायत्री और तुम हमेशा उसके साथ रहती हो तुम्हें अच्छे से पता होगा कि वह क्या करती है क्या नहीं,,,,,,
यह सुनकर भागवती घबराते हुए बोली मैं कुछ समझी नहीं राणा सा,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप गुस्से में उसके पास जाकर बोले तुम अच्छे से जानती हो कि मैं क्या पूछना चाहता हूं आज तक राज्य में जो कुछ भी घटनाएं घटित हो रही थी मासूम बच्चे आदमी जो कोई गायब हो रहा था उनके पीछे किसका हाथ है बताओ हमें,,,,,,,
यह सुनकर भागवती घबराते हुए बोली हमें नहीं मालूम राणा सा,,,,,,
तब ठाकुर अभय प्रताप ने अपनी तलवार निकाली और कहा अगर अपनी जान प्यारी है ना तो सच सच बता दो वरना मैं इसी वक्त तुम्हें मौत के घाट उतार दूंगा,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती घबराते हुए हाथ जोड़कर बोली ठीक है ठाकुर सा में सब कुछ सच सच बताती हूं मैं आज तक आप से सच नहीं छुपाना चाहती थी, सब कुछ आपको बताना चाहती थी,,,,,,
लेकिन मुझे डर था कि आप मेरी बातों पर विश्वास नहीं करेंगे और मेरे एक सच्चाई बताने से ना जाने कितने जाने और चली जाती इस वजह से मैं चुप रही,,,,,,,
हां कुंवर सा हां मुझे पता है कि आज तक जो भी राज्य में घटनाएं घट रही थी वह जीजी सा गायत्री की वजह से ही घट रही थी,,,,,,,
बचपन से ही वह काले जादू तंत्र मंत्र में पारंगत थी जैसे जन्म से ही उसने सब कुछ सीखा हुआ हो वह अकेले में इन सब का प्रयोग लोगों को नुकसान पहुंचाने में किया करती,,,,,,,
कभी जो भी उसे खेल खेल में भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता जीजी सा उसे ऐसी सजा देती कि उसकी जिंदगी भी मौत से बदतर हो जाती थी,,,,,,
एक बार बाबूसा को इस बारे में पता चला तो उसने जीजी सा गायत्री को बहुत डांटा इन सब से रुष्ट होकर जीजी सा गायत्री गुस्से में बोली कि इन सब का अंजाम अच्छा नहीं होगा,,,,,,,
और यही हुआ एक महीना भी नहीं हुआ था कि बाबोसा हमें छोड़ कर चले गए धीरे-धीरे पूरा खानदान जैसे मौत को ही प्रिय हो गया हो,,,,,,
और इन सब के पीछे जीजी सा गायत्री का ही हाथ था वह चाहती तो मुझे भी मार सकती थी लेकिन बचपन से ही मैं उससे डर कर रहती थी,,,,,,,
मैं उसकी राजदार थी लेकिन किसी को इस सच्चाई के बारे में जाकर भी बता नहीं सकती थी जिसकी वजह से उसने मुझे जिंदा छोड़ दिया,,,,,,
फिर आपके बाबूसा हमें यहां पर लेकर आ गए यहां आकर भी उसने अपना वह काम नहीं छोड़ा दिनों दिन उसकी शक्तियां बढ़ती गई,,,,,,,
यही नहीं राणा सा आपके पिताश्री की मौत के पीछे भी उसी का हाथ है राज्य में जो कुछ घटनाएं घटित हो रही है उसके पीछे भी उसका हाथ है,,,,,,
वह आपसे सच्चा प्रेम नहीं करती वलिक इस जैतपुर की महारानी बनकर और काली शक्तियों में पारंगत होकर पूरे जैतपुर पर पूरी दुनिया पर अपनी काली शक्तियों से राज कर काली शक्तियों की मल्लिका बनना चाहती है यही उसकी इच्छा है,,,,,,
मैं चाहते हुए भी आपको सच्चाई नहीं बता पाई क्योंकि मुझे डर था कि जिस तरह इसने मेरे बाबोसा हमारे पूरे खानदान को खत्म कर दिया,,,,,,
कहीं ऐसा ही वह आपके साथ और इस परिवार के साथ ना कर दे इस वजह से चुप रही,,,,,,
मैं मानती हूं कि यह सच्चाई छुपाकर मैंने गलत किया है अगर इसकी आप मुझे कोई सजा देना चाहे तो दे सकते हैं मुझे कोई एतराज ना होगा क्योंकि शायद यही मेरी सजा होगी यह कहते हुए भागवती की आंखों में आंसू छलक आए और वह चुप हो गई,,,,,
बही ठाकुर अभय प्रताप सिंह ने जैसे ही यह सुना तो उसका चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा बह सोचने लगा इसका मतलब राज्य में जो कुछ हो रहा है और उसके पिता श्री की मौत सब के पीछे बाईसा गायत्री ही है,,,,,,,
फिर उसने भागवती की तरफ देखते हुए कहा तुम अब जा सकती हो,,,,,
यह सुनकर भागवती बोली जी राणा सा और बह चली गई,,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप काफी गुस्से थे वह कभी सोच भी नहीं सकते कि ऐसा भी हो सकता है,,,,,,,
तभी ठाकुर अभय प्रताप की मां से उसके पास आई और उसे परेशान देखकर बोली क्या हुआ कुंवर सा,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप ने कहा कुछ नहीं माशा बस थोड़ी तबीयत ठीक नहीं है,,,,,,
यह सुनकर उसकी मासा हड़बड़ाते हुए बोली क्या हुआ बेटा बैध जी को दिखाया क्या,,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोला हां,,,,, वैसे माशा आपकी तबीयत भी ठीक नहीं है आप जाकर आराम कीजिए,,,,,
यह सुनकर ठाकुर प्रताप की मां बोली बेटा तुम काफी परेशान लग रहें हो कोई ना कोई बात तो जरूर है बताओ क्या बात है,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले नहीं माशा ऐसी कोई बात नहीं है,,,,,,
तब उसकी मासा उसके सर पर हाथ रखते हुए बोली जन्म से जानती हूं तुम्हें बेटा जब तुम परेशान होते हो ना तो तुम्हारे चेहरे पर परेशानी साफ झलकती है,,,,,
अपनी मां को बताओ बेटा क्या बात है अगर नहीं बताओगे तो मुझे यह बात अंदर ही अंदर खाए जाएगी,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप अपने आप को रोक नहीं पाए और बोले माशा राज्य में जो कुछ घटनाएं घटित हो रही है उन सब के पीछे राजकुमारी गायत्री का हाथ है,,,,,,
यह सुनकर उसकी मां से काफी हैरान रह गई और बोली यह क्या बोल रहे हो बेटा,,,,,
तब ठाकुर अभय प्रताप बोला हां मासा मैं सच कह रहा हूं,,,, यह कह कर उसने सारी बात बता दी साथ में ही भगवती ने जो कुछ भी बताया था वह भी बता दिया,,,,,
सारी बात सुनकर ठाकुर अभय प्रताप की मां बोली नहीं बेटा चाहे तुमने अपनी आंखों से कुछ भी देखा हो चाहे किसी ने कुछ भी बताया हो,,,,,,
लेकिन मेरा दिल कहता है कि बाईसा गायत्री ऐसा नहीं कर सकती तुम्हें जरूर कोई ना कोई गलतफहमी हुई है ऐसा नहीं हो सकता,,,,,,
तब ठाकुर अभय प्रताप सिंह बोले नहीं मां सा अगर कोई मुझे इस बारे में बताता ना तो मैं उसका सिर धड़ से अलग कर देता,,,,,,
लेकिन आज मैंने खुद अपनी आंखों से राजकुमारी गायत्री को उस भयानक शैतान के मूर्ति के आगे उसका हवन करते हुए देखा है,,,,,,
मासा मैं बता नहीं सकता उस समय उसका चेहरा कितना डरावना लग रहा था,,,,,, ठाकुर अभय प्रताप सिंह गुस्से में बोले,,,,,,
यह सुनकर उसकी मां बोली बेटा शायद तुम्हें सारी सच्चाई नहीं पता है सच्चाई कुछ और है, बाईसा गायत्री ऐसा नहीं कर सकती मेरा दिल कहता है,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप सिंह ठीक है माशा मैं सारी सच्चाई पता लगाने की कोशिश करूंगा आप का स्वास्थ्य ठीक नहीं है आप जाकर आराम कीजिए,,,,,,
यह कहकर उसने अपनी मां को आराम करने के लिए भेज दिया,,,,,
वह नहीं चाहते थे कि उसकी मासा ज्यादा परेशान हो क्योंकि बचपन से ही बाईसा गायत्री को उसने बड़े लाड प्यार से पाला था उसकी मासा ने,,,,,,,
बड़ा भरोसा करती थी बह बाईसा गायत्री पर तो बह इतनी जल्दी तो यह सब कुछ मानने वाली नहीं थी और जरा सी परेशान होने पर उसकी तबीयत खराब हो जाती थी,,,,,,
इस वजह से ठाकुर अभय प्रताप उसे परेशान देखना नहीं चाहते थे,,,,,,
अब अपने कक्ष में बंद ठाकुर अभय प्रताप ने जो कुछ पहले देखा उसे याद कर कभी उसका चेहरा गुस्से से तमतमाने लगता,,,,,,
तो कभी उसकी आंखें भर आती कि उसने बाईसा गायत्री से खुद से बढ़कर प्रेम किया था खुद से ज्यादा उस पर भरोसा किया था और उसने उसके भरोसे का उसके विश्वास का यह सिला दिया,,,,,,
वह कभी सोच भी नहीं सकता कि जिससे उसने अपने जीवन में सबसे ज्यादा प्रेम किया था मैं उसे इतना बड़ा दर्द दे देगी यह सोचकर ना चाहते हुए भी उसकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगे,,,,,,
फिर उसने अपने आप को काबू में किया और सोचने लगा एक शासक का धर्म होता है कि वह निष्पक्ष न्याय करें,,,,,,
बह इस समय अपनी प्रेम की भावनाओं के वशीभूत होकर कमजोर नहीं पड़ेगा अपने हित के लिए ही सोचेगा,,,,,,,
यह सोचते हुए वह बाहर आया तो उसने देखा कि सामने से बाईसा गायत्री पूजा का थाल हाथ में लिए आ रही थी,,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप का चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा उसका मन किया कि वह अभी जाकर अपनी तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर दे,,,,,,
बही बाईसा गायत्री जैसे ही उसके पास आई तो बोली क्या हुआ राणा सा कोई परेशानी है क्या,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप गुस्से में कुछ नहीं बोले और उसे देखने लगे,,,,,
तब बाईसा गायत्री मुस्कुराते हुए बोली माता रानी की पूजा करने गई थी यह लीजिए प्रसाद,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बिना कुछ बोले गुस्से में वहां से चले गए,,,,,
यह देखकर बाईसा गायत्री भी परेशान हो बह भी पीछे पीछे ही ठाकुर अभय प्रताप के पास गई और बोली राणा सा कोई परेशानी है क्या अगर कोई ऐसी बात है तो मुझे बताइए,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप कुछ नहीं बोले तो बाईसा गायत्री फिर बोली कोई परेशानी हो तो मुझे बताइए शायद मैं उसका कोई हल निकाल सकूं,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप सिंह गुस्से में बोले सारी परेशानियों की जड़ तो तुम ही हो,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप के मुंह से पहली बार अपने लिए ऐसे शब्द सुनकर और उसे इस लहजे में जैसे अपने आप से बात करते देखकर बाईसा गायत्री हैरानी से बोली मतलब आप क्या कहना चाहते हैं राणा सा मैं कुछ समझी नहीं,,,,,,
अगर मुझसे कोई भूल हुई है तो मुझे बताइए अगर जाने अनजाने में मैंने आपको कोई ठेस पहुंचाई है तो मैं क्षमा चाहती हूं लेकिन भगवान के लिए ऐसे बात ना कीजिए साफ-साफ बताइए कि आखिर बात क्या है,,,,,,बाईसा गायत्री परेशान होते हुए ठाकुर अभय प्रताप की तरफ देखते हुए बोली,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप गुस्से में बोले अब ज्यादा भोली भाली बनने की कोशिश मत करो, राजकुमारी गायत्री यह बताओ तुम इस समय कहां से आ रही हो,,,,,,
यह सुनकर बाईसा गायत्री हैरानी से उसकी तरफ देखते हूए बोली मंदिर से देवी मां की मंदिर से,,,,,
तब राणा साहब प्रताप सिंह गुस्से में बोली बिल्कुल झूठ आज मैंने खुद अपनी आंखों से तुम्हें उस शैतान की पूजा अर्चना करते देखा है,,,,,, ठाकुर अभय प्रताप ने गुस्से में उसकी तरफ देखते हुए कहा,,,,,,
यह सुनकर बाईसा गायत्री हैरानी से बोली शैतान की पूजा कौन से शैतान की राणा सा में मंदिर गई थी माता रानी की पूजा अर्चना करने के लिए,,,,,,,
बाईसा गायत्री की बात सुनकर ठाकुर अभय प्रताप गुस्से में बोले आज तक मैं भी यही समझता था लेकिन आज मुझे सच्चाई पता चली है,,,,,,
तुम हर रोज सुबह शाम माता रानी का नाम लेकर उस शैतान की पूजा अर्चना करने के लिए जाती थी ना जाने कितने मासूम बच्चों की जानवरों की और इंसानों की बलि उस शैतान की सामने देती थी,,,,,,,
अरे तुम्हें देखकर मन तो करता है अभी और इसी वक्त तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दूं आज तक जितने भी राज्य में इंसान गायब हो रहे थे,,,,,,,,
उनके पीछे तुम्हारा ही हाथ था यह मैं कभी सोच नहीं सकता, राजकुमारी गायत्री कि तुम ऐसी घटिया हरकत भी कर सकती हो,,,,,,
अरे मैंने अपने प्राणों से बढ़कर प्रेम किया था तुम्हें खुद से ज्यादा भरोसा किया था तुम्हें और तुमने अपनी स्वार्थ के वशीभूत होकर मेरी भावनाओं के साथ के लोगों की जिंदगी के साथ खेल खेला,,,,,,,
मैं तुम्हें कभी क्षमा नहीं करूंगा लेकिन मैं इस तरह हाथ पर हाथ रखे भी नहीं बैठ सकता अब तो भरी सभा में ही तुम्हारा न्याय होगा,,,,,,,
यह सुनकर बाईसा गायत्री की आंखों में आंसू झलक आए और बोली यह आप क्या बोल रहे हो राणा सा मेरे को समझ में नहीं आ रहा मैं तो सुबह से ही मंदिर में थी,,,,,,,,
तब ठाकुर अभय प्रताप गुस्से में बोले बस मुझे और कुछ नहीं सुनना यह कहकर बह अपने कमरे से बाहर निकल गए और जल्दी से जल्दी सभा बुलाने का ऐलान किया,,,,,,,,
बही ठाकुर अभय प्रताप के आदेशानुसार जल्दी से जल्दी सभा बुलाई गई,,,,,,,
फिर बाईसा गायत्री को वहां पर पेश किया गया ठाकुर अभय प्रताप ने बिना बाईसा गायत्री की एक सुने हैं उसे दोषी करार दिया, यह कहते हुए कि उसने खुद अपनी आंखों से बाईसा गायत्री की असलियत को देखा है,,,,,,,
बही बाईसा गायत्री ऐसा घिनौना काम कर सकती है यह सुनकर ही लोगों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था,,,,,,,,,,
