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Dad ki dulhan

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यह कहानी है एक 33 साल के सिंगल डैड की । नाम रणविजय शेखावत ।! जिसकी दुनिया अपनी बेटी के इर्दगिर्द घूमती है। जिस पर वह दुनिया जहं की खुशियां लुटाता है । उसने अब तक शादी नहीं कि सिर्फ अपनी बेटी की वजह से । लेकिन एक दिन उसकी जिंदगी में कुछ ऐस...

Total Chapters (74)

Page 1 of 4

  • 1. Dad ki dulhan - Chapter 1

    Words: 1886

    Estimated Reading Time: 12 min

    “The night owl club” एक ऐसा क्लब जो किसी की भी थकान उतार दे । इस क्लब में इस वक्त हर तरफ रंग बिरंगी लाइट्स जगमगा रही थी । लड़के और लड़कियां शराब में धुत्त हो कर आराम से म्यूजिक पर थिरक रहे थे । वहीं एक प्राइवेट रूम में कुछ लोग बैठे थे । उनमें से एक ने दूसरे आदमी को देखते हुए कहा, “ मैं कह रहा हूं कि क्यों ना हम सब मिलकर उस पर एक प्रैंक करें । देखो वैसे भी वह ठहरा सिंगल आदमी । क्या ही फर्क पड़ जाएगा । और वह तो है भी सीधा-साधा सा । हमेशा लड़कियों से दूर रहने वाला ।” तभी उनमें से दूसरा बोला, “तेरा दिमाग खराब है क्या । अगर उसे पता लगा कि हमने कुछ उल्टी सीधी हरकत की है तो हमारी हालत खराब कर देगा वह ।” तभी तीसरे ने कहा, “तू कितना डरता है यार । अब वह कोई हमारी जान तो लगा नहीं । हमारा दोस्त है । और वैसे भी यह सिर्फ एक प्रैंक है ।” जैसे तैसे उन दोनों ने मिलकर उस तीसरे को भी अपनी तरफ कर ही लिया । और डिसाइड हुआ कि वह लोग एक प्रैंक करेंगे । लेकिन जिस पर प्रैंक होने वाला था वह अभी तक आया नहीं था । और तभी उस रूम का दरवाजा खुला । और सामने लगभग एक 6 फीट 2 इंच लंबा आदमी दरवाजे पर खड़ा था । उसकी परछाई उन तीनो पर पड़ी । और उन सब ने भी उसकी तरफ देखा । उनमें से एक ने कहा, “लो जिसका इंतजार था वह भी आ ही गया ।” कमरे की लाइट डिम थी । तो इस वजह से उस आदमी के फीचर्स साफ नजर नहीं आ रहे थे । लेकिन उसकी फिजिक काफी स्ट्रांग औऱ अट्रैक्टिव थी । वह आ कर सबके साथ बैठा । और शांत सी आवाज में बोला, “ तुम लोगों को कोई और जगह नहीं मिली थी मिलने के लिए । क्यों ऐसी वाहियात जगह पर बुला लेते हो मुझे ।” उनमें से एक ने मुंह बनाया और बोला, “ यह सब छोड़ । कुछ ड्रिंक करते हैं यार । काफी टाइम हो गया साथ बैठे । और अपने दुखड़े बांटे हुए ।” यह कहते हुए उसने एक वेटर से ड्रिंक लाने को कहा । और फिर सब लोग बातों में मशगूल हो गए । और साथ में चल पड़ा जाम का दौर । थोड़ी देर बाद वह आदमी उठा और बोला, “ मैं वॉशरूम हो कर आता हूं ।” यह कह कर वह उस रूम से बाहर जाने को हुआ कि उनमें से एक बोला, “ तुम कहां जा रहे हो । वॉशरूम तो रूम में भी है । वह यूज कर लो ।” तभी दूसरा बोला, “ अरे नहीं । वहां पर पानी नहीं है । तुम जाओ । बाहर जाओ । लेकिन हम लोग निकल रहे हैं यहां से । तो तुम एक काम करना, हमने तुम्हारे लिए रूम बुक किया है । वहां चले जाना । तुमने सबसे ज्यादा ड्रिंक की है । ऐसे में घर नहीं जा पाओगे ।” यह कह कर वह तीनों ही वहां से निकल लिए । वह आदमी नशे में था । इसलिए कुछ ज्यादा सोच समझ नहीं पाया । वह वॉशरूम से बाहर आया । और फिर उस रूम की तरफ बढ़ गया । जो उसके दोस्तों ने बुक किया था । वह जैसे तैसे उस रूम तक पहुंचा । और उसने रूम ओपन किया । अचानक ही उसे महसूस हुआ कि कोई औऱ भी उस कमरे में है । लेकिन कौन । ये रूम तो उसके लिए बुक्ड था ना । तो फिर यंहा औऱ कौन हो सकता था । वो ये सब सोच ही रहा था कि अचानक ही उसे किसी के हाथ अपने सीने पर महसूस हुए । उस आदमी की भौंहे तन गई । औऱ उसे कुछ अजीब महसूस हुआ । वो एक लड़की थी । उसके हाथ जो उसके सीने पर थे वो काफी सॉफ्ट थे । तभी उस लड़की ने धीरे से कहा, “ प्लीज हेल्प मी ।” वह आदमी हैरान था । उसने अचानक से उसके हाथ अपने सीने से हटाए । और उस लड़की को अपने सामने किया । इससे पहले कि वह उस लड़की को ठीक से देख भी पाता वह लड़की उसके सीने से लग चुकी थी । उस आदमी की खुली शर्ट से झांकता हुआ उसका सीना उस लड़की को काफी ठंड़ा महसूस हो रहा था । उस लडकी ने उससे लिपटते हुए धीरे से कहा, “प्लीज हेल्प मी । प्लीज ।” वह आदमी कुछ समझ नहीं पा रहा था । कि क्या करें । और क्या नहीं । लेकिन तभी उसे उस लड़की के सॉफ्ट लिप्स अपने सीने पर महसूस हुए । और उस लड़की की wet kisses को महसूस करके उस आदमी पर अजीब सी मदहोशी छाने लगी । शराब के नशे में वह पहले से ही था । और अब शबाब उसके सामने था । और उस आदमी को उस लड़की का बदन इतना गरम महसूस हो रहा था कि वह खुद भी उसको अपने करीब करने से रोक नहीं पा रहा था । अचानक ही उस आदमी ने अपनी बांह उसकी कमर पर लपेटी । और उसे अपने कुछ और करीब कर लिया । उस लड़की ने धीरे से अपनी गर्दन उठा कर उसे देखा । हालांकि कमरे में कुछ अंधेरा था । सिर्फ नाइट बल्ब की रोशनी थी । ऐसे में कुछ ठीक से दिखाई देना थोड़ा मुश्किल था । लेकिन उस लड़की ने इन बातों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया । और अपने होठ एक बार फिर उस आदमी के गर्दन पर टिका दिए । उसके होठों को महसूस करके उस आदमी ने कस के अपनी आंखे मीच ली । उस से खुद का कंट्रोल छूटता जा रहा था । और उसे ऐसा लग रहा था कि अब वह लड़की उसे कंट्रोल कर रही है । धीरे- धीरे उस लड़की के होठों की हरकत उसकी गर्दन और सीने पर बढ़ने लगी । अचानक से उस आदमी ने उस लड़की के बालों को उसके गर्दन से पकड़ा । और उसके सर को कुछ ऊपर करते हुए उसकी आंखों में देखते हुए मदहोशी से बोला, “ तुम आग से खेल रही हो । सम्भल जाओ । अब भी मौका है ।” उस लड़की ने बारी बारी से उसकी आंखों में देखा । दोनों की आंखों में नशा साफ नजर आ रहा था । उस लड़की ने धीरे से उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “मैं पहले ही जल रही हूं । और झुलस भी गई तो क्या ही बिगड़ जाएगा ।” वह आदमी उसका जवाब सुन कर हैरान था । अचानक ही उसने बिना कुछ सोचे समझे अपने होठ उस लड़की के होठों से मिला दिए । और उसे कुछ पीछे धकेलते हुए दीवार से लगा दिया । उसके दोनों हाथों को उसने अपनी गिरफ्त में लिया । और पकड़कर उसके सिर के ऊपर करके अपने हाथ से पकड़ लिया । और दूसरे हाथ से उस लड़की के पैर को पकड़ कर कुछ ऊपर किया । और उसे थाईज से पकड़ लिया । दोनों एक दूसरे को चूमे जा रहे थे । दोनों ही मदहोश हुए जा रहे थे । उन दोनों में से होश किसी को भी नहीं था । कुछ शराब का नशा और कुछ एक दूसरे को पाने की आग । अजीब सा समा था वह । और दोनों ही उसमें बहे जा रहे थे । जब उस लड़के ने कुछ देर बाद उसे छोड़ा तो उस लड़की ने गहरी गहरी सांसे लेते हुए खुद को संभालने की कोशिश की । लेकिन इससे पहले वह खुद को संभालती उस आदमी के होठ उसकी गर्दन पर चलने लगे थे । उस लड़की की सांसे अटक गई । औऱ धड़कने बढ़ गयी । लेकिन उसने आग में घी डालने का काम तो खुद ही किया था । और अब आग बढ़ती जा रही थी । अचानक ही उस आदमी ने उस लड़की को कमर से पकड़ ऊपर उठाया । उसने अब भी उसके एक पैर की थाइज को अपने हाथ से पकड़ रखा था । और दूसरे हाथ से उसकी कमर को होल्ड कर रखा था । दोनों के चेहरे इस वक्त लगभग बराबर थे । उस लड़की ने उसके चेहरे पर हाथ रखा और एक बार फिर उसके होठों पर अपने होंठ टिका दिए । वह लड़का उसे चूमते हुए बेड की तरफ बढ़ चुका था । उसने उस लड़की को लाकर अचानक से बेड पर छोड़ा । वह लड़की हड़बड़ा गई । लेकिन इससे पहले वह उठ पाती, वह लड़का उसके ऊपर पूरी तरह से छा चुका था । और एक बार फिर वह उसे चूमने लगा था । दोनों एक दूसरे में खोते चले जा रहे थे । जहां उस लड़की के हाथ उस लड़के के बालों और पीठ पर घूम रहे थे वही उस लड़के के हाथ कभी उसकी कमर को सहलाते तो कभी उस लड़की के पेट को । उसके होठों की हरकत से वह लड़की मदहोश हुई जा रही थी । एक अजीब सी सिहरन उसके पूरे शरीर में दौड़ रही थी । और न जाने कैसा सुकून था जो वह महसूस कर रही थी । अचानक ही उस आदमी ने अपनी शर्ट निकाल कर फेंक दी । और एक बार फिर उस लड़की के दोनों हाथों को पकड़ कर उसके सिर पर अपने एक हाथ से बांध दिया । और दूसरे हाथ से उसने उसके चेहरे को पकड़ा और उसके होठों पर अपने होंठ टिका दिए । इस बार वह उसे काफी वाइल्डली किस कर रहा था । लेकिन वह लड़की उसका बराबर साथ दे रही थी । कुछ ही पलों में उन दोनों के कपड़े जमीन पर इधर-उधर बिखरे पड़े थे । और वह दोनों एक दूसरे में खोए हुए थे । उस कमरे में सिर्फ उन दोनों की बढ़ी हुई धड़कनों का शोर और सांसों का शोर ही गूंज रहा था । उस लड़की की मीठी सिसकियां उस आदमी को औऱ ज्यादा एक्साइट कर रही थी । वह दोनों पूरी दुनिया से बेखबर हो कर बस एक दूसरे में खोए हुए थे । और एक दूसरे को महसूस कर रहे थे । कुछ अजीब तो था । लेकिन क्या । इससे दोनों बेखबर थे । अजीब बात यह भी थी कि दोनों ने ठीक से एक दूसरे का चेहरा तक नहीं देखा था । लेकिन फिर भी एक दूसरे की बाहों में एक दूसरे में डूबे हुए थे । न जान रात के कौन से पहर तक दोनों इसी तरह एक दूसरे में खोए रहे । और फिर काफी रात गए उस आदमी ने उस लड़की को अपनी बाहों में समेट लिया । मानो अब वह उसे कहीं जाने नहीं देगा । लेकिन क्या ऐसा हो सकता था । जो कुछ भी हुआ वह सिर्फ एक नशा था । या फिर कुछ और । यह दोनों को ही नहीं पता था । । । । । । । । । । । क्या होगा आगे । क्या होगा जब दोनों सुबह उठेंगे और एक दूसरे को इस तरह देखेंगे । क्या दोनों एक दूसरे को जानते हैं । या फिर बिल्कुल अनजान है । आखिर अचानक से वह लड़की उस आदमी के कमरे में आई कहां से । कहीं ये कोई चाल तो नहीं किसी दुश्मन की । या फिर कोई किस्मत का कनेक्शन है । जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी “ dad ki dulhan” । । । । । । । । To be continued । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 2. Dad ki dulhan - Chapter 2

    Words: 2284

    Estimated Reading Time: 14 min

    उस लड़की उसके होठों की हरकत से मदहोश होती जा रही थी। एक अजीब सी सिहरन उसके पूरे शरीर में दौड़ रही थी। और न जाने कैसा सुकून था जो वह महसूस कर रही थी।

    अचानक ही उस आदमी ने अपनी शर्ट निकालकर फेंक दी। और एक बार फिर उस लड़की के दोनों हाथों को पकड़कर, उसके सिर पर अपने एक हाथ से बांध दिया। और दूसरे हाथ से उसने उसके चेहरे को पकड़ा और अपने होंठ उसके होठों पर टिका दिए। इस बार वह उसे काफी वाइल्डली किस कर रहा था। लेकिन वह लड़की उसका बराबर साथ दे रही थी।

    कुछ ही पलों में उन दोनों के कपड़े जमीन पर इधर-उधर बिखरे पड़े थे। और वह दोनों एक दूसरे में खोए हुए थे।

    उस कमरे में सिर्फ उन दोनों की बढ़ी हुई धड़कनों का शोर और सांसों का शोर ही गूंज रहा था। उस लड़की की मीठी सिसकियां उस आदमी को और ज्यादा एक्साइट कर रही थीं।

    वह दोनों पूरी दुनिया से बेखबर होकर बस एक दूसरे में खोए हुए थे। और एक दूसरे को महसूस कर रहे थे। कुछ अजीब तो था, लेकिन क्या? इससे दोनों बेखबर थे। अजीब बात यह भी थी कि दोनों ने ठीक से एक दूसरे का चेहरा तक नहीं देखा था। लेकिन फिर भी एक दूसरे की बाहों में, एक दूसरे में डूबे हुए थे।

    न जाने रात के कौन से पहर तक दोनों इसी तरह एक दूसरे में खोए रहे। और फिर काफी देर रात को उस आदमी ने उस लड़की को अपनी बाहों में समेट लिया। मानो अब वह उसे कहीं जाने नहीं देगा। लेकिन क्या ऐसा हो सकता था? जो कुछ भी हुआ वह सिर्फ एक नशा था, या फिर कुछ और? यह दोनों को ही नहीं पता था।


    रात बीत गई और उन दोनों को बड़ी सुकून की नींद आई। लेकिन अगली सुबह क्या लेकर आने वाली थी, यह कैसे पता था?

    सुबह हुई। और उस कमरे में रोशनी फैल गई। खिड़की के पर्दों से छन कर आती धूप सीधा उस लड़की के चेहरे पर गिरी, जो उस आदमी के सीने से सिर रखकर सोई हुई थी।

    धूप की वजह से उसकी नींद में खलल पड़ा। और वह अपनी आँखें जल्दी-जल्दी झपकाते हुए उठ गई।

    लेकिन जब उसने आँखें खोलीं और अपने सामने का नजारा देखा, तो वह हैरान रह गई। वह किसी की बाहों में थी। और जैसे ही उसे यह महसूस हुआ, उसके पैरों तले से मानो जमीन ही खिसक गई। उसकी आँखों में नमी उतर आई थी, और वह रुआंसी हो गई। उस धूप में उसका खूबसूरत चेहरा दमक रहा था: गेहुंआ रंग, भूरी आँखें, जो काजल से सनी हुई थीं, और वह काजल भी कुछ बिखर चुका था। उसके घुंघराले लंबे बाल उसकी कमर तक बिखरे हुए थे, और तीखे नैन-नक्श जो उसे बेहद खूबसूरत बना रहे थे। उसके होंठ के ऊपर एक तिल था, जो उसकी खूबसूरती पर मानो कोई नज़र का टीका हो। वह सच में बेहद खूबसूरत थी, लेकिन इस वक्त उसकी आँखों में आँसू थे। उसकी गर्दन और गले पर, जहाँ-तहाँ कुछ लाल और नीले निशान दिखाई पड़ रहे थे, जो बीती कल रात की गवाही दे रहे थे।

    उस लड़की ने अपनी सिसकी रोकते हुए अपने मुँह पर हाथ रख लिया। उसकी आँखें डबडबाई हुई थीं, और उसने डबडबाई आँखों से उस आदमी को देखा, जो अभी भी सुकून से सोया हुआ था। देखने में वह उसे काफी हैंडसम लगा। लेकिन बात यहाँ पर यह थी कि वह उसे जानती नहीं थी, और उसने एक अनजान आदमी के साथ रात गुजार ली थी।

    उस लड़की ने कुछ सोचा और धीरे से खुद को उस आदमी की पकड़ से आजाद करवा लिया। उसने जल्दी से इधर-उधर बिखरे हुए अपने कपड़े उठाए और जल्दी से कपड़े पहनकर अपना सामान उठाकर कमरे से बाहर निकल गई।

    जैसे ही कमरे का दरवाजा बंद हुआ, वह आदमी उसकी आवाज से चौंक कर उठा।

    और उठकर बैठते हुए उसने अपना सिर पकड़ लिया। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ हुआ क्या। अचानक ही उसकी नज़र अपनी हालत पर गई, तो वह चौंक गया।

    उसके सीने पर बाइट्स के निशान थे। वह सच में हैरान था। कल रात क्या हुआ था? उसने अपने दिमाग पर थोड़ा जोर डाला, तो रात की सारी यादें एक-एक कर उसके सामने किसी फिल्म के सीन की तरह ताज़ा हो गईं।

    उसने खुद से कहा, “यह मैंने क्या कर दिया! यह बहुत गलत हुआ। किसके साथ मैंने रात बिता ली? और वह लड़की गई कहाँ? कल को कोई ऊँच-नीच हो गई तो? और श्रीजा उसका क्या? नहीं, मैं उसके साथ ऐसा नहीं कर सकता। क्या जवाब दूँगा मैं उसे? कि मैंने किसी के साथ one night stand किया है।”

    तभी उस आदमी ने अपने बगल में बिस्तर पर देखा। वहाँ पर कुछ खून के छींटे पड़े थे। यह देखकर उस आदमी ने कस के अपनी आँखें बंद कर लीं।

    उसने उस लड़की का चेहरा ठीक से नहीं देखा था। यह उसकी सबसे बड़ी गलती थी। कमरे में अंधेरा था, और ऐसे में उसका चेहरा देखना थोड़ा मुश्किल था।

    उस आदमी ने खुद से कहा, “कुछ भी करके मुझे उस लड़की का पता करना होगा। कुछ भी ऐसा नहीं रहना चाहिए जिसकी वजह से बाद में प्रॉब्लम हो। मैं श्रीजा को तकलीफ़ नहीं दे सकता। इकलौता जीने का सहारा है वह मेरा।”

    लेकिन तभी उसके दिमाग में यह आया कि आखिर वह उस लड़की के पास पहुँचा कैसे? या फिर उस लड़की को उसके पास पहुँचाया गया था? चक्कर क्या था? उसके माथे पर यह सोचकर कुछ बल पड़ गए। उसे याद था यह रूम उसके लिए बुक किया गया था, जो उसके दोस्त ने किया था। और उसका पहला शक गया अपने दोस्तों पर। उसने अपने हाथों की मुट्ठियाँ भींचते हुए कहा, “उन कमीनों को तो मैं वैसे भी नहीं छोड़ने वाला।”

    वह जल्दी से उठा और उसने अपने कपड़े पहने। वह मिरर के सामने खड़े होकर अपनी शर्ट के बटन लगा ही रहा था कि तभी उसकी नज़र अपनी शर्ट की पॉकेट पर गई। वह हैरान रह गया। उसने अपनी पॉकेट पर हाथ डाला। वहाँ पर एक झुमका लटक रहा था।

    उसने वह झुमका अपने हाथ में लिया और गौर से उस झुमके को देखने लगा।

    उसने खुद से कहा, “तुम्हारा पता तो मैं लगा लूँगा। आज नहीं तो कल, देर-सवेर ही सही।”

    यह कहते हुए उस आदमी ने उस झुमके को अपनी मुट्ठी में कस लिया और वापस उसे अपनी पॉकेट में डालते हुए तैयार होकर उस होटल रूम को एक नज़र पूरी तरह से देखा। और तभी उसकी नज़र उस बेडशीट पर गई। उसे पता नहीं क्यों अजीब लग रहा था। उसने जाकर वह बेडशीट उठाई और उसे समेटकर खुद से बोला, “इसे यहाँ नहीं छोड़ सकता। काफी अजीब है यह।”

    यह कहते हुए उसने उसे बेडशीट को समेटकर अपने बैग में डाला और खुद से ही बोला, “जल्द से जल्द पता करना होगा कि वह कौन थी।”

    यह कहकर वह जल्दी से कमरे से बाहर निकल गया।

    वह जैसे ही अपनी गाड़ी में आकर बैठा, उसने ड्राइवर को देख कहा, “घर ले चलो।” ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ाई और उस आदमी ने किसी को फ़ोन लगा दिया।

    उधर से कॉल पिक होते ही आवाज़ आई, “हाँ बोल रणविजय क्या हुआ?”

    रणविजय ने दाँत पीसते हुए कहा, “क्या हुआ? तुम लोगों ने कल क्या किया था? मुझे सच-सच बताओ। मैं नशा कभी नहीं करता। ड्रिंक भी करता हूँ तो मुझे जल्दी से नशा चढ़ता नहीं है। तुम लोग मुझे यह बताओ कि कल ऐसा भी क्या हुआ कि मैं इतना नशे में था कि मुझे कुछ होश नहीं था।”

    उसकी बात सुनकर सामने वाला इंसान हड़बड़ा गया। रणविजय को जब थोड़ी देर कोई आवाज़ नहीं आई, तो वह कुछ गुस्से में बोला, “मेरी बात कान खोलकर सुन लो तुम सब। मुझे पता है तुम तीनों एक जगह हो। तुम तीनों ने जो भी किया है ना, बहुत गलत किया है। इसका हिसाब मैं तुमसे बाद में दूँगा।”

    यह कहते हुए उसने फ़ोन रख दिया।

    अब उस आदमी ने अपने साथ खड़े दोनों दोस्तों को देखा। उनमें से एक ने कहा, “देख लिया अभिजीत, कहा था ना मैंने वह गुस्सा करेगा।”

    तभी वह लड़का, जिसने फ़ोन पकड़ रखा था, उसने मुँह बनाकर कहा, “देख यार अर्थ, यह सब ना उसका रोज़ का है। थोड़ी देर गुस्सा रहेगा, फिर अपने आप ठीक हो जाएगा।”

    अर्थ ने उसे घूरते हुए कहा, “रेहान तेरी यही आदत सबसे बेकार है। तू हर चीज़ को लाइटली ले लेता है। वह सच में गुस्से में था। तुझे उसकी टोन में नज़र नहीं आया? कुछ तो ऐसा हुआ है जो हमें नहीं पता। और तू प्रैंक करने वाला था ना उस पर? क्या किया था तूने? सच-सच बता।”

    उसकी बात सुनकर रेहान कुछ देर शांत पड़ गया, फिर बोला, “उसके लिए कॉल गर्ल बुक की थी।”

    यह सुनकर तो अर्थ और अभिजीत दोनों हैरानी से उसे देखने लगे। उन दोनों के मुँह एक साथ निकला, “क्या तेरा दिमाग खराब है?”

    रेहान ने मुँह बनाकर कहा, “तो यार और क्या करता? वो 33 साल का हो गया है, लेकिन फिर भी अब तक सिंगल है और वर्जिन बैठा था। तो मैं तो सोचा कि…”

    अभिजीत ने कुछ गुस्से में कहा, “क्या सोच लिया तूने? मुझे लगा था कोई छोटा-मोटा प्रैंक करेगा। तूने क्या कर दिया है? रेहान उसकी 22 साल की बेटी है! क्या जवाब देगा वह उसे? उसके सिंगल रहने का इकलौता रीज़न वही है। तू जानता है ना।”

    रेहान ने उसे देखकर कहा, “मैं मानता हूँ, लेकिन फिर भी अपनी बेटी के पीछे वह अपनी ज़िन्दगी क्यों खराब कर रहा है? मैं मानता हूँ उसकी बेटी उसकी ज़िम्मेदारी है, वह प्यार करता है उसे। मैं उसे गलत नहीं कह रहा। लेकिन यार सब शादी करते हैं, दूसरी शादी भी होती है। ज़िन्दगी में हर कोई अपनी ज़िन्दगी को दूसरा मौका देता है। रणविजय तो जैसे ठहर सा गया है। उसकी पूरी ज़िन्दगी सिर्फ़ अपनी बेटी के इर्द-गिर्द घूमी है। आदमी को थोड़ा तो अपने बारे में भी सोचना चाहिए ना।”

    रेहान ने अपना पॉइंट ऑफ़ व्यू बताया।

    वह दोनों भी उसकी बात सुनकर ख़ामोश हो गए थे।

    वहीं इधर वह लड़की अपने घर पहुँची कि तभी उसे अंदर से चिल्लाने की आवाज़ आई, “आ गई महारानी! कहाँ थी रात भर? रात को कौन सी तुम्हारी कॉलेज चल रही थी? बताओगी ज़रा।”

    उस लड़की ने हड़बड़ाकर कहा, “वह आंटी, असल में बच्चों के एग्ज़ाम हैं ना, तो मैं बस प्रिपरेशन में…थोड़ी मुझे देर हो गई थी। और फिर जो मेरी कॉलिग है मैं उसके घर चली गई।”

    उस लड़की ने डरते-डरते लड़खड़ाती आवाज़ में बहाना बनाया।

    उस औरत ने उसे घूरकर देखा और बोली, “मुझे तुमसे वैसे भी कोई उम्मीद नहीं है। तुम चाहे जियो मरो मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। तुम इस घर में सिर्फ़ इसलिए हो क्योंकि तुम्हारा बाप तुम्हें कहीं जाने नहीं दे रहा। वरना मेरा बस चलता तो तुम्हें पहले ही दिन इस घर से निकाल देती जब मैं इस घर में आई थी।”

    उस औरत की जली-कटी बातें उस लड़की के दिल को जला गई थीं। यह उसका घर था, उसकी माँ का। लेकिन फिर भी वह औरत उसे घर से निकालने की बातें कर रही थी।

    तभी अंदर से एक लड़की बाहर आई, जिसने एक शॉर्ट्स और क्रॉप टॉप पहन रखा था। उसने अपनी माँ को देखकर कहा, “अरे यह आ गई क्या माँ?”

    उस लड़की ने अपने सामने खड़ी उस लड़की को देखा। देखने में बेहद ही खूबसूरत थी वह, लेकिन चेहरे को देखकर पता लग रहा था कि कितना मेकअप लगाया होगा।

    वह लड़की अपनी माँ को देखकर बोली, “वैसे माँ क्या आपको पता है रात को मेरी प्यारी बहन आरिका कहाँ थी?”

    आरिका उसके यह कहते ही घबरा गई। वह लड़की आरिका को एक अजीब सी स्माइल के साथ देख रही थी।


    क्या होगा आगे? क्या आरिका का सच वह लड़की सबको बता देगी? कि वह रात भर कहाँ थी? क्या रणविजय और आरिका कभी एक दूसरे से मिलेंगे? क्या इन दोनों की यह एक रात इन दोनों की किस्मत बदल देगी? और क्या होगा जब रणविजय की बेटी को इन सब के बारे में पता लगेगा? और आखिर कौन थी श्रीजा? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।

    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 3. Dad ki dulhan - Chapter 3

    Words: 2600

    Estimated Reading Time: 16 min

    उस लड़के ने हड़बड़ा कर कहा, “वह आंटी, असल में बच्चों के एग्जाम हैं ना, तो मैं बस प्रिपरेशन में...थोड़ी मुझे देर हो गई थी। और फिर जो मेरी कॉलिग है, मैं उसके घर चली गई।”

    उस लड़की ने डरते-डरते, लड़खड़ाती आवाज में बहाना बनाया।

    उस औरत ने उसे घूर कर देखा और बोली, “मुझे तुमसे वैसे भी कोई उम्मीद नहीं है। तुम चाहे जियो, मरो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम इस घर में सिर्फ इसलिए हो क्योंकि तुम्हारा बाप तुम्हें कहीं जाने नहीं दे रहा। वरना मेरा बस चलता, तो तुम्हें पहले ही दिन इस घर से निकाल देती, जब मैं इस घर में आई थी।”

    उस औरत की जली-कटी बातें उस लड़की के दिल को जला गई थीं। यह उसका घर था। उसकी माँ का। लेकिन फिर भी वह औरत उसे घर से निकलने की बातें कर रही थी।

    तभी अंदर से एक लड़की बाहर आई। जिसने एक शॉर्ट्स और क्रॉप टॉप पहन रखा था। उसने अपनी माँ को देखकर कहा, “अरे, यह आ गई क्या माँ?”

    उस लड़की ने अपने सामने खड़ी उस लड़की को देखा। देखने में बेहद ही खूबसूरत थी वह। लेकिन चेहरे को देखकर पता लग रहा था कि कितना मेकअप लगाया होगा।

    वह लड़की अपनी माँ को देखकर बोली, “वैसे माँ, क्या आपको पता है रात को मेरी प्यारी बहन आरिका कहाँ थी?”

    आरिका के ये कहते ही वह घबरा गई। वह लड़की आरिका को एक अजीब से स्माइल के साथ देख रही थी।


    आरिका ने कुछ हकलाते हुए कहा, “देखो काव्या, तुम्हारी बकवास के लिए मेरे पास टाइम नहीं है। वैसे भी मुझे कॉलेज निकलना है।”

    ये कहते हुए वह लड़की, बिना उन दोनों माँ-बेटी पर ध्यान दिए, जल्दी-जल्दी अपने कमरे में चली गई।

    आरिका ने जल्दी से दरवाजा लगाया और वहीं दरवाजे से टेक लगाकर जमीन पर बैठ गई। उसे रोना आ रहा था।

    एक तो कल रात जो हुआ, उसके बाद वह खुद को संभाल नहीं पा रही थी। और ऊपर से उसकी सौतेली माँ और बहन उसकी ज़िंदगी दुश्वार करने में लगे हुए थे। उसे इतना अच्छे से याद था कि उसे क्लब में आने के लिए उसकी बहन ने उसे कहा था। और जब वह वहाँ पहुँची, तो उसे वह वहाँ मिली ही नहीं।

    वह दरवाजे से पीठ लगाए, जमीन पर बैठी, अपने घुटनों को मोड़कर उन पर सिर टिका चुकी थी। आँखों से उसके आँसू बह रहे थे। वह नहीं समझ पा रही थी कि कहाँ जाए। किसे अपने अंदर पल रहे दर्द और दुख को साझा करे। कोई था ही नहीं उसके पास अपना कहने को।

    थोड़ी देर वैसे ही बैठे रहने के बाद उसने हिम्मत करी और उठकर नहाने चली गई। वैसे भी उसे अब कॉलेज के लिए निकलना था।

    इधर रणविजय अपने घर पहुँचा। घर के अंदर इंटर होते ही उसे घर में तेज-तेज चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ने लगी।

    रणविजय ने अपनी आँखें बंद करते हुए खुद से कहा, “यह फिर शुरू हो गई।”

    यह कहते हुए वह झट से अंदर गया। उसने आवाज लगाते हुए कहा, “श्रीजा, क्यों चिल्ला रही हो?”

    जैसे ही श्रीजा ने उसकी आवाज सुनी, वह एकदम से शांत हो गई। और दौड़कर आई और उसके गले से लिपटते हुए बोली, “पापा, आप कहाँ चले गए थे? मैं सुबह-सुबह उठी तो आप मुझे दिखाई नहीं दिए घर में। आपको पता है ना मुझे सुबह-सुबह आपको देखना होता है।”

    रणविजय ने प्यार से उसे देखा। श्रीजा उससे लिपटी हुई थी। श्रीजा देखने में जितनी सुंदर थी, उतनी ही प्यारी और मासूम भी थी। गेंहुआ रंग, काले कंधे से नीचे तक आते बाल और तीखे नैन-नक्श। कोई देखे तो देखता रह जाए।

    रणविजय ने उसके सिर पर हाथ फेरा और प्यार से बोला, “आई नो बेबी। पर पापा को ज़रूरी काम था। इसलिए पापा बाहर थे। तुम यह सब छोड़ो और जाकर कॉलेज के लिए तैयार हो जाओ। देरी नहीं होगी तुम्हें।”

    श्रीजा ने उसके गाल को चूमा और जल्दी से हाँ में गर्दन हिलाते हुए अपने कमरे में भाग गई। रणविजय कुछ पल उसे जाते देखता रहा। और फिर निढाल सा होकर सोफे पर बैठ गया। एक मैड उसके लिए पानी लेकर आई, तो रणविजय ने वह गिलास उठाकर अपने होठों से लगा लिया। उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था। जो कुछ हो चुका था, वह उसे सही से समझ नहीं आ रहा था। और ऊपर से उसे अपने दोस्तों पर गुस्सा भी आ रहा था। जिन्होंने उसके साथ यह प्रैंक कर दिया था। एक ऐसा प्रैंक जो शायद उसकी और सामने वाले की ज़िंदगी पूरी तरह बदल सकता था।

    कुछ पल वह वहीं बैठ रहा और सोचता रहा कि उसे आगे करना क्या है। और फिर उठकर अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर बाद वह तैयार होकर नीचे आ चुका था। उसने इस वक़्त ग्रे कलर का सूट पहना था और वह बेहद ही चार्मिंग और हैंडसम लग रहा था। उस सूट में से उसके बाइसेप्स बेहद ही उभरकर नज़र आ रहे थे। उसकी फिट बॉडी उसकी पर्सनालिटी में चार चाँद लगा रही थी। उसकी गहरी भूरी आँखें, चेहरे के शार्प फ़ीचर्स, हल्की दाढ़ी-मूँछ, सच में कोई देखे तो दीवाना हो जाए।

    दोनों बाप-बेटी डायनिंग एरिया में बैठे थे। श्रीजा ने उसे देखते हुए कहा, “बड़ी दादी ने आपको बुलाया है पापा।”

    रणविजय ने एक नज़र उसे देखा और बोला, “और हमेशा की तरह मेरा जवाब तुम्हें और उन्हें दोनों को ही पता है।”

    श्रीजा कुछ देर उसे देखते रही, फिर बोली, “पापा, आप उस घर में क्यों नहीं जाते हो? वहाँ पर बड़ी दादी भी तो रहती हैं। आपके पापा भी तो हैं।”

    रणविजय ने उसे देखा, फिर गहरी साँस भरकर प्यार से बोला, “तुम इन सब में दिमाग मत लगाओ बच्चा। तुम्हारे लिए मैं हूँ और मेरे लिए तुम हो। यह काफी है हमारे लिए। इसीलिए बाकी सारी बातें छोड़कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाओ।”

    श्रीजा अब आगे कुछ बोल नहीं पाई। दोनों बाप-बेटी ने नाश्ता किया और फिर रणविजय अपने ऑफिस निकल गया। वहीं श्रीजा भी अपनी कॉलेज जा चुकी थी।

    श्रीजा जल्दी ही अपने कॉलेज पहुँची और अपने दोस्तों के साथ अपनी क्लास की तरफ बढ़ गई। तभी उसे रास्ते में उसकी प्रोफ़ेसर मिली। यह कोई और नहीं, आरिका थी। और वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसने इस वक़्त कॉटन की साड़ी पहन रखी थी। और अपने घुंघराले बालों को एक तरफ करके गुँथ रखा था। उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी। वह बेहद ही खूबसूरत थी। श्रीजा ने आरिका को देखकर चहकते हुए उसे ग्रीट किया और बोली, “गुड मॉर्निंग मैम।”

    आरिका ने मुस्कुराकर उसे गुड मॉर्निंग कहा। श्रीजा आरिका को हमेशा से पसंद करती थी। उसकी फ़ेवरेट प्रोफ़ेसर होने के साथ-साथ वह उसकी दोस्त भी थी। जिससे वह अपनी मन की सारी बातें कर लिया करती थी। अब उसके घर में कोई और औरत तो थी नहीं। ना ही उसकी कोई माँ थी। इसलिए आरिका के पास आकर वह अपने मन की सारी बातें कर लेती थी। और आरिका का भी कोई अपना तो था नहीं, इसलिए वह प्यार से उसकी सारी बातें सुन लेती थी। और जहाँ पर उसे एडवाइस की ज़रूरत होती, आरिका हमेशा उसके लिए तैयार रहती।

    श्रीजा ने आरिका को देखा, फिर उसकी तरफ़ झुकते हुए धीरे से बोली, “मुझे आपसे बहुत इम्पॉर्टेन्ट बात करनी है।”

    उसकी बात सुनकर आरिका हल्के से मुस्कुराई और फिर प्यार से बोली, “ठीक है। हम कॉलेज के बाद मिलते हैं, ओके।”

    श्रीजा ने जल्दी से हाँ में गर्दन हिला दी। उसकी मासूमियत देखकर आरिका भी मुस्कुरा दी। ऐसी मासूमियत कभी वह जी ही नहीं पाई। हमेशा से ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबी आई थी वह। अपने और अपने पापा की ज़िम्मेदारी उठाती रही। कि पता लगा कि उसके पापा ने दूसरी शादी कर ली और अब दो जन और आ चुके थे जिनकी उसे ज़िम्मेदारी उठानी थी। भले ही वह लोग आरिका को पसंद करें या न करें, लेकिन आरिका ने कभी भी अपना फ़र्ज़ नहीं छोड़ा। और शायद इसी लालच में उसकी सौतेली माँ बाद उसे सुनाकर ही रह जाती थी।

    इधर रणविजय अपने ऑफिस पहुँचा और अपने काम में बिज़ी हो गया। उसका सेक्रेटरी जब उसके पास उसका शेड्यूल बताने के लिए आया, तो उसने उसे देखकर कहा, “द नाइट आउल क्लब की कल की सीसीटीवी फ़ुटेज निकलवाओ।”

    उसका सेक्रेटरी यह सुनकर हैरान था। वह क्लब में कम ही जाता था और जाता भी था, तो जल्दी निकल आता था।

    उसके सेक्रेटरी ने कुछ डरते हुए कहा, “पर सर, वहाँ की फ़ोटोज़ क्यों?”

    रणविजय ने उसे घूरते हुए देखा और बोला, “जितना कहा है, उतना करो गौरव। सवाल-जवाब करने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें।”

    गौरव बेचारा अब क्या ही करता। उसने तुरंत हाँ में गर्दन हिला दी। और केबिन से निकल गया। लेकिन उसके दिमाग में यही चल रहा था कि उसके बॉस को क्लब की डिटेल क्यों चाहिए। खैर जो भी था, उसे तो बस सीसीटीवी फ़ुटेज निकलवानी थी। और वह अपने काम में लग चुका था।

    वहीं इधर अभिजीत, अर्थ और रेहान रणविजय के केबिन में बेधड़क घुस आए। रणविजय पहले ही उन सब पर गुस्सा था और उन तीनों के इस तरह आने पर वह और ज़्यादा खीझ गया। उसने गुस्से से उन तीनों को देखा और अपने दाँत भींचते हुए बोला, “मैनर्स नहीं हैं तुम तीनों में। क्या हरकत थी यह?”

    अभिजीत और अर्थ फिर भी मामले की गंभीरता समझ रहे थे, लेकिन रेहान तो रेहान। वह हमेशा से चुलबुला रहा था और भला अभी भी वह कैसे शांत रहता। उसने मुँह बनाया और जाकर रणविजय के सामने वाले चेयर पर बैठते हुए आराम से बोला, “कम ऑन RV, तू गुस्सा करना बंद करेगा। इतनी भी क्या बड़ी बात हो गई है। और वैसे भी इतना दिमाग लगा रहा है। इंसान की फ़िज़िकल नीड होती है और इसमें कुछ गलत नहीं है।”

    रणविजय ने गुस्से से अपना हाथ टेबल पर पटकते हुए रेहान को घूरकर कुछ तेज आवाज में कहा, “बड़ी बात नहीं थी! तेरा दिमाग खराब है रेहान। कल रात मेरे साथ उस होटल रूम में एक लड़की थी।”

    अभिजीत और अर्थ उसके गुस्से को देख रहे थे। वहीं रेहान ने उसे देखा और फिर भी आराम से बोला, “हाँ तो कौन सी बड़ी बात हो गई, लड़की ही तो थी।”

    रणविजय का मन कर रहा था अपने इस दोस्त को वह पीट डालें। वह हर चीज़ को इतना लाइटली कैसे ले सकता था। रणविजय ने उसे घूरते हुए कहा, “बेवकूफ़ आदमी, तुझे पता भी है कल क्या हुआ है?”

    “क्या हुआ होगा? एक कमरे में एक लड़का और लड़की अकेले हों तो क्या होता है, वही हुआ होगा।” रेहान ने एक बार फिर हल्के-फुल्के अंदाज़ में जवाब दिया।

    रणविजय का गुस्सा और ज़्यादा तेज होता जा रहा था। अर्थ ने बात संभालते हुए कहा, “RV, काम डाउन। और वैसे भी वह लड़की कॉल गर्ल थी। तो तू क्यों इतना दिमाग लगा रहा है?”

    रणविजय ने जैसे यह बात सुनी, उसने उन तीनों को घूरकर देखा और अपनी मुट्ठियाँ भींचकर टेबल पर मारते हुए बोला, “नहीं थी वह कॉल गर्ल, डैम इट! अगर कॉल गर्ल होती तो एक पल को सुकून मिलता दिल को कि चलो ठीक है, कुछ हुआ भी है तो इतना कुछ गलत नहीं होगा। लेकिन वह कॉल गर्ल नहीं थी। वह लड़की वर्जिन थी। और इतना ही नहीं, अगर कोई कॉल गर्ल होती तो सुबह तक मेरे साथ रुकती। वह, वह लड़की मेरे उठने से पहले भाग चुकी थी वहाँ से। अंदाज़ा भी लगा सकते हो तुम तीनों कि क्या हो सकता है।”

    उसकी बातें सुनकर उन तीनों के पाँव तले भी अब ज़मीन खिसक चुकी थी। रेहान अपने माथा पकड़ चुका था। उसने हैरानी से कहा, “पर मैंने तो तेरे लिए कॉल गर्ल बुक की थी। मैं तो बस प्रैंक करना चाहता था। यह लड़की, चक्कर क्या है?”

    रणविजय ने उसे घूरते हुए कहा, “मेरी ड्रिंक में क्या मिलाया था?”

    रेहान उसे अब सहमी हुई नज़रों से देखने लगा था। एक बार फिर रणविजय ने अपना हाथ टेबल पर मारा और गुस्से से बोला, “क्या मिलाया था?”

    रेहान ने घबराते हुए कहा, “सेक्स इंक्रीजिंग टैबलेट्स।”

    रणविजय का मन कर रहा था एक घूँसा उसके मुँह पर जड़ दे। लेकिन क्या ही करता। उसने अपने जबड़े भींचे और माथा पकड़कर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। अर्थ और अभिजीत का भी कुछ यही हाल था। कोई कुछ नहीं समझ पा रहा था कि आखिर अचानक से क्या हो गया था। उन तीनों ने ऐसा तो कभी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ हो जाएगा।

    रेहान ने हैरानी से कहा, “यह पॉसिबल कैसे है? मैंने उस रूम के लिए स्पेशल कॉल गर्ल का ऑर्डर किया था। और वहाँ पर कोई लड़की कैसे आ सकती है?”

