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Rebirth of My Dangerous Hubby

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Diora__770

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कहते हे हाथो कि लकीरे अधूरी हो तो, किस्मत में मोहब्बत नहीं होती। पर सच तो ये है कि हाथो में हो कोई प्यारा हाथ, तो लकीरो कि भी जरुरत नहीं होती। ये कहानी राजस्थान के छोटे कुंवर वीर प्रताप के अधूरे प्यार की है जिन्हे अपनी शादी के दूसरे दिन ही उसके पत्नी...

Total Chapters (2)

Page 1 of 1

  • 1. Rebirth of My Dangerous Hubby - Chapter 1

    Words: 1128

    Estimated Reading Time: 7 min

    कहते है कि इशान अपनी परछाई से बच सकता है ,अपनी अतीत से नही , अपने कर्मो से बच सकता है, अपने भाग्य से नही , अनहोनी से बच सकता है होनी से नही , होनी को न आप टाल सकते है न मै , ये और बात है की जिंदगी के इस चक्र को समझने के लिए मुझे  दूसरा जन्म लेना पड़ा है। सैयद इस बात को आप अभी नही मानेंगे लेकिन मेरी कहानी सुनने के बाद आप भी मान जायेंगे। आई बिलीफ इन डिस्टेनी...... नी । चल ये पढ़ाते है मेरी जिंदगी यानी  वीर प्रताप राजवंश  के अनोखे प्यार की कहानी । रिबोर्न ऑफ माई पजेशन हब्बी । तीन दिन पहले। राजस्थान, जयपुर, रात का वक्त, गुलाबी कोठी ,  दुल्हन की तरह सजी लाल , हरी, पीली लाइट से पूरी गुलाबी कोठी में इस वक्त किसी शर्व्ग से कम नहीं थी। पूरी कोठी में रिस्थेदारो की  चहल पहल मची हुई थीं, सारे नौकर इधर से उधर काम करने में बीसी थे। पूरी कोठी सफेद फूलो से सजी चांदनी रात में कयामत डाल रही थी  । जिसे एक बार देख कर हर इशान अपने होश ही खो दे। कोठी के आस पास कई सारे लोगो थे जो अपने छोटे कुंवर वीर प्रताप सिंह के आने का इंतजार कर रहे थे । जो आज पूर्णिमा के फुल चांद को साक्षिसी मान कर अपने प्यार ( उदय पुर के राजा की छोटी बेटी वैशाली से शादी कर एक पवित्र बंधन में बंधने जा रहे थे ।  और इस पूरे होने वाले प्यार की गवाही वो चमकता हुआ चांद दे रहा था । ढोल, नगाड़ों की आवाज उस पूरे माहौल को और ज्यादा खुशनुमा कर रहा था। उस कोठी के चारो तरफ कई सारे लोग काले कपड़ो में थे जो वहा की भीड़ से अलग लग रहे थे । एक बॉडीगॉर्ड दूसरे बॉडीगार्ड से वाक्की टोकी पर बात करतें हुए। हेलो हेलो शेरा शेरा... Yes chief मुझे आपकी आवाज आ रही है  क्या आपको मेरी आवाज सुनाई दे रही है। चीफ शेरा से   ___  मुझे लगता है की ये भीड़ अब कम नहीं होने वाली है  हमे ही कुछ करना होगा। जब तक हमारे छोटे कुंवर की शादी नही हो जाती। शेरा चीफ से बोला ___ बड़े मालिक का ऑर्डर था की कोई भी  फालतू का इशान यहां नही दिखाना चाहिए। लेकिन हमारे छोटे कुंवर ऐसा नहीं समझते उनको तो अपनी जनता से बहुत प्यार है तभी तो बड़े मालिक के राजा होने के बाद भी सारी जनता छोटे कुंवर को ज्यादा सम्मान देती है । और उनको ही अपना राजा मानती है। कुंवर वीर प्रताप का रूम,  कोठी के सबसे ऊपर और कार्नर साइड में जो रूम था जहा से पूरा गुलाबी शहर (जयपुर) दिखाई दे रहा था। रूम के बाहर डोर पर दो गार्ड्स तैनात थे जो बचपन से छोटी कुंवर को सेफ रखने के लिए अपनी जान की बाजी लगाने के लिए कभी भी पीछे नहीं हटते थे। वीर का रूम अंदर  देखने से किसी मिनी महल से कम नहीं था। पूरे रूम में बड़े बड़े पर्दे लगे हुए थे जो बाहर से आ रही तेज हवा के झोके से उठ रहे थे और रूम के बीचों बीच एक बहुत बड़ा सा बेड था।