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"लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2

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Farheen Rajput

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"कुछ गलतफहमियों की दीवार, कुछ हालातों की तकरार, जुदा हुई जो ये राहें, तो तू ही ज़रा बता, कि कैसे होगी मुकम्मल, अपनी ये अधूरी "परीकथा".....!!!

Total Chapters (81)

Page 1 of 5

  • 1. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 1

    Words: 1043

    Estimated Reading Time: 7 min

    रिदांश राजा की तरह अपनी कुर्सी पर आराम से बैठा, लैपटॉप में कुछ जाँच रहा था। तभी आरना गुस्से और निराशा से उसके कैबिन में आई।

    आरना (नाराज़गी से): क्या है ये?

    रिदांश (बेफिक्री से): मेरा कैबिन!

    आरना (नाराज़गी से): आप समझते क्या हैं खुद को?

    रिदांश (दिलकश मुस्कान के साथ): ऑफ़कोर्स, योर लविंग हसबैंड… वाइफी!!

    आरना ने पहली बार रिदांश की इस दिलकश मुस्कान को देखा। आज तक की उसकी खतरनाक मुस्कान के विपरीत, जो किसी का भी दिल आसानी से तोड़ सकती थी, और खुद को उसका पति कहना— इससे आरना के रोंगटे खड़े हो गए। हमेशा की तरह, उसके दिल और भावनाओं ने बगावत कर दी। उसने अपने भावों पर काबू पाने की कोशिश की, लेकिन रिदांश रिदांश अग्निहोत्री था। लोगों के चेहरे, खासकर आरना का चेहरा, उसके लिए खुली किताब थे। उसने आरना के घबराते भावों को पहचान लिया और उसके होंठों पर और भी ज़्यादा आकर्षक मुस्कान आ गई। वह उठा, आरना के सामने खड़ा हुआ, दोनों हाथ पैंट की जेब में रखे। आरना पर अपने असर को देखकर उसकी मुस्कान और भी ज़्यादा आकर्षक और विजयी हो गई। लेकिन जैसे ही आरना के ज़हन में रिदांश का बर्ताव और उसका अविश्वास आया, उसने खुद को संभाल लिया।

    रिदांश (अपनी मुस्कान के साथ): क्यों बेकार में कोशिश कर रही हो, वाइफी? हम दोनों जानते हैं कि तुम्हारे दिलो-दिमाग पर मेरा इश्क़ चढ़ चुका है, जिसका कोई और इलाज नहीं। ज़िद छोड़ दो और मेरी बात मान लो!

    आरना (रिदांश की आँखों में देखते हुए): यू नो व्हाट, ऐसा हो सकता है, बट इन योर ड्रीम्स!

    रिदांश (निहायती दिलकश मुस्कान के साथ): उफ़्फ़, मेरी जिद्दी मासूम वाइफी! पर कोई बात नहीं, अपनी ज़िद पूरी कर लो… (आत्मविश्वास से) …बट फॉर श्योर, एट दी एंड जीत मेरी ही होगी, स्वीटहार्ट!

    आरना: ओह, प्लीज़ अपनी ख्याली दुनिया से बाहर आइए। मैं आपकी बातें सुनने नहीं आई हूँ। मैं सिर्फ़ इतना कहने आई हूँ कि आपने जो 24/7 मेरे सर पर फिजूल लोग सवार किए हैं, उन्हें मुझसे दूर रखिए… वरना…

    रिदांश (अपनी भौंहें उठाते हुए): वरना??

    आरना (थोड़ा घबराते हुए): व… वरना मुझे और भी तरीके आते हैं!

    रिदांश (आरना की तरफ कदम बढ़ाते हुए): ओह, रियली? फिर तो मुझे वो तरीके देखने और जानने हैं!

    रिदांश आरना की तरफ कदम बढ़ा रहा था। उसे अपने करीब आते देख आरना पीछे हटने लगी। लेकिन रिदांश एकटक आरना की आँखों में देखते हुए, तब तक कदम बढ़ाता रहा जब तक कि आरना खिड़की तक नहीं पहुँच गई। रिदांश ने तुरंत एक्शन लिया, उसे खिड़की और अपनी मज़बूत बॉडी के बीच कैद कर लिया, दोनों हाथों से उसे घेर लिया। रिदांश इतना करीब था कि उसकी साँसें और परफ्यूम आरना को महसूस हो रहे थे।

    रिदांश (गहरे और आकर्षक स्वर में, लगभग फुसफुसाते हुए): हैप्पी वैलेंटाइन डे, वाइफी!

    इतना कहकर, जैसे ही रिदांश आरना के चेहरे की तरफ झुकने लगा, आरना ने उसकी छाती पर हाथ रखा और फुर्ती से झुककर, उसकी बाँहों के बीच से निकल गई। आरना ने भले ही फुर्ती दिखाई, लेकिन रिदांश उससे तेज था। जैसे ही आरना उसकी बाँहों से निकली, रिदांश ने उसकी कलाई पकड़कर उसे वापस खींच लिया। आरना बिल्कुल तैयार नहीं थी। एक झटके में उसकी पीठ रिदांश के सीने से लग गई। पलक झपकते ही रिदांश ने उसे अपनी बाँहों में घेर लिया। उसने अपना चेहरा आरना के बालों में छिपा लिया और उसकी साँसों की गर्मी आरना को महसूस हो रही थी। वह रिदांश को बहुत कुछ कहना चाहती थी, गुस्सा करना चाहती थी, और खुद को दूर करना चाहती थी, लेकिन उसकी करीबी से कुछ पलों के लिए आरना का दिमाग काम करना बंद कर गया। कुछ देर बाद, उसने पूरी ताकत से रिदांश से खुद को छोड़ने के लिए कहा, जो असल में एक मिन्नत भर था।

    आरना (आँखें बंद किए हुए): लीव मी, मि. अग्निहोत्री!

    रिदांश (धीमी, आकर्षक आवाज़ में): नफ़रत में चाहे जितनी भी शिद्दत क्यों ना रही हो… (पॉज़ ले कर) …लेकिन अब यकीनन मोहब्बत में क़यामत होना लाज़िमी है… (एक पल रुक कर) …वाईफी!

    रिदांश की बात सुनकर आरना हैरानी से आँखें खोलती है और रिदांश की तरफ देखती है, जो पहले से ही उसे देख रहा था। हैरान आरना को देखकर रिदांश के होंठों पर एक दिलकश और शरारती मुस्कान थी। उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी। कुछ पल तक आरना हैरानी से रिदांश को देखती रही। जैसे ही उसे स्थिति और रिदांश की करीबी का एहसास हुआ, वो हड़बड़ाहट में रिदांश को खुद से दूर धक्का देती है।

  • 2. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 2

    Words: 1859

    Estimated Reading Time: 12 min

    आरना (भावुक होकर अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए): मि. अग्निहोत्री, आई कैन एक्सप्लेन… मैं…

    रिदांश (गुस्से से लगभग चिल्लाते हुए): शटअप! जस्ट शटअप! एक लफ्ज़ मत कहना। आज सिर्फ तुम सुनोगी और मैं कहूँगा। (एक पल रुककर) मेरे दोस्त को जिस तरह से तुमने तड़पाया था, आई प्रॉमिस, उससे दस गुना ज़्यादा मैं तुम्हें अब तड़पाऊँगा। (पहले जैसी एविल मुस्कान के साथ) और मज़े की बात पता है क्या है, वाइफी? ये मौका खुद तुमने प्लेट में परोस कर सजाकर मुझे दिया है। (तंज भरे लहजे में) सच कहते हैं लोग, इश्क़ अच्छे-खासे इंसान को निकम्मा बना देता है। सच में प्यार अंधा ही होता है। पर कोई बात नहीं, जो हुआ सो हुआ। लेकिन फिलहाल मेरे पास तुम्हारे लिए एक खास तोहफा है। (अपनी कोर्ट की जेब से कुछ पेपर्स निकालते हुए) ये लो। (आरना सवालिया नज़रों से रिदांश को देखती है) (रिदांश एक पल रुककर) चलो, मैं ही बता देता हूँ कि इनमें क्या है। एक्चुअली यही तो तुम्हारे लिए आज का खास तोहफा है। (बड़ी ही लापरवाही से) ये डायवोर्स पेपर्स हैं!

    रिदांश की बात सुनकर आरना शॉक्ड होकर सुन्न सी रह जाती है। अगर ये बात रिदांश कुछ अरसे पहले कहता तो शायद उसे कुछ फर्क नहीं पड़ता, लेकिन आज का सच ये था कि चाहे उसके साथ रिदांश का व्यवहार जैसा भी था, पर वो उसे दिल से चाहने लगी थी और इस बात पर या अपने दिल पर उसका कुछ इख्तियार नहीं था!

    आरना (भावुकता से): नो! नो! नो! आप मेरे साथ ऐसा करने का सोच भी नहीं सकते। मैं… मैं मर जाऊँगी!

    रिदांश (एविल मुस्कान के साथ): मैं ऐसा बिल्कुल नहीं सोच रहा हूँ, स्वीटहार्ट। इनफैक्ट, मैं ऐसा कर ही रहा हूँ। (डायवोर्स पेपर्स की तरफ इशारा करते हुए) साइन इट और दफ़ा हो जाओ यहाँ से। और रही बात मरने की तो कोई किसी के बिना कभी नहीं मरता। (आरना को रोता देख तंज भरे लहजे में) वैसे भी ये असल ज़िंदगी है, कोई फिल्म या कहानी नहीं जहाँ भोली-भाली सी हीरोइन आकर राक्षस जैसे हीरो को अपने प्यार से सुधार दे और उसके बाद उनकी लाइफ की हैप्पी एंडिंग हो जाए। लेकिन तुमने भी ठीक ऐसे ही मेरे साथ एक लवी-डवी कपल बनकर हैप्पी-शैप्पी लाइफ जीने के ख्वाब देखे। पर एक्चुअली में क्या है ना, वाइफी, (एक पल रुककर एविल एक्सप्रेशन के साथ, सर्द आवाज़ में डायवोर्स पेपर्स आरना के चेहरे पर मारते हुए) लाइफ इज़ नॉट अ फ़ैरीटेल!

    इतना कहकर रिदांश कमरे से बाहर जाने लगता है। आरना उसको रोकना चाहती थी, लेकिन इस वक्त उसके इमोशंस उस पर बहुत भारी हो रहे थे और उसका गला इस वक्त उसके जज़्बातों के दर्द और तकलीफ से भर्रा उठा था। और वो लाख कोशिशों के बावजूद भी अपने मुँह से कोई अल्फाज़ नहीं निकाल पा रही थी। और देखते ही देखते उसकी आँखों के सामने से रिदांश ओझल होते हुए कमरे से चला जाता है। आरना उसके पीछे जाना चाहती थी, लेकिन इस वक्त उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी टाँगों में कोई जान, कोई ताकत ही न रही हो। और कुछ पल बाद ही उसकी टाँगों ने जैसे बिल्कुल उसका साथ छोड़ दिया हो और वो वहीं ज़मीन पर धड़ाम से घुटनों के बल बैठकर टूटकर रोने लगती है। उसे इस वक्त समझ नहीं आ रहा था कि वो इस सब के लिए ईश्वर से, अपनी किस्मत से शिकायत करे या फिर खुद से। क्योंकि कहीं ना कहीं आरना हमेशा से जानती थी कि जिस राह पर वो आगे बढ़ रही है, उस राह पर एक ना एक दिन उसे इस दर्द से गुज़रना होगा। भले ही रिदांश ने आरना के साथ जैसा भी सलूक किया हो, पर वो हमेशा उसके साथ अपने जज़्बात को लेकर क्लियर रहा। उसने कभी भी आरना को अपने प्यार-मोहब्बत जैसी कोई झूठी तसल्ली या कमिटमेंट नहीं दिया था। वो तो आरना ही थी जो लाख कोशिशों के बाद भी खुद को रिदांश की मोहब्बत में गिरफ्तार होने से नहीं रोक पाई। और आज कहीं ना कहीं वो खुद को ही अपनी इस हालत के लिए कोस रही थी। लेकिन जो कुछ भी हुआ उसमें आरना भी पूरी तरह गलत नहीं थी, क्योंकि जब इंसान अपने दिल के हाथों मजबूर होता है तो हमेशा उसका दिल उसके दिमाग पर हावी रहता है। और कहीं ना कहीं यही वजह होती है कि इंसान सही-गलत में फर्क करना ही भूल जाता है। और बस जिस ओर उसका दिल उसे लेकर जाना चाहता है, वो बिना सोचे-समझे अपने बावरे मन के पीछे चल पड़ता है। और जब तक उसे अपने किए का एहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और इस राह पर आगे बढ़ने के बाद वापस जाने का कोई रास्ता नहीं होता। कुछ ऐसा ही हाल इस वक्त आरना का भी था। वो अब चाहकर भी इस राह से वापस नहीं लौट सकती थी और इस वक्त जो दर्द और तकलीफ उसे अपने सीने में महसूस हो रही थी वो उसके लिए हर बढ़ते पल के साथ असहनीय और मुश्किल होती जा रही थी और उसकी आँखों से लगातार आँसू ऐसे निकल रहे थे जैसे किसी ने उसकी आँखों में पानी की टंकी फिट कर दी हो। आरना को कोई होश ही नहीं रहा था कि वो कब तक वहीं एक जगह बैठे हुए अपने ही ख्यालों में गुम थी। उसकी तंद्रा तब टूटी जब उसने कमरे का दरवाज़ा वापस खुलते हुए इस उम्मीद से देखा कि शायद रिदांश वापस उससे बात करने के लिए आया हो, लेकिन हर बार की तरह ही इस बार भी उसकी उम्मीद टूट गई जब दरवाज़े पर उसने रिदांश की बजाय गार्ड को देखा जो आरना की तरफ ही सर झुकाए खड़ा था।

    गार्ड: मैम, सर ने कहा है आप को यहाँ से जाना होगा। आप अब और यहाँ नहीं रुक सकती!

    आरना (भर्राए गले से बोलने की कोशिश करते हुए): मि… मि… मिस्टर अग्… अग्निहोत्री…

    इस वक्त आरना के लिए एक-एक शब्द कहना बहुत ही मुश्किल और तकलीफदेह हो रहा था। और गार्ड उसकी तरफ विचारशीलता से देख रहा था। लेकिन उसको जितना कहा गया था उसको सिर्फ इतना ही करना था। आरना की बात का मतलब समझते हुए गार्ड उसे उसके सवाल का जवाब देता है।

    गार्ड: मैम, सर तो बहुत देर पहले ही यहाँ से जा चुके हैं। आपको आपके घर छोड़ने के लिए भी गाड़ी रेडी है। आप बाहर आ जाएँ!

    आरना (गहरी साँस लेते हुए अपने जज़्बातों की बाढ़ को रोकने की कोशिश करते हुए): आ…आप चलें… मैं… मैं आती हूँ!

    गार्ड: ओके मैम!

    आरना की बात सुनकर गार्ड फ़ौरन वहाँ से चला जाता है। गार्ड के जाने के कुछ पल बाद आरना अपनी लाल और सूजी हुई आँखों को अपनी हथेली से साफ़ करते हुए ज़मीन पर बिखरे हुए डायवोर्स पेपर्स को इकट्ठा करके खड़ी होने की कोशिश करती है। लेकिन उसकी टाँगों में जैसे जान ही बाकी नहीं थी और वो वापस से ज़मीन पर गिरने को होती है कि ऐन मौके पर वो दीवार के सहारे खुद को गिरने से बचा लेती है और एक नज़र आँसुओं भरी आँखों से दक्षिण की दिशा में देखकर दर्द से पुरानी बातें याद करते हुए अपनी आँखें मूँद लेती है जिससे उसकी आँखों के आँसू उसके गालों पर बह आते हैं। आरना अपनी उंगलियों से अपने आँसू साफ़ करती है और फिर धीमे और बोझिल कदमों से कमरे से बाहर निकल जाती है। जैसे ही आरना बाहर पार्किंग के एरिया में पहुँचती है, तो गार्ड फ़ौरन उसके लिए गाड़ी का दरवाज़ा खोलता है। लेकिन आरना अपनी ही धुन में खोए हुए, हाथ में डायवोर्स के पेपर्स थामे हुए, बोझिल कदमों से बिना रुके बाहर की तरफ़ बढ़ चलती है। जब गार्ड आरना को यूँ जाता देखता है तो आखिर में वो उसे टोकता है।

    गार्ड: मैम, कहाँ जा रही हैं आप? गाड़ी तो यहाँ है? बॉस ने कहा है कि मैं आपको आपके घर ड्रॉप कर दूँ। प्लीज़ आएँ मैम!

    आरना (रुककर बिना मुड़े गार्ड से): जब आपके बॉस ने मुझ पर इतना बड़ा बोझ डाल दिया है, तो अपना बोझ भी मैं खुद उठा सकती हूँ!

    इतना कहकर आरना बिना गार्ड का जवाब सुने वहाँ से बाहर निकल आती है। दूसरी तरफ़ रिदांश जब से फ़ार्महाउस से निकला था, तब से ही वो इस उम्मीद से कि उसके दिल को सुकून और खुशी मिलेगा, लगातार आरना को लाइव सीसीटीवी फ़ुटेज में देख रहा था। उसके प्लान के मुताबिक वो जो चाहता था आज उसने हासिल भी कर लिया था और उसकी आँखों के सामने आरना साफ़ उसकी मोहब्बत के आगे बेबस, टूटी और बिखरी हुई दिखाई दे रही थी। जिसे देखकर वाकई रिदांश और उसके दिल को सुकून महसूस होना चाहिए था क्योंकि उसकी नज़रों में तो उसने अपने दोस्त की अपराधी को सज़ा दी। लेकिन ना जाने क्यों अपनी तय की मंज़िल पर पहुँचने के बाद भी रिदांश के दिल-ओ-ज़हन को ना तो वो खुशी हुई थी और ना ही वो सुकून था जो असल में होना चाहिए। और रह-रहकर ना जाने क्यों आरना को यूँ देखकर उसके दिल में एक कसक सी उठ रही थी जो उसे अंदर ही अंदर बेचैन कर रही थी। हालाँकि आखिर में हर बार की तरह ही रिदांश ने यहाँ भी अपनी अंतरात्मा और दिल की बात को पूरी तरह नकारकर एक बार फिर से पूरी तरह खुद पर और खुद के दिल-ओ-ज़हन पर नफ़रत की आग को ही हावी करते हुए आरना की हालत को नज़रअंदाज़ करने का मन बना लिया। और फ़ोन बंद करके साइड में रखकर अपना दर्द करता पट्टी बँधा सर पीछे गाड़ी से टिका लिया। लेकिन ऐसा करने के बाद भी उसके ज़हन में कई सवालों और उलझनों ने उसके दिमाग में उथल-पुथल मचाकर रखी थी कि तभी कुछ पल बाद उसी घबराए और परेशान गार्ड की कॉल रिदांश को आती है जिसे उसने आरना को उसके घर ड्रॉप करने के लिए कहा था। लेकिन आरना उसकी बात को अनसुना कर वहाँ से अकेले ही निकल गई थी। और अब गार्ड को ये डर सता रहा था कि कहीं आरना के ऐसा करने की वजह से कहीं रिदांश के गुस्से का ज्वालामुखी उस पर ना बरस पड़े। इसीलिए उसने खुद से ही सारी बात रिदांश से कह सुनाने का फैसला करते हुए उसे फ़ोन लगा दिया।

    गार्ड: बॉस, मैंने मैडम को रोकने की और साथ चलने की बहुत रिक्वेस्ट की, लेकिन मैम ने कहा कि वो खुद चली जाएँगी। बॉस, मैंने उन्हें कहा कि…

    रिदांश (सर्द लहज़े में गार्ड की बात बीच में काटते हुए): फ़ाइन, एंड डोंट डिस्टर्ब मी अगेन!

    इतना कहकर रिदांश बिना गार्ड का जवाब सुने फ़ोन काट देता है और फ़्रस्ट्रेट होकर अपनी हथेली को अपने पूरे चेहरे पर मसलने लगता है। फिर कुछ सोचकर अपनी गाड़ी स्टार्ट कर वहाँ से निकल जाता है। दूसरी तरफ़ आरना अपने बोझिल कदमों से बिना किसी मंज़िल के सफ़र की तरह बस लगातार चले जा रही थी और उसे ये भी होश नहीं रहा कि वो चलते-चलते कब सड़क के बीच आ पहुँची और कई बार कई गाड़ियाँ उसे टक्कर मारने से भी बाल-बाल बची थीं। लेकिन इसके बावजूद भी आरना अपने ही ख्यालों में मगन बस चले जा रही थी कि तभी सामने से तेज़ रफ़्तार से आता ट्रक उसी की दिशा में बढ़ा चला आ रहा था। मगर आरना को जैसे अपनी ज़िंदगी और इस दुनिया का कोई होश ही नहीं था। अब बस आरना और ट्रक के बीच कुछ ही कदमों का फ़ासला रह गया था कि अचानक कोई आरना का हाथ पकड़कर उसे सड़क के साइड में खींच लेता है और आरना अपनी नम आँखों से उस शख्स की तरफ़ देखती है और अगले ही पल अपनी दोनों बाहें उसके गले में डाल उसके सीने से लगकर बेतहाशा टूटकर रोते हुए सुबकने लगती है।

  • 3. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 3

    Words: 1803

    Estimated Reading Time: 11 min

    अब बस आरना और ट्रक के बीच कुछ ही कदमों का फासला रह गया था कि अचानक कोई आरना का हाथ पकड़ कर उसे सड़क के किनारे खींच ले गया। आरना अपनी नम आँखों से उस शख्स की तरफ देखती रही और अगले ही पल अपनी दोनों बाहें उसके गले में डाल, उसके सीने से लग कर बेतहाशा टूट कर रोने लगी। नैना भी आरना को अपनी बाहों में जकड़ते हुए प्यार से उसके सर को सहलाने लगी। आरना का हाल कुछ इस वक्त ऐसा था, जैसे बियाबान रेगिस्तान में कोई अकेला प्यासा, जिसके पास कोई रास्ता ही नहीं आगे बढ़ने का, और जिसे यह भी नहीं पता था कि आखिर उसे जाना किधर है और उसकी मंजिल कहाँ है। ऐसे में, जब उसने नैना को देखा, तो जैसे उसे नैना के रूप में जलती धूप में ठंडी छाया मिल गई हो।

    इधर, नैना ने जब आरना को यूँ बीच सड़क पर अपने ही ख्यालों में गुम देखा, उसे यह भी होश नहीं था कि अगर नैना उसे सही वक्त पर ना बचाती, तो जाने क्या अनहोनी हो जाती। नैना आरना को सांत्वना देते हुए उसे अपने साथ टैक्सी में बैठाकर अपने घर ले गई। नैना के माँ-बाप भी आरना की ऐसी बिखरी हुई हालत देखकर परेशान हो गए, लेकिन नैना ने इस वक्त उन्हें इशारे से आरना से कुछ भी पूछने से मना कर दिया और आरना को लेकर अपने कमरे में चली गई।


    "पहले तू रिलेक्स कर और बिल्कुल शांत हो जा, और फिर मुझे बता कि आखिर बात क्या हुई है जो तू इस तरह से रिएक्ट कर रही है?" नैना ने आरना को बिस्तर पर बैठाकर पानी देते हुए कहा।

    "सब खत्म हो गया नैना...मैं...मैंने खुद ही सब खत्म कर दिया...मैं..." आरना ने आँसुओं भरी आँखों के साथ कहा।

    "शशशशशहहहहहह मेरी जान...सब ठीक हो जाएगा, लेकिन उसके लिए पहले तुम्हें मुझे शांत होकर अपनी प्रॉब्लम तो बतानी होगी ना, तभी तो हम मिलकर इसका सोल्यूशन निकालेंगे ना..." नैना ने आरना के आँसू पोछते हुए कहा। आरना ने तलाक के कागज़ नैना की तरफ बढ़ा दिए और नैना ने उन्हें असमंजस से देखा।

    "ये क्या है?" नैना ने पूछा।

    "खुद ही देख लो!!" आरना ने भावुकता से कहा।

    "तलाक के कागज़..." नैना ने तलाक के कागज़ देखकर शॉक होते हुए कहा। "आरना की तरफ देखते हुए...ऐसे कैसे अचानक...मेरा मतलब है कि आखिर ऐसा क्यों किया मि. अग्निहोत्री ने?"

    "क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके दोस्त की हालत की ज़िम्मेदार मैं हूँ। अगर आज उनका दोस्त मौत और ज़िंदगी के बीच झूल रहा है, तो सिर्फ़ मेरी वजह से!" आरना ने कहा।

    "तुम्हारा मि. अग्निहोत्री के दोस्त से क्या लेना-देना? और आखिर कौन सा दोस्त है वो जिसकी वजह से मि. अग्निहोत्री तुम्हें ब्लेम कर रहे हैं?" नैना ने असमंजस से पूछा।

    "वो दोस्त और कोई नहीं, बल्कि...दक्ष है!" आरना ने एक पल रुककर कहा।

    "कहीं दक्ष से तेरा मतलब उस शिमला वाले दक्ष से तो नहीं?" नैना शॉक होकर बोली।

    "हाँ, यही दक्ष है!" आरना ने कहा।

    "लेकिन वो तो नहीं रहा था ना...मेरा मतलब है कि उस दिन जब हम उससे मिले थे तब..." नैना ने अपना सर पकड़ते हुए कहा। "ओह गॉड! कितना कन्फ्यूज़न है! लेकिन जो भी हो, वो भस्मासुर ऐसे कैसे तुझे ब्लेम कर सकता है? आई मीन, कैसे तुझे इतना अंडरएस्टीमेट कर सकता है!"

    "मुझे खुद समझ नहीं आ रहा कि आखिर मैं कैसे मि. अग्निहोत्री को समझाऊँ, और अब बात सिर्फ़ उन्हें समझाने तक सीमित नहीं है नैना...अब बात है मेरी बेगुनाही, मेरी इनोसेंस की!" आरना ने परेशान होकर कहा।

    "हाँ, तो जाकर बता उस भस्मासुर को साफ़-साफ़ कि तू बिल्कुल भी गलत नहीं है, और जो वो समझ रहा है वो पूरी तरह गलत समझ रहा है...बता उसे जाकर!" नैना ने कहा।

    "मि. अग्निहोत्री तो जैसे मान के बैठ गए हैं कि मैं ही दक्ष की इस हालत की ज़िम्मेदार हूँ, जबकि ये सच नहीं है। दक्ष ने अतीत में जो कुछ भी मेरे लिए किया, उसके बाद तो मेरे दिल में उसके लिए हर दिन सिर्फ़ इज़्ज़त ही बढ़ी है, और मैं तो उसकी एहसानमंद हूँ। क्योंकि अगर उस दिन दक्ष नहीं होता, तो शायद आज मैं ज़िंदा ही नहीं होती, और अगर ज़िंदा होती भी, तो मेरी आत्मा कब का मर चुकी होती। लेकिन मुझे क्या पता था कि दक्ष से मिलना और उसके साथ मेरा अतीत मेरे आज को इस तरह से बर्बाद करेगा...मुझे आज भी अच्छे से याद है दक्ष से वो शिमला की पहली मुलाक़ात!" आरना ने परेशान होकर कहा।


    (फ्लैशबैक......(आरना और तीसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण से))

    कॉलेज की तरफ़ से सभी स्टूडेंट्स को कुछ दिनों के टूर पर शिमला ले जाया जा रहा था। आरना और नैना के ज़िद करने पर राहुल ने मि. कपूर को भी उनके शिमला जाने के लिए राज़ी कर लिया। नैना और आरना शिमला जाने के लिए बहुत एक्साइटेड थे। सभी लोग शाम के लगभग पाँच बजे मुंबई से शिमला के लिए बस में रवाना हुए और लगभग सुबह के छह-सात बजे शिमला पहुँचे। सफ़र लंबा था, लेकिन दोस्तों के साथ काफ़ी मज़ेदार भी रहा। शिमला पहुँचकर टीचर्स ने सभी लोगों को होटल में अपने रूम में जाकर फ़्रेश होकर कुछ वक़्त आराम करने के लिए कहा। सभी लोग काफ़ी थक चुके थे, इसीलिए सभी आराम करने अपने-अपने कमरों में चले गए। आरना और नैना अपनी एक क्लासमेट ज्योति के साथ एक कमरे में रुके थे, जबकि राहुल अपने दोस्तों के साथ अलग कमरे में रुका था। शाम को खाने-पीने के बाद टीचर ने सभी को बाहर घूमने को कहा और सभी को एक साथ ग्रुप में रहने की हिदायत दी। सभी लोग एक साथ निकल पड़े और शिमला और वादियों की ख़ूबसूरती को निहारते हुए यहाँ की यादों को अपने फ़ोन और कैमरे में कैद करने लगे। रात का अँधेरा छा रहा था और धीरे-धीरे रात गहराने लगी थी। तभी वहाँ पहाड़ों के बीच एक अनाउंसमेंट हुई कि यहाँ कुछ ही दूरी पर लैंडस्लाइड होने का ख़तरा है, तो जल्द से जल्द सभी टूरिस्ट यहाँ से वापस चले जाएँ। अनाउंसमेंट सुनकर टीचर्स ने बच्चों को आपाधापी में जल्दी से वापस बस की ओर जाने के लिए कहा। आपाधापी में सभी लोग बस में चढ़ गए और बस वहाँ से निकल पड़ी।


    कुछ दूरी पर जाने के बाद राहुल ने, जो आगे की सीट पर बैठा था, नैना से आरना के बारे में पूछा, लेकिन आरना तो नैना के साथ थी ही नहीं। नैना को लगा कि वो राहुल के साथ है, और राहुल को लगा कि आरना नैना के साथ है, जबकि आरना तो पूरी बस में कहीं भी नहीं थी, और आते वक़्त असल में वो बस में चढ़ी ही नहीं थी। राहुल ने जब टीचर्स से वापस जाने के लिए कहा, तो उन्होंने राहुल को वहाँ छोड़ने या गाड़ी रोकने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इतने सारे लोगों की जान को ख़तरे में नहीं डाला जा सकता, और होटल पहुँचकर ये लोग पर्सनली यहाँ आकर आरना को ढूँढ़ेंगे। राहुल टीचर्स की बात मानना तो बिलकुल भी नहीं चाहता था, लेकिन उसके पास इस वक़्त उनकी बात मानने के सिवा दूसरा कोई ऑप्शन भी नहीं था। राहुल और नैना दोनों के चेहरे पर टेंशन साफ़ नज़र आ रही थी, और बस में दोनों के लिए एक-एक लम्हा काटना बहुत ही मुश्किल हो रहा था। इधर दूसरी तरफ़, फ़ोटो क्लिक करने में मशगूल आरना जब वापस आती है तो वहाँ कोई भी मौजूद नहीं था। आरना के कानों में हेडफ़ोन्स लगे थे, जिसकी वजह से उसे अनाउंसमेंट भी सुनाई नहीं दी थी। आरना ने जब वहाँ अपने साथ आए किसी इंसान को नहीं पाया, तो वो घबरा गई। ऊपर से अंजान शहर और जगह जहाँ वो पहली बार आई थी, और उसे यहाँ के बारे में कोई ख़ास जानकारी भी हासिल नहीं थी। उस पर सोने पर सुहागा, जब वहाँ मौजूद फ़ोर्स ने उसे लैंडस्लाइड होने की ख़बर दी और ऊपर से यहाँ फ़ोन के नेटवर्क भी पूरी तरह डेड थे, तो उसकी घबराहट और परेशानी और भी ज़्यादा बढ़ गई, और उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर वो क्या करे और कहाँ जाए। आरना अनजान सड़कों पर डरते-डरते कदम बढ़ा रही थी। हालाँकि इस वक़्त यहाँ बहुत सी गाड़ियाँ मौजूद थीं और निकल-बढ़ रही थीं, लेकिन अनजाने शहर में यूँ किसी अजनबी से लिफ़्ट लेना भी सेफ़ नहीं था, इसीलिए आरना ने वहीं मौजूद एक अफ़सर से टैक्सी के लिए पूछा ताकि वो अपने होटल तक सेफ़ली पहुँच सके। यह तो ग़नीमत थी कि उसे अपने होटल का नाम पता मालूम था। अफ़सर ने आरना को बताया कि यहाँ से कुछ एक-दो किलोमीटर की दूरी पर उसे टैक्सी मिल सकती है। अब आरना के पास सिवाए वहाँ तक पैदल जाने के सिवा दूसरा और कोई ऑप्शन नहीं था, इसीलिए वो हिम्मत करके आगे बढ़ चली। हालाँकि उसे रात गहराने से डर भी लग रहा था और घबराहट भी हो रही थी, लेकिन सिवाय आगे बढ़ने के वो कर भी क्या सकती थी।


    लगभग आधा किलोमीटर पैदल चलने तक आरना को रास्ते में लोगों की चहल-पहल मिली, लेकिन उसके बाद से सड़क सुनसान होने लगी थी और इसी के साथ उसका डर भी बढ़ रहा था। कुछ दूरी पर जाकर आरना को सामने की तरफ़ कुछ लड़के नज़र आए, जिनके हाथ में शराब की बोतलें थीं। यह देखकर आरना बुरी तरह घबरा गई और खुद को किसी मुश्किल में पड़ने से बचाने के लिए वो वापस उल्टे कदम लौट चली। लेकिन उन लड़कों ने आरना को वहाँ आता देख लिया था और उसे वापस जाता देख वो भी फ़ुर्ती से उसके पीछे हो लिए। आरना ने उन लोगों को अपने पीछे आता देख और तेज़ी से अपने कदम बढ़ा दिए और कुछ ही पल में वो भागने लगी। लेकिन उन लोगों के मुक़ाबले वो इतनी तेज़ी से नहीं भाग पा रही थी। अब वो लड़के उससे कुछ ही कदम पीछे रह गए थे। यह देखकर आरना की हालत और भी ज़्यादा ख़स्ता हो गई थी और उसने अपनी स्पीड बढ़ा दी। और हड़बड़ी में भागते हुए वो सामने से आती गाड़ी से टकराते-टकराते बची। वो तो गाड़ी ने मौके पर ब्रेक लगा दिए, वरना आरना उससे टकरा ही जाती। जैसे ही आरना ने अपने सामने उस गाड़ी को देखा, तो वो फ़ुर्ती से ड्राइविंग सीट वाले गेट पर जाकर ज़ोर से खटखटाते हुए मदद की गुहार लगाने लगी। तभी वो लड़के आरना के बिल्कुल नज़दीक पहुँच गए। यह देखकर आरना ने पीछे की तरफ़ होते हुए अपने चेहरे को अपनी हथेलियों से ढक लिया। और जैसे ही उन लड़कों में से एक लड़के ने आरना का हाथ पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाने की कोशिश की, कि तभी अचानक से तेज़ी से गाड़ी का दरवाज़ा खुला और सीधा एक ज़ोरदार लात उस लड़के के पेट में लगी। जिससे वो अचानक हुए इस हमले से अनजान खुद को नहीं संभाल पाया और पीछे की तरफ़ आरना से दूर जा गिरा। तभी गाड़ी में से एक ख़ूबसूरत गबरू जवान निकला, जिसने महँगे सूट-बूट के साथ आँखों पर चश्मा चढ़ाया हुआ था। उस पर उसकी बेफ़िक्री भरी दिलकश मुस्कराहट उसे और भी हैंडसम बना रही थी।


    "कौन है बे तू और क्यों यहाँ खाली पीली हीरोगिरी झाड़ रहा है?" पहले लड़के ने गाड़ी वाले शख्स को घूरते हुए कहा।

    "इस नाचीज़ को दक्ष कहते हैं...समझे मुन्ना? दक्ष...और अगर कुछ ही देर में तुम सब यहाँ से नहीं निकले, तो यही दक्ष बदल देगा तुम सबके नक्षत्र..." गाड़ी वाले शख्स ने स्टाइल से अपनी आँखों से चश्मा उतारते हुए कहा।

  • 4. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 4

    Words: 1999

    Estimated Reading Time: 12 min

    पहला लड़का (गाड़ी वाले शख्स को घूरते हुए): "कौन है बे तू? और क्यों यहां खाली पीली हीरोगिरी झाड़ रहा है?"

    गाड़ी वाला शख्स (स्टाइल से अपनी आंखों से चश्मा उतारते हुए): "इस नाचीज़ को दक्ष कहते हैं... समझे मुन्ना??... दक्ष... और अगर कुछ ही देर में तुम सब यहां से नहीं निकले तो यही दक्ष, बदल देगा तुम सबके नक्षत्र...!!!"