    रणविजय ने कुछ भी नहीं कहा। वह बस चेयर के हेड से सिर टिकाए शांत सा बैठा था। उसके ज़हन में काफ़ी कुछ चल रहा था। अर्थ और अभिजीत भी परेशान थे। कोई नहीं समझ पा रहा था कि आगे क्या होगा और आगे उन्हें करना क्या है।

    रणविजय ने खुद को संभाला और उन तीनों को देखा। रेहान धीरे से बोला, “सॉरी यार, मेरा बिल्कुल भी ऐसा कुछ करने का इरादा नहीं था।”

    लेकिन रणविजय फिर भी ख़ामोश रहा। अर्थ ने उसे देखते हुए कहा, “हम कुछ कर लेंगे, ढूँढ लेंगे उसे और कुछ भी गलत नहीं होने देंगे।”

    रणविजय ने उन तीनों को देखा और बोला, “मुझे कभी खुद की चिंता नहीं रही। मुझे सिर्फ़ श्रीजा की चिंता है। मेरे साथ बचपन में जो हुआ, मैं नहीं चाहता उसके साथ हो। इसीलिए तो आज तक कोई मेरी ज़िंदगी में आई नहीं और मैं नहीं चाहता कि आगे भी कुछ ऐसा हो। मैं अपनी बेटी को कोई तकलीफ़ में नहीं देख सकता। मैं नहीं देख सकता कि जो औरत मेरी ज़िंदगी में आए, वह मेरे मुँह पर मेरी बच्ची से अच्छा बिहेव करे और मेरे पीठ पीछे उसके साथ बदतमीज़ी करे और उस तरह-तरह से टॉर्चर करे। बिल्कुल भी नहीं।”

    उसकी बात सुनकर वह तीनों शांत हो गए। उसका पास्ट कैसा रहा था, यह उन तीनों से बेहतर कौन ही जान सकता था।


    क्या होगा आगे? आखिर क्या था रणविजय का पास्ट? क्या रणविजय और आरिका फिर कभी मिल पाएँगे? क्या रणविजय आरिका को ढूँढ पाएगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।


    To be continued...

    ✍️ Riya Sirswa

  • 4. Dad ki dulhan - Chapter 4

    Words: 2634

    Estimated Reading Time: 16 min

    रणविजय ने कुछ नहीं कहा। वह बस चेयर के हेड से सिर टिकाए शांत सा बैठा था। उसके ज़हन में काफी कुछ चल रहा था। अर्थ और अभिजीत भी परेशान थे। कोई नहीं समझ पा रहा था कि आगे क्या होगा और आगे उन्हें क्या करना है।

    रणविजय ने खुद को संभाला और उन तीनों को देखा।
    रेहान धीरे से बोला, “सॉरी यार, मेरा बिल्कुल भी ऐसा कुछ करने का इरादा नहीं था।”

    लेकिन रणविजय फिर भी खामोश रहा।
    अर्थ ने उसे देखते हुए कहा, “हम कुछ कर लेंगे, ढूंढ लेंगे उसे और कुछ भी गलत नहीं होने देंगे।”

    रणविजय ने उन तीनों को देखा और बोला, “मुझे कभी खुद की चिंता नहीं रही। मुझे सिर्फ़ श्रीजा की चिंता है। मेरे साथ बचपन में जो हुआ, मैं नहीं चाहता उसके साथ हो। इसीलिए तो आज तक कोई मेरी ज़िंदगी में आई नहीं और मैं नहीं चाहता कि आगे भी कुछ ऐसा हो। मैं अपनी बेटी को किसी तकलीफ़ में नहीं देख सकता। मैं नहीं देख सकता कि जो औरत मेरी ज़िंदगी में आए, वह मेरे मुँह पर मेरी बच्ची से अच्छा बिहेव करे और मेरे पीठ पीछे उसके साथ बदतमीज़ी करे और उस तरह-तरह से टॉर्चर करे। बिल्कुल भी नहीं।”

    उसकी बात सुनकर वे तीनों शांत हो गए। उसका पास्ट कैसा रहा था, यह उन तीनों से बेहतर कौन जान सकता था।


    अभिजीत ने बात बदलते हुए कहा, “RV पर, फिर भी हमें उस लड़के को ढूँढना तो पड़ेगा ना। चाहे बाद में जो भी बात हो।”

    रणविजय ने उसे देखा और बोला, “मैं भी कोशिश कर रहा हूँ। मैंने गौरव से सीसीटीवी फ़ुटेज निकालने के लिए कहा है। मैं जानना चाहता हूँ कि वह लड़की मेरे कमरे में अगर किसी गलत इरादे से आई थी, तो मैं उसे नहीं छोड़ने वाला हूँ।”

    अर्थ ने उसे देखते हुए कहा, “यह कोई ट्रैप नहीं लगता। तुम्हारे लिए तो बिल्कुल नहीं। बाकी, अगर यह कोई ट्रैप होता, तो अब तक बखेड़ा हो चुका होता। वह लड़की शांत तो बिल्कुल नहीं रहती। या तो यह हो सकता है कि उसे खुद नहीं पता था कि तुम कौन हो। और वह वहाँ पर गलती से आ गई। और तुमने कहा कि उसने भी ड्रिंक कर रखी थी। तो गलती सिर्फ़ तुम्हारी भी नहीं है।”

    उसकी बात सुनकर भी वह चुप रहा। उसके दिमाग़ में बहुत सी चीज़ें चल रही थीं। और उसे सब कुछ सॉर्ट आउट करना था।


    वहीं, कॉलेज के बाद श्रीजा आरिका के साथ कैंटीन एरिया में बैठी थी। यह उसके लिए हमेशा का था। उसे जब भी बात करनी होती थी, वह आरिका के साथ वहाँ आ जाती थी।

    आरिका ने उसे देखते हुए कहा, “कहो, अब क्या हुआ तुम्हारे साथ, जो तुम मुझे बताने के लिए इतनी उतावली हो रही हो?”

    श्रीजा ने उसे देखा, फिर बोली, “मिस आरिका, आपको तो पता है ना मेरे पापा के बारे में, कि वे अब तक सिंगल हैं। मैं चाहती हूँ वे अपनी लाइफ में सेटल हो जाएँ। लेकिन मेरी वजह से वे किसी को अपनी ज़िंदगी में आने ही नहीं देते।”

    उसकी बात सुनते ही आरिका ने उसे देखते हुए कहा, “ठीक है, वे सिंगल हैं। तुम्हारा मतलब सिंगल डैड। तो फिर तुम्हारी माँ का क्या?”

    आरिका ने अक्सर उसके मुँह से यही बातें सुनी थीं। लेकिन कभी उसने उसकी माँ का ज़िक्र नहीं सुना। लेकिन आज वह खुद को रोक नहीं पाई और उसने सवाल कर दिया।

    श्रीजा कुछ पल खामोश रही, फिर बोली, “माँ ही तो ढूँढनी है। एक्चुअली, वे मेरे बायोलॉजिकल फादर नहीं हैं।”

    यह सुनकर तो आरिका को एक और झटका लगा। जिस तरह से श्रीजा अपने पापा की तारीफ़ करती थी, उसे यही लगता था कि वे उसके खुद के पापा हैं। उसे अब तक यह नहीं पता था कि आरिका के पापा की उम्र क्या है। हालाँकि उसने श्रीजा के मुँह से सुना था कि उसके पापा बहुत ही यंग और हैंडसम हैं। लेकिन आरिका ने इस बात को उस वे में देखा ही नहीं था। उसे लगता था कि हर बेटी के लिए उसके पापा सुपर हीरो होते हैं। और हमेशा यंग और हैंडसम ही रहते हैं। लेकिन आज तो यहाँ माज़रा ही कुछ अलग लग रहा था।

    श्रीजा ने आरिका को हैरानी में देखा, तो बोली, “एक्चुअली, आई एम अडॉप्टेड। मेरे डैड सिर्फ़ 33 साल के हैं। और यू नो ना कि 22 साल की तो मैं खुद हूँ।”

    आरिका हैरानी से उसकी बातें सुन रही थी। तभी श्रीजा आगे बोली, “प्रॉब्लम यह है कि मेरे पापा मेरी वजह से अपनी ज़िंदगी में किसी को आने नहीं देते। और मैं चाहती हूँ ऐसा ना हो। मैं जानती हूँ वे मुझसे प्यार करते हैं। मेरी फ़िक्र करते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता ना कि वे खुद पर ध्यान ही ना दें।”

    उसकी ऐसी समझदारी भरी बातें सुनकर आरिका मुस्कुराई और बोली, “हो सकता है तुम्हारे पापा की इन सब बातों के पीछे कोई कारण हो।”

    श्रीजा ने कंधे उचकाते हुए कहा, “यह तो मुझे भी नहीं पता। कुछ बताते कहाँ हैं वे।” यह कहते हुए उसने मुँह बना लिया। आरिका ने प्यार से उसके बालों में अपना हाथ घुमाते हुए कहा, “तो उनसे बात करो। उन्हें कहो कि वे अपने लिए कोई परफेक्ट लाइफ पार्टनर ढूँढ लें।”

    श्रीजा ने मुँह बिचकाकर कहा, “आपको क्या लगता है मैंने कोशिश नहीं की? मैंने कहा था। लेकिन उन्होंने यह कहा कि वे अपने लिए पत्नी तो ले आएंगे, लेकिन मेरे लिए माँ नहीं ला पाएँगे। और इसीलिए वे शादी नहीं करना चाहते। और यह कहकर उन्होंने बात वहीं ख़त्म कर दी। और उसके बाद से उन्होंने मुझे यह बात कभी न करने को कहा। अब बताइए मैं क्या करूँ?”

    उसके बाद सुनकर आरिका भी कंफ़्यूज़ हो चुकी थी। उसने गहरी साँस भरकर कहा, “तब तो मैं भी क्या ही बताऊँ।”

    श्रीजा ने झट से कहा, “मैं ना अपने लिए माँ ढूँढूँगी। क्योंकि अपने लिए अगर मम्मी ढूँढ पाई, तो वह तो पापा की पत्नी बन सकती है ना।”

    यह कहते हुए उसकी आँखों में चमक थी। आरिका ने उसे देखा। सच में वह मासूम थी। बेहद मासूम। कहने को 22 साल की हो चुकी थी। लेकिन बचपना और मासूमियत अब भी बरकरार था। और यह शायद रणविजय के प्यार की वजह से था। उसके मन में बिना रणविजय से मिले ही उसके लिए एक अलग ही इमेज और उसकी अलग ही रिस्पेक्ट बन चुकी थी।


    वे दोनों अभी बातें कर ही रही थीं कि तभी श्रीजा का फ़ोन बजा। उसने कॉल पिक किया। तो उधर से रणविजय की आवाज़ आई, “घर पहुँच गई क्या बच्चा?”

    श्रीजा ने झट से कहा, “नहीं पापा। अभी तो मैं कॉलेज में हूँ। मिस आरिका के साथ। बस थोड़ी देर में जाऊँगी। आपको कोई काम था क्या?”

    रणविजय ने उसकी बात सुनी, तो बोला, “मैं ड्राइवर भेज रहा हूँ। और ज़रा देखना, शायद घर पर तुम्हारी बड़ी दादी आई हैं।”

    उसके ये कहते ही श्रीजा कुछ ज़ोर से बोली, “क्या बड़ी दादी आई है? मैंने कहा था ना हम चलते हैं। आप नहीं माने।”

    रणविजय ने उसकी बात को अवॉइड करते हुए कहा, “थोड़ी देर में ड्राइवर पहुँच जाएगा। आराम से घर जाना, ओके।”

    श्रीजा ने हामी भरी। और फिर फ़ोन रख दिया। आरिका ने उसे देखा, तो श्रीजा बोली, “मेरे पापा की दादी आई हैं। अभी तो मुझे घर जाना होगा। लेकिन मुझे कल आपको कुछ और बातें भी बतानी हैं।”

    आरिका ने मुस्कुराकर उसे बाय कहा। और श्रीजा तुरंत वहाँ से चली गई। उसके जाते ही आरिका के होठों की मुस्कान सिमट गई। और उसने गहरी साँस भरकर खुद से कहा, “एक वह आदमी है जो एक अडॉप्टेड बच्ची के लिए सौतेली माँ नहीं लाना चाहता। और एक मेरा बाप था कि उसने मेरे बारे में एक बार ख़्याल तक नहीं किया।”

    उसने गहरी साँस भरी। और उठकर कैंटीन से बाहर निकल आई। उसे भी घर जाना था। वह घर जो उसे घर कम और कैद ज़्यादा लगता था।


    इधर, जल्दी ही श्रीजा घर पहुँची। उसे हॉल में ही एक लगभग 80 साल की औरत बैठी नज़र आई। वह दौड़कर गई और उनसे लिपटते हुए बोली, “बड़ी दादी, आप आ गईं।”

    उस औरत ने उसे प्यार से गले लगाते हुए कहा, “हाँ, तुम्हारा बाप वहाँ नहीं आ सकता तो क्या हुआ, तुम्हारी बड़ी दादी तो अभी जवान है। वह तो आ ही सकती है।”

    उनकी बात सुनकर श्रीजा हाँस पड़ी। उनका नाम सुलोचना शेखावत था। उम्र ने उन्हें काफ़ी तजुर्बे दिए थे। और उनके चेहरे से ही साफ़ झलक रहा था कि वह कितनी स्वाभिमानी और समझदार महिला हैं।

    श्रीजा ने उन्हें देखते हुए कहा, “मैंने तो पापा से कहा था कि हम चलते हैं। पर उन्होंने मना कर दिया, हमेशा की तरह।”

    यह सुनते ही दादी के चेहरे पर कुछ भाव आकर निकल गए। और उन्होंने एक गहरी साँस भरते हुए कुछ उदास सी आवाज़ में कहा, “कुछ ज़ख़्म ऐसे होते हैं जो वक़्त भी नहीं भर पाता।”

    श्रीजा उन्हें देखने लगी। उसे नहीं पता था कि वह किस बारे में बात कर रही थी। दादी ने बात बदलते हुए कहा, “ख़ैर, कोई बात नहीं। मैं आ गई ना तुम दोनों से मिलने। मैंने सोच लिया है, वहाँ की जगह अब मैं यहीं रहूँगी। वहाँ मेरा मन नहीं लगता। किसी को किसी से मतलब नहीं है वहाँ पर। मैं तो तुम दोनों बाप-बेटी के साथ ही रहने वाली हूँ।”

    श्रीजा ने जैसे ही यह सुना, वह और ज़्यादा खुश हो गई। और चहककर बोली, “सच्ची दादी?”

    सुलोचना जी ने हाँ में गर्दन हिलाई। तो वह खुश होकर बोली, “आप बहुत अच्छी हो।”

    उसकी बात सुनकर दादी हल्के से हाँस दीं।


    वहीं, इधर आरिका घर पहुँची। और कपड़े चेंज करके खुद के लिए चाय बनाने किचन में चली आई। वैसे भी उसे कौन ही पानी तक पूछने वाला था यहाँ। उसने चाय बनाई और हॉल में बैठकर चाय पी ही रही थी कि तभी उसकी सौतेली माँ सीमा जी आते हुए बोलीं, “यहाँ बैठी है महारानी। चाय की चुस्कियाँ ली जा रही हैं। घर में क्या तुम अकेली हो?”

    आरिका ने गहरी साँस ली और उनको देखकर बोली, “आंटी, आपकी दिक्कत क्या है? आप चाहती क्या है मुझसे? आप अपनी बेटी की तो ख़ैर ख़बर लेती हैं नहीं। बस मेरे पीछे हाथ धोकर लगी रहती हैं। क्या अब कोई थका-हारा इंसान बाहर से आकर चाय भी नहीं पी सकता?”

    सीमा जी ने उसे घूरते हुए कहा, “हाँ, बहुत पत्थर तोड़ मज़दूरी करके आई है ना तू? जो थक गई। ऐसा कौन सा ही काम कर लिया?”

    आरिका को उनकी बात सुनकर चिढ़ हो रही थी। उसने कुछ गुस्से से कहा, “ठीक है, ऐसी बात है तो। फिर आज से आप अपना और अपनी बेटी के ख़र्चे का खुद से देख लीजिए। मैं मेहनत नहीं करती हूँ। मुझे इतने पैसे नहीं मिलते हैं। मुझे जितने मिलते हैं, उसमें मैं सिर्फ़ अपना ही निकाल सकती हूँ। और मैं अपना ही निकालूँगी। आप अपना संभालिए।”

    यह कहकर वह चिढ़कर उठी और कमरे में चली गई। सीमा जी उसे हैरान-परेशान सी देखती रहीं। बहुत कम होता था जब वह उन्हें इस तरह से जवाब देकर चली जाती थी। और ऐसा तभी होता था जब वह उन सारी चीज़ों से थक जाती थी।

    आरिका आकर उदास सी अपने कमरे में बैठ गई। लेकिन अपने मन की कहती किसे? उसके पास तो कोई था भी नहीं। उसने सारी बातों को साइड किया और अपनी डायरी लेकर वह लिखने लगी।


    वहीं, इधर शाम के समय रणविजय भी घर पहुँच चुका था। दादी उसे देखकर खुश थीं। और उन्होंने उसे बता भी दिया था कि वह वहीं रुकने वाली हैं। रणविजय ने कोई ऑब्जेक्शन नहीं किया। यह पूरी तरह से दादी का फ़ैसला था।

    डिनर करने के बाद श्रीजा तो अपने कमरे में जा चुकी थी। लेकिन दादी रणविजय के साथ उसके कमरे में थीं। रणविजय उनकी गोद में सिर रखकर लेटा हुआ था। बहुत कम होता था जब वह ऐसे सुकून से किसी की गोद में सिर रखकर लेट पाता था। दादी ने उसके बालों को सहलाते हुए कहा, “बेटा, कब तक यूँ अकेले ज़िंदगी काटता रहेगा? शादी कर ले। अब तो उम्र निकल रही है।”

    रणविजय ने अपनी आँखें बंद किए हुए कहा, “क्या आप यही सब मनवाने के लिए यहाँ आई हैं दादी?”

    सुलोचना जी ने उसकी बात सुनकर गहरी साँस भरी और बोली, “आख़िर गलत क्या है बेटा इसमें?”

    रणविजय ने अपनी आँखें खोलते हुए कहा, “सब कुछ गलत ही गलत है दादी। मैं नहीं चाहता जो मेरे साथ हो चुका है, वह मेरे बेटी के साथ हो। मैं अपने लिए पत्नी ढूँढ लूँगा, लेकिन उसके लिए माँ कहाँ से लाऊँगा?”

    “पर बेटा…” दादी ने कुछ कहने की कोशिश की, तो रणविजय उठते हुए बोला, “श्रीजा सिर्फ़ मेरी ज़िम्मेदारी ही नहीं है, वह सच में मेरी बच्ची है। दादी, मैं उसे कभी नहीं छोड़ सकता। कभी भी नहीं। ना आज और ना कभी भविष्य में। मैं नहीं चाहता उसके साथ कुछ भी गलत हो। बहुत मासूम और प्यारी है वह। और मैं अपने स्वार्थ के लिए उसके साथ बुरा नहीं करूँगा। वैसे भी मुझे नहीं लगता कि मुझे किसी पत्नी की ज़रूरत है। मैं ऐसे ही अपनी बच्ची के साथ खुश हूँ।”

    “पर अकेली ज़िंदगी नहीं काटी जाती है रणविजय। आप समझते क्यों नहीं हैं? एक हमसफ़र की ज़रूरत सबको होती है। आज तुम्हारी बच्ची तुम्हारे साथ है। मैं तुम्हें गलत नहीं ठहरा रही। लेकिन कल को तुम उसकी भी तो शादी करोगे। उसके बाद क्या? क्या तुम अकेले नहीं हो जाओगे? कौन होगा तुम्हारे पास? मेरी भी उम्र हो चली है। कितने दिन की मेहमान हूँ, कौन कह सकता है। इसलिए मैं कह रही हूँ, प्लीज़ शादी कर लो।”

    दादी की बातें सुनकर रणविजय खामोश पड़ गया। दादी उसे बड़ी उम्मीद से देख रही थीं। मानो उसके फ़ैसले का इंतज़ार कर रही हों। लेकिन तभी रणविजय बोला, “बहुत रात हो गई है दादी। सो जाइए जाकर।”

    यह कहते हुए वह उठा और वॉशरूम में चला गया। दादी उदास सी उस दरवाज़े को देखती रहीं।


    क्या होगा आगे? क्या श्रीजा अपने लिए माँ ढूँढ पाएगी? क्या रणविजय दादी की बात मानेगा? क्या फ़ैसला होगा उसका? और क्या आरिका खुलकर कभी अपनी ज़िंदगी जी पाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी…


    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 5. Dad ki dulhan - Chapter 5

    Words: 2438

    Estimated Reading Time: 15 min

    रणविजय उठते हुए बोला, “श्रीजा सिर्फ़ मेरी जिम्मेदारी ही नहीं है, वह सच में मेरी बच्ची है। दादी, मैं उसे कभी नहीं छोड़ सकता। कभी भी नहीं। ना आज, और ना कभी भविष्य में। मैं नहीं चाहता उसके साथ कुछ भी गलत हो। बहुत मासूम और प्यारी है वह। और मैं अपने स्वार्थ के लिए उसके साथ बुरा नहीं करूँगा। वैसे भी मुझे नहीं लगता कि मुझे किसी पत्नी की ज़रूरत है। मैं ऐसे ही अपनी बच्ची के साथ खुश हूँ।”

    “पर अकेली ज़िन्दगी नहीं काटी जाती है रणविजय। आप समझते क्यों नहीं हैं? एक हमसफ़र की ज़रूरत सबको होती है। आज तुम्हारी बच्ची तुम्हारे साथ है। मैं तुम्हें गलत नहीं ठहरा रही हूँ। लेकिन कल को तुम उसकी भी तो शादी करोगे। उसके बाद क्या? क्या तुम अकेले नहीं हो जाओगे? कौन होगा तुम्हारे पास? मेरी भी उम्र हो चली है। कितने दिन की मेहमान हूँ, कौन कह सकता है। इसलिए मैं कह रही हूँ, प्लीज़ शादी कर लो।”


    दादी की बातें सुनकर रणविजय खामोश पड़ गया। दादी उसे बड़ी उम्मीद से देख रही थी। मानो उसके फैसले का इंतज़ार कर रही हो। लेकिन तभी रणविजय बोला, “बहुत रात हो गई है दादी। सो जाइए जाकर।”

    यह कहते हुए वह उठा और वॉशरूम में चला गया। दादी उदास सी उस दरवाज़े को देखती रही।


    दादी भी अब क्या ही करती, वह उठकर अपने कमरे में सोने चली गई। थोड़ी देर बाद रणविजय वॉशरूम से बाहर निकला। वह चुपचाप जाकर बालकनी में बैठ गया। उसकी आँखों में नींद का एक कतरा तक नहीं था।

    वह काफी शांत सा बैठा, बस एकटक शून्य में देखे जा रहा था। उसे ऐसा लग रहा था मानो इस वक़्त कोई उसके पास हो ही ना।

    अचानक ही उसकी आँखों के सामने एक धुंधली सी परछाई आकर गुज़री और कानों में एक आवाज़ पड़ी, “कोई नहीं हो तुम उनके। उनका प्यार सिर्फ़ मेरे बच्चों के लिए है। तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं है यहाँ पर। चुपचाप से एक कोने में पड़े रहो। घर में रहने दिया जा रहा है, वही काफी है।”

    और साथ ही कानों में पड़ी एक बच्चे की सिसकियाँ। रणविजय ने कस के अपनी आँखें मींच लीं और हाथों की मुट्ठियाँ कस के भींचते हुए बोला, “मैं अपनी बच्ची को कभी भी कोई तकलीफ़ नहीं दूँगा।”

    यह कहते हुए उसने आँखें खोलीं। उसकी आँखों में अजीब सी नफ़रत उतर आई थी। उसकी आँखें बुरी तरह से लाल हो चुकी थीं। उसने जैसे-तैसे खुद को शांत किया और गहरी साँस भरकर खुद से ही बोला, “मेरी ज़िन्दगी में कभी कोई नहीं आएगी। कभी भी नहीं।”

    पूरी रात उसने वही बालकनी में बैठे-बैठे और यही सब सोचते-सोचते गुज़ार दी।

    अगली सुबह…

    श्रीजा चहकते हुए उसके कमरे में आई। लेकिन आज उसे रणविजय कहीं नहीं मिला। उसके होठों की हँसी वह एक मिनट में सिमट गई।

    उसने खुद से ही कहा, “पापा कहाँ गए? क्या आज भी वह काम से बाहर गए हैं?” यह सोचते हुए उसने एक बार रूम चेक करने का सोचा और रणविजय को आवाज़ लगाते हुए बोली, “पापा, पापा कहाँ हो आप?”

    उसको आवाज़ लगाते हुए वह बाथरूम की तरफ़ गई। लेकिन बाथरूम का दरवाज़ा खुला था। अब उसने अपने कदम बालकनी की तरफ़ बढ़ा दिए और वह हैरान रह गई।

    रणविजय वही सोफ़े पर बैठा, उसके हेड से सिर टिकाए सो रहा था। श्रीजा जल्दी से उसके पास गई और उसके माथे पर अपना हाथ रखा। उसे डर था कि कहीं उसके पापा की तबीयत तो ख़राब नहीं हो गई। लेकिन जब उसने उसका टेंपरेचर नॉर्मल पाया तो उसने उसे उठाते हुए कहा, “पापा आप यहाँ क्यों सो रहे हो? आप ठीक हो ना?”

    उसके हाथों की हरकत और उसके इतने प्यार से जगाने की वजह से रणविजय की नींद खुल ही गई। उसने आँखें खोलीं तो चौंक कर अपनी बेटी को देखा। श्रीजा उसे परेशानी से देख रही थी।

    रणविजय ने उसके चेहरे पर परेशानी देखी तो ठीक से उठकर बैठते हुए बोला, “क्या हुआ बच्चे, तुम परेशान क्यों हो?”

    श्रीजा ने उसे देखते हुए कहा, “आपको क्या हुआ है? आप ठीक हो ना? आप यहाँ क्यों सो रहे हो?”

    वह हल्के से मुस्कुराया और प्यार से बोला, “मैं बिल्कुल ठीक हूँ। वह बस रात को नींद नहीं आ रही थी तो यहाँ आकर बैठ गया। और फिर कब नींद आई पता ही नहीं लगा। चिंता मत करो।”

    श्रीजा ने यह सुना तो उसने राहत की साँस ली और फिर बोली, “तो चलिए जल्दी से नहा लीजिए। साथ में नाश्ता करेंगे। आज तो दादी भी हैं।”

    रणविजय उसकी एक्साइटमेंट देखकर मुस्कुराया और बोला, “ठीक है, तुम भी जाकर तैयार हो जाओ। मैं बस अभी आता हूँ।”

    श्रीजा जल्दी से वहाँ से चली गई और रणविजय भी उठकर नहाने चला गया।


    इधर आरिका के घर में हल्ला मचा हुआ था, और हल्ला मचाने वाली खुद आरिका थी।

    सीमा जी ने उसे घूरते हुए कहा, “ऐसे कैसे तू मेरी बात नहीं मानेगी? तुझे मेरी बात माननी होगी। मैंने जो लड़का देखा है, तुम्हें उसी से शादी करनी पड़ेगी।”

    आरिका ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा, “शादी करेगी मेरी जूती! होती कौन आप मेरे बारे में फ़ैसला लेने वाली? मेरी माँ हो नहीं ना, तो फिर अपने फ़ैसले अपने पास रखो। और अपनी बेटी के लिए करो। मुझे कुछ भी कहने और सुनाने की ज़रूरत नहीं है।”

    सीमा जी ने कुछ गुस्से से कहा, “तेरे बाप ने तेरी जिम्मेदारी मुझे ऐसे ही तो नहीं दी होगी।”

    आरिका ने जैसे ही अपने पापा का ज़िक्र सुना तो वह कुछ शांत हुई। लेकिन अगले ही पल चिल्लाकर बोली, “हाँ तो मेरे बाप ने मेरी जिम्मेदारी आपको दी थी, तो उठाई कितनी आपने? आप दोनों के ख़र्चे भी मैं उठा रही हूँ। कम से कम मरे हुए लोगों को तो बख्श दो! कभी मेरी माँ को बीच में लेकर आती है तो कभी पापा को। शर्म कर लो! और एक बात मेरी कान खोलकर सुन लो, अगर मेरे घर में रहना है ना तो तमीज़ से और अपनी औक़ात में रहो। मैंने जितना सहना था सह लिया, अब बिल्कुल नहीं सहूँगी। और दूसरी बात यह कि अपने ख़र्चे का इंतज़ाम खुद कर लो। और इस बार अगर मुझे परेशान करने की कोशिश की ना तो यहाँ रहने का रेंट भी तुम्हें देना होगा। तुमने मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं उठाई है। जिम्मेदारियाँ मैंने उठाई हैं, ख़र्चा मैंने उठाया है तो किस बात की धौंस जमा रही हो?”


    उसकी बातें सुनकर सीमा जी और काव्या एक पल को घबरा गईं।

    काव्या ने उसे घूरते हुए कहा, “तुम्हारी यह हिम्मत कि तुम हमें आँखें दिखाओगी? अरे तुम्हारे जैसी लड़कियाँ होती ही क्या हैं? क्या कहा जाता है उन्हें? समझती भी हो? जानती भी हो? तुमने क्या मुझे बेवकूफ़ समझ रखा है? उस दिन उसे क्लब में पता नहीं किसके साथ रात गुज़ारकर आई थी तुम।”

    एक बार फिर उस रात का ज़िक्र सुनते ही आरिका के दिल में दर्द सा उठा। लेकिन उसने खुद को संभालते हुए घूरकर काव्या को देखा और बोली, “मेरा पर्सनल मैटर है यह कि मैं किसके साथ रहूँगी। तुम दोनों को उससे क्या लेना-देना? और मेरी बात कान खोलकर सुन लो, शादी तो मैं बिल्कुल नहीं करूँगी। और अगर इतनी ही शादी करने की जल्दी है तो अपनी बेटी की कराओ आंटी। मुझसे 3-5 करने की ज़रूरत नहीं है। आरिका बस उतना ही सहन करती है जितना उसके बर्दाश्त में होता है।”

    यह कहकर आरिका गुस्से में वहाँ से चली गई। सीमा जी ने अपनी बेटी को देखते हुए कहा, “यह तो सर ही चढ़ गई है! जब से तेरा बाप गया है इसका डर ही ख़त्म हो गया है।”

    काव्या ने उसे देखते हुए कहा, “धौंस तो जमाएगी ही, आख़िर ख़र्चा यही तो देती है। और दूसरी बात यह भी कि यह घर भी इसका है।”

    सीमा जी ने उसे देखते हुए कहा, “कुछ तो करना पड़ेगा। मैं ऐसे ही किसी के नीचे दबकर तो बिल्कुल नहीं रहूँगी। आख़िर इस लड़की ने भी सिर उठाना शुरू कर दिया है और मैं इसकी बगावत बिल्कुल नहीं सहन करने वाली।”

    और दोनों माँ-बेटी अब मिलकर आरिका को परेशान करने का कोई नया तरीक़ा ढूँढ़ने लगीं।

    आरिका तैयार होकर जल्दी ही घर से निकल गई। उसका बिल्कुल भी मन नहीं था कि वह उन दोनों माँ-बेटी को और झेल पाए।


    वहीं इधर रणविजय और श्रीजा ने भी दादी के साथ मिलकर नाश्ता किया। रणविजय को आज जल्दी जाना था, इसलिए वह जल्दी ऑफ़िस निकल गया। श्रीजा अपनी दादी के पास बैठते हुए बोली, “दादी, मैं तो अब कॉलेज चली जाऊँगी। आप पूरा दिन क्या करोगी?”

    दादी ने उसे देखते हुए कहा, “मैं वहाँ भी क्या ही करती थी बेटा। कम से कम यहाँ पर तुम दोनों दो घड़ी मुझे बोल तो लेते हो। वहाँ पर तो किसी को कोई मतलब ही नहीं होता था। इसलिए तो मैं यहाँ रहने आ गई।”

    श्रीजा ने उन्हें देखते हुए कहा, “दादी, पापा उस घर में क्यों नहीं जाते? वहाँ पर उनके भी तो मम्मी-पापा हैं।”

    दादी ने गहरी साँस भरकर कहा, “कुछ ज़ख़्म कभी नहीं भरते बेटा। और तुम बच्ची हो, इन सब बातों में ध्यान मत दो। तुम्हारा बाप तुम्हें कितना प्यार करता है यह तो तुम देख ही लो।”

    तभी श्रीजा बोली, “यही तो दिक्क़त है दादी। वह शादी नहीं कर रहे हैं। मुझे उनकी शादी देखनी है। मैं कब से कह रही हूँ कि शादी कर लो पर मानते ही नहीं हैं।”

    दादी ने श्रीजा को देखा और बोली, “मतलब तुम भी उसकी शादी करवाना चाहती हो?”

    श्रीजा ने जल्दी से हामी भरी। फिर बोली, “लेकिन हर बार वह यही कहते हैं कि वह अपने लिए पत्नी लाएँगे, लेकिन मेरे लिए माँ कहाँ से लाएँगे? तो मैंने डिसाइड किया है कि अब मैं अपने लिए माँ ढूँढूँगी, उनके लिए पत्नी नहीं। क्योंकि जो मेरी माँ होगी वह उनकी पत्नी तो ऑटोमेटिक बन ही जाएगी।”

    उसकी बात सुनकर दादी के दिल को एक राहत मिली। रणविजय जितना श्रीजा के बारे में सोचता था, श्रीजा भी उसके बारे में उतना ही सोचती और परवाह करती थी। कभी-कभी लोग सच कहते हैं कि खून के अलावा भी जो रिश्ते होते हैं, वह सच में हमारे होते हैं। रणविजय और श्रीजा का केस वैसा ही था। देखा जाए तो श्रीजा रणविजय की खुद की बेटी नहीं थी, लेकिन फिर भी दोनों एक-दूसरे पर जान लुटाते थे और एक-दूसरे की परवाह करते थे।

    थोड़ी देर बाद श्रीजा अपने कॉलेज के लिए निकल चुकी थी। आज उसे आरिका कुछ बुझी-बुझी सी नज़र आई। श्रीजा ने उसे देखा और फिर बोली, “मिस आरिका, कॉलेज के बाद मिलें।” आरिका ने बस फीकी सी मुस्कान के साथ हामी भर दी। इसकी वजह यह भी थी कि उसने देखा था कि वह कितना कम्फ़र्टेबल होकर उससे सारी बातें कर लेती थी। उसे यह भी पता था कि श्रीजा के गिने-चुने ही तो दोस्त थे और इसीलिए आरिका कभी भी उसे मना नहीं करती। और फिर जब उसने कल उसकी रियल आइडेंटिटी के बारे में जाना तो उसे अपनी और श्रीजा की कंडीशन कुछ एक सी नज़र आई। लेकिन हाँ, यह बात अलग थी कि इस केस में श्रीजा को रणविजय मिल चुका था और आरिका को संभालने वाला कोई नहीं था।

    और फिर उम्र का तकाज़ा था। आरिका 27 साल की थी, तो उसमें श्रीजा से ज़्यादा ही मैच्योरिटी थी। वह वक़्त से पहले ही काफी मैच्योर हो गई थी और श्रीजा को इतना प्यार और लाड़ मिल रहा था इसलिए उसे कभी दरकार ही नहीं हुई कि उसे मैच्योर होना पड़े।

    कॉलेज के बाद दोनों जाकर कैंटीन एरिया में बैठीं। तो श्रीजा ने उसे देखकर कहा, “मिस, आप ठीक हैं ना? मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि कोई बात है जो आपको परेशान कर रही है? आप मुझे बता सकते हो। जैसे मैं आपको सारी बातें बताती हूँ। आई प्रॉमिस मैं किसी को नहीं बताऊँगी। और मुझसे हुआ तो मैं आपकी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन भी ढूँढ दूँगी।”

    आरिका हल्के से मुस्कुराई, फिर बोली, “नहीं बच्चा, ऐसा कुछ नहीं है। वह बस ऐसे ही कुछ दिमाग में चल रहा था।”

    श्रीजा कुछ देर उसे देखती रही। फिर बोली, “मिस आरिका, यह आप गलत कर रही हैं। आप मुझसे अब मेरी सारी बातें सुनती हैं ना, तो आप भी मुझे अपनी सारी बातें कह सकती हैं। कह देने से दिल का दर्द हल्का हो जाता है। जो हमारे सीने पर बोझ होता है वह हल्का हो जाता है। ऐसा मेरी बड़ी दादी कहती है कि कोई भी बात मन में नहीं रखनी चाहिए क्योंकि जब बातें मन में होती हैं तो वह गहरा घाव बना देती हैं।”

    उसने इतने प्यार से कहा कि आरिका के दिल में एक गर्माहट उतर आई और उसकी आँखों में नमी। पहली बार था जब किसी ने उसे इतने प्यार से कुछ पूछा था और वह भी उसके बारे में।


    क्या होगा आगे? क्या आरिका श्रीजा से अपनी बातें शेयर करेगी? क्या श्रीजा अपने लिए माँ ढूँढ पाएगी? और रणविजय को मना पाएगी शादी के लिए? आख़िर क्या हुआ था ऐसा जिसकी वजह से रणविजय कभी शादी नहीं करना चाहता? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी…

    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 6. Dad ki dulhan - Chapter 6

    Words: 2528

    Estimated Reading Time: 16 min

    आरिका 27 साल की थी; इसलिए उसमें श्रीजा से ज़्यादा परिपक्वता थी। वह वक्त से पहले ही काफी परिपक्व हो गई थी, और श्रीजा को इतना प्यार और लाड़ मिल रहा था कि उसे कभी दरकार ही नहीं हुई कि उसे परिपक्व होना पड़े।

    कॉलेज के बाद दोनों जाकर कैंटीन एरिया में बैठीं। श्रीजा ने आरिका को देखकर कहा,
    “मिस, आप ठीक हैं ना? मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि कोई बात है जो आपको परेशान कर रही है। आप मुझे बता सकती हैं। जैसे मैं आपको सारी बातें बताती हूँ। आई प्रॉमिस, मैं किसी को नहीं बताऊँगी। और मुझसे हुआ तो मैं आपकी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन भी ढूँढ दूँगी।”

    आरिका हल्के से मुस्कुराई और फिर बोली,
    “नहीं बच्चा, ऐसा कुछ नहीं है। वह बस ऐसे ही कुछ दिमाग में चल रहा था।”

    श्रीजा कुछ देर उसे देखती रही। फिर बोली,
    “मिस आरिका, यह आप गलत कर रही हैं। आप मुझसे अब मेरी सारी बातें सुनती हैं ना, तो आप भी मुझे अपनी सारी बातें कह सकती हैं। कह देने से दिल का दर्द हल्का हो जाता है। जो हमारे सीने पर बोझ होता है, वह हल्का हो जाता है। ऐसा मेरी बड़ी दादी कहती हैं कि कोई भी बात मन में नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि जब बातें मन में होती हैं तो वह गहरा घाव बना देती हैं।”

    उसने इतने प्यार से कहा कि आरिका के दिल में एक गर्माहट उतरी, और उसकी आँखों में नमी आ गई। पहली बार था जब किसी ने उसे इतने प्यार से कुछ पूछा था, और वह भी उसके बारे में।


    लेकिन आरिका नहीं चाहती थी कि वह अपना दुख बताकर उस बच्ची को भी परेशान कर दे। हालाँकि देखा जाए तो श्रीजा कोई इतनी भी छोटी नहीं थी जो कुछ समझ न पाती। उसने अपना हाथ बढ़ाकर आरिका के हाथ पर रखा और प्यार से बोली,
    “मिस आरिका, आप कोशिश तो कीजिए। मैं जानती हूँ, कभी-कभी हमारे पास कोई नहीं होता सुनने वाला, और हम अपना दर्द अपने अंदर ही रखने लग जाते हैं। लेकिन जब हमारे पास कोई हो तो हमें उसे बताना चाहिए ना। आप मुझे बताइए तो।”

    आरिका ने खुद को संभाला और अपने आँसुओं को कण्ट्रोल करते हुए हल्के से मुस्कुराकर बोली,
    “ऐसा कुछ नहीं है बच्चे, तुम टेंशन मत लो।”

    श्रीजा उसे देखती रही, फिर बोली,
    “आप मुझे बच्ची कहती हैं, लेकिन आपको यह भी समझना चाहिए ना कि मैं इतनी भी बच्ची नहीं हूँ। मेरे पापा भी मुझे बच्चा कहकर बुलाते हैं, लेकिन मैं इतनी भी बच्ची नहीं हूँ। वह भी यह नहीं समझते। आप दोनों सिमिलर हो। मुझे बिल्कुल बच्चों की तरह ट्रीट करती हो, लेकिन कहीं ना कहीं यह भूल जाती हो कि मैं इतनी बड़ी हो चुकी हूँ कि कुछ बातें तो समझ ही सकती हूँ।”

    आरिका उसे देखने लगी। श्रीजा हल्के से मुस्कुराकर बोली,
    “आपको पता है मैं आपसे अपनी बातें क्यों कह देती हूँ? क्योंकि मुझे कभी भी नहीं लगता कि आप मुझे किसी बात को लेकर जज करेंगी। मुझे कभी भी डर नहीं लगता कि मैं आपसे कुछ कहूँगी तो आप मेरे बारे में क्या सोच लेंगी। मैं कभी भी यह नहीं सोचती कि आप मेरी बात सुनेंगी या नहीं, क्योंकि आप मेरी बातें सुनती हैं, मुझे सॉल्यूशन बताती हैं। वैसे ही आप भी मुझ पर भरोसा कर सकती हैं।”

    आरिका ने गहरी साँस भरी और बोली,
    “सबकी ज़िंदगी में अलग-अलग परेशानियाँ होती हैं, और मुझे नहीं लगता कि मेरी ज़िंदगी की परेशानियाँ इतनी जल्दी ख़त्म होंगी। मैं एक से निकलूँगी तो मुझे चार परेशानियाँ और घेर कर खड़ी हो जाएँगी।”

    श्रीजा ने उसे देखा और फिर बोली,
    “तो फिर मैं अपने पापा से बात करूँ? वह एक मिनट में सारी परेशानियाँ हल कर देते हैं।”

    आरिका उसे देखने लगी। फिर अगले ही पल मुस्कुराकर बोली,
    “कोई ऐसी परेशानी हो जो तुम्हारे पापा हल कर पाएँ तो मैं बताऊँ। लेकिन यह परेशानी मेरी है, और इसे मुझे ही सॉर्ट आउट करना होगा।”

    अभी कुछ देर ही हुई थी कि आरिका का फ़ोन बजा। उसने फ़ोन उठाया तो उधर से काव्या की आवाज़ आई,
    “कहाँ हो तुम?”

    आरिका ने कुछ गुस्से से कहा,
    “तुम्हें उससे क्या लेना? मैं कहीं भी हूँ, कहीं भी नहीं, मेरी ज़िंदगी है। मैं अपने आप सब कुछ संभाल सकती हूँ। तुम अपना ध्यान रखो तो ज़्यादा बेहतर होगा। और हाँ, मैं अपनी बात पर कायम हूँ। दोनों माँ-बेटी अपने रहने और ख़र्चे का इंतज़ाम खुद कर लेना। मुझसे उम्मीद मत करना।”

    यह कहते हुए उसने गुस्से से फ़ोन रख दिया।

    श्रीजा ने आरिका को देखा और बोली,
    “क्या आपकी बहन का कॉल था?”

