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Bound By Destiny

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Simran Ansari

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एक साल पहले, अपने पिता की बात मानकर नमन जैसे आदमी से शादी करना थी श्रुति की जिंदगी की सबसे बड़ी गलती जिसका पछतावा उसे हमेशा ही रहेगा, लेकिन क्या टूटे बिखरे रिश्ते से निकल पाना इतना आसान होता है भले ही उस रिश्ते में आपको कभी कोई खुशी ना मिली हो।...

Characters

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कबीर रायचंद

Hero

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श्रुति सिन्हा

Heroine

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नमन मल्होत्रा

Villain

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आरती सिन्हा

Side Villain

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कनिका वर्मा

Heroine

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राघव

Side Hero

Total Chapters (222)

Page 1 of 12

  • 1. Bound By Destiny - Chapter 1

    Words: 1512

    Estimated Reading Time: 10 min

    1 एक बहुत ही बड़ा, आलीशान बना हुआ घर था। उस घर के अंदर आराम और ज़रूरत की वह सारी चीजें नज़र आ रही थीं जो किसी भी बड़े, अमीर, रसूखदार आदमी के घर पर होती हैं। इसके अलावा, उस बड़े से घर में काम करने के लिए कुछ नौकर भी नज़र आ रहे थे जो सब अपने-अपने काम में लगे हुए थे। उन सबके बीच से, हाथ में पानी की बोतल लेकर, किचन से बाहर निकलते हुए, लगभग 23-24 साल की एक लड़की साइड से निकलकर अपने कमरे की तरफ जा रही थी। उसने नीले रंग का पजामा और उस पर लाइट पिंक कलर की शर्ट पहनी हुई थी। वह एकदम अपने घर के नॉर्मल कपड़ों में थी। उसके बाल खुले हुए थे और चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी, जिसकी वजह से वह काफी मासूम और प्यारी लग रही थी। वह लड़की चुपचाप सीढ़ियों की तरफ बढ़ने ही वाली थी, जब उसके पिता, हर्षवर्धन सिन्हा, हाथ में मिठाई का बड़ा सा डिब्बा लिए, उसकी माँ आशा को पुकारते हुए घर में आए। और उनकी आवाज़ सुनकर वह लड़की वहीं पर रुक गई। उसके पिता दिखने में 50-55 साल के अधेड़ उम्र के व्यक्ति थे, लेकिन उन्हें देखकर उनकी उम्र का बिल्कुल भी पता नहीं चलता था और वह दिखने में काफी स्वस्थ लगते थे। घर के दरवाज़े से अंदर आते हुए, हर्षवर्धन ने श्रुति की माँ से कहा, “आशा, देखो, मैंने तुमसे कहा था ना! मेरी श्रुति के लिए एक खूबसूरत राजकुमार आएगा। बहुत भाग्यशाली हैं मेरी लाडो।” पापा की खुशी देख माँ की आँखों में भी आँसू आ गए थे। उन्होंने श्रुति के पापा से पूछा, “कौन है? कैसा दिखता है? क्या करता है? उसके घर में कौन-कौन है?” “फ़िक्र मत करो, बस तुम इतना समझ लो कि हमारी लाडो के भाग्य खुल गए हैं।” श्रुति के पिता ने उसकी माँ को जवाब दिया। श्रुति, शहर के एक नामचीन बिज़नेस मैन, हर्षवर्धन सिन्हा की सबसे बड़ी बेटी थी। उसके पिता का बिल्डिंग मैटेरियल का इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट बिज़नेस था और उनका वह बिज़नेस काफी अच्छा चल रहा था। पर बदकिस्मती से, इतने बड़े घर की बेटी होते हुए भी, दिखने में साधारण रंग-रूप होने के कारण, रिश्तों के नाम पर उसका स्कोर शून्य ही था। यह सारी बातें श्रुति को भी पता थीं कि इससे पहले उसे कई लड़कों ने रिजेक्ट कर दिया था, जिस बात का श्रुति को काफी बुरा भी लगा था। और उसे यह भी पता था कि उसके माँ-बाप इस बात को लेकर काफी परेशान रहते हैं। लेकिन आज अपने पिता के चेहरे की खुशी देखकर श्रुति को भी थोड़ा अच्छा लगा और वह वहीं पर रुककर उनकी बातें सुनने लगी, यह जानने के लिए कि आखिर कौन है जिसके घरवालों ने सामने से श्रुति के लिए रिश्ता भेजा है। उनकी बातें सुनकर श्रुति ने अपने मन में सोचा, “कौन होगा वह? पापा ने आगे कुछ बताया भी नहीं माँ से। और क्या उस लड़के ने मुझे देखा है या फिर मेरी कोई फ़िल्टर वाली फ़ोटो देखकर ही पसंद कर लिया है? या फिर शायद सिर्फ़ उसकी फैमिली ने मुझे देखा हो? नहीं-नहीं, उसकी फैमिली भी क्यों मुझे किसी लड़की के लिए पसंद करेगी? और पापा ने कहा वह लड़का राजकुमार जैसा दिखता है। क्या सच में मेरे लिए भी कोई राजकुमार बना होगा?” श्रुति ने अपने आप से बात करते हुए यह सब कुछ कहा और अब तक उसकी इस बारे में सोचने की खुशी थोड़ी सी टेंशन में बदल गई थी क्योंकि अब उसे पूरी बात जाननी थी। कुछ दिनों बाद; श्रुति के पिता हर्षवर्धन ने अपने घर, सिन्हा मैनशन में, एक बहुत बड़ी पार्टी रखी थी। जिसमें शहर के बड़े-बड़े डायमंड व्यापारी, इन्वेस्टर्स, नेता और नामचीन लोग आए हुए थे। उन सब में ही नमन और उसके पिता रवि मल्होत्रा भी शामिल हुए। सब की नज़र नमन पर ही टिकी थी क्योंकि वह अभी कुछ दिन पहले ही अमेरिका से एम.बी.ए. करके आया था। नमन देखने में बेहद हैंडसम, 5 फुट 8 इंच लंबा, गठीला शरीर, खूबसूरत नशीली गहरी आँखें, और गोरे रंग का लड़का था। उसे देखकर ऐसा लगता था जैसे यश चोपड़ा की फ़िल्म का कोई हीरो हो। जो भी उसे पहली बार देखता, वह एकटक देखता ही रह जाता। लेकिन अच्छी सूरत हमेशा अच्छी सीरत की गारंटी नहीं होती और नमन भी शायद उनमें से ही एक था। नमन के पापा उसे इस पार्टी में हर्षवर्धन जी से मिलवाते हैं। “आओ नमन बेटा, मुझे तुम्हें किसी से मिलवाना है।” नमन ने अपने पापा से कहा, “जी ज़रूर पापा, आप चलिए मैं आता हूँ!” ऐसा कहते हुए रवि मल्होत्रा हर्षवर्धन जी के पास चले जाते हैं। “गुड इवनिंग सर, कैसे हैं आप?” हर्षवर्धन ने भी गर्मजोशी से उनका स्वागत करते हुए कहा, “ओह्ह वैरी गुड इवनिंग मिस्टर मल्होत्रा, आय एम फ़ाइन! आप बताइए, कैसा चल रहा है आपका बिज़नेस? बहुत दिनों बाद मिलना हुआ आपसे।” रवि मल्होत्रा ने उनकी बात का जवाब दिया, “सब अच्छा है, और अब तो मेरे बड़े बेटे के साथ-साथ मेरा छोटा बेटा नमन भी मेरे साथ बिज़नेस संभाल रहा है।” “अरे वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है। वैसे कहाँ है नमन? वह साथ नहीं आया क्या?” हर्षवर्धन जी ने उत्सुकता से चारों ओर देखते हुए कहा, “लास्ट टाइम हम जब मिले थे तो वह काफी छोटा था।” “मेरे साथ ही आया है, यहीं कहीं होगा। और अब तो मुझसे भी लंबा और हैंडसम हो गया है।” रवि मल्होत्रा ने नमन की तारीफ़ करते हुए कहा। तभी नमन वहाँ आ जाता है और उसे देख रवि ने हर्षवर्धन जी से कहा, “हर्षवर्धन जी, मीट माय सन नमन मल्होत्रा।” अपना परिचय होते ही, नमन जैसे ही उनके पैर छूने के लिए नीचे झुका, तो हर्षवर्धन जी ने उसे अपने दोनों हाथों से ऊपर उठाकर गले से लगा लिया। हर्षवर्धन ने नमन की पीठ पर हल्के से थपथपाते हुए कहा, “ओह, अमेरिका में रहकर भी तुम अपने संस्कार नहीं भूले। वेरी गुड बेटा, वेरी गुड! लेकिन तुम्हारी जगह पाँव में नहीं यहाँ है, गले लगो बेटा, एंड आय एम प्राउड ऑफ़ यू।” हर्षवर्धन जी की बात सुनकर नमन मुस्कुरा दिया और अपने बेटे की इतनी तारीफ़ सुनकर उसके पिता भी गर्व से फूले नहीं समाते। हर्षवर्धन ने नमन से पूछा, “सो जेंटलमैन, क्या प्लान है आगे फ़्यूचर का? पापा का बिज़नेस ही संभालोगे या खुद का भी कुछ सोचा है?” हर्षवर्धन की बात सुनकर, नमन ने मुस्कुराते हुए कहा, “जी अंकल! डैड का बिज़नेस तो अच्छा चल ही रहा है, लेकिन मैं अपना खुद का भी कुछ करना चाहता हूँ।” नमन की बात पर हर्षवर्धन ने आगे उससे और सवाल किए, “ओह, ये तो अच्छी बात है। वैसे कुछ सोचा है क्या नए बिज़नेस के बारे में? कैसे करना है? और क्या करना है?” नमन ने फ़िलहाल अभी अपने बिज़नेस के बारे में कुछ भी नहीं सोचा था और उसने ऐसे ही हर्षवर्धन को इम्प्रेस करने के लिए इस बारे में बोल दिया था। इसलिए उनके इतने सारे सवाल सुनकर उसके पसीने छूटने लगे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह उनकी बातों का क्या जवाब दे, इसलिए वह उनकी तरफ़ देखकर जबरदस्ती मुस्कुराया। वह शायद कुछ बोलने ही वाला था कि तभी श्रुति अपनी माँ आशा के साथ वहाँ आ जाती है। “आप लोगों की बिज़नेस की बातें ख़त्म हो गई हों तो थोड़ी पार्टी भी एन्जॉय कर लें, नमस्कार भाई साहब!” आशा की बात सुनते ही उन लोगों की बात बीच में ही रह जाती है और वे सभी मुस्कुराकर आशा की तरफ़ देखते हैं। हर्षवर्धन दोनों को नमन और रवि मल्होत्रा से मिलवाते हैं। “मीट माय ब्यूटीफ़ुल वाइफ़ आशा एंड माय डॉटर श्रुति।” हर्षवर्धन जी के परिचय के बाद एक पल के लिए सभी की नज़रें थम जाती हैं क्योंकि उनकी बेटी श्रुति और मिस्टर सिन्हा की पत्नी आशा बहुत ही कम उम्र की लग रही हैं। बल्कि खुले शब्दों में कहा जाए तो आशा देवी श्रुति से भी ज़्यादा सुंदर और जवान लग रही हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वह मिस्टर सिन्हा की दूसरी पत्नी हैं, यानी श्रुति की सौतेली माँ। मिस्टर सिन्हा ने अपनी पहली पत्नी, श्रुति की माँ के मर जाने के बाद दूसरी शादी कर ली थी ताकि श्रुति की देखरेख में कोई दिक्कत ना हो। क्रमशः इस स्टोरी के पार्ट इतने ही बड़े आएंगे, लेकिन डेली लिखना है। इसलिए अगर इससे ज़्यादा बड़े एपिसोड देंगे तो फिर एक दिन का गैप हो जाएगा। लेकिन हमने सोचा है इस स्टोरी को रोज़ अपलोड करने के लिए शायद हफ़्ते में एक दिन का गैप होगा, संडे को। लेकिन फिर भी छह दिन तो एपिसोड आएंगे ही। तो आप लोग पढ़कर बताइए कैसी लगी आप लोगों को अब तक की स्टोरी और आगे बढ़ने के लिए कौन-कौन इंटरेस्टेड है। वैसे कमेंट में सिर्फ़ "नाइस पार्ट" लिखकर मत चले जाना यार! हम तंग आ गए हैं इस "नाइस" और "नाइस पार्ट" वाले कमेंट से। इससे तो अच्छा है हार्ट वाली इमोजी ही बना दिया करो, "नाइस पार्ट" से कम इरिटेटिंग होती है!

  • 2. Bound By Destiny - Chapter 2

    Words: 1567

    Estimated Reading Time: 10 min

    2 असल में, आशा की उम्र अच्छी खासी है; वह 40 साल से ज़्यादा की है और श्रुति से लगभग 20 साल बड़ी है। लेकिन फिर भी, उसने खुद को काफी अच्छी तरह से मेंटेन करके रखा है। जिससे कि श्रुति के साथ खड़े होकर भी वह उसकी बड़ी बहन से ज़्यादा उम्र की नहीं लग रही है। क्योंकि उसने नेट की स्टाइलिश साड़ी पहनी हुई है। और वहीं दूसरी तरफ, श्रुति को ऐसा लग रहा है कि उन लोगों ने ज़बरदस्ती इंडियन वियर पहनाया है, जिसमें वह काफी अनकम्फ़र्टेबल लग रही हैं। श्रुति को देखकर साफ़ पता चल रहा है कि वह इस तरह के कपड़े नहीं पहनती। श्रुति नमन की तरफ़ देखते हुए एकदम खोई हुई वहाँ पर खड़ी है। और अब तक उन लोगों के बीच उसने कुछ भी नहीं बोला है। उसे चुपचाप खड़ा देखकर आशा देवी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर दबाते हुए श्रुति से कहा, "बेटा, सबको हेलो बोलो, स्पेशली नमन को..." अपनी माँ की बात सुनकर श्रुति ने जल्दी-जल्दी सिर हिलाकर बोला, "हेलो!" ये कहते हुए श्रुति नमन की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाती है। नमन एक फीकी मुस्कान के साथ श्रुति से हाथ मिलाता है। लेकिन ऊपर से नीचे तक एक नज़र श्रुति को देखने के बाद नमन ने अपने पापा की तरफ़ देखकर कहा, "डैड, आई नीड टू गो, वहाँ मेरे फ्रेंड्स मेरा इंतज़ार कर रहे हैं।" इतना बोलकर वह वहाँ से चला जाता है। उसके इस तरह वहाँ से चले जाते ही उसके पापा ने कंधे उचकाते हुए कहा, "बच्चे कहाँ हम बड़े-बुज़ुर्गों के बीच ज़्यादा देर रुकते हैं? उन्हें तो अपने साथी ही चाहिए होते हैं।" नमन के पापा की बात सुनकर हर्षवर्धन ने भी श्रुति की तरफ़ देखकर कहा, "हाँ-हाँ, बिल्कुल सही कहा आपने। श्रुति बेटा, जाओ तुम भी। तुम्हारे भी दोस्त होंगे ना पार्टी में..." उनकी बात सुनकर श्रुति भी चुपचाप वहाँ से चली आई। लेकिन उसे कहीं ना कहीं नमन का रिएक्शन देखकर ही उसके मन में चल रही बात समझ आ गई कि वह उसे कुछ खास पसंद नहीं करता है। लेकिन इस बारे में श्रुति क्या करे और किससे बात करे, यह उसे समझ नहीं आ रहा। क्योंकि उसके पापा और नमन के पापा दोनों ने मिलकर पहले ही उन दोनों की शादी की बात तय कर ली है। फिर भी श्रुति ने सोचा कि एक बार वह अपने पापा से इस बारे में बात करेगी। क्योंकि वह इस तरह जबरदस्ती किसी के पल्ले नहीं बंधना चाहती। ****** उस पार्टी के बाद; सिन्हा मैंशन में… "लेकिन पापा, वो इतना हैंडसम लड़का... मेरी जैसी लड़की से शादी क्यों करेगा?" - श्रुति ने अपने पापा हर्षवर्धन से कहा। "अरे, तो मेरी बेटी क्या किसी से कम है? और तुम इतना मत सोचो बेटा। उसने शादी के लिए पहले ही हाँ कर दी है।" - श्रुति के पापा ने उसकी बात का जवाब दिया। जिससे श्रुति बिल्कुल भी कन्विन्स नज़र नहीं आ रही थी। लेकिन उसके पास और कोई रास्ता भी नहीं है। तो एक गहरी साँस लेते हुए वह चुपचाप अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गई। श्रुति और नमन की शादी असल में एक कॉन्ट्रैक्ट मैरिज डील की तरह है। जिसे दोनों परिवार वाले अपने-अपने बिज़नेस ग्रोथ और फायदे के लिए कर रहे हैं। क्योंकि श्रुति के पापा का बिल्डिंग मटेरियल एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का बिज़नेस है और नमन के पापा और नमन का पूरा परिवार बिल्डर है। जिस वजह से इन दोनों का आपस में कोलैबोरेशन दोनों के लिए ही काफी फायदेमंद है। लेकिन इस बात की भनक श्रुति के पापा ने श्रुति को बिल्कुल भी नहीं लगने दी। और उसके सामने वह बिल्कुल असली शादी की तरह ही बात करने का नाटक कर रहे हैं। इसलिए जहाँ श्रुति अपने पिता से अपनी होने वाली शादी के बारे में शक करते हुए सवाल कर रही थी, वहीं आज की पार्टी में श्रुति को देखने के बाद नमन भी इस रिश्ते को लेकर ज़्यादा खुश नहीं था। ******** मल्होत्रा हाउस; रात के 11 बज रहे हैं और नमन के पापा रवि मल्होत्रा भी घर पहुँचकर नमन से बात करने की कोशिश करते हैं। नमन अपने कमरे की तरफ़ जा ही रहा होता है कि तभी उसके पापा उसे रोककर कहते हैं, "नमन, रुको! मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।" नमन ने उनकी बात को टालने की कोशिश करते हुए कहा, "सॉरी पापा! क्या हम कल बात कर सकते हैं? आई एम वेरी टायर्ड राइट नाउ।" "नहीं नमन! ये बात हमें अभी करनी ज़रूरी है।" - रवि ने ज़ोर देते हुए कहा। "ठीक है, जल्दी बोलिए... आपको जो भी कहना है।" नमन ने बेमन से वहाँ पर रुकते हुए कहा। "मैंने तुम्हारे लिए एक लड़की पसंद की है।" मिस्टर मल्होत्रा अचानक से बोले। अपने पिता की बात सुनकर, नमन चौंक जाता है, "व्हाट?! मेरे लिए लड़की?" नमन को कहीं ना कहीं इस बात का अंदाज़ा हो चुका था। लेकिन फिर भी उसने सीधे ही सवाल किया, "कब पसंद की आपने ये लड़की और वो महान लड़की है कौन? वैसे भी बिना पूछे आप मेरे लिए लड़की कैसे पसंद कर सकते हैं? मैं आपसे पहले ही कह चुका हूँ कि मैं अपनी पसंद से ही शादी करूँगा। और फिर मेरा अभी शादी करने का कोई प्लान भी नहीं है। मैं पहले अपना बिज़नेस खड़ा करना चाहता हूँ।" नमन के पापा मिस्टर रवि मल्होत्रा ने जैसे अपना फैसला सुनाते हुए कहा, "वो सब मुझे नहीं मालूम नमन। लेकिन तू श्रुति से शादी कर रहा है! हर्षवर्धन सिन्हा की बड़ी बेटी से।" "क्या!!!! श्रुति!!" - नमन जैसे चौंक जाता है। नमन के पापा ने उसे चौंकते देखकर पूछा, "हाँ, वही, क्यों? आखिर क्या बुराई है उस लड़की में?" तभी नमन ने लगभग चीखते हुए कहा, "क्या ख़ास है उस लड़की में? ना शक्ल ना सूरत, कहाँ वो और कहाँ मैं! मेरा और उसका कोई मैच ही नहीं है पापा, हैव यू गॉन मैड?" नमन के पापा ने उस पर चिल्लाते हुए कहा, "मैड? मैड नहीं, मैं डैड हूँ तेरा! और ये ऐयाशी भरी ज़िंदगी जो तू जी रहा है ना, वह भी सारा मेरे पैसों पर ही है। और तुझे क्या लगता है कि मुझे नहीं पता कि तू अमेरिका में क्या रंगरलियाँ करके यहाँ आया है? और तू ये मत भूल कि तू अमेरिका से एम.बी.ए. पास करके नहीं, फ़ेल होकर आया है। और मेरे पास तेरे बिज़नेस के लिए कोई पैसा नहीं है। तेरी इस फ़ेल डिग्री पर तुझे कोई बैंक लोन देने तक को तैयार नहीं है। और ये बात तू भी अच्छे से जानता है। इसलिए बिज़नेस का बहाना बनाना बंद कर दे।" नमन ने बेवकूफी से कहा, "तो क्या इस लड़की से शादी करके बैंक मुझे लोन दे देगा?" नमन के पिता ने अपना सिर पीटते हुए कहा, "सच में, एक नंबर का गधा है तू और तेरी माँ भी वैसी ही है... मैं तो तुम दोनों को समझा-समझाकर थक गया हूँ! बेवकूफ़ लड़के, इस शादी के बाद तुझे बैंक से लोन लेने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।" नमन ने पूछा, "क्यों? मेरी लॉटरी लग जाएगी क्या उससे शादी करके..." नमन के पिता उसकी बात काटते हुए बोले, "हाँ, लॉटरी ही समझ ले। और, समझ मेरी बात। मैं कौन सा तुझे सारी ज़िंदगी उसके साथ रहने को बोल रहा हूँ। जैसे ही तेरा बिज़नेस सेट हो जाए, छोड़ देना उसको और फिर कर लेना अपनी पसंद की लड़की से शादी, ठीक!!" ऐसा कहने के बाद नमन के पिता के चेहरे पर एक चालाकी भरी मुस्कराहट छा गई। नमन ने थोड़ा सोचते हुए पूछा, "और अगर उसके डैड ने बाद में कोई प्रॉब्लम क्रिएट कर दी तो?" नमन के पापा ने लापरवाही से कहा, "अरे वो देख लेंगे। एक बार शादी हो जाए बस, उसके बाद तलाक़ होने के हज़ार कारण होते हैं। और फिर आजकल शादी होना और फिर तलाक़ होना तो गुड्डे-गुड़ियों का खेल हो गया है।" नमन अपने पापा को देखता है और कहता है, "ओके डैड, मैं सोचकर बताता हूँ, गुड नाईट।" नमन के पापा ने उसे धमकी देते हुए कहा, "तेरे पास हाँ करने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं है। इसलिए जितना भी सोच ले, आखिर में तो तुझे शादी करनी ही होगी। नहीं तो भूल जाना कि मेरी प्रॉपर्टी में से कुछ भी मिलेगा तुझे..." उनकी इस बात पर नमन कुछ भी नहीं बोला और चुपचाप वहाँ से अपने रूम की तरफ़ ही चला गया। ******** अगले दिन, रात के 10:00 बज चुके हैं और नमन के पापा मिस्टर मल्होत्रा अपने घर में बैठे हुए उसके वापस आने का इंतज़ार कर रहे हैं। वह रोज़ ही इसी तरह देर रात तक दोस्तों या फिर पार्टी करता है और नाइट क्लब में आता-जाता रहता है। फ़ैमिली बिज़नेस और ऑफ़िस के कामकाज से उसे कोई भी मतलब नहीं है फ़िलहाल। लेकिन उसके पापा को शादी से जुड़ी हुई बात उसे जल्द से जल्द क्लियर करनी है। इसलिए वह अब तक उसका इंतज़ार कर रहे हैं। आज रात के 11:00 बजने वाले थे, तभी उन्हें घर के बाहर एक बाइक रुकने की आवाज़ सुनाई दी। और उसके बाद कदमों की आहट। नमन के पिता उसका इंतज़ार करते-करते थोड़े से थक गए थे। उन्हें ऐसी ही कुछ आवाज़ सुनाई दी। उठकर बैठ गए और उन्होंने नमन को घर के अंदर आते हुए देखा। "यह कोई वक़्त है घर वापस आने का?" - नमन के कानों में एक आवाज़ पड़ी। अपने पापा को वहाँ पर देखकर भी वो चुपचाप उन्हें इग्नोर करता हुआ अपने कमरे की तरफ़ गया था। लेकिन यह आवाज़ सुनकर मजबूरन वहाँ पर रुकना पड़ा। क्रमशः

  • 3. Bound By Destiny - Chapter 3

    Words: 1506

    Estimated Reading Time: 10 min

    पीछे से आती अपनी पिता की आवाज सुनकर नमन को, ना चाहते हुए भी, वहाँ रुकना पड़ा। वह पीछे मुड़कर उनकी ओर देखते हुए, फिक्रमंद स्वर में बोला, "क्या हुआ डैड? आप यहाँ... इतनी रात तक अभी तक जाग रहे हैं? इज़ एवरीथिंग ऑलराइट?"

    नमन के पिता गुस्से से उसकी ओर आते हुए बोले, "कुछ ठीक तो तब होगा ना जब तुम कुछ ठीक करने की कोशिश करोगे? क्या है यह सब? इस तरह से रोज़ रात को, सबके सोने के बाद, घर वापस आना? और पूरा दिन कहाँ गायब रहते हो? ऑफ़िस का एक चक्कर भी नहीं लगाया है तुमने जब से अमेरिका से वापस आए हो। कब तक चलेगा यह सब?"

    नमन चिड़चिड़े स्वर में बोला, "डैड, प्लीज़! डोंट टेल मी! इतनी रात को आप मुझे लेक्चर देने के लिए यहाँ पर रुके हुए हैं? और वैसे भी, अभी एक महीना भी नहीं हुआ है मुझे इंडिया वापस आए। मैं तो बस उन लोगों से मिलने जाता हूँ जो मुझे मिस कर रहे थे—मेरे सारे दोस्त और कज़िन..."

    नमन के पिता ने उसे सच्चाई याद दिलाते हुए कहा, "जब तुम्हारे हाथ में कुछ नहीं रहेगा और बिना अपने स्टार्टअप के अकेले खड़े रहोगे, तब इनमें से कोई भी तुम्हारे साथ आकर खड़ा नहीं होगा; जिनके लिए तुम अपना वक्त, अपनी लाइफ बर्बाद कर रहे हो।"

    नमन बहुत झुंझलाते हुए बोला, "अच्छा, तो आप क्या चाहते हैं? क्या करूँ मैं? अपना बिज़नेस शुरू करूँ? आप उसमें पैसे लगाएँगे? आपने तो साफ़ मना कर दिया है ना कि आप मेरे बिज़नेस में एक भी पैसा इन्वेस्ट नहीं करने वाले। तो सब कुछ मुझे खुद ही अरेंज करना होगा ना? और उसमें टाइम तो लगता है। प्लीज़, डैड, आई नीड टाइम!"

    नमन को इस तरह चिल्लाते देखकर, उसके पिता ने उसे आराम से समझाते हुए कहा, "देखो, मैंने तो मेरा सीधा-सरल रास्ता बताया है। देखो, श्रुति के साथ तो तुम्हारी शादी होगी, और यह मैंने तय कर दिया है। देखो, इससे तुम्हारा ही फायदा है। अगर तुम ध्यान से सोचोगे, तो उसका बाप तुम्हारे बिज़नेस में हेल्प कर सकता है, जितनी भी तुम चाहो। बदले में, बस तुम्हें उसकी बेटी से शादी ही तो करनी है।"

    पूरी बात सुने बिना ही, नमन इस बात के लिए मना करते हुए बोला, "नहीं... नहीं, मुझे लगता है यह कीमत कुछ ज़्यादा ही हो जाएगी बिज़नेस स्टार्टअप के लिए। और वैसे भी, क्या भरोसा है कि वह बिज़नेस आखिर चलेगा ही? इसलिए मैं इतना बड़ा रिस्क नहीं ले सकता। उस लड़की से शादी नहीं करूँगा, डैड। प्लीज़, मुझे फ़ोर्स मत करिए। मैं उसके साथ खुश नहीं रहूँगा; वह बिल्कुल भी मेरे टाइप की नहीं है।"

    उसके पिता ने फिर से उसे समझाते हुए कहा, "अरे, तो मैं कौन सा तुझे सारी ज़िंदगी उसके पल्लू से बँधकर रहने के लिए बोल रहा हूँ? तुझे बोला तो था, एक साल की ही बात है। और वैसे भी, हमारी बात पहले ही हो चुकी है। अब अगर तू बोलेगा, तो हम कॉन्ट्रैक्ट पेपर पर साइन भी शादी से पहले ही करवा लेंगे। तब तो तू राज़ी है ना इस शादी के लिए? और एक साल तो वैसे भी जल्दी बीत जाएगा। फिर इसमें तेरा ही फायदा है।"

    अपने पिता की यह बात सुनकर, नमन ने एक पल सोचा। फिर उसके चेहरे पर एक तिरछी मुस्कराहट आ गई और वह बोला, "अगर मुझे मेरे बिज़नेस के लिए इन्वेस्टर और फ़ंड मिल रहे हैं, तो उसके लिए एक साल ऐसी शादी में रहना कोई बड़ी बात तो नहीं होगी। बट, अगर... अगर आप पहले से ही इस बात के लिए उस लड़की, या फिर उसके पापा को राज़ी कर लें। वैसे भी, मुझे वह आदमी एक नंबर का लालची लगता है। उसे अपना फायदा दिखेगा तो वह सारी शर्तें मान लेगा हमारी..."

    नमन सब चीज़ों के बारे में सोचता हुआ, आखिर इस प्लान के लिए राज़ी हो गया, क्योंकि इसमें उसे अपना ही फायदा नज़र आ रहा था।

    नमन के पिता ने उसे बताया, "वह पहले ही हमारी सारी शर्तों पर राज़ी है, और इस बारे में भी मैं उससे बात कर लूँगा। शादी से पहले ही तुम दोनों का डिवोर्स तय हो जाएगा। इस बारे में तुम ज़्यादा टेंशन मत लो।"

    नमन ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा, "ओके, डैड! फिर मैं तैयार हूँ। लेकिन एक साल से ज़्यादा मैं उस लड़की को नहीं झेलने वाला!"