सभी लोग आपस में कानाफूसी करने लगे लोग तरह-तरह की बातें बना रहे थे,,,,,,,
जहां कोई कह रहा था कि बाईसा गायत्री ऐसा नहीं कर सकती जरूर यह किसी की चाल है उसे फंसाने के लिए,,,,,,
तो वही कोई कहता अरे भाई खुद राणा सा ने बाईसा गायत्री को अपनी आंखों से बह घिनौना काम करते हुए देखा है यह भला झूठ कैसे हो सकता है,,,,
और वैसे भी किसी की भोली सूरत के पीछे शैतान छुपा हुआ है यह देखकर तो पता नहीं चल सकता ना,,,,,,
तभी कोई कहता अरे यह तो अच्छा हुआ कि यह डायन यहां की रानी सा ना बन पाई और इसकी असलियत सामने आ,,,,,,
अगर ऐसा होता तो फिर तो हमारा नामोनिशान ही ना होता इसकी वजह से ना जाने कितनों ने अपनी जाने गंवाई है इसको तो ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि इसकी आत्मा भी कांप उठे,,,,,,
जितने मुंह उतनी बातें लोग तरह-तरह की बातें बना रहे थे कई लोग तो मानने के लिए तैयार नहीं थे कि बाईसा गायत्री ऐसा कर सकती है,,,,,,
लेकिन अधिकतर लोगों को ठाकुर अभय प्रताप की बातों पर पूरा विश्वास था और उन्होंने बाईसा गायत्री को दोषी मान लिया,,,,,,,
तभी कुछ लोग राजा से न्याय मांगने लगे कि इन्हें जिंदा रहने का कोई हक नहीं है ना जाने कितने मासूमों को इसने मौत के घाट उतारा है,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप ने कुछ सोचा है अपनी आंखों से बाईसा गायत्री को इस तरह मरते हुए नहीं देख सकते थे,,,,,,,
इसलिए उसने सभी के निर्णय सुनकर बाईसा गायत्री को दीवार में जिंदा दीवार में चुनवा देने का आदेश दे दिया,,,,,,,
यह न्याय सुनकर हर कोई जा राजा की तारीफ कर रहा था कि राणा मैं अपने प्रेम के वशीभूत ना होकर प्रजा के सामने बिल्कुल निष्पक्ष फैसला किया,,,,,,,,
हमेशा की तरह इस बार भी निष्पक्ष फैसला किया है अपने प्रेम को फैसले को ऊपर वशीभूत नहीं होने दिया,,,,,,,,
वहीं कुछ लोग हैरान थे कि अपने प्राणों से ज्यादा वह बाईसा गायत्री से प्रेम करते थे तो ऐसे कैसे राणा सा ने उसे इतना बेरहम फैसला सुना दिया इतनी कठोर सजा उसे दे दी,,,,,,,
वही ठाकुर अभय प्रताप के मुंह से अपने लिए सजा सुनकर बाईसा गायत्री की आंखों में आंसू बह रहे थे वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें,,,,,,,
तभी ठाकुर अभय प्रताप गुस्से में उसकी तरफ देखते हुए बोले तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है क्या,,,,,,,
यह सुनकर बाईसा गायत्री ने हाथ जोड़कर कहा कुछ नहीं कहना क्योंकि अब शायद कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं है,,,,,,,
जब आपको ही मुझ पर विश्वास नहीं रहा तो मेरे कहने या ना कहने का कोई फायदा नहीं है और अब तो आपने फैसला भी सुना दिया है,,,,,,,
लेकिन मुझे खुशी है कि आप इस राज्य के एक योग्य राणा सा है लेकिन दुख भी इस बात का है कि बिना पूरी सच्चाई जाने आपने मुझे फैसला सुना दिया,,,,,,
मुझे अपनी मरने का कोई दुख नहीं है लेकिन अफसोस है कि आपने मेरा कोई दोष ना होने पर भी बिना सारी सच्चाई जाने की क्या सच है क्या झूठ है मुझे दोषी करार करके सजा दे दी,,,,,,,
लेकिन अगर राणा सा अंदर आपको लगता है ना मेरे मरने से इस राज्य में दोबारा खुशियां सकती है तो मैं ऐसे हजार मरने के लिए तैयार हूं आपके लिए,,,,,,,यह कहते हुए बाईसा गायत्री वहां से चली गई,,,,,,,
वही ठाकुर अभय प्रताप भी बहां से उठकर अपने कक्ष में आ गए,,,,,,
उसे एक पल का चैन नहीं था जिसके साथ जीवन भर जिंदगी जीने के सपने देखे थे उसे भला बह इस तरह कैसे मौत की सजा सुना सकते हैं,,,,,,,
आज उसके प्रेम पर उसका फर्ज उसका धर्म भारी हो गया था अपने बारे में ना सोच कर आज ठाकुर अभय प्रताप ने पूरी प्रजा की खुशियों के बारे में सोचा था,,,,,,
लेकिन जो सजा उसने बाईसा गायत्री के लिए सुनाई थी उसे सुनाने के बाद वह अंदर ही अंदर की घुट रहे है,,,,,,
बह अपने कक्ष में बैठे अपने आंसू ना रोक सके और फूट-फूट कर रोने लगे कि आखिर भगवान ने उसके साथ ऐसा क्यों किया है,,,,,,,
बह जिससे सच्चा प्रेम करते थे उसे अपनी आंखों के सामने कैसे मौत के मुंह में जाते हुए देख सकते हैं,,,,,,,
लेकिन यह सोच का चेहरे पर नफरत के भाव आ गए कि बह तो सच्चे प्यार क्या नफरत के के लायक भी नहीं है जिन्होंने ना जाने कितने मासूमों की जान ली है,,,,,,,
और उसे उस ने यह सजा दे कर बहुत सही किया है शायद उसकी मौत से उसकी प्रजा को एक नई जिंदगी और खुशियां मिलेगी और पूरे राज्य से यह खतरा हमेशा के लिए हट जाएगा,,,,,,,
और वैसे भी अपनी प्रजा की सुरक्षा और उसकी खुशियों को ध्यान में रखते हुए बिना अपने स्वार्थ के बारे में सोचें निष्पक्ष फैसला करना एक शासक का धर्म होता है,,,,,,
और उसने अपना धर्म निभाया है ना कि कुछ गलत किया है उसने जो कुछ किया है वह अपनी प्रजा के हित के लिए किया है यह सोचते हुए ठाकुर अभय प्रताप ने अपने आंसू पोंछ लिए,,,,,
बही बाईसा गायत्री को दीवार में जिंदा चुनवाने की सजा का जब अभय प्रताप सिंह की मां को पता चला तो वह हैरान और परेशान रह गई,,,,,,,
वह कभी सोच भी नहीं सकती थी कि ठाकुर अभय प्रताप बाईसा गायत्री को इतनी कड़ी सजा भी दे सकते हैं उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था,,,,,
फिर बह दौड़ते हुए अभय प्रताप सिंह से मिलने उसके पास आई,,,,,,,,
अपनी मां को अपने कक्ष में आए देखकर ठाकुर अभय प्रताप ने खड़े होकर उसे प्रणाम किया,,,,,,
तब उसकी मां बोली यह मैं क्या सुन रही हूं बेटा तुम ने बिना कोई सच्चाई जाने छानबीन किए ऐसे कैसे बाईसा गायत्री को सजा सुना दी,,,,,,,
बेटा तुमसे जरूर कोई भूल हुई है मेरा हृदय इस बात की बिल्कुल भी गवाही नहीं देता कि बाईसा गायत्री दोषी है,,,,,,,
मैं बचपन से जानती हूं उसे एक बेटी की तरह रखा है मैंने उसे वह कभी ऐसा नहीं कर सकती,,,,,
अरे कीड़े मकोड़ों को मारने से भी बह डरती है दूसरों के प्रति दया प्यार समर्पण यह तो उसकी रग रग में कूट-कूट कर भरा हुआ है अपने प्राणों से ज्यादा वह तुम्हें चाहती है वह कभी ऐसा नहीं कर सकती तुमसे भूल हुई है बेटा,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले मासा मैंने जो कुछ किया है बह काफी सोच समझकर किया है और मैंने खुद अपनी आंखों से सच्चाई देखी है,तो फिर ऐसे में और छानबीन करने की तो कोई जरूरत ही नहीं पड़ी,,,,,,,,
और मासा पहले आपकी तरह मैं भी यही सोचता था मुझे भी खुद से ज्यादा उस पर विश्वास था लेकिन मैंने खुद उसकी असलियत अपनी आंखों से देखी है,,,,,,,
माशा आप नहीं जानती उसके उस भोले वाले चेहरे के पीछे एक शैतानी चेहरा छुपा हुआ है,,,,,,,
आज भी उस गुफा में उस शैतान की मूर्ति के सामने देखा उसका चेहरा इतना भयानक था बह जब मेरी आंखों के सामने आता है ना तो मुझे अपने आप से ही घिन आने लगती है कि मैंने उससे कभी प्रेम किया था,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप की मां बोली बेटा प्रेम तो तुम अब भी उससे करते हो बस यहां के राणा सा होने के खातिर अपने प्रजा के प्रति अपना धर्म निभाने के खातिर तुम आज उस से प्रेम करने से मना कर रहे हो,,,,,,
लेकिन सच तो यही है तो आज भी मुझसे बहुत प्रेम करते हो और जिस समय तुमने उसे सजा सुनाई थी उस समय तुम्हारे ह्रदय पर क्या गुजरी होगी यह भी मैं अच्छी तरह जानती हूं,,,,,,,
उसे तकलीफ में देखकर तुम भी चैन से नहीं रह पाते उससे ज्यादा तकलीफ तो तुम्हें होती है जब उस पर कोई आंच आती है,,,,,,,
बचपन में खेल खेल में जब उसे चोट लग जाती थी तो उससे ज्यादा तो तुम रोते थे और जब तक उसकी चोट सही नहीं हो जाती तब तक तुम्हें चैन नहीं मिलता तो फिर ऐसी सजा सुना कर क्या तुम्हें कभी चैन मिल पाएगा बेटा,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले मां मेरे लिए मेरे राज्य की प्रजा की खुशियां ज्यादा जरूरी है उन से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं है,,,,,,
मेरा धर्म मेरा कर्तव्य मेरे लिए सब कुछ है मैं सच का साथ देना चाहता हूं और इस तरह पाप के रास्ते पर चलकर अपनी प्रेम हो पाना नहीं चाहता,,,,,,
क्योंकि मैंने जिससे प्रेम किया था वह इस लायक है ही नहीं मैं जानता हूं कि उसे तकलीफ में देखकर मुझे तकलीफ होती है,,,,,,,
लेकिन अगर वह जिंदा रहती और लोगों को इसी तरह नुकसान पहुंचाती रहती तो उससे भी ज्यादा तकलीफ होती मुझे,,,,,,,,
यह सुनकर तब उसकी मां सा कुछ बोलती उससे पहले ही ठाकुर अभय प्रताप ने यह कहते हुए की मासा में अब इस बारे में किसी भी तरह की कोई बातें करना नहीं चाहता भगवान के लिए मुझे अकेला छोड़ दीजिए मैं हाथ जोड़कर अपनी माशा की तरफ देखते हुए बोला,,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप सिंह ने गुस्से में इस बारे में कोई भी बात करने से साफ इनकार कर दिया था,,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप की मां उसे और परेशान नहीं करना चाहती थी इसलिए सीधे ही उसके कक्ष से बाहर निकल गई,,,,,,
लेकिन बाईसा गायत्री को सजा सुनाए जाने की बात ठाकुर अभय प्रताप की मां को अंदर ही अंदर खाई जा रही थी बह काफी परेशान हो रही थी एक पल का चैन भी उसे नहीं मिल रहा था,,,,,
उधर ठाकुर अभय प्रताप का आदेश पाते ही बाईसा गायत्री को दीवार में चुनवा ने का काम शुरू कर दिया गया था,,,,,,
जब ठाकुर अभय प्रताप की मां रानी सा ने यह खबर सुनी तो वह हैरान और परेशान रह गई वह दौड़ते हुए उस तरफ गई जिस तरफ बाईसा गायत्री को दीवार में चुनवा या जा रहा था,,,,,,
उधर ठाकुर अभय प्रताप ने अपने आपको अपने कक्ष में बंद कर लिया था क्योंकि वह अपनी आंखों से बाईसा गायत्री को इस तरह मरते हुए नहीं देख सकते थे,,,,,,
उसके प्रति उसके चेहरे पर अब नफरत थी लेकिन कहीं ना कहीं वह आज भी दिल के किसी कोने में उसे बहुत प्रेम करते थे,,,,,,
और उसके बिना रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे तो फिर उसे मरते हुए कैसे देख सकते थे,,,,,,,
ना चाहते हुए भी मैं अपने आंसू नहीं रोक पा रही थी और उसकी आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे,,,,,,
उधर जब ठाकुर अभय प्रताप सिंह की मां बाईसा गायत्री दौड़ते हुए राजमहल के तहखाने में बाईसा गायत्री के पास गई,,,,,,,
वहां जाकर उसने देखा कि मैं खाने में एक दीवार में उस समय बाईसा गायत्री को लगभग आधा दीवार में चुना जा चुका था उसकी आंखों में आंसू थे,,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप की मां भागकर उसके पास आई और सैनिकों से चूनाई रोक देने के लिए कहा और बाईसा गायत्री से बोली तुम्हारे साथ कोई अन्याय नहीं होगा पुत्री,,,,,
मैंने तुम्हें अपनी पुत्री की तरह प्रेम किया है और अपनी पुत्री समझा है मैं जानती हूं कि तुम अपराधी नहीं हो,,,,,,,
जरूर कुंवर सा अभय प्रताप को कोई गलतफहमी हुई है और बेटी बेगुनाह होने पर तुम्हें कोई सजा नहीं मिल सकती ,इसलिए मैं यह सजा रुक जाने का आदेश देती हूं,,,,,,,,,
यह कहते हुए रानी मां ने उन सैनिकों की तरफ देखते हुए उस दीवार को वापस गिरा कर बाईसा गायत्री को बाहर निकालने के लिए कह दिया,,,,,,
यह सुनकर बाईसा गायत्री बोली नहीं रानी माता नहीं ऐसा मत कीजिए यह कहते हुए बाईसा गायत्री ने सभी सैनिकों को रुक जाने का इशारा किया,,,,,,,
फिर वह रानी मां से बोली रानी मां मैं आपकी आज्ञा का पालन करती हूं, आपका बड़ा सम्मान करती हूं और आपके लिए कुछ भी कर सकती हूं,,,,,,
लेकिन इस समय नहीं इस समय मैं चाहती हूं कि राणा सा ने जो आदेश सबके सामने दिया है उसकी पालना हो,,,,,,,,,
क्योंकि सबके सामने आदेश की पालना करना एक शासक को सम्मान देने के बराबर है और वहीं उसके आदेश की अवहेलना करना उसका अपमान करने के बराबर है,,,,,,
जो मैं कभी नहीं चाहती कि मेरी वजह से राणा सा की कोई बदनामी हो उनके ऊपर कोई उंगली उठे उनका दिया हुआ आदेश मेरी सिर आंखों पर है रानी मां,,,,,,
और वैसे भी अगर मेरे मरने से इस राज्य में खुशियां वापस लौट कर आ सकती है राणा सा अपनी प्रजा की खुशियों को लेकर निश्चित हो सकते हैं,,,,,
तो फिर राणा सा के लिए तो मैं यह जन्म क्या हजारों जन्म मरने के लिए तैयार हूं बस दुख इस बात का है कि राणा सा कभी मुझे समझ नहीं पाए,,,,,,,
और रानी मां सा में जी कर भी क्या करूंगी जिससे अपने जीवन से बढ़कर प्रेम किया उसी ने ऐसा कंलक मेरे दामन पर लगा दिया,बिना यह साबित किए कि मेरा दोष है या नहीं,,,,,,,,