    आरिका ने गहरी साँस भरकर कहा,
    “हाँ, बदकिस्मती से बहन है मेरी।”

    श्रीजा उसे देखकर बोली,
    “आपके साथ आपके मम्मा-पापा नहीं रहते।”

    आरिका ने हल्के से फ़िकी सी मुस्कान के साथ कहा,
    “उन दोनों की डेथ हो चुकी है। मेरी सौतेली माँ और सौतेली बहन हैं जो मेरे साथ घर में रहती हैं, जो एक मौका नहीं छोड़ती मुझे परेशान करने का। एहसान फ़रामोशी अगर किसी के लिए शब्द बना है तो वह सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी ही सौतेली माँ और सौतेली बहन के लिए बना है। मैं उनके लिए सब कुछ कर रही हूँ, वह मेरे घर में रह रही हैं, मैं उनका ख़र्चा उठा रही हूँ, और फिर भी वह मुझे आँखें दिखाती हैं। मुझे डर नहीं लगता, लेकिन बुरा ज़रूर लगता है।”

    यह कहते हुए वह कुछ खामोश हो गई। श्रीजा समझ रही थी। माँ-बाप तो उसके भी नहीं थे, लेकिन उसकी किस्मत शायद कुछ ज़्यादा ही अच्छी थी कि बचपन में ही रणविजय उसे मिल गया, और तब से लेकर आज तक वही उसका बाप बनकर रहा।

    श्रीजा ने उसे देखते हुए कहा,
    “मैं आपको आइडिया दूँ आपकी माँ और बहन से छुटकारा पाने के लिए।”

    आरिका उसे देखने लगी। तो श्रीजा चहकते हुए बोली,
    “मैं आपको ऐसे-ऐसे आइडिया बताऊँगी कि वह दोनों खुद ही घर छोड़कर भाग जाएँगी।”

    उसकी बात सुनकर आरिका हँस पड़ी। फिर बोली,
    “मुझे उन्हें घर से नहीं निकालना है, बस सबक देना चाहती हूँ। जो बात-बात पर वह लोग मुझ पर धौंस जमाने आ जाती हैं, मैं उन्हें बताना चाहती हूँ कि वहाँ पर मैं उनके नौकर नहीं हूँ।”

    अभी श्रीजा कुछ और कहती कि आरिका मुस्कुराकर बोली,
    “अच्छा, तुम यह सब छोड़ो। तुम्हें घर जाना चाहिए। काफ़ी देर हो गई है आज हमें बात करते हुए।”

    श्रीजा ने टाइम देखा। सच में आरिका के साथ होने पर उसे वक़्त का पता नहीं लगता था। उसने तुरंत अपना फ़ोन निकाला और कॉल करते हुए ड्राइवर को दरवाज़े पर आने को कहा, और फिर आरिका को बाय बोलकर वहाँ से चली गई।

    आरिका ने गहरी साँस भरी और उठकर बाहर निकल आई। आज उसे भी कुछ हल्का महसूस हो रहा था। उसने भले ही श्रीजा को सारी बातें नहीं बताई थीं, लेकिन फिर भी कुछ बातें बताने से उसका दिल ज़रूर हल्का हो गया था।

    इधर रणविजय ऑफ़िस में था। तभी उसके केबिन का दरवाज़ा नॉक हुआ। उसने कम इन कहा तो गौरव अंदर आया।

    रणविजय ने उसे घूरकर देखा और बोला,
    “मैंने कहा था ना, जब तक सीसीटीवी फ़ुटेज ना मिल जाए अपनी शक्ल मत दिखाना मुझे। और मुझे समझ नहीं आता तुम एक सीसीटीवी फ़ुटेज नहीं निकाल पा रहे हो।”

    गौरव ने घबराते हुए कहा,
    “सर, बात ऐसी नहीं थी। बात ऐसी थी कि उन लोगों ने मना कर दिया था।”

    रणविजय ने कुछ गुस्से से कहा,
    “तो क्या मेरा नाम नहीं ले सकते थे?”

    गौरव ने सर झुका लिया। लेकिन अगले ही पल बोला,
    “पर मैं लेकर आया हूँ।”

    यह सुनकर रणविजय की आँखों में एक चमक आ गई। गौरव ने उसे वह पेन ड्राइव दिया, और रणविजय ने जल्दी से उसे पेन ड्राइव को अपने लैपटॉप में सेट कर लिया।

    सबसे पहले रणविजय ने उस कमरे के कॉरिडोर वाली फ़ुटेज की चेक करी। उसे देखना था कि वह लड़की थी कौन, और वहाँ पहुँची कैसे। और जैसे ही वीडियो स्टार्ट हुई, रणविजय कुछ हैरान हुआ। एक लड़की को एक वेट्रेस ने पकड़ रखा था, और किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी। सीसीटीवी फ़ुटेज में साउंड नहीं था, लेकिन रणविजय समझ चुका था कि वह लड़की किसी की साज़िश का शिकार हुई थी।

    उस वेट्रेस ने उस लड़की को कमरे के अंदर छोड़ा और कमरे को बाहर से लॉक कर दिया, और वहाँ से तुरंत निकल गई। अब रणविजय पीछे के फ़ोटोज़ देखने लगा जहाँ पर वह लड़की नज़र आ रही थी। वह जब क्लब में इंटर हुई तो कुछ परेशान सी नज़र आ रही थी, और ऐसा लग रहा था कि किसी को ढूँढ रही थी।

    रणविजय गौर से वह फ़ोटोज़ देखने लगा। आरिका जब से आई थी उसने किसी ड्रिंक को हाथ तक नहीं लगाया था, और रणविजय के माथे पर बल पड़ चुके थे। जब अचानक ही किसी वेटर ने आकर उसे ड्रिंक ऑफ़र किया। पहले तो आरिका ने मना कर दिया था, लेकिन उस वेटर ने उसे कुछ कहा, और इस वजह से आरिका ने वह ड्रिंक ले लिया। रणविजय ने उस ग्लास को देखा। वह जूस था तो फिर उसे नशा हुआ कैसे? उसे इतना समझने में देर नहीं लगी कि उसके ड्रिंक में कुछ मिलाया गया था।

    रणविजय ने तुरंत ही वह फ़ुटेज बंद कर दिए और खुद से ही बोला,
    “यहाँ पर तो कुछ और ही मसला है।”

    उसने गौरव को देखा और बोला,
    “पता करो इस लड़की के बारे में। मैं मिलना चाहता हूँ उससे।”

    गौरव ने जल्दी से कहा,
    “मैं पता करके आया हूँ।”

    रणविजय ने अपनी एक आईब्रो उठाकर उसे देखा।

    गौरव ने उसके ऐसे लुक को देखा, तो झट से बोला,
    “अब मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो सर? मैं मानता हूँ मैं लेटलतीफी करता हूँ, पर काम करता हूँ।”

    रणविजय ने उसकी बात को इग्नोर करते हुए कहा,
    “क्या पता लगा है वह बताओ।”

    गौरव ने झट से कहा,
    “श्रीजा की प्रोफ़ेसर है यह। घर में एक सौतेली माँ और सौतेली बहन है। सगे माँ-बाप की डेथ हो चुकी है। और एक यही है जो घर का सारा काम और घर ख़र्च और सारी चीज़ें संभालती हैं।”

    रणविजय ने मन ही मन कहा,
    “इंटरेस्टिंग, सौतेली माँ और बहन का ख़र्चा उठा रही है। मिलना पड़ेगा।”

    उसने गौरव को देखा और बोला,
    “ठीक है, मेरी मीटिंग फ़िक्स करवाओ इससे।”

    गौरव ने तुरंत हामी भरी और वहाँ से चला गया। रणविजय के दिमाग में अब सिर्फ़ आरिका चल रही थी। अचानक ही उसके ज़हन में आरिका की कहानी, वह बात याद आई जब उस रात उसने आरिका से कहा था कि वह आग से खेल रही है, और आरिका का जवाब था कि जल तो वह पहले ही रही है, झुलस गई तो क्या ही फ़र्क पड़ जाएगा।

    रणविजय ने गहरी साँस लेकर कहा,
    “कुछ तो अलग है। मुझे पहले तो यह नहीं समझ आया कि यह लड़की वहाँ पर कर क्या रही थी। देखकर तो नहीं लग रहा था कि ड्रिंक करने आई थी। और जब एक मिडिल क्लास फैमिली से आती है तो यह उस दिन सुबह भाग क्यों आई? अगर कोई और होता तो मोटी रकम की डिमांड कर देता।”

    रणविजय के दिमाग में यही सारी थॉट्स चल रही थीं। उसने गहरी साँस भरी और खुद से ही बोला,
    “लगता तो नहीं है कि किसी में लालच ना होता हो। फ़िलहाल तो जो उस रात हुआ उसे क्लियर करना ज़्यादा ज़रूरी है।”

    रणविजय आरिका से मिलने का सोच चुका था, लेकिन इनकी पहली मुलाक़ात कैसी होने वाली थी, यह देखना था। उस रात तो दोनों ने दूसरे का ठीक से चेहरा तक नहीं देखा था। आरिका और रणविजय दोनों ही नशे में थे। सुबह आरिका ने उसका चेहरा देखा भी था, लेकिन उसने वहाँ रुकना कंसीडर नहीं किया, और तुरंत वहाँ से भाग गई। और उसके बाद तो उसने उस रात का ज़िक्र करना तक ज़रूरी नहीं समझा।

    रात को रणविजय घर पहुँचा, तो श्रीजा दौड़कर आई और उससे लिपट गई। रणविजय ने उसके सर को प्यार से सहलाते हुए कहा,
    “क्या हुआ बच्चा?”

    श्रीजा ने उसे देखते हुए कहा,
    “कुछ नहीं, अपने पापा को प्यार करना बुरी बात थोड़ी है?”

    उसकी बात सुनकर रणविजय हल्के से हँस दिया, और फिर प्यार से बोला,
    “अच्छा ठीक है। कोई बुरी बात नहीं है। मैं फ़्रेश होकर आता हूँ। मुझे पता है तुम्हें भूख लगी है।”

    श्रीजा ने दाँत दिखाते हुए जल्दी से उसे छोड़ दिया। रणविजय अपने कमरे में आया और फ़्रेश होकर जल्दी से नीचे आ गया। उन सबने साथ में बैठकर डिनर किया, और फिर अपने-अपने कमरे में चले गए। श्रीजा आरिका के बारे में सोच रही थी। उसे नहीं समझ आ रहा था कि वह क्या करे जिससे आरिका की कुछ हेल्प हो सके। उसने कुछ सोचा और उठकर रणविजय के कमरे में चली आई। उसने दरवाज़े पर से अंदर झाँककर देखा। रणविजय सोफ़े पर बैठा अपना कोई काम कर रहा था, लेकिन जब उसे लगा कि कोई उसे देख रहा है तो उसने उस तरफ़ देखा। उसने श्रीजा को देखा तो बोला,
    “क्या हुआ? वहाँ क्यों खड़ी हो? अंदर आओ।”

    श्रीजा अंदर गई और उसके पास जाकर बैठते हुए बोली,
    “पापा, मुझे आपसे बात करनी है।”

    रणविजय ने लैपटॉप में कुछ करते हुए कहा,
    “बोलो, मैं सुन रहा हूँ।”

    श्रीजा उसे घूरकर देखने लगी।


    क्या होगा आगे? क्या आरिका अपनी माँ और बहन को सबक सिखा पाएगी? कैसी रहेगी रणविजय और आरिका की पहली मुलाक़ात? श्रीजा रणविजय से आरिका के बारे में बात करने आई थी। जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।


    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 7. Dad ki dulhan - Chapter 7

    Words: 2650

    Estimated Reading Time: 16 min

    रात को रणविजय घर पहुँचा। श्रीजा दौड़कर आई और उससे लिपट गई। रणविजय ने उसके सर को प्यार से सहलाते हुए कहा,
    “क्या हुआ बच्चा?”

    श्रीजा ने उसे देखते हुए कहा,
    “कुछ नहीं, अपने पापा को प्यार करना बुरी बात थोड़ी है?”

    उसकी बात सुनकर रणविजय हल्के से हँस दिया। और फिर प्यार से बोला,
    “अच्छा ठीक है। कोई बुरी बात नहीं है। मैं फ़्रेश होकर आता हूँ। मुझे पता है तुम्हें भूख लगी है।”

    श्रीजा ने दांत दिखाते हुए जल्दी से उसे छोड़ दिया। रणविजय अपने कमरे में आया और फ़्रेश होकर जल्दी से नीचे आ गया। उन्होंने सबने साथ में बैठकर डिनर किया। और फिर अपने-अपने कमरे में चले गए।

    श्रीजा आरिका के बारे में सोच रही थी। उसे नहीं समझ आ रहा था कि वह क्या करे जिससे आरिका की कुछ हेल्प हो सके। उसने कुछ सोचा और उठकर रणविजय के कमरे में चली आई। उसने दरवाजे पर से अंदर झाँककर देखा। रणविजय सोफ़े पर बैठा अपना कोई काम कर रहा था। लेकिन जब उसे लगा कि कोई उसे देख रहा है तो उसने उस तरफ देखा। उसने श्रीजा को देखा तो बोला,
    “क्या हुआ? वहाँ क्यों खड़ी हो? अंदर आओ।”

    श्रीजा अंदर गई और उसके पास जाकर बैठते हुए बोली,
    “पापा मुझे आपसे बात करनी है।”

    रणविजय ने लैपटॉप में कुछ करते हुए कहा,
    “बोलो, मैं सुन रहा हूँ।”

    श्रीजा उसे घूर कर देखने लगी।

    रणविजय ने जब उसे खुद को घूरते हुए पाया तो गहरी साँस भरकर अपना लैपटॉप बंद करते हुए बोला,
    “अच्छा ठीक है, अब बोलो। मैं सुन रहा हूँ।”
    यह कहते हुए वह उसकी तरफ पलट गया। श्रीजा खुश हो गई और उसे देखकर बोली,
    “मुझे ना आपसे मिस आरिका के बारे में बात करनी थी।”

    आरिका का नाम सुनकर रणविजय एक पल को शांत पड़ गया। वह जानता था वह किस आरिका की बात कर रही थी। यह वही आरिका थी जिसके साथ वह वन नाइट स्टैंड कर चुका था। और कमाल की बात यह थी कि आरिका ने उसके बाद से रणविजय से कोई कांटेक्ट करने की कोशिश नहीं की थी। आरिका का नाम श्रीजा के मुँह से उसने कई बार सुना था। वह उसकी जिस हिसाब से तारीफ़ें करती थी, रणविजय इतना समझ सकता था कि आरिका शायद सच में काफ़ी अच्छी थी।

    रणविजय ने खुद को शांत करते हुए कहा,
    “बताओ क्या हुआ?”

    श्रीजा ने उसे देखते हुए कहा,
    “पापा, मिस आरिका ना बिल्कुल अकेली है। उनकी स्टेप मॉम और स्टेप सिस्टर उन्हें परेशान करती हैं। लेकिन वह किसी से डरती नहीं है। आपको पता है उन्होंने उन दोनों का खर्चा बंद कर दिया। और कहा कि जो पॉकेट मनी उन्हें देती थी वह अब नहीं देंगी। यहाँ तक कि वह घर उनका है। लेकिन फिर भी दोनों माँ-बेटी उस घर पर कब्ज़ा जमा कर बैठी हैं। और तो और मुझे पता लगा है कि उनकी स्टेप मॉम उनकी जबरदस्ती शादी करवाना चाहती है। वह भी उनसे सीधा डबल ऐज के आदमी से। ऐसे थोड़ी ना होता है। वह तो कितनी अच्छी है। लेकिन उनके साथ इतना गलत हो रहा है। उन्होंने गुस्से में अपनी स्टेप मॉम को कह तो दिया है कि वह शादी नहीं करेंगी, लेकिन मुझे फिर भी उनकी फ़िक्र हो रही है।”

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा,
    “यह सब तुम्हें कैसे पता लगा? क्या उन्होंने खुद बताया?”

    श्रीजा ने बगले झाँकते हुए धीरे से कहा,
    “उन्होंने तो ज़्यादा कुछ नहीं बताया। उन्होंने बस इतना कहा कि उनकी परेशानियाँ वह खुद ही तो सॉर्ट आउट करेंगी। कोई और थोड़ी करेगा। बाकी की सारी चीज़ें तो मैंने खुद से पता की हैं। आपके गार्ड्स की हेल्प से।”

    रणविजय उसे अपनी आँखें छोटी-छोटी करके घूरने लगा। उसने उन गार्ड को उसकी हिफ़ाज़त के लिए रखा था, ना कि उनसे जासूसी करवाने के लिए। लेकिन इस लड़की के सामने वह कुछ कह नहीं सकता था। वह उसे बेहद प्यार करता था और इसी बात का कभी-कभी श्रीजा खूब फ़ायदा उठाती थी।

    रणविजय ने उसे घूरते हुए कहा,
    “वह गार्ड तुम्हारी सेफ़्टी के लिए हैं बेटा। और तुम उनसे जासूसी करवा रही हो।”

    “अहह, पापा ऐसा कुछ भी नहीं है। वह तो बस मैं मिस आरिका के लिए, मैं परेशान हो रही थी। इसलिए मैंने अपने गार्ड्स को पता करने को कह दिया। और देखा कितना कुछ पता लग गया। मिस आरिका तो मुझे कुछ बताने को तैयार नहीं हैं। उनको लगता है मैं तो अभी भी बच्ची हूँ। वह बिल्कुल आपकी तरह हैं। आप भी मुझे बच्चा-बच्चा कहते हो। और वह भी। आप दोनों मुझे बड़ा समझते ही नहीं हो।”

    उसकी बात सुनकर रणविजय कुछ शांत पड़ गया। श्रीजा ने रणविजय को देखते हुए कहा,
    “आप उनकी प्रॉब्लम सॉल्व करोगे ना पापा?”

    रणविजय ने चौँक कर उसे देखा और बोला,
    “यह उनका पर्सनल मैटर है। हम इसमें क्या कर सकते हैं?”

    श्रीजा ने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,
    “प्लीज पापा। आप मना नहीं करो।”

    रणविजय बेचारा क्या करता? वह अपनी बेटी की हर बात मान लेता था। उसने हारकर कहा,
    “अच्छा ठीक है। मैं देखता हूँ। तुम टेंशन मत लो। ओके।”

    उसकी बात सुनते ही वह खुश हो गई और झट से उसके गले से लिपटते हुए बोली,
    “आप बेस्ट हो पापा।”
    रणविजय हल्के से मुस्कुरा दिया।

    श्रीजा वहाँ से जल्दी ही चली गई। लेकिन अब रणविजय की आँखों में नींद कहाँ? उसके दिमाग में बस आरिका चलने लगी थी। और अभी-अभी श्रीजा ने जो बातें बताईं, वह सारी बातें सुनकर तो उसके दिमाग में आरिका के ख्याल और भी ज़्यादा गहरे हो चुके थे। उसने गहरी साँस लेते हुए कहा,
    “अब तो कल मिलना ही होगा तुमसे। पता तो चले आखिर चीज़ क्या हो तुम? जो मेरी बेटी इतनी पागल हुई जा रही है तुम्हारे जैसी लड़की के लिए।”

    इधर आरिका इन सब से बेखबर थी और आराम से अपने कमरे में बैठी अपने कुछ काम में लगी हुई थी। आज ही आते-आते उसकी फिर से अपनी माँ और बहन से झड़प हो गई थी। उसके लिए यह रोज़ का था। अब भला वह उनकी बातों को अपने दिमाग में रखती तो कुछ काम कहाँ ही कर पाती। इसलिए वह अक्सर उन बातों को हमेशा अपने दिमाग से झिड़क देती थी। आज भी उसने वही किया और अपने बाकी के काम निपटाने में लग गई।

    लगभग रात के 1:00 बजे थे और वह अपना काम कम्पलीट कर चुकी थी। उसने एक अंगड़ाई ली और कमरे की बालकनी में आकर खड़ी हो गई। उसने गहरी साँस भरते हुए सामने का नज़ारा देखा। काली अंधेरी रात और उसमें भी कुछ जगमगाते तारे जो आकाश में रोशनी भर रहे थे। आरिका ने खुद से ही कहा,
    “तारों की तरह मेरी ज़िंदगी में कोई क्यों नहीं है? जो इस अंधेरी सी ज़िंदगी में कुछ रोशनी कर पाए।”

    यह सोचते हुए उसने गहरी साँस भरी और फिर थोड़ी देर बाद वापस अपने कमरे में चली आई। और बेड पर लेट गई। और थोड़ी देर में उसे नींद भी आ गई। लेकिन उसे नहीं पता था कि कल वह अपनी ज़िंदगी के एक सबसे इम्पोर्टेन्ट पर्सन से मिलने वाली थी।

    अगली सुबह…

    श्रीजा अपने कॉलेज जा चुकी थी और रणविजय आरिका से मीटिंग करने को तैयार था। लेकिन उसे क्या पता था कि उसका असिस्टेंट इतना बेवकूफ़ है कि उसने आरिका को इस बारे में इन्फ़ॉर्म तक नहीं किया था। बस रणविजय के शेड्यूल में उसकी मीटिंग अटका दी थी।

    और जब रणविजय को यह पता लगा तो वह गुस्से से गौरव पर फट पड़ा। उसने उसे डाँटते हुए कहा,
    “तुम्हारा दिमाग खराब है। तुमने उसे बताया तक नहीं। उसे क्या सपने आयेंगे कि हमें मीटिंग करनी है।”

    गौरव ने सर झुकाकर कहा,
    “वह सर, बाकी के कामों में मैं भूल गया।”

    “खाना खाना तो तुम कभी नहीं भूलते। वह तो तुम्हें वक़्त पर चाहिए ही होता है।”
    रणविजय ने उसे ताना मारा।

    बेचारा गौरव क्या ही कहता। उसने तुरंत कहा,
    “सर, आज हाफ़ डे है कॉलेज का। वह आपको मिल जाएँगी कॉलेज। आप उनसे वहाँ मिल सकते हैं।”

    “प्राइवेट मीटिंग का मतलब समझते हो गौरव? मुझे प्राइवेट में मीटिंग करनी है, पब्लिकली नहीं।”
    वो उस पर कुछ भड़कते हुए बोला।

    “हाँ तो सर, मैं उनको इन्फ़ॉर्म कर दूँगा ना कॉलेज के बाद। वह आपको मिल जाएँगी।”
    गौरव ने फिर से कहा। रणविजय उससे क्या ही कहता। उसे बस कैसे भी करके आज आरिका से मिलना ही था। रणविजय ने उसे घूरते हुए कहा,
    “कुछ भी करके उसे कैफ़े लेकर आओ।”

    गौरव तुरंत वहाँ से रफ़ू चक्कर हो गया। उसे खुद पर ही गुस्सा आ रहा था कि वह ऐसा कैसे कर सकता था।

    इधर हाफ़ डे के बाद श्रीजा तो घर चली गई। लेकिन आरिका कॉलेज में ही थी और थोड़ी देर बाद जाने ही वाली थी कि तभी कुछ गार्ड्स उसके सामने आकर खड़े हो गए। गौरव ने इस बार यह ध्यान रखा था कि उन गार्ड को देखकर कोई यह ना पहचान पाए कि वह रणविजय के गार्ड हैं। इसलिए उसने उनकी ड्रेस पर बना वह लोगो हटा दिया था जिससे रणविजय के गार्ड की पहचान होती थी। उन गार्ड्स ने उसे ग्रीट करते हुए झुककर कहा,
    “मैम, हमारे सर आपसे मिलना चाहते हैं। आपको हमारे साथ चलना होगा।”

    आरिका हैरानी से कहा,
    “क्या? कौन? आप लोग कौन हैं? मैं आपको जानती भी नहीं। ऐसे कैसे मैं आपके साथ चलूँ?”

    उसने अजीब तरह से उन्हें देखते हुए कहा। स्टाफ़ का हर एक मेंबर हैरान था। आज से पहले ऐसी हरकत कॉलेज में हुई नहीं थी। और आरिका के साथ तो ऐसा कभी नहीं हुआ था।

    उनमें से आरिका की एक कलीग ने कहा,
    “आरिका यह सब कौन हैं? और क्या हो रहा है यहाँ पर?”

    आरिका ने परेशानी से कहा,
    “मुझे पता होगा तब तो बताऊँगी ना। मुझे खुद नहीं पता है कि क्या हो रहा है। यह लोग हैं कौन? मैं जानती तक नहीं हूँ।”

    उस गार्ड ने फिर कहा,
    “मैम, प्लीज आप हमारे साथ कोऑपरेट कीजिए।”
    आरिका ने उसे देखकर कहा,
    “लेकिन मैं जानती भी नहीं हूँ तुम्हें। और तुम लोग कह रहे हो मैं साथ चलूँ। ऐसे कैसे मैं तुम लोगों के साथ चलूँ?”

    उस गार्ड ने तुरंत अपना फ़ोन निकाला और किसी को कॉल लगा दिया और तुरंत आरिका को फ़ोन पकड़ा दिया। आरिका ने जैसे ही फ़ोन कान पर लगाया, उधर से आवाज़ आई,
    “हेलो मिस आरिका, हम उस दिन रात को क्लब में मिले थे। क्या हम मिल सकते हैं?”

    वह शांत और ठंडी आवाज़ सुनकर आरिका काँप गई थी। और उससे भी ज़्यादा डर तो उसे इस बात का लग रहा था कि उस शख्स ने उसे ढूँढ लिया था जिसके साथ वह उस दिन उस रात रूम में थी।

    इससे पहले वह कुछ कहती, उधर से रणविजय फिर से बोला,
    “मना करने या भागने की कोशिश मत कीजिएगा। बस मुझे मिलकर कुछ बातें क्लियर करनी हैं।”

    आरिका अब क्या ही कहती। उसने धीरे से ओके कह दिया और फिर गार्ड के साथ वहाँ से निकल गई।

    पूरे रास्ते वह उस कार में एक तरफ़ कोने में दुबक कर बैठी रही। उसे नहीं पता था कि उसकी हर एक हरकत रणविजय को लाइव टेलीकास्ट हो रही थी। आरिका को इस तरह डरा-सहमा देखकर रणविजय इतना समझ चुका था कि वह उन लोगों में से तो बिल्कुल नहीं है जिसे पैसों का लालच हो। अगर ऐसा होता तो सामने से खुद उसे ढूँढती, ब्लैकमेल करती। उसे आरिका को नहीं ढूँढना पड़ता।

    थोड़ी देर में वह लोग कैफ़े पहुँच चुके थे। आरिका ने उस कैफ़े को देखा। देखकर ही लग रहा था कि वह कोई लग्ज़री कैफ़े है और वहाँ पर सिर्फ़ नामी-गिरामी और बड़े लोग ही आते होंगे। आरिका ने इस वक़्त बेहद ही सिम्पल कॉटन की साड़ी पहन रखी थी। बालों को एक साइड करके गुँथकर चोटी बनाई हुई थी जो उसकी कमर से नीचे तक लहरा रही थी। और माथे पर एक छोटी सी बिंदी थी। आँखों में गहरा काजल था और देखने में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। लेकिन फिर भी आरिका को पता था कि इस कैफ़े में कैसे लोग आते होंगे।

    उस गार्ड ने उतरते हुए आरिका के लिए दरवाज़ा खोला और उसे देख पॉलाइटली बोला,
    “दिस वे मैम।”

    आरिका झट से उतर आई और वह गार्ड उसे लेकर बुक किए हुए प्राइवेट रूम की तरफ़ बढ़ गया। वह थोड़ी देर में उसे रूम के सामने थे। आरिका घबरा रही थी और ऊपर से फिर से एक बार रूम देखकर उसे और ज़्यादा डर लगने लगा था। वह अपने हाथों की उंगलियों से खेल रही थी और तभी दरवाज़ा ओपन हुआ। सामने गौरव था। गौरव ने गार्ड्स को देखा और जाने का इशारा किया और फिर आरिका को देखकर बोला,
    “प्लीज मैम, अंदर आइए।”

    वह अंदर आई। गौरव ने उसे देखकर कहा,
    “आप थोड़ा इंतज़ार कीजिए। सर आते होंगे।”

    आरिका ने हाँ में गर्दन हिला दी। गौरव उस रूम से जा चुका था। आरिका घबरा रही थी। कुछ सोचकर वह उठी और कमरे से बाहर निकली। लेकिन इससे पहले बाहर निकलती किसी से टकरा गई। आरिका ने अपना सर पकड़ लिया। उसका सर किसी मज़बूत चीज़ से टकराया था।

    उसने अपना सिर सहलाते हुए सिर उठाकर सामने मौजूद उस चीज़ को देखा। वह चीज़ नहीं, वह इंसान था। वह रणविजय था जो गहरी आँखों से आरिका को देख रहा था।

    रणविजय ने अंदर आते हुए कमरा बंद किया और उसे देखकर बोला,
    “तो क्या आप भागने की कोशिश कर रही थी?”

    आरिका ने घबराते हुए कहा,
    “नहीं तो। मैं…वह…मैं…मैं वॉशरूम जा रही थी।”

    रणविजय ने दूसरी तरफ़ इशारा करते हुए कहा,
    “कमरे में भी है।”

    आरिका शांत रह गई और कुछ बोली नहीं। रणविजय समझ रहा था कि वह घबराई हुई तो थी। उसने उसे देखकर कहा,
    “बैठिए।”

    आरिका धीरे-धीरे चलकर आई और सामने वाले सिंगल सोफ़े पर बैठ गई। वह इस तरह से सिमटकर बैठी थी मानो जरा भी हिली तो उसे काला पानी की सज़ा दे दी जाएगी।

    क्या होगा आगे? कैसे होगी रणविजय और आरिका की यह पहली मुलाक़ात? क्या बातें क्लियर करना चाहता था रणविजय? क्या यहाँ से दोनों की किस्मत बदलने वाली थी? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी…

    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 8. Dad ki dulhan - Chapter 8

    Words: 2754

    Estimated Reading Time: 17 min

    आरिका घबरा रही थी। और ऊपर से फिर से एक बार कमरा देखकर उसे और ज़्यादा डर लगने लगा था। वह अपनी उंगलियों से खेल रही थी। और तभी दरवाज़ा खुला। सामने गौरव था। गौरव ने गार्ड्स को देखा और जाने का इशारा किया। और फिर आरिका को देखकर बोला,

    “प्लीज मैम, अंदर आइए।”

    वह अंदर आई। गौरव ने उसे देखकर कहा,

    “आप थोड़ा इंतज़ार कीजिए। सर आते होंगे।”

    आरिका ने हाँ में गर्दन हिला दी। गौरव उस कमरे से जा चुका था। आरिका घबरा रही थी। कुछ सोचकर वह उठी और कमरे से बाहर निकली। लेकिन इससे पहले कि वह बाहर निकल पाती, किसी से टकरा गई। आरिका ने अपना सिर पकड़ लिया। उसका सिर किसी मज़बूत चीज़ से टकराया था।

    उसने अपना सिर सहलाते हुए सिर उठाकर सामने मौजूद उस चीज़ को देखा। वह चीज़ नहीं, वह इंसान था। वह रणविजय था, जो गहरी आँखों से आरिका को देख रहा था।

    रणविजय ने अंदर आते हुए कमरा बंद किया और उसे देखकर बोला,

    “तो क्या आप भागने की कोशिश कर रही थी?”

    आरिका ने घबराते हुए कहा,

    “नहीं तो। मैं, वह, मैं, मैं वॉशरूम जा रही थी।”

    रणविजय ने दूसरी तरफ इशारा करते हुए कहा,

    “कमरे में भी है।”

    आरिका शांत रह गई और कुछ बोली नहीं। रणविजय समझ रहा था कि वह घबराई हुई तो थी। उसने उसे देखकर कहा,

    “बैठिए।”

    आरिका धीरे-धीरे चलकर आई और सामने वाले सिंगल सोफ़े पर बैठ गई। वह इस तरह से सिमट कर बैठी थी मानो जरा भी हिली तो उसे काला पानी की सज़ा दे दी जाएगी।


    रणविजय ने उसे इस तरह देखा तो बड़े आराम से बोला,

    “मैं तुम्हें खा नहीं जाऊँगा। आराम से बैठ सकती हो।”

    उसकी वह भारी सी आवाज़ सुनकर वह और घबरा गई और कुछ काँप सी गई। रणविजय ने गहरी साँस भरी और खुद की आवाज़ थोड़ी लो करते हुए बड़े आराम से बोला,

    “मिस आरिका, बी कम्फ़रटेबल।”

    आरिका ने बस फीकी सी मुस्कान पास कर दी।

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा,

    “तो मुद्दे पर आते हैं।”

    आरिका घबरा रही थी। ना जाने वह क्या बात छेड़ दे। एक तो उस रात को वह भूल जाना चाहती थी, और आज वह उस रात जिस शख़्स के साथ थी, वही उसके सामने बैठा था।

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा,

    “मैं आपसे यहाँ पर कुछ बातें क्लियर करने आया हूँ। मैं उन लोगों में कभी नहीं रहा जो अपनी ज़िम्मेदारियों से भागते हैं।”

    आरिका ने उसे देखते हुए धीरे से कहा,

    “आपने मुझे यहाँ पर क्यों बुलाया है?”

    रणविजय ने उसे देख बड़े आराम से कहा,

    “उस रात आप मेरे साथ थीं, राइट?”

    एक बार फिर आरिका के ज़हन में वह रात और वह याद ताज़ा हो गई। उसने अपना सिर झुकाकर धीरे से कहा,

    “मुझे नहीं पता मैं वहाँ कैसे पहुँची। और ट्रस्ट मी, मैं ऐसी लड़की हूँ भी नहीं। और, और प्लीज़, वह जो भी था उस रात ख़त्म हो चुका। हम क्यों मिल रहे हैं, मैं तो यह भी नहीं समझ पा रही हूँ।”

    रणविजय के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई, जिसे उसने जल्दी से छुपा लिया। फिर बोला,

    “इंटरेस्टिंग। क्या आप जानती हैं मैं कौन हूँ?”

    आरिका ने बस ना में गर्दन हिला दी। तो रणविजय आगे बोला,

    “क्या आपको पता है अगर आपकी जगह कोई और लड़की होती तो वह क्या करती?”

    आरिका उसे हैरान-परेशान सी देखने लगी। उसे तो समझ नहीं आ रहा था कि वह आदमी क्या बातें कर रहा था।

    रणविजय ने आगे कहा,

    “माइसेल्फ रणविजय शेखावत। शेखावत इंडस्ट्रीज़ का सीईओ।”

    आरिका ने धीरे से कहा,

    “ओह, अच्छा।”

    उसका इतना ठंडा रिस्पॉन्स देखकर तो रणविजय की हँसी ही छूटने वाली थी। लेकिन फिर भी उसने खुद को कंट्रोल किया और आरिका को देखकर बोला,

    “तब भी तुम्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा।”

    आरिका ने उसे देखकर कहा,

    “हैं तो आप भी इंसान ही। हाँ, आप जैसे बड़े लोग हम जैसे लोगों के मुँह क्यों लगेंगे?”

    रणविजय ने मन ही मन कहा, “मुँह क्यों लगेंगे, सीरियसली? यह लड़की एक रात मेरे साथ बिता चुकी है और यह इतना ठंडा रिस्पॉन्स दे रही है।”

    रणविजय ने गहरी साँस भरकर कहा,

    “तुम्हें पता है अगर तुम्हारी जगह कोई और लड़की होती और उसे पता चलता कि मैं शेखावत इंडस्ट्रीज़ का मालिक हूँ तो वह ना जाने मुझे ब्लैकमेल करके कितने पैसे ऐंठने की कोशिश करती।”

    आरिका ने जैसे ही सुना, उसे लगा मानो कोई उसके स्वाभिमान पर चोट कर रहा हो। उसके माथे पर बल पड़ गए और वह खड़े होते हुए गुस्से से बोली,

    “मिस्टर शेखावत, आप होंगे कहीं के मालिक, कहीं के बिज़नेस में। मैं ऐसी लड़की बिल्कुल नहीं हूँ। मेरे ज़हन से वह रात कब का निकल चुकी है और मैं नहीं चाहती कि फिर से हम दोबारा कभी मिलें। और दूसरी बात यह कि मैं कोई ऐरी-गैरी लड़की नहीं हूँ जो चंद पैसों के लिए अपना स्वाभिमान बेच डालें। मैं खुद से कमा सकती हूँ, इतनी केपेबल हूँ मैं, और मुझे किसी के ख़ैरात में दिए हुए पैसों की कोई ज़रूरत नहीं है।”

    रणविजय उससे कुछ नहीं बोला। वह उसे देखता रहा। उसके मन में जो थोड़ी सी शंका थी कि शायद वह आरिका को जैसा समझ रहा है, वैसी नहीं है। शायद श्रीजा उसकी झूठी तारीफ़ें करती है और शायद आरिका वैसा होने का दिखावा करती है कि वह बाकी लोगों की तरह लालची नहीं है। लेकिन इस वक़्त जो आरिका उसके सामने थी और बिना डरे इतने कॉन्फ़िडेंस से अपनी बात उसे कह रही थी, यह देखकर रणविजय को पूरा भरोसा हो चुका था कि आरिका बिल्कुल भी वैसी नहीं है जैसा वह सोच रहा था।

    आरिका ने अपना बैग उठाया और जाने को हुई कि तभी रणविजय बोला,

    “जब तक मैं नहीं चाहता, आप यहाँ से नहीं जा सकती हैं। आपको कोई बाहर नहीं जाने देगा।”

    आरिका ने उसकी बात को इग्नोर किया और दरवाज़ा खोलने की कोशिश की। लेकिन दरवाज़ा बाहर से लॉक था। यह कैसे पॉसिबल था?

    उसने दो-तीन बार ट्राई किया, लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला। आरिका पीछे मुड़कर गुस्से से रणविजय को घूरकर देखा। वह उठा और एक तिरछी मुस्कान के साथ आरिका के करीब आया। आरिका दरवाज़े के बेहद पास खड़ी थी और रणविजय के बढ़ते क़दमों ने उसे कुछ और पीछे होने पर मजबूर कर दिया। वह बिल्कुल दरवाज़े से सट चुकी थी।

    रणविजय ने उसके करीब आते हुए अपने दोनों हाथ दरवाज़े पर रखे और आरिका को अपने और दरवाज़े के बीच कैद कर लिया। आरिका को घबराहट होने लगी थी। वह आदमी उसके करीब क्यों था? वह तो यही नहीं समझ पा रही थी कि यहाँ पर वह सिर्फ़ बात करने आए थे, तो वह उसके करीब क्यों आ रहा था?

    रणविजय ने आरिका के छोटे से चेहरे को देखा। उसका हर एक फ़ीचर बेहद ख़ूबसूरत था और उसकी नज़र जाकर रुकी आरिका के होठों के ऊपर मौजूद उस तिल पर। रणविजय का दिल बेईमान होने लगा था और यह पहली बार था जब उसके साथ ऐसा कुछ हो रहा था और वह खुद को कंट्रोल करने की भरपूर कोशिश कर रहा था।

    उसने खुद से ही मन ही मन कहा, “क्या हो रहा है? यह पहली बार है कि कोई लड़की इतना अफ़ेक्ट कर रही है मुझे। यक़ीन नहीं होता कि ऐसा भी कभी हो सकता था।”

    आरिका ने धीरे से हकलाती सी आवाज़ में कहा,

    “मिस्टर शेखावत, कर क्या रहे हैं आप? हटिए यहाँ से और मुझे जाने दीजिए, प्लीज़।”

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा,

    “क्यों? मैंने कहा तो अभी बात पूरी नहीं हुई है।”

    आरिका ने उसे घूरकर देखा और बोली,

    “मैं इतना तो समझ चुकी हूँ आप किस बारे में बात करेंगे। आप मुझे पैसों का लालच देंगे या फिर कुछ पैसे थमा देंगे। मैं कोई स्लट नहीं हूँ जिसे आप पे आउट करेंगे एक रात के लिए। वह रात मेरी भी गलती थी। मैं वहाँ पर कैसे पहुँची मुझे कुछ याद नहीं है। मुझे बस इतना याद है कि सुबह जब मैं उठी तो किसी की बाहों में थी। उस आदमी को मैं नहीं जानती थी और मैंने वहाँ से निकलना ज़्यादा ज़रूरी समझा और मैंने वह किया भी। उसके बाद आपका मुझे ढूँढ कर यूँ यहाँ बुलाना मुझे नहीं समझ आ रहा।”

    रणविजय उससे इम्प्रेस हुआ जा रहा था। रणविजय शेखावत 33 साल का था, लेकिन फिर भी लड़कियाँ मरती थीं उसके लुक्स, उसकी बॉडी और उसकी पर्सनालिटी पर। लेकिन यह जो सामने उसकी लड़की खड़ी थी, उस पर ना तो उसके लुक्स का असर था और ना ही उसकी बेहतरीन फ़िजिक का।

    रणविजय ने धीरे से कहा,

    “मैं तुम्हें कोई पैसे नहीं देने वाला। लेट्स डेट ईच अदर। तुम पहली लड़की हो जो रणविजय शेखावत को इम्प्रेस करने में कामयाब हुई हो और मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे जैसी बेहतरीन लड़की को अपनी ज़िन्दगी से क्यों जाने दिया जाए।”

    आरिका ने फिर से उसे घूरकर देखा और बोली,

    “मैंने कहा, मैं कोई स्लट नहीं हूँ।”

    रणविजय को उसकी बात सुनकर चिढ़ हुई और उसे कुछ गुस्सा भी आया। उसने अपना हाथ जोर से दरवाज़े पर मारते हुए अपने जबड़े भींचकर कहा,

    “डोंट यूज़ दैट ब्लडी वर्ड फ़ॉर योरसेल्फ़। क्या मैंने तुम्हें अपनी बातों से कुछ ऐसा फ़ील करवाया है जिसकी वजह से तुम बार-बार यह नाम यूज़ कर रही हो? क्या तुम्हें मेरी एक बात सीधे-सीधे समझ नहीं आ रही है? मैंने कहा हम डेट करते हैं। मेरी एक सीधी सी बात नहीं समझ पा रही हो तुम।”

    आरिका ने चिढ़कर अपने दोनों हाथ उसके सीने पर रखे और उसे धक्का देने की कोशिश करते हुए कहा,

    “और आप मेरी एक नॉर्मल सी बात नहीं समझ पा रहे हैं। और मिस्टर शेखावत, आपकी शादी की उम्र है, ना कि डेट करने की। यह बच्चों जैसे काम छोड़कर शादी कर लीजिए।”

    रणविजय ने उसे ऊपर से नीचे देखा, फिर बोला,

    “एक्चुअली यू आर राइट। शादी करते हैं। चलो, अब सीधा शादी करेंगे।”

    आरिका तो उसकी बात सुनकर ही घबरा गई थी। रणविजय ने जब उसके चेहरे पर वह हल्का सा डर देखा तो उसकी तरफ़ झुकते हुए उसके चेहरे को ऊपर उठाकर धीरे से बोला,

    “क्या हुआ? अभी तो कह रही थी ना, शादी करने का। देखो, सुहागरात तो हमारी पहले ही हो चुकी। और मैं नहीं चाहता उस सुहागरात का अंजाम एक बच्चे की तरह हमारी गोद में हो। सो, प्रिकॉशन ले लेना। मैं पहले याद दिला रहा हूँ। मैंने उस टाइम प्रिकॉशन नहीं लिए थे।”

    आरिका उसकी बात सुनकर घबरा गई थी। वह तो भूल ही चुकी थी इस बारे में। उसने अपना चेहरा रणविजय के हाथ से हटाते हुए घुमाकर कहा,

    “आपकी बातें हो गई हों तो मैं जाऊँ यहाँ से।”

    रणविजय हल्के से मुस्कुराया और उससे दो क़दम पीछे होते हुए अपने दोनों हाथ अपने पैंट के पॉकेट में डालकर बड़े आराम से बोला,

    “वैसे मैंने सुना है तुम्हारी माँ तुम्हारी शादी करवाने पर तुली है। बुराई क्या है? कम से कम 55 साल के आदमी से शादी करने से बेहतर है कि 33 साल के आदमी से कर ली जाए।”

    आरिका उसे घूरकर देखने लगी। यह आदमी उसके बारे में सब कुछ पता करके आया था।

    उसने गुस्से से कहा,

    “मुझे शादी नहीं करनी। इसलिए मेरा पीछा छोड़ दीजिए। हम आज मिले हैं, आज के बाद हम दोबारा कभी नहीं मिलेंगे। मिस्टर शेखावत, हमारी राहें पहले भी जुदा थीं और अब भी जुदा हैं और वह कभी ना तो टकराएँगी और ना ही एक हो पाएँगी।”

    ये कहते हुए उसने फिर से दरवाज़ा खोलने की कोशिश की। उसने घूरकर रणविजय की तरफ़ देखा और बोली,

    “दरवाज़ा खोलिए।”

    रणविजय ने गहरी साँस भरी और बोला,

    “तो तुम मेरी बात बिल्कुल नहीं मानोगी।”

    आरिका ने उसकी बात को इग्नोर कर दिया। रणविजय ने उसे अब ज़्यादा परेशान नहीं किया और दरवाज़ा खोल दिया। आरिका तुरंत वहाँ से चली गई। रणविजय उसे जाते हुए देख रहा था। ऐसा पहली बार था कि किसी लड़की से वह इतना इम्प्रेस हुआ था कि उसने उसे सीधा शादी तक के लिए पूछ लिया। हालाँकि शादी वह नहीं करने वाला था। उसने वह आरिका के एक्सप्रेशन्स और उसकी नियत चेक करने के लिए यह कहा था और सच में वह भी यह मानने को तैयार था कि आरिका खरा सोना थी।

    रणविजय जाकर वापस सोफ़े पर बैठा और खुद से ही बोला,

    “अब समझ आया कि मेरी बेटी क्यों सारा दिन मिस आरिका, मिस आरिका करते रहती है। सच में काफ़ी इम्प्रेसिव है यह लड़की। रणविजय शेखावत को इम्प्रेस कर लिया इसने।”

    लेकिन रणविजय इतना तो समझ चुका था कि उस रात की वजह से आगे उसे अपनी ज़िन्दगी में कोई दिक्कत नहीं होगी। आरिका उसे कभी परेशान नहीं करने वाली और उसके लिए यह राहत की बात थी। वह उठा और फिर घर के लिए निकल गया।

    घर पहुँचा तो दोनों दादी-पोती सोफ़े पर बैठी कुछ बातें कर रही थीं। वह जब अंदर आया तो अचानक से दोनों शांत हो गईं। उन दोनों को रणविजय ने अजीब तरह से देखा और बोला,

    “आप दोनों चुप क्यों हो गईं? ऐसी भी क्या बातें हो रही थीं?”

