देव रॉय सेन एक हैंडसम और अरोन्गेट इंसान ! जो अपने प्यार को ढूंढ रहा था दो सालो से ! जब उसे उसका प्यार नहीं मिला तो उसने पक्का किया कि वो अपने प्यार की यादों के सहारे ही जिंदगी जियेगा ! लेकिन उसकी किस्मत ने आखिर मिला हि दिया उसके प्यार से ! वही उसका... देव रॉय सेन एक हैंडसम और अरोन्गेट इंसान ! जो अपने प्यार को ढूंढ रहा था दो सालो से ! जब उसे उसका प्यार नहीं मिला तो उसने पक्का किया कि वो अपने प्यार की यादों के सहारे ही जिंदगी जियेगा ! लेकिन उसकी किस्मत ने आखिर मिला हि दिया उसके प्यार से ! वही उसका प्यार काशवी जो पूरी तरह से उसे भूल चूकी है उसे ! आख़िर कैसे याद दिलायेगा देव काशवी को अपना प्यार ! क्या अपनी खोई हुई यादो में काशवी अपना पायेगी देव को ! या होगी एक नई शुरूआत ? कैसा होगा ऐसे रिश्ते अंजाम जहां एक तरफ प्यार और इंतजार है और दूसरी तरफ नई शुरुआत ! जानने के लिए पढिये...... you are my love....!
Kashawi chudhary
Heroine
Dev roy sen
Hero
Page 1 of 11
मुंबई
सुबह का समय था। रेडियो पर एक गाना चल रहा था, जिसकी धुन पर दो लड़कियाँ नाच रही थीं। तभी एक औरत आई और रेडियो बंद कर दिया। तभी उनमें से एक लड़की चिल्लाते हुए बोली, "ये क्या किया मां? हमारा स्टेप बस पूरा होने ही वाला था।"
इतना सुनते ही वह औरत चिल्लाते हुए बोली, "बंद करो तुम दोनों! अकल नहीं है तुम दोनों को!"
"जी हां, ये हैं कावी और नंदिनी," और उन पर चिल्लाती हुई उनकी माँ!
दोनों अपनी माँ की बात सुनकर एक साथ पलटीं और एक साथ बोलीं, "नहीं!"
उनकी माँ चिल्लाते हुए बोली, "मुझे कुछ नहीं बोलना, जल्दी जाओ और तैयार होकर आओ।"
कावी जल्दबाजी में जल्दी से बाथरूम चली गई, और थोड़ी देर बाद आई और दर्पण के सामने आकर तैयार होने लगी।
कावी, आयु 21 वर्ष, ऊँचाई 5.1, काली और बड़ी-बड़ी आँखें, कमर तक लम्बे काले लेकिन थोड़े लहरी बाल जो उसके छोटे चेहरे पर एकदम घने लगते हैं, होंठों पर लिप बाम, अपने बालों को सिर्फ़ पिनअप किया हुआ था, सलवार सूट में एकदम परी जैसी लग रही थी।
अपने आप को देखते हुए एक छोटी सी काली बिंदी लगाई।
तभी पीछे से आवाज़ आई, "बस कर, कितना देखेगी खुद को?" पीछे से उसकी बड़ी बहन नंदिनी की आवाज़ आई।
खुद को आईने में देखते हुए, कावी बोली, "जब तक मन न भर जाए तब तक!"
उसकी इस बात पर नंदिनी उसे घूरने लगी। खुद को घूरता हुआ पाकर कावी पीछे पलटी और देखती है कि नंदिनी उसी को अपनी बड़ी आँखों से घूर रही है।
अपनी बहन को गुस्से में देखकर, कावी भी घूरने लगी। थोड़ी देर बाद दोनों एकदम से हँसने लगीं, और एक-दूसरे को गले लगा लिया। कावी और नंदिनी दोनों ही बहुत खूबसूरत थीं। नंदिनी कावी से 2 साल बड़ी है।
नीचे आते ही फिर से उनकी माँ चिल्लाने लगी और दोनों उनकी नकल करने लगीं, "कितनी बार बोला है, जल्दी रेडी होकर नीचे आ जाओ! लेकिन कोई सुनता ही नहीं।" इतना कहकर दोनों हँसने लगीं।
जिससे रेखा जी एकदम चुप हो गईं। और वो दोनों को देखती हैं, जिससे वे खड़ी होकर एक-दूसरे को कुछ देर देखती हैं, फिर अपनी माँ को गले से लगा लेती हैं।
रेखा जी भी दोनों के गाल पर थपथपाती हैं, और उन दोनों को गले लगा लेती हैं।
क्योंकि रेखा जी को उनकी यह आदत अच्छे से पता थी कि वे दोनों किसी काम के लिए जाती थीं, तो ऐसा ही करती थीं, और आज उनका एग्ज़ाम है।
तीनों साथ में नाश्ता करने लगीं। नाश्ता करने के बाद रेखा जी उन्हें दोनों से भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए कहती हैं।
कावी के परिवार में सिर्फ़ ये तीन लोग ही हैं: रेखा जी (कावी की माँ), नंदिनी (उसकी बड़ी बहन)।
भगवान का आशीर्वाद लेकर दोनों बहनें कॉलेज के लिए निकल गईं।
और रेखा जी अपने काम पर जाने से पहले अपने कमरे में जाकर, एक तस्वीर के सामने कुछ देर खड़ी रहती हैं, फिर निकल जाती हैं।
कॉलेज में,
कावी और नंदिनी जल्दी-जल्दी कॉलेज पहुँचीं, क्योंकि आज उनकी प्रैक्टिकल की परीक्षा थी। दोनों जल्दी-जल्दी क्लास में जाती हैं और एग्ज़ाम देने लगती हैं।
थोड़ी देर बाद दोनों क्लासरूम से बाहर आती हैं। कॉलेज में कावी के दोस्त भी एग्ज़ाम के बाद मिलते हैं, और कैंटीन जाने लगते हैं। वे सब खुश थे, एक साथ और मस्ती में एक-दूसरे से कुछ बोल रहे थे।
नंदिनी की सिर्फ़ एक ही दोस्त है, लेकिन कावी के बहुत दोस्त हैं। कुछ खास दोस्त हैं, जैसे मान, निया, अमर (ये उसके बेस्ट फ्रेंड हैं) और अवंतिका (नंदिनी की)।
सब एक साथ बैठकर खा रहे थे, और एग्ज़ाम की बात भी कर रहे थे। इन सबके बीच कोई था जो कावी और नंदिनी को बुरी तरह घूर रहा था।
ये दोस्त अपने लगे हुए हैं, और उनकी माँ रेखा जी अपनी मुसीबत से लड़ रही है।
किड्स ऑर्फ़नेज में,
घर में तो अपनी बेटियों के साथ एकदम नॉर्मल रहने वाली रेखा जी यहाँ एकदम अलग ही रूप में रहती थीं: एकदम साहसी और खुददार, अपने उसूलों पर चलने वाली, उन्हीं की तरह उनकी बेटियाँ भी हैं, उसके बाद भी उनको एक डर था!
एक ऑफ़िस में,
एक आदमी एक आलीशान चेयर पर बैठे किसी को ऑर्डर देते हुए, "सुयश, किसी भी तरह हमें वो भूमि चाहिए। अगर हमें वो नहीं मिली तो हमारा बहुत ही नुकसान हो जाएगा। कुछ भी करो, लेकिन वो लेकर रहो!"
सुयश, "जी बॉस," बोलकर वहाँ से निकल जाता है।
और बाहर आकर अपने मन में बोलता है, "इनको वो बच्चों की ख़ुशी से फ़र्क नहीं पड़ता।" और कुछ सोचते हुए निकल जाता है! और ऑफिस के अंदर बैठा इंसान कुछ सोचते हुए मुस्कुराने लगता है, और किसी सोच में खो जाता है।
कहते हैं कि नाम कभी-कभी इंसान से मेल खाता है, ठीक इनकी ही तरह मेरी कहानी के हीरो देव रॉय सेन, 5.9 ऊँचाई, के हल्के भूरे बाल, लाइट ब्राउन आँखें, परफेक्ट बॉडी शेप। पूरी तरह से दिखने में परफेक्ट, जिसके सामने कोई भी अपना दिल हारने को मजबूर हो जाए!
लेकिन कहते हैं ना, चीज़ें हमेशा हमारी सोच से विपरीत होती हैं! ठीक वैसा ही यहाँ था।
आज परीक्षा और थोड़ा टाइम फ्रेंड्स के साथ निकालने के बाद कावी, नंदिनी और उनके दोस्त अपने-अपने घर निकल गए।
अवंतिका नंदिनी के साथ उसी के घर आ गई, कल की परीक्षा की तैयारी के लिए।
क्योंकि कल उनकी आखिरी परीक्षा थी, इसके बाद उनकी छुट्टियाँ शुरू होने वाली थीं। सब अपनी-अपनी तैयारी में हैं, क्योंकि इस वेकेशन में अवंतिका की शादी भी थी!
जिसमें सब जाने वाले थे, उसी हिसाब से तैयारी भी चल रही थी! लेकिन कावी की अपनी कुछ प्लानिंग चल रही थी!
शादी तो अवंतिका की होने वाली थी, लेकिन इस शादी में कावी के परिवार के साथ कुछ होने वाला था, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल था!
और कावी के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था। आइए देखते हैं क्या?
और देव को क्या चाहिए?
आगे के लिए बने रहिए मेरे साथ......
अवंतिका नंदिनी के साथ घर आई थी, कल की परीक्षा की तैयारी करने के लिए। दोनों नंदिनी के कमरे में बैठकर कुछ कर रही थीं। रात 10 बजे रेखा जी घर आईं। यह कोई नई बात नहीं थी; कई बार काम की वजह से वे आर्फ़नज में ही रुक जाती थीं, इसीलिए अपनी बेटियों को भी तैयार किया था। घर आकर सीधा अपने कमरे में गईं और दीवार पर लगी फ़ोटोज़ को देखते हुए बोलने लगीं,
"आपके किए की सज़ा हमें कभी भी भुगतनी पड़ सकती है।"
ऐसा सोचते हुए रेखा जी किसी यादों में खो गईं और उनके आँखों से आँसू बहने लगे। ये सब अनजान कावि और नंदिनी अवंतिका के साथ पढ़ाई में लगी हुई थीं। कुछ सोचते हुए अचानक कावि ने कहा,
"दीदी, कल हमारी आखिरी परीक्षा है ना? तो क्यों ना परीक्षा के बाद कहीं बाहर घूमने चलें!"
उसकी बात सुनकर नंदिनी और अवंतिका उसे देखने लगीं। थोड़ा सोचने के बाद दोनों ने हाँ बोला। लेकिन उसकी बात को रोककर नंदिनी ने कावि से बोला,
"क्या माँ से तू बात करेगी? क्योंकि माँ तेरी बात ना नहीं मान पाएंगी।"
इस बात पर कावि ने हाँ भर दी और पढ़ने लगी। कुछ देर बाद सब डाइनिंग टेबल पर खाना खाने लगे। उनका घर छोटा था, पर बहुत ही खूबसूरत तरीके से सजा हुआ था। घर नंदिनी और कावि ने मिलकर सजाया था। खाने के बाद सब सोने चले गए।
अगले दिन सुबह-सुबह दोनों बहनों का डांस और एक्सरसाइज़ करते देखकर रेखा जी ने दोनों से पूछा,
"ये क्या तुम दोनों नॉर्मल एक्सरसाइज़ छोड़कर डांस एक्सरसाइज़ क्यों करती हो?"
उस पर नंदिनी ने बोला,
"माँ, आपको पता है ऐसा करने से डांस और एक्सरसाइज़ दोनों हो जाते हैं साथ में!"
उनकी बात सुनकर रेखा जी सर हिला देती हैं और वापस से अपने काम में लग जाती हैं। नाश्ता करने के वक्त नंदिनी कावि को इशारा करती है, जिसे समझकर कावि रेखा जी से बोली,
"माँ, वो हमारा आज लास्ट एग्ज़ाम है, तो क्या...?"
कावि इतना ही पूछती है, तभी रेखा जी एकदम से बोलती हैं,
"घूमने जाना है।"
ये सुनते ही दोनों चौंक कर एक-दूसरे को देखने लगती हैं और मासूम सा मुँह बनाकर हाँ में सर हिला देती हैं। जिसके वजह से रेखा जी को हँसी आ जाती है। लेकिन थोड़ी देर बाद रेखा जी एकदम शांत हो जाती हैं। फिर कुछ देर में जल्दी घर आने का और फ़ोन चालू रखने का बोलकर हाँ बोल देती हैं। जिसे सुन दोनों एकदम से खुश हो जाती हैं और कॉलेज के लिए निकल जाती हैं।
उनके जाने के बाद रेखा जी एकदम परेशान हो जाती हैं। उनको पता था कि उनकी बेटियाँ मुसीबतों से लड़ सकती हैं। लेकिन कुछ ऐसा भी था जो उन्हें नहीं पता था। शायद यही वजह थी कि रेखा जी को उनके लिए थोड़ा डर था। थोड़ी देर बाद रेखा जी भी आर्फ़नज के लिए निकल पड़ीं। पहुँचकर उन्होंने देखा कि कुछ लोग उनके ऑफ़िस में आकर बैठे हैं। जिनको देखते ही उनका गुस्सा एकदम से बढ़ जाता है। तभी उनके साथ में से एक आगे आकर बोला,
"देखिए मिसेज़ रेखा सिन्हा, आप हमारी बात मान लीजिए, नहीं तो..."
उसने इतना ही बोला था कि रेखा जी बीच में बोल पड़ीं,
"नहीं तो बहुत बुरा होगा। I'm right, Mr. Suyesh!"
ये सुनते ही सुयेश ने बोला,
"तो फिर आप ही बताएँ, आपको क्या चाहिए?"
ये सुनते ही रेखा जी का पारा चढ़ गया और उन्होंने गुस्से में बोला,
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई...? " और चिल्लाकर बोलीं, "OUT!"
ये सुनकर सुयेश बोला,
"हमारे सर को आप अच्छे से जानती हैं और कुछ वजहें हैं जिस वजह से सर ने अभी तक कुछ नहीं किया है। मैं आपसे एक बार फिर बोल रहा हूँ, मान जाएँ, नहीं तो आपको पता है सर को अपनी चीज़ लेनी आती है। आखिर आप भी तो..."
इतना बोलकर वह रुक जाता है और चला जाता है। उसके जाते ही रेखा जी अपना सर पकड़कर बैठ जाती हैं। एक बार फिर उनके सामने सब घूमने लगता है और वे बेहोश हो जाती हैं। सबके चले जाने के बाद एक स्टाफ़ अंदर आता है। रेखा जी को बेहोश देखकर डर जाता है और आर्फ़नज के सारे स्टाफ़ को बुलाता है। आर्फ़नज का डॉक्टर भी आ जाता है और रेखा जी को चेक करके इंजेक्शन देता है। थोड़ी देर बाद रेखा जी को होश आ गया। अब तक सारे स्टाफ़ केबिन से बाहर चले गए। मौका देखकर डॉक्टर सौरव बोले,
"देखो रेखा, मैं सिर्फ़ यह का डॉक्टर नहीं, तुम्हारा दोस्त भी हूँ, वो भी एकदम करीबी। इसी वजह से बोल रहा हूँ, प्लीज़ नंदिनी और कावि को सब बता दो!"
ये सुनकर रेखा जी ने बोला,
"अभी सही वक्त नहीं है।"
इस पर डॉक्टर सौरव ने बोला,
"कहीं ज़्यादा देर ना हो जाए।"
ये सुनते ही रेखा जी चुप हो गईं।
कॉलेज में आज आखिरी परीक्षा थी, इसलिए सबके चेहरों पर कुछ ज़्यादा ही खुशी थी। ख़ासकर कावि के चेहरे पर, क्योंकि आज तक कहीं भी घूमना हो तो रेखा जी साथ में ही लेकर जाती थीं! पहली बार कावि और नंदिनी फ़्रेंड्स के साथ जाने वाली थीं, इसीलिए उसकी ज़्यादा एक्साइटमेंट थी। उसे खुश देखकर मान निया और अमर उसे घूरकर देखने लगे। अचानक से सबको मस्ती सूझी तो सब बोले,
"यार, आज बहुत ही थक गए, तो कहीं नहीं जाते हैं, सीधा घर जाएँ तो!"
सुनकर तो जैसे कावि को 100 वोल्ट का झटका ही लग गया और सबको बिचारी सी शक्ल बनाकर देखने लगी। इस पर सब ने एक साथ हँस दिया। कावि को तो जैसे सुकून मिला कि, "हैश, हम जाएँगे!" और फिर सब दिन का प्लान बनने लगा। लेकिन इन सबके बीच नंदिनी ने याद दिलाया कि उन्हें जल्दी घर भी आना है।
डॉक्टर सौरव की बात का जवाब तो रेखा जी ने दे दिया था, लेकिन वो भी सोच रही थीं कि कहीं ना कहीं वो सही कह रहे थे। अब उनको ये सोचना था कि आगे क्या करना है। कैसे अपने बच्चों को सच बताएँगी और कैसे आने वाली मुसीबत से लड़ेंगी, क्योंकि बहुत बड़ा झूठ बोल चुकी थीं वो ये सब से। तो क्या रेखा जी सच बताएँगी अपनी बेटी को? क्या इस बार भी छुपा लेंगी?
जानिए क्या होगा आगे... उसके लिए बने रहिए मेरे साथ और लाइक, कमेंट और शेयर ज़रूर करें...
3 ....dev nad kavi
ऑर्फ़नज में, रेखा जी डॉक्टर सौरव की बात को समझने की कोशिश कर रही थीं। ना जाने क्या होने वाला था, इसी कश्मकश में रेखा जी थीं!
सुयश ने एक बिल्डिंग के सामने कार रोकी। बिल्डिंग पर साफ़-साफ़ बड़े अक्षरों में लिखा था: "Roy sen pvt Ltd" सुयश बिल्डिंग के अंदर जाकर सीधा बॉस केबिन में गया और केबिन के सामने जाकर नॉक किया। अंदर से आवाज़ आई, "come in"
सुयश देव के सामने कुछ बोलता, उससे पहले ही देव बोला, "जवाब ना है।"
जिसे सुनकर सुयश ने एक बार फिर सर झुका दिया। एक बार फिर देव की आँखें लाल हो गईं। उसने अपना सर कुर्सी से टिका लिया।
"और बिना कुछ बोले सुयश को जाने का इशारा किया, और खुद से बोला, 'क्यों आखिर क्यों और कब तक ऐसे रहना होगा!' फिर अपनी आँखें खोलकर गुस्से में बोला, 'बस और नहीं! अब वक्त आ गया है अपना हक लेने का!'"
कावी और नंदिनी दोस्तों के साथ घूमने के लिए निकल गए। सबसे पहले सब साथ में मंदिर गए। गुरुवार होने की वजह से मंदिर में थोड़ी भीड़ थी, इसलिए सब अलग-अलग हो गए। अवंतिका और नंदिनी साथ में, और मान, निया और अमर एक साथ हो गए।
कावी अलग हो गई। सब एक-दूसरे को कॉल करके मंदिर के बाहर मिलने को बोले।
थोड़ी देर बाद कावी तो बाहर आई, लेकिन बाकी सब नहीं आए थे। इसलिए कावी सबका इंतज़ार करने लगी।
तभी सामने से एक लड़का आया। उसकी उम्र लगभग 25 साल थी, लाइट ब्राउन आँखें, कैज़ुअल लुक, बालों को सेट किया हुआ था। कावी भी उसे देखती ही रह गई।
"अचानक ही वो लड़का कावी को कमर से पकड़ लेता है और एक हाथ कावी की गर्दन पर रखता है, और उसे किस करने लगता है। कावी के भी हाथ उसके बालों में चलने लगते हैं, इस बात से अंजान कि अभी वो लोग कहाँ खड़े हैं! दोनों अपनी ही दुनिया में खोए हुए हैं!"
तभी देव के कान में सुयश की आवाज़ आई। देव को होश आया, और वह हल्का सा मुस्कुरा दिया। जी हाँ, यह कोई और नहीं, देव रॉय सेन ही था।
कुछ देर पहले देव किसी काम से मंदिर के पास किसी ऑफ़िस में आया था, और वापस जा रहा था, लेकिन कोई फ़ाइल शायद ऑफ़िस में रह गई थी, जिस वजह से सुयश को लेने भेजा था।
अचानक देव की नज़र मंदिर के पास खड़ी कावी पर गई, और उसके मुँह से "मिष्टी" शब्द निकला।
सुयश की आवाज़ से होश में आने पर उसके मुँह से एक बार फिर "मिष्टी!" निकला।
जिसे सुनकर सुयश ने देव की नज़रों का पीछा किया, तो कावी को वहाँ खड़ी पाया। थोड़ी देर में सब मंदिर के बाहर आए, और जाने लगे।
देव तब तक कावी को देखता रहा, जब तक वह चली नहीं गई। उसके बाद देव ने भी ड्राइवर को इशारा किया, और वह निकल गया।
मंदिर के बाद सब शॉपिंग के लिए गए। क्योंकि सबको अवंतिका की शादी में भी जाना था, दो दिन के बाद सबको निकलना था। इसलिए सब अपनी-अपनी शॉपिंग में लग गए। कावी और नंदिनी ने अपने लिए अनारकली ड्रेस ली, जिसका बैक नेक थोड़ा डीप था। निया ने अपने लिए पलाज़ो सेट लिया, अमर और मान ने अपने लिए इंडो-वेस्टर्न कुर्ता लिया।
अवंतिका ने अपने लिए कुछ नहीं लिया, क्योंकि उसकी शादी के कपड़ों की तैयारी पहले ही उसके घर वाले कर रहे थे। उसके लिए वह छोटी-छोटी चीज़ें ले रही थी। सबकी शॉपिंग हो गई थी, और सब थक भी गए थे, इसलिए सब खाने के लिए रेस्टोरेंट चले गए।
ऑफ़िस में, देव ऑफ़िस आकर लैपटॉप में काम करने लगा। तभी लैपटॉप पर एक वीडियो लगा।
वीडियो कुछ इस तरह का था: "मंदिर के बाहर कावी किसी का इंतज़ार कर रही है। उसने एक येलो कलर की शिफ़ॉन कुर्ती पहनी है, जिसमें सामने से कट था, with white plazo, कानों में छोटे-छोटे झुमके, पिंक लिपस्टिक, उसके लहराते हलके वेवी बाल, साइड स्लिंग बैग, माथे पर छोटी सी प्यारी बिंदी, और काजल वाली आँखें और सबसे प्यारी उसकी स्माइल। और फिर से देव का उसके पास जाकर उसके कमर पर हाथ रखकर उसके होंठों पर किस करना। जैसे-जैसे किस कर रहे थे, उनकी किस और गहरी होती जा रही थी!"
