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Ziddi ishq: A love story

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Naaz zehra

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वो झुकता नहीं… और वो डरती नहीं। रियांश — एक ऐसा नाम जिससे माफिया भी कांपते हैं। खामोश निगाहें, ठंडी साँसे, और दिल… पत्थर सा। जिसने प्यार को कमज़ोरी समझा, और झुकना हार। खुशी — एक मुस्कान जो दुख में भी रौशनी बन जाए। कभी किसी से नहीं डरी, न...

Total Chapters (111)

Page 1 of 6

  • 1. Ziddi ishq: A love story - Chapter 1

    Words: 846

    Estimated Reading Time: 6 min

    रियांश कपूर, अट्ठाईस वर्षीय, एक नंबर का व्यापारी होने के साथ-साथ माफ़िया किंग भी था। वह जितना रूपवान था, उतना ही खतरनाक भी। उसे किसी की भावनाओं की कोई परवाह नहीं थी; उसके लिए किसी की जान लेना आम बात थी। उसका कोई परिवार नहीं था; परिवार के नाम पर केवल एक मित्र था, जो उसके हर काम में साथ देता था।


    अर्जन राणा, रियांश का अट्ठाईस वर्षीय मित्र था। वह दिखने में रियांश से कम नहीं, रूपवान और प्यारा था। वह रियांश के साथ ही रहता था।


    खुशी शर्मा, अठारह वर्षीय, देखने में परी सी लगती थी। वह कॉलेज में प्रथम वर्ष की छात्रा थी। उसके परिवार में केवल एक बहन थी। उसके माता-पिता का एक दुर्घटना में देहांत हो गया था, जब वह पन्द्रह वर्ष की थी।


    अंजलि शर्मा, खुशी की बीस वर्षीय बड़ी बहन, देखने में सुंदर और समझदार थी। वह कॉलेज में तृतीय वर्ष की छात्रा थी। वह खुशी के लिए थोड़ी चिंतित रहती थी क्योंकि खुशी किसी का दुःख नहीं देख सकती थी, जिस कारण उसे बहुत कठिनाइयाँ होती थीं। परन्तु खुशी किसी की मदद करने से कभी पीछे नहीं हटती थी।


    "खुशी, जल्दी नीचे आओ! हमें कॉलेज जाने में देर हो रही है," अंजलि की आवाज़ आई।

    "दीदी, बस पाँच मिनट, जल्दी आ रही हूँ! आपने अभी नाश्ता भी नहीं किया।"

    थोड़ी देर बाद खुशी नीचे आई।

    "दीदी, जल्दी से नाश्ता दीजिये, कॉलेज के लिए!"

    "पहले ही देर हो गई, अंजलि! अगर तुम जल्दी उठती तो इतनी देर नहीं होती।"

    "खुशी, माफ़ करना दीदी, दोबारा ऐसा नहीं होगा, सच!"

    फिर दोनों ने नाश्ता किया और स्कूटी से कॉलेज के लिए निकल गईं। अंजलि स्कूटी चला रही थी, खुशी पीछे बैठी हुई थी।

    "खुशी, दीदी, आपको पता है, कल कॉलेज में राहुल ने नेहा को परेशान किया था?"

    "मैंने उसे अच्छे से सबक सिखा दिया, दोबारा वो किसी को परेशान नहीं करेगा," यह कहकर खुशी मुस्कुराई।

    "अंजलि, तुमसे कितनी बार कहा है कि दूसरों के कामों में मत पड़ा करो, लेकिन तुम सुनती ही नहीं हो!"

    "खुशी, अफ़्फ़ो! दीदी, आप भी क्या बड़े बुजुर्गों की तरह बातें कर रही हो!"

    "अंजलि, तुम्हें तो लगेगा, मैं तुम्हारे भले के लिए कह रही हूँ। किसी दिन बड़ी मुसीबत में फँस जाओगी, फिर मुझसे मत कहना!"

    "खुशी: ठीक है, दीदी, अब गुस्सा करना बंद कीजिये, मैं आपकी बात समझ गई हूँ।"

    इतने में अंजलि ने स्कूटी रोकी क्योंकि ट्रैफ़िक था। खुशी ने जैसे ही ट्रैफ़िक देखा, कहा,

    "यह देखो, कितना ट्रैफ़िक है! हमें कॉलेज जाने में देर हो जाएगी, अब हम क्या करें?"

    अंजलि बोली, "थोड़ा इंतज़ार करो, अभी क्लियर हो जाएगा।"

    जब बहुत देर हो गई और ट्रैफ़िक नहीं हटा, तो खुशी बोली,

    "दीदी, आप रुको, मैं देख कर आती हूँ, ट्रैफ़िक क्यों लगा है?"

    खुशी स्कूटी से उतर कर जाने लगी।

    "नहीं, तुम नहीं जाओगी! तुम बैठो, मैं देख कर आती हूँ," अंजलि बोली।

    "दीदी, आप बैठो ना, मैं जाती हूँ," यह कहकर खुशी अंजलि की बात सुने बिना चली गई।

    जैसे ही खुशी आगे बढ़ी, उसने देखा कि बहुत सी कारें बीच सड़क पर खड़ी हैं। उसके पास काले कपड़ों में बहुत से लोग खड़े थे और एक लड़का कार पर बैठा हुआ था।

    जैसे ही खुशी और आगे बढ़ी, उसने देखा एक आदमी जमीन पर घुटनों के बल बैठा हुआ रो रहा था। उसे बहुत जगह से खून निकल रहा था। खुशी उस आदमी को देखकर उसके पास जाने लगी।

    इतने में अंजलि ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    "अंजलि: तुमसे कहा था ना, मैंने! लेकिन तुम मेरी बात नहीं मानती! चलो यहाँ से!"

    "दीदी, देखो ना, उन अंकल को कितनी चोट लगी है! सब लोग देख रहे हैं, कोई उन्हें अस्पताल लेकर नहीं जा रहा, हम लेकर चलते हैं ना?" खुशी बोली।

    "अंजलि: नहीं! तुम मेरे साथ चलो!"

    "दीदी, आप ऐसा कैसे कह सकती हैं? अगर अंकल को कुछ हो जाएगा तो?"

    "अंजलि: मैंने कहा ना तुम चलो, यहाँ से!" कहकर अंजलि खुशी को लेकर जाने लगी। इतने में वह लड़का जो कार पर बैठा हुआ था, उतरकर उस आदमी के पास आया और उसके माथे पर बंदूक रख दी।

    "बड़ा शौक था ना तुम्हें मेरे बीच में टांग अड़ाने का, अब क्या करोगे?" उसने कहा।

    वह जख्मी आदमी ने अपने दोनों हाथ जोड़े और बोला, "कृपया सर, मुझे माफ़ कर दो, दोबारा से ऐसी गलती नहीं होगी! मैं दोबारा आपके बीच में नहीं आऊँगा, मेरी आखिरी गलती समझकर माफ़ कर दो! मेरी पत्नी और बच्चे हैं, अगर मुझे कुछ हो जाएगा तो उन्हें कौन संभालेगा?"

    यह कहकर वह आदमी लड़के के पैरों में गिर गया। लड़का बोला, "यह तुम्हें पहले सोचना चाहिए था! अब तुम सीधा ऊपर जाओ और अपनी गलती सुधारो!" यह कहकर जैसे ही वह उसे गोली मारने को हुआ,

    इतने में खुशी ने उसका हाथ पकड़कर ऊपर उठा दिया और एक झटके से थप्पड़ उसके गाल पर मार दिया।

    लड़के के थप्पड़ पड़ते ही उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं। हाथों की नसें उभर आईं। जितने भी वहाँ लोग थे, सब डर के मारे काँपने लगे। लड़का, जिसका चेहरा एक तरफ़ हो गया था, ने अपनी आँखें बंद कर लीं।

  • 2. Ziddi ishq: A love story - Chapter 2

    Words: 434

    Estimated Reading Time: 3 min

    अंजलि खुशी को लेकर घर आ गई थी।

    "तुमसे मना किया था ना, तुम समझती क्यों नहीं हो! तुम जानती हो, वह इंसान कितना खतरनाक है, वह तुम्हें कुछ कर देगा!"

    "तुम मेरी बातें सुनती क्यों नहीं हो? वह आदमी उन अंकल को मार देता, मैंने उनकी मदद की और आप मुझ पर गुस्सा कर रही हो! और होता कौन है वह, हमें कुछ करने वाला? वह कुछ नहीं करेगा!"

    "मैं समझ रही हूं खुशी तेरी बात, लेकिन वह कोई मामूली इंसान नहीं है। वह बहुत बड़ा माफिया है। उसे वक्त भी नहीं लगेगा हमें खत्म करने में। तुमने देखा था ना वहां पर कितने लोग थे, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। और तुम ने उसको थप्पड़ मार दिया!"

    "होता होगा माफिया, लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता। अगर वह मेरे सामने किसी को भी मारेगा, तो मैं तो रोकूंगी। मुझे उससे डर नहीं लगता!"

    अंजलि खुशी की बात सुनकर निराश हो गई। जैसे ही खुशी ने अंजलि को देखा, वह उसके पास गई, उसके हाथ पकड़ते हुए कहा, "मुझे माफ़ कर दो दी! आप मेरी वजह से परेशान हो गईं।"

    अंजलि ने खुशी के गाल पर प्यार से हाथ रखा और कहा, "खुशी, तू जानती है, तेरे अलावा मेरा और कोई नहीं है। अगर तुझे कुछ हो जाएगा, तो मैं तेरे बिना कैसे जीऊंगी? मैं तुझे तकलीफ में नहीं देख सकती।"

    "तुम मुझे एक वादा करो, अगर आज के बाद तुम्हें वह इंसान दिखे, तो तुम वहां से वापस लौट जाना। कभी उसके सामने मत आना। और वह कितनी भी लोगों को कुछ भी करें, तुम उसको पास मत जाना। यह मुझसे वादा करो!"

    "पर दी, अंजलि, पर वर कुछ नहीं, तुम मेरी कसम!"

    अंजलि ने खुशी की बात सुनकर उसे गले लगा लिया और फिर अलग होकर कहा, "ठीक है, अब तुम फ्रेश हो जाओ। मैं हम दोनों के लिए कुछ खाने के लिए बनाती हूं।"

    "हाँ दी, मुझे बहुत भूख लगी है!"

    "ठीक है, आज तेरा फेवरेट खाना बनाऊंगी!"

    खुशी अंजलि की बात सुनकर खुश हो गई और अपने कमरे में चली गई।

    अंजलि खुशी को देखकर बोली, "तुम नहीं जानती, तुम बहुत मासूम हो। तुम इस दुनिया को नहीं जानती। यह दुनिया तुम जैसे मासूम लोगों की मासूमियत छीन लेती है। तुम जिसको मदद करने के लिए आगे गई थी, अगर कल को तुम्हें कोई मदद की जरूरत होगी, तो कोई तुम्हारी मदद नहीं करेगा। इसलिए तुम्हें अब मैं यहां नहीं रहने दे सकती। क्योंकि तुमने जिस इंसान को थप्पड़ मारा है, वह जरूर कुछ ना कुछ करेगा। और मैं यह होने नहीं दे सकती।"

  • 3. Ziddi ishq: A love story - Chapter 3

    Words: 1504

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुबह का समय था। खुशी अकेले कॉलेज जा रही थी क्योंकि अंजलि किसी काम से कॉलेज नहीं जा पा रही थी। खुशी स्कूटी चला रही थी। एकाएक उसने जल्दी से ब्रेक लगाया। उसके साथ-साथ वहाँ जितने भी लोग थे, सब रुक गए। सब लोगों ने सामने देखा तो वहाँ बहुत सारी कारें आकर रुकीं। उनमें से बॉडीगार्ड निकले और एक व्हाइट कार के पास जाकर उसका गेट खोला।

    उसमें से रियांश निकला और उसने एक नज़र खुशी को देखा। वहीं खुशी, रियांश को देखकर थोड़ी हैरान हुई और अपनी स्कूटी से उतरकर एक तरफ़ खड़ी हो गई। रियांश चलकर खुशी के पास आया और कल से देखते हुए बहुत अजीब तरीके से बोला,

    "मुझे यहाँ देखकर अच्छा नहीं लगा?"

    खुशी ने उसके बाद मुँह बनाकर बोला, "बिल्कुल सही कहा। बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। क्योंकि तुम्हें देखकर किसी को भी अच्छा नहीं लगता, तो मुझे क्या लगेगा?"


    रियांश खुशी की बात सुनकर मुस्कुराया और बोला, "तुम्हें लोगों की मदद करना बहुत पसंद है ना? अब मैं तुम्हें सिखाता हूँ दूसरों की मदद करने से खुद का क्या हाल होता है। वैसे मैंने सुना है, लड़कियों को—सॉरी, मिडिल क्लास थोड़ी बहुत लड़कियों को—अपनी इज़्ज़त बहुत प्यारी होती है।"


    रियांश अपना चेहरा खुशी के पास लाकर बोला, "अगर मैं तुम्हारी इसी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ाऊँ तो तुम्हें कैसा लगेगा?" रियांश की बात सुनकर खुशी डरकर दो कदम पीछे हट गई। रियांश खुशी को डरता देख मुस्कुरा दिया।


    रियांश ने अपनी दाढ़ी पर हाथ रखकर सहलाया, फिर खुशी की तरफ़ देखकर बोला, "लेकिन मेरा एक हुक्म है कि मैं किसी लड़की की इज़्ज़त के साथ नहीं खेलता। इसलिए तुम्हारी इज़्ज़त बच गई। लेकिन एक अच्छा आईडिया है। क्यों ना तुम मुझे सबके सामने किस करो, तो शायद मैं तुम्हें छोड़ दूँ?"

    "तो क्या ख्याल है? बोलो।"

    खुशी रियांश की बात सुनकर घबराकर बोली, "देखो, मैंने तुमसे माफ़ी माँगी क्योंकि मेरी दीदी ने कहा था। तुम मुझे माफ़ करो या ना करो, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। वो तुम्हारी मर्ज़ी। लेकिन मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी क्योंकि मुझे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम मुझे माफ़ करो या ना करो, लेकिन मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी। समझे?" यह कहकर वो जैसे ही जाने को हुई, रियांश ने खुशी का हाथ पकड़ा और अपने चेहरे के पास उसका चेहरा लाकर बोला, "ना ना बेबी, बिना सज़ा के तुम यहाँ से नहीं जा सकती। और वैसे भी, मैंने तुम्हें इतनी छोटी सी सज़ा दी है, वो तो तुम्हें पूरी करनी होगी। और मुझे मजबूर मत करो तुम्हारे साथ कुछ बड़ा करने के लिए, जो तुम कभी सह नहीं पाओगी।"


    वहीं दूसरी तरफ़, अंजलि कुछ सोचते हुए सड़क पर चल रही थी। इतने में उसकी नज़र एक औरत पर पड़ी जो रोड क्रॉस करने की कोशिश कर रही थी। अंजलि जल्दी से उनके पास आई और उनका हाथ पकड़कर रोड क्रॉस करने लगी।


    वहीं सामने एक कार खड़ी थी। उसमें कोई था जो अंजलि को उस औरत की मदद करते हुए मुस्कुराते हुए देख रहा था। अंजलि उस औरत को रोड क्रॉस कराकर वापस जाने लगी। इतने में वो कार आकर अंजलि के बराबर में रुकी। अंजलि एकदम से अपने पास कार को देखकर डरकर पीछे हट गई।


    उसमें से अर्जुन निकला और अंजलि के पास आकर बोला, "सॉरी, तुम्हें चोट तो नहीं लगी? मैंने सच में जानबूझकर नहीं किया था।"

    अंजलि ने उसको देखा और बोली, "इट्स ओके।" यह कहकर अंजलि जाने लगी।


    अर्जुन अंजलि को जाता देख जल्दी से उसके पास आया और बोला, "रुको, तुम कहाँ जा रही हो? आओ, मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।"

    "मुझे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। मैं खुद जा सकती हूँ।"

    "मुझे पता है तुम खुद जा सकती हो, लेकिन मैं तुम्हें छोड़ दूँगा।"

    "मैं तुम्हें जानती भी नहीं हूँ। ऐसे कैसे मैं तुम्हारे साथ चली जाऊँ?"

    "और वैसे भी, मैं अजनबी लोगों से बातें नहीं करती।" अर्जुन ने फिर से अंजलि को जाता देख जल्दी से अंजलि का हाथ पकड़ा। अंजलि अर्जुन का हाथ पकड़ने से गुस्से में आ गई। उसने अपना हाथ छुड़ाया और बोली, "ये क्या हरकतें? तुम्हें शर्म नहीं आती बीच सड़क पर किसी लड़की का हाथ पकड़ते हुए?"

    "मैंने तुमसे एक बार कहा ना, मुझे नहीं आना तुम्हारे साथ।"

    "अर्जुन, सॉरी। मुझे नहीं पता था तुम इतना गुस्सा हो जाओगी। मैं बस यही कह रहा हूँ, मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ। और रही बात हम दोनों की जान पहचान की, वो अभी जान पहचान कर लेते हैं। मेरा नाम अर्जुन है। और तुम्हारा क्या नाम है?" यह कहकर उसने अपनी तरफ़ अपना हाथ बढ़ा दिया।


    अंजलि ने अर्जुन के हाथ को देखा और बोली, "मुझे कोई शौक नहीं है किसी से जान पहचान बढ़ाने का। अगर दोबारा से मेरा रास्ता रोका ना, तो यहाँ पर भीड़ इकट्ठी कर लूँगी और कहूँगी तुम मुझे परेशान कर रहे हो। फिर तुम ही जानना लोग तुम्हारे साथ क्या करेंगे।"


    अंजलि वहाँ से चली गई। अर्जुन अंजलि को जाता देख अपने दिल पर हाथ रखा और बोला, "यार, तुम कितना गुस्सा करती हो! इतना गुस्सा करोगी तो कैसे चलेगा? कोई बात नहीं, मैं हूँ ना तुम्हारा गुस्सा कम करने के लिए। वैसे भी, मुझे तो तुम्हारा गुस्सा भी पसंद है। मैं तो पूरी ज़िन्दगी तुम्हारे गुस्से के साथ रहने को तैयार, बस एक बार तुम मान जाओ।" अंजलि जब वहाँ से चली गई तो अर्जुन भी कार लेकर वहाँ से चला गया।


    रियांश की बात सुनकर खुशी बहुत डर गई और बोली, "तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते।"

    रियांश ने कहा, "बेबी, कर तो बहुत कुछ सकता हूँ। और जिस बहन के लिए तुम मुझसे माफ़ी माँगने आई हो, उसको एक सेकंड में इस दुनिया से ग़ायब करवा सकता हूँ। अगर तुम चाहती हो मैं तुम्हें माफ़ कर दूँ, जो बोला है वो करो, वरना तुम्हारी बहन हमेशा-हमेशा के लिए बहुत दूर चली जाएगी।"


    (रियांश सीरियस होकर बोला) "मेरे पास फ़ालतू का समय नहीं है जो तुम्हारे साथ टाइम पास करूँ। मैं बस तुम्हें दो मिनट देता हूँ और अगर तुमने इन दो मिनट में मुझे किस नहीं किया, तो तीसरे मिनट में तुम्हारी बहन..." (हाथ से इशारा करके) "...तुम्हारी बहन हमेशा-हमेशा के लिए तुमसे दूर चली जाएगी।"


    रियांश की बात सुनकर खुशी की आँखों में आँसू बहने लगे। उसने अपनी आँसू भरी आँखों से रियांश की तरफ़ देखा और बोली, "प्लीज़, ऐसा मत करो... मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ। मेरी बहन को कुछ मत करना।"

    (रियांश मुस्कुराया और बोला) "सिर्फ़ 90 सेकंड रह गए हैं।" रियांश की बात सुनकर खुशी घबरा गई और जल्दी से रियांश के पास आई, उसके बिल्कुल करीब खड़े होकर उसे किस करने लगी।


    इतने में रियांश ने खुशी के पीछे से बाल पकड़े और अपना चेहरा उसके पास लाकर बोला, "तुम्हारी इतनी औक़ात भी नहीं है कि तुम मुझे किस करो। तुम्हारी तो मेरे पास खड़े होने की भी औक़ात नहीं है, तो तुमने कैसे सोच लिया तुम मुझे किस कर सकती हो?" यह कहकर उसने उसे धक्का दे दिया।


    (खुशी रियांश के धक्के से नीचे गिर गई और उसके हाथ में भी चोट लग गई थी।) खुशी ने अपने हाथ को दिखाया जहाँ से खून निकल रहा था। खुशी ने अपना सर उठाकर आँसू भरी आँखों से रियांश को दिखाया जो मुस्कुरा रहा था। रियांश खुशी को देखकर मुस्कुराया और अपने पाँवों के बल उसके पास बैठा और बोला, "क्या हुआ? क्या चोट लग गई? दिखाओ मुझे।" यह बोलकर उसने खुशी का हाथ पकड़ा और अपनी जेब से रुमाल निकालकर खुशी के हाथ पर खूब टाइट से बाँध दिया जिससे खुशी की चीख निकल गई। उसने अपना हाथ खींचा और बोली, "नहीं, प्लीज़। बहुत दर्द हो रहा है।"

    (रियांश उदास होकर बोला) "सॉरी, सॉरी। मुझे नहीं पता था तुम्हें दर्द होगा। प्लीज़, मुझे माफ़ कर दो।"


    (वहाँ पर जितने भी लोग थे, उनमें से कुछ लोगों को खुशी के लिए बुरा लग रहा था और कुछ लोग खुशी के बारे में ग़लत-ग़लत बातें करने लगे।) खुशी रियांश को एकदम से बदलते हुए कन्फ़्यूज़ होकर देखने लगी। रियांश खुशी को कन्फ़्यूज़ देखकर खूब जोर-जोर से हँसने लगा।


    (रियांश एकदम से रुका और गुस्से में खुशी का चेहरा पकड़कर बोला) "मुझे तुम्हारी औक़ात दिखानी थी। तुमने कितनी बड़ी ग़लती करी थी मुझ पर हाथ उठाकर। और यही है तुम्हारी औक़ात, मेरे पैरों के नीचे। और अब तो तुम्हें समझ में आ गया होगा, अपनी औक़ात से बढ़कर सोचना या करना इतना बड़ा भारी पड़ता है।"


    झटके से खुशी का चेहरा छोड़कर वो वहाँ से चला गया। रियांश के जाते ही खुशी रोने लगी। इतने में इसके पास एक बूढ़ी औरत आई, उसको खड़ा किया और बोली, "तुम ठीक हो ना, बेटा?" खुशी ने उनकी तरफ़ देखा और (दर्द भरी मुस्कान चेहरे पर लाकर बोली) "हाँ, अब मैं बिल्कुल ठीक हो गई हूँ क्योंकि मुझे आज पता चला है लोग सिर्फ़ अपने बारे में सोचते हैं, दूसरों की उन्हें परवाह नहीं है, चाहे उस इंसान के साथ कुछ भी होता रहे। आप ही देख लीजिए, वो मेरे साथ क्या कर रहा था। यहाँ पर किसी ने हिम्मत भी नहीं की उसके सामने खड़े होने की।"

  • 4. Ziddi ishq: A love story - Chapter 4

    Words: 1523

    Estimated Reading Time: 10 min

    खुशी किसी की भी मुसीबत देखकर उसकी मदद करने को तत्पर रहती थी। आज दीदी की बात सही लगी। दीदी कहती थीं, "अगर कल को तुम मुसीबत में होगी, कोई तुम्हारी मदद नहीं करेगा।" मुस्कुरा कर उसने सोचा, "और देखो, किसी ने भी मदद नहीं की।" उस औरत का हाथ अपने कंधे से हटाकर वह वहाँ से चली गई।


    खुशी घर आई और कमरे में जाकर रोने लगी। रोते हुए उसने कहा, "आई रियली हेट यू! मैं तुमसे बहुत नफरत करती हूँ! मैंने आज तक तुम्हारे जैसा गिरा हुआ इंसान कभी नहीं देखा। तुमने जो मेरे साथ किया है, उसके लिए मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूंगी, कभी नहीं! मैं भगवान से दुआ करूँगी कि तुमने जो आज मेरे साथ किया है, वही कल तुम्हारे साथ भी हो। तुम्हें हैसियत का इतना गुरूर है ना, कल को तुम्हें किसी से मोहब्बत हो और वह तुम्हें कभी प्यार ना करे, तुम उसके सामने झुकोगे, तब भी वह तुमसे प्यार ना करे।"


    थोड़ी देर बाद अंजलि घर आई और सीधा खुशी के कमरे में गई। खुशी को सोता देख मुस्कुराई और उसके सिरहाने जाकर बैठ गई। अंजलि ने खुशी के सर पर हाथ फेरा। खुशी ने आँखें खोलीं। अंजलि को देखकर मुस्कुराई और उसकी टाँगों पर सर रख लिया।

    "अंजलि, क्या हुआ? कॉलेज में कुछ हुआ है?"

