एक शहरी लड़का समीर जो फंस जाता है एक इंटरनेट वाले वीडियो के चक्रव्यू में, उस शार्ट वीडियो में है एक ऐसी खूंखार डरावनी लड़की जो समीर की नींदों उड़ा कर रख देगी और उसे अपने साथ लेकर जाएगी एक ऐसी जगह पर जहां जाते ही समीर पूरी तरह फंस जाएगा और निकलने के लि... एक शहरी लड़का समीर जो फंस जाता है एक इंटरनेट वाले वीडियो के चक्रव्यू में, उस शार्ट वीडियो में है एक ऐसी खूंखार डरावनी लड़की जो समीर की नींदों उड़ा कर रख देगी और उसे अपने साथ लेकर जाएगी एक ऐसी जगह पर जहां जाते ही समीर पूरी तरह फंस जाएगा और निकलने के लिए वह जो रास्ते अपना आएगा उन रास्ते में जो खुलासे होंगे वह समीर को चौंका देने वाले होंगे, समीर जिसकी पत्नी और बेटी होती है पर समीर खुद नही जानता वह सच हैं या कोई छलावा समीर उन्हें अपना परिवार तो समझ लेता है पर हकीकत से वह रूबरू नही होता… रहस्यमाय और हॉरर से भरपूर यह स्टोरी आई हॉप आप लोगो को जरूर पसन्द आयेगी
समीर माहिवाल
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माँ मीरा कहाँ है? आज उसकी तबीयत तो ठीक है ना? फिर से उसने कोई कुसीज किया तो नहीं? रंश ने बाहर से आते ही अपनी माँ से पूछा। माँ खेत से लाए भुट्टों के दाने निकाल रही थीं और पूरी तरह से ख्यालों में खोई हुई थीं। उनका मन उनके बस में नहीं था; बैठी तो वहीं थीं, पर उनका दिलोदिमाग कहीं और खोया हुआ था। जब उनके बेटे रंश ने उन्हें हिलाते हुए फिर पूछा-
"बोलिये ना माँ, मीरा कहाँ है?"
"वो, वो तो कॉलेज गई है ना बेटा। मुझसे कह रही थी, कोई प्रोजेक्ट है उसका।"
"क्या कहा? कॉलेज पर? आपने उसे जाने क्यों दिया, माँ?"
रंश हैरान हुआ। "माँ, ये क्या कह रही हैं आप? मीरा और कॉलेज? अगर उसने आज फिर वहाँ कुछ ऊँच-नीच कर दिया, तो जवाब कौन देगा? बोलिये, अभी पिछले हफ्ते ही तो वो अपने क्लास में पढ़ने वाले एक लड़के को दांत काट गई थी!"
"हाँ तो... तुम क्या मेरी बेटी को पागल समझते हो क्या, रंश?" रंश की माँ देवी भड़क उठीं मीरा की बुराई पर और उन्होंने रंश को डाँटा।
"पागल होती तो बात ही कोई और थी माँ, पर उसे तो ऐसे दौरे पड़ते हैं कि बस समझो सामने वाला उससे बच जाए तो बहुत है।"
"अरे, कुछ नहीं हुआ है मेरी लाडो को। वो एकदम ठीक है, समझा तू?" देवी ने अपने बेटे को डपट दिया और वापस भुट्टे छीलने लगीं। "वो उसके कॉलेज का लड़का मेरी मीरा को तंग भी तो कितना करता था ना, अच्छा हुआ मीरा ने उसे सबक सिखाया।"
"माँ, ये आप मुझसे बोल रही हैं या खुद को समझाना चाह रही हैं? क्योंकि आप भी अच्छे से जानती हैं कि सच्चाई क्या है और मीरा क्या है। वो कोई हमारी लाडो नहीं अब माँ, वो तो अब कुछ और ही बन गई है। मीरा पर साया है माँ, साया कोई बीमारी नहीं है, उसे जो उसका इलाज करेंगे तो वो ठीक हो जाएगी। और ये उस लड़के की ही बात नहीं, मीरा हर दूसरे-तीसरे दिन किसी ना किसी को चोट पहुँचाती रहती है।"
"तो तू बता कि क्या करूँ मैं, रंश? फेंक दूँ क्या उसे? या बेघर कर दूँ? या फिर जान से मार डालूँ अपनी बच्ची को?" देवी को गुस्सा तो नहीं आया था, पर वो इरिटेट जरूर हो गई थीं और दुखी भी।
रंश भी मायूस हो गया अपनी माँ की आँखों में आँसू देखकर। अफ़सोस से बोला- "माँ, मैं ये नहीं कहता कि आप उसे मारें या जान से मार डालें, पर वो हमारे घर की बेटी है। उसका ख्याल हम रखेंगे। भला उसकी वजह से किसी दूसरे को नुकसान हुआ, तो वो हमें ही ना आकर सुनाएगा कि क्यों हम उसको ऐसे खुले लोगों की भीड़ में छोड़ देते हैं?"
"बेटा, वो सुबह ठीक थी, तो मैंने जाने दिया उसे कॉलेज, रंश। आखिर उसकी पढ़ाई भी तो जरूरी है ना।"
"क्या माँ? उसका ठीक होना और बीमार होना उसके या हमारे हाथ में तो है नहीं। उसे कब क्या करने का मन हो जाए और क्या कर बैठे, कौन जानता है भला?"
रंश ने बहुत ही परेशान से अंदाज़ में कहा- "वह कभी लोगों को मारती है, कभी जानवरों को दौड़ाती है, कभी बच्चों को उठाकर कुएँ में फेंक देती है, तो कभी लोगों की मुर्गियों को कच्चा नोच-नोचकर खा जाती है। माँ, हमसे उसकी कितनी सारी शिकायतें पहले ही गाँव वालों ने कर रखी हैं। अब फिर से उसने कोई उद्यम मचाया, तो समझो गाँव में रहना दुश्वार हो जाएगा हमारा।"
रंश की बात पर उसकी माँ प्यार जताते हुए, पर जैसे चिढ़कर बोली- "अरे, बस एक बार ही तो उसने कल्लू के बेटे को कुएँ में फेंका था और क्या? अब तुम सब लोग उसको विलेन ही करते रहोगे?"
"ओह... तो मतलब रोज़-रोज़ उसको ऐसे कारनामे करने चाहिए? आपकी ये मर्ज़ी है क्या माँ? जब वो कुछ उल्टा-पुल्टा करे, हम तब ही कुछ कह सकते हैं उसे? बाकी तो वो बहुत ही बढ़िया है?"
"तो तू बता मैं उसका क्या करूँ, रंश? वह हमारी बच्ची है।"
"बाँधकर रखा कीजिये उसे। आपसे कितनी बार बोला है ना मैंने!" देवी ने हारते हुए सामान्य रूप से पूछा। रंश अचानक देवी के करीब बैठ गया क्योंकि उनका कलेजा मुँह को आ गया था रंश की इस बात से।
रंश उन्हें समझाता हुआ बोला- "माँ, यही सही रहेगा। वो अब सिर्फ़ प्यारी सी भोली-भाली हमारी मीरा ही नहीं, वो तो पता नहीं कौन है जो ऐसे कारनामे करती है। हमारी गुड़िया सी मीरा तो ऐसी नहीं थी।"
"बाँधा तो था बेटा मैंने अपनी मासूम सी बेटी को अपने इन्हीं हाथों से कई बार। पर उसे कोई रस्सी, कोई जंजीर नहीं थाम सकती, रंश। जब उसे झटके आते हैं, तो वो बहुत ही ताकतवर और गुस्से वाली हो जाती है। तुझे तो मालूम ही है ना, रंश?"
"ठीक है माँ, मैं जाकर उसको कॉलेज में देखता हूँ, कहीं कुछ नया ना कर दिया हो उसने। आप घर पर ही रहना। शायद वो यहाँ आए।"
"हाँ, हाँ, जल्दी जा बेटा। और सुन रंश!!" रंश जाने को मुड़ा था तो देवी ने उसका हाथ पकड़ लिया। "देख रंश, तू उसके एकदम से करीब मत जाना बेटा। पहले देखना कि वो ठीक है या फिर… … …!!"
"हाँ, मैं ध्यान रखूँगा माँ।" रंश के जाते ही देवी अपनी बेटी और बेटे के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगी और फिर रसोई की तरफ भागी, खाना बनाने। जैसे डर था कि देर ना हो जाए।
***************
इधर कॉलेज में........
मीरा कॉलेज से बाहर आई और धीरे-धीरे चलते हुए कॉलेज की सीढ़ियों पर बनी रेलिंग पर हाथ फेर रही थी। जो दो चोटियाँ उसकी माँ ने बाँधी थीं, वो अब खुल चुकी थीं और मीरा के बालों का डेरा उसके आधे चेहरे को ढके हुए था।
"ए मीरा, तू यहाँ क्या कर रही है? चल अपनी क्लास में जाकर बैठ।" मीरा की एक प्रोफेसर ने आकर मीरा को पीछे से पुकारा। वो उछल गई और अपनी प्रोफेसर को एकटक देखने लगी। प्रोफेसर फिर से बोली- "मीरा, जा अपनी क्लास में बैठ। ये घूमने का नहीं, लेक्चर का टाइम है। तूने क्लास क्यों बंक की? तेरी मैडम अंदर क्लास में है। चल, जल्दी जा।"
मीरा उन्हें वैसे ही एकटक देखते हुए, अजीब सी भयानक गुर्राती आवाज़ में बोली- "मुझे पढ़ाई नहीं करनी, मैडम!"
"क्या कहा? पढ़ाई नहीं करनी...? पर क्यों, मीरा? तू यहाँ कॉलेज पढ़ने आती है या टाइमपास करने?"
"मैं यहाँ खेलने आई हूँ, तुमसे मतलब!"
"तेरी तो! पागल लड़की, बदतमीज़ कहीं की! रुक, बताती हूँ मैं तुझे!" वो प्रोफेसर मीरा की तरफ गुस्से से बढ़ीं और उसका हाथ पकड़ लिया। "मीरा, तू मेरा मज़ाक बना रही है क्या?"
"हाथ छोड़ मेरा, टीचर!!" मीरा उसी भयानक सी अजीब आवाज़ में गुर्राई।
"प्रोफेसर ने उसका हाथ और कसकर थाम लिया और उसे डाँटती हुई बोली- "नहीं छोड़ा तो क्या करेगी? एक तो गलती करती है, ऊपर से अकड़ भी दिखा रही है तू मुझे। चल, क्लास में चुपचाप।"
"टीचर, मैंने कहा मेरा हाथ छोड़, वरना…!!" इस बार मीरा ने गुस्से में काफी स्पीड और जोर की आवाज़ से चीखकर अपनी उस प्रोफेसर की तरफ एक झटके में गुस्से से देखा। प्रोफेसर डर से काँप गई।
मीरा के चेहरे पर काफी तेज़ गुस्सा था। वह ज्वाला हो रही थी और उसकी आँखें अब लाल-लाल, जैसे खून सी जख्मी, झिलमिलाई हुई थीं। बालों की कई सारी लटें उसके चेहरे पर हवा में झूमती हुई बिखर रही थीं।
मीरा ने प्रोफेसर का गला अपने पंजे में जकड़ लिया और उसे एक हाथ से दबाते हुए उसे ही घूर रही थी। प्रोफेसर का दम घुटने लगा। वो हाथ-पैर चला रही थी और जिस हाथ से मीरा की कलाई थामी थी, वो पकड़ ढीली हो गई थी जब मीरा ने उसे वहीं से सीढ़ियों पर से नीचे फेंक दिया।
मीरा को ऐसे करते देख, उसके कॉलेज की दो क्लासमेट्स लड़कियाँ, जो उसके ही गाँव की उसकी सबसे करीबी सहेलियाँ थीं, दोनों एक साथ चीखते हुए मीरा के पास दौड़ती हुई आ गईं।
"अरे मीरा, मीरा! तूने ये क्या किया...? मीरा, मीरा! तूने प्रोफेसर को नीचे कैसे गिरा दिया? तू पागल हो गई है क्या, मीरा?" दोनों लड़कियाँ मीरा को जोर-जोर से पुकार रही थीं। "मीरा, ये तूने क्या कर दिया आज?"
मीरा ने अब जैसे होश में आते हुए हँसकर सर झटक दिया- "मैंने कुछ नहीं किया।"
"झूठ मत बोल, मीरा। हमने खुद देखा है तुझे प्रोफेसर को यहाँ सीढ़ियों से नीचे धक्का देते हुए।" वो दोनों लड़कियों ने नीचे देखा जहाँ उस प्रोफेसर को कई सारे टीचर स्टाफ उठाने की कोशिश कर रहे थे और वो बेहोश थीं।
"मीरा, तू ठीक तो है ना?"
"हाँ तो! मेरे करीब कोई आने की कोशिश करेगा, तो मैं क्या उसे छोड़ दूँगी क्या? जान... मैं उसकी जान ले लूँगी जिसने मुझे डाँटा या परेशान किया।" मीरा ने उन दोनों लड़कियों को और फिर अपनी बेहोश, खून से लथपथ पड़ी उस प्रोफेसर को खौलती नज़रों से देखते हुए कहा और वहाँ से चली गई।
मीरा अब कॉलेज से निकलकर बाहर आते हुए अचानक से तेज-तेज कदमों से दौड़ते हुए घर की तरफ भाग खड़ी हुई थी। रास्ते में खेतों की पगडंडियों पर चलते हुए वो दोनों हाथों से खेत की लहलहाती फसलों को उजाड़ती जा रही थी और गाजर, मूली, टमाटर, बैंगन, करेला; जो भी रास्ते में मिलता, सब कुछ दोनों हाथों से नोचती, उसे जानवरों की तरह खाती जा रही थी।
वो कभी खेतों में इधर जाती तो कभी उधर निकलती, सारे खेतों की फसलों को नष्ट करती। वो उनसे खेल रही थी और तालियाँ बजा-बजाकर अपने आप में ही कहकहे लगाकर हँस रही थी।
वह जब अपने घर आई थी, तो उसकी माँ देवी आँगन में चूल्हों पर बड़े-बड़े बर्तनों में खाना पका रही थीं। मीरा को देखते ही उनका दिल घबरा गया और उन्हें जाने क्या हुआ, वो बस घबराहट में तेज़-तेज़ हाँफने लगी थीं और अपनी फूली-फूली, अटकती साँसों के साथ मीरा के पास आ गईं।
"अरे, क्या हुआ मीरा बिटिया?"
"माँ, मुझे भूख लगी है, खाना दो!" मीरा ने किसी छोटे बच्चों सा सवाल किया। "माँ, मैं जब तक खाना नहीं खाऊँगी, बड़ी नहीं हो पाऊँगी!"
"बेटा, खाना... खाना बस बन ही रहा है। तू दो मिनट यहाँ बैठ, मेरी बच्ची।"
"दो मिनट? इन दो मिनट का मतलब भी समझती है क्या तू बुढ़िया? मैं इतना सारा इंतज़ार करूँगी?" मीरा को अचानक ही गुस्सा आ गया और वो हाथ-पैर पटकने लगी। "मुझे इंतज़ार करना पसंद नहीं। मुझे खाना चाहिए, सिर्फ़ खाना।"
"बेटा, बस दो मिनट। अभी खाना तैयार हो रहा है। चूल्हे पर सारी हाँडी चढ़ी है। मैं जल्दी-जल्दी से तेरे लिए रोटियाँ डाल लाती हूँ। मैं अपनी बच्ची को बहुत अच्छा-अच्छा खाना खिलाऊँगी और बहुत सारा खाना खिलाऊँगी, ठीक है मीरा?" मीरा की माँ का कलेजा बैठ रहा था। मीरा जाने कब क्या कर दे, भला कौन जानता था? और देवी थी तो उसकी माँ ही, पर उसे भी मीरा से उतना ही डर लग रहा था जितना कि बाकी के और गाँव वाले लोग उससे डरते थे।
"चूल्हे पर अब खाना चढ़ा है, मतलब बुढ़िया तूने अब खाना बनाना शुरू किया है? सुबह से क्या कर रही थी तू? मर गई थी क्या?" मीरा का गुस्सा परवान चढ़ गया था और उसने अपनी माँ के बाल खींच डाले और उन्हें एक ही झटके से दूर फेंक दिया। "मुझे बहुत जोर से भूख लगी है। मुझे खाना, खाना, खाना! बस खाना चाहिए!"
"मीरा, बेटा, तू बैठ। मैं अभी तेरे लिए कुछ लेकर आती हूँ।" मीरा की माँ देवी जल्दी-जल्दी, जैसे अपनी जान बचाने को वहाँ से हटकर घर से बाहर की तरफ भागते हुए घबराहट से बोली और बाहर दरवाज़े पर आकर वो लम्बी-लम्बी साँसें लेती हुई दरवाज़े के पास बैठकर सुस्ताने लगी क्योंकि मीरा ने उन्हें पीटकर रख दिया था।
देवी बेचारी घर के बाहर अनाथ बैठी रोते हुए अपने आँचल से अपना चेहरा रगड़ने लगी थीं। ये आज कोई नई बात नहीं थी!
मीरा का रोज़ का यही तो काम था। वह खाना खाने के लिए कुछ भी कर सकती थी और खाना इतना कि दो-दो, तीन-तीन बड़े बर्तन एक बार में ही खाली कर जाती और तब भी भूखी रह जाती। घर का राशन उसी की वजह से खत्म हो जाता और उसके बाप-माँ, भाई को खेती करने के साथ-साथ राशन बाहर से और भी खरीदना पड़ता क्योंकि मीरा का पेट तो भरना ही था। आखिरकार अब वो उनकी इकलौती बेटी और बहन थी जो अब जाने ही क्या बन गई थी?
और आगे………....
देवी बेचारी घर के बाहर अनाथ बैठी रोती हुई अपने आँचल से अपना चेहरा रगड़ने लगी थी। यह आज कोई नई बात नहीं थी!
मीरा का रोज का यही काम था। वह खाना खाने के लिए कुछ भी कर सकती थी और खाना इतना कि दो-तीन बड़े बर्तन एक बार में ही खाली कर जाती, और तब भी भूखी रह जाती। घर का राशन उसी की वजह से खत्म हो जाता और उसके बाप-माँ, भाई को खेती करने के साथ-साथ राशन बाहर से और भी खरीदना पड़ता, क्योंकि मीरा का पेट तो भरना ही था। आखिरकार, अब वह उनकी इकलौती बेटी और बहन थी, जो अब जाने क्या बन गई थी?
देवी ने बाहर ही बैठे-बैठे दरवाजे से घर के अंदर झांका। मीरा के बाल खुले हुए थे और उसकी आँखों में खून उतर आया था। वह गुस्से से पूरे आँगन में इधर-उधर टहल रही थी। उसका दुपट्टा दूर पड़ा था और कपड़े इधर-उधर उसने खुद ही फाड़ रखे थे, वह भी अपने बड़े-बड़े नाखूनों से। इतना ही नहीं, उसने अपना ही चेहरा गुस्से और झल्लाहट में नोच डाला था जिससे खून रिस रहा था, और वह बरबस गुर्रा रही थी।
वह कभी खुद के ही बाल खींचती, हाथ-पैर खुजलाती, तो कभी खुद को ही दांत से काट रही थी जहाँ घाव से खून बह रहा था। कभी उसे चाटने लगती। मीरा की माँ फौरन ही उठकर वहाँ से भागती हुई गाँववालों की तरफ गई थी ताकि कहीं से कुछ खाने को जल्द से जल्द ले आएँ और कुछ देर के लिए ही सही, मीरा को शांत कर सकें।
वह जब थोड़ी देर में गाँव से लौटकर आई, तो उनके हाथ में वह खाना था, शायद जो उन्होंने पड़ोसियों के यहाँ से माँगकर लाया था। और वह जैसे ही घर के आँगन तक आई, तो अपने घर की हालत देखकर हक्का-बक्का रह गईं। उनके होश उड़ गए थे और वह सुन्न खड़ी रह गईं, क्योंकि उनके घर का मंज़र ही कुछ ऐसा था।
सारा घर इधर-उधर छिटका पड़ा हुआ था। और सबसे बड़ी बात यह थी कि आँगन में ही मिट्टी के दो चूल्हे जल रहे थे, और उन दोनों पर हाँड़ियाँ पक रही थीं। दोनों चूल्हों में आग जल रही थी और चूल्हों में लकड़ी लगी थी जिससे आग की लपटें बहुत तेज उठ रही थीं। मीरा उन चूल्हों के मुँह में अपना एक-एक पैर डाले आराम से बैठी उन पकती हुई खौलती हाँड़ियों को देख-देखकर हँस रही थी।
उसके दोनों पैर दोनों चूल्हों में लकड़ी की तरह लगे धूँ-धूँकर जल रहे थे, और मीरा आराम से बैठी थी। उसे जैसे कोई एहसास ही नहीं था कि उसके पैर कैसे चूल्हे पर लकड़ी की तरह जल रहे थे।
यह देखते ही मीरा की माँ देवी जैसे चीख उठी थीं, और उनके हाथ में मीरा के लिए लाया गया वह सारा खाना उनसे छूटकर जमीन पर गिर गया था।
"माँ मुझे भूख लगी है, मुझे खाना दो जल्दी! माँ ये खाना पक नहीं रहा, लकड़ियाँ कम थी इसलिए मैंने इसमें अपने पैर लगा दिए। अब जल्दी बन जाएगा ये।"
"मीरा, मीरा मेरी बच्ची! यह क्या कर रही है तू?" देवी रोते हुए चीखकर फौरन दौड़ती हुई मीरा की तरफ भागी थीं।
लैपटॉप पर मीरा और उसके गाँव का यह रियल लाइव वीडियो देखते हुए, आज फिर से अपने घर के बड़े से बेडरूम में बैठे समीर के होश उड़ गए थे। उसने फौरन ही अपने लैपटॉप को अपनी नज़रों से काफी दूर बेड के एक कोने पर फेंक दिया था और डर और घबराहट से तेज-तेज साँसें लेने लगा था।
"ओह माय गॉड… ओ…माय…गॉड, यह कैसा रियल वीडियो है! जब देखो तब नया, यह हर बार मेरे रौँगटे खड़े कर जाता है। इसकी सच्चाई जानने के लिए मैं कितना बेताब हूँ, पर अभी तक मुझे कहीं से कोई क्लू नहीं मिला। क्यों… व्हाई… व्हाई?" समीर ने अपने आप से ही कहते हुए अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से रगड़ डाला था, जहाँ पसीने की छोटी-छोटी बूँदें उसका पूरा चेहरा और तन-बदन भीगो गई थीं।
ए.सी. रूम में भी उसे बहुत गर्मी लग रही थी और वह अपने हाथों से खुद को हवा कर रहा था।
यह शॉर्ट मूवी वीडियो वह दिन में दो-चार बार देखता ज़रूर था। पन्द्रह मिनट की इस वीडियो पर पन्द्रह लाख से भी अधिक कमेंट आए थे और समीर भी इसका एक बड़ा फैन था, जो इस वीडियो के नए भाग की तलाश में रहता था, पर शायद एक पार्ट के अलावा इसका दूसरा पार्ट YouTube पर था ही नहीं।
समीर अपना सर पकड़े बैठा कुछ सोच रहा था, जब अचानक उसे कुछ याद आया। "अरे यार एक मिनट! मैंने भी तो इस वीडियो पर कमेंट किया था ना कि यह वीडियो रियल है या फ़ेक। एक बार अपना कमेंट चेक करता हूँ, शायद इस हॉरर वीडियो को इंटरनेट पर अपलोड करने वाले इस YouTuber का मुझे कोई रिप्लाई आया हो?"
समीर ने जल्दी से लैपटॉप वापस उठाकर अपने सामने रख लिया था और कीपैड पर उसकी अंगुलियाँ तेज़ी से थिरकने लगी थीं, जहाँ कुछ नहीं मिला।
"शिट यार! कोई कमेंट ही नहीं आया वीडियो डालने वाले का। एक छोटी सी दो-कौड़ी की शॉर्ट फ़िल्म का डायरेक्टर होकर खुद को बहुत बड़ा हीरो समझ रहा है वह। शायद उसने मेरा कमेंट इग्नोर किया… मेरा… समीर माहिवाल का कमेंट।"
समीर ने अपनी बेड पर रखी पिलो को दो-तीन मुक्के मारे थे और उसी पर उल्टा होकर लेट गया। "इसकी इस वीडियो पर दो दिन पहले ही मैंने कमेंट किया था और अब तक रिप्लाई नहीं दिया उस कमीने ने। कब, आखिर कब आएगा रिप्लाई? मुझे इस वीडियो का सच जानना है। क्या यह लड़की वाकई ऐसी है? क्या… क्या यह शॉर्ट मूवी रियल है या फिर एक काल्पनिक मनोरंजन? मुझे जानना है!" समीर खुद से ही बातें कर रहा था और झल्ला रहा था।
"पन्द्रह लाख कमेंट करने वाले इस वीडियो के फ़ैन्स में से भी किसी ने मेरे कमेंट पर कोई कमेंट नहीं किया है। यह सब इतने बिजी हैं क्या? वाकई, लगता है मैं ही बस फ़्री बैठा हूँ।" समीर अपने आपको ही गुस्से में डाँट रहा था और इस शॉर्ट वीडियो से रिलेटिव एवरीपर्सन को कोस रहा था। उसे इस वीडियो का सच जानना था, जिसने उसका जीना हराम कर रखा था, जिसकी वजह से जाने क्यों वह बहुत बेचैन सा महसूस करता था खुद को, पर उसे इस वीडियो के बारे में कुछ नहीं पता था।
और आगे…
इस वीडियो को मैं दो महीने से पचास बार देख चुका था और इस वीडियो को मैं जानना चाहता था। मुझे जानना था कि यह लड़की आखिर कौन है, कैसी है और कहाँ पर है... यह ऐसी है तो क्यों है? समीर अपने आप से बातें कर रहा था।
"मुझे आज तो इसके बारे में कुछ नहीं पता, पर मैं यह सब जानकर ही रहूँगा, क्योंकि मैं भी समीर हूँ... समीर माहिवाल और मैं इतनी जल्दी हार नहीं मान सकता।"
समीर ने अपने लैपटॉप की स्क्रीन को जोर से लात मारी थी। वह सरक कर बेड से नीचे जा गिरा। तभी, बेड के नीचे बैठी उसकी पालतू व्हाइट, खूबसूरत सी प्यारी बिल्ली यानी म्याऊ ने जोर से आवाज की थी। इस पर समीर और भी इरिटेट हो गया।
"क्या है बिल्ली-बिलौटा? तू यहां मेरे कमरे में क्या कर रही है? चली जा, वरना फेंक दूँगा उठाकर तुझे।"
समीर ने म्याऊ को अपनी गोद में उठा लिया था और अपने बेड पर लाकर पटक दिया। "गंदी बिल्ली! तुझे देखकर ही मेरा खून खौल जाता है। मम्मी की प्यारी नखरैल परी कहीं की! मम्मी मुझसे ज़्यादा तुझे इम्पोर्टेंस देती हैं, इसीलिए मैं तुझसे चिढ़ता हूँ, समझी तू?"