    नमन के जैसे ही इस बात के लिए राज़ी हुआ, उसके पिता भी खुश होते हुए बोले, "हाँ, ठीक है। उससे ज़्यादा झेलना भी नहीं पड़ेगा। एक साल के बाद तो उसे छोड़ सकता है और फिर अपनी पसंद की लड़की से शादी कर लेना।"

    नमन के साथ-साथ, उसके पिता की कंपनी का भी श्रुति के पिता की कंपनी के साथ कोलैबोरेशन होगा, जिससे उन्हें भी बिज़नेस में काफ़ी ज़्यादा फायदा होगा। इसीलिए वे नमन को इस शादी के लिए फ़ोर्स कर रहे थे।

    अगले दिन ही नमन के पिता ने श्रुति के पिता से इस बारे में बात की, और वे भी इस बात के लिए राज़ी हो गए।

    श्रुति के पिता ने उसकी मर्ज़ी के बिना, धोखे से, उससे उन कॉन्ट्रैक्ट के पेपर पर साइन करवा लिया, जिन पर पहले से ही लिखा था कि एक साल बाद श्रुति और नमन अपनी मर्ज़ी से अलग हो जाएँगे। इसका मतलब उनकी शादी से पहले ही उनका डिवोर्स तय हो गया था।

    वहीं दूसरी तरफ, श्रुति, जिसकी लाइफ़ को लेकर यह सारी बातें चल रही थीं, उसे इन सब कॉन्ट्रैक्ट और इस डील वाली शादी के बारे में कुछ भी भनक नहीं थी। इसके अलावा, उसने एक-दो बार शादी से पहले नमन से मिलने और बात करने की भी कोशिश की, लेकिन नमन ने हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर टाल दिया। श्रुति ने भी अपनी तरफ़ से ज़्यादा कोशिश नहीं की, क्योंकि वह अपनी सौतेली माँ के तानों से तंग आ चुकी थी कि उसकी शादी नहीं हो रही। तो फिर, आखिर उसने भी अपनी किस्मत को एक्सेप्ट कर लिया और शादी के लिए मेंटली रेडी हो गई।

    कुछ दिनों बाद ही, काफ़ी धूमधाम से उन दोनों की शादी हो गई, और श्रुति शादी करके मल्होत्रा मेंशन में आ गई।

    और यह धूमधाम से शादी और इतने बड़े फ़ंक्शन, नमन और श्रुति की खुशी के लिए नहीं रखे गए थे। यह सब रखे गए थे दिखावे के लिए, जिसमें सिन्हा फैमिली और मल्होत्रा फैमिली ने सारे बड़े-बड़े बिज़नेसमैन और अपने इन्वेस्टर, जान-पहचान वाले लोगों को बुलाया था, जिससे कि सभी पर उनका अच्छा रौब जम सके।


    शादी की रात;

    श्रुति और नमन एक-दूसरे के लिए अनजान नहीं थे। दोनों की फैमिली पहले से ही एक-दूसरे को जानती थी, और अमेरिका जाने से पहले उन दोनों का हाई स्कूल एक साथ ही हुआ था। श्रुति उसे उस समय से ही पसंद करती थी, लेकिन उसने कभी भी खुद को नमन की जीवनसाथी के रूप में नहीं देखा, क्योंकि उसे नमन की तरफ़ से कभी ऐसा कुछ नज़र नहीं आया। और शादी तक तो उसने कभी नहीं सोचा था। उसे लगता था, नमन जैसा हैंडसम लड़का उसके जैसी एवरेज दिखने वाली लड़की से कभी भी शादी नहीं करेगा।

    इसलिए आज, जब उन दोनों की शादी हो भी गई है, तब भी उसे जैसे यह सब कुछ सपने जैसा लग रहा है, और उसे यकीन भी नहीं हो रहा है। क्योंकि जब तक उन दोनों की शादी नहीं हुई थी, उसे ऐसा लगता था कि नमन कभी भी इस शादी के लिए सामने से मना कर देगा, क्योंकि वह जब भी नमन से मिलती थी, उसे ऐसा ही लगता था जैसे वह उसे देखकर बिल्कुल भी खुश नहीं है, और यह शादी तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहता।

    श्रुति का भी यह कभी सपना नहीं था, लेकिन फिर अपने पिता की वजह से उसे ही शादी करनी पड़ी। क्योंकि आखिरकार नमन ने हाँ बोल दी थी। कहीं ना कहीं तो श्रुति को बहुत खुशी हुई थी, यह सोचकर कि जिसे वह कभी पसंद करती थी, अब वह उसका हस्बैंड है। लेकिन असल में नमन कैसा है, इस बारे में श्रुति बिल्कुल भी नहीं जानती, क्योंकि उन दोनों ने कभी भी ज़्यादा टाइम एक साथ स्पेंड नहीं किया।

    अपने मन में यह सब कुछ सोचते हुए, श्रुति उसका इंतज़ार कर रही थी। फिर उसने घड़ी की ओर देखा, तो काफ़ी ज़्यादा रात हो चुकी थी, और अब तक नमन के कमरे में आने का कोई नाम और निशान नहीं दिखा। तो वह थोड़ी परेशान हो गई। शादी के कपड़ों और ज्वेलरी में उसे काफ़ी हैवी भी फील हो रहा था, तो वह उठकर अपने कपड़े चेंज करने के लिए जाने लगी। लेकिन तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई, तो श्रुति एकदम ही अपनी जगह पर रुक गई।

    उसने नज़र घुमाकर दरवाज़े की ओर देखा, तो वहाँ पर उसे... नमन नहीं, बल्कि कोई और ही खड़ा हुआ नज़र आया।

    श्रुति अपनी जगह से एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी और हैरानी से उस ओर देखती रही।


    क्रमशः

  • 4. Bound By Destiny - Chapter 4

    Words: 1677

    Estimated Reading Time: 11 min

    इस वक्त रात के 2:00 बज रहे थे। श्रुति को अपने कमरे में नमन के अलावा किसी और के आने की उम्मीद नहीं थी। लेकिन उसने नमन के अलावा वहाँ एक लड़की को खड़े हुए देखा। उसने उस लड़की को शादी के फ़ंक्शन में कई बार देखा था। उसे देखकर वह थोड़ी हैरान हो गई।


    "अरे क्या हुआ, भाभी! इस तरह से क्या देख रही है, जैसे कोई भूत देख लिया हो? वैसे मुझे जानती हो ना आप?" दरवाजे पर खड़ी लड़की अंदर आते हुए बोली।


    लड़की के सवाल पर श्रुति कन्फ़्यूज़न से उसकी तरफ देखती रही। उसने लड़की को फ़ंक्शन में मल्होत्रा परिवार के साथ देखा था, लेकिन असल में वह कौन है, यह बात वह ठीक तरह से नहीं जानती थी। उसने धीरे से नहीं में अपना सिर हिलाया। लड़की का मुँह बन गया।


    "मुझे बहुत बुरा लगा, भाभी! आप सच में मुझे नहीं पहचानती? मैं आपकी इकलौती ननद हूँ, और नमन भाई की छोटी बहन। इस घर में भी सबसे छोटी..."


    उस लड़की ने शिकायत करते हुए अपना परिचय दिया।


    "वर्षा?" श्रुति ने एकदम से कहा।


    "जानती तो हो आप मुझे! देखो, नाम तो सही बताया आपने मेरा। फिर यह क्यों बोला कि मुझे नहीं पहचानती?"


    वर्षा ने शक भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा। श्रुति हल्की सी मुस्कान के साथ बोली, "अरे नहीं, मुझे बस नाम पता है। पहले एक बार नमन ने शायद तुम्हारी कोई बात की थी, बहुत पहले जब हम स्कूल में थे। बस तब से ही याद है मुझे, लेकिन यह नहीं पता था कि तुम वही हो, उसकी बहन..."


    "हाँ, मैं वही हूँ। शायद हम एक-दूसरे से आधिकारिक तौर पर पहली बार ही मिल रहे हैं। तो कोई बात नहीं, मैंने आपको माफ़ किया।" वर्षा ने हँसते हुए कहा।


    श्रुति भी मुस्कुराते हुए बोली, "थैंक यू सो मच। लेकिन तुम यहाँ पर किसी काम से आई थीं क्या?"


    वर्षा ने अपने सिर पर हाथ मारते हुए कहा, "अरे हाँ, देखो अपनी बातों के चक्कर में... मैं यह तो भूल ही गई कि मैं आपको एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात बताने के लिए आई थी।"


    "हाँ तो फिर बताओ!" श्रुति ने पूछा।


    श्रुति के पूछने पर वर्षा थोड़ी नर्वस होकर उसकी तरफ देखी। फिर उसने श्रुति का हाथ पकड़कर उसे बेड पर बिठाते हुए कहा, "भाभी, पहले आप आराम से बैठ जाओ।"


    श्रुति बेड पर बैठते हुए बोली, "अरे मैं ठीक हूँ। बताओ, तुम ऐसी भी क्या बात है? और हाँ, मुझे भी तुमसे पूछना था नमन के बारे में। वह अब तक नहीं आया, कहाँ पर है वो?"


    श्रुति का यह सवाल सुनते ही वर्षा इधर-उधर देखने लगी। फिर उसने थोड़ा झिझकते हुए कहा, "भाभी, वो नमन भाई वहाँ... और हाँ, मैं भी आपको यही बताने के लिए आई थी कि नमन भाई..."


    "हाँ, बताओ क्या हुआ नमन को? कहाँ है वो?"


    वर्षा को इस तरह से नज़रें चुराते हुए देखकर श्रुति को उस पर थोड़ा शक हुआ।


    "भाभी, वह... प्लीज आप किसी को बताना मत, लेकिन नमन भाई अभी घर में नहीं है। वह दोस्तों के साथ सेलिब्रेट करने के लिए चले गए। देखिए, उनकी गलती नहीं है। उनके दोस्तों ने ही उन्हें काफी ज़्यादा पुश किया था। तो वे उनके साथ ड्रिंक करने के लिए चले गए। अभी उन्होंने मुझे कॉल करके बोला कि वापस आने में उन्हें थोड़ा लेट हो जाएगा।"


    यह बात सुनकर श्रुति बेड से उठकर खड़ी हुई। हैरानी से बोली, "व्हाट! यह कौन सी बात होती है? और सेलिब्रेशन तो कभी भी हो सकता था ना, शादी से पहले या बाद में। लेकिन आज की ही रात... और उसने सिर्फ़ तुम्हें बताया? इसका मतलब घर में और किसी को इस बारे में नहीं पता है?"


    यह बात बोलते हुए हैरानी की वजह से उसकी आवाज़ थोड़ी तेज हो गई। वर्षा जल्दी से आगे आकर उसके कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद किया। फिर उंगली अपने होंठों पर रखकर श्रुति की तरफ़ देखते हुए उसे चुप रहने का इशारा करते हुए बोली, "श्श्शश्श् भाभी! प्लीज थोड़ा धीरे बात करो। मैं इसीलिए आपको पर्सनली आकर यह बात बताई क्योंकि अगर घर में डैड या दादाजी में से किसी को यह बात पता चल गई तो फिर प्रॉब्लम हो जाएगी।"


    "अरे लेकिन फिर भी... ऐसा क्या ज़रूरी था? नमन के लिए मैं यहाँ पर बिल्कुल बेवकूफ़ की तरह कब से बैठी हुई हूँ, उसका इंतज़ार कर रही हूँ। क्या मैं पागल हूँ? और तुम इस तरह से अपने भाई की साइड ले रही हो, वर्षा! तुम्हें भी लगता है यह सही है!" श्रुति बहुत डिसएपॉइंटेड होकर बोली।


    "भाभी, प्लीज आप नाराज़ मत होइए। मुझे पता है इसमें भाई की कोई गलती नहीं है। ज़रूर उनके दोस्तों ने ही ज़बरदस्ती की होगी। वह सब हमेशा इसी तरह भाई से ट्रीटमेंट माँगते रहते हैं, किसी न किसी बात को लेकर। और अब तो इतनी बड़ी बात थी, उनकी शादी! तो ज़रूर वह लोग ही ज़बरदस्ती उन्हें अपने साथ ले गए होंगे। प्लीज आप थोड़ा सा सिचुएशन को समझिए। और आप लोगों के पास तो अब पूरी लाइफ़ है ना, एक-दूसरे को जानने-समझने के लिए। तो प्लीज आज आप मैनेज कर लीजिए। और अगर कोई पूछे तो आप यह बोल देना कि भाई आपके साथ ही थे।" वर्षा पूरी तरह से अपने भाई को सपोर्ट करते हुए बोली। श्रुति ने आगे उससे कोई बहस नहीं की। इतनी बात करके श्रुति को भी समझ आ गया था कि वर्षा से नमन के ख़िलाफ़ कोई बात करने का कोई फायदा नहीं है। उसे बस अपना भाई ही सही लगेगा, और बाकी दुनिया गलत...


    इसलिए श्रुति ने बस एक गहरी साँस ली। ज़्यादा उम्मीदें तो उसे नमन की शादी से पहले ही नहीं थीं। लेकिन फिर भी उसे लगा था कि शादी के बाद शायद वे दोनों एक-दूसरे के साथ समय बिताएँगे, और एक-दूसरे को थोड़ा जानेंगे-समझेंगे। हो सकता है कि उनके बीच की दूरियाँ कम हों, और उनकी शादी अच्छे से काम कर पाए। लेकिन आज जिस तरह से नमन शादी की रात को ही उसे अकेला छोड़कर चला गया, उसे बहुत बुरा लगा। उसे अपनी सारी झूठी उम्मीदें टूटी हुई नज़र आ रही थीं।


    वर्षा इतनी बात करके वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद श्रुति ने अपने कपड़े बदलें और चुपचाप सोने के लिए अपने फूलों से सजे हुए बेड पर लेट गई। लेकिन लेटने से पहले गुस्से और फ़्रस्ट्रेशन में उसने चादर पर बिखरे हुए सारे फूल और फूलों की पंखुड़ियाँ ज़मीन पर गिरा दीं।


    अगली सुबह;


    श्रुति जब सोकर उठी, तब भी उसने पाया कि कमरे में वह अकेली ही है। कमरे की सारी चीज़ें उसी जगह पर रखी थीं, जैसे कि वह रात में रखकर सोई थी। जो फूलों की सजावट उसके बेड के इर्द-गिर्द हुई थी, अब वह एकदम मुरझा सी गई थी, एकदम श्रुति की ज़िन्दगी और उसके चेहरे की तरह...


    फिर भी पता नहीं किस उम्मीद में उसने नज़र घुमाकर अपने चारों तरफ़ देखा, लेकिन उसे कोई भी नज़र नहीं आया। वह चुपचाप एक साड़ी लेकर नहाने-धोने के लिए चली गई। उसने टाइम देखा, तो अभी सुबह के 7:00 बज रहे थे। शायद इसीलिए उसे कोई बुलाने नहीं आया था।


    वह खुद ही तैयार होकर नीचे आई। उसने देखा कि घर के सारे बड़े लोग हॉल में इकट्ठे थे; ख़ास तौर पर उसके ससुर, उसका जेठ और नमन के दादाजी। श्रुति आगे आते हुए ससुर और दादाजी के पैर छुए।


    उन्होंने दोनों ने ही उसे खुश होकर आशीर्वाद दिया। तभी एक तरफ़ से नमन की माँ वहाँ आईं और उन्होंने श्रुति की तरफ़ देखकर बुरा सा मुँह बनाया और उससे कुछ भी नहीं बोलीं। श्रुति आगे बढ़कर उनके भी पैर छुए, तो उन्होंने बस फ़ॉर्मेलिटी के लिए श्रुति के सिर पर हाथ रख दिया।


    श्रुति की तरफ़ देखते हुए नमन के पापा ने पूछा, "वह नालायक कहाँ है? अभी तक सोकर नहीं उठा क्या? और बहू को देखो, इतनी सुबह नहा-धोकर तैयार भी हो गई है। सच में बहुत किस्मत वाले हैं हम, जो हमें इतनी संस्कारी और प्यारी बहू मिली है। क्यों नमन की माँ?"


    श्रुति ने उनकी इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। तभी दरवाज़े के पास कुछ आवाज़ हुई और सब ने उस तरफ़ देखा। नमन एकदम लड़खड़ाते हुए दरवाज़े से अंदर आया और घर के अंदर आने वाली दो सीढ़ियाँ उतरते हुए वहीं पर गिर गया।


    उसे ऐसे हाल में देखकर सभी की आँखें हैरानी से खुली की खुली रह गईं। सबसे पहले नमन का बड़ा भाई और उसकी बहन वर्षा ही उस तरफ़ भागे उसे उठाने के लिए...


    नमन की ऐसी हालत देखकर श्रुति को भी बहुत बुरा लगा। उसने अपने मन में कहा, "शादी मुबारक हो श्रुति तुझे... बस जिंदगी ख़राब कर ली तूने अपनी, ऐसे इंसान के लिए। देख, तेरे लायक तो कहीं से भी नहीं है वो..."


    इतना बोलते हुए श्रुति बहुत मायूस लग रही थी। वह अभी भी अपनी जगह पर खड़ी थी क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसी सिचुएशन में क्या करे...



    To Be Continued...



    क्या नमन की माँ भी श्रुति को पसंद नहीं करती? और उसकी बहन वर्षा क्यों ले रही है उसकी इतनी साइड? और सुबह नमन की ऐसी हालत देखकर क्या सबको पता चल जाएगा कि वह पिछली पूरी रात घर में नहीं था? क्या श्रुति भी सबको यह बात बता देगी? आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह स्टोरी "bound by fate"। थोड़ी सी जल्दबाजी में लिखकर पोस्ट किया है हमने यह एपिसोड, क्योंकि 2 दिन का गैप हो गया और ऐसे तो स्टोरी कंप्लीट नहीं हो पाएगी कॉम्पिटिशन में। इसलिए अगर दो-चार टाइपिंग मिस्टेक रह गई हों तो प्लीज उसे इग्नोर करिएगा और स्टोरी एन्जॉय करिएगा। इसके अलावा हमें कमेंट भी चाहिए यार! आप लोग 10 कमेंट भी नहीं करते हो, तभी लिखने में लेट होता है हमें, 😑 सब आप लोगों की गलती है 🥲

  • 5. Bound By Destiny - Chapter 5

    Words: 1589

    Estimated Reading Time: 10 min

    नमन को इस तरह नशे में देखकर उसके पिता और दादाजी ने गुस्से से कहा, "यह क्या हाल बना रखा है तूने, नमन? अपना कोई देखकर तुझे कहेगा कि अभी कल ही तेरी शादी हुई है और बहू के सामने इतनी पीकर घर आया है? और सुबह-सुबह कहाँ गया था तू?"

    "शादी की खुशी में ही तो ड्रिंक की है मैंने, डैड। आप खुश नहीं हैं क्या? मुझे तो लगा आप बहुत खुश होंगे, आखिर आपकी पसंद की बहू जो लेकर आया हूँ।" - नमन उसी तरह नशे की हालत में बड़बड़ाया।

    उसकी बात सुनकर श्रुति को थोड़ा बुरा लगा। उसे पता था कि वह नमन की नहीं, बल्कि उसके घरवालों की पसंद है। भले ही उसे इसका अंदाजा पहले से था, लेकिन सामने से यह सुनकर उसे बहुत दुख हुआ।

    लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और चुपचाप आँसू छिपाते हुए वहाँ से चली गई। नमन को पहले ही घर के सारे लोग डाँट रहे थे। उसके पिता ने पहले यह पूछा था कि वह कल रात घर पर था या नहीं, लेकिन फिर वर्षा ने बीच में आकर बात संभाली थी। उसने कहा था कि नमन सुबह ही एक दोस्त से मिलने गया था और शायद तब उसने ड्रिंक की होगी।

    सभी लोग नमन से बहुत नाराज थे। उसका बड़ा भाई अरनव और बहन वर्षा उसे किसी तरह पकड़कर उसके कमरे तक ले गए।

    वहाँ उसने देखा कि श्रुति ने साड़ी बदलकर एकदम ऑफिस वियर पहन लिया है और वह शीशे के सामने खड़ी होकर तैयार हो रही है।

    नमन इतना नशे में था कि वह ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था और न ही ठीक से कुछ बोल पा रहा था। लेकिन श्रुति को तैयार होते देख उसने एक नज़र उसकी तरफ देखा और बेड से उठकर खड़े होने की कोशिश करने लगा। उसके भाई-बहन उसे बेड पर लिटाकर उसके कमरे से जा चुके थे।

    लेकिन नमन की हालत इतनी खराब थी कि वह ठीक से उठ भी नहीं पाया। उसने उठने की कोशिश की और फिर लड़खड़ा गया। तब श्रुति ने उसकी तरफ देखकर कहा, "जब हैंडल नहीं होती है तो इतनी क्यों पीते हो? और कहाँ गायब थे सारी रात? ऐसे भी कौन से दोस्त हैं तुम्हारे जो सारी रात तुम्हारे साथ ही थे?"

    श्रुति ने उससे यह सारे सवाल किए। तभी नमन बोला, "तुम्हें क्या पता होगा दोस्त क्या होते हैं? तुम्हारी जैसी लड़की को तो कोई दोस्त भी नहीं बनाता होगा। और बेवजह ही मेरे पल्ले बंध गई हो। वैसे बहुत अच्छी किस्मत पाई है तुमने, जो नमन मल्होत्रा की वाइफ बनने का मौका मिला। तुम्हें पता है, कल सारे लोग यही बोल रहे थे कि लड़की की किस्मत कितनी अच्छी है, उसे इतना हैंडसम पति मिला है। वही मेरे ऊपर तो सब तरस खा रहे थे कि मेरी किस्मत बहुत ही बुरी है जो तुम्हारी जैसी के साथ फँस गया मैं..."

    नमन की ऐसी बातें श्रुति को बहुत बुरी लगीं। उसने जवाब देते हुए कहा, "व्हाट डू यू मीन बाय 'मेरे जैसी'? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे सामने से कुछ भी बोलने की? जबकि तुम खुद को भी संभाल नहीं पा रहे हो। और मुझे तुमसे बहस ही नहीं करनी है। पहले थोड़ा होश में आ जाओ, फिर बात करना।"

    यह बात सुनकर नमन ने फिर से कुछ बोलने की कोशिश की, लेकिन तभी उसे बहुत तेज चक्कर आया और वह बेड पर गिरकर बेहोश हो गया। श्रुति ने बेबसी से उसकी तरफ देखा, अपना सिर हिलाया और एक ठंडी साँस लेते हुए अपने कमरे से बाहर आ गई।

    उसे इस तरह ऑफिस के कपड़ों में तैयार देखकर नमन की माँ ने कहा, "बस कुछ घंटों का ही था वह संस्कारी बहू वाला रूप, अब आ गई ना अपनी असलियत पर..."

    "क्या मतलब है आपकी इस बात का, मम्मी जी? मैं तो ऑफिस जा रही हूँ, तो उसके लिए तो रेडी होना ही होगा ना? साड़ी में तो ऑफिस नहीं जा सकती!" - श्रुति ने बहुत ही आराम से कहा।

    लेकिन उसकी इस बात पर नमन की माँ तुनक कर बोली, "हे भगवान! यह लड़की तो कैसे शादी के पहले दिन ही इतनी जुबान चल रही है! और वैसे भी शादी के अगले दिन भला कौन सी लड़की ऑफिस जाती है? इतना भी क्या ज़रूरी है?"

    "आपका लड़का शादी की अगली सुबह शराब पीकर घर आ सकता है, लेकिन मैं अपने ज़रूरी काम से ऑफिस नहीं जा सकती। वैसे भी एक ज़रूरी क्लाइंट मीटिंग है, जो पोस्टपोन नहीं हो सकती कल के लिए। तो मुझे आज ही जाना है। और वैसे भी मेरी बात हो गई थी पापा जी से इस बारे में शादी से पहले ही!" - श्रुति ने नमन की माँ को जवाब दिया। इस बार वह कुछ नहीं बोल पाई, क्योंकि कहीं न कहीं गलती उनके बेटे की भी थी।

    तब तक नमन के दादाजी वहाँ आ गए और उन्होंने श्रुति और नमन की माँ को बहस करते हुए देखा। उन दोनों के बीच बोल पड़े, "क्या हुआ सास-बहू में? क्या बातें चल रही हैं?"

    दादा जी को देखकर श्रुति उनकी तरफ बढ़ते हुए बोली, "दादाजी, क्या मैं ऑफिस नहीं जा सकती? अभी एक ज़रूरी काम है!"

    "बिल्कुल जाओ बेटा, किसने मना किया है तुम्हें?" - दादाजी ने मुस्कुराकर जवाब दिया। श्रुति ने नमन की माँ की तरफ देखा और कुछ नहीं बोली। दादाजी शायद उसके बिना बोले ही समझ गए और उन्होंने आगे जाकर श्रुति के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "बेटा, तेरा पति तो वैसे भी नालायक है। आज सुबह जो कुछ भी हुआ, वह तो सब तेरे सामने ही हुआ। इसलिए तुझसे क्या छुपाना? मुझे तो लगता है आगे चलकर हमारी कंपनी भी सब तुझे ही संभालनी होगी।"

    दादाजी की यह बात नमन की माँ को थोड़ी बुरी लगी, लेकिन अपने ससुर के सामने उन्होंने कुछ नहीं कहा और चुपचाप वहाँ से चली गईं। श्रुति और दादाजी ने एक बार उनकी तरफ देखा, लेकिन फिर श्रुति ने कहा, "क्या सच में दादाजी? नमन हमेशा से ऐसा ही है? मुझे लगा शायद अभी शादी होने की वजह से वह ऐसा बर्ताव कर रहा है। शायद आप लोगों ने उसे शादी के लिए फोर्स किया है ना?"

    श्रुति ने दादा जी से यह सवाल किया तो दादाजी भी नज़रें चुराने लगे। श्रुति ने फिर से पूछा तो दादाजी ने बातें बनाते हुए कहा, "अरे नहीं बेटा, तू इतना क्यों सोच रही है? और वैसे भी हमने तो इसलिए ही जोर दिया। नहीं तो उस नालायक को तेरे जैसी इतनी प्यारी और समझदार पत्नी कैसे मिलती? वो तो है ही बेवकूफ, वो कभी अपने लाइफ के डिसीजन सही नहीं ले पाता। तो ऐसे में हम बड़ों को तो गाइड करना ही होता है ना..."

    दादाजी की बात सुनकर श्रुति को थोड़ा अच्छा लगा। तब तक वर्षा भी वहाँ आ गई और उसने भी श्रुति से कहा, "हाँ, भाभी! नमन भाई बिल्कुल भी ऐसे नहीं हैं। आप प्लीज़ उनके पहले इम्प्रेशन को आखिरी मत समझ लेना और उन्हें चांस ज़रूर देना अपनी लाइफ में। बाकी घर में वह पापा और दादा की तो डाँट खाते ही रहते हैं क्योंकि वह उनकी बात नहीं सुनते, शायद इसलिए..."

    वर्षा ने फिर से इस तरह मुस्कुराकर नमन की तरफ़दारी करते हुए कहा। श्रुति ने भी उसकी तरफ एक जबरदस्ती की मुस्कान दी और फिर चुप होकर दादाजी का आशीर्वाद लेते हुए बोली, "दादाजी! मैं निकलती हूँ, नहीं तो मुझे लेट हो जाएगा।"

    श्रुति के कपड़े देखकर वर्षा भी पहले ही समझ गई थी कि वह ऑफिस जा रही है, इसलिए जाते वक्त उसने उसे नहीं रोका। श्रुति वहाँ से बाहर निकल गई। बाहर उसकी कार पहले से ही खड़ी थी, जो कि कल उसे दहेज में मिली है और उसके साथ उसका अपना ड्राइवर भी है। इसलिए उसने मल्होत्रास से उनकी कार या फिर किसी को साथ आने के लिए नहीं बोला। वह अपनी कंपनी में काफी समय से डिप्टी जनरल मैनेजर की पोस्ट पर काम कर रही है और वह अपने काम में काफी अच्छी है। इसलिए ऑफिस के बारे में उसने शादी से पहले ही बात की थी और तब उसके ससुराल वालों ने बोला था कि उसके काम करने से किसी को कोई परेशानी नहीं है। यह सुनकर श्रुति काफी खुश हुई थी, लेकिन आज सच क्या है, यह उसे पता चल गया। इस बारे में सोचती हुई वह अपनी कार की पिछली सीट पर बैठ गई।

    कुछ देर बाद उसने अपना मोबाइल फोन निकाल लिया और उसमें कंपनी से संबंधित सारे अपडेट्स चेक करने लगी। शादी की वजह से पिछले एक हफ़्ते से उसका ऑफिस मिस हो रहा था। इसलिए ही आज शादी के अगले दिन उसने ऑफिस जाने का फ़ैसला किया।


    क्रमशः


    तो क्या लगता है आप सबको? दादाजी सही बोल रहे हैं या फिर श्रुति को बस ऐसे ही लग रहा है? और नमन का क्या है? असली चेहरा क्या है? क्या वह कभी श्रुति को स्वीकार करेगा? क्या वह हमेशा ही उसके साथ ऐसा बर्ताव करेगा? नमन की माँ और बहन, क्या उन लोगों का बर्ताव बदलेगा श्रुति के लिए? जानने के लिए पढ़ते रहिए "bound by fate"। कैसी लग रही है आपको यह स्टोरी? कमेंट में बताना ना भूलें...

  • 6. Bound By Destiny - Chapter 6

    Words: 1541

    Estimated Reading Time: 10 min

    श्रुति घर से ऑफिस जाती ही थी कि बीच रास्ते में उसकी कार अचानक रुक गई। उसने ड्राइवर से पूछा,
    "क्या हुआ?"

    ड्राइवर ने उत्तर दिया,
    "मैडम, आगे देखिए। शायद एक्सीडेंट हुआ है, रास्ता जाम है।"

    कार की खिड़की से बाहर झांकते हुए श्रुति बोली,
    "ओ गॉड! कहाँ पर? बहुत बड़ा एक्सीडेंट तो नहीं है ना? आई होप सब ठीक हो!"

    वह खिड़की से बाहर झाँककर देखने की कोशिश कर रही थी, पर भीड़ और गाड़ियों के कारण उसे कुछ साफ़ नज़र नहीं आया। अंदर से भी कुछ ठीक से नज़र नहीं आ रहा था, इसलिए वह कार से बाहर निकलने लगी। ड्राइवर ने उसे रोका,
    "मैडम, यहीं बैठिए। मैं दूसरे रास्ते से आपको ऑफिस पहुँचा दूँगा। थोड़ा समय लगेगा, पर यहाँ रुकने का कोई फायदा नहीं है। यह जाम पता नहीं कब तक खुलेगा।"

    श्रुति ने धीरे से सिर हिलाया और अपनी सीट पर बैठ गई। वह कार से बाहर नहीं निकली क्योंकि उसे पहले ही ऑफिस के लिए देर हो रही थी, और वह आधे रास्ते पर पहुँच चुकी थी। रास्ता बदलने से कम से कम एक घंटा और लग जाएगा, उसे समझ आ गया था।

    कार में अकेली बैठी वह बहुत बोर हो रही थी। उसे ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि कल उसकी शादी हुई है और वह एक नई दुल्हन है। उसे लग रहा था कि उसके साथ मज़ाक हुआ है।

    इसी सोच में डूबी थी कि उसका मोबाइल फोन बज उठा। कनिका का कॉल था।

    श्रुति समझ गई कि कनिका शादी, पति और नए घर-परिवार के बारे में पूछेगी। ज़्यादातर दोस्त शादी के लिए इतने उत्साहित होते हैं, यहाँ तक कि दूल्हा-दुल्हन से भी ज़्यादा। यह सोचकर श्रुति अपनी किस्मत पर मुस्कुराई।

    लेकिन आखिरी बजने पर उसने कॉल रिसीव कर ली। इतनी देर से अकेली बोर हो रही थी, उसने सोचा कि कुछ देर कनिका से बात कर लेती है।

    "हेलो कनिका! क्या हुआ? क्यों फोन किया? शादी में तो आई नहीं थी, इतना भी समय नहीं था क्या? और अब फोन कर रही है।" - श्रुति ने शिकायत करते हुए कहा। कनिका उसकी इकलौती दोस्त थी, और उसने अपनी पर्सनल प्रॉब्लम की वजह से शादी अटेंड नहीं की थी।

    कनिका ने माफी माँगी,
    "सॉरी यार! मैंने बताया था तुझे। इतनी बार सॉरी भी बोल चुकी हूँ। मैंने बहुत कोशिश की थी आने की, पर नहीं आ पाई। घर में थोड़ी पर्सनल प्रॉब्लम चल रही है।"

    श्रुति ने नाराज़गी से कहा,
    "हाँ, हाँ, पता है मुझे। इतने दिनों में मैं कितनी बार यह सब सुन चुकी हूँ! तूने मेरा एक भी फंक्शन अटेंड नहीं किया। सिर्फ़ बीच में एक दिन मिलने आई थी, और उसके बाद ग़ायब। आज हमारी बात हो रही है। ऐसी क्या प्रॉब्लम चल रही है? कुछ बताएगी तू मुझे?"

    कनिका ने उत्साह से पूछा,
    "अरे यार, वो सब तो चलता ही रहता है। मेरी छोड़, तू अपनी बता। कैसा है ससुराल में पहला दिन? वहाँ सब कैसे हैं? और सबसे ज़रूरी, जीजू कैसे हैं यार? फ़ोटो में देखा था, दिखने में तो काफ़ी हैंडसम हैं। बाक़ी सब तू बता..."

    यह सुनकर श्रुति को कल शादी के बाद से आज सुबह तक सब कुछ याद आ गया। उसके चेहरे पर मायूसी साफ़ दिखने लगी। वह कुछ नहीं बोली। थोड़ी देर बाद कनिका ने पूछा,
    "हे श्रुति! क्या हो गया? कहाँ खो गई?"