    खुशी ने अंजलि का हाथ पकड़ा और बोली, "नहीं दीदी, कुछ नहीं हुआ कॉलेज में।"

    अंजलि इस तरह पूछने पर खुशी घबरा गई।

    "आप क्यों पूछ रही हैं?"

    "तुम्हारे चेहरे से। क्योंकि तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ है।"

    खुशी मुस्कुराई और बोली, "नहीं, बस थक गई थी इसलिए सो गई, और कुछ नहीं। और आप बताओ, आपको इतनी देर कैसे हो गई?"

    "अब जिस काम से गई थी, वह काम हो गया।"

    "हाँ, हो गया। लेकिन तुम्हारे हाँ कहने से पूरा हो जाएगा।"

    "ऐसा भी कौन सा काम है जो मेरे हाँ कहने से हो जाएगा?"

    "मैंने हम दोनों का दूसरे कॉलेज में एडमिशन करवा दिया है और हम यहाँ नहीं रह सकते। मुझे पता है तुम इस बात से राजी नहीं होगी, लेकिन मैंने सोचा क्यों ना हम अपने घर चलते हैं, जहाँ हम बचपन से रहते आए हैं। अब तो यहाँ हमारा कोई नहीं रहा जिसके लिए हम यहाँ रहें। अपने घर में हमारी बचपन की यादें हैं, माँ-पापा के साथ बिताए हुए पल, और वहाँ पर हमारे दोस्त भी तो हैं।"

    खुशी ने मन ही मन सोचा, "मैं भी अब यहाँ नहीं रहना चाहती थी। उसने जो मेरे साथ किया है, वह मैं कभी नहीं भूल सकती, जो भूलना चाहती हूँ, और यह शहर मुझे याद दिलाता रहेगा।"

    खुशी ने अंजलि की तरफ देखकर कहा, "इसमें मेरी हाँ की क्या ज़रूरत है? जहाँ आप रहना चाहती हैं, वहीं मैं। आपके सिवा अब मेरा है ही कौन जिसके लिए मैं यहाँ रहूँ? अगर आप घर जाना चाहती हैं, तो मैं भी चलूँगी। और वैसे भी, मैंने सारे इंतज़ाम कर दिए हैं, तो हम चलते हैं। मैं अपने दोस्तों से मिले हुए काफ़ी टाइम हो गया है। अब उनके साथ रहेंगे।"

    मुस्कुराकर बोली, "मैं बहुत एक्साइटेड हूँ अपने दोस्तों से मिलने के लिए! जल्दी बताइए, कब निकलने का सोच रही हैं?"

    अंजलि खुशी की बात सुनकर खुश हो गई और खुशी से बोली, "तुम मान गई? तुम चलोगी?"

    खुशी ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया।

    "हाँ।"

    "ठीक है! फिर हम कल ही यहाँ से निकलेंगे। आज हम सारा सामान पैक कर लेंगे। कल सुबह ही यहाँ से अपने घर निकल जाएँगे।"

    "ओके दीदी, हो जाएगा।"

    "ठीक है, फिर मैं हम दोनों के लिए कुछ बनाती हूँ। तब तक तुम अपना काम करो।" यह बोलकर अंजलि कमरे से निकल गई।


    तीन महीने बाद-

    "यार... खुशी, तू मेरी बात क्यों नहीं सुनती है? मैंने कहा ना, तू बाइक नहीं चलाएगी।"

    "मुझे कुछ नहीं सुना! बस मुझे अपनी बाइक की चाबी दे! आज मैं बाइक चलाऊँगी! और अगर तूने फ़ालतू की बकवास की ना..."

    "तो...? लड़ाई तो क्या करेगी? हाँ बोल! अब ऐसे क्यों घूर रही है अपनी बड़ी-बड़ी बिल्ली जैसी आँखों से...?"

    खुशी लड़के की बात सुनकर मुस्कुराई और बोली, "सनी, तूने अभी मुझे क्या कहा? ज़रा फिर से कहना। वह क्या है...?"

    वह लड़का, जिसका नाम सनी था, खुशी को अपने पास बढ़ता देख हड़बड़ा गया और मुस्कुराते हुए बोला, "अरे यार, मैं तो मज़ाक कर रहा था! तूने तो सीरियसली ले लिया! तू बाइक चलाना चाहती है ना? ये ले चाबी! तू आराम से बैठ चला, मैं पीछे बैठ जाता हूँ।"

    खुशी मुस्कुराई और सनी के गाल पर हाथ से थपथपाया और बोली, "बज़ गया वरना आज तू गंजा होकर ही जाता यहाँ से!" यह बोलकर वह बाइक पर बैठ गई।

    सनी ने गहरी साँस ली और अपने बालों पर हाथ फेरा और बोला, "बज़ गया वरना मुझे गंजा घूमना पड़ता! और क्या इज़्ज़त रह जाती मेरी कि एक लड़की ने मुझे गंजा कर दिया!"

    "अब क्या यहीं खड़ा रहेगा? जल्दी आ, वरना मैं चली!"

    सनी जल्दी से आया और बाइक पर बैठ गया।

    खुशी ने बाइक स्टार्ट की और वहाँ से निकल गई।

    "यार खुशी, तुझे ज़रा सी भी मेरी इज़्ज़त की परवाह नहीं है क्या?"

    "क्या? तेरे पास इज़्ज़त है? लेकिन मैंने तो कभी नहीं देखी! हाँ, जिस दिन दिखेगी, उस दिन करूँगी, ठीक है!"

    "यार, तू कैसी दोस्त है? तुझे पता है मेरी यहाँ पर कितनी इज़्ज़त है? सब मुझे सलाम ठोक कर जाते हैं! एक तू है जो सबके सामने मेरी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ाती फिरती है!"

    "कल मैं अपने दोस्तों के साथ खड़ा था और तूने क्या किया? उनके सामने मेरे बाल पकड़ कर खींच लिए! तू ही ले गई! वो सब मेरा मज़ाक उड़ा रहे थे!"

    "हाँ, तो मेरी गलती नहीं है! तूने दीदी को यह क्यों बताया था कि मैंने स्कूटी ठोक दी थी?"

    "यार, मेरी क्या गलती है? दीदी ने मुझसे पूछा तो मैंने बता दिया।"

    "हाँ हाँ, तू तो बहुत सत्यवान हरिश्चंद्र का बेटा है! जो सच के सिवा कुछ नहीं बोलता, लेकिन अपनी माँ के सामने झूठ के सिवा कुछ नहीं बोलता! बेचारी आंटी ने कितने प्यार से तेरे लिए कल डिनर बनाया था और तू अपनी गर्लफ्रेंड के साथ बाहर डिनर करके आ गया! और आंटी से क्या कहा?"

    "माँ, मुझे भूख नहीं है। मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही, इसलिए मैं आज खाना नहीं खाऊँगा।" बेचारी आंटी तेरी बातों में आ गई।

    "यार, मुझे क्या पता था कि माँ ने मेरे लिए डिनर बनाया है! वो भी मेरी पसंद का! अगर मुझे पता होता, सच्ची में कभी मैं सोनाली के साथ डिनर नहीं करता! तुझे पता है..."

    "ना, मैं अपनी माँ से बहुत प्यार करता हूँ। उनका दुःखी नहीं देख सकता हूँ। अगर दुःख देना नहीं चाहता है तो अपनी माँ को सब सच बता दे सोनाली के बारे में।"

    "यार, सही वक़्त का इंतज़ार कर रहा हूँ।"

    "इंतज़ार मत कर! जो भी बताना है, जल्दी बता! बाद में अगर आंटी को किसी और से पता चला तो उनको बहुत दुःख होगा!"

    "तो कहें तो ठीक रही है। एक काम करता हूँ, आज ही रात को माँ को सब बता दूँगा।"

    "यह हुई ना बात!"

    "तू मेरी सबसे अच्छी दोस्त है! और जब तू नहीं थी, तो मैं बिल्कुल अकेला हो गया था! कुछ अच्छा नहीं लगता था! लेकिन जब से तू आई है..."

    "ना, ज़िन्दगी खुलकर जीने लगा हूँ! मैंने बहुत मिस किया तुझे!" सनी खुशी के गले में हाथ डालकर बोला, "यार, अब तू मुझे छोड़कर कभी मत जाना!"

    खुशी बाइक चला ही रही थी, इतने में सनी जो पीछे बैठा हुआ था, एकदम से चिल्लाया, "बाइक रोक! खुशी, बाइक रोक!"

    खुशी सनी के इस तरह चिल्लाने से डर गई। उसने जल्दी से बाइक रोकी और घबराकर पीछे मुड़कर सनी को देखा और बोली, "क्या हुआ?"

    सनी ने अपनी आँखें बड़ी कीं और पीछे इशारा किया। खुशी सनी को इस तरह देखकर डर रही थी। उसने डरते-डरते पीछे मुड़कर देखा।

    वहाँ पर कोई नहीं था। खुशी ने कन्फ़्यूज़ होकर दोबारा से सनी की तरफ देखा। सनी अपने मुँह पर हाथ रखकर बोला, "खुशी, वो देख ना! बुढ़िया के बाल! कितने साल हो गए हमें खाए हुए! चल, खाते हैं।"

    खुशी सनी की यह बात सुनकर गुस्से में सनी को घूरा और बोली, "अबे गधे! इस तरह चिल्लाने की क्या ज़रूरत थी? प्यार से भी तो बता सकता था ना! तुझे पता है मैं कितना डर गई थी!"

    सनी अपने दाँत दिखाते हुए बोला, "सॉरी ना! चल, बुढ़िया के बाल खाते हैं, वरना वो चला जाएगा।"

    खुशी ने सनी की बात सुनकर दोबारा पीछे देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और जल्दी से बाइक से उतरी और बुढ़िया के बाल लेने चली गई। सनी भी मुस्कुराते हुए खुशी के पीछे चला गया।

  • 5. Ziddi ishq: A love story - Chapter 5

    Words: 1588

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे


    वहीं दूसरी तरफ, कार में रियांश अपने लैपटॉप में काम कर रहा था। उसके बराबर में अर्जुन बैठा हुआ था, जो एक फाइल पढ़ रहा था। रियांश ने अपनी नज़र लैपटॉप से हटाई और कार के आगे देखा जहाँ उसका असिस्टेंट बैठा था। उसने असिस्टेंट से कहा,


    "जो मैंने बोला था, वह सब हो गया?"


    असिस्टेंट रियांश की बात सुनकर घबराकर डरते हुए बोला, "सर,,,वो,,,,वो..."


    रियांश असिस्टेंट के "वो...वो..." सुनकर चिढ़ गया और बोला, "यह क्या वो...वो...? मैं लगा हुआ हूँ। आगे कुछ बोलोगे भी या नहीं? यह बोलना चाहते ही नहीं हो तो बता दो, मैं हमेशा के लिए तुम्हारी बोलती बंद कर देता हूँ।"


    असिस्टेंट रियांश की बात सुनकर घबराकर जल्दी से बोला, "सर, बस उसे ठाकुर की..."


    असिस्टेंट की बात पूरी होने से पहले ही रियांश बोला, "तुम्हें पता है ना मुझे वह लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं जो मेरे बीच में आते हैं।"


    "और तुम्हें तो यह भी पता होना चाहिए कि उसके साथ क्या करना चाहिए जो मेरे बीच में आता है।"


    असिस्टेंट ने अपना पसीना पोंछा और देखते हुए बोला, "जी सर, समझ गया। अब क्या कहना चाहते हैं?"


    रियांश ने कहा, "अच्छा हुआ समझ गए, वरना कभी समझने लायक नहीं बचते।" रियांश की बात सुनकर असिस्टेंट की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। उसने अर्जुन की तरफ देखा।


    अर्जुन ने असिस्टेंट के इस तरह देखने पर उसे आँखों से शांत रहने का इशारा किया और रियांश की तरफ देखकर बोला, "क्या हो गया है?"


    "तुझे रियांश, तू बहुत गुस्सा करने लगा है। पहले तो ऐसा नहीं था। इन कुछ महीनों में तू बहुत बदल गया है। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगा है।"


    रियांश ने कहा, "मेरे लिए काम की बातें छोटी नहीं, बहुत ज़रूरी होती हैं।"


    "और मैं इसमें बिल्कुल भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं कर सकता।"


    अर्जुन ने कहा, "हाँ, मानता हूँ, लेकिन तू पहले ऐसा नहीं था। अब तू ज्यादातर काम में लगा रहता है। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता है। घर जाते ही सीधा अपने रूम में चला जाता है, ना किसी को आने देता है। पहले तो तू ऐसा नहीं करता था। मैं तेरे रूम में आ सकता था।"


    "लेकिन अब तो मुझे अपने रूम में आने भी नहीं देता। तू ऐसा क्या करता है और शाम को रूम में जाता है तो सीधा सुबह को ही बाहर निकलता है, ना ही साथ में बैठकर डिनर करता है।"


    अर्जुन अपने सवाल के जवाब की उम्मीद में रियांश की तरफ देखने लगा, लेकिन रियांश ने कोई जवाब नहीं दिया और अपना काम करता रहा।


    अर्जुन को जब लगा कि रियांश कुछ नहीं बोलेगा, उसने अपना सर झटका और बाहर देखने लगा। रियांश ने अपना सर ऊपर उठाया तो उसके चेहरे पर बहुत से इमोशन थे। उसने अपना सर गाड़ी की सीट से टिकाया और बाहर देखने लगा।


    रियांश बाहर देख ही रहा था कि अचानक बोला, "स्टॉप!"


    रियांश की आवाज सुनकर ड्राइवर ने जल्दी से कार रोक दी। अर्जुन, असिस्टेंट और ड्राइवर तीनों ने ही जैसे ही रियांश की इतनी एक्साइटेड आवाज सुनी, उन्होंने पीछे मुड़कर देखा। रियांश बाहर किसी को बहुत जुनून से देख रहा था।


    अर्जुन रियांश को कन्फ्यूज होकर देखने लगा। रियांश के चेहरे पर जुनून, जिद, पागलपन, दीवानगी नज़र आ रही थी। उसने अपने दोनों हाथों से चेहरा मसला और मुस्कुराता हुआ बाहर देखने लगा, लेकिन एकदम से उसकी मुस्कुराहट गुस्से में बदल गई। उसकी आँखें लाल हो गईं और हाथों की मुट्ठियाँ कस गईं।


    रियांश का चेहरा बिल्कुल लाल हो गया था गुस्से से। अर्जुन ने जब रियांश को इतने गुस्से में देखा, तो उसने अपना गला तर किया और रियांश के कंधे पर हाथ रखकर बोला,


    "रियांश, तू ठीक तो है ना?"


    रियांश ने सख्त आवाज में ड्राइवर से कहा, "कार स्टार्ट करो!"


    रियांश की इतनी खतरनाक आवाज सुनकर ड्राइवर ने जल्दी से कार स्टार्ट की और वहाँ से चला गया।


    थोड़ी देर बाद, कार आकर एक बहुत बड़ी बिल्डिंग के सामने रुकी। असिस्टेंट जल्दी से उतरा और रियांश के लिए कार का गेट खोला। रियांश गुस्से में बाहर आया और सीधा बिल्डिंग के अंदर चला गया।


    **************************************


    थोड़ी देर बाद, रियांश के केबिन में, रियांश शीशे की दीवार के पास खड़ा बाहर देख रहा था। (यहाँ से पूरा शहर आराम से देख सकते हैं।) रियांश ने अपना हाथ शीशे पर रखा और बोला,


    "क्या बात है? टाइगर, बड़ी जल्दी मुझे भूल गई। लगता है कोई बहुत ही करीब है। वो जब भी तो इतनी खुश दिख रही थी।"


    यह बोलकर वह पीछे पलटा और चलकर चेयर के पास आया और टेबल से शीशे का गिलास उठाया। उसको देखते हुए बोला,


    "लेकिन मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद आया तुम्हारा उसके इतने करीब आना। और जो लोग मुझे पसंद नहीं आते..."


    यह बोलकर उसने शीशे का गिलास नीचे फेंक दिया और नीचे बैठकर गिलास के टुकड़े उठाकर, उसको देखते हुए, सनकी की तरह मुस्कुराते हुए बोला,


    "मैं उसका ऐसा हाल करता हूँ जिससे वो मुझे परेशान करने के लिए इस दुनिया में नहीं रहती। और उसने तो मुझे परेशान नहीं...तकलीफ दी। तुम्हारे इतने करीब आकर अब उसको इस दुनिया से जाना होगा। जाना होगा...टाइगर, जाना होगा। हहहहहहहहहहहह... तुम सिर्फ मेरी हो...टाइगर, तुम सिर्फ मेरी हो।"


    यह बोलते हुए रियांश पागलों की तरह हँसने लगा। हाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह इस समय रियांश बिल्कुल एक सनकी लग रहा था।


    **************************************


    वहीं दूसरी तरफ,


    "खुशी, मैंने कहा ना मैं रुक जाऊंगी। आप जाइए ना। आप मेरी बात क्यों नहीं सुन रही हो?"


    "अंजलि, क्योंकि मुझे सुननी नहीं है।"


    "खुशी, मान जाओ ना।"


    "अंजलि, मैंने कहा ना मैं नहीं जाऊंगी।"


    "और तुम कैसे कह सकती हो? मैं तुम्हें यहाँ अकेला छोड़कर कैसे चली जाऊँ? बिल्कुल भी नहीं। और अब मुझे कुछ नहीं सुना।"


    "खुशी, आपका जाना ज़रूरी है।"


    "अगर आप वहाँ पर नहीं गईं तो आपका फ्यूचर खराब हो जाएगा। आपको इतना अच्छा मौका मिला है अपना फ्यूचर बनाने के लिए। आप मेरी वजह से उसको खराब मत करो। प्लीज़, चली जाओ।"


    "और मेरी फ़िक्र मत करना। मैं यहाँ पर अपना खुद ध्यान रख लूँगी। और आपसे रोज़ फ़ोन पर बात करूँगी। बस आप चली जाओ। मैं नहीं चाहती मेरी वजह से आपका फ्यूचर खराब हो। प्लीज़ दी।"


    यह बोलकर खुशी ने पपी फेस बना लिया। अंजलि ने खुशी का मासूम चेहरा देखा और फिर मुस्कुराई और बोली,


    "मैं तेरे झांसे में नहीं आने वाली। मैंने कहा ना मैं नहीं जाऊंगी तो मैं नहीं जाऊंगी। मैं तुझे छोड़कर कैसे जा सकती हूँ, खुशी? तू समझ क्यों नहीं रही?"


    "खुशी, आप मेरी बात क्यों नहीं सुन रही हैं? मैंने कहा ना मैं अपना ध्यान खुद रख लूँगी।"


    "मुझे पता है तू अपना ध्यान खुद रख लेगी, लेकिन मैं नहीं जाऊंगी।"


    "खुशी, प्लीज़ मान जाओ ना दी।"


    "नहीं मानूंगी यह बात।"


    खुशी अंजलि की बात सुनकर उदास होकर सोफ़े पर बैठ गई। इतने में सनी खुशी के घर आया और उसने जब खुशी को उदास सोफ़े पर बैठा देखा, तो अंजलि के पास आकर उससे बोला,


    "दीदी, इसको क्या हो गया? दूसरों को उदास करने वाली आज खुद उदास है। कुछ बड़ा हुआ है क्या?"


    "अच्छा हुआ तू आ गया, सनी। अपनी दोस्त को समझा। इसको छोड़कर अकेली यहाँ से मैं बाहर कैसे जा सकती हूँ?"


    अंजलि की बात सुनकर खुशी जल्दी से खड़ी हुई और सनी के पास आकर बोली,


    "सनी, नहीं, मैं यहाँ अकेली नहीं हूँ। तू तो है ना मेरे साथ। और वैसे भी मैंने कहा ना मैं रोज़ फ़ोन पर बात करूँगी।"


    सनी दोनों बहनों को बहस करते देख बोला, "पहले मुझे यह तो बताओ तुम दोनों लड़ क्यों रही हो? तभी तो मैं बताऊँगा कि करना क्या है।"


    खुशी ने सनी का हाथ पकड़ा और सोफ़े पर बैठकर बोली, "तू सुन, कॉलेज वाले दी को अपने साथ मुंबई लेकर जाना चाहते हैं क्योंकि वहाँ पर सिंगिंग कम्पटीशन होने वाला है और तुझे तो पता ही है ना दी कितना अच्छा गाती हैं। अगर दी कम्पटीशन जीत गई तो दी का फ्यूचर बन जाएगा।"


    "अब तू ही बता, मैं गलत कह रही हूँ दी से जाने को?"


    सनी खुशी की बात सुनकर अंजलि की तरफ देखा और बोला, "बिल्कुल सही कह रही है। दी, आपको जाना होगा और आप खुशी की फ़िक्र मत करो। मैं हूँ। खुशी का ध्यान रखने के लिए और पापा भी तो हैं ना। आपका तो पता है ना पापा खुशी को मुझसे ज़्यादा अपनी बेटी मानते हैं।"


    "वह भी इसका ध्यान रख लेंगे जब तक आप नहीं आ जाती तब तक खुशी हमारे साथ, हमारे घर ही रहेगी। आपको इसकी टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है।"


    "मैं मानती हूँ तू है और अंकल है खुशी का ध्यान रखने के लिए, लेकिन तू जानता है ना यह कैसी है। हर किसी की मदद करने को तैयार रहती है। अगर कल को कोई प्रॉब्लम हो गई तो फिर क्या करूँगी मैं?"