समीर अपने सिर से पैर तक चादर लपेटकर अपने बेड पर लेट गया था। कुछ ही पल हुए थे कि उसे लगा जैसे कोई उसकी चादर उस पर से खींच रहा हो। समीर ने उसे झटक दिया क्योंकि उसे लगा था कि यह ज़रूर उसकी प्यारी बिल्ली म्याऊ ही होगी, जो उसकी चादर हटाकर उसे नींद से जगाने की कोशिश कर रही है।
समीर ने बिना अपना मुँह चादर से बाहर निकाले, उसी तरह उसे पूरी तरीके से खुद पर ताने हुए, म्याऊ को झटकने लगा था। चादर के ऊपर से ही बार-बार हाथ-पैर पटक रहा था ताकि म्याऊ वहाँ से चली जाए। पर वह जब बार-बार उसकी चादर खींचती ही रही, तो अब समीर ने इरिटेट होकर जरा सा अपना चेहरा चादर से बाहर निकालकर झाँका था।
"ओह्ह हो... क्या बात है म्याऊ? तेरी समझ में नहीं आता क्या? जा चली जा यहाँ से, प्लीज़ सोने दे मुझे, वरना मैं तुझे!!" समीर ने तिलमिलाते हुए झल्लाकर कहा था। जबकि वहाँ म्याऊ थी ही नहीं। जिससे वह हैरान रह गया था कि जब वहाँ उसकी बिल्ली नहीं थी तो फिर उसकी चादर खींचने वाला कौन था?
समीर चादर से उसी तरह बाहर झाँकता हुआ इधर-उधर पूरे कमरे में देख रहा था, जैसे कुछ ढूँढ़ रहा हो। जब एकदम से उसकी नज़र छत की तरफ ऊपर गई, तो उसकी रूह काँप गई। ऊपर छत पर एक ब्लैक फ्रॉक पहने लड़की उसके छत के फ़ैन से लटकी हुई थी।
समीर फटी-फटी नज़रों से ऊपर देख रहा था और डर से काँपता हुआ घबरा उठा था। वह एकटक छत को निहारता रहा और पलकें तक झपकाना भी भूल गया था। जबकि वह लड़की पंखे के एक पर पर आराम से बैठी, उसे अपनी बड़ी-बड़ी लाल आँखों से घूर रही थी। उस लड़की की वह ब्लैक फ्रॉक बेहद ही गंदी और जगह-जगह से कटी-फटी सी थी। उसका चेहरा पूरी तरह से उसके लंबे गंदे बालों से ढका हुआ था, नाखून बढ़े हुए थे, हाथों में लाल-हरी चूड़ियाँ, नंगे पैरों पर ज़ख्म जिनमें से खून रिस रहा था। जब समीर ने उसे देखा तो जैसे उसके होश ही उड़ गए थे और वह मरे डर के मानो साँस भी नहीं ले पा रहा था।
वह लड़की पंखे के पर पर बैठी रही और फिर अचानक ही उठकर छत पर उल्टा चलने लगी। वह उल्टी छत पर ऐसे चल रही थी जैसे जमीन पर चल रही हो। और वह जैसे-जैसे छत पर पैर बढ़ा रही थी, उसके कदमों के गाढ़े लाल निशान पूरी छत पर बनते जा रहे थे। समीर सब कुछ काँपते हुए हैरान सा देख रहा था और वह चादर से लिपटा रहा। उसने बस अपनी आँखों तक का ही मुँह बाहर खोल रखा था।
वह कुछ करता, कुछ बोलता, कि वह लड़की जो उसे ही देखे जा रही थी, एकदम से ही छत से नीचे उसके चेहरे पर कूदी और समीर डर से चीख उठा था।
"मम्... मम्मी, मम्मी बचाओ, मम्मी!" समीर की चीख निकली थी और उसने अपनी आँखों पर दोनों हाथ रख लिए।
कुछ पल का सन्नाटा गुज़र गया और फिर समीर ने काफी देर बाद कंपकपाते हुए धीरे-धीरे अपने हाथ आँखों पर से हटाए थे और अपनी दर्द में थर्राती अधखुली नज़रों से वापस ऊपर छत की तरफ देखने लगा था, जहाँ पर अब कोई भी नहीं था। उसने एक रफ़्तार से उछलकर पहले खुद को, फिर पूरे बेड को घूम-घूमकर देखा और अब वह जोर-जोर से हाँफ रहा था। फिर फ़ौरन ही बेड से नीचे उतरा और पूरा कमरा छानने लगा, पर वह लड़की उसे कहीं भी दिखाई नहीं दी।
"ये सपना... सपना नहीं हो सकता, बाई गॉड... नेवर! पर ये सच था तो वह लड़की गई कहाँ और... और वह थी कौन? यहाँ कैसी आई?" समीर अपने आप से ही सवाल कर रहा था। आखिर वह डर ही इतना जो गया था और पूरे कमरे में इधर-उधर टहल रहा था, जब उसके कमरे में नॉक हुआ तो वह जो पहले से ही डर हुआ था और भी डर गया।
समीर ने दरवाजे की तरफ़ देखा तो एक सर्वेन्ट खड़ा था। जिसे देखकर अब उसकी जान में जान आई। "क्या हुआ? तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
"समीर बाबा, आपको बड़े साब और मैडम जी बुला रही हैं!" उस सर्वेन्ट ने सर झुकाकर जवाब दिया था।
समीर अभी उस लड़की के बारे में सोच-सोचकर परेशान हो रहा था, जब एक और डर भरा बुलावा आ गया। उसको उसके मॉम-डैड ने बुलाया था, यानी कि एक और बड़ी मुसीबत। समीर अपने पैरेंट्स के सामने जाने से बहुत कतराया करता था।
समीर ने नौकर से पूछा, "क्यों? अब क्या कर दिया मैंने? क्यों बुलाया है मुझे?"
"बाबा, मुझे नहीं पता। उन्होंने आपको बुलाने को कहा और वो दोनों अभी नीचे ही हैं, हॉल में आपका वेट कर रहे हैं। आप जल्दी चलिए।" नौकर ने बड़े रिक्वेस्टली और रिस्पेक्टली कहा था।
"ठीक है, तुम जाओ, मैं आता हूँ!" समीर ने बेमन से जवाब दिया और वापस कमरे में इधर-उधर देखने लगा क्योंकि उसके दिमाग पर वह लड़की जो छाई हुई थी।
और आगे……
ठीक है, तुम जाओ, मैं आता हूँ। समीर ने बेमन से जवाब दिया और वापस कमरे में इधर-उधर देखने लगा क्योंकि उसके दिमाग पर वह लड़की छाई हुई थी।
"जी बाबा!" सर्वेन्ट वहाँ से सर हिलाता हुआ चला गया था। समीर म्याऊ को गोद में उठाए कमरे से बाहर आया और उसे कमरे के दरवाजे पर छोड़ दिया। वह समीर से छूटते ही वहाँ से भाग गई।
समीर जैसे ही नीचे आया, उसकी माँ-पिता, अमन और रानी, दोनों ही उस पर चीख पड़े, जैसे उसने किसी का मर्डर कर दिया हो।
अमन ने गुस्से में कहा, "समीर, तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? तुम हमारी नाक क्यों कटवाते रहते हो? हर जगह तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है? क्यों नहीं समझते तुम कि तुम हमारे बेटे हो? तुम्हें अपने तौर-तरीकों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि लोग शान से कह सकें कि अमन माहिवाल का बेटा है यह।"
"क्या हुआ पापा? एवरीथिंग इज फाइन, अब क्या कर दिया मैंने?" समीर अनजान सा पूछ रहा था क्योंकि वह वाकई अनजान ही था। अमन के गुस्से से जो कितनी अकड़ में थे, जैसे उन्हें कितना गर्व हो अपनी इमेज का। "पापा, मैंने क्या किया है जो आप इतना हाइपर हैं? मम्मा, आप बोलिये, क्या कर दिया अब मैंने जो आपकी शान के खिलाफ़ हो गया हो?"
"व्हाट फाइन, समीर? जब तक तुम हो बेटा, कैसे सब अच्छा हो सकता है?" समीर ने जितनी नासमझी से प्यार में धीरे से पूछा था, अमन उतना ही गुस्से में भड़क उठे थे और एक कागज़ का टुकड़ा उसके सामने लहराते हुए बोले थे।
"यह सब क्या है समीर... है तुम्हारे पास इसका कोई जवाब? तुम फिर से फेल हो गए?"
"क्या... पर ऐसे कैसे? मैंने तो अच्छे से पेपर लिखा था पापा, फिर कैसे फेल हो गया मैं?"
"समीर, तुम्हारे मार्क्स जितने आए हैं, इसे फेल होना ही कहते हैं, भले ही तुम फेल नहीं हो!" इस बार उसकी माँ रानी ने उसे डाँटती नज़रों से घूरा था और समीर उन दोनों के बीच फँसा कोई कैद का पंछी सा हो रहा था।
"समीर, यह क्या है? फिर से तुम्हारे मार्क्स सिर्फ़ सेवेंटी परसेंट हैं। तुम अपनी इमेज नहीं जानते, समीर। तुम मेरे बेटे हो, तुम्हें सबसे अलग दिखना चाहिए, पर तुम तो सबकी तरह ही ऑर्डिनरी हो रहे हो?" रानी ने जलकर पूछा था, जिस पर समीर चुपचाप उन्हें देखता रहा, जब उसके पापा चीखे थे।
"इधर देखो समीर, मेरी तरफ़। अपनी मॉम को नहीं। तुम मुझे जवाब दो पहले। आखिर तुम कब सुधरोगे? मेरी इमेज, मेरी रेप्यूटेशन खराब क्यों कर रहे हो तुम?" अमन ने समीर का चेहरा पकड़ कर अपनी तरफ़ घुमा लिया था, जिससे समीर अंदर तक काँप गया। उसे लगा वह अपने माँ-बाप के साथ नहीं, बल्कि किसी जेलर के सामने खड़ा हुआ एक कैदी है।
"समीर, तुम्हें पता है क्या? मेहता का बेटा नाइनटी परसेंट लाया है और अब उसके बाप का सीना खुशी से चौड़ा हो गया है। मुझे तो मेहता से नज़र मिलाने में भी शर्म आती है। कैसे वह तन कर चल रहा था आज पूरी पार्टी में और मैं... मैं तुम्हारी वजह से इम्बेरस्ड हो रहा था।"
"पापा, प्लीज़, यह पढ़ाई है और पढ़ाई में तो यह सब चलता ही रहता है। कभी मैं आगे तो कभी कोई और। इसमें तो कम्पेरिज़न न कीजिये पापा, प्लीज़। जैसे किसी खेल में जब कोई एक हारता है, तभी दूसरा जीतता है और यह तो सिर्फ़ एक मामूली सा टेस्ट था, कोई फ़ाइनल एग्जाम तो था नहीं। इस बार नहीं तो नेक्स्ट टाइम पास ज़रूर हो जाऊँगा ना पापा, वह भी अच्छे मार्क्स से।" समीर सब एक ही साँस में बोल गया था। आखिर वह झल्लाने लगा था अपने पापा पर। मम्मा की बातों से उसे दुःख हो रहा था।
समीर की नज़रें झुकी हुई थीं, जबकि उसके पैरेंट्स का पारा हाई था। "पापा, अभी एग्जाम को बहुत दिन हैं। मैं पढ़ाई करूँगा तो मेहता अंकल के बेटे से भी आगे निकल जाऊँगा।"
"देखा... देखा तुमने इसे? रानी, कैसे यह बाप से जुबान चला रहा है?" अमन ने इस बार समीर के बजाय अपनी वाइफ़ रानी को देखा था। "देखो रानी, इसे कैसे फ़ेल होने पर भी इसकी नज़रें नीचे नहीं झुकी हैं, जैसे कोई तीर मारकर आया हो। ब्लडी लूज़र।"
"तो अमन, तुम हर बात मुझसे ही क्यों कहते हो? अरे, अब सामने खड़ा तो है तुम्हारा मुजरिम बेटा। इससे निपटो ना, इसमें मैं क्या करूँ?" रानी ने कितनी आसानी से कह दिया था, जैसे उन्हें वाकई कोई फ़र्क नहीं पड़ा था कि अमन कितना गुस्से में समीर को डाँट रहे थे और वह डाँट समीर को हर्ट कर रही थी। जबकि वह एक माँ होकर भी अपने बच्चे का दर्द नहीं समझी।
"कैसा नालायक बेटा है मेरा? जैसी माँ वैसा बेटा?" अमन अब रानी पर भड़क गए थे, तो रानी भी चुप ना रह सकी।
"अच्छा! तुम तो बहुत ज़्यादा ही लायकदार हो ना। बस एक मैं ही इतनी खराब थी। अरे, जब मैं इतनी ही खराब थी, तो मुझसे शादी क्यों कर ली तुमने?"
"क्योंकि तब मेरा दिमाग खराब हो गया था, इसीलिए!"
"वह तो तुम्हारा अभी भी खराब है, अमन। अब क्या, तुम अच्छे हो गए हो क्या?"
"रानी, प्लीज़, स्टॉप इट! तुम बहुत बोलती हो। मेरा मूड वैसे ही ठीक नहीं है। मुझे और गुस्सा मत दिलाओ।"
"हाँ, तो क्या करोगे? मारोगे क्या मुझे? मारो ना, हाथ तो लगाकर दिखाओ। डोमेस्टिक वायलेंस में ऐसा फँसाऊँगी कि ज़िन्दगी भर याद रखोगे।" समीर दूर खड़ा उन्हें देख रहा था और अब उसके माँ-बाप उसे भूलकर आपस में भिड़ चुके थे।
"रानी, तुम मुझे उकसा रही हो क्या?"
"हाँ, तो क्या करूँ फिर? अच्छा-ख़ासा कह रही थी, इसे हॉस्टल भेज दो, पर नहीं। एकलौता बेटा है, साथ में रखेंगे। बोल-बोलकर सर पर चढ़ा लिया इसे तुमने!" रानी ने गुस्से में समीर को देखते हुए फिर से अमन से कहा था। "तो अब क्या हुआ अमन, झेलो इसको यहाँ पर। मुझे क्या बड़ा कहते थे ना तुम? बेटा है... बेटा है?"
रानी ने समीर पर तंज किया था और उसी तरह बोलती रही। वह समीर को ऐसे ही तो डाँटती थी हमेशा। अमन और रानी यह दोनों ही अपना सारा गुस्सा उस पर ही तो निकाला करते थे, बिना इसकी परवाह किये कि वह उनका बेटा था, वह भी एकलौता। जिसके ना होने पर उन दोनों की यह शान, बान उनके किसी काम की नहीं होती, जब औलाद का सुख ही ना होता तो?
"अमन, मैंने कहा तो था कि हमें बचपन से ही इसे हमसे दूर रखना चाहिए, ताकि इसे हमारी क़दर होती। तो आज ऐसी गलतियाँ नहीं करता फिरता। बोडिंग स्कूल के बाद हॉस्टल। हमेशा ही घर से बाहर रहता, तो इतना नहीं बिगड़ता।"
"रानी, तुम्हें तो और भी बच्चे चाहिए थे ना? अरे, वह तो अच्छा हुआ एक ही है! यह इकलौता ही नहीं संभलता। अगर इसकी तरह एक और बेटा या बेटी होते, तो मैं तो कब का अपनी जान दे चुका होता। ऐसी नालायक होती है क्या औलादे?" यह अमन की बात थी जो अक्सर ही आकर सीधा समीर के दिल में लगा करती थी और आज भी जब उन्होंने यह कहा, तब समीर मचल गया।
रानी भी अमन के ही लहजे में बोली, "हाँ, तो मुझे पता नहीं था अमन कि बच्चे इतने शैतान होते हैं। यह मेरी औलाद कैसे हो सकता है? मैंने ज़िन्दगी में कभी हारना नहीं सीखा और यह... इसकी वजह से मुझे हार का मुँह देखना पड़ता है अब।"
"वही तो! अच्छा हुआ बस एक ही औलाद है। दो-तीन और होतीं तो पता नहीं क्या गुल खिलातीं?" रानी और अमन समीर को डाँटते रहे और उनकी ये आख़िरी बोली गई बातें तो समीर को महसूस हुआ था जैसे कोई उसकी जान ही निचोड़ रहा हो।
वह अब वहाँ और ज़्यादा देर तक खड़ा नहीं रह पाया और जैसे ही उनके पास से वह वापस अपने रूम की तरफ़ बढ़ा, कि आख़िरी सीढ़ी पर आते ही वह एकदम से रुक गया। क्योंकि उसने सामने अपने कमरे में कुछ ऐसा देखा था कि मानो उसके पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई और डर से उसका पूरा बदन काँप उठा। उसके कमरे के अंदर का नज़ारा ही कुछ ऐसा ख़ौफ़नाक, भयावाह और अविश्वसनीय था, जिससे मारे हैरत और ख़ौफ़ के समीर की रूह क़ैद हो गई थी।
और आगे.....………
क्या होगा समीर के सपने का राज, जो अब समीर को सोने नहीं देगा?
समीर काफी देर तक अपने कमरे के दरवाज़े पर खड़ा रहा। फटी-फटी आँखों से उसने कमरे के अंदर का नज़ारा देखा।
कमरे के अंदर कुछ ऐसा था जिससे समीर के होश उड़ गए थे। उसका बेड जमीन पर होने के बजाय छत से चिपका हुआ था, हवा में हिल-डुल कर उड़ रहा था।
रूम की सारी खिड़कियाँ धड़ाधड़ आपस में टकरा रही थीं और तेज शोर करते हुए, एक-एक कर टूटकर टुकड़ों में गिर रही थीं। सारे पर्दे जमीन पर पड़े धूल चाट रहे थे और पूरी फर्श पर चारों तरफ़ खून ही खून फैला हुआ था।
छत से खून के फव्वारे फूटकर चारों दीवारों के सहारे झरनों की तरह गिर रहे थे, बह-बहकर कमरे में खून का सैलाब ला रहे थे।
सारा सामान इधर-उधर हवा में उड़ रहा था, मानो समीर पर हँस रहा हो। हर फर्नीचर खुद-ब-खुद इधर-उधर घूम-घूमकर चल रहा था, किसी ज़िंदा, जीती-जागती हस्ती की तरह इधर-उधर टहल रहा था, जैसे वह कोई सामान नहीं, इंसान हो।
कमरे का ऐसा ख़ौफ़नाक और दिल दहला देने वाला नज़ारा था कि समीर, जो दरवाज़े पर जम सा गया था, डर के मारे चीख पड़ा।
समीर के मुँह से ज़ोरदार आवाज़ निकली। वह फटी-फटी आँखों से सब कुछ देख रहा था। जब उसने डर से एक कदम पीछे लिया, तो सीढ़ियों पर उसका पैर फिसला और वह धड़ाम से सीढ़ियों से नीचे गिर गया।
उसके चेहरे पर डर का भाव था और वह जोर-जोर से चीख रहा था। घर के सारे नौकर और उसके माँ-बाप, अमन और रानी, दौड़ते हुए उसके पास आए। सब समीर की इस हालत पर हैरान थे।
"कक...क्या... क्या हुआ समीर... क्या हुआ बेटा... क्या हुआ तुझे?" रानी ने फौरन समीर का सर उठाकर अपनी गोद में रख लिया। वह जमीन पर अचेत पड़ा हुआ, घबराया सा, छत निहार रहा था।
"क्या हुआ मेरे बेटे? तू ऐसे चीखा क्यों? समीर, तू ठीक तो है ना मेरे बच्चे? बोल, प्लीज़, क्या हुआ समीर?"
"ओह गॉड, रानी! तुम्हें दिख नहीं रहा है? ये सीढ़ियों से गिर गया है, पागल औरत! अब ये तुम्हारा बेटा छोटे बच्चों सी हरकतें करता फिरेंगे... भई वाह!" अमन ने रानी को डाँटा। उनके चेहरे पर सख्ती के भाव थे, पर दिल ही दिल में समीर की ऐसी हालत पर वह भी घबरा गए थे।
"क्या हुआ है तुझे समीर? कुछ बोलेगा भी? कैसे गिर गया तू बेटा?" रानी और अमन समीर को हिला-डुला रहे थे, जबकि वह किसी ख़ौफ़ खाए छोटे से बच्चे की तरह अपनी माँ से चिपका हुआ पड़ा रहा।
वह रो नहीं रहा था, पर उसकी आँखें आँसुओं से तर-बतर थीं और उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था।
"मम....मम्मी....मम्मी वह...वह!" समीर के मुँह से धीरे से निकला। रानी ने फौरन उसे अपने गले से लगा लिया।
"क्या हुआ बेटा? बोल ना?" रानी काफी परेशान थीं समीर की हालत पर।
"मम्मी मेरा रूम...वहां पर....वहां... वहां पर कोई... कोई है... वहां पर.... कुछ....कुछ है मम्मी... वहां पर कुछ तो है!"
समीर ने अटक-अटक कर, डर के साये में हाँफते हुए कहा। अमन और रानी और भी ज़्यादा परेशान हो गए थे।
"नहीं तो मेरा बच्चा, कुछ नहीं है तेरे रूम में। चल, मुझे दिखा। यह तेरा वहम है बेटा?" रानी ने समीर को सहारा देते हुए उठाने की कोशिश की, पर वह उसी तरह जमीन पर बेसुध सा लेटा रहा।
"समीर उठ... उठ, चल हमारे साथ... चल, दिखा मुझे... तेरे रूम में कुछ नहीं है बेटा। तू क्यों डर रहा है समीर? प्लीज़, होश आ बेटा, क्या हुआ तुझे?" इस बार अमन ने समीर को जबरदस्ती उठाकर खड़ा किया और फिर उसके साथ उसके रूम की तरफ़ बढ़ गए।
आगे-आगे अमन और रानी थे और उनके पीछे-पीछे समीर, डरता हुआ, धीरे-धीरे, थर्राते बदन से छोटे-छोटे कदम बढ़ा रहा था।
तीनों जब एक साथ कमरे के दरवाज़े पर पहुँचे, तो वहाँ कुछ भी ऐसा नहीं था जो अजीब होता। सब कुछ ठीक था, सारी चीजें अपनी-अपनी जगह पर यथास्थिति में सुरक्षित रखी हुई थीं और पूरा कमरा पहले की तरह सजा-सँवरा हुआ, खूबसूरत था।
कमरा ऐसे देखकर अमन को गुस्सा आ गया। वह समीर पर भड़क उठे।
"समीर, अब तू झूठ भी बोलने लगा हमारी डाँट से बचने के लिए? यह कैसा नाटक रचा है तूने? कहाँ है यहां पर कुछ? कुछ भी तो नहीं है यहां?"
अमन ने समीर का हाथ पकड़कर खींचा और उसे रानी के पीछे से निकालकर उसके कमरे के दरवाज़े पर खड़ा कर दिया।
"तू ही देख, यहां क्या है? कुछ नहीं ना, सब कुछ ठीक तो है?"
अमन ने सख्त आवाज़ में समीर को घूरते हुए कहा। जबकि समीर तो खुद वहाँ सब कुछ पागलों सा देख रहा था। अभी यहाँ कुछ और था, और अभी कुछ और, बिलकुल उल्टा। अभी दो पल पहले ही तो उसके कमरे में एक ऐसा नज़ारा था जिसे देखकर कोई भी हार्ट अटैक से मर सकता था, और अभी सब कुछ शांत कैसे था?
समीर एक बार अपनी आँखें रगड़ता, तो एक बार अपने सर पर हाथ मारता; कभी बाल खींचता, तो कभी अपने ही गालों पर थपथपाता, जैसे अपने आपको होश दिला रहा हो। वह अपने कमरे के चारों तरफ़ एक-एक चीज़ को घूरते हुए देख रहा था।
"समीर, यह पागलपन तू अपने दोस्तों के सामने किया कर। हमें बेवकूफ़ बनाने की कोशिश मत करना दुबारा से। मैं तेरा बाप हूँ, मुझसे होशियारी कम किया कर।" अमन गुस्से में समीर को डाँटते हुए वहाँ से चले गए। रानी ने भी समीर को उसी तरह से तपती नज़रों से देखा।
"तेरा दिमाग खराब हो गया है समीर? यह सब क्या बचपना था?" इस बार रानी ने भी समीर को डाँटा, जबकि समीर तो खुद ही आपमें-आप कोस रहा था। वह इतना अवाक था कि उसके साथ यह सब क्या हो रहा है और क्यों?