तभी फिर से दरवाज़े पर नॉक हुआ, और सुयश को अंदर देखकर देव बोला, "मीटिंग की तैयारी हो गई है?"
सुयश ने जवाब दिया, "हाँ बॉस, हो गई।"
देव फिर बोला, "ओके, 2 दिन के बाद सारी मीटिंग पोस्टपोन कर दो 5 दिनों के लिए!"
इस पर सुयश बोला, "ओके बॉस!"
इतना बोलकर देव सुयश के साथ मीटिंग के लिए निकल गया। मीटिंग होटल की गड़बड़ी को लेकर थी।
देव को देखकर सब अपनी जगह से खड़े हो गए। देव ने सबको बैठने का इशारा किया। सब बैठ गए, और सुयश को स्टार्ट करने का ऑर्डर दिया। और प्रोजेक्टर ऑन हुआ। जैसे-जैसे प्रोजेक्टर चल रहा था, रूम का माहौल अलग ही होता जा रहा था।
देव ने चिल्लाकर बोला, "everyone out!" सिवाय Mr. Varma के!
देव की एक आवाज़ में सब निकल गए। अब तो Mr. Varma को पसीना आना शुरू हो गया!
देव बोला, "तो अब आप क्या कहेंगे? मुझे नहीं लगता कि आप कुछ बोलेंगे इस वक्त!"
तभी Mr. Varma घबराते हुए बोले, "माफ़ कर दीजिए!"
देव बोला, "माफ़ी वो क्या होता है!"
इतना बोलकर देव ने सुयश को देखा। सुयश Mr. Varma को लेकर चला गया। काफ़ी वक्त से सुयश देव के साथ काम करता था, इसलिए सुयश देव की बातों को आसानी से समझ जाता था। कभी-कभी तो बिना कहे भी!
सुयश के जाते ही देव बोला, "सब जानते हुए भी लोग गलती कैसे कर देते हैं। I will show you my real face and I will make sure it is not good for you," बोलकर वह भी निकल गया।
क्या करने वाला है देव, यह कोई नहीं जानता, सिवाय सुयश के!
इधर कावी, नंदिनी, अवंतिका, मान, निया, अमर भी घर वापस आ गए थे। रात 9 बजे रेखा जी घर आ गई थीं। आज वह ठीक नहीं लग रही थीं। नंदिनी खाना बना रही थी, क्योंकि सब यहीं से खाकर जाने वाले थे। "कावी ने रेखा जी को पानी दिया और वह भी नंदिनी की मदद के लिए किचन में चली गई थी।"
क्योंकि रेखा जी को भी मान, निया, अवंतिका और अमर अपनी माँ की तरह मानते थे। सब शॉपिंग की हुई चीज़ें देख रहे थे। तभी रेखा जी की नज़र एक बैग पर गई, वह उसे देखने वाली थी। तभी किचन से कावी भागती हुई आई, और रेखा जी के हाथ से वह बैग ले लिया। सब अचानक कावी के ऐसा करने पर चौंक गए।
आखिर क्यों किया कावी ने ऐसा और क्या थी वजह? ........
4. कावी की खुशी
सब हॉल में बैठकर रेखा जी को अपनी आज की खरीदारी और खाने के बारे में बता रहे थे। सब उसी में व्यस्त थे कि अचानक रेखा जी की नज़र बाजू में रखे शॉपिंग बैग पर गई। रेखा जी ने उसके बारे में पूछा तो अमर, मान और निया ने एक साथ बोला, "पता नहीं आंटी, ये बैग कावी का है। उसने हमें भी नहीं बताया इस बारे में!"
अंदर किचन में नंदिनी और कावी सब सुन रही थीं।
"अचानक वो रुक गईं और एक-दूसरे को देखने लगीं और भागकर बाहर आ गईं! और देखा कि रेखा जी बस बैग खोलने वाली थीं! तभी जल्दी से दोनों ने उनके हाथ से बैग ले लिया!"
इस तरह के अचानक हुए एक्शन से सब चौंक गए और एक-दूसरे को देखने लगे।
सबको इस तरह खुद को देखता पाकर नंदिनी ने बोला, "personal use का सामान है।" और कावी ने हाँ में सर हिला दिया।
"Personal use" का सामान सुनकर रेखा जी ने कुछ नहीं कहा। रेखा जी को सामान्य होते देख बाकी सब भी सामान्य हो गए और नंदिनी और कावी ने राहत की साँस ली।
थोड़ी देर तक सब ने चीजों को देखा।
फिर रेखा जी ने अवंतिका से पूछा, "बेटा, तुम्हारी तैयारी कैसी चल रही है?"
उस पर अवंतिका ने बोली, "आंटी, अच्छे से और लगभग हो भी गई है।"
अवंतिका की शादी उसके गाँव में होने वाली थी। इसलिए सब शादी के कुछ ही दिन पहले गाँव जाने वाले थे। और अवंतिका अपने दोस्तों के साथ ही जाने वाली थी। अवंतिका ने रेखा जी से पहले ही परमिशन ले ली थी कि नंदिनी और कावी उसके साथ जाएँगी।
रेखा जी ने अवंतिका से बोला, "बेटा, तुम्हारे मम्मा-पापा को तुम बता देना कि मैं तुम्हारी शादी के दिन ही आ पाऊँगी। Orphanage में मुझे काम है।"
रेखा जी की बात सुनकर अवंतिका हाँ में सर हिलाते हुए बोली, "ठीक है आंटी।"
तब तक नंदिनी और कावी ने खाने की मेज पर खाना लगा दिया था और सबको टेबल पर खाने के लिए आवाज भी दे दी थी।
सब हँसी-मजाक के साथ डिनर करने लगे। रेखा जी अपने बच्चों को खुश देखकर खुश थीं।
और उनको देखते हुए अपने मन में बोलीं, "अवंतिका की शादी के बाद वो उनसे अपनी बात करेंगी।" और फिर वो खाना खाने लगीं।
देव के ऑफिस का बेसमेंट
देव ने अपने ऑफिस की बिल्डिंग के नीचे ही दो फ्लोर और बनवाए थे, लेकिन वहाँ जाने का रास्ता सिर्फ देव और उसके कुछ आदमियों को ही मालूम था, और परमिशन भी।
Mr. Varma को कुर्सी पर काफी देर से बिठाकर रखा गया था। और ठीक उनके सामने देव बैठा था और उनको अपनी लाल आँखों से घूर रहा था।
कुछ देर बाद देव बोला, "क्यूँ?"
इस पर Mr. Varma बोले, "सर, प्लीज मुझे पैसे की ज़रूरत थी, प्लीज मुझे माफ कर दीजिए!"
उनकी बात सुनकर देव बोला, "लगता है मेरा डर चला गया है। अगर ज़रूरत थी तो कंपनी से ले लेते, चोरी नहीं करनी चाहिए थी!"
अब Mr. Varma को और भी डर लगने लगा। उन्हें पता था कि वो बचने वाले नहीं थे, और वो कुछ भी नहीं कर सकते थे।
देव ने अपने पीछे खड़े सुयश के कान में कुछ बोला। और सुयश ने अपने सामने खड़े आदमी को कुछ इशारा किया। थोड़ी देर बाद वो आदमी एक बड़ी सी थाली लेकर आया जो लाल रंग के कपड़े से ढका हुआ था।
Mr. Varma अपनी हैरान नज़रों से सब देख रहे थे। वो बॉडीगार्ड थाली को लाकर Mr. Varma के सामने रख दिया।
मिस्टर वर्मा को हैरान देखकर देव बोला, "कपड़ा हटाओ!"
तो बॉडीगार्ड ने थाली का कपड़ा हटाया। कपड़ा हटते ही Mr. Varma की आँखें बड़ी हो गईं। उस थाली में नोटों की गद्दी थी!
Mr. Varma को हैरान देखकर देव बोला, "तुम देव रॉय सेन से चीट कर रहे थे! इसीलिए ना किया ना? तो अब खाओ और जब तक ये खत्म न हो जाए तब तक खाओ!"
Mr. Varma देव को आँखें बड़ी करके देखने लगा।
देव जाते वक्त अपने आदमियों से बोला, "ये पूरा खत्म होना चाहिए और पानी मत देना इसे।" इतना बोलकर देव वहाँ से निकल गया और उसके पीछे सुयश भी।
कार में
सुयश ने हिम्मत करके पूछा, "सर, आपने..." इतना ही बोला कि देव बोला, "वो आज से चीट नहीं कर रहा था, बहुत वक्त से कर रहा था वो।" ये सुनकर सुयश आगे देखने लगा।
कुछ समय के बाद
देव की कार बड़े बंगले के सामने आकर रुकी। बॉडीगार्ड ने कार का दरवाजा खोला। देव कार से निकलकर सीधा अपने कमरे की तरफ चला गया। वो सीढ़ियों पर पाँव रखने वाला ही था कि तभी देव का फोन बजा। देव ने कॉल रिसीव किया और सामने वाले की बात सुनकर ड्राइवर को बोला, "गाड़ी निकलो!"
उसकी बात पर ड्राइवर ने गाड़ी निकाली और देव गाड़ी में बैठकर बोला, "मेंशन ले चलो, वो भी जल्दी।" ड्राइवर ने भी जल्दी से कार को मेंशन की तरफ ले लिया।
थोड़ी ही देर में कार मेंशन पहुँच गई। देव की कार को देखकर गार्ड्स जल्दी से गेट खोला।
मेंशन के एंट्रेंस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था: ROY SEN MANSION
मेंशन बहुत खूबसूरत था! मेंशन में जाने से पहले बहुत ही बड़ा सा गार्डन और फाउंटेन था। मेंशन को लाइट और डार्क दोनों के कॉम्बिनेशन के साथ डेकोरेट किया था। बाहर तो बाहर, अंदर भी मेंशन का थीम अट्रैक्टिव था।
देखने से ही लग रहा था कि लविश है। जो चीज चाहिए वो सब थी!
देव कार से निकलकर अंदर गया और देखा कि एक 70 साल का आदमी उसका ही इंतज़ार कर रहा था।
ये दिलीप रॉय सेन थे, देव के दादाजी। उनको देखकर देव जल्दी से उनके पास गया और पूछा, "माँ?"
जिसके जवाब में उन्होंने सिर्फ़ ऊपर की तरफ़ हाथ दिखाया। इसे समझकर देव जल्दी-जल्दी सीढ़ियों से ऊपर की तरफ़ जाने लगा और उसके पीछे-पीछे उसके दादाजी भी।
कावी का घर
खाना खाने के बाद सब अपने घर के लिए निकल गए।
अमर, मान और निया तो चले गए, लेकिन अवंतिका वहीं रुकी थी क्योंकि अगले दिन सबको अवंतिका के गाँव के लिए निकलना था। कावी ने नंदिनी से बोली, "दीदी, हम सब कब निकलेंगे?"
उसकी बात पर नंदिनी बोली, "पहले पैकिंग तो करो, तभी निकलेंगे ना? नहीं तो हम तो निकल जाएँगे और सामान यहीं पर रह जाएगा।" ये बोलकर सब हँसने लगे और पैकिंग भी करने लगे।
कावी बहुत खुश थी जाने के लिए। फटाफट पैकिंग करके सब सो गए।
आखिर देव क्यों अपनी माँ के लिए इतना परेशान था??????
5.... "वो आ गई क्या?"
देव जैसे-जैसे आगे जा रहा था, वैसे-वैसे उसे लग रहा था कि जो सोच रहा है, वो सच है! देव काफी समझदार और शांत इंसान था, अपने घरवालों की नज़रों से अलग एक और रूप था उसका। लेकिन वह अपनी माँ के काफी ज़्यादा क्लोज़ भी था।
कमरे तक पहुँचकर देव दरवाज़ा खोलने वाला था कि उसे अंदर से आवाज़ आई। जिसे सुनकर दिलीप रॉय सेन ने देव के कंधों पर हाथ रख दिया। देव ने पलटकर एक बार उनको देखा, फिर दरवाज़ा खोला और अंदर चला गया।
अंदर आकर उसने देखा एक औरत बेड से टिक कर बैठी थी और रो रही थी।
उस औरत को देखकर देव ने आवाज़ लगाई, "माँ, माँ सुनिए मैं हूँ!"
देव की आवाज़ सुनकर वो औरत ने सर उठाकर सामने देखा तो देव खड़ा था।
देव को देखते ही वो जल्दी से उसके पास आई और उसके गले लग गई। रोने की वजह से उसे हिचकी आने लगी थी। देव ने उसे गले से लगा लिया और उसके सर सहलाने लगा।
उस औरत ने सर उठाकर एक बार देव को देखा, फिर उससे पूछा, "वो आ गई क्या?"
फिर अपने हाथ से इशारा करते हुए पूछने लगी, "किधर है वो? उसे बुलाओ, मुझे मिलना है!"
औरत की बात सुनकर दिलीप रॉय सेन देव को देखने लगे, जैसे पूछ रहे हों, "अब क्या जवाब दोगे तुम?"
थोड़ा रुककर देव, उस औरत को गले से लगते हुए बोला, "वो आ गई है, लेकिन आप अभी नहीं मिल सकती हैं।"
इस पर वो औरत देव को देखने लगी और हैरान होती हुई बोली, "क्यों नहीं मिल सकती मैं उसको?"
ऐसे खुद को देखता हुआ पाकर देव ने बोला, "अभी आपकी तबीयत खराब है ना, तो आपको ऐसे देखेंगी तो उसको कितना बुरा लगेगा।"
देव की बात सुनकर उस औरत ने थोड़ी देर देव को देखा, फिर हाँ में सर हिलाते हुए बोली, "हाँ, ठीक है, मैं ठीक होकर मिल लूँगी उसे।" और फिर से देव के गले लग गई।
थोड़ी देर बाद देव को फील हुआ कि वो वैसे ही उसकी बाहों में सो गई है। जब देव ने देखा तो सच में सो गई थी। देव ने पहले उसे बिस्तर पर सुलाया और कम्बल से कवर करके थोड़ी देर रुका, फिर बाहर आ गया।
और वापस अपने बंगले पर जाने के लिए निकल रहा था। देव को जाते हुए देखकर दिलीप रॉय सेन देव से बोले, "तुमने मान्यता बहू से झूठ क्यों बोला कि वो मिल गई है? तुमने ये सही नहीं किया।"
इस पर देव ने कुछ नहीं कहा। देव को कुछ ना कहता पाकर दिलीप रॉय सेन गुस्से से बोले, "देव, मैंने तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ, तुम जवाब दोगे!" अपने दादाजी की बात सुनकर अब देव को गुस्सा आने लगा था। और गुस्से में बोला, "सिर्फ आप लोगों की वजह से!"
ये सुनकर दिलीप रॉय सेन कुछ पल के लिए देव को देखने लगे, फिर कुछ सोचकर वो बोले, "देव, देखो मैं जानता हूँ, जो हुआ था उससे ना सिर्फ मान्यता बहू को सदमा लगा बल्कि तुम्हें भी बहुत तकलीफ हुई है!"
("जो औरत को देव ने शांत किया था वो देव की माँ ही थी, मान्यता रॉय सेन।")
अपने दादाजी की बात सुनकर देव बोला, "चलो अच्छा है, आपको पता तो है, नहीं तो मुझे ऐसा लगा था कि अपनी इज़्ज़त के चक्कर में आप भूल गए कि आपने कुछ ऐसा भी किया है जो आपको नहीं करना चाहिए था।"
अपने पोते के मुँह से ये बात उन्हें किसी ताने जैसे लग रही थी! वो कुछ नहीं बोल पा रहे थे। उन्हें ऐसे देखकर देव ने तंज भरी मुस्कान दी और उधर से निकल गया।
कुछ देर बाद, देव अपने बंगले पर था। अपने कमरे में जाकर देव पीठ के बल बेड पर लेट गया और आँखें बंद करके कुछ सोचने लगा। थोड़ी देर बाद उसे कुछ सुनाई देने लगा।
"चाँद तारों की रात में झूले शमा लाल रे!"
"राधारानी के गीत पे झुमके नाचे शामा लाल रे!"
"गया पहले राधा ने या गया पहले शाम ने कोई ना जाने ये!"
"चाँद तारों की रात में झूमे शमा लाल रे!"
"बंसुरी की धुन पे नाचे देखो राधेश्याम से.....!"
ये सुनते ही एक पल के लिए देव के सख्त चेहरे पर स्माइल आ गई और उसकी आँखें खुल गईं। (और उधर कावि भी यही गुनगुना रही थी।)
देव जल्दी गुस्सा नहीं होता था, लेकिन जब वो गुस्सा होता था, तो उसके गुस्से को संभाल पाना मुश्किल होता था। और वो कुछ खतरनाक कर देता था। लेकिन आम तौर पर वो शांत लेकिन कठोर रहता था, शांत पानी के जैसा था, जिसमें कितनी गहराई है किसी को नहीं पता!
कावि के घर,
कावि नींद में बार-बार गुनगुना रही थी, जिससे अवंतिका की नींद खराब हो गई। उसे उठा देख नंदिनी ने बोला, "तू सो जा, वो हमेशा ऐसे ही गुनगुनाती है।"
ये सुनकर अवंतिका ने बोला, "वो तो है, लेकिन कितना प्यार गाती है!"
तो उस पर नंदिनी बोली, "सुबह तुझे मालूम पड़ेगा! अब सो जा!"
नंदिनी की बात सुनकर अवंतिका फिर से सो गई। रेखा जी अपने कमरे में सो रही थीं। अनहोनी सामने देखा कि कोई कावि और नंदिनी को लेकर जा रहा है, लेकिन वो कुछ भी नहीं कर पा रही थी। वो हाथ जोड़ बार-बार उनको ना ले जाने की गुहार लगा रही थी, लेकिन उनकी बात कोई नहीं सुन रहा था। तब तक कावि और नंदिनी जा चुकी थीं!
तभी रेखा जी की नींद खुल गई। वो पसीने से पूरी भीग चुकी थी। रेखा जी ने अपने आप को ध्यान से देखा तो अपने आप को घर पर ही पाया।
जिससे उन्होंने राहत की साँस ली और खुद बोली, "कुछ भी हो मैं ऐसा नहीं होने दूँगी, चाहे जो हो जाए मैं उनको ऐसा नहीं करने दूँगी! उससे पहले कुछ हो, कुछ करना होगा वो भी जल्दी और फिर बच्चों को भी तो बचाना है, वो बच्चे भी तो मेरे ही बच्चे हैं, उनको मैं सड़क पर नहीं छोड़ सकती।" कुछ देर शांति से बैठकर सोचने के बाद रेखा जी लेट गई, लेकिन नींद उनकी आँखों में दूर तक नहीं थी!
कोई अपने दर्द में, तो कोई अपनी खुशी में, तो कोई अपने डर में था!
कल क्या होने वाला था, अब क्या करेगी रेखा जी??
और क्या करेगा देव और, क्या चाहिए देव की माँ को????
जानने के लिए पढ़िये मेरे साथ...
6. कावि का गाना
अगली सुबह सिन्हा हाउस में चहल-पहल थी। क्योंकि कावि और नंदिनी अवंतिका के गाँव जाने वाले थे। रेखा जी दोनों बहनों को हर एक चीज़ समझा रही थीं और उनके रास्ते में खाने के लिए खाना भी पैक कर रही थीं।
लगभग एक घंटे बाद वे निकलने वाले थे। अपनी माँ को परेशान देखकर कावि बोली, "माँ इतना परेशान मत होइए, हम संभाल लेंगे सच में।"
नंदिनी भी बोली, "हाँ माँ, चिंता मत कीजिए, सब हो जाएगा।"
तभी कावि बोली, "हाँ माँ, और वैसे भी आप भी तो आने वाली हो ना, तो फिर।"
कावि और नंदिनी के गाल पर हाथ रखकर रेखा जी बोलीं, "बात तो सही है, लेकिन क्या करूँ, चिंता तो होगी ना।"
इस पर दोनों एक साथ बोलीं, "Hmmm माँ!"
और काम में लग गईं। तभी दरवाज़े से अंदर आते हुए अमर, निया और मान की आवाज़ आई, "आंटी, हमारे लिए भी आपके हाथ का खाना।"
इस पर रेखा जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "क्यों नहीं, तुम सब भी तो मेरे बच्चे हो।" इस पर सब ने मिलकर एक साथ रेखा जी को गले लगा लिया। आज रेखा जी ने हाफ डे लिया था क्योंकि उन्हें अपने बच्चों को स्टेशन छोड़ने जाना था।
थोड़ी देर में सब स्टेशन के लिए निकल गए, और रेखा जी का माँ वाला सीन चालू था। रेखा जी सबको ट्रेन में बिठाकर, और फिर एक बार सबको समझाकर चली गईं।
थोड़ी देर बाद ट्रेन भी स्टेशन से निकल गई। ट्रेन के निकलते ही सब आपस में मस्ती करने लगे। तभी अवंतिका को कुछ याद आया और जल्दी से बोली, "कावि, ट्रेन का सफ़र लंबा चलने वाला है, तो प्लीज़ कुछ सुनाओ ना।"
यह सुनकर सब चौंककर अवंतिका को देखने लगे, खासकर नंदिनी। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि रात की बात का इतना असर होगा। फिर भी वह चुपचाप अवंतिका को देखने लगी क्योंकि वह देखना चाहती थी कि उसका क्या जवाब मिलेगा। कावि ने भी थोड़ी देर उसको गौर से देखा।
फिर बोली, "दी आप?"
कावि ने इतना ही कहा था कि अवंतिका फिर से बोली, "प्लीज़, प्लीज़, तुम कितना अच्छा गाती हो, प्लीज़ ना।"
यह सुनकर अब सब कावि को घूरने लगे। सबको ऐसे एक-दूसरे को घूरता पाकर अवंतिका ने पूछा, "क्या हुआ? सब ऐसे क्यों देख रहे हो? कुछ हुआ है क्या?"
