Novel Cover Image

जबरिया इश्क़

User Avatar

Miss Novelist

Comments

45

Views

16322

Ratings

126

Read Now

Description

यह स्टोरी..लवस्टोरी है ईरा देशमुख की जो अपने में एक बला है एक सनकी आफत, यह दुनिया में किसी की नही सुनती और ना ही इस पर किसी की चलती है, यह एक हार्टलेस खूंखार शेरनी है।ईरा का नाम ही काफी है और लोग डर से कांप उठते है, इस तक पहुंचाना मुश्किल या नामुमकिन...

Total Chapters (96)

Page 1 of 5

  • 1. जबरिया इश्क़ - Chapter 1

    Words: 2329

    Estimated Reading Time: 14 min

    देखते ही देखते उस सन्नाटे भरे पूरे कॉलेज में अफरातफरी मच गई। स्टूडेंट्स इधर-उधर भाग रहे थे। खुद टीचर का स्टाफ भी परेशान था। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। अचानक से कॉलेज में दो-तीन गाड़ियों भरकर लोग आए जो पूरे कॉलेज में चारों तरफ़ फैल गए। उसके बाद एक और गाड़ी गेट पार करते हुए अंदर आई। जिसमे से पहले दो गार्ड्स, गन लिए, बाहर निकले। एक गार्ड ने जाकर गाड़ी के पीछे का गेट खोला। तो एक आदमी, जो दिखने में किसी शातिर विलेन सा लग रहा था, वह अपने कड़े तेवरों से कॉलेज को घूरते हुए बाहर आया। जिसके चेहरे पर रौब और स्टाइल के साथ काफी घमंड, गुस्सा और नफरत भरा था।

    इधर, उसी कॉलेज के एक क्लासरूम में इस बात की जरा भी भनक नहीं थी। क्लास के सभी स्टूडेंट अपनी-अपनी बुक्स फैलाए बैठे थे। वहीं सामने उनके प्रोफ़ेसर का लेक्चर चालू था। सारे स्टूडेंट बड़े ध्यान से प्रोफ़ेसर की तरफ़ देख रहे थे। जब अचानक ही क्लासरूम के दरवाज़े से दो लोग दौड़ते हुए जल्दी-जल्दी अंदर आए। और उनके क्लास में आते ही, दो पल बाद, एक और आदमी अंदर दाखिल हुआ। जो दिखने में उन दोनों आदमियों का बॉस लग रहा था।

    उस आदमी के हुलिए, उसके अंदाज को देखते ही सब घबराहट में इधर-उधर चेहरा छुपाने लगे थे। और क्लास के प्रोफ़ेसर ने उसका रास्ता रोक लिया।

    "ए, कौन हो तुम यहां? सिर्फ़ कॉलेज के विद्यार्थी हैं यहां। यहां से तुम्हें क्या चाहिए? यह ज्ञान का मंदिर है..."

    इससे पहले प्रोफ़ेसर अपनी बात पूरी कर पाते, उस आदमी ने अपने एक गार्ड की तरफ़ देखा। और गार्ड ने उसकी नज़रों का इशारा समझते ही प्रोफ़ेसर की कनपटी पर अपनी गन तान दी।

    वह आदमी, जो उन सबका बॉस था, वह अब अपनी कड़ी तेज आवाज़ में फुंकारा।

    "देख प्रोफ़ेसर, अगर ज़िंदा रहना चाहता है तो चुप रहे। ज़्यादा बोलने वाले लोग मुझे पसंद नहीं हैं।"

    "पर आप... आप कौन हैं...? क्या चाहिए आप लोगों को यहां? क्यों आए हैं आप?"

    प्रोफ़ेसर की आवाज़ कंपकपा गई थी। जब वह आदमी धीरे-धीरे कदम बढ़ाता हुआ आगे बढ़ने लगा और सामने बैठे हर एक स्टूडेंट की तरफ़ ध्यान से देख रहा था।

    सारे स्टूडेंट अपने-अपने में सहम गए। और सभी स्टूडेंट सर झुकाए बैठे, शायद भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। वह आदमी धीरे-धीरे चलता हुआ, सारे स्टूडेंट की तरफ़ ध्यान से देखता, एकदम से हँस दिया। फिर प्रोफ़ेसर की तरफ़ देखते हुए बोला।

    "हमें तेरे ज्ञान के मंदिर से थोड़ा सा प्रसाद चाहिए, मास्टर। जो मैं लेकर ही रहूँगा।"

    इतना कहकर वह आदमी जल्दी-जल्दी स्टूडेंट्स की तरफ़ बढ़ गया। अब उसकी आँखों में सख्त नफ़रत, चेहरे पर गुस्सा था। वह सारे स्टूडेंट्स को छोड़ता हुआ, जिस लड़के के सामने जाकर खड़ा हुआ, वह पहले से ही शून्य भाव से उसे देख रहा था। इससे पहले वह लड़का कुछ समझ पाता, उस आदमी ने एक झटके में उसे कॉलर से पकड़कर खड़ा कर दिया।

    "ए, तो तू है अंशुल!"

    वह आदमी, जो भी था, पर उस लड़के अंशुल को एक जहरीली नज़र से घूर रहा था, जिसे अंशुल जानता तक नहीं था।

    "जी... जी मैं हूँ... पर आप... आप कौन? " उस आदमी को एक नज़र देखने के बाद अंशुल ने नज़रें नीचे झुका लीं। उसके चेहरे पर डर साफ़ दिखाई दे रहा था और पूरी बॉडी काँप रही थी।

    अंशुल ने उस आदमी को पहली बार देखा था। लेकिन वह आदमी उसको जिस नज़र से देख रहा था, जैसे अभी उसे कच्चा चबा जाएगा।

    "मुझे तू नहीं जानता लड़के, पर क्या करेगा जानकर? बहुत जल्द मैं तेरी मीटिंग भगवान से करवाने वाला हूँ। उनसे करना जान पहचान, ठीक है?"

    इतना कहते हुए उस आदमी ने अपनी बंदूक निकाली और अंशुल के माथे पर रख दी।

    बंदूक अंशुल पर देखकर बाकी के सारे स्टूडेंट्स और प्रोफ़ेसर डर गए। खुद अंशुल की भी आँखें बंद हो गई थीं। जब जाने क्या सोचकर उस आदमी ने बंदूक हटाई और उस बंदूक की नोक को कुटिल मुस्कान से देखकर अपने दोनों गार्ड्स की तरफ़ पलटा, जो प्रोफ़ेसर को पकड़े, उस पर गन ताने खड़े थे।

    "ए, छोड़ दो यार। जो चाहिए वह मिल गया। अब उस मास्टर का क्या करना?"

    उस आदमी ने हँसकर कहा और अंशुल को गुस्से में अपने साथ खींचता क्लासरूम से बाहर निकल गया। उसके साथ ही उसके पीछे-पीछे दोनों कार्ड भी वहाँ से चले गए। उनके जाते ही प्रोफ़ेसर और सारे स्टूडेंट्स ने एक लम्बी चैन की साँस ली। पर उन्हें अभी भी अंशुल की चिंता हो रही थी।

    वह आदमी अंशुल को खींचते हुए अपने साथ ले जा रहा था। जबकि अंशुल को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह आदमी है कौन और उसके साथ ऐसा क्यों कर रहा है? उसका तो कोई दुश्मन भी नहीं था। जब उस आदमी ने अंशुल को लाकर कॉलेज के प्ले ग्राउंड में झटक दिया? उस आदमी के साथ उसके दो गार्ड ही नहीं, बल्कि और भी कई सारे गार्ड्स बाहर थे। जो इस वक़्त पूरा ग्राउंड चारों तरफ़ घेरे खड़े थे।

    बीच में खड़ा अंशुल सब कुछ हैरत से देख रहा था। और वह इस वक़्त लीडर आदमी के सामने था। जिसने उस पर वापस से गन तान दी और तंजिया हँसता हुआ बोला....

    "तो तू है अंशुल... नहीं-नहीं अंश... तू अंश है, है ना? जिसे देखकर उस सुदास की बेटी की आँखों को सुकून मिलता है। बहुत प्यार करती है ना वह तुझसे? तो चल, आज उसके प्यार का स्वाहा करते हैं, तेरे और तेरी इस ज़िंदगी के साथ।"

    "जी हाँ, मैं ईरा का पति हूँ। पर... पर आप हैं कौन...? आप मुझे... मुझे मारना क्यों चाहते हैं? मैंने क्या किया है? मैं तो आपको जानता भी नहीं?"

    अंशुल की आवाज़ में लरज़पन ज़रूर था। लेकिन बात उसकी जान पर बन आई थी, तो आख़िर कुछ ना कुछ तो बोलना ही था।

    अंशुल की आवाज़ में जहाँ डर के साथ-साथ एक अनजान सी मासूमियत थी, वहीं वह आदमी उस पर ज़ोर-ज़ोर से मज़ाकिया हँस दिया। और उसके साथ आए वह बीस-पच्चीस गार्ड्स भी ठहाका मारकर हँसने लगे।

    "अरे... अरे तो बच्चे को नहीं पता है कि मैं कौन हूँ?"

    "जी नहीं, बिल्कुल नहीं।"

    "तो अब जानकर क्या करेगा?"

    उस आदमी ने कहते हुए अपनी बंदूक का स्ट्रिगर दबाना चाहा। पर उससे पहले ही उसके हाथ पर कहीं दूर से आकर गोली लगी थी। और उसके हाथ से बंदूक छूटकर दूर जा गिरी। जबकि उसका हाथ खून से तर हो गया।

    वह आदमी नज़र उठाकर कुछ देखता या कुछ समझ पाता, कि चारों तरफ़ गोलियों चलने की आवाज़ें गूंज गईं। और उसके साथ आए उसके सारे बॉडीगार्ड धड़ाधड़ाते हुए बेसुध, एक के बाद एक, ज़मीन पर गिरने लगे।

    दो पल में ही कॉलेज के ग्राउंड में लाशों का ढेर लग गया। और चारों तरफ़ लाशें ही लाशें थीं। उस आदमी के सारे गार्ड्स ओंधे मुँह पड़े थे, जो अब मर चुके थे।

    वह आदमी अपना हाथ पकड़े हुए खड़ा था, जहाँ पर गोली लगी थी। जबकि अंशुल ने उस गोलियों के शोर-शराबे और गार्ड्स की चीखों से घबराकर अपने दोनों हाथों से अपने कान और पूरा चेहरा ढक लिया। और वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया।

    थोड़ी देर बाद, जब गोलियाँ चलना बंद हुईं, तो उसने धीरे से अपनी आँखें खोलीं। और सामने का नज़ारा देखकर जैसे एक झटके में उठ खड़ा हो गया।

    चारों तरफ़ पड़े आदमियों की लाशें ही लाशें थीं। तो कुछ ज़ख्मी हुए से और मरने की कगार पर पड़े कराह रहे थे। वहीं वह आदमी, जो अंशुल को मारने आया था, वह लीडर भी अपने चारों तरफ़ घूम-घूमकर देख रहा था। अब उसकी घबराहट से जान जाने लगी। वह अंशुल के पास से हटकर मंद कदमों से पीछे जाने लगा। जब उसे लगा कि जैसे किसी ने पीछे से उसके सर पर बंदूक की नोक रख दी है। वह डरते हुए झटके से पलटा, तो सामने उसकी मौत थी, यानि "ईरा देशमुख"।

    ब्लेक जीन्स पर व्हाइट टॉप पहने, टॉप पर ही एक और छोटी सी ब्लेक लेदर की जैकेट, जिसकी सामने से खुली पूरी चैन, शोल्डर तक बिखरे घने काले बाल, लम्बी पलकें, सुरख होंठ, बगैर किसी मेकअप का नेचुरल ग्लो करता चमक रहा गोरा गुलाबी चेहरा। ईरा बला लग रही थी, जो किसी को भी अट्रैक्ट कर सकती थी। पर कोई आग से खेल कैसे जाता है? क्योंकि ईरा, जो कि एक ज्वाला थी।

    "ई... ईरा... तुम!"

    उस आदमी के खाली होंठ हिले थे। जब सामने खड़ी उस लड़की ईरा ने बड़ी ही प्यारी सी मुस्कराहट से उसे देखा।

    "अरे क्या हुआ विराट? अपनी मौत सामने देखकर डर गए क्या तुम? अरे तुम तो मौत के बादशाह हो ना? जब अपनी जान पर बन आई, तो इतनी तकलीफ क्यों?"

    वह आदमी, यानि विराट, फिर से हकलाया। "ईरा... ईरा... देखो... ईरा, अगर तुमने मुझे कुछ किया तो मैं तुम्हें...?"

    विराट और कुछ बोलता, कि ईरा ने इसके मुँह पर एक ज़ोरदार पंच जड़ दिया। जिससे उसके मुँह से फव्वारे सा खून बहने लगा और कई सारे दांत टूटकर बाहर आ गए। विराट दर्द में चीख उठा। उसे देखने के लिए ईरा के पास टाइम कहाँ था? वह उसे इग्नोर करके सीधा अंशुल की तरफ़ चली आई। जो उसे और उस विराट को बड़े ही हैरत और ख़ौफ़ज़दा नज़रों से देख रहा था।

    ईरा के साथ उसके काले कपड़ों में कई सारे गार्ड्स भी मौजूद थे। जिन्होंने विराट को चारों तरफ़ से घेर लिया। और कुछ उन लाश हो चुके विराट के गार्ड्स को चेक कर रहे थे। जो ज़िंदा होता, उस पर वापस गोली चला देते।

    "अंश... अंशू मेरी जान, तुम ठीक हो ना, माय लव?"

    ईरा ने अपनी गन एक गार्ड की तरफ़ उछाल दी। और जल्दी से अंशुल का चेहरा अपने दोनों हाथों में भरकर बेतहाशा उसे चूम डाला।

    "हह... हाँ ईरा, मैं... मैं ठीक हूँ। लेकिन तुमने ये सब... सब क्या किया ईरा?"

    अंशुल ने ईरा का हाथ पकड़कर अपने चेहरे से अलग किया। और मुड़कर चारों तरफ़ पड़ी लाशों को देखने लगा.... "यह सब करने की क्या ज़रूरत थी ईरा यार? तुमने इतने सारे लोगों को सच में मार डाला?"

    "तुम्हें इस पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं अंशू। ये वह गंदी नाली के कीड़े हैं, जिन्हें ख़त्म करने को दवाई डालनी ही पड़ी।"

    ईरा ने बेफ़िक्री से कहा और उछलकर अंशुल के गले से लिपट गई। फिर उसके कान के पीछे हल्के से चूमते हुए मुस्कुरा दी। जैसे कुछ हुआ ही ना हो, जबकि अंशुल हैरान था।

    "ईरा, बहुत गलत बात है। मैंने तुमसे कितनी बार कहा है कि अपनी पॉवर का गलत फ़ायदा मत उठाया करो। क्यों मारा तुमने सबको?"

    अंशुल सिसक कर बोला, क्योंकि ईरा ने प्यार ही प्यार में उसके कान में अपने दांत गड़ा दिए थे।

    ईरा अंशुल की सिसकी पर एक आँख विंक किए चहककर बोली..... "हाँ तो क्या करती मैं? तुम ही बताओ, मैं क्या उनसे कहती कि आओ तुम सब हमें मार डालो, नहीं ना?"

    "ईरा, तुम शांति से बात कर सकती हो। हमेशा मारना-जान लेना ज़रूरी तो नहीं।" अंशुल बेकरारी से बोल रहा था। वहीं ईरा को कोई फ़र्क नहीं पड़ा था ये सब करके।

    "अंशू, माय लव, मुझे बात करना नहीं आता। और अगर हमने इनको नहीं मारा होता, तो ये लोग हमें मार देते।"

    "लेकिन ईरा ये तो....!!" अंशुल अभी कुछ कहता, कि ईरा उससे अलग हट गई। और अब उसकी नज़रें विराट की तरफ़ थीं।

    "विराट, तूने अब तक मुझ पर बहुत बार अटैक करवाए, मुझे रोकना चाहा। ओके, आई अंडरस्टैंड, ये सब तेरी गंदी फ़ितरत है, जो कभी नहीं बदल सकती। लेकिन आज तूने कुछ ज़्यादा ही बुरा कर डाला।"

    ईरा ने मुस्कुराते हुए, पर दाँत पीसकर जो कहा, उससे विराट के चेहरे पर एक तंजिया हँसी आ गई थी। लेकिन ईरा की पूरी बात सुनकर वह सदमे में जा पहुँचा। और उसकी रूह काँप उठी, जब ईरा यह बोली कि....

    "विराट, आज तूने जो भी करने की कोशिश की, वह बड़ा ख़तरनाक कर दिया। तूने मेरे लिए नहीं रे, तेरे खुद के लिए। अब तेरा क्या होगा, सोच?"

    "नहीं ईरा, मुझे पता है तुम मुझे कुछ नहीं कर सकती। तुम्हारे बाप ने तुम्हें इसकी परमिशन नहीं दी है।"

    विराट बोल जरूर रहा था, लेकिन ईरा को सामने देखकर उसकी डर के मारे हालत डाउन थी।

    "अरे मेरे बाप ने परमिशन नहीं दी है, लेकिन इतनी कि मैं तुझे कुछ नहीं कर सकती। लेकिन उन्होंने यह नहीं बोला था कि तू मेरे प्यार पर नज़र डाले, तब भी मैं चुप रहूँ?"

    "क्या... क्या करोगी तुम? देखो ईरा, तुम... तुम मुझे कुछ नहीं करोगी। मैं कह रहा हूँ ना, तुम मुझे मार नहीं सकती।"

    विराट उधर से दो कदम पीछे हटने लगा। जब अंशुल जल्दी-जल्दी ईरा के पास आकर उसके सामने खड़ा हो गया।

    "देखो ईरा, तुम बहुत सारी जान ऑलरेडी ले चुकी हो। ख़बरदार जो अब... अब तुमने एक भी गोली चलाई या किसी को मारा। तो जाने दो इनको, ये अब ऐसा नहीं करेंगे। इन्हें नहीं पता था शायद ईरा कि मैं क्या हूँ तुम्हारे लिए, वर्ना ये ऐसा कुछ नहीं करते।"

    अंशुल अभी कह ही रहा था, जब एक गार्ड ने ईरा से आकर कहा।

    "मैडम, इस विराट का करना क्या है? आप कहें तो अभी के अभी इसे पाताल लोक पहुँचा दें?"

    वह गार्ड बोल रहा था, जब अंशुल ने उसे तिरछी नज़रों से घूरा। और गार्ड चुप रह गया। क्योंकि वह ईरा का अंशुल था, जो अगर इशारा भी कर देता, तो ईरा बगैर किसी सवाल-जवाब के उसे मौत के घाट उतार देती।

    गार्ड पीछे हट गया। और अंशुल वापस ईरा को देखने लगा, तो वह बोली....

    "फिर क्या करूँ इस विराट का? तुम बताओ अंश?"

    ईरा ने अपना एक हाथ अंशुल के गाल पर रख दिया था। और अंगूठे से उसे रब करते हुए प्यार से पूछा....

    "बोलो अंश, क्या करूँ इस दुश्मन का, जिसके हाथ तुम तक पहुँच गए आज?"

    "छोड़ दो इसे ईरा, मुझे नहीं लगता यह दोबारा ऐसा कुछ करेगा।" अंशुल ने ईरा का हाथ हटाते हुए कहा और वह हँस दी।

    "हाये, तुम्हारी इसी प्यारी सी अदा पर तो मैं फ़िदा हो जाती हूँ मेरे दिलबर।"

    ईरा ने अंशुल की आँखों में देखते हुए, बिना पलक झपकाए, उसके हल्के-हल्के हिल रहे ऑरेंज होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

    ईरा के अंशुल को किस करते ही उसके साथ आए सारे गार्ड्स चुपचाप सर झुकाए खड़े रह गए। और ईरा अपना एक हाथ अंशुल के गले में फँसाये, दूसरे हाथ से उसका चेहरा थामे, उसके होंठों पर बेपरवाह सी बेतहाशा डीप किस किए जा रही थी।

  • 2. जबरिया इश्क़ - Chapter 2

    Words: 1905

    Estimated Reading Time: 12 min

    अंशुल ईरा की मदहोशी में चुपचाप खो गया क्योंकि वह ईरा से खुद को छुड़ा नहीं सकता था जब तक ईरा खुद नहीं चाहती।

    अंशुल खामोश था और ईरा उसे पकड़े हुए उसके करीब थी, जब अचानक अंशुल के कानों में किसी के चीखने की आवाज आई। उसने झटके से ईरा को छोड़ दिया। जैसे ही उसने पीछे पलटकर देखा, सामने विराट जमीन पर गिर पड़ा था, जिसे गोली लगी थी। पर उसे गोली किसने मारी, अंशुल को यह समझ नहीं आया। तब उसकी नज़र ईरा के हाथ पर गई, जो एक हाथ से उसका गाल सहला रही थी, जबकि दूसरे हाथ में पकड़ी गन अब बड़ी आराम से अपनी जैकेट के पीछे जींस में लगा रही थी।

    अंशुल आँखें छोटी करके हैरत से ईरा को देख रहा था, जब ईरा ने मुस्कुराते हुए उसके गाल पर थपथपा दिया और एक आँख विंक करते हुए हँसकर बोली,

    "कोई मेरी जान की तरफ आँख उठाकर देखेगा तो मैं उसकी जान बख्श दूँगी क्या?"

    "ईरा, इसे तुमने मारा है? पर कैसे? तुम तो मुझे..."

    अंशुल को अब भी हैरत थी। आखिर ईरा ऐसा कैसे कर सकती है? वह उसे किस करते हुए, उसकी आगोश में खोकर भी, आँखें बंद किए बिना किसी पर ऐसा वार कर सकती है? और वह भी ऐसा वार कि सीधा उसका एक वार सामने वाले की जान ले गया?

    "ईरा, तुमने कैसे किया यह?"

    अंशुल ने ईरा की आँखों में आँखें डालते हुए पूछा। ईरा ने ना कहकर सर हिला दिया।

    "यह मैंने नहीं किया, मेरी जान!"

    "नहीं, ईरा, झूठ मत बोलो!"

    "तो फिर जब सच जानते हो, तो फिर पूछ क्यों रहे हो?" ईरा अंशुल से कहते हुए उसी खुशगवार मूड में पलट गई क्योंकि एक और गाड़ी आकर वहाँ रुकी थी। जिसमें से निकलकर ईरा का सबसे अच्छा दोस्त राज गाड़ी से बाहर आया था। उसे देखते हुए ईरा उसकी तरफ आ गई।

    "तो अब आ रहे हो तुम? मैंने तो सुना था कि पुलिस वारदात पर देर से आती है। कहीं तुम पुलिस तो नहीं?"

    "हाँ, जैसे कि तुम्हें पुलिस से बड़ा डर लगता है!"

    राज ने भी हँसते हुए ईरा की तरफ देखा और फिर चारों तरफ पड़ी लाशों का जायजा लेते हुए बोला,

    "वैसे काम हो गया क्या?"

    "तुम तो जानते ही हो ना, अगर ईरा को कोई काम करना हो तो वह काम मुश्किल नहीं होता।"

    "वैसे विराट अपने इस दिन को कोस रहा होगा आज।"

    राज वापस से चारों तरफ पड़ी लाशों को देखते हुए आखिर में विराट को देखा जो खुद भी अब जान से जा चुका था।

    "हाँ, कोसना भी चाहिए था। उसने किस पर हाथ डाला था, इसका भी तो उसे अंदाजा होना चाहिए था?"

    ईरा ने राज से कहते हुए पलटकर पीछे खड़े अंशुल की तरफ देखा और मुस्कुरा दी। उसके साथ ही राज को भी हँसी आ गई।

    "हाँ, वह तो है। ईरा, मान गए भई तुम्हें। अब चले क्या घर?"

    राज ने जैसे ही ईरा से कहा, अंशुल फौरन दौड़ते हुए उसके सामने आकर खड़ा हो गया।

    "देखिए ना राज भाई, आप ही ईरा को कुछ समझाइए, प्लीज। यह भी कोई तरीका है क्या? इसने कितने सारे लोगों की जान ले ली?"

    अंशुल ने जैसे ही राज से कहा, राज ने सामने खड़ी ईरा को देखा, जो बेपरवाह सी अपनी दोनों जींस की पॉकेट में अपने हाथ रखते हुए कंधे उचका दिए। राज को हँसी आ गई। वह अंशुल से बोला,

    "देख भई अंशुल, समझाते तो उसे हैं जिसे समझ नहीं हो। ईरा के अंदर जितनी समझ है, मुझे नहीं लगता है इसे समझाने की ज़रूरत है।"

    "अरे क्या खाक समझ है इसे? पागल है पूरी!"

    "अंशुल, यह तुम कह सकते हो, मैं नहीं। क्योंकि तुम ईरा के अंशुल हो। मेरी तो यह जान ही ले लेगी!!" राज ने हँसते हुए कहा और ईरा को देखने लगा।

    "हाँ, आप भी इसी की साइड हैं, मुझे पता है।" अंशुल ने एक नज़र राज को देखा और फिर खुद भी ईरा की तरफ देखने लगा, जो अब अपने गार्ड्स से वहाँ पड़े विराट के लोगों की लाशें हटवा रही थी।

    "चलो जल्दी करो... और अंश, तुम!" ईरा अपने गार्ड्स को ऑर्डर देती हुई अंशुल की तरफ देखने लगी।

    "अंश, तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुम्हारी तो क्लास चल रही थी ना? जाओ, तुम अपनी क्लास अटेंड करो।"

    "कह तो ऐसे रही है जैसे कि इतना नॉर्मल है सब।" अंशुल ने ईरा को घूरा और वहाँ से चला गया। अंशुल के जाते ही राज और ईरा हँस दिए।

    अंशुल के जाते ही राज ने ईरा की तरफ देखा। "ईरा, क्यों उसे इतना परेशान करती हो तुम?"

    ईरा ने हँसकर कहा, "क्योंकि मज़ा आता है राज। और राज, बस एक यही तो है जो ईरा देशमुख के दिल में रहता है। जिसके लिए ईरा ने अपने बाप तक की नहीं सुनी कभी। भला इसको मैं कैसे कुछ होने दे सकती हूँ?"

    "हाँ, वह तो है। घर चले अब। अब तक तो सुदास अंकल को तुम्हारे इस कारनामे का पता भी चल चुका होगा। वह तुम्हें शाबाशी देने को बेकरार बैठे होंगे।"

    राज ने जितनी मस्ती से उस पर हँसकर कहा था, ईरा ने उतने ही गुस्से और चिढ़ में उसके पैर पर अपना पैर जोर से जड़ दिया जिससे वह उछल गया। "मुझे क्यों मार रही हो?"

    "सब तुम्हारी गलती है!" ईरा कहते हुए आगे बढ़ गई।

    "तुम मुझे रोक नहीं सकते थे राज, जब मैं गुस्से में यहाँ आ रही थी तो?"

    "अच्छा, मैंने रोका नहीं था। और लक्ष्य ने भी तो कितना मना किया था कि इतना हाइपर मत हो, पर तुम तो!!"

    राज भी ईरा के साथ-साथ चलता हुआ गाड़ी की तरफ बढ़ गया। "पर तुम सुनो किसी की तब ना ईरा। तुम्हारा तो पारा ही हमेशा हाई रहता है और दिमाग सनका हुआ।"

    "जब तुम लोगों को पता है मैं अंश को लेकर बहुत अलर्ट रहती हूँ और इस वक्त विराट का उसे टारगेट करना, मेरा कॉलेज आना कॉमन नहीं होगा, तो तुम्हें मुझे कैसे भी करके रोकना था ना, डफर।"

    ईरा जैसे ही गाड़ी के पास आई, ड्राइवर ने गेट खोल दिया और उसके बैठते ही राज भी गाड़ी में आगे ड्राइवर के साथ बैठ गया था।

    "राज, तुम और लक्ष्य चाहते तो मुझे रोक लेते, यहाँ आने नहीं देते। तो आज मेरे हाथों यह कांड नहीं होता।"

    "हमने तुम्हें रोका था ईरा जी।" राज ने उसे मुँह टेढ़ा करके देखा तो वह बेफिक्री से बोली,

    "रोका था, पर जब मैं नहीं मान रही थी तो मुझे पकड़कर जबरदस्ती रोकते ना।"

    "हाँ, जैसे हम नहीं जानते तुम्हें पकड़ने की सज़ा क्या है। नेक्स्ट वीक ही बाँधकर मारा था तुमने मुझे और लक्ष्य को?"

    राज ने वैसे ही ईरा को घूरकर कहा, "तुम्हें तुम्हारे अंश के अलावा कोई और टच भी कर सकता है क्या, भला ईरा?"

    गाड़ी आगे बढ़ चुकी थी और उसके पीछे ही ईरा के बॉडीगार्ड की भी गाड़ियाँ उसे फॉलो करते हुए उसके घर की तरफ जा रही थीं।


    "आ गई ईरा, विराट महाराज की आत्मा को शांति बाई प्रदान करवाकर!!"

    ईरा और राज को घर के गेट पर ही लक्ष्य ने रोक लिया। "वैसे ईरा, कैसे किया तुमने? आई एम श्योर बेचारे को साँस तक लेने ना दी होगी तुमने। आखिर उसने छेड़ा जो ईरा के अंशुल को था?"

    ईरा ने लक्ष्य के सर से उसकी कैप निकालकर खुद पहन ली और उसी एटीट्यूड में कहा, "विराट की आत्मा को शांतिबाई दे दूँगी तो हमारे रामू काका का क्या होगा? ढक्कन कहीं के! वैसे मेरे बाबा आ गए क्या?"

    ईरा के इतने सरल शब्दों का वह फनी सा जवाब राज और लक्ष्य को हँसने पर मजबूर कर गया।

    "नहीं, मामा जी अभी नहीं आए हैं। पर आते ही तुम पर उनका बम फूटेगा, ये तो मुझे पता है।"

    "और मुझे भी।" लक्ष्य और राज ने हँसते हुए हाई-फाई लेकर ईरा की तरफ देखा तो वह घर के अंदर जा रही थी।

    "अगर तुम मेरे कज़िन नहीं होते लक्ष्य, तो मेरी गन की एक गोली मैं तुम्हारे नाम कर चुकी होती अब तक।"

    ईरा ने बुलंद आवाज़ में कहा था। वह जब घर के अंदर आई तो वहीं लिविंग में उसकी बुआ यानी लक्ष्य की माँ अपने दूसरे बेटे परित्युष के बालों में मालिश कर रही थीं जो उनकी गोद में सर रखे नीचे बैठा था और माला सोफे पर।

    "क्या बुआ, हमेशा परित्युष भैया में ही लगी रहती हैं आप? कभी अपनी भतीजी पर भी ध्यान दे दिया कीजिए?"

    ईरा ने परित्युष का हाथ पकड़कर उसे अपनी पूरी ताकत से खींचते हुए माला की गोद से अलग किया और खुद उसकी जगह पर बैठ गई। "हटिए भैया, अब मेरी बारी है।"

    परित्युष लक्ष्य का बड़ा भाई जरूर था, पर जिस एक्सीडेंट में ईरा की माँ और माला के पति का देहांत हुआ था, उसी में परित्युष पर भी बुरा असर हुआ था। जिससे वह था तो अट्ठाईस साल का, लेकिन उसका माइंड किसी छोटे से बच्चे जैसा हो गया था और उसकी हरकतें भी छोटे बच्चों सी थीं: खेलना, खाना, छोटी-छोटी बातों पर बच्चों सा खुश हो जाना, जबकि शरीर से वह किसी अच्छे खासे सिक्स पैक वाले इंसान को भी मात दे जाता था।

    "ईरा, तुमको तो ऑयल से नफरत है ना।" माला ने उसके चमकते सुलझे-सुलझे सिल्की बालों में अपने दोनों हाथ सहलाते हुए कहा था।

    "तुम ऑयल क्यों नहीं करवाती? बाल देखो, कैसे बेजान हो रहे हैं?"

    "हाँ तो आप क्या चाहती हैं? ऑयल लगाकर चंपू बन जाऊँ ताकि हमारी शेफ को पकौड़े तलने के लिए मेरे बालों ने तेल निचोड़ना पड़े?"

    "ईरा, तुमसे कोई जीत नहीं सकता।" माला की अंगुलियाँ ईरा के बालों से खेल रही थीं।

    "मुझे समझ नहीं आता ईरा, जहाँ तुम्हारी उम्र की लड़कियों को सजना-संवरना भाता है, श्रृंगार में वे कैसे परियाँ लगती हैं, वहीं तुम, तुम जाने ही क्या लेडी डॉन बनी घूमती हो अपने इन दो निकम्मे बंदरों के साथ?"

    "मम्मी, मैं आपको बंदर लगता हूँ क्या? और राज तो..."

    लक्ष्य फौरन कुछ कहने को हुआ था जब राज बोल उठा, "नहीं लक्ष्य, उन्होंने तुझे निकम्मा बंदर बोला है बालक। वैसे बुआ, आप लड़कियों की बात कर रही थीं, वे कैसी होती हैं... आई मीन कैसी दिखती होंगी? आई डोंट नो... लक्ष्य, तुझे पता है क्या?"

    "मुझे कैसे पता होगा? मेरे घर में कौन सी लड़कियों की फैक्ट्री है?" लक्ष्य ने राज को देखते हुए ईरा का मज़ाक बनाया था, तो उसने वहीं जमीन पर बैठे-बैठे ही लक्ष्य की टांगों पर जोर से किक जड़ दी और वह उछल गया।

    "मुझे क्यों मार रही हो ईरा? तुम कहाँ से लड़की लगती हो? तुम तो पूरी छोटे सुदास मामा लगती हो, फ़्रेंच कट वाली।"

    ईरा, आज क्या करके आई हो तुम? पता है, सुबह से टी.वी. पर कॉलेज ही दिखा रहे हैं। क्यों करती हो तुम बेटा ये सब? माला की बात पर ईरा ने आँखें खोलकर राज की तरफ देखा तो उसने हाथ खड़े कर दिए।

    "ईरा, मुझे नहीं पता वहाँ मीडिया कैसे पहुँची, बाई गॉड!"

    राज को इग्नोर किए ईरा ने फिर से आँखें बंद करके पीछे माला की गोद में सर टिका दिया। तो माला फिर से बोली, "अब जब तुम ऐसे खुले आम कांड करेगी ईरा, तो हंगामा तो मचेगा ही ना।"

    "बुआ, उसने मेरे अंशुल को छुआ था और..."

    ईरा अभी अपनी बात पूरी कर पाती जब घर के अंदर दाखिल होते उसके बाबा सुदास देशमुख की आवाज़ गूंज उठी।

    "ईरा... ईरा कहाँ हो?"

    सुदास लिविंग की तरफ बढ़ रहे थे और उनके साथ ही उनके दो सबसे वफ़ादार आदमी विजय और भल्ला भी। सुदास की भारी-भरकम कड़क आवाज़ सुनते ही ईरा उठकर माला के पीछे भाग गई। "अरे बाप रे, आ गए हिटलर!"

    और आगे……………………

  • 3. जबरिया इश्क़ - Chapter 3

    Words: 1601

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुदास की आवाज़ ही काफी थी। लक्ष्य और राज की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी। माला भी चुप थी, और ईरा भागकर माला के पीछे जा छिपी थी।

    "ईरा, ईरा कहाँ हो?"
    सुदास उसे आवाज़ देते हुए वहीं चले आये जहाँ बाकी सब थे।

    सुदास ने माला की तरफ देखा। वह हड़बड़ाकर अलग हटते हुए बोली, "ईरा यहीं है भय्या, मेरे पीछे छिपी है।"

    माला के हटते ही ईरा, जो उनके पीछे छिपी हुई थी, अपने सर पर दोनों हाथ रखे, चेहरा छुपाए, खुद को खुद में समेटे जा रही थी।

    उसे देखकर लक्ष्य को हँसी आ गई। वह राज से बोला, "कहाँ तो ये अभी शेरनी बनी थी, और अब देखो बिल्ली! काश मामा जी इसको दो-चार थप्पड़ लगा दें! मुझे मज़ा आ जाए यार।"

    लक्ष्य ने हँसते हुए राज से कहा। राज ने उसे एक नज़र देखकर बोला, "शायद तुझे अपनी जान प्यारी नहीं है। लच्छेदार पराठे कहीं के! ईरा को अगर सुदास अंकल ने कुछ भी कहा, तो ये उसका बदला हम दोनों से लेगी, और हमें धो देगी। हमें ईरा को अंकल से बचाना होगा, बेवकूफ।"

    सुदास ने सबको इग्नोर किया और ईरा को देखते हुए चिढ़न से बोले, "ईरा, क्या मैं पूछ सकता हूँ कि तुमने ये सब जो किया है, वो क्यों किया है?"

    सुदास आकर ईरा के सामने खड़े हो गए। वह उन्हें देखकर जबरदस्ती हँसने लगी। जब उन्होंने उसे घूरकर देखा, तो वह साइलेंट मोड सी होकर खड़ी हो गई। "बाबा, मैंने कुछ नहीं किया?"

    ईरा ने साफ़ इंकार किया। सुदास उसे देखते हुए बोले, "हाँ? क्यों नहीं? तुमने कुछ नहीं किया? ईरा, जो कुछ किया है, मैंने किया है?"