"अरे मम्मी, मैं सच कह रहा हूँ, यहां पर अभी कुछ ऐसा था कि मैं....!!"
"चुप कर तू! यहां पर कुछ नहीं था और ना ही अब है... तू कहना क्या चाहता है? दो मिनट में ही यहां पर सब कुछ ठीक हो गया? क्या... और कौन है यहां पर? कोई भी तो नहीं, मुझे भी दिखा जरा?" समीर कुछ बोलने वाला था, जब रानी ने उसे डाँट दिया और गुस्से में पैर पटकती हुई वहाँ से चली गईं।
और आगे……………
तेरा दिमाग खराब हो गया है समीर, यह सब क्या बचपना था? इस बार रानी ने भी समीर को डाँटा था। जबकि समीर तो खुद ही आपमें-आप कोस रहा था। वह इतना अवाक् था कि उसके साथ यह सब क्या हो रहा है और क्यों?
"अरे मम्मी, मैं सच कह रहा हूँ, यहां पर अभी कुछ ऐसा था कि मैं....!!"
"चुप कर तू! यहां पर कुछ नहीं था और ना ही अब है। तू कहना क्या चाहता है? दो मिनट में ही यहां पर सब कुछ ठीक हो गया क्या? और कौन है यहां पर? कोई भी तो नहीं, मुझे भी दिखा जरा?"
समीर कुछ बोलने वाला था, जब रानी ने उसे डाँट दिया और गुस्से में पैर पटकती हुई वहाँ से चली गई।
अब समीर वहाँ अकेला था, पर उसको अब भी डर लग रहा था। उसने डरते हुए धीरे से अपने रूम में पहला कदम रखा था, पर यह क्या...!
वह तो रूम में आने के बजाय एक नई जगह, जैसे किसी दूसरी ही दुनिया में आ गया था, जहाँ काला साया और चारों तरफ़ काला-काला अंधेरा फैला था।
चारों ओर घना जंगल, झाड़ियाँ, खूंखार और अजीब सी डरावनी जगह थी। जहाँ से अजीब-अजीब से जंगली जानवरों की भयंकर डरावनी रोने-चिल्लाने की आवाज़ें आ रही थीं, जो समीर के रोंगटे खड़े कर गईं। बड़े-बड़े विशालकाय पेड़ खड़े थे, जो सन्नाटे से माहौल में भी आंधियों के झोंके से हिल रहे थे। जिनके तनों के अंदर से किसी के रोने-छटपटाने की आवाज़ आ रही थी।
समीर तो अपने रूम में ही आया था, लेकिन वह कदम बढ़ाता हुआ अपने रूम के बजाय एक नई जगह ही बढ़ रहा था। समीर जो पहले ही थरथर कांप रहा था, अब और भी उसे डर लगने लगा।
वह उस खौफनाक सी जगह के चारों तरफ़ देख रहा था, जब सामने ही उसे एक लड़की खड़ी दिखाई दी। जो उसकी तरफ़ पीठ किए हुए खड़ी थी और शायद उस लड़की के सामने भी कोई था, जिससे वह लड़की हँस-हँसकर अपनी गुर्राती भयानक सी आवाज़ में बातें कर रही थी।
समीर धीरे-धीरे डरता हुआ उस लड़की के पास बढ़ रहा था, पर वह बार-बार अपने चारों तरफ़ घूम-घूमकर देख भी रहा था। जहाँ वह काला घना डरावना सा जंगल साया-साया कर रहा था, जब एकदम ही एक कटीले पेड़ की टहनी नीचे झुकी और उसने समीर को साँप की पूँछ की तरह अपनी लताओं में लपेट लिया।
समीर चिल्लाते हुए जोर-जोर से हाथ-पैर झटकने लगा था। जबकि उस लता ने उसको अपने में लपेटे हुए ऊपर उठा दिया और उसकी कमर पर अपनी पकड़ कसता ही चला गया। जिससे समीर की साँसें फूलने लगी थीं, वह उस लता को कभी दाँतों से काटता तो कभी नाखूनों से नोचता हुआ दर्द से कराहने लगा।
वह खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश कर रहा था, जब उस पेड़ ने अचानक से ही उसे दो गज़ दूर पटक दिया था। जहाँ इतनी ऊपर से गिरकर समीर को चोटें तो बहुत लगी थीं और उसके मुँह से आह निकल गई, पर वह फ़ौरन ही एक झटके से उठकर वापस खड़ा हो गया और उस लड़की की तरफ़ देखते हुए फिर से उसकी ओर बढ़ने लगा।
समीर धीरे-धीरे, आहिस्ता-आहिस्ता उस लड़की के करीब पहुँचा था और डर से थर्राते हुए उसके होठों से बस इतना ही निकला था।
"आ...आप...आप कौन....कौन हैं...सुनिए?"
समीर के इतना कहते ही वह लड़की एक झटके में समीर की तरफ़ पलटी थी। लड़की की गर्दन टूटकर उसके कंधों के ऊपर तक का ही सर समीर की तरफ़ मुड़ा था, जबकि पूरा बदन वैसे ही उल्टा उसकी ओर पीठ किए खड़ा रहा। और जो देखते ही समीर डर से चीख उठा था।
उस लड़की ने हँसकर समीर को अपनी लाल लौ सी मोमबत्ती की तरह जलती-बुझती चमकदार आँखों से देखा था। और उस लड़की का चेहरा देखते ही समीर अब पीछे की तरफ़ उल्टे पैर भागने की कोशिश में जमीन पर धड़धड़ाकर गिर पड़ा। उसके होश खराब हो रहे थे, वह क्या करे, कहाँ जाए?
वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि मीरा थी, जिसके चेहरे पर जख्मों की लम्बी-लम्बी चीरें थीं और कटे-फटे पूरे चेहरे से खून की धाराएँ बह रही थीं। दाँतों से खून कुछ इस तरह रिस रहा था, जैसे उसने अभी किसी जानवर या इंसान को कच्चा अपने मुँह से नोच-नोचकर काटकर खाया है।
समीर जमीन पर ओंधे मुँह पड़े-पड़े ही रेंगते हुए अपने घुटनों और हाथ की कोहनियों से धीरे-धीरे पीछे बढ़ने लगा, जबकि वह लड़की मीरा हँसते हुए, भयानक आवाज़ में गुर्राते हुए समीर की तरफ़ आ रही थी।
"तुम....तुम यहां....यहां कैसे...तुम कौन हो? जाओ, जाओ यहां से....प्लीज जाओ....तुम मुझे छोड़ दो...जाओ यहां से! मैंने कुछ नहीं किया है...हटो, मेरे करीब मत आना, चली जाओ यहां से! मैं तुम्हें नहीं जानता!"
समीर रोते हुए, कट-कटकर मीरा से मिन्नतें कर रहा था। कि अभी जो थोड़ी देर पहले मीरा जिससे बात कर रही थी, वह भी समीर के सामने आ गया। और वह कोई और नहीं था, बल्कि वही मैली-कुचैली, गंदी सी फटी हुई काली फ्रॉक पहने लड़की थी, जो समीर को अपनी छत पर चिपकी हुई दिखाई दी थी।
वह दोनों लड़कियाँ समीर को कुछ इस तरह से देख रही थीं, जैसे सदियों से वह समीर को जान रही थीं। जबकि समीर के होश उड़े हुए थे, वह रो-रोकर हाथ जोड़े मीरा को देख रहा था और रेंगते-रेंगते अपने पीछे की ओर जा रहा था, उनसे बचने के लिए।
"चलो, आज इसे मारकर इसका खून पीते हैं! इसी ने तो तुम्हारी जान ली है, अब तुम इसे मारकर खा जाओ, बड़ा मज़ा आएगा!" मीरा ने उस काली फ्रॉक वाली लड़की से कहा था, जो हँसते हुए अपने गंदे दाँत बाहर किए समीर को ही घूर रही थी।
अब उस काली फ्रॉक वाली लड़की ने समीर की तरफ़ दो कदम आगे बढ़ते हुए नफ़रत और गुस्से में कहा... "सही कहा तुमने! सारे इंसान गंदे होते हैं, किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए! मुझे बहुत जोर की भूख भी लगी है और अब इसका ताज़ा मांस चाहिए मुझे खाने के लिए! वाकई बहुत मज़ा आने वाला है! यह लड़का अब हमारा शिकार होगा!"
वह लड़की जैसे ही समीर की तरफ़ बढ़ी थी, समीर जोर से चीख उठा... "नहीं, नहीं प्लीज़ नहीं! मैंने कुछ नहीं किया है! प्लीज़ मुझे जाने दो! मैंने किसी को नहीं मारा! मैं तो तुम दोनों को जानता तक नहीं! मुझे छोड़ दो! प्लीज़ मुझे मत मारो!"
मीरा गुर्राते हुए बोली... "अच्छा, तूने नहीं मारा तो किसने मारा है फिर?"
"मुझे नहीं पता! प्लीज़ मुझे जाने दो...क्यों तुम लोग मुझे मारना चाहती हो? कौन हो तुम? और मुझे यहां से बाहर जाना है! जाने दो मुझे!"
"तुम खुद ही तो आए हो यहां...तुम यहां क्यों आए हो, पता है? क्योंकि तुम मेरा खाना हो, है ना? इसलिए तो तुम यहां अपने आप आए हो!" मीरा ने एक अब जोरदार ठहाका लगाते हुए कहा था और फिर गुस्से से अपनी लाल आँखों को बड़ी करते हुए समीर को देखने लगी।
"तुम मुझे मारना चाहते हो, इसीलिए पीछा कर रहे हो मेरा! इसीलिए यहां आए थे, है ना? पर अब हम तुम्हें खा जाएँगे! हम भूखे भी हैं कब से!"
"नहीं, नहीं! मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा! मुझे खुद नहीं पता मैं यहां इस जंगल में कैसे आ गया! प्लीज़ मुझे जाने दो! मैं कुछ नहीं जानता! मैंने कुछ नहीं किया है!" समीर की आवाज़ में लड़खड़ाहट थी और वह जोरों से रो रहा था। जब मीरा ने उसका हाथ पकड़ लिया और मीरा के छूते ही समीर डर से आँखें मूँदकर इतनी तेज चीख उठा था कि सब कुछ जैसे थम सा गया।
दो पल का सन्नाटा रहा और जंगल से आ रही वह डरावनी रोने-चीखने, चिल्लाने की आवाज़ें, पत्तों की सरसराहट, पेड़ों का हिलना, जानवरों का दर्द से कराहना, इंसानी आवाज़ों का जोर-जोर से रोना सब कुछ शांत हो गया और चारों तरफ़ खामोशी ही खामोशी छाई रही।
काफ़ी देर समीर उसी तरह सख्ती से अपनी आँखें मींचे बैठा रहा। कितना वक़्त बीत गया, जब उसने डरते हुए धीरे से अपनी एक आँख खोली थी और फिर उसे जैसे कोई शौक लगा हो और उसने अपनी दोनों आँखें एक झटके में चौंक कर खोलीं और फटी-फटी नज़रों से चारों तरफ़ देखता रह गया।
और आगे………….
नहीं, नहीं, मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा। मुझे खुद नहीं पता मैं यहां इस जंगल में कैसे आ गया। प्लीज मुझे जाने दो, मैं कुछ नहीं जानता, मैंने कुछ नहीं किया है? समीर की आवाज में लरज़पन था और वह ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था। जब मीरा ने उसका हाथ पकड़ लिया, और मीरा के छूते ही समीर डर से आँखें मूँदकर इतनी तेज़ चीख उठा था कि सब कुछ जैसे थम सा गया।
काफी देर समीर उसी तरह सख्ती से अपनी आँखें मीचे बैठा रहा। कितना वक्त बीत गया, जब उसने डरते हुए धीरे से अपनी एक आँख खोली। और फिर उसे जैसे कोई शौक लगा हो, और उसने अपनी दोनों आँखें एक झटके में चौंककर खोलीं और फटी-फटी नज़रों से चारों तरफ़ देखता रहा।
जो कुछ पल पहले एक जंगल में भटक रहा था, अभी वह अपने कमरे में था। और वह समीर का ही कमरा था, जो पहले की ही तरह अव्यवस्थित और साज-सज्जा से उसी तरह अपनी स्थिति में था, मानो कुछ हुआ ही ना हो। जबकि समीर, जो जंगल में जमीन पर गिरा पड़ा था, वह अब अपने कमरे की फर्श पर पड़ा धूल चाट रहा था।
उसे होश आया तो धीरे-धीरे उठकर खड़ा हुआ और कमरे के चारों तरफ़ खौफ़, खाई, दर्द भरी नज़रों से देखने लगा। जैसे कई घंटों के किसी डरावने सपने में रहने के बाद वह अब नींद से जागा था, या फिर कई घंटे बेहोश रहने के बाद अब उसे होश आया था।
"नहीं...नहीं, यह सपना नहीं हो सकता, यह सपना नहीं था...यह क्या था? मैंने क्या देखा? मीरा मेरे सामने थी, कैसे....!! समीर खुद से ही बोल रहा था और रोए जा रहा था।
वह पागलों की तरह इधर-उधर देख रहा था और डर से थर-थर कांप रहा था। जब उसकी नज़र उसके बेड पर पड़े लैपटॉप पर गई, तो जल्दी से दौड़कर उसने लैपटॉप उठा लिया और उसे ओपन करके मीरा वाला वही वीडियो सर्च करने लगा। पर कई बार कोशिश करने के बाद भी वह वीडियो उसे अब इंटरनेट पर कहीं नहीं मिला। वह वीडियो, जिसे समीर ने डाउनलोड कर रखा था और दिन में कई-कई बार देखा करता था, लेकिन इस वक्त वह वीडियो जैसे उसके लैपटॉप से गायब ही हो चुका था।
उसने अपने डाउनलोड किए सारे वीडियो चेक करने से लेकर नेट पर भी खंगाल डाला, लेकिन वह वीडियो उसे ना मिलना था और ना ही मिला। जिस वजह से उसने गुस्से से झल्लाकर और डर के साये में लैपटॉप दूर सरका दिया। और अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा जोर-जोर से रगड़ते हुए, रोते-रोते गिड़गिड़ा रहा था। वह जैसे अब वाकई पागल हो गया था इन सारी अजीब चीज़ों से।
"यह क्या हो रहा है...क्या है यह? क्या हो रहा है मेरे साथ? ओह गॉड, क्या है यह सब? वो...कहाँ गया वह वीडियो? ऐसा कैसे हो सकता है? इतने सारे लाइक्स, कमेंट्स, इतने सारे व्यूवर्स थे उसके। एक पल में वह कैसे गायब हो सकता है? वह यूज़र ऐसा वीडियो डिलीट तो नहीं कर सकता जो रातों-रात इतना फेमस हुआ था?"
समीर अपने हाथों से अपना चेहरा छुपाए खुद से ही आपस में बड़बड़ा रहा था, जब उसे अपने पीठ पीछे, अपने कंधे पर कुछ भार सा महसूस हुआ।
समीर को लगा यह ज़रूर म्याऊँ होगी जो ज़्यादा वक्त उसकी आसपास ऐसे ही मँडराया करती थी। उसने चिढ़कर कहा, "अरे म्याऊँ क्या है यार, चली जाओ यहाँ से। इस वक्त मैं बहुत परेशान हूँ, मुझे और परेशान मत करो। जस्ट गो, वरना अच्छा नहीं होगा?"
समीर ने बिना देखे कहा था और उसी तरह अपना सर अपने घुटनों में छुपाए बेड पर सिकुड़ा बैठा रहा। लेकिन जब बार-बार कई मर्तबा उसने उसी तरह अपने कंधे पर कुछ महसूस किया, तो इस बार वह झल्लाहट में म्याऊँ को डाँटता हुआ पीछे पलटा।
"ओह गॉड, क्या बात है म्याऊँ? तुम क्यों मुझे परेशान कर रही हो? आखिर तुम....!!"
इससे पहले समीर कुछ और बोल पाता, कि डर के मारे उसकी आवाज़ उसके हलक में ही दबकर रह गई और वह घबराकर झट से उठकर पीछे खिसक गया। क्योंकि वहाँ म्याऊँ के बजाय सामने ही तो उसकी मीरा खड़ी थी, जो एकटक उसे ही घूर रही थी।
"तुम...तुम...तुम यहाँ...तुम यहाँ कैसे? तुम तो बस वीडियो में हो ना? तुम रियल नहीं हो...नहीं हो तुम रियल। जाओ यहाँ से...तुम रियल नहीं हो, तुम एक एडिट की गई वीडियो हो, तो मेरे सामने कैसे हो तुम? यह क्या हो रहा है मेरे साथ...गॉड?"
समीर ने एक बार फिर से अपना चेहरा अपने हाथों से जोरदार रगड़ डाला था। शायद वह सपना देख रहा हो। और फिर जब उसने अपने सामने देखा, तो मीरा उसी तरह खड़ी उसे देख रही थी। जिससे समीर को मानो साँप सूँघ गया, वह काँपने लगा था।
"मुझे भूख लगी है। कुछ खाने को दो मुझे, वरना मैं तुम्हें खाकर अपना पेट भर लूँगी।" मीरा ने समीर की आँखों में आँखें डालते हुए बिना किसी भाव के कहा था। जबकि समीर को तो मानो काटो तो खून नहीं।
"ए...ए, मैंने कहा मुझे खाना दो, सुना नहीं क्या तुमने? मैं भूखी हूँ!!" इस बार मीरा इतनी तेज़ से चीखी थी कि सारा कमरा भूकंप के आभाव सा पूरी तरह हिल गया था। छत धड़धड़ा उठी और जमीन डगमगा गई थी। जिससे बेड इतना जोर से हिला कि समीर बेसुध सा नीचे जमीन पर आ गिरा।
"मुझे भूख लगी है, मुझे खाना चाहिए, खाना दो मुझे, खाना..." मीरा ने गुस्से में कहते हुए दूर बैठी समीर की बिल्ली म्याऊँ को देखा था, जो खुद भी उस जलजले से हिल रहे कमरे में फर्नीचर से दुबककर बैठी हुई थी।
मीरा ने उसे दौड़कर पकड़ लिया था और उसका पेट अपने दाँतों से चीर-फाड़ डाला।
मीरा अब म्याऊँ को किसी वैहशी जानवर की तरह अपने दोनों हाथों से पकड़े उसे नोच-नोचकर खाने लगी थी। और मीरा को ऐसे देखकर समीर भागते हुए जाकर बेड के नीचे छुप गया। और थोड़ा सा चेहरा बेड की ओट से बाहर निकाले वह बस मीरा पर नज़रें गड़ाए हुए था, जो उसकी म्याऊँ को बड़े ही चाव से खा रही थी। जैसे वह कोई जीती-जागती बिल्ली नहीं, बल्कि कोई स्वादिष्ट पिज़्ज़ा-बर्गर हो। और मीरा बिल्ली के खून से लथपथ हो रही थी।
मीरा जानवरों की तरह बिल्ली को खाती रही और उसके हाथ के पंजों से लेकर दाँत, जहाँ तक की पूरा बदन बिल्ली के खून से सन चुका था। और वह हँस-हँसकर बिल्ली को नोचकर खाने के बाद अब अपने हाथों के पंजे और उंगलियों पर लगा उसका खून चाट रही थी। जो देखकर ही समीर को उल्टियाँ आने लगीं। पर वह अपने मुँह पर हाथ रखे, फटी-फटी आँखों से सब दर्द भरी और डर भरी नज़रों से देख रहा था कि एकदम से मीरा ने सर घुमाकर समीर को देखा।
"ए, ए, मेरा पेट नहीं भरा। मुझे कुछ और दो, नहीं तो मैं तुम्हें खा जाऊँगी।" मीरा ने गुस्से में गुर्राते हुए समीर को जो वार्निंग दी थी, उससे तो समीर तो मानो बेहोश होते-होते बचा था।
और आगे………….
कोई तो होगा ही कुछ अलग सा। क्या सच पाएगा समीर? क्या आएगा कोई और?
मीरा ने जानवरों की तरह बिल्ली को खाया। उसके हाथ और पंजे बिल्ली के खून से सने हुए थे। वह हँसते हुए बिल्ली को नोच-नोचकर खा रही थी और फिर अपने हाथों और उंगलियों पर लगा खून चाट रही थी। यह देखकर समीर को उल्टी आने लगी। उसने अपना मुँह हाथ से ढँक लिया और फटी आँखों से, दर्द और डर से भरी नज़रों से मीरा को देखा। एकदम से मीरा ने सर घुमाया और समीर को देखा।
"ए, ए मेरा पेट नहीं भरा। मुझे कुछ और दो, नहीं तो मैं तुम्हें खा जाऊँगी।"
मीरा ने गुस्से में गुर्राते हुए यह चेतावनी दी। समीर लगभग बेहोश हो गया।
"यह कैसे हो सकता है... तुम रियल नहीं हो। नहीं हो तुम रियल.... तुम इस वीडियो की एक काल्पनिक.... एक काल्पनिक कहानी हो। जाओ यहां से... जाओ.... जाओ तुम मेरे घर से चली जाओ?"
समीर डर से, बच्चों की तरह खुद को समझा रहा था। उसने आँखें बंद कर लीं और जोर से चिल्लाया।
"जाओ यहां से तुम... तुम झूठी और अफवाह हो। बस एक कल्पना सी पागल लड़की हो... तुम हकीकत नहीं, जाओ यहां से।"
समीर आँखें मूँदकर डर से चीख रहा था। मीरा उसके पास आकर धीरे से बोली,
"चलो, खोलो इसे!"
मीरा की आवाज़ बहुत ही हल्की और रहस्यमयी थी। समीर ने आँखें खोलीं और ऊपर देखा। डर के मारे वह दो कदम पीछे हट गया क्योंकि मीरा उसके बिल्कुल पास बैठी थी और उसे निहार रही थी।
"खोलो इसको!"
"क...क... क्या... क्या खोलूँ?"
समीर ने थरथराती आवाज़ में पूछा। मीरा ने अपनी उंगली से उसके लैपटॉप की ओर इशारा किया।
समीर को कुछ समझ नहीं आया। उसने जल्दी से अपना लैपटॉप उठाया और खोला। उसने मीरा का वीडियो सर्च किया। जैसे ही वह फ़ाइल खुली, मीरा धुएँ की तरह उसके लैपटॉप में समा गई।
मीरा के लैपटॉप में जाते ही, जो वीडियो गायब था, वही वीडियो फिर से चलने लगा। वह पहले की तरह ऑनलाइन चलने लगा। समीर बिना पलक झपकाए उसे देखता रहा क्योंकि उस वीडियो पर सारे व्यूज़, लाइक्स और कमेंट फिर से दिखाई देने लगे थे।
"मतलब जो वीडियो अब तक गायब था इंटरनेट से, वह इस वजह से था क्योंकि मीरा तो... मीरा तो यहां थी वीडियो से बाहर मेरे साथ। और अब जब वो वीडियो वाली लड़की मीरा वापस लैपटॉप में जाकर वीडियो में गई है, तो नेट पर यह वीडियो फिर से.... ओह माय गॉड, यह नहीं, नहीं यह नहीं हो सकता... यह सच कैसे है... नेवर?"
समीर ने अपना सिर दोनों हाथों से पकड़कर दबाया और बड़बड़ाया।
"यह क्या है... यह नहीं हो सकता, यह सब सपना है। हाँ... यह सपना है। मुझे नींद से जगाना है... जगाओ मुझे कोई नींद से... प्लीज् यह सपना ही है, सच नहीं?"
समीर जोर-जोर से चिल्ला रहा था। बेचैनी से चीखते-चीखते वह झट से उठ बैठा और पाया कि वह अपने बिस्तर पर सो रहा है।
नींद से जागने पर वह पसीने से तर-बतर था। उसने खुद को कम्बल से ढँका हुआ पाया। एक झटके में वह उठ बैठा और सब कुछ उसके सामने आ गया।
"मतलब यह सब सपना था... सपना, ऐसा सपना... गॉड!"
समीर ने अपने हाथों से अपना पूरा चेहरा मसला। उसे अपने हाथ पर दर्द हुआ। उसने अपनी कलाई देखी; जहाँ जंगल में मीरा ने उसका हाथ थामा था, वहाँ मीरा के हाथ के निशान छप गए थे— लाल खून जैसे और काले स्याह निशान।
समीर ने अपना हाथ दूसरे हाथ में लिया और फिर से मचल उठा। उसके मन में एक ही सवाल था।
"क्या मतलब यह सपना नहीं, सच था क्या... तो मतलब यह हकीकत थी सपना नहीं और मीरा सच में... सच में यहां थी वीडियो से बाहर, नहीं... नहीं यह नहीं हो सकता?"
समीर ने अपनी सेंटर टेबल की तरफ़ देखा जहाँ लैपटॉप पर वही वीडियो चल रहा था।
"यह लैपटॉप मैंने कब चलाया? यह सपना नहीं था... लैपटॉप भी ओपन है। यह तो मैंने सपने में चालू किया था, तो अब कैसे चल रहा है? मीरा ने मेरा हाथ सपने में पकड़ा था, तो यह निशान मेरे हाथ पर हकीकत में क्यों है? क्यों यह सब मेरे सामने है?"
समीर घबराया हुआ सा, हाँफते हुए बिस्तर से नीचे उतरा और कमरे से बाहर आकर अपनी बिल्ली म्याँव को ढूँढ़ने लगा।
"म्याऊँ कहाँ हो तुम म्याऊँ?"
समीर ने उसे पूरे घर में खंगाला, पर उसे बिल्ली नहीं मिली। उसका दिल और भी घबरा गया। क्या अगर सपने वाली चीज़ें सच में हो रही हैं, तो क्या अब म्याँव भी नहीं रही?
