शशांक ने जब से होश संभाला है तब से उसके सपनों में आती है एक लड़की और वह लड़की इतनी खूबसूरत है कि उसके जैसी लड़की शशांक ने आज तक पूरी दुनिया में कभी भी कहीं नहीं देखी। जबकि वह खुद एक मॉडलिंग एजेंसी कंपनी का हेड है और वहां पर एक से एक खूबसूरत लड़कियां... शशांक ने जब से होश संभाला है तब से उसके सपनों में आती है एक लड़की और वह लड़की इतनी खूबसूरत है कि उसके जैसी लड़की शशांक ने आज तक पूरी दुनिया में कभी भी कहीं नहीं देखी। जबकि वह खुद एक मॉडलिंग एजेंसी कंपनी का हेड है और वहां पर एक से एक खूबसूरत लड़कियां आती है लेकिन आज तक किसी भी लकड़ी पर शशांक की नजर नहीं टिकी और वह अपनी ही सपनों की रानी को रियल दुनिया में ढूंढ रहा है। तो क्या होगा एक दिन जब सच में उसका सपना हकीकत बंद कर परिधि के रूप में उसकी आंखों के सामने आ जाएगा और कौन है परिधि क्यों आती है वह शशांक के सपनों में और क्या है उन दोनों का कनेक्शन जानने के लिए पढ़िए... माय ड्रीम लव
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"रुको… सुनो, मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ। रुको भी… तुम मुझसे बात क्यों नहीं करती हो?"
आसमानी रंग के कपड़ों में एक लंबा-चौड़ा, गेहूंए रंग का, अच्छी पर्सनालिटी वाला लड़का, सुनहरे रंग के चमकदार कपड़े पहने एक सुंदर लड़की का पीछा कर रहा था। लड़की के काले, घने, लंबे बाल हवा में लहरा रहे थे। वह आगे की तरफ हँसते-मुस्कुराते हुए भाग रही थी।
वह एक बड़ी ही सुंदर जगह थी। वहाँ हरे-भरे छोटे-बड़े, हर तरह के पौधे थे। चारों तरफ हल्की धुंध थी। ठंडी हवाओं के साथ कई सारे खरगोश और गिलहरी इधर-उधर भाग रहे थे। वह जगह ऐसी लग रही थी मानो वह धरती नहीं, कोई अलग ही दुनिया है।
वह लड़का उस खूबसूरत लड़की का पीछा करता जा रहा था, और लड़की अदाओं के साथ उससे दूर भाग रही थी। लड़का उसे पुकार रहा था। तभी दौड़ते-दौड़ते वह हांफने लगा और घुटनों पर हाथ रखते हुए कहा,
"ठहर जाओ, मैं थक गया। अब और नहीं भाग सकता।"
उस खूबसूरत लड़की ने अपना सिर घुमाया। उसके लहराते बाल उसके मुँह पर आ गए। उसने अपने बालों को कान के पीछे किया और लड़के की तरफ देखकर मुस्कुराई।
उस लड़की की नीली, बड़ी-बड़ी आँखें, पतली-तीखी नाक, गोरा रंग और गुलाबी होंठों पर बड़ी सी मुस्कराहट थी। वह लड़की इतनी खूबसूरत थी मानो नूर उसके चेहरे से टपक रहा हो। आँखों में मासूमियत और चेहरे पर मुस्कराहट उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा रही थी।
उस लड़की को देखते ही लड़का दोबारा आगे बढ़ा। उसने उसे पकड़ने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया।
जैसे ही लड़के का हाथ लड़की के हाथ पर छुआ, वह लड़की वहाँ से गायब हो गई।
लड़के की आँखों के सामने धुआँ ही धुआँ हो गया। अचानक उसकी आँख खुली और वह बेड पर चिल्लाते हुए उठकर बैठ गया।
"नहीं…!"
उसने अपने गाल को थपथपाया। उसका पूरा चेहरा पसीने से भरा हुआ था। उसने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा,
"ओ गॉड! फिर से वही सपना! आखिर क्यों आता है मुझे बार-बार इस लड़की का सपना? कौन है यह लड़की? आखिर क्या मतलब है मेरे इस सपने का? इस तरह से बार-बार एक ही चीज को देखना, उस लड़की का बार-बार मेरे सपने में आना और मेरा उसके करीब जाते ही उसका यूँ गायब होना… आखिर इसका मतलब क्या है? आखिर कौन है यह लड़की?"
वह लड़का अपने सिर पर हाथ रखकर यह बात सोच ही रहा था कि तभी उसके बड़े किंग साइज़ रूम का दरवाज़ा खुला। उसने दरवाज़े की ओर देखा। एक अधेड़ उम्र की औरत अंदर आकर उसके पास बैठ गई और बोली,
"गुड मॉर्निंग बेटा!"
लड़के ने सामने बैठी औरत की ओर देखते हुए कहा,
"गुड मॉर्निंग मम्मा।"
उस लड़के की माँ ने कहा,
"मैं तुम्हें उठाने ही आ रही थी, लेकिन तुम तो पहले से ही उठ गए हो। चलो, रेडी होकर नीचे आओ। हम साथ में ब्रेकफास्ट करते हैं और कुछ बात भी करनी है।"
उसने हाँ में अपना सिर हिलाया और अधेड़ उम्र की औरत वहाँ से चली गई।
वह लड़का उठा और कुछ देर तक अपने सपने के बारे में सोचता रहा। काफी देर बाद रेडी होकर वह नीचे गया। उसे नीचे उतरते देख डाइनिंग टेबल पर बैठी एक लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा,
"गुड मॉर्निंग शशांक भैया।"
लड़के ने सिर्फ़ हाँ में अपना सिर हिलाया और चुपचाप उसके बगल वाली कुर्सी में आकर बैठ गया। सामने की चेयर पर एक 45 साल का आदमी बैठा था और वह अपना ब्रेकफास्ट करने में बिजी था।
उसने लड़के की तरफ़ देखते हुए कहा,
"शशांक, तुम्हारी मॉडलिंग एजेंसी कैसी चल रही है? मैंने सुना है कि तुमने अपनी मॉडलिंग एजेंसी के लिए कुछ नए मॉडल को हायर करने के लिए एडवर्टाइज़मेंट दी थी?"
लड़के ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा,
"यस डैड, एवरीथिंग इज़ फाइन। डोंट वरी, आई कैन हैंडल दिस।"
आदमी ने हाँ में अपना सिर हिलाया और सब एक साथ ब्रेकफास्ट करने लगे। तभी शशांक के सामने बैठी औरत ने उस आदमी से कहा,
"सुनिए जी, शशांक की बुआ शशांक के लिए कोई रिश्ता बता रही है…!"
शशांक ने जैसे ही अपनी माँ की यह बात सुनी, उसने उनकी तरफ़ देखते हुए कहा,
"क्या मम्मा, फिर से वही सारी बातें?"
शशांक की माँ ने उसे आँख दिखाते हुए कहा,
"मैं तुम्हारे डैड से बात कर रही हूँ शशांक!"
शशांक अपनी माँ की तरफ़ देख रहा था और वह कुछ बोलने ही जा रहा था कि तभी उसकी बहन ने उसका हाथ पकड़कर उसे चुप रहने का इशारा किया। वह कुछ देर के लिए चुप हुआ और अपने डैड की तरफ़ देखने लगा।
शशांक के डैड ने अपनी पत्नी की तरफ़ देखते हुए कहा,
"मालती जी, यह आप और सुधा के बीच की बात है। और वैसे भी हमें इस बात में शामिल ना करें तो ज़्यादा अच्छा होगा। जब तक आप लोगों को लड़की ढूँढनी है तो ढूँढिए। जब कोई लड़की पसंद आ जाए तब मुझे बताइएगा। अभी वैसे भी…"
शशांक के माँ-बाप आपस में बात ही रहे थे कि शशांक अब और उनकी बात नहीं सुन सकता था। उसने तेज़ी से अपना हाथ टेबल पर पटकते हुए कहा,
"बस! बहुत हुआ! मेरी शादी की बात हो रही है और कोई मेरी बात सुन ही नहीं रहा। मम्मा, मैं आपसे कितनी बार बोल चुका हूँ, मुझे अभी शादी नहीं करनी। और इस तरह से अगर आप रिश्तेदारों के कहने पर मेरे लिए लड़की ढूँढ रही हैं तो मैं आपसे साफ़-साफ़ बता दे रहा हूँ, मैं अभी शादी नहीं करूँगा। आप लोगों को जितनी लड़कियाँ देखनी हैं देख लीजिए।"
शशांक को इस तरह से गुस्से में चिल्लाते देखकर उसके डैड ने उसे घूरते हुए कहा,
"शशांक! बिहेव योरसेल्फ़! अपनी माँ से कोई ऐसी बात करता है? और मैंने तुमसे कितनी बार कहा है, अपने गुस्से को कंट्रोल किया करो! क्या तुम्हें मेरी बात समझ में नहीं आती?"
शशांक ने अपने डैड की तरफ़ देखा और अपने खाने की प्लेट टेबल पर छोड़ते हुए विला से बाहर निकल आया। उसने अपनी कार स्टार्ट की और वहाँ से चला गया।
वहीं दूसरी तरफ़,
चारों तरफ़ बादलों के धुएँ के बीच, एक रोशनी से भरा हुआ, चमकता सुनहरे रंग का बहुत बड़ा महल गिरा हुआ था। वह किसी भी ज़मीन पर नहीं था, वह आसमान की परतों के बीच, बादलों की दुनिया में, हवा में तैरता हुआ खूबसूरत महल था। यह परिस्तान के एकदम बीचोबीच बना हुआ था। परिस्तान में एक परियों की छोटी सी दुनिया बसी हुई थी। हर तरफ़ उजाला ही उजाला, हर तरफ़ एक अलग ही चमक नज़र आती थी। वहाँ रंग-बिरंगे फूलों का एक बड़ा सा बगीचा था।
उस बगीचे के आसपास कई सारी खूबसूरत परियाँ घूम रही थीं। कुछ दूर पर एक सुनहरे रंग का बड़ा सा दरवाज़ा था, और उस दरवाज़े के पीछे एक बड़ा सा सफ़ेद और सुनहरे रंग का महल था।
उस महल के पीछे वाले खुले हिस्से में एक बड़ा सा सुनहरा सिंहासन ऊँची जगह पर रखा हुआ था। उसके दोनों तरफ़ चाँदी की तरह चमकते हुए बहुत सारे छोटे-छोटे सिंहासन रखे हुए थे। लेकिन इस वक़्त वह सारे के सारे सिंहासन एकदम खाली थे। वहाँ ज़मीन पर बहुत सारी परियाँ, जिन्होंने अलग-अलग रंग के कपड़े पहने हुए थे, एक साथ एक-दूसरे का हाथ पकड़कर खड़ी हुई थीं। जैसे कि एक घेरा बनाकर खड़ी हों। उनके बीच में सुनहरे रंग के कपड़ों में, नीली आँखों वाली एक खूबसूरत लड़की बैठी हुई थी। वह भी एक परी थी, लेकिन उसके चेहरे की उदासी यह साफ़ जाहिर कर रही थी कि उन परियों के परिस्तान में कुछ ऐसा हुआ है जिस वजह से उसके चेहरे की मुस्कराहट गायब है और वह इतनी उदास है।
उसके आसपास खड़ी सारी परियाँ आपस में कुछ कुसुफ़-फ़ुसफ़ कर रही थीं। लेकिन उस लड़की की आँखों में आँसू थे। वह उनकी बातें सुन रही थी, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोल रही थी।
तभी उसकी आँखों से सुनहरे मोती जैसे आँसू टपके। जैसे ही वे आँसू वहाँ की ज़मीन पर गिरे, वहाँ पर एक छोटा सा पीला फूल निकल आया।
उस परी की आँखों से निकलने वाले आँसू का परिस्तान की उस ज़मीन पर गिरना और आँसू के गिरते ही वहाँ एक पीले रंग के फूल का निकलना इस बात की गवाही दे रहा था कि उस खूबसूरत और नेकदिल परी का दिल कितना दुखी है।
उस सुनहरे कपड़ों वाली परी को देखकर पीछे से एक दूसरी, गुलाबी रंग के कपड़े पहने हुई, उसी की तरह दिखने वाली खूबसूरत परी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
"परीशा! यहाँ पर और कितने दिन तक इसी तरह से बैठकर रोती रहोगी? तुम्हारी बहन अब वापस नहीं आने वाली। सात दिन हो गए हैं और सात दिनों में तुमने यहाँ पर इन पीले फूलों का पूरा बगीचा तैयार कर दिया है। अब रोना बंद भी करो।"
उसी के पीछे हल्के हरे रंग के कपड़ों वाली दूसरी परी, जिसके हाथ में छोटी सी छड़ी थी और उसके सिर पर सुनहरे रंग का छोटा सा ताज भी था, आगे आते हुए बोली,
"हम सबको भी अरीशा परी के जाने का दुःख है। लेकिन तुम्हारा इस तरह से पिछले सात दिनों से यहाँ पर इस तरह से बैठे रहना, यह सही नहीं है।"
जैसे ही परीशा ने उस दूसरी परी की तरफ़ अपनी नज़रें उठाकर देखी, उसने बिलकुल धीमी आवाज़ में कहा,
"वाणी! तुम यहाँ पर क्यों आई हो? मुझे अकेला छोड़ दो। मेरी बहन को कुछ नहीं हो सकता। वह ज़रूर वापस आएगी। और अगर वह नहीं आती तो जब तक रानी परी मुझसे मिलने नहीं आएगी, मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगी।"
गुलाबी कपड़ों वाली परी ने फिर से उस सुनहरे कपड़ों वाली परी के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाया,
"सब कुछ अच्छे से जानते हुए भी तुम इस तरह बेवजह की ज़िद कैसे कर सकती हो परीशा! तुम्हें पता है रानी माँ अभी अपनी शक्तियाँ अर्जित करने दस दिनों के लिए ध्यान में गई हुई हैं और अभी भी तीन दिन से पहले वह यहाँ पर नहीं आएंगी। क्या तब तक तुम यहाँ पर ही बैठी रहोगी?"
परीशा ने नज़र उठाकर उसकी तरफ़ देखते हुए कहा,
"दस दिन नहीं, मैं दस साल भी यही बैठी रहूँगी। लेकिन मैं रानी माँ से मिले बिना यहाँ से कहीं भी नहीं जाऊँगी। क्योंकि मुझे अनुमति चाहिए अपनी बहन को ढूँढने जाने के लिए… मुझे पता है मेरी बहन को कुछ नहीं हुआ होगा। वह बस कहीं भटक गई होगी या फिर कहीं फँस गई होगी। धरती पर वैसे भी इतने बुरे लोग रहते हैं, इसीलिए तो रानी माँ हमें वहाँ जाने नहीं देती!"
"हाँ, लेकिन फिर भी तुम्हारी बहन वहाँ पर गई, वह भी अपनी मर्ज़ी से बिना किसी को बताए। इसलिए उसके साथ यह सब हुआ। और तुम मानो या ना मानो, लेकिन सच यही है कि तुम्हारी बहन मर चुकी है। ध्यान से देख लो, उसकी मणि पूरी काली पड़ चुकी है। और तुम्हें भी अच्छी तरह से पता है ऐसा कब होता है?"
उस परी की बात सुनकर परीशा, जो ज़मीन पर हाथ टिकाकर एकदम बेहाल होकर रोती हुई वहाँ पर बैठी थी, अब उसके चेहरे के भाव एकदम ही बदल गए। उसकी नीली आँखों में एक गहरा रंग किनारे से बदलता हुआ नज़र आने लगा। उसने एकदम गुस्से से घूरकर उस दूसरी परी की तरफ़ देखा और तेज आवाज़ में कहा,
"तेजस्वी परी! चुप हो जाओ! तुम्हें कोई हक़ नहीं है मेरी बहन के बारे में कुछ भी बोलने का! और परी की शक्तियाँ कमज़ोर पड़ जाने पर, या जब उसमें शक्तियाँ नहीं रह जाती, तब भी ऐसा ही होता है। और हम परियाँ इतनी आसानी से नहीं मरतीं। यह बात तुम्हें भी पता है। और शायद इसीलिए तुम अभी तक मेरे सामने ज़िंदा खड़ी हो।"
परीशा ने एकदम गुस्से में उसे धमकी देते हुए यह बात कही तो तेजस्वी परी थोड़ा सा घबरा गई और अपनी जगह से दो कदम पीछे हो गई, क्योंकि उसे पता था कि परीशा उससे कहीं ज़्यादा शक्तिशाली है।
To be continued
परिस्थान में कुछ देर बाद, सारी परियाँ वहाँ से चली गईं, लेकिन परीशा वहाँ से उठकर नहीं गई। वह अभी भी वहाँ बैठकर रोती हुई, रानी परी का इंतज़ार कर रही थी। लेकिन उसके दिमाग में बाकी सारी परियों की बात अभी भी चल रही थी, क्योंकि वे सारी परियाँ सही कह रही थीं। रानी माँ इस तरह से जब भी अपने ध्यान में बैठी हैं, कभी भी 10 दिन से पहले वापस नहीं आती हैं। इसलिए उनका इंतज़ार करना बेकार था।
परीशा पहले ही ७ दिन से वहाँ बैठकर उनका इंतज़ार कर रही थी। लेकिन अभी तक वह नहीं आई थी। तो उसने कुछ सोचा। वह वहाँ से उठकर खड़ी हुई और अपने सामने रखी सारी परियों की मणियों को एक नज़र देखा।
जिनमें से वह हल्के आसमानी रंग की मणि, जो एकदम काली पड़ चुकी थी, उसकी रोशनी भी लगभग खत्म हो गई थी। उस मणि की तरफ देखते हुए परीशा की आँखों में आँसू आ गए और जैसे ही वे आँसू जमीन पर गिरे, एक पीला फूल बन गए।
उस मणि की तरफ देखते हुए वह अपने मन में बहुत कुछ सोच रही थी। तभी उसने अपने आँसू पोछे और मन में कुछ सोचती हुई वहाँ से आगे बढ़ी।
उसने अपनी जादू की छड़ी उठाई, जो कि सुनहरे रंग की थी और उस पर बीच में एक सुनहरा सितारा बना हुआ था।
फिर आँखें बंद करके धीमी आवाज़ में परियों का कुछ मंत्र बुदबुदाने लगी, और वह एकदम धीमी आवाज़ में वह मंत्र पढ़ रही थी।
तभी एकदम से एक और सफ़ेद रोशनी उसके सामने आई, जो कि धुएँ के रूप में थी।
परीशा को उसके होने का अहसास हुआ। तो अपना मंत्र पढ़ना रोककर उसने आँखें खोलकर सामने की तरफ देखा। तो उसे वह सफ़ेद बादल अपने एकदम सामने नज़र आए।
जो कि अब धीरे-धीरे एक आकार ले रहा था। और परीशा शायद समझ गई कि वह कौन है, इसलिए उसने बोला,
"रानी माँ आप यहाँ?"
उसके सामने एक परी खड़ी थी, जिसके पूरे कपड़े एकदम चमकदार सफ़ेद रंग के थे और उसके पूरे शरीर से उसी तरह की सफ़ेद रोशनी निकल रही थी। उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी और आँखों में एकदम सौम्यता और शालीनता नज़र आ रही थी। अपने सामने परीशा को देखकर उन्होंने एकदम नरमी से कहा,
"क्या करने जा रही थी तुम परीशा? अपनी बहन की गलती दोहराओगी? वह भी जानबूझकर?"
उन्होंने यह बात बहुत ही आराम से कही। वह परीशा को डाँट नहीं रही थीं, बस उससे सवाल कर रही थीं और जवाब के इंतज़ार में उनकी नज़र परीशा पर ही टिकी हुई थीं।
वहीं परीशा की आँखों में फिर से आँसू भर आए और वह बहुत ही ज़्यादा परेशान होते हुए बोली,
"तो फिर क्या करूँ? मैं रानी माँ, आप ही बताइए। और कोई रास्ता भी तो नहीं है। मुझे अपनी बहन को ढूँढने के लिए जाना ही होगा, फिर चाहे कोई इसमें मेरा साथ दे या ना दे।"
रानी परी ने गम्भीरता से कहा,
"परीशा, क्या तुम्हें सच में ऐसा लगता है? मैं तुम्हारा साथ नहीं दूँगी और तुम इस तरह से बिना किसी को बताए अकेले ही धरती पर चली जाओगी। वह भी अपनी बहन को ढूँढने, जबकि तुम खुद ही अपनी बहन से हमेशा कहती थी कि धरती पर सारे बुरे लोग रहते हैं और किसी भी परी को गलती से भी वहाँ नहीं जाना चाहिए।"
रानी परी ने परीशा की तरफ देखते हुए कहा। तो उनकी ऐसी बातें सुनकर परीशा को वह सब कुछ याद आया और शर्मिंदगी से उसने अपना सिर नीचे झुका लिया। लेकिन साथ ही वह काफी परेशान भी थी। उसने उसी तरह से परेशान होते हुए कहा,
"लेकिन रानी माँ, मैं क्या करूँ? मुझे अपनी बहन को ढूँढना है और बाकी सब कहते हैं कि मेरी बहन मर गई है, लेकिन ऐसा नहीं है। मुझे पता है, वह नहीं मरी है और वह ज़िंदा है। मुझे उसे ढूँढना है।"
परीशा परेशान होते हुए यह सारी बातें बोल रही थी। तभी रानी परी ने उसके कंधे पर धीरे से अपना हाथ रखा और हल्की सी मुस्कराहट रानी परी के चेहरे पर आकर चली गई और फिर एकदम ही कहा,
"हाँ, मुझे पता है तुम्हारे लिए यह स्वीकार करना कठिन है। हम कभी भी किसी अपने प्रिय की मृत्यु को इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते, और वह भी जब एक परी हो। लेकिन अगर वह सच में मर चुकी होगी और पृथ्वी पर जाने के बाद तुम भी किसी मुसीबत में पड़ गई, तो मैं अपनी सबसे शक्तिशाली और खूबसूरत परी को खोना नहीं चाहती।"
रानी माँ की बातें सुनकर परीशा ने नज़र उठाकर उनकी तरफ देखा और कहा,
"नहीं, मेरी बहन को कुछ नहीं हुआ है! वह ज़रूर कहीं फँस गई होगी। मुझे बस उसे ढूँढ कर पता करना है क्योंकि हम दोनों बहनों का बहुत ही मज़बूत बंधन है। अगर उसे कुछ भी होता तो मुझे पता चल जाता। लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता है कि वह ज़िंदा है। आप प्लीज़ एक बार मुझे धरती पर जाने की अनुमति दीजिए। मैं कुछ ही दिनों में उसे ढूँढ लूँगी।"
रानी माँ ने परीशा की बहुत ही उम्मीद भरी नज़रों की तरफ देखते हुए पूछा,
"अगर मैं जाने की अनुमति ना दूँ तो क्या तुम हमारे नियम तोड़कर उसी तरह से अकेले धरती पर चली जाओगी जैसे तुम्हारी बहन गई थी?"
परीशा ने कहा,
"मैंने कभी भी कोई नियम तोड़ना नहीं चाहा और मैं आपको निराश भी नहीं करना चाहती। लेकिन मुझे मेरी बहन बहुत प्यारी है और अपने दिल की तसल्ली के लिए आप मुझे एक बार धरती पर जाने की अनुमति दे दीजिए। मुझे पता है उसे कुछ नहीं हुआ होगा। आपको भी पता है हम परियाँ इतनी आसानी से नहीं मर सकती हैं। उसको ज़रूर किसी ने धोखे से धरती पर बुलाया होगा। क्योंकि वह खुद से वहाँ पर क्यों जाएगी? ऐसी कोई भी वजह नहीं थी और हाँ, वह कभी-कभी बात करती थी। धरती पर उसे हर जगह जाने का शौक था और नई-नई जगहों और अलग दुनिया देखने का। लेकिन इसके अलावा कोई भी ऐसी ख़ास वजह नहीं थी।"
परीशा ने अपनी बहन की तरफ़ से सफ़ाई देते हुए ये सब कहा। सामने खड़ी रानी परी बहुत ही गौर से परीशा की पूरी बातें सुन रही थी और वह सारी बात सुनकर उन्होंने कहा,
"इसका मतलब है कि तुम हमारे ख़िलाफ़ जाकर भी अपनी बहन को ढूँढने के लिए जाओगी?"
रानी परी की बात सुनकर परीशा ने आँसू भरी आँखों के साथ उनकी तरफ़ देखा और कहा,
"रानी माँ, आप भी अगर मुझे नहीं समझेंगी तो कौन समझेगा? आप मेरा साथ दीजिए। और मैं आपके ख़िलाफ़ नहीं जाना चाहती हूँ। क्योंकि मुझे पता है, अगर आप मेरे साथ रहेंगी तो मेरे लिए धरती पर भी सारी चीज़ें आसान हो जाएँगी और आप इसमें मेरी मदद भी करेंगी?"
रानी परी ने कुछ सोचते हुए कहा,
"अच्छा, ठीक है। बताओ कितना समय चाहिए तुम्हें? और कितने समय में तुम वापस आ जाओगी?"