    कनिका की आवाज़ सुनकर श्रुति ख्यालों से बाहर आई और बोली,
    "हाँ, नहीं... नहीं कुछ नहीं... वो बस अभी मैं रास्ते में हूँ। तुझसे बाद में बात करती हूँ।"

    श्रुति कॉल डिस्कनेक्ट करने ही वाली थी कि कनिका ने उसे रोका,
    "अरे नहीं.. नहीं.. रुक तो। बाद में पता नहीं कब बात हो पाए हमारी। कभी तेरे पास समय नहीं होगा तो कभी मेरे पास। यह तो बता दे कि कहाँ जा रही है इतनी सुबह-सुबह? शादी के अगले ही दिन जीजू के साथ कहीं घूमने जा रही है क्या? या फिर उनका कोई कुलदेवी का मंदिर है, वहाँ पर शादी के बाद आशीर्वाद लेने..."

    श्रुति ने बेबसी से सिर हिलाया,
    "यार कनिका! एक तो तू यह हिंदी टीवी सीरियल देखना कम कर दे। उससे तेरी पर्सनल प्रॉब्लम भी थोड़ी सॉल्व हो जाएगी। कहीं मंदिर नहीं और कहीं घूमने नहीं। मैं ऑफिस जा रही हूँ यार, एक ज़रूरी काम से..."

    कनिका हैरान होकर बोली,
    "शादी के अगले दिन ही ऑफिस कौन जाता है यार? लड़के भी नहीं जाते हैं शादी के अगले ही दिन ऑफिस और तू... वैसे फैमिली काफ़ी मॉडर्न है तुम्हारी, सभी सपोर्टिव लग रहे हैं। नहीं तो कौन परमिशन देता है शादी के अगले ही दिन बहू को ऑफिस जाने की।"

    श्रुति ने कड़वाहट से कहा,
    "हाँ, सच में... यहाँ सब बहुत अच्छे और सपोर्टिव हैं।"

    उसकी तिरछी मुस्कुराहट से साफ़ पता चल रहा था कि वह किस लहजे में यह बात बोल रही है। कनिका को पूरी बात समझ नहीं आई। उसने कहा,
    "अच्छा ठीक है, लेकिन ऑफिस का काम निपटाकर जल्दी ससुराल वापस चली जाना। अभी नई-नई शादी हुई है तो किसी को शिकायत का मौका मत देना, यार! तुम समझ रही हो ना?"

    श्रुति ने कहा,
    "हाँ, सब समझ रही हूँ मैं... बाय! बाद में बात करते हैं।"

    उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी। उसे समझ आ गया था कि अगर वह कनिका से और ज़्यादा देर बात करेगी तो वह सब कुछ छिपा नहीं पाएगी। वह नहीं चाहती थी कि इतनी जल्दी वो सबको जज करे। वह सभी को थोड़ा समय देना चाहती थी।

    उसे लगता था कि थोड़े समय बाद शायद वह लोग उसे पसंद करने लगेंगे और शायद अभी वह ही जल्दबाज़ी में उन लोगों को गलत समझ रही हो।

    यह सब सोचते हुए श्रुति की कार ऑफिस बिल्डिंग पहुँच गई। वहाँ से वह सीधे अपने ऑफिस पहुँची।

    वह सबसे पहले अपने केबिन में गई। अंदर आते ही उसने देखा कि उसकी कुर्सी पर कोई बैठा हुआ है।

    श्रुति को बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। शादी को एक दिन भी नहीं हुआ था, और उसने यह बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी कोई उसकी जगह ले लेगा।

    श्रुति गुस्से में केबिन में आई। उसे अपने पिता भी नज़र आए, वह उसकी कुर्सी के सामने वाली कुर्सी पर बैठे थे। श्रुति ने गुस्से से कहा,
    "पापा, इतनी जल्दी आपने मेरी जगह पर दूसरा मैनेजर रख लिया? मैंने अभी तक अपनी पोस्ट से रिजाइन नहीं दिया है, और आप मुझे इस तरह से रिप्लेस नहीं कर सकते।"

    पिता हड़बड़ा गए,
    "अरे नहीं! ऐसा कुछ भी नहीं है बेटा। तुम्हारी जगह पर मैंने किसी को भी असाइन नहीं किया है। तुम ग़लत समझ रही हो।"

    श्रुति ने अपनी कुर्सी की ओर इशारा करते हुए गुस्से से पूछा,
    "मैं ग़लत समझ रही हूँ तो फिर यह जो सामने नज़र आ रहा है, वो क्या है?"

    कुर्सी पर बैठा शख्स दीवार की तरफ मुँह किए बैठा था। श्रुति को सिर्फ़ उसकी पीठ और बाल नज़र आ रहे थे।


    क्रमशः

  • 7. Bound By Destiny - Chapter 7

    Words: 1752

    Estimated Reading Time: 11 min

    श्रुति बहुत ही ज्यादा नाराजगी से अपने पिता की तरफ देखते हुए सारे सवाल कर ही रही थी कि उसके कानों में एक जानी-पहचानी सी आवाज पड़ी।

    "रिप्लेस नहीं... नहीं... मैं तो बस तुम्हारी खाली जगह भरने के लिए यहां पर आई थी, दीदी! वैसे मुझे नहीं पता था कि शादी के अगले ही दिन तुम मुझे यहां पर ऑफिस में दिखोगी?"

    इतना बोलते ही वो कुर्सी उसकी तरफ घूमी। श्रुति को वहां पर बैठी हुई अपनी छोटी बहन आरती नज़र आई। आरती उसकी सौतेली बहन है और वह श्रुति को कुछ खास पसंद नहीं करती।

    क्योंकि श्रुति ऑफिस में अपनी काबिलियत के दम पर एक बहुत ही सक्सेसफुल पोस्ट पर काफी सालों से काम कर रही है। वहीं आरती अब तक ऑफिस में अपनी एक भी जगह नहीं बना पाई है।

    उसे यह सब काम-काज करना पसंद नहीं है, लेकिन उसकी माँ उसे समझाती है कि अगर वह ऑफिस में इन सब चीजों पर ध्यान नहीं देगी तो फिर सब कुछ श्रुति धोखे से अपने नाम करवा लेगी। जबकि ऐसा कुछ नहीं है; श्रुति ने कभी भी ऐसा कुछ नहीं सोचा। वह बस ईमानदारी और मेहनत से अपना काम करती है।

    आरती की बात सुनकर श्रुति को थोड़ा बुरा तो लगा, लेकिन फिर भी उसने काफी शांत रहने की कोशिश करते हुए कहा,

    "मेरी शादी हुई है, मैं मर नहीं गई हूँ आरती, जो तुम मेरी खाली जगह भरने के लिए इतनी उतावली थी कि मेरी शादी के अगले दिन ही यहां पर आकर बैठ गई।"

    श्रुति की बात सुनकर आरती ने बहुत ही हैरानी से उसकी तरफ देखा और फिर उसने अपने पापा की तरफ देखा। जो कि उसे वहां कुर्सी से उठने का इशारा कर रहे थे। उनका इशारा समझ कर आरती चुपचाप अपनी जगह से उठ गई और श्रुति की तरफ आते हुए बहुत ही अजीब तरह से मुस्कुराते हुए बोली,

    "अरे दीदी! ऐसी बातें क्यों कर रही हो? मरे आपके दुश्मन! मैं तो बस यह पूछ रही थी कि क्या जीजू ने भी नहीं रोका आपको यहां आने से... आई मीन उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं है।"

    आरती की यह बात सुनकर श्रुति ने तुरंत ही पलट कर उसकी तरफ देखा। आरती का चेहरा एकदम सफेद पड़ गया क्योंकि श्रुति घूर कर उसकी तरफ देख रही थी। तभी श्रुति ने कहा,

    "नहीं, मैं कौन सा कुछ भी ऐसा कर रही हूँ जो किसी को भी कोई प्रॉब्लम होगी। और ऑफिस वाली बात तो पहले ही क्लियर हो गई थी, है ना पापा!"

    श्रुति ने अपने पापा की तरफ देखते हुए पूछा। उनके चेहरे पर पसीने की बूंदें नज़र आ रही थीं और उनकी नज़रें भी नीचे की तरफ झुकी हुई थीं। शायद वह कुछ सोच रहे थे, लेकिन श्रुति की आवाज सुनकर उन्होंने तुरंत ही नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा और कहा,

    "हाँ... हाँ... सब कुछ बात हो गई थी। मेरी और तुम बैठो ना अपनी जगह पर, तुम्हें किसने रोका है? और आरती तो बस ऐसे ही... मज़ाक कर रही थी। और वो बस हेल्प के लिए यहां पर आई थी!"

    अपने पापा की बात सुनकर श्रुति को यकीन तो नहीं हुआ, लेकिन फिर भी वह अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गई और उसने कुर्सी के दोनों हैंडल्स पर अपना हाथ रख लिया। जैसे कि अपनी चीज़ पर अपना पूरा हक़ जता रही हो। आरती तब तक उसके सामने आकर अपने पापा के साथ वाली कुर्सी पर बैठ गई। श्रुति ने एक नज़र उन दोनों की तरफ देखा। उन दोनों का बिहेवियर श्रुति को आज काफी अजीब लग रहा था। और उसे ऐसा भी लग रहा था जैसे दोनों कुछ छुपा रहे हैं और आपस में इशारों में कुछ बातें भी कर रहे हैं। लेकिन फिर भी श्रुति ने कुछ भी नहीं कहा।

    उन दोनों को पूरी तरह से इग्नोर करते हुए श्रुति अपने काम में लग गई। कुछ देर बाद उसके पापा और आरती दोनों ही वहां से बाहर चले गए।


    ******

    दूसरी तरफ, मल्होत्रा हाउस;

    कुछ घंटे बाद नमन को होश आया। आँखें खोलते हुए वह उठकर बैठा और फिर इधर-उधर देखते हुए उसने चारों तरफ नज़र दौड़ाई। वह समझ गया कि वह इस वक्त अपने कमरे में है, लेकिन वह यहां पर कैसे पहुंचा, इस बारे में उसे कुछ भी याद नहीं था। अपनी आँखें मलते हुए वह उठकर बैठा। ज़्यादा ड्रिंक करने की वजह से उसके सिर में अभी भी हल्का दर्द था, लेकिन वह अक्सर ही ड्रिंक करता रहता है तो इतना ज़्यादा उसे इफेक्ट नहीं पड़ रहा था। और फिर वह उठकर सीधा वॉशरूम गया। उसने अपने चेहरे पर पानी मारा और फिर कुछ देर बाद बाहर निकला। उसने कमरे की हालत देखी। कल रात की सजावट को हटाकर अब वहां सफाई हो गई थी और सारे सूखे हुए फूल वहां से हटा दिए गए थे। लेकिन फिर भी वह नए शादीशुदा जोड़े का कमरा लग रहा था क्योंकि वहां पर काफी सारा नया सामान रखा हुआ था और अब वहां पर उसके अलावा श्रुति का भी सामान रखा हुआ था। वह सब कुछ याद आते ही नमन के चेहरे का एक्सप्रेशन एकदम से ही बदल गया।

    उसने अपने आप से बात करते हुए कहा,

    "कहां गई है हमारी धर्मपत्नी जी, कहीं नज़र नहीं आ रही।"

    इतना बोलते हुए उसने कमरे में हर जगह पर चेक किया, लेकिन उसे श्रुति कहीं नहीं मिली। तो फिर वह अपनी शर्ट चेंज करके, उसके बटन बंद करते हुए रूम से बाहर आ गया।

    "मम्मी! पापा... भाई... वर्षा! कोई है यहां पर..."

    नमन सीढ़ियाँ उतरते हुए तेज आवाज में चिल्लाया। उसकी आवाज सुनकर उसकी माँ और बहन वहां पर आ गईं क्योंकि उनके अलावा इस वक्त और कोई भी घर पर नहीं था।

    "क्या हो गया नमन! इस तरह से क्यों चिल्ला रहा है?"

    उसकी माँ ने आगे आते हुए उससे पूछा।

    अपनी माँ को देखकर नमन ने उनसे सवाल किया,

    "अरे माँ! आपको पता है क्या मेरी नई-नवेली धर्मपत्नी कहाँ पर है? क्योंकि कमरे में तो वह नहीं है, किचन में है क्या? वैसे पहले दिन ही खाना बनवाना शुरू करवा दिया क्या उससे? वैसे उसे देखकर लगता नहीं है उसे कुछ भी अच्छा बनाना आता होगा।"

    वर्षा ने हल्के से कोहनी मारते हुए नमन की तरफ देखा,

    "क्या बोल रहे हो भाई! कुछ भी..."

    नमन ने एकदम लापरवाही से अपनी आँखें रोल करते हुए कहा,

    "अरे क्या कुछ भी... सच बोल रहा हूँ। अच्छा तू जाकर मेरे लिए कॉफ़ी लेकर आ क्योंकि बीवी होने का कोई फायदा तो दिख नहीं रहा है। पता नहीं खुद ही कहाँ गायब है वो लड़की?"

    नमन की बात सुनकर वर्षा उसके कॉफ़ी के लिए बोलने के लिए किचन की तरफ चली गई।

    वर्षा के वहां से जाते ही नमन की माँ सुनीता ने बुरा मानते हुए कहा,

    "घर पर होगी तब दिखेगी ना महारानी! सुबह-सुबह ही अपने ऑफिस चली गई। बताओ ये कोई कायदा है? शादी के बाद कभी कोई लड़की दूसरे ही दिन इस तरह से ऑफिस जाती है क्या? और ऊपर से तुम्हारे पापा-दादा ने खुद उसे परमिशन दी।"

    एकदम ही चौंकते हुए नमन ने पूछा,

    "क्या... उसे इतनी जल्दी दादा और दादाजी ने ऑफिस में एंट्री दे दी? जबकि मुझे तो अब तक भी परमिशन नहीं है वहां पर जाने के लिए। और उस लड़की को कौन सी पोस्ट दे दी? हमारे ऑफिस गई है वो, लेकिन क्यों?"

    नमन की बात सुनकर उसकी माँ ने बहुत ही बेबसी से उसकी तरफ देखा और फिर धीमी आवाज में बोली,

    "एकदम बेवकूफ ही रहेगा तू हमेशा... हमारे ऑफिस नहीं, वो अपने ऑफिस गई है। अपने पापा के, जहां पर वह काम करती थी। बोल रही थी कुछ ज़रूरी काम है उसको। और इस बारे में पहले ही बात हो गई थी कि वह शादी के बाद भी अपने ऑफिस में काम करेगी!"

    नमन थोड़ा तैश में आते हुए बोला,

    "कब हुई ये सब बात और किससे? मुझसे क्यों नहीं पूछा उसने? अब शादी के बाद मेरी मर्ज़ी के बिना वह कैसे जा सकती है कहीं भी? और पापा-दादा ने क्यों उसे इतनी छूट दी है? मुझे बात करनी पड़ेगी उन लोगों से..."

    नमन की माँ सुनीता ने उसे समझाते हुए कहा,

    "उन लोगों से बात करने का कोई फायदा नहीं है बेटा! वो दोनों तो पहले ही तुझे कितना नाराज़ रहते हैं। तू ऐसा कर, तू ना अपनी बीवी को ही काबू में रखने की कोशिश कर। और उससे अपनी बात मनवा। आखिर कैसे नहीं सुनेगी वो अपने पति की बात? जब तू मना करेगा तो उसे अपने ऑफिस जाना बंद करना ही पड़ेगा। और ऐसी कौन सी कमी है यहां हमारे घर में, जो उसे भी कमाना ज़रूरी है।"

    उनकी बात पर नमन ने भी थोड़ी देर सोचा और उसे भी अपनी माँ की बातें एकदम सही लगीं। और फिर कुछ देर बाद उसने अपनी कॉफ़ी खत्म की और एकदम ही वहां से बाहर जाने लगा।

    उसे इस तरह अचानक से घर से बाहर जाते हुए देखकर उसकी माँ और बहन दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा, लेकिन उन दोनों में से किसी को भी नमन ने नहीं बताया था कि वह कहाँ जा रहा है।


    ******

    सिन्हा कॉरपोरेशन ऑफिस,

    श्रुति के दिमाग में कनिका की कहानी घूम रही थी और इसलिए उसने सोचा था कि वह जल्दी अपना काम खत्म करके जल्दी ही घर वापस चली जाएगी। और वहां ससुराल में पहले ही दिन किसी को शिकायत का मौका नहीं देगी। क्योंकि इतना तो उसे समझ में आ गया था कि इस तरह उसके शादी के दूसरे ही दिन ऑफिस जाने की वजह से उसकी सास को तो बुरा लगा है। बाकी और किसी के रिएक्शन वह देख नहीं पाई थी।

    यही सोचकर वह जल्दी-जल्दी अपना काम खत्म कर रही थी, लेकिन फिर भी शाम के 4:00 बज गए। और उसने सोचा था कि वह 5:00 बजे से पहले वह वहां से निकल जाएगी। लेकिन अभी 4:30 बज चुके हैं और अब भी उसका काफी सारा काम बचा हुआ है। तो इसलिए उसने हेल्प के लिए अपने असिस्टेंट तरुण को वहां पर बुला लिया है, जो कि उसकी हेल्प कर रहा है। और उन दोनों का काम एकदम खत्म ही होने वाला है कि तभी एकदम झटके से उसके केबिन का दरवाजा खुला और दरवाजा एकदम ही दीवार से टकरा गया। और उसे तेज आवाज की वजह से श्रुति और तरुण दोनों का ही ध्यान उसकी तरफ हुआ।

    दरवाजे पर खड़े शख्स को देखकर श्रुति के लैपटॉप कीबोर्ड पर चलते हुए हाथ रुक गए और वह एकदम ही हैरान रह गई। क्योंकि उसे इस वक्त उस शख्स के यहां पर होने की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी।


    क्रमशः

  • 8. Bound By Destiny - Chapter 8

    Words: 1509

    Estimated Reading Time: 10 min

    "अच्छा, तो यह काम यहाँ चल रहा है... इसीलिए आज तुम्हारा ऑफिस आना ज़रूरी था... चलो, घर चलो। मैं खुद ही पापा और दादाजी से तुम्हारी यह असलियत बताऊँगा!" दरवाज़ा खुला और श्रुति ने उसे देखा तो नमन वहाँ खड़ा हुआ था। गुस्से से उसकी तरफ़ देखते हुए वह यह सब बोल रहा था। लेकिन वह किस आधार पर यह बात बोल रहा है, यह श्रुति को समझ नहीं आया। बहुत कन्फ्यूज़न के साथ वह उसकी तरफ़ ही देख रही थी। लेकिन नमन इस तरह गुस्से में अंदर आया और उसने श्रुति का हाथ पकड़ लिया।

    उसका असिस्टेंट उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठा था। उसे श्रुति की शादी और नमन के बारे में कुछ नहीं पता था। इसलिए एकदम अचानक ही नमन ने अंदर आते हुए श्रुति से यह सब कहा और फिर उसका हाथ पकड़कर उसे जबरदस्ती कुर्सी से उठाने की कोशिश करने लगा। तब तरुण बीच में आ गया और बोला,
    "कौन हैं आप? और यह क्या बदतमीज़ी है? आप मेरी मैम के साथ ऐसा बर्ताव नहीं कर सकते! सिक्योरिटी! सिक्योरिटी!"

    "तरुण, रहने दो। और नमन, तुम क्या कर रहे हो? यह हाथ छोड़ो। मैं अपने ऑफिस में हूँ और यहाँ..." तरुण को मनाते हुए श्रुति नमन की तरफ़ देखकर बोली।

    उसके इस तरह मना करने पर भले ही तरुण को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन वह चुप हो गया। लेकिन नमन ने उसकी बात बिल्कुल नहीं सुनी और उसे अपने साथ खींचकर दरवाज़े की तरफ़ ले जाते हुए बोला,
    "हाँ, तो अपने ऑफिस में होने का रौब किसे दिखा रही हो? तुम्हारे बाप का ही ऑफिस है क्या? जहाँ पर तुम काम तो नहीं, शायद कुछ और ही कर रही थीं। और यह क्यों था तुम्हारे साथ कुछ ज़्यादा ही फिक्र? इसे मिलने के लिए ही आई थीं ना?"

    नमन ने तरुण की तरफ़ देखते हुए यह सब कहा। तभी दरवाज़े के पास पहुँचते हुए श्रुति अपनी जगह पर रुक गई और अपनी पूरी ताकत लगाकर उसने अपना हाथ छुड़ाया। नमन का हाथ गुस्से में दूर झटकते हुए बोली,
    "दिमाग ठीक है तुम्हारा? क्या बकवास कर रहे हो? तरुण मेरा असिस्टेंट है और वह बस मेरी काम में मदद कर रहा था।"

    श्रुति का स्पष्टीकरण सुनकर नमन लापरवाही से बोला,
    "हाँ, ठीक है, वह जो भी। लेकिन यह बताओ, तुम मुझसे पूछे बिना यहाँ ऑफिस कैसे आईं? और आज शादी के दूसरे ही दिन एक नई पत्नी, नई बहू को यह सब शोभा देता है क्या?"

    "तुमसे क्या पूछना है मुझे? तुम कौन सा मुझसे कुछ भी बताकर जाते हो? वैसे भी, अभी कल ही हमारी शादी हुई है। तो इतना कोई हक़ नहीं है तुम्हारा मुझ पर कि मैं हर काम तुमसे पूछकर करूँगी। और तुम खुद भी तो पूरी रात गायब..." श्रुति बोल ही रही थी कि तभी एक तेज आवाज़ उसके कानों में पड़ी,
    "श्रुति! यह क्या तरीका है अपने पति से बात करने का? और क्या तमाशा लगा रखा है तुमने यहाँ ऑफिस में? और नमन बेटा, तुम तो इतने समझदार हो, फिर तुम क्यों?"

    हर्षवर्धन ने श्रुति को डाँटते हुए कहा। लेकिन नमन से उसने बहुत प्यार से बात की। तो श्रुति ने हैरानी से अपने पापा की तरफ़ देखा क्योंकि वह उसे बहुत बदले हुए से लग रहे थे।

    श्रुति के पापा को इस तरह प्यार से बोलते हुए सुनकर नमन तुरंत शांत हो गया और उनकी तरफ़ देखते हुए बोला,
    "सॉरी पापा! मैं बस थोड़ा सा नाराज़ हूँ श्रुति से। एक तो वह शादी के अगले ही दिन ऑफिस आ गई। मैं नहीं चाहता मेरी बीवी इतना काम करे। और फिर उसने मुझे बताया भी नहीं। बताइए, ऐसा भी कोई करता है क्या? और कम से कम मुझे इन्फ़ॉर्म करती... हो सकता है मैं ही उसकी कोई मदद कर देता काम में।"

    नमन के मुँह से ऐसे मीठे शब्द श्रुति को कुछ रास नहीं आ रहे थे। लेकिन उसे यह भी लगा कि शायद नमन सच में ऐसा ही सोच रहा है क्योंकि उसने अभी तक उसके साथ ज़्यादा समय नहीं बिताया था और न ही उसकी नमन से इतनी कोई बात हुई थी।

    श्रुति हैरानी से उन दोनों की तरफ़ देख रही थी। तभी श्रुति के पापा आगे जाकर नमन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,
    "अरे नहीं बेटा! तुम्हें तो अपना भी कितना काम होगा ना? अपना बिज़नेस शुरू करने वाले हो। मुझे पता है उसमें कितनी मेहनत लगती है। और अभी तुम उस पर ही ध्यान दो। वैसे भी श्रुति को तो काम करना पसंद है, वह अपना कर लेगी।"

    श्रुति के पापा की बात सुनकर नमन हल्का सा मुस्कुराया और फिर श्रुति की तरफ़ देखते हुए बोला,
    "अच्छा, मुझे तो पता ही नहीं था इस बारे में। लेकिन फिर भी तुम थकी हुई होगी ना? अभी कल ही हमारी शादी हुई और रात को सोने में भी कितना लेट हो गया था हमें। फिर तुम सुबह-सुबह ऐसे ऑफिस चली आईं। और आने से पहले कम से कम मुझे इन्फ़ॉर्म कर देतीं। मैं ही तुम्हें यहाँ तक छोड़ देता। इसी बहाने हम थोड़ा समय और साथ बिता लेते। या फिर कौन सा पति चाहेगा कि शादी की अगली सुबह उसकी पत्नी उसे इस तरह अकेला छोड़कर चली जाए?"

    यह सब बात करते हुए नमन का सुर एकदम बदला हुआ लग रहा था। थोड़ी देर पहले जैसे ही वह यहाँ आया था, वह एकदम आक्रामक बर्ताव कर रहा था। और अब एकदम शांत हो गया। श्रुति इस बात को लेकर काफी कन्फ़्यूज़ थी और उसी तरह कन्फ़्यूज़न से उसकी तरफ़ देख रही थी।

    तभी नमन ने उसके चेहरे के आगे अपना हाथ हिलाया और बोला,
    "हे, कहाँ खो गई? और कितना काम करोगी श्रुति? तुम अभी घर चलने का इरादा है या फिर अभी समय लगेगा तुम्हें?"

    यह बात भी उसने प्यार और आराम से पूछी। श्रुति हैरानी से उसकी तरफ़ देख रही थी। उसकी बात का जवाब देने से पहले उसने अपने असिस्टेंट की तरफ़ देखा। तो उसके असिस्टेंट ने कहा,
    "मैम... मैं इसे पूरा करके सेव कर दूँगा। आप... आप जाइए!"

    असिस्टेंट की बात सुनकर श्रुति ने धीरे से हाँ में अपना सिर हिलाया और फिर नमन की तरफ़ देखने लगी। वह कुछ बोल पाती, उससे पहले ही उसके पापा ने कहा,
    "हाँ, जाओ बेटा। मैं तो पहले ही सुबह कहा था तुमसे कि क्या ज़रूरत थी शादी के अगले ही दिन इस तरह ऑफिस आने की? हम लोग भी आखिर थोड़ा बहुत काम संभाल सकते हैं। बाकी सब हो जाएगा। जाओ, तुम फ़िक्र मत करो। और अब एक-दो हफ़्ते के बाद ही ऑफिस आना। जब तक दामाद जी के साथ थोड़ा समय बिताओ। अपने नए परिवार को जानो-समझो। इस तरह यहाँ ऑफिस में बैठी रहोगी तो कैसे चलेगा?"

    श्रुति के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसके पापा ने उसे समझाया। श्रुति कुछ नहीं बोली। उसने बस अपने पापा की तरफ़ देखा। फिर नमन ने उसकी तरफ़ देखकर कहा,
    "चले मैडम?"

    नमन की बात पर श्रुति धीरे से हाँ में अपना सिर हिलाते हुए उसके साथ वहाँ से बाहर निकल गई।

    वे दोनों कार में आकर बैठे। लेकिन कार में ड्राइवर भी उनके साथ था। इसलिए नमन ने उस वक़्त श्रुति से कुछ नहीं कहा। कार में बैठने के कुछ देर बाद ही नमन के फ़ोन पर किसी का कॉल आया और वह पूरे रास्ते उससे बात करने में बिज़ी रहा।

    श्रुति उसके बगल में बैठी हुई थी। लेकिन कॉल पर बात करते हुए नमन इतना बिज़ी था कि उसने एक बार भी श्रुति की तरफ़ ध्यान नहीं दिया। वह उसे इस तरह इग्नोर कर रहा था जैसे वह उसे नज़र ही नहीं आ रही।

    श्रुति को इस बात का बुरा लग रहा था, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। चुपचाप साइड में बैठी हुई खिड़की से बाहर की तरफ़ देखती रही। कुछ देर बाद वे लोग घर वापस आ गए।

    घर वापस आते ही श्रुति चेंज करने के लिए सबसे पहले अपने रूम की तरफ़ जाने लगी। जबकि नमन वहाँ हॉल में सोफ़े पर आराम से लेट गया। वह अभी भी फ़ोन पर बात कर रहा था, लेकिन अब शायद किसी और से...

    श्रुति सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ पाती, उससे पहले ही उसकी सास उसके रास्ते में आकर खड़ी हो गई। गुस्से से बोली,
    "आ गई कमाई करके? हमारे परिवार का नाम बदनाम करने पर लगी हो तुम तो... पहले ही दिन से है। भगवान मेरी तो किस्मत फूट गई। कैसी बहू मिली है मुझे..."

    इतना बोलते हुए उन्होंने अपने सिर पर हाथ मारा और घूरकर श्रुति की तरफ़ देखने लगी। लेकिन श्रुति को समझ नहीं आ रहा था कि वह यह सब क्यों बोल रही हैं। उसने आखिर ऐसा क्या किया?

    क्रमशः

  • 9. Bound By Destiny - Chapter 9

    Words: 1734

    Estimated Reading Time: 11 min

    नमन की माँ की ऐसी ताने भरी बात सुनकर श्रुति ने भी जवाब दिया, "मम्मी जी! आप ये सब क्या बोल रही हैं? आपको तो पता था ना कि मैं ऑफिस गई हूँ? आपके सामने ही तो गई थी मैं। और साड़ी पहनकर तो ऑफिस नहीं जाऊँगी ना। वैसे भी मुझे साड़ी पहनने की आदत नहीं है।"

    श्रुति की बात सुनकर नमन की माँ ने नाटक करते हुए अपने मुँह पर हाथ रखा और बोली, "नमन बेटा! देख रहा है तू? अभी दो दिन नहीं हुए इस लड़की को शादी करके यहाँ लाए और जुबान देखो इसकी, कैसे चल रही है! कोई बड़े-छोटे का लिहाज ही नहीं है। मैं इसकी सास हूँ, फिर भी मुझे जवाब दे रही है। और तू भी कुछ नहीं बोल रहा।"

    नमन ने लापरवाही से उनकी तरफ देखते हुए कहा, "क्या बोलूँ मैं, मॉम? आप दोनों के बीच की बात है ना। और श्रुति, तुम क्यों मॉम को थोड़ी रिस्पेक्ट नहीं दे सकती? अगर वह कुछ बोल रही हैं तो चुपचाप मान लो उनकी बात..."

    नमन में फिर से यह अचानक बदलाव देखकर श्रुति की आँखें खुली की खुली रह गईं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह लड़का इतनी जल्दी कैसे बदल जाता है। श्रुति कुछ बोल पाती, उससे पहले ही उसे पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी।

    "यह क्या तरीका है? शादी के पहले दिन ही शुरू हो गए तुम दोनों, माँ-बेटे! अगर बहू से उम्मीद रख रहे हो तो खुद भी तो उसके साथ अच्छी तरह से पेश आओ।"

    यह नमन के पिता की आवाज़ थी। उनकी बात सुनकर श्रुति ने उनकी तरफ देखा और उनके पैर छूने लगी। उन्होंने उसे रोका और कहा, "अरे नहीं...नहीं बेटा, मत छुओ। तुम भी तो मेरी बेटी की तरह हो।"

    उनकी यह बात सुनकर श्रुति मुस्कुराई और मन ही मन सोचने लगी कि चलो, उसे घर में कोई तो है जो उससे अच्छी तरह से पेश आ रहा है।

    नमन की माँ ने तुनककर कहा, "अरे लेकिन मैं कब गलत तरह से पेश आई? और आप भी मुझको ही सुन लीजिये! मैं तो बस यह पूछ रही थी कि आज ऑफिस जाने की इतनी क्या जरूरत थी इसे? बहू है तो पहले बहू वाले फर्ज़ भी निभाए ना..."

    अपनी पत्नी की बात सुनकर नमन के पिता थोड़े नरम स्वर में बोले, "अरे तो अब वापस आ गई है ना? अब बता दो क्या करना है उसे? वैसे भी उसकी अभी शादी हुई है। क्या चाहती हो तुम? इतनी जल्दी तो कोई भी एडजस्ट नहीं कर पाता ना। लेकिन उसे समझाओगी तो वह समझ जाएगी, है ना बेटा?"