"गॉड... अगर यह सपना नहीं था, तो मीरा ने मम्मी की म्याऊँ को सच में खा लिया क्या... नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। यह सपना ही था, सच नहीं है?"
समीर ने अपने हाथ पर उस काले निशान को देखते हुए खुद को आश्वासन दिया और फिर से अपनी बिल्ली को ढूँढ़ने लगा।
वह किचन की तरफ़ आया तो वहाँ एक मेड थी जो फ्रिज से आइसक्रीम निकालकर जल्दी-जल्दी बड़े-बड़े बाइट खा रही थी, मानो सबसे नज़र चुरा रही हो। वह बार-बार इधर-उधर देख रही थी। समीर ने उसे देखा, पर पहले इग्नोर कर दिया। उसके नौकर ऐसे ही थे; उसकी माँ का ध्यान न होने की वजह से, सब अपनी मनमर्जी करते थे। कभी चोरी से खाना, तो कभी घर का आधा राशन ही चुरा ले जाते थे।
मेड ने समीर को नहीं देखा और फ्रिज से एक के बाद एक चीज़ें निकालकर खाती रही। समीर को मीरा याद आ गई। मीरा भी अभी कुछ देर पहले जानवरों की तरह आवाज़ करते हुए जल्दी-जल्दी उसकी बिल्ली को खा रही थी।
"ए, तुम क्या कर रही हो?"
समीर ने दूर से मेड को आवाज़ दी। वह डर से चौंक गई।
"नहीं, जी नहीं बाबा, नहीं तो कुछ नहीं। बस किचन की सफाई कर रही थी।"
वह मेड जल्दी-जल्दी अपना मुँह अपने आँचल से साफ़ करती हुई बोली।
समीर ने उसे आँखें घूरते हुए कहा, "हाँ, मैंने देखा तुम सफाई कर रही थी, मगर किचन की नहीं, फ्रिज की सफाई कर रही थी, है ना?"
"नहीं बाबा, मैं तो वो...."
"चुप! जो भी खाना है खाओ, मुझे क्या? पर जरा आराम से, इंसानों की तरह। प्लीज् यह चटोरापन बंद करो। किसी को भी तुम्हें देखकर घिन आ जाए। ऐसे जानवरों की तरह खाने या आवाज़ें करने की क्या ज़रूरत है? यहाँ तुम्हें कौन देखने आने वाला है जो चोरी कर रही हो?"
मेड की बात काटते हुए समीर ने झल्लाकर कहा और पलटकर वहाँ से जाने लगा।
वह अभी दो कदम ही आगे गया था कि फिर जाने क्या सोचकर किचन की तरफ़ आ गया। किचन के दरवाज़े से दूर से ही उसने देखा, तो उसके रोंगटे खड़े हो गए।
वो मेड अब फ्रिज से एक बड़ी सी, बिना काटी, बिना धुली और बगैर पकी हुई पूरी मछली निकालकर उसे मुँह से नोच-नोचकर खा रही थी। समीर स्तंभ सा उसे देख रहा था। मेड ने हँसते हुए समीर पर नज़र डाली और जल्दी से फ्रिज से कुछ कच्चे अंडे निकालकर जल्दी-जल्दी उन्हें पीते हुए वहाँ से भाग गई।
समीर पागलों सा उसके पीछे जाता, कि तभी उसकी एक फीमेल सर्वेन्ट ने पीछे से आवाज़ दी, "क्या हुआ समीर बाबा? आप यहाँ क्या कर रहे हैं किचन में? कुछ चाहिए था क्या आपको?"
"नहीं, कुछ नहीं। वो मैं बस यूँ ही...."
समीर ने कहते हुए नज़र अपनी सर्वेन्ट की तरफ़ घुमाई, तो जल्दी से घबराकर दो कदम पीछे हट गया। वह सर्वेन्ट कोई और नहीं, बल्कि वही मेड थी जो अभी-अभी फ्रिज से मछली खाकर भागी थी।
और आगे........
समीर भी पागलों सा उसके पीछे गया। तभी उसकी एक फीमेल सर्वेन्ट ने उसे पीछे से आवाज़ दी।
"क्या हुआ समीर बाबा? आप यहां क्या कर रहे हैं? किचन में कुछ चाहिए था क्या आपको?"
"नहीं, कुछ नहीं। वो मैं बस यूँ ही…!!"
समीर ने कहते हुए नज़र अपनी सर्वेन्ट की तरफ़ घुमाई ही थी कि जल्दी से घबराकर दो कदम पीछे हट गया। क्योंकि वो सर्वेन्ट कोई और नहीं, बल्कि वही मेड थी जो अभी-अभी फ्रिज से मछली खाकर भागी थी।
"तुम… तुम यहां, कैसे?"
समीर ने आँखें बड़ी करके उस मेड को गौर से देखकर पूछा। वह हैरान हो गई।
"क्या हुआ बाबा? मैं यहां नहीं होऊंगी तो कहाँ जाऊंगी? किचन संभालना ही तो मेरी ड्यूटी है बाबा। आपको कुछ चाहिए था क्या? क्या खाना है? मैं बना देती हूँ?"
हर चीज से अनजान मेड बेपरवाही से कहते हुए किचन के अंदर चली गई और अपना काम करना शुरू कर दिया। जबकि समीर उसे उसी तरफ़ पागलों सा ताकता रहा, जैसे सब इसके दिमाग के ऊपर से जा रहा था। वह ना तो कुछ समझ पा रहा था और ना ही कड़ियाँ जोड़ पा रहा था।
समीर यूँ ही किचन के पास खड़ा रहा। उस मेड ने वापस समीर की तरफ़ देखते हुए पूछा,
"बाबा, कॉफी बनाऊँ क्या आपके लिए?"
"न… नहीं, नहीं रहने दो। तुम अपना काम करो। मुझे कुछ नहीं चाहिए!"
समीर ने जल्दी से गर्दन हिलाई और वहाँ से हट गया।
"ये क्या था… कहीं वो मेड की शक्ल में मीरा तो नहीं थी… नहीं, नहीं। मीरा सच नहीं। वह यहां कैसे आ सकती है जब वह है ही नहीं?"
समीर ने खुद से ही सवाल करके खुद को ही जवाब दिया। "कहीं वो ब्लैक फ्रॉक वाली तो नहीं थी यह… पर वह कौन है? वह भी तो महज़ मेरा सपना था। हकीकत नहीं। वह लड़की भी तो सच नहीं है। गॉड… ये सब मेरी जान ले लेगा।"
समीर कशमकश में खोया हुआ था, जब उसकी नज़र म्याऊँ पर पड़ी। जो डाइनिंग टेबल के नीचे बैठी हुई थी। उसे देखते ही समीर ने दौड़कर उसे अपनी गोद में उठा लिया।
"थैंक गॉड, म्याऊँ! तुम ज़िंदा हो।"
समीर उसे लिए हुए वापस अपने कमरे में आ गया और उसे बेड पर बैठाकर खुद बाथरूम में चला गया। जहाँ शॉवर ऑन करके वह उसके सामने खड़ा भीगता रहा। वह घंटों पानी में भीगता हुआ बस यही सब सोचता रहा जो आज उसके साथ हुआ था। क्योंकि ये नया नहीं था। अक्सर ये सब उसके साथ होता ही रहता था जब से उसने वो मीरा का वीडियो देखा था। पर आज कुछ ज़्यादा ही वो तड़पा था।
समीर सोचने लगा था, वो सब डर का साया जो उसके ऊपर से आकर गुज़रा था।
"अब मुझे ही इस मीरा की कहानी को सॉल्व करना होगा। मैं पता लगाकर ही रहूँगा इस वीडियो के पीछे की सच्चाई क्या है। यह लड़की मीरा सच है या बस किसी YouTube यूजर की इमेजिनेशन?"
समीर घंटों शावर लेने के बाद बाथरूम से बाहर आया और टॉवल लपेटे हुए उसने जल्दी से अपना लैपटॉप उठाकर ओपन किया। और वापस वही वीडियो चलाकर वीडियो मेकर की आईडी पर चला गया। वह जल्दी-जल्दी हाथ चला रहा था और वहीं से कुछ बहुत डिटेल निकालकर उसने लैपटॉप बंद कर दिया।
"अब कुछ भी हो जाए, आर या पार! इतने दिनों से मैं इसके पीछे था कि मैं इस वीडियो का पता लगा सकूँ। लेकिन अब मैं इस वीडियो बनाने वाले को नहीं छोड़ूँगा। इसकी वजह से मेरी ज़िंदगी में यह अजीब सा तहलका मच गया है। आख़िर मैं ही क्यों इसमें इन्वॉल्व हुआ? इस वीडियो के और भी तो व्यूअर्स हैं ना? फिर आख़िर मैं ही इसका शिकार क्यों हूँ? और क्या कोई और भी है जो इसका शिकार है? मैं उसके बारे में भी जानकर रहूँगा।"
समीर अपने आप से ही कहते हुए दृढ़ता से एक-एक कड़ियाँ, एक-एक बारीकियाँ मिला रहा था।
वह जैसे ही अपने बालों में हाथ फेरते हुए पलटा, उसे अपने कमरे के मिरर पर कुछ स्क्रैच दिखाई दिए। समीर गौर से उन्हें देखने लगा। जो अभी थोड़ी देर पहले एकदम ठीक-ठाक था, अब उस मिरर पर यह सब देखकर वह धीरे-धीरे मिरर की तरफ़ बढ़ने लगा।
समीर ने आहिस्ता से अपना हाथ मिरर की तरफ़ बढ़ाया। मिरर पर जो दरारें पड़ी थीं, उनमें से खून की हल्की-हल्की रिसने जैसी बुँदें दिखीं। जैसे किसी इंसान की खरोंच से खून आता है, ठीक वैसे ही मिरर की उन खरोचों से भी खून निकल रहा था। जिनसे घबराकर समीर फ़ौरन पीछे हट गया। वह एकटक उसे देखे जा रहा था, जब सडनली जैसे किसी धमाके की तरह आवाज़ हुई और पूरा मिरर ब्लास्ट के जैसे फट गया। जिसके परखच्चे उड़ने लगे और पूरे कमरे में मिरर तिनके की तरह रेज़ा-रेज़ा होकर हवा में फैल गया। जिसकी छोटी-छोटी किरचें उड़-उड़कर समीर की तरफ़ भी आईं थीं। जिनसे बचने के लिए उसने फ़ौरन पीछे भागना चाहा, पर वह किसी चीज से टकरा गया। तो अपने चेहरे को अपने दोनों हाथों से ढँककर चीख उठा।
"आह, नो, प्लीज़ नो!!"
समीर की चीख के साथ ही जैसे पल ठहर सा गया। और जब उसने काफी देर बाद आहिस्ता से अपने चेहरे से हाथ हटाए, तो सामने का नज़ारा अब कुछ और ही था। मिरर पहले की तरह अपनी जगह लगा हुआ था, जैसे कुछ हुआ ही ना हो? समीर हैरत से उसे देख रहा था, जब उसके पीछे कुछ आहट हुई। जिस पर वह झट से पलट गया और देखा तो उसका लैपटॉप बेड की कगार पर रखा हिल रहा था। जो शायद बस बेड से गिरने ही वाला था। उसने फ़ौरन दौड़कर उसे पकड़ना चाहा, पर तब तक लैपटॉप जमीन पर आ गिरा।
"शिट यार, डेमेज्ड!!"
समीर ने चिढ़कर खुद से कहा और आगे बढ़कर लैपटॉप उठा लिया, जो पूरी तरह डैमेज हो चुका था। "अगर पापा से दूसरे के लिए पैसे मांगे तो पक्का बहुत सुनाएँगे यार। पर करना तो पड़ेगा ही।"
समीर ने मुँह बनाते हुए खुद से ही कहा था और लैपटॉप को घूरते हुए सोचने लगा।
"यह वीडियो भले ही उस YouTuber की मनगढ़ंत कहानी हो सकती है, लेकिन यह वीडियो मेरी रियल लाइफ़ से जुड़ गया है। जिसको सॉल्व करना अब मेरे लिए बहुत ज़रूरी है, वरना मैं पागल हो जाऊँगा।"
समीर ने अपना मोबाइल उठाकर अपने एक दोस्त रॉनी को कॉल किया। जिसके कॉल रिसीव करते ही समीर एक स्पीड में बोला… "सुन रॉनी, मैं तेरे घर आ रहा हूँ, अभी!"
"अरे, क्या? अभी… क्यों… क्या हुआ समीर? तू इतनी हड़बड़ी में क्यों है?"
रॉनी के कॉल उठाते ही समीर ने एक ही झटके में कहा था। जिस पर रॉनी को समीर की हड़बड़ी भरी आवाज़ में कुछ गड़बड़ लगी थी। पर वह कोई सवाल करता इससे पहले ही समीर ने कॉल कट कर दी थी और रॉनी बस उसे आवाज़ ही देता रह गया।
रॉनी से कॉल पर बात करने के बाद वो सीधा अलमारी से कपड़े लेकर वापस बाथरूम में चला गया और कपड़े चेंज करके वह अपनी गाड़ी की चाबी लेकर घर से बाहर निकल आया। अपने दोस्त रॉनी के घर के लिए समीर जल्दी-जल्दी में था। इतनी स्पीड में कि वह कब, क्या कर रहा है, जैसे उसे अपनी ही ख़बर नहीं थी।
पूरा दिन कोशिश करने के बाद, इस वीडियो के कई सारे व्यूअर्स, वीडियो बनाने वाले के फ़ॉलोअर्स, वीडियो को लोड करने वाले, शेयर, कमेंट करने वाले वगैरह को खंगालते हुए, ढूँढते आख़िरकार समीर और उसका दोस्त रॉनी उस वीडियो मेकर के घर तक पहुँच ही गए थे। समीर ने रॉनी को सब बता दिया था और रॉनी को पहले तो उसकी बातों पर यकीन नहीं हुआ। पर समीर के हाथ पर मीरा के हाथ का गाढ़ा निशान देखकर रॉनी उसे झुठला भी नहीं पा रहा था।
और आगे…………….
पूरे दिन कोशिश करने के बाद, कई वीडियो व्यूअर्स, वीडियो बनाने वाले के फॉलोअर्स, वीडियो को लोड करने वाले, शेयर करने वाले, कमेंट करने वाले आदि को खंगालते हुए, समीर और उसका दोस्त रोनी आखिरकार उस वीडियो मेकर के घर पहुँच ही गए थे।
समीर ने रोनी को सब बता दिया था। रोनी को पहले तो उसकी बातों पर यकीन नहीं हुआ, पर समीर के हाथ पर मीरा के हाथ का गहरा निशान देखकर रोनी उसे झुठला भी नहीं पा रहा था।
"देखो समीर, मैं तुम्हें नहीं जानता, पर तुम मेरे फॉलोअर हो और मेरे हर एक वीडियो को देखते और कमेंट, लाइक करते हो। इसलिए ये जानकर मुझे अच्छा लगा कि तुम मेरे फैन हो। पर तुम जिस वीडियो के बारे में इतना सीरियसली बात कर रहे हो, वो मेरा वीडियो सालों पुराना, पहले का है?"
वीडियो मेकर रंजीत ने अपने घर के गार्डन में, उन दोनों के करीब चेयर पर बैठे हुए, काफी गर्व से कहा।
"लिसन समीर, देखो यार, इसके बाद भी मैंने कितने सारे वीडियो अपलोड किए हैं। क्या तुमने नहीं देखे? क्या, उन्हें देखो, इंजॉय करो।"
समीर ने कॉफी का एक घूँट लिया और अपने एक पैर पर दूसरा पैर रखकर, रंजीत के ही अंदाज में चेयर पर तनकर बैठते हुए, अकड़ कर बोला,
"देखिए सर, मुझे आपके किसी भी वीडियो से इतना कुछ खास लेना-देना नहीं है। हाँ, मैं आपका फैन जरूर हूँ, पर मैं ज्यादातर इस वीडियो की वजह से ही आपकी आईडी पर अटका पड़ा हूँ। बिकॉज़ मुझे इस वीडियो की सच्चाई जानना है। क्या ये लड़की मीरा वाकई ऐसी है या नहीं, आप जानते हैं क्या इसे?"
समीर को वैसे ही रंजीत से उतना मतलब नहीं था, कभी, सिवाय उस वीडियो के। और रंजीत ने उस वीडियो पर किए उसके कमेंट का कोई रिप्लाई नहीं दिया था, जिससे वह ऑलरेडी जल बैठा था उस पर। और अब ऊपर से रंजीत के इस अंदाज में घमंड और गर्व देखकर समीर का तो जैसे खून ही खौल गया, पर वह खुद पर कंट्रोल करके शांत बना रहा।
उसने काफी सीरियसली पूछा, "रंजीत जी, मुझे बस ये जानना है कि ये लड़की जो आपके वीडियो में है, मीरा नाम की... क्या ये वाकई रियल है क्या? क्या ऐसी लड़की दुनिया में है वाकई? मुझे बस आपके वीडियो की ये सच्चाई जाननी है कि ये कोई रियल कहानी है या फिर आपकी काल्पनिक, जिसके लिए हम इतनी दूर से आपको ढूँढते हुए यहाँ आए हैं?"
रंजीत ने समीर की बात गौर से सुनी और फिर दो पल थोड़ा रुककर बोला, "लिसन, ये मेरी कहानी है। मुझे नहीं पता कि तुम इस पर इतना ध्यान क्यों दे रहे हो, समीर। बस मैं इतना कह सकता हूँ कि ये वीडियो काल्पनिक भी है और सच्चाई पर ही आधारित।"
रंजीत के जवाब पर इस बार समीर और रोनी दोनों ही चौंक गए थे। समीर ने रंजीत को सवालिया नज़रों से देखते हुए जल्दी से पूछा,
"सच्चाई और काल्पनिक... मतलब आप कहना क्या चाहते हैं सर? अगर ये लड़की रियल है तो ये वीडियो भी रियल ही होगा ना? और आप कह रहे हैं ये लड़की रियल है और ये वीडियो काल्पनिक। मैं कुछ समझा नहीं।"
रंजीत ने हल्का सा हंसकर कहा, "मैं समझाता हूँ, समीर। ये लड़की एक ऐसी मिस्ट्री है जिसे कोई भी सुलझा नहीं सका है अब तक। और इस लड़की के पास जाने के लिए, जब इसके अपने सगे माँ-बाप, इसके गाँव वाले ही घबराते हैं, तो क्या मुझे मरना था जो मैं इसके पास जाकर इसकी वीडियो निकालता?"
"तो फिर रंजीत जी, आपने ये वीडियो कैसे अपलोड की यूट्यूब पर जो इतना वायरल हो रही है?" इस बार रोनी ने रंजीत को गौर से देखते हुए सवाल किया।
"तो मतलब साफ़ है कि ये लड़की तो है और इसकी ऐसी ही ज़िंदगी भी है। पर नहीं पता कि ये पागल है या इस पर कोई भूत-प्रेत का साया है या फिर ये ढोंगी लड़की है जो नाटक करती है खाने के लिए और खुशहाल ज़िंदगी जीने के लिए... आई डोंट नो, समीर। मैं इसे तो जानता हूँ पर इसकी सच्चाई नहीं कि ये ऐसी क्यों है?"
रंजीत बिना साँस लिए बोलता जा रहा था, जबकि समीर तो साँस लेना ही भूल गया था। वहीं खुद रोनी की भी साँसें थम सी गई थीं। रंजीत की बातों में समीर कुछ इस तरह खोया हुआ था कि वो बस चुप्पी साधे उसे एकटक देखता रह गया।
"मिस्टर समीर, ये कहानी मेरी सच्ची है, तभी तो ये वीडियो मैंने बनाया। वरना मेरे दिमाग में कभी ऐसा हॉरर वीडियो अपलोड करने का आइडिया नहीं आया था। और मेरे सारे वीडियो मेरी इमेजिनेशन ही होते हैं जिनका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं होता।"
"आप कहना क्या चाहते हैं सर? कि ये वीडियो आपने रियल लाइफ पर बनाया है? इट्स नॉट योर इमेजिनेशन? ये सच्चाई पर वीडियो है?"
"हाँ समीर, ये रियल लाइफ पर ही है और मेरे वीडियो में जो दिख रही है ये लड़की भी सच्ची है। लेकिन मैंने ये वीडियो उस पागल लड़की की नहीं निकाली है, बल्कि ये वीडियो मैंने अपने तरीके से बनाई है। आई मीन, हाँ, ये कहानी ज़रूर सच है और एक ऐसी लड़की भी ज़रूर है। एक छोटा सा गाँव है, कोन्डी गाँव (मेरा काल्पनिक गाँव), उस गाँव की ये कहानी है जहाँ ये मीरा नाम की लड़की रहती है जिससे पूरा गाँव ही नहीं, उसका पूरा परिवार भी थरथर काँपता है।"
अब रंजीत ने बोलना शुरू किया था तो बस बोलता ही गया।
"और समीर, जो आपने वीडियो में देखा ना, उस लड़की मीरा की ऐसी हरकतें भी हैं, ऐसे पागलपन के दौरे, जिसे देखकर कभी तो लगता है कि ये लड़की पागल है और कभी लगता है कि ये खुद सबको पागल बना रही है। ये लड़की अजीब-अजीब हरकतें करती है, कभी जानवरों को मारकर खा जाती है तो कभी इंसानों पर हमला कर देती है, कभी गाँव वालों को दौड़ा-दौड़ाकर मारती है तो कभी पेड़ों पर चढ़ जाती है, कभी छोटे बच्चों को कुएँ, तालाब वगैरह में फेंककर ताली बजाती है तो कभी बड़ों को पत्थर मारकर उनका सर फोड़ देती है... इसे देखकर पागल भी कहा जा सकता है समीर और या फिर कोई भूत-चुड़ैल का साया भी?"
"गाँव के कुछ लोग कहते हैं कि इस पर कोई काला साया है। लेकिन इस लड़की को मैंने एक बार देखा था, उससे तो मुझे लगता है कि ये खुद एक चुड़ैल है। और इस लड़की को देखने के बाद ही मैंने ये काल्पनिक वीडियो बनाया था। हाँ, ये कहानी सच्ची है समीर, पर वीडियो में आपने जिसे देखा, वो वो लड़की नहीं।"
रंजीत ने एक लंबी साँस लेते हुए अपनी बात पूरी की थी, जबकि अब तो समीर का दिमाग ही घूम गया था।
"यू मीन ये लड़की तो है ना, भले ही आपके वीडियो में नहीं? और ये कहीं तो है, राइट?" समीर ने आँखें फाड़ हैरत से पूछा था, जिस पर रंजीत ने सिर हाँ में हिला दिया।
"ये सच्ची कहानी है... गॉड!" रोनी कहते हुए आँखें फाड़ झटके से उठकर खड़ा हो गया था।
समीर और रोनी दोनों ने ही अपनी-अपनी आँखें हैरत से रगड़ डाली थीं। "मतलब ये कहानी सच्ची है, ये लड़की मीरा भी सच्ची है, तो उसका सपना भी सच ही था जो कल रात उसके साथ हुआ, वो सब हकीकत में हुआ है।"
समीर ने सोचते हुए घबराकर दोनों हाथों से अपना सर दबोच लिया था और कुछ देर उसी तरह खामोश, सुन्न सा बैठा रहा।
"क्या हुआ समीर? यू आर फाइन?" रोनी ने उसका हाथ पकड़कर धीरे से हिलाते हुए पूछा था।
"क्या हुआ समीर? तू किन ख्यालों में खो गया? और तू इतना परेशान क्यों लग रहा है यार?" रोनी की आवाज में परेशानी थी। अपने दोस्त समीर की इस हालत पर उसे रह-रह कर दुख हो रहा था, पर वह कुछ समझ ही नहीं पा रहा था। "...समीर कुछ बोल तो यार... व्हाट हैप्पन्ड?"
"नहीं, नहीं कुछ नहीं। मैं ठीक हूँ रोनी। आई एम फाइन।" समीर ने उसी तरह बेचैनी भरी आवाज में दबे लहजे से कहा था और सर झुकाए बैठा रहा।
"लगता है आपके दोस्त पर इस वीडियो का कुछ ज्यादा ही असर पड़ा है।" रंजीत ने एक टेढ़ी मुस्कान से समीर को देखने के बाद रोनी को देखकर तंज से कहा था। फिर समीर की तरफ मुड़कर उसे देखते हुए बोला...