उन्होंने एक बार भी सारी सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की मैं यह नहीं कहती कि राणा सा झूठ बोल रहे हैं लेकिन यह उनकी आंखों का धोखा भी तो हो सकता था उसने मेरी बात तक नहीं सुनी और मुझे दोषी करार दिया,,,,,,
यह सुनकर रानी मां बोली हां बेटी मैंने भी कुंवर साहब को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने बात नहीं मानी,,,,,,
मुझे पता है कुंवर सा कभी ऐसा नहीं कर सकते वह तो कभी तुम पर आंच भी नहीं आने दे सकते लेकिन उसे जरूर कोई ना कोई भूल हुई है,,,,,,
जो कुछ उसने देखा मैं जरूर उनकी आंखों का धोखा था और वह उसी धोखे को सच मान बैठे हैं लेकिन मुझे तुम पर पूरा भरोसा है पुत्री,,,,,,
अगर भगवान भी मुझसे आकर कहे कि तुम दोषी हो तो भी मैं नहीं मानूंगी और इसलिए मैं नहीं चाहती कि कुंवर सा के इस आदेश का पालन हूं और तुम्हारी साथ अन्याय हो,,,,
और पुत्री जितना भरोसा मुझे तुम पर है उससे कई गुना ज्यादा प्रेम कुंवर सा तुमसे करते हैं तुम्हारी आंखों में आंसू तक नहीं देख सकते तो तुम्हें सजा सुनाते हुए उसके हृदय पर क्या बीती होगी यह सिर्फ वह ही जानते हैं,,,,,,
यह सुनकर बाईसा गायत्री बोली मैं जानती हूं रानी मां कि राणा सा मुझसे बहुत प्रेम करते थे लेकिन ऐसे प्रेम का क्या फायदा रानी मां जिसमें भरोसा ही ना हो,,,,,,,
लेकिन मुझे खुशी है कि राणा सा ने अपने प्रेम से ज्यादा अपने प्रजा के प्रति राज धर्म को समझा और राणा सा एक योग्य शासक है बह निष्पक्ष न्याय करते हैं आज उन्होंने यह साबित कर दिया इस बात की मुझे खुशी है,,,,,,,,
तब रानी सा बोली कैसा निष्पक्ष न्याय पुत्री तुम्हारे साथ तो अन्याय हुआ है लेकिन मैं इस अन्याय को और होने देना नहीं चाहती,,,,,,,
यह सुनकर बाईसा गायत्री बोली रानी मासा अगर आपने मुझे सच में अपनी पुत्री समझा है ना तो मेरी आपसे विनती है कि राणा सा के द्वारा दिए गए आदेश की पालना होने दो,,,,,,,
यह सुनकर रानी मांसा बोली नहीं पुत्री, अपनी आंखों के सामने इस तरह अनर्थ होते हुए नहीं देख सकती,,,,,,,
मैं इस तरह किसी भी निर्दोष की जान जाते हुए नहीं देख सकती यही इस राज्य का धर्म है और मुझे तुम पर पूरा विश्वास है मैं एक ना एक दिन यह साबित कर दूंगी कि तुम निर्दोष हो,,,,,,
और किसी ने तो उसकी इस तरह हत्या का नाम महापाप है ईश्वर उसे कभी क्षमा नहीं करता और उसकी मौत की बद्दुआ पूरे राज्य को तहस-नहस कर देती है,,,,,,
और जन्मो जन्मो तक उसकी हत्या के महा पाप से छुटकारा नहीं पाया जा सकता,,,,,, और अनजाने में ही सही कुंवर सा को इस महा पाप का भागीदार नहीं बनने दूंगी,,,,,,
यह सुनकर बाईसा गायत्री हाथ जोड़ते हुए बोली लेकिन रानी मां मेरी मौत से इस राज्य का उद्धार होगा और मैं यही चाहती हूं मेरी मौत कोई महापाप ना होकर महा धर्म बने इस राज्य के लिए मेरे राणा सा के लिए,,,,,,
और कृपा करके रानी माता इस आदेश का पालन होने दो, मैं जानती हूं कि आप मुझे अपनी पुत्री की तरह प्रेम करती है,,,,,,,,
लेकिन मैं राणा सा से अपने प्राणों से बढ़कर प्रेम करती हूं और उसका आदेश मेरी सर आंखों पर है, मैं मरते दम तक उसके आदेश का पालन करना चाहती हूं,,,,,,,,
यह सुनकर रानी माशा बोली लेकिन पुत्री तुम दोषी नहीं हो तुम निर्दोष हो,,,,,,,
यह सुनकर बाईसा गायत्री बोली हां रानी माता मैं जानती हूं कि मैं दोषी नहीं हूं, लेकिन अगर उन्होंने मुझे यह सजा सुनाई है तो उसकी यह सजा भी मुझे हंसते-हंसते मंजूर है,,,,,,,,
और रानी मां सा समय बड़ा बलवान है समय एक ना एक दिन सच सामने लेकर ही आता है,,,,,,
वह दिन जरूर आएगा बस उस दिन मैं नहीं रहूंगी और मुझे इस बात का अफसोस है कि उस दिन राणा सा कहीं अपने दिए फैसले पर पछताए ना,,,,,,
यह सुनकर रानी मां बोली पुत्री वह दिन भी आएगा और तुम भी रहोगी मैं इस समय यह अनर्थ किसी भी तरह नहीं होने दे सकती,,,,,,,
यह सुनकर बाईसा गायत्री हाथ जोड़कर बोली नहीं रानी माता ऐसा मत होने दीजिए अगर आपने सच में ही मुझे अपनी बेटी माना है ना तो मेरी यह विनती स्वीकार कर लीजिए,,,,,,, इस आदेश का पालन होने दीजिए यह कहते हुए बाईसा गायत्री ने हाथ जोड़ दिए,,,,,,
बही बाईसा गायत्री की बात सुनकर रानी मां कुछ बोल ना पाई उसकी आंखों में आंसू छलक आए,,,,,,
तब बाईसा गायत्री फिर बोली लेकिन रानी माता मेरी एक इच्छा है कि मरने से पहले मैं एक बार राणा सा को देखना चाहती हूं आप उसे यहां भेज दीजिए ना यह कहते हुए उसकी आंखों में आंसू आ गए,,,,,
फिर बाईसा गायत्री की विनती पर रानी माता ने अपने दिल पर पत्थर रखकर राणा सा के आदेश का पालन करने के लिए कह दिया और वहां से अपने आंसुओं को काबू में करते हुए चली गई,,,,,,,,
बही बाईसा गायत्री अपनी आंखों में आंसू लिए आखरी बार उसे जाते हुए देखती रही,,,,,
उसने ठाकुर अभय प्रताप के कक्ष में जाकर उसे इस बारे में कहा ठाकुर अभय प्रताप में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह यह दृश्य जाकर देख सके,,,,,,,
लेकिन बाईसा गायत्री की आखिरी इच्छा का मान रखते हुए वह तहखाने में आए,,,,,,
जब वह तहखाने में आए तो उन्होंने देखा कि बाईसा गायत्री को उसकी गर्दन तक दीवार में चुनवा या जा चुका था,,,,,,
यह देखकर ठाकुर अभय प्रताप की आंखों में आंसू आने ही वाले थे लेकिन सब को दिखाने के लिए वह मजबूत बने रहे,,,,,,
उसने इस वजह से कि बाईसा गायत्री को देखकर वह अपने आंसू ना रोक पाए इसलिए ठीक तरह से उसकी तरफ नहीं देखा,,,,,,
वही बाईसा गायत्री ने जैसे ही ठाकुर अभय प्रताप को देखा और उसके चेहरे पर अपने प्रति नफरत देखी तो उसकी आंखों से आंसू छलक आए,,,,,,
फिर उसने अपनी आंखें बंद कर ली और कुछ ही देर में उसे दीवार में चुनवा दिया गया,,,,,,,
जब ठाकुर अभय प्रताप ने बड़ी मुश्किल से उधर देखा तब तक पूरी दीवार चुन गई थी,,,,,,,यह देख कर उस पर रुका ना गया और वह वापस जल्दी जल्दी अपने कक्ष में आ गए,,,,,,
फिर जिस तहखाने में बाईसा गायत्री को चुनाया गया था उस तहखाने को तंत्र मंत्र से युक्त ताबीज से बांध दिया गया,,,,,,,
क्योंकि ठाकुर अभय प्रताप के कुलगुरू मानते थे कि एक डायन कभी नहीं मरती मरने के बाद भी उसकी आत्मा जिंदा रहती है और वह अपने दोषी यों से अपना बदला लेने के लिए घूमती रहती है,,,,,,,
यह सोचकर कुलगुरू ने ठाकुर अभय प्रताप से उसकी आत्मा को हमेशा के लिए उस तहखाने में कैद करने के लिए कहा,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप मान गए क्योंकि इसलिए वह भी नहीं चाह थे कि बाईसा गायत्री के मरने के बाद उसकी आत्मा इस हवेली को इस परिवार को यहां की प्रजा को कोई चोट पहुंचाए,,,,,,,,
इसलिए उन्होंने कुलगुरू और कुछ पहुंचे हुए तांत्रिक को और महात्माओं से उसे तहखाने को मंत्रों से हमेशा के लिए बंद करवा दिया,,,,,,,,
इधर पूरे राज्य की प्रजा ने जैसे चैन की सांस ली थी बाईसा गायत्री को दीवार में चुनवा ने के बाद और उसे मंत्र पूरित ताबीज और धागों से उसी तक आने में कैद करने के बाद,,,,,,,
अब हर किसी को यही लग रहा था कि उनके राज्य पर से खतरा हमेशा के लिए ढल गया है अब कोई परेशानी ना आएगी,,,,,,
सब लोग खुश थे बही राणा सा अभय प्रताप सिंह की सब तारीफ करते हुए नहीं थक रहे थे जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के ऐसा उचित न्याय किया था,,,,,
उधर बाईसा गायत्री के दीवार में चुनवा ई जाने के बाद ठाकुर अभय प्रताप अंदर से तो टूट गए थे,,,,,,,
ना चाहते हुए भी अकेले में उसे याद करके अपनी आंखों में आंसू आने से नहीं रोक पाते थे अपने प्राणों से ज्यादा प्रेम जो किया था उससे उन्होंने लेकिन वह अपनी प्रजा के सामने मजबूत बने रहना चाहते थे,,,,,,,
उसका पहला धर्म अपने प्रजा की खुशहाली था इसी तरह तीन-चार दिन गुजर गए,,,,,
तभी अचानक एक दिन तलाब से स्नान कर आते समय ठाकुर अभय प्रताप के चचेरे भाई रूद्र प्रताप सिंह की जंगल में शिकार खेलते वक्त किसी जानवर के हमले से मौत हो गई,,,,,,
जब यह खबर ठाकुर और उसके परिवार को पता चली तो सभी को बहुत दुखों पहाड़ टूट पडा,,,,,,,
हर कोई यह जानकर हैरान था कि रूद्र प्रताप तो शिकार खेलने में माहिर थे यहा तक की बह बिना हथियार के भी है जानवरों से मुकाबला कर सकते थे तो फिर ऐसे कैसे किसी जानवर के हमले करने से उसकी मौत हो गई,,,,,,,
लेकिन फिर सब ने मान लिया कि जानवर है जानवरों का भी क्या भरोसा और ठाकुर रुद्र प्रताप इंसान ही तो है हो सकता है किसी खूंखार जानवर ने हमला कर दिया है हो जिसकी वजह से ठाकुर रुद्र प्रताप की मौत हो गई,,,,,,
ठाकुर रुद्र प्रताप की अचानक हुई इस मौत को सब ने इसे एक नियति और भगवान की मर्जी मान लिया था
बही रानी मां सा तो पहले ही बाईसा गायत्री को खो देने के कारण अंदर से बुरी तरह टूट चुकी थी लेकिन अब अपने पुत्र समान बेटे को खो देने के बाद बिल्कुल ही टूट गई थीं,,,,,
बही जब बाईसा भागवती ने यह खबर सुनी तो वह फूट-फूट कर रोने लगी रों रों कर उसने अपना बुरा हाल बना लिया,,,,,,,,
क्योंकि जब ठाकुर अभय प्रताप के साथ बाईसा गायत्री का रिश्ता तय किया गया था उसी समय बाईसा भागवती के साथ ठाकुर रुद्र प्रताप का रिश्ता भी तय कर दिया गया था,,,,,,,
और दोनों का विवाह भी उसी दिन होना था जिस दिन ठाकुर अभय प्रताप और बाईसा गायत्री का विवाह होना था,,,,,,
लेकिन पहले बाईसा गायत्री को दीवार में चुनवा दिया गया और अब इस तरह अचानक ठाकुर रुद्र प्रताप की मौत से हर कोई दुखी था,,,,,,
वही जैसे ही बाईसा भागवती ने उसकी मौत की खबर सुनी तो वह धम्म से जमीन पर बैठकर फूट-फूट कर रोने लगी,,,,
बह रोते हुए बार-बार कह रही थी जिसके साथ जीवनभर के लिए जीने मरने की कसमें खाना चाहती थी मुझे अपनी जिंदगी में आने से पहले ही छोड़ कर चला गया,,,,,,,
रानी माशा और ठाकुरों अभय प्रताप से भगवती की हालत देखी नहीं जा रही थी,,,,,,,
ठाकुर अभय प्रताप उसके दर्द को समझ रहे थे क्योंकि इस समय बाईसा भागवती उसी दर्द से गुजर रहे थे,,,,,,,
जिस जिस तरह से ठाकुर अभय प्रताप बाईसा गायत्री के जाने के बाद गुजर रहे थे,,,,,,,
लेकिन भाई साहब भागवती तो ऐसी सबके सामने रोककर सबसे कहकर अपना दर्द कम कर सकती थी ठाकुर अभय प्रताप तो वह भी नहीं कर सकते थे अपनी प्रजा के सामने वह इस तरह कमजोर नहीं पड़ सकते थे,,,,,,,
बही रानी माता वह तो काफी दुखी थी उसकी तबीयत पहले ही ठीक नहीं रहती थी ऐसे में अब और ज्यादा खराब रहने लगी,,,,,,,
वही अपने होने वाले पति को खो देने के कारण बाईसा भागवती अब गुमसुम सी उदास रहने लगी थी ,उसकी तबीयत खराब थी रहने लगी थी,,,,,,,,
रानी माशा पर उसका यह दुख देखा नहीं जा रहा था आखिर में बाईसा गायत्री के साथ-साथ उसने बाईसा भागवती को भी तो पुत्री की तरह ही वाला था,,,,,,,
रानी माता खुद अंदर से टूट चुकी थी लेकिन वह बाईसा भागवती को हिम्मत देती रहती उसे संभालते रहती,,,,,,
लेकिन बाईसा भागवती जैसे उसकी तो सारी दुनिया ही उजड़ गई थी एक बंद कमरे में अकेले बैठे रोती रहती है,,,,,,
बही रानी मां भगवान को बार-बार कोसती और कहती, हे भगवान आखिर में आपने हमें किस गलती की सजा दी है,,,,,,,
जो एक बेटा और एक बेटी मुझसे छीन लिया तो एक बेटे और एक बेटी को जीते जी जिंदा लाश बना कर रख दिया,,,,,,
रानी माता ठाकुर अभय प्रताप और बाईसा भागवती को इस तरह घुट-घुट कर जीते हुए नहीं देख पा रही थी,,,,,,
वह जानती थी कि बाईसा भागवती का दर्द तो सबको नजर आ रहा था,,,,,,
लेकिन ठाकुर अभय प्रताप बह चाहे सबके सामने कितने भी मजबूत बन जाए लेकिन अंदर से टूट चुके है यह रानी मां जानती थी,,,,,,,
एक दिन रानी माशा ठाकुर अभय प्रताप के पास उसके कक्ष में आई और उसके कक्ष में आकर बोली बेटा,,,,,
अपनी मां की आवाज सुनकर ठाकुर प्रताप सिंह पीछे मुड़कर देखा और पैर छूकर बोले माशा आप कुछ काम था,,,
तब रानी मां बोली हां कुंवर जी मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले हां मांशा बोलिए,,,, तब रानी मां बोली पहले आप आराम से बैठिए,,,,,,
यह कहकर रानी माशा बैठ गई तो ठाकुर ठाकुर अभय प्रताप भी उसके पास ही बैठ गए,,,,,
तब रानी माता हरबढ़ाते हुए बोली बेटा मुझे तुमसे बाईसा भागवती के बारे में कुछ बात करनी है,,,,
यह सुनकर ठाकुर प्रताप हैरानी से बोलें भाई साहब भागवती के बारे में लेकिन क्या बात बोलिए क्या बात करनी है आपको,,,,,,
यह सुनकर रानी मासा ठाकुर अभय प्रताप की तरफ देखते हुए बोली बेटा मुझसे अब बाईसा भागवती और तुम्हारा दुख देखा नहीं जाता है,,,,,,,,