    खुशी जल्दी से बोली, "मैं आपसे वादा करती हूँ दी, मैं कोई भी परेशानी खड़ी नहीं करूँगी ना ही किसी के मामले में पड़ूँगी। बस आप जाने को हाँ कर दो।"


    सनी ने कहा, "हाँ दी, अब हाँ कर ही दो। और वैसे भी मैं हूँ ना इसको समझने वाला। मैं समझता रहूँगा। जब भी कोई गलती करेगी तो मैं इसकी अच्छे से खबर लूँगा।"


    अंजलि ने दोनों की तरफ देखा और गहरी साँस लेकर बोली, "तुम दोनों मानोगे नहीं ना?"


    सनी और खुशी ने मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिला दिया।


    "ठीक है, मैं जाऊंगी।"


    जैसे ही खुशी ने अंजलि की बात सुनी, खुशी खुशी से डांस करने लगी और जल्दी से अंजलि के पास आई और उसके गले लगकर बोली,...


    क्रमशः

  • 6. Ziddi ishq: A love story - Chapter 6

    Words: 1635

    Estimated Reading Time: 10 min

    अंजलि ने मुस्कुराते हुए खुशी के सर पर हाथ फेरा और बोली, "थैंक्यू। तुम मान गई। वरना मेरी वजह से तुम्हारा फ्यूचर खराब हो जाता, तो मैं कभी अपने आप को माफ नहीं करती। थैंक यू सो मच।"

    "तुम्हारी वजह से मेरा फ्यूचर कभी खराब नहीं हो सकता। यह अपने दिमाग से निकाल दो, खुशी।"

    "ठीक है, निकाल दूंगी।" अंजलि खुशी की बात सुनकर मुस्कुरा दी और सनी की तरफ देखा जो दोनों को देखते हुए मुस्कुरा रहा था। उसने उसको अपने पास आने का इशारा किया। सनी अंजलि का इशारा करते ही जल्दी से अंजलि और खुशी के गले लग गया और बोला, "थैंक गॉड! आपको तो याद आया कि मैं भी यहीं हूँ। वरना मैं तो यह समझा था कि आप दोनों बहनें मिलकर मुझे भूल ही गईं।"


    कुछ दिन बाद, कॉलेज में खुशी अपनी क्लास अटेंड कर रही थी। इतने में एक लड़का क्लास में आया और बोला, "यहाँ पर खुशी कौन है?" खुशी ने लड़के की बात सुनकर खड़ी होकर कहा, "मैं हूँ खुशी।" लड़का खुशी की बात सुनकर उसकी तरफ देखकर बोला, "तुम्हें प्रिंसिपल सर बुला रहे हैं।"

    "ठीक है, मैं अभी आती हूँ।" लड़का खुशी की बात सुनकर वहाँ से चला गया। खुशी ने अपना समान बैग में रखा और प्रिंसिपल ऑफिस की तरफ चल दी। प्रिंसिपल ऑफिस के सामने खड़े होकर उसने गेट खटखटाया और अंदर आकर खड़ी हो गई।


    खुशी ने अपने सामने देखा। कोई चेयर पर बैठा हुआ था, लेकिन चेयर पीछे मुड़ी हुई थी जिसकी वजह से उस इंसान का चेहरा नहीं दिख रहा था। खुशी को लगा शायद प्रिंसिपल सर होंगे। इसलिए उसने सामने देखते हुए बोली, "सर, आपने मुझे बुलाया?" लेकिन कोई जवाब नहीं आया।


    जिससे खुशी ने दोबारा पूछा, "सर, आपने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है?" लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं आया। तो खुशी ने गहरी सांस ली और टेबल पर हाथ पटक कर तेज आवाज में बोली, "जब आपको कुछ बोलना ही नहीं था, तो मुझे बुलाया ही क्यों? आपकी वजह से मेरी सारी क्लास मिस हो गई! जब आपको कुछ बोलना ही नहीं है, तो मैं जा रही हूँ।" यह कहकर खुशी पीछे मुड़कर वहाँ से जाने लगी।


    खुशी की बात सुनकर वह इंसान, जो चेयर पर बैठा था, वह जल्दी से खुशी के सामने मुड़ा, खड़ा होकर बोला, "रुको।" खुशी को आवाज सुनकर अजीब सी घबराहट होने लगी।


    जैसे ही खुशी ने पीछे मुड़कर देखा, डर और घबराहट बेचैनी के साथ सामने देखने लगी। उस इंसान ने जैसे ही खुशी को डरते हुए देखा, तो उसने अपने माथे पर दो उंगली रखीं। "तुम मुझसे डर क्यों रही हो? पहले तो कभी नहीं डरी, तो अब क्यों डर रही हो? मैं कोई राक्षस नहीं हूँ, इंसान ही हूँ, खा नहीं जाऊँगा। तुम्हें..."


    खुशी ने जैसे ही उस इंसान की बात सुनी, अपने मन में बोली, "किसने कहा तुम राक्षस नहीं हो? तुमसे बड़ा आज तक मैंने कोई राक्षस नहीं देखा जिसके अंदर फीलिंग नाम की कोई चीज ही नहीं है। तुम्हें तो यह भी नहीं पता कि किसी लड़की की इज्जत उसके लिए क्या मायने रखती है। और तुमने मेरी उसी इज्जत पर दाग लगाने की कोशिश की है। मेरे लिए तुमसे बड़ा कोई राक्षस नहीं है।"


    यह कहते हुए खुशी की आँखों के सामने कुछ यादें आ गईं, जिसकी वजह से उसकी आँखों में आँसू बहने लगे। उसने जल्दी से अपने आँसू पोछे और वहाँ से जल्दी जाने लगी। खुशी को जाता देखकर वह इंसान बोला, "मैंने तुम्हें जाने की इजाजत नहीं दी।"


    खुशी ने जैसे ही उस इंसान की बात सुनी, उसके कदम रुक गए। खुशी इस टाइम बहुत डरी हुई थी। उसके अंदर इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि पीछे मुड़कर कुछ कहे। जैसे ही उस इंसान ने खुशी को रुकता हुआ देखा, तो बोला, "मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। सामने आकर खड़ी हो जाओ। मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात करनी है। और हाँ, मुझे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। कुछ नहीं कर सकता मैं तुम्हें, इसलिए बेफ़िक्र रहो।"


    खुशी ने पीछे मुड़कर देखा और बोली, "तुम चाहते क्या हो मुझसे? क्यों मुझे चैन से जीने नहीं देते? मानती हूँ, मुझसे गलती हुई थी, जो तुम पर हाथ उठाया, लेकिन इसकी सजा तुमने मुझे दे तो दी। और क्या चाहिए मुझसे?" (अब आप लोग समझ ही गए होंगे यह कौन है। जी हाँ, यह कोई और नहीं, हमारे रियांश हैं जो खुशी से मिलने आए हैं।)


    "खुशी और मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूंगी। मुझे बस यहाँ से जाना है।" यह कहकर खुशी जल्दी से गेट के पास आई और गेट खोलने लगी, लेकिन गेट बाहर से लॉक था, जिसकी वजह से गेट नहीं खुल रहा था। रियांश खुशी को गेट खोलते देखने लगा। खुशी ने जब देखा कि गेट बाहर से लॉक है, तो गुस्से में ज़बरदस्ती गेट खोलने की कोशिश करने लगी।


    रियांश खुशी को गेट खोलने की कोशिश करते देख टेबल से लग गया, और अपने दोनों हाथ फोल्ड करके खड़ा होकर बोला, "बेकार है कोशिश करना। जब तक तुम मेरी बात नहीं सुन लेती, तब तक यह गेट नहीं खुलेगा। इसलिए फ़ालतू में तुम अपनी एनर्जी वेस्ट कर रही हो।" यह कहकर खुशी को देखने लगा।


    खुशी रियांश की बात सुनकर गुस्से में पीछे पलटी और रियांश को देखकर बोली, "मैंने कहा ना, मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी। तुम्हें मेरी बात समझ में नहीं आई? और तुम होते कौन हो जिसकी मैं बात सुनूँ? और जो तुमने मेरे साथ किया है ना, उसके बाद तो बिल्कुल भी नहीं। इसलिए गेट खुलवाओ, वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"


    रियांश के चेहरे पर गुस्सा आ गया। रियांश खुशी की बात सुनकर खुशी के पास जाने लगा। खुशी रियांश को अपने पास आता देख डरकर पीछे जाने लगी। पीछे जाते-जाते दीवार से लग गई क्योंकि पीछे और जाने का रास्ता नहीं था। रियांश खुशी के पास आया। उसने अपने दोनों हाथ दीवार पर रखे और खुशी के ऊपर झुक कर जूनून से बोला, "मैं कौन हूँ, यह तुम्हें बहुत जल्द पता चल जाएगा। लेकिन अभी तुम यहाँ से नहीं जा सकती, जब तक तुम मेरी बात नहीं सुन लेती। और तुम्हें मेरी बात सुनने में क्या परेशानी है, जो इस तरह रिएक्ट कर रही हो?"


    खुशी रियांश को अपने इतने करीब देखकर उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गई थीं। खुशी ने अपना सर उठाकर रियांश को देखा। रियांश खुशी को अपनी आँखें बड़ी करते देखा, तो मुस्कुरा कर बोला, "अपनी आँखें इतनी बड़ी-बड़ी मत करो, कहीं निकल कर बाहर आ जाएँ।"


    खुशी ने रियांश की बात सुनकर हरबड़ा कर अपनी नज़र रियांश के चेहरे से हटाई और फिर अपने दोनों हाथ रियांश के सीने पर रखकर, उसे धक्का देते हुए बोली, "बकवास बंद करो अपनी! और हाँ..."


    "मुझे परेशानी है क्योंकि मैं तुम जैसे घटिया इंसान की बात सुनना तो दूर, उन्हें देखना भी पसंद नहीं करती।" खुशी की बात सुनकर रियांश के चेहरे के एक्सप्रेशन कठोर हो गए। खुशी आगे बोली, "और क्या चाहिए तुम्हें मुझसे? अब तो मैंने वह शहर भी छोड़ दिया, तो फिर अब क्यों मेरे पीछे पड़े हो? चले क्यों नहीं जाते मेरी ज़िन्दगी से?"


    रियांश एकदम से खुशी के पास आया, और खुशी का एक हाथ कमर से लगाया, और सख्त आवाज में बोला, "नहीं जाऊँगा। कभी नहीं जाऊँगा। और मैंने तुमसे कहा था कि तुम वह शहर छोड़ो, तो फिर तुम किसकी मर्ज़ी से वह शहर छोड़कर आई हो? क्या मैंने तुमसे कहा था कि वहाँ से चली जाओ? जवाब दो, टाइगर। मैंने कहा था तुमसे?"


    रियांश की बात सुनकर खुशी ने अपना सर ऊपर उठाकर रियांश की आँखों में देखा और दाँत पीसते हुए बोली, "कहाँ नहीं था, लेकिन तुमने मुझे मजबूर तो किया था ना, वह शहर छोड़ने के लिए। और वैसे भी, कैसे रह सकती थी मैं उस शहर में जहाँ मेरी इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ हुआ? रह सकती थी क्या मैं वहाँ?"


    रियांश खुशी की बात सुनकर खुशी से दूर हुआ और खुशी की तरफ देखकर बोला, "जानता हूँ। जो मैंने किया वह सही नहीं था।"

    खुशी उसकी बात बीच में काट कर बोली, "वो सही नहीं, गलत था!" रियांश खुशी की बात सुनकर बोला, "हाँ, जो मैंने किया वो गलत था।" फिर इधर-उधर देखते हुए, "उसके लिए मैं तुमसे माफ़ी माँगता हूँ। प्लीज मुझे माफ़ कर दो।"


    खुशी जो रियांश के माफ़ी माँगने से शौक में हो गई (क्योंकि जिस तरह खुशी ने रियांश के बारे में सुना था, वह कभी किसी से माफ़ी तो दूर, अपनी गलती भी नहीं मानता था, और आज इस तरह माफ़ी माँगने से खुशी बहुत आश्चर्यचकित थी),...


    रियांश ने फिर खुशी की तरफ देखा और बोला, "मैं अपने कान भी पकड़ कर तुमसे माफ़ी माँगता हूँ।" यह कहकर रियांश ने अपने दोनों कान पकड़ लिए और सर नीचे झुका लिया। वहीँ खुशी जो पहले से ही शौक में थी, और जब उसने रियांश को कान पकड़ते देखा, तो उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं।


    रियांश जो कान पकड़े खड़ा था, खुशी के जवाब का इंतज़ार कर रहा था। जब रियांश को काफी देर तक खुशी का जवाब नहीं आया, तो उसने अपना सर उठाकर खुशी की तरफ देखा, तो जल्दी से अपना हाथ कान से हटाकर एक हाथ सर के पीछे रखा और सर ख़ुजाते हुए बहुत प्यार से बोला, "तुम इस तरह क्यों देख रही हो, टाइगर? मुझे बहुत अजीब लग रहा है।"


    खुशी रियांश की बात सुनकर होश में आई और अपने मन में बोली, "मेरा देखना अजीब लग रहा है? यह तुम्हारा इस तरह करना अजीब है।" रियांश खुशी को खोए हुए देखकर बोला, "टाइगर..." खुशी रियांश के 'टाइगर' कहने से उसकी तरफ देखा और बोली, "पहली बात, मेरा नाम टाइगर नहीं है, तो मुझे इस नाम से बुलाने की कोशिश भी मत करना। और दूसरी बात, तुम्हें जो बात करनी थी, वह कर ली। अब गेट खुलवाओ, मुझे मेरे घर जाना है।"

    क्रमशः

  • 7. Ziddi ishq: A love story - Chapter 7

    Words: 1535

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे

    रियांश ने कहा, "अभी नहीं, जब तक तुम मुझे माफ़ नहीं कर देती तब तक मैं तुम्हें यहाँ से जाने नहीं दे सकता।"

    खुशी, रियांश के फिर से 'टाइगर' कहने से गुस्से में, उसे उंगली दिखाते हुए बोली, "मैंने कहा ना, तुम मुझे टाइगर मत कहो।"

    रियांश ने कहा, "तुम्हारे ऊपर टाइगर सूट करता है। टाइगर, क्योंकि जिस तरह तुमने सबके सामने मुझे थप्पड़ मारा था, उससे पता चलता है तुम्हारे अंदर कितनी हिम्मत है। और मैं तुम्हें टाइगर ही कहूँगा।"

    खुशी ने अपने दोनों हाथ कान के पास लिए और आँखें बंद करके गुस्से में चीखी, "ठीक है! जो मर्ज़ी आए वो करो, मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता।" फिर अपनी आँखें खोलकर बोली, "और रही माफ़ी माँगने की बात, ठीक है। मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया, अब जल्दी से दरवाज़ा खुलवाओ।"

    रियांश के चेहरे पर खुशी के यह कहने से कि उसने उसे माफ़ कर दिया, मुस्कान आ गई। वह खुशी की तरफ़ देखकर बोला, "क्या तुमने सच में मुझे माफ़ कर दिया, टाइगर?" खुशी पहले से ही परेशान थी।

    इतने समय तक प्रिंसिपल ऑफ़िस में रहने से, अब रियांश की इस बात को सुनकर, उसने गहरी साँस ली और रियांश की तरफ़ देखकर बोली, "तुम्हें सुनाई नहीं देता? क्या अभी मैंने कहा ना कि मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ। प्लीज़, अब तो दरवाज़ा खोलो, मुझे जाना है।"

    रियांश ने "ठीक है" कहकर अपनी जेब से फ़ोन निकाला और अपने असिस्टेंट को कॉल लगाया।


    खुशी ने सीज़र उठाई और रियांश की तरफ़ पलट गई। फिर रियांश के पास आई और थोड़ी दूरी पर खड़ी होकर रियांश को देखते हुए बोली, "दरवाज़ा खोलो, वरना मैं तुम्हें मार दूँगी। बहुत सुन ली तुम्हारी बात, अब और नहीं!"

    रियांश ने खुशी की बात सुनकर कहा, "ठीक है! मार दो, यह तो मेरे लिए खुशी की बात है! जो तुम्हारे हाथों मेरी मौत होगी, तुम्हारे साथ जी तो नहीं सकता, लेकिन तुम्हारे हाथों मर तो सकता हूँ!"

    खुशी ने जैसे ही रियांश की बात सुनी, उसने रियांश की तरफ़ कन्फ़्यूज़ होकर देखा और बोली, "तुम्हारा क्या मतलब है? और तुम ऐसे गोल-गोल बातें क्यों करते हो? जो कहना हो साफ़-साफ़ कहा करो। मुझे ऐसी फ़ालतू की बातें समझ में नहीं आतीं।"

    रियांश मुस्कुराते हुए बोला, "एक दिन सब समझ जाओगी। और जिस दिन समझोगी, उस दिन तुम मुझसे दूर नहीं जा सकोगी। अब सोच क्या रही हो? मारो, मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ!" यह कहकर रियांश अपनी जीन्स की जेब में हाथ डालकर खुशी के पास आकर खड़ा हो गया।

    खुशी ने घबराकर सीज़र को टाइट पकड़ा और रियांश की तरफ़ देखकर बोली, "देखो, मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ, सच कह रही हूँ। मैं तुम्हें मार दूँगी, फिर मुझसे मत कहना! अब भी समझ जाओ! तुम मुझे अच्छी तरह से जानते नहीं हो, मैं क्या कर सकती हूँ!"

    रियांश खुशी की आँखों में जुनून देखते हुए बोला, "तुम जानने का मौक़ा दो, तब तो समझूँगा तुम्हें, लेकिन तुम हर वक़्त दूर भागती रहती हो। ऐसे में कैसे समझ सकता हूँ कि तुम क्या कर सकती हो? और हाँ, तुम इस बात की फ़िक्र मत करो, मेरे आदमी तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे, अगर तुमने मुझे मार भी दिया। यह मेरा तुमसे वादा है।"

    खुशी रियांश की बात सुनकर रियांश की आँखों में देखने लगी। एकदम से खुशी होश में आई। रियांश के सीने पर सीज़र रखकर बोली, "ठीक है! फिर मर जाऊँ।" यह कहकर खुशी ने अपने काँपते हाथों से सीज़र रियांश के सीने पर मारने को हुई, लेकिन एकदम से खुशी ने अपना हाथ पीछे किया और रियांश को देखते हुए चीखकर बोली, "नहीं! मैं ऐसा नहीं कर सकती! नहीं मार सकती! मैं किसी को... ऐसा नहीं होगा मुझसे! मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं किसी को मार सकूँ!" यह कहते हुए खुशी की आँखों में आँसू आ गए। फिर खुशी ने सीज़र अपनी तरफ़ करी और रियांश को देखते हुए बोली, "लेकिन मैं अपने आप को ज़रूर मार सकती हूँ!"

    रियांश ने जैसे ही खुशी की बात सुनी, वह बहुत घबरा गया। उसने अपनी जेब से हाथ निकाला और खुशी की तरफ़ बढ़ते हुए बोला, "ऐसा मत करना, टाइगर।" खुशी अपने चेहरे पर मुस्कराहट लाकर बोली, "मैं ऐसा ही करूँगी! अगर तुमने दरवाज़ा नहीं खुलवाया... मैं अपनी दी की कसम खाकर कहती हूँ! मैं अपने आप को मार लूँगी!" यह कहकर खुशी ने सीज़र अपने पेट की तरफ़ करी। रियांश खुशी को ऐसा करते देख बहुत ज़्यादा घबरा गया और डरते हुए बोला, "देखो टाइगर, यह बचपना छोड़ो, यह सीज़र मुझे दो, नहीं तो तुम्हें लग जाएगी!" खुशी बोली, "फ़र्क़ नहीं पड़ता, लगती है तो लगने दो!"

    रियांश ने जब खुशी को सीज़र अपने तरफ़ करते देखा, तो बहुत ज़्यादा डर गया। रियांश खुशी की तरफ़ बढ़ते हुए बोला, "टाइगर, मेरी बात समझो! तुम्हें चोट लग जाएगी और तुम्हें तकलीफ़ भी होगी! तुम ऐसा मत करो! लाओ, मुझे दो सीज़र।" खुशी चीखते हुए बोली, "नहीं दूँगी!"

    "और तकलीफ़ होती है तो होने दो, मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता, लेकिन मैं तुम जैसे इंसान के साथ और देर तक नहीं रह सकती! इसके लिए चाहे मुझे मरना ही क्यों ना पड़े, मुझे तुम्हारे साथ एक मिनट भी नहीं रुकना।" यह कहकर खुशी जैसे ही सीज़र अपने पेट पर मारने को हुई, इतने में रियांश ने जल्दी से आकर खुशी का हाथ पकड़ लिया।


    रियांश ने फ़ोन पर गेट खुलवाने को कहा और फिर खुशी की तरफ़ देखकर बोला, "अब तुम जा सकती हो, टाइगर।" खुशी रियांश की बात सुनकर जल्दी से दरवाज़े की तरफ़ बढ़ी। वह अभी दरवाज़ा खोलती, इतने में उसका फ़ोन बजने लगा।

    खुशी रुक गई और अपनी जेब से फ़ोन निकालकर देखा तो उस पर 'सनी' नाम फ़्लैश हो रहा था। खुशी ने जल्दी से फ़ोन उठाया। उधर से सनी की आवाज़ आई, "कहाँ है यार? कब से तेरे कॉलेज के बाहर इंतज़ार कर रहा हूँ। कॉलेज की छुट्टी हो गई और एक तू है जो बाहर नहीं आई। अभी तक जल्दी आ, वरना मैं अंदर आ जाऊँगा।"

    खुशी ने सनी की बात सुनकर कहा, "नहीं सनी, तुझे अंदर आने की ज़रूरत नहीं है। मैं बाहर आ रही हूँ।" जैसे ही रियांश ने खुशी के मुँह से किसी लड़के का नाम सुना, तो उसके चेहरे के भाव एकदम डार्क हो गए, और उसकी आँखों के सामने कुछ यादें आ गईं (जब खुशी और सनी कैंडी खा रहे थे)।

    "बस पाँच मिनट इंतज़ार कर।" यह कहकर खुशी ने जल्दी से फ़ोन रखा और दरवाज़ा खोलने को ही थी, इतने में रियांश ने आकर खुशी का हाथ पकड़ लिया। रियांश के हाथ पकड़ने से खुशी घबरा गई। खुशी ने जल्दी से अपने हाथ को देखा, जिस पर रियांश का हाथ रखा था, फिर रियांश को देखा।

    रियांश खुशी की आँखों में देखते हुए बोला, "तुम नहीं जा सकती, टाइगर।" खुशी रियांश की बात सुनकर उसका हाथ झटककर गुस्से में बोली, "क्या? क्या समझ रखा है तुमने मुझसे? क्या मैं तुम्हारी गुलाम हूँ? तुम्हारी हाथ की कठपुतली? हाँ बोलो, जवाब दो!" फिर अपना हाथ दिखाते हुए बोली, "ओह ओह ओह! आप में समझी? तुम यह सोच रहे हो कि अगर तुमने मुझसे माफ़ी माँग ली तो तुम जैसा चाहोगे मैं वैसा करूँगी? अगर तुम कहोगे रुक तो मैं रुकूँगी और फिर तुम कहोगे चली जाओ तो चली जाऊँगी?"

    फिर रियांश का गिरेबान पकड़कर गुस्से में दाँत पीसते हुए बोली, "तो तुम ग़लत समझ रहे हो, क्योंकि मैं कोई सीधी-साधी लड़की नहीं हूँ। माफ़ कर दिया, इसका यह मतलब नहीं हुआ कि तुम्हारे कहने से मैं रुक जाऊँगी!"