    इतना बोलते हुए नमन के पिता ने श्रुति के सिर पर हल्के से हाथ फेरा। श्रुति ने उनकी तरफ देखकर हाँ में सिर हिलाया और फिर नमन की तरफ देखकर बोली, "तू क्या वहाँ सोफे पर पड़ा हुआ है? कोई काम नहीं है क्या तुझे? कुछ अपनी पत्नी से भी सीख ले कभी! अभी ऑफिस से आई है और अब बहू होने का फर्ज़ भी निभाएगी, लेकिन तुझसे तो कुछ नहीं होता।"

    "आई नहीं है, ऑफिस से मैं लेकर आया हूँ। और मैं ऐसे ही नहीं पड़ा हुआ हूँ, काम की बात ही कर रहा था।"

    अपने पिता की ताने भरी बात सुनकर नमन गुस्से में कॉल डिस्कनेक्ट करके मोबाइल फोन अपनी जेब में रख लिया और वहाँ से उठकर खड़ा हो गया। उसके बाद नमन के पिता ने श्रुति को कपड़े बदलने के लिए कहा और उसके पीछे ही नमन भी कमरे में चला गया क्योंकि उसे पता था कि अगर वह वहाँ बैठा रहेगा तो उसके पिता उसे कुछ न कुछ सुनते रहेंगे। वह नहीं चाहता था कि शादी के अगले ही दिन उसकी छवि श्रुति के सामने एक नालायक, निकम्मे, नकारा पति की बन जाए।

    इसलिए वह सफ़ाई देने के लिए तुरंत उसके पीछे आया क्योंकि उसे पता था श्रुति उससे कुछ नहीं पूछेगी। लेकिन जब तक उसका काम नहीं निकल जाता, उसे श्रुति के पिता से और उसके सामने अच्छी तरह से बर्ताव करना है। और उसके पिता ने ही उसे यह बात समझाई थी।

    नमन कमरे में आया तो उसने चारों तरफ देखा, लेकिन श्रुति उसे कहीं नहीं दिखी। तभी वॉशरूम से शॉवर की आवाज़ आई। वह समझ गया कि श्रुति वॉशरूम में है। इसलिए वह बेड पर आराम से लेट गया और उसने दोबारा अपना मोबाइल फोन निकाल लिया और बेड पर लेटा हुआ अपने फ़ोन को देखने लगा।

    कुछ देर बाद श्रुति बाहर वॉशरूम से निकली। उसने लाइट ब्लू कलर का नॉर्मल चिकन का कुर्ता और व्हाइट पजामा पहना हुआ था – बिल्कुल नॉर्मल, कम्फ़र्टेबल कपड़े। क्योंकि उसे इस वक़्त साड़ी नहीं पहननी थी, पहले ही शाम हो गई थी और साड़ी पहनने में ही घंटा लग जाता है।

    वह तौलिए से अपने गीले बाल पोंछती हुई बाहर आई और उसे इस बात की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि नमन कमरे में होगा। उसे देखते ही वह रुक गई।

    श्रुति ने नमन को देखा, लेकिन नमन ने नज़र उठाकर एक बार भी उसकी तरफ़ नहीं देखा, जब तक वह एकदम उसके सामने आकर ड्रेसिंग टेबल के सामने नहीं खड़ी हो गई। फिर उसने ड्रेसिंग टेबल पर रखा हुआ ब्लो ड्रायर उठाया और अपने बाल सुखाने लगी। ब्लो ड्रायर की आवाज़ से नमन का ध्यान उसकी तरफ़ गया और उसने नज़र उठाकर उसकी तरफ़ देखते हुए कहा, "श्रुति! मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। एक्चुअली देखो, हमारी शादी..."

    उसकी बात सुनकर श्रुति के हाथ रुक गए। उसने ब्लो ड्रायर ऑफ करके वहाँ ड्रेसिंग टेबल पर रख दिया और पीछे मुड़कर उसकी तरफ़ देखते हुए बोली, "तुम यह शादी नहीं करना चाहते थे ना? देखो, प्लीज़ मुझसे सच बोलना। क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुम मुझे शुरू से कोई झूठी उम्मीद दो।"

    उसकी बात सुनकर नमन का चेहरा लटक गया और वह आँखें मिलाने से बचने लगा। उसने मन ही मन कहा, "यार! इसे कैसे पता चल गई ये बात? क्या मैं सच में बहुत बुरा बर्ताव कर रहा हूँ इसके साथ? इसी वजह से अंदाजा लगाया होगा इसने। क्योंकि मुझे नहीं लगता कि किसी ने भी इसे इस बारे में बताया होगा।"

    इतना सोचते हुए वह नीचे ही देख रहा था, तभी श्रुति ने अपनी चेयर उसकी तरफ़ घुमाई और बोली, "देखो, कोई झूठा बहाना सोच रहे हो तो प्लीज़ इतनी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है। तुम मुझसे सच बोल सकते हो, मुझे बुरा नहीं लगेगा। लेकिन अगर तुमने मुझसे झूठ बोला तो जब वह झूठ सामने आएगा ना, तब मुझे ज़्यादा बुरा लगेगा।"

    श्रुति ने बहुत ही आराम से कहा। कल से लेकर अब तक नमन के व्यवहार को देखते हुए उसे बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन अब उन दोनों की शादी हो चुकी है तो वह ज़्यादा कुछ नहीं कर सकती। इसीलिए उसने शांति से बात करना ही ठीक समझा।

    उसकी यह बात सुनकर नमन ने धीरे से नज़र उठाकर उसकी तरफ़ देखा और बोला, "देखो प्लीज़...प्लीज़ तुम मुझे गलत मत समझना। और ऐसा कुछ नहीं है कि मैं तुमसे शादी नहीं करना चाहता था। बस इतनी जल्दी नहीं करना चाहता था। मुझे लगा था शायद हम दोनों शादी से पहले दो-चार बार एक-दूसरे से मिल लेते, थोड़ा एक-दूसरे को जान समझ लेते, और फिर शादी की बात आगे बढ़ती तो शायद ज़्यादा अच्छा होता।"

    "व्हाट डू यू मीन बाय, जान समझ लेते, नमन? तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे कि मैं तुम्हारे लिए कोई अनजान हूँ और तुम मुझे बिल्कुल भी नहीं जानते हो?" श्रुति ने अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा। नमन तुरंत अपनी बात समझाते हुए बोला, "अरे नहीं, वो वाला जानना और ऐसे वाले जानने में फ़र्क होता है। मतलब...हाँ, बचपन से बस मैं तुम्हारा नाम जानता हूँ। शायद हम स्कूल में साथ थे, आई थिंक मुझे ठीक से याद नहीं। और उसके बाद मैं अमेरिका चला गया। तब से हम दोनों बिल्कुल भी कांटेक्ट में नहीं थे। तो बस मुझे लगा कि शायद मैं तुम्हारे साथ उतना कंपेटिबल नहीं हूँ।"

    नमन ने अपनी तरफ़ से सफ़ाई देने की पूरी कोशिश की, लेकिन श्रुति को उसकी बात पर पूरी तरह से भरोसा नहीं हो रहा था। इसलिए वह शक भरी निगाहों से उसकी तरफ़ देखते हुए बोली, "लेकिन बिना जाने तुम यह कैसे कह सकते हो कि हम कंपेटिबल नहीं हैं? और अब अगर एवेंचुअली तुमने शादी के लिए हाँ कर ही दिया है तो तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें अब हमारे रिश्ते पर भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए? और कल भी तुम पूरी रात गायब थे, तुमने मुझे बताना भी ज़रूरी नहीं समझा कि कहाँ पर हो तुम। और अभी सुबह भी वैसा व्यवहार क्या था, वो सब?"

    "नहीं...नहीं प्लीज़ तुम मुझे गलत मत समझना। वह सब जो कुछ भी था, वह मैं थोड़ा सा टेंशन में था, बस अपने नए बिज़नेस को लेकर। और उसके बाद मॉम ने ही मुझे बोला कि तुमने उनकी बात नहीं सुनी और बिना बताए तुम ऑफिस चली गईं तो बस मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया था। बाकी मुझे कोई भी प्रॉब्लम नहीं है। तुम काम करना चाहती हो, कर सकती हो...यह पूरी तरह से तुम्हारे ऊपर है, तुम्हारा डिसीज़न!"

    नमन की यह बात सुनकर श्रुति को थोड़ा अच्छा लगा क्योंकि उसने सीधे तौर पर उसे किसी भी चीज के लिए मना नहीं किया। इसलिए वह उसकी तरफ़ देखकर हल्का सा मुस्कुराई। उसके मन में कहीं न कहीं उम्मीद जगी कि नमन शायद वैसा नहीं है जैसा वह अब तक उसे समझ रही थी।


    To Be Continued...


    स्टोरी के इतने पार्ट पढ़ने के बाद, आखिर अब आप लोगों को क्या लगता है? श्रुति नमन को पहले जो समझ रही थी, वह वैसा है या फिर अभी जिस तरह का वह बर्ताव कर रहा है, वह है उसकी असलियत? क्या लगता है आप लोगों को? बताइए कमेंट में और थोड़ी मदद करिए हमारी बेचारी भोली-भाली श्रुति की। और सपोर्ट करिए यार इस स्टोरी को भी मेरी पुरानी स्टोरी की तरह। बस और हमें क्या चाहिए आप लोगों के प्यार के अलावा? 🥰

  • 10. Bound By Destiny - Chapter 10

    Words: 2015

    Estimated Reading Time: 13 min

    कुछ दिनों बाद,

    श्रुति और नमन की शादी को लगभग दो हफ़्ते हो चुके थे। इन पंद्रह दिनों में उन दोनों के बीच का रिश्ता बहुत ही उतार-चढ़ाव भरा रहा था। श्रुति जब भी नमन को गलत समझती, उसके अगले ही पल वह बहुत ही अच्छा व्यवहार करने लगता। इसलिए श्रुति अब तक उसे समझ नहीं पाई थी और वह उसकी पर्सनैलिटी को लेकर बहुत कंफ़्यूज़ थी। लेकिन उन दोनों के बीच पति-पत्नी जैसा कोई रिश्ता नहीं था।

    यहाँ तक कि उन्होंने कभी भी बैठकर देर तक अपनी पिछली या भावी ज़िंदगी के बारे में बात तक नहीं की थी।

    श्रुति को इस बारे में नहीं पता था, लेकिन नमन की तरफ़ से वजह बिलकुल साफ़ थी। वह श्रुति जैसी साधारण दिखने वाली और लुक्स में उससे कम अच्छी दिखने वाली लड़की को अपनी पत्नी स्वीकार नहीं कर पा रहा था। इसलिए वह उसमें जरा भी दिलचस्पी नहीं रखता था। इसलिए रात को वह ज्यादातर बाहर ही रहता था—नाइट क्लब और पार्टियों में अपने दोस्तों के साथ। लेकिन घर पर जब श्रुति या कोई भी उससे पूछता, तो वह यही बोलता कि वह अपने नए बिज़नेस का सेटअप करने की योजना में लगा हुआ है और अब उसकी शादी हो गई है, तो उस पर ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं, इसलिए वह जल्दी से जल्दी अपना नया बिज़नेस शुरू करना चाहता है।

    इसके लिए श्रुति के पिता ने उसकी आर्थिक मदद की थी। जितने भी पैसे वह माँगता, श्रुति के पिता उसे चुपचाप दे देते थे। उसके इस एहसान के बदले में उसने उनकी बेटी से शादी की थी। नमन के पिता से पहले ही इस बारे में बात हो गई थी, जिसके बारे में श्रुति को कानों-कान खबर तक नहीं थी।

    श्रुति को थोड़ा-बहुत खाना बनाना आता था, लेकिन उसे कभी भी खाना बनाने में इतना ज़्यादा रुचि नहीं रही। लेकिन उसकी सास बिना सबके लिए नाश्ता बनाए उसे ऑफिस जाने की इजाज़त नहीं देती थी। इसलिए ना चाहते हुए भी श्रुति को सबके लिए नाश्ता बनाना पड़ता था और उसके बाद ही वह ऑफिस जा पाती थी।

    उनके घर में इतने सारे नौकर-चाकर थे, लेकिन फिर भी श्रुति को उनके साथ मिलकर सुबह का नाश्ता बनाना ही पड़ता था। ज्यादातर काम भले ही कुक और मेड, नौकर मिलकर कर लेते थे, लेकिन फिर भी जब तक सारे लोग नाश्ता नहीं कर लेते, श्रुति को वहाँ से जाने की इजाज़त नहीं मिलती थी।

    श्रुति को ये सब पाबंदियाँ बहुत अजीब लगती थीं, लेकिन फिर भी वह उन सब के बीच वहाँ पर ढलने की कोशिश कर रही थी। क्योंकि सत्ताईस साल की होने तक उसने अपनी शादी न हो पाने के लिए बहुत ताने सुने थे। इसलिए अब जब उसकी शादी हो गई थी, तो वह किसी भी कीमत पर इसे निभाना चाहती थी। और इसीलिए वह सब की बातें सुन रही थी और उनकी माँगें भी पूरी कर रही थी।

    लेकिन वहाँ रहकर धीरे-धीरे श्रुति को भी यह समझ आ गया था कि वहाँ पर सारे लोग एक जैसे नहीं थे। दादा जी और उसके ससुर का व्यवहार उसके प्रति बहुत अच्छा था। उसका देवर बहुत ही शांत स्वभाव का इंसान था। उसकी श्रुति से अभी तक उतनी बात नहीं हुई थी और श्रुति ने उसे घर के बाकी लोगों से भी उतनी बातें करते नहीं देखा था। लेकिन वर्षा के साथ अब तक श्रुति की अच्छी बॉन्डिंग हो गई थी। लेकिन वह ज्यादातर वक़्त नमन की तारीफ़ ही करती रहती थी, किसी न किसी बात पर। वह हमेशा उसकी ही तरफ़दारी करती थी और नमन भी हमेशा उसका साथ देता था।

    सुबह का वक़्त;

    पिछले कुछ दिनों की तरह ही आज भी श्रुति सुबह सात बजे ही उठकर अपने कमरे से निकलकर सीधा किचन में आई और उसने कुक को सबके लिए नाश्ते में क्या-क्या बनाना है, इस बारे में निर्देश दे दिए। और अपने लिए ब्लैक कॉफ़ी बनाकर वहीं खड़ी होकर उसे पीने लगी और साथ में वह कुक की मदद भी कर रही थी ताकि नाश्ता जल्दी बन जाए और वह जल्दी ऑफिस जा पाए। लेकिन तभी उसकी सास वहाँ पर आ गई और बोली,

    "श्रुति! आज तुम्हारा ऑफिस जाना ज़्यादा ज़रूरी तो नहीं है ना?"

    "नहीं, इतना ज़रूरी तो नहीं है, लेकिन आप... आप ऐसे क्यों पूछ रही हो आज, मम्मी जी?" श्रुति ने थोड़ा घबराते हुए पूछा।

    "अरे, तो क्या मैं अब कुछ पूछ भी नहीं सकती तुझसे? और वैसे भी मुझे कोई शौक नहीं है ऐसे पूछताछ करने का। बस आज तुझे और नमन को हमारे कुलदेवी के मंदिर जाना है क्योंकि शादी के बाद से तुम लोग एक साथ कहीं भी नहीं गए हो। तो पहले वहाँ से ही शुरुआत करो, तो तुम दोनों के जीवन में सब अच्छा होगा!" नमन की माँ ने श्रुति को बताया। उनकी बात सुनकर श्रुति ने चुपचाप हाँ में अपना सिर हिलाया और कोई बहस नहीं की क्योंकि उसे पता था कि अगर वह अभी मंदिर जाने की बात मानेगी नहीं, तो उसकी सास इस पर बहुत बखेड़ा खड़ा करेगी। इसलिए वह चुपचाप वहाँ जाने के लिए राज़ी हो गई और अपनी कॉफ़ी पीने के बाद वहाँ किचन से बाहर आकर उसने सबसे पहले अपना मोबाइल फ़ोन उठाया और ऑफिस में कॉल करके बता दिया कि वह आज ऑफिस नहीं आ पाएगी क्योंकि वह मंदिर जा रही है। और उसके पिता ने इस बात पर उसे कुछ भी नहीं कहा, बल्कि वह उसके लिए खुश हो गए कि उनकी बेटी अब शादी के बाद अपने ससुराल वालों के साथ ढल रही है।

    कुछ देर बाद,

    नमन और श्रुति अकेले ही वहाँ से कुलदेवी के मंदिर जाने के लिए निकले। घर का कोई भी सदस्य इस वक़्त उनके साथ नहीं था क्योंकि मंदिर घर से काफ़ी दूर था, इसलिए कोई भी उनके साथ नहीं आया। और नए शादीशुदा जोड़े को एक साथ आकर ही आशीर्वाद लेना होता है, इसलिए ही उन दोनों को साथ में जाना पड़ा। जबकि उन दोनों में से कोई भी एक-दूसरे के साथ नहीं लग रहा था। क्योंकि नमन अपने मोबाइल फ़ोन पर ही लगा हुआ था। उसने कार में बैठने के बाद से नज़र उठाकर श्रुति की तरफ़ एक बार भी नहीं देखा। और जबकि श्रुति ने बेबसी से उसकी तरफ़ देखा और फिर वह भी खिड़की से बाहर देखने लगी।

    उस मंदिर का नाम और पता उसके ससुराल वालों ने उसे बता दिया था, लेकिन फिर भी श्रुति को कोई अंदाज़ा नहीं था कि वह दोनों कहाँ जा रहे हैं और वहाँ तक पहुँचने में उन्हें कितना वक़्त लगेगा।

    यह सब जानने के लिए श्रुति काफ़ी उत्सुक थी क्योंकि आज पहली बार ही वह ऐसी किसी जगह पर जा रही थी, लेकिन नमन के अलावा वहाँ पर कोई भी नहीं था जो उसे यह सब बताए। इसलिए एक गहरी साँस लेते हुए आखिर श्रुति ने नमन की तरफ़ ही देखते हुए उससे पूछा,

    "अभी और कितनी देर लगेगी हमें वहाँ पहुँचने में?"

    वहाँ पर काफ़ी शांत माहौल था, इसलिए बात शुरू करने के लिए श्रुति ने जानबूझकर खुद से ही पहल की। लेकिन नमन उसकी तरफ़ या उसकी बात में कोई ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था। इसलिए उसने बहुत ही लापरवाही से जवाब दिया,

    "मुझे क्या पता? मैं कौन सा रोज़ आता हूँ यहाँ..."

    "हाँ, रोज़ नहीं आते, लेकिन तुम्हारे परिवार का कुलदेवी का मंदिर है। तो इससे पहले तो तुम एक-आध बार ज़रूर आए होंगे। बस इसीलिए मैंने तुमसे पूछा और तुम..." श्रुति ने उसकी तरफ़ देखकर काफ़ी नाराज़गी से कहा।

    "अरे हाँ, कुलदेवी का मंदिर है, लेकिन मैं काफ़ी टाइम से नहीं आया क्योंकि पिछले तीन सालों से तो मैं अमेरिका में था। उससे पहले भी कब आया होगा, मुझे याद नहीं है। तो क्यों मेरा दिमाग खा रही हो? बस पहुँचने ही वाले होंगे। और अगर तुम्हें जानना इतना ही ज़रूरी है, तो ड्राइवर से पूछ लो।" नमन चिढ़ते हुए बोला। तो श्रुति ने गहरी साँस ली और आगे कुछ नहीं बोली। लेकिन उन दोनों की बात सुनकर ड्राइवर ने खुद ही श्रुति को बताया कि बस वह लोग आधे घंटे में वहाँ पहुँच जाएँगे। और फिर श्रुति चुपचाप अपनी जगह पर ही बैठी रही, मंदिर पहुँचने तक...

    वह लोग वहाँ पर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि जन्माष्टमी पूजा की वजह से आज मंदिर पर बहुत भीड़ है। आज जन्माष्टमी थी, इस बारे में तो श्रुति को ध्यान ही नहीं था। और वह कार से निकली और मंदिर की तरफ़ बढ़ने लगी। लेकिन तभी वहाँ पर उसने देखा कि बहुत सारे सुरक्षा गार्ड, पुलिस सब कुछ लगी हुई थी।

    मंदिर पर इतना ज़्यादा सुरक्षा इंतज़ाम देखकर श्रुति को यह थोड़ा अजीब लगा और वह वहीं रुक गई। तब तक नमन भी वहाँ पर आया और उसने बोला,

    "क्या हुआ? आगे चलो, दर्शन नहीं करने हैं क्या?"

    पीछे से नमन की आवाज़ सुनकर श्रुति ने एक नज़र उठाकर उसकी तरफ़ देखा और फिर बोली,

    "तुम्हें कुछ ज़्यादा जल्दी है, तो तुम ही जाओ ना आगे, मैं पहले पूजा का सामान लेकर आती हूँ।"

    इतना बोलते हुए श्रुति वहाँ से दोबारा कार की तरफ़ मुड़ी। वह सारा सामान घर से लेकर ही आई थी, उसकी सास ने ही कार में रखवा दिया था, तो वह वही सारा सामान निकालने लगी।

    श्रुति उसे इतना बोलकर सामान लेने के लिए चली गई। नमन भी वहाँ पर नहीं रुका और वहाँ से आगे सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ा। लेकिन जैसे ही वह अपनी जगह से थोड़ा आगे बढ़ा, दो-तीन सुरक्षा गार्ड्स ने उसके सामने आते हुए उसे वहाँ पर रोक दिया।

    "आप इस तरफ़ से नहीं जा सकते, उधर दूसरी साइड से जाएँ..." नमन के आगे अपना हाथ लाकर उन दो सुरक्षा गार्ड ने उसका रास्ता रोकते हुए कहा।

    "क्यों... क्यों नहीं जा सकता मैं इस तरफ़ से? यहाँ पर तो कोई भी नहीं और दूसरी साइड देखो कितने सारे लोग हैं। उस तरफ़ जाऊँगा तो बहुत टाइम लग जाएगा।" नमन ने उन दोनों की तरफ़ देखते हुए कहा।

    सुरक्षा गार्ड ने एकदम सख़्त जवाब देते हुए कहा, "वो जो कुछ भी हो, चाहे जितना टाइम लगे, हमें उससे कोई मतलब नहीं है। लेकिन यह इधर का पूरा एरिया हमारे बॉस के लिए रिजर्व है और इस तरफ़ से सिर्फ़ वही जाएँगे और उनके सुरक्षा गार्ड। बाकी सारे लोग दूसरी साइड से ही जा रहे हैं, तो तुम्हें भी उस तरफ़ ही जाना होगा। ज़्यादा बहस की तो तुम्हारे लिए ही अच्छा नहीं होगा।"

    "ऐसा कौन सा वीआईपी है तुम्हारा बॉस और ये मंदिर क्या उसके बाप का है?" नमन ने उन दोनों की तरफ़ देखते हुए पूछा। लेकिन तब तक वहाँ पर कई सारी गाड़ियाँ एक के बाद एक आकर रुकीं और वह लोग वहाँ पर एक लाइन बनकर खड़े हो गए जिससे कि नमन या कोई भी उस तरफ़ ना जा पाए। और गाड़ी में से एक साथ कई सारे लोग निकले जिन्होंने सूट-बूट पहना हुआ था और कई सारे लोगों ने सुरक्षा गार्ड की वर्दी वाली ड्रेस भी पहनी थी। नमन उस तरफ़ ही देखने लगा। तभी पीछे से श्रुति ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,

    "अंदर गए नहीं तुम अब तक? यहाँ पर ही खड़े हो।"

    पीछे से श्रुति की आवाज़ सुनकर नमन ने मुड़कर उसकी तरफ़ देखा और फिर धीरे से हाँ में अपना सिर हिलाकर बोला,

    "हाँ... हाँ वो... मैं... चलो हम इस तरफ़ से नहीं जा सकते, हमें दूसरी साइड से चलना है।"

    नमन ने श्रुति से कहा और उसकी इस बात पर श्रुति ने कोई बहस नहीं की क्योंकि उसे तो बस दर्शन करने से मतलब था। वो लोग किस तरफ़ से भी जाएँ। और फिर वह लोग दूसरी साइड वाली सीढ़ियों से मंदिर के अंदर पहुँचे। और इस बीच वह आदमी पहले ही मंदिर के अंदर जा चुका था और नमन उसे देख नहीं पाया।


    To Be Continued...


    क्या लगता है आप लोगों को, कौन है वह वीआईपी आदमी? क्या कहानी में हमारे हीरो की एंट्री हो गई है? हमें तो ऐसा ही लगता है और बाकी जानने के लिए आगे पढ़ते रहिए। वैसे भी कमेंट तो आप लोग करते नहीं, इसलिए इतना लेट एपिसोड आया है।

  • 11. Bound By Destiny - Chapter 11

    Words: 1550

    Estimated Reading Time: 10 min

    उधर, दूसरी तरफ की सीढ़ियों पर इतनी सिक्योरिटी देखकर भी श्रुति ने नमन से कोई सवाल नहीं किया। इतनी सिक्योरिटी देखकर वह खुद समझ गई थी कि कोई वीआईपी या बहुत पैसे वाला, और शक्तिशाली आदमी मंदिर में दर्शन के लिए आया होगा। उसकी वजह से ही इतनी सिक्योरिटी का इंतज़ाम किया गया था। लेकिन वह कौन है, श्रुति को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।


    वह लोग जब तक मंदिर में पहुँचे, वह वीआईपी आदमी शायद वापस जा चुका था। अब मंदिर में सभी लोगों को जाने दिया जा रहा था।


    नमन इस बात से बहुत खिसियाया हुआ लग रहा था। उसने बड़बड़ाते हुए कहा,
    "क्या है यह सब? मंदिर में भी इस तरह का स्पेशल ट्रीटमेंट! उसके बाप का मंदिर है क्या या फिर उसने सब कुछ खरीद रखा है!"


    नमन गुस्से से इधर-उधर देख रहा था। उस आदमी की वजह से उसे दूसरी तरफ की सीढ़ियों से लाइन लगाकर आना पड़ा था। यहाँ तक आने में उन दोनों को लगभग आधा घंटा लग गया था। इससे वह काफ़ी चिड़चिड़ा हो गया था। उसने नहीं सोचा था कि मंदिर तक पहुँचने में इतनी देर लगेगी।


    उसकी बात सुनकर श्रुति ने उसे चुप रहने का इशारा करते हुए कहा,
    "चुप रहो ना, नमन! इस तरह क्यों चिल्ला रहे हो? अब तो हम पहुँच गए ना, चिल्लाने से क्या होगा?"


    श्रुति ने उसे इसलिए चुप कराया क्योंकि उसके चिल्लाने से वहाँ मौजूद सभी लोग उनकी तरफ देखने लगे थे। फिर उन्होंने साथ में आरती की और पंडित ने उनके माथे पर तिलक लगाया। नमन हाथ जोड़कर खड़ा रहा, लेकिन श्रुति ने श्रद्धा से आँखें बंद कर लीं और मन ही मन अपनी आने वाली ज़िंदगी के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगी।


    वह आँखें बंद करके प्रार्थना कर ही रही थी कि पीछे से किसी ने मंदिर की घंटी बजाई और वहाँ से सीढ़ियों से नीचे उतर गया। श्रुति ने उसे नहीं देखा, लेकिन उसका ध्यान उस आदमी पर गया जिसने पूरा काला कोट-पैंट पहना हुआ था।


    श्रुति पीछे मुड़कर देख रही थी। उसकी नज़रों का पीछा करते हुए नमन ने भी उस तरफ देखा, लेकिन उसे वहाँ कोई नहीं दिखा। उसने श्रुति से पूछा,
    "उधर क्या देख रही हो? अगर तुम्हारा हो गया है तो चलो। एक काम करो, तुम रुक जाओ, मैं नीचे कार के पास तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ। लेकिन जल्दी आना, मेरे पास तुम्हारे लिए पूरा दिन नहीं है।"


    "मेरे लिए तो तुम्हारे पास कभी वक़्त नहीं होता, वैसे भगवान के लिए भी नहीं है क्या? और वैसे भी आज जन्माष्टमी है..." श्रुति अपनी बात पूरी कर पाती, इससे पहले ही नमन सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। उसे जाते देख श्रुति ने बेबसी से सिर हिलाया। फिर वह पंडित जी से बात करने लगी। यह वही पंडित थे जिन्होंने उनकी शादी कराई थी और जो मल्होत्रा परिवार को अच्छी तरह जानते थे। उन दोनों के आने से पहले ही पंडित जी को इस बारे में खबर कर दी गई थी।


    पंडित जी ने श्रुति के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया,
    "जीती रहो बेटी, सदा खुश रहो और भगवान तुम्हारी सारी मनोकामनाएँ पूरी करें।"


    पंडित जी की बात सुनकर श्रुति हल्का सा मुस्कुराई। उसे थोड़ी हैरानी हुई कि पंडित जी ने उसे सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद क्यों नहीं दिया। लेकिन शायद श्रुति को इससे ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता था। प्रसाद लेकर वह भी सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई।


    अब तक भीड़ काफी कम हो चुकी थी। दोनों तरफ़ की सीढ़ियाँ खुल गई थीं और लोग आ जा रहे थे। उन सब से बचते हुए, हाथ में पूजा की थाली लिए, श्रुति आराम से सीढ़ियाँ उतर रही थी। सीढ़ियाँ उतरते हुए, थोड़ी दूर पर खड़े उस आदमी पर उसकी नज़र पड़ी जिसे उसने थोड़ी देर पहले सीढ़ियाँ उतरते हुए देखा था। उसने वही काला कोट-पैंट पहना हुआ था। वह किसी से बात कर रहा था, शायद किसी सिक्योरिटी गार्ड से, लेकिन उसकी पीठ श्रुति की तरफ़ थी।


    "यही था शायद वो, और इसके लिए ही यह सारी सिक्योरिटी का इंतज़ाम किया गया है क्या?" श्रुति ने उस तरफ़ देखकर झाँका। सीढ़ियाँ उतरकर वह नीचे आ गई और उस तरफ़ देख रही थी। लेकिन तभी वह आदमी एक तरफ़ आगे बढ़ गया और उसने मास्क लगा लिया था। इसलिए श्रुति उसे ठीक से देख नहीं पाई। उसे थोड़ी निराशा हुई, पता नहीं क्यों वह उस आदमी को देखना चाहती थी। लेकिन फिर उसने यह ख्याल अपने दिमाग से निकाल दिया और अपनी कार की तरफ़ बढ़ गई।


    उसने देखा कि कार के पास नमन खड़ा था और उसका मोबाइल फोन चल रहा था। उसने एक डिस्गस्टेड सा चेहरा बनाया हुआ था, जैसे वह वहाँ रुका हुआ बहुत चिड़चिड़ा हो गया हो, जबकि उसे वहाँ खड़े हुए दस मिनट भी नहीं हुए थे।


    उसके चेहरे से श्रुति को समझ आ गया कि वह गुस्से में होगा। लेकिन श्रुति को अब तक इन सब चीज़ों की आदत हो चुकी थी। उसे इतना फर्क नहीं पड़ता था। वह नमन को समझ चुकी थी। इसलिए वह आराम से कार की तरफ़ गई और वहाँ खड़ी हो गई।


    नमन उसकी तरफ़ देखकर उस पर चिल्लाने ही वाला था कि पीछे से किसी की आवाज़ आई,
    "हाय नमन! हे... इधर देखो इस तरफ़..."


    वह आवाज़ सुनकर नमन रुक गया और उस तरफ़ देखा। उसे वहाँ दो-तीन परिचित चेहरे दिखाई दिए। वे उसके दोस्त थे। उनकी तरफ़ देखते हुए नमन मुस्कुराया और वे लोग खुश होते हुए उसकी तरफ़ आने लगे।


    उन लोगों को आते देख, उसने एक हाथ अपने सिर पर रखते हुए धीमी आवाज़ में कहा,
    "शिट! ये लोग यहाँ कहाँ से आ गए हैं! अब ये मुझे इस बहनजी के साथ देख लेंगे, तो बाद में मेरा मज़ाक उड़ाएँगे।"


    यह बात सुनकर श्रुति ने हैरानी से उसकी तरफ़ देखा और कन्फ़्यूज़ होकर बोली,
    "कौन लोग? किसके साथ? क्या बात कर रहे हो तुम?"


    उसकी बात सुनकर नमन ने दूसरी तरफ़ चेहरा कर लिया और बिना श्रुति की तरफ़ देखे बोला,
    "मेरे दोस्त, वो सब इस तरफ़ आ रहे हैं। इसलिए तुम कृपया यहाँ से थोड़ी दूर जाओ। मैं नहीं चाहता कि वो लोग मुझे तुम्हारे साथ देखें और तुम..."