जिसपर आज हार्ट के शेप के दो दिल गुलाब की पंखुड़ी से बने हुए थे। और बेड के सामने कुंवर वीर की फ़ोटो पूरे वॉल पर लगी हुए थी। तभी उस रूम के बॉथरूम का दरवाजा खुला और एक हैंडसम सा लड़का बाथरोम पहने  बाहर आया। वीर अपनी बॉडी को मिरर में देख कर एक प्यारी सी स्माइल करता और एक नजर  उठते हुए परधो से  चांद को देख कर  मन में कुछ गुनगुनाते हुए बोला कभी पढ़ तो सको मेरी इन आखों को यहां दरिया बहता है तेरी मोहब्बत का आ तुझे बाहों में गुम्मा लू बस कुछ पल और    तेरे लिए ही जिऊ बस कुछ पल और   मेरे जिस्म के जिस्म के सासो में तुझे   बसा लूं बस कुछ पल और  ये बोल कर वो वाल्ड्रॉप के तरफ़ बढ जाता। कोठी के बाहर गार्डन के बीचों बीच में भव्य तरीके से लाल और रेड कलर के roses से मंडप सजा हुआ था। मण्डप के चारो तरफ़ कई सारे लोग थे जो दूल्हा और दुल्हन को आशीर्वाद देने के लिए आए हुए थे। पंडित जी.. शादी के समान को मण्डप में रखते हुए बोले ___ श्रीमान (बड़े मालिक )  दूल्हा और दुल्हन को बुलाइए वरना शादी का शुभ मूरत चला जाएगा। (वीर के पिता )  जी पण्डित जी हम अभी उन दोनो को बुला कर ला रहे है। आप शादी की तयारी शुरू कर ये। बड़े मालिक पण्डित से बात कर ही रहे थे की तभी गार्डन में चारो तरफ गार्ड से गिरे वीर की एंट्री हुई जिसने राजस्थान की ट्रेडिशन पोसाक पहन रखी थी। और एक हाथ में तलवार लिए किसी निडर राजा की तरह मण्डप की तरफ बढ रहा था। कोठी के बाहर सारे लोग वीर को देख कर अपना सर नीचे झुका कर दोनों घुटनों के बल बैठ जाते । वहा की जनता अपने प्यारे छोटे कुंवर को दूल्हे की पोशाक में देख कर चिल्लाने लगे। गुलाबी कोठी के चारो तरफ़ से सारे लोग छोटे कुंवर को शादी की बधाई दे रहे थे। पूरी जनता अपने कुंवर की शादी देख कर बहुत खुश थी। इस वक्त वीर का चेहरा बहुत शांत और कोल्ड था लेकिन उसके चेहरे के डिंपल देख कर कोई भी बता सकता था की वो आज अंदर से कितना खुश है। पंडित जी वीर को इशारा कर के मण्डप में बैठने को कहते और फिर शादी की रिचुअल करना शुरू कर देते।  करीब एक घण्टे बाद पण्डित जी दुल्हन को बुलाने को कहते जहा वीर की मां अपनी होने वाली दुल्हन को उसकी मां के साथ मण्डप की तरफ़ बढ रहे थे। वहा के सभी लोगो की नजर उदय पुर की राजकुमारी को देख कर उस पर से हट ही नहीं रही थी। क्यों की आज तक कभी भी किसी ने भी राजकुवारी  वैशाली को नही देखा था। राजकुमारी वैशाली का एक हाथ वीर की मां के हाथ में और दूसरा उसकी मां के हाथ में था और वैशाली अपनी दोनो नजरे नीचे किए हुए मण्डप की तरफ़ बढ रही थी।  और दुल्हन के भाई पीछे से अपनी बहन के सर पर लाल चुनरी लिए हुए उसके साथ साथ चल रहे थे। वीर  वैशाली को लाल जोड़े में देख कर उसकी नजरे उस पर से हट ही नहीं रही थी। वो अपना एक हाथ दिल के साइड रख कर धीरे से कुछ बोलता दिल किसी की इजाजत ले कर नही लगाया जाता है    किसी का जोर नही चलता इस पर खुद अपना भी नहीं बस जिस पर आना होता है आ ही जाता है   तुझे बस यू देखता रहूं बस यही इबादत है मेरी क्या जयपुर के छोटे कुंवर वीर और उदय पुर की छोटी राजकुमारी की शादी हो पायेगी। या फिर रह जाएगा उनका प्यार अधूरा।