तभी निया बोली, "दी, आप कावि को गाना गाने क्यों बोल रहे हो?"
तभी अमर बीच में बोला, "उसे गाना गाने नहीं आता।"
तभी मान ने बोला, "हाँ दी, उसको तो सुर का 'S' भी नहीं आता है।"
अवंतिका कुछ बोलने वाली थी, तभी नंदिनी ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया और बात बदलने के लिए बोली, "इसकी बातों पर ध्यान मत दो, लगता है शादी के चक्कर में दिमाग घूम गया है इसका।" और आँखों से ही उसे चुप रहने का इशारा किया। अवंतिका समझ गई थी, इसलिए उसने नंदिनी की बातों में हामी भर दी। नंदिनी की बात सुन सब चुप हो गए।
लेकिन कावि के दिमाग में कुछ रहा गया था। वह अपने मन में बोली, "अवंतिका दी ने ऐसा क्यों बोला? कुछ महीनों पहले भी मैंने माँ और दी को कुछ ऐसा बोला था, लेकिन उसके बाद उन्होंने इसका ज़िक्र ही नहीं किया, तो मेरे भी दिमाग से यह निकल गया। और आज फिर से अवंतिका दी ने ऐसा क्यों बोला? आखिर ऐसा क्या है जो माँ और दी छुपा रही हैं?"
ऐसे ही सोचते हुए कावि किसी याद में खो गई।
फ्लैशबैक:
कावि सुबह उठी तो नंदिनी को अपने पास न पाकर उसे ढूँढ़ते हुए नीचे आने लगी।
(उनका घर 3 BHK का छोटा बंगला जैसा था। नीचे की तरफ़ हॉल, किचन और एक कमरा था जिसमें रेखा जी रहती थीं और ऊपर की तरफ़ 2 कमरे, थोड़ा सा स्पेस था, और ऊपर हाफ ओपन छत थी। नंदिनी और कावि एक ही कमरे में रहती थीं, और एक कमरा खाली था!)
कावि और नंदिनी सुबह उठकर साथ में डांस एक्सरसाइज़ करती थीं, इसलिए कावि नंदिनी को ढूँढ़ते हुए रेखा जी के कमरे तक आ गई। लेकिन जब तक वह नंदिनी को आवाज़ लगा पाती, उसे पहले ही कुछ सुनाई दिया। नंदिनी अपनी माँ से बोली, "माँ, जब से मैं हॉस्टल से आई हूँ, आपसे एक बात बोलना चाहती हूँ।"
इस पर रेखा जी ने कहा, "हाँ, बोलो!"
तो नंदिनी बोली, "माँ, मैंने कावि को कभी सामने से गाते नहीं सुना, ना ही देखा, लेकिन कावि नींद में अक्सर कुछ गाती और गुनगुनाती है, क्यों माँ?"
नंदिनी की बातें सुनकर रेखा जी हाथ काम करते-करते रुक गईं और उन्होंने तुरंत नंदिनी को पकड़कर बोला, "कभी कुछ तुमने पूछा है उससे?"
तो नंदिनी बोली, "हाँ! लेकिन उसने बोला कि उसे गाना नहीं आता, और मैंने भी सिर्फ़ यही पूछा कि तुझे गाना आता है क्या?"
"उसने नहीं बोला तो फिर मैंने भी कुछ नहीं बोला।"
इस पर रेखा जी बोलीं, "देख नंदिनी, मुझे एक वादा कर, आज के बाद कभी भी उसे ऐसे नींद में गुनगुनाने वाली बात नहीं पूछेगी, और ध्यान देना कि वह इस बारे में ना सोचे, ठीक है? और इस बारे में आज के बाद मुझसे भी नहीं पूछेगी।"
तभी तेज आवाज़ से कावि का ध्यान टूटा। उसे ऐसे देखकर मान ने इशारे से पूछा, "क्या हुआ?" जिसके बदले में कावि सिर्फ़ ना में सर हिला देती है और सब मस्ती करने लगते हैं।
यहाँ पर तो यह सब चल रहा था।
दिलीप रॉय सेन सोफे पर बैठकर कल रात को जो कुछ भी हुआ था, उसके बारे में सोच रहे थे और परेशान हो रहे थे।
तभी उनके सामने कोई चाय का कप लाता है और बोलता है, "बाबा, आपकी चाय।" जिससे उनका ध्यान टूटा और उन्होंने सामने देखा, सामने दो औरतें थीं।
एक की उम्र लगभग 40 होगी और एक की लगभग 65 होगी। उनको देखते ही वे उनसे बोले, "आप सब कब आईं?" और उस उम्र वाली औरत से बोले, "आप हमारे लिए कुछ लाई हैं या नहीं?"
जिसे सुनकर वह बोली, "कैसी बात करते हैं आप?" सुहासिनी रॉय सेन मंदिर जाए और बिना अपने परिवार की दुआ मांगे वापस आ जाए।
तो यह है सुहासिनी रॉय सेन (देव की दादी जी)। उनकी बात सुनकर दूसरी औरत बोली, "जी, बाबा माँ सही कह रही है।"
उनकी बात सुनकर दिलीप रॉय सेन बोले, "वह तो तुम सही कह रही हो, प्रियंका बहू। यह है..." (प्रियंका रॉय सेन देव की चाची उर्फ काकी माँ)
सुहासिनी जी और प्रियंका जी अपने परिवार की सलामती की दुआ के लिए उज्जैन कालेश्वर मंदिर गई थीं, खास करके देव और मान्यता जी के लिए। थोड़ी देर और बैठकर सब बात करते हैं, फिर प्रियंका जी उठकर किचन में चलती जाती हैं लंच की तैयारी करने के लिए, और यह दादा जी और दादी माँ मान्यता जी के बारे में बात करने लगते हैं।
देव के कार्यालय में:
देव कुर्सी से सर टिकाकर बैठा था और सुयश भी सामने ही बैठा था। देव इस वक्त एकदम इमोशनलेस होकर बैठा था। फिर वह सुयश को देखकर बोला, "क्या सारी तैयारी हो गई है?"
इस पर सुयश बोला, "यस सर, हो गई। और सारी मीटिंग भी अगले हफ़्ते तक शिफ़्ट हो गई है।"
यह सुनकर देव बोला, "Good, और हवेली पर भी सभी को इस बारे में इन्फ़ॉर्म कर दो।"
"यस सर," बोलकर सुयश निकल गया और देव जाकर सोफ़े पर बैठ गया। और सोफ़े से सर टिका लिया और अजीब तरीके से स्माइल करने लगा।
क्या है देव की मुस्कान की वजह?
7 ....मान के दिल का हाल
ऑफिस में,
देव सोफ़े से सिर टिका कर अजीब सी मुस्कान लिए बैठा था। कुछ देर वैसे ही रहने के बाद देव ने आँखें खोलीं और बोला, "बस बहुत हो गया, अब तुम्हें अपनी सही जगह पर आना होगा, बहुत इंतज़ार किया, अब नहीं।"
और फिर कुछ सोचते हुए केबिन से निकल गया।
(देव अपने परिवार से बहुत प्यार करता था, लेकिन ज़रूरत पड़ी तो उससे बुरा कोई नहीं था, और फिर उसके गुस्से से कोई भी बच नहीं पाता था। देव अपने सिद्धांतों का एकदम पक्का था! देव ने अपने बिज़नेस जगत में भी एक नया मुकाम हासिल किया था। बिज़नेस उसे परिवार से ही मिला था, लेकिन उसने उसे और बड़ा किया था, फैमिली बिज़नेस के साथ अपना अलग से भी बिज़नेस और नाम बनाया था!)
जितना परफेक्ट वो अपने काम में था, उतना ही परफेक्ट वो अपने आप में था।
ऑफिस से निकल कर वो कार में बैठ गया और उसने किसी को कॉल किया और बोला, "मैं आ रहा हूँ।"
और वो मेंशन के लिए निकल गया।
थोड़ी देर बाद देव हवेली पहुँच गया, और मेंशन के अंदर जाकर उसने सामने अपनी दादी को देखा और जाकर उनके गले लग गया, और पूछा, "आप कब आईं आप?"
ये सुनकर उसकी दादी ने कहा, "सुबह आई हूँ और तेरे दादू बोल रहे थे कि वो तुझे मिल गई है।"
लेकिन वो तो उसके बीच में ही देव बोला, "ना दीदा आप कुछ मत बोलना, वो ज़िंदा है, और जल्द ही यहाँ भी आ जाएगी, मेरे पास, मेरे लिए, माँ के लिए।"
वो ये सब अपनी दीदा की तरफ पीठ करके बोल रहा था। उसकी बातों का मतलब ना समझते हुए दादी जी देव को अपनी तरफ करने के लिए कुछ बोलने वाली थीं, लेकिन देव को देखते हुए चुप हो गईं और बोलीं, "ठीक है, जा ले आ उसे और मैं तेरा इंतज़ार करूँगी।"
ये सुनकर देव छोटी सी मुस्कान करके अपने कमरे की तरफ चला गया। तभी प्रियंका जी सुहासिनी जी के सामने आकर बोलीं, "माँ, आपने ऐसा क्यों किया? यूँ फिर से उम्मीद दे दी।"
तभी बीच में दादा जी बोले, "और नहीं तो क्या? आप उसके पागलपन में साथ दे रही हैं?"
ये सब सुनकर सुहासिनी जी बोलीं, "आप ही बोलते हैं ना कि बिज़नेस में उसको कोई भी बीट नहीं कर सकता। जैसे आप बिज़नेस के मामले में उसे समझते हैं, वैसे ही मैं उसके दिल को समझती हूँ।"
इतना बोलकर वो चुप हो गईं। तो दादा जी और प्रियंका जी दादी जी को देखने लगे। उनको ऐसे देखकर दादी जी समझ गईं कि ये लोग क्या कहना चाहते हैं।
कुछ वक़्त रुककर दोनों के सामने होते हुए बोलीं, "आज इतने टाइम के बाद मैंने उसकी आँखों में अलग सा कुछ देखा, कुछ कह रही थीं, उसमें प्यार और दर्द दोनों दिखा मुझे।"
फिर थोड़ा रुककर प्रियंका जी की तरफ देखकर बोलीं, "तैयारी करो, देव की मिठाई आ रही है। मंदिर में दुर्गा माँ के आगे मिठाई और देव के नाम का दिया जलाओ, मेरी मन्नत पूरी होने वाली है।"
फिर अपने मन में बोली, "मेरे देव की खुशियाँ, मान्यता बहू की उम्मीद, मेरे घर की खुशी वापस आ रही है।"
शाम हो चली थी। देव पैकिंग करके तैयार था। अपना सामान लेकर बाहर आया, और सबसे मिलकर अपने घर की छत पर गया। ऊपर उसका हेलीकॉप्टर तैयार था।
थोड़ी देर में वो मेंशन से निकल गया।
वहीं ट्रेन में सब अपने-अपने में बिज़ी थे। कोई गाना गा रहा था, तो कोई चुटकुले सुना रहा था, और काव्या तो किताब पढ़ रही थी, और मान उसे परेशान कर रहा था।
परेशान होकर काव्या बोली, "देखो मान, अगर अब तुमने मुझे परेशान किया, तो मैं तुमसे बात नहीं करूँगी, फिर मनाते रहना, समझे?"
ये सुनकर तो मान एकदम से चौंक गया। सबको परेशान करने वाली, परेशान ना करने के लिए धमकी दे रही थी!
थोड़ी देर में,
सब खाना खाने लगे। रेखा जी ने सबकी पसंद का कुछ ना कुछ दिया था, क्योंकि सुबह तक पहुँचने वाले थे!
खाने के बाद सब अपनी-अपनी सीट पर सोने चले गए। काव्या की सीट नीचे ही थी, और उसके सामने वाली सीट मान की थी। काव्या अभी भी किताब पढ़ रही थी।
और ट्रेन में हवा की वजह से काव्या अपने बालों की छोटी सी चोटी कर रही थी, लेकिन आगे के कुछ बाल उसके गालों को छूकर लहरा रहे थे, जिसको मान एकटक देख रहा था।
जब काव्या ने ये नोटिस किया तो वो मान को देखकर बोली, "मान, ऐसे घूरना बंद करो, नहीं तो मुझे तुम्हारी नज़र लग जाएगी।"
ये सुनकर तो मान का मुँह ही बन गया। ये देखकर काव्या खिलखिलाकर हँस दी। मान तो बस प्यार भरी नज़रों से देखता ही रहा गया।
और ये सब ऊपर की सीट से अमर देख रहा था और अपने मन में बोला, "तू बता क्यों नहीं देता?" अपने दिल का हाल, कहीं और लेट ना हो जाए!
ये सोचते हुए वो सो गया। काव्या तो सो गई थी लेकिन मान उसे ही देख रहा था। काव्या की बड़ी पलकों वाली आँखें, उसका प्यारा सा चेहरा, उसके छोटे होंठ, छोटी सी प्यारी नाक, ट्रेन की रोशनी कम होने के बाद भी वो एकदम साफ़-साफ़ नज़र आ रही थी! उसने अपने आप को चादर से ढँका हुआ था, लेकिन उसके हाथ बाहर थे, उसके पतले से हाथ की उसकी पहली उंगली पर तिल जो बार-बार मान का ध्यान अपनी ओर खींच रहा था! उसका मन कर रहा था कि वो बस उसके हाथों में हाथ डालकर बस उसे ऐसे ही देखता रहे हमेशा। उसे प्यार करता रहे और मान अपने मन में बोला, "ना जाने वो दिन कब आएगा, जो मैं सोच रहा हूँ वो सच हो जाए।"
उतने में काव्या के ऊपर वाली सीट से निया बोली, "जब तू उसको बताएगा।" और मुस्कुराने लगी!
ये सुनते ही मान भी मुस्कुराने लगा और वो चादर ओढ़कर सो गया। लेकिन कोई था जिसकी आँखों से नींद गायब थी!
सुबह का वक़्त,
राजस्थान, उदयपुर,
अवंतिका के घर से पहले ही कुछ लोग आ गए थे! उनको लेने के लिए सब ट्रेन से उतारे गए, और अवंतिका के साथ घर के लिए निकल गए। अवंतिका के गाँव जाने के लिए स्टेशन से २ घंटे जितना और लगता था, इसलिए अवंतिका और उसके दोस्तों को रिसीव करने के लिए रिश्तेदार आ गए थे। सब विलेज के लिए निकल गए, और यहाँ देव भी राजस्थान पहुँच गया था। वो लग्ज़री होटल में रुका था, क्योंकि मीटिंग तो पोस्टपोन कर दी गई थी, लेकिन बाकी के काम तो करने ही थे!
अवंतिका का गाँव,
अवंतिका की फैमिली भी काफी रिच थी, और ("जिससे अवंतिका की शादी होने वाली वो भी रिच था! लेकिन वो राजस्थान में रहता था, इसलिए अवंतिका की दादी चाहती थी शादी उनके पुश्तैनी घर से हो, इसीलिए सब आए!") काव्या और नंदिनी जाकर अवंतिका के मम्मी-पापा के पाँव छुए, और उनके गले मिले। बाकी सब ने भी पाँव छुए और गले मिले और अंदर चले गए! कल से अवंतिका की हल्दी स्टार्ट होने वाली थी, इसलिए सब फटाफट फ्रेश होकर खाना खाया और कल की तैयारी में लग गए!
लेकिन कोई था जो स्टेशन से गाँव आने तक उसे लस्ट भरी नज़रों से घूर रहा था।
क्या होने वाला था आगे????
कैसा रहेगा हल्दी का दिन काव्या के लिए???
शाम के वक्त सब कल की हल्दी की रस्म की तैयारी कर रहे थे। वहीं पर सबको पता चला कि सुबह उनकी कुलदेवी की पूजा होगी, उसके बाद सब शादी के लिए वेन्यू के लिए निकलेंगे। वेन्यू एक हवेली थी।
वह हवेली लड़कों वालों की थी, इसलिए कल की तैयारी सब अभी कर रहे थे ताकि सुबह अच्छे से पूजा हो जाए और वेन्यू पर निकलने में प्रॉब्लम न हो। देखते-देखते ज़्यादातर तैयारी हो गई थी।
थोड़ी देर बाद सब खाना खाने लगे। कावी, नंदिनी, मान, लिया, अमर को खाना बहुत पसंद आया! क्योंकि उन लोगों ने पहली बार प्रॉपर राजस्थानी खाना खाया था। खाने के बाद सब सोने चले गए, कल सब का काफी व्यस्त दिन होने वाला था।
होटल में, देव अपने बिस्तर पर पीठ के बल लेटा था, और उसने आँखें बंद कर रखी थीं। वैसे ही वह कुछ सोचने लगा।
जन्माष्टमी महोत्सव के लिए कोलकाता यूनिवर्सिटी के ग्राउंड में कृष्ण मंडल द्वारा एक प्रोग्राम अरेंज किया गया था। रात बारह बजे पूजा होनी थी। उससे पहले कुछ कार्यक्रम रखे गए थे, जिसमें राधा-कृष्ण का नृत्य, कृष्ण लीला, और भी बहुत कुछ होने वाला था। वह ग्राउंड पर बहुत लोग जमा थे, बिलकुल मेले जैसा लग रहा था।
वहाँ पर चीफ गेस्ट के तौर पर Mr. Vinoy Roy Sen (देव के डैड) को बुलाया गया था। क्योंकि सबने Dev Roy Sen का नाम सुना तो था, लेकिन किसी ने भी उसे देखा नहीं था। लेकिन सब बहुत अच्छे से Vinoy Roy Sen को जानते थे क्योंकि वह राज्य के बड़े व्यवसायियों में से एक थे।
थोड़ी देर में प्रोग्राम चालू होने वाला था, लेकिन प्रोग्राम के प्रेसिडेंट और उनकी टीम के मेंबर्स गेट पर विनॉय रॉय सेन का इंतज़ार कर रहे थे।
थोड़ी देर में, कुछ गाड़ियाँ गेट पर आकर रुकीं। दो गाड़ी आगे और दो गाड़ी पीछे, और उसमें से कुछ सिक्योरिटी गार्ड निकले। और बीच की गाड़ी से निकले Mr. Vinoy Roy Sen। प्रोग्राम के अध्यक्ष और उनकी टीम ने चीफ गेस्ट का अच्छे से स्वागत किया, और कार्यक्रम शुरू हुआ।
रॉयस की सभी गाड़ियाँ पार्किंग में थीं। देव भी उनके साथ आया था, लेकिन वह वेलकम के वक्त बाहर नहीं आया और पार्किंग जाने से पहले वह कार से उतर गया। देव वहाँ सब देख रहा था। देव अभी कैज़ुअल वियर में था; वह बहुत हैंडसम लग रहा था। कुछ प्रोग्राम होने के बाद वहाँ पर डांस का नाम अनाउंस हुआ। स्टेज पर लाइट्स थोड़ी डिम हुईं और स्टेज पर शाम के वक्त का माहौल हो गया।
और कुछ लड़कियाँ वहाँ खड़ी थीं। और बीच में एक लड़का जो कृष्ण के गेटअप में था। तभी एक आवाज़ आई, और वह लड़के के पीछे से एक लड़की आई और गाने के साथ-साथ डांस करने लगी। वह लड़की आगे आई और गाने लगी।
"मोरे कान्हा कृष्ण गोपाला!"
"चांद तारों की रात में झूले श्याम लाल रे!"
"राधा रानी के गीत पर झूमें श्याम लाल रे!"
"बासुरी की धुन पर नाचे बृज के हर बाला रे!"
यह सुनते ही देव स्टेज के पास आ गया। वह काफी दूर था स्टेज से, इसलिए पास में लगे प्रोजेक्टर पर देखने लगा।
एक लड़की, जिसने राधा रानी का गेटअप लिया था—गोटेदार लहंगा, लंबी सी चोटी कुछ लटें गालों पर झूल रही थीं—बड़ी-बड़ी आँखों में गहरा काजल, आईलाइनर, होंठों पर लाल लिपस्टिक, माथे पर छोटी सी बिंदी, बालों में फूल और गजरा, गले में मोतियों का हार, उसकी गोरी-गोरी कलाईयों में भरी हुई चूड़ियाँ, कमर में कमरपट्टी, दुपट्टे को गुजराती स्टाइल में लिया था। नाचते वक्त अपने लहंगे को थोड़ा-थोड़ा उठा रही थी जिससे उसकी पायल और आलता दिख रहा था। कुल मिलाकर वह एकदम राधारानी जैसे दिख रही थी।
देव तो अपनी हल्की भूरी आँखों से बस उसको देखता ही रहा गया। तभी तालियों की आवाज़ से देव एकदम से होश में आया, और वह स्टेज की तरफ बढ़ गया। वह स्टेज के पास पहुँचा ही था कि घोषणा हुई।
"तो यह थी कावी चौधरी, जिन्होंने यह गाना गाया और डांस किया!" अभी भी स्टेज पर वह ग्रुप खड़े थे, और प्रेसिडेंट उन्हें बख्शीश दे रहे थे। और कावी ले रही थी, जिसे देव ने साफ-साफ देख लिया था।
उसके होठों पर एक मुस्कान आई और उसके मुँह से निकला—"मिस्टी... मेरी मिस्टी!"
देव बेड पर सोया था, और स्माइल करते हुए बोला—"मिस्टी... मेरी मिस्टी!"
थोड़ी देर बाद देव उठा और आईने के सामने खड़े होकर खुद को दर्पण में देखकर बोला—"See u soon my love,,,,Mishti! I'm coming only for you!!"
सुबह का वक्त। अवंतिका के घर पूजा शुरू हो गई थी। पूजा अवंतिका के हाथ से होने वाली थी, इसलिए एक साइड अवंतिका के मम्मी-पापा और एक साइड अवंतिका थीं। पंडित जी जैसा-जैसा बोल रहे थे, वैसा-वैसा वह सब कर रहे थे।
यह देखकर कावी ने अवंतिका की दादी से पूछा—"दादी, यह पूजा क्यों होती है, बताइए ना!"
तो दादी जी बोलीं—"बेटा, यह पूजा इसलिए होती है ताकि बेटी को हमारी कुलदेवी का आशीर्वाद मिल जाए, और उसकी ज़िंदगी में खुशियाँ ही खुशियाँ हों!"