    फिर रियांश को पीछे धक्का देकर बोली, "अब मैं यहाँ एक मिनट भी नहीं रुकूँगी!" यह कहकर खुशी वहाँ से जाने लगी। रियांश खुशी को जाते हुए देखकर बोला, "ना ही गुलाम हो और ना ही कठपुतली, तुम वो हो टाइगर जिसके आगे मेरे जैसा बेदर्द माफ़िया घुटने टेकता है। फिर सोच लो तुम क्या हो मेरे लिए।" रियांश की बात सुनकर खुशी के कदम अपनी जगह रुक गए। खुशी रियांश को कोई जवाब देती, इतने में खुशी का फ़ोन बजने लगा। खुशी ने फ़ोन पर हो रहे सनी के नाम को देखा और फिर जल्दी से अपने कदम आगे बढ़ाए।

    खुशी ने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो वह फिर लॉक था। खुशी को अब बहुत गुस्सा आ रहा था। खुशी पीछे पलटी और रियांश की तरफ़ देखा और गुस्से में चीखते हुए बोली, "आखिर तुम चाहते क्या हो? एक बार क्यों नहीं बता देते? इस तरह परेशान तो मत करो, प्लीज़!"

    रियांश ने कहा, "मैं बस यही चाहता हूँ कि तुम अभी बाहर नहीं जा सकती। और अगर तुम्हें अपने घर जाना है तो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ, लेकिन तुम उस लड़के के साथ नहीं जा सकती।"

    खुशी कन्फ़्यूज़ होकर बोली, "मैं क्यों नहीं जा सकती सनी के साथ? और तुम्हारा मतलब ही क्या है? मैं किसी के भी साथ जाऊँ।" रियांश जुनून से खुशी की आँखों में देखते हुए बोला, "मतलब तो बहुत है, टाइगर, जो अभी तुम्हारे समझ नहीं आएगा, लेकिन बहुत जल्द तुम समझ जाओगी आखिर मैं तुमसे चाहता क्या हूँ। फ़िलहाल अभी मैं तुम्हें यहाँ से नहीं जाने दे सकता।"

    खुशी गुस्से में बोली, "तुम मुझे यहाँ से जाने नहीं दे रहे हो, रियांश! नहीं!"

    "ठीक है।" यह कहकर खुशी जल्दी से टेबल के पास आई जहाँ एक सीज़र रखी थी। फिर खुशी ने सीज़र उठाई और रियांश की तरफ़ पलट गई।

  • 8. Ziddi ishq: A love story - Chapter 8

    Words: 1588

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे

    खुशी जैसे ही अपने आप को सीज़र करने ही वाली थी, इतने में रियांश आकर खुशी का हाथ पकड़ लिया।

    "रियांश इस टाइम बहुत डरा हुआ था!"

    रियांश खुशी को देखते हुए बोला, "क्या तुम पागल हो गई हो! टाइगर! अभी तुम्हें कुछ हो जाता, तो मेरा क्या होता! तुम समझती क्यों नहीं हो? और तुम मेरी बात भी नहीं सुनती हो! हर वक्त बचपन करती रहती हो!"

    खुशी रियांश की बात सुनकर चीखते हुए बोली, "नहीं! समझना मुझे छोड़ो! मुझे और नहीं तुम्हारी बात सुननी है!"

    यह कहकर खुशी रियांश से अपना हाथ छुड़ाने लगी।

    "नहीं! तुम छोड़ो इसे, वरना तुम्हें लग जाएगा!"

    खुशी ने रियांश की बात सुनकर एकदम से रियांश को धक्का दिया और जल्दी से रियांश से दूर होकर खड़ी हो गई।

    "तुम्हें मेरी इतनी फ़िक्र क्यों हो रही है! जो इंसान दूसरों की जान लेने से पीछे नहीं हटता, आज मेरी जान बचाने के लिए पागल हो जा रहा है! क्या बात है!"

    खुशी गुस्से में हँसते हुए बोली, "कहीं तुम्हारा कुछ इरादा तो नहीं है! मुझे जिंदा रखने का, ताकि मुझे बदला ले सको!"

    रियांश खुशी की बात सुनकर अपने चेहरे पर परेशानी लाते हुए बोला, "नहीं! टाइगर, तुम गलत समझ रही हो! मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है! और मैं तुमसे क्यों बदला लूँगा? जब कि मैं तुमसे... प्यार..."

    यह कहते हुए रियांश एकदम से चुप हो गया।

    खुशी रियांश को बीच में रुकता देख बोली, "क्या... क्या कहा तुमने? कि मैं तुमसे..."

    यह कहते हुए खुशी रियांश को आँखें बड़ी-बड़ी करके देखने लगी और आगे बोली, "क्या यही कहना चाहते हो कि मैं तुम्हारी सबसे बड़ी दुश्मन हूँ? यही ना, रियांश?"

    खुशी की बात सुनकर रियांश अपने चेहरे पर अजीब सा एक्सप्रेशन लाते हुए बोला, "नहीं! तुम मेरी दुश्मन नहीं, बल्कि..."

    यह कहते हुए रियांश फिर रुक गया।

    खुशी फिर रियांश को बीच में रुकता देखकर इरिटेट होकर बोली, "क्या तुम्हें बताते हुए बीच में रोकने की बीमारी है! जो बार-बार रोक रहे हो! और वैसे भी, मुझे नहीं सुनना है मैं कौन हूँ! तुम्हारे लिए मुझे बस यहाँ से निकलना है! अब तुम दरवाज़ा खोलते हो या नहीं? वरना सीज़र..."

    रियांश को दिखाते हुए बोली, "...मैं अबकी बार सच में अपने आप को मार लूँगी!"

    रियांश खुशी की बात सुनकर हड़बड़ाता हुआ बोला, "नहीं! ऐसा कुछ मत करना! मैं अभी दरवाज़ा खुलवाता हूँ!"

    यह कहकर रियांश ने अपने असिस्टेंट को दोबारा फ़ोन करके उसे दरवाज़ा खोलने को कहा। इस बार खुशी ज़्यादा देर ना करते हुए, दरवाज़ा खोलते ही वहाँ से निकल गई।

    रियांश जो खुशी को जाते हुए देख रहा था, वह अपने घुटनों के बल बैठ गया और दरवाज़े की तरफ़ देखते हुए बोला, "टाइगर! तुमने तो मेरी जान ही निकाल ली थी!"

    फिर अपने चेहरे पर हाथ फेरते हुए ऊपर देखकर बोला, "यह तुमने मुझे कैसा बना दिया है! कभी मुझे किसी के दुःख-दर्द से कोई तकलीफ़ नहीं होती थी!"

    "और आज अपनी टाइगर को ऐसा करते देख मेरी ज़िन्दगी रुक सी गई थी! अगर मुझे प्यार करना ही था, तो किसी और लड़की से करवाते! इसी से क्यों? और अगर इसी से करवाना ही था, तो मुझे वो सब इसके साथ करने से रोक देते! लेकिन नहीं! आपको तो बदला लेना है! ना जाने आज तक मैंने कितनों को तकलीफ़ दी है और आज तुम मुझे तकलीफ़ दे रही हो!"

    रियांश जुनून से बोलते हुए बोला, "तुम टाइगर के दिल में मेरे लिए नफ़रत भरकर यह जताना चाहती हो कि टाइगर मेरी कभी नहीं हो सकती! और मैं यह होने नहीं दूँगा! चाहे मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े! टाइगर सिर्फ़ मेरी है और मेरी ही रहेगी! मैं उसको अपने आप से दूर कभी नहीं जाने दूँगा!"

    फिर अपने चेहरे पर डेविल स्माइल लाते हुए बोला, "टाइगर को मुझसे प्यार करना ही होगा! चाहे अपनी मर्ज़ी से या ज़बरदस्ती से..."

    फिर खुशी के बारे में सोचते हुए बोला, "तुम ऐसे कैसे कर सकती हो, टाइगर! खुद को कैसे नुकसान पहुँचा सकती हो?"

    यह कहते हुए उसके चेहरे पर गुस्सा आ गया और आगे बोला, "तुमने ऐसे सोचने की कोशिश भी कैसे की? अब तुमने गलती कर दी है, तो इसकी सज़ा तो तुम्हें मिलेगी ही! लेकिन मैं तुम्हें कुछ नहीं करूँगा! जिसकी वजह से तुमने अपने आप को मारने की कोशिश की है, उसकी सज़ा उसको मिलेगी! आज जो तुमने किया है ना, टाइगर, वो बहुत ही गलत था, टाइगर!"

    यह कहकर रियांश खड़ा हुआ और केविन से बाहर निकल गया।

    शाम के समय सनी के घर सनी के पेरेंट्स और सनी, खुशी चारों बैठकर डिनर कर रहे थे। इतने में सनी ने जब खुशी को कहीं खोया हुआ देखा, तो उसे देखकर बोला, "क्या सोच रही है तू? इतनी परेशान क्यों लग रही है? कुछ हुआ है क्या तेरे साथ?"

    यह कहकर सनी खुशी की तरफ़ सीरियस होकर देखने लगा। खुशी सनी की बात सुनकर हड़बड़ाकर झूठी हँसी हँसते हुए बोली, "नहीं यार, ऐसा कुछ नहीं है! बस मुझे दी की याद आ रही है।"

    "फिर तूने दी को भेजने की ज़िद क्यों की थी? जब खुद को उदास होना था तो?"

    खुशी सनी की बात सुनकर उदास होकर बोली, "तेरे को तो पता है ना, दी कभी मुझसे दूर नहीं गई है! आज पहली दफ़ा दी इतने दिनों के लिए बाहर गई है, तो बहुत याद आ रही है! मैंने उसको इसलिए भेजा था..."

    "...कि दी का फ़्यूचर सही रहे और मैं अपनी वजह से उनका फ़्यूचर ख़राब नहीं कर सकती।"

    वहीं दोनों की बात सनी के पापा सुन रहे थे, जिनका नाम रमेश था। उन्होंने मुस्कुराते हुए खुशी के सर पर हाथ रखा और बोले, "कोई बात नहीं बेटा, उदास नहीं होते! तुम अंजलि से फ़ोन पर बात कर लो और वैसे भी वो कुछ दिनों में वापस आ जाएगी।"

    खुशी रमेश की तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए बोली, "ठीक कहा अंकल, मैं अभी जाकर दी से बात करके आती हूँ।"

    यह बोलकर खुशी वहाँ से जैसे ही जाने को हुई, इतने में सनी की माँ, शांति ने खुशी को जाते देखा और बोली, "अभी नहीं, बाद में बात करना! पहले तुम अपना डिनर करो! जब तक तुम अपना डिनर फ़िनिश नहीं कर लेती, तब तक यहाँ से उठकर नहीं जाओगी।"

    खुशी शांति की तरफ़ देखकर बोली, "पर आंटी, मैंने तो अपना डिनर कर लिया और मेरा पेट भर गया! अब मैं जाती हूँ।"

    "बिल्कुल नहीं! तुमने अभी कुछ भी नहीं खाया है और कह रही हो पेट भर गया! बिल्कुल नहीं! चुपचाप नीचे बैठो और खाना जब तक खत्म नहीं हो जाता, तब तक तुम यहाँ से उठकर नहीं जाओगी!"

    खुशी ने मासूम चेहरा बनाकर सनी और रमेश की तरफ़ देखा, जैसे कह रही हो, 'अब तुम दोनों ही कुछ कर सकते हो।'

    रमेश और सनी खुशी का मासूम चेहरा देखकर मुस्कुराते हुए उन्होंने अपने दोनों कंधे ऊपर उठा दिए और डिनर करने लगे। खुशी ने एक नज़र दोनों को देखा और गुस्से में चेयर पर बैठकर अपना डिनर करने लगी। शांति जी जो उन तीनों की आँखों में बात करते देख रही थीं, वो हल्का सा मुस्कुरा दीं।

    सनी ने खुशी की तरफ़ देखा और हल्के से बोला, "इतनी जल्दी खाना खाने की ज़रूरत नहीं है! आराम से खा, कहीं खाना भागा नहीं जा रहा।"

    खुशी ने गुस्से में सनी की तरफ़ देखा और डाइनिंग टेबल के नीचे से अपना पैर सनी के पैर पर मार दिया।

    सनी खुशी के पैर मारने से चीखता हुआ डाइनिंग टेबल से खड़ा हुआ और इधर-उधर कूदने लगा। उसको ऐसा करते देख शांति और रमेश कन्फ़्यूज़ होकर देखने लगे।

    सनी को ऐसा उछलते देख रमेश बोले, "यह क्या कर रहा है? बंदरों की तरह कूदना बंद कर और चुपचाप डिनर कर।"

    सनी ने रमेश की बात सुनकर गुस्से में खुशी को देखा और अपनी चेयर पर बैठकर डिनर करने लगा। खुशी ने जल्दी से अपना डिनर फ़िनिश किया और उठकर वहाँ से चली गई।

    खुशी के रूम में खुशी बेड पर बैठी अंजलि से बात कर रही थी।

    "दी, वहाँ पर सब ठीक तो है ना? कोई परेशानी तो नहीं है ना?"

    खुशी की बात सुनकर अंजलि मुस्कुराते हुए बोली, "नहीं दादी अम्मा, कोई परेशानी नहीं है! मैं बिल्कुल ठीक हूँ! तुझे मेरी फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है! अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे! जैसे ही कंपटीशन ख़त्म होगा, मैं फ़ौरन आ जाऊँगी!"

    "और जब तक मैं वहाँ नहीं हूँ, तब तक अपना अच्छे से ध्यान रखना और कोई ऐसी-वैसी हरकत मत करना जिससे बाद में मुसीबत में पड़ जाए! समझी?"

    जैसे ही खुशी ने अंजलि की बात सुनी, उसकी आँखों में आज सुबह रियांश के साथ बिताए हुए सारे पल याद आ गए। खुशी ने अपना सर नीचे झुका लिया और अंजलि से बोली, "नहीं दी, मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी जिसकी वजह से कोई परेशानी हो! एक बार गलती कर चुकी हूँ, जिसकी सज़ा अभी तक भोग रही हूँ! इसलिए अब मैं ऐसी गलती दोबारा नहीं करूँगी।"

    खुशी की बात सुनकर अंजलि कन्फ़्यूज़ होकर बोली, "क्या मतलब है तेरा? क्या कुछ हुआ है?"

    खुशी को जैसे ही ये याद आया कि उसने अंजलि से क्या कहा था, तो हड़बड़ाकर बोली, "कुछ नहीं दी! वो... वहाँ पर मैंने रिहान को मज़ा चखाया था ना, उसके बारे में बात कर रही हूँ! और कुछ नहीं! अब मैं रखती हूँ! मुझे बहुत नींद आ रही है! आप भी ज़्यादा मोबाइल में मत बढ़ियेगा! जल्दी से सो जाइए! गुड नाईट दी!"

    यह कहकर खुशी ने जल्दी से फ़ोन काटा और गहरी साँस ली।

    खुशी चीखते हुए, "हाहहहहहहहह! यह क्या करने जा रही थी मैं! अगर दी को पता चल जाता तो आज ही यहाँ आ जाती! मेरी वजह से नहीं... नहीं!"

    फिर गुस्से में चीखते हुए...


    *********

    जारी है

  • 9. Ziddi ishq: A love story - Chapter 9

    Words: 1553

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे

    नहीं, मेरी वजह से नहीं, यह सब उस बांगड़ बिल्ले की वजह से, सिर्फ़ उसकी वजह से। "पता नहीं चाहता क्या है जो मेरे पीछे पड़ा है।"

    इतने में शांति, खुशी के कमरे में आई और खुशी को देखकर बोली, "यह लो बेटा, दूध पीओ और जल्दी से सो जाओ! कल को तुम्हें कॉलेज भी जाना है।"

    खुशी ने उनकी आवाज सुनकर जल्दी से शांति की तरफ देखा और बोली, "आप कब आईं आंटी?"

    शांति खुशी के पास बैठकर उसके सर पर हाथ रखते हुए बोली, "जब तुम उदास बैठी थी तब। मुझे पता है, तुम्हें अंजलि की बहुत याद आ रही है।"

    "पर बेटा, तुम्हें अकेले रहने की आदत डालनी होगी। कल को अगर अंजलि की या तुम्हारी शादी होगी, तो कैसे रहोगी तुम दोनों?"

    खुशी शांति की बात सुनकर खामोश हो गई। शांति, खुशी को चुप देखकर बोली, "चलो, ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है। यह लो दूध।"

    यह कहकर शांति ने खुशी के हाथों में दूध का गिलास पकड़ाया और बोली, "इसको फ़िनिश करके ही सोना।"

    "ओके, गुड नाइट।" यह कहकर वह कमरे से निकल गई। खुशी ने शांति जी को जाते हुए देखा और फिर गिलास को देखते हुए बोली, "सही कहा आंटी, अपने कल को अगर दीदी की शादी होगी, तो मैं कैसे रहूंगी उनके बगैर? यह तो कभी मैंने सोचा ही नहीं!"

    फिर अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाकर बोली, "लेकिन अब सोच लिया है। दीदी की शादी जिस भी लड़के से होगी, उसके भाई से शादी कर लूंगी! फिर हम दोनों बहनें फिर एक साथ ही रहेंगी। यह बहुत अच्छा आईडिया है।" यह कहकर खुशी खुश हो गई।


    कल सुबह, दोपहर का समय था।

    सनी बाइक चला रहा था। इतने में उसका फ़ोन बजने लगा। सनी ने एक दुकान के सामने अपनी बाइक रोकी और फ़ोन जेब से निकाला। उस पर खुशी का नाम था। सनी ने फ़ोन उठाया और बोला, "हेलो, अब क्यों फ़ोन करा है? सारा सामान तो दे दिया। क्या अब भी कुछ रह गया है?"

    "हाँ, मेरे लिए चॉकलेट लेकर आ जाना। मेरा बहुत दिल कर रहा है। और जल्दी लेकर आना, ज़्यादा देर मत लगाना, क्योंकि मैं और इंतज़ार नहीं कर सकती।"

    सनी खुशी की बात सुनकर बोला, "अच्छा, जल्दी लेकर आऊँगा। अब फ़ोन रख। मैं दुकान के सामने ही खड़ा हूँ।"

    "ठीक है, अभी रखती हूँ।"

    यह कहकर खुशी ने फ़ोन रख दिया। सनी खुशी की बात सुनकर मुस्कुरा दिया। सनी ने जल्दी से बाइक को साइड में लगाया और दुकान के अंदर चला गया जहाँ चॉकलेटें बिकती थीं। थोड़ी देर बाद सनी, खुशी के लिए चॉकलेट लेकर दुकान से बाहर निकला। वह जैसे ही अपनी बाइक के पास आया, इतने में उसके बराबर में एक कार आकर रुकी। उसमें से काले कपड़ों में बॉडीगार्ड निकले और सनी को जबरदस्ती कार में बिठाकर वहाँ से ले गए।


    और वहीं खुशी, जो कब से सनी का इंतज़ार कर रही थी। खुशी को इंतज़ार करते-करते दो घंटे हो गए, लेकिन सनी अभी तक नहीं आया। "मुझे पता है, तू जान-बूझकर देर कर रहा है। तो बस एक बार घर, तुझे मैं छोड़ूंगी नहीं।"

    यह कहकर खुशी ने अपना फ़ोन निकाला और सनी को फ़ोन लगाया, लेकिन सनी का फ़ोन बंद आ रहा था। यह देखकर खुशी कन्फ़्यूज़ हो गई। उसने दोबारा सनी को फ़ोन लगाया, लेकिन इस बार भी फ़ोन बंद आ रहा था। खुशी ने एक नज़र घड़ी को देखा और खड़ी होकर बोली, "अब तक तो उसको आ जाना चाहिए था, और फ़ोन भी बंद आ रहा है। यह कहीं कोई मुसीबत तो नहीं?"

    यह सोचते हुए खुशी घबरा गई। वह जल्दी से घर से बाहर निकली और सनी को ढूँढने निकल गई। खुशी को सनी को ढूँढते-ढूँढते शाम हो गई थी, लेकिन अभी तक खुशी सनी को ढूँढ नहीं पाई।

    खुशी एक जगह रुकी और उसने अपने माथे पर हाथ रखकर कहा, "यार, तू कहाँ चला गया? कहाँ ढूँढूँ मैं तुझे?" फिर एकदम कुछ सोचते हुए बोली, "क्या पता वो घर चला गया हो। एक बार घर जाकर देखती हूँ।" यह कहकर खुशी जल्दी से घर के लिए निकल गई।


    थोड़ी देर बाद, खुशी जैसे ही घर आई, उसने देखा शांति और रमेश दोनों सोफ़े पर बैठे बातें कर रहे थे। खुशी जल्दी से दोनों के पास आई और फ़ौरन बोली, "अंकल, सनी आ गया क्या?"

    रमेश, खुशी की ऐसी हालत देखकर जल्दी से टेबल से पानी उठाया और खुशी की तरफ़ बढ़कर बोले, "यह लो, पहले पानी पीओ।" यह कहकर उन्होंने खुशी को पानी पिलाया।

    खुशी ने पानी पिया और गिलास नीचे रखकर रमेश और शांति की तरफ़ देखकर बोली, "अब बताइए, सनी कहाँ है?"

    "पता नहीं बेटा, मैं तो यह समझी थी सनी तुम्हारे साथ गया है, और उसका फ़ोन भी बंद आ रहा है।"

    खुशी अपने चेहरे पर परेशानी लाकर बोली, "नहीं आंटी, सनी मेरे साथ नहीं है। वो कुछ सामान लेने दोपहर बाहर गया था, लेकिन अभी तक नहीं आया। मैं उसको ढूँढ-ढूँढ कर थक गई, लेकिन मुझे कहीं नहीं मिला।"

    जैसे ही शांति ने खुशी की बात सुनी, वो एकदम से लड़खड़ा गई। रमेश ने शांति को संभाला और फिर खुशी की तरफ़ देखकर बोले, "तुम दोनों फ़िक्र मत करो, मैं देखकर आता हूँ। क्या पता वो अपने दोस्तों के घर गया हो।"

    "हाँ, वो अपने दोस्तों के ही घर होगा, क्योंकि वो बहुत शैतान है। हमें परेशान करने का एक मौका नहीं छोड़ता। पता नहीं कब बड़ा होगा।" यह कहते हुए शांति ने रमेश की तरफ़ देखा और बोली, "आप जाकर सनी को लेकर आओ।"

    रमेश शांति की बात सुनकर बोले, "हाँ, मैं अभी लेकर आता हूँ। बस तुम टेंशन मत लो।" यह कहकर रमेश वहाँ से जाने लगे।

    खुशी, रमेश को जाते देख बोली, "रोकिए अंकल, मैं भी आपके साथ चलती हूँ।" रमेश खुशी की बात सुनकर हाँ में सर हिला दिया। खुशी रमेश के साथ घर से निकल गई।


    खुशी और रमेश सनी को हर जगह ढूँढ़ लिया और उसके दोस्तों से बात पूछी, लेकिन अभी तक किसी ने सनी के बारे में नहीं बताया। जिससे थक-हार कर रमेश, खुशी की तरफ़ देखकर अपनी आँखों में नमी लाकर बोले, "बेटा, मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। कहाँ ढूँढूँ उसको? पता नहीं कहाँ होगा मेरा बच्चा। कहीं कुछ..."