    दक्ष की बात सुनकर वह लड़का गुस्से से अपने दांत पीसता हुआ आरना को अपने साथ ले जाने के लिए उसकी तरफ बढ़ा। लेकिन इससे पहले कि वह लड़का आरना को छू पाता, दक्ष ने एक मुक्का उस लड़के की नाक पर मार दिया। वह लड़का खून निकलती अपनी नाक पकड़े, दर्द से कराहता हुआ वहीं सड़क पर बैठ गया। जैसे ही दक्ष ने उसकी ओर एक कदम और बढ़ाया, वह शख्स फुर्ती से वहां से भागते हुए अपने गैंग में शामिल हो गया।

    दक्ष (अपनी शर्ट की बाजूएँ मोड़ते हुए): "हम्मम, तो जब आप लोगों ने मन बना ही लिया है कि मुझसे अच्छी-भली खातिरदारी करानी ही है, तो चलो फिर शुरू करते हैं। क्योंकि देखो भाई क्या है ना... (अपनी घड़ी में टाइम देखते हुए)... कि मेरे पास ज़्यादा फिजूल वक्त नहीं है। तो चलो जल्दी इस मामले को निपटाते हैं... (लड़ाई के लिए तैयार खड़े होकर अपनी बाजुएँ चढ़ाकर हाथ से इशारा करते हुए)... कम ऑन, लेट्स स्टार्ट... (आरना की तरफ देखते हुए)... वैसे तुम्हें क्या लगता है कि एक की पसली तोड़ी, एक की नाक तोड़ी, तो अब तीसरे का क्या करना चाहिए? (गाल पर उंगली रखकर सोचते हुए)... वैसे भी मैं हड्डियाँ तोड़ने में एक्सपर्ट हूँ, तो उम्मम, आई थिंक अब मुझे आने वाले की आँख फोड़नी चाहिए, और फिर उसके बाद वाले का हाथ, और फिर आगे वाले की टाँग, और फिर..."

    आरना (दक्ष को टोकते हुए): "वो लोग भाग चुके हैं!!"

    दक्ष वापस पीछे की तरफ पलटा और देखा तो वो लोग वाकई में दक्ष की बात सुनकर रॉकेट की स्पीड से डर से वहाँ से भाग चुके थे। यह देखकर दक्ष अपना कॉलर उठाते हुए मुस्कुरा उठा।

    दक्ष (खुद को शाबाशी देते हुए): "वोह मेन, यू आर टू गुड... (आरना की तरफ देखते हुए)... चलिए बताएँ कहाँ जाना है आपको, मैं ड्रॉप कर दूँगा आपको!!"

    आरना (हड़बड़ा कर): "न... नहीं म... मैं चली जाऊँगी!!!"

    दक्ष ने आरना की हेल्प करने के लिए उसे ड्रॉप करने का ऑफर दिया, लेकिन उसने फ़ौरन मना कर दिया। क्योंकि वह अनजाने शहर में एक अनजान शख्स पर ऐसे भरोसा नहीं कर सकती थी। हालाँकि अभी कुछ वक्त पहले दक्ष ने उसे बचाया था, लेकिन फिर भी आसानी से उस पर भरोसा करना आरना के लिए आसान नहीं था, और जो कुछ भी थोड़ी देर पहले उसके साथ होते-होते बचा, उसके बाद तो बिल्कुल भी नहीं!

    दक्ष: "मैं सिर्फ़ आपकी हेल्प करने के लिए बोल रहा हूँ। कोई मैं आपको किडनैप करके नहीं ले जाऊँगा!!!"

    आरना: "न... नो, इट्स ओके... आई कैन मैनेज!!"

    दक्ष (आरना को डाँटते हुए): "अरे, ऐसे रात में तुम्हारा यहाँ अकेले रहना सेफ़ नहीं है। हद है! इतनी सी बात तुम्हें समझ नहीं आती... अभी जो कुछ थोड़ी देर पहले होते-होते बचा, उसके बाद भी तुम्हारे दिमाग का ढक्कन नहीं खुला...!!"

    आरना (मिमियाते हुए): "जी??"

    दक्ष: "जी, ये कि ये कोई मूवी नहीं चल रही है या तुम कोई हीरोइन नहीं हो जो बार-बार तुम्हें बचाने कोई हीरो आता रहेगा। इसीलिए बेवजह टाइम खराब करने के बजाय मुझे एड्रेस बताओ अपना... वैसे तुम यहाँ की लगती तो नहीं हो??"

    आरना: "मैं अपने कॉलेज टूर पर आई थी यहाँ और आज शाम को अपने लोगों से बिछड़ गई!!!"

    दक्ष: "इट्स ओके, नो प्रॉब्लम... तुम्हें अपने होटल का नाम तो पता होगा ना?"

    आरना (अपना सर हिलाते हुए): "हम्मम!!"

    दक्ष: "गुड!... (गाड़ी की तरफ़ बढ़ते हुए)... आओ अब जल्दी बैठो गाड़ी में... (आरना को सोचते देख)... और हाँ, अगर मुझे तुम्हें किडनैप करना ही होता ना, तो मुझे तुम्हें सिर्फ़ गाड़ी में बैठाने की कोई ज़रूरत नहीं है। क्योंकि मैं वो ऐसे भी कर सकता हूँ। बिकॉज़, फ़ॉर योर काइंड इंफ़ॉर्मेशन, यहाँ इस वक़्त एक परिंदा भी मौजूद नहीं जो मुझे तुम्हें अगवा करने से रोक सके... यार मतलब मेरे हीरो जैसी शक्ल से तुम्हें कहीं से भी थोड़ा भी एक किडनैपर का फ़ील आ रहा है क्या... (आरना को चुप देखकर)... ठीक है, अगर अभी भी तुम्हें मुझ पर डाउट है, तो शौक से तुम यहाँ रह सकती हो... (आरना को डराते हुए)... और इंतज़ार कर सकती हो अभी कुछ देर पहले जैसे लफ़ंगों का, या अगर वो नहीं आए तो इन जंगलों से वो खौफ़नाक और दरिंदे जैसे बड़े-बड़े दाँतों वाले भेड़ियों का, जो आज रात तुम्हें अपनी डिनर टेबल पर अच्छे से मसाले डालकर रोस्ट करके पार्टी करेंगे और..."

    दक्ष आगे कुछ बोल पाता, उससे पहले ही दक्ष की बातों से घबराई और हड़बड़ाई आरना जल्दी से उसकी गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर उसमें बैठ गई। यह देखकर दक्ष मुस्कुरा उठा और फिर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए गाड़ी स्टार्ट करके आरना के साथ वहाँ से आगे बढ़ गया। आरना इस इंसिडेंट और दक्ष की फ़िजूल बातों दोनों से घबराई हुई थी। वह बस खामोश थी। हालाँकि दक्ष ने उससे बात करके उसका मूड लाइट करने की कोशिश भी की, लेकिन आरना बस होटल का एड्रेस बताने के सिवा बाकी पूरे टाइम खामोश ही थी।

    दक्ष: "तुम्हें बोलने में टैक्स लगता है क्या?... (आरना अभी भी एक अजनबी के डर से असहज ही थी)... अच्छा, ठीक है बात ना सही, कम से कम अपना नाम तो बता ही सकती हो?"

    आरना (कुछ पल शांत रहने के बाद): "आरना... आरना कपूर!!"

    दक्ष (ड्रामा करते हुए): "थैंक गॉड! पिछले आधे घंटे में कुछ तो बोला तुमने!!!"

    दक्ष की बात सुनकर अभी भी आरना ने खामोशी ही साधी हुई थी। और यह देखकर अब दक्ष ने भी आगे कुछ ना कहकर गाड़ी का एफ़एम शुरू कर दिया, उसमें आते गानों को एन्जॉय करने लगा। काफ़ी देर बाद जब आरना को अपना होटल नज़र आया, तो उसकी जान में जान आई और कुछ पल में दक्ष ने गाड़ी होटल से कुछ दूरी पर पार्किंग एरिया में रोक दी। दक्ष और आरना दोनों गाड़ी से नीचे उतरते हैं।

    दक्ष (होटल की तरफ़ इशारा करते हुए): "लीजिए मिस, आ गया आपका होटल... और सी, आपको बिना किडनैप किए सही-सलामत आपकी मंज़िल तक छोड़ भी दिया मैंने!!"

    आरना दक्ष को कुछ जवाब देती, उससे पहले ही कुछ दूरी से नैना उसका नाम पुकारते हुए लगभग दौड़ते हुए उसके पास आई।

    नैना (आरना को गले लगाते हुए): "कहाँ चली गई थी आरना तू???... हम सब कितना परेशान हो गए थे तुझे लेकर... चल जल्दी राहुल को बताते हैं, वो तुझे ढूँढने जा रहा है टीचर्स के साथ!!!"

    आरना: "हम्मम!!"

    इसके बाद नैना आरना को टीचर्स और बाकी लोगों के बीच लेकर गई। आरना को वहाँ देखकर सबने चैन की साँस ली। राहुल ने आरना को अपने गले से लगाकर, परेशान होते हुए, उससे उसके बारे में पूछा। तो आरना ने उसे खुद के पूरी तरह ठीक होने का दिलासा दिया। कुछ देर बाद आरना को दक्ष के बारे में ख्याल आया, तो उसने पीछे मुड़कर दक्ष और उसकी गाड़ी को देखने की कोशिश की, लेकिन वहाँ चारों तरफ़ दक्ष और उसकी गाड़ी दोनों ही मौजूद नहीं थे। कुछ देर बाद टीचर्स ने सबको आराम करने के लिए अपने-अपने कमरों में जाने का कहा। आरना के लिए परेशान राहुल भी कुछ देर के लिए आरना और नैना के कमरे में ही आ पहुँचा। राहुल और नैना के पूछने पर आरना ने उन दोनों को अब तक की पूरी बात बताई, जिसे सुनकर वो दोनों ही शॉक्ड थे।

    राहुल: "सारी गलती मेरी ही है। मुझे ध्यान देना चाहिए था... तुम दोनों को अंकल ने यहाँ मेरी ज़िम्मेदारी पर भेजा है और मैंने ही इतनी बड़ी लापरवाही कर दी!!!"

    आरना: "जो कुछ भी हुआ उसमें तेरी कोई गलती नहीं है राहुल, और जो हुआ सो हुआ... इट्स नॉट अ बिग डील राहुल!!"

    राहुल (गंभीरता से): "यस इट इज़ आरना, इट इज़... अगर ईश्वर ना करे तुझे कुछ हो जाता तो मैं अंकल को क्या जवाब देता?"

    आरना: "ओहो, हुआ तो नहीं ना... देख मैं बिल्कुल ठीक खड़ी हूँ तुम दोनों के सामने, और अब जो हुआ सो हुआ राहुल... डोंट वरी, आगे से मैं ध्यान रखूँगी!!!"

    राहुल: "नहीं, हम कल सुबह ही यहाँ से वापस जा रहे हैं!!"

    आरना (हैरान होकर): "लेकिन क्यों??"

    राहुल: "क्योंकि मैं तुम दोनों की सेफ़्टी को लेकर कोई रिस्क नहीं ले सकता!!!"

    आरना: "राहुल, अब तू ज़्यादा ओवररिएक्ट कर रहा है!!"

    नैना: "ठीक है ना राहुल, जो हुआ सो हुआ, पर अब आगे से हम अच्छे से केयरफुल रहेंगे!!"

    आरना: "हाँ, और तुझे तो पता ही है कि आखिर पापा कितनी मुश्किल से इस बार टूर के लिए राज़ी हुए थे... और अगर उन्हें इस सबके बारे में पता चला तो वो आइंदा हमें कहीं भी नहीं जाने देंगे और... (दुखी सा चेहरा बनाते हुए)... और फिर साथ ही पापा से मेरी तो अच्छे से क्लास भी लगेगी!!!"

    राहुल बिना कुछ बोले बस खामोश ही रहा। यह देखकर नैना और आरना दोनों ही राहुल को उनकी बात मनवाने के लिए आँखों ही आँखों में इशारे करते हुए एक-दूसरे को समझा रही थीं।

    नैना (राहुल को मनाने के लिए): "छोड़ो ना राहुल, अब जो हुआ सो हुआ... और फिर हमारे लिए तो ये बात ज़रूरी है ना कि हमारी आरना अच्छी-भली सही-सलामत हमारी आँखों के सामने है... तो बस हमें और चाहिए भी क्या? और अगर अंकल को कुछ भी पता चला या उन्होंने हमारे वहाँ ऐसे अचानक वापस जाने के रीज़न का पता लगा लिया... तो बेवजह हमारी आरना को लेने के देने पड़ जाएँगे... और उसे अंकल की सख्त डाँट सहनी पड़ेगी!!"

    आरना (मासूम चेहरा बनाते हुए राहुल से): "तुझे क्या अच्छा लगेगा अगर मुझे पापा से चार बातें सुननी पड़ेंगी?"

    राहुल (नैना और आरना को घूरते हुए): "ठीक है, ठीक है अब मुझे और ज़्यादा इमोशनल ब्लैकमेल करने की कोई ज़रूरत नहीं है... फ़ाइन, कहीं नहीं जा रहे हम... (आरना और नैना राहुल की बात सुनकर खुशी से उछल पड़ती हैं!)... लेकिन... लेकिन तुम दोनों एक मिनट के लिए भी मुझसे पूछे बिना इधर-उधर नहीं होगी... अंडरस्टैंड?"

    नैना और आरना एक साथ: "यस बॉस, डन!!!"

    नैना: "वैसे यार वो बंदा कौन था जिसने तेरी इतनी हेल्प की और तुझे यहाँ तक छोड़ा?"

    राहुल (आरना से): "हाँ, मैं भी यही पूछने वाला था तुझसे। कम से कम हम भी उससे मिलकर उसका शुक्रिया अदा कर लेते... आफ्टर ऑल उसने तेरी इतनी हेल्प की और तुझे सेफ़ली हम तक पहुँचाया भी!!!"

    आरना (अपना सर पकड़ते हुए): "ओह गॉड!... कितनी बड़ी इडियट हूँ मैं!!"

    नैना: "वो तो तू है... लेकिन अब इस बात को साबित करने के लिए आखिर तूने क्या कारनामा किया?"

    राहुल (नैना के काँधे पर मारते हुए): "चुप करो तुम... तू बता आरना, क्या हुआ है?"

    आरना (अफ़सोस करते हुए): "यार वो लड़का दक्ष, जिसने आज मेरी इतनी मदद की और मुझे यहाँ तक सेफ़ली छोड़ा भी... मैंने अपनी हड़बड़ाहट और घबराहट में उसे इस सबके लिए एक बार थैंक्यू तक नहीं बोला... क्या सोच रहा होगा वो मेरे बारे में कि मैं कितनी एहसानफ़रामोश हूँ... जो एक बार उसका शुक्रिया तक अदा नहीं किया और यूँ ही चली गई!!"

    राहुल: "हम्मम, एटलीस्ट थैंक्यू तो तुझे उसे बोलना ही चाहिए था।"

    आरना: "हम्मम, लेकिन अब गलती तो हो गई ना... उस वक़्त मैं इतना डरी हुई थी कि मेरे दिमाग ने कुछ काम ही नहीं किया ठीक से... पर अब क्या करूँ मैं?"

    नैना: "ओहो! ठीक है ना, जो हुआ सो हुआ, और फिर तूने जानबूझकर तो कुछ भी नहीं किया ना, तो इट्स ओके। और फिर अभी तो कुछ वक़्त हम यहाँ हैं ना, तो क्या पता वो हमसे वापस से टकरा जाए। तो अगर वो मिले तो तब तू उसका शुक्रिया अदा कर देना!!"

    आरना (मायूसी से): "लेकिन अगर नहीं मिला तो?"

    राहुल: "तो फिर ये ईश्वर की मर्ज़ी होगी!!"

    नैना: "एक्जेक्टली, और तू ऐसे सोच ही क्यों रही है... तू देखना जब तक हम यहाँ हैं तो वो हमें ज़रूर मिल जाएगा... (आरना हाँ में अपनी गर्दन हिला देती है!)... अब जो हुआ सो हुआ... अब चलो जल्दी!"

    आरना: "कहाँ?"

    नैना: "कैंटीन... (अपने पेट को पकड़ते हुए)... मुझे बहुत तेज़ भूख लगी है और भूख से मेरे पेट में चूहे रेस लगा रहे हैं!!"

    आरना (मुस्कुराकर): "ठीक है, तुम लोग चलो, मैं बस दो मिनट में फ़्रेश होकर आती हूँ!!"

    नैना और राहुल (एक साथ): "नो, तू हमारे साथ ही चलेगी, फिर खो गई तो!!"

    नैना और राहुल ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा और फिर आरना की तरफ़ देखा और फिर अगले ही पल तीनों खिलखिलाकर हँस पड़े।

    आरना (वॉशरूम की तरफ़ बढ़ते हुए): "ओके, अभी आई मैं बस!!"

    इसके बाद आरना फ़्रेश होने के लिए चली गई और कुछ देर बाद तीनों साथ में कैंटीन में गए और कल घूमने की प्लानिंग करते हुए खाना खाने लगे।

    (फ़्लैशबैक एंड...)

  • 5. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 5

    Words: 1855

    Estimated Reading Time: 12 min

    (फ्लैशबैक एंड.....)

    आरना (मायूसी भरे लहज़े में): मुझे क्या पता था कि दक्ष का पास्ट में मुझसे यूँ मिलना मेरे फ्यूचर को खतरे में डाल देगा? (कुछ पल खामोश रहकर) एक्चुअली, अब जो भी हो, या मि. अग्निहोत्री मेरे बारे में जो चाहें सोचें, मुझे उन्हें कोई सफाई देनी ही नहीं है!!!

    नैना (अरु के कांधे पर हाथ रखते हुए): अरु, जस्ट रिलेक्स!!

    आरना (रुआँसी होकर): आखिर में मैं भी इंसान हूँ नैना, और मेरा भी कोई वजूद है। मुझे भी तकलीफ होती है और मेरा भी दिल दुखता है। ये बात मि. अग्निहोत्री को समझनी होगी। इसीलिए उन्हें जो भी मेरे बारे में सोचना है, वो सोचें, मुझे उनसे कुछ कहना ही नहीं है!!!

    नैना: मैं तुझे ऐसा करने के लिए ज़रूर कहती अगर तुझे खुद के लिए उस भस्मासुर की सोच या रवैये से कोई फर्क नहीं पड़ता तो, लेकिन सच क्या है, ये हम दोनों ही अच्छे से जानते हैं!!!

    अरु (फ्रस्ट्रेशन से अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को रगड़ते हुए): तो आखिर मैं क्या करूँ नैना? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। मुझे जितना गिड़गिड़ाना था, जितनी रिक्वेस्ट करनी थी, कर ली। अब मुझसे और खुद को नेगलेक्ट नहीं किया जाएगा, नैना। मि. अग्निहोत्री ने एक बार मुझे सफाई का मौका तक नहीं दिया, बस सीधा मुजरिम करार दे दिया!!

    नैना (प्यार से अरु के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए): तेरी कही हर एक बात बिल्कुल सही है अरु, लेकिन यहाँ बात सिर्फ तेरी मोहब्बत की नहीं है, बल्कि सच और झूठ की है। बात यहाँ गलत और सही की है, और सच ये है अरु, कि तू सही है, तो फिर खुद को गलत कैसे साबित होने दे सकती है?? (एक पल ठहरकर) मैं ये नहीं कह रही अरु, कि तू उस भस्मासुर से अपने प्यार की भीख माँग, या उसके आगे प्यार के रोने रो!!

    अरु (नैना की ओर देखकर): फिर??

    नैना (संजीदगी से): नहीं अरु, मैं ऐसा कुछ भी नहीं कह रही हूँ। बल्कि मैं सिर्फ तुझे इतना कहना चाहती हूँ कि तू खुद के लिए, खुद की सच्चाई को साबित कर। और दिखा दे उस भस्मासुर को कि वो सिर्फ सिक्के के एक पहलू को देखकर तुझे जज कर रहा है, जबकि सिक्के के दूसरे पहलू से वो बिल्कुल पूरी तरह अंजान है। और मुझे यकीन है कि जब वो सिक्के के दूसरे पहलू को जानेगा, तो बहुत पछताएगा और खुद आगे से तुझसे इस बर्ताव के लिए गिड़गिड़ाकर माफी भी मांगेगा, देखना तू। और तब तू उसकी तरह ही उस भस्मासुर की एक मत सुनना!!

    अरु (दुखी भाव से अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए): नहीं नैना, मुझे अब जाना ही नहीं वहाँ। उन्हें जो भी सोचना है, सोचते रहें। मुझे फर्क नहीं पड़ता अब!!!

    नैना (अरु की तरफ देखकर): यही बात मेरी आँखों में देखकर कह कि वाकई में तुझे कोई फर्क नहीं पड़ता?? (अरु नैना की बात सुनकर मायूसी से अपनी नज़रें दूसरी दिशा में घुमा लेती है) मुझे तुझे सच बताने की ज़रूरत नहीं, है ना?

    अरु (भावुकता से): हाँ, लेकिन उन्होंने तो मुझे अपनी ज़िंदगी से, अपने घर से बाहर कर दिया है, तो मैं कैसे...(भावुक होकर)...पापा और राहुल भी तो यहाँ नहीं हैं जो मैं उनकी हेल्प लूँ!!

    नैना (प्यार से अरु के आँसू साफ करते हुए): ये लड़ाई तेरी है और इसे तुझे खुद अकेले ही लड़ना होगा। तुझे आगे बढ़ने के लिए सहारे तो बहुत मिल जाएँगे, लेकिन अपनी मंज़िल को पाने के लिए तुझे खुद ही अपने कदमों पर ही आगे बढ़ना होगा!!!

    अरु (भावुकता से): लेकिन कैसे नैना, जब मि. अग्निहोत्री ने मुझे अपनी ज़िंदगी से ही बिल्कुल बाहर निकाल दिया है, तो आखिर मैं कैसे...

    नैना (ताव से): अरे ऐसे कैसे लूट मची है क्या?? और तू तो ऐसे सोच रही है जैसे वो कोई भस्मासुर ना होकर कोई देवता हो, और उसकी कही बात जैसे कोई पत्थर की लकीर हो। (अपनी गर्दन झटकते हुए) हाँ नहीं तो... उसने तुझे छोड़ने की बात कही है और तू भूल मत, तूने अभी तक ये डाइवोर्स पेपर्स साइन नहीं किए हैं, तो ये रिश्ता अभी तक टूटा नहीं है!!

    अरु: लेकिन ये डाइवोर्स पेपर्स...

    नैना (डाइवोर्स पेपर्स देखते हुए): तुझे वाकई इन पेपर्स से मसला है??

    अरु (अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए): हाँ!!

    नैना (पेपर्स उठाकर एक पल उन्हें देखने के बाद अगले ही पल उसके आठ-दस टुकड़े करके अरु के हाथ में थमाते हुए): तो ले फिर, ख़त्म तेरा मसला!!!

    अरु (हैरानी से): लेकिन नैना...

    नैना (अरु को बीच में ही टोकते हुए): लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। बस तू इतना समझ ले अरु, कि हम जब तक खुद अपने अंदर के डर को नहीं मार देते, तब तक दुनिया की कोई ताकत हमें हमारे डर से नहीं जिता सकती। हम जितना डरेंगे, हमारा डर हमें उतना ही डराएगा। सो इट्स टाइम टू गेट अप अरु। ये वक़्त है खुद के बलबूते पर खड़े होकर खुद के डर को मात देने का। और रही बात उस भस्मासुर की, तो अगर उसने तुझे बेवजह परेशान किया, या तेरे साथ बेवजह कोई ज्यादती की, तो मैं उसे उसके ही घर की छत से उल्टा लटकाकर उसे दिन में तारे दिखाऊँगी। बाय गॉड, फिर चाहे तू आड़े आए या जो भी हो, मैंने किसी की नहीं सुननी!!

    अरु (भावुकता से हँसकर): तू तो बस रहने ही दे। मि. अग्निहोत्री के आगे तेरी बोलती तो पूरी तरह बंद हो जाती है। तेरी ज़ुबान तो खुलती नहीं, तू उन्हें उल्टा क्या ही लटकाएगी!!

    नैना (झेंपकर): व...वो तो बस हर बार मैं तेरी शर्म कर जाती हूँ, लेकिन इस बार मैं तेरा भी लिहाज़ नहीं करूँगी, हाँ!!!

    अरु (नम आँखों से मुस्कुराकर): बस बस, तू तो रहने ही दे!!

    नैना (अरु को मुस्कुराता देखकर मुस्कुराते हुए): तू बस ऐसे ही मुस्कुराती रहा कर (अरु का गाल प्यार से छूते हुए)...अच्छी लगती है!!

    अरु (टाइट स्माइल के साथ): अब बातों से ही पेट भरेगी या कुछ खिलाएगी भी? क्योंकि मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है, और अब तो वैसे भी मुझे डबल ट्रिपल एनर्जी की ज़रूरत है, क्योंकि उस भस्मासुर का सामना तो करना है, नई?

    नैना (बेड से उतरकर खड़े होकर अरु का हाथ थामकर उसे बाहर की तरफ ले जाते हुए): बिल्कुल, मगर पहले उसके लिए तेरे अंदर डबल ट्रिपल लोगों का खाना ठूँसना भी तो ज़रूरी है ना, तो चल पहले ये काम निपटाते हैं। तभी तू फिर अच्छे से उस भस्मासुर की अक्ल ठिकाने लगा पाएगी!!


    अरु नैना की बात सुनकर अपनी नम आँखों को साफ करते हुए मुस्कुरा उठती है। कुछ देर बाद दोनों नीचे पहुँचती हैं, जहाँ नैना की माँ पहले ही डाइनिंग टेबल पर खाना लगा चुकी थीं। दोनों को देखकर बैठने का इशारा करती हैं। नैना अरु की प्लेट में खाना परोसती है और उसे खाना शुरू करने के लिए कहती है। लेकिन अरु एक बार फिर रिदांश की बातों को याद करके मायूस हो उठती है। ये देखकर उसकी साइड में बैठी नैना उसकी कोहनी मारते हुए रिदांश जैसे सड़ू से फनी फेसेस बनाती है, जिसे देखकर आरना ना चाहते हुए भी हँस पड़ी!!!


    (यूएस में.....)


    दूसरी तरफ यूएस में आयुष अपनी माँ के सिलसिले में वहाँ के मशहूर सीनियर डॉक्टर से मिला, जिन्होंने आयुष को एक उम्मीद की किरण दिखाई। डॉक्टर के अनुसार नई टेक्नोलॉजी और साइंस के ज़रिए कल्पना जी के ठीक होने की अभी भी एक उम्मीद बाकी थी, और इसी एक उम्मीद ने सबके दिल में आशा की किरण के साथ ढेर सारी खुशी भर दी थी। रिदांश के दिल को भी ये बात सुनकर बहुत सुकून मिला था। वो बस अपनी माँ को ठीक देखना चाहता था, भले ही उसके लिए उसे कोई भी कीमत क्यों ना चुकानी पड़े। रिदांश ये खबर सुनते ही यहाँ अपनी माँ के पास आना चाहता था, लेकिन वो नहीं आया जब आयुष और उसकी बहनों ने उसे यकीन दिलाते हुए ये कहा कि वो मुंबई में ही सब संभालें। और बचपन से आज तक कल्पना जी की देखभाल उसी ने की थी। मगर आखिर कल्पना जी उन लोगों की भी तो माँ है ना, तो उनका भी उनके प्रति कोई फ़र्ज़ बनता है। और आखिर कब तक रिदांश ही उनके काँधों का बोझ खुद ही उठाता रहेगा? आयुष और अपनी बहनों की उसे एक मौका देने की बात, और उन पर एक बार भरोसा रखने की बात को रिदांश टाल ना सका। कहीं ना कहीं उसे अच्छा महसूस हो रहा था कि उसके छोटे भाई-बहन अब अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छे से निभाने और जानने की कोशिश कर रहे हैं!!!


    फिर रिदांश दक्ष को भी यूँ ही यहाँ अकेले नहीं छोड़कर जा सकता था। इसीलिए रिदांश अभी तक यही रुका था। उधर दूसरी तरफ, नम्या को उसके अतीत को भुलाने के लिए अनिकेत एक अच्छे दोस्त की तरह हर मुमकिन कोशिश कर रहा था। हालाँकि नम्या के लिए जो कुछ भी हुआ था, वो सब भूल पाना आसान नहीं था, और इस बात को लेकर चाहे वो ऊपर से खुद को कितना भी कूल और बेफ़िक्र दिखाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कहीं ना कहीं उसके दिल में करन नाम का ज़ख्म अभी भी भरा हुआ था। इसी बात को भांपते हुए और इससे उबरने में अनिकेत उसकी मदद करना चाहता था!!!


    (मुंबई....(रिदांश का पैलेसनुमा घर)


    रिदांश के मुताबिक, आरना को डाइवोर्स पेपर्स देने और अपनी ज़िंदगी से उसे निकाल देने के फ़रमान के बाद, उसे बेतहाशा खुशी और सुकून महसूस होना चाहिए था, लेकिन इसके उलट उसके साथ कुछ अलग ही हो रहा था। उसका दिल उसे बार-बार यही समझाने की भी कोशिश कर रहा था... लेकिन दी ग्रेट रिदांश अग्निहोत्री ने कभी अपने दिल की सुनी ही नहीं, जो आज सुनते, और वो भी ख़ासकर आरना के मामले में। रिदांश का दिल चाहे उसके दिमाग को कितना भी गलत साबित करने की कोशिश करे, लेकिन उसके दिमाग के मुताबिक तो आरना सिर्फ़ और सिर्फ़ एक गोल्ड डिगर थी, और उसके मुताबिक ऐसे लोगों के साथ सिर्फ़ ऐसा ही सलूक किया जाता है। रिदांश अपनी ही उधेड़बुन में लगा, घर में मौजूद मिनी बार में मौजूद था। वो कुर्सी पर हमेशा की तरह अपने स्वैग के साथ अपनी एक टांग पर दूसरी टांग रखे, एक हाथ में वाइन का ग्लास लिए हुए और दूसरे हाथ को कुर्सी पर टिकाए, किसी नवाब की तरह बैठा था कि तभी कुछ पल बाद उसकी नज़रें बार में अंदर आती आरना पर पड़ती हैं, जो कि उसकी तरफ़ ही बढ़ी चली आ रही थी। ये देखकर रिदांश एक पल को असमंजस में आ जाता है, लेकिन अगले ही पल अरु को वहाँ देख, अपने चेहरे पर हमेशा की तरह ब्लैंक एक्सप्रेशन का मुखौटा ओढ़े, और आँखों में खालीपन लिए, सख्त भाव लिए आरना की दिशा में एकटक देखने लगता है, जो अब ठीक उसके सामने खड़ी थी। और आज पहली बार वो पूरे कॉन्फिडेंस के साथ चेहरे पर कई भाव लिए, बिना लड़खड़ाए सीधा रिदांश की आँखों में देख रही थी। जब कुछ पल तक भी अरु आँखों में कई जज़्बात लिए बस यूँ ही खामोश सी रिदांश को देखती रही, तो आखिर में रिदांश ने ही अपनी चुप्पी तोड़ी।


    रिदांश (ब्लैंक एक्सप्रेशन से): आई डोंट थिंक सो कि तुम इतनी दूर यहाँ सिर्फ़ मेरे दीदार के लिए आई हो। तो दी ग्रेट आरना अग्निहोत्री (तंज भरे लहज़े में)...उप्स... (खड़े होते हुए)...करेक्शन हेयर...तो दी ग्रेट एक्स आरना अग्निहोत्री...हम्मम, नाउ साउंड्स मच बेटर...नई... (एक पल रुककर)...एक्स वाइफ़??!!!


    आरना (कॉन्फिडेंस भरी स्माइल के साथ):

    "कि ले कर चले हो जो ये कारवाँ,
    इरादों का अपने,
    यूँ बर्बाद करने के लिए मुझे,
    बेशक अब इससे ज़्यादा,
    और क्या ही बर्बाद करोगे मुझे,
    कि खुद को मैंने पहले ही,
    जो तबाह कर लिया है चाह कर तुझे!!!"


    आरना की बात सुनकर एक पल को रिदांश उसे ब्लैंक एक्सप्रेशन से देखता है, लेकिन अगले ही पल उसके होंठों पर आरना को देखते हुए एक तंज भरी मुस्कान तैर जाती है!!!

  • 6. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 6

    Words: 1722

    Estimated Reading Time: 11 min

    आरना की बात सुनकर एक पल के लिए रिदांश ने उसे खाली भाव से देखा, लेकिन अगले ही पल उसके होंठों पर आरना को देखते हुए एक तंज भरी मुस्कान तैर गई।


    रिदांश (तंज भरे लहज़े में): "उफ्फ, ये कॉन्फिडेंस..." (एक पल रुककर) "...कि अभी तो ये आगाज़-ए-दर्द ही है जनाब, कि कहाँ आप अभी से अंजाम की बातें किए बैठे हैं!"


    आरना (मिले-जुले भाव से): "आपको बड़ी खुशी मिलती है ना मुझे यूँ तकलीफ देकर, यूँ ताने देकर?"


    रिदांश (डार्क लहज़े से): "ऑफकोर्स यस...खुशी का तो पता नहीं लेकिन हाँ, तुम्हें वो तकलीफ और दर्द देना ज़रूर मेरा मकसद है जिसे तुमने मेरे दोस्त को दिया था!"


    आरना (एक पल के लिए अपनी आँखें बंद करते हुए): "मैं कैसे समझाऊँ आपको...कि आप जो सोच रहे हैं...जो आपने देखा...वो सब सिक्के का एक पहलू है...जबकि सच कुछ और ही है...और सच ये है मि. अग्निहोत्री कि..."


    रिदांश (सख्त भाव से अपने हाथ की हथेली दिखाते हुए): "एम नॉट इंटरस्टेड...क्योंकि सच क्या है ये मैं अच्छे से जानता भी हूँ और समझता भी हूँ...सो अपने इस सो कॉल्ड सच के साथ चली जाओ यहाँ से...गेट लॉस्ट!"


    आरना (संजीदगी से): "नहीं, कभी नहीं...क्योंकि यहाँ बात सिर्फ़ आपके और मेरे इस रिश्ते की ही नहीं...बल्कि सच्चाई की भी है...और जब तक मैं खुद की इनोसेंस प्रूफ नहीं कर दूँगी...तब तक मैं यहाँ से कहीं भी नहीं जाऊँगी!"


    रिदांश (एटीट्यूड से अपनी बाहों को अपने सीने पर मोड़ते हुए): "और मे आई नो कि किस हक़ से तुम यहाँ रहोगी?...क्योंकि अकॉर्डिंग टू मी दुनिया की नज़रों में जो झूठा और बेमाना रिश्ता हमारे दरमियान था...उसे तो मैं पहले ही उन डाइवोर्स पेपर्स पर सिग्नेचर करके खत्म कर चुका हूँ...तो आई डोंट थिंक कि अब तुम्हारे यहाँ रहने की कोई भी वजह बाकी है!"


    आरना (अपने बैग से डाइवोर्स पेपर्स के टुकड़े निकालकर उन्हें टेबल पर रखते हुए): "आई थिंक कि अब कोई वजह नहीं होनी चाहिए जो मुझे इस घर से जाने के लिए मजबूर करे!"


    रिदांश ने एक पल खाली भाव से उन डाइवोर्स पेपर्स के टुकड़ों को देखा...फिर अगले ही पल एक तंज भरी मुस्कान के साथ डार्क एक्सप्रेशन से आरना की तरफ देखा।


    रिदांश (तंज भरे लहज़े में): "तुम्हें वाकई में लगता है कि तुम्हें और तुम्हारे इस वजूद को अपने घर से दूर करने के लिए मुझे इन मामूली पेपर्स की ज़रूरत भी है?"


    आरना (पूरी हिम्मत बटोरते हुए): "अगर आपने मेरे साथ इस मामले में जबरदस्ती करने की कोशिश की तो मैं..."


    रिदांश (अपनी आइब्रो ऊपर करते हुए चैलेंजिंग लुक के साथ): "तो?"


    आरना (नज़रें चुराते हुए): "तो...तो मैं ज़रूरत पड़ने पर कोर्ट में भी जाऊँगी!"


    रिदांश ने आरना की बात सुनकर एक पल के लिए तंज भरी एविल मुस्कान से मुस्कुराया...लेकिन अगले ही पल उसके चेहरे के भाव सख्त और नफ़रत भरे हो गए।


    रिदांश: "तुम्हें सच में लगता है कि रिदांश अग्निहोत्री की लाइफ़ का फैसला दुनिया का कोई भी कानून कर सकता है??...(सख़्त भाव से)...नो...नेवर...स्वीटहार्ट...क्योंकि रिदांश अग्निहोत्री खुद एक कानून है जो अपनी किस्मत खुद अपने हाथों लिखता है और मेरे हाथों ही तुम्हारी भी किस्मत लिखी गई है लेकिन...(सख्त और नफ़रत भरे भाव से आरना को देखते हुए)...लेकिन पता था कि यही होगी तुम्हारी असली औकात...आई न्यू इट...आई न्यू इट कि तुम इतनी आसानी से यहाँ से नहीं जाने वाली क्योंकि पैसे कमाने का इतना अच्छा खासा मौका तुम यूहीं तो हाथ से नहीं जाने दोगी...(एक पल रुककर)...इसीलिए तुम्हारी औकात का अंदाज़ा लगाते हुए मैंने पहले ही इसका इंतज़ाम कर दिया था...(पास की दराज से एक चेक निकालते हुए आरना की दिशा में फेंकते हुए)...ये लो तुम्हारी औकात से कहीं ज़्यादा अमाउंट लिखा है इसमें...इतना कि पूरी ज़िंदगी भी बैठकर खाओगी तो भी कम नहीं पड़ेगा...(आरना दुखी भाव से चेक को देखती है...रिदांश तंज भरे लहज़े में)...रख लो...मैं सोचूँगा कि मैंने अपने दोस्त की ज़िंदगी का सदका दे दिया!"