रानी परी ने जैसे ही यह बात कही, तो उनकी यह बात सुनकर परीशा की आँखें चमक गईं और वह खुश होकर उनकी तरफ़ देखने लगी। उसकी आँखों में अभी भी आँसू भरे हुए हैं, लेकिन चेहरे का डर और परेशानी अब उसकी खुशी में बदल गई है, क्योंकि रानी माँ साथ देने के लिए तैयार हो गई थीं।
परीशा ने खुश होते हुए कहा,
"बहुत-बहुत शुक्रिया रानी माँ, आपने मुझे समझा और मुझे यह मौका दिया। मैं आपको निराश नहीं करूँगी और सारे नियम के अंदर रहते हुए ही मैं वहाँ पर जाकर अपनी बहन को ढूँढ लूँगी। प्लीज़! बस आप मुझे वहाँ भेज देंगी ना? और वहाँ पर रहकर मैं आपसे बातें कर सकती हूँ।"
परीशा के इतने सारे सवाल सुनकर रानी माँ ने कुछ नहीं बोला। वह सिर्फ़ उसकी तरफ़ देखते हुए उसी तरफ़ हल्के से मुस्कुराती रहीं और फिर उन्होंने हवा में अपना हाथ घुमाया और उनके हाथों में एक चमकती हुई चीज़ आ गई, जिसे उन्होंने अपनी मुट्ठी में बंद कर दिया और फिर आँखें बंद करके कोई मंत्र पढ़ते हुए उस चीज़ को अपनी मुट्ठी में कुछ देर रखा और फिर अपनी मुट्ठी परीशा के सामने करके खोलते हुए कहा,
"यह अंगूठी। मैंने इसमें तुम्हारी और मेरी शक्तियों को आपस में जोड़ दिया है। अब तू इसे अपनी उंगली में पहन लो और जब भी तुम्हें मुझसे कोई मदद की ज़रूरत होगी, तुम इस अंगूठी को देखकर बस मुझे याद करना। मदद मिल जाएगी।"
रानी माँ की यह बात सुनकर परीशा बहुत ही खुश हुई और उसने तुरंत ही उनके हाथ से अंगूठी उठाकर अपने दाहिने हाथ की बीच की उंगली में पहन ली।
"तो मैं कब धरती पर जा रही हूँ?"
परीशा ने जैसे ही यह सवाल किया, रानी माँ ने ऊपर से नीचे तक उसकी तरफ़ देखा और तभी एक छोटा सा पक्षी उड़ता हुआ वहाँ पर आया और वह रानी माँ और परीशा के इर्द-गिर्द चक्कर काटने लगा। और उस पक्षी की आवाज़ बहुत ही सुरीली थी। वह देखने में बुलबुल और तोते का मिला-जुला पक्षी लग रहा था क्योंकि उसका शरीर नीले रंग का था और उस पर सफ़ेद रंग के पंख थे और उसके सिर के ऊपर ताज जैसा था। छोटी सी पीली चोंच और काली आँखें। अपने छोटे पंख फड़फड़ाता हुआ वह पक्षी परीशा के चारों तरफ़ ही उड़ रहा था और फिर अचानक से आकर उसके कंधे पर बैठ गया। तो परीशा ने एक नज़र हैरानी से उसकी तरफ़ देखा।
वो पक्षी परीशा के चारों तरफ़ ही उड़ रहा था और फिर अचानक से आकर उसके कंधे पर बैठ गया।
तो परीशा ने एक नज़र हैरानी से उसकी तरफ़ देखते हुए कहा,
"कुटुम, तुम भी मेरे साथ आओगे?"
परीशा ने अपने कंधे पर बैठे हुए उस पक्षी के बच्चे की तरफ़ देखकर यह बात पूछी। तो वह पक्षी एकदम इंसानों की तरह बात करते हुए बोला,
"हाँ! मैं भी अपनी परी के साथ ही रहूँगा। जहाँ भी मेरी परी जाएगी, मैं उसके साथ जाऊँगा क्योंकि मैं तुम्हारा पक्षी हूँ।"
कुटुम की बात सुनकर परीशा हल्का सा मुस्कुराई, लेकिन फिर उसने अपने सामने खड़ी रानी माँ की तरफ़ देखा। तो उन्होंने हल्के से अपनी पलकें झपकाईं, जिसका यह मतलब था कि वह अपने पक्षी को भी अपने साथ ही धरती पर ले जा सकती है, लेकिन उसके असली रूप में नहीं।
इसलिए रानी माँ ने उसे एक बेजान पक्षी में बदलकर परीशा के हाथ में दे दिया।
वह एकदम किसी प्लास्टिक की चिड़िया की तरह लगने लगा और अब वह बोल भी नहीं पा रहा था। यह देखकर परीशा उदास हो गई, तो रानी परी ने उसे पूरी बात समझा दी कि वह वहाँ धरती में सबके सामने इस पक्षी को अपने साथ इसी तरह से रख सकती है और वह धरती में सब के पास बोलने वाले पक्षी नहीं होते इसलिए और फिर अकेले में वह उसे वापस अपने जादू से पक्षी बना सकती है।
यह बात परीशा को समझ में आ गई, तो फिर वह ज़्यादा उदास नहीं हुई और उसने उस पक्षी को भी अपने साथ ही रख लिया। फिर रानी परी ने उसकी तरफ़ देखा।
परीशा ने फिर से पूछा,
"रानी माँ, मैं धरती पर कब जा सकती हूँ? इसके लिए कोई सही समय या किसी तरह की कोई प्रक्रिया होती है क्या?"
तो रानी परी ने उसकी तरफ़ देखकर कहा,
"नहीं। ऐसा कुछ भी नहीं है और मुझे लगता है, अगर मैं यहाँ पर ना आती तो शायद तुम अकेले ही बिना किसी तैयारी के वहाँ पर चली जाती।"
रानी परी की यह बात सुनकर परीशा को काफी शर्मिंदगी हुई। क्योंकि सच में वह इस इरादे से ही वहाँ पर आई थी और उसने अपना सारा सामान भी लगभग ले लिया था। उसने पूरी शक्तियों के साथ ही वह धरती पर जाने के लिए एकदम तैयार थी, जबकि उसे धरती के बारे में कुछ भी नहीं पता था। अब रानी परी ने उसे बहुत कुछ बताया और इतना बोलते हुए रानी परी ने ऊपर से नीचे तक देखा और कहा,
"अभी तक तो एकदम तैयार लग रही थी, तो फिर अभी क्यों नहीं चली जाती?"
इतना बोलते हुए रानी परी के हाथ में एक छड़ी आ गई और उन्होंने अपनी छड़ी को एक बार घुमाया, तो परीशा वहाँ से एकदम से ही गायब हो गई।
रानी परी ने फिर से छड़ी घुमाई और वह भी वापिस सफ़ेद धुएँ में वहाँ से गायब हो गई।
क्रमशः
Buddies 💚🌹 कमेंट कर दीजिये अगर स्टोरी अच्छी लगे तो
part 3
दूसरी तरफ, धरती पर, अपने घरवालों से परेशान होकर शशांक आज ऑफिस के अपने समय से पहले ही घर से निकल गया था। घर में रहकर वह अपना मूड और भी ज़्यादा खराब नहीं करना चाहता था। लेकिन आज सोमवार था और सुबह के 10:00 बज रहे थे। सड़क पर बहुत ज़्यादा ट्रैफिक था, और उस पूरी सड़क पर कार ही कार दिख रही थीं।
रेड सिग्नल आते ही सारी कारें रुक गईं। वहाँ पर आ रही हॉर्न की आवाज़ से शशांक काफी ज़्यादा इरिटेट हो गया और अपने आगे वाली कार को आगे बढ़ने के लिए लगातार हॉर्न बजाता रहा। और तभी रेड लाइट येलो और उसके बाद तुरंत ही ग्रीन हो गई। लेकिन आगे की कार काफी धीमी स्पीड से बढ़ रही थी, तो शशांक का इरिटेशन और भी ज़्यादा बढ़ रहा था। उसने साइड से अपनी कार निकालते हुए एकदम से कार को आगे बढ़ाया। उसका मूड पहले ही खराब था, घरवालों और फिर ट्रैफिक की वजह से। इसलिए वह जल्दी से वहाँ से निकलना चाहता था और दोबारा से सिग्नल रेड होने से पहले वहाँ से निकलना चाहता था। और दोबारा ट्रैफिक में नहीं फंसना चाहता था। इस बीच उसने कार की स्पीड काफी तेज कर दी। सामने से सड़क पार हो रही लड़की को वह देख नहीं पाया और एकदम ही वह लड़की वहाँ सड़क पर उसके सामने आ गई। शशांक ने जल्दी से अपनी कार के ब्रेक लगाए।
लेकिन स्पीड काफी ज़्यादा तेज थी, तो कार एकदम आगे आकर उस लड़की के नज़दीक रुकी और वह लड़की एक झटके से जमीन पर गिर गई। शशांक को समझ नहीं आया कि कार की उस लड़की से टक्कर हुई या फिर सदमे की वजह से वह लड़की सड़क पर गिर गई, लेकिन शशांक को काफी गिल्ट हुआ। उसने अपना सिर पीटते हुए कहा,
"ohh shit.. ये क्या कर दिया मैंने? अपनी बाकी चीज़ों की एरिटेशन इस तरह से कार ड्राइविंग पर निकाल दी और सामने से आ रही इस बेचारी सी लड़की को हिट कर दिया।"
जिस लड़की का बस अभी एक्सीडेंट होते-होते बचा था, और उस लड़की की तो इन सब में कोई भी गलती नहीं थी। इसलिए शशांक तुरंत ही अपनी कार से बाहर निकला और बोला,
"मिस आप ठीक तो हैं ना? आपको कहीं चोट तो नहीं लगी?"
कार से बाहर उतर कर शशांक उसके पास आया। उसने भी सड़क के किनारे ही अपनी कार रोक दी थी। उस लड़की का एक्सीडेंट हो गया था। उसके आसपास के लोग भी रुक गए थे, लेकिन उस लड़की को कार से कुछ भी चोट नहीं आई थी। लेकिन जमीन पर गिरने की वजह से उसके कपड़ों पर थोड़ी मिट्टी लग गई थी। जिसे झाड़ते हुए वह उठ कर खड़ी हुई और उस लड़के ने जैसे ही उस लड़की के चेहरे की तरफ देखा,
वो एकटक ही उसकी तरफ देखता रह गया।
उस लड़की के पास एक बड़ा सा बैग था। वह भी जमीन पर गिर गया था। उसमें से कुछ सामान भी निकल गया था। वह लड़की झुक कर अपना सारा सामान वापिस से बैग में रखने लगी। उसने अब तक एक शब्द भी नहीं बोला था, जबकि शशांक की तो बोलती उसका चेहरा देखकर ही बंद हो गई थी। उसने एकदम से कहा,
"नहीं, यह नहीं हो सकता। मैं फिर से सपना ही देख रहा हूँ शायद!"
शशांक वहाँ सड़क के बीचो-बीच खड़ा था, अपने सामने खड़ी उस लड़की को देख रहा था, जो कि खोई-खोई सी लग रही थी। और अजीब तरह से चारों तरफ देख रही थी।
उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि वह एकदम अचानक से ही यहाँ पर सड़क के बीच आ गई हो और उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा हो। अपने आसपास से निकलती हुई गाड़ियों की स्पीड और हॉर्न की आवाज़ और बाकी के शोर-शराबे से वह काफी घबराई हुई सी लग रही थी और बार-बार इधर-उधर सिर घुमा कर चारों तरफ की चीज़ें देखने की कोशिश कर रही थी। एक नासमझ बच्चे की तरह वो सारी चीज़ों को समझने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। और शशांक के होश तो उस लड़की को देखकर ही उड़ गए थे।
क्योंकि यह वही लड़की थी जो इतने सालों से उसके सपने में आती थी। और आज उसे अपने सपने से हकीकत में बदलता देख उसे ना तो अपनी आँखों पर यकीन हो रहा था और ना ही अपनी किस्मत पर।
इसीलिए उसे वह एकदम आँखें फाड़कर हैरानी से उसकी तरफ देख रहा था। उसे देखते हुए वो एक बार भी अपनी पलकें नहीं झपका रहा था और एकटक उस लड़की को ही देखे जा रहा था। और धीमे-धीमे से अपने मुँह में ही कुछ बुदबुदा रहा था।
"नहीं नहीं, यह वह लड़की नहीं हो सकती। वो… वो.. इस तरह से सपनों से निकलकर सामने कैसे आ सकती है? मैं सच में सपना ही देख रहा हूँ।"
शशांक खुद से ये सारी बातें कह रहा था और तभी? सिग्नल ग्रीन हो गया और उसके पीछे से हॉर्न की आवाज़ आई। जिससे वह अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया और उसने सामने उसी लड़की को देखा जो सड़क क्रॉस करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन लगातार तेज स्पीड में निकलती हुई गाड़ियों की वजह से रोड क्रॉस नहीं कर पा रही थी।
शशांक जल्दी से आगे आया और उसने उस लड़की का हाथ पकड़कर उसे पीछे खींचा क्योंकि वह फिर से एक गाड़ी से टकराने ही वाली थी।
"क्या कर रही हो, दिखाई नहीं देता है क्या?"
शशांक बस इतना ही बोल पाया। और उस लड़की ने पीछे मुड़कर फिर से शशांक की तरफ देखा तो शशांक उसकी नीली आँखों में एकदम ही खो गया, क्योंकि आज पहली बार ही उसने वह नीली आँखों वाली खूबसूरत लड़की अपने सामने देखी थी। इससे पहले वह अपने सपने से यकीन में मिलता था। लेकिन इस वक्त भी वह एकदम उसके सपनों की तरह ही खूबसूरत लग रही थी। वही नीली आँखें, वही भूरे बाल, वही एकदम मासूम सा चेहरा!
शशांक ने जैसे ही उस लड़की का हाथ पकड़ा,
उस लड़की को अपने सामने एकदम से ही कुछ नज़र आया, लेकिन वह समझ नहीं पाई और उसने तुरंत ही शशांक से अपना हाथ वापस छुड़ाते हुए बोली,
"कौन है आप? हमारा हाथ मत पकड़ें।"
इतना बोलते हुए वह फिर अपनी जगह से पीछे हुई। तो शशांक को भी समझ में आया कि एकदम ही उसने उसका हाथ पकड़ लिया था, लेकिन उसने उसे कार के सामने से बचाने के लिए हाथ पकड़कर खींचा था। उसकी और कोई भी ऐसी इंटेंशन नहीं थी। लेकिन फिर भी वह तुरंत माफ़ी माँगते हुए बोला,
"सॉरी… सॉरी.. आई एम रियली सॉरी। लेकिन वह कार.. तुम देखकर नहीं चल सकती क्या? अभी मेरी कार से टकराते हुए बची हो और फिर दूसरी कार..? पहली बार ही सड़क पर निकली हो क्या?"
"क्या? ये क्या कह रहे हो तुम? और तुम इस तरह से हमें डाँट क्यों रहे हो?" उस लड़की ने बड़ी ही मासूमियत से शशांक की तरफ देखते हुए बहुत ही धीमी आवाज़ में कहा।
शशांक को समझ नहीं आया कि वह इस तरह से बात क्यों कर रही है, लेकिन तभी शशांक ने उससे पूछा,
"अरे बाबा, मैं तुम्हें डाँट नहीं रहा हूँ। मैं बस समझा रहा हूँ। इतना ट्रैफिक, कितनी गाड़ियाँ हैं। यहाँ पर चलो बताओ, तुम्हें कहाँ जाना है? मैं तुम्हें ड्रॉप कर देता हूँ।"
शशांक उससे वह अपनी कार के पास खड़ा होकर बात कर रहा था, जिसकी वजह से पीछे काफी सारा ट्रैफिक लग गया था क्योंकि उसकी कार सड़क के एकदम बीचो-बीच खड़ी हुई थी। कुछ कारें साइड से निकल कर जा रही थीं, लेकिन उसके पीछे भी एक लंबी लाइन लग गई थी और लोग उसी तरह कार को लाइन में लगाए हुए अपनी कार का हॉर्न बजा रहे थे। जिससे कि शशांक अपनी कार रास्ते से हटा कर आगे ले जाए। और वह शोर सुनकर उस लड़की ने उस तरफ देखा और शशांक भी पीछे की तरफ मुड़ा और अपनी कार के पीछे वाले लोगों की तरफ देख कर बोला,
"हाँ हाँ, बस हटा रहा हूँ।"
इतना बोलकर वह वापस जैसे ही पीछे लड़की की तरफ मुड़ा, वहाँ पर वो लड़की नहीं थी। वो एकदम अचानक से ही वहाँ से गायब हो गई थी। शशांक उसे चारों तरफ ढूँढने लगा, लेकिन वह उसे कहीं भी नज़र नहीं आई।
उस लड़की ने पिंक ब्लू शेड वाला सूट पहना था, लेकिन अब वहाँ पर कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।
शशांक वापस उस जगह पर आया जहाँ पर वह लड़की जमीन पर गिरी थी और वो अपने आप से बोला,
"पता नहीं कहाँ चली गई, वो। मैं उसका नाम भी नहीं पूछ पाया। क्या करूँ? अब कहाँ ढूँढूँ? पता नहीं दोबारा मिलेगी भी या नहीं?"
इतना बोलते हुए वह काफी उदास हो गया। अभी थोड़ी देर पहले उसके चेहरे पर चमक आई थी, वह एकदम गायब हो गई थी। उसी में उसने अपना सिर नीचे झुका लिया। तभी उसकी नज़र जमीन पर पड़ी हुई किसी चीज़ पर पड़ी और वह चीज़ दिखने में बहुत इंटरेस्टिंग और अट्रैक्टिव लग रही थी, तो शशांक ने हल्का सा झुक कर उसे देखा। वह छोटा सा प्लास्टिक टॉय था। और उसे वहाँ पर पड़ा देखकर शशांक समझ गया कि यह ज़रूर उस लड़की के बैग से गिरा होगा। क्योंकि एक्सीडेंट जब हुआ था और वह लड़की कार के सामने आकर जमीन पर गिर गई थी,
तब उसके बैग से भी कुछ सामान जमीन पर गिर गया था और वह अपना सामान बैग में रख रही थी। तब ही शायद यह रह गया होगा। और शशांक ने यह सोचते हुए वह छोटा सा प्लास्टिक का पक्षी अपने हाथ में उठाया और गौर से उसकी तरफ देखा तो वह उसे वह पक्षी एकदम असली पक्षी की तरह लगा। यहाँ तक शशांक को ऐसा लगा जैसे कि उसकी आँखें भी चमक रही हैं। लेकिन फिर उसे ऐसा लगा कि धूप का रिफ्लेक्शन पड़ने की वजह से ऐसा लगा होगा, क्योंकि दिन का वक्त था और वह सड़क के बीचो-बीच खड़ा था। उसने जल्दी से वह छोटा सा प्लास्टिक का खिलौना अपनी जेब में रखा और वापिस अपनी कार में आकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
उसे इस बात का बहुत ही अफ़सोस हो रहा था कि इतने दिनों से जो लड़की उसे सपने में नज़र आती थी,
वो आज पहली बार उसे हकीकत में दिखी थी, तब भी पर वह उससे ज़्यादा कुछ पूछ नहीं पाया और ना ही उससे कोई बात कर पाया।
और तो और, यहाँ तक उसका नाम, पता कुछ भी पूछ नहीं पाया। इसलिए अब वह सोच रहा था कि वह दोबारा उसे कैसे ढूँढेगा। शशांक ये सब सोच ही रहा था कि तभी फिर से वह कार के हॉर्न की आवाज़ आने लगी। तो आखिरकार शशांक ने कार स्टार्ट करके अपनी कार को सिग्नल से आगे बढ़ा दिया और अपने ऑफिस की तरफ़ ही ड्राइव करने लगा, लेकिन उसके दिल-दिमाग पर वह लड़की पूरी तरह से छा चुकी थी। और वो अब किसी भी तरह से उसे ढूँढना चाहता था।
लेकिन उसे इस बात की खुशी थी, कि कम से कम उस लड़की का एक सामान उसके पास है, जिसके बहाने वह कभी उससे दोबारा मिल सकता है और उसका सामान भी उसे वापस कर देगा।
यही सब सोचते हुए वो अपने ऑफिस आ गया और अपने केबिन में आकर बैठ गया। लेकिन उसका दिमाग उसी लड़की के बारे में सोच रहा था, जिस तरह वह उसकी कार के सामने आई थी और टकराते हुए बची थी। फिर जब वह कार से उतरा था और उसने उसकी शक्ल देखी थी। किस तरह से वह उसकी उन नीली आँखों में एकदम खो गया था।
शशांक अभी भी वह उसी के ख्यालों में खोया हुआ था, क्योंकि इतनी देर से उसका असिस्टेंट नीरज उसका दरवाज़ा नॉक कर रहा था, लेकिन शशांक अपनी उस सपने वाली लड़की के ख्यालों में इस तरह से खोया हुआ था कि उसे नीरज की आवाज़ ही नहीं सुनाई दी थी।
तभी नीरज चुपचाप केबिन के अंदर आया और उसने शशांक की टेबल पर अपना हाथ टैप करते हुए कहा,
"शशांक सर, व्हाट हैपेंड? कहाँ खोए हैं आप? मैं कितनी देर से केबिन का डोर नॉक कर रहा था, बट आपने कोई जवाब ही नहीं दिया, इसलिए मुझे अंदर आना पड़ा।"
शशांक ने जैसे ही नीरज की बात सुनी, उसने हड़बड़ाते हुए कहा,
"क्या हुआ? क्या बात है? कुछ कहा क्या तुमने?"
नीरज ने हैरानी से शशांक को देखकर कहा,
"कहाँ खोए हैं शशांक सर आप?"
शशांक ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा,
"कहीं तो नहीं, तुम बताओ तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
शशांक की बात सुनते ही नीरज ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा,
"वह अपने न्यू मॉडल्स के लिए एडवर्टाइजमेंट दी थी ना?"
शशांक ने हाँ में अपना सिर हिलाया और अपने लैपटॉप पर कुछ करने लगा। तभी नीरज ने कहा,
"तो उसे एडवर्टाइजमेंट को देखकर कई सारी न्यू मॉडल्स इंटरव्यू देने के लिए आई हैं और मैं चाहता हूँ कि आप एक बार चलकर उन्हें देख लें।"
To be continued
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शशांक ने नीरज की बात सुनकर, एक भौंह उठाकर कहा, "एक काम करो, तुम और राधिका ऑडिशन ले लो, मुझे कुछ काम है।"
नीरज ने यह बात सुनते ही शशांक की तरफ देखा और कहा, "सर, प्लीज चलिए, वरना मेरी फिर से राधिका के साथ कोई ना कोई आर्गुमेंट जरूर हो जाएगी। जो मॉडल मुझे पसंद आती है, उसे वह पसंद नहीं करती और जो उसे पसंद आती है, वह मुझे ठीक नहीं लगती। अगर आप साथ में रहेंगे तो ऐसा कुछ भी नहीं होगा। प्लीज सर, चलिए ना!"
शशांक ने नीरज की तरफ देखते हुए, सिर हिलाकर ना कहा, "तुम लोग यहां पर जॉब करते हो या फिर लड़ाई?"
शशांक ने नीरज को डांटा, तो नीरज ने तुरंत अपनी नज़रें झुका लीं। नीरज हाथ बांधकर चुपचाप खड़ा था। तभी शशांक ने अपना लैपटॉप बंद किया और अपना मोबाइल कोट की जेब में रखते हुए कहा, "चलो, अब यहां पर मुंह लटका कर क्यों खड़े हो!"
जैसे ही नीरज ने शशांक को अपनी चेयर से उठते हुए देखा, वह काफी खुश हो गया और जल्दी-जल्दी शशांक के पीछे-पीछे चलने लगा।
शशांक ऑडिशन एरिया में आकर बड़ी सी कुर्सी पर बैठा और उसने एक पैर दूसरे पर चढ़ा लिया। राधिका वहीं पर काफी सारी लड़कियों के साथ खड़ी थी और उसने तेज आवाज में कहा, "अगर तुम सबको मॉडल बनना है, तो सबसे इम्पोर्टेन्ट चीज का ध्यान रखना होगा, तुम लोगों को अपने फेस के एक्सप्रेशंस लूज़ नहीं करने हैं, और दूसरी बात, रैम्प पर चलते टाइम ध्यान रखना है कि…"
राधिका बोल ही रही थी कि नीरज उसके बगल में आकर खड़ा हुआ और उसे चुप करवाते हुए बोला, "ओह प्लीज शट अप राधिका, वह सब मॉडल बनने की ट्रेनिंग ले चुकी हैं और ऑडिशन देने के लिए यहां पर आई हैं। तुम्हें उन्हें बेसिक चीजें बताने की जरूरत नहीं है।"
यह बात सुनकर राधिका उसे गुस्से से घूरने लगी और वहां पर जितनी भी मॉडल खड़ी थीं, वे अपने मुंह पर हाथ रखकर हंसने लगीं।
राधिका ने उन मॉडलों को घूर कर देखा, और वे सब चुप हो गईं। राधिका ने नीरज की तरफ देखते हुए कहा, "तुम कुछ ज़्यादा ही बोलते हो। मैंने तुमसे कितनी बार मना किया है, जब मैं कुछ बोल रही हूँ, तो मेरी बात के बीच में मत बोलने आया करो। तुम्हें इतनी सी बात समझ में नहीं आती क्या?"