रंजीत इस बार गंभीर सा होकर बोला, "देखिए मिस्टर समीर, मेरा वीडियो तो काल्पनिक ही है लेकिन ये कहानी सच्ची है। और अगर अब तुमको इस कहानी के बारे में कुछ और जानना है तो तुम खुद उस गाँव जाकर पता कर लो। क्योंकि, समीर, मुझे इसके बारे में खुद ज्यादा नॉलेज नहीं है और मैं कुछ ज्यादा नॉलेज करना भी नहीं चाहता। तो अब मुझे नहीं लगता मैं तुम्हें कुछ ज्यादा एक्सप्लेन कर पाऊँगा। ऐसी भूतिया लड़की से मुझे दूर ही रहना है क्योंकि मुझे अपना चैनल चलाना है जिसके पैसे से मेरा पेट भरता है। फालतू के लफड़ों में मैं पड़ना नहीं चाहता।"
"मुझे इस कोन्डी गाँव का एड्रेस चाहिए। मैं जाऊँगा वहाँ। क्या आपके पास एड्रेस है?" समीर ने बिना कुछ सोचे-समझे एकदम ही कहा था, जिस पर रोनी चौंक गया था और रंजीत हँस दिया।
"तुम सच में जाना चाहते हो? वाव, आई लाइक योर कॉन्फिडेंस, समीर।" रंजीत हँसकर बोला था, जबकि समीर के दिल में तो आग लगी थी जो अब और भी धधक उठी थी।
"समीर, तू पागल हो गया है क्या? तू क्यों ऐसे लफ़ड़ों में पड़ना चाहता है, वो भी जानबूझकर? अरे ये बस एक वीडियो ही तो है। रंजीत जी कह रहे हैं ना कि काल्पनिक वीडियो है, मनोरंजन के लिए बनाया गया है यार! तो तू भी देख और मनोरंजन कर, फिर भूल जा। तू इतना दिल पर क्यों ले रहा है इसे? पागल मत बन समीर।"
रोनी ने समीर को समझाते हुए जल्दी-जल्दी कहा था, जबकि समीर उसी तरह अपनी बात पर अड़ा रहा और उसने रोनी को नज़रअंदाज़ करते हुए एक बार फिर से रंजीत को देखा था।
"रंजीत जी, मुझे आपकी इस वीडियो की कहानी जाननी है और इसकी सच्चाई मैं निकालकर ही रहूँगा। मुझे बस उस गाँव का एड्रेस चाहिए।"
समीर ने ठोस लहजे में कहते हुए इस बार रोनी की तरफ देखा था, जो खुद भी हैरान खड़ा उसे ही निहार रहा था।
"रोनी, अब चाहे कुछ भी हो, मैं वहाँ जाऊँगा। मतलब ये तय है क्योंकि मुझे सच्चाई जाननी है, सिर्फ़ इंटरटेनमेंट नहीं।"
और आगे……………………
सच है या साया है? कौन है जिसने हर बार कुछ नया करके डराया है?
रंजीत जी, मुझे आपकी इस वीडियो की कहानी जाननी है, और इसकी सच्चाई मैं निकालकर ही रहूँगा। मुझे बस इस गाँव का पता चाहिए। समीर ने ठोस लहजे में कहा और इस बार रोनी की तरफ़ देखा, जो खुद भी हैरान खड़ा उसे ही निहार रहा था।
"अब चाहे कुछ भी हो, मैं वहाँ जाऊँगा।" रोनी ने कहा।
"तो मैं भी तेरे साथ चलूँगा।" रोनी ने फ़ौरन कहा।
"अच्छा, तो फिर ठीक है। पता तुमको मिल जाएगा; आगे तुम जानो, तुम्हारी मर्ज़ी।"
रंजीत ने कहा और अपना फ़ोन निकाला। उसने समीर का फ़ोन नंबर लेकर उसके व्हाट्सऐप पर एक पता भेज दिया।
"इस लड़की के गाँव तुम्हें जाना है या नहीं, यह तुम्हारी मर्ज़ी है। बस मैं इतना ज़रूर कहना चाहूँगा कि ज़िंदा रहना चाहते हो तो ऐसे लफ़ड़ों से बच के रहो, समीर। वो गाँव घूमने जाने की जगह नहीं, एक भूतिया डेरा है। अगर वहाँ तुम्हें कुछ होता है तो आई डोंट केयर, मेरा नाम नहीं आना चाहिए, बस?"
"आप मेरी फ़िक्र मत कीजिए। बस इतना बताइए कि आपने यह वीडियो अपनी तरफ़ से बनाया है? तो इस वीडियो में जो यह लड़की दिख रही है, मीरा नाम की, इस लड़की को आपने अपने वीडियो में कैसे लिया... आई मीन कैसे करवाई उस लड़की से कैमरे में एक्टिंग? वह तो रियल है ना? और आप उसे जानते भी होंगे?"
समीर को जैसे कुछ याद आया, तो उसने एक बार फिर से रंजीत के सामने सवाल रख दिया। जिस पर रंजीत हँसने लगा।
"अरे, मुझे तो लगा था तुम पढ़े-लिखे, काफ़ी मैच्योर इंसान हो, समीर। पर तुम भी पागलों वाला सवाल कर रहे हो! अरे यार, इस वीडियो में जो लड़की दिख रही है, यह रियल वाली मीरा नहीं है।" रंजीत एक बार फिर से हँसते हुए बोला।
"अरे भई समीर, ये मेरे साथ काम करने वाली एक दूसरी लड़की है, और इसका नाम है निकिता। जिसने वीडियो में मीरा का रोल प्ले किया है। और ये जो आपको वीडियो में दिख रही है ना, ये मीरा नहीं, निकिता है, मेरी दोस्त।"
"क्या? निकिता?" समीर के मुँह से एकदम ही निकला, और एक बार फिर से बहुत सारे सवाल उसके दिमाग में घूम गए।
"ये मीरा नहीं है, और वीडियो वाली लड़की इसकी दोस्त निकिता है, तो फिर मेरे सपनों में आकर मुझे परेशान करने वाली निकिता मेरे पीछे क्यों पड़ी है? आखिर निकिता ज़िंदा है, तो वह आत्माओं की तरह मेरे सपने में, मेरे घर में और मेरे आस-पास कैसे घूमती रहती है?"
समीर ने अपने आप से सवाल किया और फिर रंजीत को देखने लगा। "रंजीत सर, वैसे अभी आपकी यह दोस्त निकिता अभी कहाँ है? जिसने मीरा का रोल प्ले किया है? क्या मुझे इसका पता या नंबर मिल सकता है? प्लीज़?"
समीर के सवाल पर रंजीत ने अब ना में सर हिला दिया। "पता नहीं। इस वीडियो में उसने मुझसे इतने ज़्यादा पैसे माँग लिए थे कि जितने तो मैंने इस वीडियो के ज़रिए कमाए भी नहीं थे। खुद को मामूली सी यूट्यूबर के बजाय किसी सुपरहिट मूवी की हीरोइन समझ रही थी, और इसी वजह से लड़-झगड़कर मुझसे अलग हो गई थी।"
रंजीत ने इस बार काफ़ी सीरियस होकर अपना हर एक लफ़्ज़ काफ़ी आहिस्ता-आहिस्ता से बताया।
"अब हम साथ में काम नहीं करते, तो मुझे अभी पता नहीं वह कहाँ होगी। आई डोंट नो, क्योंकि हमारी दोस्ती भी खत्म हो गई थी उस दिन से, और अब हम ना ही कभी मिलते हैं, ना ही फ़ोन पर बातें होती हैं।"
"रंजीत जी, क्या मुझे निकिता का नंबर या उसका पता मिल सकता है? वह तो आपके पास होगा ही शायद। प्लीज़ देख लीजिए, अगर कुछ हो सकता है तो?"
समीर ने दो पल रुककर पूछा, जो अंदर से कहीं ना कहीं बेपनाह बेचैन और परेशान था, पर बाहर से चेहरे पर नॉर्मल से भाव लिए खुद को शांत दिखा रहा था।
"कोई फ़ायदा नहीं, समीर। उसका पता और फ़ोन नंबर सब बदल गया है इस वीडियो के बनने के बाद से ही। मैंने निकिता को कभी देखा ही नहीं, और ना ही मुझे पता है वह कहाँ रहती है अब।"
रंजीत के क्लियरली जवाब दे देने पर समीर अब उठकर खड़ा हो गया और रंजीत को देखते हुए, जैसे चैलेंज देने के अंदाज़ से बोला, "आपको कुछ नहीं पता निकिता कहाँ है, मीरा कौन है, यह आपका वीडियो कितना रियल, कितना फ़ेक है... लेकिन अब इन सब सवालों का जवाब ढूँढना मेरा काम है, और मैं सब पता करके ही रहूँगा। थैंक्स एंड गुडबाय।"
समीर वहाँ से निकल चुका था, और उसके पीछे ही रोनी।
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समीर और रोनी दोनों ही रास्ते भर शांत रहे। समीर ने गाड़ी लाकर रोनी के घर के सामने रोकी। फिर दोनों रोनी के कमरे में चले आए। जहाँ समीर अब तक उसी तरह बेसुध सा अपने ख्यालों में खोया हुआ आकर बेड पर बैठ गया। जबकि रोनी उसकी ऐसी मायूस हालत और परेशानी भरी सीरियस सोच में डूबे चेहरे को देखकर बार-बार परेशान हो रहा था।
उसकी हिम्मत नहीं थी कि वह समीर से कुछ भी सवाल करता, क्योंकि इस वक़्त समीर इतना गंभीर ख्यालों में डूबा हुआ, जाने किस दुनिया में खोया हुआ लग रहा था कि रोनी को उसकी फ़िक्र होने लगी।
"समीर, तू चाहता क्या है? मुझे बताएगा कि आखिर इस वीडियो के पीछे ऐसा क्या है जो तू जानना चाहता है, और तेरे लिए इतना इम्पोर्टेन्ट है ये सब कि तू कुछ भी कर सकता है इस वीडियो की सच्चाई के लिए?"
रोनी ने अपने माइंड में घूम रहे अपने सवालों को अब आखिर समीर के सामने रख ही दिए थे, जो कब से उसको कुरेद रहे थे। वह समीर के साथ बैठते हुए प्यार और अपनेपन से उसे देख रहा था।
"नहीं, रोनी, तू नहीं समझेगा। बस तेरा काम है निकिता का पता ढूँढना, और मुझे पता है यह काम तेरे लिए बिल्कुल भी मुश्किल नहीं।"
समीर रोनी की बात काटते हुए उठकर खड़ा हो गया और उसी तरह सोच में डूबे हुए जल्दी-जल्दी से बोला, "रोनी, तू अभी के अभी पूरा नेट खंगाल डाल, पूरी दुनिया में ढूँढ, कुछ भी कर, पर मुझे निकिता का पता चाहिए ही चाहिए। और अब यह तेरी ज़िम्मेदारी है कि तू मुझे जल्द से जल्द रिजल्ट लाकर दे। आखिर इस काम में तू माहिर है, रोनी?"
"समीर, तू क्या कह रहा है? निकिता तो सालों से गायब है। उसे उसका दोस्त रंजीत भी नहीं जानता, और तू उसे ढूँढना चाहता है? क्यों यार... खत्म कर ना सब कुछ, भूल जा। शायद अब सब तेरे साथ भी ठीक ही हो जाए?"
रोनी जैसे जल बिन मछली की तरह तिलमिला रहा था, पर वह कर भी क्या सकता था? वो तो अपने दोस्त के हाथों मजबूर था, जिसे ना तो वह मना कर सकता था और ना ही यह काम इतना आसान ही था।
"ओह गॉड यार समीर, प्लीज़, तू क्यों ढूँढना चाहता है निकिता को? और उसे ढूँढना इतना आसान भी नहीं।"
"आई नो, आसान नहीं है, जानता हूँ, मुश्किल है, पर नामुमकिन तो नहीं है ना? और तेरे लिए तो बिल्कुल भी नहीं, रोनी, क्योंकि तू तो सोशल मीडिया पर इतना एक्टिव है कि तू हज़ार साल पहले गड़े मुर्दे भी निकाल कर सामने रख दे। भला नेट तेरे लिए कौन सी कोई नई चीज है, रोनी? तू तो इसका कीड़ा है ना?" समीर उसी तरह सीरियस चेहरा लिए गंभीरता से बोल रहा था।
"रोनी, तो चल जल्दी से काम पर लग जा तू। मैं अभी घर जा रहा हूँ, अपना कुछ सामान लेकर आता हूँ। तू भी अपनी कुछ इम्पोर्टेन्ट पैकिंग कर ले। हम तीनों इस कोण्डी गाँव के लिए आज शाम को ही निकलने वाले हैं।"
"व्हाट? क्या कहा तूने? तू पागल हो गया है क्या, समीर? इतनी जल्दी-जल्दी फ़ैसले किए जा रहे हैं, वह भी ऐसे कि...?" रोनी को एक झटका सा लगा था समीर की बातों पर, जबकि समीर उसी तरह नॉर्मल बना रहा।
"और कौन? तीनों कौन? समीर, तू क्या निकिता को भी हमारे साथ ले जाएगा क्या?"
"नहीं!" समीर ने छोटा सा जवाब दिया।
"तो फिर किसे?" रोनी ने झट से पूछा।
"मैंने रोहित को कॉल करके सब बता दिया है। वह भी रास्ते में मिलेगा, और हम तीनों इस कोण्डी गाँव जाएँगे इस मीरा नाम की मिस्ट्री को सुलझाने।" समीर ने बड़े ही आराम से कहा और कमरे से बाहर निकल गया, जबकि रोनी का सर चकरा गया था। लेकिन वह कुछ बोलता इससे पहले ही समीर वहाँ से जा चुका था, और वह बेचारा शॉक होकर रह गया।
रोहित, समीर और रोनी का एक और तीसरा कॉलेज फ़्रेंड था। वो तीनों हमेशा एक साथ ही रहते थे। रोनी ने अपना सर ही पीट लिया और आकर अपने कंप्यूटर के सामने बैठ गया, निकिता को ढूँढने।
और आगे……………
तो क्या होगा समीर का अगला कदम अपने सपने से बचने के लिए? क्या वह किसी और मुश्किल में फँसने जा रहा है?
मैंने रोहित को कॉल करके सब बता दिया था। वह भी रास्ते में मिल गया और हम तीनों कोंडी गाँव गए, इस मीरा नाम की मिस्ट्री को सुलझाने।
समीर ने बड़े ही आराम से कहा था और कमरे से बाहर निकल गया। जबकि रोनी का सर चकरा गया था। लेकिन वह कुछ बोल पाता इससे पहले ही समीर वहाँ से जा चुका था और वह बेचारा शॉक होकर रह गया।
रोहित, समीर और रोनी का एक और तीसरा कॉलेज फ्रेंड था। वे तीनों हमेशा एक साथ ही रहते थे। रोनी ने अपना सर पीट लिया और आकर अपने कंप्यूटर के सामने बैठ गया, निकिता को ढूँढने।
दोपहर के वक़्त तक समीर, रोनी और उसका दोस्त रोहित तीनों ही एक घर के सामने खड़े थे। रोनी ने डोरबेल बजाई, तो दरवाज़ा एक लड़की ने आकर खोला था। दरवाज़ा खुलते ही, जैसे ही उस लड़की पर समीर की नज़रें गईं, समीर के चेहरे का रंग ही फीका पड़ गया था। सामने वह लड़की खड़ी थी जो समीर के सपनों की और उस वीडियो की मीरा थी।
समीर बस एकटक निकिता को देखता हुआ मानो अपनी सुधबुध ही खोता चला गया था। उसका दिल थर्रा उठा था और चेहरे की रंगत उड़ सी गई थी। उसकी जुबान तालू में चिपकने लगी, जिस वजह से वह कुछ बोले बिना ही चुपचाप आँखें बड़ी किए खड़ा निकिता को निहारता रह गया।
"ओए, हैल्लो, क्या चाहिए आप लोगों को? कुछ बताएँगे भी या यूँ ही खड़े-खड़े शक्ल दिखाते रहेंगे अपनी?"
निकिता ने पूछा था। जिस पर समीर तो चुप ही रह गया, मानो उससे बोला ना जा पा रहा हो। और रोनी और रोहित ने जब समीर को इस तरह शांत, बेचैन सा, शॉक खड़ा देखा, तो खुद ही जल्दी से निकिता से बातें करने लगे।
"एक्चुअली हमें आपसे ही मिलना था मिस निकिता, कुछ काम है आपसे।"
रोनी ने वही वीडियो निकिता के सामने दिखाते हुए उससे बातों का सिलसिला जारी रखा। जबकि समीर अब भी चुपचाप निकिता को ही देखे जा रहा था।
"तुम लोगों के इस दोस्त के मुँह में जुबान नहीं है क्या? और ये मुझे ऐसे क्यों देख रहा है जैसे खा ही जाएगा? मैं कोई डिश हूँ क्या?"
रोनी और रोहित से बात करते हुए, इस बार निकिता ने समीर को गुस्सैल नज़रों से घूर कर देखते हुए कहा था क्योंकि उसे इस तरह से समीर का खुद को देखते रहना अच्छा नहीं लग रहा था।
"अरे समीर क्या कर रहा है तू यार? मरवाएगा क्या? होश में आ अब!"
रोहित ने हौले से समीर को हिलाते हुए धीरे से उसके कान में कहा था। तो मानो समीर कई घंटों के बाद होश में आया हो। और रोहित की फुसफुसाहट भरी आवाज़ जब उसके कानों में पड़ी, तो वह एक झटके में उछल सा गया।
"क-क... क्या.... क्या हुआ रोहित?"
समीर होश संभालते हुए बोला था। और निकिता ही, रोनी और रोहित भी अब समीर को ऐसे चौंका देख हैरान रह गए थे।
"अरे यही है निकिता, इस वीडियो की मीरा और रंजीत की दोस्त। बात कर जो करना है इससे। पूछ अपने सवाल अब। ये सामने तो है ना तेरे, तो तू चुप क्यों है? अब तक तो इसे ढूँढने के लिए बड़ा उतावला हुआ जा रहा था तू।"
रोहित ने एक बार फिर से कहा था। तो समीर निकिता को देखने लगा।
"हाँ तो निकिता, मुझे आपसे बस इतना पूछना था कि इस वीडियो में जो लड़की है, वह आप ही हैं ना? पक्का आप हैं और.....!!"
"तो आपको क्या लगता है? कोई चुड़ैल एक्ट्रेस है या फिर सचमुच वाली मीरा? और अगर ये वो मीरा होती तो वह बोलेगी कि आओ मेरा वीडियो निकालो? आपको ये पूछना था? वाह क्या बात है!"
समीर की बात काटते हुए निकिता ने तुनक कर कहा था। जिस पर समीर का मूड ऑफ हो गया। लेकिन वह उसी तरह शांत बना रहा क्योंकि निकिता से उसे अभी और भी बहुत कुछ जानना था।
"ये लड़की तो वाकई खुद को बहुत बड़ी फिल्म एक्ट्रेस समझती है। रंजीत में सही कहा था, इसकी अकड़, कॉन्फिडेंस और जुबान तो देखो जरा।"
समीर ने दिल ही दिल में जलकर सोचा था और फिर चेहरे पर बनावटी मुस्कान सजाए निकिता से बोला।
"मेरा मतलब यह नहीं था कि तुम एक्ट्रेस नहीं हो। मैं बस यह पूछना चाहता हूँ कि तुमने हूबहू मीरा की एक्टिंग की है या फिर इस वीडियो में सब कुछ फेक था, दैट्स इट।"
"इसका मतलब है तुमको मेरी एक्टिंग फेक लगती है? एकदम बकवास सी? यूँ मीन मैं थर्ड क्लास एक्ट्रेस हूँ क्या तुमको?"
निकिता ने रूठेपन से गुस्सा दिखाते हुए कहा था, जैसे समीर ने उसकी रग पर वार कर दिया हो।
"देखो मिस्टर समीर, तुमको क्या पता मैं कितनी बड़ी एक्ट्रेस हूँ? मेरे कितने सारे फॉलोअर्स, फैन हैं। मैं जहाँ भी जाती हूँ लोगों की भीड़ लग जाती है मेरे लिए, मेरी एक झलक पाने के लिए। समझे तुम?"
निकिता ने काफी शान से, गर्व भरे अंदाज में कहा था। जिस पर उन तीनों के चेहरों की हवाइयाँ उड़ गईं और फिर एक-दूसरे को देखते हुए एकदम से ही मुस्कुरा दिए। जिस पर निकिता आँखें मींचे गुस्से में उन्हें घूरने लगी।
"क्या सच में निकिता आप इतनी बड़ी स्टार हैं? वाव! हमें तो अभी पता चला।"
रोहित के मुँह से हैरानी में एकदम ही निकल गया था। जिस पर निकिता तो झेंप गई, पर रोनी को हँसी बढ़ गई थी। जिस वजह से उसने अपना मुँह दूसरी ओर मोड़ लिया। वहीं खुद समीर ने भी सर झुकाकर अपने होठों पर आई मुस्कान को दाँतों तले सख्ती से दबा लिया।
निकिता ने मुँह बनाकर रोहित को घूरते हुए कहा था, "हाँ और नहीं तो क्या... मैं झूठ बोल रही हूँ क्या? मैं वाकई बहुत फेमस हूँ। तुम लोग जानते नहीं अभी मुझे?"
"जी मिस निकिता मैडम जी। समीर का यह कहने का मतलब नहीं, यह तो बस ये कहना चाहता है कि क्या आपने जैसी एक्टिंग की है इस वीडियो में, मीरा नाम की यह लड़की वाकई हूबहू ऐसी ही है क्या?"
इस बार रोनी ने बात संभालते हुए निकिता को समझाया था। जिस पर निकिता थोड़ा शांत हुई थी।
"नहीं, ऐसी नहीं। यह तो इससे भी ज़्यादा खतरनाक और डरावनी लड़की है। मैं भी कोंडी गाँव गई थी रंजीत के साथ। उसने ही मुझे मीरा को दूर से दिखाया था ताकि मैं उसके जैसी एक्टिंग कर सकूँ। अब वो मीरा तो रियल है, पर मुझे उसकी कॉपी करनी थी इसलिए मुझे उसको देखना और उसकी नकल उतारना थोड़ा मुश्किल लगा था। लेकिन मैंने किया था, क्यों?"
"ओह! तो तुम भी इस कोंडी गाँव की रियल मीरा से मिल चुकी हो।"
समीर ने हैरत और जल्दबाज़ी में बिना साँस लिए, सवालिया अंदाज़ में निकिता से पूछा था। जिस पर उसने हाँ में सर हिला दिया और समीर को एक झटका सा लगा था। वह जितना इस गुत्थी को सुलझाना चाह रहा था, वह उतना ही उलझती जा रही थी।
"हाँ, मैंने उसको देखा है और उसकी कॉपी करने की कोशिश की। लेकिन कहीं ना कहीं यह रियल है तो रियल ही रहेगी। और मैंने सिर्फ़ इसकी एक्टिंग की थी। लेकिन कितनी अच्छी थी... है ना? तभी तो तुम तीनों मेरे पास आए हो। मेरा वह वीडियो आज भी बहुत फेमस है। यानी मैं फेमस हुई ना? तुम लोग मेरे फैन हो ना जो मुझे ढूँढते हुए यहाँ मेरे घर तक आ गए?"
निकिता ने एक्साइटेड होकर, मारे खुशी के पूछा था। फिर थोड़ा दुखी मन से बोली, "मैंने इतनी मेहनत की थी इस वीडियो के लिए। उस पर भी रंजीत ने मुझे इतने कम पैसे दिए कि मुझे उससे झगड़ा करना पड़ा था। वह बहुत लालची है।"
"लिसन, हम तुम्हारे फैन नहीं हैं। हम इस वीडियो के फैन हैं, जिस वजह से मैं तुमसे मिलने यहाँ तक आया हूँ।"
समीर ने जले-कटे से अंदाज़ में, दाँत पीसते हुए, चेहरे पर जबरदस्ती इत्मीनान के भाव दिखाते हुए कहा था। जिस पर निकिता को गुस्सा आ गया। लेकिन इससे पहले वो कुछ बोलती कि रोनी ने जल्दी से समीर के कंधे पर हाथ रखकर दबाया था, जैसे वह समीर को उसकी बात का कुछ एहसास दिला रहा हो कि निकिता को उसकी बात बुरी लग सकती है। जिससे समीर को भी रियलाइज़ हुआ और वह जल्दी-जल्दी से अपनी बात बदलता हुआ बोला,
"निकिता, मेरा मतलब ये है कि मैं तुम्हारा ही फैन हूँ। अब तुमने इसमें इतनी अच्छी एक्टिंग की है कि तुमसे तो मिलना ही था, सो मैं आ गया आपके घर।"
समीर ने जल्दी-जल्दी से कहा था। जिस पर निकिता जो रूठ गई थी, वह खिलखिला कर हँस दी।
और आगे…………...
निकिता ने मेरा मतलब ये है कि मैं तुम्हारा ही फैन हूँ। अब तुमने इसमें इतनी अच्छी एक्टिंग की है कि तुमसे तो मिलना ही था ना, सो आ गया तुम्हारे घर।" समीर ने जल्दी-जल्दी कहा था। जिस पर निकिता, जो रूठ गई थी, खिलखिलाकर हँस दी।
"सही बात है निकिता, समीर सही कह रहा है। इसका यही तो मतलब था।" इस बार रोनी जल्दी से बोला था और समीर को देखने लगा। वह तो चुप ही था, लेकिन रोहित को हँसी जरूर आ गई थी।
"मुझे लगता है, रोनी को इस निकिता मैडम की तारीफ़ों का बहुत शौक है।" रोहित ने हँसकर निकिता को देखते हुए, रोनी और समीर के कान में झुककर, कनखियों में हँसकर कहा था।
"हाँ, लेकिन मैं अभी और झूठ नहीं बोलूँगा। सोचना भी मत कि मैं फ़ालतू तारीफ़ करूँगा इसकी।" अब समीर ने भी धीरे से उन दोनों के कान में फुसफुसाते हुए कहा था। इस बार वह तीनों एक साथ हँस दिए, जिससे निकिता तो अनजान ही थी।
"अरे आप लोग हँस क्यों रहे हैं?" निकिता ने मासूमियत से पूछा।
"अरे नहीं, नहीं कुछ नहीं। तुम तो बहुत बड़ी एक्ट्रेस हो, कसम से निकिता!" रोनी ने एक बार फिर से अपनी हँसी छुपाते हुए निकिता से कहा था। जिस पर वह खुश हो गई।
"या आई नो, थैंक्स!"