मैं जानती हूं तुम सबके सामने मजबूत बने रह सकते हो लेकिन अंदर से टूट चुके हो बाईसा गायत्री के जाने के बाद तुम्हारी जिंदगी वीरान सी हो गई है,,,,,,
उसी तरह रूद्र प्रताप के जाने के बाद बाईसा भागवती अंदर से टूट सी गई है ऐसा लगता है जैसे उसकी तो जिंदगी ही खत्म हो गई हो अकेले बैठे-बैठे रोती रहती है किसी से बातें भी नहीं करती,,,,,,
ऐसे में तुम दोनों को ऐसे दर्द में देखकर मुझ पर क्या गुजरती है मैं जानती हूं,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले माशा आप मेरी चिंता मत कीजिए मैं बिल्कुल ठीक हूं किसी के जाने का मुझे कोई गम नहीं है यह कहते हुए बाईसा गायत्री का चेहरा सामने आते ही उसके चेहरे पर गुस्से के भाव आ गए,,,,,,
फिर वह बोला लेकिन माशा बाईसा भागवती इन सब से काफी दुखी है इस तरह अचानक रुद्र प्रताप की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया है, लेकिन अब कर भी क्या सकते हैं,,,,,,
तब रानी माता बोली एक रास्ता है बेटा,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप हैरानी से बोले रास्ता कैसा रास्ता,,,,,,
तब रानी माता बोली बेटा तो मैं चाहती हूं कि क्यों ना तुम और बाईसा भागवती दोनों शादी के बंधन में बन जाओ,,,,, रानी मांसा ने पूरी बात एक ही सांस में कह गई,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप सिंह गुस्से में खड़े होते हुए बोले नहीं माशा यह कभी नहीं हो सकता, मैं बाईसा भागवती से विवाह करने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता मैं उससे विवाह नहीं कर सकता,,,,,,
यह सुनकर रानी माता बोली लेकिन क्यों बेटा किसी ना किसी से तो तुम्हें विवाह करना ही होगा, आखिर कब तक अकेले इस तरह घुट-घुट कर जीते रहोगे,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले मासा आप समझिए मैंने कभी भी बाईसा भागवती को इस नजर से नहीं देखा है,,,,,,मैंने हमेशा उसे अपना एक अच्छा और सच्चा दोस्त ही माना है बस,,,
यह सुनकर रानी मां सा बोली मैं जानती हूं लेकिन बेटा आपको किसी ना किसी से विवाह तो करना ही होगा ना,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप सिंह गुस्से में बोले नहीं माशा में कभी भी किसी से विवाह नहीं करूंगा कभी नहीं,,,,
यह सुनकर रानी माशा उसके पास आकर बोली बेटा हम अपने लिए नहीं प्रजा के लिए जीते हैं और प्रजा के लिए ही तुमने अपने प्रेम को हमेशा के लिए खो दिया,,,,,,
तो इस प्रजा को तुम्हारे बाद भी तुम्हारे जैसे ही एक और शासक की जरूरत है और यह तभी होगा, जब तुम विवाह कर अपना घर बार बसा आओगे,,,,,,
बेटा तुम हमेशा से ही प्रजा के हर सुख दुख का ख्याल रखते आए हो तो प्रजा की खुशी के लिए ही यह विवाह कर लो,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले नहीं माशा,,,,,
तब रानी मां सा बोली तुम्हें विवाह तो करना ही होगा तो क्यों ना तुम बाईसा भागवती से कर लो जिससे उसकी भी उजडी जिंदगी में बाहार आ जाएगी बेटा,,,,, और तुम्हारी भी जिंदगी संवर जाएगी धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप सिंह बोले यह आप क्या कह रही हो माशा,,,,,,
यह सुनकर रानी मां बोली वह मैं जानती हूं कुंवर जी लेकिन आखिर कब तक तुम ऐसे ही अकेले रहोगे इस हवेली को बारिश चाहिए बेटा और वह तभी होगा जब तुम बाईसा भागवती से शादी करोगे,,,,,,,
अपनी माशा की बात सुनकर ठाकुर अभय प्रताप ने साफ मना कर दिया,बह बोला मां मैं तुम्हें कैसे समझाऊं मैं बाईसा भागवती से किसी तरह विवाह नहीं कर सकता,,,,,
यह सुनकर उसकी मां सा ने कहा तुम्हें मेरी सौगंध है बेटा,,,,,अगर तुम्हें अपनी मां कि इतनी ही चिंता है उसे प्रेम करते हो और अपनी मां की सौगंध का मान है तो कर लो विवाह बाईसा भागवती से यह मेरी इच्छा है बेटा,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप हैरान रह गए और बोले मां आप यह कहते हुए वह चुप हो गए,,,,,
तब उसकी मां सा बोली करोगे ना विवाह बाईसा भागवती से बेटा,,,,,, यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप ने ना चाहते हुए भी हां कर दी,,,,,,
अपनी मां के सौगंध देने पर ठाकुर अभय प्रताप उसकी बात मानने पर विवश हो गए और हां कर दी और फिर कहा माशा मैं नहीं चाहता कि बाईसा भागवती जबरदस्ती इस शादी के लिए हां करें इसलिए पहले उसकी स्वीकृति जरूरी है,,,,,,
यह सुनकर उसकी मां के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वह बोली हां बेटा क्यों नहीं तुम्हारी स्वीकृति मिल गई तो बाईसा भागवती की भी स्वीकृति मिल जाएगी,,,,,
बेटा तुमने विवाह के लिए हां करके तुम नहीं जानते मुझे कितनी बड़ी खुशी दी है यह कहते हुए उसकी आंखों में आंसू छलक आए और वह कक्ष से बाहर निकल गई,,,,,,,
अपनी मां के जाने के बाद ठाकुरों अभय प्रताप के कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें लेकिन वह मजबूर भी तो थे अपनी मां के द्वारा दी गई सौगंध के आगे,,,,,,,
वह अब इन सब के बारे में सोचना नहीं चाहते थे इसलिए सीधे कि अपने कक्ष से निकलकर राज कार्य के लिए चले गए,,,,,,
बही ठाकुर अभय प्रताप की स्वीकृति लेने के बाद रानी मासा बाईसा भागवती के पास गई ,,,,,,,
बाईसा भागवती अपने कमरे में रानी माशा को अचानक आए देखकर चौक कर उठ खड़ी हुई और उदास स्वर में बोली रानी मां सा आप यहां कुछ काम था क्या,अगर ऐसी कोई बात थी तो आप मुझे बुलवा लेती मैं आ जाती यह कहते हुए बाईसा भागबती चुप हो गई,,,,,,
यह सुनकर रानी मां सा ने जब उसकी हालत देखी तो उसे देखकर उसका दिल भर आया, बिखरे हुए बाल, सूजी हुई आंखें और मुरझाए हुए चेहरा देखकर ऐसा लग रहा था जैसे बाईसा भागवती अपनी जीने की सारी उम्मीदें ही छोड़ चुकी हो,,,,,,,
उसकी ऐसी हालत देखकर रानी मासा ने बिना कुछ कहे उसे अपने गले लगा लिया,,,,,,
बही रानी मासा के गले लगाते ही बाईसा भागवती फूट-फूट कर रो पड़ी,,,,,,
तब रानी मांसा ने प्यार से उसे चुप कराया और पकड़ कर अपने पास बिठाया,,,,,
फिर अपने आप को संभालते हुए अपने आंसू पोंछते हुए बाईसा भागवती बोली बोलिए रानी मांसा कुछ काम था क्या,,,,,
यह सुनकर रानी मां सा बाईसा भागवती का हाथ अपने हाथ में लेकर बोली बाईसा भागवती मुझे तुमसे कुछ चाहिए,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती अपने आंसू छुपाते हुए ऊपर की तरफ देखते हुए बोली अब देने लेने के लिए बचा ही क्या है,,,,,
रानी मासा जो कुछ भी मेरे पास था वह तो भगवान ने मुझसे छीन लिया अब तो बस यह चलती फिरती लाश बची हूं,,,,,,
अब भगवान से तो यही प्रार्थना है कि मुझे भी मेरे कुंवर जी के पास ही पहुंचा दे ,यह कहकर बाईसा भागवती रो पडी,,,,,
यह सुनकर रानी मां सा उदास स्वर बोली मैं जानती हूं वाईसा भगवती कि भगवान ने तुम्हारे ऊपर दुखों का पहाड़ तोड़ दिया है,,,,,,,
लेकिन जितना दुख तुम्हें हो रहा है उतना ही हमें भी है मैंने भी अपना बेटा ही खोया है और यह समय हम सब के लिए काफी कठिन है,,,,,,
लेकिन बेटा तुम्हे अपने आप को संभालना होगा क्योंकि भगवान के आगे किसी की नहीं चलती वह जो चाहता है वह होकर रहता है,,,,,,
अब मरने वाले के साथ तो मरा नहीं जा सकता ना छोड़ कर जाने वाला तो छोड़कर चला जाता है लेकिन पीछे छोड़ जाता है उनके लिए तड़पते हुए लोगों को,,,,,,
तुम्हारी यह हालत देखकर बेटा मैं भी बहुत दुखी हूं लेकिन तुम्हें अपने आप को संभालना होगा इस समय तुम्हें हिम्मत से काम लेना होगा,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती ने अपने आंसू पोंछे और बोली क्षमा करना रानी मासा में कुछ ज्यादा ही भावुक हो गई थी,,,,,,
यह कह कर रानी माशा की तरफ देखते हुऐ बोली हुकम दीजिए रानी मासा की आपको मुझसे क्या चाहिए,,,,,
यह सुनकर रानी मांसा हड बडाते हुए बोली मैं जानती हूं कि जो भी मैं तुमसे मांगने जा रही हूं वह तुम्हें देना आसान नहीं होगा,,,,,,,
लेकिन मैं यह सब कुछ इस हवेली इस वंश के लिए कर रही हूं ,अगर मुझसे गलती भी हो तो मुझे क्षमा कर देना बेटा,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती बोली आप कैसी बातें कर रही हो रानी मांसा आपको मैंने बचपन से ही अपनी सगी मां की तरह माना है, आप मांगो कि क्या चाहिए आपको,,,,,,,
और ऐसा क्या है मेरे पास जो मैं आपको दे सकती हूं अगर मुझे अपने प्राण भी देने पड़े ना तो मैं वह भी खुशी-खुशी दे दूंगी रानी माशा,,,
यह सुनकर रानी माशा हड़बड़ाते हुए बोली पुत्री मैं चाहती हूं की मैं चाहती हूं कि तुम्हारा और ठाकुर अभय प्रताप का विवाह हो जाए,,,, तुम दोनों विवाह के पवित्र बंधन में बन जाओं हमेशा हमेशा के लिए,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती हैरान रह गई फिर वह गुस्से में उठ खड़ी हुई और बोली क्षमा करना रानी मासा ,लेकिन यह कभी नहीं हो सकता,,,,,,,
यह सुनकर रानी माशा बोली मैं जानती हूं बेटा,,,,,,,
लेकिन उसकी बात पूरी होने से पहले ही बाईसा भागवती बोली रानी मां मैं अपने कुंवर जी की जगह किसी और को अपनी जिंदगी में नहीं दे सकती,,,,,,,
मैं अपने दिल में बसी अपने कुबर जी की तस्वीर की जगह किसी और की तस्वीर नहीं बसा सकती,,,,,,,
अब जब तक भी इस शरीर में प्राण है मैं अपने कुंवर जी की यादों के सहारे जीना चाहती हूं, मुझसे यह सब कुछ नहीं होगा,,,,,, यह कहकर बाईसा भागवती फूट-फूट कर रो पड़ी,,,,,,
यह सुनकर रानी मांसा बोली मैं जानती हूं बेटी तुम्हारे लिए यह सब कुछ इतना आसान नहीं है, जैसे तुम कुमार रूद्र प्रताप की की याद में तड़प रही हो,,,,,,,
वैसे ही कुंवर अभय प्रताप भी अंदर ही अंदर घुट घुट कर जी रहा है,,,,,,
लेकिन इस हवेली के लिए, इस वंश के लिए, इस ठिकाने के सभी लोगों के लिए तुम्हें यह सब कुछ करना होगा,,,,,,,,
यह तुम जानती हो कि एक ठाकुर और ठुकराएन अपनी आन मान और सम्मान के लिए अपनी जान भी दांव पर लगा सकते हैं,,,,,,,
उनके लिए अपने लोगों की खुशी से बढ़कर और कुछ नहीं होता, तो बेटी इसी खुशी के लिए तुम इस विवाह के लिए हामी भर लो,,,,,
यह सुनकर बाईसा भगवती कुछ कहती, उससे पहले ही रानी मांसा ने उसके होठों पर अपना हाथ रख दिया और बोली मेरी यह इच्छा पूरी कर दो बेटी,,,,,,,
अगर तुमने कभी मुझे एक मां की तरह दर्जा दिया है एक मां की तरह माना है तो एक मां की है इच्छा पूरी कर दो,,,,,,
यह कहकर रानी मासा उदास होते हुए बोली इस वंश और इस हवेली को बारिश चाहिए और यह तभी हो सकता है जब तुम दोनों विवाह के बंधन में बंध जाओ,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती बोली रानी मासा राणा सा अभय प्रताप मेरे सिवा किसी और से भी विवाह कर सकते हैं ,उससे भी उसका वंश आगे बढ़ सकता है तो फिर आप मुझसे ही विवाह क्यों करवाना चाहती हो,,,,,
यह सुनकर रानी मां बोली बेटा मैं जानती हूं अपने बेटे कुंवर सा अभय प्रताप के लिए मैं और किसी राजघराने की कन्या लेकर आ सकती हूं लेकिन मुझे लगता है कि तुम से बेहतर जीवन संगिनी उसे और कोई नहीं मिलेगी,,,,,,,
बेटा तुम उसे बचपन से जानती हो एक तुम ही हो जो उसे समझ सकती हो और वैसे भी यह तुम्हारी जिंदगी का भी सवाल है आखिर कब तक तुम इस तरह ऐसे घुट-घुट कर जीते रहोगी,,,,,,,
और घर की इज्जत घर में ही रहे तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती बोली लेकिन रानी मां,,,,,
उसकी बात बीच में ही काटती हुई रानी मां बोली बेटा मैं अपने एक बेटे और एक बेटी को तो पहले ही खो चुकी हूं,,,,,,,,
अब मैं तुम दोनों को खोना नहीं चाहती मैं नहीं चाहती कि तुम दोनों अंदर ही अंदर घुट घुट कर जियो,,,,,
इसलिए मैं चाहती हूं कि कुंवर अभय प्रताप के साथ तुमारी जिंदगी भी संवर जाए और देखना बेटी समय के साथ-साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा,,,,,,,
कहते हैं कि समय पुराने से पुराने जख्मी घाव को भी भर देता है, और एक ना एक दिन ऐसा आएगा कि तुम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ पाओगे,,,,, मना मत करना बेटी और मुझे वचन दो बेटी तुम यह विवाह करोगी,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती रानी माता का हाथ अपने हाथों में ले लिया और अपने आंसू छुपाते हुए बोली रानी मां सा मैं आपके लिए अपने प्राण भी दे सकती हूं,,,,,
अगर आपकी यही इच्छा है तो मैं राणा सा से विवाह के लिए तैयार हूं,,,,,,
अगर राणा सा से विवाह करने से आपकी आपको खुशी मिलती है इस राज्य को खुशी मिलती है तो मैं कुछ भी कर सकती हूं बाईसा भागवती अपनी गर्दन नीचे करते हुए बोली,,,,,