नीरज राधिका को कुछ बोलने ही जा रहा था कि तभी शशांक ने तेज आवाज में कहा, "मुझे ऐसा क्यों लग रहा है तुम दोनों इस जॉब के लिए बने ही नहीं हो। अगर आज के पूरे दिन में मैंने तुम दोनों के मुंह से कोई भी आर्गुमेंट सुनी, तो मैं तुम दोनों को निकाल दूँगा। डिड यू अंडरस्टैंड?"
जैसे ही शशांक ने यह बात बोली, वे दोनों चुप हो गए और अपने-अपने काम में लग गए। नीरज उन सभी लड़कियों के पास आकर खड़ा हुआ और उसने उन सब की तरफ देखते हुए कहा, "गर्ल्स और बॉयज़, प्लीज मेक वन लाइन।"
नीरज के इतना बोलते ही, वे सभी मॉडल एक लाइन में खड़े हो गए और ऑडिशन शुरू हुआ। शशांक उन सभी की तरफ देख रहा था। तभी ऑडिशन एरिया में वही लड़की लड़खड़ाते हुए दरवाजे के अंदर आई। उसे देखते ही शशांक की नज़रें उस पर टिक गईं और शशांक ने अपनी आँखें मलते हुए कहा, "यह क्या देख रहा हूँ मैं? क्या सच में मेरे सामने फिर से वही लड़की है?" जैसे ही वह लड़की अंदर आई, शशांक उसे एकटक देखता ही रह गया।
उसकी नीली आँखें, जिनमें बेचैनी साफ नज़र आ रही थी, और उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि वह काफी घबराई हुई है। शशांक की नज़रें उस लड़की पर जाकर टिक गई थीं और वहाँ चल रहे बाकी ऑडिशंस पर शशांक ने ध्यान नहीं दिया।
वह लड़की ऑडिशन एरिया की तरफ बढ़ती जा रही थी और उसकी नीली आँखों में एक अलग ही बेचैनी नज़र आ रही थी। वह जगह को चारों तरफ अपना सर घुमा-घुमा कर देख रही थी। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे मानो वह किसी चीज को ढूंढ रही हो।
शशांक उसे अपने इतने करीब आते देखकर हैरान हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह उसके पास जाए या उसे अपने करीब आने का इंतज़ार करे।
शशांक ने देखा कि वह धीरे-धीरे उसके करीब आती जा रही थी और तभी नीरज उस लड़की के पास गया और उसे रोकते हुए बोला, "एक्सक्यूज मी मैडम, क्या आप यहां पर ऑडिशन देने के लिए आई हैं?"
वह लड़की नीरज की तरफ हैरानी से देखने लगी। नीरज ने उसकी आँखों के सामने अपना हाथ हिलाते हुए कहा, "अगर आप ऑडिशन देने के लिए आई हैं, तो प्लीज मुझे अपना रजिस्ट्रेशन फॉर्म दिखाइए।"
उसने नीरज की तरफ देखते हुए, लड़खड़ाती हुई ज़बान में कहा, "मेरे पास तो ऐसा कुछ भी नहीं है।"
नीरज ने उस लड़की की तरफ हैरानी से देखते हुए कहा, "मतलब आपने अभी तक रजिस्ट्रेशन नहीं कराया? इट्स ओके, कोई बात नहीं। आप मेरे साथ आइए, मैं आपका रजिस्ट्रेशन कर देता हूँ।"
नीरज इतना बोलकर उसकी तरफ देखने लगा, लेकिन वह अभी भी अपनी जगह पर ही खड़ी थी। तभी उसकी नज़र शशांक पर गई और वह शशांक की तरफ बढ़ने लगी।
नीरज ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "उधर नहीं मैडम, आपको मेरे साथ आना है।"
जैसे ही नीरज ने उसका हाथ पकड़ा, वह नीरज की तरफ हैरानी से देखने लगी और उसके पीछे-पीछे गई। तभी नीरज ने एक फॉर्म निकाला और उसे उसके हाथ में पकड़ाते हुए कहा, "इस फॉर्म को भरिए और मुझे रजिस्ट्रेशन के पाँच सौ रुपये दे दीजिए, मैं अभी आपका रजिस्ट्रेशन कंफर्म कर दूँगा।" वह हैरानी से नीरज की तरफ देख रही थी और नीरज ने जब उसे पेन पकड़ाया…
तो वह पेन और पेपर को इस तरह से देख रही थी जैसे मानो वह उसके लिए कोई अजूबा हो।
नीरज ने उसकी इस बात को नोटिस करते हुए कहा, "मिस, आर यू ऑलराइट? तुम्हें मैंने फॉर्म देखने के लिए नहीं दिया, भरने के लिए दिया है। जल्दी से भरो।"
उस लड़की ने नीरज की तरफ हैरानी से देखते हुए कहा, "कैसे?"
नीरज ने कन्फ़्यूज होते हुए कहा, "वाट डू यू मीन? तुम्हें फॉर्म भरना नहीं आता? इट्स सो सिम्पल। अपना नाम डालो, अपना एड्रेस और अपना मोबाइल नंबर, बस।"
नीरज उसे यह सारी बातें बता रहा था और वह नीरज की तरफ हैरानी से देख रही थी। तभी नीरज ने उसके हाथ से पेन लिया और फॉर्म उसके हाथ से छीनते हुए कहा, "छोड़ो, लाओ मैं ही भर देता हूँ। बताओ, तुम्हारा नाम क्या है?"
जैसे ही नीरज ने उससे उसका नाम पूछा, उसने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं परी हूँ…"
वह बोल ही रही थी कि तभी पीछे से उसके कान में एक आवाज आई, "इनका नाम परिधि है?"
नीरज ने उस आवाज की तरफ देखते हुए कहा, "सुवर्णा, तुम आ गई? आज काफी लेट हो गई तुम?"
सुवर्णा नीरज के करीब आते हुए बोली, "हाँ, वह तुम तो जानते हो ना, ट्रैफिक…!"
नीरज ने उस लड़की को घूरते हुए कहा, "यार, तू इसे जानती है क्या?"
सुवर्णा ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ।"
नीरज ने उसे फॉर्म और पेन पकड़ाते हुए कहा, "ले, इसका रजिस्ट्रेशन फॉर्म भर दे, काफी वियर्ड है यह। मैं जब तक बाकी गर्ल्स के ऑडिशन देखता हूँ। बाय द वे, शशांक सर को मैं आज पहले ही बुलाकर ले आया हूँ। अब राधिका अपनी दादागिरी नहीं दिखा पाएगी।"
सुवर्णा ने नीरज की बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा, "वेरी गुड, अब तुम जाओ।"
नीरज ने हाँ में अपना सिर हिलाया और वह चुपचाप वहाँ से चला गया। शशांक अभी भी उसकी तरफ बिल्कुल शॉक होकर खड़ा हुआ था और वह अपनी नज़रें उस पर से हटा ही नहीं पा रहा था।
परीशा ने सुवर्णा की तरफ हैरानी से देखा और सुवर्णा ने परीशा का हाथ पकड़कर उसे साइड में ले जाते हुए कहा, "तुम यहां क्या कर रही हो?"
परीशा हैरानी से उसकी तरफ देख रही थी। सुवर्णा ने परीशा से जब यह बात पूछी, तो परीशा ने थोड़ा घबराते हुए कहा, "मेरा नाम परिधि नहीं है, मेरा नाम परीशा है।"
सुवर्णा ने उसकी तरफ देखकर हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ हाँ, मुझे पता है। लेकिन यहां पर तुमसे जब कोई तुम्हारा नाम पूछे, तो तुम उसे अपना नाम परिधि बताओगी। यह परीस्तान नहीं, धरती है। तुम यहां पर किसी को भी अपना असली नाम नहीं बता सकती! समझी?"
जैसे ही सुवर्णा ने यह बात बोली, परीशा ने उसे घूरते हुए देखकर कहा, "तुम मुझे जानती हो?"
सुवर्णा ने हाँ में अपना सिर हिलाया और उसके फॉर्म में अपना एड्रेस और अपना मोबाइल नंबर भरा और उसे अपना फोन पकड़ाते हुए कहा, "लो, यह मेरा फोन है। इसे पकड़ो और जब तक मैं यहां वापस ना आ जाऊँ, तुम यहां से कहीं मत जाना। मैं अभी थोड़ी देर में आती हूँ।"
सुवर्णा इतना बोलकर वहाँ से दूसरी तरफ गई और तभी परीशा उस जगह को हैरानी से देखने लगी। तभी उसकी नज़र शशांक पर गई, जो बस एकटक उसे ही देखता जा रहा था और उसके चेहरे पर बड़ी ही प्यारी सी मुस्कराहट थी। लेकिन परीशा ने उसके चेहरे पर मुस्कराहट पर ध्यान नहीं दिया। वह बस हैरानी से, बिना अपनी पलकें झपकाए, शशांक की तरफ बढ़ने लगी। शशांक ने जब उसे अपने करीब आते देखा, वह काफी ज़्यादा खुश हो गया और उसकी दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गईं कि उसे ऐसा लग रहा था जैसे मानो अभी उसका दिल बाहर निकल आएगा।
शशांक ने जब परीशा को अपने करीब आते देखा, तो उसने धीमी आवाज़ में अपने मन में कहा, "यह मेरे करीब आ रही है? क्या इसे भी मेरी तरह ही सपने आते हैं और क्या यह मुझे भी अपने सपने में देखती है?"
शशांक यह बात सोच ही रहा था कि तभी परीशा उसके करीब आई और शशांक उससे कुछ बोलने ही वाला था कि तभी वह उसके पीछे की तरफ झाँककर देखने लगी।
परीशा शशांक के चारों तरफ घूम रही थी और इधर-उधर देख रही थी। शशांक को समझ नहीं आया कि वह ऐसा क्यों कर रही है।
दरअसल, परीशा अपने पक्षी कुटुम्ब को ढूंढ रही थी और उसे ही ढूंढते हुए वह ऑडिशन एरिया में भी आ गई क्योंकि कुटुम्ब उसे कुछ सिग्नल भेज रहा था और वह सिग्नल उसे शशांक के पास से आ रहा था।
क्योंकि परीशा के पक्षी कुटुम्ब, जो एक प्लास्टिक का टॉय जैसा लग रहा था, उसे शशांक ने अपनी कोट की जेब में रखा था, जो परीशा को नहीं दिख रहा था।
बस उसे अपने पक्षी का सिग्नल मिल रहा था और वह उसे ही ढूंढ रही थी और शशांक के चारों तरफ घूम रही थी। उसे ऐसा करते देखकर शशांक बिल्कुल हैरान हो गया और उसने परीशा का हाथ पकड़कर उसे रोकते हुए कहा, "वेट अ मिनट! व्हाट आर यू डूइंग?"
जैसे ही शशांक ने यह बात बोली और उसने परीशा का हाथ पकड़ा, परीशा की नज़रें जैसे ही शशांक की नज़रों से मिलीं, शशांक को एक तेज झटका लगा और उसे वही सपने में दिखने वाली चीज धुंधली-धुंधली नज़र आने लगी।
शशांक ने अपने सर पर हाथ रखा और परीशा को भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ। जैसे उसके दिल की धड़कनें तेज हो गई हैं। उसने जल्दी से शशांक के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया और तभी शशांक वही कुर्सी पर बैठ गया और उसने अपने सर को हिलाते हुए कहा, "व्हाट इज़ हैपनिंग टू मी?" परीशा अभी भी वहीं पर चुपचाप खड़ी थी और शशांक की तरफ हैरानी से देख रही थी कि तभी सुवर्णा दौड़ते हुए परीशा के पास आई और उसने परीशा का हाथ पकड़ते हुए कहा, "परिधि, व्हाट आर यू डूइंग हेयर? इधर नहीं, ऑडिशन उधर होने हैं, चलो।"
इधर वापस सुवर्णा परिधि का हाथ पकड़कर उसे वापस ले आई। परीशा सुवर्णा की तरफ देखकर काफी ज़्यादा हैरान हो गई थी। उसे नहीं समझ में आ रहा था कि सुवर्णा कौन है और वह उसकी मदद क्यों कर रही है!
परीशा ने पूछा, "कौन हैं आप और हमें इस तरह से यहां पर क्यों लेकर आईं? हमें वहाँ पर अपने कुटुम्ब को… मतलब हमें कुछ ढूंढना है?"
सुवर्णा ने थोड़े गुस्से में कहा, "क्या ढूंढना है तुम्हें, जो तुमने यहां पर आते साथ ही खो दिया? ऐसा क्या है? कोई इतनी ज़रूरी चीज है क्या? लेकिन तुम इस तरह से किसी भी आदमी के नज़दीक नहीं जा सकती। तुम्हें पता है ना, परियों को इन सब चीजों से दूर रहना होता है।"
क्रमशः
स्टोरी अच्छी लगे तो कमेंट ज़रूर करिएगा।
पाँचवाँ भाग - शशांक ने जब परिशा को अपने करीब आते देखा, तो उसने धीमी आवाज में अपने मन में कहा, "यह मेरे करीब आ रही है? क्या इसे भी मेरी तरह ही सपने आते हैं? और क्या यह मुझे भी अपने सपने में देखती है?"
शशांक यह बात सोच ही रहा था कि तभी परिशा उसके करीब आई। शशांक उससे कुछ बोलने ही वाला था कि तभी वह उसके पीछे की तरफ झांककर देखने लगी।
परिशा शशांक के चारों तरफ घूम रही थी और इधर-उधर देख रही थी। शशांक को समझ नहीं आया कि वह ऐसा क्यों कर रही है।
दरअसल, परिशा अपने पक्षी कुटुम्ब को ढूंढ रही थी। उसे ही ढूंढते हुए वह ऑडिशन एरिया में भी आ गई क्योंकि कुटुम्ब उसे कुछ सिग्नल भेज रहा था, और वह सिग्नल उसे शशांक के पास से आ रहा था।
क्योंकि परिशा के पक्षी कुटुम्ब, जो एक प्लास्टिक के खिलौने जैसा लग रहा था, उसे शशांक ने अपनी कोट की जेब में रखा था। जो परिशा को नहीं दिख रहा था।
बस उसे अपने पक्षी का सिग्नल मिल रहा था, और वह उसे ही ढूंढ रही थी, और शशांक के चारों तरफ घूम रही थी। उसे ऐसा करते देखकर शशांक बिल्कुल हैरान हो गया। उसने परिशा का हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहा,
"वेट अ मिनट! व्हाट आर यू डूइंग?"
जैसे ही शशांक ने यह बात बोली और उसने परिशा का हाथ पकड़ा, परिशा की नज़रें जैसे ही शशांक की नज़रों से मिलीं, शशांक को एक तेज झटका लगा। उसे वही सपने में दिखने वाली चीज धुंधली-धुंधली नज़र आने लगी।
शशांक ने अपने सर पर हाथ रखा, और परिशा को भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ। जैसे उसके दिल की धड़कनें तेज हो गई हों। उसने जल्दी से शशांक के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया। तभी शशांक वही कुर्सी पर बैठ गया और उसने अपने सर को हिलाते हुए कहा,
"व्हाट इज़ हैपनिंग टू मी?"
परिशा अभी भी वहीं पर चुपचाप खड़ी थी और शशांक की तरफ हैरानी से देख रही थी। तभी सुवर्णा दौड़ते हुए परिशा के पास आई और उसने परिशा का हाथ पकड़ते हुए कहा,
"परिधि! व्हाट आर यू डूइंग हेयर? इधर नहीं, ऑडिशन उधर होने हैं, चलो।"
इधर, सुवर्णा परिधि का हाथ पकड़कर उसे वापस ले आई। परिशा सुवर्णा की तरफ देखकर काफी ज्यादा हैरान हो गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि सुवर्णा कौन है और वह उसकी मदद क्यों कर रही है!
"कौन हैं आप? और हमें इस तरह से यहां पर क्यों लेकर आईं? हमें वहां पर अपने कुटुम्ब को... मतलब हमें कुछ ढूंढना है?"
"क्या ढूंढना है तुम्हें? जो तुमने यहां पर आते साथ ही खो दिया? ऐसा क्या है? कोई इतनी ज़रूरी चीज है क्या? लेकिन तुम इस तरह से किसी भी आदमी के नज़दीक नहीं जा सकतीं। तुम्हें पता है ना, परियों को इन सब चीजों से दूर रहना होता है।"
सुवर्णा ने एकदम से ही यह बात बोली। तो परिशा बहुत ही ज्यादा हैरानी से उसकी तरफ देखने लगी और बोली,
"नहीं, आप यह क्या बोल रही हैं? कौन परी? मैं तो बस एक साधारण लड़की…"
"हां हां, ठीक है परिधि, तुम एक साधारण लड़की हो। मैं क्या कुछ भी बोल रही हूँ? लेकिन तुम बार-बार इस तरह से सर के नज़दीक मत जाओ। अगर उन्हें कुछ भी शक हो गया तो... वैसे भी, तुम्हें अपने बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं है, तो मैं क्या बताऊंगी? जब वह बोलेंगे कि तुम ऐसे क्या कर रही हो, तब मुझे बताओ क्या ढूंढ रही हो तुम?"
सुवर्णा ने एक ही सांस में उसे यह सारी बातें समझाते हुए कहीं। तो आधी से ज्यादा बातें परिशा के सिर के ऊपर से निकल गईं, और वह उसी तरह हैरानी से उसकी तरफ देखती रही क्योंकि उसे समझ नहीं आया। वह उसे यह बात बताए या नहीं कि वह अपना पक्षी कुटुम्ब ढूंढ रही है।
वह दोनों आपस में बात ही कर रही थीं। तभी राधिका वहां पर आई और बहुत ही ज्यादा घूर कर परिशा को देखते हुए बोली,
"कौन हो तुम? आज पहली बार ही सर को देखा और डोरे डालने लगीं। माना वह हैंडसम हैं, लेकिन फिर भी थोड़ी तो रिस्पेक्ट करो। मधुमक्खी की तरह उनके आगे-पीछे घूम रही हो, तुम्हें क्या लगता है ऐसा करके तुम्हें जॉब मिल जाएगी? यहां जॉब पाने के लिए कुछ होना भी चाहिए।"
"आप ये सब क्या बोल रही हैं? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, और मैं यहां पर किसी जॉब के लिए…!"
इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाती, सुवर्णा ने परिशा का हाथ दबा कर उसे चुप रहने का इशारा किया और आगे बढ़ी।
"सॉरी, सॉरी राधिका मैम, वह यह कुछ ढूंढ रही थी। इसका शायद कुछ खो गया है। वहां पर ही गिरा होगा इसीलिए। और इसका ऐसा कोई इरादा नहीं था।"
सुवर्णा ने उसकी तरफ से सफाई देने की कोशिश करते हुए कहा।
"तो?"
इतना बोलकर वह उसे सिर से लेकर पांव तक देखने के बाद राधिका सुवर्णा की तरफ देखकर उसी तरह एटीट्यूड में बोली,
"तुम क्यों बोल रही हो इसकी तरफ से? इसके मुंह में ज़बान नहीं है क्या? और तुम इसे जानती हो?"
उसके इस सवाल पर परिशा एकदम ही चुप हो गई क्योंकि उसे समझ नहीं आया कि वह क्या जवाब दे। और सुवर्णा भी कुछ सोचने लगी।
तभी वह एकदम से बोली,
"वह एक्चुअली मेरी कज़िन है। शहर में जॉब के लिए आई है, और यहां पर सर ने पहले ही एडवर्टाइज़मेंट दिया था। न्यूज़पेपर और बाकी सारी जगह पर। तो मैंने सोचा कि एक बार यह भी ट्राई कर ले।"
राधिका ने परिशा को घूरते हुए देखकर कहा,
"इस गंवार लड़की से तुम यहां पर मॉडलिंग के लिए लेकर आई हो? इसे मॉडलिंग का एम भी आता है? और तुम्हें लगता है मैं ऐसे ही किसी भी ऐरी-गैरी लड़की को रास्ते से उठाकर अपनी कंपनी के मॉडल बना दूंगी?"
राधिका जिस तरह से बात कर रही थी, उससे परिशा को बहुत ही गुस्सा आया।
गुस्से में उसने अपने हाथ की मुट्ठी कसकर बांध ली और फिर मुट्ठी खोली। उसकी उंगली के किनारे कुछ सुनहरे रंग की रोशनी नज़र आई, और कोई उसे देख नहीं पाया। लेकिन सुवर्णा ने उसे देख लिया और उसका हाथ कसकर पकड़ लिया।
जिससे कि वह कोई भी जादू राधिका पर ना कर पाए, क्योंकि राधिका उससे इस तरह से बात कर रही थी। वह समझ गई कि उसको गुस्सा आ गया होगा। वह अब उसे शायद ऑडिशन में पास ना करे।
सुवर्णा ने राधिका से कहा,
"राधिका मैम, एक बार इसका ऑडिशन तो ले कर देखिए। और वैसे भी सर को कोई प्रॉब्लम नहीं है। मैं एक बार उनसे परमिशन ले लेती हूँ।"
इतना बोलकर सुवर्णा ने राधिका की तरफ देखा और परिशा का हाथ पकड़ा और उसे लेकर शशांक की तरफ ही बढ़ गई। और उन दोनों को उस तरफ जाती देख राधिका गुस्से में आ गई और उन्हें रोक नहीं पाई।
परिशा को वहीं खड़ा करके सुवर्णा खुद अकेले ही शशांक के पास गई और परिशा के बारे में बताने लगी। उसने उसका नाम उसे परिधि बताया और वही कज़िन वाली झूठी कहानी उसे सुना दी और कहा,
"सर, क्या आप उसे एक मौका दे सकते हैं? वह यहां पर मॉडल बनने के लिए ही आई है। मुझे लगा क्यों ना वह हमारी कंपनी से शुरुआत करे। वैसे भी, वह अच्छी दिखती है।"
सुवर्णा शशांक से यह बोल रही थी, लेकिन शशांक की नज़रें तो परिशा पर ही टिकी हुई थीं। और उसकी तरफ देखते हुए एकदम ही बेख़याली में बोला,
"सुंदर नहीं, बहुत ही ज्यादा सुंदर है वह! और उसके जैसी लड़की तो मैंने सिर्फ अपने सपनों में ही देखी है।"
सुवर्णा उसकी बात सुनकर हैरान रह गई। उसे समझ नहीं आया कि शशांक क्या बोल रहा है। फिर उसने उसकी नज़रों का पीछा किया तो वह समझ गई कि वह परिशा की खूबसूरती में ही खोया हुआ है।
इसलिए उसने कहा,
"सॉरी सर, आप क्या परमिशन दे रहे हैं या फिर नहीं? तो..."
शशांक ने कहा,
"हाँ हाँ हाँ, बिल्कुल! आखिर सभी को मौका मिलना चाहिए। कोई बात नहीं, मौका मिलना चाहिए। जाओ और उसे ऑडिशन के लिए तैयार करो। मैं भी यहां पर ही हूँ।"
दूसरी तरफ, परिशा बार-बार उसकी तरफ ही देख रही थी जहां पर शशांक खड़ा हुआ था क्योंकि उसे उसी तरफ से ही कुटुम्ब का सिग्नल आ रहा था।
लेकिन वह उसे कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा था। और परिशा को रानी माँ ने मना किया था। इसलिए इस तरह इतने लोगों के बीच वह अपनी शक्तियों का भी इस्तेमाल नहीं कर पा रही थी, नहीं तो अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके वह एक सेकंड में ही अपने कुटुम्ब पक्षी को ढूंढ लेती और उसे लेकर वहां से निकल भी जाती। क्योंकि वहां पर रुकने के लिए तो वह बिल्कुल भी नहीं आई थी।
उसका कुछ मकसद है, जिसे पूरा करने के लिए वह यहां धरती पर आई है, और इन सब चीजों के बीच में नहीं फंसना चाहती।
इस बारे में वह सोच ही रही थी, तभी सुवर्णा उसके पास आई और उसके कंधे से पकड़ कर उसे अपने साथ ले जाती हुई बोली,
"चलो, तुम मेरे साथ ऑडिशन के लिए। सबसे पहले तुम्हें कपड़े चेंज करने हैं, और फिर मैं जैसे बताऊंगी, ठीक उसी तरह से तुम्हें चलना और बाकी सारी चीज करनी है।"
"अरे लेकिन क्यों? हमें यह सब नहीं करना है। हमने आपको बताया था ना, हमें इन सब चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं। हम यहां पर कुछ ढूंढने के लिए आए हैं जो कि हमारा खो गया है।" - परिशा ने सुवर्णा से मना करते हुए कहा।
लेकिन सुवर्णा ने उसे लगभग पीछे से धक्का देकर अपने साथ ले जाते हुए कहा,
"हाँ, ठीक है। तुम्हारा जो भी सामान खोया है ना, वह मिल जाएगा। लेकिन पहले तुम चलो मेरे साथ, नहीं तो तुम्हारी ऐसी हरकतों की वजह से तुम 2 मिनट में पकड़ी जाओगी।"
सुवर्णा की यह बात सुनकर परिशा को फिर से उस पर शक हुआ, और उसने घूर कर सुवर्णा को देखा और फिर उसके साथ वहां से स्टूडियो के पीछे बने वेटिंग रूम में चली गई, जहां पर बाकी सारी मॉडल भी ऑडिशन के लिए बैठी थीं।
ऑडिशन एरिया में शशांक जाकर वहां डायरेक्टर और बाकी लोगों के साथ बैठ गया जो कि बाकी मॉडल का ऑडिशन लेने वाले थे। लेकिन शशांक को सिर्फ एक लड़की में ही इंटरेस्ट है, और वह उसके ही ऑडिशन का इंतज़ार कर रहा है। तभी वहां पर दरवाज़ा खुला और एक आदमी अंदर आया।
उसके चेहरे पर तिरछी मुस्कराहट है, उसका चौकोर चेहरा और बादाम के जैसी डार्क ब्राउन आँखें हैं। उसने अपने बाल पीछे की तरफ कोंब करके रखे हुए हैं, और वह एकदम ऑफिस वाले फ़ॉर्मल कपड़े ही पहने हैं। उसके ब्लैक शूज़ काफी ज़्यादा चमक रहे हैं। वह अजीब ढंग से चलता हुआ अंदर आया और शशांक के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए बोला,
"क्या बात है? आज तुम यहां यह? तुझे ऑडिशन लेने में कब से इंटरेस्ट आ गया, शशांक?"