    "मुझे नहीं पता।" ईरा ने सपाट जवाब दिया और फिर सीधी खड़ी रही।

    सुदास ने अपने माथे पर अपनी दो अंगुलियाँ रगड़ते हुए बोले, "ईरा, सब मेरी गलती है, तो सज़ा भी मुझे ही मिलनी चाहिए, राइट? क्योंकि मैंने ही तुम्हें ऐसा बनाया है। मैंने तुम्हें कभी किसी चीज़ के लिए नहीं रोका, जो तुमने करना चाहा, मैंने करने दिया। बस वही तो गलती थी मेरी, और ये है उसकी सज़ा।"

    "हाँ, वही तो बाबा! आपने गलती कर दी, मुझे इतना खुला छोड़कर। है ना लक्ष्य? अब आज़ादी मिली है, तो इन्जॉय तो करना बनता है ना।"

    ईरा ने लक्ष्य की तरफ़ देखकर कहा और उसे आँखें दिखाते हुए कुछ बोलने का इशारा किया। वह हड़बड़ाते हुए बोला, "जी, वही तो मामा जी! अब जब शेरनी को पिंजरे से निकालोगे, तो वो दहाड़ तो मारेगी ही ना, राइट? राज, तू बोलना कुछ खड़ा क्यों है?"

    "हाँ, मुझे भी यही लगता है। ईरा इज़ राइट, अंकल। शेरनी तो शिकार करेगी ही।"
    राज ने भी ईरा और लक्ष्य की हाँ में हाँ मिलाई। सुदास दोनों को घूरने लगे।

    "देखा बाबा, सारी गलती आपकी है।"

    ईरा ने कहा। उसकी बात सुनकर सबको हँसी आ गई, वहीं सुदास का पारा हाई हो गया। वो गरज उठे, "ईरा, शटअप! जस्ट शटअप! इतना सब कुछ करके तुम्हें अभी भी चैन नहीं मिला? वहाँ पार्टी वाले मेरी जान खा जाएँगे, जानती हो तुम कुछ?"

    "हाँ बाबा, आई नो। पर मैं हूँ ना।" ईरा अपनी जीन्स की पॉकेट में हाथ डाले, दोनों पैरों पर खड़ी, ईगो से तनकर बोली।

    सुदास ने ईरा के कॉन्फिडेंस पर कहा, "तुम हो, आई नो, तुम हो ईरा। पर हमारे भी कुछ उसूल हैं। हम राह चलते किसी को नहीं मार देते।"

    ईरा ने उसी एटीट्यूड से कहा, "पर बाबा, मैंने क्या किया है? गलती तो उस विराट की थी। उसे अंशुल को बीच में नहीं लाना चाहिए था।"

    "उसकी गलती थी, मैं मानता हूँ। लेकिन जहाँ बातों से मामले हल हो जाएँ, वहाँ हाथापाई ज़रूरी तो नहीं। विराट की मौत पर उसका बेटा अभय चुप नहीं बैठेगा, और ना ही विराट के लोग। ईरा, मैं नहीं चाहता कि तुम पर कोई आँच आये, और तुम हो कि…"

    "आँच क्या, मैं पूरा गैस सिलेंडर…!!" ईरा सुदास की बातों के बीच बोली थी, जब सुदास ने उसे आँखें दिखाईं।

    वह ईरा को टोकते हुए बोले, "ईरा, इसीलिए मैंने तुम्हें अपने हर काम, जहाँ तक की अपनी पार्टी से भी दूर रखा। लेकिन तुम हो कि! अब तो विराट के लोगों को बहाना मिल जाएगा मेरे खिलाफ़ बोलने का, और मैं या तो पार्टी छोड़ दूँ, या ले जाने दूँ टिकट किसी भी ऐरे-गैरे को, या सबसे दुश्मनी लेता रहूँ।"

    "बाबा, मैंने कुछ नहीं किया?" ईरा एक बार फिर से बोली।

    सुदास भड़क उठे, "अच्छा, तुमने कुछ नहीं किया? और जो हुआ वो सब क्या था? बहुत शौक है ना तुम्हें? चलो, आज से एक हफ़्ते तक तुम्हारा गन यूज़ करना बंद।"

    सुदास ने फैसला सुनाया। ईरा जल्दी से बोली, "बाबा!"

    सुदास ने फ़ौरन कहा, "दो हफ़्ते तक!"

    "लेकिन बाबा…" ईरा ने फिर से मुँह खोला, जब सुदास ने कहा, "तीन हफ़्ते तक!" सुदास बोलते जा रहे थे, और ईरा ने अपने मुँह पर दोनों हाथ रख के जैसे सेलो टेप मार लिया।

    "ठीक है, तीन हफ़्ते तक अपनी गन नहीं यूज़ करूँगी। अब खुश।"

    ईरा ने मायूस सूरत बनाई, पर सुदास नहीं पिघले। तो ईरा ने बड़े ही क्यूटनेस से कहा, "ओके, तो बाबा, अगर किसी ने मुझे मारना चाहा, तो मैं उसके सामने बैठ जाऊँगी कि लो दुश्मन भय्या, मेरी जान ले लो, मेरे बाबा ने मेरी गन बैन कर रखी है, ठीक है।"

    सुदास ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "कोई अंशुल को कुछ नहीं कर सकता, ईरा। बस तुम्हें उकसाते हैं लोग, ताकि तुम कोई गलत फैसला लो, और लोगों को तुम्हारे ज़रिए मुझे नीचा दिखाने का मौका मिल सके, जैसे कि आज तुमने किया। जानती हो ये बात कहाँ तक जाएगी?"

    "क्या होगा बाबा, कुछ नहीं होगा?" ईरा ने मुँह बनाते हुए धीरे से जवाब दिया था, ताकि सुदास सुन ना पाए। क्योंकि उनके सामने ईरा की बोलती जो बंद हो जाती थी, वह बस उनसे ही तो डरती थी, शायद वह भी थोड़ा बहुत, या बस इज़्ज़त करती थी, डरती नहीं थी।

    उसने तो धीरे से ही कहा था, पर उसकी बात शायद सुदास ने सुन ली। और अब वह उसे गुस्से में घूरते हुए डाँटने लगे, "अच्छा, तुम्हें बहुत पता है, कुछ नहीं होगा? वहाँ पार्टी वाले मेरी जान खा जाएँगे! वह सिद्धार्थ जो कब से घात लगाए बैठा है, तुमने उसे मौका ही दे दिया ईरा, और उसके साथ विराट का बेटा अभय, क्या वह चुप बैठेगा अब? मुझे बताओ जरा तुम?"

    "बाबा, मुझे किसी से डर नहीं लगता। अगर बात मेरे अंशुल पर आएगी, तो मैं पीछे नहीं हटूँगी। जब मैं आपके मामले में नहीं आती, ना ही किसी से कोई दुश्मनी या दोस्ती रखती हूँ, तो कोई मेरे मामले में क्यों आता है?"

    "कौन आता है तुम्हारे मामले में ईरा?"

    "आपकी पार्टी वाले, जो आपसे जलते हैं, वह मुझे क्यों निशाना बनाते हैं बाबा?"

    "यही तो बात है ना ईरा, कि वह लोग बस तुम्हें उकसाते हैं कि तुम कोई गलती करो, तो वह तुम्हारे ज़रिए मुझ तक पहुँच सकें, जो मेरा मुक़ाबला नहीं कर सकते, वह मेरे पीठ पीछे वार करते हैं तुम्हें छेड़कर। तुम समझती क्यों नहीं?"

    "बाबा, मैं सब समझती हूँ। समझते तो आपके वह ऑपोजिट दुश्मन नहीं, जिन्हें अब मैं एक-एक कर ऐसे ही खत्म कर दूँगी।"

    "ईरा, तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?"

    "नहीं बाबा, मेरा दिमाग तो नहीं खराब है। लेकिन अगर कोई मेरे अंशुल को टच करेगा, तो शायद मेरा दिमाग खराब हो जाएगा। और अगर मेरा दिमाग खराब हुआ, तो मैं सब की ज़िन्दगी खराब कर दूँगी।"

    "ईरा, मैं नहीं चाहता कि तुम पर किसी भी चीज़ का असर हो, इसलिए मैं तुम्हें खुद से दूर रखता हूँ, अपने काम से, अपनी पार्टी से, हर चीज़ से दूर रखता हूँ। फिर भी तुम पता नहीं कैसे सब चीज़ों में इंवॉल्व हो जाती हो?"

    "बाबा, अगर वह लोग मुझे इन्वॉल्व करें, तो ठीक है। मैं उनसे भिड़ सकती हूँ, क्योंकि मैं भी आपकी ही बेटी हूँ, और मेरी रगों में आपका खून है। मैं डरने वाली नहीं। पर वह लोग इंवॉल्व करते हैं तो मेरी जान, मेरे अंशुल को, इसके बदले में मैं उन्हें सज़ा तो दूँगी ही ना बाबा।"

    "ईरा, तुम समझती क्यों नहीं मैं…!!"

    सुदास ईरा को देखते हुए अभी कुछ कहने ही वाले थे, जब ईरा अपने दोनों पैरों पर खड़ी होकर, दोनों हाथ पीछे बाँधते हुए तनकर बोली, "बाबा, मेरा तो उसूल है, अगर कोई मुझे छेड़ेगा, तो उसे झेलना पड़ेगा। क्योंकि मैं किसी को छेड़ती नहीं, और जो मुझे छेड़े, तो मैं उन्हें छोड़ती नहीं। बाबा, जब सबको पता है मैं अंशुल को लेकर कितनी पज़ेसिव हूँ, लेकिन फिर भी सब लोग मेरी इसी दुखती रग पर वार करते हैं। मैं कैसे चुप बैठ जाऊँ? आई लव अंशुल बाबा।"

    "हाँ, तो यह तमाशा करना ज़रूरी था क्या ईरा? क्या ज़रूरत थी तुम्हें विराट पर गोली चलाने की? उससे बात भी तो कर सकती थी ना तुम?"

    "तो क्या बात करती मैं उससे? उसने गन तान रखी थी मेरे अंशुल पर, जो देखकर ही मेरा खून खौल गया?"

    ईरा अपने बाबा सुदास के सामने खड़ी, सर झुकाए बोल रही थी। जब सुदास ने उसे दो पल देखा और खामोशी से वहाँ से हटते हुए लक्ष्य और राज की तरफ़ आ गए। अभी वह दोनों कुछ समझ पाते कि सुदास ने उन दोनों के गाल पर ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिये, जिससे वह दोनों घबरा गए और अपना-अपना गाल सहलाते हुए एक-दूसरे को देखने लगे।

    सुदास ने उन दोनों को उंगली दिखाते हुए गुस्से में डाँटा, "तुम दोनों की वजह से ही यह लड़की इतनी बिगड़ी है। उस वक़्त तुम दोनों कहाँ थे, जब यह सारा तमाशा कर रही थी? तुम इसे रोक नहीं सकते थे?"

    सुदास दोनों को डाँट रहे थे, पर दोनों खामोश खड़े रहे। जब घर के मेन गेट से आता हुआ अंशुल दिखाई दिया, जिसे देखते ही सुदास खुश हो गए!!

    और आगे……………

  • 4. जबरिया इश्क़ - Chapter 4

    Words: 1050

    Estimated Reading Time: 7 min

    ईरा अपने बाबा सुदास के सामने खड़ी थी, सर झुकाए हुए। जब सुदास ने उसे कुछ पल देखा, तो खामोशी से वहाँ से हटकर लक्ष्य और राज की ओर आ गए। अभी वे दोनों कुछ समझ पाते, कि सुदास ने उन दोनों के गालों पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिए। इससे वे दोनों घबरा गए और अपने-अपने गाल सहलाते हुए एक-दूसरे को देखने लगे।

    सुदास ने उन दोनों को उंगली दिखाते हुए गुस्से में डांटा, "तुम दोनों की वजह से ही यह लड़की इतनी बिगड़ी है। उस वक्त तुम दोनों कहाँ थे जब यह सारा तमाशा कर रही थी? तुम इसे रोक नहीं सकते थे?"

    सुदास दोनों को डांट रहे थे, पर दोनों खामोश खड़े रहे। तभी घर के मेन गेट से आता हुआ अंशुल दिखाई दिया। इसे देखकर सुदास खुश हो गए।

    "आ गया मेरा बेटा! आओ, आओ माय सन अंशुल! आज तुम कॉलेज से जल्दी आ गए।"

    सुदास ने जल्दी से आगे बढ़कर खुशी से कहा और फिर उसे लेकर पास ही के सोफे पर बैठ गए। "अंशुल, बस एक तुम ही हो इस घर में जो मुझे पसंद हो, बाकी यह सब तो!!"

    सुदास ने अंशुल से कहते हुए घूरती निगाहों से ईरा, लक्ष्य और राज को देखा। वह तीनों मासूम सा मुँह बनाकर रह गए।

    अंशुल ने सुदास से पूछा, "बाबा, आप कब आए घर?"

    "बस अभी आया बेटा। वैसे क्या बात है अंशुल, आज तुम कॉलेज से जल्दी आ गए?"

    "हाँ बाबा, कॉलेज में छुट्टी हो गई ना इसलिए।" अंशुल ने आहिस्ता से जवाब दिया।

    "अच्छा, लेकिन क्यों छुट्टी हो गई?"

    "बाबा, क्योंकि ईरा ने जो कॉलेज में तमाशा किया, उसकी वजह से सारे स्टूडेंट बहुत डरे हुए थे। तो कॉलेज वालों ने सबको घर भेज दिया।"

    अंशुल ने उसी तरह अपनी सर्द आवाज में कहा। सुदास को और भी गुस्सा आ गया। उन्होंने दूर खड़ी ईरा की तरफ देखा और उसी तरह गुस्से में बोले, "देखा तुमने? देख लो तुम! अब तुम्हारी वजह से तुम्हारे अंशुल को भी तो प्रॉब्लम हुई ना! अब कुछ जवाब दोगी तुम इस पर ईरा?"

    "जवाब क्या देना बाबा? अगर एक दिन कॉलेज बंक हो गया, तो क्या यह फेल हो जाएगा?" ईरा ने उसी तरह एटीट्यूड वाले अंदाज में तनकर जवाब दिया। सुदास का खून खौल गया था। वहीं राज और लक्ष्य समेत माल को भी हँसी आ गई थी।

    "ईरा, तुमसे कोई जीत नहीं सकता है ना?" सुदास ने जलकर ईरा को डाँटा।

    "बाबा, मैंने क्या किया है अब?"

    "ईरा, मैं तुम्हारा क्या करूँ?"

    ईरा का यह नार्मल अंदाज देखकर सुदास को गुस्सा आ गया था। वह उसे गुस्से में कुछ कहने ही वाले थे, कि जल्दी से अंशुल ने उन्हें थाम लिया। अपनी नर्म और सर्द भरी आवाज में बोला, "अरे कोई बात नहीं बाबा! ईरा की गलती नहीं है। मैं वाकई बहुत डर गया था जब उस आदमी विराट ने मुझ पर गन रखी थी। ईरा ने तो मुझे बचाया है बाबा।"

    "अंशुल, तुम भी अब इसे हमेशा सपोर्ट कर रहे हो, जिसकी वजह से हमेशा तुम्हें प्रॉब्लम होती है बेटा?"

    "कोई बात नहीं बाबा, मुझे ईरा से कोई प्रॉब्लम नहीं।"

    अंशुल नॉर्मली सुदास से बातें कर रहा था। जब राज और लक्ष्य एक-दूसरे की तरफ देखते हुए ईरा की हालत पर हँस दिए।

    "इसे ईरा से प्रॉब्लम नहीं है या फिर ईरा से ही प्रॉब्लम है? वैसे ईरा, अगर इसने तुम्हारे खिलाफ सुदास मामा के कान भर दिए ना, तो ईरा, तुम तो गई बेटा!" लक्ष्य ने धीरे से झुककर ईरा के कान में कहा। ईरा ने उसे घूरती निगाहों से देखा। लक्ष्य की हाँ में हाँ मिलाते हुए अब राज बोला, "ईरा, जिसे कॉलेज बचाने गई थी, मुझे लगता है यही अभी तुम्हें तुम्हारे बाबा के सामने फँसाने वाला है बेटा! क्या करोगी अब तुम?"

    राज और लक्ष्य दोनों ईरा का मज़ाक बनाते हुए एक-दूसरे से हाई-फाई लेते हुए हँस दिए। ईरा ने उन दोनों के पैरों पर अपना एक-एक पैर जोर से जड़ दिया, जिससे वे दोनों उछल गए।

    "अच्छा अंशुल बेटा, तुम फ्रेश हो जाओ। उसके बाद हम खाना खाएँगे!" सुदास ने अंशुल का शोल्डर थपथपाते हुए प्यार से कहा।

    "जी बाबा, जरूर।" अंशुल ने भी धीरे से जवाब दिया और उठकर कमरे की तरफ चला गया। पीछे से सुदास ने उसे पुकारा, "अंशुल सुनो जरा!!"

    सुदास की आवाज सुनकर अंशुल उनकी तरफ पलटा, "जी हाँ बाबा!"

    "बेटा, इस लड़की पर तुम्हारा तो कंट्रोल है ना? इसको कुछ समझाओ। यह लड़की मुझे पागल करके छोड़ देगी।" सुदास ने अंशुल से कहते हुए ईरा की तरफ घूरती निगाहों से देखा। अंशुल की भी नजर ईरा की तरफ चली गई, जो क्यूट सा मुँह बनाए अंशुल को ही देख रही थी। अंशुल को हँसी आ गई। उसने सुदास की तरफ देखते हुए जवाब दिया, "बाबा, समझाते तो उसे हैं ना, जिसमें समझ ना हो। और ईरा तो बहुत समझदार है।"

    "यह लो भई अंशुल! अब तुम भी इसे ही सपोर्ट करोगे? यह दो लंगूर कम थे क्या?" सुदास ने राज और लक्ष्य की तरफ घूरकर देखा।

    "अरे नहीं नहीं बाबा! मैं भला ईरा को सपोर्ट क्यों करूँगा? लेकिन आज इसने जो किया, वह सही था। प्लीज इस पर गुस्सा मत कीजिए आप।"

    "अरे इस पर मेरे गुस्से का कोई असर भी होता है अंशुल?" सुदास ने अंशुल से कहा और उठकर वहाँ से चले गए। अंशुल भी अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। जब सबके जाते ही राज और लक्ष्य एक बार फिर से ईरा पर हँस दिए, जिन्हें ईरा मारने दौड़ी थी।

    "तुम दोनों की जान ले लूँगी मैं! मेरा मज़ाक बनाते हो गधे कहीं के।"


    ईरा जब बाथरूम से शॉवर लेने के बाद बाहर कमरे में आई, तो वहाँ अंशुल पहले से ही मौजूद था। जो शायद उसी का इंतज़ार कर रहा था। ईरा को देखकर अंशुल के चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गई और वह फौरन ईरा की तरफ बढ़ गया।

    ईरा मिरर के सामने आकर खड़ी हो गई और अपने बालों से टॉवल हटाते हुए, जैसे ही उसने बालों को झटका, उसके बालों के पानी की छींटे अंशुल के चेहरे पर जा पड़ीं। जिससे अंशुल का चेहरा दूसरी तरफ घूम गया।

    और आगे……………

  • 5. जबरिया इश्क़ - Chapter 5

    Words: 1278

    Estimated Reading Time: 8 min

    ईरा ने अपने खुले बालों को, बिना तौलिये से सुखाए, बहते पानी को इधर-उधर झटकते हुए पूछा, "कुछ कहना है क्या?"

    "सॉरी, एंड आई लव यू।" अंशुल ईरा के सामने आया, मुस्कुराया, उसके गाल को चूमा और पीछे हट गया।
    ईरा के बालों से निकलते पानी की छींटे उसके चेहरे पर पड़ीं, तो उसने चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया।


    ईरा ने उसका चेहरा पकड़कर अपनी ओर किया। "क्या हुआ?"


    अंशुल ने कहा, "ईरा, गीले बालों के लिए हेयर ड्रायर यूज़ किया करो। इस तरह झटकने-पटकने से तुम्हारी गर्दन में मोच आ जाएगी।"


    ईरा दोनों हाथ बांधकर उसके सामने खड़ी होकर उसे देखती रही। "बाल नहीं, मैंने पूछा इसमें क्या है?" ईरा ने अंशुल के हाथ में पकड़ी प्लेट की ओर इशारा करते हुए पूछा। वो बोला,


    "अरे, बताया तो। तुम्हारा फेवरेट चिकन, जो बाबा ने तुम्हें देने से मना किया था। इसलिए मैंने भी नहीं खाया और सब तुम्हारे लिए ले आया…!!"

    अंशुल अभी बोल ही रहा था कि ईरा ने एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया, जिससे उसका चेहरा घूम गया।


    "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे प्यार जताने की? बिकॉज़ ओनली आई लव यू सो मच, एंड जितना प्यार तुमसे मैं करती हूँ, कोई किसी से नहीं कर सकता, तुम भी नहीं कर सकते उतना प्यार मुझसे… समझे तुम?"

    ईरा का थप्पड़ पड़ते ही अंशुल शॉक्ड रह गया। अब ईरा ने उसके हाथ से खाने की प्लेट छीनकर अलग रख दी और उसे कॉलर से पकड़कर अपने सामने किया।

    "इधर देखो मेरी तरफ।"


    ईरा ने उसका चेहरा पकड़कर अपनी ओर घुमाया। अंशुल की आँखें आँसुओं से डबडबाई हुई थीं और वो अपना एक हाथ अपने गाल पर रखे ईरा को देखने लगा। "ईरा, मैंने क्या किया? फिर भी सॉरी तो बोला ना?"


    अंशुल ने धीरे से कहा। ईरा ने उसके होठों पर अपनी अंगुली रख दी और उसकी शर्ट के बटन खोलने लगी।

    अब अंशुल उसे और भी हैरत से देख रहा था। उसने गाल से हाथ हटाकर ईरा के कंधे पर रखते हुए कहा, "ईरा, क्या? ये क्या कर रही हो तुम?"

    अंशुल ने पूछा, पर ईरा चुप रहीं और धीरे-धीरे उसकी शर्ट के बटन उसी तरह खोलते हुए, अंशुल की आँखों में आँखें डाले उसे देखती रही।

    ईरा का इरादा समझते हुए अंशुल ने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए और उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "ईरा, नहीं, यार। टुडे आई एम नॉट रेडी।"

    अंशुल ने इनकार किया, पर ईरा ने अपना एक हाथ उसके सर के पीछे ले जाते हुए उसके बालों को पकड़कर खींचा। जिससे अंशुल का चेहरा ऊपर उठ गया और ईरा ने एक हाथ से उसके शर्ट के बटन खोल दिए।

    उसने अंशुल को जोर से धक्का दिया, जिससे वह पीछे बेड पर जा गिरा। उठते हुए बोला, "ईरा, नो, प्लीज यार ईरा। मेरा मूड नहीं है आज, मेरा मूड जरा भी नहीं है, प्लीज बात समझो।"

    अंशुल बार-बार इंसिस्ट कर रहा था और वह उठ ही पाता कि ईरा धीरे-धीरे चलती हुई बेड पर आ गई और अंशुल के ऊपर आते हुए उसके बालों में अपना एक हाथ फँसा दिया। धीरे से उसके होठों पर अपने दूसरे हाथ से छूकर बोली, "अंशू, आई नीड यू, माय लव!"


    "नहीं ईरा, मुझे पढ़ाई करनी है। लीव मी, प्लीज। कल मेरा असाइनमेंट…!!"

    अंशुल अपनी बात पूरी कर पाता कि ईरा उसके दोनों हाथों की उंगलियों में अपने हाथों को फँसाए, धीरे से उसके सीने पर लेटकर, आहिस्ता-आहिस्ता उसकी गर्दन में अपने होंठ रगड़ने लगी। जिससे अंशुल मजबूर हो गया और मदहोशी में उसकी भी आँखें बंद हो गईं। ईरा अंशुल के सीने पर, गर्दन पर, उसके होठों और पूरे चेहरे को चूम रही थी।

    अंशुल ने अब उसे पकड़कर बेड पर किया और खुद फौरन उसके ऊपर आते हुए बोला, "तो मतलब जब तुम्हारी मर्जी होगी तब तुम मेरे पास आओगी जरूर, कोई नहीं रोक सकता, है ना?"


    "ये तुम अच्छे से जानते हो।" ईरा अंशुल के माथे पर बिखरे बालों से खेल रही थी।


    अंशुल ने कुड़कर उसके माथे पर चूमा और सुलगकर बोला, "क्यों करती हो ऐसा मेरे साथ ईरा, व्हाई?"


    "क्योंकि आई लव यू!" ईरा इस वक्त बेड पर थी और अंशुल उसके ऊपर।

    अंशुल ईरा के हाथों में अपने दोनों हाथ फँसाए, उसके चेहरे पर अपना चेहरा झुकाए था। दोनों एक-दूसरे की आँखों में झाँक रहे थे।

    अंशुल उसी इरिटेशन में ईरा की आँखें चूमते हुए बोला, "तुम सबके लिए एक बला हो ईरा, कयामत, जिससे खौफ खाते हैं सब, तुम्हें देखकर अच्छे-अच्छों का पसीना छूट जाता है और तुम हो कि…!!"


    अंशुल की बात काटकर ईरा बोली, "मैं तुम्हें देखकर आउट ऑफ़ कंट्रोल हो जाती हूँ अंशू, बस तुमसे ही तो ईरा देशमुख हारी है।" ईरा ने थोड़ा सा चेहरा उठाकर अंशुल के गाल में काट लिया और फिर बेड पर सिर रखकर आँखें मूंद लीं।

    अंशुल ईरा की बाइट से सिसक उठा। "गॉड ईरा, क्या कर रही हो?"

    "तुमने ही तो कॉलेज में बोला था कि मैं तुम्हें खा जाऊँ तो भी तुम कुछ नहीं कहोगे?" ईरा ने एक आँख विंक करते हुए कहा।


    अंशुल अपना गाल सहलाते हुए बनावटी रूठेपन और मासूमियत से बोला, "ईरा, दर्द होता है यार।"

    ईरा को हँसी आ गई। वो अंशुल की आगोश में पड़ी थी। "दर्द की भी हद होती है, लेकिन प्यार की नहीं, और वही बेहद प्यार है मुझे तुमसे।"

    "अच्छा,"

    अंशुल ने आँखें चमकाईं और ईरा ने उसे वापस धक्का दिया, जिससे वह बेड पर जा गिरा। इससे पहले कि अंशुल उठता, ईरा ने फौरन उसके ऊपर आकर उसके दोनों हाथों को पकड़कर बेड से लगा दिया।


    अंशुल मचल उठा। "ईरा, प्लीज, आज पढ़ाई करने दो मुझे। प्यार तो रोज करते हैं ना।"


    अंशुल ने धीरे से कहा, पर उसकी आवाज सुने बगैर ईरा ने वापस उसके सीने पर अपने होंठ रख दिए। अंशुल ने अपनी आँखें बंद कर लीं। यह दर्द उसे रोज सहना था क्योंकि ईरा का थप्पड़ मारना आज पहली बार नहीं था।

    अंशुल की आँखें अपने आप ही बंद होने लगीं, तो उसने ईरा से पूछा, "ईरा, मतलब आज फिर से तुमने मुझे नशा…!!"


    ईरा उसकी बात का मतलब समझते हुए मुस्कुराकर बोली, "हाँ, क्योंकि बहुत जरूरी था।"


    अंशुल ने अपना सर झटककर जबरदस्ती आँखें खोलने की कोशिश करते हुए पूछा, "आज किस चीज में मिलाया था?"


    ईरा अंशुल की स्टडी टेबल पर रखे दूध के खाली गिलास को देखने लगी, जो अंशुल ने पिया था। अंशुल ने उसकी नज़रों का पीछा किया और ओझल आवाज़ में कहा, "दूध में डलवाया था तुमने।"


    "हाँ!" ईरा ने छोटा सा जवाब दिया।


    अंशुल की आँखें बंद हो रही थीं। "ईरा, मैं अपने कंट्रोल में नहीं रहता इसे नशे के बाद।"


    "हाँ, तो मैं हूँ ना तुम पर अपना कंट्रोल करने को। भूल जाओ तुम खुद को अंश।" ईरा प्यार के खुमार में हँसकर बोली।


    अंशुल ने ईरा को एक नज़र देखते हुए कहा, "मत किया करो ईरा, मैं तो वैसे भी तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊँगा, क्योंकि मैं जाना नहीं चाहता और ना ही जा सकता हूँ… फिर मुझे ये नशा देने की क्या ज़रूरत है?"


    "ताकि तुम मुझे भूल ना सको, ये नशा मेरा है अंश।" ईरा बेपरवाही से बोली।

    अंशुल जब अपनी आँखें खोलने में नाकाम रहा, तो चुपचाप खुद को ढीला छोड़कर आँखें मूंद लीं, जबकि ईरा अभी भी उसके ऊपर थी।


    सुबह जब अंशुल नींद से जगा, तो उसका सर भारी था। ईरा मॉर्निंग वॉक से लौटकर अपने ट्रेनिंग रूम में बॉक्सिंग कर रही थी। अंशुल अभी भी आँखें बंद किए बेड पर लेटा था, जब उसे कमरे में कोई आहट महसूस हुई।

    ईरा के कमरे में अंशुल और ईरा के अलावा किसी का भी आना सख्त मना था, खासकर तब जब अंशुल कमरे में अकेला होता था या फिर ईरा और अंशुल साथ होते थे।

    "कौन है?" अंशुल ने आहिस्ता से पूछा।

    और आगे…

  • 6. जबरिया इश्क़ - Chapter 6

    Words: 2855

    Estimated Reading Time: 18 min

    अंशुल अभी भी बिस्तर पर लेटा हुआ था। तभी कमरे के दरवाज़े पर किसी की आहट हुई। उसने आँखें खोले बिना, धीरे से ओझल आवाज़ में पूछा, "कौन है?"

    अंशुल ने सिर उठाए बिना, चेहरा तकिये में छिपाए सवाल किया। उसके कमरे की सफ़ाई करने आई मेड घबरा गई और जल्दी-जल्दी बोली, "मैं हूँ सर।"

    "कौन हो तुम?" अंशुल ने उसी तरह, बेध्यानी से, सिर उठाए बिना पूछा।

    मेड फिर घबराई आवाज़ में बोली, "गौरी, गौरी हूँ मैं सर।"

    "जो भी हो तुम, तुम यहाँ क्या करने आई हो?" अंशुल अभी भी बिस्तर पर पेट के बल, ओंधे मुँह लेटा हुआ था। दोनों हाथ सिर पर रखे, चेहरा बिस्तर की चादर में धँसा हुआ था। उसकी आँखें बंद थीं और आवाज़ थकान से ओझल-ओझल थी।

    "गौरी, तुम जाओ यहाँ से। क्या कर रही हो?"

    गौरी सर झुकाए खड़ी थी। कहीं गलती से उसकी आँखें अंशुल पर न पड़ जाएँ, ईरा के ख़ौफ़ से। "सर, मैं कमरे की सफ़ाई करने आई थी। वह, वह मुझे ईरा मैम ने बोला था।"

    "तुम्हें पता है ना, जब मैं कमरे में होता हूँ तो ईरा किसी को कमरे में आने की इज़ाजत नहीं देती?" अंशुल ने आँखें खोलते हुए कहा और फिर खिड़की से छनकर आ रही सूरज की रोशनी पड़ते ही वापस चेहरा बिस्तर की चादर पर कस लिया।

    "सॉरी सर, मुझे पता नहीं था कि आप, आप अभी सो रहे हैं। नहीं तो मैं कभी नहीं आती। सो सॉरी सर।" मेड घबरा गई अंशुल को वहाँ देखकर।

    ईरा ने अंशुल को छूने, उससे बात करने या उसके पास आने की ही नहीं, बल्कि उसकी तरफ़ देखने की भी सख्त सज़ाएँ हर किसी के लिए तय कर रखी थीं। जिससे सबकी रूह काँप जाती थी अंशुल के उसके इर्द-गिर्द होने पर।

    "मैं सो नहीं रहा हूँ।"

    अंशुल ने अपना चेहरा तकिये पर रगड़ डाला और फिर बोला, "गौरी, अगर ईरा को पता चला कि मेरे कमरे में होते हुए भी तुम यहाँ आई हो तो वो तुम्हारी नौकरी या फिर जान दोनों ले लेगी, बिना कोई एक्सक्यूज सुने।"

    "नहीं सर, प्लीज आप, आप ईरा मैम को कुछ मत बताइएगा। मुझे, मुझे सच में नहीं पता था आप यहाँ हैं।" मेड अब वहाँ से जाने के बजाय रिक्वेस्ट पर आ गई थी, जो उस वक़्त ज़रूरी लगा था उसे।

    अंशुल ने फिर धीरे से कहा, "मेरी वजह से वैसे ही लोगों को इतनी प्रॉब्लम होती है जो ईरा उन्हें देती है। अगर मैं किसी से मिलता, बात करता हूँ, ईरा उसे बक्शती नहीं। तुम्हें लगता है गौरी, मैं तुम्हारे बारे में उसे बताऊँगा? यू डोन्ट वरी, जस्ट गो। बट ध्यान से, जाते हुए तुम्हें कोई देखे ना?"

    गौरी की अब जान में जान आई। वो जल्दी से बोली, "थैंक्यू, थैंक्यू सो मच सर। सर, मैं बाद में कर लूँगी क्लीनिंग।"

    "हाँ, जाओ। और ईरा को पता नहीं चलना चाहिए कि तुम कमरे में आई थी या फिर मैंने तुमसे बात की है। नहीं तो वो तुम्हें पनिश करेगी और सिर्फ़ तुम्हें ही नहीं, मुझे भी।" अंशुल ने सीधे होकर लेटते हुए आँखों पर अपना बाज़ू रख लिए।

    "जी, जी सर, जा रही हूँ।" गौरी ने हकलाते हुए, डरे-डरे लहज़े में कहा और जल्दी से दरवाज़ा खोलकर कमरे से निकल गई। गौरी के जाते ही अंशुल एक बार फिर से आँखें मूँदकर पेट के बल लेटकर सो गया।


    सुदास अपने कमरे से तैयार होकर अभी-अभी निकले ही थे कि भल्ला और विजय भी उनके पीछे हो लिए। सुदास बाहर आए तो ड्राइवर गाड़ी के साथ गेट पर ही खड़ा उनका इंतज़ार कर रहा था। सुदास अभी गाड़ी में बैठने ही वाले थे, जब विजय का मोबाइल रिंग हुआ। जो कि असल में सुदास का ही था, पर वो ज़्यादातर विजय और भल्ला के ही पास रहता था।

    विजय ने कॉल रिसीव की और फ़ोन सुदास की तरफ़ बढ़ाते हुए बोला, "सर, आपके लिए सुबह से पार्टी ऑफिस से फ़ोन पर फ़ोन आ रहे हैं। क्या बोलूँ उनको?"

    सुदास ने अपने माथे पर अपनी दो अंगुलियों और अंगूठे से रगड़ते हुए आँखें मूँद लीं।

    सुदास इरिटेट हुए और विजय के हाथ से मोबाइल ले लिया। फिर भल्ला की तरफ़ देखकर पूछा, "भल्ला, तुमने ईरा से बता तो दिया है ना कि उसे आज ऑफिस जाकर मेहता के साथ वो मीटिंग अटेंड करनी होगी और फिर फैक्ट्री जाना है जहाँ का सारा ज़िम्मा आज से उसे सौंपा गया है?"

    भल्ला ने सर झुकाकर हाँमी भरी और रिस्पेक्टफुली बोले, "जी सर, मैंने ईरा को सब बता दिया और काम भी समझा दिया है।"

    विजय ने कहा, "हाँ सर, ईरा को समझाने या कुछ बताने की ज़रूरत तो नहीं शायद। क्योंकि सब जानते हैं ईरा बिज़नेस की वो नॉलेज रखती है जो बड़े से बड़े बिज़नेसमैन की छुट्टी कर जाए। आख़िर ख़ून आपका है और ईरा तो है ही शार्प माइंडेड गर्ल। पर फिर भी उनके साथ लक्ष्य और राज भी जाएँगे। उन्हें सपोर्ट नहीं, बल्कि कवर करने।"

    सुदास ने उन दोनों की बात गौर से सुनते हुए फिर से पूछा, "तो क्या वो निकल गई क्या?"

    भल्ला जल्दी से बोले, "नहीं सर, अभी नहीं गई है। बस निकलने ही वाली होंगी। राज और लक्ष्य तैयार हैं। ईरा शायद अभी अपने ट्रेनिंग रूम में थी।"

    अब सुदास ने दो पल कुछ सोचा, फिर कहा, "राज को फ़ोन करो और उससे कहो वो ईरा को लेकर ऑफिस के लिए निकले। इससे पहले उसका माइंड चेंज हो जाए और वो कहीं और ही तूफ़ान मचाने निकल पड़े?"

    भल्ला ने फ़ौरन कहा, "जी सर, मैं करता हूँ राज को फ़ोन।"

    सुदास ने अपने मन में सोचा, "कम से कम किसी काम में लगी रहेगी तो ख़ुराफ़ात भी कम करेगी।"

    विजय और भल्ला ने उनकी वह बुदबुदाहाट सी आवाज़ सुनी और हँस दिए। सुदास ने उन दोनों को देखा और बोले, "चलो निकलते हैं अब पार्टी ऑफिस। अब सारा तमाशा वही होगा, जाने कौन-कौन सी जालसाजी का सामना करना पड़े वहाँ?"