    पीछे से एक मेड ने तुरंत कहा,

    “भैया, आपकी शादी की।”

    रणविजय ने सिर उठाकर उसकी तरफ़ देखा। वह रोमी थी। कहने को तो उसके घर की केयरटेकर थी, लेकिन उसे अपनी बहन से कम नहीं समझता था वह और वह भी उसे पूरा भाई जैसा आदर-सम्मान देती थी। वह इन दिनों छुट्टी पर गई थी और आज ही वापस आई थी। रणविजय ने उसे देखकर कहा,

    “तुम कब आई?”

    “आज ही आई थी भैया। घर में आई तो पता लगा दादी और श्रेया आपकी शादी करने की प्लानिंग कर रहे हैं। आप कब कर रहे हो शादी? और किससे कर रहे हो? मुझे भी बताओ।”

    उसने एक्साइटमेंट में और फ़्लो में सब कुछ बक दिया। उसे कहाँ पता था कि ये बातें रणविजय को नहीं बतानी थीं। दादी और श्रेया उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थीं।

    अचानक ही रोमी को एहसास हुआ कि कोई उसे घूर रहा है। उसने उस तरफ़ देखा जहाँ दादी-पोती दोनों उसे घूर रही थीं। रोमी को तुरंत समझ आ गया कि ये बातें उसे रणविजय के सामने नहीं बोलनी थीं। उसने अपना सिर खुजाते हुए मन ही मन कहा, “मैंने फिर गड़बड़ कर दी।” और तुरंत बोली,

    “भैया, हम चाय बनाकर लाते हैं।”

    यह कहते हुए वह जल्दी से किचन में भाग गई।

    अब रणविजय ने अपना रुख अपनी बेटी और अपनी दादी की तरफ़ कर लिया और वह दोनों जानती थीं अब क्या होने वाला था।


    क्या होगा आगे? क्या रणविजय ने आरिका से जो कहा वह सिर्फ़ एक मज़ाक था या फिर रणविजय उसे सच बनाने की कोई कोशिश भी करेगा? क्या फिर कभी भी इन दोनों की राहें आपस में नहीं टकराएँगी? क्या श्रेया इन दोनों के बीच की वह कड़ी बन पाएगी जो इन्हें साथ कर पाए? और क्या प्लानिंग कर रही थी दादी-पोती? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।


    To be continued…


    ✍️ Riya Sirswa

  • 9. Dad ki dulhan - Chapter 9

    Words: 2633

    Estimated Reading Time: 16 min

    रणविजय ने दोनों को अजीब तरह से देखा और बोला, “आप दोनों चुप क्यों हो गईं? ऐसी भी क्या बातें हो रही थीं?”

    पीछे से एक मेड ने तुरंत कहा,
    “भैया, आपकी शादी की।”

    रणविजय ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा। वह रोमी थी। कहने को तो वह उसके घर की केयरटेकर थी, लेकिन वह उसे अपनी बहन से कम नहीं समझता था। और वह भी उसे पूरा भाई जैसा आदर-सम्मान देती थी। वह इन दिनों छुट्टी पर गई थी और आज ही वापस आई थी। रणविजय ने उसे देखकर कहा,
    “तुम कब आई?”

    “आज ही आई थी भैया। घर में आई तो पता लगा दादी और श्रेया आपकी शादी करने की प्लानिंग कर रहे हैं। आप कब कर रहे हो शादी? और किससे कर रहे हो? मुझे भी बताओ।”

    उसने एक्साइटमेंट में सब कुछ बक दिया। उसे कहाँ पता था कि ये बातें रणविजय को नहीं बतानी थीं। दादी और श्रीजा उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थीं।

    अचानक रोमी को एहसास हुआ कि कोई उसे घूर रहा है। उसने उस तरफ देखा जहाँ दादी-पोती दोनों उसे घूर रही थीं। रोमी को तुरंत समझ आ गया कि ये बातें उसे रणविजय के सामने नहीं बोलनी थीं। उसने अपना सर खुजाते हुए मन ही मन कहा, “मैंने फिर गड़बड़ कर दी।” और तुरंत बोली,
    “भैया, हम चाय बनाकर लाते हैं।” यह कहते हुए वह जल्दी से किचन में भाग गई।

    अब रणविजय ने अपना रुख अपनी बेटी और अपनी दादी की तरफ कर लिया। और वह दोनों जानती थीं अब क्या होने वाला था।


    रणविजय ने अपनी दादी की तरफ देखा और उन्हें घूरते हुए बोला, “यह सब कुछ क्या है दादी? अब आपने इन सब में श्रीजा को भी शामिल कर लिया। आप दोनों को मेरी एक बार कही हुई बात समझ नहीं आती क्या? एक ही बात को बार-बार कहना ज़रूरी है क्या? मैं शादी नहीं करूँगा, मतलब नहीं करूँगा। और यह फ़ाइनल है। बार-बार एक ही बात कहकर अपनी और मेरी एनर्जी वेस्ट मत कीजिए।”

    यह कहते हुए वह उठा और अपने कमरे की तरफ चला गया। श्रीजा और दादी एक-दूसरे का मुँह ताकने लगीं।

    श्रीजा ने मासूमियत से कहा,
    “पापा तो गुस्सा हो गए दादी। अब हम क्या करें?”

    दादी ने मुँह बिचकाते हुए कहा,
    “वह गुस्सा कब नहीं रहता? गुस्सैल कहीं का! जब देखो तब मुँह बनाए घूमता रहता है। कुछ और सोचना पड़ेगा। ऐसे तो काम चलेगा नहीं।”

    श्रीजा कुछ सोचने लगी। तभी दादी फिर से बोली,
    “वैसे इसके वह गांधी जी के तीन बंदर कहाँ हैं? मुझे उनसे मिलना है। पता तो लगे आखिर चल क्या रहा है। और वैसे भी उन दोनों को भी हम अपने प्लान में शामिल करने वाले हैं। बस जैसे-तैसे रणविजय मान जाए बस।”

    श्रीजा अपनी दादी को देखने लगी और वह समझ रही थी कि अब उसकी दादी उसके पापा के दोस्तों को भी इसमें शामिल करने वाली थी। बस श्रीजा को तो यह देखना था कि दादी का प्लान कितना वर्क करने वाला था।


    अगले दिन रणविजय अपने ऑफिस पहुँचा। तभी उसके फ़ोन पर एक मैसेज पॉप हुआ। उसने वह मैसेज देखा तो यह उनके फ़्रेंड ग्रुप का था जिसमें सिर्फ़ वह चारों ही थे। और यह मैसेज इस वक़्त रेहान का था। रेहान के पेट में कहाँ कोई बात पचती थी। उसने गौरव से पता किया था कि रणविजय आरिका से मिलने गया है।

    और आज सुबह होते-होते रेहान ने उसे मैसेज करके पूछ लिया था कि उसकी मीटिंग का क्या हुआ।

    रणविजय की भौंहें तन गईं। अर्थ और अभिजीत एक बार फिर भी सोच-समझकर बोलते थे, लेकिन रेहान ऐसा बिल्कुल नहीं था। उसके मुँह में जो आता था वह बक देता था। और सिर्फ़ इतना ही नहीं, रणविजय को परेशान करने में वह कोई कसर भी नहीं छोड़ता था।

    रणविजय बस उस मैसेज को घूर रहा था जिसमें लिखा था,
    “तुम उस क्लब वाली लड़की से मिलने गए थे ना? क्या हुआ मीटिंग का? वह लड़की कोई शातिर तो नहीं थी? उसने पैसों की डिमांड करी क्या? अगर करी भी है तो तुम पैसे देकर मामला रफ़ा-दफ़ा कर दो। कल को बाद में परेशान किया तो।”

    रेहान ने एक साथ बड़ा सा मैसेज टाइप करके भेजा था। रणविजय ने घूर कर अपने फ़ोन को देखा और बंद करके वापस रख दिया।


    रेहान जो अपना फ़ोन हाथ में लिए बैठा था और रणविजय के मैसेज का वेट कर रहा था, जब उसने उसे ऑफ़लाइन होते देखा तो उसका मुँह बन गया। और उसने तुरंत रणविजय को फ़ोन घुमा दिया।

    रणविजय ने चिढ़कर अपने फ़ोन की तरफ़ देखा। वह जानता था किसका फ़ोन होगा। उसने एक बार पूरी रिंग होने के बाद भी कॉल नहीं उठाया। रेहान ने मुँह बनाकर खुद से कहा,
    “यह दुष्ट आदमी जानबूझकर मेरा फ़ोन इग्नोर कर रहा है।”

    उसने फिर से कॉल किया तो इस बार रणविजय ने चिढ़ते हुए कॉल पिक करते हुए कहा,
    “तुझे कोई काम नहीं है क्या? कंपनी नहीं जाना क्या? क्यों मेरे पीछे पड़ा है? खुद भी चैन से रह और मुझे भी रहने दे। जब देखो तब तुम्हें कुछ ना कुछ चाहिए ही होता है। शांति से रह नहीं सकते हो।” रणविजय ने उसे डाँट दिया।


    लेकिन रणविजय के इतना कुछ सुनाने के बाद भी रेहान के कान में जूँ तक नहीं रेंगी। उसने मुँह बनाकर कहा,
    “तुमने जानबूझकर मेरा कॉल इग्नोर किया ना? मैं तुम्हें कॉल कर रहा हूँ, मैसेज कर रहा हूँ। तुमसे जवाब देना नहीं हो रहा। मैं सच बता रहा हूँ, वहाँ आकर पीटूँगा मैं तुम्हें।”

    हालाँकि रेहान ने कहा तो था, लेकिन रणविजय के सामने जाकर वह ढंग से बात भी कर ले वही काफ़ी होता था।

    वह लोग अभी बातें कर रहे थे, तभी ग्रुप में अर्थ का मैसेज पॉप अप हुआ।
    “तू सुबह-सुबह शुरू हो गया रेहान। आदमी को साँस तो लेने दिया कर।”

    नीचे अभिजीत ने मैसेज किया था,
    “यह अपनी आदतें कभी नहीं छोड़ने वाला।”

    रेहान का मुँह बन चुका था वह सारे मैसेज देखकर। वह चारों ही अलग-अलग पर्सनालिटी के इंसान थे। रणविजय बेहद शांत और गंभीर रहने वाला था और रेहान उसके बिल्कुल उलट। वह ना तो कभी शांत रह सकता था और ना ही कभी सीरियस हो सकता था। वह हर बात को मस्ती-मजाक में लेकर उसे हल्का कर देता था।

    वहीं अर्थ, अर्थ जितना शांत था उतना ही इमोशनल भी। अपने इमोशंस को काफ़ी अच्छे से शो कर पाता था वह। लेकिन रणविजय के मामले में ऐसा था ही नहीं। अपने इमोशंस को खुद में कैद रखना उसकी आदत थी। और अभिजीत, वह बेहद ही शांत स्वभाव का इंसान तो था ही, लेकिन रेहान और अर्थ की तरह उसमें भी एक सबसे बड़ी क्वालिटी थी। वह मुश्किल से मुश्किल सिचुएशन में भी सोच-समझकर सही फ़ैसला कर लेता था। और इसीलिए रणविजय कोई भी फ़ैसला करने से पहले एक बार अभिजीत से डिस्कस ज़रूर करता था क्योंकि उसे पता था कि अभिजीत हर तरफ़ से बातों को सोचता था।


    रेहान अभी कॉल पर था। उसने रणविजय की बातों को इग्नोर करते हुए कहा,
    “मैंने तुमसे कुछ पूछा था। जवाब दोगे?”

    रणविजय ने चिढ़कर कहा,
    “मुझे कोई जवाब नहीं देना। फ़ोन रखो। मुझे और भी काम है।”

    यह कहते हुए वह कॉल कट करने को हुआ कि रेहान बोला,
    “अगर तुमने फ़ोन पर जवाब नहीं दिया तो मैं ऑफ़िस आ जाऊँगा। फिर मत कहना मैं तुम्हारे काम के टाइम में दखल दे दिया।”

    रणविजय ने उसकी बात को इग्नोर किया और कॉल कट कर दिया। रेहान घूर कर अपने फ़ोन को देखने लगा और फिर उसने फ़ोन को बेड पर पटकते हुए कहा,
    “यह जालिम इंसान कभी नहीं सुधर सकता। इसके अंदर कोई फ़ीलिंग ही नहीं है। दुष्ट कहीं का।”


    इधर श्रीजा कॉलेज पहुँची और आते ही उसकी एक लड़के से टक्कर हो गई। और लड़का भी कोई ऐसा-वैसा नहीं, कॉलेज का जाना-माना गुंडा बलवीर, जिसे सब वीर कहकर बुलाते थे।

    श्रीजा ने उसे घूरते हुए कहा,
    “तुम देखकर नहीं चल सकते क्या? तुम्हारी आँखें हैं या बटन?” बलवीर ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा और फिर उसे देखते हुए एक गंदी सी स्माइल पास करके बोला,
    “मेरी तो बटन है। तुम्हारे पास तो आँखें हैं। तुम देखकर चल लेती।”

    श्रीजा ने उसे घूरकर देखा। वह जानती थी इस आदमी के मुँह लगने का कोई फ़ायदा नहीं होने वाला।

    उसने उसे इग्नोर करते हुए साइड से जाने की कोशिश की, लेकिन बलवीर ने अपनी एक बाँह उसके सामने करते हुए उसे रोक लिया। श्रीजा ने उसे घूरकर देखा और बोली,
    “मुझसे पंगा लेने की कोशिश मत करो। मुँह की खाओगे।”

    बलवीर ने उसे देखते हुए कहा,
    “तुम खिलाओ तो मैं तुम्हारे हाथ से ज़हर खा लूँ। मार तो छोटी चीज़ है।”

    श्रीजा को उसकी ऐसी चीज़ी लाइन सुनकर गुस्सा आ रहा था। उसने उसे देखते हुए कहा,
    “कैसे वाहियात इंसान हो यार तुम! तुम्हें तो फ़्लर्ट करना भी नहीं आता।”

    यह कहते हुए श्रीजा ने मुँह बिचकाया और उसका हाथ हटाकर वहाँ से चलती बनी। बलवीर की भौंहें जुड़ गईं और उसे श्रीजा पर गुस्सा आने लगा था। जब भी उसकी और श्रीजा की टक्कर होती थी, श्रीजा कुछ ना कुछ ऐसा बोल जाती थी जो बलवीर के कलेजे को छलनी कर देता था।


    खैर, जैसे-तैसे पूरा कॉलेज का दिन काटने के बाद श्रीजा थोड़ी देर आरिका के पास रुकी और फिर जल्दी से घर आ गई। उसे आखिर अपनी दादी के साथ मिलकर अपने पापा की शादी का प्लान एग्ज़ीक्यूट करना था। अब भले ही उसके पापा उन्हें डाँटे या कुछ भी कहें, उन्हें तो अपने मन की ही करनी थी।

    वह जल्दी से घर पहुँची, लेकिन सामने का नज़ारा देखकर हैरान रह गई। उसके पापा वही हॉल में मौजूद थे और उनके साथ एक लड़का भी बैठा था। श्रीजा ने आज से पहले उसे तो कभी नहीं देखा था। वह उस लड़के को गौर से देखने लगी।


    गेहुँआ रंग, हाइट भी लगभग 6 फ़ीट रही होगी। भूरी आँखें, सेट बाल। उसने व्हाइट शर्ट और ब्लैक पैंट पहन रखी थी। उसके फ़ीचर्स काफ़ी शार्प थे। चेहरे पर हल्की दाढ़ी-मूँछ और वह बेहद ही हैंडसम था। श्रीजा तो एक पल को उसे देखते रह गई। उसने मन ही मन खुद से ही कहा,
    “इतना हैंडसम आदमी कौन है? मेरे पापा के बाद मुझे कोई इतना हैंडसम पहली बार लगा है।”

    वह अभी सोच रही थी कि तभी उस लड़के की आवाज़ उसके कानों में पड़ी जो रणविजय से कुछ कह रहा था।
    “सीनियर, कम से कम अब तो अपनी छत्रछाया में ले लो। अब तो आपके कहे अकॉर्डिंग मैं सब कुछ कर लिया।”

    रणविजय उसकी बात सुनकर हल्के से हँसा और बोला,
    “यह कॉलेज वाली आदत तुम्हारी गई नहीं, है ना?”

    वह लड़का मुस्कुराकर बोला,
    “आप मुझसे डबल सीनियर थे इसलिए तो आपको सीनियर बुलाता था। और फिर पूरे कॉलेज में आप ही एक ऐसे इंसान थे जिससे मैं पहले ही दिन इम्प्रेस हो गया था।”

    रणविजय उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया। तभी श्रीजा ने चहकते हुए कहा,
    “पापा, मैं आ गई।”

    रणविजय के साथ-साथ उस लड़के की नज़र भी वहाँ पर चली गई।


    श्रीजा जल्दी से जाकर रणविजय के पास बैठी और उससे लिपटकर बोली,
    “आपको पता है हमारे कॉलेज में फ़ंक्शन है।”

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा,
    “कैसा फ़ंक्शन?”

    “एन्युअल पार्टी है पापा। फिर एग्ज़ाम स्टार्ट हो जाएँगे।” उसने बताया।

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा,
    “और यह रात को है, है ना?”

    श्रीजा ने जल्दी से हाँ में गर्दन हिला दी। रणविजय ने गहरी साँस भरकर कहा,
    “ठीक है, चले जाना। लेकिन गार्ड्स तुम्हारे साथ जाएँगे।”

    उसकी बात सुनते ही श्रीजा का मुँह बन गया और वह बोली,
    “ऐसे नहीं होता है पापा! मैं पार्टी में जा रही हूँ। आप वहाँ भी मेरे साथ गार्ड भेजोगे? बिल्कुल नहीं! मैं उनको नहीं लेकर जाऊँगी। और अगर आपने भेजा तो मैं उन्हें भगा दूँगी। सब लोग मुझे घूर-घूरकर देखेंगे। फिर कॉलेज में तो इतने सारे लोग होते हैं तो मैं इधर-उधर हो जाती हूँ उन गार्ड से, लेकिन पार्टी में…”

    रणविजय उसे घूरने लगा। श्रीजा ने मुँह बना लिया।
    “मैं बिल्कुल नहीं लेकर जाऊँगी। आप चाहे मुझे घूरो, मारो, कुछ भी करो।” यह कहकर वह मुँह फुलाकर कमरे में चली गई।

    रणविजय उसे देखता ही रह गया। उसकी बेटी सच में जिद्दी होती जा रही थी और यह उसके लाड़-प्यार का ही नतीजा था।


    उस लड़के ने रणविजय को देखते हुए कहा,
    “यह श्रीजा थी, राइट?” रणविजय ने उसकी तरफ़ देखा और बोला,
    “हाँ।”

    “जब मैं इसे मिला था तब तो बहुत छोटी थी ये।” उस लड़के ने मुस्कुराकर कहा।

    रणविजय मुस्कुराकर बोला,
    “अब तो यह भी कॉलेज में है।” वह लड़का उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया। तभी रणविजय के दिमाग में कुछ आया और उसने उसे देखते हुए कहा,
    “अंगद, एक काम करोगे।”

    अंगद—हाँ, उसका नाम अंगद था, अंगद मेवात।

    अंगद ने उसे देखते हुए कहा,
    “आप हुक्म कीजिए सीनियर। पूछ क्यों रहे हैं? मैं तो आया ही इसलिए हूँ कि आपके साथ रहकर काम और बिज़नेस सीख सकूँ। पापा बहुत बोरिंग हैं। मुझसे नहीं होगा उनके साथ रहकर बिज़नेस सीखना।”

    रणविजय उसकी बात सुनकर हल्के से हँस दिया, फिर बोला,
    “श्रीजा के साथ पार्टी में चले जाओगे। वह बहुत जिद्दी है। बिल्कुल नहीं मानेगी गार्ड्स के लिए। लेकिन मैं नहीं चाहता कोई गड़बड़ हो। वैसे भी रात की पार्टी है तो उसे अकेले भेजना ठीक नहीं। वह शरारती बहुत है। बिना शैतानी किए रहती नहीं। पता चला खुद को ही किसी मुसीबत में डाल दिया।”

    अंगद ने उसे देखा फिर बोला,
    “आप मुझ पर ट्रस्ट कर रहे हैं तो मैं आपका ट्रस्ट नहीं तोडूँगा। आप टेंशन मत लीजिए। मैं चला जाऊँगा।”

    उसकी हाँ सुनते ही रणविजय खुश हो गया क्योंकि उसे पता था उसकी बेटी गार्ड्स के लिए नहीं मानेगी। इसलिए उसे यही ऑप्शन सबसे बेस्ट लगा। अब अंगद के लिए तो वह उसे मना ही सकता था।


    क्या होगा आगे? क्या रणविजय श्रीजा को मना पाएगा? क्या दादी रणविजय की शादी करने के प्लान में सक्सेस हो पाएँगी? और कैसी रहेगी यह पार्टी? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।

    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 10. Dad ki dulhan - Chapter 10

    Words: 2067

    Estimated Reading Time: 13 min

    उस लड़के ने रणविजय को देखते हुए कहा, “यह श्रीजा थी, राइट।” रणविजय ने उसकी तरफ देखा और बोला, “हाँ।”

    “जब मैं इसे मिला था, तब तो बहुत छोटी थी यह।” उस लड़के ने मुस्कुरा कर कहा।

    रणविजय मुस्कुरा कर बोला, “अब तो यह भी कॉलेज में है।” वह लड़का उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया। तभी रणविजय के दिमाग में कुछ आया और उसने उसे देखते हुए कहा, “अंगद, एक काम करोगे।”

    अंगद—हाँ, उसका नाम अंगद था, अंगद मेवात।

    अंगद ने उसे देखते हुए कहा, “आप हुकुम कीजिए सीनियर। पूछ क्यों रहे हैं? मैं तो आया ही इसलिए हूँ कि आपके साथ रहकर काम और बिजनेस सीख सकूँ। पापा बहुत बोरिंग हैं। मुझसे नहीं होगा उनके साथ रहकर बिजनेस सीखना।”

    रणविजय उसकी बात सुनकर हल्के से हँस दिया, फिर बोला, “श्रीजा के साथ पार्टी में चले जाओगे। वह बहुत जिद्दी है। बिल्कुल नहीं मानेगी गार्ड्स के लिए। लेकिन मैं नहीं चाहता कोई गड़बड़ हो। वैसे भी रात की पार्टी है, तो उसे अकेले भेजना ठीक नहीं। वह शरारती बहुत है। बिना शैतानी किए रहती नहीं। पता चला खुद को ही किसी मुसीबत में डाल दिया।”

    अंगद ने उसे देखा, फिर बोला, “आप मुझ पर ट्रस्ट कर रहे हैं, तो मैं आपका ट्रस्ट नहीं तोड़ूँगा। आप टेंशन मत लीजिए। मैं चला जाऊँगा।”

    उसकी हाँ सुनते ही रणविजय खुश हो गया। क्योंकि उसे पता था उसकी बेटी गार्ड्स के लिए नहीं मानेगी। इसलिए उसे यही ऑप्शन सबसे बेस्ट लगा। अब अंगद के लिए तो वह उसे मना ही सकता था।


    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा, “तुम थोड़ा आराम करो अब। मैं जरा श्रीजा को देखकर आता हूँ।”

    यह कहते हुए उसने रोमी को अंगद को उसका रूम दिखाने का कह दिया।

    रणविजय जब श्रीजा के कमरे में आया, तो वह मुँह फुलाए बेड पर बैठी चिप्स खा रही थी। उसे देख रणविजय मुस्कुरा दिया। वह अंदर आते हुए बोला, “बेटू, नाराज हो क्या?”

    श्रीजा ने दूसरी तरफ मुँह करके बैठते हुए कहा, “आप कुछ भी कहो, पर मैं आपकी यह बात नहीं मानूँगी।”

    रणविजय ने प्यार से कहा, “ऐसे जिद नहीं करते ना बच्चे? मैं तुम्हारे भले के लिए बोल रहा हूँ ना।”

    श्रीजा ने मुँह बिचकाया, पर कुछ बोली नहीं। रणविजय ने उसके पास आकर बैठते हुए कहा, “अच्छा, ठीक है। गार्ड्स नहीं ले जाने, तो कोई बात नहीं। मत ले जाओ।”

    श्रीजा ने जैसे ही सुना, खुश होकर बोली, “सच्ची पापा!”

    रणविजय ने उसे देखकर हाँ में गर्दन हिलाई, फिर बोला, “लेकिन फिर अंगद को साथ ले जाओ।”

    श्रीजा ने उसे आँखें छोटी-छोटी करके घूरा। जैसे कहना चाहती हो, “सीरियसली पापा, आपने यह तरीका निकाला है अब।”

    रणविजय ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, “बच्चा, रात का वक्त होगा। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें अकेले रात में कोई परेशानी हो। अब तुम गार्ड्स नहीं ले जाना चाहती, तो अंगद को साथ ले जाओ। वह तुम्हें बिल्कुल परेशान नहीं करेगा। अब इतनी बात तो तुम मेरी मान ही सकती हो। प्लीज़, अब इसके लिए मना मत करना।”

    श्रीजा ने उसे देखते हुए कहा, “आप मुझे इमोशनल ब्लैकमेल नहीं कर सकते हो पापा।”

    “पर मैं कर रहा हूँ ना बेटा। इतनी सी बात तो मान ही सकती हो मेरी।” रणविजय ने उसे मस्का लगाते हुए कहा। वह जानता था वह ज्यादा देर उसकी बात को नहीं टाल पाएगी। अगर श्रीजा जिद्दी थी और उसकी बातों पर जिद करती थी और रणविजय उसे पूरी करता था, तो रणविजय की बातों को टालना श्रीजा के लिए काफी मुश्किल होता था। उसने मुँह बनाया और बोली, “अच्छा, ठीक है। लेकिन अपने उस अंगद को कहना मेरे काम में टांग ना अड़ाए। मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा यह।”

    रणविजय ने मुस्कुरा कर कहा, “वह तुम्हें बिल्कुल भी डिस्टर्ब नहीं करेगा। बस तुम मुझे यह बताओ कि पार्टी कब है।”

    “पार्टी, वह तो परसों है। बस एक कल का दिन ही है।” उसने रणविजय को बताया। रणविजय ने मुस्कुरा कर उसे देखा और बोला, “अच्छा, ठीक है। तुम आराम से अपनी पार्टी एन्जॉय करना। कोई तुम्हें परेशान नहीं करेगा।”

    श्रीजा खुशी से उससे लिपट गई और फिर बोली, “कल मैं शॉपिंग पर जाऊँगी।” रणविजय ने उसकी बात पर तुरंत हामी भर दी। थोड़ी देर बाद रणविजय वापस ऑफिस जा चुका था और अंगद को भी वह अपने साथ ही ले गया था। अब रात तक ही वह दोनों लौटने वाले थे। घर पर दादी और पोती अकेली थीं और खुराफात लगा रही थीं कि रणविजय की शादी कैसे कराई जाए। दादी ने रणविजय के तीन बंदर, यानी कि उसके तीनों दोस्तों को बुला लिया था और वह तीनों भी दादी की बात कैसे ही टालते। इसलिए जल्दी ही घर आ चुके थे।

    इस वक्त वह सब लोग हॉल में बैठे थे। अभिजीत ने दादी को देखते हुए कहा, “क्या बात है दादी? आपने अचानक से हमें बुलाया। और रणविजय कहाँ है? वह ठीक तो है ना?”

    दादी ने मुँह बनाकर कहा, “वह बिल्कुल ठीक नहीं है। पागल हो गया तुम्हारा दोस्त। शादी नहीं करना चाहता है। 33 का हो गया है। उसे शादी नहीं करनी है। और उसे क्या, मैं तो तुम तीनों को भी देख रही हूँ। तुम भी लगभग उसी की उम्र के हो ना। तुम लोगों को शादी नहीं करनी।”

    दादी की बातें सुनकर वह तीनों ही हड़बड़ा गए। रेहान ने तुरंत कहा, “मैं तो आज कर लूँ शादी दादी। लेकिन कोई सुंदर-सुशील लड़की तो मिले।”

    दादी ने उसे घूरते हुए देखा। मानो कहना चाह रही हो, “बताऊँ तुम्हें अभी। मुझे क्या बेवकूफ समझ रखा है।”

    श्रीजा ने उन दोनों को देखते हुए कहा, “अंकल, आप अपनी छोड़िए और सीधी सी बात पर फ़ोकस कीजिए। मुझे मेरे पापा के लिए एक परफेक्ट लाइफ पार्टनर ढूंढनी है।”

    वह तीनों उसे देखने लगे। कहाँ रणविजय श्रीजा के लिए शादी नहीं करना चाहता था और कहाँ श्रीजा उसके लिए लड़की ढूंढ रही थी।

    रेहान ने उसे देखते हुए कहा, “एक बात बताओ बेबी, तुम्हारा बाप शादी नहीं करना चाहता और तुम हो कि उसके लिए लड़की ढूंढ रही हो। यह क्या गोलमाल है?”

    दादी ने उसे घूरते हुए कहा, “यह गोलमाल नहीं है। यह ज़िन्दगी का गणित है। कल को श्रीजा का ब्याह हो गया, तो रणविजय तो अकेला रह जाएगा ना। मैं कितने दिनों की हूँ, कौन कह सकता है? कब मौत आ जाए। श्रीजा कितने दिन उसके पास रहेगी? शादी करके वह भी तो अपने घर चली जाएगी। फिर रणविजय का क्या? पूरी ज़िन्दगी अकेले थोड़ी काटेगा? तुम तीनों उसके दोस्त हो। मुझे तुम तीनों से ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। वह तो है ही बेवकूफ़, जो एक जिद पकड़कर बैठा है। लेकिन तुम लोग तो उसे समझा सकते थे ना।”

    दादी ने उन तीनों को डाँट दिया। अर्थ ने दादी को देखते हुए कहा, “दादी, हमने कोशिश कर ली। और एक बार नहीं, बार-बार कर ली। पर वह सुनने तक को तैयार नहीं है।”

    श्रीजा ने उन तीनों को देखते हुए कहा, “मुझे अपने लिए माँ ढूंढनी है। मुझे कोई रास्ता बताओ। मैं चाहती हूँ कि पापा के अंदर का डर निकल जाए। मैं अगर अपने लिए अच्छी माँ ढूंढ लूँगी, तो वह अपने आप पापा के लिए बेस्ट पत्नी बन जाएगी। अब आप लोग मुझे कोई आईडिया दोगे।”

    वह तीनों एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। उन्हें समझ नहीं आया कि वह उसे क्या जवाब दें। और वैसे देखा जाए, तो कौन लड़की होगी जो 22 साल की लड़की की माँ बनना चाहेगी?

    इसके आसार तो काफी कम थे। लेकिन फिर भी उन तीनों ने कुछ सोचकर बताने का डिसाइड कर लिया।

    इधर रणविजय ऑफिस में था। तभी गौरव उसके पास आते हुए बोला, “सर, आपके लिए इनविटेशन है।”

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा, “किस चीज़ का इनविटेशन है?”

    गौरव ने वह इनविटेशन खोलते हुए कहा, “यह तो श्रीजा के कॉलेज से आया है। एनुअल फ़ंक्शन है। आप चीफ़ गेस्ट हो।”

    अचानक ही रणविजय ने जैसे ही यह सुना, उसके दिमाग में सबसे पहले आरिका का चेहरा आया। उसने कुछ सोचते हुए कहा, “ठीक है, हम चलेंगे।”

    गौरव हैरान था। वह जानता था रणविजय आमतौर पर फ़ंक्शंस और पार्टी अवॉइड करता था। आज उसने इतनी आसानी से इनविटेशन एक्सेप्ट कर लिया था और यह हैरानगी भरी बात थी।

    खैर, दिन बीत गया। अगला दिन श्रीजा ने पूरा शॉपिंग करने के लिए बिता दिया। उसे पता था आरिका अपने लिए फिर से कोई साड़ी उठा लेगी। उसने आरिका के लिए एक सुंदर सी फ़िश कट गाउन सिलेक्ट की, जो पेस्टल ब्लू कलर की थी और बेहद खूबसूरत थी। उसने खुद से ही कहा, “यह मिस आरिका पर बहुत अच्छे लगेगी।”

    उसके साथ ही उसने उस गाउन के साथ मैचिंग की कुछ ज्वेलरी भी ले ली और वह सारा सामान उसने संभालकर रख लिया। वह जानती थी आरिका के घर वह यह सब नहीं भेज पाएगी और अगर भिजवा भी देती है, तो उसके घर पर जो उसकी सौतेली माँ और बहन थीं, उसके बारे में तो उसे पता ही था। इसलिए उसने यह रिस्क लिया ही नहीं।

    अगले दिन शाम को सब लोग कॉलेज में ही मिलने वाले थे। आरिका तो वैसे भी जल्दी आने वाली थी। आखिर वह स्टाफ़ मेंबर तो थी।

    शाम को पार्टी के वक्त से दो घंटे पहले आरिका कॉलेज पहुँच चुकी थी। उसके कोलीग्स भी आ चुके थे और जो कुछ बचा हुआ थोड़ा-बहुत काम था, वह संभाल रहे थे। तभी आरिका के फ़ोन पर एक मैसेज आया। उसने मैसेज देखा। वह श्रीजा का था। श्रीजा ने उस मैसेज में लिखा था, “एक बार आप क्लासरूम में आएंगी। मुझे काम है।”

    आरिका हैरान थी कि अचानक से श्रीजा उसे क्यों बुला रही थी। लेकिन फिर उसने कुछ सोचा और ओके का रिप्लाई करके क्लासरूम की तरफ़ बढ़ गई।

    वह क्लासरूम में आई, तो उसे श्रीजा वहीं मिली। उसने श्रीजा को देखते हुए कहा, “क्या हुआ श्री? तुमने बुलाया? इम्पॉर्टेन्ट काम था क्या?”

    “इम्पॉर्टेन्ट नहीं, बहुत इम्पॉर्टेन्ट।” श्रीजा ने चहकते हुए कहा और एक बड़ा सा शॉपर उसके हाथ में थमा दिया।

    आरिका उसे कन्फ़्यूज़न में देखने लगी, तो श्रीजा बोली, “यह आपके लिए। आज की पार्टी के लिए। मुझे पता था आप हमेशा की तरह साड़ी लपेटकर आ जाएँगी और देखिए, मैं बिल्कुल भी गलत नहीं थी। आप साड़ी में अच्छे लगते हो, लेकिन आप इसमें और ज़्यादा अच्छे लगोगे।”

    आरिका ने उस शॉपर को खोलकर देखा और उसने झट से वह शॉपर वापस उसे देते हुए कहा, “नहीं-नहीं, मैं यह नहीं ले सकती श्रीजा।”

    श्रीजा उसे हैरानी से देखने लगी, फिर बोली, “यह आपको लेना ही होगा। आपको मेरी कसम। और आपको आज यही पहनना है।”

    आरिका सच में परेशान थी और उसे देख रही थी। वह बार-बार उसे मना करके थक चुकी थी, लेकिन श्रीजा मानने को तैयार नहीं थी।


    क्या होगा आगे? क्या श्रीजा आरिका की बात मानेगी या फिर आरिका को श्रीजा की बात माननी होगी? क्या रणविजय सच में चीफ़ गेस्ट के तौर पर श्रीजा के कॉलेज आने वाला था? अगर हाँ, तो दोनों की मुलाक़ात फिर से कैसी होने वाली थी? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।

    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 11. Dad ki dulhan - Chapter 11

    Words: 2399

    Estimated Reading Time: 15 min

    आरिका हैरान थी। कि अचानक से श्रीजा उसे क्यों बुला रही थी। लेकिन फिर उसने कुछ सोचा और ओके का रिप्लाई करके क्लासरूम की तरफ बढ़ गई।

    वह क्लासरूम में आई तो उसे श्रीजा वहीं मिली। उसने श्रीजा को देखते हुए कहा, “क्या हुआ श्री? तुमने बुलाया? इम्पॉर्टेंट काम था क्या?”

    “इम्पॉर्टेंट नहीं, बहुत इम्पॉर्टेंट।” श्रीजा ने चहकते हुए कहा और एक बड़ा सा शॉपर उसके हाथ में थमा दिया।

    आरिका उसे कंफ्यूजन में देखने लगी। तो श्रीजा बोली, “यह आपके लिए। आज की पार्टी के लिए। मुझे पता था आप हमेशा की तरह साड़ी लपेट कर आ जाएंगी। और देखिए मैं बिल्कुल भी गलत नहीं थी। आप साड़ी में अच्छे लगते हो। लेकिन आप इसमें और ज्यादा अच्छे लगोगे।”

    आरिका ने उस शॉपर को खोल कर देखा और उसने झट से वह शॉपर वापस उसे देते हुए कहा, “नहीं नहीं, मैं यह नहीं ले सकती श्रीजा।”

    श्रीजा उसे हैरानी से देखने लगी। फिर बोली, “यह आपको लेना ही होगा। आपको मेरी कसम। और आपको आज यही पहनना है।”

    आरिका सच में परेशान थी और उसे देख रही थी। वह बार-बार उसे मना करके थक चुकी थी। लेकिन श्रीजा मानने को तैयार नहीं थी।


    श्रीजा ने जैसे-तैसे आरिका को उस गाउन को पहनने के लिए रेडी कर ही लिया और वह बेहद खुश थी कि आरिका वह गाउन पहनने वाली है। उसने वह स्पेशली उसके लिए ही खरीदा था। कहने को उन दोनों के रिश्ते का कोई ऐसा खास नाम नहीं था। आरिका उसकी प्रोफेसर थी। लेकिन फिर भी उन दोनों के बीच एक अनकहा सा रिश्ता था। या तो वह रिश्ता दर्द का था या फिर प्यार का। दर्द यह कि दोनों ही अनाथ थीं और प्यार जो वह एक-दूसरे से करती थीं, बिना किसी स्वार्थ के।

    श्रीजा ने आरिका को देखा और बोली, “तो चलो अब। जल्दी-जल्दी से आप तैयार हो जाओ। जल्दी से गाउन पहनो। फिर मैं आपको तैयार कर देती हूँ।”

    आरिका ने उसे देखते हुए कहा, “पर बेटा यह पार्टी तुम लोगों के लिए रखी गई है, मेरे लिए नहीं।”

    श्रीजा ने छोटा सा मुँह बनाकर कहा, “पर मैं कह रही हूँ ना, आप मेरी इतनी सी बात नहीं मान सकती।”

    वह अब इमोशनल ब्लैकमेलिंग पर उतर आई थी। वह जानती थी अब वह पीछे नहीं हट सकती। उसने हार मानते हुए कहा, “अच्छा ठीक है।” श्रीजा जल्दी से खुश हो गई।

    आरिका ने जल्दी से जाकर वह गाउन पहना और श्रीजा ने उसे पकड़कर वहाँ पड़ी एक चेयर पर बिठा दिया और फिर उसका मेकअप करने लगी। आरिका को काफी अजीब लग रहा था। लेकिन श्रीजा मानने को और सुनने को तैयार ही नहीं थी।

    आरिका बेहद खूबसूरत थी। उसे यूँ तो ज्यादा मेकअप की जरूरत ही नहीं थी। लेकिन फिर भी श्रीजा ने काफी लाइट मेकअप किया था उसका और उस पेस्टल ब्लू कलर के गाउन के साथ उसने व्हाइट कलर की बीड्स वाली ज्वेलरी उसे पहना दी थी। सच में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। श्रीजा ने उसे देखते हुए कहा, “आप सच में किसी जलपरी से कम नहीं लग रही हैं।”

    आरिका उसे देख हल्के से मुस्कुरा दी। श्रीजा ने उसके बालों को देखा। उसने अपने बालों को हमेशा की तरह गूँथकर चोटी बना रखी थी। उसके बाल बहुत लंबे थे।

    श्रीजा ने आरिका को देखा और बोली, “आपके बालों का क्या किया जाए? ये कितने लंबे हैं।”

    आरिका ने जल्दी से कहा, “इसलिए तो चोटी में बाँधकर रखती हूँ। मुझसे संभलते नहीं खुले बाल। तो प्लीज खुले बाल मत करना।”

    श्रीजा ने कुछ सोचा और बोली, “आप बस शांति से बैठे रहिए।” यह कहते हुए उसने उसके सारे बालों को खोल दिया और अच्छे से कर्ल कर लिया। कर्ल करने के बाद जो बाल उसके हिप से भी नीचे तक थे, वह सिमटकर उसकी कमर के कुछ ऊपर तक आ चुके थे।

    आरिका ने उसके कर्ल किए हुए बालों को एक स्टाइलिश ब्रेड में कन्वर्ट कर दिया और उसके बालों में इधर-उधर व्हाइट बीड की हेयर एक्सेसरीज लगा दी। अब उसका कंप्लीट लुक बेहद ही खूबसूरत आ रहा था।

    श्रीजा ने अपने दोनों हाथों की अंगुलियाँ आपस में उलझाईं और अपने गाल के नीचे लगाते हुए प्यार से बोली, “सच में आज तो देखने वाला आपको देखता ही रह जाएगा। क्या पता इस पार्टी में आपको कोई हैंडसम हंक मिल जाए जिसके साथ आपकी ज़िंदगी सेट हो जाए।”

    आरिका ने उसे डाँटते हुए कहा, “ऐ गंदी लड़की, तुम बच्ची हो, बच्चों की तरह बिहेव करो।”

    श्रीजा ने मुँह बनाकर कहा, “कौन बच्ची, किसकी बच्ची? मैं पूरे 22 साल की हूँ। आप मुझे ऐसे नहीं बोल सकती।”

    आरिका ने अपना माथा पीट लिया। श्रीजा ने जल्दी से काजल लिया और उसके कान के पीछे लगाते हुए बोली, “आपको किसी की नज़र न लगे। आप सच में बहुत प्यारी लग रही हैं।”

    आरिका मुस्कुरा दी। उसने श्रीजा को देखकर प्यार से कहा, “थैंक यू, पता नहीं क्यों तुम मेरे बारे में इतना कैसे सोच लेती हो।”

    “दिमाग से मिस, दिमाग से। मेरे पास बहुत दिमाग है।” श्रीजा ने अपने दिमाग पर उंगली टैप करते हुए कहा।

    उसकी हरकत पर आरिका को हँसी आ गई। उसने प्यार से उसके चेहरे को सहलाकर कहा, “अच्छा ठीक है। अब तुम भी तैयार हो जाओ। मैं बाहर हूँ। मुझे कुछ काम देखने हैं।”

    श्रीजा ने जल्दी से हाँ में गर्दन हिला दी। आरिका तुरंत वहाँ से निकल गई। लेकिन श्रीजा उसे जाते देखती रही। उसने अपने गाल पर हाथ रखा। पता नहीं क्यों आरिका का टच उसे इतना प्यारा लगा। ऐसा टच जो उसे अंदर तक महसूस हुआ। इतना प्यार सिर्फ़ एक टच में। न चाहते हुए भी श्रीजा की आँखों में अपने आप नमी उतर आई।

    तभी उस रूम का दरवाज़ा खुला। सामने अंगद था जो श्रीजा को घूर रहा था। लेकिन श्रीजा की आँखों में नमी देखते ही वह घबरा गया। वह जल्दी से उसके पास आया और उसका चेहरा पकड़कर बोला, “हे, तुम रो रही हो? क्या हुआ? किसी ने कुछ कहा क्या? किसी ने परेशान किया क्या? मुझे बताओ, क्या हुआ?”