"वेलकम!" उन तीनों ने एक साथ कहा। जब निकिता एकदम से ही जैसे कुछ याद करते हुए चौंककर जल्दी से बोली,
"पर हाँ, एक बात और। इस मीरा को देखकर मुझे इतना डर लगता है कि क्या बताऊँ! एक बार ही तो मैं इससे मिली थी, लेकिन आज भी इसकी दहशत मेरे दिल में है। मैं इसे कभी नहीं भूल सकती। मेरे पास तो इसकी फोटो भी है, और मैं उस फोटो को जब भी देखती हूँ, डर से काँप जाती हूँ। क्योंकि इसका चेहरा इतना भयानक सा है, क्या बताऊँ! जो दिखने में तो मासूम है, लेकिन इसकी हालत और उसका रहन-सहन वाला डरावना अंदाज... बाप रे बाप! मैं तो..."
"क्या? क्या कहा? फोटो? कहाँ? कहाँ है वह फोटो? मुझे दिखाओ, मुझे देखना है, कहाँ है, प्लीज़?" निकिता अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही समीर उसकी बात काटता हुआ, उतावलेपन से जल्दी-जल्दी बोला था। मानो कोई खज़ाना ही उसके हाथ लगने वाला हो। "है मेरे पास ही था, कहीं पड़ा होगा घर में ही। मुझे ढूँढना पड़ेगा उसे, लेकिन तुम ऐसे रिएक्ट क्यों कर रहे हो? क्या तुम भी मिल चुके हो क्या उस रियल मीरा से?" निकिता को थोड़ी हैरानी हुई थी, इसलिए उसने समीर को गौर से देखते हुए पूछा था।
"नहीं, मैं उससे नहीं मिला हूँ, लेकिन अब उससे मिलना ही मेरा मकसद है।"
"ओह, मतलब तुम लोग भी कोंडी गाँव जाने वाले हो क्या?"
"तुमको इससे क्या मतलब? तुम मुझे कोंडी गाँव की मीरा की फोटो लाकर दो, बस। और उसके बदले में तुम मुझसे जितने चाहे उतने पैसे ले सकती हो?" समीर का अंदाज बदल गया था, और वह बेरुखी से बोला। क्योंकि अब वह जल्द से जल्द मीरा के पास पहुँचना चाहता था, बस उसे देखना चाहता था।
पैसों का नाम सुनकर निकिता फ़ौरन घर के अंदर चली गई थी। और जब वह वापस आई, तो उसके हाथ में एक पुरानी, छोटी सी, घिसी-पिटी तस्वीर थी, जिसे उसने समीर के हाथ में रख दी।
"लो, यह है मीरा, जिसकी मैंने एक्टिंग की थी। अब तुम जाकर इससे मिलो, इससे बात करो, कुछ भी करो, मुझे क्या... अरे यार! मैंने तो बस यूँ ही पूछ लिया था, तुम तो ऐसे गुस्सा हो रहे हो, जैसे कि मैंने तुम पर कोई भूत छोड़ दिया हो।" निकिता ने मुँह बिचकाते हुए, रूठेपन से कहा था। जिस पर समीर की नज़रें उसके चेहरे पर जमकर रह गईं।
समीर दो पल बस ऐसे ही निकिता को देखता रहा। और समीर के दिल ने जैसे उससे कहा था कि हाँ निकिता, तुमने मुझ पर एक भूत ही तो छोड़ दिया है, एक ऐसा भूत जो ना तो मुझे चैन से जीने देता है और ना ही मेरी जान लेकर मुझे मार ही देता है।
समीर ने जब वह फोटो देखी, तो उसके पैरों तले से जैसे ज़मीन ही खिसक गई, और वह लड़खड़ाकर गिरने ही वाला था। जिसे रोनी और रोहित ने जल्दी से पकड़कर सम्भाल लिया था।
समीर ने मीरा की फोटो देखी, तो उसके होश उड़ गए थे। क्योंकि वह फोटो में जो लड़की थी, वह कोई और नहीं, बल्कि वही लड़की थी जो समीर के सपनों में आती थी। वही मैली-कुचैली दिखने वाली, कटे-फटे, खून से सने, भयानक चेहरे की, वही ब्लैक फ्रॉक वाली, एक गंदी सी, डरावनी शक्ल की लड़की, जो जब भी समीर को दिखाई दी थी, उसका हमेशा आधे से ज़्यादा चेहरा उसके उलझे हुए, गंदे, धूल जैसे बालों से बंद ही होता था।
समीर ने उस फोटो को देखने के बाद, और फिर एक बार गौर से, फटी-फटी आँखों से देखा। और मानो एक साया सा उसके ऊपर से होकर गुज़रा था, और वह सुन्न, बेदम जैसे खड़ा रह गया।
"क्या हुआ समीर? तू इसे जानता है क्या? समीर... समीर कुछ बोल तो यार! क्या हुआ?" रोनी ने समीर को आवाज़ दी थी। जिसे वह चुपचाप अनसुना किए खड़ा रहा। जिस पर रोनी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर, एक बार फिर से उसे होश में लाते हुए, दोबारा तेज आवाज़ में पूछा था...
"समीर क्या हुआ? कुछ बोल?"
"हँ, हँ, हाँ, मैं इसे जानता हूँ, मैंने इसे देखा है, शायद... शायद मैं इसे जानता हूँ, ये... ये।"
"क्या? यह तू क्या बकवास किये जा रहा है समीर?" रोनी और रोहित ने हैरत से एक साथ कहते हुए एक-दूसरे को देखा था।
"समीर, तू इसे जानता है? पर कैसे?" रोहित और रोनी ने एक साथ अपना सवाल दोहराया था।
"हाँ रोहित, मैं इसे... मैं इस लड़की को जानता हूँ। मैंने इसे देखा है यार।" समीर ने आवाक, डरे और घबराए लहजे में, पूरे भरोसे से कहते हुए अपने दोस्तों को देखा, और आँखें मलते हुए एक बार फिर से उस फोटो को देखने लगा।
"क्या? तुमने इसे देखा है? कब? कहाँ? कैसे? आई मीन... कैसे समीर?" समीर की बात पर रोनी और रोहित तो जैसे खुद हैरान से होकर चुप रह गए थे। पर निकिता मानो चौंक ही गई, और उसने समीर पर सवालों की बौछार कर दी।
"तुम इससे कब मिले? कहाँ देखा तुमने इसको?"
"मैं इससे मिला हूँ, मैंने इसे देखा भी है, बात की और लेकिन...!!" समीर कुछ कहते हुए एकदम से चुप हो गया था। और फिर निकिता की आँखों में आँखें डालता हुआ, उसे एकटक देखकर, मज़बूत लहजे में गुस्सा दिखाते हुए बोला।
"कुछ भी हो, यह मेरा मैटर है। तुम्हें इससे क्या? क्यों बताऊँ मैं तुमको यह सब?"
"अरे मैं तो ऐसे ही पूछ रही थी। तुम इतना रूडली बिहैव क्यों कर रहे हो? तुम उस गाँव जा रहे हो, जहाँ जिस जगह से बचकर लोग निकल जाना चाहते हैं। इस गाँव के रास्ते से भी कोई नहीं गुज़रता, और तुम लोग खुद यह मुसीबत मोल लेने जा रहे हो। टेक केयर, ऑल द बेस्ट एंड वेरी हैप्पी जर्नी! मुझे क्या?" निकिता ने बेपरवाही से कंधे उचकाते हुए कहा था।
"निकिता, क्या तुम भी हमारे साथ चलोगी? लिसन, देखो तुम पहले भी इस गाँव जा चुकी हो, और शायद तुम्हारे चलने से हमें कुछ हेल्प..." रोनी ने अपनी बात अधूरी छोड़ी थी, क्योंकि समीर ने उसे घूरकर जो देखा था।
"नहीं, मैं तो ऐसे ही कह रहा था यार। समीर, तू इतना हाइपर क्यों हो रहा है?"
"रोनी, हमें किसी की ज़रूरत नहीं। हम तीनों ही जाएँगे बस। हमारे पास जीपीएस है, और साथ ही रंजीत का दिया कोंडी गाँव का ये एड्रेस भी और..."
"वैसे मिस्टर समीर, तुम्हारे दोस्त की बात तो सही है। मैं पहले भी उस गाँव जा चुकी हूँ, और इस लड़की से भी मिली हूँ। शायद मैं तुम लोगों की कोई हेल्प कर सकूँ। मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, अगर तुम मुझे ले चलना चाहते हो तो मैं तैयार हूँ। आगे तुम्हारी मर्ज़ी, मगर?"
"मगर क्या निकिता?" निकिता जो बीच में ही चुप हो गई थी, तो समीर ने उसे सवालिया नज़रों से देखते हुए पूछा था।
"मगर यह कि तुम लोगों के साथ चलने में मेरा क्या फायदा? मुझे तो..."
निकिता की बात एक बार फिर से दबकर रह गई थी, जब समीर ने अपनी जेब से नोटों का एक बंडल निकालकर उसके हाथ पर रख दिया था।
"अब तो चलोगी? या कुछ और चाहिए?" समीर ने बेभाव से कहा था। उसे निकिता का साथ नहीं चाहिए था, पर अपने दोस्तों की इनकार भी कैसे करता? और कहीं तक शायद उसे भी निकिता का साथ होना सही लगा था।
"हाँ, ठीक है। मैं अभी आई।" निकिता हँसते हुए, खुशी से उछलते हुए घर के अंदर चली गई। और फिर थोड़ी ही देर में उसके हाथ में एक छोटा सा बैग था, जिसमें उसने शायद अपना कुछ ज़रूरी सामान रखा था। और उसे पीठ पर उठाए, वह जल्दी-जल्दी उछलती-कूदती उन तीनों के पास आ गई... "चलो, आई एम रेडी।"
और आगे..........
तो क्या होगा निकिता के साथ? समीर के साथ जुड़ने से क्या सुलझेगी कोई पहेली? या और उलझ जायेगा समीर का सपना?
निकिता हँसते हुए खुशी से उछलते हुए घर के अंदर चली गई। थोड़ी ही देर में उसके हाथ में एक छोटा सा बैग था जिसमें उसने शायद अपना कुछ ज़रूरी सामान रखा था। उसे पीठ पर उठाए वह जल्दी-जल्दी उछलती-कूदती उन तीनों के पास आई। "चलो, आई एम रेडी।"
यह तो ऐसे खुश हो रही है जैसे हम कोई पिकनिक मनाने जा रहे हैं। पक्का, यह पागल लड़की है! इससे संभलकर रहना होगा।
समीर ने हँसकर धीरे से रोहित और रोनी के कान में कहा। वह दोनों मंद-मंद मुस्कुरा दिए। पर निकिता इससे अनजान थी कि तीनों ने मिलकर उसका मज़ाक उड़ाया है।
थोड़ी ही देर में समीर की गाड़ी हवा को चीरती हुई सड़क पर दौड़ रही थी। उसके साथ फ्रंट सीट पर रोहित बैठा था और पीछे रोनी और निकिता।
समीर ड्राइव कर रहा था, पर एक हाथ से ही स्टेरिंग पकड़ रखी थी। क्योंकि एक हाथ में उसने अब तक कोंडी गांव की मीरा की वही फ़ोटो थाम रखी थी और बार-बार उसे देख रहा था।
शाम से रात होने लगी थी और समीर ने गाड़ी एक रिसॉर्ट में रोक दी।
"आज रात हम यहीं बिताएँगे। सुबह निकलेंगे कोंडी के लिए।" समीर ने कहते हुए गाड़ी पार्क की ओर रिसॉर्ट के अंदर चला आया। उसके पीछे-पीछे वह तीनों भी थे।
समीर ने रिसेप्शन पर दो रूम बुक करवाए थे और एक चाबी निकिता के हाथ में थमा दी और दूसरी रोहित के।
"लिसन, रोहित और रोनी, हम तीनों एक साथ ही रहेंगे। मुझे तुम दोनों से कुछ बात करनी है, कुछ है जो मैं तुम लोगों को बताना चाहता हूँ।" समीर ने कहा। रोहित और रोनी ने गर्दन हाँ में हिला दी। जबकि निकिता, जो कुछ समझ नहीं पाई थी, वह जल्दी से समीर के सामने आकर खड़ी हो गई।
"सुनो मिस्टर, आई नो कि यह दोनों तुम्हारे दोस्त हैं, पर अब मैं भी तुम्हारे साथ हूँ तो जो भी इन दोनों को बताओगे, मुझे भी जानना है।" निकिता बच्चों की तरह रूठेपन से बोली।
"क्यों? तुम्हारा सब कुछ जानना कोई ज़रूरी तो नहीं ना?" समीर ने भी उसी तरह हठधर्मिता के भाव से कहा। उसे निकिता की चंचलता और उसकी खिलखिलाती बातों या शरारती अंदाज़ से कोई मतलब नहीं था। जबकि निकिता की बातों और उसकी चुलबुली हरकतों पर रोहित और रोनी खूब मज़े कर रहे थे।
"ऐसे कैसे ज़रूरी नहीं है? मैं अकेली लड़की हूँ। कहीं तुम तीनों ने मेरे साथ कुछ गलत किया तो? और क्या पता उसी का प्लान करना हो तुमको मेरे पीठ पीछे? कहीं तुम तीनों मेरा रेप तो नहीं करना चाहते?" निकिता ने अपनी टीशर्ट ठीक करते हुए शरारत से कहा। जिस पर समीर ने अपना सिर पीट लिया।
"अगर इतना ही डर था तो आई क्यों हमारे साथ?" समीर मुँह बनाकर बोला।
"हाँ तो अगर मैं तुम लोगों के साथ आई हूँ तो क्या अब तुम्हारी हुई जो तुम लोग मेरे साथ ऐसा-वैसा करोगे? बोलो, बताओ?" निकिता को फुल मस्ती सूझ रही थी। जिसका मज़ा रोहित और रोनी तो बराबर ले रहे थे, पर समीर का मूड ठीक नहीं था और निकिता की शरारतें उसे और भी नागवार गुज़र रही थीं।
"देखो, मैं पहले ही बता दे रही हूँ, मैं बहुत डेंजर लड़की हूँ और मैंने कराटे भी सीखे हैं। एक-एक की बैंड बजा दूँगी आई स्वेर अगर कोई मेरे पास आया तो।" निकिता ने मुश्किल से अपनी हँसी रोकते हुए उसी तरह समीर के मज़े लेते हुए शरारत से कहा। रोहित और रोनी, जो अब तक अपनी हँसी रोक रहे थे, अब कहकहा लगाए खिलखिलाकर एकदम से हँस दिए। जबकि समीर का मूड और ज़्यादा ऑफ़ हो गया था।
उसे रह-रहकर मीरा, वो भूतिया लड़की, कोंडी गांव और अपना वही सपना, वह भयानक नज़ारा याद आ रहा था। जिस वजह से इस वक्त उसे और कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था और वह बस मीरा की कहानी, वीडियो की सच्चाई और इस मिस्ट्री में उलझा हुआ था। उसे निकिता की शरारत पर भी हँसी नहीं आई।
"तुम बहुत बड़ी आयरन गर्ल हो है ना, लेडी डॉन! लेकिन तुम्हारे साथ कुछ गलत करना तो क्या, सोचने से भी बेहतर होगा कि मैं मौत को गले लगा लूँ।" समीर ने कुढ़े हुए से अंदाज़ में कहा और आगे बढ़ गया। जबकि निकिता रोनी और रोहित को देखने लगी थी।
"यार, ये ऐसा रूखा क्यों है? यह लड़का किसी बात पर कोई रिएक्ट ही नहीं करता। ना हँसता है, ना ठीक से बात करता है। यह इंसान है या स्टोन हार्ट या फिर कोई पत्थर का पुतला? यह तुम लोगों का दोस्त कैसे बना?" निकिता ने वहाँ से जाते हुए समीर को देखते हुए रोनी और रोहित से कहा।
"सॉरी निकिता, अभी वह थोड़ा परेशान है। बस, उस वीडियो को लेकर। नहीं तो समीर ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यह तो बहुत ही हँसमुख और नॉटी बॉय है। तुम प्लीज़ माइंड मत करना।" रोहित ने निकिता को समझाते हुए कहा।
"एनीवे, रात हो रही है। तुम जाकर अपने कमरे में सो जाओ। हमें सुबह निकलना भी है।"
"हाँ, ठीक है। गुड नाइट।" निकिता अपने रूम की तरफ़ बढ़ गई। रोहित और रोनी भी समीर के पीछे अपने कमरे में चले आए।
कमरे में समीर ने रोनी और रोहित को अपने सपने और अपनी आपबीती सुनाई। जिस पर वह दोनों बेहद हैरान हुए थे और समीर का साथ देने के लिए और भी ज़्यादा एक्टिव हो गए थे।
रात का जाने कौन सा पहर था जब तीनों आराम से सो रहे थे कि सोते हुए रोनी की नींद अचानक टूटी। उसे बाहर कहीं कुछ आहट सुनाई दी। उसने चादर से अपना थोड़ा सा चेहरा बाहर निकाला और कमरे के चारों तरफ़ देखते हुए बेड से नीचे उतर आया।
उसने रूम के दरवाज़े पर देखा तो उसे दरवाज़े के बाहर ही कोई लड़की बैठी दिखाई दी। जो उसके रूम के दरवाज़े से टेक लगाए घुटनों पर सर रखे बैठी सिसक-सिसक कर रो रही थी। रोनी को हैरत हुई। उसने धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए आकर रूम का दरवाज़ा अंदर से खोल दिया। लेकिन यह क्या... रूम का दरवाज़ा तो खुला, पर जहाँ अभी दो पल पहले वो लड़की बैठी रो रही थी वहाँ अब कोई नहीं था।
रोनी का माथा ठनक गया। उसने इधर-उधर कॉरिडोर में उस लड़की को ढूँढती नज़रों से देखा। लेकिन कहीं भी उसे वह लड़की दिखाई नहीं दी। वह दरवाज़े से बाहर आ गया और धीरे-धीरे दबे कदम बढ़ाता हुआ लड़की को ढूँढता कॉरिडोर पार करके रिसॉर्ट के बाहर आ गया।
और आगे……....…
रोनी को हैरत हुई। उसने धीरे-धरे कदम बढ़ाते हुए रूम का दरवाजा खोला। लेकिन यह क्या...? रूम का दरवाजा खुला था। जहां अभी दो पल पहले वह लड़की बैठी रो रही थी, वहाँ अब कोई नहीं था। रोनी का माथा ठनक गया। उसने इधर-उधर कोरिडोर में उस लड़की को ढूँढते हुए देखा, लेकिन कहीं भी वह लड़की दिखाई नहीं दी। वह दरवाजे से बाहर आया और धीरे-धरे दबे कदम बढ़ाता हुआ, लड़की को ढूँढता हुआ, कॉरिडोर पार करके रिसॉर्ट के बाहर आ गया।
उसे वह लड़की बाहर भी कहीं नहीं मिली। रोनी परेशान होने लगा। वह डरने भी लगा कि कोई ऐसे कैसे एक पल में गायब हो सकता है? रोनी रिसॉर्ट के बाहर खड़ी अपनी गाड़ी की तरफ चला आया। उसे गाड़ी में लाइट जलती हुई दिखाई दी और किसी के बात करने की आवाज आई। वह उधर ही चला आया।
"अरे यार! यह क्या? समीर ने गाड़ी लॉक नहीं की थी क्या? लाइट भी चल रही है और इसमें कोई बैठा भी है शायद। कौन हो सकता है?" रोनी ने खुद से कहा और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाते हुए गाड़ी की तरफ आ गया।
गाड़ी का शीशा खुला हुआ था। रोनी को हैरत हुई। उसने जल्दी से गाड़ी के अंदर हाथ डाला और डोर का लॉक खोलकर पहले शीशा बंद करने लगा। तभी उसे अपने पीछे कुछ सरसराहट सी महसूस हुई। उसने जल्दी से पलटकर देखा, पर वहाँ भी कोई नहीं दिखा। चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। यह एक काली रात थी। चारों तरफ अंधेरे और सन्नाटे की वजह से चारों तरफ का नजारा साँय-साँय कर रहा था।
रोनी चारों तरफ नज़र बढ़ाता हुआ, घबराई नज़रों से सब देख रहा था। वह परेशान हो चुका था और अब उसका दिल डर और घबराहट से बैठने लगा। इस खुले मैदान में सन्नाटे में वह अकेला था।
अकेले होने के बावजूद भी उसे बार-बार लग रहा था जैसे कोई उसके साथ-साथ चल रहा है, उसके कदम से कदम मिलाए हुए। कभी उसे लगता कि कोई उसके पास खड़ा है। जब एकदम से उसके कंधे पर किसी ने पीछे से हाथ रखा। रोनी डर के मारे आहिस्ता-आहिस्ता पीछे पलटा। सामने रोहित खड़ा मिला।
"अरे यार! तू है? रोहित! मैं तो... मैं तो डर ही गया था यार! ऐसे कौन करता है? तूने मुझे डरा दिया!" रोनी ने रोहित को देखते हुए राहत की साँस लेते हुए कहा।
"वैसे रोनी, तू यहाँ इतनी रात को अकेला क्या कर रहा है? तू तो रूम में था ना?" रोहित ने उसे शोल्डर से पकड़ते हुए दोस्ताना अंदाज़ में कहा।
"हाँ, मैं सो ही रहा था। जब यहाँ पर मुझे कुछ आवाज़ आई तो मैं देखने चला आया। और यहाँ आकर जब देखा कि गाड़ी का शीशा खुला है तो सोचा इसे बंद कर दूँ। लेकिन तू इतनी रात को कहाँ टहल रहा है, रोहित?" रोनी ने रोहित के सवाल का जवाब देते हुए उससे भी सवाल कर डाला। रोहित ठहाके मारकर हँसने लगा।
"अरे, ये अंधेरा ही तो हमारा डेरा है जहाँ हम खुले आसमान के नीचे चैन से साँस ले सकते हैं और सुकून से घूम सकते हैं।"
रोहित ने अजीब से अंदाज़ में, डरावनी सी हँसी के साथ रोनी को देखा। रोनी के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं और उसे पसीने की बूंदें आने लगीं।
"रोहित, रोहित! क्या हुआ तुझे? तू ऐसे क्यों बात कर रहा है यार? और ये तू हँस क्यों रहा है? तू ऐसे देख, प्लीज डरा मत यार! चल, हम लोग अंदर चलते हैं?" रोनी ने रोहित का हाथ पकड़कर अपने साथ खींचा। जैसे ही वह दो कदम आगे बढ़ा, उसे लगा जैसे रोहित ने उसे वापस पीछे खींच लिया हो। वह वापस पीछे की ओर झुक गया।
"ओफ्फो! क्या कर रहा है तू ये, रोहित? चल ना यार! चलकर सोते हैं। इतनी रात हो गई है और तू है कि..."
इससे पहले रोनी अपनी बात पूरी कर पाता, उसने पलटकर पीछे देखा। जहाँ रोहित का कहीं नामोनिशान ही नहीं था। और उसका हाथ, जिसमें उसने रोहित का हाथ थाम रखा था, वह एकदम खाली था।
"रोहित, रोहित! कहाँ है तू? देख, तू मेरे साथ ऐसे मज़ाक मत कर प्लीज यार, प्लीज! मुझे वैसे ही बहुत घबराहट हो रही है यहाँ इस जगह को देखकर, और तू मुझे और डराने की कोशिश कर रहा है। मैं तेरा मुँह तोड़ दूँगा! रोहित! कहाँ है तू? प्लीज चल ना यार यहाँ से चलते हैं?"
रोनी रोहित को घबराहट भरी कांपती आवाज़ से चेतावनी देते हुए गाड़ी के चारों तरफ उसे ढूँढ रहा था, पर रोहित वहाँ था ही नहीं।
"रोहित! देख प्लीज मज़ाक मत कर..." रोनी का कलेजा कटने लगा और उसका बदन थरथरा उठा।
"रोहित! मैं जा रहा हूँ, तू यहीं रह।" रोनी ने जैसे आखिरी बार अपनी बात क्लियर करते हुए सब कुछ छोड़-छाड़कर वापस रिसोर्ट की तरफ कदम बढ़ाए। पर जैसे ही उसने आगे बढ़ते हुए अपने हाथ को देखा, डर से जमीन पर छटपटाकर गिर पड़ा। क्योंकि, उसके हाथ पर एक और कटा हुआ हाथ चिपका था, जो खून से लथपथ उसके हाथ को मजबूती से अपने पंजे में जकड़े हुए था।
हाथ के अलावा वह कोई और नहीं था, वो अपने धड़ से अलग-थलग सिर्फ़ खूनी डरावना हाथ था। अब रोनी रोते हुए, डरकर, अपने हाथ पर चिपके उस छिले-कटे हुए हाथ को अपने दूसरे हाथ से छुड़ाने लगा। पर वह उसी तरह मजबूती से चिपका रहा। रोनी की चीख निकल गई और वह जमीन पर पड़ा तड़पता रह गया।
इधर कमरे में समीर की अचानक सोते-सोते आँखें खुलीं। वह एक झटके से उठ बैठा। वह खौफज़दा नज़रों से कमरे के चारों तरफ देखता रहा। मानो उसे अपने साथ-साथ किसी और के भी साँस लेने की आवाज़ें साफ़ सुनाई दे रही थीं, पर वहाँ कोई दिख नहीं रहा था। समीर को ऐसा लगा जैसे कोई उसके साथ, उसके बेड पर, उसके करीब, उसकी बराबर से बैठा हुआ है। उसने झट से पलटकर अपनी साइड में देखा, तो वहाँ कोई नहीं था। जब उसे एहसास हुआ कि बेड पर रोहित तो है, लेकिन रोनी नहीं।
समीर ने रोनी को आवाज़ दी। जब उसे कमरे में कहीं भी रोनी दिखाई नहीं दिया, तो वह घबरा गया और उसे ढूँढने लगा। समीर बाथरूम में गया। वहाँ पर उसे देखने के बाद भी जब उसे रोनी वहाँ नहीं दिखा, तो वह रूम का दरवाजा खोलकर कोरिडोर की तरफ बढ़ने लगा।...