    सुदास गाड़ी में पीछे बैठ गए तो उनके दोनों तरफ़ विजय और भल्ला भी उन्हें कवर किए गाड़ी में आ गए। और तीनों के बैठते ही ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।


    माला नाश्ते की टेबल पर परित्युष को अपने हाथों से नाश्ता करा रही थी। और वह उसी तरह छोटे बच्चों सा बार-बार इनकार कर रहा था। परित्युष अपने टॉय से खेलते हुए, बेमन से खाना खाता हुआ देखकर मुँह बना देता, जो माला उसे ज़बरदस्ती खिलाने की कोशिश कर रहीं थीं।

    "परित्युष, तुम बहुत परेशान करने लगे हो आजकल। अच्छे बच्चे जिद नहीं करते, बेटा। खाना खाओ।" माला ने तंग आकर कहा। और लिविंग में बैठे राज और लक्ष्य भी परित्युष की हालत पर मायूस हो गए।

    लक्ष्य ने राज से कहा, "यार राज, कौन कहेगा ये मेरे बड़े भाई हैं। जहाँ आज ये मुझे और मम्मी को संभालते हैं, वहीं खुद मम्मी इनके लिए परेशान रहती है। ये क्या कभी ठीक नहीं होंगे? मुझसे बड़े हैं और...?"

    "तू अपना दिल छोटा मत कर लक्ष्य। परित्युष भाई ज़रूर ठीक हो जाएँगे। बस थोड़ा वक़्त दे उन्हें।" राज ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए अपनेपन से कहा। तो लक्ष्य बोला,

    "यार, कब आएगा वो वक़्त? सालों हो गए। परित्युष भाई का सिर्फ़ शरीर बढ़ा है, माइंड नहीं। दिखने में अच्छे खासे इंटेलिजेंट और स्मार्ट पर्सनालिटी के हैंडसम नौजवान हैं, सिक्स पैक बॉडी ऐसी कि अच्छे-अच्छे मात खा जाएँ और हरकतें नादान बच्चों सी।"

    "ऊपर वाले के सामने किसी का बस नहीं चलता लक्ष्य। भगवान जी हैं ना, वो माला बुआ को निराश नहीं करेंगे। उनकी पूजा काम ज़रूर आएगी।"

    "राज, मेरी मम्मी तो कितनी मिन्नतें करती है भगवान से। वो मम्मी की कब सुनेंगे? आख़िर ये भगवान होते भी हैं या बस यूँ ही?" राज और लक्ष्य दूर बैठे आपस में बातें कर रहे थे।

    माला परित्युष को उनसे काफ़ी दूर डाइनिंग टेबल पर लिए बैठी थी। जब परित्युष उठकर भागने लगा, "अब बस मम्मी, मुझे और नहीं खाना।"

    "खाना नहीं खाओगे परित्युष, फिर चॉकलेट दूँगी।" माला ने उसे वापस चेयर पर बैठाया और खुद उसके पीछे खड़ी, उसे समझाते हुए खाना खिलाने लगी।

    परित्युष ने शिकायती गुस्से में चिढ़कर कहा, "मम्मी, आपने मुझे टॉय दिलाने को बोला था, नहीं दिलवाया। मैं कुछ नहीं खाऊँगा।"

    "मम्मी का अच्छा बेटा भी तो परित्युष ही है ना।"

    "और लक्ष्य?" परित्युष ने बच्चों से भोलेपन में पूछा।

    माला ने परित्युष का ध्यान भटकता देख जल्दी से निवाले उसके मुँह में डालते हुए बोली, "लक्ष्य गन्दा लड़का है, परित्युष तो बहुत बहादुर भी है।"

    परित्युष खुश हो गया, "सच्ची मम्मी।"

    "और क्या?" माला ने कहा और परित्युष को प्यार से खिलाती रहीं।


    अंशुल भी फ्रेश होकर नीचे चला आया, कॉलेज जाने के लिए। इस वक़्त वो पूरा तैयार था। ब्लू टीशर्ट पर ब्लैक ब्लेज़र, जिस पर ब्लैक जीन्स, माथे तक बिखरे सूखे बाल, हाथ में बुक्स पकड़े अंशुल कमाल लग रहा था। पर उसे कोई देखता भी तो कैसे, बगैर ईरा की परमिशन के?

    अंशुल ने सामने हॉल में लगे सोफ़े पर बैठे राज और लक्ष्य को मॉर्निंग विश किया तो बदले में वो दोनों भी मुस्कुरा दिए।

    अंशुल ने राज और लक्ष्य को देखते हुए कहा, "वैसे आज आप दोनों जँच रहे हैं, बड़ी साज-सज्जा किए बैठे हैं। सुबह-सुबह कहीं जा रहे हैं क्या?"

    लक्ष्य ने मुँह बनाकर जवाब दिया, "हाँ, ऑफिस। तुम्हारे ससुर का ऑर्डर है।"

    "ग्रेट, पर बैठे क्यों हैं, गए नहीं अब तक?" अंशुल ने हँसकर पूछा।

    इस बार राज बोला, "क्योंकि तुम्हारी पत्नी रानी नहीं आई अब तक। उसी के साथ ही जाना है।"

    "मेरी पत्नी रानी।" अंशुल को राज और लक्ष्य के रूठेपन पर हँसी आ रही थी।

    "कहाँ है ईरा? कमरे में तो नहीं थी?"

    राज और लक्ष्य एक साथ बनावटी मायूसी और मासूमियत से कहा, "जब उसका मन होगा तभी होगी प्रकट। हम तैयार बैठे हैं उसके इंतज़ार में।"

    "ब्रेकफास्ट।" अंशुल ने ऑफ़र किया तो दोनों ने सर हिला दिया कि वह ब्रेकफास्ट कर चुके हैं।

    अब अंशुल किचन से लगे डाइनिंग टेबल की तरफ़ बढ़ गया जहाँ उसके लिए भी ब्रेकफास्ट लग चुका था।

    परित्युष ने अंशुल को आते हुए देखा तो खुश होकर बोला, "अंशुल, आज तुम मेरे साथ खेलोगे क्या? लक्ष्य गन्दा है, पर तुम बहुत अच्छे हो?"

    "हाँ, मैं आपके साथ ज़रूर खेलूँगा परित्युष भाई। मुझे तो बहुत अच्छा लगता है आपके साथ।" अंशुल ने मुस्कुराकर कहा।

    "सच्ची, वाव।" परित्युष बच्चों की तरह ताली बजाते हुए हँस दिया।

    अंशुल उसके सामने वाली डाइनिंग टेबल की चेयर खिसकाकर बैठते हुए बोला, "लेकिन आपके साथ तब खेलूँगा जब आप अपना सारा खाना फ़िनिश करेंगे, बिना बुआ को परेशान किए।"

    परित्युष बोरियत से बोला, "लेकिन ये बहुत सारा है, मैं नहीं खाऊँगा।"

    अंशुल ने परित्युष को प्यार से समझाते हुए मुस्कुराकर उसे बहलाया, "देखो, अगर आप खाना नहीं खाएँगे तो वीक हो जाएँगे। स्ट्राँग बनने के लिए खाना तो खाना ही पड़ेगा।"

    परित्युष और अंशुल की बातों पर माला अंशुल को नाश्ता सर्व करते हुए परित्युष से बोली, "देखा परित्युष, अंशुल भी यही कह रहा है।"

    परित्युष सोच में पड़ गया। अंशुल परित्युष से बहाने से बात कर रहा था और मौका देखकर माला उसको नाश्ता खिलाने लगी।

    परित्युष का ध्यान अंशुल की बातों में था। वो बोला, "अंशुल, तुमको मैं अपने टॉय दूँगा, ठीक है?"

    "सच्ची।" अंशुल ने परित्युष को देखते हुए उसी की अंदाज़ में बच्चों की तरह खुश होकर कहा तो वो और भी खुश हो गया।

    "हाँ अंशुल, क्योंकि तुम अच्छे हो और मेरे दोस्त भी हो।" परित्युष ताली बजाता हुआ हँसता रहा।


    अंशुल और परित्युष आपस में बातें कर रहे थे और उनके पास खड़ी माला उन दोनों को ब्रेकफ़ास्ट करवा रही थी।

    ईरा जब तैयार होकर हॉल में आई, जहाँ राज और लक्ष्य ऑफिस की कुछ फ़ाइल्स, लैपटॉप वगैरह लिए बैठे आपस में बातें कर रहे थे।

    ईरा को देखकर दोनों उठ खड़े हुए और लक्ष्य ने हँसते हुए कहा, "धन्य हो जो आप पधारीं ईरा मैडम, क्या अब हम ऑफिस चलें?"

    "लक्ष्य यार, मुझे लगता है ईरा को मेकअप-शेकअप करने में टाइम लग गया होगा।"

    राज ने भी लक्ष्य से ताली लेते हुए हँसकर कहा तो ईरा, जो अंशुल को दूर से ही देख रही थी, उन दोनों को घूरकर देखने लगी।

    "लगता है तुम दोनों की जो मैं पिटाई करती हूँ सुबह से शाम तक, वो कम रह जाती है। आई थिंक डोज बढ़ानी पड़ेगी।"

    ईरा ने अपनी जैकेट का कॉलर ऊपर उठाया, फिर कोहनी तक आस्तीनें फोल्ड करते हुए एटीट्यूड से बोली तो उन दोनों ने एक-दूसरे को देखकर मुँह पर उँगली रख ली।

    ईरा वापस अंशुल को देखने लगी जो उससे बेख़बर परित्युष से बातें करता हुआ ब्रेकफ़ास्ट कर रहा था।

    ईरा ने उधर ही नज़रें किए राज और लक्ष्य से कहा, "हुआ बेवकूफ़ों, अब नहीं बोलोगे कुछ?"

    लक्ष्य ने उसे देखते हुए कहा, "मुझे नहीं बोलना कुछ। मेरा उपवास है, मौन व्रत रखूँगा मैं आज तुमसे मतलब?"

    "ईरा, हम कब से तुम्हारा वेट कर रहे हैं। सुदास अंकल ने बोला था ऑफिस जाने को और तुम अब आ रही हो इतनी देर से। कहाँ थी यार?" राज ने फिर से दबी आवाज़ में कहा तो ईरा तनकर बोली,

    "क्योंकि राज बाबा ने ऑफिस जाने को बोला था, ये नहीं बोला था कि कब जाना है। ये डिसीज़न ईरा देशमुख का होगा।"

    ईरा ने राज से कहा और फिर लक्ष्य की तरफ़ देखकर बोली, "गाड़ी रेडी है ना?"

    "हाँ, बस तुम्हारा ही इंतज़ार था। चलो अब महारानी साहिबा।" लक्ष्य ने ईरा की बात का जवाब दिया और जल्दी-जल्दी वहाँ से चला गया।

    राज ने ईरा को देखते हुए कहा, "तो चलें ईरा।"


    ईरा राज की बात पर चौंक गई क्योंकि वह तो राज से नज़रें हटाए एकटक अंशुल को देख रही थी जो अब भी हँसते हुए प्रत्यूष से बातें करने में बिज़ी था।

    राज ने ईरा की नज़रों को समझकर हँसते हुए धीरे से कहा, "क्या हुआ ईरा? इसको देखने से तुम्हारा जी नहीं भरता क्या?"

    "इसे देखकर जी नहीं भरता राज, और जी करता है कि देखते ही जाऊँ।" ईरा ने बगैर राज की तरफ़ देखे हल्का सा मुस्कुराकर कहा। उसकी नज़रें बस अंशुल पर ही टिकी थीं।

    राज ने ईरा की नज़रों और उसकी उस मुस्कान को देखकर मुस्कुराते हुए पूछा, "क्या बात है ईरा? आज तुम्हारा अंशुल बहुत खुश लग रहा है?"

    ईरा ने स्वैग में उसी तरह अंशुल को देखते हुए राज से कहा, "ये सिर्फ़ मेरे सामने ही नहीं हँसता और जब मेरे साथ होता है तब ही दुखी आत्मा बन जाता है। बाकी तो सबके साथ खुश ही होता है।"

    "तुम्हारा ही है, कहाँ जाएगा? हम चलें हैं अब ऑफिस?" राज ने पूछा तो ईरा ने हाँ में सर हिला दिया।

    ईरा राज को देखे बगैर बोली, "तुम चलो, मैं आती हूँ।"


    "अब क्या है?" राज कुछ बोल ही रहा था जब ईरा डाइनिंग टेबल की तरफ़ बढ़ गई। अंशुल ने अभी तक ईरा को नहीं देखा था। उसे ईरा की भनक तक नहीं थी।

    ईरा को उधर आता देख, जो अंशुल की तरफ़ बढ़ रही थी, माला ने परित्युष का हाथ पकड़ा और उसे लेकर जाने लगी।

    माला को जैसे ही ईरा ने एक नज़र देखा, वो परित्युष से बोली, "चलो परित्युष, तुम्हारा नाश्ता हो गया। अब दवाई का टाइम है।"

    माला परित्युष को लेकर वहाँ से चली गई जब अंशुल की नज़रें सामने गईं जहाँ से ईरा उसकी तरफ़ ही आ रही थी।

    ईरा को देखकर अंशुल, जो अभी-अभी हँस रहा था, थोड़ा सा नर्वस हो गया और उसके हाथ खाने की प्लेट पर रुक गए।

    ईरा बिना कुछ बोले एक ईगो भरे एटीट्यूड सी चाल से चलते हुए अंशुल के सामने आ रही थी।

    ईरा अब चुपचाप उसके सामने खड़ी, उसे ही एकटक देख रही थी तो अंशुल ने मुस्कुराकर पूछा, "ईरा, तुमने ब्रेकफ़ास्ट किया?"

    ईरा ने बेभाव से सर नहीं में हिलाया, "नहीं, मुझे मीठा खाना है।"

    "सुबह-सुबह मीठा? पर तुम तो चाय भी मीठी नहीं पीती क्योंकि तुम्हें मीठा पसंद नहीं ईरा।" अंशुल ने एक छोटा सा खाने का टुकड़ा अपने मुँह में रखते हुए बोला।

    ईरा ने बिना किसी फ़ेस एक्सप्रेशन के कहा, "मैंने कौन सा मीठा खाने की बात की अंशू? मैंने तो किसी और मीठे का बोला।"

    "मतलब ईरा, मैं समझा नहीं?" अंशुल अपनी बात पूरी कर पाता जब ईरा ने अपने दोनों हाथ उसके कॉलर पर रख दिए और झुककर उसके मुँह में फँसा खाने का टुकड़ा अपने मुँह में ले लिया।

    अंशुल की साँसें तेज़-तेज़ चलने लगीं और वो जो चेयर पर बैठा था, ईरा उसकी चेयर के कोने पर अपना एक पैर रख के उसके चेहरे पर झुक गई।

    "ईरा, क्या कर रही हो? हम अकेले नहीं हैं यहाँ। दूर हटो।" अंशुल ने दबी आवाज़ में धीरे से कहा।

    ईरा अंशुल के बालों से खेलते हुए किचन की तरफ़ देखने लगी तो उधर से आती-जाती हुई मेड, जो डाइनिंग टेबल को नाश्ते से सजा रही थी, वह सबकी सब ईरा की नज़र पड़ते ही सहमकर वापस किचन में ही घुस गई। अंशुल के देखते ही देखते, ईरा की एक नज़र ही काफ़ी थी और घर में छिटके सारे सर्वेन्ट जैसे ख़ौफ़ खाए हुए से वहाँ से गायब हो गए।

    अंशुल ने ईरा की तरफ़ देखते हुए कुछ कहना चाहा जब ईरा ने उसे एक झटके में कॉलर से पकड़कर खींचा और फ़ौरन उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।


    और आगे............


    तो क्या होगा आगे? अगले भाग में बढ़ सकती है सुदास की प्रॉब्लम और छूटने वाला है कुछ उनके हाथों से.... ईरा किन दो लोगों पर अपने गुस्से का बम फोड़ेगी? कौन सी नई एंट्री होने वाली है...? सब कुछ आगे के एपिसोड में। तब तक के लिए पढ़ते रहिए और हाँ.... कमेंट, कमेंट, कमेंट करते रहिए।

  • 7. जबरिया इश्क़ - Chapter 7

    Words: 2810

    Estimated Reading Time: 17 min

    ईरा ने अंशुल से धीरे से, दबी आवाज़ में कहा, "क्या कर रही हो? हम अकेले नहीं हैं यहाँ। दूर हटो।"

    ईरा अंशुल के बालों से खेलते हुए किचन की तरफ़ देखने लगी। उधर से आती-जाती हुई मेड, जो डाइनिंग टेबल को नाश्ते से सजा रही थी, ईरा की नज़र पड़ते ही सहमकर वापस किचन में घुस गई। अंशुल के देखते-देखते, ईरा की एक नज़र ही काफी थी और घर में छिटके सारे सर्वेंट जैसे ख़ौफ़ खाए हुए, वहाँ से गायब हो गए।

    अंशुल ईरा की तरफ़ देखते हुए कुछ कहना चाहता था, कि ईरा ने उसे झटके में कॉलर से पकड़कर खींचा और फ़ौरन उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

    ईरा और अंशुल दोनों की आँखें बंद हो गई थीं। ईरा धीरे-धीरे अंशुल को किस करती हुई, उस पर कमर से आधी झुक गई थी। उसके बाल अंशुल के पूरे चेहरे पर बिखरे थे। ईरा का एक हाथ अंशुल की गर्दन में, उसके सीने के पास था और दूसरा अंशुल के बालों में था। जबकि अंशुल अपने दोनों हाथों से डाइनिंग टेबल को सख्ती से पकड़े हुए था।

    ईरा बेपरवाही से अंशुल के होठों को चूम रही थी। कुछ देर बाद जब उसने उसे छोड़ा, तो दोनों की साँसें उखड़ी हुई सी, तेज-तेज चल रही थीं। अंशुल जल्दी से डाइनिंग टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाकर पानी पीने लगा। वहीं ईरा बेभाव रही। उसने अपनी साँसें बराबर करते हुए, अपने होठों को एक हाथ की हथेली से पोछते हुए, उठ खड़ी हुई।

    अंशुल पानी पी रहा था, लेकिन उसकी नज़रें ईरा के चेहरे पर थीं। वह और ईरा एक-दूसरे की आँखों में झाँक रहे थे। जहाँ ईरा का चेहरा इस वक़्त बेपरवाह सा था, वहीं अंशुल शून्य।

    "मुझे ये वाला मीठा चाहिए था, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा मीठा है।" ईरा ने उसके हाथ से पानी का गिलास छीनकर टेबल पर पटक दिया।

    अंशुल उसे देखते हुए बोला, "ईरा, मैं भागा नहीं जा रहा हूँ, जो तुम कहीं भी शुरू हो जाती हो। ये क्या पागलपन है? मैं तुम्हारे साथ ही तो हूँ ना। जब चाहे ये सब कर सकती हो, पर कोई वक़्त होता है यार। ऐसे तुम मुझे…!!"

    अंशुल कुछ और बोलता, कि ईरा वहाँ से हटकर राज की तरफ़ बढ़ गई। उसने आते ही राज के सर पर चमाट जड़ दी, जो उसे देखकर हँस रहा था।

    राज अपना सर खुजाते हुए, मज़ाक में हँसकर बोला, "हाँ तो मुझे क्यों मार रही हो?"

    "क्योंकि तुम इसी के काबिल हो। क्या देख रहे थे?"

    "अंशुल का मूड ख़राब कर दिया क्या तुमने? वो कैसे इधर ही घूर रहा है?" राज ने अंशुल की तरफ़ देखते हुए हँसकर कहा।

    ईरा ने भी एक नज़र अंशुल की तरफ़ देखा और बेपरवाही से बोली, "उसका मूड तभी ख़राब होता है, जब मेरा प्यार का मूड बनता है। आओ चलो, अब देर नहीं हो रही क्या तुम्हें?"

    ईरा बोलते हुए आगे बढ़ गई और राज भी उसके पीछे जाते हुए, फिर से मुड़कर अंशुल को देखा, जो उन दोनों को ही घूर रहा था। राज ने हँसकर अंशुल को अंगूठा दिखाते हुए स्माइल की और दौड़ता हुआ ईरा के पीछे भाग गया।

    अंशुल ज़िद में पैर पटककर रह गया और खड़े होते हुए खुद से बोला, "आज मैं उनसे बात करूँगा। अगर फ़ोन नहीं उठाएँगे मेरा, तो घर जाऊँगा, पर आज कुछ तो जवाब देना ही होगा उनको।"

    अंशुल अपने कमरे में आकर किसी को फ़ोन करता है और दूसरी ही रिंग पर कोई अजनबी आवाज़ उसके कानों में पड़ती है।

    "कैसे हो, अंशुल?"

    "ज़िंदा हूँ, पर आप कभी मुझसे बात क्यों नहीं करती?" अंशुल ने चिढ़कर जवाब दिया।

    फ़ोन के दूसरे तरफ़ से हँसी की आवाज़ आई, "ज़्यादा बातें होंगी, तो तुम कमज़ोर पड़ जाओगे, अंशुल।"

    "कभी नहीं। पर अगर आज भी आप मेरा फ़ोन नहीं उठातीं, तो मैं घर आने की सोच रहा था।"

    उधर से घबराहट और थोड़ी गुस्से भरी आवाज़ आई, "दिमाग ख़राब है क्या तुम्हारा? तुम मेरे घर कैसे आ सकते हो?"

    "एक सेकेंड, वो घर आपका ही नहीं, मेरा भी है। और दूसरी बात ये कि यहाँ मुझ पर ईरा का टॉर्चर बढ़ता ही जा रहा है।"

    "अच्छा, क्या हुआ? अब उसे शक हो गया क्या?" आवाज़ जल्दी से गूँजी थी।

    अंशुल ने कहा, "नहीं, पर वो प्यार में पागल है।"

    "तो कहो तो ईरा को उड़वा दें। किसी को कुछ ख़बर तक नहीं होगी।" दूसरी तरफ़ वो जो भी था, हँसकर बोला था।

    उसकी बात पर अंशुल जैसे चीख़ उठा, "ख़बरदार! जो ईरा को एक ख़रोच भी आई, नहीं तो मैं सब भूल जाऊँगा, समझे आप।"

    "कूल यार, मज़ाक था ये। तो अच्छी बात है, तुम उसकी इतनी टेंशन कब से लेने लगे, अंशुल? जब मैंने रोका था आगे बढ़ने से, तो तुमने बोला तुम भी उससे प्यार करते हो।"

    अंशुल ने उसकी बात काटते हुए कहा, "हाँ, और ये सच है। इसमें कोई दो राय नहीं, ना ही कोई खोट है मेरे प्यार में। पर मैं अपना मकसद भी नहीं भूल सकता, जिस काम के लिए मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ।"

    "देखो अंशुल, हमें तुमसे यही उम्मीद थी। और आज तुम कुछ ऐसी न्यूज़ सुनोगे, जो तुम्हारे दिल को ठंडक ज़रूर पहुँचाएगी।"

    अंशुल फ़ौरन बोला, "ठीक है, पर मुझे किसी की जान नहीं लेनी और ना ही आप ऐसा कुछ करेंगे, जिससे किसी को नुकसान पहुँचे।"

    "ओके, तुम जरा पेशेंस रखो। हाइपर होने की ज़रूरत नहीं। और घर भी मत आना, नहीं तो तुम प्रॉब्लम में पड़ सकते हो।"

    उस आवाज़ ने काफी हद तक अंशुल को अब शांत कर दिया था, पर वो कुछ कह पाता, उससे पहले दूसरी तरफ़ से फ़ोन कट कर दिया गया था।

    सुदास अपने पार्टी ऑफिस पहुँच चुके थे। उनके साथ ही भल्ला और विजय भी, गन पकड़े, उन्हें कवर करते हुए, उनके दोनों तरफ़ चल रहे थे। तीनों अंदर आए और जैसे ही सुदास अपनी जगह पर बैठे, वहाँ अभय, विराट का बेटा, जो पहले से ही बैठा था, उसने एक नफ़रत भरी नज़र सुदास पर डाली। बदले में सुदास ने उसे इग्नोर किया।

    थोड़ी देर में सब धीरे-धीरे करके आते गए और पार्टी ऑफिस के मीटिंग हॉल में अपनी-अपनी जगह बैठते गए। जिसकी जो पोजीशन थी, उसकी चेयर लगी थी और सब अपनी-अपनी जगह संभाल रहे थे।

    सबसे आखिरी में एक हट्टा-कट्टा सा आदमी आकर सुदास के सामने वाली चेयर खिसकाते हुए, उनको घूरता हुआ, एक अहंकार से बैठकर, पैर पर पैर टिका दिया। जिसका नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ की नज़रों में सुदास के लिए नफ़रत, जलन और गुस्सा था, या फिर कुछ और, ये कोई नहीं समझ सका था, सिवाय सुदास के। पर पूरा मीटिंग हॉल सिद्धार्थ और सुदास के एक-दूसरे की जलन और नफ़रत से वाकिफ़ था। दोनों को एक-दूसरे की शक्ल तक पसंद नहीं थी, पर पार्टी में उनकी एक सी पोजीशन होने और बराबर की टक्कर देते हुए, दोनों एक-दूसरे के अक्सर आमने-सामने हो आते थे।

    जहाँ सुदास शांत स्वभाव के थे, वहीं सिद्धार्थ सुदास से जीतने और उनको नीचा दिखाने की कोई कसर नहीं छोड़ता था। जबकि सुदास की सिद्धार्थ से कहीं ज़्यादा अच्छी पकड़ थी और सुदास पार्टी के एक ख़ास और ज़िम्मेदार हस्ती थे; उनका नाम ही काफी होता था हर जगह। सिद्धार्थ को वो पोजीशन या विश्वास कभी हासिल नहीं हुआ, ना पार्टी का, ना लोगों का और ना ही उनको कभी सुदास जितनी रिस्पेक्ट और इम्पोर्टेंस मिल सकी थी।

    विराट, अभय का बाप, सिद्धार्थ का ही जोड़ीदार और उसका सबसे करीबी था। इस वजह से विराट की मौत के बाद जब अभय ने पार्टी संभाली, तो सिद्धार्थ ही अभय को गाइड कर रहा था।

    पार्टी के सभी मेंबर अपनी-अपनी जगह संभाल चुके थे, जब पार्टी के सबसे ओल्ड और मैन किरदार आते हुए नज़र आए, जिनका नाम सारंग था, जिन्हें सब दादा कहते थे। उन्हें देखकर सब खड़े हो गए और उनके बैठते ही, जब उन्होंने सबको बैठने का इशारा किया, तो सब अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए।

    दादा कुछ सोचते हुए बोले, "आज की यह मीटिंग किसलिए रखी गई थी, पहले तो मुझे खुद भी नहीं पता था। पर जैसा कि विराट के बेटे अभय ने मुझे बताया और सिद्धार्थ ने, उस हिसाब से यह मीटिंग मुझे अर्जेंटली रखनी पड़ी। तो अब तुम बोलो, सुदास, इस बारे में तुम क्या कहना चाहोगे?"

    "दादा, मैं यही बोलूँगा कि अभय या सिद्धार्थ ने आपसे क्या कहा, मैं नहीं जानता।"

    सुदास ने जैसे ही जवाब दिया, पार्टी में मौजूद कुछ लोगों को हँसी आ गई, जो सुदास के पहले ही सगे थे। दादा ने सबको नज़र उठाकर देखा, तो सब इधर-उधर देखते हुए चुप्पी साध गए।

    फिर दादा ने सुदास की तरफ़ देखते हुए कहा, "देखो सुदास, हमेशा से तुम्हारा अच्छा रिकॉर्ड रहा है, इसलिए मैं तुम्हें ज़्यादा कुछ नहीं कह रहा हूँ। लेकिन फिर भी अभय और सिद्धार्थ की बातों से अलग हटकर, मैंने खुद भी जो देखा और सुना है, उसे इतनी जल्दी ना तो कवर कर सकता हूँ मैं और ना ही इसे भुलाया जा सकता है।"

    "हाँ तो दादा, मुझे भी इस बात का दुःख हुआ है कि विराट…!!"

    सुदास अभी बोल ही रहे थे, जब अभय खड़ा होता हुआ, तमतमाकर गुस्से में बोला, "नाटक मत करो! तुम्हें इसका कोई दुःख नहीं… मुझे तो नहीं लग रहा कि तुम दुखी हो। वहीं अकड़, वहीं तेवर तुम में अभी भी है, जबकि तुम्हारी बेटी ने…!!"

    अभय अपनी बात पूरी करता, जब दादा ने उसको हाथ का इशारा किया और वह चुप हो गया।

    दादा ने अभय को देखते हुए कहा, "देखो अभय, मैं समझता हूँ इस वक़्त तुम पर क्या बीत रही है, लेकिन तुम्हें खुद को संभालना होगा। गुस्से से मसले हल नहीं होते।"

    "कैसे संभालूँ मैं खुद को? आपकी और आपकी पार्टी के इस सुदास की वजह से आज मेरे पापा मेरे साथ नहीं हैं। और यहाँ आकर ये सुदास कितनी आराम से बैठा है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।" अभय ने नफ़रत से कहा था।

    दादा फिर सुदास को देखते हुए बोले, "हाँ तो बोलो सुदास, तुम इस बारे में क्या कहना चाहते हो?"

    सुदास ने कुछ देर कुछ सोचा और धीरे से बोले, "दादा, मैं अब क्या बोलूँ?"

    अभय एक बार फिर से गुस्से में चिल्ला उठा, "दादा, ये क्या जवाब देंगे? इन्होंने तो अपनी बेटी को छूट दे रखी है बस।"

    सुदास ने दादा से कहा, "छूट देने या कैद करने को, ईरा मेरी बेटी है, कोई गाइड किया पालतू जानवर नहीं। फिर भी मैंने उससे बात की है, दादा। वो अब ऐसा कुछ नहीं करेगी।"

    "वाह, कैसे मासूम बन रहे हैं! जैसे कितना बड़ा काम कर आए हो, ईरा से बात करके। ईरा के हाथों मरने के लिए मेरा अब कोई दूसरा बाप नहीं है, सुदास, जो वो दुबारा ऐसा नहीं करेगी।" अभय ने तंज कसते हुए कहा था।

    "अभय, मैंने कहा शांत रहो।" दादा ने अभय को समझाया और फिर सुदास की तरफ़ देखने लगे, "सुदास, मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।"

    सुदास दो पल शांत रहे और फिर अपने माथे पर अपनी दो उंगलियाँ रगड़ते हुए, अपने गुस्से पर काबू करते हुए बोले, "दादा, मेरे बाप ने अपनी पूरी ज़िन्दगी इसी पार्टी पर ईमानदारी से गुज़ार दी और अब मैं खुद भी चालीस सालों से पार्टी में अपना जीवन कुर्बान कर रहा हूँ। आपको लगता है कि मैं ऐसा कोई काम करूँगा, जिससे पार्टी बदनाम हो या पार्टी वालों को कोई नुकसान पहुँचे?"

    दादा ने सुदास की बात पर सहमति जताई, पर सिद्धार्थ और अभय की तरफ़ देखकर वो फिर थोड़ा रूडली बोले, "लेकिन आज तुम्हारी बेटी की वजह से पार्टी का नुकसान हुआ है, सुदास। विराट की मौत भी तुम भूल नहीं सकते।"

    दादा ने कहा तो सिद्धार्थ मंद-मंद मुस्कुराया, जैसे सुदास पर हँस रहा हो।

    सुदास ने सिद्धार्थ की मुस्कुराहट को देखा और एक गहरी साँस लेकर दादा से बोले, "लेकिन एक बात तो आप भी जानते हैं दादा, कि ईरा गुस्से में हो तो वो कुछ भी कर सकती है और उस दिन उसका वो गुस्सा जायज़ भी था, उसने यूँ ही तो विराट पर गोली नहीं चलाई।"

    सुदास की बात सिद्धार्थ को अपने पर पलटवार सा वार लगा। वह गुस्से में बोला, "तो क्या तुमने ईरा के ज़रिये विराट पर अपनी ख़ुन्नस निकाली, सुदास?"

    सुदास ने सिद्धार्थ को इग्नोर किया और दादा से बोलते रहे, "दादा, विराट ने पहल की थी, ईरा को छेड़कर। और सब जानते हैं कि अंशुल ईरा के लिए क्या मायने रखता है। पर फिर भी विराट ने पार्टी में हुई मेरी झड़प के गुस्से का बदला मेरी बेटी से लेना चाहा। लेकिन उसे पता था कि ईरा के सामने वो कुछ नहीं, इसलिए उसने ईरा के बजाय उसके अंशुल को छुआ।"

    "हाँ तो पापा ने सिर्फ़ अंशुल पर गन रखी थी, उसे जान से तो मारा नहीं दिया, जो तुम्हारी बेटी ने मेरे पापा को इतनी दर्दनाक मौत दे दी, सुदास?" अभय ने गुस्से में कहा। सिद्धार्थ उसकी तरफ़ देखे जा रहा था। उसने ही अभय को उकसाया था अपनी आँखों का इशारा करके।

    सिद्धार्थ अब दादा से बोले, "देखिए दादा, मैं अभय की तरफ़ हूँ। ये अपने बाप की मौत का बदला लेना चाहता है, तो हमें इसका सपोर्ट करना चाहिए। आख़िर विराट सुदास की ही तरफ़, हमारी पार्टी का ज़िम्मेदार और ईमानदार था।"

    दादा ने सिद्धार्थ को नाराज़गी से डपट दिया, "यानी तुम लोग आपस में ही लड़ना चाहते हो? मैं बात कर रहा हूँ ना सुदास से। ये बात करेगा ईरा से।"

    सिद्धार्थ ने अभय को फिर से आँखों का इशारा करते हुए बोलने को उकसाया, तो अभय सिद्धार्थ की कठपुतली की तरह वापस खड़ा होकर गुस्से में बोला, "दादा, इसके बात करने से मेरे पापा तो वापस नहीं आएंगे ना।"

    सुदास ने सिद्धार्थ और अभय की तरफ़ एक नज़र देखा और उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सिद्धार्थ अभय के कंधे पर रखकर बंदूक चला रहा है और वह अभय का साथ देने की लालच देकर उसका इस्तेमाल कर रहा है। सिद्धार्थ सुदास से मुक़ाबला तो नहीं कर सकता और वो सुदास जैसा कभी नहीं बन सकता है, पर उसे सुदास का रुतबा और पॉवर चाहिए था।

    सुदास दादा की तरफ़ देखते हुए बोले, "दादा, मेरी बेटी, वह शेरनी है, जो थोड़ी देर के लिए शांत भले ही रह सकती है, लेकिन शांत हो नहीं सकती। वो किसी के सामने झुक नहीं सकती। ईरा शेरनी है, दादा, जिसे काबू में नहीं रखा जाता, ना ही कैद में… अंशुल के मामले में ईरा किसी की नहीं सुनती, मेरी भी नहीं।"

    सिद्धार्थ ने सुदास को नफ़रत से घूरते हुए, उन पर तंज करने को दादा से कहा, "अगर इसकी बेटी शेरनी है, तो उसे पिंजरे में करना होगा। यूँ इस तरह पूरे शहर में छोड़ दिया, तो जाने जाएगी सबकी।"

    सिद्धार्थ अभी बोल ही रहे थे, जब उसकी बात काटते हुए दादा बोले, "वैसे बात सुदास की भी सही है, सिद्धार्थ। गलती विराट की थी। उसे पार्टी के झगड़े पार्टी में रखने चाहिए थे। इस तरह किसी के परिवार वालों के साथ… मुझे विराट ने निराश किया है।"

    दादा ने जैसे ही कहा, अभय गुस्से में मुस्कुराता हुआ, ताली बजाते हुए बोला, "वाह! क्या इंसाफ़ है आपका? ये सुदास आपको इतना प्यारा है और मेरे पापा ने जो इस पार्टी के लिए किया, उसका क्या?"

    "तुम क्या चाहते हो, अभय?" दादा ने पूछा था।

    अभय ने फ़ौरन जवाब दिया, "मुझे ईरा चाहिए।"

    अभय की बात पर सुदास का खून खौल गया। साथ ही भल्ला और विजय भी अभय को मारने पर आ गए।

    दादा ने सबको शांत किया और अभय से कहा, "भूल जाओ तुम। और हाँ, ईरा के सामने भटकने से पहले सोच लेना, अंजाम तुम्हारे बाप जैसा तुम्हारा भी हो सकता है। हाँ… लेकिन फिर भी मैं तुम्हारे साथ नाइंसाफ़ी नहीं करूँगा, अभय।"

    दादा ने अभय से कहा और सुदास की तरफ़ देखते हुए बोले, "सुदास, तुम्हारे इस बार के दो बिज़नेस टेंडर्स तुम अभय के नाम ट्रांसफ़र करोगे। और हाँ, सुदास, वही टेंडर जो विराट चाहता था तुमसे, ख़त्म करो ये सब।"

    दादा की बात सुनकर सुदास फ़ौरन बोले, "ये आप क्या कह रहे हैं, दादा? इसी बात का तो झगड़ा था मेरा और विराट का और आप…!!"