    रिदांश की कड़वी और नफ़रत भरी बातें सुनकर एक बार फिर आरना का दिल छलनी हो गया था...और उसकी आँखों में नमी उतर आई थी...जिसे वो अपनी पलकें झपक कर छुपाने की कोशिश करती है। जिस दिन वो सच सामने लाएगी...उस दिन रिदांश के रिएक्शन के बारे में सोचकर...वो वापस से अपनी हिम्मत बटोरने की कोशिश करते हुए रिदांश को जवाब देती है।


    आरना (चेक उठाते हुए रिदांश को देखकर उसके टुकड़े करके हवा में उड़ाते हुए): "आपकी दौलत आपको ही मुबारक...भले ही मेरे पास आप जितनी दौलत ना सही...लेकिन मैं जैसी भी जिस भी हालत में हूँ खुश हूँ...और कम से कम मुझे जिंदगी गुजारने के लिए आपकी दौलत की कोई ज़रूरत नहीं...(एक पल ठहरकर)...हाँ अगर आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे आपसे एक मौका चाहिए...खुद को, खुद की सच्चाई को साबित करने का!"


    रिदांश (खाली भाव से): "चलो तुम्हें एक मौका मिल भी जाए...तो कैसे प्रूफ करोगी खुद को और कौन गवाही देगा तुम्हारी सो कॉल्ड सच्चाई की?"


    आरना: "जिसके साथ गलत करने की अनजाने में आप मुझे सज़ा दे रहे हैं...वही मेरी सच्चाई की गवाही भी देगा!"


    रिदांश (तंज भरे लहज़े के साथ ताली बजाकर): "इम्प्रेसिव...मानना पड़ेगा...क्या डायलॉग्स और एक्टिंग होते हैं तुम्हारे...तुम किसी डेली सोप या मूवी में काम क्यों नहीं करती...हाँ???...(तंज भरे लहज़े से)...सच में बहुत अच्छा काम मिलेगा तुम्हें आखिर इतनी उम्दा एक्टिंग जो करती हो...(अचानक सख्त भाव से)...लेकिन तुम चाहें अच्छा बनने की जितनी भी अच्छी एक्टिंग क्यों ना करती हो...मगर मैं भी रिदांश अग्निहोत्री हूँ...जो तुम्हारे झांसे में कभी नहीं आने वाले...मैं कोई भोला-भाला दक्ष नहीं जो तुम्हारी मीठी-मीठी बातों में आकर फँस जाए!"


    आरना (रिदांश की बात सुनकर एक पल के लिए फ्रस्ट्रेशन से अपनी आँखें बंद कर लेती है): "तो फिर क्या करूँ मैं, बताएँ आप ही...कैसे साबित करूँ मैं खुद को आखिर?"


    रिदांश (डार्क लहज़े से): "तुम अच्छे से जानती हो कि तुम्हारी मेहरबानी और डॉक्टर्स के मुताबिक़ दक्ष जाने कब ही उठ पाएगा...और ये सब जानते-बूझते तुम बस मासूम बनने का नाटक कर रही हो...ताकि तुम इसी बहाने मेरे घर में घुस जाओ...और दक्ष के बहाने अपनी ज़िंदगी आराम से ऐशो-आराम के साथ गुजार सको...क्योंकि दक्ष के हालात, कब सही हों, कितने महीने या अरसे में ये तो कोई भी नहीं जानता!"


    आरना: "ठीक है, मुझे सिर्फ़ आपसे एक महीना चाहिए...अगर इस एक महीने में दक्ष की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ...या मेरी बेगुनाही नहीं साबित हुई...तो मैं खुद यहाँ से इन डाइवोर्स पेपर्स पर साइन करके चुपचाप चली जाऊँगी!"


    रिदांश: "हम्मम और सिर्फ़ इतना ही नहीं, तुम सारी दुनिया के आगे अपने इस जुर्म को कबूल करोगी...और उसके बाद तुम्हारी ज़िंदगी इससे भी कहीं ज़्यादा मुश्किल और तकलीफ़देह बना दूँगा मैं...ये भी याद रखना!"


    आरना (संजीदगी से): "मंज़ूर है मुझे!"


    रिदांश (खाली भाव से अपने हाथ को अपनी पॉकेट में डालते हुए): "तो फिर ठीक है, दिया एक महीना तुम्हें...डील डन?"


    आरना (कॉन्फिडेंस से): "डन!"


    (यूएस में.....!!)


    आयुष सब लोगों के साथ सुबह ही कल्पना जी को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल गया था। कल्पना जी के सारे ज़रूरी टेस्ट और रिपोर्ट्स होने तक दोपहर हो चुकी थी। क्योंकि रिपोर्ट्स रात तक आनी थीं, इसीलिए सब वापस अनिकेत के फ़ार्म हाउस आ गए थे जहाँ वो लोग ठहरे हुए थे। प्रिशा ने कल्पना जी को खाना और दवाई देकर सुला दिया था। फिर नर्स को उनके साथ छोड़कर वो भी बाकी लोगों के साथ खाना खाने के लिए नीचे चली आई। खाना खाने के बाद अनिकेत ने सबसे बाहर जाने की बात कही।


    अनिकेत: "शाम को यहीं मेरे और रिदू के एक दोस्त की इंगेजमेंट पार्टी है...उसने हम सबको इनवाइट किया है तो सब चल रहे हो ना?"


    आयुष: "नहीं भाई, मेरा तो आना मुश्किल है, कल रिपोर्ट सबमिट करनी है...तो उस पर बहुत काम बाकी है अभी!"


    प्रिशा: "और भाई, मैं भी नहीं आ रही...मैं बहुत थक गई हूँ, मुझे आराम करना है!"


    अनिकेत (नम्या की तरफ़ देखकर): "अब तुम तो एटलीस्ट ना मत कहना...आई मीन कम ऑन यार, मैं वहाँ अकेले बोर हो जाऊँगा...वैसे भी रिदू की साइड से भी वहाँ किसी का होना ज़रूरी है...और रिदू ने कहा भी है कि तुम लोग उसकी जगह ज्वाइन कर लोगे!"


    आयुष: "हाँ तो ये ठीक रहेगा, दी आप के साथ चली जाएँगी भाई के बिहाफ़ पर!"


    प्रिशा: "हाँ और वैसे भी आप दोनों की तो आपस में बनती भी अच्छी है तो आई थिंक आप दोनों को ही जाना चाहिए!"


    अनिकेत (नम्या की तरफ़ देखकर): "तो फिर क्या ख़्याल है मैडम?"


    नम्या: "ओके फ़ाइन...कितने बजे तक निकलना है?"


    अनिकेत: "दैट्स गुड...उम्म्म, यहीं कोई सात बजे तक!"


    नम्या: "ओके, मैं टाइम पर रेडी रहूँगी!"


    अनिकेत (मुस्कुराकर): "ओके, थैंक्स!"


    नम्या: "माय प्लेज़र!"


    (मुंबई.....)


    इधर रिदांश ने आरना को एक मौका दे दिया था। और कहीं ना कहीं उसका दिमाग उसे यह कह रहा था कि आरना इसमें कभी कामयाब नहीं होगी। लेकिन एक तरफ़, कहीं ना कहीं उसके दिल के किसी कोने में एक उम्मीद सी जागी थी, जिस पर हमेशा की तरह उसका दिमाग हावी होने के लिए तैयार बैठा था। आरना ने यहाँ रहने के साथ ही रिदांश से दक्ष को भी यहीं शिफ़्ट करवाने के लिए कहा, जिसे उसने मान भी लिया। क्योंकि सच और झूठ से ज़्यादा रिदांश को अपने दोस्त को सही-सलामत देखने की जिज्ञासा और आशा थी, और जिसके लिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार था। अगर उसका दोस्त उसे वापस मिल पाता है, तो उसके लिए वह एक बार आरना को भी मौका देने के लिए तैयार था। हालाँकि, उसे आरना पर अभी भी पुख्ता यकीन नहीं था। इसीलिए उसने दक्ष की 24/7 निगरानी के लिए कई काबिल डॉक्टर्स और नर्सेज़ रखे थे। और आरना के दक्ष के कमरे में या उसके साथ अकेले रहने के लिए रिदांश ने आरना के साथ ही बाकी लोगों को भी सख्त हिदायत दी थी। इन सबसे अलग, आरना के लिए सबसे अहम बस इस एक मौके पर अपनी जान लगाकर खुद को सही साबित करना था। दक्ष के शिफ़्ट हो जाने और सब सेट होते-होते काफ़ी रात हो चुकी थी। आरना को इस बार रहने के लिए रिदांश ने दूसरा कमरा दिया था, हालाँकि वह कमरा रिदांश के ठीक बगल वाला ही था, जिसे रिदांश ही इस्तेमाल करता था। रात काफ़ी हो चुकी थी, और आरना भी अपने कमरे में सोने के लिए आ चुकी थी। लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी, और इसीलिए वह बालकनी में बैठी, बस शून्य को निहार रही थी और दक्ष के बारे में सोच रही थी। और सोचते-सोचते एक बार फिर वह अतीत में पहुँचकर शिमला के उस टूर के बारे में सोचने लगती है, जहाँ दक्ष से पहली दफ़ा मिलने से लेकर उसकी जान-पहचान हुई थी। और यही सब याद करते-करते एक बार फिर आरना अतीत के उन गलियारों में पहुँच गई थी!



    (ब्लास्ट फ्रॉम दी पास्ट...)......!!!

  • 7. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 7

    Words: 2517

    Estimated Reading Time: 16 min

    (फ्लैशबैक.....)

    दक्ष के अरु को सेफली होटल छोड़ जाने के बाद, अरु ने राहुल और नैना को अपने साथ घटी पूरी घटना बताई। दोनों दोस्तों ने उसे लाख हिदायतें दीं। फिर अरु, फ्रेश होने के बाद, कुछ देर में तीनों साथ में कैंटीन गए और कल घूमने की प्लानिंग करते हुए खाना खाया। दो दिन निकल गए थे, और इन बीते दो दिनों में राहुल और नैना अरु के साथ साये की तरह थे। इन बीते दो दिनों में उन्होंने साथ मिलकर इतनी मस्ती की थी कि अरु उस दिन अपने साथ हुए वाक्य को पूरी तरह भूल चुकी थी। हालाँकि, कहीं न कहीं उसके ज़हन में अभी भी अपनी मदद करने को लेकर दक्ष का शुक्रिया अदा न कर पाने का मलाल था। पिछले तीन दिनों से लगातार घूमने की वजह से सब लोग थक गए थे, इसीलिए आज सबने होटल में रुककर आराम करने का प्लान बनाया। शाम का वक्त था; राहुल और नैना अपने कमरों में सो रहे थे। अरु को नींद नहीं आ रही थी, इसीलिए वह नैना को बोलकर नीचे गार्डन में टहलने के लिए आ गई थी। अरु यूँ ही टहलते हुए होटल के चारों ओर और आस-पास पहाड़ों की खूबसूरती को निहार रही थी, कि तभी उसके कानों में किसी के खुद को पुकारने की आवाज़ पड़ी। उसने आवाज़ की तरफ़ पीछे पलटकर देखा, तो सामने दक्ष खड़ा था।


    दक्ष (कान से फोन लगाए हुए): "आरना....आरना कपूर?"


    आरना के पलटने के बाद दक्ष ने अपने फोन को एक नज़र देखा और फिर कुछ कह कर अरु की तरफ बढ़ गया।


    दक्ष: "हे! पहचाना मुझे?"

    अरु: "भला आपको कैसे भूल सकती हूं.... एम सॉरी एंड थैंक्यू!!"

    दक्ष (असमंजस से): "और ये किस लिए?"

    अरु: "सॉरी इसलिए कि उस दिन आपने मेरी इतनी मदद की..... और मैंने आपको एक थैंक्यू तक नहीं कहा। और थैंक्यू उस दिन का उधार था मुझ पर, इसीलिए....!!"

    दक्ष (मुस्कुरा कर): "नो नीड। इट्स टोटली ओके!"

    अरु: "वैसे आप भी सोच रहे होंगे कि कितनी अजीब लड़की है। मैंने इसकी इतनी मदद की और इसने एक थैंक्यू तक नहीं बोला!!"

    दक्ष: "नहीं, मैंने ऐसा कुछ नहीं सोचा और ना ही मैं ऐसा कुछ सोच रहा हूँ। इनफैक्ट, तुम्हारी जगह मैं भी होता तो शायद पैनिक और घबराहट में ऐसा कर जाता...इट्स नॉट अ बिग डील। और आप तो फिर भी उन मूँछों को देख कर घबरा गईं। मेरे तो महज़ एक छिपकली देख कर होश फाख्ता हो जाते हैं!!"

    अरु (हंस कर): "मगर मैंने तो सुना था कि छिपकली से अक्सर सिर्फ लड़कियां ही डरती हैं!!"

    दक्ष: "अरे ये तो बस दुनिया की दकियानूसी सोच है....और कुछ नहीं। वरना जान तो लड़कों में भी लड़कियों की तरह ही होती है ना...पता नहीं किस अज्ञानी ने लड़कों को दुनिया में टार्जन और आयरन मेन घोषित कर दिया है.... कि चाहे अंदर से लड़कों की आत्माएँ हिल जाएँ लेकिन ऊपर से उन्हें स्ट्रांग ही बने रहना है....(कूल अंदाज़ से)....देखो भाई मैं तो इक्वैलिटी में यकीन करता हूँ....जब लड़कियों के लिए लड़कों की तरह प्लेन उड़ाना इक्वैलिटी है....तो जाहिर है लड़कियों की तरह लड़कों का छिपकली से डरना भी इक्वैलिटी है.... फिर चाहे दुनिया कुछ भी बोले मैं तो इसी रूल को मानता भी हूँ और इसी पर चलता भी हूँ!"

    अरु (दक्ष की बात सुन कर हंस कर): "सच में आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई....यू नेल्ड इट ब्रो...यू नेल्ड इट!!!"


    अरु की बात सुन कर कुछ पल के लिए दक्ष के चेहरे के भाव गंभीरता में बदल गए.... और कुछ पल के लिए वह अरु को एकटक देखते हुए कुछ सोचने लगा।


    अरु: "क्या हुआ? आप ऐसे क्यों देख रहे हैं?...क्या मैंने कुछ गलत कह दिया??"

    दक्ष: "अरे नहीं नहीं, बिल्कुल भी नहीं। बस तुम्हें देख कर आज मन में अचानक एक ख्याल आ गया.....जो पहले कभी नहीं आया!!"


    तभी पीछे से राहुल और नैना वहाँ आ पहुँचे और अरु के कुछ जवाब देने से पहले ही राहुल ने दक्ष को जवाब दे दिया।


    राहुल (दक्ष की तरफ सख्त भाव से देखते हुए): "यही ख्याल ना कि ऐसी लड़की तुमने पहली बार देखी है..... और इसे देखते ही तुम पहली नज़र में अपना दिल हार बैठे और ऐसी ही बहुत सारी बातें ब्लाह-ब्लाह....राइट?"

    अरु (राहुल की बाजू भींचते हुए): "राहुल! ये क्या कुछ भी बोल रहा है तू!!!"

    राहुल: "अरु! तू नहीं जानती ऐसे लड़कों को। इनको बस तेरी जैसी भोली-भाली लड़कियों को अपनी मीठी-मीठी बातों में फँसाना आता है!!"

    दक्ष: "वोह मेन!!....जस्ट रिलेक्स ड्यूड...लगता है बॉलीवुड मूवी के अच्छे खासे फ़ैन हो तुम....बट फ़ॉर योर काइंड इनफ़ॉर्मेशन तुम्हें बता दूँ कि बॉलीवुड मूवीज के विलेन्स से मेरा कोई नाता नहीं और ना ही ऐसी कोई हरकतें हैं मेरी!"

    अरु: "एम सॉरी दक्ष जी। राहुल की तरफ से मैं आपसे माफ़ी माँगती हूँ.... दरअसल ये दोनों मेरे दोस्त हैं और उस दिन मेरे साथ हुए हादसे से ये दोनों डर गए थे....इसीलिए बस राहुल थोड़ा ओवर रिएक्ट कर गया.....(राहुल की तरफ देख कर).....राहुल! दक्ष जी ही वही इंसान है जिसके बारे में मैंने तुम दोनों को बताया था.... और जिनकी वजह से मैं उस दिन सेफली होटल वापस लौट पाई थी!!"

    राहुल (दक्ष की तरफ देख कर): "एम सो सो सॉरी....मैंने बस आपकी बातें सुनीं और बस गलत समझ बैठा....इनफैक्ट मैं तो आपका दिल से शुक्रगुज़ार हूँ कि आपने मेरी दोस्त की इतनी हेल्प की....थैंक्यू सो मच!!"

    दक्ष: "इट्स ओके.....और रही मेरी बातें तो भले ही मेरी बातों के मतलब सुनने में थोड़े अजीब लग रहे हों लेकिन मेरा मतलब कुछ और ही था!!"

    नैना: "और वो क्या?"

    दक्ष (अपना सर ना में हिलाते हुए): "नथिंग। जस्ट लीव इट!!"

    अरु: "मैं उस दिन के बाद से इतना तो समझ चुकी हूँ कि ना ही आपकी नियत में और ना ही आपके दिल में कोई खोट हो सकता है। इसीलिए मैं ज़रूर जानना चाहूँगी कि आप क्या कहना चाहते थे!!"

    राहुल: "हाँ प्लीज़ बताएँ ना!"

    दक्ष (अरु की तरफ देख कर): "कुछ नहीं। बस अभी जब तुमने थोड़ी पहले कहा कि यू नेल्ड इट ब्रो....तो बस उसे सुन कर कुछ अजीब सा लगा!!"

    राहुल (हंस कर): "ओह! अब समझा। मतलब कॉमन बॉयज़ प्रॉब्लम.....लड़की का ब्रो बोलना बर्दाश्त नहीं!!"

    दक्ष (हंस कर): "यार! तुम हमेशा ही ऐसी फ़ालतू और अजीब बातें सोचते हो या फिर आज ही कुछ नया है....(राहुल असमंजस से दक्ष की तरफ देखने लगा!)....अरे यार! तुम नहीं समझोगे....दरअसल बात ये थी कि सिवाय कुछ खास दोस्ती जैसे रिश्तों के सिवाय मेरे पास इस दुनिया में दूसरा कोई रिश्ता नहीं है..... और कभी मुझे उसकी ज़रूरत भी नहीं महसूस हुई.....मेरे एक खास दोस्त, मेरे बेस्ट फ़्रेंड ने मेरी ज़िंदगी में हर कमी को पूरा भी किया है। लेकिन आज पहली बार....(आरना की तरफ देख कर)....पहली बार मुझे तुम्हें देख कर ना जाने क्यों ऐसा लगा कि अगर मेरी कोई बहन होती....तो वह बिल्कुल तुम्हारी तरह प्यारी और मासूम सी होती.....और जब तुमने मुझे ब्रो कहा ना तो ये शब्द सीधा मेरे दिल को छू गया.....(हल्का सा मुस्कुरा कर).....खैर मैं भी क्या बातें ले कर बैठ गया....आप लोग भी सोच रहे होंगे कि कितना अजीब पागल इंसान है.... पहली-दूसरी मुलाक़ात में ही ऐसी अजीब सी बातें कर रहा है.... पर जो भी हो मुझे वाकई में आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा आरना!!"

    अरु: "बिल्कुल भी नहीं। हम में से ऐसा कोई कुछ नहीं सोच रहा.... और हाँ एक बात और। जो लोग मुझसे जुड़े होते हैं.... या मेरे अपने होते हैं.... वो मुझे आरना या आप कह कर नहीं बल्कि सिर्फ़ अरु कह कर बुलाते हैं!!"

    दक्ष: "मतलब मैं कुछ समझ नहीं?"

    अरु: "मतलब ये कि अगर आप जैसे भले और अच्छे इंसान की बहन कहलाने का मौका मुझे मिलेगा....तो यकीनन ये मेरी खुशनसीबी होगी.... और फिर जिस रिश्ते से आप दूर रहे हैं....कहीं ना कहीं मैं भी अपनी अब तक की ज़िंदगी में इस रिश्ते से महरूम रही हूँ... कहीं ना कहीं शायद आप के रूप में अब ये कमी पूरी हो जाए!!"

    दक्ष: "सोच लो। क्योंकि अगर मैं एक बार रिश्ता जोड़ता हूँ....तो फिर ताउम्र मुझे झेलना ही पड़ता है.... फिर बचने का कोई ऑप्शन नहीं होता!!!"

    अरु (मुस्कुरा कर): "मंज़ूर है!!!"

    दक्ष (अरु की तरफ अपना हाथ बढ़ा कर): "तो फ़ाइनली अब ज़िंदगी भर मेरी बिन सिर पैर की बातों और मुझे झेलने की डील डन!!!"

    अरु (मुस्कुरा कर): "हंड्रेड परसेंट डन!!"


    इसके बाद, कुछ समय बाद, मौसम ठंडा होने की वजह से सब लोग अपने कमरों में चले गए। और तभी अरु को यह मालूम हुआ कि दक्ष भी इसी होटल में ठहरा है। हालाँकि, राहुल ने दक्ष पर शक जताते हुए अरु को चौकन्ना रहने के लिए कहा। लेकिन अरु ने यह उसकी गलतफ़हमी कहकर बात को टाल दिया.....पन्द्रह दिन गुज़र गए थे। आरना को दक्ष से मिले और इस बीते एक हफ़्ते में अरु और दक्ष की बॉन्डिंग बहुत अच्छी हो चुकी थी। जैसे वो कुछ दिनों से नहीं, बल्कि एक अरसे से एक-दूसरे को जानते हों। और कहीं न कहीं अब राहुल भी दक्ष की साफ़ नियत को पहचान चुका था, और उसके साथ राहुल ने भी काफ़ी अच्छा वक़्त बिताया.....अब आरना लोगों के वापस जाने में सिर्फ़ दो-चार दिन ही बाकी थे। इसीलिए आज दक्ष ने उन लोगों को अपने साथ शिमला घूमने के लिए कहा। और क्योंकि दक्ष की पहुँच ऊँची थी, इसीलिए कॉलेज के टीचर्स ने भी उन लोगों को नहीं रोका।

    दक्ष और अरु ने राहुल और नैना के साथ मिलकर एक साथ खूब मस्ती की। इनका पूरा दिन हँसता-खेलता ही गुज़रा। दक्ष ने सबके साथ काफ़ी पिक्चर्स भी क्लिक कीं, और आरना के साथ भी उसने कई यादें कैमरे में कैद कीं। किसी फ़ोटो में उसने चिढ़ाने वाले भाई की तरह अरु के गालों को खींचा हुआ था, तो किसी फ़ोटो में एक झगड़ालू भाई की तरह अरु के बालों को ख़राब किया हुआ था। किसी फ़ोटो में एक प्यारे से भाई की तरह उसके सर को चूमा हुआ था, तो कहीं उसे प्यार से गले लगाया हुआ था.....कुल मिलाकर यह टूर सबके लिए बहुत ही यादगार और ख़ूबसूरत रहने वाला था। शाम को सूरज ढलने तक सब वापस होटल आ पहुँचे थे...अगले दिन, रोज़ की तरह तड़के सुबह ही, अरु बाहर गार्डन में आकर उगते हुए सूरज की ख़ूबसूरती को निहार रही थी, कि तभी दक्ष भी वहाँ आ पहुँचा!


    दक्ष: "वेरी गुड मॉर्निंग अरु!"

    अरु: "गुड मॉर्निंग!!"

    दक्ष: "सो फ़ाइनली अब दो-चार दिन में वापस चले जाओगे तुम लोग!!"

    अरु: "हाँ और अब हमारा मिलना मुंबई में ही होगा!!"

    दक्ष: "हाँ ये तो अच्छा है कि हम एक ही सिटी में रहते हैं। और वैसे हमने एड्रेस एक्सचेंज कर ही लिया है तो मैं मुंबई पहुँचते ही तुमसे मिलने ज़रूर आऊँगा!"

    अरु (मुस्कुरा कर): "हाँ ज़रूर आना। और अगर एड्रेस ढूँढने में कोई दिक्कत हो तो मुझे कॉल करना!!"

    दक्ष: "हाँ बिल्कुल करूँगा....पता है मैं शिमला कई बार आया हूँ लेकिन इस बार जितना खूबसूरत नहीं रहा है ये टूर!!"

    अरु: "और इसकी वजह क्या है???"

    दक्ष: "इसकी दो वजह हैं....पहली तो ये कि....(अरु की नाक पकड़ते हुए)....मुझे ये क्यूट सी बिल्ली जैसी बहन मिली!!"

    अरु (शरारत भरी मुस्कुराहट के साथ): "और दूसरी?"

    दक्ष (अपनी गर्दन के पिछले हिस्से को खुरचते हुए): "दूसरी ये कि...."

    अरु (दक्ष को छेड़ते हुए): "दूसरी वही बंदरिया ना जिसके पीछे मेरा ये बंदर भाई पागल हो रखा है!!"

    दक्ष (हैरानी से): "लेकिन तुम्हें कैसे पता ये सब?"

    अरु (शरारती मुस्कान के साथ): "अब दरअसल वो क्या है ना, रिश्ता बनाया है तो निभाना भी पड़ेगा ना...मतलब पूरी खबर तो रखनी पड़ेगी ना....और वैसे भी जब कोई इंसान दिन में ज़्यादा वक़्त में ग़ायब रहे....और अपने फ़ोन के एक नोटिफ़िकेशन पर चौकन्ना हो जाए.... और भी ऐसी ही बहुत सारी बातें...एक्चुअली इतना मुश्किल भी नहीं है ऐसी सिचुएशन को प्रेडिक्ट करना!!"

    दक्ष (मुस्कुरा कर): "हम्मम! तो ये बात है.....वैसे मैंने सबसे पहले ये बात तुम्हें ही बताई है....इनफैक्ट मैंने अभी तक ये बात अपने दोस्तों और अपने खास दोस्त रिदु को भी नहीं बताई.....और जानती हो जब मैं ये बात उसे बताऊँगा ना तो वो खुशी से पागल ही हो जाएगा....बहुत चाहता है वो मुझे। सगे भाई से बढ़कर परवाह है उसे मेरी!!"

    अरु: "हम्मम! और तुम्हारे लिए भी वो बहुत खास है ना क्योंकि अक्सर जब भी तुम अपने बेस्ट फ़्रेंड की बातें करते हो..... तो हमेशा सिर्फ़ उसकी तारीफ़ों के पुल ही बाँधते हो....लगता है एक बार तो मुझे भी मिलना पड़ेगा उससे!!"

    दक्ष: "हाँ ज़रूर। लेकिन सबसे पहले तुम मुझे एक बात बताओ?"

    अरु: "हाँ ज़रूर पूछो ना!"

    दक्ष: "तुम्हारी लाइफ़ में कोई है क्या??....आई मीन राहुल या फिर कोई और सम वन स्पेशल?"

    अरु: "नॉट एट ऑल.....मैं ना अपनी लाइफ़ से बहुत खुश हूँ....फ़ैमिली, फ़्रेंड्स, अपनी एजुकेशन एंड बस लाइफ़ सुकून से भरी है....ये रिलेशनशिप एंड ऑल मुझसे नहीं झेले जा सकते...और रही राहुल की बात तो वो बस मेरा बेस्ट फ़्रेंड है....जैसे तुम और रिदु....राहुल तो मेरे लिए मेरी फ़ैमिली की तरह है....एक दोस्त, भाई, मेंटर सब रिश्ते जीए हैं मैंने उसके साथ..... (मुस्कुरा कर).....लेकिन उसके अकॉर्डिंग हमारा सबसे खास रिश्ता दोस्ती का है....यू नो बीएफ़एफ़....बाकी मेरी लाइफ़ में कोई नहीं और फ़िलहाल तो कोई आने वाला भी नहीं....मुझे ना परमानेंट कमिटमेंट चाहिए.... और जिस दिन मुझे कोई ऐसा मिला तो मैं फ़ौरन उसे हाँ कह कर शादी कर लूँगी!!"

    दक्ष (मुस्कुरा कर अपने हाथ को घुमाते हुए): "वाह! क्या प्लानिंग है। इम्प्रेसिव....यू नो व्हाट आई थिंक तुम और मेरा दोस्त मुझे लगता है दोनों एक दूसरे के लिए बिल्कुल परफ़ेक्ट हो.... (अरु को छेड़ते हुए)....हालाँकि मेरा दोस्त तुम्हारी तरह स्वीट नहीं है..... लोग उसे थोड़ा सडू, एक्चुअली बहुत ज़्यादा सडू कहते हैं.... और तो और उसके आगे अक्सर बोलने से भी लोग डरते हैं....वैसे तो तुम्हें पहली बार देखते ही मेरे मन में रिदू का ख्याल आया था.... लेकिन अब जबकि तुमने बता ही दिया है कि रास्ता बिल्कुल साफ़ है तो ये बात बिल्कुल तय रही.... कि तुम तो मेरे रिदू के लिए ही हो....आई मीन मैंने उसके लिए तुम्हें तुमसे माँग लिया!!"

    अरु: "ओह हैलो! कैसे भाई हो तुम....अपने उस सडू से एरोगेंट दोस्त के लिए जिसके आगे लोगों की जुबान भी नहीं खुलती अपनी इस मासूम सी बहन को निवाला बना कर डालना चाहते हो??.... हाउ मीन ना.....(झूठ-मूठ का रूठते हुए)....जाओ मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी!!"

    दक्ष (आरना को परेशान करते हुए): "अरे तो मेरा दोस्त करोड़ों में एक है....और भले ही वो दुनिया के लिए कितना भी एरोगेंट और गुस्सैल-सडू क्यों ना हो.... मगर जिन्हें वो चाहता है....उनके लिए उसकी जान भी हाज़िर होती है....यू नो लड़कियाँ उसकी एक झलक के लिए मर-मिटने के लिए तैयार रहती हैं.... तो तुम सोचो कि कितनी लकी होगी तुम जो उसकी लाइफ़ पार्टनर बनोगी!!!"

    अरु (चिढ़ कर): "हाँ जैसे मैं तो कोई भी राह चलती लड़की हूँ...है ना???"

    दक्ष: "अरे मैंने ऐसा कब कहा......आखिर से तुम मेरी बहन हो। अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी तो मुझे उठानी ही पड़ेगी ना....(अरु को छेड़ते हुए)...हाँ माना कि भले ही तुम मेरे दोस्त जितनी ख़ूबसूरत ना सही....थोड़ी टेडी-मेडी हो पर इट्स ओके.... मेरा दोस्त मेरी कोई बात नहीं टालता....और मेरे लिए वो इतनी कुर्बानी तो खुशी-खुशी दे ही सकता है!"

    अरु (चिढ़ कर दक्ष के कांधे पर पंच मारते हुए): "दक्ष के बच्चे....बहुत बुरे हो तुम....डोंट टॉक टू मी...जाओ अब जाकर अपने उसी सडू और घमंडी दोस्त से जा कर बात करो.... और इस बार राखी भी अपने उस ख़ूबसूरत सडू दोस्त से बंधवा लेना...(अपनी जगह से उठ कर)...जा रही हूँ मैं!!"

    दक्ष (हंसते हुए जाती हुई अरु को रोकने की कोशिश करते हुए): "अरे सुनो तो अरु! मैं बस मज़ाक कर रहा था!!"

    अरु (जाते हुए बिना मुड़े ही): "बात मत करना तुम मुझसे!!"


    दक्ष हंसते हुए अरु को रोकने की कोशिश की लेकिन अरु बिना रुके वहाँ से चली गई...दक्ष अरु के पीछे जाता, उससे पहले ही उसका फ़ोन बज उठा.... और उसने स्क्रीन पर नंबर देख जल्दी से फ़ोन उठाया.... फिर कुछ पल बाद ही जल्दबाजी में थोड़े परेशानी के भाव लिए हुए अपनी गाड़ी ले कर वहाँ से निकल गया........

  • 8. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 8

    Words: 1487

    Estimated Reading Time: 9 min

    दक्ष ने हँसते हुए अरु को रोकने की कोशिश की, लेकिन अरु बिना रुके वहाँ से चली गई। दक्ष अरु के पीछे जाने ही वाला था कि उसका फ़ोन बज उठा। उसने स्क्रीन पर नंबर देखा, जल्दी से फ़ोन उठाया, और कुछ पल बाद थोड़े परेशान भाव लिए, अपनी गाड़ी लेकर वहाँ से निकल गया।

    अगले दिन, सुबह से शाम हो चुकी थी, लेकिन अरु को दक्ष न तो मिला और न ही वह होटल वापस आया। उसका फ़ोन भी बंद था। अब अरु को सच में दक्ष की टेंशन होने लगी थी। अरु अपने कमरे में दक्ष के बारे में सोच ही रही थी कि घबराया हुआ राहुल उसके पास आया।

    "अरु," उसने कहा, "उसके पिता, मि. कपूर का एक्सीडेंट हो गया है और हमें अभी-अभी मुंबई के लिए निकलना होगा।"

    अपने पापा के एक्सीडेंट की बात सुनकर अरु बुरी तरह घबरा गई और उसका रोना निकल आया। राहुल और नैना ने जैसे-तैसे उसे संभाला। क्योंकि बाकी लोग कल वापसी करने वाले थे, इसलिए राहुल ने टीचर्स को सारा माजरा बताया और प्रिंसिपल से बात करके उन्हें इन्फॉर्म करने के बाद, वह अरु और नैना के साथ होटल से निकल पड़ा।

    अरु परेशान सी, खिड़की से बाहर देखते हुए अपने पापा के बारे में सोच रही थी और लगातार उनकी सलामती की दुआएँ कर रही थी। अचानक उनकी गाड़ी के ड्राइवर ने झटके से ब्रेक लगाते हुए गाड़ी रोकी। इससे कुछ पल के लिए सबका बैलेंस बिगड़ गया। हुआ यूँ था कि अचानक उनकी गाड़ी के सामने ऊपर पहाड़ी से कुछ भारी-भरकम चीज़ आ गिरी थी, और ऐन मौके पर ड्राइवर ने गाड़ी के ब्रेक लगा दिए थे।

    ड्राइवर के साथ राहुल भी गाड़ी से नीचे उतरा। जब ड्राइवर और राहुल ने किसी इंसान को पेट के बल, अपनी गाड़ी के आगे जख्मी और बेहोशी की हालत में देखा, तो दोनों घबरा गए। उन दोनों को घबराया देखकर अरु और नैना भी गाड़ी से नीचे उतर आईं। तब तक आस-पास की गाड़ियों के लोग भी वहाँ जमा हो चुके थे।

    जैसे ही ड्राइवर और राहुल ने उस शख्स की मदद करने के लिए उसे उठाकर गाड़ी में ले जाने की कोशिश की, अरु लोगों के होश उड़ गए। वे शॉक होकर उस शख्स को देखने लगे, जो कोई और नहीं बल्कि दक्ष था। दक्ष को इस हालत में देखकर अरु लगभग चीखते हुए उसका नाम पुकार उठी, और नैना ने उसे संभाला। वहीं मौजूद कुछ लोगों की मदद से राहुल और ड्राइवर ने बेहोश दक्ष को गाड़ी में रखा और उसे लेकर सब हॉस्पिटल के लिए निकल गए।

    हॉस्पिटल पहुँचकर दक्ष को इमरजेंसी वार्ड में ले जाया गया, और उसका ट्रीटमेंट तुरंत शुरू किया गया। पुलिस को भी इत्तिला कर दी गई। तभी अरु को एक डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर से बाहर आते हुए नज़र आया, और वह जल्दी से उनकी तरफ बढ़ गई। राहुल और नैना भी उसके साथ उसी ओर बढ़ चले।

    "डॉक्टर साहब," अरु ने पूछा, "दक्ष कैसा है?"

    "किस पेशेंट की बात कर रही हैं आप?" डॉक्टर ने पूछा।

    "जिसे अभी कुछ देर पहले अंदर ले जाया गया है!" अरु ने कहा।

    "ओह आप उन्हीं के साथ हैं?" डॉक्टर ने कहा।

    "जी," राहुल ने कहा, "हम एक ही होटल में ठहरे थे!"

    "ओह!...तो आप उनकी फैमिली को यहां आने की इत्तिला कर दीजिए!!" डॉक्टर ने कहा।

    "डॉक्टर साहब," अरु घबराते हुए बोली, "आखिर बात क्या है?"

    "देखिए," डॉक्टर ने कहा, "उनके सर पर काफी गहरी चोट आई थी जिसकी वजह से उनका काफी ब्लड भी लॉस हो गया....हमने बहुत कोशिश की उन्हें बचाने की लेकिन हम उन्हें बचा नहीं सके....एम सॉरी!!!"

    ज्यों ही डॉक्टर के मुंह से ये शब्द निकले, त्यों ही अरु, शॉक्ड और अविश्वास से भरकर, वहीं टेबल पर धम्म से बैठ गई। उसकी आंखों के सामने एक-एक करके दक्ष के साथ बीते मीठे पल घूमने लगे। भले ही उसे दक्ष से मिले ज़्यादा वक्त नहीं हुआ था, लेकिन फिर भी अरु को उसके साथ एक गहरा लगाव हो गया था। उसे ऐसा महसूस ही नहीं होता था जैसे वो दक्ष को अभी बस कुछ दिनों पहले ही जानी हो। दक्ष के साथ जो सेफ़्टी और कम्फ़र्ट महसूस होता था, वो ऐसा लगता था जैसे मानो दक्ष से जुड़े जज़्बातों का उसका रिश्ता महज़ कुछ दिनों का नहीं, बल्कि एक अरसे का हो। और फिर दक्ष का नेचर और उसकी खुशमिज़ाज़ी भी ऐसे थे कि कोई भी, जो उससे एक बार मिले, उससे लगाव लगाए बिना रह ही नहीं पाता था। और यही वजह थी कि आज जब अरु ने दक्ष की मौत की खबर सुनी, तो ना सिर्फ़ उसे एक गहरा धक्का लगा था, बल्कि एक दुख भरी टीस के साथ उसका दिल तकलीफ़ से भर आया था। ना जाने कितनी देर तक वो यूँ ही शून्य को निहारती हुई आँसू बहाती रही।

    काफ़ी देर तक भी अरु ने कोई रिएक्शन नहीं दिया, तो आखिर में राहुल उसके पास आया।

    "अरु," राहुल ने कहा, "हमें चलना होगा!!"