और आगे...
समीर ने रोनी को आवाज़ दी। जब उसे कमरे में कहीं भी रोनी दिखाई नहीं दिया, तो वह घबरा गया और उसे ढूँढने लगा। समीर बाथरूम में गया और वहाँ पर भी उसे रोनी नहीं दिखा। तब वह कमरे का दरवाज़ा खोलकर कोरिडोर की तरफ़ बढ़ा।
"रोनी, रोनी कहाँ है तू? रोनी, सुन रहा है तू? रोनी, तू कहाँ है यार, सुन! रोनी, बोल, प्लीज़?"
समीर रोनी को ढूँढते हुए कोरिडोर के पीछे की तरफ़ आया। जब उसे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं, तो उसने खंभे की ओट में खड़े होकर आवाज़ जिधर से आ रही थी, उधर झाँका। जिसे देखकर वह शॉक हो गया। वहाँ पर निकिता के रूप वाली मीरा बैठी हुई थी, जो हमेशा समीर को लैपटॉप वाले वीडियो में या उसके सपने जैसे रियल लाइफ में दिखती थी।
समीर डर के मारे काँपने लगा। उसने खंभे पर अपने नाखून गाड़ दिए और वहाँ से वापस कमरे की तरफ़ भागने लगा था। जब उसने पलट कर देखा, तो और भी ज़्यादा हैरान हो गया। क्योंकि वहाँ पर एक नहीं, बल्कि वीडियो वाली मीरा की शक्ल की कई और लड़कियाँ गोल घेरा बनाकर बैठी हुई थीं। उन सबके चेहरे भी निकिता के चेहरे जैसे दिखने वाले और उस वीडियो वाली मीरा की तरह के थे।
समीर फटी-फटी आँखों से उन सबको देखता रहा। उन सबके हाथों के पंजे खून से सने हुए थे, और सभी के दाँतों में गोश्त के लोथड़े फँसे हुए थे। और उन सभी के मुँह से इस तरह से खून धारियों में बह रहा था, जैसे वे सब वहाँ पर बैठकर किसी जानवर को ज़िंदा नोच-नोचकर खा रही हों।
समीर जैसे ही पलटकर वहाँ से भागने वाला था, कि उसके ठीक सामने ही वह काली फ्रॉक पहने गंदी शक्ल वाली लड़की आ धमकी। जो उसके चेहरे के सामने अपना चेहरा किए, उसके एकदम करीब खड़ी हो गई। और उसे देखकर समीर के मुँह से डर के मारे ज़ोरदार चीख निकल गई।
"कहाँ जा रहे हो तुम? तुम लोगों ने मुझे जान से मार दिया। मैं जीना चाहती थी, लेकिन तुम लोगों ने मुझे जीने नहीं दिया?" उस काली फ्रॉक पहने लड़की ने समीर की आँखों में आँखें डालते हुए नफ़रत से कहा।
इस वक़्त उस लड़की की आँखों से आग के अंगारे फूट रहे थे, और उसका पूरा चेहरा लाल खून सा था। बाल चारों तरफ़ हवा में उड़ रहे थे; उसके कटे-फटे होंठ, डरावना, भयानक दिखने वाला चेहरा, जिसे देखकर ही समीर को डर लग रहा था। वह भला उसकी बात क्या सुनता या समझता?
"ममम...मुझे...मुझे छोड़ दो...मुझे जाने दो, प्लीज़! मैंने कुछ नहीं किया है?" समीर के होंठ हल्का सा कपकपा रहे थे, और वह दर्द भरी, काँपती आवाज़ में कुछ कहना चाह रहा था। पर उसकी आवाज़ उसके मुँह में ही दबकर रह गई। कुछ बोल नहीं पाया, तो चेहरा हाथों से मसलने लगा।
"तुम सबको मैं जाने नहीं दे सकती। तुम सबने मेरी जान ली है। मरकर ही सही, पर अब मैं तुम लोगों से अपना बदला ज़रूर लूँगी। याद रखो, तुम सब मरोगे अब।"
"मैं आपको...आपको नहीं जानता। मैंने कुछ नहीं किया है। मैं तो कभी आपसे मिला भी नहीं, फिर कैसे मैं आपको मार सकता हूँ? मैं तो..."
इससे पहले समीर अपनी सफ़ाई में कुछ और कहता, या फिर उस लड़की की बातों को समझ पाता, उस लड़की ने समीर को बिना छुए, अपनी एक उंगली के इशारे से उसका चेहरा गर्दन से मीरा की तरफ़ घुमा दिया। जहाँ पर वह अब भी कई सारी मीरा जैसी शक्ल की लड़कियाँ गोल घेरे में एक साथ बैठी किसी चीज़ का कच्चा माँस नोच-नोचकर खा रही थीं।
समीर ने जब मीरा के गोल घेरे के अंदर देखा, तो वहाँ पर रोनी पड़ा हुआ था। और उसके चारों तरफ़ बैठी मीरा जैसी सारी लड़कियाँ उसके चीथड़े अपने-अपने नाखूनों से नोच-नोचकर खा रही थीं। सब मरे पड़े रोनी की हड्डियों को हाथ में लिए चबा रही थीं। और अब समीर वहाँ एक पल भी नहीं रुक सका। और वह उस काली फ्रॉक पहने, गंदी शक्ल वाली, रियल और कोंडी गाँव की मीरा के साइड से एक झटके में निकला और जान छोड़े बेसुध, आवाक और बदहवास सा सीधा कमरे की तरफ़ भागने लगा।
समीर जल्दी से कमरे के अंदर आकर उसका दरवाज़ा लॉक कर दिया, और कुछ देर तक फूली साँसों से हाँफता रहा। उसने जब बेड पर देखा, तो रोहित वहाँ से गायब था।
"रोहित...ए रोहित, रोहित कहाँ है तू?" समीर जो पहले से ही थरथर काँप रहा था, रोहित को कमरे में ना पाकर और भी ज़्यादा डर गया।
उसने पूरे कमरे में, एक-एक पर्दे के पीछे और बेड के नीचे, हर जगह रोहित को खंगाल डाला। जब अचानक ही उसकी नज़र कमरे की दीवार पर गई, तो वह शॉक हो गया। रोहित किसी लिजर्ड की तरह ऊँची दीवार पर उल्टा चिपका हुआ था, और उसके मुँह में एक छिपकली फँसी फड़फड़ा रही थी, जिसे रोहित खा रहा था।
"रोहित!" समीर के मुँह से निकला। जब रोहित ने समीर की तरफ़ हँसते हुए देखा और अपने मुँह में फँसी छिपकली हाथ से निकालकर उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए बोला:
"खाएगा क्या? बहुत मज़ेदार है!"
"रोहित, तू यह क्या कर रहा है?" समीर कुछ बोलने की कोशिश तो कर रहा था, पर उसकी आवाज़ हल्की सी ही धँसकर रह गई थी। अब वह डर के साथ-साथ रो भी रहा था, और सारा बदन पसीने से तर-बतर, थरथर काँप रहा था।
वह जल्दी से कमरे से बाहर निकलकर वापस कोरिडोर की दूसरी दिशा में भागा। और वह भी थोड़ी ही दूर गया था, जब सामने से ही निकिता भी दौड़ती हुई उसे उसके पास आती दिखाई दी। निकिता को देखकर समीर भी उसकी तरफ़ जल्दी-जल्दी बढ़ा, और खुद निकिता भी दौड़ते हुए समीर के पास आ गई।
निकिता घबराई हुई सी आकर फ़ौरन समीर के गले लग गई। "समीर, समीर, मुझे बचा लो! वहाँ पर...समीर, वहाँ पर कोई है...मेरे कमरे में कोई है, मुझे बहुत डर लग रहा है!"
निकिता ने डरी-सहमी, हाँफती हुई आवाज़ में कहा। जिसे समीर अच्छे से समझ चुका था कि शायद निकिता ने भी कुछ ऐसा ही देखा होगा, जो उसने देखा है। और यही सोचकर उसने निकिता को अपने आप से दूर नहीं किया, और निकिता उसके गले से लिपटी हुई रोती रही।
"निकिता, हम यहाँ से चले जाएँगे। तुम बिलकुल भी मत डरो। देखो...देखो, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ, निकिता, मैं..."
इससे पहले समीर कुछ और कह पाता, कि उसे लगा जैसे निकिता ने उसकी गर्दन में अपने दाँत गाड़ दिए हैं, और वह उसका खून गरम कॉफ़ी की तरह पीती जा रही है। समीर को दर्द महसूस हुआ, और झटका भी लगा। कि क्या निकिता ने सच में उसे शिकार बनाया है? तो क्या यह भी कोई साधारण लड़की नहीं?
और आगे..........
कौन थी निकिता? 🤔🤔😇
निकिता ने कहा, "निकिता हम यहां से चले जाएँगे। तुम बिल्कुल भी मत डरो। देखो... देखो मैं हूँ ना तुम्हारे साथ निकिता मैं...!!"
इससे पहले समीर कुछ और कह पाता, उसे लगा जैसे निकिता ने उसकी गर्दन में अपने दांत गड़ा दिए हों और वह उसका खून गर्म कॉफी की तरह पीती जा रही हो। समीर को दर्द महसूस हुआ और झटका भी लगा। क्या निकिता ने सच में उसे शिकार बनाया था? क्या यह कोई साधारण लड़की नहीं थी?
निकिता ने समीर की गर्दन में अपने दांत गड़ा दिए थे। यह महसूस करते ही समीर ने निकिता को खुद से दूर झटक दिया और मारे दर्द और हैरत के अपनी गर्दन को दोनों हाथों से पकड़ ली। सामने खड़ी निकिता को देखकर वह घबराकर दो कदम पीछे हट गया। वह लड़की अब निकिता नहीं, बल्कि कोई और थी, जो दुल्हन के रूप में खड़ी उस पर हँस रही थी।
"तू... तुम कौन हो? निकिता, निकिता नहीं हो तुम। तुम हो कौन? और निकिता कहाँ है?"
समीर ने उस लड़की को देखा। वह पूरी तरह से दुल्हन बनी हुई थी: लाल जोड़ा, मांग में सिंदूर, लाल चूड़ा, फुल ज्वेलरी। पहले वह दिखने में एक नॉर्मल लड़की लग रही थी, लेकिन उसके दांतों में अभी भी खून लगा हुआ था, जो उसने समीर का पिया था। उसके मुँह के दोनों किनारों से भी खून टपक रहा था।
"मैं ही तो हूँ निकिता!" वह लड़की गुर्राते हुए ठहाका मारकर हँसी। "मैं डायन नहीं हूँ, निकिता ही तो हूँ ना।"
"नहीं, यह नहीं हो सकता। तुम सच नहीं हो। जाओ, चली जाओ यहाँ से। तुम निकिता नहीं हो... नहीं!"
समीर ने इस बार अपने कानों पर हाथ रखकर आँखें मूँद लीं और जोर से चिल्लाया। दो पल के लिए चारों ओर गहरा सन्नाटा फैल गया। काफी देर बाद जब समीर ने आँखें खोलीं, तो उसने खुद को अपनी गाड़ी में पाया।
उसके हाथों में गाड़ी का स्टीयरिंग था और वह ड्राइव कर रहा था। उसकी चीख सुनकर रोहित, जो उसके साथ बैठा हुआ था, ने फौरन ही समीर का हाथ पकड़ लिया। पीछे बैठे निकिता और रोनी भी समीर की तरफ झुक गए।
"क्या हुआ समीर? तू चीखा क्यों?" रोहित ने हैरानी से पूछा।
"हाँ, बोलना समीर, क्या हुआ तुझे?" निकिता और रोनी भी परेशान होकर बोले।
तीनों ही एक साथ समीर से सवाल पर सवाल कर रहे थे। पर समीर, पसीने से तर, भौचक्का सा, खौफज़दा नज़रों से उन तीनों को देख रहा था, मानो सालों बाद उनसे मिला हो और वह उन्हें पहचान नहीं पा रहा हो।
डरी-सहमी नज़रों से गाड़ी के चारों तरफ देखने के बाद समीर खुद को भी खंगालने लगा। जल्दी-जल्दी से उसने अपने हाथ, पैर, और अपनी गर्दन को छूकर स्पर्श किया। जब उसे यकीन हो गया कि वह ठीक है और अपने दोस्तों के साथ गाड़ी में है, तो उसने लंबी-लंबी गहरी, सुकून भरी साँसें लेनी शुरू कर दीं।
समीर को सब नॉर्मल लगा। यह एक सपना ही लगा। पर अपनी गर्दन पर कटे सा निशान और दर्द महसूस हुआ। वह ठिठक गया। उसे अब कुछ अलग ही अंदाजा हुआ। कई सवाल उसके मन में उमड़ आए। उसके घर में, उसके बेडरूम में, जो उसे मीरा का सपना आया था, वह सपना कैसे हो सकता था? जब इस वक्त वह गाड़ी में ड्राइव करते हुए भी उन्हीं ख्यालों में चला गया था। अगर वह तब अपने रूम में सोया हुआ था और उस वक्त वह सपना ही था, तो अभी, इस वक्त जो उसने देखा वह क्या था? अब तो वह सोया भी नहीं होगा ना? फिर यह ख्याल सपना बनकर उसके सामने कैसे आ गया?
समीर खुद से ही खुद पर सवालों की बौछार कर रहा था, पर जवाब उसके पास एक भी नहीं था। वह घबराया हुआ सा, कभी अपने हाथों से अपना सर रगड़ डालता, तो कभी चेहरा। उसके तीनों दोस्त अब भी उसकी ओर एकटक देख रहे थे, जैसे वह समीर के बोलने का इंतज़ार कर रहे हों और उन्हें अपने सवाल का जवाब चाहिए हो।
"अरे ये समीर, बोलना क्या हुआ तुझे? तू इतनी तेज़ चीखा क्यों?" रोहित ने इस बार समीर का हाथ पकड़कर हिलाते हुए पूछा।
"समीर, अब कुछ बोलेगा भी तू? क्या हुआ तुझे?"
"नहीं, कुछ नहीं। मैं ठीक हूँ।"
रोनी ने एक बार फिर से पूछा तो समीर ने उसे टालते हुए कहा और अपनी झेंप छिपाने को फौरन ही गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी।
"आई थिंक मुझे लगता है कि इसने कोई सपना देखा है, तभी यह डर गया।" निकिता ने कुछ सोचते हुए आराम से कहा।
"व्हाट... क्या बात करती हो निकिता? जागते हुए भी कोई सपना देख सकता है क्या? वह भी गाड़ी चलाते वक्त? इम्पॉसिबल!" रोनी ने निकिता की बातों पर तर्क रखा। "तुम भी ना निकिता, पागल ही हो शायद!!"
"क्या हुआ समीर? बोल यार, कुछ बताएगा भी तू?"
"ओह गॉड, रोहित! स्टूपिड यार! कहा ना मैंने, कुछ नहीं हुआ है। आई एम फाइन। मैं तो बस मीरा के बारे में सोच..." समीर ने झल्लाहट में रोहित और पीछे बैठे निकिता और रोनी को डाँट दिया।
समीर जो मीरा के बारे में कुछ कहते-कहते अचानक चुप हो गया। उसके मुँह से मीरा का नाम सुनकर निकिता ने उसका मज़ाक बनाते हुए हँसकर कहा, "देखा, मैंने कहा था ना यह मीरा का सच्चा आशिक लगता है। क्योंकि यह उसके लिए कुछ ज़्यादा ही बेचैन लग रहा है।"
निकिता की बात पर समीर ने उसे घूरा। निकिता हँसते हुए पास बैठे रोनी से बोली, "मुझे लगता है तुम्हारा यह दोस्त उस वीडियो वाली मीरा को बहुत ज़्यादा पसंद करने लगा है। तभी तो सोते-जागते, उठते-बैठते उसके ही ख्यालों में खोया हुआ है। और अभी भी ज़रूर यह अपनी जागती आँखों से अपनी प्यारी-प्यारी मीरा के ही सपने देख रहा था।"
"ए लड़की! अगर तुम एक बार बोलना शुरू कर देती हो तो चुप होने का नाम क्यों नहीं लेती? इतना ज़्यादा बोलने की ज़रूरत नहीं है। चुपचाप बैठो, नहीं तो गाड़ी से बाहर फेंक दूँगा अभी, समझी तुम?" समीर ने गुस्से में निकिता को घूरकर देखते हुए डाँटती नज़रों से कहा।
"व्हाट? तुम मुझे गाड़ी से बाहर फेंकोगे? तुम्हारी इतनी हिम्मत? मैं तुम्हारा सर फोड़ दूँगी। बहुत देर से मैं चुप हूँ तो तुमको लगता है मैं..."
"क्या? क्या कहा? चुप? तुम और वह भी चुप हो... हा हा हा... कहाँ से चुप हो तुम? कब से तो शायद बातों के बीच तुमने साँस लेना भी गवारा नहीं समझा है। इतना चबड़-चबड़ जो करती हो?" निकिता की बात काटकर अब समीर ने उसे मुँह चिढ़ाते हुए उस पर तंज कसा।
और अब उन दोनों का युद्ध बस शुरू ही हो चुका था। रोहित, रोनी दोनों खामोशी से कभी निकिता को देखते, तो कभी समीर को।
"क्या कहा? मैं चबड़-चबड़ करती हूँ तो तुम क्या करते हो? एंग्री बर्ड की तरह हर वक्त मुँह फुलाए, गुब्बारे से बस फटने को ही तैयार बैठे रहते हो। उसका क्या?"
"देखो निकिता, मैं तुमसे कोई मशवरा तो नहीं ले रहा ना? फिर तुम यह अपनी फ़िज़ूल राय, मशवरे अपने पास ही रखो ना। वैसे भी जब तक कोई माँगे ना, उसे फ़्री में कोई राय नहीं देनी चाहिए... समझी तुम?"
"क्या कहा मैं...?" निकिता कुछ और बोलते-बोलते रुक गई और समीर को घूरते हुए उससे मुँह फेरकर बैठ गई।
अब समीर ने भी उसे देखे बिना नाराज़गी से कहा, "गुड गर्ल। अब पिररे रास्ते प्लीज़। तुम ऐसे ही रहना। अब रास्ते भर फूली हुई सी, कम से कम दो पल को शांति तो मिलेगी हम सबको तुम्हारी बकवास बातों से।"
"अरे समीर यार, तू इतना गुस्सा क्यों करता है? निकिता तो मज़ाक कर रही थी। बस जस्ट चिल ब्रो?" रोहित थोड़ा शांत आवाज़ में बोला। यह समीर को और भड़का गया।
"क्या मैं तुम लोगों को इस वक्त मज़ाक की हालत में लगता हूँ? मैं परेशान हूँ और उसे मज़ाक की पड़ी है, बड़बोली कहीं की?" समीर ने बारी-बारी से उन तीनों को घूरते हुए कहा।
"अच्छा अच्छा, ठीक है। पर तू टेंशन मत ले। हम तेरी प्रॉब्लम ज़रूर सॉल्व करेंगे। हम मीरा को ढूँढ लेंगे और तेरे पीछे वह क्यों पड़ी है यह जानकर ही रहेंगे बस।" रोहित ने अब हौले से समीर के कंधे पर हाथ रखकर उसे समझाया।
"अरे यार समीर, गाड़ी रोक दे। रात हो रही है। हम यहीं किसी रिसॉर्ट वगैरह में रुक जाते हैं। कोई कमरा लेकर रात काटते हैं और फिर सुबह होकर निकल जाएँगे।" इस बार रोनी ने बात बदलने के लिए और माहौल चेंज करने की खातिर जल्दी से अपनी राय पेश की।
"यह सही रहेगा समीर। वैसे भी रात में तू ड्राइव नहीं कर पाएगा और मुझे भी नींद आने लगती है। तो ऐसा करते हैं, कहीं रुक ही जाते हैं अब?"
रोनी के कहते ही समीर को अपना वही अभी कुछ देर पहले बीता सपना याद आ गया और वह फौरन नहीं में सर हिलाते हुए बोल उठा, "रोनी, हम कहीं नहीं रुकेंगे... ना तो मुझे नींद आ रही है और ना ही मैं थका हुआ हूँ। मैं रात में भी गाड़ी चला सकता हूँ। पर कहीं रुकने का तो सोचना भी मत!"
रोनी की बात काटता हुआ समीर एकदम से बोल उठा। जैसे वह कहीं रुकना नहीं चाहता था। उसे डर था कहीं उसका सपना इसके साथ-साथ उसके दोस्तों के लिए भी कोई मुसीबत ना ले आए।
समीर ने गाड़ी लाकर एक ढाबे पर रोकी और कोई कुछ पूछता इससे पहले वह खुद ही बताने लगा, "चलो यहीं पर कुछ खा-पी लेते हैं और उसके बाद फिर से हम अपनी मंजिल की ओर निकलेंगे। ज़्यादा टाइम नहीं है मेरे पास।"
और आगे…......………
समीर ने गाड़ी एक ढाबे पर रोक दी थी। कोई कुछ पूछता इससे पहले ही वह खुद बोलने लगा, "चलो यहीं पर कुछ खा-पी लेते हैं और उसके बाद फिर से हम अपनी मंजिल की ओर निकलेंगे। ज्यादा टाइम नहीं है मेरे पास।"
"समीर, तू पागल हो गया है क्या यार? रात में भला कैसे ड्राइव करेगा तू?" रोनी ने कहा।
"रोनी, प्लीज! मैंने कहा ना, हम कहीं नहीं रुकेंगे। बस नहीं रुकेंगे।" समीर ने रोनी की बात काटते हुए गाड़ी का दरवाजा खोलकर बाहर आ गया। रोहित और रोनी भी बाहर निकल आए, पर निकिता गाड़ी में ही बैठी रही। समीर झल्लाहट में अपने बालों में हाथ फिराने लगा। वह निकिता से कुछ कहना चाहता था, पर बस शराफत से बोला, "मिस निकिता जी, आपको क्या अलग से इनविटेशन देना पड़ेगा? आप भी आ जाइए बाहर और चलकर हमारे साथ कुछ अन्न ग्रहण कर लीजिए?" समीर ने दांत पीसते हुए, अपने हर शब्द पर जोर दिया था।
रोहित ने समीर को घूरते हुए चुप रहने का इशारा किया और फिर निकिता से पूछा, "निकिता, तुम अभी भी गुस्सा हो क्या? चलो ना?"
रोहित ने काफी अच्छे से कहा था। निकिता ने बच्चों की तरह सिर हिलाकर मना कर दिया, "नहीं, मैं गुस्सा नहीं हूँ, लेकिन मैं खाना खाने नहीं आऊंगी। नेवर!"
निकिता की आवाज में घबराहट थी। तीनों उसे ध्यान से देखने लगे। अभी तक जो चहक रही थी, वह अब घबरा रही थी।
"अरे क्या बात है निकिता? अभी तो तुम बहुत उछल-कूद रही थीं, और अब क्या हुआ?" रोनी ने निकिता के चेहरे के रंग को देखते हुए पूछा। निकिता ने जबरदस्ती एक झूठी मुस्कान दी, "नहीं तो रोनी, ऐसा कुछ नहीं है। मैं ठीक हूँ, बस मुझे भूख नहीं है। तुम तीनों जाकर ढाबे से कुछ खा आओ, मैं यहीं गाड़ी में तुम लोगों का वेट करती हूँ।" निकिता की मुस्कान बता रही थी कि वह समीर के कहने पर गाड़ी से बाहर आने को लेकर घबराई हुई थी।
निकिता किसी चीज़ से खुद को छिपाना चाहती हुई गाड़ी के और भी अंदर की ओर जाने लगी।
"निकिता, आर यू श्योर? तुम्हें सच में भूख नहीं लगी है? देखो, मैं आगे और कहीं गाड़ी नहीं रोकूँगा। जो भी खाना है, अभी खा सकती हो तुम।" समीर ने अपनी आवाज में नरमाहट लाते हुए, फिक्रमंदी से पूछा था। आखिर निकिता उसकी साथी थी, और उसकी जिम्मेदारी भी। समीर लड़कियों की रिस्पेक्ट करता था, और निकिता उसकी मदद कर रही थी। वह निकिता के एकदम पास आकर पूछा, जिस पर निकिता ने फिर से साफ़ इंकार कर दिया।
"देखो निकिता, मैं बता रहा हूँ तुम्हें, मैं कहीं भी अब वापस गाड़ी नहीं रोकूँगा।"
"मैं रुकवाऊंगी भी नहीं। मुझे भूख नहीं लगी है, रियली।"
"ओके फाइन, तो तुम बैठो अकेली भूखी रहो। मुझे क्या? हम अभी आते हैं।" समीर आगे चला गया, पर रोहित और रोनी निकिता के पास ही खड़े रहे।
"क्या बात है निकिता? तुम बाहर आने से क्यों घबरा रही हो? अगर तुम्हें ढाबे में नहीं आना, तो बोलो। मैं यहीं खाना लेकर आ जाऊँ तुम्हारे लिए। तुम्हें भूख तो लगी ही होगी ना, मैं जानता हूँ।" रोहित ने रोनी की तरफ देखते हुए, निकिता से फिर पूछा। निकिता ने उसी तरह बनावटी मुस्कान से बोला, "तुम दोनों जाओ। मुझे कुछ नहीं खाना, प्लीज!"