शशांक ने उसकी आवाज़ सुनकर पीछे मुड़कर उसकी तरफ देखा और बोला,
"अरे लक्ष्य, तू यहां? मैं तो बस आ गया हूँ। कंपनी के सारे काम ही मेरे काम होते हैं। तुम ऐसे क्यों बोल रहे हो?"
उसकी इस बात पर लक्ष्य ने मुस्कुराते हुए कहा,
"अरे बस ऐसे ही। मैंने सोचा, आखिर हमारी पार्टनरशिप की कंपनी है, तो थोड़ा बहुत मैं भी आकर देख लेता हूँ।"
शशांक ने पलकें झपकाते हुए कहा,
"ठीक है, ऑडिशन स्टार्ट होने वाले हैं, बैठ जाओ यहां चेयर पर। और कोई पसंद आए तो बता देना। वैसे काफी सारे मेल-फीमेल दोनों ही मॉडल आए हुए हैं, लेकिन उनमें से अपने लिए किसी लड़की को मत देखने जाना, हमेशा की तरह…"
उसकी इस बात पर वह हँसने लगा। हँसते हुए उसने शशांक के कंधे पर हाथ मारा। और शशांक ने नीचे झुककर धीरे से उसके कान में कहा,
"तो क्या हुआ अगर कोई पसंद आ भी गई तो क्या करूँ? अब यह दिल है कि मानता नहीं किसी को। अगर ऐसी मस्त आइटम दिख गई और अगर वह भी इंटरेस्टेड हुई मेरे भाई में, तो फिर क्यों नहीं… सामने से आते हुए ऑफर को भला कौन मना करता है?"
इतना बोलते हुए लक्ष्य ने शशांक को आँख मारी। शशांक उसका यह प्लेबॉय और फ़्लर्टी नेचर बहुत अच्छी तरह से जानता है। इसीलिए उसकी ऐसी बातें सुनकर उसने बस बेबसी से अपना सिर हिलाया। और तभी वहां की एक स्टाफ़ ने आकर डायरेक्टर के कान में बताया कि ऑडिशन के लिए वह पहले लड़की को भेज रहे हैं। और यह बात सुनते ही वे सभी चुप हो गए और ध्यान से सामने की तरफ देखने लगे।
वहां पर बना हुआ वह सेटअप ज़्यादा बड़ा तो नहीं, लेकिन कुछ जगह के एकदम बीच में एक नॉर्मल साइज़ का स्टेज बना हुआ था, जो कि अभी के लिए वहां पर होने वाले ऑडिशन के लिए तो काफी था।
और तभी पहली लड़की वेटिंग रूम से निकलकर स्टेज पर आई और उसने कमर पर हाथ रखकर मॉडल की तरह कैट वॉक की और मॉडल फेस बनाकर ही वहां से मुड़कर गई। और उसने आस-पास बैठे लोगों की तरफ भी एक नज़र काफी एटीट्यूड में देखा।
क्रमशः
कमेंट ज़रूर कीजिएगा, ओके बड्डीज़ 💚🌹
ऑडिशन.....
उस स्टेज पर एक-एक करके सारी मॉडल्स, जो ऑडिशन देने आई थीं, उन्होंने रैंप वॉक करना शुरू किया। सारे लोग वहां पर रैंप पर चल रही मॉडल्स को बड़े ही ध्यान से देख रहे थे, लेकिन शशांक की नज़रें सिर्फ और सिर्फ परीशा की तरफ थीं।
वह बस चाह रहा था कि जल्दी से जल्दी परीशा रैंप वॉक पर आए और वह उसे रैंप पर चलते हुए देख सके।
परीशा अभी बैक स्टेज पर सुवर्णा के साथ खड़ी थी, और सुवर्णा उसे रैंप पर चलने के लिए कुछ टिप्स दे रही थी।
सुवर्णा ने परीशा को बड़ा ही सिंपल ग्रे कलर का एक हैवी गाउन दिया। जैसे ही परीशा ने उसे पहना, वह उसे पर काफी ज्यादा सूट कर रहा था। सुवर्णा ने परीशा के सारे बाल खोल दिए। वैसे तो परीशा इतनी खूबसूरत लग रही थी कि उसे मेकअप की कोई ज़रूरत नहीं थी, लेकिन फिर भी फ़ॉर्मेलिटी के लिए सुवर्णा ने उसे पर हल्का मेकअप किया और थोड़ा टच अप करने के बाद उसने परीशा के होठों पर लाइट ब्राउन कलर की लिपस्टिक लगा दी।
परीशा अब पहले से चार गुना ज़्यादा खूबसूरत हो गई थी। उसके चेहरे पर अगर किसी की भी नज़र पड़ जाए, तो वह कुछ देर तक तो उसके चेहरे पर से अपनी नज़र हटा ही नहीं सकता था। इतना बोलते ही राधिका और नीरज बैक स्टेज के उस कमरे में आए, जहां पर सुवर्णा परीशा को रेडी कर रही थी। नीरज जैसे ही कमरे में आया, उसने सुवर्णा की तरफ देखते हुए कहा,
"हे सुवर्णा, तुमने इसे रेडी कर दिया क्या...?"
इतना बोलते-बोलते वह कमरे के अंदर आया। लेकिन जैसे ही नीरज की नज़र परीशा पर गई, वह एकटक उसे देखता ही रह गया। वह उसके पास जाकर बोला,
"ऊ ला ला! हे परिधि, यू आर डैम ब्यूटीफुल।"
राधिका ने जैसे ही नीरज के मुंह से परिधि की तारीफ सुनी, वह उसे घूर कर देखने लगी।
परीशा नीरज की तरफ हैरानी से देखने लगी क्योंकि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि नीरज क्या बोल रहा है। और तभी सुवर्णा ने उसे एक नॉर्मल सी हील्स देते हुए कहा,
"लो इसे पहनो और नेक्स्ट तुम्हारी बारी है।"
जैसे ही राधिका ने सुवर्णा के हाथ में वह सिंपल सी सैंडल देखी, उसने सुवर्णा के हाथ से उसे सैंडल छीनते हुए कहा,
"इस गाउन पर तुम इसे यह सैंडल पहनने के लिए दे रही हो? सुवर्णा, यू आर आउट ऑफ़ योर माइंड! तुम्हें फैशन का कोई सेंस है भी या नहीं? छोड़ो इसे। इसे यह वाली हील पहनने के लिए दो।"
इतना बोलकर राधिका ने एक पेंसिल हील निकाल कर सुवर्णा के हाथ में पकड़ाई। सुवर्णा ने उसे हील देखते हुए कहा,
"राधिका, आर यू सीरियस? क्या आपको लगता है यह 5 इंच की हील पहनकर परिधि को रैंप पर जाना चाहिए?"
राधिका ने सुवर्णा को घूरते हुए कहा,
"येस, आई एम डैम सीरियस! और आप मुझे और कोई सवाल नहीं करना। इसे जल्दी से पहनाओ और रैंप पर भेजो।"
नीरज राधिका की तरफ देखकर बोला,
"तुमसे किसने कह दिया कि यह हील इस गाउन पर अच्छी लगेगी? मुझे लगता है वह पहले वाली हील ज़्यादा सूट कर रही थी।"
इस पर राधिका ने नीरज को घूरते हुए देखा और सुवर्णा की तरफ देखते हुए कहा,
"मैं अनाउंसमेंट करवाने जा रही हूं और अगर तुम में से किसी ने भी इसे इस हील्स को चेंज करने के लिए कहा, तुम लोग जानते हो मैं क्या करूंगी!"
इतना बोलकर राधिका चुपचाप वहां से बाहर निकल गई। नीरज ने राधिका को जाते देखकर अपने दांत पीस लिए। और तभी सुवर्णा ने परीशा की तरफ देखा और उसे वह हील पहनने के लिए कहा।
परीशा ने उसे हील पहना और वह उसे हील पहनकर ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी कि तभी सुवर्णा ने उसकी तरफ देखते हुए कहा,
"तुम अपनी बॉडी को रिलैक्स रखना परिधि और धीरे-धीरे रैंप पर चलना, ओके।"
परीशा बिल्कुल शांत थी और वह हील पहनकर खड़े होने की कोशिश कर रही थी कि तभी नीरज ने परीशा की तरफ देखते हुए कहा,
"तुमने आज से पहले कभी भी इतनी हील नहीं पहनी क्या?"
परीशा को समझ नहीं आया कि वह उसकी बात का क्या जवाब दे और उसने उसी तरह हैरानी से नीरज की तरफ देखते हुए बस ना में अपना सिर हिला दिया। नीरज ने गहरी सांस लेते हुए कहा,
"ठीक है, मैं तुम्हें एक टिप देता हूं। जितना ज़्यादा हो सके, तुम रैंप पर चलते टाइम अपने पैर के पंजों पर ज़ोर देना। इससे तुम्हें चलने में आसानी होगी।"
परीशा ने उसकी बात सुनकर हाँ में अपना सिर हिलाया और तभी राधिका ने बाहर जाकर परीशा के नाम की अनाउंसमेंट की।
जैसे ही शशांक ने परीशा का नाम सुना, वह अभी तक जो बिल्कुल रिलैक्स होकर अपने हाथों को बांधकर खड़ा था, उसने अपने हाथ में पड़े फ़ोन को जेब में रखा और उसने अपने कोट की स्लीव्स को थोड़ा फ़ोल्ड कर लिया। और उसकी नज़रें रैंप की तरफ़ जम गईं।
परीशा अपना नाम सुनते ही रूम से बाहर निकली और रैंप पर आकर खड़ी हो गई।
उसे चलने में अभी भी थोड़ी परेशानी हो रही थी, लेकिन नीरज ने उसे जैसे चलने के लिए कहा था, वह इस तरह से चल रही थी। और शशांक जो परीशा को देखकर काफी ज़्यादा खुश हो गया।
उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कराहट आ गई। और परीशा ने जैसे ही रैंप पर चलना शुरू किया, वहां मौजूद सभी लोग परीशा की सुंदरता देखकर बस उसे एकटक देखते ही रह गए।
वहीं लक्ष्य की नज़र भी परीशा पर थी। और परीशा ने जो गाउन पहना था, वह गाउन काफी ज़्यादा स्किन-टाइट था और उसे परीशा का फ़िगर साफ़ नज़र आ रहा था। और लक्ष्य ने परीशा की तरफ़ देखकर अपने हाथ से अपने होठों को सहलाया और परीशा की तरफ़ देखकर वह बड़ी ही अजीब मुस्कराहट के साथ देखने लगा।
परीशा ने वहां मौजूद किसी भी इंसान पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि उसे बाकी किसी से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था। वह चुपचाप रैंप पर चल रही थी कि तभी उसका पैर अचानक से मुड़ा और वह लड़खड़ा कर गिरने ही वाली थी कि तभी शशांक ने जल्दी से आगे बढ़कर उसे पकड़ लिया। और अब तक परीशा उसके गोद में गिर गई थी। और एक बार फिर जैसे ही शशांक और परीशा ने एक-दूसरे को छुआ, उन दोनों को ही कुछ अजीब से चित्र नज़र आने लगे।
To be continued...
Buddies 💚 अगर स्टोरी अच्छी लगे तो कमेंट ज़रूर करिएगा।
वे दोनों एक-दूसरे की ओर हैरानी से देख रहे थे। पर ने शशांक के हाथ को अपनी कमर से हटाया और सीधी खड़ी हो गई। परीशा से जलने वालों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उन्हें लगा कि परेशान रैंप से गिर गई है और ठीक से वॉक भी नहीं कर पाई। इसका मतलब उसे मॉडलिंग एजेंसी में नौकरी नहीं मिलेगी। वे सभी यह सोचकर खुश हो गए कि उनका एक प्रतिस्पर्धी काम से बाहर हो गया। लेकिन शशांक ने परीशा की ओर देखा। परेशान ने अपनी हील्स की ओर देखते हुए कहा,
"इन हील्स की वजह से मैं गिरते-गिरते बची।"
इतना बोलकर परेशान चुपचाप सुवर्णा के पास जाकर खड़ी हो गई। शशांक ने परीशा की ओर देखा; वह उस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही थी। तभी सभी मॉडल्स ने अपना ऑडिशन दे दिया था। रिजल्ट घोषित करने की बारी आई तो सभी जज और लोगों ने रिजल्ट पहले ही बना लिया था। रिजल्ट में कहीं भी परिधि का नाम नहीं था।
नीरज ने राधिका की ओर देखा। वह राधिका के करीब आकर बोला,
"तुमने उसे जानबूझकर ये हील्स दी थीं ना?"
उसने सिर हिलाया और नीरज की ओर देखकर मुस्कुराने लगी। नीरज ने सिर हिलाते हुए कहा,
"तुम इतना क्यों जलती हो दूसरों से?"
उसने नीरज की ओर देखते हुए कहा,
"क्योंकि मुझे वह पसंद नहीं, इसलिए मैं नहीं चाहती कि वह हमारी कंपनी में काम करे।"
नीरज ने सिर हिलाया। एक-एक करके जज ने उन सभी मॉडल्स का नाम लिया जो ऑडिशन के बाद सेलेक्ट हुई थीं। जैसे-जैसे उनके नाम लिए गए, वे खुशी से उछल पड़ीं और एक-दूसरे की ओर देखकर मुस्कुरा रही थीं।
सुवर्णा परिधि के बगल में खड़ी थी। उन दोनों को नहीं लग रहा था कि परिधि को यह नौकरी मिलेगी। वैसा ही हुआ; जज ने सारे नाम ले लिए थे, और परिधि का नाम नहीं लिया। सुवर्णा ने जजेस की ओर देखा। सभी जज उठकर खड़े हो गए थे और जाने ही वाले थे कि शशांक ने उन्हें रोकते हुए कहा,
"एक मिनट! यहां मौजूद सारे जज दो मिनट के लिए रुकिए। मैं आपके कुछ मिनट और लेना चाहता हूं और एक इम्पॉर्टेन्ट अनाउंसमेंट करना चाहता हूं।"
जैसे ही शशांक ने यह बात बोली, सुवर्णा, राधिका, नीरज सभी हैरानी से शशांक की ओर देखने लगे।
शशांक ने परिधि की ओर देखते हुए कहा,
"आज परिधि का शायद दिन अच्छा नहीं था, या हो सकता है उसने हड़बड़ाहट में गलती की और वह रैंप से गिर गई। लेकिन हम उसे उसकी एक गलती से जज नहीं कर सकते ना? और वैसे भी, मुझे वह अपनी एजेंसी के लिए सबसे अच्छी और सही मॉडल लग रही है। इसलिए मैं आप सभी से यह कहना चाहता हूं कि जिन मॉडल्स का अभी नाम लिया गया है, उनके साथ-साथ परिधि को भी मॉडल के तौर पर सेलेक्ट किया जाता है।"
जैसे ही शशांक ने यह बात बोली, सुवर्णा के चेहरे पर बड़ी मुस्कान आ गई और उसने परीशा को साइड हग कर लिया।
नीरज ने यह बात सुनकर परीशा की ओर देखकर मुस्कुराया और उसे अंगूठा दिखाया। परीशा वहां मौजूद सभी लोगों की ओर देख रही थी और उन सभी को ऑब्जर्व करने की कोशिश कर रही थी। उसे समझ में आ गया था कि वहां कई ऐसे लोग हैं जो उससे जल रहे हैं, और कुछ ऐसे भी हैं जो उसके सेलेक्ट होने से खुश हो गए हैं।
नीरज और सुवर्णा उन्हीं में से एक थे। इतना बोलकर शशांक सीधे अपने केबिन की ओर चला गया और वहां मौजूद बाकी सभी लोग अपने-अपने काम में लग गए।
लक्ष्य भी शशांक के ऑफिस में आया और उसने शशांक के सामने वाली कुर्सी पर बैठकर उससे कुछ इम्पॉर्टेन्ट बात करना शुरू कर दिया।
सुवर्णा ने परीशा को अपने गले लगा रखा था और उसने परीशा की ओर देखते हुए कहा,
"वाह! तुम्हारा तो जैकपोट लग गया है ना!"
परीशा ने सुवर्णा की ओर देखकर बोला,
"मतलब...?"
सुवर्णा कुछ बोलने ही जा रही थी कि नीरज उसके पास आकर बोला,
"मतलब तुम बहुत लकी हो। वरना शशांक सर इस तरह से किसी को भी सेकंड चांस नहीं देते। बाय द वे, वेलकम टू आवर कंपनी! और तुम बिल्कुल भी परेशान मत होना, मैं तुम्हें मॉडलिंग में सब कुछ अच्छे से समझा दूंगा।"
परेशान ने सिर हिलाया। सुवर्णा ने परीशा की ओर देखकर कहा,
"तुम्हें शशांक सर ने अपनी कंपनी में शामिल कर लिया है। मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हें उन्हें थैंक्स बोलना चाहिए!"
जैसे ही सुवर्णा ने यह बात बोली, परीशा हैरानी से उसकी ओर देखने लगी और उसने कहा,
"लेकिन क्यों?"
सुवर्णा नीरज की ओर देखने लगी और नीरज ने सुवर्णा की ओर देखा और वह चुपचाप वहां से बाहर निकल गया। सुवर्णा ने परीशा का हाथ पकड़ते हुए कहा,
"देखो परीशा, तुम्हें यह जॉब तो मिल गई है, लेकिन अगर तुमने शशांक सर को थैंक यू नहीं बोला तो उन्हें रूठ लग जाएगा, है ना? इसलिए उनके केबिन में जाकर उन्हें पर्सनली थैंक यू बोलकर आओ।"
जैसे ही सुवर्णा ने यह बात बोली, परिधि ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा,
"लेकिन इसकी क्या जरूरत है?"
सुवर्णा ने परिधि की ओर देखकर सिर हिलाते हुए कहा,
"क्योंकि मैं कह रही हूं, इसलिए! अब जाओ और कोई सवाल-जवाब नहीं!"
इतना बोलकर सुवर्णा ने परीशा को शशांक के केबिन की ओर भेज दिया। जैसे ही परीशा अंदर गई, उसने देखा कि केबिन में जो कुर्सी है वह दूसरी तरफ घूमी हुई है और उसे नहीं दिख रहा कि कुर्सी पर कौन बैठा हुआ है। उसने अंदर आते हुए कहा,
"थैंक यू सो मच सर, मुझे यह जॉब देने के लिए।"
जैसे ही परिधि ने यह बात बोली, वह कुर्सी परिधि की ओर घूमी। जैसे ही परिधि ने कुर्सी पर बैठे इंसान को देखा, वह बिल्कुल हैरान हो गई। तभी वह आदमी परिधि के करीब आने लगा। परिधि दो कदम पीछे हट गई।
क्रमशः…
बड्डीज़ 💚 अगर स्टोरी अच्छी लगे तो कमेंट जरूर करिएगा।
परीशा, बचाओ मुझे!
तभी उस कुर्सी पर बैठा आदमी परिधि के करीब आने लगा। परिधि दो कदम पीछे हटी।
जब परिधि ने देखा कि वह आदमी उसकी ओर बढ़ता ही जा रहा है, तो वह उसे गुस्से से घूरने लगी। उसके चेहरे पर एक अलग ही एक्सप्रेशन था, जिसे देखकर परिधि अपनी जगह पर रुक गई। उसके हाथ में उसकी जादुई शक्तियाँ नज़र आईं।
जिसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो परिधि उसे अपनी जादुई शक्तियों से घायल करने वाली है। उसने अपने हाथों की मुट्ठी बंद की और उसके हाथों के चारों ओर एक अलग सुनहरे रंग की रोशनी नज़र आ रही थी। परिधि ने उस आदमी को अपने करीब आते देखकर मन में कहा, "अब अगर इसने एक कदम भी मेरी ओर बढ़ाया तो मैं इसे..."
परिधि यह सोच ही रही थी कि तभी केबिन के अंदर बने दूसरे दरवाजे से शशांक निकला। परिधि के सामने लक्ष्य को इस तरह खड़ा देखकर शशांक उसे घूरने लगा। लक्ष्य धीरे-धीरे परिधि के करीब जा रहा था कि तभी लक्ष्य को रोकने के लिए शशांक तेज कदमों से चलता हुआ, उन दोनों के बीच आया। उसने लक्ष्य के सीने पर हाथ रखते हुए कहा, "क्या कर रहा है तू लक्ष्य?"
इससे पहले कि लक्ष्य कुछ बोल पाता, शशांक ने परिधि की आँखों में आँखें डालकर देखते हुए कहा, "तुम यहां मेरे केबिन में क्या कर रही हो?"
परिधि ने जैसे ही शशांक को वहाँ आते देखा, उसने अपने हाथों की मुट्ठी खोली और वह शशांक को बड़ी हैरानी से देखने लगी। क्योंकि अभी भी शशांक के पास से उसे अपने पक्षी कुटुम्ब का सिग्नल मिल रहा था। जब उसने शशांक की बात का कोई जवाब नहीं दिया, तो...
शशांक ने तेज आवाज में कहा, "परिधि! आई एम टॉकिंग टू यू, डिड यू हियर मी? मैंने कहा, तुम यहां क्या कर रही हो?"
शशांक की सख्त आवाज सुनकर परिधि ने हड़बड़ाते हुए कहा, "वो... मैं तुम्हें थैंक यू बोलने आई थी।"
शशांक ने परिधि की ओर देखकर कहा, "तुम्हें थैंक यू बोलने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम जा सकती हो!"
इतना बोलकर शशांक ने अपना चेहरा लक्ष्य की ओर घुमाया और उसे घूरते हुए, सिर हिलाते हुए कहा, "तुम यहां बैठो। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है!"
परिधि अभी भी शशांक की ओर ही देख रही थी कि तभी शशांक पीछे मुड़ा और उसने उसे वहाँ से बाहर जाने का इशारा किया।
परिधि को ना चाहते हुए भी उसके केबिन से बाहर आना पड़ा। वह चुपचाप उसके केबिन से बाहर निकली। सुवर्णा ने उसका हाथ पकड़ते हुए पूछा, "बोल दिया तुमने शशांक सर को थैंक यू?"
परिधि ने सिर्फ़ हाँ में सिर हिलाया और कुछ नहीं कहा। तभी सुवर्णा ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "ठीक है तो फिर चलो। जब तक तुम्हारे पास रहने के लिए कोई घर नहीं है, तुम मेरे साथ रह सकती हो!"
इतना बोलकर सुवर्णा ने परिधि का हाथ पकड़ा और उसे लेकर सीधे वहाँ से बाहर आई।
"बचाओ! बचाओ! नहीं नहीं... आह... आह! मेरा शरीर... मेरा पूरा शरीर जल रहा है! मेरा बदन... सब कुछ इस आग में जलकर खाक हो जाएगा! परीशा, बचाओ मुझे! बचाओ! मेरा हाथ छोड़ो! मुझे यहां से निकालो..." आग की लपटों के बीच एक लोहे के पिंजरे में बंद खूबसूरत सी परी तेज आवाज में चिल्ला रही थी। आग के दूसरी तरफ परीशा अपने पूरे परी वाले रूप में खड़ी थी। वह आग उसके चारों ओर बढ़ती ही जा रही थी, जिससे बचने के लिए वह हवा में ऊपर उठी हुई थी और लगातार बीच में उस पिंजरे की ओर बढ़ रही थी। इसी बीच पिंजरे के अंदर मौजूद उस परी की चीख बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन जब तक वह वहाँ नहीं पहुँच जाती, वह उसे नहीं बचा सकती थी। इसलिए उसने भी तेज आवाज में चिल्लाया, "रुको! मैं... मैं बस पहुँचने ही वाली हूँ! मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगी, अरीशा! तुम्हें अपनी बहन पर भरोसा है ना...?"