यह सुनकर रानी मां के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने प्यार से बाईसा भागवती को अपने गले लगा लिया,,,,,,
और बोली मैं जानती थी बेटा तुम मुझे निराश नहीं करोगी तुम दोनों खुश रहो यही तो मैं चाहती हूं,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती में रानी मां के पैर छू लिए तब रानी मां उसे आशीर्वाद देकर अपने कमरे में आ गई,,,,,,
बही रानी मां सा जानती थी कि बाईसा भागवती और कुबर अभय प्रताप इस रिश्ते के लिए दिल से राजी नहीं है, लेकिन उन दोनों की खुशी के लिए उनका विवाह होना जरूरी था,,,,,,,
फिर रानी मां भगवान से हाथ जोड़कर रोते हुए प्रार्थना करने लगी कहने लगी एक भगवान जी आपने मेरे एक बेटे और एक बेटी को तो मुझसे छीन लिया अब मेरे इन दोनों बेटे बेटी के ऊपर अपना आशीर्वाद बनाए रखना,,,,,,,,
कभी भी इनके जीवन में कभी कोई परेशानी ना आए इन पर हमेशा अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखना दोनों को वक्त के साथ बढ़ने की शक्ति देना भगवान जी यह कहते हुए रानी मां ने आंखें बंद कर भगवान का स्मरण किया,,,,,
फिर रानी मासा के आदेश के अनुसार बाईसा भागवती और ठाकुर अभय प्रताप की शादी के लिए जोरों शोरों से तैयारियां शुरू हो गई,,,,,,
फिर पंडित जी के बताए अनुसार दोनों का विवाह उसी तिथि को रखा गया जिस तिथि को ठाकुर अभय प्रताप और बाईसा गायत्री का विवाह निश्चित हुआ था,,,,,
उस तिथी को आने में मुश्किल से कुछ ही दिन बाकी थे, जैसे-जैसे विवाह के दिन नजदीक आते जा रहे थे वैसे वैसे राणा सा अभय प्रताप काफी परेशान थे,,,,,,
क्योंकि उसने कभी अपने जीवन में नहीं सोचा था कि वह बाईसा गायत्री के सिवाय किसी और को अपना जीवनसाथी बनाएंगे,,,,,,
लेकिन अपने राज्य की प्रजा के लिए बह कुछ भी करने के लिए तैयार थे,,,,,,
बही पूरे राज्य में इस विवाह के बारे में सुनकर सभी लोग बहुत खुश थे,,,,,,
सभी भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि सब कुछ ठीक हो जाएगा और अच्छा हुआ बाईसा गायत्री की सच्चाई सामने आ गई थी और उसे सजा मिल गई,,,,,
अब बाईसा भागवती उनकी नई रानी सा बनेगी,,,,,, यह सोचकर सभी बहुत खुश थे,,,,,,
सभी उन दोनों के विवाह की तैयारियां कर रहे थे पूरे राज्य के साथ पूरी हवेली में जोरों शोरों से दोनों के विवाह की तैयारियां होने लगी,,,,,,
फिर आखिर वह दिन आ ही गया विवाह के दिन हवेली को दुल्हन की तरह सजाया गया ठिकाने के सारे लोग भी उस विवाह में शामिल होने हवेली पहुंच गए थे,,,,,,
पूरे राज्य में जश्न का माहौल था सभी लोग बहुत खुश थी ऐसा लग रहा था जैसे हर घर में विवाह हो,,,,,,
बही रानी माता के आदेश के अनुसार ठिकाने के सभी लोगों को खाने का निमंत्रण दिया गया था,,,,,
अब हर कोई ठाकुर अभय प्रताप के बारे में सोच कर अब खुश था कि ठाकुर अभय प्रताप की जिंदगी में फिर से खुशियां आ जाएगी,,,,,
ठिकाने का हर आदमी शादी की तैयारियों में जोरों शोरों से भाग ले रहा था , महिलाएं मंगल गांन गा रही थी मंडप सज चुका था,,,,
ठाकुर अभय प्रताप विवाह के लिए तैयार हो चुके थे लेकिन उसके चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी आंखों में जैसे आंसू आने ही वाले हो,,,,,,
जिस दिन की कभी वह हर क्षण प्रतिक्षा किया करते थे आज उसी दिन वह अपने आप के आंसू नहीं रोक पा रहे थे,,,,,,,
आज बार-बार बाईसा गायत्री का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ रहा था कभी उसे याद कर वह अपने आंसू रोक नहीं पाते तो कभी यह सोच कर कि बाईसा गायत्री ने उसके साथ कितना बड़ा विश्वासघात किया था उसके चेहरे पर घृणा के भाव आ जाते,,,,,,,
वही राज्य की दासी यों द्वारा बाईसा भागवती को दुल्हन की तरह सजा दिया गया था,,,,,,
आज उसे दुल्हन के भेष में देखकर रानी सा ने उसकी नजर उतारी और उसे देख कर खुश होते हुए बोली बहुत सुंदर लग रही हो बेटी,,,,, यह सुनकर बाईसा भागवती ग ने उसके पैर छू लिए,,,,
यह देखकर रानी मां ने उसके सिर पर आशीर्वाद स्वरुप हाथ रख दिया और उसे गले लगाते हुए बोली बस अब सब कुछ शुभ हो जाए,,,,,
फिर रानी मां को खुश होते हुए बोली मैं बाहर जाकर देखती हूं कहीं पंडित जी को कोई काम ना आ गया हो,,,,, यह कहकर वह बाहर चली गई,,,,,,
आज तो जैसे रानी मां मैं कोई नई शक्ति आ गई हो उसे जरा भी थकान नहीं हो रही थी वह इतने नौकर चाकर द होने के बाद भी भाग भाग कर हर कार्य को देख रही थी कि कहीं कोई कमी ना रह जाए,,,,,,
फिर वह सीधे ही पंडित जी के पास आई और उससे इस बारे में चर्चा करने लगी कि कोई परेशानी तो नहीं है ना किसी चीज की जरूरत तो नहीं है ना,,,,,
तभी विवाह का शुभ मुहूर्त शुरू होने से कुछ देर पहले ही पंडित जी ने रानी मां से कहा कि रानी मां अब विवाह का शुभ मुहूर्त शुरू होने वाला है, जल्दी से ठाकुर अभय प्रताप और बाईसा भगवती को मंडप में बुला लीजिए,,,
पंडित जी अभी अपनी बात पूरी ही नहीं कर पाए थे कि आसमान में बादल गरजने लगे चारों तरफ अंधेरा छा गया और जोर शोर से हवाएं चलने लगी,,,,,
अचानक हुए मौसम परिवर्तन को देखकर सभी लोग घबरा गए, तेज हवा चलने के कारण हवेली में जल रही उजाले की मोमबत्तियां बुझने लगी और कांच के बर्तन इधर-उधर गिरकर टूटने लगे,,,,,,,
यह देखकर सभी घबरा गए किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि इतना अच्छा मौसम अचानक कैसे इतना बदल गया,,,,,,
जोर-जोर से आने वाली आंधियां आसमान में चमकने वाली बिजलियां जैसे किसी भयानक तूफान के आने का संकेत दे रही हो हर कोई परेशान हो उठा यह देखकर,,,,,,,,,
तब रानी मांसा परेशान होते हुए बोली पंडित जी यह सब क्या है यह मौसम अचानक कैसे खराब हो गया,,,,,
यह सुनकर पंडित जी परेशान होते हुए बोले रानी मांसा यह सब कुछ अच्छा संकेत नहीं है ऐसा लग रहा है जैसे कुछ अनर्थ होने वाला है, यह है किसी अनहोनी के आने के पहले की चेतावनी है,,,,,
यह सुनकर रानी मां परेशान होते हुए बोली नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं हो सकता आप जल्दी से तैयारियां कीजिए इससे पहले कि कुछ हो यह विवाह संपन्न हो जाए,,,,,
तब पंडित जी बोला लेकिन रानी मां ऐसे मौसम में कुछ भी करना संभव नहीं है,,,,,
यह देखकर और सुनकर रानी मां बहुत परेशान हो गई, वह हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करने लगी कि सब कुछ ठीक हो जाए,,,,,
तभी कुछ देर ऐसे ही मौसम खराब रहा और फिर अचानक सही हो गया, सब कुछ पहले जैसे हो गया आसमान में बादल छट गए, ऐसा लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं था मौसम पहले की तरह ही साफ था,,,,,
अचानक फिर से हुए इस परिवर्तन को देखकर सभी लोग फिर हैरान और परेशान हो उठे,,,,,,
किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक फिर से यह मौसम सही कैसे हो गया आखिर यह सब कुछ क्या हो रहा है कहीं यह किसी अनहोनी का संकेत तो नहीं है हर किसी के मन में कई सवाल थे,,,,
तब पंडित जी रानी माशा की तरफ देखते हुए परेशान होती हुई बोले अब तो रानी मां सब भगवान से यही प्रार्थना करो कि है शुभ कार्य अच्छे से हो जाए,,,,,
क्योंकि इस तरह अचानक मौसम का फिर से सही होना कुछ सही संकेत नहीं दे रहा है अब तो भगवान के हाथ में सब कुछ है लेकिन हम प्रार्थना कर सकते हैं कि सब कुछ शुभ हो,,,,,,
तब रानी मासा ने पंडित जी से कहा पंडित जी आप विवाह की तैयारियां कीजिए ,मैं अभी कुंवर सा अभय प्रताप और बाईसा भागवती को बुलाती हूं,,,,,
यह सुनकर पंडित जी बोले जी रानी मां सा मुहूर्त विवाह शुरू होने वाला है आप जल्दी से बुला लीजिए,,,,,
तब रानी माशा खुद ही कुबर अभय प्रताप को बुलाने उसके कक्ष में चली गई,,,,,
जब रानी मासा ठाकुर अभय प्रताप को मंडप में आने के लिए बुलाने उसके कक्ष में गई तो उसने देखा कि ठाकुर अभय प्रताप खिड़की के पास खड़े हुए थे, उसके चेहरे से दुख साफ झलक रहा था,,,,,,,
लेकिन अपने कक्ष में किसी के आने की आहट सुनकर उसने हल्के से अपने आंसुओं को पोछा पीछे मुड़कर देखा,,,,,,,
अपने कक्ष में अपनी मां को देखकर ठाकुर अभय प्रताप अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए बोले आप माशा यहां,,,
यह देखकर रानी माशा बोली हां कुंवर जी विवाह का मुहूर्त शुरू होने वाला है ,तुम जल्दी से मंडप में आ जाओ,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोला जी माशा आप चलिए मैं आ रहा हूं ,,,,
यह सुनकर रानी मां उसके कक्ष से बाहर आ गई रानी मां राणा सा अभय प्रताप के दर्द को भलीभांति समझ रही थी लेकिन कहीं उसे फिर से कोई तकलीफ ना पहुंचे,,,,,,
इस वजह से उसने इस बारे में कोई बात नहीं की और सब कुछ जानते हुए भी रानी माशा उन सब से अनजान बनते हुए सीधे ही बाईसा भागवती के कमरे में चली गई,,,,,,
रानी मां ने बाईसा भागवती के कक्ष में आकर देखा कि बाईसा भागवती विवाह के जोड़े सुर्ख लाल जोड़े में गहनों से सजी दुल्हन बनकर में सजी सबरी बैठी हुई थी,,,,,,,
यादें करानी मां के चेहरे पर मुस्कान आ गई वह सीधे ही बाईसा भगवती के पास गई उसे आएं देखकर सभी दासिया एक तरफ खड़ी हो गई,,,,,,
वही रानी मासा के पहुंचते ही बाईसा भगवती ने उठकर रानी माता के पैर छू कर आशीर्वाद लिया,,,,
तब रानी माता ने अपनी आंख में काजल निकाल कर उसके चेहरे पर काला टीका लगाते हुए बोली किसी की नजर ना लगे तुम्ह ,,,,
फिर बाईसा भागवती रानी मां के साथ मंडप में आ गई ,वहीं ठाकुर अभय प्रताप भी मंडप में आ गए,,,,,
तब रानी मां पंडित जी की तरफ देखते हुए बोली पंडित जी दूल्हा और दुल्हन दोनों मंडप में आ गए हैं अब तो विवाह की रसम शुरू कीजिए,,,,,,
यह सुनकर पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले हां हां क्यों नहीं वहां उपस्थित सभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान थी,,,,,
तब पंडित जी ने पूरे विधि विधान के साथ विवाह की रस्में शुरू करना शुरू कर दिया,,,,,,,,
फिर बाकी की मंडप के नीचे की सारी रस्में पूरी करने के बाद पंडित जी ने ठाकुर अभय प्रताप और बाईसा भागवती को फेरो के लिए खड़े होने के लिए कहा,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप और बाईसा गायत्री फेरों के लिए खड़े हो गए,,,,,,
लेकिन ठाकुर अभय प्रताप उसका ध्यान तो अभी भी बाईसा गायत्री पर अटका हुआ था,,,,,
उसने एक बार भी नजर उठा कर बाईसा भागवती की तरफ नहीं देखा था वह बस यह चाहते थे कि जल्द से जल्द यह विवाह की रस्में पूरी हो जाए,,,,,
जिससे वह यहां से जा सके क्योंकि रह-रहकर बाईसा गायत्री की याद ना चाहते हुए भी उसे तड़पा रही थी,,,,,
फिर भाई साहब भागवती और थोड़ा सा अभय प्रताप सिंह जैसे ही दोनों फेरे लेने के लिए खड़े हुए,,,,,,,
तभी अचानक आवाज आई रुक जाइए ठाकुर साहब रुक जाइए, इतना बड़ा अनर्थ मत कीजिए,,,,,
यह आवाज सुनकर सभी लोग चौक गए और उस तरफ अपनी गर्दन घूमा ली जिस तरफ से यह आवाज आ रही थी ,ठाकुर अभय प्रताप भी हैरानी से उस तरफ देखने लगे,,,,,,
तभी उन्होंने देखा कि एक लड़की भागते हुए वहां आई वह लड़की हांफ रही थी उस लड़की की तरफ सब हैरानी से देख रहे थे,,,,,,
तभी उसे देखकर रानी माता बोली तुम महादेवी तुम इतने समय से कहां थी और आज जब आई हो तो इस शुभ कार्य के लिए मना क्यों कर रही हो,,,,,,,
यह सुनकर महादेवी बोली मुझे कुछ कहना है,,,,,
तब रानी मां बोली तुम्हें जो कहना है बाद में कह लेना अरे तुम जानती हो ना शुभ कार्य में इस तरह कोई दखल नहीं देनी चाहिए वरना सब अवसगुन होता है,,,,,,
यह सुनकर महादेवी बोली क्षमा करना रानी मां आप जो कह रही है वैसा ही है और मैं जानती हूं रानी मासा सब कुछ जानती हु इसलिए ही मौत के मुंह से यहां आई हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि इतना बड़ा अनर्थ हो,,,,,,
बही महादेवी की यह बात सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग हैरान रह गए कि आखिर महादेवी किस तरह की बातें कर रही है सभी हैरानी से उसकी तरफ देखने लगे,,,,,
बही महादेवी की बात सुनकर ठाकुर अभय प्रताप सिंह की तरफ देखते हुए बोले कैसा अनर्थ,,,,, और तुम क्या बताना चाहती हो जल्दी बताओ,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती बोली आप इसकी बातों पर ध्यान मत दीजिए राणा सा,यह इसकी कोई नई चाल होगी,,,,,,,
क्योंकि एक दासी होने पर भी इसने पहले भी कुंवर सा रुद्र प्रताप को अपने जाल में फंसा ना चाहा और अब शायद आप को फंसाना चाहती है,,,,,,,
यह कहने को तो यह एक दासी है लेकिन महलों के सपने देखती है मुझे जब इसकी सच्चाई मालूम पड़ी ना तभी मन किया था कि इसे कड़ी से कड़ी सजा मिले,,,,,,