यह सुन कावी खुश हो गई और अपने मन में बोली—"यह तो बहुत अच्छी बात, बड़ों के आशीर्वाद से सच में जीवन में सच में खुशियाँ आती हैं!"
फिर वह ध्यान से पूजा देखने और सुनने लगी। करीब डेढ़ घंटे के बाद पूजा पूरी हुई, और सब वेन्यू पर जाने के लिए तैयार होने लगे। और थोड़ी देर बाद सब निकल गए।
करीब आधे घंटे के बाद सब वेन्यू पर पहुँच गए। वेन्यू पर लड़के वाले पहले ही पहुँच गए थे और अवंतिका के घरवालों का इंतज़ार कर रहे थे।
कावी, नंदिनी, अवंतिका, मान, निया, अमर सब एक अलग गाड़ी में थे। वह लोग भी बाहर आए और देखा कि हवेली के बाहर एक बड़ा सा बोर्ड लगा है।
और उसमें अवंतिका और उसके मंगेतर की फोटो लगी थी, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था—अवंतिका वेड्स वीराज!
कावी को यह बहुत पसंद आया। वह मुस्कुराकर अंदर जाने लगी। वह जा ही रही थी कि तभी उसका दुपट्टा एक लड़के की घड़ी में लगकर अटक गया। कावी बिना वह लड़के को देखे अपना दुपट्टा छुड़ाकर "सॉरी" बोली और चली गई।
लेकिन उसे कुछ अजीब सा लगा, तो उसने पीछे पलटकर देखा, लेकिन वहाँ कोई भी नहीं था। फिर वह अपना सर हिलाकर निकल गई। उसके जाते ही वह लड़का पिलर से बाहर आया और स्माइल करने लगा।
कावी बाकी सभी के साथ अंदर की तरफ चली गई और हल्दी के लिए तैयार होने लगी। थोड़ी देर बाद कावी तैयार होकर सबके साथ नीचे आ ही रही थी कि तभी लाइट बंद हो गई।
यह रोशनी क्यों चली गई??? और आगे क्या होने वाला था...?
9. देव का सुकून और हल्दी
कावि रेडी होकर सबके साथ नीचे आ रही थी। सब हॉल में आकर जहाँ हल्दी हो रही थी वहाँ जा रहे थे। कावि, नंदिनी और अवंतिका के साथ ही आ रही थी, लेकिन सीढ़ियों के पास उसका दुपट्टा अटक गया।
"दीदी, आप लोग आगे चलिए, मैं आती हूँ।" वो नंदिनी से बोली।
इतना बोलकर वो दुपट्टा निकालने लगी। दुपट्टा निकालकर कावि जा ही रही थी कि किसी ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया। वो कुछ कर पाती, उससे पहले ही उसकी कमर को जोर से पकड़ लिया गया, और तभी लाइट्स भी चली गईं! जिससे कावि और घबरा गई और हाथ-पैर मारने लगी। उस आदमी ने कावि को एक स्तंभ से लगा दिया और उसके हाथों को एक हाथ से पकड़कर पीठ के साथ जोर से पकड़ लिया।
और एक हाथ से पीछे से उसकी गर्दन पकड़कर उसके होठों पर होठ रखकर किस करने लगा। कावि चिल्लाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वो कुछ भी नहीं कर पा रही थी। उसे एकदम कस के पकड़ा था। देव ने कुछ समय बाद वो आराम से किस करने लगा। कुछ समय बाद कावि को भी अच्छा लगने लगा। उसे ऐसा लगा कि वो उसे जानती है और उसे पहले भी महसूस किया है, इसलिए उसने अपने को ढीला छोड़ दिया।
कुछ वक्त बाद कावि को कुछ महसूस नहीं हुआ। तो उसने आँखें खोलीं और अँधेरे में देखा तो कोई ठीक सामने उसकी कमर पकड़ के खड़ा था! कावि तो जैसे ब्लैंक हो गई! क्योंकि लाइट्स ना होने की वजह से सामने वाला उसे नहीं दिख रहा था। लेकिन सामने वाले को कावि दिख रही थी। दोनों एक-दूसरे को छूकर महसूस कर रहे थे।
तभी लाइट्स आ गईं, और कावि ने आँखें खोलकर सामने देखा तो वहाँ कोई नहीं था। वो अपने मन में बोली, "कोई तो था, लेकिन कौन? उसे छूकर अपनापन क्यों लग रहा था? He kiss me और मैंने कुछ किया क्यों नहीं?"
सोचते हुए कावि चली गई। कावि के जाने के बाद देव स्तंभ से बाहर आया। हाँ, ये देव ही था! कावि के यहाँ आने के बाद जो कुछ भी हुआ था, वो देव ने ही किया था, चाहे कावि का दुपट्टा फँसना या अभी-अभी जो हुआ वो।
"कितने वक्त बाद थोड़ा सुकून मिला। बस कुछ दिन और, फिर मुझे मेरा पूरा सुकून मिल जाएगा।" देव खुश था और मन में बोला।
वो सोच रहा था कि तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। देव बिना देखे ही बोला, "थैंक्स विराज, मेरी हेल्प के लिए।"
देव की बात सुनकर विराज बोला, "क्या बात है! कोई थैंक्स बोल रहा है, लेकिन ये हुआ कैसे?"
देव ने घूरकर विराज को देखा तो विराज बोला, "ओके ओके, गुस्सा मत कर, चलते हैं, और भूल मत, मेरी भी हल्दी है।" और वो दोनों वहाँ से निकल गए।
बाहर हॉल के बीच में एक पर्दा था, एक साइड लड़के वाले, और दूसरी साइड लड़की वाले। अवंतिका की माँ उसे हल्दी लगाना शुरू करती है। उनके लगाने के बाद बाकी सब भी हल्दी लगाती हैं। पर्दा झलकने वाला था, इसलिए देव बहुत प्यार से कावि को देख रहा था।
(कुछ समय पहले, देव कॉरिडोर से जा रहा था, तभी उसे कमरे से कावि निकलते हुए दिखी। देव तो बस कावि को देखते ही रह गया। कावि ने येलो कलर का लहंगा पहना था, उसके ब्लाउज में साइड में छोटे-छोटे कट थे! जिसमें से उसका पेट दिख रहा था। कान में झुमके, माथे पर लाल बिंदी, और चेहरे पर थोड़ा सा मेकअप, और हाथों में लाल चूड़ियाँ, हाफ बालों को बनाया था, बस आगे और कुछ भी नहीं। देव को तो रहा ही नहीं जा रहा था, वो बस कावि को अपने करीब चाहता था और उसने कर भी लिया!)
विराज तो ध्यान से बस देव को ही देख रहा था! देव विराज को बिना देखे ही बोला, "मुझे घूरना बंद कर, सब गलत सोच रहे हैं।"
विराज ने सामने देखा। "तो सब उसे ही घूर रहे थे!"
इस पर विराज बोला, "सब तेरी वजह से हुआ।"
उस पर देव बोला, "तुझको मैं नहीं, बल्कि तू मुझे घूर रहा था, तो ऐसा होना ही था।"
इतना बोलकर उसने स्माइल पास कर दी। विराज तो ये सुनकर चुप हो गया।
कावि तो उसके साथ जो भी हुआ उसे सोचकर परेशान थी! उसे ऐसे परेशान देखकर नंदिनी बोली, "तुझे क्या हुआ? यहाँ आने के लिए तो सबसे ज़्यादा तू खुश थी, और अभी ऐसी खड़ी है गुमसुम।"
नंदिनी की बात पर कावि ने बोली, "ऐसा कुछ भी नहीं है, दीदी, आप ज़्यादा ही सोच रही हो।"
हल्दी की रस्म खत्म हो गई थी। अब सब नाच-गाना कर रहे थे! कावि का डांस पर्दे के वो पार भी दिख रहा था, क्योंकि पर्दा आर-पार वाला था!
देव तो कावि को प्यार भरी नज़रों से देख रहा था, लेकिन कोई था जो उसे लस्ट भरी नज़रों से देख रहा था!
सब हो जाने के बाद सब फ्रेश होने चले गए। अवंतिका की माँ ने नंदिनी को हर पल अवंतिका के साथ ही रहने को बोला था, क्योंकि हल्दी के बाद दुल्हन को अकेले नहीं छोड़ते हैं, और अवंतिका नंदिनी की बेस्ट फ्रेंड थी, इसलिए नंदिनी अवंतिका को लेकर उसके कमरे चली गई।
लेकिन मान, निया, अमर ने तो कुछ ज़्यादा ही हल्दी खेल ली थी। कावि के पूरे चेहरे पर हल्दी थी! इसलिए उसे फेस वॉश करना था! क्योंकि अब उसकी आँखों में जलन होने लगी थी, और जल्दी-जल्दी के चक्कर में कावि दूसरे रूम में चली गई।
जब वो वॉशरूम पहुँची, तभी फिर से लाइट्स ऑफ हो गईं!
"क्या बकवास है, यहाँ तो बार-बार लाइट ही चली जाती है!" कावि चिढ़ते हुए बोली।
फिर वो वॉश बेसिन ढूँढने लगी। तभी उसे किसी ने अपने पास खींच लिया, और कावि सीधे वो इंसान के सीने से जा लगी! तभी शॉवर भी ऑन हो गया!
वो इंसान ने कावि को कमर से पकड़ रखा था, और कावि के हाथ उसके कंधों पर थे। पानी में हल्दी घुल रही थी और वो इंसान अपने हाथों से कावि के गले और चेहरे को साफ कर रहा था। हल्दी पूरी साफ होने के बाद देव ने कावि को गर्दन के पीछे से पकड़ लिया। कावि कुछ कर पाती, उसके पहले ही देव ने उसके लिप पर अपने लिप रखकर किस करने लगा, और धीरे-धीरे उसे डीप किस करने लगा।
कावि भी उसी के साथ मदहोश हो रही थी, और उसके हाथ देव के बालों में चले गए। जब देव को एहसास हुआ कि कावि भी उसे किस कर रही है, तो वो भी खुश होकर किस करने लगा और धीरे-धीरे उसके कंधों पर किस करने लगा। देव का एक हाथ कावि के नेक पर था, तो दूसरा हाथ उसकी कमर पर, वो उसकी कमर पर सहला रहा था।
काफी देर तक ऐसे ही किस करने के बाद देव उसके कान के पास गया और बोला, "Happy haldi mishti, my love!"
ये सुनकर कावि अपने होश में आई और उसके तो होश ही उड़ गए! उसने देव को धक्का दिया, और कमरे से भाग गई!
कावि के कमरे से जाते ही रूम की रोशनी आ गई! देव वॉशरूम में खड़ा मुस्कुरा रहा था। वहीं कावि भागकर एक खाली रूम में आई और दरवाजे से टिककर रोने लगी! और उधर अवंतिका वॉशरूम में थी!! और नंदिनी चेयर पर बैठी थी। तभी उसका फोन बजा और सामने वाले की बात सुनकर नंदिनी की आँखों में आँसू आ गए, और उसका फोन छूटकर नीचे गिर गया!
आखिर किसका फोन आया था जिसकी वजह से नंदिनी रोने लगी? ???????????
10. ......तुम मेरी हो मिस्टी
देव के कमरे से बाहर आने के बाद कावी एक कमरे में चली गई, शायद वह कोई स्टोर रूम था। ज्यादा ध्यान न देते हुए उसने दरवाज़ा बंद किया और वहीं बैठकर रोने लगी।
"क्यों आखिरी क्यों? मैं खुद को रोक नहीं पाई। कोई ऐसे कैसे मुझे किस कर सकता है?"
थोड़ी देर रुककर उसने फिर कहा, "क्यों उसका छूना मुझे अच्छा लगा? मैं तो उसे जानती भी नहीं। ये क्या हो रहा है? और तो और मैं उसे देख भी नहीं पाई। अगर फिर हुआ तो मैं क्या करूंगी?"
यहाँ कावी ये सोच-सोचकर परेशान हो रही थी और रोये जा रही थी।
वहीं देव के कमरे में, देव आईने के सामने खड़ा था और खुद को देख रहा था। खुद को देखते हुए वह अपने मन में बोला, "बस कुछ दिन और, उसके बाद तुम मेरी हो जाओगी। मेरी नज़रों में तो तुम कब की मेरी हो चुकी हो, लेकिन अब तुम सबके सामने मेरी हो जाओगी, मिस्टी।" और फिर देव डेविल स्माइल करने लगा। आज उसकी आँखों में अलग ही खुमारी दिख रही थी।
अवंतिका के कमरे में, अवंतिका वॉशरूम से बाहर आई तो देखा कि नंदिनी बुत बनकर खड़ी है और उसका फ़ोन गिरा हुआ था। उसे ऐसे देखकर अवंतिका जल्दी से उसके पास आकर पूछी, "नंदू क्या हुआ तुझे? बोल ना, तू ऐसे क्यों खड़ी है?"
जब अवंतिका देखती है कि नंदिनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही है, तो वह नंदिनी को पकड़कर जोर से हिलाती है जिससे नंदिनी थोड़ा होश में आती है। और अवंतिका को देखते हुए टूटी-फूटी आवाज़ में बोलती है, "अवि, वो सूज़ सुजय का कॉल था! वो मिलना चाहता है।"
इतना बोलते ही उसकी आँखों से आँसू निकल जाते हैं। नंदिनी की बात सुनकर अवंतिका हैरानी से बोली, "नंदू? सुजय? वो भी इतने सालों बाद?"
नंदिनी सिर्फ़ "hmm" में सर हिला देती है।
अवंतिका फिर से पूछती है, "लेकिन क्यों नंदू? कुछ बोला?" उसके जवाब में नंदिनी ना में सर हिला देती है।
अवंतिका फिर से बोली, "अब क्या चाहिए? उसे ये कोई तरीका है क्या? एक साल बाद कॉल करो और बोलो मिलना है, लेकिन मिलना क्यों है? और वो ऐसा कैसे कर सकता है?"
अवंतिका बोले जा रही थी, लेकिन नंदिनी तो कहीं खो सी गई थी। बोलते हुए जब अवंतिका का ध्यान नंदिनी की तरफ़ चला जाता है, उसे ऐसे देखकर अवंतिका जल्दी से बोली, "तू ठीक है ना नंदू? माफ़ करना, मैं सिर्फ़ अपने में लगी पड़ी थी। तेरे बारे में तो सोचा ही नहीं।"
दोनों आगे कुछ बोलतीं, तभी दरवाज़े पर कोई खटखटाता है। नंदिनी जल्दी से आँसू पोछती है और नॉर्मल होते हुए दरवाज़ा खोलती है। देखा तो दरवाज़े पर अवंतिका की माँ खड़ी थीं। उनको देखकर दोनों ने एक बार एक-दूसरे को देखा, फिर उनको देखकर स्माइल कर दिया।
अवंतिका की माँ वो दोनों को देखते हुए अंदर आई और दोनों को देखते हुए बोली, "तुम दोनों भी ना एक से बढ़कर एक हो! मतलब इतना भी क्या बातों में लगना कि खाने का होश ही ना हो। कब सुधरोगी दोनों?"
बोलकर सीमा जी दोनों को घूरने लगती हैं।
बदले में दोनों हँस देती हैं। दोनों को ऐसे देखकर सीमा जी दोनों को डाँटते हुए बोली, "चलो अब खा लो।" और दोनों को खाने बिठा देती हैं।
और खुद भी सामने ही बैठ जाती हैं ताकि दोनों पूरा खाना ख़त्म करें। और दोनों ही चुपचाप खाना भी लगती हैं।
पूरा खाना खाने के बाद दोनों वॉशरूम से हैंड वॉश करके आती हैं और सीमा जी के सामने बैठकर बात करने लगती हैं।
तभी सीमा जी नंदिनी से बोलीं, "बेटा, तुम्हारी माँ कब तक आएगी?"
इस पर नंदिनी बोली, "आंटी, माँ ने कहा है कि वो शादी वाले दिन आ जाएगी।"
तो सीमा जी बोलीं, "ठीक है।"
थोड़ी देर बाद सीमा जी अवंतिका को आराम और नंदिनी को दोनों का ध्यान रखने को बोलकर चली जाती हैं। सीमा जी के जाने के बाद नंदिनी का चेहरा फिर से उतर गया।
लेकिन कुछ पल बाद वह खुद को नॉर्मल करते हुए अवंतिका से बोली, "काफ़ी देर हो गई है और कावी का कुछ पता नहीं। रुक, उसको कॉल करती हूँ।"
नंदिनी उसको कॉल लगाने वाली थी कि तभी अवंतिका नंदिनी को रोकते हुए बोली, "तू टेंस मत हो नंदू, वो दोस्तों के साथ होगी, आ जाएगी।"
अवंतिका की बात उसको भी सही लगी और वह खुद से बोली, "एच हाँ, बात तो सही है, और जाएगी भी कहाँ।"
स्टोर रूम में, कावी रोते-रोते वहीं सो गई थी। तकरीबन 3 घंटे बाद कावी की नींद खुली। उसने अपने आप को देखा और खुद को ठीक करके बाहर आई और अपने आप से पक्का किया कि वह अब इस बारे में ज़्यादा नहीं सोचेगी और फिर से उसे अपने करीब भी नहीं आने देगी।
लेकिन सवाल यह था कि कैसे? क्योंकि उसने तो उसका चेहरा ही नहीं देखा!
फिर कुछ सोचकर बोली, "पहले पता लगाना है, कम से कम कौन है यह तो पता करना ही पड़ेगा और उसको सबक सिखाना पड़ेगा ताकि वह वापस से कभी ऐसा न करे।"
फिर वह स्टोर रूम से नंदिनी के कमरे की तरफ़ जाने लगी। वहीं कॉरिडोर में एक इंसान कावी को जाते देख रहा था। वह अपनी हवस भरी नज़रों से कावी को देखते हुए बोला, "आज तो इसको अपना बना ही लूँगा, चाहे जो हो जाए।"
यह वह आदमी है जो कावी के आने के बाद से उसे वासना भरी नज़रों से घूर रहा था।
कावी कमरे में जाकर पहले फ्रेश होकर आई। उसने कपड़े चेंज कर लिए थे। इस वक़्त उसने अभी सिर्फ़ नॉर्मल सा सूट पहन रखा था। और आईने में देखते हुए बालों को सुलझा रही थी।
तभी निया आई और उसे पीछे से पकड़कर बोली, "ओए beatifull, कहाँ थी अब तक? हम कब से तुझको ढूँढ रहे थे और तेरा कुछ पता नहीं था।"
निया की बात सुनकर कावी बोली, "वो बस हवेली घूम रही थी। बहुत सुंदर है ना हवेली?"
फिर अपने मन में बोली, "सॉरी निया, मैं तुझे नहीं बता सकती कि मेरे साथ क्या हो रहा है, नहीं तो तू भी परेशान हो जाएगी और अभी मैं अपनी वजह से किसी को भी परेशान नहीं करना चाहती।"
तभी निया बोली, "हाँ, वो तो है और तू अकेली हवेली देखने चली गई, मुझे बताया भी नहीं।" बोलकर वह कावी को घूरने लगी। निया को ऐसे देखकर कावी उसे प्यार से गले लगा लेती है। थोड़ी देर बाद निया भी उसे बैक हग कर लेती है।
थोड़ी देर बाद, निया और कावी नंदिनी और अवंतिका के पास चली जाती हैं। उनके कमरे में जाकर वो देखती हैं कि वहाँ पर पहले से ही मान और अमर मौजूद थे जो कुछ बात कर रहे थे। जिसे देखकर निया और कावी एक साथ बोलीं, "देखो तो हमें तो! ये लोग हमें भूल गए।"
तभी मान बोला, "ऐसा बिल्कुल भी नहीं है baeutifull ladies, हम तो बस दीदी से उनकी मेहँदी के बारे में पूछ रहे थे।"
कौन है वो, जिसकी बुरी नज़र है कावी के ऊपर?????
देखते हैं अगले भाग में...................
अवंतिका के कमरे में सभी मेहँदी के बारे में चर्चा कर रहे थे।
तभी कमरे में कावी और निया आईं और एक साथ बोलीं, "हमको तो सब भूल ही गए!"
जिसे सुनकर मान और अमर एक साथ बोले, "नहीं, तुम दोनों गलत सोच रही हो, हम तो बस कल मेहँदी के बारे में बात कर रहे हैं!"
जिसे सुनकर दोनों हँस दीं, और साथ मिलकर बातें करने लगीं। सब आपस में चर्चा कर रहे थे कि कौन-कौन किस-किस गाने पर डांस करने वाला है। बातें करते वक्त बीच-बीच में मान की नज़र कावी पर जा रही थी।
क्योंकि देव के साथ वॉशरूम में भीगने की वजह से कावी के बाल गीले हो गए थे। फिर कमरे में आकर उसने अपने बाल धो लिए थे, और गीले बालों में कावी बहुत खूबसूरत लग रही थी!
मान जो ऐसे चोर नज़रों से कावी को देख रहा था, उसे अमर ने नोटिस कर लिया था और वह उसके कान के पास जाकर धीरे से बोला, "कब बताएगा तू उसको अपने दिल की बात?"
यह सुनकर मान मुस्कुराते हुए बोला, "जल्दी ही एक बार अवंतिका दी की शादी हो जाए और हम वापस चले जाएँ, और मुंबई पहुँचकर सबसे पहले मैं उसे अपने दिल की बात बता दूँगा!"
दोनों को खुसुर-फुसुर करते देख, नंदिनी ज़ोर से बोली, "अब सिर्फ़ बातें ही होंगी? बात या कुछ फंक्शन के बारे में भी सोचा है?" नंदिनी की आवाज से दोनों का ध्यान नंदिनी पर गया तो उन्होंने देखा कि नंदिनी उन्हें दोनों को देख रही थी!
वह अपनी सफ़ाई में कुछ बोलते, उससे पहले ही निया बोली, "दी, हमने तो सोच लिया है, बाकी इन दोनों का पता नहीं।" निया मान और अमर की तरफ़ इशारा करते हुए बोली!
जिसे सुनकर वे दोनों (मान और अमर) बोले, "हमने भी सोच लिया है!" और उन्होंने दोनों ने एक-दूसरे को मुस्कुरा कर देखा।
वहीं विराज के कमरे में विराज और देव एक-दूसरे से बात कर रहे थे। कुछ सोचते हुए विराज बोला, "देख देव, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि यह सब क्यों, और क्या ज़रूरत है यह सब करने की??"