  • 2. Rebirth of My Dangerous Hubby - Chapter 2

    Words: 1023

    Estimated Reading Time: 7 min

    Ch 2 - शादी संपन्न हुई अब आगे                            ओ ओ ओ                          गुमर रब वारे                        आप प__पधारो__                       आओ जी आओ                      घूमर  नीचे लुभारे                    पधारो सा गुमर नीचे                     लुभाते बलम थारे                      गुनर गुनर  गुलधारे                      बसों मारे जीवड़ो                   बड़ो हिचकारे ओ कब                       दावे मन में भावे                      भावे.... मन में बर                    लो मन भावे भावे... वीर जिसने राजस्थानी रॉयल शेरवानी पहनी थी वो मण्डप में खड़े होकर अपने प्यार को एक एक कदम से करीब आते देख उसके चेहरे पर आज अलग ही खुशी थी। वीर आगे बढ कर अपना हाथ  वैशाली की तरफ बढ़ा देता है। वैशाली अपनी नजरें उठाकर वीर को देखती तब जाकर उन दोनों का आइकॉन्टैक्ट हुआ जिस में उन दोनो की आखों में एक दूसरे के लिए सिर्फ बेपनाह महोब्बत दिख रही ।                        छमक छम बाजे                 पायलिया बाजे बाईसा केरे                      छमक छमक गुघरा                बजे आउसा घूमर नीचे बाजे                      आउसा घूमर नीचे बाजे ..... वैशाली  शर्मा कर अपनी नजरें नीचे झुका कर अपना हाथ वीर के हाथ में रख देती । वीर मजबूती से उसका हाथ  पकड़ लेता ।वीर ने वैशाली का हाथ इतनी जोर से पकड़ा था कि मानो वैशाली अभी उससे दूर होकर भाग जाएगी । वैशाली ऊपर मंडप में आकर वीर के साथ खड़ी हो जाती । वीर झुक कर   वैशाली के कान  में कहता___ you are looking very very beautiful my princess बोलकर वीर वैशाली के बगल में खड़ा हो जाता । वैशाली वीर की बात सुनकर उसके गाल और ज्यादा गुलाबी हो जाते । पंडित जी उन दोनो को एक दूसरे को वरमाला पहनाने को बोलते है। पंडित की बात सुन कर वैशाली की बहन एक थाल में दो लाल गुलाबो से सजे वरमाला को ले कर उन दोनो के पास गई।  वीर थाल से ले कर माला पहले वैशाली को वरमाला पहनाता है। फिर वैशाली वरमाला पहनाने के लिए अपने नजरे ऊपर करती। वैशाली वीर को देख कर एक प्यारी सी स्माइल करते हुए वीर को वरमाला पहना देती। पंडित जी उन दोनो को बैठने का बोल कर शादी की रस्में शुरू कर देते। वैशाली  घुंघट  के अंदर से अपनी कनकी आखों से वीर को बार बार देख रही थी। उसे इस बात पर यकीन नही हो रहा था की उसने  दिल में रहने वाले राजकुमार से आज उसकी शादी हो रही थी  जिस से उसने  अपने बचपन से प्यार किया आज वो इंसान जिंदगी भर के लिए सिर्फ और सिर्फ हो गया है। पंडित जी कन्यादान के लिए बोलते है । ये सुन कर उदय पुर के राजा और रानी की आखों में आशू आ जाते और वैशाली के पिता अपनी पत्नि का हाथ पकड़ कर मण्डप की तरफ़ जाने लगते। वो दोनो आ कर वैशाली का कन्यादान करते और वैशाली का हाथ हमेशा हमेशा के लिए वीर के हाथ में दे कर वीर से कहते है कुंवर वीर हमने (हमारे दिल का टुकड़ा) हमारी बेटी को बड़े प्यार से पाला है आज तक हमने उसको किसी चीज़ की भी तकलीफ नहीं