लेकिन फिर इस पर दया आ गई और इसे छोड़ दिया लेकिन आज फिर इसकी इतनी हिम्मत कि एक दासी होकर यहां आकर इस तरह की बातें करें और महलों के सपने देखे,,,,,,
यह सुनकर महादेवी हड़ बढ़ाते हुए बोली नहीं ठाकुर साहब आप एक बार मेरी बात सुन लीजिए,,,,, यह जो बोल रही है वह सच नहीं है सच्चाई कुछ और है,,,,,
तब रानी मासा गुस्से में बोली महादेवी हमारे पास तुम्हारी फालतू बातों को सुनने के लिए समय नहीं है ,अच्छा यही होगा कि तुम यहां से चली जाओ, वरना तुम्हारे लिए यह अच्छा नहीं होगा,,,,,
यह सुनकर महादेवी हाथ जोड़कर बोली आप चाहे मेरी प्राण ले लीजिए लेकिन मुझे एक बार अपनी बात रखने का मौका तो दीजिए,,,,,
तब रानी मां गुस्से में उसकी तरफ देखते हुए बोली तुमने सुना नहीं मैंने क्या कहा, अभी इसी समय जाओ यहां से,,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले मासा अगर यह इतना कह रही है तो एक बार इसकी बातें सुन लेने में कोई परेशानी नहीं है,,,,,,
तब बाईसा भागवती बोली राणा सा हमारे विवाह का शुभ मुहूर्त वैसे ही निकला जा रहा है और आप तो जानते ही हैं ना कि यह मुहूर्त हमारे लिए कितना शुभ है,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले मैं जानता हूं लेकिन इसकी बात सुनने में कोई परेशानी नहीं है और हो सकता है कि है कोई महत्वपूर्ण बात हमें बताएं,,,,,,
क्योंकि किसी के भी इतनी हिम्मत नहीं कि बेफिजूल की बातों के लिए हमारा समय बर्बाद करने के लिए आ जाए और इस तरह हमारे विवाह को रोक दे,,,,,,
जरूर इसकी बातों में कोई ना कोई बात तो है फिर यह इतनी विनती कर रही है अपनी बात एक बार बताने की,,,,,,,,
तो फिर हम सब को क्या परेशानी हो सकती है इसकी बात भी सुन लेते हैं शायद कोई काम की बात हो जो हमारे लिए अति महत्वपूर्ण हो,,,,,
तब बाईसा भागवती कुछ बोलती उससे पहले ही ठाकुर अभय प्रताप ने उसे चुप रहने का इशारा कर दिया और महादेवी को इशारे से पास बुलाते हुए बोले अब बोलिए क्या बोलना चाहती है आप,,,,
यह सुनकर महादेवी हाथ जोड़कर बोली राणा सा मैं आपकी हवेली की एक मामूली दासी हूं आज जो कुछ भी मैं कहने जा रही हूं शायद उसको सुनकर आप मुझे मौत की सजा सुना दे फिर मुझे कोई दुख ना होगा,,,,,,,
लेकिन अगर मैं यह नहीं कह पाई तो जीते जी मर जाऊंगी, आप नहीं जानते कि आप कोई है बात बताना कितना जरूरी है,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर अभय प्रताप बोले जो बताना है जल्दी बताओ,,,,,
यह सुनकर महादेवी बोली जी राणा सा यह कह कर उसने अपने आंसू पोंछते हुए गुस्से में बाईसा भागवती की तरफ देखते हुए बोली राणा सा आप जिस से विवाह करने जा रहे हैं यह भागवती एक औरत नहीं एक डायन डायन,,,,,,
जैसे ही महादेवी के मुंह से यह शब्द सब ने सुना तो सब हैरान रह गए किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था सब एक टक उस तरफ ही देखने लगे,,,,,
तभी यह सुनकर रानी मासा गुस्से में बोली तुम जानती हो तुम क्या कह रही हो, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारी होने वाली बहू यहां की रानी सा पर उंगली उठाने की,,,,,,,
बहा उपस्थित सभी लोग आपस में कानाफूसी करने लगे सब कोई नहीं लग रहा था कि इस महादेवी का जरूर मानसिक संतुलन ठीक नहीं है,,,,,,
जिस वजह से यह जो मुंह में आ रहा है बोले जा रही है इसे खुद होश नहीं है कि यह क्या बोल रही है,,,,,,
तब बाईसा भागवती रोते हुए बोली रानी मा देखिए कुंवर सा रुद्र प्रताप सिंह हमें छोड़कर क्या चले गए कि अब तो एक हवेली की मामूली सी दासी भी हमें डायन कहकर बुला रही है यह कहकर में रोने लगी,,,,,
यह सुनकर रानी मां गुस्से पर महादेवी के पास आई और फिर और दासियों की तरफ देखते हुए बोली अभी और इसी समय इसे हमारे सामने से ले जाओ,,,,,,
इसने जो शब्द बोले है इसकी सजा तो इसे ऐसी मिलेगी की है जीवन भर याद रखेगी,,,,,
तब महादेवी बोली रानी मां लेकिन पहले मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए,,,,,
यह सुनकर राणा सा अभय प्रताप सिंह गुस्से में उसकी तरफ देखते हुए बोले तुम्हें पता है तुम क्या बोल रही हो,,,,,,,
लगता है तुम्हारा मानसिक संतुलन ठीक नहीं है अगर हम चाहे तो अभी तुम्हारी इस गलती के लिए तुम्हें सजा दे सकते हैं,,,,,,
लेकिन हम इस शुभ अवसर पर ऐसा कोई काम नहीं करना चाहते लेकिन तुमने जो किया है उसके लिए तुम्हें जरूर सजा मिलेगी,,,,,
तभी दासिया पकड़ कर महादेवी को वहां से ले जाने लगी तो महादेवी उनसे अपना हाथ छुड़ाकर भाग कर राणा सा अभय प्रताप के सामने बैठकर हाथ जोड़कर बैठ गई,,,,,,
फिर वह बोली राणा एक बार मेरी बात सुन लीजिए उसके बाद अगर मेरी बातों में कोई सच्चाई ना हो और मैं गलत साबित हो तो,,,,,,
आप यहीं पर इसी समय अपनी तलवार से मेरा सिर धड़ से अलग कर दीजिए, लेकिन एक बार मेरी बात सुन लीजिए,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती बोली राणा सा अब सुनने और सुनाने के लिए क्या बाकी रह गया है,,,,,
एक दासी ने हमारा इतना अपमान किया है फिर भी आप इसकी बात सुनना चाहते हैं, क्या अब भी हमारा और अपमान होना बाकी रह गया है,,,,,,
तब रानी मां बोली हां बेटा इस दासी ने जो तुच्छ हरकत की है इसकी सजा तो इसे मिलेगी,,,,,
तब ठाकुर अभय प्रताप बोले मासा मैं आपकी बात समझ रहा हूं यह भी जानता हूं कि जो कुछ यह बोल रही है वह कितना गलत है,,,,,,
लेकिन अगर यह इतनी विनती कर रही है तो एक बार इसे इसकी बात कहने का मौका दिया जाए वही उचित है उसके बाद तो इसे जो सजा मिलेगी वह यह नहीं जानती,,,,,,,
तब पंडित जी बोले राणा सा शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है जल्दी से विवाह की रस्में शुरू कीजिए,,,,,
यह सुनकर राणा सा ठाकुर अभय प्रताप सिंह बोले जी पंडित जी जरूर लेकिन सिर्फ जरा रुकिए,,,,,
यह कहकर राणा सा महादेवी की तरफ देखते हुए बोले अब जल्दी बोलो कि क्या बोलना चाहती हो तुम,,,,,
तभी दासिया वापस आकर महादेवी को पकड़ने लगी लेकिन ठाकुर अभय प्रताप ने उन्हें हाथ के इशारे से पीछे हटने के लिए कह दिया,,,,,
फिर वह महादेवी की तरफ देखते हुए गुस्से में बोला अब और क्या बोलना है तुम्हें बोलों,,,,,,
यह सुनकर महादेवी हाथ जोड़कर बोली राणा सा मैं सच कह रही हूं यह भागवती औरत नहीं डायन है डायन,,,,,,
यहां तक की ठाकुर रुद्र प्रताप और बाईसा गायत्री की मौत के पीछे भी इसका ही हाथ है,,,,,,यही सच है,,,,,,
और ठाकुर साहब आपने अपनी आंखों से बाईसा गायत्री को मासूम बच्चों की जान लेते हुए शैतान की पूजा उपासना करते हुए देखा था,,,,,,,
वह बाईसा गायत्री नहीं थी बह आपकी आंखो का भ्रम था वहां पर जो उपस्थित थी वह बाईसा गायत्री नहीं वलिक यह भागवती थी,,,,, महादेवी ने गुस्से में बाईसा भागवती की तरफ उगली करते हुए कहा,,,,,,,
महादेवी की बात सुनकर कोई कुछ बोलता उससे पहले ही महादेवी फिर बोली राणा सा यह एक ऐसी डायन है जो अपनी मनमोहक जादुई शक्ति से किसी भी इंसान या जानवर का रूप धारण कर सकती है,,,,,,
यहां तक की किसी भी इंसान के मन को बस में कर सकती है और जैसा चाहती है और किसी भी इंसान को वह दिखा सकती है जैसा यह चाहती है आपने भी वही देखा जैसा इसने आपको दिखाना चाहा,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती गुस्से में बोली तुम होश में तो हो तुम इस तरह मुझ पर बेवजह इस तरह उंगली नहीं लगा सकती,,,,,
फिर बाईसा भागवती रानी सा की तरफ देखते हूए बोली रानी मां अब और क्या सुनना बाकी रह गया है एक तुच्छ दासी यहां पर कुछ भी अनाप-शनाप बोले जा रही है और आप सब खड़े सुन रहे हो,,,,,,
और राणा सा क्या आपको यह सब कुछ उचित लग रहा है कि यह तुच्छ दासी मेरा अपमान करें और आप खड़े देखते रहे,,,,,,
तब कोई कुछ बोलता उसे पहले ही महादेवी फिर बोली हां राणा सा आपने जो देखा वह आपकी आंखों का भ्रम था,,,,,,
यहीं नहीं यहां तक ठाकुर रुद्रत्र प्रताप की मौत किसी जंगली जानवर की वजह से नहीं हुई बलिक इस भगवती ने उसकी हत्या की है,,,,,, महादेवी भागवती की तरफ देखते हुए गुस्से में चिल्ला कर बोली,,,,,
बही महादेवी की बातें सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग आपस में कानाफूसी करने लग गए,,,,,,
सभी लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे वही बाईसा भागवती गुस्से में पगला रही थी,,,,,,
वह कुछ बोलती उससे पहले ही ठाकुर अभय प्रताप महादेवी की तरफ देखते हुए गुस्से में बोले तुम इतना बड़ा कलंक लगा रही हो राजकुमारी भागवती पर,,,,,,
क्या तुम्हारे पास भागवती राजकुमारी भागवती के विरुद्ध कोई सबूत है,,,,,,
यह सुनकर महादेवी बोली हां राणा मैं आपको बहुत कुछ बताना चाहती हूं,,,,,,
यह सुनकर सब लोग हैरान रह गए,तब बाईसा भागवती और रानी मां कुछ बोलना चाहती थी लेकिन राणा सा ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया,,,,,,
फिर भागवती बोली राणा सा मैं और ठाकुर रुद्र प्रताप दोनों ही बचपन से एक दूसरे से प्रेम करते थे ठाकुर रुद्र प्रताप और में हमेशा के लिए एक हो जाना चाहते थे,,,,,,,
लेकिन हम जानते थे कि यह संभव नहीं है हम दोनों में जमीन आसमान का अंतर है लेकिन हमारा प्रेम सच्चा था हम बिना सोचे समझे कि हमारे प्रेम का आगे क्या होगा एक दूसरे से सच्चा प्रेम करते थे,,,,,,,,
लेकिन जब आप लोगों ने इस बाईसा भागवती का विवाह रुद्र प्रताप से तय किया तो वह बिल्कुल पगला गए,,,,,,,
वह सिर्फ मुझसे प्यार करते थे और मेरे साथ जीना चाहते थे, लेकिन मैंने उसे हवेली की मान मर्यादा के बारे में समझा बुझा कर उससे दूर रहने का फैसला किया,,,,,,
बही ठाकुर रुद्र प्रताप जानते थे कि बाईसा भागवती से उसका रिश्ता बचपन में ही तय कर दिया गया था लेकिन बह इस रिश्ते को मानने के लिए तैयार नहीं थे,,,,,,,
बह किसी भी तरह से बाईसा भागवती को स्वीकार नहीं करना चाहते थे उन्होंने कई बार मुझे यह बताने की कोशिश की कि वह बाईसा भागवती से विवाह नहीं करना चाहते वह केवल मुझे ही चाहते हैं और हमेशा के लिए मुझे अपनाना चाहते हैं,,,,,,
लेकिन मैंने उसे अच्छे बुरे के बारे में समझाया उससे कहा कि चाहे हमारा भी मिलन ना हो लेकिन मैं उनसे हमेशा प्रेम करूंगी और उसके सिवा किसी और के बारे में सोचूंगी,,,,,,,,
क्या हुआ अगर हम समाज की नजरों में एक ना हो सके तो हमारा प्रेम तो सच्चा है,,,,,,,,
और हम दोनों में जमीन आसमान का अंतर है यह समाज क्या कोई भी हमारे रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगा लोग तरह-तरह की बातें बनाएंगे,,,,,,
लेकिन ठाकुर रुद्र प्रताप कुछ कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं थे वह किसी भी हालत वह मुझसे ही विवाह करना चाहते थे,,,,,,,
ऐसे जब मुझे लगा कि ठाकुर रुद्र प्रताप समझने वाले नहीं है तो ना चाहते हुए भी मैंने उनसे सोच कर कि कहीं लोग मेरे दामन पर उंगली उठाने के साथ-साथ इस कुल की मान मर्यादा पर उंगली ना उठाएं मैंने उनसे अपने आप को दूर कर लिया,,,,,,
लेकिन हम दोनों ही एक दूसरे से दूर नहीं रह पा रहे थे एक एक क्षण एक दूसरे के बिना निकालना हमारे लिए मुश्किल था लेकिन ठाकुर रुद्र प्रताप से ना मिलना मेरी मजबूरी थी,,,,,,,
ऐसे में 1 दिन किसी से कह कर ठाकुर रुद्र प्रताप ने यह संदेशा भिजवाया कि वह एक बार मुझसे मिलना चाहते हैं और मुझे उनसे मिलने जाना ही होगा,,,,,,
ठाकुर रुद्र प्रताप का यह संदेश पाकर मैं चाह कर भी मना नहीं कर पाई और वापसी में मिलने के बारे में लिखकर संदेशा भेज दिया,,,,,,,
उस दिन ठाकुर रूद्र प्रताप ने रात्रि के अंधेरे में गुपचुप तरीके से मुझे मिलने के लिए बुलाया,,,,,,,
हम दोनों अक्सर जो जंगल के पास का तालाब है जहां पर मिलते थे उस दिन भी कोई हमें देख ना ले इस वजह से हम रात्रि में एक दूसरे से मिलने के लिए अकेले उस तालाब किनारे गए हुए थे,,,,,,,
जब मैं उससे मिलने के लिए तलाब पर पहुंची, तो देखा कि ठाकुर रुद्र प्रताप मेरा ही इंतजार कर रहे थे हम दोनों एक दूसरे को देख कर अपने आंसू ना रोक सके,,,,,,
फिर हमेशा की तरह एक दूसरे को अपनी भावनाएं बताने के साथ बातें कर रहे थे हम दोनों अभी अपनी बातें करने में व्यस्त थे,,,,,,,
तभी ठाकुर रुद्र प्रताप ने किसी को किसी साए को के पास से गुजरते हुए वहां से कुछ छोटे बालकों को ले जाते हुए देखा,,,,,
उस साये को हमारे बारे में कुछ पता नहीं था ना ही हमारी तरफ उसका ध्यान गया था,,,,,,,