    सुदास की बात काटते हुए दादा ने उसी तरह कहा, "यही फ़ैसला रहेगा अब। सुदास बदलेगा नहीं। और आज से, बल्कि अभी से, अभय पार्टी में अपने बाप की जगह संभालेगा।"

    दादा के फ़ैसले पर अभय और सिद्धार्थ खुश हो गए। कुछ लोग अभय को मुबारकबाद देने लगे, वहीं जो सुदास के फ़ेवर में थे, उन्हें बुरा लगा। पर सारंग, यानि दादा के ख़िलाफ़ कौन बोलता भला?

    थोड़ी देर ऐसे ही नफ़रत, गुस्से और आपस में बहस-बाजी चलती रही। आख़िर में अभय को वह दोनों टेंडर मिल गए, जिनको खो देने से बौखलाया हुआ विराट सुदास से बदला लेने के लिए अंशुल को मारने पहुँचा था।

    सुदास उठकर पार्टी ऑफिस से बाहर चले आए और अपनी गाड़ी के बोनट पर हाथ मारकर गुस्से में यूँ ही खड़े रहे। उनके साथ ही भल्ला और विजय भी थे। सुदास को इतना गुस्से और मायूसी में देखकर, वह दोनों भी शांत नहीं रह पाए।

    "सुदास सर, आप ठीक हैं?" विजय ने पूछा था।

    भल्ला ने सुदास को चुप देखकर उनसे कहा, "जाने दीजिए ना सर! मुझे नहीं लगता कि ये दो टेंडर चले जाने से आपकी इमेज घटेगी। आप टॉप पर हैं और रहेंगे। कोई आपकी कंपनी या आपके मुक़ाबले कहाँ?"

    और आगे………………

  • 8. जबरिया इश्क़ - Chapter 8

    Words: 1908

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुदास पार्टी ऑफिस से बाहर निकले और अपनी गाड़ी के बोनट पर हाथ मारकर गुस्से में खड़े रहे। भल्ला और विजय भी उनके साथ थे। सुदास की मायूसी और गुस्से को देखकर वे दोनों भी चुप नहीं रह पाए।

    "सुदास सर, आप ठीक हैं?" विजय ने पूछा।

    भल्ला ने सुदास को चुप देखकर कहा, "जाने दीजिए ना सर, मुझे नहीं लगता कि यह दो टेंडर चले जाने से आपकी इमेज घटेगी। आप टॉप पर हैं और रहेंगे। कोई आपकी कंपनी या आपके मुकाबले कहाँ?"


    सुदास ने विजय और भल्ला दोनों को देखते हुए कहा, "नहीं भल्ला, मैं यह नहीं सोच रहा। ऐसे तमाम टेंडर मैं अपने नाम कर चुका हूँ, लेकिन मुझे बस इस बात की फिक्र है कि जब यह बात ईरा को पता चलेगी तो क्या होगा? इस बार यह दोनों टेंडर उसी ने भरे थे, जो उसने लक से हासिल किए और जब उसे पता चला कि उसका लक कोई और ले गया तो वह तूफान ले आएगी?"


    सुदास ने कहा और गाड़ी में बैठ गए। तभी अभय और सिद्धार्थ आते दिखाई दिए।


    सिद्धार्थ ने सुदास की तरफ देखते हुए एक कुटिल मुस्कान से हँसकर अभय से हाथ मिलाया और कहा, "अभय, कांग्रेचुलेशन यार! तुम बिल्कुल सही जा रहे हो। जो तुम्हारा बाप नहीं कर पाया, वह तुम एक पल में कर गए। कमाल है! कैसे तुमने एक भूखे कुत्ते के सामने से उसकी रोटी छीन ली।"


    सिद्धार्थ की बात सुनकर भल्ला और विजय का पारा चढ़ गया और उन्होंने दोनों ने सिद्धार्थ पर अपनी बंदूकें तान दीं।


    विजय ने गुस्से में सिद्धार्थ को देखते हुए कहा, "कुत्ता किसे बोल रहा है तू?"


    भल्ला ने भी अपनी बंदूक की नोक सिद्धार्थ के माथे पर रखते हुए गुस्से से उसे धक्का दिया, "तेरी इतनी हिम्मत? कुछ भी बकवास करेगा तो जान ले लूँगा, बिना किसी कानूनी कार्यवाही के।"


    सुदास फौरन गाड़ी से बाहर निकले और उन्होंने विजय और भल्ला को शांत रहने का इशारा किया।


    जैसे ही भल्ला और विजय ने अपनी-अपनी बंदूकें सिद्धार्थ पर से हटाईं, सिद्धार्थ हँसते हुए ताली बजाकर बोला, "वाह भाई वाह सुदास! मैंने तुझे कुत्ता बोला तो तेरे कुत्तों को बुरा लग गया।"


    सुदास ने कहा, "सिद्धार्थ, तुझे लगता है तूने जो किया है वह मुझे पता नहीं? तूने जो अभय को आगे रखकर मुझ पर वार किया है ना, तेरे ऐसे पैंतरों से मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। लेकिन हाँ, जिस दिन मेरे गुस्से का एक भी तिनके जैसा वार तुझ पर हो गया ना सिद्धार्थ, तू तो गया। याद रखना।"


    इस बार सुदास ने इतने अंदाज़ से कहा कि सिद्धार्थ के पास खड़ा अभय भी डर गया।


    सुदास, भल्ला और विजय तीनों वहाँ से चले गए। तब अभय ने सिद्धार्थ से कहा, "अंकल, हमने कुछ ज़्यादा तो नहीं कर दिया? आई मीन, सुदास को छेड़ना..."


    अभय की बात पर सिद्धार्थ गरजकर बोले, "शटअप!"


    सुदास की बात सिद्धार्थ के भी कान खट्टे कर गई थी। "सॉरी अंकल, मैं तो बस..."


    अभय की बात काटते हुए सिद्धार्थ ने थोड़ा रिलैक्स होकर कहा, "अभय, जब तुम ऐसे डर भरी बातें करते हो ना, तो मुझे लगता ही नहीं कि तुम विराट के बेटे हो। तुमने वह कहावत तो सुनी ही होगी ना, जो गरजते हैं वे बरसते नहीं और ज़्यादा ऊँचाइयों पर उड़ने वाले अक्सर जमीन पर ही गिरते हैं। अभी सुदास उड़ रहा है, उसे उड़ने दो। इसको जमीन पर गिराने का वक्त अभी नहीं आया है अभय... वेट एंड सी।"


    ईरा अपने ऑफिस के केबिन में गुस्से से टेबल के सहारे खड़ी थी, जब लक्ष्य और राज बिना साँस लिए भागते हुए अंदर आए।


    लक्ष्य ने घबराहट में पूछा, "क्या, क्या हुआ ईरा? ईरा, तुमने हमें बुलाया था?"


    राज भी अपनी हांफती हुई आवाज में बोला, "ईरा, कुछ अर्जेंट है क्या? तुमने क्यों बुलाया?"


    "तुम दोनों को मैंने दो मिनट पहले बुलाया था, कहाँ थे अब तक?" ईरा ने उन दोनों को देखते हुए गुस्से में कहा। वे दोनों एक-दूसरे को देखकर सहम गए।


    "दो मिनट कुछ ज़्यादा तो नहीं होते, पर दो मिनट ईरा को वेट करवाना बहुत बड़ी बात हो सकती थी।"


    उन दोनों को समझते देर नहीं लगी कि ईरा इस वक्त गुस्से में है, पर क्या होने वाला है यह उन्हें भी नहीं पता था।


    लक्ष्य ने डरकर पूछा, "क्या हुआ ईरा?"


    ईरा ने लक्ष्य और राज को एक नज़र देखा और फिर उसी तेवर में गुस्से से केबिन से बाहर निकलते हुए बोली, "घर चलो, बताती हूँ।"


    दोनों ने बिना कोई सवाल किए एक-दूसरे को देखा और जल्दी से ईरा के पीछे हो लिए।


    अंशुल आज की अपनी आखिरी क्लास अटेंड करने के बाद बाहर निकला और कॉरिडोर से आगे बढ़ रहा था, जब उसे पीछे से किसी लड़की की आवाज सुनाई दी। पहले तो अंशुल ने उसे इग्नोर किया।


    कॉलेज में लड़कियाँ तो क्या, लड़के भी ज्यादातर अंशुल से दूर ही रहते थे।


    कॉलेज में भले ही अंशुल दो सालों से था, लेकिन उसका कोई खास दोस्त नहीं बना। वजह थी ईरा, जिसे अंशुल का किसी से मिलना, बात करना पसंद नहीं था।


    पूरे कॉलेज का कोई भी स्टूडेंट अंशुल के इर्द-गिर्द इसलिए भी नहीं भटकता क्योंकि अंशुल से दोस्ती करके वह ईरा की नज़रों में नहीं आना चाहता था और खुद अंशुल भी किसी से ज़्यादा बात नहीं करता क्योंकि वह नहीं चाहता था कि वह कहीं किसी ऐसे से दोस्ती न कर बैठे जो ईरा को गुस्सा दिला जाए।


    बस दो-चार लड़के ही थे जिनसे अंशुल से थोड़ा बहुत हाय-हैलो थी। उनके ग्रुप में कोई भी लड़की नहीं थी और ना ही उसके ग्रुप के लड़कों की गर्लफ्रेंड्स की हिम्मत थी कि जब उनके बॉयफ्रेंड्स यानी अंशुल के दोस्त उसके साथ होते तो वे सब उनके पास आ सकतीं।


    आज जब उस लड़की की आवाज अंशुल को अपने पीछे सुनाई दी, तो उसे पहले तो यकीन नहीं हुआ, पर जब बार-बार आवाज आती रही तो उसने इग्नोर किया।


    अंशुल अपने रास्ते बढ़ रहा था और वह जैसे सुन नहीं रहा था या सुनना ही नहीं चाहता था उस आवाज को।


    बार-बार अपना नाम सुनकर अंशुल ने पहले अपने चारों तरफ देखा क्योंकि उसे खुद नहीं पता होता था कि इस कॉलेज में कहाँ, कैसे, किस रूप में, किस साइड ईरा के गार्ड तैनात उस पर नज़र रखे होते हैं, जो अंशुल के सामने एकदम से आकर खड़े हो जाते जब वह किसी अजनबी से मिल रहा होता या कोई उससे बात कर रहा होता।


    अंशुल ने अब पीछे मुड़कर देखा जहाँ एक लड़की दौड़ती हुई उसके पास आ रही थी। वह काफी थक गई थी और अंशुल के पास खड़ी होकर हांफते हुए अपने घुटनों पर हाथ रखकर थोड़ा सा झुक गई।


    अंशुल चुपचाप खड़ा था जब वह लड़की फूली हुई साँसों के बीच बोली, "यार, कब से तुम्हें आवाज दे रही हूँ, तुम्हें सुनाई नहीं देता क्या?"


    अंशुल ने उसे एक नज़र देखा फिर अपने चारों तरफ घूमकर देखते हुए दबी आवाज़ में बोला, "तुम...तुम मुझे क्यों आवाज दे रही थी? तुम मेरे पीछे क्यों आई? जाओ यहाँ से, मुझसे बात मत करो।"


    अंशुल बोल रहा था और लड़की उसके चुप होने का इंतज़ार करते हुए उसे एकटक देखती रही। फिर जोर से बोली, "गॉड! कितना बोलते हो तुम! मैंने तुम्हें शांत देखा तो मुझे लगा तुम गूंगे हो या फिर गंगू।"

    "गंगू, व्हाट?" अंशुल ने उस लड़की को घूरकर देखा तो वह मुँह खोलकर हँसने लगी।

    "क्या हम बात कर सकते हैं?" लड़की ने मीठे से अंदाज़ में कहा।


    अंशुल ने लड़की के सवाल पर साफ इंकार किया, "नहीं!"


    और अपने चारों तरफ कुछ ढूँढ़ने सा इधर-उधर देखने लगा।


    लड़की ने उसे कुछ देर देखा फिर बोली, "वैसे तुम क्या ढूँढ़ रहे हो?"


    अंशुल ने बगैर उसकी तरफ देखे दांत पीसकर कहा, "यार, जाओ यहाँ से! तुम मुझे...मुझसे बात नहीं करनी...क्यों मरना चाहती हो? मुझसे दूर रहो।"

    "अरे, पर हुआ क्या? मेरी बात तो सुनो, अंशुल शर्मा, मैं..." लड़की ने कुछ कहना चाहा, तब तक अंशुल वहाँ से तेज-तेज चलता हुआ चला गया।


    लड़की मुस्कुरा दी। "अंशुल, ये महक आज से तुम्हारी हुई यार।" महक ने कहते हुए पीछे से अंशुल को दूर से ही फ्लाइंग किस किया और हँसते हुए चली गई।


    ईरा घर में दाखिल हुई तो उसके पीछे ही राज और लक्ष्य भी थे। ईरा इस वक्त काफी गुस्से में थी। उसकी चाल काफी तेज थी और इसे देखकर इस वक्त कोई भी सहम जाता।


    डर तो राज और लक्ष्य को भी लग रहा था। ईरा भले ही राज की दोस्त और लक्ष्य की कजिन थी, दोनों ईरा से फ्रेंडली भी थे, लेकिन इतना भी नहीं कि उसके गुस्से का सामना कर सकें।


    ईरा का जब मूड खराब होता तो वह सुदास की भी नहीं सुनती थी। वैसे भले ही सुदास उसे डाँट देते, गुस्सा कर लेते, उसे सज़ा देते, लेकिन जब वह गुस्से में होती तो सुदास बस चुप रह जाते।


    पूरे घर में कोई नहीं था जो ईरा को उस वक्त फेस कर पाता जब उसका मूड खराब होता।


    ईरा ने लक्ष्य के हाथ से लैपटॉप छीनकर उसे जोर से जमीन पर पटक दिया, जो राज और लक्ष्य के पैरों के पास गिरकर चकनाचूर हो गया और वे दोनों उछलकर दूर हट गए।


    ईरा चिल्ला उठी, "हिम्मत... उसकी हिम्मत कैसे हुई उन टेंडर्स पर नज़र डालने की जो मेरे, सिर्फ़ मेरे थे! सिद्धार्थ, अब तेरी बारी है! तू बहुत जल्दी अपने पार्टनर के पास जाएगा।"


    ईरा शांत हुई और सोफ़े पर धप्प करके बैठ गई। वह अपने चेहरे पर हाथ रखकर कुछ बड़बड़ा रही थी।


    राज धीरे से सहमे-सहमे उसकी तरफ आया और पूछा, "क्या हुआ ईरा? कौन सा टेंडर?"


    ईरा ने सर उठाकर राज को देखा तो वह जल्दी से दो कदम पीछे हट गया।


    ईरा अहिस्ता से सर पीछे सोफ़े पर टिकाते हुए बोली, "अभिमन्यु ने बताया कि सिद्धार्थ ने मुझसे मेरे इस बार के दोनों टेंडर अपने नाम करवा लिए और वे अब अभय के हैं।"


    "अभिमन्यु ने? कौन से अभिमन्यु ने?" इस बार लक्ष्य ने पूछा तो ईरा उसकी तरफ गुस्से में बढ़ी और लक्ष्य जल्दी से राज के पीछे जाकर छिप गया।


    ईरा ने राज और लक्ष्य को देखते हुए गुस्से में कहा, "अभिमन्यु, हमारे ऑफिस का प्यून।"


    ईरा की बात पर राज थोड़ा सोच में पड़ गया। फिर उसने पूछा, "ईरा, लेकिन प्यून को क्या पता कि ऑफिस में क्या हो रहा है और तुम...?"


    राज अभी बोल ही रहा था जब ईरा उसकी बात काटते हुए इरिटेशन और जलन में उसकी तरफ लपकी तो राज पीछे हटने लगा, जब वह अपने पीछे छिपे लक्ष्य से टकरा गया और दोनों गिरते-गिरते बचे।


    ईरा ने झुंझुलाकर कहा, "है ना, है ना तो! जाहिर सी बात है कि प्यून को कुछ नहीं पता होगा और अभिमन्यु हमारा असिस्टेंट है तो वही तो बताएगा ना मुझे टेंडर कहाँ गए?"


    ईरा ने गुस्से में कहा तो राज और लक्ष्य दोनों चुप रह गए।


    ईरा बोली, "मैंने उस टेंडर को पाने के लिए बाबा से कितनी झड़प की थी! वह तो चाहते थे कि उसे विराट को मिल जाने दूँ, लेकिन मैंने उसे अपने दम पर हासिल किया और आज..."


    ईरा गुस्से में बड़बड़ा रही थी जब उसकी नज़र अपने से थोड़ी दूर सीढ़ियों की रेलिंग साफ करती हुई गौरी पर पड़ी तो दो पल उसे गुस्से में घूरती रही, फिर उसकी तरफ बढ़ गई।


    और आगे............


    तो क्या कहर होगा आगे गौरी पर हमारी ईरा का? महक कौन है जो आग से खेलने आई है? अंशुल का सच? सिद्धार्थ का गुस्सा? सब पढ़ेंगे पर अगले एपिसोड में।

  • 9. जबरिया इश्क़ - Chapter 9

    Words: 2771

    Estimated Reading Time: 17 min

    ईरा अपने उसी एटीट्यूड और स्टाइल से मगरूर, एक-एक कदम बढ़ाते हुए गौरी की तरफ बढ़ी। उसकी चाल ही किसी को भी डरा देने के लिए काफी थी।

    गौरी ने ईरा को अपने करीब आते हुए महसूस किया, लेकिन उसने नज़र उठाकर उसकी तरफ नहीं देखा। ईरा को देखना यानी अपने लिए मुसीबत पैदा करना।

    ईरा धीरे-धीरे चलते हुए, जैसे-जैसे गौरी के नज़दीक बढ़ रही थी, गौरी की साँसें उखड़ने लगीं और जैसे उसका गला सूख गया। ईरा गौरी के एकदम सामने आकर खड़ी हो गई और एक पल में ही उसने एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया।

    गौरी का चेहरा झटके में दूसरी तरफ घूम गया और उसकी आँखें आँसुओं से भर आईं। उसने फ़ौरन अपना हाथ अपने गाल पर रख लिया। गौरी ने दर्दभरी नज़रों से ईरा की तरफ देखा। बाकियों की भी आँखें फैल गईं। इस वक़्त ईरा से इस बात की उम्मीद गौरी को ही नहीं, बल्कि राज, लक्ष्य और माला को भी नहीं थी। माला भी दौड़ते हुए वहाँ आई।

    राज और लक्ष्य ने ईरा को रोकना चाहा, लेकिन उन दोनों में इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वे ईरा को रोक पाते, उसे कुछ कह पाते, या उससे यह तक पूछ पाते कि आखिर उसने गौरी पर हाथ क्यों उठाया?

    वे दोनों जल्दी से दौड़ते हुए ईरा और गौरी की तरफ आए और घबराहट से एक-दूसरे को देखते हुए ईरा का हाथ पकड़ने को अपने हाथ आगे बढ़ाए, पर हिम्मत नहीं हुई। तो उन्होंने अपने हाथ पीछे खींच लिए, बिना ईरा को छुए।

    ईरा ने राज और लक्ष्य को एक नज़र मुड़कर देखा और वापस गौरी को नफ़रत और गुस्से में घूरते हुए अपना दूसरा हाथ उसके दूसरे गाल पर मारने के लिए जैसे ही उठाया, राज के मुँह से जैसे अपने आप ही निकल गया—

    "ई, ईरा क्या कर रही हो तुम... तुम इसको क्यों मार रही हो? इसे मारकर तुम्हें क्या मिलेगा? इस बेचारी ने कौन सा तुम्हारा टेंडर छीना है, ईरा?"

    राज ने बोलकर जल्दी से अपने मुँह पर दोनों हाथ रख लिए क्योंकि ईरा उसे गुस्से में देखने लगी थी। जबकि राज के साथ ही इस बार लक्ष्य ने भी थोड़ी हिम्मत करते हुए कहा—

    "हाँ ईरा, राज सही कह रहा है। यूँ गौरी को मारकर क्या मिलेगा? तुम कहीं और का गुस्सा कहीं और निकाल रही हो?"

    "और अगर तुम दोनों चुप नहीं रहे तो मेरा गुस्सा तुम दोनों पर भी निकल सकता है, जानते हो ना?" ईरा ने उन दोनों को जैसे वार्निंग देते हुए कहा और गौरी की तरफ देखते हुए, उस पर तना अपना हाथ जैसे ही उसने गौरी के गाल पर दूसरा थप्पड़ मारना चाहा, जाने कहाँ से, कैसे, अचानक ही अंशुल वहाँ आ धमका।

    अंशुल ने बिना कुछ सोचे-समझे, बगैर डरे या घबराए, बेधड़क ईरा का हाथ पकड़ लिया। यह हिम्मत सिर्फ़ वही कर सका था। इस वक़्त राज, लक्ष्य और माला की आँखें बंद हो गई थीं। साथ ही गौरी ने भी घबराकर अपनी आँखें और हाथों की मुट्ठियाँ दोनों ही मींच ली थीं।

    जब दो पल थप्पड़ की आवाज़ नहीं आई, तो राज और लक्ष्य ने ईरा की तरफ़ देखा जहाँ अंशुल उसका हाथ थामे हुए था और ईरा उसे एकटक देख रही थी। अंशुल को वहाँ देखकर सबको शांति मिली क्योंकि उन्हें पता था ईरा को शांत करना अंशुल के लिए बड़ी बात नहीं, क्योंकि ईरा भी अंशुल के सामने खुद को झुका लेती है।

    ईरा ने अंशुल के हाथ से अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से में कहा—

    "अंशू, छोड़ो मुझे! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा हाथ पकड़ने की?"

    अंशुल ने और भी कसकर उसकी कलाई पर अपनी पकड़ मज़बूत कर ली और उसके और गौरी के बीच आकर खड़ा होते हुए बोला—

    "जैसे तुम्हारी हिम्मत हो जाती है मुझे पकड़ने की।" अंशुल ने उसकी आँखों में देखते हुए बेख़ौफ़ कहा, जिसकी गहराइयों से लोग सहम जाते थे। "ईरा, क्यों मार रही हो इसे?"

    "क्योंकि इसकी हिम्मत कैसे हुई मेरे कमरे में जाने की? वो भी तब जब तुम वहाँ थे, वो भी अकेले। अंशू, इसने तुमसे बात की होगी... देखा होगा तुम्हें... मैं इसकी जान ले लूँगी! ये तुमसे मेरी मर्ज़ी के बगैर मिली कैसे?" ईरा ने गुस्से में दाँत पीसते हुए अपना एक-एक लफ़्ज़ बड़ी कठोरता और दृढ़ता से कहा। राज, लक्ष्य और माला समेत, जहाँ तक की गौरी और बाकी के सभी सर्वेंट भी अब ईरा को हैरान आँखें फाड़े देखते रह गए।

    अंशुल ने अपनी आँखें बंद करके, जैसे इरिटेट होकर, दो पल अपने दूसरे हाथ से अपने माथे पर रगड़ता रहा, फिर बोला—

    "गॉड, ईरा, इसीलिए तुम इसे मार रही हो?"

    ईरा ने अंशुल का गाल सहलाते हुए प्यार से कहा—

    "हाँ अंशू, जो तुम्हारे करीब आने की कोशिश करेगा, मैं उसकी जान ले लूँगी।"

    "तो फिर तुम मेरी ही जान ले लो ईरा, क्योंकि मैं इंसान हूँ। दुनिया में रहूँगा तो आस-पास के दुनिया वालों को खबर तो होगी ही ना। तुम मुझे लॉकेट बनाकर गले में क्यों नहीं लटका लेती ताकि सबसे दूर हो जाऊँ, सिर्फ़ तुम्हारे पास रहूँ?"

    "हाँ, मैं कर सकती हूँ।" ईरा ने बिना किसी शिकन के कहा।

    अंशुल उसकी आँखों में जुनून देखता हुआ बोलता रहा—

    "या तो मार ही दो, मैं नहीं चाहता मेरे होते हुए तुम किसी और को मारो। मैं मेरी वजह से किसी दूसरे को तकलीफ में नहीं देख सकता, ईरा। क्यों करती हो ऐसा?" अंशुल ने उसे देखते हुए डाँटने के लहजे में कहा।

    "इसकी हिम्मत कैसे हुई मेरे कमरे में जाने की? क्यों गई थी ये तुम्हारे करीब?" ईरा ने अंशुल की बातों को इग्नोर किया और वह चुपचाप उसकी आँखों में देख रहा था। ईरा ने हल्का सा अंशुल की टी-शर्ट पकड़कर अपनी तरफ़ पुश किया और उसके पीछे खड़ी गौरी को देखने लगी।

    ईरा की बेतुकी बात से जैसे अंशुल ने अपना सिर पीट लिया—

    "ईरा, मैंने बोला ना, मैंने इसे नहीं देखा। मैं सिर्फ़ तुम्हें देखता हूँ, तुम्हारा हूँ।"

    "लेकिन इसने तो तुम्हें देखा होगा।" ईरा ने उसी तरह हट धर्मी से जवाब दिया।

    अंशुल को समझ नहीं आ रहा था वो क्या कहकर उसे समझाए और बेचैन सा बोला—

    "ईरा, प्लीज़ यार, मैं सो रहा था। मुझे कुछ नहीं पता। मैं सच कह रहा हूँ।"

    ईरा ने एक नज़र भरकर अंशुल को देखा और बड़ी ही बेपरवाह अंदाज़ से जताते हुए कहा—

    "अंशू, मेरी नज़रें तुम पर ट्वेंटी फोर ऑवर टिकी रहती हैं। याद रखना, कभी गलती भी मत कर देना तुम किसी और की तरफ़ झुकने की, नहीं तो जान छिड़कती हूँ तुम पर। तुम्हारी जान लेने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगाऊँगी। अगर तुम्हें जीना है इस दुनिया में, तो सिर्फ़ ईरा का होकर रहना होगा। मुझसे दूर गए तो मार दूँगी।"

    ईरा की बात ही ऐसी थी कि सब उसे देखते रह गए। अंशुल ईरा को अजीब नज़रों से देख रहा था जिसमें जुनून था, कहर था, गुस्सा और प्यार को हासिल करने की एक सनक।

    वह काफी देर बाद बोला—

    "मैं तैयार हूँ... और फिर वैसे भी, गौरी अगर कमरे में गई होगी तो तुमने ही तो बोला होगा?"

    ईरा ने नफ़रत से गौरी को घूरते हुए कहा—

    "मैंने इसे कमरे में जाने के लिए बोला था, लेकिन तब नहीं जब तुम वहाँ हो। इसने तुमसे बात की होगी, अंशुल। तुम झूठ बोल रहे हो।"

    "नहीं ईरा, मैंने कहा ना, मैं सो रहा था। मुझे नहीं पता ये कमरे में कब गई और गई भी या नहीं। पर मुझे इतना ज़रूर पता है कि अगर ये जाने-अनजाने में गई होगी तो इसने मुझे नज़र उठाकर भी नहीं देखा होगा। ट्रस्ट मी ईरा, आई लव यू।" अंशुल ने बाहों से खींचकर ईरा को अपने सीने से लगा लिया जिससे उसका गुस्सा शांत हो सके। उसने ईरा का सर अपने सीने पर रखकर धीरे से बालों में चूम लिया।

    अंशुल ने एक हाथ से गौरी को जाने का इशारा किया। गौरी अंशुल को देख रही थी, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया।

    लक्ष्य लपक कर गौरी की तरफ़ आते हुए बोला—

    "तुम्हें दिख नहीं रहा है? अंशुल यहाँ से जाने को बोल रहा है। जाओ, इससे पहले ईरा को ठंडा करने में अंशुल की एनर्जी यूँ ही वेस्ट हो जाए और ईरा का कहर तुम पर टूटे। चलो दफ़ा हो।" लक्ष्य के कहने पर गौरी बेचारी दो पल में वहाँ से गायब होती नज़र आई।

    ईरा जो अंशुल के सीने से लगी खड़ी थी, उसने नज़र ऊपर उठाकर अंशुल की तरफ़ देखा—

    "तुमने बहाने से उसे भगा दिया, है ना? हमेशा मुझे बहला लेते हो तुम।"

    "यार, क्यों करती हो इतना गुस्सा?" अंशुल ने मुस्कुराते हुए ईरा को गोद में उठाया और अपने कमरे की तरफ़ सीढ़ियों की ओर बढ़ गया।

    ईरा ने मुस्कुराते हुए अंशुल की गर्दन में अपने दोनों हाथ फँसा दिए और उन दोनों को जाता हुआ देख नीचे खड़े राज, लक्ष्य और माला के चेहरे पर सुकून की राहत भरी मुस्कान आ गई।

    अंशुल ईरा को गोद में लिए सीढ़ियाँ चढ़ रहा था जब लक्ष्य माला से लिपट गया। माला ने उसके सर पर हाथ फेरा तो लक्ष्य हँसते हुए शरारत से बोला—

    "क्या देख रही हो मम्मी? कितना प्यारा सीन है ना? मैं भी आपकी बहू को ऐसे ही गोद में लिए घूमता रहूँगा। एक बार शादी तो करवाइए आप मेरी?"

    लक्ष्य की बात पर राज और माला को हँसी आ गई। जब लक्ष्य ने राज के कमर पर दूर से ही लात मारते हुए माला से बोला—

    "मम्मी, मैं आपकी दामाद को इतना ही प्यार करूँ... मेरा मतलब है आपकी बहू से इससे ज़्यादा प्यार किया करूँगा।"

    लक्ष्य की शरारत पर माला उसे घूरने लगी जबकि माला ने लक्ष्य का कान पकड़कर मरोड़ दिया।

    माला ने हँसकर कहा—

    "तुझे लगता है कि तेरी शादी होगी? जबकि मुझे तो नहीं लगता कि कोई अपनी बेटी की ज़िंदगी बर्बाद करना चाहेगा तेरे साथ।"

    लक्ष्य ने सर खुजाते हुए कहा—

    "क्या मम्मी? ऐसा तो ना बोलो। आखिर मैं आपका इतना प्यारा चाहिता बेटा हूँ।" लक्ष्य ने माला के कंधे पर अपना चेहरा रखते हुए कहा।

    "अच्छा, कितने प्यारे चाहिते हो? मैं सब जानती हूँ, नालायक बंदर कहीं के। तेरे जैसे बेटे से तो अच्छा था कि मैं एक टॉमी पाल लेती, कम से कम वो मेरी हर बात मानता तो।" माला ने लक्ष्य के गाल पर हाथ सहलाकर कहा।

    लक्ष्य माला से लाड़ में लिपट गया—

    "क्या मम्मी? इतना मत गिराया करो। आपको शायद पता नहीं कि मैं ही आपका वह बेटा हूँ जो एक दिन आपके लिए बहू लेकर आएगा। देखना माँ, यू प्राउड मी।"

    राज ने हँसते हुए लक्ष्य का बाजू पकड़कर खींचा और उसे सीधा खड़ा कर दिया।

    "पर लक्ष्य, बुआ की बातों से तो लग रहा है कि तू उनका बेटा है ही नहीं। वफ़ादार ट्रेन्ड किया कुत्ता है। देखा ना बुआ ने तुझे कुत्ते से भी नीचे का दर्जा दिया है, नालायक बंदर।" राज ने हँसकर कहा।

    लक्ष्य ने पीछे से माला के बाजू में चेहरा रखते हुए दूर से ही लपककर राज के पैरों पर पंच जड़ दिया और राज लड़खड़ाते हुए गिरते-गिरते बचा।

    "मुझे क्यों मार रहा है? बुआ ने ही तो कहा कि तू नालायक बंदर है, कुत्ता है... यानी कि पूरा का पूरा चिड़ियाघर है... नहीं चिड़ियाघर नहीं, जानवर घर।"

    माला ने लक्ष्य का कान पकड़कर उसे खुद से दूर धकेल दिया तो वह राज पर जाकर गिरा जिसे राज ने संभाला नहीं तो फर्श पर फैल जाता।

    माला ने लक्ष्य को देखते हुए कहा—

    "तुझे किसने कहा कि तू मेरा वह बेटा है जो मेरे लिए बहू लाएगा?"

    माला वहाँ से चली गई और राज और लक्ष्य वापस सीढ़ियों की तरफ़ देख रहे थे जहाँ अंशुल ईरा को गोद में लिए ऊपर जा रहा था।

    अंशुल ने ईरा को अपनी बाहों में समेटे मुस्कुराकर उससे कहा—

    "ईरा, इतना गुस्सा क्यों करती हो यार? हमेशा माचिस की तीली की तरह जलती रहती हो तुम।"

    "हाँ, तो फिर तुम इतनी ठंडी-ठंडी आइसक्रीम क्यों हो जो मेरे लव से पिघल जाते हो?" ईरा ने भी हँसकर अंशुल को देखते हुए कहा।

    अंशुल ने उसे गोद में ही उछालकर उठाते हुए अपने कंधे पर रख लिया। अब उसकी कमर अंशुल के गर्दन के पास थी और उसके खुले सारे बाल अंशुल की पीठ पर फैल गए। वह आधी-आधी अंशुल के कंधे पर लटकी हुई झूल रही थी। उसके दोनों हाथ अंशुल की पीठ पर आ गए।

    ईरा ने हँसते हुए नीचे हॉल में खड़े राज और लक्ष्य को हवा में हाथ लहराते हुए बाय बोलने का इशारा किया तो वे दोनों भी ईरा की खुशी पर हँस दिए।

    अंशुल ईरा को अपने शोल्डर पर रखे, उसे उसकी कमर से पकड़े हुए था। उसने उसी तरफ़ सीढ़ियाँ चढ़ते हुए हँसकर कहा—

    "कितनी भारी हो गई हो तुम ईरा! तुम्हारी बातों का वज़न तो सब जानते हैं पर तुम्हारा वज़न मैं ही झेलता हूँ। गोलगप्पे कहीं की, क्या खाती हो यार?"

    "मैं तुम्हें खाती हूँ और क्या?" ईरा ने अपने दोनों हाथ हवा में कुछ इस तरह लहराते हुए पंछी जैसे पर फड़फड़ाए और हवाओं से खेलने लगी।

    अंशुल ने उसका एक हाथ पकड़कर अपनी गर्दन में दबा लिया और ईरा की ही तरह हँसकर बोला—

    "नहीं, तुम मुझे खाती कहाँ हो? लेकिन हाँ, मेरा खून ज़रूर पीती हो, वो भी दिन-रात?"

    "क्योंकि तुम इतने स्वीट हो और तुम्हारा खून बहुत ही टेस्टी। किसी दिन तुम्हें पूरा खा जाऊँगी मैं।" ईरा ने अंशुल के बाल नोचते हुए कहा जब अंशुल सिसक से मचल गया।

    "गॉड ईरा, क्या कर रही हो? दर्द हो रहा है यार! लीव मी, नहीं तो यहीं से फेंक दूँगा।"

    अंशुल की हँसी पर ईरा भी कहकहा लगाकर हँसने लगी। बस यह हँसी और यह खुश होना उसका अंशुल के साथ ही तो था।

    "ईरा, अगर तुम्हें इतनी ही प्रॉब्लम है कोई मेरे करीब आता है तो क्यों ना मेरे सारे काम तुम खुद ही किया करो? फिर मैं सिर्फ़ तुम तक रह जाऊँगा।"

    ईरा ने अंशुल की पीठ पर बिखरे अपने बालों से ढँका चेहरा साफ़ किया और अंशुल के शोल्डर के पास पीठ पर बाइट करते हुए बोली—

    "मुझे रोटी पकाना नहीं आता। मुझे तो यह भी नहीं पता आटे में पानी डालते हैं या पानी में आटा।"

    ईरा को बीच में टोकते हुए अंशुल हँसकर बोला—

    "वेरी गुड।" ईरा भी अंशुल के साथ-साथ हँस रही थी और दोनों बातें करते हुए सीढ़ियाँ पार करके कमरे में चले गए।

    लक्ष्य ने राज को एकटक उधर ही देखते हुए देखा तो धीरे से बोला—

    "कितने अच्छे लगते हैं ना राज, ये दोनों एक साथ।"

    राज ने धीरे से सर हिला दिया।

    लक्ष्य बोला—

    "ए राज, थैंक गॉड यार कि ईरा के लिए उसका अंशुल है। मैं तो घबरा ही गया था कि आज गौरी पर गाज़ गिरने वाली है।"

    "हाँ, अंशुल है उसके लिए।" राज बेध्यानता से मरी हुई आवाज़ में बोला और उधर ही देखता रहा जिधर से अंशुल और ईरा गए थे।

    लक्ष्य अपने में मस्त खुशदिली से बोलता रहा—

    "हमारी किस्मत अच्छी है राज, जो ईरा हम पर ऐसे पाबंदी नहीं लगाती और ना ही अंशुल ईरा से हमारी शिकायत करता है। क्योंकि हम तो उससे बात करने के साथ-साथ उससे हँसी-मज़ाक भी करते हैं और कभी-कभी तो उसे परेशान भी करते हैं ना।"

    राज ने एक नज़र लक्ष्य की तरफ़ देखा और फिर उधर ही सीढ़ियों की तरफ़ देखने लगा। उसने खोए-खोए हुए से अंदाज़ में बेध्यानता से आहिस्ता से कहा—

    "नहीं लक्ष्य, अगर किस्मत इतनी ही अच्छी होती यार और मैं इतना ही खुशनसीब होता तो आज यूँ इस तरह ईरा को किसी और की बाहों में नहीं देख रहा होता। ईरा मेरे ही सामने, मेरे होते हुए कैसे आज किसी और की बाहों में खुश है? ये कैसी किस्मत है, कैसी खुशकिस्मती?"