    नमन ने रूड होकर यह बात कही और श्रुति की तरफ़ देखा तक नहीं। श्रुति को उसकी यह बात सुनकर बहुत बुरा लगा, लेकिन उस वक़्त उसने कुछ नहीं कहा और अपनी जगह पर जम गई। हैरानी से उसने नमन की तरफ़ देखा। वह सोच रही थी कि कोई इंसान अपनी पत्नी से इतनी आसानी से यह बात कैसे कह सकता है।


    "क्या सोच रही हो? अब जाओ भी, देखो वो लोग इधर आ गए..." इससे पहले कि वह कुछ और बोल पाता, दो लड़कियाँ और एक लड़का उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उन दोनों को देखकर श्रुति साइड में जाने लगी। वह सोच रही थी कि कार में बैठ जाए, लेकिन इससे पहले ही एक लड़की ने उसकी तरफ़ देखते हुए नमन से पूछा,
    "यह कौन है नमन, तुम्हारे साथ? क्या यह तुम्हारी पत्नी नहीं है? हमें मिलवाओगे नहीं क्या?"


    श्रुति ने यह बात सुनी और उसके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आ गई। लेकिन उसने उन लोगों की तरफ़ नहीं देखा। तभी दूसरी लड़की बोली,
    "कम ऑन यार रिया! किस एंगल से यह तुझे हमारे नमन की पत्नी लग रही है?"


    रिया ने उसे समझाते हुए कहा,
    "अरे यार! वो लड़की अभी यहाँ उसके साथ खड़ी थी ना, तो मैंने पूछ लिया।"


    "नहीं... नहीं, यह मेरी पत्नी नहीं है। मैं इसे जानता तक नहीं हूँ। वो तो बस... यहाँ इतने लोग हैं, देखो ना, वैसे भी वो जा रही है।" नमन ने झूठ बोलते हुए कहा। श्रुति अपनी जगह पर रुक गई और हैरानी से उसका मुँह खुला का खुला रह गया। उसी तरह से उसने हैरानी से नमन की तरफ़ देखा।


    क्रमशः

  • 12. Bound By Destiny - Chapter 12

    Words: 1726

    Estimated Reading Time: 11 min

    इसके बाद नमन अपने दोस्तों से बात करने लगा। श्रुति कार में नहीं बैठी; वह किनारे जाकर खड़ी हो गई। कुछ देर बाद नमन के दोस्त चले गए। नमन ने राहत की साँस ली और श्रुति की ओर देखा। उनके जाते ही वह कार की ओर आने लगी। लेकिन जैसे ही वह नमन के पास खड़ी हुई, उसका दोस्त वापस आया और बोला,

    "नमन! तू आज रात मिल रहा है ना..."

    उसकी नज़र श्रुति पर पड़ी। उसने शक भरी निगाहों से दोनों की ओर देखा।

    उसे ऐसा देखते हुए पाकर नमन जल्दी से अपने दोस्त के पास गया और बोला,

    "हाँ... हाँ... रोहन! मैं बिल्कुल आ रहा हूँ। ऐसे क्या देख रहा है तू?"

    "वो लड़की... सच में तुम उसे नहीं जानते हो ना?" रोहन ने श्रुति की ओर इशारा करते हुए पूछा। नमन बोला,

    "अरे यार! तू तो जानता है, मैं कितना हैंडसम हूँ। ऐसे में कौन लड़की कहाँ कब पीछे पड़ जाए, पता ही नहीं चलता। और तू तो चला गया था ना वो रिया और दिशा के साथ..."

    रोहन जाने के लिए मुड़ा और बोला,

    "हाँ, बस जा ही रहा हूँ। लेकिन मुझे वह रात की जन्माष्टमी पार्टी याद आ गई। मैंने सोचा तुझे भी याद दिला देता हूँ, शायद तू भूल गया हो।"

    "नहीं... नहीं... मुझे याद है और मैं ज़रूर आऊँगा।" नमन मुस्कुराया। उसकी मुस्कराहट जबरदस्ती वाली लग रही थी, जैसे वह किसी चीज़ को छिपा रहा हो।

    रोहन ने फिर से शक भरी निगाहों से उसकी ओर देखा और सिर हिलाकर चला गया। उसके जाते ही नमन ने राहत की साँस ली।

    श्रुति ने उनकी बातें सुन ली थीं। नमन जैसे ही उसके पास आया, उसने चिल्लाकर बोला,

    "क्यों नहीं जानते हो तुम मुझे? तुम्हारी वाइफ हूँ मैं नमन! झूठ क्यों बोला तुमने अपने दोस्तों से?"

    वह उसकी ओर आने लगी। नमन उसे जवाब नहीं देना चाहता था। उसने अपनी आँखें घुमाते हुए ऊपर देखा और बोला,

    "मेरी मर्ज़ी... मैं किसी को बताऊँ या नहीं। तुम कोई नहीं हो मुझसे सवाल करने वाली। इसलिए प्लीज़ अपनी हद में रहो और मुझे थोड़ा दूर हटकर चलो।"

    उसने श्रुति को दूर करने के लिए एक झटके से धक्का दिया। श्रुति को इसकी उम्मीद नहीं थी। वह लड़खड़ा गई और गिरने ही वाली थी कि पीछे से दो मज़बूत हाथों ने उसे थाम लिया। नमन रुका नहीं और कार की ओर बढ़ गया।

    "आप ठीक हैं?"

    एक भारी, गहरी आवाज़ श्रुति के कानों में पड़ी, उसके दिल तक ठंडक पहुँचाती हुई। उसने ऐसी आवाज़ पहले कभी नहीं सुनी थी। उसने पीछे मुड़कर देखा। एक आदमी ने उसके कंधे और कमर को कसकर पकड़ रखा था। उसने फेस मास्क और ब्लैक कोट-सूट पहना हुआ था। श्रुति सिर्फ़ उसकी गहरी काली आँखें देख पाई।

    उसने श्रुति को सीधा किया। श्रुति उसकी आँखों में देख रही थी, जहाँ उसे गहराई नज़र आ रही थी। उसे लग रहा था कि यह वही ब्लैक कोट वाला आदमी है जिसे उसने पहले दो बार पीछे से देखा था।

    श्रुति को बिना पलक झपकाए देखकर उस आदमी ने अपना हाथ उसके चेहरे के आगे हिलाया और पूछा,

    "हेलो! आप ठीक हैं ना? कहीं चोट तो नहीं लगी? और कौन था वो आदमी जिसने आपको धक्का दिया?"

    उसकी गहरी आवाज़ सुनकर श्रुति अपने ख्यालों से बाहर आई। उसने उस आदमी का हाथ देखा; उसने कलाई में बहुत महंगी रोलेक्स की लिमिटेड एडिशन गोल्ड वॉच पहनी हुई थी। श्रुति ने जवाब दिया,

    "थ... थैंक यू। मैं ठीक हूँ। और वो आदमी... अनफॉर्चूनेटली मेरा पति है। लेकिन उसे शायद मेरे साथ रहना पसंद नहीं, बस इसीलिए..."

    श्रुति ने मायूसी से जवाब दिया। उसे नहीं पता था कि उसने यह सब एक अजनबी को क्यों बताया।

    उस आदमी ने बोला,

    "और तुम्हें उसके साथ होना पसंद है या नहीं?"

    आदमी के सवाल पर श्रुति हैरान होकर उसकी ओर देखी। तभी उस आदमी ने कहा,

    "टेक केयर। दूसरों को क्या पसंद है, उससे पहले अपनी पसंद के बारे में भी सोचना चाहिए।"

    वह आदमी चला गया। श्रुति वहीं खड़ी उसकी बात सोचती रही। उसे समझ नहीं आया कि उस आदमी ने उसे यह सब क्यों बोला। सबसे बड़ी बात, श्रुति ने उसे नमन के बारे में इतना क्यों बताया? लेकिन सच में, नमन के व्यवहार से वह भी बहुत निराश थी।

    उसके जाने के बाद वह कार की ओर आई। नमन पहले ही कार में बैठ चुका था।

    श्रुति ने गुस्से में कार का दरवाज़ा खोला और नमन से दूर किनारे पर बैठ गई। उसने नमन की ओर नहीं देखा और दरवाज़ा पटककर बंद किया। नमन बोला,

    "पागल हो क्या तुम? कार का दरवाज़ा तोड़ दोगी। इतनी देर कहाँ लग गई? यहाँ आधा समय तो मुझे तुम्हारा इंतज़ार करने में ही बीत गया।"

    श्रुति नाराज़ थी। उसने जवाब नहीं दिया। नमन ने दोबारा पूछा,

    "सुनाई दे रहा है या बहरी हो गई हो? मैं कुछ पूछ रहा हूँ तुमसे, कहाँ रह गई थी?"

    श्रुति ने गुस्से से जवाब दिया,

    "सिर्फ़ तुम्हारे ही दोस्त नहीं हैं दुनिया में। मेरा भी एक दोस्त मिल गया था। और तुमने मुझे इस तरह से धक्का कैसे दिया? हाउ डेयर यू नमन?"

    "ओह प्लीज़! अपना यह नाटक बंद करो। मैंने कोई तुम्हें मारने पीटने के लिए धक्का नहीं दिया था। मैं बस तुम्हें अपने से दूर हटकर चलने के लिए कह रहा था। और तुम्हें समझ में क्यों नहीं आता है? ऐसी पब्लिक वाली जगह पर भी इतना चिपक कर क्यों चलती हो? मुझे यह सब पसंद नहीं है।"

    वह अपने मोबाइल फोन की ओर देखने लगा।

    श्रुति ने उसे डन फेस से देखा। उसे नमन की बात पर यकीन नहीं हुआ। यह सब उसके लिए इतना सामान्य था! श्रुति को वह धक्का अपने शरीर पर नहीं, बल्कि आत्मसम्मान पर लगा। नमन और उनकी शादी के लिए... श्रुति के मन में जो थोड़ी बहुत उम्मीद थी, वह टूटती हुई नज़र आ रही थी।

    उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने नमन की ओर देखकर कहा,

    "मेरे साथ चलने में तुम्हें शर्मिंदगी महसूस होती है ना, नमन? तो फिर क्यों की थी तुमने मुझसे यह शादी? और उसके बाद वो बड़ी-बड़ी बातें? वो सब झूठ था ना? क्योंकि सच तो यह है जो आज मुझे दिख गया।"

    श्रुति ने अपने आँसू पोछते हुए कहा। नमन बोला,

    "ओह प्लीज़... अब यह रोने-धोने का नाटक शुरू? ऐसा भी क्या कह दिया और कर दिया मैंने? मैं बस तुम्हें अपने दोस्तों से नहीं मिलवाना चाहता क्योंकि देखो अपना लुक देखो तुम। और मैं इतना हैंडसम स्टाइलिश हूँ। वो सब बाद में मेरा मज़ाक उड़ाते तुम्हें लेकर। और मैं यह नहीं चाहता। तो बस... इसमें इतनी कौन सी बड़ी बात हो गई जो तुम इस तरह से रो रही हो? कम ऑन ग्रो अप!"

    नमन निराशा से अपने पैर पर हाथ मारते हुए बोला। यह बात सुनकर श्रुति खिड़की से बाहर देखने लगी। उसने कुछ नहीं कहा। आज कई बातें उसके सामने साफ़ हो गई थीं। फिर वे दोनों घर आ गए। नमन ने श्रुति को घर पर छोड़ा और खुद कहीं चला गया। वह अकेली घर के अंदर आई।

    श्रुति घर के अंदर आई तो उसकी आँखों में आँसू थे। लेकिन सामने दादाजी, ससुराल वाले और वर्षा को बैठे देखकर उसने एक झूठी मुस्कराहट से अपने आँसू छिपा लिए।

    वह उन सब की ओर आई। दादा जी की नज़र श्रुति पर पड़ी। वह खुश होते हुए बोले,

    "अरे बेटा! तुम आ गईं। आओ। आज मैं कब से तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था। देखो आज जन्माष्टमी है ना, तो तुम अपने हाथों से कान्हा जी को तैयार करना।"

    दादाजी की बात सुनकर श्रुति उनकी ओर बढ़ गई। फिर वे सब लोग श्रुति को उनके घर में जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है, यह बताने लगे। उन सबके बीच अब श्रुति पहले से थोड़ा बेहतर महसूस कर रही थी क्योंकि नमन ने उसे आज नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।


    क्रमशः


    हाँ तो आज के एपिसोड की बात क्या लगता है आप लोगों को? वो नमन, कोई चांस है क्या सुधारने का? 😅 और बाकी देखते हैं श्रुति को कब तक अकल आती है?

  • 13. Bound By Destiny - Chapter 13

    Words: 1580

    Estimated Reading Time: 10 min

    शादी के दो महीने बाद, घर के कुछ लोगों का श्रुति के प्रति व्यवहार अच्छा था, जबकि कुछ का पहले जैसा ही रहा। दादाजी, उसके ससुर और वर्षा शुरू से ही उसके साथ अच्छे थे। नमन और उसकी माँ, दोनों ही श्रुति के साथ ऐसे व्यवहार करते थे मानो उसे एहसान कर रहे हों।

    श्रुति नमन के साथ शारीरिक रूप से बिल्कुल भी सहज नहीं थी। इसलिए, जब भी नमन उसके करीब आने की कोशिश करता, श्रुति उसे मना कर देती और कहती कि उसे थोड़ा समय चाहिए। नमन भी श्रुति में इतना दिलचस्पी नहीं रखता था, इसलिए उसने ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया। साथ ही, वह उसकी नज़र में अच्छा भी बनना चाहता था।

    श्रुति को समझ नहीं आ रहा था कि उसका यह रिश्ता, और नमन के साथ उसकी शादी, किस मोड़ पर जा रही है। उसे कुछ भी सुलझता या सफल होता हुआ नज़र नहीं आ रहा था। लेकिन, उसने अपनी सास के विरोध में नियमित रूप से ऑफिस जाना शुरू कर दिया था, जिसमें उसके ससुर और दादा जी ने भी उसका साथ दिया था। वह ऑफिस जाना बंद नहीं करना चाहती थी क्योंकि यही एक ऐसी जगह थी जहाँ उसे बहुत सुकून मिलता था। बाकी, उसके मायके में भी ऐसा कोई नहीं था जिसकी उसे फिक्र हो।

    उसके पापा के अलावा... कम से कम श्रुति को तो ऐसा ही लगता था, क्योंकि उसे शादी और इस सौदे के बारे में कुछ भी पता नहीं था!

    कुछ दिनों बाद;

    श्रुति के पापा का ऑफिस;

    श्रुति अपने सहायक के साथ बात करते हुए मीटिंग रूम से बाहर निकली। तभी उसने एक परिचित चेहरे को पीछे से अपने पिता के केबिन की ओर जाते हुए देखा। उसे पता नहीं क्यों, कुछ ठीक नहीं लगा। उसने अपने सहायक तरुण की ओर देखते हुए कहा,

    "तरुण, तुम जाओ और यह सब कुछ फाइनल करके मुझे मेल कर देना। मैं अभी आती हूँ।"

    "ओके मैम!" इतना कहकर तरुण श्रुति के केबिन में चला गया, क्योंकि उसके काम से संबंधित सारा सामान, फाइलें और आईपैड, वहीं रखे हुए थे।

    लेकिन श्रुति उसके पीछे नहीं गई। वह अपने पापा के केबिन की ओर गई और दरवाजे के पास आकर उसने दरवाज़ा हल्का सा अंदर की ओर खोला। उसके कानों में कुछ आवाज़ें पड़ीं। उसे ठीक से कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन इतना समझ आ रहा था कि उसके पापा किसी से बात कर रहे हैं और वह आवाज़ भी उसे जानी-पहचानी सी लग रही थी।

    श्रुति ने अंदर झाँकने की कोशिश की। तभी उसने देखा कि उसके पापा अपनी चेकबुक से एक चेक काटकर सामने बैठे आदमी के हाथ में दे रहे थे और उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रहे थे।

    अपने ऑफिस में इस तरह से किसी क्लाइंट की पेमेंट तो उसके पापा कभी नहीं करते थे। यह बात श्रुति को खटकने लगी। तभी उसने एक जानी-पहचानी आवाज़ सुनी,

    "थैंक यू सो मच पापा!"

    श्रुति ने इस बार आवाज़ साफ-साफ पहचानी। यह नमन की आवाज़ थी। लेकिन उसके पापा नमन को पैसे क्यों दे रहे थे? यह बात श्रुति को समझ नहीं आई। इसलिए उसने सोचा कि वह अभी सामने से जाकर पूछ लेती है। यह सोचते ही उसने तुरंत केबिन का दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गई।

    दरवाज़े से अंदर आई श्रुति को देखकर उसके पापा हर्षवर्धन हड़बड़ा गए,

    "अरे... अरे श्रुति बेटा! तुम... तुम यहाँ? बोर्ड मीटिंग खत्म हो गई क्या इतनी जल्दी?"

    "इतनी जल्दी तो नहीं। पिछले दो घंटे से मीटिंग चल रही थी। और वैसे, आप यहाँ पर क्या कर रहे हैं, वो भी..." इतना बोलते हुए श्रुति अंदर की ओर आई और नमन का चेहरा देखकर बोली, "नमन के साथ..."

    "मैं यहाँ पर क्या कर रहा हूँ? कैसे सवाल कर रही हो बेटा? मेरा ही तो ऑफिस है। मैं नहीं रहूँगा तो फिर कौन? और नमन बेटा, क्या वह मुझसे मिलने नहीं आ सकता? वह तो तुमसे मिलने आया था, तो मैंने कहा तुम मीटिंग में हो और यहीं रोक लिया।" श्रुति के पापा ने पूरी बात झुठलाने की कोशिश करते हुए कहा, लेकिन श्रुति ने पहले ही उन्हें नमन को चेक देते हुए देख लिया था। इसलिए उसने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाए और बारी-बारी से दोनों की ओर देखते हुए कहा,

    "पापा, दो महीने हो गए मेरी शादी को। इतने दिनों में मैं यह जान चुकी हूँ कि मेरा सो-कॉल्ड पति मेरे लिए तो यहाँ पर बिल्कुल नहीं आएगा। और जिस वजह से आया है, वह भी मुझे पता है। इसलिए आपको कुछ भी छिपाने की ज़रूरत नहीं। आप बस यह बताइए कि आप इसे किस बात के पैसे दे रहे हैं?"

    नमन ने एकदम अनजान बनते हुए उसकी ओर देखकर पूछा,

    "पैसे... कौन से पैसे? क्या बात कर रही हो तुम श्रुति? और इस तरह से क्यों बोल रही हो? क्यों नहीं आ सकता मैं तुम्हारे लिए यहाँ पर..."

    अपनी बात बोलते हुए नमन उठकर खड़ा हुआ और श्रुति के कंधे पर हाथ रखने लगा। श्रुति ने तिरछी नज़र से उसके कंधे पर रखे हाथ पर देखते हुए कहा,

    "मैं ऐसा इसलिए बोल रही हूँ क्योंकि मैं तुम्हें अब तक बहुत अच्छे से जान गई हूँ नमन। इसलिए यह नाटक बंद करो और बताओ किस बात के पैसे ले रहे हो तुम मेरे पापा से? और वैसे भी, तुम्हारे पापा के पास पैसों की कमी पड़ गई है क्या?"

    नमन ने तुरंत अपना हाथ हटा दिया और थोड़े गुस्से में तेज आवाज़ से बोला,

    "श्रुति! थोड़ी तमीज़ से बात करो। मैं तुम्हें कुछ बोल नहीं रहा हूँ, इसका मतलब यह नहीं कि तुम कुछ भी मुँह में आएगा वह बोलती चली जाओगी।"

    नमन की बात सुनकर श्रुति के पापा भी उसकी ही तरफ़दारी करते हुए बोले,

    "हाँ हाँ बेटा, पति है वह तुम्हारा। इस तरह से क्यों बोल रही हो? अगर तुम दोनों के बीच कोई बात हुई है तो उसे आपस में सुलझा लेना। इस तरह यहाँ पर मेरे सामने..."

    श्रुति ने तंज भरे लहजे में मुस्कुराकर नमन की ओर देखा,

    "बात बिगड़ने के लिए कोई बात होनी भी तो चाहिए पापा! और वैसे भी, जो बात है वह मैं यहाँ पर देखकर ही बोल रही हूँ। और कितना झूठ बोलोगे तुम नमन! क्या है यह? बताओ मुझे?"

    इतना बोलते हुए श्रुति ने उसके कोट की जेब में रखा हुआ चेक निकालकर उसे दिखाया, क्योंकि उसने नमन को कोट की उस जेब में चेक रखते हुए दरवाज़े से ही देख लिया था।

    "क्या... क्या है? तुम्हें... तुम्हें खुद भी तो पता चल गया होगा। वैसे भी, मैंने कोई चोरी नहीं की है। इन्होंने अपनी मर्ज़ी से ही दिया है मुझे..." नमन ने उसके हाथ से चेक छीनते हुए काफी बेशर्मी से कहा।

    लेकिन उसकी इस बात से श्रुति को ज़्यादा हैरानी नहीं हुई, क्योंकि वह कहीं न कहीं नमन को समझ चुकी थी।

    इसलिए वह अपने पापा की ओर मुड़ गई और बोली,

    "सीरियसली पापा! यह 50 लाख का चेक क्यों दे रहे हैं आप इसे..."

    श्रुति के सीधे सवाल से उसके पापा नज़रें चुराते हुए इधर-उधर देखते हुए बोले,

    "तुम्हें इस सब से क्या लेना-देना श्रुति! तुम जाओ अपना काम करो, यह हम दोनों के बीच की बात है।"

    अपने पापा की यह बात सुनकर श्रुति ने अविश्वास से उनकी ओर देखा। उसे बिल्कुल भी उनकी बातों पर भरोसा नहीं हुआ। कंपनी की किसी भी बात में वह कभी भी श्रुति की सलाह लेना नहीं भूलते थे और हमेशा ही सारे फैसलों में उसे शामिल करते थे।

    श्रुति ने अपने पापा से सवाल किया,

    "सीरियसली पापा! आपको लगता है यह मेरा काम नहीं है? जबकि आप दोनों ही मुझे कनेक्टेड हैं, तो ऐसे में मैं कैसे इस बात के बारे में ना पूछूँ? मेरा जानने का पूरा हक बनता है। आखिर क्या चल रहा है? क्यों आपसे पैसे ले रहा है यह, और आप क्यों इसे पैसे दे रहे हैं? और नमन, तुममें जरा भी शर्म नहीं है इस तरह अपने ससुर से पैसे ले रहे हो?"

    आखिरी बात बोलते हुए उसने मुड़कर नमन की ओर देखा। नमन ने बहुत ही बेचारा सा चेहरा बनाया और एक ठंडी साँस भरते हुए अपने ससुर की ओर देखकर बोला,

    "पापा! आप प्लीज़ इसे सच बता दीजिए, नहीं तो यह मुझे ही गलत समझेगी?"

    नमन की यह बात सुनकर श्रुति अब कन्फ्यूज़ हो गई और अब उसे पूरी बात जानने के लिए और भी ज़्यादा उत्सुकता हो रही थी।


    To Be Continued...


    और आप लोगों को उत्सुकता हो रही है या नहीं? बताइए कमेंट में👇👇👇 आखिर क्या ऐसा सच है जो नमन श्रुति को बताने वाला है? और क्यों दे रहे हैं श्रुति के पापा नमन को इतने पैसे? क्या वह उन्हें ब्लैकमेल कर रहा है या फिर कोई और बात है?

  • 14. Bound By Destiny - Chapter 14

    Words: 1637

    Estimated Reading Time: 10 min

    नमन की बात का जवाब देते हुए श्रुति ने कहा, "क्या गलत समझ रही हूँ मैं? नमन, आखिर बोलना क्या चाहते हो तुम? और मैं बस वही समझ रही हूँ जो सामने नज़र आ रहा है। और तुम मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश मत करना।"

    यह बात बोलते हुए श्रुति गुस्से में उसकी तरफ घूर रही थी। पिछले दो महीनों में वह नमन को इतना समझ गई थी कि वह एक नंबर का कामचोर और आलसी इंसान है। इसलिए वह बहाने करके अपनी कंपनी ज्वाइन नहीं कर रहा था और बस अपना बिजनेस शुरू करने का बहाना करते हुए समय बर्बाद कर रहा था।

    श्रुति ने जब भी उस बिजनेस के बारे में पूछा, तो वह हमेशा बात टाल देता था। क्योंकि असल में उसके पास कोई बिजनेस प्लान ही नहीं था, कम से कम श्रुति को तो ऐसा ही लगता था।

    नमन का ज़्यादातर वक्त घर के बाहर दोस्तों के साथ पार्टी, क्लबिंग और घूमने में ही जाता था। वह ज़्यादातर घर पर भी नहीं रहता था। और उसके पापा और उसका छोटा भाई जब बिजनेस पर बात करते थे, तब भी वह उसमें ज़्यादा कोई दिलचस्पी नहीं लेता था।

    इस वजह से नमन को घर पर भी उसके पापा और दादा से अक्सर डाँट सुनने को मिलती थी। लेकिन उसकी माँ और बहन हमेशा ही नमन का साथ देकर बाकी सब को चुप करा देती थीं। जबकि उसका छोटा भाई बस अपने काम से मतलब रखता था और किसी के बीच में कुछ भी नहीं बोलता था।

    श्रुति उसके घर का ऐसा माहौल देखकर धीरे-धीरे उसमें ढल गई थी। लेकिन नमन को वह इस तरह से स्वीकार नहीं कर पा रही थी। क्योंकि जिस तरह का लाइफ पार्टनर उसने सोचा था, नमन एक प्रतिशत भी वैसा नहीं था। वह रोज़ ही उसे एक अलग तरह से निराश करता था और आज यह उनमें से ही एक और नई वजह थी।

    लेकिन श्रुति के पापा इन सब में पूरी तरह से नमन के ही समर्थन में थे। इसलिए श्रुति ने जैसे ही नमन से इतना कहा, उसके पापा नमन का साथ देते हुए श्रुति को डाँटने लगे।

    "श्रुति! यह क्या तरीका है अपने पति से बात करने का? और हम दोनों के बीच जो भी पैसे का लेनदेन हो, सारी बातें तुम्हें जानने की ज़रूरत नहीं है।"

    श्रुति के पापा ने कहा। उनकी यह बात सुनकर श्रुति का दिल टूट गया। क्योंकि वह उनकी कंपनी को शादी के बाद भी अपनी कंपनी मानती थी और वहाँ मेहनत से काम करती थी।

    "रहने दीजिए पापा! वह शायद गलत समझ रही है। मैंने आपसे कहा ना, आप प्लीज उसे पूरी बात बता दीजिए। क्योंकि उसे ऐसा लग रहा होगा शायद कि मैं उसके पापा से पैसे छीन रहा हूँ या फिर मांग रहा हूँ, जो कुछ भी..."

    नमन ने बहुत ही सहजता से कहा।

    वह अक्सर ऐसी बातें नहीं करता था, लेकिन कभी-कभी वह इस तरह का एकदम समझदार आदमी भी बन जाता था। इसलिए श्रुति को अब तक उसके इस तरह से बदलने की आदत पड़ गई थी।

    लेकिन उसकी बात सुनकर श्रुति ने अपनी आँखें घुमाईं और फिर से अपने पापा की तरफ देखा। तो उसके पापा ने कहा, "हाँ, मुझे पता है। नहीं मानोगी तुम तो सुनो, मैं बस दामाद जी की मदद कर रहा हूँ उनके नए बिजनेस में। हेल्प और एक तरह से यह मेरा निवेश समझो। उन्होंने बिजनेस के प्रॉफिट में से मुझे २०% ज़्यादा रिटर्न करने का वादा किया है। तो मुझे नहीं लगता तुम्हें इससे कोई प्रॉब्लम होनी चाहिए।"

    यह बिजनेस वाली बात सुनकर भी श्रुति संतुष्ट नहीं थी और उसे अभी भी नमन पर पूरा शक था। इसलिए उसने तुरंत ही सवाल किया, "और यह बात कब हुई आप दोनों के बीच? और आपने मुझे बताना ज़रूरी क्यों नहीं समझा? क्योंकि आखिर यह कंपनी के पैसे हैं और मैं भी यहाँ पर डिप्टी जनरल मैनेजर की पोस्ट पर हूँ।"

    श्रुति के पापा, हर्षवर्धन ने सीधे ही कहा, "हाँ श्रुति बेटा, भूलना मत कि तुम सिर्फ़ जनरल मैनेजर हो और मैं कंपनी का प्रेसिडेंट हूँ। इसलिए सारे डिसीजन मैं ले सकता हूँ। कहाँ पर कितने पैसे किसको देने हैं, कितने कहाँ इन्वेस्ट करने हैं, यह मैं तुमसे नहीं पूछूँगा। और वैसे भी तुम इतना ओवररिएक्ट क्यों कर रही हो? तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे पापा के पैसे तुम्हारे पति को ही तो मिल रहे हैं। लेकिन तुम तो ऐसे सवाल कर रही हो कि जैसे मैंने पैसे गँवा दिए हों।"

    उनकी यह बात सुनकर श्रुति को बहुत बुरा लगा। और उसे ऐसा लगा जैसे कि वह इतनी देर से बेकार ही मेहनत कर रही है और उसके पापा ने पहले ही अपना मन बना लिया है और नमन उनकी नज़र में उससे कहीं ज़्यादा अच्छा और बेहतर है। इसलिए वह उसकी बात नहीं सुनेंगे।

    इसलिए श्रुति ने भी अब उनकी बात पर हल्का सा मुस्कुरा कर कहा, "हाँ... हाँ मैं खुश हूँ, बहुत ही ज़्यादा खुश हूँ। थैंक यू सो मच। लेकिन अगर आपके पैसे वापस ना मिले तो प्लीज आप इन सब में मुझे बीच में मत लाइएगा, मैं पहले ही बोल रही हूँ।"

    इतना बोलकर श्रुति तुरंत ही वहाँ से बाहर निकल गई। और उसके जाने के बाद हर्षवर्धन थोड़ी देर सोच में पड़ गया। और उसने दरवाज़ा पटककर केबिन से बाहर जाती हुई श्रुति की तरफ ही देखते रहे। दरवाज़े के बंद होने की तेज आवाज़ से वह अपने ख्यालों से बाहर आए।

    श्रुति की बातों पर हर्षवर्धन को इस तरह से सोचते देखा, नमन मन ही मन थोड़ा सा घबरा गया। और उसने अपने मन में कहा, "पता नहीं किस मनहूस घड़ी में यह लड़की मेरी लाइफ में आई थी। जो एकलौता फ़ायदा मुझे इससे शादी करने का मिला है, उस फ़ायदे के भी बीच में आ रही है। कहीं इसका बाप इसकी बातों में ना आ जाए। मुझे उससे पहले ही कुछ करना होगा।"

    इतना सोचते हुए नमन ने तुरंत ही हर्षवर्धन के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, "पापा आपको मुझ पर भरोसा है ना?"

    नमन ने बहुत ही अपनेपन का नाटक करते हुए हर्षवर्धन की तरफ़ देखकर यह बात कही। और हर्षवर्धन के पास तो वैसे भी कोई विकल्प नहीं था। क्योंकि नमन और उसके पापा से उसकी पहले ही डील हो गई थी कि जितने भी पैसे वह लोग नमन के बिजनेस के लिए माँगेंगे, वह सब हर्षवर्धन और उसकी कंपनी ही देगी। और इसी शर्त पर उन्होंने श्रुति और नमन की शादी करवाई थी।

    इसलिए हर्षवर्धन ने भी उसकी तरफ़ देखकर कहा, "हाँ... हाँ बेटा! मुझे तुम्हारी काबिलियत पर और तुम पर पूरा भरोसा है। तुम ज़रूर कुछ ना कुछ बड़ा करोगे ज़िंदगी में। और श्रुति की बात का बुरा मत मानना। वह बस ऐसे ही है। उसे मैंने पहले से नहीं बताया ना, शायद इसलिए नाराज़ हो गई। वैसे तुमने भी उसे नहीं बताया था क्या अपने बिजनेस के बारे में?"