इतना बोलते हुए उसने पिंजरे की ओर देखा तो वहाँ पर आग के बीच फंसी हुई परी के पैर में आग लगी हुई नज़र आई। और उस परी की आँखों में आँसू भरे थे।
वह आँसू बहुत ही ज़्यादा दर्द और तकलीफ से भरे हुए लग रहे थे। उसने बहुत ही उम्मीद के साथ नज़र उठाकर परीशा की ओर देखा। परीशा ने जल्दी उस तक पहुँचने की कोशिश की, लेकिन आग की लपटें ऊँची होने की वजह से वह पिंजरे तक नहीं पहुँच पा रही थी। और अगर वह ज़्यादा नज़दीक जाती तो उसके पैर में भी आग लगने का ख़तरा हो सकता था। इसलिए वह किसी तरह से बचते हुए पिंजरे की ओर बढ़ रही थी। लेकिन तभी पिंजरे में मौजूद उस परी की एक जोरदार चीख परीशा के कानों में आई।
उसने तेज आवाज में चिल्लाया, "मेरा पूरा शरीर जल रहा है! बचाओ मुझे! नहीं! अब मैं नहीं बच सकती..."
और इतना चिल्लाकर वह वहीं पिंजरे के अंदर गिर पड़ी और बेहोश हो गई, शायद सदमे की वजह से। लेकिन परीशा ने जैसे ही उसे देखा, वह एकदम हड़बड़ा गई और जल्दी से उड़ती हुई उसे पिंजरे के नज़दीक पहुँची। लेकिन जैसे ही उसने उस पिंजरे को हाथ लगाया...
उसे तेज झटका महसूस हुआ और वह वहाँ से बहुत दूर जाकर गिरी। उसे अपने हाथ का वह हिस्सा एकदम काला पड़ता हुआ सा नज़र आया। और तभी उसके माथे पर पसीना और उसकी साँसें एकदम तेज चलने लगीं। क्योंकि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी। अपनी बहन अरीशा को पिंजरे में, आग की लपटों के बीच फँसा हुआ देख रही थी और उसके नज़दीक भी नहीं जा पा रही थी। इसलिए उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे और उसने तेज आवाज में अपनी बहन का नाम लेकर चिल्लाया, "अरीशा..."
इतना बोलते हुए उसकी नींद टूट गई और वह बिस्तर पर एकदम से उठकर बैठ गई।
क्रमशः
बड्डीज़ 💚 अगर कहानी अच्छी लगे तो कमेंट ज़रूर कीजिएगा!
वह इस वक्त अपने परी वाले रूप में नहीं, बल्कि इंसानी रूप में थी और एक अंधेरे कमरे में सो रही थी। कमरे में केवल एक नाइट लैंप जल रहा था; यह एक सामान्य आकार का सिंगल बेडरूम था।
परीशा ने साधारण कुर्ता-सूट पहना हुआ था जो काफी आरामदायक लग रहा था, लेकिन सपने की वजह से उसकी साँसें बहुत तेज चल रही थीं। उसकी आँखों में डर और घबराहट साफ झलक रही थी; उसके माथे पर पसीना था और वह बहुत घबराई हुई लग रही थी।
"कितना बुरा सपना था यह! कहीं यह सपना सच न हो जाए! नहीं...नहीं...यह क्या सोच रही है तू परीशा? ऐसा कुछ भी नहीं होगा और अरिशा बिल्कुल ठीक होगी। तू उसे जल्द से जल्द ढूँढकर बचा लेगी। उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं होगा; मैं उसे कुछ होने नहीं दूँगी। इसीलिए तो मैं यहाँ धरती पर आई हूँ; हाँ, मैं अपनी बहन को बचा लूँगी।" परीशा बेड पर बैठी हुई, अपने आप को समझाते हुए यह बातें बोल रही थी।
तभी बाहर से उसके कमरे के दरवाजे पर खटखटाने की आवाज हुई और उसे एक जानी-पहचानी आवाज सुनाई दी।
"क्या हुआ परिधि? तुमने इतनी तेज आवाज में क्यों चिल्लाया? क्या कोई है तुम्हारे साथ? या फिर तुम किसी चीज से डर गई? बताओ क्या हुआ? दरवाजा खोलो। तुम ठीक हो ना?"
यह आवाज सुनकर परीशा का ध्यान उस ओर गया; नहीं तो अभी तक वह अपने बुरे सपने के बारे में ही सोच रही थी और बाहर से लगातार दरवाजे पर खटखटाने की आवाज आ रही थी।
इसलिए परीशा अपने बिस्तर से उठकर दरवाजे की ओर बढ़ी और उसने दरवाजा खोल दिया। जैसे ही उसने दरवाजा खोला, उसने देखा कि वहाँ सुवर्णा खड़ी हुई थी।
उसने एक लंबा नाइटी पहना हुआ था; उसके बाल खुले हुए थे, लेकिन वह भी परीशा की तरह थोड़ी घबराई हुई लग रही थी। शायद परीशा की आवाज सुनने के बाद ही वह इस तरह घबरा गई और अपने कमरे से भागते हुए यहाँ आई थी।
आगे आते हुए सुवर्णा ने परीशा का हाथ पकड़ा और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, "क्या हुआ? बताओ, कुछ बोलो तो! तुम ठीक हो ना? इतनी तेज आवाज में क्यों चिल्लाई? तुमने अपना ही नाम लेकर क्यों चिल्लाया? शायद तुमने परीशा या अरिशा... क्या बोला... मैं ठीक से सुन नहीं पाई।"
परीशा ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, "बुरा सपना था। मुझे भी नहीं पता चला कि मैं सपने में चीख रही थी या असल में! वैसे, परिस्तान में मुझे कभी भी ऐसा कोई सपना नहीं आया, क्योंकि परिस्तान में तो मैं सोती ही नहीं हूँ; कोई भी परी वहाँ सोती नहीं है।"
परीशा इस वक्त सुवर्णा के साथ उसके 2BHK फ्लैट में थी, जहाँ सुवर्णा अपने पति के साथ रहती थी। परीशा के पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी और वह दुनियादारी के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं जानती थी, इसलिए सुवर्णा उसे अकेले कहीं रहने नहीं दे सकती थी।
इसलिए वह उसे अपने साथ यहाँ ले आई थी और उसने अपने पति से बताया था कि परीशा उसकी कॉलेज फ्रेंड की छोटी बहन है, जो मॉडलिंग के लिए यहाँ आई है और उसके लिए रहने को कोई जगह नहीं है, इसलिए वह यहाँ रह रही है।
पहले तो उसके पति को थोड़ा शक हुआ, क्योंकि आज तक सुवर्णा ने अपने पति से परीशा या परिधि नाम की किसी भी लड़की के बारे में कभी बात नहीं की थी। और अचानक ही ऐसी लड़की को घर ले आई और वह इतनी सुंदर थी।
सुवर्णा की तरह, या उससे भी कहीं ज़्यादा सुंदर, उसे अपने घर में रखना उसके पति को ठीक नहीं लग रहा था।
लेकिन फिर सुवर्णा ने कहा कि उसकी मॉडलिंग कंपनी में वह सेलेक्ट हो गई है तो वह उन लोगों को किराया भी दे देगी और एक कमरा तो वैसे भी खाली है, क्योंकि वह दोनों पति-पत्नी एक कमरे में ही रहते हैं और उनके यहाँ ऐसी कोई गेस्ट नहीं आते जिनके लिए एक एक्स्ट्रा गेस्ट रूम हो। फिर रेंट का नाम सुनकर उसके पति ने उसे वहाँ रहने दिया, क्योंकि वह एक प्राइवेट सेक्टर में जॉब करता है जिससे उसकी इतनी ज़्यादा इनकम नहीं है। इसीलिए सुवर्णा भी अलग काम करती है; ऐसे में अगर उनके इतने छोटे से फ्लैट का एक कमरा भी रेंट पर उठ जाएगा तो उन लोगों को काफी आर्थिक मदद मिल जाएगी। तो उसके पति ने परीशा को वहाँ रहने की इजाज़त दे दी।
आज पहली ही रात वह यहाँ सोई थी। पहले तो उसे नींद नहीं आ रही थी क्योंकि उसे सोने की आदत नहीं थी, लेकिन बिस्तर पर लेटकर अपनी जादुई शक्तियों से उसने खुद को सुला लिया था। लेकिन उसे नहीं पता था कि नींद में उसे इस तरह के सपने आएंगे।
क्रमशः...
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10 अंधेरी काली गुफा…. इसके बाद वह इतनी ज्यादा बेचैन हो गई तभी सुवर्णा अंदर आई और उसने उससे कहा, "तुम इस बारे में इतना मत सोचो मुझे पता है तुम्हारा मकसद और सब कुछ लेकिन अगर तुम दिन रात इस बारे में ही सोचोगी तो फिर तुम्हें इसे लेकर ही सपने आएंगे क्योंकि इंसानी दुनिया में इंसानों के साथ ऐसा ही होता है और अब तुम भी इंसानों की तरह ही यहां पर हो।" परीशा ने सुवर्णा की तरफ देख कर हैरानी से पूछा, "ऐसे कैसे हम अपने मकसद के बारे में भूल जाऊं, हम एक पल के लिए भी अपने मकसद के बारे में भूल नहीं सकते क्योंकि हम इसलिए ही यहां पर आए हैं, हमें जल्दी से जल्द अपनी बहन को ढूंढना है इससे पहले की उसे कुछ हो जाए।" सुवर्णा के पति ने परीशा को घूरते हुए देखकर पूछा, "किसे कुछ हो गया और तुम इतनी जोर से क्यों चिल्लाई? तुम इस तरह से रोज हमारी नींद खराब करने वाली हो क्या तुम? फिर तो तुम्हें किराए पर घर देना हमें ही महंगा पड़ेगा क्यों सुवर्णा!" परीशा ने सफाई देते हुए कहा, "माफ कीजिएगा हमने यह जानबूझकर नहीं किया, लेकिन सोते वक्त एक बुरा सपना और हमें खुद भी नहीं पता चला हमने सपने में इतनी जोर से चीखा, कि वह आप लोगों को भी सुनाई दिया।" "क्या रोनित तुम कुछ भी बोलते हो कोई जानबूझकर तो वह हमें परेशान नहीं कर रहे और उसकी भी तो नींद खराब हुई है, सुबह उसे भी कम पर जाना है चलो अब वह इस तरह से नहीं चिल्लाएगी मैंने उसे समझा दिया है, नई जगह पर सोने की वजह से भी कभी-कभी ऐसा होता है।" - सुवर्णा ने बात संभालते हुए बोला और फिर उसने हल्के से पलक झपक कर परीशा को इशारा किया तो उसने भी धीरे से अपना सिर हिलाया और फिर अपने पति को साथ लेकर वह वहां से चली गई। उन दोनों के जाने के बाद परीशा ने अपने कमरे का दरवाजा फिर से बंद कर लिया और बिस्तर पर आकर बैठ गई। "कहां हो तुम अरीशा कहाँ ढूंढूं मैं तुम्हें कहां से शुरुआत करूं कम से कम कुछ तो मेरी मदद करो कोई संकेत दो मुझे... जिससे मैं तुम तक पहुंच पाऊं!" इतना बोलते हुए परीशा ने अपने बेड के क्राउन से सर टिककर अपनी आंखें बंद कर ली। दूसरी तरफ; शशांक का बेडरूम, रात के 2:00 बज रहे हैं लेकिन शशांक की आंखों में अभी नींद बिल्कुल भी नहीं है, वह अपना मोबाइल फोन लेकर बैठा हुआ है और उसमें एक फोटो को जूम करके देख रहा है, यह फोटो परीशा की है। जो आज ऑडिशन के टाइम चुपके से उसने ही क्लिक की थी और उस फोटो को देखता हुआ वह इतना ज्यादा बेचैन हो गया है कि उसकी आंखों से नींद भी एकदम गायब हो गई है। "मुझे नहीं पता था, तुम सपने से निकाल कर इस तरह हकीकत बनाकर अचानक मेरे सामने आ जाओगी और अब जब आ गई हो तो मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इस खुली आंखों से दिख रहे सपना को मैं अपनी हकीकत कैसे बनाऊं, कहां से शुरुआत करूं? क्या बोलूं और ऊपर से तुम इतनी ज्यादा खूबसूरत हो, मैं नहीं चाहता किसी और कि गलत या गंदी नजर तुम पर पड़े! मैं कभी बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा। इतना प्यार करता हूं मैं तुमसे परिधि, सिर्फ नाम ही पता है, अभी तुम्हारा लेकिन तुम्हें नहीं पता यह नाम मेरी दुनिया बन चुका है।" - फोन में उसकी फोटो देख कर परीशा से बात करते हुए शशांक अकेले ही बैठा हुआ, यह सब कुछ बड़बड़ा रहा है और उसे इस तरह से उसकी फोटो से बात करने में बहुत ही अच्छा लग रहा है। उसे ऐसा लग रहा है वह सच में उससे बात कर रहा है अभी वह फोटो उसे उसकी बात का कोई जवाब देगी। लेकिन उसे कोई भी जवाब नहीं मिला और काफी देर तक वह खुद से इतने सारे सवाल करता रहा और फिर अपना मोबाइल फोन देखते हुए उसने मोबाइल स्क्रीन पर परीशा की फोटो को हल्के से किस किया और फिर मोबाइल फोन अपने सीने से लगाकर वह अपने बेड पर आकर लेट गया। मोबाइल को उसने अपने सीने पर रखा और फिर दोनों हाथों से मोबाइल को इस तरह से पकड़ लिया, जैसे कि वह मोबाइल नहीं है बल्कि परीशा को ही हग कर रहा हो और फिर उसने मुस्कुराते हुए अपनी आंखें बंद कर ली। इस वक्त सिर्फ वही जान सकता है कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है? शहर से बहुत दूर जंगल पार करके पहाड़ियों में बनी हुई एक बड़ी सी अंधेरी काली गुफा, और उसे गुफा के मुहाने में ही बहुत अंधेरा है, उस गुफा के अंदर आने पर वहां काफी सारी मोमबत्तियां, दिए और मसाले जल रहे हैं। जिससे वहां पर अच्छी खासी रोशनी है, लेकिन वह बहुत ही अजीब लग रहा है क्योंकि वहां का महल इतना ज्यादा डरावना है कि वहां कितने सारे ही कंकाल और उनकी खोपड़ियां हड्डियां इधर-उधर बिखरी हुई है। इसके अलावा वहां पर कोने में एक बहुत बड़ा सा लोहे का चमकता हुआ पिंजरा रखा हुआ है जिसके अंदर एक लड़की एकदम अधमरी सी हालत में बेहोश जमीन पर पड़ी हुई है। और एकदम पिंजरे के बीच में सिकुड़ कर वह किसी बाॅल की तरह लग रही है, उसने हल्के पीले रंग के कपड़े पहने हुए हैं या फिर उसके सफेद कपड़े ही अब तक पीले पड़ चुके हैं यह भी समझ नहीं आ रहा उस लड़की का चेहरा भी ठीक से नजर नहीं आ रहा क्योंकि पिंजरे के पास ज्यादा रोशनी नहीं है। उस जगह पर बीच में एक अग्निकुंड बना हुआ है जिसमें आग जल रही है और उसके एक तरफ पूरे काले कपड़े पहने चेहरे पर भभूत लगाए, मोटी जटाओं वाला एक आदमी बैठा हुआ है जो की आंख बंद करके कुछ बुदबुदा रहा है और उसके हाथ की मिट्टी कसकर बंधी हुई और उसका दूसरा हाथ उसके एक पैर के घुटने पर है। एकदम अचानक से अपनी आंख खोलते हुए उसने हाथ में हाथ की मुट्ठी में पकड़ा हुआ जो कुछ भी भभूतियां रखी थी। वह उसने उस आग में डाल जिसकी वजह से उसे आग से काफी सारी चिंगारियां निकाली और कुछ चिंगारी उसके ऊपर भी जाकर गिरी लेकिन उसे कुछ भी फर्क नहीं पड़ा। वह पहले की ही तरह वहां पर बैठा रहा और तभी वह आग धीरे-धीरे एकदम शांत होने लगी और उस आग से सफेद दुआ निकालने लगा। To be continued Buddies 💚 agar story achi Lage to comment jarur kariyega
तभी वह आग धीरे-धीरे एकदम शांत हुई और उस आग से सफेद धुआँ निकलने लगा। जो आग बुझाने पर निकलता है, लेकिन आमतौर पर धुआँ थोड़ी देर में उड़ जाता है। लेकिन वह धुआँ बढ़ता ही चला गया और ऊंचा उठते हुए धीरे-धीरे एक आकार लेने लगा। उस आकार को देखकर सामने बैठे, उस काले कपड़े वाले तांत्रिक आदमी के चेहरे पर शैतानी से भरी हुई एक शैतानी मुस्कान आ गई। उसी तरह मुस्कुराते हुए उसने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और अपना सर हल्का सा झुकाया।
"फिर से मेरा आव्हान किया तूने कलिंदा? क्या चाहता है तू इस तरह मुझे बार-बार बुलाकर? तू क्यों परेशान कर रहा है जबकि तूने अब तक मुझे खुश नहीं किया है? इसलिए मैं भी तेरी कोई मनोकामना पूरी नहीं करूँगा।"
"सरकार, मुझे बस आपकी थोड़ी सी मदद चाहिए, इसीलिए मैंने आपका आव्हान किया है।"
"ठीक है, लेकिन यह आखरी बार है जब मैं तेरी मदद कर रहा हूँ। इसके बाद तुझे जब भी मेरी कोई मदद चाहिए, तुझे पहले मुझे खुश करना होगा। और तू जानता है मैं किस तरह खुश होता हूँ और अपनी शक्तियाँ बढ़ाने के लिए तुझे वह सारी क्रिया करनी होगी।"
धुएं से बनी हुई उस आकृति की बात सुनकर सामने बैठे उस तांत्रिक ने उसकी सारी बातें मानते हुए हाँ में अपना सिर हिलाया और फिर उससे बात करने लगा।
वहाँ पर जो कुछ भी हो रहा था, वह कुछ भी सामान्य नहीं लग रहा था। सब कुछ बहुत ही अजीब था। उसके पीछे ही एक और आदमी, एकदम सादे काले कपड़े पहने हुए, मुस्कुरा रहा था। उसकी कमर पर अजीब सी रस्सी बंधी हुई थी और उसके चेहरे पर भी उसी तरह के भभूत लगे हुए थे। दिखने में वह उसका सेवक लग रहा था।
सेवक की नज़रें बीच में अग्निकुंड के सामने बैठे हुए उस आदमी पर ही टिकी हुई थीं और वह उसकी बातें सुनने की कोशिश कर रहा था। लेकिन सामने धुएं की आकृति और उसकी बातें उस सेवक को बिल्कुल भी सुनाई नहीं दे रही थीं। इसलिए उसे थोड़ी हैरानी भी हो रही थी कि वहाँ पर बीच में बैठा उसका मालिक आखिर किससे बातें कर रहा है, यह उसे समझ नहीं आ रहा था।
लेकिन फिर भी वह चुपचाप अपने हाथ बाँधकर वहाँ पर खड़ा रहा। शायद इससे ज़्यादा कुछ करने और बोलने की उसे इजाज़त नहीं थी।
अगली सुबह;
पूरी रात परीक्षा को ठीक से नींद नहीं आई। और उसे वैसे भी सोने की आदत नहीं है क्योंकि परीस्थान में कोई भी परी जल्दी सोती नहीं है। और फिर उस सपने के बाद से तो परीक्षा का बिल्कुल भी सोने का मन नहीं कर रहा था। सुबह होते ही वह उठकर तैयार हो गई, क्योंकि सुवर्णा ने उसे अपने साथ चलने के लिए कहा था। और फिर सुवर्णा के साथ ही उसके ऑफिस आ गई।
उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह वहाँ पर कैसे मॉडलिंग करेगी। लेकिन सुवर्णा ने उसे समझाया कि अगर उसे यहाँ धरती पर रहना है तो धरती के बाकी लोगों की तरह कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा। क्योंकि अगर वह कुछ नहीं करेगी तो ज़्यादातर लोगों को उस पर शक हो जाएगा कि वह वहाँ पर सर्वाइव कैसे करती है, उसकी कोई फैमिली भी नहीं है जो उसे पैसे दे सके। इसलिए यहाँ पर उसे इंसानों की तरह बनकर रहना होगा और इंसानों की तरह ही बर्ताव भी करना होगा।
यह सारी बातें परीस्थान से निकलते वक्त उस रानी परी ने भी समझाई थीं। और अब जब सुवर्णा ने उसे यही सब कुछ कहा तो उसे फिर से वह सब कुछ याद आया। उसने धीरे से हाँ में अपना सिर हिलाया और चुपचाप उसकी सारी बातें सुनने लगी। सुवर्णा उसे काफी सारी चीज़ें समझा और सिखा रही थी।
"ठीक से समझ गई ना तुम परिधि? कल की तरह आज कोई गलती नहीं होनी चाहिए, क्योंकि बॉस ने तुम्हें एक मौका दिया है क्योंकि वह दिल के बहुत अच्छे हैं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि तुम अब पहले से बेहतर परफॉर्म करोगी।"
सुवर्णा और उसके साथ खड़े नीरज ने उसे समझाते हुए कहा। उन दोनों की बात सुनकर परिधि ने धीरे से हाँ में अपना सर हिलाया।
उसने उनकी बातें सुनी, लेकिन उसे ज़्यादा कुछ समझ नहीं आया। और वह अपने मन में सोच रही थी, "क्या अच्छा और गलत है इसमें? सिर्फ़ चलना ही तो है! पता नहीं क्यों इस बात को लेकर ये लोग बार-बार मुझे बोल रहे हैं। और कल तो वह इतनी नुकीली चप्पल दी गई थी मुझे, उसे पहनकर भला कोई कैसे चल सकता है? जो भी उसे पहनेगा, मुँह के बाल ही गिर जाएँगे।"
परीक्षा ने अपने आप से इतना बोला और फिर बाकी मॉडलों के साथ वह प्रैक्टिस करने लगी।
कुछ देर बाद,
लंच ब्रेक का टाइम;
बाकी सारे लोग खाना खाने के लिए चले गए, लेकिन परिधि का ध्यान पिछली रात वाले अपने सपने में लगा हुआ था और वह अकेली कुर्सी पर बैठी, उसके बारे में ही सोच रही थी। तभी उसे ऐसा एहसास हुआ कि कोई उसके साथ आकर बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया है, उसने इतना ध्यान नहीं दिया क्योंकि वह अपनी ही सोच में गुम थी।
"हेलो ब्यूटीफुल! काफी टेंस लग रही हो। क्या हुआ? मुझे बताओ, शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर पाऊँ!"
अपने लेफ्ट साइड की तरफ से परीक्षा के कानों में आवाज़ आई। तो उसने मुड़कर उस तरफ देखा और वहाँ पर उसने लक्ष्य को बैठा हुआ पाया। वह उसका नाम नहीं जानती थी, लेकिन कल उसने लक्ष्य को शशांक के केबिन में उसके साथ देखा था, इसलिए वह उसे पहचानती थी।
उसे उसकी इस तरह एकदम बगल वाली कुर्सी पर अचानक आकर बैठना ठीक नहीं लगा, फिर जिस तरह से उसने यह बात बोली। परीक्षा का मुँह बन गया और पहले तो उसने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन फिर लक्ष्य ने दोबारा खुद से बोला,
"अरे इग्नोर क्यों कर रही हो मुझे? तुम्हारा वह बॉस यहाँ पर नहीं है, तुम पर हुक्म चलाने के लिए। और वैसे भी तुम्हें उससे डरने की ज़रूरत नहीं है, तुम मुझसे बात कर सकती हो। मैं उसका दोस्त ही हूँ और इस कंपनी का पार्टनर भी, मैं भी तुम्हारी हेल्प कर सकता हूँ, जिस तरह शशांक ने तुम्हें सिलेक्ट कर लिया।"
इतनी बात बोलते हुए लक्ष्य उसकी तरफ देखकर बहुत ही अजीब तरह से मुस्कुराया, जो कि परीक्षा को बिल्कुल भी ठीक नहीं लगा।
To be continued….
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अरिशा की निशानी….