बह तो बस छोटे बालकों को उठाए जंगल के पास से तालाब किनारे से हमारे करीब से ही गुजरा था ऐसे में ठाकुर रुद्र प्रताप की उस पर नजर पड़ गई उसे कुछ शक हुआ,,,,,,,
यह देखकर ठाकुर रुद्र प्रताप हैरान रह गए वह साया सिर्फ उसे ही दिखाई दिया था क्योंकि जंगल की तरफ से मेरी पीठ थी ऐसे में मेरा ध्यान उस तरफ नहीं था,,,,,,
लेकिन ठाकुर रुद्र प्रताप यह देखकर और वह बिना मुझसे कुछ कहे ही अपने घोड़े को बही छोड़कर उस साये का पीछा करने लगे, जो छोटे बालकों को लेकर जा रहा था,,,,,,,
यह देखकर मैं ठाकुर रुद्र प्रताप को रोकने के लिए रुक जाओ कुंवर सा कहते हुए उसके पीछे दौड़ने लगी लेकिन मुझे यह साया नजर नहीं आया,,,,,,,
क्योंकि वह साया काफी तेज गति से आगे भागा जा रहा था और ठाकुर रुद्र प्रताप उस के पीछे जा रहे थे,,,,,,
उसे अमावस्या की रात के गहरे अंधेरे में मुझे ठीक से दूर तक दिखाई भी नहीं दे रहा था मैं तो बस ठाकुर रुद्र प्रताप के पीछे भागे जा रही थी,,,,,,
बही इन सबसे बेखबर बह साया तेज गति से लगातार आगे की तरफ जा रहा था तभी उस साये ने एक खंडहर में प्रवेश किया,,,,,,
यह देखकर ठाकुर रुद्र प्रताप बिना कोई शोर मचाए उस खंडहर में उस साये के पीछे प्रवेश कर गए थे,,,,,,
यह देखकर मैं भी बिना कुछ सोचे समझे उसके पीछे-पीछे उस खंडहर में चली गई मैं ठाकुर रुद्र प्रताप के पीछे पीछे जाने लगी,,,,,,
तभी वहां जाकर मैंने देखा कि उस खंडहर में एक बड़ी सी अजीब सी मूर्ति लगी हुई है जिसके मुंह से खून निकल रहा है उसके बड़े बड़े दांत है,,,,,,
उसे देखकर एक पल के लिए तो मैं डर गई फिर मुझे समझने में देर न लगी कि वह शैतान की मूर्ति है वहां चारों तरफ छोटे बालकों की हड्डियां और शव बिखरे हुए पड़े थे,,,,,,
मैंने देखा कि बह साया उस अजीबोगरीब शैतान की मूर्ति के बिल्कुल सामने था,,,,,,
वही एक खंबे के पीछे ठाकुर रुद्र प्रताप खड़े हुई यह देख रहे थी कि आखिर ये कौन है और क्या कर रहा है,,,,,
मैं भी ठाकुर रुद्र प्रताप सिंह कुछ ही दूरी पर एक खंबे के पीछे खड़ी हो गई
तभी उस साए ने फिर अपना नकाब हटा कर उस शैतान के सामने बैठकर अजीबोगरीब मंत्र कहते एक शैतानी पूजा शुरू की,,,,,,
फिर सबसे पहले उसने वही रखें एक मुर्गे की बलि दी उस मुर्गे के खून से पहले उसने उस शैतान की मूर्ति को भोंग लगाया,,,,,,
फिर वही अजीबोगरीब मंत्र कहते हुए उस साये ने उस छोटे बालक की बलि शैतान की मूर्ति के सामने देना चाही,,,,,
यह देखो ठाकुर रुद्र प्रताप सिंह बाहर नहीं गया और बैंक उसी से कमी से निकलकर गए और उसने भागकर उस साये का हाथ पकड़ लिया,,,,,,
उस समय ठाकुर रुद्र प्रताप ने उस साये का हाथ पकड़ कर उसे उस बालक की बलि देने से रोक दिया था और गुस्से में उस साऐ की तरफ देखा,,,,,,,
लेकिन जब उस साए ने ठाकुर रुद्र प्रताप की तरफ मुड़कर देखा तो वह कोई और नहीं है यह भागवती थी,,,,,,, यह कहते हुए महादेवी ने गुस्से में भागवती की तरफ देखा,,,,,,,
वही बाईसा भागवती यह सब कुछ सुन का गुस्से में तिल मिला रही थी अगर उसका बस चले तो वह अभी महादेवी का खून पी जाए लेकिन वही सब लोग मूकदर्शक बने महादेवी की बातें सुने जा रहे थे,,,,,,,,
फिर भागवती आगे बोली इसका चेहरा देखकर ठाकुर रुद्र प्रताप के साथ मुझे भी काफी हैरानी हुई हम सोच भी नहीं सकते कि यह ऐसी है लेकिन अब हमें सब समझ में आ चुका था,,,,,,,
मैं अब भी उसी खंभे के पीछे खड़े यही दृश्य देख रही थी,,,,,
बही ठाकुर रुद्र प्रताप इसे वहां शैतान के सामने उस बालक की बलि देखते देख कर गुस्से में बोले कि तुम और यहां,,,,,,,,
फिर भी हैरानी से कुछ सोचकर गुस्से में बोले इसका मतलब भी आज तक जो कुछ भी इस हवेली और ठिकाने में घटित हो रहा था उसके पीछे तुम्हारा हाथ है,,,,,,,
मैं सोच भी नहीं सकता कि तुम इतनी गरी हुई हरकत भी कर सकती हो,,,,,,
तुम पूरे राज्य में से छोटे बालकों को रात में अगवा करके लाती हो और इस शैतान की मूर्ति के सामने उनकी बलि देती हो,,,,,,,
यह कोई कभी सोच भी नहीं सकता ठाकुर रुद्र प्रताप गुस्से में उसकी तरफ देखते हुए बोला,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती हर बढ़ाते हुए बोली नहीं कुंवर सा बह आगे अपनी सफाई देती कुछ कह पाती,,,,,,
उससे पहले ही ठाकुर रुद्र प्रताप गुस्से बोले बस अब मुझे कुछ नहीं सुनना मैंने अपनी आंखों से तुम्हें यह घिनौना काम करते हुए देख लिया,,,,,,
लेकिन अब मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगा सारे लोगों को तुम्हारी सच्चाई पता चलेगी,,,,,,
और जो घटिया और तुच्छ हरकत तुमने की है ना उसकी सजा तुम्हें मिल कर रहेगी,सुबह ही भरे दरबार में राणा सा तुम्हें उसकी सजा सुनाएंगे,,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती कार्ड बनाते हुए बोली कुंवर सा हम दोनों बचपन के दोस्त हैं अब तो हमारा विवाह भी होने वाला है,,,,,,
ऐसे में यह उचित नहीं है कि आप अपनी होने वाली धर्मपत्नी के बारे में लोगों को यह सब बताएं,,,,,
यह सुनकर ठाकुर रुद्र प्रताप गुस्से में बोले जो तुच्छ हरकत की है ना तूने उसकी सजा तो तुम्हें मिलकर रहेगी और मेरे लिए मेरा राज्य धर्म सबसे बढ़कर है अपनी प्रजा की खुशियां मेरे लिए सबसे बढ़कर है,,,,,,
और दोषी दोषी होता है फिर चाहे वह कोई भी हो यह कहते हुए ठाकुर रुद्र प्रताप ने उस बच्चे की तरफ देखा जो अभी बेहोश था,,,,,,
फिर उस बच्चे को देखकर ठाकुर रुद्र प्रताप ने अपने एक हाथ से उसे गोद में उठाया और गुस्से में बाईसा भागवती से बोले अब चलो मेरे साथ,,,,,,
यह कहकर ठाकुर रुद्र प्रताप ने गुस्से में भागवती का हाथ पकड़कर घसीटते हुए कहा,,,,,,
बही भागवती ने यह देखकर हर बढ़ाते हुए बात को संभालने का प्रयास किया, लेकिन ठाकुर रुद्र प्रताप अपनी आंखों से यह सब कुछ देख चुके थे,,,,,,
तब बाईसा भागवती से ठाकुर रुद्र प्रताप बोले इसका मतलब तुम ही हो जो आज तक इस हवेली में ठिकाने में जो भी घटनाएं घटित हो रही है,,,,,,
इसका मतलब बाईसा गायत्री निर्दोष थी और तुमने अपने छल कपट से उसे भी मौत के घाट उतरवा दिया इतनी निर्ममता से,,,,,
आखिर क्यों किया तुमने ऐसा क्यों करती हो तुम इस दुष्ट शैतान की पूजा बताओं मुझे ठाकुर रुद्र प्रताप ने अपनी तलवार बाहर निकालते हुए कहा,,,,,,,
फिर बह गुस्से में बोला आज सच-सच बताओ वरना मैं तुम्हारी इसी क्षण प्राण ले लूंगा अपनी तलवार से,,,,,,,
तब यह सुनकर और अपनी मौत को सामने देखकर बाईसा भागवती घबराते हुए बोली हां इन सब के पीछे मैं ही हूं ,,,,,
यह सुनकर ठाकुर रुद्र प्रताप गुस्से में बोले क्यों कर रही हो तुम ऐसा क्यों तुमने उस निर्दोष बाईसा गायत्री को दीवार में जीते जी चुनवा दिया,,,,
निर्दोष होते हुए भी तुमने कितनी निर्ममता से उसे मरवा दिया वह तुम्हारी बहन थी और तुमने अपनी ही बहन के साथ इतना बड़ा छल किया,,,,,
यह सुनकर भागवती गुस्से में चिल्लाती हुए बोली क्योंकि घृणा करती थी मैं उससे,,,,,,
संसार में अगर सबसे ज्यादा घृणा में किसी से करती थी तो मैं उससे करती थी,,,,,,
क्योंकि वह मेरी बहन नहीं मेरी सबसे बड़ी शत्रु थी और उसकी मौत मेरे लिए मेरी जिंदगी थी घिन आती है मुझे उसके नाम से,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर रुद्र प्रताप को हैरानी हुई और बह हैरानी से भागवती की तरफ देखते हुए बोले यह तुम क्या कह रही हो,,,,,,,
वह तुम्हारी बहन थी तुमसे बहुत प्रेम करती थी और तुम्हारे मन में उसके प्रति इतनी घृणा आखिर क्यों,,,,,,
यह सुनकर भगवती बोली जानना चाहते हो तो सुनों में बाईसा गायत्री और मैं बचपन से ही साथ पले बढ़े हैं,,,,,,,,
लेकिन हमेशा से बाईसा गायत्री ने मुझे नीचा दिखाया जो वस्तु मुझे चाहिए होती उस पर बाईसा गायत्री का हक होता,,,,,,
जब हमारी माशा बाबोसा सब जिंदा थे वह भी उसे ही सबसे ज्यादा प्रेम करते थे उनके सामने मैं तो जैसे कुछ ही नहीं थी,,,,,,,
हर बात पर मुझे डांटते और बाईसा गायत्री हमेशा बस मेरे सामने दिखावा ही करती और उसने एक बार बाबूसा से जाकर मेरे बारे में शिकायत की कि मैं काला जादू करती हूं शैतान की पूजा करती हूं,,,,,,,
पता है उस समय यह सुनकर बाबोसा ने मुझे बहुत डांटा किसी ने भी मुझसे ठीक तरह से बातें नहीं की बाईसा गायत्री ने मुझे सबकी नजरों में गिरा दिया था,,,,,,
तब मुझे बहुत गुस्सा आया और पता है फिर मैंने क्या किया मैंने गुस्से में उन सब को हमेशा के लिए चैन की नींद सुला दिया,,,,,,बाईसा भागवती गुस्से में बोली,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर रुद्र प्रताप के साथ मुझे भी हैरानी हो रही थी, हमें तो जैसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो हम सुन रहे हैं वह सच है या हमारी आंखें जो देख रही है वह सच है या कोई आंखों का देखा धोखा,,,,,,,,
क्यों की आखिर कोई सोच भी नहीं सकता कि यह सीधी-सादी दिखने वाली बाईसा भागवती इतनी निर्दई भी हो सकती है,,,,,,
फिर बाईसा भागवती आगे बोली मन तो किया था कि उस समय हमेशा इस बाईसा गायत्री को रास्ते से हटा दूं लेकिन कभी चाहकर भी हटा ही नहीं पाई,,,,,,
फिर हम यहां आ गए इस हवेली में और यहां पर भी वही सब कुछ हुआ हर कोई बाईसा गायत्री को ज्यादा मान देता था कैसे हर किसी की वहीं चहेती थी,,,,,,,
यहां तक कि मैं बचपन से ही ठाकुर अभय प्रताप से प्रेम करती हूं और बाईसा गायत्री ने मुझसे मेरा प्रेम भी छीन लिया,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर रुद्र प्रताप हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए बोले क्या,,,,,,
तब भागवती गुस्से में बोली हां मैं हमेशा से ही ठाकुर अभय प्रताप से प्रेम करती थी, लेकिन ठाकुर अभय प्रताप मुझसे नहीं मेरी उस बहन बाईसा गायत्री से प्रेम करते थे,,,,,,,
कितना कोशिश की मैंने ठाकुर अभय प्रताप को अपना बनाने की लेकिन वह कभी मेरी तरफ देखते तक नहीं थे,,,,,,,
ऐसे में ही ठाकुर अभय प्रताप के बाबोसा ने हमारे विवाह का शुभ मुहूर्त निकलवा लिया जिसे सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन मैं इस तरह हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी रह सकती थी,,,,,,
ऐसे में ही 1 दिन पता नहीं कहां से ठाकुर अभय प्रताप के बाबोसा को मेरे बारे में पता चल गया इस बारे में बह किसी को कुछ बताते मैंने उसे रास्ते से हटा दिया,,,,,,
यह सुनकर तो ठाकुर रुद्र प्रताप की आंखें फटी की फटी रह गई,वह कुछ बोलते उससे पहले ही बाईसा भागवती फिर बोली मुझे तो लगा था कि इतना कुछ होने के बाद शायद यह विवाह ना हो पाएगा,,,,,,,
लेकिन अपने पिताश्री की इच्छा का मान रखने के लिए ठाकुर अभय प्रताप इस विवाह को करना चाहते थे और बाईसा गायत्री वह तो यही चाहती थी ना,,,,,,
यह कहते हुए भाई साहब भागवती गुस्से में तमतमाने लगी वह फिर आगे बोली हमेशा से ही उसने मेरे हक को छीना था इस बार भी छीन लिया था उसने मेरे प्रेम को,,,,,,
लेकिन इस बार में शांत नहीं रह सकती थी मुझे किसी भी कीमत में अपना प्रेम ठाकुर अगर प्रताप वापस चाहिए थे,,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर रुद्र प्रताप गुस्से में बोले और तुमने इसलिए निर्दोष बाईसा गायत्री को इतनी निर्ममता से मौत के घाट उतरवा दिया,,,,,,
यह सुनकर बाईसा भागवती बोली हां क्योंकि ठाकुर अभय प्रताप सिंह से मेरा ही विवाह होगा बह सिर्फ मेरे होंगे,,,,,,
यही नहीं मैं सिर्फ ठाकुर अभय प्रताप सिंह प्रेम ही नहीं करती इसके पीछे मेरी एक वजह और थी उसे पाने की,,,,,,,, यह कहते हुए बाईसा भागवती के चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई,,,,,,
तब ठाकुर रुद्र प्रताप गुस्से में बोले ऐसी और कौन सी वजह थी,,,,,
तब भागवती बोली क्योंकि इसके साथ ही मैं अच्छी तरह जानती थी कि ठाकुर अभय प्रताप का जन्म जिस नक्षत्र में हुआ था वह काफी शक्तिशाली था,,,,,,,
ऐसे में अगर मै ठाकुर अभय प्रताप से विवाह करती हूं तो उसके साथ मेरा जीवन भी जुड़ जाएगा और उस नक्षत्र की सारी शक्तियां मुझे मिल जाएगी,,,,,,,
जिससे मैं काफी शक्तिशाली हो जाऊंगी, फिर इस ठिकाने इस हवेली पर मेरा राज होगा मेरा मेरी काली शक्तियों का मेरे शहंशाह शैतान का यह कहकर वह जोर-जोर से हंसने लगी,,,,,,
फिर वह गुस्से में बोली मैंने लाख कोशिशें की ठाकुर अभय प्रताप और गायत्री को अलग करने की लेकिन कर नहीं पाई,,,,,,
मैं कभी ऐसा नहीं कर सकती थी कि बाईसा गायत्री मेरे होते हुए यहां की रानी सा बने और मैं सिर्फ तुम्हारी धर्मपत्नी बन कर रह जाऊं,,,,,,