    "ले...लेकिन दक्ष?" अरु ने दुखी भरी भावुकता से पूछा।

    "अभी कुछ लोग दक्ष के बारे में पता करते हुए यहां आए हैं..... तो जो भी अब दक्ष का करीबी होगा वो उसे इत्तिला कर देंगे...!!" राहुल ने समझाया।

    "लेकिन हम ऐसे कैसे जा सकते हैं.....(भावुकता से)....अभी तो हमनें एक आखिरी बार दक्ष को देखा तक नहीं?? " अरु ने आँसुओं भरी आँखों से कहा।

    "मैं जानता हूं इस इंसीडेंट से तू बहुत हर्ट हुई है लेकिन जिंदगी और मौत तो ईश्वर के हाथ में है....ये सब हमारे हाथ में नहीं है...जो कुछ भी हुआ उसका हम सबको ही बहुत दुख है.... लेकिन जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता अरु और फिर अंकल को भी हमारी जरूरत है वो हॉस्पिटल में है अरु हमें जल्द से जल्द उनके पास पहुँचा होगा....पता नहीं वो कैसे होंगे!!" राहुल ने कहा, अपने घुटनों पर बैठते हुए कुर्सी पर बैठी अरु का हाथ थामते हुए।

    "हम्मम...लेकिन क्या एक आखिरी बार मैं.... मैं दक्ष से मिल सकती हूँ?" अरु ने ना चाहते हुए भी हामी भरते हुए पूछा।

    "मैं नहीं चाहता कि तू उसे इस हालत में देख कर और भी ज्यादा टूटे....मैं चाहता हूँ जो पिछले कुछ दिनों में उसके साथ तूने जो भी खूबसूरत यादें जिया हैं तू उन्हें ही आगे आने वाली जिंदगी में सँजो कर रखे.....(अरु का हाथ मजबूती से थामते हुए)....शायद बस किस्मत में हमारा और उसका साथ यही तक था!!!" राहुल ने अरु के आँसू साफ़ करते हुए कहा।

    राहुल की बात सुनकर अरु बस खामोश हो गई। हालांकि, वह यहां से जाना नहीं चाहती थी, लेकिन यह भी जान और समझ रही थी कि राहुल ने जो कुछ भी कहा, वह बिल्कुल ठीक कहा है। शायद दक्ष को इस हालत में देखकर वह नहीं सह पाती, और फिर इस वक्त उसके पिता को भी उसकी ज़रूरत थी। इसलिए, अरु दुखी मन और बोझिल कदमों से राहुल और नैना के साथ हॉस्पिटल से बाहर जाने लगी। एक बार, आखिरी बार, अरु ने नम और मायूस आँखों से ऑपरेशन थिएटर की तरफ देखा और फिर बिना रुके वहाँ से बाहर निकल गई। एक तरफ अरु की गाड़ी हॉस्पिटल से निकली थी, तो वहीं दूसरी तरफ रिदांश की गाड़ी हॉस्पिटल के बाहर आकर रुकी।

    (फ्लैशबैक एंड.....)

    अरु अतीत को सोचते-सोचते दक्ष के कमरे में ही चली आई थी....जहाँ उसकी केयरटेकर कुर्सी पर बैठे-बैठे ही सोई हुई थी.... और अतीत को याद करते हुए अरु की आँखें एक बार फिर छलक आई थीं!!!

    "तुम जानते हो बंदर," अरु ने दक्ष का बेजान हाथ थामते हुए कहा, "तुम्हें ज़िंदा देखकर मुझे कितनी खुशी हुई..... लेकिन मेरी बदकिस्मती देखो मैं इस खुशी को अच्छे से दो पल भी मना नहीं पाई......(भावुकता से मुस्कुरा कर)...देखो तुमने अपने खड़ूस दोस्त के साथ मेरी शादी के लिए जो मुझे बद्दुआ दी थी....वो भी पूरी हो गई.....और देखो आज मैं उस खड़ूस के साथ भी हूँ....(मायूसी से)...या फिर शायद साथ होकर भी साथ नहीं......(अपनी आँखों के कोने साफ़ करते हुए)......खैर अब तुम जल्दी से ठीक हो जाओ और फिर अपने उस अकडू और खड़ूस दोस्त को समझाना....जिन्हें लगता है बस उनका सोचा-समझा सही है और....."

    आरना आगे कुछ कह पाती, उससे पहले ही उसके कानों में शरीर में सिरहन पैदा करने वाली रिदांश की डार्क और सख्त आवाज़ पड़ी। जिसे सुनकर अरु के साथ ही वहाँ सोई नर्स भी उछल कर अपनी जगह से खड़ी हो जाती है!!!

    "व्हाट दी हेल आर यू डूइंग हेअर....(अपने हाथों को अपनी पैंट की पॉकेट में डालते हुए!)....यहां किस लिए रखा गया है तुम्हें हां?? " रिदांश ने सख्त और डार्क लहजे में नर्स की तरफ देखते हुए कहा।

    "सो...सॉरी सर!" नर्स लगभग काँपते हुए बोली।

    "गेट आउट फ्रॉम हेअर!!" रिदांश ने धीरे मगर डेंजर लहजे में कहा।

    "सो...सो....सॉरी स..." नर्स डर से सूखे गले से बोली।

    "आई सैड लीव....राइट नाउ!!" रिदांश लगभग चिल्लाते हुए बोला।

    रिदांश का गुर्राना सुनकर, नर्स के साथ ही आरना भी अपनी जगह उछल पड़ी थी। रिदांश का गुस्सा देखकर वो नर्स फौरन वहाँ से काँपते हुए निकल गई। अब रिदांश की नज़रें और कदम दोनों अरु की तरफ घूम गए। उसकी गुस्से से लाल आँखें और उसका सख्त, ख़तरनाक भाव अरु के हाथ पर था, जिसने दक्ष के हाथ को मज़बूती से थाम रखा था। यह देखकर रिदांश की मुट्ठियाँ और जबड़े गुस्से से तन गए थे। इस पल उसकी आँखों और भाव से इतना गुस्सा छलक रहा था कि अगर घूरने से सच में कुछ हो पाता, तो इस वक्त रिदांश की पैनी नज़रों के प्रभाव से यकीनन अरु दस फीट ज़मीन के अंदर चली जाती...

  • 9. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 9

    Words: 1478

    Estimated Reading Time: 9 min

    रिदांश की निगाहें और कदम दोनों आरना की ओर मुड़ गए थे। उसकी गुस्से से लाल आँखें और सख्त चेहरा आरना के हाथ पर टिका हुआ था, जिसने दक्ष के हाथ को मज़बूती से पकड़ा हुआ था। यह देखकर रिदांश की मुट्ठियाँ और जबड़े गुस्से से कस गए थे। इस पल उसकी आँखों और भाव से इतना गुस्सा झलक रहा था कि अगर घूरने से कुछ होता, तो यक़ीनन आरना रिदांश की तीखी निगाहों के असर से दस फीट ज़मीन में समा जाती।

    रिदांश की गंभीर निगाहों को देखते हुए, आरना ने अपने हाथ पर ध्यान दिया और तुरंत दक्ष का हाथ छोड़कर, सावधानी से उसे वापस बिस्तर पर रख दिया। जैसे ही वह कमरे से बाहर जाने के लिए रिदांश के पास से गुज़री, रिदांश ने उसकी बाजू पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया। कुछ पल सर्द निगाहों से आरना को देखने के बाद, आखिरकार रिदांश ने अपनी जुबान खोली।

    "अभी तो दक्ष होश में भी नहीं है तो फिर ये सब ड्रामा किसलिए और क्यों....??", रिदांश ने तंज भरे लहजे में कहा।

    "जिस तरह से आप मेरे सवालों का जवाब देना जरूरी नहीं समझते..... ठीक उसी तरह मैं भी आपके हर सवाल का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हूँ!!", आरना ने रिदांश की आँखों में देखते हुए कहा।

    "कॉन्फिडेंस हां....नॉट बेड....इंप्रेसिव........", रिदांश ने तंज भरी मुस्कान के साथ कहा। "आई थिंक जिस तरह से तुमने दक्ष का हाथ थामे हुआ था.... ऐसे तो तुमने कभी मेरा भी हाथ नहीं थामा आज तक...नई वाइफी??....." आरना एक पल को फ्रस्ट्रेशन से अपनी आँखें बंद कर के गहरी साँस लेती है। अचानक ही आरना की बाजू पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए रिदांश सख्त भाव से बोला, "...इसी तरह से लवी-डबी बन के दक्ष के हाथों में हाथ डाल कर तुमने दक्ष को अपने जाल में फंसाया होगा ना....हूं??.....!!"

    "आप मुझे एक बात बताएं.... आप को ज्यादा बुरा लग किस बात का रहा है..... ये कि मैंने दक्ष का हाथ थामा??..... या फिर ये.... कि मैंने कभी आपका हाथ इस तरह से नहीं थामा??.....", आरना ने अपनी भौहें उचकाते हुए कहा। "जलन हो रही है आपको?......हाँ, नहीं थामा मैंने आपका हाथ कभी.... और ना ही थाम सकती हूँ..... क्योंकि दक्ष के आस-पास मुझे एक सेफ्टी भरी सहजता महसूस होती है..... और आपके आस-पास सिर्फ आपका गुस्सा झेलने का डर......", आरना ने रिदांश की आँखों में देखते हुए कहा। "और एक बात याद रखियेगा मेरी.... जिस दिन भी आपको सच पता चलेगा ना आप बहुत पछताएँगे उस दिन......बहुत पछताएँगे!!!"


    आरना के मुंह से जलन वाली बात सुनकर, ना जाने क्यों, रिदांश का गुस्सा और फ़्रस्ट्रेशन और बढ़ गए थे। वो और उसका दिमाग लगभग चिल्लाकर उसे कहना चाहते थे कि आरना गलत है, और वो कभी भी उसे लेकर किसी भी तरह की जलन अपने मन में रख ही नहीं सकता। लेकिन पता नहीं क्या था जिसने उसे इस पल कुछ भी कहने से रोका हुआ था। कुछ पल बाद, वो आगे बिना कुछ कहे, गुस्से से दक्ष के कमरे से बाहर चला गया। कुछ पल बाद, एक नज़र दक्ष को देखने के बाद, आखिर में आरना भी कमरे से बाहर चली गई।


    शाम को, पार्टी के लिए अनिकेत तैयार हो चुका था और बाहर गाड़ी में नम्या का इंतज़ार कर रहा था। कुछ पल बाद, एक काले रंग की स्टाइलिश वेस्टर्न स्टाइल ड्रेस पहने नम्या वहाँ आई। उसने अपने घने बालों को कर्ली किया हुआ था, हाथ में हीरे का ब्रेसलेट पहना था और कानों में हीरे के खूबसूरत इयरिंग्स भी। आँखों पर स्मोकी मेकअप और होंठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक थी। कुल मिलाकर, नम्या बहुत ही खूबसूरत और एलीगेंट लग रही थी। अनिकेत की नज़र जब नम्या पर पड़ी, तो उसके होठों पर एक बड़ी, प्यारी सी मुस्कान आ गई!!

    "तो मोहतरमा आज किसे अपनी खूबसूरती और दिलकश अदाओं से मारने का इरादा है?", अनिकेत ने नम्या की खूबसूरती को निहारते हुए मुस्कुरा कर पूछा।

    "वैल कोई ना कोई तो मिल ही जाएगा....देखते हैं!!", नम्या ने प्राउडली स्माइल के साथ कहा।

    "कोई क्या मुझे तो लगता है आज कइयों की शामत आने वाली है!!", अनिकेत ने कहा।

    "तो फिर देर किस बात की चलो चलते हैं.... लोगों की शामत बुलाने के लिए!!", नम्या ने मुस्कुरा कर कहा।

    "या शियौर!!", अनिकेत ने नम्या के लिए गाड़ी का दरवाजा खोल कर उसे बैठाते हुए कहा।


    इसके बाद अनिकेत भी ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ जाता है, और दोनों वहाँ से पार्टी के लिए निकल जाते हैं। कुछ देर बाद, अनिकेत अपनी गाड़ी एक बहुत ही शानदार और बड़े से होटल के आगे ले जाकर रोकता है। गाड़ी से उतरकर, वह वहाँ खड़े गार्ड्स को अपनी गाड़ी पार्क करने के लिए चाबी देता है। फिर, वह नम्या की तरफ़ बढ़ता है, उसकी साइड का दरवाज़ा खोलता है, और उसे बाहर आने के लिए अपना हाथ देता है। नम्या खुशी से हाथ थामते हुए गाड़ी से बाहर आ गई। इसके बाद, अनिकेत ने उसकी कमर में अपनी बाँह डालते हुए उसे अंदर चलने का इशारा किया। नम्या ने भी अनिकेत की बाँह के इर्द-गिर्द अपनी बाँह लपेटते हुए उसके साथ अंदर की तरफ़ चल पड़ी। वहाँ मौजूद मीडिया के कैमरे उनकी तस्वीरें कैद करने लगे। जैसे ही उन्होंने हॉल में कदम रखा, ज्यादातर लोगों की नज़रें उन पर ही ठहर गईं। इसकी दो वजहें थीं: पहली, वे दोनों ही जाने-माने नामी चेहरे थे; दूसरा, अनिकेत यूएस के टॉप बैचलर्स बिज़नेसमैन में से एक था, और नम्या रिदांश की बहन होने के साथ-साथ अपने किलर लुक और एटीट्यूड के चलते भी काफी मशहूर थी। अनिकेत नम्या को लेकर अपने दोस्त के पास स्टेज पर गया, उसे सगाई की मुबारकबाद दी, और अपने साथ लाया हुआ कीमती तोहफ़ा उसे दिया। नम्या ने भी उस कपल को मुबारकबाद दी, और फिर दोनों स्टेज से नीचे चले आए। पार्टी काफी हाईफ़ाई और बड़ी थी, जिसमें बहुत ही चुनिंदा और नामी लोग शामिल हुए थे। नम्या और अनिकेत जूस काउंटर के पास कुर्सी पर बैठे, वहाँ मौजूद लोगों को देख रहे थे। ज्यादातर लोगों की, खासकर लड़कों और लड़कियों की, नज़रें उन दोनों पर ही टिकी थीं।


    "तुम तो कुछ की ही शामत बुलाने के इरादे से आई थीं....जबकि यहां तो पचासियों लोग लाईन लगाए खड़े हैं!!!", अनिकेत ने कहा।

    "हम्मम लेकिन तुम्हारा इफेक्ट भी कुछ कम नहीं है!!", नम्या ने जूस का सिप लेते हुए वहाँ मौजूद लड़कियों की तरफ इशारा करते हुए कहा।

    "हाँ लेकिन तुम्हारे मुकाबले तो ये इफेक्ट कुछ भी नहीं!!", अनिकेत ने नम्या की तरफ देख कर कहा।

    "आखिर नम्या अग्निहोत्री आम भी तो नहीं ना...तो खास तो होगा ही ना!!!", नम्या ने प्राउडी मुस्कान के साथ कहा।

    "वैल इसमें कोई शक नहीं...!!", अनिकेत ने कहा।


    तभी, वहाँ एक लड़का आकर नम्या से डांस करने के लिए पूछता है। लेकिन अनिकेत, नम्या की कमर में अपना हाथ पैसेसिवली रखते हुए, उसे खुद ही डांस फ्लोर की तरफ ले जाता है। मध्यम संगीत की आवाज़ पर, बाकी कपल्स के साथ अनिकेत और नम्या भी कपल डांस करने लगते हैं। पार्टी में अनिकेत और नम्या ने एक-दूसरे के साथ बहुत एन्जॉय किया। कुछ देर बाद, अनिकेत अपने कुछ बिज़नेस पार्टनर्स से मिलने में बिज़ी हो जाता है। तभी, वही लड़का फिर से नम्या के पास आकर, उसकी टेबल पर बैठने की परमिशन लेता है। वह अपना परिचय देते हुए अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाता है। कुछ पल तक उसे घूरने के बाद, आखिरकार नम्या भी अपना हाथ आगे बढ़ाती है।

    "हाय एम रोहित.... प्रोड्यूसर रोहित खुराना...!!", लड़के ने अपना हाथ नम्या की तरफ बढ़ाते हुए कहा।

    "नम्या....नम्या अग्निहोत्री....!!", नम्या ने कुछ पल बाद अपना हाथ रोहित की तरफ बढ़ाते हुए कहा।

    "नाइस टू मीट यू ब्यूटीफुल....ये कहना गलत नहीं होगा कि जितना आप टीवी और न्यूज़पेपर में खूबसूरत लगती हो उससे कहीं गुना ज्यादा खूबसूरत सामने से दिखती हो!!", रोहित ने नम्या की हथेली को चूमते हुए कहा।

    "लगता है मि.खुराना आप अपनी हर हीरोइन और मॉडल को यही चीज़ी लाइंस बोल कर फँसाते हैं!!", नम्या ने प्राउड भरी स्माइल के साथ अपना हाथ वापस खींचते हुए कहा।

    "सबका तो पता नहीं लेकिन आपको फँसाने के लिए मैं कोई भी चीज़ी लाइंस पिक कर सकता हूँ!!", रोहित ने फ्लर्टी स्माइल के साथ कहा।

    "तो फिर तो आपका बेड लक है क्योंकि नम्या अग्निहोत्री को जाल में फँसाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है!!", नम्या ने कहा।

    "वैल जैसा सुना था आपके बारे में बिल्कुल वैसा ही पाया है.....हम्मम आपको फँसाना तो वाकई नामुमकिन है लेकिन अगर कोई दिल की गहराई से आपसे किसी चीज़ के लिए गुजारिश करें तो आई डोंट थिंक सो कि आप किसी का मासूम दिल तोड़ेंगी....नई?", रोहित ने दिलकश मुस्कुराहट के साथ कहा। नम्या रोहित की बात सुनकर सवालिया तरीके से अपनी भौहें उचका कर उसकी तरफ देखने लगती है! "दरअसल मैं अपने एक न्यू ब्रांड को लॉन्च करने जा रहा हूँ और मैं बहुत दिनों से एक खूबसूरत और फ़्रेश चेहरे की तलाश में था और जो तलाश आज आप पर आकर ख़त्म हुई है....मेरा सौभाग्य होगा अगर आप मेरी मॉडल बनकर मेरे ब्रांड को लॉन्च करें और उसके बदले में मैं आपको मुँह माँगी कीमत देने के लिए भी तैयार हूँ बस आप एक बार हाँ कह दीजिए!! "


    नम्या कुछ जवाब देती उससे पहले ही अनिकेत पीछे से आकर उसके काँधों को पैसेसिवली तरीके से थाम लेता है..... और उसके चेहरे के गंभीर और असामान्य भाव को देखकर साफ़ मालूम पड़ रहा था..... कि उसने रोहित और नम्या की सारी बातें सुन ली थी.... और अनिकेत को रोहित का नम्या को यूँ अप्रोच करना बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था.....!!!

  • 10. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 10

    Words: 1510

    Estimated Reading Time: 10 min

    नम्या, रोहित के ऑफर का जवाब देने से पहले ही, अनिकेत पीछे से आकर उसके कंधों को पॉज़ेसिव तरीके से थाम लेता है। उसके चेहरे के गंभीर और असामान्य भाव से साफ़ मालूम पड़ रहा था कि उसने रोहित और नम्या की सारी बातें सुन ली थीं। अनिकेत को रोहित का नम्या से यूँ अप्रोच करना, या उसके साथ इतना फ़्री होना, बिल्कुल पसंद नहीं आया था। नम्या को अनिकेत का व्यवहार कुछ अजीब लगा, लेकिन उसने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया। रोहित ने भी अनिकेत को देखकर, अपना परिचय देते हुए, हाथ आगे बढ़ाकर उससे हैंडशेक किया।

    कुछ देर बाद, अनिकेत और नम्या पार्टी से घर के लिए जाने लगे। रोहित ने नम्या से सीरियस होकर अपने ऑफर के बारे में सोचने का अनुरोध करते हुए उसे अपना कॉन्टैक्ट कार्ड दिया और जल्द ही अपने पक्ष में निर्णय लेने के लिए, उसे कॉल करने को कहा।

    नम्या बस एक गर्वित मुस्कान के साथ, बिना कुछ बोले, अनिकेत के साथ चली गई। पूरे रास्ते अनिकेत चेहरे पर गंभीरता लिए, खामोशी से गाड़ी चला रहा था। नम्या ने भी कुछ नहीं कहा और वह भी खामोशी से, सुकून के साथ, आँखें मूंदे, खिड़की से आती ठंडी हवा को महसूस कर रही थी। अनिकेत की नज़रें अनायास ही कुछ पल के लिए उसके खूबसूरत चेहरे पर ठहर गईं।


    कुछ पल बाद, नम्या ने अपनी आँखें बंद किए हुए ही कहा, "अगर तुम्हारा घूरना हो गया हो तो अब ड्राइव पर फोकस करो...वरना हम अपने घर की बजाए यकीनन भगवान के घर पहुंच जाएंगे सीधा!!"


    अनिकेत नम्या की बात सुनकर कुछ झेंप गया और जल्दी से अपनी नज़रें उस पर से हटाते हुए वापस रास्ते पर लगा लेता है। दूसरी तरफ, आयुष कल्पना जी के साथ हॉस्पिटल गया था जबकि प्रिशा घर पर अकेली थी। और उसकी रखवाली के लिए घर पर उसके साथ टॉम था। टॉम नीचे लिविंग एरिया में बैठा अपने किसी काम में व्यस्त था कि तभी उसके पास प्रिशा आती है।


    "व्हाट हैपेन?" टॉम ने सारे जहां की गंभीरता से पूछा।

    "मुझे बहुत जोरों से भूख लगी है!!" प्रिशा ने कहा।

    "तो जाकर कुछ खा लो!!" टॉम ने कहा।

    "ओह वाव! मैको तो ये अक्ल आई ही नही जैसे!!" प्रिशा ने क्यूट से एक्सप्रेशन के साथ कहा।

    "मतलब?" टॉम ने पूछा।

    "मतलब ये की आज शाम मेड छुट्टी पर थी इसीलिए घर में कुछ नही बना.... इसीलिए अब आप जाकर मेरे लिए बाहर से खाना ले आएं!!" प्रिशा ने कहा।

    "मै अभी नही जा सकता जब तक की घर पर आयुष सर या नम्या मैडम नही वापस आ जाते!!" टॉम ने वापस से अपने लैपटॉप पर काम करते हुए कहा।

    "नही जा सकते से क्या मतलब? आप भूलें नही आपको भाई ने यहां हमारे लिए ही भेजा है.... और इसीलिए आपको हमारी सारी बातें माननी ही होंगी!!" प्रिशा ने दोनों हाथ अपनी कमर पर रखते हुए कहा।

    "रियली??" टॉम ने लैपटॉप बंद करते हुए प्रिशा की तरफ देखकर गंभीरता से पूछा।

    "जी हां!!" प्रिशा ने फुल टशन से कहा।


    टॉम खड़े होकर प्रिशा के पास आता है। टॉम दिखने में हैंडसम तो था ही, और साथ ही बहुत हट्टा-कट्टा और फिट था। प्रिशा ना सिर्फ उससे उम्र में बहुत छोटी थी, बल्कि फिजिकली भी वो उसके सामने इतनी कोमल और नाजुक थी, जैसे किसी ताकतवर शेर के सामने कोई मासूम सी हिरनी। वो टॉम के कांधे तक ही आ पा रही थी, जिसकी वजह से टॉम को झुककर उससे बात करनी पड़ रही थी। काफ़ी अरसे से टॉम रिदांश के साथ उसका वफ़ादार बनकर था, और किसी ने भी आज तक उसे अच्छे से मुस्कुराते हुए तक नहीं देखा था। बस उसके चेहरे पर सदा एक गंभीरता बनी रहती थी, और उसके जीवन का उद्देश्य उसका एकमात्र काम और रिदांश की सुरक्षा करना ही था। प्रिशा को यूँ ऑर्डर देते देख टॉम खड़ा हुआ और उसके पास गया। हालाँकि उसके चेहरे की गंभीरता अभी भी ज्यों की त्यों ही बनी हुई थी, जिसे देखकर एक पल को प्रिशा भी घबरा गई थी, लेकिन अगले ही पल उसने अपने डर को छुपा लिया था।

    "सो लिटिल प्रिंसेस, फर्स्ट ऑफ ऑल, आई एम नॉट योर पर्सनल सर्वेंट....मै यहां काम करता हूं सिर्फ बॉस (रिदांश) के लिए....और सिर्फ उनके इंस्ट्रक्शन और ऑर्डर्स फॉलो करना ही मेरी ड्यूटी है.... तो आइंदा से मुझे यूं ऑर्डर देने से पहले सोच लेना.....अंडरस्टैंड बच्चे??" टॉम ने कहा।

    "फर्स्ट ऑफ ऑल, आई एम नॉट अ बच्ची....और मैने आपको कब ऑर्डर दिया.... मैं तो बस रिक्वेस्ट कर रही थी.... क्योंकि मुझे बहुत भूख लगी है....पर नो थैंक्यू अब मैं खुद ही बाहर जाकर अपने लिए खाना ले आऊंगी!!" प्रिशा ने चिढ़ कर कहा।

    "और तुम्हें लगता है मैं तुम्हें इस वक्त बाहर जाने की इजाजत दूंगा??" टॉम ने पूछा।

    "जिस तरह से आप मेरे नौकर नहीं है उसी तरह से मैं भी आपकी नौकर नहीं हूं.... जो आपके ऑर्डर्स को फॉलो करूं.....(ज़िद करते हुए)....मै जाऊंगी और ज़रूर जाऊंगी!!" प्रिशा ने चिढ़ कर कहा।

    "ट्राई मी !!!" टॉम ने अपने हाथ अपने सीने पर बांधते हुए कहा।

    "आप आयुष भाई या नम्या दी के साथ तो कभी ऐसे नहीं करते???.... और उन्हें उनकी मर्जी चलाने देते हैं....वो जहां भी जाते हैं उन्हें जाने देते हैं.... कोई रोक टोक नहीं करते.... फिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों??..उनके साथ क्यों नहीं???" प्रिशा ने कहा।

    "क्योंकि वो एडल्ट हैं....समझदार हैं और तुम अभी छोटी और नासमझ हो!!!" टॉम ने कहा।

    "एक्सक्यूज मी....मै कोई बच्ची वच्ची नहीं हूं....मै पूरे 19 साल की हूं और एक एडल्ट हूं और समझदार भी!!!" प्रिशा ने नाराज़गी से कहा।

    "अगर तुम्हें ये गलत फेमी है तब भी मैं तुम्हें इजाजत नहीं दे सकता!!!" टॉम ने कहा।

    "लेकिन.." प्रिशा आगे कुछ कहती, तभी उसके कानों में टॉम की आवाज़ पड़ती है और वो अपनी जगह ही स्तब्ध और शॉक्ड रह जाती है।

    टॉम ने फ़ोन को कान से लगाए हुए कहा, "सॉरी बॉस आपको इस वक्त परेशान किया..... लेकिन प्रिशा बेबी मेरी किसी भी बात को मानने को तैयार नहीं.... और ना ही वो कोप्रेट कर रही है.....(कुछ पल रुक कर).....जी बॉस यही हैं लीजिए!!!"


    टॉम प्रिशा की तरफ गंभीरता से देखते हुए उसे अपना फोन बढ़ा देता है और प्रिशा घबराते हुए आहिस्ता से फोन को लेकर अपने कान से लगाती है।

    "ज...जी भा....भाई??" प्रिशा घबराते हुए कहती है।

    रिदांश ने फोन के दूसरे साइड से कहा, "क्या बात है प्रिशु और तुम क्यों टॉम के साथ कोप्रेट नहीं कर रही हो???..... यू नो ना की वो जो भी कुछ कह रहा है..... या कर रहा है तुम्हारी सेफ्टी के लिए ही है?"

    "जी भाई मैं आगे से ध्यान रखूंगी!!" प्रिशा ने टॉम को घूरते हुए कहा।

    "गुड....चलो मुझे कुछ काम है मैं तुमसे बाद में बात करता हूं....टेक केयर!!" रिदांश ने कहा।

    "जी... एंड आई मिस यू सो मच भाई!!" प्रिशा ने कहा।

    "मिस यू टू..... टेक केयर!!" रिदांश ने कहा।

    "यू टू भाई.... बाय !!!" प्रिशा ने कहा।

    "हम्मम बाय!!!" रिदांश ने कहा।


    रिदांश के फोन रखने के बाद प्रिशा बिना कुछ बोले टॉम का फोन टेबल पर पटकते हुए उसे गुस्से से घूरते हुए वहाँ से चली जाती है और टॉम अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए वापस से अपने काम में जुट जाता है।


    मुंबई.....(रिदांश का पेलेसनुमा बंगला)....!!!


    जब से दक्ष यहां आया था, तब से आरना ने अपनी जान और पूरी मेहनत उसकी सेवा में लगा दी थी। वह जानती थी कि दक्ष कोमा में है और उसकी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दे सकता, लेकिन फिर भी वह रोज़ उससे घंटों बातें करती, जैसे अक्सर पहले किया करती थी और दक्ष उसकी बातों पर खिलखिला उठता था। आरना न सिर्फ़ खुद की बेगुनाही के लिए, बल्कि अपने भाई जैसे इस अनमोल दोस्त को पहले की तरह ही एक बार सही-सलामत और हँसता-मुस्कुराता देखना चाहती थी। वह चाहती थी कि बस एक बार दक्ष उसे फिर से बहन कहकर पुकारे और वह प्यार से उसकी इस सूनी और बेजान कलाई पर राखी बांधे। और अक्सर यही सब सोचते-सोचते आरना की आँखें नम हो जाती थीं। लेकिन फिर वह अपने आत्मविश्वास को बढ़ावा देते हुए, खुद को लगातार उम्मीद देते हुए, फिर से खुद को अपनी मंज़िल की ओर चलने के लिए प्रेरित करती। ऐसे ही धीरे-धीरे करके 25 दिन गुज़र गए थे, लेकिन दक्ष की हालत ज्यों की त्यों ही थी। और अब कहीं न कहीं आरना के दिल में एक मायूसी सी घिरने लगी थी। और आज उसी मायूसी के चलते, दक्ष को यूँ ही बेजान आँखें बंद किए देख, आरना भावुक हो उठी।


    अरु ने दक्ष से कहा, "अब बस बहुत हुआ तुम्हारा....आखिर कब तक यूहीं यहां बेजान बुत बने लेटे रहोगे.....(भावुकता से)...तुम उठते क्यों नहीं आखिर??.....अब बस करो दक्ष अपनी बहन को और मत सताओ....बस एक बार तुम उठो फिर देखना तुम्हें बताती हूं मैं अच्छे से....जितना सता रहे हो ना तुम मुझे.... बस एक बार ठीक हो जाओ फिर देखना बंदर लडूंगी मैं जी भर के तुमसे अच्छे से!!!"


    ये सब कहते-कहते अरु भावुक हो गई, और दक्ष के हाथ को अपनी हथेली में थामते हुए आँसू पोछने लगी। उसके आँसू दक्ष की बेजान हथेली को गीला कर रहे थे। अचानक, कुछ पल बाद, अरु को दक्ष के हाथ में हलचल महसूस हुई। वह जल्दी से उसकी हथेली को अपने दोनों हाथों में थामकर गौर से देखने लगी। तभी, दक्ष के हाथ की तर्जनी और अंगूठा हिलने लगे; उसके हाथ में फिर से हलचल हुई। यह देखकर अरु के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई, और वह नम आँखों से मुस्कुरा उठी। उसने सामने बैठी नर्स की ओर देखा।


    "सिस्टर जल्दी जाइए और डॉक्टर को बुला कर लाएं....(एक पल रुक कर)....ऐसा कीजिए आप यही दक्ष के पास रुकिए मैं खुद ही जाती हूं!!!" अरु ने खुशी से एक्साइटेड होकर नर्स से कहा।


    अरु जल्दी से डॉक्टर्स को बुलाने के लिए जाने के लिए मुड़ती है कि तभी कमरे में ऑफिस से अभी-अभी आया रिदांश भी आ पहुँचता है।

  • 11. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 11

    Words: 1379

    Estimated Reading Time: 9 min

    अरु जल्दी से डॉक्टर्स को बुलाने के लिए मुड़ी। कि तभी कमरे में ऑफिस से अभी-अभी आया रिदांश आ पहुंचा। और उसे देखकर आरना के कदम वहीं अपनी जगह ठिठक गए।


    रिदांश (नर्स की तरफ देखकर, सर्द लहज़े में): "व्हाट हैपेन?"

    नर्स (नर्वस होते हुए): "स...सर द...दरअसल... (अरु की तरफ इशारा करते हुए) ...मैडम कह रही थीं कि अभी-अभी दक्ष सर ने... दक्ष सर ने अपने हाथ में कुछ मूवमेंट की... इसीलिए वो डॉक्टर को बुलाने के लिए कह रही थीं!!"


    रिदांश ने नर्स की बात सुनी तो उसके चेहरे के भाव अचानक बदल गए। और कुछ पल के लिए उसकी आँखों में एक उम्मीद की किरण नज़र आई।


    रिदांश (अपनी एक्साइटमेंट को कंट्रोल करते हुए, सामान्य लहज़े में): "तो फिर खड़ी क्यों हो? जाओ जाकर बुलाओ डॉक्टर को... फास्ट!!"

    नर्स: "यस सर!!"


    रिदांश के कहते ही नर्स जल्दी से वहाँ से चली गई। और कुछ पल बाद डॉक्टर्स को साथ लेकर वापस दक्ष के कमरे में आई। अरु डॉक्टर्स को सारी बात बताई। डॉक्टर्स अरु की बात सुनकर जल्दी से दक्ष को चेक करना शुरू कर दिए।


    इधर दूसरी तरफ, यूएस में आयुष अपनी इंटर्नशिप के साथ-साथ अपनी माँ की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रहा था। अब कल्पना जी के प्रॉपर ट्रीटमेंट के लिए उन्हें मुस्तकिल हॉस्पिटल में ही रखा गया था। हॉस्पिटल के रूल्स और कल्पना जी के इलाज के चलते, किसी भी डिस्ट्रबेंस को दूर रखने के लिए बाकी फैमिली मेंबर्स को एक मुकर्रर किए गए वक्त पर ही मिलने की इजाजत थी। मगर, क्योंकि आयुष कल्पना जी का बेटा होने के नाते यहाँ डॉक्टर के रूप में एक इंटर्न भी था, इसीलिए वह जब चाहे तब अपनी माँ से मिल सकता था। और फिर, रिदांश और अनिकेत के नाम के चलते इन लोगों पर कोई रोक भी नहीं लगा सकता था। मगर, कल्पना जी की भलाई के लिए और आयुष के कहने पर, प्रिशा और नम्या उनसे दिन में दो बार ही मिलने आती थीं। बाकी वक्त वे बस आयुष की निगरानी में ही रहती थीं। इन बीते दिनों में, रिदांश के लिए भी अपनी माँ से दूर रहना किसी सजा से कम नहीं था। भले ही कल्पना जी एक अरसे से अपनी सुध-बुध खो बैठी थीं और बच्चों की तरह बर्ताव करती थीं, लेकिन रिदांश के दिल को इतना सुकून था कि उसकी माँ उसके पास, उसके साथ है। और पहली बार था जब रिदांश इतने दिनों के लिए अपनी माँ से दूर हुआ था। लेकिन उनकी भलाई के चलते उसने खुद को रोक के रखा। और फिर दूसरा रीज़न दक्ष था, जिसे इस हाल में अकेला छोड़कर वह नहीं जा सकता था। हालाँकि यूएसए में ना होकर भी, रिदांश को पल-पल अपनी माँ की हर खबर मिलती रहती थी। हर आधे घंटे पर उसे फोन पर सारी खबर मिलती रहती थी, और आयुष भी रिदांश को सारी अपडेट देता रहता था।


    दूसरी तरफ, अनिकेत का झुकाव नम्या की तरफ बढ़ता जा रहा था, जिसे ना तो वह नकार रहा था और ना ही नकारना चाहता था। लेकिन वह यह भी अच्छे से जानता था कि नम्या रिदांश का ही फीमेल वर्जन है और वह बहुत ही स्ट्रेटफॉरवर्ड भी है। फिर उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसकी किसी बात या रिएक्शन से सामने वाले पर क्या इफेक्ट होगा। वह अपने दिल से ज़्यादा हमेशा अपने दिल की सुनती आई है। मगर, इसी के साथ ही, जिन्हें वह चाहती है उनके लिए अकेले लड़ने की ताकत भी रखती है। अनिकेत को कहीं ना कहीं यह भी डर था कि कहीं उसके नम्या की तरफ बढ़ते कदम कहीं उसकी और रिदांश की दोस्ती के बीच दूरियाँ ना पैदा कर दें। क्योंकि दुनिया जानती थी कि रिदांश हर गलती माफ़ कर सकता है, लेकिन कोई उसके अपनों को चोट पहुँचाए, यह ना सिर्फ उसकी बर्दाश्त से बाहर है, बल्कि इस गुनाह की उसकी नज़रों में सिवाय सज़ा के कोई माफ़ी नहीं। और फिर, इन सबसे अलग, अनिकेत के लिए नम्या के दिल की बात समझना ठीक ऐसे ही मुश्किल था जैसे कि अरु के लिए रिदांश को समझना था। अगर नम्या की जगह कोई और लड़की होती, तो अनिकेत अब तक उस लड़की को अपने दिल की बात कह चुका होता। लेकिन यहाँ बात सिर्फ उसकी मोहब्बत की नहीं थी, बल्कि उसकी दोस्ती की भी थी, जो उसके लिए जान से भी बढ़कर थी और जिसे वह किसी भी कीमत पर नहीं खो सकता था। यही सब बातें अनिकेत के लिए परेशानी का सबब बनी हुई थीं, और उसकी परेशानी में कई गुना बढ़ोतरी की थी रोहित खुराना ने। जिस दिन पार्टी वाले दिन से रोहित ने नम्या को देखा था, तब से ही वह अपने ऑफर को लेकर पागलों की तरह उसके पीछे पड़ गया था। और आए दिन नम्या को मनाने के लिए, कभी बुके तो कभी कुछ ना कुछ रिक्वेस्ट कार्ड के साथ कोई ना कोई गिफ्ट भेजता रहता था। जिसे देखकर अनिकेत का मन करता था कि वह उसका सर फोड़ दे। शाम का वक्त था। अभी भी अनिकेत इन्हीं सब बातों को सोच रहा था कि तभी एक गार्ड एक बुके और कार्ड के साथ वहाँ आता है, और अनिकेत के सामने वह बुके और एक बॉक्स रखता है।


    अनिकेत: "किसने भेजा है ये?"