मेरे सपनों की रानी : पार्ट - 12
इतनी बात बोलते हुए लक्ष्य उसकी तरफ देखकर बहुत ही अजीब तरह से मुस्कुराया। यह मुस्कराहट परीशा को बिल्कुल भी ठीक नहीं लगी।
इसलिए वह अपनी कुर्सी से उठकर खड़ी हुई और बोली, "नहीं, मुझे आपकी कोई मदद नहीं चाहिए, मैं ठीक हूँ।"
उसे उसके आसपास से कुछ अजीब सी महक आ रही थी, जो परीशा को अपने लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं लग रही थी। इसलिए वह अब उसके साथ बैठना भी नहीं चाहती थी।
यह कहकर वह वहाँ से जाने लगी, लेकिन तभी लक्ष्य भी उसके पीछे आया। परीशा समझ गई कि वह उसके पीछे ही आ रहा है, हालाँकि वह उससे थोड़ी दूरी बनाकर चल रहा था। परीशा को पता नहीं क्यों, उसके आसपास रहने में कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए वह उससे दूर भाग जाना चाहती थी। ऐसा करते हुए वह स्टूडियो के एकदम आखिर में आ गई, जहाँ से एक लंबा सा कॉरिडोर ऑफिस की तरफ जाता था। वह उसी तरफ जाने लगी। उसे खुद नहीं पता था कि वह कहाँ जा रही है क्योंकि वह वहाँ पर नई थी; उसे सारी जगहों के बारे में नहीं पता था। उस तरफ कोई भी नहीं था, इसलिए वह उसी तरफ आगे बढ़ने लगी।
परीशा को ऐसा लगा जैसे वह यहाँ से दूर जाएगी, तो लक्ष्य खुद ही उसका पीछा छोड़ देगा।
लेकिन दूसरी तरफ, लक्ष्य एक नंबर का ढीठ आदमी था। उसने परीशा को इस तरह भागते देखकर हल्का सा मुस्कुराया और अपने आप से बोला, "अच्छा, तो भाग रही हो? कोई बात नहीं, भागो। लेकिन मुझे भी चेज़ करने में बहुत मज़ा आता है। देखते हैं कहाँ तक भाग पाती हो। यह स्टूडियो इतना भी बड़ा नहीं है।"
परीशा आगे जा रही थी, लेकिन उसे इस बात का पूरी तरह से आभास हो रहा था कि वह अभी भी उसके पीछे ही आ रहा है। इस बात से वह एकदम इरिटेट हो गई। तभी उसने थोड़ा सा साइड में जाकर हल्के से चुटकी बजाई और वह एकदम ही वहाँ से गायब हो गई।
लक्ष्य का पूरा ध्यान उसकी तरफ ही था। इसलिए जब वह इस तरह अचानक उसकी आँखों के सामने से गायब हो गई, तो लक्ष्य बहुत ही ज़्यादा चौंक गया। उसे समझ नहीं आया कि अचानक से वह कहाँ चली गई है। वहाँ पर कॉरिडोर में काफी सारी गैलरीज़ थीं, तो उसे लगा शायद वह उनमें से ही कहीं चली गई है और वह उसे देख नहीं पाया।
इस वजह से वह थोड़ा इरिटेट हो गया। उसने जल्दी से आगे दौड़कर चारों तरफ इधर-उधर चेक किया, जहाँ पर भी वह देख सकता था, लेकिन उसे परीशा कहीं भी नज़र नहीं आई। तो गुस्से में उसने अपने हाथ पर हाथ मारा और दाँत पीसते हुए बोला, "शिट! बच गई! आज तो किस्मत अच्छी थी। कोई बात नहीं, लेकिन अब तो यहाँ पर ही रहना है, तुम्हें भी और मुझे भी। आखिर कितना और कब तक भागोगी? देखते हैं।" इतना बोलते हुए वह वहाँ से वापस मुड़ा और बाहर जाने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
परीशा वहीं पर थी, अपनी जगह पर, लेकिन वह अदृश्य हो गई थी। इसलिए लक्ष्य को वह नज़र नहीं आई। उसने इधर-उधर उसे ढूँढा, लेकिन परीशा अपने जादू की वजह से गायब थी, इसलिए वह उसे नहीं दिखी। वह वहाँ से बहुत ज़्यादा डिसएप्वाइंट होकर चला गया, लेकिन वह अपने मन में परीशा को लेकर बहुत कुछ सोच रहा था। परीशा इस बात से बिल्कुल अनजान थी क्योंकि उसके अंदर माइंड रीडिंग की पावर नहीं थी।
उसके जाने के बाद परीशा खुद को दोबारा से विजिबल कर लेती है और फिर इधर-उधर देखती है। उसे वहाँ पर कोई और नज़र नहीं आता। उसने अपने आप से बात करते हुए कहा, "बड़ा ही अजीब है यह आदमी। हमारा तो मन कर रहा था कि हम इसे चूहा बना दें, जबरदस्ती हमारे पीछे पड़ गया है।"
इतना बोलते हुए परीशा ने बेबसी से अपना सिर हिलाया और फिर वह वहाँ से मुड़कर वापस जाने लगी। लेकिन तभी उसकी नज़र दूर से कॉरिडोर के एकदम कोने में एक चमकती हुई चीज़ पर पड़ी। उस चीज़ ने परीशा का ध्यान अपनी तरफ खींचा।
"वह क्या है उस तरफ…" परीशा जमीन पर पड़ी उस चमकती हुई चीज़ की तरफ देखकर अपने आप से बोली। और पता नहीं क्यों? वह चीज़ उसे बहुत ज़्यादा अपनी तरफ अट्रैक्ट कर रही थी, इसलिए वह तुरंत ही उस चीज़ को देखने के लिए उस तरफ बढ़ गई…
वह कॉरिडोर का एकदम एंड था और स्टूडियो का एकदम आखिरी हिस्सा, जहाँ कोई भी आता-जाता नहीं है। इसीलिए उस जगह पर वह चीज़ पड़ी हुई है, क्योंकि शायद वहाँ की सफ़ाई भी नहीं होती।
परीशा को इन सब चीजों के बारे में नहीं पता था, लेकिन उस चीज़ ने उसे अपनी तरफ अट्रैक्ट किया, तो वह उसके पास आई और हल्का सा झुककर उसने जमीन पर पड़ी हुई उस चीज़ को उठाने से पहले उसकी तरफ ध्यान से देखा।
तो वह देखते हुए उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं।
उसने उस चमकदार चीज़ को देखकर कहा, "नहीं! ये तो अरीशा का ब्रेसलेट है! ये यहाँ पर कैसे आ गया? नहीं, ये यहाँ पर नहीं हो सकता। इसका मतलब अरीशा भी यहाँ आई थी, लेकिन वह यहाँ पर क्या करने आई होगी?"
इतना बोलते हुए परीशा ने जमीन पर पड़ा वह ब्रेसलेट अपने हाथ में उठा लिया। उसने देखा कि उसके बीच में लगा हुआ वह मणि अभी भी चमक रहा था और उसकी चमक ने ही परीशा का ध्यान अपनी तरफ किया था। लेकिन जैसे ही परीशा ने उसे छुआ, उसका चमकना एकदम ही बंद हो गया। और वह उसकी बहन का ब्रेसलेट था; वह उसे बहुत अच्छी तरह से पहचानती है।
वह ब्रेसलेट हमेशा उसकी बहन अपने हाथ में पहने रहती थी। इसलिए जब से वह गायब हुई है, तो वह ब्रेसलेट भी उसके हाथ में ही होगा। परीशा यही सोच रही थी, लेकिन आज इस तरह यह ब्रेसलेट उसे इतनी दूर पड़ा हुआ मिला। अब उसे समझ में आया कि अरीशा इसी वजह से किसी से भी कांटेक्ट नहीं कर पा रही थी, क्योंकि उसके पास उसका ब्रेसलेट ही नहीं था, जो रानी माँ ने उसे दिया था। जिस तरह से धरती पर आने से पहले रानी माँ ने उसे अंगूठी दी थी, उसी तरह अरीशा के पास यह रानी माँ का दिया हुआ ब्रेसलेट था, लेकिन अब यह उसके पास नहीं है।
"पता नहीं ये यहाँ पर कैसे आया होगा और अरीशा वह ठीक भी होगी या नहीं? कैसे ढूँढें हम उसे? यहाँ पर तो कोई रास्ता भी नज़र नहीं आ रहा।"
इतना बोलते हुए परीशा ने वहाँ आसपास चारों तरफ देखा तो वहाँ पर सिर्फ़ दीवारें और कुछ बंद कमरे थे, जिनके अंदर और आसपास लाइट्स भी नहीं जल रही थीं।
थोड़ा सा आगे बढ़ते हुए परीशा ने एक कमरे का दरवाज़ा खोलने की कोशिश की। क्योंकि उसे लग रहा था कि जब वह ब्रेसलेट उसे वहाँ पर मिला है, तो हो सकता है कि अरीशा भी वहीं कहीं पर हो। लेकिन उसे ऐसा कोई भी सिग्नल अपनी बहन से नहीं मिल रहा था, लेकिन फिर भी एक बार उसने दरवाज़ा खोलकर अंदर देखने के लिए सोचा। यह सोचते हुए उसने दरवाज़े पर हल्के से हाथ रखा और वह दरवाज़ा अंदर की तरफ खुलना ही वाला था—
तभी पीछे से किसी ने उसे आवाज़ लगाई, "ऐ तुम… तुम कौन हो लड़की और यहाँ पर क्या कर रही हो? स्टूडियो के इस हिस्से में कोई भी नहीं आता है, तो फिर तुम कैसे यहाँ पर आई?"
To be continued….
स्पेशल ट्रीटमेंट....
मेरे सपनों की रानी : पार्ट - 13
परीक्षा ने वह आवाज सुनते ही तुरंत मुड़कर उसकी ओर देखा। वहाँ एक आदमी खड़ा था। उसने पूरी काली ड्रेस पहनी हुई थी, जिस पर उस स्टूडियो का नाम भी प्रिंट था। परीक्षा समझ गई कि वह वहाँ का कोई स्टाफ मेंबर है, क्योंकि वहाँ कई लोगों ने ऐसे ही कपड़े पहने हुए थे। वह इस बात को लेकर काफी उलझन में थी। तब उसने सुवर्णा से पूछा। सुवर्णा ने बताया कि जो लोग यहाँ काम करते हैं और मॉडल या किसी ऊँची पोस्ट पर नहीं हैं, वे सभी स्टाफ के लोग हैं। उन्हें एक जैसे कपड़े पहनने को दिए जाते हैं, ताकि उन्हें पहचानने में आसानी हो। स्टूडियो का नाम भी उनकी शर्ट पर लिखा होता है।
परीक्षा को सुवर्णा की यह बात याद थी। वह समझ गई और उसने तुरंत ही दरवाज़े से अपना हाथ हटा लिया और कहा, "नहीं, वो मैं... मैं वॉशरूम... हाँ, मैं वॉशरूम ढूँढ रही थी। मुझे कुछ भी पता नहीं है और मुझे वॉशरूम जाना है।"
"पता नहीं है तो किसी से पूछ लेती। इस तरह अकेले यहाँ-वहाँ घूमने की क्या ज़रूरत है? उस तरफ़ कोई वॉशरूम नहीं है। मेरे साथ आओ! मैं तुम्हें वॉशरूम का रास्ता बताता हूँ!"
इतना बोलते हुए उस आदमी ने परीक्षा को अपने साथ आने के लिए कहा। परीक्षा चुपचाप हाँ में सिर हिलाती हुई उसके पीछे चल पड़ी। उसके हाथ में अरीशा का ब्रेसलेट था। स्टाफ मेंबर के पीछे जाते हुए परीक्षा रुकी और फिर से एक बार पीछे मुड़कर उसकी ओर देखी।
वह अंदर जाकर नहीं देख पाई, लेकिन उसे लग रहा था कि वहाँ उसे अपनी बहन का कोई और सुराग ज़रूर मिलेगा। कम से कम यह पता चल जाता कि वह ब्रेसलेट वहाँ कैसे आया। लेकिन अभी वह देख नहीं पाई, इसलिए उसने उस जगह को अच्छी तरह याद कर लिया और स्टाफ के साथ वहाँ से वॉशरूम की ओर चली गई।
वॉशरूम में आकर परीक्षा शीशे के सामने खड़ी हुई और अपने हाथ की मुट्ठी खोली। जिसमें उसका ब्रेसलेट था। उसकी ओर देखते हुए परीक्षा की आँखों में आँसू आ गए। वह अपनी बहन का ब्रेसलेट देखकर बहुत भावुक हो गई और उसने धीरे से कहा, "कहाँ हो तुम अरीशा? और क्यों आई थी तुम धरती पर? इतनी मुसीबत में पड़ने के लिए? मैं कैसे ढूँढूँ तुम्हें? और कहाँ? मैं ऐसा क्या करूँ?"
परीक्षा ने धीरे से कहा, "कहाँ हो तुम अरीशा? और क्यों आई थी तुम धरती पर? इतनी मुसीबत में पड़ने के लिए? मैं कैसे ढूँढूँ तुम्हें? और कहाँ? मैं ऐसा क्या करूँ?"
उसने अपने आप से इतनी बातें कीं, लेकिन उसे अभी भी कुछ पता नहीं चला। उसने वह ब्रेसलेट अपने हाथ में पहन लिया, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि वह कहीं खो जाए। फिर वह वॉशरूम से बाहर निकली। थोड़ा आगे आई तो उसे सुवर्णा वहाँ दिखी।
सुवर्णा असल में परीक्षा को ही ढूँढ रही थी, क्योंकि वह इतनी देर से गायब थी। सुवर्णा को उसकी चिंता होने लगी थी। इसलिए वह पूरे स्टूडियो में उसे ढूँढ रही थी। जैसे ही उसने परीक्षा को वॉशरूम से निकलते हुए देखा, तो उसने राहत की साँस ली और तुरंत उसकी ओर आते हुए बोली, "कहाँ चली गई थी तुम? कम से कम मुझे बता कर तो आया करो। मैं कब से तुम्हें ढूँढ रही हूँ। अगर तुम किसी मुसीबत में पड़ जाती तो..."
सुवर्णा की बात का जवाब देते हुए परीक्षा ने कहा, "नहीं, मैं ठीक हूँ। मुसीबत तो नहीं, लेकिन वह आदमी मुझे बहुत अजीब सा लगता है। वह मेरे पीछे पड़ गया था। उसे बचने के लिए ही मैं वहाँ से चली गई थी। और तुम वहाँ पर नज़र नहीं आईं, तो मैं तुम्हें कैसे बताती।"
उस लक्ष्य के बारे में याद करते ही परीक्षा का पूरा मूड खराब हो गया। क्योंकि वह उसे बिल्कुल भी ठीक नहीं लगता था। सुवर्णा ने भी उससे पूछा कि कौन आदमी? परीक्षा उसका नाम नहीं जानती थी। इसलिए उसने उसके कपड़ों के रंग और व्यक्तित्व का वर्णन सुवर्णा को बताया। सुवर्णा समझ गई कि वह ज़रूर लक्ष्य के बारे में बात कर रही है। उसे खुद भी लक्ष्य कोई बहुत अच्छा इंसान नहीं लगता था, क्योंकि वह हर दूसरी मॉडल पर ही लाइन मारता रहता है और उनके साथ फ़्लर्ट करता है। यहाँ तक कि जो मॉडल अपना करियर बनाने के लिए कुछ भी करना चाहती हैं, वह उनको अपने साथ रात बिताने का भी ऑफ़र देता है। उनमें से कुछ मान भी जाती हैं। वह इसी तरह का फ़्लर्टी प्लेबॉय टाइप का इंसान है। अब तक सुवर्णा उसे जान चुकी थी।
इसलिए सुवर्णा ने परीक्षा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "हाँ, ठीक है। अच्छा किया। वैसे भी लक्ष्य सर किसी को भी अच्छा इंसान नहीं लगते। जितना हो सके तुम उनसे दूर ही रहना। नहीं तो तुम एकदम शुद्ध, पवित्र आत्मा हो। ऐसे आदमियों से नज़दीकी तुम्हारी शक्तियों पर असर डाल सकती है।"
परीक्षा ने हल्के से अपनी पलकें झपका कर कहा, "हाँ, हमें यह बात पहले से ही पता है। इसीलिए हम वहाँ से दूर चले गए थे और फिर छिप गए थे, तो वह हमें देख नहीं पाया।"
इस बारे में बात करते हुए वे दोनों वहाँ से वापस शूटिंग स्टूडियो की ओर आ गए। जहाँ बाकी सारी चीजों की तैयारी चल रही थी। सुवर्णा परीक्षा को काम के बारे में समझाने लगी। परीक्षा काफ़ी ध्यान से वह सारी बातें सुन रही थी और सब चीजों को अपने दिमाग में बिठा रही थी। अपनी शक्तियों से उसने उन सबको अच्छे से याद कर लिया था, ताकि वह सारे काम ठीक से कर पाए।
दूसरी तरफ, केबिन में,
पिछले दिन जिस तरह लक्ष्य ने शशांक के सामने परीक्षा से बात करने की कोशिश की थी, वह बात शशांक को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी थी। वह नहीं चाहता था कि लक्ष्य किसी भी तरह से परीक्षा के क़रीब जाए, क्योंकि वह अपने दोस्त को अच्छी तरह जानता था। लेकिन आज तक उसकी सारी हरकतें इग्नोर करता आया था। लेकिन परीक्षा को लेकर वह इस तरह की कोई भी बात बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। लेकिन क्यों? यह बात उसे खुद भी समझ नहीं आ रही थी। वह इतनी देर से बैठा हुआ बार-बार परीक्षा के बारे में ही सोच रहा था!
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह उसके बारे में और कैसे जाने?
क्रमशः….
कमेंट ज़रूर करियेगा buddies 💚🌹
कुटुम मिल गया.....
मेरे सपनों की रानी : पार्ट - 14
उसे अब तक सिर्फ उसका नाम पता था, परिधि! इसके अलावा उसका सरनेम, घर-परिवार, उसकी क्वालिफिकेशन और उसकी पसंद-नापसंद, वह सब उसे कुछ भी नहीं पता था। शशांक को यह भी समझ नहीं आ रहा था कि वह सामने से उसे इस बारे में कैसे पूछे और कैसे बात करना शुरू करे।
वह इसी तरह अपनी टेंशन में बैठा हुआ था, तभी उसके केबिन का दरवाजा खुला और उसका असिस्टेंट, नीरज, वहाँ आया। उसने एक-दो बार उसका नाम लेकर अंदर आने के लिए पूछा, लेकिन शशांक अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था; उसने नीरज की आवाज नहीं सुनी।
लेकिन फिर नीरज खुद ही अंदर आ गया और शशांक के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "क्या हुआ सर? आप कहाँ खोए हुए हैं?" शशांक ने नीरज के कंधे पर हाथ का स्पर्श महसूस करते हुए उसकी ओर चौंक कर देखा और कहा, "नीरज, तुम यहाँ अंदर कब आए?"
नीरज ने जवाब दिया, "मैं अभी-अभी आया सर। मैंने दो बार आपसे पूछा, लेकिन आपने कोई जवाब नहीं दिया। पता नहीं कहाँ खोए हुए थे आप। कोई प्रॉब्लम है क्या?"
शशांक ने थोड़ा सोचकर कहा, "नहीं, नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं है। क्या प्रॉब्लम होगी? मैं तो बस नई मॉडल के बारे में सोच रहा था! हाँ, और ये जो नई मॉडल है, वो क्या नाम है उसका? हाँ, परिधि! उसके बारे में कुछ भी डिटेल्स हमें अब तक नहीं पता हैं। हमने उसे ऐसे ही हायर कर लिया है, तो..."
नीरज ने अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए कहा, "ओके सर, मैं समझ रहा हूँ आपका कंसर्न। उसने कोई फाइल भी जमा नहीं की। यहाँ तक कि वह लड़की इतनी अजीब है! मैंने उसे फॉर्म भरने को कहा, तब भी वह इस तरह से मेरा मुँह देख रही थी, जैसे मैंने चाइनीस में उसे कुछ बोला हो! लेकिन हाँ, वह दिखने में तो सुंदर है, इसलिए ही शायद आपने उसे सिलेक्ट कर लिया है। बाकी चीजें मैं पता करवाता हूँ।"
शशांक ने तुरंत उसे मना करते हुए कहा, "नहीं नीरज, तुम्हें कुछ भी पता करने की ज़रूरत नहीं है। एक काम करो, तुम उसे अभी यहाँ मेरे केबिन में भेज दो। मैं खुद ही उसे सारी डिटेल और उसकी पर्सनल इनफ़ॉर्मेशन पूछ लूँगा और यहाँ अपने लैपटॉप में वो सारी डिटेल फ़िल कर दूँगा। और फिर हमारे पास उसका पर्सनल डाटा हो जाएगा। इससे ज़्यादा कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है।"
शशांक की बात सुनकर नीरज ने बहुत हैरानी से उसकी तरफ़ देखा। उसे समझ नहीं आया कि वह इस बात पर क्या बोले। क्योंकि शशांक ने आज तक किसी भी मॉडल को लेकर ऐसा कुछ नहीं बोला था। यहाँ तक कि वह अपने एम्प्लॉइज़ का कभी भी पर्सनल इंटरव्यू नहीं लेता था; इन सब चीज़ों के लिए ऑफ़िस में बहुत सारे लोग हैं, और फिर बाद में उसे सबकी डिटेल्स मिल ही जाती हैं। लेकिन आज पहली बार उसने किसी के लिए ऐसा बोला था। नीरज के साथ ही स्टूडियो और ऑफ़िस में कई लोगों को ऐसा लग रहा था जैसे शशांक उस लड़की को कुछ ज़्यादा ही अलग और स्पेशल ट्रीट कर रहा है। अब उसके यह बात बोलने पर तो नीरज के लिए यह बात एकदम पक्की हो गई। उसने शशांक की तरफ़ देखते हुए हल्का सा मुस्कुराया और बोला, "ओके सर... मैं समझ गया। मैं बस उसे अभी भेजता हूँ। वैसे भी अभी कोई ज़्यादा इम्पॉर्टेन्ट काम नहीं है मॉडल का। बस प्रैक्टिस और उन्हें सब चीज़ समझाई जा रही है। इस बीच वो यहाँ पर तो आ ही सकती है। आखिर उसके बारे में सारी चीज़ जानना ज़्यादा ज़रूरी है।"
नीरज के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी, जिसे शशांक ने नोटिस नहीं किया। वह एकदम ब्लैंक, सामने देख रहा था, क्योंकि उसकी आँखों के सामने परीशा का चेहरा बार-बार आ रहा था और उसके ख्यालों से वह निकल नहीं पा रहा था।
"ओके, ठीक है। जल्दी भेजो, मैं वेट कर रहा हूँ।"
शशांक ने इतना ही कहा। नीरज बाहर चला गया और वहाँ से बाहर आते ही परीशा को ढूँढने लगा।
"परिधि... मिस परिधि... 1 मिनट, आप इधर आइए, मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।"
लेकिन परिधि नाम सुनकर परीशा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी; यह उसका असली नाम नहीं था। वह दूसरी तरफ देख रही थी। उसे लगा कि शायद किसी और को बुलाया जा रहा है। लेकिन सुवर्णा ने नाम सुनते ही नीरज के पास आकर बोला, "क्या हुआ नीरज? किसलिए बुला रहे हो तुम उसे? क्या काम है तुम्हें परिधि से?"
"हाँ, काम मुझे उससे है, तुमसे नहीं। तुम उसकी तरफ़ से क्यों बोल रही हो? उसे क्या कम सुनाई देता है? मेरी आवाज़ सुनकर उसने एक बार भी इधर नहीं देखा?"
सुवर्णा ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, "अरे, वह थोड़ी सी बिज़ी है, शायद इसीलिए उसने ध्यान नहीं दिया होगा। और तुम्हारी आवाज़ शायद उसने नहीं सुनी?"
नीरज ने हैरानी से कहा, "ऐसे कैसे नहीं सुनी? इतनी तेज आवाज़ में तो चिल्लाया मैंने! और तुमने तो बराबर सुन ली मेरी आवाज़। तो फिर उसे सच में कोई प्रॉब्लम तो नहीं है ना, कान की?"
सुवर्णा ने नीरज के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "नहीं, नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। रुको, मैं उसे बुला कर लाती हूँ।"
सुवर्णा वहाँ से आगे चली गई और उसने धीमी आवाज़ में परिधि से कुछ कहा। नीरज देख रहा था। फिर परीशा नीरज के पास आई। नीरज ने कहा, "सर ने तुम्हें केबिन में बुलाया है। अभी जाओ पहले उनसे मिलकर आओ, बाकी सारे काम उसके बाद..."
"सर ने मुझे बुलाया है? लेकिन क्यों?"
To be continued....