उसकी बात सुनकर देव लैपटॉप पर काम करते हुए बोला, "ज़रूरत है क्योंकि मैं अभी उसके सामने नहीं आ सकता था!"
इस पर विराज बोला, "लेकिन क्यों? मतलब तूने मुझे बोला था कि वह तेरा प्यार है तो जाकर बता ना उसको, हो सकता है कि तेरी बात सुनकर वह तुझे अपना ले और तुझे यह सब करने की ज़रूरत ही ना पड़े।" विराज की बात सुनकर देव के हाथ रुक गए!
और वह अपने मन में बोला, "यह ही तो नहीं पता कि मुझे देखने के बाद उसका क्या रिएक्शन होगा!"
देव को ऐसा कुछ सोचता हुआ देखकर विराज उसे आवाज़ देते हुए बोला, "क्या बात है देव?"
तो देव ने सिर्फ़ सर हिला दिया! उस पर विराज ने भी ना में सर हिला दिया!
और कुछ देर रुककर फिर बोला, "वैसे तेरी पसंद बहुत अच्छी है, she is so beautiful।" यह सुनकर देव विराज को घूरने लगा! इस बात से अनजान विराज तो अपनी बात बोलकर मुस्कुराते हुए कुछ कुछ सोचने लगा! देव ने जब उसे ऐसे देखा तो अपनी दोनों आइब्रो सिकोड़कर विराज को देखने लगा।
जब विराज को अपने ऊपर किसी की नज़र महसूस हुई, तो उसने सामने देखा तो पाया कि देव उसे खा जाने वाली नज़र से घूर रहा था।
देव को ऐसे देखकर विराज थोड़ा डर गया, और बात को संभालने के लिए बोला, "देखो देव, ऐसा कुछ नहीं है जो तुम सोच रहे हो, मैं तो तुम दोनों के बारे में सोच रहा था!"
विराज की बात पर देव ना में सर हिलाते हुए बोला, "ज़्यादा मत सोचो, आगे की प्लानिंग पर फ़ोकस करो।"
देव की बात सुन विराज बोला, "एक बात बताओ देव, तुम कावी के सामने कब जाओगे? हमारे प्लान के लिए यह ज़रूरी है ना!"
तो उस पर देव बोला, "कल तुम्हारी मेहँदी पर।" वैसे लगता है तुमको कुछ ज़्यादा ही अपने साथ फ़्री होने दिया है, कुछ करना पड़ेगा।" देव की बात सुनकर तो विराज को तो जैसे सदमा ही लग गया!
वह अपनी आँखों में नकली आँसू लाते हुए बोला, "अब तुम मेरे साथ ऐसा करोगे देव? क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं हूँ?"
विराज को ऐसे नाटक करते देख देव बोला, "आगे की प्लानिंग पर ध्यान दो और यह नौटंकी बंद करो।" और विराज की तरफ़ देखकर बाहर की तरफ़ जाने लगा!
देव को बाहर जाते देख विराज ने चैन की साँस ली और बोला, "प्यार तो बहुत करता है यह कावी से, चलो कोई तो है जिसके लिए यह सॉफ्ट है।" इतना बोलकर वह अपना काम करने लगा।
कॉरिडोर में आकर देव ने किसी को कॉल लगाया और कॉल पिक होते ही देव सामने वाले से बोला, "सुयश, मुझे कल तुम यहाँ चाहिए, तो जल्दी से सब ख़त्म करो।" इतना बोलकर देव ने कॉल काट दिया!
इसी तरह सबका पूरा दिन निकल गया। रात में सबने खाना खाया और जल्दी सोने चले गए, क्योंकि कल मेहँदी और संगीत दोनों थे!
सब तो सोने चले गए, लेकिन ना कावी की आँखों में नींद थी और ना ही देव की आँखों में! देव आगे के बारे में सोच रहा था, और कावी जो आज उसके साथ हुआ उसके बारे में!
कुछ देर में, कावी तो सो गई, लेकिन देव को अभी भी नींद नहीं आ रही थी! इसलिए देव रूम से बाहर आ गया और कावी के कमरे की तरफ़ जाने लगा!
लेकिन जैसे ही वह कावी के रूम के पास पहुँचा तो उसे किसी की परछाई दिखी! वह चेक करने के लिए आगे बढ़ा ही था कि वह परछाई गायब हो गई!
देव ने बहुत ढूँढा लेकिन उसे कोई नहीं मिला!
थोड़ी देर सर्च करने के बाद देव वापस कावी के कमरे के पास आ गया, और देखा कि उसके कमरे की खिड़की थोड़ी खुली हुई थी!
तो देव उस खिड़की से कावी को देखने लगा। कावी सोते हुए किसी खरगोश के बच्चे जैसी दिख रही थी! उसे ऐसे देखकर देव के चेहरे पर मुस्कान आ गई! उसका तो मन कर रहा था कि अभी के अभी जाए और कावी को अपनी बाहों में भरकर किस कर ले, और उसे पकड़कर अच्छे से सो जाए, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि निया भी उसी कमरे में थी!
कुछ वक्त तक कावी को ऐसे ही देखने के बाद देव वापस से अपने कमरे में चला गया, और आज सुबह की बात सोचकर मुस्कुराते हुए सो गया!
आखिर कौन था कावी के कमरे के बाहर और क्या था देव का अगला प्लान??
जानिए अगले चेप्टर में,...
12 .... आमना सामना और मेहंदी
आज मेहंदी और संगीत, दोनों फंक्शन साथ में थे। इसलिए आज की सारी तैयारी सब साथ मिलकर करने वाले थे। सुबह सब ब्रेकफास्ट करने के बाद तैयारियों में लग गए; पहले मेहंदी का फंक्शन, फिर संगीत का!
सबने काम आपस में शेयर कर लिया था। विराज काफी देर से हॉल में सोफे पर बैठकर प्रवेश द्वार की तरफ ही देख रहा था।
उसको ऐसे किसी का इंतज़ार करते देख शालिनी जी ने विराज से पूछा, "क्या हुआ विराज? तुम क्या, किसी का इंतज़ार कर रहे हो?"
जिसके जवाब में विराज बोला, "हाँ माँ, खास दोस्त आने वाला है, उसी का इंतज़ार कर रहा हूँ।"
इस पर शालिनी जी बोलीं, "ठीक है, तो कॉल कर ले, कि कहाँ तक पहुँचा है तेरा दोस्त।"
तो विराज ने कहा, "हाँ माँ, कॉल किया था।" और वो बोला कि बस पहुँचने वाला है, बस इसीलिए इंतज़ार कर रहा हूँ।"
थोड़ी देर में, प्रवेश द्वार से दो हैंडसम आदमी अंदर आए। दोनों ही ऐसे दिख रहे थे कि कोई भी अपना दिल हार जाए!
उनको देखते ही विराज से पहले उसकी माँ आगे आई और बोली, "देव, तुम अब आ रहे हो? वैसे कैसे हो? हल्दी के बाद कहाँ चले गए थे?"
इस पर देव ने कहा, "मैं ठीक हूँ आंटी। और important था, वो emergency में कुछ काम आ गया था, इसीलिए जाना पड़ा। और काम पूरा होते ही देखिये मैं आ गया।"
देव की बात सुनकर शालिनी जी ने विराज की तरफ गुस्से में देखा और गुस्से में कहा, "मुझे बताया क्यों नहीं?"
अपनी माँ की बात सुनकर विराज बोला, "माँ, मैं आपको सरप्राइज देना चाहता था, और इसे वापस जाना था और आपसे मिला भी नहीं था! इसीलिए आपको नहीं बताया। सॉरी।"
(हल्दी के बाद देव ने विराज से कहा था, वो सबसे कह दे कि वो चला गया है क्योंकि देव अभी तक सिर्फ़ विराज की फैमिली के सामने ही आया था, कावि के सामने नहीं आया था। और विराज की फैमिली में सबको लगा कि देव काम की वजह से चला गया था।)
विराज की बात सुनके शालिनी जी ने उसके सर पर एक चपत लगाई और देव को अपने साथ अंदर ले आईं। देव और विराज कॉलेज टाइम से ही अच्छे दोस्त हैं! इसीलिए देव को विराज के घर में सब जानते थे।
देव को देखते ही विराज के डैड बोले, "अच्छा हुआ तुम वापस आ गए, अच्छा लगा!" उनकी बात पर देव ने छोटी सी स्माइल करके हाँ में सर हिला दिया।
सबसे मिलने के बाद विराज देव को अपने साथ उसके कमरे की तरफ़ ले जाने लगा। सीढ़ियों पर जाने से पहले विराज ने सुयश को नीचे ही रोक लिया। उसके ऐसे रोकने पर सुयश ने क्यों का इशारा किया। जवाब में विराज ने सिर्फ़ ऊपर की तरफ़ इशारा किया। ऊपर कॉरिडोर में कावि सीढ़ियों की तरफ़ आ रही थी!
देव की नज़र जैसे ही कावि पर पड़ी, वो जल्दी-जल्दी सीढ़ियों पर जाने लगा! देव अभी आधी सीढ़ियों पर पहुँचा था कि कावि उससे टकरा गई, क्योंकि कावि का ध्यान बिलकुल भी नहीं था आगे। कावि गिरने से पहले ही देव ने अपने मज़बूत हाथों से उसे पकड़ लिया। कावि के हाथ अपने आप डर के कारण देव के कंधों को अपनी आँखें बंद किए हुए ही पकड़ लिया।
थोड़ी देर में, जब कावि को एहसास हुआ कि किसी ने उसे पकड़ा है, तो वो धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं और सामने खड़े देव की नज़रों से उसकी नज़रें टकरा गईं!
कुछ पल के लिए तो दोनों एक-दूसरे में खो गए। हॉल और ऊपर की तरफ़ जाने के रास्ते में एक दीवार थी! जिस वजह से विराज और सुयश के अलावा किसी ने भी उन्हें ऐसे नहीं देखा। वो दोनों भी देखते ही पलट गए और मुस्कुराने लगे। उनको पता था कि ये सब देव ने जानबूझकर किया था, और सच भी था! जब देव ने देखा कि कावि अपने ही धुन में आ रही है और उसका ध्यान नहीं है, तो देव सीढ़ियों पर लगभग ऊपर आकर, जब कावि नज़दीक आई तो उसने पैर से कार्पेट खींच दी, जिससे कावि का बैलेंस बिगड़ गया और वो गिरने लगी तो देव ने उसे पकड़ लिया! दोनों एक-दूसरे की आँखों में खो से गए थे।
थोड़ी देर बाद देव का फोन रिंग हुआ, जिससे दोनों वापस अपने होश में आए। जैसे ही दोनों अलग हो रहे थे, कावि की चैन देव के शर्ट के बटन में अटक गई! कावि ने जल्दी से अपनी चैन निकाली और सॉरी बोलकर जाने लगी।
तभी देव बोला, "मुझे लगा बचाने वाले को थैंक यू कहते हैं।"
जिसके जवाब में कावि पलटकर बोली, "हाँ, थैंक यू तो बोलते हैं, लेकिन नॉर्मल इंसान को, किसी खड़ूस इंसान को नहीं!"
कावि का जवाब सुनकर देव के साथ-साथ विराज और सुयश दोनों बस कावि को देखते ही रह गए!
और देव थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोला, "एक तो मैंने तुम्हें बचा लिया, और तुम मुझे खड़ूस बोल रही हो!"
तो फिर कावि इतराते हुए बोली, "हाँ, बोला खड़ूस! क्योंकि दिखने में एकदम खड़ूस हो, इसीलिए!"
और जल्दी से निकल गई! उसके जाने के बाद देव के फेस पर स्माइल आ गई!
वो स्माइल कर ही रहा था कि विराज उसके पास आकर धीरे से बोला, "खड़ूस!" जिसे सुयश को भी हँसी आ गई; दोनों को ऐसे दांत दिखाते देख देव थोड़ा गुस्से में बोला, "हो गया दोनों का तो अब चले!"
देव को गुस्से में देख दोनों चुपचाप देव के पीछे-पीछे जाने लगे!
नीचे कावि देव से झगड़ तो आई थी, लेकिन वह कन्फ्यूज्ड थी, क्योंकि जब देव ने उसे छुआ तो उसे वही फीलिंग आ रही थी जो किस करते वक्त आई थी। वो अपने आप से बोली, "कहीं ये वही तो नहीं? नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है?" पता करना पड़ेगा!
इतना बोलकर वो अपने काम पर लग गई।
6 बजे शाम का वक़्त,
सब हॉल में आ गए थे क्योंकि मेहँदी का फंक्शन स्टार्ट होने वाला था! विराज की माँ शालिनी जी ने सीमा जी से कहा, "अवंतिका को बुला लीजिए, मेहंदी शुरू करनी है। इसके बाद संगीत भी तो होना है!"
इसलिए सीमा जी ऊपर की तरफ़ जाने लगीं। ऊपर पहुँचने से पहले ही वो देखती हैं कि नंदिनी, कावि और निया अवंतिका को लेकर आ रहे थे। सीमा जी उन्हें देखकर स्माइल करने लगीं!
देव भी हॉल में ही था! वो बार-बार ऊपर की तरफ़ ही देख रहा था। ये बात सुयेश और विराज के अलावा कोई भी नोटिस नहीं कर सकता था क्योंकि वो सीढ़ियों की तरफ़ ही चेहरा करके खड़ा था! इसलिए देखने वालों को लगा कि वो सामान्य ही खड़ा है।
एक बार फिर उसने ऊपर की तरफ़ देखने लगा। इस बार उसका इंतज़ार खत्म हुआ, उसको कावि दिखी! सबने ग्रीन से रिलेटेड ही पहनना था। कावि ने भी ग्रीन कलर का शरारा पहना था, बालों को आगे से थोड़ा डिज़ाइन करके बाँधा था, कानों में झुमके, माथे पर बिंदी, हाथ में कंगन, हल्के गुलाबी रंग की लिपस्टिक, आँखों में काजल, हल्का मेकअप; कावि बहुत सुंदर लग रही थी। देव ने भी इंडो-वेस्टर्न कुर्ता पायजामा पहना था, वो भी बहुत हैंडसम लग रहा था।
निया और नंदिनी भी बहुत खूबसूरत लग रही थीं, और अवंतिका की शादी है तो उसकी खूबसूरत लगना ही था। शादी तो अवंतिका की थी लेकिन सारी अटेंशन कावि को मिल रही थी! क्योंकि वो बिना मेकअप के भी बहुत सुंदर लग रही थी।
सब नीचे आते हैं। अवंतिका को उसकी जगह पर बिठाकर सीमा जी सगुन की मेहंदी के साथ स्टार्ट करती हैं, फिर बाकी सब भी मेहंदी लगाना स्टार्ट करती हैं! अवंतिका के दोनों तरफ़ नंदिनी, कावि और निया बैठी हुई थीं। नंदिनी और निया भी मेहंदी लगा रही थीं, लेकिन कावि ऐसे ही बैठकर राजस्थानी लोक नृत्य एन्जॉय कर रही थी!
(राजस्थान में फंक्शन हो और घूमर न हो ऐसा हो ही नहीं सकता!)
बाकी सब एन्जॉय कर रहे थे, तभी एक मेहंदी वाली आई और कावि के हाथों में मेहंदी लगाने लगी! कावि भी मेहंदी लगवाने लगी!
मेहंदी लगाने के बाद जब कावि ने डिज़ाइन देखा तो वो बोली, "आपने तो बहुत ही अच्छा बनाया है, लेकिन बीच में क्या है समझ नहीं आ रहा है, लेकिन अच्छा दिख रहा है।"
मेहंदी वाली ने घूँघट डाला था। उसने सर हिला दिया और बोली, "वो आपके दोस्त ने ये डिज़ाइन बताया था।"
मेहंदी वाली की बात सुनकर कावि बोली, "दोस्त? कौन...?" जिसके जवाब में मेहंदी वाली ने एक तरफ़ इशारा कर दिया!
कौन था वो जिसके कहने पर मेहंदी लगी?
मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टर में।
13...mr khadus
मेहंदी वाली की डिज़ाइन देखकर कावि बोली, "आपने तो बहुत ही अच्छा बनाया है, लेकिन ये बीच में क्या लिखा है, कुछ समझ नहीं आ रहा है!"
कावि की बात सुनकर मेहंदी वाली बोली, "आपके दोस्त ने ये डिज़ाइन दिया है आपके हाथ पर बनाने के लिए!"
उसकी बात सुनकर कावि कन्फ्यूजन होकर बोली, "मेरे दोस्त ने मतलब!"
जिसके जवाब में मेहंदी वाली ने एक तरफ इशारा किया। जब कावि ने उस तरफ देखा तो देव और मान दोनों खड़े थे! देव विराज से बात करने में व्यस्त था, और मान अवंतिका के डैड के साथ खड़ा था और कवि को देखकर मुस्कुरा रहा था! मान को अपनी तरफ मुस्कुराता देख कावि भी मुस्कुरा दी, और अपने मन में बोली, "मान ही होगा, जिसने डिज़ाइन दिया होगा!"
फिर कुछ न सोचते हुए वो निया के पास जाकर बैठ गई और बोली, "निया तेरी मेहंदी दिखा।" निया ने मेहंदी दिखाया तो कावि ने कहा, "कितनी सुंदर है!"
फिर निया खुशी से बोली, "अब तेरी दिखा!" तो कावि ने भी दिखाया!
कावी की मेहंदी देखकर निया बोली, "कावि, डिज़ाइन तो बहुत सुंदर है, लेकिन ये बीच में क्या लिखा है, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"
उस पर कावि बोली, "मुझे भी समझ नहीं आ रहा है ये। डिज़ाइन मान ने सेलेक्ट किया है, और अच्छा भी है, तो छोड़ ना!"
कावि की बात सुनकर निया ने भी मान की तरफ देखा जो कावि की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था! मान को खुश देखकर उसने भी ज़्यादा न सोचते हुए कावि से बात करने लगी।
थोड़ी देर बात करने के बाद निया कावि से बोली, "कावि, देख ना कितना हैंडसम है ये, लेकिन ये smile क्यों नहीं करता है? ये हंसेगा तो और भी handsome लगेगा।"
वो देव की तरफ देखकर बोल रही थी! पहले तो कावि कन्फ्यूज़्ड थी, लेकिन जब उसने निया की नज़रों का पीछा किया तो पाया कि वहाँ देव खड़ा था। पहले तो कावि को थोड़ी जलन हुई।
लेकिन बाद में वो बोली, "हैंडसम वाला खडूस है वो!"
कावि की बात सुनकर निया अपनी दोनों आइब्रो सिकोड़कर बोली, "मतलब तूने इस से भी झगड़ा कर लिया?" उस पर कावि ने बस सर नीचे करके हाँ में सर हिला दिया और निया ने सर पीट लिया।
और बोली, "तेरा कुछ नहीं हो सकता!" बदले में कावि ने जीभ दिखा दी।
फिर रुककर कावि बोली, "चल निया, आज इस खडूस को हँसाते हैं!"
कावि की बात पर निया कन्फ्यूज होते हुए बोली, "कैसे?"
तो कावि बोली, "बस देखते जा!"
कुछ वक्त बाद मेहंदी की रस्म पूरी हो गई, और संगीत चालू होने वाला था। इसी बीच सबने छोटा सा ब्रेक ले लिया, और फिर फंक्शन शुरू हुआ।
शुरुआत में सारे राजस्थानी गाने चले, और सबने एन्जॉय भी किया! क्योंकि अवंतिका की फैमिली भी मुंबई में सेटअप हुई थी, इसलिए वो लोगों ने सारी चीजें उस हिसाब से रखी थीं कि उनको भी सब सही से समझ आए। एक-दो गाने और हुए, जिसमें अवंतिका की फैमिली और विराज की फैमिली ने परफॉर्म किया, फिर हॉल के सेंटर में अवंतिका के भाई ने आकर अनाउंस किया।
अवंतिका का भाई, "आपका को मेरी तरफ से नमस्ते। आज मेरी बहन का संगीत का फंक्शन है और सबने कुछ न कुछ परफॉर्म किया! अब मेरी बहन की फ्रेंड्स कुछ परफॉर्म करने वाली हैं।" बोलकर वो एक तरफ हो गया, और सब तालियाँ बजाने लगे!
हॉल की लाइट बंद हुई, और सेंटर में रोशनी ऑन हुई और कुछ थोड़ी सी डिम लाइट भी। जब लाइट्स ऑन हुई तो सेंटर में मान के साथ कावि और अमर के साथ निया खड़ी थी।
और सॉन्ग स्टार्ट हुआ!
ओह ओह ओह ओह
ओह ओह ओह ओह
इक्को हील दे नाल मैं कट्तेया ऐ एक साल वे
मैनु कड़े ता लाई जेया कर तू शॉपिंग मॉल वे
मेरे नाल दिया सब पार्लर साज दियां रेहंडियां
हाय हाइलाइट करा दे मेरे काले वाल वे
ये बोल पर कावि और निया आगे आईं!
वे किथों सजा तेरे लाये सारे सूट पुराने आ
हापुराने आ तेनु लहंगा
तेनु लहंगा लाई दूं मेंहंगा
जे दिलजानिया ऐने पैसे दास में किठे लाएके जाने आ वे दिलजानिया वे दिलजानिया हां.
ओह हो हो हो
ओह हो हो..
यारों पे तू नोट उडौंडा रेहंडा ऐ मेरी बारी बटुआ खाली केहंडा
ए नाल पाई जावे बहार कित्ते तैनू जाना
जे तेरा कोई न कोई नवा बहाना रेहंडा ऐ
ये लाइन पर दोनों मान और अमर का बटुआ दिखाते हैं और सब हँस देते हैं!
मूवी लाई जा या पास मेरे रहजा जो दिल में है वो कहेगा मैं दिल दा हाल सुनाने आ
तेनु लहंगा तेनु लहंगा लाई दूं मेंहंगा जेया दिलजानिया मैनु लहंगा ला दे मेहंगा
वे मर्जनेया
ऐने पैसे दस तू किठे लाएके जाने आ
वे दिलजनिया हां सद मैं पूरे दिन तेरे बिन रहनी आ
सुबह शाम बस नाम तेरा ही कहना आ
ये लाइन पर मान और अमर कावि और निया के साथ में आकर डांस करते हैं!