    हर्षवर्धन के इस सवाल पर नमन थोड़ा सा सकपका गया और इधर-उधर देखने लगा। क्योंकि अभी उसके पास कोई सॉलिड बिजनेस प्लान ही नहीं था, तो वह श्रुति को क्या बताता? और हर्षवर्धन को तो उसने ऐसे ही बड़ी-बड़ी बातें करके बेवकूफ बनाया है और अपने झांसे में लेकर रखा हुआ है।

    नमन को ऐसे इधर-उधर देखते पाकर हर्षवर्धन ने उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछा, "क्या हुआ बेटा? श्रुति से तुम्हारी बात नहीं हुई क्या? मुझे तो लगा था तुम दोनों पति-पत्नी हो तो तुमने पहले उसे ही बताया होगा।"

    नमन ने आखिर बात संभालते हुए कहा, "हाँ... हाँ पापा, वो नहीं... हमारी इतनी बात नहीं हुई। और वो भी अपने काम में बिजी रहती है और मैं अपनी बिजनेस प्लानिंग में। तो मैंने इसीलिए उसे नहीं बताया। मैंने सोचा जब सब कुछ फाइनल होगा तब ही उसे सरप्राइज़ दूँगा, तो वह ज़्यादा खुश हो जाएगी।"

    उसकी यह बात सुनकर हर्षवर्धन खुश हो गया और उसकी बातों में भी आ गया। फिर नमन वहाँ से बाहर निकला। और वह ५० लाख का चेक देखकर वह बहुत ही ज़्यादा खुश था। क्योंकि इतने समय बाद इतने सारे पैसे उसके हाथ लगे हैं। इतने अमीर परिवार से होने के बाद भी उसके घर वाले कभी उसे इतने पैसे नहीं देते थे। क्योंकि वह उसकी आदतों और फिजूलखर्ची के बारे में अच्छे से जानते थे।

    इस तरह से खुश होकर वह वहाँ ऑफिस से बाहर निकला। लेकिन गेट से अंदर आ रही एक लड़की से टकरा गया। क्योंकि वह अपनी ही खुशी में जैसे खोया हुआ था, तो उसे सामने से आ रही वह लड़की भी दिखी नहीं।

    "ओह सॉरी! सॉरी सॉरी मिस! मैंने आपको देखा नहीं..."

    उसे लड़की से टकराते ही तुरंत उसका कंधा पकड़कर सीधे खड़ा होता हुआ नमन उससे माफ़ी माँगता हुआ बोला। और फिर जैसे ही उसने उस लड़की की तरफ़ देखा, तो उस लड़की ने बिल्कुल भी फॉर्मल ड्रेस नहीं पहनी हुई थी। बल्कि एक वन पीस शॉर्ट ड्रेस पहनी हुई थी, वाइन कलर की। उसके बाल खुले हुए थे और मेकअप भी कुछ ज़्यादा था। इसके अलावा वह लड़की उसकी तरफ़ देखकर मुस्कुरा रही थी। और वह उसी तरह से मुस्कुराकर बोली, "अरे जीजू आप यहाँ? और कोई बात नहीं, मुझे सॉरी बोलने की कोई ज़रूरत नहीं है। वैसे आपने मुझे पहचाना या नहीं?"

    उसे लड़की ने जैसे ही उसे "जीजू" कहकर पुकारा, तो नमन ने गौर से उसकी तरफ़ देखा और वह तुरंत ही उसे पहचान गया। वह लड़की और कोई नहीं, श्रुति की छोटी बहन आरती थी। और नमन ने उसे शादी पर भी नोटिस किया था। और तब वह यही सोच रहा था कि आखिर यह दोनों लड़कियाँ बहनें कैसे हो सकती हैं? क्योंकि उनके रंग-रूप और पर्सनालिटी में तो जमीन-आसमान का फ़र्क है। आरती श्रुति से कहीं ज़्यादा खूबसूरत थी।

    उसके इस तरह से मुस्कुराने पर नमन भी मुस्कुराकर उसकी तरफ़ ही देखने लगा।


    To Be Continued...

  • 15. Bound By Destiny - Chapter 15

    Words: 2537

    Estimated Reading Time: 16 min

    मल्होत्रा हाउस, एक साल बाद;

    सूरज की एक किरण उस बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की से आती हुई, सोफ़े पर बैठी एक लड़की पर पड़ रही थी। यह लड़की कोई और नहीं, बल्कि श्रुति मल्होत्रा थी, शहर के मशहूर बिल्डर मिस्टर रवि मल्होत्रा की बहू। एक हाथ में उसका गिलास था और टेबल पर आधी खाली शराब की बोतल रखी हुई थी।

    श्रुति पूरी तरह नशे में थी और चारों तरफ़ शांति छा रही थी। तभी उस चुप्पी को तोड़ते हुए, कोई ज़ोर से कमरे का दरवाज़ा खोलकर अंदर आया।

    यह श्रुति का पति नमन था। वह गुस्से में कुछ कागज़ श्रुति के मुँह पर फेंकता है और कहता है,
    “क्या देवदास की तरह यहां पर बैठी हुई शराब पी रही हो? चलो सीधे, बस आज से यह किस्सा ही ख़त्म।”

    ये शब्द जैसे श्रुति के सब्र का बाँध ही तोड़ देते हैं। श्रुति की आँखें भर आती हैं, लेकिन वह एक भी आँसू को टपकने नहीं देती।
    “तो आख़िर एक साल बाद आज तुमने यह डिसीज़न ले ही लिया।”

    श्रुति नमन की तरफ़ मुड़े बिना, अपने गिलास को घूरते हुए यह कहती है और अपने अतीत में खो जाती है।

    ****

    पिछले एक साल में जो कुछ भी हुआ था, उसके और नमन के बीच वह सारी बातें उसकी आँखों के सामने किसी फ़िल्म या फिर किसी कोरी बुरी यादों की तरह चलने लगती हैं।

    कुछ भी नहीं बदला था पिछले एक साल में। उनकी शादी के दिन से लेकर आज तक, उन दोनों का रिश्ता कभी पूरी तरह से पति-पत्नी वाला बन ही नहीं पाया था। क्योंकि नमन उससे सीधे मुँह बात भी नहीं करता था। श्रुति चाहे जितनी भी कोशिश कर ले अपनी तरफ़ से, लेकिन बदले में हमेशा उसे उल्टे-सीधे जवाब, नाराज़गी, गुस्सा और इन्सल्ट का ही सामना करना पड़ता था।

    कुछ महीनों पहले,

    "नमन! कौन थी वह लड़की? बताओ! तुम्हें मेरी फ़्रेंड ने उसके साथ देखा था। और होटल रूम में क्या कर रहे थे तुम उसके साथ?" - नमन से कुछ सवालों का जवाब मांगते हुए, श्रुति उस पर जोर से चिल्ला रही थी। लेकिन उसके सवालों से बेख़बर नमन शीशे में अपने बाल ठीक कर रहा था। उसने मुड़कर उसकी तरफ़ देखा भी नहीं था; उसके सवाल का जवाब देना तो दूर की बात थी।

    नमन का इस तरह से बिज़नेस के नाम पर रात-रात भर बाहर रहना, कभी किसी लड़की के साथ तो कभी किसी के साथ देखा जाना, अब तक आम हो गया था। लेकिन श्रुति के घर तक यह बात बहुत कम ही पहुँचती थी, क्योंकि वह ज़्यादा नमन पर ध्यान भी नहीं देती थी। वे दोनों बस नाम के और अपने परिवार की नज़र में पति-पत्नी थे। बाकी, उनके कमरे की चार दीवारी के बीच वे दोनों हमेशा लड़ते रहते थे।

    "तुम मुझ पर बेवजह शक करती रहती हो। और वैसे भी, कोई भी हो वह लड़की, तो मुझे यह हक़ भी नहीं है मुझसे पूछने का। बस बेवजह जबरदस्ती मेरे पल्ले बँधी हुई हो, पापा की वजह से..." - पीछे मुड़कर श्रुति की तरफ़ देखे बिना ही, नमन ने बहुत ही लापरवाही से उसकी बात का जवाब दिया।

    "हाँ तो लालच में ही क्यों की थी तुमने मुझसे शादी? क्या मेरे पापा से पैसे ऐंठ सको? और अभी भी तुम वही कर रहे हो! इतनी बुरी लगती हूँ तो छोड़ क्यों नहीं देते मुझे..." - श्रुति ने भी उस पर गुस्से में तेज आवाज़ में चिल्लाते हुए कहा।

    "हाँ हाँ, छोड़ दूँगा। बस कुछ ही महीने की बात है। तब तक जैसे-तैसे ही मैं तुम्हें बर्दाश्त कर रहा हूँ। फिर तो छोड़ ही दूँगा मैं तुम्हें। आख़िर कौन चाहेगा तुम्हारे जैसी लड़की के साथ रहना।" - इतना बोलते हुए उसने कमरे का दरवाज़ा जोर से पटक दिया और मन से बाहर निकल गया। पीछे से श्रुति चिल्लाती रह गई, लेकिन नमन ना तो वहाँ पर रुका और ना ही उसने पीछे मुड़कर देखा।

    यह सारी बातें याद करते हुए, श्रुति अपने अतीत में ही खोई हुई थी कि तभी अचानक नमन एक बार फिर ज़ोर से चीखा।

    “श्रुति!!!”

    उसकी यह चुभने वाली आवाज़ कमरे की शांति को भंग कर देती है।

    नमन की आवाज़ सुनने के बाद, श्रुति ने भी ज़ोर से उसे जवाब दिया,
    “ओह शट अप! बहरी नहीं हूँ मैं!!!”

    इसके बाद श्रुति ने एक ही साँस में अपने गिलास में पड़ी शराब को ख़त्म कर दिया और ज़ोर से काँच के गिलास को दीवार पर दे मारा। गिलास छन की आवाज़ से फ़र्श पर बिखर गया।

    फिर उसने खुद को संभाला और नमन को कोई जवाब दिए बिना, पास में रखे अपने बैग का सामान टेबल पर फैलाकर कुछ ढूँढने लगी।

    नमन दिखने में बेहद हैंडसम और स्टाइलिश लड़का था। मानो किसी मॉडलिंग कंपनी का कोई ब्रांड एम्बेसडर, और इसी बात का उसमें घमंड था।

    वहीं श्रुति, नमन की तुलना में हल्के साँवले रंग की, एवरेज सी शक्ल-सूरत वाली लड़की थी, जो शादी के बाद दिखने में और भी मैच्योर लगने लगी थी। या फिर यह कह लो कि ऐसी गलत शादी में पड़ने के बाद, श्रुति ने जैसे अपने ऊपर और भी ध्यान देना बंद कर दिया था। और वह शादी के बाद से उसके साथ जो हो रहा था, वह सब उसके चेहरे और उसके रंग-रूप पर भी दिख रहा था। वह बिल्कुल भी बन-संवर कर नहीं रहती थी। और यह पूरा एक साल उसने अपने पापा की कंपनी को ही दे दिया था। वह ज्यादातर काम में खुद को बिजी रखती थी ताकि इन सब चीज़ों से उसका ध्यान हटे और वह ज्यादातर फ़ॉर्मल कपड़े ही पहनती थी।

    नमन अपने सनग्लासेज़ पहनता है और श्रुति को अपना सामान पैक करने को कहता है। लेकिन श्रुति उसकी बात को बिल्कुल भी सीरियसली नहीं लेती है। वह एकदम आराम से अपनी जगह से उठती है और अपने हाथ में पर्स का सारा सामान ठीक से पर्स में रखने लगती है। बाकी का सारा सामान पैक करने में भी वह इतनी जल्दी नहीं दिखाती।

    श्रुति बहुत ही आराम से और बेपरवाही से वह सारे काम कर रही है। इसलिए बेचैन होकर वह श्रुति के आगे-पीछे घूम रहा है।
    “क्या तुम्हारे हाथ जल्दी-जल्दी नहीं चल सकते? हमें वहाँ लंच आवर से पहले पहुँचना है।”

    नमन के इतना कहते ही श्रुति चिल्ला पड़ती है।
    “मैं भी तुम्हें एक साल से झेल रही हूँ और आज एक मिनट भी तुम्हारी बर्दाश्त के बाहर हो रहा है? मैं जितना चाहे उतना समय लूँगी।” इसके बाद श्रुति लड़खड़ाते हुए अपने कमरे में गई और कुछ देर बाद अपना एक बैग और एक भरी शराब की बोतल हाथ में लिए, सीधा गाड़ी में बैठ गई।

    नमन उस पर चिल्लाते हुए बोला,
    “यह क्या नया ड्रामा है? तुम्हारे अंदर थोड़ी सी भी शर्म है या नहीं?”

    “शर्म? तुम मुझसे पूछ रहे हो? अब शर्म की बातें वे लोग करते हैं जो खुद निहायती बेशर्म हो चुके हैं।” श्रुति नमन की मज़ाक बनाते हुए ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगती है।

    यह देख नमन गुस्से में सिर्फ़ अपने दाँत पीसता रह जाता है। वह कुछ नहीं बोलता और गाड़ी को स्टार्ट करके सीधा कोर्ट के लिए रवाना हो जाता है।

    श्रुति पूरे रास्ते अपना मुँह बोतल से लगाए शराब गटकती रहती है। पिछले कुछ महीनों में ही वह इतनी ड्रिंक करने लगी है, जिसकी वजह नमन ही है। लेकिन नमन का ध्यान बस इस बात पर है कि वह कोर्ट टाइम पर पहुँच जाए।

    कुछ देर बाद नमन कोर्ट के आगे गाड़ी रोकता है और बेहद रूखे तरीके से श्रुति से कहता है,
    “तुम यहाँ पर उतरों, मैं अभी गाड़ी पार्क करके आता हूँ।”

    लेकिन श्रुति का ध्यान अभी भी उस शराब की बोतल पर ही टिका है, मानो कि जैसे उसे खाली किए बिना उसका कुछ भी और करने का इरादा ही नहीं है।

    नमन उसे देखकर अपना सिर हिलाता है और उसके हाथों से वह बोतल छीन लेता है।
    “यह कोर्ट है, तुम्हारे बाप का बार नहीं। छोड़ो इसे और नीचे उतरों।”

    “यह बोतल भी तुम्हारे बाप की नहीं है।” श्रुति घूरते हुए नमन को जवाब देती है और उससे शराब की बोतल वापस छीन कर, उसमें बचा आखिरी घूँट लेकर गाड़ी से उतर जाती है।

    कोर्ट के गेट पर श्रुति एक गहरे नीले रंग की, घुटनों तक आती हुई ड्रेस और काले रंग की चार इंच वाली हील्स में खड़ी है। उसके काले बाल एक हाई पोनीटेल में बंधे हैं और उसने चेहरे पर हल्का मेकअप भी किया हुआ है।

    वह ज़्यादा तराश से बन-ठन कर नहीं रहती, इसलिए वह जब भी इस तरह से तैयार होती है तो बहुत ही अलग और खूबसूरत लगती है। लेकिन उसका पति ही कभी उसके इस रूप-अंदाज़ पर ध्यान नहीं देता।

    गाड़ी से उतरते हुए वह बहुत ही अमीर घर की क्लासी, एलिगेंट लेडी लग रही है। लेकिन जब वह लड़खड़ाती हुई कोर्ट के गेट पर कदम रखती है, तब यह कहानी बदल जाती है।

    कोर्ट में खड़े सभी वकील और सारे लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ श्रुति की तरफ़ ही देख रहे हैं।

    वहाँ खड़ा हर शख़्स श्रुति को देखकर आपस में बातें बना रहा है। श्रुति भी अपना सिर उठाए आगे बढ़ती रहती है। उसे उन लोगों की निगाहों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।

    लेकिन जब एक चपरासी श्रुति को एकटक घूरता हुआ उसके पास से गुज़रता है, श्रुति उससे अकड़ में कहती है,
    “घूर क्या रहा है? कभी लड़की नहीं देखी क्या?”

    यह सुनकर वह चपरासी तुरंत दबे पाँव वहाँ से चला जाता है।

    इतनी ही देर में नमन भी कोर्ट के अंदर श्रुति के पास पहुँचता है। वह श्रुति की चाल-ढाल देखकर वह बहुत ज़्यादा शर्मिंदा महसूस करता है।

    उसकी चलने में मदद करने के इरादे से, नमन श्रुति का हाथ पकड़ता है और कहता है,
    “क्या एक दिन भी तुम खुद पर काबू नहीं रख सकती? मेरी बची-खुची इज़्ज़त भी गँवाओगी। क्या कहेंगे लोग कि नमन मल्होत्रा की वाइफ़ शराब पीकर कोर्ट आई थी?”

    “एक्स-वाइफ़!” श्रुति तंज कसते हुए अपना हाथ नमन से छुड़ा लेती है।

    वे दोनों सिविल अफ़ेयर्स ब्यूरो ऑफ़िस पहुँचते हैं, जहाँ एक वकील उनका पहले से ही इंतज़ार कर रहा होता है।

    उस वकील ने चापलूसी करते हुए कहा,
    “मल्होत्रा साहब, अच्छा हुआ आप टाइम से आ गए। आप यहाँ बैठिए। मैं थोड़ी देर में अंदर नंबर लगाकर आता हूँ।”

    वकील की इस बात पर श्रुति एकदम से बोल पड़ती है,
    “अरे वकील साहब, मेरा भी सात नंबर लगा देना, लकी नंबर सेवन!”

    यह सुनकर वकील की आँखें बड़ी हो जाती हैं।
    “सर, यह भाभी को क्या हुआ?”

    नमन ने बात बदलते हुए कहा,
    “कुछ नहीं हुआ, आप जाइए और जल्दी से नंबर लगाकर आइए, इसे छोड़िए।”

    नमन इस बात को टालने की कोशिश करता है, लेकिन श्रुति नशे में धुत फिर बोल पड़ी,
    “अरे वह क्या है ना वकील साहब, आज हालात ही कुछ ऐसे हैं कि खुशी में सुबह-सुबह ही ना मैंने थोड़ी सी पी ली, अब आपसे बेहतर यह कौन समझ सकता है।”

    यह सुनकर तो वकील का शक सच में बदल जाता है और वह नमन से कहता है,
    “साहब… आप जानते हैं ना कि भाभी को इस हालत में देखकर मजिस्ट्रेट आपके केस को आगे नहीं बढ़ाएँगे?”

    नमन अपना हाथ एक पल अपने माथे पर रखता है और एक नज़र आस-पास घुमाता है, फिर वह वकील को एक कोने में ले जाकर उसे मनाने की कोशिश करता है।

    नमन ने इरिटेट होते हुए कहा,
    “देखो कुछ भी करो, लेकिन किसी भी तरह यह काम आज हो जाना चाहिए।”

    नमन की आवाज़ से वकील को उसकी बेताबी का एहसास हो जाता है।
    “काम तो हो जाएगा मल्होत्रा साहब! एक रास्ता है। मजिस्ट्रेट को मिठाई खिलाना पड़ेगी।”

    “अरे मजिस्ट्रेट को मिठाई खिलाओ या ज़हर दो, बस मेरा यह काम करवा दो।”

    ऐसा कहते हुए नमन अपने वॉलेट से तीन-चार 2000 के नोट निकालकर ध्यान से वकील के हाथों में थमा देता है।

    फिर नमन वापस श्रुति के पास आ जाता है। उसकी नज़र बार-बार अपनी घड़ी पर जा रही होती है, मानो उसे एक-एक मिनट भी भारी लग रहा हो।

    तभी कुछ देर बाद वह वकील वापस वहाँ आता है। नमन उससे इशारे में पूछता है कि काम हुआ या नहीं?

    वकील हाँ में अपना सिर हिला देता है और फिर कहता है,
    “आप दोनों अपना आधार कार्ड या कोई आईडी प्रूफ़ तो लाए होंगे ना साथ? प्लीज़ वह मुझे दे दीजिए।”

    नमन तुरंत ही अपना आईडी कार्ड निकालकर वकील को दे देता है और श्रुति से पूछता है,
    “तुम्हारा आधार कार्ड कहाँ है? लायी भी हो या नहीं?”

    “ढूँढ रही हूँ, रुको।” श्रुति अपना आधार कार्ड ढूँढ़ते हुए अपने पर्स को उथल-पुथल कर रही होती है कि इसी बीच उसका पर्स और अंदर का सारा सामान नीचे गिर जाता है।
    “ओह नो!” श्रुति झुककर अपना सारा सामान समेटने लगती है।

    नमन एक बार फिर अपना माथा पीटते हुए बड़बड़ाता है,
    “Oh my God, I can’t take this anymore!” इतना कहते हुए उसे श्रुति का आधार कार्ड ज़मीन पर पड़ा दिख जाता है और वह उसे खुद ही उठाकर वकील को दे देता है।

    श्रुति भी अपना सामान समेटकर खड़ी हो जाती है और वे दोनों वकील के साथ कोर्ट रूम में जाने लगते हैं। लेकिन एंटर करने से पहले वकील एक नज़र श्रुति को देखता है और कहता है,
    “मैम प्लीज़! आप ज़रा ढंग से पेश आइएगा। आपके चक्कर में कहीं मेरी वकालत ना चली जाए।” इस बात पर वकील फिर नमन को देखता है और नमन श्रुति को।

    “देख क्या रहे हो? बिल्कुल ठीक हूँ मैं। चलो, ज़्यादा ड्रामा मत करो।” श्रुति इतना कहती है और वे सब कोर्ट रूम में मजिस्ट्रेट के सामने चले जाते हैं।

    कुछ ही मिनटों में श्रुति और नमन कुछ पेपर्स पर साइन करते हैं और मजिस्ट्रेट उन पेपर्स पर ठप्पा लगा देता है।
    “आज से आप दोनों पति-पत्नी नहीं रहें।”

    “अब तुम आज़ाद हो और मैं भी।” तलाक़ होने के बाद नमन श्रुति से यह कहता है और कुछ देर अपने वकील से बात करने के लिए कोर्ट रूम में ही रुक जाता है।

    लेकिन श्रुति वहाँ से उठकर थोड़ी जल्दबाज़ी में बाहर जाने लगती है। इसी बीच वह एक टेबल से टकरा जाती है और उस टेबल पर रखी सारी फ़ाइलों के साथ खुद भी ज़मीन पर गिर जाती है। हील्स की वजह से उसका पैर बुरी तरह से मुड़ जाता है।

    श्रुति की इस हालत को नमन चिढ़कर देखता है और सिर हिलाते हुए अपनी आँखें फेर लेता है।

    वह उसे तलाक़ दे चुका है और अब श्रुति चाहे जो कुछ भी करे, नमन को उससे कुछ लेना-देना नहीं है। कोर्ट में भी, जहाँ श्रुति अपना पैर पकड़े ज़मीन पर पड़ी कराह रही है, नमन को उसकी अब कोई परवाह नहीं है।

    सभी लोग यह तमाशा देख रहे होते हैं कि तभी एक डार्क ब्राउन कोट-सूट पहने आदमी श्रुति को सहारा देते हुए उसे वापस अपने पैरों पर खड़ा कर देता है।

    “मैडम! आप ठीक तो हैं?”

    एक गहरी और दिल को छू लेने वाली आवाज़ को सुनकर श्रुति चौंक कर उस आदमी की तरफ़ देखती है, क्योंकि वह आवाज़ उसे कुछ जानी-पहचानी सी लगती है!

    वह देखकर नमन का भी ध्यान एक बार फिर से श्रुति और उस आदमी पर चला जाता है।

    क्रमशः

    आख़िर हो गया उन दोनों का तलाक़ और कौन है यह शख़्स? क्यों कर रहा है वह श्रुति की मदद? वैसे और भी बहुत सारे सवाल होंगे ना आप सबके मन में… पूछिए पूछिए कमेंट सेक्शन में….👇👇👇.

  • 16. Bound By Destiny - Chapter 16

    Words: 1581

    Estimated Reading Time: 10 min

    उस आदमी ने श्रुति को जमीन से उठाते हुए कहा, “मैडम! आप ठीक तो हैं ना?”

    श्रुति उस आदमी की गहरी आवाज़ सुनकर एक पल को चौंक गई और उसे सिर से पांव तक देखने लगी। वह आवाज़ उसे कुछ जानी-पहचानी सी लगी। श्रुति जब गौर से उस आदमी की तरफ़ देखती है, तब आवाज़ से ज़्यादा उसे उसकी आँखें देखी हुई और पहचानी सी लगती हैं, लेकिन उसे याद नहीं आता कि उसने इन आँखों को कब और कहाँ देखा है?

    श्रुति के चेहरे पर दो सेकंड के लिए एक मुस्कान ठहरी, लेकिन तभी उसे अपनी स्थिति का एहसास हुआ और वह गुस्से में नमन की तरफ़ मुड़ी।

    “हमारा तलाक़ क्या हो गया, तुम तो इंसानियत ही भूल गए। अरे, तुम जैसे घटिया इंसान से तो अच्छा यह अजनबी है, कम से कम इसने मुझे तकलीफ़ में देखकर मदद का हाथ तो बढ़ाया, लेकिन तुम… तुमसे तो उम्मीद करना ही बेकार है, नमन मल्होत्रा!!!!”

    श्रुति की आवाज़ में इतनी नफ़रत भरी थी कि उसके व्यवहार को नज़रअंदाज़ करना नमन के लिए अब नामुमकिन सा हो गया। वह कोर्ट जैसी जगह में अपनी इतनी बेइज़्ज़ती बर्दाश्त नहीं कर पाया, और श्रुति पर बरस पड़ा।

    “क्या बोला तुमने? घटिया इंसान?”
    नमन गुस्से में त्योरियां चढ़ाये श्रुति के बेहद नज़दीक आकर बोला।

    “हाँ, और नहीं तो क्या? इन सब को क्या पता इस तलाक़ की असली वजह क्या है। घटिया नहीं, तू तो उससे भी गया-गुज़रा है। महाघटिया और धोखेबाज है तू, नमन मल्होत्रा… सेल्फिश भी!”

    श्रुति के इन शब्दों से नमन के गुस्से का बाँध टूट गया और वह अपने आप पर काबू खोने लगा। उसने श्रुति की बाँह इस बार बेरहमी से कसकर पकड़ ली।

    “तू मुझे घटिया कह रही है? अरे, शुक्र मना मैंने तुझे एक साल तक झेल लिया। नहीं तो मेरी जगह कोई और होता तो तुझे शादी की पहली रात ही धक्के मारकर घर से बाहर निकाल देता।”

    हालांकि नमन की बातों से श्रुति को कई ज़्यादा दर्द हो रहा था, अपनी बाँह पर नमन की मज़बूत पकड़ के कारण अब वह कराहने से खुद को रोक नहीं पा रही थी। नमन के नाखून उसकी बाँह में ऐसे गड़ रहे थे कि श्रुति के आँसू सच में अब किसी भी पल गिर सकते थे।

    तभी एक हाथ नमन को श्रुति से अलग किया।

    “ओह मिस्टर, यहां पर कोर्ट में ही खड़े हो तुम अभी और यह सारी हरकत अपने वकील को बोलकर मोलेस्टेशन के केस में अंदर करवा दूँगा तुम्हें।”

    यह वही आदमी था जिसने श्रुति को खड़े होने में मदद की थी और उसके पीछे ही काले कोट पहने हुए एक वकील भी खड़ा हुआ था।

    नमन उस आदमी को हैरानी से देखते हुए कहता है, “हैं?… तुम कौन हो भाई? अपने काम से काम रख ना। दिख नहीं रहा मैं अपनी पत्नी से बात कर रहा हूँ?”

    “कबीर रायचंद नाम है मेरा और अपने काम से काम घर पर रखा जाता है, ऐसे पब्लिक प्लेस पर नहीं। और जहाँ तक मैं जानता हूँ, यह तुम्हारी पत्नी है नहीं, थी। तो फिर अब तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इनके साथ ऐसा बर्ताव करने की?”

    श्रुति, जो अभी तक कबीर को बहुत ध्यान से देख रही थी, अब फिर से बोली, “अरे बोला ना मैंने सर, यह एक नंबर का घटिया और धोखेबाज इंसान है।”

    यह सुन नमन एक बार फिर श्रुति की ओर गुस्से में बढ़ गया, लेकिन तभी कबीर, नमन के सीने पर हाथ रखकर उसे वहीं रोक दिया।

    कबीर ने उसे गुस्से में घूरते हुए कहा, “जहाँ हो वहीं रुक जाओ मिस्टर, आराम से बोल रहा हूँ। नहीं तो ऐसी-ऐसी धाराओं में फँसाऊँगा, सारी स्मार्टनेस और तारीख़ पर तारीख़ खुद को कोर्ट में पेश करते हुए बाहर निकल जाएगी।”

    नमन एक ऊँगली कबीर की तरफ़ उठाकर उसे जवाब दिया, “देखो मिस्टर, आख़िरी बार बोल रहा हूँ मैं, मेरे मामलों में दखल मत दे, वरना…”

    “वरना क्या??? जाओ भी… मैं बहुत देर से तुम्हारी यह नौटंकी देख रहा हूँ। शक्ल से तो तुम भले ही किसी अच्छे परिवार के लग रहे हो, लेकिन तुम्हारी यह हरकतें किसी लुच्चे लफंगे से कम नहीं हैं जो एक औरत पर ऐसे पब्लिक प्लेस में हाथ उठा रहे हो। चाहे वह औरत कैसी भी हो, तुम्हें कोई हक़ नहीं है कि तुम उस पर हाथ उठाओ।”

    नमन कबीर की तरफ़ इशारा करते हुए बोला, “अरे तू है कौन जो इसकी तरफ़दारी कर रहा है? तू दो कौड़ी का आदमी… मुझे यानी नमन मल्होत्रा को रूल्स समझाएगा? मैं इसके साथ जो चाहे वह करूँगा, बता क्या कर लेगा तू?” ऐसा कहता हुआ नमन गुस्से में कबीर का कॉलर पकड़ लिया।

    “तुम जानते हो ना ऐसे भरे कोर्ट में एक रिस्पेक्टेड पर्सन का कॉलर पकड़ने का अंजाम क्या हो सकता है?” कबीर ने नमन की ओर गुस्से से भरी नज़रों से देखते हुए कहा।

    तभी श्रुति, कबीर और नमन के बीच आकर दोनों को एक-दूसरे से अलग करते हुए कहती है, “अरे ओह, मिस्टर नमन मल्होत्रा! यह हाथापाई क्या लगा रखी है? तलाक़ हो गया ना? चल अब निकल यहाँ से।”

    तभी गुस्से से आँखें दिखाते हुए नमन ने कहा, “तेरी ज़बान फिर से चलने लगी? तेरी इन हरकतों के बावजूद तुझे एक साल झेला है मैंने। नहीं तो तुझ जैसी दिखने वाली औरत से तो कोई भी शादी ना करे।”

    “मैं भी यही सोचती हूँ कि काश कोई शादी ना करता मुझे तेरे जैसे इंसान से तो बिल्कुल भी नहीं… मैंने आज तक इस रिश्ते को बचाए रखने के लिए ना जाने क्या-क्या नहीं किया, लेकिन तू… तुझसे तो आज तक नफ़रत के सिवा मुझे कुछ भी नहीं मिला।”

    ये कहते हुए अनजाने में ही सही, लेकिन अब तक श्रुति की आँखों से आँसू बहने लगे थे। एक ओर जहाँ नमन को श्रुति की बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था, वहीं दूसरी ओर श्रुति के ठीक सामने खड़ा कबीर श्रुति के आँखों से बहते आँसुओं को एकटक देखता जा रहा था।

    किसी ने सच ही कहा है कि नशे में इंसान ना तो झूठ बोल सकता है और ना ही वह खुद की भावनाओं को छुपा सकता है।

    तभी नमन ने तंज कसते हुए कहा, “बहुत देखे हैं मैंने ऐसे मगरमच्छ के आँसू, मैं तो तेरे रग-रग से वाकिफ़ हूँ। मुझसे पिछले एक साल में कुछ भी छिपा नहीं है, जो तू ये आँसू बहाकर खुद को यहाँ इस जगह पर मासूम साबित करने पर तुली हुई है!”