    खुशी उनकी बात बीच में काटकर बोली, "कुछ नहीं होगा। सनी को हम एक काम करते हैं, पुलिस स्टेशन चलते हैं, रिपोर्ट लिखवा देते हैं। फिर पुलिस हमारे सनी को जल्दी ढूँढकर ला देंगी।"

    रमेश को खुशी का यह विचार सही लगा तो बोले, "ठीक है। एक काम करो, तुम घर जाओ, मैं पुलिस स्टेशन जाकर आता हूँ।"

    खुशी उनकी बात सुनकर हाँ में सर हिला दिया। रमेश वहाँ से चले गए। खुशी, रमेश को जाते देख पीछे मुड़ी और आँखों में आँसू लाकर बोली, "यह सब मेरी वजह से हुआ है! अगर मैं उसको चॉकलेट लेने नहीं भेजती या अपना कोई सामान, तो उसके साथ यह नहीं होता। यह सब मेरी गलती है। मैं जिसके भी साथ रहती हूँ, उसको तकलीफ़ के सिवा कुछ नहीं देती। पहले दीदी को परेशान करती थी, बेचारा सनी पता नहीं कहाँ होगा।"

    यह कहकर खुशी रोते हुए घुटनों के बल बैठ गई और अपना सर नीचे झुका लिया। इतने में खुशी के पास कोई आकर खड़ा हुआ। खुशी ने अपना सर ऊपर उठाकर देखा तो एकदम से डर गई।

    "तुम यहाँ? तुम यहाँ क्या कर रहे हो? मैंने कहा था ना तुमसे मुझसे दूर रहो। तुम्हें मेरी बात समझ नहीं आती?"

    खुशी उसको कुछ बोलते ना देख जल्दी से खड़ी हुई और वहाँ से जाने को मुड़ी। एक आवाज आई, "जिसको तुम ढूँढ रही हो, वो तुम्हें नहीं मिलेगा!"

    रियांश की बात सुनकर खुशी अपनी जगह रुक गई। फिर रियांश की तरफ़ पलट कर कन्फ़्यूज़ होकर बोली, "तुम्हें यह कैसे पता चला मैं किसी को ढूँढ रही हूँ?"

    रियांश खुशी की बात सुनकर बोला, "तुम शायद नहीं जानती मैं कौन हूँ। हर किसी की खबर रखता हूँ, कौन क्या करता है और क्या कर रहा है। फिर तुम तो मेरी..."

    खुशी रियांश की बात बीच में काटकर बोली, "कुछ नहीं हूँ! यह अपने दिमाग से निकाल दो और तुम मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ देते? हर वक्त आ जाते हो मुझे परेशान करने। तुम्हें खुशी मिलती है क्या? मुझे परेशान करके? अरे मैंने तुमसे माफ़ी माँग ली ना और क्या करवाना चाहते हो? कहोगे तो पैर भी पकड़ लूंगी, लेकिन भगवान के वास्ते मेरा पीछा छोड़ दो, क्योंकि मैं और तुम्हें नहीं झेल सकती! जब मैं तुम्हें देखती हूँ ना तो मुझे खुद से नफ़रत होने लगती है। यह सोचकर कि वो कौन सा मनहूस दिन था जिस दिन मेरी तुमसे मुलाक़ात हुई!"

  • 10. Ziddi ishq: A love story - Chapter 10

    Words: 1596

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे

    खुशी ने अपनी आँखों में नमी लाते हुए कहा, "प्लीज चले जाओ यहाँ से और मेरा पीछा छोड़ दो। मुझे परेशान मत करो, रियांश।"

    रियांश ने खुशी की बात सुनकर कहा, "नहीं, छोड़ नहीं सकता, और ना ही कभी छोड़ूँगा।"


    खुशी ने रियांश की बात सुनते ही, अपनी एक उंगली रियांश की ओर दिखाते हुए चिढ़कर कहा, "देखो, अभी मैं तुम्हारी फ़ालतू की बकवास सुनने के मूड में नहीं हूँ। मैं बहुत परेशान हूँ, इसलिए चले जाओ यहाँ से। एक मिनट, तुम्हें जाने की ज़रूरत नहीं है, मैं खुद यहाँ से चली जाती हूँ!"


    यह कहकर खुशी वहाँ से जाने लगी। रियांश ने खुशी को जाते हुए देखकर बोला, "शायद वो तुम्हारे कुछ ज़्यादा ही करीब है, जिसके लिए तुम इतना परेशान हो रही हो। छोड़ दो उसके लिए परेशान होना। मुझे यह बिल्कुल भी पसंद नहीं है। अगर तुम इसी तरह उसे दो कौड़ी के लड़के के बारे में सोचकर परेशान होती रही, तो मैं उसको इतना परेशान करूँगा कि वो सोच भी नहीं सकता!"


    खुशी रियांश की बात सुनकर घबराकर पीछे पलटी और रियांश के पास आकर अपनी एक उंगली रियांश की ओर दिखाते हुए बोली, "इसका मतलब सनी को तुमने..." यह कहते ही खुशी ने रियांश का गिरेबान पकड़ा और गुस्से में चीखते हुए बोली, "हिम्मत भी कैसे हुई!"


    "तुम्हारी सनी को किडनैप करने की! अगर मेरे दोस्त को कुछ हुआ, ना तो मैं तुम्हें जान से मार दूँगी, और इस बार मेरे हाथ भी नहीं काँपेंगे। अभी के अभी मुझे बताओ मेरा दोस्त सनी कहाँ है?"

    रियांश ने खुशी की आँखों में देखते हुए बोला, "जहाँ भी है, अभी तो सेफ़ है। लेकिन अगर तुम इसी तरह उसके लिए परेशान और दुखी होती रही, तो क्या पता वो ठीक होकर तुम्हें कभी दिखे भी ना!"


    रियांश की बात सुनकर खुशी ने अपनी आँखों में नमी लाते हुए कहा, "इसका मतलब तुम ही ने सनी को किडनैप किया है?" फिर रियांश का गिरेबान पकड़कर उसे हिलाते हुए बोली, "आखिर चाहते क्या हो तुम मुझसे? क्यों मेरा पीछा नहीं छोड़ देते? मेरे दोस्त ने तो तुम्हें कुछ भी नहीं किया, फिर क्यों तुमने उसको किडनैप किया है? क्यों तुमने सनी को किडनैप किया? बोलो, क्यों किया तुमने ऐसा?" यह कहते हुए खुशी जोर से चिल्लाई, "क्यययययययययो!"


    रियांश ने खुशी की बात सुनकर सख्त आवाज़ में बोला, "क्योंकि मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ, और मैं यह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता कि तुम किसी और लड़के के साथ हो। और वो लड़का तुम्हारे कुछ ज़्यादा ही करीब था, इसलिए ऐसा किया मैंने!"


    रियांश के इज़हार करते ही वहाँ पर बहुत तेज़ बारिश होने लगी। खुशी रियांश की बात सुनकर उसकी आँखों में देखने लगी। दोनों ही इस समय बारिश में भीग रहे थे, लेकिन दोनों को बिल्कुल भी होश नहीं था, बस एक-दूसरे की आँखों में देखने में व्यस्त थे।


    एकदम से खुशी होश में आई और रियांश का गिरेबान छोड़कर रियांश से दो कदम दूर होकर एक अजीब सा एक्सप्रेशन लाते हुए बोली, "यह... क्या कह रहे हो तुम? यह सब झूठ है ना? तुम मुझे बदला लेने के लिए ऐसा कर रहे हो ना? कहो ना, यह झूठ है..."

    रियांश ने अपने चेहरे से बारिश का पानी पोंछा और जो बाल माथे पर बिखरे हुए थे, उनको ऊपर करते हुए बोला, "कोई बदला नहीं ले रहा हूँ, मैं तुमसे सच कह रहा हूँ। जिस दिन मैंने तुम्हारे साथ बदतमीज़ी की थी, उसी दिन से मुझे तुमसे प्यार हो गया था, लेकिन मैं उस समय समझा नहीं पाया। और उसी दिन के बाद से मुझे तुम्हारा रोता हुआ चेहरा मेरी आँखों के सामने आता था!"


    जिससे मुझे बहुत तकलीफ होती थी। लेकिन मैं उस समय भी नहीं समझ पाया कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। और फिर मुझे तुम हर जगह मुझ पर गुस्सा करती हुई दिखाई दीं, और वो जो तुम मुझे नफ़रत से देखती थीं, तो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था।


    लेकिन एक दिन जब फिर मुझे तुम्हारी वो आँखें, जिसमें मेरे लिए नफ़रत थी, देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। बस यही जानने के लिए कि मुझे क्यों तुम्हारी वो आँखें इतनी तकलीफ़ पहुँचा रही हैं, मैंने तुम्हारा एड्रेस निकाला, लेकिन जब मुझे यह पता चला कि तुम यह शहर छोड़कर चली गई हो...


    फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ, अचानक मुझे बहुत बेचैनी, डर और अजीब सी घबराहट होने लगी थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मुझसे मेरी ज़िंदगी छीन ली हो, और इसी वजह से मैंने तुम्हें हर जगह ढूँढ़ा, लेकिन तुम मुझे नहीं मिलीं, जिससे मैं बहुत ज़्यादा तकलीफ़ में रहने लगा। ना ही मेरा काम में मन लगता, और ना ही किसी चीज़ में। हर वक़्त यह सोचता था, "तुम कहाँ हो? कैसी हो? जब तुम मुझे मिलोगी तो मैं तुम्हें बताऊँगा..."


    कि मुझे कितनी तकलीफ़ हो रही है, तुम्हारे दूर जाने से, और मैंने जो तुम्हारे साथ किया, उसके लिए तुमसे माफ़ी माँगूँगा। फिर तुमसे कहूँगा कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। बस यही हर वक़्त सोचता रहता था। लेकिन छः महीने तक तुम मुझे नहीं मिलीं, जिसकी वजह से मुझे बहुत गुस्सा आने लगा कि सब मेरी वजह से हुआ है!


    मेरी वजह से तुम मुझसे दूर गई हो, इसलिए मैंने अपने आपको सज़ा भी दी है। तुम्हें यकीन नहीं होता, यह देखो।" यह कहकर रियांश ने अपनी शर्ट के बटन खोले और जल्दी से शर्ट उतारकर ज़मीन पर फेंक दी। जैसे ही खुशी ने रियांश के बदन पर निशान देखे, जैसे किसी ने बहुत बेरहमी से चाबुक से मारा हो...


    और उसके सीने पर चाक से 'टाइगर' लिखा हुआ था। खुशी रियांश को ऐसे देखकर घबराकर दूर हो गई और रियांश की ओर देखकर आँखों में नमी लाते हुए अपनी आँखों से रियांश के सीने पर आँसू बहाए। रियांश खुशी को देखते हुए बोला, "मैंने जो तुम्हारे साथ किया, उसकी मैंने सज़ा अपने आप को दे दी है, लेकिन तुम मुझे कोई भी सज़ा दे सकती हो!"


    "लेकिन प्लीज मुझसे दूर मत जाओ, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। मैं मर जाऊँगा तुम्हारे बगैर। अगर तुम मेरे पास आ गई तो मैं तुमसे वादा करता हूँ, मैं सब यह काम छोड़ दूँगा, कभी किसी को भी परेशान नहीं करूँगा, नहीं किसी को मारूँगा, जैसा तुम चाहोगी वैसा बन जाऊँगा!"


    "बस मुझसे नफ़रत मत करो, मैं तुम्हारी यह नफ़रत नहीं सह सकता। मुझे बहुत तकलीफ़ होती है यह जानकर कि तुम मुझसे कितनी नफ़रत करती हो। मुझे आज तक किसी का प्यार नहीं मिला, ना अपने माँ-बाप का, ना किसी का भी, इसलिए मुझे नहीं पता था प्यार क्या होता है, और जब प्यार होता है, तो इंसान क्या से क्या बन जाता है!"


    "मुझे ही देख लो, मैं तुम्हारे प्यार में क्या हो गया हूँ। लोग मुझसे डरते हैं, लेकिन उस दिन जब तुमने अपने आप को मारने की कोशिश की, उस दिन मैं तुमसे डर रहा था। यह सोचकर कि अगर तुम्हें कुछ हो गया, मैं कैसे जीऊँगा?" फिर अपने चेहरे पर दर्द भरी मुस्कराहट लाते हुए बोला, "ज़िंदगी भी हमारे साथ कैसे अजीब खेल खेलती है। इंसान को पहले ऐसा बनने पर मजबूर करती है..."


    "...कि प्यार, मोहब्बत, दर्द, तकलीफ़, उसके लिए कोई मायने नहीं रखती, बस सब कुछ हासिल करने का जुनून सवार करती है, और जब वो इंसान सब कुछ हासिल करके बेदर्द बन जाता है, तो उसकी ज़िंदगी में कोई ऐसा इंसान भेज देती है जिसके साथ उसने गलत किया हो, जिससे वो उससे नफ़रत करने लगे!"


    और फिर रियांश जोर से हँसते हुए बोला, "लेकिन ऊपर वाले को यह भी मंज़ूर नहीं होता, तो वो बेदर्द इंसान को उसी से प्यार करा देता है जो उससे नफ़रत करता है!"


    यह बोलते हुए रियांश ने अपने दोनों हाथ हवा में फैलाए और बोला, "जैसे मेरे साथ हुआ है।" खुशी, जो कब से रियांश की बात सुन रही थी, वो गुस्से में चीखकर बोली, "नहीं कर सकते तुम किसी से प्यार, क्योंकि तुम्हारे पास दिल ही नहीं है। तुम एक बेदर्द इंसान हो, जिसको किसी के दुःख, दर्द, तकलीफ़ से फ़र्क नहीं पड़ता, उसको प्यार क्या होगा!"


    "इसलिए तुम अपने दिमाग से यह निकाल दो कि तुम मुझसे प्यार करते हो।" रियांश खुशी की बात सुनकर गुस्से में बोला, "तुम मेरी मोहब्बत के बारे में गलत नहीं बोल सकती। टाइगर जितनी मोहब्बत मैं तुमसे करता हूँ, शायद इस दुनिया में किसी ने की होगी।" खुशी रियांश की बात सुनकर मुस्कुरा कर बोली, "अच्छा, बहुत मोहब्बत करते हो मुझसे? तो मेरे लिए कुछ भी करोगे और मेरी बात भी मानोगे?"


    रियांश खुशी की बात सुनकर जुनून से बोला, "जान माँगोगी तो जान भी दे दूँगा, चाहे तो आजमाकर देख सकती हो।" खुशी रियांश की बात सुनकर एकदम शांत हो गई। रियांश खुशी को देखकर बोला, "मेरी जान तो बहुत छोटी सी चीज़ है, तुम मुझसे कुछ भी माँग सकती हो।"


    खुशी रियांश की बात सुनकर बोली, "मुझे मेरा दोस्त चाहिए।" यह कहकर खुशी रियांश की आँखों में देखने लगी। रियांश मुस्कुराते हुए बोला, "ठीक है, छोड़ दूँगा तुम्हारे दोस्त को, लेकिन..." यह बोलते हुए अपने चेहरे पर डेविल स्माइल लाते हुए बोला, "अगर वो तुम्हारे साथ या तुम्हारे आस-पास भी दिखा, तो दोबारा तुम्हारे साथ देखने के लिए ज़िंदा नहीं रहेगा!"


    खुशी रियांश की बात सुनकर गुस्से में बोली, "सोचना भी नहीं उसको कुछ करने की। वो मेरा दोस्त ही नहीं, मेरा भाई भी है, और अगर कोई मेरी फैमिली को चोट पहुँचाने की कोशिश करेगा, तो मैं तो उसकी जान ले लूँगी।" रियांश ने जैसे ही खुशी के मुँह से सनी के लिए 'भाई' शब्द सुना, तो वो शांत होकर बोला, "वो लड़का तुम्हारा भाई है!"


    क्रमशः

  • 11. Ziddi ishq: A love story - Chapter 11

    Words: 1531

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे

    खुशी रियांश की फालतू बातें सुनकर चिढ़ गई और बोली, "क्यों तुम्हें इससे प्रॉब्लम है?"

    रियांश खुशी की बात सुनकर हँसते हुए बोला, "नहीं, टाइगर, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है। जब तुम उसे अपना भाई मानती हो, मैं भी उसको छोड़ देता हूँ, ठीक है।"

    यह कहकर रियांश ने तुरंत अपने एक आदमी को फोन किया और सनी को छोड़ने को कहा। जैसे ही खुशी ने सुना कि रियांश सनी को छोड़ रहा है, उसके चेहरे पर खुशी छा गई। रियांश ने फोन रखा और खुशी की तरफ देखकर बोला, "अब तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। मैंने तुम्हारे भाई को छोड़ दिया है। और हाँ, मैं बिलकुल भी यह नहीं जानता था कि तुम उसको अपना भाई मानती हो। इसलिए मैंने ऐसा किया। मुझे माफ़ कर देना। दोबारा मैं कभी तुम्हारी फैमिली को कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा और न ही किसी को बचाने दूँगा। मैं तुमसे वादा करता हूँ।"

    खुशी ने तुरंत कहा, "ज़रूरत नहीं है! मेरी फैमिली है, मैं खुद अपनी फैमिली का ध्यान रख सकती हूँ। मुझे तुम्हारी मदद नहीं चाहिए। और वैसे भी, मुझे और मेरी फैमिली को कोई नुकसान पहुँचाने वाला ही नहीं है। जो हम लोगों को नुकसान पहुँचाता है, वो सिर्फ़ तुम हो, क्योंकि कोई तुम्हारे जैसा नहीं है। अपनी गलती होते हुए भी दूसरों को नुकसान पहुँचाना सिर्फ़ तुम्हें ही आता है, और किसी को नहीं। और हाँ, अब मेरी फैमिली और मुझसे दूर ही रहना।"

    यह कहकर खुशी वहाँ से जाने लगी।

    एकदम से खुशी पीछे मुड़ी और रियांश के पास आकर, हाथ जोड़कर, रियांश की आँखों में देखते हुए हँसकर बोली, "वैसे तुम्हें देखकर मुझे लग रहा है तुम्हें सच में मोहब्बत हो गई है! एक बात बताऊँ, तुम्हारे फ़ायदे की है।"

    यह कहकर खुशी रियांश को देखने लगी। हँसते हुए बोली, "बता देती हूँ, क्योंकि मुझे लोगों का भला करने में बड़ा मज़ा आता है, तो सोचा थोड़ा तुम्हारा ही कर दूँ!"

    "मुझे ना, रियांश के दिल की तरफ़ इशारा करके, यहाँ से निकाल दो, क्योंकि मैं तुम्हें कभी प्यार नहीं करूँगी। क्योंकि तुमने मुझे जिस दिन सबके सामने जलील किया था, उसी दिन से मुझे तुमसे ज़्यादा नफ़रत हो गई है!"

    "इसलिए मेरा ख्याल अपने दिल से निकाल दो। और एक अच्छी लड़की... वैसे तो तुम्हें कोई अच्छी लड़की मिलने से रही, लेकिन हाँ, वो लड़की ज़रूर मिल जाएगी जो तुम्हारे पैसे और तुम्हारी पॉवर को देखकर तुमसे शादी कर ले और हाँ, वो तुम्हारी...मर्दों वाली ज़रूरत भी बहुत अच्छी तरह से पूरी करेगी।"

    फिर खुशी कुछ सोचते हुए बोली, "वैसे तुम्हें तो लड़कियों की कमी नहीं होगी। तुम्हारे आगे-पीछे बहुत सी लड़कियाँ फिरती होंगी और बहुत सी लड़कियों ने तुम्हारी ज़रूरत भी पूरी करी होगी। लेकिन क्या है ना, शादी करने से तुम्हें एक फ़ायदा होगा। वो जानते हो क्या? कम से कम तुम्हारा अपना तो कोई होगा, वरना ज़रूरत पूरी करने वाली बहुत सी होंगी जो पैसों के लिए कर देती होंगी, लेकिन तुम उनको तुम नहीं मान सकते हो!"

    "इसलिए किसी लड़की को देखकर शादी करके सेट हो जाओ और मेरे बारे में भूल जाओ।" यह कहकर खुशी रियांश को देखते हुए मुस्कुराने लगी। इतने में खुशी का फ़ोन बजने लगा। खुशी ने एक नज़र रियांश को देखा और फिर अपने फ़ोन को कान से लगाया और बोली, "हेलो, आंटी शांति?"

    शांति खुशी की आवाज़ सुनकर खुश होकर बोली, "खुशी, तुम कहाँ हो? जल्दी से घर आ जाओ, सनी आ गया है!"

    खुशी शांति जी की बात सुनकर मुस्कुरा कर बोली, "क्या सच में सनी घर आ गया? मैं अभी आ रही हूँ, आंटी।" यह कहकर खुशी ने जल्दी से फ़ोन रखा। उसने मुस्कुराकर एक नज़र रियांश को देखा और वहाँ से जाने लगी।

    रियांश खुशी को जाते देख, जल्दी से खुशी का हाथ पकड़कर अपने पास खींच लिया। खुशी रियांश के इस तरह खींचने से बहुत घबरा गई और सीधा आकर रियांश के सीने से लग गई। रियांश खुशी के चेहरे की तरफ़ झुककर और उसकी आँखों में जुनून से देखकर बोला, "तुम्हारे अलावा मेरी ज़िन्दगी में ना कोई थी, ना ही होगी। पहले और आख़िरी तुम ही हो और हाँ, तुम्हारे अलावा मैं किसी से शादी नहीं करूँगा। मेरी शादी होगी तो सिर्फ़ तुमसे। और तुम मुझे इतना गिरा हुआ इंसान समझती हो कि मैं अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिए उन दो कौड़ी की लड़कियों के पास जाऊँगा? आज तक मैंने किसी लड़की को हाथ भी नहीं लगाया है। मानता हूँ, लोगों के साथ गलत करता हूँ, लेकिन कभी किसी लड़की की इज़्ज़त के साथ नहीं खेला और न कभी किसी लड़की को अपने करीब आने दिया है। पहली और आख़िरी लड़की तुम ही हो और तुम ही रहोगी। यह अपने दिमाग में बिठा लो, टाइगर।"

    खुशी, जो रियांश की आँखों में अपने लिए सच्ची मोहब्बत और जुनून देखकर शॉक में थी, एकदम से होश में आई और रियांश के सीने पर हाथ रखकर उसको धक्का दिया।

    खुशी पीछे जाते हुए बोली, "लेकिन मैं तुमसे प्यार नहीं करती और ना ही करूँगी, कभी नहीं।" यह कहते हुए खुशी पीछे जाने लगी। रियांश खुशी की बात सुनकर अपनी आँखों में नमी लाकर बोला, "प्लीज़, टाइगर, मत जाओ। मुझे छोड़कर मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता!"

    खुशी बोली, "लेकिन मैं तुम्हारे साथ नहीं जी सकती।" यह कहकर वो पीछे जाने लगी। रियांश ने अपना हाथ खुशी की तरफ़ बढ़ाया और बोला, "मेरे पास आ जाओ, टाइगर, मेरे पास आ जाओ।"

    खुशी रियांश की बात सुनकर चीखकर बोली, "कभी नहीं! मर जाऊँगी, लेकिन तुम्हारे पास कभी नहीं आऊँगी!"