निकिता ने जानबूझकर बेपरवाही दिखाते हुए कहा और पीछे की सीट पर लेट गई।
समीर के पीछे रोहित और रोनी भी चले गए। तीनों ढाबे से खा-पीकर वापस आए तो शॉक में थे, क्योंकि गाड़ी से निकिता गायब थी।
"अबे ये निकिता... निकिता कहाँ चली गई? ये तो अभी यहीं, यहीं पर थी ना?" समीर के मुँह से अचानक निकला। तीनों घबराए हुए निकिता को ढूँढ रहे थे।
तीनों उसे जोर-जोर से पुकार रहे थे, पर निकिता कहीं नहीं थी। तीनों अलग-अलग दिशाओं में फैल गए और घंटों बाद जब वो सब गाड़ी के पास इकट्ठा हुए, तो किसी के पास भी कोई जवाब नहीं था।
समीर ने अपने बालों को मुट्ठी में पकड़कर खींचते हुए कहा, "यार ये निकिता गई कहाँ? बताकर तो जाना चाहिए था ना उसे। ये लड़कियां ऐसी ही होती हैं, बस अपना देखती हैं। इसकी वजह से हम यहाँ कितना परेशान हैं और वो मैडम आराम से..."
रोनी ने आहिस्ता से कहा, "अरे यार, मैं तो पहले ही कह रहा था कि निकिता थोड़ी अपसेट है। देखा नहीं, जब हमने उसे खाने के लिए बुलाया था, तो उसने कितनी जल्दी इंकार किया था, और जैसे डर सी गई थी।"
"तो तू कहना क्या चाहता है रोनी? मैं यहाँ उसकी प्रॉब्लम सॉल्व करूँ या अपनी परेशानी?" समीर ने रोनी को डाँट दिया, "उसे कोई प्रॉब्लम होती तो बताना चाहिए था ना उसे। हम कौन सा सपना देख रहे हैं उसकी प्रॉब्लम का?"
"कहीं वो लड़की किसी ब्यूटी पार्लर वगैरह तो नहीं चली गई? अक्सर लड़कियाँ ब्यूटी पार्लर देखकर ही पागल सी हो जाती हैं।" रोहित ने मानो कोई सलूशन निकाला, पर उसकी बात पर रोनी और समीर ने उसे इस तरह घूर कर देखा कि उसने अपने होठों पर हाथ रख लिया, "स...सॉरी, मैं तो ऐसे ही कह रहा था!"
"तू ऐसे ही मत कहा कर। मुँह बंद रख अपना, ओके, प्लीज।" समीर ने कहा और अपने माथे पर हाथ फिराते हुए इधर-उधर देखने लगा, "शिट यार, ये कहाँ जा सकती है?"
"वही तो, मुझे तो ये सोचकर टेंशन हो रही है कि इसके घर वाले हम लोगों को ही बोलेंगे। आखिर निकिता हमारे साथ ही आई थी, तो हमारी जिम्मेदारी थी और हमने उसे..."
रोनी अपनी बात पूरी कर पाता कि समीर उस पर भड़क उठा, "तो क्या हमने जानबूझकर उसे खो दिया? वो कोई छोटी मासूम बच्ची है या फिर कोई सामान जो यहाँ पर रखी थी और कोई उठाकर ले गया? तीखी मिर्ची सी तो है रोनी, तूने देखा नहीं क्या कितनी तेज तर्रार लड़की है ये?"
"समीर, तू कुछ भी कह ले, पर निकिता अगर नहीं मिली तो हम उसके घरवालों को कैसे फेस करेंगे यार?" रोहित ने समीर से कहा। समीर उसकी तरफ पलटते हुए टेंशन से बोला, "हाँ तो मैं खुद इतनी टेंशन में हूँ रोहित, मैं क्या करूँ? मैं अपनी प्रॉब्लम की वजह से किसी दूसरे को नुकसान पहुँचते नहीं देख सकता। अगर निकिता को कुछ हो गया तो मैं कौन सा खुश रहूँगा यार? वो हमारी नहीं, रोहित, सिर्फ़ मेरी जिम्मेदारी है, क्योंकि वो मेरे काम से यहाँ आई थी और मैंने उसे..."
समीर भावुक हो गया था, और उसकी आवाज गले में ही फंस गई। "लेकिन वो ऐसे कैसे कर सकती है? बिना बताए कहीं जा कैसे सकती है? बोलकर जाना था ना। लड़की है, कितना भी स्ट्रांग हो पर अकेली तो है ना?"
और आगे….....…
समीर भावुक हो गया था, उसकी आवाज़ गले में फंस गई। "लेकिन वह ऐसे कैसे कर सकती है? बिना बताए कहीं जा कैसे सकती है? बोल कर जाना था ना? लड़की है, कितना भी स्ट्रांग हो पर अकेली तो है ना?"
तीनों एक-दूसरे को समझाते रहे। फिर, दूसरी-दूसरी चारों दिशाओं में निकिता को ढूँढने निकल पड़े। काफी देर तक इधर-उधर घूमने के बाद, वे सब अपनी गाड़ी के पास आकर जमा हुए थे। इस बार भी तीनों के पास कोई जवाब या अच्छी खबर नहीं थी।
समीर ने अपने सर के बालों को मुट्ठी से पकड़कर खींचते हुए झल्लाहट में कहा, "गॉड, ना तो निकिता का फोन लग रहा है और ना ही वह यहां कहीं दूर-दराज तक दिखाई दे रही है। यार, कहाँ जा सकती है? मुझे तो अब टेंशन हो रही है उसकी?"
"सुन समीर, ऐसा करते हैं हम अभी कोंडी गाँव के लिए चलते हैं। आखिर वहाँ हमें कितना टाइम लगेगा? हम जल्द से जल्द वहाँ से लौटने की कोशिश करेंगे। तेरी प्रॉब्लम सुलझते ही हम निकिता को यहीं से एक बार फिर ढूँढने निकलेंगे और वापस उसे उसके घर पहुँचाकर ही रहेंगे।" इस बार रोहित ने उन दोनों को समझाते हुए अपनी मन की बात रखी थी जो उन दोनों को भी पसंद आई थी।
समीर ने सोचते हुए कहा, "हाँ, आई थिंक ऐसा ही हो। निकिता को कुछ हो ना, बस यही चाहता हूँ। कितनी भी ओवरकॉन्फिडेंस लड़की है और कितना भी उसमें ईगो है, पर है तो आखिर हमारी साथी ही। और जब वह हमारी वजह से इस तरह से गायब हुई है तो उसे ढूँढना भी हमारा ही फ़र्ज़ है।"
"हाँ, तो फिर चल, चलते हैं हम कोंडी गाँव और फिर वापस यहीं इसी जगह से आकर शुरूआत करेंगे निकिता को ढूँढने की।" तीनों ने मिलकर एक फैसला लिया और निराश मन से वापस गाड़ी में बैठ गए।
इस बार भी गाड़ी समीर ही ड्राइव कर रहा था, रोनी और रोहित पीछे बैठे थे। रात हो रही थी, इसलिए पीछे बैठे रोहित और रोनी को झपकियाँ आने लगी थीं। लेकिन समीर की नींद उड़ी हुई थी। एक तरफ़ थी मीरा और उसका भयानक सपना, तो दूसरी तरफ़ निकिता का यूँ गायब हो जाना।
रोनी और रोहित को भले ही निकिता का खो जाना खल रहा था, लेकिन समीर का दिमाग कहीं और ही चल रहा था। आखिर निकिता कैसे गायब हो सकती है? अगर वह अपनी मर्ज़ी से कहीं गई है तो क्यों? क्योंकि कुछ भी हो, वही तो है उसके सपनों की वह डरावनी मीरा जो उसे चैन नहीं लेने देती और आज जब वह मिली भी तो इस तरह गायब हो गई?
समीर की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। वह तरोताज़ा सा गाड़ी चला रहा था। कुछ देर बाद, सुनसान रास्ते पर फ़ुल स्पीड में गाड़ी दौड़ाते हुए, उसने कोंडी गाँव के रास्ते पर गाड़ी डाली। उन्हें एक घने जंगल से होकर गुज़रना पड़ा।
रात काली थी। भयानक सा बड़ा जंगल और चारों तरफ़ काला सन्नाटा पसरा था। रात और भी ज़्यादा सुनसान लग रही थी। रोहित और रोनी पीछे बैठे ऊँघ रहे थे। जब समीर ने एकदम से गाड़ी को ब्रेक मारा, तो वे दोनों एक झटके में गाड़ी से इधर-उधर टकराकर नींद से हुई अधखुली आँखें खोलते हुए होश में आ गए।
"क...क्या हुआ समीर?" रोनी ने आँखें मलते हुए पूछा।
"क्या बात है यार समीर? तूने ऐसे अचानक गाड़ी क्यों रोक दी?" रोनी के पूछने पर, समीर जो अब तक चुपचाप बैठा था, इस बार रोहित ने उसे पुकारा, "अरे, अब कुछ बोलेगा भी समीर? क्या हुआ? तूने गाड़ी यहाँ क्यों रोकी यार?"
"वह...वह देखो क्या है वह!" समीर ने अपनी अंगुली का इशारा गाड़ी के सामने किया। वहाँ पर एक लड़की गाड़ी के पास खड़ी थी, जो शायद अकेली थी और पैदल भी। इसलिए किसी गाड़ी का इंतज़ार कर रही थी या किसी से लिफ़्ट माँगने की कोशिश में थी। उस अनजान लड़की ने ही समीर की गाड़ी को हाथ दिखाया था, शायद?
गाड़ी रुकते ही वह लड़की धीरे-धीरे चलती हुई समीर के पास आई और दरवाज़े से अंदर झाँकते हुए समीर को देखकर बोली,
"जी, क्या मुझे सामने के गाँव तक लिफ़्ट मिल सकती है? प्लीज़, बहुत रात हो चुकी है और ऐसे में मैं अकेली कहाँ जाऊँगी? अभी कोई बस या टैक्सी भी नहीं मिल रही। मुझे बहुत देर से खड़ी हूँ।"
वह लड़की बोल रही थी और समीर उसे एकटक देख रहा था। वह पूरी तरह से दुल्हन के सजे-सँवरे लिबास में थी।
उस दुल्हन बनी लड़की को देखकर समीर को अपनी रिसोर्ट वाली वही दुल्हन याद आई थी जिसने निकिता बनकर उसका खून पिया था। समीर ने जल्दी से अपना सर झटक दिया और होश में आया जब उस लड़की ने उसके चेहरे के सामने हाथ लहराया।
"क्या सोच रहे हैं आप? लिफ़्ट देंगे या नहीं?" उस लड़की ने दुबारा पूछा।
समीर ने सर झटक दिया और जल्दी-जल्दी पूछा, "न...नहीं, नहीं, कुछ नहीं। आप कहाँ...कहाँ जाना चाहती हैं?"
"जी, बस यही पास के गाँव कोंडी तक।"
"क्या? कोंडी गाँव? अरे, वही तो हम भी जा रहे हैं!" इस बार समीर से पहले रोनी ने कहा, "चलिए, हम आपको छोड़ देंगे। आपकी हेल्प हो जाएगी।"
"वाह, यह तो अच्छी बात है।" उस लड़की ने रोनी को देखा और फिर रोहित को, जो उसे ही देख रहे थे। जिस वजह से उस लड़की ने थोड़ा अनकम्फ़रटेबल ज़ाहिर किया और समीर की तरफ़ देखने लगी जो चुप था।
"जी, बोलिए क्या आप मुझे अपनी गाड़ी में लिफ़्ट देंगे, प्लीज़?"
उस लड़की ने एक बार फिर सवाल किया तो समीर ने हाँ में गर्दन हिलाई और गाड़ी का फ़्रंट डोर उसके लिए खोल दिया।
"आ...आइए, बैठ जाइए।" समीर ने कहा तो वह लड़की हँसती हुई आकर गाड़ी में बैठ गई।
उस लड़की के बदन से फैल रही खुशबू से समीर और पीछे बैठे रोहित और रोनी तीनों ही अपना आपा खो बैठे थे।
वह दुल्हन के लिबास में, मोगरे के फूल से सजी एक नई-नवेली दुल्हन थी। लाल जोड़े में उसकी खूबसूरती और भी निखर रही थी। जेवर से सजी वह लड़की इस वक़्त बेहद प्यारी लग रही थी। जिसे देखकर कोई भी मचल जाता और उसे हासिल करने की कोशिश करता। कोई भी उसकी खूबसूरती पर फ़िदा हुए बिना ना रह पाता। लेकिन समीर ने उससे नज़रें फेरीं और वापस गाड़ी स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।
अभी थोड़ी ही देर हुई थी और थोड़ा रास्ता ही कटा था जब उस लड़की ने हँसते हुए मुड़कर रोहित और रोनी को देखा। जैसे उन दोनों को रिझाने की कोशिश कर रही थी और अपनी मुस्कराहट से उन्हें अपनी तरफ़ आकर्षित करना चाह रही थी। उसने बड़े ही नखरे और अदाओं से उन दोनों को कातिल सी नज़रों से देखा था, जिस पर वे दोनों घायल तो हुए थे, पर एक पल में ही संभल भी गए।
जब उस दुल्हन बनी लड़की को लगा कि उसकी खूबसूरती और खिंचाव का उन दोनों पर कोई असर नहीं हो रहा, तो वह मुँह टेढ़ा करते हुए चिढ़कर वापस आगे देखने लगी। फिर दबी मुस्कान से धीरे-धीरे समीर के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। उस लड़की की छुअन से समीर की पूरी बॉडी में एक सिहरन सी उठी और उसने झटके से अपना हाथ पीछे खींच लिया।
"यह...यह क्या कर रही हैं आप?" समीर ने झटके से चौंककर और थोड़ी तेज आवाज़ में कहा। जिस पर वह लड़की उछल कर चौंक गई।
"सा...सॉरी...सॉरी, वह मैंने देखा नहीं। गलती से आपको मेरा हाथ टच हो गया।" उस लड़की ने साफ़ झूठ बोला था। अब उसे जैसे अंदर से एहसास हुआ था कि ये तीनों उसके हाथ नहीं आएंगे। तो चुपचाप खिड़की से टेक लगाकर बैठ गई। वही पीछे बैठे रोहित और रोनी फिर से नींद की आगोश में चले गए थे और समीर गाड़ी ड्राइव करता रहा।
घंटों का सफ़र मिनटों में पूरा करके समीर ने गाड़ी कोंडी गाँव की सीमा पर लाकर रोकी। जहाँ पर बड़ा सा गेट लगा हुआ था और बोर्ड पर बड़े-बड़े शब्दों में लिखा था, "कोंडी गाँव में आपका स्वागत है।" समीर के गाड़ी रोककर बाहर निकलते ही रोनी और रोहित भी गाड़ी से बाहर आए और उसके साथ ही खड़े बोर्ड को देख रहे थे। लेकिन यह क्या...?
उन तीनों ने एक-दूसरे को देखा और फिर गाड़ी के अंदर देखा। ना तो वह दुल्हन बनी लड़की गाड़ी से बाहर आई थी और ना ही अब गाड़ी के अंदर थी। वह लड़की जैसे एक पल में छूमंतर हो गई थी। जहाँ उसका नामोनिशान भी नहीं था अब।
"अरे यह लड़की...लड़की कहाँ गई?" रोनी ने गाड़ी पर झुकते हुए पूरी गाड़ी का चप्पा-चप्पा खंगाल डाला था। वह उस लड़की को किसी छोटी सी सुई की तरह ढूँढ रहा था पर वह थी ही नहीं।
"अरे, ऐसा कैसे हो सकता है यार? वह तो अभी यहीं पर थी ना?" रोहित भी रोनी के साथ-साथ पूरी गाड़ी में उस लड़की को ढूँढता हुआ बोला।
"यह क्या हो रहा है? मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा। मेरा तो अब सर चकराने लगा है। मैं क्या करूँ, क्या बोलूँ?"
रोहित हैरानी से वहीं गाड़ी के पास जमीन पर बैठ गया था। जब रोनी भी गाड़ी के टेक लगाकर अपने माथे पर हाथ रगड़ते हुए खुद से ही बोला,
"एक लड़की जो हमारे साथ आई थी, वह बीच रास्ते में गायब हो गई। दूसरी लड़की जो हमें बीच रास्ते में मिली, वह यहाँ मंज़िल तक आने के बाद गायब हो गई?" रोनी अपने आप से कहते हुए अब समीर से बोला।
और आगे..........
अब कौन नई लड़की आ गई.......😇
यह क्या हो रहा है? मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा। मेरा सर चकराने लगा है। मैं क्या करूँ? क्या बोलूँ? रोहित हैरानी से वहीं गाड़ी के पास जमीन पर बैठ गया था। जब रोनी भी गाड़ी के टेक लगाकर अपने माथे पर हाथ रगड़ते हुए खुद से ही बोला,
"एक लड़की जो हमारे साथ आई थी, वह बीच रास्ते में गायब हो गई। दूसरी लड़की जो हमें बीच रास्ते में मिली, वह यहां मंजिल तक आने के बाद गायब हो गई?"
रोनी अपने आप से कहते हुए अब समीर से बोला,
"समीर... समीर यार, कहीं हम लोगों ने गलत कदम तो नहीं उठा दिया? यार, और कोई जाल हो जिसमे हम फँसते ही जा रहे हों?"
रोनी ने डरी आँखों से समीर की तरफ देखा था। जो खुद गाड़ी की बोनट से टेक लगाए अब तक हैरान खड़ा था।
रात छट रही थी। जिससे सुबह की चांदनी चारों ओर फैलने लगी और पेड़ों से छनकर आती हुई मीठी-मीठी धूप उन पर पड़ने लगी थी। पर समीर कुछ भी बिना नोट किये अपने ही ख्यालों में खोया हुआ बैठा था। आखिर वह लड़की उसके साथ ही तो बैठकर आई थी और अब समीर के गाड़ी से बाहर आते ही वह लड़की गाड़ी में बैठे-बैठे ही कहीं गायब हो गई थी। यह तो उसे और भी हैरान-परेशान कर गया था। उसका सर घूम रहा था कि क्या रोनी जो कह रहा है वह सच है? कहीं वह वाकई फँस तो नहीं रहा?
"कमीनों कहीं के! तुम लोग मुझे बीच रास्ते में अकेला छोड़कर चले आए!"
समीर सोच में डूबा बैठा रहा। और इससे पहले वह रोनी की बात का कुछ जवाब देता या फिर वह तीनों उस दुल्हन लड़की के लिए और ज्यादा परेशान होते, कि अचानक ही उनके पीछे से आई उस दूसरी आवाज ने उन तीनों को हिलाकर रख दिया था। और वह तीनों डर से एक-दूसरे से चिपक गए।
तीनों में से किसी की हिम्मत नहीं हुई थी कि वह पीछे पलटकर देखते। जबकि वह आवाज तो उन सभी को जानी-पहचानी ही लगी थी। तीनों के पीछे से आई उस लड़की की आवाज पर उन तीनों के होश उड़ गए थे। और वह डर से कांप उठे थे।
"बोलो, जवाब दो! मैंने कुछ पूछा है ना, जवाब दो! क्यों छोड़कर चले आए थे मुझे वहाँ बीच रास्ते में? एक तो तुम लोग मुझे घर से साथ लेकर आए और अब छोड़ दिया?"
वह लड़की, जो कोई और नहीं बल्कि निकिता थी, वह गुस्से में अब तिलमिलाती हुई खुद ही चलकर उन तीनों के सामने आ गई। और समीर को गुस्से में घूरते हुए बोली,
"खुद तो तीनों ने ढाबे में ठूंस-ठूंसकर खाना खाया और मुझ बेचारी को कुछ खिलाया भी नहीं। ऊपर से मुझे वहाँ अकेला छोड़कर भी चले आए?"
"निकिता तुम, तुम यहाँ, यहाँ कैसे, कैसे पहुँची तुम यहाँ? तुम तो...?"
समीर ने बोलने की कोशिश की थी, पर उसकी आवाज जैसे ठहरने सी लगी थी।
निकिता अब नाराजगी में मुँह टेढ़ा करके बोली,
"क्यों? मैं नहीं आ सकती थी क्या यहाँ? तुम लोगों ने मुझे बीच रास्ते में छोड़ दिया था, तो मैं खुद ही टैक्सी पकड़कर चली आई। और क्या करती?"
"लेकिन निकिता तुम इतनी जल्दी कैसे? तुम कैसे आई? वह भी हमारे साथ ही आ पहुँची, आई मीन तुम एकदम हमारे साथ-साथ ही यहाँ कैसे पहुँची हो?"
समीर को समझ नहीं आ रहा था वह क्या बोले और कैसे?
"मैंने टैक्सी पकड़ी और तुम लोगों की गाड़ी के पीछे-पीछे आ गई। और क्या? इसलिए तो एक साथ पहुँची हूँ।"
निकिता ने जैसे ही कहा था, अब उन तीनों ने उसे शक भरी नज़रों से देखा और एक साथ बोले,
"तुम कौन सी टैक्सी से आई हो निकिता? कहाँ है तुम्हारी टैक्सी?"
इस बार निकिता के पास कोई जवाब नहीं था। और वह बात बदलते हुए फ़ौरन बोली,
"अरे टैक्सी को मारो गोली! यह बताओ तुम लोग मुझे वहाँ छोड़कर कैसे आ गए?"
"हमने तुम्हें बहुत ढूँढा, लेकिन तुम नहीं मिली। तो हमें लगा शायद तुम....!!"
"शायद क्या? हाँ क्या? शायद मैं मर गई क्या? ये सोचा तुम लोगों ने?"
रोनी कुछ कहने ही वाला था, जिसकी बात काटकर निकिता भड़क उठी थी,
"एक लड़की को यूँ ही कोई बीच रास्ते में छोड़ देता है क्या? अगर मुझे कुछ हो जाता, तो जिम्मेदार कौन होता?"
"देखो निकिता, ज़्यादा इशू मत करो प्लीज़। हम वैसे ही परेशान हैं उस दुल्हन के गायब हो जाने से। और तुम हो कि फ़ालतू में.....!!"
समीर कुछ बोलते-बोलते एकदम से ही अपनी बात के बीच में चुप हो गया था। और जैसे कुछ ढूँढती नज़रों से यहाँ-वहाँ सब जगह देखता रहा।
"कौन सी दुल्हन? और कहाँ है?"
निकिता की नज़रों ने भी अब समीर की नज़रों का पीछा करते हुए अपने चारों तरफ़ इर्द-गिर्द देखा था। पर उसे कोई नहीं दिखाई दिया।
"तुम लोग कौन सी दुल्हन, कौन सी लड़की की बात कर रहे हो समीर?"
"उसे छोड़ो। तुम बताओ तुम कहाँ गई थीं? वह भी बिना मुझे बताए?"
समीर ने एक बार फिर से निकिता को गुस्से में घूरते हुए पूछा था। जिसके जवाब में निकिता सर झुका गई और इधर-उधर चेहरा फिराने लगी, जैसे कुछ बोलना नहीं चाह रही थी।
"यूँ इधर-उधर देखने की ज़रूरत नहीं है। मुझे बताओ तुम गाड़ी से कहाँ गायब हो गई थीं? पता है हम लोग कितना परेशान थे? कितना ढूँढा तुम्हें हमने?"
"वह मैं एक्चुअली समीर, मैं....!!"
निकिता कुछ बोलने वाली थी, जब समीर ने उसे टोक दिया,
"अच्छा यह बताओ तुम आई कैसे? और तुम्हें ऐसी कौन सी गाड़ी मिल गई या ऐसे कौन से प्लेन से उड़कर आई हो तुम जो हमारे यहाँ कदम रखते ही तुम भी हमारे साथ ही यहाँ आ धमकी? जबकि मुझे तो यहाँ आस-पास कोई भी टैक्सी या तुम्हें लिफ़्ट देने वाली कोई गाड़ी नज़र नहीं आ रही?"
समीर ने सवालिया नज़रों से निकिता को देखा था। जबकि समीर का दिमाग तो कहीं और ही घूम रहा था। उसे पहले ही निकिता का गायब हो जाना हज़ार सवालों में डाल गया था। और अब इस तरह से एकदम ही उसका उसके सामने आ जाना उसे और भी हैरान कर गया था, वह भी इस तरह से।
"छोड़ो ना समीर, जाने दो। मैंने कहा था ना, लड़की है, ब्यूटी पार्लर में रुक गई होगी और क्या?"
रोहित ने समीर को शांत करने के लिए कहा था। तो जैसे निकिता को भी कोई जवाब सूझा था। और वह जल्दी से चहककर चंचल आवाज़ में हँसते हुए बोली,
"हाँ वही तो! मैं ब्यूटी पार्लर ही तो गई थी। और तुम तीनों मुझे छोड़कर चले आए। अगर मैं मर जाती ना, तो तुम तीनों को बहुत मारती, पक्का बता रही हूँ, हाँ।"
"अच्छा, कैसे? भूत बनकर क्या?"
"या ऑफ़कोर्स भूत बनकर! वह भी डरावनी चुड़ैल आत्मा!"
रोनी की बात पर निकिता ने भी हँसते हुए तूनक कर कहा था। जो सुनकर समीर को और भी कहीं ना कहीं शॉकिंग, एक डेंजर सा झटका लगा था। लेकिन वह शांत ही बना खड़ा रहा। उसे ही पता था बस कि इस वक्त उसके मन में क्या चल रहा है?
भूत नहीं होते हैं। यह उसने हमेशा समझा था। और उसने तो खुद बचपन से यही जाना था कि भूत, प्रेत या आत्मा कुछ नहीं होते। लेकिन उसे कहाँ पता था कि भूत उसके पीछे कुछ इस तरह पड़ जाएगा कि उसे कुछ इस कदर यहाँ-वहाँ भटकना पड़ेगा? समीर ने अब ही तो जाना था, भूत की कहानियों को और सच्ची माना था। जिस पर दिल से यकीन भी कर लिया था। वह निकिता और रोहित, रोनी की बातों पर उन तीनों के चेहरे देखता रहा। पर वह जैसे वहाँ होकर भी नहीं हो। क्योंकि वह तो अपनी ही दुनिया, अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था ना।
और आगे…...….….…