    तभी श्रुति अपने आँसुओं को पोछते हुए कहती है, “मैं खुद को कुछ भी साबित नहीं कर रही! साबित तो तुम हो चुके हो नमन, सबकी नज़रों में… तुम एक साल पहले भी एक घटिया आदमी थे और आज भी हो। और रही बात मेरी शादी की, वह तो यूँ ही हो जाएगी।”

    श्रुति नमन के तानों का जवाब देना जारी रखती है, लेकिन नमन अभी भी पीछे नहीं हटता।

    “हाहाहा, तू तो ऐसे कह रही है जैसे दूल्हा तेरे सामने तैयार हो और बस फेरे लेने की देरी हो।”

    नमन की बात सुनते ही श्रुति के दिमाग में एक ख्याल आता है और उसकी आँसू भरी आँखों में एक चमक नज़र आने लगती है।

    “और नहीं तो क्या! दूल्हा यहीं तो खड़ा है… मेरे पीछे…!!”

    श्रुति पीछे मुड़ती है और वहाँ खड़े कबीर से मुस्कुराते हुए नज़रें मिलाती है।

    श्रुति कबीर का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ ले जाते हुए बोली, “चलो मेरे साथ!!”

    कबीर ने सवाल किया, “अरे मिस! आप कहाँ लेके जा रही हैं मुझे?”

    श्रुति कबीर के सवालों को पूरी तरह से इग्नोर करते हुए अपने आप में ही बड़बड़ा रही होती है। “कुछ नहीं, मुझे यह कैसे बोला कि कोई भी उसके अलावा कभी मुझसे शादी ना करता, मैं उसे अभी दिखाती हूँ कि मैं उसके सामने ही शादी कर लूँगी और फिर उसे कोई नहीं मिलेगी कभी मेरे अलावा।”

    कबीर ने एक जगह पर रुकते हुए पूछा, “अरे मैडम! आप बताइए तो क्या बोल रही हैं और कहाँ लेकर जा रही हैं मुझे।”

    कोर्ट एक ऐसी जगह है जहाँ शादियाँ सिर्फ़ टूटती ही नहीं, बल्कि जुड़ भी जाती हैं। इसी बात को सच करते हुए श्रुति ज़बरदस्ती अपने साथ कबीर को लेकर मैरिज ब्यूरो की तरफ़ बढ़ने लगती है।

    “तुमने बचाया, मेरी तरफ़दारी भी की है इसलिए तुम मुझसे शादी करोगे अभी और इसी वक़्त।” श्रुति ने कबीर से कहा, लेकिन इस वक़्त वह बिल्कुल भी होश में नहीं थी, उसे जैसे नशा चढ़ा हुआ था और नमन की बातों से वह बहुत ही ज़्यादा दुखी थी और उसे दुःख से निकलने के लिए ही यह सब कुछ कर रही थी और उसे खुद भी नहीं पता था वह क्या कह रही है, क्या कर रही है?

    उसकी ऐसी बातें सुनकर कबीर हैरान रह गया, “लेकिन मैडम…!!”

    श्रुति ने उसके एक्सप्रेशन देखकर पूछा, “रुको एक सेकंड! कहीं तुम पहले से शादीशुदा तो नहीं? अगर ऐसा है तो फिर मैं किसी और को ढूंढती हूँ।”


    To Be Continued…


    इस बार भी पार्ट बहुत लेट है, लेकिन पार्ट लेट होने का तो असल में हमें नुकसान नहीं, बल्कि फ़ायदा होता है क्योंकि पिछले पार्ट पर रीडर भी ज़्यादा होते हैं और कमेंट भी। और अगर हम रेगुलर पार्ट दें तो फिर बस दो-चार लोग ही कमेंट करते हैं। तो फिर बताइए आप लोग, हमें तो ऐसे आराम से लिखकर देने में ही हर तरफ़ से फ़ायदा है क्योंकि रेगुलर पार्ट में तो बहुत ही कम हो जाते हैं कमेंट। तो अगर आप लोगों को जल्दी पार्ट चाहिए तो 24 घंटे में या फिर 2 दिन में 10 से ज़्यादा कमेंट होने चाहिए। जैसे ही 10 कमेंट हो जाएँगे हम नेक्स्ट पार्ट अपलोड कर देंगे।

  • 17. Bound By Destiny - Chapter 17

    Words: 1871

    Estimated Reading Time: 12 min

    कबीर तुरंत ही मना करते हुए बोला, “अरे नहीं मैडम, ऐसी बात नहीं है पर…!”

    “फिर क्या बात है? क्या मैं सुंदर नहीं हूँ? ओह्ह, अब समझी!! तुम किसी और लड़की से प्यार करते हो।”

    “नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है लेकिन…”

    “तो बात क्या है महेश, सुरेश, नरेश, कहीं तुम बाल ब्रह्मचारी तो नहीं?”

    “जी वो मैं…. "

    श्रुति कबीर को इस 'बाल ब्रह्मचारी' वाली बात पर हामी भरते हुए चौंक सी गई!

    “जी? इसका मतलब तुम सच में बाल ब्रह्मचारी हो?”

    “जी… नहीं नहीं। मेरा कहने का मतलब था कि मेरा नाम महेश, सुरेश, नरेश नहीं, कबीर है! और मैं कोई बाल ब्रह्मचारी नहीं हूँ!” कबीर एकदम से बोला।

    “जो भी हो, नाम बाद में भी याद हो जायेगा, पहले ये क्लियर करो कि तुम मुझसे शादी करोगे भी या नहीं? देखो, मैं तुम्हें एक करोड़ रुपए दूंगी, बस तुम्हें उस आदमी के सामने ये कहना है कि तुम मुझसे शादी करने के लिए तैयार हो।”

    “जी? जी मैं कुछ समझा नहीं?” कबीर ने हैरानी भरे लहज़े में कहा। “शादी? वो भी आज, अभी, और आपसे?”

    “हाँ ट्यूबलाइट अभी, इसी वक़्त, शादी, और मुझसे। और तुम्हारे दोस्त हैं ना यहाँ? तुम्हारा वह वकील भी जो तुम्हारे साथ तुम्हारे पीछे खड़ा था। और अगर नहीं भी है तो चार-पांच गवाह बुला लाओ। मैं उन सभी को पचास-पचास हज़ार दे दूंगी, मुझे अभी के अभी तुमसे शादी करनी है और शादी के साइन पेपर इस नमन मल्होत्रा के मुँह पर मारने हैं ताकि इसकी ये हंसी बंद हो सके।” श्रुति ने थोड़ी गंभीरता से कहा।

    “देखिये पहली बात तो मैं आपसे पैसे नहीं लूँगा। और दूसरी बात, शादी एक पवित्र रिश्ता है, कोई गुड्डे-गुड़ियों का खेल नहीं। शादी की भी कई मर्यादाएँ होती हैं।” कबीर अपना पक्ष रखते हुए बोला।

    “मेरी बात समझने की कोशिश करो। वो बाहर जो आदमी खड़ा है उसे लगता है कि इस तलाक़ से उसने मुझसे पीछा छुड़ाया है लेकिन उसे क्या पता उसने क्या खोया है। और हमारी ये शादी सिर्फ़ कहने के लिए एक शादी होगी, एक समझौते की शादी। क्योंकि मैं उसे आज ये साबित कर देना चाहती हूँ कि उसने नहीं, मैंने उसे छोड़ा है।” श्रुति ने कबीर से नज़रें मिलाते हुए कहा।

    कबीर एक पल श्रुति को देखकर कुछ सोचता है। श्रुति और नमन के बीच अभी-अभी कोर्ट में जो बहस हुई थी, उसे देखने के बाद से कबीर के दिल में श्रुति को लेकर एक हमदर्दी पनपने लगी थी।

    इसलिए एक गहरी सांस लेते हुए एक फैसला लेकर उसने कहा, “ठीक है। मैं आपसे ये समझौते की शादी करने को तैयार हूँ। लेकिन बदले में मुझे आपके पैसे की कोई ज़रूरत नहीं है।”

    बस फिर श्रुति को और क्या चाहिए था? साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। एक तरह से जो श्रुति ने सोचा था वही हो रहा था।

    वहीं नमन मैरिज ब्यूरो के बाहर खड़ा लगातार हंसता जा रहा है। और ये देख श्रुति का तो मन करता है कि वो नमन को जाकर एक चांटा दे मारे।

    एक नज़र नमन पर डालने के बाद श्रुति ब्यूरो में ही एक कुर्सी पर बैठ जाती है और कबीर गवाह के तौर पर कुछ लोगों को लेने बाहर चला जाता है।

    तभी बाहर खड़ा नमन जल्दी से कबीर की ओर बढ़कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है, “बेटा! मेरे पास एक एडवाइस है तेरे लिए। जो ग़लती मैंने की है, मैं नहीं चाहता कि वो ग़लती तू भी दोहराए। देख मैं तुझे समझा रहा हूँ, अभी भी वक़्त है तेरे पास। वो सनकी अंदर ही बैठी है उसे वहीं बैठे रहने दे। और तू चुपचाप यहाँ से निकल ले!!”

    इस पर कबीर अचानक से उसका हाथ अपने कंधे से हटाते हुए कहता है, “सॉरी मिस्टर मल्होत्रा, लेकिन हर कोई आपकी तरह नहीं होता, और मैं तो बिलकुल भी नहीं हूँ। मैं करूँगा उससे शादी और ज़रूर करूँगा।”

    ऐसा कहते हुए कबीर कुछ लोगों को अपने साथ लेकर श्रुति के पास पहुँचता है। और श्रुति के साथ कोर्ट मैरिज कर लेता है।

    ये सब देख नमन का मुँह बंद हो जाता है और उसकी हंसी भी थम जाती है।

    श्रुति, कबीर के सिग्नेचर होते ही बेहद तेज़ क़दमों के साथ कबीर का हाथ पकड़ कर बाहर आती है और नमन के सामने खड़े होकर बड़े गुरुर के साथ कहती है, "लो मुझे मेरा दूल्हा भी मिल गया, और हमारी शादी भी हो गयी! और तूने क्या कहा था कि मुझसे कोई भी शादी नहीं करेगा… लेकिन सबूत तुम्हारे सामने है… अब बोलो जो बोलना है?"

    श्रुति के इतना कहते ही नमन उसे गुस्से से घूरते हुए बेहद अकड़ के साथ बोला, "तुम्हें क्या लगता है तुम इस तरह से मेरे सामने झूठ बोलकर मुझे बेवकूफ बनाओगी? मुझे पता है तुमने इसे बस झूठी शादी करने का नाटक किया है और कुछ नहीं क्योंकि असल में तुमसे कोई भी शादी नहीं करेगा।"

    इतना बोलते हुए नमन वहाँ से निकल जाता है।

    श्रुति कबीर के साथ खड़ी नमन को जाते देखती है। नमन पार्किंग से गाड़ी निकालकर कोर्ट के गेट पर रफ़्तार धीमी करता है और अपनी खिड़की का शीशा नीचे करता है।

    श्रुति और कबीर उसकी तरफ़ देख रहे होते हैं, कि तभी नमन खिड़की से अपना एक हाथ निकाल कर उन्हें बीच की ऊँगली का इशारा करते हुए वहाँ से अपनी गाड़ी भगा लेता है।

    वहीं कोर्ट में कबीर भी श्रुति को लेकर असमंजस की हालत में है। वह मन ही मन सोचता है, “मैंने इस लड़की से शादी तो कर ली है पर अब इसे कहाँ लेकर जाऊँ?

    कबीर मन में सोच रहा होता है, ‘अरे यार अब मैं क्या करूँ? मैंने जोश में बैठे-बिठाये ये मुसीबत तो मोल ले ली, लेकिन अब इनको लेकर मैं जाऊँ कहाँ? और घर पर मैं छोटी को क्या जवाब दूंगा? मैंने ऐसे बिना बताए यूँ शादी कर ली है, ये सुनकर आखिर छोटी क्या सोचेगी? सुबह उसका भाई अकेला गया था, और दोपहर तक डबल? चलो वो भी बात मैं संभाल लेता, लेकिन अपनी भाभी को इस हालत में देखकर तो उसका हार्ट फेल ही हो जाएगा। कबीर, first impression is the last impression और तू तो छोटी का नेचर तो जानता ही है। ये सब देखने के बाद तो वो सारी ज़िन्दगी तुझे ताने सुनाएगी। नहीं, मैं श्रुति जी को इस हालत में घर तो लेकर नहीं जा सकता। मुझे किसी भी तरह कल सुबह तक का इंतज़ार करना पड़ेगा ताकि श्रुति थोड़ी नार्मल हो जाए।’

    तभी श्रुति कबीर को उसके ख्यालों से बाहर लाती है और कहती है, “हम यहाँ क्यों खड़े हैं? चलो अब क्या मेरी विदाई का इंतज़ार कर रहे हो? चलो यहाँ से! मुझे धूप लग रही है।”

    “हाँ हाँ, रुको मैं गाड़ी लेकर आता हूँ।” कबीर श्रुति से कहता है।

    “ठीक है, जल्दी आना।” श्रुति उसे जवाब देती है क्योंकि वह अभी भी थोड़े नशे में ही है।

    कबीर पार्किंग से अपनी गाड़ी लेने जाता है, और यह सोचता है, 'वो श्रुति को इस वक़्त कहाँ लेकर जाए?!'

    “श्रुति चलिए, मैं गाड़ी ले आया हूँ।”

    “गाड़ी? हम कहाँ जा रहे हैं?” श्रुति धूप के कारण हाथ से अपना चेहरा ढकते हुए बोली।

    “श्रुति जी, आप भूल गईं हमारी अभी-अभी शादी हुई है।”

    “अरे हाँ हाँ !! याद आया… याद आया ! तो कहाँ लेके जा रहे हो तुम मुझे? हनीमून पे?”

    “हनीमून? अभी तो हमारी फर्स्ट नाइट तक नहीं हुई और आपको हनीमून पर जाना है?!”

    “अच्छा सच में?! ठीक है तो वो भी मना लेते हैं, चलो!” श्रुति नशे की हालत में बस उल्टा-सीधा जो मन में आ रहा है बड़बड़ाते जा रही है।

    कबीर भी श्रुति को जल्दी से सहारा देकर गाड़ी में बिठा देता है और दूसरी तरफ़ से आकर ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है। वहीं कबीर गाड़ी स्टार्ट करते हुए किसी को फ़ोन मिलाता है।

    सिर्फ़ दो घंटियों के बाद ही एक प्यारी सी मधुर आवाज़ ने जवाब दिया। “गुड आफ्टरनून, दिस इज़ होटल ग्रीन वैली। हाउ मे आई हेल्प यू?”

    “जी, गुड आफ्टरनून, माय सेल्फ मिस्टर कबीर रायचंद। मैं आपके होटल में एक नाइट स्टे बुक करना चाहता हूँ। क्या आपके पास इस समय कोई रूम अवेलेबल होगा?”

    “ऑफ़ कोर्स सर। लेट मी चेक, क्या आप बता सकते हैं आपको कितने रूम चाहिए?” होटल रिसेप्शनिस्ट ने कबीर से पूछा।

    “जी एक, नहीं दो! नहीं…अरे यार क्या करूँ क्या बोलू?!” कबीर हड़बड़ाहट में बोल पड़ता है।

    “सर आप अपने लिए रूम बुक कर रहे हैं या आपके साथ कोई और भी है?”

    “हाँ है, मेरी वाइफ!”

    रिसेप्शनिस्ट एक पल के लिए थोड़ी कन्फ्यूज्ड हो जाती है और फिर उत्सुकता के साथ बोली, “अरे सर, फिर तो आपको ये जानकार ख़ुशी होगी कि इन दिनों हमारे हनीमून सूइट में ऑफर चल रहा है। आप बस इतना बताइये आपको रूम कितने दिनों के लिए चाहिए।”

    “अरे दिनों के लिए नहीं घंटों के लिए चाहिए।” कबीर ने बिना कुछ सोचे जवाब दिया।

    “एक्सक्यूज़ मी? सॉरी सर मैं आपकी बात का मतलब नहीं समझी।” रिसेप्शनिस्ट ने हैरानी से पूछा।

    “अरे मुझे रूम सिर्फ़ सुबह तक के लिए चाहिए।”

    रिसेप्शनिस्ट कबीर के इस अटपटे जवाब को सुनकर कुछ सोचने लगी और फिर बोली, “सॉरी सर, लेकिन मैं बताना चाहूंगी कि हमारा होटल ग्रीन वैली नोएडा का सबसे रेप्युटेटेड फाइव-स्टार होटल माना जाता है और यहाँ उस तरह की कोई फैसिलिटी नहीं मिलती। आपको रूम वैलिड आई.डी. के साथ ही बुक करना पड़ेगा और वो भी कम से कम एक दिन यानी 24 घंटों के लिए।”

    कबीर को रिसेप्शनिस्ट की ग़लतफ़हमी सुनकर काफी बुरा लगा और वो बोला, “अरे मैडम आप ग़लत समझ रही हैं, वो मेरी वाइफ़ ही है लेकिन…अरे अब मैं कैसे समझाऊँ? मैं आपको पेमेंट पूरे 24 घंटों के लिए ही करूँगा। आप बस ये बताइये कि क्या इस वक़्त कोई रूम अवेलेबल है जिसमें हम तुरंत चेक इन कर सकें?”

    “सर, इतने शॉर्ट नोटिस पर हम आपको हनीमून सूइट ही ऑफर कर सकते हैं। दैट्स द ओनली रूम रेडी।”

    “ठीक है, हनीमून सूइट इट इज़।” कबीर ने जवाब दिया।

    “ओके सर आप पेमेंट ऑनलाइन करेंगे या कैश?” रिसेप्शनिस्ट ने पूछा।

    “मैम मैं पेमेंट होटल आकर ही करूँगा।” कबीर ने कहा।

    “ओके सर,” ऐसा कहते हुए रिसेप्शनिस्ट ने फ़ोन काट दिया और कबीर भी कुछ ही देर में होटल पहुँच गया।

    रिसेप्शन पर सारी फोर्मलिटीज़ पूरी करने के बाद कबीर और श्रुति सीधा हनीमून सूइट में चले जाते हैं।

    हालांकि उसने कभी भी काम के बाहर किसी होटल में स्टे नहीं किया था। और एक हनीमून सूइट में तो बिल्कुल भी नहीं। वो कमरा इतना सुन्दर सजा हुआ होता है कि कबीर एक मिनट के लिए बस उसे निहारता ही रह जाता है।


    क्रमशः


    मेरी किसी भी धमकी का कोई असर नहीं होता😒 मतलब हमने सिर्फ 10 कमेंट करने के लिए बोला था लास्ट पार्ट पर जो कि कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन आप लोग बिल्कुल भी इंटरेस्टेड नहीं लगते हो और स्टोरी का पार्ट आज 1 दिन बाद दे रहे हैं लेकिन फिर भी आप लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता है बस इसीलिए स्टोरी कंटिन्यू करने का दिल नहीं करता है। जो भी नई स्टोरी शुरू करो उसे पर ऐसे ही ठंडा रिस्पांस होता है आप लोगों का जो कंटिन्यू है बस आप लोग उसे ही पढ़ना चाहते हैं ऐसा क्यों? I am hurt🥲🥺🙂 कोई भी स्टोरी हो उसे लिखने सोचने में मेहनत लगती है और इसके अलावा एडिटिंग भी। उसके बाद ऐसा रिस्पांस इसलिए हमें नहीं पता अगला भाग कब आएगा?

  • 18. Bound By Destiny - Chapter 18

    Words: 1778

    Estimated Reading Time: 11 min

    रिसेप्शन पर सारी फॉर्मैलिटीज़ पूरी करने के बाद कबीर और श्रुति सीधे हनीमून सूइट में चले गए। हालांकि उसने कभी भी काम के बाहर किसी होटल में स्टे नहीं किया था, और एक हनीमून सूइट में तो बिल्कुल भी नहीं। वह कमरा इतना सुंदर सजा हुआ था कि कबीर एक मिनट के लिए बस उसे निहारता ही रह गया।

    कबीर की पहली नज़र कमरे में मौजूद किंग-साइज़ बेड पर गई, जिसकी सफ़ेद चादरों को गुलाब के फूलों से सजाया हुआ था। वहाँ रखे टेबल पर एक फैंसी टोकरी में शैम्पेन की एक बोतल भी थी और साथ में उन्हें शादी की बधाई देते हुए एक कार्ड। मिनी-फ़्रिज में चॉकलेट्स और स्ट्रॉबेरीज़ थे और बाथरूम में कई तरह की सेंटेड कैंडल्स थीं।

    कबीर उस कमरे को पूरा देखने के बाद आख़िरकार जब बाथरूम से बाहर निकला, तो उसने देखा कि श्रुति की आँख लग गई थी। वह अपनी हील्स में ही बेड पर टेढ़ी लेटी सो गई थी।

    कबीर एक पल वहीं खड़ा श्रुति को देखता रहा और फिर अनजाने में मुस्कुराते हुए बिस्तर तक गया। श्रुति को बिना डिस्टर्ब किये कबीर आराम से उसकी हील्स उतार दीं और उसे कंबल से कवर करने लगा।

    कबीर जैसे ही कंबल लेकर श्रुति के चेहरे के करीब पहुँचा, उसने देखा कि श्रुति की आँखें हलकी सी खुली हुई थीं। यह देखकर वह कुछ कहने के लिए अपना मुँह खोलता ही था कि श्रुति झट से उसका कॉलर एक हाथ से खींचकर उसे बिस्तर पर लेटा दिया और दूसरे हाथ से लाइट बंद कर दी।

    ***

    अगली सुबह;

    कबीर को अपनी कमर पर कुछ महसूस हुआ जिससे उसकी नींद खुल गई। थोड़ा होश में आने के बाद उसे एहसास हुआ कि कोई उसे लात मार रहा है और अगले ही पल एक और लात के साथ वह बेड से नीचे गिर गया।

    “आह!”

    “Who the hell are you? तुम मेरे कमरे में क्या कर रहे हो?” श्रुति ज़ोर-ज़ोर से चीख रही थी। उसका नशा तो ख़त्म हो चुका था, लेकिन उसके सिर में अभी भी तेज दर्द हो रहा था।

    “अरे मैं हूँ श्रुति, कबीर!” कबीर अपनी कमर पकड़े फ़र्श से खड़ा हुआ और चौंक कर श्रुति को जवाब दिया। खड़े होते ही उसे एहसास हुआ कि वह इस समय बिना शर्ट के, केवल अपनी पैंट पहने खड़ा था।

    “कबीर? कौन कबीर?” श्रुति ने चौंकते हुए जवाब दिया।

    “कबीर रायचंद! तुम्हारा पति और कौन?” कबीर अपनी शर्ट ढूँढ़ते हुए कहा।

    “ओह्ह हेलो हो कौन तुम? और कौन सा पति? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ सोने की? सच-सच बता दो क्या किया है तुमने मेरे साथ!” श्रुति ने गुस्से में कहा।

    “मैंने?” कबीर श्रुति की बात दोहराया। “मैंने क्या किया? यह सवाल तो मुझे आपसे पूछना चाहिए। अपने पति को ऐसे कौन सुबह-सुबह लात मारकर बेड से नीचे गिराता है?”

    “मेरे ही बेड पर कोई अनजान आदमी मेरे साथ सो रहा है, यह देखकर मैं लात ना मारूँ तो क्या करूँ? उसे गले से लगा लूँ?” श्रुति ने बड़ी ही ऊँची आवाज़ में कहा।

    कबीर अपने माथे पर हाथ रखता है।

    “अरे श्रुति जी, आपको कुछ याद नहीं? इस बात को तो एक पूरा दिन भी नहीं हुआ है और आप सब भूल भी गईं? आख़िर कितना पी रखा था आपने कल?”

    “यही, कुछ दो बोतल?” श्रुति कुछ सोचते हुए बोली।

    “हाँ, यह ज़रूर याद है आपको।” कबीर अपना सिर हिलाते हुए बोला। “पर आप यह भूल गईं कि कल आपने मुझसे शादी भी की है। और मैं आपका पति हूँ, कबीर रायचंद।”

    श्रुति की आँखें एकदम से बड़ी हो गईं। “व्हॉट? क्या बकवास है यह? तुम्हें क्या लगता है तुम कुछ भी बोलोगे और मैं मान लूँगी? चुपचाप बता दो सच क्या है, नहीं तो तुम जानते नहीं हो मैं कौन हूँ।”

    “मैं जानता हूँ आप कौन हैं। आप नमन मल्होत्रा की एक्स-वाइफ़ श्रुति हैं, जिन्होंने कल अपने डाइवोर्स के सीधे बाद, मुझसे, यानी कबीर रायचंद, से शादी कर ली। यह कोई बकवास नहीं है। यह सब सच है। अगर यकीन ना हो तो ये रहे कोर्ट के कुछ कागज़ और हमारा मैरिज सर्टिफिकेट।”

    ऐसा कहते हुए कबीर ने श्रुति को पेपर और सर्टिफिकेट दिखाते हुए उसे कल की सारी घटनाएँ याद दिलाईं और श्रुति अपना सिर पकड़े बस उसे सुनती रही।

    ****

    दूसरी तरफ़,

    इसी दौरान नमन के घर में;

    “ऐसे कैसे बहू घर छोड़कर जा सकती है? नमन, तुम सच-सच बताओ, चक्कर क्या है? तुमने उसकी दोस्त के घर पता किया?” मिसेज़ मल्होत्रा ने नमन से पूछा।

    “हाँ माँ, मैंने उसके सारे दोस्तों को फ़ोन करके पूछ लिया है लेकिन वह कहीं नहीं है!” नमन ने जवाब दिया।

    “फिर तो हमारे पास बस एक ही चारा है।” मिसेज़ मल्होत्रा बोली।

    “क्या?” नमन ने थोड़ा सतर्क होकर पूछा।

    “मिसिंग कंप्लेंट और क्या!” मिसेज़ मल्होत्रा ने जवाब दिया।

    नमन की माँ का यह आईडिया सुनकर मिस्टर मल्होत्रा अचानक से चीखे, “तुम पागल हो गई हो क्या? अगर हमने ऐसा किया तो पुलिस सबसे पहले हम पर शक करेगी और फिर यह बात तुरंत सिन्हा परिवार तक पहुँच जाएगी। और फिर तुम जानती हो ना क्या होगा?”

    “डैड सही कह रहे हैं माँ, हम ऐसा कुछ नहीं कर सकते।” नमन भी चिंता में बोला।

    “लेकिन फिर क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें?” मिसेज़ मल्होत्रा ने कहा।

    “हाँ!!” मिस्टर मल्होत्रा बोले। “फ़िलहाल हमारे पास और कोई चारा नहीं है। और श्रुति कोई छोटी बच्ची तो है नहीं! ज़रूर वह कहीं किसी दोस्त के साथ ही होगी। वैसे भी उसकी हरकतों से तुम अच्छी तरह से वाक़िफ़ हो। और तो और, मुझे अपने साहबज़ादे पर भी भरोसा नहीं है। ज़रूर इसके और श्रुति के बीच कुछ ना कुछ तो हुआ है जिसकी वजह से वह अचानक से बिना बताए कहीं चली गई।”

    “इसमें मेरी क्या ग़लती है डैड! आप बस मुझ पर ही शक करते रहिये!” नमन अब थोड़ा घबराने लगा।

    “शक?! मुझे तुझ पर शक नहीं, यकीन है कि इसके पीछे तेरा ही हाथ है। तुझे कुछ दिन और सब्र करने में तकलीफ़ हो रही थी ना? सिर्फ़ कुछ और दिनों की बात थी, लेकिन तूने सारे बने बनाये खेल पर पानी फेर दिया। खैर, अब यह सोचो कि आगे क्या करना है। बस कोशिश करो कि यह बात सिन्हा परिवार तक किसी भी हाल में नहीं पहुँचनी चाहिए, समझे?!” नमन के पापा ने समझाते हुए कहा।

    “जी डैड!!”, नमन ने जवाब दिया।

    “और कितनी बार कहा है मुझे डैड मत पुकारा करो, मुझे ऐसा फील होता है जैसे मैं मर चुका हूँ।”

    “ओके डैड!!”

    “फिर डैड!”, मिस्टर मल्होत्रा ने गुस्सा जताते हुए कहा।

    “ओह्ह सॉरी, पापा!”, नमन ने सॉरी कहते हुए कहा।


    *****

    इधर कबीर और श्रुति का झगड़ा एक अलग ही मोड़ पर आ चुका था।

    “ठीक है, लेकिन कल जो कुछ भी हुआ वह सिर्फ़ एक ग़लती थी। शायद नशे की हालत में मैंने यह कदम उठा लिया था, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारे साथ सच में रहने वाली हूँ। हमारे रास्ते अलग हैं और तुम्हारे लिए भी बेहतर यही होगा कि जो कुछ भी हमारे बीच हुआ उसे भूल जाओ।”

    “कमाल करती हैं आप भी श्रुति जी। आपसे शादी की है मैंने, ऐसे कैसे भूल जाऊँ?” कबीर ने कहा।

    “तुम पागल तो नहीं हो गए हो? एक लड़की तुमसे खुद कह रही है कि इस बात को भूल जाओ और तुम ऐसे पज़ेसिव हो रहे हो जैसे मैंने तुम्हारी इज़्ज़त लूट ली हो?” श्रुति ने आवाज़ ऊँची करते हुए कहा।

    “वह तो लूट ही ली है आपने।” कबीर बड़बड़ाया, लेकिन श्रुति के कानों तक उसकी धीमी आवाज़ नहीं पहुँची।

    वहीं श्रुति ने अपनी बात जारी रखी, “तुम कुछ भी करो और जल्द से जल्द मुझे तलाक़ दे दो। तुम्हें जो भी हर्जाना चाहिए, मैं देने के लिए तैयार हूँ।”

    “पहली बात, मैंने आपसे कल भी कहा था कि मैं आपसे कोई पैसा नहीं लूँगा। मैंने शादी आपकी मदद करने के लिए की थी। आपके उस दो कौड़ी के हस्बैंड की तरह आपका बैंक बैलेंस देखकर नहीं। और रही बात तलाक़ की, तो यह कोई विदेश नहीं है। यहाँ कम से कम शादी के एक साल बाद ही तलाक़ मिलना मुमकिन है।”

    कबीर की यह बात सुनकर श्रुति एक बार फिर अपना सिर पकड़कर बैठ गई।

    “व्हॉटएवर!” श्रुति कुछ देर बाद उठी और अपनी हील्स पहनकर कमरे के दरवाज़े की ओर बढ़ने लगी। “एक साल बाद आ जाना तलाक़ के कागज़ लेकर। साइन कर दूँगी मैं। उससे पहले मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना।” ऐसा कहते हुए श्रुति अपना पर्स उठाती है और उस हनीमून सूइट से बाहर चली जाती है।

    “अरे हेलो कहाँ जा रही हो, रुको!” कबीर हड़बड़ाहट में अपनी शर्ट और जूते पहनते हुए श्रुति को आवाज़ लगाता है।

    जब तक कबीर कमरे से बाहर श्रुति का पीछा करता है, श्रुति उस होटल से भी बाहर निकल चुकी होती है। कबीर भागकर सड़क पर उसके पास पहुँचता है। वह श्रुति का हाथ पकड़कर उसे रोकता है। श्रुति गुस्से से कबीर की तरफ़ मुड़कर अपना हाथ छुड़ाती है।

    “सॉरी।” कबीर अपने हाथ को एक पल के लिए हवा में खड़ा करता है और फिर कहता है, “तुम ऐसे कहाँ जा रही हो इतना रायता फैलाकर?”

    “मैंने कहा ना जब तलाक़ होगा तो ले आना पेपर्स, साइन कर दूँगी मैं। अब क्या चाहते हो तुम, एक साल तक मैं तुम्हारी पत्नी बनकर रहूँ?!” श्रुति ने कबीर से ताना मारते हुए कहा।

    “नहीं, लेकिन मेरी बात तो सुनो…” कबीर ने कुछ कहना चाहा।

    “मुझे कुछ नहीं सुनना! अपना रास्ता नापो, और एक साल से पहले मुझे दिख मत जाना। गेट लॉस्ट।” श्रुति ने एक सख्त आवाज़ में कहा और अपने रास्ते जाने लगी।

    कबीर भी अब हार मान चुका है। दो पल वहाँ रुककर श्रुति को जाते हुए देखने के बाद वह भी उल्टी दिशा में वापिस होटल की तरफ़ अपना सामान लेने चला जाता है।

    अभी कबीर आगे बढ़ते हुए कुछ कदम चला ही होगा कि अचानक से उसे किसी गाड़ी के ब्रेक की ज़ोर से आवाज़ सुनाई देती है। वह मुड़ा तो उसने देखा कि कुछ लोग चीखते हुए सड़क के बीचो-बीच एक गाड़ी के आगे इकट्ठा हो रहे हैं। उस हलचल की वजह जानने के लिए कबीर भी उस भीड़ की तरफ़ बढ़ता है।

    और वहीं सड़क के बीच उस दृश्य को देखकर कबीर के होश उड़ जाते हैं और वह एकदम से चिल्ला पड़ता है, “श्रुति!!!”