    श्रीजा का ध्यान जो अब तक आरिका के टच पर था, अब अंगद के टच पर चला गया था। वह उसके चेहरे को थामकर खड़ा था। श्रीजा हैरान थी। लेकिन अंगद के चेहरे पर कुछ परेशानी भरे भाव थे।

    श्रीजा ने जल्दी से कहा, “अरे मैं रो नहीं रही थी। वह तो बस… अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ? छोड़ो, तुम नहीं समझ सकते।” यह कहते हुए उसने उसके हाथों को अपने चेहरे पर से हटाया।

    लेकिन वही जान सकती थी कि उसने अपनी धड़कनें कैसे काबू में की थीं जो अंगद के उस टच से इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थीं।

    श्रीजा ने अंगद को देखा और बोली, “मैं यहाँ पर तैयार होने आई थी। तुम मेरे पीछे-पीछे यहाँ भी चले आए। देखो पापा ने न सिर्फ़ तुम्हें मेरे साथ एक गार्ड की तरह भेजा है। मुझे परेशान मत करो। मैं एन्जॉय करना चाहती हूँ।”

    उसने एक साँस में अपनी बात कह दी। अंगद ने उसे देखते हुए कहा, “मुझे पता है तुम्हारे पापा ने मुझे यहाँ पर क्यों भेजा है। लेकिन मेरी बात ध्यान से सुनो। इधर-उधर होने की कोशिश मत करो श्री। कॉलेज की पार्टी क्या से क्या हो जाती हैं, तुम्हें इसका अंदाज़ा नहीं है। मैं इस फ़ेज़ से निकल चुका हूँ। इसीलिए तुम्हारी फ़िक्र हो रही है और इसीलिए मैं यहाँ पर हूँ। तो इधर-उधर होने से पहले कम से कम मुझे बता तो दो। आई स्वियर मैं तुम्हें बिल्कुल भी मस्ती करने से नहीं रोकूँगा। तुम जो चाहे वह करो। लेकिन प्लीज़ एट लीस्ट इधर-उधर होने से पहले मुझे बता दो ताकि मैं तुम्हें पागलों की तरह ढूँढता न फिरूँ।”

    अंगद ने जितने प्यार से उसे समझाया था, श्रीजा उसकी बात सुनकर शांत पड़ गई। वरना अपने पापा के अलावा वह किसी की बात मान ले, यह तो आठवाँ अजूबा था। उसने बस हाँ में गर्दन हिला दी।

    अंगद ने प्यार से उसके सिर पर टैप किया और बोला, “अब तैयार हो जाओ। मैं बाहर हूँ। कुछ चाहिए हो तो कॉल करना।”

    यह कहकर वह जाने को हुआ कि तभी श्रीजा अचानक से बोली, “पर मेरे पास तो नंबर ही नहीं है तुम्हारा।”

    अंगद के कदम रुक गए। उसने पलटकर उस लड़की को देखा। श्रीजा ने जल्दी से इधर-उधर देखते हुए अपना सर खुजाकर कहा, “सच में। मेरे फ़ोन में तुम्हारा नंबर ही नहीं है। ज़रूरत लगी तो फ़ोन कैसे करूँगी?”

    अंगद ने आकर उसके हाथ से उसका फ़ोन लिया। उसने जैसे ही फ़ोन ऑन किया, उसके वॉलपेपर पर रणविजय की और उसकी एक प्यारी सी फ़ोटो लगी हुई थी। अंगद हल्के से मुस्कुरा दिया। उसने श्रीजा को देखते हुए कहा, “पासवर्ड बोलो इसका।”

    श्रीजा ने उसे देखा और बोली, “1103”

    अंगद उसे देखने लगा और बोला, “कोई स्पेशल डेट।” श्रीजा ने जल्दी से हाँ में गर्दन हिलाते हुए कहा, “इसी दिन तो मैं पापा को मिली थी।”

    उसके यह कहते ही अंगद की नज़रें उस पर चली गईं। वह कितने आराम से उसे बता रही थी। उसे बिल्कुल भी शर्म नहीं थी यह बताने में कि वह रणविजय की सगी बेटी नहीं थी। या फिर उसके बताने का एक रीज़न यह भी था कि वह नहीं चाहती थी कि कोई भी उन्हें मिसअंडरस्टैंड कर ले। अंगद ने उसका फ़ोन अनलॉक किया और उसमें अपना नंबर सेव करते हुए बोला, “अब कॉल कर लेना। ओके।”

    श्रीजा ने हाँ में गर्दन हिलाते हुए कहा, “ओके सीनियर।”

    अंगद ने उसे हैरानी से देखा और बोला, “सीनियर?”

    श्रीजा ने हाँ में गर्दन हिलाते हुए कहा, “तुम पापा को सीनियर बुलाते हो ना, तो मैं तुम्हें सीनियर बुलाऊँगी।”

    अंगद उसकी बात पर मुस्कुरा दिया और फिर क्लास से बाहर चला गया। थोड़ी देर बाद पार्टी स्टार्ट होने वाली थी। श्रीजा भी जल्दी से तैयार होकर बाहर चली गई।

    सारे स्टूडेंट कॉलेज के उस बड़े से ग्राउंड में इकट्ठे हो चुके थे। पार्टी की काफी अच्छी अरेंजमेंट की गई थी। थोड़ी देर में फंक्शन शुरू होने वाला था और कुछ ही देर में होस्ट स्टेज पर हाज़िर था। उसने सबको ग्रीट करते हुए कहा, “हेलो टीचर्स एंड स्टूडेंट्स। तो आज की शाम मस्ती की शाम है। इसके बाद वैसे भी एग्ज़ाम शुरू हो जाएँगे। तो इसीलिए ज़्यादा वक़्त जाया ना करते हुए सबसे पहले हम आज के हमारे चीफ़ गेस्ट को बुलाते हैं। तो जोरदार तालियों से स्वागत कीजिए मिस्टर रणविजय शेखावत का।”

    आरिका और श्रीजा ने जैसे ही रणविजय का नाम सुना तो दोनों की आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं। आरिका के मन में सवाल था कि वह यहाँ पर क्यों था और श्रीजा के मन में सवाल था कि जब उसके पापा यहाँ आने वाले थे तो अंगद को उसके साथ क्यों भेजा।

    श्रीजा ने मुँह बनाते हुए कहा, “इन्हें तो मैं घर जाकर बताऊँगी।”

    वही आरिका छिपने के लिए जगह देखने लगी थी। वह रणविजय के सामने दोबारा जाना ही नहीं चाहती थी। उस दिन जब उसका रणविजय से सामना हुआ तो एक पल को आरिका को ऐसा लगा कि उस आदमी में उसकी सारी दुनिया सिमटी हुई है। लेकिन वह जानती थी कि रणविजय आसमान का वह चमकता सितारा था जिसे दूर से देखा जा सकता था। उस तक पहुँचना किसी के बस की बात नहीं थी। इंडिया के टॉप फ़ाइव बिज़नेसमैन में से एक था वह। कहाँ रणविजय और कहाँ आरिका? आरिका के दिल में कुछ ऐसा था भी नहीं। उसे कभी किसी चीज़ का लालच नहीं रहा। बस वह अपनी मेहनत से एक मुक़ाम हासिल करना चाहती थी।

    रणविजय तब तक स्टेज पर आ चुका था। सारे बच्चे हूटिंग करते हुए तालियाँ बजा रहे थे। लड़कियाँ तो आहें भर रही थीं। रणविजय उम्र में भले उनसे बड़ा सही लेकिन उसके लुक्स और उसकी पर्सनालिटी किसी को भी उसका दीवाना बना सकती थी।

    रणविजय ने एक नज़र पूरे ऑडिटोरियम हॉल पर डाली जहाँ पर लड़कियाँ उसे देखकर ज़्यादा ही एक्साइटेड नज़र आ रही थीं। वहीँ उसकी नज़र जाकर रुकी आरिका पर। वह वहीं स्टाफ़ के साथ खड़ी थी। लेकिन उसके चेहरे पर आए भाव शायद रणविजय काफ़ी हद तक समझ चुका था।

    रणविजय के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान उतरी और वह खुद से मन ही मन बोला, “सो फ़ाइनली मिस आरिका एक बार फिर हमारा आमना-सामना हो ही गया।”

    रणविजय को कॉलेज के डीन ने माला पहनाई और फिर उसे उसकी सीट पर बैठने को कहा।

    अब प्रोग्राम अपने अकॉर्डिंग शुरू हो चुका था और इसी के साथ बच्चों का एन्जॉयमेंट भी स्टार्ट हो चुका था।

    वहीं बलवीर अपने चमचों के साथ उस पार्टी में ही मौजूद था और उसकी नज़र बार-बार चारों तरफ़ घूम रही थी। मानो किसी को तलाश रही हो।


    क्या होगा आगे? कैसी रहेगी रणविजय और आरिका की यह मुलाक़ात? क्या श्रीजा जान पाएगी अपने पापा और आरिका के बीच चल रहे इन सारी मिस्टीरियस हरकतों के बारे में? और किसे ढूँढ रहा था बलवीर?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।


    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 12. Dad ki dulhan - Chapter 12

    Words: 3198

    Estimated Reading Time: 20 min

    उस दिन जब उसका रणविजय से सामना हुआ, तो एक पल को आरिका को ऐसा लगा कि उस आदमी में उसकी सारी दुनिया सिमटी हुई है। लेकिन वह जानती थी कि रणविजय आसमान का वह चमकता सितारा था जिसे दूर से देखा जा सकता था। उस तक पहुँचना किसी के बस की बात नहीं थी। इंडिया के टॉप फाइव बिजनेसमैन में से एक था वह। कहाँ रणविजय और कहाँ आरिका। आरिका के दिल में कुछ ऐसा था भी नहीं। उसे कभी किसी चीज का लालच नहीं रहा। बस वह अपनी मेहनत से एक मुकाम हासिल करना चाहती थी।

    रणविजय तब तक स्टेज पर आ चुका था। सारे बच्चे हुटिंग करते हुए तालियाँ बजा रहे थे। लड़कियाँ तो आहें भर रही थीं। रणविजय उम्र में भले उनसे बड़ा सही, लेकिन उसके लुक्स और उसकी पर्सनालिटी किसी को भी उसका दीवाना बना सकती थी।

    रणविजय ने एक नज़र पूरे ऑडिटोरियम हॉल पर डाली। जहाँ पर लड़कियाँ उसे देखकर ज़्यादा ही एक्साइटेड नज़र आ रही थीं। वहीं उसकी नज़र जाकर रुकी आरिका पर। वह वहीं स्टाफ के साथ खड़ी थी। लेकिन उसके चेहरे पर आए भाव शायद रणविजय काफी हद तक समझ चुका था।

    रणविजय के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान उतरी और वह खुद से मन ही मन बोला,
    “सो, फाइनली मिस आरिका! एक बार फिर हमारा आमना-सामना हो ही गया।”

    रणविजय को कॉलेज के डीन ने माला पहनाई और फिर उसे उसकी सीट पर बैठने को कहा।

    अब प्रोग्राम अपने अकॉर्डिंग शुरू हो चुका था और इसी के साथ बच्चों का एन्जॉयमेंट भी स्टार्ट हो चुका था।

    वहीं बलवीर अपने चमचों के साथ उस पार्टी में ही मौजूद था और उसकी नज़र बार-बार चारों तरफ घूम रही थी। मानो किसी को तलाश रही हो।


    और अचानक ही बलवीर की नज़र जाकर रुकी श्रीजा पर। जो अपनी दोस्तों के साथ हँस-हँसकर बातें कर रही थी। लेकिन उसने सिर्फ़ श्रीजा को ही देखा था, उसके पीछे खड़े उसके गार्ड अंगद को नहीं।

    अंगद की नज़र तो लगातार श्रीजा पर ही थी और वह उससे नज़रें बिल्कुल हटाना भी नहीं चाहता था।

    वहीं रणविजय की नज़र टिकी बस आरिका पर थी और उससे मानो चिपक ही गई थी। आरिका लगातार यह महसूस कर रही थी और इतना ही नहीं, वह कुछ असहज भी हो रही थी। उसे गुस्सा आ रहा था उस आदमी पर। आखिर जब उन दोनों ने बात करके सब कुछ सॉर्ट कर लिया था, तो अब क्या ही रह गया था बाकी? जो वह उसे इस तरह परेशान कर रहा था।

    स्टेज पर अब भी लगातार परफॉर्मेंस हो रही थी, लेकिन रणविजय की नज़र आरिका पर ही थी। अचानक ही आरिका ने अपनी कॉलिग के कान में कुछ कहा और फिर उठकर चली गई।

    रणविजय ने उसे जाते हुए देखा तो उसके माथे पर कुछ बल पड़ गए। उसने अपने पास बैठे गौरव के कान में कुछ कहा और फिर वह भी उठकर आरिका के पीछे चला गया।

    आरिका वॉशरूम की तरफ़ जा रही थी कि अचानक ही किसी ने उसे कमर से पकड़ कर कॉरिडोर के कोने में मौजूद कमरे में खींच लिया।

    आरिका हैरान थी और वह चिल्लाती, उससे पहले ही किसी ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया था। सामने वाले इंसान ने उसे दीवार से लगा दिया। अब आरिका आँखें बड़ी-बड़ी करके हैरानी से अपने सामने मौजूद आदमी को देख रही थी, जिसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान थी। आरिका ने चिढ़कर उसके हाथ को अपने मुँह से हटाकर झटकते हुए गुस्से से कहा,
    “ये क्या वाहियात हरकत है मिस्टर शेखावत! आप मेरा पीछा क्यों कर रहे हैं?”

    रणविजय तो बस उसके चेहरे की कशिश में खोया हुआ था। लाज़मी भी था खोना। वह लग ही इतनी प्यारी लग रही थी।

    रणविजय ने मुस्कुराकर कहा,
    “मैं आपका पीछा नहीं कर रहा हूँ। मैं यहाँ पर चीफ गेस्ट हूँ। आपको तो मेरा ख्याल रखना चाहिए, लेकिन आप तो भाग रही हैं मुझसे।”

    आरिका ने उसे देख चिढ़ते हुए कहा,
    “क्या इंसान रेस्टरूम भी नहीं जा सकता?”

    रणविजय ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। वह उस मरमेड गाउन में सच में किसी मरमेड से कम नहीं लग रही थी। उसने धीरे से एक आह भरी और बोला,
    “वैसे काफी सुंदर लग रही हैं आप। इतनी कि किसी की भी नज़रें आप पर रुक जाएँ।”

    “मुझे कोई शौक नहीं है किसी की नज़रों को खुद पर महसूस करने का। और प्लीज़ मिस्टर शेखावत, ऐसी हरकतें आप जैसी पर्सनालिटी को सूट नहीं करती। So please!”

    “क्या ही फ़र्क पड़ता है मुझे यह हरकतें सूट करती हैं या नहीं। आपको तो हमारी दूसरी मुलाक़ात का लुत्फ़ उठाना चाहिए।” वह बोला। लेकिन अगले ही पल वह रुका और फिर आगे बोला,
    “नहीं, दूसरी नहीं, तीसरी मुलाक़ात।” रणविजय ने एक स्मिर्क के साथ उसे देखते हुए कहा। आरिका को सच में उस आदमी पर गुस्सा आ रहा था। वह इतना मैच्योर आदमी था और ऐसी हरकतें कर रहा था। क्या उसे जरा शर्म नहीं आ रही थी? वहीं आरिका जो यह सब बातें सोच रही थी, वहीं रणविजय बस उसे निहार रहा था।

    वह उसकी हरकतों से परेशान हो चुकी थी। उसने कम से कम रणविजय जैसे मैच्योर आदमी से ऐसी हरकतों की उम्मीद बिल्कुल नहीं की थी। लेकिन रणविजय न जाने क्यों उसे परेशान करने के मूड में था और वह जानबूझकर ऐसी हरकतें कर रहा था, जिनकी वजह से आरिका को चिढ़ हो रही थी।

    वह चिढ़कर बोली,
    “मिस्टर शेखावत, आप चाहते क्या हैं? क्यों परेशान कर रहे हैं मुझे?”

    “मैंने आपको पहले ही बताया था कि मैं क्या चाहता हूँ। फिर भी आप मुझसे पूछ रही हैं।” रणविजय बोला।

    “मेरा पीछा करना छोड़ दीजिए। मुझे परेशान करना बंद कर दीजिए। मेरी ज़िंदगी में पहले ही बहुत परेशानियाँ हैं। आप उन्हें और मत बढ़ाइए।”

    रणविजय ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा,
    “आपकी सारी परेशानियों को मैं सॉल्व कर दूँगा। आप बताकर तो देखिए।”

    आरिका सच में परेशान हो चुकी थी। उसने रणविजय को खुद से दूर करते हुए धक्का दिया और बोली,
    “मेरा पीछा बंद कीजिए। सबसे बड़ी परेशानी इस वक़्त मेरे लिए आप ही हैं।” यह कहते हुए वह वहाँ से सीधा लेडिज़ वॉशरूम में घुस गई। इस वक़्त सबसे सेफ़ जगह उसके लिए वही तो थी, जहाँ रणविजय उसे परेशान नहीं कर सकता था। उसकी हरकत देखकर वह फिर धीरे से मुस्कुराया और बोला,
    “अजीब है ये लड़की। लड़कियाँ मेरे पास आने के लिए मरती हैं और यह मुझसे दूर भगाने के बहाने ढूँढती हैं। शायद इसीलिए सबसे अलग है और शायद इसीलिए मेरी नज़रों में आई है।”

    खैर, रणविजय वापस वहाँ से अपनी सीट पर लौट आया था। आरिका भी थोड़ी देर बाद वापस आ चुकी थी, लेकिन रणविजय की नज़रें अब भी उस पर थीं और आरिका इस बात से चिढ़ रही थी। उसका बस चलता तो वह यहाँ से कहीं ग़ायब भी हो जाती।

    आरिका ने एक नज़र घुमाकर चारों तरफ़ देखा। सारे स्टूडेंट काफ़ी एन्जॉय कर रहे थे। तभी उसकी नज़र श्रीजा पर गई जो वहाँ से निकलकर साइड में जा रही थी। शायद उसके फ़ोन पर किसी का फ़ोन आया था। आरिका को अजीब लगा। उसके पीछे-पीछे ही उसने बलवीर के आदमियों को जाते देखा था और आरिका जानती थी कि बलवीर कॉलेज का जाना-माना गुंडा था। श्रीजा कहीं किसी मुसीबत में न पड़ जाए, इसलिए वह तुरंत श्रीजा के पीछे चली गई।

    रणविजय लगातार आरिका की हरकतें नोटिस कर रहा था। उसने आरिका को एक बार फिर कहीं जाते देखा। वह उठकर जाने को हुआ, लेकिन तभी उसका फ़ोन बजा और उसका ध्यान आरिका से हटकर अपने फ़ोन पर चला गया।

    इधर आरिका श्रीजा के पीछे-पीछे जा रही थी। श्रीजा ऊपर वाले क्लासरूम की तरफ़ जा रही थी। वह अभी सीढ़ियों के पास ही थी कि तभी अचानक से उसके सामने बलवीर आ धमका। श्रीजा ने उसे घूरकर देखते हुए कहा,
    “फिर से तुम! सीरियसली, तुम में शर्म नाम की चीज़ नहीं है क्या? थोड़ा तो शर्म करो। ये गुंडागर्दी करते रहोगे तो उसी में रह जाओगे। कुछ कर नहीं पाओगे।” श्रीजा ने उसे ताना कस दिया।

    बलवीर ने गुस्से में आकर उसे घूरते हुए कहा,
    “तुम्हारी तो मैं... तुम्हें बिल्कुल नहीं छोड़ने वाला हूँ मैं।” यह कहते हुए बलवीर ने जबरदस्ती श्रीजा की कलाई पकड़ ली। श्रीजा ने अपने दाँत भींचे और खुद को छुड़वाने के लिए एक कस के थप्पड़ बलवीर के गाल पर जड़ दिया। अब यह तो बलवीर की मर्दानगी पर थप्पड़ पड़ा था।

    बलवीर ने गुस्से में आकर श्रीजा पर हाथ उठा दिया और दोनों की हाथापाई में अचानक श्रीजा को धक्का लगा और श्रीजा सीढ़ियों से गिर पड़ी। उसके मुँह से एक चीख निकली। आरिका ने जैसे ही चीख सुनी, घबरा गई और जल्दी से उस तरफ़ दौड़ी। गाउन में तो ठीक से चलना तक मुश्किल था। जब तक वह वहाँ पहुँची, देर हो चुकी थी। बलवीर के हाथ-पैर फूल चुके थे। आरिका के होश उड़ चुके थे। उसके सामने श्रीजा खून से लथपथ पड़ी थी और अपनी नम आँखों से आरिका को देख रही थी। आरिका जोर से चीखी,
    “श्रीजा!” श्रीजा बेहोश हो चुकी थी। आरिका ने जाकर उसका सिर उठाया और अपनी गोद में रखते हुए उसे होश में लाने की कोशिश करते हुए बोली,
    “श्री, क्या हुआ है? उठो! आँखें खोलो!”

    बलवीर ने आरिका की तरफ़ देखा जो श्रीजा को संभाल रही थी। पकड़े जाने के डर से और सज़ा के डर से बलवीर तुरंत ही वहाँ से भाग खड़ा हुआ। आरिका की आँखों में आँसू उतर आए थे।

    वहीं जब काफ़ी देर तक श्रीजा वापस नहीं लौटी तो अंगद उसे ढूँढने के लिए उस तरफ़ चला गया जहाँ वह गई थी। इस बार तो श्रीजा उसे बात कर भी गई थी, इसलिए अंगद सीधा उसी तरफ़ बढ़ गया।

    लेकिन जैसे ही उसने वहाँ का नज़ारा देखा, अंगद के होश फ़ाख़्ता हो चुके थे। वह जल्दी से दौड़कर श्रीजा के पास पहुँचा। उसे भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। आरिका ने अंगद को देखा और बोली,
    “आपके पास रुमाल है?” अंगद ने जल्दी से उसे अपना रुमाल दिया तो आरिका ने झट से श्रीजा के माथे पर बाँध दिया।

    अंगद ने तुरंत अपना फ़ोन निकाला और रणविजय को कॉल कर दिया। उधर से रणविजय ने जैसे ही कॉल पिक किया, अंगद घबराया हुआ सा बोला,
    “सीनियर, जल्दी से ऊपर वाले क्लासरूम की तरफ़ आइए। श्रीजा गिर गई है। पता नहीं क्या हो गया है, वह आँखें भी नहीं खोल रही है।”

    अंगद घबरा गया था और रणविजय ने जैसे ही यह सुना कि श्रीजा को कुछ हो गया है, वह तुरंत सब कुछ छोड़-छाड़कर उसकी तरफ़ भाग खड़ा हुआ। सब लोग हैरान थे। अचानक से क्या हो गया था कि वह इस तरह से दौड़कर गया। उसके पीछे-पीछे ही डीन और स्टाफ़ मेंबर्स भी चले आए थे। रणविजय जैसे ही वहाँ पहुँचा, एक पल को तो उसके क़दम ठिठक गए। वह बच्ची जो सारा दिन उसके आगे-पीछे शैतानियाँ करते घूमती रहती थी, आज इस तरह इस हालत में पड़ी थी। रणविजय की आँखों में ना चाहते हुए भी नमी उतर आई। आरिका की आँखों में भी नमी थी और श्रीजा को लेकर वह कुछ ज़्यादा ही परेशान थी। लेकिन रणविजय को देखकर वह हैरान भी थी। वह यहाँ पर इस तरह से क्या कर रहा था और श्रीजा से उसका क्या लेना-देना था? आरिका यह भी नहीं समझ पा रही थी। रणविजय ने आरिका से श्रीजा को अपनी बाँहों में लिया और उसे उठाने की कोशिश करने लगा।

    गौरव ने जल्दी से कहा,
    “सर, प्लीज़ हम पहले हॉस्पिटल चलते हैं। श्रीजा के माथे से बहुत खून बह रहा है।”

    रणविजय ने तुरंत श्रीजा को अपनी बाँहों में उठाया और आगे बढ़ गया। तभी आरिका बोली,
    “प्लीज़, मैं भी चलती हूँ।” रणविजय इस वक़्त किसी से कोई बहस नहीं करना चाहता था। उसने कोई जवाब नहीं दिया और आरिका ने इसे ही उसकी हाँ समझ लिया। वह सब लोग अस्पताल के लिए निकल चुके थे। जल्दी ही श्रीजा को अस्पताल में एडमिट करवा दिया गया था। रणविजय किसी मूरत की तरह बैठा हुआ था। अंगद ने उसके पास आकर बैठते हुए धीरे से कहा,
    “सॉरी सीनियर, मैं कुछ नहीं कर पाया। आपने मुझे उसकी ज़िम्मेदारी दी थी और मैं निभा नहीं पाया।”

    रणविजय फिर भी चुप था। उसने एक शब्द भी नहीं कहा। अंगद ने फिर से धीरे से कहा,
    “सीनियर, कुछ तो बोलिए।”

    तब तक अर्जुन, अभिजीत और रेहान भी आ चुके थे। रेहान काफ़ी घबराया हुआ लग रहा था। वह जल्दी से रणविजय के पास आया और बोला,
    “श्रीजा कहाँ है RV? श्रीजा कहाँ है?”

    रणविजय ने सिर उठाकर उसे देखा। उसकी आँखें लाल थीं और आँखों में अब भी आँसू थे। रेहान ने जैसे ही उसे इस तरह से देखा, तुरंत उसके गले लग गया। रणविजय बिखर सा गया। वह रोते हुए बोला,
    “रेहान, मेरी बच्ची! उसे कुछ नहीं होगा ना? मैं उसके बिना नहीं रह सकता हूँ यार। 22 साल, 22 साल से साथ है वह मेरे। मैंने अपनी ज़िंदगी उसके बिना इमेजिन भी नहीं की है मैंने और देखो क्या हो गया उसे। गिर गई वह। आज तक मैंने जिसे एक ख़रोच तक नहीं आने दी, वह आज ऑपरेशन थिएटर में है। मैं क्या करूँ? मुझे समझ नहीं आ रहा।”

    वह रोते हुए बोले जा रहा था। अर्जुन, अभिजीत ने भी आकर उन दोनों को हग कर लिया। वह दोनों जानते थे कि रेहान और रणविजय श्रीजा के लिए कितने पजेसिव और प्रोटेक्टिव थे। वरना रेहान को इस तरह से देखना कोई इमेजिन भी नहीं कर सकता था और रणविजय वह कभी अपने इमोशन्स शो कहाँ करता था? एक श्रीजा के मामले में ही तो वह दिल का कच्चा था।

    वहीं आरिका हैरान थी। जब उसने रणविजय के मुँह से श्रीजा के लिए “अपनी बच्ची” सुना, उसे याद आया कि श्रीजा ने उसे अपने पापा के बारे में बताया था। तो क्या रणविजय उसके पापा थे? आरिका उलझी हुई थी और साथ ही उसे श्रीजा की भी टेंशन हो रही थी।

    तभी एक नर्स ने जल्दी से हड़बड़ी में आते हुए कहा,
    “आप में से किसी का ब्लड ग्रुप AB नेगेटिव है? पेशेंट को इम्मीडिएटली ब्लड की ज़रूरत है। उनका काफ़ी ब्लड लॉस हो चुका है।”

    रणविजय अपने दोस्तों के मुँह ताकने लगा। उसका ब्लड ग्रुप B पॉज़िटिव था। रेहान ने तुरंत कहा,
    “मेरा तो A पॉज़िटिव है।” अर्जुन और अभिजीत ने भी हाथ खड़े कर दिए थे। उनका ब्लड ग्रुप, अंगद का भी ब्लड ग्रुप मैच नहीं हो रहा था। नर्स ने उन लोगों को देखते हुए कहा,
    “जल्दी से जल्दी ब्लड का इंतज़ाम कीजिए। AB नेगेटिव बहुत रेयर है। जल्दी से मिलता नहीं। ऐसे में पेशेंट की जान को ख़तरा हो सकता है। ब्लड बैंक में भी ये अवेलेबल नहीं है।” यह सुनकर तो वह चारों और ज़्यादा परेशान हो चुके थे। अंगद इन सब के लिए खुद को क़सूरवार समझ रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे जिससे श्रीजा ठीक हो जाए। उसने तुरंत ब्लड का अरेंजमेंट करने के लिए कॉल लगा लिए।

    लेकिन तभी आरिका ने नर्स को देखकर कहा,
    “मेरा ब्लड ग्रुप AB नेगेटिव है। आप मेरा ब्लड ले लीजिए।”

    सिस्‍टर ने उसे देखा और बोली,
    “आप जल्दी चलिए।” यह कहकर नर्स उसे अपने साथ ले गई। रणविजय ने एक राहत की साँस ली। उसका और अंगद का शर्ट श्रीजा के खून से सना हुआ था। वहीं आरिका के गाउन पर भी श्रीजा का खून लग चुका था। उसका सच में काफ़ी ब्लड लॉस हुआ था। डॉक्टर बस यही कोशिश कर रहे थे कि श्रीजा की ब्लीडिंग रोकी जाए।

    वहीं रणविजय अपना माथा पकड़कर बैठ चुका था। उसे नहीं समझ आ रहा था कि वह क्या करे। आज पहली बार उसे इतना हेल्पलेस फील हो रहा था। हालाँकि आरिका ब्लड देने चली गई थी, लेकिन रणविजय को दिल को चैन नहीं था। उसकी बेटी वहाँ पर ऑपरेशन थिएटर में थी।

    रह-रहकर उसके सामने छोटी सी श्रीजा का चेहरा आ रहा था, जो उसे तब मिली थी जब वह सिर्फ़ दो महीने की थी। कोई उसे यूँ ही एक NGO के बाहर छोड़ गया था और खुशकिस्मती से रणविजय अपनी दादी के साथ उस दिन उसे NGO में गया था और उसे किस्मत से श्रीजा मिल गई। दादी से जिद करके वह उसे अपने साथ ले भी आया। वह बात अलग थी कि उसकी सौतेली माँ ने इसके लिए भी उसे खूब सुनाया था, लेकिन उसे इन सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा। उसने काफ़ी छोटी सी उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था और श्रीजा के कुछ समझदार होने तक उसने एक छोटा सा घर भी खरीद लिया था और अपनी बेटी के साथ वह उसी में शिफ़्ट हो गया। उसे याद था जब पहली बार श्रीजा ने उसे पापा बुलाया था और वह भी इसलिए क्योंकि उसने रणविजय के सौतेले छोटे भाई को पापा बुलाते सुन लिया था। उन दिनों वह नन्ही श्रीजा बोलना सीख ही रही थी और उसने पहली बार रणविजय को पापा कहा था। रणविजय बेहद खुश था। उस वक़्त वह 13 साल का था और छोटी सी श्रीजा सिर्फ़ 2 साल की। उसने श्रीजा को बिल्कुल भी नहीं रोका कि वह उसे पापा न बोले। उसे तो उल्टा अच्छा लग रहा था।


    क्या होगा आगे? क्या डॉक्टर्स श्रीजा को बचा पाएँगे? क्या बलवीर को सज़ा मिलेगी? क्या करेगी आरिका इस सिचुएशन में? क्या ये सिचुएशन रणविजय और आरिका को करीब लाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए ये कहानी...

    To be continued...

    ✍️ Riya Sirswa

  • 13. Dad ki dulhan - Chapter 13

    Words: 2503

    Estimated Reading Time: 16 min

    वही रणविजय अपना माथा पकड़ कर बैठ चुका था । उसे नहीं समझ आ रहा था कि वह क्या करें । आज पहली बार उसे इतना हेल्पलेस फुल हो रहा था । हालांकि आरिका ब्लड देने चली गई थी । लेकिन रणविजय को दिल को चैन नहीं था । उसकी बेटी वहां पर ऑपरेशन थिएटर में थी । रह रह कर उसके सामने छोटी सी श्रीजा का चेहरा आ रहा था । जो उसे तब मिली थी जब वह सिर्फ दो महीने की थी । कोई उसे यूं ही एक एनजीओ के बाहर छोड़ गया था । और खुशकिस्मती से रणविजय अपनी दादी के साथ उस दिन उसे एनजीओ में गया था । और उसे किस्मत से श्रीजा मिल गई । दादी से जिद करके वह उसे अपने साथ ले भी आया । वह बात अलग थी कि उसकी सौतेली मां ने इसके लिए भी उसे खूब सुनाया था । लेकिन उसे इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा । उसने काफी छोटी सी उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था । और श्रीजा के कुछ समझदार होने तक उसने एक छोटा सा घर भी खरीद लिया था । और अपनी बेटी के साथ वो उसी में शिफ्ट हो गया । उसे याद था जब पहली बार श्रीजा ने उसे पापा बुलाया था । और वह भी इसलिए क्योंकि उसने रणविजय के सौतेले छोटे भाई को पापा बुलाते सुन लिया था । उन दिनों वह नन्ही श्री बोलना सीख ही रही थी । और उसने पहली बार रणविजय को पापा कहा था । रणविजय बेहद खुश था । उस वक्त वह 13 साल का था । और छोटी सी श्रीजा सिर्फ 2 साल की उसने श्रीजा को बिल्कुल भी नहीं रोका की वह उसे पापा ना बोले । उसे तो उल्टा अच्छा लग रहा था । । । । । । । । । । । । रणविजय अपनी पुरानी यादों में खोया हुआ था । तभी आरिका भी बाहर आ गई । नर्स ने उसे लाकर बेंच पर बैठाया और आराम से बोली, “ थोड़ी देर के लिए यही बैठी रहिएगा ।” रणविजय का ध्यान आरिका पर गया । आरिका ने उसे देख कर धीरे से कहा, “वह ठीक हो जाएगी । आप प्लीज टेंशन मत लीजिए । उसे कुछ नहीं होगा ।” रणविजय ने अपना हाथ बढ़ाकर धीरे से उसके हाथ पर रखा । आरिका ने उसकी तरफ देखा । रणविजय की आंखों में अब भी आंसू थे । वह धीरे से बोला, “ थैंक यू सो मच । मुझे नहीं पता तुम्हारा उसका क्या रिश्ता है, क्या नहीं । लेकिन तुमने मेरे लिए, मेरे बेटी के लिए जो किया है वह एहसान मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा ।” आरिका बस उसे देखते रह गई । उस की आंखों में कितना प्यार था श्रीजा के लिए । न चाहते हुए भी आरिका की आंखों में हल्की सी नमी उतर आई । वह बिल्कुल वैसा ही था जैसा श्रीजा उसे बताया करती थी । वो हर बार कहती थी उसके पापा हॉट हैंडसम और काफी यंग है । और वह था भी । उनमें से कोई कुछ भी कहने सुनने की कंडीशन में नहीं था । थोड़ी देर में डॉक्टर बाहर आए । रणविजय जल्दी से उठा और डॉक्टर के पास चला गया।  डॉक्टर ने उसे देखते हुए कहा, “ मिस्टर शेखावत, वह खतरे से बाहर है । चिंता की कोई बात नहीं है ।” रणविजय ने एक राहत की सांस ली । वही अंगद भी कुछ सुकून में था । उसने अब आरिका को देखा और अपने कदम उसकी तरफ बढ़ा दिए । उसने आरिका को देखते हुए कहा, “किसने किया था यह सब ।” आरिका उसे हैरानी से देखने लगी । तो अंगद फिर से बोला, “मुझे इतना तो पता है वह कितनी ही लापरवाह सही लेकिन इतनी भी लापरवाह नहीं हो सकती कि सीढ़ियों से गिर जाए । किसने किया था यह सब ।” सब लोग अंगद की तरफ देखने लगे । रणविजय को एहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ थी । उसने तुरंत आरीका के पास जाकर उसकी बांह पकड़ी और उसे उठाते हुए बोला, “क्या कह रहा है अंगद । क्या हुआ था बताओगी ।” आरिका ने गहरी सांस ली । और फिर बोली, “बलवीर । कॉलेज का नामी गुंडा । गुंडागर्दी के अलावा उसे कुछ नहीं आता । वह सिर्फ नाम का स्टूडेंट है ।  पहले भी श्रीजा की काफी बार उससे झड़प हो चुकी है । और हर बार श्री ने उसे मुंह तोड़ जवाब भी दिया । और इस बार मैंने सुना था जब श्री ने उसे एक बार फिर ताना मार दिया था । और सिर्फ ताना ही नहीं थप्पड़ तक मारा था । और उस झड़प में उसने श्री को धक्का दे दिया ।” रणविजय ने अपनी मुट्ठियां कस के भींच ली । और रिहान को देख बोला, “ वह लड़का बचना नहीं चाहिए । उसकी वजह से मेरी बेटी इस हालत में है । मैं उसे बिल्कुल नहीं छोडूंगा ।” अर्थ ने उसकी बात सुनी तो बोला, “ उसे हम संभाल लेंगे । तुम फिलहाल श्री का ध्यान रखो । उसे भी थोड़ी देर में वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाएगा । हम लोग उससे मिलकर निकल जाएंगे ।” रणविजय ने बस हां मे गर्दन हिला दी । लेकिन उसके दिमाग में बस बलवीर चल रहा था । जिसकी वजह से उसकी बेटी आज इस हालत में थी । उसने गौरव को देखा और बोला, “ पता करो उस लड़के के बारे में । उसकी फैमिली के बारे में । जब तक कड़वी दवाई का घूंट खुद नहीं लेते तब तक इसका अंदाजा नहीं होता कि वह कितनी कड़वी है । मैं उन्हें उनकी ही मेडिसिन टेस्ट करवाऊंगा ।” आरिका बस उसे ही देख रही थी । उसने कभी नहीं सोचा था कि श्रीजा रणविजय की बेटी हो सकती है । थोड़ी ही देर में श्रीजा को रूम में शिफ्ट कर दिया गया था । हालांकि उसे होश आने में अभी भी वक्त था । लेकिन एक बार उसके पास उससे मिलने जा चुका था । आरिका बस दरवाजे पर खड़ी श्रीजा को देख रही थी । हमेशा हंसते बोलते रहने वाली श्रीजा एकदम खामोश थी । चेहरा पीला पड़ चुका था । और मशीनों से घिरी हुई थी । आरिका ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह श्री को इस तरह कभी देखेगी । आरिका वही बेंच पर बैठ गई । उसका घर जाने का बिल्कुल मन नहीं था । उसके घर से न जाने कितने कॉल आ चुके थे । हालांकि दोनों मां बेटी को उसकी क्या ही फिक्र होनी थी । लेकिन फिर भी उन्हें यही लग रहा था कि आरिका कहीं सुकून से बैठी होगी और पार्टी इंजॉय कर रही होगी । और वही तो उनसे बर्दाश्त नहीं होना था । थोड़ी देर बाद जब रणविजय बाहर आया तो उसकी नजर आरिका पर गई । रेहान अर्थ और अभिजीत एक बार श्रेया से मिलकर जा चुके थे । गौरव को भी रणविजय ने काम बता दिया था । और अंगद भी बलवीर के पीछे लगा हुआ था । आरिका वहां पर इस वक्त अकेले बैठे थे । एक बार उसे देखकर वह ठीठक सा गया । लेकिन कुछ सोच कर वह उसके पास जाकर बैठ गया । आरिका झट से बोली, “श्रीजा ठीक है ना । उसे होश कब आएगा ।” रणविजय ने उसे देखते हुए बड़े आराम से कहा, “ तुम घर नहीं गई अब तक । काफी रात हो गई है ।” आरिका ने उसे देखा फिर गहरी सांस भर कर बोली, “ एक बार श्रीजा को होश आ जाए फिर मैं चली जाऊंगी । आई प्रॉमिस मैं परेशान नहीं करूंगी आपको ।” रणविजय उसे देखने लगा । आरिका धीरे से बोली, “ सच मे मैं नहीं परेशान करूंगी । बस दूर से देख कर चले जाऊंगी ।” “मैंने तुम्हें उससे मिलने के लिए मना नहीं किया है ।” रणविजय ने उसे देखते हुए कहा । आरिका जानती थी उसने उसे बिल्कुल मना नहीं किया था । लेकिन वह जानबूझकर कुछ दूरी बनाए हुए थी । वह नहीं चाहती थी कि कहीं से भी किसी को भी यह लगे की आर्या का जानबूझकर ऐसे क्रिटिकल कंडीशन में खुद को उन लोगों के बीच फिट करने की कोशिश कर रही थी । वह बिल्कुल नहीं चाहती थी कि कोई भी उस पर उंगली उठाए ।  और कहीं ना कहीं रणविजय यह सारी बातें समझ रहा था ।  रणविजय ने गहरी सांस भरी और बोला, “ थैंक यू श्रीजा को ब्लड देने के लिए । मैं उसके बिना अपनी लाइफ इमेजिन भी नहीं कर सकता । इकलौते जीने का सहारा है वो मेरे ।” आरिका ने धीरे से कहा, “समझ सकती हूँ । बहुत बातें करती है वो आपके बारे में । मैंने कभी भी उससे उसके पापा का नाम नहीं पूछा । उसने हमेशा मुझसे कहा, “ उसके पापा हॉट डैशिंग, स्मार्ट, हैंडसम और काफी कम उम्र के हैं । मुझे हमेशा यही लगता है कि एक बेटी के लिए उसके पापा उसके सुपर हीरो, उसके रोल मॉडल, उसके सब कुछ होते हैं । और श्रीजा के लिए भी उसके पापा वही है । मुझे सच में नहीं पता था वह आपकी बेटी है ।” आरिका की बात सुनकर रणविजय बस हल्के से मुस्कुरा दिया । वह जानता था उसकी बेटी उसे कितना प्यार करती थी । बात बात पर उसकी टांग खींचती थी, उसे परेशान करती थी । लेकिन इस वक्त उसकी वही बेटी शांत हो चुकी थी । और रणविजय बस जल्द से जल्द उसके होश में आने की उम्मीद कर रहा था । उसने दादी को नहीं बताया था कि श्री के साथ क्या हुआ । दादी को तो बस यही पता था कि वह लोग पार्टी में गए हैं । और देरी से आएंगे । इसलिए दादी आराम से घर पर सो रही थी । लगभग आधे घंटे बाद श्रीजा को होश आया । उसने आंखें खोली और सबसे पहले उसके होठों पर आरिका का नाम आया । “ मिस आरिका “ उसके सूखे हुए होठों से एक धीमी सी आवाज निकाली । नर्स ने तुरंत रिएक्ट किया और जाकर रणविजय और आरिका की तरफ देखते हुए बोली, “मिस आरिका वो पेशेंट बुला रही हैं । उन्हें होश आ चुका है । और सबसे पहला नाम वो यही बोल रही है ।” आरिका हैरान थी । श्रीजा को तो अपने पापा को बुलाना चाहिए था ना वह उसे क्यों बुला रही थी । रणविजय ने आरिका को देखते हुए कहा, “ जाओ ।” आरिका धीरे से उठकर उस रूम में चली गई । रणविजय ने गहरी सांस भरी और आंखें बंद करके अपना सर पीछे दीवार से टिका दिया । आज के जितना बेबस तो उसने कभी महसूस नहीं किया था कभी भी नहीं । आरिका जब कमरे में आई तो श्री आंख बंद किए हुए लेटी हुई थी । आरिका धीरे से जा कर उसके पास बैठी और हल्के से उसके माथे को सहलाया । उसकी उस छुन से श्रीजा के होठों पर एक छोटी सी मुस्कान तैर गई । उसने अपनी आंखें खोल कर आरिका को देखा । जो नम आंखों से उसे देख रही थी । श्रीजा ने धीरे से कहा, “ थैंक यू ।” आरिका ने हल्के से मुस्कुरा कर उसका हाथ पकड़ा और चूमते हुए प्यार से बोली, “तुम ठीक हो ना ।” श्रीजा ने धीरे से हां मे गार्दन हिलाई तो आरिका धीरे से बोली, “ बाहर तुम्हारे पापा वेट कर रहे हैं।  बहुत परेशान है । और होना बनता भी है । जब जिंदगी में सिर्फ एक ही सहारा होता है तो उसे खोने से इंसान बहुत डरता है । श्री तुम्हारे पापा के पास सिर्फ तुम ही तो हो ।” श्रीजा ने धीरे से हां मे गर्दन हिलाई । आरिका ने सिस्टर की तरफ देखते हुए कहा, “बाहर श्री के पापा बैठे हैं आप उन्हें अंदर भेजेंगी प्लीज ।” सिस्टर जल्दी से बाहर चले गई । उसने सामने रणविजय को देखा, एक बार को तो वह भी हैरान थी कि इतनी बड़ी बच्ची का बाप इतनी कम उम्र का कैसे हो सकता था । लेकिन उसने रणविजय को अंदर जाने को कहा । वो जब अंदर आया तो आरिका श्रीजा का हाथ पकड़े बैठी थी । वो जब वहां पर आया तो आरिका जल्दी से उठ खड़ी हुई । श्रीजा ने एक नजर उन दोनों को देखा । उसकी आंखों में एक अलग सी चमक आ गई । मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो । उसने मन ही मन कहा, “पापा के साथ में मिस आरिका कितनी परफेक्ट लग रही हैं । हां अगर मेरे पापा थोड़ा सा खड़ूसपन छोड़ दे तो मिस आरिका के लिए वह पर्फेक्ट है । बाकी मेरे पापा में कोई खराबी तो नहीं है । मैं मिस सारिका से बात करूं कि वह मेरे पापा से शादी कर ले ।” कौन कह सकता था कि उस लड़की का अभी-अभी ऑपरेशन हुआ था । अभी-अभी उसने सब की जान हलक में अटका रखी थी । और अब वह मन ही मन ये सारी बातें सोच रही थी । अगले ही पल उसने खुद से कहा, “ दादी से बात करूंगी । यस, एक प्रॉपर प्लानिंग के साथ करूंगी सब कुछ । मैं तो अपनी मां मिस आरिक को ही बनाऊंगी । वह है भी कितनी प्यारी ।” वह अपनी सोच में इतना खो चुकी थी । कि रणविजय जो उसे आवाज लगाए जा रहा था वह भी उसे सुनाई नहीं दे रहा था । रणविजय ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “ श्री क्या हुआ ।” अचानक से श्रीजा होश में आई और उसे देख फिर हल्के से मुस्कुरा कर बोली, “कुछ नहीं पापा ।” थोड़ी देर श्रीजा से मिलने के बाद वह दोनों बाहर आ चुके थे । श्री को दवाइयों की वजह से जल्दी ही नींद आ गई थी । रात काफी हो चुकी थी । आरिका ने घर जाने का सोचा और रणविजय को देखकर बोली, “मैं चलती हूं । सुबह वापस आ जाऊंगी । अगर कुछ जरूरत हो तो बता दीजिएगा । वैसे जरूरत होगी नहीं मुझे पता है । लेकिन फिर भी ।” यह कह कर वो आगे बढ़ाने को हुई कि रणविजय ने उसकी कलाई पकड़ ली।  रणविजय ने उसे वापस बैठाते हुए कहा, “काफी रात हो गई है । अकेले कहां जाओगी इस वक्त । मैं इस स्टेट में नहीं हूं कि तुम्हें घर छोड़ कर आ सकूं । यहीं रुको । सुबह मैं तुम्हें घर छोड़ आऊंगा ।” आरिका ने अपने हाथ को देखा । जो अब भी रणविजय के हाथ में था । उसकी धड़कने अचानक से बढ़ गई थी । उस आदमी का उस पर ऐसा असर था कि उसके छोटे से टच से भी आरिका को अलग से ही फीलिंग महसूस हो रही थी । लेकिन ये फीलिंग्स क्यों थी औऱ क्या थी ये वो नही समझ पा रही थी । । । । । । । । । । ।    क्या होगा आगे । क्या रणविजय औऱ आरिका आएंगे करीब । क्या श्रीजा अपने दिमाग में चल रही खुराफात को अंजाम देगी । श्रीजा क्या-क्या खुराफ़ातिया करने वाली थी । जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी “ । । । । । । । । । । To be continued । । । । । । ✍️ Riya Sirswa