हो तू वि सहेलियां नाल सारी रात पार्टियां करदी ऐ
वो किठे बहार नी जाना फिर क्यों मैं कहूं ऐ
तू कंजूस ऐ
वेपूरा माखी-चूस ऐ
नेचर तो बड़ा खडूस ऐ कभी हंस दिया कर मर्जनेया !!
ये लाइन पर कावि देव की तरफ इशारा करती है, जो अब तक गुस्से में आ गया था! क्योंकि मान बार-बार कावि को टच कर रहा था, लेकिन देव अपना गुस्सा अपने फेस पर शो नहीं कर रहा था! लेकिन जैसे ही वो कावि का एक्शन देखता है तो हँस देता है, और ये बात विराज और सुयश ने भी नोटिस कर ली थी! कावि भी दो पल के लिए उसको देखने लगी! तो मान उसके कंधे पर हाथ रखता है, जिसके कारण कावि ने सर हिलाकर वापस से डांस करने लगती है!
तेनु लहंगा तेनु लहंगा लाई दूं मेंहंगा
जेया दिलजानिया मैनु लहंगा ला दे महंगा
वे मरजानेया ऐने पैसे दस तू किठे लाए जाने आ वे दिलजानिया वे दिलजानिया
हां हां आ आ आ
और तालियों के साथ डांस खत्म होता है! डांस के बाद कावि, निया, मान, अमर एक जगह पर खड़े होकर पानी पी रहे थे, तभी निया, "तूने तो सच में मिस्टर खडूस को हँसा दिया!"
ये सुनकर कावि भी मुस्कुरा देती है, लेकिन मान निया की बात पर कन्फ्यूज़न में बोला, "मिस्टर खड़ूस ये कौन है?"
तो कावि और निया साथ में देव की तरफ इशारा करती हैं और, मान और अमर उस तरफ देखते हैं जहाँ देव सोफे पर बैठकर किसी से बात कर रहा था! नंदिनी और अवंतिका साथ में ही बैठे थे! तो मौका देखकर अवंतिका नंदिनी से बोली, "तू डांस नहीं करेगी?"
तो नंदिनी मुस्कुराते हुए बोली, "करूंगी ना, ज़रूर करूंगी।" और अवंतिका को सेंटर में लाती है और गाना स्टार्ट हुआ!
"मेहंदी लगा के रखना!"
"डोली सजा के रखना!"
"लेने तुझे गोरी आएंगे!"
"तेरे सजना!"
ये बोलते वक्त नंदिनी विराज की तरफ इशारा करती है, और आगे डांस करने लगती है! थोड़ी देर में अवंतिका के साथ अकेले डांस करने के बाद सब वो दोनों को ज्वाइन कर लेते हैं, मान, अमर, कावि, निया, अवंतिका के भाई-बहन सब। इसी के साथ फंक्शन पूरा होता है।
देव ये सब विराज के साथ सोफे पर बैठकर देख रहा था! एक सोफे पर घर के बुज़ुर्ग बैठकर देख रहे हैं, और दूसरे पर विराज और देव!
डांस होने के बाद कावि किचन की तरफ पानी पीने जाती है, वो किचन तक पहुँचती, उसके पहले ही वो बेहोश होकर गिर जाती है!
क्या हुआ कावि को??????
बिल्कुल शादी अवंतिका की है, लेकिन एक शादी और होगी और कैसे होगी??? आप लोग सोचो।
देखते हैं कौन सही होगा!
14... अपहरण
"मिस्टर खड़ूस" कहकर निया और कावि ने देव की ओर इशारा किया। मान और अमर दोनों ने उस ओर देखा। दोनों को यह समझने में देर नहीं लगी कि निया और कावि "मिस्टर खड़ूस" किसे कह रही हैं। वहाँ दो ही लोग बैठे थे—एक विराज और दूसरा देव। निया और कावि डांस करने के लिए चली गईं। क्योंकि नंदिनी का आखिरी डांस था, अमर भी उनके साथ चला गया। लेकिन मान को देव को देखकर कुछ अजीब सी फीलिंग होने लगी। कुछ देर में, आखिरी गाने के साथ यह फंक्शन भी खत्म हो गया।
सब बैठकर आराम कर ही रहे थे कि कावि उठकर जाने लगी। नंदिनी ने उसका हाथ पकड़कर रोकते हुए कहा, "अब तू कहाँ जा रही है?"
"कुछ नहीं दी, बस थोड़ी देर में आती हूँ।" कावि ने उत्तर दिया।
उसकी बात सुनकर नंदिनी ने उसका हाथ छोड़कर कहा, "जल्दी वापस आना।" कावि ने हाँ में सर हिलाकर चली गई।
कावि किचन के पास बनी बालकनी में गई, थोड़ी ताज़ी हवा के लिए। क्योंकि उसके डांस खत्म होने के बाद उसने पानी पिया था और तब से ही उसे कुछ बेचैनी होने लगी थी। बालकनी में आकर उसे थोड़ा आराम मिल रहा था।
थोड़ी देर में वह वहाँ से पानी पीने के लिए किचन की तरफ जाने लगी। वह पहुँच पाती उससे पहले ही वह बेहोश होकर गिर गई। उसके बेहोश होते ही दो लोग आए और उसे उठाकर ले गए।
बढ़ते समय के साथ नंदिनी को बेचैनी होने लगी। इसलिए उसने निया को कावि को चेक करने के लिए भेजा, और मान को भी।
यहाँ देव सोफे पर बैठा कुछ सोच रहा था। दरअसल, जब कावि मान के साथ डांस कर रही थी, तो देव को बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि मान डांस के वक्त बार-बार कावि को स्पर्श कर रहा था। लेकिन जब कावि ने देव की तरफ इशारा करके डांस किया, तो देव थोड़ा सा हँस दिया। क्योंकि इशारा करते वक्त कावि ने देव को जीभ दिखाकर चिढ़ाया था, और यह बहुत ही जल्दी में किया था; इसे कोई देख नहीं पाया, लेकिन देव, सुयश और विराज ने देख लिया था। और तो और, सुयश और विराज ने देव को हँसते हुए भी देखा था। देव यही सब सोच रहा था कि विराज की आवाज़ से उसका ध्यान टूटा।
लेकिन पता नहीं क्यों, उसे भी बेचैनी हो रही थी। इसलिए उसने सुयश के कान में कुछ कहा। फिर विराज से बात करने लगा, लेकिन उसकी नज़र बार-बार कावि को ही ढूँढ़ रही थी। जब उसे कावि नहीं दिखी, तो वह निया और नंदिनी को देखने लगा। उसे निया भी नहीं दिखी और नंदिनी थोड़ी परेशान लग रही थी। अब उसे और भी बेचैनी होने लगी।
थोड़ी देर में सुयश आया और देव के कान में बोला, "बॉस, मैम कहीं नहीं मिल रही है।"
"तुमने अच्छे से चेक किया?" देव ने पूछा।
"यस सर," सुयश ने कहा, "और बालकनी के वहाँ मैम की फ़्रेंड मिली थी, और वो बोल रही थी कि उनको मैम का झुमका गिरा हुआ मिला है! उन्होंने सब जगह चेक कर लिया है।"
सुयश की बात सुनने के बाद देव ने एक नज़र नंदिनी की तरफ़ देखा, जो निया से बात कर रही थी और परेशान लग रही थी।
(सुयश जब जगह चेक करके बालकनी की तरफ़ जा रहा था तो वह निया से टकरा गया, और निया ने परेशानी में सब बता दिया था!)
कुछ सोचते हुए देव जल्दी से उठकर अपने कमरे की तरफ़ जाने लगा। देव को ऐसे परेशान होते देख सुयश भी उसके पीछे-पीछे चल दिया। देव को ऐसे जाते देख, विराज ने एक नज़र सब की तरफ़ देखा और वह भी देव के कमरे की तरफ़ चल दिया।
कमरे में पहुँचकर देव ने सुयश से कहा, "यहाँ अपने जितने भी आदमी हैं, उनको बोलो कावि को ढूँढ़ने के लिए, फ़ास्ट!"
यह सुनते ही सुयश जल्दी से चला गया। सुयश के जाते ही विराज अंदर आते हुए बोला, "क्या हुआ देव? तू इतना परेशान क्यों है?"
"कावि मिसिंग है, someone kidnapped her!" देव ने जवाब दिया।
यह सुनते ही विराज एकदम से बोला, "क्या?" यह बोलते ही विराज ने देखा कि देव अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा है। उसे ऐसे लैपटॉप पर देख विराज बोला, "यह तू क्या कर रहा है? कावि मिसिंग है तो हमें उसे ढूँढ़ना चाहिए और तू..."
"ट्रेस," देव ने कहा। अब विराज और कन्फ़्यूज़न में बोला, "यह तूने कब...?"
उसका इतना ही बोलना था कि देव ने अपने लैपटॉप को लिया और बोला, "जल्दी चलो, वक्त नहीं है, सब बताऊँगा, अभी चल!"
विराज भी अब कुछ नहीं बोला और उसके साथ चल दिया। सुयश ने पहले ही कार तैयार रखी थी क्योंकि देव ने उसे कॉल करके बोल दिया था। देव कार में बैठकर खुद ड्राइव करने लगा और विराज के हाथ में लैपटॉप देकर बोला, "रास्ता बताओ, फ़ास्ट!"
सुयश को देव हवेली पर रहने को कह दिया था, क्योंकि कोई प्रॉब्लम हो तो वह उसे सूचित कर दे। देव ड्राइव कर रहा था और विराज उसे रास्ता बता रहा था क्योंकि विराज राजस्थान से ही था। इसलिए देव ने सुयश को अपने साथ न लेकर विराज को अपने साथ लाया था।
एक मंदिर में...
एक लड़की राजस्थानी दुल्हन बनकर बैठी थी और साथ में बैठा लड़का बार-बार पंडित को धमका रहा था। लेकिन दुल्हन होश में न होने की वजह से पंडित बोल रहा था, "आप जो कह रहे हैं, वह सच है, लेकिन जब तक मुहूर्त नहीं होता, तब तक यह शादी ना हो सके (थोड़ी राजस्थानी में)। और अभी थोड़ा समय बाकी है, तो थोड़ा प्रतीक्षा करें, और अगर जल्दीबाजी की तो कुछ भी हो सके।"
पंडित बोल तो रहा था अपनी जान बचाने के लिए, लेकिन उसे वह लड़की पर भी दया आ रही थी। कुछ पल रुककर वह आदमी अपने मन में बोला, "सही भी है, पहले सोचा था कि एक रात तेरे साथ मिल जाए, लेकिन नहीं, जब तू सारी ज़िंदगी मिल सकती है तो सिर्फ़ एक रात क्यों?" वह आदमी यह सोचते-सोचते गंदी हँसी हँस रहा था।
थोड़ी देर में देव वह जगह पहुँच गया जहाँ से सिग्नल आ रहा था। विराज ने देव को पहले ही बता दिया था कि वह एक मंदिर है। लेकिन जब वह लोग मंदिर के पास पहुँचे तो देखा कि मंदिर के पास कुछ लोग लाठी और डंडे लेकर खड़े थे।
नंदिनी रो-रोकर बुरा हाल थी।
मान भी कावि को लेकर परेशान था।
क्या होगा जब देव नंदिनी को लेकर हवेली वापस जाएगा?
क्या कावि यह शादी स्वीकार करेगी?
15....शादी
देव उस जगह पहुँचा जहाँ से सिग्नल आ रहा था। विराज ने देव को पहले ही बता दिया था कि वह एक मंदिर है। लेकिन जब वे लोग मंदिर के पास पहुँचे, तो देखा कि मंदिर के पास कुछ लोग लाठी और डंडे लेकर खड़े थे।
इसलिए देव ने कार थोड़ी दूर पर ही रोक ली। और फिर दोनों ने आँखों से एक-दूसरे को इशारा किया, और कार से उतरकर मंदिर की तरफ आने लगे। जब गुंडों ने देखा कि दो लोग मंदिर की तरफ आ रहे हैं,
तो उनमें से एक गुंडा आगे आकर बोला, "आप यह मंदिर में नहीं जा सकते!"
"क्यों भाई? क्यों नहीं जा सकते?" विराज ने पूछा।
वह गुंडा डराते हुए बोला, "क्योंकि अभी हमारे मालिक की शादी हो रही है मंदिर में, इसलिए। और उनका हुक्म है कि अभी कोई भी मंदिर में न आये!"
इतना बोलते ही वह आदमी जमीन पर जोर से गिर पड़ा, क्योंकि शादी सुनते ही देव की आँखें आग उगलने लगीं, और एक जोर का मुक्का उसने उस आदमी के मुँह पर मारा। जिससे वह आदमी मुँह के बल नीचे गिर गया। वह आदमी को मार खाता देख, बाकी के आदमी भी देव और विराज की तरफ भागे।
उन्हें लगा कि ये लोग क्या कर सकते हैं? हम तो सात-आठ लोग हैं, और ये दो।
लेकिन जैसे ही सारे आदमी देव और विराज के सामने आए, एक पल के लिए डर गए। क्योंकि दोनों की मस्कुलर जिम बॉडी उनके कपड़ों के ऊपर से भी पूरी तरह पता चल रही थी! फिर भी वे आदमी देव और विराज से लगे पड़े।
मंदिर में वह आदमी अब इरिटेट होते हुए बोला, "ये पंडित मुझे कुछ नहीं सुनना समझा। चल, शादी करा!"
पंडित को जब लगा कि वह कुछ नहीं कर सकता, तो उसने भी मंत्र पढ़ना चालू कर दिया। मंदिर के बाहर लगभग देव और विराज ने सबको घायल कर दिया था।
तभी विराज बोला, "देव, बाकी को मैं संभाल लूँगा। तू कावि के पास जा!"
तो देव ने हाँ में सर हिला दिया, और मंदिर में जाने लगा। मंदिर में पहुँचकर देव ने देखा कि कावि बेसुध बैठी है, और पंडित मंत्र पढ़ रहा है, और वह आदमी जबरदस्ती कावि का हाथ पकड़ा है। देव जल्दी से भागकर गया, और कॉलर पकड़कर उस आदमी को वहाँ से उठा दिया, और एक पंच खींचकर उसके मुँह पर मारा।
देव ने इतनी जोर से मारा था कि थोड़ी देर के लिए वह आदमी अपने होश खो बैठा। लेकिन देव जानता था कि वह आदमी इतनी जल्दी हार नहीं मानेगा। इसके लिए, उसके होश में आने से पहले ही खुद दूल्हे की जगह पर बैठकर पंडित को आगे जारी रखने का इशारा किया। पंडित ने भी कुछ नहीं कहा और मंत्र पढ़ने लगा। फिर पंडित ने देव को फेरे लेने के लिए बोला। देव तो खड़ा हो गया, लेकिन कावि तो अभी भी होश में नहीं थी। इसलिए देव ने उसे अपनी गोद में उठा लिया, और फेरे लेने लगा।
फेरे पूरे होने के बाद में पंडित जी ने माता रानी के चरणों से सिंदूर और मंगलसूत्र उठाकर देव को दिया।
देव ने वह सिंदूर कावि की मांग में भर दिया और वह मंगलसूत्र भी पहना दिया। इसी के साथ शादी पूरी हुई। पंडित ने आखिर में बोला, "जजमान, आपने बहुत ही शुभ मुहूर्त में यह शादी की है, आपका जीवन मंगलमय हो!" देव ने एक बार कावि को देखा और उसे वैसे ही मंदिर से बाहर लेकर आ गया।
विराज भी अब तक देव के पास आ गया था, और सुयश पुलिस लेकर। और हवेली में भी सबको कावि की किडनैपिंग के बारे में पता चल गया था।
देव जब मंदिर के अंदर पहुँचा तो देखा कि वह आदमी कावि से जबरदस्ती शादी कर रहा है। यह देखते ही देव का गुस्सा और ज़्यादा बढ़ गया!
वह तुरंत गया, और उस आदमी का कॉलर पकड़कर खड़ा किया और चिल्लाकर बोला, "मेरी मिस्टी से शादी करेगा? तेरी यह हिम्मत!" और खींचकर उसके मुँह पर दे मारा!
वह आदमी कुछ समझ पाता, उससे पहले ही वह बेहोश हो गया। यहाँ पहुँचने से पहले ही विराज ने देव को बता दिया था कि इस मंदिर में हुई शादी को कोई भी नकार नहीं सकता है, इसीलिए देव ने दूल्हे की जगह खुद कावि के साथ शादी कर ली!
कावि अभी पूरी तरह से होश में नहीं आई थी, क्योंकि जो दवा कावि को दी गई थी, वह बहुत ही strong dose थी। देव कावि को गोद में लेकर मंदिर से बाहर आ गया!
अब विराज भी देव के पास आ गया था, और सुयश भी पुलिस लेकर आ गया। जब देव ने पुलिस को देखा तो विराज से इशारों में पूछा, "पुलिस कैसे आई?" उसकी बात समझकर विराज ने जवाब दिया, "मैंने सुयश को कार में ही मैसेज कर दिया था, इमरजेंसी के लिए!"
देव अभी कोई तमाशा नहीं खड़ा करना चाहता था, इसलिए देव ने खुद कोई एक्शन नहीं लिया, नहीं तो वह उस आदमी को अपने हिसाब से सजा देता। और देव की दी हुई पनिशमेंट कैसी होती है, यह तो भगवान ही जाने, लेकिन अभी के लिए यह सही है कि पुलिस उसे ले जाए!
देव जल्दी से कार के पास गया, और पीछे की सीट पर वह कावि के साथ बैठ गया, और सुयश ड्राइविंग सीट पर और बाजू की सीट पर विराज।
वहाँ से निकलने से पहले विराज ने पुलिस वालों से उस आदमी को हवेली पर लाने के लिए बोल दिया!
विराज राजस्थान का नामी बिजनेसमैन होने की वजह से पुलिस वालों ने भी ज़्यादा कुछ ना बोलकर गाड़ी हवेली की तरफ ले ली!
वही कुछ याद करते हुए विराज देव से बोला, "'देव, तुमने बताया नहीं ट्रेसिंग के बारे में।"
विराज का सवाल सुनकर देव बोला, "उसकी अँगूठी... मैंने उसकी रिंग वैसी ही बनवाई थी, और रिंग में एक ट्रैकिंग डिवाइस फिट करवा दिया था। और मौका देखकर कावि की रिंग के साथ यह वाली रिंग एक्सचेंज कर दी। और मैंने हवेली में भी कावि के कमरे के बाहर किसी को देखा था, लेकिन उसका चेहरा नहीं देख पाया था! इसलिए यह किडनैपिंग हो पाई। नहीं तो मैं..." इतना बोलकर देव रुक गया और कावि को देखने लगा!
फिर देव सुयश को एक फोन देते हुए बोला, "हवेली में इसकी ज़रूरत पड़ने वाली है, तो सब टाइम पर होना चाहिए!"
यह सब सुनकर विराज हैरान होते हुए बोला, "क्या है इस फोन में?"
तो देव बोला, "एक वीडियो!"
तो विराज मज़ाकिया लहज़े में बोला, "तेरी शादी का वीडियो as proof? Not bad!"
to be continued.......
16. "नहीं है वो तुम्हारी पत्नी।"
विराज के मज़ाकिया अंदाज़ को देखते हुए देव ने गुस्से से कहा, "इडियट! ये वीडियो कावि के लिए है ताकि कोई उसे गलत ना समझे!"
फिर रुक कर बोला, "तुझे पता है ना मैं कावि के साथ शादी करना चाहता था, लेकिन ऐसे नहीं, और मेरा प्लान कल तेरी शादी के बाद का था!"
ये सुनकर विराज बोला, "'सॉरी यार! मैं तो मज़ाक कर रहा था। तू टेंशन ना ले, सब ठीक हो जाएगा!"
तभी सुयश बोला, "सर, शादी तो हो गई, लेकिन मैडम की फैमिली!"
सुयश की बात सुनकर देव कुछ सोचते हुए बोला, "उनको भी वो मिल जाएगा और फिर मिसेज सिन्हा..." बोलते हुए देव के चेहरे पर जीतने वाली मुस्कान आ गई।
विराज की हवेली में, नंदिनी सोफ़े पर बैठकर रो रही थी। उसके बाजू में निया भी नम आँखों से बैठी उसे शांत करा रही थी।
"दीदी, मत रोइए ना प्लीज़ दीदी! आपकी तबीयत खराब हो जाएगी, प्लीज़ ना दीदी!"
निया नंदिनी को समझा तो रही थी, लेकिन वो भी बहुत परेशान थी। वहीं अवंतिका के कमरे में वो और उसकी माँ भी परेशानी में थीं। अवंतिका के भाई, मान और अमर, सब एक बार फिर से पूरी हवेली में कावि को ढूँढ रहे थे। बाकी के फैमिली मेंबर्स भी हॉल में बैठे थे।
तभी विराज की दादी माँ बोलीं, "ये क्या हुआ? कितनी प्यारी बच्ची है, पता नहीं कहाँ चली गई। हे भगवान! कृपा करके उसे सही-सलामत रखना!"
दादी जी ये बोल ही रही थीं कि नंदिनी निया को पकड़कर रोते हुए बोली, "निया, कहाँ गई मेरी कावि? (फिर थोड़ा रुककर) मैं माँ को क्या जवाब दूँगी? मैंने माँ से वादा किया था कि मैं उसका ख्याल रखूँगी और मैं नहीं रख पाई!"
ऐसे ही बोल-बोलकर नंदिनी कावि के लिए रोये जा रही थी। तभी विराज के डैड का फ़ोन रिंग हुआ। उन्होंने कॉल रिसीव किया और थोड़ी दूर जाकर कॉल पर बात करने लगे। थोड़ी देर में बात करके वापस आए और बोले, "कावि मिल गई है और सबके साथ घर आ रही है!"
ये सुनते ही मानो नंदिनी के जान में जान आई और जल्दी से विराज के डैड के पास जाकर बोली, "कहाँ है अंकल? कावि, प्लीज़ बताइए ना! मुझे अभी के अभी उसके पास जाना है, प्लीज़ मुझे ले चलिए ना!"
नंदिनी को ऐसे परेशान देख विराज के पिताजी ने नंदिनी से कहा, "बेटा, प्लीज़ शांत हो जाओ!"