    राज बिना कुछ सोचे-समझे बोल रहा था जब लक्ष्य उसकी तरफ़ देखते हुए उसकी शोल्डर पर हाथ रख दिया।

    लक्ष्य ने धीरे से राज से पूछा—

    "राज, मतलब तू आज भी ईरा को पसंद...?"

    लक्ष्य की बात काटते हुए राज बोला—

    "मैं ईरा को कभी नहीं भूल सकता। बचपन से मैंने ईरा को प्यार किया और आज वो किसी और की है और मैं उसे डिस्टर्ब नहीं करूँगा अब अपने बारे में बोलकर। प्यार अपनी जगह, लेकिन मैं उसके लिए खुश हूँ... खुश हूँ मैं कि मैं उसका दोस्त हूँ और इससे ज़्यादा मुझे और क्या चाहिए लक्ष्य? कि मुझे ना सही, पर ईरा को उसका प्यार मिल ही गया?"

    "राज, मैं तेरी भावनाओं को समझता हूँ यार, पर हम दोस्त थे और हमेशा रहेंगे।" लक्ष्य ने मायूसी से कहा तो राज बात पलटता दिया।

    वह धीरे से हँसकर लक्ष्य के गाल पर थप्पड़ मारते हुए बोला—

    "मेरी भावनाओं को समझने के बजाय अपनी ज़िंदगी को समझ और ईरा से दूर रह बेवकूफ़! क्योंकि अंशुल ईरा के लिए सही है, सब जानते हैं। पर तू माला बुआ का नालायक बंदर ही रहेगा।"

    राज वहाँ से चला गया। लक्ष्य अपने बालों में हाथ फेरकर रह गया—

    "अब तुझे क्या बताऊँ राज? ईरा ने तो कभी मेरा भी दिल चुराया था यार 😊"

  • 10. जबरिया इश्क़ - Chapter 10

    Words: 2298

    Estimated Reading Time: 14 min

    रात गहरा गई थी और ईरा अपने कमरे की बालकनी पर खड़ी, नीचे झांक रही थी। गार्डन में, मेन गेट से थोड़ी दूरी पर, उसके बाबा सुदास चेयर डाले बैठे थे और अपने दोनों तरफ खड़े विजय और भल्ला से बातें कर रहे थे। ईरा काफी देर तक उन्हें देखती रही, फिर अपने माथे पर अपने ही हाथों का एक जोरदार पंच मार लिया।

    वह इरिटेट सी अपने आप में ही बड़बड़ाने लगी। "शिट यार...छेहहः ये बाबा को क्या हुआ है? रात भर जाग कर जागरण करने का इरादा है क्या इनका? अगर ये वहाँ से हटेंगे नहीं तो मैं अपना काम कैसे करूंगी?" ईरा मन में सोच रही थी। उसने अपने माथे पर हल्के-हल्के मुक्के करते हुए पलट कर कमरे में देखा। बेड पर लेटा अंशुल गहरी नींद में सोया हुआ था।

    अंशुल को इस तरह पेट के बल लेटा सोया हुआ देखकर ईरा के चेहरे पर एक शैतानी और शरारत भरी मुस्कान आ गई। वह मंद-मंद मुस्कुराती हुई कमरे में चली आई और धीरे-धीरे बेड पर आते हुए अंशुल की पीठ पर चढ़कर उसके ऊपर लेट गई।

    ईरा अंशुल की शर्टलेस पीठ पर पेट के बल लेटी, उसके पैरों पर अपने पैर फैला दिए और अपने दोनों हाथों को उसके दोनों हाथों पर चिपका दिए। जिससे उसका पूरा वजूद अब अंशुल पर पूरी तरह हावी था। वह अंशुल की पीठ से होते हुए अपना चेहरा धीरे-धीरे रगड़ते हुए उसकी गर्दन में चलाने लगी।

    ईरा की इस मस्ती पर अंशुल नींद से कसमसाते हुए हल्का सा मुस्कुरा कर, बिना आँख खोले, बोला।
    "क्या कर रही हो ईरा?"

    ईरा ने धीरे से अंशुल के कान में काट लिया और उसी तरह उसके बालों में अपना चेहरा और होंठ सहलाते हुए, मदहोश आवाज में बोली।
    "प्यार कर रही हूँ और क्या?"

    "अच्छा? और ये प्यार करने का कौन सा वक्त है? तुम्हारा कभी मन नहीं भरता क्या मुझसे? अभी तो कितना सारा प्यार किया था हमने, और अब फिर से...?" अंशुल ने बिना आँख खोले कहा।

    "तुम भी कोई मन भरने वाली चीज हो क्या? तुम्हें तो जितना देखो, जितना छूओ, उतना ही नशा होता है अंशू?" ईरा ने शरारत से अंशुल की गर्दन में किस करते हुए, बाइट करके, प्यार से कहा। अंशुल सिहर गया और उसने मुस्कुराते हुए ईरा को पकड़ा और पलटकर सीधा हो गया। जिससे ईरा, जो उसकी पीठ पर लेटी हुई थी, वह अब लड़खड़ाते हुए उसके ऊपर से बेड पर गिरने लगी। जब अंशुल ने उसे जल्दी से पकड़कर खींचा और अपने पेट पर लेटा लिया।

    अंशुल ने उसकी कमर पर दोनों हाथ लपेटते हुए उसकी छोटी सी टीशर्ट को ऊपर करके, अपने पेट पर अपनी हथेली जमा ली।
    "तुम सारी रात जागती रहती हो किसलिए ईरा?"

    "नहीं, सिर्फ जागती नहीं हूँ, तुम्हें भी तो अपने साथ जगाती हूँ।" ईरा ने शरारत से हँसकर कहा और अंशुल के हाथ थाम लिए। "अंशू, गुदगुदी हो रही है? क्या कर रहे हो?"

    "वही जो तुम करती हो।" अंशुल ने ईरा की ठुड्डी पर दाँत गड़ाते हुए कहा और उसके पेट पर अपने हाथ रगड़ता रहा। ईरा छटपटा रही थी जब अंशुल ने उसकी गर्दन में होंठ रखते हुए, मदहोशी से डूबी आवाज में कहा।
    "रोज मुझे शर्टलेस कौन करता है? बताना जरा?"

    इस वक्त ईरा की पीठ अंशुल के सीने पर थी और अंशुल उसके दोनों हाथों को पकड़े, उसकी कमर से लगाए, उसके पेट पर रखे हुए था।

    "चलो अब सो जाओ।" अंशुल ने धीरे से ईरा से कहा और अपनी नींद से ओझल अधखुली आँखों को बंद कर लिया।

    "पर मुझे नहीं सोना अंशू, मुझे प्यार आ रहा है तुम पर।" ईरा ने अपना चेहरा पीछे मुड़कर अंशुल की तरफ देखा।

    अंशुल बिना आँख खोले यूँ ही बोला।
    "अच्छा? और यह प्यार का कौन सा वक्त है? मैं कहीं भाग तो नहीं जा रहा?"

    ईरा ने धीरे से अंशुल का गाल चूम लिया और मुस्कुराते हुए बोली।
    "प्यार करने का कोई वक्त नहीं होता। यह तो वक्त, बेवक्त, हर वक्त होता रहता है ईरा के वर्ल्ड।"

    ईरा की बात पर अंशुल ने कहा।
    "लेकिन इस वक्त मुझे सोना है। ईरा की दुनिया को नींद आ रही है। गुड नाईट।"

    "अंशुल प्लीज, आँखें खोलो ना, इधर देखो मेरी तरफ।" ईरा ने अंशुल की दोनों आँखों की पलकें अपने हाथों से जबरदस्ती जैसे चीरते हुए खोल दी।

    अंशुल तिलमिला उठा।
    "गॉड ईरा! क्या कर रही हो यार? आँखें फोड़ दोगी क्या?"

    "मुझे तुम्हारी हेल्प चाहिए।" ईरा ने फ़ौरन कहा तो अंशुल उसे हैरत से देखने लगा।

    "कयय...क्या कहा...मेरी हेल्प...तुम्हें मेरी हेल्प की कब से ज़रूरत पड़ गई मिसेज़ ईरा शर्मा?" अंशुल ने हल्का सा मुस्कुराकर ईरा की नाक छूकर धीरे से कहा तो ईरा बस उसे देखती गई।

    वह बेपरवाह अंदाज़ में बेधड़क बोली।
    "मैं ईरा शर्मा नहीं हूँ क्योंकि तुम अंशुल ईरा देशमुख हो। शादी के बाद लड़कियों का सरनेम चेंज होता है उसके हस्बैंड के साथ, लेकिन मैं ईरा हूँ। मैं अपने अंशुल का सरनेम ही नहीं, उसको भी खुद में ऐसे घोलकर रखूंगी कि वो मुझसे निकल नहीं पाएगा, कभी नहीं!" ईरा ने अंशुल को देखते हुए कुछ इस अंदाज़ से, सनक भरे एटीट्यूड में कहा कि अंशुल लाजवाब सा रह गया।

    वह चुप होकर बस ईरा को देखता रहा और फिर धीरे से बोला।
    "कौन सी हेल्प चाहिए तुम्हें मुझसे? ये बताओ?" अंशुल ने जैसे ईरा से हारने के अंदाज़ में पूछा क्योंकि ईरा की हर बात में जुनून, सनक और एक अलग ही अंदाज़ होता था जिस पर कोई भी ईरा के सामने मरना पसंद करता, लेकिन उससे उलझना नहीं।

    खुद अंशुल भी ईरा से प्यार करता था और जितना चाहे प्यार करता, पर ईरा के साथ आगे बढ़ने का, उससे बेवक्त बात करने का, उसे छूने का हौसला उसमें भी नहीं होता। जो भी मनमानी करती, ईरा ही उसके साथ करती।

    अंशुल ने पूछा तो ईरा के चेहरे की मुस्कान वापस लौट आई और उसने एक बार फिर से अंशुल को गले लगा लिया। उसने धीरे से अंशुल के कान में कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर अंशुल चौककर उछल गया।

    अंशुल ने ईरा को अपने पेट पर से नीचे उतारा और बेड पर बैठाते हुए, हैरत से बोला।
    "यह तुम क्या, ईरा? क्या कह रही हो यार?"

    "अंशुल प्लीज, तुम मेरी इतनी सी हेल्प नहीं करोगे क्या? तुम मेरी दुनिया हो।" ईरा ने काफी मासूम फ़ेस बनाया था जिस पर अंशुल फ़िदा ही हो जाता अगर ईरा ने इतनी बेतुकी मांग ना की होती तो।

    अंशुल ने उसकी तरफ बिना देखे फ़ौरन कहा।
    "ईरा, मैं तुम्हारा ही हूँ। तुम मेरी जान मांग लो यार, मैं तुम्हारे लिए अपनी ज़िंदगी भी दांव पर लगा दूँ। तुम ऐसी बात मत किया करो।"

    "ज़िंदगी दांव पर लगाने के लिए तुम्हारे पास ज़िंदगी होनी भी चाहिए अंशुल, क्योंकि तुम्हारी जान और ज़िंदगी सब मेरे हाथों में है, मेरे पास। और बिना मेरे इजाज़त तुम्हें मौत भी नहीं आ सकती क्योंकि मैं आने नहीं दूँगी। तुम पर तुम्हारा नहीं, ईरा देशमुख का राज है।" ईरा की बातें हर बार अंशुल को जैसे चुप करा देतीं।

    "लेकिन ईरा, यह सब..." अंशुल कुछ बोलता जब ईरा ने उसके होंठों पर अपने होंठ रखकर जल्दी से चूम लिया और फिर अलग हटते हुए बोली।

    ईरा ने बेपरवाही से अंशुल के बाजुओं को पकड़कर थपथपाया।
    "चलो गेटअप अंशू! तुम्हें बस जोर से ऐसे चिल्लाना है जैसे कि तुम किसी प्रॉब्लम में हो, जिसे सुनकर बाबा और उनके गार्ड्स सब दौड़ते हुए यहाँ आएंगे और उसी बीच मैं बाबा के कमरे में जाकर अपना काम करके निकल जाऊँगी।"

    "लेकिन ईरा, बाबा ने तुम्हें तीन महीने के लिए तुम्हारी रिवॉल्वर यूज़ करने के लिए मना किया है ना? फिर तुम कैसे उनके कमरे से अपनी रिवॉल्वर ला सकती हो? वह भी बिना उन्हें बताए? यह तो गलत बात है।" अंशुल जल्दी-जल्दी कह रहा था जब ईरा ने उसका मुँह बंद करने को उसके निचले होंठ को अपने दाँतों के बीच रखकर दबा दिया।

    "आह...ईरा! क्या कर रही हो?" अंशुल ने ईरा से छूटते ही अपने मुँह पर दोनों हाथ रख लिए और उसे घूरता हुआ बोला। "बेमुरव्वत कहीं की! दर्द होता है ऐसे मत किया करो।"

    "तो इतना मत बोला करो।" ईरा ने इत्मीनान से, रिलेक्स मूड में कहा। अंशुल कुछ बोलता कि ईरा ने अपने होंठों पर एक अंगुली रखकर उसे आँखों के डरा देने वाले कड़े तेवर दिखाकर उसे चुप रहने का इशारा किया।

    "मैं अपनी रिवॉल्वर नहीं लाऊँगी। बाबा ने मुझे मेरी रिवॉल्वर यूज़ करने के लिए मना किया है, लेकिन मैं उनकी रिवॉल्वर लाऊँगी, जिसके लिए उन्होंने मना नहीं किया था। और उन्हें इस बारे में बताएगा कौन?"

    "क्या यू मीन ईरा, तुम..." ईरा तो हँसकर बोल रही थी लेकिन अंशुल कंपकंपा गया।

    अंशुल ने हकलाते हुए कहा।
    "ईरा, तुम बाबा के कमरे से बाबा की रिवॉल्वर लाने को बोल रही हो? मुझे लगा तुम बस उनके कमरे में किसी काम से जाने के लिए मेरा यूज़ कर रही हो?"

    "हाँ तो।" ईरा दोनों हाथ छत की तरफ़ उठाते, अंगड़ाई लेने की अदा से बेफ़िक्री में बोली।

    "नहीं, मैं इसमें तुम्हारी कोई हेल्प नहीं करूँगा। सॉरी, मुझे बख्श दो। आई एम नॉट मास्टरमाइंड क्रिमिनल। तुम जैसी गुंडी की तरह कोई गुंडा नहीं हूँ। मैं एक सीधा-सादा बायोलॉजिकल स्टूडेंट हूँ। गन नहीं, स्टेथस्कोप का यूज़ करता हूँ मैं।" अंशुल ने हाथ ऊपर करते हुए साफ़ इंकार किया और हँसने लगा तो ईरा दो पल उसे देखती रही।

    अंशुल फिर कुछ बोलता जब ईरा ने अंशुल को धक्का मारकर उसे बेड पर गिरा दिया और वह संभलता या कुछ समझ पाता कि ईरा जल्दी से उसके पेट पर आकर बैठ गई।

    ईरा ने अंशुल के दोनों कान पकड़ लिए और उसके ऊपर चढ़ी बैठी, उसका सर बार-बार बेड पर पटकने लगी जबकि अंशुल हँसे जा रहा था।

    "क्या कर रही हो?" अंशुल ने हँसते हुए सर के नीचे अपने हाथ रख लिए।

    "तुम्हें मैं गुंडी लगती हूँ।" ईरा ने अंशुल को झटकते-पटकते हुए कहा।

    "और क्या? काम तो ऐसे ही करती हो?" अंशुल ने हँसते हुए अपने पेट पर बैठी ईरा को छेड़ा। ईरा उसके चेहरे पर थप्पड़ मारने लगी तो अंशुल ने अपने दोनों हाथों से उसके हाथ पकड़ लिए।

    "अंशुल।" ईरा ने उसे आँखें दिखाईं।

    अंशुल ने उसके हाथों को चूमकर छोड़ दिया और उसकी आँखों में आँखें डाले हुए बोला।
    "ईरा, तुम्हारी ज़िद हूँ मैं तो मैं तुम्हारे पास हूँ, और क्या चाहिए तुम्हें मुझसे?"

    "तुम जा कहाँ सकते थे? तुम्हारी हद हूँ मैं, इसलिए मेरे पास हो तुम?" ईरा ने काफी ईगो से कहा।

    "ईरा, तुम जो चाहती हो करती हो मेरे साथ। प्यार से लेकर शादी, सब तुम्हारा जुनून था मुझसे और मैंने तुम्हें कभी मना नहीं किया। यहाँ रहने भी आ गया तुम्हारे साथ, पर मैं ये सब नहीं कर सकता। तुम जानती हो ना, सोने दो अब मुझे।" अंशुल ने ईरा को खुद से दूर किया और चादर लपेट कर सो गया। ईरा ने दो पल उसे देखा और फिर उसकी चादर छीनकर दूसरी तरफ फेंक दी और उसे खींचकर उठाकर बैठा दिया।

    "पहले मेरी बात सुनो, अंशुल। तुम्हें मेरी हेल्प करनी होगी।" ईरा ने ज़िद्दी बच्चे सा कहा।

    अंशुल सर पकड़कर बैठते हुए बोला।
    "चलो ठीक है। मैं तुम्हारी बात मान लेता हूँ। हार गया मैं बस...मैं चिल्लाऊँगा ईरा, जिससे बाबा और बाकी सब यहाँ आएंगे। लेकिन मैं चिल्लाऊँगा कैसे? और भला क्यों?"

    "तुम्हें दर्द होगा तो तुम चिल्लाओगे ही ना।" ईरा खुश होकर बोली।

    "हाँ, लेकिन बिना दर्द के मैं दर्द भरी आवाज़ में कैसे चिल्ला सकता हूँ ईरा? मैं कोई एक्टर नहीं हूँ।" अंशुल ने बेमन से कहा।

    "हाँ तो मैं हूँ ना तुम्हारे लिए।" ईरा ने अंशुल के शर्टलेस सीने पर अपने होंठ रखते हुए धीरे से कहा।

    अंशुल हैरत से उसे देखता हुआ, नासमझी से बोला।
    "मतलब क्या? क्या करने वाली हो अब तुम?"

    "अंशू, मैं तुम्हें यहाँ पर दाँतों से अपने जोर से काटूँगी और तुम उतनी ही जोर से चिल्लाओगे, ठीक है।" ईरा ने जैसे ही कहा, अंशुल ने उसके बाल पकड़कर अपने से दूर करते हुए झटक दिया। ईरा संभल नहीं पाई जब अंशुल ने उसके सर के पीछे हाथ डालकर, बालों से पकड़ते हुए, उसका चेहरा अपने चेहरे के सामने कर लिया।

    अंशुल उसके गाल पर अपने दूसरे हाथ की तीन अंगुलियाँ रगड़ता हुआ, हितैषी में बोला।
    "तुम्हें लगता है कि तुम मेरे सीने पर बाइट करोगी तो मैं चिल्लाऊँगा? पागल हो क्या तुम? अपने हाथों ही में अपनी बेइज़्ज़ती नहीं करवा सकता?"

    "कैसी इन्सल्ट अंशू?" ईरा ने धीरे से सवाल किया। उसकी आँखों में पानी आ गया था अंशुल के दिए दर्द पर, लेकिन वह ईरा थी, वह कहाँ कमज़ोर होती?

    ईरा अंशुल की आँखों में आँखें डाले, बेखौफ़, कठोर बनी उसे देखती रही और अंशुल उसके बालों को अपने हाथ में मज़बूती से लपेटे, कसकर पकड़े हुए था।

    "बाबा आएंगे और मुझसे पूछेंगे क्या हुआ? मैं क्यों चिल्लाया? तो क्या कहूँगा उनसे कि मेरी बीवी ने मुझे लव बाइट दिया है इसलिए मुझे दर्द हुआ? ताकि वह मेरा मज़ाक उड़ा सके कि मैं कैसा मर्द हूँ जो अपनी वाइफ़ के प्यार का भी टॉर्चर बर्दाश्त नहीं कर सकता? मेरे सीने का वो लव बाइट मैं उन्हें दिखाऊँगा ईरा? तुम्हें लगता है ऐसा...हटो यहाँ से।" अंशुल ने ईरा को बेड पर ही पटक दिया और उठकर जाने लगा।

    ईरा उसके पीछे लपकी।
    "अंशू, अंशू! मेरी बात तो सुनो।" ईरा उठकर अंशुल के पीछे आई और अंशुल ने घूमकर उसकी तरफ़ देखा जब ईरा ने अंशुल को बाजुओं से पकड़कर उसे सीने से लगा लिया।

    अचानक ही ईरा के उस प्यार के एहसास में अंशुल खोने लगा था जब ईरा ने उसे एक झटके में पीछे धकेल दिया और वह थोड़ी दूर ही दीवार पर लगी उसकी बड़ी सी पेंटिंग से जा टकराया। पेंटिंग के ऊपर किनारे पर रखी अंशुल की ढेर सारी बुक्स धड़ाधड़ करते हुए अंशुल के ऊपर गिरने लगीं।

    अंशुल संभल पाता जब पेंटिंग और उसके ऊपर का पूरा का पूरा बुक्सशेल्फ़ उसके ऊपर धड़धड़ करते हुए आ गिरा। अंशुल कराहते हुए जोर से चिल्लाया। ईरा ने जल्दी से दौड़कर अंशुल को बुक्सशेल्फ़ से खींचकर बाहर निकाला और बिना कुछ सोचे-समझे फ़ौरन दरवाज़े के पीछे जाकर छुप गई।

    और आगे……………

  • 11. जबरिया इश्क़ - Chapter 11

    Words: 1043

    Estimated Reading Time: 7 min

    अंशुल संभल पाता, इससे पहले ही पेंटिंग और उसके ऊपर का पूरा बुक्सहेल्फ उसके ऊपर धड़धड़ाते हुए आ गिरा। अंशुल कराहते हुए जोर से चिल्लाया। ईरा ने जल्दी से दौड़कर अंशुल को बुक्सहेल्फ से खींचकर बाहर निकाला और बिना कुछ सोचे-समझे फौरन दरवाजे के पीछे जाकर छिप गई। उसके कमरे का दरवाजा खोलकर सुदास, विजय और भल्ला दौड़ते हुए अंदर आए, और उनके पीछे लक्ष्य और राज भी थे। सबके कमरे में आते ही ईरा दरवाजे के पीछे से निकलकर दबे पांव कमरे से बाहर भाग गई। उसे किसी ने भी नहीं देखा, सिवाय अंशुल के।

    सुदास ने अंशुल को देखा; वह पेंटिंग के पास खड़ा दरवाजे पर देख रहा था, और उसके चारों तरफ उसके कॉलेज की ढेर सारी किताबें बिखरी पड़ी थीं।

    "अरे क्या हुआ अंशुल? तुम ठीक हो?" सुदास ने अंशुल से पूछा, जबकि भल्ला और विजय उसके ऊपर पड़ी किताबों को हटा रहे थे।

    "जी जी बाबा, मैं... मैं ठीक हूँ, बस वह!" अंशुल ने धीरे से कहा और सीधा होकर खड़ा हो गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

    सुदास ने उसे देखते हुए पूछा, "...इतनी रात को तुम क्या कर रहे थे अंशुल? सोए नहीं अब तक?"

    "कुछ नहीं बाबा, बस थोड़ी सी पढ़ाई कर रहा था। और मैंने बुक्सहेल्फ से किताब निकाली, तो यह सारा का सारा मुझ पर आ गया और!!!"

    अंशुल को बीच में टोकते हुए सुदास बोले, "...इट्स ओके, सब ठीक है।"

    "जी बाबा।" अंशुल ने धीरे से जवाब दिया। सुदास कमरे के चारों तरफ देखने लगे और अंशुल से पूछा, "ईरा कहाँ है?"

    तब तक ईरा दौड़ते हुए कमरे में आई और जल्दी से सुदास के सामने आकर खड़ी हो गई।

    "बाबा, मैं यहां, यहां हूँ।" ईरा ने फूलती साँसों के बीच जल्दी-जल्दी बताया।

    "कहाँ गई थी तुम?" सुदास ने पूछा।

    "कहीं नहीं, बस यहीं नीचे थी, हॉल में बाबा। और कहाँ?" ईरा दौड़कर आई थी, जिससे वह हाँफ रही थी।

    "इतनी रात को जागने के लिए तुम इतनी बेवकूफ तो नहीं लगती। संभालो अंशुल को, देखो इसे कहाँ चोट लगी है?" सुदास ने ईरा से कहा और वहाँ से चले गए। उनके पीछे ही विजय और भल्ला भी निकल गए, जबकि लक्ष्य और राज अभी भी अंशुल को देख रहे थे।

    लक्ष्य ने धीरे से अंशुल को देखते हुए राज से कहा, "...यार, ऐसी कौन सी किताब थी जो यह इतनी रात को पढ़ रहा था?"

    राज ने भी उसी तरह दबे लहजे में धीरे-धीरे मुस्कुराहट से जवाब दिया, "...मुझे नहीं पता यार, लेकिन वह जो भी बुक रही होगी, उसमें पावर बहुत था।"

    "मतलब?" लक्ष्य ने राज से हैरत से पूछा।

    "मतलब, ज़रूर उस किताब में कोई गहराई होगी लक्ष्य, तभी तो उस किताब की गहराई के भारी-भरकम भार की वजह से पूरा का पूरा बुक्सहेल्फ ही किताब के साथ नीचे आ गया।"

    राज और लक्ष्य आपस में फुसफुसाते हुए बात कर रहे थे, जब ईरा ने उन दोनों को गुस्से से घूरते हुए देखा। वह दोनों को बेबाक अंदाज़ में डाँटते हुए बोली, "...तुम दोनों को यहां से बाहर भेजने के लिए तुम्हारे चरण कमल धोने पड़ेंगे क्या? निकलो यहां से, जस्ट गेट आउट।"

    ईरा गुस्से में चिल्लाई, तो राज और लक्ष्य वहाँ से एक पल में जैसे हवा की तरह एक साथ गायब हो गए।

    ईरा जल्दी से अंशुल के पास आई और उसके माथे पर धीरे से चूमकर मुस्कुरा दी।

    "थैंक्यू अंशू, तुम्हारी वजह से मेरा काम हो गया, माय वर्ड। तुम्हें ज़्यादा चोट तो नहीं आई?" ईरा ने उसे टटोलती नज़रों से देखते हुए पूछा।

    "नहीं, मैं ठीक हूँ।" अंशुल ने मुस्कुराते हुए धीरे से जवाब दिया और आकर बेड पर लेट गया। वह ईरा को देखते हुए बोला, "...अब मैं सो जाऊँ क्या, प्लीज़?"

    "हाँ, बिल्कुल। अब मुझे भी अच्छे से नींद आएगी।" ईरा भी अंशुल के साथ बेड पर अपनी साइड लेट गई और अंशुल से लिपट गई। अंशुल ने ईरा को लेटे-लेटे ही अपनी आगोश में दबोच लिया।

    अंशुल ईरा के कान के पास धीरे से बोला, "...ईरा, क्यों करती हो तुम ऐसा? और इतनी रात को तुम्हें इस गन की क्या ज़रूरत पड़ गई?"

    "नहीं तो कुछ नहीं?" ईरा ने अपनी गन दोनों हाथों से कसके थाम ली, जैसे कोई बहुत खूबसूरत गुलाब हो।

    "ईरा, देखो अगर तुम इस वक्त भी कोई लफ़ड़े का सोच रही हो, तो दिमाग से निकाल दो, नहीं तो!" अंशुल ने ईरा के ऊपर आते हुए, उसके चेहरे के पास चेहरा करके, नींद में ओझल आँखों से देखते हुए वॉर्न किया।

    ईरा मुस्कुरा दी। उसने अंशुल के चेहरे पर अपना हाथ फेरते हुए प्यार से कहा, "...नहीं अंशू, तुम तो ख़ामख़ा मुझ पर शक किया करते हो। मैं कहाँ झगड़ा करती हूँ किसी से?"

    "हाँ, वह तो मैं जानता हूँ। झगड़ा तो खुद तुम्हें करता है ना ईरा? तुम कहाँ झगड़ा करती हो... वैसे कहाँ जाओगी इस टाइम पर? बताओ मुझे?" अंशुल ने उसकी गर्दन में चेहरा छुपाते हुए पूछा।

    "कहीं नहीं, मैं तो सोने जा रही हूँ ना, देखो तुम्हारे साथ लेटी हूँ।" ईरा ने जल्दी-जल्दी कहा।

    "तो फिर यह गन क्यों लेकर आई हो इतनी रात को? क्या ज़रूरत है इसकी तुम्हें?" अंशुल को अभी भी ईरा पर विश्वास नहीं हो रहा था, तो वह शक भरी नज़रों से उसे देखते हुए बोला। ईरा ने उसके बालों में अपना एक हाथ फेरते हुए उसके होंठों को अपने होंठों से छू लिया।

    वह अंशुल को भरोसा दिलाने के अंदाज़ में बोली, "...ट्रस्ट मी, बस यूँ ही लेकर आई हूँ अंशू, क्योंकि मुझे मेरी गन के बिना नींद नहीं आती।"

    ईरा ने हँसकर कहा और अपनी गन को सीने से चिपकाए, वह आँखें मूँदकर सो गई।

    अंशुल उसे काफ़ी देर तक यूँ ही एकटक देखता रहा, फिर अपने आप में ही सोचते हुए बोला, "...कैसी लड़की है! श्रृंगार के बजाय हथियार यूज़ करती है। आई मीन, हद होती है! गन के बगैर इसे नींद नहीं आती, यह कौन सी आदत है इसकी? शौक किसी भी आम लड़की से अलग है?" अंशुल भी अपनी जगह पर लेट गया और आँखें मूँद लीं।

    अंशुल के सोते ही ईरा ने झट से अपनी आँखें खोलीं, क्योंकि वह सोई ही कहाँ थी। उसने बगल में सो रहे अंशुल के बालों को माथे से हटाया और धीरे से उसका सर चूमते हुए अपनी गन और जैकेट लेकर कमरे से बाहर निकल गई।

  • 12. जबरिया इश्क़ - Chapter 12

    Words: 1685

    Estimated Reading Time: 11 min

    अपने कमरे से निकलकर ईरा सामने वाले कमरे में आई जो लक्ष्य और राज का कमरा था। दोनों उस वक्त वीडियो गेम के सामने जमीन पर ऊंट-पटांग से लेटे, रिमोट पकड़े, गेम खेल रहे थे। ईरा उन दोनों को देखते हुए धीरे-धीरे, एटीट्यूड भरे कदमों से, बिना कुछ बोले उनके पीछे गई और उनके बेड पर एक पैर पे दूसरा पैर रखकर आराम से बैठ गई।

    "क्या हुआ ईरा? नींद नहीं आ रही क्या?" राज ने, ईरा की तरफ देखे बिना, बेध्यानी से पूछा और पूरी तरह लक्ष्य को हराने की होड़ में जल्दी-जल्दी रिमोट कंट्रोल लिए, उसी तरह वीडियो गेम खेलता रहा।

    लक्ष्य भी राज को हराने के फुल ऑन मूड में जल्दी-जल्दी अपने रिमोट कंट्रोल पर अंगुलियां चला रहा था।

    लक्ष्य ने भी राज की बात पर ईरा की तरफ एक नजर देखा और गेम पर ध्यान लगाते हुए हंसते हुए बोला, "राज, लगता है इसको इसके पति ने कमरे से धक्के देकर बाहर निकाल दिया।"

    "अरे, ऐसा है क्या ईरा? सच में?" राज ने फिर पीछे पलटकर ईरा को एक नजर देखा जो चुपचाप, बड़े ही इत्मीनान से बैठी, जैसे कुछ सोच रही थी।

    "देखो ईरा, अगर ऐसा है तो तुम यहीं सो सकती हो हमारे कमरे में। वैसे भी हम आज रात भर गेम खेलने वाले हैं... है ना लक्ष्य?" राज बड़ी अदा से ईरा का मज़ाक बनाकर बोला।

    "हाँ," लक्ष्य ने क्यूट फेस बनाते हुए कहा, "और नहीं तो क्या? बेचारी अबला नारी इतनी रात को कहाँ जाएगी?"

    राज और लक्ष्य एक-दूसरे से हाई-फाई लेते हुए हंस-हंसकर ईरा का मज़ाक बना रहे थे।

    ईरा उठी और बड़ी ही शांति से, धीरे-धीरे चलती हुई, उन दोनों के सामने आकर खड़ी हो गई। दोनों दाएँ-बाएँ होकर टीवी स्क्रीन पर नज़र डालने के लिए बेचैन हो गए।

    "हटो ईरा सामने से यार! मेरा लास्ट है!" राज ने जल्दी से ईरा की दूसरी साइड से झाँकते हुए कहा।

    "गॉड ईरा! क्या कर रही हो? अगर मैं यह वाला गेम हार गया तो शर्त के पाँच हज़ार मुझे राज के बच्चे को देने होंगे और अगर तुम्हारी वजह से मैं हारा तो वह पैसे मैं तुमसे ही लूँगा, याद रखना!" लक्ष्य ने भी ईरा के दूसरी साइड से टीवी स्क्रीन पर झाँकते हुए बोरियत से चिल्लाकर कहा।

    राज और लक्ष्य ईरा के इधर-उधर होते टीवी पर झाँकते ही रहे। तब ईरा ने हाथ उठाकर दोनों के गाल पर एक साथ, एक ही बार में, थप्पड़ जड़ दिया।

    "क्यों मार रही हो? इतनी रात को? दिन में तुम्हें चैन नहीं, रात में भी पीटने आ गई?" लक्ष्य अपना गाल सहलाता हुआ, मासूमियत से बोला। राज का रिमोट कंट्रोल छूटकर काफी दूर जा गिरा था।

    ईरा बिना कुछ बोले वापस उनके पीछे आकर बेड पर बैठ गई। इस बार राज और लक्ष्य वापस अपने-अपने रिमोट कंट्रोल लेकर वीडियो गेम में लग गए थे।

    "क्या हुआ ईरा? कुछ बताओगी?" राज ने गेम खेलते हुए, एक बार पीछे मुड़कर ईरा को एक नज़र देखते हुए पूछा।

    ईरा दो पल शांत रही और फिर बड़ी ही सर्द और सनक भरी आवाज़ में बोली, "मुझे लगता है कि बाबा ने जो कहा, वह सही है। अभय विराट का ही बेटा है, वह चुप नहीं बैठेगा।" ईरा की आवाज़ में कुछ ऐसा था कि राज और लक्ष्य दोनों एक साथ उसकी तरफ़ पलटे।

    "क्या हुआ ईरा? तुम कुछ सोच रही हो क्या? तुम्हें अभय से क्या?" लक्ष्य ने पूछा और वापस गेम खेलने लगा।

    "मुझे लगता है कि बाबा ने जो कहा, वह गलत नहीं है। अभय विराट के मरने पर कुछ ना कुछ तो ज़रूर करेगा। अभी शांत है, मतलब कुछ तो प्लान ज़रूर किया होगा उसने?" ईरा काफी सीरियसली, बिना किसी चेहरे के एक्सप्रेशन के बोल रही थी।

    "अरे! आज शेरनी को पहली बार इतना सोचते हुए देखा। क्या हुआ ईरा? तुम्हें किसका डर है या फिर माइंड में कोई खिचड़ी पका रही हो?" राज ने पलटकर ईरा से पूछा और फिर लक्ष्य के साथ हाथापाई करते हुए गेम खेलने लगा।

    "अगर अभय मुझसे बदला लेना चाहेगा तब तो ठीक है, मुझे परवाह नहीं, मज़ा आएगा इस गेम में। लेकिन... बाबा ने बोला है कि अभय शांत नहीं बैठेगा। इससे पहले कि वह शोर मचाए, हम ही उसकी लाइफ में तहलका मचा दें, कैसा रहेगा?" ईरा ने उन दोनों की तरफ़ देखते हुए पूछा।

    उन दोनों की पीठ ईरा की तरफ़ थी। ईरा की बात सुनकर इस बार दोनों के हाथ से रिमोट कंट्रोल छूट गए और वे दोनों जल्दी से पलटकर उसकी तरफ़ बैठ गए।

    "क्या? क्या बोला तुमने?" राज ने पूछा और लक्ष्य उठकर ईरा की तरफ़ चला आया।

    "तुमने कहा क्या... तहलका? मतलब क्या ईरा? तुम करने क्या वाली हो? तुम कुछ सोच रही हो ना?" लक्ष्य हकलाते हुए, हैरत से बोला।

    "उफ़्फ़! गाइज़ शांत! तुम दोनों तो ऐसे रियेक्ट कर रहे हो जैसे कि मैं कोई बुलेट हूँ और तुम दोनों के सीने में घुसने वाली हूँ!" ईरा बोरियत से बोली।

    "तुम बुलेट नहीं, वह चाकू हो जो हम दोनों का सीना चीर-फाड़ देती हो हमेशा।" राज ने अपने दिल पर हाथ रखते हुए, लंबी साँस लेकर कहा।

    "ईरा, यह बताओ मुझे तुम्हारे माइंड में क्या चल रहा है? तुम इतनी शांत लग रही हो, मतलब तूफ़ान लाओगी?" लक्ष्य ने वापस ईरा से पूछा।

    ईरा एक हाथ को अपने बालों में फँसाकर खेलते हुए बोली, "अभय कुछ करे इससे पहले ही क्यों ना मैं ही कुछ कर दूँ? गाइज़, गेम में हार-जीत का मज़ा तो तब आता है जब गेम की शुरुआत धुंआधार हो, जो हमेशा अपनी तरफ़ से होनी चाहिए। दुश्मन की तरफ़ से हुई तो उसके रूल्स होंगे, अपनी तरफ़ से आगाज़ करेंगे तो तेवर अपने जमेंगे।"

    "क्या करोगी तुम? गेम को शुरू करने को? कौन सा बवाल मचाना है अब?" लक्ष्य ने कहा।

    "चलो, आ जाओ। आज अभय से मिलकर आते हैं।" ईरा ने उठते हुए कहा।

    "क्या पागलपन कर रही हो ईरा? इतनी रात को तुम अभय... उस सिद्धार्थ के पालतू जानवर अभय के घर जाओगी उससे मिलने? जबकि तुम जानती हो कि इस वक़्त अभय शांत नहीं बैठा होगा, उसने ज़रूर कोई ना कोई प्लान बनाया होगा?" लक्ष्य ने ईरा को घूरते हुए डाँटकर कहा।

    "वही तो! ईरा, तुमने उसके बाप को मारा है, वह भी इतनी बेरहमी से! तुम्हें लगता है कि वह इस वक़्त तुमसे बड़ी खुशी के साथ मेल-मिलाप करेगा? अरे, वह तुम्हें लेकर ज़हर से भरा बैठा होगा!" राज ने भी ईरा को डाँटते हुए देखा और लक्ष्य से बोला, "लक्ष्य, समझा इसे।"

    लक्ष्य से पहले ईरा ने उसी तरह शांत, बेभाव चेहरे से दोनों को देखते हुए कहा, "वह मुझसे मिलने अब तक नहीं आया तो क्यों ना मैं ही उससे मिल आऊँ? और मैं ही क्यों? तुम दोनों भी चल रहे हो मेरे साथ।"

    ईरा ने खड़ी होते हुए कहा। जब लक्ष्य उसके सामने आकर खड़ा हो गया, "ईरा, इस वक़्त हम कैसे जा सकते हैं? तुम्हें पता है ना, मामा को पता चला तो वह हम तीनों को बिना सवाल-जवाब के ऊपर पहुँचा देंगे। मैं अभी मरना नहीं चाहता।" फिर धीरे से खुद से बोला, "मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई।"

    लक्ष्य के साथ ही राज भी जल्दी-जल्दी दौड़ता हुआ ईरा के सामने आकर खड़ा हो गया। "हाँ ईरा! वैसे भी हम जाएँगे कैसे? सुदास अंकल मेन गेट के पास ही बैठे हैं गार्डन में। हमारा इस वक़्त घर से निकलना इम्पॉसिबल है यार! शांत बैठो! अगर उन्होंने देख लिया तो समझो...?"