    गार्ड: "सर, रोहित सर ने। और साथ ही उन्होंने अपने ड्राइवर को भी भेजा है नम्या मैडम को पिक करने के लिए!!"

    अनिकेत (नाराजगी से): "उठाओ इसे और बाहर फेंको। और कह दो उस रोहित खुराना के ड्राइवर से कि आइंदा से उस आदमी की भेजी हुई कोई भी चीज़ यहाँ लाने की कोई ज़रूरत नहीं। और अगर वो लोग इसके बाद भी ना मानें... तो उस आदमी की भेजी हुई कोई भी चीज़... इस घर के अंदर नहीं आनी चाहिए... समझें तुम लोग!!"

    गार्ड: "जी सर!!"

    अनिकेत (बुके और बॉक्स की तरफ इशारा करते हुए): "अब उठाओ इस कचरे को और फेंको बाहर!!"


    गार्ड जैसे ही अनिकेत के कहने पर वह बॉक्स उठाने के लिए आगे बढ़ता है, कि वहाँ आई नम्या उसे ऐसा करने से रोकते हुए वहाँ से जाने के लिए कह देती है।


    नम्या (गार्ड को रोकते हुए): "रुको... (गार्ड की तरफ देखकर) ...छोड़ो इसे और जाओ तुम यहाँ से!!"

    गार्ड: "ओके मैम!!"


    नम्या की बात सुनकर गार्ड फौरन वहाँ से चला जाता है। मगर अनिकेत को नम्या का ऐसा करना अच्छा नहीं लगा था।


    अनिकेत (नाराज़गी से): "तुमने इसे फेंकने के लिए क्यों मना किया गार्ड को?"

    नम्या (बुके पर लगे कार्ड को उठाकर पढ़ते हुए): "एटलीस्ट देखने तो दो कि क्या कहना चाहता है वो!!"

    अनिकेत: "और जैसे कि तुम सच में नहीं जानती कि वो असल में चाहता क्या है... नम्या ये सब ऑफ़र और काम सब सिर्फ़ एक बहाना है। असल में तो वो..."


    अनिकेत नाराज़गी से कहते-कहते बीच में ही रुक जाता है।


    नम्या (अपनी भौहें उचकाते हुए): "असल में तो वो के आगे?"

    अनिकेत (नाराजगी से): "यू नो वेरी वेल व्हाट आई मीन नम्या!!!"

    नम्या (अनिकेत की बातों को पूरी तरह इग्नोर करते हुए गिफ्ट बॉक्स उठाते हुए): "लेट्स सी क्या है इसमें!!!"


    नम्या उस बॉक्स को खोलती है तो उसमें से एक बेहद एक्सपेंसिव और खूबसूरत शॉर्ट ड्रेस निकलती है। जिसे देखकर अनिकेत का खून खोल उठता है।


    नम्या (बेफ़िक्री भरे भाव से): "नॉट बैड!!"

    अनिकेत (फ्रस्ट्रेशन से नम्या के हाथ से ड्रेस छीनकर फ़र्श पर फेंकते हुए): "डोंट इवन थिंक की तुम उस घटिया इंसान की भेजी हुई फ़िजूल सी इस ड्रेस को पहनने भी वाली हो!!"

    नम्या (अनिकेत को फ़्रस्ट्रेट देखकर दिलकश मुस्कराहट के साथ): "हम्मम... तो इन बेजान चीज़ों पर इस क़दर और इतने गुस्से की वजह?"

    अनिकेत (झल्लाकर): "मेरा गुस्सा इन बेजान चीज़ों पर नहीं है बल्कि..."

    नम्या (अपनी भौहें उचकाकर बेफ़िक्री भरे भाव से): "बल्कि..."

    अनिकेत (नम्या की बाजुओं को कसकर पकड़ते हुए): "नम्या... नम्या अग्निहोत्री... जो पल में उड़ती चिड़िया के पर भी गिन ले... उसके लिए किसी के बिहेवियर के पीछे की वजह को जानना इतना आसान है... जैसे कि कोई खुली किताब... (एक पल रुककर) ...तुम अच्छे से जानती और समझती हो... कि मेरे गुस्से और मेरी फ़्रस्ट्रेशन की असल वजह क्या है... (नाराज़गी जताते हुए) ...लेकिन फिर भी अगर तुम्हें अनजान बनने का इतना ही शौक है तो मैं भी अनिकेत हूँ... अपनी बात को ना सिर्फ़ ज़ाहिर करना जानता हूँ... बल्कि अपनी ज़िद को मनवाना भी अच्छे से जानता हूँ... अगर तुम मेरी बात मुझसे ही ज़ाहिर करवाना चाहती हो तो यही सही!!!!"


    इतना कहकर फ़ौरन ही अनिकेत नम्या के बालों पर अपने हाथों की मज़बूत ग्रिप बनाते हुए उसे अपने करीब खींच लेता है और उसके गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रखकर उसे अग्रेसिवली किस करने लगता है।

  • 12. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 12

    Words: 2428

    Estimated Reading Time: 15 min

    अनिकेत ने नम्या के बालों पर अपने हाथों की मज़बूत ग्रिप बनाते हुए उसे अपने करीब खींच लिया और उसके गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वह उसे आक्रामकता से चूमने लगा। अनिकेत रिदांश जितना गुस्सैल या अकडू नहीं था, लेकिन जब वह अपनी पर आ जाता था, तो अच्छे-अच्छों को उसका गुस्सा और अकडूपन ले डूबता था। इस वक्त, जब नम्या ने उसकी कुंठा बढ़ाई, तो उसने अपनी प्रतिक्रिया सीधे नम्या पर ज़ाहिर कर दी। नम्या ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी; वह ज्यों की त्यों खड़ी रही, बिना किसी प्रतिक्रिया के। जब अनिकेत ने नम्या को छोड़ा और उसे खुद से दूर किया, तो उसने उसकी आँखों और चेहरे को देखते हुए, उसके भाव पढ़ने की कोशिश की; जिसमें वह पूरी तरह नाकाम रहा। क्योंकि इस वक्त नम्या के चेहरे पर एक खाली भाव था, जिसे पढ़कर कुछ भी समझ पाना नामुमकिन था। अनिकेत को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह आगे क्या कहे या कैसे अपनी बात शुरू करे, क्योंकि नम्या गुस्सा, हैरानी या कोई भी ऐसा रिएक्शन नहीं दे रही थी जिससे उसके मन की बात को समझा जा सकता हो। कुछ पल नम्या के रिएक्शन का इंतज़ार करने के बाद, आखिरकार अनिकेत ने अपनी चुप्पी तोड़ने का फैसला किया। वह कुछ बोलने ही वाला था कि तभी वहाँ प्रीशा आ पहुँची और उन दोनों के चेहरे की गंभीरता को देखकर उसने अपनी चुप्पी तोड़ी।


    "क्या हुआ? कुछ हुआ है क्या??? आप दोनों इतने सीरियस क्यों नज़र आ रहे हैं?" प्रीशा ने नम्या और अनिकेत को देखते हुए पूछा।

    "न...नहीं, कुछ भी नहीं हुआ... सब ओके है..." अनिकेत ने बात को संभालने की कोशिश करते हुए कहा।


    इतना कहकर अनिकेत नम्या की तरफ देखता है जो पहले से ही ठंडी नज़रों से उसकी ओर देख रही थी। कुछ पल बाद बिना कुछ बोले वह चुपचाप ऊपर सीढ़ियों की ओर जाती हुई अपने कमरे में चली गई। इधर दूसरी तरफ, अरु द्वारा दक्ष में हरकत होने की बात बताने के बाद डॉक्टर्स ने दक्ष को चेक किया और कुछ देर बाद रिदांश को दक्ष की हालत की रिपोर्ट दी।


    "हमने मि. दक्ष को चेक किया है और फिलहाल तो उनकी हालत देखने के बाद अभी कुछ खास सुधार नहीं दिख रहा है। लेकिन जैसा कि मिसेज़ अग्निहोत्री ने बताया है, अगर वाकई में ऐसा ही है तो यह यकीनन भविष्य के लिए एक बहुत ही अच्छी खुशखबरी हो सकती है। लेकिन फिलहाल तो अभी कोई खास सुधार नज़र नहीं आ रहा है। हम आशा करते हैं कि मिसेज़ अग्निहोत्री का कहा जल्द से जल्द पूरा हो जाए और किसी चमत्कार या प्रार्थनाओं के असर से मि. दक्ष जल्द से जल्द पहले की तरह ठीक हो जाएँ।" डॉक्टर ने कहा।

    "नाउ यू ऑल कैन गो!" रिदांश ने खाली भाव से कहा।

    "ओके सर!" डॉक्टर्स ने कहा।


    इसके बाद कुछ पल बाद ही सारे डॉक्टर्स वहाँ से चले गए। अब सिवाय रिदांश और अरु के दक्ष के कमरे में और कोई मौजूद नहीं था। सबके जाने के बाद रिदांश खाली भाव लिए हुए अरु की तरफ पलटा और कुछ पल तक उसे सख्त भाव से एकटक देखने लगा।


    "ये सब ड्रामा जानबूझकर क्रिएट किया ना तुमने? जबकि असल में दक्ष या उसके शरीर में कोई हरकत हुई ही नहीं!" रिदांश ने अपनी पेंट की पॉकेट में हाथ डालते हुए सख्त भाव से कहा।

    "अच्छा, और ये भी बता दीजिए कि मुझे आपसे या किसी से भी ये झूठ बोलने की आखिर क्या ज़रूरत है?" अरु ने अपनी बाहें बाँधते हुए कहा।

    "हाँ, तुम इतनी नादान हो ना कि तुम्हें कहाँ कुछ समझ आता है... (सख्त भाव से) लेकिन मैं तुम्हारी तरह नादान बिल्कुल नहीं हूँ। मुझे अच्छे से सारी चीज़ें समझ भी आती हैं और नज़र भी। तुम अच्छे से जानती हो कि तुम्हें दिया गया वक्त जो जल्द ही खत्म होने को है, जिसके खत्म होते ही मैं तुम्हें यहाँ एक पल भी नहीं टिकने दूँगा। और तुम इस लग्ज़री लाइफ को यूँ आसानी से कैसे छोड़कर जा सकती हो? सो इसीलिए तुम्हें कुछ तो ऐसा सुपर डुपर हिट प्लान तो बनाना ही था ना, जिससे तुम्हारे इस घर से जाने की बात टल जाए और तुम्हें यहाँ और ज़्यादा वक्त तक टिकने की मोहलत मिल जाए!" रिदांश ने तंज भरे लहजे में कहा।

    "यू नो व्हाट... यू आर... (कहते-कहते बीच में रुककर गहरी साँस लेते हुए एक पल रुककर)... आपको कोई भी स्पष्टीकरण देना या आपसे इस बारे में कोई भी बात करना फ़िज़ूल है। क्योंकि माननी तो आपको सिर्फ़ वही बातें हैं जो आप अपने दिमाग में पहले ही बना चुके हैं। और रही बात आपके इस आलीशान घर में रहने की बात, तो पाँच दिन बाद सिचुएशन चाहे जो भी हो, लेकिन उसके बाद अगर आप खुद सामने से भी रिक्वेस्ट करेंगे, तो भी मैं कभी इस घर की दहलीज पर दुबारा कदम नहीं रखूँगी। मैं दिल से प्रार्थना करती हूँ कि दक्ष जल्द से जल्द ठीक हो जाए, लेकिन मेरी प्रार्थना के पीछे की वजह सिर्फ़ दक्ष से मेरा लगाव है, ना कि आपके साथ अपने इस बेमानी रिश्ते को दुबारा जोड़ने की चाह!" अरु ने निराश होकर कहा।


    इतना कहकर अरु दक्ष के कमरे से चली गई, और रिदांश उसे जाता हुआ देखता रह गया। आज पहली बार अरु ने रिदांश से इतना कुछ, बिना किसी डर या झिझक के, साफ़ कह दिया था। और ना जाने क्यों, आज एक बार फिर रिदांश के दिल को अरु की आँखों में सच्चाई की झलक नज़र आ रही थी। और जिस एहसास को कुछ देर की उधेड़बुन के बाद, आखिर फिर से रिदांश के दिमाग ने उसे अपनी बातों की गिरफ़्त में लेते हुए दबा दिया था। तीन दिन और यूँ ही गुज़र चुके थे, और अब अरु को मिली मोहलत में सिर्फ़ एक दिन ही बाकी था। लेकिन अभी तक दक्ष की हालत में कोई सुधार नहीं था, और अरु को अपनी मिली मोहलत के ख़त्म होने से कहीं ज़्यादा दुख सच में सिर्फ़ इसी बात का था कि उसकी दिन-रात की मेहनत के बाद भी दक्ष ठीक नहीं हो पाया था, और ईश्वर सब जानते-बूझते भी उसकी इस तरह से परीक्षा ले रहे थे। शाम का वक़्त था, और अरु लिविंग एरिया में बैठी इसी सब सोच में गुम थी, कि तभी हॉल में लगे फ़ोन की घंटी बजती है, और अरु फ़ोन पिक करने के लिए जाती है।


    "हैलो..." अरु ने फ़ोन उठाते हुए कहा।

    "हैलो... हैलो अरु... मैं नैना!" दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई।

    "नैना तू... कैसी है तू?" अरु ने पूछा।

    "मैं ठीक हूँ, तू कैसी है अरु?" नैना ने पूछा।

    "हम्मम... मैं भी ठीक हूँ!" अरु ने कहा।

    "तू नया फ़ोन क्यों नहीं लेती है? पता है मैं कितने दिनों से तुझसे कांटैक्ट करने की कोशिश कर रही हूँ और तेरे लिए इतने मैसेजेस भी छोड़े, लेकिन तूने एक का भी जवाब नहीं दिया!" नैना ने कहा।

    "कौन से मैसेजेस की बात कर रही है तू? मुझे तो कोई मैसेज नहीं मिले तेरे?" अरु ने असमंजस से पूछा।

    "आई न्यू इट... आई न्यू इट... कि उस भस्मासुर ने तुझे कुछ कहा ही नहीं होगा!" नैना ने तपाक से कहा।

    "तू क्या बोल रही है? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा?" अरु ने कहा।

    "मतलब ये है कि मुझे तुझसे बात करनी थी, लेकिन तूने मुझे वहाँ आने के लिए अपनी खैरियत मालूम करनी थी। इसीलिए मैंने प्रीशा को कॉल किया और कहा कि मुझे तुमसे कांटैक्ट करना है, बात करनी है। तो मुझे कोई कांटैक्ट नंबर दो जिससे मैं तुमसे कांटैक्ट कर सकूँ। तब प्रीशा ने मुझे उस भस्मासुर का नंबर दिया। हालाँकि मैंने उसे मना भी किया था, पर उसने कहा कि भाई ही इस वक्त भाभी के साथ घर पर हैं, तो वही आपकी बात करा देंगे। इसीलिए मजबूरी में मुझे उस भस्मासुर को कॉल करनी पड़ी। और यू नो, एक बार नहीं, पता नहीं कितनी बार! जिसमें से आधी से ज़्यादा कॉल तो उस खड़ूस भस्मासुर ने इग्नोर ही कीं। और दो बार पिक भी की तो बताया कि वो बाहर है, और उसके बाद कोई रिप्लाई नहीं। और फिर मैंने आज दुबारा प्रीशा को कॉल किया और उससे यहाँ का लैंडलाइन नंबर लिया। और थैंक गॉड कि फ़ाइनली मेरी तुझसे बात हो सकी... खैर ये सब छोड़, और तू मुझे ये बता कि सब ठीक है ना... मेरा मतलब है, दक्ष कैसा है?" नैना ने कहा।

    "हम्मम... पता नहीं, मुझे नहीं लगता कि कभी कुछ ठीक भी होगा..." अरु ने कहा।

    "मतलब?" नैना ने पूछा।


    इसके बाद अरु नैना को सारी बात बताती है कि कैसे रिदांश ने उसे एक महीने की मोहलत दी और उसने उसे मान भी लिया। अब बस उस मोहलत में से उसके पास सिर्फ़ दो ही दिन बाकी रह गए हैं और दिन-रात की कड़ी मेहनत के बाद भी उसे कोई ख़ास कामयाबी हासिल नहीं हुई है। अब उसे मायूसी घेरती जा रही है।


    "इतना कुछ हो गया अरु और तूने मुझे बताया भी नहीं। मेरे पास तेरा नंबर नहीं था, मगर तेरे पास तो था ना... कम से कम तू मुझे एक फ़ोन ही कर सकती थी!" नैना ने कहा।

    "मुझे पता था कि तू अंकल की तबियत को लेकर काफ़ी स्ट्रेस में है और फिर दूसरी बात ये भी कि तूने ही कहा था कि ये मेरी ज़िन्दगी की लड़ाई और सफ़र है जिसे मुझे ही पूरा करना है। तो बस खुद के दम पर खुद को साबित करने की कोशिश कर रही थी।" अरु ने कहा।

    "अब मैं क्या कहूँ तुझे... बस इतना ही समझ ले कि... सो सो प्राउड ऑफ़ यू मेरी जान!" नैना ने कहा।

    "क्या फ़ायदा ऐसे प्राउड का जिससे कोई हल ही ना निकले!" अरु ने मायूसी से कहा।

    "ओफ्फो! तू फिर किसी पुरानी मूवी की दुखियारी निरुपमा रॉय बनी... जस्ट चिल अरु... सब ठीक हो जाएगा। और फिर जब तू गलत नहीं तो तुझे क्या डर और फिर ईश्वर भी हमेशा सिर्फ़ सच का ही साथ देते हैं!" नैना ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा।

    "हम्मम!" अरु ने टाइट स्माइल के साथ कहा।

    "हम्मम नहीं हाँ... वैसे मेरे माइंड में एक आइडिया है जो तेरी प्रॉब्लम को सॉल्व कर सकता है!" नैना ने कहा।

    "और वो क्या?" अरु ने उत्सुकता से पूछा।

    "तू उस भस्मासुर को खुद ही सीधे तौर पर सच क्यों नहीं बता देती? आई मीन तूने पूरी रामकथा तो सुना दी है उसे... लेकिन ये तो बताया ही नहीं कि राम कौन है!" नैना ने कहा।

    "क्या बोल रही है तू?" अरु ने पूछा।

    "ओहो अब तू इतनी भी डंब मत बन अरु!" नैना ने कहा।

    "यार इस भस्मासुर ने ना सच में मेरा दिमाग ख़राब कर दिया है!" अरु ने मुँह लटकाकर कहा।

    "अच्छा ठीक है ना इतना सेंटी मत हो... सुन... मेरे कहने का मतलब है... कि तूने उस भस्मासुर को ये तो बताया है कि दक्ष और तू पहले से एक-दूसरे को जानते हैं और तुम दोनों का अतीत में कोई तो कनेक्शन और रिश्ता था... लेकिन क्या... ये तूने उसे अभी तक नहीं बताया... तो मैं ये कहना चाहती हूँ... कि तू खुद उसे अपने और दक्ष के रिश्ते की सच्चाई साफ़ तौर पर क्यों नहीं बता देती... हम्मम?" नैना ने कहा।

    "और तुझे लगता है जैसे मैं कहूँगी और वो मेरी बात पर यकीन कर लेंगे... है ना?" अरु ने अपनी भौहें उठाकर पूछा।

    "ओह्ह्हो... एटलीस्ट तू कोशिश तो कर... पहले से ही मायूस क्यों हो रही है!" नैना ने कहा।

    "क्योंकि मैं जानती हूँ मि. अग्निहोत्री मेरी बात को कभी भी सच नहीं मानेंगे!" अरु ने कहा।

    "कम से कम तू कोशिश तो कर अरु... एम श्योर कि वो भस्मासुर क्या कोई भी कितना भी बड़ा राक्षस क्यों ना हो... इतनी सेंस ज़रूर रखता होगा कि कोई भी ऐसे पवित्र और पाक रिश्ते को लेकर झूठ नहीं कहेगा... और यकीनन ये बात तेरे मि. खड़ूस अग्निहोत्री भी ज़रूर समझेंगे..." नैना ने कहा।


    जैसे ही नैना ने रिदांश को अरु का रिदांश का रिश्ता बताया, तो एक पल को उसका दिल तेज़ी से धड़क उठा।


    "हम्मम... अगर तू कहती है तो मैं ये ज़रूर करूँगी... और शायद तू ठीक ही कह रही है... मुझे भी यही लगता है कि जब मि. अग्निहोत्री को दक्ष और मेरे पवित्र रिश्ते के बारे में पता चलेगा तो वो मेरी बात ज़रूर समझेंगे!" अरु ने गहरी साँस ले कर कहा।

    "दैट्स लाइक माय अरु!" नैना ने मुस्कुराकर कहा।


    कुछ देर अरु और नैना यूँ ही बात करती हैं, और फिर अरु फ़ोन रख देती है। रात को रिदांश घर देर से लौटा था, और तब तक अरु थकन की वजह से सो चुकी थी। अगले दिन सुबह, सूरज की किरणें आँखों पर पड़ने से अरु की नींद टूटती है, और वह जल्दी से घड़ी की तरफ़ देखती है कि कहीं रिदांश ऑफ़िस के लिए तो नहीं निकल गया हो। लेकिन, घड़ी के समय के मुताबिक अभी यह समय रिदांश के जिम का था। इसलिए, अरु जल्दी से बिस्तर से उठकर वॉशरूम की तरफ़ बढ़ जाती है, और फटाफट फ़्रेश होने के बाद जल्दी से जिम की तरफ़ बढ़ जाती है। जैसे ही अरु जिम के अंदर कदम रखती है, तो रिदांश—जिसका शरीर पसीने से लथपथ था, और जिसकी मस्क्युलर और चिकनी पीठ उसकी तरफ़ थी, और जिस पर पसीने की बूँदें मानो ओस की बूँदों की तरह चमक रही थीं—हमेशा की तरह ही रिदांश इस वक़्त भी अपनी सेक्सी बॉडी के साथ बहुत ही ब्रेथटेकिंग लग रहा था। उसे यूँ देख अरु की साँसें तेज हो जाती हैं, जिन्हें वह अपनी आँखें बंद करके सामान्य करने की कोशिश करती है।


    "कंट्रोल अरु... तू इतना सब होने के बाद भी आखिर इस तरफ़ और ऐसे सोच भी कैसे सकती है? जस्ट फ़ोकस अरु... फ़ोकस..." अरु ने मन में सोचा। (इतना सोचकर अरु अपनी आँखें खोलते हुए एक गहरी साँस लेती है और रिदांश को पुकारना शुरू करती है)... "मि. अग्निहोत्री... मि. अग्निहोत्री..." (रिदांश अरु की बात का कोई जवाब ना देते हुए उसे इग्नोर करते हुए अपना काम जारी रखता है, जो देखकर अरु चिढ़ जाती है)... "हाँ, याद है मुझे। उस दिन मैंने ही आपसे कहा था कि मुझे आपसे फ़िज़ूल बेवजह बातें करने का कोई शौक नहीं है, और मुझे वाकई में कोई शौक भी नहीं है। और पिछले कुछ दिनों में मैंने ये बात अच्छे से साबित भी की है। लेकिन आज मेरी मजबूरी थी, और आपको ये बात मेरे लिए बताना ज़रूरी था, इसीलिए बस मैं यहाँ आ गई, वरना... (गहरी साँस छोड़कर)... खैर... बात दरअसल ये है कि... दरअसल बात दक्ष और मुझसे रिलेटेड है... हमारे रिश्ते से रिलेटेड... दरअसल, आपने जो भी मेरे या दक्ष के साथ फ़ोटो या हैप्पी मोमेंट देखे थे, वो सब सच थे। लेकिन... लेकिन जिस नज़रिए से आप वो चीज़ें देख रहे हैं, वो सरासर गलत ही नहीं, बल्कि बेबुनियाद इल्ज़ाम है। दरअसल, दक्ष और मेरे बीच एक पवित्र रिश्ते की डोर जुड़ी है, जिसे हम दोनों ने ही मिलकर जोड़ा था... और जो असल में हमारे रिश्ते की हकीकत है... और वो ये है कि दक्ष मेरे लिए भाई है, और मैं उसके लिए उसकी बहन हूँ। हाँ, ठीक सुना आपने। हमारे बीच पवित्र भाई-बहन का खूबसूरत रिश्ता है, जिसे आपने गलतफ़हमी के चलते किसी और ही तरीके से, अलग ही वे में देखा, और मुझे बिना किसी कसूर के बस मुजरिम ठहरा दिया।"


    अरु की बात सुनकर अचानक ही वेटलिफ्टिंग करते हुए रिदांश के हाथ रुक जाते हैं, और वह कुछ पल बाद अरु की तरफ़ पलटता है और एक पल तक बिना कुछ बोले उसकी आँखों में देखता रहता है। और फिर आखिर में अपनी जुबान खोलता है।

  • 13. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 13

    Words: 2579

    Estimated Reading Time: 16 min

    अरु की बात सुनकर, रिदांश के वेट लिफ्टिंग करते हाथ अचानक रुक गए। कुछ पल बाद वह अरु की ओर मुड़ा। वह एक पल तक बिना कुछ बोले उसकी आँखों में देखता रहा, और फिर बोला।

    रिदांश (ब्लैंक एक्सप्रेशन के साथ, सर्द लहज़े में): व्हाट?

    अरु (असमंजस से): जी?

    रिदांश (अपने कानों से इयरफोन निकालते हुए): तुम यहां क्या कर रही हो?

    अरु (हैरानी से इयरफोन को देखते हुए): आ...आप... मेरा मतलब ये इयरफोन...?

    रिदांश (एक पल इयरफोन देखते हुए, ब्लैंक एक्सप्रेशन से): अब मेरे इयरफोन से तुम्हारा क्या कनेक्शन?

    अरु: नहीं, मेरा कोई कनेक्शन नहीं है, बल्कि मैं तो... दरअसल मैं तो यहां आपसे बात करने आई थी और...

    रिदांश (अपनी भौंहें चढ़ाकर): और?

    अरु (गहरी सांस ले कर, बड़बड़ाते हुए): इसका मतलब इस खड़ूस सड़ू ने मेरा कुछ सुना ही नहीं!

    आरना खुद में ही बातें कर रही थी। रिदांश उसके बगल से निकलते हुए, उसे इग्नोर करते हुए जिम से बाहर जाने लगा। आरना ने जब यह नोटिस किया, तो रिदांश को रोकने के लिए मुड़कर जल्दी से उसकी ओर बढ़ी। हड़बड़ी में अपना बैलेंस खोकर, वह सीधा रिदांश पर गिर पड़ी। भाग्य से रिदांश के पीछे दीवार थी जिससे जाकर वह टकराया, और दोनों का बैलेंस संभल गया। रिदांश दीवार से टिका हुआ था और उसकी बाहों ने अरु की कमर थाम रखी थी। अरु की दोनों हथेलियाँ रिदांश के शर्टलेस सीने पर टिकी हुई थीं। दोनों की नज़रें एक-दूसरे की आँखों में टिकी हुई थीं। कुछ पल तक दोनों खामोश रहे, एक-दूसरे की नज़रों में देखते हुए। अरु तो रिदांश की खूबसूरत आँखों में इतनी खो गई थी कि पलक झपकना भी भूल गई थी।

    रिदांश (अरु के कंधों को थामते हुए, धीमी आवाज़ में): इफ यू आर डन स्टेरिंग मी...(अरु को कंधों से पकड़कर पीछे करते हुए, अचानक सर्द भाव से)... देन गेट अवे फ्रॉम मी!

    अरु रिदांश की आवाज़ सुनकर हड़बड़ा कर पीछे हटी। उसे यह भी एहसास नहीं हुआ कि रिदांश ने उसकी कमर से अपने हाथ कब हटा लिए थे। वह सिर्फ इंतज़ार कर रहा था कि अरु उससे दूर हो जाए और वहाँ से चली जाए। जब अरु को यह बात समझ आई और उसने रिदांश की घमंड भरी मुस्कान देखी, तो उसे खुद पर गुस्सा आने लगा।

    रिदांश (अचानक सख्त भाव से): यू नो व्हाट, तुम्हारा यह चेहरा बहुत ही मासूम है। और सच कहूँ तो शुरुआत में कई बार मुझे लगा कि शायद तुम दूसरी सेल्फ सेंटर्ड लड़कियों से कुछ जुदा हो। लेकिन नहीं, मैं गलत था। आई वाज़ टोटली रॉन्ग। क्योंकि हकीकत में तो तुम भी सिर्फ चार्म और दौलत पर मर मिटने वाली लड़कियों में से ही एक हो। बट नाउ गेम इज़ ओवर, वाइफी। 24 घंटे और तुम इस घर से बाहर!

    जब से अरु दुबारा यहां आई थी, रिदांश ने उसे कितनी बार बातें सुनाई थीं। लेकिन हर बार उसने डटकर जवाब दिया था और खुद के इमोशन्स पर काबू करना सीखा था। लेकिन आज रिदांश की कड़वी बातें और उसकी मोहब्बत को महज़ चार्म और दौलत का लालच कहना, अरु के दिल को दुखा गया। वह अपनी तकलीफ को नहीं रोक पाई और आँसू उसकी आँखों में छलक उठे। उसकी आँखें आँसुओं से भर आईं। यह देखकर, रिदांश भी कुछ नहीं बोला और फौरन जिम से बाहर चला गया। कुछ देर बाद बिना नाश्ता किए ही ऑफिस चला गया।

    इधर दूसरी तरफ, जब से अनिकेत ने नम्या को किस किया था, दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई थी। नम्या ने भी अनिकेत को कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया था। यह बात अनिकेत को बेचैन कर रही थी, लेकिन उसे नम्या से अकेले में बात करने का मौका नहीं मिल पाया क्योंकि प्रिशा ज़्यादातर उसके साथ ही रहती थी। अनिकेत अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था कि प्रिशा उसके पास आई।

    प्रिशा: अनी भाई, चलिए ना आज बाहर चलते हैं। जब से आए हैं, घर में ही हैं। मैं यहां बोर हो गई हूँ!

    अनिकेत: स्वीटहार्ट, ज़रूर चलता अगर मुझे इम्पॉर्टेन्ट काम नहीं होता। लेकिन आई प्रॉमिस कि मैं परसों तुम्हें जरूर ले कर चलूँगा।

    प्रिशा (मुँह लटकाकर): लेकिन मेरा मन तो आज जाने का है ना!

    अनिकेत: अच्छा, तुम जाकर नम्या से पूछ लो। शायद वह चली जाए तुम्हारे साथ आज!

    प्रिशा (नाइट सूट पहने, किचन की ओर जाती हुई, नम्या को देखकर आवाज़ देते हुए): दी, सुनिए?

    नम्या (प्रिशा के पास आकर): हम्मम, बोलो?

    प्रिशा: दी, क्या आप मेरे साथ चलेंगी, प्लीज़?

    नम्या: कहाँ?

    प्रिशा (उत्सुकता से): दी, वो आज ना मुझे ना बड़ा मन है एडवेंचर पार्क जाने का। तो प्लीज़, साथ चलते हैं ना?

    नम्या: एम सॉरी बेबी, लेकिन आज नहीं। आज मेरी तबियत थोड़ी ठीक नहीं है, बट नेक्स्ट टाइम पक्का!

    प्रिशा (मुँह लटकाकर): इट्स ओके दी, आप अपना ध्यान रखिए बस!

    नम्या: ओहो, अब ऐसे मुँह मत लटकाओ ना। ठीक है, अगर तुम्हारा इतना ही मन है तो मैं चलती हूँ तुम्हारे साथ!

    प्रिशा: नो, इट्स टोटली ओके दी। हम फिर कभी चलेंगे। यू टेक केयर योरसेल्फ!

    अनिकेत (सोफे से खड़े होते हुए): हाँ, वो तो अपना ध्यान रख लेगी। लेकिन तुम्हारा जब आज जाने का इतना मन है तो तुम जरूर जाओ!

    प्रिशा: लेकिन अकेले कैसे जाऊँ?

    अनिकेत: अकेले नहीं, तुम टॉम के साथ जाओ!

    प्रिशा: टॉम के साथ?

    अनिकेत: हाँ, क्या दिक्कत है? शाम तक ही तो आ जाना है तुमको वापस। तुम जाओ टॉम के साथ, मैं उसे कह दूँगा कि वो तुम्हें ले जाए!

    प्रिशा (नम्या की तरफ देखकर): लेकिन दी?

    नम्या (गहरी सांस ले कर): ओके फाइन, जाओ। तुम्हें मेरी परमिशन है। लेकिन शाम को टाइम से घर वापस आ जाना!

    प्रिशा (एक्साइटेड होकर नम्या के गले लगते हुए): थैंक्यू, थैंक्यू, थैंक्यू दी! और मैं टाइम से घर भी आ जाऊँगी। (अनिकेत के गले लगते हुए)...थैंक्यू सो मच भाई!

    अनिकेत (प्रिशा के गाल को छूते हुए): माय प्लेज़र। अब जाओ और जाकर जल्दी से रेडी हो जाओ। मैं टॉम को कहता हूँ कि वो जल्दी से रेडी हो जाए!

    प्रिशा (मुस्करा कर): जी भाई!

    इसके बाद प्रिशा जल्दी से वहाँ से तैयार होने के लिए चली गई। उसके जाने के बाद नम्या भी वहाँ से जाने के लिए मुड़ी कि अनिकेत उसकी कलाई पकड़ते हुए उसे रोक लिया। नम्या बिना मुड़े ही उसे अपना हाथ छोड़ने के लिए कहती है।

    नम्या (बिना किसी भाव के): लीव माय हैंड!

    अनिकेत (नम्या की कलाई को और मजबूती से पकड़ते हुए): और अगर ना छोड़ूँ तो?

    नम्या (अपनी भौंहें चढ़ाकर, अनिकेत की तरफ मुड़कर, दिलकश मुस्कान के साथ): तो फिर...

    अनिकेत (नम्या की आँखों में खोते हुए): तो फिर???

    नम्या (एविल मुस्कान के साथ): तो फिर... तो फिर मुझे अपने तरीके से छुड़ाना भी आता है!

    इतना कहकर नम्या अचानक ही अनिकेत के पैर पर अपने पैर से तेज वार करती है। अनिकेत जल्दी से नम्या का हाथ छोड़ते हुए, दर्द से कराहते हुए, अपने पैर को पकड़कर वहीं बैठ जाता है।

    नम्या (दर्द से कराहते हुए अनिकेत को अपना पैर पकड़े बैठा देखकर): नेक्स्ट टाइम मेरी बातों को इतना लाइटली लेने का सोचना भी मत...(अनिकेत के पैर की तरफ इशारा करते हुए)...क्योंकि इसमें नुकसान सिर्फ तुम्हारा ही है!

    इतना कहकर नम्या अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है।

    अनिकेत (अपने पैर और जाती हुई नम्या को देखते हुए): दोनों भाई-बहन एक ही जैसे हैं, बेरहम...(कराहते हुए)...आह...अनि के बच्चे, तुझे भी सारी दुनिया में ये तीखी मिर्च ही मिली थी दिल लगाने को...(खुद ही अपने सर पर चपत लगाते हुए)...अब लगाया है तो भुगत भी!

    उधर दूसरी तरफ, रिदांश की बात से दुखी अरु, दक्ष के पास बैठी, उससे अपना दर्द बांटने की कोशिश कर रही थी।

    अरु (भावुक होकर): बहुत बुरा है तुम्हारा वो दुष्ट दोस्त। बिल्कुल ठीक कहती है नैना कि वो भस्मासुर ही है। (अपनी पीछे की हथेली से अपने आँसू साफ़ करते हुए)...हमेशा मेरा दिल दुखाता है वो। लेकिन सच पता है क्या है...कि उसे यह मौका मैंने ही दिया है, तभी वो बार-बार आकर मेरे दिल को तोड़ जाता है, मुझे हर्ट कर जाता है। लेकिन जिस दिन भी उसे हकीकत पता चलेगी, तो बहुत पछताएगा वो। बहुत पछताएगा और उस दिन मैं उसकी एक नहीं सुनूंगी। और उसकी तरह पत्थर दिल बन जाऊंगी, देखना तुम!