मेरे सपनों की रानी : पार्ट - 15
"सर ने मुझे बुलाया है, लेकिन क्यों?" परीशा ने सवाल किया और कन्फ्यूजन के साथ नीरज की तरफ देख रही थी। नीरज ने कहा, "क्यों, क्या, कैसे? सब यहीं जानना है क्या? अंदर जाओ, सर खुद ही बता देंगे। सर खा नहीं जाएँगे तुम्हें, जो तुम उनसे इस तरह डर रही हो।"
"नहीं, मैं डर नहीं रही हूँ। मैं बस पूछ रही हूँ। अच्छा, यह बताओ किस तरफ जाना है? मुझे अभी सारे रास्ते ठीक तरह से याद नहीं हैं।"
परीशा ने यह सवाल किया तो नीरज ने उसे उंगली के इशारे से दिशा बता दी। फिर परीशा उस तरफ चली गई।
शशांक के केबिन की तरफ बढ़ते हुए परीशा ने अपने मन में सोचा, 'क्यों बुलाया होगा सर ने? वो तो हमें जानते भी नहीं हैं। और सुवर्णा ने जबरदस्ती हमें इन सब चीजों में फँसा दिया, नहीं तो हम यह सब करने वाले ही नहीं थे। हम क्या जवाब देंगे उन्हें? अगर वह हमसे सवाल करेंगे तो। अब हम मना भी तो नहीं कर सकते। आखिर वह यहाँ के मालिक हैं, उनसे मिलने तो जाना ही पड़ेगा।'
परीशा जैसे-जैसे केबिन की तरफ बढ़ रही थी, वैसे ही उसके दिमाग में कुटुम का ख्याल आ रहा था। उसने तुरंत ही अपने आप से कहा, "कुटुम, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे कि कुटुम यहीं कहीं है, आसपास? और वह मुझे सिग्नल भेज रहा है। वह अपने पक्षी रूप में भी नहीं है, इसलिए मैं उसकी आवाज नहीं सुन सकती। लेकिन मैं उसे महसूस कर सकती हूँ, वह यहीं कहीं है। मेरे बिल्कुल करीब। हाँ, हम आज उसे ढूँढ़ ही लेंगे।"
"कुटुम, कहाँ हो तुम?" परीशा ने अपने आप से कहा और केबिन की तरफ बढ़ गई।
अभी बस कुछ कदम ही बचे थे, लेकिन वह इधर-उधर देखते हुए थोड़ी धीरे चल रही थी क्योंकि उसका ध्यान कुटुम को ढूँढने पर भी था।
दूसरे तरफ, केबिन के अंदर,
शशांक ने परीशा को अपने केबिन में बुला तो लिया था, लेकिन अभी वह उससे बात करने का सोच-सोच कर बहुत ही ज्यादा नर्वस हो रहा था। इसलिए वह अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और उसने एकदम स्ट्रेट फेस बना लिया, और बिल्कुल भी स्माइल नहीं की।
उसने अपनी पैंट की पॉकेट में अपने दोनों हाथ डाले और थोड़ा एकदम सीधा होकर चलते हुए, खाली कुर्सी की तरफ आया। उसने आपसे बड़बड़ाते हुए कहा, "हेलो, मैं तुम्हारा बॉस हूँ, शशांक रंधावा। तुम मुझे अपने बारे में कुछ बताओ?"
"अरे नहीं, नहीं। मैं अपना इंट्रोडक्शन क्यों दे रहा हूँ? मैं तो उसका बॉस हूँ, उसे तो मेरे बारे में अब तक पता चल ही गया होगा! मुझे इस तरह से बिल्कुल नहीं पूछना है, मैं पागल हो जाऊँगा। यह सब क्या कर रहा हूँ मैं?"
इतना बोलते हुए उसने अपने दोनों हाथों को पॉकेट से निकाला और वापस पीछे चलकर अपनी कुर्सी की तरफ गया।
उसने अपना एक हाथ अपने सिर पर रखा और बोला, "शशांक, रिलैक्स। तू उससे एकदम नॉर्मल रहकर बात कर। बिल्कुल भी इस तरह का बर्ताव करने की ज़रूरत नहीं है कि वह तुझे देखते ही भाग जाए। हाँ, कूल डाउन, रिलैक्स!"
"लेकिन एक बार प्रैक्टिस करने में क्या बुराई है? एक बार फिर से करके देखता हूँ। हेलो, मिस परिधि। सो, आप मुझे अपनी पर्सनल डिटेल्स बताइए, जो कि हमारी कंपनी के लिए इम्पॉर्टेन्ट होती हैं।" थोड़ी सी सीरियस और डीप वॉइस करते हुए शशांक ने यह बात बोली। वहाँ पर कोई भी नहीं था, लेकिन वह बिल्कुल इस तरह से बोल रहा था जैसे कि परीशा उसके सामने बैठी हुई है।
"परफेक्ट! यह बिल्कुल ठीक रहेगा। हा हा, शशांक, तुझे बिल्कुल नर्वस नहीं होना। ऐसे ही कॉन्फिडेंस से बोलना है, आखिर वह है तो एक लड़की ही। नहीं, यह सब क्या बोल रहा हूँ मैं? लड़की नहीं है वह, वह मेरी ड्रीम गर्ल है। इतने सालों से जिसका चेहरा सपनों में देखकर तुझे उससे प्यार हो गया था, वह तेरा प्यार आज तेरी आँखों के सामने है। तो थोड़ा नर्वस होना तो बनता ही है। लेकिन क्या मैं उससे यह बात बता पाऊँगा? अभी तो नहीं, शायद थोड़ा जल्दी हो जाएगा, और वह विश्वास भी ना करे।"
वह अपने मन में यह सारी बातें बोल रहा था, तभी उसे दरवाजा खोलने की आवाज आई। उसने पीछे मुड़कर देखा और देखा, वहाँ पर एकदम मासूम, भोले से चेहरे वाली बहुत ही खूबसूरत लड़की खड़ी हुई है। उसने पिंक कलर का चूड़ीदार सूट पहना हुआ था और वह बहुत ही ज्यादा खूबसूरत और एकदम प्यारी सी, मासूम लग रही थी।
शशांक ने जैसे ही दरवाजे की तरफ देखा, तो वह कुछ भी बोलना और यहाँ तक अपनी पलकें झपकना भी भूल गया। बल्कि उसे तो ऐसा लगा, जैसे वह कुछ पल के लिए साँस लेना भी भूल गया, और अपनी साँस रोककर एकदम उसकी तरफ ही देख रहा है।
परीशा ने दरवाजा खोला और वह एकदम से चलते हुए अंदर आई। क्योंकि परमिशन लेना या नॉक करना, इन सब चीजों के बारे में उसे बिल्कुल भी पता नहीं था। वह अंदर आते हुए बोली, "सर, आपने मुझे बुलाया?"
पिछले दो दिनों से वह नोटिस कर रही थी कि शशांक को सब सर कहकर बुलाते हैं, और उसे यह भी पता चल गया था कि वह यहाँ का मालिक है। इसलिए ही उसने भी उसे सर कहकर बुलाया। उसकी आवाज से शशांक जैसे अपनी दुनिया में वापस आया और बोला, "हाँ, तुम... तुम..." फिर उसे एकदम अपने सामने देखकर वह जल्दी से कुछ कदम पीछे हुआ और उसने अपने दिल पर हाथ रख लिया!
उसका ऐसा रिएक्शन देखकर परीशा बहुत ही ज्यादा कन्फ्यूज हो गई और उसकी तरफ बढ़ते हुए बोली, "सर, आप... आप ठीक तो हैं ना? कोई परेशानी है क्या?"
"नहीं, तो मुझे क्या होगा? बिल्कुल... बिल्कुल ठीक हूँ मैं। तुम, प्लीज सिट डाउन... बैठ जाओ।" इतना बोलते हुए शशांक ने सामने वाली कुर्सी की तरफ इशारा किया।
लेकिन परीशा ने उसे घूर कर देखा और फिर झाँकते हुए उसके दोनों तरफ देखने लगी।
शशांक को उसका ऐसा बर्ताव बिल्कुल समझ नहीं आया। लेकिन परीशा के दिमाग में कुटुम का सिग्नल आ रहा था और उसे इतना पता चल गया था कि वह यहीं कहीं है, शशांक के केबिन में। तो वह इधर-उधर देखते हुए उसे ढूँढने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे कुटुम पक्षी वाला खिलौना कहीं नज़र नहीं आ रहा था।
"क्या कर रही हो तुम? अब इधर-उधर किसे ढूँढ रही हो?"
"वो मेरा कुट... कुछ नहीं। आपने मुझे यहाँ पर क्यों बुलाया है?" बात बदलते हुए परीशा ने थोड़ी धीमी आवाज में कहा और फिर आकर वह कुर्सी पर बैठ गई।
To be continued....
शशांक भी उसके सामने अपनी कुर्सी पर बैठ गया और बोला, "हाँ तो मिस परिधि, यही नाम है ना तुम्हारा? लेकिन इसके अलावा तो मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ तुम्हारे बारे में। मुझे ऑफिस प्रोफेशनल डेटा के लिए तुम्हारी पर्सनल डिटेल्स चाहिएँ, जो कि सारी एम्प्लॉइज़ की ली जाती हैं।"
"पर्सनल डिटेल मतलब?" परीशा ने बहुत ही कंफ्यूज़न से शशांक की तरफ देखते हुए पूछा।
"अरे, तुम्हारी निजी जानकारी; तुम्हारा नाम, माता-पिता का नाम, एड्रेस, कहाँ से आई हो, कहाँ रहती हो, क्या करती थी, ग्रेजुएशन में क्या किया है और यही सब... जो कि नॉर्मल सबका पूछा जाता है!"
"निजी जानकारी? यह तो मुझे सुवर्णा ने नहीं बताया। और हाँ, वह सबका पूछा जाता है, लेकिन मेरा... मैं तो..." इतना बोलते हुए वह इधर-उधर देखने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इन सब चीजों के बारे में क्या बताए। शशांक फिर से उसके चेहरे और खूबसूरती में खो गया।
परीशा की तरफ देखते हुए, उसे बचपन से लेकर अब तक के सारे सपने एकदम साफ नज़र आ रहे थे। जैसा कि वह उसे हमेशा अपने सपनों में देखता था, वह एकदम वैसी ही थी। वह इस वक़्त उसके सामने बैठी हुई थी। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके सपनों की लड़की उसे मिल जाएगी। हाँ, उसकी नज़रें दुनिया में हमेशा उसे ढूंढती और उसकी तलाश करती रहती थीं। लेकिन कहीं न कहीं उसे उम्मीद नहीं थी कि इस तरह वह अचानक उसे मिल जाएगी; उसके ऑफिस में, आकर उसके सामने बैठी होगी।
वह एकदम से खोया हुआ उसकी तरफ देख रहा था। तभी परीशा ने धीमी आवाज़ में बड़बड़ाते हुए कहा,
"सर, मेरे मम्मी-पापा...वह तो नहीं हैं और..."
इतना बोलते हुए उसने अपना सिर नीचे झुका लिया। परीशा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह आगे क्या बोले। वह इस बारे में कुछ भी सोचकर यहाँ पर नहीं आई थी कि उसे ऐसा भी कुछ बताना पड़ेगा।
शशांक ने जैसे ही उसकी आवाज़ सुनी, उसने सिर्फ़ इतना ही सुना कि वह कह रही है, उसके मम्मी-पापा नहीं हैं। तो शशांक को लगा कि शायद वह एक अनाथ लड़की है और इसीलिए वह इस बारे में बताते हुए इमोशनल हो गई थी! शशांक अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और उसकी तरफ़ देखते हुए बोला, "अरे, कोई बात नहीं। अब नहीं हैं तो हम लोग इसमें क्या कर सकते हैं? लेकिन तुम रो मत! भगवान जब हमसे हमारे माता-पिता छीन लेते हैं, तो हमारी ज़िंदगी में किसी न किसी ऐसे को ज़रूर भेजते हैं जो यह सारी कमी पूरी कर देता है।"
इतना बोलते हुए शशांक उसके एकदम सामने आया और टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाकर परीशा की तरफ़ बढ़ा दिया।
परीशा, जो कि अपना मुँह लटका कर बैठी थी, उसने नज़र उठाकर सामने गिलास की तरफ़ देखा और उसे समझ नहीं आया। तो शशांक ने कहा, "लो, पानी पी लो। और कोई बात नहीं, तुम्हें यह सब बताने की ज़रूरत नहीं है।"
उसकी यह बात सुनकर परीशा ने काफी रिलैक्स फील किया। उसने हाथ से वह गिलास लेकर एक घूँट पानी पीना शुरू किया। वह पानी पी ही रही थी कि तभी शशांक आगे बोला, "अच्छा तुम... तुम बस यह बताओ कि मैं तुम्हें कैसा लगता हूँ?"
परीशा के मुँह से एकदम पानी बाहर निकल गया और वह सीट से उठकर खड़ी होती हुई बोली, "क्या... क्या मतलब? आप कैसे लगते हैं?"
शशांक जल्दी से बात बदलते हुए बोला, "अरे नहीं, मैं नहीं... सॉरी... मैं... मैं यह पूछ रहा था, यहाँ मेरी कंपनी में काम करना, यह तुम्हें कैसा लगता है? और तुमने यहाँ पर ही ऑडिशन दिया था, तो बस तुम्हारा एक्सपीरियंस कैसा रहा, यह... यह पूछ रहा था मैं, और कुछ नहीं?"
उसका सवाल सुनकर परीशा ने अपने मन में कहा, "अब क्या बताऊँ मैं इसे? मैं यहाँ तो गलती से पहुँच गई, अपने कुटुम को ढूँढते हुए। और अभी भी मुझे ऐसा लग रहा है कि वह यहाँ कहीं है?"
शशांक ने परीशा की तरफ़ हैरानी से देखकर पूछा, "क्या हुआ? अब क्या सोच रही हो?"
परीशा ने ना में सिर हिलाया और कहा, "नहीं, कुछ नहीं। वह बस... ठीक है सब कुछ। अभी तो मुझे दो दिन ही तो हुए हैं यहाँ पर, और आपने मुझे सेलेक्ट कर लिया। इस वजह से मैं बहुत खुश हूँ। थैंक यू सर!"
"तुम हो ही इतनी खूबसूरत, तो तुम्हें भला कोई कैसे मना कर सकता है?" शशांक ने फिर से उसके चेहरे की तरफ़ देखकर, एकदम उसकी खूबसूरती में खोए हुए कहा।
परीशा का ध्यान कुटुम की तरफ़ से आ रहे सिग्नल पर लगा हुआ था, इसलिए उसने शशांक पर इतना ध्यान नहीं दिया। लेकिन उसे वह कहीं नहीं दिखा। तो उसे लगा कि यहाँ से निकलकर थोड़ा आगे-पीछे के कमरों में उसे कुटुम को ढूँढना चाहिए। इसलिए उसने शशांक से कहा, "और कुछ बात है सर? या फिर अब हम जाएँ?"
उसने वहाँ से जाने के लिए पूछा। शशांक का बिलकुल भी मन नहीं था उसे वहाँ से जाने देने का। लेकिन उसके पास रोकने के लिए अभी और कोई सवाल भी मन में नहीं आ रहा था। इसलिए उसने धीरे से हाँ में अपना सिर हिलाया। परीशा वहाँ से दरवाज़े की तरफ़ मुड़कर आगे बढ़ी। वह अभी कुछ कदम ही आगे गई थी...
तभी शशांक ने बहुत ही मायूसी से अपनी कोट की पॉकेट में अपना हाथ डाला। तभी उसका हाथ किसी चीज पर पड़ा और उसे एकदम से ध्यान आया। वह थोड़ा सा खुश हो गया और एकदम दरवाज़े के पास पहुँची हुई परीशा की तरफ़ देखकर उसने तेज आवाज़ में चिल्लाया, "परिधि! एक मिनट रुको!"
परीशा, जो कि दरवाज़ा बस खोलना ही वाली थी, एकदम रुक गई और पीछे मुड़कर शशांक की तरफ़ देखते हुए बोली, "अब क्या हुआ सर? कोई सवाल रह गया था?"
शशांक ने कहा, "सवाल नहीं, तुम्हारा यह सामान रह गया था मेरे पास। देखो, यह तुम्हारा ही है ना? मुझे उस दिन मिला था, वहाँ सड़क पर..."
परीशा ने उसके हाथ की तरफ़ देखा, "कुटुम... मेरा कुटुम! अच्छा, तो यह आपके पास था। इसलिए मुझे इतनी देर से... मेरा कुटुम मिल गया!"
परीशा जल्दी से आगे आई और उसने पहले शशांक के हाथ से वह प्लास्टिक के खिलौने जैसा पक्षी अपने हाथ में ले लिया। उसे अपने सीने से लगाकर वह बहुत ही ज़्यादा खुश हुई और फिर तुरंत ही वह शशांक के गले लग गई और उसे थैंक यू बोलने लगी।
"थैंक यू सो मच! आपने मेरा कुटुम मुझे वापस कर दिया। मैं कब से इसे ही तो ढूँढ रही थी।"
परीशा जैसे ही शशांक के गले लगी, उसे एकदम अचानक से ही कुछ धुंधला सा अपनी आँखों के सामने नज़र आया। वहीं दूसरी तरफ़ से शशांक को भी एकदम एक कनेक्शन फील हुआ, जो कि उसे अब तक सिर्फ़ उसे देखने पर फील होता था। उसके इस तरह से गले लगने पर वह कई गुना ज़्यादा बढ़ गया और आखिर उसने भी हल्के से उसकी पीठ पर हाथ रख लिया। लेकिन तभी परीशा को एहसास हुआ कि वह शशांक के गले लगी हुई है। वह तुरंत ही उससे दूर हो गई और उसने एक नज़र उठाकर उसकी तरफ़ देखकर कहा, "सॉरी, आई एम सो सॉरी सर। वह खुशी में आपको गले से लगा लिया। लेकिन मेरा कुटुम... इसे मैं ढूँढ रही थी और आपने मुझे यह वापस दिया तो..."
अपने ही ख्यालों में डूबा हुआ, शशांक अभी तक उसके गले लगने के शॉक में ही था। लेकिन उसकी बात कानों में पड़ते ही उसने परीशा की तरफ़ देखा और फिर अपनी आँखें बंद करके उसने दोबारा से खोली, जैसे कि उन सब चीजों पर विश्वास करने की कोशिश कर रहा हो जो कुछ अभी वहाँ पर हुआ था।
शशांक ने हैरत से पूछा, "कुटुम? इस प्लास्टिक के पक्षी का भी तुमने नाम रखा हुआ है? How cute! और मुझे नहीं पता था तुम्हारे लिए इतना ज़रूरी है।"
परीशा ने कुटुम को देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "इतने से भी बहुत ज़्यादा ज़रूरी है। यह मेरे लिए... और मुझे लगा था मैंने इसे खो दिया है, लेकिन यह मुझे वापस मिल गया। बहुत स्पेशल है मेरे लिए... थैंक यू सो मच!"
इतना बोलते हुए परीशा फिर से उस प्लास्टिक के पक्षी को अपने सीने से लगाया और खुशी-खुशी वहाँ से बाहर चली गई।
वह बहुत ही ज़्यादा खुश थी कि उसे उसका कुटुम वापस मिल गया। वह जल्दी से उसके साथ बात करना चाहती थी क्योंकि पिछले दो-तीन दिनों से कुटुम उससे दूर था। धरती पर आते ही उसने उसे खो दिया था और तब से ही वह उसे इधर-उधर ढूँढ रही थी।
To be continued...
हम चाहते हैं आप लोग स्टोरी पढ़ें और स्टोरी पढ़कर हमें बताएँ कि आप लोगों को स्टोरी कैसी लग रही है। अगर आप लोग कमेंट करेंगे तो हमें मोटिवेशन मिलेगा और हम आगे और भी अच्छे-अच्छे स्टोरी आप सबके लिए लाएँगे। तो प्लीज़ पढ़कर कमेंट कर दिया करिए।
परीक्षा जैसे ही कुटुम को लेकर बाहर आई, परीक्षा का वह पक्षी अपने असली रूप में आने लगा। जैसे ही परीक्षा ने उसे असली रूप में आते देखा, वह तुरंत ही कुटुम को लेकर वहाँ से गायब हो गई। उसने कुटुम को एक खाली जगह पर ले जाया, जहाँ उन दोनों के अलावा और कोई न हो। वहाँ पहुँचते ही, उसने कुटुम को अपने हाथ पर रखा और वह सफेद रंग का बोलने वाला पक्षी बन गई। उसने परीक्षा को देखकर कहा, "कितने दिन लगा दिए, तुमने मुझे ढूँढने में परीक्षा।"
परीक्षा ने कुटुम को जल्दी से अपने गले लगाते हुए कहा, "मुझे नहीं पता था कि तुम शशांक सर के पास मिलोगे। मैं तुम्हें हर जगह ढूँढ रही थी, लेकिन..."
परीक्षा बोल ही रही थी कि तभी कुटुम ने परीक्षा को चुप कराते हुए कहा, "ठीक है, ठीक है..! कोई बात नहीं, जो हो गया सो हो गया। लेकिन मुझे तुम्हें बहुत जरूरी बात बतानी है। मुझे अरिशा के यहीं कहीं आसपास होने का एहसास हो रहा है। पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है जैसे वह हमें जल्द ही मिल जाएगी।"
परीक्षा ने कुटुम की यह बात सुनते ही हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, मुझे भी अरिशा के सिग्नल मिले थे। मैं अरिशा को ढूँढते हुए यहाँ तक आई थी और तुम्हें पता है, मुझे अरिशा का यह ब्रेसलेट भी यहाँ पर मिला। जो उसे रानी परी ने दिया था।"
कुटुम ने जैसे ही परीक्षा के हाथ में अपनी बहन का ब्रेसलेट देखा, उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा, "तो फिर चलो, हम यहाँ पर खड़े होकर समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं? हम जल्दी से चलकर अरिशा को ढूँढते हैं और जैसे ही हमें अरिशा मिल जाएगी, हम उसे लेकर वापस परिस्तान लौट चलेंगे।" परीक्षा ने तुरंत कुटुम की बात मान ली और वे दोनों ही अरिशा को ढूँढने के लिए आगे बढ़ गए।
दो दिन बाद.....
सुबह 11:00 बजे का समय था। एक बड़े से सफ़ेद रंग के शिव मंदिर में, शिव जी की बड़ी सी मूर्ति के सामने एक अग्निकुंड जल रहा था। उसी मंदिर में बना हुआ एक छोटा सा मंडप था, जहाँ एक पंडित जी इस मंडप में बैठकर शादी के मंत्रों को पढ़ रहे थे। वहीं सामने सुवर्णा अपना हाथ बाँधकर खड़ी थी और उस अग्निकुंड के सामने शशांक, कोट-पैंट पहने, बैठा था। उसकी बाहों में परीक्षा बेहोश पड़ी हुई थी।
उसने एकदम साधारण कपड़े पहने हुए थे और दिखने में परीक्षा काफ़ी ज़्यादा कमज़ोर लग रही थी। उसके चेहरे को देखकर यह साफ़ समझ में आ रहा था कि वह अपने होश में बिल्कुल नहीं है। शशांक और परीक्षा के सामने उस मंदिर में बैठे पंडित जी के चेहरे पर घबराहट साफ़ नज़र आ रही थी और वह डरते-डरते मंत्रों को पढ़ रहा था।
तभी सुवर्णा उस पंडित जी के पास आकर बोली,
"पंडित जी, मुझे लगता है कि आपको यह मंत्र जल्दी पढ़ने चाहिए और जल्दी से जल्दी इस शादी को संपन्न करना चाहिए।"
पंडित जी ने सुवर्णा की तरफ़ देखते हुए धीमी आवाज़ में कहा,
"तुम लोग जो यह कर रहे हो, यह बिल्कुल भी सही नहीं है। इस तरह से किसी बेहोश लड़की के साथ शादी करना गलत है।"
शशांक ने जैसे ही यह बात सुनी, उसने पंडित जी को घूरते हुए देखकर कहा,
"पंडित जी, आप अपना काम करिए। और वैसे भी आपको आपकी दक्षिणा से चार गुना पैसा मिल रहा है, तो आप बस जल्द से जल्द यह शादी संपन्न करिए।"
शशांक इतना बोलते हुए काफ़ी ज़्यादा सीरियस लग रहा था। वहीं सुवर्णा ने वहीं पर रखी एक लाल रंग की चुनरी को उठाया और उसे परीक्षा के सर पर डाला। उसने चुनरी के एक सिरे को पकड़ कर शशांक की गर्दन में पड़ने वाली दूसरी चुनरी से उन दोनों का गठबंधन कर दिया।
शशांक परीक्षा को बड़े प्यार से पकड़े हुए था और परीक्षा की गर्दन पूरी तरह से झुकी हुई थी और शशांक के कंधों पर टिकी हुई थी। पंडित जी ने उन तीनों को घूरते हुए देखा और तभी पंडित जी ने मंगलसूत्र शशांक के हाथ में देते हुए कहा,
"दुल्हन को मंगलसूत्र पहना दो।"
शशांक ने उस मंगलसूत्र को अपने हाथ में लिया और परीक्षा की तरफ़ देखने लगा। शशांक कुछ सोच रहा था और तभी सुवर्णा ने शशांक के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
"मुझे नहीं लगता अब कुछ भी सोचने का समय है। हमें जो भी करना है, वह जल्दी करना होगा।"
शशांक ने सुवर्णा की तरफ़ देखकर हाँ में अपना सिर हिलाया और उसके गले में वह मंगलसूत्र डाल दिया। सुवर्णा ने उसके मंगलसूत्र को बाँध दिया और सुवर्णा ने फिर शशांक को फूलों की माला पकड़ाई। शशांक ने परीक्षा के हाथ से खुद वह वरमाला पहन ली। पंडित जी ने सिंदूर की डिब्बी शशांक के हाथ में दी और शशांक ने परीक्षा की मांग भर दी।
परीक्षा अभी भी बेहोशी की हालत में थी और शशांक उसे अपनी गोद में लेकर खड़ा हो गया। पंडित जी ने मंत्रों को पढ़ना जारी रखा और शशांक ने परीक्षा को अपनी गोद में लेकर उसे अग्निकुंड के साथ फेरे पूरे किए। सुवर्णा ने पंडित जी की तरफ़ देखा और उसे उसके पैसे दिए और वह पंडित तुरंत ही वहाँ से चला गया।
शशांक परीक्षा को लेकर मंदिर की सीढ़ियों से नीचे उतरा और सुवर्णा जल्दी-जल्दी उसके पीछे-पीछे उतर कर आई। उसने शशांक की कार का गेट खोला और शशांक ने जैसे ही परीक्षा को गाड़ी में बैठाया, सुवर्णा ने शशांक की तरफ़ देखते हुए कहा,
"शशांक सर! आर यू श्योर, परीक्षा को इस तरह से अपने घर ले जाना आपके लिए सही रहेगा?"