और फिर अवंतिका के डैड ने नंदिनी के सर पर हाथ रखते हुए कहा, "बेटा, तुम कहाँ जाओगी? और विराज के डैड ने कहा ना कि वो लोग कावि को लेकर आ रहे हैं, तो तुम प्लीज़ शांत हो जाओ।"
और निया की तरफ़ देखते हुए बोले, "बेटा, नंदिनी को पानी पिलाओ!"
निया नंदिनी को पकड़कर अपने साथ सोफ़े के पास ले गई और शालिनी जी की तरफ़ देखकर पानी लेने चली गई।
और शालिनी जी नंदिनी को शांत कराने लगीं।
थोड़ी देर बाद, गाड़ियों की आवाज़ से सबको पता चल गया कि वो लोग आ गए! विराज को अंदर अकेले आते देख नंदिनी विराज के पास जाकर बोली, "तुम अकेले? मेरी बहन कहाँ है?"
विराज कुछ बोलता, उसके पहले ही देव कावि को अपनी गोद में लेकर अंदर आया और उसके पीछे-पीछे सुयश।
कावि को देव की गोद में देखकर नंदिनी जल्दी से उसके पास गई और घबराते हुए देव से पूछी, "क्या हुआ मेरी बहन को?"
अब तक सब हवेली में आ चुके थे। मान भी कावि को ऐसे देख घबरा गया और देव के पास जाकर कावि को अपने गोद में लेने की कोशिश की। उसके पहले ही देव मान को देखते हुए बोला, "Stop! मैं खुद अपनी पत्नी को उसके कमरे तक छोड़ सकता हूँ।" और देव मान के साइड से निकलकर ऊपर की तरफ़ चला गया।
बाकी सब बस देव को देखते ही रह गए, क्योंकि देव ने ये सब जोर से बोला था!
ख़ासकर 'पत्नी' शब्द पर, मान तो वहीं हवा में ही हाथ रखे कहीं खो गया, जैसे उसकी सोचने-समझने की शक्ति ही ख़त्म हो गई हो! अमर और निया तो उसे देखते ही रह गए! नंदिनी भी वहीं शॉक होकर खड़ी रह गई!
और देव की बात रिपीट करते हुए बोली, ""पत्नी!""
सबको ऐसे सदमे में देखकर विराज बोला, ""प्लीज़ आप लोग परेशान मत होइए, थोड़ी देर में सब पता चल जाएगा।""
वहीं देव कावि को उसके कमरे में ले गया और उसे बिस्तर पर सुलाकर, उसके माथे पर किस करके नीचे आ गया।
लेकिन जैसे ही नंदिनी ने देव को देखा, सीधे जाकर देव का कॉलर पकड़ते हुए बोली, "पत्नी कैसे? पत्नी नहीं है वो तुम्हारी पत्नी!" नंदिनी ये सब जोर-जोर से बोली। इतना शोर सुनकर अवंतिका और सीमा जी भी सबके साथ हॉल में आ गए। नंदिनी को ऐसे देव का कॉलर पकड़े देख अवंतिका घबरा गई।
वो कुछ कर पाती, उसके पहले ही देव गुस्से से चिल्लाकर बोला, ""मेरा कॉलर छोड़ो!"" उसकी ऐसी गुस्से भरी आवाज़ सुनकर नंदिनी के हाथ अपने आप नीचे हो गए!
फिर भी वो अपने डर को छुपाते हुए बोली, "वो तुम्हारी बीवी कैसे हुई?" (दरअसल, जब देव कावि को लेकर हवेली के अंदर आया था, तब उसका चेहरा देव के सीने में छुपा हुआ था, इसलिए किसी को कावि की मांग में सिंदूर नहीं दिखा!)
लेकिन कोई था, जिसने कुछ देख लिया था। वहीं नंदिनी कुछ बोलती, उसके पहले देव बोला, "जब हमारी शादी हो गई है, तो वो मेरी पत्नी हुई ना!"
ये सुनकर सबको और शॉक लगा, और अवंतिका विराज की तरफ़ देखने लगी तो बदले में विराज ने हाँ में सर हिला दिया!
अमर और निया मान के पास ही उसे संभाले हुए खड़े थे और हैरानी से सब सुन रहे थे।
तभी नंदिनी देव से हैरान होते हुए बोली, "शादी? मतलब तुमने मेरी बहन से शादी कर ली? अरे हालात देखे हैं उसकी, वो तो खुद होश में नहीं है, तो वो तुमसे शादी कैसे कर सकती है!"
फिर थोड़ा रुककर देव पर शक करते हुए बोली, "मतलब तुमने ये सब जानबूझकर किया? उसे बिना बताए तुमने शादी कर ली! ऐसा कैसे कर सकते हो तुम!"
नंदिनी अभी बोल ही रही थी कि पीछे से आवाज़ आई, "मैडम को बचाया है उन्होंने ये शादी करके!"
किसने क्या देखा? क्या करेगी नंदिनी?
क्या कावि अपना पाएगी ये रिश्ता?
17.....शादी कोई खेल मजाक नहीं।
नंदिनी फिर चिल्लाकर बोली, "नहीं है वो तुम्हारी बीवी!"
इस पर देव बोला, "तुम्हारे मानने या ना मानने से कुछ नहीं होता, जब शादी हुई है तो बीवी भी हुई वो मेरी!"
इस पर नंदिनी को और गुस्सा आ गया। कुछ बोलती, उसके पहले ही उसके पीछे से आवाज़ आई, "सर ने बचाया है, मैडम को ये शादी करके!"
सबने पीछे पलटकर देखा। पीछे पुलिस थी, साथ में एक आदमी। वो आदमी को देखते ही अवंतिका का भाई बोला, "वीरेंद्र तू यहां पुलिस लेकर क्यों आया है?"
अवंतिका के भाई ने इतना ही बोला था कि पुलिस वाला बोला, "ये हमें नहीं, हम इनको यहां लेकर आए हैं!"
पुलिस वाले की बात सुनकर सब कन्फ्यूज़न हो गए। सबको कन्फ्यूज़न में देखकर देव ने सुयश को इशारा किया। सुयश वहाँ से गया और किसी आदमी के साथ आया और हॉल में प्रोजेक्टर भी लगवा दिया।
वो आदमी, जो सुयश के साथ आया था, सब देखते हुए बोला, "आप सब ये सब क्या कर रहे हो, और मेरा बेटा पुलिस के साथ क्यों खड़ा है मुजरिम की तरह?"
इस पर विराज बोला, "आपके बेटे की करतूत बता रहा हूँ, सरपंच जी। वो मुजरिम है, इसीलिए ऐसे खड़ा है!"
ये आदमी गाँव का सरपंच और वीरेंद्र के पिता थे। जब विराज ने बोला कि बेटे की करतूत, तो सरपंच अपने मन में बोला, "अब क्या कर दिया इस नालायक ने?" और अपने बेटे को देखने लगा, जो सर झुकाकर खड़ा था।
सुयश ने अब तक प्रोजेक्टर पर एक वीडियो चालू कर दिया। वीडियो वीरेंद्र की आवाज़ से चालू हुआ। जैसे-जैसे वीडियो चल रहा था, वैसे ही हैरानी के साथ सब देख रहे थे। देव गुस्से से लाल होते जा रहा था।
जब वीडियो ख़त्म हुआ, तो विराज ने पहले ही देव को गुस्से में देख लिया था। वो समझ गया था कि अगर अभी देव ने कुछ किया, तो बात हाथ से निकल जाएगी। इसलिए विराज खुद आगे बढ़ गया, क्योंकि वो खुद भी बहुत गुस्से में था। उसने सब देखा था, और अवंतिका की फ़्रेंड के साथ वीरेंद्र ने ऐसा कैसे कर सकता था!
वीरेंद्र को गुस्से से कॉलर पकड़ते हुए विराज बोला, "क्या तू भूल गया था कि तू किसके घर में ये सब कर रहा था?" और जोर से धक्का मारकर वीरेंद्र को जमीन पर गिरा दिया।
विराज आगे बढ़ता, उसके पहले ही सरपंच विराज के आगे आकर बोलने लगा, "माफ़ कर दीजिए विराज बेटे, कृपया करके माफ़ कर दीजिए!"
और फिर विराज के डैड के पास जाकर, "राठौड़ साहब, विराज बेटे को बोलिए ना कि बस ये आखिरी बार माफ़ कर दे मेरे बेटे को!"
सरपंच की बात सुनकर विराज के डैड ने कहा, "नहीं सरपंच, गलत किया है तुम्हारे बेटे ने। माफ़ी नहीं मिलेगी!" और फिर विराज की तरफ़ देखकर बोले, "विराज, तुम अपने हाथ गंदे मत करो।"
और पुलिस वालों की तरफ़ देखकर बोले, "ले जाओ इसे!" उनके बोलने पर पुलिस वाले वीरेंद्र को ले जाने लगे।
सरपंच भी सर झुकाकर गुस्से में चला गया। उसका चेहरा झुक गया था, लेकिन दोनों बाप-बेटे अपने मन में बदले की भावना लेकर गए।
देव अभी भी गुस्से में ही था, लेकिन वो अपने चेहरे पर दिखा नहीं रहा था। नंदिनी एकदम से शांत हो गई थी।
उसे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। मान की भी हालत ठीक नहीं थी। एक तो उसका प्यार, वो ज़ाहिर कर पाता, उसके पहले ही उससे छिन गया, और वो कुछ कर भी नहीं पाया।
अमर और निया भी परेशान थे, मान और कावि दोनों के लिए। तभी दादी की आवाज़ से सबका ध्यान टूटा। अवंतिका और विराज दोनों की दादी विराज के सामने खड़ी थी। और फिर थोड़ा रुककर, पहले एक-दूसरे को देखा, फिर हाँ में सर हिलाकर विराज से पूछी, "क्या ये सब वही पहाड़ी वाले मंदिर में हुआ है जो...?"
वो दोनों आगे कुछ बोलतीं, उसके पहले ही विराज बोला, "हाँ दादी, वही मंदिर में हुआ है।"
फिर सबके सामने विराज की दादी बोली, "पता है कि तुम शहर वाले मानोगे नहीं, लेकिन ये सच है कि वो मंदिर में हुई शादी को कोई भी नकार नहीं सकता, और अब तुम सबको भी ये शादी माननी पड़ेगी। क्योंकि छोरी के गले में जो मंगलसूत्र है, वो बहुत ही पवित्र और माता रानी के आशीर्वाद से भरपूर है। शायद इसीलिए वो वीरेंद्र छोरी को वहीं लेकर गया था, ताकि कोई भी ये शादी को नकार ना पाए।"
दादी के बोलने के बाद नंदिनी बोली, "ऐसे कैसे दादी? हम इस इंसान को जानते ही नहीं हैं। और तो और, माँ से क्या कहेंगे कि शादी किससे हुई है? मैं क्या बोलूँगी? हम तो इसे जानते भी नहीं।" नंदिनी अपने गुस्से में देव को भला-बुरा बोल रही थी।
नंदिनी की बात पर देव को और गुस्सा आने लगा। इस बात का अंदाज़ा विराज और सुयश को हो चुका था। मान को तो ऐसा लगा कि अभी भी कोई उम्मीद बाकी है, लेकिन अगले पल वो भी टूट गई।
दादी जी सीमा जी के पास आकर बोलीं, "सीमा, रेखा तेरी दोस्त है ना, तो ये तेरी ज़िम्मेदारी है कि वो शादी के लिए मान जाए।"
और फिर दादी जी देव के सामने आकर बोलीं, "सुन छोरे, हमें पता है कि तूने कावि को बचाने के लिए ये शादी की है, और ये जानकर अच्छा लगा कि तूने ये शादी को अपना लिया है, लेकिन फिर भी हम चाहते हैं कि कल विराज की शादी के साथ-साथ तेरी शादी फिर से हो जाए, क्योंकि शादी कोई खेल मज़ाक नहीं।" दादी की बात पर देव ने हाँ में सर हिला दिया।
और नंदिनी के पास जाकर बोलीं, "कावि को बताने की ज़िम्मेदारी तेरी है।"
नंदिनी कुछ बोल पाती, उसके पहले ही दादी बोली, "कुछ नहीं सुनना है। शादी हो चुकी है, वो भी सबसे पवित्र जगह। तो कल ये शादी होगी, सिर्फ़ इसलिए कि कावि छोरी अपने मन से इस रिश्ते को अपना ले।"
फिर सबकी तरफ़ देखते हुए बोली, "बात ख़त्म हुई, और इस बारे में और चर्चा नहीं होगी। तो सब अपने-अपने कमरे में आ जाओ।" वैसे ही काफ़ी रात हो चुकी थी, इसलिए सब अपने रूम में चले तो गए थे, लेकिन नींद किसको आने वाली थी!
ऊपर से दादी जी ने कुछ लोगों को काम भी दे दिया था। सब परेशान थे, लेकिन मान की तो बात ही मत पूछो! बिचारा उसकी हालत वो ही जाने!
मान, निया, अमर कमरे में बैठे थे कि अचानक से निया दोनों को बोली, "मेरे साथ चलो, वो भी बिना सवाल के।"
वो दोनों भी चुपचाप उसके साथ जाने लगे। जैसे ही वो नंदिनी के कमरे के पास पहुँचे और अंदर देखकर हैरान हो गए!
क्योंकि अंदर विराज कुछ बात कर रहा था। और उनको वहाँ देखकर विराज उनसे बोला, "क्या तुम लोग थोड़ी देर बाद आ सकते हो?"
विराज की बात पर निया एक बार नंदिनी को देखी, तो नंदिनी ने उसे आँखों से ही इशारा कर दिया। तो निया, अमर और मान वापस चले गए।
उनके जाने के बाद विराज ने दरवाज़ा बंद कर दिया। अब वो रूम में नंदिनी, अवंतिका और सीमा जी थे। विराज कुछ पल रुका, फिर एक लम्बी साँस लेते हुए बोला, "देखिए, मैं जानता हूँ कि आप सब परेशानी में हैं, लेकिन मेरा यकीन मानिए, देव कावि को हमेशा खुश रखेगा। और वो मेरा दोस्त है, इसलिए मैं ये सब नहीं कह रहा हूँ, बल्कि मैं उसे अच्छे से जानता हूँ। और वैसे भी, जब शादी हो ही गई (नंदिनी की तरफ़ देखकर), तो मान जाओ ना, वो बहुत ही अच्छा लड़का है और कावि को हमेशा खुश रखेगा। इसके आगे मैं कुछ नहीं कहूँगा, आगे तुम्हारी मर्ज़ी।"
बोलकर वो कमरे से बाहर निकल गया।
और नंदिनी ने कावि की तरफ़ देखा, जो सिंदूरी चेहरे में बिस्तर पर बेहोश लेटी थी।
कावि को देखते हुए वो कुछ वक़्त रुककर बोली, "आंटी, आप माँ से बात कर लीजिए। मैं भी तैयार हूँ, लेकिन आखिरी फैसला कावि का होगा।"
नंदिनी की बात सुनकर सीमा जी ने हाँ में सर हिला दिया। सीमा जी ने अपना फ़ोन लिया और रेखा जी को कॉल लगा दिया।
कॉल पिक अप होते ही रेखा जी की आवाज़ आई, "कैसी हो सीमा? मैं कल आ जाऊँगी। सब तैयारियाँ हो गईं (फिर मज़ाकिया लहज़े में) हमारे शैतान कैसे हैं?" रेखा जी बोल रही थीं, और सीमा जी हिम्मत जुटा रही थीं आगे की बात करने के लिए।
रेखा जी की बात पूरी होने से पहले ही सीमा जी बोलीं, "रेखा, सुनो, मुझे तुम्हें कुछ बताना है।" और सब बताने लगीं।
सब सुनकर उनको गुस्सा आया, लेकिन पता नहीं क्या सोचकर, और सब सुनकर रेखा जी बोलीं, "ठीक है सीमा, अभी मैं तो वहाँ नहीं हूँ, तो तुम्हें जैसा ठीक लगे, और मुझे तुम पर भरोसा है।" रेखा जी ने इतना ही बोला था कि कॉल कट गया।
कॉल कटने के बाद रेखा जी ने फिर कॉल लगाया, लेकिन कॉल नहीं लगा। तो रेखा जी ज़्यादा ना सोचते हुए अपने आप से बोलीं, "Network issue होगा!"
फ़ोन रखने के बाद रेखा जी अपने मन में बोलीं, "अब तुम कुछ नहीं कर सकते, देव रॉय सेन।" और उनके चेहरे पर स्माइल आ गई।
इधर सीमा जी के फ़ोन रखते ही नंदिनी ने उनसे पूछा, "क्या हुआ आंटी? माँ ने क्या कहा?"
उस पर सीमा जी ने जवाब दिया, "रेखा मान गई है।"
उनकी बात सुनकर नंदिनी ने राहत की साँस ली।
नंदिनी को खुशी हुई कि उसकी माँ ने ये शादी को रज़ामंदी दे दी। अब नंदिनी को कावि को मनाना था।
क्या होगा जब कावि को पता चलेगा कि उसकी शादी हो गई है...? और क्या प्रतिक्रिया होगी रेखा जी की जब उनको पता चलेगा कि शादी देव से हुई है...? जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ...!
अगली सुबह, कावी को होश आया तो उसने अपना सिर पकड़कर उठने की कोशिश की। उठकर बैठने पर उसने अपने सामने नंदिनी को खड़ा पाया। नंदिनी के हाथ में नींबू पानी था, और वह कावी को ही देख रही थी।
पूरी तरह उठकर बैठने पर, नंदिनी ने उसे नींबू पानी दिया। सिर दर्द के कारण कावी ने वह पानी पी लिया और नंदिनी से बोली, "कितना सिर दर्द हो रहा है दी, वैसे टाइम क्या हो रहा है?"
"9 बजे हैं," नंदिनी ने जवाब दिया।
"क्या 9 बज गए? और आपने मुझे उठाया भी नहीं! आपको पता है ना आज अवंतिका दी की शादी है, तो फिर भी आपने मुझे नहीं उठाया। चलो कोई बात नहीं, मैं जल्दी से तैयार होकर आती हूँ।" वह उठने लगी। नंदिनी उसे देखती रही और सोच रही थी कि कैसे उससे शादी के बारे में बात करे।
कुछ सोचकर नंदिनी बोली, "कावि, एक काम करो! जाओ फ्रेश हो जाओ।"
कावि बोली, "हाँ दी, मैं जा ही रही थी। बस अभी दो मिनट में फ्रेश होकर आती हूँ।" उठने के लिए जैसे ही कावी ने कम्बल हटाया, उसे कुछ अजीब सा लगा क्योंकि वह अभी भी रात वाले कपड़ों में थी।
अपने कपड़ों को देखकर कावी ने नंदिनी से पूछा, "दी, मैंने ये कपड़े कब पहने? क्योंकि कल के फंक्शन के लिए तो मैंने शरारा पहना था, फिर ये?"
कावी की बातें सुनकर नंदिनी को कोई हैरानी नहीं हुई। नंदिनी को कहीं न कहीं अंदाज़ा था कि सुबह उठकर कावि को कुछ याद नहीं होगा।
नंदिनी को अपनी सोच में गुम देखकर कावि फिर से बोली, "बताओ ना दी, मैंने ये कपड़े कब पहने और मुझे कुछ याद क्यों नहीं?" फिर अपना सिर पकड़कर बोली, "आआह्ह्ह मेरा सर!"
कावि को ऐसे देखकर नंदिनी को बुरा तो लग रहा था, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकती थी। इसलिए उसने कावी को अपने साथ पकड़कर एक जगह ले गई और उसके सामने खड़े होकर बोली, "देख कावि, मेरी बात ध्यान से सुन और *please* शांति से काम लेना। पहले मेरी पूरी बात सुनना, उसके बाद ही कोई फैसला लेना, ठीक है?"
नंदिनी की बात सुनकर कावि थोड़ी कन्फ्यूज़्ड और घबरा गई, लेकिन खुद को संभालते हुए बोली, "ठीक है दी, लेकिन अब तो बताओ क्या बात है? कुछ हुआ है क्या?" वह हैरानी से नंदिनी को देखने लगी।
नंदिनी कुछ वक़्त रुकी, फिर कावी से बोली, "हुआ तो है!" इतना बोलकर नंदिनी ने उसका हाथ पकड़कर उसे दर्पण के सामने कर दिया।
पहले तो कावी को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन जैसे ही उसने अपने आप को देखा, दो पल के लिए उसे सदमा लग गया।
कुछ पल रुककर वह हैरानी से नंदिनी से पूछी, "दी, मेरी मांग में सिंदूर और नेक में मंगलसूत्र क्यों है? क्या कोई एक्ट किया था मैंने जो मुझे याद नहीं आ रहा है?"
कावी की बात सुनकर नंदिनी बोली, "एक्ट नहीं, कल रात तेरी शादी हुई है!"
नंदिनी की बात को हँसी में लेते हुए कावी बोली, "शादी? आप भी क्या मज़ाक कर रहे हो आप भी ना!"
इतना बोलकर कावी मुस्कुराते हुए वॉशरूम की तरफ़ जाने लगी। कावी को ऐसे जाते देख नंदिनी बोली, "रुको, मेरी बात सुनो, फिर तुम्हें जो करना है करो!"