    जैसे ही रियांश ने खुशी की बात सुनी, वो गुस्से में बोला, "मैंने कहा ना, मेरे पास आ जाओ, टाइगर, वरना सब कुछ बर्बाद कर दूँगा। तुम मुझे शैतान समझती हो ना, तो मैं बहुत बेरहम शैतान बन जाऊँगा, जो सब कुछ बर्बाद कर देगा। कभी किसी पर रहम नहीं करेगा। इसलिए कहता हूँ, मेरे पास आ जाओ!"

    "अगर तुम चली गई तो मैं वो बन जाऊँगा जो कभी मैंने बनने की नहीं सोची। हर एक इंसान को खून के आँसू रुलाऊँगा। इसलिए कहता हूँ, मेरे पास आ जाओ!"

    खुशी रियांश की बात सुनकर नफ़रत से बोली, "तुमसे उम्मीद ही क्या की जा सकती है? यही तो करने आता है तुम्हें, दूसरों को तकलीफ़ देना। लेकिन मुझे फ़र्क नहीं पड़ता! तुम चाहे कुछ भी करो, आई डोंट केयर! लेकिन कभी मैं तुम्हारे पास नहीं आऊँगी। मैं किसी से भी शादी कर लूँगी, लेकिन तुमसे कभी नहीं करूँगी।"

    खुशी की बात सुनकर रियांश चीखकर बोला, "नहीं कर सकती! तुम किसी से शादी... अगर कोई भी लड़का तुमसे शादी करने के लिए राजी हुआ या आया, उसको जान से मार दूँगा! तुम्हारी शादी सिर्फ़ मुझसे होगी और किसी से नहीं। किसी को भी तुमसे शादी नहीं करने दूँगा, किसी को भी नहीं! इसलिए कहता हूँ, मेरे पास आ जाओ, टाइगर। मेरे पास आ जाओ। मैं तुम्हें बहुत खुश रखूँगा। कभी कोई तकलीफ़ नहीं दूँगा। जैसा चाहोगी वैसा बन जाऊँगा। सब कुछ छोड़ दूँगा, लेकिन मुझसे दूर मत जाओ।"

    खुशी रियांश की बात सुनकर हँसते हुए बोली, "मेरे तो बस में नहीं है, वरना तुमसे दूर जाने के लिए मैं तो मर भी सकती हूँ। और तुम कहते हो कि तुम्हारे पास आ जाओ? कभी नहीं! मैं तुमसे नफ़रत करती हूँ, नफ़रत बहुत ज़्यादा! आई रियली हेट यू!" यह कहकर खुशी वहाँ से चली गई।

    रियांश खुशी को जाते देख, अपने घुटनों के बल नीचे बैठकर जोर से चीखा, "टाइगर! नहीं! नहीं! नहीं! तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती! वापस आ जाओ! प्लीज़ वापस आ जाओ! बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे! मैं मर जाऊँगा तुम्हारे बिना, टाइगर! प्लीज़ वापस आ जाओ! मुझे पता है, मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है!"

    "मैं तुमसे उसके लिए माफ़ी माँगता हूँ। मैं पागल हो गया था जो मैंने तुम्हारे साथ वो सब किया। तुम चाहो तो मुझे मार लो, कोई भी सज़ा दे दो, मैं सह लूँगा, लेकिन तुम्हारा दूर जाना नहीं सह सकता। मैं नहीं रह सकता तुम्हारे बिना! प्लीज़ आ जाओ मेरे पास। मैं बहुत प्यार करता हूँ तुमसे, टाइगर!"

    रियांश ने अपना सर ऊपर उठाया और आसमान को देखते हुए बोला, "मैंने कभी आप पर विश्वास नहीं किया, क्योंकि मुझे लगता था आप नहीं हैं। जो आपने मेरे साथ किया, उसकी वजह से मेरा विश्वास आपसे उठ गया था। लेकिन आज अगर आप हो, प्लीज़ मेरी मदद करो। मुझे मेरी टाइगर लौटा दो। मैं उसके बिना नहीं रह सकता। आप तो हर किसी की मदद करते हो, मेरी भी एक मदद कर दो। मैं जानता हूँ, मैंने बहुत से गलत काम किये हैं, जिसकी वजह से आप भी मुझसे नफ़रत करते होंगे, लेकिन मैं उससे वादा करता हूँ, अगर टाइगर मेरे पास आ गई तो मैं सब कुछ छोड़ दूँगा, सब कुछ!"

    खुशी वहाँ से निकलकर सनी के घर पहुँची। जैसे ही खुशी अंदर पहुँची, उसने गहरी साँस ली और उसने अपने आप को सही किया। फिर सामने देखा जहाँ शांति सनी को डाँट रही थी। खुशी ने अपने चेहरे पर मुस्कान लाकर उनके पास आकर खड़ी हो गई।

    (अब क्या करेगा रियांश? क्या फिर कुछ ऐसा करेगा जिससे खुशी के दिल में रियांश के लिए नफ़रत पैदा होगी?)

  • 12. Ziddi ishq: A love story - Chapter 12

    Words: 1562

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे

    खुशी वहाँ से निकलकर सनी के घर पहुँची। जैसे ही खुशी अंदर पहुँची, उसने गहरी साँस ली और अपने आप को सम्हाला। फिर उसने सामने देखा जहाँ शांति सनी को डाँट रही थी। खुशी ने अपने चेहरे पर मुस्कान लाकर उनके पास आकर खड़ी हो गई।

    सनी, जो कब से अपनी माँ की डाँट खा रहा था, वह खुशी को देखकर जल्दी से खड़ा हुआ और खुशी के गले लगकर उदास होकर बोला, "यार, देखना, माँ जब से आई है, तब से डाँट रही हैं। तू समझा ना, माँ, गलती हो गई, अब माफ़ भी कर दे।"

    खुशी सनी की बात सुनकर मुस्कुरा दी और फिर सनी को अपने से अलग करके शांति की तरफ़ देखकर बोली, "आंटी, इसमें सनी की कोई गलती नहीं है। आप इसको मत डाँटिये क्योंकि जो सब हुआ..."

    "वो मेरी वजह से हुआ है। आप मुझ पर गुस्सा कर लीजिये, लेकिन सनी पर नहीं।" यह कहकर खुशी ने अपना सर नीचे झुकाकर खड़ी हो गई। सनी जल्दी से खुशी के सामने आया और बोला, "यह क्या कह रही है? तेरी वजह से कुछ नहीं हुआ। तू शायद बोल रही है, मैं अपना सामान लेने जा रहा था, तो तूने भी अपने सामान के बारे में बता दिया, तो इसमें तेरी गलती नहीं है।"

    खुशी सनी की बात सुनकर अपने मन में बोली, "तू नहीं जानता इसलिए ऐसे कह रहा है। वो सब मेरी वजह से हुआ है। मेरी वजह से आज तेरी जान खतरे में थी। मुझे माफ़ कर देना यार।" यह कहते हुए खुशी की आँखें नम हो गईं।

    शांति, जो कब से खड़ी सनी और खुशी की बात सुन रही थी, वह खड़ी हुई और खुशी की तरफ़ देखकर बोली, "ठीक है। अब तुम दोनों एक-दूसरे को बचाने की कोशिश मत करो। मैं जानती हूँ, इन सब में तुम दोनों की कोई गलती नहीं है।" और फिर खुशी के चेहरे पर हाथ रखकर उसका चेहरा ऊपर उठाया। जैसे ही शांति ने खुशी की आँखों में आँसू देखे...

    उन्होंने अपने हाथ से खुशी के आँसू पोंछे और मुस्कुराकर बोलीं, "जानती हूँ तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों हैं। यही सोच रही हो ना, तुम्हारी वजह से आज सनी की जान को खतरा था?" खुशी ने शांति की बात सुनकर हाँ में सर हिला दिया। "शांति, लेकिन ऐसा नहीं है बेटा। शायद नसीब में यही लिखा था..."

    "...और वैसे भी, नसीब में लिखा कोई बदल नहीं सकता। और भगवान ने सनी के नसीब में यह लिखा था कि उसको किडनैप होना है, तो उसको किडनैप होना ही था। कोई भी नहीं रोक सकता था। इसलिए तुम उसको अपने दिमाग से निकाल दो। यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है..."

    "समझी?" सनी शांति की बात सुनकर वो भी मुस्कुराकर बोला, "हाँ, सही कहा। निकाल दे यह सब बातें। और देख, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मुझे कुछ भी नहीं हुआ।" "और अब रोना-धोना छोड़ो यार, मुझे बहुत तेज भूख लगी है।"

    "मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया। कुछ खाने को दे दो मुझे गरीब को, थोड़ा सा तरस ही खा लो मुझ पर।" यह कहकर सनी ने अपना चेहरा मासूम बनाकर खुशी और शांति की तरफ़ देखने लगा।

    शांति ने सनी के गाल पर हाथ रखकर बोला, "मेरे बच्चों को भूख लगी है। मैं अभी अपने दोनों बच्चों के लिए अच्छा-अच्छा खाना बनाती हूँ।" यह बोलकर शांति ने खुशी को देखा और मुस्कुराकर वहाँ से चली गई।

    खुशी इधर-उधर देखते हुए सनी की तरफ़ देखकर बोली, "ओह! तेरे अंकल तो पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने गए थे। उनको तो बताना भूल गई मैं..." सनी खुशी के दोनों हाथ पकड़कर सोफ़े पर बैठाया और खुद भी उसके पास बैठकर उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर बोला, "जब मैं हूँ, तो फिर क्यों लेती है टेंशन?"

    सनी खुशी को देखकर बोला, "जब मैं हूँ तेरे साथ, तो तुझे काहे की फ़िक्र? तू भूल गई है क्या?" खुशी सनी की बात सुनकर कन्फ़्यूज़ होकर सनी की तरफ़ देखकर बोली, "मतलब? सनी! अरे पागल! जब मुझे उन लोगों ने छोड़ा था, तभी मैंने पापा को फ़ोन कर दिया था किसी से फ़ोन लेकर और पापा ने कहा कि मैं वहीं रुकूँ, वो मुझे लेने आ रहे हैं।"

    "फिर थोड़ी देर बाद पापा मुझे लेने आए और मैं पापा के साथ घर आ गया। और अब पापा अपने रूम में हैं। मेरी वजह से परेशान हो गए थे ना, इसलिए मैंने उनको आराम करने कमरे में भेज दिया।" खुशी ने सनी की बात सुनकर गहरी साँस ली और फिर एकदम से खुशी ने सनी की तरफ़ देखा और उदास होकर बोली, "मुझे सच-सच बता, सनी, उन लोगों ने तुझे कुछ किया तो नहीं था?"

    सनी खुशी की बात सुनकर चुप हो गया। खुशी सनी को चुप देखकर उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली, "क्या हुआ? तू चुप क्यों हो गया? बोल, उन लोगों ने तुझे कुछ तो नहीं किया ना?" सनी खुशी की बात सुनकर मुस्कुराकर खुशी की तरफ़ देखा और बोला, "नहीं यार, कुछ नहीं किया। वो शायद मुझे गलती से ले गए थे।"

    "उन्हें किसी और को किडनैप करना था, लेकिन जब उन लोगों को यह पता चला कि मैं कोई और हूँ, तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया और मुझसे माफ़ी भी माँगी।" खुशी सनी की बात सुनकर थोड़ी देर शांत हुई और सनी की तरफ़ देखकर बोली, "ठीक है, लेकिन अब तो अकेला कहीं नहीं जाएगा, समझा?"

    सनी खुशी की बात सुनकर बोला, "मैं कोई छोटा बच्चा थोड़ी ना हूँ जो खो जाऊँगा या वो लोग बार-बार मुझे किडनैप करेंगे। और वैसे भी, मैं बड़ा हो गया हूँ, अपना ध्यान खुद रख सकता हूँ। तू मेरी दादी-अम्मा मत बन।" खुशी सनी की बात सुनकर हँसते हुए बोली, "हाँ, तो बड़ा हो गया, तभी तो किडनैप हो गया था!"

    "अगर मैं तेरे साथ होती, तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता। इसीलिए कहती हूँ, जहाँ भी जाए, मुझे साथ लेकर जाइए, अकेला बिल्कुल भी नहीं जाना, समझा?" सनी खुशी की बात सुनकर खिसियाकर बोला, "हाँ, तो उन्होंने मुझे अचानक से किडनैप कर लिया था। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए, इसलिए मैं किडनैप हो गया था।"

    "अगर मुझे पता होता कि वो लोग मुझे किडनैप करने वाले हैं, तो मैं उनकी हड्डी-पसली एक कर देता।" खुशी सनी की बात सुनकर खूब जोर-जोर से हँसने लगी और बोली, "क्या बात है? मुझे नहीं पता था कि लोग किडनैप करने से पहले बता देते हैं कि हम तुम्हें किडनैप करने वाले हैं।"

    सनी खुशी की बात सुनकर झेंपकर बोला, "मेरे कहने का मतलब यह है, वो लोग एकदम से आए थे। मुझे कुछ करने का मौका नहीं मिला, इसलिए मैं किडनैप हो गया। समझी?" खुशी बोली, "बेटा, किडनैप एकदम से ही होते हैं और अचानक ही होते हैं, ना कि डिंडोरी पीते हैं कि हम तुम्हें किडनैप करने वाले हैं।" सनी और खुशी अभी बहस कर ही रहे थे, इतने में शांति की आवाज़ आई, "चलो आ जाओ दोनों, डिनर तैयार है।" शांति की आवाज़ सुनकर खुशी जल्दी से खड़ी हुई और चीखकर बोली, "जी, आई!" यह कहकर खुशी सनी को मुँह चिढ़ाकर वहाँ से भाग गई।

    सनी मुँह खुला खुशी को जाते हुए देख रहा था। उसके चेहरे पर स्माइल आ गई और बोला, "बिल्कुल पागल है यह लड़की! मैं तो यह सोचता हूँ कि वो लड़का कौन होगा जो इस पागल को संभालेगा! जिससे भी इसकी शादी होगी, यह ज़रूर उसको पूरा पागल ही कर देगी, अपनी तरह बना लेगी!"

    सनी मुस्कराकर बोला, "भगवान! जिससे भी इसकी शादी होगी, वो इतना ताकतवर हो कि इसकी रक्षा कर सके और इसको हर मुसीबत से बचा सके।" इतने में दोबारा शांति की आवाज़ आई, "सनी!" शांति की आवाज़ सुनकर सनी जल्दी से उठा और वो भी डिनर करने चला गया।

    सुबह का समय। खुशी जल्दी से तैयार हुई और ब्रेकफ़ास्ट करके जल्दी से कॉलेज जाने के लिए घर से निकलने लगी। सनी, जो ब्रेकफ़ास्ट कर रहा था, वो खुशी को जाता देख जल्दी से भागता हुआ खुशी के पास आया और बोला, "चलो, मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।" यह कहकर सनी आगे-आगे जाने लगा। खुशी सनी की बात सुनकर अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर खड़ी होकर बोली, "कोई ज़रूरत नहीं है।"

    "मैं खुद ही चली जाऊँगी। मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ जो तुम मुझे छोड़ने जाओगे और लेने जाओगे। मैं बड़ी हो गई हूँ और अपना ध्यान भी खुद रख सकती हूँ। इसलिए मैं खुद चली जाऊँगी।" सनी खुशी की बात सुनकर बोला, "तू अकेली क्यों जाएगी? मैं हूँ ना, मैं तुझे छोड़ दूँगा। अब ज़्यादा बहस मत कर।" यह कहकर सनी ने बाइक लाकर खुशी के सामने खड़ा हो गया। इतने में बाहर से किसी लड़की की आवाज़ आई...

    "खुशी! जल्दी आ, हमें कॉलेज जाने के लिए देर हो जाएगी।" खुशी ने दरवाज़े की तरफ़ देखा और फिर सनी की तरफ़ देखकर बोली, "किसने कहा मैं अकेली जाऊँगी? सोनाली आ गई है, उसी के साथ जा रही हूँ। इसलिए तुझे आने की ज़रूरत नहीं है। चल हट, साइड!" यह बोलकर खुशी वहाँ से जाने लगी। सनी ने जैसे ही यह सुना कि सोनाली लेने आई है...

    उसने जल्दी से अपनी बाइक खड़ी करी और खुशी के पीछे आते हुए बोला, "तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मेरी बेबी मेरे घर आ रही है!" खुशी, "अगर पहले बता देती, तो क्या करता? उसके आने की तैयारी?" सनी, "नहीं, ऐसी भी बात नहीं है, लेकिन मैं अच्छे से तैयार हो जाता।"


    क्रमशः

  • 13. Ziddi ishq: A love story - Chapter 13

    Words: 1530

    Estimated Reading Time: 10 min

    और फिर उसने अपना घर भी दिखा दिया।" खुशी ने सनी की बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा, "तूने सोनाली को अपना घर दिखाया था?" "वो भी आंटी-अंकल के सामने? क्या बात है?" "बेटा, बड़ी हिम्मत आ गई है तेरे अंदर, जब से किडनैप हुआ है।" "ठीक है, फिर मैं अभी उसे अंदर बुलाती हूँ।"

    "और जब अंकल-आंटी तुझे कुछ पूछेंगे तो खुद जवाब देते रहना।"


    सनी खुशी की बात सुनकर हड़बड़ाकर बोला, "अरे पागल, मरवाएगी क्या? मेरे कहने का यह मतलब थोड़े ही है कि तू घर दिखा देती। चलो, घर ना भी दिखाया तो कम से कम अंदर बुला ही लेती। अब मेरी डार्लिंग बाहर से चली जाएगी।" खुशी ने तिरछी नज़र से सनी को देखते हुए कहा, "अगर तू ऐसे ही मुझे और देर तक दरवाज़े पर खड़ा करके बातें करता रहा..."


    "...तो मैं ज़रूर उसे कहूँगी कि तूने ही कॉलेज जाने के लिए लेट करवाया है, और फिर जो तेरे साथ करेगी उसका ज़िम्मेदार तू खुद होगा।" सनी खुशी की बात सुनकर परेशान होकर बोला, "ठीक है, तो जा, मैं नहीं रोकूँगा। लेकिन तू मेरी शिकायत मत करना, वरना वो नाराज़ हो जाएगी।" खुशी ने सनी की बात सुनकर हँसते हुए कहा, "ठीक है, नहीं बताऊँगी। अब छोड़, मेरा रास्ता।" खुशी ने सनी को किनारे किया


    और गेट खोलकर बाहर चली गई। सनी ने जल्दी से अपने बाल ठीक किए और कपड़े ठीक करके वो भी बाहर आ गया। जैसे ही सनी बाहर आया, तो उसने देखा कि एक लड़की स्कूटी पर बैठी खुशी से बात कर रही है।


    उसे देखकर सनी मुस्कुरा दिया और फिर खुशी के पास आकर खड़ा हो गया। उसने लड़की से मुस्कुराते हुए कहा, "बोलो, कैसी हो सोनाली? तुमने बताया नहीं कि तुम आने वाली हो।" सोनाली ने सनी को देखकर कहा, "अगर बता देती, तो क्या तुम अपने घरवालों को हमारे बारे में बता देते?" सनी हड़बड़ाकर बोला, "तुम ये कैसे बात कर रही हो? अभी मैं कैसे बता सकता हूँ?"


    सनी सोनाली से बोला, "तुमसे कहा था ना, सही वक़्त आने पर मैं हम दोनों के बारे में बता दूँगा। अब तुम बेफ़िक्र हो जाओ, क्योंकि तुम्हें तो मेरा ही होना है।" सोनाली ने सनी की बात सुनकर कहा, "लेकिन कब? जब मेरे माँ-बाप कहीं और मेरा रिश्ता देख लेंगे, तब बताओगे? सनी, मैं तुमसे कह रही हूँ, तुम्हारे पास सिर्फ़ एक हफ़्ते का समय है!"


    "अगर तुमने बताया, नहीं तो तुम मुझे हमेशा-हमेशा के लिए खो दोगे।" सनी ने सोनाली की बात सुनकर जल्दी से सोनाली का हाथ पकड़कर बोला, "अरे नहीं-नहीं बेबी, मैं बता दूँगा। एक हफ़्ते में, लेकिन तुम कुछ मत करना। और तुम गुस्सा क्यों हो रही हो? मैं कह रहा हूँ ना, मैं जल्दी ही माँ-पापा को तुम्हारे बारे में बता दूँगा।"


    "पक्का प्रॉमिस? सोनाली, मैं गुस्सा नहीं हूँ, तुमसे डर लगता है, ये सोचकर कि अगर तुमने बताने में देर कर दी, तो फिर क्या होगा?" सनी ने कहा, "कुछ नहीं होगा, मैं हूँ ना। मैं तुमसे वादा करता हूँ, मैं आज शाम को ही माँ-पापा को तुम्हारे बारे में सब बता दूँगा, क्योंकि मैं तुम्हें किसी और का होता भी नहीं देख सकता। मुझे पूरा भरोसा है, मेरे पापा मेरी बात मानेंगे और तुम्हारे घर मेरा रिश्ता भी लेकर आएंगे।"


    वहीं दूसरी तरफ, रियांश, जो खुशी के जाने से पहले से ज़्यादा खतरनाक और बेरहम हो गया था, जैसे रियांश ने कहा था, वैसे ही अब उसे किसी की ज़िन्दगी से कोई फर्क नहीं पड़ता था। अब वो लोगों को और ज़्यादा तकलीफ देने लगा था। शिवांश के ऑफिस में शिवांश आज बहुत गुस्से में ऑफिस पहुँचा और अपने केबिन में जाकर उसने अपने असिस्टेंट को बुलाया। असिस्टेंट जल्दी से शिवांश के केबिन में आया


    और डरते हुए बोला, "जी सर, आपने बुलाया?" "रियांश, मैंने जो राणा वाली फाइल कंप्लीट करने को दी थी, वो फाइल कंप्लीट हुई?" "जी सर, हो गई है।" "रियांश, मुझे लाकर दो, और हाँ, जिसने वो फाइल कंप्लीट की है, उसे भी बुलाओ।" "ठीक है सर।" ये कहकर असिस्टेंट वहाँ से चला गया।


    थोड़ी देर बाद एक लड़का अपने हाथ में फाइल लेकर डरते हुए रियांश के केबिन में आया। रियांश ने उसे अपने पास आने का इशारा किया। वो लड़का आकर शिवांश के पास खड़ा हो गया। शिवांश ने उसे देखा और फाइल पढ़ते हुए बोला, "मेरी कंपनी का प्रोजेक्ट बचाने के लिए तुमने कितने पैसे लिए हैं?"


    वो लड़का शिवांश की बात सुनकर पूरा कांप गया और हकलाते हुए बोला, "नहीं सर, मैंने कोई पैसा नहीं लिया और ना ही मैंने प्रोजेक्ट भेजा है।" शिवांश उसकी बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराया और फाइल टेबल पर रखकर खड़ा होकर उसका गला पकड़कर बोला, "मुझे झूठ बिल्कुल भी पसंद नहीं है। तुम तो जानते हो, क्योंकि मेरे साथ काफी समय से काम करते हो, फिर भी मुझसे झूठ बोल रहे हो।"


    "और तुमने क्या समझ रखा है? मुझे... मैं ऑफिस नहीं आता, इसका मतलब मुझे पता नहीं चलेगा मेरे ऑफिस में क्या-क्या हो रहा है? सब पर नज़र रहती है मेरी। कौन क्या करता है यहाँ पर, सब पता होता है मुझे। और शायद तुमने इसी वजह से मेरे साथ गद्दारी की है ना, कि मैं ऑफिस नहीं आता तो मुझे क्या पता चलेगा?"