शशांक ने सुवर्णा की तरफ़ देखकर कार का दरवाज़ा बंद करते हुए कहा,
"हाँ, मुझे नहीं लगता परीक्षा के लिए इससे ज़्यादा कोई सेफ़ जगह होगी और मैं उसे अपने साथ अपने कमरे में ही रखूँगा। तुम बिल्कुल भी परेशान मत हो। परीक्षा मेरे साथ बिलकुल सेफ़ रहेगी। मैं उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ूँगा।"
शशांक की बात सुनकर सुवर्णा ने हाँ में अपना सिर हिलाया और सुवर्णा वहाँ से जाने लगी। तभी अचानक से रुक कर वह शशांक की तरफ़ मुड़कर बोली,
"सर, और आपके घर वाले? अपने घर वालों से क्या बताएँगे?"
सुवर्णा की बात सुनते ही शशांक ने परीक्षा की तरफ़ देखा जो कार की फ्रंट सीट पर बैठी हुई थी और अभी भी बेहोश थी। उसका चेहरा देखकर शशांक ने गहरी साँस लेते हुए कहा,
"सबको मैं सच बताऊँगा क्योंकि झूठ की बुनियाद पर मैं अपनी यह नई ज़िंदगी नहीं शुरू करने वाला। मैं सबको सच-सच बताऊँगा कि मैंने परीक्षा से शादी की है और वह ही अब मेरी पत्नी है।"
To be continued
सुवर्णा ने शशांक की बात सुनकर सिर हिलाया और परीशा की ओर देखा। वह चुपचाप वहाँ से चली गई।
शशांक अपनी कार में बैठकर सीधे घर आ गया। घर पहुँचते ही, उसने परीशा की ओर देखा और उसके गाल पर प्यार से हाथ फेरा। वह सोच रहा था कि शायद परीशा को होश आ जाए, लेकिन उसे जरा भी होश नहीं आया। शशांक कार से बाहर निकला और परीशा को गोद में उठाकर घर की ओर बढ़ा।
गेट पर पहुँचते ही उसने देखा कि उसके पिता सोफे पर बैठकर माँ से बात कर रहे थे, और उसकी बहन डाइनिंग टेबल पर कुछ खा रही थी।
शशांक दरवाजे पर रुक गया और तेज आवाज में चिल्लाया, "अर्पिता! आरती की थाली लेकर आओ।"
अर्पिता के साथ-साथ शशांक की माँ और पिता भी गेट की ओर देखने लगे। शशांक के गोद में परीशा को देखकर तीनों हैरान हो गए और अपनी-अपनी जगह से खड़े हो गए।
शशांक की माँ और पिता उसकी गोद में बेहोश पड़ी परीशा को हैरानी से देखने लगे।
परीशा इतनी खूबसूरत लग रही थी कि इतनी खूबसूरत लड़की शशांक की माँ और पिता ने पहले कभी नहीं देखी थी।
यहाँ तक कि शशांक की बहन अर्पिता भी परीशा को ही देखती जा रही थी। परीशा के बाल बिखरे हुए थे, आधे उसके मुँह पर आ गए थे।
जिससे उसका पूरा चेहरा नहीं दिख रहा था। फिर भी, जो शक्ल दिख रही थी, उसके चेहरे पर एक अलग ही नूर बरस रहा था। माँग में भरा सिंदूर और माथे पर लगी छोटी सी बिंदी उसे नई नवेली दुल्हन का लुक दे रही थी। इसे देखकर शशांक की माँ समझ गई कि क्या हो रहा है।
शशांक के पिता घूरते हुए शशांक को देख रहे थे। तीनों हैरान थे। तभी शशांक की बहन अर्पिता दौड़ती हुई शशांक के पास आई और बोली, "शशांक भाई, यह सब क्या है? और यह लड़की कौन है?"
शशांक अपने माँ-बाप की ओर देख रहा था। वे दोनों हैरानी से खड़े थे। तभी शशांक की माँ उसके सामने आई और परीशा की ओर देखते हुए बोली, "शशांक, ये सब क्या है? यह लड़की कौन है? और इस तरह बेहोश क्यों पड़ी है? यह ठीक तो है ना?"
शशांक ने अपनी माँ की ओर देखते हुए कहा, "माँ, आप ही तो मुझे शादी के लिए इतना इंसिस्ट कर रही थीं ना? तो लीजिए, कर ली मैंने शादी। और यही है इस घर की बहू।"
शशांक के पिता उसके सामने आकर खड़े हुए और घूरते हुए बोले, "शशांक, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना? तुम्हें समझ आ रहा है तुम क्या बोल रहे हो? कहीं तुम नशे में तो नहीं हो!"
शशांक ने अपने पिता की ओर देखकर कहा, "नहीं डैड, ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं बिल्कुल ठीक हूँ। और यही है इस घर की बहू। मैं इसके अलावा और किसी से शादी नहीं कर सकता। और वैसे भी मम्मा, आप तो यही चाहती थीं ना कि मैं शादी कर लूँ, तो हो गई शादी।"
शशांक की बात सुनकर शशांक की माँ ने ना में सिर हिलाया और चिल्लाते हुए कहा, "तू पागल हो गया है शशांक! हाँ, मैंने तुझसे शादी के लिए कहा था, लेकिन ऐसे नहीं! दुनिया वाले क्या बोलेंगे? सबको हम क्या जवाब देंगे? तूने समाज, रिश्तेदारों के बारे में कुछ भी नहीं सोचा? और यह लड़की, यह भी होश में नहीं है! कम से कम तूने इसे तो बताकर शादी की है ना? और सबसे पहली बात, तू यह बता, यह लड़की कौन है? और इस तरह बेहोश क्यों पड़ी है? कहीं तूने इसके साथ कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती करके तो शादी नहीं की!"
शशांक ने अपनी माँ की ओर देखकर ना में सिर हिलाते हुए कहा, "माँ! क्या मैं आपको ऐसा लगता हूँ? क्या आपको अपनी परवरिश पर जरा भी भरोसा नहीं है?"
अर्पिता ने अपनी माँ की ओर देखते हुए कहा, "नहीं माँ! जो कुछ भी हो, लेकिन भाई कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे। मैं भाई को बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ!"
अर्पिता की बात सुनते ही शशांक ने अर्पिता की ओर देखकर अपनी पलकें झपकाते हुए कहा, "मेरी बहन मुझे बहुत अच्छी तरह से जानती है! जा अर्पिता, जाकर आरती की थाली लेकर आओ। अपने भाई और भाभी की आरती नहीं करेगी क्या?"
अर्पिता ने शशांक की ओर देखकर मुस्कुराते हुए सिर हिलाया और किचन की ओर भागी।
शशांक की माँ ने शशांक के पिता की ओर देखते हुए कहा, "सुन रहे हैं ना आप? ये क्या बोल रहा है। हम रिश्तेदारों से क्या बताएँगे? इसने तो समाज में हमारी इज़्ज़त ही नहीं छोड़ी।"
शशांक की माँ इस समय सबसे ज़्यादा परेशान अपने रिश्तेदारों को लेकर हो रही थी।
वहीं शशांक ने अपने पिता की ओर देखते हुए कहा, "डैड, प्लीज़ आप मॉम को समझाइए ना! मॉम के लिए रिश्तेदार ज़्यादा इम्पॉर्टेन्ट हैं या फिर मैं? और वैसे भी डैड, मैंने सिर्फ़ शादी ही तो की है। और रही बात रिश्तेदारों की, तो हम एक ग्रैंड रिसेप्शन कर लेंगे, जिसमें मॉम अपने सारे सो कॉल्ड रिश्तेदार और समाज को बुला लेंगी, वह समाज जो कभी भी हमारे किसी काम नहीं आता।"
शशांक के पिता चुपचाप खड़े होकर शशांक की बातें सुन रहे थे। वहीं शशांक की माँ ने शशांक को घूरते हुए देखा।
तभी अर्पिता पूजा की थाली लेकर आई और उसने शशांक और परीशा की आरती की।
शशांक परीशा को लेकर तुरंत अपने कमरे की ओर जाने लगा।
अर्पिता उन दोनों को देखकर मुस्कुरा रही थी। तभी शशांक की माँ पैर पटकते हुए सोफे पर आकर बैठी और सर पर हाथ मारते हुए बोली, "हे भगवान! इस लड़के ने ये सब क्या कर लिया है? मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा।"
क्रमशः...
क्या लगता है आपको? क्या परीशा से शादी उसके घरवाले एक्सेप्ट करेंगे? और जब परीशा होश में आएगी तो क्या रिएक्शन होगा? क्या हुआ है उसे? और क्या हुआ है पिछले इन दो दिनों में? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह स्टोरी।
"अरे मालती, इस तरह परेशान होने से कोई फायदा नहीं है। जो होना था, वो हो गया। मुझे अपने बेटे पर पूरा भरोसा है; उसने इतना बड़ा कदम सोच-समझकर ही उठाया होगा। तुम एक मिनट शांत बैठो, मैं अभी कुछ देर बाद उससे बात करता हूँ।" शशांक के पिता ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा।
वहीँ अर्पिता उनके पास खड़ी थी। अर्पिता ने अपने पिता का पक्ष लेते हुए कहा, "मम्मा, मुझे लगता है आप ज़्यादा प्रतिक्रिया दे रही हैं। देखिए ना, वो लड़की कितनी खूबसूरत है! भाई के साथ वो कितनी अच्छी लगेगी! मुझे तो लग रहा है जैसे वो लोग जन्मों के साथी हैं। दोनों बिल्कुल मेड फॉर ईच अदर लग रहे हैं।"
अर्पिता यह बात बोल ही रही थी कि मालती ने उसे घूरते हुए देखा। अर्पिता चुप हो गई और अपने पिता के पीछे आकर खड़ी हो गई।
मालती ने अर्पिता की तरफ देखकर गुस्से से चिल्लाया, "ये बातें सुनने में अच्छी लगती हैं, लेकिन असल जिंदगी में? तुम्हें पता है कितना कुछ सुनने को मिलता है? और तुम तो छोटी हो, अभी तुम्हें कुछ नहीं पता। तुम्हारे पिता की बहन उनके सामने तो अच्छी ही बनेगी, पर बाद में ताने मुझे ही सुनने पड़ेंगे। इतनी बड़ी बात को आप लोग इतनी आसानी से कैसे ले रहे हैं, मुझे समझ नहीं आ रहा।"
जैसे ही मालती ने यह बात बोली, शशांक के पिता उसके बगल में बैठकर उसके हाथ पकड़ते हुए बोले, "तुम किस बात से परेशान हो?"
मालती ने झिझकते हुए कहा, "अभी भी आप यह सवाल पूछ रहे हैं, रमन?"
रमन ने मालती की तरफ देखकर गहरी साँस ली और कहा, "अच्छा ठीक है। अगर तुम्हें सिर्फ़ सुधा की वजह से इतना सोचना पड़ रहा है, तो मैं उससे बात कर लूँगा! वो तुमसे कुछ नहीं कहेगी। बाकी लोगों से कैसे हैंडल करना है, मैं देख लूँगा!"
जैसे ही मालती ने यह बात सुनी, वह अपने पति की तरफ घूरने लगी।
वहीँ अर्पिता अपने पिता के पीछे से धीमी आवाज़ में बोली, "अब तो डैड ने भी बोल दिया मॉम, अब तो आपको कोई परेशानी नहीं होगी ना!"
मालती ने पैर पटकते हुए उठकर खड़े होते हुए कहा, "कोई ज़रूरत नहीं है आपको सुधा दीदी से कुछ कहने की। अगर आपने कुछ कहा, तो मेरा जीना दुभर हो जाएगा। इसलिए किसी से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है।"
इतना बोलकर वह तेज़ी से कमरे से चली गई। अर्पिता अपने पिता के साथ बैठी हुई थी। अर्पिता चुपचाप उठी और शशांक के कमरे में जाने लगी। तभी उसके पिता ने उसे रोकते हुए कहा, "एक मिनट रुको अर्पिता, कहाँ जा रही हो?"
अर्पिता खुश होते हुए बोली, "डैड, मैं भाभी से मिलने..."
रमन ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, तुम्हें अभी वहाँ जाने की ज़रूरत नहीं है।"
अर्पिता ने मुँह बनाते हुए कहा, "लेकिन क्यों डैड?"
रमन ने नरमी से कहा, "क्योंकि वो लोग अभी-अभी घर आए हैं, और मुझे नहीं लगता तुम्हें इस तरह उनके कमरे में जाना चाहिए। कुछ देर रुक जाओ, बाद में जाना।"
इतना बोलकर रमन मालती को देखने चला गया। अर्पिता सोफ़े पर जाकर आराम से बैठ गई।
उधर, शशांक अपने कमरे में परीक्षा के बगल में बैठा था। परीक्षा की आँखें बंद थीं, वो बेहोश थी। उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे वो थककर चूर हो चुकी है और गहरी नींद में सो रही है।
शशांक ने उसकी मांग में भरे सिंदूर को देखकर मुस्कुराया और उसके माथे पर बिखरे बालों को समेटते हुए, परीक्षा के बिल्कुल नज़दीक जाकर उसके गालों पर हाथ फेरते हुए बोला, "मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि ये सब सच हो गया है, और तुम मेरी अर्धांगिनी बन गई हो! कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा? ओह प्लीज़ गॉड, अगर ऐसा कुछ है तो प्लीज़ मुझे कभी नींद से मत उठाना। मैं अपने इसी सपने में हमेशा के लिए रहना चाहता हूँ।"
शशांक परीक्षा की सुंदरता में खो गया और कुछ देर तक उसे निहारता रहा। तभी उसे कुछ गिरने की आवाज़ आई। शशांक उठकर खड़ा हुआ, अपना कोट उतारा और शॉवर लेने चला गया।
काफी देर बाद शशांक वापस अपने कमरे में आया। वो नहाकर निकला था और सिर्फ़ तौलिया बंधा हुआ था। शशांक का पूरा बदन पानी से भीगा हुआ था। बालों से पानी टपक रहा था, और चेहरे से बहता हुआ पानी उसकी गर्दन से होकर नेकलाइन तक जा रहा था। शशांक की बॉडी अच्छी थी और उसके गेहुँए रंग के बदन पर पानी की बूँदें मोती की तरह चमक रही थीं। शशांक शीशे के सामने आकर खड़ा हुआ और तौलिया उठाकर अपने बाल पोछने लगा।
शशांक शीशे में खुद को देख रहा था। अलमारी से कपड़े निकालने के लिए झुका तो उसने देखा कि परीक्षा को थोड़ा-थोड़ा होश आ रहा है, और वो बेड पर लेटी कराह रही है।
जैसे ही शशांक की नज़र परीक्षा पर गई, वो भूल गया कि उसने कपड़े नहीं पहने हैं। वो सीधे परीक्षा के पास जाकर खड़ा हो गया। परीक्षा ने जैसे ही धीरे-धीरे आँखें खोलीं, उसने अपने सामने शशांक को बिना कपड़ों के देखा। परीक्षा के मुँह से एक तेज चीख निकल गई।
शशांक जल्दी से परीक्षा के पास बैठ गया और उसके मुँह पर हाथ रखते हुए बोला, "क्या हुआ? तुम इस तरह चीखी क्यों?"
परीक्षा ने शशांक को खुद से दूर धकेला। उसने ओढ़े हुए ब्लैंकेट को और ज़्यादा अपने करीब खींच लिया और डरती हुई आवाज़ में बोली, "शशांक सर, आप यहाँ क्या कर रहे हैं? मैं कहाँ हूँ? ये सब क्या है? और आप बिना कपड़ों के क्यों हैं?"
क्रमशः
शशांक ने परीशा की बात सुनते ही अपने बदन की ओर देखा और देखते हुए कहा, "वो मैं शावर लेकर निकला था, लेकिन तुम मुझे देखकर चीखी क्यों?"
परीशा हैरानी से शशांक की तरफ देखने लगी। शशांक की बॉडी देखकर परीशा को कुछ महसूस हो रहा था और वह उसे हैरानी से देखने लगी। वह शशांक को सर से लेकर पांव तक निहार रही थी। तभी शशांक मुस्कुराते हुए परीशा के पास आने लगा और परीशा बेड के सिरहाने पर सिमट कर बैठ गई।
शशांक समझ गया कि परीशा उसके इस तरह से करीब आने पर घबरा रही है। शशांक अपनी जगह पर रुककर बोला, "रिलैक्स, तुम इतना क्यों डर रही हो? तुम मेरे रूम में हो और बिलकुल सेफ हो!"
परीशा उसके कमरे को चारों तरफ से निहार रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सा एक्सप्रेशन था। उसने शशांक की तरफ से अपनी नजर पूरी तरह से हटा ली थी और अपना सर नीचे झुकाते हुए कहा, "प्लीज शशांक सर, पहले आप कुछ पहन कर आइए।"
शशांक ने परीशा की बात सुनकर सिर हिलाया और अलमारी की ओर भागते हुए हाथ बढ़ाकर कुछ कपड़े निकाले। उसे पहनने के लिए वह वॉशरूम की तरफ चला गया।
परीशा उठकर खड़ी हुई और शीशे के सामने आकर अपने चेहरे को देखा। परीशा की मांग में सिंदूर भरा था, उसकी गर्दन में मंगलसूत्र और उसके हाथों में कुछ चूड़ियाँ थीं। शीशे के सामने खड़े होकर वह अपने चेहरे को छू रही थी। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या हो रहा है।
क्योंकि जिस समय शशांक और परीशा की शादी हुई, उस समय परीशा बेहोश थी। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह शशांक के घर पर कैसे आई है और शशांक इस तरह से उसे अपने कमरे में क्यों लाया था। उसके गले में मंगलसूत्र और मांग में सिंदूर कैसे लगा? परीशा काफी ज्यादा कंफ्यूज लग रही थी। वह वापस बेड पर आकर बैठी और अपने सर पर हाथ रखते हुए कहा, "ये सब क्या हो रहा है?"
परीशा ने जैसे ही यह बोला, शशांक सामने आया और परीशा की तरफ देखते हुए कहा, "परीशा, तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है। जो कुछ भी हुआ है, वह हम दोनों की भलाई के लिए हुआ है।"
जैसे ही परीशा ने शशांक की तरफ देखा, वह हैरानी से देखने लगी। क्योंकि शशांक ने उसे परिधि नहीं, बल्कि परीशा कहकर पुकारा था। वह धीरे-धीरे परीशा के पास आया और कुछ दूर चलकर रुक गया। जैसे ही परीशा ने शशांक की तरफ देखा, उसने धीमी आवाज में अपने मन में कहा, "परीशा! आखिर शशांक मुझे परीशा कहकर क्यों पुकार रहा है? मैंने तो उसे अपना नाम परिधि बताया था। क्या उसे पता चल गया कि मैं कोई इंसान नहीं, बल्कि एक परी हूँ? लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है?"
परीशा ने हड़बड़ाते हुए कहा, "शशांक सर, आप ये क्या कह रहे हैं? मेरा नाम परिधि है।"
शशांक परीशा के पास आकर बैठते हुए बोला, "तुम्हें मुझसे कुछ भी छुपाने की जरूरत नहीं है। मुझे सब कुछ याद आ गया है। क्या तुम्हें अभी भी कुछ भी याद नहीं आया?"
परीशा हैरानी से शशांक की तरफ देख रही थी। तभी उसने अपने मन में कहा, "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। अगर शशांक को यह बात पता चल गई कि मैं एक परी हूँ, तो सब कुछ बिगड़ जाएगा और रानी परी पता नहीं मुझे क्या सजा देगी। कहीं वह मुझे वापस परिस्तान ना बुला ले। नहीं-नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दे सकती। एक काम करती हूँ, मैं अपनी शक्ति से शशांक की पिछले एक-दो दिनों की याददाश्त मिटा देती हूँ और यहां से कहीं गायब हो जाती हूँ। हाँ, यह सही रहेगा।"
परीशा अपने मन में यह बात सोच रही थी। तभी शशांक परीशा के बिल्कुल करीब आया और पूछा, "तुम मेरी बात सुन रही हो ना? क्या तुम्हें कुछ भी याद नहीं आया?"
परीशा ने शशांक की किसी भी बात पर ध्यान नहीं दिया। उसने अपनी आँखें बंद कीं और अपने हाथों की उंगलियों को हिलाया। परीशा कुछ मंत्र पढ़कर शशांक की तरफ अपनी उंगलियों से इशारा कर रही थी। लेकिन शशांक चुपचाप वैसे ही बैठा हुआ था और परीशा का जादू उस पर काम ही नहीं कर रहा था।
परीशा और ज्यादा घबरा गई। परेशानी से अपने मन में कहा, "मेरा जादू इस पर काम क्यों नहीं कर रहा? कहीं मेरी शक्तियाँ चली तो नहीं गईं?"
परीशा ने अपनी शक्तियों को टेस्ट करने के लिए वहाँ सामने शीशे के पास रखी कुछ परफ्यूम्स की बोतल को अपनी उंगलियों के इशारों से गिरा दिया। परीशा ने कहा, "मेरा जादू तो कमज़ोर हो रहा है, लेकिन शशांक के ऊपर क्यों नहीं।"
परीशा बिल्कुल हैरान थी और वही सारी बातें सोचती जा रही थी। शशांक एकटक उसके चेहरे की तरफ देख रहा था। तभी शशांक धीरे-धीरे परीशा के करीब आया और परीशा के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, "परीशा, याद करने की कोशिश करो। पिछले जन्म में हम दोनों…!"
जैसे ही शशांक यह बात बोल रहा था, वह अपनी बात पूरी नहीं कर पाया। शशांक के छूने से ही परीशा की आँखों के सामने बिल्कुल अंधेरा छा गया और उसे कुछ परछाइयाँ नजर आने लगीं।
परीशा समझ नहीं पा रही थी कि उसके साथ क्या हो रहा है, शशांक के छूने से! उसने तुरंत शशांक के हाथ से अपना हाथ दूर खींच लिया और बेड से उठकर खड़ी हो गई। उसने अपना सर पकड़ते हुए कहा, "मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, आप क्या बोल रहे हैं शशांक सर?"
शशांक ने परीशा की ऐसी हालत देखकर उसे शांत करते हुए कहा, "ठीक है, अगर तुम्हें कुछ याद नहीं आ रहा तो कोई बात नहीं। तुम्हें कुछ भी याद करने की जरूरत नहीं है! तुम बैठो यहाँ पर, तुम अभी बहुत कमजोर हो। तुम आराम करो।"
शशांक ने परीशा को बेड पर बैठने के लिए कहा। जैसे ही परीशा बेड पर बैठी, शशांक ने ब्लैंकेट उठाया और उसे परीशा के ऊपर डालते हुए कहा, "तुम रेस्ट करो। मैं तुमसे अभी कोई बात नहीं करूँगा। जब तुम बिलकुल ठीक फील करने लगे तब हम इस बारे में बात करेंगे। तुम यहीं पर रेस्ट करो।" इतना बोलकर शशांक अपने रूम से बाहर निकला। शशांक ने एक गहरी साँस ली और अपना सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "परीशा को तो कुछ भी याद नहीं है। अब मैं उसे सारी चीज़ कैसे याद दिलाऊँगा?"
शशांक कुछ देर के लिए बाहर गया। परीशा अभी भी काफी ज्यादा परेशान थी और उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वह सोचने लगी कि वह किससे पूछे और उसे सारी चीज़ कैसे समझ में आएंगी। परीशा के पास ना ही इस समय कोई कुटुंब था और ना ही सुवर्णा। परीशा काफी ज्यादा थकी भी लग रही थी और अभी-अभी परीशा के सामने जो कुछ भी नज़र आया था, उससे वह और भी परेशान, काफी ज्यादा डिस्टर्ब हो गई थी।
To be continued…
स्टोरी पढ़कर कमेंट जरूर करिएगा।