    ऐसे ही जाने कितनी देर तक अरु अपने दिल की बातें दक्ष से शेयर करती रही। अगला दिन और अरु की मोहलत का आखिरी दिन भी निकल आया था। लेकिन दक्ष अभी भी बिस्तर पर बेजान सा पड़ा था। अरु जब सोने के बाद सुबह उठकर अपने कमरे से नीचे आई, तब सामने ही नाश्ते की टेबल पर बैठे रिदांश को देखकर, वह खामोशी से दक्ष के कमरे की ओर जाने लगी, कि रिदांश ने उसे पीछे से टोका।

    रिदांश: वाइफी?

    अरु (थोड़ा रूड होकर, तंज भरे लहज़े में): फ़रमाइए?

    रिदांश (टेबल की तरफ़ इशारा करते हुए): आओ नाश्ता कर लो। पता नहीं तुम्हें यह गोल्डन वर्ड "वाइफी" सुनने को... और मेरे साथ नाश्ता करने का सुनहरा मौका फिर कभी मिले या ना मिले!

    अरु: थैंक्स, बट नो थैंक्स!

    रिदांश (तंज भरे लहज़े में): कम ऑन, वाइफी। एटलीस्ट साथ में एक हस्बैंड-वाइफ़ की तरह... एक आखिरी ब्रेकफ़ास्ट तो बनता है आखिर!

    अरु रिदांश की बात सुनकर, बिना कोई जवाब दिए, चुपचाप दक्ष के कमरे की ओर चली गई। उसके जाने के साथ ही, रिदांश भी चेहरे पर अनजाने भाव लिए हुए, अपने नाश्ते की प्लेट को बिना छुए ही सरका कर, अपना कोट लेते हुए ऑफिस के लिए निकल गया। इधर दूसरी तरफ, आरना आज बहुत ही भावुक महसूस कर रही थी क्योंकि इतनी मेहनत और प्रार्थनाओं के बाद भी, सफलता उससे दूर थी, और दक्ष अभी भी पहले दिन की तरह ही, किसी बेजान इंसान की भांति, बस बिस्तर पर लेटा था। आरना दक्ष के कमरे में आकर, उसके सिरहाने कुर्सी पर बैठ जाती है और आज बहुत सारे इमोशंस उसके चेहरे पर उभर कर आ रहे थे। काफी देर बाद, यूँ ही सोच में डूबे रहने के बाद, आखिर में अरु दक्ष का हाथ थामते हुए, उसे अपनी हथेलियों के बीच लेते हुए, अपने गाल पर रख लेती है और इसी के साथ उसकी आँखें नम हो चली थीं!

    अरु: जानते हो दक्ष, आज मैं जिस भी मुकाम पर हूँ, उसका जिम्मेदार मैं किसी को नहीं ठहरा सकती, क्योंकि कहीं ना कहीं मैं इस अंजाम से पहले ही वाकिफ थी। और रही बात मि. अग्निहोत्री की, तो ये हकीकत है कि उनकी बातें, उनका व्यवहार, कई बार मुझे बहुत हर्ट कर जाता है, इतना कि शायद मैं लफ़्ज़ों में भी बयाँ नहीं कर सकती। लेकिन मि. अग्निहोत्री ने कभी भी कोई झूठी उम्मीद या तसल्ली नहीं दी थी। बल्कि मेरे दिल ने अपने लिए खुद ये राह चुनी थी, और इसका जिम्मेदार मि. अग्निहोत्री को ठहराती भी नहीं। लेकिन आखिर में हूँ तो मैं भी एक इंसान ही ना, तो वो क्यों नहीं समझते कि मेरा भी दिल दुखता है? मुझे भी तकलीफ होती है, और उनकी कड़वी बातें सीधा मेरे दिल को छलनी कर जाती हैं...(भावुकता से)...मैं क्या करूँ? मैं खुश नहीं हूँ, बिल्कुल भी खुश नहीं हूँ, अपने साथ इस सलूक को होता देख, लेकिन मैं भी मजबूर हूँ अपने दिल के हाथों...(तभी कमरे में नर्स आ जाती है, जिसे देखकर अरु अपने आँसू पोछ लेती है और एक गहरी साँस लेते हुए, अपने इमोशंस को काबू करने की कोशिश करती है!)...खैर, मैं भी आज के दिन तुम्हारे साथ क्या फ़िज़ूल की बातें लेकर बैठ गई...(दक्ष की तरफ देखकर, फीकी सी मुस्कान के साथ)...तुम्हारे लिए आज मेरे पास एक सरप्राइज़ है...(टेबल पर रखी राखी को उठाते हुए)...देखो, मैं ये तुम्हारे लिए लाई हूँ। तुम भी सोच रहे होगे ना कि कैसी पागल सी लड़की को अपनी बहन बनाया है, जो बिना रक्षाबंधन के ही मुझे राखी बांध रही है...(दक्ष की कलाई पर राखी बांधते हुए)...लेकिन हमेशा से मेरी ख्वाहिश थी कि रक्षाबंधन के खास मौके पर मैं तुम्हें राखी बांधूँ, लेकिन शायद वो दिन मेरी किस्मत में ही नहीं। और आज शायद पहली और आखिरी बार है जो मैं तुम्हारी कलाई पर अपनी राखी बांध रही हूँ, क्योंकि शायद ही फिर मैं ज़िंदगी में कभी तुमसे मिल पाऊँ...(दक्ष के गाल को छूते हुए)...मैं बस ईश्वर से यही प्रार्थना करूँगी कि मेरे इस भाई को दुनियाँ-जहाँ की सारी खुशियाँ मिलें, और जल्द से जल्द तुम पहले की तरह हँसते-मुस्कुराते दक्ष बन जाओ, और भगवान तुम्हें मेरी भी उम्र दे दे...(भावुक होकर)...मैं अभी इसी वक़्त यहाँ से जा रही हूँ दक्ष, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि मि. अग्निहोत्री को देखकर या उनकी वजह से मैं कमज़ोर पड़कर यहाँ से जाऊँ। इसीलिए मुझे उनके लौटने से पहले ही यहाँ से जाना होगा, यहाँ से बहुत दूर। लेकिन हाँ, मैं कहीं भी रहूँ, मेरी दुआएँ हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगी...(भावुकता से दक्ष के माथे को चूमते हुए)...बाय दक्ष...अपना ख्याल रखना!

    इतना कहकर, अरु बिना रुके लगभग दौड़ते हुए दक्ष के कमरे से बाहर आ जाती है। एक पल को मुड़कर देखने के बाद, अपने आँसू साफ करते हुए घर से बाहर निकल आती है और एक नज़र वापस घर पर डालती है। अरु ने कभी नहीं सोचा था कि जिस घर में वह अपनी मर्ज़ी के बिना लाई गई थी, एक दिन ऐसा आएगा कि उसी घर से जाने के लिए उसका दिल भर आएगा। यह सब सोचते-सोचते ही अरु बाहर रोड पर आ चुकी थी और बस अपने बिना मंज़िल के सफ़र पर आगे बढ़ते हुए वहाँ से जाने लगी।

    इधर, दूसरी तरफ़, कुछ वक़्त बाद रिदांश वापस घर पर आता है। उसकी नज़रें सबसे पहले अरु को ढूँढती हैं, जो उसे अक्सर इस वक़्त हॉल में या दक्ष के कमरे में नज़र आती थी। आज वह कहीं भी नहीं थी। रिदांश को देखकर नर्स फ़ौरन दक्ष के कमरे से बाहर चली जाती है, क्योंकि रिदांश को पसंद नहीं था कि उसकी अपनों के साथ प्राइवेसी के वक़्त कोई बाहरी वहाँ मौजूद रहे। रिदांश दक्ष को देखता है, तभी अचानक उसकी नज़र दक्ष की कलाई पर पड़ती है, जिस पर राखी बंधी थी। रिदांश उसे असमंजस से देखने लगता है क्योंकि प्रिशा या नम्या भी मौजूद नहीं थीं जिन्होंने ऐसा कुछ किया हो। तो फिर यह आखिर किसने किया होगा और क्यों? यही सब और ऐसी ही बातें इस वक़्त रिदांश के ज़हन में चल रही थीं कि तभी अचानक अरु का ख़्याल उसके ज़हन में कौंधता है। उसके दिमाग में अरु का नाम आते ही अचानक एक उथल-पुथल सी मच जाती है। वह खिड़की के पास जाकर अपनी गहरी सोच में डूबा, सारे तारों को एक-दूसरे से जोड़ने की कोशिश करते हुए, अपने दिमाग में ही इस उलझन और बातों को सुलझाने की कोशिश कर रहा था कि तभी अचानक उसके कानों में एक आवाज़ पड़ती है।

    कुछ पल तक रिदांश अपनी जगह पर यूँ ही स्तब्ध खड़ा रहता है, जैसे कि खुद को यकीन दिला रहा हो। जैसे ही उसे चीज़ें साफ़ तौर पर समझ आती हैं, वह जल्दी से फुर्ती के साथ पीछे की ओर पलटता है और अपने सामने के नज़ारे को देखकर उसे आज पहली बार अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। जिस पल का उसे इतने अरसे से इंतज़ार था, आज असल में वह सच हो गया। वाकई उसकी नज़रों के सामने उसका दोस्त, उसका यार दक्ष, अपनी आँखें खोले लेटा था। अब दक्ष की नज़रें रिदांश पर ही टिकी थीं। होश में आने के बाद, उसके मुँह से बस एक ही लफ़्ज़ निकला, और वह था... अरु!

  • 14. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 14

    Words: 1572

    Estimated Reading Time: 10 min

    नम्या और अनिकेत की अनुमति मिलने के बाद प्रिशा बहुत खुश थी। थोड़ी देर में ही वह अपना सामान लेकर बाहर तैयार खड़ी हो गई। अनिकेत के कहने पर टॉम प्रिशा को घुमाने ले जा रहा था। कुछ ही देर में टॉम जीप लेकर प्रिशा के सामने आ रुका। एक गार्ड प्रिशा का सारा सामान जीप में जमा देता है। प्रिशा आगे की सीट पर टॉम के बगल में बैठते हुए वहाँ खड़े अनिकेत को सी यू बोलकर वहाँ से चली गई। प्रिशा शरारत से एक नज़र गंभीरता से गाड़ी चलाते टॉम को देखती है, और फिर कुछ सोचते हुए दूसरी ओर मुँह करके बाहर का नज़ारा देखने में मशगूल हो जाती है। कुछ दूरी पर जाने के बाद प्रिशा टॉम को गाड़ी रोकने के लिए कहती है।


    प्रिशा: गाड़ी रोकिए!

    टॉम: क्यों? क्या हुआ?

    प्रिशा: मुझे प्यास लगी है!

    टॉम: तो पीछे पानी की बोतल है, पी लो!

    प्रिशा: नहीं, मुझे कोल्ड्रिंक पीने का मन है। इसीलिए आप आगे आने वाले रेस्टोरेंट पर रोक दीजिएगा। मैं खुद जाकर ले आऊँगी। और प्लीज अब ये मत कहिएगा कि मैं कोल्ड्रिंक नहीं पी सकती। और ये आपका कोई बेकार सा रूल है जिसे मुझे मानना होगा!


    टॉम प्रिशा को कोई जवाब नहीं देता। वह खामोशी से गाड़ी चलाता रहता है और कुछ दूरी पर जाकर एक रेस्टोरेंट पर गाड़ी रोकता है।


    टॉम (गंभीरता से): जब तक मैं वापस ना आ जाऊँ, तब तक यहाँ से हिलना भी नहीं। मैं बस दो मिनट में वापस आता हूँ!

    प्रिशा: हम्म!


    इस नसीहत के बाद टॉम रेस्टोरेंट की ओर बढ़ जाता है। जैसे ही टॉम थोड़ी दूरी पर पहुँचता है, प्रिशा के दिमाग में शरारत की घंटी जो पहले से बज रही थी, अब और भी तेज़ी से बजने लगती है। टॉम के जाते ही प्रिशा जल्दी से ड्राइविंग सीट पर खिसक जाती है। अगले ही पल वह चाबी घुमाकर जीप स्टार्ट कर देती है। जीप के स्टार्ट होने की आवाज़ सुनकर टॉम जल्दी से पीछे की ओर पलटता है, और प्रिशा उसे देखकर जीभ चढ़ाते हुए गाड़ी लेकर वहाँ से फुर्ती से आगे बढ़ जाती है।


    प्रिशा (मुस्कुरा कर बड़बड़ाते हुए): हूँह... मेरी शिकायत लगाई थी ना भाई से... अब पता चलेगा जब इतनी दूर बिना गाड़ी के आना पड़ेगा। हूँह! पता नहीं भाई कैसे इस एंग्री बर्ड को टॉलरेट करते हैं... (सोचते हुए)... बट जो भी है, आज तो पक्का मज़ा आने वाला है!


    (मुंबई: रिदांश का घर)


    दूसरी तरफ, इतने अरसे से रिदांश को जिस पल का इंतज़ार था, आज वह सच हो गया। उसकी नज़रों के सामने उसका दोस्त, उसका यार दक्ष, अपनी आँखें खोले लेटा था। अब दक्ष की नज़रें रिदांश पर ही टिकी थीं। होश में आने के बाद, उसके मुँह से बस एक ही शब्द निकला था—"अरु..."। रिदांश के चेहरे पर आज पहली बार दुनियाँ की खुशी समेटे हुए एक अविश्वास सा नज़र आ रहा था। वह अविश्वास सिर्फ़ इसीलिए था क्योंकि रिदांश के लिए यह पल दुनियाँ की सबसे बड़ी खुशियों और नेमतों में से एक था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका दोस्त आज पहले की तरह न सिर्फ़ उसे देख सकता है, बल्कि बोल भी सकता है। आज रिदांश के दिल में इतनी खुशी और राहत थी कि जिसे वह शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता था। ताज्जुब की बात तो यह थी कि उसने अपने एक्सप्रेशन और इमोशन्स को छुपाने की कोशिश भी नहीं की थी, हालाँकि चाहे फिर ये इमोशन्स उसने कुछ ही पल के लिए क्यों ना ज़ाहिर किए हों। इधर, दक्ष भी अपने सामने रिदांश को देखकर खुशी से फूला नहीं समा रहा था। कुछ देर बाद, वह आहिस्ता से अपने बिस्तर पर बैठने की कोशिश करता है, और आखिर में वह अपने बिस्तर पर आधा लेटने की अवस्था में बैठ जाता है। हालाँकि, उसे ऐसे करने के लिए बहुत जद्दोजहद भी करनी पड़ी थी, क्योंकि इतने अरसे बाद उसे होश आया था और उसका शरीर अभी बहुत कमज़ोर महसूस कर रहा था। रिदांश, जो कि बस खाली दिमाग से दक्ष को देखे जा रहा था—उसे खामोश और उलझा देख, आखिर में दक्ष अपनी चुप्पी तोड़ता है; उसे अपने ख्यालों से बाहर लाने और उसकी तंद्रा तोड़ने के लिए!


    दक्ष (धीमी और कमज़ोर आवाज़ में): साले! जब मैं कोमा में था, तब तो इतनी सेवा करता था और अब बस वहाँ बुत बना खड़ा है। आकर मदद कर मेरी यहाँ!


    दक्ष की बात सुनकर आखिरकार रिदांश को यकीन हो गया कि यह कोई वहम नहीं, बल्कि दक्ष इस वक्त सचमुच सही-सलामत उसके सामने मौजूद है। दक्ष की आवाज़ उसके कानों में पड़ते ही उसकी तंद्रा टूट गई, और रिदांश झट से बिस्तर की ओर बढ़ा और बैठे हुए दक्ष को कसकर अपनी छाती से लगा लिया। इस एक गले में बिन बोले ही रिदांश के कितने जज़्बात और एहसास जुड़े थे, यह बात दक्ष अच्छी तरह महसूस कर सकता था। यह महसूस करते हुए दक्ष ने भी अपनी बाहें रिदांश पर कस लीं, और दोनों दोस्त तब तक गले लगे रहे जब तक आखिरकार दक्ष ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी।


    दक्ष: अगर तू ऐसे ही मुझसे चिपका रहा ना, तो यकीनन तेरी बीवी को हम दोनों की दोस्ती पर शक हो जाएगा!


    बीवी का शब्द सुनकर रिदांश के ज़हन में फौरन अरु का ख्याल आता है, और साथ ही वह दक्ष से दूर होकर सवालिया नज़रों से उसकी ओर देखने लगता है!


    दक्ष (रिदांश की नज़रों के सवाल को समझते हुए): हम्म, कोमा में था मैं... कुछ बोल नहीं सकता था... किसी बात पर रिएक्ट नहीं कर सकता था... लेकिन हर एक बात जो तूने कही... अरु ने कही... वह सब मुझ तक पहुँचती थी और सुनाई भी देती थी... बस मैं उनका जवाब नहीं दे पाता था!


    रिदांश दक्ष की बात सुनकर कुछ देर सोचते हुए, खामोशी से दक्ष की राखी बंधी कलाई को देखता रहा, और फिर दक्ष की तरफ देखते हुए उसके चेहरे और आँखों को पढ़ने की कोशिश करते हुए, कुछ पल बाद अपनी चुप्पी तोड़ी!


    रिदांश (खाली भाव से): डोंट इवन टेल मी कि जो मैं सोच रहा हूँ वही सही है?

    दक्ष: वैल, हमेशा से मैंने तुझे एक ही चीज़ कही है कि मेरे दोस्त... मेरे रिदू का सेंस ऑफ़ ह्यूमर बहुत हाई है... जो कभी गलत हो ही नहीं सकता!

    रिदांश (अपने बालों में हाथ घुमाते हुए गहरी साँस के साथ): शिट!

    दक्ष: और नहीं तो क्या? इतने दिनों से बस तूने सब शिट, शिट ही किया है... मतलब मेरा इतना होनहार और इंटेलिजेंट दोस्त कैसे इतना गधा...(रिदांश बीच में ही दक्ष की बात सुनकर उसे घूरता है और दक्ष अपनी बात को जल्दी से बदलता है!)... अरे मेरा मतलब था कि इतनी बड़ी गलतफ़हमी कैसे हो गई!


    रिदांश उस नर्स को बुलाकर अरु के बारे में पूरी बात पूछता है और इसके बाद उसे वहाँ से जाने के लिए कहता है!


    दक्ष (नर्स के जाने के बाद गंभीरता के साथ): तूने सच में उसका बहुत दिल दुखाया है रिदू... अगर आज मैं तेरे सामने सही-सलामत खड़ा हूँ तो सिर्फ़ अरु की वजह से!

    रिदांश (बिना किसी भाव के): मैं उसे ले कर आता हूँ!

    दक्ष: और कहाँ से लाएगा तू उसे? क्या तू जानता है कहाँ है वह?

    रिदांश: अभी उसकी दोस्त के सिवा उसके पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं है यहाँ!


    रिदांश इतना ही कह पाया था कि तभी नैना वहाँ आ पहुँचती है, और दक्ष को देखकर हैरानी भरी खुशी से उसकी ओर देखती है!


    नैना (खुश होकर): दक्ष तुम... तुम ठीक हो गए... आई एम सो हैप्पी फॉर यू!

    रिदांश (एटीट्यूड के साथ): अपनी खुशियाँ बाद में बाँट लेना आराम से... पहले यह बताओ दोस्त कहाँ है तुम्हारी?

    नैना: कौन सी दोस्त?

    रिदांश (इरिटेट होकर): जितनी भी दोस्त हैं तुम्हारी, सबके बारे में बता दो... क्योंकि मैं तो दुनियाँ का सबसे बड़ा बेवकूफ इंसान हूँ, तो बस यही काम तो है मुझे!

    नैना: ह... हाँ?

    रिदांश: ऑफ़कोर्स अपनी वाइफ़ के बारे में पूछ रहा हूँ मैं!

    नैना: अरु... लेकिन उसके बारे में मुझे कैसे पता होगा... मैं तो खुद यहाँ अरु से मिलने आई हूँ!!

    दक्ष (टेंशन भरे लहज़े से): फिर कहाँ गई होगी आखिर अरु?

    नैना (असमंजसता से): मगर असल में हुआ क्या है, मुझे भी तो पता चले!

    दक्ष: मैं बताता हूँ!


    इसके बाद दक्ष नैना को पूरी बात बताता है और अब नैना भी सारी बात जानकर परेशान हो उठी थी!


    नैना: ओह गॉड! पता नहीं कहाँ गई होगी अरु!

    दक्ष: डोंट वरी नैना, सब ठीक हो जाएगा!

    नैना (बड़बड़ाते हुए): इस भस्मासुर को शांति मिले तब कहीं कुछ सही हो ना!

    रिदांश (गंभीरता से नैना की ओर देखते हुए): कुछ कहा तुमने?

    नैना: न... नहीं तो मैं तो यही बोल रही थी कि अरु को कहाँ ढूँढ़ेंगे!

    रिदांश (दक्ष की ओर देखकर): मैं आता हूँ उसे वापस लेकर!

    नैना (फटाक से): मैं भी चलूँगी तुम्हारे साथ अरु को ढूँढने में!


    रिदांश नैना की बात सुनकर बिना कोई जवाब दिए वहाँ से बाहर की ओर बढ़ जाता है!


    नैना (दक्ष से): तुम्हें टेंशन नहीं हो रही?

    दक्ष (बेड पर सर टिकाते हुए): ना... तुम्हें हो रही है?

    नैना: हाँ, बहुत। क्योंकि इस शहर में अरु का कोई भी नहीं है... अंकल और राहुल भी यहाँ नहीं हैं... पता नहीं कहाँ होगी वह और किस हाल में होगी!

    दक्ष: यह सब तुम इसीलिए कह रही हो क्योंकि तुम मेरे दोस्त को नहीं जानती अभी... वह ज़मीन आसमान एक कर देगा लेकिन अरु को साथ लेकर ही वापस लौटेगा... सो डोंट वरी... और अब जाओ जल्दी, वरना वह भस्मासुर तुम्हें ही अपने गुस्से का शिकार बना लेगा!

    नैना (लगभग भागते हुए): ओह हाँ... अच्छा, मैं मिलती हूँ बाद में, वरना वह भस्मासुर और उसका गुस्सा निगल जाएँगे मुझे ही... सी यू सून, बाय!

    दक्ष: बाय!


    इसके बाद जल्दी से नैना बाहर की ओर जाती है, और रिदांश के साथ उसकी गाड़ी में जाकर बैठ जाती है। हालाँकि वह रिदांश के डर से अंदर ही अंदर अपनी सुरक्षा की प्रार्थना करते हुए जाप किए जा रही थी, और इसी के साथ रिदांश ने अपनी गाड़ी को आगे बढ़ा दिया।

  • 15. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 15

    Words: 1995

    Estimated Reading Time: 12 min

    (यूएस.....)

    प्रिशा ने टॉम को अपनी शरारत से, और टॉम को सबक सिखाने के लिए, पीछे छोड़ दिया था, और जीप लेकर वहाँ से निकल गई थी। प्रिशा काफी आगे निकल आई थी और अपनी मस्ती में जीप चला रही थी। वह सोच रही थी कि टॉम को अब पता चलेगा, जब वह परेशान होगा और उसे यहाँ कोई जल्दी लिफ्ट भी नहीं देगा। प्रिशा ये सब सोचते हुए गाड़ी ड्राइव कर रही थी, कि तभी कुछ आवारा लड़कों की जीप उसके साइड से गुज़री, और उनमें से एक लड़के ने प्रिशा पर कमेंट किया।

    लड़का: "अकेले-अकेले कहाँ जा रही हो जानेमन...कहो तो हम भी साथ चलें!!!"

    प्रिशा उन लड़कों की हरकतें देख अपनी गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी। और वे लड़के भी अपनी गाड़ी की स्पीड बढ़ाते हुए, कुछ देर बाद अपनी गाड़ी आगे निकाल कर, प्रिशा की गाड़ी का रास्ता रोक दिया। यह देखकर प्रिशा का दिल घबराहट और डर से कांप उठा। जैसे ही लड़के प्रिशा की ओर आने के लिए गाड़ी से उतरे, प्रिशा ने जल्दी से एक्सीलेटर दबाते हुए अपनी गाड़ी को जंगल के रास्ते की तरफ मोड़ दिया। यह देखकर वे लफंगे लड़के जल्दी से वापस अपनी गाड़ी में बैठते हुए, उसकी गाड़ी का पीछा करते हुए, उसी जंगल के रास्ते की ओर बढ़ गए! प्रिशा बहुत घबराई हुई थी। उसे खुद के किए पर गुस्सा आ रहा था; आखिर उसने टॉम को गाड़ी से उतारा ही क्यों? आखिर उसे यहां अकेले आने की क्या ज़रूरत थी? और सोने पर सुहागा, यहां फोन का नेटवर्क भी नहीं था जिससे वह किसी से संपर्क कर सके और अपनी मदद के लिए बुला सके।

    भले ही प्रिशा के पेरेंट्स ने उनकी परवरिश नहीं की थी, लेकिन रिदांश ने कभी भी उन्हें अपने पेरेंट्स की कमी महसूस नहीं होने दिया, और न ही कभी उन्हें बचपन से ग़रीबी या किसी तकलीफ़ का सामना करने दिया। रिदांश ने अपने तीनों बहन-भाइयों को बड़े ही लाड़-प्यार से रखा था; जिनमें प्रिशा सबसे छोटी थी, इसलिए उसके लिए वह हमेशा से ही एक्स्ट्रा लविंग एंड केयरिंग रहा था।

    प्रिशा घर में सबसे छोटी और सबकी लाडली थी। सब उसे बच्चे की तरह पैंपर करते थे। यही वजह थी कि बाकी तीनों के मुताबिक वह काफी एक्स्ट्रा सेंसिटिव और इनोसेंट थी, और अक्सर छोटी-छोटी बातों और चीज़ों से भी वह जल्दी घबरा जाती थी। आज भी इस सिचुएशन में पड़कर उसका रोना शुरू हो गया था। वहीं, अगर प्रिशा की जगह नम्या होती, तो वह उल्टा उन सब लड़कों को ही रुला देती... प्रिशा बार-बार मुड़ते हुए पीछे देखती जा रही थी और अपनी गाड़ी की स्पीड बढ़ाती जा रही थी। कुछ देर बाद प्रिशा की साँसें उसके गले में अटक गईं जब आगे रास्ता ही ख़त्म हो चुका था और अब एक पहाड़ी-नुमा जगह पर आकर उसकी गाड़ी रुक गई थी। इसके आगे अब बस एक गहरी खाई थी। सामने का नज़ारा देखकर प्रिशा के हाथ-पैर फूल गए थे और उसका दिमाग कुछ पल तक सुन्न पड़ गया था। प्रिशा अपनी गाड़ी को वापस ले जाने के लिए मोड़ने को हुई, कि तभी वहाँ वे लड़के पहुँच गए और प्रिशा का रास्ता रोककर खड़े हो गए। प्रिशा की हालत इस वक्त ऐसी हो गई थी मानो जैसे काटो तो खून न निकले। घबराहट और डर से उसकी साँसें तेज़ चलने लगीं…!!

    पहला लड़का: "क्या फायदा हुआ बेबी इतना भागने का....और हमें भगाने का.... आखिर में आना तो हमारे पास ही हुआ ना!!"

    प्रिशा (डरते हुए): "दे...देखो मे..मेरा रा...रास्ता छोड़ दो और तू...तुम लोग दू...दूर रहो मु...मुझसे....तु...तुम....लो...लोग जानते नही मे...मेरे भाई को अ...अगर उन्हें प...पता चला की तु...तुम लोगों ने मेरे सा...साथ ऐसे मि...मिस बि...बिहेव किया है तो वो तुम लो...लोगों का वो ह...हश्र क...करेंगे की तुम सो...सोच भी नहीं स...सकते!!!"

    एक लड़का (गाड़ी से नीचे कूदते हुए): "तो अब तो तेरे भाई को ही देखना है पहले की आखिर कौन से खेत की मूली है....(दूसरे लड़के से)....उठा के लाओ रे इसे और डालो अपनी गाड़ी में!!"

    जैसे ही उनमें से दो लड़के गाड़ी से नीचे उतरे, प्रिशा भी खुद को बचाने के लिए भागने की कोशिश में अपनी गाड़ी से नीचे कूद पड़ी। हड़बड़ी की वजह से उसका पांव मुड़ गया, जिसकी वजह से वह वहीं पथरीली और उबड़-खाबड़ ज़मीन पर गिर पड़ी। उसका पांव और घुटना घिसट लगने से छिल गया, और प्रिशा के मुँह से दर्द भरी आह निकल गई। लेकिन तभी उन लड़कों को अपने करीब खड़ा देख, एक बार फिर उसकी साँसें अटक गईं। जैसे ही उनमें से एक लड़के ने प्रिशा की कलाई पकड़ने के लिए अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया, तो प्रिशा डर से अपनी आँखें बंद कर ली। लेकिन कुछ पल बाद भी जब उसे कोई स्पर्श या हलचल महसूस नहीं हुई, तो वह धीरे से अपनी आँखें खोली। कुछ पल पहले तक जो दो लड़के उसके सामने खड़े थे, अब ज़मीन पर चारों खाने चित पड़े थे। प्रिशा हैरानी से इधर-उधर देखती है और बाकी लड़कों की नज़रें अपने पीछे की ओर देखकर जल्दी से पीछे पलटती हैं। अपने सामने अचानक किसी जिन्न की तरह प्रकट हुए टॉम को देखकर, जैसे उसकी अटकी हुई साँसें वापस से सामान्य हुईं। इस वक्त टॉम को यहां देखकर जो सुकून और खुशी महसूस कर रही थी, वह लफ़्ज़ों से परे था। टॉम को अपने सामने देखकर, प्रिशा लड़खड़ाते हुए जल्दी से खड़े होकर उसके सीने से एक छोटे से खोए हुए बच्चे की तरह चिपक गई—जैसे उसे कितनी देर ढूँढने के बाद अपनी माँ मिली हो!

    प्रिशा (शिकायती लहज़े में सुबकते हुए): "टॉम क्रूज पता है इन लोगों ने मुझे बहुत डराया है!!!"

    टॉम: "डोंट वरी बच्चे अब तुम देखो की मैं कैसे इन्हें डराता हूँ!!!"

    टॉम का प्रिशा से इतना ही कहना हुआ था.... कि बाकी बचे लड़कों के अलावा टॉम के सिर्फ एक पंच से चारों खाने चित हुए वे दो लड़के भी.... वहाँ से ऐसे गायब हो गए जैसे गधे के सर से सींग!!!!!


    (मुंबई.......)

    इधर रिदांश को सच तो मालूम हो गया था, और वह नैना के साथ अरु को ढूँढने भी निकल पड़ा था। लेकिन उसके चेहरे के खाली और ठंडे भाव से उसके दिल और दिमाग की हालत जान पाना मुश्किल, नहीं नामुमकिन था। इधर, नैना ने रिदांश के साथ अरु को ढूँढने की बात तो कह दी थी, लेकिन एक तरफ अरु के न मिलने की टेंशन, और दूसरी तरफ रिदांश के साथ बैठे हुए, उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई मासूम सी हिरनी शेर की मांद में है और कब शेर हमला कर दे, उसे नहीं मालूम। यही सब सोच-सोच कर नैना की हालत खस्ता थी!

    नैना (मन में): "ओह गॉड अरु कहाँ है तू.... हे ईश्वर जहाँ भी हो मेरी दोस्त सही सलामत हो.... और बस जल्दी से जल्दी हमें मिल जाए.... वरना अरु का तो जो है सो है इस भस्मासुर के साथ मैं थोड़ी देर और यूहीं बैठी रही ना तो मुझे यकीनन हार्ट अटैक हो जाना है....पता नहीं अरु कैसे इसे और इसके डेंजर ओरे को झेलती है.... अगर उसकी जगह मैं होती ना तो पक्का अब तक मेरी अस्थियाँ हरिद्वार के जल में बह गई होती....!!!!"

    नैना अभी ये सब सोच ही रही थी कि तभी रिदांश अपनी चुप्पी तोड़ते हुए हमेशा की तरह रूखे और सर्द लहज़े में बोला!

    रिदांश (बिना किसी भाव के): "एनी आइडिया कहाँ होगी तुम्हारी दोस्त?.....(नैना अपनी ही सोच में गुम थी)....(रिदांश कुछ पलों बाद).....आर यू डेफ?"

    नैना (हड़बड़ा कर अपनी सोच से बाहर आते हुए): "कौ...कौन....म...मैं???"

    रिदांश (फ्रस्ट्रेशन भरे लहज़े में): "तुम्हें इस गाड़ी में और कोई नज़र आ रहा है अभी जिससे मैं बात करूँ?"

    नैना (रोबॉट की तरह अपनी मुंडी जल्दी से हाँ में हिलाते हुए): "ड....ड...ड्राइवर है!!"

    रिदांश (इरिटेट हो कर): "चुप करो...एकदम चुप....!!!"

    नैना (स्प्रिंग डॉल की तरह अपनी मुंडी हिलाते हुए जल्दी से अपनी उंगली बच्चों की तरह अपने होंठों पर रखते हुए): "हम्मम!!"

    रिदांश अपनी फ्रस्ट्रेशन और इरीटेशन को दूर करने के लिए गहरी साँस लेता है....और नैना उसे फ्रस्ट्रेट देख आखिर में कुछ पल बाद अपनी ज़ुबान डरते हुए फिर से खोलती है!!!

    नैना (धीमी आवाज में): "आ...आई गेस मैं जानती हूँ कि अरु कहाँ गई होगी!"

    नैना की बात सुन रिदांश झट से अपनी खूबसूरत आँखें उसकी ओर पलटता है..... और बिना कुछ बोले एक पल तक ब्लैंक एक्सप्रेशन से उसकी ओर देखता है....और फिर एक पल बाद सर्द लहज़े से अपनी चुप्पी तोड़ता है!!!

    रिदांश (सर्द लहज़े से): "व्हेयर?"

    कुछ देर बाद रिदांश की गाड़ी समुद्र के पास एक जगह जाकर रुकती है.....जहाँ लोगों की बहुत ही कम चहल-पहल थी...रिदांश अपनी गाड़ी से नीचे उतरता है और अपनी आँखों से चश्मा निकाल कर इधर-उधर देखने के बाद.... आखिर में उसकी नज़र कुछ ही दूरी पर बेंच पर बैठी समुद्र को निहारती हुई उदास अरु पर पड़ती है....रिदांश आगे बढ़ता या कुछ कहता.... उससे पहले ही नैना भाग कर अरु के पास पहुँच जाती है.... और उसके गले लग जाती है!!!

    नैना: "तू ठीक है ना अरु....जानती है तू कितना परेशान हो गई थी मैं तुझे लेकर?"

    अरु: "डोंट वरी मैं बिल्कुल ठी...."

    अरु कहते-कहते बीच में ही रुक जाती है.... जब उसकी नज़र कुछ दूरी पर खड़े रिदांश पर पड़ती है!!!

    अरु (नैना से अलग होकर नाराज़गी से): "आप?....आप यहाँ क्या कर रहे हैं....क्या अभी भी कोई कमी रह गई है मुझे ह्यूमिलेट या लेट डाउन करने में??.... या फिर कोई नया इल्ज़ाम आप मेरे सर बाँधने आए हैं???.....बोलिए क्या गुनाह किया है इस बार मैंने??.... और आखिर क्या सज़ा देंगे आप मुझे अपने इल्ज़ाम की इस बार???"

    रिदांश (ब्लैंक एक्सप्रेशन लिए हुए): "दक्ष को होश आ गया है!"

    अरु ने जैसे ही दक्ष के होश में आने की बात सुनी.... तो उसका दिल खुशी से झूम उठा....लेकिन अब उसने सोच लिया था कि जिस राह पर वह आगे बढ़ चुकी है.... उससे वापस नहीं लौटेगी....और इसके लिए उसे खुद के इमोशंस और दिल को कड़ा करना होगा!!!

    अरु: "ओह तो तभी आप यहाँ आए हैं....खैर जो भी हो मुझे सच में बहुत खुशी हुई.... कि दक्ष ठीक हो गया है....ईश्वर उसे हमेशा स्वस्थ और खुश रखे मेरी बस यही दुआ है....(नैना की तरफ देखकर)....चलो नैना चलते हैं।!!"

    रिदांश (बिना किसी भाव के अरु को टोकते हुए): "लेट्स गो वाइफी....घर चलते हैं!!!"

    अरु (नाराज़गी से): "और कौन सा घर?"

    रिदांश (एक पल को अपनी आँखें बंद करते हुए): "दक्ष तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है....घर चलो!"

    अरु: "याद है आपको.... मैंने कहा था कि चाहे जो हो जाए.... इस घर से जाने के बाद मैं उस घर की दहलीज़ पर फिर दुबारा कदम नहीं रखूँगी.... तो मैं अभी भी अपने वर्ड्स पर कायम हूँ.....सो आपका घर आपको ही मुबारक.....(नैना का हाथ थाम कर)...चलो नैना यहाँ से!!"