और इस हवेली पर इस राज्य पर राज करें मेरी बहन बहन और मैं उसका आदेश मानने के सिवा कुछ ना कर पाऊं यह मैं कभी सहन नहीं कर सकती थी,,,,,,
मुझे किसी भी तरह ठाकुर अभय प्रताप चाहिए यहां की यहां रानी सा मैं ही बन सकती हूं लेकिन इसके लिए बाईसा गायत्री को रास्ते से हटाना जरूरी था,,,,,,
मैं जानती थी कि मैं चाहे कितनी भी कोशिश कर लू लेकिन उसे रास्ते से नहीं हटा पाऊंगी फिर मैंने एक नई योजना बनाई,,,,,,
तब बाईसा भागवती बोली मैं जानती थी कि राज्य में जो कुछ भी घटनाएं घट रही है वह मेरी वजह से घट रही थी,,,,,,
क्योंकि अपने शैतान को खुश करने के लिए मुझे इसके सामने नरबलि या छोटे बालकों की बलि देना जरूरी था,,,,,,
ऐसे में बड़ी ही सावधानी से मैं इन सब को पूरा कर रही थी लेकिन इसके साथ सबसे ज्यादा शक्तिशाली में तभी हो सकती थी जब ठाकुर अभय प्रताप के साथ मेरा विवाह हो,,,,,,
फिर जो योजना मैंने बनाई जिसमें ठाकुर अभय प्रताप भलीभांति फंस गए,,,,,,
मैं जानती थी कि राज्य में दिन-प्रतिदिन घट रही घटनाओं को लेकर सभी बहुत परेशान है ठाकुर अभय प्रताप ने इन सब का पता लगाने की बहुत कोशिश की,,,,,,
यहां तक कि 1 दिन तो में एक तांत्रिक को ले आए मेरा पता लगाने के लिए लेकिन वह तांत्रिक कुछ बता पाता उससे पहले ही मैंने उसे मौत के घाट उतार दिया,,,,,,
जिससे ठाकुर अगर प्रताप और ज्यादा परेशान हो गए और इसी मौके का फायदा मैंने उठाया,,,,,
उस दिन जब बाईसा गायत्री मंदिर गई हुई थी तो मैंने ही काली शक्तियों से उसकी अलमारी में काले जादू का सामान रख दिया,,,,,
और जैसा मैं चाहती थी वैसा ही हुआ ठाकुर अभय प्रताप को वह सामान मिल गया,,,,,,
बही गायत्री को तो अपने कक्ष में से इस खंडहर में आने जाने के किसी भी रास्ते के बारे में कुछ भी पता नहीं था ना ही वहां पर ऐसा कोई रास्ता था,,,,,,
लेकिन मैंने ही अपनी जादुई शक्तियों से वहां उस गुफा में जाने का रहस्यमई रास्ता बनाया था,,,,,,,
जिससे ठाकुर अभय प्रताप यहां इस खंडहर मैं आ जा सके,,,,,,
जैसा मैं चाहती थी वैसा ही हुआ ठाकुर अभय प्रताप को वह रास्ता मिला और उस रास्ते को देखकर वह हैरान और परेशान हो गए,,,,,,,
लेकिन फिर सच्चाई पता लगाने के लिए वह उस रास्ते की तरफ बढ़ चले यहीं तो मैं चाहती थी कि मेरे बनाए इस रहस्यमई और काली शक्तियों से वशीभूत रास्ते में होकर ठाकुर अभय प्रताप इस खंडहर में आ पहुंचे,,,,,
जिस समय ठाकुर अभय प्रताप इस खंडहर में आए हुए थे उस समय में ही शैतान की पूजा कर रही थी, लेकिन मेरे इस खंडर में प्रवेश करते ही ठाकुर अभय प्रताप पूरी तरह से मेरे बस में थे,,,,,,,
मैंने पूरी तरह उसे अपनी काली शक्तियों के अंतर्गत कर रखा था मैं जैसा चाह रही थी वैसा ही वह देख पा रहे थे जो मैं उन्हें दिखाना चाहती थी वही वह देख रहे थे,,,,,,
उस समय में शैतान की पूजा कर रही थी और मेरे अनुसार ठाकुर अभय प्रताप को मेरे रूप में बाईसा गायत्री दिखाई दे रही थी,,,,,,,
मैं जैसा चाहती थी वैसा ही हुआ ठाकुर अभय प्रताप ने बाईसा गायत्री को ही डायन समझ कर उसे ही मौत की सजा सुना कर दीवार में चुनवा दिया,,,,,,,
क्योंकि अगर ठाकुर अभय प्रताप सिंह जाकर कोई और इस बारे में कहता तो उसे कभी यकीन नहीं होता,,,,,
लेकिन उसने खुद बाईसा गायत्री को उस खंडहर में मेरे रूप में देखा था तो भला संदेह करने का तो कुछ सवाल ही नहीं बचा था,,,,,,,
ऐसे में उसने बाईसा गायत्री को दोषी समझ लिया जबकि बाईसा गायत्री को तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं था,,,,,,
बह तो हमेशा की तरह उस दिन भी मंदिर गई थी लेकिन जो कुछ ठाकुर अभय प्रताप ने देखा था या ऐसे कहों जो मैंने उसे दिख लाया था,,,,,,
उसके बाद तो बाईसा गायत्री की किसी भी बात पर विश्वास करना उनके लिए नामुमकिन था और बाईसा गायत्री कि बिना कुछ सुने ही उसे हमेशा हमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया गया,,,,,,,
यह कहते हुए बाईसा भागवती मुस्कुराते हुए बोली सच कहूं ना तो मैं बता नहीं सकती उस दिन मेरे लिए कितना बड़ा खुशी का दिन था,,,,,,
वैसे दिखाने के लिए तो मैंने सबको दिखावा किया था अपनी बहन के मरने का झूठा दुःख भी मनाया था,,,,,
लेकिन सच तो यह था कि बाईसा गायत्री यानी मेरी सबसे बड़ी शत्रु के मरने से मेरी बरसों की इच्छा पूरी हो गई अपनी उस शत्रु बहन को अपने रास्ते से हटाने की,,,,,,
मैंने जैसा चाहा था वैसा ही हुआ था ठाकुर अभय प्रताप के हृदय में उसके प्रति घृणा भरने की जो उसके नाम तक से घृणा करने लग गए थे,,,,,यह कहते हुए बाईसा भागवती जोर से हंसने लगी,,,,,,
फिर वह बोली देखो बाईसा गायत्री के मरने के बाद मेरा रास्ता कितना आसान हो गया,,,,,,
अब कोई भूल कर भी मेरे ऊपर संदेह नहीं कर सकता क्योंकि सबको तो यही लगता है कि बाईसा गायत्री डायन थी और उसे हमेशा के लिए सजा मिल गई अब ऐसा कुछ नहीं है,,,,,,
यह कहते हुए बाईसा भागवती ने रुद्र प्रताप की तरफ देखा और बोली बाईसा गायत्री तो चली गई लेकिन उसके बाद भी मेरे रास्ते में तुम सबसे बड़े अड़चन थे,,,,,,
क्योंकि तुम्हारे होते हुए ठाकुर अभय प्रताप और मेरा विवाह कभी नहीं हो सकता ऐसे में मैं तुम्हें किसी भी तरह इस रास्ते से हटाना चाहती थी,,,,,,,
और देखो आज वह समय भी आ गया तो खुद चलकर मौत के मुंह में आए हो यह कहकर वह जोर-जोर से हंसने लगी,,,,,,
यह सुनकर ठाकुर रुद्र प्रताप का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया और जैसे ही बह अपनी तलवार लेकर भगवती की तरफ बढ़े,,,,,,,
यह देखकर भागवती ने गुस्से में अपनी जादुई शक्तियों से उसे उठाकर दूर फेंक दिया,,,,,,, यह कहते हुए महादेवी की आंखों में आंसू आ गए वह बोली यह सब मैं एक खम्मे की ओट में छिप कर देख रही थी,,,,,,,
उस समय ठाकुर रुद्र प्रताप की ऐसी हालत देखकर मैं बता नहीं सकती मेरे पर क्या गुजर रही थी लेकिन जो कुछ मैं देख रही थी उसके डर की वजह से जैसे आगे बढ़ी नहीं पा रही थी बढ़ते हुए सब कुछ बस देखे के ही जा रही थी,,,,,,,
बही ठाकुर रुद्र प्रताप ने इसका सामना करने की काफी कोशिश की ,लेकिन असफल रहे क्योंकि इसकी काली शक्तियों से जीतना उसके लिए मुश्किल था,,,,,
जब भी ठाकुर रुद्र प्रताप गुस्से में इसकी तरफ बढ़ते तो यह अपनी काली शक्तियों से उसे हवा में लहराते हुए कभी इधर तो कभी उधर फेंक देती जिसकी वजह से बह काफी घायल हो गए,,,,,,,,
यह देखकर मैं आंसू बहाने के सिवाय चाह कर भी कुछ कर ना सकी डर की वजह से मेरे गले में से आवाज तक नहीं निकल पा रही थी,,,,,,,
तब इस डायन ने उसे उठाकर शैतान के चरणों में फेंक दिया और शैतानी हंसी हंसते हुए बोली आज मैं तुम्हारी बली अपने भगवान को अपने शैतान को दूंगी,,,,,,
यह कहकर यह ठाकुर रुद्र प्रताप की तरफ बढ़ते जा रही थी ठाकुर रुद्र प्रताप घायल शैतान की मूर्ति के सामने पड़े हुए थे,,,,,,
बही इस डायन का भयानक रूप अब मेरी आंखों के सामने था,,,,,,,
जहां सब कुछ देखो डर की वजह से मेरी आवाज तक नहीं निकल पा रही थी मैं कुछ बोल नहीं पा रही थी,,,,,,
वही ठाकुर रुद्र प्रताप जिससे मैं अपने प्राणों से ज्यादा प्रेम करती थी उसकी ऐसी हालत देखकर और इस डायन को उसकी तरफ बढ़ते देखकर ना जाने कहां से मेरे अंदर एक शक्ति सी आ गई,,,,,,,
और ठाकुर रुद्र प्रताप को मारने की तरफ बढ़ते हुए देख कर मुझ पर रहा नहीं गया और मैं दौड़कर वहां पहुंच गई,,,,,,,,
और ठाकुर रुद्र प्रताप के आगे जाकर खड़ी हो गई और कहने लगी मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगी मैं अपने जीते जी तुम्हें यह सब कुछ नहीं करने ने दूंगी,,,,,,
अपने जीते जी मैं ठाकुर सा पर कोई आंच नहीं आने दूंगी इसकी तरफ बनने से पहले तुम्हें मेरे प्राण लेने होंगे मैं अपने प्राण दे दूंगी लेकिन ठाकुर सा को कुछ नहीं होने दूंगी,,,,,,,
यह देखकर वहीं पर घायल अवस्था में पड़े ठाकुर रुद्र प्रताप बस इतना ही बोल पाए नहीं महादेवी ऐसा मत करो तुम मेरी चिंता मत करो और अपने प्राण बचाकर यहां से चली जाओ चली जाओ यहां से,,,,,, यह कहते हुए वह बेहोश हो गए,,,,,,,
तब उसे बेहोश होते देखकर मैं घबरा गई और उसे संभालते हुए बोली तुम्हें कुछ नहीं होगा ठाकुर सा फिर मैं इस डायन की तरफ देखते हुए बोली मैं अपने जीते जी ठाकुर सा पर कोई आंच नहीं आने दूंगी समझी तुम,,,,,,
पता नहीं मेरे अंदर कहा से इतनी शक्ति आ गई थी उस समय इस डायन से मुझे डर नहीं लग रहा था,,,,,
वही मेरी बातें सुनकर यह डायन भागवती गुस्से में पगला गई और मुझसे बोली मैं चाहूं तो तुम्हें भी मौत के घाट उतार सकती हूं लेकिन तुम्हारी बली अभी शैतान को नहीं चाहिए,,,,,,,
इसलिए समय आने पर तुम्हें भी तुम्हारे ठाकुर सा के पास ही पहुंचा दूंगी परेशान मत हो,,,,,
यह कहकर इसने अपनी शैतानी शक्तियों से मुझे एक चिड़िया का रूप देकर एक पिंजरे में कैद कर दिया और मेरी आंखों के सामने ही ठाकुर रुद्र प्रताप को नोच नोच कर खा गई,यह डायन,,,,,,,
और मैं अपने ठाकुर सा को बचा भी ना सके बेबस लाचार से आंसू बहाते हुए उसे मरते हुए देखती रही ना बचा सकी में उसे,,,, यह कहकर महादेवी फूट-फूट कर रोने लग गई,,,,,,,
फिर वह बोली और इस डायन ने इसकी योजना के अनुसार ही इसने सब लोगों के सामने यह साबित कर दिया कि ठाकुर रुद्र प्रताप की मौत किसी जानवर के हमले करने के कारण हुई है,,,,,,,
फिर जैसा यह चाहती थी वैसे ही इसका रिश्ता ठाकुर अभय प्रताप के साथ तय हो गया,,,,,,,,
बही मैं वहां पिंजरे में अकेले अपनी हालत पर तड़पती रहती और अपने ठाकुर सा को याद कर आंसू बहाती,,,,,,
बही घुट घुट कर जीने पर मजबूर हो गई थी मैं हमेशा यह बात मुझे अंदर ही अंदर खाई जाती कि यह डायन जिसने मेरे ठाकुर सा को मौत के घाट उतारा है मैं उसका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही है और बेबस लाचार यहां पर कैद हूं,,,,,,,,
यह डायन रोजाना कहीं ना कहीं से छोटे बालकों को लाकर उस शैतान की मूर्ति के सामने बलि देती और मैं आंसू बहाने के सिवा कुछ कर नहीं पाती थी,,,,,,
वही अक्सर रोजाना जाकर जब यह डायन मुझे बताती कि इसका विवाह होने वाला है यहां की रानी सा बनने वाली है तो मुझे सब लोगों की चिंता सताने लगी,,,,,,
मैं यह सोचकर ही घबरा उठती पता नहीं यह डायन अब क्या करेगी मुझे इस राज्य की राणा सा आपकी हर किसी की चिंता थी,,,,,,,
बही मेरा मन कर रहा था कि मैं चिल्लाते हुए सबको इस डायन की सच्चाई बताऊ लेकिन मैं बेबस लाचार थी मजबूर अपने आंसू बहाने के सिवाय कर भी क्या सकती थी,,,,,,
बही यह डायन बड़ी खुश हो रही थी लेकिन शायद इसे पता नहीं है कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं एक न एक दिन बह सबकी सुनता है और इस जैसी बुरी शक्तियों का सामना करने के लिए किसी ना किसी को भेजता है,,,,,
बही आज जब हमेशा की तरह मैं भगवान से अपने आप को उस पिंजरे में से निकलने के लिए प्रार्थना कर रही थी,,,,,,,
तभी शरद पूर्णिमा की किरणें जैसे ही उस खंडहर में उस पिंजरे के ऊपर पड़ीं वैसे ही जैसे भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली हो और अचानक वह पिंजरा टूटकर अलग हो गया,,,,,,
और उस पिंजरे के टूटते ही मैं अपने असली रूप में आकर वहां से आजाद हो गई, मुझे वह शैतान की मूर्ति भी अब रोक नहीं सकती थी,,,,,,
क्योंकि जब इस डायन ने मुझे उस पिंजरे में कैद किया था उस दिन अमावस्या का दिन था इसकी बुरी काली शक्तियों का दिन,,,,,,,
लेकिन आज मेरे भगवान का दिन था आज शरद पूर्णिमा का दिन था ऐसे में आज का दिन भगवान का था आज शैतान की उस काली शक्तियों पर भगवान की शक्ति हावी थी,,,,,,,,
बही उस खंडहर से जब मैं बाहर आई और यहां आकर मुझे पता चला कि इस डायन साथ ठाकुर अभय प्रताप का विवाह होने वाला है,,,,,,,,
यह सुनकर मुझ पर रहा नहीं गया और मै यहां चली आई ,मैं जानती हूं कि आप सबको मेरी बातों पर विश्वास नहीं है लेकिन यही सच है यह डायन है,,,,,,
इस डायन ने मेरे ठाकुर सा को मुझ से हम सब से छीन लिया इस डायन हमारे पहले राणा सा को मार दिया इस डायन ने निर्दोष बाईसा गायत्री को हमसे छीन लिया,,,,,
ठाकुर सा बाईसा गायत्री निर्दोष दी है आपसे बहुत प्रेम करती थी वह देवी मां की सच्ची भक्ति थी उसने कुछ नहीं किया जो कुछ भी किया है इस डायन ने किया है,,,,,,
इसने ना जाने कितने निर्दोषों की जान ली है और अब यह यह डायन हम सब को मारना चाहती है डायन है यह डायन यह कहते हुए भागवती रोने लग गई,,,,,