अपनी बात खत्म करते ही, नंदिनी ने कावी का हाथ पकड़कर सोफे पर जाकर उसके साथ बैठी, फिर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कुछ बोलने वाली थी कि रुक गई।
नंदिनी के ऐसे करते ही कावी को डर लगने लगा। नंदिनी को ऐसे देखकर कावी कुछ बोलने ही वाली थी कि नंदिनी बोली, "तू कुछ मत बोल, तुझसे बात करनी है मुझे।"
फिर थोड़ा रुककर नंदिनी जल्दी से बोली, "कावि, सच में तेरी शादी हो चुकी है," और धीरे-धीरे सब बताने लगी। जैसे-जैसे नंदिनी बता रही थी, वैसे-वैसे कावी की आँखों से आँसू झरने की तरह बहने लगे थे।
सब जानने के बाद कावी बोली, "क्या माँ को सब पता है?" नंदिनी ने हाँ में सिर हिला दिया।
"माँ ने क्या कहा?" कावी ने पूछा।
तो नंदिनी ने जवाब दिया, "माँ को भी ये मंज़ूर है।" यह सुनकर कावी जैसे टूट सी गई।
"दी, मुझे कुछ वक़्त के लिए *please* अकेला छोड़ दीजिये ना।" नंदिनी कुछ बोल पाती, उसके पहले ही कावी ने नंदिनी का हाथ पकड़कर कमरे से बाहर कर दिया और दरवाज़ा भी बंद कर दिया।
कावी के ऐसा करने से नंदिनी डर गई। कुछ समय इंतज़ार करने के बाद नंदिनी ने दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन भीतर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। तो नंदिनी जोर-जोर से दरवाज़ा खटखटाने लगी। उसकी आवाज़ से सब लोग आ गए।
नंदिनी को ऐसे देखकर सब डर गए! उनको लगा कहीं कावी खुद को कुछ कर न ले! सब मिलकर कावी को आवाज़ लगाने लगे।
वहीं थोड़ी दूरी पर खड़ा देव ये सब देख रहा था और विराज भी उसके साथ था। विराज कुछ बोलता, उसके पहले ही दरवाज़ा खुल गया।
नंदिनी कुछ बोलती, उसके पहले ही कावी बोली, "दी, मैं शादी के लिए तैयार हूँ।" कावी का जवाब सुनकर दादी जी ने उसके सर पर हाथ रखा और वे सब चले गए।
शिवाय नंदिनी के, सबके जाने के बाद नंदिनी जल्दी से कमरे में आई और वह कुछ बोल पाती, उसके पहले ही कावी बोली, "दी, मैं सच में तैयार हूँ!"
और फिर नंदिनी के गले लग गई, लेकिन पता नहीं क्यों नंदिनी को कुछ ठीक नहीं लग रहा था। कुछ सोचकर नंदिनी ने कावी को हग बैक कर लिया।
यहाँ देव के पास विराज आते हुए बोला, "तुझे कैसे पता था कि वो हाँ ही बोलेगी? और मैं तुझे पहले ही बता दूँ, मैंने देख लिया था। जहाँ सब परेशान थे, वहाँ तेरे चेहरे पर सुकून था। तो अब सच बता।" इस वक़्त देव के चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं था।
विराज आगे कुछ बोलता, उसके पहले ही देव बोला, "it is none of your business."
इस पर विराज बोला, "देख देव, मैं तुझे जानता हूँ और ये भी जानता हूँ कि तू कावी से बहुत प्यार करता है, लेकिन एक बात हमेशा याद रखना, वो एक बहुत ही अच्छी लड़की है।" इतना बोलकर वो चला गया।
उसके जाते ही देव अपने मन में बोला, "मैं उससे बहुत अच्छे से जानता हूँ!"
19... शादी पूरी हुई
शाम का वक्त था। अब तक जो कुछ भी हुआ था, वो सारी बातें छोड़कर सब लोग शादी की तैयारी में लग गए थे। सारी तैयारी लगभग हो गई थी!
सारी तैयारी को देखते हुए देव ने सुयश से कहा, "मैंने जैसा कहा है, वैसा ही होना चाहिए। ध्यान से!"
देव की बात सुनकर सुयश बोला, "हाँ बॉस, सब आपके ही हिसाब से हुआ है।" अपनी बात पूरी करके सुयश वहाँ से चला गया।
और देव वहीं बेड पर रखी अपनी शेरवानी को देखने लगा। शेरवानी को देखते हुए देव को कुछ याद आने लगा।
"नहीं देव, मुझे यही चाहिए। और मैं कुछ सुनना या समझना नहीं चाहती हूँ!" एक लड़की देव से लड़ाई करते हुए बोली।
तो देव परेशान होते हुए बोला, "काशवी देखो, मैं मना नहीं कर रहा हूँ, लेकिन हम डेस्टिनेशन वेडिंग कर सकते हैं, तो फिर पारंपरिक क्यों?"
देव की बात सुनकर काशवी बोली, "हाँ हम कर सकते हैं, लेकिन मुझे ट्रेडिशनल ही करनी है और यही शेरवानी तुम पहनोगे और मैं कुछ नहीं सुनूँगी! got it!"
बिती बातों को याद करके देव मुस्कुराते हुए बोला, "तुम्हारी ही पसंद की शेरवानी पहन रहा हूँ मिस्टी, जैसा कि तुम चाहती थी।" कुछ देर शेरवानी को देखने के बाद देव फिर वाशरूम चला गया।
थोड़ी देर बाद देव वाशरूम से बाहर आकर रेडी होने लगा। पूरी तरह से तैयार होने के बाद देव ने अपने आपको मिरर में देखने लगा। ऑफ व्हाइट कलर का कुर्ता, गले पर थोड़ी एम्ब्रॉएडरी, मैरून कलर की धोती, जेल सेट हेयर, हाथों में घड़ी, पाँव में मोज़री; देव बहुत ही हैंडसम लग रहा था।
विराज के कमरे में, वो भी मिरर के सामने खड़े होकर तैयार हो रहा था। विराज भी राजस्थानी लुक में बहुत हैंडसम लग रहा था। लेकिन जब देव और विराज साथ में रहते थे, उसकी बात ही कुछ और थी!
दुल्हनों के कमरे में भी हलचल मची हुई थी। एक कमरे में अवंतिका तैयार हो रही थी।
लाल और पीले कलर के कॉम्बिनेशन में दुल्हन का जोड़ा, राजस्थानी लुक में बहुत प्यारी लग रही थी और उसके चेहरे की मुस्कान उसे और खूबसूरत बना रही थी!
वहीं दूसरी तरफ कावि का शादी का जोड़ा देव की शेरवानी से मैचिंग था! मेकअप आर्टिस्ट कावि का टच अप कर रही थी। सफ़ेद ब्लाउज़, मैरून लहंगा, कशीदाकारी दुपट्टा, हेयर स्टाइल को अच्छे से बनाकर उसे गुलाब के फूल लगाए थे। नेक में गोल्ड और पर्ल सेट, हाथों में चूड़ियों के साथ कंगन, मांगटीका, माथे पर छोटी सी बिंदी, उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में भरा हुआ काजल... मेकअप वाली ने कावि को तैयार करने के बाद उससे कहा, "मैम आप कितनी सुंदर लग रही हैं, अगर आप बुरा ना माने तो एक बात पूछूँ?"
तो कावि ने छोटी सी मुस्कान के साथ हाँ में सर हिला दिया।
कावि की बात समझकर मेकअप आर्टिस्ट ने कहा, "मैम आपने ये बंगाली लुक क्यों चुना?"
उसके सवाल पर कावि ने कन्फ्यूज़ होकर उसे देखा। कावि को कन्फ्यूज़ देख मेकअप आर्टिस्ट ने तुरंत बोला, "मैम मेरा मतलब है कि राजस्थान में सभी लोग अपनी परंपरा को लेकर बहुत कड़क हैं, इसीलिए।"
मेकअप आर्टिस्ट की बात सुनकर कावि ने एक बार खुद को मिरर में देखा। मिरर में खुद को देखते ही उसके चेहरे पर स्माइल आ गई। कावि को स्माइल करता देख मेकअप आर्टिस्ट ने कहा, "'मैम आप स्माइल करते हुए और भी खूबसूरत लग रही हैं। सच में मैंने आपसे ज़्यादा खूबसूरत दुल्हन नहीं देखी।"
"मेरी बहन वैसी ही इतनी खूबसूरत है!" आवाज़ सुनकर दोनों ने पीछे देखा तो दरवाजे पर नंदिनी खड़ी थी।
नंदिनी के आते ही मेकअप आर्टिस्ट चली गई, और नंदिनी अंदर आई और कावि से बोली, "'सच में कावि, तू बहुत खूबसूरत लग रही है।"
फिर कावि के उदास चेहरे को देखते हुए बोली, "'काशवी, तुझे ये शादी करने की ज़रूरत नहीं है।"
नंदिनी की बात सुनकर कावि बोली, "नहीं दीदी, मैं ये शादी ज़रूर करूँगी।" और एक स्माइल के साथ नंदिनी के गले लग गई।
नंदिनी ये बात अच्छे से जानती थी कि कावि अगर कोई फैसला कर ले तो वो पूरा ज़रूर करती है, इसलिए और कुछ न बोलते हुए वो कावि से बोली, "नीचे जाना है, बुला रहे हैं।" तो कावि ने हाँ में सर हिला दिया।
कावि नंदिनी के साथ मंडप की तरफ जाने लगी। शादी शुरू हो गई थी। दूल्हे पहले से ही मंडप में थे और पंडित जी ने दुल्हन को लाने के लिए कहा था। इसीलिए नंदिनी कावि को लेने गई थी। छन-छन की आवाज़ से सबका ध्यान सीढ़ियों की तरफ़ गया, और सब सीढ़ियों की तरफ़ देखने लगे। जहाँ से अवंतिका आ रही थी, विराज तो अवंतिका को देखकर एक पल के लिए खो सा गया! और अवंतिका को उसकी माँ मंडप में लाकर बिठा दी।
अब तक कावि भी आ गई और जैसे ही सबकी नज़र कावि पर गई, सबकी नज़रें फटी की फटी रह गईं और देव का तो हाल ही मत पूछो, वो एकटक कावि को ही देख रहा था।
अचानक से देव मंडप से खड़े होकर कावि की तरफ़ बढ़ गया। नंदिनी कावि का हाथ पकड़कर सीढ़ियों से नीचे ला रही थी। कावि जैसे ही नीचे आई, देव ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया।
कावि अभी तक अपनी नज़रें झुकाकर आ रही थी, और जैसे ही अपने सामने किसी का हाथ देखा, तो वो अपनी नज़रें उठाकर सामने देखने लगी। तो अपने सामने देव को खड़ा पाया और अपने आगे देव का हाथ देखकर कावि ने अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया, और उसी के साथ उसकी आँखों से आँसुओं की एक बूंद लुढ़ककर गिर गई!
और देव के चेहरे पर एक कृपण मुस्कान आ गई। देव का हाथ पकड़ते ही नंदिनी को कावि का हाथ न चाहते हुए भी छोड़ना पड़ा।
देव कावि का हाथ पकड़े हुए मंडप में ले गया और दोनों साथ में बैठ गए। पंडित जी ने मंत्र पढ़ना चालू किया। थोड़ी देर बाद पंडित जी बोले, "अब आप लोग खड़े हो जाइए, और वरमाला बदल लीजिए।" तो चारों ने वरमाला बदल ली। वरमाला बदलने के बाद फेरों के लिए देव और कावि, विराज और अवंतिका खड़े हुए।
पंडित जी आगे बोले, "पहले चार फेरों में लड़का आगे और बाकी तीन फेरों में लड़की आगे चलेगी।" और पंडित जी जैसा-जैसा बोलते गए, वो चारों ठीक वैसा ही करते गए।
फेरों के बाद दोनों अपनी जगह पर बैठ गए, और पंडित जी ने देव की तरफ़ एक थाली रख दी।
पहले देव ने कावि की मांग में सिंदूर भरा, फिर मंगलसूत्र पहना दिया। इसी के साथ पंडित जी बोले, "शादी पूरी हुई, आप लोग अपने बड़ों का आशीर्वाद ले लीजिए।"
इसी के साथ देव और कावि, विराज और अवंतिका, दोनों जोड़ों की शादी संपन्न हुई।
देव के एक्सप्रेशनलेस चेहरे पर पता नहीं चल रहा था, लेकिन देव बहुत खुश था, लेकिन कावि को तो ऐसा लग रहा था, जैसे उसकी दुनिया ही उजड़ गई।
कल तक उछल-कूद करने वाली लड़की आज एकदम चुप सी थी। सबका आशीर्वाद लेने के बाद दोनों जोड़ी कुलदेवी के मंदिर गए, जो कि हवेली के पीछे ही था। कुलदेवी का आशीर्वाद लेकर दोनों जोड़ी हवेली वापस आई।
जहाँ विराज और अवंतिका अपनी शादी से खुश थे, वहीं देव और कावि चुपचाप!
वापस आकर जैसे ही सब हाल में एंटर हुए, वैसे ही कावि के सामने कोई आ गया। वो इंसान को देखते ही कावि खुशी से उस इंसान से लिपट गई। ऐसे किसी को गले लगते देख देव की आँखें गुस्से से लाल हो गईं! देव का गुस्सा तब और ज़्यादा हो गया, जब देव ने वो इंसान का चेहरा देखा...
ऐसा कौन था जिसे गले लगते देख देव को गुस्सा आ गया? जानने के लिए पढ़ते रहिए आगे का चैप्टर...
20...बेटी या जिम्मेदारी
कुलदेवी के दर्शन के बाद हवेली में वापस आते वक्त देव बस कावि को देखे जा रहा था, क्योंकि शादी के पहले से लेकर अभी तक कावि ने कुछ भी नहीं बोला था।
कावि को ऐसे गुमसुम देखकर देव अपने मन में बोला, "सॉरी मिष्टी, जानता हूँ कि तुम मुझसे नाराज हो! लेकिन तुम्हें अपने पास लाने का मेरे पास कोई और तरीका नहीं था।"
"But I promise," बोलते हुए देव के चेहरे पर मुस्कान आ गई, "तुम्हारी नाराजगी बहुत जल्द ही दूर कर दूँगा।"
कुछ देर में सब हवेली पहुँच गए और जैसे ही सब हाल में पहुँचे, उन्होंने देखा कि हाल में बहुत सारे मेहमान आए थे! अवंतिका और विराज, देव और कावि साथ में अंदर आए। अंदर आते ही कावि की नज़र किसी पर पड़ी और वह भागकर उस इंसान के गले लग गई।
पहले तो देव को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन जैसे ही देव ने कावि को किसी के गले लगा देखा, उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं। उसका गुस्सा तब और बढ़ गया जब उसने उस इंसान का चेहरा देखा और कावि उस इंसान के गले लगी रो रही थी।
और रोते हुए उसने उससे कहा, "तुम कहाँ चले गए थे मान?" (हाँ, यह मान ही था) "तुम नहीं जानते कि मुझे तुम्हारी कितनी-कितनी ज़रूरत थी, क्यों गए तुम मुझे छोड़कर?"
कावि को ऐसे रोते देख मान को बहुत दुख हो रहा था! लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था। कावि को शांत करने के लिए उसने कहा, "मेरी नकचढ़ी देखो मैं, किसे लाया हूँ अपने साथ।" इतना बोलकर मान थोड़ा साइड हो गया।
जब वह साइड हुआ तो कावि के सामने उसकी माँ खड़ी थी! अपनी माँ को देखकर कावि उनके गले लग गई और फूट-फूट कर रोने लगी।
उसे ऐसे देखकर रेखा जी को ना जाने क्यों दर्द सा हो रहा था। कावि को ऐसे देखकर रेखा जी परेशानी भरे लहजे में बोलीं, "क्या हुआ मेरी बच्ची? ऐसे क्यों रो रही हो तुम? तुम ठीक हो ना मेरी बच्ची?"
रेखा जी को परेशान होते देख नंदिनी बोली, "माँ, आपको इतने समय बाद देख रही है, इसलिए और फिर ये सब..." बोलते-बोलते वह रुक गई।
नंदिनी की बात सुनकर रेखा जी कावि का सर सहलाते हुए बोलीं, "शांत हो जा बच्चा, सब ठीक है, और तू चिंता क्यों कर रही है? मैं हूँ ना बच्चा।"
तभी देव उनके सामने आते हुए बोला, "सही कहा आपने सासू माँ, और मैं भी तो हूँ आपकी बेटी के लिए।"
रेखा जी ने जैसे ही कुछ कहने के लिए देव की तरफ देखा, तो चौंककर बोलीं, "तुम?"
नंदिनी और कावि अपनी माँ को ऐसे चौंकते देख थोड़ी हैरान थीं। तभी नंदिनी बोली, "माँ, ये है कावि के पति देव रॉय सेन।"
नंदिनी की बात सुनकर रेखा जी के चेहरे का रंग उड़ गया और देव के चेहरे पर जीतने वाली मुस्कान आ गई! रेखा जी कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन कावि को देखकर वह चुप हो गईं क्योंकि वह पहले से ही बहुत परेशान थीं।
रेखा जी वहाँ बिना कुछ बोले चली गईं। उन्हें ऐसे जाते देख देव को छोड़कर सब हैरान हो गए, लेकिन जब सबने देखा कि वह सीमा जी के पास जा रही हैं, तो सब सामान्य हो गए।
नंदिनी, कावि और अवंतिका को अपने साथ कमरे में ले गईं! मान, निया और अमर दोनों उससे गुस्सा तो थे, लेकिन अभी हालात को देखकर कुछ नहीं बोल रहे थे। देव और विराज भी कपड़े बदलने के लिए कमरे में चले गए।
थोड़े समय बाद, दोनों जोड़े नीचे आए, एक तरफ की सीढ़ियों से विराज और अवंतिका, दूसरी तरफ से देव और कावि।
देव और विराज ने शेरवानी बदलकर इंडो-वेस्टर्न कुर्ता पहन लिया था! कावि और नंदिनी अभी भी शादी के जोड़े में ही थीं, बस उनकी ग्रूमिंग को चेंज किया था। कावि के बालों को अच्छे से हेयर स्टाइल करके फूलों से सजाया था और अवंतिका के बालों का फ्रेंच बनाया था।
नीचे आकर विराज अपने बिज़नेस पार्टनर्स, रिश्तेदारों, परिवार के सदस्यों से अवंतिका को मिला रहा था और देव ने कावि को नंदिनी के पास छोड़ दिया था।
और खुद सोफे पर बैठ गया था, क्योंकि देव बिज़नेस में एक ऐसी पर्सनालिटी था कि लोग खुद उससे मिलने के लिए तरसते थे। यहाँ भी कई बिज़नेसमैन उससे बात करने की कोशिश कर रहे थे! लेकिन देव किसी से नहीं मिल रहा था और मज़ाल है कोई बिना इजाज़त के उससे मिल ले!
अवंतिका को पहले ही विराज मिला रहा था। देव को भी शालिनी जी अपने बेटे जैसा मानती थीं, इसलिए वह भी कावि को अपने रिश्तेदारों से मिला रही थीं। शादी चाहे जैसे हुई हो, लेकिन कावि सब से अच्छे से मिल रही थी।
वहीं दूसरी तरफ, सीमा जी और रेखा जी की बहस चल रही थी। रेखा जी गुस्से में बोली जा रही थीं, "ये क्या किया सीमा तुमने? तुम्हें नहीं पता कि तुमसे क्या हो गया?"
रेखा जी की बात सुनकर सीमा जी बोलीं, "लेकिन रेखा, मैं भी तो तुम्हें यही बता रही हूँ कि मेरे पास कोई रास्ता नहीं था!"
इस बार रेखा जी बोलीं, "तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि लड़के का नाम देव रॉय सेन है?"
रेखा जी की बात सुनकर सीमा जी बोलीं, "देख रेखा, मैंने नाम बताया था, लेकिन शायद नेटवर्क इशू होने के कारण तुम सुन नहीं पाई।"
सीमा जी की बात पर रेखा जी को भी याद आया कि बात करते वक्त फोन का नेटवर्क चला गया था। वह सोच ही रही थीं कि फिर सीमा जी बोलीं, "देखो, तुम ज़्यादा सोचो मत। देव बहुत अच्छा लड़का है और विराज का दोस्त भी है, तो तुम परेशान मत हो, सब ठीक है और आगे भी ठीक होगा!" और वह रेखा जी के कंधों पर हाथ रखकर हाँ में सर हिलाते हुए कमरे से चली गईं।
सीमा जी के जाते ही रेखा जी परेशान होते हुए बोलीं, "तुम्हें कुछ नहीं पता सीमा, इसलिए बोल रही हो। मुझे देव से बात करनी होगी।" और वह भी कमरे से चली गईं। नीचे ज्यादातर मेहमान चले गए थे। देव भी बालकनी में खड़ा होकर सुयश से बात कर रहा था।
बात पूरी होने के बाद सुयश देव से बोला, "बॉस, आपने जैसा कहा था, वैसा हो गया है। मैन्सन में बता दिया है और कल के लिए चॉपर भी तैयार हो गया है।" इतना बोलकर सुयश चुप हो गया और देव के चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई।
देव ने इशारे से सुयश को जाने को बोला। सुयश के जाते ही रेखा जी बोलीं, "तुम कावि को लेकर नहीं जा सकते!"
रेखा जी की बात सुनकर देव वही मुस्कान के साथ बोला, "सासू माँ, आप भूल जाती हैं कि मैं कौन हूँ!"
देव की बात सुनकर रेखा जी गुस्से में बोलीं, "नहीं, मुझसे अच्छा कौन जानेगा तुम्हें? आखिरी बार बोल रही हूँ, मेरी बेटी तुम्हारे साथ नहीं जाएगी!"
इस पर देव तुरंत बोला, "बेटी या जिम्मेदारी?"
ये सुनते ही रेखा जी बोलीं, "बेटी है वो मेरी और तुम..."
रेखा जी आगे कुछ बोलतीं, उसके पहले ही देव बोला, "और मेरा प्यार शायद आप भूल रही हैं। जब कावि को पता चलेगा कि आपने उससे उसकी पहचान छिपाई है तो क्या होगा शायद...?"
देव आगे कुछ बोल पाता, उसके पहले ही रेखा जी दाँत पीसते हुए बोलीं, "तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे, समझें!"
फिर कुछ वक्त रुककर, "तुम प्यार का दावा करते हो ना मेरी बेटी से, तो फिर ये सब क्यों?"
उस पर देव बोला, "प्यार करता हूँ, इसीलिए चाहता हूँ कि मेरे पास रहे, सेफ। लेकिन शायद आपको उसकी सेफ्टी नहीं चाहिए।"
फिर थोड़ा रुककर देव बोला, "ठीक है, मैं उसे नहीं बताऊँगा, आप बता दीजिएगा, क्योंकि मैं तो अब और नहीं रह सकता अपने प्यार के बिना और अगर मैं खुश नहीं तो कोई खुश नहीं, आप समझ रही हैं ना मेरा मतलब सासू माँ? और एक बात, कल कावि मेरे साथ जाएगी और आप रोकने की कोशिश नहीं करेगी, समझी आप?" देव की बातों में साफ़-साफ़ धमकी थी और यह बात रेखा जी अच्छे से समझ रही थीं। अपनी बात पूरी करके देव वहाँ से चला गया।
देव किस सच्चाई की बात कर रहा था? क्या रेखा जी देव को रोकेगी? क्या करने वाला है देव अब?