    "वह तब देखेंगे जब हम बाहरी गेट से जाएँगे। हम तो यहाँ से जाएँगे ना।" ईरा ने लक्ष्य और राज को देखते हुए उनके कमरे की पिछली खिड़की की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।

    वे दोनों हैरत से मुँह खोले एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे और फिर ईरा की तरफ़ देखते हुए कहा, "क्या? खिड़की से?" दोनों एक साथ चिल्लाए।

    "इतनी ऊँची खिड़की से कैसे?" राज ने जल्दी से खिड़की की तरफ़ देखते हुए ईरा को देखा, "मारना है तो गोली मार दो ईरा! ये जानलेवा बोलियाँ मत दो!"

    लक्ष्य ने राज का खुला मुँह बंद करते हुए कहा, "क्लोज़ योर माउथ! मक्खियाँ लात मारकर जाएँगी तुझे।"

    लक्ष्य राज से कहता हुआ ईरा की तरफ़ देखने लगा, "लिसन ईरा! अभय से मिलने जाना है, कोई चॉकलेट खाने वाले बच्चे से नहीं! इस वक़्त वह अभय खून का प्यासा बना बैठा होगा और तुम्हारे पास तो तुम्हारी गन भी नहीं है और उसके पास उसके हज़ारों आदमी होंगे...!"

    लक्ष्य अभी बोल ही रहा था जब ईरा ने अपनी जैकेट के पीछे से अपनी गन निकालकर बड़ी ही अदा से उसके सामने कर दी। वह एटीट्यूड भरे स्टाइल में दूसरे हाथ से गन से खेलते हुए आराम से बोली, "कौन कहता है मेरे पास गन नहीं है?"

    ईरा के हाथ में गन देखकर राज और लक्ष्य घबराहट से एक-दूसरे को देखने लगे।

    "ई, ईरा! यह... यह तुम्हें... तुम्हें कहाँ से मिली? मामा ने तो मना किया है ना?" लक्ष्य ने हकलाते हुए पूछा।

    "तुम्हारे मामा ने तुम्हारी कज़िन को उसकी गन छूने से मना किया है लक्ष्य, गन चलाने से नहीं।" ईरा ने बड़ी सादगी से कहा और धीरे-धीरे चलती हुई, गन को अपने जैकेट में, पीछे जींस में रखते हुए, खिड़की की तरफ़ बढ़ गई।

    लक्ष्य और राज कुछ बोलने को मुँह खोलने ही वाले थे कि ईरा खिड़की पर चढ़कर दूसरी तरफ़ कूद गई। और उसके कूदते ही वे दोनों एक आवाज़ में चिल्लाए, "ईरा!"

    दोनों दौड़ते हुए जल्दी-जल्दी खिड़की की तरफ़ आए तो ईरा खिड़की पर, दीवार से किसी छिपकली की तरह चिपकी हुई थी। जिसे देखकर राज और लक्ष्य अपने दिल पर हाथ रखकर सुकून भरी, गहरी-गहरी, लंबी साँसें लेने लगे।

    "यार लक्ष्य! यह लड़की नहीं सुधर सकती क्या?" राज ने कहा।

    लक्ष्य ने भी राज की हाँ में हाँ मिलाते हुए सर नहीं में हिला दिया, "नहीं! मुझे तो नहीं लगता।"

    लक्ष्य एक बार खिड़की पर झुककर ईरा को खिड़की से नीचे उतरते हुए देखकर धीरे से बोला, "राज! किसी दिन यह हमें मरवाएगी! यह लड़की नहीं, आफ़त है।"


    **********

    अभय अपने मेंशन में बेडरूम के बेड पर लेटा हुआ था और अपने बगल में ही लेटी अपनी वाइफ को अपने नीचे दबाए, उसके होंठों पर अपने होंठ रखकर बेरहमी से उसे चूम रहा था। उसकी वाइफ की सिसकियाँ पूरे कमरे में गूंज रही थीं क्योंकि अभय किसी जंगली जानवर सा उसे नोच रहा था।

    और आगे………………

  • 13. जबरिया इश्क़ - Chapter 13

    Words: 1015

    Estimated Reading Time: 7 min

    अभय अपनी वाईफ के दोनो हाथो में अपने हाथों को फँसाये उसके पैरो को अपने पैरों से जकड़े उसके पूरे जिस्म से खेल रहा था। अभय प्लीज् लीव मी दर्द हो रहा है अब छोड़ दो मुझे या फिर शॉफ्ट करो तुम्हारी बेचैनी मेरी जान ले लेगी। "उसकी वाईफ ने दर्द से सिसककर कहा। अभय अब उसके होंठो को छोड़कर उसकी गर्दन में चेहरा छूपाये उस पर अपने होंठो की छाप और दांत के निशान छोड़ रहा था। उसने अपनी वाईफ को एक सख्त नजर उठाकर देखा और उसके बालो से खेलते हुए आंखों में आंखे डालकर उसे देखने लगा। उसकी वाईफ नीचे और अभय ऊपर था दोनो के चेहरे बराबर से थे अभय तंज से बोला।..... तुमसे शादी मैने इसलिए नही की कि मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा बल्कि इसलिए की है स्वीटहार्ट कि तुम मेरी जरूरत पूरी करोगी, जब मैं चाहूं। अभय कॉलेज टाइम में तुम बिल्कुल ऐसे नही थे, नही तो मै ये शादी कभी नही करती? अभय ने हंसकर उसके गाल पर बाइट करते हुए कहा।.... ओह रियली, पर कॉलेज में तो तुम्हे मेरे साथ राते बिताना बहुत अच्छा लगता था। अभय प्लीज् दर्द हो रहा है अब बस..…! वो कुछ और बोलती जब अभय ने उसके होंठो को अपने होंठो से सी लिया। कमरे में मौजूद बेड के थोड़ी दूर पर पैरों की तरफ ईरा एक चेयर पर बैठी चुपचाप बेभाव चेहरा लिए अभय को उसकी वाईफ के साथ खेलता देख रही थी और उसी चेयर के दोनो तरफ ईरा के इर्दगिर्द चेयर के दोनो हत्थो पर बैठे राज और लक्ष्य भी खामोश थे। अभय ने अपनी वाईफ को बेरहमी से चूमते हुए उसे पलटकर जैसे ही उसकी टीशर्ट ऊपर करनी चाही की बेड के कॉर्नर पे लगे छोटे छोटे शीशे में बेड के पीछे बैठे उन तीनों की छवि देखकर वो उछल गया। अभय हैरत से चौकते हुए जल्दी से पलटकर पीछे देखने लगा। उन तीनों को देखकर अभय की वाइफ ने भी अपने कपड़े दुरुस्त किये और उठकर बैठ गई। अभय ईरा, राज और लक्ष्य को जहरीली नजर से घूरते हुए नफरत से दहाड़ा।.... तुम तुम लोग यहां...यहां कैसे आये...क्यो...यहाँ क्या कर रहे हो? अभय अभी बोल ही रहा था जब ईरा स्वैग सी उठकर स्टाइल में चलती हुई उसकी तरफ चली आई। ईरा बिना कुछ बोले एक्सप्रेशन लेस चेहरा लिए अभय को देखे जा रही थी और उसके बेड के पास हल्का सा झुककर उसने अभय को कॉलर से पकड़ा और उसे झटके से बेड से टेक लगाकर बैठा दिया। अभय पहले तो विराट का बेटा होकर तुमने गलती कर दी, दूसरा सिद्धार्थ के साथ मिलकर गलती कर दी...गलती कर दी तुमने अभय मुझे छेड़कर गलती कर दी और मेरे मुंह से निवाला छीनकर वो टेंडर जिसे मै हासिल करने के लिए अपने बाबा से भी टकरा गई थी...गलती कर दी। "ईरा अभय के सामने एक पैर से झुकी खड़ी दूसरा पैर उठाकर उसके सर के पास रखे हुए काफी एटीट्यूड और जलजलाती नजरों से उसे देख रही थी जबकि, अभय बेड की कॉर्नर से टेक लगाए आधा लेटा हुआ ईरा को अपने सामने देख कर कांप रहा था। अभय तुमने सबसे बड़ी और मेन गलती तो ये कर दी कि...तुमने गलती कर दी यार, गलती...मिस्टेक ईरा ने अपनी गन पॉइंट उसकी कनपटी पर रखते हुए एक अदा में कहा।.... तो बताओ यहां गोली मारूं तुम्हें या फिर! ईरा ने कहते हुए अपनी गन उसके मुंह के अंदर डाल दी और उसी तरह तेवर से बोली.... या फिर तुम्हारी हलक में सारी की सारी गोलियां उतार दूं, बोलो। यू नो अभय मेरा शौक है गन चलाने का तुम अपनी जिंदगी को मौत का शौक बना लो। ईरा ने उसके हलक से अपनी गन निकाली और उसकी नोंक से अपना सर खुजाते हुए उसी तेवर से उसे एकटक देखते हुए बोली.... तो बताओ अभय किस तरह मरना पसंद करोगे तुम मुझे मौत देने में बड़ा मजा आता है? ईरा देशमुख मैं तुम्हें.....!! "इसके पहले अभय अपनी बात पूरी करता कि कमरे के दूसरी तरफ से उसकी वाइफ ने अभय को पुकारा। अभय प्लीज सेव मी। "अभय ने अपनी वाइफ की तरफ देखा तो लक्ष्य उसका हाथ पकड़ कर खड़ा उसे देखते हुए मुस्कुरा रहा था। लक्ष्य की नजरों में एक फनी अंदाज था और चेहरे पर शरारत जबकि राज भी वही खड़ा पर था दोनो ने अभय की वाइफ को जरा भी नुकसान नही पहुंचाया। अभय गुस्से में दहाड़ उठा।.... लक्ष्य छोड़ उसे, छोड़ मेरी वाईफ को वर्ना!! लक्ष्य ने हंसते हुए मुस्कुराकर कहा।.... अरे अरे हां भई मैं इसे कुछ नहीं कर रहा हूं बस इससे पूछ रहा हूं कि क्या इसकी कोई छोटी बहन वहन है क्या है, वो क्या है ना कि मेरी मम्मी को बहू चाहिए? लक्ष्य ने अपने गाल के नीचे ठुड्डी के पास है एक अंगुली टिकाए हुए आंखें मटकाते बड़े फनी से इतराने वाले अंदाज में कहा कि राज को हंसी आ गई और अभय की वाइफ उसे आंखे फाड़े देख रही थी। लक्ष्य मैने कहा मेरी वाइफ को छोड़ उसको इसमें इंटर करने की जरूरत नहीं उसे कुछ नही मालूम? "अभय ने एक बार फिर से गुस्से में लक्ष्य को घूरते हुए चीखा तो, लक्ष्य हंसता हुआ बोला..... अरे यार तुम इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो तुम्हारी वाइफ बहुत ब्यूटीफुल है अगर इसकी कोई छोटी बहन होगी तो वो भी तो असीम सुंदरी होगी और...! लक्ष्य ने एक बार अभय की वाइफ को देखा फिर अभय को देखते हुए शरारत से बोला..... और अगर नहीं होगी इसकी कोई बहन तो वैसे भी तुम मरने वाले हो मैं इसीसे शादी कर लूंगा। लक्ष्य ने अभय से कहते हुए उसकी वाइफ का गाल धीरे से छूकर उसे देखते हुए बड़ी ही क्यूटनेस से कहा!..... सुनो बेबी मैं तुम्हें इस दानव से भी ज्यादा प्यार करूंगा ठीक है तुम मेरी बन जाना फिर शादी करेंगे, प्यार करेंगे, हमारे प्यारे-प्यारे बच्चे होंगे।।। शटअप। "अभय की वाइफ ने झटककर कहा तो लक्ष्य अपने सपनो से बाहर आया और ईरा ने इरिटेशन से लक्ष्य को देखते हुए जलकर पूछा। हो गया अब तुम्हारा? "ईरा में लक्ष्य के बाद राज को देखा और राज ने लक्ष्य को अपनी तरफ खींच लिया लक्ष्य ने मासूमियत से कहा।.... जलकुकडी ईरा देशमुख मेरा घर बसने नही देगी।         और आगे.............

  • 14. जबरिया इश्क़ - Chapter 14

    Words: 2154

    Estimated Reading Time: 13 min

    मेरे बाबा ने बताया कि तुम मुझसे मिलना चाहते हो, तो मैं आ गई। लो अभय, तुम्हारी ख्वाइश पूरी हुई, डूड।” ईरा की मुस्कुराहट कातिलाना थी।

    अभय बेड पर सिकुड़ा पड़ा था; आधा लेटा, आधा बैठा, बेड के कॉर्नर से टेक लगाए, जैसे थर-थर कांप रहा था।

    ईरा अभय के सर के पास अपना पैर टिकाकर उस पर और भी ज्यादा झुकी और एक सहमा देने वाली सर्द आवाज़ में कहा, “बोलो अभय, क्यों मिलना था मुझसे? बताओ, शर्माना नहीं?”

    ईरा ने नरम अंदाज़ में, मगर सुलगती आवाज़ से पूछा। अभय ईरा के खौफ से जैसे बिस्तर में ही धँसता जा रहा था।

    “बोलो अभय, क्या करोगे मुझसे मिलकर? मेरा रेप करना चाहते हो या फिर मेरे साथ सोना चाहते हो? बिंदास बोलो?” ईरा ने फिर से पूछा।


    “ई…ईरा, ईरा देखो मैं बता रहा हूँ, अगर तुमने मुझे कुछ किया ना तो मैं तुम्हें…!!” अभय अपनी लड़खड़ाती हुई आवाज़ में ईरा को खौफ भरी नज़रों से देखते हुए, जैसे उसे वॉर्निंग देने के अंदाज़ में, हकलाते हुए बोला। ईरा मुस्कुरा दी।


    ईरा ने अपनी गन से अपने माथे पर बिखरे बालों को साइड में कर लिया और तंजिया हँसकर बोली, “यार, मुझे वार्निंग पसंद नहीं है, और तुम वही कर रहे हो, यानी एक और गलती कर रहे हो?”

    ईरा ने अभय को प्यार से तंज करते हुए कहा और उसी कातिलाना मुस्कान से बोली, “देखो, अगर तुम्हें मुझसे कोई मतलब है तो मेरे सामने से आना, वार करना हो तो भी, क्योंकि मुझे पीठ पीछे वार करने वाले लोग पसंद नहीं। पर…!!”

    ईरा ने बोलते हुए अभय के दिल के पास अपनी गन पॉइंट करते हुए उसी अंदाज़ में कहा, “पर, पर हाँ, मैं जानती हूँ कि तुम जैसे लोग पीछे से ही वार करते हैं क्योंकि सामने आकर लड़ने की हिम्मत जरा भी नहीं होती। तो फिर ठीक है, आई एम रेडी। बट…”

    “सोच लो वार करने से पहले। इतना ज़रूर याद रखना, तक़रार मुझसे है तो वार मुझ पर ही होना चाहिए। अंशुल से दूर रहना, नहीं तो तुम्हारे बाप विराट को जब मारा था, तो वह बहुत जोर से चिल्लाया था। लेकिन आई प्रॉमिस कि मैं तुम्हें मुँह खोलने का भी वक़्त नहीं दूँगी, अभय।”


    ईरा उसके ऊपर से हटकर अलग खड़ी हो गई। अभय की वाइफ ने लक्ष्य के हाथ से अपना हाथ झटकते हुए खुद को छुड़ाया और दौड़ते हुए आकर अभय के पास उससे लिपट गई।


    “अभय, अभय तुम ठीक… ठीक तो हो ना?” उसकी वाइफ ने अभय के सीने में अपना चेहरा छुपाते हुए घबराहट में पूछा।

    अभय ने अपनी वाइफ को अपने बाजू से लगाते हुए, सामने खड़ी ईरा को नफ़रत भरी नज़र से घूरा।


    “अभय, कितना प्यार है यार तेरी वाइफ को तुझसे।” राज ने अभय और उसकी वाइफ को देखते हुए कहा। फिर लक्ष्य से बोला, “लक्ष्य यार, ये लड़की तो तेरे हाथ नहीं आने वाली भाई, तू दूसरी देख।”

    “लगता तो ऐसा ही है।” लक्ष्य ने क्यूट फेस बनाकर राज को देखते हुए कहा।

    अभय ने उन दोनों को नफ़रत से देखा और अपनी वाइफ को अपने दिल के पास सीने से चिपकाए रखा, जो रो रही थी।


    “देखो ईरा, तुमने मेरे पापा को मारा, लेकिन फिर भी मैं चुप हूँ, क्योंकि मुझे यह लड़ाई-झगड़ा और खून-खराबा सब पसंद नहीं, क्योंकि मैं…!!” अभय बोला।


    “वन्डरफुल, अमेजॉन, बेस्ट, गुड, नाइस यार! द विराट के बेटे को शांति पसंद है, भई वाह! सुना तुम दोनों ने?” ईरा ने तंज में अभय की बात काटते हुए, जैसे उसका मज़ाक उड़ाते हुए, मुस्कुराकर लक्ष्य और राज की तरफ़ देखा। वे दोनों भी हँस दिए।

    “अभय, तुम्हें मुझसे मिलना था और जब मैं आई हूँ तो कह रहे हो कि तुम्हें ये मीटिंग ही नहीं चाहिए? बताओ ना, क्या ज़रूरत पड़ गई तुम्हें मेरी?” ईरा ने अभय के पहलू में चिपकी उसकी वाइफ का हाथ पकड़कर उसे एक साइड करते हुए, अभय की आँखों में आँखें डालकर, जुनून भरी आवाज़ से पूछा।

    लक्ष्य ने एक बार फिर से अभय की वाइफ के पास आते हुए उसका हाथ थामा और उसे राज की तरफ़ लेकर अभय से काफ़ी दूर ले गया, जहाँ वो पहले खड़ा था।


    “अले, अले क्या हुआ बेबी को… तुम क्यों इतना डर रही हो बाबू? ईरा तुम्हें कुछ नहीं करेगी। वैसे इस टुच्चे अभय में ऐसा क्या है जो मुझ में नहीं… लुकेट मी शोन! देखो ना कितना क्यूट फेस है मेरा?” लक्ष्य ने एक स्माइल वाली मासूम सी क्यूट शक्ल बनाकर उसकी वाइफ की तरफ़ देखा। उसकी वाइफ ने टेबल पर रखी शैंपेन की बोतल उठा ली।


    “दूर रहो मुझसे, नहीं तो मार डालूँगी तुम्हें!” वो गुस्से में लक्ष्य पर बोतल तानकर चिल्लाकर बोली। अभय की वाइफ गुस्से में बोली और लक्ष्य से अपना हाथ छुड़ाकर दूर हट गई।


    “अरे लच्छे पराठे, तू क्यों मरना चाहता है? देख नहीं रहा है उसका हस्बैंड ईरा के चंगुल में है और तू है कि उसे छेड़ रहा है। अबे वो जान ले लेगी तेरी?” राज ने लक्ष्य को पकड़कर अपनी तरफ़ कर लिया।


    “अरे इतनी हसीन दिलरुबा के हाथों तो मरने को भी तैयार है ये लक्ष्य ठाकुर।” लक्ष्य ने किसी आशिक़ की तरह घुटनों पर बैठते हुए अभय की वाइफ से बड़ी आसानी से शैंपेन की बोतल छीन ली और उसे पीने लगा।


    “लक्ष्य!” ईरा ने लक्ष्य को कड़क आवाज़ में पुकारा। वह मुँह बनाते हुए सीधा होकर राज के बराबर खड़ा हो गया। राज ने लक्ष्य के हाथ से बोतल लेकर अपने मुँह में लगा ली और शैंपेन को जूस की तरह बिना साँस लिए पीने लगा।

    वह दोनों हँस रहे थे और ईरा जैसे उन दोनों की हरकतों पर इरिटेट होकर रह गई।


    “हाँ तो बोलो अभय, क्यों मिलना था तुम्हें मुझसे? देखो, अगर तुम्हें मेरा रेप करना है तो आई एम नॉट रेडी, बिकॉज़ मैं कोई बेचारी लड़की तो हूँ नहीं जिसे तुम यूज़ कर लो। पर हाँ… अगर तुम्हें मेरे साथ मुक़ाबला करना है तो आई एम रेडी। मुझे लड़ाई झगड़े में बड़ा मज़ा आता है।” ईरा अभय को तिरछी नज़रों से देखते हुए राज की तरफ़ चली आई और उसके हाथ से बोतल छीनकर खुद पीने लगी।

    अभय की वाइफ दौड़कर अभय से लिपट गई। उसे वाकई ईरा, लक्ष्य और राज से डर लग रहा था।

    अभय गुस्से में खड़ा ईरा, लक्ष्य और राज को घूर रहा था। जैसे उसके पास बोलने को कुछ नहीं है और ना ही वह इस वक़्त बोलना चाहता था, क्योंकि ईरा के हाथ में गन होना एक ऐसी बात थी जो किसी पर भी भारी पड़ सकती थी।

    अभय गार्ड्स को भी आवाज़ नहीं दे सकता था, क्योंकि बिना गन के भी ईरा ने उसके आदमियों को कई दफ़ा उसके ही सामने धोया था, वो भी अकेले ही।


    लक्ष्य और राज कमरे से बाहर नशे में झूमते हुए निकल गए और ईरा भी उनके पीछे नशे में चूर वापस जाने लगी। जाते-जाते दरवाज़े से पलटकर उसने एक बार फिर से अभय को देखा और उसके बगल में सिमटी खड़ी उसकी वाइफ को देखते हुए, हँसकर नशे से टूटी-फूटी आवाज़ में कहा, “वाइफ खूबसूरत है, पर शक्ल के अलावा ये अक़ल भी इस्तेमाल करे तो ज़्यादा बेटर हो।”

    ईरा दरवाज़े से टिक गई, “और हाँ अभय, नेक्स्ट टाइम अगर अपनी वाइफ के साथ टाइम बिताना है तो दरवाज़ा थोड़ा कसके बंद करना, क्योंकि हम… कुंडी मत खड़काओ राजा, सीधा अंदर आओ। राजा वालों में से हैं, यानी…”

    “तहलका मचाते हुए आते हैं, शोर करते हुए जाते हैं, बेझिझक… चलो बाय, अब तुम वापस से अपना कार्यक्रम शुरू कर सकते हो।” ईरा ने कहा और हँसते हुए, नशे से लड़खड़ाते हुए कमरे से बाहर निकल गई।


    उन तीनों के जाते ही अभय ने गुस्से में बेड पर पड़े ब्लैंकेट को खींचकर जमीन पर फेंक दिया और इतनी जोर से अपना पैर जमीन पर पटकते हुए चिल्लाया कि कई सारे गार्ड्स एक पल में उसके सामने आकर खड़े हो गए।

    अभय ने उन सब को घूरते हुए एक का कॉलर पकड़कर उसे झटक डाला, “क्या? हाँ, क्या करते हो तुम लोग यहाँ पर? तुम लोगों को किस चीज़ के पैसे मिलते हैं? कौन सा काम करने के लिए यहाँ हो तुम सब? तुम लोगों से एक लड़की नहीं संभाली जाती? वो बेधड़क आई है और मेरे रूम तक पहुँचकर मुझे वार्निंग दिया और फिर वापस भी चली गई, वो भी सही-सलामत! तुम लोग थे कहाँ?”

    अभय ने गुस्से में कहते हुए उस गार्ड को झटक दिया जिससे वह दीवार से जा टकराया। उसके गिरते ही अभय ने दूसरे गार्ड का कॉलर पकड़ लिया।

    “तुम लोगों की जान ले लूँगा मैं! जाओ यहाँ से निकलो!” अभय ने गुस्से में कहा, तो सारे गार्ड अपनी जान बचाने के लिए एक पल में कमरे से गायब हो गए।

    अभय ने अपनी वाइफ के बाल चूमते हुए उसे अपने सीने से लगाए रखा, फिर बेड पर पड़ा अपना मोबाइल उठाया और किसी को कॉल कर दिया।


    “हाँ हेलो!” एक आवाज़ अभय के कान में पड़ी।

    दूसरी तरफ़ से फ़ोन उठते ही अभय ने गुस्से भरी आवाज़ में कहा, “हाँ हेलो।”


    “क्या हुआ? क्यों फ़ोन करते हो इतना?” आवाज़ फिर आई।


    “आप… आप क्या चाहते हैं? मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूँ और वह ईरा मुझे…?”

    अभय की बात काटते हुए फ़ोन की दूसरी तरफ़ से वही कड़क आवाज़ आई, “क्या हुआ इस टाइम तुम्हें ईरा का ख्याल आ रहा है? क्यों? तुम्हारी वाइफ तुम्हें खुश नहीं रख पा रही क्या?”


    “देखिए आप मुझे…!!” अभय वापस गुस्से में कुछ कहता, जब एक बार फिर से उसे टोकते हुए फ़ोन से वही आवाज़ आई।


    “लड़के, ज़्यादा उछलने की ज़रूरत नहीं है। मैं जानता हूँ ईरा वहाँ आई थी और उसने क्या किया यह भी जानता हूँ, लेकिन तुम अभी कुछ नहीं करोगे, यह मैं तुम्हें एक बार फिर से बता रहा हूँ, समझे तुम?”


    “लेकिन मैं ईरा के हाथों क्यों मरूँ? वो मुझे छोड़ेगी नहीं।” अभय तिलमिलाकर बोला।


    “छोड़ेगी तो वो सिद्धार्थ को भी नहीं। उसे पता है, फिर भी सुदास को टक्कर देने के लिए वो तुम्हें इस्तेमाल करने वाली है। तुम्हें उससे बात करनी चाहिए… आइन्दा मुझे कॉल तभी करना जब कोई बात हो?” फ़ोन वाले ने अभय की बोलती बंद कर दी और गुस्से में उसे डाँटते हुए फ़ोन काट दिया।

    अभय ने दो पल अपना मोबाइल देखा और जोर से उसे जमीन पर पटककर तोड़ डाला, जबकि उसके पीछे खड़ी उसकी वाइफ डर के मारे सहम गई थी।

    अभय ने एक बार फिर से उसे बिस्तर पर पटका और इस बार वो दोहरी रफ़्तार से अपने गुस्से, झल्लाहट और ज़िद का नशा उस पर उतारने लगा।


    *********

    ईरा, राज और लक्ष्य तीनों दबे पाँव घर में दाखिल हुए। घर में चारों तरफ़ अंधेरा था। सुदास भी अपने रूम में शायद सोने चले गए थे और इस वक़्त घर में पूरी तरह सन्नाटा था।

    तीनों नशे में धुत थे, पर ईरा तो ठीक से चल भी नहीं पा रही थी और उसका एक हाथ लक्ष्य ने थाम रखा था और दूसरी तरफ़ राज ने संभाला हुआ था।

    दोनों ईरा को लिए उसके कमरे को ढूँढने लगे और काफ़ी देर भटकने के बाद वो एक कमरे को देखकर खुश हो गए।

    वो ईरा को थामे उसके कमरे की तरफ़ बढ़ने लगे, जबकि ईरा अधखुली आँखों से घिसलकर चलते हुए बड़बड़ाए जा रही थी, क्योंकि वो इस वक़्त पूरी तरह होश में नहीं थी, ना ही बेहोश थी।

    नशे में चूर ईरा को लक्ष्य और राज सीढ़ियाँ चढ़ाते हुए काफ़ी मशक्कत कर रहे थे; वो खुद भी तो नशे में थे।


    ईरा के कमरे के सामने खड़े होकर लक्ष्य ने धीरे से कमरे का दरवाज़ा खोलने के लिए अपना हाथ बढ़ाना चाहा, पर उससे पहले ही अंशुल दरवाज़ा खोलकर उनके सामने खड़ा हो गया।

    अंशुल ने पहले ईरा को देखा, जो उसके सामने आँखें बंद किए हुए नशे में झूल रही थी, जिसे लक्ष्य और राज ने संभाला हुआ था।


    “आ गए तुम तीनों जंग फ़तह करके? वैसे आज किसे मारकर आए हो?” अंशुल ने उन तीनों को डाँटती नज़रों से देखा और सीने पर हाथ बाँधकर खड़ा हो गया।


    “नहीं तो किसी को नहीं। हम लोग तो कितने मासूम हैं, किसी को नहीं मारते हैं, कभी नहीं मारते अंशू?” ईरा ने हँसते हुए जवाब दिया। अंशुल ने उसे पकड़कर अपनी तरफ़ खींच लिया।

    “अरे, अरे अंशुल संभालकर! क्या कर रहे हो?” राज जल्दी से बोला।


    अंशुल ने राज के हाथों से ईरा का हाथ छुड़ाया और उसे अपने सीने में छुपाकर राज का हाथ अपनी तरफ़ वापस झटक दिया। “मुझे पता है कितना संभालकर करना है। ये मेरी ही अमानत है और इसे मैं अपनी मर्ज़ी से ट्रीट करने को पूरी तरह आज़ाद हूँ भाई।” अंशुल ने ईरा का चेहरा पकड़कर सामने किया और उसकी बंद आँखों को देखते हुए उसे अपनी आगोश में समेट लिया।


    और आगे…

  • 15. जबरिया इश्क़ - Chapter 15

    Words: 1215

    Estimated Reading Time: 8 min

    अंशुल ने राज का हाथ पकड़कर उसके पास से झटक दिया, जिससे उसने ईरा को थाम रखा था। ईरा लड़खड़ा गई, तो अंशुल ने फौरन उसे खींचकर अपने सीने से लगा लिया।

    राज घबराते हुए बोला, "अंशुल! संभलकर क्या कर रहे हो तुम? यार, उसे झटकों मत ऐसे।"

    अंशुल ने ईरा का मुँह दबाते हुए, उसका चेहरा अपने चेहरे के सामने करके उसे एक डाँटती, गुस्सेल नज़र से गौर से देखा और फिर, राज की तरफ देखते हुए बोला, "राज भाई, आपको इसकी टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं। इसके लिए मैं हूँ, और मैं अकेला काफी हूँ। आप फ़िक्र मत करें। यह मेरी अमानत है, मैं इसे जैसे चाहूँ, वैसे ट्रीट कर सकता हूँ?"

    "मैं तो ऐसे ही बोल रहा था।" राज ने अपनी बत्तीसी चमकाते हुए हँसकर कहा।

    अंशुल ने इस बार उसकी तरफ़ से लक्ष्य की तरफ़ देखा, जो अभी भी ईरा का दूसरा हाथ थामे खड़ा था। जैसे ही अंशुल ने लक्ष्य को अपनी घूरती नज़रों से देखा, लक्ष्य ने फ़ौरन ईरा का हाथ छोड़कर अपने दोनों हाथ अपनी पीठ के पीछे छिपा लिए।

    लक्ष्य बच्चों की तरह मासूम चेहरा बनाकर, राज की ही तरह दाँत दिखाते हुए हँस दिया। "नहीं यार अंशुल! मैंने कुछ नहीं किया। यह तुम्हारी ही बीवी है, पत्नी है, वाइफ है, अर्धांगिनी है... ले जाओ इसे अपने साथ। मुझे क्या?"

    "और अब आप दोनों भी जाइए अपने कमरे में।" अंशुल ने राज और लक्ष्य को देखते हुए कहा और ईरा को अपने सीने से लगाए हुए, उसे अपने साथ लिए, पलटकर वापस कमरे की तरफ़ आ गया।

    अंशुल ईरा को थामे हुए कमरे के अंदर ले आया और लाते ही उसे बेड पर पटक दिया। ईरा, जो ठीक से चल भी नहीं पा रही थी, उसकी नशे में आँखें बंद थीं। जैसे ही अंशुल ने उसे बेड पर फेंका, वह औंधे मुँह बेड पर लेटकर चादर को गोद में लिए सिकुड़ गई।

    अंशुल कमरे का दरवाज़ा बंद करने के लिए जैसे ही वापस दरवाज़े की तरफ़ पलटा, राज और लक्ष्य अभी भी वहीं खड़े थे। उन दोनों को देखकर अंशुल जल्दी-जल्दी दरवाज़े पर आया।

    उसने दोनों को बारी-बारी से देखा और बोला, "क्या हुआ? आप दोनों गए नहीं अब तक? जाइए, यहाँ क्यों खड़े हैं?"

    अंशुल की बात पर राज, नशे में झूलते हुए, सीने पर अपने दोनों हाथ बाँधकर दीवार से टिककर खड़ा हो गया। उसने अपने दाँत दिखाते हुए, बड़ा सा मुँह खोलकर हँसते हुए कहा, "हम कहाँ जाएँगे अंशुल? हम भी तो यहीं तुम्हारे साथ सोएँगे ना?"

    राज की बात पर हाँ में हाँ मिलाते हुए, लक्ष्य फ़ौरन उससे हाई-फ़ाई लेकर अंशुल की तरफ़ देखते हुए बोला, "हाँ, वही तो अंशुल! जैसे ईरा यहाँ सोएगी तुम्हारे साथ, वैसे ही मैं और राज भी यहीं सोएँगे तुम्हारे साथ। सब साथ-साथ सोएँगे। मज़ा आएगा।"

    उन दोनों की बातों पर, उन्हें हैरत से देखते हुए, अंशुल ने चुप्पी साधकर दो मिनट खड़े रहने के बाद एकदम से ही अपना सर पीट लिया। इस वक़्त वह दोनों इतने नशे में थे कि उन्हें ना तो कुछ समझ आ रहा था और ना ही अंशुल भैंस के आगे बीन बजाकर उन्हें समझाने की कोशिश करना चाहता था, क्योंकि उनसे कुछ भी कहना इस वक़्त वाकई बेकार ही था।

    अंशुल ने दो पल उन दोनों को देखा और फिर उनका हाथ पकड़ते हुए, अपने कमरे के सामने वाले दूसरे कमरे में इशारा करते हुए कहा, "आप दोनों वहाँ सोएँगे। उस कमरे में। वह कमरा आप दोनों का है। जाइए, प्लीज़! यहाँ नहीं सो सकते आप लोग।"

    "पर क्यों? हमारा कमरा वहाँ है, तो फिर ईरा यहाँ क्यों सो रही है?" लक्ष्य ने जल्दी से सवाल किया।

    अंशुल इरिटेट होकर बोला, "क्योंकि ईरा का कमरा यही है, इसलिए ये यहाँ सोएगी, इस कमरे में।"

    "ओह अच्छा... अच्छा! तो फिर अगर यह ईरा का कमरा है, तो तुम यहाँ क्यों सोने जा रहे हो उसके कमरे में? चलो, तुम भी यहाँ से?" राज ने मासूमियत से सोचते हुए अपने गाल पर एक अंगुली पॉइंट करके, बड़े ही भोलेपन वाली आवाज़ में कहा। तो अंशुल ने अपने बाल नोच डाले।

    "ओह गॉड! कहाँ फँस गया मैं इन बेवड़ों के चक्कर में?" अंशुल ने अपने आप से ही कहा और फिर राज को देखते हुए बोला, "देखिए राज भाई, मैं ईरा के साथ ही रहता हूँ। यहीं सोता हूँ उसके पास, क्योंकि यह कमरा मेरा भी है।"

    "अच्छा! तो तुम अगर ईरा के साथ रहते हो इस कमरे में, तो हम क्यों नहीं रह सकते ईरा के साथ? बोलो, बोलो... व्हाई?" इस बार लक्ष्य ने भी अपने माइंड पर उंगली रखकर, बड़े ही दिमागी इंसान की तरह पॉइंट ढूँढ़ते हुए सोचकर अंशुल से पूछा।

    "क्योंकि मैं इसका एकलौता पति हूँ यार! मैं क्यों अपनी पत्नी को किसी और के साथ शेयर करूँगा?" अंशुल को अब कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह टेंशन में अपना सर पकड़े दीवार से माथा पटकने लगा।

    "गॉड यार! अब मैं इन दोनों को नहीं समझा सकता, नेवर।" अंशुल ने लक्ष्य और राज को घूरते हुए कहा, "अगर आप दोनों हैंडल नहीं कर सकते, तो पीते क्यों हो यार?"