  • 14. Dad ki dulhan - Chapter 14

    Words: 2595

    Estimated Reading Time: 16 min

    अगले ही पल उसने खुद से कहा, “दादी से बात करूँगी। यस, एक प्रॉपर प्लानिंग के साथ करूँगी सब कुछ। मैं तो अपनी माँ मिस आरिक को ही बनाऊँगी। वह है भी कितनी प्यारी।”

    वह अपनी सोच में इतनी खो चुकी थी कि रणविजय जो उसे आवाज लगाए जा रहा था, वह भी उसे सुनाई नहीं दे रहा था। रणविजय ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
    “श्री, क्या हुआ?”

    अचानक से श्रीजा होश में आई और उसे देखकर फिर हल्के से मुस्कुरा कर बोली,
    “कुछ नहीं पापा।”

    थोड़ी देर श्रीजा से मिलने के बाद वे दोनों बाहर आ चुके थे। श्री को दवाइयों की वजह से जल्दी ही नींद आ गई थी। रात काफी हो चुकी थी। आरिका ने घर जाने का सोचा और रणविजय को देखकर बोली,
    “मैं चलती हूँ। सुबह वापस आ जाऊँगी। अगर कुछ जरूरत हो तो बता दीजिएगा। वैसे जरूरत होगी नहीं, मुझे पता है। लेकिन फिर भी।”

    यह कहकर वह आगे बढ़ने को हुई कि रणविजय ने उसकी कलाई पकड़ ली। रणविजय ने उसे वापस बैठाते हुए कहा,
    “काफी रात हो गई है। अकेले कहाँ जाओगी इस वक्त? मैं इस स्टेट में नहीं हूँ कि तुम्हें घर छोड़कर आ सकूँ। यहीं रुको। सुबह मैं तुम्हें घर छोड़ आऊँगा।”

    आरिका ने अपने हाथ को देखा, जो अब भी रणविजय के हाथ में था। उसकी धड़कने अचानक से बढ़ गई थीं। उस आदमी का उस पर ऐसा असर था कि उसके छोटे से स्पर्श से भी आरिका को अलग सी फीलिंग महसूस हो रही थी।


    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा,
    “प्राइवेट रूम लिया है तो उसे यूज़ करो उसका। जाकर कपड़े बदल लो। कब तक इस गाउन को पकड़े-पकड़े बैठी रहोगी?”

    आरिका ने हैरानी से उसे देखा, फिर अपने कपड़ों को। वह गाउन पूरा खराब हो चुका था। उस पर श्री का खून भी लगा हुआ था। लेकिन आरिका धीरे से बोली,
    “मेरे पास कपड़े नहीं हैं जो मैं बदलूँ। अब हर जगह कपड़े लेकर कोई साथ थोड़ी घूमता है।”

    रणविजय ने गहरी साँस भरते हुए कहा,
    “तुम बहुत बोलती हो। सुनने से पहले जजमेंट दे देती हो।”

    उसकी बात सुनते ही आरिका का मुँह बन गया। रणविजय ने आरिका को देखते हुए कहा,
    “रूम में कपड़े रखे हैं। जाकर चेंज कर लो।”

    आरिका उठी और उस बुक किए हुए प्राइवेट रूम में चली गई। वहाँ पर एक शॉपर पहले से पड़ा था। उसने खोलकर देखा तो उसमें एक मिड लेंथ की वन पीस ड्रेस थी। आरिका को इन सब चीजों से कोई दिक्कत नहीं थी। वह वैसे भी उसका जो मन होता था वह पहन लेती थी। वह तो उसका प्रोफेशन ऐसा था कि प्रोफेसर होने की वजह से वह अक्सर कॉटन की साड़ियाँ पहना करती थी।

    उसने जल्दी से कपड़े बदले और आकर वापस से बाहर बैठ गई। रणविजय ने उसे देखा, फिर उठकर अपने कपड़े चेंज करने चला गया। वह बाहर आया तो तब तक वह सो चुकी थी।

    रणविजय ने अपने कदम आरिका की तरफ़ बढ़ा दिए। वह धीरे से जाकर उसके पास खड़ा हुआ और उसने अपने हाथों की उंगलियों से हल्के से उसके बालों को उसके चेहरे से हटाया। शायद कुछ थकान ज़्यादा ही हावी थी उस पर और फिर मेंटल स्ट्रेस भी था। इसलिए उसे जल्दी ही नींद आ गई थी।

    रणविजय ने झुकते हुए धीरे से उसे अपनी बाहों में उठाया और आरिका ने न जाने क्या सोचकर अपना सिर उसके सीने से लगा दिया। उसे एक अजीब सा सुकून मिला, एक ऐसा सुकून जो उसे आज तक कभी नहीं मिला था, जिसकी तलाश में वह हमेशा भटकती थी। लेकिन आज इस पल में उसे अजीब सा सुकून मिल रहा था।

    रणविजय ने उसे ले जाकर उस रूम में धीरे से लेटा दिया और उसे ब्लैंकेट से कवर करके हल्के से उसके गाल को सहला कर बोला,
    “अजीब हो तुम। बहुत अजीब। कौन किसी के लिए इतना कर सकता है? लेकिन पता नहीं तुम क्या ही हो।”

    रणविजय ने गहरी साँस भरी और फिर कमरे से बाहर निकल आया और खुद श्री के वार्ड में जाकर सोफ़े पर लेट गया।

    अगली सुबह…

    आरिका की नींद खुली तो वह हैरान थी। वह जगह अनजान थी। वह अचानक से खुद से ही बोली,
    “मैं यहाँ पर कैसे आई?”

    वह जल्दी से उठी और उठकर कमरे से बाहर निकली और सीधा श्रीजा के कमरे की तरफ़ उसने अपने कदम बढ़ा दिए।

    उसने धीरे से कमरे का दरवाज़ा खोला और सामने सबसे पहले नज़र रणविजय पर गई, जो सोफ़े पर लेटा हुआ था। उसने एक नज़र श्रीजा को देखा जो अभी सो रही थी। वह धीरे से श्रीजा की तरफ़ बढ़ी और उसने धीरे से उसके माथे को सहलाया।

    आरिका ने फिर एक नज़र रणविजय की तरफ़ देखा। वह जाना चाहती थी घर, लेकिन बिना रणविजय को बताए जाना उसे ठीक भी नहीं लग रहा था। और उसे पता था अब वह घर जाएगी तो घर में एक नया बवाल तैयार मिलेगा। उसकी माँ और उसकी बहन घर में ज़रूर कोई क्लेश करेंगी। आरिका ने गहरी साँस भरी और थोड़ी देर में ही बैठ गई।

    नर्स जब राउंड पर आई तब जाकर रणविजय की नींद खुली। वह उठकर बैठा तो सामने आरिका दिखी, जो श्रीजा के पास बैठी थी। उसने आरिका को देखते हुए कहा,
    “उठ गई तुम? चलो मैं तुम्हें घर छोड़ आता हूँ। वैसे भी अभी रेहान और अर्थ आते होंगे श्री के पास।”

    आरिका ने हाँ में गर्दन हिला दी। रणविजय पहले फ़्रेश होने चला गया। वह जब तक फ़्रेश होकर आया तब तक रेहान, अर्थ और अभिजीत वहाँ मौजूद थे।

    रेहान तो श्री के लिए ढेर सारी चॉकलेट और चिप्स-कुरकुरे लेकर आया था। नर्स ने जब इतनी सारी चीज़ें देखीं तो रेहान पर गुस्सा करते हुए बोली,
    “दिमाग खराब है आपका! पेशेंट को ये सारी चीज़ें बिल्कुल अलाउड नहीं हैं और आप ये हॉस्पिटल में ले आए!”

    रेहान ने छोटा सा मुँह बनाते हुए कहा,
    “अब मैं क्या करूँ? मेरी भतीजी को ये सब कुछ पसंद है। वह तो जी भी इनके सहारे रही है।”

    नर्स ने उसे घूरकर देखा। तभी रणविजय ने रेहान को डाँटते हुए कहा,
    “तू क्यों उसके साथ बच्चा बन जाता है? थोड़ा तो सोचा कर, इस वक्त उसके लिए ये सारी चीज़ें बिल्कुल भी ठीक नहीं हैं। चुपचाप से ये सारी चीज़ें वापस भिजवा दे।”

    रेहान ने उसे मुँह बनाकर देखते हुए कहा,
    “ऐसे कैसे वापस भिजवा दूँ? मेरा नुकसान हो जाएगा। मैं अपनी प्रिंसेस के लिए लेकर आया हूँ और वैसे भी इतना सब कुछ वह अकेले थोड़ी खाएगी? मैं भी तो हूँ साथ में। हम दोनों मिलकर खाएँगे।”

    तभी श्रीजा ने मुँह बनाते हुए कहा,
    “बिल्कुल नहीं! आप मेरे लिए लाए हो ना, तो आप क्यों खाओगे? वापस करो सब।”

    नर्स ने उन दोनों को देखते हुए कहा,
    “ये सब यहाँ पर अलाउड नहीं है।” सब लोग अब नर्स की तरफ़ देखने लगे। वह कुछ तेज आवाज़ में बोली थी। उसने रेहान को देखते हुए कहा,
    “मिस्टर, आप ये सब कुछ यहाँ से हटाइए। ये हॉस्पिटल की पॉलिसी के ख़िलाफ़ है।”

    रेहान का तो मुँह ही उतर चुका था। आरिका बड़े ध्यान से सब कुछ देख रही थी। श्री के पास माँ नहीं थी, लेकिन एक ऐसा परिवार था जो उसे किसी की कमी महसूस तक न होने देता था।

    रणविजय ने आरिका की तरफ़ देखा और कहा,
    “चलो हम चलते हैं।” आरिका ने धीरे से गर्दन हिलाई।

    अभी वह आगे बढ़ती, उससे पहले ही रेहान आरिका के सामने आकर खड़ा हो गया और उसकी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाते हुए दाँत दिखाकर बोला,
    “हेलो मिस आरिका! माय सेल्फ रेहान अनेजा।”

    उसके अचानक से सामने आने से आरिका चौंक गई। रणविजय ने घूरकर अपने दोस्त को देखा। कैसे बंदरों जैसी हरकतें करता फिरता था वह! लेकिन कौन कह सकता था उसे कुछ? वह अपनी हरकतों से बाज़ तो वैसे भी नहीं आने वाला था।

    आरिका ने ऑकवर्डनेस के साथ मुस्कुराते हुए उससे हैंडशेक कर लिया। तभी रेहान आगे बोला,
    “आप बहुत सुंदर हो! मुझसे शादी करेंगी?”

    आरिका आँखें फाड़े उसे देखने लगी। पहली मुलाक़ात में शादी के लिए प्रपोज़ कौन कर सकता है? तभी उसे रणविजय का ख़्याल आया। पहली मुलाक़ात में उसने भी तो यही किया था।

    श्रीजा ने तुरंत रेहान को पीछे खींचते हुए कहा,
    “अंकल, क्या बकवास कर रहे हो आप?”

    रेहान तुरंत बोला,
    “यार, तेरी प्रोफ़ेसर कितनी प्यारी है! मैं तो शादी करने के लिए तैयार हूँ। वैसे भी दादी कह रही थी ना शादी की उम्र हो गई है, तो निकालना क्यों उम्र को? शादी कर लेता हूँ ना।”

    रणविजय अपनी मुट्ठियाँ कसे और जबड़े भींचे अपने दोस्त को घूरकर देख रहा था। अगर वह उसका दोस्त ना होता तो अब तक उसका जबड़ा टूट चुका होता।

    अपना गुस्सा कंट्रोल करते हुए रणविजय ने तुरंत आरिका की कलाई पकड़ ली और उसे खींचकर ले जाते हुए बोला,
    “चलो।”

    एरिका के साथ-साथ सब लोग हैरान थे। अचानक से उसे क्या हो गया था जो वह उसे इस तरह ले गया?

    लेकिन तभी अचानक रेहान जोर-जोर से हँसने लगा। अब सब लोग पागलों की तरह रेहान को देख रहे थे। अर्थ ने उसके सिर पर चपत लगाते हुए कहा,
    “पागलवागल हो गया है क्या? ऐसे पागलों की तरह क्यों हँस रहा है? क्या तुझे भी किसी पागलखाने में एडमिट करना होगा?”

    रेहान ने मुँह बनाकर कहा,
    “तुम लोग बहुत भोले हो! अबे, जलन हो रही है उसे। मेरे मिस आरिका से शादी के लिए पूछते ही वह कैसे गुस्से में उबलने लगा था! वह अलग बात है कि अपना गुस्सा उसने जाहिर नहीं होने दिया।”

    अर्थ, अभिजीत और श्री एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। उन्हें नहीं समझ आ रहा था कि ऐसा कुछ था भी या नहीं। श्री ने उन तीनों को देखते हुए कहा,
    “अगर ऐसा कुछ है तो बहुत अच्छी बात है। अगर ऐसा कुछ नहीं है तो हमें ऐसा बनाना होगा।” आख़िर में आते-आते उसने कुछ तेज आवाज़ में कहा और अचानक ही उसकी आह निकल गई। अभिजीत ने तुरंत उसके सर को हल्के से सहलाते हुए कहा,
    “आराम से बेटा, अभी ठीक नहीं हो तुम। हॉस्पिटल में हो, याद रखो।”

    श्रीजा ने अपने दाँत दिखाते हुए कहा,
    “सॉरी, याद नहीं रहा। आदत है ना तेज-तेज चिल्लाने की।”

    अर्थ उसकी बात पर हल्के से हँस दिया। श्रीजा ने उन तीनों को देखा और बोली,
    “कुछ आईडिया दो ना मिस आरिका को पापा की ज़िंदगी में सेट करने का।”

    वे तीनों उसे देखने लगे तो श्रीजा बोली,
    “मिस आरिका कितनी प्यारी हैं! वह मुझे कितने प्यार से ट्रीट करती हैं! मैं उनसे कुछ भी कह सकती हूँ और वह मुझे जज भी नहीं करती। तो मैंने तो यही सोचा है कि मैं उनको अपनी माँ बना लूँ। मेरे पापा की पत्नी तो वह अपने आप बन जाएगी फिर।”

    रेहान ने हैरानी से कहा,
    “हैं? तुम सच में ये सब सोच रही हो? तुम इस वक्त अस्पताल में बेड पर पड़ी हो और तुम्हारे दिमाग में ये सब कुछ चल रहा है?”

    श्रीजा ने हाँ में गर्दन हिलाई। अर्थ ने अपना माथा पीटते हुए कहा,
    “इस श्रीजा के सारे गुण रेहान से मिलते-जुलते क्यों हैं? कौन कह सकता है ये रणविजय की बेटी है?”

    रेहान ने मुँह बनाकर कहा,
    “हाँ तो मुझसे मिलते-जुलते होंगे ही! ये हमेशा से मेरी संगत में जो रही है, इसीलिए मेरे सारे गुण इसने अडॉप्ट कर लिए।”

    अभिजीत ने ना में गर्दन हिलाते हुए कहा,
    “एक रेहान संभल जाए वही बहुत है। श्रीजा अगर तुम्हारे जैसी हो गई तो हम उसे नहीं संभाल पाएँगे।”

    उसकी बात सुनकर रेहान का मुँह बन चुका था और श्रीजा हँस पड़ी।

    इधर रणविजय और आरिका कार में थे। रणविजय बस चुपचाप कार ड्राइव कर रहा था। आरिका अपनी उंगलियों को कभी उलझा रही थी, कभी सुलझा रही थी क्योंकि उसे पता था घर जाते ही क्या होने वाला था।

    रणविजय उसकी सारी हरकतें नोटिस कर रहा था, बस बता नहीं रहा था। आरिका को नहीं लग रहा था कि उसका ध्यान सिर्फ़ ड्राइविंग पर है, लेकिन रणविजय का ध्यान पूरी तरह से आरिका पर था।

    जल्दी ही उसने गाड़ी आरिका के घर के सामने रोकी। आरिका ने एक नज़र अपने घर को देखा और गहरी साँस भरकर गाड़ी से उतरते हुए बोली,
    “थैंक यू सो मच मिस्टर शेखावत, मुझे ड्रॉप करने के लिए।”

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा,
    “थैंक्स टू यू टू, मेरी बेटी की जान बचाने के लिए।”

    आरिका बस हल्के से मुस्कुरा दी और फिर कार से उतरकर अंदर की तरफ़ चली गई।

    अंदर पहले ही एक नई मुसीबत उसका इंतज़ार कर रही थी।

    उसकी माँ ने रिश्ता वालों को बुला रखा था। अपने घर में अजनबियों को देख आरिका को अजीब लगा।

    उसकी माँ सीमा जी ने जब उसे देखा तो जबरदस्ती की मुस्कान के साथ बोली,
    “आ गई तुम? क्या है ना, कल इसके कॉलेज में पार्टी थी तो कल रात वहीं पर रुक गई थी।”

    आरिका ने उन्हें घूरकर देखा, जैसे कहना चाह रही है “क्या चल रहा है यहाँ पर?” तभी उसकी बहन काव्या बोली,
    “वैसे मेरी बहन बहुत अच्छी है। उसे सब कुछ आता है। घर का सारा कामकाज भी आता है और अपना कॉलेज भी वह अच्छे से संभाल लेती है। वहाँ पर प्रोफ़ेसर है वह।”

    एरिका को अब इतना तो समझ आने लगा था कि यहाँ पर बहुत बड़ी गड़बड़ थी। उसने घूरते हुए सीमा जी को देखा और बोली,
    “ये सब क्या चल रहा है?”

    सीमा जी की जगह काव्या ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा,
    “तुम्हारे लिए माँ ने रिश्ता ढूँढा है। अब उम्र हो गई तुम्हारी शादी की, तो शादी तो करनी होगी ना।”

    यह सुनकर आरिका हैरान ही रह गई। उसे इतना तो पता था कि घर में क्लेश होगा, कुछ गड़बड़ ज़रूर होगी, लेकिन इतनी बड़ी गड़बड़ होगी उसे नहीं पता था।


    क्या होगा आगे? क्या आरिका अपनी सौतेली माँ के जाल से निकल पाएगी? या फिर सीमा जी ने कुछ और ही प्लान करके रखा था? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी…

    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 15. Dad ki dulhan - Chapter 15

    Words: 2575

    Estimated Reading Time: 16 min

    आरिका बस हल्के से मुस्कुरा दी। और फिर कार से उतर कर अंदर की तरफ चली गई।

    अंदर पहले ही एक नई मुसीबत उसका इंतजार कर रही थी।

    उसकी मां ने रिश्ते वालों को बुला रखा था। अपने घर में अजनबियों को देख आरिका को अजीब लगा।

    उसकी मां, सीमा जी ने, जब उसे देखा तो जबरदस्ती की मुस्कान के साथ बोली,
    “आ गई तुम। क्या है ना, कल इसके कॉलेज में पार्टी थी तो कल रात वहीं पर रुक गई थी।”

    आरिका ने उन्हें घूर कर देखा। जैसे कहना चाह रही थी, “क्या चल रहा है यहां पर?” तभी उसकी बहन, काव्या, बोली,
    “वैसे मेरी बहन बहुत अच्छी है। उसे सब कुछ आता है। घर का सारा कामकाज भी आता है। और अपना कॉलेज भी वह अच्छे से संभाल लेती है। वहां पर प्रोफेसर है वो।”

    एरिका को अब इतना तो समझ आने लगा था कि यहां पर बहुत बड़ी गड़बड़ थी। उसने घूरते हुए सीमा जी को देखा और बोली,
    “यह सब क्या चल रहा है?”

    सीमा जी की जगह काव्या ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा,
    “तुम्हारे लिए मां ने रिश्ता ढूंढा है। अब उम्र हो गई तुम्हारी शादी की। तो शादी तो करनी होगी ना।”

    यह सुनकर आरिका हैरान ही रह गई। उसे इतना तो पता था कि घर में क्लेश होगा। कुछ गड़बड़ जरूर होगी। लेकिन इतनी बड़ी गड़बड़ होगी, उसे नहीं पता था।


    आरिका को लग रहा था इससे बेहतर तो वह रणविजय या रेहान में से किसी के प्रपोजल को एक्सेप्ट कर लेती। कम से कम अपनी मां के चंगुल से तो छूट जाती। उसने मन ही मन कहा,
    “क्या मिस्टर शेखावत जा चुके हैं? काश मैं आने में थोड़ा लेट हो जाती।”

    उसकी नजर उस आदमी पर गई जो उसके मां की नजरों में आरिका के काबिल था। उम्र देखने में उसके कोई 47-48 साल लग रही होगी। एरिका ने अपनी मां को घूर कर देखा और बोली,
    “एक काम कीजिए, अपनी बेटी की शादी करवा दीजिए। मुझे शादी करने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। मैं अपना खुद का खुद से देख सकती हूं।”

    तभी उस आदमी की मां ने आरिका को घूर कर देखा। वह औरत लगभग 80 साल के करीब लग रही थी। वो आरिका को घूरते हुए बोली,
    “जुबान तो बहुत चल रही है छोरी की। और आप यहां पर अपनी बेटी के संस्कारों के पुल बांध रही हैं।”

    अरिका ने उन्हें घूरते हुए कहा,
    “हां तो उसी पुल के साथ डूब मरिए। आप भी और आपका बेटा भी। मैं किसी से शादी-वादी नहीं करने वाली हूं। आप सबका हो गया हो तो मेरे घर से निकलिए।”

    उस आदमी ने आरिका को ऊपर से नीचे तक अजीब तरह से स्कैन करके देखा। आरिका थोड़ी सी अनकंफरटेबल हो गई थी। उसकी नज़रें उसे नहीं पसंद आ रही थीं। वह क्या खाक खुश रखता उसे? उस आदमी ने आरिका को देखते हुए कहा,
    “इतना घमंड भी अच्छी बात नहीं है।”

    तभी पीछे से एक गहरी, साफ और मैग्नेटिक वॉइस सब के कानों में पड़ी,
    “सूट करता है उस पर, क्यों न करे वो घमंड।”

    यह आवाज सुनते ही आरिका जड़ हो चुकी थी। उसने हिम्मत भी नहीं की कि वह पलट कर देख सके। वह आराम से समझ रही थी कि पीछे कौन था।

    वो रणविजय था। जो चलकर आरिका के पास आकर खड़ा हुआ और उसका फोन उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोला,
    “तुम अपना फोन कार में भूल गई।”

    काव्या तो रणविजय की खूबसूरती निहारने में बिजी थी। सीमा जी ने घूर कर रणविजय को देखा और फिर आरिका को घूरते हुए बोली,
    “कौन है यह आदमी? रात भर क्या तुम इसके साथ थी? शर्म नहीं आई तुम्हें ऐसे काम करते हुए? अरे समाज में हमारी नाक कटवा दी। तुम रात-रात भर कहां रह कर आती हो। कुछ पता नहीं होता। मैं तुम्हारे लिए यहां पर एक अच्छा फ्यूचर सोच रही हूं और तुम हो कि…”

    आरिका ने तो उनकी बातों को ऐसे इग्नोर कर रखा था जैसे वह वहां पर हो ही ना। उसके लिए यह कोई नई बात तो थी नहीं। लेकिन रणविजय के माथे पर बल पड़ चुके थे। अचानक रणविजय ने आरिका की कमर में अपना हाथ डाला और उसे अपनी तरफ खींच लिया। आरिका पूरी तरह से रणविजय की बाहों में थी। और हर कोई उन्हें देख कर हैरान था। काव्या तो जल भुनकर राख ही हो चुकी थी। आरिका हैरानी से मुंह खोले रणविजय को ही देखे जा रही थी। वह क्या करने की कोशिश कर रहा था? वह हल्के से उसकी बाहों में कसमसाई कि रणविजय ने अपनी पकड़ कुछ और तेज कर ली।

    रणविजय ने आरिका की मां को देखते हुए कहा,
    “बहुत फिक्र है ना आपको इसकी? मत किया करो। इसकी फिक्र करने के लिए और भी लोग हैं। और हां एक बात कान खोल कर सुन लो, यह कब घर में आ रही है कब जा रही है इसका हिसाब तुम्हें रखने की जरूरत नहीं। वह तुम्हें जब इसे हर महीने की तनख्वाह छीन लेते हो तब तुम्हें यह नहीं ख्याल आता कि वह कब आती है कब जाती है। खाना ठीक से खाती है या नहीं। खुद का ध्यान रखती भी है या नहीं। और आज तुम्हें मिर्ची लग रही है।”

    काव्या ने उसे देखते हुए कहा,
    “तुम तो ऐसे इसकी पक्ष ले रहे हो जैसे यह रात भर तुम्हारे साथ थी।”

    “हां, वह मेरे साथ थी। और कुछ जानना है तुम्हें? हम कहां थे, क्या कर रहे थे, क्या नहीं, सब कुछ बताऊं डिटेल में?” रणविजय ने उसे दो टूक सा जवाब दिया। काव्या का मुंह खुला का खुला रह गया। उसे तो लगा था कि बात चाहे जो भी हो, सामने से यह जवाब तो नहीं आएगा। वहीं आरिका ने धीरे से रणविजय की शर्ट को अपनी मुट्ठी में भरते हुए उसे इशारा किया कि वो चुप हो जाए। लेकिन रणविजय कहां चुप होता। अब जब वह यहां आया था और उसने सामने का नजारा देख ही लिया था तो जो रेहान पर उसके भड़ास निकालनी चाहिए थी वह किसी पर तो निकाले। अपने दोस्त पर तो हाथ नहीं उठा सकता था। लेकिन यहां मौजूद उस आदमी पर जरूर उठा सकता था। आरिका की मां और बहन को सुना भी सकता था। यहां पर उसे कौन रोकने वाला था?

    सीमा जी ने घूर कर आरिका को देखा और बोली,
    “तुम नाम डुबो दो अपने बाप का। पता नहीं किस घड़ी में तुम पैदा हो गई थी। पहले मां को खा गई और फिर अपने बाप को।”

    यह सुनकर इस बार आरिका की आंखों में आंसू आ गए। उसने गुस्से से उनकी तरफ देखा और चिल्ला कर बोली,
    “आपको क्यों इतनी तकलीफ हो रही है? मेरी मां थी ना, मैंने आपसे लाख बार कहा है कि मरे लोगों को बख्श दो। लेकिन आपको हर बार उन्हें बीच में लाना ही होता है। मैंने तो कभी नहीं कहा कि आपने मेरे पापा को अपने जाल में फंसा कर शादी कर ली। मैंने तो कभी नहीं कहा कि आपने किसी और का गंदा खून मेरे पापा के नाम पर उनके मत्थे मढ़ दिया। आपने मुझे समझ क्या रखा है? मैं जो भी हूं, जैसी भी हूं, कम से कम मुझे यह तो पता है कि मेरे असली मां-बाप कौन हैं। आपकी बेटी को तो अपने असली बाप का नाम भी नहीं पता। सिर्फ मेरे पापा ने उसे नाम दिया है, इससे यह साबित नहीं होता कि वह उनकी ही बेटी है।”

    आरिका की बात सुनकर हर कोई हैरान था। सीमा जी तो आंखें फाड़े उसे देख रही थीं। उनका राज उसे पता था। वहीं काव्या तो और भी ज्यादा हैरान थी। उसे तो कुछ पता ही नहीं था।

    सीमा जी ने उसे थप्पड़ मारने को हाथ उठाते हुए कहा,
    “तुम…”

    लेकिन इससे पहले वह थप्पड़ आरिका तक पहुंच भी पाता, रणविजय ने उनका हाथ पकड़ कर झटक दिया। सीमा जी लड़खड़ा गईं। काव्या ने जल्दी से उन्हें संभाला।

    रणविजय ने उन दोनों मां-बेटी की तरफ उंगली पॉइंट करते हुए घूर कर उनको देखा और बोला,
    “सोचना भी मत। आज तक तुम दोनों ने जो किया सो किया। लेकिन आगे से अगर आरिका को जरा भी तकलीफ हुई तो जान ले लूंगा तुम दोनों की। और यकीन मानो कोई तुम्हारी खोज-खबर लेने वाला भी नहीं होगा। कहां गई, किसी को कानों-कान खबर नहीं होगी।”

    वह आदमी और उसकी मां तो घबरा गए थे। आरिका अकेली होती तो वह दोनों उसे किसी न किसी तर्क से या फिर ताने सुना कर ही सही अपनी बातों में ले ही लेते। लेकिन यहां पर सामने खड़ा था रणविजय जो आरिका को बराबर प्रोटेक्ट कर रहा था। आरिका को पहली बार लग रहा था कि उसके लिए भी कोई था जो लड़ सकता था। आज तक तो अपनी हर एक लड़ाई वह खुद ही लड़ती आई थी।

    रणविजय ने आरिका की तरफ देखा और धीरे से अपना हाथ उठाकर प्यार से अपने अंगूठे से उसके गाल को सहला कर कहा,
    “डोंट वरी, कुछ नहीं होगा। मैं बस तुमसे सिर्फ एक कॉल की दूरी पर हूं। कभी भी कॉल कर सकती हो मुझे।”

    आरिका की आंखों में ना चाहते हुए भी नमी उतर आई। उसने अपना सर रणविजय के सीने में छुपा दिया। रणविजय समझ सकता था कि वह जिसने हमेशा से खुद को इतना मजबूत रखा, किसी का एक हल्का सा सहारा मिलते ही वह भी टूट रही थी। रणविजय ने प्यार से उसके सर को सहला कर कहा,
    “टेक सम रेस्ट। वैसे भी रात को ठीक से सोई नहीं ना तुम।”

    ये बात रणविजय ने नॉर्मल वे ही कही थी। लेकिन सीमा जी और काव्या की तो आंखें फटी की फटी रह गई थीं। उन्होंने इस बात को किसी और ही वे में ले लिया था।

    तभी उस आदमी की मां ने उठते हुए गुस्से से कहा,
    “कैसी लड़की है, पता नहीं किसके साथ रात बिता कर आई है। और तुम ऐसी लड़की को हमारे मत्थे मढ़ना चाहती हो। मेरे बेटे को लड़कियों की कमी नहीं है। वह तो तुमने ही हाथा जोड़ी की थी इसीलिए हम यहां आए।”

    रणविजय ने जैसे ही यह सुना तो उसने उस आदमी की तरफ देखा और बोला,
    “हां तो ठीक है ना, अपने बेटे के लिए कोई और लड़की देख लो। आरिका की तरफ अगर आंख उठाकर भी देखा ना तो आंखें निकाल लूंगा तुम लोगों की।”

    वह औरत और उसका बेटा दोनों ही घबरा गए थे। रणविजय की आंखें उन्हें धमकी दे रही थीं कि एक पल वह और यहां रुके तो वह उन्हें बिल्कुल नहीं बक्शेगा।

    वह औरत सीमा जी को कोसती हुई अपने बेटे के साथ वहां से चली गई। सीमा जी और काव्या भी बस जबड़े भींच कर ही रह गए। इस वक्त तो क्या ही कहते, रणविजय वहीं मौजूद था।

    थोड़ी देर बाद रणविजय ने उसके बालों को ठीक करते हुए प्यार से कहा,
    “मेरी बात याद रखना, सिर्फ एक कॉल दूर हूं तुमसे। कभी भी कॉल कर सकती हो।”

    आरिका ने धीरे से कहा,
    “थैंक यू।”

    रणविजय हल्के से मुस्कुराया और बोला,
    “मेरी बेटी की जान बचाई है ना, एहसान है तुम्हारा मुझ पर। चाहकर भी नहीं चुका पाऊंगा।”

    आरिका उसे देखते रही। वहीं काव्या का ध्यान तो रणविजय के पूरे गेटअप और उसके चेहरे पर ही था। उसे देखने में ही पता लग रहा था कि वह आदमी कितना रिच होगा। और ऊपर से इतना हैंडसम भी था। काव्या ने मन ही मन कहा,
    “क्या किस्मत लिखवा कर लाई है यह आरिका की बच्ची। इसे तो शुगर डैडी भी मिल गया। वह भी इतना हॉट और हैंडसम, वरना कोई बुड्ढा भी इसे भाव ना दे।”

    तभी रणविजय का फोन बजा। उसने कॉल देखा तो अभिजीत का था। उसने कॉल पिक की तो उधर से अभिजीत की आवाज आई,
    “दादी हॉस्पिटल आ गई है। हंगामा खड़ा कर दिया है उन्होंने कि हमने उन्हें नहीं बताया।”

    रणविजय ने परेशान होते हुए कहा,
    “तो उन्हें बताया किसने?” अभिजीत कुछ पल रुका फिर बोला,
    “रेहान के पेट में कहां कोई बात पचती है। फ्लो-फ्लो में सब कुछ बक दिया।”

    रणविजय ने अपना माथा पीटते हुए कहा,
    “इस रेहान के बच्चों को मैं छोड़ूंगा नहीं।”

    रणविजय ने आरिका को देखा और फिर फोन रखते हुए उसे देखकर बोला,
    “तुम फ्रेश हो जाओ और थोड़ी देर रेस्ट कर लो। मैं वापस जा रहा हूं, दादी आई है।”

    आरिका ने उसे देख कहा,
    “मैं भी चलूं वापस। मैं यहां पर…”

    रणविजय ने एक नजर उसकी मां और बहन को देखा। वह आरिका के कहने का मतलब अच्छे से समझ चुका था। उसने धीरे से उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,
    “ठीक है, चेंज कर लो, मैं बाहर वेट कर रहा हूं।”

    आरिका हल्के से मुस्कुराई और जल्दी से अपने कमरे में भाग गई। रणविजय उसी तरफ देख रहा था जहां वह गई थी।

    आरिका ने अपने कपड़े लिए और जल्दी से बाथरूम में घुस गई। रणविजय का बिल्कुल मन नहीं था कि वह सीमा जी और काव्या की सड़ी हुई शक्ल देखें, लेकिन क्या कर सकता था? उसे वहां रुकना था। लेकिन कुछ सोच कर उसने अपने कदम आरिका के कमरे की तरफ बढ़ा दिए। उसने हल्के से झांक कर देखा। कमरे में कोई नजर नहीं आया तो वह आराम से अंदर जाकर बेड पर बैठ गया। और पूरे कमरे का मुआयना करने लगा।

    कमरा न ज्यादा छोटा था और न बड़ा। जहां पर आरिका के लिए एक बेड और बेड के साइड में छोटी सी टेबल थी। पूरे कमरे में पेस्टल ब्लू कलर हो रखा था जो किसी को भी सुकून दे।

    दीवार पर कुछ छोटी-बड़ी आरिका की और उसके पापा की फोटोस लगी हुई थीं। आरिका उस वक्त काफी छोटी लग रही थी। यही कोई चार-पांच साल उम्र रही होगी उसकी। और वहीं बीच में उसने एक अपनी मां की फोटो लगा रखी थी। उसके पास यह इकलौती फोटो थी अपनी मां की। रणविजय बड़े ध्यान से सब कुछ देख रहा था और ऑब्जर्व कर रहा था कि आरिका की पर्सनैलिटी कैसी हो सकती थी।

    तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और आरिका बाहर निकली। रणविजय को देखते ही वो ठिठक गई। वहीं रणविजय की नजर भी उसकी तरफ उठी।


    क्या होगा आगे? क्या रणविजय का यह प्रोटेक्शन हमेशा रहेगा आरिका के साथ? क्या काव्या और सीमा जी शांत हो जाएंगी आज के बाद? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।


    ✍️ Riya Sirswa

  • 16. Dad ki dulhan - Chapter 16

    Words: 2537

    Estimated Reading Time: 16 min

    आरिका हल्के से मुस्कुराई और जल्दी से अपने कमरे में भाग गई। रणविजय उसी तरफ देख रहा था जहाँ वह गई थी।

    आरिका ने अपने कपड़े लिए और जल्दी से बाथरूम में घुस गई। रणविजय का बिल्कुल मन नहीं था कि वह सीमा जी और काव्या की सड़ी हुई शक्ल देखें, लेकिन क्या कर सकता था? उसे वहाँ रुकना था। लेकिन कुछ सोचकर उसने अपने कदम आरिका के कमरे की तरफ बढ़ा दिए। उसने हल्के से झाँककर देखा। कमरे में कोई नज़र नहीं आया तो वह आराम से अंदर जाकर बेड पर बैठ गया और पूरे कमरे का मुआयना करने लगा।

    कमरा न ज्यादा छोटा था और न बड़ा। जहाँ पर आरिका के लिए एक बेड और बेड के साइड में छोटी सी टेबल थी। पूरे कमरे में पेस्टल ब्लू कलर हो रखा था, जो किसी को भी सुकून दे।

    दीवार पर कुछ छोटी-बड़ी आरिका की और उसके पापा की फोटोस लगी हुई थीं। आरिका उस वक्त काफी छोटी लग रही थी; यही कोई चार-पाँच साल उम्र रही होगी उसकी। और वहीं बीच में उसने अपनी माँ की एक फोटो लगा रखी थी। उसके पास यह इकलौती फोटो थी अपनी माँ की। रणविजय बड़े ध्यान से सब कुछ देख रहा था और ऑब्जर्व कर रहा था कि आरिका की पर्सनैलिटी कैसी हो सकती थी।

    तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और आरिका बाहर निकली। रणविजय को देखते ही वह ठिठक गई। वहीं रणविजय की नज़र भी उसकी तरफ उठी।


    आरिका ने बैगी जींस और क्रॉप टॉप पहन रखा था। उसकी हल्की सी कमर उसके टॉप और जींस के बीच में से झाँक रही थी। उसके लंबे गीले बालों से पानी टपक रहा था। रणविजय तो बस उसे देखता ही रह गया। उसने मन ही मन खुद से कहा, “लड़कियाँ इतनी जल्दी नहाकर निकल भी सकती हैं क्या? या फिर यह कुछ अलग है।”

    आरिका ने जब उसे देखा तो रणविजय ने खुद ही अपनी सफ़ाई देते हुए कहा,
    “तुम्हारी सौतेली माँ और सौतेली बहन की शक्ल नहीं देखनी थी मुझे। मुँह सड़ाकर बैठी हैं। ओबवियस सी बात है, जो होना ही है। इसलिए मैं यहाँ पर आ गया। सॉरी, बिना परमिशन के कमरे में आ गया।”

    आरिका उसे क्या ही कहती। उसने बस “इट्स ओके” कहकर बात ख़त्म कर दी। जबकि असल बात तो यह थी कि रणविजय बिना परमिशन के सिर्फ़ कमरे में ही नहीं घुसा था, बल्कि ज़िन्दगी में भी घुस रहा था; जो उन दोनों को एहसास नहीं था।

    आरिका ने उसे देखकर कहा,
    “बस पाँच मिनट।”

    यह कहते हुए वह मिरर के सामने आ गई। छोटी सी ड्रेसिंग थी जिस पर उसने अपनी ज़रूरत का तैयार होने का सारा सामान रख रखा था। रणविजय बड़े ध्यान से सब कुछ देख रहा था और उसे अब सच में पता लग रहा था कि आरिका जितनी सिंपल दिखती थी, उतनी ही थी भी।

    आरिका ने जल्दी से अपनी आँखों में हल्का सा काजल लगाया और कानों में छोटे-छोटे पर्ल के इयरिंग पहन लिए। इसके साथ ही उसने अपने होठों पर न्यूड कलर की लिपस्टिक लगाई और गीले बालों को छोटे से एक लेक्चर से हल्के से बाँध लिया।

    वह रणविजय की तरफ़ पलटी और बोली,
    “चले।”

    रणविजय सच में हैरान था। पाँच मिनट बोलकर भी इस लड़की ने पाँच मिनट में पूरे नहीं लगाए थे। उसने श्रीजा को देखा था; वह पाँच मिनट का कहती तो आधा घंटा पहले हिलती नहीं थी। लेकिन यहाँ पर तो सीन ही अलग था। लेकिन रणविजय उठ खड़ा हुआ और आरिका के पास आकर उसका हाथ पकड़ते हुए बोला,
    “चलो।”

    आरिका को अजीब लगा। उसने अपना हाथ देखा जो रणविजय के हाथ में खो सा चुका था और उसकी हाइट में भी पूरा एक इंच का डिफरेंस था। और रणविजय के हाथ में उसका हाथ बिल्कुल बच्चों के हाथ जैसा लग रहा था।

    रणविजय उसे लेकर बाहर आया और उसकी माँ और बहन को पूरी तरह से इग्नोर करते हुए उनके सामने से बाहर निकल गया। आरिका को भी कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा। वह दोनों जाकर गाड़ी में बैठे और रणविजय ने वापस से गाड़ी हॉस्पिटल की तरफ़ भगा दी।

    जल्दी ही वह लोग हॉस्पिटल के सामने थे और दोनों जल्दी ही श्रीजा के वार्ड में पहुँच चुके थे।

    दादी श्रीजा के पास बैठी थी और प्यार से उसके चेहरे को सहला रही थी, तो कभी उसके सर को। श्रीजा उन्हें समझा-समझाकर थक चुकी थी कि वह ठीक है, लेकिन दादी समझने को तैयार नहीं थी।

    रणविजय ने दादी को देखते हुए कहा,
    “दादी।”

    दादी ने पलटकर रणविजय की तरफ़ देखा और घूरते हुए बोली,
    “बात मत कर मुझसे। मेरी बच्ची रात भर दर्द में थी, यहाँ अस्पताल में थी और तूने मुझे बताया नहीं।”

    रणविजय ने आराम से उनके पास जाते हुए नीचे बैठकर उनके हाथों को पकड़ा और प्यार से बोला,
    “वह ठीक है, चिंता मत कीजिए। वैसे भी छोटा सा एक्सीडेंट था जो टल गया, कुछ नहीं हुआ है आपकी पोती को।”

    श्रीजा ने अपने पापा को देखा और बोली,
    “मैं तो समझा-समझाकर थक चुकी हूँ पापा, लेकिन मानने को और सुनने को तैयार ही नहीं है दादी। आप बताओ इन्हें कि मैं बिल्कुल फ़िट एंड फ़ाइन हूँ।”

    आरिका रणविजय और उसकी दादी को देख रही थी। तभी दादी की नज़र आरिका पर गई और वह उसे देखकर अचानक से बोली,
    “यह लड़की, यह कौन है?”