    इतना कह कर अरु, नैना का हाथ थामे, वहाँ से आगे बढ़ जाती है और टैक्सी करके वहाँ से निकल जाती है। शायद ही अरु रिदांश से हकीकत में ऐसे बात कर पाती, लेकिन रिदांश के उसके साथ व्यवहार से सच में उसका दिल बहुत दुखा था। इसीलिए इस पल उसका दर्द, उसका गुस्सा बनकर झलक रहा था। अरु के वहाँ से जाने के बाद, रिदांश भी घर वापस लौट गया। जब वह घर पहुँचा, तो उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। डॉक्टर दक्ष की कंडीशन चेक कर चुके थे, और उनके हिसाब से यह कोई चमत्कार ही था जो दक्ष को होश आ चुका था और वह पूरी तरह ठीक भी हो चुका था। बस उसका शरीर आंतरिक और बाहरी दोनों तौर पर कमज़ोर था, और जिसे पूरी तरह ठीक होने में वक्त लगने वाला था। रिदांश को वापस आया देख, दक्ष उत्सुकता से उसके पीछे की ओर, इस उम्मीद में देखता है कि शायद अरु उसके साथ ही आई होगी। लेकिन जब उसे यकीन हो गया कि अरु उसके साथ नहीं आई, तो उसके चेहरे पर मायूसी और गंभीरता एक साथ छा जाती है।

    दक्ष: "देख रिदु अगर अरु वापस इस घर में नहीं आई ना.... तो मैं भी अपना सामान बाँधकर इस घर से हमेशा के लिए चला जाऊँगा!!"

    इतना कह कर दक्ष कुछ पल तक ब्लैंक एक्सप्रेशन लिए खड़े हुए.... रिदांश की ओर जवाब के इंतज़ार में देखता रहता है.... लेकिन अगले ही पल उसकी आँखें सौसर की तरह तब बड़ी हो जाती हैं..... और उसके मुँह से एक दर्द भरी झुँझलाहट भरी आह तब निकल जाती है.....जब रिदांश का एक हल्का पंच सीधा उसके मुँह पर पड़ता है.....!!!

  • 16. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 16

    Words: 1601

    Estimated Reading Time: 10 min

    दक्ष: देख रिदु, अगर अरु वापस इस घर में नहीं आई ना… तो मैं भी अपना सामान बांधकर इस घर से हमेशा के लिए चला जाऊँगा!!

    इतना कहकर दक्ष कुछ पल तक ब्लैंक एक्सप्रेशन लिए खड़े रहे। रिदांश की ओर जवाब के इंतज़ार में देखता रहा। लेकिन अगले ही पल उसकी आँखें सौसर की तरह बड़ी हो गईं और उसके मुँह से एक दर्द भरी, तेज़ आह निकल गई, जब रिदांश का एक हल्का-सा पंच सीधा उसके मुँह पर पड़ा।

    दक्ष (नौटंकी भरी मासूमियत से): सुना था शादी के बाद लोग अक्सर पराए हो जाते हैं… लेकिन आज देख भी लिया… मतलब तूने मुझे मारा… अपने दोस्त… अपने जिगर के टुकड़े को मारा… क्या वाकई??

    रिदांश (गुस्से भरी गंभीरता से): बहुत आसान है ना तेरे लिए छोड़कर जाना… तो ठीक है, चला जा फिर… पहले भी तो आखिर यही कोशिश की थी ना तूने… कि एक लड़की के लिए तू बाकी सब रिश्ते-नाते भूल गया और मरने चला गया… तो इस बार भी चला जा, कोई नहीं रोकेगा तुझे!!

    दक्ष (गंभीर होकर): मैं सॉरी रिदु, मैं तेरा दिल नहीं दुखाना चाहता था, मैं तो बस…

    रिदांश (बीच में ही अपनी हथेली दिखाकर टोकते हुए): बस मुझे कुछ नहीं सुनना… तुझे जो कहना था मैंने सुन लिया!!

    इतना कहकर जैसे ही रिदांश दक्ष के कमरे से बाहर जाने को हुआ, दक्ष हड़बड़ी में उसे रोकने के लिए बिस्तर से उठा। और उसे कमजोरी की वजह से तेज़ चक्कर आ गए। जिसकी वजह से वह अपना सिर पकड़ते हुए वहीं बिस्तर पर बैठ गया। और जब रिदांश की नज़र दक्ष पर पड़ी, तो वह जल्दी से उसके पास आकर उसे संभाला। उसने अपने नौकर से जल्दी से डॉक्टर को बुलाने के लिए कहा। दक्ष की हालत देखकर इस वक्त रिदांश के चेहरे पर उसके लिए परेशानी और फ़िक्र के भाव साफ़ नज़र आ रहे थे, जिसे रिदांश ने हमेशा की तरह छुपाने की कोशिश नहीं की थी। या यूँ कहना भी गलत नहीं होगा कि वह दक्ष से कुछ भी छुपाना नहीं चाहता था। एक पूरी दुनिया में अपनी माँ के बाद दक्ष और अनिकेत के सामने, जिनमें भी दक्ष के साथ खासकर रिदांश अधिकतर अपने मन की बातें ज़ाहिर कर दिया करता था। दक्ष जब रिदांश को खुद के लिए यूँ परेशान देखता है, तो उसके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान तैर जाती है।

    दक्ष: मैं फ़ाइन रिदु… बस वीकनेस है और कुछ नहीं!!

    रिदांश (सर्द लहज़े में): तुमसे तुम्हारी राय माँगी मैंने… नहीं ना… सो जस्ट शट योर माउथ!!

    दक्ष: तू ना दुनिया का आठवाँ अजूबा है… ठीक कहती है नैना और अरु, तू है ही भस्मासुर… फ़िक्र में भी दो बोल नर्मी से नहीं निकल सकते, अकड़ कायम रखनी है अपनी!!

    रिदांश कोई जवाब देता, उससे पहले ही डॉक्टर्स वहाँ आ गए और दक्ष का चेकअप करने लगे।

    रिदांश (थोड़ी देर बाद): व्हाट हैपन्ड?

    डॉक्टर: जैसे कि हमने आपको बताया मि. अग्निहोत्री… कि दक्ष जी की बॉडी बहुत ही वीक है, ऐसे ही उनका माइंड भी अभी बहुत ज़्यादा वीक है… इसीलिए थोड़ा भी स्ट्रेस या सोचना उनकी हेल्थ को बहुत नुकसान कर सकता है… सो प्लीज़ ध्यान रखें इस बात का!!

    इसके बाद डॉक्टर दक्ष को कुछ मेडिसिन देकर वहाँ से चले गए। रिदांश भी कमरे से बाहर आकर किसी को कॉल करता है। कुछ ही देर बाद रिदांश का एक गार्ड एक केयरटेकर अपने साथ लाता है, जिसे रिदांश ने दक्ष के लिए अप्वाइंट करवाया था, जिसे वह हर पल दक्ष के साथ रहने और उसकी देखभाल करने के लिए कहता है। यह केयरटेकर एक लड़की थी, जिसकी उम्र लगभग 25-26 साल की थी, जो दिखने में सामान्य रंग-रूप की थी, और जिसे कई सुरक्षा और अन्य पड़ाव पार करने के बाद आखिर में यह ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी।

    रिदांश: व्हाट इज़ योर नेम?

    लड़की: सर, माय नेम इज़ सृष्टि… सृष्टि शर्मा!!

    रिदांश: सो सृष्टि, यू नो वेरी वेल कि तुम्हें यहाँ किसलिए और क्यों रखा गया है…?

    सृष्टि: यस सर!

    रिदांश (प्रोफ़ेशनल टोन में): गुड… मुझे दक्ष से रिलेटेड कोई शिकायत या लापरवाही नहीं चाहिए… अंडरस्टैंड?

    सृष्टि: डोंट वरी सर… आपको शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा… आई विल गिव माय बेस्ट सर!!!

    रिदांश: गुड… (समांथा की ओर देखकर)… मिस सृष्टि को उनका काम समझा दीजिएगा… और देखिएगा कि दक्ष को किसी भी तरीके से कोई दिक्कत ना हो!

    समांथा (अपना सर हिलाते हुए): जी मास्टर!!

    इसके बाद, समांथा सृष्टि को उसका काम समझाने के लिए अपने साथ ले कर चली जाती है। इसके बाद, रिदांश किसी ज़रूरी मीटिंग को ऑनलाइन अटेंड करने के लिए अपने रूम में चला जाता है। काफी देर बाद, जब रिदांश की मीटिंग खत्म होती है, तो वह नीचे दक्ष से मिलने के लिए जाता है। तब तक, दक्ष दवाई ले कर सो चुका था। सृष्टि के रहने का इंतज़ाम भी यहीं, गेस्ट रूम में किया गया था ताकि वह दक्ष की अच्छे से देखभाल कर सके। कुछ देर बाद, समांथा रिदांश को डिनर करने के लिए बुलाने आती है, लेकिन रिदांश मना करके वापस अपने रूम में आ जाता है और चेंज करने के बाद बिस्तर पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगता है। लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी, और उसके ज़हन में रह-रह कर सिर्फ़ अरु और उससे जुड़े ख्याल ही आ रहे थे। जब काफी देर तक भी रिदांश यूँ ही करवटें बदलता रहा और उसे नींद नहीं आई, तो आखिर में अपने बिस्तर से उठ बैठा और बालकनी में जाकर सिगरेट जलाते हुए शहर को ताकने लगा। वह सिगरेट के धुएं के ज़रिए अपने मन की अशांति को बुझाने की कोशिश में जुट गया। उसके चेहरे के भाव अभी भी अनजाने ही थे, जिन्हें पढ़कर उसके मन में चल रही बातों को समझ पाना अभी भी मुश्किल ही था। यूँ ही वीरान सड़कों को निहारते हुए, कब सुबह हुई, रिदांश को होश ही नहीं रहा।

    सूरज की किरणें देखकर और पक्षियों की चहचहाहट सुनकर, रिदांश ने घड़ी में वक्त देखा और फिर अपने रोज़मर्रा के रूटीन की ओर बढ़ गया। जिम जाते वक्त, रिदांश की नज़र अनायास ही अपने कमरे के बगल में अरु के कमरे पर पड़ती है, और कुछ पल ब्लैंक एक्सप्रेशन लिए वह उसे देखते हुए फिर आगे बढ़ जाता है। रिदांश जब तैयार होकर नाश्ते की टेबल पर पहुँचता है, तो वहाँ पहले से ही दक्ष मौजूद था। नहा-धोकर, शेविंग वगैरह करके तैयार होकर, दक्ष बहुत ही फ्रेश और अच्छा लग रहा था, और रिदांश को देखते ही उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान तैर जाती है। रिदांश समांथा, सृष्टि और बाकी नौकरों को वहाँ से जाने का इशारा करता है, और सब उन दोनों को अकेला छोड़कर फ़ौरन ही वहाँ से चले जाते हैं।

    दक्ष: गुड मॉर्निंग रिदू!

    रिदांश (अपनी कुर्सी पर बैठते हुए): गुड मॉर्निंग!

    दक्ष (रिदांश की लाल आँखों को देखते हुए): क्या हुआ, तुम सोए नहीं रात को?

    रिदांश: हम्मम… नींद नहीं आ रही थी!!

    दक्ष: क्यों?

    रिदांश: आई डोंट नो!

    दक्ष (जूस की सिप लेते हुए): जानता नहीं है या मानना नहीं चाहता!!

    रिदांश (कुर्सी से अपनी जैकेट लेते हुए): मैं गेटिंग लेट… सी यू बाय!!!

    दक्ष: बाय!!!

    दूसरी तरफ, अरु ने आज से वापस कॉलेज आने का फ़ैसला कर लिया था। वह नैना के घर से सुबह जल्दी ही कॉलेज के लिए निकल आई थी। अपने कॉलेज के सामने आरना कैफे में बैठी हुई, अपने कॉफ़ी के मग में लगातार स्पून हिलाते हुए, किसी गहरी सोच में डूबी हुई थी। तभी, कैफ़े के बाहर रिदांश की चमचमाती हुई महँगी गाड़ी आकर रुकती है, और वहाँ मौजूद सभी लोगों की नज़रें रिदांश और उसके स्ट्रॉन्ग-डेंजर ओरे पर रुक जाती हैं। मगर रिदांश, अपनी आँखों पर एक्सपेंसिव स्पेक्स लगाए, सबको इग्नोर करते हुए, हमेशा की तरह अपने फुल कॉन्फ़िडेंस और एटिट्यूड के साथ कैफ़े के अंदर चला जाता है और सीधा आरना की टेबल पर जाकर बैठ जाता है। उसे वहाँ देखकर, एक पल के लिए आरना भी हैरान रह जाती है। कुछ पल बाद, आँखों से चश्मा उतारकर, रिदांश अपनी खूबसूरत आँखों से आरना की तरफ़ देखने लगता है और कहना शुरू करता है।

    रिदांश (अनजाने भाव से): लेट्स फ़ॉरगेट इट ऑल!!

    आरना (तंज भरी मुस्कान के साथ): कितना आसान है ना आपके लिए ये सब कहना और करना… नई?

    रिदांश: जो कुछ भी हुआ वो महज़ मिसअंडरस्टैंडिंग के चलते हुआ और जो वाकई में गलत भी हुआ… (एक पल रुककर)… बट टू बी ओनेस्ट उसे मैं या तुम बदल नहीं सकते… सो जो भी हुआ लेट्स फ़ॉरगेट इट एंड लेट्स स्टार्ट अ न्यू!

    अरु (तंज भरे लहज़े में): वाव! क्या तरीका है ना अपनी गलती मानने का… ब्रिलियंट!!

    रिदांश (अरु की आँखों में देखते हुए): सो व्हाट डू यू वांट फ्रॉम मी, वाइफ़…?

    अरु (फ़्रस्ट्रेट होकर नज़रें चुराते हुए): नथिंग… जस्ट लीव मी अलोन!!

    रिदांश (अपनी भौहें उचकाकर): इट्स रियली क्वाइट इम्पॉसिबल वाइफ़… (दिलकश मुस्कान के साथ)… बिकॉज़ अब तुम मानो या ना मानो… मैं तुम्हारी डेस्टिनी बन चुका हूँ!!

    अरु: श्योर… बट इन योर ड्रीम्स… (कुछ पल बाद)… मैं खुद बदलूँगी और खुद लिखूँगी अपनी किस्मत अपने हाथों!

    रिदांश (दिलकश मुस्कान के साथ): हम्मम… कॉन्फ़िडेंस… इम्प्रेसिव… बट फ़ॉर योर काइंड इंफ़ॉर्मेशन तुम्हें बता दूँ कि रिदांश अग्निहोत्री को हारने की आदत नहीं!!

    अरु (चैलेंजिंग लुक से): तो फिर अब ये आदत भी डाल लीजिए… क्योंकि इस बार आप हारने वाले हैं… और चाहें आप जो कर लें, मैं आपके साथ वापस नहीं आने वाली!!!

    रिदांश (गहरी साँस लेते हुए): सो ये तुम्हारा फ़ाइनल डिसीज़न है?

    आरना (फुल कॉन्फ़िडेंस से): विद आउट एनी डाउट!!

    रिदांश (एविल मुस्कान के साथ): ओके… सो नो प्रॉब्लम वाइफ़… एज़ योर विश!!!

    इतना कहकर रिदांश कुर्सी से उठते हुए अपनी आँखों पर वापस से चश्मा चढ़ा लेता है… और कुछ पल बाद ही कैफ़े से बाहर आकर अपने गार्ड्स की तरफ़ देखता है।

    रिदांश (अपने स्पेशल गार्ड्स की तरफ़ देखकर गंभीरता से): अब से हर एक पल तुम लोग इसके (आरना) आस-पास साये की तरह रहोगे… यू ऑल गेट इट?

    गार्ड्स (एक ही सुर में): यस बॉस!!!

    रिदांश (एक पल को वापस कैफ़े की तरफ़ मुड़कर मन में): अब तक तुमने सिर्फ़ मेरी नफ़रत देखी है वाइफ़… लेकिन अब तुम मेरा जुनून देखोगी… जस्ट वेट एंड वॉच… (एक पल रुककर)… वाइफ़..!!

    इतना सोचते हुए अगले ही पल रिदांश अपनी गाड़ी में बैठकर वहाँ से चला जाता है।

  • 17. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 17

    Words: 2007

    Estimated Reading Time: 13 min

    टॉम का प्रिशा से कहना ही हुआ था कि बाकी बचे लड़कों के अलावा, टॉम के सिर्फ़ एक पंच से चारों चित हुए वे दो लड़के भी वहाँ से ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सर से सींग।


    टॉम (गंभीरता से प्रिशा से): "लेट्स गो!"


    इतना कहकर टॉम गाड़ी की ओर बढ़ने लगा। लेकिन जब प्रिशा अपनी जगह से नहीं हिली, तो वह वापस से उसकी ओर पलटा।


    टॉम (बेरुखी से): "अब क्या प्रॉबलम है?"

    प्रिशा (अपने गाल पर आए आँसू साफ करते हुए): "कुछ नहीं!"

    टॉम (प्रिशा को रोता देख उसके पास जाकर नर्मी भरे भाव से): "टेल मी क्या हुआ है?"

    प्रिशा (अपने पांव की ओर इशारा करते हुए): "मेरे पांव में बहुत दर्द हो रहा है, और मुझसे एक कदम भी नहीं बढ़ाया जा रहा!"

    टॉम (प्रिशा के पांव और हाथ पर लगी मामूली चोट को देखते हुए): "ये इतनी सी चोट के लिए तुम इतना रो रही हो... लाइक सीरियसली?"

    प्रिशा (रोते हुए अपनी छिली हुई कोहनी को दिखाते हुए): "सी, ये इतनी सी चोट नहीं है... कितनी ज्यादा है!"

    टॉम (मन में बड़बड़ाते हुए): हाउ कैन आई फॉरगेट... कि ये तो बॉस की मोस्ट प्रीशियस एंड सेंसिटिव डॉल है... तो इतनी सी चोट भी इसके लिए कम कैसे हो सकती है!

    प्रिशा (अपनी पिछली हथेली से अपने आँसू पोछते हुए): "मैं यूँ ही आपको पत्थर दिल नहीं कहती... सी... आप दूसरों के दर्द को समझ ही नहीं सकते!"


    टॉम प्रिशा की बात का कोई जवाब नहीं दिया और बस खामोशी से उसका हाथ पकड़कर उसे वहीं पास पड़े एक पत्थर पर बैठाया। वह खुद गाड़ी की ओर बढ़ गया और उसमें से पानी की बोतल लेकर वापस प्रिशा के पास आया। वहीं ज़मीन पर पंजों के बल बैठकर अपने हाथ से प्रिशा के घाव को धोकर साफ किया। इस बीच प्रिशा छोटे बच्चों की तरह चिल्ला रही थी। जब टॉम से प्रिशा की ओवरसेंसिटिवनेस सहन नहीं हुई, तो आखिर में उसने उसे डाँटा।


    टॉम (डाँटते हुए): "जस्ट शटअप! अब थोड़ी भी आवाज नहीं निकलनी चाहिए तुम्हारे मुँह से।" प्रिशा टॉम की डाँट सुनकर किसी सहमे हुए बच्चे की तरह अपने आँसू जल्दी से साफ करते हुए एकदम खामोश हो गई। "तुम्हें याद दिला दूँ कि इस सब की जिम्मेदार तुम खुद हो और ये दर्द तो कुछ भी नहीं। तुमने सोचा है जो आज तुमने किया, जब बॉस को तुम्हारी उस स्टूपिड और नॉनसेंस हरकत के बारे में पता चलेगा, तो वो तुम्हारे साथ क्या करेंगे? आई डोंट थिंक कि मुझे तुम्हें ये बताने की भी ज़रूरत है!"


    प्रिशा टॉम की बात सुनकर घबरा गई क्योंकि वह जानती थी कि टॉम अब घर वापस जाने पर बाकी सबके साथ ही रिदांश को भी उसकी नादानी के बारे में यकीनन बता देगा। और अब उसे रिदांश की सख्त डाँट का सामना करना पड़ेगा। और हो सकता है कि रिदांश उसके इस बचपने के बाद अपने गुस्से में आकर उसे वापस इंडिया बुला ले। प्रिशा के मन में ये सारी उलझने चल रही थीं कि टॉम उसे किसी छोटे बच्चे की तरह अपनी बाहों में उठाकर गाड़ी की ओर ले गया और उसमें बैठा दिया। और खुद भी ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए अपनी गाड़ी वहाँ से मोड़ते हुए प्रिशा के साथ घर वापस जाने के लिए आगे बढ़ गया।


    (मुंबई...)


    रिदांश (एक पल को वापस कैफे की तरफ मुड़कर मन में): अब तक तुमने सिर्फ़ मेरी नफ़रत देखी है वाइफी, लेकिन अब तुम मेरा जुनून देखोगी। जस्ट वैट एंड वॉच। (एक पल रुककर)... वाइफी!


    इतना सोचते हुए अगले ही पल रिदांश अपनी गाड़ी में बैठकर वहाँ से चला गया। दूसरी तरफ़, अरु रिदांश का एटीट्यूड देखकर चिढ़ते हुए अपने कॉफ़ी के मग को टेबल पर आगे की ओर सरकाते हुए अपना बैग उठाकर कॉलेज की ओर बढ़ गई। तभी कॉलेज के गेट पर उससे नैना टकरा गई।


    नैना (अरु से): "मैं तुझे ही ढूँढने जा रही थी। अच्छा हुआ तू मुझे यहीं मिल गई। और तू इतनी सुबह ही कॉलेज क्यों आ गई? मुझे बताया तक नहीं और मैं सोती ही रह गई!"

    अरु (कुछ उलझकर): "वो मैं इतने दिनों बाद कॉलेज वापस आ रही थी, तो सोचा जल्दी आकर एक बार प्रिंसिपल सर से भी मिल लूँ!"

    नैना: "हम्मम लेकिन तू मुझे भी तो बता सकती थी ना?"

    अरु: "हाँ मैंने सोचा तुझे क्यों इतनी सुबह परेशान करूँ। मैं ही चली आती हूँ!"

    नैना: "ओहो इसमें परेशानी कैसी... (अरु का उदास चेहरा देखकर)... क्या हुआ अरु सब ठीक तो है ना?"

    अरु (कॉलेज के अंदर बेंच की तरफ़ इशारा करते हुए): "चल वहाँ चलकर बैठते हैं!"

    नैना: "हम्मम चल!"

    नैना (कुछ पल बाद अरु के साथ बेंच पर बैठते हुए): "हम्मम तो अब बता की क्या बात है?"

    अरु: "नैना दरअसल बात ये है कि..."


    अरु नैना से अपने दिल की बात कह ही रही थी कि तभी वहाँ उसकी दो क्लास फ़ैलो पायल और निधि वहाँ आ गईं।


    पायल (खुश होते हुए): "हाए... अरुना... आफ्टर सो लॉन्ग... हाउ आर यू?"

    अरु: "आई एम गुड थैंक्स... एंड यू?"

    पायल: "आई एम गुड!"

    निधि (अरु के माथे पर लगे सिंदूर को देखते हुए): "वैसे तुम शादी के बाद और भी ज़्यादा खूबसूरत लग रही हो और तुम पर ये सिंदूर बहुत सूट कर रहा है!"

    अरु (फ़ीकी सी मुस्कान के साथ): "थैंक्स!"

    पायल: "वैसे इतनी लंबी छुट्टियाँ क्यों ली तुमने?"

    अरु: "वो बस मैं अपनी पर्सनल लाइफ़ में थोड़ा बिज़ी थी बस इसीलिए!"

    निधि: "अरे पायल तू भी कैसे स्टूपिड क्वेश्चन कर रही है... अब ज़ाहिर है जिसका हसबैंड इतना हॉट और हैंडसम हो... उसका क्या खाक दिल लगेगा किताबों में और कोई बेवकूफ़ ही होगा... जो इतने हॉट एंड सेक्सी बंदे को छोड़कर कॉलेज आकर इन बोरिंग क्लासेस और किताबों में अपना दिमाग मारेगा... (अरु को छेड़ते हुए)... क्यों अरुना सही कह रही हूँ ना मैं?"

    पायल: "ऑफकोर्स यू आर राइट और अरु तुम सच में बहुत लकी हो कि रिदांश अग्निहोत्री ने तुम्हें चुना!"


    अरु बस जवाब में फ़ीकी सी मुस्कान मुस्कुराई। लेकिन हमारी नैना वो बीच में कूदे बिना कैसे रह सकती थी? भले ही रिदांश के सामने उसकी जुबान सिल जाती थी, लेकिन रिदांश की गैरमौजूदगी में नैना से बड़ा तीस मार खान कोई भी नहीं था!


    नैना (चिढ़ते हुए): "हाँ हाँ मि. अग्निहोत्री तो फ़रिश्ते हैं... और हॉट तो इतने हैं... कि बाय गॉड ऐसा बंदा जिस भी लड़की की लाइफ़ में आए... उसकी पूरी लाइफ़ में ही आग लगा दे!"

    अरु (नैना को टोकते हुए): "नैना..."

    पायल: "मतलब?"

    अरु: "कुछ नहीं... तुम तो जानती हो कि नैना को बस मज़ाक करने की आदत है!"

    निधि: "और नहीं तो क्या? वरना रिदांश अग्निहोत्री तो फ़ुल परफेक्शन पैकेज है मतलब बिल्कुल परफ़ेक्ट!"

    पायल: "बिल्कुल... देखा नहीं था आज... कि कैसे लड़कियाँ कैफ़े के बाहर उसकी एक झलक पाने के लिए पागल हुए जा रही थीं... ये जानते हुए भी कि वो मैरिड है अब और जिन्हें नहीं भी पता जब उन्हें पता चलेगा तो बिचारों का दिल भी हमारी तरह ही टूट जाएगा... (उम्मीद भरे भाव से)... वैसे अरुना दोस्त होने के नाते एक छोटा सा फ़ेवर तो कर ही सकती हो... प्लीज़ हमें एक बार अपने हसबैंड से पर्सनली मिलवा दो... प्लीज़!"

    निधि (हँसकर): "हाँ एंड डोंट वरी हम तुम्हारे हसबैंड से फ़्लर्ट नहीं करेंगे वो तुम्हारा ही रहेगा... हम तो बस एक बार पास से उस हैंडसम हंक का दीदार करके ही अपना दिल भर लेंगे!"


    अरु (उन दोनों की बातों को इग्नोर करते हुए बेंच से उठते हुए): "मुझे प्रिंसिपल सर से मिलना है सो मैं चलती हूँ... सी यू लैटर!"

    पायल और निधि: "या श्योर!"


    इसके बाद पायल और निधि वहाँ से चली गईं और अरु भी नैना के साथ वहाँ से आगे बढ़ने लगी कि अचानक उसे कुछ महसूस हुआ। वह पीछे की ओर पलटी और इधर-उधर देखने लगी।


    नैना: "क्या हुआ अरु?"

    अरु (इरिटेट होकर): "उस एक इंसान ने मेरा जीना हराम किया हुआ है... ऊपर से यहाँ कॉलेज में भी लोग सुकून के कुछ पल नहीं जीने दे सकते!"

    नैना: "हम्मम और नहीं तो क्या... देखा मतलब लोगों में थोड़ी भी शर्म नहीं... मतलब कैसे एक लड़के के सामने उसी के हसबैंड पर लाइन मार रही हैं... वैसे सच बताना अरु तुझे उस भस्मासुर का नाम सुनकर ज्यादा गुस्सा आया... या फिर वो उस भस्मासुर पर लाइन मार रही थी... इस बात से ज्यादा गुस्सा आया?"

    अरु (नैना को घूरते हुए): "हो गई तेरी बकवास या अभी बाकी है?"

    नैना (अरु को खुद को गुस्से से घूरते देख): "नहीं डन!"


    अरु कुछ कदम आगे बढ़ी। नैना भी जल्दी से उसके साथ हो ली। कुछ देर बाद अरु पीछे पलटकर देखती है और फ्रस्ट्रेशन भरी गहरी साँस लेती है।


    नैना: "अब तुझे क्या हुआ? क्यों बेवजह गुस्से से फूल रही है!"

    अरु (इरिटेट होकर): "आखिर ये इंसान चाहता क्या है?"

    नैना: "कौन? भस्मासुर क्या? हाँ सुबह आया था वो... पायल और निधि ने बताया था... लेकिन अभी तो वो यहाँ है ही नहीं... फिर अब क्या किया उसने?"

    अरु (इधर-उधर देखते हुए): "अभी बताती हूँ!"


    इतना कहकर अरु नैना के साथ मुड़ते हुए प्ले ग्राउंड की तरफ़ बढ़ गई जहाँ पर कुछ स्टूडेंट्स फुटबॉल खेल रहे थे। अरु जानबूझकर ऐसी जगह जाकर खड़ी हो जाती है जहाँ फुटबॉल सीधा उसे आकर लगे।


    नैना: "तू पागल हो गई है अरु! लग जायेगी तेरे हाथ यहाँ से!"

    अरु: "पाँच मिनट बस चुप रह तू और थोड़ी दूर रह यहाँ से!"


    नैना को बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि अरु करना क्या चाह रही है, मगर फिर भी वो उसके कहे अनुसार ही करती है। कुछ पल बाद ही स्टूडेंट्स में से एक प्लेयर बिना अरु की ओर ध्यान दिए हुए फुटबॉल पर तेज़ी से वार करते हुए उसकी दिशा में उछाल देता है। कुछ दूरी पर खड़ी नैना जल्दी से उसकी ओर बढ़ती है, लेकिन उसके अरु के पास पहुँचने से पहले ही रिदांश के अरु के लिए अप्वाइंट किए हुए चार हट्टे-कट्टे स्पेशल गार्ड उसकी सुरक्षा ढाल बनकर उसके सामने आ खड़े हुए थे। और उनमें से ही एक गार्ड ने अरु की ओर आती फुटबॉल में इतनी जोर से मारा कि फुटबॉल हवा में उछलकर हवा में ही गायब होते हुए कॉलेज की बाउंड्री क्रॉस कर गई थी। और ये देखकर वहाँ मौजूद स्टूडेंट्स के मुँह खुले के खुले ही रह गए थे, जिनमें नैना भी शामिल थी!


    1 गार्ड: "आर यू ऑल राइट मैम?"

    अरु: "क्या है ये सब और आप लोग इतनी देर से मुझ पर नज़रे क्यों रखे हुए हैं?"

    2 गार्ड: "हमें बॉस के ऑर्डर हैं कि हम आपकी सेफ्टी का ख्याल रखें!"

    अरु (नाराज़गी से): "थैंक्स बट नो थैंक्स... और अपने बॉस को कहिएगा कि मैं अच्छे से अपना ख्याल खुद रख सकती हूँ... इसीलिए उन्हें तो कम से कम मेरी फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं इसीलिए आप लोग जाएँ यहाँ से!"

    3 गार्ड: "सॉरी मैम पर हम बॉस के ऑर्डर के खिलाफ़ नहीं जा सकते!"

    अरु (इरिटेट होकर): "फ़ोन कीजिए अपने बॉस को अभी!"

    गार्ड 4: "ओके मैम!"


    इतना कहकर गार्ड रिदांश को फोन करता है और एक ही रिंग पर रिदांश उसका फोन पिक कर लेता है, जैसे मानो उसे पता था कि ये कॉल ज़रूर आएगा!


    गार्ड: "बॉस मैम आपसे बात करना चाहती है!"

    रिदांश (बॉसी लहज़े में): "हम्मम... फ़ोन दो!"

    गार्ड: "यस बॉस!"

    अरु (गुस्से से गार्ड के हाथ से फोन लेते हुए): "चाहते क्या हैं आप आखिर?"

    रिदांश (बेफ़िक्री भरे लहज़े से): "बस इतना कि वापस आ जाओ यहाँ... और बाकी यहाँ आने के बाद बता दूँगा सो जान ही लोगी तुम!"

    अरु (फ़्रस्ट्रेट होकर): "ज़्यादा बनिए मत आप... और ये जो सुबह से लोग आपने छुपाकर मेरे पीछे लगाए हैं ना... इन्हें कहिए कि यहाँ से जाएँ और मेरा पीछा छोड़ें!"

    रिदांश: "फ़ोन पास करो गार्ड को!"


    एक पल को तो रिदांश की बात सुनकर अरु भी हैरान थी कि आखिर कैसे इतनी आसानी से रिदांश ने बिना किसी बहस के उसकी बात मान ली। और अपने शक को यकीन दिलाने के लिए अरु फोन को स्पीकर पर डालकर गार्ड की ओर बढ़ाकर उसे बात करने के लिए कहती है।


    गार्ड: "यस बॉस?"

    रिदांश (अगेन बॉसी लहज़े से): "कोई नीड नहीं है अब मेरी वाइफ़ को छुपाते-छुपाते प्रोटेक्ट करने की!"

    गार्ड: "ओके बॉस!"


    अरु रिदांश की बात सुनकर एक पल को चैन की साँस लेती है, लेकिन अगले ही पल रिदांश की पूरी बात सुनकर अरु के चिढ़कर खून जलने और फ़्रस्ट्रेशन की कोई सीमा ही नहीं रही थी और वो गुस्से से फोन को घूरने लगती है!


    रिदांश (एक पल बाद): "इनफ़ैक्ट अब से तुम लोगों को छुपने की ज़रूरत ही नहीं... अब से हर पल तुम लोग मेरी वाइफ़ की आँखों के सामने ही रहोगे... और वो जहाँ भी जाएगी उसकी नज़रों के सामने उसके साथ साये की तरह रहोगे... क्लास रूम से लेकर कैंटीन तक मेरी वाइफ़ के चारों ओर एक सुरक्षा कवर की तरह 24/7 रहना है... अंडरस्टैंड?"

  • 18. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 18

    Words: 1784

    Estimated Reading Time: 11 min

    रिदांश (एक पल बाद): "इन फैक्ट, अब से तुम लोगों को छिपने की ज़रूरत ही नहीं... अब से हर पल तुम लोग मेरी वाइफ की आँखों के सामने ही रहोगे, और वो जहाँ भी जाएगी, उसकी नज़रों के सामने, उसके साथ साये की तरह रहोगे... क्लासरूम से लेकर कैंटीन तक मेरी वाइफ के चारों ओर एक सुरक्षा कवर की तरह 24/7 रहना है... अंडरस्टैंड?"


    अरु, रिदांश की बात सुनकर और भी ज़्यादा चिढ़ गई और निराश हुई। उसने लगभग गार्ड के हाथ से फ़ोन छीन लिया, स्पीकर ऑफ़ किया, और निराशा से बोली।


    अरु (निराशा से): "आप ना..."


    रिदांश (अरु को टोकते हुए): "काम डाउन, वाइफ़ी... काम डाउन... वरना सारे स्टूडेंट्स सोचेंगे कि तुमसे अपने हॉट हसबैंड से दूरी बर्दाश्त नहीं हो रही, इसीलिए तुम इतनी फ़्रस्ट्रेट हो रही हो!"


    अरु (चारों ओर स्टूडेंट्स को देखते हुए, धीमी आवाज़ में): "आखिर आप समझते क्या हैं खुद को?"


    रिदांश (शांत स्वर में): "ऑफ़कोर्स, योर हॉट एंड लविंग हसबैंड!"


    अरु (चिढ़ते हुए): "हसबैंड माय फु..."


    रिदांश (बीच में ही टोकते हुए, अरु को और भी ज़्यादा चिढ़ाते हुए): "शशशशशशहहहह... कम ऑन, वाइफ़ी। माना कि अब तुम्हारा हसबैंड ज़रूरत से ज़्यादा हॉट एंड हैंडसम है, लेकिन तुम कॉलेज स्टडी करने गई हो, तो कम से कम वहाँ तो मेरा ख़्याल अपने दिलों ज़हन से निकाल दो, एंड फ़ोकस ऑन योर स्टडी ना, स्वीटहार्ट!"


    अरु (चिढ़ते हुए, धीमी आवाज़ में): "यू नो व्हाट? देखना, आपको नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी!"


    इतना कहकर अरु, रिदांश का जवाब सुने बिना ही फ़ोन काट दिया और गुस्से से गार्ड को फ़ोन पकड़ाते हुए, नैना को लेकर वहाँ से चली गई।


    टॉम की रिदांश को सारी बात बताने की बात सुनकर प्रिशा की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी। वो पूरे रास्ते मुँह लटकाए इसी सोच में डूबी रही कि अब यकीनन घर पहुँचकर उसकी सबसे, और ख़ास करके रिदांश से, अच्छे से क्लास लगने वाली है। यह डर उसे अंदर ही अंदर डरा रहा था। टॉम ने कब गाड़ी को फ़ार्महाउस पर रोका, प्रिशा को अपनी सोच में गुम पता ही नहीं चला। दूसरी तरफ़, टॉम ने गाड़ी को पार्किंग एरिया में रोका और गाड़ी से उतरकर प्रिशा को अपनी गोद में उठा लिया और घर के अंदर की ओर चल पड़ा। टॉम के उसे गोद में उठाने पर प्रिशा की तंद्रा टूटी। टॉम की ओर देखते हुए वो सोचने लगी कि आखिर कैसे इसे सबको सच बताने से रोके, और क्या कहकर वो उसे मनाए। कुछ देर की चुप्पी और सोच के बाद प्रिशा ने अपना मौन तोड़ा।


    प्रिशा: "टॉम क्रूज़...?"


    टॉम (गंभीरता से): "मेरा नाम सिर्फ़ टॉम है!"