होन दी है। हमने हमारी दुश्मनी को भूल कर सिर्फ आप पर भरोसा किया है अगर हमारी राजकुमारी को एक भी तकलीफ़ हुई तो याद रखना हम इस राज्य को पूरा बर्बाद कर देगे। मैने अपनी बेटी को पलको पर बैठा कर रखा है मुझे उम्मीद है की तुम मेरी बेटी को कोई भी तकलीफ़ नही होने दोगे। वीर उनकी बात सुन बीना कोई भाव के उनसे बोला मैने प्यार किया है उदय पुर की राजकुमारी से और आज के बाद वो मेरी जान है वो अपनी जान दे कर भी अपनी जान की परवा करूगा आज के बाद आपको चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है। वैशाली के पिता वीर की बात सुन कर खुश हो जाते और अपनी राजकुमारी को भी खुश देख कर वहा से चले जाते। फिर दोनो फेरे के लिए खड़े होते है। वीर आगे बढ़ कर  वैशाली का हाथ पकड़ लेता और वो उसके पीछे चल  रही थी।  चार फेरे होने के बाद वैशाली वीर के आगे आती और वीर उसके पीछे हो जाता। इस वक्त सब लोगो के चेहरे पर खुशी का माहौल था सब उन पर फूल डाल रहे थे। फेरे होने के बाद दोनो वापस अपनी जगह पर बैठ गए।                        कनक प्रीत की सर पे                       मोड़ के घूमर घूमर घूमे                          हां घूमर घूमर घूमे                      ओ ओ ललक रीत की                         सब जग की छोड़ कर                        घूमर घूमर घूमे भर के                          ढोला वालिए ढाठ                       वाले रे घूमर घूमर घूमर                      ...........घूमर  घूमे .... रे                              घूमर घूमर घूमे                      भाई सा घूमर घूमे रे .......   पंडित जी वीर के हाथ में सिन्दूर देते जिसे वीर वैशाली की मांग में उसका माग टीका हटा कर सिन्दूर भर देता। वैशाली की आंख से एक आसू आ कर उसके गाल पर गिर जाता है। वीर उस आसू को अपनी उंगली में ले लेता। वीर वैशाली के कान में कोल्ड एक्सप्रेशंस के साथ बोला ___ राजकुमारी आपके साथ साथ आपके  आसू भी मेरे है मुझे दर्द होता है इन आसुओं को देख कर मेरी पर्मिशन के बिना एक भी आसू आपकी आखों से नही गिरना चाहिए फिर चाहे वो खुशी के हो या दुखी के... ये बोलकर वीर सीधा बैठ जाता। वही वैशाली वीर को एक नए रूप में देख रही थी उसे वीर कुछ बदला बदला लग रहा था। क्यों की आज तक उसने उससे कभी इस तरह से बात नही की थी। वीर मन में एविल स्माइल हस्ते हुए __ आज के बाद तुम सिर्फ़ मेरी हो जाओगी मैं कभी भी तुमको अपने आप से दूर नही जाने दूंगा। तुम पर सिर्फ और सिर्फ मेरा हक है। पंडित जी वीर से बोलते ___शादी संपन हुई आज से आप दोनो सात जनम के लिए एक दूसरे के हो गए।  मेरा आशिर्वाद है की आप दोनो हमेशा हाथ रहे ।ये बोल कर पण्डित जी वहा से चले जाते। वीर  वैशाली  का हाथ पकड़ कर उसको मण्डप से बाहर लाता है और गार्डन के दूसरे साइड जहा स्टेज को सजाया हुआ था उन दोनो को आशीर्वाद देने के लिए ले जाता है। वैशाली के फेस पर दुनिया भर की खुशी थी । वही उसके अलग वीर बहुत शांत था लेकिन उसकी लाल आंखे कुछ और ही बयां कर रही थी। वीर का बिहेवियर क्यों बदल रहे है वैशाली से शादी कर के। या फिर कोई साजिश है वीर की वैशाली को अपने करीब रखने की।