    रेहान ने तुरंत कहा,
    “आपकी होने वाली बहू है दादी।”

    उसके यह कहते ही सब हैरानी से उसे देखने लगे। रेहान ने दाँत दिखाते हुए कहा,
    “मैंने मिस आरिका को शादी के लिए पूछा था ना? तो क्या हुआ, उन्होंने जवाब नहीं दिया। वह ज़रूर मेरी बात के बारे में सोचेंगी।”

    दादी को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था। रणविजय रेहान को घूरकर देख रहा था। उसका बस चलता तो वह वहाँ पर उस आदमी पर भी अपना हाथ साफ़ कर चुका होता। लेकिन उस आदमी ने ऐसी कोई हरकत नहीं की थी जिसकी वजह से उसे उसे पर हाथ साफ़ करने का मौक़ा मिले। और फिर एक तरफ़ उसका दोस्त था, जो हरकतें ऐसी करता था कि रणविजय का दिल ही उसे पीटने का करता था।

    श्रीजा ने उसे घूरकर देखते हुए कहा,
    “कुछ भी मत बोलो अंकल।”

    फिर उसने दादी को देखा और बोली,
    “दादी, यह मेरी प्रोफ़ेसर हैं। मैंने आपको बताया था ना मिस आरिका के बारे में? कल इन्होंने मुझे ब्लड दिया। इनका और मेरा ब्लड ग्रुप सेम है।”

    दादी ने सर से पाँव तक आरिका को देखा और फिर प्यार से मुस्कुराकर बोली,
    “अच्छा, तुम हो आरिका। जब से आई हूँ तब से तुम्हारे चर्चे सुनने को मिल रहे हैं।”

    उनकी बात सुनकर आरिका को अजीब भी लगा और खुशी भी हुई कि श्रीजा उसके बारे में इतनी बातें करती थी।

    दादी ने मुस्कुराकर कहा,
    “तुमने श्रीजा को ब्लड दिया। थैंक यू। अब तो तुम दोनों का खून का रिश्ता हो गया है।”

    उनकी बात सुनते ही सब लोग उनको देखने लगे तो दादी बोली,
    “ऐसे क्या देख रहे हो? उसने श्रीजा को ब्लड दिया ना तो उनका खून का रिश्ता हो गया।”

    रेहान ने मुँह बनाकर कहा,
    “आपके लॉजिक अजीब होते हैं।”

    “हाँ तो ध्यान ही मत दिया करो मेरे लॉजिक की तरफ़। मुझे नहीं करनी तेरी शादी। पता नहीं जो पीछे आएगी उसका क्या ही होगा। तुम सब की यह उम्र है कि तुम्हारा एक-एक बच्चा हो जाना चाहिए था, लेकिन खुद बच्चे बने घूम रहे हो।”

    दादी ने मुँह बनाकर शिकायत कर दी। अर्थ ने तुरंत कहा,
    “दादी, आप हॉस्पिटल में भी यह टॉपिक लेकर आ गईं। आप आराम से हमारी शादी करवा दीजिएगा। हम आपको मना नहीं करेंगे। एक काम कीजिए, आप खुद लड़की ढूँढ लीजिए। हमें मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।”

    दादी ने मुँह बनाकर कहा,
    “बस, बस, सब जानती हूँ तुम लोगों के नखरे। नाटक आते हैं तुम सबको। बड़े आए मेरी पसंद से शादी करने वाले।”

    कहते हुए उन्होंने मुँह बनाया और श्रीजा उनकी शक्ल देखकर हँस पड़ी।

    इधर अंगद बलवीर के पीछे लगा हुआ था। जब से बलवीर ने यह कांड किया था वह छुप चुका था, लेकिन कहाँ तक छुपता? अंगद के मन में यह गिल्ट था कि उसकी वजह से श्रीजा के साथ यह सब कुछ हुआ, जबकि रीज़न वह था ही नहीं। लेकिन कहीं न कहीं उसे यह भी लग रहा था कि रणविजय उसे ही ग़लत ठहराएगा। इसलिए वह तब से श्रीजा से मिलने भी नहीं गया था। श्रीजा उसे कई कॉल कर चुकी थी, लेकिन अंगद ने उसका रिप्लाई भी नहीं किया। उसने सोच लिया था कि जब तक बलवीर का हिसाब नहीं करेगा वह वापस नहीं जाएगा। हालाँकि रणविजय और रेहान ने अपने आदमियों को बलवीर को ढूँढने में लगा हुआ था, लेकिन अंगद सबसे चार कदम आगे था और बलवीर को पकड़कर उसे बस सबक सिखाना चाहता था।

    बलवीर के बारे में उसे पुख्ता रिपोर्ट मिली थी और इस वक्त वह बस वहीं जा रहा था जहाँ पर बलवीर था।

    इधर दादी आरिका के पास ही बैठी थी। आरिका को काफ़ी अजीब भी लग रहा था, लेकिन वह घर पर नहीं रुक सकती थी। दादी ने आरिका को देखा और बोली,
    “शादी हो गई तुम्हारी।”

    आरिका ने चौंककर दादी को देखा। फिर धीरे से ना में गर्दन हिला दी। दादी ने उसे देखा, फिर धीरे से गहरी साँस भरकर बोली,
    “हाँ, मेरा पोता भी शादी नहीं कर रहा। उसका कहना है कि वह अपनी बेटी के लिए सौतेली माँ नहीं लाएगा।”

    आरिका ने उनकी बात सुनी और फिर सामने श्रीजा और रणविजय को देखा। इस वक्त रणविजय श्रीजा को फ़्रूट्स खिला रहा था।

    वह हल्के से मुस्कुराई और बोली,
    “ग़लत क्या है? पता नहीं क्यों सौतेली माँ कभी भी माँ बन ही नहीं सकती। वह हमेशा सौतेली ही रहती हैं। उनके आने के बाद तो माँ के प्यार जैसा थोड़ा प्यार मिलना तो दूर, जो बाप का प्यार होता है वह भी छिन जाता है।”

    दादी आरिका को देखने लगी। आरिका जो यह सब बोल रही थी, उसकी आवाज़ में एक अजीब सा दर्द था। दादी बहुत गौर से उसके चेहरे को देख रही थी। वह जितने प्यार से श्रीजा को देख रही थी, दादी को वह अनएक्सपेक्टेड लगा था।

    श्रीजा ने आरिका की तरफ़ देखा और बोली,
    “मिस आरिका, आपने कुछ खाया या नहीं?”

    आरिका उसकी बात सुनकर हड़बड़ा गई। उसने कुछ भी तो नहीं खाया था। बस फ़्रेश होकर सीधा रणविजय के साथ वापस चली आई। असल में तो रात से ही उसने ठीक से कुछ खाया ही नहीं था।

    रणविजय की नज़रें भी आरिका की तरफ़ चली गईं। उसकी शक्ल देखकर ही उसे पता लग गया था कि उसने कहाँ ही कुछ खाया होगा। और वैसे भी रात भर वह उसके साथ थी और सुबह भी तो वापस उसी के साथ आई थी। टाइम ही कहाँ मिला था उसे कुछ खाने का।

    “मैं खा लूँगी श्री। तुम चिंता मत करो। फ़िलहाल तो तुम अपना ध्यान रखो। वही बेहतर है।” आरिका ने प्यार से कहा।

    रणविजय ने फ़्रूट्स की प्लेट श्रीजा की गोद में रखी और फिर खुद उठकर एक और प्लेट में फ़्रूट्स काटने लगा। दादी का ध्यान रणविजय की हरकतों पर था। बाकी श्रीजा और आरिका तो अपनी बातों में लग चुकी थीं।

    थोड़ी देर में रणविजय वह फ़्रूट से भरी हुई प्लेट लेकर आरिका की तरफ़ आया और आरिका की तरफ़ वह प्लेट करते हुए बोला,
    “कुछ खा लो। वैसे भी अस्पताल के वार्ड में खाना अलाउड नहीं है। तो हमें बाहर जाकर कुछ खाना होगा। लेकिन थोड़ा बहुत कुछ खा लोगी तो जल्दी नहीं रहेगी।”

    आरिका रणविजय को देखने लगी। उसने उसके लिए फ़्रूट्स काटे थे। सीरियसली, क्या उसकी ज़िन्दगी में उसकी कोई अहमियत थी जिसके लिए वह परवाह कर रहा था?

    रणविजय ने उसे देखा फिर बोला,
    “खा लो, सच में देर होगी।”

    आरिका ने बस धीरे से वह प्लेट पकड़ ली। रणविजय ने दादी की तरफ़ देखा और बोला,
    “अब आप वापस घर जा रही हैं, बहुत देर हो गई आपके यहाँ आए।”

    दादी कुछ कहती उससे पहले रणविजय बोला,
    “दादी प्लीज़, मैं उसे नहीं संभाल पाऊँगा, उसकी हरकतें देखी हैं ना आपने। और आप यहाँ रहेंगी तो उसे और क्षय मिलेगी।” दादी क्या ही करती बेचारी। रणविजय ने उन्हें घर भेज ही दिया।

    रेहान, अर्थ और अभिजीत भी जा चुके थे। वहाँ पर अब फिर से वही तीनों ही थे। श्रीजा ने उन दोनों को देखा जो आराम से सोफ़े पर बैठे थे। आरिका तो उन फ़्रूट्स को अब तक घूर ही रही थी।

    रणविजय ने उसकी हरकत देखी तो बोला,
    “अपने आप तो तुम्हारे मुँह में जाएँगे नहीं हैं ये। खाओगी तभी होगा ना। घूरने से ख़त्म भी नहीं होंगे।”

    आरिका का मुँह बन गया और श्रीजा हँस पड़ी। आरिका ने घूरकर श्रीजा की तरफ़ देखा तो वह हँसते हुए बोली,
    “जो प्रोफ़ेसर कॉलेज में सबको डाँट लगाती है, उन्हें भी कोई डाँट लगा सकता है।”

    आरिका कुछ कह नहीं पाई। उसने बस अपनी गर्दन झुका ली और चुपचाप से फ़्रूट खाने लगी।

    श्रीजा मुस्कुराते हुए बस उन दोनों को देख रही थी। उसके दिमाग़ में बस यही चल रहा था कि आरिका और रणविजय को एक-दूसरे के करीब कैसे लाया जाए। हालाँकि वह समझती थी कि किसी के दिल में फ़ीलिंग ऐसे ही तो डेवलप नहीं की जा सकती थीं, लेकिन फिर भी उसने यह तो देखा था कि रणविजय के दिल में आरिका के लिए एक सॉफ़्ट कॉर्नर ज़रूर था।

    श्रीजा तो थोड़ी देर बाद दवाइयाँ लेकर सो चुकी थी। आरिका अपने फ़ोन में कुछ कर रही थी। उसके फ़ोन पर ना जाने कितने ही मिस कॉल और मैसेज पड़े थे। ओबवियसली, यह सारे उसकी सौतेली माँ और बहन के थे।


    क्या होगा आगे? क्या रणविजय और आरिका के बीच आएंगी नज़दीकियाँ? क्या अंगद ढूँढ पाएगा बलवीर को? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी “म...

    To be continued...

    ✍️ Riya Sirswa

  • 17. Dad ki dulhan - Chapter 17

    Words: 2568

    Estimated Reading Time: 16 min

    दादी क्या ही करती बेचारी। रणविजय ने उन्हें घर भेज ही दिया।

    रेहान, अर्थ और अभिजीत भी जा चुके थे। वहाँ पर अब फिर से वही तीनों थे। श्रीजा ने उन दोनों को देखा जो आराम से सोफ़े पर बैठे थे। आरिका तो उन फ्रूट्स को अब तक घूर ही रही थी।

    रणविजय ने जब उसकी हरकत देखी, तो बोला,
    “अपने आप तो तुम्हारे मुँह में जाएँगे नहीं ये। खाओगी तभी होगा ना। घूरने से ख़त्म भी नहीं होंगे।”

    आरिका का मुँह बन गया और श्रीजा हँस पड़ी। आरिका ने घूरकर श्रीजा की तरफ़ देखा तो वो हँसते हुए बोली,
    “जो प्रोफ़ेसर कॉलेज में सबको डाँट लगाती है, उन्हें भी कोई डाँट लगा सकता है।”

    आरिका कुछ कह नहीं पाई। उसने बस अपनी गर्दन झुका ली और चुपचाप से फ्रूट खाने लगी।

    श्रीजा मुस्कुराते हुए बस उन दोनों को देख रही थी। उसके दिमाग में बस यही चल रहा था कि आरिका और रणविजय को एक-दूसरे के करीब कैसे लाया जाए। हालाँकि वह समझती थी कि किसी के दिल में फीलिंग ऐसे ही तो डेवलप नहीं की जा सकती थीं, लेकिन फिर भी उसने यह तो देखा था कि रणविजय के दिल में आरिका के लिए एक सॉफ़्ट कॉर्नर ज़रूर था।

    थोड़ी देर बाद श्रीजा दवाइयाँ लेकर सो चुकी थी। आरिका अपने फ़ोन में कुछ कर रही थी। उसके फ़ोन पर न जाने कितने ही मिस्ड कॉल और मैसेज पड़े थे। ऑब्वियसली ये सारे उसकी सौतेली माँ और बहन के थे।


    आरिका ने जवाब नहीं दिया। हाँ, बस मैसेज को ऊपर से खोलकर ज़रूर देखा था। काव्या ने तो बस रणविजय के बारे में खोज-खबर निकालने के लिए ही उसे मैसेज किए थे और उसकी माँ वह बस उसे कोस रही थी।

    आरिका ने ऊपर-ऊपर से उन सारे मैसेज को देखा। एक मैसेज में लिखा था, “तो तुमने अपने लिए शुगर डैडी भी ढूँढ़ लिया।” आरिका ने मुँह बनाकर हल्के से हँसते हुए कहा,
    “इसका क्या दिमाग़ ख़राब है। सीरियसली! शुगर डैडी। कौन सी दुनिया में है ये लड़की। शुगर डैडी ढूँढ़ लिया होता तो मालामाल ना हो गई होती मैं। क्या बकवास करती रहती है ये। अलग ही दुनिया में खोई हुई है। और इसकी माँ, उसके तो कहने ही क्या।”

    आरिका अपनी खुद की बातों में और फ़ोन में इतनी खोई हुई थी कि उसे आइडिया भी नहीं था कि रणविजय भी उसके पास ही बैठा था और उसके फ़ोन में झाँक कर देख रहा था। उसने जब अपने लिए इस पर्टिकुलर वर्ड “शुगर डैडी” का यूज़ देखा तो हँसते हुए बोला,
    “शुगर डैडी, सीरियसली।”

    आरिका हड़बड़ाकर उसे देखने लगी और उसने तुरंत अपना फ़ोन बंद कर दिया। रणविजय ने उसे देखा और हँसते हुए बोला,
    “तुम्हारी बहन की कोई वायरिंग ढीली है क्या।”

    आरिका उसे अजीब तरह से देखने लगी। तो रणविजय बोला,
    “शुगर डैडी क्या होता है, उसे पता भी है।”

    आरिका ने धीरे से कहा,
    “मुझे भी नहीं पता। वह क्या बकवास करती रहती है। उसकी हमेशा की आदत है।”

    रणविजय ने उसे देखा, फिर बोला,
    “तुम्हें पता है शुगर डैडी क्या होता है।”

    आरिका उसकी बात सुनकर हड़बड़ा गई। क्या ही जवाब देती वो। रणविजय ने उसे देखकर हल्के से हँसते हुए कहा,
    “तुम्हारी बहन को ज़रूर पता होगा शुगर डैडी क्या होता है। तभी तो इतने अच्छे से इस बात के लिए तुम्हें ताने दे रही है।”

    आरिका कुछ बोल ही नहीं पाई। उसे अजीब लग रहा था। रणविजय ने उसके मैसेज पढ़ लिए थे।

    आरिका ने अपना सर झुका रखा था। तभी रणविजय उसके चेहरे के करीब झुका और धीरे से बोला,
    “वैसे इसके बारे में सोचा जा सकता है।”

    उसने जैसे ही यह सुना, आरिका ने आँखें बड़ी-बड़ी करके रणविजय की तरफ़ देखा। उन दोनों के चेहरे काफ़ी करीब थे, लेकिन दोनों को ही इस बात का अहसास तक नहीं था। आरिका ने उसे घूरते हुए अपने जबड़े भींचकर कहा,
    “बकवास मत कीजिए, मिस्टर शेखावत।”

    रणविजय ने फिर से उसे चिढ़ाते हुए कहा,
    “गलत क्या है। तुम मेरी ज़रूरत का ख़्याल रखो और मैं तुम्हारी।”

    उसने यह कहा ही था कि आरिका ने उसे झटकते हुए कहा,
    “मुझे बेवजह की बकवास करना बंद कीजिए।”

    रणविजय उसे देखने लगा। कमाल थी ये लड़की। उसने रणविजय को झटकने की कोशिश की, लेकिन रणविजय ने उसकी कलाई पकड़ उसे अपनी तरफ़ खींच लिया।

    आरिका रणविजय के सीने पर लीन हो चुकी थी। दोनों के चेहरे एक-दूसरे के सामने थे और दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे। रणविजय बड़े आराम से आरिका को देख रहा था, वहीं आरिका उसे घूर रही थी। मुझे सच में रणविजय पर गुस्सा आ रहा था, जबकि रणविजय को उसे चिढ़ाने में बड़ा मज़ा आ रहा था।

    रणविजय ने उसे देखते हुए शरारत से कहा,
    “गलत क्या है। देखो, उस एक रात हमारे बीच पहले भी सब कुछ हो चुका है। एक बार हो या बार-बार हो, क्या फ़र्क़ पड़ता है।”

    आरिका फिर से हैरान थी। उसने चिढ़कर खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा,
    “मिस्टर शेखावत, प्लीज़, कितनी बार कहना पड़ेगा, वह रात बस एक मिस्टेक थी। मैं वहाँ पर अपनी मर्ज़ी से नहीं आई थी और आई एम नॉट योर स्लट। सो प्लीज़।”

    रणविजय की भौहें तन गईं। यह लड़की हर बात में यह शब्द बीच में क्यों ले आती थी। उसने घूरकर आरिका को देखा और अगले ही पल उसे पलटकर अपने नीचे कर लिया। उसके दोनों हाथों की कलाईयों को जकड़ते हुए अपने एक-एक शब्द को चबाकर बोला,
    “तुम्हें दिक्कत क्या है। हर बात में इस एक शब्द को बीच में लाना ज़रूरी है। और मैंने कौन सा तुम्हारे साथ ऐसी बदतमीज़ी की है। लिसन टू मी वेरी केयरफुली, मिस आरिका, वह रात हम दोनों के लिए गलती थी। समझी तुम। और वह तुम थी जिसने मुझे अपनी तरफ़ खींचा था, मैं नहीं था।”

    आरिका ने उसे देखा। आरिका की आँखों में एक बार फिर कुछ नमी इकट्ठा हो चुकी थी, लेकिन उसने फिर से खुद को संभाल लिया और खुद को मज़बूत करते हुए बोली,
    “और मैं अपनी गलती मान रही हूँ। पीछे नहीं हट रही ना उससे। मुझे आपसे कुछ भी नहीं चाहिए। बस मुझे उस रात का ज़िक्र नहीं चाहिए।”

    रणविजय ने उसे देखा। उसने कितने अच्छे से अपने इमोशंस काबू कर लिए थे। वो सच में हैरान था। आम तौर पर लड़कियाँ रोने-धोने में विश्वास रखती थीं और यह लड़की खुद को रोने नहीं देती थी।

    रणविजय धीरे से उस पर से हटा और आराम से बैठते हुए बोला,
    “मैं सिर्फ़ तुम्हें चिढ़ा रहा था। मेरा ऐसा कोई इंटेंशन नहीं था।”

    आरिका ने कुछ भी नहीं कहा। वह उठी और उठकर सीधा वाशरूम में चली गई।

    रणविजय समझ नहीं पा रहा था कि हो क्या रहा था। आरिका को वह खुद से चाहकर भी दूर नहीं कर पा रहा था और वह जानता था वह उसे अपनी ज़िंदगी में ला भी नहीं पाएगा। उसने एक नज़र श्रीजा की तरफ़ देखा, जो अब भी दवाइयों की वजह से सो रही थी और गहरी साँस भरकर अपना सर सोफ़े के हेड रेस्ट पर टिका दिया।

    आख़िर तक आते-आते उन दोनों ने फिर से लड़ाई कर ली थी, वरना कल रात से अब तक सब कुछ ठीक था। ऊपर से आरिका को तो यह भी अच्छा लग रहा था कि रणविजय ने उसका स्टैंड लिया था, लेकिन एक बार फिर उसकी बहन के उस स्टूपिड मैसेज की वजह से उन दोनों की लड़ाई हो चुकी थी।

    शाम हो आई थी। उसके बाद आरिका और रणविजय ने इस बीच कोई बात भी नहीं की थी और रणविजय बेचैन हुआ जा रहा था कि वह कुछ कहे। काफ़ी अजीब सा कनेक्शन था उसका उसके साथ, लेकिन यह कनेक्शन क्या था, ठीक से समझ में भी तो नहीं आ रहा था।

    रणविजय ने शाम तक श्रीजा के डिस्चार्ज की बात कर ली थी। वैसे भी उसे पता था वह घर पर रहती तो ज़्यादा ठीक रहती और अब तो वह ठीक भी थी। डॉक्टर ने भी उसे डिस्चार्ज देने के लिए हामी भर दी थी। लेकिन आरिका, आरिका के सामने दिक्कत अब यह थी कि अब उसे घर जाना होगा, वरना उसने सोच लिया था कि वह रात में यहीं रुकेगी। कम से कम आज का दिन अवॉयड कर देगी तो अपनी माँ और बहन के शायद कुछ ताने कम हो जाएँ। हालाँकि उसे पता था कि जो होना नहीं है, वह उसके बारे में सोच रही है।

    श्रीजा ने आरिका को देखा और बोली,
    “मिस आरिका, क्या आप मेरे साथ चलोगी घर।”

    आरिका ने हैरानी से कहा,
    “क्या मैं? मैं तुम्हारे घर क्या करूँगी, श्री? तुम घर जाओ और आराम से अपना ध्यान रखना। ओके? पूरा प्रॉपर रेस्ट करना। उछल-कूद मत करना। ये आड़ी-टेढ़ी हरकतों का नतीजा हमारे सामने है, तो इसीलिए संभालकर, ओके।”

    श्रीजा ने मुँह बनाकर कहा,
    “मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ जिसे आप इंस्ट्रक्शन्स दे रही हैं।”

    आरिका ने प्यार से उसके गाल पर हाथ रखा और बोली,
    “हाँ, तो बड़ों वाली कौन सी हरकतें हैं तुम्हारी? ये भी बताओ मुझे। बच्चों जैसी हरकतें करती हो, तभी तो कभी कुछ, कभी कुछ लगा ही रहता है तुम्हारे साथ।”

    रणविजय उन दोनों की बातें सुन और समझ भी रहा था। उसे सच में आरिका की ये बात काफ़ी अलग लग रही थी। वह लड़की किसी और की इतनी परवाह कर रही थी। रणविजय ने ये तो देख लिया था कि आरिका के घर में कोई नहीं है जो उसकी परवाह करे, लेकिन आरिका तो उसकी भी परवाह कर रही थी जिसका उससे कोई लेना-देना तक नहीं था।

    थोड़ी देर बाद श्रीजा को डिस्चार्ज मिल चुका था। आरिका उसे सी-ऑफ़ करने उसकी गाड़ी तक आई। श्रीजा गाड़ी में बैठ चुकी थी, लेकिन रणविजय आरिका को ऐसे ही नहीं छोड़ना चाहता था। हालाँकि वह जानता था वो इंडिपेंडेंट गर्ल थी, अपने सारे काम को खुद ही कर लेती थी, लेकिन फिर भी उसे थोड़ा अजीब लग रहा था।

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा,
    “घर चलो, आरिका।”

    आरिका हैरानी से उसे देखने लगी। फिर बोली,
    “इट्स ओके, मिस्टर शेखावत, मैं चली जाऊँगी।”

    श्रीजा ने तुरंत कहा,
    “मेरे साथ चलो ना। मैं अकेले बोर हो जाऊँगी। पापा मुझे डिस्चार्ज करवाकर लेकर तो जा रहे हैं, लेकिन वह ऑफ़िस ज्वाइन कर लेंगे तो मेरे साथ कौन रहेगा।”

    आरिका ने उसे देख कहा,
    “पर मैं नहीं रह सकती ना, श्रीजा। मुझे भी तो घर जाना होगा।”

    आरिका को यह भी डर था कि अगर वह रणविजय के साथ रुक गई तो उसकी माँ और बहन फिर से कोई नया बखेड़ा शुरू कर देंगी।

    रणविजय ने उसकी बात समझते हुए कहा,
    “अभी के लिए घर चलो। रात को मैं छोड़ आऊँगा तुम्हें घर।”

    आरिका ने उसे देखा। उन दोनों के बार-बार इन्सिस्ट करने की वजह से वह ज़्यादा मना भी नहीं कर पाई और चुपचाप गाड़ी में बैठ गई। ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। उसके पीछे ही रणविजय के गार्ड की दो गाड़ियाँ चल पड़ीं।

    आरिका सच में परेशान थी, लेकिन करे क्या, उसे यह भी समझ नहीं आ रहा था। वह लोग जल्दी ही घर पहुँच चुके थे।

    रणविजय ने श्रीजा को गाड़ी से बाहर उतारा और उसे सहारा दिया और फिर आरिका को देख बोला,
    “चलो।”

    और वह तीनों अंदर की तरफ़ बढ़ गए। तीनों अंदर आए और रणविजय ने श्रीजा को सोफ़े पर बैठा दिया। दादी भी अब तक वहीं आ चुकी थी।

    आरिका को अजीब लग रहा था। उसने मन ही मन खुद से कहा,
    “अंधेरा हो जाएगा थोड़ी देर में। घर भी तो जाना है। देर हुई तो वह दोनों माँ-बेटी फिर से शुरू हो जाएँगी। भगवान, जिंदगी में सुकून क्यों नहीं दिया आपने मुझे? क्या सोचकर इन दोनों को मेरे गले बाँधा था।”

    वह यही सब सोच रही थी कि तभी दादी ने आरिका को देखते हुए कहा,
    “बेटा, तुम यहीं क्यों नहीं रुक जाती। वैसे भी शाम हो आई है और थोड़ी देर में अंधेरा भी हो जाएगा। आज यहीं रुक जाओ।”

    आरिका जल्दी से बोली,
    “नहीं, दादी, मुझे भी घर जाना है।”

    रणविजय उसे देखने लगा। वह उसकी प्रॉब्लम समझ रहा था और वह उसके प्रॉब्लम्स को और बढ़ाना भी नहीं चाहता था।

    उसने आरिका को देखते हुए कहा,
    “अच्छा, ठीक है, चलो। मैं पहले तुम्हें घर छोड़ता हूँ। वैसे भी बाद में और लेट हो जाएगी।”

    आरिका उसकी बात सुनकर जल्दी से खड़ी हो गई। श्रीजा ने आरिका को देखा और बोली,
    “मिस आरिका, आप मुझसे मिलने आएंगी ना? देखिए, मैं अपनी बातें किससे करूँगी वरना। जब तक ठीक नहीं हो जाती, कॉलेज थोड़ी ना आ पाऊँगी।”

    आरिका ने हल्के से मुस्कुराकर उसके गाल को थपथपाया और प्यार से बोली,
    “हाँ, मैं आ जाऊँगी। ठीक है, तुम अपना ख़्याल रखना। शैतानी मत करना और दवाइयाँ, खाना सब टाइम पर करना, ओके।”

    श्रीजा ने जल्दी से मुस्कुराकर हाँ में गर्दन हिला दी और थोड़ी देर बाद रणविजय के साथ वो अपने घर के लिए निकल गई।

    उनके जाते ही श्रीजा ने दादी की तरफ़ देखा और बोली,
    “आपको मिस आरिका कैसी लगी।”

    दादी ने मुस्कुराकर कहा,
    “लड़की बहुत प्यारी है। उसकी आँखों से पता लगता है कि मन में कोई भी बुराई नहीं है। मुझे सच में वह बहुत प्यारी लगी।”

    “मैं उनको अपनी मम्मा बना लूँ।” श्रीजा ने अपनी आँखें टिमटिमाते हुए दादी को देखते हुए कहा।

    दादी हैरानी से उसे देखने लगी। उस लड़की के दिमाग़ में चल क्या रहा था।

    वहीं इधर कार में बिल्कुल ख़ामोशी थी। रणविजय और आरिका दोनों ही चुप थे। दोपहर में तो दोनों की लड़ाई हुई थी और उसके बाद से दोनों में कहाँ कोई बात हुई थी।

    रणविजय ने गहरी साँस भरी और सड़क के किनारे गाड़ी रोक दी।

    आरिका उसे हैरानी से देखने लगी, फिर बोली,
    “आपने गाड़ी क्यों रोक दी।” यह कहते हुए वह बाहर की तरफ़ देखने लगी थी।


    क्या होगा आगे? क्या जवाब देगी दादी श्रीजा को? क्या रणविजय और आरिका अपनी फ़ाइट को सुलझा पाएँगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।


    To be continued…


    ✍️ Riya Sirswa

  • 18. Dad ki dulhan - Chapter 18

    Words: 2578

    Estimated Reading Time: 16 min

    आरिका ने हल्के से मुस्कुरा कर उसके गाल को थपथपाया और प्यार से बोला, “हाँ, मैं आ जाऊँगी। ठीक है, तुम अपना ख्याल रखना। शैतानी मत करना और दवाई, खाना सब टाइम पर करना, ओके।”

    श्रीजा ने जल्दी से मुस्कुरा कर हाँ में गर्दन हिला दी। और थोड़ी देर बाद रणविजय के साथ वह अपने घर के लिए निकल गई।

    उनके जाते ही श्रीजा ने दादी की तरफ देखा और बोला, “आपको मिस आरिका कैसी लगी?”

    दादी ने मुस्कुरा कर कहा, “लड़की बहुत प्यारी है। उसकी आँखों से पता लगता है कि मन में कोई बुराई नहीं है। मुझे सच में वह बहुत प्यारी लगी।”

    “मैं उनको अपनी मम्मा बना लूँ।” श्रीजा ने अपनी आँखें टिमटिमाते हुए दादी को देखते हुए कहा।

    दादी हैरानी से उसे देखने लगी। उस लड़की के दिमाग में चल क्या रहा था?

    वहीं, इधर कार में बिल्कुल खामोशी थी। रणविजय और आरिका दोनों ही चुप थे। दोपहर में तो दोनों की लड़ाई हुई थी और उसके बाद से दोनों में कोई बात नहीं हुई थी।

    रणविजय ने गहरी साँस भरी और सड़क के किनारे गाड़ी रोक दी।

    आरिका उसे हैरानी से देखने लगी। फिर बोली, “आपने गाड़ी क्यों रोक दी?” यह कहते हुए वह बाहर की तरफ देखने लगी थी।

    । । । । । । ।

    रणविजय ने आरिका की तरफ देखा और बोला,
    “we need to talk.”

    आरिका उसे हैरानी से देखने लगी। उनके बीच बात करने को था ही क्या? और वह किस बारे में बात करना चाहता था?

    आरिका ने उसे देखते हुए कहा, “किस बारे में? हमें किस बारे में बात करनी चाहिए?”

    रणविजय कार से बाहर निकल गया। उसने आरिका की बात का जवाब नहीं दिया। आरिका कुछ पल उसे हैरानी से देखने लगी। फिर गाड़ी से उतर कर बाहर गई और रणविजय के पास जाकर खड़ी हो गई। रणविजय गाड़ी के बोनट से टेक लगाए खड़ा था। अचानक ही वह उसकी तरफ पलटा और उसने आरिका को कमर से उठाकर गाड़ी के बोनट पर बैठा दिया।

    आरिका हैरान थी। वह कोई रिएक्ट भी नहीं कर पाई कि अगले ही पल रणविजय भी उसके पास गाड़ी के बोनट पर बैठ चुका था।

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा,
    “लिसन टू मी वेरी केयरफुली। देखो आरिका, मैंने जो कुछ भी कहा, सिर्फ तुम्हें चिढ़ाने के लिए कहा था। उस बात को अपने मन में रखने की ज़रूरत भी नहीं है। इंटरेस्ट में अगर मुझे हमारे बीच कोई रिलेशन क्रिएट करना होगा ना, तो तुम मेरे घर में रहोगी। मैं तुम्हें कोई अपनी रखेल बनाकर नहीं रखने वाला हूँ।”

    आरिका ने अपनी गर्दन झुका ली। पहली बार था जब रणविजय ने साफ-साफ कोई बात कही थी। उसे देखते हुए उसने आगे कहा, “एक बात यह भी है कि मुझे शादी करनी नहीं है। मैं अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं भागता। शायद उस रात जो हुआ, उसके बाद हमारी फ़र्स्ट मीटिंग में, मैं तुमसे शादी कर भी चुका होता।”

    उसकी बात सुनते ही आरिका उसे हैरानी से देखने लगी। रणविजय आगे बोला, “लेकिन मेरी एक बेटी है। मेरे लिए सबसे ज़्यादा इम्पॉर्टेन्ट अगर कोई है तो वह सिर्फ़ श्रीजा है। उसके अलावा मुझे किसी से कोई लेना-देना नहीं है। मैं नहीं चाहता कि मैं उसके लिए कोई सौतेली माँ लेकर आऊँ। क्योंकि मुझे पता है जिससे शादी करूँगा, वह शायद मेरी पत्नी बन जाएगी, लेकिन मेरी बेटी की माँ कभी नहीं बन पाएगी। और मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी किसी दर्द से गुज़रे।”

    आरिका ने उसे देखते हुए कहा, “मैंने आपसे कुछ कहा नहीं, मिस्टर शेखावत। वो रात मेरी गलती थी। मैं यह बात मान चुकी हूँ। लोगों की साज़िशों को समझना ठीक से अभी आया नहीं शायद। वरना उस रात आपके साथ ना होती और जो भी हुआ, वह होता ही ना।”

    रणविजय उसे देखने लगा। वह क्या कहना चाहती थी? अचानक ही उसके दिमाग में एक बात क्लिक हुई। वह वहाँ पर खुद से नहीं गई थी। तो फिर वहाँ पर गई क्यों थी?

    आरिका ने उसे देखते हुए कहा, “मेरी तरफ़ से आप फ़्री हैं। मेरी तरफ़ से आपको कोई बोझ लेने की ज़रूरत नहीं है। मेरी खुद की ज़िंदगी में इतनी परेशानियाँ हैं कि मैं किसी दूसरे की ज़िंदगी में अपनी वजह से कोई परेशानी क्रिएट नहीं कर सकती। और रही बात श्रीजा की तो वह मुझसे कुछ ज़्यादा ही अटैच्ड है। और उसके रूप में मुझे शायद एक दोस्त मिला है जिससे मैं अपनी बातें शेयर कर सकती हूँ। और प्लीज़ अब हम उस बात को भूल जाएँ तो काफ़ी बेहतर होगा।”

    रणविजय ने आरिका को देखा, उसने मन ही मन खुद से कहा, “भूल जाऊँ, कैसे? एक वो रात ही तो है जो मेरे दिमाग से निकलने का नाम नहीं ले रही। मेरी वह शर्ट आज भी अलमारी में वैसे ही पड़ी है। उसमें तुम्हारी खुशबू है। तुम्हारा वह झुमका आज भी मेरे पास पड़ा है। और तुम कह रही हो मैं भूल जाऊँ। यही तो पॉसिबल नहीं हो पा रहा। रणविजय शेखावत ने आज तक खुद को इतना बेबस कभी महसूस नहीं किया जितना इस बार किया है।”

    आरिका ने उसे देखा, फिर बोली, “चले, हम ऑलरेडी लेट हो चुके हैं।”

    रणविजय ने हाँ में सिर हिलाया और नीचे उतर गया और अगले ही पल उसने आरिका को अपनी बाहों में उठाते हुए नीचे उतार दिया। आरिका एक बार फिर शॉक हुई थी। उसे ऐसा लगने लगा था यह आदमी जानबूझकर उसे टच करने के बहाने ढूँढने लगा था। लेकिन एक बात और भी थी कि वह आरिका को अनकम्फ़रटेबल फील नहीं होने दे रहा था।

    दोनों जाकर गाड़ी में बैठे और रणविजय ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। थोड़ी देर में गाड़ी आरिका के घर के बाहर खड़ी थी। आरिका ने अपने घर की तरफ़ देखा और गहरी साँस भरी।

    रणविजय ने उसे देखते हुए कहा, “मैं अंदर चलूँ तुम्हारे साथ? इन केस अगर वह दोनों कुछ…”

    आरिका ने उसकी बात काटते हुए कहा, “नहीं, उसकी ज़रूरत नहीं है। मैं उन्हें हैंडल करना जानती हूँ।”

    रणविजय ने उसे देखा और बोला, “घर तुम्हारा है ना?” आरिका ने हाँ में गर्दन हिलाई। कि तभी रणविजय आगे बोला, “और वह काव्या तुम्हारे पापा की बेटी भी नहीं है।”

    आरिका ने फिर से हाँ में सिर हिलाया तो रणविजय फिर से बोला, “तो उन दोनों को घर से निकाल क्यों नहीं देती? क्यों बेवजह उन दोनों के पीछे अपनी ज़िंदगी खराब कर रही हो? बेहतर होगा कि ठोकरें खाएँगी तो खुद से सीख जाएँगी।”

    आरिका ने गहरी साँस भरकर कहा, “निकालने को निकाल दूँ। पर फिर घर में बचेगा कौन? मैं सुबह जाऊँ और शाम तक घर लौटूँ। कोई दिखेगा नहीं वहाँ पर। भले यह दोनों मेरा वेट न करती हों, लेकिन इस बहाने से वेट ज़रूर करती हैं कि मेरे घर आने पर मुझे कुछ ताने सुना देंगी। कुछ ऐसी कड़वी बातें बोल देंगी जो मुझे बुरी लगेंगी। लेकिन कम से कम जब लौटती हूँ तो कोई दिखता तो है घर में।”

    रणविजय उसे देखने लगा। वह अकेली थी, पूरी तरह से अकेली। घर में दो और लोगों के होते हुए भी अकेली ही तो थी वह।

    आरिका ने उसे देखा, फिर एक हल्की सी मुस्कान के साथ बोली, “ठीक है, मिस्टर शेखावत। मैं चलती हूँ, बाय। श्रीजा का ख्याल रखिएगा।” यह कहकर वह गाड़ी से उतर गई और अपने घर के अंदर चली गई। रणविजय उसे ही देखता रहा। वह थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा, फिर उसने अपनी कार घुमाई और घर की तरफ़ चल दिया।

    इधर आरिका जब घर आई तो उसकी माँ और बहन तो जैसे उसका रास्ता ही ताक बैठी थीं। उसकी माँ ने आरिका को देखते हुए कहा, “आ गई महारानी, मुँह काला करवाकर! यकीन नहीं होता कि तुम ऐसा कुछ भी कर सकती हो।” आरिका ने उनकी बात को पूरी तरह से इग्नोर कर दिया। वह कहीं भी गलत तो नहीं थी।

    तभी काव्या बोली, “क्या हुआ तुम्हारे शुगर डैडी, तुम्हें छोड़ने नहीं आए?” आरिका ने उसे देखा और बोली, “मुझसे ज़्यादा इंटरेस्ट तो तुम ले रही हो उनमें। तुम ट्राई क्यों नहीं करती? शायद तुम्हारे शुगर डैडी बन जाएगा।”

    तभी उसकी माँ ने आरिका को घूरते हुए गुस्से से कहा, “मेरी बेटी तुम्हारे जैसी नहीं है जो किसी का बिस्तर गर्म करते फिरें।”

    आरिका ने गुस्से से चीखकर उनकी तरफ़ उंगली की ओर बोली, “मेरे कैरेक्टर पर उंगली उठाने से पहले खुद के गिरिबान में झाँककर देख लीजिए। आपसे तो लाख गुना बेहतर हूँ मैं। बिस्तर गर्म करना आपके काम हो सकते हैं, मेरे नहीं। भूलिए मत, आपने क्या कुछ नहीं किया। अब आप मुझे ज्ञान दे रही हैं।”

    सीमा जी की बोलती बंद हो चुकी थी। आरिका ने उन दोनों माँ-बेटी को घूरकर देखा और फिर अपने कमरे में चली गई।

    इधर रणविजय अपने घर पहुँच चुका था। उसने एक बार जाकर श्रीजा को चेक किया। वह आराम से अपने कमरे में बैठी चिप्स खा रही थी जो रेहान उसके लिए लाया था। उसने उसे मना भी किया लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थी। आखिर में रणविजय ने हारकर सिर्फ़ एक पैकेट चिप्स का उसके पास छोड़ दिया और बाकी सारे उठाकर अलमारी में रख दिए।

    वह अपने कमरे में आ चुका था। उसने जाकर अपनी अलमारी खोली और नज़र उसकी उस शर्ट पर पड़ी। वह व्हाइट कलर की शर्ट जिस पर अभी तक आरिका की लिपस्टिक के निशान थे। जो तब लगे थे जब रणविजय आरिका को संभालने की कोशिश कर रहा था।

    रणविजय का हाथ न चाहते हुए भी उस शर्ट की तरफ़ बढ़ गया। उसने धीरे से उस शर्ट को उठाया और एक बार फिर उसकी साँसों में आरिका की खुशबू घुलने लगी थी। न चाहते हुए भी उस रात के सारे मंज़र उसकी आँखों के आगे तैरने लगे थे। रणविजय ने गहरी साँस भरी और खुद से ही बोला, “भूलना इतना आसान नहीं।”

    उसने कुछ सोचते हुए अपने होंठों को काटा और खुद से बोला, “कुछ करना पड़ेगा।”

    थोड़ी देर बाद वह सब लोग डिनर करने एक साथ बैठे थे। दादी ने रणविजय को देखा और बोली, “शादी के बारे में क्या सोचा है तुमने?”