    प्रिशा (मासूमियत से): "आई एम सो सॉरी... मैंने जो कुछ भी किया, उसके लिए आई एम रियली सॉरी... मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था!"


    टॉम: "यू आर सॉरी बिकॉज़ तुम चाहती हो कि मैं बॉस से तुम्हारी शिकायत ना करूँ... राइट?"


    प्रिशा: "हम्मम... लेकिन तुम बोलो या ना बोलो, लेकिन मैं अपने किए के लिए सच में सॉरी हूँ!"


    टॉम प्रिशा की बात का कोई जवाब नहीं दिया, और इसके आगे प्रिशा भी कुछ नहीं बोली। जब से प्रिशा और टॉम घर से निकले थे, तब से अनिकेत नम्या से बात करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन प्रिशा तब से ही अपने रूम का दरवाज़ा बंद किए हुए थी और अनिकेत को खुद को डिस्टर्ब ना करने के लिए कह रही थी। अनिकेत थक-हार कर अपनी उलझन लिए वापस नीचे चला गया। कुछ वक़्त बाद नम्या दरवाज़ा खोलकर नीचे आ ही रही थी कि उसे सीढ़ियों से नीचे की ओर आते देख अनिकेत उसकी ओर बढ़ा। वह उससे कुछ कहने ही वाला था कि नम्या के मुँह से प्रिशा का नाम सुनकर अनिकेत भी उसकी नज़रों को फ़ॉलो करते हुए दरवाज़े पर टॉम को अपनी गोद में प्रिशा को उठाए हुए देखकर नम्या के साथ जल्दी से उनकी दिशा में बढ़ गया।


    नम्या (चिंता भरे स्वर में): "क्या हुआ, बेबी? आर यू ओके?"


    प्रिशा: "डोंट वरी, दी। मैं ठीक हूँ!"


    अनिकेत: "फिर टॉम ने तुम्हें ऐसे गोद में क्यों उठाया हुआ है?"


    प्रिशा (डरते हुए): "भा... भाई दी... दी... दरअसल मैंने..."


    टॉम (प्रिशा की बात को काटते हुए): "दरअसल, प्रिशा बेबी ने ड्राइविंग करने की ज़िद करी, तो मैं उन्हें ना नहीं कह पाया, और रास्ता थोड़ा ख़राब होने की वजह से वो गाड़ी नहीं संभाल पाई, और गाड़ी का बैलेंस बिगड़ने की वजह से उन्हें थोड़ी चोट आ गई!"


    प्रिशा टॉम की बात सुनकर हैरानी से उसकी ओर देखने लगी। नम्या की आवाज़ सुनकर वो अपने ख़्यालों से वापस बाहर आई।


    नम्या (गुस्से से): "वो छोटी है, नादान है, लेकिन तुम... तुम तो समझदार हो ना? तो दिमाग़ ख़राब हो गया था तुम्हारा? आखिर दी ही क्यों गाड़ी उसके हाथ में? और अगर भगवान ना करे, इसे कुछ हो जाता, तो कौन ज़िम्मेदार होता...?"


    अनिकेत (नाराज़गी से): "बिल्कुल ठीक कह रही है नम्या... तुम्हें प्रिशा के साथ उसकी सेफ़्टी के लिए भेजा गया था, ना कि ऐसी लापरवाही करने के लिए, और..."


    प्रिशा (बीच में टोकते हुए): "भाई, दी। ग़लती सिर्फ़ मेरी ही थी, और मैंने ही..."


    टॉम (प्रिशा की बात काटते हुए): "आई एम सॉरी। आइंदा से ऐसी ग़लती नहीं होगी!"


    नम्या: "और तुम्हें लगता है कि भाई तुम्हें दुबारा ऐसी ग़लती दोहराने का मौक़ा भी देंगे...? एनीवे, तुम्हारी सज़ा तो भाई ही डिसाइड करेंगे। फ़िलहाल, प्रिशा को उसके रूम में छोड़ो और जाओ यहाँ से!"


    प्रिशा (सच बताने की कोशिश करते हुए): "लेकिन दी..."


    नम्या: "जस्ट शटअप, प्रीशू... तुम्हें मैंने अब तक कुछ कहा नहीं है, तो इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि तुमको कोई डाँट नहीं सहनी पड़ेगी... अभी फ़िलहाल अपने रूम में जाओ। तुमसे मैं बाद में फ़ुरसत से बात करती हूँ!"


    नम्या के कहे अनुसार टॉम प्रिशा को उसके रूम में ले गया। प्रिशा टॉम से बात करना चाहती थी, लेकिन तभी रूम में नम्या और अनिकेत भी आ गए। प्रिशा नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से टॉम पर और बेवजह डाँट पड़े या उसे सुनना पड़े, इसीलिए वो चुप रही। कुछ पल बाद टॉम वहाँ से चला गया। तभी अनिकेत का फ़ोन बजा, और उसने फ़ोन पिक किया। फ़ोन पर बात करते ही उसका चेहरा ख़ुशी से खिल उठा, और वो एक्साइटमेंट से उछलते हुए चिल्ला उठा। नम्या और प्रिशा उत्सुकता और असमंजस से उसकी ओर देखने लगे।


    अनिकेत (ख़ुशी से चिल्लाते हुए): "आर यू सीरियस, रिदू? ... डेम! इससे ज़्यादा बड़ी और ख़ुशी की न्यूज़ हो ही नहीं सकती... आई एम सो सो हैप्पी... क्या मैं उससे बात कर सकता हूँ?... (एक पल बाद रिदांश का जवाब सुनने के बाद)... इट्स ओके... कोई बात नहीं... मैं बस जल्द से जल्द यहाँ का सारा काम निपटाकर वापस मुंबई आ रहा हूँ... हाँ, यहाँ सब ठीक है, बस तू वहाँ देख... ओके, टेक केयर... बाय!"


    प्रिशा (अनिकेत के फ़ोन रखने के बाद): "क्या हुआ, भाई? मुंबई में सब ठीक है ना?"


    तभी अभी-अभी हॉस्पिटल से आया आयुष भी वहाँ आ पहुँचा।


    अनिकेत (ख़ुश होते हुए): "हाँ, मुंबई में सब ठीक है। इन फैक्ट, ठीक से भी ज़्यादा ठीक है, और एक बहुत-बहुत-बहुत अच्छी ख़ुशख़बरी है मेरे पास!"


    नम्या (अपना सब्र खोते हुए): "अगर पहेलियाँ बुझा ली हो तो अब मुद्दे पर आ जाओ!"


    अनिकेत (ख़ुश होकर): "बात ये है कि दक्ष को... अपने दक्ष को होश आ गया है, और वो बिल्कुल पहले की तरह ठीक भी हो गया है!"


    अनिकेत की बात सुनकर सबके चेहरे पर ख़ुशी भरी हैरानी तैर गई। सब ये ख़बर सुनकर बेहद ख़ुश थे, और बस सब जल्द से जल्द मुंबई पहुँचकर दक्ष से मिलना चाहते थे। कुछ देर बाद आयुष को अनिकेत प्रिशा के चोट लगने की बात बताता है, और आयुष उसे प्यार से डाँटते हुए चेक करता है और उसे एक दवा लगाने के लिए देते हुए एक पेनकिलर के साथ ही थोड़ा रेस्ट करने के लिए कहता है। कुछ देर बाद सब लोग प्रिशा को रेस्ट करने के लिए उसके कमरे में छोड़कर चले जाते हैं। थोड़ी देर बाद एक मेड प्रिशा के लिए खाना लेकर आती है, और प्रिशा उसे खाना वही साइड टेबल पर रखकर जाने के लिए कहती है। प्रिशा अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी, और उसके ज़हन में सिर्फ़ टॉम की बातें चल रही थीं कि कैसे उसकी वजह से सबने उसे डाँटा, और आखिर कैसे दक्ष ने उसे बचाने के लिए झूठ बोला। जाने कितनी देर तक प्रिशा ये सारी बातें सोचती रही, और आखिर में सोचते-सोचते ही उसकी नींद लग गई। अगले दिन प्रिशा की नींद सुबह ही खुल जाती है। दवाइ से अब वो काफ़ी हद तक बेहतर भी महसूस कर रही थी। प्रिशा फ़्रेश होकर ताज़ी हवा लेने के लिए नीचे गार्डन में चली जाती है, और एक बार फिर उसके ज़हन में कल की बातें चलने लगती हैं। दूसरी तरफ़, अरु का फ़ोन रखने के बाद रिदांश प्रिशा को कॉल करता है। प्रिशा का फ़ोन रिंग करता है, और उस पर रिदांश की वीडियो कॉल आता देखकर प्रिशा को थोड़ा डर भी सताने लगता है, क्योंकि चाहे जो भी हो, वो कभी भी रिदांश से झूठ नहीं बोल सकती थी, और सच के बाद रिदांश की डाँट का डर भी उसे सताए जा रहा था। आखिर में, सारी बातों को साइड रखकर प्रिशा एक गहरी साँस लेते हुए रिदांश की कॉल पिक करती है।


    प्रिशा (कॉल पिक करते हुए, फ़ीकी सी मुस्कान के साथ): "हैलो, भाई। कैसे हैं आप? और दक्ष भाई कैसे हैं?"


    रिदांश: "एवरीथिंग इज़ ऑलराइट... यू से... (एक पल रुककर अपनी कुर्सी से पीठ लगाते हुए)... अनिकेत और नम्या ने मुझे बताया कि कल क्या किया तुमने, और खुद को कैसे चोट पहुँचाई... हम्मम?"


    प्रिशा (गिल्ट भरे भाव से): "भाई, म... मैं..."


    रिदांश (शांत मगर गंभीरता भरे भाव से): "मुझे जो कुछ नम्या ने बताया, मैंने सब सुना, लेकिन आई वॉन्ट टू नो ट्रुथ, प्रिशू!"


    प्रिशा रिदांश की बात सुनकर एक पल को हैरानी से रिदांश की ओर देखती है, लेकिन फिर अगले ही पल उसे एहसास होता है कि वो रिदांश के सामने है, जो किसी के शब्दों से ज़्यादा उसके चेहरे और आँखों के भाव को समझने और पढ़ने में माहिर है, और ख़ास करके अपने भाई-बहनों के, जिन्हें आज जिस भी काबिल हैं, वो उसी ने बनाया है। रिदांश की बात सुनकर कुछ पल बाद ही प्रिशा की आँखों में आँसू भर आते हैं, और रिदांश के सामने किसी गुनहगार की भाँति वो अपनी नज़रें झुका लेती है, लेकिन अगले ही पल रिदांश की बात सुनकर वो और भी ज़्यादा भावुक हो उठती है, और चाहकर भी अपने आँसुओं को नहीं रोक पाती।

  • 19. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 19

    Words: 1634

    Estimated Reading Time: 10 min

    रिदांश की बात सुनकर कुछ पल बाद ही प्रिशा की आँखों में आँसू भर आये। रिदांश के सामने किसी गुनहगार की भाँति वह अपनी नज़रें झुका लीं। लेकिन अगले ही पल रिदांश की बात सुनकर वह और भी ज़्यादा भावुक हो उठी और चाहकर भी अपने आँसुओं को नहीं रोक पाई।

    रिदांश (बिना किसी भाव के): "रिदांश अग्निहोत्री को सब बर्दाश्त है, लेकिन अपनों की आँखों में आँसू नहीं, प्रिशा... एंड स्पेशली यू, प्रिशा। नो मैटर व्हाट दी सिचुएशन इज़, बट फॉर मी यू आर ऑलवेज़ माय लिटिल प्रीशियस डॉल, प्रिशु, एंड ऑलवेज़ विल बी... (चाहे कैसी भी स्थिति क्यों ना हो, लेकिन मेरे लिए तुम हमेशा मेरी छोटी सी अनमोल गुड़िया हो और हमेशा रहोगी)।"

    प्रिशा (रिदांश की बात सुनकर भावुकता से): "आई एम सॉरी भाई... आई एम रियली सॉरी!"

    रिदांश: "एंड डोंट फॉरगेट दी मोस्ट इम्पॉर्टेंट थिंग, प्रीशु। तुम प्रिशा अग्निहोत्री हो, कोई आम लड़की नहीं जो इतनी आसानी से कमज़ोर पड़ जाए। आँसू कमज़ोरी और बेबसी की निशानी होते हैं, और मैंने हमेशा से तुम्हें एक ही चीज़ सिखाई है: सिचुएशन चाहे जैसी भी हो, खुद को बेबस और कमज़ोर मत होने देना। और कभी पड़ भी जाओ तो इस हार्टलेस दुनिया को यह बात कभी ज़ाहिर मत होने देना। नैना ने यह बात एक्सेप्ट करते हुए अपनी ज़िंदगी में उस पर अच्छे से अमल किया है, और मैं तुमसे भी जल्द से जल्द ऐसी सिचुएशन को बखूबी तरीके से टैकल करने की उम्मीद करता हूँ!"

    प्रिशा (अपने आँसू पोंछते हुए): "जी भाई... डोंट वरी, मैं आगे से आपको निराश नहीं करूँगी!"

    रिदांश: "नाउ टेल मी, व्हाट्स दी मैटर?"

    प्रिशा: "भाई वो एक्चुअली... टॉम क्रूज़ ने जो कुछ भी सबको कहा, वह सब झूठ था। और मुझे जो चोट लगी, उसमें सारा क़सूर और गलती सिर्फ़ मेरी ही थी। और बिचारे टॉम को सबने बेवजह ही इतनी डाँट लगा दी!"

    इसके बाद प्रिशा ने रिदांश को कल की सारी बात सच-सच बता दी। सारी बात सुनकर रिदांश, बिना किसी भाव के, बॉसी लहज़े में टॉम का नाम पुकारा। प्रिशा एक पल को उसे असमंजस से देखती रही, लेकिन अगले ही पल रिदांश की आँखों को फॉलो करते हुए झट से अपने पीछे की ओर देखी। वहाँ टॉम, अपने हाथ बाँधे, किसी सभ्य सैनिक की तरह खड़ा हुआ रिदांश की दिशा में देख रहा था। वह असल में गार्डन में ताज़ी हवा लेने के लिए आया था, और रिदांश ने उसे वहाँ देख तुरंत टोक दिया था!

    रिदांश (बिना किसी भाव के): "क्या रिज़ल्ट है, टॉम?"

    टॉम: "डोंट वरी, बॉस। आपके कहने से पहले ही काम अंजाम तक पहुँच चुका है!"

    रिदांश: "गुड!... तुम्हारी यही बातें तुम्हें दूसरों से अलग बनाती हैं!"

    टॉम: "थैंक्यू, बॉस... आपके लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है!"

    रिदांश (प्रिशा की ओर देखकर): "चाहे यह तुम्हारी नादानी या बचपना था, या बेवकूफी... जो भी था... उम्मीद करूँगा पहली और आखिरी बार ही था। क्योंकि आइंदा से तुम्हारी ऐसी लापरवाही को इतनी लाइटली हरगिज़ नहीं लिया जाएगा। कीप दिस थिंग इन योर माइंड... अंडरस्टैंड?"

    प्रिशा (अपना सर हाँ में हिलाते हुए): "जी, भाई!"

    रिदांश: "ओके, टेक केयर... आई विल कॉल यू लेटर!"

    प्रिशा: "जी, भाई। यू टू... बाय!"

    रिदांश: "बाय!"

    इतना कहकर रिदांश फ़ोन रख दिया। इधर दूसरी तरफ़, कॉलेज में आरना रिदांश के गार्ड्स को अपने चारों ओर देख, फ़्रस्ट्रेट सी घूम रही थी!

    नैना: "तू क्यों इतनी चिढ़ रही है? जस्ट चिल ना, अरु!"

    अरु (इरिटेट होते हुए): "क्या चिल करूँ? ये सारे गार्ड्स जो सुबह से बेताल की तरह मेरे सर पर सवार हैं... इन्हें देखकर अगर इरिटेट ना होऊँ तो क्या करूँ!"

    नैना: "तू बस इग्नोर करना इन्हें... तू तो इतनी इरिटेट, चिड़चिड़ कभी नहीं हुआ करती थी?"

    अरु (गहरी साँस छोड़ते हुए): "हाँ, यह सब उस भस्मासुर की बदौलत है!"

    नैना: "अच्छा छोड़... चल एक काम करते हैं, पहले कैंटीन चलकर कुछ खा लेते हैं... वैसे भी मम्मा ने बताया कि सुबह तू घर से ऐसे ही आ गई थी, बिना नाश्ते किए। और मैं भी जल्दी में कुछ खाए बिना यूँ ही आ गई!"

    अरु: "अच्छा, ठीक है। लेकिन पहले मैं प्रिंसिपल सर से मिलकर आती हूँ!"

    नैना: "हम्मम, चल मैं भी चलती हूँ तेरे साथ!"

    अरु: "ओके!"

    इसके बाद अरु प्रिंसिपल सर से मिलने के लिए उनके कैबिन की ओर गई। रिदांश के कहे अनुसार उसके गार्ड्स भी अरु के पीछे चल पड़े। यह देखकर अरु बस उन्हें एक नज़र घूरकर नैना को प्रिंसिपल ऑफ़िस के बाहर खड़ा कर खुद अंदर चली गई!

    अरु (प्रिंसिपल सर से): "मे आई कम इन, सर?"

    प्रिंसिपल: "यस, कम इन!"

    अरु (अंदर आते हुए): "गुड मॉर्निंग, सर!"

    प्रिंसिपल (मुस्कुराकर): "गुड मॉर्निंग, माय चाइल्ड... सिट... हाउ आर यू?"

    अरु (बैठते हुए): "फ़ाइन, थैंक्यू सर... आप कैसे हैं, सर?"

    प्रिंसिपल: "मैं भी अच्छा हूँ... कहो बेटा, कैसे मदद कर सकता हूँ मैं तुम्हारी?... कोई परेशानी तो नहीं ना तुम्हें यहाँ?"

    अरु: "नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है। दरअसल पिछले कुछ वक़्त से मैं छुट्टियों पर थी और आज से ही मैंने वापस कॉलेज ज्वाइन किया है। वैसे तो मैंने नैना से अपनी लीव सबमिट करवा दी थी, लेकिन फिर भी मुझे आपसे कन्फ़र्म करना था कि अगर मैं अभी अपना मेडिकल सबमिट करवा दूँ तो एग्ज़ाम के वक़्त कोई प्रॉब्लम तो नहीं होगी ना?"

    प्रिंसिपल: "अरे बस इतनी सी बात तो इसमें इतना परेशान होने वाली क्या बात है... डोंट वरी, कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। और तुम्हारी अटेंडेंस भी कंप्लीट हो जाएँगी!"

    अरु: "नहीं सर, उसकी ज़रूरत नहीं है। मैं तो बस इसीलिए पूछ रही थी कि कल को मेरे एग्ज़ाम देने के टाइम कोई प्रॉब्लम क्रिएट ना हो!"

    प्रिंसिपल: "हाँ, तो कोई प्रॉब्लम नहीं होगी बेटा जी... आखिर तुम्हारा अपना ही कॉलेज है यह!"

    अरु (असमंजस से): "जी?"

    प्रिंसिपल: "अब जब मि. अग्निहोत्री कॉलेज के ट्रस्टी हैं, तो ज़ाहिर है यह कॉलेज उनके साथ ही उनकी वाइफ़ का भी है। और उनका स्पेशली मुझे खुद कॉल आया था कि कॉलेज में तुम्हें किसी भी तरह की किसी प्रॉब्लम को फ़ेस ना करना पड़े। और अब तुम्हारे साथ ऐसी फ़ॉर्मेलिटी निभाकर हम मि. अग्निहोत्री को नाराज़ थोड़ी कर सकते हैं!"

    अरु (फ़ोर्स स्माइल के साथ): "थैंक्यू सर, लेकिन मुझे ज़्यादा अच्छा लगेगा अगर आप मुझे बाकी स्टूडेंट्स की तरह ही ट्रीट करें, ना कि किसी की बीवी होने के नाते मुझे कुछ स्पेशल ट्रीटमेंट दिया जाए!"

    प्रिंसिपल: "श्योर, लेकिन नेक्स्ट टाइम से... एंड तुम्हें तो खुश होना चाहिए, बिकॉज़ यू आर क्वाइट लकी, आरना... लोग ऐसी लाइफ़ के लिए रात दिन प्रार्थनाएँ करते हैं!"

    अरु (खड़े होते हुए): "बेशक मैं भी ऐसी लाइफ़ चाहती हूँ सर, लेकिन अपने दम पर... (एक पल रुककर)... अब मैं चलती हूँ सर!"

    प्रिंसिपल: "या, श्योर... गॉड ब्लेस यू!"

    इसके बाद आरना बाहर आ गई और नैना उसे लेकर कैंटीन की ओर बढ़ गई और दोनों के लिए चीज़ सैंडविच ऑर्डर किया।

    नैना: "क्या हुआ? क्या कहा सर ने?"

    अरु: "कहना क्या था? बस यहाँ भी उस भस्मासुर ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा!"

    नैना: "मतलब?"

    अरु ने नैना को प्रिंसिपल ऑफ़िस में हुई सारी बात बताई!

    अरु: "मुझे तो यह समझ नहीं आता कि आखिर वह चाहते क्या हैं और क्यों मुझे अकेला नहीं छोड़ देते... (कुछ दूरी पर खड़े गार्ड्स को देखकर)... ऊपर से ये चार-चार दानवों जैसे मुँहसूड़ों को और मेरे सर पर सवार कर दिया है!"

    नैना: "अच्छा, ठीक है ना। तू छोड़ यह सब क्यों सोच-सोचकर अपना खून जला रही है... (टेबल पर आए सैंडविच अरु की ओर सरकाते हुए)... ले, तू यह खा। क्योंकि जिस स्पीड से तू आजकल अपना खून जला रही है, उसका दुगुना और दुगुनी स्पीड से तुझे खाने की ज़रूरत है। तो अब जल्दी से इसे खा और अपनी एनर्जी बढ़ा, जो उस भस्मासुर ने चूस ली है!"

    अरु: "हम्मम!"

    इधर दूसरी तरफ़, रिदांश ऑफ़िस से जल्दी ही घर पहुँच गया। दक्ष अब पहले से कुछ बेहतर था, लेकिन अभी भी कमज़ोर था। दक्ष अपने रूम में बैठे-बैठे और आराम करते-करते बोर हो गया था। इसीलिए ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया था। सृष्टि दक्ष की डाइट के हिसाब से उसका खाना बना रही थी। दक्ष बोर हो रहा था, इसीलिए उसने टीवी ऑन कर लिया, लेकिन टीवी में भी उसका मन नहीं लग रहा था। वह बस लगातार चैनल बदल रहा था। तभी थोड़ी देर बाद रिदांश को घर वापस आता देख दक्ष टीवी ऑफ करते हुए उसकी दिशा में देखने लगा। रिदांश भी दक्ष को वहाँ बैठा देखकर सीधा उसकी ओर ही चला आया और उसके बाजू में बैठते हुए अपना सर सोफ़े पर टिका लिया!

    दक्ष: "आज इतनी जल्दी कैसे?"

    रिदांश: "हम्मम, बस कुछ ख़ास काम नहीं था!"

    दक्ष: "काम नहीं था या फिर काम में मन ही नहीं लगा!"

    रिदांश दक्ष की बात का कोई जवाब नहीं दिया और बस अपनी आँखें मूँद लीं!

    दक्ष (गहरी साँस लेते हुए मन में): "कुछ नहीं हो सकता इसका!"

    रिदांश (कुछ पल बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए, अपनी आँखें मूँदे हुए ही): "कब और कैसे मिला था तू उससे?"

    दक्ष (अपनी भौंहें उचकाते हुए): "किससे?... अरु से क्या?"

    रिदांश: "हम्मम!"

    दक्ष (इतराते हुए): "क्यों बताऊँ? और आखिर तुझे जानना ही क्यों है?"

    रिदांश (अपनी आँखें खोलते हुए दक्ष को अपनी पैनी नज़रों से घूरते हुए): "अब तू खुद सब उगलेगा या फिर मैं अपने तरीके से उगलवाऊँ!"

    दक्ष (अपने डर को छिपाते हुए, ऊपरी हँसी हँसते हुए): "अरे, अरे! मैं तो मज़ाक कर रहा था बस... तू... तू तो जरा-जरा सी बातों पर सीरियस हो जाता है... मैं बताता हूँ ना सब!"

    इसके बाद दक्ष रिदांश को अपनी और अरु की पहली मुलाक़ात की बात बताता है कि आखिर कैसे वह पहली बार अरु से मिला था और कैसे किस्मत ने उनकी मुलाक़ात करवाई!

    रिदांश (बिना किसी भाव के): "लेकिन उस दिन जब मैंने तुमसे फ़ोन पर पूछा था कि कौन है वह लड़की, तब तूने आरना का नाम क्यों लिया था?"

    दक्ष: "वो... अरे वो तो बस एक गलतफ़हमी थी। दरअसल असल में तो कुछ और ही बात थी!"

    (ब्लास्ट फ्रॉम दी पास्ट).....!!

  • 20. "लाईफ इज़ नॉट अ फैरीटेल"..... सीज़न –2 - Chapter 20

    Words: 1501

    Estimated Reading Time: 10 min

    रिदांश के फ़ोन रखने के बाद, प्रिशा टॉम की ओर मुड़ी। टॉम जाने ही वाला था कि प्रिशा की आवाज़ सुनकर रुक गया।

    प्रिशा: "रुको, टॉम क्रूज़!"

    टॉम: "अब क्या? (शक भरी नज़रों से प्रिशा को घूरते हुए) अब दिमाग में क्या नई शरारत चल रही है?"

    प्रिशा (टॉम के सामने आते हुए, मासूमियत से अपने कान पकड़ते हुए): "मुझे बहुत माफ़ करना। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मैं वादा करती हूँ, आगे से कभी ऐसी बचकानी हरकत नहीं करूँगी। मुझे सच में बहुत दुःख है। कृपया मुझे माफ़ कर दो?"

    टॉम (गहरी साँस लेते हुए): "अगर तुम्हें सच में दुःख है, तो..."

    प्रिशा (उत्सुकता से): "तो?"

    टॉम (गंभीरता से): "कहते हैं, जब इंसान को अपनी गलती का एहसास हो और उसे पछतावा हो, तो उसे माफ़ कर देना ही बेहतर होता है।"

    प्रिशा (खुश होकर): "तो तुमने मुझे माफ़ कर दिया?"

    टॉम (नपे-तुले जवाब के साथ): "हम्म।"

    प्रिशा (कुछ सोचते हुए): "लेकिन मैं कैसे मानूँ कि तुमने मुझे सच में माफ़ कर दिया है?"

    टॉम (लापरवाही से आगे बढ़ते हुए): "वो तुम्हारी समस्या है। मत मानो!"

    प्रिशा (जल्दी से टॉम के रास्ते में आकर उसे रोकते हुए): "अच्छा, सुनो। अगर तुमने मुझे सच में माफ़ कर दिया है, तो... तो..."

    टॉम (अपनी भौंहें चढ़ाते हुए): "तो?"

    प्रिशा (अपना हाथ टॉम की ओर बढ़ाते हुए): "तो तुम्हें मुझसे दोस्ती करनी होगी!"

    टॉम: "ये क्या बचकानी बात है? देखो, लिटिल प्रिंसेस, मुझे बहुत काम है। मेरा रास्ता छोड़ो और हटो!"

    प्रिशा (अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए): "पहला, मैं कोई लिटिल नहीं हूँ। मैं बड़ी हूँ। दूसरा, अगर तुमने मुझे सच में माफ़ कर दिया है, तो तुम्हें मुझसे दोस्ती करने में क्या दिक्कत है? (मुँह लटकाते हुए) क्या मैं इतनी बुरी हूँ कि तुम मुझसे दोस्ती भी नहीं करना चाहते?"

    टॉम (प्रिशा की नौटंकी देखकर अपना सिर हिलाते हुए): "ठीक है।"

    टॉम अपना हाथ प्रिशा के हाथ की ओर बढ़ाया और हैंडशेक किया। प्रिशा का हाथ टॉम के हाथ के सामने छोटा और बहुत मुलायम लग रहा था, मानो कीमती मखमल के स्पर्श में कोई खुरदुरी चीज़ आ गई हो, और थोड़ा सा ज़ोर देने से यह मखमल खराब ना हो जाए।

    प्रिशा (खुश होकर): "शुक्रिया!"

    टॉम (गंभीरता से): "वेलकम। अब मैं जाऊँ?"

    प्रिशा (मुस्कुरा कर): "हम्म।"

    इसके बाद टॉम वहाँ से चला गया और प्रिशा खुशी-खुशी अंदर चली गई।


    रिदांश (बिना किसी भाव के): "लेकिन उस दिन जब मैंने तुमसे फ़ोन पर पूछा था कि वो लड़की कौन है, तब तुमने आरना का नाम क्यों लिया था?"

    दक्ष: "वो... अरे वो तो एक गलतफ़हमी थी। असल में तो कुछ और ही बात थी!"


    उस रात अरु को गुंडों से बचाने के बाद, दक्ष ने अरु को उसके होटल छोड़ने की बात कही। पहले अरु डर के मारे मना कर गई, लेकिन दक्ष के समझाने पर मान गई और उसके साथ होटल चल पड़ी। दक्ष समझ रहा था कि अरु डर गई है, इसलिए उसका ध्यान भटकाने के लिए लगातार उससे बात करने की कोशिश कर रहा था। आरना इस घटना और दक्ष की बातों से घबराई हुई थी और खामोश थी। दक्ष ने उससे बात करके उसका मूड हल्का करने की कोशिश की, लेकिन अरु होटल का पता बताने के सिवाय चुप ही रही।

    दक्ष: "तुम्हें बोलने में टैक्स लगता है क्या? (आरना अभी भी एक अजनबी के डर से असहज थी) अच्छा, ठीक है। बात ना सही, कम से कम अपना नाम तो बता सकती हो?"

    अरु (कुछ पल शांत रहने के बाद): "आरना... आरना कपूर!"

    दक्ष (ड्रामा करते हुए): "थैंक गॉड! पिछले आधे घंटे में कुछ तो बोला तुमने!"

    दक्ष की बात सुनकर अरु चुप रही। कुछ देर बाद दक्ष भी चुप हो गया। कुछ देर बाद अरु के बताए अनुसार उसका होटल आ गया।

    दक्ष (होटल की ओर इशारा करते हुए): "लीजिये मिस, आपका होटल आ गया। और बिना किडनैप किए, सही-सलामत आपकी मंज़िल तक छोड़ भी दिया मैंने!"

    आरना जवाब देने से पहले ही, कुछ दूरी पर खड़ी नैना (जो आरना की दोस्त थी) उसका नाम पुकारते हुए दौड़ती हुई आई और अरु को गले लगाकर अपने साथ ले गई। अरु को नहीं पता था, लेकिन उसके होटल का नाम सुनकर दक्ष एक पल के लिए हैरान हुआ, क्योंकि उसका और अरु का होटल एक ही था। हालांकि, दक्ष ने अरु को यह बात नहीं बताई। दक्ष अरु और नैना को जाते हुए देख रहा था कि तभी उसके फ़ोन पर किसी का फ़ोन आया। दक्ष ने स्क्रीन पर नाम देखकर मुस्कुराते हुए फ़ोन उठाया।

    दूसरी ओर से (शिकायती लहज़े में): "कहाँ हो तुम? अभी तक फ़्लाइट नहीं मिली यहाँ तक आने के लिए?"

    दक्ष: "सॉरी, स्वीटहार्ट। कहीं फँस गया था। बस पाँच मिनट... पाँच मिनट में पहुँचता हूँ!"

    दूसरी ओर से: "पाँच मिनट... सिर्फ़ पाँच मिनट!"

    इतना कहकर दूसरी ओर से फ़ोन कट हो गया। दक्ष ने जल्दबाजी में अपनी गाड़ी होटल से वापस मोड़ ली। तीन दिन बीत गए। दक्ष अपने काम में बिज़ी हो गया था, लेकिन अरु से मिलने की घटना को नहीं भूला था। शाम का वक़्त था और दक्ष होटल के गार्डन में टहल रहा था। कुछ देर बाद उसने रिदांश को फ़ोन किया। रिदांश अपने ऑफिस में काम कर रहा था, जब दक्ष का फ़ोन आया।

    दक्ष (खुशी से): "हे बड़ी! कैसे हो?"

    रिदांश (अपने लैपटॉप को देखते हुए): "मैं ठीक हूँ। तुम बताओ, और कब वापस आ रहे हो?"

    दक्ष: "अभी तो आने का कोई इरादा नहीं। बाकी देखता हूँ कब आना होता है!"

    रिदांश (लैपटॉप पर नज़रें गड़ाए हुए): "क्यों, वहीं बसने का इरादा है?"

    दक्ष (मुस्कुरा कर): "हाँ, यही समझो। बस इतना समझ लो कि यहाँ की हवाओं में दिल लग गया है मेरा!"

    रिदांश (ब्लैंक एक्सप्रेशन के साथ): "और उस हवा का नाम क्या है?"

    दक्ष (हैरान होकर): "लेकिन तुझे कैसे पता चला कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ?"

    रिदांश (अपनी कुर्सी से पीठ टिकाते हुए): "लोगों के दिल का हाल जानने के लिए मैं लफ़्ज़ों का मोहताज नहीं होता!"

    दक्ष (मुस्कुरा कर): "तेरी यही इंटेलिजेंस तो तुझे दूसरों से अलग बनाती है। मतलब तुझे लोगों की बातों और भाव से ही उनकी मन की बातें पता चल जाती हैं!"

    रिदांश: "अब ये सब छोड़ और मुझे बता कि कौन है वो और कहाँ मिला तू उससे?"

    दक्ष (खुशी से): "यहीं शिमला में कुछ दिन पहले ही। उसे देखते ही मैं अपना दिल हार बैठा। फिर कुछ मुलाक़ातें हुईं और मुझे समझ आया कि वो बाकी लड़कियों से कितनी अलग है। बस फिर मैंने बिना देरी किए उसे अपने दिल की बात कह दी और अब उसकी हाँ के बाद मैं कन्फ़र्म हूँ कि अपनी पूरी ज़िन्दगी मुझे उसके साथ ही जीनी है!"

    रिदांश: "वाह, बधाई! रोमांचक! नाम क्या है उसका?"

    दक्ष: "शुक्रिया, और उसका नाम..."

    दक्ष रिदांश को अपनी मोहब्बत का नाम बताने ही वाला था कि अचानक उसकी नज़र गार्डन में टहलती हुई अरु पर पड़ी। उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए दक्ष ने उसका नाम पुकारा।

    दक्ष (कुछ कदम अरु की ओर बढ़ते हुए): "आरना... आरना कपूर..."

    दक्ष ने इतना कहा और रिदांश ने इतना ही सुना। रिदांश को लगा कि गलतफ़हमी हो गई है, कि दक्ष ने अपनी गर्लफ़्रेंड का नाम आरना कपूर बताया है। आरना अपना नाम सुनकर पीछे मुड़ी और दक्ष को देखा। दक्ष कान से फ़ोन लगाए उसकी ओर बढ़ ही रहा था कि तभी नेटवर्क इश्यू होने पर रिदांश का फ़ोन कट गया। दक्ष ने फ़ोन जेब में रखते हुए अरु की ओर बढ़ गया। इसके बाद दक्ष का अरु से फिर मिलना, उनके बीच बनी खूबसूरत बॉन्डिंग और रिश्ते से जुड़ी हर याद और बात को दक्ष ने रिदांश को बताया और कहा कि जो कुछ उसने अरु के बारे में सोचा और उसे सज़ा दी, वो सरासर गलत और नाइंसाफ़ी थी।

    दक्ष: "तूने जो कुछ भी किया, रिदू, वो मेरी दोस्ती के लिए किया, और तेरी नियत में कोई खोट नहीं था, लेकिन जो कुछ भी अरु के साथ इस गलतफ़हमी के चलते हुआ, वो गलत और नाइंसाफ़ी भरा था!"

    रिदांश (बिना किसी भाव के): "जो कुछ भी हुआ, उसे मैं बदल नहीं सकता, लेकिन जो होने वाला है, उस पर मेरा क़ब्ज़ा है!"

    दक्ष (शक भरी नज़रों से रिदांश को देखते हुए): "क्या चल रहा है तेरे दिमाग में? और क्या करने वाला है तू अरु के साथ?"

    रिदांश (ब्लैंक एक्सप्रेशन से): "वो जब होगा, तो पता चल ही जाएगा। (गंभीरता से) लेकिन अभी मैं उसका नाम जानना चाहता हूँ... उस लड़की का नाम क्या था, जिसके प्यार में जान देने का सोचने से पहले तेरे मन में एक बार भी अपनों का ख्याल नहीं आया, और जिसने इतने मज़बूत दक्ष को इतना कमज़ोर कर दिया... कि उसने जीने की चाह ही छोड़ दी थी... (संजीदगी से)... बता, क्या नाम है उसका?!"

    रिदांश का सवाल सुनकर हमेशा हँसते-मुस्कुराते दक्ष के चेहरे पर गंभीरता छा गई। उसने अपने जज़्बातों को काबू करने के लिए अपनी मुट्ठियाँ कस कर भींच ली थीं।

    रिदांश (दक्ष को खामोश देख कर गंभीरता से): "मैंने कुछ पूछा है तुझसे दक्ष..... एंड यू नो वेरी वेल.... कि मुझे अपने सवाल या बातें रिपीट करना बिल्कुल पसंद नहीं है!!"