    ये कहकर रियांश ने एकदम से उसे पीछे धक्का दिया, जिसकी वजह से वो लड़का नीचे गिर गया और गहरी-गहरी साँस लेने लगा। शिवांश अपने घुटनों के बल बैठकर उस लड़के का चेहरा पकड़कर बोला, "तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी, मुझसे गद्दारी करके। अब तुम मौत की भीख माँगोगे भी, लेकिन तुम इतनी आसानी से मौत नहीं पाओगे। तड़प-तड़प कर तुम्हें मौत दूँगा, और तुम्हारी फैमिली को भी नहीं छोड़ूँगा।"


    वो लड़का रियांश की बात सुनकर रोते हुए रियांश के पैर पकड़ लिया और बोला, "सॉरी सर, मुझे माफ़ कर दो। मेरी फैमिली को कुछ मत करना। चाहो तो मेरी जान ले लो, लेकिन मेरी फैमिली को कुछ मत करना, प्लीज़ सर, मुझे माफ़ कर दो, मेरी फैमिली को कुछ मत करो।" ये कहकर वो लड़का बहुत ज़्यादा रोने लगा। शिवांश ने उसे धक्का दिया और बोला, "ये तो गलती करने से पहले सोचना चाहिए था।" ये कहकर रियांश अपने केबिन से निकल गया।


    सोनाली ने सनी की बात सुनकर खुश होकर बोली, "तुम सच कह रहे हो ना? हम दोनों के रिश्ते के लिए वो मान जाएँगे ना?" सनी ने कहा, "हाँ, ज़रूर मानेंगे। आखिर मैं उनका इकलौता बेटा हूँ, मेरी खुशी के लिए वो कुछ भी करेंगे। लेकिन तुम अपने माँ-बाप को भी बता देना हमारे बारे में, ताकि जब मेरे माँ-बाप तुम्हारे घर रिश्ता लेकर आएँ तो वो भी राजी हो जाएँ।"


    "ऐसा ना हो कि तुम्हारे माँ-पापा मना कर दें।" सोनाली ने सनी की बात सुनकर बोली, "तुम इस बात की फ़िक्र मत करो, बस तुम अपने माँ-पापा को मेरे घर भेजो, बाकी मैं संभाल लूँगी।" सनी ने कहा, "ठीक है, फिर मैं बात करता हूँ माँ-पापा से, वो भी आज ही।" सोनाली सनी की बात सुनकर खुश हो गई और बोली, "ठीक है, अब हम कॉलेज जाते हैं, बाद में बात करते हैं।" ये कहकर उसने खुशी को बैठने को कहा और स्कूटी लेकर कॉलेज के लिए निकल गई।


    शाम के टाइम खुशी अपने रूम में बैठी पढ़ाई कर रही थी। इतने में सनी खुशी के पास आया और खुशी का हाथ पकड़कर मासूमियत से बोला, "खुशी, तू मेरी दोस्त है ना, वो भी बचपन की, और बहन भी।" खुशी ने सनी की बात सुनकर कन्फ़्यूज़ होकर कहा, "हाँ, तो इसमें कोई नई बात क्या है?"


    सनी ने कहा, "वो मैं बाद में बताऊँगा, तो पहले मेरी बात सुन। मैं तेरा भाई हूँ ना?" खुशी ने कहा, "कैसे बात कर रहा है यार तू? सबको पता है तू मेरा भाई है, वो भी बेस्ट।" सनी ने कहा, "तो फिर तुझे अपने भाई की बात भी माननी होगी और उसकी मदद भी करनी होगी।" खुशी ने सनी की बात सुनकर डरते हुए


    कहा, "मुझे पता है तू किस बारे में बात कर रहा है, लेकिन मैं तेरी इसमें मदद नहीं करूँगी। तुझे खुद जाकर आंटी से बात करनी होगी अपने और सोनाली के लिए, लेकिन मैं नहीं बात करूँगी, समझ?" ये कहकर खुशी ने सनी से अपने हाथ छुड़ाए और कमरे से बाहर जाने लगी।


    सनी ने जल्दी से खुशी का हाथ पकड़कर उदासी से बोला, "देख, तू मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती। मैं तेरा भाई हूँ, तुझे मेरी मदद करनी होगी।" खुशी ने कहा, "मैं तेरी कोई भी मदद कर दूँगी, लेकिन ये वाली मदद बिल्कुल नहीं। यार, क्यों? मुझे सूली पर चढ़ने को कह तो खुद बात करना, मुझे डर लग रहा है, कहीं आंटी ने मुझे मारा तो मेरा क्या होगा?"


    "मुझे नहीं करनी, तू खुद कर।" ये कहते हुए खुशी ने जल्दी से सनी से अपना हाथ छुड़ाया और बाहर जाने लगी। सनी ने फिर से खुशी को बाहर जाते देखा, तो उसने रूम का गेट बंद करा और खुशी के सामने खड़े होकर बोला, "मैं तुझे बाहर नहीं जाने दूँगा जब तक तू मेरी मदद करने को तैयार नहीं हो जाती।"


    "मेरी अच्छी वाली बहन, प्लीज़ मेरी हेल्प कर देना। मैं तुझे बहुत सारी चॉकलेट दूँगा, और तू जो माँगेगी वो भी दूँगा, बस ये वाली हेल्प कर दे। और अगर तू मेरी हेल्प कर देगी ना, आगे चलकर तुझे भी इसमें किसी की हेल्प चाहिए होगी, तो मुझे बताना, मैं ज़रूर तेरी हेल्प करूँगा।"

  • 14. Ziddi ishq: A love story - Chapter 14

    Words: 1057

    Estimated Reading Time: 7 min

    दी से बात करने में खुशी को सनी की बात सुनकर, एटीट्यूड से बोली, "उसकी फिक्र मत कर, क्योंकि मुझे तेरी हेल्प की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। मुझे कोई लड़का मिले, तभी तो! और मुझे एक ऐसा लड़का चाहिए जो मासूम हो और हर किसी की मदद करता हो, और यह लड़ाई-झगड़ों से दूर रहे। और मेरी हर बात माने। और आजकल तो ऐसे लड़के मिलना मुश्किल है। इसलिए मुझे तेरी हेल्प की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।"

    सनी खुशी की बात सुनकर, खुशी के आगे हाथ जोड़कर बोला, "ठीक है। मेरी मां तुझे नहीं पड़ेगी, लेकिन मुझे तो तेरी हेल्प की ज़रूरत है। प्लीज, प्लीज, प्लीज मेरी हेल्प कर दे। यह मेरी ज़िन्दगी का सवाल है। तू जानती है ना मैं सुनैना से कितना प्यार करता हूँ? और अगर तू मां-पापा से बात करेगी, शायद वे ज़रूर मान जाएँ।"


    खुशी बोली, "लेकिन मेरी बात सुनकर आंटी ने मुझ पर गुस्सा किया तो प्लीज, तू खुद बात कर। मैं नहीं करूँगी।" सनी उदासी से खुशी की आँखों में देखने लगा। खुशी सनी को उदास देखकर बोली, "ठीक है, मैं बात करती हूँ।"

    सनी खुशी की बात सुनकर खुश होकर बोला, "थैंक यू सो मच यार! मैं बता नहीं सकता मैं कितना ज़्यादा खुश हूँ! चल, अब जल्दी से मम्मी को जाकर बताते हैं।" यह बोलकर सनी ने खुशी का हाथ पकड़ा और कमरे से बाहर ले जाने लगा।

    खुशी, सनी को ले जाते देख, डरते हुए बोली, "हाथ तो छोड़, मैं खुद चल सकती हूँ।" सनी बोला, "हाँ, मुझे पता है तू खुद चल सकती है, लेकिन मैं बहुत ज़्यादा एक्साइटेड हूँ, इसलिए मैं तुझे नहीं छोड़ सकता।" सनी ने खुशी को शांति और राजेंद्र के कमरे के बाहर लाकर खुशी को छोड़ा और बोला, "अब तू अंदर जा, मां-पापा से बात कर, और जब सब सेट हो जाए तो मुझे भी बुला लेना।"

    खुशी सनी की बात सुनकर बोली, "अच्छा, बेटा मुझे सोली पर चढ़ाना है, लेकिन मैं अंदर नहीं जाऊँगी। और अगर तू चाहता है कि मैं अंदर जाऊँ, तो तू भी मेरे साथ चलेगा।" सनी खुशी की बात सुनकर डरते हुए बोला, "नहीं-नहीं खुशी, मैं यहाँ खड़ा होकर देखता हूँ, लेकिन मैं अंदर नहीं जाऊँगा।"

    खुशी ने अपनी कमर पर हाथ रखा और सनी को घूरते हुए बोली, "ठीक है, फिर मैं भी नहीं जा रही। जब तू नहीं जा रहा। मैंने सिर्फ़ बात करने को कहा था आंटी से, कि मैं बात करूँगी, लेकिन यह नहीं कहा था कि मैं अकेले ही अंदर जाऊँगी। चल रहा है तो चल, वरना छोड़।" यह कहकर खुशी जाने लगी।

    सनी खुशी को जाते देख जल्दी से खुशी का हाथ पकड़ा और बोला, "ठीक है, मेरी जान! चलता हूँ अंदर। अब तो मान जा।" खुशी बोली, "ठीक है।" फिर दोनों ही साथ चलते हुए शांति जी के कमरे के बाहर खड़े हुए और उनके कमरे पर नॉक किया। शांति और राजेंद्र बात कर रहे थे।

    अपने कमरे के दरवाज़े पर नॉक होता देख, एक-दूसरे को देखा और बोले, "अंदर आ जाओ।" सनी और खुशी दोनों ही शांति जी की आवाज़ सुनकर अंदर आए और सर झुकाकर खड़े हो गए। शांति ने खुशी और सनी को देखा और फिर राजेंद्र को देखकर बोली, "ये दोनों ऐसे क्यों खड़े हैं?"

    राजेंद्र शांति के पास आकर बोला, "क्या पता, शायद कोई बात करनी हो।" शांति बोली, "हाँ, शायद यही कारण है।" उन्होंने खुशी को देखा और बोली, "क्या बात है तुम दोनों मेरे पास?" यह कहकर उन्होंने अपने पास आने का इशारा किया। सनी और खुशी ने शांति की तरफ़ देखा और चलकर उनके पास आकर खड़े हो गए।

    शांति बोली, "तो बोलो, क्या बात करनी है?" सनी ने खुशी की तरफ़ देखा और कुछ बोलने का इशारा किया। खुशी ने एक नज़र राजेंद्र को देखा और शांति को देखकर बोली, "आंटी, मुझे आपको एक ज़रूरी बात बतानी है, सनी के बारे में।" शांति और राजेंद्र ने जैसे ही खुशी के मुँह से सनी के बारे में सुना, तो वे घबराते हुए बोले, "क्या बात है? बताओ। मुझे कुछ किया है क्या सनी ने? या कुछ हो गया है सनी से?"

    खुशी दोनों को परेशान देखकर बोली, "ऐसा कुछ नहीं है। आप दोनों परेशान होना बंद कीजिए।" शांति और राजेंद्र खुशी की बात सुनकर गहरी साँस ली और शांति बोली, "तो फिर बताओ क्या बात है? गोल-गोल घूमना बंद करो, सीधा बताओ।"

    खुशी बोली, "वो आंटी, सनी शादी करना चाहता है।" शांति बोली, "हाँ, तो हम इसके लिए लड़की ढूँढ रहे हैं। जैसे ही मिल जाएगी, तो करवा देंगे। क्यों? सही कहा ना मैंने जी?" यह बोलकर उन्होंने राजेंद्र की तरफ़ देखा। राजेंद्र ने भी हाँ में सर हिला दिया और बोले, "हाँ, सही है। अभी मिली नहीं है। जब मिल जाएगी, तो शादी करवा देंगे। कोई भाग नहीं जा रहा है। और वैसे भी अभी उम्र ही क्या हुई है इसकी शादी करने की?"

    सनी राजेंद्र की बात सुनकर चिढ़कर बोला, "क्या पापा, आपको मैं बच्चा लगता हूँ? बड़ा हो गया हूँ और मेरी शादी की उम्र भी हो गई है, लेकिन आप लोगों को तो फिक्र ही नहीं है कि मेरी शादी करवाएँ।"

    राजेंद्र सनी की बात सुनकर प्यार से सनी को अपने पास बुलाया। सनी जाकर राजेंद्र के पास बैठ गया। राजेंद्र सनी को अपने पास बैठा देख, उसके सर पर प्यार से हाथ मारते हुए बोले, "बड़ी जल्दी है तुझे शादी करने की? इतना तो उत्साह मैं भी नहीं हुआ था जब मेरी शादी होने वाली थी।"

    एकदम से राजेंद्र की बात सुनकर सनी जल्दी से राजेंद्र के पास से उठकर दूर खड़ा होकर अपना सर झुकाते हुए बोला, "यह गलत है पापा! मैं भी चाहता हूँ मेरी शादी हो और मेरी बीवी मेरा ख्याल रखे, मेरी हर बात माने, जैसी मम्मी आपकी मानती है। तो इसमें गलत क्या है?"

    शांति सनी की बात सुनकर बोली, "ठीक है, हम तुम्हारे लिए कोई अच्छी लड़की देखकर जल्दी शादी करवा देंगे। अब खुश? अब दोनों सो जाओ, कल सुबह कॉलेज भी जाना है।" सनी ने जैसे ही शांति की बात सुनी, तो घबराकर खुशी की तरफ़ देखने लगा।

    खुशी सनी को ऐसा देखकर ना में सर हिलाया और फिर शांति की तरफ़ देखकर बोली, "नहीं आंटी, आपको लड़की देखने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि सनी ने अपने लिए खुद लड़की ढूँढ ली है और सनी उससे बहुत प्यार भी करता है। बस आप इन दोनों की शादी के लिए हाँ कर दो।" जैसे ही शांति और राजेंद्र ने खुशी की बात सुनी, तो दोनों बहुत ज़्यादा शॉक हो गए।

    क्रमशः...

  • 15. Ziddi ishq: A love story - Chapter 15

    Words: 726

    Estimated Reading Time: 5 min

    खुशी ने दोनों को हैरान देखकर कहा, "आंटी, अंकल, आप दोनों कुछ तो बोलिए!" खुशी की बात सुनकर दोनों जल्दी से होश में आए और सनी को देखकर बोले, "तुम किसी लड़की से प्यार करते हो? तुमने अभी तक हमें नहीं बताया।"

    सनी शांति की बात सुनकर उदास होकर अपना सिर झुकाते हुए बोला, "सॉरी मम्मा, सॉरी पापा। मैं आप लोगों को बताना चाहता था, लेकिन सही मौका नहीं मिल रहा था, इसलिए नहीं बताया।"

    "सही मौका कैसा?" शांति ने पूछा, "सही मौके की तलाश में तो तुम जरा मुझे बताना। और कब से प्यार करते हो तुम? और क्या नाम है उस लड़की का? सब बताओ मुझे अभी।" सनी ने कहा, "आप उसको जानती हैं।" शांति कन्फ्यूज होकर बोली, "जानती हूँ? कौन है वो? नाम बताओ।"

    "पहले मेरी और खुशी की बचपन की दोस्त, सोनाली," सनी ने बताया। जैसे ही शांति और राजेंद्र ने सोनाली का नाम सुना, तो दोनों ही खामोश हो गए। राजेंद्र ने शांति की तरफ देखा और फिर सनी की तरफ देखकर बोला, "वह तो बहुत अच्छी बच्ची है। मुझे तुम दोनों की शादी से कोई एतराज नहीं, लेकिन पहले अपनी माँ से पूछो।"

    "उनको तो कोई आपत्ति नहीं है तुम दोनों की शादी में," राजेंद्र ने शांति की तरफ देखते हुए कहा। सनी और खुशी भी शांति की तरफ देखने लगे। शांति ने सबको अपनी तरफ देखते हुए हड़बड़ाकर बोला, "ऐसे क्या देख रहे हो मुझे? मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है। मुझे भी सोनाली बहुत अच्छी लगती है। बहुत सीधी-साधी बच्ची है। मुझे कोई परेशानी नहीं है तुम दोनों की शादी में।"

    शांति की बात सुनकर सनी बहुत खुश हो गया और जल्दी से शांति को गले लगाकर बोला, "थैंक यू सो मच माँ! आप जानती नहीं हैं मैं आज कितना खुश हूँ! मैं बहुत प्यार करता हूँ सोनाली से।" शांति ने सनी के सर पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए बोला, "हाँ, वह तो मुझे तुम्हारी आँखों में देखकर ही पता चल गया है। चलो अब जाओ, बहुत रात हो गई है। सो जाओ। बाकी बात बाद में करेंगे।"

    सनी जल्दी से शांति से अलग होकर बोला, "ओके माँ। गुड नाईट।" यह कहकर वह वहाँ से जाने लगा। खुशी ने भी दोनों को गुड नाईट कहा और सनी के साथ कमरे से निकल गई। सनी शांति के कमरे से निकलकर बाहर आया और खुशी के दोनों हाथ पकड़कर गोल-गोल घूमते हुए बोला, "थैंक यू सो मच यार! तेरी वजह से आज हम दोनों के रिश्ते के लिए मान गए। तू बहुत अच्छी है, मेरी सबसे अच्छी दोस्त और सबसे प्यारी बहन।" यह कहकर सनी ने खुशी को गले लगा लिया। खुशी भी सनी की बात सुनकर मुस्कुरा दी।

    खुशी ने सनी को अलग करते हुए कहा, "ठीक है, अब ज्यादा मक्खन लगाने की जरूरत नहीं है। मुझे सोने जाना है, कल कॉलेज भी जाना है।" यह कहकर खुशी अपने कमरे में चली गई। सनी भी अपने कमरे में चला गया।


    दोपहर का समय था। रियांश आज बहुत गुस्से में अपने ऑफिस जा रहा था। इतने में उसकी कार के आगे एक आदमी आ गया। जल्दी से रियांश के ड्राइवर ने कार का ब्रेक लगाया। रियांश, जो पीछे बैठा था, वह अचानक ब्रेक लगने से आगे की ओर झुक गया। रियांश ने अपने आप को संभाला और ड्राइवर को देखकर बहुत गुस्से में बोला, "दिमाग खराब है तेरा? मरना चाहता है?"

    ड्राइवर रियांश की बात सुनकर घबराते हुए बोला, "सॉरी सर, लेकिन आगे एक आदमी आ गया था जिसकी वजह से मुझे ब्रेक लगाना पड़ा। मुझे माफ कर दो।" रियांश ने ड्राइवर की बात सुनकर कहा, "किसने कहा था ब्रेक लगाने को तुझे? पता है ना मुझे ऑफिस जाने के लिए लेट हो रहा है। जो भी सामने आ रहा है, उड़ा दे! जो भी मेरे रास्ते में आएगा, उसको तो मरना पड़ेगा, अब चाहे वो कोई भी क्यों ना हो।"

    वो आदमी, जो रियांश की गाड़ी से टकराने वाला था, वह गुस्से में रियांश की गाड़ी के पास आया और उसके ड्राइवर वाली सीट की खिड़की पर खटखटाया। ड्राइवर ने जल्दी से शीशा नीचे किया और उस आदमी को कुछ बोला।

    इतने में वो आदमी गुस्से में ड्राइवर का गिरेबान पकड़कर बोला, "जब तुमसे गाड़ी चलाना आता नहीं है तो तुम चलाते क्यों हो? अपने बाप की जागीर समझते हो क्या? कैसे भी गाड़ी चलाओगे! किसी की ज़िन्दगी की कोई कीमत नहीं है तुम्हारी नज़रों में?" वो ड्राइवर उस आदमी की बात सुनकर उसका हाथ अपने गिरेबान से हटाकर बोला, "...जानता हूँ..."


    To be continued...

  • 16. Ziddi ishq: A love story - Chapter 16

    Words: 679

    Estimated Reading Time: 5 min

    ड्राइवर ने उस आदमी का हाथ झटक दिया और गुस्से में बोला, "जनता भी है तू? किसकी गाड़ी के सामने आया है? और मेरे बॉस पहले ही तेरी वजह से बहुत गुस्से में हैं। अगर मरना नहीं चाहता है तो चला जा यहां से।"

    वो आदमी ड्राइवर की बात सुनकर बोला, "ओह अच्छा, तुम्हारे बॉस गुस्से में हैं? लेकिन तुम्हारे बॉस को इतनी भी तमीज नहीं है कि रास्ते में गाड़ी कैसे चलाते हैं। अगर अभी मुझे कुछ हो जाता तो मेरे घर वाले और मेरी बीवी-बच्चों का ध्यान कौन रखता? तुम अमीर लोगों की यही दिक्कत है, रोड को अपने बाप की समझकर चलाते हो। गरीबों की तो कोई फिक्र ही नहीं है।"

    "और तुम अमीरों की यही दिक्कत है कि गरीबों को कुछ नहीं समझते और जो आता है वो करते हो। लेकिन मैं ऐसा नहीं हूँ। मुझे अच्छे से आता है लोगों को तमीज सिखाना। तुम्हारे बॉस को भी अच्छे से तमीज सिखाऊँगा।"

    "बाहर निकालो उसको!" बड़े आये नवाबजादे! रियांश, जो उसकी बात सुनकर पहले ही बहुत गुस्से में था, अब उसके ऐसे बोलने पर बर्दाश्त नहीं कर पाया। उसने जल्दी से कार का गेट खोला और बाहर निकला।

    वह आदमी के पास आकर उसने अपने माथे पर दो उंगलियाँ रखकर बोला, "हम्मम्म्मम्म्म... फिर सिखाऊँगा मुझे तमीज? आ गया?"

    आदमी ने जैसे ही रियांश को देखा, वह डरकर दो कदम दूर हो गया और हकलाते हुए बोला, "सर, आप... मुझे माफ़ कर दीजिये। मुझे नहीं पता था कि यह कार आपकी है। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिये।"

    रियांश उसे आदमी की बात सुनकर जोर-जोर से हँसने लगा। वहाँ पर जो लोग खड़े थे, वे रियांश को देखकर पहले ही डरे हुए थे, और अब रियांश को हँसते देख वे सब डर के मारे काँपने लगे और उस आदमी के लिए दुआ करने लगे। वो आदमी भी रियांश को हँसते देख बहुत डर गया और जल्दी से उसने रियांश के पैर पकड़ लिए।

    "प्लीज़ सर, मुझे माफ़ कर दीजिये। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी।"

    रियांश ने हँसना बंद किया और उस आदमी का गिरिबान पकड़कर उसे खड़ा किया। "मुझे गलतियाँ पसंद नहीं हैं," उसने कहा, "और पता नहीं लोग गलतियाँ करते क्यों हैं जो बाद में माफ़ी माँगते हैं। अब मैं इतना अच्छा इंसान तो नहीं हूँ कि माफ़ कर दूँगा, क्योंकि मेरी डिक्शनरी में माफ़ी नहीं है। इसलिए मुझसे उम्मीद मत करो कि मैं तुम्हें माफ़ करूँगा।" रियांश की आँखों में बहुत ज़्यादा गुस्सा था।

    रियांश अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ करते हुए बोला, "हाँ, और तुम क्या बोल रहे थे कि यह सड़क मेरे बाप की नहीं है?"