    रणविजय ने उन्हें देखा, फिर बोला, “आप फिर से वही टॉपिक ले आईं। एक ही बात को मैं कितनी बार बोलूँ?”

    तभी श्रीजा बोली, “पापा आप मिस आरिका से शादी कर लो।”

    रणविजय आँखें फाड़कर अपनी बेटी को देखने लगा।
    “आपने देखा ना वह कितने प्यार से बात करती है मुझसे। आपको पता है ना जो आदमी जिस दर्द से गुज़र चुका होता है वह किसी दूसरे को वह दर्द नहीं देता। आपको पता है ना मिस आरिका की भी सौतेली माँ है। वह मेरे साथ कभी गलत बिहेव नहीं करेंगी। और मैं बड़ी हो चुकी हूँ। कोई छोटी बच्ची तो हूँ नहीं। प्लीज़ पापा मान जाओ ना।” श्रीजा ने उसे मनाने की कोशिश की।

    रणविजय ने उन दोनों को देखा और बोला, “आप दोनों के दिमाग में सिर्फ़ यही सब बातें चलती रहती हैं क्या? आप दोनों कुछ काम करना स्टार्ट कर दो। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। जब देखो तब कुछ ना कुछ नया लेकर आ जाती हो आप।”

    यह कहते हुए वह उठा और अपने कमरे की तरफ़ चला गया। श्रीजा और दादी ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा। श्रीजा ने धीरे से कहा, “यह प्लान भी फ़्लॉप हो गया। मुझे तो लगा था मिस आरिका के लिए पापा मना नहीं करेंगे। पर इन्होंने तो मना कर दिया, दादी।”

    दादी ने उसे देखते हुए कहा, “बेटा, तुम समझती नहीं हो। जो ज़ख्म ज़्यादा गहरे होते हैं, वह ऊपर से भले ही भर जाएँ, लेकिन उनके अंदर का वह दर्द हमेशा मौजूद रहता है। तुम्हारे पापा के साथ बिल्कुल वैसा ही है। कुछ ज़ख्म दिल पर लगे होते हैं जो कभी भरते नहीं हैं।”

    श्रीजा उनकी बात सुनकर कुछ कह नहीं पाई। वह रणविजय के बारे में सारी बातें नहीं जानती थी। और रणविजय ऐसा था जो अपने पास्ट के बारे में बातें करता ही नहीं था। लेकिन अब उसने सोचा कि जब रणविजय शादी के लिए ना कर चुका है तो आरिका से बात की जाए। उसे पता था आरिका उसे जज नहीं करेगी। इसलिए वह खुलकर जो भी मन में होता था बोल देती थी। और ज़्यादा सोचती भी नहीं थी।

    इधर रणविजय अपने कमरे में आकर सोफ़े पर आराम से पसर चुका था। उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं। दिल और दिमाग में न जाने कितनी बातें एक साथ चल रही थीं। क्या करें, क्या ना करें, इसी जद्दोजहद में उलझा हुआ था वह। आरिका ज़हन से निकलने का नाम नहीं ले रही थी। और उसकी दादी और उसकी बेटी उसकी शादी उससे ही करवाना चाहती थीं।

    उसने अपना फ़ोन उठाया और अपने ग्रुप में मैसेज किया, “सो गए या जाग रहे हो?”

    सबसे पहले रेहान का मैसेज आया, “मैं तो जाग रहा हूँ।” अर्थ और अभिजीत का भी मैसेज आ चुका था। वह सब लोग जाग रहे थे। रणविजय ने ग्रुप कॉल लगा लिया। हालाँकि वह जानता था वह चाहकर भी अपने मन की बात बोल नहीं पाएगा। लेकिन फिर भी अपने दोस्तों से बात करके उसे कुछ सुकून ज़रूर मिलता था।

    उधर से रेहान की आवाज़ आई, “क्या बात है? आज सूरज कौन सी दिशा से निकला था जो RV ने ग्रुप कॉल किया?”

    रणविजय ने उसकी बात को इग्नोर करते हुए कहा, “तूने श्रीजा के लिए कुरकुरे और चिप्स घर पर क्यों भेजे हैं?”

    उसने कहा ही था कि रेहान ने उसकी बात काटते हुए कहा, “ज़्यादा बकवास मत करो और यह बताओ क्या चल रहा है तेरे दिमाग में?”

    तभी अर्थ बोला, “देख रणविजय, इतना हम सब जानते हैं कि तू अपने इमोशन्स दिखाता नहीं है। लेकिन हम सब दोस्त हैं और दोस्ती में जजमेंट नहीं होती।”

    अभिजीत ने उसकी बात सुनी तो बोला, “RV, तुझे पता है ना तू कुछ भी कह सकता है हमसे। तुझे इतना सोचने की और किसी बात की भूमिका बनाने की ज़रूरत नहीं है।”

    रणविजय ने उनकी बात सुनकर गहरी साँस भरी। वह जानता था उसके दोस्त उसकी बात समझ जाएँगे। लेकिन कहे कैसे, यह समझ नहीं आ रहा था।

    । । । । । । । ।

    क्या होगा आगे? क्या रणविजय अपने दिल की बात कह पाएगा अपने दोस्तों से? क्या श्रीजा आरिका से बात करेगी? और क्या रिएक्शन होगा आरिका का? क्या रणविजय और आरिका कभी साथ होंगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।
    । । । । । । । ।

    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 19. Dad ki dulhan - Chapter 19

    Words: 2507

    Estimated Reading Time: 16 min

    सबसे पहले रेहान का मैसेज आया, “मैं तो जाग रहा हूँ।” अर्थ और अभिजीत का भी मैसेज आ चुका था। वे सब लोग जाग रहे थे। रणविजय ने ग्रुप कॉल लगा लिया। हालाँकि वह जानता था कि वह चाहकर भी अपने मन की बात बोल नहीं पाएगा। लेकिन फिर भी अपने दोस्तों से बात करके उसे कुछ सुकून जरूर मिलता था।

    उधर से रेहान की आवाज आई, “क्या बात है? आज सूरज कौन सी दिशा से निकला था जो RV ने ग्रुप कॉल किया?”

    रणविजय ने उसकी बात को इग्नोर करते हुए कहा, “तूने श्रीजा के लिए कुरकुरे और चिप्स घर पर क्यों भेजे हैं?”

    उसने कहा ही था कि रेहान ने उसकी बात काटते हुए कहा, “ज्यादा बकवास मत करो और यह बताओ क्या चल रहा है तेरे दिमाग में?”

    तभी अर्थ बोला, “देख रणविजय, इतना हम सब जानते हैं कि तू अपने इमोशंस दिखाता नहीं है। लेकिन हम सब दोस्त हैं और दोस्ती में जजमेंट नहीं होती।”

    अभिजीत ने उसकी बात सुनकर बोला, “RV, तुझे पता है ना तू कुछ भी कह सकता है हमसे। तुझे इतना सोचने की और किसी बात की भूमिका बनाने की जरूरत नहीं है।”

    रणविजय ने उनकी बात सुनकर गहरी साँस भरी। वह जानता था कि उसके दोस्त उसकी बात समझ जाएँगे। लेकिन कहे कैसे, यह समझ नहीं आ रहा था।


    अभिजीत बोला, “रणविजय, क्या चल रहा है तेरे दिमाग में? बता भी।”
    रणविजय ने गहरी साँस भरकर कहा, “कुछ नहीं।”

    रेहान ने तुरंत कहा, “फालतू की बकवास मत कर। ऐसे ही तो तूने फोन नहीं किया होगा। हम सब तुझे अच्छे से जानते हैं। देख RV, हम सब बेस्ट फ्रेंड्स हैं। हमारे बीच में सोचने-समझने की कोई बात हो ही नहीं सकती। कोई जजमेंट हो ही नहीं सकती। तो तू यह सब बातें सोचकर हमें क्यों नहीं बता रहा है जो तेरे दिमाग में चल रहा है?”

    रणविजय समझ नहीं पा रहा था कि वह कैसे कहे। वह जानता था कि वे तीनों उसके बेस्ट फ्रेंड थे। उसने अपनी जिंदगी का अच्छा-बुरा हर वक्त उनके साथ देखा था। लेकिन रणविजय अपने इमोशंस शो नहीं कर पाता था। यह उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी थी।

    उसने गहरी साँस भरी। तभी अर्थ बोला, “बोल, क्या सोच रहा है तू?”

    रणविजय ने कोशिश करते हुए कहा, “वह एक्चुअली… दादी और श्रीजा मेरी शादी के पीछे पड़े हैं। लाइफ में पहली बार इतना हेल्पलेस फील हो रहा है कि समझ नहीं आ रहा क्या करूँ।”

    रेहान तुरंत बोला, “तेरे जहन में आरिका चल रही है। राइट?”

    रणविजय चुप हो गया। तो रेहान आगे बोला, “वो उस दिन होटल में तुम्हारे साथ थी। वह तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है।”

    “मैं अपनी जिम्मेदारियों से कभी नहीं भागता हूँ, रेहान। तुझे पता है ना। लेकिन मैं यह जिम्मेदारी नहीं ले सकता। तुझे यह भी पता है।” रणविजय बोला।

    अभिजीत ने उसकी बात सुनकर कहा, “तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम यह नहीं कर सकते?”
    रणविजय खामोश ही रहा।

    अभिजीत आगे बोला, “श्रीजा बड़ी हो चुकी है, RV। तीन-चार सालों में वह खुद के लिए कोई लाइफ पार्टनर ढूँढ लेगी। या फिर हो सकता है तुम उसके लिए कोई अच्छा लाइफ पार्टनर ढूँढ दो। लेकिन उसके बाद तुम्हारा क्या?”

    रणविजय खामोश रहा। तो अभिजीत आगे बोला, “रणविजय, मैं मानता हूँ कि तू श्रीजा को दुख नहीं देना चाहता। लेकिन जरूरी तो नहीं कि जो तेरे पीछे आएगी वह श्रीजा को दुख-तकलीफ ही देगी। तूने आरिका को देखा है ना, नोटिस किया है उसे कभी? श्रीजा के साथ उसका कैसा बिहेवियर है? वो आरिका से कुछ भी बात कर सकती है। कुछ भी। उसे डर नहीं रहता कि आरिका उसे जज करेगी। और शायद आरिका उसे जज करती भी नहीं है। इसी वजह से वह आरिका से इतनी खुलकर बात कर भी लेती है। एक बार कोशिश तो कर तू। और फिर जहाँ तक मुझे पता है, आरिका के भी माँ-बाप नहीं हैं। जो इंसान जिस दर्द से गुजर चुका होता है, वह किसी दूसरे को वह दर्द देने की सोच भी नहीं सकता। तूने जो दर्द सहा वह अपनी जगह है, रणविजय। जरूरी नहीं तेरी बेटी के हिस्से में वही सब कुछ आए।”

    रणविजय अब भी खामोश सा अभिजीत की बातें सुन रहा था। तभी रेहान बोला, “आरिका से शादी क्यों नहीं कर लेता तू?”

    रणविजय फिर भी खामोश रहा। तो वह आगे बोला, “दादी और श्रीजा की विश पूरी हो जाएगी कि तू शादी कर ले। और आरिका को मुझे लगता है उसे एक ऐसा सपोर्ट मिल जाएगा जो हमेशा उसके साथ रहेगा।”

    रणविजय हल्की सी एक स्माइल के साथ बोला, “सपोर्ट? उसे सपोर्ट की कोई जरूरत नहीं है। वह खुद ही सब कुछ संभाल सकती है।”

    अर्थ बोला, “लेकिन कब तक? हर इंसान को अपनी जिंदगी में कोई एक ऐसा शख्स चाहिए होता है। एक कंधा चाहिए होता है जहाँ वह अपनी थकान उतार सके। अपने दिल का गुबार निकाल सके। जब हम सब परेशान होते हैं तो एक-दूसरे के लिए खड़े रहते हैं। सोचकर देखने वाली बात है कि आरिका के लिए कौन है? उसकी सौतेली माँ और बहन, जिन्हें सिर्फ उसकी सैलरी से मतलब है, वह। या फिर कोई और? उसकी जिंदगी में तो कोई ऐसा है भी नहीं।”

    उसकी इस बात ने रणविजय को खामोश कर दिया।

    रेहान ने कहा, “देख RV, मैं तुझे पहला मौका दे रहा हूँ। आरिका को अपनी जिंदगी में ला सकता है तो ले आ। वरना मैं उसे पक्का चुराने वाला हूँ। और ट्रस्ट मी, मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ।”

    उसकी बात सुनकर वे तीनों ही अजीब तरह से खामोश पड़ गए थे। क्या कहें उसे? उन्हें पता था रेहान कभी भी कुछ भी बोलता था। और अर्थ और अभिजीत को यह भी पता था कि वह जानबूझकर रणविजय को परेशान भी कर रहा था। और उसे इस तरह से ब्लैकमेल करके आरिका से शादी करने के लिए मजबूर भी कर रहा था।

    रणविजय ने उसकी बात सुनी, पर बिना कुछ कहे फिर फोन काट दिया। उसके दोस्तों की हर एक बात सही थी। लेकिन फिर भी श्रीजा के लिए सोचता तो हिम्मत नहीं हो रही थी उसकी यह स्टेप उठाने की। वह जानता था कि आरिका उसकी जिम्मेदारी बनती है, खासकर उस रात के बाद। लेकिन श्रीजा के लिए सोचते हुए आरिका के बारे में वह सोच नहीं पा रहा था। यहाँ तक कि श्रीजा ने आज यह तक कह दिया था कि वह आरिका से ही शादी कर ले। लेकिन फिर भी रणविजय के मन का डर निकल नहीं पा रहा था।

    पूरी रात उसने सोचते-सोचते बिता दी। उसके हाथ में अब भी वह शर्ट मौजूद थी और एक हाथ में वह झुमका। सुबह होते-होते रणविजय ने एक फैसला किया और उठ खड़ा हुआ। उसने वह शर्ट अलमारी में रखी। और फिर वॉशरूम में चला गया।

    नहा-धोकर जल्दी से तैयार होकर वह बिना नाश्ता किए ही आज ऑफिस जा चुका था। घर वाले हैरान थे। दादी और श्रीजा को लग रहा था कि वह नाराज़ है। श्रीजा ने अपनी दादी को देखते हुए कहा, “पापा तो नाराज़ हो गए, दादी। नाश्ता भी नहीं किया और जल्दी चले गए।”

    दादी ने गहरी साँस भरकर ना में गर्दन हिला दी। वह भी नहीं समझ पा रही थी कि क्या हो रहा था।

    वहीं इधर रणविजय अपने ऑफिस पहुँचा। और उसने आते ही गौरव को केबिन में बुला लिया। गौरव बेचारा तब से परेशान था जब से सुबह-सुबह उसके बॉस ने फोन किया था। आखिर आज इतनी जल्दी उसे क्यों बुलाया गया था? उसे तो यही नहीं समझ आ रहा था। इस बार तो उसने कोई गड़बड़ भी नहीं की थी जिसके लिए उसे डाँटा जाए।

    गौरव जैसे ही केबिन में आया, रणविजय ने उसे देखते हुए कहा, “Buy some flowers.”

    गौरव हैरान था। उसने हैरानी से कहा, “क्या? पर किसके लिए?”

    रणविजय ने उसे घूरकर देखा और बोला, “जितना कहा है उतना करो।”

    गौरव ने अपना मुँह बंद कर लिया। तभी रणविजय आगे बोला, “फ्लावर खरीदकर आरिका के कॉलेज डिलीवर करवा दो।”

    गौरव ने हैरानी से कहा, “आप मिस आरिका को फ्लावर दे रहे हैं?”

    रणविजय ने उसे घूरकर देखा। तो बेचारा गौरव चुप हो गया। वह अपने बॉस से पिटना तो बिल्कुल नहीं चाहता था। इसलिए चुपचाप उसका आर्डर मानकर केबिन से बाहर निकल गया।

    हालाँकि कल ही तो दोनों ने इस बारे में बात की थी कि वह ना तो उस रात के बारे में बात करेंगे और ना ही रणविजय आरिका की कोई जिम्मेदारी उठाएगा। और आरिका इस बात से एग्री थी। और आज रणविजय उसके लिए फ्लावर्स खरीद रहा था।

    इधर आरिका तैयार होकर अपने कॉलेज पहुँची। श्रीजा तो आज आने वाली नहीं थी। तो उसका काम बस अपने लेक्चरर्स लेना ही था। वरना तो अक्सर लेक्चर के बाद वह श्रीजा के लिए रुक जाया करती थी।

    आरिका जैसे ही स्टाफ रूम में गई, हैरान थी क्योंकि पूरा स्टाफ वहीं जमा था और सेंटर टेबल को घेरकर खड़ा था। आरिका ने उन सब को देखते हुए कहा, “क्या चल रहा है? कुछ हुआ है क्या?”

    उसकी एक कोलीग ने पीछे घूमते हुए उसे देखा और बोली, “तुम्हारे लिए फ्लावर्स भेजे हैं किसी ने।”

    आरिका ने हैरानी से कहा, “व्हाट? किसने?”

    यह कहते हुए वह आगे बढ़ी और उसने टेबल पर देखा एक बड़ा सा बुके रखा हुआ था जो रेड रोजेस का था। और इतना ही नहीं, उसमें चिट लगी थी जिस पर ‘फ़ॉर आरिका’ लिखा था।

    आरिका ने उस बुके को उठाया और उलट-पलट कर देखा। वहाँ पर भेजने वाले का नाम तो कहीं मेंशन भी नहीं था। आरिका सोच में थी कि ये किसने किया है और उसे फ्लावर्स क्यों भेजे हैं। उसके माथे पर बल पड़ चुके थे। उसकी शक्ल देखकर ही वहाँ मौजूद स्टाफ अंदाजा लगा सकता था कि उसे भी नहीं पता यह किसने किया है।

    उसके साथी लेक्चरर ने कहा, “तुम्हारा कोई छुपा हुआ आशिक है क्या जो तुम्हें इस तरह से फ्लावर भेज रहा है?”

    आरिका ने उसे देखा और हैरानी से कहा, “मैं खुद हैरान हूँ। आज तक तो ऐसा कभी नहीं हुआ है। फिर ये कौन है जिसने फ्लावर्स भेजे हैं? और भेजने वाले का नाम भी नहीं है। अगर किसी स्टूडेंट का प्रैंक है तो पक्का मैं उसे पनिशमेंट देने वाली हूँ।”

    “और अगर प्रैंक नहीं हुआ तो? अगर सच में किसी आशिक ने भेजे होंगे तो।” उसके साथ की एक और लेक्चरर ने कहा।

    आरिका कुछ कह नहीं पाई। लेकिन उसे पता करना था कि यह भेजे किसने थे।

    खैर, आरिका ने सारी चीजों को साइड किया और अपना लेक्चर अटेंड करने क्लास में चली गई। सारे टीचर्स भी गॉसिप करते हुए अपनी-अपनी क्लास में जा चुके थे। आरिका ने अपने सारे लेक्चर कंप्लीट किए और फिर घर के लिए निकलने को हुई, तभी पियोन ने आकर उसे वह बुके देते हुए कहा, “मैडम, यह आपके नाम से आया था।”

    आरिका ने वह बुके लेते हुए ऑकवर्डनेस के साथ कहा, “हाँ काका, थैंक यू।” वह बुके लेकर कॉलेज से बाहर निकल आई। उसे नहीं समझ आ रहा था कि इन फ्लावर्स का करना क्या है। लेकिन फिलहाल वह अपने घर जाना चाहती थी। तभी उसका फ़ोन बजा और उसने कॉल पिक किया। तो उधर से श्रीजा की आवाज आई, “मिस आरिका, आप मेरे पास आ रही हैं ना? आपने कहा था आप मुझसे मिलने आएंगी। प्लीज आ जाइए ना। मैं बोर हो रही हूँ। घर पर कोई भी नहीं है। दादी भी मंदिर चली गईं। पापा ऑफिस चले गए। मैं अकेली बैठी हूँ। प्लीज आ जाइए।”

    आरिका उसे मना करना चाहती थी। लेकिन उसने इतने प्यार से रिक्वेस्ट की कि वह मना भी नहीं कर पाई और बोली, “ठीक है, मैं आ रही हूँ।” श्रीजा खुश हो गई। आरिका ने जल्दी से वहाँ से टैक्सी पकड़ी और घर की तरफ चल पड़ी।

    जल्दी ही वह श्रीजा के घर पहुँच चुकी थी। गार्ड ने कल भी उसको देखा था इसलिए उसे रोका नहीं। आरिका अंदर गई और उसने एक नौकर से श्रीजा के कमरे का पता किया और फिर कमरे की तरफ चली गई।

    वह जब कमरे में आई तो श्रीजा बेड पर बैठी कुरकुरे खा रही थी। उसने जैसे ही आरिका को देखा तो चहककर बोली, “आप आ गईं!”

    आरिका के होठों पर एक मुस्कान आ गई। कितना बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी वह लड़की! उसका इंतज़ार शायद ही किसी ने आज तक किया हो। यह पहली बार था और आरिका को यह बहुत अच्छा लगा। वह मुस्कुराते हुए अंदर गई और बोली, “हाँ, मैं आ गई। कहो क्या कहना है तुम्हें?”

    श्रीजा ने उसके हाथ में मौजूद उस बुके को देखा और बोली, “यह फ्लावर किसने दिए आपको? आपका कोई लवर है?” श्रीजा ने एक्साइटेड होते हुए पूछा।

    आरिका ने गहरी साँस भरकर कहा, “मुझे भी नहीं पता मेरा रातों-रात कौन सा लवर पैदा हो गया है। वैसे भी यह गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड वाले झमेले बच्चों को सूट करते हैं।”

    “हाँ, आप तो बूढ़ी हो चुकी हैं।” श्रीजा ने उसकी टांग खींचते हुए कहा।

    आरिका उसकी बात पर हँस पड़ी। कि श्रीजा फिर से बोली, “बताओ तो किसने दिया आपको यह बुके?”
    आरिका ने उसे देखते हुए कहा, “मुझे भी नहीं पता। सिर्फ़ मेरा नाम लिखा हुआ है। किसने भेजा है, नहीं पता।”

    श्रीजा ने कुछ सोचते हुए कहा, “मतलब मामला गंभीर है।” उसने जिस तरह की शक्ल बनाई थी, वह देखकर आरिका को फिर से हँसी आ गई।


    क्या होगा आगे? क्या जवाब देगी आरिका श्रीजा को? क्या रणविजय आरिका की जिम्मेदारी लेना चाहता था? क्या रणविजय आरिका को अपनी जिंदगी में ला पाएगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।


    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa

  • 20. Dad ki dulhan - Chapter 20

    Words: 2562

    Estimated Reading Time: 16 min

    वह जब कमरे में आई, तो श्रीजा बेड पर बैठी कुरकुरे खा रही थी। उसने जैसे ही आरिका को देखा, तो चहक कर बोली, “आप आ गई।”

    आरिका के होठों पर एक मुस्कान आ गई। कितना बेसब्री से इंतजार कर रही थी वह लड़की! उसका इंतजार शायद ही किसी ने आज तक किया हो। यह पहली बार था, और आरिका को यह बहुत अच्छा लगा। वह मुस्कुराते हुए अंदर गई और बोली, “हाँ, मैं आ गई। कहो, क्या कहना है तुम्हें?”

    श्रीजा ने उसके हाथ में मौजूद उस बुके को देखा और बोली, “यह फ्लावर किसने दिए आपको? आपका कोई लवर है?” श्रीजा ने एक्साइटेड होते हुए पूछा।

    आरिका ने गहरी साँस भरकर कहा, “मुझे भी नहीं पता। मेरा रातों-रात कौन सा लवर पैदा हो गया है। वैसे भी, यह गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड वाले झमेले बच्चों को सूट करते हैं।”

    “हाँ, आप तो बूढ़ी हो चुकी है।” श्रीजा ने उसकी टांग खींचते हुए कहा।

    आरिका उसकी बात पर हँस पड़ी। फिर श्रीजा बोली, “बताओ तो किसने दिया आपको यह बुके?” आरिका ने उसे देखते हुए कहा, “मुझे भी नहीं पता। सिर्फ मेरा नाम लिखा हुआ है। किसने भेजा है, नहीं पता।”

    श्रीजा ने कुछ सोचते हुए कहा, “मतलब मामला गंभीर है।” उसने जिस तरह की शक्ल बनाई थी, वह देखकर आरिका को फिर से हँसी आ गई।


    श्रीजा ने आरिका को देखा और बोली, “आप इन सारे फालतू के झमेले में मत पड़ना। मैं आपको एक सबसे बेस्ट ऑप्शन बताऊँ।”

    आरिका उसे हैरानी से देखने लगी। वह आखिर किस ऑप्शन के बारे में बात कर रही थी? वह समझ नहीं पा रही थी।

    श्रीजा ने उसे देखते हुए कहा, “आप मेरी मम्मा बन जाओ।”

    उसकी बात सुनकर आरिका हैरान-परेशान सी उसे देखने लगी। वह क्या बात कर रही थी? वह क्या कुछ बोल रही थी? आरिका समझ नहीं पा रही थी कि उसकी इस बात पर जवाब क्या दे।

    लेकिन श्रीजा उसे बड़ी उम्मीद से देख रही थी। उसके पापा ने उसकी बात रिजेक्ट कर दी थी। लेकिन वह नहीं चाहती थी कि आरिका यह बात रिजेक्ट करे।

    श्रीजा ने उसके दोनों हाथों को पकड़ते हुए कहा, “प्लीज मिस आरिका, मना मत कीजिएगा। मेरे पापा शादी नहीं करना चाहते, क्योंकि उनको लगता है कि सौतेली माँ तो सौतेली होती है ना। लेकिन आप तो कितनी अच्छी हो, और कितनी प्यारी भी हो। प्लीज मेरी बात मान लो।”

    आरिका बहुत बड़ी दुविधा में फँस चुकी थी। वह नहीं समझ पा रही थी कि श्रीजा को जवाब क्या दे। कल ही तो उसने और रणविजय ने इस बारे में पूरी तरह से बात की थी कि वह दोनों जैसे रह रहे हैं, वैसे ही रहेंगे। और अचानक से ही श्रीजा यह शादी का प्रपोजल कहाँ से ले आई थी? वह समझ नहीं पा रही थी।

    आरिका ने उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा, “ऐसा नहीं होता है, श्रीजा। लाइफ इतनी भी सिंपल नहीं होती है। तुम्हारे पापा को बहुत अच्छी लड़की मिलेगी। तुम टेंशन मत लो।”

    “पर आप ही क्यों नहीं? मुझे नहीं चाहिए कोई और। जब आप मेरे आस-पास होते हो, तो मुझे एक सेंस ऑफ़ सिक्योरिटी फील होती है। मैं आपके साथ खुलकर कोई भी बात कर सकती हूँ। मुझे सोचना नहीं पड़ता कि अगर मैं कुछ कह दूँगी, तो आप मेरे बारे में क्या सोचेंगी। प्लीज मिस आरिका, मान जाओ ना।”

    आरिका उसे किस तरह समझाती, वह खुद नहीं समझ पा रही थी।

    उसी वक्त रेहान की एंट्री हुई। रेहान और अर्थ दोनों साथ ही थे। अभिजीत उनके साथ नहीं आया था। रेहान ने श्रीजा को देखा और उसके साथ बैठी आरिका को, जिसके चेहरे पर अजीब सी उलझन भरे भाव थे। रेहान कहीं ना कहीं समझ चुका था कि उसकी खुराफाती भतीजी ने कुछ ऐसा कहा है, जिसकी वजह से आरिका नहीं समझ पा रही कि उसे क्या जवाब देना है।

    श्रीजा ने जैसे ही रेहान और अर्थ को देखा, तो झट से बोली, “अंकल, आप कहो ना मिस आरिका से कि वह पापा से शादी कर ले।”

    अर्थ और रेहान मुँह फाड़े उसे देखने लगे। साफ़-साफ़ सीधे-सीधे शब्दों में ऐसे कौन कह सकता था? यह श्रीजा ही थी जो ऐसी बातें कर सकती थी, बिना कुछ सोचे-समझे कुछ भी बोल सकती थी। आरिका का शॉक्ड होना बनता था। वह दोनों खुद शॉक्ड थे।

    रेहान ने श्रीजा को समझाते हुए कहा, “यह क्या बात है, बेटा? कोई ऐसी बात करता है क्या? अगर तुम्हारे बाप को पता लगा ना कि तुम उसके पीठ पीछे ये सारे कांड कर रही हो, तो तुम देखना फिर! तुम्हें तो कुछ कहेगा नहीं, लेकिन मुँह फुलाकर इधर-उधर घूमेगा, वह अलग।”

    श्रीजा ने सर झुकाते हुए धीरे से कहा, “नहीं, पापा मेरी बात मान रहे हैं और ना ही मिस आरिका।”

    अर्थ ने उसे देखते हुए कहा, “बेटा, फीलिंग्स किसी के लिए ऐसे ही डेवलप नहीं की जा सकती ना। वह अपने आप आती है। और तुम जो करने की कोशिश कर रही हो, वह एक तरह से जबरदस्ती ही तो है। तुम जबरदस्ती इन दोनों की शादी करवा भी दोगी, लेकिन क्या गारंटी है कि दोनों साथ में निभा पाएँगे?”

    श्रीजा चुप हो गई। आरिका ने प्यार से उसका चेहरा थामा और ऊपर करते हुए बोली, “इट्स ओके बेबी, कोई बात नहीं। तुम टेंशन मत लो। मैं कह रही हूँ ना, तुम्हारे पापा को बेस्ट लड़की मिलेगी।”

    श्रीजा बिना कुछ कहे बस आरिका के गले लग गई। उसने मन ही मन कहा, “पर मुझे तो सिर्फ आप चाहिए ना। मैं किसी और का क्या करूँगी?”

    लेकिन अब जो भी था, आरिका ने भी श्रीजा की बात को रिजेक्ट कर दिया था। आरिका थोड़ी देर बाद वहाँ से निकल चुकी थी। लेकिन इस हड़बड़ी में वह अपना बुके वहीं श्रीजा के कमरे में छोड़ गई।

    आरिका जा चुकी थी, लेकिन श्रीजा अब भी उदास थी। रेहान उसके पास बैठते हुए प्यार से बोला, “देख बेटा, इस तरह से अगर तुम दोनों से सीधे ही यह बात कहोगी, तो वह दोनों ही भला कैसे हाँ कर पाएँगे? उन दोनों को स्पेस देना होगा ना।”

    श्रीजा ने उदासी से रेहान को देखा और बोली, “दोनों ने मेरी बात को मना कर दिया। हमेशा तो मेरी बात मान जाते हैं।”

    अर्थ ने प्यार से उसका सिर सहलाया और बोला, “वह तुझे प्यार करते हैं, बहुत प्यार करते हैं। इसलिए तेरी हर बात मानते हैं। लेकिन तेरा जो तरीका है उन्हें शादी के लिए मनाने का, यह बिल्कुल भी ठीक नहीं है। इस तरह से हाँ करना भी चाहेंगे तो बिल्कुल हाँ नहीं करेंगे।”

    श्रीजा उसे देखने लगी, तो रेहान बोला, “तेरे पापा को बाबा जी की घुट्टी दी है। देखते हैं असर होता है या नहीं। थोड़ा वेट करो, धीरे-धीरे हमें झलकियाँ तो देखने को मिल ही जाएँगी।”

    श्रीजा उन्हें कन्फ्यूज़न में देखने लगी, तो रेहान बोला, “इन सब में दिमाग मत लगा। वह हम देख लेंगे, और विश्वास रख, दोनों साथ आएंगे, पक्का साथ आएंगे।”

    उसकी बात सुनकर श्रीजा खुश हो गई और जल्दी से उसके गले लगकर बोली, “पक्का ना, अंकल?”

    रेहान ने उसका सिर सहलाकर कहा, “हाँ, पक्का। अब तू आराम कर, हम भी चलते हैं।”

    श्रीजा ने हाँ में गर्दन हिला दी। थोड़ी देर बाद रेहान और अर्थ भी वहाँ से चले गए। वह एक बार फिर अकेली थी।

    उसने अपना फोन उठाया और अंगद को कॉल लगा दिया। लेकिन एक बार फिर कॉल रिसीव नहीं हुआ। वह उसे लगातार कॉल कर रही थी, लेकिन वह कॉल उठा ही नहीं रहा था। उसे पता भी नहीं था कि क्या चल रहा था। अंगद अचानक चला कहाँ गया था? और क्या रणविजय को इस बारे में पता भी था?

    श्रीजा ने उसे मैसेज करते हुए कहा, “तुम जहाँ कहीं भी हो, घर आ जाओ। जो कुछ हुआ उसमें तुम्हारी कहाँ गलती थी? गलती तो सारी मेरी थी ना। मैं ही इधर-उधर बिना किसी को बताए उछल-कूद करती रहती हूँ। और वैसे भी, बलवीर वाला मामला कोई आज का तो है नहीं। वह काफ़ी पुराना है। तो तुम्हें उसके बारे में टेंशन करने की ज़रूरत नहीं है। प्लीज घर आ जाओ, सीनियर।”

    इधर अंगद ने अपना फोन देखा। वह गाड़ी में था। कल वह जिस जगह पर गया था, वहाँ पर बलवीर नहीं था। और अब भी वह बलवीर की खोज में ही था।

    वह जानबूझकर श्रीजा के कॉल अवॉइड कर रहा था। अब जब मैसेज आया, तो उसने नोटिफिकेशन बार पर से ही मैसेज पढ़ लिया और फोन बंद करके साइड में रख दिया। उसने अपना सिर पीछे सीट पर टिका दिया और खुद से बोला, “सब लोग तो माफ़ कर देंगे, लेकिन मैं खुद को कैसे माफ़ करूँ? तुम मेरी रिस्पॉन्सिबिलिटी थी, लेकिन मेरे होते हुए भी तुम्हें कोई चोट पहुँच गई। मैं घर तब तक नहीं लौटने वाला, जब तक उस बलवीर को ना पकड़ लूँ। कहाँ तक छिपेगा और कब तक छिपेगा?”

    यह कहते हुए उसने अपनी आँखें खोली और फिर से गाड़ी स्टार्ट कर दी। उसने किसी को कॉल लगाते हुए कहा, “पता लगाओ।” उधर से किसी की आवाज आई, “हाँ, इस वक्त वह अपने शहर के बाहर वाले फ़ार्म हाउस पर है। बिगड़े बाप की बिगड़ी औलाद है। इतनी आसानी से हाथ थोड़ी आएगा। न जाने कितनी प्रॉपर्टी है उनकी। रोज़ बदलते फिरता है ताकि कोई पकड़ ना पाए।”

    अंगद ने कहा, “इसकी चमड़ी तो मैं उधेड़ूँगा।” यह कहते हुए उसने कॉल कट किया और गाड़ी शहर के बाहर की तरफ बढ़ा दी।

    इधर श्रीजा ने मुँह फुला लिया था। अंगद उसके एक कॉल या मैसेज का जवाब नहीं दे रहा था, और उसे इसी बात पर गुस्सा आ रहा था।

    शाम हो आई थी। रणविजय घर लौटा और उसने सबसे पहले श्रीजा को चेक करने का सोचा। वह उसके कमरे की तरफ बढ़ गया। जब वह उसके कमरे में आया, तो वह आराम से सो रही थी। वह उसके पास गया और प्यार से उसके सर को सहलाकर हल्के से मुस्कुरा दिया। तभी उसकी नज़र उसकी बेडसाइड की टेबल पर गई, जहाँ पर वह रेड रोज़ेस का बुके रखा हुआ था। रणविजय उस बुके को अच्छे से पहचानता था।

    उसके माथे पर बल पड़ गए। उसने खुद से ही कहा, “यह बुके तो आरिका के लिए था। यह यहाँ पर कैसे? क्या वह यहाँ पर आई थी? और अगर आई, तो यह बुके यहाँ क्यों छोड़कर चली गई? क्या उसे ये फ्लावर पसंद नहीं आए?”

    रणविजय ने वह बुके उठाया। उसमें वह चिट भी अब तक वैसे की वैसी लगी हुई थी। और उस बुके को लेकर कमरे से निकल गया।

    इधर आरिका शांत सी अपने कमरे में बैठी हुई थी। उसके दिमाग में कई सारी बातें चल रही थीं, जैसे कि वह फ्लावर किसने भेजे थे? और श्रीजा का उससे शादी करने के लिए कहना सच में काफ़ी अजीब था। सब कुछ उसके लिए। लेकिन क्या करती और क्या नहीं? समझ नहीं आ रहा था।

    उसने गहरी साँस भरी और खुद से ही बोली, “इस बारे में ना सोचा जाए तो बेहतर है। क्यों इतना सोच रही हूँ मैं? समझ नहीं आ रहा। फ़िलहाल तो मुझे उस अनजान आशिक को ढूँढना है, जो मेरे लिए बुके रखकर चला गया। पता नहीं कौन है जो रातों-रात मेरा आशिक बन गया, अजीब है।”

    आरिका ने गहरी साँस भरी और उठ खड़ी हुई और उसके बाद वॉशरूम में चली गई।

    इधर रणविजय अपने कमरे में था और सोच रहा था कि आरिका ने वह फ्लावर यहाँ क्यों छोड़े। उसे तो यह लग रहा था कि आरिका को वह पसंद नहीं आए। उसने तुरंत गौरव को कॉल किया। उधर से कॉल पिक होते ही रणविजय ने दाँत भींचते हुए कहा, “तुमसे एक काम ठीक से नहीं होता ना, बेवकूफ़ आदमी।”

    गौरव बेचारा हड़बड़ा गया। अब उसने क्या कर दिया था? उसे क्यों डाँट पड़ रही थी, उसे तो यह भी नहीं पता था।

    गौरव ने हड़बड़ाते हुए कहा, “सर, पर मैंने अब क्या कर दिया?”

    रणविजय ने गुस्से से कहा, “आरिका को फ्लावर पसंद नहीं आए। वह इन फ्लावर को श्रीजा के पास छोड़कर चली गई।”

    गौरव का मन कर रहा था अपना सर किसी दीवार पर दे मारे। यह आदमी कितनी अजीब हरकतें करने लगा था! पहले तो ऐसा कभी नहीं करता था। लेकिन बेचारा गौरव कर क्या सकता था? वह आदमी उसका बॉस था।

    रणविजय ने उसे डाँटते हुए कहा, “कल तुम उसे व्हाइट लिली के फ्लावर भेजोगे। समझे? और स्पेशली नोट लिखना कि वह कहीं भी इन फ्लावर को ना छोड़े। समझ गए?”

    गौरव ने जल्दी से कहा, “जी, जी सर। समझ गया।”

    रणविजय ने कॉल कट कर दिया। गौरव ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “भगवान! क्या हो रहा है? यह सर इतनी अजीब हरकतें क्यों करने लगे हैं? पहले तो ऐसे कभी नहीं थे।”

    लेकिन उसे जवाब देने वाला वहाँ था ही कौन? बेचारा गौरव हर बार रणविजय के गुस्से का शिकार हो जाता था।

    रात को सब लोगों ने साथ में डिनर किया और फिर अपने-अपने कमरे में चले गए। रणविजय के फ़ोन पर मैसेज आया, तो उसने फ़ोन उठाकर देखा। रेहान का मैसेज था, वह भी ग्रुप में, जिसमें उसने लिखा था, “श्रीजा ने आरिका को शादी के लिए पूछा।”

    रणविजय हैरान था। उसकी आँखें तो उस मैसेज पर टिक चुकी थीं। उसने हैरानी से खुद से कहा, “क्या मेरी बेटी आखिर करना क्या चाहती है? कभी मुझसे शादी के लिए पूछ रही है, तो कभी आरिका से।”

    तभी अर्थ ने नीचे मैसेज करते हुए कहा, “और इतना ही नहीं, श्रीजा का बस चलता तो आज ही अपने माँ-बाप के फेरे पड़वा चुकी होती। उसने तो सोच लिया है कि अगर उसकी कोई माँ बनेगी, तो वह सिर्फ़ आरिका होगी। बेचारी आरिका की शक्ल देखने लायक थी उस वक़्त। उसे तो समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे और क्या नहीं। श्रीजा ने उसे इतना कन्फ़्यूज़ कर दिया था।”

    रणविजय ने तुरंत अपना फ़ोन बंद किया और अपनी गाड़ी की चाबियाँ उठाकर तुरंत घर से निकल गया।


    क्या होगा आगे? क्या होगा जब अगले दिन फिर से फ्लावर पहुँचेंगे? कहाँ जा रहा है रणविजय? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी।


    To be continued…

    ✍️ Riya Sirswa