    ******

    क्या लगता है आप लोगों को, क्यों की है कबीर ने इतनी आसानी से श्रुति से शादी? और क्या वह सच में श्रुति की बात मान गया और एक साल बाद फिर से इन दोनों का तलाक़ होगा? और श्रुति क्यों नहीं मानना चाहती इस शादी को? और अभी क्यों चिल्लाया कबीर ने श्रुति का नाम लेकर? सब पता चलेगा अगले एपिसोड में, तब तक पढ़कर कमेंट करते रहिए।

  • 19. Bound By Destiny - Chapter 19

    Words: 2205

    Estimated Reading Time: 14 min

    अभी कबीर आगे बढ़ते हुए कुछ कदम चला ही होगा कि अचानक उसे किसी गाड़ी के ब्रेक की ज़ोर से आवाज़ सुनाई दी। वह मुड़ा तो उसने देखा कि कुछ लोग चीखते हुए सड़क के बीचो-बीच एक गाड़ी के आगे इक्ट्ठे हो रहे थे। उस हलचल की वजह जानने के लिए कबीर भी उस भीड़ की तरफ़ बढ़ा।

    और वहीं सड़क के बीच उस दृश्य को देखकर कबीर के होश उड़ गए और वह एकदम से चिल्ला पड़ा,

    “श्रुति!!!”

    कबीर दौड़ता हुआ सड़क पर पड़ी श्रुति के पास पहुँचा और उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। तभी उसे कुछ गीला-गीला सा महसूस हुआ। उसने श्रुति की कमर पर हाथ लगाया और देखा कि वहाँ से खून लगातार बहता जा रहा था। कबीर के वहाँ हाथ रखते ही श्रुति कराहने लगी। श्रुति को कमर के साथ-साथ घुटने और हाथ पर भी कई चोटें आई थीं।

    कबीर बेहद फुर्ती के साथ श्रुति को अपनी बाहों में उठाया और अपनी गाड़ी में उसे बिठाकर जितना तेज़ हो सका उसे अस्पताल की तरफ़ दौड़ाने लगा। शायद यह पहली बार होगा कि कबीर इतने रफ़ तरीके से कार को ड्राइव कर रहा था, क्योंकि आज हालात ही कुछ ऐसे थे।

    अस्पताल पहुँचते ही कबीर श्रुति को अपनी बाहों में लिए अंदर की ओर भागा। अस्पताल के गलियारे से गुज़रते हुए कबीर के मुँह से सिर्फ और सिर्फ़ चीखें ही निकल रही थीं।

    “डॉक्टर!!! डॉक्टर!!! डॉक्टर!!!”

    तभी सभी का ध्यान कबीर पर गया जिसकी सफ़ेद शर्ट पूरी तरह से श्रुति के बहते खून से लाल पड़ गई थी जो उसके हाथों में बेहोश पड़ी थी।

    श्रुति को जल्दी से स्ट्रेचर पर लिटाया गया और दो वार्ड बॉयज़ की मदद से कबीर आख़िरकार इमरजेंसी वार्ड की ओर बढ़ गया। उस इमरजेंसी वार्ड में घुसने से पहले एक पल के लिए कबीर को ऐसा लगा जैसे श्रुति को एक सेकंड के लिए होश आ गया हो, लेकिन कबीर इससे पहले कि कोई हरक़त कर पाता, श्रुति दुबारा से बेहोश हो गई।

    वहीं अस्पताल में कबीर के मचाए शोर के कारण जल्द ही इमरजेंसी वार्ड में एक डॉक्टर और उसके कुछ असिस्टेंट ने एंट्री ली।

    “ओह माय गौड, इनकी हालत तो सीरियस है!” अचानक से डॉक्टर वर्मा की नज़र श्रुति के ऊपर पड़ी, “हमें तुरंत इनका ऑपरेशन करना पड़ेगा। अमन इन्हें जल्दी से ऑपरेशन थिएटर ले चलो, और नर्स, इन्हें क्लीन करके एनेस्थीसिया देने की तैयारी करिए।”

    वहीं इधर-उधर नज़रें दौड़ाते हुए डॉक्टर ने आगे पूछा,

    “क्या इनके परिवार से कोई यहाँ मौजूद है?”

    “जी मैं, इनका पति। ये ठीक तो हो जाएंगी ना?” कबीर झट से डॉक्टर की बात सुनकर बोल पड़ा।

    “अभी हम कुछ नहीं कह सकते। आप जल्दी करिये, यह अमाउंट काउंटर पर जमा कर दीजिए और ऑपरेशन से पहले कुछ फॉर्मलिटीज़ के पेपर हैं, उन्हें भी काउंटर पर साइन कर दीजिये।”

    कबीर ने बिना ज़्यादा सोचे-समझे काउंटर पर पैसे जमा कराए और तुरंत ही सब पेपर्स पर साइन कर दिए।

    आज उसे अपने साइन की असली क़ीमत का एहसास हुआ जिनकी वजह से वह किसी की ज़िन्दगी बचा रहा था। जैसे-जैसे वह पेपर पर साइन करता गया, वैसे-वैसे उसे श्रुति के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होता गया।

    कबीर को बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था कि यह दिन एक ऐसा मोड़ ले लेगा। उसकी आँखों के सामने बार-बार श्रुति का चेहरा आ रहा था जो ज़्यादा खून बह जाने के कारण अस्पताल आने तक इतना सफ़ेद पड़ चुका था, मानो किसी ने उसके शरीर से सारा खून ही निकाल लिया हो।

    इसलिए श्रुति को अलग से खून भी चढ़ाना पड़ा।

    वहीं डॉक्टर श्रुति को ऑपरेशन थिएटर में ले जाते हैं और वहीं कबीर ऑपरेशन थिएटर के बाहर खड़ा अपने ख्यालों में खोया हुआ होता है। वह बार-बार गलियारे में यहाँ से वहाँ टहलता जा रहा है। उसके बाल बुरी तरह से बिखरे हुए हैं, माथे पर सलवटें हैं और पूरा शरीर पसीने से भीग चुका है।

    तक़रीबन दो घंटे के बाद डॉक्टर वर्मा ऑपरेशन थिएटर से बाहर आते हैं।

    कबीर लगभग भागते हुए डॉक्टर के पास जाता है, और पूछता है,

    “डॉक्टर साहब! मेरी वाइफ?!”

    “मिस्टर कबीर, आपकी पत्नी अब ख़तरे से बाहर है। उन्हें कुछ देर में होश भी आ जायेगा!”

    डॉक्टर की बात सुनते ही कबीर को थोड़ा चैन मिलता है और वह एक राहत भरी साँस लेता है।

    “थैंक यू डॉक्टर, थैंक यू सो मच! क्या मैं अंदर जाकर उसे देख सकता हूँ?”

    “जी, फ़िलहाल अभी नहीं… मरीज़ अभी बेहोशी की हालत में है और उन्हें आराम की सख्त ज़रूरत है, एक बार उन्हें ICU में शिफ़्ट हो जाने दीजिए, तब आप उनसे मिल सकते हैं।”

    “जी! ठीक है।” इतना कहकर कबीर श्रुति के होश में आने का इंतज़ार करने लगता है।

    तब तक श्रुति को ऑपरेशन थिएटर से ICU में शिफ़्ट कर दिया जाता है, वहीं कबीर की पूरी शाम बस उस हॉस्पिटल के गलियारे में चक्कर लगाते हुए ही निकल जाती है और ना जाने कब रात हो जाती है। और कबीर ICU के बाहर बेंच पर बैठे-बैठे ही सो जाता है।

    *****

    अगली सुबह, ICU के बाहर एक नर्स आकर कबीर को नींद से जगाती है,

    “सर! आपकी वाइफ को कुछ देर पहले होश आ चुका है, वह अभी पहले से बेहतर है, आप उनसे मिल सकते हैं।”

    इतना सुनते ही कबीर नर्स को थैंक यू कहता है और बेंच से उठकर श्रुति के कमरे में जाता है जहाँ वह अभी आँखें बंद किए सो रही होती है।

    तभी दरवाज़े से एक नर्स दाख़िल होती है। उसके हाथ में एक ट्राली है जिस पर कुछ दवाइयाँ और बाकी की चीज़ें रखी हुई हैं। उस ट्राली की आवाज़ से श्रुति होश में आ जाती है और कबीर देखता है कि वह धीरे से अपनी आँखें खोल रही है। श्रुति को कुछ देर सब कुछ धुंधला सा दिखाई देता है जिस वजह से उसके चेहरे के हाव-भाव थोड़े कन्फ्यूज्ड नज़र आ रहे होते हैं।

    “मैं… कहाँ… मुझे उठ… उठना है।” श्रुति बड़ी मुश्किल से ये शब्द अपने मुँह से निकालती है और बिस्तर पर हिलने की कोशिश करने लगती है।

    तभी नर्स फटाफट उसके पास जाती है और उसके माथे पर अपना हाथ रखकर कहती है,

    “नहीं नहीं, अभी चौबीस घंटों तक आप बिस्तर से नहीं उठ सकती। आप सिर्फ़ आराम कीजिए।”

    फिर वह नर्स ट्रॉली से एक इंजेक्शन तैयार करने लगी और कबीर की तरफ़ मुड़ी।

    “आप मरीज़ के पति हैं?” नर्स ने कबीर को देखकर बोला।

    “जी!” कबीर ने जवाब दिया।

    “इन्हें आज सुबह ही होश आ गया था। डॉक्टर दिन में दो बार इन्हें चेक करने आएंगे। 24 घंटे बाद ये थोड़ी मदद के साथ चल तो पाएंगी, लेकिन इन्हें ज़्यादा से ज़्यादा आराम की सख़्त ज़रूरत है। इनके खाने-पीने का ध्यान अस्पताल ही रखेगा, आप इन्हें एक हफ़्ते तक बाहर का कुछ ना खिलाएँ। लेकिन आप चाहे तो दो-तीन दिनों के बाद कुछ सादा बिना मिर्चों वाला खाना इन्हें दे सकते हैं।”

    नर्स को कबीर से बात करते देख, श्रुति की नज़र कबीर पर पड़ती है।

    “तुम… तुम यहाँ… क्या…?”

    नर्स इंजेक्शन को तैयार करके श्रुति के बिस्तर के पास जाती है।

    “अरे शुक्र मनाओ, आपके पति ठीक वक़्त पर आपको यहाँ ले आए। बहुत लकी हैं आप। अगर आपको आने में ज़रा सी भी देर हो जाती तो आपकी जान को ख़तरा हो सकता था। ये कल से बाहर ही आपका होश में आने का इंतज़ार कर रहे हैं। बेचारे रात को सोए भी बेंच पर। आप अब कमरे में रह सकते हैं, भाई साहब। अगर कोई भी परेशानी हो तो आप यह बेल प्रेस कर दीजिएगा।”

    नर्स बेल की ओर इशारा करते हुए कहती है, और फिर श्रुति के हाथ पर लगे DRIP पर इंजेक्शन देने के बाद नर्स इंस्ट्रक्शन्स की एक लंबी लिस्ट कबीर को देती है और ट्राली लेकर कमरे से बाहर चली जाती है। फिर कबीर जब श्रुति की तरफ़ मुड़ता है तो श्रुति कबीर को ही देख रही होती है।

    “थैंक… थैंक यू।” श्रुति अपने टूटे-फूटे अंदाज़ में कबीर से कहती है।

    कबीर यह सुनकर मुस्कुरा देता है और उसके बिस्तर के थोड़ा करीब जाता है।

    “मेन्शन नॉट, वैसे तुम्हें आराम की ज़रूरत है, तुम ज़्यादा बात मत करो।”

    श्रुति अपना मुँह यह सुनकर फेर लेती है।

    “मैं बिलकुल ठीक हूँ, अब तुम जा सकते हो।”

    कबीर श्रुति की इस बात को नज़रअंदाज़ करता है और बदले में उससे पूछता है,

    “क्या तुम अपने घर में किसी को इस बारे में बताना नहीं चाहती?”

    हालाँकि श्रुति अभी भी अपनी कमर के पास ऑपरेशन की जगह पर दर्द महसूस कर सकती है, उस हादसे ने उसे मानसिक तौर पर भी बेहद चोटिल कर दिया है।

    श्रुति को अपने परिवार वालों की याद तो बहुत सता रही है, लेकिन वह यह भी जानती है कि उन्हें यहाँ अस्पताल में बुलाकर पिछले 48 घंटों में जो कुछ भी हुआ था, वह सब समझाना कोई आसान काम नहीं होगा। खासतौर पर इस हालात में।

    ऐसे कठिन समय पर जहाँ उसके परिवार या दोस्तों को उसके साथ होना चाहिए, वहाँ आज एक अजनबी उसके साथ है। कबीर की बात सुनते ही श्रुति के मन में ऐसी कई बातें आती हैं और उसकी आँख से एक आँसू छलकते हुए उसके गालों पर से बह जाता है।

    कबीर के सामने भी इस वक़्त श्रुति का एक अलग रूप नज़र आ रहा है। बेशक वह श्रुति को बस कुछ चंद घंटों के लिए ही जान पाया था, उसके जैसी एक मज़बूत और हिम्मत से भरपूर लड़की की आँखों में आँसू देखकर, उसके दिल में भी श्रुति के लिए सहानुभूति पैदा हो जाती है।

    यह देख कबीर से रहा नहीं गया। उसने श्रुति के करीब आते हुए उससे कहा,

    “तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है श्रुति। फ़िलहाल मैं तुम्हारे साथ यहाँ हूँ और तुम्हारा ख्याल रखना इस वक़्त मेरी ज़िम्मेदारी है।” ऐसा कहकर कबीर अपना हाथ श्रुति के हाथ पर रख देता है और उनकी आँखें एक-दूसरे से जा मिलती हैं मानो बिना शब्दों के ही वे कुछ बातें कर गए हों।

    “क्या तुम मुझे एक नंबर मिलाकर दे सकते हो? मेरी दोस्त कनिका के नाम से एक नंबर मेरे फ़ोन में सेव्ड है।” कुछ देर बाद श्रुति ने धीरे से कबीर से कहा।

    कबीर अपना सिर हाँ में हिला देता है और श्रुति का फ़ोन ले आता है। कनिका को फ़ोन मिलाकर कबीर श्रुति के फ़ोन को उसके कान के पास रख देता है।

    “हेलो कनिका?” हालाँकि श्रुति अब ख़तरे से बाहर है, लेकिन उसकी आवाज़ से कोई भी यह बता सकता है कि उसे रिकवर होने में काफी टाइम लगेगा।

    “ओह माय गॉड, श्रुति?! आर यू ओके? कहाँ हो तुम?” कनिका की आवाज़ में राहत और चिंता दोनों भावनाएँ झलक रही होती हैं।

    “मैं सिटी हॉस्पिटल में हूँ, कनिका।” श्रुति से ज़्यादा कुछ बोला नहीं जा रहा है।

    “व्हॉट? क्या हुआ तुझे? मैं अभी के अभी तुम्हारे पास आ रही हूँ श्रुति, don’t worry!” कनिका ने कहा।

    “और प्लीज घर पर अभी किसी को कुछ मत बताना।” श्रुति ने धीरे से कहा।

    कनिका ने इस बात पर गौर किया।

    “ठीक है। तुम ज़्यादा चिंता मत करो। मैं वहीं आ रही हूँ।”

    ऐसा कहते हुए कनिका ने फ़ोन रख दिया।

    फ़ोन रखते ही श्रुति ने कबीर की तरफ़ देखा और बोली,

    “थैंक्स!”

    श्रुति के ऐसा कहते ही कबीर भी बेहद प्यार के साथ श्रुति के पास उसके बिस्तर पर बैठ गया,

    “एक पति और पत्नी के बीच थैंक्स-वैंक्स कुछ नहीं होता।” कबीर के चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह श्रुति के साथ मज़ाक कर रहा हो।

    लेकिन श्रुति मज़ाक के मूड में बिलकुल नहीं है। इसलिए उसने कबीर को जवाब देते हुए कहा,

    “मिस्टर रायचंद! तुम्हें पता है ना कि अब तुम किसी भी वक़्त यहाँ से जा सकते हो? नर्स और डॉक्टर हैं यहाँ और फिर मेरी दोस्त कनिका भी कुछ देर में आ ही जाएगी।”

    कबीर ने भी श्रुति की बात का जवाब देते हुए बड़े ही प्यार से कहा,

    “माना कि मैं तुम्हारा पति सिर्फ़ कुछ कागज़ों पर ही हूँ, लेकिन रिश्ते तो दिल से जुड़ते हैं। और मेरा दिल यह नहीं चाहता कि मैं तुम्हें इस हालत में यहाँ छोड़कर चला जाऊँ। वैसे भी उस नर्स से अपनी तारीफ़ सुनने का कुछ अलग ही मज़ा है।”

    श्रुति कबीर की बात सुनकर हल्के से हँस पड़ी।

    कबीर ने भी श्रुति को इतने समय बाद हँसते देखकर एक राहत की साँस ली।

    तभी श्रुति का चेहरा एकदम से गंभीर हो गया जैसे उसे कुछ याद आ गया हो। उसने कबीर से नज़रें मिलायीं और एक सवाल पूछा जो उसे काफी वक़्त से सता रहा था।

    “वैसे एक बात बताओ। तुमने आखिर मुझसे शादी क्यों की? तुम इतने बेवक़ूफ़ तो हो नहीं कि मेरे एक ही बार कहने पर तुम मान गए और तुमने मेरे पैसों को भी लेने से इंकार कर दिया। ज़रूर कोई तो वजह होगी जो तुमने मुझसे यूँ ही शादी कर ली? अब जो तुम इतना पति-पति कर ही रहे हो, मैं जानना चाहती हूँ क्या सोचकर तुमने यह क़दम उठाया?!”

    श्रुति का यह सवाल सुनकर कबीर के होश उड़ जाते हैं और उसके चेहरे से हँसी अचानक से गायब हो जाती है।

    ******

    तो क्या जवाब देगा कबीर श्रुति को? और क्या वाकई में कबीर के श्रुति से शादी करने के पीछे भी कोई गहरा मक़सद छिपा है? क्या लगता है आप लोगों को? बताइए कमेंट में 🥰👇👇

  • 20. Bound By Destiny - Chapter 20

    Words: 1720

    Estimated Reading Time: 11 min

    “तो बताओ मिस्टर कबीर रायचंद, आखिर क्यों की तुमने मुझसे शादी?” श्रुति ने थोड़ी गंभीरता के साथ पूछा। कबीर श्रुति के सवाल पर खामोश रहा।

    “क्या हुआ? कोई जवाब नहीं सूझ रहा? माना मैं नशे में थी, मुझे नहीं पता था कि मैं क्या कर रही हूँ, लेकिन तुम तो होश में थे! क्यों की तुमने मुझसे शादी? और प्लीज़, मैं झूठ नहीं सुनना चाहती, क्योंकि मैं इतना तो समझती हूँ कि आज की इस दुनिया में कोई भी किसी के लिए कुछ भी बिना मतलब के नहीं करता।”

    तभी अपनी खामोशी तोड़ते हुए कबीर ने जवाब दिया,
    “क्योंकि मैं तुम्हें पसंद करता हूँ।”

    श्रुति कबीर की बात सुनकर एकदम हक्का-बक्का रह गई।

    “पहली नज़र में मुझे तुमसे प्यार हो गया। मैं जानता हूँ तुमको यह झूठ लगेगा, लेकिन जब मैंने तुम्हें पहली बार उस कोर्ट रूम के बाहर देखा, तभी से मेरे दिल में तुम्हारे लिए कुछ अजीब सा होने लगा। यह ख़याल मेरे ज़ेहन को कौंध गया कि काश तुम मेरी पत्नी होती! और जब तुमने अचानक सामने से मुझसे शादी के लिए पूछा, तो मैं तुम्हें ना नहीं कह पाया। मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि उस दिन ऊपर वाले ने मेरी इतनी जल्दी सुन ली।”

    श्रुति एक पल के लिए कबीर की बातों में खो सी गई, लेकिन उसने खुद को अपने ख्यालों में से बाहर झिझोड़ते हुए, धीरे से कहा,
    “कबीर! तुम्हारी यह बातें किसी और लड़की को चाहे प्यारी लग सकती हों, लेकिन मुझ पर इनका कोई असर नहीं होने वाला। और जिसे तुम प्यार समझते हो, वह सिर्फ़ और सिर्फ़ आकर्षण है। पहली नज़र में कभी प्यार नहीं होता, सिर्फ़ आकर्षण होता है! और प्यार-मुहब्बत की बातों पर मुझे ज़रा भी यकीन नहीं है, क्योंकि मैंने जिससे वफ़ा की उम्मीद की थी, उसी से मुझे बेवफ़ाई मिली है।”

    श्रुति की आवाज़ अचानक से बेहद तंजिया लहजे में सुनाई देने लगी थी, जिसकी वजह से कबीर भी थोड़ा हैरान रह गया।

    कबीर श्रुति के इन रूखे शब्दों को सुनकर उसके पास गया और सीधा उसकी आँखों में देखते हुए कहा,
    “तुम्हें चाहे जो लगे श्रुति, लेकिन मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा, चाहे कुछ भी हो जाए। और यह मेरा तुमसे वादा है, वादा। फिर चाहे तुम मुझे अपना पति मानो या फिर ना मानो।”

    श्रुति कुछ बोल पाती, उससे पहले ही एक नर्स कमरे में आ गई और उन दोनों को एक दूसरे के इतने पास देखकर उसने हलका सा मुस्कुरा दिया।
    “मिस्टर हस्बैंड, पेशेंट के घाव की पट्टी बदलने का टाइम हो गया है। कुछ देर के लिए आपको अपनी पत्नी से दूर हटना होगा!”

    नर्स कबीर से कहती है और कबीर उसे श्रुति के बिस्तर के पास जगह दे देता है और पीछे हट जाता है।

    जब कबीर देखता है कि नर्स पट्टी बदलने के लिए श्रुति की शर्ट को उसकी कमर के ऊपर कर रही है, वह ऑकवर्ड महसूस करने लगता है और श्रुति को थोड़ी प्राइवेसी देना ठीक समझता है।

    “मैं बाहर ही हूँ, मुझे बुला लीजियेगा।”

    ऐसा कहते हुए कबीर कमरे से बाहर निकल जाता है।


    वहीं कमरे में नर्स श्रुति की पट्टी बदलते हुए उससे कहती है,
    “वैसे आप बुरा ना माने तो एक बात कहूँ आप से?”

    नर्स ने आदत अनुसार श्रुति से बात करने की कोशिश की।

    “हम्म! क्या? बोलिये!”

    श्रुति ने कहा।

    “आप बहुत लकी हैं।”

    नर्स ने कहा।

    नर्स की बात श्रुति को समझ नहीं आई।
    “मतलब?”

    श्रुति बोली।

    “आपके पति बहुत अच्छे हैं। बहुत कम पति ऐसे होते हैं जो अपनी पत्नी की इस तरह से देखभाल करते हैं। वरना आजकल के मर्द तो…।”

    नर्स ने श्रुति की ओर देखते हुए कहा।

    श्रुति ने सिर्फ़ गौर से नर्स की तरफ़ देखा।

    नर्स ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा,
    “मैं कल रात से ड्यूटी पर हूँ और मैंने ऐसा पहला पति देखा है जो अपनी पत्नी के लिए इतना परेशान हो। आपके पति आधी रात तक आपके पास ही बैठे रहे, इस उम्मीद में कि आपको कोई तकलीफ़ ना हो। वह चाहते तो घर भी जा सकते थे, लेकिन बेचारे बाहर बेंच पर ही सो गए आपके होश में आने के इंतज़ार में।”

    नर्स की ये बातें सुनकर श्रुति बिना अपने चेहरे पर कोई हाव-भाव लाए, बस नर्स को ही एकटक देखती रही।

    इस वक़्त ना चाहते हुए भी श्रुति कबीर के बारे में सोच रही है। उसे भी इस बात का एहसास है कि आजतक उसकी इतनी ज़्यादा परवाह किसी ने नहीं की। ना ही उसके घर परिवार वालों ने और ना ही नमन ने।

    फिलहाल वह नर्स को आगे कोई जवाब नहीं देती। नर्स भी श्रुति के घाव की पट्टी बदलकर और उसे स्पंज बाथ देकर वहाँ कमरे से चली जाती है।


    कमरे के बाहर नर्स कबीर को बेंच पर बैठे देखकर कहती है,
    “अब आप अंदर जा सकते हैं भाईसाहब।”

    और इतना सुनकर कबीर फटाफट कमरे में चला जाता है।

    कबीर बस एकटक श्रुति को देख रहा होता है। स्पंज बाथ के बाद श्रुति का चेहरा दाग और धब्बों से साफ़ हो गया है, उसके बाल चेहरे के दोनों तरफ़ खुले गिरे हुए हैं।

    “क्या हुआ? तुम मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो?”

    श्रुति ने कबीर से पूछा जो उसे बस एकटक देखता ही जा रहा है।

    “कुछ नहीं, मैं तो बस इस दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की को देख रहा हूँ।”

    इतना कहते-कहते कबीर बेड के पास ही रखे एक स्टूल पर बैठ जाता है।

    श्रुति ने एक गहरी साँस भरते हुए कहा,
    “दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की? अच्छा मज़ाक कर लेते हो तुम।”

    कबीर ने कहा,
    “मेरी नज़र से देखो! घुंघराले बाल, थोड़ा गेहुँवा सा रंग। आँखें काली गहरी। लंबा सा चेहरा और होंठों के नीचे एक बेहद छोटा सा सुंदर तिल।”

    तभी श्रुति कबीर की ओर देखकर कहती है,
    “मिस्टर कबीर रायचंद, यह अस्पताल है और अस्पताल में फ़्लर्ट नहीं करते। और वैसे भी मैं कोई इतनी सुंदर नहीं हूँ!”

    इतना कहते-कहते श्रुति की आँखों में आँसू भर आते हैं।

    श्रुति की आँखों से आँसू बहने लगते हैं, जिन्हें देखकर कबीर को यह एहसास हो जाता है कि श्रुति अंदर से कितना टूट चुकी है। वह अपने हाथ उसके आँसू पोछने के लिए आगे बढ़ाता है,
    “प्लीज़ रोना मत!”

    श्रुति थोड़ी सख्त आवाज़ में कहती है,
    “हाथ दूर रखो कबीर, मैं अपना ख़याल खुद रख सकती हूँ।”

    यह सुनते ही कबीर ने अपने हाथ पीछे खींच लिए और श्रुति ने अपने आँसू खुद पोछ डाले।

    कुछ पल के सन्नाटे के बाद श्रुति ने बोला,
    “तुम रात से घर नहीं गए? और सुबह से मेरे साथ हो, अपने काम पर नहीं जाना क्या तुम्हें?”

    कबीर को जैसे इसका जवाब पहले से पता था,
    “इस वक़्त मेरा यहाँ रहना ज़्यादा ज़रूरी है, काम तो ज़िंदगी भर चलता रहेगा!”

    श्रुति ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसने अपनी आँखें नीचे कर लीं।

    श्रुति को दुखी देख कबीर बातों का मुद्दा बदल देता है,
    “मेरे ख़्याल से अब तुम्हारा डोज़ लेने का टाइम हो गया है। तुम दवाई खा लो और सो जाओ।”

    तभी श्रुति ने ज़िद करते हुए कहा,
    “नहीं, मुझे दवा नहीं खाना, नहीं मतलब नहीं! I hate medicines.”

    फिर एक बड़ी ही अजीब स्माइल के साथ श्रुति ने कहा,
    “वैसे तुम एक काम कर सकते हो मेरे लिए?”

    कबीर ने कहा,
    “बिलकुल, just name it!”

    श्रुति ने थोड़ा हिचकिचा कर कहा,
    “तुम अभी जाकर एक ब्लैक लेबल सिंगल माल्ट ला दो, क्वार्टर भी चलेगा! पीने से मुझे बड़ी ज़बरदस्त नींद आती है, सारे दर्द, ग़म सब मिट जाते हैं! और वैसे भी मुझे यहाँ हॉस्पिटल में नींद ही नहीं आती।”

    तभी कबीर ने कहा,
    “और खाने में लोगी?”

    श्रुति ने बेपरवाही से कहा,
    “कुछ भी चलेगा, रोस्टेड काजू, या चिल्ली पनीर, anything will do!”

    कबीर ने गुस्साते हुए कहा,
    “तुमको शराब पीनी है? वह भी हॉस्पिटल में? यह हॉस्पिटल है, नाइट क्लब नहीं! चिली पनीर चाहिए? चुपचाप दवा खाओ!”

    श्रुति ने अपना मुँह फुला लिया,
    “जाओ यहाँ से, मुझे बात नहीं करनी!”

    कबीर ने एक गहरी साँस भरी,
    “तुम भी जानती हो कि तुम यहाँ शराब नहीं पी सकती! एक काम करो, पहले आराम से बिस्तर पर लेटो, थोड़ी देर में देखना तुम्हें अपने आप ही नींद आ जाएगी।”

    बिना कोई जवाब दिए श्रुति सोने की कोशिश करने लगी। देखते ही देखते काफ़ी वक़्त गुज़र जाता है और अभी भी श्रुति सो नहीं पाई है। वह आँखें खोलती है तो देखती है कि कबीर वहीं उसके बिस्तर के पास ही बैठा हुआ है और श्रुति को एकटक देख रहा है।

    कबीर कहता है,
    “एक तरीका है जिससे तुमको नींद आ जाएगी!”

    श्रुति पूछती है,
    “क्या?”

    कबीर कहता है,
    “पहले अपनी आँखें बंद करो।”

    श्रुति एक गहरी साँस भर कर अपनी आँखें बंद कर लेती है। कबीर अब आहिस्ता-आहिस्ता श्रुति के माथे को सहलाने लगता है। श्रुति को एक अजनबी का छूना अजीब लगता है, लेकिन उसे साथ ही आराम भी महसूस होने लगता है। अगले चंद मिनटों में श्रुति को नींद आ जाती है, और वह सो जाती है।

    वहीं श्रुति के सो जाने के बाद, कबीर भी खड़ा होकर अपनी कमर सीधी करने लगता है, तभी उसकी नज़र श्रुति के फ़ोन पर पड़ती है।

    जब उसे यकीन हो जाता है कि श्रुति गहरी नींद में सो गई है, वह धीरे से श्रुति का फ़ोन उठा लेता है। फ़ोन को अनलॉक करने की कोशिश करता है, लेकिन अनलॉक नहीं कर पाता। फ़ोन अनलॉक करने के दो ही रास्ते हैं, या तो पिन पता हो या अंगूठे का प्रिंट। बड़ी ही सावधानी से कबीर श्रुति का अंगूठा फ़ोन पर लगाता है और अगले ही पल फ़ोन अनलॉक हो जाता है।

    कबीर अभी श्रुति के फ़ोन में कुछ कर ही रहा होता है कि अचानक से श्रुति कबीर की ओर करवट बदलने लगती है। और वहीं अगले ही पल श्रुति के फ़ोन में एक फ़ोन कॉल आने की वजह से घबराहट में फ़ोन कबीर के हाथों से छूट जाता है।


    क्या लगता है आप लोगों को? क्या कबीर सच में श्रुति को पसंद करता है और वह क्या कर रहा है श्रुति के फ़ोन के साथ? क्या है कबीर का वह मकसद जिसके लिए उसने श्रुति से शादी की है? इसके अलावा आप लोगों को जो भी लगता है वह सब आप कमेंट में लिख सकते हैं और साथ ही बताइए यह नई कहानी आपको कैसी लग रही है? अगर अच्छी नहीं लग रही है तो आप बता सकते हैं क्या अच्छा नहीं लग रहा है और साथ ही कमेंट में बताइए आज के पार्ट का अपना फेवरेट सीन या लाइन?