    "अरे! हमने कहाँ पी है? हम पियक्कड़ थोड़े हैं? हम तो कभी जूस भी नहीं पीते... हैं ना राज?" लक्ष्य ने राज की तरफ़ देखते हुए अंशुल से कहा।

    राज फ़ौरन सीधा खड़ा होता हुआ बोला, "हाँ, वही तो लक्ष्य! हम तो कभी पीते ही नहीं। यह पीना क्या चीज़ है अंशुल?"

    अंशुल ने अब आँखें बंद करते हुए दो पल जैसे कुछ सोचा और फिर उन दोनों की तरफ़ देखने लगा।

    उसने कुढ़कर कहा, "राज भाई, लच्छेदार पराठे, आई एम सॉरी, लेकिन मुझे अब ये करना ही पड़ेगा।" अंशुल ने कहते हुए कमरे का दरवाज़ा उन दोनों के मुँह पर धड़ाम से बंद कर लिया और गहरी साँस लेते हुए वापस कमरे में चला आया, जहाँ इस वक़्त ईरा बेड पर औंधे मुँह पड़ी हुई थी।

    ईरा का एक हाथ और दोनों पैर बेड से नीचे लटक रहे थे। अंशुल ने उसे एक भरपूर नज़र देखा और फिर अपने आप से बोला, "अब इस टल्ली, नशेड़ी को भी देखना पड़ेगा मुझे।"

    अंशुल ने गहरी साँस लेते हुए खुद से कहा और अलमारी की तरफ़ चला आया। उसने अलमारी से ईरा की एक शर्ट निकाली और उसे लेकर बेड की तरफ़ चला आया। अंशुल बेड पर पड़ी ईरा को देखते हुए, अपने दोनों घुटने मोड़कर बेड से नीचे ईरा के पास, उसके सामने बैठ गया।

    अंशुल ने ईरा का हाथ पकड़कर उसे बेड पर, पैर लटकाए हुए ही सीधा बैठाया और उसके हैवी लाँग जूते निकालकर अलग कर दिए। फिर उसे थामकर अपने सीने पर उसका सर रखते हुए, उसकी जैकेट निकालकर अलग कर दी।

    अंशुल अब ईरा की एकलौती टी-शर्ट भी निकालने वाला था, जब नशे में धुत ईरा ने पियक्कड़ नशेबाज़ी में हँसना शुरू कर दिया। उसने अंशुल के हाथ पकड़ लिए और नशे में झूलती हुई, बच्चों की तरह पागलपन से खिलखिलाते हुए बोली, "क्या कर रहे हो तुम अंशू? मेरा फ़ायदा उठा रहे हो? इरादा क्या है हीरो का?"

    "चुप! एकदम चुप! नहीं तो थप्पड़ पड़ेगा।" अंशुल ने अपने होंठों पर अंगुली रखते हुए ईरा को डाँटा, तो वह जो ज़ोर-ज़ोर से हँस रही थी, मुँह बिगाड़कर बैठ गई।
    ईरा ने इतना क्यूट फ़ेस बनाया था, होंठों को पाउट करके, कि अंशुल को हँसी आ गई और उसने ईरा को बेड पर धकेलकर उसके माथे को चूम लिया।

    और आगे...........

    इसके बाद का नेक्स्ट पार्ट थोड़ा लाँग आने वाला है क्योंकि थोड़ा ज़्यादा... नहीं बताऊँगी 😊

  • 16. जबरिया इश्क़ - Chapter 16

    Words: 2871

    Estimated Reading Time: 18 min

    अंशुल ने ईरा को बेड पर बैठाया। वह बेड पर थी, पर उसके पैर बेड से नीचे लटक रहे थे। उसके सामने खड़े अंशुल ने पहले उसकी जैकेट उतारकर साइड में रखी। जैसे ही उसने उसकी टीशर्ट उतारने लगा, ईरा छोटे बच्चे की तरह नशे में चूर, चेहरा इधर-उधर करते हुए, खिलखिला कर हंसने लगी।

    "क्या कर रहे हो मेरे साथ अंशू?" उसने अंशुल के हाथ पकड़ लिए और उसकी तरफ शरारत से देखते हुए हंसकर बोला।


    "चुप! एकदम चुप! ज्यादा मुंह खोला तो पीट दूंगा तुम्हें आज।" अंशुल ने उसे डांट दिया।


    अंशुल की डांट पर ईरा, क्यूटनेस से बैठी, उसे देखती रही। अंशुल ने हंसते हुए उसे बेड पर धक्का दिया और उसके ऊपर आकर उसका माथा चूम लिया।


    अंशुल ने उसे दुबारा उठाकर बैठा दिया। वापस जैसे ही उसने उसकी टीशर्ट पर हाथ रखा, ईरा ने उसके हाथ पकड़कर कहा, "मुझे तुम्हारे साथ रोमांस नहीं करना। तुम गंदे हो, तुमने मुझे डांटा है।"


    उसने ईरा के दोनों हाथ पकड़कर झटक दिए और पूरे हक से उसकी टीशर्ट उतारते हुए बोला, "तुम्हारे साथ मुझे कुछ करने की कोई जरूरत नहीं पड़ती। जो करती हो, तुम खुद ही करती हो मेरे साथ। मैं बस तुम्हारे कपड़े चेंज कर रहा हूँ। इनमें तुम्हें नींद नहीं आएगी।"


    "ओह्ह! तुम मेरे कपड़े चेंज करोगे? शर्म नहीं आती अंशू?" ईरा ने अपना मुँह खोलते हुए, मुँह पर हाथ रखकर, बड़ी-बड़ी आँखें दिखाते हुए अंशुल से कहा। अंशुल उसे घूरने लगा।


    वह बनावटी गुस्से में, वापस ईरा को डांटने की एक्टिंग में बोला, "यह ज्यादा शर्माने की जरूरत नहीं है। बोल तो ऐसे रही हो जैसे कि मैंने तुम्हें कभी इस तरह देखा ही न हो... आज कुछ नया करने जा रहा हूँ क्या?"


    अंशुल ने कहा और उसकी तरफ बढ़ा। ईरा बच्चों सी जिद में बोली, "नहीं, नहीं! मैं तुम्हें मेरी टीशर्ट नहीं उतारने दूँगी। तुम गंदे हो! हटो मेरे पास से।"


    ईरा ने एक बार फिर से अंशुल के हाथ पकड़ लिए। अंशुल ने पीछे से उसके बालों को पकड़कर झटका दिया जिससे उसका चेहरा अंशुल के चेहरे के एकदम सामने आ गया।


    "ईरा! मैं जो कर रहा हूँ, करने दो। चुपचाप बैठी रहो। समझी तुम?" अंशुल ने दाँत पीसते हुए, इरिटेशन में उसे डांटा। ईरा ने बच्चे की तरह अपने मुँह पर एक उंगली रख ली।


    "हाँ, ठीक है। पर डांटो मत। नहीं तो..." ईरा ने बात अधूरी छोड़ दी।


    "नहीं तो क्या?" अंशुल ने पूछा।


    "नहीं तो मैं रोने लगूंगी और भाग जाऊंगी अपने बाबा के पास।" ईरा इस वक्त नशे में आउट ऑफ़ कंट्रोल थी। उसे खुद नहीं पता था वह क्या कह रही है। लोगो को भगाने वाली, दुश्मनों को रुला देने वाली ईरा देशमुख थी वह?


    "नशेबाज़ी।" अंशुल ने मुँह टेढ़ा करके कहा और वापस उसकी टीशर्ट उतारने लगा।


    वह खुद में ही ईरा पर बड़बड़ाए जा रहा था और ईरा को मजबूती से पकड़े हुए उसे जबरदस्ती बिठाए रहा। "बड़ी आई! शर्मा तो ऐसे रही है जैसे कि मैंने इसकी यह भारी सिक्स पैक वाली बॉडी कभी देखी ही ना हो... डोले-शोले तो ऐसे बनाए हैं जैसे कि रोज़ जंग पर जाना है बेचारी शोल्जर को... अरे! जब हैंडल नहीं होता तो पीना ज़रूरी है क्या?"


    अंशुल ईरा की टीशर्ट उतारते हुए बड़बड़ा रहा था और ईरा उसे देखते हुए हँस रही थी।


    ईरा ने उसे देखते हुए उसके गाल में चिकोटी काट ली और कसकर उसका गाल अपने लंबे नाखून से खरोच दिया जिससे अंशुल सिसक गया।


    "क्या कर रही हो? नोचकर खा जाओगी क्या मुझे अपने इन धारदार हथियार जैसे नाखूनों से?" अंशुल ने उसे घूरकर कहा।


    "अंशू! तुम कितने क्यूट हो।" ईरा ने हँसकर कहा।


    "हाँ, मैं जानता हूँ मैं कितना क्यूट हूँ। तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है। तभी तो तुम मेरा फ़ायदा उठाती रहती हो हमेशा।" अंशुल ने तिरछी नज़रों से उसे देखते हुए कहा।


    "मेरे हो ना तुम अंशू।" ईरा झूलती हुई बोली।


    "इतनी टाइट छोटी सी टीशर्ट पहनती हो? ये तुम्हारे तीसरी क्लास के कपड़े हैं क्या?" अंशुल उसके हाथ ऊपर किए, टीशर्ट खींचकर निकाल रहा था जो भीगी-भीगी सी उसके बदन से चिपकी हुई थी।


    "अगर इस टाइम पर किसी और की पत्नी रात में इस तरह घूमकर लौटी होती तो वह जाने क्या कर बैठता, लेकिन मैं क्या करूँ? कहाँ जाकर सर पटकूँ? मैं कहाँ तो एक लड़की से भी बात नहीं कर सकता और तुम दो-दो लड़कों के साथ आधी-आधी रात तक घूमती फिरती हो। मुझे फ़र्क नहीं पड़ता क्या?" अंशुल ने गुस्से में ईरा को डांटते हुए कहा और उसकी टीशर्ट उतारकर उस साइड में रख दी। फिर दूसरी टीशर्ट पहनाते हुए बोला।


    ईरा अंशुल की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी। फिर उसने अपना निचला होंठ पकड़कर धीरे से मसाला दिया। अंशुल ने उसका हाथ झटक दिया।


    "क्या कर रही हो? होश में नहीं हो? नशा सवार है, लेकिन फिर भी यह सब सूझ रहा है तुम्हें... मैं कहीं भागा तो नहीं जा रहा ईरा। तुम्हारे साथ ही हूँ। जो करना है, करती रहना। पर बाद में यहीं रहूँगा मैं... ना तो तुम्हें रोका है कभी यह सब करने से और ना ही कभी रोकूँगा।"


    ईरा ने अपने सामने झुके अंशुल के गले में चूम लिया और खिलखिला कर हँसते हुए अंशुल को देखा। फिर आँखें बंद करके पीछे बैठकर गिरने लगी। अंशुल ने उसे पकड़कर वापस उसकी जगह पर बैठा दिया।


    "बेवड़ी कहीं! सीधी बैठी रहो।" अंशुल ने ईरा को दूसरी शर्ट पहनाई और उसे गोद में उठाकर बिस्तर की तरफ चला आया। ईरा को अपनी साइड पर लेटाते हुए वह खुद अपनी जगह पर लेट गया।


    "सो जाओ अब।" अंशुल के बेड की कॉर्नर से टेक लगाकर बैठते ही ईरा फ़ौरन उठकर उसके ऊपर आ गई और उसके पेट पर लेटते हुए सीने से सीना जोड़कर चिपक गई।


    "ईरा! क्या कर रही हो?" अंशुल ने उसके पेट और पीठ पर अपने हाथ रखते हुए पूछा।


    ईरा उससे और भी कसकर लिपटते हुए, धीरे से बंद आँखों से बोली, "मुझे तुम्हारे पास सोना है। दूर नहीं जाऊँगी मैं।"


    "उफ़्फ़ ईरा! कितना भारी हो तुम यार!" अंशुल ने ईरा की कमर पर अपने दोनों हाथ लपेट लिए और धीरे से उसकी पीठ पर एक हल्की चपत मारते हुए कसके अपने सीने से चिपका लिया। ईरा ने भी बच्चे की तरह खिलखिलाते हुए हँसकर अंशुल की नाक से अपनी नाक रब की और वापस उसकी गर्दन में चेहरा छुपाकर आँखें बंद कर ली।


    अंशुल ने रैक पर रखी अपनी बुक उठाई और उसे अपने सीने पर, पेट के बल लेटी ईरा की पीठ पर रखकर पढ़ने लगा। जबकि अपने दूसरे हाथ से वह ईरा की पीठ को हल्का-हल्का सहला रहा था। उसने अपने चेहरे के सामने लगे ईरा के बालों में धीरे से चूम लिया।


    ईरा अंशुल के पेट पर लेटी, उसकी गर्दन में अपने दोनों हाथ फँसाए, सो गई थी। अभी कुछ वक्त ही बीता था जब राज और लक्ष्य एकदम ही, बिना नॉक किए, दरवाज़ा धड़धड़ाहते हुए खोलकर बेपरवाह से अंदर चले आए। दोनों दौड़ते हुए इतना जल्दी-जल्दी में आए थे कि अब उतनी ही रफ्तार से कमरे में, अंशुल के सामने, बिस्तर के पास खड़े, हाँफ रहे थे।


    ईरा, जो अंशुल से चिपकी, उसके ऊपर लेटी हुई थी। उन दोनों के इस तरह शोर मचाते हुए, चिल्लाकर कमरे में आने से वह जाग गई। उसने जैसे ही उन दोनों की तरफ देखने के बाद अंशुल की तरफ देखा, अंशुल ने उसे अपने ऊपर से हटाकर बेड पर बैठा दिया और खुद उसे घूरती नज़रों से, जैसे नागवारी से देखते हुए, बालकनी में चला गया।


    ईरा को अंशुल का यूँ इस तरह से मायूस हो जाना बुरा लगा था। वह समझ गई कि अंशुल का मूड ऑफ़ हो गया है। उसके इस तरह से पर्सनल मोमेंट में राज और लक्ष्य ने बेधड़क आकर दखलअंदाज़ी जो कर दी थी।


    ईरा अंशुल से कुछ कहती, इससे पहले ही अंशुल बोला, "टेक योर टाइम ईरा। जब तुम्हें सबसे फुर्सत हुआ करे तब तुम मेरे पास आया करो। मैं तुम्हारा वेट कर सकता हूँ, पर अच्छा नहीं लगता जब कोई तुम पर मुझसे मेरा टाइम भी...!!" अंशुल ने कहा और वहाँ से चला गया।


    ईरा ने सामने खड़े लक्ष्य और राज को घूरकर देखा और उन्हें गुस्से में डांटने ही वाली थी, जब उन दोनों ने कान पकड़कर धीरे से सॉरी बोल दिया।


    "क्या है? हाँ... क्यों मरने आए हो यहाँ?" ईरा बेड से उठकर दोनों की तरफ लपकी थी। बचने के लिए वे दोनों पीछे जाते हुए जल्दी-जल्दी एक साथ बोले।


    "ईरा, एम सॉरी! लेकिन कुछ अर्जेंट था इसलिए आना पड़ा।" राज अपने कान पकड़े, रिक्वेस्टली बोला।


    लक्ष्य भी ईरा के गुस्से का शिकार नहीं बनना चाहता था। तो मासूम सूरत बनाकर कान पकड़े हुए बोला, "ईरा, आई नो! अंशुल के साथ होने पर तुम्हें किसी का इंटरफ़ेयर पसंद नहीं। पर इम्पोर्टेन्ट था यार! सॉरी, माफ़ी कर दो?"


    "ऐसी कौन सी अर्जेंट आफ़त टूट पड़ी थी तुम लोगों पर जो तुम सुबह बात नहीं कर सकते थे? अंशू का मूड खराब कर दिया ना तुम दोनों बेवकूफ़ों ने? एक तो कभी-कभी उसे मुझ पर प्यार आता है, वह भी तुम दोनों की वजह से... मार डालूँगी मैं तुमको?" ईरा गुस्से में उन दोनों को डांट रही थी और वे दोनों डर से घबरा गए थे।


    ईरा उन दोनों को और भी डांटती, जब राज ने लक्ष्य को किसी चीज़ का इशारा किया। लक्ष्य ने फ़ौरन ईरा की तरफ़ मोबाइल बढ़ाते हुए जल्दी-जल्दी कहा,


    "ईरा, ईरा! शांत! तुम्हारे लिए फ़ोन है। इसलिए आना पड़ा यार।" लक्ष्य ने जल्दी-जल्दी हकलाते हुए कहा।


    ईरा ने लक्ष्य को गुस्से में देखा और उसके बाद राज को घूरते हुए, लक्ष्य के हाथ से मोबाइल छीनकर कान से लगा लिया।


    ईरा अभी हेलो भी नहीं कह पाई थी, जब फ़ोन से किसी अनजान की आवाज़ गूँजी, "हेलो, हेलो! और हिलती रहो ईरा! कैसी हो? उम्मीद करता हूँ कि हिल ही गई होगी?"


    "कौन हो तुम?" ईरा ने आँखें छोटी करते हुए, सवालिया अंदाज़ में पूछा। उधर फ़ोन में से कोई ठहाके लगाकर जोर-जोर से बेतुकी हँसी हँसने लगा।


    "अरे, अरे! तुमने मुझे नहीं पहचाना? चलो ठीक है। बता देता हूँ कि मैं तुम्हारा ही एक शुभचिंतक हूँ ईरा बच्ची! जिसे तुम्हारी फ़िक्र होती है।" वह जो भी था, ईरा को तंज कसते हुए उसका मज़ाक बना रहा था।


    ईरा ने उसकी बातों से नफ़रत में सुलगते हुए कहा, "मेरे शुभचिंतक होने के लिए मैंने कुत्ता पालना छोड़ दिया है। तुम बताओ कौन हो? मेरा वफ़ादार कुत्ता या फिर मेरी आस्तीन में छुपा कोई अजगर जो सामने होकर भी मुखौटे में रहता है?"


    "ईरा, ईरा, ईरा! तुम बहुत स्ट्रांग हो ईरा! ना सब जानते हैं कि तुममें वह पावर है जो तुम्हारे बाप में भी नहीं है। तुम अपने बाप से भी शॉप हो, लेकिन शायद तुम भूल रही हो कि तुम्हारी एक छोटी सी प्रॉब्लम है...!!"


    "ख़बरदार जो तुमने अंशुल का नाम लिया! तो अगर इतनी ही हिम्मत है तो छिपाना छोड़कर मेरे सामने आओ। तुम्हें भी पता चल ही जाएगा कौन स्ट्रांग है और तुम्हारी हस्ती क्या है?" ईरा ने फ़ौरन उसकी बात काटते हुए कहा और वह फ़ोन वाला इंसान जोर-जोर से हँसने लगा।


    वह ईरा को ताना मारते हुए ख़ुन्नस निकाल रहा था, "तुम्हारी हर बात अंशुल से शुरू और उसी पर ख़त्म क्यों होती है? ईरा देशमुख किसी की इतनी दीवानी कैसे हो सकती है? यकीन नहीं आता... कहीं ऐसा तो नहीं कि अंशुल ही तुम्हारा जानी दुश्मन हो जो तुम्हारा अजगर हो आस्तीन का?"


    "शटअप! बस आख़िरी बात... बताओ कि कौन हो तुम?" ईरा ने गुस्से में पूछा।


    इधर बालकनी में खड़ा अंशुल एक नंबर को डायल कर रहा था और उसका फ़ोन उठते ही उसे अब ईरा और उस फ़ोन करने वाले की बातें अपने मोबाइल फ़ोन से साफ़ सुनाई दे रही थीं, जिसे अंशुल साँस रोके गौर से सुन रहा था।


    "सुना है कि तुम्हारे पास तुम्हारी कमज़ोरी है ईरा! वेरी बैड।" उस अजनबी आवाज़ ने कहा। और ईरा सामने खड़े लक्ष्य और राज को देख रही थी जिनका खुद भी जैसे ख़ून खौल रहा था।


    "ईरा की कमज़ोरी भी ईरा की ताक़तों का ही एक हिस्सा है। ईरा कभी रुकती नहीं।" ईरा ने तेवर से कहा।


    "छोटी बंद जगहों पर तुम्हें साँस नहीं आती, आँखों के सामने अंधेरा, साँस रुक जाना, घुटन महसूस होना जैसी बड़ी प्रॉब्लम है, जिससे तुम्हें बहुत तकलीफ़ होती है। लगता है तुम्हारी बीमारी को...!!" इससे पहले वह फ़ोन वाला हँसते हुए कुछ और बोलता, ईरा दहाड़ उठी।


    "मुझे कोई बीमारी नहीं है! समझे तुम? आई एम फ़िट एंड फ़ाइन! और अगर तुम्हें मुझसे टकराना है तो जब चाहो आ सकते हो, आई एम रेडी।" ईरा बड़े आराम से, सुलगते अंगारों सी बोल रही थी।


    "इस तरह छुपे हुए डरपोकों की तरह मुँह चुराकर बात करने से कोई फ़ायदा नहीं। सीधा मुलाक़ात करते हैं ना... तुम मुलाक़ात कर लेना, मैं मुक्का-लात कर लूँगी।"


    फ़ोन से झल्लाहट भरी आवाज़ आई जो ईरा की बातों से कुढ़ गया था, "ईरा! तुम्हारे अंदर बहुत इगो है लगता है। ख़ून से ज़्यादा तुम्हारे अंदर तुम्हारे बाप का दिया एटीट्यूड बह रहा है। चलो कोई बात नहीं?"


    ईरा उसकी बातें सुनकर इरिटेट हुई जा रही थी। वहीं बालकनी में खड़े, अपने फ़ोन पर सब सुन रहे अंशुल का बस नहीं चल रहा था कि वह फ़ोन में घुस जाए और दूसरी तरफ़ से ईरा को फ़ोन करने वाले को घसीट-घसीटकर तब तक मारे जब तक वह मर न जाए। अंशुल तेज़ साँस भी नहीं ले सकता था जिससे कहीं ईरा को भनक न हो जाती कि फ़ोन पर कोई तीसरा भी जुड़ा है।


    वह फ़ोन करने वाला जो भी था, बस ईरा को उकसा रहा था, "सोचो! अगर तुम किसी दिन अपनी गाड़ी से कहीं जा रही हो और वह गाड़ी चारों तरफ़ से लॉक हो जाए और उसमें तुम अकेली फँस जाओ तो क्या होगा ईरा?"


    उसने हँसकर दाँत पीसते हुए कहा। पर ईरा शांत खड़ी उसकी बात सुन रही थी।


    वह आगे भी उसी तरह बोलता रहा, "तुम्हारी गाड़ी किसी सुनसान जगह पर खड़ी हो ईरा! जहाँ आस-पास कोई भी ना हो, बंद गाड़ी जिसमें हवा भी पास नहीं हो सके और तुम जो इतनी शेर दिल हो उसमें कैद हो जाओ, जिसे वैसे ही बंद जगहों पर प्रॉब्लम होती है, वह उस वक़्त लॉक गाड़ी में क्या करेंगी? ईरा सोचो जरा सोचो?"


    फ़ोन वाला हँस रहा था और इधर ईरा के गुस्से का पारा हाई हो रहा था। उसने बड़े इत्मीनान से एक लंबी साँस ली और उसी रिलैक्स में बोली, "क्या सोचूँ यार? अपने बारे में क्या सोचूँ? मूड नहीं है अभी मेरा... मुझे बस यही सोचकर टेंशन हो रही है तुम्हारे लिए कि अगर तुम मेरे सामने होते अभी तो तुम्हारा क्या हाल हुआ होता?"


    "ईरा!" वह गुस्से में चीख उठा।


    "ईरा" हँसकर बोली, "क्या हुआ? सिर्फ़ बोला तो बुरा लग गया? जिस दिन करूँगी उस दिन दर्द कैसे सह पाओगे?"


    "आऊँगा मैं तुम्हारे सामने भी आऊँगा ईरा! बहुत जल्द! लेकिन मैं तुम्हें बता दूँ कि मैं तुम्हारे आस-पास ही हूँ, तुम्हारे सामने ही हूँ, लेकिन तुम देख नहीं सकती मुझे।" वह अब हँसकर बोला।


    ईरा बेभाव, बोरियत से बोली, "हाँ, मुझे पता है तुम मेरे पास ही हो और मुझे यह भी पता है कि तुम मेरे सामने नहीं आओगे क्योंकि भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं और तुम तो कुत्ते से भी गए-गुज़रे हो। मुझे छुप-छुपकर वार करने वाले लोग पसंद नहीं। लेकिन साला मुझे जो भी मिलता है डरपोक ही मिलता है... अगर कभी फुर्सत हो और हिम्मत की शर्म तो मेरे सामने आ सकते हो, आई एम टोटली फ़्री एंड वेटिंग फ़ॉर यू।"


    "बहुत बोलती हो ईरा! लेकिन मैं तुम्हारी बातों में आ जाऊँ, इतना पागल नहीं हूँ। मुझे पता है तुम्हारे सामने आना इतना आसान नहीं। लेकिन आऊँगा ज़रूर! वह भी सारी तैयारी के साथ। वेट एंड वॉच।" वह आदमी जो भी था, ईरा के कॉन्फिडेंस और निडरता से जलभुन रहा था।


    ईरा बेपरवाह सी अपनी अंगुलियाँ चटखाते हुए बोली, "अरे नहीं रे! तू वेट कर। मैं तुझे वॉच करने के लिए तुझे ढूँढ ही निकालूँगी डरपोक को! मम्मी के पल्लू में रहना चाहिए। वैसे तू मैरिड है क्या?" ईरा ने थोड़ा सा रुककर पूछा।


    वह इरिटेट आवाज़ में बोला, "क्यों?"


    ईरा ने कहा, "क्योंकि मैरिड होता तो मम्मी नहीं, पत्नी के पल्लू में छुप सकता था। पर फ़ायदा कोई नहीं क्योंकि मारूँगी तो तुझे मैं ही।"


    ईरा और उस फ़ोन करने वाले आदमी से बहस हो रही थी। वहीं बालकनी में खड़ा अंशुल उन दोनों की बातें अपने फ़ोन पर सुनते हुए शांत था।


    ईरा ने जैसे ही फ़ोन काटकर लक्ष्य की तरफ़ बढ़ाया, लक्ष्य ने फ़िक्रमंदी से पूछा, "ईरा! तुम उससे शांति से बात नहीं कर सकती थी क्या? उसे तुम्हारी प्रॉब्लम के बारे में पता है? यानी वह तुम पर नज़र रखता है। थोड़ा संभलकर ईरा।"


    "लक्ष्य! ऐसी बचकानी धमकियों में आने के लिए मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ। यह सब बेवकूफ़ लोग जो भी हैं, बस बोल सकते हैं। मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकते। अगर इनमें हिम्मत होती तो सामने आते।" ईरा ने हँसकर बेपरवाही से कहा और बालकनी में झाँकने लगी अंशुल को देखने के लिए।


    अंशुल अपना मोबाइल कान से हटाकर रेलिंग के सहारे खड़ा, गहरी सोच में डूबा, कुछ सोचते हुए अपने में ही बड़बड़ा रहा था।


    "लेकिन ईरा...!!" राज कुछ कहने वाला था, जब ईरा ने अंशुल से नज़रें हटाकर राज और लक्ष्य को देखते हुए कहा, "देखो ना! वार्निंग भी दी तो मेरे पीछे छुप कर, सामने आकर नहीं। बस इसी से इसकी हिम्मत वाली कमज़ोरी का पता चलता है। डोंट वरी गाइज़।।।"

    और आगे...........

  • 17. जबरिया इश्क़ - Chapter 17

    Words: 1049

    Estimated Reading Time: 7 min

    अंशुल कॉलेज की घुमावदार सीढ़ियों पर बैठा अपने दोस्तों के साथ बातें कर रहा था। उसके दोस्त कुछ देर तक हँसी-मजाक करते रहे और फिर एक-दूसरे की तरफ देखते हुए वहाँ से जाने लगे।

    अंशुल ने अपने एक दोस्त का हाथ पकड़ लिया और हैरत से बोला, "अरे कार्तिक! अभी कहाँ जा रहा है? अभी तो क्लास में टाइम है ना? बैठ थोड़ी देर यहीं, उसके बाद चलेंगे?"

    कार्तिक ने वापस अंशुल के बराबर वाली सीढ़ी पर बैठते हुए उसके कंधे पर हाथ रख दिया और हँसकर बोला, "यार अंशुल, आई नो अभी क्लास में टाइम है, लेकिन कुछ इम्पोर्टेन्ट है इसलिए जा रहा हूँ। कैंटीन में मेरी..."

    कार्तिक अभी कुछ और कहने वाला था कि उसकी बात काटते हुए विपुल ने हँसकर कहा,
    "अरे कार्तिक, बात तो बता पहले अंशुल को, तभी तो ये जाने देगा तुझे उसके पास कैंटीन में।"

    "कौनसी बात? क्या हुआ कार्तिक?" अंशुल ने विपुल को देखते हुए कार्तिक से सवालिया अंदाज में पूछा। कार्तिक ने अपने फोन से एक फ़ोटो निकालते हुए उसके सामने कर दी।

    कार्तिक अंशुल को देखते हुए बोला, जो उसके फ़ोन में उस फ़ोटो को देख रहा था, जो एक लड़की की थी। "देख अंशुल, यू नो, ये मेरी गर्लफ्रेंड है। तूने इसे नहीं देखा होगा, पर ये तुझे जानती है और तुझे भी पता होगा मैं इससे कितना प्यार करता हूँ, राइट?"

    "हाँ तो तू ये मुझे क्यों दिखा रहा है? मुझे इससे क्या मतलब? मैं लड़कियों को नहीं देखता!" अंशुल ने कहा।

    "आई नो, और तू इसे तो देखना भी मत।" कार्तिक ने कहा और अंशुल समेत सारे दोस्त हँसने लगे।

    कार्तिक फिर बोला, "यार, आज इसका बर्थडे है और मैंने कैंटीन में एक पार्टी रखी है। सारे दोस्त इकट्ठा हो गए हैं। ईट्स पार्टी टाइम, तो मुझे जाना होगा।"

    कार्तिक अभी बोल ही रहा था कि अंशुल ने उसके सर पर थप्पड़ मारते हुए जलकर कहा, "साले कमीने! तेरी गर्लफ्रेंड का बर्थडे है, पार्टी कर रहा है तू और मुझे इस बारे में कुछ पता ही नहीं चलने दिया! मैं क्या दुश्मन हूँ?"

    अंशुल ने फिर अपने दूसरे सभी दोस्तों को घूरते हुए कहा, "तुम सब ने भी मुझे कुछ नहीं बताया! यानी कि मुझे इनवाइट नहीं करना है ना पार्टी में? क्यों? मैं तुम लोगों का दोस्त नहीं हूँ क्या?"

    "नहीं अंशुल, ऐसा नहीं है। मैंने तो बस..." कार्तिक अपनी बात बोलते हुए चुप रह गया और यूँ ही बैठा रहा।

    विपुल आकर अंशुल के सामने दूसरी सीढ़ी पर बैठ गया और उसे देखते हुए बोला, "नो यार, ऐसा नहीं है अंशुल। तू हमारा दुश्मन नहीं, हमारा दोस्त है, लेकिन हम..."

    "लेकिन क्या?" विपुल की बात काटते हुए अंशुल ने गुस्से भरे चेहरे से रूठकर पूछा।

    कार्तिक बोला, "लेकिन यह कि अंशुल, तेरी वाइफ ईरा देशमुख है, कोई ऑर्डिनरी नॉर्मल गर्ल नहीं।"

    "मतलब?" अंशुल ने कार्तिक को देखा।

    कार्तिक इस बार सीरियसली, हल्के अंदाज में बोला, "आई मीन, बर्थडे मेरी गर्लफ्रेंड का है तो वहाँ पर मेरी गर्लफ्रेंड और उसकी कई सारी दोस्त होंगी... हम सब होंगे और हम सब की जो ग्रुप में लड़कियाँ हैं वो भी होंगी। पूरी कैंटीन में सैकड़ों लड़कियाँ आएंगी और तुझे तो पता है ना कि ईरा देशमुख..."

    कार्तिक कुछ बोलते-बोलते एकदम से चुप हो गया और अंशुल को उसकी बात का मतलब समझ आ गया।

    अंशुल कार्तिक को देखते हुए हल्की सी मायूस आवाज में धीरे से बोला, "कोई बात नहीं, तुम लोग जाओ। वैसे भी मैं नहीं आ सकता।"

    कार्तिक ने अंशुल के कंधे पर हाथ रखते हुए थोड़े अफ़सोस में कहा, "अंशुल, आई नो कि तुझे बुरा लगा, लेकिन यार आई एम सॉरी। अगर तू पार्टी में आएगा तो पार्टी में मस्ती, एन्जॉयमेंट कम, तहलका ज़्यादा हो जाएगा।"

    विपुल कार्तिक की हाँ में हाँ मिलाते हुए उसी अफ़सोस में बोला, "सही बात है कार्तिक, इज़ राइट अंशुल। क्योंकि अगर तेरी वाइफ़ को पता चल गया कि तू इस वक़्त उस पार्टी में है, जो पार्टी एक लड़की की बर्थडे की है और वहाँ पर इतनी सारी लड़कियाँ हैं, तो ईरा देशमुख तुझे कुछ कहे ना कहे, लेकिन हम सब की वाट ज़रूर लगा देगी। तू समझ सकता है अंशुल?"