    आदमी बोला, "मुझे माफ़ कर दीजिये सर, मुझसे गलती हो गई।"

    रियांश ने उसकी बात सुनते ही उसका गला पकड़ लिया और गुस्से में दांत पीसते हुए बोला, "यह सड़क ही नहीं, बल्कि हर चीज मेरी है! और तुम जैसे लोगों का यहाँ पर रहना मुझे पसंद नहीं है। इसलिए मैं तुम्हें यहाँ से बहुत दूर भेज रहा हूँ।" यह कहकर रियांश ने उस आदमी को गले से पकड़कर ऊपर उठा दिया।

    वो आदमी अपना गला छुड़ाने के लिए कोशिश करने लगा। जितने भी लोग थे, सब उस आदमी की ऐसी हालत देखकर डर रहे थे। इतने में एक बच्ची रियांश के पास आई और उसके पैरों पर गिरते हुए बोली, "छोड़ो मेरे पापा को! छोड़ो ना मेरे पापा को!"

    रियांश ने अपना सिर नीचे करके छोटी बच्ची को देखा और उसे अपने हाथ से पीछे धक्का दे दिया। जिससे वह छोटी बच्ची जमीन पर गिर गई। जमीन पर गिरते ही उसकी आँखों में आँसू निकलने लगे और वह रोते हुए बोली, "अब गंदे अंकल हो आप! आपने मुझे धक्का दिया है! मैं आपकी शिकायत मम्मी से करूँगी!"

    रियांश उस बच्ची की बात सुनकर हँसते हुए बोला, "मेरी शिकायत अपनी मम्मी से करोगी? ठीक है, कर दो जाकर।" यह कहकर रियांश ने दोबारा उस आदमी की तरफ़ देखा और बोला, "लगता है तेरा पूरा खानदान मेरे हाथों से मारना चाह रहा है, तभी तो मेरे बीच में आ रहा है।"

    क्रमशः

  • 17. Ziddi ishq: A love story - Chapter 17

    Words: 740

    Estimated Reading Time: 5 min

    रियांश ने उस आदमी का गला पकड़कर ऊपर उठाया। आदमी रियांश से अपना गला छुड़ाने के लिए बहुत कोशिश करने लगा। वहीं, वो बच्ची अपने पापा को देखकर जल्दी से खड़ी हुई और रियांश के पास आकर उसके हाथ पर काटने लगी।

    रियांश ने अपनी गर्दन टेढ़ी करके नीचे देखा और बोला, "लगता है, तुझसे पहले तेरी बच्ची ऊपर जाना चाहती है।" यह कहकर उसने उस आदमी को नीचे धक्का दिया और उस बच्ची की तरफ मुँह करके खड़ा हो गया। बच्ची ने जैसे ही अपने पापा को नीचे गिरते देखा, तो वह जल्दी से अपने पापा के पास जाने को हुई।

    इतने में रियांश ने उसका हाथ पकड़कर अपने सामने खड़ा किया और अजीब तरह से बोला, "जानती है बच्ची, तूने किसको काटने की कोशिश की है? तुम्हें पता भी है तेरे काटने से मैं तेरे साथ क्या कर सकता हूँ?"

    बच्ची रियांश की बात सुनकर बोली, "हाँ, आप एक बड़े अंकल हैं। आप मेरे पापा को मार रहे थे, इसलिए मैंने आपको काटा।" रियांश बच्ची की बात सुनकर हँसने लगा और फिर अपने चेहरे पर गुस्सा लाकर जैसे ही वह बच्ची की तरफ अपना हाथ बढ़ाया,

    इतने में वह आदमी, जो जमीन पर गिरकर गहरी-गहरी साँस ले रहा था, अपनी बच्ची को देखकर जल्दी से उठकर रियांश के सामने खड़ा हो गया। रियांश ने अपने सामने उस आदमी को देखकर गुस्से में बोला, "हट सामने से!" आदमी रियांश की बात सुनकर एकदम से रियांश के पैर पकड़कर बोला, "सर, मेरी मासूम बच्ची को माफ कर दो।

    आप चाहो तो मेरी जान ले लो, लेकिन मेरी बच्ची को छोड़ दो। उसको नहीं मालूम आप कौन हैं, नादान है वो। आप उसको कुछ मत करो, प्लीज सर!" रियांश उस आदमी की बात सुनकर अपनी गर्दन टेढ़ी करके बोला, "मैंने कहा ना है, हट सामने से!" लेकिन वह आदमी रियांश के पैर पकड़कर रोने लगा, लेकिन वह सामने से नहीं हटा। जिसकी वजह से रियांश ने गुस्से में आकर उस आदमी का गिरिबान पकड़कर खड़ा किया और जैसे ही थप्पड़ मारने को हुआ,

    वहीं दूसरी तरफ, कॉलेज में खुशी और सोनाली बातें करते हुए कॉलेज से घर जा रही थीं। खुशी मुस्कुराते हुए सोनाली से बोली, "यार, आज का दिन कितना अच्छा है ना! आज पूरा दिन पढ़ाई नहीं हुई, सिर्फ मस्ती करी।

    और जब पढ़ाई नहीं करी, तो पढ़ाई की टेंशन भी नहीं है।" सोनाली खुशी की बात सुनकर बोली, "हाँ, मेरे लिए भी! क्योंकि शांति आंटी मेरे और सनी के रिश्ते के लिए मान गईं। मैं भी बहुत खुश हूँ। मेरे लिए भी आज का दिन बहुत अच्छा है।"

    खुशी बोली, "हाँ, इसका मतलब हम दोनों के लिए आज का दिन बहुत अच्छा है। चलो, जल्दी से घर चलते हैं और फिर शाम को मिलकर पार्टी करते हैं। क्यों? क्या कहती है?" सोनाली बोली, "बिल्कुल! मैं तो तैयार हूँ। मैं स्कूटी लेकर आती हूँ, तो यहीं रुक।" यह कहकर सोनाली स्कूटी लेने चली गई।

    थोड़ी देर बाद सोनाली स्कूटी लेकर कॉलेज के बाहर आई और खुशी को बिठाकर घर की तरफ निकल गई। खुशी और सोनाली अभी बातें करते हुए घर जा रही थीं, इतने में सोनाली ने स्कूटी रोकी और खुशी से बोली, "यहाँ पर इतनी भीड़ क्यों है?

    क्या किसी का एक्सीडेंट हो गया है?" खुशी सोनाली की बात सुनकर बोली, "क्या पता! चल, चलकर देखते हैं।" सोनाली बोली, "ठीक है।" यह बोलकर सोनाली ने स्कूटी खड़ी करी और दोनों भीड़ की तरफ चली गईं।

    वहाँ बहुत सारे लोग घेरा बनाकर खड़े थे। जैसे ही खुशी उस भीड़ को चीरते हुए आगे आई, तो उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं, क्योंकि सामने रियांश एक आदमी को मार रहा था।

    यह देखकर खुशी जल्दी से उस आदमी के सामने जाकर खड़ी हो गई। रियांश जो उस आदमी को थप्पड़ मार रहा था, वह खुशी को लग गया। थप्पड़ पड़ते ही खुशी का चेहरा एक तरफ झुक गया और उसकी आँखों में आँसू आ गए।

    और उसका सर भी घूम रहा था। उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अभी-अभी क्या हुआ। वहीं रियांश, अपने सामने खुशी को देखकर लड़खड़ा कर पीछे कार से लग गया। खुशी ने अपना एक हाथ गाल पर रखकर, आँखों में आँसू लाकर रियांश को देखने लगी।

    वहीं रियांश, खुशी की आँखों में आँसू देखकर उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन खुशी जल्दी से पीछे हो गई। जिसे देखकर रियांश गुस्से में पीछे मुड़ा और अपने हाथ दोनों कार के बोनट पर मारे। वहाँ पर जितने भी लोग थे,


    क्रमशः...

  • 18. Ziddi ishq: A love story - Chapter 18

    Words: 650

    Estimated Reading Time: 4 min

    रियांश के कार पर हाथ मारने से सब डरकर पीछे हट गए। खुशी भी रियांश के इस तरह मरने से काँप गई। उसने जल्दी से पीछे मुड़ा और उस आदमी और बच्चे को देखकर मुँह पर एक उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया।

    उन लोगों का हाथ पकड़कर वह उन्हें वहाँ से ले गई। रियांश ने पीछे मुड़ते हुए कहा, "मुझे माफ़ कर दो, टाइगर।" खुशी को न पाकर वह जोर से चिल्लाया, "टाइगर! टाइगर!" वहाँ पर जितने भी लोग थे,

    रियांश को ऐसे चीखते देखकर कन्फ्यूज़ हो गए। रियांश ने अपनी आँखें खोलीं; उसकी आँखें बिल्कुल लाल थीं। पीछे मुड़कर वह कार में बैठकर वहाँ से निकल गया।

    थोड़ी देर बाद कार एक बहुत बड़े मेंशन के आगे रुकी। ड्राइवर ने जल्दी से कार का दरवाज़ा खोला। रियांश गुस्से में कार से उतरा और सीधा मेंशन के अंदर चला गया।

    रियांश सीढ़ियाँ चढ़ते हुए एक कमरे के आगे रुका। उसने कमरे का दरवाज़ा खोला और अपना कोट उतारकर बेड पर फेंका। आईने के सामने खड़ा होकर, उसने अपने दोनों हाथ आईने पर रखे और अपना चेहरा देखते हुए बोला, "तूने अपनी टाइगर पर हाथ उठाया है। उसको कितनी तकलीफ हो रही होगी! तूने अपनी टाइगर को तकलीफ दी, तुझे भी तकलीफ मिलनी चाहिए।"

    "तूने मेरी टाइगर को तकलीफ कैसे दी?" यह कहकर उसने वह हाथ, जिससे खुशी को थप्पड़ मारा था, शीशे पर मारा। शीशा टूटकर जमीन पर गिर गया।

    रियांश नीचे बैठ गया और शीशे के टुकड़ों को अपने हाथों में लेकर मुट्ठी मियाँची। फिर उसने अपना हाथ दोबारा दीवार पर मारना शुरू कर दिया। रियांश का हाथ बिल्कुल खून में लाल हो गया था, लेकिन वह नहीं रुका।

    एकदम से रियांश ने अपना हाथ बहुत जोर से दीवार पर मारा जिससे दीवार में दरार आ गई। रियांश ने अपना हाथ देखा और मुस्कुराया। फिर बेड से टेक लगाकर नीचे बैठ गया और वहाँ पर पड़े शीशे के टुकड़ों को अपने हाथ में लेकर दबाने लगा।

    उसी समय, मेंशन के बाहर एक कार आई। उसमें से अर्जुन गाना गाते हुए निकला और मेंशन के अंदर पहुँचा।

    वहाँ काम कर रहा एक नौकर अर्जुन को देखकर बोला, "रियांश को मत बताना कि मैं घर आ गया हूँ। मैं उसे सरप्राइज़ देना चाहता हूँ।"
    "जी सर, पर वो तो अपने रूम में हैं।"

    "क्या? अपने रूम में? लेकिन मैंने तो सुना था आज उसकी बहुत इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग है। तो वो यहाँ पर क्या कर रहा है?"
    "सर, झुक कर बोला, पता नहीं सर। अभी थोड़ी देर पहले सर बहुत गुस्से में बाहर से आए थे और सीधा अपने कमरे में चले गए।"

    अर्जुन नौकर की बात सुनकर बोला, "ठीक है, तुम जाओ। मैं देखता हूँ।" यह कहकर वह रियांश के कमरे के बाहर आकर खड़ा हो गया।

    उसने दरवाज़ा खोलकर जैसे ही अंदर देखा, रियांश को देखकर उसकी आँखें बड़ी हो गईं। वह जल्दी से रियांश के पास आया और उसका हाथ पकड़कर बोला, "रियांश! तू यह क्या कर रहा है? पागल तो नहीं हो गया? हाथ खोल अपना! यह देख, कितना खून निकल रहा है! हाथ खोल!"

    लेकिन रियांश ने अपना हाथ नहीं खोला और बोला, "नहीं खोलूँगा! क्योंकि आज इसी हाथ ने मेरी टाइगर को थप्पड़ मारा है। और जो मेरी टाइगर को तकलीफ पहुँचाएगा, उसको सज़ा मिलेगी ही, चाहे वो मैं ही क्यों ना हूँ।"

    अर्जुन रियांश की बात सुनकर बोला, "तू यह क्या कह रहा है? कौन टाइगर? और किसको थप्पड़ मारा है तूने? तू पहले अपना हाथ खोल। देख कितना खून निकल रहा है। बाद में हम इस बारे में बैठकर बात करते हैं।"

    रियांश अर्जुन की बात सुनकर हँसते हुए बोला, "बात करने के लिए टाइगर नहीं है ना! मैंने उसको थप्पड़ मारा, वो भी सबके सामने! उसको कितनी तकलीफ हुई होगी! मैंने अपनी टाइगर को थप्पड़ मारा, और इसी हाथ से..." यह कहकर रियांश ने अपना हाथ अर्जुन के हाथ से छुड़ाया।

    क्रमशः

  • 19. Ziddi ishq: A love story - Chapter 19

    Words: 647

    Estimated Reading Time: 4 min

    और बोला, "मैंने इसी हाथ से अपनी टाइगर को थप्पड़ मारा है।" उसकी आँखों में आँसू निकलने लगे। यह कहकर उसने अपना वही हाथ जमीन पर बहुत ज़ोर से मारा।

    अर्जुन, जिसकी आँखों में आँसू आ गए थे रियांश को देखकर, और रियांश के ऐसे हाथ मारने से, उसने जल्दी से रियांश का हाथ पकड़ा और बोला, "रियांश, यह क्या कर रहा है?"

    अर्जुन ने रियांश का हाथ देखा, जिसमें अब और ज़्यादा खून निकल रहा था, और रियांश को घूरते हुए बोला, "यह क्या हरकत कर रहा है? रियांश, पागल हो गया है क्या? तू अपने आप को क्यों तकलीफ पहुँचा रहा है?"

    "क्योंकि मैंने अपनी टाइगर को तकलीफ पहुँचाई है, तो मुझे तो तकलीफ होनी चाहिए।"

    "अब यह 'टाइगर-टाइगर' नाम सुनकर मेरा दिमाग खराब हो गया। कौन है आखिर यह टाइगर? कुछ दिनों के लिए मैं बाहर गया था, तूने तो मुझे कुछ भी नहीं बताया। अब तुझे उसी टाइगर की कसम है, अपना हाथ खोल।"

    अर्जुन के कसम देने से उसने अपना हाथ खोल दिया। अर्जुन ने जल्दी से रियांश के हाथों में से जो काँच के टुकड़े थे, वे साफ़ किए और फर्स्ट-एड बॉक्स लाकर रियांश के हाथ पर पट्टी बाँधने लगा।

    अर्जुन ने रियांश का हाथ पट्टी से बाँध दिया और फिर रियांश की तरफ़ देखकर बोला, "अब मुझे बता, तू किस टाइगर की बात कर रहा है? और तूने किसको थप्पड़ मारा है? और क्यों?"

    रियांश अर्जुन की बात सुनकर खड़ा हुआ और बालकनी में आकर खड़ा हो गया। अर्जुन भी रियांश के पीछे जाकर बालकनी में खड़ा हो गया। रियांश आसमान को देखकर बोला, "मोहब्बत हो गई है मुझे। और वो भी बहुत शिद्दत से। मेरी टाइगर से।"

    अर्जुन रियांश की बात सुनकर बहुत ज़्यादा चौंक गया और हकलाते हुए बोला, "क्या? मोहब्बत? वो भी तुझे? मुझे विश्वास नहीं हो रहा। तू मज़ाक कर रहा है ना, मुझे?"

    रियांश अर्जुन की बात सुनकर खूब जोर-जोर से हँसने लगा और बोला, "हाँ, तुझे मेरी मोहब्बत पर यकीन नहीं हो रहा ना? कि मैं किसी से मोहब्बत कर सकता हूँ?"

    "मुझे भी नहीं होता अगर टाइगर मुझसे दूर नहीं गई होती। और कमबख्त यह दिल..." यह कहकर रियांश ने अपने हाथ सीने पर रखकर और आँखें बंद करके बोला, "इस दिल ने यकीन दिलाने की हर कोशिश की।"

    "कि मुझे मोहब्बत हो गई है। लेकिन मैं हर बार दिल की नहीं, दिमाग की सुनता रहा। पर जिद्दी दिल बाज़ नहीं आया और कोशिश करता रहा, जिसकी वजह से मैं अपने दिल के आगे हर गया।"

    "मैं हर गया दिल से और अपनी टाइगर से। और ना ही मैं उसके बिना जी सकता हूँ, ना ही रह सकता हूँ। मुझे कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ़ अपनी टाइगर के अलावा। मैं उसको बहुत खुश रखूँगा।"

    "दुनिया की हर खुशी दूँगा। जो चाहेगी, वो लाकर दूँगा। वो जैसा चाहेगी, मैं वैसा रहूँगा। यह सब छोड़ दूँगा। एक आम इंसान की तरह ज़िन्दगी जीऊँगा।" यह कहते हुए रियांश की आँखों में आँसू बहने लगे।

    "मैंने यह सब टाइगर से कहा, लेकिन तुझे पता है वो क्या बोली?" यह बोलकर रियांश पीछे मुड़ा और अर्जुन की तरफ़ देखकर, आँखों में आँसू लाकर बोला, "तुझे पता है..."

    "वो क्या बोली? कि मुझसे नफ़रत करती है। वो मेरे जैसे बेदर्द इंसान के साथ नहीं रह सकती। उसको मेरे साथ रहने से अच्छा मरना अच्छा लगता है।"

    "अर्जुन, तू ही बता, इसमें मेरी गलती है? क्या मैं ऐसा हूँ? जब मुझे मोहब्बत के बारे में नहीं पता, लोगों के दर्द, तकलीफ़ के बारे में नहीं पता, वो कैसा फील करते हैं..."

    "मैंने तो जबसे होश संभाला है, तब से मुझे लोगों से कोई मतलब नहीं था, चाहे वो मेरी वजह से कितनी भी तकलीफ़ में क्यों ना हो, मुझे उनसे कोई मतलब नहीं है। तो फिर तू ही बता, इसमें मेरा क्या क़सूर है? हाँ, मैं जानता हूँ, मैंने जो टाइगर के साथ किया, वो बहुत-बहुत गलत है। मैं उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ।"

    to be,,,,continue

  • 20. Ziddi ishq: A love story - Chapter 20

    Words: 606

    Estimated Reading Time: 4 min

    लेकिन यह कहते हुए रियांश की आँखों में आँसू आने लगे। "बस वो मुझे छोड़कर ना जाए, मेरे साथ ही रहे। जैसी भी सजा देनी हो, वो मेरे साथ रहकर दे। लेकिन दूर न जाए।" इतना ही उसने माँगा था उससे। लेकिन वो मुझसे बहुत नफ़रत करती है। मेरी गलती की वजह से वो मुझसे इतनी नफ़रत करती है।

    और अब तो मैंने उसको थप्पड़ भी मार दिया। अब तो टाइगर मुझे देखना भी पसंद नहीं करेगी। मैं क्या करूँ यार? मैं नहीं रह सकता उसके बिना। मैं मर जाऊँगा यार, मर जाऊँगा।

    अर्जून ने जब रियांश को रोते देखा, तो एकदम से आकर रियांश के गले लग गया। रियांश, अर्जून के गले लगते हुए, रोते हुए बोला, "क्या मैं इतना बुरा हूँ कि टाइगर मुझसे इतनी नफ़रत करे कि मेरे साथ रहने से अच्छा वो मरना चाहती है?" अर्जून ने पहली दफ़ा रियांश को इस तरह टूटा हुआ और तकलीफ में देखा था। अर्जुन, रियांश की बात सुनकर, आँखों में नमी लाते हुए बोला, "तू बुरा नहीं है। तू तो बहुत अच्छा है। मुझे पता है ना? क्योंकि मैं तेरे साथ बचपन से हूँ। वो लोग नहीं जानते तेरे बारे में। तू मुझे बता, कौन है वो जिसके बारे में तू बात कर रहा है? मैं उससे बात करूँगा।"

    अर्जुन की बात सुनकर रियांश अर्जून से अलग हुआ और पीछे पलटकर खड़ा हो गया। वो बोला, "वो सब लड़कियों से अलग है। मैंने बहुत सी लड़कियों को देखा है, लेकिन टाइगर जैसी कोई नहीं देखी।" फिर अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए बोला, "तुझे पता है, लोग मुझे कितने डरते हैं? मेरे सामने कुछ भी बोलने से अब, चाहे वो लड़की हो या लड़का, कभी मेरे सामने कुछ नहीं बोलते। लेकिन एक वो है जो मेरे सामने मेरी बुराई करती है, बिल्कुल नहीं डरती।"

    अर्जुन रियांश की बात सुनकर बोला, "हाँ, और सारी लड़कियाँ तुझे शादी करने के लिए मर रही हैं। अगर तू कह देगा ना कि तुझे शादी करनी है, लाखों लड़कियाँ तेरे सामने आकर खड़ी हो जाएँगी।" रियांश हँसता हुआ बोला, "यही तो बात है! वो इन सब लड़कियों से अलग है। उसकी क्योंकि वो मुझसे शादी नहीं करने के लिए मरने को तैयार है। उसने कहा कि तुमसे शादी करने से अच्छा मैं मर जाऊँ।"

    अर्जुन बोला, "लगता है वो लड़की अच्छे से जानती नहीं है, तभी ऐसे कह रही है।" रियांश बोला, "जानती भी होगी तब भी नहीं करेगी, क्योंकि मैंने उसकी आँखों में अपने लिए नफ़रत देखी है। जो काम नहीं होगी। और मुझे उसकी इसी नफ़रत को कम करना है।"

    अर्जुन बोला, "ठीक है, तू नफ़रत कम कर, लेकिन जैसा तू कर रहा है, लोगों को और ज़्यादा तकलीफ़ देकर, और ज़्यादा बेदर्द बन गया है। तू उससे उसकी नफ़रत कम नहीं करेगा, और ज़्यादा बढ़ाएगा। इसलिए तुझे उसके सामने अपनी इमेज अच्छी बनानी होगी। जो तू लोगों को तकलीफ़ दे रहा है, उसको बंद कर देना। सबके साथ अच्छा कर। क्या पता उसके दिल में जो नफ़रत है, वहीं काम हो जाए।"

    तुझे इस तरह बदले हुए देखकर अर्जुन की बात सुनकर रियांश पीछे पलटा और उसकी आँखों में जुनून था। बोला, "मैं चाहे कितना भी अच्छा बन जाऊँ, वो मुझे कभी नहीं अपनाएगी। मैं उसको इतनी अच्छी तरह से जान गया हूँ जितनी अच्छी तरह से वो खुद भी नहीं जानती। लेकिन अगर मैं ऐसा ही करता रहा, बहुत ज़्यादा लोगों को तकलीफ देता रहा, तो वो मेरे पास ज़रूर आएगी, क्योंकि उसको लोगों को तकलीफ़ में देखना पसंद नहीं है। और वो ज़रूर मदद करेगी उन लोगों की, जैसे आज की।"

    रियांश की बात सुनकर अर्जुन कन्फ़्यूज़ होकर बोला, "मेरे तेरी बात समझ नहीं आती। तू चाहता क्या है आखिर?"

    To be continued...