    अंशुल ने सारे दोस्तों को देखा, फिर विपुल और कार्तिक से बोला, "कोई बात नहीं विपुल, मैं समझ सकता हूँ। वैसे भी अगर मुझे पता होता कि पार्टी में लड़कियाँ आ रही हैं तो मैं ऐसे बोलता ही नहीं, क्योंकि मुझे मेरी कंडीशन अच्छे से मालूम है।"

    अंशुल मायूसी से बोला तो कार्तिक और विपुल, जो इसके सबसे करीब थे, दोनों उसके इर्द-गिर्द बैठे उसके कंधे को थपथपाने लगे, जैसे बोल रहे हों, "डोन्ट वरी, बी हैप्पी।"

    अंशुल उसी तरह अफ़सोस में बोलता रहा, "ईरा को मेरा बॉयज़ के साथ मिलना नहीं पसंद। बहुत मुश्किल से मैंने उसे मनाया। उसे तुम लोगों से मेरी दोस्ती का... अगर मैं गर्ल्स के साथ बैठूँगा तो जाने ही क्या आफ़त मचाएगी... तुम लोग जाओ।" अंशुल ने धीरे से कहा और उठकर खड़ा हो गया। जब उसके सारे दोस्त उससे लिपट गए।

    "अंशुल, तू दिल छोटा मत कर यार। वैसे भी छोटी सी पार्टी है। नेक्स्ट टाइम जब हम में से किसी बॉयज़ का बर्थडे होगा तो हम बड़ी पार्टी रखेंगे और उसमें तुझे इनवाइट ज़रूर करेंगे। इनफैक्ट, वो सारी पार्टी तू ही तो ऑर्गनाइज़ करेगा, ओके?" कार्तिक ने अंशुल की तरफ़ देखते हुए जैसे उसे खुश करने के अंदाज़ में समझाया तो अंशुल सब को देखते हुए मुस्कुरा दिया।

    "मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूँ जो तुम लोग मुझे इस तरह से बहला-फुसला रहे हो। इट्स ओके, कोई बात नहीं, तुम लोग जाओ, मैं ठीक हूँ।" अंशुल ने सबको देखते हुए हँसकर कहा तो सब भी मुस्कुरा दिए।

    "चलो फिर ठीक है अंशुल, बाय। बाद में मिलते हैं।" सब एक-एक करके अंशुल को बाय बोलकर वहाँ से जाने लगे तो अंशुल ने कार्तिक को पुकारा।

    "ए लिसन कार्तिक, मुझे पार्टी की फ़ोटोस व्हाट्सएप करना मत भूलना।"

    कार्तिक ने हाथ हिलाते हुए हँसकर जवाब दिया, "वो तो तेरे कहने से पहले ही करने की सोची थी मैंने।"

    "और मैंने भी।" विपुल ने भी कार्तिक की ही तरह हँसते हुए कहा और सारे दोस्तों के साथ वहाँ से चला गया।

    उनके जाते ही अंशुल भी अपनी किताबें लेकर वापस अपनी क्लास की तरफ़ बढ़ने लगा, जब सामने खड़ी महक को देखकर अपनी जगह पर ही जम गया।

    और आगे……………

  • 18. जबरिया इश्क़ - Chapter 18

    Words: 1459

    Estimated Reading Time: 9 min

    महक सीने पर हाथ बांधे चुपचाप खड़ी अजीब नजरों से अंशुल को देख रही थी अंशुल ने उसे इग्नोर कर वहां से जाना चाहा तो वो उसके सामने थोड़ी दूरी पर आकर खड़ी हो गई। अंशुल ने अब एक नजर उसे देखा और अपने चारों तरफ इर्द-गिर्द देखता हुआ बिना महक को देखे बेध्यानी से बोला।.... "तुम, तुम यहां क्या कर रही हो, तुमसे मैंने कितनी बार कहा है मेरे सामने मत आया करो मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी ना ही मुझे तुमसे दोस्ती का शौक है फिर क्यों पीछे पड़ी हो मेरे? अंशुल दबी-दबी आवाज में मगर झल्लाया हुआ सा बोल रहा था क्योकि महक वाकई उसे फ्रेंडशिप का ऑफर देकर काफी टाइम से उसके पीछे ही पड़ी हुई थी महक धीरे धीरे चलते हुए अंशुल के थोड़ा और करीब चली आई और उसके सामने खड़े होकर बोली।.... "मैं तुमसे कुछ बात करने आई हूँ, कुछ बताने? मुझे कुछ नही सुनना? "अंशुल अब उसकी तरफ पीठ करके खड़ा हो गया ताकि किसी को भनक भी न लग सके कि वो इस वक्त महक से बात कर रहा है? मैं तुमसे इतने दिनों से रिक्वेस्टली बोल रही हूं कि मुझसे फ्रेंडशिप कर लो, फ्रेंडशिप कर लो...अंशुल फ्रेंडशिप कर लो आखिर, तुम्हे मुझसे फ्रेंडशिप करने में प्रोब्लम क्या है...क्या बुराई है इसमे? "महक वापस उसके सामने आकर खड़ी हो गई अंशुल ने महक को घूरा तो वो बच्चों की तरह जिद करते हुए बोली।.... "मुझे समझ नहीं आ रहा अंशुल तुम मुझसे फ्रेंडशिप क्यो नही करना चाहते मैं कौन सा तुम्हें बॉयफ्रेंड का ऑफर दे रही हूं जो इस तरह भाव खा रहे हो? अंशुल ने गुस्से में सर झटक दिया और फिर महक को देखते हुए उसे डांटने के अंदाज से बोला।.... "इतनी ज्यादा ओवर स्मार्ट बनने की जरूरत नहीं है जब तुम्हें पता है कि मैं मैरिड हूं तो यूँ ऐसे बॉयफ्रेंड का नाम लेने की जरूरत है क्या तुम्हे...अगर किसी ने सुन लिया तो? अगर सुन लिया तो सुनने दो मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं और मेरे बोल देने से तुम क्या मेरे बॉयफ्रेंड तो बन नही जाओगे? "महक ने दांतों तले जुबान रखते हुए हंसकर बेफिक्री में कहा। अंशुल उसको एक तिरछी नजर से देख रहा था और उसे इस वक्त गुस्से से ज्यादा घबराहट भी हो रही थी महक का उसके करीब इस तरह खड़े होने से। तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है, मैं ना तो तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूं और ना ही तुम्हारा दोस्त बनने में मुझे कोई इंट्रेस्ट ही है...देखो महक तुम मुझे!! अंशुल बोलते बोलते एकदम से चुप हो गया और वापस अपने चारों तरफ इर्द-गिर्द देखने लगा। महक ने उसकी नजरों का पीछा करते कमर पर हाथ रखते हुए पूछा।.... "अंशुल तुम जब मेरे साथ होते हो तो यह अपने चारों तरफ क्या ढूंढा करते हो? अंशुल ने फौरन कहा।.... "यही कि जाने कब कौन किधर से आकर तुम पर भारी पड़ जाए और तुम्हारी स्मार्टनेस को भी। अंशुल ने दांत पीसते हुए दबी आवाज में ही महक को डांटा ताकि कोई उस पर ध्यान न देने पाए।.... मैंने तुम्हें पहले भी बताया है महक फिर बता रहा हूं कि इस कॉलेज में मुझे नहीं पता है कब कहां किस तरफ मेरे गार्ड्स होते हैं जो मेरे करीब किसी को आते देख उस पर अटैक कर देते हैं बिना मुझसे पूछे कि मैं उसे जानता हूँ या नही क्योंकि उन्हें पता है कि मेरे कॉलेज में बस गिने चुने ही दोस्त हैं जिन्हें ईरा से परमिशन मिली है बाकी कोई भी मेरे पास नहीं भटक सकता? ओके मैं जानती हूं कि ईरा देशमुख ने तुम पर पहरेदार बिठा रखे हैं लेकिन मैं तो तुम्हारी दोस्त बनना चाहती हूं ना उन्हें बता दो कि मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचा रही अंशुल? "महक ने उसी तरह अपने क्यूटफेस से कहा पर अंशुल जल उठा। अंशुल ने इरिटेट होकर महक को घूरा और झुंझुलाकर बोला।.... "उफ्फ गॉड महक, प्लीज्...मेरे बताने से वो मान जाएंगे क्या वह गार्ड्स सिर्फ ईरा की सुनते हैं मेरी नही कुछ को तो मैं खुद भी नही पहचानता? ओह ऐसा क्या? "महक ने होंठो को सिकोड़कर गोल गोल बनाते हुए बड़े आराम से कहा।  अंशुल ने उसकी बेफिक्री पर उसे दो पल घूरा फिर बोला।.... हां ऐसा ही है, उन्हें ट्रेंड किया गया है कि, मेरे दोस्तों के अलावा अगर कोई अनजान मेरे करीब आएगा तो वह मुझे नुकसान ही पहुंचाएगा। ईरा ने उन सबको यही ट्रेनिंग दी है कि मेरे करीब आने से पहले ही वह लोग उस अनजान को खत्म कर दे चाहे वह कोई भी हो इसीलिए खुदसे प्यार करती हो तो यूँ इस तरह मेरे सामने मत आ जाया करो? अंशुल ने महक को देखा फिर वहां से जाते हुए बोला।.... दूर रहो मुझसे क्योंकि मेरे गार्ड्स को नहीं पता है कि तुम कौन हो अगर उन्हें भनक भी लग गई कि तुम मुझसे जबरदस्ती बात करने की कोशिश कर रही हो तो वह लोग एक पल में तुम्हे....प्लीज्? अंशुल जाने लगा तो महक ने उसके पीछे आते हुए पुकारा।.... अंशुल रुको तो। जाओ मेरे पीछे मत आना और....!! और व्हाट, ओफ्फो अंशुल मेरी बात तो सुनो मैं तुम्हें कुछ बताने आई हूं? "महक ने अंशुल की बात काटते हुए कहा और जैसे ही अंशुल के करीब आने लगी अंशुल पीछे हट गया। नही बस मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी है दूर रहो मुझसे इसी में तुम्हारी भलाई होगी। "अंशुल उसकी तरफ मुड़े बगैर बोला। महक दोनों हाथ झटक कर उसके साथ साथ चलाती हुई बोली।.... "आज मैं तुम्हें परेशान करने नहीं आई हूं कि मुझसे दोस्ती कर लो मैं तुम्हें जो बताने आई हूं वह है....!! महक की बात काटते हुए अंशुल ने गुस्से में कहा।.... "जाओ यहां से।             ********** यहां सूदास के मेंशन में ईरा अपने कमरे के बिस्तर पर बदहवास पड़ी दोनों हाथों से अपना गला पकड़े तड़प रही थी। उसके मुंह पर लगा ऑक्सीजन मास्क डॉक्टर बार बार ठीक कर रहा था जो ईरा के झटकने पटकने और तड़प तड़पकर बेड पर उधर उधर मचलने से हर बारफिसल जाता था  डॉक्टर के यहां हाथ पांव फूल रहे थे क्योंकि ईरा के कमरे में ही सुदास बेचैन से खड़े उस डॉक्टर को एकटक देख रहे थे और ईरा को इस हालत में देखकर उनका दिल तड़प रहा था साथ ही उनके चेहरे पर भी परेशानी से ज्यादा डॉक्टर के लिए गुस्से वाले एक्सप्रेशन थे जो सालों से ईरा का रेगुलर ट्रीटमेंट कर रहा था। आज फिर ईरा को भी अटैक आया था जिसमें ईरा पूरी तरह से दर्द से छटपटा जाती और में नही होती क्योंकि इस अटैक से उसे सांस लेने में जो प्रॉब्लम होती थी उसे ईरा सहन नही कर पाती। माला ईरा के बाजू में बैठी उसके सर में हाथ फेर रही थी वही राज और लक्ष्य ईरा का एक एक पैर पकड़े उसके तलवे रगड़ रहे थे। सुदास ने गुस्से में डॉक्टर को देखते हुए पूछा।.... "इतने सालों से अभी तक तुम्हें ईरा की प्रॉब्लम का कोई परमानेंट इलाज नहीं मिला इसकी ये बीमारी कब ठीक होगी जिसमें मेरी बेटी सांस भी नहीं ले पाती ये कैसा रोग है जो ईरा पर भी भारी पड़ रहा है इसे खत्म करो हमेशा केलिए।। ईरा बिस्तर पर बदहवास पड़ी अपने हाथों से अपना गला दबाए बेचैनी से पूरे बिस्तर  पर इधर-उधर मचल रही थी। उसके मुंह पर लगा ऑक्सीजन मास्क बार-बार हट जाता वहीं उसके पास में खड़ा उसका डॉक्टर उससे भी ज्यादा बेचैन था क्योकि यहाँ सुदास खड़े थे। वह डॉक्टर माथुर कई सालों से ईरा का इलाज कर रहा था और ईरा की बीमारी अभी तक उसकी पकड़ में नहीं आई थी क्योंकि ईरा की बीमारी बड़ी नही थी पर छोटी भी नही। वो वैसे तो हमेशा एक स्वैग में रहती और वो लड़की अपनी उम्र की नॉर्मल लड़कियों से कहीं ज्यादा अलग थी। ईरा जितनी स्ट्रांग थी अच्छे-अच्छे को मात दे जाने वाली जैसी उसकी बॉडी और फुर्ती थी उसमे उतनी ही मामूली बीमारी उसे खा रही थी। ईरा को बंद छोटी जगहों पर घुटन और सांस लेने की प्रॉब्लम होती और फिर वह अपनी सुध बुध गवा बैठती जिसमे वो आपे में नही होती और पागलों जैसा रियेक्ट करती तड़पती रहती। ईरा की ना तो सांस बाहर आती और ना ही वो सांस अंदर ले जा पाती बस एक यही बीमारी थी ईरा की जिसके सामने ईरा हार चुकी थी। वह पूरे बिस्तर पर आंखें मूंदे दर्द से तड़प रही थी वहीं उसके पास में खड़े सुदास ईरा को इस तरह देख कर खुद भी तड़प रहे थे, वह शायद अपनी बेटी का दर्द खुद पर महसूस कर रहें थे। राज और लक्ष्य ईरा का एक एक पैर पकड़े उसके तलवे रगड़ रहे थे और ईरा के सर के पास बैठी माला उसके बालों में हाथ फैर रही थी। डॉक्टर बार-बार ईरा का ऑक्सीजन मास्क ठीक करके उसके मुंह पर लगाये उसे सांसे पहुंचाने की कोशिश कर रहा था पर ईरा पर इसका कुछ असर नहीं हुआ और वह बस उसी तरह तड़प रही थी।              और आगे............

  • 19. जबरिया इश्क़ - Chapter 19

    Words: 2057

    Estimated Reading Time: 13 min

    सुदास ने डॉक्टर की तरफ देखा और गुस्से में दहाड़ उठे। "तुम कैसे डॉक्टर हो, माथुर? सालों से तुम ईरा का इलाज कर रहे हो, लेकिन अभी भी जब भी ईरा को ऐसे अटैक आते हैं, तो ईरा से ज़्यादा तुम परेशान हो जाते हो। क्योंकि तुम्हारे पास कुछ ऐसा होता ही नहीं कि ईरा को शांत कर सको, तुम?"

    डॉक्टर ने सुदास की तरफ देखा और डर से बोला, "सॉरी सर, मैं... मैं कर रहा हूँ।"

    "व्हाट सॉरी? एन क्या कर रहे हो तुम? मुझे तो नहीं लगता तुम कुछ कर सकते हो, माथुर। कब करोगे?" सुदास ने डॉक्टर को टोकते हुए कहा।
    "सबसे बड़ी बात तो यह है कि तुम किस चीज़ के डॉक्टर हो, माथुर? जो एक बीमारी का परमानेंट इलाज नहीं हो पा रहा तुमसे? कब ठीक होगी मेरी बेटी? हमेशा के लिए कब यह इस बीमारी से परमानेंट छुटकारा पाएगी?"

    सुदास डॉक्टर को डाँट रहे थे और डॉक्टर के हाथ-पांव फूल रहे थे। वह सुदास की धमकियों से डर रहा था। घबराहट में, उस वक्त सुदास के सामने देखने की उसकी हिम्मत नहीं थी। वह बस ईरा में ही लगा रहा, जब लक्ष्य ने लपक कर उसका कॉलर पकड़ लिया।

    लक्ष्य ने डॉक्टर माथुर को झटकते हुए, गुस्से में इरिटेट होकर बोला, "डॉक्टर, अगर तुम्हारे पास कोई इलाज नहीं है तो जवाब क्यों नहीं देते? डॉक्टर, मैंने तुमसे कितनी बार बोला है कि अगर ईरा का इलाज किसी के पास है तो बताओ—यहाँ हो या कहीं किसी दूसरे देश में, मैं ईरा को लेकर जाऊँगा। तुम्हें सुनाई नहीं देता? क्यों नहीं ढूँढ पा रहे हो तुम ईरा का ऐसा इलाज जो इसकी घुटन भरी इस तकलीफ को हमेशा के लिए दूर कर सके?"

    लक्ष्य डॉक्टर को कॉलर से पकड़े उसे झकझोर रहा था और डॉक्टर तो पहले ही डरा हुआ था।

    उसने धीरे से लक्ष्य की तरफ देखते हुए कहा, "सर, अगर कोई होता तो मैं सजेस्ट करता, पर..."

    "पर क्या? ईरा बहुत इम्पोर्टेन्ट है हमारे लिए, समझे तुम इसे? ठीक होना होगा!" लक्ष्य चिल्लाकर बोला।

    डॉक्टर ने लक्ष्य की तरफ घबराई हुई नज़र से देखते हुए कहा, "सर, सर मैं कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन..."

    डॉक्टर की बात काटते हुए लक्ष्य ने झल्लाहट से कहा, "लेकिन क्या, डॉक्टर? तुम्हारी कोशिश से ईरा को कोई फ़ायदा तो नहीं होता ना? इसकी तो जान ले लूँगा मैं... मैं कब से देख रहा हूँ, ये झूठी तसल्लियाँ देता रहता है और कुछ नहीं?" इस बार राज भी डॉक्टर की तरफ आया और उसे लक्ष्य के हाथों से लेकर खुद भी गुस्से में झटक डाला।

    राज चिढ़ा हुआ सा डॉक्टर को झटकते हुए, गुस्से में चिल्लाकर बोला, "अगर तुमसे नहीं हो रहा तो अपनी फ़र्ज़ी डिग्री को लेकर बैठो अपने पास। हम ईरा को कहीं और ले जाएँगे।"

    डॉक्टर वैसे ही घबराया हुआ था; इन दोनों की इस तरह उसे झटकने-पकड़ने से और भी ज़्यादा डर गया और उसी डर भरी आवाज़ में सुदास को देखते हुए बोला, "सर, मैं क्या कर सकता हूँ? जो कर सकता हूँ, कर रहा हूँ।"

    सुदास ने डॉक्टर को देखा और लक्ष्य और राज से बोले, "छोड़ दो इसे।"

    दोनों ने डॉक्टर को घूरकर देखा और दूर धक्का देकर छोड़ दिया।

    डॉक्टर सुदास की तरफ बढ़ते हुए उनसे बोला, "सर, ईरा मैम का इलाज... इलाज तो है पर... पर इन्हें कोई, शायद कोई बीमारी नहीं... आई मीन कोई ऐसी बीमारी जिसका परमानेंट कोई सॉल्यूशन बना हो। इसे बीमारी नहीं, इमेजिनेशन कहते हैं जो हावी हो जाए तो... देखिए सर, आप इन्हें कहीं भी लेकर जाएँ, यह बीमारी इतनी आसानी से तो जाने वाली नहीं है क्योंकि जहाँ तक मेरे अब तक के ट्रीटमेंट से पता चला है तो ईरा मैम को सिर्फ़ बंद जगहों से दूर रखा जाए, जहाँ इन्हें घुटन से प्रॉब्लम होती है, तो यह एब्सोल्यूटली फ़ाइन हैं, इन्हें कुछ नहीं हुआ है।"

    "हाँ तो अगर ये ठीक है तो ईरा को ये साँसों के अटैक क्यों पड़ते हैं?" लक्ष्य ने पूछा, जबकि सुदास बस चुप थे।

    डॉक्टर ने लक्ष्य की तरफ देखा और सुदास से बोला, "सर, ईरा मैम को बीमारी नहीं है, ये इनका डर है जो घुटन इन्हें महसूस होती है, ये उससे लड़ नहीं पा रहीं..."

    डॉक्टर की बात काटते हुए सुदास ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा, "डॉक्टर, तुम कहना क्या चाहते हो?"

    "क्या बोला डॉक्टर तुमने? ईरा किसी से नहीं डरती, समझे तुम? ईरा एक आज़ाद शेरनी है जिसकी दहाड़ से लोग काँपते हैं, वो किसी से नहीं भागती। डॉक्टर लोग उसके नाम से खौफ़ खाकर भागते फिरते हैं!" लक्ष्य ने डॉक्टर का कॉलर पकड़कर उसे पीछे ढकेलते हुए गुस्से में कहा।

    डॉक्टर ने अपना कॉलर ठीक किया और फिर अपनी उसी धीमी आवाज़ में सुदास से बोला, "सर, यह किसी से नहीं डरती, लेकिन इनकी कंडीशन से यही पता चलता है कि इन्हें बंद जगहों में जो साँस की प्रॉब्लम होती है वह इनकी अपनी घबराहट की वजह से हैं और जब तक इनकी वह घबराहट का पता नहीं लगता, इनका इलाज होना किसी से पॉसिबल नहीं।"

    डॉक्टर अब राज और लक्ष्य की तरफ देखने लगा जो उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रहे थे। डॉक्टर ने उसी तरह दबी जुबान में फिर से कहा, "इनके उस डर के बारे में पता लगाने के लिए हमें उस चीज़ को जानना ज़रूरी है जिस चीज़ से इन्हें ऐसी जगहों पर घुटन होती है और ये डर जाती हैं, शायद।"

    "हाँ तो ये जानने के लिए तुम्हें अपॉइंट किया है हमने। पता करो ना, ईरा को बंद गाड़ी, लिफ्ट या ऐसी किसी भी चीज़ों से प्रॉब्लम क्यों होती है?" लक्ष्य ने डॉक्टर से कहा।

    राज भी उसकी ही तरह डॉक्टर को देखते हुए कुछ सोचने लगा और पूछा, "ईरा को सिर्फ़ साँस की प्रॉब्लम होती है या कुछ और सहना पड़ता है इसे उस वक्त जब ये ऐसी कैसी जगहों में फँस जाती है?"

    डॉक्टर ने राज को देखते हुए कहा, "ये तो इन पर है, ये कितना झेल सकती हैं या फिर कितना डर से लड़ सकती हैं।"

    डॉक्टर ने वापस सुदास की तरफ देखते हुए कहा, "सर, ये कुछ याद करती हैं और वो घबराहट इनके लिए घुटन बन जाती है और फिर इन्हें ऐसे अटैक पड़ते हैं। वह तो अच्छा है कि ये स्ट्रांग हैं और लड़ती है अपने डर से, वरना ऐसे में घुटन की वजह से अक्सर लोगों की जान..."

    डॉक्टर अपनी बात बोलते-बोलते एकदम से रुककर पहले सुदास की तरफ देखा जो उसे आँखें फाड़े गुस्से में घूर रहे थे। सुदास की उन नज़रों से डरकर डॉक्टर चुप हो गया और उसने दुबारा बोलने की हिम्मत ही नहीं की।

    "जब तक इसका परमानेंट इलाज नहीं होता, तुम अभी के लिए तो कुछ करो। आज फिर ईरा को ज़रूरत है... यह बताओ, इसको इस वक्त राहत कैसे मिलेगी? जल्दी से कुछ करो, अगर मेरी बेटी ऐसे ही तड़पती रही तो मैं तुम्हें भी चैन नहीं लेने दूँगा, माथुर!" सुदास ने डॉक्टर को देखने के बाद ईरा को देखते हुए कहा जो उसी तरह पूरे बेड पर दर्द के मारे तड़प-तड़पकर साँसों के बगैर मचल रही थी।


    लक्ष्य और राज ईरा को देखकर परेशान हो गए। उन्हें ईरा को देखकर दुख हो रहा था।

    लक्ष्य ने वापस डॉक्टर का कॉलर पकड़ लिया और गुस्से में बोला, "डॉक्टर, वही ट्रीटमेंट करो ना जो हमेशा करते हो जिससे ईरा को होश आ जाता है और इसकी साँसें बराबर हो जाती हैं। जल्दी करो, ईरा तड़प रही है!" लक्ष्य ने कहा और डॉक्टर सुदास की तरफ देखने लगा।


    डॉक्टर कुछ सोचते हुए बोलता, उससे पहले राज ने गुस्से में कहा, "उधर कहाँ देख रहे हो तुम? अंकल को नहीं, ईरा को देखो और देखकर बताओ। ये नॉर्मल कैसे होगी? इसकी साँसें उखड़ रही हैं और अगर इसकी साँसों को कुछ हुआ ना तो मैं तुम्हारी साँसें रोक दूँगा।"

    डॉक्टर ने लक्ष्य और राज की तरफ देखा जो उसे खूंखार नज़रों से घूर रहे थे। फिर वह ईरा की नब्ज़ चेक करते हुए ईरा के मुँह पर ऑक्सीजन मास्क लगाकर सुदास की तरफ देखने लगा।


    सुदास ने पूछा, "क्या हुआ, माथुर?"


    डॉक्टर सोचते हुए बोला, "सर, सर इस बार भी हमें शायद वही करना पड़ेगा जो इसके नेक्स्ट टाइम किया था, क्योंकि... उसके पहले से मैं जो ईरा मैम को ऑक्सीजन देने के लिए करता था, आज तक वह अब काम नहीं कर रहा क्योंकि ईरा मैम की बीमारी..."


    डॉक्टर इससे पहले अपनी बात पूरी करता, सुदास ने कड़क आवाज़ में पूछा, "जो करना है करो, बस मेरी बेटी को साँसें मिलनी चाहिए। इसे होश में लेकर आओ!"

    डॉक्टर ने ईरा का मास्क ठीक से लगाते हुए धीरे से कहा, "सर, सर नेक्स्ट टाइम जो हुआ था वो मैंने नहीं किया था, बल्कि उसे करने के लिए..." डॉक्टर धीरे-धीरे कट-कटकर हकलाते हुए बोलने की कोशिश कर रहा था और फिर घबराया हुआ सा चुप हो गया, जब—

    सुदास ने लक्ष्य की तरफ देखते हुए पूछा, "अंशुल कहाँ है?"

    "वह तो सुबह ही कॉलेज चला गया, मामा। सुबह ईरा ठीक थी ना इसलिए।" सुदास की बातों पर लक्ष्य ने माला की तरफ देखा तो माला जल्दी से सफ़ाई देते हुए बोली, "हाँ भैया, ईरा की परमिशन लेकर ही वह कॉलेज गया है। सुबह ईरा ठीक थी।"


    सुदास ने माला के बाद लक्ष्य की तरफ देखा और बोले, "लक्ष्य, फ़ौरन अंशुल को कॉल करो और उसे जल्दी से बुलाओ। बोलो कि ईरा को उसकी ज़रूरत है।"

    सुदास ने जैसे ही कहा, लक्ष्य ने सर हां में हिलाया और अपना मोबाइल में अंशुल का नंबर सर्च करते हुए कमरे से बाहर निकल गया।


    कॉलेज में अंशुल अभी भी महक के सामने खड़ा हुआ था और महक उससे कुछ बात करने की कोशिश कर रही थी, जबकि अंशुल उसे गुस्से में डाँट रहा था।

    "लिसन, महक, प्लीज़, प्लीज़ मुझसे दूर रहा करो। मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम किसी प्रॉब्लम में आओ।" अंशुल ने महक को समझाने को पर इरिटेट आवाज़ में कहा।


    महक ने भी हठधर्मी से कहा, "लेकिन अंशुल, दोस्ती करने में क्या प्रॉब्लम है? तुम अपनी वाइफ़ से इतना डरते क्यों हो?"


    "मैं अपनी वाइफ़ से नहीं डरता हूँ। मैं बस उसकी हर एक उस चीज़ से डरता हूँ जो मेरी वाइफ़ करती है। अगर उसने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो वह तुम्हारा जो हाल करेगी मैं उससे डरता हूँ।" अंशुल ने महक को बिना देखे अपने इर्द-गिर्द नज़रें घुमाते हुए कहा। वह महक से कई कदम की दूरी पर खड़ा हुआ था जिससे किसी को भी यह नहीं लग सकता था कि अंशुल और महक एक-दूसरे के साथ खड़े हैं।


    "लेकिन अंशुल, मुझे परवाह नहीं। मुझे तुमसे दोस्ती करनी है और..."


    "ओह, जस्ट शटअप।" अंशुल महक को बीच में टोकते हुए बोला। "तुम्हें भले ही तुम्हारी परवाह नहीं है पर मुझे मेरी परवाह है। मैं अपनी वजह से किसी को नुकसान नहीं पहुँचा सकता। लेकिन अब जब तुम ही तुम्हारी जान की दुश्मन हो तो मैं क्या कर सकता हूँ... अगर कहीं से भी ईरा को भनक लग गई तो वह तुम्हारे साथ क्या करेगी यह मैं खुद नहीं जानता।"

    "अच्छा, मेरी बात तो सुनो अंशुल। आज तुम्हारी ईरा को गाड़ी में एक..." महक इससे पहले अपनी बात पूरी करती, अंशुल ने एक बार फिर से उसे उंगली दिखाते हुए गुस्से में चुप करा दिया।


    "मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी, समझी तुम?"


    "अरे, मैं तुम्हें यहाँ कुछ बताने आई थी अंशुल कि आज जब मैं कॉलेज आ रही थी तो मैंने..." महक ने कुछ बोलने की कोशिश ही थी जब अंशुल का फ़ोन बज उठा।


    अंशुल ने फ़ोन स्क्रीन देखी तो उस पर लक्ष्य का नंबर जगमगा रहा था। उसने फ़ोन को एक नज़र देखते हुए महक को देखा और धीमी आवाज़ में बोला, "चली जाओ यहाँ से और कोशिश करना आइंदा मेरे सामने मत आओ, नहीं तो तुम्हारी इस दोस्ती का भूत तुम्हें ले डूबेगा।"

    अंशुल कॉल रिसीव करके वहाँ से हट गया और लक्ष्य ने उसे जो बताया, उसे सुनकर वो बिना साँस लिए कॉलेज से बाहर आ गया। बाहर ही उसके ड्राइवर और गार्ड गाड़ी लिए खड़े थे। अंशुल के बैठते ही गाड़ी घर की तरफ़ रवाना हो गई। वो बेचैन था, ईरा से मिलने को।


    अंशुल अपने कमरे में आया और बेड पर पड़ी ईरा का सर उसने फ़ौरन अपनी गोद में उठाकर रख लिया। ईरा तड़प रही थी और साथ ही वहाँ मौजूद बाकी सब भी। जब अंशुल ने बगैर किसी की तरफ़ देखे ईरा का मुँह पकड़ा और उसके होंठों पर अपने होंठ रखे, उसे अपने मुँह से साँसें देने लगा।

    उसे किसी की भी तरफ़ देखना तो दूर, शायद इस वक्त उसको किसी भी परवाह तक नहीं थी। उसे सिर्फ़ ईरा दिखाई दे रही थी जो इस वक्त साँसों के लिए दर्द में तड़प रही थी।

    और आगे...

  • 20. जबरिया इश्क़ - Chapter 20

    Words: 1205

    Estimated Reading Time: 8 min

    अंशुल कॉलेज से घर आया था। ईरा को उस हालत में देखकर वह फटाफट उसके पास गया और बिस्तर पर बैठते ही ईरा का सिर अपनी गोद में रखा। बिना समय गँवाए उसने ईरा के होठों पर अपने होंठ रखकर उसे मुँह से साँस देने लगा।

    इस वक्त ईरा के आस-पास कमरे में उसका पूरा परिवार था, डॉक्टर माथुर भी। लेकिन अंशुल को अपना होश नहीं था; उसे तो बस ईरा दिखाई दे रही थी, जो दर्द और तकलीफ में थी। यह अंशुल बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था।

    ईरा का छटपटाना, उसकी आँखों के आँसू, और वह दर्द—अंशुल उसे कैसे सहन करता? वह तो उससे बेपनाह मोहब्बत करता था।

    अंशुल ने ईरा को अपनी बाँहों में भर लिया। सुदास ने नज़रें फेर लीं और डॉक्टर माथुर की तरफ देखते हुए उन्हें आँखों से बाहर जाने का इशारा किया। वह खुद फौरन कमरे से बाहर निकल गए। सुदास के पीछे डॉक्टर माथुर भी बाहर आ गए। उनके पीछे लक्ष्य और राज भी कमरे से बाहर निकल गए। माला भी उठकर फौरन कमरे से बाहर चली गईं।

    सब के जाते ही, अंशुल जो उल्टा-सीधा बिस्तर पर बैठा था, अब सीधा बैठ गया। उसने आराम से, बेड के कोने से टेक लगाकर, ईरा को अपनी गोद में उठा लिया और उसे अपनी बाहों में भर लिया। पर उसके होंठ अभी भी ईरा के होठों पर थे; वह उसे साँस दे रहा था। शायद ईरा को अब राहत मिल रही थी। आखिर, यही तो ईरा का इलाज था, जो सिर्फ़ अंशुल ही कर सकता था।


    बाहर आकर सुदास डॉक्टर माथुर के सामने खड़े होकर ईरा के इलाज के बारे में बात कर रहे थे। डॉक्टर माथुर ने सिर हिलाया और खामोशी से, धीरे-धीरे बोले,
    "आई एम सो सॉरी सुदास सर, लेकिन मैं अपनी पूरी कोशिश करता हूँ और करता रहूँगा कि ईरा मैम की यह बीमारी जड़ से मिट जाए। लेकिन मैं क्या करूँ सर? मुझसे शायद यह हो नहीं पाएगा। लक्ष्य और राज सर ने जो कहा कि यह लोग ईरा मैम को कहीं और दिखाएँगे, मुझसे भी बड़ा कोई डॉक्टर तो यह ठीक हो जाएगी।"


    इस बार डॉक्टर माथुर ने सुदास के बजाय राज और लक्ष्य की तरफ देखा। फिर एक गहरी साँस लेते हुए बोले,
    "आप लोग ईरा मैम को कहीं भी लेकर चले जाइए, लेकिन मैं आप लोगों को यही सजेस्ट करूँगा कि ईरा मैम का अभी इस वक्त शायद प्रॉपर कोई इलाज है ही नहीं। क्योंकि मैम अपनी बीमारी से लड़ने के बजाय, शायद इसको झेलना ज़्यादा पसंद करती हैं, जिससे उन्हें खुद को समझने का और दर्द सहने का एक अलग ही जज़्बा मिलता है?"

    "क्या मतलब डॉक्टर? आप कहना क्या चाहते हैं?" राज ने फौरन डॉक्टर माथुर से पूछा।

    डॉक्टर बोले, "सर, कोई भी पेशेंट हो, वह अपनी बीमारी से जब तक लड़ेगा नहीं, तब तक बाहर नहीं आएगा। और ईरा मैम के मामले में ऐसा कुछ नहीं है। मैं अपनी कोशिश करता हूँ, और कोई भी डॉक्टर होगा तो वह सिर्फ़ अपनी कोशिश ही करेगा। लेकिन जब तक ईरा मैम खुद नहीं चाहेंगी, उनकी यह बीमारी जड़ से ख़त्म हो ही नहीं सकती। क्योंकि शायद ईरा मैम इस बीमारी से लड़ना ही नहीं चाहतीं, बल्कि वह इसके साथ कॉम्प्रोमाइज़ कर चुकी हैं या फिर कुछ और है, यह तो बस वही जानती हैं या फिर आप लोग जान सकते हैं, मैं नहीं।"

    डॉक्टर माथुर ने सुदास की तरफ देखा। उन्होंने नहीं में सिर हिलाया।

    "नहीं डॉक्टर माथुर, मुझे खुद कुछ नहीं पता है कि ईरा ऐसा क्यों करती है। जिस चीज़ से उसे इतनी तकलीफ होती है, वह उस तकलीफ़ से निकलने के बजाय उससे कॉम्प्रोमाइज़ कैसे कर सकती है? बल्कि उस जैसी कोई भी तकलीफ हो, ईरा उससे डटकर और लड़कर जीतने वालों में से है। क्योंकि ईरा ईरा ही नहीं, फौलाद है।"

    "मुझे तो पता नहीं कि ईरा उस वक्त वहाँ उस हाईवे के पास गई कैसे और क्यों?"

    इस बार राज ने सुदास से कहते हुए लक्ष्य की तरफ देखा और गुस्से में अपने एक हाथ की मुट्ठी दूसरे हाथ पर मारते हुए बोला, "लक्ष्य, अगर ईरा अपनी मर्ज़ी से गई थी, तो फिर वह गाड़ी में बंद कैसे हुई? यार, क्या हुआ था? इसे मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा?"

    लक्ष्य भी राज की तरह फ़िक्रमंदी से बोला, "हाँ यार राज, यह ईरा भी ना, कब क्या कैसे कर दे, कोई नहीं समझ सकता। किसी से कुछ डिस्कस नहीं करती, ना ही किसी को कुछ बताती है?"

    "लक्ष्य, राज, क्या ईरा ने तुम दोनों को भी नहीं बताया था कि वह कहाँ जा रही है, किससे मिलने?"

    इस बार सुदास ने राज और लक्ष्य को सवालिया नज़रों से देखा। राज ने नहीं में सिर हिलाया।

    "नहीं अंकल, हमें इस बारे में कुछ नहीं पता था। ईरा कहाँ गई थी और क्यों गई थी?"

    राज के इनकार करने पर लक्ष्य भी बोला, "जी हाँ मामा, ईरा ने मुझे भी कुछ नहीं बताया था। लेकिन मैं अच्छे से जानता हूँ, ईरा के साथ जो भी हुआ है, यह किसने किया है। यह ज़रूर उस सिद्धार्थ, अभय और उनके साथियों का काम है। वरना ईरा अकेले ऐसे कैसे...?"

    लक्ष्य ने कहते हुए दो पल कुछ सोचा और फिर सुदास की तरफ आते हुए बोला,
    "मामा, मुझे पूरा यकीन है कि ज़रूर सिद्धार्थ ने ही ईरा को उकसाया होगा। क्योंकि उसे भी पता है कि ईरा को जब गुस्सा आ जाता है तो वह अपने आप की भी नहीं सुनती, ना ही किसी और की। और सिद्धार्थ ने इसी का फ़ायदा उठाया है। हम उसे छोड़ेंगे नहीं।"

    "लक्ष्य, तुम्हारे कहने का मतलब है, ईरा के साथ जो कुछ भी हुआ, उसके पीछे सिद्धार्थ का हाथ है?" इस बार सुदास ने लक्ष्य की तरफ देखते हुए कुछ सोचने के अंदाज़ से कहा। लक्ष्य ने हाँ में सिर हिलाया।

    "जी हाँ, बिल्कुल मामा। मुझे उस सिद्धार्थ पर डाउट है। क्योंकि उसके अलावा हमारा और कोई दुश्मन ही नहीं है जो हमारे साथ ऐसे खेल खेलने की हिम्मत करे। और सबसे बड़ी बात, ईरा की इस बीमारी के बारे में किसी और को पता भी तो नहीं है, यहाँ सिद्धार्थ के अलावा?"


    लक्ष्य, राज और सुदास डॉक्टर माथुर से ईरा के बारे में बातें कर रहे थे। जबकि कमरे के अंदर अंशुल, जो ईरा को अपनी गोद में लिए बैठा था, अब ईरा को साँसें मिलीं तो जैसे ईरा खुद पर काबू पा सकी थी। वह धीरे-धीरे होश में आ गई थी। पर अभी भी वह दर्द और थकान से निढाल सी, आँखें मूंदे गहरी नींद में थी। अंशुल ने आहिस्ता से उसके होंठ छोड़े। उसने ईरा को अपनी गोद में लेकर बेड से उठा, उसे उसकी जगह वापस कंफर्टेबल बेड पर लिटाया। दो पल उसे देखने के बाद उसके माथे पर चूमकर वह कमरे से बाहर आ गया।

    और आगे……………